PSEB 10th Class Agriculture Solutions Chapter 11 प्लांट क्लीनिक

Punjab State Board PSEB 10th Class Agriculture Book Solutions Chapter 11 प्लांट क्लीनिक Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 10 Agriculture Chapter 11 प्लांट क्लीनिक

PSEB 10th Class Agriculture Guide प्लांट क्लीनिक Textbook Questions and Answers

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के एक-दो शब्दों में उत्तर दीजिए –

प्रश्न 1.
पी० ए० यू० में प्लांट क्लीनिक की स्थापना कब की गई ?
उत्तर-
1993 में।

प्रश्न 2.
पंजाब कृषि विश्वविद्यालय में कुल कितने प्लांट क्लीनिक स्थापित हैं ?
उत्तर-
18 कृषि विज्ञान केन्द्र तथा क्षेत्रीय खोज केन्द्र अबोहर, बठिंडा, गुरदासपुर।

प्रश्न 3.
प्लांट क्लीनिक में प्रयोग किए जाने वाले किन्हीं उपकरणों के नाम लिखिए।
उत्तर-
कम्प्यूटर, माइक्रोस्कोप।

प्रश्न 4.
फसलों पर छिड़काव की जाने वाली दवाइयों की उचित मात्रा पता करने के लिए किस सिद्धान्त को आधार बनाया जाता है ?
उत्तर-
आर्थिक हानि की सीमा।

PSEB 10th Class Agriculture Solutions Chapter 11 प्लांट क्लीनिक

प्रश्न 5.
स्लाइडों से किस उपकरण की सहायता से चित्र देखे जा सकते हैं ?
उत्तर-
प्रोजैक्टर द्वारा।

प्रश्न 6.
छोटे आकार की निशानियों की पहचान किस उपकरण से की जाती है ?
उत्तर-
माईक्रोस्कोप द्वारा।

प्रश्न 7.
बीमार पत्तों के नमूनों को संभालकर रखे जाने वाले दो रसायनों के नाम लिखिए।
उत्तर-
फार्मालीन, एसीटिक अम्ल।

प्रश्न 8.
पी० ए० यू० प्लांट क्लीनिक का ई-मेल पता क्या है ?
उत्तर-
Plantclinic @ pau.edu

प्रश्न 9.
पी० ए० यू० प्लांट क्लीनिक से किस टैलीफोन नम्बर पर सम्पर्क किया जा सकता है ?
उत्तर-
फोन नं० 0161-240-1960 जिसकी एक्सटेंशन 417 है। मोबाइल नं० 9463048181.

प्रश्न 10.
पी० ए० यू० के प्लांट क्लीनिक के पास गांव-गांव जाकर तकनीकी जानकारी देने के लिए कौन-सी वैन है ?
उत्तर-
निरीक्षण तथा प्रदर्शनी के लिए मोबाइल बैन (Mobile diagnosis cum exhibition van)।

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(ख) निम्नलिखित प्रश्नों का एक -दो वाक्यों में उत्तर दीजिए –

प्रश्न 1.
प्लांट क्लीनिक क्या है ?
उत्तर-
यह वह कमरा अथवा ट्रेनिंग सैंटर है जहां बीमार पौधों की विभिन्न बीमारियों के बारे में अध्ययन किया जाता है।

प्रश्न 2.
प्लांट क्लीनिक शिक्षा का लाभ बताएं।
उत्तर-
इस सिद्धान्त के प्रयोग से ज़मींदारों को उनकी फसलों की कमियों तथा बीमारियों का सही इलाज मिलना आरम्भ हो गया है। इस तरह शिक्षार्थी तो पौधों को देखकर सभी कुछ समझते ही हैं, किसानों को आर्थिक लाभ भी हो रहा है।

प्रश्न 3.
मनुष्यों के अस्पतालों से प्लांट क्लीनिक कैसे भिन्न हैं ?
उत्तर-
मानवीय अस्पतालों में मनुष्य को होने वाले बीमारियों का पता लगाकर उनका इलाज किया जाता है जबकि पौधों के अस्पताल में बीमार पौधों के इलाज के अतिरिक्त बीमार पौधों के बारे में जांच शिक्षा तथा ट्रेनिंग भी करवाई जाती है।

प्रश्न 4.
प्लांट क्लीनिक में कौन-कौन से विषयों का अध्ययन किया जाता है ?
उत्तर-
इनमें पौधों पर बीमारी का हमला, तत्त्वों की कमी, कीड़े का हमला तथा अन्य कारणों का भी अध्ययन किया जाता है।

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प्रश्न 5.
प्लांट क्लीनिक में आवश्यक उपकरणों की सूची बनाएं।
उत्तर-
प्लांट क्लीनिक में आवश्यक साजो-सामान इस तरह है-
माइक्रोस्कोप, मैग्नीफाइंग लैंस, रसायन, इंकुबेटर, कैंची, चाकू, सूखे-गीले सैम्पल सम्भालने का साजो-सामान, कम्प्यूटर, फोटो कैमरा तथा प्रोजैक्टर, किताबें आदि।

प्रश्न 6.
सूक्ष्मदर्शी यन्त्र का प्लांट क्लीनिक में क्या महत्त्व है ?
उत्तर-
पौधे की चीरफाड़ करके बीमारी के लक्षण देखने के लिए माइक्रोस्कोप का प्रयोग किया जाता है। सही रंगों, छोटी निशानियों आदि की पहचान भी इसी से की जाती है।

प्रश्न 7.
इक्नोमिक फैशहोल्ड से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
पौधों को लगी बीमारियां अथवा कीड़ों आदि से हुए बचाव के लिए दवाई की उचित मात्रा ढूंढकर छिड़काव करना चाहिए। जब फसल को हानि पहुंचा रहे कीड़ों की संख्या एक खास स्तर पर आ जाए तब ही दवाई स्प्रे करनी चाहिए ताकि फसलों को लाभ भी हो। इस विधि को धैशहोल्ड का नाम दिया गया है।

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प्रश्न 8.
प्लांट क्लीनिक में कम्प्यूटर का क्या महत्त्व है ?
उत्तर-
कई तरह से सैम्पल न तो गीले तथा न ही सूखे सम्भाले जा सकते हैं। ऐसे नमूनों को स्कैन करके कम्प्यूटर में सम्भाल लिया जाता है, ताकि आवश्यकता पड़ने पर इनका प्रयोग किया जा सके।

प्रश्न 9.
उष्मामित्र किस तरह पौधों की बीमारी ढूंढ़ने में मदद करता है ?
उत्तर-
उल्ली आदि को मीडिया के ऊपर रख कर इनकुबेटर (उष्मामित्र) में उचित तापमान तथा नमी पर रख कर उल्ली को उगने का पूरा वातावरण दिया जाता है तथा इसकी पहचान करके जीवाणु की पहचान की जाती है।

प्रश्न 10.
पौधों के नमूनों को शीशे के बर्तनों में अधिक समय रखने के लिए कौन-से रसायनों का प्रयोग किया जाता है ?
उत्तर-
इस काम के लिए फार्मालीन, एल्कोहल आदि का प्रयोग किया जाता है।

(ग) निम्नलिखित प्रश्नों के पांच-छः वाक्यों में उत्तर दीजिए-

प्रश्न 1.
प्लांट क्लीनिक के महत्त्व के बारे में एक नोट लिखिए।
अथवा
प्लांट क्लीनिक के क्या-क्या लाभ हैं?
उत्तर-

  • प्लांट क्लीनिक में पौधों में भूमिगत खाद्य तत्त्वों की कमी से पैदा हुए लक्षणों की जांच करके पौधों की बीमारियां तथा हानि पहुंचाने वाले कीड़ों की पहचान की जाती है।
  • खेतों से लाए बीमार पौधों आदि की बीमारी के लक्षणों की पहचान करके मौके पर ही इन बीमारियों की रोकथाम के लिए इलाज बताये जाते हैं।
  • प्लांट क्लीनिकों में व्यक्तियों को शनाख्ती चिन्हों की पहचान करने की ट्रेनिंग दी जाती है।
  • आवश्यक खनिज तथा रसायनों आदि की आवश्यक सही मात्रा निकालने के बारे में बताया जाता है ताकि इनका सही प्रयोग करके अतिरिक्त खर्चे से बचा जा सके।
  • प्लांट क्लीनिकों में फसलों के मुख्य कीड़ों के लिए इक्नामिक के धैशहोल्ड बारे में भी जानकारी दी जाती है। इस तरह प्रयोग की जाने वाली कीड़ेमार दवाइयां तथा पौधों में तत्त्वों की कमी का सही तरह पता लग जाता है तथा इन दवाइयों का प्रयोग सही मात्रा में किया जा सकता है।
  • विभिन्न स्प्रे पम्पों तथा अन्य उपकरणों के प्रयोग बारे भी जानकारी दी जाती है।
  • विद्यार्थियों को बीमार पौधे लाकर दिखाये जाते हैं तथा इलाज की विधि बारे बताया जाता है।
  • प्लांट क्लीनिकों में पौधों का अध्ययन करने के लिए आवश्यक उपकरणों, साजो-सामान, दवाइयां, पौधों के नमूने, पम्पों, खादों, बीज तथा अन्य सम्बन्धित, चीज़ों अथवा उनके नमूने अथवा उनकी तस्वीरें रखी जाती हैं।

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प्रश्न 2.
प्लांट क्लीनिक में कौन-कौन सी सुविधाएं उपलब्ध हैं ?
उत्तर-

  • प्लांट क्लीनिक पर किसान भाइयों को तकनीकी जानकारी दी जाती है।
  • फ़सलों के रोगों की पहचान, पहचान चिन, कीड़ों द्वारा फ़सलों को पहुंची हानि आदि के बारे में पता लगाया जाता है।
  • मिट्टी तथा पानी जांच की सुविधा भी उपलब्ध है।
  • टैलीफ़ोन, व्हट्स एप तथा ई-मेल द्वारा किसान अपनी समस्या को हल करवा सकते हैं।
  • इस अस्पताल के पास पौधों के निरीक्षण तथा प्रदर्शनी के लिए चलती फिरती वैन है जिस द्वारा गांव-गांव जाकर कृषि की तकनीकी जानकारी फिल्में दिखा कर दी जाती है।
  • क्लीनिक में कृषि के ज्ञान को प्रत्येक घर तक पहुंचाने के लिए पी० ए० यू० दूत तथा केमास (KMAS) सेवा शुरू की गई है। किसान अपना ई-मेल तथा मोबाइल नम्बर रजिस्ट्र करवा कर लाभ प्राप्त कर सकते हैं।

प्रश्न 3.
प्लांट क्लीनिक की पृष्ठभूमि बताते हुए उसकी आवश्यकता पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
कृषि सम्बन्धी उच्च स्तरीय कोरों में पिछले कई वर्षों में शहरी विद्यार्थियों का दखल काफ़ी बढ़ा है। इन्हें कृषि के बारे में प्रैक्टिकल जानकारी बडी कम होती है तथा जब यह शहरी विद्यार्थी उच्च शिक्षा प्राप्त करके खेतों में कार्य करने के लिए जाते हैं तो इन्हें काफ़ी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।

पहला प्लांट क्लीनिक, पौधा रोग विभाग, पी० ए० यू० में 1978 में स्थापित किया गया था तथा बाद में पी० ए० यू० की तरफ से सैंट्रल प्लांट क्लीनिक लुधियाना में 1993 में शुरू किया गया। भिन्न-भिन्न जिलों में 18 कृषि विज्ञान केन्द्रों में यह प्लांट क्लीनिक चल रहे हैं। इन क्लीनिकों द्वारा पढ़ाई का विद्यार्थी को काफ़ी लाभ मिल रहा है। इस सिद्धान्त के परिणामस्वरूप ज़मींदारों को उनकी फसलों की कमियों तथा बीमारियों का सही इलाज मिलना आरम्भ हो गया है। रोगों तथा कीटों के हमलों की मौके पर ही पहचान करके इलाज तथा रोकथाम के बारे में बताया जाता है। कृषि विकास से जुड़े व्यक्तियों को पहचान चिन्हों की पहचान का प्रशिक्षण दिया जाता है। भिन्न-भिन्न फ़सलों के मुख्य कीड़ों के लिए आर्थिक हानि की सीमा के बारे में प्रशिक्षण दिया जाता है।

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प्रश्न 4.
मोबाइल डाईग्नोस्टिक कम एगज़ीबिशन वैन का विस्तारपूर्वक वर्णन करें ?
उत्तर-
प्लांट क्लीनिकों को गांव-गांव पहुंचाने के लिए प्लांट क्लीनिकों के पास पौधों का निरीक्षण करने हेतु मोबाइल वैन उपलब्ध है। इसको मोबाइल डाईगनोस्टिक कम एगजीबिशन वैन कहा जाता है। इस वैन में प्लांट क्लीनिक से संबंधित साजो-सामान होता है तथा गांव में किसानों को खेती तकनीकों की जानकारी देने के लिए फिल्में भी दिखाई जाती हैं। मौके पर पौधे को आई समस्याओं का निरीक्षण करके कृषि विशेषज्ञों द्वारा इलाज भी बताया जाता है। इस प्रकार किसान को काफ़ी लाभ मिल रहा है।

प्रश्न 5.
फ़ोटो कैमरे तथा स्लाइड प्रोजैक्टर प्लांट क्लीनिक में किस तरह मददगार होते हैं ?
उत्तर-
कैमरे की सहायता से रोगी पौधे की फोटो खींच ली जाती है। इस प्रकार तैयार फ़ोटो तथा स्लाइडों को प्लांट क्लीनिक में संभाल कर रखा जाता है। फ़ोटो तथा स्लाइडों से कोई भी विद्यार्थी तथा वैज्ञानिक रोगी पौधों की पहचान सरलता से कर सकता है। इस तरह स्लाइडों को देखने के लिए प्रोजैक्टर की आवश्यकता पड़ती है। यह फ़ोटो तथा स्लाइडों को बड़े आकार में दिखा सकता है। फ़ोटो को बड़े-बड़े आकार में बनाकर क्लीनिक में लगा लिया जाता है।

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Agriculture Guide for Class 10 PSEB प्लांट क्लीनिक Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

I. बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
रोगी पौधों के नमूने संभाल कर रखने के लिए रसायन का नाम –
(क) फार्मालीन
(ख) ग्लूकोस
(ग) सोडियम ब्रोमाइड
(घ) कोई नहीं।
उत्तर-
(क) फार्मालीन

प्रश्न 2.
पी० ए० यू० में प्लांट क्लीनिक की स्थापना कब की गई?
(क) 2010
(ख) 1993
(ग) 1980
(घ) 1955.
उत्तर-
(ख) 1993

प्रश्न 3.
उल्लियों के जीवाणु ढूंढ़ने के लिए कौन-सा उपकरण प्रयोग किया जाता है ?
(क) सूक्ष्मदर्शी
(ख) इनकुबेटर (उष्मा मित्र)
(ग) प्रोजैक्टर
(घ) सभी।
उत्तर-
(ख) इनकुबेटर (उष्मा मित्र)

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प्रश्न 4.
पंजाब के कितने कृषि विज्ञान केन्द्रों में प्लांट क्लीनिक चल रहे हैं ?
(क) 7
(ख) 27
(ग) 18
(घ) 22.
उत्तर-
(ग) 18

प्रश्न 5.
पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के प्लांट क्लीनिक का ई-मेल पता क्या है ?
(क) www.gadvasu.in
(ख) www.pddb.in
(ग) [email protected]
(घ) www.pau.edu
उत्तर-
(ग) [email protected]

प्रश्न 6.
पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के प्लांट क्लीनिक का लैंडलाइन टेलीफोन नम्बर क्या है ?
(क) 0161-2401960 एक्सटेंशन 417
(ख) 94630-48181
(ग) [email protected]
(घ) www.pau.edu.
उत्तर-
(क) 0161-2401960 एक्सटेंशन 417

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II. ठीक/गलत बताएँ

1. पी० ए० यू० के द्वारा वर्ष 1993 में सैंटरल प्लांट क्लीनिक लुधियाना में स्थापित किया गया।
2. प्लांट क्लीनिक में कई तरह के उपकरण तथा साजो-समान की आवश्यकता होती
3. प्लांट क्लीनिक में रसायनों की आवश्यकता नहीं होती।
4. पंजाब एग्रीकल्चर यूनीवर्सिटी प्लांट क्लीनिक का ई-मेल पता plantclinic@ par.edu है।
उत्तर-

  1. ठीक
  2. ठीक
  3. गलत
  4. ठीक।

III. रिक्त स्थान भरें-

1. स्लाइडों पर चित्र ………………… द्वारा देखे जाते हैं।
2. बीमार पौधों के नमूनों को संभाल कर रखने वाला रसायन ……………… है।
3. कम्प्यूटर, ……………… आदि भी प्लांट क्लीनिक का महत्त्वपूर्ण भाग है।
4. पौधे की चीर फाड़ के लिए चाकू, ………….. आदि का प्रयोग किया जाता है।
उत्तर-

  1. प्रोजैक्टर
  2. फार्मलीन
  3. स्कैनर
  4. कैंची।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
कोई एक कारण बताओ जिस कारण पौधे आवश्यक पैदावार देने से अमसर्थ हो जाते हैं ?
उत्तर-
खाद्य तत्त्वों की कमी, बीमारी का हमला, कीड़ों का हमला।

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प्रश्न 2.
पौधों की चीर फाड़ करने के बाद बीमारी के चिन्ह देखने के लिए कौनसा उपकरण प्रयोग किया जाता है ?
उत्तर-
माइक्रोस्कोप।

प्रश्न 3.
पौधे की चीर फाड़ के लिए क्या प्रयोग किया जाता है ?
उत्तर-
चाकू, कैंची आदि।

प्रश्न 4.
उल्लियों के जीवाणु ढूंढ़ने में कौन-सा उपकरण प्रयोग होता है ?
उत्तर-
इनकुबेटर।

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प्रश्न 5.
प्लांट क्लीनिक में प्रयोग किये जाने वाले किसी एक रसायन का नाम लिखो।
उत्तर-
फार्मालीन।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
प्लांट क्लीनिक में चाकू आदि की क्या आवश्यकता है ?
उत्तर-
चाकू आदि का प्रयोग पौधे को माइक्रोस्कोप के नीचे देखने के लिए, काट कर प्रयोग करने के लिए होता है।

प्रश्न 2.
प्लांट क्लीनिक में मैग्नीफाईंग लेन्ज का प्रयोग क्यों होता है ?
उत्तर-
इसका प्रयोग पौधों के छोटे भाग तथा कीड़े तथा अन्य जन्तुओं की पहचान के लिए होता है।

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प्रश्न 3.
प्लांट क्लीनिक में कृषि के ज्ञान को प्रत्येक घर तक पहुँचाने के लिए कौन-सी सेवा शुरू की गई है ?
उत्तर-
पी० ए० यू० दूत सेवा तथा केमास (KMAS) सेवा शुरू की गई है। किसान भाई अपना ई-मेल तथा फोन रजिस्ट्रर करवा कर इस सेवा का लाभ उठा सकते हैं।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
इक्नामिक बैशहोल्ड का विस्तार से वर्णन करो।
उत्तर-
पौधों की बीमारियां तथा फसलीय कीटों को समाप्त करने वाली दवाइयों की सही मात्रा ढूंढ़ कर पौधों पर इसका प्रयोग किया जाना चाहिए। इस तरह पौधों को अधिक-से-अधिक लाभ मिल सकेगा तथा साथ ही खर्च भी कम-से-कम आएगा। कीडेमार दवाइयों के अन्धाधुन्ध तथा अनावश्यक प्रयोग से कई प्रकार की समस्याएं पैदा हो सकती हैं। जैसे कीड़ों का दवाई के लिए आदि हो जाना, मरने के स्थान पर इनका आदी हो जाना, मित्र कीड़ों का समाप्त होना, जो कीड़े पहले फसलों की हानि नहीं करते थे उनके द्वारा अब नुकसान करना आरम्भ कर देना तथा समूचे वातावरण का गंदा होना खासतौर पर वर्णनीय है।

किसी भी कीडे का फसल पर प्रत्येक वर्ष एक जैसा हमला नहीं होता। यह हमला किसी वर्ष अधिक तथा किसी वर्ष कम होता है। इसके लिए दवाइयों का प्रयोग सोचसमझकर करना चाहिए।

दवाई का प्रयोग तब ही करें जब फसल को नुकसान पहुंचा रहे कीड़ों की संख्या एक खास स्तर पर आ जाए। इस तरह दवाई स्प्रे करने से फसलों को फायदा होगा तथा इस तरह अनावश्यक स्प्रे से भी बचा जा सकेगा।

इस विधि को आर्थिक आधार (इक्नामिक धैशहोल्ड) का नाम दिया जाता है। कीड़ों के लिए आर्थिक आधार कीड़ों की वहीं संख्या है जिस पर हमें फसल पर दवाई का छिड़काव कर देना चाहिए। कीड़ों की संख्या इस नियत हुई संख्या से बढ़ने नहीं देनी चाहिए तथा साथ ही फसल का नुकसान भी न हो तथा किसानों को भी दवाई के अनावश्यक प्रयोग से वित्तीय घाटा न हो।

कई कीड़ों के लिए उनकी संख्या नहीं अपितु आक्रमण की निशानियों को आर्थिक आधार मान लिया जाता है। जैसे धान के गडुएं की संख्या की बजाए धान के गडुएं के हमले से सभी छिद्रों की गिनती कर ली जाती है।

प्रश्न 2.
प्लांट क्लीनिक के भविष्य के बारे में एक टिप्पणी लिखिए।
उत्तर-
आने वाला समय मुकाबले वाला है इसलिए किसानों को अपनी उपज को बीमारी तथा खाद्य कमियां नहीं होने देनी चाहिएं ताकि अधिक मुनाफा कमाया जा सके। अब कृषि से सम्बन्धित व्यापार प्रान्त अथवा देश में ही नहीं अपितु अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर होने लगा है। किसानों ने उपज को विदेशों में निर्यात करना होता है।

उपज बढ़िया किस्म की हो तथा मुनाफा अधिक मिल सके इसके लिए प्लांट क्लीनिक की सहायता ली जा सकती है। इनकी मदद से फसल में खाद्य तत्त्वों की कमियों का पता लगाकर इनको दूर किया जा सकता है। बीमारी तथा कीड़ों के लिए उचित दवाई की मात्रा का पता लगाया जा सकता है जिससे अनावश्यक तथा अन्धाधुन्ध दवाई के प्रयोग से बचा जा सकता है तथा दवाई के खर्च को घटाया जा सकता है। इस तरह इक्नामिक क्लीनिकों का भविष्य में बढ़िया उपज प्रदान करने के लिए बहुत योगदान होगा।

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प्रश्न 3.
प्लांट क्लीनिक क्या है ? प्लांट क्लीनिक में कम्प्यूटर किस काम आता है ?
उत्तर-
स्वयं करें।

प्लांट क्लीनिक PSEB 10th Class Agriculture Notes

  • पौधों के अस्पतालों में पौधों में आहारीय तत्त्वों की कमी, बीमारी का हमला, कीड़े का हमला आदि कारणों का अध्ययन किया जाता है।
  • प्लांट क्लीनिक ऐसा स्थान है यहां पौधों की भिन्न-भिन्न समस्याओं का अध्ययन किया जाता है तथा इन समस्याओं को दूर करने के लिए इलाज भी बताया जाता है।
  • पंजाब कृषि विश्वविद्यालय द्वारा वर्ष 1993 में सैंट्रल प्लांट क्लीनिक लुधियाना में स्थापित किया गया।
  • भिन्न-भिन्न जिलों के 18 कृषि विज्ञान केन्द्रों में यह प्लांट क्लीनिक चलाए जा रहे हैं तथा क्षेत्रीय खोज केन्द्र अबोहर, बठिण्डा तथा गुरदासपुर में स्थापित किएगए हैं।
  • आर्थिक नुकसान की हद फसली बीमारी तथा कीड़ों की वह अवस्था है, जब इनका हमला या संख्या पौधों में एक विशेष स्तर पर पहुंच जाती है तथा उचित दवाई का प्रयोग उचित मात्रा में करना अत्यावश्यक हो जाता है। इस तरह पौधों को अधिक-से-अधिक लाभ हो तथा खर्चा भी कम-से-कम हो।
  • किसान टैलीफोन नं० 0161-240-1960 की एक्सटेंशन 417 द्वारा अपनी समस्या का हल कृषि विशेषज्ञों द्वारा घर बैठे ही ले सकते हैं। मोबाइल नं० 9463048181.
  • प्लांट क्लीनिक को ई० मेल द्वारा प्रभावित पौधों के चित्र भेजकर भी समस्या का हल प्राप्त कर सकते हैं। ई० मेल हैं plantclinic @ pau.edu. व्हट्स एप (Whats app) पर भी चित्र भेज कर समस्या का हल पूछ सकते हैं। ।
  • प्लांट क्लीनिक में कई तरह का साजो-सामान तथा उपकरणों की आवश्यकता पडती है जैसे-सूक्ष्मदर्शी, मैगनीफाईंग लेंस, इनकुबेटर, रसायन, अलमारियां, कम्प्यूटर, प्रोजैक्टर आदि।
  • प्लांट क्लीनिक में प्रयोग किए जाते रसायन हैं-फार्मालीन, कॉपर एसीटेट, एसीटिक एसिड, अल्कोहल आदि।
  • कम्प्यूटर, स्कैनर आदि भी प्लांट क्लीनिक का महत्त्वपूर्ण भाग है।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 2 चट्टानें

Punjab State Board PSEB 11th Class Geography Book Solutions Chapter 2 चट्टानें Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Geography Chapter 2 चट्टानें

PSEB 11th Class Geography Guide चट्टानें Textbook Questions and Answers

1. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दो-चार शब्दों में दें-

प्रश्न (क )
चट्टानों से औज़ार कौन-से युग में बनाए जाते थे ?
उत्तर-
पाषाण युग (Stone Age) में।

प्रश्न (ख)
मुसामों के आधार पर चट्टानों की किस्मों के नाम लिखें।
उत्तर-

  1. मुसामदार चट्टानें (Porous Rocks)
  2. गैर मुसामदार चट्टानें (Impervious Rocks)

प्रश्न (ग)
पृथ्वी की सबसे ऊपरीय पेपड़ी को और क्या नाम दिया जाता है ?
उत्तर-
थलमण्डल (Lithosphere) ।

प्रश्न (घ)
पैट्रोलोजी को किसका विज्ञान कहा जाता है ?
उत्तर-
चट्टानों का विज्ञान।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 2 चट्टानें

प्रश्न (ङ)
रवे किस प्रकार की चट्टानों का अंश हो सकते हैं ?
उत्तर-
अग्नि चट्टानों (Igneous Rocks)।

प्रश्न (च)
माफिक (Mafic) कौन-से दो तत्त्वों का सुमेल है ?
उत्तर-
मैग्नीशियम और लोहे के सुमेल से।

प्रश्न (छ)
अवशेष (पथराट) (Fossils) सर्वाधिक किस किस्म की चट्टानों में मिलते हैं ?
उत्तर-
तहदार तलछटी चट्टानों में।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 2 चट्टानें

प्रश्न (ज)
रूपांतरित चट्टानों में कौन-से खनिज पदार्थ अधिक मात्रा में मिलते हैं ?
उत्तर-
नेइस और क्वार्टज़ाइट।

प्रश्न (झ)
चूना पत्थर परिवर्तित होकर कौन-सी चट्टान बनता है ?
उत्तर-
संगमरमर।

प्रश्न (ञ)
शेल, भारत में सर्वाधिक कहाँ-से प्राप्त होता है ?
उत्तर-
स्पीति (हिमाचल प्रदेश) से।

2. नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर दो-तीन वाक्यों में दें-

प्रश्न (क)
पंजाब में शिवालिक हिमालय को कौन-से हिस्सों में बाँटा जाता है ?
उत्तर-

  1. निम्न शिवालिक
  2. मध्य शिवालिक
  3. उच्च शिवालिक।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 2 चट्टानें

प्रश्न (ख)
चट्टानों की कौन-सी मुख्य किस्में (प्रकार) हैं ?
उत्तर-

  1. अग्नि चट्टानें
  2. तलछटी चट्टानें
  3. परिवर्तित चट्टानें।

प्रश्न (ग)
पृथ्वी के चापड़ निर्माण में कौन-से मुख्य तत्त्व हैं ?
उत्तर-
ऑक्सीजन और सिलीकॉन।

प्रश्न (घ)
खनिज पदार्थ क्या होते हैं ?
उत्तर-
खनिज एक प्राकृतिक रूप में मिलने वाला अजैव तत्त्व अथवा यौगिक है, जिसकी निश्चित रासायनिक रचना होती है।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 2 चट्टानें

प्रश्न (ङ)
पृथ्वी की सतह का सबसे अधिक हिस्सा कौन-सी चट्टानों का है ?
उत्तर-
धरती की सतह का 75% हिस्सा तलछटी चट्टानों से बना हुआ है।

प्रश्न (च)
थल मण्डल का सबसे अधिक भाग कौन-सी चट्टानों का है ?
उत्तर-
तलछटी चट्टानों का।

प्रश्न (छ)
परिवर्तित चट्टानों की निर्माण-क्रिया कहाँ होती है ?
उत्तर-
धरातल से 12-16 कि०मी० नीचे।

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प्रश्न (ज)
कोयला रूपांतरित होकर क्या-क्या रूप धारण करता है ?
उत्तर-
पीट, लिग्नाइट, बिटुमिनस और ग्रेफाइट।

3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 60 से 80 शब्दों में दें-

प्रश्न (क)
अग्नि चट्टानों की कोई तीन विशेषताएं लिखें।
उत्तर-

  1. 1. ये चट्टानें रवेदार और दानेदार होती हैं।
  2. ये लावे के जमने के बाद ठोस होने से बनती हैं।
  3. ये ठोस और स्थूल अवस्था में मिलती हैं।

प्रश्न (ख)
चट्टान की परिभाषा क्या है ?
उत्तर-
पृथ्वी की पेपड़ी का निर्माण करने वाले सभी प्राकृतिक और ठोस पदार्थों को चट्टान कहते हैं, जो ग्रेनाइट के समान कठोर और चिकनी मिट्टी के समान कोमल हो सकती है।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 2 चट्टानें

प्रश्न (ग)
खुम्भ जैसी चट्टानें कौन-सी हैं ? एक संक्षिप्त नोट लिखें।
उत्तर-
कई बार लावा धरती की निचली सतह और स्थायी अवस्था में जमकर ठोस हो जाता है, तब इसका आधार चौड़ा और शिखर खुम्भ जैसा बन जाता है, जिसे लैकोलिथ कहते हैं। उत्तरी अमेरिका के पश्चिमी भाग में ये चट्टानें मिलती हैं।

प्रश्न (घ)
संगमरमर और ग्रेफाइट अधिकतर राजस्थान में क्यों मिलते हैं ?
उत्तर-
संगमरमर और ग्रेफाइट ताप परिवर्तित चट्टानें हैं। चूने का पत्थर संगमरमर में बदल जाता है और कोयला ग्रेफाइट में बदल जाता है। ये चट्टानें राजस्थान में बड़े पैमाने पर मौजूद हैं।

प्रश्न (ङ)
कोई तीन चट्टानें बताएँ, जो परिवर्तित होकर कुछ और बनती हैं ?
उत्तर-
मूल चट्टान — परिवर्तित चट्टानें
शेल (Shale) — स्लेट (Slate)
ग्रेनाइट (Granite) — नेइस (Gneiss)
चूने का पत्थर (Limestone) — संगमरमर (Marble)

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प्रश्न (च)
ऊर्जा के साधन खनिज कौन-सी चट्टानों से मिलते हैं और क्यों ?
उत्तर-
कोयला, पैट्रोलियम ऊर्जा खनिज हैं। ये तहदार चट्टानों में मिलते हैं। चट्टानों की परतों में जीव-जन्तुओं के अवशेष, दबाव के कारण कोयला और पैट्रोलियम में बदल जाते हैं।

प्रश्न (छ)
तहदार चट्टानों की परिभाषा लिखें।
उत्तर-
तहदार चट्टानें अलग-अलग प्रकार के मलबे के नीचे बैठ जाने (settle down) के कारण बनती हैं। अपरदन से प्राप्त तलछट के जमाव से बनी चट्टानों को तलछटी चट्टानें कहते हैं।

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प्रश्न (ज)
चट्टानों का विज्ञान क्या है ? एक नोट लिखें।
उत्तर-
पैट्रोलोजी (Petrology) को चट्टानों का विज्ञान कहते हैं। चट्टानों की तहों में जीव-जन्तु और वनस्पति के अवशेष चट्टानों की उत्पत्ति और समय के बारे में बताते हैं। (Rocks are the pages of the earth, history and fossils are the writing on it.)

4. प्रश्नों के उत्तर 150 से 250 शब्दों में दें-

प्रश्न (क)
चट्टानों से क्या अभिप्राय है ? इनका वर्गीकरण करें और किसी एक प्रकार की व्याख्या करें।
उत्तर-
चट्टानें (Rocks)—पृथ्वी की पेपड़ी का निर्माण करने वाले सभी प्राकृतिक और ठोस पदार्थों को चट्टान कहते हैं। (‘Any material out of which the crust is made is called a Rock.’) चट्टान ग्रेनाइट के समान कठोर अथवा चिकनी मिट्टी के समान कोमल हो सकती है। यह स्लेट की तरह गैरमुसामदार (Imporous) और चूने की पत्थर की तरह मुसामदार (Porous) भी हो सकती है।

एक अन्य परिभाषा के अनुसार, “Any non-metallic natural substance found in the crust of the earth is called a Rock, whether it is hard as granite or soft as clay.”

पृथ्वी का थलमण्डल चट्टानों का बना हुआ है। इन चट्टानों की रचना कई खनिज पदार्थों के मिलने से होती है। (Rocks are aggregate of Minerals.) इनमें क्वार्टज़ खनिज सबसे अधिक मात्रा में मिलता है। एक ही खनिज से बनी हुई चट्टानें भी मिलती हैं, जैसे चूने का पत्थर और रेत का पत्थर। इन खनिज पदार्थों की अलग-अलग मात्रा के कारण चट्टान की कोमलता या कठोरता, रंग, रूप, गुण और शक्ति अलग-अलग होती है। इस प्रकार रंग (Colour), रचना (Structure), कणों (Texture) के आधार पर अलग-अलग प्रकार की चट्टानें मिलती हैं परन्तु सबसे अच्छा वर्गीकरण चट्टानों की रचना के आधार पर ही किया जा सकता है।

चट्टानों का वर्गीकरण (Types of Rocks)-चट्टानें कई प्रकार की होती हैं। रचना के आधार पर चट्टानें निम्नलिखित तीन प्रकार की होती हैं-

  1. अग्नि चट्टानें (Igneous Rocks)
  2. तलछटी चट्टानें (Sedimentary Rocks)
  3. परिवर्तित चट्टानें (Metamorphic Rocks)।

अग्नि चट्टानें (Igneous Rocks)—अग्नि चट्टानें वे चट्टानें हैं, जो पृथ्वी के तरल लावे के ठंडा और ठोस होने के कारण बनती हैं। (Igneous Rocks have been formed by cooling of molten matter of the earth.) ये चट्टानें पृथ्वी पर सबसे पहले बनीं, इसीलिए इन्हें प्रारम्भिक चट्टानें (Primary Rocks) भी कहते हैं। इग्नियस शब्द लातीनी शब्द इग्निस (Ignis) से बना है, जिसका अर्थ अग्नि (Fire) है। पृथ्वी के भीतरी भाग में पिघला हुआ पदार्थ मैग्मा (Magma) है, जिसका औसत तापमान 595° C है। यह गर्म लावा वायुमण्डल के सम्पर्क में आकर ठंडा होकर जम जाता है। इस तरह मैग्मा और लावे के ठंडे होकर कठोर होने से अग्नि चट्टानें बनती हैं।

अग्नि चट्टानों के प्रकार (Types of Igneous Rocks)—मुख्य रूप से ये चट्टानें दो प्रकार की होती हैं-

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(i) बाहरी चट्टानें (Extrusive Rocks)-जब लावा पृथ्वी के धरातल से बाहर आकर ठंडा हो जाता है, तब बाहरी चट्टानें (Extrusive Rocks) अथवा धरातलीय चट्टानें बनती हैं।

(ii) भीतरी चट्टानें (Intrusive Rocks)—जब लावा पृथ्वी के तल के नीचे ही जम जाता है, तब भीतरी चट्टानें बनती हैं।

इस प्रकार लावे के ठोस होने की क्रिया और स्थान के आधार पर ये चट्टानें तीन प्रकार की हैं-

(i) ज्वालामुखी चट्टानें (Volcanic Rocks)—ये चट्टानें ज्वालामुखी के “ज्वाला प्रवाह” (Lava Flow) के कारण बनती हैं, इसलिए इन्हें ज्वालामुखी चट्टानें भी कहते हैं। ये पिघला हुआ पदार्थ वायुमंडल के संपर्क से ठंडा हो जाता है। धरती की सतह पर लावा जल्दी ठंडा हो जाता है और पूर्ण रूप से रवे (Crystals) नहीं बनते। ये चट्टानें शीशे (Glass) की तरह होती हैं।

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उदाहरण-(i) बसालट, गैब्बरो (Gabbro) इसके अच्छे उदाहरण हैं। (ii) भारत में पश्चिमी-दक्षिणी पठार (दक्षिपी ट्रैप) और संयुक्त राज्य अमेरिका (U.S.A.) में कोलंबिया का
पठार।

(ii) मध्यवर्ती चट्टानें (Intermediate Rocks)—ये भीतरी चट्टानें धरातल से नीचे कुछ गहराई पर छिद्रों और दरारों में लावा जम जाने के कारण बनती हैं। बाहरी तथा भीतरी चट्टानों के बीच में स्थित होने के कारण इन्हें मध्यवर्ती चट्टानें भी कहते हैं। धरती के समानांतर (Horizontal) बनने वाली चट्टानों को सिल और धरती के ऊपर लंब (Vertical) आकार में बनने वाली चट्टानों को डायक (Dyke) कहते हैं। ये भीतरी चट्टानें हैं। इनमें छोटे-छोटे रवे बनते हैं।

उदाहरण-

  • भारत के मध्य प्रदेश में कोरबा (Corba) और बंगाल तथा बिहार के रानीगंज और झरिया के कोयला क्षेत्रों में सिल और डायक मिलते हैं।
  • डोलेराइट (Dolerite) चट्टान इसका उदाहरण है।

(iii) गहरी अग्नि चट्टानें (Plutonic Rocks)-ये चट्टानें अधिक गहराई पर बनती हैं। जब लावा बाहर आने में असमर्थ होता है और लावा शुरू में ही जम जाता है। अधिक गहराई पर लावा धीरे-धीरे ठंडा और कठोर होता है और बड़े-बड़े मोटे रवे बनते हैं। इन चट्टानों का नाम ‘प्लूटो’ (Pluto) के नाम पर रखा गया है, जिसका अर्थ है-पाताल देवता। धरती के कटाव के बाद ये चट्टानें ऊपर नज़र आती हैं। कई प्रकार के गुंबद (Domes) और बैथोलिथ (Batholith) बनते हैं।

उदाहरण-

  • (i) ग्रेनाइट (Granite) नाम की कठोर चट्टान इसका विशेष उदाहरण है।
    (ii) भारत में कांची का पठार और सिंहभूम (बिहार) में ग्रेनाइट चट्टानें मिलती हैं।

तेज़ाबी और खारदार चट्टानें (Acid and Basic Rocks)-संरचना की दृष्टि से जिन चट्टानों में सिलिका की मात्रा 66% से अधिक होती है, उन्हें तेज़ाबी चट्टानें (Acid Rocks) और जिनमें सिलिका की मात्रा कम होती है, उन्हें खारदार चट्टानें (Basic Rocks) कहते हैं।

अग्नि चट्टानों की विशेषताएँ (Characteristics of Igneous Rocks)

  1. ये चट्टानें ढेरों में मिलती हैं।
  2. इन चट्टानों में कण और परतें नहीं होतीं, बल्कि रवे (Crystals) होते हैं। ये रवे चपटे तल वाले होते हैं।
  3. ये चट्टानें रवेदार और दानेदार (Crystalline and granular) होती हैं।
  4. ये ठोस और स्थूल (Compact and Massive) अवस्था में मिलती हैं।
  5. ये ज्वालामुखी क्षेत्रों में मिलती हैं और लावे के जमकर ठोस होने पर बनती हैं।
  6. इनमें जीव-जंतुओं के पिंजर (Fossils) नहीं होते।
  7. इन चट्टानों में बहुत-से जोड़ (Joints) और दरारें (Faults) पड़ जाती हैं।
  8. इनका अपरदन (Erosion) आसानी से नहीं होता। ये कठोर होती हैं।

अग्नि चट्टानों का आर्थिक महत्त्व (Economic Importance of Igneous Rocks)-

  1. इन चट्टानों से अनेक प्रकार के खनिज प्राप्त होते हैं।
  2. ग्रेनाइट से मूर्तियाँ, मकानों के लिए पत्थर आदि बनाए जाते हैं।
  3. बसालट, डोलेसाइट पत्थर सड़क बनाने के काम आते हैं।
  4. पीयूमिस पत्थर धार चढ़ाने के काम आता है।

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प्रश्न (ख)
अंतर बताएँ-
1. भीतरी और बाहरीय चट्टानें
2. चट्टान व खनिज
3. ताप व प्रादेशिक परिवर्तन।
उत्तर-

(i) अंदरूनी चट्टानें- (ii) बाहरीय चट्टानें
1. जब मैग्मा धरती के भीतरी भाग में ही जमकर ठोस रूप धारण कर लेता है तो उसे भीतरी अग्नि चट्टानें अग्नि चट्टानें कहते हैं। 1. जब लावा धरातल पर ठंडा होकर ठोस रूप धारण कर लेता है, तो उसे बाहरी कहते हैं।
2. धीरे-धीरे ठंडा होने के कारण बड़े-बड़े रवे (Crystals) बनते हैं। 2. लावा के जल्दी ठंडे हो जाने के कारण रवे अच्छी तरह से नहीं बनते।
3. इनकी बनावट मोटी दानेदार होती है। 3. इनकी बनावट शीशे के समान होती है।
4. इन्हें ज्वालामुखी चट्टानें भी कहते हैं। 4. इन्हें पाताली या गहरी चट्टानें भी कहते हैं।
5. बसालट इसका प्रमुख उदाहरण है। 5. ग्रेनाइट इसका प्रमुख उदाहरण है।

 

चट्टान- खनिज-
1. चट्टानों की रासायनिक बनावट निश्चित नहीं होती है। 1. इनकी रासायनिक बनावट निश्चित होती है।
2. चट्टानों की रचना कई खनिज पदार्थों के योग से होती है। 2. खनिज एक प्राकृतिक रूप से मिलने वाला अजैव तत्त्व है।
3. चट्टानों के भौतिक गुण अलग-अलग होते हैं। 3. हर एक खनिज के भौतिक गुण निश्चित होते हैं।

 

ताप परिवर्तन प्रादेशिक परिवर्तन
1. इस क्रिया में लावे के स्पर्श से चट्टानों में परिवर्तन होता है। 1. इस क्रिया में ऊपरी तहों के दबाव से चट्टानों में परिवर्तन होता है।
2. यह क्रिया स्थानीय रूप में होती है। 2. यह क्रिया बड़े पैमाने पर होती है।
3. इस क्रिया से चूने का पत्थर संगमरमर बन जाता है। 3. इस क्रिया से ग्रेनाइट, नेइस चट्टान में परिवर्तित हो जाता है।

 

प्रश्न (ग)
चट्टान चक्र क्या है ? उदाहरणों व चित्रों से स्पष्ट करें।
उत्तर-
एक प्रकार की चट्टानों का दूसरी प्रकार की चट्टानों में परिवर्तित होने की प्रक्रिया को चट्टानी चक्र कहते हैं। यह पृथ्वी के भीतरी ताप और बाहरी शक्तियों के अपरदन के कारण होता है। अग्नि चट्टानों के अपरदन के कारण तलछट प्राप्त होते हैं, जिनसे तहदार चट्टानें बनती हैं। ये चट्टानें ताप, दबाव और रासायनिक प्रक्रिया के कारण रूपांतरित चट्टानें बन जाती हैं। ये पिघल कर फिर से अग्नि चट्टानें बन जाती हैं। अपरदन के कारण ये फिर तलछटी चट्टानें बन जाती हैं। इसे चट्टानी चक्र (Rock Cycle) कहते हैं। यह चक्र लगातार चलता रहता है।

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प्रश्न (घ)
तहदार और परिवर्तित चट्टानों के गुणों के आधार पर ब्यान कीजिए कि मनुष्य के लिए कौन-सी प्रकार अधिक लाभदायक है ?
उत्तर-
1. इन चट्टानों से कई प्रकार के प्राकृतिक साधन मिलते हैं, जैसे-कोयला, तेल, गैस आदि सभी पदार्थ वनस्पति और जीव-जंतुओं के अवशेषों से प्राप्त होते हैं। बारीक रेत, गाद, रेत पत्थर, शैल आदि भवन-निर्माण के काम आते हैं। बाढ़ के मैदान खेती के लिए लाभदायक होते हैं। झीलों से जिप्सम पत्थर मिलता है। कांगलोमरेट शिवालिक की पहाड़ियों और तलचर में मिलते हैं। चूने का पत्थर, चॉक, डोलोमाइट सीमेंट उद्योग में काम आते हैं। सटैलरानाईट, सटैलकटालीट चट्टानों से नमक प्राप्त होता है।

2. परिवर्तित चट्टानें- परिवर्तित चट्टानों से सोना, चांदी, कीमती पत्थर, जवाहरात आदि मिलते हैं। कठोर प्रकार के पत्थर ग्रेनाइट, नेइस, सिस्ट उपयोगी होते हैं। संगमरमर, स्लेट, ग्रेफाइट कीमती चट्टानें हैं। क्वार्टज़ाइट चट्टान राजस्थान, बिहार, मध्यप्रदेश में मिलती है। नेइस को भवनों के निर्माण के लिए तथा क्वार्टज़ाइट को शीशा बनाने के लिए प्रयोग किया जाता है। ग्रेफाइट से पेंसिल का सिक्का बनता है। कई प्रसिद्ध इमारतें जैसे-ताजमहल, आगरे का किला, लाल किला आदि संगमरमर से बनी हैं।

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प्रश्न (ङ)
निक्षेप विधि से बनी तहदार चट्टानों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
तलछटी चट्टानें (Sedimentary Rocks)-अपरदन द्वारा प्राप्त तलछट (Sediments) के जमाव से बनी चट्टानों को तलछटी चट्टानें कहते हैं। (Sedimentary Rocks are those rocks which have been formed by deposition of Sediments.)
तलछट में छोटे और बड़े आकार के कण होते हैं। इन कणों के इकट्ठा होकर बैठ जाने से (settle down) तलछटी चट्टानों का निर्माण होता है।

तलछट के साधन (Sources of Sediments)-पृथ्वी के धरातल पर अपरदन से प्राप्त पदार्थों को जल, हवा और हिम नदी जमा करते रहते हैं।
तलछट जमा होने के स्थान (Places of Deposition)–यह तलछट समुद्रों, झीलों, नदियों, डेल्टाओं आदि क्षेत्रों में जमा होती रहती है।
रचना (Formation)इन चट्टानों की रचना कई स्तरों पर पूरी होती है।

1. तलछट का निक्षेप (Deposition) – ये पदार्थ एक निश्चित क्रम के अनुसार जमा होते रहते हैं। पहले बड़े कण और उसके बाद छोटे कण (During the deposition, the material is sorted out according to the size.)

2. परतों का निर्माण (Layers)-लगातार जमाव के कारण परतों का निर्माण होता है। पदार्थ एक परत के ऊपर दूसरी परत के रूप में जमा होते रहते हैं।

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3. ठोस होना (Solidification)–ऊपरी परतों के भार के कारण नीचे की परतें संगठित होने लगती हैं।
सिलिका, कैलसाइट, चिकनी मिट्टी आदि संयोजक (Cementing agent) चट्टानों को ठोस रूप दे देते हैं। तलछटी चटटानों की किस्में (Types of Sedimentary Rocks)-तलछटी चट्टानें तीन प्रकार से बनती हैं –

1. यांत्रिक क्रिया द्वारा (Machanically Formed Rocks)
2. जैविक पदार्थों द्वारा (Organically Formed Rocks)
3. रासायनिक तत्त्वों द्वारा (Chemically Formed Rocks)

तलछटी चट्टानों के निर्माण के साधनों और जमाव के स्थान के अनुसार नीचे लिखी किस्में हैं-

1. यांत्रिक क्रिया द्वारा बनी चट्टानें (Mechanically Formed Rocks)-इन चट्टानों का निर्माण कटाव की शक्तियों के द्वारा एक स्थान पर एकत्र होने से होता है : जैसे नदी और हिम नदी आदि। इन चट्टानों के पदार्थ यांत्रिक रूप में प्राप्त होते हैं। ये चट्टानी टुकड़े आपस में जुड़कर कठोर चट्टान का रूप धारण कर लेते हैं।

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(क) दरियाई चट्टानें (Riverine Rocks)–जब तलछट का जमाव नदी बेसिन (Basin); बाढ़ क्षेत्र और डेल्टा में होता है तब ये चट्टानें बनती हैं; जैसे शेल (Shale), चिकनी मिट्टी (Clay), रेत का पत्थर (Sand Stone)। इन चट्टानों में रेत के कणों और चिकनी मिट्टी के कणों की बहुतायत होती है। ये चट्टानें दो प्रकार की होती हैं-

  • रेत निर्मित चट्टानें (Arenaceous Rocks)–जिनमें रेत, बजरी और क्वार्टज़ अधिक मात्रा में हों। बजरी तथा गोल पत्थरों के आपसी जमाव से कांगलोमरेट चट्टान बनती है।
  • मिट्टी निर्मित चट्टानें (Argillaceous Rocks)-जिनमें चिकनी मिट्टी (clay) के कण अधिक मात्रा में हों। शेल (Shale) और सिल्ट (Silt) से मिट्टी के बर्तन और ईंटें बनती हैं।

(ख) झील परतदार चट्टानें (Laccustrine Rocks)-जब तलछट का जमाव झीलों में होता रहता है, तब झीलों में परतदार चट्टानें बनती हैं। झील के भर जाने या सूख जाने पर तल के ऊपर उठ जाने से ये चट्टानें उभर आती हैं; जैसे नमक और जिप्सम (Gypsum) आदि।

(ग) वायु निक्षेप चट्टानें (Aeolian Rocks)-हवा के द्वारा जमा की गई रेत और मिट्टी जम कर कठोर चट्टानों का रूप धारण कर लेती है। इन चट्टानों में कमज़ोर परतें होती हैं। जिस प्रकार मध्य एशिया के गोबी (Gobi) मरुस्थल से हवा द्वारा लाए गए बारीक कणों से चीन का लोइस (Loess) पठार बन गया है।

(घ) हिम निक्षेप चट्टानें (Glacial Rocks)-जब हिमनदी (Glaciar) पिघलती है तो अपने साथ लाए हुए मलबे को अपने किनारों और सिरों पर जमा कर देती है। मलबे के इन ढेरों को हिम-चट्टानें कहते हैं।

2. जैविक चट्टानें (Organically Formed Rocks)-इन चट्टानों का निर्माण जीव-जंतुओं और वनस्पति के मलबे के इकट्ठे होने से होता है। ये चट्टानें मुख्य रूप से दो प्रकार की होती हैं –

(i) कार्बन प्रधान चटटाने
(ii) चूना प्रधान चट्टानें

(i) कार्बन प्रधान चट्टानें (Carbonaceous Rocks)-भूमि की उथल-पुथल के कारण जीव-जंतु और वनस्पति पृथ्वी के नीचे दब जाते हैं। ऊपरी तलछट के दबाव और गर्मी के कारण वनस्पति कोयले के रूप में बदल जाती है, जिसमें कार्बन की प्रधानता होती है। पीट (Peat), लिग्नाइट (Lignite), एंथरेसाइट (Anthracite) कोयले का निर्माण इसी प्रकार होता है।

(ii) चूना प्रधान चट्टानें (Calcareous Rocks)–समुद्र के जीव-जंतु समुद्र के पानी से चूना प्राप्त करके अपने पिंजर (Skeleton) का निर्माण करते हैं। जब ये जीव मर जाते हैं तो ये पिंजर परतों के रूप में इकट्ठे होकर चट्टान बन जाते हैं। इन चट्टानों में चूने की मात्रा अधिक होने के कारण ये चट्टानें चूने का पत्थर (Lime Stone), चॉक (Chalk), डोलोमाइट (Dolomite) आदि में बदल जाती हैं।

3. रासायनिक चट्टानें (Chemically Formed Rocks)—पानी में कई रासायनिक तत्त्व मिले होते हैं। जब पानी भाप बनकर उड़ जाता है, तो रासायनिक पदार्थ परतों के रूप में जमते रहते हैं और कठोर चट्टानें बन जाती हैं, जैसे-पहाड़ी नमक (Rock Salt), जिप्सम (Gypsum), शोरा (Potash) । इन चट्टानों के निर्माण में काफी समय लग जाता है।

तलछटी चट्टानों की विशेषताएं (Characteristics of Sedimentary Rocks)-

  1. इन चट्टानों में अलगअलग परतें होती हैं, इसलिए इन्हें परतदार चट्टानें (Stratified Rocks) भी कहते हैं। ये परतें एक-दूसरे के समानांतर मिलती हैं।
  2. इनका निर्माण छोटे-छोटे कणों (Particles) से होता है।
  3. इनमें जीव-जंतुओं और वनस्पति के अवशेष (Fossils) मिलते हैं।
  4. पानी में निर्माण होने के कारण इनमें लहरों, धाराओं और कीचड़ के चिह्न मिलते हैं।
  5. ये चट्टानें मुलायम होती हैं और इनका अपरदन जल्दी होता है।
  6. ये पृथ्वी के धरातल के 75% भाग पर फैली होती हैं, परन्तु पृथ्वी की गहराई में इनका विस्तार केवल 5% है। (The Sedimentary rocks are important for extent, not for depth.)
  7. इनका घनत्व कम होता है।

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प्रश्न (च)
स्थान और आकृति के आधार पर मध्यवर्ती अग्नि चट्टानों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
मध्यवर्ती अग्नि चट्टानों की आकृति और स्थान के आधार पर इन्हें अनेक उपभागों में बाँटा जा सकता है-

1. लैकोलिथ (Laccoliths) जो लावा धरती की निचली सतह और स्थायी अवस्था में जमकर ठंडा हो जाता है, जैसे—दो परतदार चट्टानों के बीच जमा लावा-इन्हें लैकोलिथ कहा जाता है। इनका आधार चौड़ा, एक डबलरोटी के एक टुकड़े (Loaf) अथवा खंभ (Mushroom) की तरह शिखर गुंबद जैसा होता है। ये चट्टानें उत्तरी अमेरिका के पश्चिमी हिस्से में बहुत आम मिलती हैं।

2. बैथोलिथ (Batholiths)-बैथोलिथ बहुत ही विशाल भीतरी अग्नि चट्टानें हैं। इनकी लम्बाई 100 किलोमीटर से भी अधिक हो सकती है। इनकी मोटाई (Thickness) अधिक होने के कारण आधार को देखना संभव नहीं। जब लावा धरती की तहों के नीचे टेढ़ा और अव्यवस्थित ढंग से जमता है तो ऐसी चट्टानों की उत्पत्ति होती है। इसका आकार बेढंगा और गुंबदनुमा हो सकता है। इस प्रकार से बनी चट्टानों को बैथोलिथ कहा जाता है। इन चट्टानों को हम तभी देख सकते हैं, अगर इस प्रकार की अग्नि चट्टानों पर खुरचने की क्रिया हुई हो। इनकी चौड़ाई 50 से 80 किलोमीटर तक हो सकती है। पर्वतों के आधार इन चट्टानों के ही होते हैं। ग्रेनाइट की विशाल चट्टानें बैथोलिथ चट्टानों का ही रूप हैं। चेन्नई में छोटी-छोटी पहाड़ियाँ बैथोलिथ का ही हिस्सा हैं, जो कि खुरचन क्रिया से ही बनी हैं और अधिकतर गुंबद जैसी (Dome shaped) हैं।

3. लैपोलिथ (Lapolith)-जब लावा तश्तरीनुमा आकार में धरती की सतह के नीचे जम जाता है, तब इसे लैपोलिथ कहते हैं। वास्तव में लैपोलिथ बैथोलिथ का ही एक अलग रूप है। अमेरिका में इसके उदाहरण देखने को मिलते हैं। कनाडा में ड्रलथ गैब्बरो (Duluth Gabbro) जो कि 2 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में फैला है, इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है।

4. फैकोलिथ (Phacoliths)-धरती की सतह के नीचे लावा कई लहरों के रूप में जम जाता है। इस प्रकार की आकृति की चट्टान को फैकोलिथ कहा जाता है।

5. स्टॉक (Stock)-जब बैथोलिधं चट्टान छोटे आकार का गुंबदनुमा या गोल आकृति की होती है तो उसे स्टॉक कहते हैं। एक स्टॉक का क्षेत्रफल (area) 100 वर्ग किलोमीटर से कम होता है।

6. सिल (Sills)-जब गर्म लावा चट्टानों की तहों में ठंडा होकर जम जाता है, तो इसे सिल कहा जाता है। इनकी लम्बाई कई सौ मीटर तक हो सकती है। पर अगर मोटाई कुछ मीटर तक ही हो या कम हो, तो इसको शीट (Sheet) कहा जाता है।

7. डायक (Dyke/Dike)-डायक. लम्बाकार रूप में (Vertical) जमा हुआ लावा होता है। इनकी लम्बाई कुछ मीटरों से किलोमीटरों तक और चौड़ाई कुछ सैंटीमीटरों से कई मीटरों तक हो सकती है। भारत में तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश राज्यों में इसके उदाहरण देखने को मिलते हैं।

8. ज्वालामुखीय ग्रीवा (Volcanic Neck)-धरती का गर्म लावा एक नली से बाहर आता है। जब ज्वालामुखी __ फटता है, तो विस्फोट के बाद जो लावा रास्ते में ही जम जाता है, उसे ज्वालामुखी Neck कहा जाता है।

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Geography Guide for Class 11 PSEB चट्टानें Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर 2-4 शब्दों में दें-

प्रश्न 1.
पृथ्वी की बाहरी परत को क्या कहते हैं ?
उत्तर-
थलमंडल।

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प्रश्न 2.
Igneous शब्द का क्या अर्थ है ?
उत्तर-
अग्नि।

