PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 4 राजनीतिक समाजीकरण

Punjab State Board PSEB 12th Class Political Science Book Solutions Chapter 4 राजनीतिक समाजीकरण Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Political Science Chapter 4 राजनीतिक समाजीकरण

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
राजनीतिक समाजीकरण से आप क्या समझते हैं? राजनीतिक समाजीकरण की विशेषताओं का वर्णन करें।
(What do you understand by Political Socialization ? Explain the features of Political Socialization.)
उत्तर-
आधुनिक राजनीतिक विश्लेषण की एक महत्त्वपूर्ण धारणा राजनीतिक समाजीकरण है, जिसका महत्त्व बहुत बढ़ गया है, क्योंकि यह राजनीतिक संस्कृति और अन्त में राजनीतिक प्रणाली का आधार है।

ऑल्मण्ड तथा पॉवेल (Almond and Powell) के अनुसार, “राजनीतिक स्थायित्व और विकास को समझने के लिए राजनीतिक समाजीकरण का अध्ययन एक महत्त्वपूर्ण दृष्टिकोण है। आधुनिक विश्व में इसका विशेष महत्त्व महान् परिवर्तनों के कारण है जो आधुनिक समाजों को प्रभावित कर रहे हैं।” व्यक्ति राजनीति में भाग लेता है या नहीं, यदि वह लेता है तो किस रूप में, यदि नहीं, तो क्यों ? ये सब बातें राजनीतिक समाजीकरण से सम्बन्धित हैं।

इसका क्रमबद्ध अध्ययन 1959 में हरबर्ट हीमैन (Herbert Hyman) की पुस्तक ‘राजनीतिक समाजीकरण’ (Political Socialization) के प्रकाशित होने के बाद प्रारम्भ हुआ। आधुनिक युग में राजनीतिक लक्ष्यों की पूर्ति के लिए शिक्षा पर विशेष बल दिया जाता है। सर्व साम्यवादी समाज की स्थापना करने के लिए उनको राजनीतिक प्रशिक्षण देना अनिवार्य है।

परिभाषाएं (Definitions)-राजनीतिक समाजीकरण की विभिन्न विद्वानों ने विभिन्न परिभाषाएं की हैं, जिनमें मुख्य निम्नलिखित हैं
ऑल्मण्ड तथा पॉवेल (Almond and Powell) का कथन है, “राजनीतिक समाजीकरण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा राजनीतिक संस्कृतियों को बनाए रखा या बदला जाता है।”

एस० एन० इजेन्स्टेड (S.N. Essenstadt) के अनुसार, “जिनके साथ व्यक्ति धीरे-धीरे सामान्य सम्बन्ध स्थापित करता है, उनसे सीखने एवं उनके साथ संचार को ही राजनीतिक समाजीकरण कहते हैं।”

आस्टिन रेनी (Austin Ranney) के अनुसार, “राजनीतिक समाजीकरण का साधारणतया अर्थ जनता का समाजीकरण है, वह प्रक्रिया जिसके द्वारा आम लोग अपनी राजनीतिक व्यवस्था के प्रति अपना व्यवहार विकसित करते हैं।”

ऐलन आर० बाल (Allan R. Ball) के अनुसार, “राजनीतिक व्यवस्था के प्रति व्यवहार और विचारों का विकास एवं स्थायित्व ही राजनीतिक समाजीकरण है।
इन परिभाषाओं से स्पष्ट है कि जो बातें व्यक्ति को राजनीतिक संस्कृति से परिचित करवाती हैं या उसमें राजनीतिक अनुकूलन (Political orientation) की उत्पत्ति व विकास करती हैं, उन्हें हम राजनीतिक समाजीकरण का नाम दे सकते हैं।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 4 राजनीतिक समाजीकरण

प्रश्न 2.
राजनीतिक समाजीकरण का क्या भाव है ? इसके साधनों की चर्चा करें।
(What do you understand by Political Socialization ? Discuss its various Agencies.)
अथवा
राजनीतिक समाजीकरण से क्या अभिप्राय है ? राजनीतिक समाजीकरण के निर्माण व प्रगटावे के चार साधनों का वर्णन करें।
(What is Political Socialization ? Explain four Agents and Agencies of formation and expression of Political Socialization.)
अथवा
राजनीतिक समाजीकरण से आपका क्या अभिप्राय है ? राजनीतिक समाजीकरण प्रकट करने वाले चार साधनों का वर्णन करें।
(What do you mean by the term Political Socialization ? Describe four agents to reveal Political Socialization.)
उत्तर-
राजनीतिक समाजीकरण का अर्थ-इसके लिए प्रश्न नं० 1 देखें।
राजनीतिक समाजीकरण के साधन-राजनीतिक समाजीकरण की प्रक्रिया में बहुत-से तत्त्व हैं, जिनमें मुख्य निम्नलिखित हैं-

1. परिवार (Family) परिवार को नागरिक गुणों की प्रथम पाठशाला कहा गया है। परिवार से बच्चा बहुत कुछ सीखता है, राजनीतिक अनुकूलन भी सीखता है। सत्ता के प्रति आदर की भावना व्यक्ति परिवार से ही सीखता है। बटलर तथा स्टोक (Butler and Stoke) ने लिखा है, “परिवार को बच्चे के लिए बाहर की दुनिया पर खुलने वाली पहली खिड़की कहना चाहिए, यह बच्चे का सत्ता के साथ पहला सम्पर्क है……।” परिवार से ही बच्चे में यह भावना उत्पन्न होती है कि कार्य करते हुए उसे अपना समझकर करे और यह भागीदारी संस्कृति को जन्म देती है। निर्णय करने में भाग लेने से बच्चे में राजनीतिक व्यवस्था में सक्रिय भाग लेने की इच्छा उत्पन्न होती है और उसका राजनीतिक अनुकूलन विकसित होता जाता है।

2. शिक्षा संस्थाएं (Educational Institutions)-आल्मण्ड तथा पावेल (Almond and Powell) के अनुसार, “स्कूल ढांचा राजनीतिक समाजीकरण को प्रभावित करने वाला दूसरा शक्तिशाली तत्त्व है।”
स्कूलों-कॉलेजों में राजनीतिक समस्याओं पर विचारों का आदान-प्रदान होता है, राजनीतिक ढांचों के बारे में जानकारी दी जाती है और राजनीतिक घटनाओं पर टीका-टिप्पणी भी होती है। मॉडर्न या पब्लिक स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों में दूसरे स्कूलों के बच्चों की अपेक्षा अधिक अनुशासन पाया जाता है।

3. विशिष्ट समूह (Peer Groups) विशिष्ट समूह राजनीतिक अनुकूलन उत्पन्न करने तथा विकसित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं, विशेषकर औद्योगिक समाज में जहां पारिवारिक बन्धन ढीले होते हैं। विशिष्ट समूह से हमारा अभिप्राय ऐसे समूहों से है जिनमें लगभग एक समान आयु के व्यक्ति सम्मिलित हों और उनकी स्थिति भी लगभग एक समान हो। विशिष्ट समूह ही व्यक्तियों में आज्ञापालन तथा मिल-जुलकर काम करने की भावना पैदा करते हैं।

4. रोज़गार के अनुभव (Experience in Employment) रोज़गार के अनुभव भी व्यक्ति में राजनीतिक अनुकूलन पैदा करते हैं। आल्मण्ड तथा पावेल के अनुसार, “रोज़गार के अनुभव भी राजनीतिक अनुकूलन का निर्माण करते हैं।” व्यक्ति अपने सम्बन्धित रोज़गार संघ का सदस्य बनता है, कई बार संघ का सदस्य होने के नाते सरकार के विरुद्ध संघर्ष भी करता है, जिससे उसमें सामूहिक रूप से काम करने की भावना उत्पन्न होती है। इस प्रकार रोज़गार के अनुभव व्यक्ति में राजनीतिक अनुकूलन का विकास करते हैं।

5. धर्म (Religion)-धर्म भी राजनीतिक समाजीकरण का महत्त्वपूर्ण साधन है। धार्मिक संस्थाएं राजनीतिक समाजीकरण में महत्त्वपूर्ण योगदान देती हैं।

6. राजनीतिक दल (Political Parties)-लोकतन्त्रात्मक व्यवस्था में राजनीतिक दलों का होना अनिवार्य है। राजनीतिक दलों में लोगों की एक बहुत बड़ी संख्या एक लम्बे समय तक निरन्तर भाग लेती है। राजनीतिक दल अपनी गतिविधियों द्वारा राजनीतिक समाजीकरण की प्रक्रिया को निरन्तर चलाए रखते हैं।

7. मताधिकार (Franchise), मताधिकार राजनीतिक समाजीकरण का महत्त्वपूर्ण साधन है, प्रायः सभी लोकतान्त्रिक देशों में नागरिकों को वयस्क मताधिकार प्राप्त हैं। निश्चित अवधि के पश्चात् विधानमण्डल के चुनाव होते हैं और मतदान वाले दिन नागरिक अपना वोट डालने मतदान केन्द्र पर जाते हैं और अपनी राजनीतिक सूझबूझ से मत का प्रयोग करते हैं। मतदान से पूर्व जब दलों के नेता और उम्मीदवार मतदाता के पास जाते हैं तब उनका राजनीतिक विकास होता है।

8. सरकार की गतिविधियां (Activities of Government) सरकार की गतिविधियां राजनीतिक समाजीकरण का साधन हैं। सरकार सार्वजनिक नीतियां, योजनाएं एवं कानून बनाती है। सरकार की नीतियां एवं कानून अच्छे भी हो सकते हैं और बुरे भी। कुछ लोग सरकार की नीतियों से सन्तुष्ट होते हैं और कुछ असन्तुष्ट हो सकते हैं। जो लोग सरकार की नीतियों से सन्तुष्ट होते हैं, वे राजनीतिक व्यवस्था के प्रतिनिष्ठा रखते हैं। जो लोग सरकार की गतिविधियों से सन्तुष्ट नहीं होते, वे राजनीतिक व्यवस्था से दूर रहते हैं और विरोध करते हैं। अतः ऐसे लोग राजनीतिक व्यवस्था के स्थायित्व के लिए चुनौती बन जाते हैं।

9. प्रचार साधन (Mass Media)-सूचना तथा प्रसार के साधन जैसे कि प्रेस, समाचार-पत्र, रेडियो, टेलीविज़न आदि भी राजनीतिक समाजीकरण के महत्त्वपूर्ण तत्त्व हैं। इनके द्वारा लोगों को राजनीतिक सूचना मिलती है, विभिन्न घटनाओं पर लोगों के विचार पढ़ने व सुनने को मिलते हैं।

10. प्रतीक (Symbols)-राजनीतिक और सामाजिक प्रतीक भी राजनीतिक समाजीकरण का एक महत्त्वपूर्ण तत्त्व है और राजनीतिक अनुकूलन के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं। इन प्रतीकों में देशभक्तों के जन्मदिन शहीदी दिवस, राष्ट्रीय महत्त्व की घटनाओं को उत्सव के रूप में मनाना आदि सम्मिलित है।

11. साहित्य (Literature) साहित्य भी राजनीतिक समाजीकरण का एक महत्त्वपूर्ण साधन है। व्यक्ति जिस प्रकार के साहित्य का अध्ययन करता है, उसके अनुरूप ही उसके विचारों पर गहरा प्रभाव पड़ता है, जैसे श्री भगवद्गीता ने महात्मा गांधी की राजनीति को बहुत अधिक प्रभावित किया था।

12. महान् राष्ट्रीय नेताओं के भाषण और लेख (Speeches and Writings of Great National Leaders)-महान् राष्ट्रीय नेताओं के भाषण और लेख एक महत्त्वपूर्ण साधन हैं। विकासशील देशों में करिश्माई व्यक्तित्व व राष्ट्रीय नेताओं के विचारों एवं आदर्शों का विशेष महत्त्व होता है। राष्ट्रीय नेता जब लोगों के सामने अपने राजनीतिक विचार एवं आदर्श रखते हैं तो जनता साधारणतया उनको मान लेती है और लोग उनके विचारानुसार ही अपने राजनीतिक विचार बनाने लग जाते हैं।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 4 राजनीतिक समाजीकरण

लघु उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
राजनैतिक समाजीकरण से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
आधुनिक राजनीतिक विश्लेषण की एक महत्त्वपूर्ण धारणा राजनीतिक समाजीकरण है, जिसका महत्त्व बढ़ गया है, क्योंकि यह राजनीतिक संस्कृति और अन्त में राजनीतिक प्रणाली का आधार है। राजनीतिक समाजीकरण राजनीतिक तथा सामाजिक व्यवस्थाओं को जोड़ने वाली एक महत्त्वपूर्ण कड़ी है। राजनीतिक समाजीकरण का महत्त्व उस समय अधिक बढ़ जाता है जब हम राजनीतिक सहभागिता (Political Participation) का अध्ययन करते हैं। व्यक्ति राजनीति में भाग लेता है या नहीं, यदि वह भाग लेता है तो किस रूप में, यदि नहीं, तो क्यों ? ये सब बातें राजनीतिक समाजीकरण से सम्बन्धित हैं। जो बातें व्यक्ति को राजनीतिक गतिविधियां, राजनीतिक ढांचे तथा राजनीतिक व्यवस्था से परिचित करती हैं, उन्हें हम राजनीतिक समाजीकरण का नाम देते हैं।

प्रश्न 2.
राजनीतिक समाजीकरण की चार परिभाषाएं लिखें।
उत्तर-
राजनीतिक समाजीकरण की परिभाषाएं निम्नलिखित हैं-

  • आल्मण्ड तथा पॉवेल का कथन है, “राजनीतिक समाजीकरण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा राजनीतिक संस्कृति को बनाए रखा या बदला जाता है।”
  • डेनिस कावनाग ने लिखा है, “राजनीतिक समाजीकरण की शब्दावली उस प्रक्रिया का वर्णन करने के लिए प्रयोग की जाती है जिसके द्वारा व्यक्ति राजनीति के प्रति अनुकूलन सीखता और विकसित करता है।”
  • ऑस्टिन रेनी के अनुसार, “राजनीतिक समाजीकरण का साधारणतया अर्थ जनता का समाजीकरण है, वह प्रक्रिया जिसके द्वारा आम लोग अपनी राजनीतिक व्यवस्था के प्रति अपना व्यवहार विकसित करते हैं।”
  • एलन आर० बाल के अनुसार, “राजनीतिक व्यवस्था के प्रति व्यवहार और विचारों का विकास एवं स्थायित्व ही राजनीतिक समाजीकरण।”

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 4 राजनीतिक समाजीकरण

प्रश्न 3.
राजनीतिक समाजीकरण की कोई तीन विशेषताएं लिखिए।
अथवा
राजनीतिक समाजीकरण की कोई चार विशेषताएं लिखें।
उत्तर-
राजनीतिक समाजीकरण की मुख्य विशेषताएं इस प्रकार हैं-

  • राजनीतिक समाजीकरण की क्रिया सभी समाजों में पाई जाती है-राजनीतिक समाजीकरण की क्रिया किसी विशेष समाज में ही नहीं होती बल्कि राजनीतिक समाजीकरण की क्रिया सभी समाजों में पाई जाती है। राजनीतिक प्रणाली चाहे लोकतान्त्रिक हो या सर्वाधिकारवादी, राजनीतिक समाजीकरण का पाया जाना अनिवार्य है।
  • सीखने की प्रक्रिया-राजनीतिक समाजीकरण मूलतः सीखने की प्रक्रिया है। यह प्रक्रियाओं का एक प्रतिरूप
  • राजनीतिक समाजीकरण का सम्बन्ध समस्त राजनीतिक जीवन से-राजनीतिक समाजीकरण में केवल राजनीतिक अध्ययन ही शामिल नहीं होता, बल्कि इसका सम्बन्ध, समस्त अध्ययन जो राजनीतिक जीवन से सम्बन्ध रखता है, से होता है।
  • राजनीतिक समाजीकरण में औपचारिक और अनौपचारिक दोनों प्रकार की राजनीतिक शिक्षा शामिल है।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
राजनीतिक समाजीकरण का अर्थ लिखें।
उत्तर-
आधुनिक राजनीतिक विश्लेषण की एक महत्त्वपूर्ण धारणा राजनीतिक समाजीकरण है, जिसका महत्त्व बढ़ गया है, क्योंकि यह राजनीतिक संस्कृति और अन्त में राजनीतिक प्रणाली का आधार है। जो बातें व्यक्ति को राजनीतिक गतिविधियां, राजनीतिक ढांचे तथा राजनीतिक व्यवस्था से परिचित करती हैं, उन्हें हम राजनीतिक समाजीकरण का नाम देते हैं।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 4 राजनीतिक समाजीकरण

प्रश्न 2.
राजनीतिक समाजीकरण की कोई दो विशेषताएं लिखें।
उत्तर-
राजनीतिक समाजीकरण की मुख्य विशेषताएं इस प्रकार हैं

  • राजनीतिक समाजीकरण की क्रिया सभी समाजों में पाई जाती है-राजनीतिक समाजीकरण की क्रिया किसी विशेष समाज में ही नहीं होती बल्कि राजनीतिक समाजीकरण की क्रिया सभी समाजों में पाई जाती है।
  • सीखने की प्रक्रिया-राजनीतिक समाजीकरण मूलतः सीखने की प्रक्रिया है। यह प्रक्रियाओं का एक प्रतिरूप है।

प्रश्न 3.
राजनीतिक समाजीकरण के दो प्रकार लिखें।
उत्तर-

  • प्रकट अथवा प्रत्यक्ष राजनीतिक समाजीकरण-जब व्यक्ति प्रकट अथवा प्रत्यक्ष साधनों द्वारा राजनीतिक प्रणाली के प्रति अनुकूलन ग्रहण करता है तो उसे प्रकट अथवा प्रत्यक्ष राजनीतिक समाजीकरण कहा जाता है।
  • लुप्त अथवा अप्रत्यक्ष समाजीकरण-जब व्यक्ति अप्रत्यक्ष साधनों द्वारा राजनीतिक संस्कृति के मूल्यों को ग्रहण करता है तब उसे लुप्त अथवा अप्रत्यक्ष समाजीकरण कहा जाता है।

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प्रश्न 4.
राजनीतिक समाजीकरण के दो साधन लिखिए।
उत्तर-

  • परिवार-परिवार को नागरिक गुणों की प्रथम पाठशाला कहा गया है। परिवार से बच्चा बहुत कुछ सीखता है, राजनीतिक अनुकूलन भी सीखता है। सत्ता के प्रति आदर की भावना व्यक्ति परिवार से ही सीखता है।
  • शिक्षा संस्थाएं-स्कूलों-कॉलेजों में राजनीतिक समस्याओं पर विचारों का आदान-प्रदान होता है, राजनीतिक ढांचों के बारे में जानकारी दी जाती है और राजनीतिक घटनाओं पर टीका-टिप्पणी भी होती है। मॉडर्न या पब्लिक स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों में दूसरे स्कूलों के बच्चों की अपेक्षा अधिक अनुशासन पाया जाता है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न-

प्रश्न I. एक शब्द/वाक्य वाले प्रश्न-उत्तर-

प्रश्न 1.
राजनीतिक समाजीकरण के कोई दो साधनों के नाम लिखें।
अथवा
राजनीतिक समाजीकरण के दो साधन बताइए।
उत्तर-

  1. परिवार
  2. शिक्षण संस्थाएं।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 4 राजनीतिक समाजीकरण

प्रश्न 2.
मानव जीवन के किस स्तर पर राजनीतिक समाजीकरण की क्रिया होती है ?
उत्तर-
राजनीतिक समाजीकरण की क्रिया जीवन भर होती रहती है।

प्रश्न 3.
राजनीतिक समाजीकरण से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
राजनीतिक समाजीकरण उस विधि का नाम है जिस द्वारा व्यक्ति राजनीतिक प्रणाली के प्रति आचारव्यवहार सीखता है।

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प्रश्न 4.
राजनीतिक समाजीकरण की कोई एक परिभाषा लिखें।
उत्तर-
आलमण्ड तथा पॉवेल के अनुसार, “राजनीतिक समाजीकरण वह प्रक्रिया है, जिसके द्वारा राजनीतिक संस्कृतियों को बनाए रखा या बदला जाता है।”

प्रश्न 5.
राजनीतिक समाजीकरण का राजनीतिक संस्कृति से क्या सम्बन्ध है ?
उत्तर-
राजनीतिक संस्कृति को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को देने की प्रक्रिया को ही राजनीतिक समाजीकरण का नाम दिया जाता है।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 4 राजनीतिक समाजीकरण

प्रश्न 6.
राजनीतिक समाजीकरण की दो किस्मों के नाम बताएं।
उत्तर-

  1. प्रकट अथवा प्रत्यक्ष राजनीतिक समाजीकरण।
  2. लुप्त अथवा अप्रत्यक्ष राजनीतिक समाजीकरण।

प्रश्न 7.
राजनीतिक दल राजनीतिक समाजीकरण में क्या भूमिका निभाते हैं ?
उत्तर-
राजनीतिक दल अपनी नीतियों और कार्यक्रम लोगों के समक्ष रखते हैं। सरकारी नीतियों की विपक्षी दलों द्वारा आलोचना और शासक दल द्वारा विपक्षी दलों की आलोचना की जाती है। यह सब कुछ राजनीतिक समाजीकरण कहलाता है।

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प्रश्न 8.
प्रकट राजनीतिक समाजीकरण (प्रयत्न) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
जब व्यक्ति प्रकट अथवा प्रत्यक्ष साधनों द्वारा राजनीतिक प्रणाली के प्रति अनुकूलन ग्रहण करता है तो उसे प्रकट अथवा प्रत्यक्ष राजनीतिक समाजीकरण कहा जाता है।

प्रश्न 9.
राजनीतिक समाजीकरण की प्रक्रिया में संचार के साधनों का महत्त्व बताएं।
उत्तर-
आकाशवाणी और दूरदर्शन संचार के सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण साधन हैं। इन साधनों द्वारा अशिक्षित, अविकसित और अन्य समस्त लोगों के दृष्टिकोण को प्रभावित किया जा सकता है।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 4 राजनीतिक समाजीकरण

प्रश्न 10.
परिवार राजनीतिक समाजीकरण में क्या भूमिका निभाते हैं।
उत्तर-
परिवार में बच्चा आज्ञा-पालन, सहनशीलता, अनुशासन आदि के गुण सीखता है।

प्रश्न 11.
प्रेस राजनीतिक समाजीकरण में क्या भूमिका निभाता है ?
उत्तर-
प्रेस द्वारा लोगों को राजनीतिक घटनाओं एवं सूचनाओं के विषय में जानकारी मिलती है जिससे वे किसी राजनीतिक विषय पर अपना मत कायम करते हैं।

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प्रश्न II. खाली स्थान भरें-

1. राजनीतिक समाजीकरण नामक पुस्तक ………… ने लिखी।
2. राजनीतिक समाजीकरण नामक पुस्तक सन् ……….. में प्रकाशित हुई।
3. ……….. के अनुसार राजनीतिक समाजीकरण वह प्रक्रिया है, जिसके द्वारा राजनीतिक संस्कृतियों को बनाए रखा या बदला जाता है।
4. परिवार राजनीतिक समाजीकरण की एक महत्त्वपूर्ण ………… है।
5. “रोज़गार के अनुभव भी राजनीतिक अनुकूलन का निर्माण करते हैं।” यह कथन ………… का है।
उत्तर-

  1. हरबर्ट हीमैन
  2. 1959
  3. आल्मण्ड तथा पॉवेल
  4. एजेन्सी
  5. आल्मण्ड तथा पॉवेल।

प्रश्न III. निम्नलिखित वाक्यों में से सही एवं ग़लत का चुनाव करें-

1. महान् राष्ट्रीय नेताओं के भाषण और लेख राजनीतिक समाजीकरण के महत्त्वपूर्ण साधन माने जाते हैं।
2. साहित्य राजनीतिक समाजीकरण का एक साधन नहीं माना जाता।
3. मताधिकार से भी लोगों में राजनीतिक समाजीकरण पैदा होता है।
4. जो लोग सरकार की गतिविधियों से सन्तुष्ट नहीं होते, वे राजनीतिक व्यवस्था से दूर रहते हैं।
5. धर्म भी राजनीतिक समाजीकरण का एक महत्त्वपूर्ण साधन है।
उत्तर-

  1. सही
  2. ग़लत
  3. सही
  4. सही
  5. सही।

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प्रश्न IV. बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
निम्नलिखित में से किस विद्वान् ने राजनीतिक समाजीकरण की विस्तृत व्याख्या की है ?
(क) लॉस्की
(ख) ब्राइस
(ग) गिलक्राइस्ट
(घ) डेविड ईस्टन।
उत्तर-
(घ) डेविड ईस्टन।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित में से कौन-सा राजनीतिक समाजीकरण का तत्त्व (साधन) नहीं है ?
(क) परिवार
(ख) शिक्षा संस्थाएं
(ग) राजनीतिक दल
(घ) बेरोज़गारी।
उत्तर-
(घ) बेरोज़गारी।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 4 राजनीतिक समाजीकरण

प्रश्न 3.
यह किसने कहा है-“स्कूल ढांचा राजनीतिक समाजीकरण को प्रभावित करने वाला दूसरा शक्तिशाली तत्त्व है।”
(क) आल्मण्ड तथा पॉवेल
(ख) डेविड ईस्टन
(ग) लॉस्की
(घ) ब्राइस।
उत्तर-
(क) आल्मण्ड तथा पॉवेल

प्रश्न 4.
निम्नलिखित में से कौन राजनीतिक समाजीकरण का समर्थक नहीं है ?
(क) डॉ० लॉस्की
(ख) सिडनी वर्बा
(ग) डेविड ईस्टन
(घ) आस्टिन।
उत्तर-
(घ) आस्टिन।

PSEB 12th Class Religion Solutions Chapter 1 सिंधु घाटी के लोगों और प्रारंभिक आर्यों का धार्मिक जीवन

Punjab State Board PSEB 12th Class Religion Book Solutions Chapter 1 राजनीतिक व्यवस्था Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Religion Chapter 1 सिंधु घाटी के लोगों और प्रारंभिक आर्यों का धार्मिक जीवन

PSEB 12th Class Religion Solutions Chapter 1 सिंधु घाटी के लोगों और प्रारंभिक आर्यों का धार्मिक जीवन

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
हड़प्पा काल के लोगों के धार्मिक जीवन के बारे में संक्षिप्त परंतु भावपूर्ण चर्चा कीजिए।
(Discuss in brief but meaningful the religious life of the people of Harappa Age.)
अथवा
सिंधु घाटी के लोगों के धार्मिक जीवन के बारे आप क्या जानते हैं ?
(What do you know about the religious life of Indus Valley People ? Explain.)
अथवा
हड़प्पा काल में धार्मिक विश्वासों और रीति-रिवाजों का संक्षेप में वर्णन करो।
(Explain in brief the religious faiths and customs of Harappa Age ?)
अथवा
सिंधु घाटी के लोगों के धार्मिक जीवन और विश्वासों के संबंध में आप क्या जानते हैं ?
(What do you know about the life and religious faiths of the people of Indus Valley Civilization ?)
अथवा
सिंधु घाटी की सभ्यता के समय लोगों के धार्मिक विश्वास क्या थे ? चर्चा करो। देवी माता और स्वास्तिक पर संक्षेप में नोट लिखो ।
(What were the religious beliefs of the people in Indus Valley Civilization ? Discuss. Write brief notes on Mother Goddess and Swastik.)
अथवा
सिंधु घाटी सभ्यता के लोगों के धार्मिक विश्वासों के बारे में जानकारी दें। सप्तऋषि’ तथा ‘पीपल’ पर संक्षेप नोट लिखो।
(Write about the religious beliefs of the people of Indus Valley Civilization. Write brief notes on ‘Saptrishi’ and ‘Peeple’.)
अथवा
सिंध घाटी के लोगों के धार्मिक विश्वासों के बारे में संक्षेप में जानकारी दीजिए।
(Give brief information about religious beliefs of the Indus Valley Civilization.)
सिंधु घाटी के लोगों के धार्मिक विश्वासों के बारे में संक्षेप में जानकारी दीजिए।
(Give brief information about religious beliefs of the Indus Valley Civilization.)
अथवा
सिंधु घाटी की सभ्यता के समय लोगों के धार्मिक विश्वास क्या थे ? चर्चा करो। .
(What were the religious beliefs of the people of Indus Valley Civilization ? Discuss.)
अथवा
सिंधु घाटी सभ्यता के समय लोगों के धार्मिक विश्वासों के बारे में विस्तार सहित लिखें।
(Describe the religious beliefs of the people of Indus Valley Civilization.)
अथवा
सिंधु घाटी सभ्यता के लोगों का धार्मिक जीवन कैसा था ? (What was the religious life of the people of Indus Valley Civilization ?)
उत्तर-
सिंधु घाटी की खुदाई से मिली मोहरों, चित्रों और मूर्तियों आदि से सिंधु घाटी के लोगों के धार्मिक जीवन के संबंध में बहुमूल्य जानकारी प्राप्त होती है। इस जानकारी के आधार पर निस्संदेह यह कहा जा सकता है कि सिंधु घाही के लोगों का धार्मिक जीवन काफी उन्नत था। इसका अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि उनके बहुत से धार्मिक विश्वास आज के हिंदू धर्म में प्रचलित हैं।—

1. देवी माँ की पूजा (Worship of Mother Goddess)-सिंधु घाटी के लोग सब से अधिक देवी माँ की पूजा करते थे। इस का अनुमान सिंधु घाटी की खुदाई से मिली देवी माँ की अनेक मूर्तियों, मोहरों और तावीज़ों पर बने उनके चित्रों से लगाया जाता है। कई मूर्तियों पर धुएँ के चिन्ह हैं जिनसे यह परिणाम निकलता है कि लोग देवी माँ की धूप-बाती और तेल से पूजा करते थे। देवी माँ को शक्ति का प्रतीक माना जाता था ।।

2. शिव की पूजा (Worship of Lord Shiva )-सिंधु घाटी के लोगों में एक देवता की पूजा काफी प्रचलित थी। उस समय की मिली कुछ मोहरों पर एक देव के चित्र अंकित हैं। इस देव को योगी की स्थिति में समाधि लगाये हुए देखा गया है। इस के तीन मुँह दर्शाये गये हैं और सिर पर एक मन को मोह लेने वाला पोश पहना हुआ है। इस योगी के इर्द-गिर्द शेर, हाथी, गैंडे, साँड और हिरण आदि के चित्र अंकित हैं। क्योंकि शिव को त्रिमुखी, पशुपति और योगेश्वर आदि के नामों से जाना जाता है इसलिए इतिहासकारों का विचार है कि यह योगी कोई और नहीं बल्कि शिव ही थे।

3. पशुओं की पूजा (Worship of Animals)-सिंधु घाटी की खुदाई से मिलने वाली मोहरों और तावीज़ों आदि से हमें इस बात का संकेत मिलता है कि वे कई तरह के पशुओं की पूजा करते थे । इन पशुओं में मुख्य बैल, हाथी, गैंडा, शेर और मगरमच्छ आदि थे । इनके अतिरिक्त सिंधु घाटी के लोग कुछ पौराणिक प्रकार के पशुओं की भी पूजा करते थे। उदाहरण के लिए हड़प्पा से हमें एक ऐसी मूर्ति मिली है जिस का कुछ भाग हाथी का है और कुछ बैल का है। इन पशुओं को देवी माँ अथवा शिव का वाहन समझा जाता था ।

4. वृक्षों की पूजा (Worship of Trees)-सिंधु घाटी के लोग वृक्षों की भी पूजा करते थे। इन वृक्षों को वे देवी-देवताओं का निवास स्थान समझते थे। वे वृक्षों को जीवन और ज्ञान देने वाला दाता समझते थे। सिंधु घाटी की खुदाई से हमें जो मोहरें प्राप्त हुई हैं उनमें से अत्यधिक मोहरों पर पीपल के पेड़ के चित्र अंकित हैं जिससे यह अनुमान लगाया जाता है कि वे पीपल के पेड़ को अत्यधिक पवित्र समझते थे। इसके अतिरिक्त वे नीम, खजूर, बबूल और शीशम आदि वृक्षों की भी पूजा करते थे ।

5. स्वस्तिक की पूजा (Worship of Swastik)-सिंधु घाटी की खुदाई से मिली अनेक मोहरों पर स्वस्तिक के चिन्ह मिले हैं । इनको अच्छे शगुन वाला समझा जाता था। यह पुजारियों और व्यापारियों में आज भी लोकप्रिय है। व्यापारी कोई भी लेन-देन करते समय सबसे पहले स्वस्तिक चिन्ह को बनाते हैं।

PSEB 12th Class Religion Solutions Chapter 1 सिंधु घाटी के लोगों और प्रारंभिक आर्यों का धार्मिक जीवन

6. सप्तऋषियों की पूजा (Worship of Sapat-Rishis)-सिंधु घाटी की खुदाई से मिली मोहरों में से एक पर सात मनुष्य एक वृक्ष के सामने खड़े दिखाये गये हैं। इससे इस बात का अनुमान लगाया जाता है कि शायद सिंधु घाटी के लोग सप्तऋषियों की पूजा करते थे। सप्तऋषियों के नाम पुराणों, हिंदुओं के अन्य धार्मिक ग्रंथों तथा बौद्ध ग्रंथों में मिलते हैं। इन सप्तऋषियों के नाम कश्यप, अतरी, विशिष्ठ, विश्वामित्र, गौतम, जमदागनी एवं भारदवाज हैं। उनकी स्वर्ग का प्रतीक समझ कर उपासना की जाती थी।

7. लिंग और योनि की पूजा (Worship of Linga and Yoni)-सिंधु घाटी की खुदाई से हमें बहुत अधिक मात्रा में नुकीले और छल्लों के आकार के पत्थर मिले हैं । इन्हें देखकर यह बात निश्चित तौर पर कही जा सकती है कि सिंधु घाटी के लोग लिंग और योनि की पूजा करते थे। इनकी पूजा वे संसार की सृजन शक्ति के लिए करते थे।

8. जल की पूजा (Worship of water)-सिंधु घाटी की खुदाई से मिले बहुत सारे स्नानागारों से इस बात का अनुमान लगाया गया है कि उस समय के लोगों का जल पूजा में गहरा विश्वास था। उनका विशाल स्तानागार हमें मोहनजोदड़ो से प्राप्त हुआ है। जल को वे शुद्धता और सफ़ाई का प्रतीक मानते थे ।

9. साँपों की पूजा (Worship of Snakes)-सिंधु घाटी के लोग साँपों की भी पूजा करते थे । ऐसा अनुमान उस समय की प्राप्त कुछ मोहरों पर अंकित साँपों और फनीअर साँपों के चित्रों से लगाया जाता है। एक मोहर पर एक देवता के सिर पर फन फैलाये नाग को दर्शाया गया है। एक और मोहर पर एक मनुष्य को साँप को दूध पिलाते हुए दिखाया गया है।

10. जादू-टोनों में विश्वास (Faith in Magic and Charms)-सिंधु घाटी की खुदाई से मिलने वाले बहुत से तावीज़ों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि सिंधु घाटी के लोग जादू-टोनों और भूत-प्रेत में विश्वास रखते थे ।

11. मृतक संस्कार (The Death Ceremonies)-सिंधु घाटी के लोग आम तौर पर अपने मुर्दो को दफ़ना देते थे। कब्र में मुर्दे का सिर उत्तर की ओर तथा पैर दक्षिण की ओर किये जाते थे। कभी-कभी मुर्दे को खुले स्थान पर पशु-पक्षियों के खाने के लिए छोड़ दिया जाता था । उस समय मुर्दो का संस्कार करने की प्रथा भी प्रचलित थी।
उसकी अस्थियों को बड़े बर्तन में डाल कर दफना दिया जाता था। मृतक का अंतिम संस्कार चाहे किसी भी ढंग से किया जाता था पर उसके साथ अथवा उसके पिंजर अथवा अस्थियों के साथ कुछ बर्तनों में खाने-पीने और कुछ आवश्यक वस्तुओं को भी दबाया जाता था । इससे यह अनुमान लगाया जाता है कि सिंधु घाटी के लोग मृत्यु के बाद जीवन में विश्वास रखते थे।

12. कुछ अन्य धार्मिक विश्वास (Some other Religious Beliefs)-सिंधु घाटी की खुदाई से हमें अनेक अग्निकुण्ड प्राप्त हुए हैं जिस से यह अनुमान लगाया जाता है कि सिंधु घाटी के लोग अग्नि की, घुग्घी की और सूर्य आदि की पूजा भी करते थे। सिंधु घाटी के लोगों का आत्मा एवं परमात्मा में भी दृढ़ विश्वास था।

प्रश्न 2.
(क) देवी माता और स्वस्तिक के बारे में आप क्या जानते हैं ?
(ख) हड़प्पा काल के लोगों के मृतक संस्कारों के बारे में जानकारी दो ।
[(a) What do you know about Mother Goddess and Swastik ?
(b) Discuss the death ceremonies of people of Harappa Age.]
उत्तर –
(क)

  1. देवी माँ की पूजा (Worship of Mother Goddess)-सिंधु घाटी के लोग सब से अधिक देवी माँ की पूजा करते थे। इस का अनुमान सिंधु घाटी की खुदाई से मिली देवी माँ की अनेक मूर्तियों, मोहरों और तावीज़ों पर बने उनके चित्रों से लगाया जाता है। कई मूर्तियों पर धुएँ के चिन्ह हैं जिनसे यह परिणाम निकलता है कि लोग देवी माँ की धूप-बाती और तेल से पूजा करते थे। देवी माँ को शक्ति का प्रतीक माना जाता था ।।
  2. स्वस्तिक की पूजा (Worship of Swastik)-सिंधु घाटी की खुदाई से मिली अनेक मोहरों पर स्वस्तिक के चिन्ह मिले हैं । इनको अच्छे शगुन वाला समझा जाता था। यह पुजारियों और व्यापारियों में आज भी लोकप्रिय है। व्यापारी कोई भी लेन-देन करते समय सबसे पहले स्वस्तिक चिन्ह को बनाते हैं।

(ख) 1. देवी माँ की पूजा (Worship of Mother Goddess)-सिंधु घाटी के लोग सब से अधिक देवी माँ की पूजा करते थे। इस का अनुमान सिंधु घाटी की खुदाई से मिली देवी माँ की अनेक मूर्तियों, मोहरों और तावीज़ों पर बने उनके चित्रों से लगाया जाता है। कई मूर्तियों पर धुएँ के चिन्ह हैं जिनसे यह परिणाम निकलता है कि लोग देवी माँ की धूप-बाती और तेल से पूजा करते थे। देवी माँ को शक्ति का प्रतीक माना जाता था ।।

2. मृतक संस्कार (The Death Ceremonies)-सिंधु घाटी के लोग आम तौर पर अपने मुर्दो को दफ़ना देते थे। कब्र में मुर्दे का सिर उत्तर की ओर तथा पैर दक्षिण की ओर किये जाते थे। कभी-कभी मुर्दे को खुले स्थान पर पशु-पक्षियों के खाने के लिए छोड़ दिया जाता था । उस समय मुर्दो का संस्कार करने की प्रथा भी प्रचलित थी।
उसकी अस्थियों को बड़े बर्तन में डाल कर दफना दिया जाता था। मृतक का अंतिम संस्कार चाहे किसी भी ढंग से किया जाता था पर उसके साथ अथवा उसके पिंजर अथवा अस्थियों के साथ कुछ बर्तनों में खाने-पीने और कुछ आवश्यक वस्तुओं को भी दबाया जाता था । इससे यह अनुमान लगाया जाता है कि सिंधु घाटी के लोग मृत्यु के बाद जीवन में विश्वास रखते थे।

प्रश्न 3.
(क) हड़प्पा काल के लोगों के मृतक संस्कार क्या थे ?
(ख) पीपल और स्वस्तिक पर नोट लिखें ।
[(a) What were the death ceremonies among the people of Harappa Age ?
(b) Write a note on peepal and Swastik.]
उत्तर-(क)

1. देवी माँ की पूजा (Worship of Mother Goddess)-सिंधु घाटी के लोग सब से अधिक देवी माँ की पूजा करते थे। इस का अनुमान सिंधु घाटी की खुदाई से मिली देवी माँ की अनेक मूर्तियों, मोहरों और तावीज़ों पर बने उनके चित्रों से लगाया जाता है। कई मूर्तियों पर धुएँ के चिन्ह हैं जिनसे यह परिणाम निकलता है कि लोग देवी माँ की धूप-बाती और तेल से पूजा करते थे। देवी माँ को शक्ति का प्रतीक माना जाता था ।।

2. मृतक संस्कार (The Death Ceremonies)-सिंधु घाटी के लोग आम तौर पर अपने मुर्दो को दफ़ना देते थे। कब्र में मुर्दे का सिर उत्तर की ओर तथा पैर दक्षिण की ओर किये जाते थे। कभी-कभी मुर्दे को खुले स्थान पर पशु-पक्षियों के खाने के लिए छोड़ दिया जाता था । उस समय मुर्दो का संस्कार करने की प्रथा भी प्रचलित थी।
उसकी अस्थियों को बड़े बर्तन में डाल कर दफना दिया जाता था। मृतक का अंतिम संस्कार चाहे किसी भी ढंग से किया जाता था पर उसके साथ अथवा उसके पिंजर अथवा अस्थियों के साथ कुछ बर्तनों में खाने-पीने और कुछ आवश्यक वस्तुओं को भी दबाया जाता था । इससे यह अनुमान लगाया जाता है कि सिंधु घाटी के लोग मृत्यु के बाद जीवन में विश्वास रखते थे।

(ख)

  1. देवी माँ की पूजा (Worship of Mother Goddess)-सिंधु घाटी के लोग सब से अधिक देवी माँ की पूजा करते थे। इस का अनुमान सिंधु घाटी की खुदाई से मिली देवी माँ की अनेक मूर्तियों, मोहरों और तावीज़ों पर बने उनके चित्रों से लगाया जाता है। कई मूर्तियों पर धुएँ के चिन्ह हैं जिनसे यह परिणाम निकलता है कि लोग देवी माँ की धूप-बाती और तेल से पूजा करते थे। देवी माँ को शक्ति का प्रतीक माना जाता था ।।
  2. वृक्षों की पूजा (Worship of Trees)-सिंधु घाटी के लोग वृक्षों की भी पूजा करते थे। इन वृक्षों को वे देवी-देवताओं का निवास स्थान समझते थे। वे वृक्षों को जीवन और ज्ञान देने वाला दाता समझते थे। सिंधु घाटी की खुदाई से हमें जो मोहरें प्राप्त हुई हैं उनमें से अत्यधिक मोहरों पर पीपल के पेड़ के चित्र अंकित हैं जिससे यह अनुमान लगाया जाता है कि वे पीपल के पेड़ को अत्यधिक पवित्र समझते थे। इसके अतिरिक्त वे नीम, खजूर, बबूल और शीशम आदि वृक्षों की भी पूजा करते थे ।
  3. स्वस्तिक की पूजा (Worship of Swastik)-सिंधु घाटी की खुदाई से मिली अनेक मोहरों पर स्वस्तिक के चिन्ह मिले हैं । इनको अच्छे शगुन वाला समझा जाता था। यह पुजारियों और व्यापारियों में आज भी लोकप्रिय है। व्यापारी कोई भी लेन-देन करते समय सबसे पहले स्वस्तिक चिन्ह को बनाते हैं।

प्रश्न 4.
हड़प्पा एवं मोहनजोदड़ने में मृतक को जलाया या दफनाया जाता था ? बतलाएँ।
(Was the dead buried or burnt in Harappa and Mohenjodaro ? Explain.)
उत्तर-
मृतक संस्कार (The Death Ceremonies)-सिंधु घाटी के लोग आम तौर पर अपने मुर्दो को दफ़ना देते थे। कब्र में मुर्दे का सिर उत्तर की ओर तथा पैर दक्षिण की ओर किये जाते थे। कभी-कभी मुर्दे को खुले स्थान पर पशु-पक्षियों के खाने के लिए छोड़ दिया जाता था । उस समय मुर्दो का संस्कार करने की प्रथा भी प्रचलित थी।
उसकी अस्थियों को बड़े बर्तन में डाल कर दफना दिया जाता था। मृतक का अंतिम संस्कार चाहे किसी भी ढंग से किया जाता था पर उसके साथ अथवा उसके पिंजर अथवा अस्थियों के साथ कुछ बर्तनों में खाने-पीने और कुछ आवश्यक वस्तुओं को भी दबाया जाता था । इससे यह अनुमान लगाया जाता है कि सिंधु घाटी के लोग मृत्यु के बाद जीवन में विश्वास रखते थे।

PSEB 12th Class Religion Solutions Chapter 1 सिंधु घाटी के लोगों और प्रारंभिक आर्यों का धार्मिक जीवन

प्रश्न 5.
प्राचीन आर्यों के धार्मिक विश्वासों के बारे में आप क्या जानते हैं ? आर्य लोगों के मृतक संस्कारों के संबंध में जानकारी दो।
(What do you know about the religious beliefs of the Early Aryans ? Also state the method of disposal of the dead Aryans.)
अथवा
आर्य लोगों के धार्मिक संस्कारों के बारे में जानकारी दें।
(Describe the religious ceremonies of Aryan people.)
अथवा
आरंभिक आर्यों के धार्मिक जीवन के बारे में बताएँ।
(Explain the religious life of Early Aryans.)
अथवा
पूर्व आर्यों के धार्मिक जीवन का वर्णन करें।
(Describe the religious life of pre-Aryans.)
उत्तर-
आरंभिक आर्यों का धार्मिक जीवन कैसा था इसके संबंध में हमें ऋग्वेद से विस्तारपूर्वक जानकारी प्राप्त होती है । निस्संदेह वे बड़ा सादा और पवित्र जीवन व्यतीत करते थे। उनके धार्मिक जीवन की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:—

1. प्रकृति और प्राकृतिक शक्तियों के पुजारी (Worshippers of Nature and Natural Phenomena)- आरंभिक आर्यों का धार्मिक जीवन बिल्कुल सादा था। वे प्रकृति और प्राकृतिक शक्तियों की पूजा करते थे। वे उन सारी वस्तुओं जो सुंदर विचित्र और भयानक दिखाई देती थीं, को प्राकृतिक शक्तियाँ स्वीकार करते थे। उन्होंने इन प्राकृतिक शक्तियों को अलग-अलग देवी-देवताओं का नाम रखकर उनकी पूजा आरंभ कर दी थी। वे चमकते हुए सूर्य की पूजा करते थे क्योंकि वह पृथ्वी को सजीव रखता था। वे वायु की पूजा करते थे जो संसार भर के मनुष्यों को जीवन देती थी। वे प्रभात की पूजा करते थे जो मनुष्यों को उनकी मीठी नींद से जगाकर उनको उनके कार्यों पर भेजता था। वे नीले आकाश की पूजा करते थे जिसने सारे संसार को घेरा हुआ था।

2. वैदिक देवते (VedicGods) आरंभिक आर्यों के देवताओं की कुल संख्या 33 थी। इन को तीन भागों में बाँटा गया था । ये देवता आकाश, पृथ्वी और आकाश तथा पृथ्वी के मध्य रहते थे । प्रमुख देवी-देवताओं का संक्षेप वर्णन अग्रलिखित है :—

  • वरुण (Varuna)-वरुण आरंभिक आर्यों का सब से बड़ा देवता था । वह सिंहासन पर बैठता था। उसको सत्य और धर्म का स्वामी माना जाता था। उसको आकाश, पृथ्वी, और सूर्य का निर्माता कहा जाता था। वह पापी लोगों को सज़ा देता था। वह जीवन दान दे सकता था और मृत्यु को रद्द कर सकता था। इसलिए पापी लोग उससे क्षमा की याचना करते थे।
  • इंद्र (Indra) -इंद्र आरंभिक आर्यों का दूसरा महत्त्वपूर्ण और शक्तिशाली देवता था। ऋग्वेद में सबसे अधिक (250) मंत्र इस देवता की प्रशंसा में दिये गये हैं। उसको वर्षा और युद्ध का देवता समझा जाता था। आर्य उसकी समय पर वर्षा के लिए और युद्ध में विजय प्राप्त करने के लिए प्रार्थना करते थे । वह दुश्मनों के दुर्गों को पलक झपकते ही नष्ट कर सकता था ।
  • अग्नि (Agni)-अग्नि आरंभिक आर्यों का एक और प्रमुख देवता था। उसका संबंध विवाह और दाह संस्कारों के साथ था। उसके बिना कोई भी यज्ञ पूर्ण नहीं हो सकता था। ऋग्वेद में अग्नि देवता की प्रशंसा में 200 मंत्र दिये गये हैं।
  • सूर्य (Sun)-सूर्य भी आरंभिक आर्यों का एक महत्त्वपूर्ण देवता था । वह संसार में से अंधेरे को दूर भगाता था। वह हर रोज़ सात घोड़ों वाले रथ पर सवार होकर आकाश का चक्र काटता था ।
  • रुद्र (Rudra)-रुद्र को आँधी या तूफ़ान का देवता समझा जाता था। वह बहुत ही प्रचंड और विनाशकारी था। लोग उससे बहुत डरते थे और उसको प्रसन्न रखने का प्रयत्न करते थे।
  • सोम (Soma)-सोम देवता की आरंभिक आर्यों के धार्मिक जीवन में बहुत महत्ता थी। सोम रस को एक ऐसा अमृत समझा जाता था जिसको पीकर देवता अमर हो जाते थे। इस का हवन में प्रयोग किया जाता था और यह देवताओं को भेंट किया जाता था।
  • देवियाँ (Goddesses)-आरंभिक आर्य देवताओं के अतिरिक्त कुछ देवियों की भी पूजा करते थे । परंत देवताओं के मुकाबले इनका महत्त्व कम था । उनके द्वारा पूजी जाने वाली प्रमुख देवियाँ प्रभात की देवी उषा, रात की देवी रात्री, धरती की देवी पृथ्वी, वन देवी आरण्यी, नदी देवी सरस्वती थीं।

3. एक ईश्वर में विश्वास ( Faith in one God) यद्यपि आरंभिक आर्य अनेक देवी-देवताओं की पूजा करते थे परंतु फिर भी उनका ईश्वर की एकता में दृढ़-विश्वास था। वे सारे देवताओं को महान् समझते थे और किसी को भी छोटा या बड़ा नहीं समझते थे । ऋषि अलग-अलग अवसरों पर अलग-अलग देवी-देवताओं को प्रधान बना देते थे । ऋग्वेद के एक मंत्र में कहा गया है, सब एक ही हैं, केवल ऋषियों ने ही उनका विभिन्न रूपों में वर्णन किया है।” एक और मंत्र में लिखा है, “वह जिसने हमें जीवन बख्शा है, वह जिसने सृष्टि की रचना की है, अनेक देवताओं के नाम के साथ प्रसिद्ध होते हुए भी वह एक है।” स्पष्ट है कि आर्य एक ईश्वर के सिद्धांत को अच्छी तरह जानते
थे।

4. मंदिरों और मूर्ति पूजा का अभाव (Absence of Temples and Idol Worship)-आरंभिक आर्यों ने अपने देवी-देवताओं की याद में न किसी मंदिर का निर्माण किया था और न ही उनकी मूर्तियाँ बनाई गई थीं। मंदिर के निर्माण संबंधी या मूर्तियों के निर्माण संबंधी ऋग्वेद में कहीं भी कोई वर्णन नहीं मिलता। आर्य लोग अपने घरों में खुले वातावरण में चौकड़ी लगा कर बैठ जाते थे और एक मन हो कर अपने देवी-देवताओं की याद में मंत्रों का उच्चारण करते थे और स्तुति करते थे ।

5. यज्ञ और बलियाँ (Yajnas and Sacrifices)-आरंभिक आर्य लोग अपने देवी-देवताओं को खुश करने के लिए कई तरह के यज्ञ करते थे । इन यज्ञों को बड़े ध्यान से किया जाता था, क्योंकि उनको यह डर होता था कि थोड़ीसी गलती से उनके देवता नाराज़ न हो जाएँ। सबसे पहले यज्ञ के लिए वेदी बनाई जाती थी। फिर इसमें पवित्र अग्नि जलाई जाती थी इसमें घी, दूध, चावल और सोमरस डाला जाता था। इन यज्ञों के दौरान कई जानवरों की जैसे भेड़ों, बकरियों और घोड़ों आदि की बलि दी जाती थी। उस समय मनुष्य की बलि देने की प्रथा बिल्कुल नहीं थी। ये यज्ञ कई प्रकार के होते थे । सबसे छोटा यज्ञ पारिवारिक स्तर पर होता था। बड़े-बड़े यज्ञों की तैयारी बहुत पहले ही शुरू हो जाती थी। ऐसे यज्ञ राजाओं और समाज के और अमीर वर्ग द्वारा करवाये जाते थे। इन यज्ञों में बहुत ज्यादा मात्रा में पुरोहित शामिल होते थे। इनको दक्षिणा के तौर पर सोना, पशु या अनाज दिया जाता था। इन यज्ञों और बलियों का प्रमुख उद्देश्य देवताओं को खुश करना था। इनके बदले वे समझते थे कि उनको युद्ध में सफलता प्राप्त होगी, धन प्राप्त होगा, संतान में वृद्धि होगी और लम्बा जीवन मिलेगा। आरंभिक आर्य यह समझते थे कि हर यज्ञ से संसार की नये सिरे से उत्पत्ति होती है और यदि यह यज्ञ न करवाए जायें तो संसार में फिर से अंधकार छा जाएगा । इन यज्ञों के करवाने से गणित, भौतिक ज्ञान और जानवरों की शारीरिक बनावट के ज्ञान में वृद्धि हुई ।

6. पितरों की पूजा (Worship of Forefathers)-आरंभिक आर्य अपने देवी-देवताओं की पूजा के अतिरिक्त अपने पितरों की भी पूजा करते थे । पितर आर्यों के आरंभिक बुर्जुग थे। वे स्वर्गों में निवास करते थे । ऋग्वेद में बहुत से मंत्र पितरों की प्रशंसा में लिखे गये हैं । उनकी पूजा भी अन्य देवी-देवताओं की तरह की जाती थी। पितरों की पूजा इस आशा के साथ की जाती थी कि वे अपने वंश की रक्षा करेंगे, उनका मार्गदर्शन करेंगे, उनके कष्ट दूर करेंगे, उनको धन और शक्ति प्रदान करेंगे तथा अपने बच्चों की दीर्घायु और संतान का वर देंगे।

PSEB 12th Class Religion Solutions Chapter 1 सिंधु घाटी के लोगों और प्रारंभिक आर्यों का धार्मिक जीवन

7. मृत्यु के पश्चात् जीवन में विश्वास (Belief in Life after Death)-आरंभिक आर्य मृत्यु के पश्चात् जीवन में विश्वास रखते थे । आवागमन और पुनर्जन्म का सिद्धांत अभी प्रचलित नहीं हुआ था। वैदिक काल के लोगों का विश्वास था कि मृत्यु के समय आत्मा शरीर से अलग हो जाती है। वे आत्मा को अमर समझते थे। स्वर्ग का जीवन खुशियों से भरपूर होता था । यह देवताओं का निवास स्थान था। वे लोग स्वर्ग के अधिकारी समझे जाते थे जो रणभूमि में अपना बलिदान देते थे अथवा भारी तपस्या करते थे अथवा यज्ञ के समय खुले दिल से दान देते थे। ऋग्वेद में नरक का वर्णन कहीं नहीं किया गया है ।

8. मृतक का अंतिम संस्कार (Disposal of Dead)-आरंभिक आर्यों के काल में मृतकों का दाह संस्कार किया जाता था । मृतक को चिता तक ले जाने के लिए उसकी पत्नी और अन्य संबंधी साथ जाते थे। उसके बाद मृतक को चिता पर रख दिया जाता था। यदि मृतक ब्राह्मण होता तो उसके दायें हाथ में एक लाठी पकड़ाई जाती थी, यदि वह क्षत्रिय होता तो उसके हाथ में धनुष और यदि वह वैश्य होता तो उसके हाथ में हल चलाने वाली लकड़ी पकड़ाई जाती थी । उसकी पत्नी तब तक चिता के पास बैठी रहती थी जब तक उसको यह नहीं कहा जाता था ‘अरी महिला उठो और जीवित लोगों में आओ।’ इसके बाद हवन कुंड से लाई गई अग्नि के साथ चिता को आग लगाई जाती थी और वह मंत्र पढ़ा जाता था, “बजुर्गों के मार्ग पर जाओ।” लाश के पूर्ण भस्म हो जाने को बाद अस्थियों को इकट्ठा कर लिया जाता था और उनको एक क्लश में रखकर जमीन में गाढ़ दिया जाता था।

9. रित और धर्मन (Rita and Dharman)-ऋग्वेद और दूसरे वैदिक ग्रंथों में रित और धर्मन शब्दों का बहुत वर्णन मिलता है । रित से भाव उस व्यवस्था से है जिसके अनुसार संसार का प्रबंध चलता है। रित के नियमानुसार ही सुबह पौ फटती है, सूर्य, चाँद और तारे चमकीले नज़र आते हैं। धरती सूर्य के इर्द-गिर्द चक्र लगाती है । सागर में ज्वारभाटे आते हैं। इस तरह रित एक सच्चाई है, इस का विपरीत अनऋत (झूठ) है। ‘धर्मन’ शब्द से भाव कानून है। धर्मन देवताओं द्वारा बनाये जाते हैं । यह भौतिक संसार, मनुष्यों और बलियों पर लागू होता है। वास्तव में धर्मन जीवन और रस्मों रीतों का नियम है। अच्छे मनुष्य अपना जीवन धर्मन अनुसार व्यतीत करते थे।

प्रश्न 6.
वरुण तथा अग्नि देवताओं पर एक नोट लिखें । वैदिक बलि की रीति के बारे जानकारी
(Write a brief note on Varuna and Agni. Write about the ritual of Vedic sacrifice.)
उत्तर-(क)

1. वरुण (Varuna)- वरुण आरंभिक आर्यों का सब से बड़ा देवता था। वह ऊँचे सिंहासन पर बैठता था। उसको सत्य और धर्म का स्वामी माना जाता था। उसको आकाश, पृथ्वी और सूर्य का निर्माता कहा जाता था। उसके आदेशानुसार चाँद चमकता था और तारे टिमटिमाते थे। वह सर्वज्ञापक और सर्व-व्यापक था। वह संसार में घटने वाली हर घटना को जानता था। उसकी सैंकड़ों आँखें थीं। कोई भी पापी उसकी पैनी नज़र से बच नहीं सकता था। वह पापियों को दंड देता था। वह जीवन दान दे सकता था और मृत्यु को रद्द कर सकता था। इसलिए पापी क्षमा के लिए उससे प्रार्थना करते थे।

2. अग्नि (Agni)- अग्नि आरंभिक आर्यों का एक और प्रमुख देवता था। उसको दो कारणों से अति महत्त्वपूर्ण समझा जाता था। पहला, उसको सब घरों का स्वामी समझा जाता था। उसका संबंध विवाह और दाहसंस्कारों के साथ था। दूसरा, उसके बिना कोई भी यज्ञ पूर्ण नहीं हो सकता था। वह अपने भक्तों द्वारा दी गई आहुति को देवताओं तक पहुँचाता था। अग्नि देवता की सात जीभे और 1000 आँखें समझी जाती थीं। यदि वह कभी गुस्से में आ जाता तो पल भर में सबको नष्ट कर सकता था। सूखे काष्ठ, घी और मक्खन को इसका मनपसंद भोजन समझा जाता था। ऋग्वेद में अग्नि देवता की प्रशंसा में 200 मंत्र दिये गये हैं।

(ख) यज्ञ और बलियाँ (Yajnas and Sacrifices)-आरंभिक आर्य लोग अपने देवी-देवताओं को खुश करने के लिए कई तरह के यज्ञ करते थे । इन यज्ञों को बड़े ध्यान से किया जाता था, क्योंकि उनको यह डर होता था कि थोड़ीसी गलती से उनके देवता नाराज़ न हो जाएँ। सबसे पहले यज्ञ के लिए वेदी बनाई जाती थी। फिर इसमें पवित्र अग्नि जलाई जाती थी इसमें घी, दूध, चावल और सोमरस डाला जाता था। इन यज्ञों के दौरान कई जानवरों की जैसे भेड़ों, बकरियों और घोड़ों आदि की बलि दी जाती थी। उस समय मनुष्य की बलि देने की प्रथा बिल्कुल नहीं थी। ये यज्ञ कई प्रकार के होते थे । सबसे छोटा यज्ञ पारिवारिक स्तर पर होता था। बड़े-बड़े यज्ञों की तैयारी बहुत पहले ही शुरू हो जाती थी। ऐसे यज्ञ राजाओं और समाज के और अमीर वर्ग द्वारा करवाये जाते थे। इन यज्ञों में बहुत ज्यादा मात्रा में पुरोहित शामिल होते थे। इनको दक्षिणा के तौर पर सोना, पशु या अनाज दिया जाता था। इन यज्ञों और बलियों का प्रमुख उद्देश्य देवताओं को खुश करना था। इनके बदले वे समझते थे कि उनको युद्ध में सफलता प्राप्त होगी, धन प्राप्त होगा, संतान में वृद्धि होगी और लम्बा जीवन मिलेगा। आरंभिक आर्य यह समझते थे कि हर यज्ञ से संसार की नये सिरे से उत्पत्ति होती है और यदि यह यज्ञ न करवाए जायें तो संसार में फिर से अंधकार छा जाएगा । इन यज्ञों के करवाने से गणित, भौतिक ज्ञान और जानवरों की शारीरिक बनावट के ज्ञान में वृद्धि हुई ।

प्रश्न 7.
वैदिक देवताओं से क्या भाव है ? इनसे किस प्रकार के वरदान की आशा की जाती थी ?
(What is meant by Vedic gods ? What is expected from them ?)
अथवा
वैदिक देवता कौन थे ? कुछ देवी-देवताओं के नाम लिखो।ये देवता ऐतिहासिक व्यक्ति थे या पौराणिक, स्पष्ट करो।
(Who were Vedic gods ? Write down the names of some gods and goddesses. Whether these gods were historical persons or mythological ? State clearly.)
अथवा
वैदिक देवी-देवताओं के बारे में आप क्या जानते हैं ? वर्णन करो ।
(What do you know about the Vedic gods and goddesses ? Explain.)
अथवा
वैदिक काल में ईश्वर के बारे में बताएँ ।
(Explain about monotheism in Vedic Period.)
अथवा
वैदिक देवी-देवताओं पर एक विस्तृत नोट लिखें ।
(Write a detailed note on Vedic gods and goddesses.)
अथवा
किन्हीं दो वैदिक देवताओं पर संक्षिप्त नोट लिखें।
(Write brief note on any two Vedic gods.)
उत्तर-
आरंभिक आर्य बहुत सादा और पवित्र जीवन व्यतीत करते थे। वे प्रकृति और.उसकी शक्तियों को देवता मान कर उनकी पूजा करते थे। उनके देवताओं की कुल संख्या 33 थी। देवियों की संख्या कम थी और देवताओं के मुकाबले उनका महत्त्व भी कम था। आरंभिक आर्य यद्यपि अपने देवी-देवताओं की पूजा करते थे परंतु वे उनको एक परमेश्वर का रूप समझते थे। वे अपने देवी-देवताओं को खुश करने के लिए और उनसे ज़रूरी वरदान प्राप्त करने के लिए स्तुतियाँ और यज्ञ करते थे और बलियाँ भी देते थे। उस समय मूर्ति पूजा या मंदिर बनवाने की प्रथा प्रचलित नहीं थी।

1. वैदिक देवता (Vedic Gods)—वैदिक देवताओं की नींव कहाँ से रखी गई, उनका स्वभाव क्या था, मनुष्यों के साथ उनके क्या संबंध थे और उनकी संख्या कितनी थी ? इन सारे प्रश्नों के उत्तर हमें ऋग्वेद से प्राप्त होते हैं। ऋग्वेद के मंत्रों (ऋचों) में यह कहा गया है कि देवता संसार की सृजना के बाद पैदा हुए, उनको आम तौर पर आकाश और पृथ्वी की संतान माना जाता था। वे बड़े शक्तिशाली और महान् थे। वे लंबा जीवन व्यतीत करते थे। उन्होंने तपस्या के साथ अथवा सोमरस पी कर अविनाशता प्राप्त कर ली थी। वे अलग-अलग रूप धारण कर सकते थे। ज्यादातर वे मनुष्ययी रूप धारण करते थे। वे अपने दैवीय वाहनों पर चढ़ कर आते थे और घास के आसन पर बैठते थे। वे दुनिया की घटनाओं में अपना हिस्सा डालते थे। वे अपने श्रद्धालुओं की प्रार्थनायें भी सुनते थे और अपने वरदान देते थे। उनकी कुल संख्या 33 थी और उनको तीन भागों में बाँटा गया था। यह बंटन उनके निवास स्थान के आधार पर था जहाँ वे रहते थे। प्रत्येक श्रेणी में 11 देवते शामिल थे। वरुण, सूर्य, विष्णु और उषा आदि आकाश के देवता थे। इंद्र, वायु, रुद्र और मरुत आदि पृथ्वी और आकाश के इर्द-गिर्द रहने वाले देवता थे। अग्नि, पृथ्वी, बृहस्पति, सागर और नदियाँ आदि पृथ्वी के देवता थे। देवियों के मुकाबले देवताओं की संख्या अधिक थी तथा उनको बहुत अधिक महत्त्व प्राप्त था। प्रमुख देवी-देवताओं का संक्षेप वर्णन निम्नलिखित अनुसार है:

वरुण (Varuna)- वरुण आरंभिक आर्यों का सब से बड़ा देवता था। वह ऊँचे सिंहासन पर बैठता था। उसको सत्य और धर्म का स्वामी माना जाता था। उसको आकाश, पृथ्वी और सूर्य का निर्माता कहा जाता था। उसके आदेशानुसार चाँद चमकता था और तारे टिमटिमाते थे। वह सर्वज्ञापक और सर्व-व्यापक था। वह संसार में घटने वाली हर घटना को जानता था। उसकी सैंकड़ों आँखें थीं। कोई भी पापी उसकी पैनी नज़र से बच नहीं सकता था। वह पापियों को दंड देता था। वह जीवन दान दे सकता था और मृत्यु को रद्द कर सकता था। इसलिए पापी क्षमा के लिए उससे प्रार्थना करते थे।

इंद्र (Indra)- इंद्र आरंभिक आर्यों का दूसरा महत्त्वपूर्ण और शक्तिशाली देवता था। ऋग्वेद में सबसे अधिक (250) मंत्र इस देवता की प्रशंसा में दिये गये हैं। उसका तेज इतना था कि सैंकड़ों सूर्यों का प्रकाश भी उसके आगे मद्धम पड़ जाता था। उसको वर्षा और युद्ध का देवता समझा जाता था। आर्य उसकी समय पर वर्षा के लिए और युद्ध में विजय प्राप्त करने के लिए याचना करते थे। वह इतना बहादुर था कि उसने राक्षसों पर भी विजय प्राप्त की थी। वह दुश्मनों के दुर्गों को पलक झपकते ही नष्ट कर सकता था। वह अंधकार को दूर कर सकता था। वह कई रूप धारण कर सकता था। वह इतना शक्तिशाली था कि सब देवता उस से डरते थे।

अग्नि (Agni)- अग्नि आरंभिक आर्यों का एक और प्रमुख देवता था। उसको दो कारणों से अति महत्त्वपूर्ण समझा जाता था। पहला, उसको सब घरों का स्वामी समझा जाता था। उसका संबंध विवाह और दाहसंस्कारों के साथ था। दूसरा, उसके बिना कोई भी यज्ञ पूर्ण नहीं हो सकता था। वह अपने भक्तों द्वारा दी गई आहुति को देवताओं तक पहुँचाता था। अग्नि देवता की सात जीभे और 1000 आँखें समझी जाती थीं। यदि वह कभी गुस्से में आ जाता तो पल भर में सबको नष्ट कर सकता था। सूखे काष्ठ, घी और मक्खन को इसका मनपसंद भोजन समझा जाता था। ऋग्वेद में अग्नि देवता की प्रशंसा में 200 मंत्र दिये गये हैं।

सूर्य (Sun) सूर्य भी आरंभिक आर्यों का एक महत्त्वपूर्ण देवता था। वह संसार में से अंधेरे को दूर भगाता था। उसको आदिति और दिऊस का पुत्र समझा जाता था। वह हर-रोज़ सात घोड़ों के रथ पर सवार होकर आकाश का चक्र काटता था।

PSEB 12th Class Religion Solutions Chapter 1 सिंधु घाटी के लोगों और प्रारंभिक आर्यों का धार्मिक जीवन

रुद्र (Rudra)-रुद्र को आँधी या तूफान का देवता समझा जाता था। वह बड़ा प्रचंड और विनाशकारी था। लोग उससे बहुत डरते थे और उसे खुश रखने का प्रयत्न करते थे। उसकी शक्ल राक्षसों जैसी थी और वह पहाड़ों में निवास करता था। उसका पेट काला और पीठ लाल थी।

सोम (Soma)-सोम देवता की आरंभिक आर्यों के धार्मिक जीवन में बड़ी महत्ता थी। ऋग्वेद का सारा नवम् मंडल सोम देवता की प्रशंसा में रचा गया है। सोमरस को एक ऐसा अमृत समझा जाता था जिसको पी कर देवता अमर हो जाते थे। इस का हवन में प्रयोग किया जाता था। यह देवताओं को भेंट किया जाता था। सोमरस एक बूटी से प्राप्त किया जाता था जो कि पहाड़ों में मिलती थी।

उषा (Usha)-आरंभिक आर्य देवताओं के अतिरिक्त कुछ देवियों की पूजा भी करते थे। परंतु देवताओं के मुकाबले इनका महत्त्व कम था। उनके द्वारा पूजी जाने वाली देवियाँ जैसे रात की देवी रात्री, धरती की देवी पृथ्वी, वन देवी आरण्यी, नदी देवी सरस्वती में से उषा को प्रमुख स्थान प्राप्त था। इस को प्रभात की देवी समझा जाता था। इस का रूप बहुत सुंदर और मन को मोह लेने वाला था। इसको सूर्य की पत्नी समझा जाता था।

2. वैदिक देवते ऐतिहासिक व्यक्ति थे अथवा पौराणिक (Vedic Gods were historical persons or mythological)-आरंभिक आर्य अपने देवी-देवताओं को ऐतिहासिक व्यक्ति समझते थे। इसका कारण यह था कि वे मनुष्यों के समान थे। वे अपने दैवीय वाहनों पर चढ़ कर आते थे और घास के सिंहासन पर बैठते थे। वे अपने श्रद्धालुओं की प्रार्थनायें सुनते थे और उनको वरदान देते थे। वे अपने पुजारियों पर कृपा करते थे। इन देवी-देवताओं को आदिती देवी और दिऊस के पुत्र-पुत्रियाँ समझा जाता था। आरंभ में इन सब को नाशवान् जीव समझा जाता था। अविनाशता उनको बाद में दी गई थी।

प्रश्न 8.
(क) वैदिक काल में बलि की रीति पर प्रकाश डालें।
(ख) वरुण तथा अग्नि देवताओं पर संक्षेप नोट लिखें।
[(a) Throw light on the Vedic ritual sacrifice.
(b) Write brief notes on Varuna and Agni gods.]
उत्तर-
(क) बलि की रीति (Sacrifice Ritual)—यज्ञ और बलियाँ (Yajnas and Sacrifices)-आरंभिक आर्य लोग अपने देवी-देवताओं को खुश करने के लिए कई तरह के यज्ञ करते थे । इन यज्ञों को बड़े ध्यान से किया जाता था, क्योंकि उनको यह डर होता था कि थोड़ीसी गलती से उनके देवता नाराज़ न हो जाएँ। सबसे पहले यज्ञ के लिए वेदी बनाई जाती थी। फिर इसमें पवित्र अग्नि जलाई जाती थी इसमें घी, दूध, चावल और सोमरस डाला जाता था। इन यज्ञों के दौरान कई जानवरों की जैसे भेड़ों, बकरियों और घोड़ों आदि की बलि दी जाती थी। उस समय मनुष्य की बलि देने की प्रथा बिल्कुल नहीं थी। ये यज्ञ कई प्रकार के होते थे । सबसे छोटा यज्ञ पारिवारिक स्तर पर होता था। बड़े-बड़े यज्ञों की तैयारी बहुत पहले ही शुरू हो जाती थी। ऐसे यज्ञ राजाओं और समाज के और अमीर वर्ग द्वारा करवाये जाते थे। इन यज्ञों में बहुत ज्यादा मात्रा में पुरोहित शामिल होते थे। इनको दक्षिणा के तौर पर सोना, पशु या अनाज दिया जाता था। इन यज्ञों और बलियों का प्रमुख उद्देश्य देवताओं को खुश करना था। इनके बदले वे समझते थे कि उनको युद्ध में सफलता प्राप्त होगी, धन प्राप्त होगा, संतान में वृद्धि होगी और लम्बा जीवन मिलेगा। आरंभिक आर्य यह समझते थे कि हर यज्ञ से संसार की नये सिरे से उत्पत्ति होती है और यदि यह यज्ञ न करवाए जायें तो संसार में फिर से अंधकार छा जाएगा । इन यज्ञों के करवाने से गणित, भौतिक ज्ञान और जानवरों की शारीरिक बनावट के ज्ञान में वृद्धि हुई ।

(ख) वरुण तथा अग्नि देवता (Varuna and Agni gods)—

1. वरुण (Varuna)- वरुण आरंभिक आर्यों का सब से बड़ा देवता था। वह ऊँचे सिंहासन पर बैठता था। उसको सत्य और धर्म का स्वामी माना जाता था। उसको आकाश, पृथ्वी और सूर्य का निर्माता कहा जाता था। उसके आदेशानुसार चाँद चमकता था और तारे टिमटिमाते थे। वह सर्वज्ञापक और सर्व-व्यापक था। वह संसार में घटने वाली हर घटना को जानता था। उसकी सैंकड़ों आँखें थीं। कोई भी पापी उसकी पैनी नज़र से बच नहीं सकता था। वह पापियों को दंड देता था। वह जीवन दान दे सकता था और मृत्यु को रद्द कर सकता था। इसलिए पापी क्षमा के लिए उससे प्रार्थना करते थे।

2. अग्नि (Agni)- अग्नि आरंभिक आर्यों का एक और प्रमुख देवता था। उसको दो कारणों से अति महत्त्वपूर्ण समझा जाता था। पहला, उसको सब घरों का स्वामी समझा जाता था। उसका संबंध विवाह और दाहसंस्कारों के साथ था। दूसरा, उसके बिना कोई भी यज्ञ पूर्ण नहीं हो सकता था। वह अपने भक्तों द्वारा दी गई आहुति को देवताओं तक पहुँचाता था। अग्नि देवता की सात जीभे और 1000 आँखें समझी जाती थीं। यदि वह कभी गुस्से में आ जाता तो पल भर में सबको नष्ट कर सकता था। सूखे काष्ठ, घी और मक्खन को इसका मनपसंद भोजन समझा जाता था। ऋग्वेद में अग्नि देवता की प्रशंसा में 200 मंत्र दिये गये हैं।

प्रश्न 9.
सिंधु घाटी के लोगों तथा आर्य लोगों के धार्मिक जीवन में क्या अंतर था ? स्पष्ट करें।
(Explain the differences of religious life of Indus Valley and Aryan peoples.)
अथवा
सिंधु घाटी के लोगों और आर्य लोगों का धार्मिक जीवन किस तरह का था? जानकारी दीजिए।
(Describe the religious life of the people of Indus Valley and Aryans. Explain.)
उत्तर-
सिंधु घाटी की खुदाई से मिली मोहरों, चित्रों और मूर्तियों आदि से सिंधु घाटी के लोगों के धार्मिक जीवन के संबंध में बहुमूल्य जानकारी प्राप्त होती है। इस जानकारी के आधार पर निस्संदेह यह कहा जा सकता है कि सिंधु घाही के लोगों का धार्मिक जीवन काफी उन्नत था। इसका अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि उनके बहुत से धार्मिक विश्वास आज के हिंदू धर्म में प्रचलित हैं।—

1. देवी माँ की पूजा (Worship of Mother Goddess)-सिंधु घाटी के लोग सब से अधिक देवी माँ की पूजा करते थे। इस का अनुमान सिंधु घाटी की खुदाई से मिली देवी माँ की अनेक मूर्तियों, मोहरों और तावीज़ों पर बने उनके चित्रों से लगाया जाता है। कई मूर्तियों पर धुएँ के चिन्ह हैं जिनसे यह परिणाम निकलता है कि लोग देवी माँ की धूप-बाती और तेल से पूजा करते थे। देवी माँ को शक्ति का प्रतीक माना जाता था ।।

2. शिव की पूजा (Worship of Lord Shiva )-सिंधु घाटी के लोगों में एक देवता की पूजा काफी प्रचलित थी। उस समय की मिली कुछ मोहरों पर एक देव के चित्र अंकित हैं। इस देव को योगी की स्थिति में समाधि लगाये हुए देखा गया है। इस के तीन मुँह दर्शाये गये हैं और सिर पर एक मन को मोह लेने वाला पोश पहना हुआ है। इस योगी के इर्द-गिर्द शेर, हाथी, गैंडे, साँड और हिरण आदि के चित्र अंकित हैं। क्योंकि शिव को त्रिमुखी, पशुपति और योगेश्वर आदि के नामों से जाना जाता है इसलिए इतिहासकारों का विचार है कि यह योगी कोई और नहीं बल्कि शिव ही थे।

3. पशुओं की पूजा (Worship of Animals)-सिंधु घाटी की खुदाई से मिलने वाली मोहरों और तावीज़ों आदि से हमें इस बात का संकेत मिलता है कि वे कई तरह के पशुओं की पूजा करते थे । इन पशुओं में मुख्य बैल, हाथी, गैंडा, शेर और मगरमच्छ आदि थे । इनके अतिरिक्त सिंधु घाटी के लोग कुछ पौराणिक प्रकार के पशुओं की भी पूजा करते थे। उदाहरण के लिए हड़प्पा से हमें एक ऐसी मूर्ति मिली है जिस का कुछ भाग हाथी का है और कुछ बैल का है। इन पशुओं को देवी माँ अथवा शिव का वाहन समझा जाता था ।

4. वृक्षों की पूजा (Worship of Trees)-सिंधु घाटी के लोग वृक्षों की भी पूजा करते थे। इन वृक्षों को वे देवी-देवताओं का निवास स्थान समझते थे। वे वृक्षों को जीवन और ज्ञान देने वाला दाता समझते थे। सिंधु घाटी की खुदाई से हमें जो मोहरें प्राप्त हुई हैं उनमें से अत्यधिक मोहरों पर पीपल के पेड़ के चित्र अंकित हैं जिससे यह अनुमान लगाया जाता है कि वे पीपल के पेड़ को अत्यधिक पवित्र समझते थे। इसके अतिरिक्त वे नीम, खजूर, बबूल और शीशम आदि वृक्षों की भी पूजा करते थे ।

5. स्वस्तिक की पूजा (Worship of Swastik)-सिंधु घाटी की खुदाई से मिली अनेक मोहरों पर स्वस्तिक के चिन्ह मिले हैं । इनको अच्छे शगुन वाला समझा जाता था। यह पुजारियों और व्यापारियों में आज भी लोकप्रिय है। व्यापारी कोई भी लेन-देन करते समय सबसे पहले स्वस्तिक चिन्ह को बनाते हैं।

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6. सप्तऋषियों की पूजा (Worship of Sapat-Rishis)-सिंधु घाटी की खुदाई से मिली मोहरों में से एक पर सात मनुष्य एक वृक्ष के सामने खड़े दिखाये गये हैं। इससे इस बात का अनुमान लगाया जाता है कि शायद सिंधु घाटी के लोग सप्तऋषियों की पूजा करते थे। सप्तऋषियों के नाम पुराणों, हिंदुओं के अन्य धार्मिक ग्रंथों तथा बौद्ध ग्रंथों में मिलते हैं। इन सप्तऋषियों के नाम कश्यप, अतरी, विशिष्ठ, विश्वामित्र, गौतम, जमदागनी एवं भारदवाज हैं। उनकी स्वर्ग का प्रतीक समझ कर उपासना की जाती थी।

7. लिंग और योनि की पूजा (Worship of Linga and Yoni)-सिंधु घाटी की खुदाई से हमें बहुत अधिक मात्रा में नुकीले और छल्लों के आकार के पत्थर मिले हैं । इन्हें देखकर यह बात निश्चित तौर पर कही जा सकती है कि सिंधु घाटी के लोग लिंग और योनि की पूजा करते थे। इनकी पूजा वे संसार की सृजन शक्ति के लिए करते थे।

8. जल की पूजा (Worship of water)-सिंधु घाटी की खुदाई से मिले बहुत सारे स्नानागारों से इस बात का अनुमान लगाया गया है कि उस समय के लोगों का जल पूजा में गहरा विश्वास था। उनका विशाल स्तानागार हमें मोहनजोदड़ो से प्राप्त हुआ है। जल को वे शुद्धता और सफ़ाई का प्रतीक मानते थे ।

9. साँपों की पूजा (Worship of Snakes)-सिंधु घाटी के लोग साँपों की भी पूजा करते थे । ऐसा अनुमान उस समय की प्राप्त कुछ मोहरों पर अंकित साँपों और फनीअर साँपों के चित्रों से लगाया जाता है। एक मोहर पर एक देवता के सिर पर फन फैलाये नाग को दर्शाया गया है। एक और मोहर पर एक मनुष्य को साँप को दूध पिलाते हुए दिखाया गया है।

10. जादू-टोनों में विश्वास (Faith in Magic and Charms)-सिंधु घाटी की खुदाई से मिलने वाले बहुत से तावीज़ों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि सिंधु घाटी के लोग जादू-टोनों और भूत-प्रेत में विश्वास रखते थे ।

11. मृतक संस्कार (The Death Ceremonies)-सिंधु घाटी के लोग आम तौर पर अपने मुर्दो को दफ़ना देते थे। कब्र में मुर्दे का सिर उत्तर की ओर तथा पैर दक्षिण की ओर किये जाते थे। कभी-कभी मुर्दे को खुले स्थान पर पशु-पक्षियों के खाने के लिए छोड़ दिया जाता था । उस समय मुर्दो का संस्कार करने की प्रथा भी प्रचलित थी।
उसकी अस्थियों को बड़े बर्तन में डाल कर दफना दिया जाता था। मृतक का अंतिम संस्कार चाहे किसी भी ढंग से किया जाता था पर उसके साथ अथवा उसके पिंजर अथवा अस्थियों के साथ कुछ बर्तनों में खाने-पीने और कुछ आवश्यक वस्तुओं को भी दबाया जाता था । इससे यह अनुमान लगाया जाता है कि सिंधु घाटी के लोग मृत्यु के बाद जीवन में विश्वास रखते थे।

12.कुछ अन्य धार्मिक विश्वास (Some other Religious Beliefs)-सिंधु घाटी की खुदाई से हमें अनेक अग्निकुण्ड प्राप्त हुए हैं जिस से यह अनुमान लगाया जाता है कि सिंधु घाटी के लोग अग्नि की, घुग्घी की और सूर्य आदि की पूजा भी करते थे। सिंधु घाटी के लोगों का आत्मा एवं परमात्मा में भी दृढ़ विश्वास था।

आरंभिक आर्यों का धार्मिक जीवन कैसा था इसके संबंध में हमें ऋग्वेद से विस्तारपूर्वक जानकारी प्राप्त होती है । निस्संदेह वे बड़ा सादा और पवित्र जीवन व्यतीत करते थे। उनके धार्मिक जीवन की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:—

1. प्रकृति और प्राकृतिक शक्तियों के पुजारी (Worshippers of Nature and Natural Phenomena)- आरंभिक आर्यों का धार्मिक जीवन बिल्कुल सादा था। वे प्रकृति और प्राकृतिक शक्तियों की पूजा करते थे। वे उन सारी वस्तुओं जो सुंदर विचित्र और भयानक दिखाई देती थीं, को प्राकृतिक शक्तियाँ स्वीकार करते थे। उन्होंने इन प्राकृतिक शक्तियों को अलग-अलग देवी-देवताओं का नाम रखकर उनकी पूजा आरंभ कर दी थी। वे चमकते हुए सूर्य की पूजा करते थे क्योंकि वह पृथ्वी को सजीव रखता था। वे वायु की पूजा करते थे जो संसार भर के मनुष्यों को जीवन देती थी। वे प्रभात की पूजा करते थे जो मनुष्यों को उनकी मीठी नींद से जगाकर उनको उनके कार्यों पर भेजता था। वे नीले आकाश की पूजा करते थे जिसने सारे संसार को घेरा हुआ था।

2. वैदिक देवते (VedicGods) आरंभिक आर्यों के देवताओं की कुल संख्या 33 थी। इन को तीन भागों में बाँटा गया था । ये देवता आकाश, पृथ्वी और आकाश तथा पृथ्वी के मध्य रहते थे । प्रमुख देवी-देवताओं का संक्षेप वर्णन अग्रलिखित है :—

  • वरुण (Varuna)-वरुण आरंभिक आर्यों का सब से बड़ा देवता था । वह सिंहासन पर बैठता था। उसको सत्य और धर्म का स्वामी माना जाता था। उसको आकाश, पृथ्वी, और सूर्य का निर्माता कहा जाता था। वह पापी लोगों को सज़ा देता था। वह जीवन दान दे सकता था और मृत्यु को रद्द कर सकता था। इसलिए पापी लोग उससे क्षमा की याचना करते थे।
  • इंद्र (Indra) -इंद्र आरंभिक आर्यों का दूसरा महत्त्वपूर्ण और शक्तिशाली देवता था। ऋग्वेद में सबसे अधिक (250) मंत्र इस देवता की प्रशंसा में दिये गये हैं। उसको वर्षा और युद्ध का देवता समझा जाता था। आर्य उसकी समय पर वर्षा के लिए और युद्ध में विजय प्राप्त करने के लिए प्रार्थना करते थे । वह दुश्मनों के दुर्गों को पलक झपकते ही नष्ट कर सकता था ।
  • अग्नि (Agni)-अग्नि आरंभिक आर्यों का एक और प्रमुख देवता था। उसका संबंध विवाह और दाह संस्कारों के साथ था। उसके बिना कोई भी यज्ञ पूर्ण नहीं हो सकता था। ऋग्वेद में अग्नि देवता की प्रशंसा में 200 मंत्र दिये गये हैं।
  • सूर्य (Sun)-सूर्य भी आरंभिक आर्यों का एक महत्त्वपूर्ण देवता था । वह संसार में से अंधेरे को दूर भगाता था। वह हर रोज़ सात घोड़ों वाले रथ पर सवार होकर आकाश का चक्र काटता था ।
  • रुद्र (Rudra)-रुद्र को आँधी या तूफ़ान का देवता समझा जाता था। वह बहुत ही प्रचंड और विनाशकारी था। लोग उससे बहुत डरते थे और उसको प्रसन्न रखने का प्रयत्न करते थे।
  • सोम (Soma)-सोम देवता की आरंभिक आर्यों के धार्मिक जीवन में बहुत महत्ता थी। सोम रस को एक ऐसा अमृत समझा जाता था जिसको पीकर देवता अमर हो जाते थे। इस का हवन में प्रयोग किया जाता था और यह देवताओं को भेंट किया जाता था।
  • देवियाँ (Goddesses)-आरंभिक आर्य देवताओं के अतिरिक्त कुछ देवियों की भी पूजा करते थे । परंत देवताओं के मुकाबले इनका महत्त्व कम था । उनके द्वारा पूजी जाने वाली प्रमुख देवियाँ प्रभात की देवी उषा, रात की देवी रात्री, धरती की देवी पृथ्वी, वन देवी आरण्यी, नदी देवी सरस्वती थीं।

3. एक ईश्वर में विश्वास ( Faith in one God) यद्यपि आरंभिक आर्य अनेक देवी-देवताओं की पूजा करते थे परंतु फिर भी उनका ईश्वर की एकता में दृढ़-विश्वास था। वे सारे देवताओं को महान् समझते थे और किसी को भी छोटा या बड़ा नहीं समझते थे । ऋषि अलग-अलग अवसरों पर अलग-अलग देवी-देवताओं को प्रधान बना देते थे । ऋग्वेद के एक मंत्र में कहा गया है, सब एक ही हैं, केवल ऋषियों ने ही उनका विभिन्न रूपों में वर्णन किया है।” एक और मंत्र में लिखा है, “वह जिसने हमें जीवन बख्शा है, वह जिसने सृष्टि की रचना की है, अनेक देवताओं .के नाम के साथ प्रसिद्ध होते हुए भी वह एक है।” स्पष्ट है कि आर्य एक ईश्वर के सिद्धांत को अच्छी तरह जानते
थे।

4. मंदिरों और मूर्ति पूजा का अभाव (Absence of Temples and Idol Worship)-आरंभिक आर्यों ने अपने देवी-देवताओं की याद में न किसी मंदिर का निर्माण किया था और न ही उनकी मूर्तियाँ बनाई गई थीं। मंदिर के निर्माण संबंधी या मूर्तियों के निर्माण संबंधी ऋग्वेद में कहीं भी कोई वर्णन नहीं मिलता। आर्य लोग अपने घरों में खुले वातावरण में चौकड़ी लगा कर बैठ जाते थे और एक मन हो कर अपने देवी-देवताओं की याद में मंत्रों का उच्चारण करते थे और स्तुति करते थे ।

5. यज्ञ और बलियाँ (Yajnas and Sacrifices)-आरंभिक आर्य लोग अपने देवी-देवताओं को खुश करने के लिए कई तरह के यज्ञ करते थे । इन यज्ञों को बड़े ध्यान से किया जाता था, क्योंकि उनको यह डर होता था कि थोड़ीसी गलती से उनके देवता नाराज़ न हो जाएँ। सबसे पहले यज्ञ के लिए वेदी बनाई जाती थी। फिर इसमें पवित्र अग्नि जलाई जाती थी इसमें घी, दूध, चावल और सोमरस डाला जाता था। इन यज्ञों के दौरान कई जानवरों की जैसे भेड़ों, बकरियों और घोड़ों आदि की बलि दी जाती थी। उस समय मनुष्य की बलि देने की प्रथा बिल्कुल नहीं थी। ये यज्ञ कई प्रकार के होते थे । सबसे छोटा यज्ञ पारिवारिक स्तर पर होता था। बड़े-बड़े यज्ञों की तैयारी बहुत पहले ही शुरू हो जाती थी। ऐसे यज्ञ राजाओं और समाज के और अमीर वर्ग द्वारा करवाये जाते थे। इन यज्ञों में बहुत ज्यादा मात्रा में पुरोहित शामिल होते थे। इनको दक्षिणा के तौर पर सोना, पशु या अनाज दिया जाता था। इन यज्ञों और बलियों का प्रमुख उद्देश्य देवताओं को खुश करना था। इनके बदले वे समझते थे कि उनको युद्ध में सफलता प्राप्त होगी, धन प्राप्त होगा, संतान में वृद्धि होगी और लम्बा जीवन मिलेगा। आरंभिक आर्य यह समझते थे कि हर यज्ञ से संसार की नये सिरे से उत्पत्ति होती है और यदि यह यज्ञ न करवाए जायें तो संसार में फिर से अंधकार छा जाएगा । इन यज्ञों के करवाने से गणित, भौतिक ज्ञान और जानवरों की शारीरिक बनावट के ज्ञान में वृद्धि हुई ।

6. पितरों की पूजा (Worship of Forefathers)-आरंभिक आर्य अपने देवी-देवताओं की पूजा के अतिरिक्त अपने पितरों की भी पूजा करते थे । पितर आर्यों के आरंभिक बुर्जुग थे। वे स्वर्गों में निवास करते थे । ऋग्वेद में बहुत से मंत्र पितरों की प्रशंसा में लिखे गये हैं । उनकी पूजा भी अन्य देवी-देवताओं की तरह की जाती थी। पितरों की पूजा इस आशा के साथ की जाती थी कि वे अपने वंश की रक्षा करेंगे, उनका मार्गदर्शन करेंगे, उनके कष्ट दूर करेंगे, उनको धन और शक्ति प्रदान करेंगे तथा अपने बच्चों की दीर्घायु और संतान का वर देंगे।

7. मृत्यु के पश्चात् जीवन में विश्वास (Belief in Life after Death)-आरंभिक आर्य मृत्यु के पश्चात् जीवन में विश्वास रखते थे । आवागमन और पुनर्जन्म का सिद्धांत अभी प्रचलित नहीं हुआ था। वैदिक काल के लोगों का विश्वास था कि मृत्यु के समय आत्मा शरीर से अलग हो जाती है। वे आत्मा को अमर समझते थे। स्वर्ग का जीवन खुशियों से भरपूर होता था । यह देवताओं का निवास स्थान था। वे लोग स्वर्ग के अधिकारी समझे जाते थे जो रणभूमि में अपना बलिदान देते थे अथवा भारी तपस्या करते थे अथवा यज्ञ के समय खुले दिल से दान देते थे। ऋग्वेद में नरक का वर्णन कहीं नहीं किया गया है ।

8. मृतक का अंतिम संस्कार (Disposal of Dead)-आरंभिक आर्यों के काल में मृतकों का दाह संस्कार किया जाता था । मृतक को चिता तक ले जाने के लिए उसकी पत्नी और अन्य संबंधी साथ जाते थे। उसके बाद मृतक को चिता पर रख दिया जाता था। यदि मृतक ब्राह्मण होता तो उसके दायें हाथ में एक लाठी पकड़ाई जाती थी, यदि वह क्षत्रिय होता तो उसके हाथ में धनुष और यदि वह वैश्य होता तो उसके हाथ में हल चलाने वाली लकड़ी पकड़ाई जाती थी । उसकी पत्नी तब तक चिता के पास बैठी रहती थी जब तक उसको यह नहीं कहा जाता था ‘अरी महिला उठो और जीवित लोगों में आओ।’ इसके बाद हवन कुंड से लाई गई अग्नि के साथ चिता को आग लगाई जाती थी और वह मंत्र पढ़ा जाता था, “बजुर्गों के मार्ग पर जाओ।” लाश के पूर्ण भस्म हो जाने को बाद अस्थियों को इकट्ठा कर लिया जाता था और उनको एक क्लश में रखकर जमीन में गाढ़ दिया जाता था।

9. रित और धर्मन (Rita and Dharman)-ऋग्वेद और दूसरे वैदिक ग्रंथों में रित और धर्मन शब्दों का बहुत वर्णन मिलता है । रित से भाव उस व्यवस्था से है जिसके अनुसार संसार का प्रबंध चलता है। रित के नियमानुसार ही सुबह पौ फटती है, सूर्य, चाँद और तारे चमकीले नज़र आते हैं। धरती सूर्य के इर्द-गिर्द चक्र लगाती है । सागर में ज्वारभाटे आते हैं। इस तरह रित एक सच्चाई है, इस का विपरीत अनऋत (झूठ) है। ‘धर्मन’ शब्द से भाव कानून है। धर्मन देवताओं द्वारा बनाये जाते हैं । यह भौतिक संसार, मनुष्यों और बलियों पर लागू होता है। वास्तव में धर्मन जीवन और रस्मों रीतों का नियम है। अच्छे मनुष्य अपना जीवन धर्मन अनुसार व्यतीत करते थे।

PSEB 12th Class Religion Solutions Chapter 1 सिंधु घाटी के लोगों और प्रारंभिक आर्यों का धार्मिक जीवन

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
सिंधु घाटी के लोगों की कोई दो विशेषताएँ बताएँ। (Write any two features of religious life of the Indus Valley People.)
उत्तर-

  1. देवी माँ की पूजा-सिंधु घाटी के लोग सबसे अधिक देवी माँ की पूजा करते थे। इस का अनुमान सिंधु घाटी की खुदाई से मिली देवी माँ की अनेक मूर्तियों, मोहरों और तावीज़ों पर बने उनके चित्रों से लगाया जाता है। कई मूर्तियों पर धुएँ के चिन्ह हैं जिनसे यह परिणाम निकलता है कि लोग देवी माँ की धूप-बाती और तेल से पूजा करते थे। देवी माँ को शक्ति का प्रतीक माना जाता था।
  2. शिव की पूजा-सिंधु घाटी के लोगों में एक देवता की पूजा काफ़ी प्रचलित थी। उस समय की मिली कुछ मोहरों पर एक देव के चित्र अंकित हैं। इस देव को योगी की स्थिति में समाधि लगाये हुए देखा गया है। इस के तीन मुँह दर्शाये गए हैं। इसलिए इतिहासकारों का विचार है कि यह योगी कोई और नहीं बल्कि शिव ही थे।

प्रश्न 2.
सिंधु घाटी सभ्यता की धार्मिक विशेषताएँ क्या थी ? (What were the characteristics of the religion of the Indus Valley Civilization ?)
उत्तर-
सिंधु घाटी की खुदाई से मिली मूर्तियों और तावीज़ों को देखकर हम यह अनुमान लगा सकते हैं कि सिंधु घाटी के लोग सर्वाधिक देवी माँ की पूजा करते थे। वह शिव की पूजा भी करते थे। इसके अतिरिक्त वह लिंग, योनि, सूर्य, पीपल, बैल, शेर, हाथी आदि की भी पूजा करते थे। वह मृत्यु के बाद जीवन में विश्वास रखते थे। वह भूत-प्रेतों में भी विश्वास रखते थे तथा उनसे बचने के लिए जादू-टोनों का प्रयोग करते थे।

प्रश्न 3.
सिंधु घाटी के लोग अपने मृतकों का संस्कार किस प्रकार करते थे ? (How the people of Indus Valley Civilization disposed off their dead ?)
अथवा
सिंधु घाटी सभ्यता के लोग अपने मृतकों का संस्कार करने के लिए कौन-से दो तरीके अपनाते थे ?
(Which two methods were adopted by the people of Indus Valley to dispose off their dead ?)
अथवा
हड़प्पा काल के लोगों के मृतक संस्कारों के बारे में जानकारी दीजिए। (Describe the death ceremonies of Harappa age people.)
उत्तर-
सिंधु घाटी के लोग आम तौर पर अपने मुर्दो को दफ़ना देते थे। कब्र में मुर्दे का सिर उत्तर की ओर तथा पैर दक्षिण की ओर किये जाते थे। कभी-कभी मुर्दे को खुले स्थान पर पशु-पक्षियों के खाने के लिए छोड़ दिया जाता था तथा जब पिंजर शेष रह जाता था तब उसे एक ताबूत में डाल कर दफना दिया जाता था। उस समय मर्यों का संस्कार करने की प्रथा भी प्रचलित थी। उसकी अस्थियों को बड़े बर्तन में डाल कर दफना दिया जाता था।

प्रश्न 4.
प्रारंभिक आर्यों के धार्मिक विश्वासों के बारे में जानकारी दीजिए। (Describe the religious beliefs of early Aryans.)
अथवा
वैदिक आर्यों के धार्मिक विचारों एवं रीति-रिवाजों के बारे में बताएँ। (Discuss the religious ideas and rituals of Vedic Aryans.)
अथवा
ऋग्वैदिक आर्यों के धार्मिक जीवन की मुख्य विशेषताएँ क्या थीं ? (What were the main features of the religious life of the Rigvedic Aryans ?)
उत्तर-
ऋग्वैदिक काल में आर्यों का धर्म बिल्कुल सादा था। आर्य प्राकृतिक शक्तियों को देवता मानकर उनकी उपासना करते थे। उनके सबसे बड़े देवता का नाम वरुण था। वह आकाश का देवता था। इंद्र को द्वितीय स्थान प्राप्त था। वह वर्षा और युद्ध का देवता था। अग्नि देवता भी बहुत महत्त्वपूर्ण था। क्योंकि उसका विवाह तथा दाहसंस्कार के साथ संबंध था। इसके अतिरिक्त आर्य ऊषा, रात्रि, पृथ्वी तथा आरण्यी आदि की भी पूजा करते थे। परंतु देवताओं की अपेक्षा उनका महत्त्व कम था।

प्रश्न 5.
वरुण के बारे में आप क्या जानते हैं ? (What do you know about Varuna ?)
अथवा
आर्यों के वरुण देवते बारे जानकारी दें। (Describe the Lord Varuna of the Aryans.)
उत्तर-
वरुण आरंभिक आर्यों का सब से बड़ा देवता था। वह ऊँचे सिंहासन पर बैठता था। उसको सत्य और धर्म का स्वामी माना जाता था। उसको आकाश, पृथ्वी और सूर्य का निर्माता कहा जाता था। उसके आदेशानुसार चाँद चमकता था और तारे टिमटिमाते थे। वह सर्वशक्तिशाली और सर्वव्यापक था। वह संसार में घटने वाली हर घटना को जानता था। उसकी सैंकड़ों आँखें थीं। कोई भी पापी उसकी पैनी नज़र से बच नहीं सकता था। वह पापियों को दंड देता था। वह जीवन दान दे सकता था और मृत्यु को रद्द कर सकता था। इसलिए पापी क्षमा के लिए उससे प्रार्थना करते थे।

प्रश्न 6.
आरंभिक आर्यों के देवता इंद्र के बारे में जानकारी दीजिए। (Describe god Indra of early Aryans.)
अथवा
इंद्र देवता के बारे में आप क्या जानते हैं ? (What do you know about god Indra ?)
उत्तर-
इंद्र आरंभिक आर्यों का दूसरा महत्त्वपूर्ण और शक्तिशाली देवता था। ऋग्वेद में सबसे अधिक (250) मंत्र इस देवता की प्रशंसा में दिये गये हैं। उसका तेज इतना था कि सैंकड़ों सूर्यों का प्रकाश भी उसके आगे मद्धम पड़ जाता था। उसको वर्षा और युद्ध का देवता समझा जाता था। आर्य उसकी समय पर वर्षा के लिए और युद्ध में विजय प्राप्त करने के लिए याचना करते थे। वह इतना बहादुर था कि उसने राक्षसों पर भी विजय प्राप्त की थी। वह दुश्मनों के दुर्गों को पलक झपकते ही नष्ट कर सकता था। वह अंधकार को दूर कर सकता था। वह कई रूप धारण कर सकता था। वह इतना शक्तिशाली था कि सब देवता उससे डरते थे।

प्रश्न 7.
आर्यों के देवता अग्नि का वर्णन अपने शब्दों में करें। (Explain in your words the Aryan god ‘Agni’.)
उत्तर-
अग्नि आरंभिक आर्यों का प्रमुख देवता था। उसको दो कारणों से अति महत्त्वपूर्ण समझा जाता था। पहला, उसको सब घरों का स्वामी समझा जाता था। उसका संबंध विवाह और दाह-संस्कारों के साथ था। दूसरा, उसके बिना कोई भी यज्ञ पूर्ण नहीं हो सकता था। वह अपने भक्तों द्वारा दी गई आहुति को देवताओं तक पहुँचाता था। अग्नि देवता की सात जीभें और 1000 आँखें समझी जाती थीं। यदि वह कभी गुस्से में आ जाता तो पल भर में सबको नष्ट कर सकता था। सूखे काष्ठ, घी और मक्खन को इसका मनपसंद भोजन समझा जाता था।

प्रश्न 8.
आर्यों की सामाजिक, धार्मिक व्यवस्था में यज्ञों का क्या महत्त्व था ? (What was the importance of Yajnas in the social and religious life of the Aryans ?)
अथवा
ऋग्वैदिक आर्यों की उपासना विधि के बारे में आप क्या जानते हैं ? (What do you know about the mode of worship of the Rigvedic Aryans ?)
उत्तर-
ऋग्वैदिक आर्यों की उपासना विधि बहुत सरल थी। वे खुले वायुमंडल में एकाग्रचित होकर मंत्रों का उच्चारण करते थे। वे अपने देवी-देवताओं को प्रसन्न करने के लिए कई प्रकार के यज्ञ करते थे। ये यज्ञ बहुत ध्यानपूर्वक किए जाते थे क्योंकि उन्हें यह भय होता था कि कहीं थोड़ी-सी भूल से उनके देवता रुष्ट न हो जाएँ। सबसे पहले यज्ञ के लिए अग्नि प्रज्वलित की जाती थी। फिर उसमें घी, दूध, चावल और सोमरस डाला जाता था। इन यज्ञों में कई पशुओं की बलि भी दी जाती थी। ये यज्ञ कई प्रकार के होते थे। इन यज्ञों तथा बलियों का मुख्य उद्देश्य देवताओं को प्रसन्न करना था।

PSEB 12th Class Religion Solutions Chapter 1 सिंधु घाटी के लोगों और प्रारंभिक आर्यों का धार्मिक जीवन

प्रश्न 9.
आरंभिक आर्य अपने मृतकों का अंतिम संस्कार किस प्रकार करते थे? (How did the early Aryan dispose off their dead ?)
उत्तर-
आरंभिक आर्यों के काल में मृतकों का दाह-संस्कार किया जाता था। मृतक को चिता तक ले जाने के लिए उसकी पत्नी अथवा अन्य संबंधी साथ जाते थे। उसके बाद मृतक को चिता पर रख दिया जाता था। उसकी पत्नी तब तक चिता के पास बैठी रहती थी जब तक उसको यह नहीं कहा जाता था ‘अरी महिला उठो और जीवित लोगों में आओ।’ इसके बाद हवन कुंड से लाई गई अग्नि के साथ चिता को आग लगाई जाती थी। लाश के पूर्ण भस्म हो जाने के बाद अस्थियों को इकट्ठा कर लिया जाता था और उनको एक क्लश में रखकर जमीन में गाढ़ दिया जाता था।

प्रश्न 10.
रित एवं धर्मन से आपका क्या अभिप्राय है ? (What do you mean by Rita and Dharman ?)
उत्तर-
ऋग्वेद और दूसरे वैदिक ग्रंथों में रित और धर्मन शब्दों का बहुत वर्णन मिलता है। रित से भाव उस व्यवस्था से जिसके अनुसार संसार का प्रबंध चलता है। रित के नियमानुसार ही सुबह पौ फटती है, सूर्य, चाँद और तारे चमकीले नज़र आते हैं। ‘धर्मन’ शब्द से भाव कानून है। धर्मन देवताओं द्वारा बनाये जाते हैं। यह भौतिक संसार, मनुष्यों और बलियों पर लागू होते थे। अच्छे मनुष्य अपना जीवन धर्मन अनुसार व्यतीत करते थे।

प्रश्न 11.
सिंधु घाटी के लोगों की कोई पाँच विशेषताएँ बताएँ। (Write any five features of religious life of the Indus Valley People.)
अथवा
सिंधु घाटी के लोगों के द्वारा किस-किस वस्तु की पूजा होती है ? (What was worshipped by the Indus Valley People ?)
उत्तर-

  1. देवी माँ की पूजा-सिंधु घाटी के लोग सबसे अधिक देवी माँ की पूजा करते थे। इस का अनुमान सिंधु घाटी की खुदाई से मिली देवी माँ की अनेक मूर्तियों, मोहरों और तावीज़ों पर बने उनके चित्रों से लगाया जाता है। कई मूर्तियों पर धुएँ के चिन्ह हैं जिनसे यह परिणाम निकलता है कि लोग देवी माँ की धूप-बाती और तेल से पूजा करते थे। देवी माँ को शक्ति का प्रतीक माना जाता था।
  2. शिव की पूजा-सिंधु घाटी के लोगों में एक देवता की पूजा काफ़ी प्रचलित थी। उस समय की मिली कुछ मोहरों पर एक देव के चित्र अंकित हैं। इस देव को योगी की स्थिति में समाधि लगाये हुए देखा गया है। इस के तीन मुँह दर्शाये गए हैं। इसलिए इतिहासकारों का विचार है कि यह योगी कोई और नहीं बल्कि शिव ही थे।
  3. वृक्षों की पूजा-सिंधु घाटी के लोग वृक्षों की भी पूजा करते थे। इन वृक्षों को वे देवी-देवताओं का निवास स्थान समझते थे। वे वृक्षों को जीवन और ज्ञान देने वाला दाता समझते थे। वे पीपल के पेड़ को अत्यधिक पवित्र समझते थे। इसके अतिरिक्त वे नीम, खजूर, बबूल और शीशम आदि वृक्षों की भी पूजा करते थे।
  4. स्वस्तिक की पूजा-सिंधु घाटी की खुदाई से मिली अनेक मोहरों पर स्वस्तिक के चिन्ह मिले हैं। इनको अच्छे शगुन वाला समझा जाता था। यह पुजारियों और व्यापारियों में आज भी हरमन प्यारा है। व्यापारी कोई भी लेन-देन करते समय सबसे पहले स्वस्तिक चिन्ह को बनाते हैं।
  5. सप्तऋषियों की पूजा–सिंधु घाटी की खुदाई से मिली मोहरों में से एक पर सात मनुष्य एक वृक्ष के सामने खड़े दिखाये गये हैं। इससे इस बात का अनुमान लगाया जाता है कि शायद सिंधु घाटी के लोग सप्तऋषियों की पूजा करते थे।

प्रश्न 12.
सिंधु घाटी के लोग अपने मृतकों का संस्कार किस प्रकार करते थे ?
(How the people of Indus Valley Civilization disposed off their dead ?)
अथवा
सिंधु घाटी सभ्यता के लोग अपने मृतकों का संस्कार करने के लिए कौन-से दो तरीके अपनाते थे ?
(Which two methods were adopted by the people of Indus Valley to dispose off their dead ?)
अथवा
हड़प्पा काल के लोगों के मृतक संस्कारों के बारे में जानकारी दीजिए।
(Describe the death ceremonies of Harappa age people.)
उत्तर-
सिंधु घाटी के लोग आम तौर पर अपने मुर्दो को दफना देते थे। कब्र में मुर्दे का सिर उत्तर की ओर तथा पैर दक्षिण की ओर किये जाते थे। कभी-कभी मुर्दे को खुले स्थान पर पशु-पक्षियों के खाने के लिए छोड़ दिया जाता था। उस समय मुर्दो का संस्कार करने की प्रथा भी प्रचलित थी। उसकी अस्थियों को बड़े बर्तन में डाल कर दफना दिया जाता था। मृतक का अंतिम संस्कार चाहे किसी भी ढंग से किया जाता था पर उसके साथ अथवा उसके पिंजर अथवा अस्थियों के साथ कुछ बर्तनों में खाने-पीने और कुछ आवश्यक वस्तुओं को भी दबाया जाता था। इससे यह अनुमान लगाया जाता है कि सिंधु घाटी के लोग मृत्यु के बाद जीवन में विश्वास रखते थे।

प्रश्न 13.
प्रारंभिक आर्यों के धार्मिक विश्वासों के बारे में जानकारी दीजिए। (Describe the religious beliefs of early Aryans.)
अथवा
वैदिक आर्यों के धार्मिक विचारों एवं रीति-रिवाजों के बारे में बताएँ। (Discuss the religious ideas and rituals of Vedic Aryans.)
अथवा
ऋग्वैदिक आर्यों के धार्मिक जीवन की मुख्य विशेषताएँ क्या थीं ? (What were the main features of the religious life of the Rigvedic Aryans ?)
अथवा आरंभिक आर्य लोगों के धार्मिक विश्वासों के बारे में लिखें।
(Discuss the religious beliefs of the early Aryan people.)
उत्तर-
ऋग्वैदिक काल में आर्यों का धर्म बिल्कुल सादा था। आर्य प्राकृतिक शक्तियों को देवता मानकर उनकी उपासना करते थे। वे कई देवी-देवताओं की पूजा करते थे। उनके सबसे बड़े देवता का नाम वरुण था। वह आकाश का देवता था। वह संसार के सभी रहस्यों को जानता था। आर्य उससे अपनी भूल के लिए क्षमा माँगते थे। इंद्र को द्वितीय स्थान प्राप्त था। वह वर्षा और युद्ध का देवता था। आर्य इस देवता की समय पर वर्षा के लिए और युद्ध में विजय प्राप्त करने के लिए प्रार्थना करते थे। अग्नि देवता भी बहुत महत्त्वपूर्ण था। वह देवताओं और मनुष्यों के बीच संपर्क का साधन था। विवाह अग्नि की उपस्थिति में होते थे और मृतकों का अग्नि के द्वारा दाह-संस्कार किया जाता था। इसके अतिरिक्त आर्य लोग सूर्य, रुद्र, यम, वायु और त्वस्त्र देवताओं की भी पूजा करते थे। वे कई देवियों जैसे कि-प्रातः की देवी ऊषा, रात की देवी रात्रि, भूमि की देवी पृथ्वी, वन देवी आरण्यी आदि की भी पूजा करते थे। परंतु देवियों की संख्या कम थी और देवताओं की अपेक्षा उनका महत्त्व भी कम था। आर्य अपने देवी-देवताओं को एक ही ईश्वर के भिन्न-भिन्न रूप समझते थे। आर्य आवागमन, मुक्ति तथा कर्म सिद्धांतों में भी विश्वास रखते थे। ये सिद्धांत इस काल में अधिक विकसित नहीं हुए थे।

प्रश्न 14.
प्रारंभिक आर्यों के प्रमुख देवताओं का संक्षिप्त वर्णन कीजिए। (Give a brief account of the main gods of the Early Aryans.)
उत्तर-

  1. वरुण-वरुण प्रारंभिक आर्यों का सबसे बड़ा देवता था। वह सिंहासन पर बैठता था। उसको सत्य और धर्म का स्वामी माना जाता था। उसको आकाश, पृथ्वी और सूर्य का निर्माता कहा जाता था। वह पापी लोगों को सज़ा देता था। वह जीवन दान दे सकता था और मृत्यु को रद्द कर सकता था। इसलिए पापी लोग उससे क्षमा की याचना करते थे।
  2. इंद्र-इंद्र प्रारंभिक आर्थों का दूसरा महत्त्वपूर्ण और शक्तिशाली देवता था। ऋग्वेद में सबसे अधिक (250) मंत्र इस देवता की प्रशंसा में दिये गये हैं। उसको वर्षा और युद्ध का देवता समझा जाता था। आर्य उसकी समय पर वर्षा के लिए और युद्ध में विजय प्राप्त करने के लिए प्रार्थना करते थे। वह दुश्मनों के दुर्गों को पलक झपकते ही नष्ट कर सकता था।
  3. अग्नि-अग्नि प्रारंभिक आर्यों का एक और प्रमुख देवता था। उसका संबंध विवाह और दाह संस्कार के साथ था। उसके बिना कोई भी यज्ञ पूर्ण नहीं हो सकता था। ऋग्वेद में अग्नि देवता की प्रशंसा में 200 मंत्र दिये गये हैं।
  4. सूर्य-सूर्य भी प्रारंभिक आर्यों का एक महत्त्वपूर्ण देवता था। वह संसार में से अंधेरे को दूर भगाता था। वह हर रोज़ सात घोड़ों वाले रथ पर सवार होकर आकाश का चक्र काटता था।
  5. रुद्र-रुद्र को आँधी या तूफ़ान का देवता समझा जाता था। वह बहुत ही प्रचंड और विनाशकारी था। लोग उससे बहुत डरते थे और उसको प्रसन्न रखने का प्रयत्न करते थे।
  6. सोम-सोम देवता की प्रारंभिक आर्यों के धार्मिक जीवन में बहत महत्ता थी। सोम रस को एक ऐसा अमृत समझा जाता था जिसको पीकर देवता अमर हो जाते थे। इस का हवन में प्रयोग किया जाता था और यह देवताओं को भेंट किया जाता।

PSEB 12th Class Religion Solutions Chapter 1 सिंधु घाटी के लोगों और प्रारंभिक आर्यों का धार्मिक जीवन

प्रश्न 15.
वरुण और इंद्र के बारे में आप क्या जानते हैं ? (What do you know about Varuna and Indra ?)
अथवा
वरुण के बारे में आप क्या जानते हैं ?
(What do you know about Varuna ?)
अथवा
आर्यों के वरुण देवते बारे जानकारी दें।
(Describe the Lord Varuna of the Aryans.)
अथवा
आरंभिक आर्यों के देवता इंद्र के बारे में जानकारी दीजिए।
(Describe god Indra of early Aryans.)
अथवा
इंद्र देवता के बारे में आप क्या जानते हैं ?
(What do you know about God Indra ?)
उत्तर-

1. वरुण-वरुण आरंभिक आर्यों का सब से बड़ा देवता था। वह ऊँचे सिंहासन पर बैठता था उसको सत्य और धर्म का स्वामी माना जाता था। उसको आकाश, पृथ्वी और सूर्य का निर्माता कहा जाता था। उसके आदेशानुसार चाँद चमकता था और तारे टिमटिमाते थे। वह सर्वशक्तिशाली और सर्वव्यापक था। वह संसार में घटने वाली हर घटना को जानता था। उसकी सैंकड़ों आँखें थीं। कोई भी पापी उसकी पैनी नज़र से बच नहीं सकता था। वह पापियों को दंड देता था। वह जीवन दान दे सकता था और मृत्यु को रद्द कर सकता था। इसलिए पापी क्षमा के लिए उससे प्रार्थना करते थे।

2. इंद्र-इंद्र आरंभिक आर्यों का दूसरा महत्त्वपूर्ण और शक्तिशाली देवता था। ऋग्वेद में सबसे अधिक (250) मंत्र इस देवता की प्रशंसा में दिये गये हैं। उसका तेज इतना था कि सैंकड़ों सूर्यों का प्रकाश भी उसके आगे मद्धम पड़ जाता था। उसको वर्षा और युद्ध का देवता समझा जाता था। आर्य उसकी समय पर वर्षा के लिए और युद्ध में विजय प्राप्त करने के लिए याचना करते थे। वह इतना बहादुर था कि उसने राक्षसों पर भी विजय प्राप्त की थी। वह दुश्मनों के दुर्गों को पलक झपकते ही नष्ट कर सकता था। वह अंधकार को दूर कर सकता था। वह कई रूप धारण कर सकता था। वह इतना शक्तिशाली था कि सब देवता उससे डरते थे।

प्रश्न 16.
आर्यों के देवता अग्नि का वर्णन अपने शब्दों में करें। (Explain in your words the Aryan god ‘Agni’.)
उत्तर-
अग्नि आरंभिक आर्यों का एक और प्रमुख देवता था। उसको दो कारणों से अति महत्त्वपूर्ण समझा जाता था। पहला, उसको सब घरों का स्वामी समझा जाता था। उसका संबंध विवाह और दाह-संस्कारों के साथ था। दूसरा, उसके बिना कोई भी यज्ञ पूर्ण नहीं हो सकता था। वह अपने भक्तों द्वारा दी गई आहुति को देवताओं तक पहुँचाता था। अग्नि देवता की सात जी) और 1000 आँखें समझी जाती थीं। यदि वह कभी गुस्से में आ जाता तो पल भर में सबको नष्ट कर सकता था। सूखे काष्ठ, घी और मक्खन को इसका मनपसंद भोजन समझा जाता था। ऋग्वेद में अग्नि देवता की प्रशंसा में 200 मंत्र दिये गये हैं।

प्रश्न 17.
आर्यों की सामाजिक, धार्मिक व्यवस्था में यज्ञों का क्या महत्त्व था ? (What was the importance of Yajnas in the social and religious life of the Aryans ?)
अथवा
ऋग्वैदिक आर्यों की उपासना विधि के बारे में आप क्या जानते हैं ?
(What do you know about the mode of worship of the Rigvedic Aryans ?)
उत्तर-
ऋवैदिक आर्यों की उपासना विधि बहुत सरल थी। वे खुले वायुमंडल में एकाग्रचित होकर मंत्रों का उच्चारण करते थे। वे अपने देवी-देवताओं को प्रसन्न करने के लिए कई प्रकार के यज्ञ करते थे। ये यज्ञ बहुत ध्यानपूर्वक किए जाते थे क्योंकि उन्हें यह भय होता था कि कहीं थोड़ी-सी भूल से उनके देवता रुष्ट न हो जाएँ। सबसे पहले यज्ञ के लिए अग्नि प्रज्वलित की जाती थी। फिर उसमें घी, दूध, चावल और सोमरस डाला जाता था। इन यज्ञों में कई पशुओं की बलि भी दी जाती थी। ये यज्ञ कई प्रकार के होते थे। सबसे छोटा यज्ञ पारिवारिक स्तर पर होता था। बड़े यज्ञों की तैयारी बहुत पहले से आरंभ कर दी जाती थी। धनवान् लोग इन यज्ञों में भारी दान देते थे। इन यज्ञों तथा बलियों का मुख्य उद्देश्य देवताओं को प्रसन्न करना था। आर्य ये समझते थे कि इनके बदले में उन्हें लड़ाई में विजय प्राप्त होगी, धन प्राप्त होगा, संतान वृद्धि होगी तथा सुखमय दीर्घ जीवन मिलेगा। वे यह समझते थे कि प्रत्येक यज्ञ से संसार की फिर से उत्पत्ति होती है और यदि ये यज्ञ न कराए जाएँ तो संसार में अंधकार फैल जाएगा। इन यज्ञों के कारण गणित, खगोल विद्या तथा जानवरों की शारीरिक संरचना के ज्ञान के संबंध में वृद्धि हुई।

प्रश्न 18.
आरंभिक आर्य अपने मृतकों का अंतिम संस्कार किस प्रकार करते थे? (How did the early Aryan dispose off their dead ?)
उत्तर-
आरंभिक आर्यों के काल में मृतकों का दाह-संस्कार किया जाता था। मृतक को चिता तक ले जाने के लिए उसकी पत्नी और अन्य संबंधी साथ जाते थे। उसके बाद मृतक को चिता पर रख दिया जाता था। यदि मृतक ब्राह्मण होता तो उसके दायें हाथ में एक लाठी पकड़ाई जाती थी, यदि वह क्षत्रिय होता तो उसके हाथ में धनुष और यदि वह वैश्य होता तो उसके हाथ में हल चलाने वाली लकड़ी पकड़ाई जाती थी। उसकी पत्नी तब तक चिता के पास बैठी रहती थी जब तक उसको यह नहीं कहा जाता था ‘अरी महिला उठो और जीवित लोगों में आओ।’ इसके बाद हवन कुंड से लाई गई अग्नि के साथ चिता को आग लगाई जाती थी और यह मंत्र पढ़ा जाता था, “बजुर्गों के मार्ग पर जाओ”। लाश के पूर्ण भस्म हो जाने के बाद अस्थियों को इकट्ठा कर लिया जाता था और उनको एक क्लश में रखकर ज़मीन में गाढ़ दिया जाता था।

प्रश्न 19.
रित एवं धर्मन से आपका क्या अभिप्राय है ? (What do you mean by Rita and Dharman ?)
उत्तर-
ऋग्वेद और दूसरे वैदिक ग्रंथों में रित और धर्मन शब्दों का बहुत वर्णन मिलता है। रित से भाव उस व्यवस्था से जिसके अनुसार संसार का प्रबंध चलता है। रित के नियमानुसार ही सुबह पौ फटती है, सूर्य, चाँद और तारे चमकीले नज़र आते हैं। धरती सूर्य के इर्द-गिर्द चक्र लगाती है। सागर में.ज्वारभाटे आते हैं। इस तरह रित एक सच्चाई है। इसका विपरीत अनऋत (झूठ) है। ‘धर्मन’ शब्द से भाव कानून है। धर्मन देवताओं द्वारा बनाये जाते हैं। यह भौतिक संसार, मनुष्यों और बलियों पर लागू होता है। वास्तव में धर्मन जीवन और रस्मों रीतों का नियम है। अच्छे मनुष्य अपना जीवन धर्मन अनुसार व्यतीत करते थे।

PSEB 12th Class Religion Solutions Chapter 1 सिंधु घाटी के लोगों और प्रारंभिक आर्यों का धार्मिक जीवन

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
सिंधु घाटी की सभ्यता कितनी पुरानी है ?
अथवा
सिंधु घाटी की सभ्यता कितनी पुरानी मानी जाती है ?
उत्तर-
5000 वर्ष।

प्रश्न 2.
सिंधु घाटी सभ्यता की खोज कब हुई थी ?
उत्तर-
1921 ई०।

प्रश्न 3.
सिंधु घाटी के लोग किस देवी की सबसे अधिक पूजा करते थे ?
उत्तर-
मातृदेवी की।

प्रश्न 4.
मातृदेवी को किसका प्रतीक समझा जाता था ?
अथवा
सिंधु घाटी के लोग मातृ देवी को किस चीज़ का प्रतीक मानते थे ?
उत्तर-
मातृदेवी को शक्ति का प्रतीक समझा जाता था।

प्रश्न 5.
सिंधु घाटी के लोग किस देवता की सर्वाधिक उपासना करते थे ?
उत्तर-
शिव देवता की।

प्रश्न 6.
सिंधु घाटी के लोग कौन-से देवी एवं देवता की ज्यादा पूजा करते थे ?
उत्तर-
सिंधु घाटी के लोग मातृदेवी एवं शिव जी की ज्यादा पूजा करते थे।

प्रश्न 7.
सिंधु घाटी सभ्यता की शिव जी की योगी के रूप में मिली मूर्ति के कितने मुख हैं ?
उत्तर-
तीन।

प्रश्न 8.
सिंधु घाटी के लोगों द्वारा पूजा किए जाने वाले जानवरों के नाम बताएँ।
अथवा
सिंधु घाटी के लोग किन जानवरों की अधिक पूजा करते थे ?
उत्तर-
सिंधु घाटी के लोगों द्वारा पूजा किए जाने वाले जानवरों के नाम शेर, हाथी, बैल एवं गैंडा थे।

प्रश्न 9.
सिंधु घाटी के लोग सर्वाधिक किस जानवर की उपासना करते थे ?
उत्तर-
बैल की।

प्रश्न 10.
सिंधु घाटी के लोग वक्षों की उपासना क्यों करते थे ?
उत्तर-
क्योंकि वे उन्हें देवी-देवताओं का निवास स्थान समझते थे।

प्रश्न 11.
सिंधु घाटी के लोग किस वृक्ष को सर्वाधिक पवित्र समझते थे ?
उत्तर-
पीपल के वृक्ष को।

प्रश्न 12.
सिंधु घाटी के लोग कौन-से दो मुख्य वक्षों की पूजा करते थे ?
अथवा
सिंधु घाटी के लोग कौन-से दो वृक्षों की पूजा करते थे ?
उत्तर-
पीपल एवं नीम।

PSEB 12th Class Religion Solutions Chapter 1 सिंधु घाटी के लोगों और प्रारंभिक आर्यों का धार्मिक जीवन

प्रश्न 13.
सिंधु घाटी के लोग किस पक्षी को पवित्र मान कर पूजते थे ?
उत्तर-
सिंधु घाटी के लोग घुग्घी को पवित्र मान कर पूजते थे।

प्रश्न 14.
सिंधु घाटी के लोग किस चिन्ह को बहुत पवित्र मानते थे ?
उत्तर-
सिंधु घाटी के लोग स्वास्तिक चिन्ह को बहुत पवित्र मानते थे।

प्रश्न 15.
सिंधु घाटी के लोग कितने ऋषियों की उपासना करते थे ?
उत्तर-
सप्तऋषि की।

प्रश्न 16.
सप्तऋषियों में से किन्हीं दो ऋषियों के नाम लिखें।
उत्तर-

  1. विशिष्ठ
  2. विश्वामित्र।

प्रश्न 17.
सिंधु घाटी के लोग जल की उपासना क्यों करते थे ?
उत्तर-
सिंधु घाटी के लोग जल को सफाई एवं शुद्धता का प्रतीक समझते थे।

प्रश्न 18.
विशाल स्नानागार हमें कहाँ से प्राप्त हुआ है ?
उत्तर-
मोहनजोदड़ो से।

प्रश्न 19.
सिंधु घाटी के लोग अपने मृतकों का संस्कार कैसे करते थे ?
उत्तर-
सिंधु घाटी के लोग अपने मृतकों का संस्कार उन्हें दफना कर करते थे।

प्रश्न 20.
हडप्पा से हमें कितनी कबें मिली हैं?
उत्तर-
57.

प्रश्न 21.
सिंधु घाटी के किस केंद्र से हमें सती प्रथा के प्रचलन के संकेत मिले हैं ?
उत्तर-
लोथल।

प्रश्न 22.
किस बात से यह अनुमान लगाया जाता है कि सिंधु घाटी के लोग मृत्यु के उपरांत जीवन में विश्वास रखते थे ?
उत्तर-
वे मुर्दो के साथ खाने-पीने की वस्तुओं को भी दफनाते थे।

प्रश्न 23.
प्रारंभिक आर्य किस की उपासना करते थे ?
उत्तर-
प्रकृति तथा उसकी शक्तियों की।

प्रश्न 24.
वैदिक देवताओं से क्या भाव है ?
उत्तर-
वैदिक देवताओं से भाव उन देवताओं से था जो संसार की रचना के पश्चात् अस्तित्व में आए।

प्रश्न 25.
प्रारंभिक आर्यों द्वारा पूजे जाने वाले देवताओं की कुल संख्या बताओ।
उत्तर-
33.

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प्रश्न 26.
वैदिक देवताओं को कितनी श्रेणियों में बाँटा गया है?
उत्तर-
तीन।

प्रश्न 27.
वैदिक देवता कौन थे ?
अथवा
प्रारंभिक आर्यों के मुख्य देवता कौन-कौन है, उन पाँचों के नाम बताएँ ।
अथवा
प्रारंभिक आर्यों के मुख्य देवता कौन थे ?
उत्तर-
वैदिक देवता वरुण, इंद्र, अग्नि, सूर्य एवं रुद्र थे।

प्रश्न 28.
प्रारंभिक आर्यों के दो प्रमुख देवता कौन थे ?
उत्तर-
प्रारंभिक आर्यों के दो प्रमुख देवता वरुण एवं इंद्र थे।

प्रश्न 29.
वरुण कौन था ?
उत्तर-
वरुण प्रारंभिक आर्यों का सबसे प्रमुख देवता था।

प्रश्न 30.
लोगों का वर्षा का देवता कौन है ?
उत्तर-
आर्य लोगों का वर्षा का देवता इंद्र है।

प्रश्न 31.
प्रारंभिक आर्यों के वर्षा देवता और अग्नि देवता कौन थे ?
उत्तर-
प्रारंभिक आर्यों का वर्षा देवता इंद्र और अग्नि देवता को अग्नि देवता कहते थे।

प्रश्न 32.
वरुण देवता का कोई एक कार्य बताएँ।
उत्तर-
वह पापियों को सज़ा देता था।

प्रश्न 33.
इंद्र कौन था ?
उत्तर-
इंद्र वैदिक आर्यों का युद्ध एवं वर्षा का देवता था।

प्रश्न 34.
ऋग्वेद में इंद्र की प्रशंसा में कितने मंत्र दिए गए थे ?
उत्तर-
250.

प्रश्न 35.
अग्नि देवता से क्या भाव है ?
उत्तर-
अग्नि देवता का संबंध विवाह तथा दाह संस्कारों से था।

प्रश्न 36.
आर्य लोग किस देवता को घरों का स्वामी मानते थे ?
उत्तर-
आर्य लोग अग्नि देवता को घरों का स्वामी मानते थे।

प्रश्न 37.
ऋग्वेद में अग्नि देवता की प्रशंसा में कितने मंत्र दिए गए हैं ?
उत्तर-
200.