प्रश्न 3.
किन चट्टानों को प्रारम्भिक चट्टानें कहते हैं ?
उत्तर-
अग्नि चट्टानों।

प्रश्न 4.
ज्वालामुखी चट्टानों का एक उदाहरण दें।
उत्तर-
बसालट।

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प्रश्न 5.
गहरी अग्नि चट्टानों का एक उदाहरण दें।
उत्तर-
ग्रेनाइट।

प्रश्न 6.
झील परतदार चट्टानों का एक उदाहरण दें।
उत्तर-
जिप्सम।

प्रश्न 7.
कार्बन प्रधान चट्टान का एक उदाहरण दें।
उत्तर-
कोयला।

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प्रश्न 8.
चूना प्रधान चट्टान का एक उदाहरण दें।
उत्तर-
डोलोमाइट।

प्रश्न 9.
परिवर्तन चट्टानों के दो कारण बताएँ।
उत्तर-
ताप और दबाव।

प्रश्न 10.
संगमरमर की मूल चट्टान का नाम बताएँ।
उत्तर-
चूने का पत्थर।

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बहुविकल्पी प्रश्न

नोट-सही उत्तर चुनकर लिखें –

प्रश्न 1.
किन चट्टानों को प्रारम्भिक चट्टानें कहते हैं ?
(क) अग्नि
(ख) तलछटी
(ग) परिवर्तित
(घ) परतदार।
उत्तर-
अग्नि।

प्रश्न 2.
कार्बन प्रधान कौन-सी चट्टान है ?
(क) कोयला
(ख) चूना
(ग) संगमरमर
(घ) जिप्सम।
उत्तर-
कोयला।

प्रश्न 3.
संगमरमर किस वर्ग की चट्टान है ?
(क) अग्नि
(ख) तलछटी
(ग) परिवर्तित
(घ) अवसादी।
उत्तर-
परिवर्तित।

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प्रश्न 4.
भू-पर्पटी का निर्माण करने वाले पदार्थ को कहते हैं-
(क) चट्टान
(ख) खनिज
(ग) धातु
(घ) लावा।
उत्तर-
चट्टान।

प्रश्न 5.
निम्नलिखित में से कौन-सी परिवर्तित चट्टान है ?
(क) ग्रेनाइट
(ख) ग्रेफाइट
(ग) ग्रिट
(घ) गैब्बरो।
उत्तर-
ग्रेफाइट।

अति लघु उत्तरात्मक प्रश्न (Very Short Answer Type Questions) –

नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर 2-3 वाक्यों में दें-

प्रश्न 1.
थलमंडल से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर-
थलमंडल से तात्पर्य है-चट्टानी मंडल (Rock Sphere)। थलमंडल का निर्माण चट्टानों से होता है।

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प्रश्न 2.
धरती के समूचे पुंज का निर्माण करने वाले चार तत्त्व बताएँ।
उत्तर-
लोहा, ऑक्सीजन, सिलीकॉन और मैग्नेशियम।

प्रश्न 3.
Igneous शब्द का क्या अर्थ है ?
उत्तर-
Igneous शब्द लातीनी भाषा के Ignis शब्द से बना है, जिसका अर्थ ज्वाला या आग होता है।

प्रश्न 4.
अग्नि चट्टानों के दो प्रमुख प्रकार बताएँ।
उत्तर-

  1. बाहरी अग्नि चट्टानें
  2. भीतरी अग्नि चट्टानें।

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प्रश्न 5.
मैग्मा से क्या भाव है ?
उत्तर-
भू-गर्भ में गर्म, चिपचिपा और तरल पदार्थ मैग्मा कहलाता है।

प्रश्न 6.
भारत में ग्रेनाइट कहाँ मिलता है ?
उत्तर-
दक्षिणी पठार, छत्तीसगढ़, छोटा नागपुर और राजस्थान में ग्रेनाइट चट्टानें मिलती हैं।

प्रश्न 7.
सिल और डायक में अन्तर बताएँ।
उत्तर-
जब गर्म लावा चट्टानों की तहों में ठंडा होकर जम जाता है, तो उसे सिल कहते हैं। जब लावा लंबाकार अथवा दीवार के रूप में जमता है, तो उसे डायक कहते हैं।

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प्रश्न 8.
दक्षिणी ट्रैप से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर-
भारतीय प्रायद्वीप के उत्तर-पश्चिमी भाग में विशाल क्षेत्र बसालट से बना है, इसे दक्षिणी ट्रैप कहते हैं।

प्रश्न 9.
तहदार चट्टानों का विस्तार बताएँ।
उत्तर-
धरती की 75% सतह पर तहदार चट्टानें मिलती हैं, जबकि ये चट्टानें समूची धरती के स्थलमंडल पर केवल 5% भाग ही हैं।

लघु उत्तरात्मक प्रश्न (Short Answer Type Questions)

नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर 60-80 शब्दों में दें-

प्रश्न 1.
अग्नि चट्टानों की विशेषताएँ बताएँ।
उत्तर-
अग्नि चट्टानों की विशेषताएँ (Characteristics)-

  1. ये चट्टानें ढेरों में मिलती हैं।
  2. इन चट्टानों में कण और परतें नहीं होतीं, बल्कि रवे (Crystals) होते हैं। ये रवे चपटे तल वाले होते हैं।
  3. ये चट्टानें रवेदार और दानेदार (Crystalline and Granular) होती हैं।
  4. ये ठोस और स्थूल (Compact and Massive) अवस्था में मिलती हैं।
  5. ये ज्वालामुखी क्षेत्रों में मिलती हैं और लावा के जम कर ठोस होने से बनती हैं।
  6. इनमें जीव-जन्तुओं के पिंजर (Fossils) नहीं होते।
  7. इन चट्टानों में बहुत-से जोड़ (Joints) और दरारें (Faults) पड़ जाती हैं।
  8. इनका अपरदन (Erosion) आसानी से नहीं होता क्योंकि ये कठोर होती हैं।

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प्रश्न 2.
तलछटी चट्टानों की विशेषताएँ बताएँ।
उत्तर-
तलछटी चट्टानों की विशेषताएँ (Characteristics)-

  1. इन चट्टानों में अलग-अलग परतें मिलती हैं, इसलिए इन्हें परतदार चट्टानें (Stratified Rocks) कहते हैं। ये परतें एक-दूसरे के समानांतर होती हैं।
  2. इनका निर्माण छोटे-छोटे कणों (Particles) से होता है।
  3. इनमें जीव-जन्तुओं और वनस्पति के अवशेष (Fossils) मिलते हैं।
  4. पानी में निर्माण होने के कारण इनमें लहरों, धाराओं और कीचड़ के चिह्न मिलते हैं।
  5. ये चट्टानें मुलायम होती हैं और इनका अपरदन जल्दी होता है।
  6. ये पृथ्वी के धरातल के 75% भाग में फैली हुई हैं, परन्तु ये चट्टानें पृथ्वी के स्थलमंडल का केवल 5% भाग ही हैं।
    (The Sedimentary Rocks are important for extent, not for depth.)
  7. इनका घनत्व कम होता है।

प्रश्न 3.
अग्नि चट्टानों और तलछटी चट्टानों का महत्त्व बताएँ।
उत्तर-
अग्नि चट्टानों का आर्थिक महत्त्व (Economic Importance)

  1. इन चट्टानों से अनेक प्रकार के खनिज प्राप्त होते हैं।
  2. ग्रेनाइट से मूर्तियाँ और मकानों के लिए पत्थर बनाए जाते हैं।
  3. बसालट, डोलेराइट पत्थर सड़क बनाने के काम आते हैं।
  4. पीयूमिस पत्थर धार चढ़ाने के काम आता है।

तलछटी चट्टानों का आर्थिक महत्त्व (Economic Importance)-परतदार चट्टानें मानव जीवन के लिए बहुत कीमती होती हैं-

  • कोयला और पैट्रोलियम ऊर्जा के प्रमुख साधन हैं।
  • इन चट्टानों से सोना, चाँदी और तांबा आदि खनिज पदार्थ मिलते हैं।
  • चिकनी मिट्टी से ईंटें, चूने से सीमेंट और रेत से काँच बनता है।
  • चूने का पत्थर इमारतें बनाने में प्रयोग होता है।
  • कई प्रकार के रासायनिक पदार्थ बनाए जाते हैं।
  • तलछटी चट्टानों से बने मैदान कृषि के लिए महत्त्वपूर्ण होते हैं।

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प्रश्न 4.
बसालट और ग्रेनाइट की रचना किस प्रकार होती है ?
उत्तर-
1. बसालट (Basalt)-यह एक बाहरी अग्नि चट्टान है। सतह के ऊपर आने वाला लावा ठंडा होकर बसालट चट्टान को जन्म देता है। इस चट्टान का रंग काला अथवा गहरा भूरा होता है। लावे के जल्दी ठंडा होने के कारण रवे (Crystals) नहीं बनते। इनकी रचना शीशे (Glass) के समान होती है। इनका प्रयोग मकान बनाने के लिए होता है। भारत में काली मिट्टी के क्षेत्र का निर्माण बसालट के टूटने-फूटने के कारण हुआ है।

2. ग्रेनाइट (Granite)-यह एक अग्नि चट्टान है। यह धरती के भीतरी भाग में गहराई पर बनती है। यह एक गहरी अग्नि चट्टान (Plutonc Rock) है। इसमें लावा धीरे-धीरे ठंडा होता है, इसलिए बड़े-बड़े रवे (Crystals) बनते हैं। इसमें सिलिका (Silica) की मात्रा अधिक होती है। इसका रंग गहरा भूरा, लाल और स्लेटी भी होता है। यह कठोर पत्थर होता है और इसका प्रयोग मकान बनाने के लिए किया जाता है।

प्रश्न 5.
संगमरमर की रचना कैसे होती है ?
उत्तर-
संगमरमर (Marble)-संगमरमर एक परिवर्तित चट्टान (Metamorphic Rock) है। जब गर्म लावा चूने के पत्थर को स्पर्श करता है तो इसका रूप बदल जाता है और यह एक शुद्ध सफेद रंग का बन जाता है। अशुद्धियों के कारण इसका रंग लाल, हरा और काला भी होता है। यह मुलायम होता है और मकान बनाने के काम आता है। आगरा का ताजमहल संगमरमर का बना हुआ है।

प्रश्न 6.
कोयले की रचना किस प्रकार होती है ?
उत्तर-
कोयला (Coal)-भूमि की उथल-पुथल के कारण जीव-जन्तु और वनस्पति पृथ्वी के नीचे दब जाते हैं। ऊपरी तलछट के दबाव और गर्मी के कारण वनस्पति कोयले के रूप में बदल जाती है, जिसमें कार्बन की प्रधानता होती है। इन चट्टानों को कार्बन प्रधान चट्टानें (Carbonaceous Rocks) कहते हैं, जैसे-पीट (Peat), लिग्नाइट (Lignite), एंथ्रासाइट (Anthracite) कोयले का निर्माण भी इसी प्रकार होता है।

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प्रश्न 7.
अग्नि चट्टानों को प्रारम्भिक चट्टानें क्यों कहा जाता है ?
उत्तर-
आरम्भ में पृथ्वी में मूल पदार्थ मैग्मा (Magma) पिघला हुआ और गर्म अवस्था में था। यह मैग्मा वायु मण्डल के सम्पर्क में आने के कारण ठंडा होकर जम कर ठोस हो गया। इस प्रकार से पहले धरती की पिघली दशा से ठोस रूप में आने पर अग्नि चट्टानों का निर्माण हुआ। सबसे पहले बनने के कारण इन्हें प्रारम्भिक चट्टानें (Primary Rocks) कहते हैं।

प्रश्न 8.
तलछटी चट्टानों में जीव-जन्तुओं के अवशेष (Fossils) सुरक्षित रहते हैं, जबकि अग्नि चट्टानों में नहीं, क्यों ?
उत्तर-
जीव-जन्तुओं और वनस्पति के बचे-खुचे भागों से अवशेष प्राप्त होते हैं। तलछटी चट्टानें परतों के रूप में मिलती हैं। इन परतों के बीच ये अवशेष सुरक्षित रहते हैं। ये अवशेष उन चट्टानों की उत्पत्ति के समय के बारे में जानकारी देते हैं।
अग्नि चट्टानों में परतें नहीं मिलती हैं। ये गर्म पिघलते हुए मैग्मा से बनती हैं। इनके स्पर्श से अवशेष झुलस जाते हैं और नष्ट हो जाते हैं।

प्रश्न 9.
अग्नि चट्टानों और तलछटी चट्टानों में अन्तर बताएँ।
उत्तर-
अग्नि चट्टानें (Igneous Rocks)-

  1. रूप-ये चट्टानें ढेरों (Bulks) में मिलती हैं।
  2. कण-इन चट्टानों में चपटे तल वाले रवे (Crystals) मिलते हैं।
  3. रचना-ये चट्टानें लावा (Lava) के ठंडे और ठोस होने से बनती हैं।
  4. कठोरता-ये चट्टानें कठोर होती हैं।
  5. जीव-अवशेष- इनमें जीव-अवशेष नहीं मिलते हैं।
  6. निर्माण-काल-सबसे पहले बनने के कारण इन्हें प्रारम्भिक चट्टानें (Primary Rocks) भी कहते हैं।
  7. कटाव-इन चट्टानों पर टूट-फूट का प्रभाव कम होता है।
  8. जोड़ (Joints)-इनमें जोड़ मिलते हैं।
  9. मुसाम-ये चट्टानें अप्रवेशी हैं।

तलछटी चट्टानें (Sedimentary Rocks)-

  1. ये चट्टानें परतों (Layers) में मिलती हैं।
  2. इन चट्टानों में अलग-अलग आकार के गोल कण (Particles) मिलते हैं।
  3. ये चट्टानें तलछट (Sediments) की परतों के निरन्तर जमाव के कारण बनती हैं।
  4. ये चट्टानें नर्म होती हैं।
  5. इनमें जीव-अवशेष सुरक्षित रहते हैं।
  6. अग्नि चट्टानों के नष्ट होने के बाद बनने के कारण इन्हें गौण चट्टानें (Secondary Rocks) भी कहते हैं।
  7. इन चट्टानों पर टूट-फूट का प्रभाव जल्दी होता
  8. इनमें जोड़ नहीं मिलते हैं।
  9. ये अधिकतर प्रवेशी चट्टानें हैं।

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प्रश्न 10.
धरती के चापड़ में कौन-से प्रमुख तत्त्व हैं ?
उत्तर-
धरती के चापड़ का निर्माण करने वाली चट्टानों में नीचे लिखे तत्त्व दी हुई औसत मात्रा में शामिल होते हैं –
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प्रश्न 11.
भारत में अग्नि चट्टानों के विभाजन के बारे में बताएँ।
उत्तर-
PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 2 चट्टानें 8

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(Essay Type Questions)

नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर 150-250 शब्दों में दें-

प्रश्न-
परिवर्तित चट्टानों से क्या तात्पर्य है ? इनकी रचना किस प्रकार होती है ? उदाहरण दें।
उत्तर-
परिवर्तित चट्टानें (Metamorphic Rocks)-Metamorphic Rocks शब्द का अर्थ है- ‘रूप में परिवर्तन’ (Change in form) । ये वे चट्टानें हैं, जो गर्मी और दबाव के प्रभाव से अपना रंग, रूप, गुण, आकार और खनिज बदल लेती हैं। अग्नि तथा तलछटी चट्टानों का मूल रूप में इतना परिवर्तन हो जाता है कि कई चट्टानों को पहचानना मुश्किल हो जाता है। यह परिवर्तन दो प्रकार से होता है-

1. भौतिक परिवर्तन (Physical Change)
2. रासायनिक परिवर्तन (Chemical Change)
इतना परिवर्तन होते हुए भी चट्टानों में टूट-फूट नहीं होती। यह परिवर्तन दो कारणों से होता है।

परिवर्तन के कारक (Agents of Change)-

1. ताप (Heat)
2. दबाव (Pressure)

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1. ताप से स्पर्शी रूपान्तरण (Heat Contact Metamorphism)-गर्म लावे के स्पर्श से निकट के प्रदेश की चट्टानें झुलस जाती हैं और उनके रवे पूरी तरह से बदल जाते हैं। जिस प्रकार गर्म लावे के स्पर्श से चूने का पत्थर (Lime Stone) संगमरमर (Marble) बन जाता है। दक्षिणी भारत में धारवाड़ (Dharwar) प्रदेश में ऐसी चट्टानें मिलती हैं।

2. दबाव (Pressure) से पृथ्वी की उथल-पुथल, भूचाल, पर्वतों के निर्माण आदि के कारण चट्टानों पर दबाव पड़ता है। ऊपरी परतों के दबाव से निचली चट्टानों के गुणों में परिवर्तन आ जाता है। यह परिवर्तन बड़े पैमाने पर विशाल प्रदेशों में होता है। इसके कुछ उदाहरण आगे लिखे हैं-

मुख्य चट्टानें — परिवर्तित चट्टानें

1. शेल (Shale) — 1. स्लेट (Slate)
2. अभ्रक (Mica) — 2. शिसट (Schist)
3. ग्रेनाइट (Granite) — 3. नेइस (Gneiss)
4. रेतीला पत्थर (Sand Stone). — 4. क्वार्टज़ाइट (Quartzite)
5. कोयला (Coal) — 5. ग्रेफाइट (Graphite)

इसे क्षेत्रीय रूपान्तरण (Regional Metamorphism) भी कहते हैं।

विशेषताएँ (Characteristics)-

  1. इन चट्टानों की कठोरता बढ़ जाती है।
  2. चट्टानों के खनिज पिघल कर इकट्ठे हो जाते हैं।
  3. ठोस होने के कारण अपरदन कम होता है।
  4. इनमें खनिजों से मिले हुए जल के स्रोत मिलते हैं, जिनसे चमड़ी के रोग दूर हो जाते हैं।
  5. मकान बनाने के लिए संगमरमर, स्लेट, क्वार्टज़ाइट मिलते हैं।

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PSEB 10th Class Physical Education Solutions Chapter 3 योग

Punjab State Board PSEB 10th Class Physical Education Book Solutions Chapter 3 योग Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 10 Physical Education Chapter 3 योग

PSEB 10th Class Physical Education Guide योग Textbook Questions and Answers

बहुत छोटे उत्तरों वाले प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
भारतीय व्यायाम की प्राचीन विधि कौन-सी है ?
(Which is the oldest method of Indian Exercises ?)
उत्तर-
योगासन।

प्रश्न 2.
शीर्षासन प्रतिदिन कम-से-कम कितने समय के लिए करना चाहिए ?
(How much time Shirsh Asana may be performed daily ?)
उत्तर-
2 मिनट के लिए।

प्रश्न 3.
शीर्षासन के कोई दो लाभ बताओ।
(Mention any two advantage of Shirsh Asana.)
उत्तर-

  1. शीर्षासन से स्मरण शक्ति तेज़ होती है।
  2. मोटापा दूर होता है।

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प्रश्न 4.
वज्रासन के कोई दो लाभ बताओ।
(Mention any two advantages of Vajur Asana.)
उत्तर-

  1. वज्रासन से स्वप्न दोष दूर होता है।
  2. इससे शूगर का रोग दूर हो जाता है। ..

प्रश्न 5.
पद्मासन के कोई दो लाभ बताओ।
उत्तर-

  1. कमर दर्द दूर हो जाता है।
  2. बार-बार मूत्र आना बन्द हो जाता है।

प्रश्न 6.
भुजंगासन के कोई दो लाभ बताओ।
(Describe any two advantages of Bhujang Asana.)
उत्तर-

  1. कब्ज दूर हो जाती है।
  2. धातु रोग दूर हो जाता है।

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प्रश्न 7.
धनुरासन के कोई दो लाभ बताओ।
(Mention any two advantages of Dhanur Asana.)
उत्तर-

  1. गठिया की बीमारी दूर हो जाती है।
  2. औरतों के योनि विकार और मासिक धर्म सम्बन्धी रोग दूर हो जाते हैं।

प्रश्न 8.
हर्निया तथा नल रोगों को ठीक करने में कौन-सा आसन सहायक हो सकता है ?
(Name the Asana which prevent Hernia and urinary disease.)
उत्तर-
चक्र आसन।

प्रश्न 9.
आत्मा को परमात्मा से मिलाने का महत्त्वपूर्ण ढंग कौन-सा है ?
(Which is the means of uniting soul with God ?)
उत्तर-
योग।

प्रश्न 10.
मानसिक एकाग्रता के लिए कौन-सा योगासन सर्वोत्तम है ?
(Which is the best Asana for mental concentration ?
उत्तर-
पद्मासन।

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प्रश्न 11.
थकावट कितने प्रकार की है ?
(Mention the types of Fatigue.)
उत्तर-
दो तरह की

  1. मनोरूक,
  2. शारीरिक

छोटे उत्तरों वाले प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
योग किसे कहते हैं ? इसके क्या लाभ हैं ?
(What is Yoga ? Discuss its uses.)
उत्तर-
भारत की प्राचीन कसरत या व्यायाम की विधि योग है। अतीत में साधु-सन्त, महात्मा लोग इसका अभ्यास करते थे तथा अपना शरीर स्वस्थ रखते थे। इसे हम सामान्यतः तपस्या करने के लिए प्रयोग कर सकते हैं। योग प्रत्येक मनुष्य के लिए आवश्यक है।
लाभ-योग के हमें निम्नलिखित लाभ हैं—

  1. योगासनों से मनुष्य का शरीर स्वस्थ रहता है।
  2. इससे बहुत-सी बीमारियां दूर हो
  3. मानसिक कमजोरी दूर हो जाती है।
  4. शरीर शक्तिशाली बन जाता है।
  5. मनुष्य पर शीघ्र घबराहट का प्रभाव नहीं पड़ता।
  6. चिन्ता तथा परेशानियां दूर हो जाती हैं।
  7. मनुष्य का शरीर आकर्षक तथा सुगठित बन जाता है।

प्रश्न 2.
“योग आत्मा और परमात्मा में मिलाप करने का महत्त्वपूर्ण साधन है।” कैसे ?
(“Yoga is the means of uniting soul with God.” How ?)
उत्तर-
प्राचीन काल के साधु-महात्माओं की बातें तथा विचार हम आज तक सुनते आ रहे हैं। उनके विचारों के अनुसार यदि किसी व्यक्ति ने आत्मा का परमात्मा से मिलाप कराना है तो उसका साधन हमारा शरीर है। वही मनुष्य आत्मा को परमात्मा से मिला सकता है या दर्शन करा सकता है जो शारीरिक रूप से स्वस्थ हो। अभिप्राय यह कि उसका मन पूर्णतः स्वच्छ और स्वस्थ हो।
हम योग साधनों के द्वारा शरीर को ठीक रख सकते हैं। इनसे बहुत-सी बीमारियां अपने-आप ही दूर हो जाती हैं। इससे सिद्ध होता है कि योग आत्मा तथा परमात्मा का मिलाप कराने का महत्त्वपूर्ण साधन है। इसलिए हमें योगासनों का अभ्यास करना चाहिए।

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प्रश्न 3.
पातंजलि ऋषि ने अष्टांग योग के कौन-कौन से 8 अंग बताए हैं ? उनके बारे में लिखो।
(अभ्यास का प्रश्न 2)
(What are the eight components of Ashtang Yoga according to Patanjali Rishi ? Write briefly about)
उत्तर-
महर्षि पातंजलि ने योग द्वारा शारीरिक स्वास्थ्य एवं निरोगता प्राप्त करने का एक तरीका बताया है जिसे ‘अष्टांग योग’ का नाम दिया जाता है। इसके आठ अंग निम्नलिखित हैं—

  1. नियम (Observance)-नियम वे ढंग हैं जो मनुष्य के शारीरिक अनुशासन से सम्बन्ध रखते हैं जैसे शरीर की सफ़ाई, नेती तथा बस्ती द्वारा की जाती है।
  2. यम (Restraint) ये वे साधन हैं जिनका मनुष्य के मन के साथ सम्बन्ध होता है। इनका अभ्यास मनुष्य को अहिंसा, सच्चाई, पवित्रता, त्याग आदि सिखाता है।
  3. आसन (Posture)-आसन वह विशेष स्थिति है जिसमें मनुष्य के शरीर को अधिक-से-अधिक समय के लिए रखा जाता है। रीढ़ की हड्डी को बिल्कुल सीधा रख कर टांगों को किसी विशेष दिशा में रख कर बैठना पद्मासन है।
  4. प्राणायाम (Regulation of Breath and Bio-energy)—किसी विशेष विधि के अनुसार सांस अन्दर ले जाने और बाहर निकालने की क्रिया प्राणायाम कहलाती है।
  5. धारणा (Concentration)—इसका अभिप्राय है मन को किसी विशेष वांछित विषय पर लगाना। इस प्रकार एक ओर ध्यान लगाने से मनुष्य में एक महान् शक्ति का संचार होता है जिससे उसकी मन की इच्छा की पूर्ति होती है।
  6. प्रत्याहार (Abstraction)—प्रत्याहार से अभिप्राय है मन तथा इन्द्रियों को उनकी अपनी क्रियाओं से हटाकर ईश्वर के चरणों में लगाना।
  7. ध्यान (Meditation) -इस अवस्था में मनुष्य सांसारिक भटकनों से ऊपर उठकर अपने-आप में अन्तर्ध्यान हो जाता है।
  8. समाधि (Trance)—इस स्थिति में मनुष्य की आत्मा-परमात्मा में लीन हो जाती है।

प्रश्न 4.
“योग स्वास्थ्य का साधन है।” इस बारे अपने विचार प्रकट करो।
(“Yoga is means of Good Health.” Write.)
उत्तर-
योग का सबसे बड़ा उद्देश्य यह है कि व्यक्ति को शारीरिक, मानसिक रूप से दृढ़ व सचेत तथा व्यवहार में पूर्णतया अनुशासित बनाना। इसकी विशेषताएं इस प्रकार हैं—

  1. योग से मनुष्य की शारीरिक तथा मानसिक बुनियादी शक्तियां विकसित होती हैं। प्राणायाम द्वारा फेफड़ों में बहुत-सी वायु चली जाती है जिससे फेफड़ों की कसरत होती है। इससे फेफड़ों के बहुत-से रोग दूर होते हैं।
  2. योगाभ्यास करने से शरीर पूर्णतया स्वस्थ रहता है। धोती क्रिया तथा बस्ती क्रिया क्रमशः आमाशय तथा आंतों को साफ़ करती है। शरीर सदैव नीरोग रहता है।
  3. योग करने से शरीर मज़बूत बनता है।
  4. योगाभ्यास करने से शारीरिक अंग लचकदार बनते हैं। जैसे हल आसन तथा धनुर आसन करने से रीढ़ की हड्डी की लचक बढ़ती है।
  5. योगासन करने से शरीर की सभी प्रणालियां ठीक प्रकार से काम करने लगती हैं।
  6. योगाभ्यास मनुष्य के शरीर को अच्छी स्थिति (Posture) में रखता है जिससे उसके व्यक्तित्व में निखार आता है। उदाहरणार्थ वृक्ष आसन करने से घुटने नहीं भिड़ते और पद्म आसन करने से न ही पेट आगे को निकलता है और न ही कन्धों में कुबड़ापन आता है।
  7. योगासन करने से मानसिक अनुशासन आता है। यम तथा नियम द्वारा मानवीय संवेग विकारों तथा अनुचित इच्छाओं पर नियन्त्रण स्थापित करने की शक्ति देता है।
  8. उचित आसन करने से कई प्रकार के रोग दूर भागते हैं तथा कई रोगों की रोकथाम हो जाती है। वज्र आसन तथा मत्स्येन्द्रासन मधुमेह (Diabetes) के रोगों को ठीक करता है। इसी प्रकार प्राणायाम फेफड़ों का रोग नहीं लगने देता।
  9. योग शारीरिक तथा मानसिक थकावट को दूर भगाने में सहायता प्रदान करते हैं। शव आसन मनुष्य की थकावट को कोसों दूर भगाता है।
  10. करने से बुद्धि तेज़ होती है तथा स्मरण शक्ति बढ़ती है| हस बात के लिए शीर्षासन बहुत ही उपयोगी है।
  11. योगाभ्यास करने से मनुष्य के शरीर में ताल (Rhythm) आ जाता है। इससे शरीर की शक्ति संयम से व्यय होती है।
  12. योग मानसिक सन्तुलन तथा प्रसन्नता प्राप्ति का सर्वोत्तम साधन है।

PSEB 10th Class Physical Education Solutions Chapter 3 योग

बड़े उत्तरों वाले प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
कोई 6 आसनों की विधि और लाभ लिखो।
(Discuss the methods of any six Asans and give their uses.)
उत्तर-
1.शव आसन की स्थिति-पीठ के बल लेट कर शरीर को पूरी तरह ढीला छोड़ देना चाहिए।
विधि-

  1. पीठ के बल लेट कर शरीर को ढीला छोडो।
    PSEB 10th Class Physical Education Solutions Chapter 3 योग 1
  2. धीरे-धीरे लम्बे सांस लो।
  3. लेट कर शरीर के समस्त अंगों को पूरा आराम करने दें।
  4. दोनों पैरों को डेढ़ फुट की दूरी पर रखो।।
  5. दोनों हाथों की हथेलियों को ऊपर की ओर करके शरीर से लगभग 6 इंच की दूरी पर रखो।
  6. आंखें बन्द करके अन्तर्ध्यान हो जाओ।
  7. शरीर को पूर्ण विश्राम की स्थिति में रखो।

महत्त्-

  1. शरीर की थकावट को दूर करता है।
  2. मानसिक तनाव दूर हो जाता है।
  3. उच्च रक्त चाप दूर हो जाता है।
  4. मस्तिष्क तथा हृदय में ताज़गी आ जाती है।
  5. शरीर को शक्ति मिल जाती है।

2. पश्चिमोत्तान आसन–इस आसन में सारे शरीर को फैला कर मोड़ना होता है।
विधि-

  1. पश्चिमोत्तान आसन करने के लिए टांगों को आगे फैला कर ज़मीन पर बैठो।
  2. दोनों हाथों से पैरों के अंगूठे पकड़ो।
  3. इसके बाद धीरे-धीरे सांस छोड़ते हुए नाक से घुटनों को छूने का प्रयास करो।
  4. धीरे-धीरे सांस लेते हुए सिर ऊपर उठाओ और पहली वाली स्थिति में आ जाओ।
  5. यह आसन प्रतिदिन 10-15 बार करना चाहिए।
    PSEB 10th Class Physical Education Solutions Chapter 3 योग 2
    पश्चिमोत्तान आसन

लाभ-

  1. यह आसन पेट गैस की बीमारी को दूर करता है।
  2. यह आसन नाड़ियों को साफ़ करता है।
  3. इससे पैर शक्तिशाली हो जाते हैं।
  4. इससे शरीर में बढ़ी चर्बी घट जाती है।
  5. यह आसन पेट की बीमारियों को ठीक करता है।
  6. शरीर हल्कापन अनुभव करता है।
  7. टांगें टेढ़ी नहीं होती।

3. धनुरासन-स्थिति-इस आसन में शरीर की स्थिति कमान की भान्ति होती है।
विधि-

  1. इस आसन को करने के लिए पेट के भार आराम से लेट जाओ।
  2. पैरों को पीठ की ओर करो।
  3. हाथों से टखनों को पकड़ो।
  4. लम्बा सांस लेकर सिर तथा छाती को जहां तक सम्भव हो उठाकर शरीर का आकार धनुष की भान्ति बनाओ।
  5. जितनी देर हो सके इसी स्थिति में रहो। धीरे-धीरे सांस छोड़ते हए शरीर को ढीला छोड़ दो और पहले वाली स्थिति में आ जाओ।

लाभ—

  1. यह आसन आंतों को पुष्ट करता है।
  2. पाचन शक्ति बढ़ाता है।
    PSEB 10th Class Physical Education Solutions Chapter 3 योग 3
    धनुरासन स्थिति
  3. मोटापा दूर हो जाता है।
  4. गठिया आदि बीमारियां दूर हो जाती हैं।

4. पद्मासन की स्थिति–इस आसन में शरीर की स्थिति कमल के समान होती है।
विधि-

  1. पद्मासन करने के लिए पहले चौकड़ी मार के बैठो।
  2. दायां पांव बायें पांव पर इस प्रकार रखो कि दायें पांव की एड़ी बाईं जांघ की हड्डी को छुए। इसके बाद बायें पांव को उठा कर दाईं जांघ के ऊपर उसी प्रकार रखो।
    PSEB 10th Class Physical Education Solutions Chapter 3 योग 4
    पद्मासन
  3. रीढ़ की हड्डी सीधी रखो।

लाभ—

  1. इस आसन से मन स्थिर रहता है।
  2. इस आसन से कमर का दर्द दूर हो जाता है।
  3. इस आसन से दिल तथा पेट की बीमारियां दूर हो जाती हैं।
  4. पाचन–शक्ति बढ़ जाती है।
  5. बार-बार पेशाब आने का रोग नहीं हो सकता।
  6. बहुत-सी आन्तरिक बीमारियां दूर हो जाती हैं।
  7. बाजू तथा पांव मजबूत होते हैं।
  8. रक्त संचार तेज़ हो जाता है।
  9. शरीर स्वस्थ रहता है।

5. हल आसन की स्थिति
विधि—अपने पांव फैला कर पीठ के बल ज़मीन पर लेट जाओ। हाथों की हथेलियों को नितम्बों की बगल में जमा दो। कमर के निचले भाग को (दोनों पांवों को) ज़मीन से धीरे से ऊपर उठाओ और इतना ऊपर ले जाओ कि दोनों पांव के अंगूठे सिर के पीछे ज़मीन से लग जाएं। जब तक सम्भव हो, इसी स्थिति में रहो।
पांवों को धीरे से उसी स्थान पर वापस ले जाओ जहां से आरम्भ किया था।
PSEB 10th Class Physical Education Solutions Chapter 3 योग 5
हल आसन
नोट-

  1. यह आसन हर आयु की स्त्री, पुरुष के लिए लाभदायक है।
  2. यह आसन हृदय रोगियों या उच्च या निम्न रक्त चाप वालों के लिए मना है।
  3. इस आसन को झटके से नहीं करना चाहिए।

लाभ—

  1. यह आसन सारे शरीर में रक्त के संचार को नियमित करता है। फलस्वरूप चर्म रोग शीघ्र दूर हो जाते हैं।
  2. मोटापा दूर करने के लिए यह आसन सर्वश्रेष्ठ है। कमर और नितम्ब को पतला करता है।
  3. पेट की स्थूलता को आसानी से कम करता है।
  4. रीढ़ की हड्डी लचकीली होती है। शरीर सुन्दर और नीरोग हो जाता है।
  5. यह आसन शरीर की दुर्गन्ध को दूर करता है। शरीर को सुन्दर बनाता है।
  6. चेहरा प्रसन्न हो जाता है।
  7. आंखों में तेज़ आ जाता है।

6. सर्वांगासन स्थिति-इस आसन में शरीर की स्थिति अर्द्ध-हल की भान्ति हो जाती
PSEB 10th Class Physical Education Solutions Chapter 3 योग 6
सर्वांगासन
विधि—

  1. इस आसन के लिए शरीर को सीधा करके पीठ के भार सीधा लेट जाओ।
  2. हाथों को पेट के बराबर सीधा रखो।।
  3. दोनों पैरों को एक साथ ऊपर उठाकर हथेलियों से पीठ को सहारा देते हुए कुहनियों को ज़मीन पर टिकाओ।
  4. सारे शरीर को सीधा रखो।
  5. सारे शरीर का भार कन्धों तथा गर्दन पर रहे।
  6. ठोडी को छाती के साथ स्पर्श करो।
  7. कुछ देर इसी स्थिति में रहने के बाद फिर पहली वाली स्थिति में आ जाओ।

लाभ-

  1. शरीर में स्फूर्ति आती है।
  2. शरीर शक्तिशाली बन जाता है।
  3. मोटापा दूर हो जाता है।
  4. बाजू और पैर मज़बूत हो जाते हैं।
  5. टांगें टेढ़ी नहीं होती।

PSEB 10th Class Physical Education Solutions Chapter 3 योग

प्रश्न 2.
भुजंगासन (Bhujangasana), अर्द्धमत्स्येन्द्रासन (Ardhmatsyandrasana), मत्स्यासन (Matsyasana) और मयूरासन (Mayurasana) की विधि तथा लाभ बताओ।
उत्तर-
1. भुजंगासन (Bhujangasana)—
स्थिति-पेट के बल लेटना।
विधि—

  1. पेट के बल ज़मीन पर लेट जाएं। दोनों हाथों के साथ कन्धों को धीरे-धीरे ऊपर उठाओ।
  2. टांगों और हथेलियों को अकड़ाते हुए धीरे-धीरे सिर और छाती को इतना उठाइए कि बाजू सीधे हो जाएं।
  3. पंजों को अन्दर की ओर देखो और सिर को पीछे की ओर फेंको।
  4. धीरे-धीरे पहले की स्थिति में जाओ।
  5. इस आसन को तीन से चार बार करो।

लाभ-

  1. यह आसन पाचन शक्ति को बढ़ाता है।
    PSEB 10th Class Physical Education Solutions Chapter 3 योग 7
    भुजंगासन
  2. जिगर के रोगों को दूर करता है।
  3. कब्ज दूर हो जाती है।
  4. यह स्वप्न-दोष दूर करता है।
  5. हड्डियां मज़बूत होती हैं।
  6. तिलों को आराम देता है।

2. अर्द्धमत्स्येन्द्रासन (Ardhmatseyandrasana)-इसमें बैठने की स्थिति में धड़ को पार्यों की ओर धंसा जाता है।
विधि-ज़मीन पर बैठकर बायं पांव की एडी को दाईं ओर नितम्ब के पास ले जाओ जिससे एड़ी का भाग गुदा के निकट लगे। दायें पांव को ज़मीन पर बायें पांव के घुटने के निकट रखो फिर वक्ष स्थल के निकट बाईं भुजा को लाएं, दायें पांव के घुटने के नीचे अपनी
PSEB 10th Class Physical Education Solutions Chapter 3 योग 8
अर्द्धमत्स्येन्द्रासन
जंघा पर रखें, पीछे की ओर से दायें हाथ द्वारा कमर को लपेट कर नाभि को स्पर्श करने का यत्न करें। फिर पांव बदल कर सारी क्रिया को दोहराएं।
लाभ-

  1. इस आसन द्वारा मांसपेशियां और जोड़ अधिक लचीले रहते हैं और शरीर में शक्ति आती है।
  2. यह आसन वायु विकार और मधुमेह दूर करता है तथा आन्त उतरने (Hemia) में लाभदायक है।
  3. यह आसन मूत्राशय, अमाशय, प्लीहादि के रोगों में लाभदायक है।
  4. इस आसन के करने से मोटापा दूर रहता है।
  5. छोटी तथा बड़ी आन्तों के रोगों के लिए बहुत उपयोगी है।

3. मत्स्यासन (Matsyasana)—इसमें पद्मासन में बैठकर (Supine) लेटे हुए और पीछे की ओर (arch) बनाते हैं।
विधि- पद्मासन लगा कर सिर को इतना पीछे ले जाओ जिससे सिर की चोटी का भाग ज़मीन पर लग जाए और पीठ का भाग ज़मीन से ऊपर उठा हो। दोनों हाथों से दोनों पैरों के अंगूठे पकड़ें।
PSEB 10th Class Physical Education Solutions Chapter 3 योग 9
मत्स्यासन
लाभ-

  1. यह आसन चेहरे तथा त्वचा को आकर्षक बनाता है। चर्म रोग को दूर करता है।
  2. यह आसन टांसिल, मधुमेह, घुटनों तथा कमर दर्द के लिए लाभदायक है। शुद्ध रक्त का निर्माण तथा संचार करता है।
  3. इस आसन द्वारा शरीर में लचक आती है कब्ज दूर होती है, भूख बढ़ती है, पेट की गैस को नष्ट करके भोजन पचाता है।
  4. यह आसन फेफड़ों के लिए लाभदायक है, श्वास सम्बन्धी रोग जैसे खांसी, दमा, श्वास नली की बीमारी आदि दूर करता है। नेत्र रोग दोषों को दूर करता है। यह आसन टांगों और भुजाओं की शक्ति को बढ़ाता है और मानसिक दुर्बलता को दूर करता है।

4. मयूरासन (Mayurasana)
विधि-पेट के बल ज़मीन पर लेट कर दोनों पांवों के पंजों को मिलाओ। दोनों कुहनियों को आपस में मिला कर नाभि पर ले जाओ। सम्पूर्ण शरीर का भार कुहनियों पर देकर घुटनों और पैरों को ज़मीन से उठाए रखो।
PSEB 10th Class Physical Education Solutions Chapter 3 योग 10
मयूरासन
लाभ-

  1. यह आसन फेफड़ों की बीमारी दूर करता है। चेहरे को लाली प्रदान करता है।
  2. पेट की सभी बीमारियां इससे दूर होती हैं और बांहों को बलवान बनाता है।
  3. इस आसन से आंखों की नज़र पास की व दूर की ठीक रहती है। इस आसन से मधुमेह रोग नहीं होता यदि हो जाए तो दूर हो जाता है।
  4. यह आसन रक्त संचार को नियमित करता है।

प्रश्न 3.
वज्रासन (Vajurasana), शीर्षासन (Shirshasana), चक्रासन (Chakarasana) और गरुड़ आसन (Garur Asana) की विधि तथा लाभ बताओ।
उत्तर-
1. वज्रासन (Vajur Asana)—पैरों को पीछे की ओर मोड़ कर बैठना और हाथों को घुटनों पर रखना इसकी स्थिति है।
विधि-

  1. घुटने मोड कर पैरों को पीछे की ओर करके पैरों के तलओं के भार बैठो।
  2. नीचे पैर इस प्रकार हों कि पैर के अंगूठे एक-दूसरे से मिले हों।
  3. दोनों घुटने भी मिले हों और कमर तथा पीठ दोनों एकदम सीधे रहें।
  4. दोनों हाथों को तान कर घुटनों के पास रखो।।
  5. सांसें लम्बी-लम्बी और साधारण हो।
  6. यह आसन प्रतिदिन 3 मिनट से लेकर 20 मिनट तक करना चाहिए।
    PSEB 10th Class Physical Education Solutions Chapter 3 योग 11
    वज्रासन

लाभ-

  1. शरीर में स्फूर्ति आती है।
  2. शरीर का मोटापा दूर हो जाता है।
  3. शरीर स्वस्थ रहता है।
  4. मांसपेशियां मज़बूत होती हैं।
  5. इससे स्वप्न दोष दूर हो जाता है।
  6. पैरों का दर्द दूर हो जाता है।
  7. मानसिक शान्ति प्राप्त होती है।
  8. मनुष्य निश्चिन्त हो जाता है।
  9. इससे मधुमेह की बीमारी में लाभ पहुंचता है।
  10. पाचन-क्रिया ठीक रहती है।

2. शीर्षासन (Shirsh Asana)– इस आसन में सिर नीचे और पैर ऊपर की ओर होते हैं।
विधि-

  1. एक दरी या कम्बल बिछ। कर घुटनों के भार बैठो।
  2. दोनों हाथों की अंगुलियां कस कर बांध लो। दोनों हाथों को कोणदार बना कर कम्बल या दरी पर रखो।
  3. सिर का सामने वाला भाग हाथों में इस प्रकार ज़मीन पर रखो कि दोनों अंगूठे सिर के पिछले हिस्से को दबाएं।
  4. टांगों को धीरे-धीरे अन्दर की ओर मोड़ते हुए शरीर को सिर और दोनों हाथों के सहारे आसमान की ओर उठाओ।
  5. पैरों को धीरे-धीरे ऊपर उठाओ। पहले एक टांग को सीधा करो, फिर दूसरी को।
  6. शरीर को बिल्कुल सीधा रखो।
    PSEB 10th Class Physical Education Solutions Chapter 3 योग 12
    शीर्षासन
  7. शरीर का सारा भार बांहों और सिर पर बराबर पड़े।
  8. दीवार या साथी का सहारा लो।

लाभ –

  1. यह आसन भूख बढ़ाता है।
  2. इससे स्मरण शक्ति बढ़ती है।
  3. मोटापा दूर हो जाता है।
  4. जिगर ठीक प्रकार से कार्य करता है।
  5. पेशाब की बीमारियां दूर हो जाती हैं।
  6. बवासीर आदि बीमारियां दूर हो जाती हैं।
  7. इस आसन का प्रतिदिन अभ्यास करने से कई मानसिक बीमारियां दूर हो जाती हैं।

सावधानियां –

  1. जब आंखों में लाली आ जाए तो बन्द कर दो।
  2. सिर चकराने लगे तो आसन बन्द कर दें।
  3. कानों में सां-सां की ध्वनि सुनाई दे तो शीर्षासन बन्द कर दें।
  4. नाक बन्द हो जाए तो यह आसन बन्द कर दो।
  5. यदि शरीर भार सहन न कर सकें तो आसन बन्द कर दें।
  6. पैरों व बांहों में कम्पन होने लगे तो आसन बन्द कर दो।
  7. यदि दिल घबराने लगे तो भी आसन बन्द कर दो।
  8. शीर्षासन सदैव एकान्त स्थान पर करना चाहिए।
  9. आवश्यकता होने पर दीवार का सहारा लेना चाहिए।
  10. यह आसन केवल एक मिनट से पांच मिनट तक करो।

इससे अधिक शरीर के लिए हानिकारक है।
3. चक्रासन की स्थिति- इस आसन में शरीर को गोल चक्र जैसा बनाना पड़ता है।
PSEB 10th Class Physical Education Solutions Chapter 3 योग 13
चक्रासन
विधि-

  1. पीठ के भार लेट कर घुटनों को मोड़ कर, पैरों के तलवों को ज़मीन से लगाओ। दोनों पैरों के बीच में एक से डेढ़ फुट का अन्तर रखो।
  2. हाथों को पीछे की ओर ज़मीन पर रखो। तलवों और अंगुलियों को दृढ़ता के साथ ज़मीन से लगाए रखो।
  3. अब हाथ-पैरों के सहारे पूरे शरीर को कमान या चक्र की शक्ल में ले जाओ।
  4. सारे शरीर की स्थिति गोलाकार होनी चाहिए।
  5. आंखें बन्द रखो ताकि श्वास की गति तेज़ हो सके।

लाभ-

  1. शरीर की सारी कमजोरियां दूर हो जाती हैं।
  2. शरीर के सारे अंगों को लचीला बनाता है।
  3. हर्नियां तथा गुर्दो के रोग दूर करने में लाभदायक होता है।
  4. पाचन शक्ति को बढ़ाता है।
  5. पेट की वायु विकार आदि बीमारियां दूर हो जाती हैं।
  6. रीढ़ की हड्डी मज़बूत हो जाती है।
  7. जांघ तथा बाहें शक्तिशाली बनती हैं।
  8. गुर्दो की बीमारियां घट जाती हैं।
  9. कमर दर्द दूर हो जाता है।
  10. शरीर हल्कापन अनुभव करता है।

4. गरुड़ आसन (Garur Asana)-गरुड़ आसन में शरीर की स्थिति गरुड़ पक्षी की भांति पैरों पर सीधे खडा होना होता है।
विधि-

  1. सीधे खड़े होकर बायें पैर को उठा कर दाहिनी टांग में बेल की तरह लपेट लो।
  2. बाईं जांघ दाईं जांघ पर आ जायेगी तथा बाईं जांघ पिंडली को ढांप देगी।
  3. शरीर का सारा भार एक ही टांग पर कर दो।
  4. बाएं बाजू को दायें बाजू से दोनों हथेलियों को नमस्कार की स्थिति में ले जाओ।
  5. इसके बाद बाईं टांग को थोड़ा-सा झुका कर शरीर को बैठने की स्थिति में ले जाओ। इस प्रकार शरीर की नसें खिंच जाती हैं। अब शरीर को सीधा करो और सावधान की स्थिति में हो जाओ।
  6. अब हाथों और पैरों को बदल कर पहली वाली स्थिति में पुनः दोहराओ।

लाभ-

  1. शरीर के सभी अंगों को शक्तिशाली बनाता है।
    PSEB 10th Class Physical Education Solutions Chapter 3 योग 14
    गरुड़ आसन
  2. शरीर स्वस्थ हो जाता है।
  3. यह बांहों को ताकतवर बनाता है।
  4. यह हर्निया रोग से मनुष्य को बचाता है।
  5. टांगें शक्तिशाली हो जाती हैं।
  6. शरीर हल्कापन अनुभव करता है।
  7. रक्त संचार तेज़ हो जाता है।
  8. गरुड़ आसन करने से मनुष्य बहुत-सी बीमारियों से बच जाता है।

PSEB 10th Class Physical Education Solutions Chapter 3 योग

प्रश्न 4.
पातंजलि ऋषि ने अष्टांग योग के कौन-कौन से आठ अंग बताए हैं? उनके बारे में लिखो।
उत्तर-
महर्षि पातंजलि ने योग द्वारा शारीरिक स्वास्थ्य एवं नीरोगता प्राप्त करने का एक तरीका बताया है, जिसे ‘अष्टांग योग’ का नाम दिया जाता है। इसके आठ अंग निम्नलिखित हैं—

  1. नियम (Observance)—नियम वे ढंग हैं जो मनुष्य के शारीरिक अनुशासन से सम्बन्ध रखते हैं, जैसे शरीर की सफ़ाई नेती तथा बस्ती द्वारा की जाती है। नियमों के पांच अंग हैं-
    • शौच
    • सन्तोष
    • तप
    • स्वाध्याय और
    • ईश्वर परिधान।
  2. यम (Restraint)-ये वे साधन हैं जिनका मनुष्य के मन के साथ सम्बन्ध होता है। इनका अभ्यास मनुष्य को अहिंसा, सच्चाई, पवित्रता, त्याग आदि सिखाता है। इसके पांच अंग हैं-
    • अहिंसा
    • असत्य
    • अस्तेय
    • अपरिग्रह
    • ब्रह्मचर्य।
  3. आसन (Posture)-आसन वह विशेष स्थिति है जिसमें मनुष्य के शरीर को अधिक-से-अधिक समय के लिए रखा जाता है। रीढ़ की हड्डी को बिल्कुल सीधा रखकर टांगों को किसी विशेष दिशा में रखकर बैठना पद्मासन है।
  4. प्राणायाम (Regulation of Breath and Bio-energy)-किसी विशेष विधि के अनुसार सांस अन्दर ले जाने और बाहर निकालने की क्रिया प्राणायाम कहलाती है। यह उपासना का अंग है। इसके तीन भाग हैं-
    • पूरक
    • रेचक
    • कुम्भक।
  5. धारणा (Concentration)—इसका अभिप्राय है मन को किसी विशेष वांछित विषय पर लगाना। इस प्रकार एक ओर ध्यान लगाने से मनुष्य में एक महान् शक्ति का संचार होता है, जिससे उसकी मन की इच्छा की पूर्ति होती है।
  6. प्रत्याहार (Abstration)-प्रत्याहार से अभिप्राय है मन तथा इन्द्रियों को उनकी अपनी क्रियाओं से हटाकर ईश्वर के चरणों में लगानः
  7. ध्यान (Meditation)-इस अवस्था में मनुष्य सांसारिक भटकनों से ऊपर उठकर अपने आप में अन्तर्ध्यान हो जाता है।
  8. समाधि (Trance)—इस स्थिति में मनुष्य की आत्मा परमात्मा में लीन हो जाती है।

प्रश्न 5.
योग के मुख्य सिद्धान्त कौन-कौन से हैं ? (What are the main Principles of Yoga ?)
उत्तर-
योग के मुख्य सिद्धान्त (Main Principles of Yoga)-योग करते समय कुछ सिद्धान्तों का पालन अवश्य करना चाहिए। इन सिद्धान्तों का वर्णन इस प्रकार हैं—

  1. स्नान करके योगासन किए जाएं तो और भी अच्छा रहेगा। स्नान करने से शरीर हल्का होता है, लचक आती है और आसन अच्छे ढंग से होते हैं। वैसे सायंकाल भी जब पेट खाली हो तो आसन किए जा सकते हैं।
  2. आसन करने का स्थान शांत व स्वच्छ होना चाहिए। किसी उद्यानवाटिका में आसन किए जाएं तो बहुत अच्छा है।
  3. दरी या कम्बल बिछाकर आसन करने चाहिएं, ताकि भूमि की चुम्बकीय शक्ति आपके ध्यान को तोड़े नहीं और नीचे से कोई चीज़ आपको गड़े नहीं।
  4. जितना आप एकाग्र होकर आसन करेंगे, उतना ही अधिक शारीरिक व मानसिक लाभ मिलेगा। आसन शुरू करने से पहले श्वासन करके अपने श्वास, शरीर और मन को शांत कर लें।
  5. इसको करते समय झटके नहीं लगने चाहिएं। हर आसन को शरीर तान कर और खींच कर धीरे-धीरे करें। उसके बाद कुछ क्षण अपने शरीर को शिथिल करें। जब आपका श्वास स्वाभाविक स्थिति में आ जाये तब दूसरा आसन करें।
  6. आसन की पूर्ण स्थिति तक जाने का प्रतिदिन अभ्यास करें। धीरे-धीरे आपके बंद खुलेंगे और शरीर में लचक पैदा होगी।
  7. ऋतु के अनुसार आसनों का कम-से-कम कपड़े पहन कर अभ्यास करें।
  8. योगासनों का अभ्यास सभी वर्गों के बच्चे, बूढ़े, स्त्री-पुरुष कर सकते हैं । दस वर्ष से लेकर 80/85 वर्ष तक के व्यक्ति योगाभ्यः । कर सकते हैं। आसनों का अभ्यास विधिपूर्वक करना चाहिए।
  9. योगासन करने वाले व्यक्ति को अपना भोजन हल्का रखना चाहिए। भोजन सुपाच्य, सात्विक व प्राकृतिक होना चाहिए। जितना हल्का भोजन होगा, उतनी उसकी कार्य शक्ति बढ़ जाएगी।
  10. कठिन रोगों तथा ज्वर से पीड़ित व्यक्ति को आसन, प्राणायाम का अभ्यास नहीं करना चाहिए।
  11. शुरू में एक ही दिन बहुत-से आसन न करें। प्रत्येक आसन को मनोयोग से आंख मूंद कर धीरे-धीरे करें : सर्वांगासन व शोसन धीरे-धीरे बढ़ाकर दस मिन्ट तक कर
    सकते हैं। आसन की पहली स्थिति से अन्तिम स्थिति में और अन्तिम स्थिति से वापस जल्दी न आएं।
  12. आसनों का अभ्यास-क्रम इस प्रकार रखना चाहिए कि आसन के बाद उसका उपासन (काउन्टरपोज) कर सकें। जैसे पश्चिमोत्तानासन और उसका उपासन कोणासन, सर्वांगासन का बाद मत्स्यासन आदि।
  13. योगासनों की समाप्ति के बाद कुछ समय के लिए श्वासन अवश्य करें। आसनों का लाभ तभी मिल पाएगा जब आप श्वासन करके अपने शरीर को थोड़ा विश्राम दें। श्वासन अपने-आप में पूर्ण आसन है और इससे शरीर में अद्भुत शक्ति का संचार होता है।
  14. योगासन प्राणायम का कार्यक्रम समाप्त करने के बाद कम-से-कम आधे घण्टे तक कुछ न खाएं।
  15. वायु को बाहर निकालने के पश्चात् श्वास क्रिया रोकने का अभ्यास करना चाहिए।
  16. योगाभ्यास प्रतिदिन करना चाहिए।

PSEB 10th Class Physical Education Solutions Chapter 3 योग

प्रश्न 6.
अन्य व्यायाम जैसे सैर, दंड-बैठक, मुग्दर, मल्ल-युद्ध पश्चिमी देशों के खेलों आदि में क्या दोष हैं और योगासनों में ऐसी क्या विशेषताएं हैं, जो उन्हें ही जीवन का अंग बनाया जाए ?
(What are the disadvantages of western exercises like, Astrolt, Dand-Bethak, Wrestling, Mugdhar etc ? Why Yoga is important for our life ?)
उत्तर-