प्रश्न 38.
प्रारंभिक आर्य सूर्य को किसका पुत्र मानते थे ?
उत्तर-
प्रारंभिक आर्य सूर्य को आदिती तथा दियोस का पुत्र मानते थे।

प्रश्न 39.
रुद्र कौन था ?
उत्तर-
वह प्रारंभिक आर्यों का तूफ़ान का देवता था।

PSEB 12th Class Religion Solutions Chapter 1 सिंधु घाटी के लोगों और प्रारंभिक आर्यों का धार्मिक जीवन

प्रश्न 40.
प्रारंभिक आर्यों की दो प्रमुख देवियों के नाम बताएँ।
उत्तर-
ऊषा तथा पृथ्वी।

प्रश्न 41.
प्रारंभिक आर्य लोग ऊषा को किसकी देवी मानते थे ?
उत्तर-
प्रारंभिक आर्य लोग ऊषा को सुबह की देवी मानते थे।

प्रश्न 42.
वैदिक देवताओं से किस प्रकार के वरदान की आशा की जाती थी ?
उत्तर-
सफलता, धन की प्राप्ति, संतान में बढ़ौत्तरी तथा लंबे जीवन के वरदान की।

प्रश्न 43.
प्रारंभिक आर्य काल में क्या मानव बलि प्रचलित थी ?
उत्तर-
नहीं।

प्रश्न 44.
प्रारंभिक आर्य लोग देवताओं को प्रसन्न करने के लिए क्या करते थे ?
उत्तर-
यज्ञ।

प्रश्न 45.
प्रारंभिक आर्य काल में यज्ञों के समय जिन जानवरों की बलि दी जाती थी, उनमें से किन्हीं दो के नाम बताएँ।
उत्तर-

  1. घोड़े
  2. बकरियाँ ।

प्रश्न 46.
यज्ञों के समय मंत्र उच्चारण करने वाले पुरोहित क्या कहलाते थे ?
उत्तर-
उदगात्री।

प्रश्न 47.
यज्ञों के समय आहूति देने वाले पुरोहित क्या कहलाते थे?
उत्तर-
होतरी।

प्रश्न 48.
प्रारंभिक आर्य अपने मृतकों का संस्कार कैसे करते थे ?
उत्तर-
प्रारंभिक आर्य अपने मृतकों का दाह-संस्कार करते थे।

प्रश्न 49.
रित से क्या भाव है ?
उत्तर-
रित से भाव उस व्यवस्था से है जिसके अनुसार संसार का प्रबंध चलता है।

प्रश्न 50.
धर्मन से क्या भाव है ?
उत्तर-
धर्मन से भाव उन कानूनों से है जो देवताओं द्वारा बनाए जाते थे।

नोट-रिक्त स्थानों की पूर्ति करें—

प्रश्न 1.
सिंधु घाटी के लोग सर्वाधिक ……… की पूजा करते थे।
उत्तर-
देवी माँ

प्रश्न 2.
सिंधु घाटी के लोग ………….. नामक देवता की पूजा करते थे।
उत्तर-
शिव

प्रश्न 3.
सिंधु घाटी के लोग ………….. वृक्ष की सर्वाधिक पूजा करते थे।
उत्तर-
पीपल

प्रश्न 4.
सिंधु घाटी के लोग सप्त ऋषि को …………… का प्रतीक मानते थे।
उत्तर-
स्वर्ग

प्रश्न 5.
सिंधु घाटी के लोग जल को ………… का प्रतीक मानते थे।
उत्तर-
शुद्धता

प्रश्न 6.
सिंधु घाटी के लोग मृत्यु के पश्चात् जीवन में विश्वास ………… थे।
उत्तर-
रखते

प्रश्न 7.
प्रारंभिक आर्यों के देवताओं की कुल गिनती ………… थी।
उत्तर-
33

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प्रश्न 8.
प्रारंभिक आर्यों का सबसे बड़ा देवता ……….. था।
उत्तर-
वरुण

प्रश्न 9.
ऋग्वेद में इंद्र देवता की प्रशंसा में ………. मंत्र दिए गए हैं।
उत्तर-
250

प्रश्न 10.
……….. देवता का संबंध विवाह और दाह संस्कार के साथ था।
उत्तर-
अग्नि

प्रश्न 11.
रुद्र को ………….. का देवता समझा जाता था।
उत्तर-
आँधी

प्रश्न 12.
प्रारंभिक आर्य नदी देवी को ………… कहते थे।
उत्तर-
सरस्वती

प्रश्न 13.
उस व्यवस्था को जिसके अनुसार संसार का प्रबंध चलता था ………… कहा जाता था।
उत्तर-
रित

प्रश्न 14.
धर्मन शब्द से भाव ………….. है।
उत्तर-
कानून

प्रश्न 15.
प्रारंभिक आर्य अपने देवी-देवताओं को प्रसन्न करने के लिए ………. करते थे।
उत्तर-
यज्ञ

नोट-निम्नलिखित में से ठीक अथवा ग़लत चुनें—

प्रश्न 1.
सिंधु घाटी के लोग देवी माँ को कोई विशेष महत्त्व नहीं देते थे।
उत्तर-
ग़लत

प्रश्न 2.
सिंधु घाटी के लोग शिव देवता की पूजा करते थे।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 3.
सिंधु घाटी के लोग मगरमच्छ की पूजा करते थे।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 4.
सिंधु घाटी के लोग पीपल वृक्ष को पवित्र नहीं समझते थे।
उत्तर-
ग़लत

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प्रश्न 5.
सिंधु घाटी के लोग सप्त ऋषियों की पूजा करते थे।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 6.
सिंधु घाटी के लोगों का यज्ञ पूजा में गहरा विश्वास था।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 7.
सिंधु घाटी के लोगों का जादू-टोनों और भूत-प्रेतों में बिल्कुल विश्वास नहीं था।
उत्तर-
ग़लत

प्रश्न 8.
सिंधु घाटी के लोग सामान्यतः अपने मुर्दो को दफना देते थे।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 9.
आरंभिक आर्यों के देवताओं की कुल संख्या 33 करोड़ थी।
उत्तर-
ग़लत

प्रश्न 10.
प्रारंभिक आर्यों के सबसे बड़े देवता का नाम इंद्र था।
उत्तर-
ग़लत

प्रश्न 11.
ऋग्वेद में अग्नि देवता की प्रशंसा में 200 मंत्र दिए गए हैं।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 12.
प्रारंभिक आर्य सुबह की देवी ऊषा में विश्वास रखते थे।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 13.
प्रारंभिक आर्यों का ईश्वर की एकता में पूर्ण विश्वास था।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 14.
प्रारंभिक आर्य अपने देवी-देवताओं की याद में मंदिरों का निर्माण करते थे।
उत्तर-
ग़लत

प्रश्न 15.
प्रारंभिक आर्य अपने देवी-देवताओं को प्रसन्न करने के लिए कई प्रकार के यज्ञ करते थे।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 16.
प्रारंभिक आर्य अपने पितरों की पूजा करते थे।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 17.
वैदिक साहित्य में स्वस्विक किसी देवते का नाम है।
उत्तर-
ग़लत

नोट-निम्नलिखित में से ठीक उत्तर चुनें—

प्रश्न 1.
सिंधु घाटी के लोग सर्वाधिक किसकी पूजा करते थे ?
(i) शिव की
(ii) देवी माँ की
(iii) वृक्षों की
(iv) साँपों की।
उत्तर-
(i) शिव की

प्रश्न 2.
सिंधु घाटी के लोग किस देवता की पूजा करते थे ?
(i) वरुण की
(ii) इंद्र की
(iii) शिव की
(iv) अग्नि की।
उत्तर-
(iii) शिव की

प्रश्न 3.
सिंधु घाटी के लोग निम्नलिखित में से किस पशु की पूजा नहीं करते थे ?
(i) हाथी
(ii) शेर
(iii) बैल
(iv) घोड़ा।
उत्तर-
(iv) घोड़ा।

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प्रश्न 4.
सिंधु घाटी के लोग निम्नलिखित में से किस वृक्ष को सर्वाधिक पवित्र मानते थे ?
(i) पीपल
(ii) आम
(iii) नीम
(iv) खजूर।
उत्तर-
(i) पीपल

प्रश्न 5.
निम्नलिखित में से कौन सप्तऋषियों में शामिल नहीं थे ?
(i) विश्वामित्र
(ii) विशिष्ठ
(iii) जमदागनी
(iv) इंद्र।
उत्तर-
(iv) इंद्र।

प्रश्न 6.
निम्नलिखित में से कौन-सा तथ्य ग़लत है
(i) सिंधु घाटी के लोग स्वास्तिक की पूजा करते थे।
(ii) सिंधु घाटी के लोग लिंग तथा योनि की पूजा करते थे।
(iii) सिंधु घाटी के लोग जादू-टोनों में विश्वास रखते थे।
(iv) सिंधु घाटी के लोग पितरों की पूजा करते थे।
उत्तर-
(iv) सिंधु घाटी के लोग पितरों की पूजा करते थे।

प्रश्न 7.
सिंधु घाटी के लोग निम्नलिखित में से किसकी पूजा करते थे ?
(i) घुग्गी
(ii) बाज
(iii) कबूतर
(iv) तोता।
उत्तर-
(i) घुग्गी

प्रश्न 8.
प्रारंभिक आर्य कुल कितने देवताओं की पूजा करते थे ?
(i) 11
(ii) 22
(iii) 33
(iv) 44
उत्तर-
(iii) 33

प्रश्न 9.
प्रारंभिक आर्यों का सबसे प्रारंभिक देवता कौन था ?
(i) इंद्र
(ii) वरुण
(iii) अग्नि
(iv) रुद्र।
उत्तर-
(ii) वरुण

प्रश्न 10.
निम्नलिखित में से किस देवता की प्रशंसा में ऋग्वेद में सर्वाधिक मंत्र दिए गए हैं ?
(i) वरुण
(ii) इंद्र
(iii) अग्नि
(iv) रुद्र।
उत्तर-
(i) वरुण

प्रश्न 11.
निम्नलिखित में से कौन-सा देवता वर्षा और युद्ध का देवता माना जाता था ?
(i) सोम
(ii) रुद्र
(iii) सूर्य
(iv) इंद्र।
उत्तर-
(iv) इंद्र।

प्रश्न 12.
निम्नलिखित में से कौन-सा देवता विवाह और दाह-संस्कार के साथ संबंधित था ?
(i) अग्नि
(ii) सोम
(iii) वरुण
(iv) विष्णु।
उत्तर-
(i) अग्नि

प्रश्न 13.
प्रारंभिक आर्यों का निम्नलिखित में से कौन-सा देवता आकाश का देवता नहीं था ?
(i) वरुण
(ii) सूर्य
(iii) इंद्र
(iv) मित्र।
उत्तर-
(iii) इंद्र

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प्रश्न 14.
निम्नलिखित में से किस देवी को सुबह की देवी कहा जाता था ?
(i) उमा
(ii) ऊषा
(iii) रात्रि
(iv) सरस्वती।
उत्तर-
(ii) ऊषा

PSEB 12th Class Sociology Solutions Chapter 12 वृद्धावस्था तथा असमर्थता

Punjab State Board PSEB 12th Class Sociology Book Solutions Chapter 12 वृद्धावस्था तथा असमर्थता Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Sociology Chapter 12 वृद्धावस्था तथा असमर्थता

पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न (TEXTUAL QUESTIONS)

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न

A. बहुविकल्पीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
परिवार में नौजवानों द्वारा वृद्ध लोगों को शक्ति देने से क्या पैदा होता है ?
(क) स्नेह
(ख) तनाव
(ग) बोझ
(घ) संघर्ष।
उत्तर-
(ख) तनाव।

प्रश्न 2.
पारिवारिक ढाँचे में परिवर्तन होने से वृद्ध लोगों को क्या अनुभव होता है ?
(क) अवहेलना
(ख) निर्धनता
(ग) गुस्सा
(घ) निर्बलता।
उत्तर-
(घ) निर्बलता।

प्रश्न 3.
किस अधिनियम के अन्तर्गत अभिभावकों व वरिष्ठ नागरिकों की देखभाल व कल्याण को रखा गया
(क) वरिष्ठ नागरिक अधिनियम 2009
(ख) वरिष्ठ नागरिक अधिनियम 2008
(ग) वरिष्ठ नागरिक अधिनियम 2007
(घ) वरिष्ठ नागरिक अधिनियम 2006
उत्तर-
(ग) वरिष्ठ नागरिक अधिनियम 2007.

प्रश्न 4.
निरन्तरता सिद्धान्त का अन्य नाम क्या है ?
(क) अविकसित सिद्धान्त
(ख) विकासशील सिद्धान्त
(ग) विकास सिद्धान्त ।
(घ) अनिरन्तरता का सिद्धान्त।
उत्तर-
(ग) विकास सिद्धान्त।

प्रश्न 5.
कौन-सी अवधारणा अपने में मानसिक, शारीरिक व चेतना सम्बन्धी असमर्थता लिए है ?
(क) अँधापन
(ख) मानसिक मँदता
(ग) असमर्थता
(घ) दिमागी अधरंग।
उत्तर-
(ग) असमर्थता।

प्रश्न 6.
असमर्थ बच्चे जिनकी चेतना सम्बन्धी शारीरिक कमियाँ अथवा स्वास्थ्य समस्याएं स्कूल की उपस्थिति
अथवा
शिक्षण में हस्तक्षेप करती हैं :
(क) विकलांग असमर्थता
(ख) दिमागी अधरंग
(ग) ए०डी०एच०डी० (ADHD)
(घ) शिक्षण असमर्थता।
उत्तर-
(घ) शिक्षण असमर्थता।

PSEB 12th Class Sociology Solutions Chapter 12 वृद्धावस्था तथा असमर्थता

प्रश्न 7.
कौन-से मॉडल ने असमर्थता से संबंधित व्यक्तियों के समान अवसरों के अधिकारों को स्वीकारा है ?
(क) सामाजिक मॉडल
(ख) सकारात्मक मॉडल
(ग) असमर्थ व्यक्तियों द्वारा की राजनीति
(घ) संरचनात्मक मॉडल।
उत्तर-
(क) सामाजिक मॉडल।

प्रश्न 8.
असमर्थ लोगों के अधिकारों को सर्वश्रेष्ठ रूप में प्रोत्साहित किया जाता है ?
(क) परिवार व मित्र समूह द्वारा
(ख) व्यवस्थित राजनैतिक नीतियों द्वारा
(ग) स्वयं असमर्थ व्यक्तियों द्वारा
(घ) सामाजिक व राजकीय निर्माण द्वारा।
उत्तर-
(क) परिवार व मित्र समूह द्वारा।

B. रिक्त स्थान भरें-

1. आयु बढ़ने की प्रक्रिया को सामाजिक व समाजशास्त्रीय पक्ष में …………………… कहते हैं।
2. जोड़ों में सूजन, उच्च रक्तचाप, मधुमेह व हृदय रोग आयु से सम्बन्धित ……………….. बीमारियाँ होती हैं।
3. 21वीं सदी में विश्व में सर्वाधिक चुनौतीपूर्ण विशेषता ……………….. जनसंख्या की है।
4. वृद्ध लोगों के लिए नई आवास प्रणाली को ……. कहते हैं।
5. …………………… विभाग सेवानिवृत्ति भोगने एवं वृद्धावस्था से सम्बन्धित मसलों के लिए तैयार करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
6. …………… एक ऐसी स्थिति है जहाँ कोई व्यक्ति पूर्ण अन्धेपन अथवा दृष्टि स्पष्टता 6/60 अथवा 20/200 तक स्पष्ट नहीं देख पाता है।
उत्तर-

  1. सामाजिक ज़राविज्ञान
  2. दीर्घकालीन
  3. वृद्ध
  4. वृद्ध आश्रम
  5. सामाजिक न्याय व कल्याण
  6. दृष्टि सम्बन्धी असमर्थता।

C. सही/ग़लत पर निशान लगाएं-

1. अभिभावकों की सँभाल सम्बन्धी बिल, हिमाचल प्रदेश में पास किया गया।
2. आधुनिकीकरण सिद्धान्त, समाज में वृद्धों व नवयुवकों में असमानता का वर्णन करता है।
3. वृद्धों की भूमिका/योगदान सम्बन्धी कोई समस्या नहीं होती है।
4. वृद्ध लोग वृद्ध अवस्था को वित्तीय असुरक्षा का बोझ समझते हैं।
5. वृद्ध लोगों को वृद्धावस्था के कारण अधिक उत्पादक (कमाने वाला) नहीं समझा जाता।
6. असमर्थ व्यक्ति अधिनियम 1995, चिकित्सक पुनर्वास के साथ-साथ सामाजिक पुनर्वास की आवश्यकता को पहचानने की आवश्यकता पर बल देता है।
उत्तर-

  1. सही
  2. गलत
  3. गलत
  4. सही
  5. सही
  6. सही।

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D. निम्नलिखित शब्दों का मिलान करें-

कॉलम ‘ए’– कॉलम ‘बी’
समाज से अपने को अलग करना — गतिविधि सिद्धान्त
सामाजिक आर्थिक स्तर (प्रतिष्ठा) — सामाजिक समस्याएँ
वृद्धों को अधिक सक्रिय होना चाहिए — विघटन सिद्धान्त
वृद्ध आयु की प्रक्रिया सम्बन्धी अध्ययन का क्षेत्र — आर्थिक सुरक्षा
स्वयं को बनाए रखने में सक्षम — ज़राविज्ञान।
उत्तर-
कॉलम ‘ए’ — कॉलम ‘बी’
समाज से अपने को अलग करना — विघटन सिद्धान्त
सामाजिक आर्थिक स्तर (प्रतिष्ठा) — सामाजिक समस्याएँ
वृद्धों को अधिक सक्रिय होना चाहिए — गतिविधि सिद्धान्त
वृद्ध आयु की प्रक्रिया सम्बन्धी अध्ययन का क्षेत्र — ज़राविज्ञान
स्वयं को बनाए रखने में सक्षम — आर्थिक सुरक्षा।

II. अति लघु उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1. संयुक्त राष्ट्र के अनुसार वृद्धावस्था की आयु कितनी निश्चित की गई है ?
उत्तर-संयुक्त राष्ट्र के अनुसार वृद्धावस्था की आयु 60 वर्ष से अधिक है।

प्रश्न 2. सन् 2020 तक भारत की वृद्ध जनसंख्या कितनी हो जाएगी ?
उत्तर-सन् 2020 तक भारत की वृद्ध जनसंख्या 140 मिलियन हो जाएगी।

प्रश्न 3. संयुक्त राष्ट्र अन्तर्राष्ट्रीय दिवस कब मनाया जाता है ?
उत्तर-1 अक्तूबर को।

प्रश्न 4. मनुष्य जीवन की पाँच स्थितियाँ कौन-सी हैं ?
उत्तर-बाल अवस्था, बचपन, किशोरावस्था, बालिग तथा वृद्धावस्था।

प्रश्न 5. भारत में सेवानिवृत्ति की आयु क्या है ?
उत्तर-भारत में सेवानिवृत्ति की आयु 60 वर्ष है।

प्रश्न 6. आप असमर्थता से क्या समझते हैं ?
अथवा
क्षति ।
उत्तर-असमर्थता का अर्थ है किसी चीज़ की कमी, चाहे वह मानसिक, शारीरिक या संवेदात्मक हो।

प्रश्न 7. विकलांग व विकृत में अन्तर स्पष्ट करें।
उत्तर-विकलांग का अर्थ है किसी शारीरिक अंग की कमी तथा विकृत का अर्थ है किसी वस्तु की कमी होना, चाहे वह शारीरिक हो या मानसिक।

प्रश्न 8. समावेश करना क्या है ?
उत्तर-समावेश करने का अर्थ है किसी विकलांग व्यक्ति को किसी कार्य में शामिल करना।

प्रश्न 9. शिक्षण असमर्थता क्या है ?
उत्तर-जब कोई व्यक्ति किसी कार्य को सीखने में असमर्थ हो, उसे शिक्षण असमर्थता कहते हैं।

प्रश्न 10. सकारात्मक मॉडल को अपने शब्दों में परिभाषित करें।
उत्तर-सकारात्मक मॉडल का अर्थ है समाज में वह असमान रिश्ता, जिसमें उन व्यक्तियों को कोई महत्त्व नहीं दिया जाता जिनमें कोई कमी हो।

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III. लघु उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
वे कौन-से शारीरिक लक्षण हैं जो किसी व्यक्ति को वृद्ध बनाते हैं ?
उत्तर-
ऐसे कुछ लक्षण होते हैं जिनसे व्यक्ति वृद्ध लगने लग जाता है। दांतों का टूटना, गंजापन या बालों का सफेद होना, कमर का झुकना, कम सुनना, कम दिखना, कार्य करने का सामर्थ्य कम होना, धीरे चलना इत्यादि ऐसे कुछ लक्षण हैं।

प्रश्न 2.
भारतीय समाज में वृद्ध लोगों में अकेलापन व उदासी के क्या कारण हैं ?
उत्तर-
लोगों के बच्चे नौकरी करने के लिए अन्य नगरों में चले जाते हैं जिस कारण वे अकेले हो जाते हैं। परिवार में रहते हुए परिवार की सत्ता नौजवानों के हाथों में आ जाती है। उनके हाथों में कुछ नहीं रहता जिस कारण वे अकेलेपन तथा उदासी के शिकार हो जाते हैं।

प्रश्न 3.
समावेश किस प्रकार समाकलन से भिन्न है ?
उत्तर-
समावेश में असमर्थ व्यक्तियों को मजबूरी में किसी कार्य में शामिल किया जाता है जबकि समाकलन में उन व्यक्तियों को दिल से किसी कार्य का हिस्सा बनाया जाता है तथा वे प्रत्येक कार्य का अभिन्न अंग होते हैं।

IV. दीर्घ उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
वृद्ध लोगों के पुनर्वास में सरकार क्या सहायता करती है ?
उत्तर-
देश की स्वतन्त्रता के पश्चात् ही भारतीय सरकार ने वृद्ध लोगों के कल्याण के लिए कई कार्य करने शुरू किए। 1990 में संयुक्त राष्ट्र ने वृद्ध लोगों के लिए अन्तर्राष्ट्रीय वर्ष मनाने का ऐलान किया। इसके पश्चात् 13 जनवरी, 1999 को भारत सरकार ने वृद्ध लोगों के लिए एक राष्ट्रीय नीति बनाई ताकि उनका कल्याण किया जा सके व उनका फायदा हो। 2007 में Maintenance and Welfare of Parents and Senior Citizens Act ने वृद्ध लोगों के अधिकार को कानूनी स्थिति प्रदान की। इसके साथ ही कई अन्य कार्यक्रम भी चलाए गए; जैसे कि बुढ़ापा सुरक्षा, बुढ़ापा पैंशन, वृद्ध आश्रमों का निर्माण करना, वृद्धावस्था सेवाओं को फैलाना, वृद्ध लोगों के लिए Housing कार्यक्रम को आसान बनाना।

प्रश्न 2.
भारतीय समाज में आवास व स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याएं जिनका वृद्ध व्यक्तियों को सामना करना पड़ता है, क्या हैं ? प्रकाश डालें।
उत्तर-

  • आवास समस्या-वृद्ध लोगों को आवास की समस्या का सामना करना पड़ता है। कुल जनसंख्या में से काफ़ी अधिक विधवा तथा वृद्ध स्त्रियों व पुरुषों के रहने के लिए घरों की कमी होती है। एक आम शिकायत यह होती है कि वे घरों में अकेला महसूस करते हैं या उन्हें परिवार वाले अकेला कर देते हैं।
  • स्वास्थ्य समस्या-इस आयु में शरीर की प्रतिरोधक क्षमता कार्य करना बंद कर देती है। लोग शारीरिक व मानसिक पक्ष से कमजोर हो जाते हैं। उन्हें बीमारियां लग जाती हैं। खाना हज़म नहीं होता। दाँत टूटने लग जाते हैं। उच्च रक्तचाप तथा मधुमेह हो जाती है।

प्रश्न 3.
सामाजिक सुरक्षा सुविधाओं से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
आज कल परिवर्तित होती परिस्थितियों में बच्चों पर आर्थिक निर्भरता काफ़ी मुश्किल कार्य है। इस कारण सरकार द्वारा दिए गए सामाजिक सुरक्षा के लाभों का महत्त्व काफ़ी बढ़ गया है। इसका अर्थ है कि सरकार वृद्धावस्था में कुछ सहायता प्रदान करती है। परन्तु हमारे देश भारत में वृद्ध लोगों को काफ़ी कम सामाजिक सुरक्षा मिलती है। 90% के करीब वृद्ध लोग जो असंगठित क्षेत्र में कार्य करते हैं, उन्हें पैंशन या अन्य लाभ नहीं मिलते। सरकार निर्धन वृद्ध लोगों को कुछ सहायता प्रदान करती है जैसे कि

  • राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन जोकि ₹ 75 प्रति मास है परन्तु यह केवल 65 वर्ष से अधिक आयु के लोगों के लिए है।
  • कई राज्य सरकारों ने कार्यक्रम चलाए हैं जिन में ₹ 60 से लेकर ₹ 250 प्रति मास मिलते हैं। यह केवल उनके लिए हैं जो 65 वर्ष से ऊपर हैं तथा निर्धनता रेखा से नीचे रहते हैं।
  • विधवाओं को ₹ 150 प्रति मास मिलता है।

प्रश्न 4.
भारत में असमर्थता के बारे में अपने शब्दों में चर्चा करें।
उत्तर-
सम्पूर्ण विश्व में 100 करोड़ से अधिक लोग हैं जो किसी-न-किसी असमर्थता के साथ जी रहे हैं। हम अपने इर्द-गिर्द ऐसे लोग देख सकते हैं जो असमर्थ हैं तथा उन्हें जीवन जीने में परेशानी होती है। असमर्थ व्यक्ति को कई अभावों का सामना करना पड़ता है जैसे कि शिक्षा, रोज़गार तथा अन्य कई प्रकार की सुविधाएं। इस के साथ ही उनके साथ एक सामाजिक श्राप जुड़ जाता है जो साधारणतया आर्थिक व सामाजिक जीवन जीने के रास्ते में रुकावट होता है। अगर पूर्ण विश्व में 100 करोड़ के लगभग लोग ऐसे हैं तो भारत में भी करोड़ों लोग ऐसे हैं जो किसी-नकिसी रूप से असमर्थता का शिकार हैं। इन लोगों के साथ या तो नफरत की जाती है या फिर इन्हें दया दिखाई जाती है। यह लोग जीवन जीने की सभी सुविधाओं का ठीक ढंग से प्रयोग भी नहीं कर पाते जिस कारण उनके जीवन में काफ़ी अभाव होते हैं। हमारे देश की लगभग 2% जनसंख्या किसी-न-किसी रूप से विकलांग है।

प्रश्न 5.
‘असमर्थता सफलता में रुकावट नहीं होनी चाहिए।’ संक्षिप्त रूप में व्याख्या करें।
उत्तर-
इसमें कोई शंका नहीं है कि अगर कोई व्यक्ति सफलता प्राप्त करने की ठान ले तो उसके रास्ते में कोई रुकावट नहीं आती। यह बात असमर्थ व्यक्ति के मामले में ठीक ही बैठती है कि अगर कोई असमर्थ व्यक्ति कोई कार्य करने की ठान ले तो वह भी सफलता अर्जित कर सकता है। सम्पूर्ण विश्व में हमें बहुत से उदाहरण मिलते हैं जिन्होंने अपनी असमर्थता को पार पाकर सफलता प्राप्त की। स्पैशल ओलंपिक इसकी उदाहरण है जिसमें ऐसे व्यक्ति ही भाग लेते हैं तथा अपने देश का नाम रोशन करते हैं।

PSEB 12th Class Sociology Solutions Chapter 12 वृद्धावस्था तथा असमर्थता

V. अति दीर्घ उत्तरों वाले प्रश्न-

प्रश्न 1.
वृद्ध अवस्था के सिद्धान्तों का विस्तार सहित वर्णन करें।
अथवा
वृद्धावस्था के क्रियात्मक तथा आधुनिकीकरण सिद्धान्त को लिखो।
अथवा
वृद्धावस्था के आधुनिकीकरण सिद्धान्त तथा सक्रियता सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
वृद्ध अवस्था से संबंधित कई सिद्धांत मिलते हैं जिनका वर्णन इस प्रकार है –

(i) विघटन सिद्धान्त (The Disengagement Theory)—विघटन सिद्धान्त के अनुसार वृद्ध अवस्था एक ऐसी अवस्था है जिसमें समाज तथा व्यक्ति धीरे-धीरे एक-दूसरे से दूर होना शुरू हो जाते हैं। घर की सत्ता वृद्ध लोगों के हाथों से निकल कर नौजवानों के हाथों में आ जाती है जिससे समाज लगातार कार्य करता रहता है। इस तरह इस सिद्धान्त के अनुसार जब व्यक्ति वृद्ध हो जाता है तो उसका शारीरिक सामर्थ्य उसे अधिक कार्य करने की आज्ञा नहीं देता तथा वह समाज से दूर होना शुरू हो जाता है। इस कारण सभी कार्य नौजवानों के हाथों में आ जाते हैं।

(ii) सक्रियता सिद्धान्त या क्रियात्मक सिद्धान्त (The Activity Theory)—सक्रियता सिद्धान्त यह कहता है कि वृद्ध अवस्था में खुश रहने के लिए यह आवश्यक है कि व्यक्ति लगातार कार्य करता रहे। यह सिद्धान्त कहता है कि अगर मौजूदा भूमिका व रिश्ते खत्म हो गए तो उन्हें बदल देना चाहिए। भूमिकाओं तथा रिश्तों को बदलना आवश्यक हो जाता है क्योंकि जैसे-जैसे व्यक्ति के कार्य करने का सामर्थ्य तथा सक्रियता कम होती है, वैसे ही संतुष्टि का स्तर नीचे होता जाता है।

(iii) निरन्तरता का सिद्धान्त (The Continuity Theory)-निरन्तरता के सिद्धान्त को विकास के सिद्धान्त के नाम से भी जाना जाता है। इसके अनुसार वृद्ध लोग कई ढंग अपना कर तथा निरंतरता बनाए रखने के लिए भीतर की व बाहर की संरचना को बचा कर रखते हैं। निरन्तरता का सिद्धान्त काफ़ी अच्छे ढंग से व्याख्या करता है कि कैसे लोग स्वयं को आयु के अनुसार ढाल लेते हैं। वे परिवर्तन पसंद नहीं करते तथा अलग-अलग ढंग से प्राचीन व्यवस्था को बना कर रखने का प्रयास करते हैं।

(iv) आधुनिकीकरण सिद्धान्त (Modernization Theory)-आधुनिकीकरण सिद्धान्त कहता है कि वृद्ध लोग आधुनिकता के नियमों को बदलने में असफल हो जाते हैं तथा वे नियम हैं नयी आर्थिकता, चीजें प्रदत्त के स्थान पर अर्जित करने की प्रक्रिया, तकनीकी विकास इत्यादि। इस कारण वे नयी आधुनिकता से तालमेल नहीं बिठा पाते।

(v) आयु स्तरीकरण सिद्धान्त (The Age Stratification Theory)-यह सिद्धान्त बताता है कि किसी समाज में नौजवानों तथा वृद्धों के बीच किस प्रकार की असमानताएं मौजूद होती हैं। इस सिद्धान्त के अनुसार किसी एक विशेष समय तथा विशेष सांस्कृतिक अवस्था में वृद्ध लोगों के बीच सापेक्ष असमानता दो प्रकार के अनुभवों पर निर्भर करती है। पहला है उनके जीवन जीने के अनुभव जिनके कारण उनमें शारीरिक व मानसिक परिवर्तन आते हैं तथा उनके ऐतिहासिक अनुभव कि वे किस समूह से संबंधित हैं।

प्रश्न 2.
भारतीय समाज में वृद्ध लोगों द्वारा सामना की जा रही समस्याओं का वर्णन करें।
अथवा
वृद्धों की समस्याओं के बारे में विस्तृत नोट लिखें।।
उत्तर-
बुजुर्गों अथवा वृद्धों को बहुत-सी समस्याओं का सामना करना पड़ता है जिनका वर्णन इस प्रकार है-

(i) तकनीकी विकास के कारण समस्याएं (Problems due to technological development)—प्राचीन समय में वृद्धों का काफ़ी आदर किया जाता था क्योंकि यह माना जाता था कि वृद्धों को किसी-न-किसी कला की जानकारी होती थी। उस जानकारी को प्राप्त करने के लिए उन्हें वृद्धों की आवश्यकता पड़ती थी। परन्तु आजकल ऐसा नहीं है। तकनीकी विकास के कारण अब वृद्धों की वह इज्ज़त नहीं रही क्योंकि तकनीक की सहायता से किसी भी कला को बचा कर रखा जा सकता है। व्यक्ति तकनीक की सहायता से उस कला को प्राप्त कर सकता है। इस कारण वृद्धों को जो सम्मान प्राप्त होता था वह कम हो गया तथा अब व्यक्ति को वृद्धों की कोई आवश्यकता न रही। उन्हें फालतू समझा जाने लगा तथा दुर्व्यवहार किया जाने लगा जिस कारण उनके लिए समस्या उत्पन्न हो गई।

(ii) जाति प्रथा के महत्त्व के कम होने से समस्या (Problem due to decreasing effect of Caste System) स्वतन्त्रता के बाद कई प्रकार के कानून बने जिनसे जाति व्यवस्था का महत्त्व काफ़ी कम हो गया। प्राचीन समय में व्यक्ति का पेशा उसकी जाति के अनुसार निश्चित होता था। व्यक्ति जिस जाति में जन्म लेता था उसको उस जाति का ही पेशा अपनाना पड़ता था। वह अपनी योग्यता से भी पेशा नहीं बदल सकता था। जाति के वृद्ध अपनी जाति के नौजवानों को पेशे के कुछ रहस्य बता देते थे। यह कार्य पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलता रहता था। परन्तु स्वतन्त्रता के बाद जाति व्यवस्था का महत्त्व कम हो गया जिस कारण अब व्यक्ति अपनी योग्यता से कोई भी पेशा अपना सकता है। इस प्रकार वृद्धों द्वारा दिए जाने वाले रहस्यों का महत्त्व कम हो गया तथा उनकी आवश्यकता न रही। उनको फालतू समझा जाने लगा तथा उनकी समस्याएं शुरू हो गईं।

(iii) शिक्षा के प्रसार के कारण समस्याएं (Problems due to spread of education)-चाहे शिक्षा का प्रसार समाज के लिए अच्छा होता है परन्तु कई बार यह वृद्धों के लिए समस्या लेकर आता है। गांवों के लोग अपने बच्चों को शहरों में पढ़ने के लिए भेजते हैं। उन्हें पढ़ने के बाद शहर में ही नौकरी मिल जाती है। नौकरी मिलने के बाद वे शहर में ही विवाह कर लेते हैं। शुरू-शुरू में तो वे गांव भी जाते हैं, माता-पिता को पैसे भी भेजते हैं। परन्तु अपने परिवार तथा व्यस्तताओं के बढ़ने के कारण वे धीरे-धीरे गांव जाना तथा पैसे भेजना भी बन्द कर देते हैं। माता-पिता के पास चुप रहने के अतिरिक्त कोई चारा नहीं होता है। यहां से उन्हें पैसे की तंगी तथा और समस्याएं भी शुरू हो जाती हैं।

(iv) आर्थिक निर्भरता की समस्या (Problem of Economic dependency)-साधारणतया यह देखा गया है कि पैसे की निर्भरता भी वृद्धावस्था में समस्या का कारण बनती है। यदि पिता की मृत्यु हो जाए तथा माता की आय का कोई साधन न हो तो वह निराश्रित हो जाती है तथा बच्चों पर निर्भर हो जाती है। अपने खर्चे चलाने के लिए उसके पास बच्चों पर निर्भर होने के अतिरिक्त कोई चारा नहीं होता है। वह पैसे-पैसे के लिए मोहताज हो जाती है। इस प्रकार बच्चों पर निर्भरता भी समस्या का कारण बनती है।

(v) सम्पूर्ण आय बच्चों पर खर्च कर देना (Spending whole income on children)-आजकल की महंगाई के समय में बचत करना आसान नहीं है। एक मध्यमवर्गीय परिवार में खर्चे भी बहुत होते हैं। घर का खर्चा, बच्चों की पढ़ाई का खर्चा बहुत अधिक होते हैं। व्यक्ति अपने बच्चों को अच्छी-से-अच्छी शिक्षा देना चाहता है। बढ़िया शिक्षा आजकल काफ़ी महंगी है। बच्चे को बढ़िया शिक्षा देने के लिए वह अपनी सम्पूर्ण आय तथा सम्पूर्ण बचत बच्चों के ऊपर खर्च कर देते हैं ताकि उनको अच्छा भविष्य दिया जा सके। इस कारण उसके पास बुढ़ापे के लिए कुछ भी नहीं बचता है। बच्चे पढ़-लिख कर अच्छी नौकरी करने लग जाते हैं तथा अपना अलग परिवार बसा लेते हैं। मातापिता वृद्ध हो जाते हैं। परन्तु उनको आर्थिक समस्याएं घेर लेती हैं तथा वे समस्याओं में फँस जाते हैं।

(vi) स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याएं (Problems related to health)-व्यक्ति तमाम उम्र दिल लगाकर कार्य करते हैं। वृद्ध होने पर उनका शरीर जवाब दे जाता है। उनको कई बीमारियां जैसे कि मधुमेह, ब्लड प्रैशर इत्यादि लग जाती हैं। उनको इन बीमारियों को काबू में रखने के लिए दवाओं का सहारा लेना पड़ता है। उनका शरीर साथ नहीं देता है। वे कुछ भी नहीं कर सकते हैं। इस प्रकार स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्या काफ़ी महत्त्वपूर्ण समस्या है।

(vii) औद्योगिकीकरण के कारण समस्याएं (Problems due to industrialisation)-बहुत-से वृद्धों की समस्याएं उद्योगों के बढ़ने से शुरू होती हैं। लोग गांव छोड़कर शहरों में कार्य करने जाते हैं। बेरोज़गारी तथा आर्थिक तंगी से बचने के लिए उन्हें शहर जाना पड़ता है। वे वृद्धों को शहर ले जाने में झिझकते हैं। इस प्रकार वृद्ध अकेले रह जाते हैं। यदि कोई आर्थिक तंगी नहीं है तो ठीक है नहीं तो बुजुर्गों को आर्थिक तथा सामाजिक सहायता प्राप्त नहीं होती है। वे स्वयं ही जीवित रहने के लिए संघर्ष करते हैं क्योंकि उनके बच्चे उनका बोझ नहीं उठाते हैं।

(vii) बुजुर्ग का मर्द अथवा स्त्री होना भी उनकी समस्या का कारण है। यदि बुजुर्ग मर्द है तो उसको कम समस्याएं होती हैं। परन्तु यदि वह स्त्री है तो उसके साथ गलत व्यवहार अधिक होता है। उसको घर के सभी कार्य करने पड़ते हैं। पुत्रवधू के नौकरी पर जाने के पश्चात् उसको घर सम्भालना पड़ता है तथा बच्चे सम्भालने पड़ते हैं। इस प्रकार उन्हें बहुत समस्या होती है। पति की मृत्यु के बाद तो काफ़ी हद तक स्त्रियों की आर्थिक तथा सामाजिक सुरक्षा ही खत्म हो जाती है। विधवा को औरों पर निर्भर होना पड़ता है तथा अपना बाकी जीवन दयनीय हालात में काटना पड़ता है।

(ix) यह भी देखने में आया है कि लड़के अपने बुजुर्गों को अधिक तंग करते हैं। लड़कियां अपने बुजुर्ग माता-पिता को अधिक सहायता देती हैं। बिन ब्याहे लड़के तो और भी कम देखभाल करते हैं। पुत्र अपने माता-पिता की देखभाल नहीं करते जिस कारण पुत्रवधू भी देखभाल करनी बन्द कर देती हैं तथा बुजुर्गों को सभी कुछ अपने आप ही करना पड़ता है।

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(x) सास तथा पुत्रवधू के बीच झगड़ा भी बुजुर्गों की समस्या का कारण बनता है। बुजुर्ग अपने बच्चों पर निर्भर होते हैं। इस कारण पुत्रवधू को लगता है कि वह बुजुर्गों पर पैसे खर्च करके अपने पैसे बर्बाद कर रहे हैं। जब स्थिति हद से बाहर हो जाती है तो बुजुर्गों के पास कोई और आसरा ढूंढने के अतिरिक्त कोई चारा नहीं होता। कई मामलों में तो पुत्र ही अपने माता-पिता को वृद्ध आश्रम में दाखिल करवा आते हैं। इसके अतिरिक्त यदि माता-पिता किसी असंगठित क्षेत्र में छोटे-मोटे कार्य करते हैं तो उनके पास अपनी वृद्धावस्था के लिए कोई पैसा नहीं बचता है। बुढ़ापे में स्वास्थ्य बिगड़ जाता है तथा पैसे न होने के कारण उनको कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है।

(xi) स्थिति में परिवर्तन (Change in position)-परम्परागत भारतीय समाज में वृद्ध लोगों को परिवार तथा समाज में काफ़ी ऊंचा स्थान दिया जाता था। घर का कोई भी महत्त्वपूर्ण निर्णय घर के वृद्ध लोगों की इच्छा तथा मर्जी के बिना नहीं लिया जाता था। परन्तु संयुक्त परिवार व्यवस्था के कम होते प्रभाव के साथ-साथ आधुनिक औद्योगिक समाज के सामने आने के साथ सामाजिक संरचना में काफ़ी महत्त्वपूर्ण परिवर्तन आए हैं। नई स्थितियों के अनुसार आर्थिक कारक को अधिक महत्त्व दिया जाता है तथा व्यक्ति की सामाजिक स्थिति उसकी आर्थिक स्थिति के ऊपर निर्भर करती है। इस कारण वृद्ध लोगों की स्थिति में काफ़ी परिवर्तन आया है क्योंकि उनके पास पैसे की कमी होती है। उनकी स्थिति अब वह नहीं रही जो पहले थी। इससे उनके सम्मान को काफ़ी ठेस पहुंचती है जिससे उन्हें काफ़ी मानसिक परेशानी का सामना करना पड़ता है। उनके बच्चे उनका सम्मान भी नहीं करते हैं।

(xii) फालतू समय की समस्या (Problem of Leisure time)-वृद्ध अवस्था में व्यक्ति को एक और महत्त्वपूर्ण समस्या का सामना करना पड़ता है तथा वह है फालतू समय बिताने की समस्या। वृद्धों के पास बहुत सा फालतू समय होता है तथा उन्हें पता नहीं होता है कि इसके साथ क्या करें। जवानी के समय को व्यक्ति काम करते हुए व्यतीत कर देता है। शहरों में लोग 8 से 12 घण्टे तक कार्य करते हैं तथा गांव में वे इससे भी अधिक कार्य करते हैं। परन्तु सेवानिवृत्ति (Retirement) के पश्चात् व्यक्ति को अपना समय व्यतीत करना मुश्किल हो जाता है। इस प्रकार खाली समय काटना उनके लिए मुश्किल हो जाता है तथा उन्हें पता नहीं होता है कि वे क्या करें।

इस प्रकार यह देखने में आया है कि नई पीढ़ी में नौजवान लोग बदले हुए हालातों तथा बदली हुई कद्रों-कीमतों के कारण धीरे-धीरे बुजुर्गों को छोड़ते जा रहे हैं। वे अपनी सन्तान होने के उत्तरदायित्व से दूर भाग रहे हैं। दूसरी तरफ माता-पिता अपने बच्चों के पालन-पोषण में अपनी सारी आय तथा बचत खर्च कर देते हैं जिस कारण वे वृद्धावस्था में निराश्रित हो जाते हैं।

प्रश्न 3.
वृद्धावस्था के लोगों की समस्याओं को कैसे सुलझाया जा सकता है ?
उत्तर-
आजकल लगभग सभी देश बुजुर्गों की समस्याओं को दूर करने के लिए कई प्रकार के सामाजिक, कानूनी व सुधारात्मक तरीके अपना रहे हैं। उनमें से कुछ तरीकों का वर्णन इस प्रकार हैं

  • वृद्धाश्रम-कई बुजुर्ग अपने परिवार से तालमेल नहीं बिठा पाते जिस कारण उनके बच्चे उन्हें उनके हाल पर छोड़ देते हैं तथा उनसे कोई वास्ता नहीं रखते। कई बार तो ऐसे बुजुर्ग तनाव का शिकार भी जो जाते हैं। ऐसे बुजुर्गों के लिए कई देशों में वृद्धाश्रम खोले गए ताकि उन्हें शारीरिक सुरक्षा, मैडीकल सहायता तथा आर्थिक सुरक्षा प्रदान की जा सके।
  • कल्याण कार्यक्रम-सम्पूर्ण विश्व में ही बुजुर्गों के लिए कई कल्याण कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं जैसे कि बुढ़ापा पैंशन, दुर्घटना सुविधाएं, मुफ़्त मैडीकल सहायता इत्यादि। उन्हें आर्थिक सुरक्षा प्रदान करने के लिए कई कानून तथा कल्याण कार्यक्रम शुरू किए गए हैं, जैसे कि प्रोविडेंट फण्ड, ग्रेचुटी, जीवन बीमा इत्यादि।
  • रोज़गार-समाज के बुजुर्गों का ध्यान रखने के लिए कई ढंग अपनाए गए हैं, परन्तु उनके लिए यह आवश्यक है कि नौकरी से सेवानिवृत्त होने के पश्चात् भी वे समाज के काम आ सकें। इसलिए कई स्थानों पर उन्हें सेवानिवृत्त होने के पश्चात् ही नौकरी दी जाती है ताकि उनके अनुभव का अच्छा लाभ उठाया जा सके।
  • सुदृढ़ पारिवारिक व्यवस्था-समाज को ऐसे प्रयास करने चाहिएं कि एक मज़बूत पारिवारिक व्यवस्था हो जो बुजुर्गों का ध्यान रख सके क्योंकि यह परिवार ही होता है जिससे व्यक्ति भावनात्मक रूप से जुड़ा होता है। परिवार में ही ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए कि वह अपने बुजुर्गों का अच्छी तरह ध्यान रखे। परिवार में कम-से-कम तीन पीढ़ियों के लोग रहते हैं तथा उनके बीच का रिश्ता इतना मज़बूत होना चाहिए कि वे अपने वृद्ध सदस्यों को छोड़ें ही न। परम्परागत मूल्य भी मज़बूत होने चाहिए ताकि वृद्ध स्वयं को अकेला न समझें।
  • असरदार कानून-वैसे तो सरकार ने बहुत से कानून बनाए हैं परन्तु उन्हें असरदार ढंग से लागू करने की आवश्यकता होती है। इन कानूनों में ऐसे प्रावधान रखने चाहिए कि अगर कोई अपने वृद्धों को छोड़ेगा तो उसकी जायदाद ज़ब्त कर ली जाएगी तथा जेल भेज दिया जाएगा। ऐसे डर से लोग अपने बुजुर्गों की बेइज्जती नहीं करेंगे।
  • उन्नत मैडीकल सुविधाएं-हमारी मौजूदा मैडीकल सुविधाएं इतनी बढ़िया नहीं हैं कि वे बुजुर्गों की शारीरिक व स्वास्थ्य सम्बन्धी आवश्यकताओं को ठीक ढंग से पूर्ण कर सकें। इसलिए हमें अपनी स्वास्थ्य सुविधाओं को उन्नत करना चाहिए ताकि वृद्ध बढ़िया जीवन जी सकें।

प्रश्न 4.
असमर्थता के प्रकारों पर संक्षिप्त नोट लिखो।
अथवा
असमर्थता के प्रकारों पर प्रकाश डालो।
अथवा
सुनने तथा मानसिक असमर्थता की चर्चा कीजिए।
उत्तर-
वैसे तो असमर्थता के बहुत से प्रकार होते हैं परन्तु उनमें से कुछ प्रमुख असमर्थताओं का वर्णन इस प्रकार है-

  • संचालन की असमर्थता (Locomotor Disability)-संचालन की असमर्थता व्यक्ति को चलने-फिरने से रोकती है। पी० डब्ल्यू० डी० कानून कहता है कि संचालन की असमर्थता वह हड्डियों, जोड़ों व नाड़ियों की समस्या है जो शरीर के हिस्सों के संचालन को रोकती है। इसमें अधरंग भी शामिल है।
  • दृष्टि सम्बन्धी असमर्थता (Visual Disability)-दृष्टि सम्बन्धी असमर्थता या कम दृष्टि को हम दो भागों में विभाजित कर सकते हैं-नेत्रहीन तथा आंशिक दृष्टि वाले। PWD कानून कहता है कि वे व्यक्ति जिनकी दृष्टि इतनी कमज़ोर हो जाती है कि वे किसी चीज़ की सहायता (ऐनक) के बिना देख ही नहीं सकते। इस प्रकार वे कोई भी कार्य उस चीज़ की सहायता के साथ ही कर सकते हैं।
  • सुनने की असमर्थता (Hearing Disability)—ये लोग एक निश्चित स्तर से अधिक सुन नहीं सकते हैं। उन्हें सुनने के लिए किसी मशीन की सहायता लेनी ही पड़ती है।
  • मानसिक असमर्थता (Mental Disability)-इस प्रकार की असमर्थता 18 वर्ष की आयु से पहले ही शुरू हो जाती है तथा साधारण से कार्य करने के रास्ते में भी रुकावट उत्पन्न करती है। व्यक्ति का दिमाग ठीक ढंग से कार्य नहीं कर पाता है। वह ठीक ढंग से सोच नहीं सकता, दिमाग एक सीमित दायरे में ही कार्य कर सकता है। वह समाज में रहने के तरीके, बोलने के तरीके, स्वास्थ्य, पढ़ने-लिखने के तरीके नहीं समझ सकता। इस प्रकार की असमर्थता को मानसिक असमर्थता कहते हैं।
  • बोलने में असमर्थता-वे लोग जो बोल नहीं सकते, कुछ सीमित शब्द बोल सकते हैं या जिनकी बोलने की शक्ति चली जाती है, उन्हें बोलने में असमर्थ कहा जाता है।

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प्रश्न 5.
विशिष्ट ज़रूरतों पर आधारित व्यक्तियों को किस प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है ?
अथवा
विशेष जरूरतों वाले व्यक्तियों की समस्या का विस्तार से वर्णन करें।
अथवा
विलक्षण रूप से समर्थ व्यक्तियों द्वारा सामना किए जाने वाली दो समस्याओं की चर्चा कीजिए।
उत्तर-

  • सामाजिक उत्पीड़न-विशिष्ट ज़रूरतों वाले लोगों का सामाजिक उत्पीड़न होता है। उनसे या तो लोग नफ़रत करते हैं या फिर उन पर दया दिखाते हैं। कोई उनकी तरफ प्यार वाला हाथ आगे नहीं बढ़ाता। ऐसा इस कारण है कि शायद उन्हें लगता है कि ये लोग उनके जैसे आम लोग नहीं हैं तथा इनमें कोई नुक्स है। लोगों की इस प्रकार की दृष्टि उन्हें चुभती है तथा वे चिड़चिड़े हो जाते हैं।
  • असमानता-समाज में रहते हुए इन लोगों को असमानता का भी सामना करना पड़ता है। इनके साथ असमान ढंग से व्यवहार किया जाता है। ये साधारण लोगों की तरह जीवन जीने की सभी सुविधाओं का आनंद नहीं ले सकते। इनसे समाज, घर, दफ़्तर इत्यादि में भेदभाव किया जाता है तथा बहुत से मौकों पर इन्हें शामिल ही नहीं किया जाता। इस कारण वे धीरे-धीरे तनाव का शिकार हो जाते हैं।
  • स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं-विशिष्ट ज़रूरतों वाले व्यक्ति ऐसे होते हैं जो किसी-न-किसी प्रकार की असमर्थता का शिकार होते हैं। उन्हें सुनने की कमी होती है या देख नहीं सकते या कुछ समझ नहीं सकते या ठीक ढंग से चल नहीं सकते। इस प्रकार उन्हें हमेशा किसी-न-किसी सहारे की आवश्यकता होती है। उनके लिए बिना किसी के सहारे काम करना मुमकिन नहीं होता।
  • निर्धनता-जो लोग शारीरिक रूप से किसी-न-किसी प्रकार से असमर्थ होते हैं, उनके लिए पैसे कमाने के बहुत ही सीमित अवसर होते हैं। वे अपनी शारीरिक असमर्थता के कारण अपने सामर्थ्य का पूर्णतया प्रयोग भी नहीं कर पाते जिस कारण उनके पास हमेशा पैसों की कमी होती है। इस प्रकार वे निर्धन ही रह जाते हैं।
  • अलगाव-असमर्थ लोगों को अलगाव की समस्या का भी सामना करना पड़ता है। जितनी अधिक शारीरिक कमी होगी उतनी अधिक अलगाव की भावना बढ़ जाएगी। कई बार स्थिति उनके बस में नहीं होती जिस कारण यह किसी कार्य में उनकी भागीदारी के रास्ते में रुकावट बन जाती है।

प्रश्न 6.
विशिष्ट ज़रूरतों पर आधारित व्यक्तियों के सशक्तिकरण के लिए विधान किस प्रकार महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करता है ?
अथवा
विधान (कानून) किस प्रकार विशेष ज़रूरतों वाले व्यक्तियों की सशक्तिकरण में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करता है ?
अथवा
विलक्षण सामर्थ्य वाले व्यक्तियों के सशक्तिकरण के लिए विधान ने किस प्रकार महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की है?
उत्तर-
इसमें कोई शंका नहीं है कि विशिष्ट ज़रूरतों वाले लोगों को समर्थ बनाने में कानून बहुत बड़ी भूमिका अदा कर सकता है। वास्तव में ऐसे लोगों के लिए समाज की तरफ से प्यार तथा हमदर्दी के साथ कुछ वैधानिक नियमों की भी आवश्यकता है ताकि जो लोग शारीरिक रूप से किसी-न-किसी रूप में असमर्थ हैं, वे भी अच्छा जीवन जी सकें। ऐसा तभी हो सकता है अगर इनसे सम्बन्धित कुछ विधान बनाए जायें।

पिछले कुछ समय में इन लोगों को समाज की मुख्यधारा में शामिल करने के लिए भेदभाव के विरुद्ध कुछ विधान, समान अवसर तथा कुछ कार्यक्रम बनाए गए हैं जिनमें इनके कल्याण के प्रति लोग जागरूक होना शुरू हुए हैं। परन्तु यह तब ही मुमकिन है अगर कुछ लोग इकट्ठे होकर इस दिशा में कार्य करें। इसलिए 1986 में The Rehabilitation Council of India का गठन किया गया था। यह एक स्वायत्त संस्था है जो उन लोगों को ट्रेनिंग देने का कार्य करती है जो विशिष्ट ज़रूरतों वाले लोगों को बसाने का कार्य करते हैं। इसे The Rehabilitation Council Act, 1992 के अन्तर्गत वैधानिक दर्जा दिया गया है जिस कारण इस संस्था द्वारा ट्रेनिंग देने को मान्यता दी गई। इनकी कानून के अनुसार ट्रेनिंग के कार्य की समय-समय पर जाँच की जाएगी तथा इस क्षेत्र में नए आविष्कारों के लिए भी सहायता दी जाएगी।

इन लोगों के लिए कई कानून भी पास किए गए जैसे कि-

  • Persons with Disabilities (Equal Opportunities, Probition of Rights and Full Participation) Act, 1995.
  • National Trust for Welfare of Persons with Autism, Cerebral Palsy, Mental Retardation and Multiple Disability Act, 1999.
  • Rehabilitation Council of India Act, 1992.

इन विधानों का मुख्य उद्देश्य उन लोगों को समाज में समानता दिलाना है जो किसी-न-किसी प्रकार की असमर्थता के साथ जी रहे हैं। ये कानून उन लोगों को भी सहायता प्रदान करने में सहायता करते हैं जो असमर्थ हैं तथा जिनके पास पारिवारिक सहायता मौजूद नहीं होती। ये विधान उन संस्थाओं या गैर-सरकारी संस्थाओं की सहायता करते हैं जो इन लोगों को दोबारा बसाने के कार्य में लगे हुए हैं। इस प्रकार इन लोगों के लिए सरकारी नौकरियों में स्थान आरक्षित रखे गए हैं ताकि वे भी समाज में अच्छा जीवन जी सकें।

अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न (OTHER IMPORTANT QUESTIONS)

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न

A. बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
2021 तक भारत में कितने लोग वृद्ध हो जाएंगे ?
(क) 140 मिलियन
(ख) 150 मिलियन
(ग) 160 मिलियन
(घ) 170 मिलियन।
उत्तर-
(क) 140 मिलियन।

प्रश्न 2.
2001 में भारत में कितने लोग वृद्ध थे ?
(क) 80 मिलियन
(ख) 77 मिलियन
(ग) 83 मिलियन
(घ) 86 मिलियन।
उत्तर-
(ख) 77 मिलियन।

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प्रश्न 3.
भारत की जनगणना में किस आयु के व्यक्ति को वृद्ध माना जाता है ?
(क) 58 वर्ष
(ख) 65 वर्ष
(ग) 60 वर्ष
(घ) 63 वर्ष।
उत्तर-
(ग) 60 वर्ष।

प्रश्न 4.
वह कौन-सा लक्षण है जिससे वृद्धावस्था के आने का पता चलता है ?
(क) दाँतों का टूटना
(ख) गंजापन
(ग) बाल सफेद होना
(घ) उपर्युक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 5.
वृद्धावस्था की प्रक्रिया का कौन-सा विज्ञान अध्ययन करता है ?
(क) Gerontology
(ख) Dermitology
(ग) Physiology
(घ) Botany.
उत्तर-
(क) Gerontology.

प्रश्न 6.
वृद्ध लोगों को कौन-सी समस्याओं का सामना करना पड़ता है ?
(क) आर्थिक असुरक्षा
(ख) स्वास्थ्य का गिरना
(ग) भूमिका का बदलना
(घ) उपर्युक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपर्युक्त सभी।

B. रिक्त स्थान भरें-

1. …………………… मानवीय जीवन का एक प्राकृतिक स्तर है जिसने आना ही है।
2. 1947 में भारत में ……………………… करोड़ लोग वृद्ध थे।
3. संयुक्त राष्ट्र के अनुसार 2050 तक विश्व में …… …. करोड़ लोग होंगे।
4. Maintenance and Welfare of Parents and Senior Citizens Act सन् …………………… में पास हुआ था।
5. अखिल भारतीय शिक्षा सर्वेक्षण के अनुसार लगभग …………………… करोड़ बच्चों को विशेष शिक्षा की आवश्यकता है।
उत्तर-

  1. वृद्धावस्था
  2. 1.9
  3. 910
  4. 2007
  5. 2.

C. सही/ग़लत पर निशान लगाएं-

1. भारत में सेवानिवृत्ति की आयु 70 वर्ष है।
2. वृद्ध लोगों के बाल काले होने शुरू हो जाते हैं।
3. वृद्ध लोगों के दाँत टूटने लग जाते हैं।
4. असमर्थ व्यक्तियों के लिए सरकारी नौकरियों में आरक्षण है।
5. वृद्ध लोगों को 5000 रुपए प्रति महीना पैंशन मिलती है।
उत्तर-

  1. सही
  2. गलत
  3. सही
  4. सही
  5. गलत ।

II. एक शब्द एक पंक्ति वाले प्रश्न उत्तर

प्रश्न 1. विश्व की जनसंख्या कितनी है ?
उत्तर-संयुक्त राष्ट्र के अनुसार विश्व की जनसंख्या 650 करोड़ है।

प्रश्न 2. संयुक्त राष्ट्र के अनुसार 2050 में विश्व की जनसंख्या कितनी हो जाएगी ?
उत्तर-संयुक्त राष्ट्र के अनुसार 2050 में विश्व की जनसंख्या 910 करोड़ हो जाएगी।

प्रश्न 3. 2021 में भारत में वृद्ध लोगों की संख्या कितनी हो जाएगी ?
उत्तर-2021 में भारत में वृद्ध लोगों की संख्या 121 मिलियन हो जाएगी।

प्रश्न 4. भारत में किस व्यक्ति को वृद्ध समझा जाता है ?
उत्तर-भारत में 60 वर्ष से अधिक आयु के व्यक्ति को वृद्ध समझा जाता है।

प्रश्न 5. वृद्धावस्था के कुछ लक्षण बताएं।
उत्तर-दाँतों का टूटना, गँजापन, बाल सफेद होना, कम सुनना, कम दिखना इत्यादि।

प्रश्न 6. वृद्ध होने की प्रक्रिया के अध्ययन को क्या कहते हैं ?
उत्तर-वृद्ध होने की प्रक्रिया के अध्ययन को ज़राविज्ञान (Gerontology) कहते हैं।

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प्रश्न 7. हिंदी फिल्म ‘पीकू’ का मुख्य मुद्दा क्या था ?
उत्तर- इस फिल्म का मुख्य मुद्दा एक वृद्ध पिता तथा उसकी पुत्री के आपसी रिश्ते के बारे में था जिसमें पिता पूर्णतया पुत्री पर निर्भर होता है।

प्रश्न 8. वृद्ध होने पर स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर-वृद्ध होने पर व्यक्ति शारीरिक व मानसिक रूप से कमजोर हो जाता है।

प्रश्न 9. The Rehabilitation Council Act कब पास हुआ था ?
उत्तर-The Rehabilitation Council Act, 1992 में पास हुआ था।

III. लघु उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
ज़राविज्ञान का क्या अर्थ है ?
उत्तर-
ज़राविज्ञान एक प्रकार का विज्ञान है जो वृद्ध होने की प्रक्रिया का अध्ययन करता है तथा वृद्ध लोगों के सामने आने वाली समस्याओं का अध्ययन करता है। ज़रावैज्ञानिक आयु, बढ़ती आयु तथा वृद्ध होने की प्रक्रिया का अध्ययन करता है।

प्रश्न 2.
वृद्धावस्था का सक्रियता (Activity) सिद्धान्त।
उत्तर-
वृद्धावस्था का सक्रियता सिद्धान्त कहता है कि इस अवस्था में खुश रहने के लिए व्यक्ति को सक्रिय रहना चाहिए। यह सिद्धान्त कहता है कि अगर मौजूदा भूमिकाएं तथा नियम कार्य करना बंद कर दें तो उन्हें बदल देना चाहिए क्योंकि सक्रियता का स्तर कम होने पर संतुष्टि का स्तर भी कम हो जाएगा।

प्रश्न 3.
वृद्धावस्था की समस्याएं।
उत्तर-

  1. वृद्धावस्था में व्यक्ति शारीरिक व मानसिक रूप से कमजोर हो जाता है।
  2. वे आर्थिक रूप से बच्चों पर निर्भर हो जाते हैं तथा स्वयं असुरक्षित हो जाते हैं।
  3. वे वृद्धावस्था के बदले हालातों को अपनाने के लिए तैयार नहीं होते।

प्रश्न 4.
वृद्ध आश्रम।
उत्तर-
कई लोग अपने माता-पिता के साथ तालमेल नहीं बिठा पाते तथा उन्हें तंग करते हैं और उन्हें घर से निकाल देते हैं। ऐसे बुजुर्गों के लिए सरकार ने वृद्ध आश्रम बनाए हैं ताकि वे वृद्ध अपने जीवन के अन्तिम वर्ष शान्ति व सुकून से बिता सकें। यहां उनकी आवश्यकताओं का पूरा ध्यान रखा जाता है।

प्रश्न 5.
असमर्थता का क्या अर्थ है ?
अथवा असमर्थता।
उत्तर-
असमर्थता का अर्थ है किसी प्रकार की शारीरिक कमी चाहे वह शारीरिक हो या मानसिक। इसमें हम कई प्रकार के शारीरिक दोषों को शामिल कर सकते हैं जैसे कि सुनने, बोलने या देखने की कमी, ठीक ढंग से न चल पाना, दिमागी तौर पर कमी इत्यादि।

IV. लघु उत्तरात्मक प्रश्न-

प्रश्न 1.
बुजुर्गों की समस्याओं के कारण।
उत्तर-

  • जाति प्रथा का महत्त्व कम होने से बुजुर्गों का महत्त्व तथा सम्मान कम हो गया है जिस कारण उन्हें समस्या का सामना करना पड़ता है।
  • तकनीकी विकास के कारण कला प्राप्त करने के लिए बुजुर्गों का सम्मान कम हो गया तथा इससे उन्हें समस्या हो रही है।
  • शिक्षा के प्रसार के कारण बच्चे घर तथा गांव छोड़कर शहर जा रहे हैं जिससे उन्हें पैसे की तंगी तथा और समस्याएं शुरू हो जाती हैं।
  • अपने बच्चों को अच्छा भविष्य देने के लिए वे अपनी तमाम बचत खर्च कर देते हैं जिस कारण उन्हें आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ता है।

प्रश्न 2.
प्राचीन भारत में वृद्धों की स्थिति।
उत्तर-
प्राचीन भारत में वृद्धों की स्थिति बहुत अच्छी होती थी। पितृसत्तात्मक समाज तथा संयुक्त परिवार होने के कारण घर का सारा नियन्त्रण बुजुर्गों के हाथों में होता था। घर की सम्पत्ति तथा सभी वित्तीय साधन उनके पास होते थे। पेशे तथा कला से सम्बन्धित उनके पास सम्पूर्ण ज्ञान होता था। उनको परिवार में पूर्ण सम्मान प्राप्त होता था। घर के सभी निर्णय वे ही लिया करते थे तथा उनकी इच्छा के बिना परिवार में कुछ भी नहीं होता था। इस प्रकार प्राचीन भारत में बुजुर्गों की स्थिति काफ़ी अच्छी थी।

प्रश्न 3.
वृद्धावस्था में आने वाली समस्याएं।
उत्तर-

  • वृद्ध अवस्था आते-आते लोगों को कई प्रकार की बीमारियां लग जाती हैं जिस कारण उन्हें शारीरिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
  • लोग अपनी सारी बचत बच्चों का भविष्य बनाने में खर्च कर देते हैं जिस कारण उन्हें वृद्धावस्था में आर्थिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
  • यदि वृद्ध अपने बच्चों पर प्रत्येक प्रकार से निर्भर हैं तो उन्हें बच्चों की प्रत्येक सही तथा गलत बात माननी पड़ती है जिससे उन्हें कई बार कड़वा बूंट भी पीना पड़ता है।

प्रश्न 4.
वृद्धों की स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्या।
उत्तर-
व्यक्ति अपनी तमाम उम्र जी जान लगाकर कार्य करता है। वृद्ध होने पर उनका शरीर जवाब दे जाता है। उनको कई बीमारियां जैसे कि मधुमेह, रक्तचाप इत्यादि लग जाते हैं। उनको इन बीमारियों को काबू में रखने के लिए दवाओं का सहारा लेना पड़ता है। उनका शरीर साथ नहीं देता है। वे कुछ भी नहीं कर सकते हैं। इस प्रकार स्वास्थ्य ‘सम्बन्धी समस्या वृद्धों के लिए काफ़ी महत्त्वपूर्ण है।

प्रश्न 5.
वृद्ध आश्रम।
उत्तर-
यदि किसी वृद्ध को उसके बच्चे घर से बाहर निकाल देते हैं तो उसके पास वृद्ध आश्रम में रहने के अतिरिक्त कोई चारा नहीं बचता है। इस प्रकार वृद्ध आश्रम वे घर होते हैं जहां पर वे वृद्ध रहते हैं जो अपने परिवार के सदस्यों के साथ रह नहीं पाते हैं। इन वृद्ध आश्रमों में उनका पूरा ध्यान रखा जाता है। इन वृद्ध आश्रमों में उन्हें पूर्ण सुरक्षा तथा शरण भी प्राप्त होती है। इस तरह जो वृद्ध अपने बच्चों के साथ नहीं रह पाते उन्हें वृद्ध आश्रमों में रहना पड़ता है। बड़े-बड़े शहरों में कई वृद्ध आश्रम चल रहे हैं।

V. बड़े उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
वृद्धों की समस्या के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर-
यदि हम स्वतन्त्रता से पहले के भारत की जनसंख्या पर दृष्टि डालें तो हमें पता चलेगा कि स्वतन्त्रता से पहले जीवन प्रत्याशा (Life expectancy) की दर 31 वर्ष थी। इसका अर्थ है कि भारत में पैदा होने वाला व्यक्ति औसतन 31 वर्ष जीवित रहता था। परन्तु स्वतन्त्रता के पश्चात् स्वास्थ्य सुविधाओं के बढ़ने से, जगह-जगह अस्पताल, डिस्पैंसरियां इत्यादि खुलने से व्यक्ति की औसत आयु बढ़ गई है तथा अब यह 66 वर्ष तक पहुंच गई है। इसका अर्थ है कि यह पहले की तुलना में अब दोगुनी से अधिक हो गई है। 20वीं शताब्दी के शुरू होने के बाद लोगों के जीवन में काफ़ी परिवर्तन आए हैं। सबसे पहला तथा सबसे महत्त्वपूर्ण परिवर्तन यह आया है कि उनकी औसत आयु बढ़ गई है। आमतौर पर यह कहा जाता है कि जो व्यक्ति 60 वर्ष से ऊपर हो गया है अथवा नौकरी से रिटायर हो गया है वह बुजुर्ग अथवा बूढ़ा अथवा वृद्ध हो गया है। औसत आयु के बढ़ने से उनकी संख्या भी बढ़ रही है। यह वृद्धों की बढ़ रही संख्या प्रत्येक देश के लिए चुनौती बनती जा रही है। पहले परिवार नाम की संस्था में ही प्रत्येक सदस्य खत्म हो जाता था चाहे वह बच्चा था या बूढ़ा था। अगर कोई वृद्ध हो जाता था तो उसकी पूरी देखभाल की जाती थी। परन्तु अब परिवार की संस्था में आए परिवर्तनों तथा पश्चिमीकरण और आधुनिकीकरण के प्रभाव से वृद्धों का ध्यान नहीं रखा जाता है।

उनका या तो ध्यान ही नहीं रखा जाता या फिर उन्हें वृद्ध आश्रम में छोड़ दिया जाता है। यह ही बुजुर्गों की सबसे बड़ी समस्या है।

साधारणतया यह माना जाता है कि जितनी व्यक्ति की आयु बढ़ती जाती है उसकी समस्याएं भी बढ़ती जाती हैं। रोसो (Rosow) के अनुसार चाहे वृद्ध लोगों की बहुत-सी समस्याएं होती हैं परन्तु हम उन्हें स्वास्थ्य, सामाजिक तथा वित्तीय समस्याओं में ले सकते हैं। आजकल के समाज में व्यक्ति की उपयोगिता को आर्थिक आधार पर देखा जाता है, वहां पर वृद्धों को उपयोगी नहीं समझा जाता है। तकनीकी उन्नति तथा सामाजिक परिवर्तनों ने वृद्धों की स्थिति और खराब कर दी है। पिछले कुछ दशकों से 60 वर्ष की आयु के ऊपर के लोगों की संख्या के बढ़ने से वृद्धों की समस्याएं बहुत बढ़ गई हैं। आजकल के वृद्ध को कई प्रकार की सामाजिक, आर्थिक तथा मानसिक प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। ग्रामीण तथा शहरी दोनों ही क्षेत्रों में वृद्धों को अपना समय व्यतीत करने की भी समस्या आती है।

इन सबको देखते हुए हमें वृद्धों के साथ मनुष्यों की तरह ही पेश आना चाहिए तथा यह भी ध्यान में रखना चाहिए कि उनकी भी आवश्यकताएं तथा इच्छाएं हैं। इसलिए हमें उनकी आवश्यकताओं को उनकी दृष्टि से देखना चाहिए ताकि हम उन्हें समझ सकें तथा उनकी आवश्यकताओं को पूर्ण कर सकें।

ऐतिहासिक स्वरूप (Historical Perspective)-

यदि हम प्राचीन भारतीय समाज का ज़िक्र करें तो वृद्धों की बहुत अच्छी स्थिति होती थी। प्राचीन समाज में व्यक्ति शिकारी तथा भोजन इकट्ठा करने वाले समूह में रहते थे। बुजुर्गों को सभी रीतियों तथा कार्य करने की महारतें हासिल थीं। उनको बहुत ही महत्त्वपूर्ण समझा जाता था। इस प्रकार के समाज में आयु को बहुत महत्त्व दिया जाता था। सामाजिक, धार्मिक तथा राजनीतिक दायरे (Sphere) में वृद्धों की स्थिति काफ़ी प्रभावशाली थी। साइमन (Simon) ने बहुत से आदिम समाजों का विश्लेषण किया तथा कहा है कि आदिम समाजों में समाज की परम्पराएं, रीतियां तथा व्यवहार समाज के बुजुर्गों के अनुसार चलता था जोकि सांस्कृतिक तौर पर बहुत ही विलक्षण था।

प्राचीन हेबरू लोगों में बुजुर्गों को वरदान समझा जाता था। अलग-अलग प्रकार के पूर्व औद्योगिक समाजों में जितने समय तक वृद्ध समाज को अपना योगदान दे सकते थे उतने समय तक वे समाज के लिए महत्त्वपूर्ण समझे जाते थे। उनके हाथों में समाज की तथा प्रत्येक प्रकार की सबसे अधिक शक्ति होती थी तथा उन्हें समाज में सुरक्षा प्राप्त होती थी। जब वे समाज को अपना योगदान देने के लायक नहीं रहते थे तो उनको सेवामुक्त (आजकल की भाषा में रिटायर) कर दिया जाता था। परिवार का नियन्त्रण परिवार के बड़े पुत्र को दे दिया जाता था। क्योंकि वे बुजुर्ग थे तथा अतीत में उन्होंने परिवार तथा समाज के लिए काफ़ी कुछ किया था इसलिए उन्हें परिवार की तरफ से सुरक्षा प्राप्त होती थी। वे सांस्कृतिक ज्ञान के बहुत बड़े स्रोत होते थे।

रोम में वृद्धों को नकारात्मक रूप में देखा जाता था। उनको साधारणतया उनकी बड़ी आयु के कारण धोखेबाज़, कमीने तथा दुष्ट के रूप में देखा जाता था। परन्तु सभी में से कुछ वृद्धों को अमीर परिवारों के छोटे बच्चों का संरक्षक बना दिया जाता था। वे छोटे बच्चों को स्कूल लेकर जाते थे तथा सुरक्षित वापिस लेकर आते थे। परन्तु रोम के इतिहास में बुजुर्गों को नकारात्मक रूप में देखा जाने लग गया।

प्रश्न 2.
भारत में बुजुर्गों की स्थिति का वर्णन करें।
उत्तर–
प्राचीन भारतीय समाज में बुजुर्गों की बहुत अच्छी स्थिति होती थी। बुजुर्ग परिवार का मुखिया होता था तथा परिवार और सम्पत्ति पर उसका नियन्त्रण होता था। उनको बहुत अधिक सम्मान प्राप्त था तथा उनकी स्थिति काफ़ी ऊंची होती थी। उस समय यह कहा जाता था कि आयु के साथ-साथ व्यक्ति का तजुर्बा बढ़ता है जोकि वह अपनी आने वाली पीढ़ी को दे देते हैं। समय के साथ-साथ आर्य लोग भारत में आए तथा भारतीय समाज को उन्होंने चार वर्षों में बांट दिया। व्यक्ति की आयु 100 वर्ष मानकर उनको 25-25 वर्षों के चार आश्रमों में बांट दिया गया तथा इन्हें क्रमवार ब्रह्मचार्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ तथा संन्यास आश्रमों का नाम दे दिया गया। पहले आश्रम में व्यक्ति शिक्षा ग्रहण करता था तथा दूसरे आश्रम में वह विवाह करके घर बसाता था। इस समय उसे अपने तीन ऋण देव ऋण, पितृ ऋण तथा ऋषि ऋण उतारने पड़ते थे। इस समय नौजवान पीढ़ी से यह आशा की जाती थी कि वह गृहस्थ आश्रम के दौरान ही अपने बुजुर्गों का ध्यान रखें। इस आश्रम व्यवस्था से बुजुर्गों को सुरक्षा मिल जाती थी तथा परिवार और समाज के कार्य बुजुर्गों द्वारा ही होते थे।

50 वर्ष की आयु में बुजुर्ग अपना सब कुछ अपने बच्चों को सौंपकर वानप्रस्थ आश्रम को निभाने के लिए जंगल में चले जाते थे परन्तु कभी-कभी परिवार को सलाह मशवरा देने के लिए वापस आ जाते थे। इस कारण परिवार में उनका सम्मान होता था। समय के साथ इस व्यवस्था में परिवर्तन आया परन्तु बुजुर्गों की स्थिति उसी प्रकार बनी रही। बुजुर्गों की स्थिति में असली परिवर्तन अंग्रेजों के आने के बाद शुरू हुआ।

PSEB 12th Class Sociology Solutions Chapter 12 वृद्धावस्था तथा असमर्थता

अंग्रेज़ों ने भारत को जीतना शुरू किया तथा इसके साथ-साथ उन्होंने भारत के सामाजिक जीवन में भी परिवर्तन लाने शुरू कर दिए। उन्होंने नयी न्याय तथा शिक्षा व्यवस्था को लागू किया जिससे प्राचीन रिश्तों में बहुत परिवर्तन आ गए। नई शैक्षिक संस्थाओं तथा उद्योगों के लगने के कारण नौजवान पीढ़ी बुजुर्गों को छोड़ने लग गई। ग्रामीण क्षेत्रों से शहरी क्षेत्रों की तरफ जाने लग गए जिससे प्राचीन तथा संयुक्त परिवारों के अस्तित्व को खतरा पैदा होने लग गया। शहर जाने के कारण अब वे केन्द्रीय परिवार में रहने लग गए जिस कारण वे बुजुर्गों का ध्यान न रख सके। नई सामाजिक संरचना, कद्रों-कीमतों, सामाजिक तथा राजनीतिक व्यवस्थाओं तथा नयी सामाजिक प्रक्रियाओं का बनना शुरू हो गया। इस सबने समाज में सामाजिक तथा आर्थिक प्रणाली में कुछ परिवर्तन ला दिए जोकि निम्नलिखित हैं

  • पहले उत्पादन घर में ही होता था। अब उत्पादन घर की जगह फैक्टरी में होने लग गया है जिस कारण अब परिवार आर्थिक उत्पादन का केन्द्र नहीं रहा है।
  • लोगों ने रोज़गार की तलाश में ग्रामीण क्षेत्रों को छोड़कर शहरों की तरफ जाना शुरू कर दिया, विशेषतया छोटी आयु के लोगों ने।
  • लोगों के ग्रामीण क्षेत्रों से शहरों की तरफ जाने के कारण बड़े परिवार टूटने लग गए तथा केन्द्रीय परिवार अस्तित्व में आने लग गए।
  • शहरों में बड़े-बड़े संगठन तथा नए पेशे सामने आने लग गए। इससे वृद्धों द्वारा दी जाने वाली पेशे की कला का कोई महत्त्व न रहा क्योंकि अब पेशे से सम्बन्ध की कला सिखलाई केन्द्रों में मिलने लग गई। नए ज्ञान में तेजी से बढ़ौत्तरी हुई तथा बुजुर्गों के ज्ञान का महत्त्व काफ़ी कम हो गया।
  • उद्योगों के बढ़ने से कार्य हाथों की जगह मशीनों से होने लग गया। इससे व्यक्ति के लिए खतरा पैदा हो गया तथा यह खतरा था रिटायर करने अथवा होने का। अब बुजुर्गों की भूमिका बिना किसी भूमिका के हो गई।
  • औद्योगिकीकरण तथा नए आविष्कारों से स्वास्थ्य सम्बन्धी सुविधाएं बढ़ी जिससे मृत्यु दर काफ़ी तेज़ी से कम हुई। व्यक्ति की आयु में तेजी से बढ़ौतरी हुई तथा जनसंख्या में वृद्धों की संख्या काफ़ी बढ़ गई।

इस समय पर आकर बड़ी आयु, रिटायर होने की समस्या, स्वास्थ्य की समस्या तथा अकेलेपन की समस्या शुरू हो गई। शुरू में तो नौजवान पीढ़ी गांवों में माता-पिता को पैसे भी भेजती थी, स्वयं मिलने भी जाते थे, अपने परिवार को कुछ समय के लिए गांव में भी छोड़ देते थे परन्तु धीरे-धीरे समय के साथ-साथ यह सब कुछ कम होता गया तथा बुजुर्गों की समस्याएं बढ़ती गईं। बुजुर्गों को ही एक समस्या कहा जाने लग गया। अकेलापन, असमर्था, आर्थिक तौर पर निर्भरता ऐसी समस्याएं हैं जिनको समाज के बुजुर्गों की समस्याओं के रूप में देखा गया।

भारत की स्वतन्त्रता से पहले 1931 में भारत में औसत आयु 31 वर्ष थी परन्तु स्वतन्त्रता के बाद बहुत सी गम्भीर बीमारियों पर काबू पा लिया गया। स्वास्थ्य सम्बन्धी सुविधाओं के बढ़ने के कारण 2011 में भारत में औसत आयु 66 वर्ष हो गई। इस प्रकार औसत आयु बढ़ने के साथ-साथ बुजुर्गों की संख्या बढ़ गई है। आयु बढ़ने के साथ-साथ बुजुर्गों की समस्याएं भी काफ़ी बढ़ गईं। औद्योगिकीकरण, पश्चिमीकरण तथा आधुनिकीकरण के कारण लोगों के विचार बदल गए हैं जिस कारण वृद्धों से गलत व्यवहार भी बढ़ गया है। गलत व्यवहार में बुजुर्गों के प्रति हमला भी शामिल है।

वृद्धों के लिए गलत व्यवहार को एक समस्या के रूप में मान्यता देना तथा दुर्व्यवहार को पहचानना आसान कार्य नहीं है। यदि वृद्ध कोई कार्य नहीं करते हैं तो साधारणतया घर में ही रहते हैं। वे अपने घर वालों पर निर्भर करते हैं। यहां महत्त्वपूर्ण बात यह है कि वृद्ध अपने साथ हुए गलत व्यवहार की जानकारी किसी के पूछने पर भी उसे नहीं बताते हैं। यदि किसी को पता भी चल जाए तो भी उसकी बात नहीं मानते हैं। वे यह सोचते हैं कि उससे गलत व्यवहार करने वाले उसके अपने ही बच्चे हैं, कोई बात नहीं। बहुत-से वृद्ध इस बात से डरते हैं कि यदि उसके बच्चों ने उसे छोड़ दिया तो उसका क्या होगा, वह तो अकेला ही रह जाएगा। इसलिए वह अपने साथ गलत व्यवहार की बात किसी को नहीं बताता है। यह भी देखा गया है कि वृद्धों के पास अपने बच्चों के पास रहने के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं होता है जिस कारण वे उनके साथ रहते हैं। वृद्ध किसी आश्रम में जाकर रहना भी पसन्द नहीं करते हैं।

दुर्व्यवहार की मात्रा-वृद्धों के प्रति गलत व्यवहार पर यदि अनुसन्धान किए जाएं तो हमारे सामने गलत परिणाम ही आएंगे क्योंकि इस के सम्बन्ध में आंकड़े प्राप्त नहीं होते हैं। इसका कारण यह है कि वृद्ध इसके बारे में बात करने में तैयार नहीं होते हैं। एक सर्वेक्षण के अनुसार 100 के पीछे 4 वृद्धों के साथ घर में गलत व्यवहार होता है तथा 100 में से 3 वृद्धों के साथ शारीरिक हिंसा भी होती है। यह नहीं है कि स्त्रियों की अपेक्षा मर्दो के साथ अधिक दुर्व्यवहार होता है, बल्कि स्त्रियां हिंसा का अधिक शिकार होती हैं। यहां एक बात ध्यान रखने लायक है कि लड़के अपने मातापिता के साथ अधिक गलत व्यवहार यहां तक कि हिंसा भी करते हैं। इस मामले में लड़कियां अपने माता-पिता के साथ कम हिंसा करती हैं। यह समस्या हर तरफ चल रही है। राष्ट्रीय स्तर पर इसका कोई सर्वेक्षण नहीं हुआ है। चाहे कुछ अनुसन्धानकर्ताओं ने इसके बारे में प्रयास किए हैं परन्तु सभी यह बताने में असमर्थ हैं कि यह समस्या कितनी गम्भीर है। परन्तु समाचार-पत्रों, रिपोर्टों के आधार पर हम यह कह सकते हैं कि यह समस्या काफ़ी गम्भीर है।

वृद्धावस्था तथा असमर्थता PSEB 12th Class Sociology Notes

  • वृद्धावस्था मानवीय जीवन का एक आवश्यक तथा प्राकृतिक भाग है तथा सभी व्यक्तियों को इसमें से गुजरना पड़ता है। यह एक ऐसी अवस्था है जिसे कोई नहीं चाहता क्योंकि इसमें बहुत-सी शारीरिक समस्याएं आ जाती हैं। इस अवस्था में व्यक्ति को अन्य लोगों पर निर्भर रहना पड़ता है।
  • संयुक्त राष्ट्र के अनुसार 60 वर्ष से बड़ा व्यक्ति वृद्धावस्था में आ जाता है। लगभग सभी पश्चिमी देशों ने वृद्धावस्था पैंशन तथा अन्य सुविधाएं देने के लिए 60-65 वर्ष की आयु निश्चित की है।
  • वृद्धावस्था के कई लक्षण हमें जल्दी ही दिखने लग जाते हैं; जैसे कि दाँतों का टूटना, गंजापन या सफेद बाल,
    झुर्रियां पड़ना, पीठ में कूबड़ निकलना, कम सुनना, कम दिखाई देना, कार्य करने का सामर्थ्य कम होना, धीरे चलना इत्यादि। इसके साथ ही कई बीमारियां भी लग जाती हैं; जैसे-गठिया, उच्च रक्तचाप, मधुमेह, दिल की बीमारी इत्यादि।
  • वृद्धावस्था में व्यक्ति को कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। जैसे कि स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं, सामाजिक समस्याएं, मानसिक समस्याएं, अपनी भूमिका संबंधी समस्याएं इत्यादि। इन चिंताओं तथा समस्याओं के कारण उसकी मृत्यु भी जल्दी हो जाती है।
  • वृद्धावस्था की समस्याओं को कई प्रकार से दूर किया जा सकता है। जैसे कि वृद्ध आश्रम बना कर, उनके लिए कल्याणकारी कार्यक्रम चला कर, उनके लिए आसान नौकरियां उत्पन्न करके, परिवार की तरफ से ध्यान रख कर, बढ़िया स्वास्थ्य सुविधाएं देकर, कानून बना कर इत्यादि।
  • सम्पूर्ण विश्व में 100 करोड़ के लगभग ऐसे लोग हैं जो किसी-न-किसी असमर्थता के साथ जी रहे हैं। असमर्थता का अर्थ है, व्यक्ति में किसी प्रकार की शारीरिक कमी; जैसे कि सुनने, बोलने या देखने की कमी, लंगड़ा कर चलना, हाथ न चला पाना, मानसिक कमी इत्यादि।
  • असमर्थता के कई प्रकार होते हैं; जैसे कि संचलन की असमर्थता, दृष्टि सम्बन्धी असमर्थता, सुनने की असमर्थता, मानसिक असमर्थता, बोलने में असमर्थता इत्यादि।
  • असमर्थता के कई कारण हो सकते हैं; जैसे कि पोषण से भरपूर भोजन की कमी, बीमारी, जन्मजात कमी, दुर्घटना, किसी दवा की वजह से, दबाव इत्यादि।
  • असमर्थ व्यक्तियों को कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। जैसे कि समाज का दबाव, भेदभाव, निर्धनता, अकेलापन इत्यादि।
  • असमर्थ व्यक्तियों की समस्याओं को कई ढंगों से दूर किया जा सकता है। जैसे कि उन्हें बढ़िया स्वास्थ्य सुविधाएं देकर, भेदभाव दूर करके, उन्हें साधारण स्कूलों में पढ़ा कर, जनता को इनके प्रति जागरूक करके इत्यादि।
  • वृद्ध आश्रम (Old Age Homes)—वह घर जो कि वृद्ध लोगों के लिए बनाए जाते हैं ताकि वह आराम से – रह सकें।
  • क्षति (Impairment) शारीरिक या शारीरिक संरचना या मनोवैज्ञानिक रूप से किसी अंग की हानि जिसका परिणाम असमर्थता हो भी सकता है और नहीं भी।
  • असमर्थता (Disability)—एक प्रकार की शारीरिक कमी जिस से व्यक्ति को अपना शरीर अधूरा लगता है।
  • ज़राविज्ञान (Gerontology)-विज्ञान की वह शाखा जो आयु की प्रक्रिया के उद्देश्य को समझने तथा उससे सम्बन्धित चुनौतियों का अध्ययन करती है।
  • वृद्धावस्था (Old Age)-जीवन की वह अवस्था जो 60 वर्ष के पश्चात् शुरू होती है, जिसे कोई पसंद नहीं करता तथा जिसमें व्यक्ति को कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है।

PSEB 12th Class Sociology Solutions Chapter 11 कन्या भ्रूण हत्या तथा घरेलू हिंसा

Punjab State Board PSEB 12th Class Sociology Book Solutions Chapter 11 कन्या भ्रूण हत्या तथा घरेलू हिंसा Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Sociology Chapter 11 कन्या भ्रूण हत्या तथा घरेलू हिंसा

पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न (TEXTUAL QUESTIONS)

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न

A. बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
2011 की जनगणना के अनुसार भारत में लिंग अनुपात क्या है ?
(क) 939
(ख) 940
(ग) 943
(घ) 942.
उत्तर-
(ग) 943.

प्रश्न 2.
लिंग अनुपात को परिभाषित किया जा सकता है :
(क) 1000 पुरुषों के पीछे स्त्रियों की संख्या
(ख) 1000 स्त्रियों के पीछे पुरुष
(ग) 1000 पुरुषों के पीछे बच्चों की संख्या
(घ) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
उत्तर-
(क) 1000 पुरुषों के पीछे स्त्रियों की संख्या।

प्रश्न 3.
पंजाब में सबसे अधिक लिंग अनुपात जिस जिले में है वह है :
(क) फिरोज़पुर
(ख) बठिण्डा
(ग) होशियारपुर
(घ) लुधियाना।
उत्तर-
(ग) होशियारपुर।

प्रश्न 4.
कन्या भ्रूण हत्या की जाँच में शामिल है :
(क) अल्ट्रा साऊण्ड
(ख) एम० आर० आई०
(ग) एक्स-रे
(घ) भार तोलने वाली मशीन।
उत्तर-
(क) अल्ट्रा साऊण्ड।

प्रश्न 5.
कन्या भ्रूण हत्या का प्रमुख कारण क्या है ?
(क) बढ़ता हुआ लिंग अनुपात
(ख) पितृपक्ष की प्रबलता
(ग) लड़कियों के प्रति प्राथमिकता
(घ) कोई नहीं।
उत्तर-
(ख) पितृपक्ष की प्रबलता।

प्रश्न 6.
घरेलू हिंसा का कौन-सा प्रकार नहीं है :
(क) कानूनी
(ख) शारीरिक दुर्व्यवहार
(ग) समाज
(घ) आर्थिक।
उत्तर-
(घ) आर्थिक।

PSEB 12th Class Sociology Solutions PSEB 12th Class Sociology Solutions Chapter 11 कन्या भ्रूण हत्या तथा घरेलू हिंसा

प्रश्न 7.
कौन-सा तत्त्व घरेलू हिंसा के लिए दोषी नहीं है ?
(क) सांस्कृतिक
(ख) आर्थिक
(ग) सामाजिक
(घ) बाल मनोवैज्ञानिक।
उत्तर-
(घ) बाल मनोवैज्ञानिक।

प्रश्न 8.
वह अधिनियम जिसके अन्तर्गत एक बेटी को पिता की सम्पत्ति में समान हिस्से का अधिकार है :
(क) कानूनी सम्पत्ति अधिनियम
(ख) हिन्दू सम्पत्ति अधिनियम
(ग) सिविल अधिनियम
(घ) दैविक अधिनियम।
उत्तर-
(ख) हिन्दू सम्पत्ति अधिनियम।

B. रिक्त स्थान भरें-

1. लिंग जाँच सम्बन्धी टैस्ट में .. ……………… शामिल है।
2. …………….. कन्या भ्रूण हत्या के कारणों में एक प्रमुख कारण हैं।
3. भारतीय समाज में कन्या भ्रूण हत्या के लिए …………………… जैसी गलत प्रथा का चलना ज़िम्मेदार है।
4. …………….. भारत में लगातार कम हो रहा है, जबकि थोड़ा सुधार ……………… राज्य में है।
5. …………………… को समुचित रूप से लागू किया जाए ताकि कन्या भ्रूण हत्या का मुकाबला हो सके।
6. …………………… दुर्व्यवहार के अन्तर्गत कई प्रकार से सज़ा या दण्ड देना जैसे मारना, तमाचा लगाना, चूंसा लगाना, धकेलना एवं अन्य प्रकार का शारीरिक सम्पर्क शामिल हैं जिसके परिणामस्वरूप पीड़ित के शरीर को चोट पहँचे।
7. वो दम्पति जो अकेले अथवा बच्चों के साथ रहते हैं अथवा एक व्यक्तिगत अभिभावक बच्चों के साथ रहते हैं, उसे ………….. परिवार कहते हैं।
8. ……………… को स्कूल, कॉलेज एवं विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम का ज़रूरी अंग बनाना चाहिए।
9. ………………….. को सामाजिक तौर पर अस्वीकृत व दुर्व्यवहारपूर्ण व्यवहार के रूप में परिभाषित किया जाता है एक या दूसरे या दोनों सदस्यों द्वारा विवाह घनिष्ठ सम्बन्ध में बंधे हो, पाया जाता है।
उत्तर-

  1. अल्ट्रा साऊंड,
  2. पितृ पक्ष प्रबलता,
  3. दहेज,
  4. लिंगानुपात, पंजाब,
  5. कानून,
  6. शारीरिक,
  7. केन्द्रीय,
  8. लैंगिक तथा मानवीय अधिकार,
  9. घरेलू हिंसा।

C. सही/ग़लत पर निशान लगाएं-

1. अल्ट्रा साऊंड लिंग निर्धारण के लिए पूर्व निदानात्मक जाँच है।
2. कन्या भ्रूण हत्या के विषय में जनचेतना के लिए कानून सहायता नहीं करता है।
3. जनगणना 2011 के अनुसार, भारत में लिंग अनुपात में सुधार हुआ है।
4. कन्या भ्रूण हत्या के दुष्प्रभावों को चेतना कार्यक्रमों द्वारा समझाया जा सकता है।
5. सांस्कृतिक व परम्परागत रूढ़ियों का कन्या भ्रूण हत्या पर कोई प्रभाव नहीं है।
6. नवविवाहित दम्पत्ति को जागरूक होना चाहिए कि एक छोटे परिवार में मात्र लड़कों का होना ही ज़रूरी नहीं है।
7. दहेज का लालच, लड़के के जन्म की इच्छा व पति द्वारा मदिरा सेवन करना गाँव में महिलाओं के विरुद्ध हिंसा के प्रमुख कारण हैं।
8. पत्नी को पीटना घरेलू हिंसा को नहीं दर्शाता। 9. घरेलू हिंसा का इतिहास पूर्व ऐतिहासिक युग से पीछे देखा जा सकता है।
10. पति-पत्नी द्वारा घरेलू हिंसा परिवार के बच्चों पर कुप्रभाव डालती है।
उत्तर-

  1. सही
  2. गलत
  3. सही
  4. सही
  5. गलत
  6. सही
  7. सही
  8. गलत
  9. सही
  10. सही।

D. निम्नलिखित शब्दों का मिलान करें-

कॉलम ‘ए’ — कॉलम ‘बी’
कन्या भ्रूण हत्या — लड़कियों की हत्या
लिंग अनुपात — विवाहित बलात्कार
पितृपक्ष की प्रबलता — कन्या भ्रूण की माँ के गर्भ में हत्या
कन्या शिशु वध — 1000 पुरुषों के पीछे स्त्रियों की संख्या
घरेलू हिंसा का प्रकार — पुरुषों का हावी प्रभाव।
उत्तर-
कॉलम ‘ए’–कॉलम ‘बी’
कन्या भ्रूण हत्या –कन्या भ्रूण की माँ के गर्भ में हत्या
लिंग अनुपात — 1000 पुरुषों के पीछे स्त्रियों की संख्या
पितृपक्ष की प्रबलता — पुरुषों का हावी प्रभाव
कन्या शिशु वध — लड़कियों की हत्या
घरेलू हिंसा का प्रकार — विवाहित बलात्कार।

II. अति लघु उत्तरों वाले प्रश्न-

प्रश्न 1. भारत की 2011 की जनसंख्या के अनुसार लिंग अनुपात क्या है ?
उत्तर-1000 : 943

प्रश्न 2. पंजाब की 2011 की जनसंख्या के अनुसार लिंग अनुपात क्या है ?
उत्तर-1000 : 895

प्रश्न 3. पंजाब के किस जिले में लिंग अनुपात सर्वाधिक व किस जिले में न्यूनतम है ?
उत्तर-होशियारपुर (961) में सबसे अधिक तथा बठिण्डा (869) में सबसे कम लिंग अनुपात है।

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प्रश्न 4. पी०एन०डी०टी० का पूरा नाम क्या है ?
अथवा P.N.D.T. का पूरा अनुवाद लिखो।
उत्तर-Pre-Natal Diagnostic Techniques.

प्रश्न 5. घरेलू हिंसा से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-घरेलू हिंसा सामाजिक रूप से अमान्य व ग़लत व्यवहार है जो व्यक्ति अपने सबसे नज़दीकी रिश्तेदारों से करता है जैसे कि पत्नी या परिवार।

प्रश्न 6. घरेलू हिंसा के किन्हीं दो कारणों का उल्लेख करें।
उत्तर-स्त्रियों की पुरुषों पर आर्थिक निर्भरता तथा स्त्रियों की निम्न आर्थिक स्थिति घरेलू हिंसा के मुख्य कारण हैं।

प्रश्न 7. कन्या भ्रूण हत्या से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-लिंग निर्धारण परीक्षण के बाद माँ के गर्भ में ही लड़की को मार देने को कन्या भ्रूण हत्या कहते हैं।

प्रश्न 8. पत्नी को पीटने के कारणों का उल्लेख करें।
उत्तर-पुरुष प्रधान समाज, पुरुषों का स्त्रियों से शक्तिशाली होना, स्त्रियों की पुरुषों पर आर्थिक निर्भरता, नशा करना, स्त्रियों की अनपढ़ता, मर्दानगी दिखाना इत्यादि।

III. लघु उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
कन्या भ्रूण हत्या की परिभाषा दें।
उत्तर-
स्त्री के गर्भवती होने पर बच्चे का लिंग निर्धारण टैस्ट माँ के गर्भ में ही करवा लिया जाता है तथा लड़की होने की स्थिति में गर्भपात करवा दिया जाता है। इसे ही कन्या भ्रूण हत्या कहते हैं। लिंग निर्धारण टैस्ट गर्भधारण के 18 हफ्ते के पश्चात् करवाया जाता है।

प्रश्न 2.
लिंग अनुपात की परिभाषा दें।
उत्तर-
स्त्रियों व पुरुषों के बीच समानता को देखने के लिए किसी स्थान का लिंग अनुपात देखना आवश्यक है। एक विशेष समय पर एक विशेष क्षेत्र में 1000 पुरुषों के पीछे स्त्रियों की संख्या को लिंग अनुपात कहते हैं। भारत में 2011 में यह 1000 : 943 था।

प्रश्न 3.
कन्या भ्रूण हत्या के दो कारण कौन-से हैं ?
उत्तर-

  1. दहेज-लड़की के विवाह के समय उसके ससुराल वालों को काफी दहेज देना पड़ता है तथा इससे बचने के लिए लोग कन्या भ्रूण हत्या करते हैं।
  2. लड़के की इच्छा-लोगों में लड़का प्राप्त करने की इच्छा होती है क्योंकि वह सोचते हैं कि लड़का बुढ़ापे . का सहारा बनेगा तथा मृत्यु के बाद चिता को आग देगा।

प्रश्न 4.
स्त्रियों का भारत में क्या स्थान है ?
उत्तर-
भारत में स्त्रियों की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। केवल 65% स्त्रियां ही साक्षर हैं। देश की अधिकतर बुराइयां स्त्रियों से जुड़ी हुई हैं जैसे कि बलात्कार, अपहरण, दहेज प्रथा, कन्या भ्रूण हत्या इत्यादि। इन सब बुराइयों के कारण आज भी स्त्रियों की स्थिति निम्न बनी हुई है।

प्रश्न 5.
भारत में लड़कों को क्यों प्राथमिकता दी जाती है ?
उत्तर-
लोगों में लड़का प्राप्त करने की इच्छा होती है। वह सोचते हैं कि उनके बुढ़ापे में लड़का उनका सहारा बनेगा तथा उनका ध्यान रखेगा। साथ ही उनकी मृत्यु के पश्चात् लड़का ही उनका अंतिम संस्कार करेगा। इसके साथ वह खानदान को भी आगे बढ़ाएगा।

प्रश्न 6.
घरेलू हिंसा के तीन कारणों का उल्लेख करें।
अथवा घरेलू हिंसा के दो कारण लिखें।
उत्तर-

  1. पुरुष स्त्रियों से अधिक शक्तिशाली होते हैं।
  2. स्त्रियां पुरुषों पर आर्थिक रूप से निर्भर होती हैं।
  3. स्त्रियों तथा बच्चों की स्थिति बढ़िया नहीं होती है।

प्रश्न 7.
घरेलू हिंसा व हिंसा के बीच के अन्तर को स्पष्ट करो।
उत्तर-
घरेलू हिंसा घर में पति-पत्नी, बच्चों, भाइयों की बीच होने वाली हिंसा को कहा जाता है तथा इस व्यवहार को समाज में मान्यता प्राप्त नहीं होती। हिंसा दो व्यक्तियों या समूहों के बीच होती है तथा वह अजनबी होते हैं। साम्प्रदायिक हिंसा इसकी काफ़ी महत्त्वपूर्ण उदाहरण है।

प्रश्न 8.
पत्नी को पीटने से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
पत्नी को पीटने का अर्थ है पति की तरफ से पत्नी के विरुद्ध शारीरिक हिंसा का प्रयोग करना। पति-पत्नी के ऊपर अपना अधिकार समझते हैं तथा सोचते हैं कि जो वह कहेंगे पत्नी को वह सब कुछ करना पड़ेगा। अगर वह मना करती है तो उसे पीटा जाता है जिसे पत्नी की पिटाई कहते हैं।

प्रश्न 9.
कन्या भ्रूण हत्या के लिए जिम्मेदार कारण कौन-कौन से हैं ?
उत्तर-

  • दहेज-लड़की के विवाह के समय उसके ससुराल वालों को काफी दहेज देना पड़ता है तथा इससे बचने के लिए लोग कन्या भ्रूण हत्या करते हैं।
  • लड़के की इच्छा-लोगों में लड़का प्राप्त करने की इच्छा होती है क्योंकि वह सोचते हैं कि लड़का बुढ़ापे . का सहारा बनेगा तथा मृत्यु के बाद चिता को आग देगा।

प्रश्न 10.
घरेलू हिंसा के परम्परागत सांस्कृतिक कारणों की सूची दें।
उत्तर-
घरेलू हिंसा के कई सांस्कृतिक कारण होते हैं जैसे कि लिंग आधारित समाजीकरण, लिंग आधारित भूमिका का विभाजन, सम्पत्ति पर लड़कों का अधिकार समझा जाता है। परिवारों में पुरुषों की भूमिका को महत्त्व देना, विवाह तथा दहेज प्रथा, संघर्ष खत्म करने के लिए हिंसा का प्रयोग इत्यादि।

IV. दीर्घ उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
कन्या भ्रूण हत्या पर एक लघु निबन्ध लिखें।
उत्तर–
पिछले कुछ समय से विपरीत लिंग अनुपात का सबसे बड़ा कारण कन्या भ्रूण हत्या ही रहा है। इसका अर्थ है कि गर्भ में पल रही अजन्मी लड़की को गर्भ में ही मार देना। लोगों में लड़का प्राप्त करने की इच्छा होती है जिस कारण वह गर्भधारण के कुछ समय पश्चात् ही लिंग निर्धारण का टेस्ट करवाते हैं। अगर लड़का है तो ठीक है अगर लड़की है तो उसका गर्भपात करवा दिया जाता है। इस प्रकार लड़की को जन्म से पहले ही मार दिया जाता है। इसे ही कन्या भ्रूण हत्या कहा जाता है। इस प्रकार लड़कियों की संख्या कम हो जाती है तथा लिंग अनुपात बिगड़ जाता है।

प्रश्न 2.
कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के दो प्रमुख उपायों की चर्चा करें।
उत्तर-

  • भारत सरकार ने कई कानून पास किए हैं तथा भारतीय दण्ड संहिता के सैक्शन 312-316 में प्रावधान रखे गए कि किसी स्त्री का जबरदस्ती गर्भपात नहीं करवाया जाएगा।
  • सरकार ने कन्या भ्रूण हत्या की बढ़ रही संख्या को रोकने के लिए 1994 में Pre-Natal Diagnostic Techniques (Regulation and Prevention of Misuse) Act, 1994 पास किया था जिसके अनुसार लिंग निर्धारण का टैस्ट करवाना गैर-कानूनी घोषित कर दिया गया। अगर कोई ऐसा टैस्ट करेगा तो उसके लिए सज़ा का प्रावधान भी रखा गया।

प्रश्न 3.
कन्या भ्रूण हत्या के दो दुष्परिणामों की चर्चा करें।
अथवा कन्या भ्रूण हत्या के प्रभाव बताइए।
उत्तर-

  • स्त्रियों के स्वास्थ्य पर प्रभाव-उस स्त्री का लगातार गर्भपात करवाया जाता है जब तक कि उसके गर्भ में लड़का न आ जाए। इसका उसकी तथा होने वाले बच्चे के स्वास्थ्य पर काफ़ी बुरा प्रभाव पड़ता है।
  • लिंग अनुपात पर प्रभाव-कन्या भ्रूण हत्या का लिंग अनुपात पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। इससे लड़कियों की संख्या कम हो जाती है तथा कई अन्य समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं जैसे कि लड़कियों से जबरदस्ती करना, बहुओं को जलाना, बहुविवाह, बलात्कार, वेश्यावृत्ति इत्यादि।

प्रश्न 4.
भारत में लिंग अनुपात कम क्यों हो रहा है ? वर्णन करें।
उत्तर-

  • लोगों में लड़का प्राप्त करने की इच्छा होती है जिस कारण वह लड़का प्राप्त करने के प्रयास करते रहते हैं।
  • देश में कन्या भ्रूण हत्या के बढ़ने से ही लिंग अनुपात कम हो रहा है।
  • लड़कियों को जन्म के पश्चात् मार देने की प्रथा भी लिंग अनुपात के कम होने के लिए उत्तरदायी है।
  • परम्परागत समाजों की प्रवृत्ति के कारण भी ऐसा होता है।
  • लड़की को विवाह के समय दहेज देना पड़ता है जिस कारण लोग लड़की के स्थान पर लड़के की इच्छा रखते हैं।
  • लोग सोचते हैं कि उनका बेटा खानदान आगे बढ़ाएगा जिस कारण लोग लड़कियों को पैदा होने से पहले ही मार देते हैं।

PSEB 12th Class Sociology Solutions PSEB 12th Class Sociology Solutions Chapter 11 कन्या भ्रूण हत्या तथा घरेलू हिंसा

प्रश्न 5.
कन्या भ्रूण हत्या को बढ़ावा देने वाली दो सामाजिक समस्याओं के नाम लिखें।
उत्तर-

  • दहेज-लड़की के विवाह के समय दहेज देना पड़ता है जो हमारे समाज की एक बहुत बड़ी समस्या है। दहेज न देना पड़े इस कारण लोग कन्या भ्रूण हत्या करते हैं ताकि लड़के के विवाह के समय दहेज घर में आए।
  • स्त्रियों के प्रति हिंसा-सम्पूर्ण विश्व के लगभग सभी समाजों में स्त्रियों को कई प्रकार की हिंसा का सामना करना पड़ता है; जैसे कि बलात्कार, अपहरण, दहेज हत्या, वेश्यावृत्ति, पत्नी की पिटाई इत्यादि। इनसे बचने के लिए भी लोग भ्रूण हत्या करते हैं।

प्रश्न 6.
घरेलू हिंसा के कारणों का वर्णन करें।
अथवा
घरेलू हिंसा के दो कारण लिखें।
उत्तर-

  • लोग परेशानी से दूर होने के लिए मद्यपान करते हैं। जब पत्नी तथा बच्चे उसे मद्यपान करने से रोकते हैं तो वह उन्हें पीटता है तथा घरेलू हिंसा को बढ़ाता है।
  • कई लोग प्राकृतिक रूप से ही गुस्से वाले होते हैं तथा छोटी-छोटी बात पर गुस्सा करके बच्चों को पीट देते हैं।
  • कई लोग नशीले पदार्थों का प्रयोग करते हैं। अगर उन्हें नशीले पदार्थ खरीदने के लिए पैसा नहीं मिलता तो वे घर वालों के साथ मार-पीट करते हैं। (iv) निर्धनता के कारण लोग गुस्से में रहते हैं तथा गुस्से में कई बार पत्नी व बच्चों को पीट देते हैं।

प्रश्न 7.
पत्नी के उत्पीड़न को रोकने के लिए क्या उपाय हैं ? वर्णन करें।
उत्तर-

  • सरकार ने कानून तो बनाए हैं परन्तु वह सही ढंग से लागू नहीं हो सके हैं। इन कानूनों को ठीक ढंग से लागू करना चाहिए ताकि ऐसा करने वालों से ठीक ढंग से निपटा जा सके।
  • पुलिस को घरेलू हिंसा के मामलों को ध्यान से देखना चाहिए। पुलिस वालों को ऐसे केसों से निपटने के लिए विशेष ट्रेनिंग दी जानी चाहिए।
  • बच्चों को, नौजवानों को घरेलू हिंसा के विरुद्ध शिक्षा देनी चाहिए ताकि लोगों को मानसिक रूप से तैयार किया जाए तथा वह घरेलू हिंसा न करें।

प्रश्न 8.
कन्या भ्रूण हत्या के उन्मूलन के लिए कानूनी सुधारों की सूची बनाएं।
उत्तर-

  • भारतीय दण्ड संहिता के सैक्शन 312-316 के अनुसार गर्भपात करवाना गैर-कानूनी है। अगर कोई जबरदस्ती गर्भपात करवाता है तो उसके लिए सज़ा का प्रावधान भी है।
  • The Medical Termination of Pregnancy Act 1971 के अनुसार कानून को थोड़ा नर्म किया गया तथा मैडीकल आधार पर, मानवता या किसी अन्य आधार पर गर्भपात की आज्ञा दी गई।
  • कन्या भ्रूण हत्या का मुख्य आधार बच्चे का लिंग निर्धारण है। इसलिए Pre-Natal Diagnostic Techniques (Regulation and Prevention of Misuse) Act, 1994 पास किया गया तथा लिंग निर्धारण करना गैर-कानूनी घोषित कर दिया गया। अगर कोई अल्ट्रा साऊंड सैटर लिंग निर्धारण करेगा तो उसे बंद करने तथा सजा का भी प्रावधान रखा गया।

प्रश्न 9.
घरेलू हिंसा के कुप्रभाव क्या हैं ?
उत्तर-

  • इसका स्त्री के स्वास्थ्य पर काफ़ी गलत प्रभाव पड़ता है। स्त्री को शारीरिक व मानसिक परेशानी झेलनी पड़ती है। इसका पारिवारिक वातावरण पर भी गलत प्रभाव पड़ता है।
  • पत्नी की पिटाई का बच्चों पर भी गलत प्रभाव पड़ता है। बच्चों का रोज़ाना काम-काज प्रभावित होता है, उनकी शिक्षा प्रभावित होती है। घर में माँ से होती हिंसा देखकर वे पिता से नफ़रत करने लग जाते हैं तथा उनमें नकारात्मक व्यवहार जुड़ जाता है।
  • जिस स्त्री के साथ घरेलू हिंसा होती है वह हमेशा मानसिक तनाव में रहती है जिस से घर के सभी पक्ष प्रभावित होते हैं। इस मानसिक तनाव से उन्हें कई प्रकार की बीमारियां लग जाती हैं।

प्रश्न 10.
भारत में महिलाओं के विरुद्ध हिंसा की दिशा पर संक्षेप नोट लिखें।
उत्तर-
भारत में स्त्रियों के विरुद्ध घरेलू हिंसा अन्य प्रकार की घरेलू हिंसा में सबसे आम है। इसका सबसे आम कारण लोगों के दिमाग में बैठी विचारधारा है कि स्त्रियां पुरुषों से शारीरिक व मानसिक रूस से कमज़ोर होती हैं। चाहे आजकल स्त्रियां साबित कर रही हैं कि वे पुरुषों से किसी भी क्षेत्र में कम नहीं हैं परन्तु फिर भी उनके विरुद्ध हिंसा के मामले काफ़ी अधिक हैं। इसके कारण देश के प्रत्येक कोने में अलग-अलग हैं। संयुक्त राष्ट्र की Population Fund Report के अनुसार भारत को दो तिहाई स्त्रियां घरेलू हिंसा का शिकार हैं। 70% वैवाहिक स्त्रियां मारपीट, बलात्कार का शिकार हैं। इनमें से घरेलू हिंसा का 55% हिस्सा बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश तथा अन्य उत्तर भारत के प्रदेश में आता है।

V. अति दीर्घ उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
लिंग अनुपात पर विस्तृत टिप्पणी लिखें।
उत्तर-
अगर हम साधारण शब्दों में देखें तो 1000 पुरुषों के पीछे स्त्रियों की संख्या को लिंग अनुपात का नाम दिया जाता है। इसका अर्थ यह है कि विशेष क्षेत्र में 1000 पुरुषों के पीछे कितनी स्त्रियां हैं। इसको ही लिंग अनुपात का नाम दिया जाता है। लिंग अनुपात शब्द का सम्बन्ध किसी भी देश की जनसंख्या से सम्बन्धित जनसंख्यात्मक लक्षणों में से एक है तथा देश की जनसंख्या के बारे में पता करने के लिए लिंग अनुपात का पता होना आवश्यक है। 2011 में भारत में लिंग अनुपात 1000 पुरुषों के पीछे 943 स्त्रियां थीं।

अगर हमें किसी भी समाज में स्त्रियों की स्थिति के बारे में पता करना है तो इस बारे में हम लिंग अनुपात को देखकर ही पता कर सकते हैं। इससे ही पता चलता है कि समाज ने स्त्रियों को किस प्रकार की स्थिति प्रदान की है। अगर लिंग अनुपात कम है स्त्रियों की स्थिति निम्न है, परन्तु अगर लिंग अनुपात अधिक है तो निश्चय ही स्त्रियों की स्थिति ऊंची है। इस प्रकार लिंग अनुपात का अर्थ है किसी विशेष क्षेत्र में एक हजार पुरुषों की तुलना में स्त्रियों की संख्या। अगर हमें किसी भी देश के बीच पुरुषों तथा स्त्रियों की संख्या के बारे में पता हो तो हम उस देश के लिंग अनुपात के बारे में आसानी से पता कर सकते हैं। यहां लिंग अनुपात के साथ-साथ बाल लिंग, अनुपात भी महत्त्वपूर्ण है। बाल लिंग अनुपात का अर्थ है कि देश की जनसंख्या में 1000 लड़कों की तुलना में 0-6 वर्ष की कितनी लड़कियां हैं।

अगर हम सम्पूर्ण संसार में तथा विशेषतया कुछ मुख्य देशों के लिंग अनुपात की तरफ देखें तो वर्ष 2000 में संसार में 1000 पुरुषों की तुलना में 986 स्त्रियां थीं। यह लिंग अनुपात अमेरिका में 1000 : 1029, चीन में 1000 : 944, ब्राज़ील में 1000 : 1025, जापान में 1000 : 1025, भारत में 1000 : 933, पाकिस्तान में 1000 में 938, बांग्लादेश में 1000 : 953 तथा इंडोनेशिया में 1000 : 1004 था। इन आंकड़ों को देखने से पता चलता है कि विकसित देशों में लड़कियों की संख्या लड़कों की तुलना में अधिक है परन्तु पिछड़े हुए देशों में यह कम है। इसका कारण यह है कि पिछड़े हुए देशों में लैंगिक अन्तर बहुत अधिक है परन्तु विकसित देशों में लैंगिक भेदभाव काफ़ी कम है।

भारत में लिंग अनुपात की स्थिति (Situation of Sex Ratio in India)-

हमारे देश में लिंग अनुपात की स्थिति काफ़ी चिन्ताजनक बनी हुई है। वर्ष 2001 के Census के अनुसार देश में 1000 पुरुषों की तुलना में केवल 933 स्त्रियां ही थीं। निम्नलिखित तालिका से हमें लिंग अनुपात की चिन्ताजनक स्थिति के बारे में पता चलेगा :

Class 12 Sociology Solutions Chapter 11 कन्या भ्रूण हत्या तथा घरेलू हिंसा 1im 1

इस तालिका से पता चलता है कि 1901-2001 के 100 वर्षों में आम लिंग अनुपात में कमी आई है। 1971 से 1981 में तथा 1991 से 2001 के दशकों में स्त्रियों की संख्या में चाहे बढ़ोत्तरी हुई है परन्तु बाकी सभी दशकों में स्त्रियों की संख्या में कमी ही आई है। अगर हम 1901 से 2001 के दशकों की तुलना करें तो स्त्रियों की संख्या अथवा लिंग अनुपात काफ़ी कम हुआ है। देश में केरल ही केवल एक ऐसा राज्य है जहां यह अनुपात स्त्रियों के अनुकूल है। केरल में 1000 पुरुषों के लिए 1084 स्त्रियां हैं। पांडिचेरी में यह अनुपात 1000 : 1038 है परन्तु हरियाणा में 877, चण्डीगढ़ में 818 तथा पंजाब में यह 895 है। इस प्रकार हम देख सकते हैं कि हमारे देश में यह कम होता लिंग अनुपात चिन्ता का विषय बना हुआ है।

प्रश्न 2.
कन्या भ्रूण हत्या से आपका क्या अभिप्राय है ? इसके कारण व परिणामों का विस्तार सहित वर्णन करें।
अथवा
कन्या भ्रूण हत्या से क्या अभिप्राय है ? इसके कारणों की व्याख्या करें। (P.S.E.B. 2017)
अथवा
कन्या भ्रूण हत्या क्या है ? इसके प्रभावों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
शब्द कन्या भ्रूण हत्या तीन अलग-अलग शब्दों से मिलकर बना है तथा वह तीन शब्द हैं-कन्या, भ्रूण तथा हत्या। कन्या का अर्थ है स्त्री अथवा लड़की, भ्रूण का अर्थ है माँ के पेट में पल रहा बच्चा जोकि तीन या चार माह का हो तथा हत्या का अर्थ है मारना। इस प्रकार अगर हम कन्या भ्रूण हत्या के शाब्दिक अर्थ को देखें तो इसका अर्थ है माता के गर्भ में ही लड़की को मार देना। असल में कन्या भ्रूण हत्या का संकल्प कुछ समय पहले ही हमारे सामने आया है जब से देश में लिंग अनुपात में चिन्ताजनक कमी आयी है।

कन्या भ्रूण हत्या का अर्थ (Meaning of Female Foeticide) लोगों में कई कारणों के कारण लड़की के स्थान पर लड़के को प्राप्त करने की इच्छा होती है। वह कई प्रकार के ढंग प्रयोग करते हैं ताकि लड़की के स्थान पर लड़के को प्राप्त किया जा सके। जब कोई स्त्री गर्भवती होती है तो पहले तीन-चार माह तक माँ के गर्भ में बच्चा पूर्णतया विकसित नहीं हुआ होता है। इसे अभी भ्रूण का नाम ही दिया जाता है। आजकल ऐसी तकनीकें आ गई हैं जिनसे माता के पेट में ही टेस्ट करके ही पता कर लिया जाता है कि होने वाला बच्चा लड़का है या लड़की। इस टेस्ट को लिंग निर्धारण टेस्ट (Sex Determination Test) कहा जाता है। अगर गर्भ में पल रहा बच्चा लड़का है तो ठीक है परन्तु अगर वह लड़की है तो उसका गर्भपात करवा दिया जाता है अर्थात् माता की कोख में ही लड़की को मार दिया जाता है। इस माता की कोख में लड़की को मारने को ही कन्या भ्रूण हत्या कहते हैं। इस कन्या भ्रूण हत्या के कारण ही देश में लिंग अनुपात दिन-प्रतिदिन कम हो रहा है। सन् 2011 में देश में 1000 लड़कों की तुलना में केवल 943 लड़कियां ही थीं।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि (Historical Background) हमारे देश में लिंग अनुपात की स्थिति काफ़ी चिन्ताजनक बनी हुई है। सन् 2011 के census के अनुसार देश में 1000 लड़कों की तुलना में केवल 943 लड़कियां ही थीं।

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प्राचीन समय से ही यह स्थिति बनी हुई है। प्राचीन समय से ही लड़कियों के जन्म को अच्छा नहीं समझा जाता था। माता-पिता को लगता था कि अगर लड़की पैदा हुई तो उसे बड़ा करने के बाद उसका विवाह करना पड़ेगा तथा बहुत-सा दहेज़ देना पड़ेगा। विवाह के बाद भी बहुत कुछ देना पड़ेगा तथा लड़के वालों के कई प्रकार के नखरे सहन करने पड़ेंगे। इसलिए लड़की पैदा ही न हो परन्तु उस समय प्रौद्योगिकी इतनी विकसित नहीं थी कि जन्म से पहले ही बच्चे का लिंग पता चल जाता। इस कारण लोग बच्चे के जन्म का इन्तज़ार करते थे। बहुत-से स्थानों पर लड़की के पैदा होने की स्थिति में उसे जन्म के समय ही मार दिया जाता था। इस प्रकार शुरू से ही लड़कियों की संख्या कम थी। _

परन्तु आधुनिक समय में बहुत-सी तकनीकें विकसित हो गईं। चाहे यह तकनीकें, जैसे कि अल्ट्रासाऊंड (Ultrasound) विकसित की गई थी ताकि माँ के गर्भ में बच्चे की ठीक स्थिति, उसके विकास का पता चल सके परन्तु लोगों ने इसका ग़लत प्रयोग करना शुरू कर दिया। उन्होंने मां के गर्भ में ही बच्चे के लिंग का पता करना शुरू कर दिया। अगर लड़का हुआ तो ठीक है, परन्तु अगर लड़की है तो गर्भ में ही उसकी हत्या करने के ढंग ढूंढ़ना शुरू कर देते। ठीक इस समय हज़ारों क्लीनिक सामने आए जो कि गर्भपात (Abortion) जैसे ग़लत कार्यों को अन्जाम देते थे। इस प्रकार माता के पेट में ही कन्या भ्रूण हत्या होनी शुरू हो गई। जब सरकार को कम होते लिंग अनुपात की चिंता हुई तो उसने इसके विरुद्ध कानून बनाकर इसे ठीक करने के प्रयास करने शुरू कर दिए।

सरकार की तरफ़ से लिंग निर्धारण का टेस्ट करना गैर-कानूनी करार दे दिया गया तथा गर्भपात को भी गैर-कानूनी करार दे दिया गया। सरकार ने 1994 में Pre-Natal Diagnostic Techniques (Regulation and Prevention of Misuse) Act, 1994 पास किया जिसके अनुसार लिंग निर्धारण का टेस्ट करने वाले को तीन वर्ष कैद के साथ-साथ दस हज़ार रुपये जुर्माना करने का प्रावधान रखा गया। सरकार ने सरकारी डॉक्टरों की टीमें भी बनाईं ताकि वह समयसमय पर अल्ट्रासाऊंड सैंटरों पर छापे मारें ताकि ऐसे ग़लत कार्य करने वालों को सामने लाया जा सके। चाहे इन कठोर प्रयासों के कारण टेस्ट करने तथा गर्भपात करने के केसों में कमी आई है परन्तु चोरी छुपे यह लगातार जारी है। लिंग निर्धारण के टेस्ट भी होते हैं तथा गर्भपात भी होते हैं। यही कारण है कि देश में लिंग अनुपात में कोई बहुत सकारात्मक प्रभाव देखने को नहीं मिला है।

कन्या भ्रूण हत्या के कारण (Causes of Female Foeticide)-जब माता के गर्भ में लिंग निर्धारण करके कन्या भ्रूण को खत्म कर दिया जाता है तो उसे कन्या भ्रूण हत्या का नाम दिया जाता है। यह एक प्रकार की सामाजिक समस्या है जो काफ़ी समय से चली आ रही है। इसके पीछे कोई एक या दो कारण नहीं हैं बल्कि बहुत-से कारण हैं जिनका वर्णन इस प्रकार है-

1. परम्परागत समाज (Traditional Society) कन्या भ्रूण हत्या जैसी समस्या परम्परागत समाजों में अधिक होती है। अगर किसी विकसित देश जैसे कि अमेरिका जापान की परम्परागत समाजों जैसे कि भारत, चीन, पाकिस्तान से तुलना करें तो हम देखेंगे कि लिंग अनुपात परम्परागत समाजों में कम है। इसका कारण यह है कि परम्परागत समाजों में यह प्रवृत्ति होती है कि लोगों को लड़की के स्थान पर लड़के की इच्छा होती है ताकि खानदान आगे बढ़ सके तथा मरने के बाद लड़का चिता को आग दे सके। परम्परागत समाजों की अलग-अलग प्रवृत्तियों के कारण लड़कों की संख्या बढ़ जाती है क्योंकि लोग लड़कियों के ऊपर लड़कों को अधिक महत्त्व देते हैं।

2. लड़का प्राप्त करने की इच्छा (Wish to have a male child)-लोगों में साधारणतया यह इच्छा होती है कि उनके घर में लड़का हो जो वंश को आगे बढ़ा सके तथा मृत्यु के बाद उनकी चिता को आग दे सके। वैसे भी लोगों में लड़का प्राप्त करने की इच्छा होती हैं क्योंकि लड़की के बड़ा होने के बाद उसके विवाह के समय काफ़ी दहेज देना पड़ेगा। विवाह के बाद भी तमाम आयु लड़की के ससुराल वालों को कुछ न कुछ देते रहना ही पड़ता है। इसलिए लोग लड़की नहीं बल्कि लड़का चाहते हैं तथा इसके लिए प्रयास भी करते हैं। वह गर्भपात अर्थात् कन्या भ्रूण हत्या करवाने से भी पीछे नहीं हटते। इस प्रकार लड़का प्राप्त करने की इच्छा कन्या भ्रूण हत्या को बढ़ावा देती है।

3. प्रौद्योगिक विकास (Technological Advances)-प्राचीन समय में लोगों के पास प्रौद्योगिकी की सुविधा उपलब्ध नहीं थी जिस कारण वह लिंग निर्धारण का टैस्ट नहीं करवा सकते थे। उन्हें बच्चे के जन्म तक इन्तज़ार करना ही पड़ता था लड़का है तो ठीक है परन्तु अगर लड़की पैदा होती थी तो उसे जन्म के समय ही मार दिया जाता था। परन्तु समय के साथ-साथ प्रौद्योगिकी विकसित हुई जिससे लिंग निर्धारण करना आसान हो गया। अल्ट्रासाऊंड जैसी मशीनें आ गईं जिससे माँ के गर्भ में तीन-चार माह के बाद ही पता चल जाता है कि गर्भ में पल रहा बच्चा लड़का है अथवा लड़की। इसके साथ ही हज़ारों क्लीनिक तथा नर्सिंग होम सामने आ गए जहाँ गर्भपात होते हैं। वे थोड़े से पैसों के लिए कन्या भ्रूण की माँ के गर्भ में ही हत्या कर देते हैं। नए-नए औज़ार सामने आ गए हैं जिनसे गर्भपात करने का कार्य काफ़ी आसान हो गया है। इस प्रकार प्रौद्योगिक विकास भी कन्या भ्रूण हत्या के लिए काफी हद तक उत्तरदायी है।

4. दहेज (Dowry)-दहेज वह सामान होता है जो लड़की के विवाह के समय उसके माता-पिता, रिश्तेदार इत्यादि उसे देते हैं। प्राचीन समय में लड़की के माता-पिता जो कुछ भी उसे प्यार से देते थे, लड़के वाले उसे विनम्रता से स्वीकार कर लेते थे, परन्तु समय के साथ-साथ इस प्रथा में भी कुरीतियां आ गईं। लड़के वाले अपनी इच्छा से दहेज मांगने लग गए तथा कई प्रकार की मांगें रखने लग गए। कई बार तो लड़की वाले इन मांगों को पूर्ण कर देते हैं, परन्तु बहुत बार वे मांगों को पूर्ण नहीं कर पाते हैं। ऐसी स्थिति में ससुराल वाले लड़की को तंग करते हैं, मारते-पीटते हैं तथा कई केसों में तो मार भी देते हैं। ऐसी स्थिति से डरकर तथा दहेज देने से डर कर लोग यह चाहते हैं कि लड़की हो ही न बल्कि लड़का हो। इस स्थिति में वह कन्या भ्रूण हत्या से भी पीछे नहीं हटते। इस प्रकार दहेज प्रथा भी कई बार कन्या भ्रूण हत्या के लिए उत्तरदायी है।

5. मृत्यु के बाद के संस्कार (Rituals After Death)-हमारे समाज में बहुत-से धर्मों के लोग रहते हैं तथा इन धर्मों में से अधिकतर धर्मों में व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसे जलाने की प्रथा है। धार्मिक शास्त्र यह कहते हैं कि व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसकी चिता को अग्नि उसका बेटा देगा। अगर बेटा चिता को अग्नि नहीं देगा तो उस मरे हुए व्यक्ति को मुक्ति नहीं मिलेगी तथा उसकी आत्मा भटकती ही रहेगी। इसके साथ ही मृत्यु के पश्चात् उसके रिश्तेदारों को बहुतसे संस्कार पूर्ण करने पड़ते हैं जैसे कि श्राद्ध, सालाना इत्यादि। इन सभी संस्कारों को पूर्ण करने के लिए धर्म शास्त्रों के अनुसार पुत्र का होना आवश्यक है। इस कारण ही लोग पुत्रों को अधिक प्राथमिकता देते हैं तथा पुत्र प्राप्त करने के लिए वह माता के गर्भ में ही लड़की को खत्म करवा देते हैं। इस प्रकार संस्कार पूर्ण करने के लिए भी कन्या भ्रूण हत्या को प्रोत्साहन मिलता है।