  1. अन्य जितने भी व्यायाम हैं, वे मुख्यत: मांसपेशियों पर ही प्रभाव डालते हैं, जिससे बाहरी शरीर ही बलिष्ठ दिखाई देता है, अंदर काम करने वाले यन्त्रों पर उतना प्रभाव नहीं पड़ता, जिससे व्यक्ति अधिक देर तक स्वस्थ नहीं रह पाता। जबकि योगासनों से व्यक्ति की आयु लम्बी होती है। विकारों को शरीर से बाहर करने की अद्भुत शक्ति प्राप्त होती है और शरीर के सैल बनते अधिक व टूटते कम हैं।
  2. अन्य व्यायाम व खेलों के लिए स्थान व साधनों की आवश्यकता पड़ती है। खेल तो साथियों के बिना खेले ही नहीं जा सकते, जबकि योगासन अकेले ही दरी व चादर पर किए जा सकते हैं।
  3. दूसरे व्यायामों का प्रभाव मन और इन्द्रियों पर बहुत कम पड़ता है, जबकि योगासनों से मानसिक शक्ति बढ़ती है और इन्द्रियों को वश में करने की शक्ति आती है।
  4. दूसरे व्यायामों में अधिक खुराक की आवश्यकता पड़ती है, जिसके लिए अधिक खर्च करना पड़ता है, जबकि योगासनों में बहुत कम भोजन की आवश्यकता पड़ती है।
  5. योगासनों से शरीर की रोगनाशक शक्ति का विकास होता है, जिससे शरीर किसी भी विजातीय द्रव्य को अन्दर रुकने नहीं देता, तुरन्त बाहर निकालने का प्रयत्न करता है, जिसके आप रोगमुक्त होते हैं।
  6. योगासनों से शरीर में लचक पैदा होती है, जिससे व्यक्ति फुर्तीला रहता है, शरीर के हर अंग में रक्त का संचार ठीक होता है, अधिक आयु में भी व्यक्ति युवा लगता है और काम करने की शक्ति बनी रहती है। अन्य व्यायामों से मांसपेशियों में कड़ापन आ जाता है, शरीर कठोर हो जाता है और बुढ़ापा जल्दी आता है।
  7. जिस प्रकार नाली की गंदगी को झाड़ लगाकर, पानी फेंक कर साफ़ करते हैं, उसी प्रकार अलग-अलग आसनों से रक्त की नलिकाओं व कोशिकाओं को साफ़ करते हैं, ताकि उनमें रवानगी रहे और शरीर रोगमुक्त हो। यह केवल योगासन क्रियाओं से ही हो सकता है, अन्य व्यायामों से नहीं। अन्य व्यायामों से तो हृदय की गति तेज़ हो जाती है और रक्त पूरी तरह शुद्ध नहीं हो पाता।
  8. फेफड़ों के द्वारा हमारे रक्त की शुद्धि होती है। योगासनों व प्राणायाम द्वारा हम अपने फेफड़ों के फेलने व सिकुड़ने की शक्ति को बढ़ाते हैं जिससे अधिक-से-अधिक ओषजनक वायु फेफड़ों में भर सके और रक्त की शुद्धि कर सके। दूसरे व्यायामों में फेफड़े जल्दी-जल्दी श्वास लेते हैं, जिससे प्राण वायु फेफड़ों के अन्तिम छोर तक नहीं पहुंच पाती, जिसका परिणाम होता है विकार और विकार रोग का कारण है।
  9. वर्तमान समय में गलत रहन-सहन व अप्राकृतिक भोजन के कारण पाचन संस्थान के यन्त्रों का कार्य सुचारु रूप से नहीं चल पाता। उन्हें क्रियाशील रखने में योगासन बहुत सहायक सिद्ध होते हैं, जबकि दूसरे व्यायामों से पाचन क्रिया बिगड जाती है।
  10. मेरुदण्ड पर हमारा यौवन निर्भर करता है। सारा रक्त संचार व नाड़ी संचालन, इसी से होकर शरीर में फैलता है। जितनी लचक रीढ़ की हड्डी में रहेगी, उतना ही शरीर स्वस्थ होगा, आयु लम्बी होगी, मानसिक संतुलन बना रहेगा। यह केवल योगासनों से ही सम्भव है।
  11. दूसरे व्यायामों से आपको थकावट आएगी, बहुत अधिक शक्ति खर्च करनी पडेगी, जबकि योगासनों से शक्ति प्राप्त की जाती है. क्योंकि योगासन धीरे-धीरे और आराम से किए जाते हैं। इन्हें अहिंसक और शान्तिप्रिय क्रियाएं कहा जाता है।
  12. अन्य व्यायामों से मनुष्य के चरित्र पर कोई खास प्रभाव नहीं पड़ता। योगासन स्वास्थ्य के साथ-साथ चरित्रवान भी बनाते हैं। यौगिक क्रियाओं से मानसिक व नैतिक शक्ति का विकास होता है, मन स्थिर रहता है। मन के स्थिर रहने से बुद्धि का विकास होता है, सत्वगुण की प्रधानता होती है और सत्वगुण से मानसिक शक्ति का विकास होता है। ये सब लाभ केवल योगासन और प्राणायाम से ही प्राप्त हो सकते हैं।
  13. हमारे शरीर में अनेक ग्रन्थियां हैं, जो हमें स्वस्थ व निरोग रखने में महत्त्वपूर्ण कार्य करती हैं। इन ग्रन्थियों का रस रक्त में मिल जाता है, जिससे मनुष्य स्वस्थ व शक्तिशाली बनता है। गले की थाइराइड व पैराथाइराइड ग्रन्थियों से निकलने वाले रस पर्याप्त मात्रा में न होने से बालकों का पूर्ण विकास नहीं हो पाता और युवकों के असमय में ही बाल गिरने लगते हैं तथा शरीर में प्रसन्नता नहीं रहती। शरीर की विभिन्न ग्रन्थियों को सजग करके पर्याप्त मात्रा में रस देने के योग्य बनाने के लिए योगासन पद्धति बड़ी कारगर है। अन्य व्यायामों का प्रभाव इस दिशा में नगण्य है।
  14. शरीर के रोगों को दूर करने में, प्राणायाम और षट्कर्म राम-बाण का काम करते हैं। जब विजातीय द्रव्यों के बढ़ जाने से शरीर के अंग उन्हें बाहर निकाल पाने में समर्थ नहीं होते, तो रोग का आरम्भ होता है। इन विजातीय द्रव्यों को बाहर निकालने के लिए इन क्रियाओं का सहारा लिया जा सकता है और अपने आपको स्वस्थ तथा शक्तिशाली बनाया जा सकता है।
  15. शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक और आत्मिक विकास के लिए योग पद्धति २.तम पद्धति है। इसका मुकाबला और कोई पद्धति नहीं कर सकती।

PSEB 10th Class Physical Education Solutions Chapter 3 योग

प्रश्न 7.
योग का महत्त्व विस्तार से लिखें।
उत्तर-
योग का महत्त्व (Importance of Yoga)—मानव जीवन में योग का अत्यधिक महत्त्व है। योग मानव में सम्पूर्ण विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। योग द्वारा मनुष्य में निम्नलिखित गुणों का विकास होता है—

  1. शारीरिक, मानसिक एवं गुप्त शक्तियों का विकास (Development of Physical, Mental and Hidden qualities)—प्राणायाम और अष्टांग द्वारा मनुष्य की गुप्त शक्तियों का विकास होता है। अष्टांग योग के नियम और आसन अंगों द्वारा व्यक्ति का शारीरिक एवं मानसिक विकास होता है। विभिन्न आसनों का अभ्यास करने से शरीर के अंग क्रियाशील एवं विकसित होते हैं। इसका हमारी विभिन्न प्रणालियों पर अच्छा प्रभाव पड़ता है और व्यक्ति की कार्यकुशलता में वृद्धि होती है।
  2. शरीर की आन्तरिक शुद्धता (Purification and Development of Body)योग की छः अवस्थाओं द्वारा शरीर का सम्पूर्ण विकास होता है। आसनों से शरीर स्वस्थ होता है, योगाभ्यास द्वारा मन पर नियन्त्रण तथा नाड़ी संस्थान और मांसपेशी संस्थान का आपसी तालमेल बना रहता है। प्राणायाम द्वारा शरीर स्वस्थ तथा फुर्तीला बना रहता है। ध्यान और समाधि से सांसारिक चिन्ताओं से छुटकारा प्राप्त होता है। इससे आत्मा-परमात्मा में विलीन हो जाती है। इस प्रकार आसन और प्राणायाम शरीर की आन्तरिक सफ़ाई में सहायक सिद्ध होते हैं।
  3. संवेगों पर नियन्त्रण (Control over Eniutions)–आधुनिक युग में मनुष्य मानसिक और आत्मिक शान्ति का इच्छा करता है। प्रायः देखने में आता है कि साधारण सी असफलता अथवा दुःखदाई घटना हमें इतना दु:खी कर देती है कि हमें जीवन नीरस तथा बोझिल दिखाई देता है। इसके विपरीत कई बार साधारण-सी सफलता अथवा प्रसन्नता की बात हमें इतना खुश कर देती है कि हम मदमस्त हो जाते हैं। हम अपना मानसिक सन्तुलन खो बैठते हैं। इन बातों में हमारी भावात्मक अपरिपक्वता की झलक दिखाई देती है। योग हमें अपने संवेगों पर नियन्त्रण रखना एवं सन्तुलन में रहना सिखाता है। यह हमें सिखाता है कि असफलता अथवा सफलता, प्रसन्नता अथवा अप्रसन्नता एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। यह जीवन दुःखों तथा सुखों का अद्भुत संगम है। दुःखों और खुशियों में समझौता करना ही सुखी जीवन का भेद है। हमें अपने मन के उद्देश्यों पर नियन्त्रण करना चाहिए और सफलता या असफलता को एक समान महत्त्व देना चाहिए।
  4. रोगों से प्राकतिक बचाव (Natural prevention of Diseases) योग क्रियाओं से रोगों से बचाव होता है। रोगों के कीटाणु एक मनुष्य से दूसरे मनुष्य के शरीर में प्रवेश करके रोग फैलाते हैं। योग ज्ञान हमें इन रोगों का मुकाबला करने, इसे छुटकारा पाने और स्वयं को स्वस्थ रखने के ढंग बताता है। जैसे-आसान, धोती, नेचि और जौली आदि द्वारा हमारे आन्तरिक अंग शुद्ध होते हैं और हमें रोगों से मुक्ति मिलती है।
  5. त्याग एवं अनुशासन की भावना (Feeling of Sacrifice and Discipline)योग ज्ञान द्वारा व्यक्ति में त्याग एवं अनुशासन की भावना का संचार होता है। इन गुणों से भरपूर व्यक्ति ही कठिन से कठिन कार्य आसानी से कर सकते हैं। अष्टांग योग में अनुशासन को मुख्य स्थान दिया जाता है। योग के नियमों की पालना करने वाला व्यक्ति अपनी आवश्यकताओं, इच्छाओं, मानवीय भावनाओं, संवेग, विचार इत्यादि पर नियन्त्रण रखता है।
    अन्ततः हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि योग मनुष्य के व्यक्तित्व के सम्पूर्ण विकास में विशेष महत्त्व रखता है।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 21 भारत एवं उसके पड़ोसी देश : नेपाल, श्रीलंका, चीन, बंगलादेश एवं पाकिस्तान

Punjab State Board PSEB 12th Class Political Science Book Solutions Chapter 21 भारत एवं उसके पड़ोसी देश : नेपाल, श्रीलंका, चीन, बंगलादेश एवं पाकिस्तान Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Political Science Chapter 21 भारत एवं उसके पड़ोसी देश : नेपाल, श्रीलंका, चीन, बंगलादेश एवं पाकिस्तान

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
भारत तथा पाकिस्तान के सम्बन्धों का सर्वेक्षण करो। (Make a survey of Indo-Pak relations.)
अथवा
भारत-पाकिस्तान के सम्बन्धों का वर्णन कीजिए। (Explain the relationship between India and Pakistan.)
उत्तर-
15 अगस्त, 1947 को भारत स्वतन्त्र हुआ, परन्तु साथ ही भारत का विभाजन भी हुआ और पाकिस्तान का जन्म हुआ। पाकिस्तान का जन्म ब्रिटिश शासकों की ‘फूट डालो और शासन करो’ की नीति का परिणाम था। पाकिस्तान भारत का पड़ोसी देश है, जिसके कारण भारत-पाक सम्बन्धों का महत्त्व है।
विस्थापित, संपत्ति, देशी रियासतों की संवैधानिक स्थिति, नहरी पानी, सीमा-निर्धारण, वित्तीय और व्यापारिक समायोजन, जूनागढ़, हैदराबाद तथा

कश्मीर और कच्छ के विवादों के लिए भारत और पाकिस्तान में युद्ध होते रहे हैं और तनावपूर्ण स्थिति बनी रही है।
कश्मीर विवाद (Kashmir Controversy)-स्वतन्त्रता से पूर्व कश्मीर भारत के उत्तर-पश्चिमी कोने में स्थित एक देशी रियासत थी।
पाकिस्तान ने पश्चिमी सीमा प्रान्त के कबाइली लोगों (Tribesmen) को प्रेरणा और सहायता देकर कश्मीर पर आक्रमण करवा दिया। इस पर जम्मू-कश्मीर के राजा हरी सिंह ने 22 अक्तूबर, 1947 को कश्मीर को भारत में शामिल करने की प्रार्थना की। 27 अक्तूबर को भारत सरकार ने इस प्रार्थना को स्वीकार कर लिया।

भारत ने पाकिस्तान से कबाइलियों को मार्ग न देने के लिए कहा परन्तु पाकिस्तान पूरी सहायता देता रहा। इस पर लॉर्ड माऊंटबेटन के परामर्श पर भारत सरकार ने 1 जनवरी, 1948 को संयुक्त राष्ट्र चार्टर की 34वीं और 38वीं धारा के अनुसार सुरक्षा परिषद् से पाकिस्तान के विरुद्ध शिकायत की और अनुरोध किया कि वह पाकिस्तान को आक्रमणकारियों की सहायता बंद करने को कहें।। – कश्मीर और संयुक्त राष्ट्र-परन्तु सुरक्षा परिषद् कश्मीर विवाद का कोई समाधान करने में असफल रही। 21 अप्रैल, 1948 को सुरक्षा परिषद् ने 5 सदस्यों को भारत और पाकिस्तान के लिए संयुक्त आयोग (U.N.C.I.P.) की नियुक्ति की और 1 जनवरी, 1949 को कश्मीर में युद्ध विराम हो गया। कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है तथा पाकिस्तान ने पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पी०ओ०के०) पर नाजायज कब्जा कर रखा है।

सन् 1965 का पाक आक्रमण-सन् 1965 में भारत को दो बार पाकिस्तान के आक्रमण का शिकार होना पड़ापहली बार अप्रैल में कच्छ के रणक्षेत्र में और दूसरी बार सितम्बर में कश्मीर में।
सितम्बर, 1965 में पाकिस्तानी सेनाओं ने अन्तर्राष्ट्रीय सीमा का उल्लंघन करके छंब क्षेत्र पर आक्रमण कर दिया। अन्त में सुरक्षा परिषद् के 20 सितम्बर के प्रस्ताव का पालन करते हुए दोनों पक्षों ने 22-23 सितम्बर की सुबह 3-30 बजे युद्ध बंद कर दिया। इस समय तक भारतीय सेनाएँ लाहौर के दरवाज़े तक पहुंच चुकी थीं।

ताशकंद समझौता-10 जनवरी, 1966 को सोवियत संघ के प्रधानमन्त्री श्री कोसिगन के प्रयत्न से दोनों देशों में ताशकंद समझौता हो गया जिसके द्वारा भारत के प्रधानमन्त्री तथा पाकिस्तान के राष्ट्रपति इस बात पर सहमत हो गए कि दोनों देशों के सभी सशस्त्र सैनिक 25 फरवरी, 1966 से पूर्व उस स्थान पर वापस बुला लिए जाएंगे जहां वे 5 अगस्त, 1965 से पूर्व थे तथा दोनों पक्ष युद्ध विराम रेखा पर युद्ध-विराम शर्तों का पालन करेंगे।

1969 में अयूब खां के हाथ से सत्ता निकल कर जनरल याहिया खां के हाथों में आ गई। याहिया खां ने भारत के साथ अमैत्रीपूर्ण नीति का अनुसरण किया।

1971 का युद्ध-1971 में पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान बंगला देश) में जनता ने याहिया खां की तानाशाही के विरुद्ध स्वतन्त्रता का आन्दोलन आरम्भ कर दिया। याहिया खां ने आन्दोलन को कुचलने के लिए सैनिक शक्ति का प्रयोग किया। भारत ने बंगला देश के मुक्ति संघर्ष में उसका साथ दिया। मुक्ति संघर्ष के समय लगभग एक करोड़ शरणार्थियों को भारत में आना पड़ा। इससे भारत की आर्थिक व्यवस्था पर बड़ा बोझ पड़ा।

पाकिस्तान ने 3 दिसम्बर, 1971 को भारत पर आक्रमण कर दिया। भारत ने पाकिस्तान को सबक सिखाने का निश्चय किया और पाकिस्तान के आक्रमण का डटकर मुकाबला किया। 5 दिसम्बर को श्रीमती इन्दिरा गान्धी ने भारतीय संसद् में बंगला देश गणराज्य के उदय की सूचना दी। 16 दिसम्बर, 1971 में ढाका में जनरल नियाज़ी ने आत्म-समर्पण के दस्तावेजों पर हस्ताक्षर कर दिए और लगभग 1 लाख सैनिकों ने आत्म-समर्पण कर दिया।

1972 में हुआ शिमला समझौता हुआ था। इस समझौते के बाद से भारत-पाक के मध्य सामाजिक एवं आर्थिक समबन्ध सुधरने लगे थे परन्तु 1981 से पुनः आपसी सम्बन्धों में कटुता आनी प्रारम्भ हो गई। 1987 में पाकिस्तान में सियाचीन ग्लेशियर की पहाड़ी तराइयों पर, भारतीय चौंकियों पर कब्जा जमाने की असफल कोशिश की। 1988 में भारत एवं पाकिस्तान के मध्य तीनं समझौते हुए जिनमें एक-दूसरे के परमाणु संयन्त्रों पर आक्रमण न करने का समझौता सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है। हाल के कुछ वर्षों में भारत-पाक सम्बन्धों में आए उतार-चढ़ाव निम्नलिखित हैं

6 अप्रैल, 1991 को भारत एवं पाक के मध्य सीमा पर तनाव कम करने के उद्देश्य से दो समझौते हुए। ये समझौते एक-दूसरे की वायु सीमा के उल्लंघन पर रोक एवं युद्धाभ्यास की अग्रिम सूचना देने से सम्बन्धित हैं।

1998 में दोनों देशों द्वारा किए गए परमाणु परीक्षणों द्वारा इनके आपसी सम्बन्धों में भारी तनाव पैदा हो गया। .
आपसी सम्बन्धों को सुधारने के लिए भारत-पाक के मध्य बस सेवा शुरू करने के लिए 17 फरवरी, 1999 को एक समझौता किया।
भारत-पाक सम्बन्धों में नया मोड़ लाने के लिए 20 फरवरी, 1999 को भारत के प्रधानमन्त्री अटल बिहारी वाजपेयी स्वयं बस द्वारा लाहौर गए। ___

मई, 1999 में पाकिस्तान द्वारा कारगिल क्षेत्र में भारी घुसपैठ की गई। अनन्त धैर्य के पश्चात् 26 मई, 1999 को भारत ने कारगिल एवं द्रास क्षेत्र में आक्रमण का समुचित जवाब दिया। युद्ध मोर्चों पर भारी पराजय और अन्तर्राष्ट्रीय दबाव के चलते पाकिस्तान को नियन्त्रण रेखा के पीछे हटना पड़ा।

24 दिसम्बर, 1999 को सशस्त्र उग्रवादियों द्वारा भारतीय विमान का अपहरण कर लिया गया। विमान अपहरण में एक अफ़गानी और चार पाकिस्तानी उग्रवादियों का हाथ था।

भारत ने पाकिस्तान से सम्बन्ध सुधारने हेतु वहां के शासक परवेज मुशर्रफ को बातचीत के लिए निमन्त्रण दिया और वे जुलाई, 2001 में भारत आए परन्तु मुशर्रफ के अड़ियल रवैये के कारण यह वार्ता असफल रही।

10 दिसम्बर 2001 को पाकिस्तान समर्थित आतंकवादियों ने भारतीय संसद् पर हमला किया। जिसके बाद भारत ने पाकिस्तान जाने वाली एवं वहां से आने वाली बसों, रेलों एवं हवाई सेवाओं पर रोक लगा दी।
सितम्बर, 2002 में पुनः पाक समर्थित उग्रवादी संगठन ने गुजरात के नारायण स्वामी मंदिर अक्षरधाम पर हमला किया जिसमें कई लोग मारे गए।
25 नवम्बर, 2002 में पुनः पाक प्रशिक्षित आतंकवादियों ने जम्मू के प्रसिद्ध रघुनाथ मन्दिर पर हमला कर कई बेगुनाह लोगों की जान ली।

लगातार आतंकवादी हमलों के चलते भारत-पाक सम्बन्धों में कड़वाहट आई है जिसके कारण भारत ने जनवरी, 2003 में पाकिस्तान में होने वाले सार्क शिखर सम्मेलन में भाग लेने से इन्कार कर दिया।

वर्ष 2004 में भारत-पाक सम्बन्धों में सुधार की उम्मीद जगाई । 2004 के सार्क सम्मेलन के दौरान भारत-पाक ने विवादित मुद्दों को बातचीत द्वारा हल करने के लिए सहमति व्यक्त की। दोनों देशों के मध्य बंद हुई रेल सेवा, बससेवा एवं विमान सेवा पुनः आरम्भ कर दी गई।

सितम्बर, 2004 में भारत के प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह एवं पाकिस्तान के राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ की न्यूयार्क में शिखर वार्ता हुई। इस बैठक में मुनाबावो-खोखरापार रेल सेवा तथा श्रीनगर-मुजफ्फराबाद बस सेवा शुरू करने पर बातचीत शुरू करने की सहमति बनी। जम्मू-कश्मीर के मामले में सांझा ब्यान में कहा गया कि दोनों नेताओं ने इस पर सहमति व्यक्त की कि बातचीत के द्वारा इस मुद्दे के शान्तिपूर्ण समाधान के सभी विकल्प ईमानदारी व उद्देश्यपूर्ण ढंग से तलाशे जायेंगे।

नवम्बर, 2004 में पाकिस्तान के प्रधानमन्त्री शौकत अजीज भारत यात्रा पर आए। इस यात्रा के दौरान शौकत अजीज ने भारतीय प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह से जम्मू-कश्मीर,श्रीनगर-मुजफ्फराबाद बस सेवा शुरू करने तथा बैंकिग क्षेत्र में पारस्परिक सहयोग बढ़ाने पर चर्चा की।

16 फरवरी, 2005 को दोनों देशों ने श्रीनगर-मुजफ्फराबाद के बीच 7 अप्रैल, 2005 से बस चलाने का ऐलान किया। इस बस में पासपोर्ट के बजाए एंट्री परमिट के ज़रिए दोनों देशों के नागरिक सफर कर सकेंगे। इसी तरह अमृतसर और लाहौर तथा ननकाना साहिब तक बस चलाने पर भी दोनों देश सहमत हो गए।

जनरल मुशर्रफ की भारत यात्रा-17 अप्रैल, 2005 को पाकिस्तान के राष्ट्रपति जनरल मुशर्रफ नई दिल्ली आये। जनरल मुशर्रफ की इस यात्रा से भारत और पाकिस्तान के रिश्ते को नया आयाम मिला। दोनों देशों ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि वे शांति प्रक्रिया से पीछे नहीं हटेंगे। दोनों नेताओं ने अन्तिम समाधान मिलने तक जम्मू-कश्मीर पर सार्थक और दूरगामी बातचीत रखने पर सहमति जताई।

कश्मीर में भूकम्प से तबाही-8-9 अक्तूबर, 2005 को भूकम्प से कश्मीर विशेषकर पाक अधिकृत कश्मीर में तबाही हुई। भारत द्वारा भेजी गई राहत सामग्री यद्यपि पाकिस्तान ने स्वीकार कर ली, परन्तु भारत के साथ संयुक्त राहत कार्यों की पेशकश को पाकिस्तान ने ठुकरा दिया।

पाकिस्तानी प्रधानमन्त्री की भारत यात्रा-3-4 अप्रैल, 2007 को पाकिस्तान के प्रधानमन्त्री शौकत अजीज भारत यात्रा पर आए तथा भारतीय प्रधानमन्त्री के साथ कई द्विपक्षीय मुद्दों पर चर्चा की। .

मुम्बई पर आतंकवादी हमला-26 नवम्बर, 2008 को आतंकवादियों ने मुम्बई के दो प्रसिद्ध होटलों पर हमला करके कई व्यक्तियों को मार दिया। इस आतंकवादी हमले के कारण भारत-पाकिस्तान सम्बन्ध बहुत बिगड़ गए। क्योंकि सभी आतंकवादी पाकिस्तानी नागरिक थे, तथा यह हमला पाकिस्तान की मदद से ही हुआ था। अतः भारत ने पाकिस्तान से सभी वांछित अपराधियों की मांग के साथ-साथ पाकिस्तानी सीमा में चल रहे आतंकवादी प्रशिक्षण स्थलों को बन्द करने की मांग की। परन्तु पाकिस्तान ने इन सभी मांगों को ठुकराते हुए युद्ध की तैयारी शुरू कर दी जिससे दोनों देशों के सम्बन्ध और खराब हुए।

जुलाई, 2009 में भारतीय प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह एवं पाकिस्तानी प्रधानमंत्री यूसूफ रजा गिलानी मिस्र में 15वें गुट निरपेक्ष आन्दोलन के दौरान मिले । संयुक्त घोषणा-पत्र जारी करते हुए दोनों देशों में आतंकवाद से मिलकर जूझने की घोषणा की।

25 फरवरी, 2010 को भारत-पाकिस्तान के बीच विदेश सचिव स्तरीय बातचीत हुई। इस वार्ता के दौरान भारत ने पाकिस्तान से वांछित आतंकवादियों को भारत को सौंपने को कहा।
नवम्बर 2011 में भारत-पाकिस्तान के प्रधानमंत्री सार्क सम्मेलन के दौरान मालद्वीव मिले। इस मुलाकात के दौरान दोनों देशों ने विवादित मुद्दों पर बातचीत जारी रखने पर सहमति प्रकट की।

8 अप्रैल, 2011 को पाकिस्तान के राष्ट्रपति श्री आसिफ अली जरदारी भारत यात्रा पर आए। इस यात्रा के दौरान दोनों देशों ने सभी विवादित मुद्दों पर शांतिपूर्ण ढंग से हल करने की बात की। दिसम्बर 2012 में पाकिस्तान के आन्तरिक मंत्री श्री रहमान मलिक भारत यात्रा पर आए। इस अवसर पर दोनों देशों ने वीजा नियमों को और सरल बनाने का समझौता किया।

सितम्बर, 2013 में संयुक्त राष्ट्र संघ के वार्षिक सम्मेलन में भारतीय प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह एवं पाकिस्तान के प्रधानमन्त्री नवाज़ शरीफ ने न्यूयार्क में मुलाकात की। इस दौरान दोनों देशों ने सभी विवादित विषयों को बातचीत द्वारा हल करने पर सहमति व्यक्त की।
पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नबाज शरीफ मई 2014 में प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में भाग लेने के लिए भारत आए। इस यात्रा के दौरान दोनों देशों ने द्विपक्षीय मुद्दों पर बातचीत की।

नबम्बर 2014 में नेपाल में हुए सार्क सम्मेलन में दोनों देशों के बीच तनाव होने के कारण कोई द्विपक्षीय बातचीत नहीं हो पाई।
दिसम्बर 2015 में भारतीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने पाकिस्तान की यात्रा करके दोनों देशों के सम्बन्धों को सुधारने का प्रयास किया। वर्तमान समय में भारत-पाकिस्तान के सम्बन्ध खराब बने हुए हैं।

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प्रश्न 2.
भारत-पाकिस्तान के बीच में तनाव के छः कारणों का वर्णन करें। (Describe in detail Six reasons of Tension between India and Pakistan.)
उत्तर-
भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव के निम्नलिखित कारण हैं
1. कश्मीर समस्या-स्वतन्त्रता से पूर्व कश्मीर भारत के उत्तर-पश्चिमी कोने में स्थित एक देशी रियासत थी। 15 अगस्त, 1947 को भारत स्वतन्त्र हुआ और पाकिस्तान की भी स्थापना हुई। पाकिस्तान ने पश्चिमी सीमा प्रान्त के कबाइली लोगों को प्रेरणा और सहायता देकर 22 अक्तूबर, 1947 को कश्मीर पर आक्रमण कर दिया। कश्मीर के महाराजा हरि सिंह ने भारत से सहायता मांगी और कश्मीर को भारत में शामिल करने की प्रार्थना की। भारत में कश्मीर का विधिवत् विलय हो गया, परन्तु पाकिस्तान का आक्रमण जारी रहा और पाकिस्तान ने कुछ क्षेत्र पर कब्जा कर लिया और अब भी उस क्षेत्र पर जिसे ‘आज़ाद कश्मीर’ कहा जाता है, पाकिस्तान का कब्जा है। भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सेना को खदेड़ दिया। भारत सरकार ने कश्मीर का मामला संयुक्त राष्ट्र को सौंप दिया और 1 जनवरी, 1949 को कश्मीर का युद्ध विराम हो गया। संयुक्त राष्ट्र संघ ने कश्मीर की समस्या को हल करने का प्रयास किया पर यह समस्या अब भी है। इसका कारण यह है कि भारत सरकार कश्मीर को भारत का अंग मानती है जबकि पाकिस्तान कश्मीर में जनमत संग्रह करवा कर यह निर्णय करना चाहता है कि कश्मीर भारत में मिलना चाहता है या पाकिस्तान के साथ। परन्तु पाकिस्तान की मांग गलत और अन्यायपूर्ण है, इसलिए इसे माना नहीं जा सकता।

2. सिन्धु नदी जल बंटवारा-सिन्धु नदी जल बंटवारा भी दोनों देशों के बीच तनाव का कारण बना हुआ है। भारत का मानना है, कि सिन्धु नदी जल समझौता तार्किक नहीं है। अर्थात् पाकिस्तान को आवश्यकता से अधिक पानी दिया जाता है। इसीलिए भारत सरकार सिन्धु नदी जल बंटवारे समझौते पर पुनर्समीक्षा कर रही है।

3. कारगिल युद्ध-कारगिल युद्ध भी दोनों देशों के बीच तनाव का कारण बना है। पाकिस्तान ने धोखे से भारतीय क्षेत्र में स्थित कारगिल पहाड़ियों पर कब्जा कर लिया। भारत ने साहस का परिचय देते हुए पाकिस्तानी सैनिकों को मार गिराया था।

4. भारतीय संसद् पर हमला-13 दिसम्बर, 2001 को पाकिस्तान समर्थित आतंकवादी संगठनों लश्कर-ए-तोइबा एवं जैश-ए-मोहम्मद ने भारतीय संसद् पर हमला किया जिससे दोनों देशों के सम्बन्ध बहुत खराब हो गये तथा दोनों देशों ने सीमा पर फ़ौजें तैनात कर दीं, परन्तु विश्व समुदाय के हस्तक्षेप एवं पाकिस्तान द्वारा लश्कर-ए-तोइबा एवं जैशए-मोहम्मद पर पाबन्दी लगाए जाने से दोनों देशों में तनाव कुछ कम हुआ।

5. मुम्बई पर आतंकवादी हमला-26 नवम्बर, 2008 को पाकिस्तानी समर्थित आतंकवादियों ने मुम्बई के होटलों पर कब्जा करके कई व्यक्तियों को मार दिया। भारत ने पाकिस्तान में चल रहे आतंकवादी शिविरों को बंद करने की मांग की, जिसे पाकिस्तान ने नहीं माना, इससे दोनों देशों के सम्बन्ध और अधिक खराब हो गए।

6. परमाणु हथियार-भारत एवं पाकिस्तान दोनों के पास परमाणु हथियार हैं। जहां तक भारत के परमाणु हथियारों का सम्बन्ध है तो वे सुरक्षित हाथों में हैं। परंतु पाकिस्तान परमाणु हथियारों के आतंकवादियों के पास जाने की संभावना बनी रहती है। जिससे दोनों देशों में तनाव बना रहता है।

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प्रश्न 3.
भारत तथा बंगला देश के बीच मधुर एवं तनावपूर्ण सम्बन्धों की व्याख्या कीजिए। (Explain the phases of cordial and strainded relations between India and Bangladesh.)
अथवा
भारत और बंगला देश के सम्बन्धों की विस्तार से व्याख्या कीजिए। (Explain in detail the relationship between India and Bangladesh.)
उत्तर-
बंगला देश के अस्तित्व और उसकी स्वतन्त्रता का श्रेय भारत को है। 1971 में बंगला देश स्वतन्त्र देश बना। इससे पूर्व बंगला देश पाकिस्तान का हिस्सा तथा पूर्वी पाकिस्तान कहलाता था। बंगला देश की स्वतन्त्रता के लिए भारत के जवानों ने अपने प्राणों की आहुति दी। 6 दिसम्बर, 1971 को भारत ने बंगला देश को मान्यता दे दी।

1971 की मैत्री सन्धि-शेख मुजीबुर्रहमान 12 जनवरी, 1972 को बंगला देश के प्रधानमन्त्री बने। फरवरी, 1972 में जब वे भारत आए तो उन्होंने कहा था, “भारत और बंगला देश की मित्रता चिरस्थायी है, उसे दुनिया की कोई ताकत तोड़ नहीं सकती।” 19 मार्च, 1972 को भारत और बंगला देश में 25 वर्ष की अवधि के लिए मित्रता और सहयोग की सन्धि हुई। इस सन्धि की महत्त्वपूर्ण बातें इस प्रकार थीं

(1) आर्थिक, तकनीकी, वैज्ञानिक तथा सांस्कृतिक क्षेत्रों में दोनों देश एक-दूसरे के साथ सहयोग करेंगे। (2) दोनों देश एक-दूसरे की अखण्डता व सीमाओं का सम्मान करेंगे। (3) दोनों देश एक-दूसरे के आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करेंगे। (4) दोनों देश किसी तीसरे देश को कोई ऐसी सहायता नहीं देंगे जो दोनों में किसी देश के हित के विरुद्ध हो। (5) दोनों देश उपनिवेशवाद का विरोध करेंगे।

बंगला देश को संयुक्त राष्ट्र का सदस्य बनने में भारत की सहायता-बंगला देशं ने 9 अगस्त, 1972 को संयुक्त राष्ट्र का सदस्य बनने के लिए प्रार्थना-पत्र भेजा, जिसका पाकिस्तान और चीन ने विरोध किया। चीन ने सुरक्षा परिषद् में वीटो का भी प्रयोग किया, परन्तु भारत के प्रयास के फलस्वरूप और रूस के सहयोग से अन्त में बंगला देश संयुक्त राष्ट्र का सदस्य बन गया।

शेख मुजीबुर्रहमान की भारत यात्रा-1974 में शेख मुजीबुर्रहमान ने भारत यात्रा की तथा 1975 में गंगा जल के बंटवारे से सम्बन्धित विवाद को बातचीत द्वारा समाप्त करने की कोशिश की।

सम्बन्धों में परिवर्तन-15 अगस्त, 1975 को बंगला देश के संस्थापक शेख मुजीबुर्रहमान की परिवार सहित हत्या कर दी गई। शेख की हत्या के बाद भारत-बंगला देश के सम्बन्धों में तेजी से परिवर्तन आ गया। नवम्बर, 1975 में जनरल ज़ियाउर्रहमान राष्ट्रपति बने। तब से बंगला देश में भारत-विरोधी प्रचार तेज़ हो गया।

जनता सरकार और भारत-बंगला देश सम्बन्ध-मार्च, 1977 में भारत में जनता पार्टी की सरकार बनी और दोनों देशों के सम्बन्धों में सुधार की किरण दिखाई दी। अक्तूबर, 1977 में फरक्का समझौता हुआ। अप्रैल, 1979 में प्रधानमन्त्री मोरार जी देसाई बंगला देश गए और दोनों देशों के सम्बन्धों में कुछ सुधार हुआ।

श्रीमती इंदिरा गांधी की सरकार और भारत-बंगला देश सम्बन्ध-नवम्बर, 1979 से भारत-बंगला देश सम्बन्ध तनावपूर्ण हो गए। भारत के साथ विवाद का मुद्दा फरक्का बांध और नवमूर द्वीप है। मई, 1981 ई० में बंगला देश की सरकार ने सरकारी और गैर-सरकारी माध्यमों से नवमूर द्वीप पर कथित भारतीय कब्जे. और अन्य गैर-कानूनी कार्यवाहियों का आरोप लगाना शुरू कर दिया और 12 मई को 3 सशस्त्र नावें नवमूर द्वीप के इर्द-गिर्द आपत्तिजनक रूप में चक्कर काटने लगीं। भारत सरकार ने नवमूर द्वीप की रक्षा के लिए तुरन्त उचित उपाय किए। नवमूर द्वीप वास्तव में

अक्तूबर, 1983 में बंगला देश के मुख्य मार्शल-ला प्रशासक जनरल इरशाद की दो दिवसीय भारतीय यात्रा से दोनों देशों के बीच आपसी सहयोग के एक नए अध्याय का सूत्रपात हुआ, क्योंकि दोनों पक्ष फरक्का बांध पर गंगा जल के बंटवारे तथा तीन बीघा गलियारे के उपयोग के बारे में काफी समय से चली आ रही अड़चनों को निपटाने में काफ़ी सीमा तक सफल हो गए। नवम्बर, 1985 में भारत तथा बंगला देश ने फरक्का के पानी के बंटवारे के सम्बन्ध में अगले तीन वर्षों के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए। यह 1982 के समझौते पर आधारित था।

जुलाई, 1986 में बंगला देश के राष्ट्रपति इरशाद भारत आए और उन्होंने दोनों देशों के बीच चले आ रहे विवादों को हल करने के लिए भारतीय नेताओं से बातचीत की। अप्रैल, 1987 में भारत के विदेश सचिव बंगला देश गए और उन्होंने बंगला देश के विदेश सचिव से विभिन्न विवादों को हल करने के लिए बातचीत की।

चकमा शरणार्थियों की समस्या-बंगला देश से अप्रैल, 1990 में लगभग 60 हज़ार चकमा शरणार्थी भारत आ चुके थे। चकमा शरणार्थियों की वापसी के लिए कई बार बातचीत हुई परन्तु कोई समझौता नहीं हुआ। इसका कारण यह रहा कि बंगला देश की सरकार चकमा शरणार्थियों की सुरक्षा की विश्वसनीय गारंटी नहीं देती थी।
सितम्बर, 1991 में बंगला देश ने भारत को आश्वासन दिया कि पूर्वोत्तर क्षेत्र में आतंकवादी और उग्रवादी गतिविधियों को किसी तरह की सहायता नहीं देगा।

तीन बीघा गलियारे का हस्तान्तरण-तीन बीघा गलियारा पट्टा भारत और बंगला देश के बीच तनाव का कारण रहा है। 26 मई, 1992 को बैंगला देश की प्रधानमन्त्री बेग़म खालिदा जिया भारत आईं। दोनों देशों में तीन बीघा पर एक समझौता हुआ जिसके अन्तर्गत 26 जून, 1992 को भारत ने तीन बीघा गलियारा बंगला देश को पट्टे पर सौंप दिया, परन्तु इस गलियारे पर प्रशासनिक अधिसत्ता भारत की ही रहेगी।

बंगला देश की प्रधानमन्त्री खालिदा बेग़म और भारत के प्रधानमन्त्री नरसिम्हा राव ने अनेक महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर बातचीत की और दोनों देशों में पानी के बंटवारे पर सहमति हो गई। चकमा शरणार्थियों को वापसी पर भी आम सहमति हो गई।

बंगला देश की संसद् के प्रस्ताव पर भारत की आपत्ति-बंगला देश की संसद् ने 20 जनवरी, 1993 को एक प्रस्ताव पारित कर अयोध्या में 6 सितम्बर को विवादित ढांचा गिराए जाने की कड़ी आलोचना की और बाबरी मस्जिद को दोबारा बनाने की मांग की। भारत ने बंगला देश संसद् द्वारा पारित इस प्रस्ताव पर कड़ी आपत्ति व्यक्त करते हुए कहा कि यह हमारे आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप है।

गंगा जल पर भारत व बंगला देश के बीच समझौता-बंगला देश की प्रधानमन्त्री शेख हसीना वाजिद 11 दिसम्बर, 1996 को भारत की यात्रा पर आईं। 12 दिसम्बर, 1996 को भारत और बंगला देश में फरक्का गंगा जल बंटवारे पर एक ऐतिहासिक समझौता हुआ जिससे पिछले दो दशकों से चले आ रहे विवाद का अन्त हो गया।

प्रधानमन्त्री शेख हसीना वाजिद की भारत यात्रा-जून, 1998 में बंगला देश की प्रधानमन्त्री शेख हसीना वाजिद भारत आईं और उन्होंने प्रधानमन्त्री वाजपेयी से बातचीत की। दोनों देशों के प्रधानमन्त्रियों ने इस बात पर जोर दिया कि द्विपक्षीय समस्याओं का हल द्विपक्षीय वार्ता द्वारा होना चाहिए।

19 जून, 1999 को भारत व बंगला देश के सम्बन्धों में सुधार लाने के लिए दोनों देशों के बीच बस सेवा प्रारम्भ की गई। स्वयं भारतीय प्रधानमन्त्री अटल बिहारी वाजपेयी कलकत्ता (कोलकाता) से चली इस बस की अगुवाई के लिए ढाका पहुंचे। अपनी बंगला देश की यात्रा के दौरान भारतीय प्रधानमन्त्री ने बंगला देश को 200 करोड़ रुपये का कर्ज देने का समझौता किया। इसके अतिरिक्त भारत ने बंगला देश से ‘प्रशुल्क रहित आयात’ के लिए भी सैद्धान्तिक रूप से स्वीकृति प्रदान की।

भारत और बंगला देश ने 9 अप्रैल, 2000 को अगरतला और ढाका के बीच एक नई बस सेवा चलाने का निर्णय किया। सन् 2000 में दोनों देशों के बीच आर्थिक सम्बन्ध और मज़बूत हुए। भारत ने कुछ चुनिंदा बंगलादेशी वस्तुओं को बिना किसी तटकर के देश में प्रवेश की इजाज़त दी।
फरवरी, 2003 में बंगला देश द्वारा भारत में घुसपैठिये भेजने से दोनों देशों के बीच असहजता की स्थिति बन गई थी। परन्तु भारत के कड़ा विरोध करने पर बंगला देश ने अपने घुसपैठियों को वापस बुला लिया।
भारत बंगलादेश सीमा पर तार (बाड़) लगाने के पक्ष में है ताकि कोई बंगलादेश का नागरिक गैर-कानूनी ढंग से भारत की सीमा के अन्दर न आ जाए। परन्तु बंगला देश इसके पक्ष में नहीं है।

भारतीय प्रधानमन्त्री की बंगला देश यात्रा-भारतीय प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह 14 नवम्बर, 2005 को सार्क सम्मेलन में भाग लेने के लिए बंगला देश की यात्रा पर गए। इस यात्रा के दौरान दोनों देशों के प्रधानमन्त्रियों ने द्विपक्षीय सम्बन्धों पर भी विचार विमर्श किया।

बंगलादेशी प्रधानमन्त्री की भारत यात्रा-बंगलादेश की प्रधानमन्त्री खालिदा ज़िया 19 मार्च, 2006 को भारत यात्रा पर आईं। इस यात्रा के दौरान दोनों देशों ने व्यापार एवं आर्थिक हितों से सम्बन्धित दो समझौतों पर हस्ताक्षर किए।
भारतीय विदेश मन्त्री की बंगला देश यात्रा-भारतीय विदेश मन्त्री प्रणव मुखर्जी 10 फरवरी, 2009 को बंगला देश की यात्रा पर गए तथा बंगला देश की प्रधानमन्त्री शेख हसीना वाजिद से द्विपक्षीय सम्बन्धों पर बातचीत की।

बंगलादेशी प्रधानमन्त्री की भारत यात्रा-जनवरी, 2010 में बंगलादेश की प्रधानमन्त्री शेख हसीना भारत यात्रा पर आई। इस यात्रा के दौरान भारत ने बंगलादेश को 250 मेगावट बिजली देने की घोषणा की तथा बंगला देश के 300 छात्रों को प्रतिवर्ष छात्रवृति देने की घोषणा की। दूसरी ओर बंगला देश की प्रधानमंत्री ने घोषणा की कि वह अपने क्षेत्र का प्रयोग भारत विरोधी गति विधियों के लिए नहीं होने देंगी।

भारतीय प्रधानमन्त्री की बंगला देश की यात्रा-भारतीय प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह 6-7 सितम्बर, 2011 को बंगला देश की यात्रा पर गए। इस यात्रा के दौरान दोनों देशों ने पारस्परिक सहयोग के चार समझौतों पर हस्ताक्षर किए।

नवम्बर 2014 में नेपाल में हुए 18वें सार्क सम्मेलन के दौरान भारतीय प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी एवं बंगला देश की प्रधानमन्त्री शेख हसीना ने बैठक की। इस दौरान दोनों नेताओं ने परस्पर द्विपक्षीय मुद्दों पर बाचचीत की।

जून 2015 में भारतीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने बंगला देश की यात्रा की। इस यात्रा के दौरान दोनों देशों ने भूमि सीमा समझौते सहित 22 समझौतों पर हस्ताक्षर किये।
अक्तूबर 2016 में बंगला देश की प्रधानमन्त्री शेख हसीना ‘बिम्सटेक’ (BIMSTEC) सम्मेलन में भाग लेने के लिए भारत यात्रा पर आई। इस यात्रा के दौरान दोनों देशों ने द्विपक्षीय मुद्दों पर भी बातचीत की।

अप्रैल 2017 में बंगला देशी प्रधानमंत्री भारत यात्रा पर आईं। इस दौरान दोनों देशों ने 22 समझौतों पर हस्ताक्षर किये।
मई 2018 में बंगलादेशी प्रधानमंत्री भारत यात्रा पर आईं। इस दौरान दोनों देशों ने रोहिंग्या मुद्दे सहित द्विपक्षीय मुद्दों पर बातचीत की ।
संक्षेप में, भारत ने बंगला देश को हर परिस्थिति व समय पर सहायता दी है, लेकिन भारत को बंगला देश से वैसा सहयोग प्राप्त नहीं हुआ जिसकी भारत आशा रखता है।

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प्रश्न 4.
भारत-श्रीलंका सम्बन्धों का मूल्यांकन करो। (Evaluate Indo Sri Lanka relations.)
अथवा
भारत और श्रीलंका के पारस्परिक सम्बन्धों का वर्णन कीजिए। (Give brief account of India’s relations with Sri Lanka.)
उत्तर-
भारत और श्रीलंका के सम्बन्ध लगभग दो हज़ार वर्षों से अधिक पुराने हैं। भारत पर ब्रिटिश शासन स्थापित होने पर श्रीलंका भी इंग्लैंड के अधीन आ गया। दोनों में ब्रिटिश शासन के विरुद्ध राष्ट्रीय आन्दोलन चले। 1947 में भारत के स्वतन्त्र होने पर अंग्रेज़ अधिक समय तक श्रीलंका पर शासन न कर सके और 1948 में श्रीलंका स्वतन्त्र हुआ। दोनों देशों में लोकतन्त्र की स्थापना की गई और 1948 में गुट-निरपेक्षता की नीति का अनुसरण किया, परन्तु 1962 में जब चीन ने भारत पर आक्रमण किया तब श्रीलंका ने भारत का समर्थन नहीं किया, जिससे भारतीयों की भावना को ठेस लगी।

श्रीलंका में भारतीय वंशजों की समस्या- भारत और श्रीलंका में तनाव का कारण श्रीलंका में बसे लाखों भारतीयों की समस्या रही है। श्रीलंका की स्वतन्त्रता के समय लगभग दस लाख भारतीय मूल के लोग वहां रह रहे थे। श्रीलंका ने 1949 में नागरिकता अधिनियम पास कर दिया। लगभग सभी भारतीय मूल के निवासियों (लगभग 8.2 लाख) ने इस अधिनियम के अन्तर्गत नागरिकता के लिए प्रार्थना की परन्तु अक्तूबर, 1964 तक केवल 1 लाख 34 हज़ार व्यक्तियों को ही नागरिकता प्राप्त हुई। श्रीलंका सरकार ने जिन भारतीयों को नागरिकता प्रदान नहीं की थी उन्हें तुरन्त भारत चले जाने के लिए कहा। परन्तु भारत सरकार का कहना था कि जो व्यक्ति कई पीढ़ियों से वहां रह रहे हैं उनको निकालना गलत है और वे वहीं के नागरिक हैं न कि भारत के। अब भी यह समस्या पूरी तरह हल नहीं हुई है। । कच्चा टीबू द्वीप-कच्चा टीबू द्वीप विवाद को हल करने के लिए जून, 1974 में दोनों देशों के बीच एक समझौता हुआ जिसके अनुसार कच्चा टीबू द्वीप श्रीलंका को दे दिया गया।

जनवरी, 1978 में श्रीलंका को भारत ने 10 करोड़ रु० का ऋण आसान शर्तों पर दिया। फरवरी, 1979 में प्रधानमन्त्री मोरारजी देसाई ने श्रीलंका की यात्रा की और दोनों देशों में मैत्रीपूर्ण सम्बन्धों में वृद्धि हुई।

तमिल समस्या–भारत और श्रीलंका के सम्बन्धों में तनाव का महत्त्वपूर्ण कारण तमिल समस्या है। 1984 में तमिल समस्या इतनी गम्भीर हो गई कि दोनों देशों के सम्बन्धों में काफ़ी तनाव रहा। प्रधानमन्त्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने बारबार घोषणा की कि भारत सरकार श्रीलंका के आन्तरिक मामले में हस्तक्षेप नहीं करेगी और यदि श्रीलंका की सरकार चाहेगी तो भारत सरकार तमिल समस्या हल करने के लिए श्रीलंका की सरकार को पूरा सहयोग देगी।

दिसम्बर, 1984 में प्रधानमन्त्री राजीव गांधी ने तमिल जाति के निर्दोष लोगों की अन्धाधुन्ध हत्याओं की कड़ी निंदा की और तमिल समस्या का राजनीतिक हल निकालने की अपील की। नवम्बर, 1986 में प्रधानमन्त्री श्री राजीव गांधी और श्रीलंका के राष्ट्रपति जयवर्धने ने जातीय समस्या के हल के लिए बातचीत की, परन्तु कोई हल नहीं निकला।

तमिल समस्या के हल के लिए दोनों देशों में समझौता-काफ़ी प्रयासों के फलस्वरूप तमिल समस्या को हल करने के लिए प्रधानमन्त्री राजीव गांधी और श्रीलंका के राष्ट्रपति जे० आर० जयवर्धने ने 29 जुलाई, 1987 को शान्ति समझौते पर हस्ताक्षर किए। इस समझौते के अनुसार तमिल बहुल उत्तरी एवं पूर्वी प्रांतों का विलय होगा जिसमें एक ही प्रशासनिक इकाई होगी। दोनों प्रांतों के लिए एक ही प्रान्तीय परिषद्, एक मुख्यमन्त्री तथा एक मन्त्रिमण्डल होगा। समझौते को लागू करने की गारंटी भारत की है।

इस समझौते का बहुत विरोध किया गया। लिबरेशन टाइगर्स ऑफ़ तमिल ईलम (लिट्टे) की हठधर्मी के कारण हिंसा और तनाव का वातावरण बन गया। भारत ने श्रीलंका में शान्ति-व्यवस्था बनाए रखने के लिए भारतीय शान्ति सेना भेजी। अक्तूबर, 1987 में भारत सरकार ने स्थिति की गम्भीरता को देखते हुए सेनाध्यक्ष सुन्दरजी और रक्षा मन्त्री के० सी० पन्त को श्रीलंका भेजा। श्रीलंका की संसद् ने 12 नवम्बर, 1987 को प्रान्तीय विधेयक परिषद् पास कर दिया। भारतीय शान्ति सेना ने श्रीलंका में शान्ति स्थापना में बहुत ही सराहनीय कार्य किया।

शान्ति सेना की वापसी-जनवरी, 1989 में भारतीय शान्ति सेना की वापसी आरम्भ हुई। 23 जून, 1989 को श्रीलंका के राष्ट्रपति प्रेमदास ने घोषणा की कि 29 जुलाई, 1989 तक भारतीय शान्ति सेना वापस चली जानी चाहिए। राष्ट्रीय मोर्चा की सरकार बनने के पश्चात् दोनों देशों की सरकारों में यह सहमति हुई कि शान्ति सेना की 31 मार्च, 1990 से पहले पूरी तरह वापसी होगी। राष्ट्रीय मोर्चा की सरकार ने अपना वायदा पूरा किया और शान्ति सेना की आखिरी टुकड़ी ने 25 मार्च को श्रीलंका को छोड़ दिया।

तमिल शरणार्थी-मार्च, 1990 को श्रीलंका से कई हज़ार तमिल शरणार्थी भारत आए हैं। आवश्यकता इस बात की है कि तमिल शरणार्थी समस्या को बढ़ने से पहले ही हल कर लिया जाए।
संयुक्त आयोग की स्थापना-दोनों देशों के विदेश मन्त्रियों ने जुलाई, 1991 में संयुक्त आयोग के गठन के समझौते पर हस्ताक्षर किए। 7 जनवरी, 1992 को संयुक्त आयोग की दो दिवसीय बैठक के बाद भारत और श्रीलंका ने व्यापार, आर्थिक और प्रौद्योगिक के क्षेत्र में आपसी सहयोग का दायरा बढ़ाने का फ़ैसला किया।
श्रीलंका के प्रधानमन्त्री की भारत यात्रा-1992 में श्रीलंका के प्रधानमन्त्री भारत की यात्रा पर आए और दोनों देशों के सम्बन्धों में और सुधार हुआ।
मई, 1993 में श्रीलंका के नव-निर्वाचित प्रधानमन्त्री तिलकरत्ने भारत की यात्रा पर आए।

श्रीलंका के राष्ट्रपति की भारत यात्रा-श्रीलंका की राष्ट्रपति चन्द्रिका कुमारतुंगा अप्रैल, 1995 में भारत की यात्रा पर आईं ओर दोनों देशों के सम्बन्धों में सुधार हुआ।
परमाणु परीक्षण-मई, 1998 में भारत ने पांच परमाणु परीक्षण किए, जिस पर अमेरिका तथा कई अन्य देशों ने भारत पर अनेक प्रतिबन्ध लगाए, जिनकी श्रीलंका ने कड़ी आलोचना की। 27 दिसम्बर, 1998 को श्रीलंका की राष्ट्रपति श्रीमती चन्द्रिका भंडारनायके कुमारतुंगा तीन दिन की यात्रा पर भारत आईं। भारत और श्रीलंका ने मुक्त व्यापार समझौता किया। राष्ट्रपति कुमारतुंगा ने इस समझौते को ऐतिहासिक बताया। दोनों देशों के बीच हुए मुक्त व्यापार समझौते के बाद आपसी सम्बन्धों का एक नया अध्याय शुरू हुआ है।

भारतीय विदेश मन्त्री की श्रीलंका यात्रा-जून, 2000 में भारतीय विदेश मन्त्री जसवन्त सिंह श्रीलंका की यात्रा पर गए। इस यात्रा के दौरान भारतीय विदेश मन्त्री ने श्रीलंका को 100 मिलियन डॉलर तत्काल मानवीय सहायता के लिए ऋण के रूप में देने की घोषणा की।

श्रीलंका के राष्ट्रपति की भारत यात्रा-फरवरी, 2001 में श्रीलंका की राष्ट्रपति चंद्रिका कुमारतुंगा भारत यात्रा पर आईं। उन्होंने भारतीय प्रधानमन्त्री को नार्वे एवं लिट्टे के बीच चल रही बातचीत की जानकारी दी। भारत ने श्रीलंका को इस समस्या पर हर सम्भव सहायता देने की बात कही।

श्रीलंका के प्रधानमन्त्री की भारत यात्रा-दिसम्बर, 2001 में श्रीलंकी के प्रधानमन्त्री श्री रानिल विक्रमसिंघे भारत यात्रा पर आए। दोनों देशों के बीच बातचीत के बाद भारत ने 18 साल से चली आ रही लिट्टे समस्या पर हर सम्भव सहायता देने की बात कही। इसके अतिरिक्त भारत ने श्रीलंका को 3 लाख टन गेहूं देने की घोषणा की। दोनों देश कृषि, बिजली एवं सूचना तकनीकी उद्योग पर एक-दूसरे को सहयोग देने पर राजी हुए।

श्रीलंका की राष्ट्रपति की भारत यात्रा-नवम्बर, 2004 में श्रीलंका की राष्ट्रपति चंद्रिका कुमारतुंगा भारत यात्रा पर आईं। कुमारतुंगा की भारतीय प्रधानमन्त्री के साथ हुई बातचीत के पश्चात् जारी सांझे बयान में कहा गया, कि भारत श्रीलंका में ऐसे शान्ति समझौते का समर्थन करेगा, जो सभी सम्बन्धित पक्षों को स्वीकार्य हो। भारत की प्रस्तावित सेतुसमुद्रम परियोजना के विषय पर दोनों देशों में बातचीत हुई।

श्रीलंका के राष्ट्रपति की भारत यात्रा-श्रीलंका के राष्ट्रपति महिंदा राजपाक्से (Mahinda Rajapakse) 28 दिसम्बर, 2005 को भारत की यात्रा पर आए। राष्ट्रपति महिंदा राजपाक्से ने भारत को श्रीलंका में शांति स्थापना की प्रक्रिया में सक्रिय भूमिका निभाने को कहा।

श्रीलंका के राष्ट्रपति की भारत यात्रा-श्रीलंका के राष्ट्रपति महिन्दा राजपाक्से 3 अप्रैल, 2007 को 14वें सॉर्क सम्मेलन में भाग लेने के लिए भारत यात्रा पर आए। इस यात्रा के दौरान देशों ने द्विपक्षीय सम्बन्धों पर भी विचार-विमर्श किया।
भारतीय प्रधानमन्त्री की श्रीलंका यात्रा- भारतीय प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह 2-3 अगस्त, 2008 को सॉर्क सम्मेलन में भाग लेने के लिए श्रीलंका की यात्रा पर गए तथा इस यात्रा के दौरान श्रीलंका के राष्ट्रपति महिन्दा राजपाक्से से भी बातचीत की।
भारतीय विदेश मन्त्री की श्रीलंका यात्रा- भारतीय विदेश मन्त्री प्रणव मुखर्जी ने फरवरी, 2009 में श्रीलंका की यात्रा की। इस यात्रा का मुख्य उद्देश्य श्रीलंका एवं लिट्टे के बीच जारी घमासान लड़ाई थी। अपनी यात्रा के दौरान प्रणव

मुखर्जी ने इस विषय में श्रीलंका के राष्ट्रपति महिन्दा राजपाक्से से बातचीत की तथा लिट्टे के विरुद्ध लड़ाई में श्रीलंका का समर्थन किया, साथ ही उन्होंने श्रीलंका सरकार से यह भी अनुरोध किया कि श्रीलंका में तमिल नागरिकों के हितों की रक्षा की जाए।

श्रीलंका के राष्ट्रपति की भारत यात्रा-श्रीलंका के राष्ट्रपति महिन्दा राजपाक्से ने 8-11 जून 2010 को भारत की यात्रा की। इस यात्रा के दौरान दोनों देशों ने विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग के सात समझौतों पर हसताक्षर किए। इस अवसर पर भारतीय प्रधान मन्त्री ने श्रीलंका में लिट्टे के सफाए के बाद 70 हजार तमिल विस्थापितों के पुनर्वास की प्रक्रिया को तेज़ करने की आवश्यकता जताई।

जून, 2011 में श्रीलंका के राष्ट्रपति महिन्दा राजपाक्से भारत यात्रा पर आए तथा दोनों देशों ने सुरक्षा एवं विकास से सम्बन्धित सात समझौतों पर हस्ताक्षर किये।

नवम्बर 2014 में नेपाल में हुए 18वें सार्क सम्मेलन में भारतीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी तथा श्रीलंका के राष्ट्रपति राजपक्षे ने अलग से मुलाकात करके द्विपक्षीय सम्बन्धों पर बातचीत की।

मार्च, 2015 में भारतीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने श्रीलंका की यात्रा की। इस यात्रा के दौरान उन्होंने श्रीलंका के लोगों को वीजा ऑन अराइवल देने की घोषणा की।
अक्तूबर 2016 में श्री लंका के राष्ट्रपति श्रीसेना ‘बिम्गटेक’ (BIMSTEC) सम्मेलन में भाग लेने के लिए भारत यात्रा पर आए। इस दौरान दोनों देशों ने द्विपक्षीय मुद्दों पर भी बातचीत की।