6. सामाजिक सुरक्षा (Social Protection)-भारतीय समाज एक विकासशील समाज है। यहां चाहे लोगों ने नई तकनीक अपना ली हैं परन्तु उन्होंने नए-नए विचारों को ग्रहण नहीं किया है। उनके विचार वहीं पुराने हैं तथा इन पुराने विचारों के अनुसार बुढ़ापे में पुत्र ही माता-पिता का रखवाला होता है। वह ही माता-पिता की अन्तिम समय तक देखभाल करता है तथा उनकी मृत्यु के पश्चात् वह ही सभी कर्मकाण्ड पूर्ण करता है। अगर व्यक्ति की केवल लड़कियां हों तो वह तो विवाह के पश्चात् अपने ससुराल चली जाएंगी। फिर बुढ़ापे में माता-पिता की देखभाल कौन करेगा तथा मृत्यु के पश्चात् वाले संस्कार कौन पूर्ण करेगा। लोगों को लगता है कि पुत्र के होने से उन्हें सामाजिक सुरक्षा हासिल हो जाएगी। चाहे आजकल के समय में पुत्र दूर-दूर के शहरों में नौकरी करते हैं तथा माता-पिता की मुश्किल के समय उनके साथ नहीं होते परन्तु फिर भी लोगों को पुत्र की इच्छा होती है। इस कारण ही वे कन्या भ्रूण हत्या जैसा ग़लत कार्य भी कर देते हैं।

7. पितृसत्तात्मक समाज (Patriarchal Society) हमारा समाज मुख्यतः पितृ प्रधान समाज है जहाँ घर में पिता की सत्ता ही चलती है। वह ही घर का सारा ध्यान रखता है तथा घर के महत्त्वपूर्ण निर्णय लेता है। इस प्रकार के समाजों में स्त्रियों की स्थिति काफ़ी निम्न होती है तथा सभी कुछ पुरुषों की इच्छा से ही चलता है। इस प्रकार के समाज में अगर स्त्री चाहे भी तो भी कुछ नहीं कर सकती है। पुरुष भी यही चाहते हैं कि घर में बेटा ही हो तथा इस कारण ही वे मादा भ्रूण हत्या करने से भी पीछे नहीं हटते। स्त्रियों को भी पुरुषों की इच्छानुसार ही चलना पड़ता है तथा इस प्रकार का ग़लत कार्य करने के लिए बाध्य होना पड़ता है।

8. स्त्रियों की सहायता (Help by Females)-अगर हम ध्यान से देखें तो कन्या भ्रूण हत्या को आगे बढ़ाने में स्त्रियां भी कम दोषी नहीं हैं। घर की बड़ी बुजुर्ग बेटा होने पर जोर देती है तथा गर्भ में ही कन्या भ्रूण हत्या के लिए दबाव डालती हैं। वह कहती है कि वंश चलाने के लिए पुत्र की आवश्यकता है पुत्री की नहीं। वह इस कार्य के लिए व्यक्ति को प्रोत्साहित करती है। वह यह भूल जाती है कि वह स्वयं भी स्त्री है तथा वह स्वयं ही लड़की को संसार में आने से रोक रही है। बहुत-सी दाईयां, नर्से, डॉक्टर इत्यादि केवल पैसे के लिए इस कार्य में सहायता करते हैं। अगर स्त्रियां अपना यह व्यवहार छोड़ दें तो यह समस्या कम हो सकती है। इस प्रकार स्त्रियों की सहायता भी इस कार्य के लिए उत्तरदायी है।

9. समाज में स्त्रियों की स्थिति (Status of Women in Society) हमारा समाज पितृ प्रधान समाज है जहां स्त्रियों की स्थिति प्राचीन काल से ही निम्न रही थी। शुरू से ही स्त्रियों को पुरुषों की गुलाम समझा जाता था। उनका अपना कोई अस्तित्व नहीं होता था। चाहे आजकल स्त्रियां पढ़-लिख रही हैं, नौकरी कर रही हैं, अपने व्यापार चला रही हैं परन्तु फिर भी उनकी सामाजिक स्थिति पुरुषों से निम्न ही रहती है। उन्हें न चाहते हुए भी पुरुषों का निर्णय मानना ही पड़ता है तथा कन्या भ्रूण हत्या के लिए बाध्य होना ही पड़ता है।

10. धार्मिक संस्कार (Religious Ceremonies) हमारे समाज में धर्म को काफ़ी अधिक महत्त्व दिया जाता है तथा धार्मिक संस्कार पूर्ण करने को भी काफ़ी महत्त्व दिया जाता है। वैसे भी व्यक्ति को अपने जीवन में कई प्रकार के ऋण उतारने पड़ते हैं जैसे कि देव ऋण, ऋषि ऋण, पितृ ऋण इत्यादि। इसके साथ ही उसे अपने जीवन में कई प्रकार के यज्ञ करने आवश्यक होते हैं। धार्मिक ग्रन्थों में लिखा है कि व्यक्ति के ऋण उसका पुत्र उतारेगा तथा यज्ञ भी पुत्र ही करेगा पुत्री नहीं। अगर पुत्र होगा ही नहीं तो उसे जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्ति कौन दिलाएगा। इन सभी धार्मिक संस्कारों के लिए पुत्र का होना आवश्यक है। इस कारण ही वे कन्या भ्रूण हत्या भी कर देते हैं।

कन्या भ्रूण हत्या के परिणाम (Consequences of Female Foeticide) कन्या भ्रूण हत्या की समस्या के कारण हमारे समाज में कई प्रकार के गम्भीर परिणाम सामने आ रहे हैं जिनका वर्णन इस प्रकार है-

1. कम होता लिंग अनुपात (Declining Sex Ratio)-अगर हम पिछले 100 वर्षों के रिकार्ड पर दृष्टि डालें तो हमें पता चलता है कि 1901-2011 के 100 वर्षों में आम लिंग अनुपात में काफ़ी कमी आई है। चाहे 1971-1981 तथा 1991-2001 के दशकों में स्त्रियों की संख्या बढ़ी है परन्तु बाकी सभी दशकों में स्त्रियों की संख्या में कमी आई है। अगर हम 1901 से 2011 के दशकों की तुलना करें स्त्रियों की संख्या या लिंग अनुपात काफ़ी कम हुआ है। देश में केवल केरल ही एक ऐसा राज्य है जहां यह अनुपात स्त्रियों के अनुकूल है। सन् 2011 में केरल में 1000 पुरुषों के पीछे 1084 स्त्रियां थीं। पांडिचेरी में यह अनुपात 1000 : 1038 था परन्तु हरियाणा में यह 1000 : 877, चंडीगढ़ में 1000 : 818 तथा पंजाब में 1000 : 895 था। इस प्रकार हम देख सकते हैं कि कन्या भ्रूण हत्या के कारण कम होता लिंग अनुपात चिंता का विषय बना हुआ है।

2. समाज में असन्तुलन (Imbalance in Society) किसी भी स्थान पर सन्तुलन उस समय कायम रहता है जब दो चीजें समान हों। अगर दोनों चीज़ों में से एक भी कम या अधिक हो तो असन्तुलन उत्पन्न हो जाता है। यह सिद्धान्त यहां पर भी लागू होता है कि अगर समाज में पुरुषों की संख्या बढ़ गई तथा स्त्रियों की संख्या कम हो गई तो समाज में असन्तुलन उत्पन्न हो जाएगा। इस असन्तुलन से समाज में कई प्रकार की समस्याएं जैसे कि स्त्रियों के विरुद्ध अत्याचार इत्यादि बढ़ जाएंगी तथा समाज के विघटित होने का खतरा बढ़ जाएगा। इस प्रकार कन्या भ्रूण हत्या से समाज में असन्तुलन उत्पन्न हो जाएगा।

3. स्त्रियों से हिंसा (Violence against women)-कन्या भ्रूण हत्या से देश में लिंग अनुपात कम हो जाता है जिस कारण स्त्रियों से होने वाली हिंसा बढ़ जाती है। लड़कियों को जन्म से पहले ही मार दिया जाता है, नयी जन्मी बच्चियों को या तो मार दिया जाता है या फिर गाड़ियों, बसों में छोड़ दिया जाता है। बड़ी आयु की स्त्रियों को इसलिए हिंसा का सामना करना पड़ता है क्योंकि उन्होंने पुत्र को नहीं बल्कि पुत्री को जन्म दिया है। लिंग संबंधी हिंसा जैसे कि बलात्कार, अपहरण, वेश्यावृत्ति इत्यादि भी बढ़ जाते हैं तथा स्त्रियों को इनका शिकार होना पड़ता है।

4. बहुपति विवाह (Polyandry)-कन्या भ्रूण हत्या से लिंग अनुपात कम हो जाता है जिससे समाज में असन्तुलन उत्पन्न हो जाता है। स्त्रियों की संख्या कम हो जाती है तथा बहुपति विवाह को प्रोत्साहन मिलता है। समाज में स्त्रियों की संख्या पुरुषों से कम हो जाती है तथा एक स्त्री को दो या दो से अधिक पुरुषों से विवाह करवाना पड़ता है। विशेषतया बहुपति विवाह बढ़ जाते हैं। सभी भाई एक स्त्री के पति बन जाते हैं। इसका स्त्री के स्वास्थ्य पर ग़लत प्रभाव पड़ता है। समाज में नैतिकता की कमी हो जाती है। स्त्रियों की सामाजिक स्थिति निम्न हो जाती है।

5. स्त्रियों की निम्न सामाजिक स्थिति (Lower Social Status of Women)-कम होते लिंग अनुपात से स्त्रियों की सामाजिक स्थिति निम्न हो जाती है। अगर किसी स्त्री को बेटा पैदा नहीं होता केवल लड़कियां ही हो रही हैं तो उसे गर्भपात के लिए बाध्य किया जाता है। इसके बाद उसे पुत्र न पैदा करने के ताने दिए जाते हैं। सामाजिक कुरीतियां तथा सामाजिक संस्थाएं भी इसके लिए कम उत्तरदायी नहीं हैं तथा उनके कारण ही स्त्रियों की सामाजिक स्थिति पर ग़लत प्रभाव पड़ता है।

6. स्वास्थ्य पर ग़लत प्रभाव (Bad Impact on Health)-अगर किसी स्त्री को पुत्र पैदा नहीं होता तो उसे ताने दिए जाते हैं, मारा-पीटा जाता है। गर्भ धारण करने के कुछ समय के पश्चात् लिंग निर्धारण का टैस्ट करवाया जाता है। लड़की होने की स्थिति में उसे गर्भपात के लिए बाध्य किया जाता है। इसका उसके शरीर पर तो ग़लत प्रभाव पड़ता है बल्कि उसकी मानसिक स्थिति पर भी ग़लत प्रभाव पड़ता है।

7. स्त्रियों का व्यापार (Trade of Women)-लिंग अनुपात कम होने की स्थिति में स्त्रियों की खरीद-फरोख्त का कार्य शुरू हो जाता है। स्त्री को विवाह के लिए तथा अपनी वासना को शान्त करने के लिए खरीदा जाता है। स्त्री को तो केवल एक वस्तु ही समझा जाता है।

8. लड़कों का कुँवारे रह जाना (Boys become Unmarried)-अगर समाज में लड़कियां कम हों तथा लड़के बढ़ जाएं तो इसका सबसे ग़लत परिणाम यह निकलता है कि बहुत-से लड़के कुँवारे रह जाते हैं। वह कुँवारे लड़के अपनी जैविक इच्छाओं की पूर्ति के लिए ग़लत कार्य करने को बाध्य हो जाते हैं तथा अपहरण, बलात्कार इत्यादि जैसी घटनाएं हमारे सामने आती हैं।

प्रश्न 3.
कन्या भ्रूण हत्या की समस्या के समाधान के लिए सरकार का क्या योगदान है ?
उत्तर-

  • भारतीय दण्ड संहिता के सैक्शन 312-316 के अनुसार गर्भपात करवाना गैर-कानूनी है। अगर कोई जबरदस्ती गर्भपात करवाता है तो उसके लिए सज़ा का प्रावधान भी है।
  • The Medical Termination of Pregnancy Act 1971 के अनुसार कानून को थोड़ा नर्म किया गया तथा मैडीकल आधार पर, मानवता या किसी अन्य आधार पर गर्भपात की आज्ञा दी गई।
  • कन्या भ्रूण हत्या का मुख्य आधार बच्चे का लिंग निर्धारण है। इसलिए Pre-Natal Diagnostic Techniques (Regulation and Prevention of Misuse) Act, 1994 पास किया गया तथा लिंग निर्धारण करना गैर-कानूनी घोषित कर दिया गया। अगर कोई अल्ट्रा साऊंड सैटर लिंग निर्धारण करेगा तो उसे बंद करने तथा सजा का भी प्रावधान रखा गया।

प्रश्न 4.
कन्या भ्रूण हत्या पर विस्तृत निबंध लिखें।
उत्तर-
शब्द कन्या भ्रूण हत्या तीन अलग-अलग शब्दों से मिलकर बना है तथा वह तीन शब्द हैं-कन्या, भ्रूण तथा हत्या। कन्या का अर्थ है स्त्री अथवा लड़की, भ्रूण का अर्थ है माँ के पेट में पल रहा बच्चा जोकि तीन या चार माह का हो तथा हत्या का अर्थ है मारना। इस प्रकार अगर हम कन्या भ्रूण हत्या के शाब्दिक अर्थ को देखें तो इसका अर्थ है माता के गर्भ में ही लड़की को मार देना। असल में कन्या भ्रूण हत्या का संकल्प कुछ समय पहले ही हमारे सामने आया है जब से देश में लिंग अनुपात में चिन्ताजनक कमी आयी है।

कन्या भ्रूण हत्या का अर्थ (Meaning of Female Foeticide) लोगों में कई कारणों के कारण लड़की के स्थान पर लड़के को प्राप्त करने की इच्छा होती है। वह कई प्रकार के ढंग प्रयोग करते हैं ताकि लड़की के स्थान पर लड़के को प्राप्त किया जा सके। जब कोई स्त्री गर्भवती होती है तो पहले तीन-चार माह तक माँ के गर्भ में बच्चा पूर्णतया विकसित नहीं हुआ होता है। इसे अभी भ्रूण का नाम ही दिया जाता है। आजकल ऐसी तकनीकें आ गई हैं जिनसे माता के पेट में ही टेस्ट करके ही पता कर लिया जाता है कि होने वाला बच्चा लड़का है या लड़की। इस टेस्ट को लिंग निर्धारण टेस्ट (Sex Determination Test) कहा जाता है। अगर गर्भ में पल रहा बच्चा लड़का है तो ठीक है परन्तु अगर वह लड़की है तो उसका गर्भपात करवा दिया जाता है अर्थात् माता की कोख में ही लड़की को मार दिया जाता है। इस माता की कोख में लड़की को मारने को ही कन्या भ्रूण हत्या कहते हैं। इस कन्या भ्रूण हत्या के कारण ही देश में लिंग अनुपात दिन-प्रतिदिन कम हो रहा है। सन् 2011 में देश में 1000 लड़कों की तुलना में केवल 943 लड़कियां ही थीं।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि (Historical Background) हमारे देश में लिंग अनुपात की स्थिति काफ़ी चिन्ताजनक बनी हुई है। सन् 2011 के census के अनुसार देश में 1000 लड़कों की तुलना में केवल 943 लड़कियां ही थीं।

प्राचीन समय से ही यह स्थिति बनी हुई है। प्राचीन समय से ही लड़कियों के जन्म को अच्छा नहीं समझा जाता था। माता-पिता को लगता था कि अगर लड़की पैदा हुई तो उसे बड़ा करने के बाद उसका विवाह करना पड़ेगा तथा बहुत-सा दहेज़ देना पड़ेगा। विवाह के बाद भी बहुत कुछ देना पड़ेगा तथा लड़के वालों के कई प्रकार के नखरे सहन करने पड़ेंगे। इसलिए लड़की पैदा ही न हो परन्तु उस समय प्रौद्योगिकी इतनी विकसित नहीं थी कि जन्म से पहले ही बच्चे का लिंग पता चल जाता। इस कारण लोग बच्चे के जन्म का इन्तज़ार करते थे। बहुत-से स्थानों पर लड़की के पैदा होने की स्थिति में उसे जन्म के समय ही मार दिया जाता था। इस प्रकार शुरू से ही लड़कियों की संख्या कम थी।

परन्तु आधुनिक समय में बहुत-सी तकनीकें विकसित हो गईं। चाहे यह तकनीकें, जैसे कि अल्ट्रासाऊंड (Ultrasound) विकसित की गई थी ताकि माँ के गर्भ में बच्चे की ठीक स्थिति, उसके विकास का पता चल सके परन्तु लोगों ने इसका ग़लत प्रयोग करना शुरू कर दिया। उन्होंने मां के गर्भ में ही बच्चे के लिंग का पता करना शुरू कर दिया। अगर लड़का हुआ तो ठीक है, परन्तु अगर लड़की है तो गर्भ में ही उसकी हत्या करने के ढंग ढूंढ़ना शुरू कर देते। ठीक इस समय हज़ारों क्लीनिक सामने आए जो कि गर्भपात (Abortion) जैसे ग़लत कार्यों को अन्जाम देते थे। इस प्रकार माता के पेट में ही कन्या भ्रूण हत्या होनी शुरू हो गई। जब सरकार को कम होते लिंग अनुपात की चिंता हुई तो उसने इसके विरुद्ध कानून बनाकर इसे ठीक करने के प्रयास करने शुरू कर दिए।

सरकार की तरफ़ से लिंग निर्धारण का टेस्ट करना गैर-कानूनी करार दे दिया गया तथा गर्भपात को भी गैर-कानूनी करार दे दिया गया। सरकार ने 1994 में Pre-Natal Diagnostic Techniques (Regulation and Prevention of Misuse) Act, 1994 पास किया जिसके अनुसार लिंग निर्धारण का टेस्ट करने वाले को तीन वर्ष कैद के साथ-साथ दस हज़ार रुपये जुर्माना करने का प्रावधान रखा गया। सरकार ने सरकारी डॉक्टरों की टीमें भी बनाईं ताकि वह समयसमय पर अल्ट्रासाऊंड सैंटरों पर छापे मारें ताकि ऐसे ग़लत कार्य करने वालों को सामने लाया जा सके। चाहे इन कठोर प्रयासों के कारण टेस्ट करने तथा गर्भपात करने के केसों में कमी आई है परन्तु चोरी छुपे यह लगातार जारी है। लिंग निर्धारण के टेस्ट भी होते हैं तथा गर्भपात भी होते हैं। यही कारण है कि देश में लिंग अनुपात में कोई बहुत सकारात्मक प्रभाव देखने को नहीं मिला है।

कन्या भ्रूण हत्या के कारण (Causes of Female Foeticide)-जब माता के गर्भ में लिंग निर्धारण करके कन्या भ्रूण को खत्म कर दिया जाता है तो उसे कन्या भ्रूण हत्या का नाम दिया जाता है। यह एक प्रकार की सामाजिक समस्या है जो काफ़ी समय से चली आ रही है। इसके पीछे कोई एक या दो कारण नहीं हैं बल्कि बहुत-से कारण हैं जिनका वर्णन इस प्रकार है-

1. परम्परागत समाज (Traditional Society) कन्या भ्रूण हत्या जैसी समस्या परम्परागत समाजों में अधिक होती है। अगर किसी विकसित देश जैसे कि अमेरिका जापान की परम्परागत समाजों जैसे कि भारत, चीन, पाकिस्तान से तुलना करें तो हम देखेंगे कि लिंग अनुपात परम्परागत समाजों में कम है। इसका कारण यह है कि परम्परागत समाजों में यह प्रवृत्ति होती है कि लोगों को लड़की के स्थान पर लड़के की इच्छा होती है ताकि खानदान आगे बढ़ सके तथा मरने के बाद लड़का चिता को आग दे सके। परम्परागत समाजों की अलग-अलग प्रवृत्तियों के कारण लड़कों की संख्या बढ़ जाती है क्योंकि लोग लड़कियों के ऊपर लड़कों को अधिक महत्त्व देते हैं।

2. लड़का प्राप्त करने की इच्छा (Wish to have a male child)-लोगों में साधारणतया यह इच्छा होती है कि उनके घर में लड़का हो जो वंश को आगे बढ़ा सके तथा मृत्यु के बाद उनकी चिता को आग दे सके। वैसे भी लोगों में लड़का प्राप्त करने की इच्छा होती हैं क्योंकि लड़की के बड़ा होने के बाद उसके विवाह के समय काफ़ी दहेज देना पड़ेगा। विवाह के बाद भी तमाम आयु लड़की के ससुराल वालों को कुछ न कुछ देते रहना ही पड़ता है। इसलिए लोग लड़की नहीं बल्कि लड़का चाहते हैं तथा इसके लिए प्रयास भी करते हैं। वह गर्भपात अर्थात् कन्या भ्रूण हत्या करवाने से भी पीछे नहीं हटते। इस प्रकार लड़का प्राप्त करने की इच्छा कन्या भ्रूण हत्या को बढ़ावा देती है।

3. प्रौद्योगिक विकास (Technological Advances)-प्राचीन समय में लोगों के पास प्रौद्योगिकी की सुविधा उपलब्ध नहीं थी जिस कारण वह लिंग निर्धारण का टैस्ट नहीं करवा सकते थे। उन्हें बच्चे के जन्म तक इन्तज़ार करना ही पड़ता था लड़का है तो ठीक है परन्तु अगर लड़की पैदा होती थी तो उसे जन्म के समय ही मार दिया जाता था। परन्तु समय के साथ-साथ प्रौद्योगिकी विकसित हुई जिससे लिंग निर्धारण करना आसान हो गया। अल्ट्रासाऊंड जैसी मशीनें आ गईं जिससे माँ के गर्भ में तीन-चार माह के बाद ही पता चल जाता है कि गर्भ में पल रहा बच्चा लड़का है अथवा लड़की। इसके साथ ही हज़ारों क्लीनिक तथा नर्सिंग होम सामने आ गए जहाँ गर्भपात होते हैं। वे थोड़े से पैसों के लिए कन्या भ्रूण की माँ के गर्भ में ही हत्या कर देते हैं। नए-नए औज़ार सामने आ गए हैं जिनसे गर्भपात करने का कार्य काफ़ी आसान हो गया है। इस प्रकार प्रौद्योगिक विकास भी कन्या भ्रूण हत्या के लिए काफी हद तक उत्तरदायी है।

4. दहेज (Dowry)-दहेज वह सामान होता है जो लड़की के विवाह के समय उसके माता-पिता, रिश्तेदार इत्यादि उसे देते हैं। प्राचीन समय में लड़की के माता-पिता जो कुछ भी उसे प्यार से देते थे, लड़के वाले उसे विनम्रता से स्वीकार कर लेते थे, परन्तु समय के साथ-साथ इस प्रथा में भी कुरीतियां आ गईं। लड़के वाले अपनी इच्छा से दहेज मांगने लग गए तथा कई प्रकार की मांगें रखने लग गए। कई बार तो लड़की वाले इन मांगों को पूर्ण कर देते हैं, परन्तु बहुत बार वे मांगों को पूर्ण नहीं कर पाते हैं। ऐसी स्थिति में ससुराल वाले लड़की को तंग करते हैं, मारते-पीटते हैं तथा कई केसों में तो मार भी देते हैं। ऐसी स्थिति से डरकर तथा दहेज देने से डर कर लोग यह चाहते हैं कि लड़की हो ही न बल्कि लड़का हो। इस स्थिति में वह कन्या भ्रूण हत्या से भी पीछे नहीं हटते। इस प्रकार दहेज प्रथा भी कई बार कन्या भ्रूण हत्या के लिए उत्तरदायी है।

5. मृत्यु के बाद के संस्कार (Rituals After Death)-हमारे समाज में बहुत-से धर्मों के लोग रहते हैं तथा इन धर्मों में से अधिकतर धर्मों में व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसे जलाने की प्रथा है। धार्मिक शास्त्र यह कहते हैं कि व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसकी चिता को अग्नि उसका बेटा देगा। अगर बेटा चिता को अग्नि नहीं देगा तो उस मरे हुए व्यक्ति को मुक्ति नहीं मिलेगी तथा उसकी आत्मा भटकती ही रहेगी। इसके साथ ही मृत्यु के पश्चात् उसके रिश्तेदारों को बहुतसे संस्कार पूर्ण करने पड़ते हैं जैसे कि श्राद्ध, सालाना इत्यादि। इन सभी संस्कारों को पूर्ण करने के लिए धर्म शास्त्रों के अनुसार पुत्र का होना आवश्यक है। इस कारण ही लोग पुत्रों को अधिक प्राथमिकता देते हैं तथा पुत्र प्राप्त करने के लिए वह माता के गर्भ में ही लड़की को खत्म करवा देते हैं। इस प्रकार संस्कार पूर्ण करने के लिए भी कन्या भ्रूण हत्या को प्रोत्साहन मिलता है।

6. सामाजिक सुरक्षा (Social Protection)-भारतीय समाज एक विकासशील समाज है। यहां चाहे लोगों ने नई तकनीक अपना ली हैं परन्तु उन्होंने नए-नए विचारों को ग्रहण नहीं किया है। उनके विचार वहीं पुराने हैं तथा इन पुराने विचारों के अनुसार बुढ़ापे में पुत्र ही माता-पिता का रखवाला होता है। वह ही माता-पिता की अन्तिम समय तक देखभाल करता है तथा उनकी मृत्यु के पश्चात् वह ही सभी कर्मकाण्ड पूर्ण करता है। अगर व्यक्ति की केवल लड़कियां हों तो वह तो विवाह के पश्चात् अपने ससुराल चली जाएंगी। फिर बुढ़ापे में माता-पिता की देखभाल कौन करेगा तथा मृत्यु के पश्चात् वाले संस्कार कौन पूर्ण करेगा। लोगों को लगता है कि पुत्र के होने से उन्हें सामाजिक सुरक्षा हासिल हो जाएगी। चाहे आजकल के समय में पुत्र दूर-दूर के शहरों में नौकरी करते हैं तथा माता-पिता की मुश्किल के समय उनके साथ नहीं होते परन्तु फिर भी लोगों को पुत्र की इच्छा होती है। इस कारण ही वे कन्या भ्रूण हत्या जैसा ग़लत कार्य भी कर देते हैं।

7. पितृसत्तात्मक समाज (Patriarchal Society) हमारा समाज मुख्यतः पितृ प्रधान समाज है जहाँ घर में पिता की सत्ता ही चलती है। वह ही घर का सारा ध्यान रखता है तथा घर के महत्त्वपूर्ण निर्णय लेता है। इस प्रकार के समाजों में स्त्रियों की स्थिति काफ़ी निम्न होती है तथा सभी कुछ पुरुषों की इच्छा से ही चलता है। इस प्रकार के समाज में अगर स्त्री चाहे भी तो भी कुछ नहीं कर सकती है। पुरुष भी यही चाहते हैं कि घर में बेटा ही हो तथा इस कारण ही वे मादा भ्रूण हत्या करने से भी पीछे नहीं हटते। स्त्रियों को भी पुरुषों की इच्छानुसार ही चलना पड़ता है तथा इस प्रकार का ग़लत कार्य करने के लिए बाध्य होना पड़ता है।

8. स्त्रियों की सहायता (Help by Females)-अगर हम ध्यान से देखें तो कन्या भ्रूण हत्या को आगे बढ़ाने में स्त्रियां भी कम दोषी नहीं हैं। घर की बड़ी बुजुर्ग बेटा होने पर जोर देती है तथा गर्भ में ही कन्या भ्रूण हत्या के लिए दबाव डालती हैं। वह कहती है कि वंश चलाने के लिए पुत्र की आवश्यकता है पुत्री की नहीं। वह इस कार्य के लिए व्यक्ति को प्रोत्साहित करती है। वह यह भूल जाती है कि वह स्वयं भी स्त्री है तथा वह स्वयं ही लड़की को संसार में आने से रोक रही है। बहुत-सी दाईयां, नर्से, डॉक्टर इत्यादि केवल पैसे के लिए इस कार्य में सहायता करते हैं। अगर स्त्रियां अपना यह व्यवहार छोड़ दें तो यह समस्या कम हो सकती है। इस प्रकार स्त्रियों की सहायता भी इस कार्य के लिए उत्तरदायी है।

PSEB 12th Class Sociology Solutions PSEB 12th Class Sociology Solutions Chapter 11 कन्या भ्रूण हत्या तथा घरेलू हिंसा

9. समाज में स्त्रियों की स्थिति (Status of Women in Society) हमारा समाज पितृ प्रधान समाज है जहां स्त्रियों की स्थिति प्राचीन काल से ही निम्न रही थी। शुरू से ही स्त्रियों को पुरुषों की गुलाम समझा जाता था। उनका अपना कोई अस्तित्व नहीं होता था। चाहे आजकल स्त्रियां पढ़-लिख रही हैं, नौकरी कर रही हैं, अपने व्यापार चला रही हैं परन्तु फिर भी उनकी सामाजिक स्थिति पुरुषों से निम्न ही रहती है। उन्हें न चाहते हुए भी पुरुषों का निर्णय मानना ही पड़ता है तथा कन्या भ्रूण हत्या के लिए बाध्य होना ही पड़ता है।

10. धार्मिक संस्कार (Religious Ceremonies) हमारे समाज में धर्म को काफ़ी अधिक महत्त्व दिया जाता है तथा धार्मिक संस्कार पूर्ण करने को भी काफ़ी महत्त्व दिया जाता है। वैसे भी व्यक्ति को अपने जीवन में कई प्रकार के ऋण उतारने पड़ते हैं जैसे कि देव ऋण, ऋषि ऋण, पितृ ऋण इत्यादि। इसके साथ ही उसे अपने जीवन में कई प्रकार के यज्ञ करने आवश्यक होते हैं। धार्मिक ग्रन्थों में लिखा है कि व्यक्ति के ऋण उसका पुत्र उतारेगा तथा यज्ञ भी पुत्र ही करेगा पुत्री नहीं। अगर पुत्र होगा ही नहीं तो उसे जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्ति कौन दिलाएगा। इन सभी धार्मिक संस्कारों के लिए पुत्र का होना आवश्यक है। इस कारण ही वे कन्या भ्रूण हत्या भी कर देते हैं।

कन्या भ्रूण हत्या के परिणाम (Consequences of Female Foeticide) कन्या भ्रूण हत्या की समस्या के कारण हमारे समाज में कई प्रकार के गम्भीर परिणाम सामने आ रहे हैं जिनका वर्णन इस प्रकार है-

1. कम होता लिंग अनुपात (Declining Sex Ratio)-अगर हम पिछले 100 वर्षों के रिकार्ड पर दृष्टि डालें तो हमें पता चलता है कि 1901-2011 के 100 वर्षों में आम लिंग अनुपात में काफ़ी कमी आई है। चाहे 1971-1981 तथा 1991-2001 के दशकों में स्त्रियों की संख्या बढ़ी है परन्तु बाकी सभी दशकों में स्त्रियों की संख्या में कमी आई है। अगर हम 1901 से 2011 के दशकों की तुलना करें स्त्रियों की संख्या या लिंग अनुपात काफ़ी कम हुआ है। देश में केवल केरल ही एक ऐसा राज्य है जहां यह अनुपात स्त्रियों के अनुकूल है। सन् 2011 में केरल में 1000 पुरुषों के पीछे 1084 स्त्रियां थीं। पांडिचेरी में यह अनुपात 1000 : 1038 था परन्तु हरियाणा में यह 1000 : 877, चंडीगढ़ में 1000 : 818 तथा पंजाब में 1000 : 895 था। इस प्रकार हम देख सकते हैं कि कन्या भ्रूण हत्या के कारण कम होता लिंग अनुपात चिंता का विषय बना हुआ है।

2. समाज में असन्तुलन (Imbalance in Society) किसी भी स्थान पर सन्तुलन उस समय कायम रहता है जब दो चीजें समान हों। अगर दोनों चीज़ों में से एक भी कम या अधिक हो तो असन्तुलन उत्पन्न हो जाता है। यह सिद्धान्त यहां पर भी लागू होता है कि अगर समाज में पुरुषों की संख्या बढ़ गई तथा स्त्रियों की संख्या कम हो गई तो समाज में असन्तुलन उत्पन्न हो जाएगा। इस असन्तुलन से समाज में कई प्रकार की समस्याएं जैसे कि स्त्रियों के विरुद्ध अत्याचार इत्यादि बढ़ जाएंगी तथा समाज के विघटित होने का खतरा बढ़ जाएगा। इस प्रकार कन्या भ्रूण हत्या से समाज में असन्तुलन उत्पन्न हो जाएगा।

3. स्त्रियों से हिंसा (Violence against women)-कन्या भ्रूण हत्या से देश में लिंग अनुपात कम हो जाता है जिस कारण स्त्रियों से होने वाली हिंसा बढ़ जाती है। लड़कियों को जन्म से पहले ही मार दिया जाता है, नयी जन्मी बच्चियों को या तो मार दिया जाता है या फिर गाड़ियों, बसों में छोड़ दिया जाता है। बड़ी आयु की स्त्रियों को इसलिए हिंसा का सामना करना पड़ता है क्योंकि उन्होंने पुत्र को नहीं बल्कि पुत्री को जन्म दिया है। लिंग संबंधी हिंसा जैसे कि बलात्कार, अपहरण, वेश्यावृत्ति इत्यादि भी बढ़ जाते हैं तथा स्त्रियों को इनका शिकार होना पड़ता है।

4. बहुपति विवाह (Polyandry)-कन्या भ्रूण हत्या से लिंग अनुपात कम हो जाता है जिससे समाज में असन्तुलन उत्पन्न हो जाता है। स्त्रियों की संख्या कम हो जाती है तथा बहुपति विवाह को प्रोत्साहन मिलता है। समाज में स्त्रियों की संख्या पुरुषों से कम हो जाती है तथा एक स्त्री को दो या दो से अधिक पुरुषों से विवाह करवाना पड़ता है। विशेषतया बहुपति विवाह बढ़ जाते हैं। सभी भाई एक स्त्री के पति बन जाते हैं। इसका स्त्री के स्वास्थ्य पर ग़लत प्रभाव पड़ता है। समाज में नैतिकता की कमी हो जाती है। स्त्रियों की सामाजिक स्थिति निम्न हो जाती है।

5. स्त्रियों की निम्न सामाजिक स्थिति (Lower Social Status of Women)-कम होते लिंग अनुपात से स्त्रियों की सामाजिक स्थिति निम्न हो जाती है। अगर किसी स्त्री को बेटा पैदा नहीं होता केवल लड़कियां ही हो रही हैं तो उसे गर्भपात के लिए बाध्य किया जाता है। इसके बाद उसे पुत्र न पैदा करने के ताने दिए जाते हैं। सामाजिक कुरीतियां तथा सामाजिक संस्थाएं भी इसके लिए कम उत्तरदायी नहीं हैं तथा उनके कारण ही स्त्रियों की सामाजिक स्थिति पर ग़लत प्रभाव पड़ता है।

6. स्वास्थ्य पर ग़लत प्रभाव (Bad Impact on Health)-अगर किसी स्त्री को पुत्र पैदा नहीं होता तो उसे ताने दिए जाते हैं, मारा-पीटा जाता है। गर्भ धारण करने के कुछ समय के पश्चात् लिंग निर्धारण का टैस्ट करवाया जाता है। लड़की होने की स्थिति में उसे गर्भपात के लिए बाध्य किया जाता है। इसका उसके शरीर पर तो ग़लत प्रभाव पड़ता है बल्कि उसकी मानसिक स्थिति पर भी ग़लत प्रभाव पड़ता है।

7. स्त्रियों का व्यापार (Trade of Women)-लिंग अनुपात कम होने की स्थिति में स्त्रियों की खरीद-फरोख्त का कार्य शुरू हो जाता है। स्त्री को विवाह के लिए तथा अपनी वासना को शान्त करने के लिए खरीदा जाता है। स्त्री को तो केवल एक वस्तु ही समझा जाता है।

8. लड़कों का कुँवारे रह जाना (Boys become Unmarried)-अगर समाज में लड़कियां कम हों तथा लड़के बढ़ जाएं तो इसका सबसे ग़लत परिणाम यह निकलता है कि बहुत-से लड़के कुँवारे रह जाते हैं। वह कुँवारे लड़के अपनी जैविक इच्छाओं की पूर्ति के लिए ग़लत कार्य करने को बाध्य हो जाते हैं तथा अपहरण, बलात्कार इत्यादि जैसी घटनाएं हमारे सामने आती हैं।

प्रश्न 5.
आप कन्या भ्रूण हत्या से क्या समझते हैं ? इस समस्या के हल के विभिन्न कदमों की चर्चा करें।
उत्तर-
कन्या भ्रूण हत्या का अर्थ :

कन्या भ्रूण हत्या के परिणाम (Consequences of Female Foeticide) कन्या भ्रूण हत्या की समस्या के कारण हमारे समाज में कई प्रकार के गम्भीर परिणाम सामने आ रहे हैं जिनका वर्णन इस प्रकार है-

1. कम होता लिंग अनुपात (Declining Sex Ratio)-अगर हम पिछले 100 वर्षों के रिकार्ड पर दृष्टि डालें तो हमें पता चलता है कि 1901-2011 के 100 वर्षों में आम लिंग अनुपात में काफ़ी कमी आई है। चाहे 1971-1981 तथा 1991-2001 के दशकों में स्त्रियों की संख्या बढ़ी है परन्तु बाकी सभी दशकों में स्त्रियों की संख्या में कमी आई है। अगर हम 1901 से 2011 के दशकों की तुलना करें स्त्रियों की संख्या या लिंग अनुपात काफ़ी कम हुआ है। देश में केवल केरल ही एक ऐसा राज्य है जहां यह अनुपात स्त्रियों के अनुकूल है। सन् 2011 में केरल में 1000 पुरुषों के पीछे 1084 स्त्रियां थीं। पांडिचेरी में यह अनुपात 1000 : 1038 था परन्तु हरियाणा में यह 1000 : 877, चंडीगढ़ में 1000 : 818 तथा पंजाब में 1000 : 895 था। इस प्रकार हम देख सकते हैं कि कन्या भ्रूण हत्या के कारण कम होता लिंग अनुपात चिंता का विषय बना हुआ है।

2. समाज में असन्तुलन (Imbalance in Society) किसी भी स्थान पर सन्तुलन उस समय कायम रहता है जब दो चीजें समान हों। अगर दोनों चीज़ों में से एक भी कम या अधिक हो तो असन्तुलन उत्पन्न हो जाता है। यह सिद्धान्त यहां पर भी लागू होता है कि अगर समाज में पुरुषों की संख्या बढ़ गई तथा स्त्रियों की संख्या कम हो गई तो समाज में असन्तुलन उत्पन्न हो जाएगा। इस असन्तुलन से समाज में कई प्रकार की समस्याएं जैसे कि स्त्रियों के विरुद्ध अत्याचार इत्यादि बढ़ जाएंगी तथा समाज के विघटित होने का खतरा बढ़ जाएगा। इस प्रकार कन्या भ्रूण हत्या से समाज में असन्तुलन उत्पन्न हो जाएगा।

3. स्त्रियों से हिंसा (Violence against women)-कन्या भ्रूण हत्या से देश में लिंग अनुपात कम हो जाता है जिस कारण स्त्रियों से होने वाली हिंसा बढ़ जाती है। लड़कियों को जन्म से पहले ही मार दिया जाता है, नयी जन्मी बच्चियों को या तो मार दिया जाता है या फिर गाड़ियों, बसों में छोड़ दिया जाता है। बड़ी आयु की स्त्रियों को इसलिए हिंसा का सामना करना पड़ता है क्योंकि उन्होंने पुत्र को नहीं बल्कि पुत्री को जन्म दिया है। लिंग संबंधी हिंसा जैसे कि बलात्कार, अपहरण, वेश्यावृत्ति इत्यादि भी बढ़ जाते हैं तथा स्त्रियों को इनका शिकार होना पड़ता है।

4. बहुपति विवाह (Polyandry)-कन्या भ्रूण हत्या से लिंग अनुपात कम हो जाता है जिससे समाज में असन्तुलन उत्पन्न हो जाता है। स्त्रियों की संख्या कम हो जाती है तथा बहुपति विवाह को प्रोत्साहन मिलता है। समाज में स्त्रियों की संख्या पुरुषों से कम हो जाती है तथा एक स्त्री को दो या दो से अधिक पुरुषों से विवाह करवाना पड़ता है। विशेषतया बहुपति विवाह बढ़ जाते हैं। सभी भाई एक स्त्री के पति बन जाते हैं। इसका स्त्री के स्वास्थ्य पर ग़लत प्रभाव पड़ता है। समाज में नैतिकता की कमी हो जाती है। स्त्रियों की सामाजिक स्थिति निम्न हो जाती है।

5. स्त्रियों की निम्न सामाजिक स्थिति (Lower Social Status of Women)-कम होते लिंग अनुपात से स्त्रियों की सामाजिक स्थिति निम्न हो जाती है। अगर किसी स्त्री को बेटा पैदा नहीं होता केवल लड़कियां ही हो रही हैं तो उसे गर्भपात के लिए बाध्य किया जाता है। इसके बाद उसे पुत्र न पैदा करने के ताने दिए जाते हैं। सामाजिक कुरीतियां तथा सामाजिक संस्थाएं भी इसके लिए कम उत्तरदायी नहीं हैं तथा उनके कारण ही स्त्रियों की सामाजिक स्थिति पर ग़लत प्रभाव पड़ता है।

6. स्वास्थ्य पर ग़लत प्रभाव (Bad Impact on Health)-अगर किसी स्त्री को पुत्र पैदा नहीं होता तो उसे ताने दिए जाते हैं, मारा-पीटा जाता है। गर्भ धारण करने के कुछ समय के पश्चात् लिंग निर्धारण का टैस्ट करवाया जाता है। लड़की होने की स्थिति में उसे गर्भपात के लिए बाध्य किया जाता है। इसका उसके शरीर पर तो ग़लत प्रभाव पड़ता है बल्कि उसकी मानसिक स्थिति पर भी ग़लत प्रभाव पड़ता है।

7. स्त्रियों का व्यापार (Trade of Women)-लिंग अनुपात कम होने की स्थिति में स्त्रियों की खरीद-फरोख्त का कार्य शुरू हो जाता है। स्त्री को विवाह के लिए तथा अपनी वासना को शान्त करने के लिए खरीदा जाता है। स्त्री को तो केवल एक वस्तु ही समझा जाता है।

8. लड़कों का कुँवारे रह जाना (Boys become Unmarried)-अगर समाज में लड़कियां कम हों तथा लड़के बढ़ जाएं तो इसका सबसे ग़लत परिणाम यह निकलता है कि बहुत-से लड़के कुँवारे रह जाते हैं। वह कुँवारे लड़के अपनी जैविक इच्छाओं की पूर्ति के लिए ग़लत कार्य करने को बाध्य हो जाते हैं तथा अपहरण, बलात्कार इत्यादि जैसी घटनाएं हमारे सामने आती हैं।

समस्या के हल के विभिन्न कदम :

  • भारतीय दण्ड संहिता के सैक्शन 312-316 के अनुसार गर्भपात करवाना गैर-कानूनी है। अगर कोई जबरदस्ती गर्भपात करवाता है तो उसके लिए सज़ा का प्रावधान भी है।
  • The Medical Termination of Pregnancy Act 1971 के अनुसार कानून को थोड़ा नर्म किया गया तथा मैडीकल आधार पर, मानवता या किसी अन्य आधार पर गर्भपात की आज्ञा दी गई।
  • कन्या भ्रूण हत्या का मुख्य आधार बच्चे का लिंग निर्धारण है। इसलिए Pre-Natal Diagnostic Techniques (Regulation and Prevention of Misuse) Act, 1994 पास किया गया तथा लिंग निर्धारण करना गैर-कानूनी घोषित कर दिया गया। अगर कोई अल्ट्रा साऊंड सैटर लिंग निर्धारण करेगा तो उसे बंद करने तथा सजा का भी प्रावधान रखा गया।

प्रश्न 6.
घरेलू हिंसा पर विस्तार सहित टिप्पणी करें।
अथवा
घरेलू हिंसा क्या है ?
उत्तर-
20वीं शताब्दी के अन्तिम दशकों में पारिवारिक हिंसा की तरफ समाजशास्त्रीय आकर्षित हुए हैं। भारतीय समाज में पारिवारिक हिंसा की धारणा कोई नई धारणा नहीं है। यह तो सदियों पुरानी धारणा है जिसकी तरफ समाजशास्त्रियों का ध्यान अब गया है। ऐसा नहीं है कि प्राचीन समाजों में पारिवारिक हिंसा नहीं होती थी। पारिवारिक हिंसा तो प्रत्येक प्रकार के समाज में मौजूद रही है। इसके साथ हिंसक घटनाएं यहां तक कि मौतें भी होती रही हैं। परन्तु इस संकल्प के बारे में हमारे पास काफ़ी कम जानकारी इसलिए है क्योंकि घरेलू हिंसा के आंकड़े हमारे पास बहुत ही कम हैं तथा इसके बारे में बहुत ही कम अनुसन्धान हुए हैं। इन अनुसन्धानों से कोई भी निष्कर्ष निकालने भी बहुत मुश्किल हैं क्योंकि पारिवारिक हिंसा के बारे में लोग साधारणतया जानकारी देना पसन्द नहीं करते। इस प्रकार पारिवारिक हिंसा के बारे में हमारे पास बहुत कम जानकारी है। इसका एक और कारण यह भी है कि भारत में परिवार से सम्बन्धित जितने भी अनुसन्धान हुए हैं, वह संयुक्त परिवार की संरचना या ढांचे या फिर केन्द्रीय परिवार की संरचना और ढांचे के सम्बन्ध में हुए हैं। पारिवारिक हिंसा की तरफ किसी ने भी ध्यान नहीं दिया है।

इसका एक और कारण यह भी है कि लोग यह सोचते हैं कि घरेलू हिंसा के बारे में किसी अजनबी को बताने से परिवार टूट जाएगा या फिर परिवार में टकराव बढ़ जाएगा। इस कारण लोग पारिवारिक हिंसा के बारे में किसी को कुछ नहीं बताते हैं। पारिवारिक हिंसा के बारे में अनुसन्धान इस कारण भी कम हुए हैं क्योंकि परिवार के जिस वर्ग पर हिंसा हो रही होती है उसका समाज में अभी भी महत्त्व काफ़ी कम है तथा वह वर्ग है स्त्रियां तथा बच्चे। चाहे जितना मर्जी हमारा शहरी समाज आगे बढ़ रहा है परन्तु ग्रामीण समाज अभी भी वहीं पर खड़ा है जहां पर आज से 50 साल पहले था। स्त्रियों तथा बच्चों को अभी भी समाज में वह स्थान प्राप्त नहीं है जोकि होना चाहिए। यहां तक कि समाज भी इसे समस्या नहीं मानता है। समाज इस समस्या के अस्तित्व से ही इन्कार करता है तथा कहता है कि यह तो समस्या ही नहीं है। पारिवारिक हिंसा को केवल व्यक्तिगत मनोरोग का लक्षण माना जाता है। बहुत-से इतिहासकार भी इसको समस्या नहीं मानते क्योंकि उनके अनुसार पारिवारिक हिंसा परिवार का एक व्यक्तिगत मामला है। इसलिए इसको परिवार अथवा घर के लिए छोड़ देना चाहिए।

PSEB 12th Class Sociology Solutions PSEB 12th Class Sociology Solutions Chapter 11 कन्या भ्रूण हत्या तथा घरेलू हिंसा

यह ठीक है कि स्वतन्त्रता के पश्चात् पारिवारिक हिंसा को रोकने के लिए कम-से-कम सरकार ने कुछ कानूनों का निर्माण किया है ताकि परिवार में प्यार, सहयोग, हमदर्दी तथा आपसी समझ को बढ़ाया जा सके। बच्चों तथा स्त्रियों के विरुद्ध हिंसा करने वाले के विरुद्ध हमारे कानूनों में कठोर सज़ा का प्रावधान है। परन्तु यह विषय समाजशास्त्र के लिए एक महत्त्वपूर्ण विषय है क्योंकि समाजशास्त्र ने तो परिवार अथवा पारिवारिक जीवन के अच्छे और सकारात्मक पक्ष को ही पेश किया है परन्तु उसने पारिवारिक हिंसा के नकारात्मक पक्ष को पेश नहीं किया है।

यदि किसी भी सामाजिक प्रणाली का निर्माण होता है तो वह जोड़ने तथा तोड़ने वाली प्रक्रियाओं का परिणाम होता है। इस प्रकार पारिवारिक जीवन में भी नकारात्मक तथा सकारात्मक पहलुओं का मिश्रण होता है। पारिवारिक जीवन के दो व्यक्तियों के अनुभव अलग-अलग भी हो सकते हैं तथा साधारणतया होते भी हैं। जिस व्यक्ति के पारिवारिक जीवन में कोई समस्या नहीं होती उसका पारिवारिक जीवन खुशियों से भरपूर होता है। परन्तु जिस व्यक्ति के पारिवारिक जीवन में समस्याएं होती हैं उसके पारिवारिक जीवन में काफ़ी दुःख होते हैं। घरेलू जीवन में परिवार के सदस्यों में नज़दीकी होती है तथा यह नज़दीकी आपसी निर्भरता के कारण भी होती है। इस निर्भरता के कारण ही सदस्यों के विचारों में विरोध तथा विलक्षणता पैदा होती है। इस विलक्षणता के कारण आपसी टकराव भी पैदा होता है। एक लेखक के अनुसार जिन परिवारों में टकराव अधिक होते हैं तथा टकराव को दूर करने के लिए अधिक तर्क प्रयोग किए जाते हैं उन परिवारों में हिंसा भी अधिक होती है। परिवार में हमेशा एक जैसी स्थिति नहीं होती है। पारिवारिक जीवन हमेशा खुशियों तथा दुःखों में लटकता रहता है। पारिवारिक जीवन में आम राय तथा टकराव चलते रहते हैं। इस टकराव के कारण कई बार हिंसा भी हो जाती है तथा कई बार इस हिंसा के कारण मृत्यु भी हो जाती है.।

हमारे देश में पारिवारिक हिंसा के बहुत ही कम आंकड़े मौजूद हैं। साधारणतया अनुसन्धानकर्ता घर में होने वाली शारीरिक हिंसा की तरफ ही ध्यान देते हैं। वह मानसिक हिंसा की तरफ तो देखते ही नहीं हैं। मानसिक हिंसा अधिक खतरनाक होती है क्योंकि इसका प्रभाव तमाम उम्र रहता है। परन्तु फिर भी पारिवारिक हिंसा की व्याख्या सही ढंग से नहीं की गई है। इस कारण इसके प्रति हमारा ज्ञान काफ़ी सीमित है।

पारिवारिक हिंसा की परिभाषाएं (Definitions of Domestic Violence)–

पारिवारिक हिंसा एक जटिल धारणा है। इसको परिभाषित करना काफी मुश्किल है क्योंकि हिंसा एक विस्तृत शब्द है जिसमें गाली-गलौच से लेकर चांटा तथा कत्ल तक के संकल्प शामिल हो जाते हैं। इसके अतिरिक्त हिंसा तथा धक्के के अर्थ एक जैसे ही लिए जाते हैं। हिंसा साधारणतया एक शारीरिक कार्यवाही है जबकि धक्का घृणा से भरपूर क्रिया है जिसमें दूसरे व्यक्ति को नुकसान पहुंचाया जाता है। यह नुकसान न केवल शारीरिक बल्कि मानसिक भी हो सकता है। पारिवारिक हिंसा के बारे में हुए अनुसन्धानों से हमें यह पता चला है कि हम जायज़ तथा नाजायज़ कार्यवाही को अलग नहीं कर सकते क्योंकि हिंसा का शिकार होने वाले लोग इन नाजायज़ कार्यों को स्वीकार करके जायज़ बना देते हैं।

जैलज़ (Gelles) के अनुसार, “धक्का मारना, चांटा मारना, मुक्का मारना, चाकू मारना, गोली मारना तथा परिवार के एक सदस्य की तरफ से दूसरे की तरफ चीजें फेंकना जैसी रोज़, बेरोज़ की एक प्रकार की बार-बार की जाने वाली हिंसा पारिवारिक हिंसा है।” पेजलो (Pagelow) के अनुसार, “परिवार के सदस्यों द्वारा की जाने वाली अथवा नज़रअन्दाज़ करने की कोई ऐसी कार्यवाही है तथा ऐसी कार्यवाहियों के परिणामस्वरूप पैदा होने वाली कोई भी ऐसी स्थिति है जो परिवार के बाकी सदस्यों को समान अधिकारों तथा स्वतन्त्रताओं से वंचित करती है या उनके सम्पूर्ण विकास तथा चुनाव की स्वतन्त्रता में विघ्न डालती है।”

इस प्रकार पारिवारिक हिंसा शारीरिक हमले तक ही सीमित नहीं होती बल्कि मानसिक तौर पर प्रताड़ित करने से लेकर स्वतन्त्रता छीनने तक फैली होती है। यह पारिवारिक रिश्तों में बार-बार होती है। पारिवारिक हिंसा का दायरा परिवार में गाली-गलौच से लेकर बल के प्रयोग तक फैला हुआ है। इसमें पति-पत्नी, बहन-भाई, चाचे-ताये, दादा-पोत्र इत्यादि का टकराव शामिल है। इस प्रकार पारिवारिक हिंसा ऐसी कार्यवाही है जिसमें परिवार का कोई सदस्य परिवार के दूसरे सदस्य को चोट पहुंचाने के इरादे से करे अथवा उसका इस तरह करने का इरादा हो। चाहे हमारे समाजों में हिंसा आमतौर पर होती रहती है तथा हिंसा अपने आप में कोई विशेष चीज़ नहीं है परन्तु जब हिंसा को परिवार के सदस्यों के विरुद्ध प्रयोग किया जाता है तो इसका विश्लेषण तथा व्याख्या आवश्यक हो जाते हैं। पारिवारिक हिंसा के बहुत से प्रकार हो सकते हैं जैसे पति अथवा पत्नी का एक-दूसरे से दुर्व्यवहार, वैवाहिक बलात्कार, भाई का बहन-से या पिता का पुत्री से बलात्कार, बहन-भाई में हिंसा, पिता-पुत्र में झगड़ा, देवरानी-जेठानी में झगड़ा, सास तथा पुत्र-वधु में हिंसा, सास द्वारा पुत्रवधु को मारना, ननद द्वारा भाभी से हिंसा इत्यादि। यह बात साधारणतया मानी जाती है कि यदि हिंसा अथवा हमला किसी और स्थिति में होता है तो ऐसे हमले को गम्भीर माना जाता है। परन्तु यदि वह हिंसा पारिवारिक स्तर पर हो तो उसको पारिवारिक गड़बड़ (Family problem) अथवा छोटा मोटा अपराध मान लिया जाता है।

प्रश्न 7.
घरेलू हिंसा के कारणों की विस्तार सहित टिप्पणी करें।
अथवा
घरेलू हिंसा के क्या कारण हैं? चर्चा करें।
उत्तर–
पारिवारिक हिंसा केवल एक कारण के कारण नहीं होती बल्कि कई कारणों के कारण होती है जिनका वर्णन निम्नलिखित है_-

1. सामाजिक परिवर्तन (Social Change)-परिवर्तन प्रकृति का नियम है तथा परिवार और समाज भी इस अछूते नहीं हैं। परिवार, घर तथा समाज में भी भौगोलिक तथा सांस्कृतिक प्रभावों के कारण परिवर्तन आते रहते हैं। शहरीकरण, औद्योगिकीकरण, नई तथा औपचारिक शिक्षा व्यवस्था, यातायात तथा संचार के साधनों ने प्राचीन प्रकार के रिश्तों में बहुत बड़ा परिवर्तन ला दिया है। व्यक्ति को कार्य प्राप्त करने के नए मौके प्राप्त हुए जिस कारण परिवार के सदस्य रिश्तों के पुराने जाल को छोड़ने के लिए बाध्य हुए। नई पीढ़ी ने संयुक्त परिवारों के स्थान पर केन्द्रीय परिवारों को महत्त्व दिया जो एक जगह से दूसरी जगह पर जा सकें। अकेले रहने के कारण उन पर किसी प्रकार के बुजुर्ग का नियन्त्रण न रहा। दफ़्तर की परेशानियां, घर चलाने की परेशानियां जब व्यक्ति से सहन नहीं होती हैं तो वह अपना गुस्सा अपने परिवार में पत्नी तथा बच्चों पर निकालता है जिस कारण पारिवारिक हिंसा बढ़ती है।

2. मद्यपान (Alcoholism)—साधारणतया यह देखने में आया है कि व्यक्ति अपनी परेशानियों को दूर करने के लिए अथवा मौज-मस्ती के लिए शराब पीते हैं। वह जब बाहर से मद्यपान करके घर पहुंचते हैं तो उसकी पत्नी, बच्चे, माता-पिता, बहन-भाई उसको शराब न पीने के लिए कहते हैं तथा उसको मद्यपान की हानियों के बारे में बताते हैं। कई बार तो व्यक्ति चुप करके उनकी बात सुन लेता है। परन्तु कई बार परेशानी के कारण वह गुस्से में आ जाता है तथा घर के सदस्यों पर हाथ उठा देता है। गालियां निकालता है तथा यहां तक कि मारपीट भी करता है। उसको लगता है कि उसके घर वाले उसकी परेशानी और बढ़ा रहे हैं। इस प्रकार मद्यपान करने के बाद उसे होश ही नहीं रहता कि वह क्या कर रहा है। उसका दिमाग बुरी तरह नशे में चूर होता है तथा उसको इस बात का ध्यान ही नहीं होता कि वह क्या कर रहा है। इस प्रकार मद्यपान से भी पारिवारिक हिंसा बढ़ती है।

3. बचपन का दुर्व्यवहार (Misbehaviour of Childhood)-कई विद्वान् यह कहते हैं कि कई व्यक्तियों से बचपन में उनके माता-पिता ने काफ़ी दुर्व्यवहार किया होता है। उनका सारा बचपन दुर्व्यवहार, माता-पिता की डांट, बिना प्यार के ही व्यतीत होता है। कई व्यक्तियों का स्वभाव इस कारण ही बेरुखा हो जाता है तथा बालिग होने पर वह अपने माता-पिता, पत्नी तथा बच्चों से दुर्व्यवहार करते हैं। कई व्यक्ति तो अपने बचपन की बातें अपने दिल में पालकर रखते हैं तथा बड़े होने पर अपने माता-पिता तथा बच्चों से दुर्व्यवहार (शारीरिक तथा मानसिक) करते हैं। इस प्रकार व्यक्ति का बचपन भी कई बार घरेलू हिंसा के लिए उत्तरदायी होता है।

4. मादक द्रव्यों का व्यसन (Drug Abuse)-आजकल बाज़ार में ऐसी दवाएं मौजूद हैं जिनके सेवन करने से व्यक्ति को नशा हो जाता है जैसे कि कैप्सूल, टीके, पीने की दवा इत्यादि। चाहे डॉक्टर उन्हें बीमारी से ठीक होने के लिए दवा देता है परन्तु कई बार व्यक्ति उनका सेवन नशे के लिए करने लग जाता है। जब व्यक्ति इनका सेवन कर लेता है तो उसको इस बात का ध्यान ही नहीं रहता कि वह क्या कर रहा है। वह घर वालों से जाकर दुर्व्यवहार करता है। यहां तक कि मारता भी है। इस तरह यदि उसके पास दवा खरीदने के लिए पैसे न हों तो वह घर वालों से पैसे प्राप्त करने के लिए गाली-गलौच करता है, मार पिटाई करता है ताकि उसको नशा करने के लिए पैसे मिल जाएं। इस तरह नशे के लिए पैसे प्राप्त करने के लिए भी वह पारिवारिक हिंसा करता है।

5. व्यक्तित्व में समस्या (Problem of Personality)-कई बार व्यक्तित्व में समस्या या नुक्स भी पारिवारिक हिंसा का कारण बनता है। कई व्यक्ति प्राकृतिक तौर पर ही गुस्से वाले होते हैं तथा घर में हुई छोटी-छोटी बात पर भी गुस्सा कर देते हैं। उदाहरण के तौर पर किसी परिवार में भतीजे की छोटी-सी गलती पर चाचा, ताया ही उसे पीट देते हैं। इसके अतिरिक्त कुछ लोग शक्की स्वभाव के होते हैं। पत्नी के व्यवहार, बच्चों के व्यवहार, बहन के व्यवहार पर शक करके उनको पीट देते हैं। उदाहरण के तौर पर यदि बच्चे, भाई, बहन, भतीजा किसी से टेलीफोन पर बात करते हैं तो वे पूछते हैं कि किससे बात कर रहे हो ? क्यों कर रहो हो इत्यादि। ठीक उत्तर न मिलने पर वे उनको पीटते हैं। इस प्रकार व्यक्तित्व का नुक्स भी पारिवारिक हिंसा का कारण बनता है।

6. कम आय (Less Income)-आजकल महंगाई का समय है परन्तु प्रत्येक व्यक्ति की आय लगभग बंधी हुई होती है। घर का खर्च अधिक होता है परन्तु आय कम होती है। व्यक्ति के ऊपर हमेशा आर्थिक तंगी रहती है। इस कारण वह घर का खर्च ठीक प्रकार से नहीं चला सकता है तथा हमेशा तनाव में रहता है। पत्नी, बच्चे तथा घर के और सदस्य उससे चीज़ों की मांग करते हैं परन्तु वह दे नहीं सकता है। इस कारण वह तनाव अथवा गुस्से में आकर उन पर हाथ उठा देता है तथा हिंसा अपने आप ही हो जाती है। इस प्रकार व्यक्ति की कम आय भी पारिवारिक हिंसा का कारण बनती है।

7. बेरोज़गारी (Unemployment)-कई बार बेरोज़गारी भी पारिवारिक हिंसा का कारण बनती है। कई बार ऐसा होता है कि व्यक्ति का व्यापार ठप्प हो जाता है, नौकरी चली जाती है या काम काफ़ी कम हो जाता है। इस स्थिति में या तो वह बेरोजगार हो जाता है या फिर अर्द्ध बेरोज़गार हो जाता है। इस समय व्यक्ति खिन्न हो जाता है या दुःखी रहने लग जाता है। वह अपनी खिन्नता अथवा गुस्सा परिवार के सदस्यों पर निकालता है जिस कारण पारिवारिक हिंसा बढ़ जाती है।

8. हिंसा करने का सामर्थ्य (Capacity to do Violence)-कई बार परिवार के सदस्य हिंसा उस समय करते हैं जब व्यक्ति के हिंसक होने की कीमत उसके परिणाम से कम देनी पड़ती है। दूसरे शब्दों में लोग अपने परिवार के बाकी सदस्यों को इसलिए मारते हैं क्योंकि वे ऐसा कर सकते हैं। मर्द साधारणतया अपनी पत्नी तथा बच्चों से ताकतवर होता है। इसलिए वह उन पर हिंसक गतिविधियों का प्रयोग करता है। आमतौर पर घर के बाहर सामाजिक नियन्त्रण को कम करने के लिए तथा निजीपन, असमानता तथा असली मनुष्य के अक्स जैसे हिंसक होने के परिणामों को बढ़ाने के लिए तीन मुख्य कारण उत्तरदायी होते हैं। समाज तथा परिवार में आमतौर पर लैंगिक आधार पर तथा आयु के आधार पर असमानता होती है। इस कारण परिवार में असमानता बढ़ जाती है। लैंगिक तौर पर शक्तिशाली लिंग तथा बड़ी आयु होने के कारण व्यक्ति हिंसा करता है तथा घरेलू हिंसा में बढ़ोत्तरी होती है।

9. हितों का टकराव (Clash of Interests)-भगवान ने प्रत्येक व्यक्ति की प्रकृति को अलग-अलग बनाया है तथा उसके अनुसार प्रत्येक व्यक्ति के हित भी अलग-अलग होते हैं। कोई व्यक्ति अधिक पढ़ना चाहता है, कोई अधिक पैसे कमाना चाहता है। इस प्रकार परिवार के प्रत्येक सदस्य का हित अलग-अलग होता है। पिता-पुत्र, चाचा-भतीजा, बहन-भाई, चाचा-ताया, दादा-पोत्र इत्यादि प्रत्येक व्यक्ति के हित अलग-अलग होते हैं। इस कारण ही प्रत्येक के हितों का टकराव भी होता है। परिवार का प्रत्येक सदस्य चाहता है कि उसके पास पारिवारिक सम्पत्ति का अधिक-से-अधिक हिस्सा आ जाए। इस कारण उनमें विरोध तथा गतिरोध पैदा हो जाते हैं। एक ही घर में रहते हए भाई-भाई से बोलना बंद कर देता है, पिता-पुत्र में तकरार पैदा हो जाती है। यहां तक कि सम्पत्ति के कारण एक-दूसरे को मारने तक की नौबत आ जाती है। हर रोज़ समाचार-पत्रों में सम्पत्ति के कारण पारिवारिक हिंसा की खबरें पढ़ने को मिलती हैं जैसे पुत्र ने पिता को मार दिया, भाई ने भाई को मार दिया, भतीजे ने चाचा को मार दिया इत्यादि। इस प्रकार व्यक्तिगत हित भी पारिवारिक हिंसा के कारण बनते हैं।

10. पुरुष प्रधान समाज (Male Dominated Society) हमारा समाज पुरुष प्रधान समाज है जिस कारण स्त्रियों को परिवार तथा समाज में काफ़ी निम्न दर्जा दिया गया है। इस प्रकार स्त्रियों के ऊपर हिंसा का कारण पुरुषों की तुलना में उनकी निम्न स्थिति में से निकलता है। किसी भी पुरुष प्रधान पारिवारिक व्यवस्था में नज़दीक के सम्बन्धों में शक्ति का विभाजन पुरुष के हाथों में होता है। समाजीकरण की प्रक्रिया भी स्त्रियों को पुरुषों के अधीन बनाती है। दोनों में यह असमानता सदियों से चलती आ रही है। जितनी अधिक असमानता होगी उतनी अधिक निम्न व्यक्ति के विरुद्ध हिंसा होगी। इसके अतिरिक्त यदि निम्न व्यक्ति (स्त्री) अपने विरोधी की सत्ता को चुनौती देगा तो उस चुनौती को दबाने के लिए और हिंसा का प्रयोग किया जाएगा। ___ 11. निर्भरता (Dependency) साधारणतया परिवार में पुरुष पैसे कमाते हैं तथा बाकी सभी व्यक्ति जीवन जीने के लिए उस पर निर्भर होते हैं। इसलिए पुरुष को लगता है कि जो जीवन बाकी लोग जी रहे हैं उस पर उसका अधिकार है। इसलिए वह जैसे चाहे उनके जीवन को बदल सकता है। यदि परिवार के सदस्य (माता-पिता, पत्नी, बच्चे) उसके विचारों के अनुसार जीवन जीते हैं तो ठीक है नहीं तो हिंसा का प्रयोग करके उनको वह जीवन जीने के लिए बाध्य किया जाता है जोकि वह व्यक्ति चाहता है। इस प्रकार निर्भरता भी पारिवारिक हिंसा को बढ़ाती है।

प्रश्न 8.
घरेलू हिंसा पर नियंत्रण पर विस्तार से टिप्पणी करें।
अथवा
घरेलू हिंसा की समस्या के सुधार के समाधान के लिए उपाय बताएं।
उत्तर–
पारिवारिक हिंसा कोई नई क्रिया नहीं है। यह प्राचीन समाजों में भी होती थी। उस समय परिवार अपने यदि सदस्य को मानसिक, शारीरिक तथा सामाजिक सुरक्षा प्रदान करता था। परन्तु अब परिवार विशेषतया संयुक्त परिवार में परिवर्तन आ रहे हैं। यह परिवर्तन परिवार के बड़े बुजुर्गों की भूमिका में हुआ है। पति-पत्नी के सम्बन्धों में तनाव पैदा हो रहा है, छोटे सदस्यों को अधिक अधिकार प्राप्त हो रहे हैं। अब बड़ों का सम्मान कम हो गया है। उनको अब लाभदायक नहीं बल्कि बेकार समझा जाता है तथा इस कारण उनसे दुर्व्यवहार के केस बढ़ रहे हैं। इस कारण ही मातापिता के बच्चों से सम्बन्ध कमज़ोर पड़ रहे हैं। बढ़ रहे तलाकों की संख्या से पता चलता है कि पति-पत्नी के सम्बन्ध कमज़ोर हो रहे हैं तथा पारिवारिक संरचना धीरे-धीरे खत्म हो रही है। संयुक्त परिवार की धारणा तो आने वाले समय में बिल्कुल ही खत्म हो जाएगी।

इस प्रकार पारिवारिक हिंसा को खत्म करने के लिए तथा हिंसा के शिकार लोगों का जीवन बचाने के लिए यह आवश्यक है कि इसको रोका जाए तथा इसका इलाज किया जाए परन्तु इसके इलाज में हम अपनी संस्कृति को नहीं बदल सकते। इसलिए इसका इलाज रोकथाम है। रोकथाम की नीतियों का मुख्य उद्देश्य पारिवारिक हिंसा को रोकना है। सबसे पहले हमें हमारी कद्रों-कीमतों, व्यवहार, प्रकृति को परिवर्तित करना आवश्यक है जिससे हमारा अन्य लोगों को देखने का दृष्टिकोण ही बदल जाएगा।

लैंगिक असमानता, आर्थिक असमानता तथा निर्भरता भी पारिवारिक हिंसा को बढ़ाती है। यदि नौकरी पेशा स्त्रियों तथा पुरुषों के बीच का अन्तर खत्म कर दिया जाए तो पारिवारिक हिंसा को काफ़ी हद तक खत्म किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त बच्चों को मार से नहीं बल्कि प्यार से समझाना चाहिए। हिंसा प्रतिहिंसा को जन्म देती है। जो व्यवस्था हिंसा से स्थापित की जाएगी उसका अन्त भी हिंसा से ही होगा। यदि हम बच्चे को मार से समझाएंगे तो इससे उसके शरीर पर नहीं बल्कि मन पर असर पड़ेगा। वह उस मार को भूलेगा नहीं तथा समय आने पर माता-पिता को वही रूप दिखाएगा जो माता-पिता ने उसे दिखाया था। यदि हम बच्चों को प्यार से शिक्षा देंगे तो शायद यह पारिवारिक हिंसा को खत्म करने की तरफ एक महत्त्वपूर्ण कदम होगा क्योंकि प्यार से ही प्यार का जन्म होता है।

प्रश्न 9.
पत्नी की मारपीट (प्रताड़ना) से क्या अभिप्राय है ? इसके रोकने के लिए क्या उपाय हैं ?
उत्तर-
पत्नी की मारपीट केवल हमारे देश में ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण विश्व में चल रही एक बहुत बड़ी समस्या है। वास्तव में हमारे समाज पुरुष प्रधान समाज हैं तथा ऐसे समाजों की सबसे बड़ी कमी है कि यहां पत्नी के साथ मारपीट होती है। पत्नी को मारपीट का अर्थ है पत्नी की तरफ से पत्नी के विरुद्ध हिंसा का प्रयोग करना। वास्तव में पति समझते हैं कि उनकी पत्नी उनकी गुलाम है तथा वे जो भी कहेंगे पत्नी को वह सब कुछ करना पड़ेगा।

हमारा समाज पुरुष प्रधान समाज है तथा पुरुष यह सोचते हैं कि उनका अपनी पत्नी पर पूर्ण अधिकार है। वह पत्नी के साथ जैसा चाहे व्यवहार कर सकता है। पुरुष साधारणतया स्त्री से शक्तिशाली होते हैं जिस कारण भी वे पत्नी के विरुद्ध हिंसक हो जाते हैं। समाज तथा परिवार में लिंग के आधार पर असमानता होती है जिस कारण परिवार में असमानता बढ़ जाती है तथा लैंगिक तौर पर ताकतवर लिंग हिंसा करता है तथा पत्नी को पीटता है।

अब समय बदल रहा है तथा स्त्रियां पढ़-लिख रही हैं। वे नौकरियां कर रही हैं, व्यापार कर रही हैं तथा अपने पति के कार्य में साथ देती हैं। वे पुरुषों के कंधे से कंधा मिला कर चलती हैं। इस कारण वे पुरुषों के समान सामाजिक स्थिति की माँग करती हैं। परन्तु पुरुष प्रधान मानसिकता होने के कारण पुरुष इसके लिए तैयार नहीं होते तथा दोनों में अंतर आना शुरू हो जाता है। छोटी-छोटी बातों पर लड़ाई होती है तथा बात हाथापाई तक पहुँच जाती है। पुरुष शक्तिशाली होने के कारण पत्नी की पिटाई कर देते हैं जिसे पत्नी की मारपीट कहा जाता है।

पत्नी की मारपीट आजकल हमारे समाज में एक बड़ी समस्या बन कर उभर रही है। पति का शराब पीना, पत्नी पर शक करना, पत्नी का आर्थिक तौर पर निर्भर होना, पतियों की ग़लत हरकतों को नज़र-अंदाज न करना इत्यादि ऐसे कारण हैं जिनकी वजह से दोनों के बीच गलतफ़हमी हो जाती है तथा पति-पत्नी पर हाथ उठा देते हैं। इन बातों को आजकल की पढ़ी-लिखी स्त्री बर्दाश्त नहीं करती जिस कारण बात तलाक तक पहुँच जाती है। पति के हाथों पिटाई खाकर जीवन जीने से वह तलाक लेकर अलग रहना पसंद करती हैं।

रोकने के उपाय :-

  1. इस समस्या का समाधान उस समय तक नहीं हो सकता जब तक लोग अपनी मानसिकता नहीं बदलते। अब वह समय नहीं रहा कि पति अपनी पत्नी को गुलाम समझें। अब पढ़ी-लिखी तथा आर्थिक तौर पर आत्म निर्भर पत्नी समान अधिकारों की माँग करती है तथा न मिलने की स्थिति में तलाक लेकर रहना पसंद करती हैं। अब वह पिटाई बर्दाश्त नहीं करती तथा अलग हो जाती हैं। इसलिए सबसे पहले यह आवश्यक है कि लोग अपनी मानसिकता बदलें तथा स्त्रियों को समान अधिकार दें।
  2. सरकार ने स्त्रियों के लिए कई कानून बनाए हुए हैं परन्तु वह कानून ठीक ढंग से लागू नहीं हुए हैं। अगर हम इस समस्या को खत्म करना चाहते हैं तो इन कानूनों को कठोरता से लागू करना पड़ेगा तथा पत्नी से मारपीट करने वालों को कठोर सज़ा दी जाए ताकि यह लोगों के लिए मिसाल बन सके।
  3. स्वयं सेवी संस्थाएं इसमें महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं। इस मुद्दे को लेकर नुक्कड़ नाटक करवाए जा सकते हैं, सैमीनार करवाए जा सकते हैं ताकि लोगों को वह कार्य न करने के लिए प्रेरित किया जा सके।

अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न : (OTHER IMPORTANT QUESTIONS)

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न

A. बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
कन्या भ्रूण हत्या क्यों की जाती है ?
(क) लड़का प्राप्त करने की इच्छा
(ख). दहेज बचाने के लिए
(ग) खानदान आगे बढ़ाने के लिए
(घ) उपर्युक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपर्युक्त सभी।।

प्रश्न 2.
गर्भधारण के कितने हफ्ते बाद लिंग निर्धारण परीक्षण करवाया जाता है ?
(क) 10 हफ्ते
(ख) 14 हफ्ते
(ग) 18 हफ्ते
(घ) 22 हफ्ते।
उत्तर-
(ग) 18 हफ्ते।

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प्रश्न 3.
भारत का लिंग अनुपात कितना है ?
(क) 1000 : 943
(ख) 1000 : 956
(ग) 1000 : 896
(घ) 1000 : 933.
उत्तर-
(क) 1000 : 943.

प्रश्न 4.
2011 की जनगणना के अनुसार पंजाब का लिंग अनुपात कितना था ?
(क) 1000 : 846
(ख) 1000 : 895
(ग) 1000 : 876
(घ) 1000 : 882.
उत्तर-
(ख) 1000 : 895.

प्रश्न 5.
पंजाब के किस जिले का लिंग अनुपात सबसे अधिक है ?
(क) लुधियाना
(ख) पटियाला
(ग) अमृतसर
(घ) होशियारपुर।
उत्तर-
(घ) होशियारपुर।

प्रश्न 6.
पंजाब के किस जिले का लिंग अनुपात सबसे कम है ?
(क) पटियाला
(ख) बठिण्डा
(ग) अमृतसर
(घ) लुधियाना।
उत्तर-
(ख) बठिण्डा।

प्रश्न 7.
Pre-Natal Diagnostic Techniques (Prohibition of Sex Selection) अधिनियम कब पास हुआ था ?
(क) 1994
(ख) 1995
(ग) 1996
(घ) 1997.
उत्तर-
(क) 1994.

प्रश्न 8.
लिंग अनुपात से भाव है :
(क) 1000 स्त्रियों के पीछे पुरुषों की संख्या
(ख) 1000 पुरुषों के पीछे स्त्रियों की संख्या
(ग) 100 स्त्रियों के पीछे पुरुषों की संख्या
(घ) उपर्युक्त से कोई नहीं।
उत्तर-
(ख) 1000 पुरुषों के पीछे स्त्रियों की संख्या।

B. रिक्त स्थान भरें-

1. कन्या भ्रूण हत्या में लड़की को माँ की में ही मार दिया जाता है।
2. ……………….. प्राप्त करने की इच्छा कन्या भ्रूण हत्या का सबसे बड़ा कारण है।
3. कन्या भ्रूण हत्या से …………………… बिगड़ जाता है।
4. भारतीय दण्ड संहिता के सैक्शन ………………… से ……………… गर्भपात करना गैर-कानूनी है।
5. …………………… में घर के सदस्यों से मारपीट की जाती है।
उत्तर-

  1. कोख
  2. लड़का
  3. लिंग अनुपात
  4. 316, 320
  5. घरेलू हिंसा।

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C. सही/ग़लत पर निशान लगाएं

1. भारत में पंजाब का लिंग अनुपात सबसे अधिक है।
2. पंजाब के बठिण्डा जिले का लिंग अनुपात सबसे कम है।
3. बच्चे का जन्म से पहले लिंग निर्धारण करना गैर-कानूनी है।
4. स्त्रियों के विरुद्ध सबसे अधिक घरेलू हिंसा होती है।
5. स्त्रियों के विरुद्ध मानसिक हिंसा नहीं होती है।
उत्तर-

  1. सही
  2. ग़लत
  3. सही
  4. सही
  5. ग़लत।

II. एक शब्द/एक पंक्ति वाले प्रश्न उत्तर

प्रश्न 1. स्त्रियों के विरुद्ध अपराध का क्या अर्थ है ?
उत्तर- इसका अर्थ है कि स्त्रियों पर शारीरिक व मानसिक अत्याचार।

प्रश्न 2. स्त्रियों के विरुद्ध अपराध की कुछ उदाहरण दें।
उत्तर-बलात्कार, यौन अपराध, अपहरण, मारना-पीटना, वेश्यावृत्ति इत्यादि।

प्रश्न 3. कन्या भ्रूण हत्या का क्या अर्थ है ?
उत्तर- बच्चे का लिंग पता करके लड़की को माँ की कोख में ही मार देना कन्या भ्रूण हत्या होता है।

प्रश्न 4. गर्भधारण के कितने हफ्ते बाद गर्भपात करवा दिया जाता है ?
उत्तर-18 हफ्ते बाद।

प्रश्न 5. लिंग अनुपात का क्या अर्थ है ?
उत्तर-किसी क्षेत्र में 1000 पुरुषों के पीछे स्त्रियों की संख्या।

प्रश्न 6. 2011 में भारत का लिंग अनुपात कितना था ?
उत्तर-2011 में भारत का लिंग अनुपात 1000 : 943 था।

प्रश्न 7. 2011 में पंजाब का लिंग अनुपात कितना था ?
उत्तर-2011 में पंजाब का लिंग अनुपात 1000 : 895 था।

प्रश्न 8. पंजाब के कौन-से जिलों में लिंग अनुपात सबसे कम व अधिक है ?
उत्तर-बठिण्डा (869) तथा होशियारपुर (961)।

प्रश्न 9. कन्या भ्रूण हत्या का एक कारण बताएं।
उत्तर-लड़का प्राप्त करने की इच्छा तथा दहेज का इंतजाम करना।

प्रश्न 10. कन्या भ्रूण हत्या का एक परिणाम बताएं।
उत्तर-स्त्री के स्वास्थ्य पर गलत प्रभाव तथा लिंग अनुपात में कमी आना।

प्रश्न 11. घरेलू हिंसा का क्या अर्थ है ?
उत्तर-पत्नी या बच्चों को मारना घरेलू हिंसा है।

प्रश्न 12. घरेलू हिंसा के प्रकार बताएं।
उत्तर-शारीरिक हिंसा, यौन हिंसा, भावनात्मक हिंसा तथा जुबानी बदसलूकी।

प्रश्न 13. पत्नी की पिटाई का सबसे आम कारण क्या है ?
उत्तर-दहेज के सामान से असंतुष्टि तथा पत्नी से झगड़ा।

प्रश्न 14. घरेलू हिंसा का सबसे आम प्रकार कौन-सा है ?
उत्तर-पत्नी को पीटना व स्त्रियों के विरुद्ध हिंसा।

III. अति लघु उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
कन्या भ्रूण हत्या।
उत्तर-
लोगों में लड़का प्राप्त करने की इच्छा होती है जिस कारण वे अपनी पत्नी के गर्भवती होने पर उसका लिंग निर्धारण परीक्षण करवाते हैं। लड़की होने की स्थिति में उसे माँ की कोख में ही मार दिया जाता है तथा इसे ही कन्या भ्रूण हत्या कहते हैं।

प्रश्न 2.
लिंग अनुपात।
उत्तर-
किसी विशेष क्षेत्र में किसी विशेष समय पर 1000 पुरुषों के पीछे स्त्रियों की संख्या को लिंग अनुपात का नाम दिया जाता है। लिंग अनुपात देख कर ही देश में स्त्रियों की स्थिति का पता चल जाता है। भारत में 2011 में लिंग अनुपात 1000 : 943 था।

प्रश्न 3.
कन्या भ्रूण हत्या के कारण।
उत्तर-

  • लोगों में लड़का प्राप्त करने की इच्छा होती है जिस कारण वे कन्या भ्रूण हत्या करते हैं।
  • लड़की को विवाह के समय दहेज देना पड़ता है। इससे बचने के लिए भी लोग यह काम करते हैं।

प्रश्न 4.
कन्या भ्रूण हत्या के परिणाम।
उत्तर-

  • इससे लिंग अनुपात बिगड़ जाता है व लड़कियों की कमी हो जाती है।
  • इस कारण स्त्रियों के विरुद्ध अपराध बढ़ जाते हैं।
  • समाज में स्त्रियों की स्थिति निम्न हो जाती है।

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IV. लघु उत्तरात्मक प्रश्न-

प्रश्न 1.
कन्या भ्रूण हत्या।
उत्तर-
लोगों में कई कारणों के कारण लड़की के स्थान पर लड़के को प्राप्त करने की इच्छा होती है। वे कई ढंगों का प्रयोग करते हैं ताकि लड़की के स्थान पर लड़के को प्राप्त किया जा सके। जब कोई स्त्री गर्भवती होती है तो पहले तीन-चार माह तक माँ के गर्भ में बच्चा पूर्णतया विकसित नहीं हुआ होता है। इसे अभी भी भ्रूण ही कहा जाता है। आजकल ऐसी मशीनें आ गई हैं जिनसे माता के पेट में ही टैस्ट करके पता कर लिया जाता है कि होने वाला बच्चा लड़का है या लड़की। अगर गर्भ में पल रहा बच्चा लड़का है तो ठीक है परन्तु लड़की है तो उसका गर्भपात करवा दिया जाता है अर्थात् माता की कोख में ही लड़की को मार दिया जाता है। इसे ही कन्या भ्रूण हत्या कहते हैं।

प्रश्न 2.
कन्या भ्रूण हत्या के कारण।
उत्तर-

  • लड़का प्राप्त करने की इच्छा कन्या भ्रूण हत्या को जन्म देती है।
  • तकनीकी सुविधाओं के बढ़ने के कारण अब गर्भ में ही बच्चे के लिंग का पता कर लिया जाता है जिस कारण लोग कन्या भ्रूण हत्या की तरफ़ बढ़े हैं।
  • लड़की के बड़े होने पर उसे दहेज देना पड़ता है तथा लड़का होने पर दहेज लाता है। यह कारण भी लोगों को कन्या भ्रूण हत्या करने के लिए प्रेरित करता है।
  • यह कहा जाता है कि मृत्यु के बाद व्यक्ति का दाह संस्कार तथा और संस्कार बेटा ही पूर्ण करता है। इस कारण भी लोग लड़का प्राप्त करना चाहते हैं।
  • लड़कों से यह आशा की जाती है कि वे बुढ़ापे में अपने माता-पिता की देखभाल करेंगे तथा लडकियां विवाह के बाद अपने ससुराल चली जाएंगी। इस सामाजिक सुरक्षा की इच्छा के कारण भी लोग लड़का चाहते हैं।

प्रश्न 3.
कन्या भ्रूण हत्या के परिणाम।
उत्तर-

  • कन्या भ्रूण हत्या के कारण समाज में लिंग अनुपात कम होना शुरू हो जाता है। भारत में यह 1000 : 940
  • कम होते लिंग अनुपात के कारण समाज में असन्तुलन बढ़ जाता है क्योंकि पुरुषों की संख्या बढ़ जाती है तथा स्त्रियों की संख्या कम हो जाती है।
  • इस कारण स्त्रियों के विरुद्ध हिंसा भी बढ़ जाती है। अपहरण, बलात्कार, छेड़छाड़ इत्यादि जैसी घटनाएं भी बढ़ जाती हैं।
  • कन्या भ्रूण हत्या के कारण स्त्रियों की सामाजिक स्थिति और निम्न हो जाती है क्योंकि स्त्री ही स्त्री की दुश्मन हो जाती है।
  • कन्या भ्रूण हत्या का स्त्री के स्वास्थ्य पर ग़लत प्रभाव पड़ता है क्योंकि गर्भपात का उसके स्वास्थ्य पर असर तो पड़ेगा ही।

प्रश्न 4.
लिंग अनुपात।
उत्तर-
अगर हम साधारण शब्दों में देखें तो 1000 पुरुषों के पीछे स्त्रियों की संख्या को लिंग अनुपात कहा जाता है। इसका अर्थ यह है कि किसी विशेष क्षेत्र में 1000 पुरुषों के पीछे कितनी स्त्रियां हैं, इसे ही लिंग अनुपात कहते हैं। लिंग अनुपात शब्द का संबंध किसी भी देश की जनसंख्या से संबंधित जनसंख्यात्मक लक्षणों से हैं तथा देश की जनसंख्या के बारे में पता करने के लिए लिंग अनुपात का पता होना आवश्यक है। 2011 में भारत में लिंग अनुपात 1000 : 943 था।

प्रश्न 5.
कम होते लिंग अनुपात के कारण।
उत्तर-

  • लड़का प्राप्त करने की इच्छा का होना।
  • कन्या भ्रूण हत्या का बढ़ना।
  • लड़कियों को जन्म के बाद मार देने की प्रथा।
  • पुरुषों का एक स्थान से प्रवास कर जाना।
  • परम्परागत समाजों की प्रवृत्ति के कारण।

प्रश्न 6.
कम होते लिंग अनुपात के परिणाम।
उत्तर-

  • स्त्रियों के साथ हिंसा का बढ़ना।
  • बहुपति विवाह प्रथा का बढ़ना।
  • स्त्रियों की सामाजिक स्थिति का निम्न होना।
  • स्त्रियों के स्वास्थ्य पर ग़लत प्रभाव।
  • स्त्रियों की खरीदारी का बढ़ाना।

प्रश्न 7.
पारिवारिक हिंसा।
अथवा घरेलू हिंसा।
उत्तर-
पारिवारिक हिंसा एक जटिल धारणा है। पारिवारिक हिंसा को परिभाषित करना मुश्किल है। जब परिवार के दो सदस्यों में झगड़ा हो जाता है तथा एक सदस्य द्वारा दूसरे सदस्य को शारीरिक तथा मानसिक रूप से प्रताड़ित किया जाता है तो इसे पारिवारिक हिंसा कहते हैं। इसमें धक्का मारना, चांटा मारना, मुक्का मारना, चाकू मारना, गोली मारना, चीजें फेंकना इत्यादि शामिल हैं। इससे दूसरे सदस्य को शारीरिक रूप से चोट पहुंचने के साथ-साथ मानसिक रूप से भी चोट पहुंचती है।

प्रश्न 8.
घरेलू हिंसा की परिभाषा।
उत्तर-
पेजलो (Pagelow) के अनुसार, “परिवार के सदस्यों द्वारा की जाने वाली अथवा नज़रअन्दाज करने की कोई ऐसी कार्यवाही है तथा ऐसी कार्यवाहियों के परिणामस्वरूप पैदा होने वाली कोई भी ऐसी स्थिति है जो परिवार के बाकी सदस्यों को समान अधिकारों तथा स्वतन्त्रताओं से वंचित करती है अथवा उनके सम्पूर्ण विकास तथा चुनाव की स्वतन्त्रता में विघ्न डालती है।”

प्रश्न 9.
घरेलू हिंसा के कारण।
उत्तर-

  • लोग परेशानियों से मुक्ति पाने के लिए मद्यपान करते हैं। जब पत्नी या बच्चे उन्हें मद्यपान करने से मना करते हैं तो वे उन्हें पीटते हैं तथा पारिवारिक हिंसा को बढ़ाते हैं।
  • कई लोग प्राकृतिक तौर पर गुस्से वाले होते हैं तथा छोटी-छोटी बात पर ही गुस्सा करते हैं तथा बच्चों को पीट देते हैं।
  • कई लोग मादक द्रव्यों का व्यसन करते हैं। यदि उन्हें मादक द्रव्य खरीदने के लिए पैसा नहीं मिलता तो वे पैसा प्राप्त करने के लिए घर वालों से मारपीट करते हैं।
  • निर्धनता के कारण वे हमेशा दुःखी रहते हैं तथा गुस्से में कई बार पत्नी या बच्चों को पीट देते हैं।

प्रश्न 10.
पत्नी की मार पिटाई।
उत्तर-
पुरुष प्रधान समाजों की यह सबसे बड़ी कमी है कि यहां पर पति द्वारा पत्नी की मार पिटाई होती है। पत्नी की मार पिटाई का अर्थ है कि पति की तरफ से पत्नी के विरुद्ध हिंसा का प्रयोग करना। वास्तव में पति यह समझते हैं कि उनकी पत्नी उनकी दासी है तथा जो वे कहेंगे पत्नी को वह सब कुछ करना पड़ेगा। परन्तु आजकल शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् स्त्रियों को अपने अधिकारों का पता चल रहा है तथा वे अपने पतियों की नाजायज़ बातों का विरोध करती हैं। इस कारण पति उनके विरुद्ध हिंसा का प्रयोग करते हैं।

V. बड़े उत्तरों वाले प्रश्न ।

प्रश्न-
कम होते लिंग अनुपात के कारणों तथा परिणामों का वर्णन करें।
उत्तर-
कम होते लिंग अनुपात के कारण-किसी भी समाज में बहुत-से कारण होते हैं जिनसे लिंग अनुपात प्रभावित होता है तथा इन कारणों का वर्णन इस प्रकार है

1. जैविक कारण (Biological Causes)-किसी भी देश में अगर लिंग अनुपात कम होता है तो उसका सबसे पहला कारण ही जैविक होता है। हो सकता है कि किसी विशेष समाज में लड़के ही अधिक पैदा होते हों जिस कारण लिंग अनुपात कम हो जाता है। कुछ अध्ययनों से यह पता चलता है कि हमारे देश में एक महीने की आयु तक लड़कों की अपेक्षा लड़कियों के मरने की दर अधिक है जिस कारण लिंग अनुपात कम होना शुरू हो जाता है। 1981-1990 के दशक के दौरान हमारे देश में 109.5 लड़कों की तुलना में केवल 100 लड़कियां ही थीं। इस प्रकार कम होते लिंग अनुपात का एक कारण जैविक माना जा सकता है।

2. प्रवास (Migration)-आवास अथवा प्रवास को भी लिंग अनुपात के कम होने अथवा बढ़ने का कारण माना जा सकता है। हो सकता है कि किसी विशेष राज्य अथवा देश के पुरुष रोज़गार की तलाश में दूसरे राज्यों अथवा देशों में चले गए हों। इससे उन दोनों राज्यों का लिंग अनुपात कम या बढ़ सकता है। साधारणतया यह देखा गया है कि जब भी पुरुष रोज़गार की तलाश में एक स्थान से दूसरे स्थान की तरफ जाते हैं, वे अपने साथ अपनी स्त्रियों तथा बच्चों को नहीं लेकर जाते हैं। वे दूसरे स्थानों पर सालों साल कमाने के लिए रहते हैं तथा कभी-कभी अपने मूल राज्य अथवा .देश की तरफ जाते हैं परन्तु जल्दी ही वापिस आ जाते हैं। हम उदाहरण ले सकते हैं पंजाब के लड़कों की जो पैसे कमाने
के लिए विदेश में चले जाते हैं अथवा उत्तर प्रदेश के निवासियों की जो पैसे कमाने के लिए पंजाब जैसे खुशहाल प्रदेशों में आते हैं। इससे पंजाब जैसे प्रदेशों में लिंग अनुपात का अन्तर उत्पन्न हो जाता है।

3. लड़की को जन्म के बाद मार देना (Female Infanticide)-हमारे देश में प्राचीन समय से ही ऐसा होता आया है कि कई समूह लड़की के जन्म के तुरन्त बाद उसे मार देते थे। देश के कई कबीलों में भी यह प्रथा प्रचलित थी। इस प्रथा के अनुसार कई समूहों में लड़की के जन्म के तुरन्त बाद उसे मार दिया जाता था। इस काम में दाई भी सहायता करती थी। इसका कारण यह था कि यह समूह सोचते थे कि लड़की को बड़ा करने के बाद उसका विवाह करना पड़ेगा तथा बहुत सा दहेज देना पड़ेगा। इसलिए इन सब खर्चों से बचने के लिए वे नई जन्मी बच्ची को मार देते थे। अंग्रेज़ी शासन में इसे खत्म करने के प्रयास किए गए परन्तु इसका अस्तित्व अभी भी बरकरार है। इस कारण ही लिंग अनुपात में अन्तर उत्पन्न हो जाता है।

4. भ्रूण हत्या (Female Foeticide)-पिछले कुछ समय से विपरीत लिंग अनुपात का सबसे बड़ा कारण मादा भ्रूण हत्या ही रहा है। इसका अर्थ है पेट में पल रही अजन्मी बच्ची को कोख में ही मार देना। लोगों में लड़का प्राप्त करने की इच्छा होती है जिस कारण वे गर्भधारण करने के कुछ समय बाद ही लिंग निर्धारण का टैस्ट करवाते हैं। अगर लड़का हो तो ठीक है परन्तु अगर लड़की है तो उसका गर्भपात ही करवा देते हैं। इस प्रकार लड़की को पैदा होने से पहले ही मार दिया जाता है। मादा भ्रूण हत्या के कारण लड़कियों की संख्या लड़कों की तुलना में कम हो जाती है तथा लिंग अनुपात कम होकर लड़कों की तरफ झुक जाता है। चाहे लिंग निर्धारण का टैस्ट करवाना तथा करना कानूनन अपराध समझा जाता है तथा गर्भपात करना भी कानूनन अपराध है तथा ऐसा करने वाले को सजा दी जाती है परन्तु फिर भी मादा भ्रूण हत्या लगातार जारी है।

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5. परम्परागत समाज (Traditional Society)-कम होता लिंग अनुपात परम्परागत समाजों में अधिक होता है। अगर हम विकसित देशों जैसे कि अमेरिका, जापान तथा परम्परागत समाजों जैसे कि भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश इत्यादि से तुलना करें तो लिंग अनुपात परम्परागत समाजों में कम है। इसका कारण यह है कि परम्परागत समाजों में यह प्रवृत्ति होती है कि लोगों को लड़की के स्थान पर लड़का चाहिए होता है ताकि खानदान आगे बढ़ सके तथा मरने के बाद बेटा चिता को अग्नि दे सके। परम्परागत समाजों की अलग-अलग प्रवृत्तियों के कारण लड़कों की संख्या बढ़ जाती है। इस प्रकार परम्परागत समाजों में लिंग अनुपात कम होता है।

6. लड़का प्राप्त करने की इच्छा (Wish to have a boy)-लोगों में साधारणतया यह इच्छा होती है कि उनके घर लड़का हो ताकि वह खानदान को आगे बढ़ा सके तथा मरने के बाद चिता को अग्नि दे सके। वैसे भी लोगों में लड़का प्राप्त करने की इच्छा होती है नहीं तो लड़की के बड़ा होने पर उसे विवाह के समय बहुत सा दहेज देना पड़ेगा। विवाह के बाद भी तमाम आयु लड़की के ससुराल वालों को कुछ न कुछ देते ही रहना पड़ेगा। इसलिए लोग लड़की नहीं बल्कि लड़का चाहते हैं तथा इसके प्रयास भी करते हैं। वे तो गर्भपात करवाने से भी पीछे नहीं हटते। इस प्रकार लड़का प्राप्त करने की इच्छा भी लिंग अनुपात को कम करती है।

7. माता-पिता द्वारा नव जन्मी बच्ची को छोड़ देना (To give up the new born girl child by the parents)-आजकल लोगों में यह प्रवृत्ति सामने आ रही है कि नव जन्मी बच्ची को रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड, रेल अथवा किसी और स्थान पर छोड़ देना। वे ऐसा इसलिए करते हैं कि घर में पहले ही लड़कियां होती हैं तथा वे एक और लड़की नहीं बल्कि लड़का चाहते हैं। परन्तु जब लड़की पैदा हो जाती है तो वे उसे लावारिस मरने के लिए छोड़ देते हैं। लड़की को ठीक देखभाल न मिलने की स्थिति में वह मर जाती है। इस प्रकार इस कारण भी लिंग अनुपात कम होता है।

परिणाम (Consequences)-

कम होते लिंग अनुपात के परिणाम इस प्रकार हैं

1. स्त्रियों से हिंसा (Violence with Women)-कम होते लिंग अनुपात का सबसे पहला परिणाम यह निकला है कि स्त्रियों से होने वाली हिंसा बढ़ जाती है। लड़कियों को जन्म से पहले ही मार दिया जाता है, नई जन्मी बच्चियों को या तो मार दिया जाता है या फिर छोड़ दिया जाता है। बड़ी आयु की स्त्रियों को इसलिए हिंसा का सामना करना पड़ता है कि उसने पुत्र को नहीं बल्कि लड़की को जन्म दिया है। लिंग सम्बन्धी हिंसा जैसे कि बलात्कार, अपहरण, वेश्यावृत्ति इत्यादि भी बढ़ जाती है।

2. बहुपति विवाह (Polyandry)-कम होते लिंग अनुपात का एक और दुष्परिणाम यह होता है कि इससे बहुपति विवाह की प्रथा को उत्साह मिलता है। समाज में स्त्रियों की संख्या मर्दो से कम हो जाती है जिस कारण एक स्त्री को दो अथवा दो से अधिक पुरुषों से विवाह करवाना पड़ता है। विशेषतया भ्रातरी बहुपति विवाह बढ़ जाते हैं। सभी भाई एक स्त्री के पति बन जाते हैं। इससे स्त्री के स्वास्थ्य पर ग़लत प्रभाव पड़ता है। समाज में नैतिकता कम हो जाती है। स्त्रियों की सामाजिक स्थिति निम्न हो जाती है।

3. स्त्रियों की निम्न सामाजिक स्थिति (Lower Social Status of Women)-कम होते लिंग अनुपात से स्त्रियों की सामाजिक स्थिति निम्न हो जाती है। अगर कोई स्त्री पुत्र पैदा नहीं कर सकती तथा केवल लड़कियां ही हो रही हैं तो उसे गर्भपात के लिए बाध्य किया जाता है। उसके बाद उसे पुत्र पैदा न करने के ताने दिए जाते हैं। सामाजिक कुरीतियां तथा सामाजिक संस्थाएं भी इसके लिए कम उत्तरदायी नहीं हैं तथा उनके कारण भी स्त्रियों की सामाजिक स्थिति पर ग़लत प्रभाव पड़ता है।

4. स्वास्थ्य पर ग़लत प्रभाव (Bad effect on Health) अगर किसी स्त्री को पुत्र पैदा नहीं होता है तो उसे ताने दिए जाते हैं, मारा-पीटा जाता है। गर्भ धारण के कुछ समय बाद लिंग निर्धारण का टैस्ट करवाया जाता है। लड़की होने की स्थिति में उसे गर्भपात करवाने के लिए बाध्य किया जाता है। इस से उसके शरीर पर तो ग़लत प्रभाव पड़ता ही है बल्कि उसकी मानसिक स्थिति पर भी ग़लत प्रभाव पड़ता है।

5. स्त्रियों का व्यापार (Business of Women) लिंग अनुपात के कम होने की स्थिति में स्त्रियों की खरीदफरोख्त का कार्य शुरू हो जाता है। कोई पुरुष विवाह करने के लिए स्त्री को खरीदता है तो कोई अपनी वासना को शांत करने के लिए परन्तु स्त्री को वस्तु ही समझा जाता है। प्राचीन समय में तो दुल्हन का मूल्य देने की प्रथा भी प्रचलित थी।
इस प्रकार कम होते लिंग अनुपात के समाज पर काफ़ी ग़लत प्रभाव पड़ते हैं।

कन्या भ्रूण हत्या तथा घरेलू हिंसा PSEB 12th Class Sociology Notes

  • संसार में स्त्रियों के विरुद्ध हिंसा एक साधारण बात है तथा सभी समाज इस समस्या से जूझ रहे हैं। स्त्रियों के विरुद्ध हिंसा में हम बलात्कार, लैंगिक हिंसा, अपहरण करना, वेश्यावृत्ति, दहेज से संबंधित हिंसा तथा कई अन्य प्रकार की समस्याओं को ले सकते हैं। कन्या भ्रूण हत्या तथा घरेलू हिंसा उनमें से एक है।
  • स्त्री के गर्भवती होने पर बच्चे का लिंग निर्धारण परीक्षण माँ के गर्भ में करवा लिया जाता है। अगर होने वाला बच्चा लड़का है तो ठीक है परन्तु अगर लड़की है तो गर्भपात करवा दिया जाता है।
  • कन्या भ्रूण हत्या का सीधा प्रभाव लिंग अनुपात पर पड़ता है तथा यह कम हो जाता है। हमारे देश में लिंग अनुपात काफी कम है। 2011 में यह 1000 : 943 था।
  • दहेज, स्त्रियों की निम्न स्थिति, लड़का प्राप्त करने की इच्छा, आधुनिक तकनीक, परिवार नियोजन, पितृ प्रधान समाज इत्यादि कुछ ऐसे कारण है जिनकी वजह से लोग कन्या भ्रूण हत्या करते हैं।
  • कन्या भ्रूण हत्या के काफ़ी गलत प्रभाव होते हैं जैसे कि स्त्रियों के स्वास्थ्य पर ग़लत प्रभाव, लिंग अनुपात का कम होना, स्त्रियों पर अत्याचार तथा अपराधों का बढ़ना, समाज में स्त्रियों से संबंधित बुराइयों का होना।
  • हमारे समाज में घरेलू हिंसा भी एक बहुत बड़ी समस्या है। इसमें पत्नी या पति या बच्चों के प्रति ऐसा व्यवहार किया जाता है जो सामाजिक तौर पर बिल्कुल भी मान्य नहीं होता। इसमें शारीरिक चोट के साथ-साथ मानसिक चोट भी लगती है।
  • घरेलू हिंसा के कई कारण हो सकते हैं जैसे कि सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, कानूनी, सामाजिक दबाव इत्यादि। पत्नी को पीटना भी घरेलू हिंसा का ही एक रूप है।
  • घरेलू हिंसा को कानून बनाकर, सामाजिक शिक्षा देकर, सरकारी तथा गैर-सरकारी संस्थाओं की सहायता से रोका जा सकता है।
  • लिंग अनुपात (Sex Ratio)-किसी विशेष क्षेत्र में 1000 पुरुषों के पीछे स्त्रियों की संख्या को लिंग अनुपात कहते हैं।
  • पितृपक्ष प्रबलता (Patriarchy)—समाज की वह व्यवस्था जिसमें परुषों की स्त्रियों पर प्रधानता होती है।
  • कन्या वध (Female Infanticide)-जन्म के तुरन्त बाद लड़की को मारने की प्रथा को कन्या वध कहते हैं।
  • कन्या भ्रूण हत्या (Female Foeticide)-कन्या भ्रूण को माँ के गर्भ में ही मारने को कन्या भ्रूण हत्या कहा जाता है।

PSEB 12th Class Sociology Solutions Chapter 10 मद्य व्यसन तथा नशा व्यसन

Punjab State Board PSEB 12th Class Sociology Book Solutions Chapter 10 मद्य व्यसन तथा नशा व्यसन Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Sociology Chapter 10 मद्य व्यसन तथा नशा व्यसन

पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न । (TEXTUAL QUESTIONS)

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न

A. बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
बढ़ रहे औद्योगीकरण ने पर्यावरण प्रदूषण को बढ़ाया है जैसे :
(क) भूमि का विकृत व मरुस्थलीकरण
(ख) भाई-भतीजावाद
(ग) अधिक जनसंख्या
(घ) जाति प्रथा।
उत्तर-
(क) भूमि का विकृत व मरुस्थलीकरण।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित में से कौन-सा मद्य व्यसन (शराबखोरी) का पड़ाव नहीं है ?
(क) अपव्ययी होना (फिजूलखर्ची)
(ख) नाजुक अवस्था
(ग) दीर्घकालिक अवस्था ।
(घ) बार-बार पीने वाली अवस्था।
उत्तर-
(ख) नाजुक अवस्था।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित में से कौन-सा पियक्कड़ों का वर्गीकरण नहीं है :
(क) कभी-कभी पीने वाले
(ख) कम पीने वाले
(ग) बहुत अधिक पीने वाले
(घ) कोई भी नहीं।
उत्तर-
(ग) बहुत अधिक पीने वाले।

प्रश्न 4.
मद्य व्यसन से कौन-सी समस्याएं जुड़ी हैं :
(क) सामाजिक समस्याएं
(ख) आर्थिक समस्याएं
(ग) स्वास्थ्य समस्याएं ।
(घ) उपर्युक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 5.
तम्बाकू 30 प्रतिशत तक होने वाली किस बीमारी के लिए उत्तरदायी है ?
(क) कैंसर से मृत्यु
(ख) एड्ज़ (ग) डेंगू
(घ) मधुमेह।
उत्तर-
(क) कैंसर से मृत्यु।

प्रश्न 6.
जब सामाजिक स्वीकृत मापदण्डों का हनन होता है तब बुरे शारीरिक, मनोवैज्ञानिक व सामाजिक परिणाम होते हैं।
(क) नशीली दवाओं का व्यसन
(ख) मोटापा
(ग) भोजन में मिलावट ,
(घ) मूल्यों में संघर्ष।
उत्तर-
(घ) मूल्यों में संघर्ष।

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B. रिक्त स्थान भरें

1. नेताओं में बढ़ रहे राजनैतिक भ्रष्टाचार से संबंधित समस्याएं ………… व ………….. हैं।
2. भारत में अस्पृश्यता की समस्या ……………….. प्रथा के कारण है।
3. जब एक व्यक्ति सुबह से शराब पीना आरम्भ कर देता है तो उसे …………… अवस्था में समझा जाता है।
4. ……………. एक ऐसा नशा है जो स्नायु विकार, लीवर सरोसिज़, उच्च रक्तचाप एवं कई अन्य बीमारियों से संबंधित होता है।
5. ………….. वो व्यक्ति हैं जो महीने में तीन या चार बार पीते हैं।
6. एक नए व्यक्ति को नशीली दवाओं की ओर ले जाने में …………… का प्रभाव महत्त्वपूर्ण है।
7. नारकोटिक ड्रग्ज व साक्रोट्रोपिक सबसटैंस अधिनियम का संशोधन ………….. में नशा विरोधी कानून को और सशक्त बनाने के लिए किया गया।
8. नशीले पदार्थों का दुरुपयोग बहुत से …………… व …………… प्रभावों को जन्म देता है जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।
9. नशे के सेवन से शरीर की …………….. कमज़ोर होती है एवं व्यक्ति कई प्रकार के संक्रमण का शिकार हो जाता है।
उत्तर-

  1. लाल फीताशाही, भाई-भतीजावाद,
  2. जाति,
  3. दीर्घकालीन,
  4. Sedative,
  5. नियमित उपभोगी,
  6. साथी समूह,
  7. 1987,
  8. अल्पकालीन, दीर्घकालीन,
  9. स्नायुतंत्र।

C. सही/ग़लत पर निशान लगाएं

1. मद्य व्यसन नशीली दवाओं के व्यसन से अधिक उपचार योग्य है।
2. सामाजिक समस्याएं पारस्परिक अन्तर्सम्बन्धित हैं।
3. लड़कों को प्राथमिकता व पितृपक्ष की प्रबलता जैसी सामाजिक समस्याएं पर्यावरणीय तत्त्वों से संबंधित होती हैं।
4. मद्य व्यसन का परिवार व समुदाय पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
5. व्यक्ति इसलिए भी मद्यपान करते हैं क्योंकि उनका व्यवसाय उन्हें पूर्णत: थका देता है।
6. बड़े पियक्कड़ वे हैं जो प्रतिदिन या दिन में कई बार पीते हैं।
7. मद्य व्यसन को रोकने में अध्यापक महत्त्वपूर्ण भूमिका नहीं निभाते।
8. अभिभावक नशीली दवाओं के व्यसन की समस्या को हल करने में असमर्थ है।
9. नशीले पदार्थ परिवार व समुदाय को प्रभावित नहीं करते।
उत्तर-

  1. सही
  2. सही
  3. गलत
  4. गलत
  5. सही
  6. सही
  7. गलत
  8. गलत
  9. गलत।

D. निम्नलिखित शब्दों का मिलान करें

कॉलम ‘ए’ — कॉलम ‘बी’
निर्धनता — पर्यावरणीय समस्याएं
अवांछित स्थितियां — सामाजिक सांस्कृति समस्या
पुत्रों को प्राथमिकता — आर्थिक समस्या
वैश्विक ताप में वृद्धि — भ्रूण हत्या के कारक
मद्य व्यसन के पड़ाव — दीर्घकालिक अवस्था
(कम) पीने वाले नशे के आदी — महीने में एक दो बार पीने वाला
अल्पायु में पीना– बढ़ रहा तनाव
मद्य व्यसन का कारण — हिंसक अपराध
उत्तर-
कॉलम ‘ए’ — कॉलम ‘बी’
निर्धनता — सामाजिक सांस्कृतिक समस्या
अवांछित स्थितियां — आर्थिक समस्या
पुत्रों को प्राथमिकता — भ्रूण हत्या के कारक
वैश्विक ताप में वृद्धि — पर्यावरणीय समस्याएं
मद्य व्यसन के पड़ाव — दीर्घकालिक अवस्था
(कम) पीने वाले नशे के आदी — महीने में एक दो बार पीने वाला
अल्पायु में पीना — हिंसक अपराध
मद्य व्यसन का कारण — बढ़ रहा तनाव।

II. अति लघु उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1. सामाजिक समस्या के उत्तरदायी कारणों की सूची बताएं।
उत्तर-सामाजिक सांस्कृतिक कारक, आर्थिक कारक, राजनीतिक कारक, वातारवण से संबंधित कारक इत्यादि।

प्रश्न 2. मद्य व्यसन से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-मद्य व्यसन मद्यपान का एक तरीका है जो न केवल व्यक्ति के लिए बल्कि उसके परिवार के लिए भी हानिकारक होता है।

प्रश्न 3. कम पीने वाले मद्य व्यसनी किसे कहा जाता है ?
उत्तर-जो लोग महीने में एक या दो बार पीते हैं उन्हें कम पीने वाले मद्य व्यसनी कहा जाता है।

प्रश्न 4. मद्य व्यसन (शराबखोरी) के पड़ावों की सूची बनाएं।
उत्तर-पूर्व मद्य व्यसनी पड़ाव, तनाव से मुक्ति के लिए पीना, गंभीर (तीव्र) अवस्था, दीर्घकालिक अवस्था।

प्रश्न 5. नशीली दवा से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-नशीली दवा एक ऐसी कैमीकल वस्तु है जिसके शरीर तथा दिमाग पर गहरे तथा अलग प्रकार के प्रभाव पड़ते हैं तथा उसके शारीरिक कार्यों में परिवर्तन लाते हैं।

PSEB 12th Class Sociology Solutions PSEB 12th Class Sociology Solutions Chapter 10 मद्य व्यसन तथा नशा व्यसन

प्रश्न 6. नशे से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-नशे का अर्थ है किसी दवा या कैमीकल वस्तु के ऊपर शारीरिक रूप से निर्भर हो जाना।

प्रश्न 7. नशीली दवा क्या है ?
उत्तर-नशीली दवा एक ऐसी कैमीकल वस्तु है जिसके शरीर तथा दिमाग पर गहरे तथा अलग प्रकार के प्रभाव पड़ते हैं तथा उसके शारीरिक कार्यों में परिवर्तन लाते हैं।

III. लघु उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
आप सामाजिक समस्या से क्या समझते हैं ?
अथवा सामाजिक समस्या को परिभाषित कीजिए।
उत्तर-
सामाजिक समस्या ऐसे अवांछनीय हालत हैं जिन्हें बदलना आवश्यक होता है। प्रत्येक समाज कई परिवर्तनों में से गुज़रता है। अगर परिवर्तन विनाशकारी होंगे तो इससे समाज में कई प्रकार की समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं। जिनके काफ़ी भयंकर परिणाम होते हैं। इन समस्याओं को ही सामाजिक समस्याएं कहा जाता है।

प्रश्न 2.
सामाजिक समस्या से सम्बन्धित किन्हीं दो कारकों का वर्णन करो।
अथवा
सामाजिक समस्या के कारकों की चर्चा कीजिए।
उत्तर-

  1. सामाजिक सांस्कृतिक कारक जैसे अस्पृश्यता, भ्रूण हत्या, दहेज, पितृ प्रधान समाज इत्यादि के कारण सामाजिक समस्याएं होती हैं।
  2. आर्थिक कारक जैसे कि निर्धनता, बेरोज़गारी, अनपढ़ता, गंदी बस्तियां इत्यादि के कारण बहुत सी सामाजिक समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं।

प्रश्न 3.
मद्यपान के तीन प्रभावों का वर्णन करो।
उत्तर-

  1. मद्यपान से देश तथा जनता के पैसे की बर्बादी होती है।
  2. मद्यपान का प्रत्यक्ष प्रभाव व्यक्ति के स्वास्थ्य पर पड़ता है तथा वह खराब हो जाता है।
  3. मद्यपान से व्यक्ति का कार्य करने का सामर्थ्य कम हो जाता है तथा वह मानसिक रूप से परेशान रहने लग जाता है।

प्रश्न 4.
मद्य व्यसन की दीर्घकालीन अवस्था से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
मद्य व्यसन की दीर्घकालीन अवस्था में व्यक्ति रोज़ पीने तथा दिन में कई बार पीने लग जाता है। इसमें वह लंबे समय तक नशे में रहते हैं, ग़लत सोचने लग जाते हैं, डरने लग जाते हैं तथा कोई कार्य नहीं कर पाते। वह हमेशा पीने के बारे में सोचते हैं तथा शराब के बिना बेचैनी महसूस करते हैं।

प्रश्न 5.
मद्य पर निर्भरता का क्या अर्थ है ?
उत्तर-
जब व्यक्ति शराब का प्रयोग रोज़ाना करने लग जाता है तथा उसके बिना नहीं रह सकता तो इस अवस्था को मद्य पर निर्भरता कहते हैं। शराब उस व्यक्ति के अंदर इतना बस जाती है कि वह उसका बार-बार प्रयोग करता है वह इसके बिना नहीं रह सकता। इसे ही मद्य पर निर्भरता कहते हैं।

प्रश्न 6.
मद्य व्यसन से आपका क्या अभिप्राय है ?
अथवा मद्यपान।
उत्तर-
मद्य व्यसन उस स्थिति को कहते हैं जिसमें व्यक्ति मद्यपान की मात्रा पर नियन्त्रण नहीं रख पाता तथा जिसका प्रयोग शुरू करने के बाद उसे बंद नहीं कर सकता। वह शारीरिक व मानसिक रूप से शराब पर इतना निर्भर हो जाता है कि उसके बिना रह ही नहीं सकता।

प्रश्न 7.
आप मद्य व्यसन की पूर्वकालिक अवस्था से क्या समझते हैं ?
उत्तर-
इस स्तर पर, सामाजिक प्रतिबन्धों का फायदा उठा कर, व्यक्ति अपनी चिंताओं को दूर करने के लिए तथा व्यक्तिगत समस्याओं से भागने के लिए मद्य व्यसन करना शुरू कर देते हैं। वह पीने को चिंतामुक्त होने से संबंधित कर देता है तथा पीने के मौके ढूंढता है। इस प्रकार मद्यपान भी बढ़ जाता है।

प्रश्न 8.
नशीली दवाओं के व्यसन की ओर उन्मुख करने वाले सामाजिक कारकों की सूची बनाएं।
उत्तर-
कई सामाजिक कारक होते हैं जिनकी वजह से व्यक्ति नशों की तरफ बढ़ता है; जैसे कि मित्रों के कारण, समाज के उच्च वर्ग में जाने की इच्छा, सामाजिक तजुर्बे के लिए, सामाजिक मूल्यों का विरोध करने के लिए, नए सामाजिक रुझान स्थापित करने के लिए इत्यादि।

प्रश्न 9.
एक व्यक्ति पर नशीली दवाओं के अल्पकालीन प्रभावों की सूची बनाएं।
उत्तर-
नशीली दवा लेने के कुछ अल्पकालीन प्रभाव होते हैं जो नशा करने के बाद केवल कुछेक मिनट ही दिखते हैं। व्यक्ति को सब कुछ अच्छा लगता है तथा वह किसी अन्य संसार में घूमने लग जाता है। कुछ अन्य प्रभाव भी होते हैं जैसे कि धुन्धला दिखना, ग़लत परिणाम निकालना, मुँह में से गंदी बदबू इत्यादि।

प्रश्न 10.
नशीली दवाओं के व्यसन को रोकने में अध्यापक की क्या भूमिका है ?
उत्तर-
नशीली दवाओं के व्यसन के रोकने में अध्यापक काफ़ी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। वह अपने विद्यार्थियों से खुल कर बात कर सकते हैं तथा उन्हें अच्छे कार्यों में व्यस्त रख सकते हैं। उन्हें अच्छी आदतें अपनाने के लिए प्रेरित किया जा सकता है।

प्रश्न 11.
नशीली दवा से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
नशीली दवा एक ऐसी कैमीकल वस्तु है जिसके शरीर तथा दिमाग पर गहरे तथा अलग प्रकार के प्रभाव पड़ते हैं तथा उसके शारीरिक कार्यों में परिवर्तन लाते हैं।

IV. दीर्घ उत्तरों वाले प्रश्न-

प्रश्न 1.
भारत में सामाजिक समस्या के विभिन्न कारकों की चर्चा करें।
अथवा
भारत में सामाजिक समस्याओं के दो मुख्य कारणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-

  • सामाजिक सांस्कृतिक कारक-इन कारकों में हम अस्पृश्यता, मादा भ्रूण हत्या, दहेज, घरेलू हिंसा, स्त्रियों के विरुद्ध हिंसा, पीढ़ी का अंतर इत्यादि ले सकते हैं।
  • आर्थिक कारक-इसमें हम निर्धनता, गंदी बस्तियां, बेरोज़गारी, अपराध, नगरीकरण, औद्योगीकरण इत्यादि जैसे कारक ले सकते हैं।
  • प्रादेशिक कारक-इन कारकों में हम आवास-प्रवास, जनसंख्या संरचना का बिगड़ना, तंग क्षेत्र, प्रदूषण, बेरोज़गारी इत्यादि को ले सकते हैं।
  • राजनीतिक कारक-इन कारकों में हम चुनाव संबंधी राजनीति , भाई-भतीजावाद, भ्रष्टाचार, रिश्वत, साम्प्रदायिकता इत्यादि को ले सकते हैं।
  • पर्यावरणीय कारक-इनमें जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण, ग्रीन हाउस प्रभाव इत्यादि आ जाते हैं।

प्रश्न 2.
नशीली दवाओं पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
उत्तर-
नशीली वा एक ऐसी कैमीकल वस्तु है जिसके शरीर तथा दिमाग पर गहरे तथा अलग प्रकार के प्रभाव पड़ते हैं। यह एक साधारण व्यक्ति के शारीरिक कार्यों में परिवर्तन ला देते हैं। मैडीकल की भाषा में नशीली दवा एक ऐसी वस्तु है जिसे डाक्टर किसी रोगी को बीमारी ठीक करने के लिए देता है। मानसिक व सामाजिक तौर पर नशे को हम एक ऐसी आदत के रूप में लेते हैं जिसका सीधे दिमाग पर प्रभाव पड़ता है तथा जिसके ग़लत प्रयोग होने के मौके बढ़ जाते हैं। आवश्यकता से अधिक नशा इतना खतरनाक होता है कि यह साधारण जनता के विरुद्ध समाज विरोधियों में उत्तेजना भर देता है। हेरोईन, कोकीन, एल० एस० डी०, शराब, अफीम, तंबाकू इत्यादि का नशा गलत होता है।

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प्रश्न 3.
मद्य व्यसन के पड़ावों का संक्षेप में उल्लेख करें।
उत्तर-

  • पूर्व मद्य व्यसनी पड़ाव-इस स्तर पर व्यक्ति सामाजिक प्रतिबन्धों का फायदा उठा कर अपनी चिंताएं दूर करने व व्यक्तिगत समस्याओं से भागने के लिए पीना शुरू कर देता है।
  • तनाव से मुक्ति के लिए पीना-इस स्तर पर आकर व्यक्ति के शराब पीने की मात्रा तथा दिनों में बढ़ौतरी हो जाती है चाहे उसे पता होता है कि वह गलत कर रहा है।
  • गंभीर (तीव्र) अवस्था-इस स्तर पर आकार मद्यपान व्यक्ति के लिए आवश्यक हो जाता है। उसे सामाजिक दबाव भी झेलना पड़ता है परन्तु फिर भी वह कहता है कि उसने अपना नियन्त्रण नहीं खोया है।
  • दीर्घकालिक अवस्था-इस अवस्था में वह सारा दिन शराब पीता रहता है। वह हमेशा नशे में रहता है तथा अपने कार्य भूल जाता है। बिना शराब के वह असहज महसूस करता है।

प्रश्न 4.
मद्य व्यसन के हानिकारक प्रभावों का वर्णन करें।
उत्तर-

  • महा व्यसन से व्यक्ति तथा देश के पैसे खराब होते हैं।
  • अधिक शराब पीने से व्यक्ति का स्वास्थ्य खराब हो जाता है तथा उसे कई प्रकार की बीमारियां भी लग जाती हैं।
  • अधिक मद्य व्यसन से व्यक्ति में कार्य करने का सामर्थ्य कम हो जाता है।
  • अधिक मद्य व्यसन वाले व्यक्ति का दिमाग उसके नियन्त्रण में नहीं रहता तथा वह मानसिक तनाव का शिकार हो जाता है।
  • मद्य व्यसन के कारण लोग कई प्रकार के अपराध भी कर लेते हैं जैसे कि कत्ल, बलात्कार, चोरी इत्यादि।
  • मद्यपान से पैसे की बर्बादी होती है तथा निर्धनता भी बढ़ जाती है।

प्रश्न 5.
किशोर मद्य व नशे के व्यसन का अधिक शिकार क्यों होते हैं ?
उत्तर-
यह सत्य है कि किशोर काफी जल्दी मद्य व्यसन व नशे के व्यसन की तरफ झुक जाते हैं। कई बार व्यक्ति अपने मित्रों के कारण नशा करता है। उसके मित्र उसे नशा करने या मद्य व्यसन के लिए कहते हैं। वह शौक-शौक में पीना शुरू कर देता है तथा धीरे-धीरे वह इनका आदी हो जाता है। कई बार किशोरों में अपने बुजुर्गों को देख कर भी नशा करने की इच्छा होती है तथा वह मद्यपान या नशा करने लग जाते हैं। व्यक्ति सामाजिक मूल्यों का विरोध करने के लिए भी नशा करने लग जाता है। नौजवान पढ़-लिख जाते हैं परन्तु उन्हें अपनी इच्छा का काम नहीं मिल पाता या मिलता ही नहीं। वह अर्द्ध बेरोज़गार या बेरोज़गार रह जाते हैं तथा तंग आकर वह नशों की तरफ बढ़ना शुरू कर देते हैं।

प्रश्न 6.
किसी व्यक्ति पर नशीली दवाओं के दीर्घकालीन प्रभाव की चर्चा करें।
उत्तर-

  • नशे करने से व्यक्ति शारीरिक तथा मानसिक रूप से उन पर निर्भर हो जाता है जिस कारण जीवन में समझौते करने पड़ते हैं।
  • नशों के कारण व्यक्ति को कई प्रकार की बीमारियां लग जाती है जैसे कि पेट खराब रहना, चमड़ी के रोग, लीवर पर असर, दिल की बीमारी इत्यादि।
  • नशे के कारण व्यक्ति के शरीर की प्रतिरोधक क्षमता कमजोर हो जाती है जिस कारण उसे कई प्रकार की नई बीमारियां लगने का खतरा उत्पन्न हो जाता है।
  • नशा करने से कई बार एड्ज़ जैसी बीमारी होने का खतरा हो जाता है। नशे के प्रभाव के अंदर कई बार गलत संबंध बन जाते हैं तथा एड्ज़ हो जाती है।
  • यह भी देखा है कि ज़रूरत से ज्यादा नशा करने से व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है।

प्रश्न 7.
नशीली दवाओं के व्यसन के मनोवैज्ञानिक व शारीरिक प्रभाव क्या होते हैं ?
अथवा
नशा व्यसन के हानिकारक प्रभावों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
मानसिक प्रभाव-नशीली दवाओं के व्यसन से व्यक्ति इनका इतना आदी हो जाता है कि वह इनके बिना नहीं रह सकता। उन्हें लगता है कि वह नशा किए बिना कोई कार्य नहीं कर सकते तथा नशे से वह कार्य बढ़िया ढंग से कर सकते हैं। साथ ही उन्हें लगता है कि नशे से उनकी चिन्ताएं दूर हो जाएंगी तथा उसका तनाव भी दूर हो जाएगा।
शारीरिक प्रभाव-नशीली दवाओं के व्यसन से व्यक्ति के शरीर पर काफ़ी बुरा प्रभाव पड़ता है। नशे के बिना उसे नींद नहीं आती, उसका सिरदर्द करता है, नशा करने से उसकी कामुक इच्छा बढ़ जाती है तथा उसका शरीर नशे का इतना आदी हो जाता है जिस कारण वह शारीरिक रूप से उस पर निर्भर हो जाता है।

प्रश्न 8.
किशोरों को नशीली दवाओं से बचाने के लिए किस प्रकार का विशेष ध्यान दिया जा सकता है ?
उत्तर-
किशोर अवस्था ऐसी अवस्था है जिसमें बच्चा घर के सदस्यों के हाथों से निकल कर समाज के सदस्यों के हाथों में आ जाता है। इस अवस्था में बच्चे के लिए यह आवश्यक होता है कि वह सीधे रास्ते पर चले। अगर वह गलत हाथों में चला जाए तो वह नशे के रास्ते पर चल पड़ता है तथा उसका सारा जीवन बर्बाद हो जाता है। ऐसी स्थिति में माता-पिता को अपने बच्चों पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता होती है। माता-पिता को बच्चों के साथी समूह, उसके मित्रों पर रखनी पड़ती है ताकि वह गलत रास्ते पर न जाए। अगर बच्चे का कोई मित्र नशा करता है तो उस समय बच्चे को उसकी मित्रता से दूर करना चाहिए तथा उस मित्र के खाने-पीने, कपड़े पहनने, सोने, जागने के बारे में भी ध्यान रखना चाहिए ताकि बच्चों को नशे के रास्ते पर जाने से रोका जा सके।

प्रश्न 9.
नशीली दवाओं के व्यसन के कारणों का उल्लेख करें।
अथवा
नशा व्यसन के चार कारण लिखो।
उत्तर-

  1. जब व्यक्ति अपने ऊपर पड़े तनाव को कम करना चाहता है तो वह नशीली दवाओं का प्रयोग करने लग जाता है।
  2. कई बार व्यक्ति के मित्र उसका नशा न करने पर मज़ाक उड़ाते हैं जिस कारण वह नशा करने लग जाता है।
  3. कई व्यक्तियों में यह पता करने की इच्छा होती है कि नशा करने के पश्चात् कैसा लगता है, तो भी वह नशा करने लग जाते हैं।
  4. घरों में पति-पत्नी के बीच या घर के सदस्यों के बीच झगड़े के कारण भी लोग नशा करने लग जाते हैं ताकि कोई तनाव न रहे।
  5. कभी-कभी व्यक्ति में अपने बुजुर्गों को नशा करता देख इच्छा जागती है तथा वह भी नशा करने लग जाता है।

प्रश्न 10.
किशोर अवस्था में नशीली दवाओं के व्यसन के बुरे प्रभावों की चर्चा करें।
उत्तर-

  • नशे करने से व्यक्ति शारीरिक तथा मानसिक रूप से उन पर निर्भर हो जाता है जिस कारण जीवन में समझौते करने पड़ते हैं।
  • नशों के कारण व्यक्ति को कई प्रकार की बीमारियां लग जाती है जैसे कि पेट खराब रहना, चमड़ी के रोग, लीवर पर असर, दिल की बीमारी इत्यादि।
  • नशे के कारण व्यक्ति के शरीर की प्रतिरोधक क्षमता कमजोर हो जाती है जिस कारण उसे कई प्रकार की नई बीमारियां लगने का खतरा उत्पन्न हो जाता है।
  • नशा करने से कई बार एड्ज़ जैसी बीमारी होने का खतरा हो जाता है। नशे के प्रभाव के अंदर कई बार गलत संबंध बन जाते हैं तथा एड्ज़ हो जाती है।
  • यह भी देखा है कि ज़रूरत से ज्यादा नशा करने से व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है।