मई 2017 में भारतीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने श्रीलंका की यात्रा की। इन दौगन दोनों देशों ने द्विपक्षीय मुद्दों पर बातचीत की।
अक्तूबर 2018 में श्रीलंका के प्रधानमंत्री ने भारत की यात्रा की। इस यात्रा के दौरान दोनों देशों ने बुनियादी स्तर के चलाए जाने वाले कार्यक्रमों को गति प्रदान करने पर सहमति प्रकट की । READERSARASTRIERREELATES

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प्रश्न 5.
भारत-चीन सम्बन्धों का विस्तार से वर्णन करो। (Explain in detail the Indo-China relations.)
उत्तर-
भारत और चीन में पहले गहरी मित्रता थी परन्तु सन् 1962 में चीन ने भारत पर अचानक आक्रमण करके इसको शत्रुता में परिवर्तित कर दिया। आज भी चीन ने भारत की कुछ भूमि पर अपना अधिकार जमाया हुआ है। भारत चीन से सम्बन्ध सुधारने के लिए प्रयत्नशील है परन्तु चीन अभी भी शत्रुतापूर्ण रुख अपनाए हुए है।

नेहरू युग में भारत-चीन सम्बन्ध (1947-मई, 1964) (INDO-CHINA RELATIONS IN NEHRU ERA):
चीन के प्रति मैत्रीपूर्ण नीति-आरम्भ से ही भारत ने साम्यवादी चीन के प्रति मैत्रीपूर्ण और तुष्टिकरण की नीति अपनाई। पहले उसने चीन को मान्यता दी और फिर संयुक्त राष्ट्र में उसके प्रवेश का समर्थन किया।

29 अप्रैल, 1954 को चीन के साथ एक व्यापारिक समझौता करके भारत ने तिब्बत में प्राप्त बहिर्देशीय अधिकारों (Extra-territorial Rights) को चीन को दे दिया और स्वयं कुछ भी प्राप्त नहीं किया। समझौते के समय दोनों देशों ने पंचशील के सिद्धान्तों के प्रति विश्वास दिलाया। सन् 1955 में बांडुंग सम्मेलन में इन्हीं सिद्धान्तों का विस्तार किया गया। चीन के प्रधानमन्त्री चाऊ-एन-लाई, 1954 में भारत की यात्रा पर आए और पं० नेहरू ने चीन का दौरा किया। इसके पश्चात् भारत और चीन के सम्बन्धों में तनाव आना शुरू हो गया।

1962 का चीनी आक्रमण-चीन ने 20 अक्तूबर, 1962 को भारत पर बड़े पैमाने पर आक्रमण किया। भारत को इस युद्ध में अपमानजनक पराजय का मुंह देखना पड़ा और चीन ने भारत की हजारों वर्ग मील भूमि पर कब्जा कर लिया। इससे पं० नेहरू की शान्तिपूर्ण नीतियों को गहरी चोट पहुंची।

शास्त्री काल में भारत-चीन के सम्बन्ध ( मई, 1964 से जनवरी, 1966)-श्री लाल बहादुर शास्त्री, श्री नेहरू के बाद 10 जनवरी, 1966 तक भारत के प्रधानमन्त्री रहे। इस काल में भी भारत और चीन के सम्बन्धों में कोई सुधार नहीं हुआ। चीन ने 1965 में भारत-पाक युद्ध में भी अपना शत्रुतापूर्ण रवैया दिखाया। चीन ने पाकिस्तान को पूरा समर्थन दिया और भारत को आक्रमणकारी घोषित किया।

मैकमोहन रेखा विवाद-भारत और चीन में सीमा विवाद का मुख्य कारण दोनों देशों की सीमा का मैकमोहन रेखा द्वारा निर्धारण और दोनों पक्षों द्वारा उसकी व्याख्या है। सर हैनरी मैकमोहन 1914 में भारत के विदेश सचिव थे। उन्होंने तिब्बती प्रतिनिधि मण्डल के साथ विचार-विमर्श करके इस सीमा का निर्धारण किया। चीन इस सीमा निर्धारण के पक्ष में नहीं था, लेकिन सीमा निर्धारण के बाद उसे इसकी सूचना दे दी गई है। चीन की सरकार ने मैकमोहन रेखा को कभी मान्यता नहीं दी और आज भी नहीं दे रही है। इसलिए दोनों देशों में सीमा विवाद चला आ रहा है।

इंदिरा काल में भारत और चीन के सम्बन्ध (जनवरी, 1966 से फरवरी, 1977 तक)-लाल बहादुर शास्त्री के बाद 1966 में श्रीमती इंदिरा गांधी भारत की प्रधानमन्त्री बनीं। उन्होंने चीन के साथ सम्बन्ध-विवाद सुलझाने के लिए कूटनीतिक प्रयत्न किए, परन्तु 1971 में भारत-पाक युद्ध के समय इन दोनों देशों के सम्बन्ध तनावपूर्ण हो गए। चूंकि भारत-पाक युद्ध के बीच हुई सुरक्षा परिषद् की बैठकों में चीन ने पाकिस्तान का समर्थन किया। अप्रैल, 1976 तक भारत-चीन सम्बन्ध लगभग तनावपूर्ण ही रहे।

जनता सरकार और भारत-चीन सम्बन्ध (JANATA GOVERNMENT AND INDO-CHINA RELATIONS):
मार्च, 1977 में जब भारत में जनता पार्टी की सरकार बनी और श्री मोरारजी देसाई प्रधानमन्त्री बने तो चीन की सरकार ने इस सरकार का स्वागत किया। जनता सरकार ने चीन से सम्बन्ध सुधारने का प्रयास किया।

भारतीय विदेश मन्त्री अटल बिहारी वाजपेयी 12 फरवरी, 1979 को पीकिंग पहुंचे। वहां उन्होंने अपनी बातचीत के दौरान इस बात पर जोर दिया कि जब तक सीमा विवाद को नहीं सुलझाया जाता, तब तक दोनों देशों के सम्बन्ध मैत्रीपूर्ण नहीं हो सकते।

कांग्रेस (इ) की सरकार और भारत-चीन सम्बन्ध . (GOVERNMENT OF CONGRESS (I) AND INDO CHINA RELATIONS)

भारत में सहयोग करने की चीनी नेताओं की इच्छा तथा सम्बन्ध सुधारने के लिए प्रयास-जनवरी, 1980 में श्रीमती गांधी के प्रधानमन्त्री बनने के बाद चीनी नेता कई बार भारत से सम्बन्ध सुधारने की इच्छा व्यक्त कर चुके हैं। चीन के प्रधानमन्त्री झाओ जियांग ने अपनी पाकिस्तान यात्रा के दौरान 3 जून, 1981 को कहा कि एशिया के दो बड़े देश, चीन और भारत को शान्तिपूर्वक रहना चाहिए। यह क्षेत्रीय और विश्व के स्थायित्व दोनों के हित में है। 15 अगस्त, 1984 को भारत और चीन में व्यापारिक समझौता हुआ जो कि निश्चय ही महत्त्वपूर्ण घटना है।

राजीव गांधी की सरकार और भारत-चीन सम्बन्ध-19 दिसम्बर, 1988 को प्रधानमन्त्री राजीव गांधी पांच दिन की यात्रा पर चीन पहुंचे। पिछले 34 वर्षों के दौरान किसी भी भारतीय प्रधानमन्त्री की यह पहली चीन यात्रा थी। राजीव गांधी की चीन यात्रा से दोनों देशों के आपसी सम्बन्धों में एक नया अध्याय शुरू हुआ।

राष्ट्रीय मोर्चा सरकार और भारत-चीन सम्बन्ध-दिसम्बर, 1989 में श्री वी० पी० सिंह के नेतृत्व में राष्ट्रीय मोर्चा की सरकार बनी और दोनों देशों के नेताओं ने स्थाई सम्बन्ध स्थापित करने की घोषणा की।

11 दिसम्बर, 1991 के चीन के प्रधानमन्त्री ली फंग भारत की यात्रा पर आने वाले पिछले 31 वर्षों में पहले प्रधानमन्त्री हैं। दोनों देशों के प्रधानमन्त्रियों ने पंचशील के सिद्धान्त में आस्था दोहराते हुए इस बात पर बल दिया कि किसी देश को दूसरे देश के आन्तरिक मामलों में दखल देने का अधिकार नहीं दिया जा सकता। दोनों नेताओं ने यह विश्वास व्यक्त किया है कि दोनों देशों के सीमा विवाद का ‘उचित’ और ‘सम्मानजनक’ हल निकलेगा और तीन दशक पुराना यह मुद्दा द्विपक्षीय सम्बन्ध मज़बूत बनाने में आड़े नहीं आएगा।

प्रधानमन्त्री पी० वी० नरसिम्हा राव की चीन यात्रा-6 सितम्बर, 1993 को भारत के प्रधानमन्त्री नरसिम्हा राव चार दिन की सरकारी यात्रा पर चीन गए। वहां पर चार ऐतिहासिक समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए, जिसके कारण भारत व चीन के मध्य सम्बन्धों में सुधारों का एक और अध्याय जुड़ गया।

चीन के राष्ट्रपति ज्यांग ज़ेमिन की भारत की यात्रा-28 नवम्बर, 1996 को चीन के राष्ट्रपति ज्यांग ज़ेमिन भारत की यात्रा पर आए जिससे दोनों देशों के बीच सम्बन्धों का एक नया युग शुरू हुआ है। चीन के राष्ट्रपति ज्यांग ज़ेमिन की पहली भारत यात्रा के दौरान परस्पर विश्वास भावना और सीमा पर शांति कायम रखने के उपायों पर विस्तृत विचारविमर्श के पश्चात् दोनों देशों ने चार महत्त्वपूर्ण समझौतों पर हस्ताक्षर किए।

परमाणु परीक्षण तथा भारत-चीन सम्बन्ध-11 मई व 13 मई, 1998 को भारत ने पांच परमाणु परीक्षण किये। चीन ने परमाणु परीक्षणों को लेकर भारत की कड़ी निंदा ही नहीं की बल्कि चीन ने अपने सरकारी न्यूज़ के ज़रिए फिर से अरुणाचल प्रदेश पर अपना दावा ठोंक कर पुराने विचार को जन्म दे दिया। चीन ने यहां तक कहा कि भारत से उसके पड़ोसियों को ही नहीं बल्कि चीन को भी खतरा पैदा हो गया है।

दलाईलामा की प्रधानमन्त्री वाजपेयी से मुलाकात-अक्तूबर, 1998 में तिब्बत के धार्मिक नेता दलाईलामा ने भारत के प्रधानमन्त्री वाजपेयी से बातचीत की जिस पर चीन ने कड़ी आपत्ति उठाई।

भारतीय राष्ट्रपति की चीन यात्रा-मई, 2000 में भारतीय राष्ट्रपति के० आर० नारायणन चीन की यात्रा पर गए। इस यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच आपसी सहयोग के अनेक विषयों पर बातचीत हुई।

चीनी नेता ली फंग की भारत यात्रा-जनवरी, 2001 में चीन के वरिष्ठ नेता ली फंग भारत आए। उन्होंने भारत के प्रधानमन्त्री वाजपेयी से मुलाकात कर क्षेत्रीय, अन्तर्राष्ट्रीय और द्विपक्षीय महत्त्व के मुद्दों पर विचार-विमर्श किया। चीनी नेता ने भारत की धरती में किसी भी रूप में और किसी भी स्थान में उठने वाले आतंकवाद की निंदा की।

चीन के प्रधानमन्त्री की भारत यात्रा-चीन के प्रधानमन्त्री झू रोंग्ली (Zhu Rongli) ने जनवरी, 2002 में भारत यात्रा की। रूस यात्रा के दौरान दोनों देशों ने आतंकवाद का मिलकर सामना करने की बात कही। इसके अतिरिक्त दोनों देशों के बीच अन्तरिक्ष, विज्ञान और प्रौद्योगिकी और ब्रह्मपुत्र नदी पर पानी सम्बन्धी सूचनाओं के आदान-प्रदान से सम्बन्धित छः समझौते किये गये।

भारतीय प्रधानमन्त्री वाजपेयी की चीन यात्रा-जून, 2003 में भारतीय प्रधानमन्त्री वाजपेयी की चीन यात्रा से दोनों देशों के सम्बन्धों में और सुधार हुआ। जहां भारत ने तिब्बत को चीन का हिस्सा माना, वहीं पर चीन ने भी सिक्किम को भारत का हिस्सा माना। चीन ने भारत में 50 करोड़ डालर निवेश करने के लिए एक कोष बनाने की घोषणा की। मई, 2004 में चीन ने सिक्किम को अपने नक्शे में एक अलग राष्ट्र दिखाना बंद करके इसे भारत का अभिन्न अंग मान लिया।

नवम्बर, 2004 में ‘आसियान’ की बैठक में भाग लेने के लिए भारतीय प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह लाओस गए। वहां पर डॉ० मनमोहन सिंह ने चीनी प्रधानमन्त्री बेन जियाबाओ से मुलाकात की। दोनों देशों के प्रधानमन्त्रियों ने सीमा विवाद सुलझाने पर चर्चा के अतिरिक्त द्विपक्षीय व्यापार, सांस्कृतिक आदान-प्रदान व लोगों की एक-दूसरे के यहां यातायात बढ़ाने की आवश्यकता पर बल दिया।

प्रथम रणनीतिक संवाद-भारत एवं चीन के मध्य पहला रणनीतिक संवाद 24 जनवरी, 2005 को नई दिल्ली में हुआ। दोनों पक्षों ने सीमा विवाद सहित सभी द्विपक्षीय मुद्दों पर विचार-विमर्श किया।

चीन के प्रधानमन्त्री की भारत यात्रा (2005)-चीन के प्रधानमन्त्री बेन जियाबाओ अप्रैल, 2005 में भारत यात्रा पर आए और दोनों देशों के बीच सीमा विवाद हल की प्रक्रिया के सम्बन्ध में एक समझौते के अतिरिक्त 11 अन्य समझौतों पर हस्ताक्षर हुए। दोनों देश 2008 तक द्विपक्षीय व्यापार 13 अरब से बढ़ाकर 20 अरब डालर करेंगे। दोनों देश वास्तविक नियन्त्रण रेखा पर सैन्य अभ्यास नहीं करेंगे। दोनों देशों ने वर्ष 2006 को भारत-चीन मित्रता के रूप में मनाने का ऐलान किया है।

भारतीय प्रधानमन्त्री की चीन यात्रा (2008)-भारतीय प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह 13 जनवरी, 2008 को चीन यात्रा पर गए। दोनों देशों ने सीमा विवाद को शान्तिपूर्ण साधनों द्वारा हल करने पर सहमति प्रकट की तथा द्विपक्षीय व्यापार को 2010 तक 40 अरब डालर से बढ़ाकर 60 अरब डालर करने की घोषणा की। भारतीय प्रधानमन्त्री डॉ० मनमोहन सिंह 25 अक्तूबर, 2008 को पुनः चीन यात्रा पर गए तथा चीनी राष्ट्रपति ह० जिन्ताओ से द्विपक्षीय सम्बन्धों पर बातचीत की।

अक्तूबर, 2009 में भारत-चीन सम्बन्धों में उस समय तनाव आ गया जब चीन ने भारतीय प्रधानमंत्री एवं तिब्बतियों के धर्मगुरु दलाई लामा की अरुणाचल प्रदेश यात्रा पर आपत्ति उठाई, परंतु भारत ने इन आपत्तियों को नकारते हुए अरुणाचल प्रदेश को भारत का अभिन्न अंग बताया। इसी संदर्भ में भारत एवं चीन के प्रधानमन्त्री 15वें आसियान सम्मेलन के दौरान थाइलैण्ड में मिले तथा सभी विवादित मुद्दों को बातचीत द्वारा हल करने पर जोर दिया।

चीनी प्रधान मन्त्री की भारत यात्रा-दिसम्बर, 2010 में भारत-चीन सम्बन्धों को सुधारने के लिए चीनी प्रधानमन्त्री बेन जियाबाओ ने भारत की यात्रा की। इस यात्रा के दौरान दोनों देशों ने 6 समझौतों पर हस्ताक्षर किए तथा सन् 2015 तक आपसी व्यापार को 100 बिलियन तक ले जाने पर सहमति प्रकट की।

भारतीय प्रधानमन्त्री की चीन यात्रा- अक्तूबर, 2013 में भारतीय प्रधानमन्त्री डॉ० मनमोहन सिंह ने चीन की यात्रा की। इस यात्रा के दौरान दोनों देशों ने परस्पर सहयोग के नौ समझौतों पर हस्ताक्षर किए।

चीनी राष्ट्रपति की भारत यात्रा-सितम्बर 2014 में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग भारत यात्रा पर आए। इस यात्रा के दौरान दोनों देशों ने 12 समझौतों पर हस्ताक्षर किये।

मई, 2015 में भारतीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने चीन की यात्रा की। इस यात्रा के दौरान दोनों देशों ने रेलवे तथा खनन
जैसे क्षेत्रों सहित 24 समझौतों पर हस्ताक्षर किए।

अक्तूबर, 2016 में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ब्रिक्स (BRICS) सम्मेलन में भाग लेने के लिए भारत यात्रा पर आए। इस यात्रा के दौरान दोनों देशों ने द्विपक्षीय मुलाकात में व्यापार एवं स्वच्छ ऊर्जा जैसे मुद्दों पर बातचीत की।

सितम्बर 2017 एवं जून 2018 में भारतीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी चीन यात्रा पर गए। इस दौरान दोनों देशों ने द्विपक्षीय मुद्दों पर बातचीत की।
संक्षेप में, चीन इस बात को मानता है, कि अन्तर्राष्ट्रीय विषयों में भारत की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। सिक्किम भारत का भाग है, और अब सिक्किम कोई मुद्दा नहीं रहा। भारत ने भी तिब्बत को चीन का हिस्सा माना है और तिब्बतियों को भारत की धरती से चीन विरोधी गतिविधियां चलाने की अनुमति नहीं दी जायेगी।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 21 भारत एवं उसके पड़ोसी देश : नेपाल, श्रीलंका, चीन, बंगलादेश एवं पाकिस्तान

प्रश्न 6.
भारत और नेपाल के पारस्परिक सम्बन्धों का मूल्यांकन कीजिए। (Assess relationship between India and Nepal.)
अथवा
भारत और नेपाल के आपसी सम्बन्धों में विवाद और सहयोग के मुख्य मुद्दों का विवेचन कीजिए।
(Discuss the main issues of conflicts and Co-operation in the relationship between India and Nepal.)
उत्तर-
नेपाल, भारत और चीन के बीच तिब्बत क्षेत्र में स्थित है और चारों ओर से पहाड़ों से घिरा हुआ है। भारत और नेपाल धर्म, संस्कृति और भौगोलिक दृष्टि से एक-दूसरे के जितने निकट हैं, उतने विश्व के शायद ही कोई अन्य देश हों। नेपाल की अर्थव्यवस्था बहुत हद तक भारत पर निर्भर करती है। दोनों देशों के बीच खुली सीमा है। आवागमन पर कोई रोक नहीं है। सन् 1950 से 1960 तक दोनों देशों के सम्बन्ध बहुत मित्रतापूर्ण रहे। कश्मीर के प्रश्न पर नेपाल ने भारत का समर्थन किया तथा उसे भारत का अभिन्न अंग बताया। भारत ने आर्थिक क्षेत्र से नेपाल की बहुत सहायता की। 1952 में प्रारम्भ किया गया भारतीय सहायता कार्यक्रम धीरे-धीरे आकार तथा क्षेत्र में फैलता गया। नेपाली वित्त मन्त्रालय के एक वक्तव्य के अनुसार सन् 1951 से जुलाई, 1964 के बीच नेपाल द्वारा प्राप्त की गई विदेशी सहायता में संयुक्त राज्य अमेरिका तथा सोवियत संघ के बाद भारत का तीसरा स्थान है।

दोनों देशों में तनावपूर्ण काल-1960 में नेपाल के महाराजा ने संसद् को भंग कर नेताओं को जेल में डाल दिया। इस पर भारत के प्रधानमन्त्री जवाहरलाल नेहरू ने नेपाल के महाराजा की आलोचना करते हुए कहा कि, “नेपाल से लोकतन्त्र समाप्त हो गया।” इससे दोनों देशों के सम्बन्ध मैत्रीपूर्ण नहीं रहे। नेपाल ने चीन और पाकिस्तान से व्यापारिक समझौते करने शुरू कर दिए। प्रधानमन्त्री श्री लाल बहादुर शास्त्री ने नेपाल की यात्रा की जिससे दोनों देशों के सम्बन्ध में थोड़ा सुधार हुआ।

सहयोग का काल-1975 में नेपाल नरेश भारत आए जिससे दोनों देशों में पुनः अच्छे सम्बन्ध स्थापित हो सके। दिसम्बर, 1977 में प्रधानमन्त्री मोरारजी देसाई ने नेपाल की यात्रा की और दोनों देशों में मित्रता बढ़ी। जनवरी, 1980 में श्रीमती इंदिरा गांधी के पुनः सत्ता में आने पर भारत-नेपाल सम्बन्धों में सुधार हुआ। 3 फरवरी, 1983 को नेपाल के प्रधानमन्त्री भारत आए और दोनों देशों में मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध स्थापित हुए। भारत और नेपाल के बीच करनाली बहु-उद्देशीय सिंचाई परियोजना पर विस्तार से विचार-विमर्श हुआ। इसके साथ ही पंचेश्वर परियोजना तथा कुछ अन्य नदी परियोजनाओं पर भारत और नेपाल के बीच सहयोग की सम्भावनाओं पर विचार-विमर्श चल रहा है। भारत और नेपाल के बीच सहयोग बढ़ाने की दृष्टि से दोनों देशों के विदेश मन्त्रियों के स्तर पर संयुक्त आर्थिक आयोग की स्थापना करने का निर्णय किया गया है। दोनों देशों में दो व्यापार समझौते हुए। एक है भारत और नेपाल में व्यापार को बढ़ाने के सम्बन्ध में और दूसरा है, सीमा पर तस्करी रोकने के बारे में। 21 जुलाई, 1986 को राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह नेपाल की पांच दिवसीय राजकीय यात्रा पर गए। राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ने कहा कि भारत आर्थिक बुनियादी ढांचे को मज़बूत बनाने और आत्म-निर्भरता के रास्ते पर आगे बढ़ाने में नेपाल की पूरी मदद देगा। 1987 में दोनों देशों ने संयुक्त आयोग के गठन पर समझौता किया। नेपाल द्वारा उदासीन रुख दिखाने और वांछित शर्ते पूरी करने में आनाकानी करने के कारण भारत-नेपाल व्यापार एवं माल आवागमन सन्धि 23 मार्च, 1989 को समाप्त हो गई।

तनावपूर्ण सम्बन्ध-भारत-नेपाल व्यापार तथा पारगमन सन्धि नवीकरण न होने से दोनों देशों के सम्बन्धों में कटुता आ गई। भारत एक समन्वित सन्धि के पक्ष में था जबकि नेपाल मार्च, 1989 तक जारी व्यवस्था के तहत दो अलग सन्धियां करने के लिए ज़ोर देता रहा। फरवरी, 1990 में दोनों देशों के विदेश सचिवों की नई दिल्ली में तीन दिन बातचीत हुई। भारत और नेपाल के बीच उन सभी मसलों को निपटाने के बारे में व्यापक सहमति हो गई, जिसके कारण दोनों देशों के सम्बन्धों में एक वर्ष से ज़बरदस्त दरार पड़ी हुई थी।

5 दिसम्बर, 1991 को नेपाल के प्रधानमन्त्री गिरिजा प्रसाद कोइराला भारत की दो दिन की यात्रा पर आए। यात्रा की समाप्ति पर 6 दिसम्बर, 1991 को दोनों देशों के बीच पांच सन्धियों पर हस्ताक्षर किए गए। दोनों देशों ने बीच व्यापार तथा पारगमन सुविधा के लिए दो अलग-अलग सन्धियां कीं। दोनों देशों ने जल-संसाधनों के बंटवारे और विकास से सम्बन्धित विवाद पर सन्धि की। चौथा समझौता कृषि क्षेत्र के सहयोग के लिए है। पांचवां समझौता स्वर्गीय विश्वेश्वर प्रसाद कोइराला की स्मृति में एक फाउंडेशन गठित करने के लिए भारत और नेपाल में शिक्षा, संस्कृति और विज्ञान तथा टैक्नालॉजी के क्षेत्र में सम्बन्ध बढ़ाने की व्यवस्था की गई। नेपाल ने आतंकवाद को समाप्त करने के लिए भारत के साथ सहयोग पर सहमत होने के साथ ही यह साफ़ कर दिया कि भविष्य में वह अपनी रक्षा ज़रूरतों के लिए चीन से हथियार नहीं लेगा और उस पर निर्भर नहीं करेगा।

प्रधानमन्त्री नरसिम्हा राव की नेपाल यात्रा-19 अक्तूबर, 1992 को भारत के प्रधानमन्त्री नरसिम्हा राव तीन दिन की यात्रा पर नेपाल गए। भारत और नेपाल के विभिन्न क्षेत्रों में आपसी सहयोग बढ़ाने, भारत को नेपाल के उदार शर्तों पर निर्यात वृद्धि करने और विपुल जल संसाधनों का दोनों देशों के साझे हित में प्रयोग करने पर सहमति व्यक्त की।

नेपाल के प्रधानमन्त्री की भारत यात्रा-अप्रैल, 1995 में नेपाल के प्रधानमन्त्री मनमोहन अधिकारी भारत की यात्रा पर आए और उनकी इस यात्रा से दोनों देशों के सम्बन्धों में सुधार हुआ। भारत सरकार ने नेपाल की ज़रूरतों के अनुसार उसे दो अन्य बंदरगाहें बम्बई (मुम्बई) और कांधला से माल भेजने और मंगाने की सुविधा उपलब्ध करा दी है।

नेपाल के प्रधानमन्त्री की भारत यात्रा-फरवरी, 1996 में नेपाल के प्रधानमन्त्री श्री शेर बहादुर देऊबा भारत की यात्रा पर आए और उनकी इस यात्रा से दोनों देशों के सम्बन्धों में सुधार की दिशा में एक नया अध्याय जुड़ गया। नेपाल और भारत के मध्य आपसी सहयोग में कई समझौते हुए। नेपाल के प्रधानमन्त्री श्री देऊबा ने कहा कि उनका देश शीघ्र ही नेपाल भारत के मध्य सम्पन्न 1950 की सन्धि की समीक्षा के लिए एक आयोग गठित करेगा।

महाकाली सन्धि-29 फरवरी, 1996 को भारत और नेपाल ने सिंचाई और बिजली उत्पादन के लिए महाकाली नदी के पानी का उपयोग करने के लिए एक सन्धि पर हस्ताक्षर किए। महाकाली समन्वित विकास सन्धि को नेपाल की संसद् ने 20 सितम्बर, 1996 को स्वीकृति दे दी। महाकाली सन्धि भारत और नेपाल दोनों देशों के सम्बन्धों को मजबूत करेगी तथा दोनों देशों के विकास में सहायक सिद्ध होगी।

भारतीय विदेश मन्त्री की नेपाल यात्रा-सितम्बर, 1999 को भारतीय विदेश मन्त्री जसवंत सिंह ने चार दिन के लिए नेपाल की यात्रा की। यहां भारतीय विदेश मंत्री ने नेपाल के प्रधानमन्त्री कृष्ण प्रसाद भट्टाराई से बातचीत की। दोनों देशों ने यह संकल्प व्यक्त किया कि वे आतंकवादी गतिविधियों का मिलकर मुकाबला करेंगे। दोनों देशों ने इस बात पर भी सहमति जताई कि एक दूसरे की सुरक्षा के लिए घातक कोई गतिविधि अपने क्षेत्रों में नहीं होने दी जाएगी। भारतीय विदेश मन्त्री ने इस यात्रा के सन्दर्भ में कहा कि भारत-नेपाल सम्बन्धों में एक नई बुनियाद डालने का निर्णय लिया है। अपनी यात्रा के अन्त में विदेश मन्त्री जसवंत सिंह ने कहा कि यह यात्रा अत्यधिक सफल और सार्थक रही।

नेपाल के प्रधानमन्त्री की भारत यात्रा-दिसम्बर, 1999 में नेपाल की राजधानी काठमांडू से भारतीय विमान सेवा के एक विमान IC-814 का आतंकवादियों ने अपचालन (Hijacking) कर लिया और इसे अफ़गानिस्तान में कंधार नामक स्थान पर ले गए। इस घटना से भारत को यह आशंका हुई कि नेपाल में आतंकवादियों की बढ़ रही गतिविधियां भारत के लिए खतरा पैदा कर रही हैं। इसके परिणामस्वरूप भारत और नेपाल के बीच तनाव उत्पन्न हो गया। दोनों देशों के बीच इसी तनाव को कम करने तथा अन्य विषयों पर बातचीत करने के उद्देश्य से अगस्त, 1999 में नेपाल के प्रधानमन्त्री गिरिजा प्रसाद कोइराला भारत की यात्रा पर आए। भारत की सुरक्षा चिंता को देखते हुए नेपाली प्रधानमन्त्री ने भारत को यह आश्वासन दिया कि वह अपनी भूमि से भारत के विरुद्ध कोई भी आतंकवादी गतिविधि नहीं चलने देगा और आतंकवाद के विरुद्ध संघर्ष में भारत का साथ देगा। इस यात्रा के दौरान दोनों देश सप्तकोसी बांध परियोजना के निर्माण कार्य को इसी दशक में पूरा करने में सहमत हुए। इस परियोजना पर पिछले 50 वर्ष से बातचीत चल रही थी जिसका कोई निष्कर्ष नहीं निकल रहा था। यह परियोजना जहां भारत के लिए लाभदायक होगी वहीं इससे नेपाल का राष्ट्रीय उत्पादन भी दुगुना हो जाएगा।

नेपाल में आपात्काल एवं भारतीय प्रधानमन्त्री द्वारा मदद का आश्वासन-24 नवम्बर, 2001 को नेपाल में माओवादियों ने 50 सुरक्षा कर्मियों की हत्या कर दी, जिस कारण नेपाल में आपात्काल लागू कर दिया गया। 30 नवम्बर, 2001 को भारतीय प्रधानमन्त्री वाजपेयी ने नेपाल को हर सम्भव सहायता देने की बात की।

नेपाली प्रधानमन्त्री की भारत यात्रा-सितम्बर, 2004 में नेपाल के प्रधानमन्त्री शेर बहादुर देउबा भारत यात्रा पर आए। भारतीय प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह से बातचीत के दौरान नेपाली प्रधानमन्त्री ने नेपाल में जारी माओवादी हिंसा से निपटने के लिए भारत से सहायता मांगी। भारत ने हर सम्भव सहायता देने का वचन दिया।

नेपाल में आपात्काल और देऊबा सरकार बर्खास्त-1 फरवरी, 2005 को नेपाल के राजा ज्ञानेंद्र ने शेर बहादुर देउबा सरकार बर्खास्त कर के सभी कार्यकारी शक्तियां अपने हाथ में ले लीं और नेपाल में आपात्काल की घोषणा कर दी। भारत ने बदले हालात को चिंताजनक बताते हुए इसे लोकतन्त्र के लिए झटका बताया है। भारत ने नेपाल को लोकतन्त्र को पुनः स्थापित करने के लिए भारत नेपाल को स्थिर, शान्तिपूर्ण और खुशहाल देश के रूप में देखना चाहता है।

आपात्काल को हटाया गया-30 अप्रैल, 2005 को नेपाल नरेश ने भारत व अन्य देशों के दबाव पर आकर आपात्काल को हटा दिया।

नेपाल में लोकतान्त्रिक आन्दोलन एवं भारत की भूमिका-नेपाल में 2006 तथा 2007 में चलाए गए लोकतान्त्रिक आन्दोलन को भारत ने पूर्ण समर्थन प्रदान किया। पिछले 240 वर्षों से चले आ रहे राजतन्त्र को मई 2008 में सदा के लिए समाप्त करवा कर लोकतान्त्रिक सरकार बनाने में भारत ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।

नेपाली प्रधानमन्त्री की भारत यात्रा-नेपाल के प्रधानमन्त्री गिरिजा प्रसाद कोइराला 3 अप्रैल, 2007 को सार्क सम्मेलन में भाग लेने के लिए भारत यात्रा पर आए तथा भारतीय प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह के साथ कई मुद्दों पर बातचीत की।

नेपाली प्रधानमन्त्री की भारत यात्रा-नेपाल के प्रधानमन्त्री पुष्प कुमार दहल ‘प्रचण्ड’ 14 सितम्बर, 2008 को भारत यात्रा पर आए। इस यात्रा के दौरान दोनों देश 50 वर्षीय मैत्री सन्धि की समीक्षा के लिए सहमत हुए थे। दोनों प्रधानमन्त्री कोसी नदी पर बांध बनाने और बाढ़ सम्बन्धी सूचना देने के लिए भी तैयार हुए।

नेपाली राष्ट्रपति को भारत यात्रा-फरवरी 2010 में नेपाल के राष्ट्रपति श्री राम बरन यादव भारत यात्रा पर आए। इस यात्रा के दौरान दोनों देशों ने विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग के चार समझौतों पर हस्ताक्षर किये।
नेपाली प्रधानमन्त्री की भारत यात्रा-नेपाल के प्रधानमन्त्री श्री बाबू राम भटाराई अक्तूबर, 2011 में भारत यात्रा पर आए। इस यात्रा के दौरान दोनों देशों ने पारस्परिक सहयोग के तीन समझौतों पर हस्ताक्षर किये। नेपाल के लिये 250 अरब डालर की ‘लाइन ऑफ क्रेडिट’ उपलब्ध कराने के लिए भी एक समझौता हुआ।

भारतीय प्रधानमंत्री की नेपाल यात्रा-अगस्त 2014 में भारतीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने नेपाल की यात्रा की। इस यात्रा के दौरान भारत ने नेपाल को 61 अरब रुपये की मदद देने की घोषणा की।
भारतीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने नवम्बर 2014 में 18वें सार्क सम्मेलन के दौरान नेपाल की यात्रा की। इस यात्रा के दौरान उन्होंने नेपाली प्रधानमंत्री से भी अलग बैठक करके द्विपक्षीय मुद्दों पर बातचीत की।

अक्तूबर 2016 में नेपाल के प्रधानमन्त्री पुष्प कमल दहल ‘प्रचण्ड’,’ बिम्सटेक’ (BIMSTEC) सम्मेलन में भाग लेने के लिए भारत यात्रा पर आए। इस दौरान दोनों देशों ने द्विपक्षीय मुद्दों पर भी बातचीत की।
अगस्त 2017 में नेपाल के प्रधानमंत्री भारत यात्रा पर आए। इस दौरान दोनों देशों ने 8 समझौतों पर हस्ताक्षर किये।
अगस्त 2018 में भारतीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने बिम्सटेक सम्मेलन में भाग लेने के लिए नेपाल की यात्रा की। इन दौरान दोनों देशों ने द्विपक्षीय मुद्दों पर भी बातचीत की।

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लघु उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
कश्मीर समस्या क्या है ? वर्णन कीजिए।
अथवा
कश्मीर समस्या क्या है ?
उत्तर-
स्वतन्त्रता से पूर्व कश्मीर भारत के उत्तर-पश्चिमी कोने में स्थित एक देशी रियासत थी। 15 अगस्त, 1947 को भारत स्वतन्त्र हुआ और पाकिस्तान की भी स्थापना हुई। पाकिस्तान ने पश्चिमी सीमा प्रान्त के कबाइली लोगों को प्रेरणा और सहायता देकर 22 अक्तूबर, 1947 को कश्मीर पर आक्रमण कर दिया। कश्मीर के महाराजा हरि सिंह ने भारत से सहायता मांगी और कश्मीर को भारत में शामिल करने की प्रार्थना की। भारत में कश्मीर का विधिवत् विलय हो गया, परन्तु पाकिस्तान का आक्रमण जारी रहा और पाकिस्तान ने कुछ क्षेत्र पर कब्जा कर लिया और अब भी उस क्षेत्र पर जिसे ‘आज़ाद कश्मीर’ कहा जाता है, पाकिस्तान का कब्जा है। भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सेना को खदेड़ दिया। भारत सरकार ने कश्मीर का मामला संयुक्त राष्ट्र को सौंप दिया और 1 जनवरी, 1949 को कश्मीर का युद्ध विराम हो गया। संयुक्त राष्ट्र संघ ने कश्मीर की समस्या को हल करने का प्रयास किया पर यह समस्या अब भी है। इसका कारण यह है कि भारत सरकार कश्मीर को भारत का अंग मानती है जबकि पाकिस्तान कश्मीर में जनमत संग्रह करवा कर यह निर्णय करना चाहता है कि कश्मीर भारत में मिलना चाहता है या पाकिस्तान के साथ। परन्तु पाकिस्तान की मांग गलत और अन्यायपूर्ण है, इसलिए इसे माना नहीं जा सकता।

प्रश्न 2.
शिमला समझौते की मुख्य व्यवस्थाएं लिखिए।
उत्तर-
दिसम्बर, 1971 में भारत ने पाकिस्तान को युद्ध में ऐतिहासिक मात दी। इस युद्ध में पाकिस्तान के लगभग एक लाख सैनिकों ने आत्मसमर्पण किया। भारत ने पाकिस्तान की इस हार का कोई अनुचित लाभ न उठाया। तत्कालीन प्रधानमन्त्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने दोनों देशों की समस्याओं पर विचार करने के लिए 1972 में एक सम्मेलन बुलाया। इस सम्मेलन में पाकिस्तान के तत्कालीन शासक प्रधानमन्त्री जुल्फिकार अली भुट्टो ने भाग लिया। सम्मेलन में दोनों देशों ने एक समझौता किया जिसे शिमला समझौता कहा जाता है। इस समझौते की प्रमुख शर्ते इस प्रकार हैं

  1. दोनों राष्ट्र अपने पारस्परिक झगड़ों को द्विपक्षीय बातचीत और मान्य शान्तिपूर्ण ढंगों से हल करने के लिए दृढ़-संकल्प हैं।
  2. दोनों राष्ट्र एक-दूसरे की राष्ट्रीय एकता, क्षेत्रीय अखण्डता, राजनीतिक स्वतन्त्रता और सार्वभौम समानता का सम्मान करेंगे।
  3. दोनों राष्ट्र एक-दूसरे की क्षेत्रीय अखण्डता और राजनीतिक स्वतन्त्रता के विरुद्ध बल प्रयोग या धमकी का प्रयोग नहीं करेंगे।
  4. दोनों देशों द्वारा परस्पर विरोधी प्रचार नहीं किया जाएगा। (5) दोनों देश परस्पर सामान्य सम्बन्ध स्थापित करने के लिए प्रयत्न करेंगे।

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प्रश्न 3.
भारत-पाकिस्तान सम्बन्धों का भविष्य क्या है ?
अथवा
भारत-पाकिस्तान सम्बन्धों का भविष्य लिखें।
उत्तर-
भारत-पाक सम्बन्ध सदैव अस्थिर रहे हैं और अधिकांश समय से दोनों देशों के सम्बन्ध मधुर नहीं रहे हैं। यदि भविष्य में भारत-पाक अपने सम्बन्धों को सामान्य बनाना चाहते हैं, तो इन्हें द्विपक्षीय स्तर पर कई महत्त्वपूर्ण कदम उठाने होंगे। विशेषकर पाकिस्तान को भारत से मधुर सम्बन्ध बनाने के लिई कई बड़े कदम उठाने होंगे जैसे आतंकवाद को समर्थन देना बन्द करके भारत के आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप न करने तथा कश्मीर समस्या को सुलझाने में और अधिक उदारता दिखाकर इत्यादि। यदि इस प्रकार के कदम उठाये जाएं तो भारत-पाक सम्बन्ध भविष्य में बेहतर बन सकते हैं।

प्रश्न 4.
भारत-चीन सम्बन्धों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
भारत और चीन एशिया के दो महत्त्वपूर्ण देश हैं। 1954 में दोनों देशों ने आपस में व्यापारिक समझौता किया तथा पंचशील के सिद्धान्तों के प्रति विश्वास दिलाया। 1962 में चीन ने भारत पर आक्रमण किया। 1965 तथा 1971 के पाकिस्तान के साथ युद्धों में चीन ने पाकिस्तान का साथ दिया। इसके बावजूद भी भारत ने चीन से सम्बन्ध सुधारने के प्रयास जारी रखे। 1971 में चीन भारत ने चीन की संयुक्त राष्ट्र की सदस्यता का समर्थन किया। 1979 में भारतीय विदेश मन्त्री वाजपेयी की चीन यात्रा से दोनों देशों के सम्बन्धों में सुधार आया। दिसम्बर, 1988 में भारतीय प्रधानमन्त्री राजीव गांधी की चीन यात्रा के दौरान भारत-चीन सीमा विवाद को हल करने के लिए एक संयुक्त दल का गठन किया। दिसम्बर, 1991 में चीन के प्रधानमन्त्री ली फंग भारत यात्रा पर आए। मई, 2004 में चीन ने सिक्किम को अपने नक्शे में एक अलग राष्ट्र दिखाना बन्द करके, उसे भारत का अभिन्न अंग माना। जनवरी 2008 में भारतीय प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह ने चीन की यात्रा की। सितम्बर 2014 में चीनी राष्ट्रपति श्री जिनपिंग ने भारत की यात्रा की। इस यात्रा के दौरान दोनों देशों ने 12 समझौतों पर हस्ताक्षर किए। सन् 2017 में डोकलाम विवाद ने दोनों देशों के सम्बन्धों में असहजता पैदा कर दी।

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प्रश्न 5.
भारत और बांग्लादेश के सम्बन्धों का वर्णन कीजिए।
अथवा
भारत के बंगला देश के साथ सम्बन्धों का वर्णन करें।
उत्तर-
भारत और बांग्लादेश के सम्बन्ध अधिकांशतः अच्छे रहे हैं। सन् 1971 में बांग्लादेश के एक नए राज्य के रूप में अस्तित्व में आने में भारत ने सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। 19 मार्च, 1972 को भारत और बांग्ला देश के बीच 25 वर्षीय मित्रता व सहयोग की संधि हुई। चकमा शरणार्थियों तथा तीन बीघे गलियारे के कारण दोनों देशों में मतभेद रहे हैं। 26 जून, 1992 को भारत ने तीन बीघे गलियारे को बांग्लादेश को पट्टे पर दे दिया। 12 दिसम्बर, 1996 को भारत-बांग्लादेश में फरक्का गंगा जल बंटवारे पर समझौता हुआ। जनवरी, 2010 में बांग्लादेश की प्रधानमंत्री श्री शेख हसीना भारत आईं। भारत ने बांग्लादेश को 250 मेगावाट बिजली तथा 300 बांग्लादेशी छात्रों को प्रतिवर्ष छात्रवृत्ति देने की घोषणा की, जबकि बांग्लादेशी प्रधानमंत्री ने घोषणा की कि वह अपने क्षेत्र से भारत विरोधी गतिविधियां नहीं होने देगी। नवम्बर 2014 में नेपाल में हुए 18वें सार्क सम्मेलन में बंग्ला देश की प्रधानमन्त्री श्रीमती शेख हसीना एवं भारतीय प्रधानमन्त्री श्री नेरन्द्र मोदी ने द्विपक्षीय बातचीत में समान मुद्दों पर बातचीत की। अप्रैल 2017 में बांग्ला देशी प्रधानमंत्री भारत यात्रा पर आई तथा भारत के साथ 22 समझौतों पर हस्ताक्षर किये थे।

प्रश्न 6.
भारत और पाकिस्तान के सम्बन्धों का वर्णन कीजिए।
अथवा
भारत के पाकिस्तान के साथ सम्बन्धों का वर्णन करें।
उत्तर-
भारत और पाकिस्तान के सम्बन्ध आरम्भ से ही अच्छे नहीं रहे हैं। पाकिस्तान ने भारत पर 1947, 1965 एवं 1971 में आक्रमण किया, जिसमें उसको हार का सामना करना पड़ा। सन् 1966 में ताशकंद समझौते एवं 1972 में शिमला समझौते द्वारा दोनों देशों ने शान्ति स्थापित करने का प्रयास किया, परन्तु पाकिस्तान के अड़ियल व्यवहार के कारण सम्बन्ध सामान्य नहीं हो पाए। फरवरी, 1999 में भारतीय प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी पाकिस्तान यात्रा पर गए तथा लाहौर घोषणा-पत्र पर हस्ताक्षर किए, परन्तु पाकिस्तान ने मई, 1999 में कारगिल में घुसपैठ करा कर यह साबित कर दिया कि वह भारत से अच्छे सम्बन्ध नहीं चाहता, नवम्बर 2014 में नेपाल में हुए में 18वें सार्क सम्मेलन में भी पाकिस्तान का रवैया मित्रतापूर्ण नहीं रहा। वर्तमान समय में भी दोनों देशों के सम्बन्ध अच्छे नहीं हैं।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 21 भारत एवं उसके पड़ोसी देश : नेपाल, श्रीलंका, चीन, बंगलादेश एवं पाकिस्तान

अति लघु उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
शिमला समझौते की कोई दो मुख्य व्यवस्थाएं लिखिए।
उत्तर-

  1. दोनों राष्ट्र अपने पारस्परिक झगड़ों को द्विपक्षीय बातचीत और मान्य शान्तिपूर्ण ढंगों से हल करने के लिए दृढ़-संकल्प हैं।
  2. दोनों राष्ट्र एक-दूसरे की राष्ट्रीय एकता, क्षेत्रीय अखण्डता, राजनीतिक स्वतन्त्रता और सार्वभौम समानता का सम्मान करेंगे।

प्रश्न 2.
भारत-चीन सम्बन्धों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
भारत और चीन एशिया के दो महत्त्वपूर्ण देश हैं। दोनों देशों ने पंचशील के सिद्धान्तों के प्रति विश्वास दिलाया। 1962 में चीन ने भारत पर आक्रमण किया। दिसम्बर, 1988 में भारतीय प्रधानमन्त्री राजीव गांधी की चीन यात्रा के दौरान भारत-चीन सीमा विवाद को हल करने के लिए एक संयुक्त दल का गठन किया। मई, 2004 में चीन ने सिक्किम को अपने नक्शे में एक अलग राष्ट्र दिखाना बन्द करके, उसे भारत का अभिन्न अंग माना। वर्तमान समय में दोनों देशों के सम्बन्ध सुधार की ओर बढ़ रहे हैं।

प्रश्न 3.
दो देशों के नाम बताएं, जिन्होंने भारत पर आक्रमण किया था ?
उत्तर-

  1. पाकिस्तान,
  2. चीन।

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प्रश्न 4.
“शिमला समझौता” (सन्धि) कब और कौन-से दो देशों के बीच हुई ?
उत्तर-
शिमला समझौता सन् 1972 में भारत और पाकिस्तान के बीच हुआ था।

प्रश्न 5.
1999 के कारगिल युद्ध के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर-
पाकिस्तानी सैनिकों ने शिमला समझौते एवं लाहौर समझौते का उल्लंघन करते हुए 1999 में भारतीय क्षेत्र की कारगिल पहाड़ियों में घुसपैठ करके अपना कब्जा कर लिया था। भारत के विरोध के बावजूद उन्होंने कब्जे वाले स्थान को खाली करने से मना कर दिया। अतः भारतीय सेना ने बल प्रयोग करके सभी पाकिस्तानी सैनिकों को मार गिराया। इस घटना से पाकिस्तानी सरकार का दोहरा मापदण्ड एक बार फिर सामने आ गया।

प्रश्न 6.
भारत-पाकिस्तान सम्बन्धों का भविष्य लिखें।।
उत्तर-
भारत-पाक सम्बन्ध सदैव अस्थिर रहे हैं और अधिकांश समय से दोनों देशों के सम्बन्ध मधुर नहीं रहे हैं। पाकिस्तान को भारत से मधुर सम्बन्ध बनाने के लिए कई बड़े कदम उठाने होंगे जैसे आतंकवाद को समर्थन देना बन्द करके भारत के आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप न करने तथा कश्मीर समस्या को सुलझाने में और अधिक उदारता दिखाकर इत्यादि। यदि इस प्रकार के कदम उठाये जाएं तो भारत-पाक सम्बन्ध भविष्य में बेहतर बन सकते हैं।

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प्रश्न 7.
बांग्लादेशी घुसपैठियों की समस्या के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर-
भारत व बांग्लादेश की सीमा लगभग 3200 किलोमीटर लम्बी है। स्थिति यह है कि दोनों देशों के बीच कोई प्राकृतिक सीमा न होने के कारण प्राय: बांग्लादेश के लोग शरणार्थियों के रूप में भारत की सीमा में आते रहते हैं। इसके कारण भारत में विविध प्रकार की आर्थिक, सामाजिक तथा राजनीतिक समस्याएं उत्पन्न होती हैं। असम व त्रिपुरा जैसे छोटे राज्यों में यह समस्या विशेष रूप से गम्भीर बनी हुई है, जहां चकमा जाति के अनगिनत शरणार्थी वहां के जनजीवन को प्रभावित करते हुए भारत के लिए बड़ी कठिनाई पैदा करते हैं।

प्रश्न 8.
भारत की पड़ोसी देशों के प्रति क्या नीति है ?
उत्तर-
भारत सैदव ही पड़ोसी देशों से मित्रतापूर्ण सम्बन्ध चाहता है। भारत का मानना है कि बिना मित्रतापूर्ण सम्बन्ध के कोई भी देश सामाजिक, राजनीतिक एवं आर्थिक विकास नहीं कर सकता। इसलिए भारत ने पाकिस्तान, चीन, बांग्लादेश, श्रीलंका, नेपाल एवं भूटान आदि पड़ोसी देशों से सम्बन्ध मधुर बनाये रखने के लिए समय-समय पर कई कदम उठाये हैं। उन्हीं महत्त्वपूर्ण कदमों में एक कदम सार्क की स्थापना है।

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वस्तुनिष्ठ प्रश्न-

प्रश्न I. एक शब्द/वाक्य वाले प्रश्न-उत्तर

प्रश्न 1.
शिमला समझौता कब हुआ ?
उत्तर-
शिमला समझौता सन् 1972 में हुआ।

प्रश्न 2.
शिमला समझौता किन दो देशों के बीच हुआ ?
उत्तर-
शिमला समझौता भारत-पाकिस्तान के बीच हुआ था।

प्रश्न 3.
लाहौर घोषणा कब हुई ?
उत्तर-
लाहौर घोषणा सन् 1999 में हुई।

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प्रश्न 4.
चीन ने भारत पर कब आक्रमण किया ?
उत्तर-
चीन ने भारत पर सन् 1962 में आक्रमण किया।

प्रश्न 5.
मैक-मोहन रेखा क्या है ?
उत्तर-
मैक-मोहन रेखा भारत एवं चीन की सीमा रेखा को निर्धारित करती है। मैक-मोहन रेखा सन् 1914 में निश्चित की गई थी।

प्रश्न 6.
भारत-चीन सम्बन्धों का एक उदाहरण लिखें।
उत्तर-
श्री राजीव गांधी ने सन् 1988 में चीन की यात्रा की।

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प्रश्न 7.
भारत-पाकिस्तान सम्बन्धों का क्या भविष्य है ? उदाहरण लिखें।
अथवा
भारत-पाकिस्तान सम्बन्धों का भविष्य क्या है ?
उत्तर-
भारत-पाकिस्तान सम्बन्धों का भविष्य उज्ज्वल नहीं है क्योंकि पाकिस्तान लगातार भारत में आतंकवादी गतिविधियाँ करवाता रहता है।

प्रश्न 8.
शिमला समझौते पर हस्ताक्षर किन दो नेताओं द्वारा किए गए थे? ।
उत्तर-
शिमला समझौते पर भारतीय प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी एवं पाकिस्तान के प्रधानमंत्री श्री जुल्फिकार अली भुट्टो द्वारा हस्ताक्षर किये गए थे।

प्रश्न 9.
पंचशील के विषय में चीन की क्या भूमिका है ?
उत्तर-
चीन ने भारत के साथ मिलकर पंचशील सिद्धान्तों का निर्माण किया।

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प्रश्न 10.
भारत और चीन के बीच पंचशील समझौता (संधि) कब हुआ ?
उत्तर-
भारत और चीन के बीच पंचशील समझौता सन् 1954 में हुआ था।

प्रश्न 11.
भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव का एक कारण लिखो।
उत्तर-
भारत-पाक सम्बन्धों में तनाव का एक महत्त्वपूर्ण कारण कश्मीर का मामला है।

प्रश्न 12.
बांग्लादेश की स्थापना कब हुई ?
उत्तर-
बांग्लादेश की स्थापना सन् 1971 में हुई।

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प्रश्न 13.
ताशकन्द समझौता क्या है ?
अथवा
ताशकंद समझौता कौन-से दो देशों के बीच हुआ ?
उत्तर-
10 जनवरी, 1966 को भारत-पाकिस्तान के बीच ताशकन्द में हुए समझौते को ताशकन्द समझौता कहा जाता है। यह समझौता दोनों देशों के बीच सन् 1965 के युद्ध के बाद किया गया था।

प्रश्न 14.
लिट्टे से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
लिट्टे (L.T.T.E.) का अर्थ लिबरेशन टाइगर ऑफ तमिल ईलम (Liberation Tigers of Tamil Ealm) है।

प्रश्न II. खाली स्थान भरें-

1. ……….. दक्षिण एशिया का सर्वाधिक जनसंख्या वाला देश है।
2. भारत एवं पाकिस्तान से ब्रिटिश राज की समाप्ति सन् …….. में हुई।
3. पाकिस्तान सीटो तथा सैन्टो जैसे ……….. गठबन्धन में शामिल हुआ।
4. बंगलादेश …….. से लेकर ……….. तक पाकिस्तान का अंग रहा है।
5. बंगलादेश के नेताओं द्वारा मार्च, ……… में स्वतन्त्रता की घोषणा की गई।
उत्तर-

  1. भारत
  2. 1947
  3. सैनिक
  4. 1947, 1971
  5. 1971.

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प्रश्न III. निम्नलिखित वाक्यों में से सही एवं ग़लत का चुनाव करें-

1. दक्षिण एशिया, एशिया में स्थित है, जिसमें भारत, पाकिस्तान एवं श्रीलंका जैसे महत्त्वपूर्ण देश शामिल हैं।
2. 1947 में भारत से अलग होकर बंगलादेश एक नये राज्य के रूप में सामने आया।
3. पाकिस्तान शीत युद्धकालीन सैनिक गठबन्धनों जैसे सीटो और सैन्टो में शामिल हुआ।
4. 1960 में भारत एवं पाकिस्तान ने सिन्धु नदी जल समझौते पर हस्ताक्षर किये।
5. भारत के प्रयासों से 1971 में जापान नामक देश अस्तित्व में आया।
उत्तर-

  1. सही
  2. ग़लत
  3. सही
  4. सही
  5. ग़लत।

प्रश्न IV. बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
मैकमोहन रेखा कौन-से दो देशों की सीमा क्षेत्र को निश्चित करती है :
(क) भारत-पाकिस्तान
(ख) भारत-चीन
(ग) भारत-अमेरिका
(घ) पाकिस्तान-चीन।
उत्तर-
(ख) भारत-चीन

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प्रश्न 2.
निम्न में से किसने पंचशील के सिद्धान्तों का निर्धारण किया ?
(क) सरदार पटेल
(ख) डॉ० राजेन्द्र प्रसाद
(ग) पं० नेहरू
(घ) महात्मा गांधी।
उत्तर-
(ग) पं० नेहरू

प्रश्न 3.
1965 में किन दो देशों के बीच युद्ध हुआ?
(क) भारत-पाकिस्तान
(ख) भारत-चीन
(ग) भारत-श्रीलंका
(घ). पाकिस्तान-नेपाल।
उत्तर-
(क) भारत-पाकिस्तान

प्रश्न 4.
ताशकन्द समझौता किन दो देशों के बीच हुआ?
(क) भारत-चीन
(ख) भारत-पाकिस्तान
(ग) भारत-नेपाल
(घ) भारत-श्रीलंका।
उत्तर-
(ख) भारत-पाकिस्तान

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प्रश्न 5.
महाकाली सन्धि किन दो देशों के बीच हुई ?
(क) भारत-पाकिस्तान
(ख) भारत-नेपाल
(ग) भारत-चीन
(घ) भारत-जापान।
उत्तर-
(ख) भारत-नेपाल

प्रश्न 6.
नेपाल में नया संविधान कब लागू किया गया ?
(क) 20 सितम्बर, 2015
(ख) 2 फरवरी, 2007
(ग) 4 मार्च, 2008
(घ) 9 जुलाई, 2009।
उत्तर-
(क) 20 सितम्बर, 2015

PSEB 11th Class Agriculture Solutions Chapter 5 बीज, खाद और कीड़ेमार दवाइयों का क्वालिटी कन्ट्रोल

Punjab State Board PSEB 11th Class Agriculture Book Solutions Chapter 5 बीज, खाद और कीड़ेमार दवाइयों का क्वालिटी कन्ट्रोल Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Agriculture Chapter 5 बीज, खाद और कीड़ेमार दवाइयों का क्वालिटी कन्ट्रोल

PSEB 11th Class Agriculture Guide बीज, खाद और कीड़ेमार दवाइयों का क्वालिटी कन्ट्रोल Textbook Questions and Answers

(क) एक-दो शब्दों में उत्तर दो-

प्रश्न 1.
बीजों के क्वालिटी कन्ट्रोल के लिए लागू कानून का नाम बताओ।
उत्तर-
सीड कन्ट्रोल आर्डर 1983।

प्रश्न 2.
खादों के क्वालिटी कन्ट्रोल के लिए लागू कानून का नाम बताओ।
उत्तर-
खाद कन्ट्रोल आर्डर, 1985।

प्रश्न 3.
खादों की परख के लिये प्रयोगशालाएं कहां-कहां हैं ?
उत्तर-
लुधियाना तथा फरीदकोट।

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प्रश्न 4.
कीटनाशक दवाइयों के क्वालिटी कन्ट्रोल के लिये लागू कानून का नाम बताओ।
उत्तर-
इन्सैक्टीसाइड अधिनियम-1968 ।

प्रश्न 5.
भारत सरकार को कीटनाशक एक्ट लागू करने के लिए सुझाव कौन देता है ?
उत्तर-
केन्द्रीय कीटनाशक (सेन्ट्रल इन्सैक्टीसाइड) बोर्ड।

प्रश्न 6.
कीटनाशक दवाइयों की जांच के लिए प्रयोगशालाएं कहां हैं ?
उत्तर-
लुधियाना, बठिंडा, अमृतसर।।

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प्रश्न 7.
विदेशों से कीटनाशक दवाइयों के निर्यात की आज्ञा कौन देता है ?
उत्तर-
सेन्ट्रल (केन्द्रीय) रजिस्ट्रेशन कमेटी।

प्रश्न 8.
कीटनाशक एक्ट के अन्तर्गत कीटनाशक इन्स्पेक्टर किसे घोषित किया गया है ?
उत्तर-
खेतीबाड़ी विकास अधिकारियों को इस अधिनियम के अन्तर्गत इन्सैक्टीसाइड इन्स्पैक्टर घोषित किया गया है।

प्रश्न 9.
घटिया खाद बेचने वाले के विरुद्ध किसको शिकायत की जाती है ?
उत्तर-
जिले के मुख्य खेतीबाड़ी अधिकारी को शिकायत की जा सकती है।

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प्रश्न 10.
टी० एल० किस वस्तु का लेबल है?
उत्तर-
प्रमाणित बीज का, विश्वासयोग्य क्वालटी।

(ख) एक-दो वाक्यों में उत्तर दो-

प्रश्न 1.
खादों का क्वालिटी कन्ट्रोल क्यों ज़रूरी है ?
उत्तर-
कृषि में खाद का बहुत महत्त्व है। यह पौधों को बढ़ने-फूलने के लिये आवश्यक तत्त्व देने में सहायक होती है। यदि खादों की क्वालिटी घटिया होगी तो फ़सलों को इसकी बहुत हानि पहुंचेगी। पूरी मेहनत पर पानी फिर जायेगा। इसलिये खादों का क्वालिटी कन्ट्रोल बहुत ज़रूरी है।

प्रश्न 2.
बीजों का क्वालिटी कन्ट्रोल क्यों जरूरी है ?
उत्तर-
यदि बीज उच्च क्वालिटी के नहीं होंगे तो फसल घटिया किस्म की पैदा होगी, उपज कम हो जायेगी तथा पूरी मेहनत बेकार हो जायेगी। इसलिये बीज बढ़िया होना चाहिए।

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प्रश्न 3.
ज़रूरी वस्तुओं से संबंधित कानून के अन्तर्गत कृषि से सम्बन्धित कौनसी वस्तुएं शामिल की गई हैं ?
उत्तर-
भारत सरकार ने आवश्यक वस्तुओं के कानून के अन्तर्गत कृषि में काम आने वाली तीन वस्तुएं बीज, खाद तथा कीटनाशक दवाइयों को शामिल किया है।

प्रश्न 4.
बीज, खाद और कीटनाशक दवाइयों के क्वालिटी कन्ट्रोल के लिये कौन-कौन से कानून लागू किये गये हैं ?
उत्तर-
बीजों के लिये सीड कन्ट्रोल आर्डर 1983, खादों के लिये फर्टीलाइज़र कन्ट्रोल आर्डर 1985, कीटनाशक दवाइयां तथा इन्सैक्टीसाइड अधिनियम 1968 कानून लागू किये गये हैं।

प्रश्न 5.
बीजों के क्वालिटी कन्ट्रोल के लिये बीज इन्स्पेक्टर के क्या अधिकार हैं ?
उत्तर-
बीज इन्स्पेक्टर किसी भी डीलर से बीज के स्टॉक के बारे में, बिक्री के बारे में, खरीद के बारे में तथा स्टोर में पड़े बीज के बारे में कोई भी सूचना मांग सकता है। बीज वाले स्टोर या दुकान की तलाशी ले सकता है तथा उपलब्ध बीजों के नमूने भर कर उनकी जांच बीज जांच प्रयोगशाला से करवा सकता है, कोई नुक्स होने पर बिक्री पर पाबन्दी लगा सकता है। इन्सपेक्टर बीजों से सम्बन्धित दस्तावेज़ कब्जे में ले सकता है तथा चैक कर सकता है। इसके अतिरिक्त दोषी का लाइसेंस रद्द करने के लिये लाइसेंस अधिकारी को लिख सकता है।

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प्रश्न 6.
बीज कन्ट्रोल आर्डर के अन्तर्गत किसान को क्या अधिकार प्राप्त हैं ?
उत्तर-
बीज कन्ट्रोल कानून के अन्तर्गत बीज खरीदने वाले किसानों के अधिकार सुरक्षित रखे गये हैं, ताकि बीजों में कोई नुक्स होने पर उनके द्वारा बीजों पर किये गये खर्च का मुआवज़ा उसको मिल सके। यदि किसान यह समझता हो कि उसकी फ़सल के फेल होने का मुख्य कारण उसको बीज डीलर द्वारा दिया गया घटिया बीज है तो वह इस सम्बन्ध में बीज इन्सपेक्टर के पास अपनी शिकायत लिखित रूप में दर्ज करवा सकता है।

प्रश्न 7.
खराब बीज प्राप्त होने पर शिकायत दर्ज करवाने के लिये प्रमाण स्वरूप किन दस्तावेजों की आवश्यकता होती है ?
उत्तर-
शिकायत दर्ज करवाते समय किसान को निम्नलिखित वस्तुओं की आवश्यकता पड़ती है-

  • बीज की खरीद के समय दुकानदार द्वारा दिया गया पक्का बिल या रसीद।
  • बीज की थैली पर लगा हुआ लेबल।
  • बीज वाला खाली पैकेट या थैला या डिब्बा।
  • खरीदे हुए बीज में से बचा कर रखा हुआ बीज का नमूना।

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प्रश्न 8.
खादों के क्वालिटी कन्ट्रोल सम्बन्धी कानून का क्या नाम है ? इसको कृषि विभाग के किन अफसरों के सहयोग से लागू किया जाता है ?
उत्तर-
खादों के क्वालिटी कन्ट्रोल सम्बन्धी कानून का नाम फर्टीलाइज़र कन्ट्रोल आर्डर 1985 है।
यह कानून पंजाब राज्य में कृषि विभाग के राज्य स्तरीय अधिकारी (डायरेक्टर कृषि पंजाब चण्डीगढ) की देख-रेख में जिले के चीफ एग्रीकल्चर ऑफिसरों तथा उनके सहयोगी अधिकारियों, जिनमें एग्रीकल्चर ऑफिसर (A.O.) तथा उनके अधीन काम कर रहे एग्रीकल्चर डिवैल्पमैंट ऑफिसर (A.D.O.) के सहयोग से लागू किया जाता है।

प्रश्न 9.
कीटनाशक इन्स्पेक्टर कीड़ेमार दवाइयों के क्वालिटी कन्ट्रोल के लिये क्या कार्यवाही करता है ?
उत्तर-
इन्सैक्टीसाइड इन्स्पेक्टर अपने-अपने अधिकार क्षेत्र में इन्सैक्टीसाइड बेचने वाली दुकानों, गोदामों, सेल सेंटरों तथा अन्य सम्बन्धित स्थानों पर निरीक्षण करते हैं। वह इन दुकानों से नमूने लेकर उनकी पड़ताल करने के लिये लुधियाना, भटिण्डा तथा अमृतसर की प्रयोगशालाओं में भेजता है।।

स्टॉक चैक करके पता लगाता है कि कीटनाशक दवाइयां निश्चित समय की सीमा पार तो नहीं कर गईं। इसके अतिरिक्त स्टॉक में पड़ी दवाइयों का भार तथा अन्य तथ्यों की पड़ताल की जाती है तथा देखा जाता है कि कोई कानूनी उल्लंघना न हो रही हो। अधिनियम की उल्लंघना करने वाले व्यक्तियों के लाइसेंस रद्द कर दिये जाते हैं तथा उनके विरुद्ध कानूनी कारवाई भी की जाती है। दोषी व्यक्तियों को जुर्माना तथा जेल का दण्ड भी हो सकता है।

प्रश्न 10.
बीज कानून की धारा-7 क्या है ?
उत्तर-
इस धारा के अन्तर्गत केवल नोटीफाइड सूचित किस्मों के बीजों की ही बिक्री की जा सकती है।

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(ग) पांच-छ: वाक्यों में उत्तर दो-

प्रश्न 1.
बीज, खादों और कीटनाशक दवाइयों का क्वालिटी कन्ट्रोल क्यों ज़रूरी
उत्तर-
फ़सलों की बढ़िया उपज के लिये बीज, खाद तथा कीटनाशक दवाइयां मुख्य तीन वस्तुएं हैं। कृषि में ये तीनों वस्तुएं बहुत ही महत्त्वपूर्ण हैं। इसलिये इनकी क्वालिटी का उचित स्तर का होना बहुत ज़रूरी है। यदि बीज उच्च स्तर के तथा सही किस्म के नहीं होंगे, तो सारी मेहनत बेकार हो जायेगी। इसी प्रकार यदि खादों की क्वालिटी सही नहीं होगी, तो फ़सलों से पूरी उपज नहीं मिलेगी। फ़सलों में खरपतवारों, हानिकारक कीटों तथा बीमारियों की रोकथाम के लिये सही किस्म की दवाइयों तथा ज़हरों का प्रयोग भी बहुत ज़रूरी है।

इन तीनों वस्तुओं पर खर्चा भी हो जाएगा तथा पैदावार भी कम मिलेगी, नदीन समाप्त नहीं होंगे, कीड़े फसल को खा जाएंगे। इसलिए तीनों वस्तुओं का क्वालिटी कण्ट्रोल बहुत जरूरी है।

प्रश्न 2.
कीटनाशक एक्ट (इन्सेक्टीसाइड एक्ट) की सहायता से कीटनाशक दवाइयों का क्वालिटी कन्ट्रोल कैसे किया जाता है ?
उत्तर-
यह अधिनियम 1968 में बनाया गया था तथा सारे देश में लागू कर दिया गया था।
यह अधिनियम कीटनाशक दवाइयों आदि में मिलावट, कमी तथा अन्य कमियां दूर करने के लिये लागू किया गया है। इस अधिनियम के अन्तर्गत पुरानी आऊटडेटड हो चुकी तथा कम माप वाली दवाइयों की बिक्री अवैध है। पंजाब सरकार द्वारा जिला स्थित चीफ कृषि अधिकारियों को यह दवाइयां बेचने सम्बन्धी लाइसेंस देने का अधिकार दिया गया है। संबंधित अधिकारी कीटनाशक बेचने वाली दुकानों की चैकिंग करते हैं तथा सैंपल लेकर लुधियाना, अमृतसर, भटिंडा की प्रयोगशाला में भेजते हैं। कानून की उल्लंघना करने वाले दुकानदार के विरुद्ध कानूनी कारवाई तथा लाइसेंस रद्द किया जा सकता है।

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प्रश्न 3.
बीज कन्ट्रोल आर्डर की प्रमुख धाराओं का वर्णन करो।
उत्तर-
1. लाइसेंस देने का अधिकार-बीज कन्ट्रोल आर्डर, 1983 के अन्तर्गत राज्य सरकार को यह अधिकार दिये गये हैं कि वह किसी भी अधिकारी को जिसे वह ठीक समझती हो, लाइसेंस अधिकारी नियुक्त किया जा सकता है तथा इस अधिकारी का कार्यक्षेत्र भी निर्धारित कर सकती है। पंजाब राज्य में यह अधिकार डायरेक्टर कृषि संयुक्त डायरेक्टर कृषि विभाग, पंजाब को दिये गये हैं।

2. बीज इन्स्पेक्टर-इस अधिनियम के अन्तर्गत सरकार द्वारा कृषि विकास अधिकारियों को बीज इन्स्पेक्टर नियुक्त किया गया है उनका अधिकार क्षेत्र तथा उनके द्वारा प्रयोग की जाने वाली शक्तियों को भी नोटिफाई किया गया है। बीज इन्स्पैक्टर किसी भी डीलर से बीज के स्टॉक के बारे में, बिक्री के बारे में, खरीद के बारे में तथा स्टोर में पड़े बीज के बारे में कोई भी सूचना मांग सकता है। बीज वाले स्टोर या दुकान की तलाशी ले सकता है तथा उपलब्ध बीजों के नमूने भरकर उनकी जांच, बीज जांच प्रयोगशाला से करवा सकता है, कोई कमी होने पर बिक्री पर पाबन्दी लगा सकता है। इन्स्पेक्टर बीजों से सम्बन्धित दस्तावेज़ अपने कब्जे में ले सकता है तथा चैक कर सकता है। इसके अतिरिक्त दोषी का लाइसेंस रद्द करने के लिये लाइसेंस अधिकारी को लिख सकता है।

3. किसानों के अधिकार-सीड कन्ट्रोल कानून के अन्तर्गत बीज खरीदने वाले किसानों के अधिकार सुरक्षित रखे गये हैं, ताकि बीजों में कोई कमी होने पर उस द्वारा बीजों पर किये गये खर्च का मुआवज़ा उसको मिल सके। यदि किसान यह समझता हो कि उसकी फसल के फेल होने का मुख्य कारण उसको बीज डीलर द्वारा दिया गया घटिया बीज है तो वह इस सम्बन्ध में बीज इन्स्पेक्टर के पास अपनी शिकायत लिखित रूप में दर्ज करवा सकता है।

शिकायत दर्ज करवाते समय किसान को निम्नलिखित वस्तुओं की आवश्यकता पड़ती है –

  • बीज खरीदते समय दुकानदार द्वारा दिया गया बिल या रसीद।
  • बीज की थैली पर लगा हुआ लेबल।
  • बीज वाला खाली पैकेट या थैला या डिब्बा।
  • खरीदे हुए बीज में से रखा हुआ बीज का नमूना।

बीज इन्स्पेक्टर यह शिकायत प्राप्त होने पर इसकी पूरी जांच-पड़ताल करेगा तथा यदि इस नतीजे पर पहुंचता है कि फ़सल का फेल होने का कारण बीज की खराबी है तो वह बीज के डीलर/विक्रेता के विरुद्ध कानूनी कार्यवाई शुरू करेगा तथा बीज कानून के अन्तर्गत उसको दण्ड मिल सकता है।

बीज कन्ट्रोल आदेश, 1983 की उल्लंघना करने वाले दोषी को आवश्यक वस्तुओं के कानून के अन्तर्गत दिये जाते दण्ड दिये जाएंगे क्योंकि बीज को भारत सरकार द्वारा एक आवश्यक वस्तु का दर्जा दिया गया है।

प्रश्न 4.
बीज कन्ट्रोल आर्डर अधीन किसानों को क्या-क्या अधिकार प्राप्त हैं ?
उत्तर-
स्वयं उत्तर दें।

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प्रश्न 5.
कृषि विकास से संबंधित तीन प्रमुख वस्तुओं के नाम बताओ तथा उनके क्वालिटी कन्ट्रोल पर प्रकाश डालो।
उत्तर-
स्वयं उत्तर दें।

Agriculture Guide for Class 11 PSEB बीज, खाद और कीड़ेमार दवाइयों का क्वालिटी कन्ट्रोल Important Questions and Answers

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
बीज कन्ट्रोल एक्ट कब बना ?
उत्तर-
1983.

प्रश्न 2.
खाद कन्ट्रोल आर्डर बन बना ?
उत्तर-
1985.

PSEB 11th Class Agriculture Solutions Chapter 5 बीज, खाद और कीड़ेमार दवाइयों का क्वालिटी कन्ट्रोल

प्रश्न 3.
पंजाब में बीज, खाद, कीटनाशक से संबंधित कानूनों को किस द्वारा लागू किया जाता है?
उत्तर-
कृषि विभाग, पंजाब।

प्रश्न 4.
बीजों के बन्द पैकटों, डिब्बों या थैलों पर कौन-सा क्वालिटी का लेबल लगा होता है ?
उत्तर-
टी० एल०।

प्रश्न 5.
कौन-से बीजों का प्रमाणीकरण किया जा सकता है ?
उत्तर-
उन किस्मों का ही प्रमाणीकरण किया जा सकेगा जो कि निर्धारित हैं।

PSEB 11th Class Agriculture Solutions Chapter 5 बीज, खाद और कीड़ेमार दवाइयों का क्वालिटी कन्ट्रोल

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
इन्सैक्टीसाइड अधिनियम, 1968 कब पारित किया गया है ?
उत्तर-
यह अधिनियम भारतीय पार्लियामेंट द्वारा 1968 में पारित किया गया था तथा सारे देश में लागू कर दिया गया।

प्रश्न 2.
पंजाब सरकार ने इन्सैक्टीसाइड दवाइयां बेचने सम्बन्धी लाइसेंस देने का अधिकार किस को दिया है ?
उत्तर-
जिला के मुख्य कृषि अधिकारियों को यह अधिकार मिला है।

प्रश्न 3.
कीटनाशक दवाइयां खरीदते समय कौन-सी बातों की तरफ ध्यान देना चाहिए ?
उत्तर-
किसानों को कीटनाशक दवाइयां बेचने वालों से खरीद की रसीद अवश्य लेनी चाहिए। डिब्बों तथा दवाई की बोतलों का सील बन्द होना बहुत ज़रूरी है। खरीद करते समय यह भी देखना बहुत ज़रूरी है कि दवाई आऊटडेटड न हुई हो। किसी किस्म का सन्देह होने पर कृषि विकास अधिकारी या चीफ कृषि अधिकारी को इसके बारे में तुरन्त सूचित करें।

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दीर्घ उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
खाद कन्ट्रोल आर्डर 1985 से क्या अभिप्राय है ? यह खादों के क्वालिटी कन्ट्रोल में कैसे सहायक होता है ?
उत्तर-
खाद कन्ट्रोल आर्डर,1985 खादों की क्वालिटी मिलावट, पूरे वज़न, घटिया तथा अप्रमाणित खादें बेचने तथा अन्य प्रकार की उल्लंघना को रोकने के लिये बनाया गया है।

किसी भी स्थान पर खादें बेचने से पहले डीलरों को जिले के सम्बन्धित चीफ एग्रीकल्चरल अधिकारी से खादें बेचने का लाइसेंस लेना ज़रूरी है। लाइसेंस तभी मिल सकता है, जब किसी खाद बनाने वाली कम्पनी ने उस डीलर को खाद बेचने के लिये अधिकार पत्र दिया हो।

खादों की क्वालिटी चैक करने के लिये खाद कन्ट्रोल आर्डर के नियमों के अनुसार विभिन्न स्तर पर कारवाई की जाती है। कोई भी व्यक्ति निश्चित स्तर से घटिया खाद नहीं बेच सकता। किसानों को सप्लाई की जाने वाली/बेचने वाली खादों की क्वालिटी पर निगरानी रखने के लिये खाद कन्ट्रोल 1985 के अन्तर्गत सम्बन्धित अधिकारियों को योग्य अधिकार दिए गये हैं। उनके द्वारा अपने-अपने अधिकार क्षेत्र में खादों के कारोबारी विभागों का निरीक्षण किया जाता है। आवश्यकता अनुसार खादों के नमूने भरे जाते हैं। इन नमूनों को कृषि विभाग की खाद जांच लैब्राटरी, लुधियाना तथा फरीदकोट में परख करने के लिये भेजा जाता है। यदि नमूने क्वालिटी में घटिया पाए जाते हैं, तो उनके कारोबारी विभागों के विरुद्ध नियमों के अनुसार कानूनी कार्यवाई की जाती है। न्यायालय द्वारा दोषियों को जेल की सज़ा भी की जा सकती है।

PSEB 11th Class Agriculture Solutions Chapter 5 बीज, खाद और कीड़ेमार दवाइयों का क्वालिटी कन्ट्रोल

बीज, खाद और कीड़ेमार दवाइयों का क्वालिटी कन्ट्रोल PSEB 11th Class Agriculture Notes

  • फ़सलों की लाभदायक उत्पादन के लिए बीज, खाद तथा कीटनाशक दवाइयां मुख्य तीन वस्तुएं हैं।
  • भारत सरकार ने अनिवार्य वस्तुओं के कानून के अन्तर्गत कृषि में काम आने वाली इन तीनों वस्तुओं के लिए विभिन्न कानून बनाए हैं।
  • ये कानून हैं बीज कन्ट्रोल आर्डर, खाद कन्ट्रोल आर्डर, कीटनाशक एक्ट।
  • सीड कन्ट्रोल आर्डर के अनुसार पंजाब में लाइसेंस अधिकारी नियुक्त किए गए हैं। पंजाब में यह अधिकार कृषि विभाग, पंजाब को दिए गए हैं।
  • यदि बीज डीलर द्वारा किसान को घटिया बीज देने से फ़सल खराब हो गई हो तो किसान अपनी शिकायत बीज इन्सपैक्टर से कर सकता है।
  • बीज इंस्पैक्टर को यदि बीज की खराबी के कारण फसल के फेल होने का पता चलता है तो वह बीज डीलर के विरुद्ध कानूनी कारवाई शुरू करता है।
  • बीज कानून की धारा 7 के अन्तर्गत केवल निर्धारित बीजों की ही बिक्री की जा सकती है।
  • खाद परीक्षण प्रयोगशाला लुधियाना तथा फरीदकोट में है।
  • खाद कन्ट्रोल आर्डर 1985, बनाया गया है जो कि खादों की क्वालटी तथा वजन को ठीक रखने तथा मिलावट, घटिया तथा अप्रमाणित खादें बेचने को रोकने के लिए सहायक है।
  • इन्सैक्टीसाइड अधिनियम (कीटनाशक एक्ट) 1968 में बनाया गया।
  • सेन्ट्रल इन्सैक्टीसाइड बोर्ड (केन्द्रीय कीटनाशक बोर्ड) सरकार को यह अधिनियम लागू करने की सलाह देता है।
  • सेन्ट्रल (केन्द्रीय) रजिस्ट्रेशन कमेटी कृषि रसायनों की रजिस्ट्रेशन करके इन्हें बनाने तथा आयात निर्यात के लिए आज्ञा देती है।
  • दवाइयां चैक करने के लिए प्रयोगशालाएं लुधियाना, बठिंडा तथा अमृतसर में हैं।

PSEB 7th Class Physical Education Solutions Chapter 8 नशीले पदार्थों के विद्यार्थियों पर कुप्रभाव

Punjab State Board PSEB 7th Class Physical Education Book Solutions Chapter 8 नशीले पदार्थों के विद्यार्थियों पर कुप्रभाव Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 7 Physical Education Chapter 8 नशीले पदार्थों के विद्यार्थियों पर कुप्रभाव

PSEB 7th Class Physical Education Guide नशीले पदार्थों के विद्यार्थियों पर कुप्रभाव Textbook Questions and Answers

अभ्यास के प्रश्नों के उत्तर

प्रश्न 1.
सिगरेट तथा बीड़ी ये दोनों नशे किस पदार्थ से बनते हैं ?
उत्तर-
सिगरेट और बीड़ी में तम्बाकू डाला जाता है। सिगरेट कागज़ में तम्बाकू डाल कर बनाई जाती है और बीड़ी किसी विशेष वृक्ष के पत्तों से बनती है। इस तरह तम्बाकू पीने के और भी ढंग हैं। जैसे-बीड़ी, सिगरेट पीना, हुक्का पीना और चिलम पीना आदि। इस तरह खाने के ढंग भी अलग-अलग हैं जैसे-तम्बाकू चूने में मिला कर सीधा मुँह में रख कर खाना। तम्बाकू में खतरनाक जहर निकोटीन होता है। इसके अतिरिक्त अमीनिया कार्बनडाइआक्साइड आदि भी होती है जिसका बुरा प्रभाव सिर पर पड़ता है जिससे सिर चकराने लग जाता है।

प्रश्न 2.
किस नशे के सेवन से जीभ, गले तथा मुंह का कैंसर होने का खतरा रहता है?
उत्तर-
तम्बाकू के प्रयोग से जीभ, गले और मुँह का कैंसर होने का खतरा रहता है। तम्बाकू में निकोटीन नाम का जहरीला पदार्थ होता है जिस कारण कैंसर की बीमारी लगने का डर बढ़ जाता है। खासतौर पर छाती और गले के कैंसर का डर रहता है।
तम्बाकू के नुकसान इस तरह हैं—

  1. तम्बाकू खाने या पीने से नज़र कमजोर हो जाती है।
  2. इससे दिल की धड़कन तेज़ हो जाती है। दिल का रोग लग जाता है जो कि मृत्यु का कारण बना सकता है।
  3. आविष्कारों से पता लगा है कि तम्बाकू पीने या खाने से रक्त की नाड़ियां सिकुड़ जाती हैं।
  4. तम्बाकू शरीर के तन्तुओं को उत्तेजित रखता है, जिससे नींद नहीं आती और नींद न आने की बीमारी लग सकती है।
  5. तम्बाकू के प्रयोग से पेट खराब रहने लग जाता है।
  6. तम्बाकू के प्रयोग से खांसी लग जाती है जिससे फेफड़ों के टी० बी० होने का खतरा बढ़ जाता है।
  7. तम्बाकू के प्रयोग से खुराक नली, मुंह के कैंसर का डर भी रहता है।

PSEB 7th Class Physical Education Solutions Chapter 8 नशीले पदार्थों के विद्यार्थियों पर कुप्रभाव

प्रश्न 3.
शराब मनुष्य के लिए किस प्रकार हानिकारक है ?
उत्तर-
शराब का सेहत पर प्रभाव (Effect of Alcohol on Health)-शराब एक नशीला तरल पदार्थ है। शराब पीना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है, बाज़ार में बेचने से पहले प्रत्येक शराब की बोतल पर यह लिखना ज़रूरी है। फिर भी बहुत-से लोगों को इस की लत (आदत) लगी हुई है जिससे स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है। शरीर को कई तरह के रोग लग जाते हैं । फेफड़े कमज़ोर हो जाते हैं और व्यक्ति की आयु घट जाती है। ये शरीर के सभी अंगों पर बुरा प्रभाव डालती है। पहले तो व्यक्ति शराब को पीता है। कुछ समय पीने के बाद शराब आदमी को पीने लग जाती है। भाव शराब शरीर के अंगों को नुकसान पहुंचाने लग जाती है।
शराब पीने के नुकसान निम्नलिखित हैं—

  1. शराब का असर पहले दिमाग़ पर होता है। नाड़ी प्रबन्ध बिगड़ जाता है और दिमाग़ कमजोर हो जाता है। मनुष्य के सोचने की शक्ति घट जाती है।
  2. शरीर में गुर्दे कमजोर हो जाते हैं।
  3. शराब पीने से पाचन रस कम पैदा होना शुरू हो जाता है जिससे पेट खराब रहने लग जाता है।
  4. श्वास की गति तेज़ और सांस की अन्य बीमारियां लग जाती हैं।
  5. शराब पीने से रक्त की नाड़ियां फूल जाती हैं। दिल को अधिक काम करना पड़ता है और दिल के दौरे का डर बना रहता।
  6. लगातार शराब पीने से मांसपेशियों की शक्ति घट जाती है। शरीर बीमारियों का मुकाबला करने के योग्य नहीं रहता।
  7. आविष्कारों से पता लगा है कि शराब पीने वाला मनुष्य शराब न पीने वाले व्यक्ति से काम कम करता है। शराब पीने वाले व्यक्ति को बीमारियां भी जल्दी लगती हैं।
  8. शराब से घर, स्वास्थ्य, पैसा आदि बर्बाद होता है और यह एक सामाजिक बुराई है।

प्रश्न. 4.
विद्यार्थियों को नशों से किस प्रकार बचाया जा सकता है?
उत्तर-
1. विद्यार्थियों को इन नशीली वस्तुओं से जान पहचान करवानी चाहिए जिससे वह नशीली वस्तुओं से दूर रह सकते हैं।

2. विद्यार्थी किसी भी आयु के हों उनको इन नशीली वस्तुओं की तरफ झुकाव नहीं रखना चाहिए। उनका इरादा कमजोर नहीं होना चाहिए । वह दृढ़ इरादे वाला होना चाहिए।

3. माता पिता और अध्यापक द्वारा बच्चों को नशों से बचाने के लिए अच्छी पुस्तकें पढ़ने के लिए देनी चाहिए और उनको खेलों में भाग लेने, मनोरंजन क्रियाओं में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।

PSEB 7th Class Physical Education Solutions Chapter 8 नशीले पदार्थों के विद्यार्थियों पर कुप्रभाव

Physical Education Guide for Class 7 PSEB नशीले पदार्थों के विद्यार्थियों पर कुप्रभाव Important Questions and Answers

बहुत छोटे उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
किन्हीं दो नशीली वस्तुओं के नाम लिखें।
उत्तर-

  1. शराब
  2. हशीश

प्रश्न 2.
नशीली वस्तुएं किन दो क्रियाओं पर अधिक प्रभाव डालती हैं ?
उत्तर-

  1. पाचन क्रिया पर
  2. खेलने की शक्ति पर।

प्रश्न 3.
नशीली वस्तुओं के कोई दो दोष लिखें।
उत्तर-

  1. चेहरा पीला पड़ जाता है।
  2. मानसिक सन्तुलन खराब हो जाता है।

PSEB 7th Class Physical Education Solutions Chapter 8 नशीले पदार्थों के विद्यार्थियों पर कुप्रभाव

प्रश्न 4.
नशीली वस्तुओं के खिलाड़ियों पर कोई दो बुरे प्रभाव लिखें।
उत्तर-

  1. लापरवाई तथा बेफिक्री।
  2. खेल भावना का अन्त।

प्रश्न 5.
खेल में हार नशीली वस्तुओं के प्रयोग के कारण हो जाती है। ठीक अथवा ग़लत ।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 6.
शराब का असर पहले दिमाग़ पर होता है। ठीक अथवा ग़लत
उत्तर-
ठीक

PSEB 7th Class Physical Education Solutions Chapter 8 नशीले पदार्थों के विद्यार्थियों पर कुप्रभाव

प्रश्न 7.
तम्बाकू खाने से या पीने से नजर कमजोर हो जाती है। ठीक अथवा ग़लत
उत्तर-
ठीक।

प्रश्न 8.
तम्बाकू से कैंसर की बीमारी का डर बढ़ता है अथवा कम होता है ?
उत्तर-
डर बढ़ जाता है।

प्रश्न 9.
तम्बाकू के प्रयोग से खांसी नहीं लगती और टी० बी० भी नहीं हो सकती। ठीक अथवा ग़लत ।
उत्तर-
ग़लत।

PSEB 7th Class Physical Education Solutions Chapter 8 नशीले पदार्थों के विद्यार्थियों पर कुप्रभाव

प्रश्न 10.
नशे वाला खिलाड़ी लापरवाह हो जाता है। सही अथवा ग़लत
उत्तर-
सही।

छोटे उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
नशीली वस्तुओं की सूची बनाएं और यह भी बताएं कि नशीली वस्तुएं पाचन क्रिया और सोचने की शक्ति पर कैसे प्रभाव डालती हैं?
उत्तर-
मादक पदार्थ ऐसे नशीले पदार्थ हैं जिनके सेवन से किसी-न-किसी प्रकार की उत्तेजना या शिथिलता आ जाती है। मनुष्य के स्नायु संस्थान पर सभी किस्म के मादक पदार्थों का बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है जिससे कई प्रकार के विचार, कल्पनाएं तथा भावनाएं पैदा होती हैं। इससे व्यक्ति में घबराहट, गुस्सा और व्यवहार में परिवर्तन आ जाता है। नशीले पदार्थों का इस्तेमाल करने से व्यक्ति का अपने व्यवहार और शरीर पर नियन्त्रण नहीं रहता। नशीली वस्तुएं निम्नलिखित हैं—

  1. शराब
  2. अफीम
  3. तम्बाकू
  4. भांग
  5. हशीश
  6. चरस
  7. कोकीन
  8. एलडरविन।

पाचन क्रिया पर प्रभाव (Effects on Digestion)-नशीली वस्तुओं का पाचन क्रिया पर बहुत प्रभाव पड़ता है। इनमें अम्लीय अंश बहुत अधिक होते हैं। इन अंशों के कारण आमाशय की कार्य करने की शक्ति कम हो जाती है और कई प्रकार के पेट के रोग उत्पन्न हो जाते हैं।

सोचने की शक्ति पर प्रभाव (Effects on Thinking)-नशीली वस्तुओं के प्रयोग से व्यक्ति अच्छी तरह बोल नहीं सकता और वह बोलने के स्थान पर तुतलाने लगता है। वह अपने पर नियन्त्रण नहीं रख सकता। वह खेल में आई अच्छी स्थितियों के विषय में सोच नहीं सकता और न ही ऐसी स्थितियों से लाभ उठा सकता है।

PSEB 7th Class Physical Education Solutions Chapter 8 नशीले पदार्थों के विद्यार्थियों पर कुप्रभाव

प्रश्न 2.
खेल में हार नशीली वस्तुएं के प्रयोग के कारण हो सकती है, कैसे ?
उत्तर-

  1. नशे में खेलते समय खिलाड़ी बहुत-से ऐसे काम कर जाता है जिससे टीम हार जाती है।
  2. नशे में खिलाड़ी विरोधी टीम की चालें नहीं समझ सकता और अपनी टीम के लिए पराजय का कारण बनता है।
  3. यदि किसी खिलाड़ी को नशे में खेलते हुए पकड़ लिया जाए तो उसे खेल में से बाहर निकाल दिया जाता है। यदि उसे इनाम मिलना है तो नहीं दिया जाता। इस प्रकार उसकी विजय पराजय में बदल जाती है।

PSEB 6th Class Home Science Solutions Chapter 5 शुद्ध वायु का आवागमन

Punjab State Board PSEB 6th Class Home Science Book Solutions Chapter 5 शुद्ध वायु का आवागमन Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 6 Home Science Chapter 5 शुद्ध वायु का आवागमन

PSEB 6th Class Home Science Guide शुद्ध वायु का आवागमन Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
शुद्ध हवा में ऑक्सीजन कितने प्रतिशत होती है ?
उत्तर-
शुद्ध हवा में ऑक्सीजन 20 प्रतिशत होती है।

प्रश्न 2.
शुद्ध हवा में कार्बन डाइऑक्साइड कितने प्रतिशत होती है ?
उत्तर-
शुद्ध हवा में कार्बन डाइऑक्साइड 0.04 प्रतिशत होती है।

प्रश्न 3.
प्रत्येक मनुष्य को एक घण्टे में कितने घन फुट ताज़ा हवा की आवश्यकता होती है ?
उत्तर-
3000 घन फुट ताज़ी वायु की।

PSEB 6th Class Home Science Solutions Chapter 5 शुद्ध वायु का आवागमन

प्रश्न 4.
घर में हवा के आगमन के लिए क्या उचित है ?
उत्तर-
दरवाज़ों और खिड़कियों की संख्या अधिक हो और वे आमने-सामने हों।

लघूत्तर प्रश्न

प्रश्न 1.
दूषित हवा में साँस लेना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक क्यों है ?
उत्तर-
गन्दी वायु में श्वास लेने से जी ख़राब होने लगता है, खून की कमी हो जाती है तथा पाचन क्रिया बिगड़ जाती है। शरीर का रंग पीला पड़कर चमड़ी पर छूत की बीमारियाँ लगने की भी सम्भावना रहती हैं।

प्रश्न 2.
अन्दर तथा बाहर की वायु के तापमान में अन्तर होने का क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर-
अन्दर तथा बाहर की वायु के तापमान में जितना अन्तर होगा उतना ही वायु का दौरा तीव्र होगा।

PSEB 6th Class Home Science Solutions Chapter 5 शुद्ध वायु का आवागमन

प्रश्न 3.
रसोई में वायु का प्रबन्ध कैसा होना चाहिए ?
उत्तर-
रसोई में वायु का प्रबन्ध शुद्ध होना चाहिए।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
शुद्ध वायु के क्या लाभ हैं ?
उत्तर-
शुद्ध वायु के निम्नलिखित लाभ हैं –

  1. शुद्ध वायु शरीर के आन्तरिक अंगों की सफाई के लिए आवश्यक है, क्योंकि शुद्ध वायु द्वारा ऑक्सीजन की ठीक मात्रा शरीर के अन्दर जाती है।
  2. इससे फेफड़े और पाचन-क्रिया ठीक ढंग से काम करते हैं।
  3. शरीर का तापमान भी ठीक रहता है।

प्रश्न 2.
वायु शुद्ध करने के बनावटी ढंग बताओ।
उत्तर-
वायु शुद्ध करने के बनावटी ढंग निम्नलिखित हैं –

1.पंखे-यह गन्दी हवा बाहर निकालने का एक उत्तम तथा वैज्ञानिक तरीका है। जब पंखा चलता है तो गंदी हवा बाहर निकल जाती है तथा उसके स्थान पर साफ़ और शुद्ध हवा अन्दर आ जाती है।

2. वायु निकासी मशीन-वायु निकासी मशीन का कार्य मशीन से गैस बाहर निकालना है। बड़े-बड़े हाल कमरे जहाँ ड्रामे होते हैं, लैक्चर हॉलों तथा सिनेमाघरों में हवा को बाहर निकाला जाता है।
PSEB 6th Class Home Science Solutions Chapter 5 शुद्ध वायु का आवागमन 1

3. पाइप या नालियों द्वारा- यह विधि वहाँ पर प्रयोग की जाती है जहाँ कमरों की गन्दी हवा बाहर निकालने के लिए रोशनदान तो हों परन्तु खिड़कियाँ न हों और यदि हों भी तो खोली न जा सकती हों। जिन कमरों में दरवाजे बंद हों और केवल रोशनदान ही खुलें हों, उन कमरों में गन्दी हवा रोशनदान द्वारा बाहर निकाल दी जाती है। साफ़ हवा पाइपों द्वारा कमरों में आती है।

4. पाइप तथा हवा निकासी मशीन से-बड़े-बड़े कान्फ्रेंस हालों में यदि खिड़कियाँ और रोशनदान न भी हों या रोशनदान और खिड़कियाँ बन्द हों और उन्हें किसी कारणवश खोला न जा सकता हो तो ऐसे स्थानों से मशीन द्वारा गन्दी वायु को बाहर निकाल दिया जाता है। स्वच्छ वायु पाइपों द्वारा कमरों में भेजी जाती है।

PSEB 6th Class Home Science Solutions Chapter 5 शुद्ध वायु का आवागमन

प्रश्न 3.
वायु का आवागमन ठीक रखने के लिए किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
उत्तर-
वायु का आवागमन-मकान में शुद्ध वायु के आवागमन का प्रबन्ध अत्यन्त आवश्यक है, क्योंकि शुद्ध वायु और प्रकाश का स्वास्थ्य से बहुत ही घनिष्ठ सम्बन्ध है। घर में संवातन की समुचित व्यवस्था हेतु उचित एवं आवश्यकतानुसार खिड़कियाँ एवं दरवाज़े होने चाहिएं जिससे कमरे की अशुद्ध वायु बाहर निकल सके एवं शुद्ध वायु कमरों में प्रविष्ट हो सके। प्रत्येक व्यक्ति सांस-क्रिया द्वारा शुद्ध वायु ग्रहण करता है और दूषित वायु बाहर निकालता है जिसमें कार्बन-डाइऑक्साइड की प्रधानता रहती है। ऐसी वायु में रोग के जीवाणु मिलकर कमरे की वायु को दूषित बना देते हैं। इस प्रकार की दूषित वायु का निरन्तर सेवन करते रहने से हमारा शरीर अनेक रोगों को जन्म देता है। दूषित वायु गर्म होकर हल्की हो जाती है और हल्की होने के कारण यह ऊपर की ओर उठती है, अतएव वह वायु रोशनदानों के सहारे कमरे से बाहर निकलती है।

कमरों में खिड़कियों, दरवाज़ों तथा रोशनदानों का होना ही पर्याप्त नहीं है, अपितु इन्हें खुला रखना भी ज़रूरी है जिससे दूषित वायु बाहर जाये एवं शुद्ध वायु कमरे के भीतर आ सके।

कमरों में वायु के आवागमन हेतु प्रवेश-द्वार एवं निकास द्वारों का होना भी आवश्यक है। प्रवेश-द्वार फ़र्श के पास होना चाहिए जिससे शुद्ध वायु कमरे में पर्याप्त मात्रा में प्रवेश कर सके। प्रवेश-द्वार की भूमिका खिड़कियाँ एवं दरवाज़े निभाते हैं। अशुद्ध वायु को बाहर निकलने के लिए निकास द्वार होना चाहिए। निवास द्वार छत के पास होना चाहिए। निकास द्वार कमरे के अनुपात में हो तथा उसे उचित रूप से खोलने एवं बन्द करने का प्रबन्ध होना चाहिए। निकास द्वार का काम रोशनदान करते हैं। हमारे देश में ग्रीष्मकाल में अधिक लू (गर्म हवाएँ) चलती हैं। इसलिए बड़ी-बड़ी खिड़कियों की अपेक्षा छोटे-छोटे छिद्र हों तो अधिक उचित है।

इस प्रकार शुद्ध वायु के आवागमन एवं सुरक्षा की दृष्टि से मकान में खिड़कियों, दरवाज़ों एवं रोशनदानों का उचित स्थान पर एवं उचित संख्या में होना आवश्यक है।

प्रश्न 4.
वायु शुद्ध रखने के प्राकृतिक ढंग कौन-कौन से हैं ?
उत्तर-
वायु शुद्ध रखने के प्राकृतिक ढंग निम्नलिखित हैं –

1. पौधों द्वारा-पौधे वायु में से कार्बन डाइऑक्साइड लेकर प्रकाश तथा पत्तों की सहायता से भोजन तैयार करते हैं। इस तरह ऑक्सीजन तथा कार्बन डाइऑक्साइड तथा कार्बन अलग-अलग हो जाते हैं। मनुष्य तथा पशु श्वास द्वारा जो कार्बन डाइऑक्साइड छोड़ते हैं पौधे उसे प्रयोग कर लेते हैं तथा पौधे जो ऑक्सीजन छोड़ते हैं उसे मनुष्य तथा पशु श्वास लेने के लिए प्रयोग करते हैं। पौधे कार्बन डाइऑक्साइड इस्तेमाल करके वायु को शुद्ध करते हैं।

2. धूप द्वारा-धूप दुर्गन्ध को दूर करती है तथा रोगाणुओं को नष्ट करके वायु को शुद्ध करती है।

3. तीव्र हवा-जब गर्मी ज़्यादा बढ़ जाए तो तापमान बढ़ जाता है। गर्म हवा हल्की होकर ऊपर उठती है। यह हवा कृमियों, दुर्गन्ध, रेत तथा मिट्टी को उड़ाकर ले जाती है और उसकी जगह साफ़ और ठंडी हवा आ जाती है।

4. वर्षा-वर्षा द्वारा वायु में घुली अशुद्धियाँ वातावरण में से निकलकर तथा पानी में घुलकर धरती पर आ गिरती हैं तथा वायु शुद्ध हो जाती है।

5. गैसों के बहाव तथा आपसी मेल से-गैसें स्वयं एक स्थान से दूसरे स्थान तक जाती रहती हैं। इसलिए वायु के आने-जाने में कोई रुकावट न डाली जाए तो स्वच्छ और गन्दी हवाएँ आपस में मिल जाती हैं तथा वायु स्वच्छ होती रहती है। इस प्रकार हम गन्दी हवा से बच सकते हैं।

PSEB 6th Class Home Science Solutions Chapter 5 शुद्ध वायु का आवागमन

Home Science Guide for Class 6 PSEB शुद्ध वायु का आवागमन Important Questions and Answers

अति छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
शुद्ध हवा में नाइट्रोजन कितने प्रतिशत होती है ?
उत्तर-
शुद्ध हवा में नाइट्रोजन 79 प्रतिशत होती है।

प्रश्न 2.
खिड़कियाँ मकान के धरातल से कितने फट ऊँची होनी चाहिए ?
उत्तर-
खिड़कियाँ मकान के धरातल से 27 फुट ऊँची होनी चाहिए।

प्रश्न 3.
मकान में वायु प्रवेश व निकास का उचित प्रबन्ध क्यों आवश्यक है ?
उत्तर-
दूषित वायु की हानियों से बचने और शुद्ध वायु प्राप्त करने के लिए मकान में वायु के प्रवेश व निकास का उचित प्रबन्ध आवश्यक है।

PSEB 6th Class Home Science Solutions Chapter 5 शुद्ध वायु का आवागमन

प्रश्न 4.
दिन के समय सूर्य के प्रकाश का कमरों में आना क्यों आवश्यक है ?
उत्तर-
सूर्य का प्रकाश स्वास्थ्य को ठीक रखता है। यह हानिकारक कीटाणुओं का नाश करके वायु को शुद्ध करता है।

प्रश्न 5.
कम या धुंधली रोशनी में काम करने या पढ़ने से क्या हानि होती है ?
उत्तर-
आँखों की ज्योति कमजोर हो जाती है।

प्रश्न 6.
प्रकाश के कृत्रिम साधन कौन-कौन से हैं ?
उत्तर-
प्रकाश के कृत्रिम साधन मोमबत्ती, दीपक, लालटेन, गैस की लालटेन आदि हैं।

PSEB 6th Class Home Science Solutions Chapter 5 शुद्ध वायु का आवागमन

एक शब्द में उत्तर दें

प्रश्न 1.
हवा में …………….. % कार्बन डाइऑक्साइड होती है।
उत्तर-
0.04%.

प्रश्न 2.
रसोई में आग जलाने से कौन-सी गैस पैदा होती है ?
उत्तर-
कार्बन डाइऑक्साइड।

प्रश्न 3.
शुद्ध हवा से …………… तथा पाचन क्रिया ठीक काम करते हैं।
उत्तर-
फेफड़े।

PSEB 6th Class Home Science Solutions Chapter 5 शुद्ध वायु का आवागमन

प्रश्न 4.
प्रकाश के बनावटी स्त्रोत की एक उदाहरण दें।
उत्तर-
लालटेन।

प्रश्न 5.
निकास द्वार का काम ……………….. करते हैं।
उत्तर-
रोशनदान।

प्रश्न 6.
………………… हवा में से कार्बन डाइऑक्साइड लेकर हवा को शुद्ध करते हैं।
उत्तर-
पौधे।

PSEB 6th Class Home Science Solutions Chapter 5 शुद्ध वायु का आवागमन

शुद्ध वायु का आवागमन PSEB 6th Class Home Science Notes

  • घर एक निजी स्वर्ग का नाम है।
  • प्रत्येक जीवित प्राणी के लिए वायु सबसे अधिक ज़रूरी है।
  • शुद्ध वायु कुछ गैसों का मिश्रण है। इसमें निम्नलिखित गैसें होती हैं –
    ऑक्सीजन-20%, नाइट्रोजन-79%, कार्बन-डाइऑक्साइड-0.04%.
  • वायु के सारे तत्त्वों में से ऑक्सीजन का एक विशेष स्थान है। यह श्वास लेने के लिए ज़रूरी है।
  • वायु को शुद्ध करने की विधियाँ-1. प्राकृतिक, 2. बनावटी।
  • पौधे वायु में से कार्बन-डाइऑक्साइड लेकर प्रकाश तथा हरी पत्तियों की सहायता से भोजन तैयार करते हैं।
  • पौधे कार्बन-डाइऑक्साइड का प्रयोग करके वायु को शुद्ध करते हैं।
  • जब गर्मी बहुत बढ़ जाए तो तापमान बढ़ जाता है। गैसें स्वयं एक स्थान से दूसरे स्थान तक जाती रहती हैं।
  • पंखे गन्दी हवा बाहर निकालने का एक अति उत्तम तथा वैज्ञानिक तरीका है।
  • वायु निकास का अर्थ है मशीन से गैस बाहर निकालना।
  • स्वच्छ वायु शरीर के आन्तरिक अंगों की सफाई के लिए आवश्यक है।
  • स्वच्छ वायु से फेफड़े और पाचन क्रिया ठीक काम करते हैं।
  • स्वच्छ वायु से शरीर का तापमान भी ठीक रहता है।
  • रसोई में शुद्ध वायु का आवागमन बहुत ज़रूरी है।
  • रसोई में आग जलाने से कार्बन-डाइऑक्साइड उत्पन्न होती है।
  • हैदराबादी धुएँ रहित चूल्हा धुएँ तथा गंदी हवा से छुटकारा दिला सकता है।

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 3 जैन धर्म और बौद्ध धर्म

Punjab State Board PSEB 11th Class History Book Solutions Chapter 3 जैन धर्म और बौद्ध धर्म Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 History Chapter 3 जैन धर्म और बौद्ध धर्म

अध्याय का विस्तृत अध्ययन

(विषय-सामग्री की पूर्ण जानकारी के लिए)

प्रश्न 1.
जैन धर्म और बौद्ध धर्म का उदय किन राजनीतिक, सामाजिक व धार्मिक परिस्थितियों में हुआ ?
उत्तर-
जैन धर्म और बौद्ध धर्म का उदय छठी शताब्दी ई० पू० में हुआ। इस समय तक देश के राजनीतिक, सामाजिक तथा धार्मिक क्षेत्रों में नए विचार उभर रहे थे। देश में कुछ बड़े-बड़े राज्य स्थापित हो चुके थे। इनमें शासक नवीन विचारों के पनपने का कोई विरोध नहीं कर रहे थे। इसी प्रकार सामाजिक एवं धार्मिक वातावरण भी नवीन धार्मिक आन्दोलनों के उदय के अनुकूल था। वैदिक धर्म में अनेक कुरीतियां आ गई थीं। व्यर्थ के रीति-रिवाजों, महंगे यज्ञों और ब्राह्मणों के झूठे प्रचार के कारण यह धर्म अपनी लोकप्रियता खो चुका था। इन सब कुरीतियों का अन्त करने के लिए देश में लगभग 63 नये धार्मिक आन्दोलन चले जिनका नेतृत्व विद्वान् हिन्दू कर रहे थे। परन्तु ये सभी धर्म लोकप्रिय न हो सके। केवल दो धर्मों को छोड़कर शेष सभी समाप्त हो गये। ये दो धर्म थे-जैन धर्म तथा बौद्ध धर्म । संक्षेप में जैन धर्म तथा बौद्ध धर्म का उदय निम्नलिखित राजनीतिक, सामाजिक एवं धार्मिक परिस्थितियों में हुआ:

I. राजनीतिक परिस्थितियां

1. राजतंत्रों तथा गणतंत्रों की स्थापना-छठी शताब्दी ई० पू० देश में कुछ बड़े-बड़े राजतन्त्र तथा गणराज्य स्थापित हो चुके थे। इनके शासक अपनी सत्ता के विस्तार के लिए आपसी संघर्ष में उलझे हुए थे। इसी वातावरण में नए विचारों का उद्भव हुआ। अतः किसी भी शासक ने इन विचारों का विरोध न किया। यही नवीन विचार अन्ततः जैन धर्म और बौद्ध धर्म के उदय में सहायक हुए।

2. धनी व्यापारियों की आकांक्षा-इस काल में व्यापार का महत्त्व बहुत बढ़ गया। फलस्वरूप अनेक धनी व्यापारी सामने आए। ये लोंग समाज में उचित स्थान पाना चाहते थे। परन्तु वर्ण-व्यवस्था के कारण उन्हें वैश्यों से उच्च नहीं समझा जाता था। फलस्वरूप वे किसी नवीन सामाजिक एवं धार्मिक संगठन की आकांक्षा करने लगे।

II. सामाजिक एवं धार्मिक परिस्थितियां

1. वैदिक धर्म में जटिलता – प्रारम्भा में वैदिक धर्म काफी सरल था | परन्तु छठी शताब्दी ई० पूo तक यह बहुत जटिल हो गया था। शास्त्रों के गहन विचार आम लोग नहीं समझ सकते थे। मोक्ष प्राप्त करने के लिए कर्म-मार्ग, तप-मार्ग तथा ज्ञानमार्ग का प्रचार किया जा रहा था। कुछ लोग कहते थे कि यज्ञ करने चाहिएं और वेद मन्त्र पढ़ने चाहिएं। कुछ शरीर को कष्ट देने तथा संन्यास पर जोर देते थे। कुछ का विचार था कि अधिक-से-अधिक ज्ञान प्राप्त करके मोक्ष प्राप्त हो सकता है। इसलिए आम लोग इस उलझन में थे कि उन्हें किस मार्ग पर चलना चाहिए। यह बड़ी जटिल समस्या थी। इसी का हल ढूंढ़ने के कारण नवीन धर्मों का उदय हुआ।

2. ब्राह्मणों का नैतिक पतन-आरम्भ में केवल पढ़े-लिखे तथा विद्वान् पुरुषों को ही ब्राह्मण माना जाता था। बाद में ब्राह्मणों की सन्तान भी अपने आप को ब्राह्मण कहलवाने लगी। अनेक ब्राह्मणों की सन्तान को न तो धार्मिक ग्रन्थों का वास्तविक ज्ञान था और न ही वे अपने पूर्वजों की भान्ति चरित्रवान् थे। वे सीधे-सादे लोगों से धन बटोरने में लगे हुए थे और उन्हें धर्म की गलत परिभाषा बताकर उल्लू बना रहे थे। वैसे भी कुछ ब्राह्मण स्वार्थी तथा कपटी बन चुके थे। उच्च परिवारों के विद्वान् क्षत्रिय इस भ्रष्टाचार को सहन न कर सके और उन्होंने इसे दूर करने के लिए धार्मिक आन्दोलन चलाएं।

3. जाति-प्रथा तथा छूत-छात-छठी शताब्दी ई० पू० तक जाति-बन्धन बहुत कठोर हो चुके थे। इसका सबसे बुरा प्रभाव शूद्र जाति के लोगों पर पड़ा। उन्हें न तो शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार था और न ही लोग उनसे सामाजिक मेलजोल रखते थे। लोग शूद्रों को अपने कुओं से पानी भी नहीं भरने देते थे। इसके साथ-साथ ब्राह्मणों ने यह धारणा भी पैदा कर दी कि शूद्रों को अच्छे से अच्छे कर्म करने पर भी मोक्ष प्राप्त नहीं हो सकता। इसके विपरीत नीच से नीच कार्य करने वाले ब्राह्मण अपने आप को सर्वोच्च मानते थे। शूद्रों के प्रति यह घोर अन्याय था। इस अन्याय को समाप्त करने के लिए मुख्य रूप से महावीर स्वामी और महात्मा बुद्ध ने समाज को नई राह दिखाई।

4. महंगा वैदिक धर्म-वैदिक धर्म में यज्ञों का बड़ा महत्त्व था। आरम्भ में यज्ञ करना इतना सरल था कि इसे कोई भी व्यक्ति आसानी से कर सकता था। यज्ञ करने के लिए न तो पुरोहितों की आवश्यकता होती थी और न ही धन की। परन्तु छठी शताब्दी ईसा पूर्व तक यह धर्म काफ़ी महंगा हो गया। यज्ञ करना आवश्यक समझा जाने लगा और इसकी विधि काफ़ी जटिल हो गई। अब व्यक्ति स्वयं यज्ञ नहीं कर सकता था। इसके लिए अनेक पुरोहितों को बुलाना पड़ता था और सभी को भोज देना पड़ता था। यज्ञों में आहुति के लिए घी, दूध, फल तथा अन्य कई प्रकार की वस्तुओं की आवश्यकता पड़ती थी। विशेष अवसरों पर पशु-बलि भी दी जाने लगी थी। कई यज्ञ तो 12 वर्ष तक चलते रहते थे जिन पर अधिक व्यय होता था। इस प्रकार यज्ञ इतने महंगे हो गए कि साधारण जनता उनके बारे में सोच विचार भी नहीं कर सकती थी। अन्य धार्मिक रीति-रिवाजों को पूरा करने के लिए भी ब्राह्मण बुलाने पड़ते थे जो दक्षिणा के रूप में धन बटोरते थे। आखिर कुछ महापुरुषों ने इन खर्चीले रीतिरिवाजों का खण्डन किया और नये धर्मों को जन्म दिया।

5. कठिन संस्कृत भाषा-वैदिक धर्म के सिद्धान्तों में जहां जटिलता आ गई थी, वहां इस धर्म के सभी ग्रंथ वेद, उपनिषद्, ब्राह्मण-ग्रंथ, रामायण, महाभारत आदि, कठिन संस्कृत भाषा में लिखे हुए थे। इस भाषा को आम लोग नहीं समझ सकते थे। इसलिए लोग अपने धर्म का वास्तविक ज्ञान प्राप्त नहीं कर सकते थे। फलस्वरूप वे कोई ऐसा धर्म चाहते थे जिसके ग्रंथ सरल भाषा में लिखे हों और उन्हें ब्राह्मणों की सहायता के बिना पढ़ा जा सके।

6. महापुरुषों का जन्म-सौभाग्य से छठी शताब्दी ई० पू० में अनेक महापुरुषों का जन्म हुआ। ये सभी अपने-अपने ढंग से दुःखी तथा दलित जनता का उद्धार करते रहे। उन्होंने लोगों को जीवन का सरल तथा सच्चा मार्ग दिखाया। इन महापुरुषों में महावीर स्वामी तथा महात्मा बुद्ध अधिक लोकप्रिय हुए। इन्हीं सिद्धान्तों ने धीरे-धीरे जैन धर्म तथा बौद्ध धर्म का रूप ले लिया।

इस प्रकार हम देखते हैं कि बौद्ध धर्म तथा जैन धर्म की उत्पत्ति मुख्यतः वैदिक धर्म में आई गिरावट के कारण हुई। धर्म की जटिलता, ब्राह्मणों का नैतिक पतन, छुआछूत, महंगे यज्ञ, कठिन भाषा तथा महापुरुषों का जन्म-ये सभी ऐसी बातें थीं जिन्होंने नए धर्मों के उभरने के लिए वातावरण तैयार किया। इस विषय में डॉ० एन० एन० घोष ठीक ही कहते हैं, “महावीर तथा गौतम बुद्ध ने हिन्दू धर्म में आए भ्रष्टाचार के विरुद्ध आवाज़ उठाई।” उनकी यही आवाज़ धीरे-धीरे नए धर्मों में बदल गई जिन्हें बदले हुए राजनीतिक वातावरण ने संरक्षण प्रदान किया।

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प्रश्न 2.
समाज के लिए महत्त्व तथा देन के संदर्भ में जैन धर्म की शिक्षाओं तथा साम्प्रदायिक विकास की चर्चा करें।
उत्तर-
जैन धर्म का उदय छठी शताब्दी ई० पू० में हुआ। इसके संस्थापक महावीर स्वामी थे। उन्होंने लोगों को अहिंसा तथा सदाचार का पाठ पढ़ाया। भले ही यह धर्म अत्यधिक लोकप्रिय न हो सका, तो भी भारतीय समाज, साहित्य तथा कला पर इसका गहरा प्रभाव पड़ा। आगे चलकर यह धर्म श्वेताम्बर तथा दिगम्बर नामक दो सम्प्रदायों में बंट गया। परन्तु इसमें मूल रूप में कोई महत्त्वपूर्ण परिवर्तन न आया। यह पहले की तरह की समाज में भाई-चारे, आपसी प्रेम तथा संयमित जीवन का प्रचार करता रहा। जैन धर्म की शिक्षाओं, उसके सामाजिक महत्त्व तथा इस धर्म के साम्प्रदायिक विकास का विस्तृत वर्णन इस प्रकार है