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V. अति दीर्घ उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
आप मद्य व्यसन से क्या समझते हैं ? इसके लिए ज़िम्मेदार तत्त्वों की विस्तार सहित चर्चा करें।
अथवा
मद्य व्यसन के दो कारण लिखें।
अथवा
मद्यपान का भारतीय समाज की मुख्य सामाजिक समस्या के रूप में वर्णन करें।
उत्तर-
मद्यपान को पिछले कुछ समय से एक सामाजिक तथा नैतिक समस्या के रूप में देखा जा रहा है। कुछ समय पहले देश के कई राज्यों में मद्यपान पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया था तथा मद्य-निषेध नीति को लागू कर दिया गया था। इस नीति के लागू होने के बाद मद्यपान अवैध रूप से किया जाने लग गया। कुछ विद्वान् इसे विचलित व्यवहार के साथसाथ एक जटिल बीमारी भी कहते हैं। जो व्यक्ति शराब का आदी हो जाता है उसको ठीक करने के लिए किसी विशेषज्ञ डाक्टर की आवश्यकता होती है। मद्यपान को एक ऐसी अवस्था के रूप में लिया जा सकता है जिसमें व्यक्ति को अपने ऊपर नियन्त्रण नहीं रहता। यदि उसको शराब मिल जाए तो वह इसे पीता ही जाता है परन्तु यदि उसे यह न मिले तो वह उसके लिए तड़पता है तथा इसे किसी भी ढंग से प्राप्त करने की कोशिश करता है। व्यक्ति को अपने जीवन में बहुत-से मानसिक तनावों से गुजरना पड़ता है। इसको पीने के बाद वह कुछ समय के लिए तनाव से मुक्त हो जाता है तथा उसको सभी चिन्ताओं से मुक्ति मिल जाती है।

परन्तु प्रश्न यह उठता है कि मद्यपान किसे कहते हैं तथा कौन मद्यसारिक होता है। आजकल के समय में साधारण शब्दों में जो व्यक्ति शराब का सेवन करता है उसे मद्यसारिक अथवा शराबी कहते हैं तथा शराब पीने की प्रक्रिया को मद्यपान का नाम दिया जाता है। कई विद्वानों के अनुसार थोड़ी-सी शराब पीने को हम मद्यपान नहीं कह सकते हैं। जो व्यक्ति शराब का इतना आदी हो चुका हो कि वह इसके बिना रह नहीं सकता है उसे शराबी या मद्यसारिक कहते हैं तथा जो व्यक्ति लगातार तथा बहुत अधिक मात्रा में शराब पीता है उसे भी मद्यसारिक कहा जाता है। इस तरह शराब पीने की प्रक्रिया को मद्यपान कहा जाता है।

मद्यपान को हम एक दीर्घकालिक बीमारी के रूप में भी ले सकते हैं जिसमें एक मद्यसारिक व्यक्ति को लगातार इसकी आवश्यकता महसूस होती है। व्यक्ति कई बार इसका सेवन इसलिए भी करता है कि उसे इसके सेवन से तनाव से मुक्ति मिलती है तथा कुछ समय के लिए चिन्ताओं से मुक्ति मिल जाती है। चाहे मद्यपान के बारे में यह कहा जाता है कि मद्यपान के पीछे व्यक्ति के सामाजिक तथा मानसिक कारण होते हैं परन्तु कई बार व्यक्ति इतने अधिक समय के लिए पीते हैं कि उन्हें इसकी लत लग जाती है। उनका शरीर उसके बिना रह नहीं सकता है उसे कार्य करने के लिए इसकी आवश्यकता पड़ती है। यदि वह इसे छोड़ना चाहे तो उसके शरीर को कई प्रकार के दुःखों का सामना करना पड़ता है जैसे कि अंगों में कंपकपी, बहुत अधिक पसीना आना, दिल का तेज़ी से धड़कना इत्यादि। इस प्रकार मद्यपान एक शारीरिक तथा मानसिक बीमारी बन जाती है। जब व्यक्ति बहुत अधिक मद्यपान करने लग जाए तो यह एक व्यक्तिगत समस्या के साथ-साथ सामाजिक समस्या का रूप धारण कर लेती है। बहुत अधिक मद्यपान करने से उसका स्वास्थ्य भी खराब हो जाता है। इसके बिना वह कोई कार्य नहीं कर सकता है तथा उसकी कार्य करने की क्षमता पर भी असर पड़ता है।

मद्यपान के कारण (Reasons of Alcoholism) –

1. व्यवसाय (Occupation)-बहुत-से मामलों में व्यवसाय मद्यपान का कारण बनता है। कई लोगों का व्यवसाय ऐसा होता है कि वह काम करते-करते इतना थक जाते हैं कि उन्हें अपने आपको दोबारा कार्य करने के लिए किसी चीज़ की आवश्यकता होती है। इससे उनकी थकावट भी मिट जाती है तथा उन्हें अगले दिन कार्य करने के लिए प्रेरणा भी मिलती है। कई लोग अपने व्यवसाय से जुड़े और लोगों को खुश करने के लिए भी मद्यपान करना शुरू कर देते हैं। उदाहरण के लिए किसी कर्मचारी को अपने मालिक को खुश करने के लिए मालिक के साथ मदिरा पीनी पड़ती है जिससे वह मदिरा का आदि हो जाता है। इस तरह व्यवसाय के कारण व्यक्ति को मदिरा पीनी पड़ती है तथा वह इसका आदी हो जाता है।

2. ग़लत संगति (Bad Company)-बहुत-से लोग मदिरा इसलिए भी पीने लग जाते हैं क्योंकि उसके मित्र, उसकी संगति ही ग़लत होती है। उसकी संगति में उसके मित्र नशा करने, शराब पीने के आदी होते हैं। यदि वह शराब नहीं पीता है तो उसके दोस्त उसको शराब पीने के लिए मजबूर करते हैं, उसको समय-समय पर ताने देते हैं कि, कैसे मर्द हो तुम, शराब नहीं पीते, शराब पीना तो मर्दो का काम है। इस तरह वह मित्रों के तानों से तंग आकर या तो मित्रों को ही छोड़ देता है या फिर शराब पीना शुरू कर देता है। इस तरह ग़लत संगति के कारण पहले तो वह दोस्तों को खुश करने के लिए थोड़ी-सी पीनी शुरू कर देता है परन्तु धीरे-धीरे वह शराब पीने का आदी हो जाता है।

3. बड़ों को पीते देखकर उत्सुकता जागना (Curiosity Due to Elder members of The Family) साधारणतया यह देखा गया है कि बच्चे उत्सुकता वश शराब पीना शुरू कर देते हैं। परिवार में बड़े लोग यदि शराब पीते हैं तो बच्चे उनके पास जाकर खड़े हो जाते हैं तथा पूछते हैं कि आप क्या पी रहे हैं? बड़े बुजुर्ग बच्चों की बात हंस कर टाल देते हैं तथा बच्चों को उधर से जाने के लिए कहते हैं। बच्चों में इस बात को लेकर उत्सुकता जाग जाती हैं कि उनके पिता क्या पी रहे हैं? यदि उनके पिता गिलास में थोड़ी-सी शराब छोड़कर कहीं चले जाते हैं तो वह चोरी से तथा छुपकर उसे पी लेते हैं। चाहे यह कड़वी होती है परन्तु यह उत्सुकता तब तक बरकरार रहती है जब तक वह स्वयं ही इसे पीना शुरू नहीं कर देते हैं। इस तरह बच्चों में भी यह आदत आ जाती है। बच्चे जब यह देखते हैं कि उनके पिता शराब का सेवन करते हैं तो वह भी शराब का स्वाद लेना चाहते हैं जिससे धीरे-धीरे उनको आदत पड़ जाती है। कई बार तो पिता ही बच्चे को गिलास देकर कहते हैं कि इसे पीकर देखो कि यह क्या है। इस प्रकार बच्चे को अनजाने में ही इसकी लत पड़ जाती है तथा वह मद्यपान करने लग जाता है।

4. अधिक धन (More Money)-अधिक धन होना भी मद्यपान का कारण बन सकता है। आजकल का युग पदार्थवाद का युग है। प्रत्येक व्यक्ति पैसे के पीछे भाग रहा है। पैसे कमाने के लिए वह नए-नए ढंग अपना रहा है। कई बार तो किसी से पैसा कमाने के लिए उसे मदिरा पिलानी पड़ती है तथा साथ में पीनी भी पड़ती है। इससे व्यक्ति को मदिरा पीने की आदत पड़ जाती है। जब व्यक्ति के पास अधिक पैसा आ जाता है तो वह उसे खर्च करने के नएनए ढंग भी ढूंढ लेता है। वह अपना मनोरंजन करने के लिए अपने मित्रों के साथ पीनी शुरू कर देता है परन्तु धीरेधीरे उसे पीने की लत लग जाती है तथा वह मद्यपान करना शुरू कर देता है।

5. मानसिक तनाव (Mental Tension)—प्रत्येक व्यक्ति किसी-न-किसी तनाव का शिकार होता है। किसी के पास पैसा नहीं है तो उसे अपना घर चलाने का तनाव है, किसी के पास पैसा है तो उसे सम्भालने की चिन्ता है, किसी को व्यापार की चिन्ता है, किसी को दफ़्तर की चिन्ता है, कोई निर्धनता से परेशान है तो कोई अपने मालिक, बॉस या बीवी से, किसी को व्यापार में घाटा होने की चिन्ता है तो किसी को प्रतिस्पर्धा की। इस प्रकार प्रत्येक व्यक्ति किसीन-किसी मानसिक चिन्ता का शिकार है। यदि वह शराब पीता है तो यह शराब उसके स्नायु तन्त्र को कुछ समय के लिए शिथिल कर देती है तथा कम-से-कम कुछ समय के लिए उसे मानसिक तनाव से मुक्ति मिल जाती है। शराब के नशे में वह सभी प्रकार की चिन्ताओं से मुक्त हो जाता है तथा अपने आपको एक स्वतन्त्र व्यक्ति महसूस करने लग जाता है। धीरे-धीरे जब उसे लगता है कि मदिरा उसे उसकी चिन्ताओं से कुछ समय के लिए मुक्ति दिला सकती है तो वह इसे रोज़ ही पीना शुरू कर देता है तथा मद्यपान का शिकार हो जाता है।

6. निर्धनता (Poverty)-निर्धनता भी मद्यपान का एक बहुत बड़ा कारण है। निर्धन व्यक्ति को हमेशा पैसा कमाने की चिन्ता रहती है। उसके परिवार के सदस्य तो अधिक होते हैं परन्तु कमाने वाला वह अकेला ही होता है। इसलिए घर का खर्च तो अधिक होता है परन्तु आय काफ़ी कम होती है। बच्चों को पढ़ाने, कपड़े, खाने की चिन्ता उसे हमेशा ही लगी रहती है। इसलिए वह चिन्ता से दूर होने के लिए शराब का सहारा ले लेता है। शराब पीने से उसे कुछ समय के लिए चिन्ताओं तथा तनाव से मुक्ति मिल जाती है। इस तरह वह धीरे-धीरे अधिक मात्रा में शराब पीनी शुरू कर देता है तथा वह मद्यसारिक हो जाता है।

7. व्यक्तिगत कारण (Personal Reasons) व्यक्तिगत कारण भी मद्यपान के लिए उत्तरदायी हैं। कुछ लोगों की संगति ऐसी होती है जो शराब पीते हैं। पहले तो वह केवल शराब का स्वाद लेने के लिए ही पीते हैं। परन्तु जब उन्हें स्वाद की आदत पड़ जाती है तो धीरे-धीरे शराब पीने की आदत पड़ जाती है। कई लोग अपनी शारीरिक पीड़ा को खत्म करने के लिए भी शराब पीते हैं। व्यापार में घाटा पड़ने पर, प्यार में असफल होने पर, अपनी पत्नी से तलाक होने पर किसी शारीरिक कमी के कारण लोग मद्यपान करना शुरू कर देते है। बहुत-से लोग जुआ खेलते हैं। परन्तु जब वह जुए में हार जाते हैं तो वह अपना गम भुलाने के लिए भी मद्यपान का सहारा लेते हैं। जीवन में किसी आपत्ति के आने के कारण भी लोग चिन्ता मुक्त होने के लिए भी शराब का सहारा लेते हैं। इस प्रकार यह बहुत-से ऐसे व्यक्तिगत कारण हैं जिनकी वजह से लोग मद्यपान करना शुरू कर देते हैं।

8. सामाजिक कमियां (Social Inadequacy) सामाजिक कमियों के कारण भी लोग मद्यपान करना शुरू कर देते हैं। कुछ लोगों के जीवन में कुछ ऐसी कमियां होती हैं जो उनमें पूरी नहीं हो पाती हैं। वह उन कमियों को पूरा भी नहीं कर पाते हैं तथा उन कमियों के कारण आने वाली कठिनाइयों का सामना भी नहीं कर पाते हैं। इसलिए वह इन कमियों की पूर्ति के लिए मद्यपान करना शुरू कर देते हैं तथा मदिरा के आदी हो जाते हैं।

9. पारिवारिक परिस्थितियां (Family Circumstances)-व्यक्ति की पारिवारिक परिस्थितियां भी उसे मद्यपान करने के लिए प्रेरित करती हैं। घर में अशान्ति है, घर में निर्धनता है, माता तथा पत्नी में हमेशा झगड़ा होता रहता है, पत्नी झगड़ालू है तथा चैन से रहने नहीं देती, परिवार में खर्चे तो अधिक हैं पर आय कम है इत्यादि। इन सभी कारणों के कारण वह हमेशा परेशान रहता है तथा वह अपनी परेशानी से मुक्ति चाहता है। इसलिए वह मद्यपान करने लग जाता है जिससे उसे कुछ समय के लिए शान्ति मिलती है। इस प्रकार वह धीरे-धीरे इसका आदी हो जाता है।

PSEB 12th Class Sociology Solutions PSEB 12th Class Sociology Solutions Chapter 10 मद्य व्यसन तथा नशा व्यसन

10. फैशन के लिए (For Fashion)-आजकल के समय में फैशन के लिए भी व्यक्ति मद्यपान करना शुरू कर देते हैं। आधुनिक समय में युवा वर्ग तो मद्यपान करता ही फैशन के लिए है। बड़े-बड़े शहरों में यदि कोई नौजवान मद्यपान नहीं करता है तो उसे पिछड़े वर्ग से सम्बन्धित कहा जाता है। लोग दूसरों को प्रभावित करने के लिए अथवा अपने आपको अधिक आधुनिक सांस्कृतिक और खुशहाल दिखाने के लिए भी मद्यपान करना शुरू कर देते हैं। केवल लड़के ही नहीं बल्कि लड़कियां भी मद्यपान करने लग गई हैं। बड़े-बड़े शहरों में क्लब, पब इत्यादि खुल गए हैं जहां नौजवान पीढ़ी अपने मनोरंजन के लिए खुल कर मदिरा का प्रयोग करते हैं तथा नशे में झूमते हुए इसका आनन्द लेते हैं। दफ्तरों, कॉलेजों में जाने वाले लोग तो अपने आपको ऊँचा दिखाने के लिए भी इसका प्रयोग करते हैं तथा धीरेधीरे मद्यपान के आदी हो जाते हैं।

11. प्रतिकूल स्थितियाँ (Adverse Conditions) कई बार व्यक्ति के सामने ऐसे प्रतिकूल हालात आ जाते हैं जिससे उसे अच्छे-बुरे का ज्ञान नहीं रहता है तथा उनका मानसिक सन्तुलन भी बिगड़ जाता है। प्रतिकूल हालात जैसे कि कोई गम्भीर समस्या का खड़े हो जाना, निर्धनता, बेरोज़गारी, प्यार में असफलता, उन्नति न मिल पाना, किसी द्वारा अपमान कर देना, जुए में हार जाना, परिवार में लड़ाई-झगड़े इत्यादि ऐसे कारण हैं जो व्यक्ति की चिन्ताओं को बहुत बढ़ा देते हैं। इन चिन्ताओं को दूर करने के लिए वह शराब का सहारा लेने लग जाते हैं तथा मद्यपान करने लग जाते हैं। धीरे-धीरे वह मदिरा के आदी हो जाते हैं।

12. बड़े शहरों की गन्दी बस्तियां (Slums of Big Cities)-बड़े-बड़े शहरों में रहने की काफ़ी समस्या होती है। सही प्रकार के रहने के स्थान की व्यवस्था न होने के कारण भी मद्यपान की स्थिति बढ़ती है। गन्दी बस्तियों में मिलने वाला वातावरण, जोकि व्यक्तियों के रहने के लायक भी नहीं होता है, उस बुराई अर्थात् मद्यपान को उत्साहित करता है। जब व्यक्ति को लगता है कि वह अपनी इच्छाओं की पूर्ति नहीं कर पा रहा है तथा उनको दबा रहा है तो वह मद्यपान करके अपनी इच्छाओं को सन्तुष्ट करता है।

13. वंशानुगत सेवन (Hereditary Usage)-वंशानुगत सेवन भी मद्यपान की समस्या को बढ़ाने का कारण बनता है। कई कबीलों में सदियों से देसी शराब बनाने की प्रथा चली आ रही है। बनाने के साथ-साथ उन्हें इसे स्वाद देखने के लिए पीना भी पड़ता है। इस तरह बच्चे अपने बड़ों को ऐसा करते हुए देखते हैं जिससे वह भी अपने बड़ों का अनुकरण करने लग जाते हैं। वह शराब बनाना भी सीख जाते हैं तथा साथ-साथ पीना भी सीख जाते हैं। इससे मद्यपान की लत बढ़ जाती है।

इस प्रकार इन कारणों को देख कर हम कह सकते हैं कि मद्यपान की लत केवल एक कारण से ही नहीं लगती है बल्कि इसके बहुत-से कारण हो सकते हैं। इन ऊपर दिए गए कारणों के अतिरिक्त मद्यपान के और भी कई कारण हो सकते हैं जैसे कि आनन्द लेने की इच्छा, यौन सुख में अधिक आनन्द प्राप्त करने के लिए, थकान दूर करने के लिए, नई चीज़ के अनुभव करने के लिए इत्यादि।

प्रश्न 2.
मद्य व्यसन के हानिकारक प्रभावों पर विस्तृत टिप्पणी करें।
अथवा
मद्य व्यसन के नुकसानदायक प्रभावों पर विस्तृत रूप में लिखिए।
अथवा
मद्य व्यसन के हानिकारक प्रभावों को लिखें।
उत्तर-
मद्यपान को किसी भी दृष्टिकोण से ठीक नहीं कह सकते चाहे वह व्यक्तिगत दृष्टिकोण हो, चाहे वह पारिवारिक, आर्थिक, नैतिक तथा सामाजिक दृष्टिकोण ही क्यों न हो। मद्यपान करने से व्यक्ति का जीवन पतन की तरफ ही जाता है। इससे उसके पारिवारिक तथा सामाजिक जीवन को भी खतरा पैदा हो जाता है। इसके प्रभावों का वर्णन इस प्रकार है :

1. मद्यपान और व्यक्तिगत विघटन (Alcoholism and Personal Disorganization)—व्यक्ति यदि मद्यपान करना शुरू करता है तो उसके कई कारण व्यक्तिगत होते हैं। उदाहरण के तौर पर यदि व्यक्ति को नींद नहीं आती है या भूख नहीं लगती है तो वह थोड़ी-सी मदिरा का सेवन कर लेता है ताकि उसे नींद आ जाए या भूख लग जाए। धीरे-धीरे वह मदिरा का अधिक सेवन करने लग जाता है तथा उसे इसकी लत लग जाती है। वह इसके पीछे इतना अधिक भागने लग जाता है कि उसे अच्छे-बुरे का भी ध्यान नहीं रहता है। उसे अपने बच्चों तथा घर का भी ध्यान नहीं रहता है। उसकी आय शराब पर खर्च होने लग जाती है जिससे उसके घर की आर्थिक स्थिति खराब हो जाती है। उसे आर्थिक रूप से चिन्ताएं सताने लगती हैं। वह चिन्ता दूर करने के लिए और अधिक शराब पीने लग जाता है जिससे उसका व्यक्तिगत विघटन होने लग जाता है। उसे और अधिक चिन्ताएँ होने लगती हैं। वह समस्याओं से संघर्ष नहीं कर पाता है तथा शराब पीकर हालातों से दूर भागने का प्रयास करता है। इससे उसका चरित्र कमजोर हो जाता है जिससे व्यक्तिगत विघटन और अधिक बढ़ जाता है।

2. मद्यपान तथा सामाजिक विघटन (Alcoholism and Social Disorganization) हमारे समाज में हज़ारों लाखों व्यक्ति ऐसे हैं जो मदिरा का सेवन किसी-न-किसी वजह से करते हैं । मद्यपान करने से व्यक्तिगत विघटन होने से उनके परिवारों पर भी असर पड़ता है। परिवार विघटित होने शुरू हो जाते हैं क्योंकि परिवार समाज की प्राथमिक तथा सबसे महत्त्वपूर्ण इकाई है इसलिए यदि परिवार विघटित होंगे तो निश्चय ही समाज पर भी असर पड़ेगा तथा समाज भी विघटित होगा। जब समाज में रह कर व्यक्ति अपनी ज़िम्मेदारी को नहीं समझेगा तो निश्चय ही समाज विघटित होने की राह पर चल पड़ेगा। इस तरह मद्यपान से सामाजिक विघटन बढ़ता है।

3. मद्यपान तथा पारिवारिक विघटन (Alcoholism and Family Disorganization)-मद्यपान करने से न केवल व्यक्ति का व्यक्तिगत विघटन होता है, बल्कि उसके इस व्यवहार से परिवार भी विघटित हो जाते हैं। जब वह किसी कारणवश मदिरा का सेवन करना शुरू करता है तो पहले तो सभी उसे कुछ नहीं कहते हैं। इस कारण वह शराब पीने के लिए और उत्साहित हो जाता है इसलिए वह रोज़ पीना शुरू कर देता है। उसे केवल एक बात का ध्यान रहता है कि कब शाम हो तथा कब वह शराब पीना शुरू करे। इस तरह उसे केवल शराब का ही ध्यान रहता है। वह बाकी सभी बातें भूल जाता है। उसके इस व्यवहार से दुःखी होकर परिवार में तनाव आ जाता है। निर्धनता के कारण आर्थिक तंगी आनी शुरू हो जाती है। आर्थिक तंगी के कारण परिवार में रोज़ क्लेश, लड़ाई-झगड़े शुरू हो जाते हैं। परिवार में विघटन आना शुरू हो जाता है। तलाक की स्थिति भी आ जाती है। आर्थिक तंगी से दुःखी होकर कई लोग आत्महत्या भी कर लेते हैं। इस तरह मद्यपान से पारिवारिक विघटन भी आ जाता है तथा पारिवारिक विघटन से सामाजिक विघटन भी हो जाता है।

4. कम नैतिकता (Less Morality)-जब व्यक्ति को अच्छे-बुरे का ज्ञान हो जाता है तो यह कहा जाता है कि उसमें नैतिकता आ गई है। परन्तु जब व्यक्ति मद्यपान करना शुरू कर देता है तो उसमें नैतिकता कम होनी शुरू हो जाती है। उसे अच्छे-बुरे का ध्यान नहीं रहता है। वह शराब के साथ-साथ और नशीली वस्तुओं का सेवन करना शुरू कर देता है। उसे शराब के आगे और कुछ भी अच्छा नहीं लगता है। वह किसी भी कीमत पर शराब हासिल करना चाहता है। इसके लिए वह अपने परिवार, पत्नी तथा बच्चों से भी लड़ता है, उन्हें पीटता भी है। इस तरह मद्यपान करने से उसे अच्छे-बुरे का पता चलना बन्द हो जाता है तथा नैतिकता खत्म हो जाती है।

5. आर्थिक तंगी (Economic Problems)-बहुत-से लोग अपनी चिन्ताओं को दूर करने के लिए शराब पीना शुरू कर देते हैं। आमतौर पर चिन्ताओं का कारण पैसा अथवा कम आय और अधिक खर्च होता है। उसे वैसे ही आर्थिक तंगी के कारण चिन्ताएं होती हैं तथा वह शराब पीना शुरू करके और आर्थिक तंगी में आ जाता जिससे उसके जीवन में और मुश्किलें आनी शुरू हो जाती हैं। नशीले पदार्थों के लिए वह घर की चीजें यहां तक कि पत्नी के गहने भी बेचना शुरू कर देता है। आर्थिक तंगी के कारण पत्नी लोगों के घरों में कार्य करके पैसे कमाती है तथा पति वह पैसे भी छीन कर शराब पीता है। वह पैसे-पैसे के लिए लोगों का मुंह ताकता रह जाता है। मद्यपान के कारण उसके परिवार पर बहुत बुरा असर पड़ता है तथा वह दर-दर की ठोकरें खाता है। इस तरह व्यक्ति का आर्थिक जीवन मद्यपान के कारण पूरी तरह नष्ट हो जाता है।

6. अपराधों का बढ़ना (Increasing Rate of Crimes)-मद्यपान से व्यक्ति की आर्थिक स्थिति खराब हो जाती है। परन्तु उसे शराब पीने के लिए पैसे चाहिए होते हैं। पैसे न होने की सूरत में वह घर के सामान को बेचना शुरू कर देता है। उसके बाद भी यदि उसे पैसे न मिले तो वह अपराध करने भी शुरू कर देता है। शराब न मिलने की स्थिति में उसका दिमाग काम करना बंद कर देता है तथा वह लूटमार, पिटाई इत्यादि करने भी शुरू कर देता है। डकैती, चोरी, बलात्कार इत्यादि जैसे अपराध तो साधारण बातें हैं। इन कार्यों को करते समय उसे नैतिकता का भी ध्यान नहीं रहता। इस तरह मद्यपान के कारण समाज में अपराध भी बढ़ जाते हैं।

7. स्वास्थ्य पर असर (Effect on Health)-जब व्यक्ति मद्यपान करना शुरू कर देता है तो शुरू में तो उसे कुछ नहीं होता परन्तु जब वह मदिरा का अधिक सेवन करने लग जाता है तो उसके स्वास्थ्य पर प्रभाव पड़ना शुरू हो जाता है। शराब न मिलने पर उसका शरीर कांपने लग जाता है, उसका लीवर खराब हो जाता है तथा कई और प्रकार की बीमारियां लग जाती हैं। शराब के बिना वह कुछ नहीं कर सकता। उसके कार्य करने की क्षमता खत्म हो जाती है। वह शराब पीता है तो कार्य कर सकता है नहीं तो उसका शरीर शिथिल पड़ जाता है। इस तरह मद्यपान का उसके शरीर पर काफ़ी बुरा असर पड़ता है।
इस प्रकार हम देख सकते हैं कि मद्यपान से व्यक्ति का परिवार ही नहीं बल्कि समाज भी विघटित हो जाता है। उसमें नैतिकता खत्म हो जाती है, अपराध बढ़ जाते हैं। इस तरह मद्यपान के व्यक्ति पर बहुत ही बुरे प्रभाव पड़ते हैं।

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प्रश्न 3.
मद्य व्यसन के विभिन्न पड़ावों पर विस्तृत टिप्पणी करें।
उत्तर-
किसी भी व्यक्ति को मद्यसारिक बनने के लिए बहुत-से अलग-अलग चरणों में से होकर गुजरना पड़ता है। जैलीनेक (Jellineck) के अनुसार किसी भी व्यक्ति को शराबी बनने के लिए सात अवस्थाओं में से गुजरना पड़ता है जोकि इस प्रकार हैं-

  • अन्धकार की स्थिति-इस स्थिति में व्यक्ति अपनी व्यक्तिगत समस्याओं का हल नहीं निकाल पाता है तथा हमेशा चिन्ता और तनाव में रहता है।
  • गुप्त रूप से पीना-जब वह अपनी समस्याओं का हल नहीं निकाल पाता है तो वह गुप्त रूप से पीना शुरू कर देता है जिसमें कोई उसे पीते हुए देख न सके।
  • बढ़ी हुई सहनशीलता-इस स्थिति से पहले ही पीना शुरू कर देता है तथा मदिरा पीने के बढ़े हुए प्रभावों को भी सहन करता है।
  • नियन्त्रण का अभाव-यह वह स्थिति है जब वह अधिक पीना शुरू कर देता है तथा उसको अपनी पीने की इच्छा पर नियन्त्रण नहीं रहता है।
  • पीने के बहाने ढूंढ़ना-इस स्थिति में आकर व्यक्ति पीने के बहाने ढूंढ़ता है ताकि समय-समय पर मद्यपान किया जा सके।
  • केवल पीने के कार्यक्रम रखना-मद्यपान करने वाला व्यक्ति इस स्थिति में समय-समय पर केवल पीने के कार्यक्रम रखता है तथा अपने रिश्तेदारों, मित्रों को आमन्त्रित करता रहता है ताकि नियमित रूप से पीया जा सके।
  • प्रातःकाल से ही पीना शुरू करना-इस स्थिति में आकर व्यक्ति नियमित रूप से प्रात:काल में पीना शुरू कर देता है तथा वह प्रत्येक कार्य करने के लिए मदिरा पर ही निर्भर रहता है।

इस प्रकार से व्यक्ति अपनी व्यक्तिगत समस्याओं को हल न कर पाने की स्थिति में पीना शुरू कर देता है तथा समय के साथ मनोरंजन के लिए भी पीना शुरू कर देता है। धीरे-धीरे वह पीने की सीमाएं पार करता जाता है तथा मद्यसारिक बन जाता है। अब उसे पीने के लिए किसी भी बहाने की आवश्यकता नहीं होती है तथा वह लगातार पीना शुरू कर देता है। वह इसका आदी हो जाता है तथा एक समय ऐसा आता है जब वह मदिरा का सेवन किए बिना कोई कार्य नहीं कर सकता। उसका शरीर उसके नियन्त्रण में नहीं रहता बल्कि शराब के नियन्त्रण में आ जाता है। शराब न मिलने की स्थिति में उसका शरीर कांपने लग जाता है तथा वह कोई कार्य नहीं कर सकता है। इस प्रकार वह मद्यसारिक बन जाता है।

वैसे मुख्य रूप से मद्यसारिक बनने के निम्नलिखित चार स्तर होते हैं :

  • पूर्व मद्य व्यसनी पड़ाव-इस स्तर पर व्यक्ति सामाजिक प्रतिबन्धों का फायदा उठाते हुए, अपनी चिंताओं को दूर करने तथा अपनी व्यक्तिगत समस्याओं से दूर भागने के लिए पीना शुरू कर देता है। वह पीने को राहत से जोड़ देता है कि पीने से उसकी चिन्ताएं खत्म हो जाती हैं तथा वह मद्यपान के मौके ढूंढ़ता है। जैसे-जैसे उसमें जीवन के संघर्षों से लड़ने का सामर्थ्य खत्म होता जाता है तो उसका पीना बढ़ता जाता है।
  • तनाव से मुक्ति के लिए पीने का स्तर-इस स्तर में मद्यपान की मात्रा के साथ मद्यपान के मौके भी बढ़ने शुरू हो जाते हैं। परन्तु इस स्तर पर व्यक्ति के भीतर गलती का अहसास होना शुरू हो जाता है कि वह एक असामान्य व्यक्ति बनता जा रहा है।
  • गंभीर अवस्था-इस स्तर पर व्यक्ति का मद्यपान करना एक विशेष घटना बन जाती है या पीना आम हो जाता है। यहाँ आकर व्यक्ति अपने पीने को तर्कसंगत बनाना शुरू कर देता है तथा स्वयं को विश्वास दिलाना शुरू कर देता है कि उसका स्वयं पर नियन्त्रण है, परन्तु इस स्तर पर व्यक्ति अन्य व्यक्तियों से दूर होना शुरू हो जाता है क्योंकि सभी उसे शराबी समझना शुरू कर देते हैं।
  • दीर्घकालिक अवस्था-इस स्तर पर व्यक्ति दिन में ही पीना शुरू कर देता है तथा हमेशा ही पीता रहता है। वह हमेशा ही नशे में रहता है जिससे उसकी सोचने की शक्ति कम हो जाती है, उसे कई चीजों से डर लगता है तथा उसकी कई प्रकार की कार्य करने की शक्ति खत्म हो जाती है। वह हमेशा मद्यपान के बारे में सोचता रहता है तथा उसके बिना बेचैन हो जाता है।

प्रश्न 4.
मद्य व्यसन पर नियंत्रण करने के लिए स्कूल व अध्यापक किस प्रकार सहायक हो सकते हैं-वर्णन करें।
उत्तर-
(i) स्कूल-घर की सुरक्षा से निकलकर बच्चा सबसे पहले जिस संस्था के हाथों में जाता है वह है स्कूल। यहाँ पर ही बच्चे के कच्चे मन पर प्रभाव पड़ना शुरू हो जाता है तथा यहाँ पर ही उसे समाज में रहने के तरीके सिखाए जाते हैं। उसे जीवन जीने, खाने-पीने, रहने-सहने, व्यवहार करने इत्यादि सभी प्रकार के ढंग स्कूल में ही सिखाए जाते हैं। स्कूल में बच्चा अन्य बच्चों से मिलता है तथा उनके साथ रहने के ढंग सीखता है। यह स्कूल ही होता है जो बच्चों के अर्द्धचेतन मन पर पक्का प्रभाव डाल कर उसे समाज का एक अच्छा नागरिक बनाने का प्रयास करता है।

अगर स्कूल बच्चे के मन पर इतना प्रभाव डालता है तो निश्चित रूप से बच्चों को मद्यपान से दूर रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। स्कूल में बच्चों को शुरू से ही मद्यपान के प्रभावों के बारे में बताया जा सकता है। स्कूल में सैमीनार करवाए जा सकते हैं, नाटक करवाए जा सकते हैं, नुक्कड़ नाटक खेले जा सकते हैं ताकि बच्चों को शराब के नकारात्मक प्रभावों के बारे में बताया जा सके। समय-समय पर बच्चों के माता-पिता को इस चीज़ के बारे में बताया जा सकता है तथा उन्हें कहा जा सकता है कि वह अपने बच्चों के लिए एक प्रेरणा बनें। इस प्रकार स्कूल में अगर बच्चे के मद्यपान के विरुद्ध विचार उत्पन्न हो जाएं तो वह तमाम आयु चलते रहेंगे तथा मद्यपान की समस्या स्वयं ही खत्म हो जाएगी।

(ii) अध्यापक-बच्चों को शराब से दूर रखने में अध्यापक बहुत बड़ी भूमिका निभा सकते हैं। माता-पिता के हाथों से निकलकर बच्चे अध्यापक के हाथों में आते हैं। इस कारण यह उनका उत्तरदायित्व होता है कि वह बच्चों को ठीक रास्ता दिखाएं। बच्चों के अचेतन मन पर सबसे अधिक प्रभाव अध्यापकों का ही पड़ता है। बच्चे अपने अध्यापक के व्यक्तित्व से काफी प्रभावित होते हैं तथा वह स्वयं को अध्यापक के अनुसार ढालने का प्रयास करते हैं। इस प्रकार अध्यापक का कार्य तथा उत्तरदायित्व काफ़ी बढ़ जाता है कि वह कोई गलत कार्य न करें जो बच्चों के लिए ठीक न हो। अध्यापक बच्चों के लिए एक प्रेरणास्रोत होते हैं जिस कारण बच्चे उनका अनुकरण करते हैं। अध्यापक समय-समय पर बच्चों को मद्यपान न करने के लाभों के बारे तथा पीने के नुकसानों के बारे में बता सकते हैं। बच्चे अध्यापक की बात काफ़ी जल्दी मानते हैं जिस कारण वह इस बारे में अपने विचार बना सकते हैं। इस प्रकार मद्यपान की समस्या को रोका जा सकता है।

प्रश्न 5.
नशा व्यसन विषय पर 250 शब्दों में नोट लिखें।
उत्तर-
आज नशे की समस्या पर काफ़ी विवाद चल रहा है। माता-पिता तथा और ज़िम्मेदार नागरिक इस नशा लेने की उपसंस्कृति से काफ़ी सावधान हो रहे हैं। नशा लेने की आदत को पथभ्रष्ट व्यवहार या सामाजिक समस्या के रूप में देखा जा सकता है। पथभ्रष्ट व्यवहार से मतलब है स्थिति से समायोजन न कर पाना है। एक सामाजिक समस्या के रूप,में इसका अर्थ है वह सर्वव्यापक स्थिति जिसके समाज के ऊपर नुकसानदायक प्रभाव पड़ते हैं। पश्चिमी देशों में इसको काफ़ी समय से सामाजिक समस्या के रूप में देखा जा रहा है। कई संस्कृतियों में किसी-न-किसी तरीके से नशा करना एक लक्षण रहा है। सबसे ज़्यादा प्रचलित तरीका अफीम खाने का रहा है। भारत में बड़े-बड़े परिवारों के लोग यह नशा किया करते थे पर अब भारत में इसे समस्या के रूप में देखा जा रहा है।

ड्रग एक ऐसी कैमिकल वस्तु है जिसके शरीर तथा दिमाग पर गहरे तथा अलग प्रकार के प्रभाव पड़ते हैं। यह एक आम व्यक्ति के शारीरिक कार्यों में परिवर्तन ले आता है। मैडीकल भाषा में ड्रग एक ऐसी चीज़ है जिसे डाक्टर रोगी को किसी बीमारी को ठीक करने के लिए देता है ताकि उसके शरीर पर असर पड़ सके। मानसिक तथा सामाजिक तौर पर ड्रग को एक आदत के रूप में लेते हैं जो सीधे तौर पर दिमाग पर असर डालता है तथा जिस का दुरुपयोग होने के मौके ज़्यादा होते हैं तथा जिसके शरीर पर गलत प्रभाव पड़ते हैं। इस परिभाषा के अनुसार ज़रूरत से ज़्यादा ड्रग लेना इतना खतरनाक माना जाता है कि कई बार यह आम जनता के विरुद्ध समाज के विरोधियों में उत्तेजना भर देता है। कुछ ड्रग शरीर पर अच्छा प्रभाव डालते हैं पर उनके विपरीत कुछ ड्रग जैसे हैरोइन, कोकीन, (L.S.D.), शराब, तम्बाकू इत्यादि के शरीर पर बुरे प्रभाव पड़ते हैं तथा व्यक्ति इनका आदी हो जाता है।।

नशे की आदत में आदत शब्द का मतलब है शारीरिक तौर पर आश्रित हो जाना। इस तरह आदत या शारीरिक तौर पर आश्रित होने का अर्थ है वह स्थिति जिसमें शरीर को कार्य करने के लिए वह चीज़ चाहिए जो वह बार-बार प्रयोग करता है। यदि उस चीज़ को शरीर को देना बन्द कर दिया जाए तो शरीर के कार्य करने की प्रक्रिया पर उल्टा प्रभाव पड़ेगा तथा उसके शरीर पर गलत प्रभाव दिखने लग जाएंगे। इस सारे का प्रभाव यह दिखेगा कि वह चीज़ नहीं है जिसकी उसे ज़रूरत है।

एक व्यक्ति जो लगातार नशे का प्रयोग करता है वह पहली बार ड्रग लेने के बाद लगातार उसकी मात्रा बढ़ाता रहता है ताकि उसका वही प्रभाव कायम रहे जो उस पर पहली बार पड़ा था। यह प्रक्रिया बर्दाशत (Tolerance) कहलाती है। इसमें शरीर की उस बाहर की चीज़ में प्रति क्षमता को दिखाया जाता है।

मानसिक तौर पर व्यक्ति उस समय ड्रग पर आश्रित होता है जब उसे लगने लगे कि इस ड्रग का लेना ही उसके शरीर के लिए अच्छा है या उस ड्रग के प्रभाव उस पर अच्छे पड़ते हैं। शब्द आदत को कभी-कभी दिमागी आश्रित के तौर पर भी लिया जा सकता है। इस रूप में आदत का अर्थ होता है कि शरीर उस ड्रग पर इतना ज्यादा या उस ड्रग के प्रभावों पर इतना ज़्यादा आश्रित है कि वह उसके बिना कुछ नहीं कर सकता है। इस तरह नशाखोरी का मतलब नशा करने की आदत से है। यह आदत इस हद तक जा सकती है कि व्यक्ति इसके अतिरिक्त कुछ सोचता ही नहीं है। इस नशे के प्रभाव का व्यक्ति पर इतना असर होता है कि उसका शरीर इसके अतिरिक्त किसी चीज़ को Respond नहीं करता है। यदि शरीर को नशे की मात्रा मिलती रहे तो वह सही तरीके से उस नशे के प्रभाव में काम करेगा। यदि शरीर को नशा न मिल पाया तो उसके गम्भीर परिणाम व्यक्ति के सामने आने शुरू हो जाते हैं। उसका शरीर नशा प्राप्त करने के लिए तड़पने लगता है तथा वह किसी भी हालत में तथा किसी भी कीमत पर नशा प्राप्त करने की कोशिश करता है। इस तरह ड्रग व्यक्ति पर इस कदर हावी हो जाता है कि वह हमेशा नशे के प्रभाव में रहना चाहता है।

प्रश्न 6.
नशीली दवाओं के व्यसन की समस्या का वर्णन करते हुए बताएं कि इस समस्या का समाधान आप कैसे कर सकते हैं ?
उत्तर-
नशीली दवाओं के व्यसन की समस्या का वर्णन-
आज नशे की समस्या पर काफ़ी विवाद चल रहा है। माता-पिता तथा और ज़िम्मेदार नागरिक इस नशा लेने की उपसंस्कृति से काफ़ी सावधान हो रहे हैं। नशा लेने की आदत को पथभ्रष्ट व्यवहार या सामाजिक समस्या के रूप में देखा जा सकता है। पथभ्रष्ट व्यवहार से मतलब है स्थिति से समायोजन न कर पाना है। एक सामाजिक समस्या के रूप,में इसका अर्थ है वह सर्वव्यापक स्थिति जिसके समाज के ऊपर नुकसानदायक प्रभाव पड़ते हैं। पश्चिमी देशों में इसको काफ़ी समय से सामाजिक समस्या के रूप में देखा जा रहा है। कई संस्कृतियों में किसी-न-किसी तरीके से नशा करना एक लक्षण रहा है। सबसे ज़्यादा प्रचलित तरीका अफीम खाने का रहा है। भारत में बड़े-बड़े परिवारों के लोग यह नशा किया करते थे पर अब भारत में इसे समस्या के रूप में देखा जा रहा है।

ड्रग एक ऐसी कैमिकल वस्तु है जिसके शरीर तथा दिमाग पर गहरे तथा अलग प्रकार के प्रभाव पड़ते हैं। यह एक आम व्यक्ति के शारीरिक कार्यों में परिवर्तन ले आता है। मैडीकल भाषा में ड्रग एक ऐसी चीज़ है जिसे डाक्टर रोगी को किसी बीमारी को ठीक करने के लिए देता है ताकि उसके शरीर पर असर पड़ सके। मानसिक तथा सामाजिक तौर पर ड्रग को एक आदत के रूप में लेते हैं जो सीधे तौर पर दिमाग पर असर डालता है तथा जिस का दुरुपयोग होने के मौके ज़्यादा होते हैं तथा जिसके शरीर पर गलत प्रभाव पड़ते हैं। इस परिभाषा के अनुसार ज़रूरत से ज़्यादा ड्रग लेना इतना खतरनाक माना जाता है कि कई बार यह आम जनता के विरुद्ध समाज के विरोधियों में उत्तेजना भर देता है। कुछ ड्रग शरीर पर अच्छा प्रभाव डालते हैं पर उनके विपरीत कुछ ड्रग जैसे हैरोइन, कोकीन, (L.S.D.), शराब, तम्बाकू इत्यादि के शरीर पर बुरे प्रभाव पड़ते हैं तथा व्यक्ति इनका आदी हो जाता है।।

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नशे की आदत में आदत शब्द का मतलब है शारीरिक तौर पर आश्रित हो जाना। इस तरह आदत या शारीरिक तौर पर आश्रित होने का अर्थ है वह स्थिति जिसमें शरीर को कार्य करने के लिए वह चीज़ चाहिए जो वह बार-बार प्रयोग करता है। यदि उस चीज़ को शरीर को देना बन्द कर दिया जाए तो शरीर के कार्य करने की प्रक्रिया पर उल्टा प्रभाव पड़ेगा तथा उसके शरीर पर गलत प्रभाव दिखने लग जाएंगे। इस सारे का प्रभाव यह दिखेगा कि वह चीज़ नहीं है जिसकी उसे ज़रूरत है।

एक व्यक्ति जो लगातार नशे का प्रयोग करता है वह पहली बार ड्रग लेने के बाद लगातार उसकी मात्रा बढ़ाता रहता है ताकि उसका वही प्रभाव कायम रहे जो उस पर पहली बार पड़ा था। यह प्रक्रिया बर्दाशत (Tolerance) कहलाती है। इसमें शरीर की उस बाहर की चीज़ में प्रति क्षमता को दिखाया जाता है।

मानसिक तौर पर व्यक्ति उस समय ड्रग पर आश्रित होता है जब उसे लगने लगे कि इस ड्रग का लेना ही उसके शरीर के लिए अच्छा है या उस ड्रग के प्रभाव उस पर अच्छे पड़ते हैं। शब्द आदत को कभी-कभी दिमागी आश्रित के तौर पर भी लिया जा सकता है। इस रूप में आदत का अर्थ होता है कि शरीर उस ड्रग पर इतना ज्यादा या उस ड्रग के प्रभावों पर इतना ज़्यादा आश्रित है कि वह उसके बिना कुछ नहीं कर सकता है। इस तरह नशाखोरी का मतलब नशा करने की आदत से है। यह आदत इस हद तक जा सकती है कि व्यक्ति इसके अतिरिक्त कुछ सोचता ही नहीं है। इस नशे के प्रभाव का व्यक्ति पर इतना असर होता है कि उसका शरीर इसके अतिरिक्त किसी चीज़ को Respond नहीं करता है। यदि शरीर को नशे की मात्रा मिलती रहे तो वह सही तरीके से उस नशे के प्रभाव में काम करेगा। यदि शरीर को नशा न मिल पाया तो उसके गम्भीर परिणाम व्यक्ति के सामने आने शुरू हो जाते हैं। उसका शरीर नशा प्राप्त करने के लिए तड़पने लगता है तथा वह किसी भी हालत में तथा किसी भी कीमत पर नशा प्राप्त करने की कोशिश करता है। इस तरह ड्रग व्यक्ति पर इस कदर हावी हो जाता है कि वह हमेशा नशे के प्रभाव में रहना चाहता है।

समाधान-यदि हम नशे की आदत को रोकना चाहते हैं तो इसके लिए समाज को मिलकर कोशिश करनी पड़ेगी क्योंकि किसी समस्या का समाधान एक या दो व्यक्तियों की कोशिशों की वजह से नहीं हो सकता, बल्कि इसके लिए सामूहिक कोशिश की ज़रूरत होती है। यदि कोई व्यक्तिगत रूप से इसको दूर करने के कोशिश करता है तो वह ज़्यादा से ज़्यादा अपनी समस्या दूर कर सकता है न कि समाज की। फिर भी इस समस्या के निवारण के कुछ उपाय निम्नलिखित हैं-

1. लोगों को इसके विरुद्ध जागृत करना-लोगों को नशे की आदत के विरुद्ध जागृत करना चाहिए। इसके लिए सरकार समाज-सेवी संस्थाएं, शिक्षण संस्थाएं बहुत कुछ कर सकती हैं। यह सब लोगों को नशे के नुकसान के बारे में बता सकते हैं कि नशे के क्या-क्या नुकसान हो सकते हैं। स्कूलों में, कॉलेजों में, विश्वविद्यालयों में, होस्टलों में, झोंपड़ पट्टियों में इसके ऊपर सैमीनार आयोजित किए जा सकते हैं। कई और साधनों जैसे नुक्कड़ नाटकों इत्यादि के जरिए उनको इनके नुकसान के बारे में बताया जा सकता है कि यह न केवल शरीर की बल्कि पैसे की बर्बादी भी करते हैं। इन तरीकों से हम विद्यार्थियों को तथा आम जनता को नशे के विरुद्ध कर सकते हैं।

2. डॉक्टरों का रवैया (Attitude) बदल कर-नशे की आदत दूर करने में डॉक्टर महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। देखा जाता है कि डॉक्टर मरीज़ को ठीक करने के लिए नशे वाली दवा दे देते हैं जिसकी मरीज को आदत पड़ जाती है। वह इसके बगैर नहीं रह सकता। यदि डॉक्टर अपना इस तरह का रवैया बदल कर मरीजों को नशे मिली दवा देनी बन्द कर दें तो भी इस समस्या का काफ़ी हद तक निवारण किया जा सकता है तथा लोगों की नशे की आदत को छुड़वाया जा सकता है।

3. नशे के आदियों के बारे में जानकारी-यदि कोई नशा करना शुरू करता है तो उसके पीछे कोई कारण होता है। बगैर किसी कारण के कोई इस समस्या का शिकार नहीं होगा। इसका हल इस तरह निकल सकता है कि उस व्यक्ति की पिछली ज़िन्दगी के बारे में जानने की कोशिश करनी चाहिए ताकि हम उस कारण को जान सकें जिस वजह से व्यक्ति ने नशा करना शुरू किया। यदि उस कारण का पता चल गया तो उस कारण को दूर करके इस समस्या का निवारण किया जा सकता है। इसलिए नशाखोरों के बारे में जानकारी प्राप्त करने से यह समस्या दूर हो सकती है।

4. माता-पिता का बच्चों के प्रति व्यवहार-कई बार देखने में आया है कि घरेलू व्यवहार नशे की आदत का एक कारण बनता है। माता-पिता के बीच समस्या, उनका बच्चों को समय न दे पाना या बच्चों के प्रति प्यार भरा व्यवहार न होना, बच्चों को नशे की तरफ ले जाता है। इसके लिए माता-पिता को बच्चों के प्रति अपना व्यवहार बदलना चाहिए। माता-पिता को बच्चों की प्रत्येक चीज़ का ध्यान करना चाहिए, उनका खाना-पीना, उनकी संगति, प्यार इत्यादि सभी चीज़ों का ध्यान रखना चाहिए, ताकि बच्चे नशे के प्रति आकर्षित न हों। माता-पिता को बच्चों को नशे के गलत प्रभावों की जानकारी भी देनी चाहिए।

5. नशा बेचने वालों को सज़ा देना-किसी को नशे की आदत लगाना उसकी ज़िन्दगी से खेलना है। इसलिए जो नशे का व्यापार करते हैं उन्हें सख्त सजा देनी चाहिए, क्योंकि जो एक बार नशे का आदी हो जाता है उसका अंत मौत पर ही जाकर रुकता है। इसलिए लोगों की ज़िन्दगी से खेलने वालों को सख्त सज़ा देकर हम समाज के लिए एक उदाहरण स्थापित कर सकते हैं कि कोई दोबारा ऐसी हरकत करने की कोशिश न करे।

6. उन पुलिस वालों तथा कानून के रखवालों को भी सख्त-से-सख्त सजा देनी चाहिए जो नशे का व्यापार करने वालों की मदद करते हैं। पुलिस की मदद के बिना समाज में कोई अपराध कर पाना बहुत मुश्किल है। इसलिए पुलिस पर नकेल डालनी चाहिए ताकि नशे का धंधा फलने-फूलने की बजाए बन्द हो जाए।

7. शिक्षक का योगदान-नशे की आदत को रोकने के लिए शिक्षक काफ़ी महत्त्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं। शिक्षक चाहे स्कूल में हों, कालेज में हों या विश्वविद्यालय में हों विद्यार्थी पर बहुत गहरा प्रभाव डालते हैं। यह शिक्षक ही होता है जो विद्यार्थी का जीवन संवारता है। ज़रा सोचिए कि यदि समाज से शिक्षक गायब हो जाएं तो क्या होगा। शिक्षक की बात हर विद्यार्थी मानता है। यहां पर शिक्षक एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। यह देखा गया है कि नशे करने की आदत छोटी उम्र में ही पड़ जाती है। शिक्षक बच्चों को इसके बुरे प्रभावों के बारे में बता सकता है कि इससे उनके शरीर, उनके भविष्य, उनके माता-पिता इत्यादि पर क्या प्रभाव पड़ेंगे। इस तरह बच्चे जो शिक्षक को अपना आदर्श मानते हैं उसकी बात मानकर नशे का विरोध कर सकते हैं।

8. मानसिकता को बदलना-नशे की आदत को कम करने के लिए अथवा खत्म करने के लिए लोगों की मानसिकता को भी बदलना चाहिए। उनको नशे के गलत प्रभावों के बारे में बताना चाहिए ताकि लोग इस आदत को छोड़ सकें। इसके लिए सैमीनार आयोजित किए जा सकते हैं, कैम्प लगाए जा सकते हैं, गली-नुक्कड़ों पर नाटक किए जा सकते हैं ताकि लोगों को इनके गलत प्रभावों के बारे में पता चल सके।

9. समाज-सेवी संस्थाओं का योगदान-मादक द्रव्य व्यसन की आदत को कम करने में समाज सेवी संस्थाएं महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं। यह लोगों में चेतना जागृत कर सकते हैं, उनको नशे की आदत के गलत प्रभावों के बारे में बता सकते हैं तथा कार्यक्रम आयोजित कर सकते हैं। इसके लिए सरकार इन्हें वित्तीय सहायता भी दे सकती है।
इस प्रकार यदि लोग एक-दूसरे से मिलकर कार्य करें तथा सरकार प्रयत्न करे तो मादक द्रव्य व्यसन की आदत को काफ़ी कम किया जा सकता है।

प्रश्न 7.
नशा व्यसन के उत्तरदायी कारणों की विस्तार से चर्चा करें।
उत्तर-
वैसे तो मादक द्रव्य व्यसन के बहुत-से कारण हो सकते हैं जैसे संगति, परिवार का कम नियन्त्रण, मज़ा करने की इच्छा, बड़ों को देख कर ऐसा करना इत्यादि पर कुछ महत्त्वपूर्ण कारणों का वर्णन निम्नलिखित है
नशे की आदत के कारणों को हम चार भागों में बांट सकते हैं-

1. मानसिक कारण (Psychological Causes)-

(i) तनाव घटाना-कई लोग नशे के इसलिए आदी हो जाते हैं क्योंकि वह तनाव कम करना चाहते हैं। कई व्यक्ति ऐसे होते हैं जिनको कई प्रकार की परेशानियां या समस्याएं होती हैं। जब उनसे इन समस्याओं का समाधान नहीं हो पाता तो वह अपना तनाव कम करने के लिए नशे का सहारा लेते हैं। इस तरह धीरे-धीरे वह नशे के आदी हो जाते हैं। इस तरह तनाव दूर करने के लिए नशे लेने से व्यक्ति धीरे-धीरे नशे के आदी हो जाते हैं।

(ii) उत्सुकता पूरी करना-कई व्यक्तियों में यह जानने की उत्सुकता होती है कि यदि कोई नशा किया जाए तो कैसा महसूस होता है। इस तरह वह पहली बार उत्सुकता के लिए नशा करता है पर धीरे-धीरे उसे इस नशे की आदत पड़ जाती है। इस तरह उत्सुकता पूरी करते समय वह नशे का आदी हो जाता है।

(iii) तनाव कम करना-कई व्यक्तियों के पास कोई काम नहीं होता है। इसलिए वह अपना समय बिताने के लिए नशा करना शुरू करते हैं, पर धीरे-धीरे उनको इसकी आदत पड़ जाती है। केवल काम ही नहीं और बहुत से कारण हैं जिनसे व्यक्ति में तनाव आ जाता है। उदाहरण के तौर पर उसकी आय कम है, व्यापार ठीक प्रकार से नहीं चल रहा है, घर में पत्नी के व्यवहार से परेशानी है, बच्चों की पढ़ाई की चिंता है, दफ्तर के कार्य से अथवा बॉस के व्यवहार से परेशान है इत्यादि। इन सभी कारणों के अतिरिक्त और बहुत-से कारण हो सकते हैं जिनसे व्यक्ति में तनाव आ सकता है। तनाव पूरी तरह तो दूर नहीं हो सकता है परन्तु कुछ समय के लिए तो दूर हो सकता है। इसलिए कुछ समय के लिए तनाव को दूर करने के लिए वह और कुछ नहीं तो शराब का सहारा लेते हैं जिससे तनाव कम हो जाता है।

(iv) आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए-कई व्यक्ति अपना आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए भी नशा करते हैं जैसे कोई व्यक्ति किसी काम को करने के लिए जा रहा है पर उसे थोड़ी शंका होती है कि शायद वह यह काम नहीं कर पाएगा इसलिए वह अपने आत्मविश्वास को बढ़ाने के लिए नशा कर लेता है। इसके बाद हर काम से पहले वह नशा करता है तथा धीरे-धीरे वह नशे का आदी हो जाता है।

2. सामाजिक कारण (Social Causes) –

  • दोस्तों की वजह से कई बार अपने दोस्तों की वजह से भी व्यक्ति नशा करने का आदी हो जाता है। यदि किसी के दोस्त नशा करते हैं तो वे दोस्त उसे नशा करने को कहते हैं। उसके मना करने पर वे उसका मज़ाक उड़ाते हैं। इस मज़ाक से बचने के लिए वह थोड़ा सा नशा कर लेता है। इस तरह जब भी वह अपने दोस्तों से मिलता है थोड़ा सा नशा कर लेता है। धीरे-धीरे वह नशे का आदी हो जाता है।
  • पारिवारिक कारण-यदि कोई बच्चा नशा करना शुरू करता है तो हो सकता है कि उसके परिवार में कोई समस्या हो। हो सकता है कि उसके मां-बाप की न बनती हो तथा उसको इससे तनाव रहता है। उसके मां-बाप उसे समय न देते हों, उस पर नियन्त्रण की कमी हो। यदि कोई बड़ा नशे का आदी है तो हो सकता है कि उसकी पत्नी से उसकी हमेशा लड़ाई रहती हो, उसके बच्चों की वजह से उसे कोई परेशानी हो, कोई आर्थिक कारण हो। इस तरह पारिवारिक कारण भी नशाखोरी का कारण बनता है।
  • बड़ों को देखकर इच्छा जागना-यदि कोई बच्चा नशा करना शुरू करता है तो हो सकता है कि उसे घर के बड़ों को नशा करते देख यह इच्छा जागी हो कि नशा करके देखना चाहिए। जब बड़े नशा करते हैं तो बच्चे इनको बड़े ध्यान से देखते हैं कि वह क्या कर रहे हैं। इनके बाद वह भी ऐसा ही करने की कोशिश करते हैं तथा धीरे-धीरे नशे के आदी हो जाते हैं।
  • सामाजिक मूल्यों के विरोध के लिए कई बार व्यक्ति सामाजिक मूल्यों का विरोध करने के लिए भी नशा करने लग जाता है। उसे इस बात से रोका जाता है कि नशा नहीं करना चाहिए। उसे इतना रोका जाता है कि वह आवेग में आकर उसका विरोध करने के लिए नशा करने लगता है।

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3. शारीरिक कारण (Physiological Causes)-

  • जागते रहने के लिए-कई लोग सिर्फ जागते रहने के लिए नशा करना शुरू कर देते हैं। कइयों का काम रात का होता है पर उनको नींद आती है। इस वजह से वह जागते रहने के लिए नशे का सहारा लेते हैं। कइयों की कई प्रकार की परेशानियां होती हैं। यदि नींद आएगी तो वह परेशानियां सताएंगी इस वजह से वह जागते रहने के लिए नशे का सहारा लेते हैं।
  • कामुक अनुभव को बढ़ाना-कई लोगों में कामुकता ज़्यादा होती है इसलिए वह अपने कामुक अनुभव को ज़्यादा-से-ज्यादा बढ़ाना चाहते हैं। इस वजह से वह नशा करते हैं ताकि इसके अनुभव का प्रभाव ज्यादा-से-ज्यादा प्राप्त हो। इसलिए वे नशा ले लेते हैं।
  • नींद के लिए-कई लोगों को नींद न आने की समस्या होती है। इसमें चाहे हम उसके शारीरिक कारणों को सम्मिलित कर लेते हैं या सामाजिक कारणों को। पर उनको नींद चाहिए होती है। इसलिए वे नींद की गोलियां या कोई और नशा लेने लग जाते हैं ताकि नींद आ सके।

4. अन्य कारण (Miscellaneous Causes)-

  • पढ़ने के लिए-कई लोग पढ़ने के लिए भी ड्रग या नशे का सहारा लेते हैं। कइयों को पढ़ते वक्त नींद आती है इस वजह से वह शुरू-शुरू में कोई नशा करता है ताकि उसे नींद न आए। पर धीरे-धीरे वह इस नशे का आदी हो जाता है तथा वह हमेशा पढ़ने से पहले नशा करता है।
  • इसमें हम कई चीज़ों को ले सकते हैं जैसे (Deepening Self-understanding तथा Solving Personal Problems)—-इन वजहों से या समस्याओं की वजह से व्यक्ति नशा करना शुरू करता है पर धीरे-धीरे वह इसका आदी हो जाता है। इस तरह अपनी व्यक्तिगत समस्याओं को दूर करते-करते वह एक नई समस्या का शिकार हो जाता है।

अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न (OTHER IMPORTANT QUESTIONS)

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न

A. बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
इनमें से कौन-सी अवस्था सामाजिक समस्या की है ?
(क) समाज के अधिकतर लोग प्रभावित होते हैं।
(ख) यह एक अवांछनीय स्थिति होती है।
(ग) सामाजिक मूल्यों में संघर्ष होता है।
(घ) उपर्युक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 2.
इनमें से कौन-सा सामाजिक समस्या का आर्थिक कारक है ?
(क) बेरोज़गारी
(ख) निर्धनता
(ग) गंदी बस्तियां
(घ) उपर्युक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 3.
जो वर्ष में एक-दो बार पीता हो उसे क्या कहते हैं ?
(क) दुर्लभ उपभोगी
(ख) कभी-कभी उपभोग करने वाले
(ग) हल्के उपभोगी
(घ) नियमित उपभोगी।
उत्तर-
(क) दुर्लभ उपभोगी।

प्रश्न 4.
उस व्यक्ति को क्या कहते हैं जो सुबह से ही पीना शुरू कर देता है ?
(क) नियमित उपभोगी
(ख) हल्के उपभोगी
(ग) भारी उपभोगी
(घ) दुर्लभ उपभोगी।
उत्तर-
(ग) भारी उपभोगी।

प्रश्न 5.
इनमें से कौन-सा नशे का प्रकार है ?
(क) अफीम
(ख) कोकीन
(ग) चरस
(घ) उपर्युक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपर्युक्त सभी।

B. रिक्त स्थान भरें-

1. …………. के हालात समाज के लिए अवांछनीय होते हैं।
2. ………….. भी एक प्रकार का नशा है जिसे पिया जाता है।
3. हैरोइन, अफीम, कोकीन इत्यादि ………… की श्रेणी में आते हैं।
4. ………….. तथा ……….. बच्चों को नशे से दूर रखने में काफी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
5. …………… करने से व्यक्ति के स्वास्थ्य पर काफी गलत प्रभाव पड़ता है।
उत्तर-

  1. सामाजिक समस्या
  2. शराब
  3. नारकोटिक्स
  4. स्कूल, अध्यापक
  5. नशा।

C. सही/ग़लत पर निशान लगाएं-

1. सामाजिक समस्या समाज के अधिकतर लोगों को प्रभावित करती है।
2. गांजा एक नारकोटिक है।
3. नशा करने वाला व्यक्ति हमेशा नशा करने की इच्छा में रहता है।
4. केंद्रीय सरकार ने 1955 में The Narcotic Drugs and Psychotropic Substance Act बनाया
5. सामाजिक समस्या में सामाजिक मूल्यों में संघर्ष नहीं होता।
उत्तर-

  1. सही
  2. सही
  3. सही
  4. गलत
  5. गलत।

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II. एक शब्द/एक पंक्ति वाले प्रश्न उत्तर

प्रश्न 1. सामाजिक समस्या क्या होती है ?
उत्तर-सामाजिक समस्या वह अवांछनीय स्थिति है जिन्हें सभी लोग बदलना चाहते हैं।

प्रश्न 2. सामाजिक समस्या किस पर निर्भर करती है ?
उत्तर-सामाजिक समस्या समाज की कीमतों तथा मूल्यों पर निर्भर करती है।

प्रश्न 3. सामाजिक समस्या समाज के कितने व्यक्तियों को प्रभावित करती है ?
उत्तर- यह समाज के अधिकतर व्यक्तियों को प्रभावित करती है।

प्रश्न 4. सामाजिक समस्या के सामाजिक सांस्कृतिक कारक बताएं।
उत्तर-अस्पृश्यता, पितृ प्रधान समाज, भ्रूण हत्या, दहेज, घरेलू हिंसा, स्त्रियों के विरुद्ध हिंसा इत्यादि।

प्रश्न 5. सामाजिक समस्या के आर्थिक कारक बताएं।
उत्तर-निर्धनता, बेरोजगारी, गंदी बस्तियां, अनपढ़ता, अपराध इत्यादि।

प्रश्न 6. मद्यपान क्या होता है ?
उत्तर- जब व्यक्ति आवश्यकता से अधिक शराब पीने लग जाए उसे मद्यपान कहते हैं।

प्रश्न 7. दुर्लभ उपभोगी कौन होता है ?
उत्तर- जो व्यक्ति वर्ष में एक-दो बार मद्यपान करता है उसे दुर्लभ उपभोगी कहते हैं।

प्रश्न 8. कभी-कभी उपभोग करने वाला कौन होता है ?
उत्तर-जो दो-तीन महीनों में एक बार पीता है।

प्रश्न 9. हल्के उपभोगी कौन होते हैं ?
उत्तर- जो महीने में एक-दो बार पीते हैं उन्हें हल्के उपभोगी कहते हैं।

प्रश्न 10. नियमित उपभोगी कौन होते हैं ?
उत्तर-महीने में तीन या चार बार पीने वाले को नियमित उपभोगी कहते हैं।

प्रश्न 11. भारी पियक्कड़ कौन होता है ?
उत्तर-जो रोज़ पीता है, वह भारी पियक्कड़ होता है।

प्रश्न 12. भारत की कितनी वयस्क जनसंख्या जीवन में कभी न कभी शराब पीती है ?
उत्तर-32-42% वयस्क जनसंख्या।

प्रश्न 13. मद्यपान का एक कारण बताएं।
उत्तर-लोग अपनी चिंताओं को भुलाने के लिए शराब पीते हैं।

प्रश्न 14. मद्यपान का एक प्रभाव बताएं।
उत्तर- मद्यपान से पैसे और स्वास्थ्य की बर्बादी होती है।

प्रश्न 15. ड्रग क्या है ?
उत्तर-ड्रग ऐसा कैमीकल होता है जो हमारे शरीर के शारीरिक तथा मानसिक कार्य करने की शक्ति पर प्रभाव डालता है।

प्रश्न 16. किन्हीं चार नारकोटिक पदार्थों के नाम बताएं।
उत्तर-अफीम, कोकीन, हैरोइन, चरस, गांजा, मारीजुआना इत्यादि।

प्रश्न 17. The Narcotic Drugs and Psychotropic Substance Act कब पास हुआ था ?
उत्तर-यह कानून 1985 में पास हुआ था।

III. अति लघु उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
सामाजिक समस्या की दो विशेषताएं बताएं।
उत्तर-

  • सामाजिक समस्या ऐसी अवांछनीय स्थिति होती है जिनसे समाज के अधिकतर सदस्य प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित होते हैं।
  • सामाजिक समस्या के बारे में समाज के अधिकतर लोग यह मानते हैं कि इन अवांछनीय स्थितियों का हल निकालना आवश्यक होता है।

प्रश्न 2.
सामाजिक समस्या के सामाजिक सांस्कृतिक कारण लिखें।
उत्तर-
भारत में बहुत से धर्मों, जातियों, अलग-अलग भाषाएं बोलने वाले लोग रहते हैं जिस कारण यहाँ बहुतसी सामाजिक सांस्कृतिक समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं। अस्पृश्यता, भ्रूण हत्या, दहेज, घरेलू हिंसा, स्त्रियों के विरुद्ध हिंसा इत्यादि भी कई प्रकार की समस्याएं हैं जो यहां पर मिलती हैं।

प्रश्न 3.
मद्यपान के तीन कारण लिखें।
उत्तर-

  1. लोग अपनी चिंताओं को खत्म करने के लिए मद्यपान करते हैं।
  2. लोगों का पेशा उन्हें थका देता है जिस कारण वे मद्यपान करना शुरू कर देते हैं।
  3. कई लोग अपने मित्रों के साथ बैठना पसंद करते हैं तथा उनके साथ मद्यपान करना शुरू कर देते हैं।

प्रश्न 4.
नशीली दवाओं के व्यसन के तीन कारण लिखें।
उत्तर-

  1. कई बार मित्र समूह व्यक्ति को नशा करने के लिए बाध्य करते हैं।
  2. कई बार व्यक्ति स्वयं को अकेला महसूस करता है तथा अकेलेपन को दूर भगाने के लिए नशा करना शुरू कर देता है।
  3. कई लोग जीवन के हालातों का मुकाबला नहीं कर सकते तथा उनसे दूर भागने के लिए नशा करना शुरू कर देते हैं।

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IV. लघु उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
मद्यपान।
उत्तर-
मद्यपान उस स्थिति को कहते हैं जिसमें व्यक्ति मदिरा लेने की मात्रा पर नियन्त्रण नहीं रख पाता है जिससे वह सेवन करने को शुरू करने के बाद उसे बन्द नहीं कर सकता है।
केलर तथा एफ्रोन (Keller and Affron) के अनुसार, “मद्यपान का लक्षण मदिरा का इस सीमा तक बार-बार पीना है जोकि उसके प्रथागत उपयोग अथवा समाज के सामाजिक रिवाजों के अनुपालन से अधिक है और जो पीने वाले के स्वास्थ्य या उसके सामाजिक अथवा आर्थिक कार्य करने को प्रभावित करता है।”

प्रश्न 2.
मद्यसारिक व्यक्ति।
उत्तर-
मद्यसारिक अथवा शराबी व्यक्ति वह व्यक्ति है जो मदिरा का सेवन करता है अथवा पीने वाला होता है। मजबूरी में पीने वाला व्यक्ति (Compulsive) मदिरा पिए बिना नहीं रह सकता है। इस तरह जो व्यक्ति मदिरा पिए बिना नहीं रह सकता उसे मद्यसारिक व्यक्ति अथवा शराबी कहते हैं। उसका अपने ऊपर नियन्त्रण कम हो जाता है। वह रोजाना पीते-पीते इतना आगे निकल जाता है कि वह बिना पिए कोई कार्य भी नहीं कर सकता है। बिना पिए उसके हाथ पैर कांपने लगते हैं।

प्रश्न 3.
मद्यसारिक व्यक्तियों के प्रकार।
उत्तर-

  • विरले मद्यसारिक जो वर्ष में एक या दो बार पीते हैं।
  • अनित्य मद्यसारिक जो दो तीन महीने में एक या दो बार शादी विवाह में पीते हैं।
  • हल्का प्रयोक्ता मद्यसारिक जो महीने में एक या दो बार पीते हैं।
  • मध्यम प्रयोक्ता मद्यसारिक जो अपनी छुट्टी का आनन्द लेने के लिए महीने में तीन-चार बार पीते हैं।
  • भारी प्रयोक्ता मद्यसारिक जो प्रतिदिन अथवा दिन में कई बार पीते हैं।

प्रश्न 4.
मद्यपान का कारण-व्यवसाय।
उत्तर-
बहुत-से मामलों में व्यवसाय मद्यपान का कारण बनता है। कई लोगों का व्यवसाय ऐसा होता है कि वे काम करते-करते इतना थक जाते हैं कि उन्हें अपने आपको दोबारा कार्य करने के लिए किसी चीज़ की आवश्यकता होती है। इससे उनकी थकावट भी मिट जाती है तथा उन्हें अगले दिन कार्य करने के लिए प्रेरणा भी मिलती है। कई लोग अपने व्यवसाय से जुड़े और लोगों को खुश करने के लिए भी मद्यपान करना शुरू कर देते हैं। उदाहरण के लिए किसी कर्मचारी को अपने मालिक को खुश करने के लिए मालिक के साथ मदिरा पीनी पड़ती है जिससे वह मदिरा का आदी हो जाता है। इस तरह व्यवसाय के कारण व्यक्ति को मदिरा पीनी पड़ती है तथा वह इसका आदी हो जाता है।

प्रश्न 5.
मानसिक तनाव-मद्यपान का कारण।
उत्तर-
प्रत्येक व्यक्ति किसी-न-किसी तनाव का शिकार होता है। किसी के पास पैसा नहीं है तो उसे अपना घर चलाने का तनाव है, किसी के पास पैसा है तो उसे सम्भालने की चिन्ता है, किसी को व्यापार की चिन्ता है, किसी को दफ़्तर की चिन्ता है, कोई निर्धनता से परेशान है तो कोई अपने मालिक, बॉस या बीवी से, किसी को व्यापार में घाटा होने की चिन्ता है तो किसी को प्रतिस्पर्धा की। इस प्रकार प्रत्येक व्यक्ति किसी-न-किसी मानसिक चिन्ता का शिकार है। यदि वह शराब पीता है तो यह शराब उसके स्नायु तन्त्र को कुछ समय के लिए शिथिल कर देती है तथा कम-सेकम कुछ समय के लिए उसे मानसिक तनाव से मुक्ति मिल जाती है।

प्रश्न 6.
निर्धनता-मद्यपान का कारण।
उत्तर-
निर्धन व्यक्ति को हमेशा पैसा कमाने की चिन्ता रहती है। उसके परिवार के सदस्य तो अधिक होते हैं परन्तु कमाने वाला वह अकेला ही होता है। इसलिए घर का खर्च तो अधिक होता है परन्तु आय काफ़ी कम होती है। बच्चों को पढ़ाने, कपड़े, खाने की चिन्ता उसे हमेशा ही लगी रहती है। इसलिए वह चिन्ता से दूर होने के लिए शराब का सहारा ले लेता है। शराब पीने से उसे कुछ समय के लिए चिन्ताओं तथा तनाव से मुक्ति मिल जाती है। इस तरह वह धीरेधीरे अधिक मात्रा में शराब पीनी शुरू कर देता है तथा वह महामारिक हो जाता है।

प्रश्न 7.
मादक द्रव्य व्यसन।
उत्तर-
जब व्यक्ति किसी ऐसे पदार्थ का उपयोग करता है जिससे उसका शरीर उस पदार्थ अथवा द्रव्य पर निर्भर हो जाता है तो उसे मादक द्रव्य व्यसन कहा जाता है। द्रव्य वह चीज़ है जो मस्तिष्क तथा नाड़ी मण्डल को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करता है। इस तरह जब व्यक्ति उस द्रव्य पर इतना अधिक निर्भर हो जाता है कि उसके बिना रह ही नहीं सकता है तो उसे मादक द्रव्य व्यसन कहा जाता है।

प्रश्न 8.
द्रव्य दुरुपयोग।
उत्तर-
जब व्यक्ति किसी अवैध द्रव्य का सेवन करने लग जाता है अथवा वैध द्रव्य का गलत प्रयोग (Misuse) करने लग जाता है तो उसे द्रव्य दुरुपयोग कहा जाता है। इससे उसको शारीरिक तथा मानसिक नुकसान पहुंचता है। कोकीन तथा एल० एस० डी० का प्रयोग, हेरोइन का प्रयोग, हशीश या गांजे को पीना, मद्यपान करना इत्यादि सभी इसमें शामिल हैं। इसका प्रयोग करने पर उसे असीम आनन्द आता है, वह आमोद यात्रा (Trip) पर चला जाता है। इसको पीने के बाद ही वह कुछ कार्य नही कर सकता है अन्यथा इसके बिना वह कुछ भी नहीं कर सकता है।

प्रश्न 9.
द्रव्य निर्भरता।
उत्तर-
जब व्यक्ति किसी वैध अथवा अवैध द्रव्य का रोज़ सेवन करने लग जाता है तथा उसका सेवन किए बिना रह नहीं सकता है तो उसे द्रव्य निर्भरता कहते हैं। निर्भरता शारीरिक भी होती है तथा मानसिक भी। जब व्यक्ति लगातार किसी द्रव्य का बार-बार सेवन करता है तथा द्रव्य को अपने अन्दर समा लेता है तो इसे शारीरिक निर्भरता कहते हैं। परन्तु जब द्रव्य बन्द करने से उसे दर्द, पीड़ा होती है तो शारीरिक हानि के साथ मानसिक हानि भी होती है।

प्रश्न 10.
मादक द्रव्य व्यसन की विशेषताएं।
उत्तर-

  • मादक द्रव्य व्यसन में व्यक्ति को द्रव्य प्राप्त करने की बहुत तेज़ इच्छा जागती है।
  • इस स्थिति में उसे द्रव्य किसी भी ढंग से प्राप्त करना होता है नहीं तो शरीर शिथिल पड़ जाता है।
  • मादक द्रव्य व्यसन में द्रव्य बढ़ाते रहने की प्रवृत्ति होती है।
  • मादक द्रव्य व्यसन में व्यक्ति मानसिक तथा शारीरिक तौर पर नशीली दवाओं पर निर्भर हो जाता है।

प्रश्न 11.
मादक द्रव्यों के प्रकार।
अथवा नशे के कोई दो प्रकार लिखिए।
उत्तर-

  1. शराब (Liquor)
  2. शान्तिकर पदार्थ (Sedatives)
  3. नारकोटिक्स (Narcotics)
  4. उत्तेजक पदार्थ (Stimulants)
  5. भ्रमोत्पादक पदार्थ (Hallucinogens)
  6. निकोटीन अथवा तम्बाकू (Nicotine)।

प्रश्न 12.
मादक द्रव्य व्यसन के मानसिक कारण।
उत्तर-

  • जब व्यक्ति अपने ऊपर पड़े तनाव को घटाना चाहता है तो वह मादक द्रव्यों का प्रयोग करने लग जाता है।
  • कई व्यक्तियों में यह जानने की इच्छा होती है कि नशा किए जाने पर कैसे महसूस होता है तो भी वह नशा करने लग जाते हैं।
  • बेरोज़गार व्यक्ति अपना समय पास करने के लिए भी इसका व्यसन करना शुरू कर देते हैं।
  • कई लोग आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए भी इसका प्रयोग करना शुरू कर देते हैं।

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प्रश्न 13.
मादक द्रव्य व्यसन के सामाजिक कारण।
उत्तर-

  • कई बार व्यक्ति के दोस्त उसे नशा न करने के लिए उसका मज़ाक उड़ाते हैं जिस कारण वह नशा करने लग जाता है।
  • घर में लड़ाई-झगड़े के कारण भी लोग नशा करना शुरू कर देते हैं ताकि उसे कोई तनाव न हो।
  • कभी-कभी व्यक्ति में बड़ों को देखकर नशा करने की इच्छा जागती है जिससे वह नशा करना शुरू कर देता

प्रश्न 14.
मादक द्रव्य व्यसन को रोकने के उपाय।
उत्तर-

  • लोगों को नशा न करने के विरुद्ध जागृत करना चाहिए ताकि वे नशा न करने की प्रेरणा ले सकें।
  • डॉक्टरों को अपने मरीज़ों को नशे की दवाओं को देने से बचना चाहिए ताकि वे नशे के आदी न होने पाएं।
  • लोगों को नशे के नुकसानों के बारे में जानकारी देनी चाहिए ताकि लोग इससे दूर रहें।
  • माता-पिता को अपने बच्चों से दोस्तों सा व्यवहार करना चाहिए तथा उन्हें नशे के गलत परिणामों के बारे में लगातार उन्हें बताना चाहिए ताकि वे नशे से दूर रहें।

V. बड़े उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
मद्यपान को कैसे रोका जा सकता है? वर्णन करें।
अथवा
मद्यपान की समस्या का समाधान कैसे हो सकता है ?
उत्तर-
मद्यपान एक ऐसी समस्या है जिसका सामना हमारा समाज पिछले काफी समय से कर रहा है। इस समस्या से न केवल व्यक्ति स्वयं ही बल्कि उसका परिवार और समाज भी विघटित हो जाता है। उसमें नैतिकता खत्म हो जाती है, वह अपराध करने लग जाता है तथा उसका स्वास्थ्य भी खराब हो जाता है। इस तरह व्यक्ति पर इसके बहुत-से दुष्परिणाम निकलते हैं। हमें इस समस्या को मिलकर सुलझाना चाहिए ताकि समाज को विघटित होने से बचाया जा सके। सरकार तथा समाज सेवी संस्थाएँ इसमें बहुत ही महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं। इस समस्या को निम्नलिखित ढंगों से रोकने के प्रयास किए जा सकते हैं

(1) सबसे पहले तो व्यक्ति को स्वयं ही इस बात के लिए प्रेरित करना चाहिए कि वह मद्यपान की शुरुआत ही न करे। जब वह मद्यपान करना शुरू ही नहीं करेगा तो इसका आदी कैसे होगा। परिवार इसमें महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। परिवार के बड़े बुजुर्ग भी मद्यपान न करके बच्चों के सामने प्रेरणा बन सकते हैं। बड़े बुजुर्ग बच्चों को इसके दुष्परिणामों के बारे में बता सकते हैं। समय-समय पर उन्हें इसके बारे में प्यार से बिठा कर शिक्षा दे सकते हैं ताकि वे रास्ते से न भटक जाएं।

(2) सरकार इसके लिए बहुत ही महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। सरकार मद्यपान निषेध की नीति की घोषणा कर सकती है। राज्य में शराब बन्दी लगा सकती है। जो लोग फिर भी शराब बेचें या खरीदें उन्हें कठोर दण्ड देना चाहिए ताकि लोग इससे डर जाएं तथा शराब का व्यापार करना ही बन्द कर दें। सरकार को शराब पीने वालों को भी हतोत्साहित करना चाहिए ताकि वे शराब को छोड़ दें।

(3) डाक्टर यदि मद्यसारिक व्यक्तियों का इलाज करते हैं तो उनके मन में उनके प्रति नफरत होती है। इससे मद्यसारिक व्यक्ति को काफ़ी ठेस पहुंचती है। इसके लिए डाक्टरों को अपने व्यवहार को परिवर्तित करना चाहिए ताकि शराबी व्यक्ति अपना दिल लगाकर शराब छोड़ने की प्रक्रिया में अपना योगदान दे सकें। डाक्टरों को शराबियों के प्रति दया से भरपूर रहना चाहिए ताकि रोगी को ठेस न पहुँचे।

(4) शराबबन्दी तथा शराब न पीने के लिए जोरदार प्रचार करना चाहिए। सरकार, समाज सेवी संस्थाएँ तथा लोग इसके लिए टी०वी, रेडियो, समाचार पत्र, मैगज़ीनों इत्यादि का सहारा ले सकते हैं तथा इसके दुष्परिणामों के विरुद्ध जोर शोर से प्रचार कर सकते हैं। शिक्षा संस्थाएँ भी इसके लिए आगे आ सकती हैं। वे अपने संस्थानों में पढ़ रहे बच्चों को इसके लिए जागृत कर सकती हैं। समय-समय पर इसके बारे में सैमीनार, लैक्चर इत्यादि करवाए जा सकते हैं ताकि लोग इस समस्या से दूर ही रहें।

(5) आमतौर पर शराब को मनोरंजन के तौर पर प्रयोग किया जाता है। परन्तु यदि इसे बंद कर दिया गया तो लोगों के मनोरंजन का साधन बंद हो जाएगा। इसके लिए सरकारी तथा गैर-सरकारी संस्थान मिलकर मनोरंजन केन्द्रों की स्थापना कर सकते हैं ताकि लोग अपना समय शराब पीने की बजाए इन केन्द्रों पर जाकर व्यतीत कर सकते हैं।

(6) लोगों को इस समस्या के बारे में जागृत करना चाहिए। यह समस्या इतनी बड़ी है कि उसे एक दो दिन में ही हल नहीं किया जा सकता। इसके लिए लोगों को समय-समय पर जागृत करने की आवश्यकता होती है। हमारे देश में अनपढ़ता के कारण लोग इस समस्या के दुष्परिणामों के बारे में अनजान है। लोगों को शराब न पीने की शिक्षा देकर, उनको अच्छे प्रकार से जीवन व्यतीत करने की शिक्षा देनी चाहिए। यदि लोगों को अच्छी तरह से शिक्षित किया जाए तो यह समस्या तेज़ी से खत्म की जा सकती है।

(7) सरकार को शराबबन्दी के लिए कठोर कानूनों का निर्माण करना चाहिए ताकि शराब बेचने वालों तथा पीने वालों को कठोर दण्ड दिया जा सके। इसके लिए विशेष न्यायालयों का निर्माण भी करना चाहिए ताकि इनको तोड़ने वालों को कठोर तथा जल्दी से दण्ड दिया जा सके।

(8) शराब बन्दी के बाहरी प्रभावों के साथ-साथ लोगों की मानसिकता में परिवर्तन लाना भी ज़रूरी है। वास्तव में सही शराबबन्दी तो ही हो सकती है यदि व्यक्ति के अन्दर से आवाज़ आए। इसके लिए लोगों की मानसिकता में परिवर्तन लाना चाहिए। गली मोहल्लों में नाटकों, लैक्चरों का आयोजन किया जा सकता है ताकि लोगों को शराब छोड़ने के लिए उनके अन्दर से आवाज़ आए।

इस प्रकार इस व्याख्या को देखने के बाद हम कह सकते हैं कि मद्यपान की समस्या एक सामाजिक समस्या है। इस समस्या का एक ही कारण नहीं बल्कि कई कारण हैं। लोग इस समस्या को बढ़ाते भी हैं तथा वह ही इस समस्या को खत्म कर सकते हैं। यदि जनमत इस समस्या के विरुद्ध खड़ा हो जाए तो सरकार को भी इस कार्य में मजबूरी में हाथ बंटाना पड़ेगा। यदि सरकार तथा लोग हाथ मिला लें तो इस समस्या को बहुत ही जल्दी हल किया जा सकता है।

PSEB 12th Class Sociology Solutions PSEB 12th Class Sociology Solutions Chapter 10 मद्य व्यसन तथा नशा व्यसन

प्रश्न 2.
नशे अथवा मादक द्रव्यों के प्रकारों का वर्णन करें।
उत्तर-
मादक द्रव्यों को हम छ: भागों में बाँट सकते हैं जो कि इस प्रकार हैं –

  1. शराब (Whisky or Liquor)
  2. शान्तिकर पदार्थ (Sedatives)
  3. नार्कोटिक अथा स्वापक पदार्थ (Narcotics)
  4. उत्तेजक पदार्थ (Stimulants)
  5. भ्रमोत्पादक पदार्थ (Hallucinogens)
  6. निकोटीन अथवा ताम्रकूटी अथवा तम्बाकू (Nicotine)

1. शराब (Whisky or Alcohol)—कुछ लोग शराब को सुख का बोध करवाने वाली चीज़ के रूप में पीते हैं तथा कुछ लोग शराब इसलिए पीते हैं ताकि उन्हें कार्य करने की उत्तेजना मिल सके। शराब एक शान्ति देने वाले पदार्थ की तरह भी कार्य करती है जिससे हमारी नाड़ियां शांत हो जाती हैं। इसे संवेदनाहारी पदार्थ के रूप में भी ग्रहण किया जाता है ताकि जीवन की पीड़ा को कम किया जा सके। लोगों को अपने जीवन में बहुत सी परेशानियों तथा समस्याओं का सामना करना पड़ता है जिस कारण वह मानसिक तनाव का शिकार हो जाते हैं। इसलिए वह कुछ समय के लिए अपना मानसिक तनाव दूर करने के लिए शराब का सहारा लेते हैं। इससे व्यक्ति कुछ समय के लिए अपने तनाव को भूल जाता है तथा नशे में अपनी ही धुन में चलता जाता है। इससे व्यक्ति के निर्णय लेने की शक्ति कमजोर होती है तथा उसमें दुविधा पैदा होती है।

2. शान्तिकर पदार्थ (Sedatives)—इस प्रकार के पदार्थों को हम आराम देने वाले पदार्थ भी कह सकते हैं। इससे हमारा स्नायुतन्त्र क्षीण हो जाता है जिससे नींद आ जाती है तथा व्यक्ति को शान्ति मिलती है। जिन लोगों को ब्लड प्रेशर की शिकायत होती है जिनको नींद नहीं आती है अथवा जिन्हें मिरगी (Epilepsy) के दौरे पड़ते हैं उन्हें ये दवाएं दी जाती हैं। व्यक्ति के आप्रेशन से पूर्व भी यह दवा दी जाती है ताकि रोगी सो जाए तथा आप्रेशन आराम से हो जाए। ये अवसादक पदार्थ (Depressants) का कार्य करते हैं जिससे हमारी नसों तथा मांसपेशियों की क्रियाएं कम हो जाती हैं। ये दिल की धड़कन को धीमा कर देते हैं जिससे व्यक्ति में शिथिलता आ जाती है। परन्तु यदि व्यक्ति इनका अधिक सेवन करने लग जाए तो वह आलसी, उदासीन, निष्क्रिय तथा झगड़ालू हो जाता है। उसके कार्य करने तथा सोचने की शक्ति कम हो जाती है।

3. नार्कोटिक तथा स्वापक पदार्थ (Narcotics)-नार्कोटिक पदार्थों में हम अफीम, हेरोइन, ब्राउन शूगर, स्मैक, कोकीन, मारिजुआना, चरस, गांजा, भांग इत्यादि को ले सकते हैं। हेरोइन सफ़ेद पाऊडर होता है जो मार्फीन से बनता है। कोकीन कोकाबुश की पत्तियों से बनती है। गांजा तथा चरस को हेम्प पौधे (Hemp plant) से प्राप्त किया जाता है। मारिजुआना कैनाबिस का एक विशेष रूप है। कोकीन, हेरोइन, मार्फीन इत्यादि को या तो इंजेक्शन के रूप में लिया जाता है या फिर सिगरेट के कश के रूप में लिया जाता है। इन सभी पदार्थों से व्यक्ति में हिम्मत बढ़ जाती है, उसे असीम आनन्द प्राप्त होता है, उसका कार्य करने का सामर्थ्य बढ़ जाता है तथा उसमें श्रेष्ठता की भावना आ जाती है। परन्तु जब इसकी लत लग जाए तो व्यक्ति इनके बिना रह नहीं सकता है। इनके न मिलने पर व्यक्ति तड़प जाता है तथा अंत में मर भी जाता है।

4. उत्तेजक पदार्थ (Stimulants)-उत्तेजक पदार्थों को लोग अपने तनाव को कम करने के लिए, सतर्कता बढ़ाने के लिए, थकान तथा आलस्य को दूर करने के लिए तथा अनिद्रा (Insomania) को पैदा करने के लिए लेते हैं। कैफीन, कोकीन, पेप गोली (ऐम्फेटामाइन) इत्यादि को उत्तेजक पदार्थों के रूप में प्रयोग किया जाता है। यदि इसे डाक्टर द्वारा दिए गए नुस्खे के अनुसार लिया जाए तो इससे व्यक्ति में आत्म-विश्वास तथा फुर्ती आ जाती है परन्तु यदि इनका अधिक प्रयोग किया जाए तो इससे कई समस्याएं जैसे दस्त, सिरदर्द, पसीना निकलना, चिड़चिड़ापन इत्यादि भी हो जाते हैं। इन पर व्यक्ति शारीरिक तौर पर तो निर्भर नहीं होता परन्तु मानसिक या मनोवैज्ञानिक तौर पर निर्भर ज़रूर हो जाता है। इनको एकदम बन्द कर देने से मानसिक बीमारी तथा आत्महत्या करने जैसी बातें भी उभर कर सामने आ सकती हैं।

5. भ्रमोत्पादक पदार्थ (Hallucinogens) इस श्रेणी में एल. एस. डी. (L.S.D.) मुख्य पदार्थ है जिसके सेवन की सलाह डॉक्टर कभी भी नहीं देते हैं। इसे या तो मौखिक रूप से या फिर इंजेक्शन द्वारा लिया जाता है। इसके लेने से व्यक्ति को स्वप्न आने लगते हैं। सभी कुछ नई प्रकार से दिखता तथा सुनता है अर्थात् व्यक्ति इसको लेने से हमेशा भ्रम में ही रहता है। बहुत ही कम मात्रा भी व्यक्ति के दिमाग पर सीधे असर करती है। इसको बंद करने से व्यक्ति में मानसिक असन्तुलन भी पैदा हो जाता है।

6. निकोटीन अथवा ताम्रकूटी अथवा तम्बाकू (Nicotine)-निकोटीन में हम तम्बाकू, बीड़ी, सिगरेट, सिगार इत्यादि ले सकते हैं। इसका हमारे शरीर पर कोई सकारात्मक प्रभाव तो नहीं पड़ता है परन्तु व्यक्ति इन पर शारीरिक तौर पर निर्भर ज़रूर हो जाता है। इनको लेने से व्यक्ति का शरीर उत्तेजित हो जाता है, जागना बढ़ जाता है, शिथिलन (Relaxation) बढ़ जाता है। यदि इनका अधिक सेवन किया जाए तो इससे फेफड़े का कैंसर, श्वास नली में गतिरोध, दिल की बीमारी इत्यादि पैदा हो जाते हैं। यदि व्यक्ति एक बार इनको लेना शुरू कर दे तो वह इन पर निर्भर हो जाता है।

मद्य व्यसन तथा नशा व्यसन PSEB 12th Class Sociology Notes

  • प्रत्येक समाज कई प्रकार के परिवर्तनों में से होकर गुजरता है। यह परिवर्तन सकारात्मक भी हो सकते हैं व नकारात्मक भी। अगर यह परिवर्तन नकारात्मक होंगे तो इनसे समाज में कई प्रकार की समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं जिनके काफ़ी भयंकर परिणाम होते हैं। इन समस्याओं को ही सामाजिक समस्याएं कहा जाता है।
  • सामाजिक समस्याएं लाने में कई प्रकार के कारक उत्तरदायी हैं जैसे कि सामाजिक-सांस्कृतिक कारक, आर्थिक कारक, क्षेत्रीय कारक, राजनीतिक कारक, पर्यावरण से संबंधित कारक इत्यादि। ये सभी कारक इकट्ठे मिलकर सामाजिक समस्याओं को जन्म देते हैं।
  • आजकल के समय में मद्य व्यसन अथवा शराब पीने को एक समस्या माना जाने लगा है चाहे यह पहले नहीं माना जाता था। मद्य व्यसन शराब पीने का एक ऐसा ढंग है जो न केवल व्यक्ति बल्कि उसके परिवार के लिए भी हानिकारक होता है।
  • मद्य व्यसन के कई कारण होते हैं जैसे कि दुःख के कारण, पेशे के कारण, मित्रों के कारण पीना, व्यापार के लिए पीना इत्यादि।
  • मद्य व्यसन के काफ़ी गलत प्रभाव होते हैं पैसे की बर्बादी, स्वास्थ्य पर ग़लत प्रभाव, अपराधों का बढ़ना, निर्धनता का बढ़ना, व्यक्ति तथा पारिवारिक विघटन इत्यादि।
  • आजकल के समय में नशा व्यसन की समस्या काफ़ी बढ़ती जा रही है। नौजवान लोग नशों की तरफ तेजी से बढ़ रहे हैं। वह नशे के आदी हो रहे हैं। नशा व्यसन शारीरिक तथा मानसिक रूप से किसी ऐसी वस्तु पर निर्भरता है जिसके बिना व्यक्ति रहे नहीं सकता।
  • नशों में हम कई चीज़ों को ले सकते हैं जैसे कि शराब, शांत करने वाले पदार्थ, बेहोशी लाने वाली नशीली दवाएं (नारकोटिक्स), निकोटिन या तंबाकू इत्यादि। इनमें से किसी एक की आदत लगने पर व्यक्ति उस पदार्थ पर इतना निर्भर हो जाता है कि वह इनके बिना नहीं रह सकता।
  • नशा व्यसन के कई कारण हो सकते हैं जैसे कि मानसिक कारण, शारीरिक कारण, सामाजिक कारण, मित्रों का प्रभाव, चिंताओं से दूर भागने के लिए इत्यादि।
  • नशा करने के बहुत से ग़लत प्रभाव होते हैं जैसे कि व्यक्ति नशे पर काफ़ी अधिक निर्भर हो जाता है, पैसे की बर्बादी, स्वास्थ्य पर गलत प्रभाव, परिवार पर गलत प्रभाव इत्यादि।
  • गंदी बस्तियां (Slums)-नगरीय क्षेत्रों में अधिक लोगों के रहने के लिए वह स्थान जो अनाधिकृत रूप से बसा होता है तथा जहां जीवन जीने की आवश्यक सुविधाओं की कमी होती है।
  • लाल फीताशाही (Red Tapism) लाल फीताशाही एक मुहावरा है जिसे सरकारी दखलअन्दाज़ी का नाम भी दिया जाता है। जिसमें अफसरशाही सरकारी नियमों का वास्ता देकर कई प्रकार के रोड़े अटकाती है।
  • मद्य (Alcohol)-मद्य एक ऐसा पेयजल पदार्थ है जिसके प्रभाव के कराण दिमाग कार्य करना बंद कर देता है तथा व्यक्ति एक विशेष ढंग से सोचने व व्यवहार करने लग जाता है।
  • पूर्ण निर्धनता (Absolute Poverty)- पूर्ण निर्धनता अथवा बहुत अधिक निर्धनता का अर्थ है वह स्थिति जिसमें लोगों के पास जीवन जीने की आवश्यक वस्तुएं भी नहीं होतीं। उदाहरण के लिए खाना, पीने का साफ़ पानी, घर, कपड़े, दवाओं इत्यादि का न होना।
  • भाई-भतीजावाद (Nepotism)-यह ऐसी प्रथा है जिसमें सरकारी नौकरियां देने या किसी अन्य कार्य के लिए अपने मित्रों, रिश्तेदारों को पहल दी जाती है।
  • डेलीक्युऐसी (Delinquency)-किशोरों द्वारा किया गया छोटा-मोटा अपराध।
  • साथी समूह (Peer Group)-साथी समूह एक सामाजिक तथा प्राथमिक समूह होता है जिसके सदस्यों के बीच विचारों, आयु, पृष्ठभूमि, सामाजिक स्थिति इत्यादि की समानता होती है।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 7 गुरु हरगोबिंद जी और सिख पंथ का रूपांतरण

Punjab State Board PSEB 12th Class History Book Solutions Chapter 7 गुरु हरगोबिंद जी और सिख पंथ का रूपांतरण Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 History Chapter 7 गुरु हरगोबिंद जी और सिख पंथ का रूपांतरण

निबंधात्मक प्रश्न – (Essay Type Questions)

गुरु हरगोबिंद जी का जीवन (Life of Guru Hargobind Ji)

प्रश्न 1.
गुरु हरगोबिंद जी के जीवन के बारे में विस्तृत नोट लिखो। (Write a detailed note on the life of Guru Hargobind Ji.)
अथवा
गुरु हरगोबिंद जी के जीवन का वर्णन करें।
(Describe the life of Guru Hargobind Ji.)
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद जी सिखों के छठे गुरु थे। वे 1606 ई० से लेकर 1645 ई० तक गुरुगद्दी पर विराजमान रहे। इस काल का सिख पंथ के इतिहास में विशेष महत्त्व है। गुरु हरगोबिंद जी ने नई नीति अपना कर न केवल सिख लहर के स्वरूप को ही बदला अपितु सिखों में स्वाभिमान की भावना भी उत्पन्न की। परिणामस्वरूप उनके समय में सिख पंथ का न केवल रूपांतरण ही हुआ अपितु इसका अद्वितीय विकास भी हुआ। उनके जीवन का संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित अनुसार है—
1. जन्म तथा माता-पिता (Birth and Parentage)-गुरु हरगोबिंद जी का जन्म 14 जून, 1595 ई० को जिला अमृतसर के गाँव वडाली में हुआ था। वह गुरु अर्जन देव जी के एक मात्र पुत्र थे। आप की माता जी का नाम गंगा देवी था।

2. बाल्यकाल तथा विवाह (Childhood and Marriage)-गुरु हरगोबिंद जी बाल्यकाल से ही बहुत होनहार थे। आप ने पंजाबी, संस्कृत तथा प्राकृत भाषाओं के साहित्य का गहन अध्ययन किया था। बाबा बुड्डा जी ने आपको न केवल धार्मिक शिक्षाएँ ही दीं अपितु घुड़सवारी तथा शस्त्र-विद्या में भी प्रवीण कर दिया। इतिहासकारों का विचार है कि हरगोबिंद जी के तीन विवाह हुए थे। आप के घर पाँच पुत्रों-गुरदित्ता, अणि राय, सूरज मल, अटल राय तथा तेग बहादुर जी और एक पुत्री बीबी वीरो ने जन्म लिया।

3. गुरुगद्दी की प्राप्ति (Assumption of Guruship)-1606 ई० में गुरु अर्जन देव जी ने लाहौर जाने से पूर्व, जहाँ उन्होंने अपना बलिदान दिया था, हरगोबिंद जी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया। उस समय हरगोबिंद जी की आयु केवल 11 वर्ष थी। इस प्रकार हरगोबिंद जी सिखों के छठे गुरु बने। वह 1606 ई० से लेकर 1645 ई० तक गुरुगद्दी पर विराजमान रहे।

4. गुरु हरगोबिंद जी की नई नीति (New Policy of Guru Hargobind Ji)-नोट-इस भाग के उत्तर के लिए विद्यार्थी कृपया प्रश्न नं० 2 का उत्तर देखें।

5. गुरु हरगोबिंद जी के मुगलों के साथ संबंध (Relations of Guru Hargobind Ji with the Mughals)-नोट-इस भाग के उत्तर के लिए विद्यार्थी कृपया प्रश्न नं० 3 का उत्तर देखें।

गुरु हरगोबिंद जी की नई नीति (New Policy of Guru Hargobind Ji)

प्रश्न 2.
गुरु हरगोबिंद जी की नई नीति का निरीक्षण करें।
(Examine the New Policy of Guru Hargobind Ji.)
अथवा
गुरु हरगोबिंद जी की न वीन नीति के बारे में आप क्या जानते हैं ? इसकी मुख्य विशेषताओं तथा इसके सिख धर्म के रूपांतरण संबंधी महत्त्व का वर्णन करें।
(What do you know about the New Policy of Guru Hargobind ? Describe its main features and significance of the transformation of Sikhism.)
अथवा
गुरु हरगोबिंद जी की नई नीति के बारे में आप क्या जानते हैं ? इसकी मुख्य विशेषताओं का वर्णन करें।
(What do you know about New Policy of Guru Hargobind Ji ? Explain in brief its main features.)
अथवा
गुरु हरगोबिंद जी की नई नीति पर एक आलोचनात्मक टिप्पणी लिखिए। (Write a critical note on the New Policy of Guru Hargobind Ji.)
अथवा
उन परिस्थितियों का उल्लेख करें जिनके कारण गुरु हरगोबिंद जी को नई नीति धारण करनी पड़ी। इस नीति की मुख्य विशेषताएँ क्या थी ?
(Describe the circumstances leading to the adoptation of New Policy by Guru Hargobind. What were the main features of this policy ?)
अथवा
मीरी और पीरी से आपका क्या तात्पर्य है ? इस नीति की मुख्य विशेषताओं का वर्णन करें।
(What do you understand by Miri and Piri ? Explain its main features.)
अथवा
मीरी तथा पीरी की मुख्य विशेषताओं का वर्णन करें। (Explain the main features of Miri and Piri.)
अथवा
गुरु हरगोबिंद जी की ‘मीरी’ और ‘पीरी’ की नीति की चर्चा करो। (Discuss the policy of ‘Miri’ and ‘Piri’ of Guru Hargobind Ji.)
अथवा
गुरु हरगोबिंद जी की नई नीति की क्या विशेषताएँ थीं ? (What were the features of New Policy of Guru Hargobind Ji ?)
अथवा
मीरी और पीरी से क्या अभिप्राय है? इसकी क्या विशेषताएँ थीं? (What is meant by Miri and Piri ? What was its importance ?)
अथवा
गुरु हरगोबिंद जी ने सिखों को संत सिपाही के रूप में कैसे बदला ? (How Guru Hargobind Ji changed the Sikhs into Sant Sipahis ?)
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद जी द्वारा 1606 ई० में गुरुगद्दी पर बैठने के साथ ही सिख पंथ में एक नए युग का सूत्रपात हुआ। गुरु अर्जन देव जी के बलिदान के कारण सिखों तथा मुग़लों के मध्य संबंध तनावपूर्ण हो गए थे। ऐसी स्थिति में गुरु हरगोबिंद जी ने यह निष्कर्ष निकाला कि सम्मानपूर्वक जीवन व्यतीत करने तथा अपने धर्म की रक्षा के लिए सिखों को शस्त्र उठाने होंगे। अतः गुरु साहिब ने सिखों को संत सिपाही बनाने की नवीन नीति धारण की। इस नीति को अपनाने के प्रमुख कारण निम्न प्रकार थे—
1. मुग़लों की धार्मिक नीति में परिवर्तन (Change in the Religious Policy of the Mughals)जहाँगीर से पूर्व के शासकों के साथ सिखों के संबंध मधुर थे। बाबर ने गुरु नानक देव जी के प्रति सम्मान प्रकट किया था। हुमायूँ ने राज-गद्दी की. पुनः प्राप्ति के लिए गुरु अंगद देव जी से आशीर्वाद प्राप्त किया। मुग़ल बादशाह अकबर ने गुरु अमरदास जी के समय स्वयं गोइंदवाल साहिब में आकर लंगर छका था। उसने गुरु रामदास जी को 500 बीघे भूमि दान में दी तथा पंजाब के किसानों का एक वर्ष का लगान माफ कर दिया था। परंतु 1605 ई० में बादशाह बना जहाँगीर बहुत कट्टर सुन्नी मुसलमान था। वह इस्लाम के सिवाय किसी अन्य धर्म को विकसित होते नहीं देख सकता था। अतः इन बदली हुई परिस्थितियों में गुरु साहिब को भी नई नीति अपनानी पड़ी।

2. गुरु अर्जन देव जी का बलिदान (Martyrdom of Guru Arjan Dev Ji)-जहाँगीर के लिए सिखों की बढ़ती लोकप्रियता असहनीय थी। इस लहर के दमन के लिए उसने 1606 ई० में गुरु अर्जन देव जी को शहीद कर दिया। गुरु अर्जन देव जी के बलिदान ने सिखों को स्पष्ट कर दिया था यदि वे जीवित रहना चाहते हैं तो उन्हें शस्त्रधारी बनकर मुग़लों से टक्कर लेनी होगी। इस प्रकार गुरु अर्जन देव जी का बलिदान गुरु हरगोबिंद जी द्वारा नई नीति धारण करने के लिए काफी सीमा तक उत्तरदायी था।

3. गुरु अर्जन देव जी का अंतिम संदेश (Last Message of Guru Arjan Dev Ji)-गुरु अर्जन देव जी ने अपने बलिदान से पूर्व अपने पुत्र हरगोबिंद जी को यह संदेश भेजा कि, “उसे पूरी तरह शस्त्रों से सुसज्जित होकर गद्दी पर बैठना चाहिए। अपनी पूर्ण योग्यता के अनुसार सेना रखनी चाहिए।” अतः गुरु साहिब के इन शब्दों को व्यावहारिक रूप देने का गुरु हरगोबिंद जी ने निश्चय किया।
PSEB 12th Class History Solutions Chapter 7 गुरु हरगोबिंद जी और सिख पंथ का रूपांतरण 1
AKAL TAKHT SAHIB : AMRITSAR

नई नीति की मुख्य विशेषताएँ (Main Features of the New Policy)
1. मीरी तथा पीरी तलवारें धारण करना (Wearing of Miri and Piri Swords)-गुरु हरगोबिंद जी ने गुरुगद्दी पर विराजमान होते समय मीरी तथा पीरी नामक दो तलवारें धारण की। मीरी तलवार सांसारिक सत्ता की प्रतीक थी और पीरी तलवार धार्मिक नेतृत्व की प्रतीक थी। गुरु हरगोबिंद जी ने एक ओर सिखों को सतनाम का जाप करने तथा दूसरी ओर शस्त्र धारण करने का संदेश दिया। इस प्रकार गुरु साहिब ने सिखों को संत सिपाही बना दिया। गुरु हरगोबिंद जी द्वारा अपनाई गई इस मीरी तथा पीरी नीति का सिख इतिहास पर बहुत गहन प्रभाव पड़ा।

2. सेना का संगठन (Organisation of Army)-गुरु हरगोबिंद जी द्वारा सिख पंथ की रक्षा के लिए सेना का संगठन करने का भी निर्णय किया गया। उन्होंने सिखों को यह आदेश दिया कि वे गुरु साहिब की सेना में भर्ती हों। फलस्वरूप 500 योद्धा आपकी सेना में भर्ती हुए। इन सैनिकों को सौ-सौ के पाँच जत्थों में विभाजित किया मया। प्रत्येक जत्था एक जत्थेदार के अधीन रखा गया था। इनके अतिरिक्त गुरु साहिब ने 52 अंगरक्षक भी भर्ती किए। धीरे-धीरे गुरु साहिब की सेना की संख्या बढ़कर 2500 हो गई। गुरु जी की सेना में पठानों की एक अलग रैजमैंट बनाई गई। इसका सेनापति पँदा खाँ को नियुक्त किया गया।

3. शस्त्र तथा घोड़े एकत्र करना (Collection of Arms and Horses)—गुरु हरगोबिंद जी ने मसंदों को यह आदेश दिया कि वे सिखों से धन की अपेक्षा शस्त्र एवं घोड़े एकत्रित करें। सिखों से भी कहा कि वे मसंदों को शस्त्र एवं घोड़े भेंट करें। गुरु जी के इस आदेश का मसंदों और सिखों ने बड़े उत्साह से स्वागत किया। फलस्वरूप गुरु जी की सैन्य-शक्ति अधिक दृढ़ हो गई।

4. अकाल तख्त साहिब का निर्माण (Construction of Akal Takhat Sahib)-गुरु हरगोबिंद जी द्वारा अकाल तख्त साहिब का निर्माण उनकी नई नीति का ही महत्त्वपूर्ण भाग था। अकाल तख्त साहिब का निर्माण गुरु हरगोबिंद जी ने हरिमंदिर साहिब के सामने करवाया था। इसके भीतर एक 12 फीट ऊँचे चबूतरे का निर्माण किया जो एक तख्त के समान था। इस तख्त पर बैठकर गुरु हरगोबिंद जी सिखों को सैनिक प्रशिक्षण देते, उनके सैनिक कारनामे देखते, मसंदों से घोड़े और शस्त्र स्वीकार करते, ढाडी वीर-रस की वारें सुनाते तथा सिखों के परस्पर झगड़ों का भी निपटारा करते थे। एच० एस० भाटिया एवं एस० आर० बख्शी के अनुसार,
“अकाल तख्त सिखों की सबसे पवित्र संस्था है। इसने सिख समुदाय के सामाजिक-राजनीतिक परिवर्तन में ऐतिहासिक भूमिका निभाई।”1

5. राजनीतिक प्रतीकों को अपनाना (Adoption of Royal Symbols)—गुरु हरगोबिंद जी अपनी नई नीति के अंतर्गत राजसी ठाठ-बाठ से रहने लगे। उन्होंने अब सेली (ऊन की माला) के स्थान पर कमर में दो तलवारें धारण कीं। एक शानदार दरबार की स्थापना की गई। उन्होंने अब राजाओं की भाँति दस्तार के ऊपर कल्गी सुशोभित करनी आरंभ कर दी। उन्होंने ‘सच्चा पातशाह’ की उपाधि धारण की। गुरु हरगोबिंद साहिब जी ने अब बहुमूल्य वस्त्र धारण करने आरंभ कर दिए। वे अपने अंगरक्षकों के साथ चलते थे।

6. अमृतसर की किलाबंदी (Fortification of Amritsar)-अमृतसर न केवल सिखों का सर्वाधिक पावन धार्मिक स्थान ही था, अपितु यह उनका विख्यात सैनिक प्रशिक्षण केंद्र भी था। इसलिए गुरु जी ने इस महत्त्वपूर्ण स्थान की सुरक्षा के लिए अमृतसर शहर के चारों ओर एक दीवार बनवा दी। इसके अतिरिक्त यहाँ पर एक दुर्ग का निर्माण भी करवाया गया जिसका नाम लोहगढ़ रखा गया।

7. गुरु जी के प्रतिदिन के जीवन में परिवर्तन (Changes in the daily life of the Guru)—अपनी नवीन नीति के कारण गुरु हरगोबिंद जी के प्रतिदिन के जीवन में भी कई परिवर्तन आ गए थे। उन्होंने अपने दरबार में अब्दुला तथा नत्था मल को वीर-रस से परिपूर्ण वारें गाने के लिए भर्ती किया। एक विशेष संगीत मंडली की स्थापना की गई जो रात्रि को ऊँची आवाज़ में जोशीले शब्द माती हुई हरिमंदिर साहिब की परिक्रमा करती थी। गुरु साहिब ने अपने जीवन में ये परिवर्तन केवल सिखों में वीरता की भावना उत्पन्न करने के लिए किए थे।

1. “Sri Akal Takhat is one of the most sacred institutions of Sikhism. It has played historic role in the socio-political transformation of the Sikh community.” H.S. Bhatia and S.R. Bakshi, Encyclopaedic History of the Sikhs and Sikhism (New Delhi : 1999) Vol. 1, p. 140.

नई नीति का आलोचनात्मक मूल्याँकन (Critical Estimate of the New Policy)

आरंभ में जब गरु हरगोबिंद जी ने नई नीति अपनाई तो इस नीति ने कई संदेह उत्पन्न कर दिए। वास्तव में गुरु हरगोबिंद जी की नई नीति का गलत आँकलन किया गया है। गुरु साहिब ने पुरानी सिख परंपरा का त्याग नहीं किया था। उन्होंने सिख धर्म के प्रचार के लिए पंजाब के भिन्न-भिन्न स्थानों में अपने प्रचारक भेजे। यदि गुरु साहिब ने अपने प्रतिदिन के जीवन में कुछ परिवर्तन किए तो उसका उद्देश्य केवल सिखों में एक नया जोश उत्पन्न करना था। समय के साथ-साथ गुरु साहिब की सिखों की नई नीति के संबंध में उत्पन्न हुई शंकाएँ दूर होनी आरंभ हो गई थीं। भाई गुरदास जी गुरु हरगोबिंद जी की नई नीति की प्रशंसा करते हैं। उनका कथन है कि जिस प्रकार मणि को प्राप्त करने के लिए साँप को मारना आवश्यक है। कस्तूरी प्राप्त करने के लिए हिरन को मारना ज़रूरी है। गिरी को प्राप्त करने के लिए नारियल को तोड़ना पड़ता है। बाग़ की सुरक्षा के लिए काँटेदार झाड़ियाँ लगाने की आवश्यकता होती है। ठीक इसी प्रकार गुरु नानक देव जी द्वारा स्थापित सिख पंथ की सुरक्षा के लिए गुरु हरगोबिंद जी द्वारा नई नीति को अपनाना बहुत जरूरी था। वास्तव में गुरु हरगोबिंद जी ने गुरु नानक देव जी के उपदेशों को ही वास्तविक रूप दिया। प्रसिद्ध इतिहासकार एच० एस० भाटिया एवं एस० आर० बक्शी के शब्दों में,
“यद्यपि बाहरी रूप में ऐसा लगता था कि गुरु हरगोबिंद जी ने गुरु नानक जी के उद्देश्यों को परिपूर्ण करने में भिन्न मार्ग अपनाया, किंतु यह मुख्य तौर पर गुरु नानक जी के आदर्शों पर ही आधारित था।”2

नई नीति का महत्त्व (Importance of the New Policy).
गुरु हरगोबिंद जी द्वारा अपनाई गई नई नीति के महत्त्वपूर्ण परिणाम निकले। सिख अब संत सिपाही बन गए। वे ईश्वर की भक्ति के साथ-साथ शस्त्रों का भी प्रयोग करने लग पड़े। इस नीति के अभाव में सिखों का पावन भ्रातृत्व समाप्त हो गया होता अथवा फिर वे फकीरों और संतों की एक श्रेणी बनकर रह जाते। गुरु हरगोबिंद जी की नई नीति के परिणामस्वरूप पंजाब के जाट अधिक संख्या में सिख पंथ में सम्मिलित हुए। इस नई नीति के कारण सिखों एवं मुग़लों के संबंधों में आपसी तनाव और बढ़ गया। शाहजहाँ के समय गुरु साहिब को मुग़लों के साथ चार युद्ध लड़ने पड़े। इन युद्धों में सिखों की विजय से मुग़ल साम्राज्य के गौरव को धक्का लगा। अंत में हम के० एस० दुग्गल के इन शब्दों से सहमत हैं,
“गुरु हरगोबिंद जी का सबसे महान् योगदान सिखों के जीवन मार्ग को एक नई दिशा देना था। उसने संतों को सिपाही बना दिया किंतु फिर भी परमात्मा के भक्त रहे।”3

2. “Though outwardly, it may appear that Guru Hargobind persued a slightly different course for fulfilling the mission of Guru Nanak, yet basically, it was Guru Nanak’s ideals that he preached.” H.S. Bhatia and S.R. Bakshi op. cit. Vol. 1, p. 24.
3. “Guru Hargobind’s greatest contribution is that he gave a new turn to the Sikh way of life. He turned saints into soldiers and yet remained a man of God.” K.S. Duggal, Sikh Gurus : Their Lives and Teachings (New Delhi : 1993) p. 164.

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 7 गुरु हरगोबिंद जी और सिख पंथ का रूपांतरण

गुरु हरगोबिंद जी के मुग़लों के साथ संबंध (Guru Hargobind Ji’s Relations with the Mughals)

प्रश्न 3.
गुरु हरगोबिंद जी के जहाँगीर तथा शाहजहाँ के साथ संबंधों का संक्षिप्त विवरण दें।
(Describe briefly the relationship of Guru Hargobind Ji with Jahangir and Shah Jahan.)
अथवा
गुरु हरगोबिंद जी एवं मुगलों के संबंधों पर एक विस्तृत लेख लिखो। (Write a detailed note on relations between Guru Hargobind Ji and the Mughals.)
अथवा
गुरु हरगोबिंद जी के मुग़लों के साथ संबंधों की चर्चा करें। (Explain the relations of Guru Hargobind Ji with the Mughals.)
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद जी 1606 ई० से 1645 ई० तक गुरुगद्दी पर रहे। उनके गुरुगद्दी के काल के दौरान उनके मुग़लों के साथ संबंधों को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है

I. प्रथम काल 1606-27 ई०
(First Period 1606—27 A.D.)
1. गरु हरगोबिंद जी ग्वालियर में बंदी (Imprisonment of Guru Hargobind Ji at Gwalior)गुरु हरगोबिंद जी के गुरुगद्दी पर बैठने के कुछ समय बाद ही वह मुग़ल सम्राट् जहाँगीर द्वारा बंदी बनाकर ग्वालियर के दुर्ग में भेज दिए गए। गुरु साहिब को बंदी क्यों बनाया गया, इस संबंध में इतिहासकारों में मतभेद हैं। कुछ इतिहासकारों का विचार है कि इसके लिए चंदू शाह का षड्यंत्र उत्तरदायी था। गुरु जी द्वारा उसकी पुत्री के साथ विवाह करने से पुनः इंकार करने पर उसने जहाँगीर को गुरु साहिब के विरुद्ध भड़काया। परिणामस्वरूप जहाँगीर ने उन्हें बंदी बना लिया। दूसरी ओर अधिकाँश इतिहासकार इस मत से सहमत हैं कि जहाँगीर ने गुरु साहिब को उनके द्वारा अपनाई गई नई नीति के कारण बंदी बनाया। इस नीति से उसके मन में अनेक शंकाएँ उत्पन्न हो गई थीं तथा गुरु साहिब के विरोधियों ने भी जहाँगीर के कान भरे कि गुरु जी विद्रोह करने की तैयारियाँ कर रहे हैं।

2. कारावास की अवधि (Period of Imprisonment)—इस संबंध में इतिहासकारों में मतभेद हैं कि गुरु हरगोबिंद जी ग्वालियर के दुर्ग में कितना समय बंदी रहे। दाबिस्तान-ए-मजाहिब के लेखक के अनुसार गुरु साहिब 12 वर्ष कारागृह में रहे। डॉक्टर इंदू भूषण बैनर्जी यह समय पाँच वर्ष, तेजा सिंह एवं गंडा सिंह दो वर्ष और सिख साखीकार यह समय चालीस दिन बताते हैं। अधिकाँश इतिहासकारों का कहना है कि गुरु साहिब 1606 ई० से 1608 ई० तक दो वर्ष ग्वालियर में बंदी रहे।

3. गुरु हरगोबिंद जी की रिहाई (Release of the Guru Hargobind Ji)-गुरु हरगोबिंद जी की रिहाई के संबंध में भी इतिहासकारों ने कई मत प्रकट किए हैं। सिख साखीकारों का कहना है कि गुरु जी को बंदी बनाने के बाद जहाँगीर बहुत बेचैन रहने लग पड़ा था। भाई जेठा जी ने जहाँगीर को पूर्णतः ठीक कर दिया। उनके ही निवेदन पर जहाँगीर ने गुरु साहिब को रिहा कर दिया। कुछ इतिहासकारों का विचार है कि जहाँगीर ने यह निर्णय सूफी संत मीयाँ मीर के निवेदन पर लिया था। कुछ अन्य इतिहासकारों के विचारानुसार जहाँगीर गुरु साहिब के बंदी काल के दौरान सिखों की गुरु जी के प्रति श्रद्धा देखकर बहुत प्रभावित हुआ। फलस्वरूप जहाँगीर ने गुरु साहिब की रिहाई का आदेश दिया। गुरु जी की जिद्द पर ग्वालियर के दुर्ग में ही बंदी 52 अन्य राजाओं को भी रिहा करना पड़ा। इसके कारण गुरु हरगोबिंद जी को ‘बंदी छोड़ बाबा’ भी कहा जाने लगा।

4. जहाँगीर के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध (Friendly Relations with Jahangir)-शीघ्र ही जहाँगीर को यह विश्वास हो गया था कि गुरु साहिब निर्दोष थे और गुरु साहिब के कष्टों के पीछे चंदू शाह का बड़ा हाथ था। इसलिए जहाँगीर ने चंदू शाह को दंड देने के लिए सिखों के सुपुर्द कर दिया। यहाँ तक कि जहाँगीर ने अकाल तख्त साहिब के निर्माण कार्य के लिए सारा खर्चा देने की पेशकश की, परंतु गुरु जी ने इंकार कर दिया। इस प्रकार गुरु जी की ग्वालियर की रिहाई के पश्चात् तथा जहाँगीर की मृत्यु तक जहाँगीर एवं गुरु जी के बीच मैत्रीपूर्ण संबंध रहे।

II. द्वितीय काल 1628-35 ई०
(Second Period 1628-35 A.D.)

1628 ई० में शाहजहाँ मग़लों का नया बादशाह बना। उसके शासनकाल में एक बार फिर सिखों और मुग़लों में निम्नलिखित कारणों से संबंध बिगड़ गए—
1. शाहजहाँ की धार्मिक कट्टरता (Shah Jahan’s Fanaticism)—शाहजहाँ बड़ा कट्टर सुन्नी मुसलमान था। उसने हिंदुओं के कई मंदिरों को नष्ट करवा दिया। उसने गुरु अर्जन देव जी द्वारा लाहौर में बनवाई गई बाऊली के स्थान पर एक मस्जिद का निर्माण करवा दिया था। फलस्वरूप सिखों में उसके प्रति अत्यधिक रोष उत्पन्न हो गया था।

2. नक्शबंदियों का विरोध (Opposition of Naqashbandis)-नक्शबंदी कट्टर सुन्नी मुसलमानों का एक संप्रदाय था। गुरु अर्जन देव जी को शहीद करवाने में उनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका थी। शाहजहाँ के सिंहासन पर बैठने के पश्चात् एक बार फिर नक्शबंदियों ने शाहजहाँ को गुरु जी के विरुद्ध भड़काया। परिणामस्वरूप शाहजहाँ गुरु साहिब के विरुद्ध हो गया।

3. गुरु हरगोबिंद जी की नई नीति (New Policy of Guru Hargobind Ji)-गुरु हरगोबिंद जी की नई नीति भी सिखों तथा मुग़लों के मध्य संबंधों को बिगाड़ने का एक प्रमुख कारण बनी। इस नीति के कारण गुरु साहिब ने सैन्य शक्ति का संगठन कर लिया था। सिख श्रद्धालुओं ने उन्हें ‘सच्चा.पातशाह’ कहकर संबोधित करना आरंभ कर दिया था। शाहजहाँ इस नीति को मुग़ल साम्राज्य के लिए गंभीर खतरा समझता था। इसलिए उसने गुरु साहिब के विरुद्ध कार्यवाही करने का निर्णय किया।

4. कौलाँ का मामला (Kaulan’s Affair)-गुरु साहिब और शाहजहाँ के बीच कौलाँ के मामले के कारण तनाव में और वृद्धि हुई। कौलाँ लाहौर के काज़ी रुस्तम खाँ की पुत्री थी। वह गुरु अर्जन देव जी की वाणी को बहुत चाव से पढ़ती थी। काज़ी भला यह कैसे सहन कर सकता था। फलस्वरूप उसने अपनी बेटी पर अनेक प्रतिबंध लगा दिए। कौला तंग आकर गुरु साहिब की शरण में चली गई। जब काजी को इस संबंध में ज्ञात हुआ तो उसने गुरु साहिब के विरुद्ध शाहजहाँ के खूब कान भरे।

सिखों और मुग़लों की लड़ाइयाँ
(Battles Between the Sikhs and Mughals)
मुग़लों और सिखों के बीच 1634-35 ई० में हुई चार लड़ाइयों का संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित है—
1. अमृतसर की लड़ाई 1634 ई० (Battle of Amritsar 1634 A.D.)-1634 ई० में अमृतसर में मुग़लों और सिखों के बीच प्रथम लड़ाई हुई। शाहजहाँ अपने सैनिकों सहित अमृतसर के निकट शिकार खेल रहा था। शिकार खेलते समय शाहजहाँ का एक विशेष बाज़ उड़ गया। सिखों ने इस बाज़ को पकड़ लिया। मुग़ल सैनिकों ने बाज़ वापस करने की माँग की। सिखों के इंकार करने पर दोनों पक्षों में लड़ाई हो गई। इसमें कुछ मुग़ल सैनिक मारे गए। क्रोधित होकर शाहजहाँ ने लाहौर से मुखलिस खाँ के नेतृत्व में 7,000 सैनिकों की एक टुकड़ी अमृतसर भेजी। इस लड़ाई में गुरु साहिब के अतिरिक्त पैंदे खाँ ने अपनी वीरता प्रदर्शित की। मुखलिस खाँ गुरु साहिब से लड़ता हुआ मारा गया। परिणामस्वरूप मुग़ल सैनिकों में भगदड़ मच गई। इस लड़ाई में विजय के कारण सिख सेनाओं का साहस बहुत बढ़ गया। इस लड़ाई के संबंध में लिखते हुए प्रो० हरबंस सिंह का कहना है,
“अमृतसर की लड़ाई यद्यपि एक छोटी घटना थी किंतु इसके दूरगामी परिणाम निकले।”4

2. लहरा की लड़ाई 1634 ई० (Battle of Lahira 1634 A.D.)-शीघ्र ही मुग़लों तथा सिखों के मध्य लहरा (भटिंडा के निकट) नामक स्थान पर दूसरी लड़ाई हुई। इस लड़ाई के कारण दो घोड़े थे जिनके नाम दिलबाग तथा गुलबाग थे। इन दोनों घोड़ों को बखत मल और तारा चंद नामक दो मसंद काबुल से गुरु साहिब को भेंट करने के लिए ला रहे थे। मार्ग में ये दोनों घोड़े मुग़लों ने छीन लिए। गुरु साहिब का एक सिख भाई बिधी चंद भेष बदलकर दोनों घोड़े शाही घुड़साल से निकाल लाया। शाहजहाँ ने क्रोधित होकर तुरंत लल्ला बेग तथा कमर बेग के नेतृत्व में एक भारी सेना सिखों के दमन के लिए भेजी। लहरा नामक स्थान पर भयंकर लड़ाई हुई। इस लड़ाई में मुग़लों के दोनों सेनापति लल्ला बेग तथा कमर बेग मारे गए। इस लड़ाई में भाई जेठा जी भी शहीद हो गए। अंत में सिख विजयी रहे।

3. करतारपुर की लड़ाई 1635 ई० (Battle of Kartarpur 1635 A.D.)-मुग़लों तथा सिखों के मध्य तीसरी लड़ाई 1635 ई० में करतारपुर में हुई। यह लड़ाई पैंदा खाँ के कारण हुई। वह हरगोबिंद जी की सेना में पठान टुकड़ी का सेनापति था। उसने गुरु साहिब का एक बाज़ चोरी करके अपने दामाद को दे दिया। गुरु साहिब के पूछने पर उसने इस बात से इंकार कर दिया। जब गुरु जी को पैंदा खाँ के झूठ का पता चला तो उन्होंने उसे नौकरी से निकाल दिया। पैंदा खाँ मुग़ल बादशाह शाहजहाँ की शरण में चला गया। पैंदा खाँ के उकसाने पर शाहजहाँ ने पैंदा खाँ और काले खाँ के नेतृत्व में एक विशाल सेना सिखों के विरुद्ध भेजी। करतारपुर में दोनों सेनाओं के मध्य भयंकर लड़ाई हुई। इस लड़ाई में तेग़ बहादुर जी ने अपने शौर्य का खूब प्रदर्शन किया। इस लड़ाई में गुरु साहिब से लड़ते हुए काले खाँ, पैंदा खाँ और उसका पुत्र कुतब खाँ मारे गए। इस प्रकार गुरु जी को एक शानदार विजय प्राप्त हुई।

4. फगवाड़ा की लड़ाई 1635 ई० (Battle of Phagwara 1635 A.D.)-करतारपुर की लड़ाई के पश्चात् गुरु हरगोबिंद जी कुछ समय के लिए फगवाड़ा आ गए। यहाँ अहमद खाँ के नेतृत्व में कुछ मुग़ल सैनिकों ने गुरु जी पर आक्रमण कर दिया। चूंकि मुग़ल सैनिकों की संख्या बहुत कम थी इसलिए फगवाड़ा में दोनों सेनाओं में मामूली झड़प हुई। फगवाड़ा की लड़ाई गुरु हरगोबिंद जी के समय में मुग़लों तथा सिखों के मध्य लड़ी गई अंतिम लड़ाई थी।

III. लड़ाइयों का महत्त्व (Importance of the Battles)
गुरु हरगोबिंद जी के काल में मुग़लों तथा सिखों के मध्य लड़ी गई विभिन्न लड़ाइयों का सिख इतिहास में विशेष महत्त्व है। इन लड़ाइयों में सिख विजयी रहे थे। इन लड़ाइयों में विजय के कारण सिखों का साहस बहुत बढ़ गया था। सिखों ने अपने सीमित साधनों के बलबूते पर इन लड़ाइयों में विजय प्राप्त की थी। अतः गुरु जी की ख्याति दूर-दूर तक फैल गई। बहुत-से लोग सिख धर्म में सम्मिलित हो गए। परिणामस्वरूप सिख पंथ का बड़ी तीव्रता से विकास होने लगा। प्रसिद्ध इतिहासकार पतवंत सिंह के अनुसार__ “इन लड़ाइयों का ऐतिहासिक महत्त्व इस बात में नहीं था कि ये कितनी बड़ी थीं अपितु इस बात में था कि इन्होंने आक्रमणकारियों के वेग को रोका तथा उनकी शक्ति को चुनौती दी। इसने मुग़लों के विरुद्ध चेतना का संचार किया तथा दूसरों के लिए एक उदाहरण प्रस्तुत की।”5

4. “This Amritsar action was a small incident but its implications were Far-reaching.” Prof. Harbans Singh, The Heritage of the Sikhs (Delhi : 1994)p.49.
5. “The historical importance of these battles did not lie in their scale, but in the fact that the aggressor’s writ was rejected and his power scorned. A mood of defience was generated agains the Mughals and an example set for others.” Patwant Singh, The Sikhs (New Delhi : 1999) p. 42.

संक्षिप्त उत्तरों वाले प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
सिख पंथ के रूपांतरण में गुरु हरगोबिंद साहिब ने क्या योगदान दिया ?
(What contribution was made by Guru Hargobind Sahib in transformation of Sikhism ?)
अथवा
गुरु हरगोबिंद जी के गुरु काल की सफलताओं का संक्षिप्त वर्णन करें। (Briefly describe the achievements of Guru Hargobind Ji’s pontificate.)
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद जी 1606 ई० से 1645 ई० तक गुरुगद्दी पर आसीन रहे। उन्होंने मीरी और पीरी नामक दो तलवारें धारण की। गुरु जी ने मुग़ल अत्याचारियों का सामना करने के लिए एक सेना का गठन किया। उन्होंने अमृतसर की रक्षा के लिए लोहगढ़ नामक एक दुर्ग का निर्माण करवाया। सिखों का सांसारिक मामलों में निर्देशन करने के लिए गुरु हरगोबिंद जी ने हरिमंदिर साहिब के सामने अकाल तख्त साहिब का निर्माण आरंभ करवाया। गुरु हरगोबिंद जी ने शाहजहाँ के समय में मुग़लों के साथ चार लड़ाइयाँ लड़ी जिनमें गुरु साहिब को विजय प्राप्त हुई।

प्रश्न 2.
गुरु हरगोबिंद जी ने नई नीति अथवा मीरी एवं पीरी नीति को क्यों धारण किया ?
(What were the main causes of the adoption of New Policy or Miri and Piri by Guru Hargobind Ji ?)
अथवा
गुरु हरगोबिंद जी ने नई नीति क्यों धारण की ? (Why did Guru Hargobind Ji adopt the ‘New Policy’ ?) ।
अथवा
गुरु हरगोबिंद जी ने नई नीति क्यों धारण की ? कोई तीन कारण बताएँ। (Why did Guru Hargobind Ji adopt the New Policy ? Give any three reasons.)
अथवा
गुरु हरगोबिंद जी द्वारा नई नीति अपनाने के कोई तीन कारण बताओ। (Describe any three causes of adoption of New Policy by Guru Hargobind Ji.)
उत्तर-

  1. मुग़ल बादशाह जहाँगीर बहुत कट्टर सुन्नी मुसलमान था। वह इस्लाम के अतिरिक्त किसी अन्य धर्म को नहीं देख सकता था। इस बदली हुई स्थिति में गुरु साहिब को नई नीति अपनानी पड़ी।
  2. 1606 ई० में जहाँगीर ने गुरु अर्जन देव जी को लाहौर में शहीद कर दिया। गुरु हरगोबिंद जी ने मुग़लों के अत्याचारों का सामना करने के उद्देश्य से सिखों को हथियार-बंद करने का फैसला किया।
  3. गुरु अर्जन देव जी ने अपनी शहीदी से पूर्व अपने पुत्र हरगोबिंद जी को यह संदेश भेजा कि वह हथियारों से सुसज्जित होकर गुरुगद्दी पर बैठे तथा अपनी योग्यता के अनुसार सेना भी रखे।

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प्रश्न 3.
गुरु हरगोबिंद जी की नई नीति की मुख्य विशेषताएँ क्या थीं ?
(What were the main features of Guru Hargobind Ji’s New Policy ?)
अथवा
गुरु हरगोबिंद जी की नई नीति अथवा मीरी एवं पीरी के संबंध में आप क्या जानते हैं ?
(What do you know about the New Policy or Miri and Piri of Guru Hargobind Ji ?)
अथवा
गुरु हरगोबिंद जी की ‘नई नीति’ क्या थी ? इसकी मुख्य विशेषताओं का वर्णन करें।
(What was the ‘New Policy’ of Guru Hargobind Ji ? Explain its main features.)
अथवा
गुरु हरगोबिंद जी की नई नीति की कोई तीन विशेषताएँ बताएँ। (Mention any three features of New Policy of Guru Hargobind Ji.)
उत्तर-

  1. गुरु हरगोबिंद जी बहुत शान-शौकत से गुरुगद्दी पर बैठे। उन्होंने मीरी तथा पीरी नामक दो तलवारें धारण की।
  2. सिख पंथ की रक्षा के लिए गुरु साहिब ने एक सेना का गठन किया।
  3. गुरु साहिब ने यह घोषणा की कि सिख उन्हें धन के स्थान पर शस्त्र और घोड़ें भेंट करें।

प्रश्न 4.
मीरी और पीरी के बारे में आप क्या जानते हैं ?
(What do you know about Miri and Piri ?)
अथवा
मीरी और पीरी से क्या भाव है ? इसकी ऐतिहासिक महत्ता बताएँ।
(What is Miri and Piri ? Describe its historical importance.)
अथवा
मीरी और पीरी से क्या भाव है ?
(What is meant by Miri and Piri ?)
अथवा
गुरु हरगोबिंद जी की नई नीति के महत्त्व का संक्षेप में वर्णन करें।
(Briefly describe the importance of the New Policy of Guru Hargobind Ji.)
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद जी ने गुरुगद्दी पर विराजमान होने के समय मीरी एवं पीरी नामक दो तलवारें धारण कीं। मीरी तलवार सांसारिक सत्ता की प्रतीक थी जबकि पीरी तलवार धार्मिक सत्ता की प्रतीक थी। इस प्रकार गुरु हरगोबिंद जी ने सिखों को संत सिपाही बना दिया। इसके कारण प्रथम, सिखों में जोशीली भावना का संचार हुआ। दूसरा, अब उन्होंने धर्म की रक्षा के लिए शस्त्र उठाने का निर्णय किया। तीसरा, गुरु गोबिंद सिंह जी ने इस नीति का अनुसरण करते हुए खालसा पंथ का सृजन किया।

प्रश्न 5.
गुरु हरगोबिंद जी के ग्वालियर में बंदी बनाए जाने पर एक संक्षिप्त नोट लिखें।
(Write a short note on the imprisonment of Guru Hargobind Ji at Gwalior.)
अथवा
जहाँगीर ने गुरु हरगोबिंद जी को बंदी क्यों बनाया ?
(Why did Jahangir arrest Guru Hargobind Ji ?)
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद जी के गुरुगद्दी पर बैठने के कुछ समय बाद ही वह मुग़ल सम्राट् जहाँगीर द्वारा बंदी बनाकर ग्वालियर के दुर्ग में भेज दिए गए। गुरु साहिब को बंदी क्यों बनाया गया, इस संबंध में इतिहासकारों में मतभेद हैं। कुछ इतिहासकारों का विचार है कि इसके लिए चंदू शाह का षड्यंत्र उत्तरदायी था। दूसरी ओर अधिकाँश इतिहासकार इस मत से सहमत हैं कि जहाँगीर ने गुरु साहिब को उनके द्वारा अपनाई गई नीति के कारण बंदी बनाया। अधिकाँश इतिहासकारों का कहना है कि गुरु साहिब 1606 ई० से 1608 ई० तक दो वर्ष ग्वालियर में बंदी रहे।

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प्रश्न 6.
गुरु हरगोबिंद जी तथा मुग़ल सम्राट् जहाँगीर के संबंधों पर एक संक्षिप्त नोट लिखें।
(Write a short note on relations between Guru Hargobind Ji and Mughal emperor Jahangir.)
उत्तर-
1605 ई० में मुग़ल सम्राट् जहाँगीर के सिंहासन पर बैठने के साथ ही मुग़ल-सिख संबंधों में एक नया मोड़ आया। जहाँगीर बड़ा कट्टर सुन्नी मुसलमान था। उसने गुरु अर्जन देव जी को शहीद करवा दिया था। मुग़ल अत्याचारों का मुकाबला करने के उद्देश्य के साथ गुरु हरगोबिंद जी ने नई नीति धारण की। परिणामस्वरूप जहाँगीर ने गुरु हरगोबिंद साहिब को बंदी बना कर ग्वालियर के दुर्ग में भेज दिया। बाद में जहाँगीर ने गुरु जी को रिहा करने का आदेश दिया। इसके बाद गुरु हरगोबिंद जी तथा जहाँगीर के मध्य मैत्रीपूर्ण संबंध स्थापित हो गए।

प्रश्न 7.
गुरु हरगोबिंद जी तथा मुगलों के बीच लड़ाइयों के क्या कारण थे ?
(What were the causes of battles between Guru Hargobind Ji and the Mughals.)
अथवा
गुरु हरगोबिंद जी और मुगलों के बीच लड़ाइयों के कोई तीन कारण लिखो। (Write any three causes of battles between Guru Hargobind Ji and the Mughals.)
उत्तर-

  1. मुग़ल सम्राट शाहजहाँ एक कट्टर सुन्नी मुसलमान था। उसने गुरु अर्जन देव जी द्वारा लाहौर में बनवाई गई बाऊली को गंदगी से भरवा दिया था।
  2. शाहजहाँ के समय नक्शबंदियों के नेता शेख मासूम ने सम्राट को सिखों के विरुद्ध कड़ी-से-कड़ी कार्यवाही करने के लिए भड़काया।
  3. गुरु हरगोबिंद जी ने अपनी सेना में बहुत-से मुग़ल सेना के भगौड़ों को भर्ती कर लिया था।
  4. सिख श्रद्धालु गुरु जी को ‘सच्चा पातशाह’ कहने लगे थे।
  5. लाहौर के काज़ी रुस्तम खाँ की पुत्री कौलां के गुरु जी का शिष्य बनने को शाहजहाँ सहन करने को तैयार नहीं था।

प्रश्न 8.
गुरु हरगोबिंद जी तथा मुगलों के मध्य हुई अमृतसर की लड़ाई का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
(Give a brief account of the battle of Amritsar fought between Guru Hargobind Ji and the Mughals.)
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद जी और मुग़लों के मध्य अमृतसर में प्रथम लड़ाई 1634 ई० में हुई। इस लड़ाई का मुख्य कारण एक बाज़ था। उस समय मुग़ल बादशाह शाहजहाँ एक विशेष बाज़ उड़ गया। सिखों ने उसको पकड़ लिया। फलस्वरूप शाहजहाँ ने सिखों को सबक सिखाने के लिए मुखलिस खाँ के नेतृत्व में 7000 सैनिक भेजे। सिखों ने मुग़ल सैनिकों का डटकर मुकाबला किया। इस लड़ाई में मुखलिस खाँ मारा गया। परिणामस्वरूप मुग़ल सैनिकों में भगदड़ मच गई। इस प्रकार मुग़लों और सिखों के मध्य हुई इस प्रथम लड़ाई में सिख विजयी रहे।

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प्रश्न 9.
गुरु हरगोबिंद जी तथा मुगलों के बीच हुई करतारपुर की लड़ाई के बारे में आप क्या जानते हैं ?
(What do you know about the battle of Kartarpur fought between Guru Hargobind Ji and the Mughals ?)
उत्तर-
1635 ई० में मुग़लों तथा सिखों के मध्य करतारपुर में लड़ाई हुई। यह लड़ाई पैंदा खाँ के कारण हुई। गुरु हरगोबिंद जी ने उसके अहंकारी होने के कारण उसे अपनी फ़ौज में से निकाल दिया था। पैंदा खाँ ने इस अपमान का बदला लेने के लिए शाहजहाँ को गुरु जी के विरुद्ध सैनिक कार्यवाही करने के लिए खूब भड़काया। परिणामस्वरूप शाहजहाँ ने एक सेना गुरु हरगोबिंद जी के विरुद्ध भेजी। करतारपुर में दोनों सेनाओं के मध्य भयंकर लड़ाई हुई। इस लड़ाई में मुग़ल सेना को अंत में पराजय का सामना करना पड़ा।

प्रश्न 10.
गुरु हरगोबिंद जी की मुग़लों के साथ हुई लड़ाइयों का वर्णन करें तथा उनका ऐतिहासिक महत्त्व भी बताएँ।
(Write briefly Guru Hargobind Ji’s battles with the Mughals. What is their significance in Sikh History ?)
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद जी की मुग़लों (शाहजहाँ के समय) के साथ 1634-35 ई० में चार लड़ाइयाँ हुईं। प्रथम लड़ाई 1634 ई० में अमृतसर में हुई। इसी वर्ष मुग़लों एवं सिखों में लहरा नामक लड़ाई हुई। 1635 ई० में गुरु हरगोबिंद जी तथा मुग़लों के मध्य तीसरी लड़ाई करतारपुर में हुई। इस लड़ाई में गुरु साहिब के दो पुत्रों गुरुदित्ता जी तथा तेग़ बहादुर जी ने वीरता के जौहर दिखाए। इसी वर्ष फगवाड़ा में मुग़लों तथा गुरु हरगोबिंद जी के मध्य अंतिम लड़ाई हुई। इन लड़ाइयों में सिख अपने सीमित साधनों के बावजूद सफल रहे।

प्रश्न 11.
गुरु हरगोबिंद जी को ‘बंदी छोड़ बाबा’ क्यों कहा जाता है ?
(Why is Guru Hargobind Ji known as ‘Bandi Chhor Baba’ ?)
उत्तर-
मुग़ल बादशाह जहाँगीर ने गुरु हरगोबिंद जी को बंदी बनाकर उन्हें ग्वालियर के दुर्ग में भेज दिया। उस समय इस दुर्ग में 52 अन्य राजा भी बंदी बनाए हुए थे। ये सभी राजा गुरु जी के विचारों से बहुत प्रभावित हुए। गुरु साहिब की मौजूदगी में वे अपने कष्ट भूल गए। जब जहाँगीर ने गुरु हरगोबिंद जी को रिहा करने का निर्देश दिया तो गुरु जी ने कहा कि वे तब तक रिहा नहीं होंगे जब तक 52 राजाओं को नहीं छोड़ा जाता। अंततः मजबूर होकर जहाँगीर ने इन राजाओं को भी रिहा कर दिया। इसी कारण गुरु हरगोबिंद साहिब को ‘बंदी छोड़ बाबा’ कहा जाने लगा।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 7 गुरु हरगोबिंद जी और सिख पंथ का रूपांतरण

प्रश्न 12.
अकाल तख्त साहिब पर एक नोट लिखें।
(Write a note on Akal Takht Sahib.)
अथवा
अकाल तख्त साहिब के निर्माण एवं महत्त्व के बारे में लिखें।
Explain briefly about the construction and importance of Akal Takht Sahib.)
उत्तर-
अकाल तख्त साहिब का निर्माण गुरु हरगोबिंद जी का महान् कार्य था। सिखों के राजनीतिक तथा सांसारिक पथ-प्रदर्शन के लिए उन्होंने अकाल तख्त साहिब की नींव रखी। अकाल तख्त साहिब का निर्माण कार्य गुरु हरगोबिंद जी ने हरिमंदिर साहिब के सामने 1606 ई० में आरंभ करवाया था। यह कार्य 1609 ई० में संपूर्ण .. हुआ। इस तख्त पर बैठकर गुरु हरगोबिंद साहिब जी सिखों के राजनीतिक एवं सैनिक मामलों का नेतृत्व करते थे। यहाँ वह सैनिकों को प्रशिक्षण भी देते थे।

प्रश्न 13.
गुरु हरगोबिंद जी के मुगल बादशाह शाहजहाँ के साथ संबंधों का संक्षिप्त वर्णन करें।
(Give a brief account of the relations of Guru Hargobind Ji with the Mughal Emperor Shah Jahan.)
उत्तर-
शाहजहाँ बहुत कट्टर सुन्नी बादशाह था। उसने गुरु अर्जन देव जी द्वारा लाहौर में बनाई गई बाऊली को गंदगी से भरवा दिया था। दूसरा, गुरु हरगोबिंद जी द्वारा सैना तैयार किए जाने तथा उनके अनुयायियों द्वारा उन्हें ‘सच्चा पातशाह’ कह कर संबोधन करना एक आँख नहीं भाता था। 1634-35 ई० के समय के दौरान सिखों तथा मुसलमानों के मध्य अमृतसर, लहरा, करतारपुर तथा फगवाड़ा नामक लड़ाइयाँ हुईं। इन लड़ाइयों में सिख विजयी रहे तथा मुग़लों को पराजय का सामना करना पड़ा।

प्रश्न 14.
गुरु हरगोबिंद जी तथा मुग़ल सम्राटों के संबंधों का संक्षिप्त वर्णन करें।
(Write a brief note on the relations between Guru Hargobind Ji and the Mughal Emperors.)
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद जी के दो समकालीन मुग़ल बादशाह जहाँगीर तथा शाहजहाँ थे। ये दोनों बादशाह बहुत कट्टर विचारों के थे। इस कारण गुरु हरगोबिंद जी ने मुग़ल अत्याचारों का मुकाबला करने के लिए मीरी तथा पीरी की नीति धारण की। कुछ समय के लिए जहाँगीर ने गुरु हरगोबिंद जी को ग्वालियर के दुर्ग में कैद कर लिया। बाद में जहाँगीर ने गुरु हरगोबिंद जी से मित्रता स्थापित कर ली। 1634-35 ई० के समय में शाहजहाँ के शासन काल में मुग़लों तथा सिखों के मध्य चार लड़ाइयाँ-अमृतसर, लहरा, करतारपुर तथा फगवाड़ा-लड़ी गईं। इनमें गुरु हरगोबिंद साहिब विजयी रहे।

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प्रश्न 15.
गुरु हरगोबिंद जी ने कीरतपुर में निवास करने का निर्णय क्यों किया? (Why did Guru Hargobind Ji Choose to settle down at Kiratpur ?)
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद जी ने कीरतपुर में निवास करने का निर्णय निम्नलिखित कारणों में किया।

  1. यह प्रदेश मुग़ल अधिकारियों के सीधे अधिकार क्षेत्र में नहीं था।
  2. यह प्रदेश शिवालिक की पहाड़ियों से घिरा होने के कारण अधिक सुरक्षित था।
  3. इस प्रदेश में गुरु साहिब शांति के साथ रह सकते थे तथा वह अपना समय सिख धर्म के प्रचार में व्यतीत कर सकते थे।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

(i) एक शब्द से एक पंक्ति तक के उत्तर (Answer in One Word to One Sentence)

प्रश्न 1.
सिखों के छठे गुरु कौन थे ?
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद साहिब जी।

प्रश्न 2.
गुरु हरगोबिंद जी का गुरुकाल बताएँ।
उत्तर-
1606 ई० से 1645 ई०।

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प्रश्न 3.
गुरु हरगोबिंद जी कब गरुगद्दी पर बैठे थे ?
उत्तर-
1606 ई०।

प्रश्न 4.
गुरु हरगोबिंद जी के पिता जी का क्या नाम था ?
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी।

प्रश्न 5.
गुरु हरगोबिंद जी की माता जी का क्या नाम था ?
उत्तर-
गँगा देवी जी।

प्रश्न 6.
बीबी वीरो जी कौन थी ?
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद जी की सुपुत्री।

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प्रश्न 7.
गुरु हरगोबिंद जी के सबसे बड़े पुत्र का क्या नाम था ?
उत्तर-
बाबा गुरदित्ता जी।।

प्रश्न 8.
बाबा गुरदित्ता जी किसके पुत्र थे ?
अथवा
सूरज मल जी किसके पुत्र थे ?
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद जी के।

प्रश्न 9.
बाबा अटल राय जी किसके पुत्र थे ?
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद जी के।

प्रश्न 10.
बाबा अटल राय जी का गुरुद्वारा कहाँ स्थित है ?
उत्तर-
अमृतसर में।

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प्रश्न 11.
गुरु हरगोबिंद जी द्वारा नई नीति अपनाने का कोई एक कारण बताएँ।
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी।

प्रश्न 12.
मीरी और पीरी की प्रथा किस गुरु साहिब ने आरंभ की ?
अथवा
किस गुरु साहिब ने दो तलवारें धारण की ?
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद साहिब।

प्रश्न 13.
‘मीरी’ और ‘पीरी’ से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
मीरी सांसारिक सत्ता तथा पीरी आध्यात्मिक सत्ता की प्रतीक थी।

प्रश्न 14.
अकाल तख्त साहिब का निर्माण कहाँ किया गया?
उत्तर-
अमृतसर।

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प्रश्न 15.
अकाल तख्त साहिब का निर्माण किस गुरु साहिब ने करवाया ?
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद जी।

प्रश्न 16.
अकाल तख्त साहिब का निर्माण गुरु हरगोबिंद साहिब ने कब आरंभ किया था ?
उत्तर-
1606 ई०।

प्रश्न 17.
अकाल तख्त साहिब से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
ईश्वर की गद्दी।

प्रश्न 18.
अकाल तख्त साहिब किस ऐतिहासिक तथ्य पर प्रकाश डालता है ?
उत्तर-
सिख धर्म तथा सिख राजनीति का समावेश।

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प्रश्न 19.
लोहगढ़ का किला किसने बनवाया ?
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद जी ने।

प्रश्न 20.
गुरु हरगोबिंद जी ने लोहगढ़ किले का निर्माण कहां किया था ?
उत्तर-
अमृतसर।

प्रश्न 21.
गुरु हरगोबिंद जी की पठानों की सैनिक टुकड़ी का सेनानायक कौन था?
उत्तर-
पैंदा खाँ।

प्रश्न 22.
गुरु हरगोबिंद जी को किस मुग़ल सम्राट् ने बंदी बनाया ?
उत्तर-
जहाँगीर ने।

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प्रश्न 23.
जहाँगीर ने गुरु हरगोबिंद जी को कहाँ बंदी बनाया था ?
उत्तर-
ग्वालियर के दुर्ग में।

प्रश्न 24.
‘बंदी छोड़ बाबा’ किसे कहा जाता है ?
अथवा
सिखों के किस गुरु को ‘बंदी छोड़ बाबा’ कहा जाता है ?
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद जी।

प्रश्न 25.
शाहजहाँ तथा सिखों में संबंध बिगड़ने का कोई एक कारण बताएँ।
उत्तर-
शाहजहाँ का धार्मिक कट्टरपन।

प्रश्न 26.
गुरु हरगोबिंद जी तथा मुग़लों के मध्य प्रथम लड़ाई कहाँ हुई ?
उत्तर-
अमृतसर।

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प्रश्न 27.
गुरु हरगोबिंद जी तथा मुग़लों में अमृतसर की लड़ाई कब हुई ?
उत्तर-
1634 ई०।

प्रश्न 28.
उन दो घोड़ों के नाम बताओ जो लहरा के युद्ध का कारण बने।
उत्तर-
दिलबाग तथा गुलबाग।

प्रश्न 29.
गुलबाग किसका नाम था ?
उत्तर-
गुलबाग गुरु हरगोबिंद जी को भेंट किए गए एक प्रसिद्ध घोड़े का नाम था।

प्रश्न 30.
दिलबाग किसका नाम था ?
उत्तर-
दिलबाग गुरु हरगोबिंद जी को भेंट किए गए एक प्रसिद्ध घोड़े का नाम था।

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प्रश्न 31.
बिधि चंद जी कौन थे ?
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद जी के एक अनुयायी।

प्रश्न 32.
कौलां कौन थी ?
उत्तर-
काज़ी रुस्तम खाँ की पुत्री।

प्रश्न 33.
दल भंजन गुर सूरमा किस गुरु साहिब को कहा जाता है ?
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद जी को।

प्रश्न 34.
करतारपुर की लड़ाई कब हुई ?
उत्तर-
1635 ई०।

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प्रश्न 35.
करतारपुर की लड़ाई में किस गुरु साहिब ने बहादुरी के जौहर दिखाए ?
उत्तर-
गुरु तेग़ बहादुर जी।

प्रश्न 36.
गुरु हरगोबिंद जी ने किस नगर की स्थापना की थी ?
उत्तर-
कीरतपुर साहिब।

प्रश्न 37.
गुरु हरगोबिंद जी ने अपने अंतिम दस वर्ष कहाँ व्यतीत किए ?
उत्तर-
कीरतपुर साहिब।

प्रश्न 38.
गुरु हरगोबिंद जी कब ज्योति-जोत समाए थे ?
उत्तर-
1645 ई०।

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प्रश्न 39.
गुरु हरगोबिंद जी कहाँ ज्योति-जोत समाए थे ?
उत्तर-
कीरतपुर साहिब।

(ii) रिक्त स्थान भरें – (Fill in the Blanks)

प्रश्न 1.
गुरु हरगोबिंद जी का जन्म …………… में हुआ।
उत्तर-
(1595 ई०)

प्रश्न 2.
गुरु हरगोबिंद जी के पिता जी का नाम…………था।
उत्तर-
(गुरु अर्जन देव जी)

प्रश्न 3.
बाबा गुरदित्ता जी के पिता जी का नाम ………….. था।
उत्तर-
(गुरु हरगोबिंद जी)

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प्रश्न 4.
गुरु हरगोबिंद जी …………….. में गुरुगद्दी पर बैठे।
उत्तर-
(1606 ई०)

प्रश्न 5.
गुरु हरगोबिंद जी की पुत्री का नाम ……….. था।
उत्तर-
(बीबी वीरो जी)

प्रश्न 6.
गुरुगद्दी पर बैठते समय गुरु हरगोबिंद जी की आयु ………….. वर्ष की थी।
उत्तर-
(11)

प्रश्न 7.
गुरु हरगोबिंद जी ने ………. तलवारें धारण की।
उत्तर-
(मीरी एवं पीरी)

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प्रश्न 8.
अकाल तख्त साहिब का निर्माण …………… ने करवाया था।
उत्तर-
(गुरु हरगोबिंद जी)

प्रश्न 8.
………. में अकाल तख्त साहिब का निर्माण आरंभ किया गया था।
उत्तर-
(1606 ई०)

प्रश्न 10.
जहाँगीर की मृत्यु के बाद मुग़ल बादशाह ……. बना था।
उत्तर-
(शाहजहाँ)

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प्रश्न 11.
……………..को बंदी छोड़ बाबा कहा जाता है।
उत्तर-
(गुरु हरगोबिंद साहिब)

प्रश्न 12.
अमृतसर की लड़ाई ………….. में हुई।
उत्तर-
(1634 ई०)

प्रश्न 13.
लहरा की लड़ाई का मुख्य कारण …………और …………. नामक दो घोड़े थे।
उत्तर-
(दिलबाग, गुलबाग)

प्रश्न 14.
गुरु हरगोबिंद जी ने ………….. नामक नगर की स्थापना की।
उत्तर-
(कीरतपुर साहिब)

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प्रश्न 15.
गुरु हरगोबिंद जी ने …………….. को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया।
उत्तर-
(गुरु हर राय जी)

प्रश्न 16.
गुरु हरगोबिंद जी ……. में ज्योति-जोत समाये।
उत्तर-
(1645 ई०)

(iii) ठीक अथवा गलत (True or False)

नोट-निम्नलिखित में से ठीक अथवा गलत चनें—

प्रश्न 1.
गुरु हरगोबिंद जी सिखों के सातवें गुरु थे।
उत्तर-
गलत

प्रश्न 2.
गुरु हरगोबिंद जी का जन्म 1595 ई० में हुआ था।
उत्तर-
ठीक

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प्रश्न 3.
गुरु हरगोबिंद जी के पिता जी का नाम गुरु अर्जन देव जी था।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 4.
गुरु हरगोबिंद जी के सबसे बड़े पुत्र का नाम बाबा गुरुदित्ता जी था।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 5.
गुरु हरगोबिंद जी की पुत्री का नाम बीबी वीरो था।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 6.
गुरु हरगोबिंद जी 1606 ई० में गुरुगद्दी पर बिराजमान हुए।
उत्तर-
ठीक

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प्रश्न 7.
गुरु हरगोबिंद जी ने नई नीति का प्रचलन किया।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 8.
गुरु हरगोबिंद जी ने मीरी और पीरी नीति का प्रचलन किया।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 9.
गुरु अर्जन देव जी ने अकाल तख्त के निर्माण का कार्य किया।
उत्तर-
गलत

प्रश्न 10.
मुग़ल बादशाह जहाँगीर ने गुरु हरगोबिंद जी को ग्वालियर के किले में बंदी बना लिया था।
उत्तर-
ठीक

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प्रश्न 11.
गुरु हरगोबिंद जी को ‘बंदी छोड़ बाबा’ कहा जाता है।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 12.
शाहजहाँ 1628 ई० में मुगलों का नया बादशाह बना।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 13.
सिखों और मुग़लों के मध्य पहली लड़ाई अमृतसर में 1634 ई० में हुई।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 14.
गुरु हरगोबिंद जी ने कीरतपुर साहिब नामक एक नगर की स्थापना की थी।
उत्तर-
ठीक

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प्रश्न 15.
गुरु हरगोबिंद जी 1635 ई० में ज्योति-ज्योत समाए।
उत्तर-
गलत

(iv) बहु-विकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions)

नोट-निम्नलिखित में से ठीक उत्तर का चयन कीजिए

प्रश्न 1.
सिखों के छठे गुरु कौन थे ?
(i) गुरु अर्जन देव जी
(ii) गुरु हरगोबिंद जी
(iii) गुरु हर राय जी
(iv) गुरु हर कृष्ण जी।
उत्तर-
(ii)

प्रश्न 2.
गुरु हरगोबिंद जी का जन्म कब हुआ ?
(i) 1590 ई० में
(ii) 1593 ई० में
(iii) 1595 ई० में
(iv) 1597 ई० में।
उत्तर-
(iii)

प्रश्न 3.
गुरु हरगोबिंद जी के पिता जी का क्या नाम था ?
(i) गुरु अर्जन देव जी
(ii) गुरु रामदास जी
(iii) गुरु हर राय जी
(iv) गुरु अमरदास जी।’
उत्तर-
(i)

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प्रश्न 4.
गुरु हरगोबिंद जी की माता जी का क्या नाम था ?
(i) लक्ष्मी देवी जी
(ii) गंगा देवी जी
(ii) सुलक्खनी जी
(iv) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(ii)

प्रश्न 5.
बीबी वीरो जी कौन थी ?
(i) गुरु हरगोबिंद जी की पत्नी
(ii) गुरु हरगोबिंद जी की सुपुत्री
(iii) गुरु हर राय जी की सुपुत्री
(iv) बाबा गुरदित्ता जी की पत्नी।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 6.
गुरु हरगोबिंद जी गुरुगद्दी पर कब बैठे ?
(i) 1506 ई० में
(ii) 1556 ई० में
(iii) 1605 ई० में
(iv) 1606 ई० में।
उत्तर-
(iv)

प्रश्न 7.
मीरी और पीरी की प्रथा किस गुरु साहिब ने आरंभ की ?
(i) गुरु अर्जन देव जी ने
(ii) गुरु हरगोबिंद जी ने
(iii) गुरु तेग़ बहादुर जी ने
(iv) गुरु गोबिंद सिंह जी ने।
उत्तर-
(i)

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प्रश्न 8.
अकाल तख्त साहिब का निर्माण किस गुरु साहिब ने करवाया था ?
(i) गुरु अमरदास जी ने
(ii) गुरु अर्जन देव जी ने
(iii) गुरु हरगोबिंद जी ने
(iv) गुरु तेग़ बहादुर जी ने।
उत्तर-
(iii)

प्रश्न 9.
अकाल तख्त का निर्माण कब संपूर्ण हुआ था ?
(i) 1606 ई० में
(ii) 1607 ई० में
(iii) 1609 ई० में
(iv) 1611 ई० में।
उत्तर-
(iii)

प्रश्न 10.
‘बंदी छोड़ बाबा’ किसको कहा जाता है ?
(i) बंदा सिंह बहादुर को
(ii) भाई मनी सिंह जी को
(iii) गुरु हरगोबिंद जी को
(iv) गुरु तेग़ बहादुर जी को।
उत्तर-
(iii)

प्रश्न 11.
गुरु हरगोबिंद जी और मुगलों में लड़ी गई पहली लड़ाई कौन-सी थी ?
(i) फगवाड़ा
(ii) अमृतसर
(iii) करतारपुर
(iv) लहरा।
उत्तर-
(ii)

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प्रश्न 12.
गुरु हरगोबिंद जी और मुग़लों में लड़ी गई अमृतसर की लड़ाई कब हुई थी ?
(i) 1606 ई० में
(i) 1624 ई० में
(ii) 1630 ई० में
(iv) 1634 ई० में।
उत्तर-
(iv)

प्रश्न 13.
गुरु तेग़ बहादुर जी ने निम्नलिखित में से किस लड़ाई में वीरता का प्रदर्शन किया ?
(i) अमृतसर
(ii) लहरा
(iii) करतारपुर
(iv) फगवाड़ा।
उत्तर-
(iii)

प्रश्न 14.
गुरु हरगोबिंद जी ने किस नगर की स्थापना की थी ?
(i) करतारपुर
(ii) कीरतपुर साहिब
(iii) अमृतसर
(iv) तरन तारन।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 15.
गुरु हरगोबिंद जी ने अपना उत्तराधिकारी किसको नियुक्त किया ?
(i) हर राय जी को
(ii) हर कृष्ण जी को
(iii) तेग़ बहादुर जी को
(iv) गोबिंद राय जी को।
उत्तर-
(i)

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प्रश्न 16.
गुरु हरगोबिंद जी कब ज्योति-जोत समाए थे ?
(i) 1628 ई० में
(ii) 1635 ई० में
(iii) 1638 ई० में
(iv) 1645 ई० में।
उत्तर-
(iv)

Long Answer Type Question

प्रश्न 1.
सिख पंथ के रूपांतरण में गुरु हरगोबिंद जी ने क्या योगदान दिया ?.
(What contribution was made by Guru Hargobind Ji in transformation of Sikhism ?)
अथवा
गुरु हरगोबिंद जी के गुरु काल की सफलताओं का संक्षिप्त वर्णन करें। (Briefly describe the achievements of Guru Hargobind Ji’s pontificate.)
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद जी 1606 ई० से 1645 ई० तक गुरुगद्दी पर आसीन रहे। सिख पंथ के रूपांतरण में गुरु हरगोबिंद जी ने उल्लेखनीय योगदान दिया। वह बहुत शानो-शौकत से गुरुगद्दी पर बैठे। उन्होंने सच्चा पातशाह की उपाधि तथा मीरी और पीरी नामक दो तलवारें धारण की। मीरी तलवार सांसारिक सत्ता की और पीरी तलवार धार्मिक सत्ता की प्रतीक थी। गुरु जी ने मुग़लों से सिख पंथ की सुरक्षा के लिए सेना का गठन करने का निर्णय किया। उन्होंने सिखों को सिख सेना में भर्ती होने, घोड़े और शस्त्र भेट करने के लिए हुक्मनामे जारी किए। अमृतसर की रक्षा के लिए गुरु साहिब ने लोहगढ़ नामक एक दुर्ग का निर्माण करवाया। सिखों का सांसारिक मामलों में निर्देशन करने के लिए गुरु हरगोबिंद जी ने हरिमंदिर साहिब के सामने अकाल तख्त साहिब का निर्माण करवाया। गुरु साहिब के बढ़ते हुए प्रभाव को देखकर जहाँगीर ने उन्हें कुछ समय के लिए ग्वालियर के दुर्ग में बंदी बना लिया था। बाद में जहाँगीर ने गुरु साहिब की रिहाई का आदेश दिया। गुरु साहिब ने तब तक रिहा होने से इंकार कर दिया जब तक ग्वालियर के दुर्ग में बन्दी अन्य राजाओं को भी रिहा नहीं कर दिया जाता। परिणामस्वरूप जहाँगीर ने इन 52 राजाओं को भी रिहा कर दिया। इस कारण गुरु हरगोबिंद जी को बंदी छोड़ बाबा कहा जाने लगा। 1628 ई० में शाहजहाँ मुग़लों का नया बादशाह बना। वह बहुत कट्टर विचारों का था। शाहजहाँ के समय में गुरु हरगोबिंद जी ने मुग़लों के साथ चार लड़ाइयाँ-अमृतसर, लहरा, करतारपुर एवं फगवाड़ा में लड़ीं। इनमें गुरु साहिब को विजय प्राप्त हुई। गुरु जी ने कीरतपुर साहिब नामक एक नए नगर की स्थापना की। यहाँ रहते हुए गुरु हरगोबिंद जी ने सिख धर्म के प्रचार के लिए उल्लेखनीय कदम उठाए।

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प्रश्न 2.
गुरु हरगोबिंद जी ने नई नीति अथवा मीरी एवं पीरी नीति को क्यों धारण किया ?
(What were the main causes of the adoption of New Policy or Miri and Piri by Guru Hargobind Ji ?)
उत्तर-
1. मग़लों की धार्मिक नीति में परिवर्तन–जहाँगीर से पूर्व के शासकों के साथ सिखों के संबंध मधुर थे। बाबर ने गुरु नानक देव जी के प्रति सम्मान प्रकट किया था। हुमायूँ ने सिंहासन की पुनः प्राप्ति के लिए गुरु अंगद देव जी से आशीर्वाद प्राप्त किया। मुग़ल बादशाह अकबर ने गुरु अमरदास जी के समय स्वयं गोइंदवाल साहिब में आकर लंगर छका था। उसने गुरु रामदास जी को 500 बीघे भूमि दान में दी तथा पंजाब के किसानों का एक वर्ष का लगान माफ कर दिया था। परंतु 1605 ई० में बादशाह बना जहाँगीर बहुत कट्टर सुन्नी मुसलमान था। वह इस्लाम के सिवाय किसी अन्य धर्म को विकसित होते नहीं देख सकता था। अतः इन बदली हुई परिस्थितियों में गुरु साहिब को भी नई नीति अपनानी पड़ी।

2. गुरु अर्जन देव जी का बलिदान–जहाँगीर के लिए सिखों की बढ़ती लोकप्रियता असहनीय थी। इस लहर के दमन के लिए उसने 1606 ई० में गुरु अर्जन देव जी को शहीद कर दिया। गुरु अर्जन देव जी के बलिदान ने सिखों को स्पष्ट कर दिया था यदि वे जीवित रहना चाहते हैं तो उन्हें शस्त्रधारी बनकर मुगलों से टक्कर लेनी होगी। इस प्रकार गुरु अर्जन देव जी का बलिदान गुरु हरगोबिंद जी द्वारा नई नीति धारण करने के लिए काफ़ी सीमा तक उत्तरदायी था।

3. गुरु अर्जन देव जी का अंतिम संदेश—गुरु अर्जन देव जी ने अपने बलिदान से पूर्व अपने पुत्र हरगोबिंद जी को यह संदेश भेजा कि, “उसे पूरी तरह शस्त्रों से सुसज्जित होकर गद्दी पर बैठना चाहिए। अपनी पूर्ण योग्यता के अनुसार सेना रखनी चाहिए।” अतः गुरु साहिब के इन शब्दों को व्यावहारिक रूप देने का गुरु हरगोबिंद जी ने निश्चय किया।

प्रश्न 3.
गुरु हरगोबिंद जी द्वारा अपनाई गई नई नीति की विशेषताओं की व्याख्या करें।
(Explain the features of New Policy adopted by Guru Hargobind Ji)
अथवा
गुरु हरगोबिंद जी द्वारा अपनाई गई नई नीति कौन-सी थी ? उसकी विशेषताओं के बारे में जानकारी दें।
(WŁ t do you know about the New Policy of Guru Hargobind Ji ? Explain its features.)
अथवा
गुरु हरगोबिंद जी की नई नीति अथवा मीरी एवं पीरी के संबंध में आप क्या जानते हैं ? (What do you know about the New Policy or Miri and Piri of Guru Hargobind Ji ?)
अथवा
गुरु हरगोबिंद जी की नई नीति की विशेषताएँ बताएँ। (Tell the features of New Policy of Guru Hargobind Ji.)
उत्तर-
1. मीरी तथा पीरी तलवारें धारण करना—गुरु हरगोबिंद साहिब ने गुरुगद्दी पर विराजमान होते समय मीरी तथा पीरी नामक दो तलवारें धारण की। मीरी तलवार सांसारिक सत्ता और पीरी तलवार धार्मिक नेतृत्व की प्रतीक थी। गुरु हरगोबिंद साहिब ने एक ओर सिखों को सतनाम का जाप करने तथा दूसरी ओर शस्त्र धारण करने का संदेश दिया। इस प्रकार गुरु साहिब ने सिखों को संत सिपाही बना दिया।

2. सेना का संगठन-गुरु हरगोबिंद साहिब द्वास सिख पंथ की रक्षा के लिए सेना का संगठन करने का भी निर्णय किया गया। उन्होंने सिखों को यह आदेश दिया कि वे गुरु साहिब की सेना में भर्ती हों। फलस्वरूप 500 योद्धा आपकी सेना में भर्ती हुए। धीरे-धीरे गुरु साहिब की सेना की संख्या बढ़कर 2500 हो गई। गुरु जी की सेना में पठानों की एक अलग सैनिक टुकड़ी बनाई गई। इसका सेनापति पैंदा खाँ को नियुक्त किया गया।

3. शस्त्र तथा घोड़े एकत्र करना-गुरु हरगोबिंद जी ने मसंदों को यह आदेश दिया कि वे सिखों से धन की अपेक्षा शस्त्र एवं घोड़े एकत्रित करें। सिखों से भी कहा कि वे मसंदों को शस्त्र एवं घोड़े भेंट करें। गुरु जी के इस आदेश का मसंदों और सिखों ने बड़े उत्साह से स्वागत किया। फलस्वरूप गुरु जी की सैन्य-शक्ति अधिक दृढ़ हो गई।

4. अकाल तख्त साहिब का निर्माण—गुरु हरगोबिंद जी द्वारा अकाल तख्त साहिब का निर्माण उनकी नई नीति का ही महत्त्वपूर्ण भाग था। अकाल तख्त साहिब का निर्माण गुरु हरगोबिंद साहिब ने हरिमंदिर साहिब के सामने करवाया था। इस तख्त पर बैठकर गुरु हरगोबिंद साहिब जी सिखों को सैनिक प्रशिक्षण देते, उनके सैनिक कारनामे देखते, मसंदों से घोड़े और शस्त्र स्वीकार करते, ढाडी वीर-रस की वारें सुनाते तथा सिखों के परस्पर झगड़ों का भी निपटारा करते थे।

5. राजनीतिक प्रतीकों को अपनाना-गुरु हरगोबिंद जी अपनी नई नीति के अंतर्गत राजसी ठाठ-बाठं से रहने लगे। उन्होंने अब सेली (ऊन की माला) के स्थान पर कमर में दो तलवारें धारण कीं। एक शानदार दरबार की स्थापना की गई। उन्होंने अब राजाओं की भाँति दस्तार के ऊपर कलगी सुशोभित करनी आरंभ कर दी। उन्होंने ‘सच्चा पातशाह’ की उपाधि धारण की।

6. अमृतसर की किलाबंदी-गुरु हरगोबिंद जी अमृतसर के महत्त्व से भली-भाँति परिचित थे। इसलिए इस महत्त्वपूर्ण स्थान की सुरक्षा के लिए अमृतसर शहर के चारों ओर एक दीवार बनवा दी। इसके अतिरिक्त यहाँ पर 1609 ई० में एक दुर्ग का निर्माण भी करवाया गया। जिसका नाम लोहगढ़ रखा गया। इस दुर्ग के निर्माण से सिखों का साहस बहुत बढ़ गया।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 7 गुरु हरगोबिंद जी और सिख पंथ का रूपांतरण

प्रश्न 4.
गुरु हरगोबिंद साहिब जी की नई नीति क्या थी ? इस नई नीति को धारण करने के क्या कारण थे ?
(What was the New Policy of Guru Hargobind Sahib Ji ? What were the causes of adoption of New Policy ?)
उत्तर-
(i) गुरु हरगोबिंद साहिब जी की नई नीति—
1. मीरी तथा पीरी तलवारें धारण करना—गुरु हरगोबिंद साहिब ने गुरुगद्दी पर विराजमान होते समय मीरी तथा पीरी नामक दो तलवारें धारण की। मीरी तलवार सांसारिक सत्ता और पीरी तलवार धार्मिक नेतृत्व की प्रतीक थी। गुरु हरगोबिंद साहिब ने एक ओर सिखों को सतनाम का जाप करने तथा दूसरी ओर शस्त्र धारण करने का संदेश दिया। इस प्रकार गुरु साहिब ने सिखों को संत सिपाही बना दिया।

2. सेना का संगठन-गुरु हरगोबिंद साहिब द्वास सिख पंथ की रक्षा के लिए सेना का संगठन करने का भी निर्णय किया गया। उन्होंने सिखों को यह आदेश दिया कि वे गुरु साहिब की सेना में भर्ती हों। फलस्वरूप 500 योद्धा आपकी सेना में भर्ती हुए। धीरे-धीरे गुरु साहिब की सेना की संख्या बढ़कर 2500 हो गई। गुरु जी की सेना में पठानों की एक अलग सैनिक टुकड़ी बनाई गई। इसका सेनापति पैंदा खाँ को नियुक्त किया गया।

3. शस्त्र तथा घोड़े एकत्र करना-गुरु हरगोबिंद जी ने मसंदों को यह आदेश दिया कि वे सिखों से धन की अपेक्षा शस्त्र एवं घोड़े एकत्रित करें। सिखों से भी कहा कि वे मसंदों को शस्त्र एवं घोड़े भेंट करें। गुरु जी के इस आदेश का मसंदों और सिखों ने बड़े उत्साह से स्वागत किया। फलस्वरूप गुरु जी की सैन्य-शक्ति अधिक दृढ़ हो गई।

4. अकाल तख्त साहिब का निर्माण—गुरु हरगोबिंद जी द्वारा अकाल तख्त साहिब का निर्माण उनकी नई नीति का ही महत्त्वपूर्ण भाग था। अकाल तख्त साहिब का निर्माण गुरु हरगोबिंद साहिब ने हरिमंदिर साहिब के सामने करवाया था। इस तख्त पर बैठकर गुरु हरगोबिंद साहिब जी सिखों को सैनिक प्रशिक्षण देते, उनके सैनिक कारनामे देखते, मसंदों से घोड़े और शस्त्र स्वीकार करते, ढाडी वीर-रस की वारें सुनाते तथा सिखों के परस्पर झगड़ों का भी निपटारा करते थे।

5. राजनीतिक प्रतीकों को अपनाना-गुरु हरगोबिंद जी अपनी नई नीति के अंतर्गत राजसी ठाठ-बाठं से रहने लगे। उन्होंने अब सेली (ऊन की माला) के स्थान पर कमर में दो तलवारें धारण कीं। एक शानदार दरबार की स्थापना की गई। उन्होंने अब राजाओं की भाँति दस्तार के ऊपर कलगी सुशोभित करनी आरंभ कर दी। उन्होंने ‘सच्चा पातशाह’ की उपाधि धारण की।

6. अमृतसर की किलाबंदी-गुरु हरगोबिंद जी अमृतसर के महत्त्व से भली-भाँति परिचित थे। इसलिए इस महत्त्वपूर्ण स्थान की सुरक्षा के लिए अमृतसर शहर के चारों ओर एक दीवार बनवा दी। इसके अतिरिक्त यहाँ पर 1609 ई० में एक दुर्ग का निर्माण भी करवाया गया। जिसका नाम लोहगढ़ रखा गया। इस दुर्ग के निर्माण से सिखों
का साहस बहुत बढ़ गया।

(ii) नई नीति को धारण करने के कारण—
1. मग़लों की धार्मिक नीति में परिवर्तन–जहाँगीर से पूर्व के शासकों के साथ सिखों के संबंध मधुर थे। बाबर ने गुरु नानक देव जी के प्रति सम्मान प्रकट किया था। हुमायूँ ने सिंहासन की पुनः प्राप्ति के लिए गुरु अंगद देव जी से आशीर्वाद प्राप्त किया। मुग़ल बादशाह अकबर ने गुरु अमरदास जी के समय स्वयं गोइंदवाल साहिब में आकर लंगर छका था। उसने गुरु रामदास जी को 500 बीघे भूमि दान में दी तथा पंजाब के किसानों का एक वर्ष का लगान माफ कर दिया था। परंतु 1605 ई० में बादशाह बना जहाँगीर बहुत कट्टर सुन्नी मुसलमान था। वह इस्लाम के सिवाय किसी अन्य धर्म को विकसित होते नहीं देख सकता था। अतः इन बदली हुई परिस्थितियों में गुरु साहिब को भी नई नीति अपनानी पड़ी।

2. गुरु अर्जन देव जी का बलिदान–जहाँगीर के लिए सिखों की बढ़ती लोकप्रियता असहनीय थी। इस लहर के दमन के लिए उसने 1606 ई० में गुरु अर्जन देव जी को शहीद कर दिया। गुरु अर्जन देव जी के बलिदान ने सिखों को स्पष्ट कर दिया था यदि वे जीवित रहना चाहते हैं तो उन्हें शस्त्रधारी बनकर मुगलों से टक्कर लेनी होगी। इस प्रकार गुरु अर्जन देव जी का बलिदान गुरु हरगोबिंद जी द्वारा नई नीति धारण करने के लिए काफ़ी सीमा तक उत्तरदायी था।

3. गुरु अर्जन देव जी का अंतिम संदेश—गुरु अर्जन देव जी ने अपने बलिदान से पूर्व अपने पुत्र हरगोबिंद जी को यह संदेश भेजा कि, “उसे पूरी तरह शस्त्रों से सुसज्जित होकर गद्दी पर बैठना चाहिए। अपनी पूर्ण योग्यता के अनुसार सेना रखनी चाहिए।” अतः गुरु साहिब के इन शब्दों को व्यावहारिक रूप देने का गुरु हरगोबिंद जी ने निश्चय किया।

प्रश्न 5.
मीरी और पीरी के विषय में आप क्या जानते हैं ? (What do you know about Miri and Piri ?)
अथवा
मीरी और पीरी से क्या भाव है ? इसकी ऐतिहासिक महत्ता बताएँ। (What is Miri and Piri ? Describe its historical importance.)
अथवा
गुरु हरगोबिंद जी की नई नीति के महत्त्व का संक्षेप में वर्णन करें। (Briefly describe the importance of the New Policy of Guru Hargobind Ji.)
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद जी ने गुरुगद्दी पर बैठने के समय बदली हुई परिस्थितियों को देखते हुए मीरी एवं पीरी नामक दो तलवारें धारण करने का निर्णय किया। मीरी तलवार सांसारिक सत्ता की प्रतीक थी जबकि पीरी तलवार धार्मिक सत्ता की प्रतीक थी। गुरु साहिब द्वारा ये दोनों तलवारें धारण करने से अभिप्राय यह था कि आगे से वे अपने अनुयायियों का धार्मिक नेतृत्व करने के अतिरिक्त सांसारिक मामलों में भी नेतृत्व करेंगे। गुरु हरगोबिंद साहिब ने एक ओर सिखों को सतनाम का जाप करने और दूसरी ओर अपनी रक्षा के लिए शस्त्र धारण करने का आदेश दिया। इस प्रकार गुरु हरगोबिंद जी ने सिखों को संत सिपाही बना दिया। गुरु हरगोबिंद जी द्वारा अपनाई गई इस मीरी और पीरी की नीति का सिख इतिहास पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा। इसके कारण सर्वप्रथम सिखों में एक नया जोश उत्पन्न हुआ। दूसरा, अब उन्होंने धर्म की रक्षा के लिए शस्त्र उठाने का निर्णय किया। तीसरा, गुरु गोबिंद सिंह जी ने इस नीति का अनुसरण करते हुए खालसा पंथ का सृजन किया। चौथा, इस नीति के कारण सिखों और मुग़लों और अफ़गानों के बीच एक लंबा संघर्ष आरंभ हुआ जिसमें अंततः सिख विजयी रहे।

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प्रश्न 6.
गुरु हरगोबिंद जी के ग्वालियर में बंदी बनाए जाने पर एक संक्षिप्त नोट लिखें। (Write a short note on the imprisonment of Guru Hargobind Ji at Gwalior.)
अथवा
जहाँगीर ने गुरु हरगोबिंद जी को बंदी क्यों बनाया ? (Why did Jahangir arrest Guru Hargobind Ji ?)
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद जी के गुरुगद्दी पर बैठने के कुछ समय बाद ही वह मुग़ल सम्राट् जहाँगीर द्वारा बंदी बनाकर ग्वालियर के दुर्ग में भेज दिए गए। गुरु साहिब को बंदी क्यों बनाया गया, इस संबंध में इतिहासकारों में मतभेद हैं। कुछ इतिहासकारों का विचार है कि इसके लिए चंदू शाह का षड्यंत्र उत्तरदायी था। गुरु जी द्वारा उसकी पुत्री के साथ विवाह करने से पुनः इंकार करने पर उसने जहाँगीर को गुरु साहिब के विरुद्ध भड़काया। परिणामस्वरूप जहाँगीर ने उन्हें बंदी बना लिया। दूसरी ओर अधिकाँश इतिहासकार इस मत से सहमत हैं कि जहाँगीर ने गुरु साहिब को उनके द्वारा अपनाई गई नई नीति के कारण बंदी बनाया। इस नीति से उसके मन में अनेक शंकाएँ उत्पन्न हो गई थीं तथा गुरु साहिब के विरोधियों ने भी जहाँगीर के कान भरे कि गुरु जी विद्रोह करने की तैयारियाँ कर रहे हैं। इस संबंध में इतिहासकारों में मतभेद है कि गुरु हरगोबिंद साहिब ग्वालियर के दुर्ग में कितना समय बंदी रहे। अधिकाँश इतिहासकारों का कहना है कि गुरु साहिब 1606 ई० से 1608 ई० तक दो वर्ष ग्वालियर में बंदी रहे।

प्रश्न 7.
गुरु हरगोबिंद जी तथा मुग़ल सम्राट् जहाँगीर के संबंधों पर एक संक्षिप्त नोट लिखें।
(Write a short note on relations between Guru Hargobind Ji and Mughal emperor Jahangir.)
उत्तर-
1606 ई० में मुग़ल सम्राट् जहाँगीर के सिंहासन पर बैठने के साथ ही मुग़ल-सिख संबंधों में एक नया मोड़ आया। जहाँगीर बड़ा कट्टर सुन्नी मुसलमान था। सिंहासन पर बैठने के तुरंत पश्चात् उसने गुरु अर्जन देव जी को शहीद करवा दिया था। इस कारण मुग़ल-सिख संबंधों में तनाव पैदा हो गया। मुगल अत्याचारों का मुकाबला करने के उद्देश्य के साथ गुरु हरगोबिंद जी ने नई नीति धारण की। उन्होंने अपनी योग्यता के अनुसार कुछ सेना भी रखी। जहाँगीर यह सहन करने के लिए तैयार न था। चंदू शाह ने भी गुरु हरगोबिंद साहिब के विरुद्ध कार्यवाही करने के लिए जहाँगीर को भड़काया। परिणामस्वरूप जहाँगीर ने गुरु हरगोबिंद साहिब को बंदी बना कर ग्वालियर के दुर्ग में भेज दिया। गुरु साहिब ग्वालियर के दुर्ग में कितना समय बंदी रहे इस संबंध में इतिहासकारों में मतभेद है। भाई जेठा जी तथा सफ़ी संत मीयाँ मीर के कहने पर जहाँगीर ने गुरु जी को रिहा करने का आदेश दिया। गुरु जी के कहने पर जहाँगीर ने ग्वालियर के दुर्ग में बंदी बनाए 52 अन्य राजाओं को भी रिहा करने का आदेश दिया। इस कारण गुरु हरगोबिंद साहिब को ‘बंदी छोड़ बाबा’ कहा जाने लगा। इसके बाद गुरु हरगोबिंद साहिब तथा जहाँगीर के मध्य मैत्रीपूर्ण संबंध स्थापित हो गए।

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प्रश्न 8.
गुरु हरगोबिंद जी तथा मुग़लों के बीच लड़ाइयों के क्या कारण थे ? (What were the causes of battles between Guru Hargobind Ji and the Mughals ?)
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद जी तथा मुग़लों (शाहजहाँ) के मध्य लड़ाइयों के मुख्य कारण निम्नलिखित थे—

  1. मुग़ल सम्राट शाहजहाँ एक कट्टर सुन्नी मुसलमान था। उसने गुरु अर्जन देव जी द्वारा लाहौर में बनवाई गई बाऊली को गंदगी से भरवा दिया था। सिख इस अपमान को किसी हालत में सहन करने को तैयार नहीं थे।
  2. शाहजहाँ के समय नक्शबंदियों के नेता शेख मासूम ने सम्राट को सिखों के विरुद्ध कड़ी-से-कड़ी कार्यवाही करने के लिए भड़काया।
  3. गुरु जी ने अपनी सेना में बहुत-से मुग़ल सेना के भगौड़ों को भर्ती कर लिया था। इसके अतिरिक्त गुरु जी ने कई राजसी चिह्नों को धारण कर लिया था। सिख श्रद्धालु गुरु जी को ‘सच्चा पादशाह’ कहने लगे थे। निस्संदेह शाहजहाँ भला यह कैसे सहन करता।
  4. कौलाँ लाहौर के काजी रुस्तम खाँ की बेटी थी। वह गुरु अर्जन देव जी की वाणी से प्रभावित होकर गुरु जी की शरण में चली गई थी। इस काजी द्वारा भड़काने पर शाहजहाँ ने गुरु जी के विरुद्ध कार्यवाही करने का निर्णय किया।

प्रश्न 9.
गुरु हरगोबिंद जी तथा मुग़लों के मध्य हुई अमृतसर की लड़ाई का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
(Give a brief account of the battle of Amritsar fought between Guru Hargobind Ji and the Mughals.)
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद साहिब जी के समय में मुग़लों और सिखों के मध्य अमृतसर में 1634 ई० में प्रथम लड़ाई हुई थी। इस लड़ाई का मुख्य कारण एक बाज़ था। कहा जाता है कि उस समय मुग़ल बादशाह शाहजहाँ अपने कुछ सैनिकों सहित अमृतसर के निकट एक वन में शिकार खेल रहा था। दूसरी ओर गुरु हरगोबिंद साहिब और उनके कुछ सिख भी उसी वन में शिकार खेल रहे थे। शिकार खेलते समय शाहजहाँ का एक विशेष बाज़ जो उसे ईरान के सम्राट ने भेट किया था, उड़ गया। सिखों ने इस को पकड़ लिया। उन्होंने यह बाज़ मुग़लों को लौटाने से इंकार कर दिया। फलस्वरूप शाहजहाँ ने सिखों को सबक सिखाने के उद्देश्य से मुखलिस खाँ के नेतृत्व में 7000 सैनिक भेजे। सिख सैनिकों ने मुग़ल सैनिकों का डटकर सामना किया। इस लड़ाई में मुखलिस खाँ मारा गया। इस कारण मुग़ल सैनिकों में भगदड़ मच गई। इस प्रकार मुगलों और सिखों के मध्य हुई इस प्रथम लड़ाई में सिख विजयी रहे। इस विजय के कारण सिखों के हौसले बुलंद हो गए।

प्रश्न 10.
गुरु हरगोबिंद जी के समय हुई लहरा की लड़ाई पर एक संक्षिप्त नोट लिखें। (Write a short note on the battle of Lahira fought in the times of Guru Hargobind Ji.)
उत्तर-
अमृतसर की लड़ाई के शीघ्र पश्चात् मुग़लों तथा सिखों के मध्य लहरा (भटिंडा के निकट) नामक स्थान पर दूसरी लड़ाई हुई। इस लड़ाई का कारण दो घोड़े थे जिनके नाम दिलबाग तथा गुलबाग थे। इन दोनों घोड़ों को, जो कि बहुत बढ़िया नस्ल के थे बखत मल और तारा चंद नामक दो मसंद काबुल से गुरु साहिब को भेट करने के लिए ला रहे थे। मार्ग में ये दोनों घोड़े मुग़लों ने छीन लिए और उन्हें शाही घुड़साल में पहुँचा दिया। यह बात गुरु साहिब का एक सिख भाई बिधी चंद सहन न कर सका। वह भेष बदल कर दोनों घोड़े शाही घुड़साल से निकाल लाया और गुरु साहिब के पास पहुँचा दिया। जब शाहजहाँ को यह सूचना मिली तो वह क्रोधित हो उठा। उसने तुरंत लल्ला बेग तथा कमर बेग के नेतृत्व में एक भारी सेना सिखों के दमन के लिए भेजी। लहरा नामक स्थान पर मुग़लों तथा सिखों के मध्य भयंकर लड़ाई हुई। इस लड़ाई में मुग़लों की भारी प्राण हानि हुई और उनके दोनों सेनापति लल्ला बेग तथा कमर बेग भी मारे गए। इस लड़ाई में भाई जेठा जी भी शहीद हो गए। इस लड़ाई में सिख विजयी रहे।

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प्रश्न 11.
गुरु हरगोबिंद जी तथा मुगलों के बीच हुई करतारपुर की लड़ाई के बारे में आप क्या जानते हैं ?
(What do you know about the battle of Kartarpur fought between Guru Hargobind Ji and the Mughals ?)
उत्तर-
1635 ई० में मुग़लों तथा सिखों के मध्य करतारपुर में तीसरी लड़ाई हुई। यह लड़ाई पैंदा खाँ के कारण हुई। वह गुरु हरगोबिंद जी की सेना में पठान टुकड़ी का सेनापति था। अमृतसर की लड़ाई में उसने वीरता का प्रमाण दिया, परंतु अब वह बहुत अहंकारी हो गया था। उसने गुरु साहिब का एक बाज़ चोरी करके अपने दामाद को दे दिया। गुरु साहिब के पूछने पर उसने इस बात से इंकार कर दिया कि उसे बाज़ के संबंध में कुछ पता है। तत्पश्चात् जब गुरु जी को पैंदा खाँ के झूठ का पता चला तो उन्होंने उसे नौकरी से निकाल दिया। पैंदा खाँ ने इस अपमान का बदला लेने का निर्णय किया। वह मुग़ल बादशाह शाहजहाँ की शरण में चला गया। उसने शाहजहाँ को गुरु जी के विरुद्ध सैनिक कार्यवाही करने के लिए खूब भड़काया। परिणामस्वरूप शाहजहाँ ने पैंदा खाँ और काले खाँ के नेतृत्व में एक विशाल सेना गुरु हरगोबिंद जी के विरुद्ध भेजी। करतारपुर में दोनों सेनाओं के मध्य भयंकर लड़ाई हुई। इस लड़ाई में गुरु जी के दो पुत्रों भाई गुरदित्ता तथा तेग़ बहादुर जी ने अपनी वीरता का प्रदर्शन किया। इस लड़ाई में गुरु साहिब से लड़ते हुए काले खाँ, पैंदा खाँ और उसका पुत्र कुतब खाँ मारे गए। मुग़ल सेना को भारी जन हानि हुई। इस प्रकार गुरु जी को एक और शानदार विजय प्राप्त हुई।

प्रश्न 12.
गुरु हरगोबिंद जी की मुग़लों के साथ हुई लड़ाइयों का वर्णन करें तथा उनका ऐतिहासिक महत्त्व भी बताएँ।
(Write briefly Guru Hargobind’s battles with the Mughals. What is their significance in Sikh History ?)
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद जी की मुग़लों (शाहजहाँ के समय) के साथ 1634-35 ई० में चार लड़ाइयां हुईं। प्रथम लड़ाई 1634 ई० में अमृतसर में हुई। एक शाही बाज़ इस लड़ाई का तात्कालिक कारण सिद्ध हुआ। इस बाज़ को सिखों ने पकड़ लिया था तथा उसे मुग़लों को वापस करने से इंकार कर दिया था। शाहजहाँ ने मुखलिस खाँ के अधीन एक विशाल सेना सिखों को सबक सिखाने के लिए अमृतसर भेजी। इस लड़ाई में सिख बहुत बहादुरी से लड़े तथा अंत में विजयी रहे। दूसरी लड़ाई 1634 ई० में लहरा में हुई। इस लड़ाई का कारण दो घोड़े थे, जिनके नाम दिलबाग तथा गुलबाग थे। इस लड़ाई में मुग़लों का जान-माल का बहुत नुकसान हुआ। 1635 ई० में गुरु हरगोबिंद जी तथा मुग़लों के मध्य तीसरी लड़ाई हुई। इस लड़ाई में गुरु साहिब के दो पुत्रों गुरुदित्ता जी तथा तेग़ बहादुर जी ने वीरता के जौहर दिखाए। इसी वर्ष फगवाड़ा में मुग़लों तथा गुरु हरगोबिंद जी के मध्य अंतिम लड़ाई हुई। इन लड़ाइयों में सिख अपने सीमित साधनों के बावजूद सफल रहे जिस कारण उनकी प्रसिद्धि बहुत बढ़ गई। बड़ी संख्या में लोग सिख धर्म में सम्मिलित होने आरंभ हो गए।

प्रश्न 13.
गुरु हरगोबिंद जी को बंदी छोड़ बाबा’ क्यों कहा जाता है ? (Why is Guru Hargobind Ji known as ‘Bandi Chhor Baba’ ?)
उत्तर-
1605 ई० में मुग़ल सम्राट् जहाँगीर के सिंहासन पर बैठने के साथ ही मुग़ल-सिख संबंधों में एक नया मोड़ आया। जहाँगीर बड़ा कट्टर सुन्नी मुसलमान था। सिंहासन पर बैठने के तुरंत पश्चात् उसने गुरु अर्जन देव जी को शहीद करवा दिया था। इस कारण मुग़ल-सिख संबंधों में तनाव पैदा हो गया। मुग़ल अत्याचारों का मुकाबला करने के उद्देश्य के साथ गुरु हरगोबिंद जी ने नई नीति धारण की। उन्होंने अपनी योग्यता के अनुसार कुछ सेना भी रखी। जहाँगीर भला इसे कैसे सहन करता। इसके अतिरिक्त चंदू शाह ने भी गुरु हरगोबिंद जी के विरुद्ध कार्यवाई करने के लिए जहाँगीर के कानों में विष घोला। परिणामस्वरूप जहाँगीर ने गुरु हरगोबिंद जी को बंदी बना कर ग्वालियर के दुर्ग में भेज दिया। गुरु साहिब ग्वालियर के दुर्ग में कितना समय बंदी रहे इस संबंध में इतिहासकारों में मतभेद है। भाई जेठा जी तथा सफ़ी संत मियाँ मीर जी के कहने पर जहाँगीर ने गुरु जी को रिहा करने का आदेश दिया। मुग़ल बादशाह जहाँगीर ने ग्वालियर के दुर्ग में 52 राजा राजनैतिक कारणों से बंदी बनाए हुए थे। ये सभी राजा गुरु जी के व्यक्तित्व से बहुत प्रभावित हुए। गुरु साहिब की मौजूदगी में वे अपने सभी कष्ट भूल गए। पर जब जहाँगीर ने गुरु हरगोबिंद जी को रिहा करने का निर्देश दिया तो दुर्ग में बंदी दूसरे राजाओं को बहुत निराशा हुई। क्योंकि गुरु साहिब को इन राजाओं से काफ़ी हमदर्दी हो गई थी इसलिए गुरु साहिब ने जहाँगीर को यह संदेश भेजा कि वह तब तक रिहा नहीं होंगे जब तक उनके साथ बंदी 52 राजाओं को भी रिहा नहीं कर दिया जाता। अंततः मजबूर होकर जहाँगीर ने इन राजाओं की रिहाई का निर्देश जारी कर दिया। इसी कारण गुरु हरगोबिंद जी को ‘बंदी छोड़ बाबा’ कहा जाने लगा।

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प्रश्न 14.
अकाल तख्त साहिब के बारे में संक्षिप्त लिखें।
(Write a short note on Akal Takht Sahib.)
अथवा
अकाल तख्त साहिब के निर्माण का सिख इतिहास में क्या महत्त्व है ? (What is the importance of building Sri Akal Takht Sahib in Sikh History ?)
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद जी द्वारा अपनाई गई नई नीति के विकास में अकाल तख्त साहिब का निर्माण बहुत सहायक सिद्ध हुआ। वास्तव में यह गुरु साहिब का एक महान् कार्य था। अकाल तख्त (ईश्वर की गद्दी) साहिब का निर्माण कार्य गुरु हरगोबिंद जी ने हरिमंदिर साहिब के सामने 1606 ई० में आरम्भ करवाया था। यह कार्य 1609 ई० में संपूर्ण हुआ। इसकी नींव गुरु हरगोबिंद जी ने रखी थी। इसके निर्माण कार्य में बाबा बुड्वा जी एवं भाई गुरदास जी ने गुरु हरगोबिंद जी को सहयोग दिया। इसके भीतर एक 12 फीट ऊँचे चबूतरे का निर्माण किया गया जो एक तख्त के समान था। इस तख्त पर बैठकर गुरु हरगोबिंद जी सिखों के राजनीतिक एवं सांसारिक मामलों का नेतृत्व करते थे। यहाँ वे सिखों को सैनिक प्रशिक्षण देते थे तथा उनके मल्ल युद्ध तथा अन्य सैनिक कारनामे देखते थे। यहीं पर वे मसंदों से घोड़े और शस्त्र स्वीकार करते थे। सिखों में जोश उत्पन्न करने के लिए यहाँ ढाडी वीर-रस की वारें सुनाते थे। यहाँ पर बैठकर ही गुरु हरगोबिंद जी सिखों के परस्पर झगड़ों का भी निपटारा करते थे। यहाँ पर बैठकर ही गुरु जी सिखों को ईनाम भी देते थे तथा दंड भी। यहाँ से ही गुरु जी ने सिख संगत के नाम अपना प्रथम हुक्मनामा जारी किया था। इसमें गुरु जी ने सिखों को घोड़े एवं शस्त्र भेंट करने के लिए कहा था। बाद में यहाँ से हुक्मनामे जारी करने की प्रथा आरंभ हो गई। इस प्रकार गुरु हरगोबिंद जी ने अकाल तख्त साहिब का निर्माण करके सिखों की जीवन शैली में एक महत्त्वपूर्ण परिवर्तन किया। शीघ्र ही अकाल तख्त साहिब सिखों की राजनीतिक गतिविधियों का एक प्रसिद्ध केंद्र बन गया।

प्रश्न 15.
गुरु हरगोबिंद जी के मुगल बादशाह शाहजहाँ के साथ संबंध कैसे थे ? संक्षिप्त वर्णन करें।
(Give a brief account of the relations of Guru Hargobind Ji with the Mughal Emperor Shah Jahan.)
उत्तर-
शाहजहाँ 1628 ई० में मुग़लों का नया बादशाह बना। उसके शासन काल में कई कारणों से मुग़ल-सिख संबंधों में तनाव पैदा हो गया। प्रथम, शाहजहाँ बहुत कट्टर सुन्नी बादशाह था। उसने गुरु अर्जन देव जी द्वारा लाहौर में बनाई गई बावली को गंदगी से भरवा दिया था तथा लंगर के लिए बनाए गए भवन को मस्जिद में परिवर्तित कर दिया था। दूसरा, नक्शबंदियों ने सिखों के विरुद्ध शाहजहाँ को भड़काने में कोई प्रयास शेष न छोड़ा। तीसरा, गुरु हरगोबिंद जी द्वारा सेना तैयार किए जाने तथा उनके अनुयायियों द्वारा उन्हें ‘सच्चा पादशाह’ कह कर संबोधन करना एक आँख नहीं भाता था। चौथा, लाहौर के एक काज़ी की लड़की जिसका नाम कौलाँ था, गुरु जी की शिष्या बन गई थी। इस कारण उस काज़ी ने शाहजहाँ को सिखों के विरुद्ध सख्त कदम उठाने के लिए उत्तेजित किया। 163435 ई० के समय के दौरान सिखों तथा मुग़लों के मध्य अमृतसर, लहरा, करतारपुर तथा फगवाड़ा नामक लड़ाइयाँ हुईं। इन लड़ाइयों में सिख विजयी रहे तथा मुग़लों को पराजय का सामना करना पड़ा। परिणामस्वरूप गुरु जी की ख्याति दूर-दूर तक फैल गई।

प्रश्न 16.
गुरु हरगोबिंद जी तथा मुग़ल सम्राटों के संबंधों का संक्षिप्त वर्णन करें।
(Write a brief note on the relations between Guru Hargobind Ji and the Mughal Emperors.)
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद जी के दो समकालीन मुग़ल बादशाह जहाँगीर तथा शाहजहाँ थे। ये दोनों बादशाह बहुत कट्टर विचारों के थे। 1606 ई० में जहाँगीर द्वारा गुरु हरगोबिंद जी के पिता गुरु अर्जन देव जी को लाहौर में शहीद करवा दिया गया था। अत: मुग़लों तथा सिखों के संबंधों में एक दरार आ गई थी। गुरु हरगोबिंद साहिब ने मुगल अत्याचारों का मुकाबला करने के लिए मीरी तथा पीरी की नीति धारण की। बहुत जल्द जहाँगीर ने गुरु हरगोबिंद साहिब को ग्वालियर के दुर्ग में कैद कर लिया। गुरु जी को क्यों कैद किया गया तथा कितनी अवधि के लिए कारावास में रखा गया इन विषयों पर इतिहासकारों में मतभेद हैं। बाद में जहाँगीर ने गुरु हरगोबिंद जी को रिहा कर दिया तथा उनसे मित्रता स्थापित कर ली। 1628 ई० में शाहजहाँ मुग़लों का नया बादशाह बना। क्योंकि वह बहुत कट्टर विचारों का था इसलिए एक बार पुनः मुगलों तथा सिखों के संबंधों के मध्य दरार बढ़ गई। परिणामस्वरूप शाहजहाँ के शासन काल में मुग़लों तथा सिखों के मध्य चार लड़ाइयाँ-अमृतसर, लहरा, करतारपुर तथा फगवाड़ा-लड़ी गईं। इनमें गुरु हरगोबिंद जी विजयी रहे। इन विजयों के कारण सिखों का उत्साह बहुत बढ़ गया।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 7 गुरु हरगोबिंद जी और सिख पंथ का रूपांतरण

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नोट-निम्नलिखित अनुच्छेदों को ध्यानपूर्वक पढ़िए और उनके अंत में पूछे गए प्रश्नों का उत्तर दीजिए।

1
गुरु हरगोबिंद साहिब ने गुरुगद्दी पर बैठते समय मीरी तथा पीरी नामक दो तलवारें धारण करने का निर्णय किया। मीरी तलवार सांसारिक सत्ता की प्रतीक थी और पीरी तलवार धार्मिक नेतृत्व की प्रतीक थी। इससे अभिप्राय यह था कि आगे से गुरु साहिब अपने श्रद्धालुओं का धार्मिक नेतृत्व करने के अतिरिक्त सांसारिक मामलों में भी पथ प्रदर्शन करेंगे। गुरु हरगोबिंद साहिब ने एक ओर सिखों को सतनाम का जाप करने और दूसरी ओर अपनी रक्षा के लिए शस्त्र धारण करने का संदेश दिया। उनका कथन था कि जहाँ दीन-दुःखियों की सहायता के लिए ‘देग’ होगी वहीं अत्याचारियों को यमलोक पहुँचाने के लिए तेग’ भी होगी। इस प्रकार गुरु साहिब ने सिखों को संत सिपाही बना दिया। गुरु हरगोबिंद साहिब द्वारा अपनाई गई इस मीरी तथा पीरी नीति का सिख इतिहास पर बहुत गहन प्रभाव पड़ा।

  1. गुरु हरगोबिंद जी गुरुगद्दी पर कब बैठे थे ?
  2. गुरु हरगोबिंद जी ने कौन-सी उपाधि धारण की थी ?
  3. मीरी तलवार किस सत्ता की प्रतीक थी ?
  4. पीरी तलवार …………….. सत्ता की प्रतीक थी।
  5. किस गुरु साहिबान ने सिखों को संत सिपाही बना दिया ?

उत्तर-

  1. गुरु हरगोबिंद जी 1606 ई० में गुरुगद्दी पर बैठे थे।
  2. गुरु हरगोबिंद जी ने सच्चा पातशाह की उपाधि धारण की।
  3. मीरी तलवार सांसारिक सत्ता की प्रतीक थी।
  4. धार्मिक सत्ता।
  5. गुरु हरगोबिंद जी ने सिखों को संत सिपाही बना दिया।

2
गुरु हरगोबिंद साहिब द्वारा अपनाई गई नई नीति के विकास में अकाल तख्त साहिब का निर्माण बहुत सहायक सिद्ध हुआ। वास्तव में यह गुरु साहिब का महान् कार्य था। अकाल तख्त (ईश्वर की गद्दी) साहिब का निर्माण कार्य गुरु हरगोबिंद साहिब ने हरिमंदिर साहिब के सामने 1606 ई० में आरंभ करवाया था। यह कार्य 1609 ई० में संपूर्ण हुआ।
इसके भीतर एक 12 फीट ऊँचे चबूतरे का निर्माण किया गया जो एक तख्त के समान था। इस तख्त पर बैठकर गुरु हरगोबिंद साहिब जी सिखों के राजनीतिक एवं सांसारिक मामलों का नेतृत्व करते थे। वहाँ वे सिखों को सैनिक प्रशिक्षण देते थे तथा उनके मल्ल युद्ध तथा अन्य सैनिक कारनामे देखते थे। यहीं पर वे मसंदों से घोड़े और शस्त्र स्वीकार करते थे। सिखों में जोश उत्पन्न करने के लिए यहाँ ढाडी वीर-रस की वारें सुनाते थे। यहाँ पर बैठकर ही गुरु हरगोबिंद जी सिखों के परस्पर झगड़ों का भी निपटारा करते थे।

  1. अकाल तख्त से क्या भाव है ?
  2. अकाल तख्त साहिब का निर्माण किस शहर में किया गया था ?
  3. अकाल तख्त साहिब का निर्माण क्यों किया गया था ?
  4. गुरु हरगोबिंद जी अकाल तख्त साहिब में कौन-से कार्य करते थे ?
  5. अकाल तख्त साहिब का निर्माण कब आरंभ किया गया था ?
    • 1605 ई०
    • 1606 ई०
    • 1607 ई०
    • 1609 ई०।

उत्तर-

  1. अकाल तख्त से भाव है-परमात्मा की गद्दी।
  2. अकाल तख्त साहिब का निर्माण अमृतसर में किया गया था।
  3. अकाल तख्त साहिब का निर्माण सिखो के राजनीतिक तथा संसारिक मामलों के नेतृत्व के लिए किया गया था।
  4. गुरु हरगोबिंद जी यहाँ सिखों को सैनिक शिक्षा देते थे।
  5. 1606 ई०

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 7 गुरु हरगोबिंद जी और सिख पंथ का रूपांतरण

3
अमृतसर की लड़ाई के शीघ्र पश्चात् मुग़लों तथा सिखों के मध्य लहरा (भटिंडा के निकट) नामक स्थान पर दूसरी लड़ाई हुई। इस लड़ाई का कारण दो घोड़े थे जिनके नाम दिलबाग तथा गुलबाग थे। इन दोनों घोड़ों को, जो कि बहुत बढ़िया नस्ल के थे बखत मल और तारा चंद नामक दो मसंद काबुल से गुरु साहिब को भेट करने के लिए ला रहे थे। मार्ग में ये दोनों घोड़े मुग़लों ने छीन लिए और उन्हें शाही घुड़साल में पहुँचा दिया। यह बात गुरु साहिब का एक सिख भाई बिधी चंद जी सहन न कर सका। वह भेष बदल कर दोनों घोड़े शाही घुड़साल से निकाल लाया और गुरु साहिब के पास पहुँचा दिया। जब शाहजहाँ को यह सूचना मिली तो वह क्रोधित हो उठा। उसने तुरंत लल्ला बेग तथा कमर बेग के नेतृत्व में एक भारी सेना सिखों के दमन के लिए भेजी। लहरा नामक स्थान पर मुग़लों तथा सिखों के मध्य भयंकर लड़ाई हुई। इस लड़ाई में मुग़लों का बहुत नुकसान हुआ।

  1. गुरु हरगोबिंद जी तथा मुगलों के मध्य लहरा की लड़ाई कब हुई थी ?
  2. उन दो घोड़ों के नाम लिखें जिस कारण लहरा की लड़ाई हुई थी ?
  3. कौन-सा सिख श्रद्धालु शाही अस्तबल में से घोड़ों को निकाल कर लाया था ?
  4. लहरा की लड़ाई में मुगलों के कौन-से सेनापति मारे गए थे ?
  5. लहरा की लड़ाई में मुग़लों का बहुत ……….. हुआ।

उत्तर-

  1. गुरु हरगोबिंद जी तथा मुग़लों के मध्य लहरा की लड़ाई 1634 ई० में हुई थी।
  2. उन दो घोड़ों के नाम दिलबाग तथा गुलबाग थे जिस कारण लहरा की लड़ाई हुई थी।
  3. भाई बिधी चंद जी वह सिख श्रद्धालु थे जो शाही अस्तबल में से घोड़ों को निकाल कर लाए थे।
  4. लहरा की लड़ाई में मुग़लों के मारे गए दो सेनापतियों के नाम लल्ला बेग तथा कमर बेग थे।
  5. नुकसान।

गुरु हरगोबिंद जी और सिख पंथ का रूपांतरण PSEB 12th Class History Notes

  • प्रारंभिक जीवन (Early Career)-गुरु हरगोबिंद जी का जन्म 14 जून, 1595 ई० को जिला अमृतसर के गाँव वडाली में हुआ था—आपके पिता जी का नाम गुरु अर्जन देव जी और माता जी का नाम गंगा देवी था—आपके घर पाँच पुत्रों तथा एक पुत्री बीबी वीरो ने जन्म लिया—आप 1606 ई० में गुरुगद्दी पर विराजम्प्रन हुए।
  • गुरु हरगोबिंद जी की नई नीति (New Policy of Guru Hargobind Ji)-गुरु हरगोबिंद जी की नई नीति से संबंधित मुख्य तथ्य इस प्रकार हैं—
    • कारण (Causes)-मुग़ल बादशाह जहाँगीर इस्लाम के अतिरिक्त किसी अन्य धर्म को विकसित होता नहीं देख सकता था—जहाँगीर ने 1606 ई० में गुरु अर्जन देव जी को शहीद करवा दिया था— गुरु अर्जन देव जी ने स्वयं नई नीति अपनाने का गुरु हरगोबिंद जी को आदेश दिया था।
    • विशेषताएँ (Features)-गुरु हरगोबिंद जी ने सांसारिक तथा धार्मिक सत्तां का प्रतीक मीरी तथा पीरी नामक दो तलवारें धारण की—गुरु हरगोबिंद जी द्वारा सेना का संगठन किया गया-अकाल तख्त साहिब का निर्माण करवाया गया—गुरु जी राजसी ठाठ-बाट से रहने लगे और उन्होंने राजनीतिक प्रतीकों को अपना लिया-अमृतसर शहर की किलेबंदी की गई—लोहगढ़ दुर्ग का निर्माण करवाया गया—गुरु साहिब ने अपने दैनिक जीवन में अनेक परिवर्तन किए।
    • महत्त्व (Importance)-सिख संत सिपाही बन गए—सिखों के परस्पर भाईचारे में वृद्धि हुई— सिख धर्म का प्रचार और प्रसार बढ़ा-सिखों तथा मुग़लों के संबंधों में तनाव और बढ़ गया—नई नीति ने खालसा पंथ की स्थापना का आधार तैयार किया।
  • गुरु हरगोबिंद जी और जहाँगीर (Guru Hargobind Ji and Jahangir)-जहाँगीर ने गुरु हरगोबिंद जी को 1606 ई० में बंदी बना लिया उन्हें ग्वालियर के दुर्ग में रखा गया—गुरु साहिब के बंदी काल के संबंध में इतिहासकारों में मतभेद है—जब गुरु साहिब को रिहा किया गया तो उनकी जिद्द पर वहाँ बंदी 52 अन्य राजाओं को भी रिहा करना पड़ा—इस कारण गुरु जी को ‘बंदी छोड़ बाबा’ कहा जाने लगा—रिहाई के बाद गुरु साहिब के जहाँगीर के साथ मित्रतापूर्ण संबंध रहे।
  • गुरु हरगोबिंद जी और शाहजहाँ (Guru Hargobind Ji and Shah Jahan)-1628 ई० में शाहजहाँ के मुग़ल बादशाह बनते ही मुग़ल-सिख संबंध पुनः बिगड़ गए—शाहजहाँ ने अपनी कट्टरतापूर्ण कारवाइयों से सिखों को अपने विरुद्ध कर लिया-1634 ई० में मुग़लों तथा सिखों में प्रथम लड़ाई अमृतसर में हुई—इसमें सिख विजयी रहे—मुग़लों तथा सिखों के मध्य हुई लहरा, करतारपुर और फगवाड़ा की लड़ाइयों में भी सिखों की जीत हुई—इन विजयों से गुरु हरगोबिंद जी की ख्याति दूर दूर तक फैल गई।
  • ज्योति जोत समाना (Immersed in Eternal Light)-1635 ई० में गुरु हरगोबिंद जी ने कीरतपुर साहिब नगर बसाया उन्होंने अपने जीवन के अंतिम दस वर्ष यहाँ व्यतीत किए—ज्योति जोत समाने से पूर्व उन्होंने हर राय जी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया—गुरु हरगोबिंद जी 3 मार्च, 1645 ई० को कीरतपुर साहिब में ज्योति जोत समा गए।

PSEB 12th Class Geography Solutions Chapter 1 मानव भूगोल और इसकी शाखाएं

Punjab State Board PSEB 12th Class Geography Book Solutions Chapter 1 मानव भूगोल और इसकी शाखाएं Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Geography Chapter 1 मानव भूगोल और इसकी शाखाएं

PSEB 12th Class Geography Guide मानव भूगोल और इसकी शाखाएं Textbook Questions and Answers

प्रश्न I. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक वाक्य में दें:

(क) शब्द ‘मानवीय भूगोल’ का विस्तृत अर्थ स्पष्ट करें।
उत्तर-
मानवीय भूगोल मनुष्य को अपने आस-पास के प्राकृतिक पर्यावरण से सर्वपक्षीय समानता का अध्ययन है।

(ख) पृथ्वी कौन-से मुख्य तत्त्वों से बनी है ?
उत्तर-
प्रकृति (भौतिक) प्राकृतिक पर्यावरण और जीवन के रूप।

(ग) मानवीय भूगोल के अन्तर्गत आने वाले प्रसंगों (Themes) के नाम बताओ।
उत्तर-
मानवीय भूगोल के अन्तर्गत वर्गों, आबादी का बढ़ना, प्रवास की बनावट इत्यादि प्रसंगों का अध्ययन किया जाता है।

(घ) भूगोल के उद्देश्य बताने वाले तीन दर्शन (फलस्फे) कौन-से हैं ?
उत्तर-
भूगोल के मुख्य उद्देश्य पृथ्वी को मनुष्य के घर के रूप में देखना, मानना और समझना है।

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(ङ) कोई दो विश्व प्रसिद्ध भौगोलिक वेत्ताओं के नाम बताओ।
उत्तर-
कार्ल रिटर, पौल विडाल डी, ला ब्लांश।

(च) निम्नलिखित का मिलान करें :
(i) राजनीतिक भूगोल — (क) जन-अंकण विज्ञान
(ii) आर्थिक भूगोल — (ख) चुनाव-विश्लेषण विज्ञान
(iii) जनसंख्या भूगोल — (ग) ग्राम योजनाबंदी
(iv) बस्ती भूगोल — (घ) राष्ट्रीय व्यापार।
उत्तर-

  1. (ख),
  2. (घ),
  3. (क),
  4. (ग)।

(छ) निम्नलिखित भौगोलिक कालों का मिलान करें।
(i) बस्तीवाद युग — (क) उत्तर आधुनिकतावाद
(ii) 1930s — (ख) मूलवाद/रैडीकल भूगोल
(iii) 1970s — (ग) क्षेत्रीय विश्लेषण
(iv) 1990s — (घ) इलाकाई विभिन्नता।
उत्तर-

  1. (ग),
  2. (घ),
  3. (ख),
  4. (क)।

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प्रश्न II. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर चार पंक्तियों में दें:

(क) पेंगुइन शब्दकोश के अनुसार स्थानीय बँटवारे की परिभाषा क्या है ?
उत्तर-
पेंगुइन शब्दकोश के अनुसार स्थानीय बँटवारा (Spatial Distribution)-का अर्थ है, पृथ्वी की सतह पर, विभिन्न स्थानों और खास वितरण या विशेषता के महत्त्व, कद्रों-कीमतों या व्यवहार को प्रदर्शित करने वाले भौगोलिक मापदंडों या निरीक्षणों का समूह है।

(ख) भौगोलिक क्रियाओं के लिए प्रयोग किए जाने वाले कोई चार मानवीय अंगों के नाम बताओ।
उत्तर-
चेहरा (पृथ्वी का चेहरा), मुख (दरिया का मुख) नाक (हिमनदी का नाक), गर्दन (थल डमरू की गर्दन)।

(ग) कौन-कौन से विषय निम्नलिखित अध्ययनों की व्याख्या करते हैं ?
उत्तर-

  1. धरती का अंतरीव-भू-विज्ञान का सम्बन्ध पृथ्वी की पपड़ी की बनावट के आन्तरिक हिस्से से सम्बन्धित है।
  2. मानवीय जनसंख्या-जनांकन विज्ञान का सम्बन्ध मानवीय जनसंख्या से है।
  3. प्राणी जगत्-प्राणी जगत् जानवरों से सम्बन्धित है।
  4. वनस्पति जगत्-वनस्पति जगत् वनस्पति विज्ञान से सम्बन्धित है।

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(घ) भौगोलिक धारणाओं से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
भौगोलिक धारणाओं का अर्थ है किसी विशेष समय, स्थान के संदर्भ में भौगोलिक ज्ञान के विकास को समझना होता है।

प्रश्न III. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 10-12 पंक्तियों में दें:

(क) भूगोल को अलैग्जेंडर वों हमबोल्ट की देन पर नोट लिखें।
उत्तर-
हमबोल्ट का जन्म 14 सितम्बर, 1769 ई० में हुआ। उन्होंने ज्ञान की कई शाखाएँ जैसे वनस्पति विज्ञान, शारीरिक विज्ञान, भू-विज्ञान, जलवायु विज्ञान, परिस्थिति विज्ञान में अहम् योगदान दिया है। उन्होंने अपनी पुस्तकों (Cosmos, Essay on the Geography of Plants) के माध्यम से आधुनिक भूगोल के लिए महत्त्वपूर्ण मॉडल पेश किये हैं। उन्होंने फसलों की वैज्ञानिक व्याख्या पेश की है और व्यापारिक कृषि पर समुद्र तल ऊंचाई, तापमान और वनस्पति के प्रभाव आदि के सिद्धांत पेश किए हैं। कम वायु दबाव का मनुष्य पर प्रभाव भी हमबोल्ट की ही देन है और पेरू की धारणा का अध्ययन करने वाला माहिर भी हमबोल्ट है।

(ख) आर्थिक भूगोल के उप-विषयों से सम्बन्धित विषय कौन-से हैं ?
उत्तर-
आर्थिक भूगोल के उप-विषयों से सम्बन्धित विषय हैं :

आर्थिक भूगोल के उप-विषय अन्य सम्बन्धित विषय
1. साधनों का भूगोल (Geography of Resources) 1. (i) अर्थ–शास्त्र

(ii) साधनों का अर्थशास्त्र

2. कृषि भूगोल (Geography of Agriculture) 2. कृषि विज्ञान
3. उद्योग का या व्यापारिक भूगोल (Industrial Geography) 3. व्यापारिक अर्थशास्त्र (Industrial Economics)

 

4. बाजारीकरण या बिक्री का भूगोल (Geography of Marketing) 4. व्यापार अध्ययन, अर्थशास्त्र, कामर्स (Trade, Economics, Commerce)
5. पर्यटन भूगोल (Geography of Tourism) 5. पर्यटन और यात्रा प्रबन्धन
6. अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों का भूगोल (Geography of International Relation) 6. अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार।

 

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(ग) विद्वानों ने भौगोलिक प्रक्रियाओं को मनुष्य अंगों और क्रियाओं के नाम किस प्रकार दिए हैं ?
उत्तर-
यह जानना बहुत रोमांचक है कि प्राकृतिक/भौतिक और मानवीय घटनाओं की व्याख्या के लिए प्रयोग किए रूपक भी मानवीय अंग विज्ञान के चिन्ह होते हैं। हम हमेशा ही यह बात करते हैं कि धरती का चेहरा (Face of the Earth), तूफ़ान की आँख, नदी का मुँह, हिमनदी का नाक, थल डमरू की गर्दन, मिट्टी की रूप रेखा। जैसे ही भूगोल में क्षेत्रीय कस्बों और गाँवों आदि का वर्णन जीवों के तौर पर किया जाता है। जर्मनी के प्रसिद्ध भूगोल शास्त्री ने राज्य या देश को जीवित जीव के रूप में समझा है। सड़कें, रेल तथा जल मार्गों को यातायात की धमनियां कहकर प्रकट किया जाता है। प्रकृति को एक हस्ती के रूप में जीवित करने में चार्ल्स डारविन की बहुत अहम् भूमिका है।

(घ) प्राचीन काल में मानव भूगोल का केन्द्रीय विषय (Thrust) क्या था ?
उत्तर-
प्राचीन काल में मानव भूगोल का केन्द्रीय विषय नक्शे बनाना था और वह खगोलीय माप करते थे। पुराने अभिलेखों के मुताबिक विद्वानों की रुचि पृथ्वी के नक्शे बनाकर, खगोल की नपाई करके, धरती के भौतिक, प्राकृतिक ज्ञान को समझने की थी। यूनानी विद्वानों को प्रथम भूगोलवेत्ता होने का गर्व प्राप्त है। होमर, हैरोडोटस, थेलज, अरस्तु और ऐरेटोसथीनज इनमें से प्रसिद्ध है।

प्रश्न IV. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 20 पंक्तियों में दो :

(क) मानव भूगोल का विषय-क्षेत्र क्या है ?
उत्तर-
हर विज्ञान की अपनी एक अलग धारणा, दर्शन और विषय-क्षेत्र होता है। जैसे कि अर्थशास्त्र में हम व्यापार उत्पादन आदि के बारे में पढ़ते हैं। वनस्पति विज्ञान में हम पौधों आदि के बारे में पढ़ते हैं। उसी प्रकार मानव विज्ञान का अपना एक विषय-क्षेत्र होता है। मानव विज्ञान में अध्ययन का मुख्य विषय मानवीय समाज उनके निवास स्थान और विकास स्थानों का प्रसार है। यह भी कहा जाता है कि इसमें मानवीय समाज का क्षेत्रीय विभाजन किया जाता है। इसीलिए हम कह सकते हैं कि मानव भूगोल का विषय बहुत ही विशाल है।
फ्रेडरिक रैंटजेल के अनुसार मानवीय भूगोल मानवीय समाज और पृथ्वी की सतह के आपसी सम्बन्धों का संगठित/ संश्लेषणात्मक अध्ययन है।

मानव भूगोल के माध्यम से मानवीय जाति वर्गों का अध्ययन, संसार के अलग-अलग हिस्सों में जनसंख्या का बढ़ना, वितरण और घनत्व का अध्ययन, जनांकन की विशेषताओं का अध्ययन, स्थान बदली का अध्ययन, आयु संरचना का अध्ययन, लिंग अनुपात का अध्ययन, मानवीय समूहों, आर्थिक क्रियाओं का अध्ययन और सांस्कृतिक मतभेदों का अध्ययन किया जाता है। यह मानव और उसके प्राकृतिक पर्यावरण के केंद्रीय सम्बन्धों का अध्ययन करता है। मानव भूगोल सांस्कृतिक, धर्म, रीति-रिवाज, गाँवों में रहने की दिशा, शहरी बस्तियाँ, आकार और प्रसार की बढ़ौतरी, कामकाजी वर्ग विभाजन को भी अपने अध्ययन के क्षेत्र में ले लेता है।

संक्षेप में हम कह सकते हैं कि किसी क्षेत्र में रहने वालों की आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक क्रियाओं और प्राकृतिक/भौतिक पर्यावरण के प्रभावों का अध्ययन मानव भूगोल में किया जाता है। मानव का उसके भौगोलिक पर्यावरण पर पड़ रहा प्रभाव भी आजकल लगातार बढ़ रहे महत्त्व का विषय है। मानव, भूगोल संसार में जैसे और कैसे हो सकता है से सम्बन्ध स्थापित करता है।
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(ख) नियतिवाद और नव-नियतिवाद क्या है ?
उत्तर-
नियतिवाद और नव-नियतिवाद की परिभाषा निम्नलिखित हैनियतिवाद (Determinism) नियतिवाद एक बहुत प्रसिद्ध विचार है कि वातावरण मनुष्य के कामों को प्रभावित करता है या फिर हम कह सकते हैं कि संसार में से मानवीय व्यवहार के मतभेदों को संसार में प्राकृतिक वातावरण के मतभेदों के पक्ष से ही समझा जा सकता है। जो विषय, दर्शन, विधियाँ, सिद्धांत वातावरण में से उपजते हैं उन्हें वातावरणीय नियतिवाद कहा जाता है। मनुष्य और प्राकृतिक वातावरण दोनों में नज़दीक के सम्बन्ध हैं। प्रकृति के भौतिक तत्त्व धरती, मौसम, मिट्टी, खनिज, पानी और वनस्पति मनुष्य समूह पर असर/प्रभाव डालते हैं। यह मानव की आर्थिक और सामाजिक जीवन पर भी प्रभाव डालते हैं। प्रकृति मनुष्य के कामों और जीवन दोनों को प्रभावित करती है इसे नियतिवाद का सिद्धांत कहा जाता है। उदाहरण के तौर पर अरस्तु का विचार था कि ठंडे देशों के लोग बहादुर होते हैं। उनके राजनैतिक संगठनों में पड़ोसी देशों पर राज करने की क्षमता होती है और एशिया के लोगों में हिम्मत की कमी होती है। ऐसे विचारों को समर्थक हैं-अरस्तु सट्रैम्बो, कार्ल रिटर, डब्ल्यू० एम० डेविस और ऐलन चर्चिल सैंपल।

नव-नियतिवाद (Neo-Determinism) नव-नियतिवाद का सिद्धान्त ग्रिफिन टेलर ने 1920 के दशक में दिया। ग्रिफिन टेलर द्वारा दिए इस सिद्धांत में वातावरणीय नियतिवाद और सम्भववाद के आपसी रास्ते को अपनाया गया। टेलर ने इस सिंद्धात को रुको और जाओ नियतिवाद का नाम भी दिया और कहा कि आप में से जो शहरों में रहते हैं या कभी शहर गए हैं, ने देखा होगा कि चौकों में यातायात साधनों को रंगीन बत्तियों द्वारा संचालित किया जाता है। लाल-बत्ती का अर्थ है रुको, पीली जो कि लाल और हरी के बीच में है, तैयार रहने के लिए कहती है और हरी बत्ती जाने के लिए। यह सिद्धांत बताता है कि न कोई स्थिति संपूर्ण भौतिक बंधनों की है न कोई सम्पूर्ण आजादी जैसे हालात हैं। मनुष्य कुछ हद तक प्रकृति को बदल सकता है परन्तु उसे खुद की प्रकृति को बदलना पड़ता है। मनुष्य और प्रकृति दोनों मिल कर काम करते हैं। जैसे कि प्रकृति मनुष्य को कई तरह के लक्ष्य देती है ताकि वह विकास कर सके और इनकी सीमा निर्धारित होती है। अगर मनुष्य किसी की सीमाओं को पार करता है तो यह साबित करता है कि उसकी दोबारा वहाँ वापसी नहीं होगी। टेलर ने इस बात पर जोर दिया है कि भूगोलवेत्ता का मुख्य और अहम् काम है यह एक सलाहकार होना चाहिए और उसे प्रकृति के रेखा-चित्र में कोई दख़ल अंदाजी नहीं करनी चाहिए।

इसीलिए हम कह सकते हैं कि मनुष्य को प्रकृति के नियमों में बाँध कर उसे जीतना चाहिए। यह सिद्धांत मुख्य रूप में संतुलन लाने में और उसका द्वेष ख़त्म करने की कोशिश करता है।

Geography Guide for Class 12 PSEB मानव भूगोल और इसकी शाखाएं Important Questions and Answers

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर (Objective Type Question Answers)

A. बहु-विकल्पी प्रश्न :

प्रश्न 1.
निम्नलिखित में से कौन-सा भौगोलिक वेत्ता फ्रांस से सम्बन्धित है ?
(A) सैंपल
(B) विडाल डी ला ब्लांश
(C) ट्रीवार्था
(D) हिटलर।
उत्तर-
(B)

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प्रश्न 2.
इनमें से भूगोल की कौन-सी शाखा मानव भूगोल से सम्बन्धित नहीं है ?
(A) जनसंख्या भूगोल
(B) आर्थिक भूगोल
(C) सामाजिक भूगोल
(D) भौतिक भूगोल।
उत्तर-
(D)

प्रश्न 3.
नव-नियतिवाद का सिद्धांत किसने दिया ?
(A) ग्रीफिन टेलर
(B) ब्लांश
(C) रिटर
(D) ट्रिवार्था।
उत्तर-
(A)

प्रश्न 4.
जनांकिकी विज्ञान (Demography) भूगोल की एक उप-शाखा से संबंधित है।
(A) सांस्कृतिक भूगोल
(B) आर्थिक भूगोल
(C) जन-अंकन भूगोल
(D) राजनीतिक भूगोल।
उत्तर-
(C)

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प्रश्न 5.
ऐलन सी० सैंपल कौन-से देश से सम्बन्धित हैं ?
(A) यू०एस०ए०
(B) फ्रांस
(C) जर्मनी
(D) इंग्लैंड।
उत्तर-
(A)

प्रश्न 6.
विडाल डी० ला ब्लांश निम्नलिखित में से किस प्रस्ताव का समर्थन करते हैं ?
(A) नियतिवाद
(B) सम्भवतावाद
(C) नव-नियतिवाद
(D) रैडीकल।
उत्तर-
(B)

प्रश्न 7.
Influence of Geographic Environment किसकी पुस्तक है ?
(A) ब्लांश
(B) श्रीमति सैंपल
(C) कार्ल रिटर
(D) ट्रीवार्था ।
उत्तर-
(B)

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प्रश्न 8.
आरंभिक काल में मानव भूगोल का कार्य क्षेत्र कौन-सा था?
(A) खोज यात्राएँ
(B) क्षेत्र विश्लेषण
(C) नक्शे बनाना
(D) क्षेत्रीय विभिन्नता।
उत्तर-
(A)

प्रश्न 9.
बस्ती का भूगोल निम्नलिखित में से किससे सम्बन्धित है ?
(A) गाँव योजनाबन्दी
(B) उद्योग
(C) परिवार नियोजन
(D) पर्यटन।
उत्तर-
(A)

प्रश्न 10.
‘सम्भावनाओं के अमल का प्रयोग असल और एक मात्र भौगोलिक समस्या है।’ यह विचार किसने दिया ?
(A) फैबल
(B) रिटर
(C) अरैटीस्थीन
(D) सैम्पल।
उत्तर-
(A)

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B. खाली स्थान भरें :

  1. फ्रेडरिक रैंटज़ल ने अपने अध्ययन में ………………… पर ज्यादा जोर दिया है।
  2. ………………… का विचार है कि ठंडे देशों के लोग हिम्मती होते हैं।
  3. …………….. मूल सिद्धांत तक तबदील कर देने वाली सोच रखने वाला विचार है।
  4. चुनाव का भूगोल ……………….. भूगोल की उप-शाखा है।
  5. कृषि विज्ञान ………………… भूगोल से सम्बन्धित विषय है।

उत्तर-

  1. संश्लेषण,
  2. अरस्तु,
  3. रैडीकल,
  4. राजनीतिक,
  5. आर्थिक भूगोल।

C. निम्नलिखित कथन सही (✓) हैं या गलत (✗):

  1. विषय के तौर पर भूगोल अला!-अलग धारणाओं का शिकार हो रहा है।
  2. स्थानिक विश्लेषण में परिवर्तनशील तत्त्वों की श्रृंखला के ढांचे पर जोर दिया है।
  3. प्राणी विज्ञान पौधों के अध्ययन से सम्बन्धित है।
  4. मानव विज्ञान में अध्ययन का केंद्र धरातल है।
  5. मानव भूगोल, संसार से जैसे है, जैसे हो सकता है, से सम्बन्धित है।

उत्तर-

  1. सही,
  2. सही,
  3. गलत,
  4. गलत,
  5. सही।

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II. एक शब्द/एक पंक्ति वाले प्रश्नोत्तर (One Word/Line Question Answers) :

प्रश्न 1.
कौन-से दो ग्रीक शब्दों से भूगोल बना है ?
उत्तर-
भू + गोल (Geo + Graphy).

प्रश्न 2.
पहली बार भू-गोल शब्द का प्रयोग किसने किया ?
उत्तर-
इरैटोस्थीन्स।

प्रश्न 3.
धरती के कोई दो भागों के नाम लिखो।
उत्तर-
भौतिक वातावरण और जीवन के रूप।

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प्रश्न 4.
मानव वातावरण के मुख्य तत्त्वों के नाम लिखो।
उत्तर-
घर, गाँव, शहर, उद्योग, रेल-मार्ग इत्यादि।

प्रश्न 5.
भौतिक वातावरण के मुख्य तत्त्वों के नाम लिखो।
उत्तर-
मिट्टी, मौसम, पानी, वनस्पति, जीव-जन्तु, धरातल इत्यादि।

प्रश्न 6.
तकनीक का क्या अर्थ है ?
उत्तर-
तकनीक का अर्थ है कि स्रोत और तकनीक का प्रयोग करके कुछ नया बनाना।

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प्रश्न 7.
सामाजिक भूगोल के कोई पाँच उप-क्षेत्र और अन्य सम्बन्धित विषयों के बारे में बताएँ।
उत्तर-
सामाजिक भूगोल के उप-क्षेत्र और अन्य सम्बन्धित विषय हैं :

उप-क्षेत्र सम्बन्धित विषय
1. व्यवहार का भूगोल 1. मनोविज्ञान (Psychology)
2. समाज की भलाई का भूगोल 2. भलाई का अर्थशास्त्र
3. Geography of leisure 3. समाजशास्त्र (Sociology)
4. संस्कृति का भूगोल 4. मानवशास्त्र (Anthropology)
5. चिकित्सा भूगोल (Medical Geography) 5. महामारी से सम्बन्धित इलाज शास्त्र।

 

प्रश्न 8.
राजनीतिक भूगोल के अन्तर्गत आने वाले उप-क्षेत्र कौन-से हैं ?
उत्तर-
चुनाव भूगोल, सैनिक भूगोल।

प्रश्न 9.
नव-नियतिवाद का सिद्धान्त किसने और कब दिया ?
उत्तर-
1920 में टेलर ने नव-नियतिवाद का सिद्धान्त दिया।

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प्रश्न 10.
नियतिवाद विचारों के समर्थकों के नाम बताएं।
उत्तर-
अरस्तु, स्ट्रैबो, कार्ल रिटर, डब्ल्यू, एम० डेविस, ऐलन चर्चिल सैम्पल।

अति लघु उत्तरों वाले प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
भूगोल क्या है ?
उत्तर-
भूगोल शब्द ग्रीक भाषा के दो शब्द ‘Geo’ जिसका अर्थ है ‘पृथ्वी’ और ‘Graphy’ जिसका अर्थ है ‘वर्णन’ से बना है। भूगोल पृथ्वी को मनुष्य का निवास मानकर इसका अध्ययन करता है और इसका वर्णन करता है।

प्रश्न 2.
भूगोल को सभी विज्ञानों की माँ क्यों कहा जाता है ?
उत्तर-
भूगोल में भौतिक और मानवीय दोनों ही विषयों का अध्ययन किया जाता है और इनके अध्ययन अन्तर्गत आने वाली शाखाओं और उप-शाखाओं का अध्ययन भूगोल विषय में किया जाता है। इसलिए हम कहते हैं कि भूगोल सभी विज्ञानों की माँ है।

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प्रश्न 3.
भूगोल को ज्ञान का शरीर क्यों कहा जाता है ?
उत्तर-
प्राचीन काल में भूगोल का उद्देश्य धरती से सम्बन्धित ज्ञान एकत्रित करना है। यह ज्ञान यात्रियों, व्यापारियों, योद्धों, शूरवीरों पर आधारित था। भूगोल में पृथ्वी की शक्ल, आकार, अक्षांश, देशांतर, सूर्य मंडल इत्यादि का ज्ञान भी शामिल है। भूगोल विषय हर विषय के बारे में ज्ञान भी देता है। इसलिए भूगोल को ज्ञान का शरीर भी कहा जाता है।

प्रश्न 4.
मानव भूगोल क्या है ?
उत्तर-
एक परिभाषा के अनुसार मानव भूगोल मनुष्य की अपने आस-पास के प्राकृतिक वातावरण से पारस्परिक समानता का अध्ययन है।

प्रश्न 5.
मानव भूगोल का मुख्य उद्देश्य क्या है ?
उत्तर-
मानव भूगोल का उद्देश्य किसी स्थान के प्राकृतिक साधनों और जनसंख्या का अध्ययन करना है ताकि इनके प्राकृतिक स्रोतों को मानव के विकास और भलाई के लिए प्रयोग किया जा सके। यह पर्यावरण के मनुष्य पर पड़ रहे प्रभाव का अध्ययन करता है। यह मनुष्य द्वारा मानव भूगोल, मानव पर्यावरण और अर्थशास्त्र का परस्पर अध्ययन है।

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प्रश्न 6.
‘मनुष्य मानव विज्ञान का धुरा है’ कथन की व्याख्या करें।
उत्तर-
हमारे आस-पास जहाँ मनुष्य रहता है उसको पर्यावरण कहते हैं। मनुष्य एक सरगर्म भौगोलिक प्राणी है। मनुष्य पृथ्वी के स्रोतों का प्रयोग करता है और अपने लिए भोजन पैदा करता है। वह अपना भोजन मछलियों, गायभैसों, भेड़ों इत्यादि से प्राप्त करता है। मनुष्य ने पानी से बिजली उत्पन्न की और कोयले का प्रयोग उद्योगों की चलाने के लिए किया। इसलिए मनुष्य को मानव विज्ञान का धुरा कहा जाता है क्योंकि सभी भौतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक गतिविधियाँ उसके इर्द-गिर्द ही घूमती हैं।

प्रश्न 7.
नियतिवाद की परिभाषा दें।
उत्तर-
संसार में मनुष्य के रहन-सहन के मतभेदों को संसार के भौतिक/प्राकृतिक पर्यावरण के मतभेदों के पक्ष से ही समझा जा सकता है। जो उद्देश्य, धारणा या पहुँच, विधियाँ पर्यावरण से उपजते हैं, उन्हें नियतिवाद कहा जाता है।

प्रश्न 8.
मनुष्य प्रकृति दोनों का एक नज़दीकी सम्बन्ध है।
उत्तर-
प्रकृति के भौतिक तत्त्व पृथ्वी, मौसम, मिट्टी, खनिज, पानी और वनस्पति मनुष्य जीवन पर प्रभाव डालते हैं। यह मनुष्य की आर्थिक और सामाजिक जीवन पर भी प्रभाव डालते हैं। प्रकृति मनुष्य के कार्य और जीवन पर भी प्रभाव डालती है। इस सिद्धान्त को नियतिवाद कहते हैं। मनुष्य कुछ हद तक प्रकृति को बदल सकता है परन्तु उसको अपने आप को पर्यावरण के अनुकूल बदलना होता है। मनुष्य और प्रकृति एक साथ काम करते हैं।

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प्रश्न 9.
पैंगुइन डिक्शनरी के अनुसार स्थानीय विभाजन से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
मानव भूगोल की पैंगुइन डिक्शनरी के अनुसार स्थानीय विभाजन का अर्थ है कि धरती की सतह पर अलगअलग स्थानों पर किसी खास व्यवहार या विशेषता के महत्त्व, कद्रों-कीमतों या व्यवहार को प्रदर्शित करने वाले भौगोलिक मापदण्डों या निरीक्षण का समूह है।

प्रश्न 10.
मानव भूगोल की प्रकृति पर नोट लिखो।
उत्तर-
मानव भूगोल अपने भौगोलिक पक्षों के विस्तार के अलावा प्राकृतिक भौतिक पर्यावरण से सीधे तौर से सम्बन्ध रखता है। तीन संदर्भ इसकी व्याख्या करते हैं :—

  1. स्थानीय विश्लेषण-इसमें जो तत्त्व परिवर्तनशील हैं उनकी श्रृंखला के ढांचे पर जोर दिया जाता है।
  2. मानवीय भूगोल और उसके पर्यावरण के आपसी सम्बन्धों का सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरण अध्ययन है।
  3. क्षेत्रीय संश्लेषण या संगठन-इसमें पहले दोनों ही सन्दर्भो को शामिल किया जाता है।

प्रश्न 11.
भूगोल को एकीकरण का विज्ञान क्यों कहा जाता है ? व्याख्या करें।
उत्तर-
भूगोल विषय का दूसरे विषयों से नज़दीक का सम्बन्ध है। अलग-अलग विषय अच्छी जानकारी देते हैं। परन्तु सिर्फ वही भाग पढ़े जा सकते हैं जो भूगोल के लक्ष्य को पूरा करने में मदद करते हैं। भूगोल में कई बहु-विषयक (Interdisciplinary) विषयों का अध्ययन किया जाता है, इसलिए इसे एकीकरण का विज्ञान कहा जाता है।

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प्रश्न 12.
रैटज़ल के अनुसार मानव भूगोल क्या है ? उसने अधिक किस चीज़ पर जोर दिया है ?
उत्तर-
फ्रेडरिक रैटजल के अनुसार, “मानव भूगोल मनुष्य के समाज और पृथ्वी की सतह की सतह के आपसी संबंधों का संगठित/संश्लेषणात्मक अध्ययन है। इस परिभाषा में सब से अधिक बल संश्लेषण पर दिया गया है।

प्रश्न 13.
भूगोल एक बहुत ही व्यापक विषय है ? क्यों? कोई दो दृष्टिकोण दें।
उत्तर-

  1. भूगोल का स्वभाव विश्वव्यापी है। यह पृथ्वी का अध्ययन करता है।
  2. यह भौतिक पर्यावरण और सांस्कृतिक गतिविधियों दोनों का ही अध्ययन है।

प्रश्न 14.
भूगोल प्राकृतिक विज्ञान भी है और सामाजिक भी। कैसे ?
उत्तर-
भूगोल संश्लेषण का विज्ञान है। यह किसी क्षेत्र के भौतिक और मानवीय स्वरूप का अध्ययन कर उस क्षेत्र की पूर्ण तस्वीर पेश करता है। इसके अन्तर्गत पदार्थ विज्ञान, रसायन विज्ञान, वनस्पति विज्ञान इत्यादि प्राकृतिक पर्यावरण का अध्ययन करते हैं। समाज विज्ञान मानवीय गतिविधियों, कृषि इत्यादि का अध्ययन करता है। इस तरह भूगोल भौतिक विज्ञान और सामाजिक विज्ञान दोनों का अध्ययन करता है।

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प्रश्न 15.
आर्थिक भूगोल की मुख्य शाखाएं कौन-सी हैं ?
उत्तर-

  1. कृषि भूगोल
  2. औद्योगिक भूगोल
  3. व्यापार भूगोल।

लघु उत्तरों वाले प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
प्राकृतिक गतिविधियां सांस्कृतिक भूदृश्य पेश करती हैं। उदाहरण देकर स्पष्ट करें।
उत्तर-
कुशल और अच्छी तकनीक का प्रयोग कर मनुष्य भौतिक पर्यावरण के स्रोतों का प्रयोग करता है। मनुष्य स्रोतों के साथ संभावनाएं बनाता है और ऐसा करके स्रोतों को प्राप्त करता है। प्रकृति मनुष्य को अवसर प्रदान करती है और वह इन अवसरों का प्रयोग करता है। इसको संभवतावाद भी कहा जाता है। मानवीय गतिविधियों की छाप हर जगह बनाई गई है : जैसे—

  1. पहाड़ी, पर्वतीय स्थानों पर स्वास्थ्य घर।
  2. शहरी क्षेत्रों का फैलाव।
  3. बाग, खेत, चरागाह समतल इलाकों में।
  4. समुद्री तटीय क्षेत्रों में बन्दरगाहें।

प्रश्न 2.
भौतिक पर्यावरण और सांस्कृतिक पर्यावरण में क्या अंतर है ?
उत्तर-
मानव भूगोल का विषय बहुत विशाल है। मानव भूगोल में पृथ्वी और मानव के आपसी संबंध के बारे में अध्ययन किया जाता है। एक प्रसिद्ध अमेरिकन भूगोलवेत्ता Finch और Trewartha ने मानव भूगोल का दो भागों में बाँटा है। भौतिक/प्राकृतिक वातावरण और सांस्कृतिक/मानवीय पर्यावरण।

  1. भौतिक/प्राकृतिक पर्यावरण-भौतिक पर्यावरण में मौसम, जलवायु, धरातल, प्राकृतिक स्रोत, वनस्पति, मिट्टी, खनिज पदार्थ, जंगल, स्थिति इत्यादि का अध्ययन किया जाता है।
  2. सांस्कृतिक/मानवीय पर्यावरण-सांस्कृतिक वातावरण में कई मानवीय कार्य भी शामिल हैं ; जैसे जनसंख्या, मानवीय रहन-सहन और मनुष्य से संबंधित कई कार्य जैसे-कृषि, निर्माण उद्योग, यातायात आदि के साधन इस वातावरण में शामिल हैं।

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प्रश्न 3.
भूगोल क्या है ? इसकी कोई तीन विशेषताएँ बतायें।
उत्तर-
भूगोल दो शब्दों से मिलकर बना है। Geo शब्द का अर्थ है पृथ्वी और Graphy शब्द का अर्थ है वर्णन। इसलिए भूगोल पृथ्वी को मनुष्य का निवास मान कर इसका अध्ययन करता है और इसका वर्णन करता है। हार्टशान के अनुसार, “भूगोल पृथ्वी तल पर एक स्थान से दूसरे तक मिलने वाले मतभेदों का वास्तविक और क्रमबद्ध वर्णन और व्याख्या है।”
विशेषताएँ-इसकी मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं—

  1. पृथ्वी और मनुष्य संबंधी सिद्धांत बनाने वाला विज्ञान है।
  2. मानवीय संबंधों के बारे में भाषायी विशेषताएँ पेश करता है।
  3. भूगोल क्रमबद्ध अध्ययन करता है।

प्रश्न 4.
संभवतावाद के सिद्धांत की उदाहरण सहित व्याख्या करो।
उत्तर-
एक विचार बताता है कि प्रकृति मनुष्य पर अपना नियंत्रण रखती है। कई भूगोलवेत्ताओं ने यह विचार मानने से इन्कार किया है। उन्होंने अधिक ज़ोर इस बात पर दिया है कि मनुष्य कोई भी चीज़ चुनने के लिए पूरी तरह आजाद है। जब मनुष्य को एक सक्रिम शक्ति के रूप में देखा जाए न कि किसी उदासीन शक्ति के रूप में इस सिद्धांत को संभवतावाद का सिद्धान्त कहा जाता है। फैंवर ने इसको संभवतावाद का नाम दिया है और उसने लिखा है संभवतावाद के कार्यान्वयन का उपयोग ही एकमात्र भौगोलिक समस्या है। विडाल डी ला ब्लांश भी संभवतावाद के सिद्धांत का समर्थन करते हैं। उनका भी यह विचार था कि सीमाएँ तय करते हुए मानवीय बस्तियों के लिए कुछ संभावनाएँ पेश करती हैं परंतु मनुष्य अपने परम्परागत ढंग के अनुसार इनके प्रति क्रिया करता है। प्रकृति केवल सलाहकार है। इससे अधिक और कुछ भी नहीं। यहाँ कोई सीमा नहीं बल्कि कई संभावनाएं मौजूद हैं। इसके अतिरिक्त जे०जे० बुर्नेश आदि ने भी इस धारणा को अपनाया है।

प्रश्न 5.
मानव भूगोल के विषय-क्षेत्र पर नोट लिखो।।
उत्तर-
मानव भूगोल का अपना एक विषय-क्षेत्र, दर्शन, धारणा है। जैसे कि अर्थ-शास्त्र का विषय-क्षेत्र उपज, उत्पादन, प्रयोग और गतिशीलता से संबंधित है। राजनीतिक भूगोल का विषय क्षेत्र चुनाव प्रणाली, सैनिक भूगोल आदि का अध्ययन करता है। इस तरह ही मानव भूगोल में हम मानवीय समाज, मानव के निवास स्थान और विकास स्थानों के विकास के बारे में अध्ययन करते हैं। मानव भूगोल के अंतर्गत अलग-अलग (भिन्न-भिन्न) जाति वर्ग संसार के भिन्न-भिन्न इलाकों की जनसंख्या और उसकी बढ़ोत्तरी, विभाजन और घनत्व जैसे तत्त्वों का अध्ययन किया जाता है। यह मानवीय समूह और संस्कृति दोनों ही मतभेदों का अध्ययन करता है। मानव भूगोल अपने विषय-क्षेत्र में संस्कृति, नस्ल, भाषा, धर्म, तकनीक, सामाजिक संगठन, वित्तीय संस्थाएँ, राजनैतिक प्रबंध, संगीत, गाँव और रिहायशी स्थान इत्यादि को शामिल कर लेता है।

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प्रश्न 6.
मानव भूगोल की शाखाओं और उपशाखाओं पर नोट लिखो।
उत्तर-

शाखाएँ उप-शाखाएँ
1. सामाजिक भूगोल (i) व्यवहार का भूगोल (ii) समाज कल्याण भूगोल (iii) सांस्कृतिक भूगोल (iv) चिकित्सा भूगोल।
2. राजनीतिक भूगोल (i) चुनाव भूगोल (ii) सैनिक भूगोल
3. जनसंख्या भूगोल (i) मानवीय आबादी भूगोल
4. बस्तीवाद भूगोल शहरी और गाँव योजनाबंदी
5. आर्थिक भूगोल (i) कृषि भूगोल, (ii) साधनों का भूगोल, (iii) उद्योग भूगोल, (iv) बाजारीकरण या बिक्री भूगोल, (v) पर्यटन भूगोल, (vi) राष्ट्रीय साधनों का भूगोल।

 

प्रश्न 7.
भूगोल को एलन चर्चिल सैंपल की क्या देन है ?
उत्तर-
एलन चर्चिल सैंपल (8 जनवरी, 1863-8 मई, 1932) एक अमेरिकन भूगोलवेत्ता थे और Association of American Geographers की पहली महिला प्रधान बनी। वह नियतिवाद की समर्थक थीं। उनकी पुस्तकें American History and its Geographic conditions, Influence of Geographic Environment, Geography of Mediterrian Region. भूगोल को एक बहुत बड़ी देन है। उनका मुख्य विषय नियतिवाद था। नियति के समर्थक इस भूगोलवेत्ता के अनुसार मानव पृथ्वी की सतह का उत्पादन है और सिर्फ इसका बच्चा ही नहीं, धूल भी है। पृथ्वी ने उसको सिर्फ जन्म ही नहीं बल्कि भोजन भी दिया, कुछ काम करने को भी दिया, विचार दिये, मुश्किलों से अवगत करवाया, शारीरिक ताकत दी, बुद्धि दी, रास्ते ढूंढ़ने और सिंचाई जैसी मुश्किलें पेश करके उनके हल तक भी पहुँचाया। भूगोल को श्रीमती सैंपल अमेरिकी भूगोलवेत्ता की महत्त्वपूर्ण देन पर्यावरणीय नियतिवाद का सिद्धांत है।

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प्रश्न 8.
नव-नियतिवाद के सिद्धांत पर नोट लिखो।
उत्तर-
टेलर द्वारा 1920 के दशक में जो पर्यावरणीय नियतिवाद और संभवतावाद के बीच का रास्ता अपनाया, उसको नव-नियतिवाद का सिद्धांत दिया गया है। जैसे कि प्रकृति मनुष्य को विकास के कई तरह के लक्ष्य देती है और इसके अन्तर्गत कई सीमाएँ निर्धारित करती हैं। अगर कोई मनुष्य इन सीमाओं को पार करता है तो इसका भाव है कि (No Return) उसकी दोबारा वापसी नहीं होती। इस तरह संभवतावाद के सिद्धांत ने ही कई आलोचकों को निमंत्रण दिया। ग्रीफिन टेलर का एक नया सिद्धांत नव-नियतिवाद इस समय पेश किया जिसमें उसने इस बात पर जोर दिया कि भूगोलवेत्ता का मुख्य और कार्य यह है कि भूगोलवेत्ता एक सलाहकार होना चाहिए और उसको प्रकृति के रेखाचित्र में कोई दखल-अंदाजी नहीं करनी चाहिए। इस सिद्धांत के बारे में यह भी कहा गया कि रुको और नियतिवाद की ओर जाओ। यह नियतिवाद और संभवतावाद के बीच का रास्ता है। इसमें यह कहा गया है कि न तो कोई स्थिति पूरी तरह महत्त्वपूर्ण भौतिक बंधन की है, न ही कोई पूर्णतया स्वतन्त्र हालात हैं। इसलिए हम कह सकते हैं कि मनुष्य को प्राकृतिक नियमों में रहकर काम करना चाहिए।

प्रश्न 9.
शिल्प विज्ञान समाज के सांस्कृतिक विकास को स्पष्ट करती है। इसके पक्ष में तीन उदाहरण पेश करो।
उत्तर-
शिल्प विज्ञान का अर्थ है कि कुछ तकनीक और औजार के प्रयोग से कोई चीज़ तैयार की जाए। यह किसी प्राकृतिक पर्यावरण के महत्त्व को और अधिक बढ़ा देती है जैसे कि पेड़ की लकड़ी एक प्राकृतिक स्रोत है जब शिल्प विज्ञान की मदद से इससे फर्नीचर बना लिया जाता है तब इसका महत्त्व पहले से बढ़ जाता है। मनुष्य प्राकृतिक नियमों को समझता है और कुछ कला और तकनीकी ज्ञान का प्रयोग कर किसी चीज़ का निर्माण करता है। इस तरह शिल्प विज्ञान के सांस्कृतिक विकास के स्तर को स्पष्ट करता है।
उदाहरण—

  1. घर्षण और ताप के सिद्धांतों को समझने के बाद मनुष्य ने आग की खोज की।
  2. DNA और आनुवंशिकी (Genetics) के गुप्त रूप को समझने के बाद कई बीमारियों के ईलाज का पता चला।
  3. प्रकृति के बारे में ज्ञान ने मनुष्य को शिल्प विज्ञान के विकास करने की शिक्षा दी।

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प्रश्न 10.
भूगोल में दुविधा से आप क्या समझते हैं ? इसकी तीन उदाहरणे दें।
उत्तर-
दुविधा का अर्थ है जब हम एक ही जगह या किसी एक विषय में भिन्न-भिन्न दृष्टिकोणों का अध्ययन करें जैसे कि भूगोल विषय में इसके दो विचार हैं एक वातावरण और दूसरा मानव भूगोल के महत्त्व का।
—इसी तरह इसके एक, प्रादेशिक और दूसरा नियमबद्ध भूगोल के बारे में चिंतन करता है।
—यहाँ मानव भूगोल और भौतिक भूगोल में द्विविभाजन होता है।

निबंधात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

प्रश्न 1.
मानवी भूगोल से आप क्या समझते हैं ? अलग-अलग भूगोलवेत्ताओं का उदाहरण देकर इसकी व्याख्या करें।
उत्तर-
मनुष्य पृथ्वी पर एक भौगोलिक प्रतिनिधि है। मनुष्य पर्यावरण का एक सक्रिय हिस्सा है। मनुष्य अपनी मूलभूत-आवश्यकताओं जैसे कि खाना, रहना और कपड़ा इत्यादि की पूर्ति प्राकृतिक स्रोतों के प्रयोग करके करता है। मनुष्य प्रकृति का गुलाम नहीं है, परंतु उसकी अपनी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए इसके अनुसार चलना पड़ता है। कई बार मनुष्य को अपने आपको प्राकृतिक पर्यावरण के अनुसार चलना पड़ता है। पर्यावरण के मतभेदों के कारण किसी क्षेत्र के लोगों के रहन-सहन में मतभेद होता है। खाना, पहरावा, रहन-सहन, रीति-रिवाज, परंपरा, सामाजिक-आर्थिक हालात, धार्मिक कार्यकुशलता सीधे रूप में पर्यावरण से संबंधित हैं और उस पर निर्भर हैं। जैसे कि जहाँ मानसून द्वारा वर्षा अधिक होती है वहाँ लोग अधिकतर कृषि का ही काम करते हैं। समशीतोष्ण उष्ण जलवायु में रहने वाले लोग अधिकतर, पशुपालन इत्यादि का काम करते हैं। मानवीय प्राकृतिक पर्यावरण के अनुसार अपने कार्य प्रणाली, रहन-सहन इत्यादि को बदल लेते हैं।

मानवीय भूगोल-बहुत सारी सांस्कृतिक आकृतियाँ मनुष्य और प्रकृति के आपसी संबंधों के कारण पैदा होती हैं। इनमें बस्तियां, कस्बे, सड़कें, उद्योग, इमारतें इत्यादि शामिल हैं। इस तरह मानवीय भूगोल मनुष्य की अपने आस-पास के प्राकृतिक पर्यावरण से एक प्रकार की समानता का अध्ययन है। मानव भूगोल अपने भौगोलिक तत्वों के बिना भौतिक/प्राकृतिक पर्यावरण से सीधे तौर से संबंधित है। प्रत्येक प्राकृतिक, भौतिक, जीव और सामाजिक, आर्थिक विज्ञान का अपना विषय क्षेत्र है। मानवी भूगोल से हम मानवीय जाति वर्ग, जनसंख्या की बढ़ोत्तरी, घनत्व, जनाकंन की विशेषताएँ, प्रवास की बनावट, मानवीय समूह और आर्थिक क्रियाओं में भौतिक और सांस्कृतिक भिन्नता का अध्ययन किया जाता है। मानवीय भूगोल नस्ल, भाषा, धर्म, तकनीक, सामाजिक संगठन, वित्तीय संस्थाएँ, राजनैतिक प्रबंध, मानसिक बहाव, यातायात, व्यापार, उद्योग, संचार साधनों को अपने अध्ययन क्षेत्र अधीन समेट लेता है।
मानवीय भूगोल की उदाहरणे समय के साथ-साथ बदलती रहती हैं। कोई भी एक उदाहरण पूर्णव्यापी नहीं मानी जाती। मानवीय भूगोल के कुछ उदाहरण प्रस्तुत हैं—