जैन धर्म की शिक्षाएं-

1. त्रिरत्न-जैन धर्म के अनुसार निर्वाण प्राप्त करना प्रत्येक मनुष्य के जीवन का लक्ष्य है। निर्वाण प्राप्ति के लिए मनुष्य को ‘त्रिरत्न’ (तीन सिद्धान्तों) पर चलना चाहिए। प्रथम सिद्धान्त के अनुसार मनुष्य को धर्म में दृढ़ विश्वास रखना चाहिए।। दूसरे, उसे व्यर्थ के आडम्बरों में समय नष्ट करने की बजाय सच्चा ज्ञान प्राप्त करना चाहिए। तीसरे, मनुष्य को सत्य, अहिंसा तथा ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।
PSEB 11th Class History Solutions Chapter 3 जैन धर्म और बौद्ध धर्म 1

2. अहिंसा-जैन धर्म में अहिंसा पर बड़ा बल दिया गया है। इसके अनुसार संसार की प्रत्येक वस्तु में आत्मा (जीव) है। पशु, पक्षी, वृक्ष, वायु तथा अग्नि सभी में जीव है। अतः वे किसी भी जीव को कष्ट देना पाप समझते हैं। जीव-हत्या के डर से जैनी लोग आज भी पानी छान कर पीते हैं, नंगे पांव चलते हैं, मुंह पर पट्टी बांधते हैं और रात को भोजन नहीं करते। वे नहीं चाहते कि कोई कीड़ा-मकौड़ा उनके पांवों के नीचे आ जाए या कोई कीटाणु उसके शरीर में चला जाए। संक्षेप में, हम यही कहेंगे कि जैन धर्म में अहिंसा पर बहुत बल दिया गया है।

3. घोर तपस्या-‘घोर तपस्या करना भी जैन धर्म का प्रमुख सिद्धान्त है। महावीर स्वामी अपने शरीर को अधिक से अधिक कष्ट देने में विश्वास रखते थे। उनका मत है कि उपवास करके प्राण त्यागने से ही मनुष्य को मोक्ष प्राप्त होता है। स्वयं महावीर जी ने अपने शरीर को कष्ट पहुंचा कर ही निर्वाण प्राप्त किया था। अतः उन्होंने अपने अनुयायियों को संसार त्याग देने तथा घोर तपस्या करने का उपदेश दिया।

4. ईश्वर में अविश्वास-महावीर स्वामी ईश्वर के अस्तित्व में विश्वास रखते थे। वे हिन्दू धर्म के इस सिद्धान्त को नहीं मानते थे कि सृष्टि की रचना ईश्वर ने की है।

5. आत्मा में विश्वास–जैन धर्म में आत्मा में अस्तित्व को स्वीकार किया गया है। इसके अनुसार आत्मा अमर है। यह शक्तिशाली है, परन्तु हमारे बुरे कर्म इसको निर्बल कर देते हैं। आत्मा में ज्ञान अमर है और यह सुख-दुःख का अनुभव करता है। एक जैन मुनि ने ठीक ही कहा है–आत्मा शरीर में रहकर भी शरीर से भिन्न होती है।’

6. यज्ञ, बलि आदि में अविश्वास-जैन धर्म में यज्ञ, बलि आदि व्यर्थ के रीति-रिवाजों का कोई स्थान नहीं है। महावीर स्वामी ने अपने अनुयायियों को पशु-बलि की मनाही कर दी। उनके अनुसार पशु-बलि पाप है। मोक्ष प्राप्ति के लिए यज्ञ आदि की कोई आवश्यकता नहीं है।

7. वेदों तथा संस्कृत की पवित्रता में अविश्वास-जैन लोग वेदों को ईश्वरीय ज्ञान नहीं मानते। संस्कृत को भी वे पवित्र भाषा स्वीकार नहीं करते। उनके अनुसार वेद मन्त्रों का गायन आवश्यक नहीं है। अत: महावीर स्वामी ने स्वयं अपने सिद्धान्तों का प्रचार जन-साधारण की भाषा में किया।

8. जाति-पाति में अविश्वास-जैन धर्म के अनुयायी जाति-पाति में विश्वास नहीं रखते। उनके अनुसार सभी मनुष्य समान हैं। जाति के आधार पर कोई व्यक्ति छोटा-बड़ा नहीं है।

9. कर्म सिद्धान्त में विश्वास-जैन धर्म के अनुयायी कर्म सिद्धान्त में बड़ा विश्वास रखते हैं। उनका मत है कि मनुष्य अपने पिछले जन्म में किए गए कर्मों के अनुसार जन्म लेता है और उसका अगला जन्म इस जन्म में किए गए कर्मों के अनुसार होगा। “कोई भी मनुष्य कर्मों के फल से नहीं बच सकता।”
(“There is no escape from the effect of one’s actions.”) अतः हमें अच्छे कर्म करने चाहिएं।

10. मोक्ष प्राप्ति-जैन धर्म के अनुसार आत्मा को कर्मों के बन्धन से छुटकारा दिलाने का नाम मोक्ष है। कर्म चक्र समाप्त होते ही जीव (आत्मा) को मुक्ति मिल जाती है। उसे पुनः किसी भी जन्म के चक्कर में नहीं फंसना पड़ता।

11. सदाचार पर बल-महावीर स्वामी ने अपने अनुयायियों को उच्च नैतिक जीवन व्यतीत करने की प्रेरणा दी। उन्होंने उपदेश दिया कि वे क्रोध, लोभ, ईर्ष्या, चोरी, निन्दा आदि अनैतिक कार्यों से बचें।

जैन धर्म की क्रियाओं का समाज के लिए महत्त्व एवं देन-

(1) जैन धर्म ने भारतीय जीवन के प्रत्येक क्षेत्र को प्रभावित किया। इसने जाति-प्रथा का घोर विरोध किया। इससे भारतीय समाज में लोगों का आपसी मेल-जोल बढ़ने लगा और समाज प्यार तथा भाईचारे की भावनाओं से ओत-प्रोत हो गया। जैन धर्म ने हमें समाज सेवा का उपदेश दिया। लोगों की भलाई के लिए जैनियों ने अनेक संस्थाएं स्थापित की।

(2) जैन धर्म के प्रचार के कारण हिन्दू धर्म में काफी सुधार हुए। जैन धर्म वालों ने हिन्दू धर्म में प्रचलित कुरीतियों तथा कर्म-काण्डों की घोर निन्दा की। इधर जैन धर्म के अपने सिद्धान्त बड़े साधारण थे जो लोगों को बड़े प्रिय लगे। जैन धर्म की बढ़ती हुई लोकप्रियता को देखकर ब्राह्मणों ने भी पशु-बलि, कर्म-काण्ड तथा अन्य कुरीतियों का त्याग करना शुरू कर दिया। इस प्रकार वैदिक धर्म काफ़ी सरल बन गया।

(3) जैन ऋषियों ने ही अहिंसा के महत्त्व को समझा तथा इसका प्रचार किया। अहिंसा के सिद्धान्त को अपनाकर लोग मांसाहारी से शाकाहारी बन गए।

(4) जैनियों ने अपने तीर्थंकरों की याद में विशाल मंदिर तथा मठ बनवाए। ये मंदिर अपने प्रवेश द्वारों तथा सुन्दर मूर्तियों के कारण प्रसिद्ध थे। दिलवाड़ा का जैन मन्दिर ताजमहल को लजाता है। कहते हैं कि मैसूर में बनी जैन धर्म की सुन्दर मूर्तियां दर्शकों को आश्चर्य में डाल देती हैं। इसी प्रकार आबू पर्वत का जैन-मन्दिर, एलोरा की गुफाएं तथा खुजराहो के जैन मन्दिर कला के उत्कृष्ट नमूने हैं। जैन धर्म में इस महान् योगदान की अपेक्षा नहीं की जा सकती। जैन धर्म के अनुयायियों ने लोक भाषाओं के प्रचार किया। उनका अधिकांश साहित्य संस्कृत की बजाय स्थानीय भाषाओं में लिखा गया। यही कारण है कि कन्नड़ साहित्य आज भी अपने उत्कृष्ट साहित्य के लिए जैन धर्म का अभारी है। इसके अतिरिक्त उन्होंने हिन्दी, गुजराती, मराठी आदि भाषाओं के साहित्य में खूब योगदान दिया।

साम्प्रदायिक विकास

जैन धर्म में साम्प्रदायिक विकास मौर्य काल में आरम्भ हुआ। उन दिनों देश में भीषण अकाल पड़ा। कुछ जैन भिक्षु भद्रबाहु की अध्यक्षता में दक्षिण चले गए। वहां उन्होंने नग्न रह कर महावीर स्वामी की भांति जीवन व्यतीत किया। समय बीतने के साथ-साथ जैन भिक्षुओं ने उत्तरी भारत में श्वेत वस्त्र धारण करने आरम्भ कर दिये। दक्षिण में रहने वाले भिक्षु दिगम्बर कहलाये तथा उत्तरी भारत के भिक्षु श्वेताम्बर कहलाए। दिगम्बर का अर्थ है ‘नग्न’ तथा श्वेताम्बर का अर्थ है ‘श्वेत वस्त्र’। समय बीतने के साथ-साथ दिगम्बर भिक्षुओं ने भी वस्त्र धारण करने आरम्भ कर दिए। परन्तु दोनों पक्षों में ऊपरी भेद आज भी बना हुआ है। यह भेद केवल मठों के आचार्यों तक ही सीमित है। मौर्य काल में हुई पाटलिपुत्र की एक सभा में जैन धर्म के सिद्धान्तों को 12 अंगों में विभाजित किया गया, परन्तु इन्हें दक्षिण के भिक्षुओं ने मानने से इन्कार कर दिया। अतः दोनों ने अपनी अलगअलग भाषा तथा टीकाएं लिखीं। ये ग्रन्थ प्राकृत तथा संस्कृत भाषा में लिखे गए। दोनों मतों में मूल रूप से कोई मतभेद नहीं

जैन धर्म की शिक्षाओं तथा उनके सामाजिक महत्त्व के अध्ययन से स्पष्ट है कि यह धर्म विश्व के महानतम धर्मों में से एक है। समाज में अहिंसा, प्रेम, कर्म तथा सेवा के भाव इस धर्म की मुख्य देन हैं। इस धर्म के कारण नवीन कला-कृतियां भी अस्तित्व में आईं जो आज भी भारतीय संस्कृति की समृद्धि का प्रतीक बनी हुई हैं।

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प्रश्न 3.
महात्मा बुद्ध की शिक्षाओं एवं संघ-व्यवस्था के संदर्भ से बौद्ध धर्म के विश्वास की चर्चा करें।
उत्तर-
महात्मा बुद्ध छठी शताब्दी ई० पू० के एक महान् धर्म प्रवर्तक थे। जैन धर्म की भान्ति उन्होंने भी नवीन धार्मिक आदर्श प्रस्तुत किए। उन्होंने भी अहिंसा पर बल दिया और यज्ञ, बलि, जाति-पाति आदि बातों का घोर खण्डन किया। उन्होंने लोगों को मध्य-मार्ग पर चल कर जीवन व्यतीत करने का संदेश दिया। अपने धर्म को व्यवस्थित रूप देने के लिए उन्होंने मठ वासी जीवन अर्थात् संघ-व्यवस्था को बड़ा महत्त्व दिया। इन विशेषताओं के फलस्वरूप बौद्ध धर्म का विकास बड़ी तीव्र गति से हुआ। कुछ ही समय में यह धर्म एक विश्वव्यापी धर्म बन गया। इस धर्म की शिक्षाओं, संघ-व्यवस्था एवं विकास का विस्तृत वर्णन इस प्रकार है-

बौद्ध धर्म की शिक्षाएं अथवा भगवान् बुद्ध के उपदेश —

महात्मा बुद्ध की शिक्षाएं बड़ी सरल थीं। इन शिक्षाओं को साधारण जनता आसानी से अपना सकती थी, फलस्वरूप हज़ारों की संख्या में लोग उनके शिष्य बनने लगे। थोड़े ही समय में बौद्ध धर्म विश्व का एक महान् धर्म बन गया। बौद्ध धर्म की मुख्य शिक्षाओं का वर्णन इस प्रकार है-

1. चार महान् सत्य-महात्मा बुद्ध ने चार महान् सत्यों पर बल दिया। ये थे-

  • संसार दुःखों का घर है।
  • इन दुःखों का कारण मनुष्य की तृष्णा अथवा लालसा है।
  • अपनी लालसाओं का दमन करने पर ही मनुष्य दुःखों से छुटकारा पा सकता है और निर्वाण प्राप्त कर सकता है।
  • मनुष्य अपनी लालसाओं का दमन अष्ट-मार्ग पर चलकर ही कर सकता है।

2. अष्ट-मार्ग-महात्मा बुद्ध ने अष्ट-मार्ग में निम्नलिखित आठ बातें सम्मिलित हैं

  • शुद्ध दृष्टि
  • शुद्ध संकल्प
  • शुद्ध वचन
  • शुद्ध कर्म
  • शुद्ध कमाई
  • शुद्ध प्रयत्न
  • शुद्ध स्मृति
  • शुद्ध समाधि।

ये सभी सिद्धान्त एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। उदाहरण के लिए शुद्ध कमाई केवल शुद्ध कर्म से ही हो सकती है। शुद्ध कर्म के लिए शुद्ध संकल्प तथा शुद्ध दृष्टि आवश्यक है। इस प्रकार अष्ट-मार्ग मनुष्य को पूर्ण रूप से सदाचारी बनाता है और उसे दुःखों से छुटकारा दिलाता है। इसे मध्य-मार्ग भी कहा जाता है।

3. अहिंसा-महात्मा बुद्ध के अनुसार मनुष्य को मन, वचन तथा कर्म से किसी भी जीव को कष्ट नहीं पहुंचाना चाहिए। यही अहिंसा है। इसके अनुसार जीव-हत्या तथा पशु-बलि पाप है। इसके विपरीत उन्होंने इस बात का प्रचार किया कि मनुष्य को सभी जीवों के साथ दया तथा प्रेम का व्यवहार करना चाहिए।

4. कर्म सिद्धान्त-बौद्ध धर्म में कर्म सिद्धान्त को पूर्ण रूप से स्वीकार किया गया है। इसके अनुसार मनुष्य को इस जन्म के कर्मों का फल अगले जन्म में अवश्य भोगना पड़ता है। अच्छे कर्मों का फल अच्छा और बुरे कर्मों का फल बुरा होता है। यज्ञ आदि करने से पापों से मुक्ति नहीं मिल सकती। अतः मनुष्यों को अपना भविष्य सुधारने के लिए अच्छे कर्म करने चाहिएं।

5. उच्च चरित्र तथा नैतिकता पर बल-महात्मा बुद्ध ने उच्च नैतिक तथा पवित्र जीवन पर बड़ा बल दिया। उनका कहना था कि केवल सदाचारी व्यक्ति सांसारिक दुःखों से छुटकारा पा सकता है। चरित्रवान् तथा सदाचारी बनने के लिए मनुष्य को इन नियमों का पालन करना चाहिए-(i) सदा सच बोलो। (ii) चोरी न करो। (iii) मादक पदार्थों का सेवन न करो। (iv) पराई स्त्रियों से दूर रहो। (v) ऐश्वर्य के जीवन से दूर रहो। (vi) नाच रंग में रुचि न रखो। (vii) धन से दूर रहो। (viii) सुगन्धित वस्तुओं का प्रयोग न करो। (ix) झूठ न बोलो। (x) किसी को कष्ट न दो।

6. निर्वाण-महात्मा बुद्ध के अनुसार मनुष्य जीवन का सबसे बड़ा लक्ष्य निर्वाण प्राप्ति है। हिन्दू धर्म की भान्ति वह मृत्यु के पश्चात् नरक-स्वर्ग के झगड़े में नहीं पड़ना चाहते थे। वे चाहते थे कि मनुष्य संसार में रहकर अपने इसी जीवन में निर्वाण प्राप्त करे। निर्वाण से उनका अभिप्राय सच्चे ज्ञान से था। उनका कहना था कि जो व्यक्ति निर्वाण प्राप्त कर लेते हैं, उन्हें जीवन-मरण के चक्कर से छुटकारा मिल जाता है।

7. ईश्वर के विषय में मौन-महात्मा बुद्ध परमात्मा तथा अन्य देवी-देवताओं की पूजा में विश्वास नहीं रखते थे। वह ईश्वर की सत्ता के विषय में सदा मौन रहे। फिर भी वे समझते थे कि कोई ऐसी शक्ति अवश्य है जो संसार को चला रही है। इस शक्ति को वे ईश्वर की बजाए धर्म मानते थे।

8. यज्ञ बलि का निषेध-महात्मा बुद्ध यज्ञ बलि को व्यर्थ के रीति-रिवाज समझते थे। वे हिन्दू धर्म के इस सिद्धान्त को नहीं मानते थे कि यज्ञ आदि करके मोक्ष प्राप्त किया जा सकता है। वे तो ऊंचे स्वर में मन्त्रों का उच्चारण करना भी व्यर्थ समझते थे। वे उस धर्म को सच्चा धर्म मानते थे जिसमें आडम्बर और व्यर्थ के रीति-रिवाज शामिल न हों।

9. वेदों तथा संस्कृत सम्बन्धी विचार-महात्मा बुद्ध के वेदों तथा संस्कृत के सम्बन्ध में विचार हिन्दू-धर्म से बिल्कुल भिन्न थे। हिन्दू धर्म के अनुसार वेद ईश्वरीय ज्ञान का भण्डार हैं। यह ज्ञान ऋषि-मुनियों को ईश्वर की ओर से प्राप्त हुआ था। हिन्दू धर्म वाले तो इस बात में भी विश्वास रखते थे कि वेदों का ज्ञान उन्हें संस्कृत भाषा पढ़ने से ही हो सकता है परन्तु महात्मा बुद्ध हिन्दू धर्म के इस सिद्धान्त से सहमत नहीं थे। उनके अनुसार सच्चा ज्ञान किसी भी भाषा में दिया जा सकता है। उन्होंने यह मानने से इन्कार कर दिया कि संस्कृत अन्य भाषाओं से अधिक पवित्र है। उन्होंने वेदों को भी अधिक महत्त्व नहीं दिया।

10. जाति-प्रथा में अविश्वास-महात्मा बुद्ध जाति-प्रथा के भेदभाव को नहीं मानते थे। उनके अनुसार सभी मनुष्य समान हैं और जाति के आधार पर कोई छोटा-बड़ा नहीं है। इसलिए उन्होंने सभी जातियों के लोगों को अपना शिष्य बनाया। उनका यह भी कहना था कि ज्ञान-प्राप्ति का मार्ग सभी जातियों के लिए समान रूप से खुला है। .

11. तपस्या का विरोध-महात्मा बुद्ध घोर तपस्या के पक्ष में नहीं थे। उनके अनुसार भूखा प्यासा रहकर शरीर को कष्ट देने से कुछ प्राप्त नहीं होता। उन्होंने स्वयं भी 6 वर्ष तक तपस्या का जीवन व्यतीत किया, परन्तु उन्हें कुछ प्राप्त न हुआ। वे समझते थे कि गृहस्थ जीवन व्यतीत करते हुए भी निर्वाण प्राप्त किया जा सकता है।

II. संघ-व्यवस्था

बौद्ध संघ बौद्ध भिक्षुओं के संगठन का नाम था। इन भिक्षुओं ने संसार का परित्याग कर दिया और बौद्ध धर्म का प्रसार करने में अपना जीवन लगा दिया। बौद्ध धर्म में दो प्रकार के अनुयायी थे-उपासक तथा भिक्षु । उपासक गृहस्थ जीवन व्यतीत करते थे तथा महात्मा बुद्ध द्वारा बताए गए साधारण नियमों का पालन करते थे। ये संघ के सदस्य नहीं होते थे। इसके विपरीत भिक्षु पूर्ण रूप से बौद्ध धर्म के सदस्य होते थे। उन्हें संघ के कठोर अनुशासन का पालन करना पड़ता था। संघ समस्त देश के लिए साझा नहीं होता था। प्रत्येक स्थान की अपनी अलग संस्था होती थी, जिसे संघ कहते थे। महात्मा बुद्ध ने अपने जीवनकाल में ही संघ प्रणाली का श्रीगणेश किया था। उन्होंने विस्तारपूर्वक संघ के नियम निश्चित कर दिए। इन नियमों की संख्या 227 से 360 तक मानी जाती है। इन नियमों का संग्रह ‘विनय पिटक’ में किया गया। सभी संघ इन नियमों का पालन करते हुए बौद्ध धर्म का प्रसार करते रहे।

सदस्यता-

  • 15 वर्ष से अधिक आयु वाले व्यक्ति ही संघ का सदस्य बन सकता था।
  • सदस्य बनने के लिए जातपात का ध्यान नहीं रखा जाता था।
  • सदस्य बनने के लिए गृह त्याग करना पड़ता था। इसके लिए घर वालों की आज्ञा लेना आवश्यक था।
  • सिपाही, दास, ऋणी, अपराधी, रोगी आदि व्यक्ति संघ के सदस्य नहीं बन सकते थे।
  • स्त्री सदस्यों को भिक्षुणी कहा जाता था। उन्हें न तो मत देने का अधिकार था और न ही उन्हें कोरम में गिना जाता था।
  • भिक्षु बनने के लिए एक व्यक्ति को पूरी दीक्षा दी जाती थी-उसे बाल मुंडवा कर पीले वस्त्र धारण करने पड़ते थे। उसे दस वर्ष तक किसी भिक्षु से शिक्षा लेनी पड़ती थी। उसे सदाचारी जीवन व्यतीत करने का प्रशिक्षण दिया जाता था। यदि वह नियमों पर पूरा उतरता था तथा अपना चरित्र ऊंचा रखता था तो उसे भिक्षु संघ में सम्मिलित कर लिया जाता था।

बौद्ध संघ में प्रवेश के समय उसे शपथ लेनी पड़ती थी। उसे ये शब्द दोहराने पड़ते थे : “मैं बुद्ध की शरण लेता हूँ, मैं धर्म की शरण लेता हूँ, मैं संघ की शरण लेता हूँ।”

दस आदेश-संघ के सदस्यों को अनुशासित जीवन व्यतीत करना पड़ता था। महात्मा बुद्ध ने उनके लिए दस आदेशों का पालन करना अनिवार्य बताया-

  • कभी झूठ न बोलो
  • दूसरों की सम्पत्ति पर आंख न रखो
  • जीव हत्या न करो
  • नशीली वस्तुओं का सेवन न करो
  • स्त्रियों के साथ मिलकर न रहो
  • वर्जित समय पर भोजन न करो
  • धन पास न रखो
  • फूलों, आभूषणों तथा सुगन्धित वस्तुओं का प्रयोग न करो
  • नाच-गाने में भाग न लो
  • नर्म गद्दे पर विश्राम न करो। संघ के सभी सदस्यों को इन नियमों का पालन करना पड़ता था।

संघ की बैठकें-संघ की सभाएं पन्द्रह दिन के पश्चात् होती थीं। संघ के सभी सदस्य इसमें भाग ले सकते थे। बैठक की कार्यवाही शुरू करने से पहले एक सभापति चुना जाता था। प्रायः वह कोई बौद्ध भिक्षु ही होता था। उसकी आज्ञा से कार्यवाही आरम्भ होती थी। प्रस्ताव पेश किए जाते थे और उन पर निर्णय लिए जाते थे। निर्णयों के लिए मतदान होता था।

इस प्रकार बौद्ध भिक्षु प्रजातन्त्र के सिद्धान्तों के अनुसार अपने मतभेदों को दूर करने और धर्म के प्रचार में लीन रहते थे। कुछ भी हो, बौद्ध धर्म संघ एक आदर्श संस्था थी। डॉ० आर० सी० मजूमदार के शब्दों में, “यह संघ विश्व में बने सभी

महान् संगठनों में से एक बन गया।” (“The Sangha became one of the greatest religious corporations, the world has ever seen.”) बौद्ध संघ के आदर्शों तथा बौद्ध की सरल शिक्षाओं ने इस धर्म के विकास की गति को काफ़ी तीव्र कर दिया।

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 3 जैन धर्म और बौद्ध धर्म

प्रश्न 4.
बौद्ध धर्म के साम्प्रदायिक विकास एवं पतन के कारणों की चर्चा करें।
उत्तर-
बौद्ध धर्म का उदय छठी शताब्दी ई० पू० में हुआ था। अपनी सरल शिक्षाओं, महान् आदर्श तथा राजकीय संरक्षण के कारण यह धर्म शीघ्र ही लोकप्रिय हो गया। यहां तक कि अनेक विदेशी राजाओं ने भी इसे अपना लिया। परन्तु समय के साथ इसमें ऐसी अनेक त्रुटियां आ गईं जिनके कारण इसकी लोकप्रियता कम होने लगी। कनिष्क के काल में यह धर्म दो सम्प्रदायों में बंट गया। इन दो विरोधी धाराओं के कारण इसकी लोकप्रियता और भी कम होने लगी और अन्ततः इस धर्म का पतन हो गया। संक्षेप में बौद्ध धर्म के साम्प्रदायिक विकास एवं पतन के कारणों का वर्णन इस प्रकार है

I. साम्प्रदायिक विकास

बौद्ध धर्म के साम्प्रदायिक भेदभाव का आरम्भ महात्मा बुद्ध के देहान्त से लगभग 100 वर्ष बाद हुआ। सर्वप्रथम बौद्धों के आपसी मतभेद वैशाली की बौद्ध सभा में सामने आए। इस सभा में एक ओर रूढ़िवादी थे। वे चाहते थे कि संघ का प्रबन्ध पहले की भान्ति केवल वृद्ध भिक्षुओं के हाथ में ही रहे। दूसरी ओर युवा भिक्षु थे जो यह चाहते थे कि संघ के प्रबन्ध में सभी भिक्षु समान रूप से भाग लें। ये मतभेद वास्तव में साधारण थे। परन्तु इस सभा में रूढ़िवादियों का पक्ष भारी होने के कारण युवा भिक्षु अपने उद्देश्य की प्राप्ति के लिए और अधिक प्रयत्न करने लगे। महाराजा अशोक के शासनकाल में पाटलिपुत्र में एक और बौद्ध सभा हुई। इसी सभा में भी यही समस्या उठाई गई। परन्तु अशोक के समर्थन के कारण इस बार भी रूढ़िवादियों की ही विजय हुई। अनेक बौद्ध भिक्षुओं को मठों से भी निकाल दिया गया। इस पर भी युवा भिक्षुओं ने अपने विचार न छोड़े और अपने उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए प्रयत्नशील रहे।

कनिष्क के शासनकाल में कश्मीर में बौद्ध धर्म की एक महासभा बुलाई गई। इस सभा में ‘महाविभाष’ नामक एक ग्रन्थ का संकलन किया गया। इस ग्रन्थ में जिन सिद्धान्तों का संकलन किया गया, वे परम्परा-विरोधी थे। इन सिद्धान्तों पर आधारित सम्प्रदाय को ‘सर्वास्तिवादिन’ का नाम दिया गया। यह नया सम्प्रदाय पहली तथा दूसरी शताब्दी में कश्मीर के साथ-साथ मथुरा में भी विकसित हुआ। इस समय तक बौद्ध धर्म में कई अन्य भी ऐसे परम्परा विरोधी सम्प्रदायों का उदय हो चुका था। धीरेधीरे इन सभी परम्परा विरोधी सम्प्रदायों ने अपने आपको रूढ़िवादियों के विरुद्ध संगठित कर लिया। इसी नये संगठित सम्प्रदाय को ही ‘महायान’ का नाम दिया गया। महायान के भिक्षुओं ने रूढ़िवादियों को नीचा दिखाने के लिए उनके सम्प्रदाय को ही “हीनयान’ के नाम से पुकारना आरम्भ कर दिया।

II. बौद्ध धर्म के पतन के कारण

1. हिन्दू धर्म में सुधार-लोगों ने हिन्दू धर्म के व्यर्थ के रीति-रिवाजों से तंग आकर बौद्ध धर्म स्वीकार किया था। उनका … हिन्द धर्म के मुख्य सिद्धान्तों में कोई विरोध न था। समय अनुसार हिन्दू धर्म में अनेक सुधार किए गए। धर्म में आडम्बरों का महत्त्व समाप्त कर दिया गया। परिणामस्वरूप लोग पुनः हिन्दू धर्म को अपनाने लगे। इस प्रकार हिन्दू धर्म की लोकप्रियता बौद्ध धर्म के ह्रास का कारण बनी।

2. गुप्त राजाओं का हिन्दू धर्म में विश्वास-अशोक आदि राजाओं का सहयोग पाकर बौद्ध धर्म का विकास हुआ था। इसी प्रकार गुप्त राजाओं का संरक्षण पाकर हिन्दू धर्म पुनः बल पकड़ गया। गुप्त राजाओं का किसी धर्म के प्रति विरोध नहीं था, परन्तु वे व्यक्तिगत रूप से हिन्दू धर्म के अनुयायी थे। उनके शासन काल में हिन्दू देवी-देवताओं के मन्दिरों की स्थापना हुई। कृष्ण, विष्णु, शिव की उपासना आरम्भ हुई। संस्कृत भाषा को भी काफ़ी बल मिला। इस तरह हिन्दू धर्म में नवीन जागृति आई। लोग काफ़ी संख्या में हिन्दू धर्म में लौट आए। इससे बौद्ध धर्म को बहुत आघात पहुंचा। बौद्ध धर्म के लिए यह बहुत बड़ी चोट थी।

3. बौद्ध भिक्षुओं की चरित्रहीनता-बौद्ध भिक्षुओं के उच्च चरित्र तथा सदाचारी जीवन ने लोगों को बड़ा प्रभावित किया था, परन्तु समय की करवट ने बौद्ध संघ के अनुशासन को शिथिल कर दिया। स्त्रियों को भी संघ में शामिल कर लिया गया। बौद्ध भिक्षु महात्मा बुद्ध के दस आदेशों को भूल गए। वे विलासी जीवन व्यतीत करने लगे। ऐसे लोगों को जनता भला कबी क्षमा करने वाली थी। अतः भिक्षुओं का दूषित आचरण भारत में बौद्ध धर्म को ले डूबा।

4. राजकीय सहायता की समाप्ति-हर्ष की मृत्यु के पश्चात् बौद्ध धर्म राजकीय आश्रय खो बैठा। उसके बाद फिर किसी राजा ने बौद्ध धर्म की धन से सहायता नहीं की। इससे इस धर्म की प्रतिष्ठा को काफ़ी धक्का लगा। जिन लोगों ने शायद अपने राजा को प्रसन्न करने के लिए बौद्ध धर्म स्वीकार किया था, अब बौद्ध धर्म छोड़ दिया।

5. बौद्ध धर्म में मूर्ति पूजा-प्रथम शताब्दी के पश्चात् बौद्ध धर्म की महायान शाखा के अनुयायी बुद्ध को देवता मानने लगे। वे उसकी मूर्ति बनाकर पूजा करने लगे। मूर्ति पूजा के कारण ये लोग हिन्दू धर्म के अधिक निकट आ गए। आखिर महायान शाखा के बहुत से अनुयायी हिन्दू धर्म में आ गए।

6. बौद्ध धर्म में फूट-बौद्ध धर्म के अनुयायी कई शताब्दियों तक एकता के सूत्र में बन्धे रहे। वे मिलकर आपसी मतभेद दूर करते रहे और उन्होंने अपनी एकता को बनाए रखा। आखिर पहली शताब्दी तक ये भेदभाव विकट रूप से धारण कर गए। चौथी बौद्ध परिषद् के पश्चात् यह धर्म हीनयान तथा महायान नामक दो शाखाओं में बंट गया। इन दोनों शाखाओं में आपसी भेदभाव बढ़ते चले गए। इन भेदभावों का बौद्ध धर्म की लोकप्रियता पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ा।

7. अहिंसा का सिद्धान्त-बौद्ध धर्म में अहिंसा को परम धर्म माना जाता था। इसके प्रभाव में आकर अशोक ने युद्ध करना बन्द कर दिया था। देखने में तो यह एक महान् बात थी, परन्तु इसके कारण भारत में सैनिक दुर्बलता आ गई। अतः हम विदेशी आक्रमणकारियों के हाथों पिट गए। लोगों ने पराजय का मुख्य कारण बौद्ध धर्म के अहिंसा के सिद्धान्त को माना। अत: भारत में बौद्ध धर्म की लोकप्रियता का कम होना स्वाभाविक ही था।

8. हूणों के आक्रमण-हूणों के आक्रमणों के कारण भी बौद्ध धर्म को बड़ा आघात पहुंचा। वे बड़े निर्दयी तथा अत्याचारी लोग थे। उन्होंने भारत के उत्तर-पश्चिमी सीमान्त प्रान्त में अपना राज्य स्थापित कर लिया। मिहिरगुल उनका प्रसिद्ध राजा था जिसने बौद्ध धर्म के स्तूपों तथा मठों को नष्ट-भ्रष्ट करवा दिया। कहते हैं कि उसने अनेक बौद्धों को मरवा डाला। शेष बौद्ध लोग वहां से बच निकले। इस प्रकार भारत के उत्तर-पश्चिमी भाग में बौद्ध धर्म का पूर्णतया ह्रास हो गया।

9. हिन्दू प्रचारक-आठवीं तथा नौवीं शताब्दी में हिन्दू धर्म को दो महान् विभूतियों ने भारत में हिन्दू धर्म की जड़ें फिर से मजबूत करने में महान् योगदान दिया। ये थे-शंकराचार्य तथा कुमारिल भट्ट। उन्होंने हिन्दू धर्म के प्रचार के साथ-साथ बौद्ध मत का खण्डन भी किया। उन्होंने हिमालय से कन्याकुमारी तक भ्रमण किया तथा हिन्दू धर्म के सिद्धान्तों को पुनः स्थापित किया।

10. राजपूतों का विरोध-आठवीं शताब्दी से लेकर ग्यारहवीं शताब्दी तक समस्त उत्तरी भारत राजूपतों के प्रभुत्व में आ गया था। राजपूत वीर योद्धा थे जो अहिंसा की बजाए रक्तपात में विश्वास रखते थे। अतः राजपूत राजाओं की छत्रछाया में बौद्ध भिक्षुओं के लिए धर्म प्रचार कठिन हो गया। अनेक बौद्ध विद्वान् भारत छोड़कर विदेशों में चले गए। उचित प्रचार कार्यों के अभाव के कारण बौद्ध धर्म का लोप होने लगा।

11. मुसलमान आक्रमणकारी-11वीं तथा 12 शताब्दी में भारत पर मुसलमानों के आक्रमण आरम्भ हो गए। उन्होने भारत पर अपना राज्य स्थापित कर लिया। यह बात बौद्ध धर्म के लिए बड़ी हानिकारक सिद्ध हुई। मुसलमान शासकों ने बौद्ध भिक्षुओं पर बड़े अत्याचार किए तथा उनके मठ तथा मन्दिर भी नष्ट करवा दिए। परिणामस्वरूप बौद्ध धर्म का पतन हो गया।

12. महान् व्यक्तित्व का अभाव-महात्मा बुद्ध के पश्चात् बौद्ध धर्म ने कोई महान् व्यक्ति पैदा नहीं किया। यदि 8वीं शताब्दी के पश्चात् बौद्ध धर्म का नेतृत्व किसी महान् व्यक्ति के हाथ में होता तो शायद वह धर्म सुधार करके उसे सफल बना देता। वह शायद अहिंसा की परिभाषा ही बदल देता। एक उचित पग-प्रदर्शक के अभाव के कारण बौद्ध धर्म का अन्त हो गया।

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प्रश्न 5.
भारत तथा विदेशों में बौद्ध धर्म के शीघ्र प्रसार के क्या कारण थे ?
उत्तर-
बुद्ध धर्म का विकास इतिहास की एक रोमांचकारी घटना है। महात्मा बुद्ध की आज्ञा पाकर बौद्ध भिक्षु धर्म प्रचार के लिए भारत की चारों दिशाओं में फैल गए। आरम्भ में प्रचार की गति बड़ी धीमी रही। परन्तु महात्मा बुद्ध की मृत्यु के पश्चात् बौद्ध धर्म जहां भारत में तीव्र गति से फैला, वहां उसने भारत की सीमाएं पार करके विदेशियों को भी अपनी ओर आकर्षित किया। इतिहास इस बात का साक्षी है कि चीन, जापान, लंका, मयनमार (बर्मा) आदि देशों के निवासियों ने प्रसन्नतापूर्वक इस धर्म को अपनाया और इसे अपने जीवन का अंग बना लिया। राजा तथा प्रजा दोनों ही बौद्ध धर्म के रंग में रंग गए। बौद्ध धर्म की इस अत्यधिक लोकप्रियता के अनेक कारण थे जिनका संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है-

1. महात्मा बुद्ध का महान् व्यक्तित्व-महात्मा बुद्ध का व्यक्तित्व महान् था। उन्होंने राजघराने में जन्म लेकर भी संन्यास 1 के दुःख झेले। वे सिंहासन ग्रहण कर सकते थे, परन्तु उन्होंने आसन ग्रहण किया। उन्होंने सत्य की खोज में अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया। त्याग, सच्चाई तथा परोपकार की तो वे साक्षात मूर्ति थे। उनका हृदय शुद्ध तथा पवित्र था। वे केवल उन्हीं बातों का प्रचार करते थे जिनको उन्होंने स्वयं अपना लिया था। वे जो कुछ चाहते थे स्वयं भी करते थे। अनेक लोग उनके महान् व्यक्तित्व से बड़े प्रभावित हुए और वे बौद्ध धर्म के अनुयायी बन गए। विलियम (William) ने बौद्ध धर्म के प्रसार में बुद्ध के व्यक्तित्व का वर्णन करते हुए ठीक कहा है, “The influence of the personal character of Buddha combined with extraordinary persuasiveness of his teachings was irreistible.”

2. अनुकूल परिस्थितियां-बौद्ध धर्म का उदय ऐसे वातावरण में हुआ जब लोगों को इस धर्म की बहुत आवश्यकता थी। लोग हिन्दू धर्म के व्यर्थ के कर्म-काण्डों, खर्चीले यज्ञों तथा अन्य रीति-रिवाजों से तंग आ चुके थे। उन्हें एक ऐसे सरल धर्म की आवश्यकता थी जो उन्हें इन व्यर्थ के आडम्बरों से छुटकारा दिला सकता। ऐसे समय में बौद्ध धर्म जैसे सरल धर्म ने लोगों को बहुत आकर्षित किया।

3. सरल शिक्षाएं-बौद्ध धर्म की शिक्षाएं बड़ी सरल थीं। उनमें गूढ-दर्शन की बातें न थीं जिन्हें जन-साधारण समझ न पाते। इसके अनुसार मनुष्य को नरक-स्वर्ग अथवा आत्मा-परमात्मा के वाद-विवाद में पढ़ने की आवश्यकता न थी। उसे सदाचारी जीवन व्यतीत करना चाहिए। अष्ट-मार्ग के सिद्धान्त, घोर तपस्या से कहीं अच्छे थे। ये सभी शिक्षाएं दुःखी मानवता के लिए मरहम थीं। अत: लोगों ने दिल खोलकर बौद्ध धर्म का स्वागत किया।

4. लोक भाषा में प्रचार-हिन्दू धर्म के सभी ग्रन्थ संस्कृत भाषा में थे। जन-साधारण के लिए इस कठिन भाषा को समझना आसान न था। उन्हें ब्राह्मणों द्वारा बताई हुई व्याख्या पर विश्वास करना पड़ता था। इसके विपरीत महात्मा बुद्ध तथा अन्य भिक्षुओं ने धर्म प्रचार पाली अथवा प्राकृत जैसी बोल-चाल की भाषा में किया। इस प्रकार लोग बिना कठिनाई के बौद्ध धर्म की शिक्षा को समझने लगे।

5. जाति-प्रथा में अविश्वास-बौद्ध धर्म में जाति प्रथा का कोई स्थान नहीं था। सभी जातियों के लोग बौद्ध धर्म में शामिल हो सकते थे। किसी भी जाति का व्यक्ति बौद्ध धर्म के सिद्धान्तों को अपना सकता है। बौद्ध धर्म के इस सिद्धान्त ने चमत्कारी प्रभाव दिखाया। निम्न वर्गों के लोगों को चाण्डाल समझा जाता था। भला ऐसे लोग बौद्ध धर्म का स्वागत क्यों नहीं करते ?

6. बौद्ध संघ-बौद्ध संघ ने बौद्ध धर्म के प्रचार में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। यह संघ भिक्षुओं तथा भिक्षुणियों को बौद्ध धर्म के सिद्धान्तों का प्रशिक्षण देता था। पूरी तरह दीक्षा लेने के पश्चात् भिक्षु प्रचार कार्य में लग जाते। ये लोग वर्ष में 8 मास प्रचार कार्य में लगे रहते। वर्षा के 4 मास वे मठों में व्यतीत करते। उस समय भी वे भविष्य में प्रचार का कार्यक्रम बनाते। भिक्षु लोगों के इस निरन्तर प्रचार के कारण बौद्ध धर्म का काफ़ी प्रसार हुआ। इस विषय में डॉ० वी० ए० स्मिथ ने सत्य ही कहा है, “भिक्षु तथा भिक्षुणियों का सुव्यवस्थित संघ इस धर्म के प्रसार में अत्यन्त प्रभावशाली बात सिद्ध हुई।”

7. बौद्ध भिक्षुओं का उच्च नैतिक चरित्र-बौद्ध भिक्षु चरित्रवान होते थे। वे झूठ नहीं बोलते थे। नशीली वस्तुओं तथा सुगन्धित पदार्थों का सेवन नहीं करते थे। वे धन, स्त्री, संगीत तथा अन्य ऐश्वर्य की वस्तुओं से दूर रहते थे। वे संसार को त्याग कर पीले वस्त्र धारण करते थे। इन उचित चरित्र वाले लोगों से साधारण जनता बड़ी प्रभावित हुई। अत: बौद्ध धर्म का उत्थान स्वाभाविक ही था।

8. राजकीय सहायता-बौद्ध धर्म एक अन्य दृष्टिकोण से भी भाग्यशाली था। उसे अशोक, कनिष्क तथा हर्ष जैसे प्रतापी राजाओं का सहयोग प्राप्त हुआ। इतिहास इस बात का साक्षी है कि अशोक ने इस धर्म के प्रचार के लिए स्वयं को, अपनी सन्तान को, सरकारी मशीनरी तथा खज़ाने को लगा दिया। संसार में किस धर्म को ऐसा सौभाग्य प्राप्त हुआ ? कनिष्क तथा हर्ष ने भी धन तथा व्यक्तिगत सेवाओं से बौद्ध धर्म को उन्नत किया। कनिष्क के प्रयत्नों के फलस्वरूप ही बौद्ध धर्म चीन, जापान तथा तिब्बत जैसे देशों में फैल गया। सच तो यह है कि राजकीय सहायता पाकर बौद्ध धर्म भारत में ही नहीं, अपितु उसकी सीमाओं के बाहर भी फैल गया।

9. बौद्ध धर्म में लचीलापन-आरम्भ में बौद्ध धर्म मूर्ति पूजा में विश्वास नहीं करता था। परन्तु पहली शताब्दी के पश्चात् बौद्ध धर्म की महायान शाखा ने बुद्ध को देवता के रूप में पूजना आरम्भ कर दिया। बद्ध की मूर्तियां बनाकर बौद्ध मन्दिरों में स्थापित की गईं। इस प्रकार बौद्ध धर्म के अनुयायियों ने समय-समय पर धर्म में परिवर्तन करके इसकी लोकप्रियता को बनाये रखा। भले ही आज बौद्ध धर्म भारत में लोकप्रिय नहीं है, परन्तु सुधारों के कारण यह आज भी विश्व के महान् धर्मों में गिना जाता है।

10. विश्वविद्यालयों का योगदान-बौद्ध धर्म को फैलाने में तक्षशिला, नालन्दा आदि विश्व-विद्यालयों का बड़ा योगदान रहा। यहां देश-विदेश से विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करने आया करते थे। उन्हें बौद्ध धर्म के मुख्य सिद्धान्तों तथा विचारधारा से अवगत कराया जाता था। ये विद्यार्थी जहां जाते बौद्ध धर्म का प्रचार करते। चीन, तिब्बत, जापान, लंका, स्याम आदि देशों में बौद्ध धर्म का प्रचार इन्हीं विद्यार्थियों द्वारा किया गया।

11. प्रचारक धर्मों का अभाव-उन दिनों कोई धर्म ऐसा नहीं था जो अपने प्रचार में लगा हुआ हो। इस्लाम तथा ईसाई … धर्म तो बाद में आए। बौद्ध धर्म का मुकाबला केवल हिन्दू धर्म ही कर सकता था। परन्तु हिन्दू धर्म एक प्रचारक धर्म नहीं था। उसके प्रचार के लिए साधुओं या संन्यासियों का गिरोह नहीं घूमता था। अत: बौद्ध धर्म के प्रचारक निर्विरोध अपना कार्य करते गए और इन्होंने इसे विश्वव्यापी धर्म बना दिया।

12. बौद्ध धर्म के सम्मेलन-समय-समय पर बौद्ध धर्म से सम्बन्धित भेदभावों को दूर करने के लिए परिषदें बुलाई गईं। ऐसी कुल चार परिषदें बुलाई गईं। इन परिषदों में बौद्ध भिक्षु आपसी भेदभाव को दूर करके बौद्ध धर्म को ठोस रूप प्रदान करते रहे।

इस प्रकार हम देखते हैं कि महात्मा बुद्ध का महान् व्यक्तित्व, पाली भाषा, बौद्ध संघ, भिक्षुओं के चरित्र, विश्वविद्यालयों, जाति-प्रथा में अविश्वास आदि अनेक बातों ने बौद्ध धर्म के प्रसार में काफ़ी योगदान दिया। इसके अतिरिक्त बौद्ध साहित्य, प्रजातन्त्रात्मक व्यवस्था तथा विदेशियों को अपनी ओर आकृष्ट करने की क्षमता ने भी इस धर्म के उत्थान में बड़ा योगदान दिया। शीघ्र ही यह धर्म विश्व धर्म बन गया। आज भी इसकी गणना संसार के प्रमुख धर्मों में की जाती है।

महत्त्वपूर्ण परीक्षा-शैली प्रश्न

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न

1. उत्तर एक शब्द से एक वाक्य तक-

प्रश्न 1.
अजातशत्रु की मृत्यु कब हुई ?
उत्तर-
अजातशत्रु की मृत्यु 461 ई० पू० में हुई।

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प्रश्न 2.
प्राकृत भाषा किस भाषा का परिवर्तित रूप थी ?
उत्तर-
प्राकत भाषा संस्कृत भाषा का परिवर्तित रूप थी।

प्रश्न 3.
छठी शताब्दी ई० पू० में जन्म लेने वाले दो प्रमुख धर्मों के नाम बताओ।
उत्तर-
छठी शताब्दी ई० पू० में जन्म लेने वाले दो प्रमुख धर्म थे-जैन धर्म तथा बौद्ध धर्म।

प्रश्न 4.
जैन धर्म के संस्थापक कौन थे ?
उत्तर-
जैन धर्म के संस्थापक वर्द्धमान महावीर थे।

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प्रश्न 5.
महावीर स्वामी का जन्म कहाँ हुआ था ?
उत्तर-
महावीर स्वामी का जन्म वैशाली में हुआ था।

प्रश्न 6.
महावीर स्वामी का देहान्त कितने वर्ष की आयु में हुआ ?
उत्तर-
महावीर स्वामी का देहान्त 72 वर्ष की आयु में हुआ।

प्रश्न 7.
महावीर स्वामी का देहान्त कहाँ हुआ था ?
उत्तर-
महावीर स्वामी का देहान्त पावाग्राम में हुआ था।

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प्रश्न 8.
महावीर स्वामी के पिता का नाम क्या था ?
उत्तर-
महावीर स्वामी के पिता का नाम सिद्धार्थ था।

प्रश्न 9.
महावीर स्वामी की पत्नी का नाम क्या था ?
उत्तर-
महावीर स्वामी की पत्नी का नाम यशोधरा था।

प्रश्न 10.
बौद्ध धर्म के संस्थापक कौन थे ?
उत्तर-
बौद्ध धर्म के संस्थापक महात्मा बुद्ध थे।

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प्रश्न 11.
महात्मा बुद्ध को सच्चे ज्ञान की प्राप्ति कहाँ हुई ?
उत्तर-
महात्मा बुद्ध को सच्चे ज्ञान की प्राप्ति गया नामक स्थान पर हुई।

प्रश्न 12.
महात्मा बुद्ध ने अपना पहला उपदेश कहाँ दिया था ?
उत्तर-
महात्मा बुद्ध ने अपना पहला उपदेश सारनाथ नामक स्थान पर दिया था।

प्रश्न 13.
महात्मा बुद्ध के पिता का क्या नाम था ?
उत्तर-
महात्मा बुद्ध के पिता का नाम शुद्धोधन था।

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प्रश्न 14.
जैन धर्म के तेइसवें तीर्थंकर कौन थे ?
उत्तर-
जैन धर्म के तेइसवें तीर्थंकर पार्श्वनाथ थे।

प्रश्न 15.
जैन धर्म के 24वें और सबसे महत्वपूर्ण तीर्थंकर का नाम बताओ।
उत्तर-
जैन धर्म के 24वें और सबसे महत्त्वपूर्ण तीर्थंकर का नाम वर्धमान महावीर था।

प्रश्न 16.
बौद्ध धर्म के दो सम्प्रदायों के नाम लिखो।
उत्तर-
हीनयान और महायान।

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2. रिक्त स्थानों की पूर्ति-

(i) …………… सबसे शक्तिशाली महाजनपद था।
(ii) छठी शताब्दी ई० पू० में व्यापारियों के संगठन को …………. कहा जाता था।
(iii) जैनियों के ………….. तीर्थंकर थे।
(iv) वर्द्धमान स्वामी का जन्म ………… ई० पू० में हुआ था।
(v) जैन धर्म के अनुसार …………… मुक्ति का मार्ग है।
उत्तर-
(i) मगध
(ii) श्रेणी
(iii) 24
(iv) 599
(v) त्रिरत्न।

3. सही/ग़लत कथन-

(i) गौतम बुद्ध के बचपन का नाम सिद्धार्थ था। — (√)
(ii) महात्मा बुद्ध को कुशीनारा (कुशीनगर) में सच्चा ज्ञान प्राप्त हुआ। — (×)
(iii) अष्टमार्ग बौद्ध धर्म का एक महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त है। — (√)
(iv) बिम्बिसार का वध उसके पुत्र बृहद्रथ ने किया था। — (×)
(v) अजातशत्रु मगध के राजा बिम्बिसार का पुत्र था। — (√)

4. बहु-विकल्पीय प्रश्न-

प्रश्न (i)
महाजनपद संख्या में कितने थे ?
(A) 8
(B) 12
(C) 16
(D) 20
उत्तर-
(C) 16

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प्रश्न (ii)
महावीर जैन की माता का नाम था-
(A) महामाया
(B) त्रिशला
(C) वैशाली
(D) गौतमी।
उत्तर-
(B) त्रिशला

प्रश्न (iii)
जैनधर्म के पहले तीर्थंकर थे
(A) ऋषभदेव
(B) महावीर स्वामी
(C) सिद्धार्थ
(D) शंकरदेव।
उत्तर-
(A) ऋषभदेव

प्रश्न (iv)
छठी शताब्दी ई० पू० में निम्न भाषा महत्त्वपूर्ण बनी-
(A) अवधी
(B) संस्कृत
(C) ब्रज
(D) प्राकृत।
उत्तर-
(D) प्राकृत।

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प्रश्न (v)
तीर्थंकर शब्द का अर्थ है
(A) मुक्ति दिलाने वाला
(B) धन में वृद्धि करने वाला
(C) तीर्थ यात्रा का फल देने वाला
(D) वंश वृद्धि करने वाला ।
उत्तर-
(A) मुक्ति दिलाने वाला

II. अति छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
छठी सदी ई० पू० के चार मुख्य राजतन्त्र कौन-से थे ?
उत्तर-
छठी सदी ई० पू० के चार मुख्य राजतंत्र ये थे-कौशल, काशी, मगध और अंग।

प्रश्न 2.
अजातशत्रु किसका पुत्र था उसकी राजधानी का क्या नाम था ?
उत्तर-
अजातशत्रु बिम्बिसार का पुत्र था और उसकी राजधानी का नाम ‘राजगृह’ था।

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प्रश्न 3.
छठी शताब्दी ई० पू० में प्रयोग में आने वाली नई भाषा का क्या नाम था और यह किन लोगों की भाषा थी ?
उत्तर-
इस काल में प्रयोग में आने वाली नई भाषा का नाम ‘प्राकृत’ था। ‘प्राकृत’ जन-साधारण की भाषा थी। ।

प्रश्न 4.
गोशाल मस्करि पुत्र से सम्बन्धित आन्दोलन का क्या नाम था और इसे किस शासन का संरक्षण प्राप्त था ?
उत्तर-
गोशाल मस्करि पुत्र से सम्बन्धित आन्दोलन का नाम ‘आजीविक आन्दोलन’ था। इसे राजा अशोक का संरक्षण प्राप्त था।

प्रश्न 5.
महावीर का आरम्भिक नाम क्या था और इसका सम्बन्ध कौन-से कबीले से था ?
उत्तर-
महावीर का आरम्भिक नाम वर्धमान था। उसका सम्बन्ध ‘लिच्छवी’ कबीले से था।

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प्रश्न 6.
दक्षिणी तथा पश्चिमी भारत में जैन धर्म के बारे में लिखने वाले दो जैन विद्वानों के नाम क्या हैं ?
उत्तर-
भद्रभाहु और हेम-चन्द्र।

प्रश्न 7.
महावीर की संन्यास-पद्धति को आरम्भ में क्या नाम दिया गया तथा उसका शाब्दिक अर्थ क्या
उत्तर-
महावीर की संन्यास-पद्धति को आरम्भ में ‘निर्ग्रन्थी’ का नाम दिया गया। निर्ग्रन्थी का अर्थ है, ‘बन्धनों से रहित’।

प्रश्न 8.
जैन धर्म में निर्वाण से क्या भाव है ?
उत्तर-
जैन धर्म में निर्वाण से भाव है-जन्म-मरण से मुक्त होना।

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प्रश्न 9.
पूर्वी भारत में जैन धर्म के सबसे बड़े संरक्षक शासक का क्या नाम था और यह वर्तमान के किस राज्य के इलाके का शासक था ?
उत्तर-
पूर्वी भारत में जैन धर्म के सबसे बड़े संरक्षक शासक का नाम ‘खारवेल’ था। वह उड़ीसा का शासक था।

प्रश्न 10.
गुजरात के कौन-से वंश के राजा ने 12वीं सदी में जैन मत को संरक्षण दिया ?
उत्तर-
गुजरात के सोलंकी वंश के राजा ने 12वीं सदी में जैन मत को संरक्षण दिया।

प्रश्न 11.
वर्तमान भारत के कौन-से तीन राज्यों में जैन धर्मावलम्बी बड़ी संख्या में हैं ?
उत्तर-
जैन धर्मावलम्बी गुजरात, राजस्थान तथा कर्नाटक में बड़ी संख्या में विद्यमान हैं।

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प्रश्न 12.
सबसे अधिक प्रभावशाली जैन मन्दिर कौन-से दो स्थानों पर हैं ?
उत्तर-
सबसे अधिक प्रभावशाली जैन मन्दिर राजस्थान में आबू पर्वत पर तथा मैसूर में श्रावणवेलगोला में हैं।

प्रश्न 13.
त्रिपिटिकों के क्या नाम हैं ?
उत्तर-
त्रिपिटिकों के नाम हैं-विनय-पिटक, सुत्त-पिटक तथा अभीधम्मपिटक।

प्रश्न 14.
लंका में बौद्ध धर्म पर लिखी गई दो पुस्तकों के क्या नाम हैं ?
उत्तर-
लंका में बौद्ध धर्म पर लिखी गई दो पुस्तकों के नाम दीपवंश तथा महावंश हैं।

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प्रश्न 15.
महात्मा बुद्ध का आरम्भिक नाम क्या था और वे कौन-से गणराज्य के राजकुमार थे ?
उत्तर-
महात्मा बुद्ध का आरम्भिक नाम सिद्धार्थ था। वह शाक्य गणराज्य के राजकुमार थे।

प्रश्न 16.
बुद्ध की पत्नी तथा पुत्र का नाम क्या था ?
उत्तर-
बुद्ध की पत्नी का नाम ‘यशोधरा’ था। उनके पुत्र का नाम ‘राहुल’ था।

प्रश्न 17.
‘धर्मचक्र प्रवर्तन’ से क्या भाव है और यह किस स्थान पर हुआ ?
उत्तर-
धर्मचक्र-प्रवर्तन से भाव बुद्ध के पहले प्रवचन से है। यह सारनाथ के स्थान पर हुआ।

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प्रश्न 18.
‘महापरिनिर्वाण’ से क्या भाव है और यह किस स्थान पर हुआ ?
उत्तर-
महापरिनिर्वाण से हमारा भाव बुद्ध के देहान्त की घटना से है। यह घटना कुशीनगर नामक स्थान पर घटित हुई।

प्रश्न 19.
महात्मा बुद्ध के जन्म और मृत्यु से सम्बन्धित स्थानों के नाम बताएं।
उत्तर-
महात्मा बुद्ध का जन्म कपिलवस्तु के निकट लुम्बिनी वाटिका में हुआ। उनकी मृत्यु कुशीनगर के स्थान पर हुई।

प्रश्न 20.
बुद्ध की काल्पनिक जीवनियों का वृत्तान्त कौन-सी कथाओं से मिलता है और यह कौन-सी भाषा में है ?
उत्तर-
बुद्ध की काल्पनिक जीवनियों का वृत्तान्त ‘जातक’ कथाओं में मिलता है। ये कथाएं ‘प्राकृत’ भाषा में हैं।

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प्रश्न 21.
बुद्ध को सत्य की प्राप्ति कौन-से स्थान पर हुई तथा उन्होंने अपना पहला प्रवचन कहां पर दिया ?
उत्तर-
बुद्ध को सत्य की प्राप्ति ‘गया’ के स्थान पर हुई। उन्होंने अपना पहला प्रवचन सारनाथ की मृग वाटिका में दिया।