  1. मानवीय भूगोल की एक सरल परिभाषा के अनुसार, “मानवीय भूगोल मनुष्य की अपने आस-पास के प्राकृतिक पर्यावरण से सर्वव्यापी समानता का अध्ययन है।”
  2. फ्रेडरिक रैटज़ल के अनुसार, “मानवीय भूगोल, मानवीय समाज और पृथ्वी की सतह के आपसी संबंधों का संगठित/संश्लेषणात्मक अध्ययन है।” (इस परिभाषा में ज्यादा ज़ोर संश्लेषण पर दिया गया है)
  3. पाल विडाल डी ला ब्लांश के अनुसार, “मानवीय, भूगोल प्रकृति और मनुष्य के आपसी संबंधों का अध्ययन है।”
  4. मानवीय भूगोल की पैंगुइन डिक्शनरी के अनुसार, “स्थानीय विभाजन से भाव है, पृथ्वी की सतह पर, अलग अलग स्थानों पर किसी विशेष व्यवहार या विशेषता के महत्त्व, मूल्य या व्यवहार को प्रदर्शित करने वाले भौगोलिक मापदंडों या निरीक्षकों का समूह है।”

इन उदाहरणों में काफी अंतर हैं पर सारे भूगोलवेत्ता एक बात से सहमत हैं कि मानवीय भूगोल उन समस्याओं का अध्ययन करती है जो मनुष्य और पर्यावरण के आपसी संबंधों से पैदा होती हैं। मानवीय भूगोल मनुष्य का पर्यावरण से संगम का अध्ययन है। पर्यावरण से सम-तुलना और पर्यावरण में कुछ रूप परिवर्तन मनुष्य द्वारा किया जाता है।

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प्रश्न 2.
मानवी भूगोल की प्रकृति और विषय-क्षेत्र पर नोट लिखें।
उत्तर-
मानवीय भूगोल की प्रकृति-मानवीय भूगोल का मुख्य उद्देश्य पृथ्वी पर जीवन की क्षेत्रीय भिन्नता का अध्ययन करना होता है। अलग-अलग स्थानों पर रंग, कुशलता, रहन-सहन, रीति-रिवाज़, धर्म, सामाजिक, आर्थिक हालात में काफी भिन्नता देखने को मिलती है। यह भिन्नताएं प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप में प्राकृतिक पर्यावरण से प्रभावित होती है। मनुष्य और पर्यावरण के आपसी संबंध के कारण सांस्कृतिक प्राकृतिक, छवि पेश करते हैं। ट्रीवार्था के अनुसार, “मनुष्य और सांस्कृतिक गतिविधियां मानवीय भूगोल का मुख्य विषय है। इस तरह मानव भूगोल जनसंख्या, प्राकृतिक स्रोत, सांस्कृतिक भूदृश्यों के आपसी संबंधों का अध्ययन करता है।”

मानवीय भूगोल मनुष्य के उसके पर्यावरण से आपसी संबंधों का सामाजिक, आर्थिक, प्राकृतिक अध्ययन करता है। मानवीय भूगोल का अध्ययन मानव पर्यावरण का एक व्यापक अध्ययन है। यह मनुष्य की प्राकृतिक पर्यावरण से समानता का अध्ययन करता है। मानवीय भूगोल सामाजिक-आर्थिक, सांस्कृतिक विकास इत्यादि का अध्ययन करता है। यह पर्यावरण अनुकूलन, क्षेत्रीय अनुकूलन, स्थानीय, संगठन का विश्लेषण करता है।

मनुष्य एक सक्रिय प्रतिनिधि है पर यह प्रकृति का हिस्सा नहीं है। मनुष्य एक सांस्कृतिक भूदृश बनाता है भौतिक पर्यावरण को अपने अनुकूल बनाकर। इस प्रकार मानवीय भूगोल मनुष्य की अपने आस-पास के प्राकृतिक पर्यावरण से सर्वव्यापक समानता का अध्ययन करता है।

विषय क्षेत्र-मानवीय भूगोल का विषय-क्षेत्र बहुत विशाल है पर भूगोलवेत्ताओं के विचार में विषय-क्षेत्र को लेकर काफी भिन्नता पाई जाती है। मानवीय भूगोल पृथ्वी की सतह पर मिलने वाले अलग-अलग मानवीय जातिवर्ग का अध्ययन है। मानवीय भूगोल की विषय सामग्री प्रकृति, मनुष्य और पर्यावरण के आपसी संबंध है।
मानवीय भूगोल के विषय क्षेत्र के मुख्य पहलू निम्नलिखित हैं—

  1. मानवीय भूगोल के अधीन मानवीय जनसंख्या, मानवीय विभाजन और जनसंख्या के घनत्व का अध्ययन किया जाता है।
  2. मानवीय भूगोल के अंतर्गत किसी स्थान के प्राकृतिक स्रोतों, मनुष्य द्वारा प्रयोग किये जाने वाले साधनों और प्राकृतिक स्रोतों से कई प्रयोग योग्य बनाए उपयोगी साधनों इत्यादि का अध्ययन किया जाता है।
  3. मानवीय भूगोल अधीन सांस्कृतिक तत्व जैसे भाषा, धर्म, रीति-रिवाज और परंपराएं, ग्रामीण, शहरी जनसंख्या इत्यादि का अध्ययन किया जाता है।
  4. मानवीय भूगोल के अधीन भौगोलिक और मानवीय रिश्तों का अध्ययन करके किसी स्थान पर मनुष्य और प्राकृतिक पर्यावरण के आपसी संबंधों के बारे जानकारी हासिल की जाती है।
  5. सामयिक विकास के बारे में अध्ययन प्राप्त किया जाता है।
  6. कई आर्थिक क्रियाएँ, उद्योग, व्यापार, यातायात के साधन, संचार के साधनों के स्थानीय विभाजन भी मानवीय भूगोल के विषय-क्षेत्र के अधीन आता है।

प्रश्न 3.
मानवीय भूगोल की शाखाओं और उप-शाखाओं पर नोट लिखो।।
उत्तर-
मानवीय भूगोल मानवीय जीवन के संपूर्ण तत्व और जीवन स्थान के बीच के रिश्तों की व्याख्या करता है। यह विषय पृथ्वी की सतह पर मानवीय तत्वों को समझने और व्याख्या करने के लिए सामाजिक विज्ञान से संबंधित और विषयों से भी महत्त्वपूर्ण और अर्थ-भरपूर संबंध रखता है। मानवीय भूगोल मानव पर पर्यावरण के प्रभाव का अध्ययन है। मानवीय भूगोल निम्नलिखित शाखाओं और उप-शाखाओं को अपने विषय-क्षेत्र में लेता है।

1. सामाजिक भूगोल (Social Geography)—इस शाखा के अंतर्गत सांस्कृतिक क्रियाएँ जैसे रहन-सहन,
भोजन, नस्ल, पहरावा, भाषा, धर्म, तकनीक, सामाजिक संगठनों इत्यादि का अध्ययन शामिल है। भूगोलवेत्ता ने इस शाखा को सामाजिक भूगोल का नाम दिया है। इस शाखा के अंतर्गत आने वाली मुख्य शाखाएँ हैं और उनके अंतर्गत आने वाले सामूहिक विषय—

  1. व्यवहार का भूगोल-और सामूहिक क्षेत्र
  2. समाज भलाई भूगोल-भलाई का अर्थशास्त्र
  3. कार्यनिवृति का भूगोल-समाजशास्त्र
  4. सांस्कृतिक भूगोल-मानव शास्त्र, महिलायों से संबंधित शास्त्र
  5. चिकित्सा भूगोल-महामारियों से सम्बन्धित इलाज शास्त्र।

2. आर्थिक भूगोल (Economic Geography)-आर्थिक भूगोल आर्थिक मनुष्य की गतिविधियों का अध्ययन करता है। यह प्राकृतिक स्रोतों का प्रयोग, वाणिज्य, व्यापार प्रयोग इत्यादि का अध्ययन करता है। यह किसी स्थान और औद्योगिक विकास का अध्ययन भी करता है। इसी उप-शाखाएँ और सामूहिक क्षेत्र अग्रलिखित हैं।

उप शाखाएँ सामूहिक विषय
1. साधनों का भूगोल (i) अर्थशास्त्र

(ii) साधनों का अर्थशास्त्र

2. कृषि और जरायति भूगोल कृषि विज्ञान
3. उद्योगों का भूगोल उद्योग अर्थशास्त्र
4. बाजारीकरण या बिक्री भूगोल

 

(i) व्यापार अध्ययन,

(ii) अर्थशास्त्र वाणिज्य

5. पर्यटन भूगोल (i) पर्यटन

(ii) यात्रा व्यापार

6. राष्ट्रीय सम्बन्धों का भूगोल राष्ट्रीय व्यापार

 

3. जनसंख्या भूगोल (Population Geography)-जनांकन भूगोल में संसार के अलग-अलग भाग की आबादी वृद्धि, विभाजन और घनत्व जैसे तत्वों का अध्ययन किया जाता है। इसमें मृत्यु दर, जन्म दर, लिंग अनुपात, आयु संरचना का अध्ययन भी शामिल है। यह उप शाखा जनांकन विज्ञान है।
4. राजनीतिक भूगोल (Political Geography)—इसमें राजनीतिक मामलों चुनाव, सैनिक, राजनीति आदि का अध्ययन किया जाता है। इसमें राजनीतिक सीमाएँ, राजधानी, स्थानीय सरकार, अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों इत्यादि के बारे में भी अध्ययन किया जाता है। इसकी उप-शाखाएँ और समान क्षेत्र निम्नलिखित हैं—

उपशाखाएँ सामूहिक क्षेत्र
(i) चुनाव भूगोल राजनीतिक शास्त्र
(ii) सैनिक भूगोल चुनाव विश्लेषण अध्ययन, सैनिक विज्ञान।

 

5. बस्तीवादी भूगोल (Settlement Geography)-इसमें मानव के रहन-सहन, रीति-रिवाजों इत्यादि का अध्ययन किया जाता है। इसकी उपशाखाएँ हैं—

  1. शहरी योजनाबंदी
  2. ग्रामीण योजनाबंदी।

6. ऐतिहासिक भूगोल (Historical Geography)—एक प्राचीन समय के मुकाबले कितना भौगोलिक विकास हुआ है इस अध्ययन क्षेत्र के अधीन आता है।

PSEB 12th Class Geography Solutions Chapter 1 मानव भूगोल और इसकी शाखाएं

प्रश्न 4.
मानव भूगोल के मुख्य पड़ाव और उद्देश्य का विस्तृत विभाजन करें।
उत्तर-
मानव भूगोल मनुष्य को अपने आस-पास के प्राकृतिक पर्यावरण से सर्वव्यापी समानता का अध्ययन करता है। ऐतिहासिक तथ्य को देखते हुए पता चलता है कि मानवीय भूगोल कई पड़ावों से गुजर कर हम तक पहुँचा है और इन पड़ावों के कुछ उद्देश्य भी रहे हैं। मानव भूगोल के मुख्य पड़ाव और उनके उद्देश्य निम्नलिखित हैं—
1. आरम्भिक बस्तीवाद काल-इस काल में भूगोलवेत्ताओं का काम खोज करना और यात्राएँ करना था, और उनके बाद इनकी यात्राओं के दौरान की गई खोजों का रिकार्ड एकत्र करना था। जैसे-जैसे राजनीतिक मुद्दों और व्यापारिक, चिंतन में वृद्धि होती गई वैसे-वैसे अलग-अलग स्थानों पर भूगोलवेत्ता और विद्वानों ने ज्यादा खोज यात्राएँ शुरू की ताकि व्यापार इत्यादि को उत्साहित करने के लिए नये-नये तरीके ढूढ़े जाएँ।

2. प्राचीन काल-प्राचीन काल में भूगोलवेत्ताओं का मुख्य कार्य निपुण बनाना था। वह नक्शे बनाते थे और खगोलीय नपाई करते थे। पुरातन प्रमाणों के अनुसार पता चलता है कि पुराने विद्वानों की मुख्य रुचि नक्शे को बनाने में थी वह नक्शे बनाकर खगोल की नपाई करते थे। सब से पहले भूगोलवेत्ताओं का खिताब यूनानी विद्वानों को जाता है। इनमें से मुख्य यूनानी भूगोलवेत्ता थे-होमर, हैरोडोटस, थेलज, अरस्तु और ऐरोटोस्थीनज।

3. बस्तीवादी काल का प्रारंम्भिक दौर-इस काल में विद्वानों का मुख्य कार्य विश्लेषण करना रहा है। इस काल में हर क्षेत्र के सभी पक्षों का विस्तृत अध्ययन और बाद में उसका वर्णन किया जाता था। इस समय और सोच का मुख्य विचार था कि सभी क्षेत्र मिल कर पूरी पृथ्वी बनाते हैं जिसका पूर्ण तौर पर अध्ययन ही सभी अध्ययन का रास्ता खोल देता है।

4. 1930 और दूसरे युद्ध के बीच का काल-इस काल का मुख्य कार्य क्षेत्रीय अलगाव करना है। इस क्षेत्र का मुख्य उद्देश्य किसी भी नवीनपन की पहचान करना होता था और पहचान करके फिर यह जानना था कि क्षेत्र किसी दूसरे क्षेत्र से कितना प्राकृतिक और मानवीय कारणों की वजह से अलग है।

5. 1950 से आखिर के 1960 तक-इस काल का मुख्य कार्य स्थानीय संगठन था। यह काल कंप्यूटर और उच्च तकनीक विज्ञान का प्रयोग काल था। इसमें मानवीय काम और विकास क्षेत्र के नक्शे तैयार किये जाते थे और विश्लेषण के नियमों का प्रयोग किया जाता था।

6. 1970 में-1970 के काल के दौरान भूगोलवेत्ता का मुख्य कार्य मानववादी, प्रगतिवादी और व्यवहारवादी सोच प्रक्रियाओं का उभार करना था। मात्रात्मक क्रांति से असंतुष्ट और भूगोल संबंधी अमानवीय और हिंसक चीजों और दंगों-तरीकों से मानवीय भूगोल में अलग-अलग सोच का जन्म हुआ।

7. 1980 में-इस दशक में भूगोल का मुख्य कार्य मानवीय भूगोल के सामाजिक राजनीतिक असंबंधी मानवीय प्रसंगों का अध्ययन किया जाता था।

8. 1990 में-इस दौरान भूगोलवेत्ताओं का मुख्य कार्य उत्तर आधुनिकतावाद था। अब मानवीय क्रियाओं की व्याख्या करने वाले सिद्धांतों पर सवाल उठना और आलोचना शुरू हो गई। हर प्रबन्ध की एक नई सोच सामने आई और एक नई सोच के महत्त्व पर अब जोर केंद्रित किया गया। अमेरिकी भूगोलवेत्ताओं और भौगोलिक धाराणाओं में एक समय में अन्य विषयों को ज्ञान प्रदान करने का प्रयोग लगातार शुरू हो रहा था।

PSEB 12th Class Geography Solutions Chapter 1 मानव भूगोल और इसकी शाखाएं

मानव भूगोल और इसकी शाखाएं PSEB 12th Class Geography Notes

  • भूगोल न सिर्फ कई विषयों का सुमेल है, बल्कि अनुभव किया जाने वाला एक उपयोगी विषय है। ।
  • भूगोल को मुख्य रूप में दो हिस्सों-भौतिक भूगोल और मानव भूगोल में विभाजित किया जाता है। भौतिक भूगोल में हम स्थिति, धरातल, पर्यावरण, जल प्रवाह, जलवायु, प्राकृतिक वनस्पति, मिट्टी, खनिज पदार्थों के बारे में अध्ययन करते हैं। मानव विज्ञान में हम संस्कृति, प्रजाति, धर्म, भाषा, तकनीक, सामाजिक । संगठन, वित्तीय संस्थाएँ, राजनीतिक प्रबंध इत्यादि के बारे में ज्ञान हासिल करते हैं। इस तरह से भौगोलिक या सम्पूर्ण पर्यावरण बनता है।
  • मानव भूगोल साधारण शब्दों में मनुष्य की अपने आस-पास के प्राकृतिक पर्यावरण के साथ सर्वपक्षीय समानता का अध्ययन है।
  • मानव भूगोल, भूगोल का एक अहम् हिस्सा है, जिसमें हम पृथ्वी पर मानव होड़ और उसकी गतिविधियों के बारे में पढ़ते हैं।
  • भूगोल दो मुख्य भागों क्षेत्रीय और क्रमबद्धता में विभाजित है और मानव और मानव भूगोल क्रमबद्ध भूगोल का ही एक हिस्सा हैं।
  •  मानवीय भूगोल प्राकृतिक/भौतिक पर्यावरण से प्रत्यक्ष रूप से सम्बन्धित है। मानव भूगोल में मानव और ! उसके पर्यावरण के पारस्परिक सम्बन्धों का सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और प्राकृतिक अध्ययन किया जाता है।
  • मानव भूगोल के हर विषय की अपनी एक अध्ययन प्रणाली और विषय क्षेत्र होता है। जैसे कि अर्थशास्त्र में हम वस्तुओं के उत्पादन, उपभोग इत्यादि के बारे में पूछते हैं। भू-गर्भ विज्ञान में धरती की पपड़ी (Crust) की बनावट, वनस्पति विज्ञान में जानवरों और पौधों के बारे में।
  • इस तरह मानव विज्ञान का विषय असीमित है। इसमें हम जाति और वर्ग का अध्ययन करते हैं। इसमें आबादी के बारे में, विभाजन और घनत्व, जनांकन, प्रवास की बनावट, संस्कृति, अलगाव, आर्थिक क्रियाओं के बारे में पढ़ते हैं।
  • भौगोलिक धारणाएँ उस समय और सिद्धांत का अध्ययन है जिसके आधार पर भूगोल को एक विषय का .रुत्बा प्राप्त हुआ है। भूगोल विषय में भौगोलिक धारणाओं का अर्थ है कि किसी खास स्थान और संदर्भ में भौगोलिक ज्ञान और विकास को समझना है।
  • जो आदर्श , पहुँच, विधियों और सैद्धांतिक पर्यावरण में संबंधित सरकारों में से निकलते हैं। उन्हें नियतिवाद कहते हैं।
  • मानव-मानव प्रकृति का एक गुणी प्रतिनिधि है।
  • पर्यावरण-पर्यावरण का अर्थ है-हमारे आस-पास का दायरा जिसमें मनुष्य रहते हैं और काम करते हैं। यह मुख्य रूप में दो तरह का होता है-भौगोलिक वातावरण और सांस्कृतिक वातावरण (पर्यावरण)।
  • मानवीय भूगोल-मानव भूगोल, मनुष्य के अपने आस-पास पर्यावरण के प्राकृतिक वातावरण से सर्वपक्षीय साझ का अध्ययन है।
  • मानवीय भूगोल का उद्देश्य-इसका मुख्य उद्देश्य मानव और प्रकृति के परिवर्तन का अध्ययन करना है।
  • भूगोल का विषय-क्षेत्र
    • भूगोल सांस्कृतिक भूदृश्य का अध्ययन करना है।
    • संसाधन उपयोग
    • पर्यावरण अनुकूलन (समायोजन)
  • मानवीय भूगोल की उप-शाखाएँ-मानव भूगोल की शाखाएँ निम्नलिखित हैं
    • सांस्कृतिक भूगोल
    • सामाजिक भूगोल
    • राजनीतिक भूगोल
    • जनसंख्या भूगोल
    • बस्ती भूगोल
    • आर्थिक भूगोल।
  • भौतिक वातावरण के मुख्य तत्त्व-मिट्टी, जलवायु, धरातल, पानी, प्राकृतिक वनस्पति, जीव-जन्तु आदि।
  • सांस्कृतिक भूगोल के मुख्य तत्त्व-घर, गाँव, शहर, सड़क, रेलमार्ग, उद्योग, बंदरगाह, खेत आदि।
  • मुख्य मानव भूगोलवेत्ता-रैट्ज़ेल, विडाल डी, ला ब्लाँश, ऐनल चर्चिल सैंपल, कार्ल रिटर, हमबोल्ट, टेलर, ट्रीवार्था इत्यादि।
  • Ozone Layer. प्रारम्भिक ग्रामीण कार्यों के कारण खराब हो रही है।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 6 गुरु अर्जन देव जी और उनका बलिदान

Punjab State Board PSEB 12th Class History Book Solutions Chapter 6 गुरु अर्जन देव जी और उनका बलिदान Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 History Chapter 6 गुरु अर्जन देव जी और उनका बलिदान

निबंधात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

गुरु अर्जन देव जी का आरंभिक जीवन एवं कठिनाइयाँ
(Early Career and Difficulties of Guru Arjan Dev Ji)

प्रश्न 1.
गुरु अर्जन देव जी के आरंभिक जीवन का संक्षिप्त वर्णन करें। गुरुगद्दी पर बैठते समय उन्हें किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ा ?
(Describe briefly the early life of Guru Arjan Dev Ji. What difficulties he had to face at the time of his accession to Guruship ?)
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी सिखों के पाँचवें गुरु थे। उनका गुरु काल 1581 से 1606 ई० तक था। गुरु अर्जन देव जी के गुरु काल में जहाँ सिख पंथ का अद्वितीय विकास हुआ, वहीं उनके बलिदान से सिख इतिहास में एक नए युग का सूत्रपात हुआ। गुरु जी के आरंभिक जीवन और कठिनाइयों का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है

I. आरंभिक जीवन (Early Career)
1. जन्म तथा माता-पिता (Birth and Parentage)-गुरु अर्जन देव जी का जन्म 15 अप्रैल, 1563 ई० को गोइंदवाल साहिब में हुआ था। आप गुरु रामदास जी के सबसे छोटे पुत्र थे तथा सोढी जाति के क्षत्रिय परिवार से संबंध रखते थे। आपके माता जी का नाम बीबी भानी जी था।

2. बाल्यकाल तथा विवाह (Childhood and Marriage)-गुरु अर्जन देव जी बचपन से ही सबके विशेषकर अपने नाना गुरु अमरदास जी के बड़े लाडले थे। गुरु अमरदास जी ने एक बार भविष्यवाणी की, “यह मेरा दोहता वाणी का बोहथा होगा” अर्थात् यह एक ऐसी नाव बनेगा जो मानवता को संसार-सागर से पार उतारेगी। उनकी यह भविष्यवाणी सत्य सिद्ध हुई। गुरु अर्जन देव जी आरंभ से ही बड़े धार्मिक विचारों के थे। उन्होंने हिंदी, फ़ारसी तथा गुरुवाणी के संबंध में पर्याप्त ज्ञान प्राप्त किया। आपका विवाह मऊ गाँव (फिल्लौर) के निवासी कृष्ण चंद की सुपुत्री गंगा देवी जी से हुआ। 1595 ई० में आपके घर हरगोबिंद जी का जन्म हुआ।

3. गुरुगद्दी की प्राप्ति (Assumption of Guruship)-गुरु रामदास जी के तीन पुत्र थे। सबसे बड़ा पुत्र पृथी चंद बड़ा स्वार्थी तथा बेईमान था। दूसरा पुत्र महादेव वैरागी स्वभाव का था। उसकी सांसारिक कार्यों में कोई रुचि नहीं थी। तीसरे तथा सबसे छोटे पुत्र अर्जन देव जी थे। उनमें गुरुभक्ति, सेवा भाव तथा नम्रता आदि गुण प्रमुख थे। इसी कारण गुरु रामदास जी ने गुरु अर्जन देव जी को 1581 ई० में अपना उत्तराधिकारी बनाया। इस तरह गुरु अर्जन देव जी सिखों के पाँचवें गुरु बने।

II. गुरु अर्जन देव जी की कठिनाइयाँ (Difficulties of Guru Arjan Dev Ji)
गुरुगद्दी प्राप्त करने के पश्चात् गुरु अर्जन देव जी को अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। इन कठिनाइयों का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है—

1. पृथी चंद का विरोध (Opposition of Prithi Chand)-पृथी चंद गुरु अर्जन देव जी का बड़ा भाई था। उसने मीणा संप्रदाय की स्थापना की थी। वह बड़ा होने के नाते गुरुगद्दी पर अपना हक समझता था परंतु गुरु रामदास जी ने उसके कपटी तथा स्वार्थी स्वभाव को देखते हुए अर्जन देव जी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया। इस पर उसने अपने पिता जी को दुर्वचन कहे। उसने गुरु रामदास जी के ज्योति-जोत समाने के समय यह अफवाह फैला दी कि गुरु अर्जन देव जी ने उन्हें विष दे दिया है। उसने गुरु अर्जन देव जी से संपत्ति भी ले ली। उसने लंगर के लिए आई माया भी हड़पनी आरंभ कर दी। जब 1595 ई० में गुरु साहिब के घर हरगोबिंद का जन्म हुआ तो उसने इस बालक की हत्या के कई प्रयत्न किए। उसने लाहौर के मुग़ल कर्मचारी सुलही खाँ से मिलकर बादशाह अकबर को गुरु अर्जन देव जी के विरुद्ध भड़काने का यत्न किया। इस प्रकार पृथिया ने गुरु अर्जन साहिब को परेशान करने में कोई यत्न खाली न छोड़ा।

2. कट्टर मुसलमानों का विरोध (Opposition of Orthodox Muslims)-गुरु अर्जन देव जी को कट्टर मुसलमानों के विरोध का भी सामना करना पड़ा। ये मुसलमान सिखों के बढ़ते प्रभाव के कारण उनके दुश्मन बन गए। कट्टरपंथी मुसलमानों ने अपने धर्म की रक्षा के लिए सरहिंद में ‘नक्शबंदी’ लहर का गठन किया। इस लहर का नेता शेख अहमद सरहिंदी था। 1605 ई० में जहाँगीर मुग़लों का नया बादशाह बना। वह बहुत कट्टर विचारों का था। नक्शबंदियों ने जहाँगीर को सिखों के विरुद्ध भड़काया। परिणामस्वरूप जहाँगीर ने गुरु अर्जन देव जी के विरुद्ध उपयुक्त कार्यवाही करने का मन बना लिया।

3. ब्राह्मणों का विरोध (Opposition of Brahmans) गुरु अर्जन देव जी को पंजाब के हिंदुओं के प्रमुख वर्ग अर्थात् ब्राह्मणों के विरोध का भी सामना करना पड़ा। इसका कारण यह था कि सिख धर्म के प्रचार के कारण समाज में ब्राह्मणों का प्रभाव बहुत कम होता जा रहा था। सिखों ने ब्राह्मणों के बिना अपने रीति-रिवाज मनाने शुरू कर दिए थे। गुरु अर्जन देव जी ने जब आदि ग्रंथ साहिब जी का संकलन किया तो ब्राह्मणों ने मुग़ल सम्राट अकबर से यह शिकायत की कि इसमें हिंदुओं तथा मुसलमानों के विरुद्ध बहुत कुछ लिखा है। जाँच करने पर अकबर का कहना था कि यह ग्रंथ तो पूजनीय है।

4. चंदू शाह का विरोध (Opposition of Chandhu Shah)-चंदू शाह जो कि लाहौर का दीवान था, अपनी पुत्री के लिए किसी योग्य वर की तलाश में था। चंदू शाह के आदमियों ने चंदू शाह को गुरु अर्जन देव जी के सुपुत्र हरगोबिंद से रिश्ता करने का सुझाव दिया। इस पर उसने गुरु जी को अपशब्द कहे। बाद में अपनी पत्नी के विवश करने पर चंदू शाह यह रिश्ता करने के लिए सहमत हो गया। क्योंकि उस समय तक सिखों को चंदू शाह द्वारा कहे गए अपमानजनक शब्दों का पता चल गया था इसलिए उन्होंने गुरु जी को यह रिश्ता स्वीकार न करने के लिए प्रार्थना की। परिणामस्वरूप गुरु साहिब ने यह रिश्ता स्वीकार करने से इंकार कर दिया। अब चंदू शाह
PSEB 12th Class History Solutions Chapter 6 गुरु अर्जन देव जी और उनका बलिदान 1
SRI HARMANDIR SAHIB : AMRITSAR
एक लाख रुपया लेकर गुरु जी के पास पहुँचा और गुरु जी को दहेज का लालच देने लगा। गुरु जी ने चंदू शाह से कहा, “मेरे शब्द पत्थर पर लकीर हैं। यदि तू समस्त संसार को भी दहेज में दे दे तो भी मेरा पुत्र तेरी पुत्री से विवाह नहीं करेगा।” इस पर चंदू शाह गुरु जी का घोर शत्रु बन गया। .

गुरु अर्जन देव जी के अधीन सिख पंथ का विकास
(Development of Sikhism under Guru Arjan Dev Ji)

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 6 गुरु अर्जन देव जी और उनका बलिदान

प्रश्न 2.
सिख धर्म के विकास में गुरु अर्जन देव जी ने क्या योगदान दिया ?
(What was Guru Arjan Dev Ji’s contribution in the evolution of Sikhism ?)
अथवा
गुरु अर्जन देव जी द्वारा सिख धर्म के विकास के लिए किए संगठनात्मक कार्यों का वर्णन कीजिए।
(Describe the various organisational works done by Guru Arjan Dev Ji for the development of Sikhism.)
अथवा
गुरु अर्जन देव जी की विभिन्न सफ़लताओं का विवरण दें। .
(Give an account of various achievements of Guru Arjan Dev Ji.)
अथवा
सिख धर्म के संगठन तथा विकास में गुरु अर्जन देव जी के योगदान का वर्णन करें। (Describe Guru Arjan Dev’s contribution to the organisation and development of Sikhism.)
अथवा
सिख धर्म के विकास में गुरु अर्जन देव जी का योगदान की चर्चा करें।
(Discuss the contribution of Guru Arjan Dev Ji for the development of Sikhism.)
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी का गुरु काल 1581 ई० से 1606 ई० तक था। उनके गुरुगद्दी पर बैठने से सिख इतिहास में एक नए युग का आगमन हुआ। गुरु साहिब ने सिख पंथ के विकास के लिए अनेक महत्त्वपूर्ण कार्य किए। गुरु अर्जन देव जी के महान् कार्यों का विवरण निम्नलिखित है—

1. हरिमंदिर साहिब का निर्माण (Construction of Harmandir Sahib)-गुरु अर्जन देव जी का सिख पंथ के विकास के लिए सर्वप्रथम महान् कार्य हरिमंदिर साहिब का निर्माण था। सर्वप्रथम गुरु अर्जन देव जी ने गुरु रामदास जी द्वारा शुरू कराए गए अमृतसर सरोवर के निर्माण कार्य को पूरा करवाया। इसके पश्चात् गुरु अर्जन देव जी ने अमृत सरोवर में हरिमंदिर (ईश्वर का मंदिर) साहिब का निर्माण कार्य आरंभ करवाया। इसकी नींव 13 जनवरी, 1588 ई० में प्रसिद्ध सूफ़ी संत मीयाँ मीर जी ने रखी थी। सिखों ने गुरु जी को हरिमंदिर साहिब को आस-पास की इमारतों से ऊँचा बनवाने के लिए कहा परंतु गुरु साहिब का कहना था कि जो नीचा होगा, वही ऊँचा कहलाने के योग्य होगा। इसलिए इसका भवन अन्य भवनों से नीचा रखा गया। हरिमंदिर साहिब की एक अन्य विशेषता इसकी चारों दिशाओं में बनाए गए एक-एक द्वार हैं। इसका अर्थ यह था कि संसार की चारों दिशाओं से लोग बिना किसी भेदभाव के यहाँ आ सकते हैं। 1601 ई० में हरिमंदिर साहिब का निर्माण कार्य संपूर्ण हुआ।

इस समय गुरु साहिब ने यह घोषणा की कि इस मंदिर की यात्रा करने वाले को हिंदुओं के 68 तीर्थ स्थानों की यात्रा के समान फल प्राप्त होगा। सिख वहाँ बड़ी संख्या में आने लगे। फलस्वरूप जल्दी ही हरिमंदिर साहिब सिखों का सबसे प्रसिद्ध तीर्थ स्थान बन गया। प्रसिद्ध लेखक जी० एस० तालिब के अनुसार,
“इस मंदिर एवं सरोवर का सिखों के लिए वही स्थान है जो मक्का का मुसलमानों के लिए, जेरूस्लेम का यहूदियों तथा ईसाइयों के लिए तथा बौद्ध गया का बौद्धों के लिए।”1

2. तरनतारन की स्थापना (Foundation of Tarn Taran)-1590 ई० में गुरु अर्जन देव जी ने माझा क्षेत्र में सिख धर्म के प्रचार के लिए अमृतसर से 24 किलोमीटर दक्षिण की ओर तरनतारन नगर की स्थापना की। यहाँ तरनतारन नामक एक सरोवर भी खुदवाया गया। तरनतारन से अभिप्राय था कि इस सरोवर में स्नान करने वाला यात्री इस भव-सागर से पार हो जाएगा। तरनतारन शीघ्र ही सिखों का एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थान बन गया। इसके प्रभाव के कारण माझा के बहुत से जाटों ने सिख धर्म को अपना लिया। इन्होंने बाद में सिख पंथ की बहुमूल्य सेवा की।

3. करतारपुर एवं हरगोबिंदपुर की स्थापना (Foundation of Kartarpur and Hargobindpur)गुरु अर्जन देव जी ने 1593 ई० में जालंधर जिला में करतारपुर नगर की स्थापना की। करतारपुर से अभिप्राय था “ईश्वर का शहर’। यह शहर ब्यास और सतलुज नदियों के मध्य स्थित है। करतारपुर में गुरु साहिब ने गंगसर नामक एक सरोवर भी बनवाया। इस प्रकार करतारपुर जालंधर दोआब में एक प्रसिद्ध प्रचार केंद्र बन गया। 1595 ई० में गुरु साहिब ने अपने पुत्र हरगोबिंद जी के जन्म की प्रसन्नता में ब्यास नदी के तट पर हरगोबिंदपुर नगर की स्थापना की।

4. लाहौर में बाऊली का निर्माण (Construction of a Baoli at Lahore)-गुरु अर्जन देव जी एक बार सिख संगतों के आग्रह पर लाहौर गए। यहाँ उन्होंने डब्बी बाजार में एक बाऊली का निर्माण करवाया। इस प्रकार उस क्षेत्र के सिखों को भी एक तीर्थ स्थान मिल गया।।

5. मसंद प्रथा का विकास (Development of Masand System)-मसंद प्रथा का विकास निस्संदेह गुरु अर्जन देव जी के महान् कार्यों में से एक था। मसंद फ़ारसी भाषा के शब्द ‘मसनद’ से लिया गया है जिसका शाब्दिक अर्थ है ‘ऊँचा स्थान’। गुरु साहिब के प्रतिनिधि संगत में ऊँचे स्थान पर बैठते थे, इसलिए उन्हें मसंद कहा जाने लगा। सिखों की संख्या में हुई वृद्धि के कारण गुरु साहिब को लंगर तथा अन्य विकास कार्यों के लिए धन की आवश्यकता थी। अतः गुरु साहिब ने यह घोषणा की कि प्रत्येक सिख अपनी आय में से दशांश (दशम् भाग) गुरु साहिब को भेंट करे। इस पैसे को एकत्रित करने के लिए गुरु साहिब ने मसंद नियुक्त किए। ये मसंद अपने क्षेत्र में सिख धर्म के प्रचार के साथ-साथ धन भी एकत्रित करते थे तथा इस धन को वैसाखी और दीवाली के अवसरों पर अमृतसर में गुरु साहिब के पास आकर जमा करवाते थे। मसंद प्रथा के कारण सिख धर्म का प्रसार दूर-दूर के क्षेत्रों में संभव हो सका। इससे प्रभावित होकर अनेक लोग सिख धर्म में सम्मिलित हुए। दूसरा, इस प्रथा के कारण गुरु घर की आय निश्चित हो गई। इस कारण सिख धर्म एवं गुरु साहिब की लोकप्रियता में बढ़ौतरी हुई।

6. आदि ग्रंथ साहिब जी का संकलन (Compilation of Adi Granth Sahib)-गुरु अर्जन देव जी का सबसे महान् कार्य सिख पंथ के विकास के लिए आदि ग्रंथ साहिब का संकलन करना था। इसका प्रमुख उद्देश्य पूर्व सिख गुरुओं की वाणी को वास्तविक रूप में अंकित करना तथा सिखों को एक अलग धार्मिक ग्रंथ देना था। आदि ग्रंथ साहिब के संकलन का कार्य रामसर नामक सरोवर के किनारे आरंभ किया गया। भाई गुरदास जी ने वाणी को लिखने का कार्य किया। यह महान् कार्य 1604 ई० में संपूर्ण हुआ। आदि ग्रंथ साहिब जी में गुरु अर्जन देव जी ने गुरु नानक देव जी, गुरु अंगद देव जी, गुरु अमरदास जी, गुरु रामदास जी की और अपनी वाणी शामिल की। इनके अतिरिक्त इनमें कई भक्तों, सूफ़ी संतों और भट्टों इत्यादि की वाणी भी दर्ज की गई। गुरु गोबिंद सिंह जी के समय इस ग्रंथ साहिब में गुरु तेग़ बहादुर जी की वाणी भी शामिल कर ली गई तथा आदि ग्रंथ साहिब जी को गुरु ग्रंथ साहिब जी का दर्जा दिया गया। आदि ग्रंथ साहिब जी के संकलन से सिखों को एक पावन धार्मिक ग्रंथ प्राप्त हुआ। इसने सिखों में एक नई जागृति लाने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। इसके अतिरिक्त आदि ग्रंथ साहिब जी से हमें उस समय के पंजाब की राजनीतिक, धार्मिक, सामाजिक एवं आर्थिक दशा के संबंध में बहुमूल्य जानकारी प्राप्त होती है। डॉक्टर हरी राम गुप्ता का यह कहना पूर्णतः सही है,
“गुरु ग्रंथ साहिब जी का संकलन सिख इतिहास में बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है।”2

7. घोड़ों का व्यापार (Trade of Horses)-गुरु अर्जन देव जी सिखों की आध्यात्मिक प्रगति के साथ-साथ आर्थिक प्रगति भी चाहते थे। इसलिए उन्होंने सिखों को अरब देशों के साथ घोड़ों का व्यापार करने के लिए प्रोत्साहन दिया। इसके तीन लाभ हुए। प्रथम, सिख अच्छे व्यापारी सिद्ध हुए जिस कारण उनकी आर्थिक दशा सुधर गई। दूसरा, वे अच्छे घुड़सवार बन गए। तीसरा, इसने समाज में प्रचलित इस भ्रम पर गहरा आघात किया कि समुद्र पार जाने से ही किसी व्यक्ति का धर्म भ्रष्ट हो जाता है।

8. अकबर के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध (Friendly Relations with Akbar)-गुरु अर्जन देव जी तथा मुग़ल सम्राट अकबर के मध्य मैत्रीपूर्ण संबंध रहे। गुरु अर्जन देव जी के विरोधियों पृथिया, चंदू शाह, ब्राह्मणों एवं कट्टरपंथी मुसलमानों ने अकबर को गुरु साहिब जी के विरुद्ध भड़काने का यत्न किया परंतु उनकी चालें बेकार गईं। कई मुसलमानों ने अकबर को यह कहकर भड़काने का प्रयास किया कि आदि ग्रंथ साहिब जी में बहुत-सी इस्लाम विरोधी बातें लिखी हैं, परंतु अकबर इस ग्रंथ को पूजनीय मानता था। गुरु अर्जन देव जी के अनुरोध करने पर अकबर ने कृषकों के लगान में 10% की कमी कर दी। इसके कारण जहाँ गुरु साहिब की ख्याति में वृद्धि हुई, वहीं सिख पंथ के विकास में भी काफ़ी सहायता मिली।

9. उत्तराधिकारी की नियुक्ति (Nomination of the Successor)-गुरु अर्जन देव जी ने अपना बलिदान देने से पूर्व अपने पुत्र हरगोबिंद जी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया। गुरु साहिब ने उसे पूर्ण रूप से सशस्त्र होकर गुरुगद्दी पर बैठने और सेना रखने का भी आदेश दिया। इस प्रकार गुरु साहिब ने न केवल गुरुगद्दी की परंपरा को ही बनाए रखा, बल्कि इसके स्वरूप में भी परिवर्तन कर दिया।

10. गुरु अर्जन साहिब की सफलताओं का मूल्यांकन (Estimate of Guru Arjan Sahib’s Achievements) इस प्रकार हम देखते हैं कि गुरु अर्जन देव जी ने सिख पंथ के विकास में अति महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। हरिमंदिर साहिब, तरनतारन, हरगोबिंदपुर, करतारपुर और लाहौर में बाऊली की स्थापना, मसंद प्रथा के विकास तथा आदि ग्रंथ साहिब जी के संकलन से सिख धर्म को नई दिशा मिली। फलस्वरूप यह एक शक्तिशाली संगठन के रूप में उभर कर सामने आया। प्रोफ़ेसर हरबंस सिंह के शब्दों में,
“पाँचवें गुरु, गुरु अर्जन देव जी के अधीन सिख धर्म अच्छी प्रकार दृढ़ हो गया था।”3
एक अन्य विख्यात इतिहासकार डॉक्टर जी० एस० मनसुखानी के अनुसार,
“गरु अर्जन जी के गरु काल में सिख धर्म का तीव्र विकास हुआ है।”4

1. “This temple and the pool became to Sikhism what Mecca is to Islam, Jerusalem to Judaism and Christianity and Bodh Gaya to Bhuddhism.” G.S. Talib, An Introduction to Sri Guru Granth Sahib (Patiala : 1991) p. 10.
2. “The compilation of the Granth formed an important landmark in the history of the Sikhs.” Dr. Hari Ram Gupta, History of Sikh Gurus (New Delhi : 1973) p. 97.
3. “Under Guru Arjan, the Fifth Guru, Sikhism became more firmly established.” Prof. Harbans Singh, The Heritage of the Sikhs (Delhi : 1994) p. 37. .
4. “During the period of Guru Arjan, Sikhism took a significant stride.” Dr. G.S. Mansukhani, Aspects of Sikhism (New Delhi : 1982) p. 144.

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 6 गुरु अर्जन देव जी और उनका बलिदान

प्रश्न 3.
गुरु अर्जन देव जी के आरंभिक जीवन का वर्णन करें। उनकी सिख धर्म को क्या देन है ?
(Briefly describe the early life of Guru Arjan Dev Ji. What is his contribution to Sikhism ?)
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी सिखों के पाँचवें गुरु थे। उनका गुरु काल 1581 से 1606 ई० तक था। गुरु अर्जन देव जी के गुरु काल में जहाँ सिख पंथ का अद्वितीय विकास हुआ, वहीं उनके बलिदान से सिख इतिहास में एक नए युग का सूत्रपात हुआ। गुरु जी के आरंभिक जीवन और कठिनाइयों का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है

I. आरंभिक जीवन (Early Career)
1. जन्म तथा माता-पिता (Birth and Parentage)-गुरु अर्जन देव जी का जन्म 15 अप्रैल, 1563 ई० को गोइंदवाल साहिब में हुआ था। आप गुरु रामदास जी के सबसे छोटे पुत्र थे तथा सोढी जाति के क्षत्रिय परिवार से संबंध रखते थे। आपके माता जी का नाम बीबी भानी जी था।

2. बाल्यकाल तथा विवाह (Childhood and Marriage)-गुरु अर्जन देव जी बचपन से ही सबके विशेषकर अपने नाना गुरु अमरदास जी के बड़े लाडले थे। गुरु अमरदास जी ने एक बार भविष्यवाणी की, “यह मेरा दोहता वाणी का बोहथा होगा” अर्थात् यह एक ऐसी नाव बनेगा जो मानवता को संसार-सागर से पार उतारेगी। उनकी यह भविष्यवाणी सत्य सिद्ध हुई। गुरु अर्जन देव जी आरंभ से ही बड़े धार्मिक विचारों के थे। उन्होंने हिंदी, फ़ारसी तथा गुरुवाणी के संबंध में पर्याप्त ज्ञान प्राप्त किया। आपका विवाह मऊ गाँव (फिल्लौर) के निवासी कृष्ण चंद की सुपुत्री गंगा देवी जी से हुआ। 1595 ई० में आपके घर हरगोबिंद जी का जन्म हुआ।

3. गुरुगद्दी की प्राप्ति (Assumption of Guruship)-गुरु रामदास जी के तीन पुत्र थे। सबसे बड़ा पुत्र पृथी चंद बड़ा स्वार्थी तथा बेईमान था। दूसरा पुत्र महादेव वैरागी स्वभाव का था। उसकी सांसारिक कार्यों में कोई रुचि नहीं थी। तीसरे तथा सबसे छोटे पुत्र अर्जन देव जी थे। उनमें गुरुभक्ति, सेवा भाव तथा नम्रता आदि गुण प्रमुख थे। इसी कारण गुरु रामदास जी ने गुरु अर्जन देव जी को 1581 ई० में अपना उत्तराधिकारी बनाया। इस तरह गुरु अर्जन देव जी सिखों के पाँचवें गुरु बने।

गुरु अर्जन देव जी का गुरु काल 1581 ई० से 1606 ई० तक था। उनके गुरुगद्दी पर बैठने से सिख इतिहास में एक नए युग का आगमन हुआ। गुरु साहिब ने सिख पंथ के विकास के लिए अनेक महत्त्वपूर्ण कार्य किए। गुरु अर्जन देव जी के महान् कार्यों का विवरण निम्नलिखित है—

1. हरिमंदिर साहिब का निर्माण (Construction of Harmandir Sahib)-गुरु अर्जन देव जी का सिख पंथ के विकास के लिए सर्वप्रथम महान् कार्य हरिमंदिर साहिब का निर्माण था। सर्वप्रथम गुरु अर्जन देव जी ने गुरु रामदास जी द्वारा शुरू कराए गए अमृतसर सरोवर के निर्माण कार्य को पूरा करवाया। इसके पश्चात् गुरु अर्जन देव जी ने अमृत सरोवर में हरिमंदिर (ईश्वर का मंदिर) साहिब का निर्माण कार्य आरंभ करवाया। इसकी नींव 13 जनवरी, 1588 ई० में प्रसिद्ध सूफ़ी संत मीयाँ मीर जी ने रखी थी। सिखों ने गुरु जी को हरिमंदिर साहिब को आस-पास की इमारतों से ऊँचा बनवाने के लिए कहा परंतु गुरु साहिब का कहना था कि जो नीचा होगा, वही ऊँचा कहलाने के योग्य होगा। इसलिए इसका भवन अन्य भवनों से नीचा रखा गया। हरिमंदिर साहिब की एक अन्य विशेषता इसकी चारों दिशाओं में बनाए गए एक-एक द्वार हैं। इसका अर्थ यह था कि संसार की चारों दिशाओं से लोग बिना किसी भेदभाव के यहाँ आ सकते हैं। 1601 ई० में हरिमंदिर साहिब का निर्माण कार्य संपूर्ण हुआ।
इस समय गुरु साहिब ने यह घोषणा की कि इस मंदिर की यात्रा करने वाले को हिंदुओं के 68 तीर्थ स्थानों की यात्रा के समान फल प्राप्त होगा। सिख वहाँ बड़ी संख्या में आने लगे। फलस्वरूप जल्दी ही हरिमंदिर साहिब सिखों का सबसे प्रसिद्ध तीर्थ स्थान बन गया। प्रसिद्ध लेखक जी० एस० तालिब के अनुसार,
“इस मंदिर एवं सरोवर का सिखों के लिए वही स्थान है जो मक्का का मुसलमानों के लिए, जेरूस्लेम का यहूदियों तथा ईसाइयों के लिए तथा बौद्ध गया का बौद्धों के लिए।”1

2. तरनतारन की स्थापना (Foundation of Tarn Taran)-1590 ई० में गुरु अर्जन देव जी ने माझा क्षेत्र में सिख धर्म के प्रचार के लिए अमृतसर से 24 किलोमीटर दक्षिण की ओर तरनतारन नगर की स्थापना की। यहाँ तरनतारन नामक एक सरोवर भी खुदवाया गया। तरनतारन से अभिप्राय था कि इस सरोवर में स्नान करने वाला यात्री इस भव-सागर से पार हो जाएगा। तरनतारन शीघ्र ही सिखों का एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थान बन गया। इसके प्रभाव के कारण माझा के बहुत से जाटों ने सिख धर्म को अपना लिया। इन्होंने बाद में सिख पंथ की बहुमूल्य सेवा की।

3. करतारपुर एवं हरगोबिंदपुर की स्थापना (Foundation of Kartarpur and Hargobindpur)गुरु अर्जन देव जी ने 1593 ई० में जालंधर जिला में करतारपुर नगर की स्थापना की। करतारपुर से अभिप्राय था “ईश्वर का शहर’। यह शहर ब्यास और सतलुज नदियों के मध्य स्थित है। करतारपुर में गुरु साहिब ने गंगसर नामक एक सरोवर भी बनवाया। इस प्रकार करतारपुर जालंधर दोआब में एक प्रसिद्ध प्रचार केंद्र बन गया। 1595 ई० में गुरु साहिब ने अपने पुत्र हरगोबिंद जी के जन्म की प्रसन्नता में ब्यास नदी के तट पर हरगोबिंदपुर नगर की स्थापना की।

4. लाहौर में बाऊली का निर्माण (Construction of a Baoli at Lahore)-गुरु अर्जन देव जी एक बार सिख संगतों के आग्रह पर लाहौर गए। यहाँ उन्होंने डब्बी बाजार में एक बाऊली का निर्माण करवाया। इस प्रकार उस क्षेत्र के सिखों को भी एक तीर्थ स्थान मिल गया।।

5. मसंद प्रथा का विकास (Development of Masand System)-मसंद प्रथा का विकास निस्संदेह गुरु अर्जन देव जी के महान् कार्यों में से एक था। मसंद फ़ारसी भाषा के शब्द ‘मसनद’ से लिया गया है जिसका शाब्दिक अर्थ है ‘ऊँचा स्थान’। गुरु साहिब के प्रतिनिधि संगत में ऊँचे स्थान पर बैठते थे, इसलिए उन्हें मसंद कहा जाने लगा। सिखों की संख्या में हुई वृद्धि के कारण गुरु साहिब को लंगर तथा अन्य विकास कार्यों के लिए धन की आवश्यकता थी। अतः गुरु साहिब ने यह घोषणा की कि प्रत्येक सिख अपनी आय में से दशांश (दशम् भाग) गुरु साहिब को भेंट करे। इस पैसे को एकत्रित करने के लिए गुरु साहिब ने मसंद नियुक्त किए। ये मसंद अपने क्षेत्र में सिख धर्म के प्रचार के साथ-साथ धन भी एकत्रित करते थे तथा इस धन को वैसाखी और दीवाली के अवसरों पर अमृतसर में गुरु साहिब के पास आकर जमा करवाते थे। मसंद प्रथा के कारण सिख धर्म का प्रसार दूर-दूर के क्षेत्रों में संभव हो सका। इससे प्रभावित होकर अनेक लोग सिख धर्म में सम्मिलित हुए। दूसरा, इस प्रथा के कारण गुरु घर की आय निश्चित हो गई। इस कारण सिख धर्म एवं गुरु साहिब की लोकप्रियता में बढ़ौतरी हुई।

6. आदि ग्रंथ साहिब जी का संकलन (Compilation of Adi Granth Sahib)-गुरु अर्जन देव जी का सबसे महान् कार्य सिख पंथ के विकास के लिए आदि ग्रंथ साहिब का संकलन करना था। इसका प्रमुख उद्देश्य पूर्व सिख गुरुओं की वाणी को वास्तविक रूप में अंकित करना तथा सिखों को एक अलग धार्मिक ग्रंथ देना था। आदि ग्रंथ साहिब के संकलन का कार्य रामसर नामक सरोवर के किनारे आरंभ किया गया। भाई गुरदास जी ने वाणी को लिखने का कार्य किया। यह महान् कार्य 1604 ई० में संपूर्ण हुआ। आदि ग्रंथ साहिब जी में गुरु अर्जन देव जी ने गुरु नानक देव जी, गुरु अंगद देव जी, गुरु अमरदास जी, गुरु रामदास जी की और अपनी वाणी शामिल की। इनके अतिरिक्त इनमें कई भक्तों, सूफ़ी संतों और भट्टों इत्यादि की वाणी भी दर्ज की गई। गुरु गोबिंद सिंह जी के समय इस ग्रंथ साहिब में गुरु तेग़ बहादुर जी की वाणी भी शामिल कर ली गई तथा आदि ग्रंथ साहिब जी को गुरु ग्रंथ साहिब जी का दर्जा दिया गया। आदि ग्रंथ साहिब जी के संकलन से सिखों को एक पावन धार्मिक ग्रंथ प्राप्त हुआ। इसने सिखों में एक नई जागृति लाने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। इसके अतिरिक्त आदि ग्रंथ साहिब जी से हमें उस समय के पंजाब की राजनीतिक, धार्मिक, सामाजिक एवं आर्थिक दशा के संबंध में बहुमूल्य जानकारी प्राप्त होती है। डॉक्टर हरी राम गुप्ता का यह कहना पूर्णतः सही है,
“गुरु ग्रंथ साहिब जी का संकलन सिख इतिहास में बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है।”2

7. घोड़ों का व्यापार (Trade of Horses)-गुरु अर्जन देव जी सिखों की आध्यात्मिक प्रगति के साथ-साथ आर्थिक प्रगति भी चाहते थे। इसलिए उन्होंने सिखों को अरब देशों के साथ घोड़ों का व्यापार करने के लिए प्रोत्साहन दिया। इसके तीन लाभ हुए। प्रथम, सिख अच्छे व्यापारी सिद्ध हुए जिस कारण उनकी आर्थिक दशा सुधर गई। दूसरा, वे अच्छे घुड़सवार बन गए। तीसरा, इसने समाज में प्रचलित इस भ्रम पर गहरा आघात किया कि समुद्र पार जाने से ही किसी व्यक्ति का धर्म भ्रष्ट हो जाता है।

8. अकबर के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध (Friendly Relations with Akbar)-गुरु अर्जन देव जी तथा मुग़ल सम्राट अकबर के मध्य मैत्रीपूर्ण संबंध रहे। गुरु अर्जन देव जी के विरोधियों पृथिया, चंदू शाह, ब्राह्मणों एवं कट्टरपंथी मुसलमानों ने अकबर को गुरु साहिब जी के विरुद्ध भड़काने का यत्न किया परंतु उनकी चालें बेकार गईं। कई मुसलमानों ने अकबर को यह कहकर भड़काने का प्रयास किया कि आदि ग्रंथ साहिब जी में बहुत-सी इस्लाम विरोधी बातें लिखी हैं, परंतु अकबर इस ग्रंथ को पूजनीय मानता था। गुरु अर्जन देव जी के अनुरोध करने पर अकबर ने कृषकों के लगान में 10% की कमी कर दी। इसके कारण जहाँ गुरु साहिब की ख्याति में वृद्धि हुई, वहीं सिख पंथ के विकास में भी काफ़ी सहायता मिली।

9. उत्तराधिकारी की नियुक्ति (Nomination of the Successor)-गुरु अर्जन देव जी ने अपना बलिदान देने से पूर्व अपने पुत्र हरगोबिंद जी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया। गुरु साहिब ने उसे पूर्ण रूप से सशस्त्र होकर गुरुगद्दी पर बैठने और सेना रखने का भी आदेश दिया। इस प्रकार गुरु साहिब ने न केवल गुरुगद्दी की परंपरा को ही बनाए रखा, बल्कि इसके स्वरूप में भी परिवर्तन कर दिया।

10. गुरु अर्जन साहिब की सफलताओं का मूल्यांकन (Estimate of Guru Arjan Sahib’s Achievements) इस प्रकार हम देखते हैं कि गुरु अर्जन देव जी ने सिख पंथ के विकास में अति महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। हरिमंदिर साहिब, तरनतारन, हरगोबिंदपुर, करतारपुर और लाहौर में बाऊली की स्थापना, मसंद प्रथा के विकास तथा आदि ग्रंथ साहिब जी के संकलन से सिख धर्म को नई दिशा मिली। फलस्वरूप यह एक शक्तिशाली संगठन के रूप में उभर कर सामने आया। प्रोफ़ेसर हरबंस सिंह के शब्दों में,
“पाँचवें गुरु, गुरु अर्जन देव जी के अधीन सिख धर्म अच्छी प्रकार दृढ़ हो गया था।”3
एक अन्य विख्यात इतिहासकार डॉक्टर जी० एस० मनसुखानी के अनुसार,
“गरु अर्जन जी के गरु काल में सिख धर्म का तीव्र विकास हुआ है।”4

1. “This temple and the pool became to Sikhism what Mecca is to Islam, Jerusalem to Judaism and Christianity and Bodh Gaya to Bhuddhism.” G.S. Talib, An Introduction to Sri Guru Granth Sahib (Patiala : 1991) p. 10.
2. “The compilation of the Granth formed an important landmark in the history of the Sikhs.” Dr. Hari Ram Gupta, History of Sikh Gurus (New Delhi : 1973) p. 97.
3. “Under Guru Arjan, the Fifth Guru, Sikhism became more firmly established.” Prof. Harbans Singh, The Heritage of the Sikhs (Delhi : 1994) p. 37. .
4. “During the period of Guru Arjan, Sikhism took a significant stride.” Dr. G.S. Mansukhani, Aspects of Sikhism (New Delhi : 1982) p. 144.

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 6 गुरु अर्जन देव जी और उनका बलिदान

आदि ग्रंथ साहिब जी (Adi Granth Sahib Ji)

प्रश्न 4.
आदि ग्रंथ साहिब जी के संकलन और इसके ऐतिहासिक महत्त्व के संबंध में एक विस्तृत नोट लिखें।
(Write a detailed note on the compilation and historical importance of Adi Granth Sahib Ji.)
अथवा
आदि ग्रंथ साहिब जी के संकलन, भाषा, विषय-वस्तु तथा महत्त्व पर एक आलोचनात्मक नोट लिखें ।
(Write a critical note on compilation, language, contents and significance of the Adi Granth Sahib Ji.) i
उत्तर-
1604 ई० में आदि ग्रंथ साहिब जी अथवा गुरु ग्रंथ साहिब जी का संकलन गुरु अर्जन देव जी का सबसे महान् कार्य था। सिखों के मन में इस ग्रंथ साहिब के प्रति वही श्रद्धा है, जो बाइबल के लिए ईसाइयों; कुरान के लिए मुसलमानों और गीता के लिए हिंदुओं के मन में है। वस्तुतः आदि ग्रंथ साहिब जी समस्त मानव जाति के लिए एक अमूल्य निधि है। आदि ग्रंथ साहिब जी से जुड़े महत्त्वपूर्ण तथ्यों का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है—

1. संकलन की आवश्यकता (Need for its Compilation)-आदि ग्रंथ साहिब जी के संकलन के लिए कई कारण उत्तरदायी थे। पहला, सिखों के नेतृत्व के लिए एक पावन धार्मिक ग्रंथ की आवश्यकता थी। दूसरा, गुरु अर्जन देव जी के बड़े भाई पृथिया ने अपनी रचनाओं को गुरु साहिबान की वाणी कहकर प्रचलित करनी आरंभ कर दी थी। पर गुरु अर्जन देव जी गुरु साहिबान की वाणी शुद्ध रूप में अंकित करना चाहते थे। तीसरा, गुरु अमरदास जी ने भी सिखों को गुरु साहिबान की सच्ची वाणी पढ़ने के लिए कहा था।

2. वाणी को एकत्रित करना (Collection of Hymns)-गुरु अर्जन देव जी ने आदि ग्रंथ साहिब जी के संकलन के लिए भिन्न-भिन्न स्रोतों से वाणी एकत्रित की। गुरु नानक देव जी, गुरु अंगद देव जी और गुरु अमरदास जी की वाणी गुरु अमरदास जी के बड़े सुपुत्र बाबा मोहन जी के पास पड़ी थी। अतः गुरु साहिब स्वयं अमृतसर से गोइंदवाल साहिब नंगे पाँव गए। गुरु जी की नम्रता से प्रभावित होकर बाबा मोहन जी ने समस्त वाणी गुरु जी के सुपुर्द कर दी। गुरु रामदास जी की वाणी गुरु अर्जन देव जी के पास ही थी। तत्पश्चात् गुरु साहिब ने हिंदू भक्तों और मुस्लिम संतों के श्रद्धालुओं से उनके गुरुओं की सही वाणी माँगी। इस प्रकार भिन्न-भिन्न स्रोतों से वाणी का संग्रह किया गया।

3. आदि ग्रंथ साहिब जी का संकलन (Compilation of Adi Granth Sahib Ji)-आदि ग्रंथ साहिब जी के संकलन का कार्य अमृतसर के रामसर नामक एक स्थान पर किया गया। गुरु अर्जन देव जी वाणी लिखवाते गए और भाई गुरदास जी इसे लिखते गए। यह महान् कार्य अगस्त, 1604 ई० में संपूर्ण हुआ। आदि ग्रंथ साहिब जी का प्रथम प्रकाश हरिमंदिर साहिब जी में किया गया। बाबा बुड्डा जी को प्रथम मुख्य ग्रंथी नियुक्त किया गया।

4. आदि ग्रंथ साहिब जी में योगदान करने वाले (The Contributors of the Adi Granth Sahib Ji)आदि ग्रंथ साहिब जी एक विशाल ग्रंथ (5,894 शब्द) है। आदि ग्रंथ साहिब जी में योगदान करने वालों का वर्णन निम्नलिखित है—

  • सिख गुरु (Sikh Gurus)—आदि ग्रंथ साहिब जी में गुरु नानक देव जी के 976, गुरु अंगद देव जी के 62, गुरु अमरदास जी के 907, गुरु रामदास जी के 679 और गुरु अर्जन देव जी के 2216 शब्द अंकित हैं। बाद में गुरु गोबिंद सिंह जी के समय इसमें गुरु तेग बहादुर जी के 116 शब्द एवं श्लोक (59 शब्द और 57 श्लोक) सम्मिलित किए गए।
  • भक्त एवं संत (Bhagats and Saints)-आदि ग्रंथ साहिब जी में 15 हिंदू भक्तों और सफ़ी संतों की वाणी अंकित की गई है। प्रमुख भक्तों तथा संतों के नाम ये हैं-भक्त कबीर जी, भक्त फ़रीद जी, भक्त नामदेव जी, गुरु रविदास जी, भक्त धन्ना जी, भक्त रामानंद जी और भक्त जयदेव जी। इनमें भक्त कबीर जी के सर्वाधिक 541 शब्द हैं।
  • भट्ट (Bhatts) आदि ग्रंथ साहिब जी में 11 भट्टों के 123 सवैये भी अंकित किए गए हैं। कुछ प्रमुख भट्टों के नाम ये हैं-कलसहार जी, नल जी, बल जी, भिखा जी और हरबंस जी।।

5. वाणी का क्रम (Arrangement of the Matter)-आदि ग्रंथ साहिब जी में दर्ज की गई वाणी को तीन भागों में विभाजित किया गया है। प्रथम भाग में जपुजी साहिब, रहरासि साहिब और सोहिला आते हैं। दूसरे भाग में वर्णित वाणी को 31 रागों के अनुसार 31 भागों में विभाजित किया गया है। सभी गुरुओं के शब्दों में ‘नानक’ का नाम ही प्रयुक्त हुआ है, इसलिए उनके शब्दों में अंतर प्रकट करने के लिए महलों का प्रयोग किया गया है। तीसरे भाग में भट्टों के सवैये, सिख गुरुओं और भक्तों के वे श्लोक हैं जिन्हें रागों में विभाजित नहीं किया जा सका। आदि ग्रंथ साहिब जी ‘मुंदावणी’ नामक दो श्लोकों से समाप्त होता है। आदि ग्रंथ साहिब जी में कुल 1430 अंग (पन्ने) है।

6. विषय (Subject) आदि ग्रंथ साहिब जी में प्रभु की भक्ति, नाम का जाप, सच्चखंड की प्राप्ति और गुरु के महत्त्व से संबंधित विषयों की जानकारी दी गई है। इसके अतिरिक्त इसमें मानवता के कल्याण, प्रभु की एकता और विश्व-बंधुत्व का संदेश दिया गया है।

7. भाषा (Language)-आदि ग्रंथ साहिब जी गुरुमुखी लिपी में लिखा गया है। इसके अतिरिक्त इसमें पंजाबी, हिंदी, मराठी, गुजराती, संस्कृत तथा फ़ारसी इत्यादि भाषाओं के शब्दों का भी प्रयोग किया गया है।

आदि ग्रंथ साहिब जी का महत्व (Significance of Adi Granth Sahib Ji)

आदि ग्रंथ साहिब जी ने मानव समुदाय को जीवन के प्रत्येक पक्ष में नेतृत्व करने वाले स्वर्ण सिद्धांत दिए हैं। इसकी वाणी ईश्वर की एकता एवं परस्पर भ्रातृत्व का संदेश देती है।

1. सिखों के लिए महत्त्व (Importance for the Sikhs) आदि ग्रंथ साहिब जी का सिख इतिहास में एक विशेष स्थान है। प्रत्येक सिख गुरुद्वारे में गुरु ग्रंथ साहिब जी की बीड़ को बहुत मान-सम्मान सहित उच्च स्थान पर रेशमी रुमालों में लपेट कर रखा जाता है तथा इसका प्रकाश किया जाता है। सिख संगतें इसके सामने बहुत आदरपूर्ण ढंग से माथा टेककर बैठती हैं। सिखों की जन्म से लेकर मृत्यु तक की सभी रस्में गुरु ग्रंथ साहिब जी के सम्मुख पूर्ण की जाती हैं। यह ग्रंथ आज भी इनकी प्रेरणा का मुख्य स्रोत है। डॉक्टर वजीर सिंह के अनुसार,
“आदि ग्रंथ साहिब जी वास्तव में उनका (गुरु अर्जन देव जी का) सिखों के लिए सबसे मूल्यवान् उपहार था।”5

2. भ्रातृत्व का संदेश (Message of Brotherhood)-आदि ग्रंथ साहिब जी में बिना किसी जातीय. ऊँचनीच, धर्म अथवा राष्ट्र के भेदभाव की वाणी सम्मिलित की गई है। ऐसा करके गुरु अर्जन देव जी ने समस्त मानवता को भाईचारे का संदेश दिया।

3. साहित्यिक महत्त्व (Literary Importance)-आदि ग्रंथ साहिब जी साहित्यिक पक्ष से एक उच्चकोटि का ग्रंथ है। इसमें सुंदर उपमाओं और अलंकारों का प्रयोग किया गया है। पंजाबी का जो उत्तम रूप ग्रंथ साहिब में प्रस्तुत किया गया है, उसकी तुलना उत्तरोत्तर लेखक भी नहीं कर पाए।

4. ऐतिहासिक महत्त्व (Historical Importance)—अगर ऐतिहासिक महत्त्व की दृष्टि से देखें, तो आदि ग्रंथ के गहन अध्ययन से हम 15वीं से 17वीं शताब्दी की राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक एवं आर्थिक दशा के संबंध में बहुत महत्त्वपूर्ण जानकारी प्राप्त करते हैं। बाबर के आक्रमण के समय पंजाब के लोगों की दुर्दशा का आँखों देखा हाल गुरु नानक देव जी ने ‘बाबर वाणी’ में किया है। सामाजिक क्षेत्र में स्त्रियों को बहुत निम्न स्थान प्राप्त था। विधवा का बहुत अनादर किया जाता था। समाज कई जातियों और उपजातियों में विभाजित था। उस समय की कृषि तथा व्यापार के संबंध में भी पर्याप्त प्रकाश गुरु ग्रंथ साहिब जी में डाला गया है। डॉक्टर डी० एस० ढिल्लों के अनुसार,
“इसका (आदि ग्रंथ साहिब जी का) संकलन निस्संदेह सिख इतिहास की एक महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक घटना थी।”6

5. “The Adi Granth was indeed his most precious gift to the Sikh world.” Dr. Wazir Singh, Guru Arjan Dev (New Delhi : 1991) p. 21.
6. “Its compilation was undoubtedly an important landmark in the history of the Sikhs.” Dr. D.S. Dhillon, Sikhism : Origin and Development (New Delhi : 1988) pp. 103-04.

गरु अर्जन देव जी का बलिदान । (Martyrdom of Guru Arjan Dev Ji)

प्रश्न 5.
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी के लिए जिम्मेवार हालातों का वर्णन करें।
(Explain the circumstances responsible for the martyrdom of Guru Arjan Dev Ji.)
अथवा
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी के क्या कारण थे ? इस शहीदी का क्या महत्त्व था ?
(What were the causes of the martyrdom of Guru Arjan Dev Ji ? What was its importance ?)
अथवा
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी के लिए जिम्मेदार कारणों का वर्णन करें। शहीदी का वास्तविक कारण क्या था ?
(Explain the causes which led to the martyrdom of Guru Arjan Dev Ji. What was the real cause of his martyrdom ?)
अथवा गुरु अर्जन देव जी की शहीदी के कारणों की व्याख्या कीजिए। उनकी शहीदी का क्या महत्त्व था ?
(Examine the circumstances leading to the martyrdom of Guru Arjan Dev Ji. What was the significance of his martyrdom ?)
अथवा
उन परिस्थितियों का वर्णन कीजिए जो गुरु अर्जन देव जी के बलिदान के लिए उत्तरदायी थीं। उनके बलिदान का क्या महत्त्व था ?
(Describe the circumstances that led to the martyrdom of Guru Arjan Dev Ji. What was the significance of his martyrdom ?)
अथवा
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी के कारण एवं महत्त्व बताएँ।
(Discuss the causes and importance of the martyrdom of Guru Arjan Dev Ji.)
अथवा
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी के क्या कारण थे ?
(What were the causes of the martyrdom of Guru Arjan Dev Ji ?)
उत्तर-
1606 ई० में गुरु अर्जन देव जी का बलिदान सिख इतिहास की अत्यंत महत्त्वपूर्ण घटना है। इस घटना से सिख पंथ में एक नए युग का सूत्रपात हुआ। गुरु अर्जन देव जी के बलिदान के कारणों और महत्त्व का वर्णन इस प्रकार है—

I. बलिदान के कारण
(Causes of Martyrdom)

1. जहाँगीर की धार्मिक कट्टरता (Fanaticism of the Jahangir)-जहाँगीर बड़ा कट्टर सुन्नी मुसलमान था और उसकी यह कट्टरता गुरु अर्जन देव जी के बलिदान का प्रमुख कारण बनी। वह इस्लाम धर्म को छोड़कर किसी अन्य धर्म के अस्तित्व को कभी सहन नहीं कर सकता था। वह पंजाब में सिखों के दिन-प्रतिदिन बढ़ रहे प्रभाव को समाप्त करने के किसी स्वर्ण अवसर की तलाश में था। इस संबंध में उसने अपनी आत्मकथा तुजकए-जहाँगीरी में स्पष्ट लिखा है।

2. सिख पंथ का विकास (Development of Sikh Panth)—गुरु अर्जन देव जी के बलिदान में सिख पंथ की बढ़ती लोकप्रियता का भी योगदान है। हरिमंदिर साहिब के निर्माण, तरनतारन, करतारपुर और हरगोबिंदपुर के नगरों तथा मसंद प्रथा की स्थापना के कारण सिख पंथ दिन-प्रतिदिन लोकप्रिय होता चला गया। आदि ग्रंथ साहिब जी की रचना के कारण सिख धर्म के प्रचार में बहुत सहायता मिली। यह बात मुग़लों के लिए असहनीय थी। इसलिए उन्होंने सिखों की शक्ति का दमन करने का निर्णय किया।

3. पृथी चंद की शत्रुता (Enmity of Prithi Chand)—पृथी चंद गुरु अर्जन देव जी का बड़ा भाई था। वह बड़ा लोभी और स्वार्थी था। उसे गुरुगद्दी नहीं मिली इसलिए वह गुरु साहिब से रुष्ट था। उसने इस बात की घोषणा की कि वह तब तक चैन से नहीं बैठेगा जब तक उसे गुरुगद्दी प्राप्त नहीं हो जाती। उसने मसंदों द्वारा गुरुघर के लंगर के लिए लाया धन हड़प करना आरंभ कर दिया। उसने अपनी रचनाओं को गुरु साहिबान की वाणी कहकर प्रचलित करना आरंभ कर दिया। उसने मुग़ल अधिकारियों के साथ मिलकर गुरु जी के विरुद्ध षड्यंत्र रचे। इन षड्यंत्रों ने मुग़लों में गुरु जी के विरुद्ध और शत्रुता उत्पन्न कर दी।

4. चंदू शाह की शत्रुता (Enmity of Chandu Shah)-चंदू शाह लाहौर का दीवान था। वह अपनी लड़की के लिए किसी योग्य वर की तलाश में था। चंदू शाह को गुरु साहिब के पुत्र हरगोबिंद का नाम सुझाया गया। इस पर उसने गुरु जी की शान में अनेक अपमानजनक शब्द कहे परंतु पत्नी द्वारा विवश करने पर वह यह रिश्ता करने के लिए तैयार हो गया। गुरु साहिब को चंदू शाह द्वारा कहे गए अपमानजनक शब्दों का पता चल चुका था, इसलिए उन्होंने इस शगुन को स्वीकार करने से इंकार कर दिया। इस पर चंदू शाह ने अपने प्रतिशोध का बदला लेने के लिए जहाँगीर के कान भरने आरंभ कर दिए। जहाँगीर पर इसका प्रभाव पड़ा और उसने गुरु जी के विरुद्ध कठोर कार्यवाई करने का मन बना लिया।

5. नक्शबंदियों का विरोध (Opposition of Naqshbandis)—गुरु अर्जन देव जी के बलिदान में नक्शबंदियों का भी बड़ा हाथ था। नक्शबंदी कट्टरपंथी मुसलमानों का संप्रदाय था। यह संप्रदाय इस्लाम के अतिरिक्त किसी अन्य धर्म को प्रफुल्लित होता देख कभी सहन नहीं कर सकता था। शेख अहमद सरहिंदी जो कि नक्शबंदियों का नेता था का मुग़ल दरबार में काफ़ी प्रभाव था। उसने जहाँगीर को गुरु अर्जन देव जी के विरुद्ध भड़काना आरंभ कर दिया। इसलिए जहाँगीर ने गुरु अर्जन साहिब के विरुद्ध कार्यवाई करने का निर्णय किया।

6. आदि ग्रंथ साहिब जी का संकलन (Compilation of Adi Granth Sahib Ji)-आदि ग्रंथ साहिब जी का संकलन भी गुरु अर्जन देव जी के बलिदान का एक प्रमुख कारण बना। गुरु साहिब के विरोधियों ने जहाँगीर को कहा कि इस ग्रंथ में बहुत-सी इस्लाम विरोधी बातें लिखी हैं। गुरु जी का कहना था कि इस ग्रंथ में कोई भी ऐसी बात नहीं लिखी गई जो किसी भी धर्म के विरुद्ध हो। जहाँगीर ने ग्रंथ साहिब में हज़रत मुहम्मद साहिब के संबंध में भी लिखने के लिए कहा। गुरु साहिब का कहना था कि वे ईश्वर के आदेश के बिना ऐसा नहीं कर सकते। निस्संदेह, जहाँगीर के लिए यह बात असहनीय थी।

7. खुसरो की सहायता (Help to Khusrau)-गुरु अर्जन देव जी द्वारा शहज़ादा खुसरो की सहायता उनके बलिदान का तात्कालिक कारण बना। शहज़ादा खुसरो अपने पिता के विरुद्ध असफल विद्रोह के बाद भाग कर पंजाब आ गया। पंजाब पहुँचकर खुसरो गुरु अर्जन साहिब का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए तरनतारन पहुँचा। गुरु साहिब ने खुसरो के माथे पर तिलक लगाया और उसे काबुल जाने के लिए कुछ वांछित सहायता प्रदान की। जब जहाँगीर को इस बात का पता चला तो उसने लाहौर के गवर्नर मुर्तज़ा खान को आदेश दिया कि गुरु साहिब को गिरफ्तार कर लिया जाए।

II. बलिदान कैसे हुआ ? (How was Guru Martyred ?)

जहाँगीर के आदेश पर गुरु अर्जन देव जी को 24 मई, 1606 ई० को बंदी बनाकर लाहौर लाया गया। जहाँगीर ने गुरु जी को मृत्यु के बदले 2 लाख रुपए जुर्माना देने के लिए कहा। गुरु जी ने यह जुर्माना देने से इंकार कर दिया। फलस्वरूप मुग़ल अत्याचारियों ने गुरु साहिब को लोहे के तपते तवे पर बिठाया और शरीर पर गर्म रेत डाली गई। गुरु साहिब ने इन अत्याचारों को ईश्वर की इच्छा समझकर, यह कहते हुए अपना बलिदान दे दिया,

तेरा किया मीठा लागे।
हरि नाम पदार्थ नानक माँगे।

इस प्रकार 30 मई, 1606 ई० में गुरु अर्जन देव जी लाहौर में शहीद हो गए।

III. गुरु अर्जन देव जी के बलिदान का महत्त्व (Importance of the Martyrdom of Guru Arjan Dev Ji)
गुरु अर्जन देव जी का बलिदान सिख इतिहास में एक नया मोड़ सिद्ध हुआ। इस बलिदान के निम्नलिखित महत्त्वपूर्ण परिणाम निकले—

1. गुरु हरगोबिंद जी की नई नीति (New Policy of Guru Hargobind Ji)-गुरु अर्जन देव जी के बलिदान का गुरु हरगोबिंद जी पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा। उन्होंने सिखों को सशस्त्र करने का निश्चय किया। उन्होंने अकाल तख्त का निर्माण करवाया। यहाँ सिखों को शस्त्रों का प्रयोग करने के लिए प्रशिक्षण दिया जाता था। इस प्रकार सिख एक संत-सिपाही बनकर उभरने लगे। प्रसिद्ध इतिहासकार के० एस० दुग्गल के अनुसार,
“गुरु अर्जन देव जी के बलिदान ने समस्या को प्रबल बनाया। इसने पंजाब तथा सिख राजनीति को नई दिशा दी।”7

2. सिखों में एकता (Unity among the Sikhs)—गुरु अर्जन देव जी के बलिदान से सिख यह अनुभव करने लगे कि मुग़लों के अत्याचार के विरुद्ध उनमें एकता का होना अति आवश्यक है। अतः सिख तीव्रता से एकता के सूत्र में बंधने लगे।

3. सिखों और मुग़लों के संबंधों में परिवर्तन (Change in the relationship between Mughals and the Sikhs)—गुरु अर्जन देव जी के बलिदान से पूर्व मुग़लों और सिखों के मध्य संबंध सुखद थे किंतु अब स्थिति पूर्णतया परिवर्तित हो चुकी थी। सिखों के दिलों में मुग़लों से प्रतिशोध लेने की भावना भड़क उठी थी। मुग़लों को भी सिखों का गुरु हरगोबिंद जी के अधीन सशस्त्र होना पसंद नहीं था। इस प्रकार सिखों तथा मुग़लों के बीच खाई और बढ़ गई।

4. सिखों पर अत्याचार (Persecution of the Sikhs) गुरु अर्जन देव जी के बलिदान के साथ ही मग़लों के सिखों पर अत्याचार आरंभ हो गए। जहाँगीर ने गुरु हरगोबिंद जी को ग्वालियर के दुर्ग में कैद कर लिया। शाहजहाँ के समय गुरु जी को मुग़लों के साथ लड़ाइयाँ लड़नी पड़ीं। 1675 ई० में औरंगजेब ने गुरु तेग़ बहादुर जी को दिल्ली में शहीद कर दिया था। उसके शासनकाल में सिखों पर घोर अत्याचार किए गए। सिखों ने गुरु गोबिंद सिंह, बंदा सिंह बहादुर तथा अन्य सिख नेताओं के अधीन मुग़ल अत्याचारों का डटकर सामना किया तथा हँसतेहँसते शहीदियाँ दीं।

5. सिख धर्म की लोकप्रियता (Popularity of Sikhism)-गुरु अर्जन देव जी के बलिदान के कारण सिख धर्म पहले की अपेक्षा अधिक लोकप्रिय हो गया। इस घटना से न केवल हिंदू अपितु बहुत-से मुसलमान भी प्रभावित हुए। वे बड़ी संख्या में सिख धर्म में सम्मिलित होना आरंभ हो गए। इस प्रकार गुरु अर्जन देव जी के बलिदान ने सिख इतिहास में एक नए युग का आरंभ किया।
प्रसिद्ध इतिहासकार डॉक्टर जी० एस० मनसुखानी का यह कहना पूर्णत: सही है,
“गुरु अर्जन देव जी का बलिदान सिख धर्म के विकास में एक नया मोड़ था।”8

7. “Guru Arjan’s martyrdom precipitated the issues. It gave a new complexion to the shape of things in the Punjab and the Sikh polity.” K.S. Duggal, Sikh Gurus : Their Lives and Teachings (New Delhi : 1993) p. 123.
8. “The martyrdom of Guru Arjan marks a turning point in the development of Sikh religion.” Dr. G.S. Mansukhani, Aspects of Sikhism (New Delhi : 1982) p. 146.

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 6 गुरु अर्जन देव जी और उनका बलिदान

संक्षिप्त उत्तरों वाले प्रश्न
(Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
गुरुगद्दी पर बैठने के उपरांत गुरु अर्जन देव जी को किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ा ?
(What were the difficulties faced by Guru Arjan Dev Ji after he ascended the Gurgaddi ?)
अथवा
गुरु बनने के उपरांत गुरु अर्जन देव जी को किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ा ? संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
(What were the difficulties faced by Guru Arjan Dev Ji immediately after his accession to Gurgaddi ? Explain briefly.)
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी को सर्वप्रथम अपने बड़े भाई पृथी चंद के विरोध का सामना करना पड़ा। वह बड़ा होने के नाते गुरुगद्दी पर अपना अधिकार समझता था। उसने मुग़ल बादशाह जहाँगीर को गुरु जी के विरुद्ध भड़काने का हर संभव प्रयत्न किया। पंजाब के कट्टर मुसलमान पंजाब में सिखों के बढ़ते हुए प्रभाव से घबरा रहे थे। उन्होंने गुरु जी के विरुद्ध जहाँगीर के कान भरे। कट्टर मुसलमान होने के कारण जहाँगीर पर इनका बहुत प्रभाव पड़ा। चंदू शाह लाहौर का दीवान था। वह अपनी लड़की का गुरु अर्जन देव जी द्वारा उनके सुपुत्र हरगोबिंद जी के साथ रिश्ते को इंकार करने के कारण घोर शत्रु बन गया।

प्रश्न 2.
श्री हरिमंदिर साहिब की स्थापना एवं महत्त्व पर संक्षेप में लिखें। (Give a brief account of the foundation and importance of Sri Harmandir Sahib.)
अथवा
गुरु अर्जन देव जी ने सिख पंथ के विकास में क्य योगदान दिया ?
(What was Guru Arjan Dev Ji’s contribution to the development of Sikhism ?)
अथवा
सिख धर्म के विकास में गुरु अर्जन देव जी के योगदान को संक्षेप में लिखें। (Describe briefly the contribution of Guru Arjan Dev Ji in the development of Sikhism.)
अथवा
गुरु अर्जन देव जी के संगठनात्मक कार्यों का संक्षिप्त वर्णन करो। (Give a brief account of the organisational works of Guru Arjan Dev Ji.)
उत्तर-

  1. गुरु अर्जन देव जी ने अमृतसर में हरिमंदिर साहिब का निर्माण करके गुरु अर्जन देव जी ने सिखों को एक पावन तीर्थ स्थान प्रदान किया।
  2. गुरु साहिब ने लाहौर में एक बाऊली का निर्माण करवाया।
  3. पसंद प्रथा का विकास गुरु अर्जन देव जी के महान कार्यों में से एक था।

प्रश्न 3.
गुरु अर्जन देव जी द्वारा हरिमंदिर साहिब की स्थापना और इसकी महत्ता के बारे में बताइए।
(Describe briefly the importance of the foundation of Harmandir Sahib by Guru Arjan Dev Ji.)
अथवा
रिमंदिर साहिब पर एक संक्षेप नोट लिखें। (Write a brief note on Harmandir Sahib.)
अथवा
हरिमंदिर साहिब की स्थापना एवं महत्त्व का संक्षिप्त वर्णन करें। (Give a brief account of the foundation and importance of Harmandir Sahib.)
उत्तर-
हरिमंदिर साहिब का सिख इतिहास में अति महत्त्वपूर्ण स्थान है। इसकी स्थापना सिखों के पाँचवें गुरु अर्जन देव जी ने की थी। गुरु अर्जन देव जी ने इसकी नींव 1588 ई० में विख्यात सूफ़ी संत मियाँ मीर जी द्वारा रखवाई थी। हरिमंदिर से अभिप्राय था-ईश्वर का मंदिर। गुरु साहिब ने हरिमंदिर साहिब का भवन इर्द-गिर्द के सभी भवनों से निम्न रखाया क्योंकि गुरु साहिब का मानना था कि जो निम्न होगा, वही उच्च कहलाने के योग्य होगा। शीघ्र ही हरिमंदिर साहिब सिखों का सबसे पवित्र तीर्थ-स्थान बन गया।

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प्रश्न 4.
मसंद व्यवस्था तथा इसके महत्त्व पर एक संक्षिप्त नोट लिखें।
(Write a short note on Masand system and its importance.)
अथवा
मसंद प्रथा के विकास तथा संगठन का वर्णन कीजिए।
(Examine the organisation and development of Masand system.)
अथवा
मसंद प्रथा के बारे में आप.क्या जानते हैं ? वर्णन करें।
(What do you know about Masand system ? Explain.)
अथवा
मसंद प्रथा किसने शुरू की ? इसके उद्देश्य बताएँ।
(Who started Masand system ? What were its aims?)
अथवा
मसंद प्रथा के संगठन तथा विकास की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए। (Examine the organisation and development of Masand system.)
अथवा
मसंद प्रथा पर एक संक्षिप्त नोट लिखें। (Write a short note on Masand system.)
अथवा
मसंद प्रथा से क्या अभिप्राय है?
(What do you mean by Masand system ?)
उत्तर-
मसंद फ़ारसी भाषा के शब्द ‘मसनद’ से बना है जिसका अर्थ है ‘उच्च स्थान’। इस प्रथा की स्थापना गुरु रामदास जी ने की थी। इसका वास्तविक विकास गुरु अर्जन साहिब जी के समय में हुआ। गुरु साहिब ने यह घोषणा की कि प्रत्येक सिख अपनी आय में से दसवाँ भाग गुरु साहिब को भेंट करें। मसंदों का मुख्य कार्य इसी धन को इकट्ठा करना था। ये मसंद धन एकत्रित करने के साथ-साथ सिख धर्म का प्रचार भी करते थे। मसंद प्रथा सिख पंथ के विकास में एक मील पत्थर सिद्ध हुई।

प्रश्न 5.
मसंदों के प्रमुख कार्य क्या थे? (What were the main functions of the Masands ?)
उत्तर-

  1. मसंद अपने अधीन प्रदेश में सिख धर्म का प्रचार करते थे।
  2. वह सिख धर्म के विकास कार्यों के लिए सिखों से दसवंध एकत्रित करते थे।
  3. मसंद प्रत्येक वर्ष एकत्रित हुए धन को वैसाखी तथा दीवाली के अवसरों पर गुरु साहिब के पास अमृतसर आ कर जमा करवाते थे।

प्रश्न 6.
तरन तारन पर एक संक्षिप्त नोट लिखें तथा इसका महत्त्व भी बताएँ। (Write a short note on Tarn Taran and its importance.)
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी ने 1590 ई० में तरन तारन नगर की स्थापना की। यहाँ तरन तारन नामक एक सरोवर की खुदवाई भी आरंभ करवाई। तरन तारन से अभिप्राय था कि इस सरोवर में स्नान करने वाला यात्री इस भवसागर से पार हो जाएगा। तरन तारन शीघ्र ही सिखों का एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थान बन गया। इसके प्रभाव के कारण माझा के बहुत-से जाटों ने सिख धर्म को अपना लिया। इन जाटों ने बाद में सिख पंथ की बहुमूल्य सेवा की।

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प्रश्न 7.
आदि ग्रंथ साहिब जी के संकलन और महत्त्व के संबंध में बताएँ।
[Write a note on the compilation and importance of Adi Granth Sahib Ji (Guru Granth Sahib Ji).]
अथवा
आदि ग्रंथ साहिब जी पर संक्षेप नोट लिखें।
(Write a short note on Adi Granth Sahib Ji.)
उत्तर-
आदि ग्रंथ साहिब जी का संकलन गुरु अर्जन देव जी के काल का सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य था। इसका उद्देश्य गुरुओं की वाणी को एक स्थान पर एकत्रित करना था। गुरु अर्जन देव जी ने आदि ग्रंथ साहिब जी का कार्य रामसर में आरंभ किया। आदि ग्रंथ साहिब जी को लिखने का कार्य भाई गुरदास जी ने किया। इसमें प्रथम पाँच गुरु साहिबों, अन्य संतों और भक्तों की वाणी को भी सम्मिलित किया। इसका संकलन 1604 ई० में संपूर्ण हुआ। बाद में गुरु तेग़ बहादुर जी की वाणी भी इसमें सम्मिलित की गई। आदि ग्रंथ साहिब जी का सिख इतिहास में विशेष महत्त्व है।

प्रश्न 8.
आदि ग्रंथ साहिब जी का क्या महत्त्व है ? (What is the significance of Adi Granth Sahib Ji ?)
आदि ग्रंथ साहिब जी के ऐतिहासिक महत्त्व की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए। (Briefly explain the historical significance of Adi Granth Sahib Ji.)
उत्तर-
आदि ग्रंथ साहिब जी के संकलन का सिख इतिहास में विशेष महत्त्व है। इससे सिखों को एक अलग पवित्र धार्मिक ग्रंथ उपलब्ध हुआ। इसने सिखों में एक नवीन चेतना उत्पन्न की। इसमें बिना किसी जातीय भेदभाव ऊँच-नीच, धर्म अथवा राष्ट्र के वाणी सम्मिलित की गई है। ऐसा करके गुरु अर्जन देव जी ने समस्त मानवता को आपसी भाईचारे का संदेश दिया। इसमें किरत करने, नाम जपने तथा बाँट छकने का संदेश दिया गया है। यह 15वीं से 17वीं शताब्दी के पंजाब की राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक तथा आर्थिक दशा को जानने के लिए हमारा एक बहुमूल्य स्रोत है।

प्रश्न 9.
पृथी चंद पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखें। (Write a short note on Prithi Chand.)
अथवा
पृथी चंद कौन था ? उसने गुरु अर्जन देव जी का विरोध क्यों किया ? ..
(Who was Prithi Chand ? Why did he oppose Guru Arjan Dev Ji ?)
उत्तर-
पृथी चंद गुरु अर्जन देव जी का बड़ा भाई था। उसने मीणा संप्रदाय की स्थापना की थी। वह बहुत स्वार्थी स्वभाव का था। यही कारण है कि गुरु रामदास जी ने गुरुगद्दी गुरु अर्जन देव जी को सौंपी। इससे पृथी चंद क्रोधित हो उठा। पृथी चंद ने गुरुगद्दी के लिए गुरु अर्जन देव का खुलकर विरोध करना आरंभ कर दिया। वह यह आशा लगाए बैठा था कि गुरु अर्जन देव जी के पश्चात् गुरुगद्दी उसके पुत्र मेहरबान को अवश्य मिलेगी परंतु जब हरगोबिंद जी का जन्म हुआ तो उसकी सभी आशाओं पर पानी फिर गया। इसलिए वह गुरु अर्जन देव जी के प्राणों का शत्रु बन गया।

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प्रश्न 10.
चंदू शाह कौन था ? उसने गुरु अर्जन देव जी का विरोध क्यों किया ? (Who was Chandu Shah ? Why did he oppose Guru Arjan Dev Ji ?)
अथवा
चंदू शाह ने गुरु अर्जन देव जी का विरोध क्यों किया?
(Why did Chandu Shah oppose Guru Arjan Dev Ji ?)
अथवा
चंदू शाह पर एक संक्षिप्त नोट लिखें।
(Write a short note on Chandu Shah.)
उत्तर-
चंदू शाह लाहौर प्रांत का दीवान था। वह अपनी लड़की के लिए किसी योग्य वर की तलाश में था। उसके परामर्शदाताओं ने उसे अपनी लड़की का विवाह गुरु अर्जन देव जी के लड़के हरगोबिंद से करने का परामर्श दिया। इस पर चंदू शाह ने गुरु जी की शान में अनेक अपमानजनक शब्द कहे। बाद में पत्नी के विवश करने पर रिश्ता करने के लिए तैयार हो गया। उसने गुरु अर्जन देव जी को शगुन भेजा। गुरु अर्जन देव जी ने इस शगुन को लेने से इंकार कर दिया। परिणामस्वरूप चंदू शाह ने मुग़ल बादशाह अकबर तथा जहाँगीर को गुरु जी के विरुद्ध बहुत भड़काया।

प्रश्न 11.
गुरु अर्जन देव जी के बलिदान के कोई तीन मुख्य कारण बताएँ।
(Mention any three main causes for the martyrdom of Guru Arjan Dev Ji.)
अथवा
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी के लिए उत्तरदायी किन्हीं तीन कारणों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
(Briefly explain any three causes responsible for the martyrdom of the Guru Arjan Dev Ji.)
अथवा
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी के क्या कारण थे ? (What were the causes of the martyrdom of Guru Arjan Dev Ji ?)
उत्तर-

  1. मुग़ल बादशाह जहाँगीर एक कट्टर सुन्नी मुसलमान था। वह पंजाब में सिखों के तीव्रता से बढ़ रहे प्रभाव को सहन करने को तैयार नहीं था।
  2. लाहौर का दीवान चंदू शाह अपनी लड़की का विवाह गुरु अर्जन देव जी के लड़के हरगोबिंद से करना चाहता था। गुरु साहिब द्वारा इंकार करने पर वह गुरु साहिब का घोर शत्रु बन गया।
  3. पृथी चंद इस बात को सहन करने को कभी तैयार नहीं था कि गुरुगद्दी उसे न मिलकर किसी ओर को मिले।
  4. गुरु अर्जन देव जी की शहीदी में कट्टरपंथी नक्शबंदियों का बहुत बड़ा हाथ था।
  5. गुरु अर्जन देव जी द्वारा जहाँगीर के बड़े पुत्र खुसरो को दी गई सहायता भी उनके बलिदान का तत्कालिक कारण बनी।

प्रश्न 12.
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी में नक्शबंदियों की भूमिका का वर्णन करें। (Describe the role of Naqshbandis in the martyrdom of Guru Arjan Dev Ji.)
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी के बलिदान में नक्शबंदियों का बड़ा हाथ था। नक्शबंदी कट्टरपंथी मुसलमानों द्वारा आरंभ किया गया एक आंदोलन था। शेख अहमद सरहिंदी जो कि उस समय नक्शबंदियों का नेता था बहुत कट्टर ‘ विचारों का था। वह पंजाब में सिखों के बढ़ते हुए प्रभाव को सहन करने को तैयार नहीं था। उसका मुग़ल दरबार में काफ़ी प्रभाव था। इसलिए उसने जहाँगीर को गुरु अर्जन देव जी के विरुद्ध भड़काना आरंभ कर दिया। परिणामस्वरूप जहाँगीर ने गुरु अर्जन देव जी के विरुद्ध कार्यवाही करने का निश्चय किया।

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प्रश्न 13.
जहाँगीर गुरु अर्जन देव जी के विरुद्ध क्यों था ? (Why was Jahangir against Guru Arjan Dev Ji ?)
उत्तर-

  1. जहाँगीर गुरु अर्जन देव जी के बढ़ते हुए प्रभाव को सहन करने को तैयार नहीं था।
  2. कुछ मुसलमानों द्वारा सिख धर्म को अपनाने के कारण जहाँगीर का खून खौल रहा था।
  3. गुरु अर्जन देव जी द्वारा विद्रोही शहज़ादे खुसरो को तिलक लगाने के कारण जहाँगीर भड़क गया था।

प्रश्न 14.
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी का तात्कालिक कारण क्या था ? (What was the immediate cause of the martyrdom of Guru Arjan Dev Ji ?)
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी द्वारा शहज़ादा खुसरो की सहायता उनके बलिदान का तुरंत कारण बनी। शहज़ादा खुसरो जहाँगीर का सबसे बड़ा पुत्र था। उसने अपने पिता के विरुद्ध राज्य सिंहासन प्राप्त करने के लिए विद्रोह कर दिया था। गुरु अर्जन देव जी का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए तरन तारन पहुँचा। सिख गुरुओं के साथ बहुत घनिष्ठ संबंध थे, यह स्वाभाविक था कि गुरु अर्जन देव जी उससे सहानुभूति रखते। कहा जाता है कि गुरु साहिब ने खुसरो के माथे पर तिलक लगाया। जब जहाँगीर को इस संबंध में ज्ञात हुआ तो उसे गुरु जी के विरुद्ध कार्यवाही करने का स्वर्ण अवसर मिल गया।

प्रश्न 15.
गुरु अर्जन देव जी के बलिदान का महत्त्व लिखें। .
(Write the importance of Guru Arjan Dev Ji’s martyrdom in the Sikh History. ?)
अथवा
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी के महत्त्व का संक्षिप्त वर्णन कीजिए। (Briefly describe the importance of the martyrdom of Guru Arjan Dev Ji.)
अथवा
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी के प्रभाव बताएँ। (Write down the impact of martyrdom of Guru Arjan Dev Ji.)
अथवा
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी का क्या महत्त्व है ?
(What is the significance of martyrdom of Guru Arjan Dev Ji ?)
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी के बलिदान का सिख इतिहास में विशेष स्थान है। इस बलिदान के कारण शाँति से रह रहे सिख भड़क उठे। उन्हें यह स्पष्ट हो गया कि अब शस्त्र उठाने बहुत आवश्यक हैं। इसीलिए गुरु हरगोबिंद जी ने नई नीति अपनाई। उन्होंने मीरी तथा पीरी नामक दो तलवारें धारण की। इस प्रकार सिख एक संत सिपाही बन गया। गुरु अर्जन देव जी के बलिदान के कारण सिखों एवं मुग़लों में मित्रतापूर्वक संबंधों का अंत हो गया। इसके पश्चात् सिखों और मुग़लों के मध्य एक लंबा संघर्ष आरंभ हुआ। दूसरी ओर इस शहीदी ने सिखों को संगठित करने में सराहनीय योगदान दिया।

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वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

(i) एक शब्द से एक पंक्ति तक के उत्तर (Answer in One Word to One Sentence)

प्रश्न 1.
सिखों के पाँचवें गुरु कौन थे ?
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी।

प्रश्न 2.
गुरु अर्जन देव जी का जन्म कब हुआ?
उत्तर-
1563 ई०।

प्रश्न 3.
गुरु अर्जन देव जी का जन्म कहाँ हुआ था ?’
उत्तर-
गोइंदवाल साहिब।

प्रश्न 4.
गुरु अर्जन देव जी की माता जी का नाम बताओ।
उत्तर-
बीबी भानी जी।

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प्रश्न 5.
गुरु अर्जन देव जी के पिता जी का नाम क्या था ?
उत्तर-
गुरु रामदास जी।

प्रश्न 6.
गुरु अर्जन देव जी कब से लेकर कब तक गुरुगद्दी पर बने रहे ?
अथवा
गुरु अर्जन देव जी का गुरुकाल लिखें ।
उत्तर-
1581 ई० से 1606 ई०।

प्रश्न 7.
पृथिया कौन था ?
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी का सबसे बड़ा भाई।

प्रश्न 8.
पृथी चंद ने गुरु अर्जन देव जी का विरोध क्यों किया ?
उत्तर-
क्योंकि वह स्वयं को गुरुगद्दी का वास्तविक अधिकारी मानता था।

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प्रश्न 9.
पृथी चंद ने किस संप्रदाय की नींव रखी ?
उत्तर-
मीणा।

प्रश्न 10.
मेहरबान के पिता का क्या नाम था ?
उत्तर-
पृथी चंद।

प्रश्न 11.
चंदू शाह कौन था ?
उत्तर-
लाहौर का दीवान।

प्रश्न 12.
गुरु अर्जन साहिब की कोई एक महत्त्वपूर्ण सफलता बताएँ ।
उत्तर-
अमृतसर में हरिमंदिर साहिब की स्थापना की। ।

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प्रश्न 13.
हरिमंदिर साहिब से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
हरि (परमात्मा) का मंदिर (घर)।

प्रश्न 14.
हरिमंदिर साहिब का निर्माण किस गुरु ने करवाया ?
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी।

प्रश्न 15.
हरिमंदिर साहिब की आधारशिला किसने रखी ?
उत्तर-
सूफी संत मीयाँ मीर जी।

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प्रश्न 16.
हरिमंदिर साहिब की स्थापना कब की गई थी ?
उत्तर-
1588 ई०।

प्रश्न 17.
हरिमंदिर साहिब का निर्माण कार्य कब संपूर्ण हुआ ?
उत्तर-
1601 ई०। ।

प्रश्न 18.
हरिमंदिर साहिब का पहला मुख्य ग्रंथी कौन था ?
उत्तर-
बाबा बुड्ढा जी।

प्रश्न 19.
हरिमंदिर साहिब के कितने दरवाज़े रखे गए थे ?
उत्तर-चार।

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प्रश्न 20.
हरिमंदिर साहिब की चारों दिशाओं में चार द्वार क्यों बनाए गए हैं ?
अथवा
हरिमंदिर साहिब के चार दरवाज़े किस उपदेश का संकेत करते हैं ?
उत्तर-
यह मंदिर चार जातियों और चार दिशाओं से आने वाले लोगों के लिए खुला है।

प्रश्न 21.
‘तरन तारन’ का भावार्थ क्या है ?
उत्तर-
इस सरोवर में स्नान करने वाला व्यक्ति इस भवसागर से पार हो जाएगा।

प्रश्न 22.
तरन तारन नगर का निर्माण किसने किया ?
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी।

प्रश्न 23.
लाहौर के डब्बी बाज़ार में बाऊली का निर्माण किस गुरु साहिब ने करवाया ?
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 6 गुरु अर्जन देव जी और उनका बलिदान

प्रश्न 24.
मसंद शब्द से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
ऊँचा स्थान।

प्रश्न 25.
दशांश (दसवंध) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
दशम भाग जो कि सिख मसंदों को अपनी आय में से देते थे।

प्रश्न 26.
आदि ग्रंथ साहिब जी का संकलन कब किया गया था ?
उत्तर-
1604 ई०।

प्रश्न 27.
आदि ग्रंथ साहिब जी की रचना किस ने की थी ?
अथवा
आदि ग्रंथ साहिब जी का संकलन किस गुरु ने किया?
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 6 गुरु अर्जन देव जी और उनका बलिदान

प्रश्न 28.
आदि ग्रंथ साहिब जी को लिखने के लिए गुरु अर्जन देव जी ने किसकी सहायता ली ?
उत्तर-
भाई गुरदास जी की।

प्रश्न 29.
हरिमंदिर साहिब में आदि ग्रंथ साहिब जी का प्रथम प्रकाश कब किया गया था ?
उत्तर-
16 अगस्त, 1604 ई०।

प्रश्न 30.
आदि ग्रंथ साहिब जी में सर्वाधिक शब्द किसके हैं ?
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी।

प्रश्न 31.
गुरु अर्जन देव जी ने कितने शब्द लिखे थे ?
उत्तर-
2216.

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 6 गुरु अर्जन देव जी और उनका बलिदान

प्रश्न 32.
आदि ग्रंथ साहिब जी में कितने भक्तों की वाणी शामिल की गई है ?
उत्तर-
15.

प्रश्न 33.
किसी एक भक्त का नाम लिखो जिनकी वाणी को गुरु ग्रंथ साहिब जी में शामिल किया गया।
उत्तर-
भक्त कबीर जी।

प्रश्न 34.
आदि ग्रंथ साहिब जी को कुल कितने रागों में विभाजित किया गया है ?
उत्तर-
31 रागों में।

प्रश्न 35.
आदि ग्रंथ साहिब जी के कुल पृष्ठों (अंगों) की गिनती बताएँ।
उत्तर-
1430.

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प्रश्न 36.
आदि ग्रंथ साहिब जी की लिपि का नाम लिखो।
उत्तर-
गुरुमुखी।

प्रश्न 37.
सिखों की केंद्रीय धार्मिक पुस्तक (ग्रंथ साहिब) का नाम लिखो।
उत्तर-
आदि ग्रंथ साहिब जी अथवा गुरु ग्रंथ साहिब जी।

प्रश्न 38.
आदि ग्रंथ साहिब जी किस वाणी के साथ आरंभ होता है ?
उत्तर-
जपुजी साहिब जी।

प्रश्न 39.
जपुजी साहिब का पाठ कब किया जाता है ?
उत्तर-
सुबह के समय।

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प्रश्न 40.
आदि ग्रंथ साहिब जी का क्या महत्त्व है ?
उत्तर-
इसने संपूर्ण मानवता को एकता का संदेश दिया।

प्रश्न 41.
बाबा बुड्डा जी कौन थे ?
उत्तर-
दरबार साहिब अमृतसर के प्रथम मुख्य ग्रंथी।

प्रश्न 42.
सिखों के केंद्रीय धार्मिक गुरुद्वारे का नाम बताएँ।
उत्तर-
श्री हरिमंदिर साहिब (अमृतसर)।

प्रश्न 43.
चंदू शाह कौन था ?
उत्तर-
लाहौर का दीवान।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 6 गुरु अर्जन देव जी और उनका बलिदान

प्रश्न 44.
शेख अहमद सरहिंदी कौन था ?
उत्तर-
नक्शबंदी संप्रदाय का नेता।

प्रश्न 45.
जहाँगीर के सबसे बड़े बेटे का क्या नाम था ?
उत्तर-
खुसरो।

प्रश्न 46.
शहीदी प्राप्त करने वाले सिखों के प्रथम गुरु कौन थे ?
अथवा
शहीदों के सिरताज किस गुरु साहिब को कहा जाता है ?
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी।

प्रश्न 47.
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी किस मुग़ल बादशाह के आदेश पर हुई ?
उत्तर-
जहाँगीर।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 6 गुरु अर्जन देव जी और उनका बलिदान

प्रश्न 48.
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी कब हुई ?
अथवा
गुरु अर्जन देव जी कब शहीद हुए ?
उत्तर-
30 मई, 1606 ई०।

प्रश्न 49.
गुरु अर्जन देव जी को कहाँ शहीद किया गया था ?
उत्तर-
लाहौर में।

प्रश्न 50.
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी का कोई एक प्रभाव बताओ।
उत्तर-
इस शहीदी के कारण सिखों की भावनाएँ भड़क उठीं।

(ii) रिक्त स्थान भरें (Fill in the Blanks)

प्रश्न 1.
गुरु अर्जन देव जी सिखों के …………… गुरु थे।
उत्तर-
(पाँचवें)

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प्रश्न 2.
गुरु अर्जन देव जी के पिता जी का नाम ………. था।
उत्तर-
(गुरु रामदास जी)

प्रश्न 3.
गुरु अर्जन देव जी की माता जी का नाम ……………
उत्तर-
(बीबी भानी)

प्रश्न 4.
गुरु अर्जन देव जी के पुत्र का नाम ……………… था।
उत्तर-
(हरगोबिंद)

प्रश्न 5.
गुरु अर्जन देव जी ……………… में गुरुगद्दी पर बैठे।
उत्तर-
(1581 ई०)

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प्रश्न 6.
पृथी चंद ने …………… संप्रदाय की स्थापना की।
उत्तर-
(मीणा)

प्रश्न 7.
शेख अहमद सरहिंदी ने ………….. लहर की स्थापना की।
उत्तर-
(नक्शबंदी)

प्रश्न 8.
नक्शबंदी ने अपना मुख्य केंद्र ………….. में स्थापित किया।
उत्तर-
(सरहिंद)

प्रश्न 9.
चंदू शाह ……. का दीवान था।
उत्तर-
(लाहौर)

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प्रश्न 10.
हरिमंदिर साहिब का निर्माण …………… ने करवाया।
उत्तर-
(गुरु अर्जन साहिब)

प्रश्न 11.
हरिमंदिर साहिब की नींव पत्थर ……………….. ने रखा।
उत्तर-
(मीयाँ मीर)

प्रश्न 12.
तरनतारन की स्थापना. ……………. ने की थी।
उत्तर-
(गुरु अर्जन देव जी)

प्रश्न 13.
……………….. ने लाहौर में बाऊली का निर्माण करवाया।
उत्तर-
(गुरु अर्जन साहिब)

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प्रश्न 14.
………….. ने आदि ग्रंथ साहिब जी का संकलन किया।
उत्तर-
(गुरु अर्जन साहिब)

प्रश्न 15.
आदि ग्रंथ साहिब जी के लेखन का महान् कार्य …………… में संपूर्ण हुआ।
उत्तर-
(1604 ई०)

प्रश्न 16.
हरिमंदिर साहिब में पहला मुख्य ग्रंथी ……………. को नियुक्त किया गया।
उत्तर-
(बाबा बुड्डा जी)

प्रश्न 17.
जहाँगीर की आत्मकथा का नाम …………….. है।
उत्तर-
(तुज़क-ए-जहाँगीरी)

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प्रश्न 18.
दारा शिकोह के पिता का नाम ………… था।
उत्तर-
(जहाँगीर)

प्रश्न 19.
गुरु अर्जन साहिब को ……………. में शहीद किया गया।
उत्तर-
(1606 ई०)

प्रश्न 20.
गुरु अर्जन साहिब को …………..में शहीद किया गया।
उत्तर-
(लाहौर)

प्रश्न 21.
गुरु अर्जन देव जी को मुग़ल बादशाह …….. …….. ने शहीद किया।
उत्तर-
(जहाँगीर)

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(iii) ठीक अथवा गलत (True or False)

नोट-निम्नलिखित में से ठीक अथवा गलत चुनें

प्रश्न 1.
गुरु अर्जन देव जी सिखों के पाँचवें गुरु थे।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 2.
गुरु अर्जन देव जी का जन्म 15 अप्रैल, 1563 ई० को गोइंदवाल साहिब में हुआ।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 3.
गुरु अर्जन देव जी की माता जी का नाम तृप्ता देवी था।
उत्तर-
गलत

प्रश्न 4.
गुरु अर्जन देव जी के पुत्र का नाम हरगोबिंद था।
उत्तर-
ठीक

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 6 गुरु अर्जन देव जी और उनका बलिदान

प्रश्न 5.
मीणा संप्रदाय की स्थापना पृथी चंद ने की थी।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 6.
चंदू शाह गुरु अर्जन देव जी का मित्र बन गया था।
उत्तर-
गलत

प्रश्न 7.
हरिमंदिर साहिब का निर्माण गुरु अर्जन देव जी ने करवाया।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 8.
हरिमंदिर साहिब का निर्माण कार्य 1688 ई० में आरंभ किया गया था।
उत्तर-
गलत

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 6 गुरु अर्जन देव जी और उनका बलिदान

प्रश्न 9.
हरिमंदिर साहिब की नींव सूफ़ी संत मीयाँ मीर ने रखी थी।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 10.
मसंद प्रथा के विकास में गुरु अर्जन देव जी ने सबसे महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 11.
गुरु अर्जन देव जी ने आदि ग्रंथ साहिब जी का संकलन 1604 ई० में किया।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 12.
बाबा बुड्डा जी ने आदि ग्रंथ साहिब जी की बाणी को लिखने का कार्य किया।
उत्तर-
गलत

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 6 गुरु अर्जन देव जी और उनका बलिदान

प्रश्न 13.
हरिमंदिर साहिब के प्रथम मुख्य ग्रंथी बाबा बुड्डा जी थे।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 14.
आदि ग्रंथ साहिब जी की बाणी को 33 रागों के अनुसार बांटा गया है।
उत्तर-
गलत

प्रश्न 15.
आदि ग्रंथ साहिब जी में कुल 1430 पन्ने (अंग) हैं।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 16.
गुरु ग्रंथ साहिब जी में छ: गुरुओं की बाणी शामिल है।
उत्तर-
ठीक

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 6 गुरु अर्जन देव जी और उनका बलिदान

प्रश्न 17.
आदि ग्रंथ साहिब जी को संस्कृत भाषा में लिखा गया है।
उत्तर-
गलत

प्रश्न 18.
तुज़क-ए-जहाँगीरी का लेखक बाबर था।
उत्तर-
गलत

प्रश्न 19.
गुरु अर्जन देव जी को 1606 ई० में शहीद किया गया था।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 20.
गुरु अर्जन देव जी को औरंगज़ेब के आदेश पर शहीद किया गया था।
उत्तर-
गलत

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 6 गुरु अर्जन देव जी और उनका बलिदान

प्रश्न 21.
गुरु अर्जन देव जी को लाहौर में शहीद किया गया था।
उत्तर-
ठीक

(iv) बहु-विकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions)

नोट-निम्नलिखित में से ठीक उत्तर का चयन कीजिए-

प्रश्न 1.
सिखों के पाँचवें गुरु कौन थे ?
(i) गुरु रामदास जी
(ii) गुरु अर्जन देव जी
(iii) गुरु हरगोबिंद जी
(iv) गुरु हरकृष्ण जी।
उत्तर-
(ii)

प्रश्न 2.
गुरु अर्जन देव जी का जन्म कब हुआ ?
(i) 1539 ई० में
(ii) 1560 ई० में
(iii) 1563 ई० में
(iv) 1574 ई० में।
उत्तर-
(iii)

प्रश्न 3.
गुरु अर्जन देव जी का जन्म कहाँ हुआ था ?
(i) अमृतसर
(ii) खडूर साहिब
(iii) गोइंदवाल साहिब
(iv) तरन तारन।
उत्तर-
(iii)

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प्रश्न 4.
गुरु अर्जन देव जी के पिता जी कौन थे ?
(i) गुरु अमरदास जी
(ii) गुरु रामदास जी
(iii) भाई गुरदास जी
(iv) हरीदास जी।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 5.
गुरु अर्जन देव जी की माता जी का क्या नाम था ?
(i) बीबी भानी जी
(ii) बीबी अमरो जी
(iii) बीबी अनोखी जी
(iv) बीबी दानी जी।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 6.
पृथिया ने किस संप्रदाय की स्थापना की थी ?
(i) मीणा
(ii) उदासी
(iii) हरजस
(iv) निरंजनिया।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 7.
मेहरबान किसका पुत्र था ?
(i) गुरु अर्जन देव जी का
(ii) श्री चंद जी का
(iii) भाई मोहन जी का
(iv) पृथी चंद का।
उत्तर-
(iv)

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प्रश्न 8.
गुरु अर्जन देव जी कब गुरुगद्दी पर बैठे ?
(i) 1580 ई० में
(ii) 1581 ई० में
(iii) 1585 ई० में
(iv) 1586 ई० में।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 9.
पंजाब में नक्शबंदियों का मुख्यालय कहाँ था ?
(i) मालेरकोटला
(ii) लुधियाना
(iii) जालंधर
(iv) सरहिंद।
उत्तर-
(iv)

प्रश्न 10.
गुरु अर्जन देव जी के समय नक्शबंदी लहर का नेता कौन था ?
(i) बाबा फ़रीद जी
(ii) दाता गंज बख्स
(iii) शेख अहमद सरहिंदी
(iv) राम राय।
उत्तर-
(iii)

प्रश्न 11.
चंदू शाह कौन था ?
(i) लाहौर का दीवान
(ii) जालंधर का फ़ौजदार
(iii) पंजाब का सूबेदार
(iv) मुलतान का दीवान।
उत्तर-
(i)

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प्रश्न 12.
गुरु अर्जन देव जी ने हरिमंदिर साहिब की नींव कब रखी थी ?
(i) 1581 ई० में
(ii) 1585 ई० में
(iii) 1587 ई० में
(iv) 1588 ई० में।
उत्तर-
(iv)

प्रश्न 13.
हरिमंदिर साहिब की नींव किसने रखी थी ?
(i) गुरु अर्जन देव जी ने
(ii) बाबा फ़रीद जी ने
(iii) संत मीयाँ मीर ने
(iv) बाबा बुड्डा जी ने।
उत्तर-
(iii)

प्रश्न 14.
गुरु अर्जन देव जी ने आदि ग्रंथ साहिब जी के संकलन का कार्य कहाँ आरंभ किया ?
(i) रामसर
(ii) गोइंदवाल साहिब
(iii) खडूर साहिब
(iv) बाबा बकाला।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 15.
गुरु अर्जन देव जी ने आदि ग्रंथ साहिब जी को लिखने का कार्य किसको दिया ?
(i) बाबा बुड्डा जी को
(ii) भाई गुरदास जी को
(iii) भाई मोहकम चंद जी को
(iv) भाई मनी सिंह जी को।
उत्तर-
(ii)

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प्रश्न 16.
आदि ग्रंथ साहिब जी का संकलन कब पूर्ण हुआ ?
(i) 1600 ई० में
(ii) 1601 ई० में
(iii) 1602 ई० में
(iv) 1604 ई० में।
उत्तर-
(iv)

प्रश्न 17.
आदि ग्रंथ साहिब जी का प्रथम प्रकाश कहाँ हुआ ?
(i) हरिमंदिर साहिब
(ii) खडूर साहिब
(iii) गोइंदवाल साहिब
(iv) ननकाणा साहिब।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 18.
आदि ग्रंथ साहिब जी का प्रथम प्रकाश कब हुआ ?
(i) 1602 ई० में
(ii) 1604 ई० में
(iii) 1605 ई० में
(iv) 1606 ई० में।
उत्तर-
(ii)

प्रश्न 19.
हरिमंदिर साहिब जी के पहले मुख्य ग्रंथी कौन थे ?
(i) भाई गुरदास जी
(ii) भाई मनी सिंह जी
(iii) बाबा बुड्डा जी ।
(iv) बाबा दीप सिंह जी।
उत्तर-
(iii)

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प्रश्न 20.
आदि ग्रंथ साहिब जी में वाणी को कितने रागों में विभाजित किया गया है ?
(i) 10
(ii) 15
(iii) 21
(iv) 31.
उत्तर-
(iv)

प्रश्न 21.
आदि ग्रंथ साहिब जी को किस लिपि में लिखा गया है ? (i) हिंदी .
(ii) फ़ारसी
(iii) मराठी
(iv) गुरमुखी।
उत्तर-
(iv)

प्रश्न 22.
बाबा बुड्डा जी कौन थे ?
(i) हरिमंदिर साहिब, अमृतसर के प्रथम मुख्य ग्रंथी थे
(ii) आदि ग्रंथ साहिब जी की वाणी लिखने वाले
(iii) हरिमंदिर साहिब की नींव रखने वाले
(iv) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 23.
सिखों के केंद्रीय धार्मिक ग्रंथ का नाम बताएँ।
(i) आदि ग्रंथ साहिब जी।
(ii) दशम ग्रंथ साहिब जी
(iii) ज़फ़रनामा
(iv) रहितनामा।
उत्तर-
(i)

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प्रश्न 24.
सिखों के केंद्रीय धार्मिक गुरुद्वारे का नाम बताएँ।
(i) हरिमंदिर साहिब
(ii) शीश गंज
(iii) रकाब गंज
(iv) केशगढ़ साहिब।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 25.
जहाँगीर की आत्मकथा का क्या नाम था ?
(i) तुज़क-ए-बाबरी
(ii) तुजक-ए-जहाँगीरी
(iii) जहाँगीरनामा
(iv) आलमगीरनामा।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 26.
शहीदी देने वाले प्रथम गुरु कौन थे ?
(i) गुरु नानक देव जी
(ii) गुरु अमरदास जी
(iii) गुरु अर्जन देव जी
(iv) गुरु तेग़ बहादुर जी।
उत्तर-
(iii)

प्रश्न 27.
किस मुगल बादशाह ने गुरु अर्जन देव जी को शहीद करने का आदेश दिया था ?
(i) जहाँगीर
(ii) बाबर
(iii) शाहजहाँ
(iv) औरंगजेब।
उत्तर-
(i)

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प्रश्न 28.
गुरु अर्जन देव जी को कहाँ शहीद किया गया था ?
(i) दिल्ली
(ii) अमृतसर
(iii) लाहौर
(iv) मुलतान।
उत्तर-
(iii)

प्रश्न 29.
गुरु अर्जन देव जी को कब शहीद किया गया था ?
(i) 1604 ई० में
(ii) 1605 ई० में
(iii) 1606 ई० में
(iv) 1609 ई० में।
उत्तर-
(iii)

Long Answer Type Question

प्रश्न 1.
गुरुगद्दी पर बैठने के उपरांत गुरु अर्जन देव जी को किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ा ?
(What were the difficulties faced by Guru Arjan Dev Ji’ after he ascended the Gurgaddi.)
अथवा
गुरु बनने के उपरांत गुरु अर्जन देव जी को किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ा ? संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
(Write a brief note on the difficulties faced by Guru Arjan Dev Ji immediately after his accession to Gurgaddi.)
उत्तर-
गुरुगद्दी प्राप्त करने के पश्चात् गुरु अर्जन देव जी को अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। इन कठिनाइयों का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है—

1. पृथी चंद का विरोध-पृथी चंद गुरु अर्जन देव जी का बड़ा भाई था। वह बड़ा होने के नाते गुरुगद्दी पर अपना हक समझता था परंतु गुरु रामदास जी ने उसके कपटी तथा स्वार्थी स्वभाव को देखते हुए गुरु अर्जन देव जी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया। इस पर उसने अपने पिता जी को दुर्वचन कहे। उसने लाहौर के मुग़ल कर्मचारी सुलही खाँ से मिलकर बादशाह अकबर को गुरु अर्जन देव जी के विरुद्ध भड़काने का यत्न किया।

2. कट्टर मुसलमानों का विरोध-गुरु अर्जन देव जी को कट्टर मुसलमानों के विरोध का भी सामना करना पड़ा। ये मुसलमान सिखों के बढ़ते प्रभाव के कारण उनके दुश्मन बन गए। कट्टरपंथी मुसलमानों ने सरहिंद में ‘नक्शबंदी’ लहर का गठन किया। इस का नेता शेख अहमद सरहिंदी था। 1605 ई० में जहाँगीर मुग़लों का नया बादशाह बना। वह बहुत कट्टर विचारों का था। नक्शबंदियों ने जहाँगीर को सिखों के विरुद्ध भड़काया। परिणामस्वरूप जहाँगीर ने गुरु अर्जन देव जी के विरुद्ध उपयुक्त कार्यवाही करने का मन बना लिया।

3. पुजारी वर्ग का विरोध-गुरु अर्जन देव जी को पंजाब के हिंदुओं के पुरोहित वर्ग अर्थात् ब्राह्मणों के विरोध का भी सामना करना पड़ा। इसका कारण यह था कि सिख धर्म के प्रचार के कारण समाज में पुजारी वर्ग का प्रभाव बहुत कम होता जा रहा था। गुरु अर्जन देव जी ने जब आदि ग्रंथ साहिब जी का संकलन किया तो पुजारी वर्ग ने मुग़ल सम्राट अकबर से यह शिकायत की कि इसमें हिंदुओं तथा मुसलमानों के विरुद्ध बहुत कुछ लिखा है। जाँच करने पर अकबर का कहना था कि यह ग्रंथ तो पूजनीय है।

4. चंदू शाह का विरोध-चंदू शाह जो कि लाहौर का दीवान था, अपनी पुत्री के लिए किसी योग्य वर की तलाश में था। चंदू शाह के आदमियों ने चंदू शाह को गुरु अर्जन देव जी के सुपुत्र हरगोबिंद से रिश्ता करने का सुझाव दिया। इस पर उसने गुरु जी को अपशब्द कहे। बाद में अपनी पत्नी के विवश करने पर चंदू शाह यह रिश्ता करने के लिए सहमत हो गया। किंतु गुरु साहिब जी ने यह रिश्ता स्वीकार करने से इंकार कर दिया। इस पर चंदू शाह गुरु जी का घोर शत्रु बन गया।

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प्रश्न 2.
गुरु अर्जन देव जी ने सिख धर्म के विकास में क्या योगदान दिया ? (What was Guru Arjan Dev Ji’s contribution to the development of Sikhism ?)
अथवा
सिख धर्म के विकास में गुरु अर्जन देव जी के योगदान का वर्णन करें। (Describe the contribution of Guru Arjan Dev Ji for the development of Sikhism.)
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी का गुरु काल 1581 ई० से 1606 ई० तक था। गुरु साहिब ने सिख पंथ के विकास के लिए अनेक महत्त्वपूर्ण कार्य किए। जिनका विवरण निम्नलिखित है—

1. हरिमंदिर साहिब का निर्माण-गुरु अर्जन देव जी का सिख पंथ के विकास के लिए सर्वप्रथम महान् कार्य हरिमंदिर साहिब का निर्माण था। इसकी नींव 13 जनवरी, 1588 ई० में प्रसिद्ध सूफ़ी संत मीयाँ मीर जी ने रखी थी। 1601 ई० में हरिमंदिर साहिब का निर्माण कार्य संपूर्ण हुआ। हरिमंदिर साहिब का निर्माण सिख पंथ के विकास में एक मील पत्थर प्रमाणित हुआ।

2. तरनतारन की स्थापना-1590 ई० में गुरु अर्जन देव जी ने माझा क्षेत्र में सिख धर्म के प्रचार के लिए अमृतसर से 24 किलोमीटर दक्षिण की ओर तरनतारन नगर की स्थापना की। यहाँ तरनतारन नामक एक सरोवर भी खुदवाया गया। तरनतारन से अभिप्राय था कि इस सरोवर में स्नान करने वाला यात्री इस भव-सागर से पार हो जाएगा।

3. करतारपुर एवं हरगोबिंदपुर की स्थापना—गुरु अर्जन देव जी ने 1593 ई० में जालंधर जिला में करतारपुर नगर की स्थापना की। करतारपुर से अभिप्राय था ‘ईश्वर का शहर’। 1595 ई० में गुरु साहिब ने अपने पुत्र हरगोबिंद जी के जन्म की प्रसन्नता में ब्यास नदी के तट पर हरगोबिंदपुर नगर की स्थापना की।

4. मसंद प्रथा का विकास-मसंद प्रथा का विकास निस्संदेह गुरु अर्जन देव जी के महान कार्यों में से एक था। सिखों की संख्या में हुई वृद्धि के कारण गुरु साहिब को लंगर तथा अन्य विकास कार्यों के लिए धन की आवश्यकता थी। अतः गुरु साहिब ने यह घोषणा की कि प्रत्येक सिख अपनी आय में से दशांश (दशम् भाग) गुरु साहिब को भेंट करे। इस पैसे को एकत्रित करने के लिए गुरु साहिब ने मसंद नियुक्त किए। मसंद प्रथा के कारण सिख धर्म का प्रसार दूर-दूर के क्षेत्रों में संभव हो सका।

5. आदि ग्रंथ साहिब जी का संकलन-गुरु अर्जन देव जी का सबसे महान् कार्य सिख पंथ के विकास के लिए आदि ग्रंथ साहिब जी का संकलन करना था। भाई गुरदास जी ने वाणी को लिखने का कार्य किया। यह महान् कार्य 1604 ई० में संपूर्ण हुआ। आदि ग्रंथ साहिब जी में गुरु अर्जन देव जी ने गुरु नानक देव जी, गुरु अंगद देव जी, गुरु अमरदास जी, गुरु रामदास जी की और अपनी वाणी शामिल की। इनके अतिरिक्त इनमें कई भक्तों, सूफ़ी संतों और भट्टों इत्यादि की वाणी भी दर्ज की गई। बाद में इस ग्रंथ साहिब में गुरु तेग़ बहादुर जी की वाणी भी शामिल कर ली गई। आदि ग्रंथ साहिब जी के संकलन सिखों में एक नई जागृति लाने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।

6. घोड़ों का व्यापार-गुरु अर्जन देव जी सिखों को आर्थिक पक्ष से खुशहाल बनाना चाहते थे। इस उद्देश्य से उन्होंने सिखों को अरब देशों के साथ घोड़ों का व्यापार करने के लिए प्रोत्साहन दिया।

प्रश्न 3.
गुरु अर्जन देव जी द्वारा हरिमंदिर साहिब की स्थापना और इसकी महत्ता के बारे में बताइए।
(Describe briefly the importance of the foundation of Harmandir Sahib by Guru Arjan Dev Ji.)
अथवा
हरिमंदिर साहिब पर एक संक्षेप नोट लिखें।
(Write a brief note on Harmandir Sahib.)
अथवा
हरिमंदिर साहिब की स्थापना एवं महत्त्व का संक्षिप्त वर्णन करें। (Give a brief account of the foundation and importance of Harmandir Sahib.)
उत्तर-
हरिमंदिर साहिब जी की स्थापना गुरु अर्जन देव जी के महान् कार्यों में से एक है। इसका निर्माण अमृत सरोवर के मध्य आरंभ किया गया। गुरु अर्जन देव जी ने इसकी नींव प्रसिद्ध सूफी संत मीयाँ मीर जी से 13 जनवरी, 1588 ई० को रखवाई। इस समय कुछ सिखों ने गुरु साहिब को यह सुझाव दिया कि हरिमंदिर साहिब का भवन इर्द-गिर्द के सभी भवनों से ऊँचा होना चाहिए परंतु गुरु साहिब का कहना था कि जो नीचा होगा, वहीं ऊँचा कहलाने के योग्य होगा। इसलिए इसका भवन अन्य भवनों से नीचा रखा गया। हरिमंदिर साहिब की एक अन्य विशेषता यह थी कि इसकी चारों दिशाओं में एक-एक द्वार बनाया गया था। इसका अर्थ यह था कि संसार की चारों दिशाओं से लोग बिना किसी जातीय या अन्य भेदभाव के यहाँ आ सकते हैं। 1601 ई० में हरिमंदिर साहिब का निर्माण कार्य संपूर्ण हुआ। हरिमंदिर साहिब की शान को देखकर गुरु अर्जन देव जी ने इस शब्द का उच्चारण किया,

डिठे सभे थांव नहीं तुध जिहा।
इस समय गुरु साहिब ने यह घोषणा की कि हरिमंदिर साहिब की यात्रा करने वाले को हिंदुओं के 68 तीर्थ स्थानों की यात्रा के समान फल प्राप्त होगा तथा यदि कोई यात्री सच्ची श्रद्धा से अमृत सरोवर में स्नान करेगा, उसे इस भवसागर से मुक्ति प्राप्त होगी। इसका लोगों के दिलों पर बहुत प्रभाव पड़ा। वे बड़ी संख्या में यहाँ आने लगे। इससे सिख धर्म के प्रसार में बड़ी सहायता मिली। 16 अगस्त, 1604 ई० को यहाँ आदि ग्रंथ साहिब जी का प्रथम प्रकाश किया गया तथा बाबा बुड्डा जी को प्रथम मुख्य ग्रंथी नियुक्त किया गया। इस प्रकार हरिमंदिर साहिब सेवा, सिमरिन तथा सांझीवालता का प्रतीक बन गया।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 6 गुरु अर्जन देव जी और उनका बलिदान