प्रश्न 22.
स्तूप किस घटना का प्रतीक था तथा इसमें क्या रखा जाता था ?
उत्तर-
स्तूप बुद्ध के परिनिर्वाण का प्रतीक था और उसमें बुद्ध के स्मृति-चिह्न रखे जाते थे।

प्रश्न 23.
अमरावती, भारहुत तथा सांची के स्तूप आज के भारत के कौन-से दो राज्यों में हैं ?
उत्तर-
अमरावती, भारहुत तथा सांची के स्तूप मध्य प्रदेश तथा तमिलनाडु में हैं।

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प्रश्न 24.
बुद्ध धर्म में परम्परा के समर्थक सम्प्रदाय का आरम्भिक तथा बाद का नाम क्या था ?
उत्तर-
बुद्ध धर्म में परम्परा के समर्थक सम्प्रदाय का आरम्भिक नाम थेरावाद अथवा हीनयान तथा बाद का नाम महायान था।

प्रश्न 25.
कनिष्क के काल में हुई बौद्ध धर्म की सभा में किस सम्प्रदाय से सम्बन्धित कौन-सा ग्रन्थ संकलित किया गया ?
उत्तर-
कनिष्क के काल में हुई बौद्ध धर्म की सभा में ‘महाविभाष’ नामक ग्रन्थ को संकलित किया गया। इस ग्रन्थ में जिस सम्प्रदाय के सिद्धान्त थे, उसका नाम ‘सर्वास्तिवादिन’ था।

प्रश्न 26.
कनिष्क से पहले बौद्ध धर्म की दो सभाएं कहां बुलाई गई थीं और अशोक इनमें से किसके साथ सम्बन्धित था ?
उत्तर-
कनिष्क से पहले बौद्ध धर्म की दो सभाएं वैशाली तथा पाटलिपुत्र में बुलाई गई थीं। अशोक का सम्बन्ध पाटलिपुत्र की सभा के साथ था।

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प्रश्न 27.
‘यान’ का शब्दिक अर्थ क्या था और बौद्ध धर्म में बोधिसत्व के विचार के साथ जुड़े हुए सम्प्रदाय का क्या नाम था ?
उत्तर-
‘यान’ का शाब्दिक अर्थ था–मुक्ति प्राप्त करने का एक तरीका। बौद्ध धर्म में बोधिसत्व के विचार के साथ जुड़े हुए सम्प्रदाय का नाम ‘महायान’ था।

प्रश्न 28.
जादू-टोने तथा मन्त्रों के साथ जुड़े हुए बौद्ध धर्म के सम्प्रदाय का क्या नाम था ? इसके अन्तर्गत उपासना-पद्धति को क्या कहा जाता था तथा इसका महत्त्वपूर्ण विहार कहां था ?
उत्तर-
जादू-टोने तथा मन्त्रों के साथ जुड़े हुए बौद्ध धर्म सम्प्रदाय का नाम ‘वज्रयान’ था तथा इस सम्प्रदाय की उपासना पद्धति को ‘तान्त्रिक’ कहा जाता था। वज्रयान सम्प्रदाय का महत्त्वपूर्ण विहार विक्रमशिला के स्थान पर था।

प्रश्न 29.
नागार्जुन अथवा नागसेन का सम्बन्ध कौन-से बौद्ध सम्प्रदाय से था और उसका किस यूनानी शासक के साथ बौद्ध धर्म पर संवाद हुआ था ?
उत्तर-
नागार्जुन अथवा नागसेन का सम्बन्ध ‘महायान’ सम्प्रदाय से था। इसका संवाद यूनानी शासक मिनांडर से हुआ था।

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प्रश्न 30.
बौद्ध धर्म भारत से बाहर किन चार देशों में फैला ?
उत्तर-
भारत से बाहर जिन देशों में बौद्ध धर्म फैला, उनके नाम हैं-चीन, जापान, श्री लंका तथा म्यनमार (बर्मा)।

III. छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
अजातशत्रु के समय मगध राज्य की शक्ति के क्या कारण थे ?
उत्तर-
अजातशत्रु के समय मगध राज्य काफ़ी शक्तिशाली बना। इसके कई कारण थे-

  • अजातशत्रु एक साहसी तथा शक्तिशाली शासक था। उसने अपने राज्य का खूब विस्तार किया।
  • कच्चा लोहा पास ही उपलब्ध होने के कारण मगध राज्य अपने विरोधियों की अपेक्षा अच्छे शस्त्र बनाने में सफल हुआ।
  • मगध की राजधानी की स्थिति ऐसी थी कि उसे जीतना बच्चों का खेल नहीं था।
  • मगध एक अत्यधिक उपजाऊ प्रदेश था और जहां अच्छी वर्षा होती थी। अतः यहां की कृषि बड़ी उन्नत थी।
  • मगध राज्य अपने पड़ोसी राज्यों के विरुद्ध हाथियों का प्रयोग कर सकता था। इस सैनिक सुविधा के कारण मगध राज्य के विकास में विशेष सहायता मिली।
  • मगध राज्य का व्यापार भी काफ़ी उन्नत था। व्यापार से होने वाली आय से राजा स्थायी सेना रख सकता था।

प्रश्न 2.
महावीर स्वामी अथवा जैन धर्म की शिक्षाओं का वर्णन करो।
उत्तर-
महावीर स्वामी ने लोगों को जीवन का सरल मार्ग दिखाया। उनके अनुसार मनुष्य को त्रिरत्न अथवा शुद्ध ज्ञान, शुद्ध चरित्र तथा शुद्ध दर्शन का पालन करना चाहिए। उन्होंने मोक्ष प्राप्ति के लिए लोगों को प्रेरित किया और इसके लिए घोर तपस्या का मार्ग ही सर्वोत्तम मार्ग स्वीकार किया। वह समझते थे कि पशु, पक्षी, वायु, अग्नि, वृक्ष आदि सभी वस्तुओं में आत्मा है और उन्हें कष्ट नहीं देना चाहिए। उनका वेदों, जाति-पाति, यज्ञ तथा बलि में कोई विश्वास नहीं था। उनका विचार था कि मनुष्य अपने अच्छे या बुरे कर्मों के कारण जन्म लेता है और आत्मा को पवित्र रखकर ही वह मोक्ष प्राप्त कर सकता है। . उन्होंने अपने अनुयायियों को बताया कि वे क्रोध, लोभ, ईर्ष्या, चोरी, निन्दा आदि अनैतिक कामों से दूर रहें और सदाचारी बनें।

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प्रश्न 3.
महात्मा बुद्ध अथवा बौद्ध धर्म की शिक्षाओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
महात्मा बुद्ध ने लोगों को जीवन का सरल मार्ग सिखाया। उन्होंने लोगों को बताया कि संसार दुःखों का घर है। दुःखों का कारण तृष्णा है। निर्वाण प्राप्त करके ही मनुष्य जन्म-मरण के चक्कर से छूट सकता है। निर्वाण-प्राप्ति के लिए महात्मा बुद्ध ने लोगों को अष्ट मार्ग पर चलने का उपदेश दिया। उन्होंने लोगों को अहिंसा, नेक काम तथा सदाचार पर चलने के लिए कहा। सच तो यह है कि बौद्ध धर्म ने व्यर्थ के रीति-रिवाजों यज्ञों तथा कर्मकाण्डों को त्यागने पर बल दिया।

प्रश्न 4.
महावीर की शिक्षाओं का साधारण मनुष्य के जीवन के लिए क्या महत्त्व था ?
उत्तर-
महावीर की शिक्षाओं का साधारण मनुष्य के जीवन में बड़ा महत्त्व था :

  • उन्होंने जाति-प्रथा का घोर विरोध किया। इससे भारतीय समाज में लोगों का आपसी मेल-जोल बढ़ने लगा। भेदभाव का स्थान सहकारिता ने ले लिया। ऊंच-नीच की भावना समाप्त होने लगी और समाज प्यार और भाईचारे की भावनाओं से ओत-प्रोत हो गया।
  • महावीर ने लोगों को समाज-सेवा का उपदेश दिया। अतः लोगों की भलाई के लिए जैनियों ने अनेक संस्थाएं स्थापित की। इससे न केवल जनता का ही भला हुआ बल्कि दूसरे धर्मों के अनुयायियों को भी समाज सेवा के कार्य करने का प्रोत्साहन मिला।
  • जैन धर्म की बढ़ती हुई लोकप्रियता को देखकर ब्राह्मणों ने भी पशु-बलि, कर्म-काण्ड तथा अन्य कुरीतियों का त्याग करना शुरू कर दिया। इस प्रकार वैदिक धर्म भी काफ़ी सरल बन गया।
  • इसके अतिरिक्त महावीर ने अहिंसा पर बल दिया। अहिंसा के सिद्धान्त को अपना कर लोग मांसाहारी से शाकाहारी बन गए। उनका जीवन सरल तथा संयमी बना।

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प्रश्न 5.
महात्मा बुद्ध के मध्य मार्ग से क्या भाव है ?
उत्तर-
महात्मा बुद्ध के उपदेशों के मूल सिद्धान्त चार महान् सत्य थे-

  • संसार दुःखों का घर है।
  • इन दुःखों का कारण तृष्णा अथवा लालसा है।
  • अपनी लालसाओं का दमन करने पर ही दुःखों से छुटकारा मिलता है और मनुष्य निर्वाण प्राप्त कर सकता है।
  • तृष्णा के दमन के लिए मनुष्य को अष्ट मार्ग अथवा मध्य मार्ग पर चलना चाहिए।

महात्मा बुद्ध के अष्ट मार्ग में ये आठ बातें शामिल हैं-

  • शुद्ध दृष्टि
  • शुद्ध संकल्प
  • शुद्ध वचन
  • शुद्ध कर्म
  • शुद्ध कमाई
  • शुद्ध प्रयत्न
  • शुद्ध स्मृति
  • शुद्ध समाधि।

ये सभी सिद्धान्त एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। उदाहरण के लिए शुद्ध कमाई केवल शुद्ध कर्म द्वारा ही सम्भव हो सकती है। शुद्ध कर्म के लिए शुद्ध संकल्प तथा शुद्ध दृष्टि आवश्यक है। अतः अष्ट मार्ग मनुष्य को पूर्ण रूप से सदाचारी बनाता है और उसे दुःखों से छुटकारा दिलाता है। इसे मध्य मार्ग इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह घोर तपस्या तथा ऐश्वर्यमय जीवन के बीच का रास्ता है।

प्रश्न 6.
बुद्ध द्वारा चलाई गई संघ व्यवस्था की क्या विशेषताएं थीं ?
उत्तर-
बुद्ध द्वारा चलाई गई संघ व्यवस्था की मुख्य विशेषताएं ये थीं-
1. प्रत्येक स्त्री-पुरुष संघ का सदस्य बन सकता था। संघ में प्रवेश करने की रस्म बड़ी साधारण थी। इसमें तीन पीले वस्त्र धारण करना, मुण्डन संस्कार एवं तीन ‘रत्नों’ का उच्चारण शामिल था। ये तीन रत्नं थे : ‘बुद्धं शरणम् गच्छामि, ‘धर्मं शरणम् गच्छामि’, ‘संघ शरणम् गच्छामि।

2. नये भिक्षुओं को दस शील विरतियों के पालन का प्रण करना पड़ता था। मुख्य शील विरतियां थीं : जीवों को कष्ट न देना, किसी वस्तु को उसकी इच्छा के बिना न लेना, आवेग में दुर्व्यवहार न करना, झूठा न बोलना, नशे का सेवन न करना आदि।

3. भिक्षु के दैनिक जीवन की भी बहुत-सी क्रियाएं थीं। वह भिक्षा मांग कर दिन में केवल एक समय भोजन करता था। वह संघीय उपासना में भाग लेने के अतिरिक्त अपना समय अध्ययन एवं अष्टमार्ग के अनुसार धार्मिक अभ्यास में लगाता था। मठ को साफ़-सुथरा रखने के लिए श्रमदान भी करना पड़ता था।

4. मठीय जीवन का संचालन या विभिन्न मठवासियों की गतिविधियों को संयोजित करने के लिए केन्द्रीय संस्था नहीं थी। मठ का संचालन मुख्य भिक्षु के नेतृत्व में सभी वयोवृद्ध भिक्षु मिलकर करते थे।

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प्रश्न 7.
कला के दृष्टिकोण से स्तूप का क्या महत्त्व था ?
उत्तर-
स्तूप महात्मा बुद्ध के परिनिर्वाण का प्रतीक थे। यह एक विशाल अर्द्ध गोलाकार गुम्बज होता था जिसके बीचोंबीच स्थित एक छोटे कमरे में बुद्ध के स्मृति-चिन्ह एक संदूकचे में रखे जाते थे। स्तूप पर लकड़ी या पत्थर का छत्र बना होता था। कला की दृष्टि से सर्वोत्तम स्तूपों के नमूने कृष्णा नदी की घाटी के निचले भाग में अमरावती में एवं मध्य प्रदेश में भरहुत और सांची में मिलते हैं। स्तूपों पर की गई नक्काशी की कला भी कम प्रभावशाली नहीं थी। लकड़ी पर नक्काशी के नमूने तो बहुत देर तक सुरक्षित न रह सके। परन्तु अमरावरती एवं सांची के स्तूपों के तोरणों (प्रवेश द्वार) पर पत्थर पर हुई सुन्दर नक्काशी आज भी देखी जा सकती है। इन पर चित्रित दृश्य मुख्यतः बुद्ध के जीवन से सम्बन्धित हैं। इनमें अधिकांश का सम्बन्ध बुद्ध के जन्म, गृह त्याग, ज्ञान-प्राप्ति, धर्मचक्र प्रवर्तन एवं उनके महा-परिनिर्वाण से है।

प्रश्न 8.
बौद्ध धर्म के पतन के क्या कारण थे ?
उत्तर-
बौद्ध धर्म के पतन के मुख्य कारण थे :

  • समय के अनुसार वैदिक धर्म में अनेक सुधार किये गये। अतः वे सभी लोग जो हिन्दू से बौद्ध बने थे, फिर वैदिक धर्म में शामिल हो गए।
  • बौद्ध धर्म धीरे-धीरे काफ़ी जटिल हो गया। इसमें अनेक कुरीतियां और व्यर्थ के रीति-रिवाज शामिल हो गए।
  • बौद्ध भिक्षु बड़ा विलासी जीवन व्यतीत करने लगे। इस बात का लोगों पर बुरा प्रभाव पड़ा।
  • हर्ष की मृत्यु के पश्चात् बौद्ध धर्म को राजकीय सहायता न मिल सकी। फलस्वरूप बौद्ध धर्म की लोकप्रियता कम होने लगी।
  • बौद्ध धर्म के ग्रन्थ संस्कृत भाषा में लिखे जाने लगे। लोग इस कठिन भाषा से पहले ही तंग थे।
  • महात्मा बुद्ध के पश्चात् बौद्ध धर्म में कोई भी उन जैसा महान् व्यक्ति पैदा न हुआ जो इस धर्म को लोकप्रिय बना सकता।

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प्रश्न 9.
छठी शताब्दी ई० पू० में कौन-सी नई भाषा महत्त्वपूर्ण बनी और क्यों ?
उत्तर-
छठी शताब्दी ई० पू० में ‘प्राकृत’ भाषा महत्त्वपूर्ण बनी। प्राकृत भाषा का महत्त्व बढ़ने से पहले वैदिक संस्कृत भाषा को अधिक महत्त्व दिया जाता था। उस समय हिन्दुओं के सभी ग्रन्थ इसी भाषा में लिखे हुए थे और ब्राह्मण तथा कुलीन वर्ग के अन्य लोग इसी भाषा का प्रयोग करते थे। परन्तु यह भाषा बहुत ही कठिन थी और साधारण लोगों की समझ से बाहर थी। परिणामस्वरूप साधारण लोग न तो वैदिक ग्रन्थों को पढ़ सकते थे और न ही उनका अर्थ समझ पाते थे। इसी समय कुछ नये विचारकों का जन्म हुआ। वे अपने विचार प्रत्येक व्यक्ति तक पहुंचाना चाहते थे। यह तभी सम्भव था जब वे अपने प्रचार कार्य आम जनता की बोलचाल की भाषा में करते। अतः उन्होंने ‘प्राकृत’ भाषा को अपनाया जिसके कारण यह भाषा काफ़ी महत्त्वपूर्ण बन गई।

प्रश्न 10.
भारतीय जीवन पर जैन धर्म के क्या प्रभाव पड़े ?
उत्तर-
भारतीय जीवन पर जैन धर्म के महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़े। जैन धर्म ने जाति-प्रथा का खण्डन किया। फलस्वरूप देश में जाति-प्रथा के बन्धन शिथिल पड़ गए। इस मत के सरल सिद्धान्तों की लोकप्रियता को देखकर ब्राह्मणों ने पशु-बलि, कर्मकाण्ड तथा अन्य कुरीतियों का त्याग कर दिया। फलस्वरूप वैदिक धर्म एक बार फिर सरल रूप धारण करने लगा। जैन धर्म में अहिंसा पर बड़ा बल दिया गया। इस सिद्धान्त को अपना कर लोगों ने मांस खाना छोड़ दिया और वे शाकाहारी बन गए। जैनियों ने अपने तीर्थंकरों की स्मृति में विशाल मन्दिर तथा मठ बनवाए। दिलवाड़ा का जैन मन्दिर, आबू पर्वत के जैन मन्दिर, एलोरा की गुफाएं तथा खजुराहो के जैन मन्दिर कला के सर्वोत्तम नमूने हैं। इस धर्म के कारण कन्नड़, हिन्दी, गुजराती, मराठी आदि भाषाओं के साहित्य ने भी बड़ी उन्नति की।

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प्रश्न 11.
जैन मत लोकप्रिय क्यों न हो सका ?
उत्तर-
जैन मत भारत में अनेक कारणों से अधिक लोकप्रिय न हो सका :

  • इसमें घोर तपस्या पर बल दिया गया था जिसके अनुसार मनुष्य को कई दिन तक भूखा-प्यासा रहना पड़ता था। साधारण लोग इतना कठोर जीवन व्यतीत नहीं कर सकते थे।
  • जैन मत के अनुयायियों ने इस धर्म के प्रचार पर अधिक बल न दिया।
  • इस धर्म में अहिंसा के सिद्धान्त को अत्यन्त कठोर रूप में अपनाया गया था।
  • इसे बौद्ध धर्म की भान्ति अधिक राजकीय सहायता न मिल सकी।
  • बौद्ध धर्म के सिद्धान्त जैन मत की अपेक्षा अधिक सरल थे। अतः अधिक से अधिक लोग बौद्ध धर्म को अपनाने लगे और जैन धर्म अपनी लोकप्रियता खो बैठा।

प्रश्न 12.
जैन धर्म के दो सम्प्रदायों अर्थात् दिगम्बर तथा श्वेताम्बर के विषय में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर-
जैन धर्म के दो सम्प्रदाय हैं-दिगम्बर तथा श्वेताम्बर। दोनों सम्प्रदायों में मूल रूप से कोई अन्तर नहीं। दोनों महावीर की शिक्षाओं में विश्वास रखते हैं और उनके दर्शन को स्वीकार करते हैं। इन दोनों सम्प्रदायों में भिन्नता मौर्य काल में आरम्भ हुई। उन दिनों देश में भीषण अकाल पड़ा। कुछ जैन भिक्षु भद्रबाहु की अध्यक्षता में दक्षिण चले गए। वहां उन्होंने नग्न रह कर महावीर स्वामी की भान्ति जीवन व्यतीत किया। समय बीतने के साथ-साथ जैन भिक्षुओं ने उत्तरी भारत में श्वेत वस्त्र धारण करने आरम्भ कर दिये। दक्षिण में रहने वाले भिक्षु दिगम्बर कहलाए तथा उत्तरी भारत में भिक्षु श्वेताम्बर कहलाए। दिगम्बर का अर्थ है ‘नग्न’ तथा श्वेताम्बर का अर्थ है ‘श्वेत-वस्त्र धारण करने वाले।’ समय बीतने के साथ-साथ दिगम्बर भिक्षुओं ने भी वस्त्र धारण करने आरम्भ कर दिए। परन्तु दोनों पक्षों में ऊपरी भेद आज भी बना हुआ है।

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प्रश्न 13.
बौद्ध मत लोकप्रिय क्यों हुआ ?
उत्तर-
भारत में बौद्ध मत की लोकप्रियता के मुख्य कारण थे :

  • यह एक सरल धर्म था। लोग इसके नियमों को आसानी से समझ सकते थे और उन्हें अपना सकते थे।
  • महात्मा बुद्ध ने अपना उपदेश भी साधारण बोल-चाल की भाषा में दिया। परिणामस्वरूप इस धर्म ने जन-साधारण को बड़ा प्रभावित किया।
  • महात्मा बुद्ध ने जाति-प्रथा का भी घोर खण्डन किया और भाईचारे की भावना पर बल दिया। परिणामस्वरूप निम्न जातियों के अनेक लोग समाज में आदर पाने के लिए धर्म के अनुयायी बन गए।
  • बौद्ध धर्म की उन्नति का एक अन्य बड़ा कारण हिन्दू धर्म की कुरीतियां थीं। अतः अनेक लोग हिन्दू धर्म छोड़कर बौद्ध धर्म के अनुयायी बन गए।
  • अशोक, कनिष्क, हर्ष आदि अनेक राजाओं ने भी बौद्ध धर्म ग्रहण किया। इन सभी राजाओं के प्रयत्नों में यह धर्म केवल भारत में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी लोकप्रिय हो गया।

प्रश्न 14.
बौद्ध धर्म की क्या देन है ?
उत्तर-
बौद्ध धर्म की देन वास्तुकला, मूर्तिकला एवं चित्रकला के सुन्दर नमूनों में देखी जा सकती है। भारतीय धर्मों एवं दर्शनों पर तो बौद्ध धर्म का प्रभाव अत्यन्त गहरा है। पन्द्रह सौ वर्षों तक बौद्ध धर्म ने भारत में करोड़ों लोगों के जीवन को प्रभावित किया। यही नहीं, चीन, जापान, लंका, म्यनमार (बर्मा) एवं दक्षिण-पूर्वी एशिया के कई देशों में और तिब्बत में वहां की कला एवं वास्तुकला बौद्ध धर्म के प्रभाव को दर्शाती है। इन देशों का अपना बौद्ध धार्मिक एवं दार्शनिक साहित्य भी इनकी अत्यन्त मूल्यवान सांस्कृतिक पूंजी है। एशिया के करोड़ों लोग भारत को आज तक भी बुद्ध की धरती के रूप में जानते हैं।

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IV. निबन्धात्मक प्रश्न-

प्रश्न 1.
जैन धर्म तथा बौद्ध धर्म के उदय के कारणों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
जैन धर्म तथा बौद्ध धर्म का जन्म छठी शताब्दी ई० पू० में हुआ। इन धर्मों का जन्म ऐसे समय पर हुआ जब समाज पर ब्राह्मणों का प्रभुत्व छाया हुआ था। यज्ञ बड़े महंगे और आवश्यक थे। धर्म अपना सरल रूप खो चुका था। ठीक इसी समय महावीर स्वामी तथा महात्मा बुद्ध ने मानवता को धर्म की सही राह दिखाई। संक्षेप में, जैन तथा बौद्ध धर्म का जन्म निम्नलिखित कारणों से हुआ

1. हिन्दू धर्म में जटिलता-ऋग्वैदिक काल में आर्यों का धर्म बड़ा सरल था और इसके सिद्धान्तों को आसानी से अपनाया जा सकता था, परन्तु धीरे-धीरे वैदिक (आर्य) धर्म जटिल होता चला गया। व्यर्थ के कर्म-काण्ड धर्म का अंग बन गए। लोगों के लिए इस धर्म के सिद्धान्तों को अपनाना मुश्किल हो गया। परिणामस्वरूप वे किसी सरल धर्म की इच्छा करने लगे।

2. जाति-प्रथा तथा छुआछूत-छठी शताब्दी ई० पू० तक जाति बन्धन बहुत कठोर हो चुके थे। लोगों में छुआछूत की भावना इतनी बढ़ गई कि वे शूद्रों को छूना भी पाप समझने लगे। अतः शूद्र लोग किसी ऐसे धर्म की इच्छा करने लगे जिसमें उन्हें उचित स्थान मिल सके।

3. ब्राह्मणों की स्वार्थ भावना-धर्म का कार्य ब्राह्मणों को सौंपा गया था। आरम्भ में वे बिना किसी लोभ लालच के अपना कार्य करते थे, परन्तु धीरे-धीरे वे स्वार्थी बन गए। वे धर्म की व्याख्या अपने ही ढंग से करने लगे। परिणामस्वरूप साधारण जनता ब्राह्मणों से बचने का कोई उपाय सोचने लगी।

4. कठिन भाषा-उस समय वैदिक धर्म के सभी ग्रन्थ संस्कृत भाषा में लिखे गए थे। कठिन होने के कारण साधारण लोग इस भाषा को नहीं समझ सकते थे। इसलिए वे किसी ऐसे धर्म की खोज में रहने लगे जिस धर्म के ग्रन्थ लोगों की बोलचाल की भाषा में लिखे गए हों।

5. महंगे यज्ञ-ऋग्वैदिक काल तक आर्य बड़े ही सरल ढंग से यज्ञ किया करते थे, परन्तु धीरे-धीरे यज्ञ काफ़ी महंगे होते चले गए। यज्ञ में अनेक ब्राह्मणों को भोज देना पड़ता था। साधारण जनता के लिए ऐसे यज्ञ करना असम्भव हो गया। अत: लोग किसी सरल धर्म की इच्छा करने लगे।

6. तन्त्र-मन्त्र में विश्वास-छठी शताब्दी में लोग अन्धविश्वासी हो चुके थे। वे वेद मन्त्रों की बजाए तन्त्र-मन्त्र में . विश्वास रखने लगे। यहां तक कि रोगों का इलाज भी जादू-टोनों के द्वारा किया जाने लगा। इस अन्धविश्वास को समाप्त करने के लिए किसी नए धर्म की आवश्यकता थी।

7. महापुरुषों का जन्म-छठी शताब्दी ई० पू० में भारत में दो महापुरुषों ने जन्म लिया जिनके नाम थे-महावीर स्वामी तथा महात्मा बुद्ध । उन्होंने हिन्दू धर्म में सुधार करके उसे नए रूप में प्रस्तुत किया, परन्तु उनके उपदेशों ने क्रमशः दो नए धर्मों का रूप धारण कर लिया। ये नवीन धर्म जैन मत और बौद्ध मत के नाम से प्रसिद्ध हुए।

सच तो यह है कि बौद्ध धर्म तथा जैन धर्म का उदय वैदिक धर्म में गिरावट के कारण हुआ। धर्म में जटिलता, ब्राह्मणों का नैतिक पतन, छुआछूत, महंगे यज्ञ, कठिन भाषा-यें सभी बातें थीं जिनके कारण बौद्ध धर्म तथा जैन धर्म का उदय हुआ। इस विषय में डॉ० राधाकृष्णन ठीक ही लिखते हैं, “महावीर अथवा गौतम ने किसी नए तथा स्वतन्त्र धर्म का आरम्भ नहीं किया। उन्होंने तो अपने प्राचीन वैदिक धर्म पर आधारित एक नया दृष्टिकोण प्रस्तुत किया।”

प्रश्न 2.
जैन धर्म के मुख्य उपदेश (सिद्धान्त) क्या-क्या हैं ?
अथवा
‘त्रिरत्न’ तथा ‘अहिंसा’ का विशेष रूप से वर्णन करते जैन धर्म के किन्हीं पांच सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
जैन धर्म अथवा महावीर स्वामी की शिक्षाएं (उपदेश) बड़ी सरल थीं। उनकी मुख्य शिक्षाओं का वर्णन इस प्रकार है-

1. त्रिरत्न-जैन धर्म के अनुसार प्रत्येक मनुष्य के जीवन का उद्देश्य निर्वाण प्राप्त करना है। निर्वाण प्राप्त करने के लिए तीन साधन बताए गए हैं–शुद्ध ज्ञान, शुद्ध चरित्र तथा शुद्ध दर्शन। जैन धर्म को मानने वाले इन तीन सिद्धान्तों को ‘त्रिरत्न’ कहते हैं।

2. घोर तपस्या में विश्वास-जैन धर्म के अनुयायी घोर तपस्या करने तथा अपने शरीर को अधिक-से-अधिक कष्ट देने में विश्वास रखते हैं। उनके अनुसार शरीर को कष्ट देने से जल्दी मोक्ष प्राप्त होता है।

3. अहिंसा-जैन धर्म में अहिंसा पर बहुत बल दिया गया है। इस धर्म के अनुयायियों का विश्वास है कि संसार की सभी वस्तुओं में जीव (आत्मा) है। इसलिए वे किसी भी जीव को कष्ट देना पाप समझते हैं।

4. ईश्वर में विश्वास-जैन धर्म को मानने वाले ईश्वर को नहीं मानते। वे ईश्वर के स्थान पर अपने तीर्थंकरों की पूजा करते हैं।

5. वेदों में अविश्वास-जैन धर्म को मानने वाले वेदों को ईश्वरीय ज्ञान नहीं मानते। वे वेदों से मुक्ति के लिए बताए गए मुक्ति के साधनों-यज्ञ, हवन, आदि को व्यर्थ समझते हैं।

6. आत्मा में विश्वास-जैन धर्म को मानने वाले आत्मा के अस्तित्व को स्वीकार करते हैं। उनके अनुसार आत्मा अमर है। यह शरीर में रह कर भी शरीर से भिन्न होती है।

7. जाति-पाति में अविश्वास-जैन धर्म के अनुयायी जाति-पाति में विश्वास नहीं रखते। उनके अनुसार सभी मनुष्य समान हैं। जाति के आधार पर कोई व्यक्ति छोटा-बड़ा नहीं है।

8. कर्म सिद्धान्त में विश्वास-जैन धर्म के अनुसार मनुष्य अपने पिछले जन्म में किए गए कर्मों के अनुसार जन्म लेता है और उसका अगला जन्म इस जन्म में किए गए कर्मों के अनुसार होगा। अतः हमें अच्छे कर्म करने चाहिएं।

9. मोक्ष-प्राप्ति-जैन धर्म के अनुसार आत्मा को कर्मों के बन्धन से छुटकारा दिलाने का नाम मोक्ष है। कर्म-चक्र समाप्त होते ही जीव (आत्मा) को मुक्ति मिल जाती है।

10. सदाचार पर बल-महावीर स्वामी ने अपने अनुयायियों को उच्च नैतिक जीवन व्यतीत करने की प्रेरणा दी। उन्होंने आदेश दिया कि वे क्रोध, लोभ, ईर्ष्या, चोरी, निन्दा आदि अनैतिक कार्यों से बचें।

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प्रश्न 3.
(क) बौद्ध धर्म के मुख्य उपदेशों का वर्णन करें।
(ख) भारतीय समाज पर बौद्ध धर्म का क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर-
(क) बौद्ध धर्म की प्रमुख शिक्षाएं-

  • बौद्ध धर्म के अनुसार निर्वाण प्राप्ति के लिए मध्यम मार्ग ही सबसे अच्छा मार्ग है। निर्वाण न तो भोग-विलास से मिल सकता है और न ही कठोर तपस्या से।
  • संसार दुःखों का घर है। तृष्णा इन दुःखों का कारण है। इसी तृष्णा के कारण मनुष्य जन्म-मरण के चक्कर में फंसा रहता है। तृष्णा और वासना का त्याग ही इन दुःखों से छुटकारा दिला सकता है।
  • महात्मा बुद्ध के अनुसार मनुष्य को अष्ट मार्ग पर चल कर ही दुःखों से मुक्ति मिल सकती है। अष्ट मार्ग में ये आठ बातें सम्मिलित हैं- (i) सम्यक् दृष्टि (ii) सम्यक् संकल्प, (iii) सम्यक् वचन, (iv) सम्यक् ध्यान, (v) सम्यक् प्रयत्न, (vi) सम्यक् विचार, (vii) सम्यक् आजीविका।
  • महात्मा बुद्ध पुनर्जन्म के सिद्धान्त को मानते हैं। उनका कहना था कि मनुष्य को अपने कर्मों का फल अवश्य भुगतना पड़ता है। यज्ञ और घोर तपस्या आदि द्वारा यह कर्मों के फल से नहीं बच सकता।
  • बौद्ध धर्म वेदों की प्रमाणिकता में विश्वास नहीं रखता। इसके अनुसार हवन, यज्ञ, बलि आदि भी व्यर्थ हैं।
  • महात्मा बुद्ध ने ईश्वर के सम्बन्ध में कुछ नहीं कहा है। इस विषय में सदा मौन रहे।
  • बौद्ध धर्म में जाति-पाति के भेद-भाव को व्यर्थ समझा जाता है।
  • बौद्ध धर्म में अहिंसा पर बड़ा बल दिया गया है। इसके अनुसार किसी भी जीव को कष्ट देना पाप है।
  • बौद्ध धर्म में शुद्ध आचरण को बहुत महत्त्व दिया गया है। इसमें चोरी करना, झूठ बोलना आदि बातों को पाप माना गया है।
  • बौद्ध धर्म के अनुसार मनुष्य का सबसे बड़ा लक्ष्य निर्वाण प्राप्त करना है। निर्वाण से ही मनुष्य जन्म-मरण के चक्कर से बच सकता है।

(ख) भारतीय समाज पर बौद्ध धर्म का प्रभाव-

  • बौद्ध धर्म के कारण लोग सदाचारी बने। उन्होंने झूठ बोलना, चोरी करना, किसी की निन्दा करना आदि सभी बुरे कर्म छोड़ दिए।
  • बौद्ध धर्म के कारण लोगों के खान-पान में आश्चर्यजनक परिवर्तन आया। अहिंसा का सिद्धान्त अपनाकर लोगों ने मांस खाना छोड़ दिया और वे शाकाहारी बन गए।
  • बौद्ध धर्म के कारण भारत में अनेक स्तूप, मठ और विहार बने। ये सभी कला के उत्तम नमूने हैं।
  • महात्मा बुद्ध की शिक्षाओं तथा उनके जीवन से सम्बन्धित अनेक ग्रन्थ लिखे गए। परिणामस्वरूप भारतीय साहित्य का विकास हआ।
  • बौद्ध धर्म ने अनेक राजाओं की राज्य-नीति को भी प्रभावित किया। उदाहरण के लिए अशोक ने बौद्ध धर्म के प्रभाव में आकर जन-कल्याण को अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया। इसी प्रकार कनिष्क और हर्ष ने भी प्रजा-हित के लिए अनेक कार्य किए।

प्रश्न 4.
बौद्ध धर्म की शीघ्र उन्नति के कारण बताओ।
अथवा
बौद्ध धर्म बड़ी शीघ्रता से फैला। इसके लिए उत्तरदायी कोई पांच कारण बताएं।
उत्तर-
भारत में बौद्ध धर्म बड़ी शीघ्रता से फैला। यहां तक कि अनेक राजा भी इस धर्म के अनुयायी बन गए और उन्होंने इसको विश्व धर्म बना दिया। इस धर्म की शीघ्र उन्नति के कारण निम्नलिखित थे-

1. सरल धर्म-बौद्ध धर्म एक सरल धर्म था। लोग इसके नियमों को आसानी से समझ सकते थे और इन्हें अपना सकते थे। इसलिए यह धर्म शीघ्र ही लोकप्रिय हो गया।

2. बोलचाल की भाषा-महात्मा बुद्ध ने अपना उपदेश साधारण बोलचाल की भाषा में दिया। परिणामस्वरूप इस धर्म ने जन-साधारण को बड़ा प्रभावित किया।

3. अनुकूल वातावरण-बौद्ध धर्म के उदय के समय भारत में कोई ऐसा धर्म नहीं था जो इस धर्म का सामना कर सकता। हिन्दू धर्म में अनेक दोष आ चुके थे। जैन धर्म भी अपने जटिल नियमों के कारण अधिक लोकप्रिय न हो सका। ऐसे वातावरण में बौद्ध धर्म की उन्नति स्वाभाविक ही थी।

4. जाति-प्रथा का विरोध-महात्मा बुद्ध ने जाति-प्रथा का घोर खण्डन किया और भाई-चारे की भावना पर बल दिया। परिणामस्वरूप निम्न जातियों के अनेक लोग समाज में आदर पाने के लिए बौद्ध धर्म के अनुयायी बन गए।

5. हिन्दू धर्म की कुरीतियां-बौद्ध धर्म की उन्नति का सबसे बड़ा कारण हिन्दू धर्म की कुरीतियां थीं। हिन्दू धर्म में यज्ञों और पशु बलि पर अधिक बल दिया जाने लगा था। यज्ञ इतने महंगे थे कि साधारण लोगों के लिए यज्ञ कराना असम्भव था। अतः अनेक लोग हिन्दू धर्म को छोड़कर बौद्ध धर्म के अनुयायी बन गए।

6. महात्मा बुद्ध का महान् व्यक्तित्व-महात्मा बुद्ध का अपना जीवन बड़ा आकर्षक तथा प्रभावशाली था। वह जिन नियमों का लोगों को उपदेश देते थे, स्वयं भी उनका पालन करते थे। उनकी वाणी भी बड़ी मधुर थी। उनके इस महान् व्यक्तित्व से प्रभावित होकर अनेक लोग उनके अनुयायी बन गए।

7. बौद्ध भिक्षुओं का उच्च चरित्र-बौद्ध भिक्षुओं का चरित्र बड़ा ऊंचा था। उनके चरित्र से अनेक लोग प्रभावित हुए और वे बौद्ध धर्म के अनुयायी बन गए।

8. राजकीय सहायता-अशोक, कनिष्क, हर्ष आदि अनेक राजाओं ने भी बौद्ध धर्म ग्रहण किया। इन सभी राजाओं ने बौद्ध धर्म के प्रसार के लिए अनेक प्रयत्न किए। उनके प्रयत्नों से यह धर्म केवल भारत में ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी लोकप्रिय हो गया।

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 3 जैन धर्म और बौद्ध धर्म

प्रश्न 5.
भारत में बौद्ध धर्म का तो पतन हो गया पर जैन धर्म कुछ भागों में जमा रहा। इसके कारणों की समीक्षा करें।
उत्तर-
भारत में बौद्ध धर्म जितनी तीव्रता से फैला, उसी तीव्रता से इस धर्म का पतन भी हो गया। परन्तु जैन धर्म का देश के कुछ भागों में अस्तित्व बना रहा। इसके कुछ विशेष कारण थे जिनका वर्णन इस प्रकार है :
बौद्ध धर्म के पतन के कारण-

1.धर्म में जटिलता-बौद्ध धर्म धीरे-धीरे काफ़ी जटिल हो गया। अनेक व्यर्थ के रीति-रिवाज इस धर्म का अंग बन गये। परिणामस्वरूप लोगों का इस धर्म में विश्वास उठने लगा।

2. संस्कृत भाषा-बौद्ध धर्म के अनुयायियों ने बुद्ध के उपदेशों को संस्कृत में लिपिबद्ध करना आरम्भ कर दिया। यह भाषा साधारण लोगों की समझ से बाहर थी। परिणामस्वरूप बौद्ध धर्म की लोकप्रियता कम हो गयी।

3. भिक्षुओं का दूषित चरित्र-बौद्ध भिक्षुओं का चरित्र आरम्भ से बड़ा ऊंचा था, परन्तु धीरे-धीरे उनके चरित्र में अनेक दोष आ गये। अत: लोगों को उनसे घृणा होने लगी। इस बात का बौद्ध धर्म पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ा।

4. हिन्दू धर्म में सधार-हिन्दू धर्म में समय के अनुसार अनेक आवश्यक सुधार किये गये। परिणामस्वरूप अनेक लोग, जिन्होंने हिन्दू धर्म को छोड़कर बौद्ध धर्म ग्रहण कर लिया था, फिर से हिन्दू धर्म में शामिल हो गये।

5. राजकीय सहायता का अभाव-राजा कनिष्क की मृत्यु के पश्चात् बौद्ध धर्म को राजकीय सहायता न मिल सकी। यह बात भी बौद्ध धर्म की उन्नति के मार्ग में बाधा बनी। .

6. बौद्ध धर्म का विभाजन-कनिष्क के काल में बौद्ध धर्म महायान और हीनयान नामक दो शाखाओं में बंट गया। महायान और हिन्दू धर्म के नियमों में विशेष अन्तर नहीं था। परिणामस्वरूप महायान के अनेक अनुयायी हिन्दू धर्म में शामिल हो गये।

7. राजाओं का अत्याचार-मौर्य वंश के पश्चात् पुष्यमित्र शुंग ने बौद्धों पर अनेक अत्याचार किये। उसने अनेक बौद्धों की हत्या करवा दी। उसके अत्याचार से डरकर अनेक लोगों ने बौद्ध धर्म छोड़ दिया।

8. विदेशी आक्रमण-विदेशी आक्रमणकारियों ने बौद्धो के अनेक मठ और विहार तोड़ डाले। उन्होंने इन मठों और विहारों में रहने वाले बौद्ध भिक्षुओं का भी वध कर दिया। इस प्रकार धीरे-धीरे भारत में बौद्ध धर्म पूरी तरह लुप्त हो गया।

जैन धर्म के जमे रहने के कारण-

9. भारत में जैन धर्म को उतना राजाश्रय नहीं मिला था जितना कि बौद्ध धर्म को। इसलिए राजाश्रय समाप्त होने पर भी इस धर्म को अधिक क्षति न पहुंची।

10.जैन धर्म का प्रसार मुख्यत: व्यवहार और वाणिज्य में लगे लोगों में हुआ था। इन लोगों पर बदलती हुई परिस्थितियों का अधिक प्रभाव नहीं पड़ा। इसलिए भारत में जैन धर्म आज भी किसी न किसी रूप में अपना अस्तित्व बनाये हुए है।

प्रश्न 6.
बौद्ध धर्म का भारतीय समाज और संस्कृति पर क्या प्रभाव पड़ा ?
अथवा
भारतीय समाज के निम्नलिखित पक्षों पर बौद्ध धर्म के प्रभाव की व्याख्या कीजिए :
(क) सामाजिक जीवन तथा धार्मिक जीवन
(ख) राजनीतिक जीवन तथा कला एवं साहित्य।
उत्तर-
प्रत्येक धार्मिक आन्दोलन का समाज पर गहरा प्रभाव पड़ता है। बौद्ध धर्म ने भी पूर्ण रूप से भारतीय जीवन को प्रभावित किया। हमारे सामाजिक जीवन, कलाओं, साहित्य तथा अन्य क्षेत्रों में क्रान्तिकारी परिवर्तन हुए जिनका वर्णन इस प्रकार है

सामाजिक जीवन पर प्रभाव-

  • बौद्ध धर्म में अहिंसा के सिद्धान्त पर बड़ा बल दिया गया था। इस सिद्धान्त के कारण लोगों ने मांस खाना छोड़ दिया और वे शाकाहारी बन गए।
  • बौद्ध धर्म के कारण समाज में जाति-प्रथा की कठोरता कम हो गई। सभी जातियों के लोग अब मिल-जुल कर रहने लगे।
  • महात्मा बुद्ध ने लोगों में ऐसे सिद्धान्तों का प्रचार किया था जिससे कि लोगों का चरित्र ऊंचा हो सके। इन नियमों का पालन करके लोग सदाचारी बन गए।
  • बौद्ध धर्म के कारण समाज-सेवा की भावना को बड़ा बल मिला।
  • इस धर्म के कारण देश में तर्क की प्रधानता बढ़ी और अन्धविश्वास कम हो गए। परिणामस्वरूप भारतीय समाज एक आदर्श समाज बन गया।
  • बौद्ध धर्म के कारण भारत में भीख मांगने की कुप्रथा आरम्भ हो गई। बौद्ध भिक्षुओं को लोग दिल खोलकर भिक्षा देते थे, परन्तु धीरे-धीरे कुछ कामचोर लोगों ने भीख मांगना अपना व्यवसाय बना लिया।

धार्मिक जीवन पर प्रभाव-

  • बौद्ध धर्म की लोकप्रियता को देखकर हिन्दू धर्म के शुभचिन्तकों ने भी अपने धर्म को फिर से सरल बनाने का प्रयास किया। फलस्वरूप हिन्दू धर्म में अनेक आवश्यक सुधार किए गए।
  • इस धर्म के कारण देश में मूर्ति-पूजा आरम्भ हुई। महात्मा बुद्ध की अनेक मूर्तियां बनाई गईं। उनकी देखा-देखी हिन्दुओं ने भी अपने देवी-देवाताओं की मूर्तियां बनाकर उनकी पूजा करनी आरम्भ कर दी।
  • बौद्ध धर्म के परिणामस्वरूप भारत में मन्दिरों की स्थापना हुई।
  • बौद्ध धर्म की लोकप्रियता को देखते हुए धर्म में प्रचारकों का महत्त्व बढ़ गया।

राजनीतिक जीवन पर प्रभाव-

  • बौद्ध धर्म लगभग सारे भारत में लोकप्रिय हुआ। एक ही धर्म के अनुयायी होने के कारण भारतीयों में मेल-जोल बढ़ा। परिणामस्वरूप देश में राजनीतिक एकता को बल मिला।
  • बौद्ध धर्म ने लोगों को मानव-प्रेम का सन्देश दिया। जिन राजाओं ने भी इसे अपनाया, उन्होंने मानव-कल्याण के लिए अनेक कार्य किए। अशोक, कनिष्क तथा हर्ष इस बात का बहुत बड़ा प्रमाण हैं।
  • बौद्ध धर्म के कारण भारत में सैनिक दुर्बलता आ गई। उदाहरण के लिए अहिंसा के सिद्धान्त को अपनाकर अशोक ने युद्ध करने बन्द कर दिए। परिणाम यह हुआ कि भारतीय सैनिक दुर्बल और विलासी बन गए।

कला एवं साहित्य पर प्रभाव-

  • बौद्ध धर्म के कारण देश में अनेक स्तूप, मठ तथा विहार बने। ये सभी भवन-निर्माण कला की दृष्टि से बड़ा महत्त्व रखते
  • बौद्ध धर्म के कारण भारत में मूर्ति-कला में विशेष निखार आया। अनेक नई कला शैलियों का भी जन्म हुआ। गान्धार कला-शैली में महात्मा बुद्ध की अनेक सुन्दर मूर्तियां बनाई गईं।
  • बौद्ध धर्म के कारण भारतीय साहित्य का काफ़ी विकास हुआ। महात्मा बुद्ध के अनुयायियों ने बुद्ध के जीवन और उनकी शिक्षाओं से सम्बन्धित अनेक ग्रन्थ लिखे।

संक्षेप में, इतना कहना ही काफ़ी है कि बौद्ध धर्म ने भारतीय जीवन के हर पहलू पर गहरा प्रभाव डाला। भारत पर इसके प्रभावों का वर्णन करते हुए श्री ई० वी० हैवेल ने ठीक ही कहा है, “बौद्ध धर्म ने भारत को एक राष्ट्र बनाने में उसी प्रकार सहायता की जिस प्रकार ईसाई धर्म ने ऐंग्लो-सैक्सन काल में इंग्लैण्ड में की थी।”

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 3 जैन धर्म और बौद्ध धर्म

प्रश्न 7.
बौद्ध धर्म तथा जैन धर्म की तुलना कीजिए।
अथवा
(क) जैन धर्म तथा बौद्ध धर्म में क्या समानताएं थीं ?
(ख) जैन धर्म तथा बौद्ध धर्म के बीच असमानताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
जैन धर्म तथा बौद्ध धर्म छठी शताब्दी ईसा पूर्व की देन है। दोनों धर्मों का जन्म समान परिस्थितियों में हुआ। इसलिए दोनों में कुछ समानताएं होना स्वाभाविक है। समानताओं के साथ-साथ इनमें कुछ असमानताएं भी पाई जाती हैं। आओ, इन दोनों धर्मों की तुलनात्मक समीक्षा करें।

(क) समानताएं-

  • दोनों धर्मों के संस्थापक क्षत्रिय राजकुमार थे। इन दोनों ने ही घोर तपस्या के पश्चात् सच्चा ज्ञान प्राप्त किया।
  • दोनों धर्मों का जन्म हिन्दू धर्म की प्रतिक्रिया के रूप में हुआ।
  • दोनों धर्मों के सिद्धान्त आरम्भ में बड़े सरल थे। अहिंसा तथा मोक्ष दोनों धर्मों के मूल सिद्धान्त हैं।
  • दोनों धर्म कर्म सिद्धान्त को स्वीकार करते हैं। इनके अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को अपने कर्मों का फल अगले जन्म में मिलता है।
  • दोनों धर्मों ने ही जाति प्रथा का घोर विरोध किया।
  • दोनों धर्मों ने ही ब्राह्मणों के प्रभुत्व को स्वीकार नहीं किया।
  • दोनों धर्मों ने ही यज्ञों तथा पशु-बलि का विरोध किया।
  • दोनों धर्मों ने सदाचार और पवित्रता का सन्देश दिया।

(ख) असमानताएं-

  • दोनों धर्मों में अहिंसा को अपनाने का मार्ग भिन्न है। बौद्ध धर्म के अनुसार किसी भी प्राणी को मन, वचन तथा कर्म में कष्ट नहीं देना चाहिए। यही अंहिसा है। इसके विपरीत जैन धर्म वाले प्रत्येक वस्तु में आत्मा मानते हैं। उनके अनुसार किसी जीव या निर्जीव को कष्ट पहुंचाना अहिंसा के सिद्धान्त के विरुद्ध है।
  • दोनों धर्म मोक्ष-प्राप्ति को जीवन का लक्ष्य मानते हैं, परन्तु दोनों धर्मों के मोक्ष प्राप्ति के साधन भिन्न-भिन्न हैं।
    बौद्ध धर्म में मोक्ष-प्राप्ति के लिए “अष्ट-मार्ग” बताया गया है, जबकि जैन धर्म के अनुयायी ‘त्रिरत्न’ का पालन करके मोक्ष प्राप्त करने में विश्वास रखते हैं।
  • दोनों धर्मों ने ही धर्म प्रचार संघ स्थापित किए, परन्तु बौद्ध संघ के भिक्षु जहां स्थान-स्थान पर घूम कर अपने धर्म का प्रचार करते थे, वहां जैन संघ के संन्यासी घोर तपस्या में लीन रहते थे।
  • जैन धर्म की दिगम्बर शाखा के अनुयायी बिल्कुल नंगे रहते हैं, परन्तु बौद्ध धर्म की किसी शाखा में यह बात नहीं पाई जाती।
  • दोनों धर्मों के पूजनीय व्यक्ति भिन्न हैं। जैन धर्म वाले तीर्थंकरों की पूजा करते हैं, जबकि बौद्ध धर्म वाले बौधिसत्वों की पूजा करते हैं।
  • दोनों धर्मों के धार्मिक ग्रन्थ अलग-अलग हैं। बौद्ध धर्म के प्रसिद्ध ग्रन्थ ‘जातक’ और ‘त्रिपिटक’ हैं। दूसरी ओर जैन धर्म के प्रमुख ग्रन्थ “अंग” और “उपांग” हैं।
  • बौद्ध धर्म विदेशों में भी खूब लोकप्रिय हुआ। इसके विपरीत जैन धर्म केवल भारत तक ही सीमित रहा।
  • बौद्ध धर्म का आज भारत में पूरी तरह पतन हो चुका है। इसके विपरीत जैन धर्म के आज भी भारत में अनेक अनुयायी मिलते हैं।

फुटबाल (Football) Game Rules – PSEB 10th Class Physical Education

Punjab State Board PSEB 10th Class Physical Education Book Solutions फुटबाल (Football) Game Rules.