प्रश्न 4.
मसंद व्यवस्था तथा इसके महत्त्व पर एक संक्षिप्त नोट लिखें। (Write a short note on Masand System and its importance.)
अथवा
मसंद प्रथा के विकास तथा संगठन का वर्णन कीजिए।
(Examine the organisation and development of Masand System.)
अथवा
मसंद प्रथा के बारे में आप क्या जानते हैं ?
(What do you know about Masand System ?)
अथवा
मसंद प्रथा किसने शुरू की ? इसके उद्देश्य बताएँ। (Who started Masand System ? What were its aims ?)
अथवा
मसंद प्रथा के संगठन तथा विकास की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए। (Examine the organisation and development of Masand System.)
अथवा
मसंद प्रथा पर संक्षिप्त नोट लिखो।
(Write.a short note on Masand System.)
उत्तर-
सिख पंथ के विकास में जिन संस्थाओं ने अति प्रशंसनीय योगदान दिया मसंद प्रथा उनमें से एक थी। इस प्रथा के विभिन्न पक्षों का संक्षिप्त इतिहास निम्न अनुसार है :—
1. मसंद प्रथा से भाव-मसंद शब्द फ़ारसी के शब्द ‘मसनद’ से लिया गया है। मसनद से भाव है उच्च स्थान। क्योंकि संगत में गुरु साहिबान के प्रतिनिधि उच्च स्थान पर बैठते थे, इसलिए उन्हें मसंद कहा जाने लगा।

2. आरंभ-मसंद प्रथा का आरम्भ कब हुआ इस संबंध में इतिहासकारों में मतभेद हैं। कुछ इतिहासकारों का विचार है कि मसंद प्रथा का आरंभ गुरु रामदास जी के समय हुआ। इसी कारण आरंभ में मसंदों को रामदासिए भी कहा जाता था। अनेक इतिहासकारों का विचार है कि मसंद प्रथा का आरंभ तो यद्यपि गुरु रामदास जी ने किया था पर इसका वास्तविक विकास गुरु अर्जन देव जी के समय हुआ।

3. मसंद प्रथा की आवश्यकता-मसंद प्रथा को आरंभ करने का मुख्य कारण यह था कि गुरु रामदास जी को अमृतसर नगर तथा यहाँ आरंभ किए गए अमृतसर तथा संतोखसर नामक दो सरोवरों की खुदाई के लिए धन की आवश्यकता थी। दूसरा, क्योंकि इस समय तक सिख संगत की संख्या काफ़ी बढ़ गई थी अतः बड़े पैमाने पर लंगर के प्रबंध के लिए भी धन की आवश्यकता थी। तीसरा, मसंद प्रथा को आरंभ करने का उद्देश्य यह था कि सिख पंथ का योजनाबद्ध ढंग से सुदूर प्रदेशों में प्रचार किया जा सके।

4. मसंदों की नियुक्ति-मसंद के पद पर उन व्यक्तियों को नियुक्त किया जाता था जो बहत सादा एवं पवित्र जीवन व्यतीत करते थे। प्रदेश के लोगों में उनका बहुत सम्मान होता था। वे अपने निर्वाह के लिए श्रम करते थे तथा गुरु घर के लिए एकत्र धन में से एक पैसा लेना भी घोर पाप समझते थे। मसंदों का पद पैतृक नहीं होता था।

5. मसंद प्रथा का महत्त्व-मसंद प्रथा ने आरंभ में सिख पंथ के विकास में बहुत प्रशंसनीय योगदान दिया। इस कारण सिख धर्म का दूर के क्षेत्रों में प्रचार संभव हो सका। इससे प्रभावित होकर अनेक लोग सिख धर्म में सम्मिलित हुए। दूसरा, इस प्रथा के कारण गुरु घर की आय निश्चित हो गई। तीसरा, आय में बढ़ोतरी के कारण लंगर संस्था को अच्छे ढंग से चलाया जा सका। चतुर्थ, मसंद प्रथा सिखों को संगठित करने में काफ़ी सहायक सिद्ध हुई|

प्रश्न 5.
आदि ग्रंथ साहिब जी के संकलन और महत्त्व के संबंध में बताएँ। [Write a note on the compilation and importance of Adi Granth (Guru Granth Sahib Ji.)]
अथवा
आदि ग्रंथ साहिब जी के महत्त्व का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
(Discuss in brief about the importance of Adi Granth Sahib Ji.)
अथवा
आदि ग्रंथ साहिब जी पर संक्षेप में नोट लिखें। (Write a note on Adi Granth Sahib Ji.)
उत्तर-
1604 ई० में आदि ग्रंथ साहिब जी अथवा गुरु ग्रंथ साहिब जी का संकलन गुरु अर्जन देव जी का सबसे महान् कार्य था।
1 संकलन की आवश्यकता-आदि ग्रंथ साहिब जी के संकलन के लिए कई कारण उत्तरदायी थे। पहला, सिखों के नेतृत्व के लिए एक पावन धार्मिक ग्रंथ की आवश्यकता थी। दूसरा, गुरु अर्जन देव जी के बड़े भाई पृथिया ने अपनी रचनाओं को गुरु साहिबान की बाणी कहकर प्रचलित करना आरंभ कर दिया था। इसलिए गुरु अर्जन देव जी गुरु साहिबान की बाणी शुद्ध रूप में अंकित करना चाहते थे। तीसरा, गुरु अमरदास जी ने भी सिखों को गुरु साहिबान की सच्ची बाणी पढ़ने के लिए कहा था।

2. आदि ग्रंथ साहिब जी का संकलन-आदि ग्रंथ साहिब जी के संकलन का कार्य अमृतसर के रामसर नामक एक स्थान पर किया गया। गुरु अर्जन देव जी वाणी लिखवाते गए और भाई गुरदास जी इसे लिखते गए। यह महान् कार्य अगस्त, 1604 ई० में संपूर्ण हुआ। आदि ग्रंथ साहिब जी का प्रथम प्रकाश हरिमंदिर साहिब जी में किया गया। बाबा बुड्डा जी को प्रथम मुख्य ग्रंथी नियुक्त किया गया।

3. आदि ग्रंथ साहिब जी में योगदान करने वाले-आदि ग्रंथ साहिब जी एक विशाल ग्रंथ है। आदि ग्रंथ साहिब जी में योगदान करने वालों का वर्णन निम्नलिखित है

  • सिख गुरु-आदि ग्रंथ साहिब जी में गुरु नानक देव जी के 976, गुरु अंगद देव जी के 62, गुरु अमरदास जी के 907, गुरु रामदास जी के 679 और गुरु अर्जन देव जी के 2216 शब्द अंकित हैं। बाद में गुरु गोबिंद सिंह जी के समय इसमें गुरु तेग़ बहादुर जी के 116 शब्द एवं श्लोक सम्मिलित किए गए।
  • भक्त एवं संत-आदि ग्रंथ साहिब जी में 15 हिंदू भक्तों और सूफ़ी संतों की बाणी अंकित की गई है। प्रमुख भक्तों तथा संतों के नाम ये हैं-भक्त कबीर जी, भक्त फ़रीद जी, भक्त नामदेव जी, गुरु रविदास जी, भक्त धन्ना जी, भक्त रामानंद जी और भक्त जयदेव जी। इनमें भक्त कबीर जी के सर्वाधिक 541 शब्द हैं।
  • भट्ट-आदि ग्रंथ साहिब जी में 11 भट्टों के 123 सवैये भी अंकित किए गए हैं। कुछ प्रमुख भट्टों के नाम ये हैं-नल जी, बल जी, भिखा जी और हरबंस जी।

4. आदि ग्रंथ साहिब जी का महत्त्व-आदि ग्रंथ साहिब जी ने मानव जीवन के प्रत्येक पक्ष में नेतृत्व करने वाले स्वर्ण सिद्धांत दिए हैं। इसकी बाणी ईश्वर की एकता एवं परस्पर भ्रातृत्व का संदेश देती है। आदि ग्रंथ साहिब जी से हमें 16वीं-17वीं शताब्दियों के पंजाब की सामाजिक, धार्मिक, राजनीतिक एवं आर्थिक दशा के बारे में बहुमूल्य जानकारी प्राप्त होती है।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 6 गुरु अर्जन देव जी और उनका बलिदान

प्रश्न 6.
पृथी चंद पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखें। (Write a short note on Prithi Chand.)
अथवा
पृथी चंद कौन था ? उसने गुरु अर्जन देव जी का विरोध क्यों किया ? (Who was Prithi Chand ? Why did he oppose Guru Arjan Dev Ji ?)
उत्तर-
पृथी चंद अथवा पृथिया गुरु रामदास जी का सबसे बड़ा पुत्र और गुरु अर्जन देव जी का बड़ा भाई था। वह बहुत स्वार्थी एवं लोभी स्वभाव का था। इसके कारण गुरु रामदास जी ने उसे गुरुगद्दी सौंपने की अपेक्षा गुरु अर्जन देव जी को सौंपी। पृथी चंद यह जानकर क्रोधित हो उठा। वह तो गुरगद्दी पर बैठने के लिए काफ़ी समय से स्वप्न देख रहा था। परिणामस्वरूप गुरुगद्दी प्राप्त करने के लिए उसने गुरु अर्जन देव जी का खुलकर विरोध करना आरंभ कर दिया। उसने घोषणा की कि वह तब तक चैन से नहीं बैठेगा जब तक उसे गुरुगद्दी प्राप्त नहीं हो जाती। उसका यह विचार था कि गुरु अर्जन देव जी के पश्चात् गुरुगद्दी उसके पुत्र मेहरबान को अवश्य मिलेगी, परंतु जब गुरु साहिब के घर हरगोबिंद जी का जन्म हुआ तो उसकी सभी आशाओं पर पानी फिर गया। इसलिए वह गुरु अर्जन देव जी के प्राणों का शत्रु बन गया। उसने मुग़ल अधिकारियों के साथ मिलकर गुरु साहिब के विरुद्ध षड्यंत्र रचने आरंभ कर दिए। उसके ये षड्यंत्र गुरु अर्जन देव जी के बलिदान का एक कारण बने।

प्रश्न 7.
चंदू शाह कौन था ? उसने गुरु अर्जन देव जी का विरोध क्यों किया ? (Who was Chandu Shah ? Why did he oppose Guru Arjan Dev Ji ?)
अथवा
चंदू शाह पर एक संक्षिप्त नोट लिखें। (Write a short note on Chandu Shah.)
उत्तर-
चंदू शाह लाहौर का दीवान था। वह अपनी लड़की के लिए किसी योग्य वर की तलाश में था। चंदू शाह के परामर्शदाताओं ने उसे अपनी लड़की का विवाह गुरु अर्जन देव जी के लड़के हरगोबिंद से करने का परामर्श दिया। इससे चंदू तिलमिला उठा। उसने गुरु जी की शान में अनेक अपमानजनक शब्द कहे। बाद में चंदू शाह की पत्नी द्वारा विवश करने पर वह रिश्ता करने के लिए तैयार हो गया। उसने इस रिश्ते को स्वीकार करने के लिए गुरु अर्जन देव जी को शगुन भेजा, क्योंकि अब तक गुरु साहिब को चंदू शाह द्वारा उनके संबंध में कहे गए अपमानजनक शब्दों का पता चल चुका था। इसलिए उन्होंने इस शगुन को स्वीकार करने से इंकार कर दिया। जब चंदू शाह को यह ज्ञात हुआ तो उसने गुरु साहिब से अपने इस अपमान का प्रतिशोध लेने का निर्णय किया। उसने पहले मुग़ल बादशाह अकबर तथा उसकी मृत्यु के पश्चात् जहाँगीर को गुरु जी के विरुद्ध भड़काया। इसका जहाँगीर पर वांछित प्रभाव पड़ा और उसने गुरु जी के विरुद्ध कठोर कार्यवाही करने का निर्णय किया। अत: चंदू शाह का विरोध गुरु अर्जन देव जी की शहीदी का एक महत्त्वपूर्ण कारण सिद्ध हुआ।

प्रश्न 8.
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी के छः मुख्य कारण बताएँ।
(Mention six causes for the martyrdom of Guru Arjan Dev Ji.)
अथवा
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी के लिए उत्तरदायी कारणों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए। (Briefly explain the causes responsible for the martyrdom of the Guru Arjan Dev Ji.)
अथवा
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी के क्या कारण थे? (What were the causes of the martyrdom of Guru Arjan Dev Ji ?)
उत्तर-
1. जहाँगीर की धार्मिक कट्टरता-जहाँगीर बड़ा कट्टर सुन्नी मुसलमान था और उसकी यह कट्टरता गुरु अर्जन देव जी के बलिदान का प्रमुख कारण बनी। वह इस्लाम धर्म को छोड़कर किसी अन्य धर्म के अस्तित्व को कभी सहन नहीं कर सकता था। वह पंजाब में सिखों के दिन-प्रतिदिन बढ़ रहे प्रभाव को समाप्त करने के किसी स्वर्ण अवसर की तलाश में था।

2. सिख पंथ का विकास गुरु अर्जन देव जी के बलिदान में सिख पंथ की बढती लोकप्रियता का भी योगदान है। हरिमंदिर साहिब के निर्माण, तरनतारन, करतारपुर और हरगोबिंदपुर के नगरों तथा मसंद प्रथा की स्थापना के कारण सिख पंथ दिन-प्रतिदिन लोकप्रिय होता चला गया। आदि ग्रंथ साहिब की रचना के कारण सिख धर्म के प्रचार में बहुत सहायता मिली। यह बात मुग़लों के लिए असहनीय थी। इसलिए उन्होंने सिखों की शक्ति का दमन करने का निर्णय किया।

3. पृथी चंद की शत्रुता–पृथी चंद गुरु अर्जन देव जी का बड़ा भाई था। वह बड़ा लोभी और स्वार्थी था। उसे गुरुगद्दी नहीं मिली इसलिए वह गुरु साहिब से रुष्ट था। उसने मुग़ल अधिकारियों के साथ मिलकर गुरु जी के विरुद्ध षड्यंत्र रचे। इन षड्यंत्रों ने मुग़लों में गुरु जी के विरुद्ध और शत्रुता उत्पन्न कर दी।

4. चंदू शाह की शत्रुता—चंदू शाह लाहौर का दीवान था। वह अपनी लड़की के लिए किसी योग्य वर की तलाश में था। चंदू शाह को गुरु साहिब के पुत्र हरगोबिंद का नाम सुझाया गया। इस पर उसने गुरु जी की शान में अनेक अपमानजनक शब्द कहे। परंतु पत्नी द्वारा विवश करने पर वह यह रिश्ता करने के लिए तैयार हो गया। गुरु साहिब इस रिश्ते को स्वीकार करने से इंकार कर दिया। इस पर चंदू शाह ने अपने प्रतिशोध का बदला लेने के लिए जहाँगीर के कान भरने आरंभ कर दिए। अतः जहाँगीर ने गुरु जी के विरुद्ध कठोर कार्यवाई करने का मन बना लिया।

5. नक्शबंदियों का विरोध-गुरु अर्जन देव जी के बलिदान में नक्शबंदियों का बड़ा हाथ था। उस समय इस संप्रदाय का नेता शेख अहमद सरहिंदी था। वह सिखों के बढ़ते हुए प्रभाव को सहन करने को तैयार नहीं था। इसलिए उसने जहाँगीर को गुरु अर्जन देव जी के विरुद्ध भड़काया।

6. खुसरो की सहायता—गुरु अर्जन देव जी द्वारा शहज़ादा खुसरो की सहायता उनके बलिदान का तात्कालिक कारण बना। शहज़ादा खुसरो गुरु अर्जन देव जी का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए तरन तारन पहुँचा। गुरु साहिब ने खुसरो के माथे पर तिलक लगाया और उसे कुछ वांछित सहायता प्रदान की। जब जहाँगीर को इस बात का पता चला तो उसने लाहौर के गवर्नर मुर्तज़ा खाँ को आदेश दिया कि गुरु साहिब को गिरफ्तार कर लिया जाए।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 6 गुरु अर्जन देव जी और उनका बलिदान

प्रश्न 9.
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी में नक्शबंदियों की भूमिका का वर्णन करें। (Describe the role of Naqashbandis in the martyrdom of Guru Arjan Dev Ji.)
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी के बलिदान में नक्शबंदियों का बड़ा हाथ था। नक्शबंदी कट्टरपंथी मुसलमानों द्वारा आरंभ किया गया एक आंदोलन था। इस आंदोलन का मुख्य केंद्र सरहिंद में था। यह आंदोलन पंजाब में सिखों के तीव्रता से बढ़ रहे प्रभाव को देखकर बौखला उठा था। इसका कारण यह था कि यह आंदोलन इस्लाम के अतिरिक्त किसी अन्य धर्म को प्रफुल्लित होता देख कभी सहन नहीं कर सकता था। शेख अहमद सरहिंदी जो कि उस समय नक्शबंदियों का नेता था बहुत कट्टर विचारों का था। उसका मुग़ल दरबार में काफ़ी प्रभाव था। इसलिए उसने जहाँगीर को गुरु अर्जन देव जी के विरुद्ध भड़काना आरंभ कर दिया। उसका कथन था कि यदि समय रहते सिखों का दमन न किया गया तो इसका इस्लाम पर विनाशकारी प्रभाव पड़ेगा। परिणामस्वरूप जहाँगीर ने गुरु अर्जन देव जी के विरुद्ध कार्यवाही करने का निश्चय किया।

प्रश्न 10.
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी का तात्कालिक कारण क्या था ? (What was the immediate cause of the martyrdom of Guru Arjan Dev Ji ?)
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी द्वारा शहज़ादा खुसरो की सहायता उनके बलिदान का तुरंत कारण बना। शहज़ादा खुसरो जहाँगीर का सबसे बड़ा पुत्र था। उसने अपने पिता के विरुद्ध राज्य सिंहासन प्राप्त करने के लिए विद्रोह कर दिया था। जब शाही सेनाओं ने खुसरो को पकड़ने का यत्न किया तो वह भाग कर पंजाब आ गया। पंजाब पहुँच कर खुसरो गुरु अर्जन देव जी का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए तरन तारनं पहुँचा। अकबर का पौत्र होने के कारण, जिसके सिख गुरुओं के साथ बहुत घनिष्ठ संबंध थे, यह स्वाभाविक था कि गुरु अर्जन देव जी उससे सहानुभूति रखते। साथ ही गुरु-घर में आकर कोई भी व्यक्ति गुरु साहिब को आशीर्वाद देने की याचना कर सकता था। कहा जाता है कि गुरु साहिब ने खुसरो के माथे पर तिलक लगाया और उसे काबुल जाने के लिए कुछ वांछित सहायता भी प्रदान की। जब जहाँगीर को इस संबंध में ज्ञात हुआ तो उसे गुरु जी के विरुद्ध कार्यवाही करने का स्वर्ण अवसर मिल गया। उसने लाहौर के गवर्नर मुर्तज़ा खाँ को आदेश दिया कि गुरु साहिब को गिरफ्तार कर लिया जाए। उन्हें घोर यातनाएँ देकर मौत के घाट उतार दिया जाए तथा उनकी संपत्ति जब्त कर ली जाए।

प्रश्न 11.
गुरु अर्जन देव जी के बलिदान का महत्त्व लिखें। (Write the importance of Guru Arjan Dev Ji’s martyrdom in the Sikh history.)
अथवा
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी के महत्त्व का संक्षिप्त वर्णन कीजिए। (Briefly describe the importance of the martyrdom of Guru Arjan Dev Ji.)
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी का बलिदान सिख इतिहास में एक नया मोड़ सिद्ध हुआ। इस बलिदान के निम्नलिखित महत्त्वपूर्ण परिणाम निकले—

1. गुरु हरगोबिंद जी की नई नीति-गुरु अर्जन देव जी के बलिदान का गुरु हरगोबिंद जी पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा। उन्होंने सिखों को सशस्त्र करने का निश्चय किया। उन्होंने अकाल तख्त का निर्माण करवाया। यहाँ सिखों को शस्त्रों का प्रयोग करने के लिए प्रशिक्षण दिया जाता था। इस प्रकार सिख एक संत-सिपाही बनकर उभरने लगे।

2. सिखों में एकता—गुरु अर्जन देव जी के बलिदान से सिख यह अनुभव करने लगे कि मुग़लों के अत्याचार के विरुद्ध उनमें एकता का होना अति आवश्यक है। अतः सिख तीव्रता से एकता के सूत्र में बंधने लगे।

3. सिखों और मुग़लों के संबंधों में परिवर्तन शुरु अर्जन देव जी के बलिदान से पूर्व मुग़लों और सिखों के मध्य संबंध सुखद थे, किंतु अब स्थिति पूर्णतया परिवर्तित हो चुकी थी। सिखों के दिलों में मुग़लों से प्रतिशोध लेने की भावना भड़क उठी थी। मुग़लों को भी सिखों का गुरु हरगोबिंद जी के अधीन सशस्त्र होना पसंद नहीं था। इस प्रकार सिखों तथा मुग़लों के बीच खाई और बढ़ गई।

4. सिखों पर अत्याचार-गुरु अर्जन देव जी के बलिदान के साथ मुग़लों का सिखों पर अत्याचार का युग आरंभ होता है। सिखों ने गुरु गोबिंद सिंह, बंदा सिंह बहादुर तथा अन्य सिख नेताओं के अधीन मुग़ल अत्याचारों का डट कर सामना किया तथा अनेक शहीदियाँ दी। इस प्रकार गुरु अर्जन देव जी का बलिदान सिखों के लिए एक प्रेरणा स्रोत बन गया।

5. सिख धर्म की लोकप्रियता—गुरु अर्जन देव जी के बलिदान के कारण सिख धर्म पहले की अपेक्षा अधिक लोकप्रिय हो गया। इस घटना से न केवल हिंदू अपितु बहुत-से मुसलमान भी प्रभावित हुए। वे बड़ी संख्या में सिख धर्म में सम्मिलित होना आरंभ हो गए। इस प्रकार गुरु अर्जन देव जी के बलिदान ने सिख इतिहास में एक नए युग का आरंभ किया।

6. स्वतंत्र सिख राज्य की स्थापना-गुरु अर्जन देव जी के बलिदान के कारण सिखों ने प्रण किया कि जब तक वे मुग़लों के शासन का, अंत नहीं कर लेते तब तक वे चैन से नहीं बैठेंगे। अतः उन्होंने शस्त्र उठा लिए। इस प्रकार अंत में महाराजा रणजीत सिंह के अधीन सिखों का स्वतंत्र राज्य स्थापित करने का सपना यथार्थ हुआ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 6 गुरु अर्जन देव जी और उनका बलिदान

Source Based Questions

नोट-निम्नलिखित अनुच्छेदों को ध्यानपूर्वक पढ़िए और उनके अंत में पूछे गए प्रश्नों का उत्तर दीजिए।

1
गुरु अर्जन देव जी का सिख पंथ के विकास के लिए सर्वप्रथम महान कार्य हरिमंदिर साहिब का निर्माण था। गुरु रामदास जी ने अमृतसर में अमृत सरोवर की खुदवाई आरंभ करवाई थी। इस कार्य को गुरु अर्जन देव जी ने संपूर्ण करवाया था। इसके पश्चात् गुरु अर्जन देव जी ने अमृत सरोवर में हरिमंदिर (ईश्वर का मंदिर) साहिब का निर्माण कार्य आरंभ करवाया। इसकी नींव 13 जनवरी, 1588 ई० में प्रसिद्ध सूफी संत मीयाँ मीर ने रखी थी। सिखों ने गुरु साहिब को यह सुझाव दिया कि हरिमंदिर साहिब का भवन इर्द-गिर्द के सभी भवनों से ऊँचा होना चाहिए परंतु गुरु साहिब का कहना था कि जो नीचा होगा, वही ऊँचा कहलाने के योग्य होगा। इसलिए इसका भवन अन्य भवनों से नीचे रखा गया। हरिमंदिर साहिब की एक अन्य विशेषता यह थी कि इसकी चारों दिशाओं में एक-एक द्वार बनाया गया था।

  1. हरिमंदिर साहिब का निर्माण कार्य किस गुरु साहिब ने किया था ?
  2. हरिमंदिर साहिब की नींव किसने रखी थी ?
  3. हरिमंदर साहिब की नींव ……….. में रखी गई थी।
  4. हरिमंदिर साहिब में प्रवेश के लिए कितने दरवाज़े रखे गए थे ?
  5. हरिमंदिर साहिब का क्या महत्त्व था ?

उत्तर-

  1. हरिमंदिर साहिब का निर्माण कार्य गुरु अर्जन देव जी ने किया था।
  2. हरिमंदिर साहिब की नींव प्रसिद्ध सूफी संत मीयाँ मीर जी ने रखी थी।
  3. 1588 ई०।
  4. हरिमंदिर साहिब में प्रवेश के लिए चार दरवाज़े रखे गए थे।
  5. इस कारण सिखों को उनका सर्वाधिक प्रसिद्ध तीर्थ स्थान मिला।

2
मसंद प्रथा का विकास गुरु अर्जन साहिब के महान् कार्यों में से एक था। इस प्रथा की स्थापना गुरु रामदास जी ने की थी। मसंद फ़ारसी भाषा के शब्द ‘मसनद’ से लिया गया है जिसका शाब्दिक अर्थ है ‘ऊँचा स्थान’। क्योंकि गुरु साहिब के प्रतिनिधि संगत में ऊँचे स्थान पर बैठते थे, इसलिए उन्हें मसंद कहा जाने लगा। गुरु अर्जन साहिब जी के समय सिखों की संख्या काफ़ी बढ़ गई थी इसलिए उन्हें लंगर के लिए तथा अन्य विकास कार्यों के लिए धन की आवश्यकता थी। अतः गुरु साहिब ने यह घोषणा की कि प्रत्येक सिख अपनी आय में से दशांश (दशम् भाग) गुरु साहिब को भेंट करे।

  1. मसंद प्रथा की स्थापना किस गुरु साहिब ने की थी ?
  2. मसंद किस भाषा का शब्द है ?
  3. दसवंध से क्या भाव है ?
  4. मसंद प्रथा का क्या महत्त्व था ?
  5. मसंद प्रथा का विकास किस गुरु साहिब के समय हुआ ?
    • गुरु रामदास जी
    • गुरु अर्जन देव जी
    • गुरु हरगोबिंद जी
    • गुरु गोबिंद सिंह जी।

उत्तर-

  1. मसंद प्रथा की स्थापना गुरु रामदास जी ने की थी।
  2. मसंद फ़ारसी भाषा का शब्द है।
  3. दसवंध से भाव है आमदनी का दसवाँ भाग।
  4. इस कारण सिख धर्म का प्रचार दूर-दूर तक फैल गया।
  5. गुरु अर्जन देव जी।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 6 गुरु अर्जन देव जी और उनका बलिदान

3
जहाँगीर ने अपनी आत्मकथा तुज़क-ए-जहाँगीरी में स्पष्ट लिखा है, “ब्यास नदी के किनारे गोइंदवाल में अर्जन नामक हिंदू पीर अथवा शेख के लिबास में रहता था। उसने अपने रंग ढंग से बहुत-से सरल स्वभाव वाले हिंदुओं और मूर्ख एवं नासमझ मुसलमानों पर डोरे डाल रखे थे। उसने अपने पीर एवं वली होने का खूब डंका बजाया हुआ था। लोग उसे गुरु कहते थे। सभी ओर से मासूम और अजनबी लोग उसके पास आकर अपनी पूर्ण श्रद्धा प्रकट करते थे। तीन चार पीढ़ियों से उन्होंने यह दुकान चला रखी थी। काफ़ी समय से मेरे मन में यह विचार आता रहा था कि इस झूठ की दुकान को बंद करना चाहिए अथवा उसे इस्लाम में ले आना चाहिए।”

  1. जहाँगीर की आत्मकथा का क्या नाम था ?
  2. जहाँगीर गुरु अर्जन देव जी के विरुद्ध क्यों था ?
  3. जहाँगीर किसे झूठ की दुकान कहता है ?
  4. गुरु अर्जन देव जी को कब शहीद किया गया था ?
  5. गुरु अर्जन देव जी को ……………. में शहीद किया गया था।

उत्तर-

  1. जहाँगीर की आत्मकथा का नाम तुज़क-ए-जहाँगीरी था।
  2. वह गुरु अर्जन देव जी के अधीन सिख धर्म के शीघ्र प्रसार को सहन करने को तैयार नहीं था।
  3. जहाँगीर गुरु अर्जन देव जी द्वारा किए जा रहे प्रचार को झूठ की दुकान कहता है।
  4. गुरु अर्जन देव जी को 30 मई, 1606 ई० को शहीद किया गया था।
  5. लाहौर।

गुरु अर्जन देव जी और उनका बलिदान PSEB 12th Class History Notes

  • आरंभिक जीवन और कठिनाइयाँ (Early Career and Difficulties)-गुरु अर्जन देव जी का जन्म 15 अप्रैल, 1563 ई० को गोइंदवाल साहिब में हुआ–आपके पिता जी का नाम गुरु रामदास जी और माता जी का नाम बीबी भानी था-आपका विवाह मऊ गाँव के वासी कृष्ण चंद की सुपुत्री गंगा देवी जी से हुआ-आप 1581 ई० में गुरुगद्दी पर विराजमान हुए-आपको गुरुगद्दी सौंपे जाने का आपके बड़े भाई पृथी चंद ने कड़ा विरोध किया-आपको नक्शबंदी संप्रदाय तथा ब्राह्मण वर्ग का भी कड़ा विरोध सहना पड़ा-लाहौर का दीवान चंदू शाह भी आपसे नाराज़ था।
  • गरु अर्जन देव जी के अधीन सिख पंथ का विकास (Development of Sikhism under Guru Arjan Dev Ji)-गुरु अर्जन देव जी ने अपने गुरुगद्दी काल दौरान सिख पंथ के विकास के लिए बहुपक्षीय कार्य किए-उनके गुरु काल में हरिमंदिर साहिब का निर्माण 1588 ई० में आरंभ करवाया गया-इसका निर्माण कार्य 1601 ई० में पूर्ण हुआ-1590 ई० में तरनतारन, 1593 ई० में जालंधर जिला में करतारपुर तथा 1595 ई० में हरगोबिंदपुर नामक नगरों की स्थापना की गई-आदि ग्रंथ साहिब जी का संकलन गुरु अर्जन देव जी का सबसे महान् कार्य था-यह महान् कार्य 1604 ई० में पूर्ण हुआ-गुरु अर्जन देव जी ने मसंद प्रथा के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया-गुरु साहिब ने सिखों को अरब देशों के साथ घोड़ों का व्यापार करने के लिए प्रोत्साहित किया- उन्होंने अपने उत्तराधिकारी की नियुक्ति कर सिख पंथ के द्वार खुले रखे।
  • गुरु अर्जन देव जी का बलिदान (Martyrdom of Guru Arjan Dev Ji)-गुरु अर्जन देव जी के बलिदान से संबंधित मुख्य तथ्य इस प्रकार हैं—
    • कारण (Causes)-जहाँगीर बड़ा ही कट्टर सुन्नी मुसलमान था–सिख पंथ की हो रही उन्नति उसके लिए असहनीय थी-गुरु अर्जन देव जी के बड़े भाई पृथी चंद ने गुरुगद्दी की प्राप्ति के लिए षड्यंत्र आरंभ कर दिए थे-लाहौर का दीवान चंदू शाह भी अपने अपमान का गुरु साहिब से बदला लेना चाहता था–नक्शबंदियों ने जहाँगीर को गुरु जी के विरुद्ध खूब भड़काया-गुरु अर्जन देव जी द्वारा शहज़ादा खुसरो की सहायता उनके बलिदान का तत्कालीन कारण बनी।
    • बलिदान (Martyrdom)—जहाँगीर के आदेश पर गुरु अर्जन देव जी को 24 मई, 1606 ई० को बंदी बनाया गया-उन्हें 2 लाख रुपये जुर्माना देने को कहा गया जो गुरु जी ने इंकार कर दिया-30 ‘मई, 1606 ई० को गुरु अर्जन देव जी को लाहौर में शहीद कर दिया गया।
    • महत्त्व (Importance) -गुरु अर्जन देव जी की शहीदी को सिख इतिहास की एक महान् घटना माना जाता है क्योंकि गुरु अर्जन देव जी शहीदी देने वाले प्रथम सिख गुरु थे, इसलिए उन्हें ‘शहीदों का सरताज’ कहा जाता है-इस शहीदी के परिणामस्वरूप सिख धर्म के स्वरूप में परिवर्तन आ गयागुरु हरगोबिंद जी ने मीरी तथा पीरी नामक नई नीति धारण करने का निर्णय किया-सिख एकता के सत्र में बंधने लगे-सिखों तथा मुग़लों में तनावपूर्ण संबंध स्थापित हो गए-मुग़ल अत्याचारों का दौर प्रारंभ हो गया-सिख धर्म पहले से अधिक लोकप्रिय हो गया।

PSEB 12th Class Geography Solutions Chapter 8 चुनिन्दा परिप्रेक्ष्य (मुद्दों) तथा भौगोलिक दृष्टिकोण पर एक नज़र

Punjab State Board PSEB 12th Class Geography Book Solutions Chapter 8 चुनिन्दा परिप्रेक्ष्य (मुद्दों) तथा भौगोलिक दृष्टिकोण पर एक नज़र Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Geography Chapter 8 चुनिन्दा परिप्रेक्ष्य (मुद्दों) तथा भौगोलिक दृष्टिकोण पर एक नज़र

PSEB 12th Class Geography Guide चुनिन्दा परिप्रेक्ष्य (मुद्दों) तथा भौगोलिक दृष्टिकोण पर एक नज़र Textbook Questions and Answers

प्रश्न I. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक वाक्य में दें:

प्रश्न 1.
पर्यावरण किसे कहते हैं ?
उत्तर-
मनुष्य तथा जीव-जन्तुओं के आस-पास जो एक घेरा बना है जिसमें वह लगातार सहजीवी रिश्ते में रह रहा है, पर्यावरण कहलाता है।

प्रश्न 2.
प्रदूषण की परिभाषा दो।
उत्तर-
जब भौतिक पर्यावरण में कुछ जहरीले पदार्थ तथा रसायन अधिक मात्रा में जमा हो जाते हैं जो पानी, वायु तथा मिट्टी को जीवन भर के लिए अयोग्य बना देते हैं, प्रदूषण कहलाता है।

प्रश्न 3.
भू-प्रदूषण से आपका क्या भाव है ?
उत्तर-
मिट्टी में हानिकारक पदार्थों के जमा होने के साथ मिट्टी की भौतिक, रासायनिक तथा जैविक संरचना बुरी तरह तहस-नहस हो जाती है जिसके साथ मिट्टी की उपजाऊ शक्ति खत्म हो जाती है, इसको भू-प्रदूषण कहते हैं।

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प्रश्न 4.
यूट्रोफिकेशन (Eutrophication) किसे कहते हैं ?
उत्तर-
यूट्रोफिकेशन कुपोषण प्रक्रिया तब घटती है जब अधिक मात्रा में रासायनिक खादों के रूप में प्रयोग किए जाने वाले नाइट्रेट फास्फेट जल के स्रोतों में मिल कर ऐलगी को खाने वाले बैक्टीरिया की मात्रा बढ़ा देते हैं जिसके साथ पानी में घुलने वाली आक्सीजन कम हो जाती है तथा पानी के जीव-जन्तु मर जाते हैं।

प्रश्न 5.
जल-प्रदूषण के कोई दो बिन्दु स्रोतों (Point Sources) के नाम बताओ।
उत्तर-
जल प्रदूषण के बिन्दु स्रोत हैं-शहरी सीवरेज़, कारखानों से निकली पाइपें इत्यादि।

प्रश्न 6.
जल दिवस (Water Day) कब मनाया जाता है ?
उत्तर-
जल दिवस हर साल 22 मार्च को मनाया जाता है।

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प्रश्न 7.
‘नमामि गंगा’ मिशन क्या है ?
उत्तर-
भारत सरकार ने गंगा नदी को साफ रखने के लिए तथा इसको बचाने के लिए नमामि गंगा मिशन की शुरुआत की है।

प्रश्न 8.
हवा-प्रदूषण क्या है ?
उत्तर-
जब हवा में जहरीले तथा अनचाहे पदार्थ मिल कर वायु को दूषित कर देते हैं तथा यह वायु मनुष्य के स्वास्थ्य तथा पर्यावरण पर बुरा प्रभाव डालती है, तो उसे वायु प्रदूषण कहते हैं।

प्रश्न 9.
वायु प्रदूषण के कोई दो प्राकृतिक स्रोत बताओ। किस आकार के धूल के कण सबसे ज्यादा खतरनाक होते हैं ?
(i) PM5 किलोमीटर
(ii) PM10 माइक्रोमीटर
(iii) PM 2.5 माइक्रोमीटर
(iv) PM 3 किलोमीटर।
उत्तर-
(ii) PM 2.5 माइक्रोमीटर।

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प्रश्न 10.
धरती दिवस मनाया जाता है ?
(i) 5 जून
(ii) 23 मार्च
(ii) 22 अप्रैल
(iv) 17 सितंबर।
उत्तर-
(ii) 22 अप्रैल।

प्रश्न 11.
सिआचिन का शब्द अर्थ क्या है ?
उत्तर-
सिआ (Sia) + चिन (Chen) का भाव है-बड़ी संख्या में गुलाब के फूल।

प्रश्न 12.
LOAC से क्या भाव है ?
उत्तर-
LOAC का अर्थ है-लाइन ऑफ ऐक्चुअल कंट्रोल। यह सिआचिन ग्लेशियर के क्षेत्र में एक विवादग्रस्त सीमा रेखा है।

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प्रश्न 13.
सिंध जल सन्धि में पूर्वी नहरें कौन-सी मानी गई हैं ?
उत्तर-
सिंध जल सन्धि में पूर्वी नहरें सतलुज, ब्यास तथा रावी मानी गई हैं।

प्रश्न 14.
पाक खाड़ी में 14वीं सदी दौरान कौन-से टापू प्रकट हुए ?
उत्तर-
पाक खाड़ी में 14वीं सदी दौरान कच्चातिवु तथा रामेश्वरम् के टापू प्रकट हुए।

प्रश्न 15.
पहाड़ी इलाकों में मिलते ‘LA’ का क्या हैं ?
उत्तर-
उत्तरी भारतीय भाषा में ‘LA’ तथा दर्रा दोनों शब्दों को पहाड़ी नदियों को समझने के लिए एक-दूसरे की जगह पर प्रयोग किया जाता है।

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प्रश्न 16.
भारत में हाथ से काम करने के योग्य लोगों की संख्या कितनी है ?
उत्तर-
भारत में हाथ से काम करने वाले लोगों की संख्या 48 करोड़ 60 लाख के लगभग है।

प्रश्न 17.
संसद् में स्त्रियों के प्रतिनिधित्व के लिए संसार में कौन-सा देश सबसे आगे है ?
उत्तर-
संसद् में स्त्रियों के प्रतिनिधित्व के लिए संसार में रवान्डा, देश है, जहां संसद् में स्त्रियों का प्रतिनिधित्व 64 प्रतिशत है।

प्रश्न 18.
राष्ट्रीय स्तर पर प्रदूषण का कौन-सा मुद्दा सबसे जरूरी भौगोलिक अध्ययन मांगता है ?
उत्तर-
राष्ट्रीय स्तर पर प्रदूषणों के मामले सबसे ज़रूरी भौगोलिक अध्ययन मांगते हैं।

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प्रश्न 19.
भारत में कुल कितना पशुधन है ?
उत्तर-
भारत में कुल 19.1 प्रतिशत पशुधन है।

प्रश्न 20.
कौन-से रसदार फलों के उत्पादन के लिए पंजाब देश में आगे है ?
उत्तर-
किन्नू तथा अंगूर जैसे फलों के उत्पादन के लिए पंजाब देश में आगे है।

प्रश्न II. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर चार पंक्तियों में दें:

प्रश्न 1.
भूमि प्रदूषण के क्या कारण हैं ? इसका कृषि पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर-
भूमि प्रदूषण के मुख्य कारण हैं-

  1. कृषि के उत्पादन के लिए प्रयोग किए जाने वाले नदीननाशक, जहरीली दवाइयां इत्यादि के छिड़काव के कारण भूमि प्रदूषित होती है।
  2. बड़ी मात्रा में लगे कूड़े इत्यादि के ढेर भी भूमि को दूषित करते हैं।
  3. जंगलों के अंतर्गत कम क्षेत्र भी भूमि को दूषित करते हैं।
  4. शहरीकरण होने के कारण भी प्रदूषण में वृद्धि हो रही है।

कृषि पर प्रभाव-भूमि प्रदूषण के कारण कृषि पर पड़ने वाले प्रभाव हैं-

  1. इस कारण मिट्टी की उपजाऊ शक्ति कम हो जाती है।
  2. मिट्टी में नाइट्रोजन स्थिरता कम होती है; जिस कारण मिट्टी अधिक खुरती है। मिट्टी में मौजूद ज़रूरी उपजाऊ तत्त्व खत्म हो जाते हैं। मिट्टी में खारापन आ जाता है।

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प्रश्न 2.
चार R क्या है ?
उत्तर-
प्राकृतिक स्रोतों के योग्य प्रयोग के लिये निम्नलिखित चार ‘R’ के बारे में ज्ञान आवश्यक है।

  • मना करना (Refuse) हमें अपने घरों में फालतू सामान नहीं रखना चाहिए सिर्फ ज़रूरत अनुसार सामान ही घरों में रखना चाहिए। पॉलीथीन में लिपटा सामान तथा पॉलीथीन के लिफाफे लेने से इन्कार कर देना चाहिए।
  • दोबारा उपयोग (Reuse) जो सामान दोबारा प्रयोग में लाया जा सकता है उसको दोबारा प्रयोग करना चाहिए जैसे कि लकड़ी, स्टील, कांच इत्यादि के सामान को दोबारा प्रयोग किया जा सकता है।
  • दोबारा प्रयोग योग्य बनाना (Recycle)—घर का न प्रयोग होने वाला सामान इकट्ठा करके कबाड़ी तक पहुँचा देना चाहिए, ताकि उसको पिघला कर दोबारा प्रयोग योग्य बनाया जा सके। बाज़ार जाते समय वस्त्र या पटसन का थैला लेकर जाओ। पॉलिथीन के लिफाफे में डालने से खाने-पीने का सामान, फल इत्यादि जहरीले हो सकते हैं।
  • कम करना (Reduce)-हमें प्लास्टिक तथा फालतू सामान के प्रयोग को कम करके अपनी ज़रूरतों को
    सीमित करने की आवश्यकता है।

प्रश्न 3.
जल प्रदूषण क्या होता है ? अलग-अलग प्रकार के जल प्रदूषकों के नाम बताओ।
उत्तर-
जल में भौतिक या रासायनिक परिवर्तन के कारण जब जल दूषित हो जाता है, उसे जल प्रदूषण कहते हैं।
जल प्रदूषणों के नाम- अलग-अलग जल प्रदूषणों के नाम निम्नलिखित हैं-

  1. रासायनिक खादों के रूप में उपयोग किए जाने वाले नाइट्रेट व फास्फेट।
  2. सीवरेज़।
  3. कारखानों की पाइप के द्वारा निकाला पदार्थ।
  4. कई तरह के तेज़ाब, ज़हरीले पदार्थ जैसे पोलीक्लोरीनेटड थाई फिनाइल, डी०डी०टी० इत्यादि तथा ज़हरीले नमक, धातु इत्यादि भी पानी दूषित करते हैं।

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प्रश्न 4.
जल प्रदूषण रोकने के कोई चार तरीके बताओ।
उत्तर-
जल प्रदूषण को रोकने के मुख्य तरीके निम्नलिखित हैं-

  • ताप बिजली घरों के गर्म पानी को नहरों में फेंकने से पहले पानी ठंडा कर लेना चाहिए।
  • घरों का सीवरेज कई बार पेयजल के स्रोतों में फेंका जाता है, इस पर पूरी तरह रोक लगानी चाहिए।
  • नदी के साथ-साथ उगे हुए पेड़-पौधों को राइपेरियन बफर कहा जाता है। इसके साथ नदी के पानी की रक्षा ‘होती है। इसलिए सरकार को इस राइपेरियन बफर को बढ़ाने के प्रयास करने चाहिए।
  • जल प्रदूषण की समस्या विकासशील देशों में काफी खतरनाक रूप धारण कर चुकी है। भारत के तकरीबन सारे राज्यों में सन् 1974 में बने कानून जल प्रीवेंशन एंड कंट्रोल ऑफ पोल्यूशन एक्ट लागू हो गया है। इस कानून के अनुसार सभी नगर पालिकाओं तथा उद्योग प्रयोग किए गए पानी को नदियोंमें फेंकने से पहले साफ करेंगे तथा ज़हरीले पदार्थों को बाहर निकालेंगे और फिर पानी नदी में छोड़ा जाएगा।

प्रश्न 5.
वायु प्रदूषण करने वाले कोई चार कारकों के नाम बताओ। मानवीय स्वास्थ्य पर इसका क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर-
ज़हरीले तथा अनचाहे पदार्थों द्वारा वायु को दूषित कर देने को, वायु प्रदूषण कहते हैं। मुख्य वायु प्रदूषण करने वाले कारक हैं :

  • ज्वालामुखी विस्फोट कारण निकली गैसें इत्यादि।
  • कार्बन तथा ऑक्साइड।
  • नाइट्रोजन तथा ऑक्साइड।
  • हवा में धूल कण।
  • धुआं, ओज़ोन, सल्फ्यूरिक अम्ल इत्यादि।

मानवीय स्वास्थ्य पर वायु प्रदूषण का प्रभाव-PM10 मोटे कण 10 माइक्रोमीटर तक ये कण फेफड़ों तक जाकर मनुष्य की मौत का कारण बन सकते हैं। वायु प्रदूषण के कारण 10 लाख लोग भारत में हर साल मर जाते हैं।

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प्रश्न 6.
भारत की दरपेश कोई चार मुश्किलों के नाम बताओ जो भौगोलिक अध्ययन मांगती हैं ?
उत्तर-
भारत की दरपेश मुश्किलें जो भौगोलिक अध्ययन मांगती हैं इस प्रकार हैं-
प्रदूषण की समस्या, विश्व में रहते लोगों, समाज तथा देश में एक पक्ष सामान है, वह है-जीवन का आधार । पृथ्वी तथा पृथ्वी से जुड़े प्राकृतिक स्रोत का यह पक्ष भौगोलिक दृष्टिकोण को अध्ययन में लेकर आता है। विकासशील देशों में विकास का अर्थ लोगों की ज़रूरतों को पूरा करना तथा हर मनुष्य को सुरक्षा प्रदान करना है। भारत की दरपेश कुछ मुद्दों का अध्ययन करने की मांग है-

  • सिआचिन ग्लेशियर का मुद्दा- यह ग्लेशियर सिंध तथा नुबरा नदियों को जल प्रदान करता है तथा पाकिस्तानी हमलावरों को दक्षिण की तफ बढ़ने से रोकता है। इस क्षेत्र की सीमाबंदी की जानी अभी बाकी है। बल्कि तार इत्यादि लगाकर सीमा को स्पष्ट करना चाहिए तथा सीमा सम्बन्धी मामलों के बारे में राष्ट्रीय स्तर पर बातचीत करके मामला निपटा लेना चाहिए।
  • सरकरीक का मुद्दा-यह एक दलदली खाड़ी है। देश के विभाजन समय कच्छ का इलाका बोबे प्रैजीडैन्सी के अधीन था और पाकिस्तान का दावा है कि कच्छ के तत्कालीन बादशाह तथा सिंध की सरकार के बीच 1914 में हुए समझौते के अनुसार यह क्षेत्र पाकिस्तान का होना चाहिए। यह सीमा क्षेत्र दोनों देशों के मध्य एक मुद्दा है।
  • कच्चातिवु-कच्चातिवु श्रीलंका में पड़ता एक विवाद ग्रस्त टापू है।
  • सिंध जल संधि का मुद्दा।

प्रश्न 7.
आर्थिक पक्ष से हम विश्व के देशों का विभाजन कैसे कर सकते हैं ?
उत्तर-
आर्थिक पक्ष से हम विश्व के देशों का विभाजन इस प्रकार कर सकते हैं-आर्थिक पक्ष से हम विश्व को तीन भागों में बाँट सकते हैं-विकसित, विकासशील तथा अल्पविकसित देश। जब लोग गरीब देशों की बात करते हैं उनमें खास कर तीसरी श्रेणी में शामिल किया जाता है। जो देश अभी विकास कर रहे हैं उनको विकासशील देश कहते हैं तथा जिन देशों में काफी हद तक विकास हो चुका है, उन्हें विकसित देश कहते हैं। तीसरे हिस्से के देशों में पेनांग, जेनेवा, ताईवान इत्यादि। विकासशील देशों में भारत, चीन, इण्डोनेशिया इत्यादि विकसित देशों में यू०एस०ए० जापान, इटली, फ्रांस, जर्मनी इत्यादि को शामिल किया जाता है।

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प्रश्न 8.
सिंध जल संधि के मुताबिक पश्चिमी नदियों का जल कौन से कारणों के लिए भारत उपयोग कर सकता है ?
उत्तर-
सिंध जल संधि जो सन् 1960 में हुई। इस संधि के अनुसार पश्चिमी नदियों के जल का प्रयोग करने के लिए भारत को पूरी तरह से आजादी है। वह इन नदियों पर 3.6 MAF मात्रा तक भंडारण कर सकता है पर भंडारण में 0.5 MAF पानी हर साल छोड़ कर एकत्र करना होगा। पश्चिमी नदियों (चिनाब, जेहलम तथा सिंध) का पानी पाकिस्तान बिना किसी रुकावट के प्रयोग कर सकता है तथा भारत की ज़िम्मेदारी है कि इन नदियों का सारा जल जाने दिया जाए, सिर्फ चार स्थितियों के बिना-

  1. घरेलू उपयोग के लिए
  2. किसी ऐसे उपयोग के लिए प्रयोग किए पानी को खत्म न करे।
  3. कृषि के लिए।
  4. पन बिजली उत्पादन के लिए।

प्रश्न 9.
भौगोलिक सिरमौरता पक्ष से अध्ययन की कोई चार शाखाओं के नाम लिखो।
उत्तर-
भौगोलिक सिरमौरता प्राकृतिक तथा मानवीय प्रक्रियाओं के स्थानीय विभाजन की प्रसन्नता जिसका उद्देश्य प्राप्तियों का एहसास, स्थानीय विभाजन करवाना होता है। इसकी मुख्य शाखाएं हैं-

  • भू-आकृति वैज्ञानिक पक्ष-इसमें जलवायु वैज्ञानिक सिरमौरता, महासागरीय देन तथा अलग पेड़-पौधे तथा जीव जन्तु इत्यादि आते हैं।
  • मानवीय साधनों की उत्तमता-इसमें कृषि क्षेत्र की उपज, बुनियादी ढांचे की सुंदरता, औद्योगिक प्राप्तियां शामिल हैं।
  • सांस्कृतिक विशेषताएं- इसके अंतर्गत राष्ट्रीय चिन्ह, कबाइली दौलत तथा धार्मिक सहवास शामिल हैं।
  • जन-आंकड़े-इसके अधीन ऐतिहासिक स्थान, यूनेस्को से संबंधित दौलत तथा सैलानी रुचि के स्थानों की शान शामिल हैं।

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प्रश्न 10.
समुद्र तल से ऊँचा जाने के साथ क्या बिमारी होती है तथा इससे कैसे बचा जा सकता है ?
उत्तर-
समुद्र तल से ऊंचा जाने पर माऊंटेस सिकनैस नामक बिमारी हो जाती है तथा इस बिमारी से बचने के लिए ऐसे क्षेत्र में रहना चाहिए जहाँ पहले 2-3 दिन कम ऑक्सीजन वाले क्षेत्र में प्रवास के लिए अपने आप को ढालना बहुत ज़रूरी है।

प्रश्न III. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 10-12 पंक्तियों में दें :

प्रश्न 1.
वायु प्रदूषण रोकने पर एक नोट लिखो।
उत्तर-
वायु प्रदूषण की रोकथाम निम्नलिखित प्रकार से की जा सकती है-ताप या उत्प्रेरक का असर कम करने के लिए आवश्यक है कि प्रदूषित कणों को रोका जाए। भारत में ब्यूरो ऑफ इण्डियन स्टेंडर्स ने वायु की गुणवत्ता का सूचकांक बनाया है जो कि 0 से 500 के करीब है। अगर सूचकांक बढ़ता है तो इसका अर्थ है, हवा के प्रदूषण में वृद्धि हो रही है। वायु के प्रदूषण को कम करने के लिए अपारंपरिक स्रोतों का प्रयोग, जैसे-सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा इत्यादि को बढ़ाना आवश्यक है। पेड़ों को काटने पर रोक लगानी चाहिए तथा अधिक से अधिक पेड़ लगाने चाहिए। फालतू सड़कों के बैरियर तथा चैक पोस्टों इत्यादि को कम करना चाहिए, ताकि प्रदूषण की समस्या को कम किया जा सके तथा तेल को बचाया जा सके। वायु की निगरानी के लिए उपकरण, वायु साफ करने वाले फिल्टर, रेडियो मीटर इत्यादि को महत्त्वपूर्ण स्तर पर लागू किया जाना चाहिए।

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प्रश्न 2.
लासैंट अध्ययन के मुताबिक कितने भारतीय वायु प्रदूषण से पीड़ित हैं ? इसका क्या असर हो रहा
उत्तर-
मैडिकल मैगजीन द लासैंट के अध्ययन के मुताबिक भारत में जहरीली हवा या प्रदूषित वायु में लोग सांस ले रहे हैं। जिस कारण भारत में औसतन दो मौतें हर रोज़ हो रही हैं। ये मौतें इस जहरीली वायु के कारण ही हो रही हैं। दुनिया के प्रदूषित शहरों में कुछ शहर भारत में ही हैं। 2010 में किए एक अध्ययन के अनुसार विश्व में 2.7 से 3.4 करोड़ बच्चे वायु प्रदूषण के कारण निश्चित समय से पहले पैदा होते हैं तथा एशिया में यह दर 1.6 तक है।

प्रश्न 3.
भारत के भू-जल में आर्सेनिक की समस्या के बारे में एक नोट लिखो।।
उत्तर-
आर्सेनिक पूरे संसार में पृथ्वी के नीचे वाले पानी की बहुत गंभीर समस्या बनती जा रही है। खास कर ट्यूबवैल अधिक मात्रा वाले गंगा डेल्टा में, पश्चिमी बंगाल के क्षेत्र में बहुत सारे लोग इसका शिकार हो गए हैं। 2007 के साल में किए एक सर्वेक्षण के अनुसार दुनिया के 70 देशों में 1 करोड़ 37 लाख लोग आर्सेनिक जहर के शिकार हो चुके हैं। भारत की भूमि के नीचे वाला पानी में जो कि पीने योग्य पानी है कारखानों, नगरपालिका में से निकले दृषित जल के कारण दूषित हो गया है। मानवीय स्वास्थ्य के लिए खासकर नवजात बच्चों के लिए बहुत खतरनाक है। पृथ्वी के नीचे पीने योग्य पानी में क्लोराइड की मात्रा बढ़ने के कारण मांसपेशीय तथा दिमागी रोग हो रहे हैं, इसके अतिरिक्त आंतड़ियों के रोग, दांतों के रोग भी मानवीय स्वास्थ्य को खराब कर रहे हैं। इसी प्रकार आर्सेनिक दिमाग की बिमारियों, फेफड़ों की बिमारियों तथा चमड़ी के कैंसर की बिमारियों का मुख्य कारण बनती जा रही है। साल 2030 तक संसार में पानी की मांग अब के समय से 50% बढ़ने का एक अनुमान है। कहते हैं कि यह मांग शहरी क्षेत्र में अधिक बढ़ने का अनुमान है।

प्रश्न 4.
ऑपरेशन मेघदूत क्या था ? जान-पहचान करवाओ।
उत्तर-
युद्ध के समय सिआचिन (सैंची) ग्लेशियर का महत्त्व काफी है जिस पर पाकिस्तान अपना अधिकार जमाने की लगातार कोशिश कर रहा है। अप्रैल 1984 से भारतीय सेना को समुद्र तल से 6400 मीटर की ऊँचाई पर NH9842 पर इंदिरा कोल के मध्य आगे वाली चौकी पर तैनात रहने की इस सैनिक कार्रवाई को मेघदूत के नाम से जाना जाता है। सिआचिन (सैंची) ग्लेशियर पर कब्जे का मुद्दा सियासी तथा राजनीतिक दोनों स्तरों पर हल की मांग करता है जिस कारण पिछले कुछ सालों से यह क्षेत्र सैनिक कार्रवाई का एक आधार ही बन गया है। भारत ने सिआचिन ग्लेशियर पर अपने अस्तित्व का आरम्भिक ढांचा तैयार कर ही लिया है तथा यह दावा भी भारत कर रहा है कि दोनों चीन तथा पाकिस्तान के पक्ष से भारत अच्छी हालात में है। भारतीय सेना क्षेत्र की सुरक्षा कर रही है।

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प्रश्न 5.
सर करीक क्षेत्र का प्राकृतिक साधनों के पक्ष से क्या महत्त्व है ? लिखो।
उत्तर-
सर करीक एक दलदली खाड़ी है जो कि भारत के गुजरात तथा पाकिस्तान के सिंध के प्रदेशों के मध्य का एक प्रांत है। लगभग 96 किलोमीटर लम्बी इस सागरीय सीमा दोनों देशों के मध्य एक मुद्दा है। इस क्षेत्र को बाण गंगा भी कहते हैं। सर करीक क्षेत्र के प्राकृतिक साधनों के कारण इसका महत्त्व और भी बढ़ जाता है।

  • खनिज तेल तथा प्राकृतिक गैस की अधिकता के कारण इस स्थान का आर्थिक महत्त्व काफ़ी बढ़ जाता है।
  • इसके तटीय क्षेत्र में भूमि पर तथा सागरीयं तल पर प्राकृतिक गैस के काफ़ी भंडार हैं।
  • यहाँ हाइड्रोकार्बन के अस्तित्व की भी काफ़ी संभावनाएं हैं।
  • मछुआरों की गतिविधियां काफी हैं।

प्रश्न 6.
सिंध जल संधि जम्मू तथा कश्मीर के लिए नुकसानदायक सिद्ध हुई है। कैसे ?
उत्तर-
सिंध जल संधि जम्मू तथा कश्मीर के लिए नुकसानदायक सिद्ध हुई है क्योंकि इस संधि में इलाके के लोगों की ज़रूरतों तथा इच्छा का ध्यान नहीं रखा गया। यह संधि लोग विरोधी तथा एक तरफ की संधि लगती है जिसको या तो रद्द किया जाना या फिर दुबारा उस पर विचार करना आवश्यक है। सन् 1960 के पानी की 159MAF मात्रा में कमी हो गई तथा कुल मात्रा 117MAF रह गई जिस कारण जम्मू-कश्मीर के लोग काफी चिंता में पड़ गए। एक अनुमान अनुसार 2050 तक सिंध के जलतंत्र की भारतीय नदियों में 17 प्रतिशत पानी कम होने की उम्मीद है तथा पाकिस्तान में पहुँचते पानी में भी 27 प्रतिशत कमी आने की उम्मीद है। सिंध जल संधि करते समय जम्मू तथा कश्मीर के लोगों के पक्ष को नज़र अंदाज किया गया। जम्मू तथा कश्मीर में रोक लगाई गई कि 9.7 लाख एकड़ से अधिक भूमि कृषि के उद्देश्य के लिए नहीं प्रयोग की जाएगी।

प्रश्न 7.
पंजाब की भौगौलिक सिरमौरता वर्णन करते कोई आठ कारण लिखें।
उत्तर-
पंजाब की भौगौलिक सिरमौरता वर्णन करते मुख्य कारण हैं-

  • पंजाब में देश के हर प्रांत के मुकाबले किन्नू का उत्पादन सबसे अधिक होता है।
  • पंजाब में अंगूर की प्रति हैक्टेयर उपज देश में सबसे अधिक होती है।
  • पंजाब हर साल 7.16 लाख मीट्रिक टन दूध का उत्पादन कर रहा है, जो देश के कुल उत्पादन का 10 प्रतिशत
  • प्रति व्यक्ति अंडों के उत्पादन में देश में पंजाब सबसे आगे हैं।
  • देश में पंजाब से संयुक्त राज्य अमेरिका को शहद निर्यात किया जाता है।
  • पंजाब देश की 22 प्रतिशत गेहूँ, 12 प्रतिशत चावल, 23 प्रतिशत कपास पैदा कर रहा है।
  • पंजाब में जंगलों अधीन क्षेत्र में 100 वर्ग कि०मी० क्षेत्र की वृद्धि हुई जो और किसी प्रांत में नहीं हुई।
  • पंजाब लैंड एक्ट 1900 के अनुसार रक्षित किए गए 55 हजार हैक्टेयर जंगली क्षेत्र को कंडी क्षेत्र के लोगों के लिए कृषि करने तथा रोजी-रोटी कमाने के लिए प्रयोग करने की स्वतन्त्रता दी गई।

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प्रश्न IV. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 20 पंक्तियों में दो :

प्रश्न 1.
भारत श्रीलंका मध्य कच्चातीवू मसला क्या हैं ? यह भारत की तरफ खुद पैदा की मुश्किल है, कैसे ?
उत्तर-
श्रीलंका में पड़ते कच्चातीवू का टापू विवादों से घिरा हुआ है। यह टापू 285.2 एकड़ क्षेत्र में फैला हुआ है। इस टापू पर मनुष्य जनसंख्या नहीं है। 14वीं सदी में सागर तल पर घटी ज्वालामुखी कार्रवाई के कारण कच्चातीवू तथा रामेश्वरमू नामक टापू अस्तित्व में आए। ऐतिहासिक समय में कच्चातीवू टापू का प्रयोग भारतीय मछुआरे करते थे। इस टापू पर रामनद का राजा राज कर रहा था। बाद में मद्रास प्रेजीडेंसी का ही एक हिस्सा बन गया था। भारत मानता है कि कच्चातीवू टापू पर श्रीलंका का कब्जा होना चाहिए परन्तु इस कब्ज़े को कानूनी तौर पर मान्यता हासिल नहीं है। इसका कारण है कि तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने 1974 में संसद् की मन्जूरी के बिना ही टापू का मालिकाना श्रीलंका को दे दिया था। यह टापू (कच्चातीवू) सांस्कृतिक पक्ष से तमिल लोगों के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है तथा यह टापू मछलियां पकड़ने के रोज़गार के लिए भारत तथा श्रीलंका दोनों ही देशों के मछुआरों के द्वारा प्रयोग में लाया जा रहा है जबकि इस टापू पर पेयजल की कमी है।

राष्ट्रीय भाईचारे की तरफ से इस टापू को देश के अंग के तौर पर पहचाना गया है। श्रीलंका वाले. भाग से इस टापू पर मछलियां पकड़ने का काम अधिक किया जाता है। सारे क्षेत्र में सागरीय स्रोतों की बहुतायत है। श्रीलंकाई मछुआरों को तमिलनाडु के मछुआरों के मुकाबले मछली पकड़ने का काम करने में बहुत कठिनाइयां आ रही हैं। भारतीय मछुआरों के पास अच्छी तकनीक है पर भारतीय सागरीय फर्श को जाल से खींचने वाली नावों ने उजाड़ दिया है जिस कारण भारतीय जल क्षेत्र से श्रीलंका जल क्षेत्र मछलियां पकड़ने में आगे हैं। मछलियां पकड़ने के लिए लाइसेंस प्रबंध जो कि मछली पकड़ने के नियम बताता है जो नियम कानून बने हैं अगर उनका पालन किया जाए, तो तमिलनाडु की सरकार तथा भारत सरकार की सहायता से दोनों देशों के सागरीय मछुआरों सागरीय जीवों को जमा कर बहुत देर के लिए सम्भाल कर रखने, खराब होने से बचाने तथा ऐसी अन्य सुविधाएं लेकर अपनी रोजी रोटी का अच्छा आसान साधन बना सकते हैं।

प्रश्न 2.
सिंध जल संधि की रक्षा के लिए भारत अपना आप गुप्त करके भी काम कर रहा है ? कैसे ?
उत्तर-
सिंध जल संधि 1960 में भारत के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू तथा पाकिस्तान के राष्ट्रपति फील्ड मार्शल मुहम्मद अयूब खान के मध्य में सिंध की नदियों के पानी के विभाजन को लेकर हुई। इस संधि के मुताबिक भारत की पूर्वी नदियों सतलुज, ब्यास तथा रावी के पानी को बिना किसी रोक-टोक के भारत प्रयोग कर सकता है तथा पश्चिमी नदियों का जल सिंध, चिनाब, जेहलम पाकिस्तान के हिस्से आएगा। भारत ने जल संधि को पूरी ईमानदारी के साथ निभाया है तथा तीन लड़ाइयां, उग्रवाद के समय में संधि के नियमों का पालन किया तथा कभी संधि भंग करने का कोई प्रयास नहीं किया। भारत ने सिंध जल संधि की रक्षा अपना आप गुप्त करके भी की है। निम्नलिखित बातों से यह बात स्पष्ट हो जाती हैं-

  • 80 प्रतिशत से अधिक जल इन नदियों का पाकिस्तान के हिस्से आ रहा है क्योंकि पश्चिमी नदियों में बह रहे जल की मात्रा पूर्वी नदियों से कहीं अधिक है।
  • जम्मू तथा कश्मीर में रोक लगाई गई है कि जम्मू तथा कश्मीर 9.7 लाख एकड़ से अधिक भूमि किसी भी कृषि कार्य में नहीं लगाएगा।
  • भारत तथा पाकिस्तान की इस संधि द्वारा भारत को सिंचाई के लिए तथा जल-ऊर्जा उत्पन्न करने के लिए हमेशा पानी की कमी रही जो कभी पूरी नहीं हुई।
  • 1960 में हुई संधि के अनुसार भारत की तरफ से तैयार की जाती इलाकई योजना परखी जाती है तथा पश्चिम की नदियों के किनारों के पास लाई गई हर एक ईंट के बारे में भी प्रसिद्ध पर्यावरण विद् तथा राष्ट्रीय संस्थाओं की सलाह अनुसार आगे का काम किया जाता है।
  • जम्मू तथा कश्मीर के नागरिकों का पक्ष सिंध जल संधि करते समय नज़रअंदाज किया गया है। भारत तथा पाकिस्तान की सीमा के पास 54 स्थायी नदियां, नहरें इत्यादि हैं तथा भारत अपनी पूरी ज़िम्मेदारी की बारे में समझता है। कूटनीतियों द्वारा भारत का स्टैंड हिलाया नहीं जा सकता, इसके कई कारण हैं-
    • एक तो भारत की राष्ट्रीय भरोसे योग्यता में कमी आ सकती है। इस तरह भारत अपनी प्राप्त की स्थिति खो सकता है जो उसको संयुक्त राष्ट्र सलामति कौशल जैसी संस्थाओं को हासिल हैं।
    • भारतीय सीमाओं के पानी की साझ समय पड़ोसी देशों में भी भारत के लिए संदेह स्वभाव पैदा हो जाएगा।

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प्रश्न 3.
भारत की भौगोलिक सिरमौरता को प्रकट करते तथ्य से पहचान करवाओ।
उत्तर-
भारत की भौगोलिक सिरमौरता को प्रकट करते तथ्य निम्नलिखित हैं-

  • भौगोलिक सिरमौरता हमें अभिमान महसूस करवाता है कि संसार की सबसे ऊँची चोटी माउंट एवरेस्ट जो एशिया महाद्वीप में है।
  • सुंदरवन डेल्टा जो विश्व का सबसे बड़ा डेल्टा है वह हमारे देश की बंगाल की खाड़ी में स्थित है।
  • भारतीय जनसंख्या में दो तिहाई भाग में 15 से 64 साल के लोग रहते हैं तथा 48 करोड़ 60 लाख के करीब हाथ से काम करने वाले लोग रहते हैं तथा भारत में मध्यम आयु 29 साल है।
  • भारत में 19.1 प्रतिशत पशु प्रधान हैं जिस कारण भारत दूध का सबसे बड़ा उत्पादक है।
  • भारत संसार के 17 भिन्न प्रकार के जानवर तथा पौधे इत्यादि की बड़ी गिनती वाले देशों में एक है।
  • भारत के उत्तर में 6.1 किलोमीटर की औसतन ऊँचाई वाला हिमालय पर्वत है जो कि उत्तरी ध्रुवीय पवनों के असरदायक होने पर रोक लगाता है।
  • भारत के पास कुल 9.6 प्रतिशत जल संसाधन हैं तथा 4 प्रतिशत जल का पुन: उपयोग किया जाता है।
  • 2016 के साल में भारत में बागाती उपज 28 करोड़ 34 लाख टन तक पहुँच गया था तथा इसका पूरा श्रेय भारतीय किसानों को जाता है।
  • भारत के पास संसार में दूसरे नंबर पर सबसे अधिक कृषि योग्य भूमि है तथा दूसरे नंबर पर सड़कों का जाल है।
  • हिमालय पर्वत माला भारत में संसार की सबसे ऊँची पर्वत माला है जो समुद्र तल से लगभग 6.1 किलोमीटर की ऊँचाई पर है।
  • भारतीय महाद्वीपों के नाम से पहचाने जाते पांच महाद्वीपों में भारत सबसे अधिक अलग पहचान रखता है।
  • भारत हिंद महासागर के 23 लाख वर्ग किलोमीटर में फैले जल पर अपना अधिकार जमा रहा है।
  • देश का 90 प्रतिशत तक का भाग 6° से 52°C तापमान के मध्य का क्षेत्र है, जिस कारण देश में पूरा साल कोई न कोई पेड़ पौधों को उगाने के हालात कहीं न कहीं आवश्यक होते हैं। किसान तीन प्रकार की फसलें एक साल में आसानी से उगा लेते हैं।

प्रश्न 4.
भौगोलिक सिरमौरता क्या होती है ? भूगोल में इसके अध्ययन की क्या आवश्यकता है ?
उत्तर-
भौगोलिक सिरमौरता-प्राकृतिक तथा मानवीय दोनों प्रकार की क्रियाएं जिनके स्थानीय विभाजन की प्रशंसा, जिसका उद्देश्य प्राप्तियों का एहसास करवाना होता है, भौगोलिक सिरमौरता कहलाती है। प्राकृतिक की तरफ मनुष्य को दिए गए प्राकृतिक स्रोतों का प्रयोग करके कोई प्रशंसा हासिल करना या प्रशंसा तक पहुँचने की मानवीय पहुँच ही भौगोलिक सिरमौरता कहलाती है। भौगोलिक सिरमौरता व्याख्यात्मक विषय है। भौगोलिक सिरमौरता ऐसा विषय है जो हर एक स्पष्ट तथा अस्पष्ट तथा हर किस्म के साधनों की व्याख्या करता है जो हमारी पृथ्वी, हमारे देश, शहर, कस्बे इत्यादि को बाकी कस्बों, शहरों इत्यादि से अलग बनाते हैं।

भौगोलिक सिरमौरता का अध्ययन हमें हर पक्ष से गर्व महसूस करवाता है तथा हमें संतुष्टि देता है कि हमारे सारे देश में यह चीज़ सबसे अधिक हैं जैसे कि भूगोल में इसके अध्ययन से हमें पता चलता है कि विश्व की सबसे ऊँची चोटी माऊंट एवरेस्ट हमारे महाद्वीप में है या सुंदरवन संसार का सबसे बड़ा डेल्टा हमारी बंगाल की खाड़ी में मौजूद है। इसके साथ हमें अपने देश की सिरमौरता के बारे में पता चलता है तथा हमें अपने देश पर गर्व महसूस होता है।

भूगोल में इसके अध्ययन की काफी आवश्यकता है। भौगोलिक सिरमौरता का उद्देश्य, भौगोलिक पक्ष से विकसित हो रहे मनों को इस ग्रह के हर देश में मिलने वाले स्रोतों की भौगोलिक दौलत से इस अध्ययन के द्वारा परिचित करवाया जाता है। भारत ने इस क्षेत्र के अध्ययन की तरफ काफी उन्नति की है। पर मीडिया सिर्फ लोगों के दुःख, तकलीफों तथा असफलताओं की गाथाएं ही सुनाता आ रहा है। उनकी ये बातें सच्ची हैं पर यदि सिर्फ नकारात्मक बातें ही लोगों तक पहुँचती रहीं तो लोगों की सोच की सीमाएं कुछ समय के बाद सीमित हो जाएंगी। वह देश को आने वाले संभावित खतरों तथा उन खतरों द्वारा आने वाली कमियों के बारे में नहीं सोच सकेंगे। जैसे कि एक उदाहरण है कि भारतीय कृषि के हालात कुल मिलाकर बहुत अच्छे नहीं हैं पर तथ्य यह है कि देश के 85 प्रतिशत किसान छोटे तथा मध्यम हैं उनके पास काम करने के लिए 21 प्रतिशत तक कृषि योग्य भूमि है तथा 79 प्रतिशत भूमि मध्यम दों के किसानों के पास हैं तथा फिर भी सहकारी तथा मिलकर की जाने वाली कृषि ही देश के प्रारंभिक कार्य को बचा रही है। भौगोलिक सिरमौरता का अध्ययन हमें गर्व महसूस करवाता है इसलिए भौगोलिक अध्ययन के क्षेत्र में इसकी बहुत आवश्यकता है।

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Geography Guide for Class 12 PSEB चुनिन्दा परिप्रेक्ष्य (मुद्दों) तथा भौगोलिक दृष्टिकोण पर एक नज़र Important Questions and Answers

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर (Objective Type Question Answers)

A. बहु-विकल्पी प्रश्न :

प्रश्न 1.
सिआचिन से क्या भाव है ?
(A) बड़ी संख्या में गुलाब के फूल
(B) बड़ी संख्या में झाड़ियां
(C) बड़ी संख्या में कमल के फूल
(D) बड़ी संख्या में जानवरों के झुंड।
उत्तर-
(A) बड़ी संख्या में गुलाब के फूल

प्रश्न 2.
सिआचिन ग्लेशियर किस तरफ से आने वाले पाकिस्तानी हमलावरों को आगे बढ़ने से रोकता है ?
(A) उत्तर
(B) दक्षिण
(C) पूर्व
(D) पश्चिम।
उत्तर-
(B) दक्षिण

प्रश्न 3.
माऊनटेन सिकनैस की बिमारी खास कर कहां होती है ?
(A) दलदली भूमि पर
(B) पठारी इलाकों में
(C) समुद्री तल से ऊँचे क्षेत्रों में
(D) तटीय क्षेत्रों के नज़दीक।
उत्तर-
(C) समुद्री तल से ऊँचे क्षेत्रों में

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प्रश्न 4.
सरकरीक की दलदली खाड़ी भारत तथा पाकिस्तान के कौन-से क्षेत्रों में स्थित है ?
(A) गुजरात तथा सिंध
(B) लायलपुर तथा पंजाब
(C) लाहौर तथा गुजरात
(D) आन्ध्र प्रदेश तथा रावलपिंडी।
उत्तर-
(A) गुजरात तथा सिंध

प्रश्न 5.
सिंध जल संधि कब हुई ?
(A) 1960
(B) 1965
(C) 1959
(D) 1970.
उत्तर-
(A) 1960

प्रश्न 6.
भारत को कौन-सी दिशा की नदियों का पानी प्रयोग करने की छूट है ?
(A) पश्चिमी
(B) पूर्वी
(C) दक्षिणी
(D) उत्तरी।
उत्तर-
(A) पश्चिमी

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प्रश्न 7.
पर्यावरण को मोटे तौर पर हम कितने भागों में विभाजित कर सकते हैं ?
(A) प्राकृतिक तथा भौतिक
(B) भौतिक तथा सांस्कृतिक
(C) सांस्कृतिक तथा प्राकृतिक
(D) भौतिक तथा रासायनिक।
उत्तर-
(C) सांस्कृतिक तथा प्राकृतिक

प्रश्न 8.
प्रदूषण का प्रमुख स्रोत क्या है ?
(A) फसलें
(B) ठोस कूड़ा-कर्कट
(C) जंगल
(D) जानवर।
उत्तर-
(B) ठोस कूड़ा-कर्कट

प्रश्न 9.
वायु प्रदूषण का प्राकृतिक स्रोत कौन-सा है ?
(A) मनुष्य
(B) कृषि
(C) पानी
(D) ज्वालामुखी।
उत्तर-
(D) ज्वालामुखी।

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प्रश्न 10.
गंगा की ढाल के साथ प्रदूषण का मुख्य स्त्रोत क्या है ?
(A) चमड़ा उद्योग
(B) कागज़ उद्योग
(C) गैसें
(D) फालतू नाले।
उत्तर-
(A) चमड़ा उद्योग

प्रश्न 11.
पर्यावरण दिवस कब मनाया जाता है ?
(A) 22 अप्रैल
(B) 22 जून
(C) 22 मार्च
(D) 22 सितंबर।
उत्तर-
(B) 22 जून

प्रश्न 12.
निम्नलिखित में से कौन-सा भू-प्रदूषण का कारक नहीं है ?
(A) तेज़ाब
(B) कीटनाशक
(C) तांबा
(D) मशीनें।
उत्तर-
(D) मशीनें।

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प्रश्न 13.
आर्सेनिक कौन-से पानी की गंभीर समस्या है ?
(A) पेयजल की
(B) पृथ्वी के नीचे वाले पानी की
(C) नहरों के पानी की
(D) समुद्र के पानी की।
उत्तर-
(B) पृथ्वी के नीचे वाले पानी की

प्रश्न 14.
भारत सरकार ने गंगा नदी को साफ करने के लिए कौन-से मिशन का आगाज़ किया है ?
(A) नमामि गंगे
(B) बहु आयामी योजना
(C) स्वच्छ भारत अभियान
(D) गंगा साफ योजना।
उत्तर-
(A) नमामि गंगे

प्रश्न 15.
भारत की औसत मध्यम आयु कितनी है ?
(A) 22 माल
(B) 29 साल
(C) 30 साल
(D) 25 साल।
उत्तर-
(B) 29 साल

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प्रश्न 16.
पंजाब का शहद किस क्षेत्र को निर्यात किया जाता है ?
(A) यू०एस०ए०
(B) ऑस्ट्रेलिया
(C) जापान
(D) चीन।
उत्तर-
(A) यू०एस०ए०

प्रश्न 17.
भारत में सालाना दूध का कितना उत्पादन होता है ?
(A) 16 करोड़ टन
(B) 120 करोड़ टन
(C) 10,000 करोड़ टन
(D) 15 करोड़ टन।
उत्तर-
(A) 16 करोड़ टन

प्रश्न 18.
वाहनों में से निकलता धुआं स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव डालता है ?
(A) खून में ऑक्सीजन कम करता है
(B) सांस के रोग
(C) आँखों के गम्भीर रोग
(D) गले की सूजन।
उत्तर-
(A) खून में ऑक्सीजन कम करता है

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प्रश्न 19.
विश्व जल दिवस कब मनाया जाता है ?
(A) 22 मार्च
(B) 22 अप्रैल
(C) 22 जून
(D) 22 अक्तूबर।
उत्तर-
(A) 22 मार्च

प्रश्न 20.
भारत में संसार का कितना पशुधन है ?
(A) 19.1 फीसदी
(B) 10 फीसदी
(C) 50 फीसदी
(D) 51 फीसदी।
उत्तर-
(A) 19.1 फीसदी

B. खाली स्थान भरें :

1. सन् 1972 में ………………… समझौते में 1949 के सीमा रेखा के संबंधी समझौते के बारे में कोई परिवर्तन नहीं किया गया।
2. कच्चातीवू टापू …………… एकड़ क्षेत्र में फैला हुआ है।
3. भारत को सतलुज ………………… तथा ………………… पानी को बेरोक करने की स्वतन्त्रता है।
4. पर्यावरण ………………… तथा ………………… दो भागों में विभाजित किया जाता है।
5. कार्बन मोनोऑक्साइड खून में ………………. की मात्रा को कम कर देती है।
उत्तर-

  1. शिमला
  2. 285.2 एकड़
  3. ब्यास, रावी
  4. प्राकृतिक पर्यावरण, सांस्कृतिक पर्यावरण
  5. ऑक्सीजन।

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C. निम्नलिखित कथन सही (√) हैं या गलत (x):

1. बारीक कण 2.5 माइक्रोमीटर के कण सबसे अधिक खतरनाक होते हैं।
2. सल्फर-डाइऑक्साइड (SO2) तेज़ाबी वर्षा का कारण बनती है।
3. भारतीय संसद् में स्त्रियों की प्रतिनिधिता 50 प्रतिशत है।
4. कई तेज़ाब भी पानी को प्रदूषित करते हैं।
5. 1975 में सिंध जल संधि भारत तथा पाकिस्तान के मध्य हुई।
उत्तर-

  1. सही
  2. सही
  3. गलत
  4. सही
  5. गलत।

II. एक शब्द/एक पंक्ति वाले प्रश्नोत्तर (One Word/Line Question Answers) :

प्रश्न 1.
मानव भूगोल क्या है ?
उत्तर-
मानव जीवन का भौगोलिक दृष्टिकोण मानव भूगोल कहलाता है।

प्रश्न 2.
कंधी क्षेत्र में प्रमुख दर्रे कौन-से हैं ?
उत्तर-
सिआला, बिलाफोंडला, गिओंग ला।

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प्रश्न 3.
सिआचिन ग्लेशियर के क्षेत्र में पड़ती विवादग्रस्त सीमाओं के नाम बताओ।
उत्तर-
LOC तथा LOAC.

प्रश्न 4.
सिआचिन कौन-सी नदियों को जल प्रदान करता है ?
उत्तर-
सिंध तथा नूबरा।

प्रश्न 5.
औरो पॉलिटिक्स से क्या भाव है ?
उत्तर-
औरो पॉलिटिक्स से भाव सियासी मामलों के लिए पहाड़ी क्षेत्रों का नाजायज़ प्रयोग करने से है।

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प्रश्न 6.
सरकरीक क्या है ?
उत्तर-
यह एक दलदली खाड़ी है जो भारत के गुजरात तथा पाकिस्तान के सिंध क्षेत्र के मध्य है।

प्रश्न 7.
स्थल वेंग सिद्धान्त किन नहरों पर लागू है ?
उत्तर-
जहाजरानी करने योग्य पर।

प्रश्न 8.
कच्चातीवू टापू का प्रयोग इतिहास में कौन करते थे ?
उत्तर-
भारतीय मछुआरे।

प्रश्न 9.
कच्चातीवू टापू पर सबसे पहले किसका स्वामित्व था ?
उत्तर-
रामनद के राजे का।

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प्रश्न 10.
सिंध जल संधि किन-किन के मध्य में हुई ?
उत्तर-
यह संधि 1960 में भारत के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू तथा पाकिस्तानी राष्ट्रपति मुहम्मद अयूब खान के मध्य में हुई।

प्रश्न 11.
पश्चिमी नहरों के नाम बताओ जिसका जल पाकिस्तान प्रयोग करता है ?
उत्तर-
चिनाब, जेहलम तथा सिंध।

प्रश्न 12.
पर्यावरण को कौन-से हिस्सों में विभाजित किया जा सकता है ?
उत्तर-
प्राकृतिक पर्यावरण तथा सांस्कृतिक पर्यावरण।

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प्रश्न 13.
प्रदूषण से आपका क्या भाव है ?
उत्तर-
जब भौतिक पर्यावरण में कुछ ज़हरीले, अनचाहे पदार्थ तथा रसायन मिल जाते हैं उसको प्रदूषण कहते हैं।

प्रश्न 14.
कौन-सा शहर वाहन कार्बन मोनोऑक्साइड छो है ?
उत्तर-
दिल्ली।

प्रश्न 15.
भू-प्रदूषण का कोई एक कारण बताओ।
उत्तर-
जंगलों की लगातार कटाई।

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प्रश्न 16.
वायु प्रदूषण के कोई दो कारकों के नाम बताओ।
उत्तर-
ज्वालामुखी तथा उद्योग।

प्रश्न 17.
उस गैस का नाम बताओ जो ओज़ोन गैस को दूषित कर रही है ?
उत्तर-
CFC क्लोरोफ्लोरो कार्बन।

प्रश्न 18.
प्रदूषण के तीन मुख्य प्रकार बताओ।
उत्तर-

  1. वायु प्रदूषण
  2. जल प्रदूषण
  3. भूमि प्रदूषण ।

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प्रश्न 19.
भारत में सालाना कितना अनाज पैदा किया जाता है ?
उत्तर-
25 करोड़, 70 लाख टन।

प्रश्न 20.
भूमि प्रदूषण को हम किस प्रकार रोक सकते हैं ?
उत्तर-
रासायनिक खादों तथा कीटनाशक दवाइयों का प्रयोग कम करके।

प्रश्न 21.
छूत के रोग लगने वाले कीटाणु कौन-से हैं ?
उत्तर-
बैक्टीरिया, प्रोटोजोआ, परजीवी तथा वाइरस इत्यादि।

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प्रश्न 22.
जल प्रदूषण के लिए ज़िम्मेदार अजीवी मिश्रण कौन-से हैं ?
उत्तर-
तेज़ाब, ज़हरीले नमक, धातु इत्यादि।

प्रश्न 23.
केन्द्र सरकार ने नमामि गंगा प्रोजैक्ट के लिए कितने रुपये जारी किए हैं ?
उत्तर-
20,000 करोड़।

प्रश्न 24.
वायु प्रदूषित कारक संसार की कितनी वायु को दूषित कर रहे हैं ?
उत्तर-
85 प्रतिशत।

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प्रश्न 25.
ऐल्डीहाइड प्रदूषण के साथ स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर-
साँस के रोग हो जाते हैं।

प्रश्न 26.
वायु में धूल के कण SPM कब पैदा होते हैं ?
उत्तर-
उद्योग, खनन, पॉलिश, सूती वस्त्र उद्योग, खनिज तेल इत्यादि के जलने से।

प्रश्न 27.
वायु प्रदूषण के कारण होने वाली भारतीय मौतों की संख्या कितनी है ?
उत्तर-
10 लाख हर साल।

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प्रश्न 28.
भारत में सालाना दूध का कितना उत्पादन होता है ?
उत्तर-
16 करोड़ टन।

प्रश्न 29.
भारत में प्रति व्यक्ति दूध का कितना उपभोग होता है ?
उत्तर-
1032 मि०मी० रोज़ाना।

प्रश्न 30.
संसार की सबसे ऊंची पर्वत माला कौन-सी है ?
उत्तर-
हिमालय पर्वतमाला।

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प्रश्न 31.
भारत में स्तनधारी जानवरों की संख्या कितनी है ?
उत्तर-
86 प्रतिशत।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
प्रदूषण और प्रदूषक में क्या भेद है ?
उत्तर-
प्रदूषण से अभिप्राय वायु, भूमि तथा जल साधनों का अवनयन तथा हानिकारक बनाना है। प्रदूषक उन पदार्थों को कहते हैं जो पर्यावरण में प्रदूषण फैलाते हैं।

प्रश्न 2.
माउनटेन सिकनैस क्या है ?
उत्तर-
यह एक बिमारी है जो कि समुद्र तल से काफी ऊँचाई वाले क्षेत्रों में रहने वाले लोगों में होती है। इसलिए इससे बचने के लिए पहले 2-3 दिन कम ऑक्सीजन वाले क्षेत्रों में रहने के लिए अपने आपको उनके अनुसार ढालना ज़रूरी है।

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प्रश्न 3.
बाण गंगा का क्षेत्र कौन-सा है ?
उत्तर-
सरकरीक एक दलदली खाड़ी है तथा लगभग 96 किलोमीटर लम्बी यह गुजरात तथा सिंध के मध्य में सागरीय सीमा है जिसका दोनों देशों के बीच एक मसला है। इस क्षेत्र को बाण गंगा भी कहते हैं।

प्रश्न 4.
कच्चातीवू टापू का इतिहास क्या है ?
उत्तर-
कच्चातीवू टापू का प्रयोग सबसे पहले मछुआरों द्वारा किया जाता था। इस टापू पर पहले रामनंद के राजा का राज्य होता था जो बाद में अंग्रेज़ों के अधीन आ गया। श्रीलंका का इस पर कब्जा आज के समय में भी है।

प्रश्न 5.
सिंध जल संधि 1968 में नदियों के पानी का विभाजुन कैसे किया गया ?
उत्तर-
सिंध जल संधि 1960 में पूर्वी तथा पश्चिमी नदियों का विभाजन कर दिया गया। पूर्वी नदियों के पानी (सतलुज, व्यास, रावी) पर भारत का तथा पश्चिमी नदियों के पानी (चिनाब, सिंध, जेहलम) पर पाकिस्तान का अधिकार हो गया।

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प्रश्न 6.
पर्यावरण से आपका क्या भाव है ?
उत्तर-
मनुष्य तथा जीव-जन्तुओं के आस-पास फैले घेरे को जिसमें परस्पर मनुष्य विचरते हैं पर्यावरण कहते हैं। इसको मुख्य रूप में दो भागों में विभाजित किया जाता है-

  1. प्राकृतिक पर्यावरण (Natural Environment)
  2. सांस्कृतिक पर्यावरण (Cultural Environment)

प्रश्न 7.
पर्यावरण प्रदूषण क्या है ?
उत्तर-
भौतिक पर्यावरण (जल, वायु, मिट्टी) में जब कुछ ज़हरीले पदार्थ तथा रसायन अधिक मात्रा में इकट्ठे हो जाते हैं पर्यावरण प्रदूषण कहलाता है। यह मुख्य रूप में तीन प्रकार का होता है

  1. जल प्रदूषण
  2. वायु प्रदूषण
  3. मिट्टी प्रदूषण।

प्रश्न 8.
भू/मिट्टी प्रदूषण के क्या कारण हैं ?
उत्तर-
भू/मिट्टी प्रदूषण के मुख्य कारण हैं-

  • रासायनिक खादों, कीटनाशकों, नदीननाशकों तथा ज़हरीली दवाइयों का छिड़काव इत्यादि।
  • शहरों, कस्बों इत्यादि में कूड़े-कर्कट के ढेर।
  • जंगलों के अंतर्गत क्षेत्र का कम होना तथा जंगलों की कटाई।
  • शहरीकरण में वृद्धि।

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प्रश्न 9.
भूमि-प्रदूषण के कारण कृषि पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर-
भूमि प्रदूषण के कारण कृषि पर होने वाले प्रभाव हैं-

  • इस द्वारा मिट्टी की उपजाऊ शक्ति कम हो जाती है।
  • मिट्टी में नाइट्रोजन की स्थिरता कम हो जाती है।
  • मिट्टी अधिक खुरने लगती है।
  • उपजाऊ शक्ति कम होने कारण फसलों का उत्पादन कम हो जाता है।
  • मिट्टी में प्रदूषण के कारण खारापन काफी बढ़ जाता है।

प्रश्न 10.
पोषण-सुपोषण से आपका क्या भाव है ?
उत्तर-
जब जल के दो स्रोतों में रासायनिक खादों के रूप में प्रयोग में लाए जा रहे नाइट्रेट फास्फेट मिलकर जल में खास कर एलगी की वृद्धि का एक कारण बन जाते हैं तथा जिस कारण एलगी को खाने वाले बैक्टीरिया की मात्रा में वृद्धि हो जाती है तथा पानी में मौजूद ऑक्सीजन कम हो जाती है जिस कारण मछलियां इत्यादि मरने लगती हैं इसको पोषण-सुपोषण कहते हैं।

प्रश्न 11.
गंगा नदी को साफ करने के चरणों में से तुरन्त नज़र आने वाले प्रभाव कौन-से हैं ?
उत्तर-
तुरन्त नज़र आने वाले प्रभाव हैं-

  1. गंगा नदी के पानी में तैरता कूड़ा-कर्कट हटाया जाएगा।
  2. लोगों को सफाई के लिए जागरूक करना।
  3. गंदे पानी का निकास गंगा नदी में जाने से रोकना।
  4. आधी जली लाशों को गंगा नदी में फेंके जाने पर पूरी तरह से पाबन्दी।
  5. गंगा घाट के दोबारा से निर्माण करने की योजना।

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प्रश्न 12.
वायु प्रदूषण के प्राकृतिक स्रोत कौन-से हैं ?
उत्तर-
वायु प्रदूषण के मुख्य प्राकृतिक स्रोत हैं-

  1. ज्वालामुखी के विस्फोट कारण निकली जहरीली गैसें।
  2. वायु इत्यादि के साथ उड़ रही रेत।
  3. धूल, मिट्टी।
  4. जंगलों तथा फसलों को लगने वाली आग इत्यादि।

प्रश्न 13.
नाइट्रोजन ऑक्साइड प्रदूषण के मुख्य स्रोत कौन-से हैं तथा स्वास्थ्य पर इसका क्या प्रभाव पड़ता
उत्तर-
नाइट्रोजन ऑक्साइड प्रदूषण के मुख्य स्रोत कोयले तथा वाहनों में से निकला धुआं है तथा इसके कारण साँस के रोग, आँखों की बिमारियाँ, फेफड़ों पर बुरा प्रभाव पड़ता है।

प्रश्न 14.
सल्फर-डाइऑक्साइड के पड़ते प्रभावों का वर्णन करो।
उत्तर-
सल्फर-डाइऑक्साइड (SO.) की बढ़ती मात्रा तेज़ाबी वर्षा का एक कारण बन सकती है इसके साथ इमारतों तथा साथ ही जंगलों का काफी नुकसान हो जाता है। इसके द्वारा नदियों तथा झीलों का पानी भी तेज़ाबी हो जाता

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प्रश्न 15.
सफर को परिभाषित करो।
उत्तर-
सफर-यह प्रकल्प भारत सरकार के पृथ्वी तथा विज्ञान मंत्रालय द्वारा शुरू किए गए हैं जिसमें (WMO) विश्व मौसम विभाग की संस्थाओं द्वारा भारत के महानगरों में प्रदूषण के स्तर को मापा जाता है तथा प्रदूषण के बारे में भविष्यवाणी की जाती है।

प्रश्न 16.
पंजाब की भौगोलिक सिरमौरता के कोई दो पक्ष बताओ।
उत्तर-

  1. पंजाब में हर साल 7.16 लाख मीट्रिक टन दूध का उत्पादन होता है।
  2. पंजाब में प्रति व्यक्ति अंडों का उत्पादन अधिक होता है। भारत में इस पक्ष की औसतन संख्या 35 है जबकि पंजाब में यह संख्या 125 तक है।

लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
सिआचिन ग्लेशियर का महत्त्व बयान करो।
उत्तर-
सिआचिन ग्लेशियर की महत्त्व निम्नलिखित है-

  1. इसके द्वारा नूबर तथा सिंध नदियों को जल प्रदान करवाया जाता है।
  2. पाकिस्तानी हमलावर दक्षिण की तरफ से भारत में दाखिल नहीं होते। यह हमलावरों को आगे बढ़ने से रोकता
  3. सिआचिन का उत्तर तरफ का क्षेत्र इंदिरा कोल, पाकिस्तान के द्वारा गैर-कानूनी तरीके से चीन को दिए गिलगिट, बालिस्तान के क्षेत्रों की सकीम घाटी पर नज़र बनाए रखने का स्थान है।
  4. चीन भी सिआचिन को हासिल करने की इच्छा रखता है, क्योंकि चीन तथा पाकिस्तान के आपसी गठजोड़ में यह अहम् भूमिका निभा सकता है।
  5. भारत तथा पाकिस्तान के बीच 1949 के कराची समझौते के आधार पर गोलाबंदी रेखा NJ9842 प्वाइंट से आगे है अर्थ है कि ग्लेशियरों के उत्तर दिशा में।
  6. यह ग्लेशियर पाकिस्तान के सैनिकों को सेल्टरों कंधी के पश्चिम की तरफ ऊंचाई का लाभ देता है। जो कि रणनीतिक लाभ है।

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प्रश्न 2.
सरकरीक की खाड़ी पर नोट लिखो।
उत्तर-
सरकरीक एक दलदली खाड़ी है। यह खाड़ी गुजरात तथा सिंध क्षेत्रों के बीच स्थित है। स्वतन्त्रता से पहले गुजरात के क्षेत्र पर अंग्रेज़ों का राज्य था तथा पाकिस्तान का दावा है कि कच्छ का क्षेत्र-तत्कालीन बादशाह तथा सिंध की सरकार के बीच 1914 में हुए समझौते के मुताबिक पाकिस्तान का होना चाहिए। यह एक सागरीय सीमा है जिसकी लंबाई लगभग 96 किलोमीटर है। इस क्षेत्र को बाण गंगा भी कहते हैं। 1914 में हुए समझौते के अनुसार सरकरीक के पूर्वी किनारे को भारत सीमा मानते हैं।

प्रश्न 3.
सरकरीक की खाड़ी की मुख्य विशेषता क्या है ?
अथवा
सरकरीक की खाड़ी की आर्थिक महत्ता किन तत्त्वों से पता चलती है ?
उत्तर-
सरकरीक की खाड़ी दलदली खाड़ी जो गुजरात तथा सिंध के क्षेत्रों के बीच स्थित है। इस खाड़ी की सैनिक महत्ता कम है पर आर्थिक महत्त्व काफी है। इसका महत्त्व निम्नलिखित है-

  • इस स्थान पर खनिज तेल तथा प्राकृतिक गैस के बड़े भंडार हैं।
  • हाइड्रोकार्बनों के अस्तित्व की बड़ी संभावना है।
  • मछुआरों की गतिविधियां काफ़ी तेज हैं। इस स्थान पर पाकिस्तान तथा भारत के मछुआरे मछलियां पकड़ने का काम करते हैं।
  • जब एक बार इसकी सीमा निर्धारित कर दी जाएगी तब यह समुद्री सीमा को निश्चित कर देंगी जिसके साथ
    आर्थिक क्षेत्र की सीमाएं भी सीमित हो जाएंगी तथा आर्थिक ज़ोन (EEZ) 200 नोटीकल मील (370 km) तक फैल जाएगा जिसके साथ वाणिज्य संबंधी उपयोग शुरू हो जाएगा।

प्रश्न 4.
वायु प्रदूषण के मानवीय स्वास्थ्य पर पड़ते प्रभावों का वर्णन करो।
उत्तर-
वायु प्रदूषण के कारण मानव स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव इस प्रकार हैं-

  1. वायुमंडल की ओजोन परत रासायनिक पदार्थों के कारण नष्ट होती जा रही है। क्लोरो-फ्लोरो कार्बन तथा हिमनदी के सिकुड़ने इत्यादि के कारण ओजोन परत नष्ट हो रही है।
  2. वायु प्रदूषण के कारण मानव को कई प्रकार की बिमारियों का सामना करना पड़ता है जैसे कि फेफड़ों की बिमारियां, गले की बिमारियां तथा चमड़ी की बिमारियां इत्यादि।
  3. काला धुआं इत्यादि के इकट्ठा करने के साथ जो मुख्य क्षेत्रों में तथा शहरों में हो रहा है इसका कारण जहरीली गैसें हैं जो वायुमंडल में प्रचलित हैं।
  4. वायु प्रदूषण तेज़ाबी वर्षा का कारण बनती है।

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प्रश्न 5.
भारत में वायु प्रदूषण के कोई चार स्रोतों का वर्णन करो।
उत्तर-
वायु प्रदूषण के प्रमुख स्रोत हैं-

  1. प्राकृतिक स्रोत-जैसे-ज्वालामुखी विस्फोट, धूल, तूफान, अग्नि इत्यादि।
  2. उद्योग-उद्योगों से निकली गैसें, धूल कण इत्यादि।
  3. फैक्टरी-फैक्ट्रियों से निकला धुआं तथा राख इत्यादि।
  4. मोटर वाहनों से मोनोक्साइड और सीसा वायुमंडल में छोड़े जाते हैं। यही नहीं ओज़ोन की परत को पतला करने वाला क्लोरोफ्लोरो कार्बन भी वायुमंडल में छोड़ा जाता है।

प्रश्न 6.
ऑपरेशन जिब्राल्टर (Operation Gibraltar) पर नोट लिखो।
उत्तर-
ऑपरेशन जिब्राल्टर एक कोड नाम है जो पाकिस्तान की कूटनीति जो जम्मू तथा कश्मीर में प्रवेश करने की थी तथा प्रवेश करके वहाँ पर एक विद्रोह शुरू करना था। यदि यह विद्रोह शुरू हो जाता तो पाकिस्तान का अधिकार जम्मू-कश्मीर पर हो जाना निश्चित था। 1965 में पाकिस्तान की सेना आजाद कश्मीर रैगुलर फोर्स जम्मू तथा कश्मीर में दाखिल हुई। कश्मीरी मुसलमानों को अपने साथ मिलाने के लिए यह ऑपरेशन 1965 की भारत-पाकिस्तान की लड़ाई का एक कारण बना। वास्तव में 1950 से 1960 तक के वर्षों से ही पाकिस्तान सिआचिन पर अपना अधिकार करना चाहता था तथा सैनिक नफ़री को बढ़ाकर पाकिस्तान मसले को जीवित भी रख रहा था। 1984 तक भारत तथा पाकिस्तान के 2000 तक सैनिक अपनी जान खो चुके थे, क्योंकि पर्यावरण काफी कठोर था।

प्रश्न 7.
कच्चातीवू के मसले को लेकर इंदिरा गांधी की एमरजैंसी पर नोट लिखो।
उत्तर-
1974 में कच्चातीवू श्रीलंका को सौंपा गया था। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के द्वारा यह इलाका इंडो-श्रीलंका मैरीटाइम ऐग्रीमैंट के अनुसार श्रीलंका के हिस्से कर दिया था। इस ऐग्रीमैंट के बाद तमिलनाडु के मुख्यमंत्री करुणानिधि ने मज़बूरन इंदिरा गांधी को लिखा था कि किसी समय यह धरती इतिहास में रामनद के अंतर्गत होती थी। भारत कच्चातीवू टापू पर श्रीलंका में कब्जे को मानता तो है पर इस कब्जे को कोई कानूनी मान्यता नहीं मिली क्योंकि तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने सन् 1974 में संसद् की मंजूरी के बिना टापू का मालिकाना श्रीलंका को दिया। कुछ समय के बाद फिर 1976 में एक ऐग्रीमैंट पास हुआ जिसमें दोनों ने तमिलनाडु तथा श्रीलंका के मछुआरों को एक-दूसरे के इलाके में जाने पर रोक लगा दी गई।

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प्रश्न 8.
भूमि प्रदूषण क्या है ? इसके पर्यावरण तथा शहरों पर पड़ते प्रभाव के बारे में बताओ।
उत्तर-
भूमि में जैविक तथा अजैविक पदार्थों की एक पतली परत होती है। जब मिट्टी में जहरीले पदार्थ का जमाव हो जाता है तथा मिट्टी की रासायनिक, भौतिक संरचना बुरी तरह खराब हो जाती है। भूमि प्रदूषण कहलाता है। इसका पर्यावरण तथा शहरों पर पड़ने वाला प्रभाव निम्नलिखित है-

पर्यावरण पर प्रभाव-

  1. इस प्रदूषण के कारण वनस्पति की काफी कमी होती है।
  2. इस प्रदूषण के कारण पारिस्थितिक तंत्र भी नष्ट होता है।
  3. मिट्टी के आवश्यक जैविक-अजैविक बैक्टीरिया की कमी भी आ जाती है।

शहरों पर प्रभाव –

  1. सीवरेज कूड़े तथा मिट्टी के साथ भर जाता है।
  2. सीवरेज का प्रवाह थम जाता है।
  3. कूड़े के ढेर लग जाते हैं जिस कारण बदबूदार तथा ज़हरीली गैसें मिट्टी में मिलने लगती हैं।

प्रश्न 9.
सिंध जल संधि का भारत के लिए होने वाले महत्त्व का वर्णन करो।
उत्तर-
सिंध जल संधि 9 सितंबर, 1960 तक भारत के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू तथा पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान के बीच हुई थी।

  • सिंध जल संधि के कारण पिछले 58 सालों में भारत शांतिपूर्ण तरीके से सिंध नदियों का पानी प्रयोग कर रहा है।
  • इस संधि के प्रबंध अनुसार सिंध तथा इसकी सहायक नदियों का जल भारत तथा पाकिस्तान दोनों देशों के द्वारा प्रयोग किया जा रहा है, जबकि संधि के अनुसार व्यास, रावी तथा सतलुज भारतीय सरकार तथा सिंध, चिनाब तथा जेहलम के जल का अधिकार पाकिस्तान की सरकार के पास है।
  • इस संधि के अनुसार जहां सिंध नदी भारत में दाखिल होती है। भारत इसका 20 प्रतिशत पानी प्रयोग कर सकता है। यह जल सिंचाई, यातायात इत्यादि के लिए प्रयोग किया जाता है।
  • इस संधि के द्वारा मध्यम वाला रचनातन्त्र मिलता है जो बीच के झगड़ों का निपटारा भी करता है। इस तरह जैसे सिंध नदी तिब्बत (चीन) में शुरू होती है जिसने इस संधि को संभाला हुआ है। यदि चीन इसके जल को रोक ले तो यह भारत तथा पाकिस्तान दोनों देशों पर प्रभाव डालेगा।

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प्रश्न 10.
गंगा नदी के जल प्रदूषकों तथा प्रदूषण के प्रकार के बारे में बताओ।
उत्तर-
गंगा नदी के मुख्य पानी प्रदूषकों हैं-

  1. कानपुर के नीचे का भाग।
  2. वाराणसी के नीचे।
  3. फरक्का बैरज़ से इलाहाबाद तक।

प्रदूषण के प्रकार-

  1. कानपुर जैसे नगरों में औद्योगिक प्रदूषण फैल रहा है।
  2. घरेलू अपशिष्ट पदार्थों के फैलाव के कारण जो मुख्य रूप में शहरी क्षेत्रों से अधिक आता है।
  3. पशु लाशों या मृत शरीरों को पानी में फेंकना जिस कारण गंगा नदी के जल में प्रदूषण की समस्या बढ़ती जा रही है।
  4. फैक्ट्री तथा उद्योगों इत्यादि का गंदा जल नदी में जा रहा है, जिस कारण नदी का पानी गंदा हो रहा है।

प्रश्न 11.
वायु में मौजूद धूल के कण SPM पर नोट लिखो।
उत्तर-
वायु में मौजूद धूल के कण (Suspended Particulate Matter) बहुत बारीक से लेकर बड़े-बड़े आकार के हो सकते हैं; ऐसे कण हमें खासकर उद्योगों से, खनन की प्रक्रिया से, सूती वस्त्र उद्योग से, खनिज तेल के ईंधन के साथ पैदा होते हैं। इनका आकार 2.5 माइक्रोमीटर से लेकर 10 मिलीमीटर तक हो सकता है। ठंडे तथा नमी वाले हालातों में संघनन की क्रिया में न्यूक्लियस का काम भी यह कण करते हैं तथा कुहरा घना दिखाई देता है। विशेष तौर पर SPM दो प्रकार के होते हैं। एक तो काफी बारीक कण जो 2.5 माइक्रोमीटर तक होते हैं तथा यह सबसे अधिक हानिकारक होते हैं तथा दूसरे मोटे कण जो 10 माइक्रोमीटर तक हैं। ये कण फेफड़ों तक पहुँच कर मनुष्य की मौत का कारण भी बन सकते हैं।

प्रश्न 12.
भारत को सबसे अधिक गौरवान्वित पेश करते पक्ष बताओ।
उत्तर-
भारत को सबसे अधिक गौरवान्वित पेश करते पक्ष हैं-

  • देश का 90% तक का हिस्सा 85°C से 52°C तापमान के बीच के औसत क्षेत्र में पड़ता है तथा देश में हर समय पौधों के उगने के हालात होते हैं जिसके कारण किसान फसलों की पैदावार सहज रूप में कर सकता है।
  • भारत में 19.1 प्रतिशत पशुधन हैं जिसके कारण भारत दूध का बड़ा उत्पादक है।
  • बड़ी संख्या में आर्थिक मध्य वर्ग भारत में प्रवास कर रहा है जो कि अपने जीवन का स्तर सुधारने के लिए खुल कर खर्चा करने तथा संसार के उत्पादकों को खरीदने की ताकत रखता है।
  • भारत में उत्पादन लागतें भी कम हैं।
  • भारत हर साल 25 करोड़ 70 लाख टन अनाज पैदा करता है।

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निबंधात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

प्रश्न 1.
भूमि प्रदूषण क्या है ? भूमि प्रदूषण के स्रोत, कारण, प्रभाव तथा रोकने के सुझाव बताओ।
अथवा
भूमि (मिट्टी) प्रदूषण पर नोट लिखो।
उत्तर-
भूमि (मिट्टी) प्रदूषण (Soil Pollution)-कंकरीट, इमारतों तथा सड़कों इत्यादि के उभार के कारण, एक धरती का हिस्सा जो पहले मिट्टी के साथ ढकी हुई थी। इसके अलग-अलग नाम हैं जैसे कि मिट्टी, गीली मिट्टी, कीचड़, भूमि इत्यादि तथा यह सारे हमारे लिए बहुत आवश्यक हैं जो पौधे हमें भोजन प्रदान करते हैं, मिट्टी में ही पैदा होते हैं तथा हमें स्वस्थ (तंदरुस्त) बनाते हैं। पर बाकी प्राकृतिक स्रोतों की तरह धरती का मिट्टी स्रोत भी गंदा हो रहा है। मिट्टी प्रदूषण का मुख्य कारण मनुष्य द्वारा फैलाई गंदगी है। जब मिट्टी में जहरीले पदार्थों के जमाव होने के कारण मिट्टी में मौजूद जैविक तथा अजैविक पदार्थों की पतली परत नष्ट होनी शुरू हो जाती है जिस कारण मिट्टी की उपजाऊ शक्ति कम होनी शुरू हो जाती है। इसको भूमि (मिट्टी) प्रदूषण कहते हैं।

स्रोत (Sources)-मिट्टी को प्रदूषित करने वाले जहरीले पदार्थ हैं-पारा, तेज़ाब, सीसा, तांबा, जिंक, कैडमियम, खार, साइनाइड, करोमेट, कीटनाशक, रासायनिक खादें तथा रेडियोधर्मी पदार्थ, फैक्ट्रियाँ तथा उद्योगों में से निकला फालतू पदार्थ।

मिट्टी प्रदूषण के मुख्य कारण (Main Causes of Soil Pollution)-
1. औद्योगिक क्रियाओं का योगदान (Role of Industrial Activities)-यह पिछली सदी से काफ़ी अधिक बढ़ गया है। खासकर जब से निर्माण उद्योग तथा खनन की गतिविधियाँ बढ़ गई हैं। अधिकतर उद्योगों के लिए कच्चा माल खानों से धरती की खुदाई करके निकाला जाता है। इस प्रकार औद्योगिक विकास के कारण धरती पर मिट्टी प्रदूषित हो रही है।

2. कृषि क्रियाएं (Agricultural Activities) रासायनिक खादों, कीटनाशकों इत्यादि का प्रयोग फसल की पैदावार को बढ़ाने के लिए किया जाता है। इस प्रकार कई रसायनों का मेल होता है जो कि प्राकृतिक तौर पर नष्ट नहीं किए जा सकते। इस प्रकार यह रसायन धीरे-धीरे मिट्टी की उपजाऊ शक्ति को कम करते हैं। कई रसायन मिट्टी की बनावट को भी खराब करते हैं।

3. कूड़ा-कर्कट का निष्कासन (Disposal of Garbage/Wastage) अधिकतर हम कई बार अपने घर के कूड़े-कर्कट का निष्कासन करते हैं। औद्योगिक फालतू पदार्थों के अतिरिक्त मनुष्य अपने गंदे सामान का निष्कासन करता है जिस कारण कई बार सीवरेज़ के पानी के साथ मिलने के कारण गंदगी फैलती है।

4. तेल का छलकाव (Oil Spill)-कई बार पाइप द्वारा जब तेल को एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचाया जाता है। तब उस समय कई बार तेल लीक हो जाता है जिस कारण यह तेल मिट्टी में मिल जाता है तथा मिट्टी प्रदूषित हो जाती है।

5. तेजाबी वर्षा (Acid Rain)-एसिड तेजाबी वर्षा तब होती है जब प्रदूषिक मौजूद वायु में मिल जाते हैं तथा वर्षा के साथ धरती पर गिरते हैं तथा यह गंदा पानी मिट्टी के साथ मिल कर मिट्टी को भी गंदा कर देते हैं।

6. बड़ी मात्रा में शहरों तथा गाँवों में लगे कूड़े के ढेर भी प्रदूषण का कारण बनते हैं।

7. शहरीकरण के कारण भी मिट्टी प्रदूषण में लगातार वृद्धि हो रही है।

8. जंगलों की हो रही अंधा-धुंध कटाई भी मिट्टी प्रदूषण का एक बड़ा कारण सिद्ध हो रही है।

9. गहन कृषि भी प्रदूषण की समस्या को बढ़ा रही है।

10. सड़कों का मलबा इत्यादि।

मिट्टी प्रदूषण के प्रभाव (Effects of Soil Pollution)-

1. मानव के स्वास्थ्य पर प्रभाव (Effect on Human Health)—पहले इस पक्ष पर ध्यान देना चाहिए कि मिट्टी एक कारण है जो हमारी ज़िन्दगी को संभाल रही है। इसमें प्रदूषण की मात्रा की वृद्धि का मनुष्य के स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव पड़ता है। पौधे तथा फसलें जो इस प्रदूषित मिट्टी में उग रहे हैं अपने अंदर ये प्रदूषिक तत्त्व समा लेते हैं जो हमारे तक पहुंच जाते हैं। इस प्रकार मनुष्य को कैंसर जैसी बीमारियां हो जाती हैं। इसके बिना जैव ईजाफा (Eutrophication) हो जाता है। पृथ्वी पर पड़े बड़े कूड़े के ढेरों से जहरीली गैसें मिट्टी में मिल जाती हैं जो मनुष्य की प्रजनन शक्ति को कम कर देती हैं। कैंसर या मन मितलाने जैसे खतरनाक रोग मनुष्य को लग जाते हैं। इसके बिना भोजन पर होने वाले इसके प्रभाव के कारण मनुष्य अंदर जैसे भोजन के खाने के बाद फूड प्वाइजनिंग जैसी बीमारियां हो जाने की संभावना बढ़ जाती हैं।

2. पेड़-पौधों पर प्रभाव (Effect on Growth of Plants)-पर्यावरण व्यवस्था पर प्रभाव पड़ता है जब मिट्टी
लगातार प्रदूषित होती जाती है। जब कम समय में ही मिट्टी तेजी के साथ बदलती है तब पौधों तथा मिट्टी की रसायन प्रक्रिया पूरी तरह बदल जाती है। फंगी तथा बैक्टीरिया की मिट्टी में मात्रा कम होनी शुरू हो जाती है जिस कारण मिट्टी प्रदूषित होने लगती है। धीरे-धीरे मिट्टी की उपजाऊ शक्ति कम हो जाती है। मिट्टी में नाइट्रोजन स्थिरता भी कम हो जाती है। मिट्टी अपरदन अधिक है, जिस कारण पेड़-पौधों तथा फसलों के उत्पादन में कमी आ जाती है।

3. जहरीली धूल (Toxic Dust)-कूड़ा-कर्कट में कई तरह की जहरीली गैसें निकलती हैं जो पर्यावरण को गंदा करती हैं तथा मनुष्य के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डालती हैं। इस धूल की बदबू मनुष्य को कठिनाइयों में डाल देती है।

4. पर्यावरण पर प्रभाव (Effects on Environment)-इस द्वारा वनस्पति कम हो जाती है तथा पारिस्थितिक तंत्र भी तहस-नहस होता है।

5. शहरों का प्रभाव (Effects m Cities)-नालियां कूड़ा इत्यादि तथा मिट्टी से भर जाती हैं तथा पानी के सीवरेज प्रवाह में मुश्किलें पैदा हो जाती हैं।

मिट्टी प्रदूषण को रोकने के लिए सुझाव (Control Measures for Soil Pollution)-

  • मिट्टी प्रदूषण को रोकने के लिए हमें फालतू सामान तथा प्लास्टिक का प्रयोग कम करना चाहिए तथा उपयोग किए गए फालतू सामान को इकट्ठा करके कबाड़ी तक पहुंचाना चाहिए ताकि इसको दोबारा प्रयोग योग्य बनाया जा सके।
  • रासायनिक खादों पैस्टीसाइड, फर्टीलाइजर इत्यादि का प्रयोग कृषक गतिविधियों को कम करना चाहिए।
  • लोगों को चार R से परिचित करवाना चाहिए। यह चार R हैं Refuse मतलब कि पॉलिथीन लिफाफे इत्यादि लेने से मना कर देना, Reuse द्वारा प्रयोग, Recycle द्वारा उत्पादन तथा Reduce कम करना इत्यादि।
  • पैकट चीजें खरीदने से परहेज़ करो बाद में यह पैकट ही कूड़े के ढेर बन जाते हैं, धरती पर कूड़े के ढेर लगाने नहीं चाहिए।
  • ध्यान रखो कि फालतू गंदगी या कूड़ा-कर्कट न फैलाओ।
  • हमेशा स्वाभाविक तरीके से सड़नशील पदार्थ खरीदो।
  • हमेशा जैविक कृषि करो तथा जैव भोजन खाओ तथा रासायनिक दवाइयों का प्रयोग कम करो।
  • हमें ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाने चाहिए।
  • कूड़े के पड़े ढेरों पर बिजली बनाने का काम लिया जाना चाहिए।
  • निर्माण के कामों पर सामान की बर्बादी को कम करना चाहिए।

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प्रश्न 2.
जल प्रदूषण क्या है ? इसके कारण, प्रभाव तथा सुझाव के बारे चर्चा करो।
अथवा
जल प्रदूषण पर नोट लिखो।
उत्तर-
जल प्रदूषण (Water Pollution)-जल प्रदूषण की समस्या विश्वव्यापी समस्या है। जल के स्रोतों (नदियों, झरने, समुद्र तथा नीचे वाले पानी) इत्यादि के प्रदूषण को जल प्रदूषण कहते हैं। यह पर्यावरण में औद्योगिक प्रदूषकों के द्वारा होता है जो सीधे या असीधे तौर पर पानी में विसर्जित होते हैं। बिना किसी शोधन से जब कई कारखानों का या घरों का गंदगी पानी में घुल जाता है तब वह पानी को प्रदूषित बनाता है।

जल प्रदूषण के स्त्रोत (Sources of Water Pollution)-जल प्रदूषण के मुख्य स्रोत हैं : –

1. बिन्दु स्रोत (Point Resources)—जो प्रदूषिक पानी में किसी एक खास स्रोत से आ रहे हो जैसे कि सीवरेज पाइपों या कारखानों में पाइपों के द्वारा गंदे पदार्थ का बहाव जब नदियों, झीलों तथा अन्य साफ जल के स्रोतों के साथ मिल जाता है तब जल प्रदूषित हो जाता है।

2. गैर-बिन्दु स्रोत (Non-Point Sources) गैर-बिन्दु स्रोत बिखरे हुए बेकार पदार्थों के कारण पैदा होते हैं।
यह किसी एक खास स्रोत से नहीं आते। इनके मुख्य स्रोत हैं-कृषि वाले क्षेत्र, जंगल, गाँव तथा शहर, सड़कों पर बहने वाला जल जब साफ जल से मिल जाता है। इस प्रकार पानी दूषित हो जाता है। गैर-बिन्दु स्रोतों के कारण जो प्रदूषण फैलता है। इसको कंट्रोल करना काफ़ी मुश्किल है।

जल प्रदूषण के कारण तथा प्रभाव (Causes and Effects of Water Pollution)-
1. प्राकृतिक कारण (Natural Causes) वर्षा के जल में वायु में गैसें तथा धूल कण इत्यादि मिल जाने के कारण यह जल जहाँ पर भी जमा होता है वहां जल को प्रदूषित कर देता है। इसके अतिरिक्त ज्वालामुखी इत्यादि भी इसके महत्त्वपूर्ण कारण हैं।

2. रोग लगाने वाले कीटाणु (Pathogens)—यह प्रदूषण कई रोगों का जनक भी है। इस कारण बैक्टीरिया, जीवाणु, परजीवी, वाइरस इत्यादि होते हैं। यह मुख्य रूप में जल के एक स्थान इकट्ठे रहने के कारण आते हैं। इसके अतिरिक्त यह सड़े-गले पदार्थों में भी पैदा होते हैं।

3. दूषित पदार्थ (Polluted Substances)-इसमें कार्बनिक तथा अकार्बनिक हर प्रकार के पदार्थ जो नदियों में नहीं होने चाहिए, इस श्रेणी में आते हैं। वस्त्रों की धुलाई या बर्तनों को साफ करना, मनुष्य या जानवरों का साबुन का प्रयोग करना। इसके साथ साबुन पानी में मिल जाता है। खाद्य पदार्थ इत्यादि अन्य पदार्थों के जल में मिलने से भी जल प्रदूषित हो जाता है। पेट्रोल इत्यादि पदार्थों के रिसाव से समुद्री जल प्रदूषित हो जाता है। पेट्रोल का आयात-निर्यात समुद्रों द्वारा किया जाता है। इन जहाज़ों में कई बार रिसाव होने के कारण जहाज़ किसी दुर्घटना के शिकार हो जाते हैं। उसके डूबने से तेल समुद्र में फैल जाता है तथा जल प्रदूषित हो जाता है।

4. अजीवी मिश्रण (Toxic Substances)-कई प्रकार के तेज़ाब, ज़हरीले नमक, धातु इत्यादि भी पानी को प्रदूषित बनाते हैं तथा जल को अयोग्य बना देते हैं।

5. कई स्थानों पर जहां लोग नदी के किनारे जाकर रहने लगे हैं। वे लोग किसी व्यक्ति की मौत के बाद उनकी लाशों को जलाने की बजाए नदी में बहा देते हैं। जैसे-जैसे लाश सड़कर गलने लगती है वैसे ही जल में कीटाणुओं की संख्या बढ़ने लगती है जिसके साथ पानी प्रदूषित होता है।

6. अक्सर किसी त्योहार पर मूर्तियों की पूजा करके मूर्तियों का विसर्जन समुद्र, नदी या फिर तालाबों में किया जाता है। यह भी जल को प्रदूषित करती है। हमें चाहिए कि त्योहार समय ऐसी मूर्तियों का प्रयोग करना चाहिए जिसमें प्राकृतिक रंगों का प्रयोग किया गया हो ताकि प्रदूषण कम हो।

7. जब नदी या तालाब के जल में Nuclear Test किया जाता है तब वह टैस्ट के दौरान जल में न्यूक्लियर के कुछ पार्टीकल रह जाते हैं जिससे जल दूषित हो जाता है।

8. किसानों द्वारा कृषि में प्रयोग किए गए रसायन भी जल में मिल जाते हैं जिसके साथ ही जल प्रदूषित हो जाता है।

जल प्रदूषण को रोकने का सुझाव (Measures to Control Water Pollution) हम सभी जानते हैं कि जल ही जीवन है तथा यदि इस जल प्रदूषण को समय रहते ठीक न किया गया तब वह दिन दूर नहीं जब एक देश दूसरे देश के साथ जल की प्राप्ति के लिए लड़ेगा। इस प्रदूषण को रोकने के कुछ सुझाव हैं-

1. तालाब या नदी में कपड़े या बर्तन न धोएं जाएं। अक्सर देखा गया है कि धोबी या आस-पास रहने वाले लोग कपड़े तथा बर्तन तालाब में धोते हैं। इस प्रकार जल में रहने वाले जीव-जन्तु तथा जल को हानि पहुँचती है इसलिए इसको बंद किया जाना चाहिए।

2. जानवरों को तालाबों में न नहाने दिया जाए क्योंकि तालाब का जल स्थिर रहता है तथा जानवरों के नहाने के साथ जल धीरे-धीरे गंदा हो जाता है तथा बाद में किसी भी चीज़ के लिए उपयोगी नहीं रहता।

3. राइप्रेयन बफ़र नदी के साथ-साथ उगने वाले वृक्षों तथा पेड़-पौधों की कतारें होती हैं, जो कि आस-पास के क्षेत्रों के नहर इत्यादि के जल की रक्षा करती हैं तथा जैव भिन्नता में वृद्धि भी करती हैं। आम लोगों तथा सरकारों को इस बफ़र में वृद्धि करनी चाहिए तथा वृक्षों को काटने पर रोक लगानी चाहिए।

4. हमें जल प्रदूषण को रोकने के लिए बनाए गए सारे कानूनों का पालन करना चाहिए। भारत के लगभग सारे राज्यों में 1947 में कानून बना था। यह कानून इस बात को आवश्यक करता है कि सारे परिषद् के उद्योग प्रयोग किए गए गंदे पानी को नदियों इत्यादि में फेंकने से पहले उसको साफ करें तथा फिर नदी में छोड़ें।

5. उद्योगों तथा औद्योगिक संसाधनों को अधिक ज़िम्मेदारी के साथ व्यवहार करना चाहिए।

6. जहरीले कचरे का उचित निपटारा करना चाहिए। जिन फैक्ट्रियों में पेंट, साफ सफाई तथा दाग मिटाने वाले रसायनों का प्रयोग किया जाता है जहां से निकलने वाले पानी की उचित सफाई शौध होनी आवश्यक है। कार या अन्य मशीनों से होने वाले तेल के रिसाव पर भी पूरी तरह से रोक लगनी आवश्यक है।

7. जल में उपजने वाले पौधे जो पानी को साफ रखते हैं। हमें अधिक-से-अधिक ऐसे पौधे लगाने चाहिए।

8. मृतक शरीरों को नदियों में नहीं फेंकना चाहिए। हर शहर तथा कस्बे में सीवरेज की पूरी सुविधा होनी चाहिए।

9. हमें मल-मूत्र तथा सीवरेज के जल को शहरों तथा कस्बों में रहने वाले जल से मिलने से रोकना चाहिए। उनको खड्डों में प्रवाहित करना चाहिए। ऐसा करने के साथ वह खाद में बदल जाएंगे तथा कृषि के लिए इस्तेमाल किए जा सकेंगे।

10. जल में बैक्टीरिया को खत्म करने के लिए इसमें ब्लीचिंग पाऊडर या अन्य रसायनों का प्रयोग किया जा सकता है।

11. अंधाधुंध कीटनाशकों के प्रयोग को कम करना चाहिए।

12. प्राकृतिक कृषि करने के लिए किसानों को उत्साहित करना चाहिए तथा पशुओं के गोबर का प्रयोग खाद के तौर पर किया जाना चाहिए।

13. समुद्र इत्यादि जल स्रोतों के जल में मिले हुए तेल को साफ करने के लिए कागज़ उद्योग के एक बचे हुए उत्पाद – बीगोली का प्रयोग किया जा सकता है।

PSEB 12th Class Geography Solutions Chapter 8 चुनिन्दा परिप्रेक्ष्य (मुद्दों) तथा भौगोलिक दृष्टिकोण पर एक नज़र

प्रश्न 3.
वायु प्रदूषण पर नोट लिखो।
उत्तर-
वायु प्रदूषण (Air Pollution)-वायुमंडल पर्यावरण का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है। मानव जीवन के लिए वायु का होना बहुत आवश्यक है। वायु के बिना मानवीय जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती क्योंकि मानव वायु के बिना 5-6 मिनट से अधिक नहीं रह सकता। एक मनुष्य दिनभर में औसतन 20 हजार बार सांस लेते हैं। इसके दौरान मानवं 35 पौंड वायु का प्रयोग करता है। अगर यह प्राण देने वाली वायु शुद्ध नहीं होगी तो यह प्राण देने के बजाए प्राण ले लेगी। वायुमंडल में नाइट्रोजन, ऑक्सीजन, कार्बन-डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोआक्साइड इत्यादि गैसें एक निश्चित अनुपात में होती हैं जब इनके संतुलन में परिवर्तन आता है तब वायुमंडल अशुद्ध हो जाता है। वायु में जब ज़हरीले तथा अनचाहे पदार्थ घुलकर वायु को दूषित कर देते हैं तब वह हवा मनुष्य स्वास्थ्य तथा पर्यावरण पर बुरा प्रभाव डालती है।

वायु प्रदूषण के स्रोत (Sources of Air Pollution)-

1. प्राकृतिक स्रोत (Natural Sources) ज्वालामुखी विस्फोट के कारण निकली गैसों तथा साथ उड़ रही धूल, रेत, जंगलों को लगी आग इत्यादि।

2. मानव द्वारा पैदा किये स्रोत (Man Made Sources)-औद्योगिक क्रियाओं द्वारा निकलने वाले धुएं, मनुष्य द्वारा लगाए गए कूड़े के ढेर, खाना इत्यादि बनाने के लिए लगाई आग, वाहनों के प्रयोग से निकला धुआं इत्यादि। हमारी 85% वायु को कार्बन के ऑक्साइड, नाइट्रोजन के ऑक्साइड, सल्फर के ऑक्साइड, वायु में मौजूद धूल कण, कार्बन के यौगिक, इत्यादि दूषित कर रहे हैं।

हवा प्रदूषण के कारण (Causes of Air Pollution)—विश्व की बढ़ती जनसंख्या ने प्राकृतिक साधनों का अधिक प्रयोग किया है। औद्योगीकरण के कारण बड़े-बड़े बंजर बनते जा रहे हैं। इन शहरों तथा नगरों में जनसंख्या दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। इसके साथ शहरों, नगरों में रहने के लिए स्थान की समस्या आ रही है। इस समस्या को सुलझाने के लिए लोगों ने बस्तियों का निर्माण किया तथा वहाँ जलनिकासी नालियां इत्यादि का अच्छी बंदोबस्त न होने के कारण गंदी बस्ती में वायु प्रदूषण बढ़ रहा है। उद्योगों में से निकलने वाला धुआं, किसानों द्वारा रसायनों का प्रयोग से वायु के प्रदूषण में वृद्धि हो रही है।

उद्योगों में जीवाश्म ईंधन (Use of Fossil Fuels in Industries) अधिकतर वायु प्रदूषक औद्योगिक क्रियाओं कारण पैदा होते हैं। इनसे कुछ उद्योगों में जीवाश्म ईंधन की प्रक्रिया के कारण ओज़ोन तथा नाइट्रोजन ऑक्साइड इत्यादि गैसें निकलती हैं जो वायु को दूषित करती हैं।

घरों को गर्म रखने के लिए कई प्रकार के ईंधन (Fossil Fuels) का प्रयोग जैसे तेल, गैस, कोयला इत्यादि किया जाता है। इनके ईंधन का अर्थ है कि महत्त्वपूर्ण प्रदूषक सल्फर डाइऑक्साइड का पैदा होना। यदि घरों को गर्मी देने के लिए बिजली का प्रयोग किया जाता है तो जो बिजली पैदा करने वाले प्लांट हैं उनको चलाने के लिए भी इन जीवाश्म ईंधनों का ही प्रयोग किया जाता है जिसके साथ वायु प्रदूषित हो जाती है।

ज्वालामुखी इत्यादि के फटने के साथ वायु में कई जहरीली गैसें मिल जाती हैं। सल्फर डाइऑक्साइड इनमें ही एक गैस है जो ज्वालामुखी के फटने से निकलती है। इसके अतिरिक्त जंगलों को लगी आग के कारण कई प्रदूषक वायु में मिल जाते हैं जिसके साथ वायु दूषित हो जाती है।

वायु प्रदूषण के प्रभाव (Effects of Air Pollution)-
1. जब वायुमंडल में लगातार कार्बन-डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड, हाइड्रोकार्बन इत्यादि मिलते रहते हैं तब स्वाभाविक ही है कि ऐसे प्रदूषित पर्यावरण में साँस लेने के साथ साँस से संबंधित बिमारियां होने लगती हैं। इसके साथ ही घुटने, सिरदर्द, आँखों का दर्द, आँखों में जलने इत्यादि बिमारियों का सामना मनुष्य को करना पड़ता है।

2. वाहनों तथा कारखानों से निकलते धुएं में सल्फर डाइऑक्साइड की मात्रा होती है जो कि पहले सल्फाइड तथा बाद में सल्फ्यूरिक अम्ल में बदल जाती है तथा फिर वायु में बूंदों के रूप में रहती है। वर्षा के दिनों में यह वर्षा के जल के साथ धरती पर गिरती है जिसके साथ भूमि की उत्पादन शक्ति कम हो जाती है साथ ही सल्फर डाइऑक्साइड के कारण दमा इत्यादि रोग हो जाते हैं।

3. कुछ रासायनिक गैसें वायुमंडल में पहुंच कर वायु में ओज़ोन मंडल के साथ क्रिया करके उसकी मात्रा को कम कर देती है। ओजोन मंडल ब्रह्मांड से आने वाले हानिकारक विकिरणों को रोकती है। हमारे लिए ओज़ोन मंडल एक ढाल का काम करती है। पर जब ओज़ोन मंडल की कमी होगी तब स्किन कैंसर जैसे भयानक रोग भी हो सकते हैं।

4. वायु प्रदूषण का असर भवनों, स्मारकों इत्यादि पर भी होता है जैसे कि ताजमहल को खतरा मथुरा तेल शोधन कारखाने से हुआ है।

5. वायुमंडल में ऑक्सीजन का स्तर कम होना भी प्राणियों के लिए खतरनाक है क्योंकि ऑक्सीजन भी प्राणियों के लिए आवश्यक है।

6. उद्योगों, खनन, पॉलिश, सूती वस्त्र उद्योग इत्यादि से निकलने वाले धूलकण भी वायु का प्रदूषण फैलाते हैं।

वायु प्रदूषण को रोकने के सुझाव (Measures to Control Air Pollution)-

  • कारखानों को शहरी क्षेत्रों से दूर स्थापित करना चाहिए। साथ ही ऐसी तकनीक का प्रयोग करना चाहिए जिसके साथ धुएं का अधिकतर भाग बाहर न निकले तथा फालतू पदार्थ तथा अधिक गैसों की मात्रा वायु में न मिल सके।
  • जनसंख्या शिक्षा के उचित प्रबंध भी किए जाने चाहिए ताकि जनसंख्या की वृद्धि को रोका जा सके।
  • शहरीकरण की प्रक्रिया को रोकने के लिए गाँव तथा कस्बों में रोज़गार के अच्छे उद्योगों तथा अन्य सुविधाओं की उपलब्धि करवानी चाहिए।
  • वाहनों में से निकलते धुएं को इस तरह समायोजित करना चाहिए कि कम से कम धुआं बाहर निकले।
  • सौर ऊर्जा की तकनीक को प्रोत्साहित करना चाहिए।
  • इस प्रकार के ईंधन का प्रयोग करने का सुझाव देना चाहिए जिसके प्रयोग करने के साथ उसका पूरा ऑक्सीकरण हो जाए तथा धुआं कम से कम निकले।
  • जंगलों की हो रही अंधा-धुंध कटाई को रोका जाना चाहिए। इस काम के लिए सरकार के साथ-साथ स्वयं सेवी संस्थाओं तथा हर एक मानव को आगे आना चाहिए तथा जंगलों की कटाई को रोकना चाहिए।
  • शहरों तथा नगरों में फालतू पदार्थों के निकास के लिए सीवरेज हर स्थान पर होने चाहिए।
  • बच्चों के पाठ्यक्रम में इस विषय प्रति चेतना जागृति करनी बहत आवश्यक है इसकी जानकारी इस कारण होने वाली हानियों के प्रति मानव समाज को सचेत करने के लिए दूरदर्शन, रेडियो, अखबारों इत्यादि के माध्यम द्वारा देनी चाहिए।
  • ताप या उत्प्रेरक ईंधन के साथ प्रदूषित कणों को रोकना चाहिए ताकि उनका नुकसान कम हो।

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प्रश्न 4.
सिआचिन का शाब्दिकार्थ क्या है ? इसका महत्त्व तथा भारत के पक्ष के बारे में वर्णन करो।
उत्तर-
बलोचिस्तान के पास पड़ते क्षेत्र में बलती भाषा में ‘सिआ’ का अर्थ है कि एक प्रकार का जंगली गुलाब तथा ‘चिन’ का अर्थ है ‘बहुतांत’। इस तरह सिआचिन का अर्थ है बड़ी मात्रा में ‘गुलाब के फूल’। सिआचिन ग्लेशियर हिमालय की पूर्वी कराकोरम पर्वतमाला में भारत-पाक नियंत्रण रेखा के पास लगभग स्थिति एक (हिमानी) ग्लेशियर है। यह कराकोरम के पांच ग्लेशियरों में सबसे बड़ा ग्लेशियर है। इसकी समुद्र तल से ऊंचाई इसके स्रोत इंदिरा कोल पर लगभग 5,753 मीटर है तथा सिआचिन ग्लेशियर पर 1984 से भारत का नियंत्रण है तथा भारत जहाँ अपने जम्मू तथा कश्मीर राज्य के लद्दाख खंड के लेह जिले के अधीन प्रशासन करता है। पाकिस्तान ने इस क्षेत्र पर भारत के नियंत्रण का अंत करने के लिए असफल यत्न किए हैं पर वर्तमान में भी सिआचिन विवाद जारी रहा है। भारत तथा पाकिस्तान दोनों ही जहाँ अपने अधिकार का दावा करते हैं। सिआचिन ग्लेशियर का इलाका असल में भारत की दो विवादग्रस्त सीमाओं लाइन ऑफ कंट्रोल (LOC) तथा लाइन ऑफ ऐक्चूअल कंट्रोल (LOAC) की भूमि है।

सिआचिन ग्लेशियर की महत्ता (Importance of Siachan Glacier)-

  • यह ग्लेशियर प्रसिद्ध नूबरा तथा सिंध नदियों को जल प्रदान करने वाला एक बड़ा स्रोत है।
  • सिआचिन ग्लेशियर एक ऐसा स्रोत है जिससे भारतीय उपमहाद्वीप को ताजा जल मिलता है। यह वह स्थान है · जहां नूबर नदी निकलनी शुरू होती है तथा सिंध नदी जो पंजाब के कई क्षेत्रों को कृषि की सिंचाई के लिए जल प्रदान करती है या यहाँ जल लेती है।
  • सिआचिन ग्लेशियर का धुर उत्तरी इंदिरा कोल का क्षेत्र पाकिस्तान की तरफ से गैर-कानूनी ढंग से चीन को दिए गिलगिट-वालिस्तान का क्षेत्र की सरगर्म घाटी पर नज़र रखने के लिए अच्छा स्थान है।
  • चीन की दिलचस्पी भी सिआचिन को हासिल करने की है, क्योंकि चीन पाकिस्तान गठजोड़ में अच्छी भूमिका अदा कर सकता है।
  • यह ग्लेशियर पाकिस्तानी सैनिकों को भी सैल्टरी कंधों की ऊंचाई वाले पश्चिमी हिस्से का रणनीतिक लाभ भी देता है तथा साथ ही लद्दाख की सीओंक घाटी में घुसपैठ को रोकता है।
  • सिआचिन पर कब्जा होने की कोई अवस्था अक्साइचिन तथा अरुणाचल प्रदेश के मुद्दों पर भी प्रभाव डाल सकता है।
  • सिआचिन पर अधिकार होने का मुख्य आधार जम्मू तथा कश्मीर के लद्दाख क्षेत्र के ज़िले पर भारतीय क्षेत्र कारण है।
  • सन् 1949 में हुआ कराची का समझौता (भारत + पाक) जिसके अनुसार ‘गोलाबन्दी रेखा’ को आगे भाव ग्लेशियरों के उत्तर में NJ9842 प्वाईंट।
  • 1972 में हुए शिमला समझौते में 1949 की कंट्रोल रेखा के संबंध पर कोई बदलाव नहीं किया गया।

भारत का पक्ष (India’s Concern)-सिआचिन ग्लेशियर भारत का क्षेत्र है इसमें कोई शक नहीं है। इस क्षेत्र की सीमाबंदी की जानी अभी बाकी है। इस ग्लेशियर पर कब्जे के लिए सैनिकों की जिंदगी तथा अन्य स्रोतों के नुकसान हमेशा सवाल खड़ा करते रहे हैं पर ऐसी कठिनाइयों के बाद भी भारत सरकार तथा भारतीय फौज के फैसलों तथा ज़ज्बे की अन्य कोई मिसाल ढूंढनी मुश्किल है। सिआचिन के देख-रेख के लिए, इस प्राकृतिक स्रोत के स्थान की सुरक्षा के लिए सैनिकों की तथा पर्वतीय देख-रेख दलों की आवश्यकता तो हमेशा ही रहेगी क्योंकि भारत तथा पाकिस्तान दोनों ही इस क्षेत्र पर अपना अधिकार जमा रहे हैं। 1970, 1980 से लगातार एक लाइन NJ9842 करोकोरम दरों से दिखाई दे रही है जिसके बारे में भारत का विचार था कि यह एक कारटोग्राफिक नुक्स है तथा शिमला समझौते के विरोध का कारण बनी है। 1984 ई० में भारत ने ऑपरेशन मेघदूत चलाया जो कि एक सैनिक ऑपरेशन था जो भारत का सिआचिन ग्लेशियर पर उसको उसका कब्जा दिया है।

1984 से 1999 तक भारत और पाकिस्तान के बीच काफी मुठभेड़ हुए। भारत के सैनिकों की तरफ से सिआचिन ग्लेशियर पर हर समय लगे रहने की सैनिक कारवाई को ऑपरेशन मेघदूत का नाम दिया जाता है। सिआचिन ग्लेशियर पर कब्जे का मामला सियासी भी था तथा राजनीतिक स्तर पर भी हल मांग रहा है पर पिछले कुछ सालों में यह मुद्दा तथा क्षेत्र सिर्फ एक सैनिक कार्रवाई का आधार बन गया है। भारत ने सिआचिन पर अपनी अस्तित्व की प्रारंभिक संरचना पूरी तरह तैयार कर ली है तथा यह दावा करने वाले दोनों पक्षों भाव चीन तथा पाकिस्तान से अधिक अच्छा स्थिति में पहुंच गया है। भारतीय सेना क्षेत्र के प्राकृतिक स्रोतों के साथ किसी भी प्रकार की छेड़खानी करने को छोड़कर उनकी रक्षा कर रही है।

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प्रश्न 5.
1960 की सिंध जल संधि पर एक नोट लिखो।
उत्तर-
सिंध जल संधि जल के वितरण को लेकर भारत तथा पाकिस्तान के बीच हुई थी। इस संधि पर कराची में 19 सितंबर, 1960 को भारत के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू तथा पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान ने हस्ताक्षर किए थे। इस समझौते के अनुसार तीन पूर्वी नदियों-व्यास, रावी, तथा सतलुज का नियन्त्रण भारत के पास तथा पश्चिमी नदियों-सिंध, चिनाब तथा जेहलम का नियंत्रण पाकिस्तान को दिया गया। पर इनके बीच विवादग्रस्त प्रावधान था जिसके अनुसार जल का वितरण किस प्रकार किया जाएगा यह अभी निश्चित होना है, क्योंकि पाकिस्तान के नियंत्रण वाली नदियों का प्रवाह पहले भारत से होकर आता है। संधि के अनुसार भारत को उनका उपभोग सिंचाई के लिए तथा बिजली के उत्पादन के लिए किए जाने की मन्जूरी दे दी गई। सिंध जल संधि के बाद सिंध नदियों के जलतंत्र के जल की पूरी तथा विश्वसनीय प्रयोग करने के लिए आपसी नेक नीति तथा दोस्ताना जज्बे के साथ हदबंदी पर विभाजन हो सके। एकदूसरे के हक तथा ज़िम्मेदारी को ध्यान में रखा गया तथा आपसी सहयोग के साथ इन नदियों के जल का प्रयोग किया जा सके।

सिंध नदी सिस्टम में तीन पश्चिमी नदियां सिंध, जेहलम तथा चिनाब तथा तीन पूर्वी नदियां सतलुज, ब्यास तथा रावी शामिल हैं। इस संधि के अनुसार रावी, ब्यास तथा सतलुज पूर्वी नदियां पाकिस्तान के प्रवेश करने से पूर्व इन नदियों का जल बेरोक-टोक भारत को प्रयोग की मन्जूरी मिल गई। भारत ने 1960 से 1970 तक के दशक में तथा 1973 तक नहर प्रबंध को पूरी तरह से निर्माण कर लेने तक पूर्वी नदियों के पानी को छुआ तक भी नहीं था। पूर्वी नदियों का जल पाकिस्तान के क्षेत्र में दाखिल हो जाने के बाद पाकिस्तान को उनके प्रयोग की खुली स्वतन्त्रता का हक मिल गया। धारा-III जो कि पाकिस्तान के पश्चिमी नदियों के बारे में है। इसके अनुसार इनके जल के बेरोक प्रयोग का हक पाकिस्तान को है। पर भारत की ज़िम्मेदारी है कि इन नदियों का सारा जल बहने दिया जाए।

सिर्फ 4 स्थितियों के अतिरिक्त बिना घरेलू प्रयोग के, किसी ऐसे उपयोग के लिए प्रयोग जिससे पानी खत्म न हो, कृषि के लिए, बिजली के उत्पादन के लिए। पाकिस्तान की तरह भारत को आजादी है कि वह पश्चिमी नदियों के जल पर पानी की 3.6 MAF मात्रा तक भंडारण कर सकता है पर ऐसे भंडारण में 0.5 MAF जल हर साल छोड़ कर और इकट्ठा करना होगा। सिंध जल संधि, नदियों के बेसिन के विभाजन के पक्ष से पक्षीय विभाजन का एक नमूना है. जो कि दो देशों के इंजीनियरों तथा इंजीनियरी विभाजन का ही एक दस्तावेज है। संधि वास्तव में नदियों के पानी के दोहरे प्रबंध के लिए होनी चाहिए थी पर आपसी झगड़े विभाजन की कड़वाहट ने दोनों ही पक्षों को एक-दूसरे पर शक करने वाला बना बना दिया था। जिस कारण संधि की शर्तों में अधिकार कम तथा प्रतिबन्ध अधिक लिखे गए थे। जिस कारण जम्मू तथा कश्मीर में इस संधि के खिलाफ निराशा फैल गई क्योंकि इस संधि में लोगों की इच्छाओं को नज़रअंदाज किया गया था। यह संधि लोग विरोधी तथा एक तरफ की संधि थी। जिस पर दुबारा से विचार करना बहुत आवश्यक था।

सन् 1960 के बाद पानी की 159 MAF तक की मात्रा में कमी आ गई थी तथा 17MAF रह गई। जिस कारण जम्मू तथा कश्मीर के लोगों को चिंता हो गई। एक अनुमान के अनुसार सन् 2050 तक सिंध का जलतंत्र तथा भारतीय ‘नदियों के पानी की मात्रा में 17 प्रतिशत तक की कटौती का अनुमान लगाया गया तथा पाकिस्तान में पहुँच रहे जल में 27% तक की कमी के अनुमान लगाये गए। मौसमी परिवर्तन के कारण जैसे कि बर्फ का कम टिकना इत्यादि के कारण राष्ट्रीय स्वामित्व तथा प्रबंध सिंध बेसिन की प्राकृतिक सामूहिक एकता बनाने के लिए तथा प्राकृतिक सामूहिक एकता बनाने के प्रयास किए जाने की मांग बढ़ गई।

दक्षिणी एशिया के क्षेत्रों में रोज़ाना बदल रहे मौसम के नज़रिए के कारण, बाँध तथा सिंचाई योजनाओं निर्माण की ज़रूरत में वृद्धि हो गई पर यह कार्रवाई हर पक्ष से पूर्ण होनी ज़रूरी है। भारत ने जल संधि को पूरी ईमानदारी के साथ निभाया है तथा तीन लड़ाइयां, आतंकवाद तथा अन्य युद्ध तथा ठंडे संबंधों के बाद भी भारत ने इस संधि की शर्तों को भंग नहीं किया। भारत ने अपना आप खोकर भी इस संधि की रक्षा की तथा सारी शर्तों की पालना की, क्योंकि-

  • पाकिस्तान के क्षेत्र में पड़ने वाली पश्चिमी नदियों का जल अधिक है तथा पाकिस्तान का 80 प्रतिशत जल पर अधिकार है तथा इस जल की मात्रा कहीं कम है।
  • 9.7 लाख एकड़ भूमि पर जम्मू तथा कश्मीर के क्षेत्र पर पाबंदी भी लगाई गई कि वह इस भूमि को कृषि के लिए प्रयोग नहीं करेंगे।
  • भारत को इस संधि के द्वारा सिंचाई तथा बिजली उत्पादन के लिए जितना भी जल मिला उसके साथ भारत की जरूरतें कभी पूरी नहीं हुईं।
  • भारत में बनाई गई कोई भी क्षेत्रीय योजना का 1960 की संधि के अनुसार परीक्षण किया जाएगा तथा पश्चिमी नदियों के किनारों के नज़दीक लाई गई हर एक ईंट के बारे में भी प्रसिद्ध पर्यावरण विदों तथा राष्ट्रीय संस्थाओं की सलाह (परामर्श) अनुसार कार्रवाई की गई है।

PSEB 12th Class Geography Solutions Chapter 8 चुनिन्दा परिप्रेक्ष्य (मुद्दों) तथा भौगोलिक दृष्टिकोण पर एक नज़र

चुनिन्दा परिप्रेक्ष्य (मुद्दों) तथा भौगोलिक दृष्टिकोण पर एक नज़र PSEB 12th Class Geography Notes

  • मानवीय जीवन के भौगोलिक दृष्टिकोण से किए अध्ययन को मानव भूगोल कहते हैं। सारे विश्व में मानवीय जीवन एक जैसा नहीं होता।
  • सिआचिन ग्लेशियर 35°5′ अक्षांश से 76°9′ पूर्वी देशांतर पर स्थित है। यहां सर्दियों में 35 फुट के करीब बर्फवारी होती है तथा तापमान 50°C तक पहुँच जाता है। इस ग्लेशियर का ज्यादातर हिस्सा भारत तथा पाकिस्तान के मध्य कंट्रोल रेखा के अंतर्गत आता है।
  • 1972 के शिमला समझौते के अनुसार 1949 में कंट्रोल रेखा से संबंधित समझौते के बारे में कोई परिवर्तन नहीं किया जाता।
  • गुजरात तथा पाकिस्तान के सिंध के प्रांतों में एक दलदली खाड़ी सरकरीक है। 1914 के समझौते के अनुसार सरकरीक का सारा इलाका पाकिस्तान का होना चाहिए। यह सीमान्त दोनों देशों के मध्य एक गंभीर मसला है।
  • पर्यावरण प्रदूषण मुख्य रूप में तीन प्रकार का होता है-भूमि प्रदूषण, जल प्रदूषण तथा वायु प्रदूषण।
  • पृथ्वी पर भौतिक पर्यावरण में जब कुछ ज़हरीले पदार्थ तथा रसायनों की मात्रा बढ़ जाती है तथा ये पदार्थ भूमि, हवा, जल को अयोग्य बना देते हैं तो इसे प्रदूषण कहते हैं।
  • भूमि प्रदूषण का मुख्य कारण, जंगलों की अंधा-धुंध कटाई, कीटनाशकों का अधिक प्रयोग, शहरीकरण इत्यादि। हम 22 अप्रैल को राष्ट्रीय पृथ्वी दिवस मनाते हैं।
  • जल में रसायनों के मिलने के कारण पानी दूषित हो जाता है, इसको जल प्रदूषण कहते हैं।
  • कई तरह के तेज़ाब, ज़हरीले नमक, धातु इत्यादि भी पानी को प्रदूषित करते हैं तथा पानी पीने योग्य नहीं रहता।
  • भारत सरकार ने गंगा नदी को साफ़ रखने के लिए ‘नमामि गंगा’ नामक मिशन का आगाज़ किया है।
  • वायु में जहरीले पदार्थों तथा अनचाहे पदार्थों के मिलने से वायु दूषित हो जाती है। इसके प्रमुख स्रोत हैंरेत, जंगलों को लगी आग, कार्बन के आक्साइड, हवा में धूलकण, धूल, धुआं, ओज़ोन, सल्फ्यूरिक एसिड इत्यादि।
  • पृथ्वी पर विज्ञान मंत्रालय भारत सरकार ने सफर प्रकल्प शुरू किया जो विश्व मौसम विभाग की संस्थाओं भारत के महानगरों का स्तर आंकते हैं।
  • प्राकृतिक तथा मानवीय प्रक्रियाओं के स्थानीय विभाजन की प्रशंसा जिसका उद्देश्य प्राप्तियों का एहसास, सार्थक ढंग से करवाना भौगोलिक सर्वोच्चता कहलाती है।
  • मानव भूगोल-मानवीय जीवन के भौगोलिक दृष्टिकोण से किए जाने वाले अध्ययन को मानवीय भूगोल , कहते हैं।
  • सिआचिन ग्लेशियर-सिआदिन का अर्थ है-बड़ी संख्या में ‘गुलाब के फूल’। सिआचिन ध्रुवीय इलाकों के अतिरिक्त दूसरे नंबर का सबसे बड़ा ग्लेशियर है। यह हिमालय पर्वतों की पूर्वी कराकुरम श्रृंखला में 35°5′ उत्तरी अक्षांश तथा 76°9’ पूर्वी देशांतर पर स्थित है।
  • कच्चातिवु—कच्चातिवु श्रीलंका में पड़ने वाला एक विवादों में घिरा वह टापू है जो कि 285.2 एकड़ क्षेत्र में फैला हुआ है।
  • प्रदूषण–भौतिक पर्यावरण में जब कुछ ज़हरीले पदार्थों तथा रसायनों में वृद्धि होती है जो कि जल, वायु तथा मिट्टी को अयोग्य बना जाते हैं, इसको प्रदूषण कहते हैं।
  • भू-प्रदूषण के स्रोत-कारखानों से निकले जहरीले पदार्थ-पारा, सीसा, तांबा, जिंक, साइनाइड, तेज़ाब, कीटनाशक इत्यादि।
  • चार R-Refuse, Reuse, Recycle and Reduce
  • जल प्रदूषण-जब जल में कुछ रसायन तथा घरेलू कचरा इत्यादि पदार्थ मिल जाते हैं तब पानी दूषित हो जाता है जिसको जल प्रदूषण कहते हैं।
  • वायु प्रदूषण के प्राकृतिक स्रोत-ज्वालामुखी विस्फोट के कारण निकले पदार्थ-रेल, धूल तथा जंगलों को – लगने वाली आग इत्यादि कारणों के कारण हवा दूषित हो जाती है।
  • PM10 मोटे कण 10 माइक्रोमीटर तक ये कण फेफड़ों तक जाकर मनुष्य की मौत का कारण बन सकते हैं।
  • भारत की औसत मध्यम आयु 29 साल है जबकि जापान में 49 साल तथा यू०एस०ए० में मध्यम आयु करीब 38 साल है।
  • भारत के पास विश्व का 9.6 प्रतिशत जल संसाधन है।
  • पंजाब के हर शहर, गाँव तथा बस्ती में एक महिला स्वास्थ्य संघ स्थापित है।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 16 सिख मिसलों की उत्पत्ति एवं विकास तथा उनके संगठन का स्वरूप

Punjab State Board PSEB 12th Class History Book Solutions Chapter 16 सिख मिसलों की उत्पत्ति एवं विकास तथा उनके संगठन का स्वरूप Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 History Chapter 16 सिख मिसलों की उत्पत्ति एवं विकास तथा उनके संगठन का स्वरूप

निबंधात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

मिसलों की उत्पत्ति तथा विकास (Origin and Development of Misls)

प्रश्न 1.
पंजाब में सिख मिसलों की उत्पत्ति एवं विकास का विवरण दीजिए।
(Trace the origin and development of Sikh Misls in the Punjab.)
अथवा
‘मिसल’ शब्द का आप क्या अर्थ समझते हैं ? सिख मिसलों की उत्पत्ति का वर्णन कीजिए।
(What do you understand by the term ‘Misl? ? Describe the origin of the Sikh Misls.)
अथवा
मिसल की परिभाषा दीजिए। आप सिख मिसलों की उत्पत्ति और विकास के विषय में क्या जानते हैं ?
(Define Misl. What do you know about the origin and growth of Sikh Misls ?)
अथवा
‘मिसल’ शब्द से आपका क्या अभिप्राय है ? प्रमुख सिख मिसलों के इतिहास का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
(What do you understand by the term ‘Misl’ ? Give an account of the history of the important Sikh Misls.)
अथवा
‘मिसल’ शब्द से क्या भाव है ? सिख मिसलों की उत्पत्ति और विकास का वर्णन करें।
(What do you mean by word Misl ? Describe the origin and growth of Sikh Misls.)
उत्तर-
शताब्दी में पंजाब में सिख मिसलों की स्थापना यहाँ के इतिहास के लिए एक नया मोड़ प्रमाणित हुई।
(क) सिख मिसल से अभिप्राय (The Meaning of the Sikh Misl)-मिसल अरबी भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ है एक समान या बराबर। 18वीं शताब्दी के दूसरे मध्य में पंजाब में सिखों ने 12 मिसलें स्थापित कर ली थीं। प्रत्येक मिसल का सरदार दूसरी मिसल के सरदारों के साथ एक जैसा व्यवहार करता था परंतु वे अपना आंतरिक शासन चलाने में पूर्ण रूप से स्वतंत्र थे। सिख जत्थों की इस सामान्य विशेषता के कारण उनको मिसलें कहा जाता था।

(ख) सिख मिसलों की उत्पत्ति (Origin of the Sikh Misls)—मुग़लों के सिखों पर बढ़ रहे अत्याचारों और अहमद शाह अब्दाली के आक्रमण को देखते हुए नवाब कपूर सिंह ने सिखों में एकता की कमी अनुभव की। इस उद्देश्य से 29 मार्च, 1748 ई० को अमृतसर में वैशाखी के दिन दल खालसा की स्थापना की गई। दल खालसा के अधीन 12 जत्थे गठित किए गए। प्रत्येक जत्थे का अपना अलग सरदार और झंडा था। इन जत्थों को ही मिसल कहा जाता था। इन मिसलों ने सन् 1767 ई० से 1799 ई० के दौरान पंजाब के विभिन्न भागों में अपने स्वतंत्र राज्य स्थापित कर लिए थे।

(ग) सिख मिसलों का विकास (Growth of the Sikh Misls)-1767 ई० से लेकर 1799 ई० के दौरान जमुना और सिंध नदियों के बीच के क्षेत्रों में सिखों ने 12 स्वतंत्र मिसलें स्थापित की। इन मिसलों के विकास और उनके इतिहास संबंधी संक्षेप जानकारी निम्नलिखित अनुसार है—
1. फैजलपुरिया मिसल (Faizalpuria Misl)-इस मिसल का संस्थापक नवाब कपूर सिंह था। उसने सर्वप्रथम अमृतसर के समीप फैज़लपुर नामक गाँव पर अधिकार किया था। इसलिए इस मिसल का नाम फैज़लपुरिया मिसल पड़ गया था। नवाब कपूर सिंह अपनी वीरता के कारण सिखों में बहुत प्रख्यात था। फैजलपुरिया मिसल के अधीन जालंधर, लुधियाना, पट्टी, नूरपुर तथा बहिरामपुर आदि प्रदेश सम्मिलित थे। 1753 ई० में नवाब कपूर सिंह की मृत्यु के उपरांत खुशहाल सिंह तथा बुद्ध सिंह ने इस मिसल का नेतृत्व किया।

2. भंगी मिसल (Bhangi Misl) भंगी मिसल की स्थापना यद्यपि सरदार छज्जा सिंह ने की थी परंतु सरदार हरी सिंह को इस मिसल का वास्तविक संस्थापक माना जाता है। झंडा सिंह एवं गंडा सिंह इस मिसल के अन्य प्रसिद्ध नेता थे। इस मिसल का लाहौर, अमृतसर, गुजरात एवं स्यालकोट आदि प्रदेशों पर अधिकार था। क्योंकि इस मिसल के नेताओं को भंग पीने की बहुत आदत थी इसलिए इस मिसल का नाम भंगी मिसल पड़ा। .

3. आहलूवालिया मिसल (Ahluwalia Misl) आहलूवालिया मिसल की स्थापना सरदार जस्सा सिंह आहलूवालिया ने की थी। क्योंकि वह लाहौर के निकट आहलू गाँव का निवासी था इसलिए इस मिसल का नाम आलहूवालिया पड़ा। वह एक महान् नेता था। उसे 1748 ई० में दल खालसा का प्रधान सेनापति बनाया गया था। उसने लाहौर, कसूर एवं सरहिंद पर अधिकार करके अपनी वीरता का प्रमाण दिया। उसे सुल्तान-उल-कौम की उपाधि से सम्मानित किया गया था। आहलूवालिया मिसल की राजधानी का नाम कपूरथला था। 1783 ई० में जस्सा सिंह आहलूवालिया की मृत्यु के पश्चात् भाग सिंह तथा फतेह सिंह आहलूवालिया ने इस मिसल का नेतृत्व किया।

4. रामगढ़िया मिसल (Ramgarhia Misl)-रामगढ़िया मिसल का संस्थापक खुशहाल सिंह था। इस मिसल का सबसे प्रख्यात नेता सरदार जस्सा सिंह रामगढ़िया था। उसने दीपालपुर, कलानौर, बटाला, उड़मुड़ टांडा, हरिपुर एवं करतारपुर नामक प्रदेशों पर अपना अधिकार कर लिया था। इस मिसल की राजधानी का नाम श्री हरगोबिंदपुर था। 1803 ई० में जस्सा सिंह रामगढ़िया की मृत्यु के उपरांत सरदार जोध सिंह ने इस मिसल का नेतृत्व किया। .

5. शुकरचकिया मिसल (Sukarchakiya Misl)-शुकरचकिया मिसल का संस्थापक सरदार चढ़त सिंह था। क्योंकि उसके पुरखे शुकरचक गाँव से संबंधित थे इसलिए इस मिसल का नाम शुकरचकिया मिसल पड़ा। वह एक साहसी योद्धा था। उसने ऐमनाबाद, गुजराँवाला, स्यालकोट, वजीराबाद, चकवाल, जलालपुर तथा रसूलपुर
आदि प्रदेशों पर अपना अधिकार कर लिया था। शुकरचकिया मिसल की राजधानी का नाम गुजराँवाला था। चढ़त सिंह के पश्चात् महा सिंह तथा रणजीत सिंह ने शुकरचकिया मिसल का कार्यभार संभाला। 1799 ई० में महाराजा रणजीत सिंह ने लाहौर पर अधिकार कर लिया था तथा यह विजय पंजाब के इतिहास में एक नया मोड़ प्रमाणित हुई।

6. कन्हैया मिसल (Kanahiya Misl) कन्हैया मिसल का संस्थापक जय सिंह था। क्योंकि वह कान्हा गाँव का निवासी था इसलिए इस मिसल का नाम कन्हैया मिसल पड़ा। जय सिंह काफी बहादुर था। उसने मुकेरियाँ, गुरदासपुर, पठानकोट तथा काँगड़ा के क्षेत्रों पर अपना अधिकार कर लिया था। 1798 ई० में जय सिंह की मृत्यु के पश्चात् सदा कौर इस मिसल की नेता बनी। वह महाराजा रणजीत सिंह की सास थी तथा बहुत महत्त्वाकांक्षी थी।

7. फूलकियाँ मिसल (Phulkian Misl)-फूलकियाँ मिसल की स्थापना चौधरी फूल नामक एक जाट ने की थी। इसमें पटियाला, नाभा तथा जींद के प्रदेश शामिल थे। पटियाला के प्रख्यात फूलकियाँ सरदार बाबा आला सिंह, अमर सिंह तथा साहिब सिंह, नाभा के हमीर सिंह एवं जसवंत सिंह तथा जींद के गजपत सिंह एवं भाग सिंह थे।

8. डल्लेवालिया मिसल (Dallewalia Misl)–डल्लेवालिया मिसल का संस्थापक गुलाब सिंह था। तारा सिंह घेबा इस मिसल का प्रख्यात सरदार था। इस मिसल का फिल्लौर, राहों, नकोदर, बद्दोवाल आदि प्रदेशों पर अधिकार था।

9. नकई मिसल (Nakkai Misl)—नकई मिसल का संस्थापक सरदार हीरा सिंह था। उसने नक्का, चुनियाँ, दीपालपुर, कंगनपुर, शेरगढ़, फरीदाबाद आदि प्रदेशों पर अधिकार करके नकई मिसल का विस्तार किया। रण सिंह नकई सरदारों में से सबसे अधिक प्रसिद्ध था। उसने कोट कमालिया तथा शकरपुर के प्रदेशों पर अधिकार करके नकई मिसल में शामिल किया।

10. निशानवालिया मिसल (Nishanwalia Misl)-इस मिसल का संस्थापक सरदार संगत सिंह था। इस मिसल के सरदार दल खालसा का झंडा या निशान उठाकर चलते थे, जिस कारण इस मिसल का नाम निशानवालिया मिसल पड़ गया। संगत सिंह ने अंबाला, शाहबाद, सिंघवाला, साहनेवाल, दोराहा आदि प्रदेशों पर कब्जा करके अपनी मिसंल का विस्तार किया। उसने सिंघवाला को अपनी राजधानी बनाया। 1774 ई० में संगत सिंह की मृत्यु के बाद उसका भाई मोहन सिंह इस मिसल का सरदार बना।

11. शहीद मिसल (Shahid Misl) शहीद मिसल का संस्थापक सरदार सुधा सिंह था। क्योंकि इस मिसल के सरदार अफ़गानों के साथ हुई लड़ाइयों में शहीद हो गए थे इस कारण इस मिसल को शहीद मिसल कहा जाने लगा। बाबा दीप सिंह जी, इस मिसल के सबसे लोकप्रिय नेता थे। उन्होंने 1757 ई० में अमृतसर में अफ़गानों से लड़ते हुए शहीदी प्राप्त की थी। कर्म सिंह और गुरबख्श सिंह इस मिसल के दो अन्य दो अन्य ख्याति प्राप्त नेता थे। इस मिसल में सहारनपुर, शहजादपुर और केसनी नाम के क्षेत्र शामिल थे। इस मिसल के अधिकतर लोग निहंग थे जो नीले वस्त्र पहनते थे। इसलिए शहीद मिसल को निहंग मिसल भी कहा जाता है।

12. करोड़सिंधिया मिसल (Krorsinghia Misl)—इस मिसल का संस्थापक करोड़ा सिंह था जिस कारण इसका नाम करोड़सिंघिया मिसल पड़ गया। क्योंकि करोड़ा सिंह पंजगड़िया गाँव का रहने वाला था इसलिए इस मिसल को पंजगड़िया मिसल भी कहा जाता है। 1764 ई० में करोड़ा सिंह की मृत्यु के पश्चात् बघेल सिंह इस मिसल का मुखिया बना। वह करोड़सिंघिया मिसल के मुखियों में से सबसे अधिक प्रसिद्ध था। उसने करनाल के निकट स्थित चलोदी को अपनी राजधानी बनाया। उसने नवांशहर और बंगा के क्षेत्रों को अपनी मिसल में सम्मिलित किया। बघेल सिंह की मृत्यु के पश्चात् उसका पुत्र जोध सिंह मिसल का सरदार बना। उसने मालवा के कई प्रदेशों पर कब्जा कर लिया था।

सिख मिसलों के शासक अपने-अपने क्षेत्रों में स्वतंत्र रूप में शासन करते थे, परंत उनकी विशेष बात यह थी कि वे समस्त सिख जाति के साथ संबंधित मामलों पर विचार करने के लिए विशेष अवसरों पर अकाल तख्त साहिब अमृतसर में एकत्र होते थे। यहाँ वे गुरु ग्रंथ साहिब की उपस्थिति में प्रस्ताव पास करते थे। इन्हें गुरमता कहा जाता था। इन गुरमतों का सभी सिख सम्मान करते थे। इस कारण उनमें आपसी संबंध बने रहे।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 16 सिख मिसलों की उत्पत्ति एवं विकास तथा उनके संगठन का स्वरूप

मिसल का राज्य प्रबंध (Administration of the Misls)

प्रश्न 2.
सिख मिसलों के संगठन पर एक नोट लिखें। (Write a note on the Organisation of the Sikh Misls.)
अथवा
मिसलों के संगठन की प्रकृति का वर्णन कीजिए। (Discuss the nature of the Organisation of Misls.)
अथवा
सिख मिसलों के राज प्रबंध की मुख्य विशेषताएँ लिखिए। (Bring out the main features of the Administration of the Sikh Misls.)
अथवा
मिसलों के नागरिक तथा सैनिक प्रबंध का विवरण दें। (Give an account of Civil and Military Administration of the Misls.)
अथवा
सिख मिसलों की उत्पत्ति और विकास के विषय में आप क्या जानते हो ? (What do you know about the origin and growth of the Sikh Misls ?)
अथवा
मिसलों के अंदरूनी शासन प्रबन्ध की व्याख्या करो।
(Describe the internal administration system of the Misls.)
उत्तर-
सिख मिसलों के संगठन का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है—
I. गुरमता (Gurmata)
गुरमता सिख मिसलों की केंद्रीय संस्था थी। इसका शाब्दिक अर्थ है, “गुरु का मत या निर्णय”। दूसरे शब्दों में गुरु ग्रंथ साहिब जी की उपस्थिति में सरबत खालसा द्वारा जो निर्णय स्वीकार किए जाते हैं उनको गुरमता कहते हैं। सरबत खालसा के सम्मेलनों में सिख पंथ के राजनीतिक, सामाजिक और धार्मिक मामलों से संबंधित गुरमते पास किए जाते थे। सभी सिख इन गुरमतों को गुरु की आज्ञा मान कर पालना करते थे।

II. मिसलों का आंतरिक संगठन (Internal Organisation of the Misls)
1. सरदार और मिसलदार (Sardar and Misldar)-प्रत्येक मिसल के मुखिया को सरदार कहा जाता था और प्रत्येक सरदार के अधीन कई मिसलदार होते थे। सरदार की तरह मिसलदारों के पास भी अपनी सेना होती थी। सरदार जीते हुए क्षेत्रों में से कुछ भाग अपने अधीन मिसलदारों को दे देता था। प्रारंभ में सरदार का पद पैतृक नहीं होता था। धीरे-धीरे सरदार का पद पैतृक हो गया। चाहे सरदार निरंकुश थे पर वे अत्याचारी नहीं थे। वे प्रजा से अपने परिवार की तरह प्यार करते थे।

2. जिले (Districts) मिसलों को कई जिलों में बाँटा गया था। प्रत्येक जिले के मुखिया को कारदार कहा जाता था। वह ज़िले का शासन प्रबंध चलाने के लिए ज़िम्मेदार होता था।

3. गाँव (Villages)-मिसल प्रशासन की सबसे छोटी इकाई गाँव थी। गाँव का प्रबंध पंचायत के हाथों में होता था। गाँव के लगभग सारे मामले पंचायत द्वारा ही हल कर लिए जाते थे। लंबरदार, पटवारी और चौकीदार गाँव के महत्त्वपूर्ण कर्मचारी थे।

III. मिसलों का आर्थिक प्रबंध (Financial Administration of the Misls)
1. लगान प्रबंध (Land Revenue Administration) मिसलों के समय आमदनी का मुख्य साधन भूमि का लगान था। इसकी दर भूमि की उपजाऊ शक्ति के आधार पर भिन्न-भिन्न होती थी। यह प्रायः कुल उपज का 1/3 से 1/4 भाग होता था। यह लगान वर्ष में दो बार रबी और खरीफ फसलों के तैयार होने के समय लिया जाता था। लगान एकत्रित करने के लिए बटाई प्रणाली प्रचलित थी। लगान अनाज या नकदी किसी भी रूप में दिया जा सकता था। मिसल काल में भूमि अधिकार संबंधी चार प्रथाएँ–पट्टीदारी, मिसलदारी, जागीरदारी तथा ताबेदारी प्रचलित थीं।

2. राखी प्रथा (Rakhi System)-पंजाब के लोगों को विदेशी हमलावरों तथा सरकारी कर्मचारियों से सदैव लूटमार का भय लगा रहता था। इसलिए अनेक गाँवों ने अपनी रक्षा के लिए मिसलों की शरण ली। मिसल सरदार उनकी शरण में आने वाले गाँवों को सरकारी कर्मचारियों तथा विदेशी आक्रमणकारियों की लूट-पाट से बचाते थे। इस रक्षा के बदले उस गाँव के लोग अपनी उपज का पाँचवां भाग वर्ष में दो बार मिसल के सरदार को देते थे। इस तरह यह राखी कर मिसलों की आय का एक अच्छा साधन था।

3. आय के अन्य साधन (Other Sources of Income)—इसके अतिरिक्त मिसल सरदारों को चुंगी कर, _ भेंटों और युद्ध के समय की गई लूटमार से भी कुछ आय प्राप्त हो जाती थी।

4. व्यय (Expenditure)-मिसल सरदार अपनी आय का एक बड़ा भाग सेना, घोड़े, शस्त्रों, नए किलों के निर्माण और पुराने किलों की मुरम्मत पर व्यय करता था। इसके अतिरिक्त मिसल सरदार गुरुद्वारों और मंदिरों को दान भी देते थे और निर्धन लोगों के लिए लंगर भी लगाते थे।

IV. न्याय प्रबंध (Judicial Administration)
1. पंचायत (Panchayat) मिसलों के समय पंचायत न्याय प्रबंध की सबसे छोटी अदालत होती थी। पंचायत प्रत्येक गाँव में होती थी। गाँव में अधिकतर मुकद्दमों का फैसला पंचायतों द्वारा ही किया जाता था। लोग पंचायत को परमेश्वर का रूप समझकर उसका फैसला स्वीकार कर लेते थे।

2. सरदार की अदालत (Sardar’s Court)—प्रत्येक मिसल का सरदार अपनी अलग अदालत लगाता था। इसमें वह दीवानी और फौजदारी दोनों तरह के मुकद्दमों का निर्णय करता था। वह किसी भी अपराधी को मृत्यु का दंड देने का भी अधिकार रखता था परंतु वे आम तौर पर अपराधियों को नर्म सज़ाएँ ही देते थे।

3. सरबत खालसा (Sarbat Khalsa)-सरबत खालसा को सिखों की सर्वोच्च अदालत माना जाता था। मिसलदारों के आपसी झगड़ों और सिख कौम से संबंधित मामलों की सुनवाई सरबत खालसा द्वारा की जाती थी। सरबत खालसा मुकद्दमों का फैसला करने के लिए अकाल तख्त अमृतसर में एकत्रित होता था। उस द्वारा पास किए गए गुरमत्तों की सभी सिख पालना करते थे।

4. कानून और सजाएँ (Laws and Punishments) सिख मिसलों के समय न्याय प्रबंध बिल्कुल साधारण था। कानून लिखित नहीं था। मुकद्दमों के फैसले प्रचलित रीति-रिवाजों के अनुसार किये जाते थे। उस काल की सज़ाएँ कड़ी नहीं थीं। अधिकतर अपराधियों से जुर्माना वसूल किया जाता था।

V. सैनिक प्रबंध (Military Administration)
1. घुड़सवार सेना (Cavalry)-घुड़सवार सेना मिसलों की सेना का सबसे महत्त्वपूर्ण अंग था। सिख बहुत निपुण घुड़सवार थे। सिखों के तीव्र गति से दौड़ने वाले घोड़े उनकी गुरिल्ला युद्ध प्रणाली के संचालन में बहुत सहायक सिद्ध हुए।

2. पैदल सैनिक (Infantry)-मिसलों के समय पैदल सेना को कोई विशेष महत्त्व नहीं दिया जाता था। पैदल सैनिक किलों में पहरा देते, संदेश पहुँचाते और स्त्रियों और बच्चों की देखभाल करते थे।

3. भर्ती (Recruitment)-मिसल सेना में भर्ती होने के लिए किसी को भी विवश नहीं किया जाता था। सैनिकों को कोई नियमित प्रशिक्षण भी नहीं दिया जाता था। उनको नकद वेतन के स्थान पर युद्ध के दौरान की गई लूटमार से हिस्सा मिलता था।

4. सैनिकों के शस्त्र और सामान (Weapons and Equipment of the Soldiers)-सिख सैनिक युद्ध के समय तलवारों, तीर-कमानों, खंजरों, ढालों और बौँ का प्रयोग करते थे। इसके अतिरिक्त वे बंदूकों का प्रयोग भी करते थे।

5. लड़ाई का ढंग (Mode of Fighting)–मिसलों के समय सैनिक छापामार ढंग से अपने शत्रुओं का मुकाबला करते थे। इसका कारण यह था कि दुश्मनों के मुकाबले सिख सैनिकों के साधन बहुत सीमित थे। मारो और भागो इस युद्ध नीति का प्रमुख आधार था। सिखों की लड़ाई का यह ढंग उनकी सफलता का एक प्रमुख कारण बना।

6. मिसलों की कुल सेना (Total Strength of the Misls)-मिसल सैनिकों की कुल संख्या के संबंध में निश्चित तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता। बी० सी० ह्यगल के अनुसार मिसलों के समय सिख सैनिकों की संख्या 69,500 थी। फ्रोस्टर के अनुसार मिसल सैनिकों की कुल संख्या दो लाख के लगभग थी। आधुनिक इतिहासकारों डॉ० हरी राम गुप्ता और एस० एस० गाँधी आदि के अनुसार यह संख्या लगभग एक लाख थी।
अंत में हम एस० एस० गाँधी के इन शब्दों से सहमत हैं,
“मिसल संगठन बिना शक बेढंगा था, परंतु यह उस समय के अनुरूप था। इसकी अपनी ही सफलताएँ और महान् प्राप्तियाँ थीं।”1

1. “The Misl organisation was undoubtedly. crude but it suited the times. It had its triumphs and grand achievements to its credit.” S.S. Gandhi, Struggle of the Sikhs for Sovereignty (Delhi : 1980) p. 300.

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संक्षिप्त उत्तरों वाले प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
मिसल शब्द से क्या अभिप्राय है ? मिसलों की उत्पत्ति कैसे हुई ? (What do you mean by the word Misl ? How did the Misls originate ?)
अथवा
मिसलों की उत्पत्ति का संक्षिप्त वर्णन करें। (Explain in brief about the origin of Misls.) (P.S.E.B. Mar. 2007, July 09)
अथवा
मिसलों से आपका क्या अभिप्राय है ? संक्षेप में उनकी उत्पत्ति के बारे में लिखें। (What do you understand by Misls ? Describe in brief about their origin.)
उत्तर-
मिसल से अभिप्राय फाइल से है जिसमें मिसलों के विवरण दर्ज किए जाते थे। बंदा सिंह बहादुर की शहीदी के पश्चात् पंजाब के मुग़ल सूबेदारों ने सिखों पर घोर अत्याचार किए। परिणामस्वरूप सिखों ने पहाड़ों और जंगलों में जाकर शरण ली। मुग़लों और अहमद शाह अब्दाली के आक्रमणों का मुकाबला करने के लिए 29 मार्च, 1748 ई० को अमृतसर में दल खालसा की स्थापना की गई। दल खालसा के अधीन 12 जत्थे गठित किए गए। कालांतर में इन जत्थों ने पंजाब में 12 स्वतंत्र सिख मिसलें स्थापित की।

प्रश्न 2.
मिसलों के संगठन के स्वरूप पर एक संक्षिप्त नोट लिखें। (Write a short note on the nature of Misl organisation.)
उत्तर-
सिख मिसलों के संगठन के स्वरूप के बारे में इतिहासकारों ने भिन्न-भिन्न मत प्रकट किए हैं। इसका कारण यह था कि मिसलों का राज्य प्रबंध किसी निश्चित शासन प्रणाली के अनुसार नहीं चलाया जाता था। अलगअलग सरदारों ने शासन प्रबंध चलाने के लिए आवश्यकतानुसार अपने-अपने नियम बना लिए थे। जे० डी० कनिंघम के विचारानुसार, सिख मिसलों के संगठन का स्वरूप धर्मतांत्रिक, संघात्मक और सामंतवादी.था। डॉ० ए० सी० बैनर्जी के विचारानुसार, “मिसलों का संगठन बनावट में प्रजातंत्रीय और एकता प्रदान करने वाले सिद्धांतों में धार्मिक था।”

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प्रश्न 3.
नवाब कपूर सिंह पर एक संक्षेप नोट लिखें। (Write a short note on Nawab Kapoor Singh.)
अथवा
नवाब कूपर सिंह के जीवन का संक्षिप्त में वर्णन करें।
(Give a brief account of the life of Nawab Kapoor Singh.)
अथवा
नवाब कूपर सिंह कौन थे। उनकी सफलताओं का वर्णन करो। (Who was Nawab Kapoor Singh ? Describe his achievements.)
उत्तर-
नवाब कपूर सिंह फैज़लपुरिया मिसल के संस्थापक थे। 1733 ई० में पंजाब के मुग़ल सूबेदार जकरिया खाँ ने उन्हें नवाब का पद तथा एक लाख वार्षिक आय वाली जागीर दी। 1734 ई० में नवाब कपूर सिंह ने सिखों को दो जत्थों-बुड्डा दल और तरुणा दल में गठित किया। उन्होंने बड़ी योग्यता और सूझ-बूझ के साथ इन दोनों दलों का नेतृत्व किया। 1748 ई० में उन्होंने दल खालसा की स्थापना की। उन्होंने सिख पंथ का घोर कठिनाइयों के समय नेतृत्व किया। उनकी 1753 ई० में मृत्यु हो गई।

प्रश्न 4.
जस्सा सिंह आहलूवालिया की सफलताओं का संक्षिप्त वर्णन कीजिए। (Give a brief account of the achievements of Jassa Singh Ahluwalia.)
अथवा
जस्सा सिंह आहलूवालिया के विषय में आप क्या जानते हैं ? लिखें। (Write, what do you know about Jassa Singh Ahluwalia ?)
अथवा
जस्सा सिंह आहलूवालिया पर एक नोट लिखें।
(Write a note on Jassa Singh Ahluwalia.)
उत्तर-
जस्सा सिंह आहलूवालिया मिसल के संस्थापक थे। 1748 ई० में दल खालसा की स्थापना के समय जस्सा सिंह आहलूवालिया को सर्वोच्च सेनापति नियुक्त किया गया। 1761 ई० में जस्सा सिंह ने लाहौर पर विजय प्राप्त की। 1762 ई० में बड़े घल्लूघारे के समय जस्सा सिंह ने अहमद शाह अब्दाली की सेना से डट कर मुकाबला किया। 1764 ई० में जस्सा सिंह ने सरहिंद पर अधिकार कर लिया। जस्सा सिंह ने कपूरथला पर कब्जा कर उसे आहलूवालिया मिसल की राजधानी घोषित किया। 1783 ई० में वह हम से सदा के लिए बिछुड़ गए।

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प्रश्न 5.
जस्सा सिंह रामगढ़िया कौन था ? उसकी सफ़लताओं का संक्षेप वर्णन करें। (Who was Jassa Singh Ramgarhia ? Write a short note on his achievements.)
अथवा
जस्सा सिंह रामगढ़िया के बारे में आप क्या जानते हैं ? लिखें। (Write, what do you know about Jassa Singh Ramgarhia ?)
उत्तर-
जस्सा सिंह रामगढ़िया मिसल का सबसे प्रसिद्ध नेता था। मीर मन्नू की मृत्यु के पश्चात् पंजाब में फैली अराजकता का लाभ उठाकर जस्सा सिंह ने कलानौर, बटाला, हरगोबिंदपुर, कादियाँ, टाँडा, करतारपुर और हरिपुर इत्यादि पर अधिकार करके रामगढ़िया मिसल का खूब विस्तार किया। उसके नेतृत्व में यह मिसल उन्नति के शिखर पर पहुँच गई थी। उसने श्री हरगोबिंदपुर को रामगढ़िया मिसल की राजधानी घोषित किया। जस्सा सिंह की 1803 ई० में मृत्यु हो गई।

प्रश्न 6.
महा सिंह पर एक संक्षिप्त नोट लिखें। (Write a short note on Mahan Singh.)
उत्तर-
1774 ई० में महा सिंह शुकरचकिया मिसल का नया मुखिया बना। महा सिंह ने शुकरचकिया मिसल के प्रदेशों का विस्तार प्रारंभ किया। उसने सबसे पहले रोहतास पर अधिकार किया। इसके पश्चात् रसूल नगर और अलीपुर प्रदेशों पर अधिकार किया। महां सिंह ने सभी सरदारों से मुलतान, बहावलपुर, साहीवाल आदि प्रदेशों को भी जीत लिया। बटाला के निकट हुए युद्ध में जय सिंह का पुत्र गुरबख्श सिंह मारा गया। कुछ समय पश्चात् शुकरचकिया और कन्हैया मिसलों में मित्रतापूर्ण संबंध स्थापित हो गए। 1792 ई० में महा सिंह की मृत्यु हो गई।

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प्रश्न 7.
फुलकियाँ मिसल पर एक संक्षेप नोट लिखें। (Wrie a short note on Phulkian Misl.)
उत्तर-
फुलकियाँ मिसल का संस्थापक चौधरी फूल था। उसके वंश ने पटियाला, नाभा तथा जींद के प्रदेशों पर अपना राज्य स्थापित किया। पटियाला में फुलकियाँ मिसल का संस्थापक आला सिंह था। वह बहुत बहादुर था। उसने अनेकों प्रदेशों पर कब्जा किया तथा बरनाला को अपनी राजधानी बनाया। उसने 1765 ई० में अहमद शाह
अब्दाली से समझौता किया। नाभा में फुलकियाँ मिसल की स्थापना हमीर सिंह ने की थी। उसने 1755 ई० से 1783 ई० तक शासन किया। जींद में फुलकियाँ मिसल का संस्थापक गजपत सिंह था। उसने अपनी सुपुत्री राज कौर की शादी महा सिंह से की। 1809 ई० में फुलकियाँ मिसल अंग्रेजों के संरक्षण में चली गई थी।

प्रश्न 8.
आला सिंह पर एक संक्षिप्त नोट लिखें। (Write a short note on Ala Singh.)
उत्तर-
आला सिंह पटियाला में फुलकियाँ मिसल का संस्थापक था। उसने 1748 ई० में अहमद शाह अब्दाली के प्रथम आक्रमण के दौरान मुग़लों की सहायता की। शीघ्र ही आला सिंह ने बुढलाडा, टोहाना, भटनेर और जैमलपुर के प्रदेशों पर अधिकार कर लिया। 1765 ई० में अहमद शाह अब्दाली ने आला सिंह को सरहिंद का सूबेदार नियुक्त कर दिया। अब्दाली के साथ समझौते के कारण दल खालसा के सदस्यों ने आला सिंह को अब्दाली से अपने संबंध तोड़ने का निर्देश दिया, परंतु शीघ्र ही वह इस संसार से कूच कर गए।

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प्रश्न 9.
खालसा के विषय में आप क्या जानते हैं ? (What do you understand by Sarbat Khalsa ?)
अथवा
सरबत खालसा के बारे में नोट लिखें। (Write a note on Sarbat Khalsa.)
उत्तर-
सरबत खालसा का आयोजन सिख पंथ से संबंधित विषयों पर विचार के लिए हर वर्ष दीवाली और बैसाखी के अवसर पर अकाल तख्त साहिब अमृतसर में किया जाता था। सारे सिख गुरु ग्रंथ साहिब के समक्ष माथा टेक कर बैठ जाते थे। इसके पश्चात् कीर्तन होता था फिर अरदास की जाती थी। इसके बाद कोई एक सिख खड़ा होकर संबंधित समस्या के बारे सरबत खालसा को बताता था। निर्णय सर्वसम्मति से लिया जाता था।

प्रश्न 10.
गुरमता से क्या अभिप्राय है ? गुरमता के कार्यों की संक्षेप जानकारी दें।
(What is meant by Gurmata ? Give a brief account of its functions.)
अथवा
गुरमता पर एक संक्षिप्त नोट लिखिए। (Write a brief note on Gurmata.)
अथवा
गुरमता के बारे में आप क्या जानते हो?
(What do you know about Gurmata ?)
अथवा
गुरमता से क्या भाव है ? गुरमता के तीन विशेष कार्य बताएँ। (What is meant by Gurmata ? Discuss about the three main works of Gurmata.)
उत्तर-
गुरमता सिख मिसलों की केंद्रीय संस्था थी। गुरमता गुरु और मता के मेल से बना है-जिसके शाब्दिक अर्थ हैं, ‘गुर का मत या निर्णय’। दूसरे शब्दों में, गुरु ग्रंथ साहिब जी की उपस्थिति में सरबत खालसा द्वारा जो निर्णय लिए जाते थे उनको गुरमता कहा जाता था। इन गुरमतों का सभी सिख पालन करते थे। गुरमता के महत्त्वपूर्ण कार्य थे-सिखों की नीति तैयार करना, दल खालसा के नेता का चुनाव करना, शत्रुओं के विरुद्ध सैनिक योजनाओं को अंतिम रूप देना, सिख सरदारों के झगड़ों का निपटारा करना और सिख धर्म का प्रचार का प्रबंध करना।

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प्रश्न 11.
मिसलों के आंतरिक संगठन की कोई तीन विशेषताएँ बताओ। (Mention any three features of internal organisation of Sikh Misls.)
अथवा
सिख मिसलों का अंदरूनी संगठन कैसा था ? व्याख्या करें।
(Describe the internal organisation of Sikh Misls.)
अथवा
मिसल प्रबंध की मुख्य विशेषताओं का वर्णन करें।
(Describe the main features of Misl Administration.)
अथवा
मिसलों के आंतरिक संगठन की कोई पाँच विशेषताएँ बताएँ। (Write five features of internal organisation of the Sikh Misls.)
उत्तर-
मिसल का प्रधान सरदार कहलाता था। सरदार अपनी प्रजा से स्नेह रखते थे। मिसल प्रशासन की सबसे छोटी इकाई गाँव थी। गाँव का प्रबंध पंचायत के हाथों में था। मिसलों का न्याय प्रबंध साधारण था। कानून लिखित नहीं थे। मुकद्दमों का फैसला प्रचलित रीति-रिवाजों के अनुसार किया जाता था। सज़ाएँ अधिक सख्त नहीं थीं। आमतौर पर जुर्माना ही वसूल किया जाता था। मिसलों की आमदनी का मुख्य साधन भूमि का लगान था। सरदार गाँव के मामलों में हस्तक्षेप नहीं करते थे।

प्रश्न 12.
राखी प्रणाली पर एक संक्षिप्त नोट लिखें। (Write a short note on Rakhi system.)
अथवा
राखी प्रणाली क्या है ? संक्षिप्त व्याख्या करें। (What is Rakhi system ? Explain in brief.)
अथवा
‘राखी व्यवस्था’ के विषय में आप क्या जानते हैं ? संक्षेप में लिखिए।
(What do you know about Rakhi system ? Write in brief.)
अथवा
राखी प्रणाली क्या है ? इसका आरंभ कैसे हुआ ? (What is Rakhi system ? Explain its origin.)
अथवा
राखी व्यवस्था के बारे में आप क्या जानते हैं ? (What do you know about ‘Rakhi system’ ?)
उत्तर-
बंदा सिंह बहादुर की शहीदी के पश्चात् पंजाब में राजनीतिक अस्थिरता का वातावरण बन गया। लोगों को सदैव लूटमार का भय लगा रहता था। इसलिए बहुत-से गाँवों ने अपनी रक्षा के लिए मिसलों की शरण ली। सिसल सरदार उनकी शरण में आने वाले गाँवों को सरकारी कर्मचारियों तथा विदेशी आक्रमणकारियों की लूटपाट से बचाते थे। इसके अतिरिक्त वे स्वयं भी इन गाँवों पर कभी आक्रमण नहीं करते थे। राखी प्रणाली से लोगों का जीवन सुरक्षित हुआ।

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प्रश्न 13.
मिसल काल के वित्तीय प्रबंध के बारे में आप क्या जानते हैं ? (What do you know about the financial administration of Misl period ?)
अथवा
मिसल शासन की अर्थ-व्यवस्था पर नोट लिखें। (Write a short note on economy under the Misls.)
उत्तर-
मिसल काल में मिसलों की आय का मुख्य स्रोत भू-राजस्व था। यह भूमि की उपजाऊ शक्ति के आधार पर भिन्न-भिन्न होता था। यह प्रायः कुल उपज का 1/3 से 1/4 भाग तक होता था। भू-राजस्व के बाद मिसलों की आय का दूसरा मुख्य साधन राखी प्रथा था। मिसल सरदार अपनी आय का एक बड़ा भाग सेना, घोड़ों तथा हथियारों पर खर्च करते थे। वे गुरुद्वारों तथा मंदिरों को दान भी देते थे।

प्रश्न 14.
मिसलों की न्याय व्यवस्था पर नोट लिखें।
(Write a note on the Judicial system of Misls.)
उत्तर-
सिख मिसलों के समय न्याय प्रबंध बिल्कुल साधारण था। कानून लिखित नहीं थे। मुकद्दमों के फैसले उस समय के प्रचलित रीति-रिवाजों के अनुसार किए जाते थे। उस समय सजाएँ सख्त नहीं थीं। किसी भी अपराधी को मृत्यु दंड नहीं दिया जाता था। अधिकतर अपराधियों से जुर्माना वसूल किया जाता था। गाँव में अधिकतर मुकद्दमों का फैसला पंचायतों द्वारा ही किया जाता था। लोग पंचायत को परमेश्वर समझ कर उसका फैसला स्वीकार करते थे। प्रत्येक मिसल के सरदार की अपनी अलग अदालत होती थी।

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प्रश्न 15.
सिख मिसलों के सैनिकों प्रबंध की मुख्य विशेषताएँ बताएँ।
(Describe the main features of military administratidn of Sikh Misls.)
अथवा
सिख मिसलों के सैनिक प्रबंध की मुख्य तीन विशेषताएँ लिखिए। (Write three main features of military administration of Sikh Misls.)
उत्तर-

  1. मिसलों के काल में घुड़सवार सेना को सेना का महत्त्वपूर्ण अंग माना जाता था।
  2. लोग अपनी इच्छा से सेना में भर्ती होते थे।
  3. इन सैनिकों को कोई नियमित प्रशिक्षण नहीं दिया जाता था तथा उन्हें नकद वेतन भी नहीं दिया जाता था।
  4. उस समय सैनिकों का कोई विवरण नहीं रखा जाता था।
  5. सिख सैनिक सीमित साधनों के कारण छापामार ढंग से दुश्मन का मुकाबला करते थे।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

(i) एक शब्द से एक पंक्ति तक के उत्तर (Answer in One Word to One Sentence)

प्रश्न 1.
मिसल शब्द से क्या अभिप्राय है ?
अथवा
मिसल शब्द का क्या अर्थ है ?
उत्तर-
समान।

प्रश्न 2.
मिसल किस भाषा का शब्द है ?
उत्तर-
अरबी।

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प्रश्न 3.
मिसलों की कुल संख्या कितनी थी ?
उत्तर-
12.

प्रश्न 4.
पंजाब में सिख मिसलें किस शताब्दी में स्थापित हुईं ?
उत्तर-
18वीं शताब्दी।

प्रश्न 5.
किसी एक प्रमुख मिसल का नाम लिखें।
उत्तर-
आहलूवालिया मिसल।

प्रश्न 6.
फैजलपुरिया मिसल का संस्थापक कौन था ?
उत्तर-
नवाब कपूर सिंह।

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प्रश्न 7.
फैज़लपुरिया मिसल के सबसे प्रसिद्ध नेता का नाम बताएँ।
उत्तर-
नवाब कपूर सिंह।

प्रश्न 8.
नवाब कपूर सिंह कौन था ?
उत्तर-
फैज़लपुरिया मिसल का संस्थापक।

प्रश्न 9.
नवाब कपूर सिंह ने किस मिसल की स्थापना की?
उत्तर-
फैज़लपुरिया मिसल।

प्रश्न 10.
आहलूवालिया मिसल का संस्थापक कौन था ?
उत्तर-
जस्सा सिंह आहलूवालिया।

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प्रश्न 11.
आहलूवालिया मिसल का यह नाम क्यों पड़ा ?
उत्तर-
क्योंकि जस्सा सिंद्र लाहौर के नज़दीक स्थित आहलू गाँव से संबंधित था।

प्रश्न 12.
आहलूवालिया मिसल की राजधानी का नाम क्या था ?
उत्तर-
कपूरथला।

प्रश्न 13.
जस्सा सिंह आहलूवालिया कौन था ?
उत्तर-
आहलूवालिया मिसल का संस्थापक।

प्रश्न 14.
रामगढ़िया मिसल की राजधानी कौन-सी थी ?
उत्तर-
श्री हरगोबिंदपुर।

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प्रश्न 15.
रामगढ़िया मिसल के किसी एक सर्वाधिक प्रसिद्ध नेता का नाम बताएँ ।
उत्तर-
जस्सा सिंह रामगढ़िया।

प्रश्न 16.
जस्सा सिंह रामगढ़िया कौन था ?
उत्तर-
रामगढ़िया मिसल का सबसे शक्तिशाली सरदार।

प्रश्न 17.
भंगी मिसल का संस्थापक कौन था ?
उत्तर-
छज्जा सिंह।

प्रश्न 18.
भंगी मिसल का यह नाम क्यों पड़ा ?
उत्तर-
क्योंकि इस मिसल के नेताओं को भांग पीने की बहुत आदत थी।

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प्रश्न 19.
सिख मिसलों में सबसे शक्तिशाली मिसल कौन-सी थी ?
उत्तर-
शुकरचकिया मिसल।

प्रश्न 20.
शुकरचकिया मिसल का संस्थापक कौन था ?
उत्तर-
चढ़त सिंह।

प्रश्न 21.
शुकरचकिया मिसल की राजधानी का नाम बताएँ।
उत्तर-
गुजराँवाला।

प्रश्न 22.
महा सिंह कौन था ?
उत्तर-
महा सिंह 1774 ई० में शुकरचकिया मिसल का नेता बना।

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प्रश्न 23.
कन्हैया मिसल का संस्थापक कौन था ?
उत्तर-
जय सिंह।

प्रश्न 24.
फुलकियाँ मिसल का संस्थापक कौन था ?
उत्तर-
चौधरी फूल।

प्रश्न 25.
बाबा आला सिंह कौन था ?
उत्तर-
पटियाला में फुलकियाँ मिसल का संस्थापक।

प्रश्न 26.
बाबा आला सिंह की राजधानी का नाम क्या था ?
उत्तर-
बरनाला।

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प्रश्न 27.
अहमद शाह अब्दाली ने किसे राजा की उपाधि से सम्मानित किया था ?
उत्तर-
बाबा आला सिंह को।

प्रश्न 28.
डल्लेवालिया मिसल का सबसे योग्य नेता कौन था ?
उत्तर-
तारा सिंह घेबा।

प्रश्न 29.
शहीद मिसल का संस्थापक कौन था ?
उत्तर-
सरदार सुधा सिंह।

प्रश्न 30.
शहीद मिसल का यह नाम क्यों पड़ा ?
उत्तर-
इस मिसल के नेताओं द्वारा दी गई शहीदियों के कारण ।

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प्रश्न 31.
सिख मिसलों की केंद्रीय संस्था कौन-सी थी ?
अथवा
सिखों की केंद्रीय संस्था का क्या नाम था ?
उत्तर-
गुरमता।

प्रश्न 32.
गुरमता से क्या भाव है ?
उत्तर-
गुरु का फैसला।

प्रश्न 33.
गुरुमता के पीछे कौन-सी शक्ति काम करती थी ?
उत्तर-
धार्मिक।

प्रश्न 34.
सरबत खालसा से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
अकाल तख्त साहिब, अमृतसर में आयोजित किया जाने वाला सिख सम्मेलन।।

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प्रश्न 35.
सरबत खालसा की सभाएँ कहाँ बुलाई जाती थीं ?
उत्तर-
अमृतसर।

प्रश्न 36.
सिख मिसलों के मुखिया को क्या कहा जाता था ?
उत्तर-
सरदार।

प्रश्न 37.
सिख मिसलों के प्रशासन की कोई एक विशेषता बताएँ।
उत्तर-
सिख मिसलों के सरदार अपनी प्रजा से बहुत प्रेम करते थे।

प्रश्न 38.
राखी प्रणाली से क्या भाव है ?
अथवा
राखी प्रथा क्या है ?
उत्तर-
राखी प्रणाली के अंतर्गत आने वाले गाँवों को सिख सुरक्षा प्रदान करते थे।

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प्रश्न 39.
मिसल सेना की लड़ने की विधि कौन सी थी ?
उत्तर-
गुरिल्ला विधि।

(ii) रिक्त स्थान भरें (Fill in the Blanks)

प्रश्न 1.
18वीं शताब्दी में पंजाब में…….स्वतंत्र सिख मिसलें स्थापित हुईं।
उत्तर-
(12)

प्रश्न 2.
नवाब कपूर सिंह……मिसल का संस्थापक था।
उत्तर-
(फैजलपुरिया)

प्रश्न 3.
नवाब कपूर सिंह ने…….में दल खालसा की स्थापना की थी।
उत्तर-
(1748 ई०)

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प्रश्न 4.
आहलूवालिया मिसल का संस्थापक……..था।
उत्तर-
(जस्सा सिंह आहलूवालिया)

प्रश्न 5.
जस्सा सिंह आहलूवालिया ने ………….को अपनी राजधानी बनाया।
उत्तर-
(कपूरथला)

प्रश्न 6.
रामगढ़िया मिसल का संस्थापक……….था।
उत्तर-
(खुशहाल सिंह)

प्रश्न 7.
रामगढ़िया मिसल का सबसे प्रसिद्ध नेता………था।
उत्तर-
(जस्सा सिंह रामगढ़िया)

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प्रश्न 8.
जस्सा सिंह रामगढ़िया की राजधानी का नाम………था।
उत्तर-
(श्री हरिगोबिंद पुर)

प्रश्न 9.
झंडा सिंह……….मिसल का एक प्रसिद्ध नेता था।
उत्तर-
(भंगी)

प्रश्न 10.
शुकरचकिया मिसल का संस्थापक………था।
उत्तर-
(चढ़त सिंह)

प्रश्न 11.
1774 ई० में………शुकरचकिया मिसल का नया नेता बना।
उत्तर-
(महा सिंह)

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प्रश्न 12.
शुकरचकिया मिसल की राजधानी का नाम……….था।
उत्तर-
(गुजराँवाला)

प्रश्न 13.
बाबा दीप सिंह जी …………. मिसल के साथ संबंध रखते थे।
उत्तर-
(शहीद)

प्रश्न 14.
महाराजा रणजीत सिंह ने………में शुकरचकिया मिसल की बागडोर संभाली।
उत्तर-
(1792 ई०)

प्रश्न 15.
कन्हैया मिसल का संस्थापक………….था।
उत्तर-
(जय सिंह)

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प्रश्न 16.
फुलकियाँ मिसल का संस्थापक………था।
उत्तर-
(चौधरी फूल)

प्रश्न 17.
पटियाला में फुलकियाँ मिसल का संस्थापक……….था।
उत्तर
(बाबा आला सिंह)

प्रश्न 18.
बाबा आला सिंह ने…………को अपनी राजधानी बनाया। .
उत्तर-
(बरनाला)

प्रश्न 19.
डल्लेवालिया मिसल के सबसे प्रसिद्ध नेता का नाम……….था।
उत्तर
(तारा सिंह घेबा)

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प्रश्न 20.
शहीद मिसल का संस्थापक………….था।
उत्तर-
(सुधा सिंह)

प्रश्न 21.
बाबा दीप सिंह जी का संबंध………मिसल के साथ था।
उत्तर-
(शहीद)

प्रश्न 22.
सिख मिसलों की केंद्रीय संस्था का नाम……….था।
उत्तर-
(गुरमता)

प्रश्न 23.
मिसल काल में मिसल के मुखिया को…………..कहा जाता था। .
उत्तर-
(सरदार)

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प्रश्न 24.
सिख मिसलों के समय आमदन का मुख्य स्रोत………..था।
उत्तर-
(भूमि लगान)

प्रश्न 25.
राखी प्रथा पंजाब में………….शताब्दी में प्रचलित हुई।
उत्तर-
(18वीं)

प्रश्न 26.
मिसल काल में अपराधियों से अधिकतर………….वसूल किया जाता था।
उत्तर-
(जुर्माना)

प्रश्न 27.
सिख मिसलों के समय सैनिक……….से अपने दुश्मनों का सामना करते थे।
उत्तर-
(छापामार ढंग)

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(iii) ठीक अथवा गलत (True or False)

नोट-निम्नलिखित में से ठीक अथवा गलत चुनें—

प्रश्न 1.
18वीं सदी में पंजाब में 12 स्वतंत्र सिख मिसलों की स्थापना हुई।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 2.
मिसल अरबी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है बराबर।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 3.
नवाब कपूर सिंह फैज़लपुरिया मिसल का संस्थापक था।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 4.
फैजलपुरिया मिसल को आहलूवालिया मिसल भी कहा जाता है। .
उत्तर-
गलत

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प्रश्न 5.
नवाब कपूर सिंह ने 1734 ई० में दल खालसा की स्थापना की थी।
उत्तर-
गलत

प्रश्न 6.
नवाब कपूर सिंह दल खालसा का प्रधान सेनापति था।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 7.
नवाब कपूर सिंह की मृत्य 1753 ई० में हुई थी।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 8.
आहलूवालिया मिसल का संस्थापक जस्सा सिंह रामगढ़िया था।
उत्तर-
गलत

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प्रश्न 9.
1748 ई० में जस्सा सिंह आहलूवालिया को दल खालसा का सर्वोच्च सेनापति नियुक्त किया। गया था।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 10.
जस्सा सिंह आहलूवालिया को सुल्तान-उल-कौम की उपाधि से सम्मानित किया गया था ।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 11.
जस्सा सिंह आहलूवालिया ने कपूरथला को अपनी राजधानी बनाया था।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 12.
रामगढ़िया मिसल का सबसे प्रसिद्ध नेता जस्सा सिंह रामगढ़िया था।
उत्तर-
ठीक

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प्रश्न 13.
जस्सा सिंह रामगढ़िया ने करतारपुर को अपनी राजधानी बनाया।
उत्तर-
गलत

प्रश्न 14.
भंगी मिसल का यह नाम इसके नेताओं द्वारा भांग पीने के कारण पड़ा।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 15.
शुकरचकिया मिसल का संस्थापक महाराजा रणजीत सिंह था।
उत्तर-
गलत

प्रश्न 16.
शुकरचकिया मिसल की राजधानी का नाम लाहौर था।
उत्तर-
गलत

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प्रश्न 17.
1792 ई० में महाराजा रणजीत सिंह ने शुकरचकिया मिसल की बागडोर संभाली।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 18.
जय सिंह कन्हैया मिसल का संस्थापक था।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 19.
रानी जिंदा कन्हैया मिसल की आगू थी।
उत्तर-
गलत

प्रश्न 20.
डल्लेवालिया मिसल के सब से प्रसिद्ध नेता बाबा दीप सिंह जी थे।
उत्तर-
गलत

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प्रश्न 21.
बाबा आला सिंह ने बरनाला को अपनी राजधानी बनाया था। .
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 22.
बाबा आला सिंह की मृत्यु 1762 ई० में हुई थी।
उत्तर-
गलत

प्रश्न 23.
1765 ई० में अहमद सिंह पटियाला की गद्दी पर बैठा था। . .
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 24.
अहमद शाह अब्दाली ने आला सिंह को ‘राजा-ए-राजगान बहादुर’ की उपाधि से सम्मानित किया था।
उत्तर-
ठीक

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प्रश्न 25.
निशानवालिया मिसल का संस्थापक हमीर सिंह था।
उत्तर-
गलत

प्रश्न 26.
सिख मिसलों की केंद्रीय संस्था का नाम गुरमता था।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 27.
मिसल के मुखिया को मिसलदार कहा जाता था।
उत्तर-
गलत

प्रश्न 28.
18वीं सदी में पंजाब में राखी प्रथा का प्रचलन हुआ।
उत्तर-
ठीक

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प्रश्न 29.
मिसल काल में सरबत खालसा को सिखों की सर्वोच्च अदालत कहा जाता था।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 30.
सिख मिसलों के सैनिक अपने दुश्मनों का मुकाबला छापामार ढंग से करते थे।
उत्तर-
ठीक

(iv) बहु-विकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions)

नोट-निम्नलिखित में से ठीक उत्तर का चयन कीजिए—

प्रश्न 1.
पंजाब में स्थापित मिसलों की कुल संख्या कितनी थी ?
(i) 5
(ii) 10
(iii) 12
(iv) 15
उत्तर-
(iii)

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प्रश्न 2.
नवाब कपूर सिंह कौन था ?
(i) फैजलपुरिया मिसल का संस्थापक
(ii) जालंधर का फ़ौजदार
(iii) पंजाब का सूबेदार
(iv) आहलूवालिया मिसल का नेता।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 3.
मिसल का संस्थापक कौन था ?
(i) जस्सा सिंह
(ii) भाग सिंह
(iii) फ़तह सिंह
(iv) खुशहाल सिंह।
उत्तर-(i)

प्रश्न 4.
आहलूवालिया मिसल की राजधानी कौन-सी थी ?
(i) अमृतसर
(ii) कपूरथला
(iii) लाहौर
(iv) श्री हरगोबिंदपुर।
उत्तर-
(ii)

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प्रश्न 5.
रामगढ़िया मिसल का संस्थापक कौन था ?
(i) जस्सा सिंह रामगढ़िया
(ii) खुशहाल सिंह
(iii) जोध सिंह
(iv) भाग सिंह।
उत्तर-
(ii)

प्रश्न 6.
रामगढ़िया मिसल का सबसे प्रसिद्ध नेता कौन था ?
(i) जस्सा सिंह रामगढ़िया
(ii) नंद सिंह
(iii) खुशहाल सिंह
(iv) जोध सिंह।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 7.
रामगढ़िया मिसल की राजधानी का क्या नाम था ?
(i) कपूरथला
(ii) श्री हरगोबिंदपुर
(iii) लाहौर
(iv) बरनाला।
उत्तर-
(ii)

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प्रश्न 8.
भंगी मिसल का संस्थापक कौन था ?
(i) हरी सिंह
(ii) छज्जा सिंह
(iii) गुलाब सिंह
(iv) भीम सिंह।
उत्तर-
(ii)

प्रश्न 9.
भंगी मिसल का सबसे प्रसिद्ध नेता कौन था ?
(i) हरी सिंह
(ii) झंडा सिंह
(iii) गंडा सिंह
(iv) भीम सिंह।
उत्तर-
(ii)

प्रश्न 10.
सिख मिसलों में सबसे शक्तिशाली मिसल कौन-सी थी ?
(i) शुकरचकिया मिसल
(ii) भंगी मिसल
(iii) कन्हैया मिसल
(iv) फुलकियाँ मिसल।
उत्तर-
(i)

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प्रश्न 11.
शुकरचकिया मिसल का संस्थापक कौन था ?
(i) खुशहाल सिंह
(ii) नवाब कपूर सिंह
(iii) छज्जा सिंह
(iv) चढ़त सिंह।
उत्तर-
(iv)

प्रश्न 12.
शुकरचकिया मिसल की राजधानी का नाम बताएँ ।
(i) अमृतसर
(ii) लाहौर
(iii) गुजराँवाला
(iv) बरनाला।
उत्तर-
(iii)

प्रश्न 13.
निम्नलिखित में से किस नगर पर चढ़त सिंह ने अधिकार नहीं किया था ?
(i) स्यालकोट
(ii) चकवाल
(iii) गुजराँवाला
(iv) अलीपुर
उत्तर-
(iv)

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प्रश्न 14.
महा सिंह की मृत्यु कब हुई ?
अथवा
रणजीत सिंह कब शुकरचकिया मिसल का नेता बना ?
(i) 1770 ई० में
(ii) 1780 ई० में
(iii) 1782 ई० में
(iv) 1792 ई० में।
उत्तर-
(iv)

प्रश्न 15.
कन्हैया मिसल का संस्थापक कौन था ?
(i) जय सिंह
(ii) सदा कौर
(iii) बाबा आला सिंह
(iv) जस्सा सिंह आहलूवालिया।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 16.
सदा कौर कौन थी ?
(i) कन्हैया मिसल की नेता
(i) महा सिंह की सास
(iii) भंगी मिसल की नेता
(iv) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(i)

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प्रश्न 17.
फुलकियाँ मिसल का संस्थापक कौन था ?
(i) चौधरी फूल
(ii) छज्जा सिंह
(iii) नवाब कपूर सिंह
(iv) गंडा सिंह।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 18.
पटियाला रियासत का संस्थापक कौन था ?
(i) अमर सिंह
(ii) बाबा आला सिंह
(ii) हमीर सिंह
(iv) गजपत सिंह।
उत्तर-
(ii)

प्रश्न 19.
बाबा आला सिंह ने किसको पटियाला रियासत की राजधानी बनाया ?
(i) कपूरथला
(ii) श्री हरगोबिंदपुर
(iii) बरनाला
(iv) गुजरांवाला।
उत्तर-
(iii)

प्रश्न 20.
डल्लेवालिया मिसल का सबसे प्रसिद्ध सरदार कौन था ?
(i) गुलाब सिंह
(ii) तारा सिंह घेबा
(iii) जय सिंह
(iv) बाबा आला सिंह।
उत्तर-
(ii)

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प्रश्न 21.
शहीद मिसल का सबसे प्रसिद्ध नेता कौन था ?
(i) सुधा सिंह
(ii) बाबा दीप सिंह जी
(iii) कर्म सिंह
(iv) गुरबख्श सिंह।
उत्तर-
(ii)

प्रश्न 22.
नकई मिसल का संस्थापक कौन था?
(i) नाहर सिंह
(ii) हीरा सिंह
(iii) राम सिंह
(iv) काहन सिंह ।
उत्तर-
(ii)

प्रश्न 23.
सिख मिसलों की केंद्रीय संस्था कौन-सी थी ?
(i) राखी प्रथा
(ii) जागीरदारी
(iii) गुरमता
(iv) मिसल।
उत्तर-
(iii)

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प्रश्न 24.
मिसल काल में जिले के मुखिया को क्या कहा जाता था ?
(i) ज़िलेदार
(ii) कारदार
(iii) थानेदार
(iv) सरदार।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 25.
राखी प्रथा क्या थी ?
(i) विदेशी आक्रमणकारियों से गाँव की रक्षा करनी
(ii) फसलों की देखभाल करनी
(iii) स्त्रियों की रक्षा करनी
(iv) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 26.
मिसल काल में सबसे महत्त्वपूर्ण किस सेना को माना जाता था ?
(i) घुड़सवार सेना को
(ii) पैदल सेना को
(iii) रथ सेना को
(iv) नौसेना को।
उत्तर-
(i)

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प्रश्न 3.
पंजाब की किन्हीं छ: मिसलों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए। (Explain briefly any six Misls of Punjab.) a
उत्तर-
1. फैजलपुरिया मिसल-इस मिसल का संस्थापक नवाब कपूर सिंह था। उसने सर्वप्रथम अमृतसर के समीप फैजलपुर नामक गाँव पर अधिकार किया था। इसलिए इस मिसल का नाम फैजलपुरिया मिसल पड़ गया था। नवाब कपूर सिंह अपनी वीरता के कारण सिखों में बहुत प्रख्यात था। 1753 ई० में नवाब कपूर सिंह की मृत्यु के उपरांत खुशहाल सिंह तथा बुद्ध सिंह ने इस मिसल का नेतृत्व किया।

2. भंगी मिसल-भंगी मिसल की स्थापना यद्यपि सरदार छज्जा सिंह ने की थी परंतु सरदार हरी सिंह को इस मिसल का वास्तविक संस्थापक माना जाता है। झंडा सिंह एवं गंडा सिंह इस मिसल के अन्य प्रसिद्ध नेता थे। क्योंकि इस मिसल के नेताओं को भंग पीने की बहुत आदत थी इसलिए इस मिसल का नाम भंगी मिसल पड़ा।

3. रामगढ़िया मिसल-रामगढ़िया मिसल का संस्थापक खुशहाल सिंह था। इस मिसल का सबसे प्रख्यात नेता सरदार जस्सा सिंह रामगढ़िया था। इस मिसल की राजधानी का नाम श्री हरगोबिंदपुर था। 1803 ई० में जस्सा सिंह रामगढ़िया की मृत्यु के उपरांत सरदार जोध सिंह ने इस मिसल का नेतृत्व किया।

4. शुकरचकिया मिसल-शुकरचकिया मिसल का संस्थापक सरदार चढ़त सिंह था। क्योंकि उसके पुरखे शुकरचक गाँव से संबंधित थे इसलिए इस मिसल का नाम शुकरचकिया मिसल पड़ा। वह एक साहसी योद्धा था। शुकरचकिया मिसल की राजधानी का नाम गुजराँवाला था। चढ़त सिंह के पश्चात् महा सिंह तथा रणजीत सिंह ने शुकरचकिया मिसल का कार्यभार संभाला। 1799 ई० में महाराजा रणजीत सिंह ने लाहौर पर अधिकार कर लिया था तथा यह विजय पंजाब के इतिहास में एक नया मोड़ प्रमाणित हुई।

5. कन्हैया मिसल-कन्हैया मिसल का संस्थापक जय सिंह था। क्योंकि वह कान्हा गाँव का निवासी था इसलिए इस मिसल का नाम कन्हैया मिसल पड़ा। जय सिंह काफ़ी बहादुर था। 1798 ई० में जय सिंह की मृत्यु के पश्चात् सदा कौर इस मिसल की नेता बनी। वह महाराजा रणजीत सिंह की सास थी तथा बहुत महत्त्वाकांक्षी थी।

6. आहलूवालिया मिसल-आहलूवालिया मिसल का संस्थापक सरदार जस्सा सिंह आहलूवालिया था। उसने जालंधर दोआब तथा बारी दोआब के इलाकों पर कब्जा करके अपनी वीरता का परिचय दिया। उसे सुल्तानउल-कौम की उपाधि से सम्मानित किया गया। आहलूवालिया मिसल की राजधानी का नाम कपूरथला था। 1783 ई० में जस्सा सिंह आहलूवालिया की मृत्यु के पश्चात् भाग सिंह तथा फतेह सिंह ने शासन किया।

प्रश्न 4.
नवाब कपूर सिंह पर एक संक्षेप नोट लिखें।
(Write a short note on Nawab Kapoor Singh.)
अथवा
नवाब कपूर सिंह के बारे में आप क्या जानते हैं ?
(What do you know about Nawab Kapoor Singh ?)..
उत्तर-
नवाब कपूर सिंह सिखों के सर्वाधिक लोकप्रिय नेता थे। वह फैजलपुरिया मिसल के संस्थापक थे। उनका जन्म 1697 ई० में कालोके नामक गाँव में हुआ था। उसके पिता का नाम दलीप सिंह था और वह जाट परिवार से संबंध रखते थे। कपूर सिंह शीघ्र ही सिखों के प्रसिद्ध मुखिया बन गए। 1733 ई० में उन्होंने पंजाब के मुग़ल सूबेदार जकरिया खाँ से नवाब का पद. तथा एक लाख वार्षिक आय वाली जागीर प्राप्त की। 1734 ई० में नवाब कपूर सिंह ने सिख शक्ति को संगठित करने के उद्देश्य से उनको दो जत्थों बुड्डा दल और तरुणा दल में गठित किया। उन्होंने बड़ी योग्यता और सूझ-बूझ के साथ इन दोनों दलों का नेतृत्व किया। जकरिया खाँ सिखों की बढ़ती हुई शक्ति को सहन करने को तैयार नहीं था। इसलिए उसने 1735 ई० में सिखों को दी गई जागीर को वापस ले लिया। उसने सिखों पर घोर अत्याचार आरंभ कर दिए। नवाब कपूर सिंह के नेतृत्व में खालसा ने इतने भयानक कष्टों को खुशी-खुशी सहन किया किंतु उन्होंने जकरिया खाँ के प्रभुत्व को स्वीकार नहीं किया। नवाब कपूर सिंह ने 1736 ई० में सरहिंद में भयंकर लूटमार की। नवाब कपूर सिंह ने 1739 ई० में नादिरशाह को दिन में तारे दिखा दिए थे। उसने 1748 ई० में अमृतसर को अपने अधीन कर लिया था। 1748 ई० में उन्होंने दल खालसा की स्थापना करके सिख पंथ के लिए महान कार्य किया। नवाब कपूर सिंह न केवल एक वीर योद्धा था अपितु वह सिख पंथ का एक महान् प्रचारक भी था। उसने बड़ी संख्या में लोगों को सिख धर्म में सम्मिलित होने के लिए प्रेरित किया। निस्संदेह सिख पंथ के विकास तथा उसको संगठित करने के लिए नवाब कपूर सिंह ने बहुमूल्य योगदान दिया। उनकी 1753 ई० में मृत्यु हो गई।

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प्रश्न 5.
जस्सा सिंह आहलूवालिया की सफलताओं का संक्षिप्त वर्णन कीजिए। (Give a brief account of the achievements of Jassa Singh Ahluwalia.)
अथवा
जस्सा सिंह आहलूवालिया के विषय में आप क्या जानते हैं ? लिखें। (Write, what do you know about Jassa Singh Ahluwalia ?)
अथवा
जस्सा सिंह आहलूवालिया पर एक नोट लिखें। (Write a note on Jassa Singh Ahluwalia.)
उत्तर-
जस्सा सिंह आहलूवालिया 18वीं शताब्दी में सिखों का एक योग्य एवं वीर नेता था। वह आहलूवालिया मिसल का संस्थापक था। उसका जन्म 1718 ई० में लाहौर के निकट स्थित आहलू नामक गाँव में हुआ था। आप के पिता का नाम बदर सिंह था। जस्सा सिंह अभी छोटे ही थे कि उनके पिता का देहांत हो गया। नवाब कपूर सिंह ने जस्सा सिंह आहलूवालिया को अपने पुत्र की तरह पालन-पोषण किया। 1739 ई० में जस्सा सिंह आहलूवालिया के नेतृत्व में सिखों ने नादिरशाह की सेना पर आक्रमण करके बहुत-सा धन लूट लिया था। निस्संदेह यह एक अत्यंत साहसी कार्य था। 1746 ई० में छोटे घल्लूघारे के समय इन्होंने वीरता के वे जौहर दिखाए कि उनकी ख्याति दूरदूर तक फैल गई। 1747 ई० में अमृतसर के फ़ौजदार सलाबत खाँ ने दरबार साहिब में सिखों के प्रवेश पर अनेक प्रतिबंध लगा दिए थे। परिणामस्वरूप जस्सा सिंह आहलूवालिया ने कुछ सिखों को साथ लेकर अमृतसर पर आक्रमण कर दिया। इस आक्रमण में सलाबत खाँ मारा गया एवं सिखों का अमृतसर पर अधिकार हो गया। जस्सा सिंह आहलूवालिया अपनी वीरता एवं प्रतिभा के कारण शीघ्र ही सिखों के प्रसिद्ध नेता बन गए। 1748 ई० में उन्हें दल खालसा का सर्वोच्च सेनापति नियुक्त किया गया। उन्होंने दल खालसा का कुशलतापूर्वक नेतृत्व करके सिख पंथ की महान सेवा की। 1761 ई० में जस्सा सिंह के नेतृत्व में सिखों ने लाहौर पर विजय प्राप्त की। 1762 ई० में बड़े घल्लूघारे समय भी जस्सा सिंह आहलूवालिया ने अहमदशाह अब्दाली की सेना का बड़ी बहादुरी से सामना किया। 1764 ई० में जस्सा सिंह आहलूवालिया ने सरहिंद पर अधिकार कर लिया। 1778 ई० में जस्सा सिंह आहलूवालिया ने कपूरथला पर कब्जा कर लिया और इसको आहलूवालिया मिसल की राजधानी बना दिया। इस प्रकार जस्सा सिंह आहलूवालिया ने सिख पंथ के लिए महान् उपलब्धियाँ प्राप्त की। 1783 ई० में इस महान् नेता की मृत्यु हो गई।

प्रश्न 6.
जस्सा सिंह रामगढ़िया कौन था ? उसकी सफलताओं का संक्षेप वर्णन करें। (Who was Jassa Singh Ramgarhia ? Write a short note on his achievements.)
अथवा
जस्सा सिंह रामगढ़िया के बारे में आप क्या जानते हैं ? लिखें। (Write, what do you know about Jassa Singh Ramgarhia ?)
उत्तर-
जस्सा सिंह रामगढ़िया मिसल का सबसे महान् नेता था। उसने सिख पंथ में बहुत कठिन परिस्थितियों में योग्य नेतृत्व किया था। उनका जन्म 1723 ई० में लाहौर के निकट स्थित गाँव इच्छोगिल में सरदार भगवान सिंह के घर हुआ था। आपको सिख पंथ की सेवा करना विरासत में प्राप्त हुआ था। उनके नेतृत्व में रामगढ़िया मिसल ने अद्वितीय उन्नति की। जस्सा सिंह रामगढ़िया पहले जालंधर के फ़ौजदार अदीना बेग़ के अधीन नौकरी करता था। अक्तूबर, 1748 ई० में मीर मन्नू और अदीना बेग की सेनाओं ने 500 सिखों को अचानक रामरौणी के किले में घेर लिया था। जस्सा सिंह रामगढ़िया इसे सहन न कर सका। वह तुरंत उनकी सहायता के लिए पहुँचा। उसके इस सहयोग के कारण 300 सिखों की जानें बच गईं। इससे प्रसन्न होकर रामरौणी का किला सिखों ने जस्सा सिंह रामगढ़िया के हवाले कर दिया। जस्सा सिंह रामगढ़िया ने इस किले का नाम रामगढ़ रखा। 1753 ई० में मीर मन्नू की मृत्यु की पश्चात् पंजाब में अराजकता फैल गई। इस स्वर्ण अवसर का लाभ उठाकर जस्सा सिंह रामगढिया ने कलानौर, बटाला, हरगोबिंदपुर, कादियाँ, उड़मुड़ टांडा, दीपालपुर, करतारपुर और हरिपुर इत्यादि प्रदेशों पर अधिकार करके रामगढ़िया मिसल का खूब विस्तार किया। उसने श्री हरगोबिंदपुर को रामगढ़िया मिसल की राजधानी घोषित किया। जस्सा सिंह रामगढ़िया के आहलूवालिया और शुकरचकिया मिसलों के साथ संबंध अच्छे नहीं थे। 1803 ई० में जस्सा सिंह रामगढ़िया ने सदैव के लिए हमसे अलविदा ले ली। उनका जीवन आने वाले सिख नेताओं के लिए एक प्रेरणा स्रोत रहा।

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प्रश्न 7.
महा सिंह पर एक संक्षिप्त नोट लिखें। (Write a short note on Maha Singh.).
उत्तर-
चढ़त सिंह की मृत्यु के पश्चात् 1774 ई० में उसका पुत्र महा सिंह शुकरचकिया मिसल का नया मुखिया बमा। उस समय महा सिंह की आयु केवल दस वर्ष की थी। इसलिए उसकी माँ देसाँ ने कुछ समय के लिए बड़ी समझदारी से मिसल का नेतृत्व किया। शीघ्र ही महा सिंह ने शुकरचकिया मिसल के प्रदेशों का विस्तार प्रारंभ किया। उसने सबसे पहले रोहतास पर अधिकार किया। इसके पश्चात् रसूल नगर और अलीपुर प्रदेशों पर अधिकार किया। महा सिंह ने रसूलपुर नगर का नाम बदल कर रामनगर और अलीपुर का नाम बदल कर अकालगढ़ रख दिया। महा सिंह ने भंगी सरदारों से मुलतान, बहावलपुर, साहीवाल आदि प्रदेशों को भी जीत लिया। महा सिंह की बढ़ती हुई शक्ति के कारण जय सिंह कन्हैया उससे बड़ी ईर्ष्या करने लग पड़ा। इसलिए उसको सबक सिखाने के लिए महा सिंह ने जस्सा सिंह रामगढ़िया के साथ मिलकर कन्हैया मिसल पर आक्रमण कर दिया। बटाला के निकट हुए युद्ध में जय सिंह का पुत्र गुरबख्श सिंह मारा गया। कुछ समय पश्चात् शुकरचकिया और कन्हैया मिसलों में मित्रतापूर्ण संबंध स्थापित हो गए। जय सिंह ने अपनी पौत्री मेहताब कौर की सगाई महा सिंह के पुत्र रणजीत सिंह के साथ कर दी। 1792 ई० में महा सिंह की मृत्यु हो गई।

प्रश्न 8.
फुलकियाँ मिसल पर एक संक्षेप नोट लिखें। (Write a short note on Phulkian Misl.)
उत्तर-
फुलकियाँ मिसल का संस्थापक चौधरी फूल था। उसके वंश ने पटियाला, नाभा तथा जींद के प्रदेशों पर अपना राज्य स्थापित किया। पटियाला में फुलकियाँ मिसल का संस्थापक आला सिंह था। वह बहुत बहादुर था। उसने अनेकों प्रदेशों पर कब्जा किया तथा बरनाला को अपनी राजधानी बनाया। 1764 ई० में उसने सरहिंद पर विजय प्राप्त की। 1764 ई० में उसने अहमद शाह अब्दाली से समझौता किया। 1765 ई० में आला सिंह के पश्चात् अमर सिंह तथा साहब सिंह ने शासन किया। नाभा में फुलकियाँ मिसल की स्थापना हमीर सिंह ने की थी। उसने 1755 ई० से 1783 ई० तक शासन किया। उसके पश्चात् उसका बेटा जसवंत सिंह गद्दी पर बैठा। जींद में फलकियाँ मिसल का संस्थापक गजपत सिंह था। उसने पानीपत तथा करनाल के प्रदेशों को विजय किया था। उसने अपनी सुपुत्री राज कौर की शादी महा सिंह से की। 1809 ई० में फुलकियाँ मिसल अंग्रेजों के संरक्षण में चली गई थी।

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प्रश्न 9.
आला सिंह पर एक संक्षिप्त नोट लिखें।
(Write a short note on Ala Singh.)
उत्तर-
पटियाला में फुलकियाँ मिसल का संस्थापक आला सिंह था। वह बड़ा बहादुर था। उसने बरनाला को अपनी गतिविधियों का केंद्र बनाया। 1768 ई० में अहमद शाह अब्दाली के प्रथम आक्रमण के दौरान आला सिंह ने उसके विरुद्ध मुग़लों की सहायता की थी। उसकी सेवाओं के दृष्टिगत मुग़ल बादशाह मुहम्मद शाह रंगीला ने एक खिलत भेट की। इससे आला सिंह की प्रसिद्धि बुहत बढ़ गई। शीघ्र ही आला सिंह ने बुडलाडा, टोहाना, भटनेर और जैमलपुर के प्रदेशों पर अधिकार कर लिया। 1762 ई० में अपने छठे,आक्रमण के दौरान अब्दाली ने बरनाला पर आक्रमण किया और आला सिंह को गिरफ्तार कर लिया। आला सिंह ने अब्दाली को भारी राशि देकर अपनी जान बचाई। 1765 ई० में अहमद शाह अब्दाली ने आला सिंह को सरहिंद का सूबेदार नियुक्त कर दिया। अब्दाली के साथ समझौते के कारण दल खालसा के सदस्य उससे रुष्ट हो गए और उसे अब्दाली से अपने संबंध तोड़ने हेत कहा, परंतु शीघ्र ही आला सिंह की मृत्यु हो गई।

प्रश्न 10.
सरबत खालसा तथा गुरमता के विषय में आप क्या जानते हैं ?, (What do you understand by Sarbat Khalsa and Gurmata ?)
अथवा
‘सरबत खालसा’ और ‘गुरमता’ के बारे में अपने विचार लिखें। (Write your views on ‘Sarbat Khalsa’ and ‘Gurmata’.)
उत्तर-
1. सरबत खालसा-सिख पंथ से संबंधित विषयों पर विचार करने के लिए वर्ष में दो बार दीवाली और वैशाखी के अवसर पर सरबत खालसा का समागम अकाल तख्त साहिब अमृतसर में बुलाया जाता था। सारे सिख गुरु ग्रंथ साहिब के समक्ष माथा टेक कर बैठ जाते थे। इसके पश्चात् गुरुवाणी का कीर्तन होता था फिर अरदास की जाती थी। इसके बाद कोई एक सिख खड़ा होकर संबंधित समस्या के बारे सरबत खालसा को जानकारी देता था। इस समस्या के बारे विचार-विमर्श करने के लिए प्रत्येक पुरुष व स्त्री को पूरी छूट होती थी। कोई भी निर्णय सर्वसम्मति से लिया जाता था।

2. गुरमता-गुरमता सिख मिसलों की केंद्रीय संस्था थी। गुरमता पंजाबी के दो शब्दों गुरु और मता के मेल से बना है-जिसके शाब्दिक अर्थ हैं, ‘गुरु का मत या निर्णय’। दूसरे शब्दों में, गुरु ग्रंथ साहिब जी की उपस्थिति में सरबत खालसा द्वारा जो निर्णय स्वीकार किए जाते थे उनको गुरमता कहा जाता था। इन गुरमतों का सारे सिख बड़े सत्कार से पालन करते थे। गुरमता के कुछ महत्त्वपूर्ण कार्य ये थे-दल खालसा के नेता का चुनाव करना, सिखों की विशेष नीति तैयार करना, सांझे शत्रुओं के विरुद्ध सैनिक कार्यवाही के लिए योजनाओं को अंतिम रूप देना, सिख सरदारों के आपसी झगड़ों का निपटारा करना और सिख धर्म के प्रचार के लिए प्रबंध करना।

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प्रश्न 11.
गुरमता से क्या अभिप्राय है ? गुरमता के कार्यों की संक्षेप जानकारी दें। (What is meant by Gurmata ? Give a brief account of its functions.)
अथवा
गुरमता पर एक संक्षिप्त नोट लिखिए। (Write a brief note on Gurmata.)
अथवा
गुरमता बारे आप क्या जानते हैं ?
(What do you know about Gurmata ?)
उत्तर-
गुरमता एक महत्त्वपूर्ण संस्था थी। इसके द्वारा अनेक राजनीतिक, सैनिक, धार्मिक तथा न्याय संबंधी कार्य किए जाते थे।

  1. इसका सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य दल खालसा के सर्वोच्च सेनापति की नियुक्ति करना था।
  2. इसके द्वारा सिखों की विदेश नीति को तैयार किया जाता था।
  3. इसके द्वारा सिखों के सांझे शत्रुओं के विरुद्ध सैनिक कार्रवाई को अंतिम रूप दिया जाता था।
  4. यह सिख मिसलों के सरदारों के आपसी झगड़ों का निपटारा करता था।
  5. इसमें सिख धर्म के प्रचार तथा सिख धर्म से संबंधित अन्य समस्याओं से संबंधित विचार किया जाता था तथा कार्यक्रम तैयार किया जाता था।
  6. इसके द्वारा विभिन्न मिसल सरदारों के अथवा व्यक्तिगत सिखों के झगड़ों का निपटारा किया जाता था। इसके अतिरिक्त इसके द्वारा सिख मिसलों के उत्तराधिकार एवं सीमा संबंधी झगड़ों का निर्णय भी किया जाता था।

सिख पंथ से संबंधित विषयों पर विचार करने के लिए वर्ष में दो बार बैसाखी और दीवाली के अवसरों पर अकाल तख्त में सरबत खालसा का आयोजन किया जाता था। वे अकाल तख्त साहिब के प्रांगण में रखे गए गुरु ग्रंथ साहिब जी को माथा टेक कर स्थान ग्रहण करते थे। उनके पीछे उनके अनुयायी तथा अन्य सिख संगत होती थी। आयोजन का आरंभ कीर्तन द्वारा किया जाता था। इसके पश्चात् अरदास की जाती थी। इसके पश्चात् ग्रंथी खड़ा होकर संबंधित समस्या के बारे में सरबत खालसा को जानकारी देता था। इस समस्या के बारे में विचार-विमर्श करने के लिए सरबत खालसा के सभी सदस्यों को पूर्ण स्वतंत्रता होती थी।

प्रश्न 12.
मिसलों के आंतरिक संगठन की कोई छः विशेषताएँ बताओ। (Mention any six features of internal organisation of Sikh Misls.)
अथवा
सिख मिसलों का अंदरूनी संगठन कैसा था ? व्याख्या करें। (Describe the internal organisation of Sikh Misls.)
अथवा
मिसल प्रबंध की मुख्य विशेषताओं का वर्णन करें। (Describe the main features of Misl Administration.)
उत्तर-
प्रत्येक मिसल के मुखिया को सरदार कहा जाता था और प्रत्येक सरदार के अधीन कई मिसलदार होते थे। सरदार विजित किए हुए क्षेत्रों में से कुछ भाग अपने अधीन मिसलदारों को दे देता था। कई बार मिसलदार सरदार से अलग होकर अपनी स्वतंत्र मिसल स्थापित कर लेते थे। सरदार अपनी प्रजा से अपने परिवार की तरह प्यार करते थे। मिसल प्रशासन की सबसे छोटी इकाई गाँव थी। गाँव का प्रबंध पंचायत के हाथों में था। गाँव के लगभग सभी मसले पंचायत द्वारा ही हल कर लिए जाते थे। लोग पंचायत का बड़ा आदर करते थे। सिख मिसलों का न्याय प्रबंध बिल्कुल साधारण था। कानून लिखित नहीं थे। मुकद्दमों का फैसला उस समय के प्रचलित रीतिरिवाजों के अनुसार किया जाता था। अपराधियों को सख्त सज़ाएँ नहीं दी जाती थीं। उनसे आमतौर पर जुर्माना ही वसूल किया जाता था। मिसलों के समय आमदनी का मुख्य साधन भूमि का लगान था। यह भूमि की उपजाऊ शक्ति के आधार पर भिन्न-भिन्न रहता था। यह आमतौर पर 1/3 से 1/4 भाग होता था। यह लगान वर्ष में दो बार वसूल किया जाता था। लगान अनाज या नकदी किसी भी रूप में दिया जा सकता था।

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प्रश्न 13.
राखी प्रणाली पर एक संक्षिप्त नोट लिखें। (Write a short note on Rakhi System.)
अथवा
राखी प्रणाली क्या है ? संक्षिप्त व्याख्या करें। (What is Rakhi System ? Explain in brief.)
अथवा
‘राखी व्यवस्था’ के विषय में आप क्या जानते हैं ? संक्षेप में लिखिए। (What do you know about Rakhi System ? Write in brief.)
अथवा
राखी प्रणाली क्या है ? इसका आरंभ कैसे हुआ ? व्याख्या करें। (What is Rakhi System ? Explain its origin.)
अथवा
राखी व्यवस्था के बारे में आप क्या जानते हैं ? (What do you know about ‘Rakhi System’ ?)
अथवा
मिसल प्रशासन में राखी प्रणाली का क्या महत्त्व था? (What was the importance of Rakhi System under the Misl Administration ?)
उत्तर-
18वीं शताब्दी पंजाब में जिन महत्त्वपूर्ण संस्थाओं की स्थापना हुई उनमें से राखी प्रणाली सबसे महत्त्वपूर्ण थी। —
1. राखी प्रणाली से अभिप्राय-राखी शब्द से अभिप्राय है रक्षा करना। वे गाँव जो अपनी इच्छा से सिखों की रक्षा के अधीन आ जाते थे उन्हें बाह्य आक्रमणों के समय तथा सिखों की लूटमार से सुरक्षा की गारंटी दी जाती थी। इस सुरक्षा के बदले उन्हें अपनी उपज का पाँचवां भाग सिखों को देना पड़ता था।

2. राखी प्रणाली का आरंभ-पंजाब में मुग़ल सूबेदारों की दमनकारी नीति, नादिरशाह तथा अहमदशाह अब्दाली के आक्रमणों के कारण पंजाब में अराजकता फैल गई थी। पंजाब में कोई स्थिर सरकार भी नहीं थी। इस वातावरण के कारण पंजाब में कृषि, उद्योग तथा व्यापार को काफ़ी हानि पहुँची। पंजाब के स्थानीय अधिकारी तथा ज़मींदार किसानों का बहुत शोषण करते थे तथा वे जब चाहते तलवार के बल पर लोगों की संपत्ति आदि लूट लेते थे। ऐसे अराजकता के वातावरण में दल खालसा ने राखी प्रणाली का आरंभ किया।

3. राखी प्रणाली की विशेषताएँ-राखी प्रणाली के अनुसार जो गाँव स्वयं को सरकारी अधिकारियों, ज़मींदारों, चोर-डाकुओं तथा विदेशी आक्रमणकारियों से रक्षा करना चाहते थे वे सिखों की शरण में आ जाते थे। सिखों की शरण में आने वाले गाँवों को इन सभी की लूटमार से बचाया जाता था। इस सुरक्षा के कारण प्रत्येक गाँव को वर्ष में दो बार अपनी कुल उपज का 1/5वां भाग दल खालसा को देना पड़ता था।

4. राखी प्रणाली की महत्ता-18वीं शताब्दी में पंजाब में राखी प्रणाली की स्थापना अनेक पक्षों से लाभदायक सिद्ध हुई। प्रथम, इसने पंजाब में सिखों की राजनीतिक शक्ति के उत्थान की ओर प्रथम महान् पग उठाया। दूसरा, इस कारण पंजाब के लोगों को सदियों बाद सुख का साँस मिला। वे अत्याचारी जागीरदारों तथा भ्रष्ट अधिकारियों के अत्याचारों से बच गए। तीसरा, उन्हें विदेशी आक्रमणकारियों की लूटमार का भय भी ने रहा। चौथा, पंजाब में शाँति स्थापित होने के कारण यहाँ की कृषि, उद्योग तथा व्यापार को प्रोत्साहन मिला।

प्रश्न 14.
मिसल काल के वित्तीय प्रबंध के बारे में आप क्या जानते हैं ? (What do you know about the financial administration of Misl period ?)
अथवा
मिसल शासन की अर्थ-व्यवस्था पर एक नोट लिखें। (Write a short note on economy under the Misls.)
उत्तर-
मिसल काल के वित्तीय प्रबंध की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित थीं—
1. लगान प्रबंध-मिसलों के समय आमदनी का मुख्य साधन भूमि का लगान था। इसकी दर भूमि की उपजाऊ शक्ति के आधार पर भिन्न-भिन्न होती थी। यह प्रायः कुल उपज का 1/3 से 1/4 भाग होता था। यह लगान वर्ष में दो बार रबी और खरीफ फसलों के तैयार होने के समय लिया जाता था। लगान एकत्रित करने के लिए बटाई प्रणाली प्रचलित थी। लगान अनाज या नकदी किसी भी रूप में दिया जा सकता था। मिसल काल में भूमि अधिकार संबंधी चार प्रथाएँ-पट्टीदारी, मिसलदारी, जागीरदारी तथा ताबेदारी प्रचलित थीं।

2. राखी प्रथा-पंजाब के लोगों को विदेशी हमलावरों तथा सरकारी कर्मचारियों से सदैव लूटमार का भय लगा रहता था। इसलिए अनेक गाँवों ने अपनी रक्षा के लिए मिसलों की शरण ली। मिसल सरदार उनकी शरण में आने वाले गाँवों को सरकारी कर्मचारियों तथा विदेशी आक्रमणकारियों की लूट-पाट से बचाते थे। इस रक्षा के बदले उस गाँव के लोग अपनी उपज का पाँचवां भाग वर्ष में दो बार मिसल के सरदार को देते थे। इस तरह यह राखी कर मिसलों की आय का एक अच्छा साधन था।

3. आय के अन्य साधन-इसके अतिरिक्त मिसल सरदारों को चुंगी कर, भेंटों से और युद्ध के समय की गई लूटमार से भी कुछ आय प्राप्त हो जाती थी।

4. व्यय-मिसल सरदार अपनी आय का एक बहुत बड़ा भाग सेना, घोड़ों, शस्त्रों, नए किलों के निर्माण और पुराने किलों की मुरम्मत पर व्यय करता था। इसके अतिरिक्त मिसल सरदार गुरुद्वारों और मंदिरों को दान भी देते थे और निर्धन लोगों के लिए लंगर भी लगाते थे।

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प्रश्न 15.
मिसलों की न्याय व्यवस्था पर नोट लिखें। (Write a note on the Judicial system of Misls.)
उत्तर-
सिख मिसलों के समय न्याय प्रबंध बिल्कुल साधारण था। कानून लिखित नहीं थे। मुकद्दमों के फैसले उस समय के प्रचलित रीति-रिवाजों के अनुसार किए जाते थे। उस समय सज़ाएँ सख्त नहीं थीं। किसी भी अपराधी को मृत्यु दंड नहीं दिया जाता था। अधिकतर अपराधियों से जुर्माना वसूल किया जाता था। बार-बार अपराध करने वाले अपराधी के शरीर का कोई अंग काट दिया जाता था। मिसलों के समय पंचायत न्याय प्रबंध की सबसे छोटी अदालत होती थी। गाँव में अधिकतर मुकद्दमों का फैसला पंचायतों द्वारा ही किया जाता था। लोग पंचायत को परमेश्वर समझ कर उसका फैसला स्वीकार करते थे। प्रत्येक मिसल के सरदार की अपनी अलग अदालत होती थी। इसमें दीवानी और फ़ौजदारी दोनों तरह के मुकद्दमों का निर्णय किया जाता था। वह पंचायत के फैसलों के विरुद्ध भी अपीलें सुनता था। सरबत खालसा सिखों की सर्वोच्च अदालत थी। इसमें मिसल सरदारों के आपसी झगड़ों तथा सिख कौम से संबंधित मामलों की सुनवाई की जाती थी तथा इनका निर्णय गुरमतों द्वारा किया जाता था।

प्रश्न 16.
सिख मिसलों के सैनिक प्रबंध की मुख्य विशेषताएँ बताएँ। (Describe the main features of military administration of Sikh Misls.)
उत्तर-
1. घुड़सवार सेना-घुड़सवार सेना मिसलों की सेना का सबसे महत्त्वपूर्ण अंग था। सिख बहुत निपुण घुड़सवार थे। सिखों के तीव्र गति से दौड़ने वाले घोड़े उनकी गुरिल्ला युद्ध प्रणाली के संचालन में बहुत सहायक सिद्ध हुए।

2. पैदल सैनिक–मिसलों के समय पैदल सेना को कोई विशेष महत्त्व नहीं दिया जाता था। पैदल सैनिक किलों में पहरा देते, संदेश पहुँचाते और स्त्रियों और बच्चों की देखभाल करते थे।

3. भर्ती-मिसल सेना में भर्ती होने के लिए किसी को भी विवश नहीं किया जाता था। सैनिकों को कोई नियमित प्रशिक्षण भी नहीं दिया जाता था। उनको नकद वेतन के स्थान पर युद्ध के दौरान की गई लूटमार से हिस्सा मिलता था।

4. सैनिकों के शस्त्र और सामान–सिख सैनिक युद्ध के समय तलवारों, तीर-कमानों, खंजरों, ढालों और बों का प्रयोग करते थे। इसके अतिरिक्त वे बंदूकों का प्रयोग भी करते थे।

5. लड़ाई का ढंग-मिसलों के समय सैनिक छापामार ढंग से अपने शत्रुओं का मुकाबला करते थे। इसका कारण यह था कि दुश्मनों के मुकाबले सिख सैनिकों के साधन बहुत सीमित थे। मारो और भागो इस युद्ध नीति का प्रमुख आधार था। सिखों की लड़ाई का यह ढंग उनकी सफलता का एक प्रमुख कारण बना।

6. मिसलों की कुल सेना–मिसल सैनिकों की कुल संख्या के संबंध में निश्चित तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता। आधुनिक इतिहासकारों डॉ० हरी राम गुप्ता और एस० एस० गाँधी आदि के अनुसार यह संख्या लगभग एक लाख थी।

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Source Based Questions

नोट-निम्नलिखित अनुच्छेदों को ध्यानपूर्वक पढ़िए और उनके अंत में पूछे गए प्रश्नों का उत्तर दीजिए।
1
नवाब कपूर सिंह फैजलपुरिया मिसल का संस्थापक था। उसने सबसे पहले अमृतसर के निकट फैजलपुर नामक गाँव पर अधिकार किया। इस गाँव का नाम बदल कर सिंघपुर रखा गया। इसी कारण फैजलपुरिया मिसल को सिंघपुरिया मिसल भी कहा जाता है। सरदार कपूर सिंह का जन्म 1697 ई० में कालोके नामक गाँव में हुआ था। उसके पिता का नाम दलीप सिंह था और वह जाट परिवार से संबंध रखते थे। कपूर सिंह बाल्यकाल से ही अत्यंत वीर और निडर थे। उन्होंने भाई मनी सिंह से अमृत छका था। शीघ्र ही वह सिखों के प्रसिद्ध मुखिया बन गए। 1733 ई० में उन्होंने पंजाब के मुग़ल सूबेदार जकरिया खाँ से नवाब का पद तथा एक लाख वार्षिक आय वाली जागीर प्राप्त की। 1734 ई० में नवाब कपूर सिंह ने सिख शक्ति को संगठित करने के उद्देश्य से उनको दो जत्थों बुड्डा दल और तरुणा दल के रूप में गठित किया। उन्होंने बड़ी योग्यता और सूझ-बूझ के साथ इन दोनों दलों का नेतृत्व किया। 1748 ई० में उन्होंने दल खालसा की स्थापना करके सिख पंथ के लिए महान् कार्य किया। वास्तव में सिख पंथ के विकास तथा उसको संगठित करने के लिए नवाब कपूर सिंह का योगदान बड़ा प्रशंसनीय था। उनकी 1753 ई० में मृत्यु हो गई।

  1. फैज़लपुरिया मिसल के संस्थापक कौन थे ?
  2. फैज़लपुरिया को अन्य किस नाम से जाना जाता था ?
  3. सरदार कपूर सिंह ने कब तथा किससे नवाब का दर्जा प्राप्त किया था ?
  4. नवाब कपूर सिंह की कोई एक सफलता के बारे में बताएँ।
  5. दल खालसा की स्थापना ……….. में की गई।

उत्तर-

  1. फैजलपुरिया मिसल के संस्थापक नवाव कपूर सिंह थे।
  2. फैज़लपुरिया को सिंघपुरिया मिसल के नाम से जाना जाता था।
  3. सरदार कपूर सिंह ने 1733 ई० में पंजाब के मुग़ल सूबेदार जकरिया खाँ से नवाब का दर्जा प्राप्त किया था।
  4. उन्होंने 1734 ई० में बुड्डा दल तथा तरुणा दल का गठन किया।
  5. 1748 ई०।

2
आहलूवालिया मिसल का संस्थापक सरदार जस्सा सिंह था। वह लाहौर के निकट स्थित गाँव आहलू का निवासी था। इस कारण इस मिसल का नाम आहलूवालिया मिसल पड़ गया। जस्सा सिंह अपने गुणों के कारण शीघ्र ही सिखों के प्रसिद्ध नेता बन गए। 1739 ई० में जस्सा सिंह के नेतृत्व में सिखों ने नादिर शाह की सेना पर आक्रमण करके बहुत-सा धन लूट लिया था। 1746 ई० में छोटे घल्लूघारे के समय इन्होंने वीरता के बड़े जौहर दिखाए। परिणामस्वरूप उनका नाम दूर-दूर तक प्रसिद्ध हो गया। 1748 ई० में दल खालसा की स्थापना के समय जस्सा सिंह आहलूवालिया को सर्वोच्च सेनापति नियुक्त किया गया। उन्होंने दल खालसा का नेतृत्व करके सिख पंथ की महान् सेवा की। 1761 ई० में जस्सा सिंह के नेतृत्व में सिखों ने लाहौर पर जीत प्राप्त की। यह सिखों की एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण विजय थी। 1762 ई० में बड़े घल्लूघारे के समय भी जस्सा सिंह ने अहमद शाह अब्दाली की फ़ौजों का बड़ी वीरता के साथ मुकाबला किया। 1764 ई० में जस्सा सिंह ने सरहिंद पर अधिकार कर लिया और इसके शासक जैन खाँ को मौत के घाट उतार दिया। 1778 ई० में जस्सा सिंह ने कपूरथला पर कब्जा कर लिया और इसको आहलूवालिया मिसल की राजधानी बना दिया।

  1. जस्सा सिंह आहलूवालिया कौन था ?
  2. आहलूवालिया मिसल का यह नाम क्यों पड़ा ?
  3. जस्सा सिंह आहलूवालिया की राजधानी का नाम क्या था ?
  4. जस्सा सिंह आहलूवालिया की कोई एक सफलता लिखें।
  5. जस्सा सिंह आहलूवालिया ने कपूरथला पर कब कब्जा किया ?
    • 1761 ई०
    • 1768 ई०
    • 1778 ई०
    • 1782 ई०।

उत्तर-

  1. जस्सा सिंह आहलूवालिया, आहलूवालिया मिसल के संस्थापक थे।
  2. क्योंकि जस्सा सिंह आहलूवालिया आहलू गाँव का निवासी था।.
  3. जस्सा सिंह आहलूवालिया की राजधानी का नाम कपूरथला था।
  4. उन्होंने 1761 ई० में लाहौर में विजय प्राप्त की।
  5. 1778 ई०।

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3
जस्सा सिंह रामगढ़िया मिसल का सबसे प्रसिद्ध नेता था। उसके नेतृत्व में यह मिसल अपनी उन्नति के शिखर पर पहुँच गई थी। जस्सा सिंह पहले जालंधर के फ़ौजदार अदीना बेग के अधीन नौकरी करता था। अक्तूबर, 1748 ई० में मीर मन्नू और अदीना बेग की सेनाओं ने 500 सिखों को अचानक रामरौणी के किले में घेर लिया था। अपने भाइयों पर आए इस संकट को देखकर जस्सा सिंह के खून ने जोश मारा। वह अदीना बेग की नौकरी छोड़कर सिखों की सहायता के लिए पहुँचा। उसके इस सहयोग के कारण 300 सिखों की जानें बच गईं। इससे प्रसन्न होकर रामरौणी का किला सिखों ने जस्सा सिंह के सुपुर्द कर दिया। जस्सा सिंह ने इस किले का नाम रामगढ़ रखा। इससे ही उसकी मिसल का नाम रामगढ़िया पड़ गया। 1753 ई० में मीर मन्नू की मृत्यु के पश्चात् पंजाब में फैली अराजकता का लाभ उठाकर जस्सा सिंह ने कलानौर, बटाला, हरगोबिंदपुर, कादियाँ, उड़मुड़ टांडा, दीपालपुर, करतारपुर और हरिपुर इत्यादि प्रदेशों पर अधिकार करके रामगढ़िया मिसल का खूब विस्तार किया। उसने श्री हरगोबिंदपुर को रामगढ़िया मिसल की राजधानी घोषित किया। जस्सा सिंह के आहलूवालिया और शुकरचकिया मिसलों के साथ संबंध अच्छे नहीं थे। जस्सा सिंह की 1803 ई० में मृत्यु हो गई।

  1. जस्सा सिंह रामगढ़िया कौन था ?
  2. जस्सा सिंह रामगढ़िया ने रामरौणी किले का क्या नाम रखा ?
  3. जस्सा सिंह रामगढ़िया की राजधानी का नाम क्या था ?
  4. जस्सा सिंह रामगढ़िया की कोई एक सफलता लिखें।
  5. ………. में मीर मन्नू की मृत्यु हुई।

उत्तर-

  1. जस्सा सिंह रामगढ़िया, रामगढ़िया मिसल के सबसे प्रसिद्ध नेता थे।
  2. जस्सा सिंह रामगढ़िया ने रामरौणी किले का नाम बदलकर रामगढ़ रखा।
  3. जस्सा सिंह रामगढ़िया की राजधानी का नाम श्री हरगोबिंदपुर था।
  4. उसने सिखों को रामरौणी किले में मुग़लों के घेरे से बचाया था।
  5. 1753 ई०।

4
पटियाला में फुलकिया मिसल का संस्थापक आला सिंह था। वह बड़ा बहादुर था। उसने 1731 ई० में जालंधर दोआब के और मालेरकोटला के फ़ौजदारों की संयुक्त सेना को करारी हार दी थी। आला सिंह ने बरनाला को अपनी सरगर्मियों का केंद्र बनाया। उसने लौंगोवाल, छजली, दिरबा और शेरों नाम के गाँवों की स्थापना की। 1748 ई० में अहमद शाह अब्दाली के प्रथम आक्रमण के दौरान आला सिंह ने उसके विरुद्ध मुग़लों की सहायता की। उसकी सेवाओं के दृष्टिगत मुग़ल बादशाह मुहम्मद शाह रंगीला ने एक खिलत भेंट की। इससे आला सिंह की प्रसिद्धि बढ़ गई। शीघ्र ही आला सिंह ने भट्टी भाइयों जोकि उसके कट्टर शत्रु थे, को हरा कर बुडलाडा, टोहाना, भटनेर और जैमलपुर के प्रदेशों पर अधिकार कर लिया। 1761 ई० में आला सिंह ने अहमद शाह अब्दाली के विरुद्ध मराठों की मदद की थी। इसलिए 1762 ई० में अपने छठे आक्रमण के दौरान अब्दाली ने बरनाला पर आक्रमण किया और आला सिंह को गिरफ्तार कर लिया। आला सिंह ने अब्दाली को भारी राशि देकर अपनी जान बचाई। 1764 ई० में आला सिंह ने दल खालसा के अन्य सरदारों के साथ मिलकर सरहिंद पर आक्रमण कर इसके सूबेदार जैन खाँ को यमलोक पहँचा दिया था। इसी वर्ष अहमद शाह अब्दाली ने आला सिंह को सरहिंद का सूबेदार नियुक्त कर दिया एवं उसे राजा की उपाधि से सम्मानित किया।

  1. आला सिंह कौन था ?
  2. आला सिंह की राजधानी का क्या नाम था ?
  3. अहमद शाह अब्दाली ने कब आला सिंह को गिरफ्तार कर लिया था ?
  4. अहमद शाह अब्दाली ने आला सिंह को कहाँ का सूबेदार नियुक्त किया था ?
  5. आला सिंह को कब सरहिंद का सूबेदार नियुक्त किया गया ?
    • 1748 ई०
    • 1761 ई०
    • 1762 ई०
    • 1764 ई०।

उत्तर-

  1. आला सिंह पटियाला में फुलकिया मिसल का संस्थापक था।
  2. आला सिंह की राजधानी का नाम बरनाला था।
  3. अहमद शाह अब्दाली ने 1762 ई० में आला सिंह को गिरफ्तार कर लिया था।
  4. अहमद शाह अब्दाली ने आला सिंह को सरहिंद का सूबेदार नियुक्त किया था।
  5. 1764 ई०।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 16 सिख मिसलों की उत्पत्ति एवं विकास तथा उनके संगठन का स्वरूप

सिख मिसलों की उत्पत्ति एवं विकास तथा उनके संगठन का स्वरूप PSEB 12th Class History Notes

  • मिसल शब्द से भाव (Meaning of the word Misl)—कनिंघम और प्रिंसेप के अनुसार मिसल अरबी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है ‘बराबर’-डेविड आक्टरलोनी मिसल शब्द को स्वतंत्र शासन करने वाले कबीले या जाति से जोड़ते हैं-अधिकतर इतिहासकारों के अनुसार मिसल शब्द का अर्थ फाइल है।
  • सिख मिसलों की उत्पत्ति (Origin of the Sikh Misls)-सिख मिसलों की उत्पत्ति किसी पूर्व निर्धारित योजना या निश्चित समय में नहीं हुई थी-मुग़ल सूबेदारों के बढ़ते अत्याचारों के कारण 1734 ई० में नवाब कपूर सिंह ने सिख शक्ति को बुड्डा दल और तरुणा दल में संगठित कर दियाउन्होंने ही 29 मार्च, 1748 ई० को अमृतसर में दल खालसा की स्थापना की-दल खालसा के अधीन 12 जत्थे गठित किए गए-इन्हें ही मिसल कहा जाता था।
  • सिख मिसलों का विकास (Growth of the Sikh Misls)-सिखों की महत्त्वपूर्ण मिसलों का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है—
    • फैज़लपुरिया मिसल (Faizalpuria Misl)-फैजलपुरिया मिसल का संस्थापक नवाब कपूर सिंह था-उस मिसल के अधीन अमृतसर, जालंधर, लुधियाना, पट्टी और नूरपुर आदि के प्रदेश आते थे।
    • आहलूवालिया मिसल (Ahluwalia Misl)-आहलूवालिया मिसल का संस्थापक जस्सा सिंह था-इस मिसल के अधीन सरहिंद और कपूरथला आदि के महत्त्वपूर्ण प्रदेश आते थे।
    • रामगढ़िया मिसल (Ramgarhia Misl)-इस मिसल का संस्थापक खुशहाल सिंह था—इस मिसल के अधीन बटाला, कादियाँ, उड़मुड़ टांडा, हरगोबिंदपुर और करतारपुर आदि के प्रदेश आते थे।
    • शुकरचकिया मिसल (Sukarchakiya Misl)-शुकरचकिया मिसल का संस्थापक चढ़त सिंह था-इस मिसल की राजधानी गुजराँवाला थी-महाराजा रणजीत सिंह इसी मिसल से संबंध रखता था।
    • अन्य मिसलें (Other Misis)—अन्य मिसलों में भंगी मिसल, फुलकियाँ मिसल, कन्हैया मिसल, ___ डल्लेवालिया मिसल, शहीद मिसल, नकई मिसल, निशानवालिया मिसल और करोड़ सिंघिया मिसल आती थीं।
  • मिसलों का राज्य प्रबंध (Administration of the Misls) गुरमता सिख मिसलों की केंद्रीय संस्था थी-सारे सिख इन गुरमतों को गुरु की आज्ञा समझकर पालना करते थे-प्रत्येक मिसल का मुखिया सरदार कहलाता था-उसके अधीन कई मिसलदार थे-प्रत्येक मिसल कई जिलों में बंटी होती थी-मिसल प्रशासन की सबसे छोटी इकाई गाँव थी-मिसलों की आमदनी का मुख्य साधन भूमि का लगान और राखी प्रथा थी- मिसलों का न्याय प्रबंध बिल्कुल साधारण था-आधुनिक इतिहासकार मिसलों के समय सैनिकों की कुल संख्या एक लाख के करीब मानते हैं।