फुटबाल (Football) Game Rules – PSEB 10th Class Physical Education

याद रखने योग्य बातें

  1. फुटबाल मैदान की लम्बाई = 120m × 80m (130 गज़ × 100 गज़)
  2. फुटबाल मैदान की चौड़ाई = 50 गज़ से 100 गज़, 45-90 मीटर
  3. मैदान का आकार = आयताकार
  4. खिलाड़ियों की गिनती = 11, बदलवे 7
  5. फुटबाल की परिधि = 27″ से 28″, 68 सैं०मी० 70 सैं०मी०
  6. फुटबाल का भार = 14 से 16 औंस, 410 ग्राम से 450 ग्राम
  7. खेल का समय = 45—45 मिनट के दो हाफ
  8. आराम का समय = 15 मिनट
  9. मैच में बदले जा सकने वाले खिलाड़ी = 3 मिनट
  10. मैच के अधिकारी = एक टेबल आफिशल, एक रैफ़री और दो लाइन मैन.
  11. अंतर्राष्ट्रीय मैच के लिए मैदान का आकार = अधिक-से-अधिक 110 × 75 मीटर 100 × 64 मीटर कम-से-कम
  12. अन्तर्राष्ट्रीय मैचों में मैदान का माप = अधिकतम 110 मी० × 75 मीटर (120 गज़ × 80 गज़) कम-से-कम 100 मी० × 64 मी० (100 गज़ × 70 गज़)
  13. गोल पोस्ट की ऊँचाई = 2.44 मीटर
  14. कार्नर फ्लैग की ऊँचाई = कम-से-कम 5 फीट

फुटबाल खेल की संक्षेप रूपरेखा
(Brief outline of the Football Game)

  1. मैच दो टीमों के बीच होता है। प्रत्येक टीम में ग्यारह-ग्यारह खिलाड़ी होते हैं। एक टीम में 16 खिलाड़ी होते हैं जिनमें से 11 खेलते हैं और 5 खिलाड़ी स्थानापन्न (Substitutes) होते हैं। इनमें से एक गोलकीपर होता है।
  2. एक टीम मैच में तीन से अधिक खिलाड़ी और एक गोलकीपर बदल सकती है।
  3. एक बदला हुआ खिलाड़ी दोबारा नहीं बदला जा सकता।
  4. खेल का समय 45-5-45 मिनट का होता है। मध्यान्तर का समय 5 मिनट का होता है।
  5. मध्यान्तर या अवकाश के बाद टीमें अपनी साइडें बदलती हैं।
  6. खेल का आरम्भ खिलाड़ी एक-दूसरे की सैंटर लाइन की निश्चित जगह से पास देकर शुरू करते हैं और साइडों का फैसला टॉस द्वारा किया जाता है।
  7. मैच खिलाने के लिए एक टेबल अधिकारी, एक रैफरी और दो लाइनमैन होते हैं।
  8. गोलकीपर की वर्दी अपनी टीम से भिन्न होती है।
  9. खिलाड़ी को कोई ऐसी वस्तु नहीं पहननी चाहिए जो दूसरे खिलाड़ियों के लिए घातक हो।
  10. मैदान के बाहरी भाग से कोचिंग नहीं होनी चाहिए।
  11. जब गेंद गोल रेखा या साइड लाइन को पार कर जाए तो खेल रुक जाता है।
  12. रैफ़री स्वयं भी किसी वजह से खेल बन्द कर सकता है।

फुटबाल (Football) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education

प्रश्न
फुटबाल का मैदान, गोल क्षेत्र, गोल, पैनल्टी क्षेत्र, कार्नर क्षेत्र, रेखाएं और गेंद के बारे में बताइए।
खेल का मैदान
(Playing Field)
आकार-फुटबॉल का मैदान आयताकार होता है। इसकी लम्बाई 100 m से कम और 120 m से अधिक न होगी। इसकी चौड़ाई 55 m से कम और 90 m से अधिक न होगी। अन्तर्राष्ट्रीय मैचों में इसकी लम्बाई 90 से 120 m तक चौड़ाई 50 से 90 m होगी। – रेखांकन (Lining)-खेल का मैदान स्पष्ट रेखाओं द्वारा अंकित होना चाहिए। लम्बी रेखाएं स्पर्श रेखाएं या पक्ष रेखाएं कहलाती हैं और छोटी रेखाओं को गोल रेखाएं कहा जाता है। मैदान के प्रत्येक कोने पर 1.50 m ऊँचे खम्बे पर झंडी (कार्नर फ्लैग) लगाई जाएगी। यह केन्द्रीय रेखा पर कम-से-कम एक गज़ पर होनी चाहिए। मैदान के मध्य में एक वृत्त लगाया जाता है जिसका अर्द्धव्यास 9.15 m गज़ होगा।
FOOTBALL GROUND
फुटबाल (Football) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education 1
कार्नर क्षेत्र-प्रत्येक कार्नर क्षेत्र पोस्ट से खेल के क्षेत्र के अन्दर एक गज़ के अर्द्धव्यास का चौथाई वृत्त खींचा जाएगा।
गोल क्षेत्र-खेल के मैदान में दोनों सिरों पर रेखाएं खींची जाएंगी जो गोल रेखा पर लम्ब होंगी। ये मैदान में 5.5 m की दूरी तक फैली रहेंगी और गोल रेखा के समानान्तर एक रेखा से मिला दी जाएंगी। इन रेखाओं तथा गोल रेखाओं द्वारा घिरे मध्य क्षेत्र को गोल क्षेत्र कहते हैं।
फुटबाल (Football) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education 2
पैनल्टी क्षेत्र-खेल के मैदान में दोनों सिरों पर प्रत्येक गोल पोस्ट से 16.50 m की दूरी पर गोल रेखा के समकोण पर दो रेखाएं खींची जाएंगी। ये मैदान में 16.50m की दूरी तक फैली होंगी। इन्हें गोल रेखा के समानान्तर एक रेखा खींच कर मिलाया जाएगा। इन रेखाओं तथा गोल रेखाओं से घिरे हुए क्षेत्र को पैनल्टी क्षेत्र कहा जाएगा।

गोल-गोल रेखा के मध्य में से 7.32 m की दूरी पर दो पोल (डंडे) गाड़े जाएंगे। इनके सिरों को एक क्रासबार द्वारा मिलाया जाएगा जिसका निचला सिरा भूमि से 2.44 m ऊंचा होगा। गोल पोस्टों तथा क्रासबार की चौड़ाई और गहराई 5 इंच से अधिक नहीं होगी। देखें खेल के मैदान का चित्र।
गेंद-गेंद का आकार गोल होगा। यह चमड़े या किसी अन्य स्वीकृत वस्तु की बनी होनी चाहिए। इसकी परिधि 27″ से 28″ तक होगी। इसका भार 14 औंस से 16 औंस तक होगा। रैफ़री की आज्ञा के बिना खेल के दौरान गेंद बदली नहीं जा सकती।

खिलाड़ी और उसकी पोशाक
खिलाड़ी का सामान-खिलाड़ी प्रायः जर्सी या कमीज़, निक्कर, जुराबें तथा बूट पहन सकता है। गोल कीपर की कमीज़ या जर्सी का रंग बाकी खिलाड़ियों से भिन्न होगा। बूट पहनने आवश्यक हैं। कोई भी खिलाड़ी ऐसी वस्तु नहीं पहन सकता जो अन्य खिलाड़ियों के लिए हानिकारक हो।

फुटबाल (Football) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education

प्रश्न
निम्नलिखित से आप क्या जानते हैं ?
उत्तर-
खिलाड़ियों की संख्या, अधिकारियों की गिनती, खेल की अवधि, स्कोर अथवा गोल।
खिलाड़ियों की संख्या-फुटबॉल का खेल दो टीमों के बीच होता है। प्रत्येक टीम में ग्यारह-ग्यारह तथा अतिरिक्त (Extra) 5 खिलाड़ी होते हैं। एक मैच में किसी टीम को दो से अधिक खिलाड़ियों को बदलने की आज्ञा नहीं होती। बदले हुए खिलाड़ी को पुनः इस मैच में भाग लेने का अधिकार नहीं दिया जाता। मैच में गोलकीपर बदल सकते हैं। । अधिकारी-एक रैफ़री, दो लाइनमैन, एक टाइम कीपर रैफ़री खेल के नियमों का पालन करवाता है और किसी भी झगड़े वाले प्रश्न का निर्णय करता है। खेल में क्या हुआ और परिणाम क्या निकला इस पर उसका निर्णय अन्तिम होता है।
खेल की अवधि-खेल 45-45 मिनट की दो समान अवधियों में खेला जाएगा। पहले 45 मिनट के खेल के बाद 10 मिनट का मध्यान्तर (Interval) या इससे अधिक
होगा।

गोल्डन गोल (Golden Goal)-फुटबॉल खेल में यदि समय समाप्ति पर दोनों टीमें बराबर रहती हैं तो बराबर की स्थिति में फालतू समय 15-15 मिनट का खेल होगा। इस समय के खेल में जहां भी गोल हो जाए तो खेल समाप्त हो जाता है। गोल करने वाली टीम विजयी घोषित की जाती है। उसके बाद यदि फिर भी गोल न हो तो दोनों टीमों को 5-5 पैनल्टी किक उस समय तक दिए जाते रहेंगे जब तक फैसला नहीं हो जाता परन्तु यदि लीग विधि से टूर्नामैंट हो रहा हो तो बराबर रहने पर दोनों टीमों को एक-एक अंक (Point) दिया जाएगा।
खेल का आरम्भ-खेल के प्रारम्भ में टॉस द्वारा किक मारने और साइड (पक्ष) चुनने का निर्णय किया जाता है। टॉस जीतने वाली टीम को किक लगाने या साइड चुनने की छूट होती है। गेंद खेल से बाहर-गेंद खेल से बाहर मानी जाएगी—

  1. जब गेंद भूमि या हवा में गोल रेखा या स्पर्श रेखा पूरी तरह पार कर जाए।
  2. जब रैफरी खेल को रोक दे।

स्कोर (फलांकन) या गोल-जब गेंद नियमानुसार गोल पोस्टों के बीच क्रास बार के नीचे और गोल रेखा के पार चली जाए तो गोल माना जाता है। जो भी टीम अधिक गोल बना लेगी उसे विजयी माना जाएगा। यदि कोई गोल नहीं होता या बराबर संख्या में गोल होते हैं तो खेल बराबर माना जाएगा। परन्तु यदि लीग विधि से टूर्नामैंट हो रहा हो तो बराबर रहने पर दोनों टीमों को एक-एक अंक (Point) दिया जाएगा।

प्रश्न
फुटबाल खेल में ऑफ साइड, फ्री किक, पैनल्टी किक, कार्नर किक और गोल किक क्या होते हैं ?
उत्तर-
ऑफ साइड-कोई भी खिलाड़ी अपने मध्य में ऑफ साइड नहीं होता।
ऑफ साइड उस समय होता है जब वह विरोधी टीम के मध्य में हो और उसके पीछे दो विरोधी खिलाड़ी न हों।

  1. उसकी अपेक्षा विरोधी खिलाड़ी अपनी गोल रेखा के निकट न हों।
  2. वह मैदान में अपने अंर्द्ध-क्षेत्र में न हो।
  3. गेंद अन्तिम बार विरोधी को न लगी हो या उसके द्वारा खेली न गई हो।
  4. उसे गोल-किक, कार्नर किक, थ्रो-इन द्वारा गेंद सीधी न मिली हो या रैफ़री ने न फेंका हो।

दण्ड-इस नियम का उल्लंघन करने पर विरोधी खिलाड़ी को उस स्थान से फ्री किक दी जाएगी, जहां पर नियम का उल्लंघन हुआ हो।
फ्री किक-फ्री किक दो प्रकार की होती है-प्रत्यक्ष फ्री किक (Direct Kick) तथा अप्रत्यक्ष फ्री किक (Indirect Kick)। प्रत्यक्ष फ्री किक वह है जहां से सीधा गोल किया जा सकता है। जब तक कि गेंद किसी और खिलाड़ी को छू न जाए।
जब कोई खिलाड़ी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष फ्री किक लगाता है तो अन्य खिलाड़ी गेंद से कम से कम दस गज की दूरी पर होंगे। वे अपने परिधि पथ और पैनल्टी क्षेत्र को पार करते ही गेंद फौरन खेलेंगे। यदि गेंद पैनल्टी क्षेत्र से परे सीधे खेल में किक नहीं लगाई गई तो किक पुनः लगाई जाएगी।
दण्ड-इस नियम का उल्लंघन करने पर रक्षक टीम को उल्लंघन वाले स्थान से अप्रत्यक्ष फ्री किक लगाने को मिलेगी।
फ्री किक लगाने वाला खिलाड़ी गेंद को दूसरी बार उस समय तक नहीं छू सकता जब तक इसे किसी अन्य खिलाड़ी ने न छू लिया हो।
पैनल्टी किक-पैनल्टी किक पैनल्टी निशान से लगाई जाएगी। पैनल्टी किक लगाने के समय किक मारने वाला (प्रहारक) तथा गोल रक्षक ही पैनल्टी क्षेत्र में होंगे। बाकी ‘खिलाड़ी पैनल्टी क्षेत्र से बाहर और पैनल्टी के निशान से कम से कम 10 गज़ दूर होंगे। गेंद को किक लगने तक गोल रक्षक गोल रेखा पर स्थिर खड़ा रहेगा। किक मारने वाला गेंद को दूसरी बार छू नहीं सकता जब तक कि उसे गोल कीपर छू नहीं लेता।
दण्ड-इस नियम के उल्लंघन पर—

  1. यदि रक्षक टीम द्वारा उल्लंघन होता है और यदि गोल न हुआ हो तो किक दूसरी बार ली जाएगी।
  2. यदि आक्रामक टीम द्वारा उल्लंघन होता है तो गोल हो जाने पर भी दोबारा किक दी जाएगी।
  3. यदि पैनल्टी किक लेने वाले खिलाड़ी से अथवा उसके साथी से गोल उल्लंघन होता है तो विरोधी खिलाड़ी उल्लंघन वाले स्थान से अप्रत्यक्ष गोल किक लगाएगा।

थो-इन-जब गेंद भूमि पर या हवा में पार्श्व रेखाओं (Side Lines) से बाहर चली जाती है तो विरोधी टीम का एक खिलाड़ी उस स्थान से जहां से गेंद पार हुई होती है, खड़ा होकर गेंद मैदान के अन्दर फेंकता है।
गेंद अन्दर फेंकने वाला खिलाड़ी मैदान की ओर मुंह करके दोनों पांवों का कोई भाग स्पर्श रेखा या स्पर्श रेखा से बाहर ज़मीन पर रख कर खड़ा हो जाता है। वह हाथों से गेंद पकड़ कर सिर के ऊपर से घुमा कर अन्दर मैदान में फेंकेगा। वह उस समय तक गेंद को नहीं छू सकता जब तक किसी दूसरे खिलाड़ी ने इसे न छू लिया हो।
दण्ड—

  1. यदि थ्रो-इन उचित ढंग से न हो तो विरोधी टीम का खिलाड़ी थ्रो-इन करेगा।
  2. यदि थ्रो-इन करने वाला खिलाड़ी गेंद को किसी दूसरे खिलाड़ी द्वारा छुए जाने से पहले ही स्वयं छू लेता है तो विरोधी टीम को एक अप्रत्यक्ष किक लगाने को दी जाएगी।
    फुटबाल (Football) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education 3
    गोल किक-किसी आक्रामक टीम के खिलाड़ी द्वारा खेले जाने पर जब गेंद भूमि के साथ हवा में गोल रेखा को पार कर जाए तो रक्षक टीम का खिलाड़ी इसे गोल क्षेत्र से बाहर किक करता है। यदि वह गोल क्षेत्र से बाहर नहीं निकलती और सीधे खेल के मैदान में नहीं पहुंच पाती तो किक दोबारा लगाई जाएगी। किक करने वाला खिलाड़ी गेंद को उस समय तक पुनः नहीं छू सकता जब तक इसे किसी दूसरे खिलाड़ी द्वारा छू न लिया जाए।
    दण्ड-यदि किक लगाने वाला खिलाड़ी गेंद को किसी अन्य खिलाड़ी द्वारा छूने से पहले पुनः छू ले तो विरोधी को उसी स्थान से एक अप्रत्यक्ष फ्री किक दी जाएगी जहां कि उल्लंघन हुआ है।

कार्नर किक-जब रक्षक टीम के किसी खिलाड़ी द्वारा रखेले जाने पर गेंद भूमि पर या हवा में गोल रेखा पार कर जाए तो आक्रामक टीम का खिलाड़ी निकटतम कार्नर फ्लैग पोस्ट के चौथाई वृत्त के भीतर से गेंद को किक लगाएगा। ऐसी किक से प्रत्यक्ष गोल भी किया जा सकता है। जब तक कार्नर किक न ले ली जाए, विरोधी टीम के खिलाड़ी 10 गज दूर रहेंगे। किक करने वाला खिलाड़ी भी उस समय तक गेंद को दुबारा नहीं छू सकता जब तक किसी अन्य खिलाड़ी ने उसे छ न लिया हो।
दण्ड-इस नियम के उल्लंघन पर विरोधी टीम को उल्लंघन वाले स्थान से अप्रत्यक्ष फ्री किक दी जाएगी।

फुटबाल (Football) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education

प्रश्न
फुटबाल खेल में कौन-कौन से फाऊल हो सकते हैं ?
उत्तर-
फाऊल तथा त्रुटियां
(क) यदि कोई भी खिलाड़ी निम्नलिखित अवज्ञा या अपराधों में से कोई भी जान-बूझ कर करता है तो विरोधी दल को अवज्ञा अथवा अपराध वाले स्थान से प्रत्यक्ष फ्री किक दी जाएगी।
फुटबाल (Football) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education 4

  1. विरोधी खिलाड़ी को किक मारे या किक मारने की कोशिश करे।
  2. विरोधी खिलाड़ी पर कूदे या धक्का या मुक्का मारे अथवा कोशिश करे।
  3. विरोधी खिलाड़ी पर भयंकर रूप से आक्रमण करे।
  4. विरोधी खिलाड़ी पर पीछे से आक्रमण करे।
  5. विरोधी खिलाडी को पकड़े या उसके वस्त्र पकड़ कर खींचे।
  6. विरोधी खिलाड़ी को चोट लगाए या लगाने की कोशिश करे।
  7. विरोधी खिलाड़ी के रास्ते में बाधा बने या टांगों के प्रयोग से उसे गिरा दे या गिराने की कोशिश करे।
  8. विरोधी खिलाड़ी को हाथ या भुजा के किसी भाग से धक्का दे।
  9. गेंद को हाथ से पकड़ता है।

यदि रक्षक टीम का खिलाड़ी इन अपराधों में से कोई एक अपराध पैनल्टी क्षेत्र में जान-बूझकर करता है तो आक्रामक टीम को पैनल्टी किक दी जाएगी।
(ख) यदि निम्नलिखित अपराधों में से कोई एक अपराध करता है तो विरोधी टीम को अपराध वाले स्थान से अप्रत्यक्ष फ्री किक दी जाएगी—

  1. जब गेंद को खतरनाक ढंग से खेलता है।
  2. जब गेंद कुछ दूर हो तो दूसरे खिलाड़ी को कन्धे मारे।
  3. गेंद खेलते समय विरोधी खिलाड़ी को जान-बूझ कर रोकता है।
  4. गोलकीपर पर आक्रमण करना, केवल उन स्थितियों को छोड़कर जब वह
    • विरोधी खिलाड़ी को रोक रहा हो।
    • गेंद पकड़ रहा हो।
    • गोल क्षेत्र से बाहर निकल गया हो।
    • गोल रक्षक के रूप में गेंद भूमि पर बिना टप्पा मारे चार कदम आगे को जाना।
    • गोल रक्षक के रूप में ऐसी चालाकी में लग जाना जिससे खेल में बाधा पड़े, समय नष्ट करे और अपने पक्ष को अनुचित लाभ पहुंचाने की कोशिश करे।

(ग) खिलाड़ी को चेतावनी दी जाएगी और विरोधी टीम को अप्रत्यक्ष फ्री किक दी जाएगी जब कोई खिलाड़ी

  1. खेल के नियमों का लगातार उल्लंघन करता है।
  2. दुर्व्यवहार का अपराधी होता है।
  3. शब्दों या प्रक्रिया द्वारा रैफरी के निर्णय से मतभेद प्रकट करता है।

(घ) खिलाड़ी को खेल के मैदान से बाहर निकाल दिया जाएगा यदि—

  1. वह गाली-गलौच करता है या फाऊल करता है।
  2. चेतावनी मिलने पर भी बुरा व्यवहार करता है।
  3. वह गम्भीर फाऊल खेलता है या दुर्व्यवहार करता है।

फुटबाल (Football) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education

प्रश्न
फुटबाल की महत्त्वपूर्ण तकनीकों के बारे में लिखें।
उत्तर-
किकिंग-किकिंग वह ढंग है जिसके द्वारा बॉल को इच्छित दिशा में पांवों की सहायता से इच्छित गति से, यह देखते हुए कि बॉल इच्छित स्थान पर पहुंच जाए, आगे बढ़ाया जाता है । किकिंग की कला में सही निशाना, गति, दिशा एवं अन्तर केवल एक पांव, बाएं या दहने में नहीं बल्कि दोनों पांवों से काम किया जाता है। शायद नवसिखयों को सिखलाई जाने वाली सबसे जरूरी बात दोनों पांवों से खेल को खेलने पर बल देने की ज़रूरत है। युवकों और नवसिखयों को दोनों पांवों से खेलना सिखाना आसान है। इसके बगैर खेल के किसी सफलता के मरतबे पर पहुंच पाना असम्भव है।

  1. पांवों को अंदरूनी भाग से किक मारना—
  2. पावों का बाहरी भाग—

जब बॉल को नज़दीक दूरी पर किक किया जाता है तो इन दोनों परिवर्तनों का इस्तेमाल किया जाता है। ताकत कम लगाई जाती है, परन्तु इस में अधिक शुद्धता होती है और नतीजे के तौर पर यह ढंग गोलों का निशाना बनाते समय अधिक इस्तेमाल किया जाता है।
फुटबाल (Football) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education 5
हॉफ़ वाली तथा वॉली किक—
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जब बॉल खिलाड़ी के पास उछलता हुआ या हवा में आ रहा हो तो उस समय एक अस्थिरता होती है, न केवल फुटबाल के क्रीड़ा स्थल की सतह के कारण इसके उछलन की दिशा के बारे, बल्कि इसकी ऊंचाई और गति के बारे में भी। इसको प्रभावशाली ढंग से साफ करने हेतु जो बात ज़रूरी है वह है शुद्ध समय और मार रहे पांव के चलने का तालमेल और शुद्ध ऊंचाई तक उठाना।

ओवर हैड किकइस किक—
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का उद्देश्य तीन पक्षीय होता है (क) सामने मुकाबला कर रहे खिलाड़ी से बॉल की और दिशा में मोड़ना, (ख) बॉल को किक की पहली दिशा में ही आगे बढ़ाना और (ग) बॉल को वापिस उसी दिशा में मोड़ना. जहां से वह आया होता है। ओवर हैड किक संशोधित वॉली किक है और इसका इस्तेमाल आमतौर पर ऊंचे उछलते हुए बॉल को मारने हेतु किया जाता है।
पास देना—
फुटबॉल में पास देने का काम टीम वर्क का आधार है। पास टीम को, समन्वय बढ़ाते हुए और टीम वर्क को अहसास कराते हुए जोड़ता है। पास खेल की स्थिति से जुड़ी हुई खेल की सच्चाई है तथा एक मौलिक तत्त्व है, जिसके लिए टीम की सिखलाई और अभ्यास के दौरान अधिक समय और विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए। गोलों में प्रवीणता के लिए टीम का पास व्यक्तिगत खिलाड़ी का शुद्ध आलाम है। यह कहा जाता है कि एक सफल पास तीन किकों से अच्छा होता है। पास देना तालमेल का एक अंग है, व्यक्तिगत बुद्धिमता को खेल में आक्रमण करते समय या सुरक्षा समय खिलाड़ियों में हिलडुल के पेचीदा ढांचे को एक सुर करना है। पास में पास देने वाला, बॉल और पास हासिल करने वाला शामिल होते हैं।
पास देने की क्रिया को आमतौर पर दो भागों में बांटा गया है-लम्बे पास तथा छोटे पास।

  1. लम्बे पास-ऐसे पास का इस्तेमाल खेल की तेज़ गति की स्थिति में किया जाता है, जहां कि लम्बे पास गुणकारी होते हैं और पास दाएं-बाएं या पीछे की ओर भी दिया जा सकता है। सभी लम्बे पासों में पांवों में पांव के ऊपरी हिस्से का इस्तेमाल किया जाता है। लम्बे सुरक्षा पास को मज़बूत करते हैं तथा छोटे पास देने को आसान करते हैं।
  2. छोटे पास-छोटे पास 15 गज़ या इतनी-सी ही दूरी तक पास देने में इस्तेमाल किए जाते हैं। ये पास लम्बे पासों से अधिक तेज़ एवं शुद्ध होते हैं।

पुश पास—
पुश पास का इस्तेमाल आमतौर पर जब दूसरी टीम का खिलाड़ी अधिक नज़दीक न हो, नज़दीक से गोलों में बॉल डालने के लिए और बॉल को बाएं-दाएं ओर फेंकने हेतु किया जाता है।
लॉब पास—
यह पुश पास से छोटा होता है। मगर इसमें बॉल को ऊपर उठाया जाता है या उछाला जाता है। लॉब पास का इस्तेमाल दूसरी टीम का खिलाड़ी जब पास में हो या थ्रो बॉल लेने की कोशिश कर रहा हो तो उसके सिर के ऊपर से बॉल को आगे बढ़ाने हेतु किया जाता है।
पांव का बाहरी भाग……..फलिक या जॉब पास—
पहले बताए गए दो पासों के विपरीत फलिक पास से पाँव को भीतर की ओर घुमाते हुए बॉल को फलिक किया जाता है या पुश किया जाता है। इस तरह के पास का पीछे की ओर पास देने हेतु बॉल को नियन्त्रण में रखते हुए और धरती पर ही आगे रेंगते हुए इस्तेमाल किया जाता है।
ट्रैपिंग—
ट्रैपिंग बॉल को नियन्त्रण में रखने का आधार है। बॉल को ट्रैप करने का अर्थ बॉल को खिलाड़ी के नियन्त्रण से बाहर जाने से रोकना है। यह केवल बॉल को रोकने या गतिहीन करने की ही क्रिया नहीं बल्कि आ रहे बॉल को मजबूत नियन्त्रण में करने के लिए अनिवार्य तकनीक भी है। रोकना तो बॉल नियन्त्रण का पहला अंग है और दूसरा अंग जो खिलाड़ी इससे उपरान्त अपने एवं टीम के लाभ हेतु करता है, भी बराबर अनिवार्य है।
नोट-ट्रैप की सिखलाई

  1. रेंगते बॉल तथा
  2. उछलते बॉल के लिए दी जानी चाहिए।

पांव के निचले भाग से ट्रैप—
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यदि कोई शीघ्रता नहीं होती और जिस वक्त काफ़ी स्वतन्त्र अंग होता है खिलाड़ी के आसपास कोई नहीं होता तो इस तरह की ट्रैपिंग बहुत गुणकारी होती है।

पांव के भीतरी भाग से ट्रैप—
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यह सबसे प्रभावशाली और आम इस्तेमाल किया जाता ट्रैप है। इस तरह का ट्रैप न केवल खिलाड़ी को बॉल ट्रैप करने के योग्य बनाता है, बल्कि उसको किसी भी दिशा में जाने के लिए सहायता करता है और अक्सर उसी गति में ही। यह ट्रैप दाएं-बाएं ओर से या तिरछे आ रहे बॉल के लिए अच्छा है। यदि बॉल सीधा सामने से आ रहा है तो बदन को उसी दिशा में घुमाया जाता है जिस ओर बॉल ने जाना होता है।

पांव के बाहरी भाग से ट्रैप—
यह पहले जैसा ही है, मगर कठिन है, क्योंकि हरकत में खिलाड़ी को बदन का भार बाहर की तथा केन्द्र से बाहर सन्तुलन करने के लिए ज़रूरी होता है।
पेट तथा सीना ट्रैप—
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यदि बॉल कमर से ऊंचा हो और पांव से असरदार ढंग से ट्रैप न हो सकता हो तो बॉल को पेट तथा सीने पर सीधा या धरती से उछलता हुआ लिया जाता है।
हैड ट्रैप—
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यह अनुभवी खिलाड़ियों के लिए है और उसके लिए है जो हैडिंग में अपने को अच्छी तरह स्थापित कर चुके हैं।
फुटबाल (Football) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education 12
(क) सामने की ओर हैडिंग

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(ख) बाई तथा दाई ओर हैडिंग

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(ग) नीचे की ओर हैडिंग

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PSEB 10th Class Physical Education Practical फुटबाल (Football)

प्रश्न 1.
फुटबाल के मैदान की लम्बाई और चौड़ाई बताओ।
उत्तर-
फुटबाल के मैदान की लम्बाई 130 गज़ से अधिक और 100 गज़ से कम नहीं होनी चाहिए और चौड़ाई 100 गज़ से अधिक और 50 गज़ से कम नहीं होनी चाहिए। अन्तर्राष्ट्रीय मैचों में लम्बाई 120 गज़ से 110 गज़ और चौड़ाई 70 से 80 गज़ तक होनी चाहिए।

प्रश्न 2.
फुटबाल की खेल में कुल खिलाड़ी कितने होते हैं और किन-किन स्थितियों में खेलते हैं ?
उत्तर-
फुटबाल की खेल में कुल 16 खिलाड़ी होते हैं जिनमें 11 खिलाडी खेलते हैं और 5 खिलाड़ी अतिरिक्त (Substitutes) होते हैं। स्थिति-गोल कीपर = 1, फुलबैक = 2, हाफ = 3, फ़ारवर्ड = 5.

फुटबाल (Football) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education

प्रश्न 3.
फुटबाल के खेल का समय बताइए।
उत्तर-
फुटबाल के खेल का समय 45-5-45 मिनट होता है।

प्रश्न 4.
फुटबाल का भार कितना होता है और उसकी गोलाई बताओ।
उत्तर-
फुटबाल का भार 14 औंस से 16 औंस तक होता है और उसकी गोलाई 27 इंच से 28 इंच तक होती है।

फुटबाल (Football) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education

प्रश्न 5.
फुटबाल के मैदान की लाइनों की मोटाई बताओ।
उत्तर-
फुटबाल के मैदान की सभी लाइनें 5 सैं० मी० चौड़ी होती हैं।

प्रश्न 6.
फुटबाल में हवा का भार कितना होता है ?
उत्तर-
फुटबाल में हवा का भार 0.6007 या 9.01505 पौंड वर्ग इंच होगा।

प्रश्न 7.
फुटबाल का खेल कैसे शुरू होता है ?
उत्तर-
फुटबाल का खेल गेंद के पास द्वारा शुरू होता है।

फुटबाल (Football) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education

प्रश्न 8.
गोल पोस्टों की लम्बाई और ऊंचाई बताओ।
उत्तर-
गोल पोस्टों की लम्बाई 8 गज़ और ऊंचाई 8 फुट होती है।

प्रश्न 9.
पैनल्टी किक की दूरी बताओ।
उत्तर-
पैनल्टी किक 16 गज़ की दूरी से लगाई जाती है।

प्रश्न 10.
गोल कब होता है ?
उत्तर-
जब गेंद गोल पोस्टों के मध्य रेखा गोल को पार कर जाए तो गोल माना जाता है।

फुटबाल (Football) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education

प्रश्न 11.
फुटबाल में किक लगाते समय विरोधी खिलाड़ियों को कितनी दूरी पर खड़े होना चाहिए?
उत्तर-
फुटबाल की खेल में किक लगाते समय 10 गज की दूरी पर विरोधी खिलाड़ियों को खड़े होना चाहिए।

प्रश्न 12.
थो-इन किसे कहा जाता है ?
उत्तर-
जब गेंद खेल के मैदान से पूरे तौर पर बाहर चली जाती है तो विरोधी खिलाड़ी उसी स्थान पर खड़े होकर गेंद को अन्दर फेंकता है तो उसको थ्रो-इन कहा जाता है।

फुटबाल (Football) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education

प्रश्न 13.
फुटबाल के खेल में कितने फ्लैग लगाए जाते हैं ?
उत्तर-
फुटबाल की खेल में 6 फ्लैग लगाए जाते हैं जिनमें से 4 ग्राऊंड के कार्नर में तथा दो ग्राऊंड की मध्य की सैंटर लाइन के अन्त में एक गज़ की दूरी पर पीछे हट कर लगाए जाते हैं।

प्रश्न 14.
फुटबाल की खेल के चार फाऊल बताओ।
उत्तर-
फुटबाल की खेल के चार फाऊल निम्नलिखित हैं—

  1. विरोधी खिलाड़ी को ठुड्ड मारना,
  2. फुटबाल को हाथ लगाना।
  3. धक्का देना।
  4. विरोधी खिलाड़ी पर पीछे से हमला करना।

फुटबाल (Football) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education

प्रश्न 15.
फुटबाल के खेल को खेलाने वाले अधिकारियों की संख्या बताओ।
उत्तर-

  1. टेबल आफिसर = 1
  2. रैफरी = 1
  3. लाइनमैन = 2

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 3 समाज, समुदाय तथा समिति

Punjab State Board PSEB 11th Class Sociology Book Solutions Chapter 3 समाज, समुदाय तथा समिति Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Sociology Chapter 3 समाज, समुदाय तथा समिति

पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न (Textual Questions)

1. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 1-15 शब्दों में दीजिए :

प्रश्न 1.
समाज का अर्थ बताइये।
उत्तर-
मैकाइवर के अनुसार, “समाज सामाजिक संबंधों का जाल है।”

प्रश्न 2.
समाज और समुदाय किन शब्दों से लिये गए हैं ?
उत्तर-
समाज (Society) शब्द लातीनी भाषा के शब्द ‘Socius’ से निकला है जिसका अर्थ है साथ अथवा मित्रता। समुदाय (Community) भी लातीनी भाषा के शब्द ‘Communitas’ से निकला है जिसका अर्थ है ‘सबका सांझा’।

प्रश्न 3.
किसने कहा, “मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है ?”
उत्तर-
ये शब्द अरस्तु (Aristotle) के हैं।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 3 समाज, समुदाय तथा समिति

प्रश्न 4.
सरल युग्म समाज, युग्म समाज, द्वि-युग्म समाज तथा त्रि-युग्म समाज का वर्गीकरण किसने दिया ?
उत्तर-
यह वर्गीकरण हरबर्ट स्पैंसर (Herbert Spencer) ने दिया था।

प्रश्न 5.
समिति किसे कहते हैं ?
उत्तर-
जब कुछ लोग किसी विशेष उद्देश्य के लिए आपस में सहयोग करके संगठन का निर्माण करते है तो इस संगठित संगठन को समिति कहते हैं।

प्रश्न 6.
खुला समाज किसे कहते हैं ?
उत्तर-
जिस समाज में अलग-अलग वर्गों में आने-जाने की पाबंदी नहीं होती उसे खुला समाज कहते हैं।

II. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 30-35 शब्दों में दीजिए :

प्रश्न 1.
समाज की तीन विशेषताएं बताइये।
उत्तर-

  1. समाज लोगों का समूह होता है जिनमें आपसी संबंध होते हैं।
  2. समाज हमेशा समानताओं तथा अंतरों पर निर्भर करता है।
  3. समाज सहयोग तथा संघर्ष पर आधारित होता है।
  4. प्रत्येक समाज में स्तरीकरण पाया जाता है।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 3 समाज, समुदाय तथा समिति

प्रश्न 2.
समाज के प्रकारों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
सम्पूर्ण संसार में बहुत-से समाज मिल जाते हैं जैसे कि जनजातीय समाज, ग्रामीण समाज, औद्योगिक समाज, उत्तर औद्योगिक समाज इत्यादि। परन्तु अलग-अलग विद्वानों ने समाजों के अलग-अलग आधारों पर प्रकार दिए हैं जैसे कि काम्ते (बौद्धिक विकास), स्पैंसर (संरचनात्मक जटिलता), मार्गन (सामाजिक विकास), टोनीज़ (सामाजिक संबंधों के प्रकार), दुर्थीम (एकता के प्रकार) इत्यादि।

प्रश्न 3.
समुदाय किसे कहते हैं ?
उत्तर-
जब कुछ व्यक्ति एक समूह में एक विशेष क्षेत्र में संगठित रूप से रहते हैं तथा वह किसी विशेष उद्देश्य की पूर्ति के लिए नहीं बल्कि अपना जीवन ही वहां पर व्यतीत करते हैं तो उसे हम समुदाय कहते हैं। यह एक मूर्त संकल्प है जिसके सदस्यों के बीच हम भावना होती है।

प्रश्न 4.
समाज किस प्रकार समुदाय से भिन्न है ? दो अन्तर बताइये।
उत्तर-

  • समाज का कोई भौगोलिक क्षेत्र नहीं होता परन्तु समुदाय का एक निश्चित भौगोलिक क्षेत्र होता है।
  • समाज में सहयोग तथा संघर्ष दोनों होते हैं परन्तु समुदाय में केवल सहयोग ही होता है।

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प्रश्न 5.
समिति को परिभाषित कीजिए तथा इसकी विशेषताओं की चर्चा कीजिए।
उत्तर-
बोगार्डस के अनुसार, “सभा साधारणतया कुछ उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए व्यक्तियों का मिल कर कार्य करना है।” इसकी कुछ विशेषताएं होती हैं जैसे कि इसकी विचारपूर्वक स्थापना होती है, इसका निश्चित उद्देश्य होता है, इसका जन्म तथा विनाश होता रहता है, इसकी सदस्यता इच्छा पर आधारित होती है इत्यादि।

प्रश्न 6.
समुदाय तथा समिति के मध्य दो अन्तर बताइये।
उत्तर-

  1. समुदाय किसी निश्चित उद्देश्य के लिए नहीं बनाया जाता परन्तु सभा एक निश्चित उद्देश्य के लिए निर्मित होती है।
  2. समुदाय की सदस्यता ऐच्छिक नहीं होती परन्तु सभा की सदस्यता ऐच्छिक होती है।
  3. समुदाय का निश्चित संगठन नहीं होता परन्तु सभा का एक निश्चित संगठन होता है।

III. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 75-85 शब्दों में दीजिए :

प्रश्न 1.
मानव समाज पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर-
इस पृथ्वी पर मनुष्य तथा मानवीय समाज प्रकृति द्वारा बनाई गई एक अनुपम रचना है। मानवीय समाज की कुछ ऐसी विशेषताएं होती हैं जो इसे पृथ्वी के अन्य जीवों से अलग करती हैं। इन विशेषताओं के कारण ही मानवीय समाज ने प्रगति की है तथा इसकी अपनी संस्कृति तथा सभ्यता विकसित हो सकी है। मानवीय समाज ने अपनी संस्कृति विकसित कर ली है जो काफ़ी आधुनिक स्तर पर पहुंच चुकी है चाहे प्रत्येक समाज के लिए यह अलग-अलग होती है। मानवीय समाज की इकाइयां अर्थात् मनुष्य अलग-अलग स्थितियों, उत्तरदायित्वों, अधिकारों, संबंधों के प्रति भी जागरूक होते हैं। मानवीय समाज हमेशा परिवर्तनशील होता है तथा इसमें समय के साथ-साथ परिवर्तन आते रहते हैं।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 3 समाज, समुदाय तथा समिति

प्रश्न 2.
अगस्ते कोंत द्वारा प्रस्तुत मानव समाज के तीन चरणों के नाम बताइये।
उत्तर-
अगस्ते कोंत ने मानवीय समाज के उद्विकास के तीन स्तर दिए हैं तथा वे हैं-

  1. आध्यात्मिक पड़ाव (Theological Stage)
  2. अधिभौतिक पड़ाव (Metaphysical Stage)
  3. सकारात्मक पड़ाव (Positive Stage)।

प्रश्न 3.
समुदाय के प्रमुख आधार कौन-से हैं ?
उत्तर-

  • समुदाय का जन्म स्वयं ही हो जाता है।
  • प्रत्येक समुदाय का एक विशेष नाम होता है।
  • समुदाय का अपना एक भौगोलिक क्षेत्र होता है जिसमें व्यक्ति रहता है।
  • आजकल के समुदाय का एक विशेष आधार होता है कि यह स्वयं में आत्मनिर्भर होता है।
  • प्रत्येक समुदाय में हम-भावना मिल जाती है।
  • समुदाय में हमेशा स्थिरता रहती है अर्थात् यह टूटते नहीं हैं।

प्रश्न 4.
समिति के तीन उदाहरण दीजिए।
उत्तर-

  1. राजनीतिक दल (Political Parties)
  2. लेबर यूनियन (Labour Union)
  3. धार्मिक संगठन (Religious Organisations)
  4. अन्तर्राष्ट्रीय संगठन (International Associations)।

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प्रश्न 5.
टोनीज़ द्वारा प्रस्तुत समाज के प्रकार कौन से हैं ?
उत्तर-
1. जैमिन शाफ़ट (Gemein Schaft)-टोनीज़ के अनुसार, “जैमिनशाफ़ट एक समुदाय है जिसके सदस्य एक-दूसरे के साथ सहयोग करते हुए रहते हैं तथा अपना जीवन व्यतीत करते हैं। इस समुदाय के जीवन में स्थायी रूप तथा प्राथमिक संबंध पाए जाते हैं।” उदाहरण के लिए ग्रामीण समुदाय।।

2. गैसिल शाफ़ट (Gesell Schaft)-टोनीज़ के अनुसार गैसिल शाफ़ट एक नया सामाजिक प्रकरण है जो औपचारिक तथा कम समय वाला होता है। यह और कुछ नहीं बल्कि समाज के लोगों का जीवन है। इसके सदस्यों के बीच द्वितीय संबंध पाए जाते हैं।

IV. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 250-300 शब्दों में दें :

प्रश्न 1.
समाज शब्द से आप क्या समझते हैं ? एक विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
उत्तर-
साधारण भाषा में समाज का अर्थ ‘व्यक्तियों के समूह’ से लिया जाता है। बहुत से विद्वान् इस शब्द का प्रयोग इसी अर्थ में करते हैं। इस प्रकार समाज का अर्थ किसी समूह के व्यक्तियों द्वारा लिया जा सकता है अपितु उनके मध्य के रिश्तों से नहीं। कभी-कभी समाज के अर्थ को किसी संस्था के नाम से भी लिया जाता है जैसेआर्य समाज, ब्रह्म समाज इत्यादि। इस प्रकार साधारण व्यक्ति की भाषा में समाज का अर्थ इन्हीं अर्थों में लिया जाता है, परन्तु समाजशास्त्र में इस शब्द का अर्थ कुछ और ही अर्थों में लिया जाता है।

समाजशास्त्र में ‘समाज’ शब्द का अर्थ लोगों के समूह से नहीं लिया जाता अपितु उनके बीच में पैदा हुए रिश्तों के फलस्वरूप जो सम्बन्ध पैदा हुए हैं उनसे लिया जाता है। सामाजिक रिश्तों में लोगों का बहुत महत्त्व होता है। वे समाज का एक महत्त्वपूर्ण अंग हैं यह एक प्रक्रिया है न कि वस्तु। समाज में एक आवश्यक वस्तु लोगों के बीच के रिश्ते एवं अन्तर्सम्बन्धों के बीच के नियम हैं जिसके साथ समाज के सदस्य एक-दूसरे के साथ रहते हैं। जब समाजशास्त्री समाज शब्द का अर्थ साधारण रूप में करते हैं तो उनका अर्थ समाज में होने वाले सामाजिक सम्बन्धों के जाल से है और जब वह समाज शब्द को विशेष रूप में प्रयोग करते हैं तो उनका अर्थ होता है कि समाज उन व्यक्तियों का समूह है जिनमें विशेष प्रकार के सम्बन्ध पाए जाते हैं।

समाज (Society)—जब समाजशास्त्री ‘समाज’ शब्द का प्रयोग करते हैं तो उनका अर्थ सिर्फ लोगों के समूह मात्र से नहीं होता बल्कि उनका अर्थ होता है समाज के लोगों में पाए जाने वाले सम्बन्धों के जाल से जिसके साथ लोग एक-दूसरे के साथ जुड़े हुए हैं। सिर्फ कुछ लोगों को इकट्ठा करने से ही समाज नहीं बन जाता। समाज उस समय ही बनता है जब समाज के उन लोगों में अर्थपूर्ण संबंध स्थापित हो जाएं। यह सम्बन्ध अस्थिर होते हैं। हम इन्हें देख नहीं सकते और न ही इनका कोई ठोस रूप होता है। हम केवल इन्हें महसूस कर सकते हैं। यह जीवन के प्रत्येक रूप में मौजूद होते हैं। इन सम्बन्धों को एक-दूसरे से अलग नहीं किया जा सकता। यह तो आपस में इतने अन्तर्सम्बन्धित होते हैं कि इनको अलग-अलग करना बहुत मुश्किल है। यह सभी सम्बन्ध जो व्यक्तियों के बीच होते हैं, इनके जाल को ही समाज कहते हैं। हम इन्हें देख नहीं सकते इसीलिए यह अमूर्त होते हैं।

कुछ लेखक यह विचार करते हैं कि समाज तभी बनता है जब इसके सदस्य एक-दूसरे को जानते हों और उनके कुछ आपसी हित हों। उदाहरण के लिए यदि कोई दो व्यक्ति बस में सफर कर रहे हों और एक-दूसरे को जानते न हों, तो वह समाज नहीं बना सकते। परन्तु यदि वही दो व्यक्ति आपस में बातचीत करनी शुरू कर देते हैं, एक-दूसरे के बारे में जानना शुरू कर देते हैं तो समाज का अस्तित्व कायम होना शुरू हो जाता है। उन दोनों के बीच में एक-दूसरे की तरफ व्यवहार ज़रूरी है।

वास्तव में समाज, सामाजिक सम्बन्धों का जाल है। व्यक्ति जो एक स्थान पर रहते हैं उनके बीच आपसी सम्बन्ध होते हैं और एक-दूसरे के साथ लाभ जुड़े होते हैं। वह एक-दूसरे के ऊपर निर्भर होते हैं और इस प्रकार समाज का निर्माण करते हैं।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 3 समाज, समुदाय तथा समिति

प्रश्न 2.
व्यक्ति तथा समाज अन्तःसम्बन्धित हैं। तर्क दीजिए।
उत्तर-
ग्रीक (यूनानी) फ़िलॉस्फर अरस्तु (Aristotle) ने कहा था कि “मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है।” इस का अर्थ यह है कि मनुष्य समाज में रहता है। समाज के बिना मनुष्य की कीमत कुछ भी नहीं है। वह मनुष्य जो और मनुष्यों के साथ मिलकर साझे जीवन को नहीं निभाता, वह मनुष्यता के नीचे स्तर से है। मनुष्य को लंबा जीवन जीने के लिए बहुत सारी ज़रूरतों के लिए अन्य मनुष्यों पर निर्भर रहना पड़ता है। उसे अपनी सुरक्षा, भोजन, शिक्षा, सामान, कई प्रकार की सेवाओं के लिए दूसरों पर निर्भर रहना पड़ता है। मनुष्य को हम सामाजिक प्राणी तीन अलग-अलग आधारों पर कह सकते हैं

1. मनुष्य प्रकृति से सामाजिक है (Man is social by nature)-सबसे पहले मनुष्य प्रकृति से ही सामाजिक है। मनुष्य अकेला नहीं रह सकता। कोई भी समाज से अलग रह कर आम तरीके से विकास नहीं कर सकता। बहुत-से समाजशास्त्रियों ने अनुभव किए हैं कि जो बच्चे समाज से अलग रह कर के बड़े हुए हैं वह सही तरह विकास नहीं कर सके हैं। यहाँ तक कि एक बच्चा 17 साल की उम्र का होकर भी सही तरह से चल नहीं सकता है। उसको शिक्षा देने के बाद भी वह साधारण मनुष्यों की भांति नहीं रह सका।

इसके साथ का एक केस हमारे सामने आया। 1920 में दो हिन्दू बच्चे एक भेड़िए की गुफ़ा में मिले थे। उनमें से एक बच्चा तो मिलने से कुछ समय बाद ही मर गया था पर दूसरे बच्चे ने अजीब तरह से व्यवहार किया। वह मनुष्यों की भाँति चल नहीं सकता था। वह उनकी तरह खा भी नहीं सकता था और बोल भी नहीं सकता था। वह जानवरों की तरह चार हाथों पैरों के भार चलता था, उस के पास कोई भाषा नहीं थी और वह भेड़िए की तरह चीखता था। वह बच्चा मनुष्यों से डरता था। उसके बाद उस बच्चे के साथ हमदर्दी और प्यार भरा व्यवहार अपनाया गया जिसके कारण वह कुछ सामाजिक आदतें और व्यवहार सीख सका।

एक और केस अमेरिका में एक बच्चे के साथ प्रयोग किया गया। उस बच्चे के माता-पिता का पता नहीं था। उसको 6 महीने की उम्र से ही एक कमरे में एकांत में रखा गया। 5 साल बाद देखा गया कि वह बच्चा न तो चल सकता है और न ही बोल सकता है तथा वह और मनुष्यों से भी डरता था।

यह सभी उदाहरण यह साबित करते हैं कि मनुष्य प्रकृति से ही सामाजिक है। मनुष्य उस स्थिति में ही ठीक तरह से विकास कर सकते हैं जब वह समाज में रहते हों और अपने जीवन को दूसरे मनुष्यों के साथ बाँटते हों। उपरोक्त उदाहरणों से हम देख सकते हैं कि उन बच्चों में मनुष्यों जैसा सामर्थ्य तो था पर सामाजिक समझौतों की कमी में वह सामाजिक तौर पर विकास करने में असमर्थ रहे। समाज में ऐसी चीज़ है जो मनुष्य की प्रकृति की आवश्यक चीज़ों को पूरा करती है। यह कोई भगवान् द्वारा थोपी गई चीज़ नहीं है बल्कि मनुष्य प्रकृति से ही सामाजिक है।

2. आवश्यकता इन्सान को सामाजिक बनाती है (Necessity makes a man social)—मनुष्य समाज में इसलिए रहता है क्योंकि उसको समाज से बहुत कुछ चाहिए होता है। यदि वह समाज के दूसरे सदस्यों के साथ सहयोग नहीं करेगा तो उसकी बहुत-सी ज़रूरतें पूरी नहीं होंगी। हर बच्चा आदमी और औरत के आपसी सम्बन्धों का परिणाम होता है, बच्चा अपने माँ-बाप की देख-रेख में बड़ा होता है और अपने माँ-बाप के साथ रहते हुए वह बहुत कुछ सीखता है। बच्चा अपने अस्तित्व के लिए लिए पूरी तरह समाज पर निर्भर करता है। यदि एक नए जन्मे बच्चे को समाज की सुरक्षा न मिले तो शायद वह नया जन्मा बच्चा एक दिन भी जिंदा न रह सके। मनुष्य का बच्चा इतना असहाय होता है कि उसको समाज की सहायता की आवश्यकता पड़ती ही है। हम उसके खाने, कपड़े और रहने की ज़रूरतें पूरी करते हैं क्योंकि हम सब समाज में रहते हैं और सिर्फ समाज में रह कर ही ये आवश्यकताएं पूरी हो सकती हैं। ऊपर दी गई उदाहरणों ने यह साबित किया है कि जो बच्चे जानवरों द्वारा बड़े किए जाते हैं वह आदतों से जानवर ही रहते हैं। बच्चे के शारीरिक विकास और मानसिक विकास के लिए समाज का होना आवश्यक है। कोई भी तब तक मनुष्य नहीं कहलाता जब तक वह मनुष्य के समाज में अन्य मनुष्यों के साथ न रहे। खाने की भूख हमें अन्य लोगों के साथ सम्बन्ध बनाने को बाध्य करती है इसलिए हमें कुछ काम करने पड़ते हैं तथा यह काम औरों के साथ सम्बन्ध बनाते हैं। इस तरह सिर्फ मनुष्य की प्रकृति के कारण ही नहीं बल्कि अपनी आवश्यकताएं पूरी करने के लिए समाज में रहता है।

3. समाज व्यक्ति का व्यक्तित्व बनाता है (Society makes personality)- मनुष्य समाज में अपने शारीरिक एवं मानसिक पक्ष को विकसित करने के लिए रहता है। समाज अपनी संस्कृति और विरासत को संभाल कर रखता है ताकि इसको अपनी अगली पीढ़ी को सौंपा जा सके। यह हमें स्वतन्त्रता भी देता है ताकि हम अपने गुणों को निखार सकें और अपने व्यवहार, इच्छाओं, विश्वास, रीतियों इत्यादि को परिवर्तित कर सकें। समाज के बिना व्यक्ति का मन एक बच्चे के मन की भाँति होता है। हमारी संस्कृति और हमारी विरासत हमारे व्यक्तित्व को बनाती हैं क्योंकि हमारे व्यक्तित्व पर सबसे ज्यादा प्रभाव हमारी संस्कृति का होता है। समाज सिर्फ हमारी शारीरिक आवश्यकताएं ही नहीं बल्कि मानसिक आवश्यकताओं को भी पूरी करता है।

इस तरह हम कह सकते हैं कि मनुष्य प्रकृति से ही सामाजिक है। यदि मनुष्य मनुष्यों की तरह रहना चाहता है तो उसको समाज की ज़रूरत है। उसको सिर्फ एक दो या कुछ आवश्यकताओं के लिए ही नहीं बल्कि अपने व्यक्तित्व को बनाने के लिए भी समाज की आवश्यकता पड़ती है।

व्यक्तियों के बिना समाज भी अस्तित्व में नहीं आ सकता। समाज कुछ नहीं है बल्कि सम्बन्धों का एक जाल है और सम्बन्ध सिर्फ व्यक्तियों में ही हो सकते हैं। इसीलिए यह एक-दूसरे पर निर्भर हैं। दोनों के बीच सम्बन्ध एक तरफ़ा नहीं है। यह दोनों एक-दूसरे के अस्तित्व के लिए ज़रूरी हैं। व्यक्तियों को सिर्फ जीव नहीं कहा जा सकता और समाज सिर्फ मनुष्य की ज़रूरतों को पूरा करने का साधन नहीं है। समाज वह है जिसके बिना व्यक्ति नहीं रह सकते तथा व्यक्ति वह है जिनके बिना समाज अस्तित्व में नहीं आ सकता। अब प्रश्न यह उठता है कि क्या समाज से ज्यादा मनुष्य ज़रूरी है या मनुष्यों से ज्यादा समाज ज़रूरी है। यह प्रश्न उस प्रश्न के समान है कि दुनिया में पहले मुर्गी आई या अंडा। वास्तविकता यह है कि सभी मनुष्य समाज में पैदा हुए हैं और पैदा होते ही समाज में डाल दिए जाते हैं। कोई भी पूर्ण रूप में व्यक्तिगत नहीं हो सकता और न ही कोई पूर्ण रूप में सामाजिक हो सकता है।

वास्तव में ये दोनों एक-दूसरे पर निर्भर हैं। दोनों में से यदि एक भी न हो तो दूसरे का होना मुश्किल है। दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। समाज ही व्यक्ति में स्वैः (Self) का विकास करता है। समाज में रहकर ही व्यक्ति सामाजिक आदतों को ग्रहण करता है और सामाजिक बनता है। इसके साथ समाज व्यक्तियों के बिना नहीं बन सकता। समाज बनाने के लिए कम-से-कम दो व्यक्तियों की ज़रूरत पड़ती है। उनके बीच सम्बन्ध होना भी ज़रूरी है। इस तरह समाज व्यक्तियों के बीच में पैदा हुए सम्बन्धों का जाल है। इस तरह एक का अस्तित्व दूसरे पर निर्भर करता है। एक की अनुपस्थिति से दूसरे का अस्तित्व मुमकिन नहीं है।

प्रश्न 3.
समुदाय से आप क्या समझते हैं ? समुदाय की विशेषताओं की विस्तृत चर्चा कीजिए।
उत्तर–
प्रत्येक समाज में अलग-अलग प्रकार के समूह पाए जाते हैं। इन अलग-अलग प्रकार के समूहों को अलग-अलग प्रकार के नाम दिए गए हैं और समुदाय इन नामों में से एक है। समुदाय अपने आप में एक समाज है और यह एक निश्चित क्षेत्र में होता है जैसे-कोई गाँव अथवा शहर। जब से मनुष्य ने एक जगह पर रहना शुरू किया है तब से ही वह समुदाय में रहता आया है। सबसे पहले जब मनुष्य ने कृषि करनी शुरू की उस समय से ही व्यक्ति ने समुदाय में रहना शुरू कर दिया है क्योंकि व्यक्ति एक ही स्थान पर रहना शुरू हो गया और इसके साथ लेन-देन शुरू हो गया।

समाजशास्त्र में समुदाय का अर्थ- समाजशास्त्र में इस शब्द समुदाय के व्यापक अर्थ हैं। साधारण शब्दों में जब कुछ व्यक्ति एक समूह में, एक विशेष इलाके में संगठित रूप से रहते हैं और वह किसी विशेष उद्देश्य की पूर्ति के लिए नहीं बल्कि अपना जीवन ही उधर बिताते हैं तब उसको हम समुदाय कहते हैं। यह एक मूर्त संकल्प है। समुदाय की स्थापना जान-बूझ कर नहीं की जाती। इसका जन्म भी नहीं होता इसका तो विकास होता है और अपने आप ही हो जाता है। जब लोग इलाके में रहते हैं और सामाजिक प्रक्रियाएँ करते हैं तो यह अपने आप ही विकास कर जाता है। समुदाय का अपना एक भौगोलिक क्षेत्र होता है जहाँ सदस्य अपनी ज़रूरतें खुद ही पूरी कर लेते हैं क्योंकि सदस्यों में आपस में लेन-देन होता है। समुदाय के सदस्य अपनी हर प्रकार की ज़रूरत को खुद ही पूरा कर लेते हैं। जब व्यक्ति ज़रूरतें पूरी करने के लिए एक-दूसरे के साथ सहयोग करते हैं तो उनमें साझ पैदा हो जाती है जिसके कारण हम भावना उत्पन्न हो जाती है। जब लोग आपस में मिलकर रहते हैं तो उनमें कुछ नियम भी उत्पन्न हो जाते हैं।

समुदाय की विशेषताएं या तत्त्व (Characteristics or Elements of Community) –

1. हम भावना (We feeling)—समुदाय की यह विशेषता होती है कि इसमें हम भावना होती है। हम भावना के कारण ही समुदाय का हर सदस्य अपने आपको एक-दूसरे से अलग नहीं समझता बल्कि उन पर विश्वास करते हैं कि वह सब एक हैं। वह औरों जैसा और औरों में से एक है।

2. भूमिका की भावना (Role feeling) समुदाय की दूसरी विशेषता यह है कि इसके सदस्यों में भूमिका की भावना होती है। समुदाय में हर किसी को कोई-न-कोई पद और भूमिका प्राप्त होती है और उन को पता होता है कि उन्होंने कौन-से काम करने हैं और कौन-से कर्तव्यों का पालन करना है ।

3. निर्भरता (Dependence)-समुदाय की एक और विशेषता यह होती है कि समुदाय के सदस्य अपनी ज़रूरतों के लिए एक-दूसरे पर निर्भर होते हैं और अकेले एक व्यक्ति के लिए समुदाय से अलग रहना सम्भव नहीं है। व्यक्ति सभी कार्य अकेले नहीं कर सकता। इसीलिए उसको अपने बहुत सारे कार्यों के लिए औरों पर निर्भर रहना पड़ता है।

4. स्थिरता (Permanence)—समुदाय में स्थिरता होती है। इसके सदस्य अस्थायी नहीं बल्कि स्थायी होते हैं। यदि कोई व्यक्ति कुछ समय के लिए समुदाय छोड़कर चला जाता है तो कोई बात नहीं फिर भी वह अपने समुदाय से जुड़ा रहता है। यदि कोई अपना समुदाय छोड़कर विदेश चला जाता है तो समुदाय का दायरा बढ़ने लग जाता है क्योंकि बाहरी देश में जाने के बाद भी व्यक्ति अपने समुदाय को भूलता नहीं है। आज-कल कोई व्यक्ति सिर्फ एक समुदाय का सदस्य नहीं है। अलग-अलग समय में व्यक्ति अलग-अलग समुदाय का सदस्य होता है। इसलिए व्यक्ति चाहे जिस भी समुदाय का सदस्य हो उसमें भी स्थिरता रहती है।

5. आम जीवन (Common life)-समुदाय का कोई विशेष उद्देश्य नहीं होता। उसका सिर्फ एक ही उद्देश्य होता है कि सारे अपना जीवन आराम से बिता सकें और मनुष्य अपना जीवन समुदाय में रहते हुए ही बिता देता है।

6. भौगोलिक क्षेत्र (Geographical Area) हर समुदाय का अपना भौगोलिक क्षेत्र होता है जिसमें वह रहता है। बिना किसी विशेष भौगोलिक क्षेत्र के समुदाय नहीं बन सकता।

7. अपने आप जन्म (Spontaneous Birth) समुदाय अपने आप ही पैदा हो जाता है। समुदाय का कोई विशेष इरादा नहीं होता। इसकी स्थापना जान-बूझ कर नहीं की जाती। जिस जगह पर व्यक्ति अधिक समय के लिए रहना शुरू कर देते हैं उधर समुदाय अपने आप पैदा हो जाता है। समुदाय उसको वे सभी सहूलतें देते हैं जिसके साथ मनुष्य अपनी ज़रूरतें आराम से पूरी कर सकता है।

8. विशेष नाम (Particular Name)-प्रत्येक समुदाय को एक विशेष नाम दिया जाता है जोकि समुदाय के बनने के लिए आवश्यक है।

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प्रश्न 4.
समुदाय को परिभाषित कीजिए। समुदाय किस अर्थ में समाज से भिन्न है ? चर्चा कीजिए।
उत्तर-
नोट- समुदाय की परिभाषा-इसके लिए प्रश्न देखें 3.
समुदाय तथा समाज में अंतर (Difference between Community and Society)

  1. समाज व्यक्तियों का समूह है जो स्वयं ही विकसित हो जाता है परन्तु समुदाय चाहे स्वयं ही विकसित होता है परन्तु यह होता किसी विशेष क्षेत्र में है।
  2. समाज का कोई विशेष भौगोलिक क्षेत्र नहीं होता परन्तु समुदाय का एक विशेष भौगोलिक क्षेत्र होता है।
  3. समाज का कोई विशेष नाम नहीं होता परन्तु समुदाय का एक विशेष नाम होता है।
  4. समाज सामाजिक संबंधों पर आधारित होता है जिस कारण यह अमूर्त होता है परन्तु समुदाय एक मूर्त संकल्प है।
  5. प्रत्येक समाज अपने आप में आत्मनिर्भर नहीं होता परन्तु प्रत्येक समुदाय अपने आप में आत्मनिर्भर होता है जिस कारण यह अपने सदस्यों की सभी आवश्यकताएं पूर्ण कर सकता है।
  6. समाज के सदस्यों के बीच हम भावना नहीं होती परन्तु समुदाय के सदस्यों के बीच हम भावना होती है।

प्रश्न 5.
समुदाय तथा समिति के मध्य अन्तर कीजिए।
उत्तर-
समुदाय तथा समिति में अन्तर-

  1. समुदाय अपने आप में विकसित होता है, इसको बनाया नहीं जाता जबकि समिति का निर्माण जानबूझ कर किया जाता है।
  2. समुदाय का कोई विशेष उद्देश्य नहीं होता। यह सभी के हितों की पूर्ति करता है जबकि समितियों का एक निश्चित उद्देश्य होता है।
  3. एक व्यक्ति एक समय में सिर्फ एक समुदाय का सदस्य होता है जबकि व्यक्ति एक ही समय में कई समितियों का सदस्य हो सकता है।
  4. समुदाय की सदस्यता व्यक्ति की ज़रूरत होती है जबकि समिति की सदस्यता ऐच्छिक होती है।
  5. समुदाय के लिए एक निश्चित भौगोलिक क्षेत्र का होना ज़रूरी है जबकि समिति के लिए यह जरूरी नहीं है।
  6. समुदाय अपने आप में एक उद्देश्य होता है जबकि समिति किसी उद्देश्य को पूरा करने का साधन होती है।
  7. समुदाय स्थायी होता है पर समिति अस्थायी होती है।
  8. व्यक्ति समुदाय में पैदा होता है और इसमें ही मर जाता है पर व्यक्ति समिति में इसीलिए हिस्सा लेता है क्योंकि उसको किसी निश्चित उद्देश्य की पूर्ति करनी होती है।
  9. समुदाय का कोई वैधानिक दर्जा नहीं होता पर समिति का वैधानिक दर्जा होता है।

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प्रश्न 6.
समाज तथा सभा के मध्य अन्तर की चर्चा कीजिए।
उत्तर-
1. सभा व्यक्तियों का समूह है जो किसी विशेष उद्देश्य के लिए निर्मित की जाती है परन्तु समाज व्यक्तियों का समूह है जो किसी विशेष उद्देश्य के लिए नहीं बल्कि स्वयं ही विकसित हो जाता है।

2. सभा की सदस्यता व्यक्ति के लिए ऐच्छिक होती है तथा व्यक्ति अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के पश्चात् इनकी सदस्यता छोड़ भी सकता है परन्तु समाज की सदस्यता ऐच्छिक नहीं होती बल्कि आवश्यक होती है तथा व्यक्ति को तमाम आयु समाज का सदस्य बन कर रहना पड़ता है। .

3. सभा एक मूर्त व्यवस्था है क्योंकि यह लोगों की आवश्यकताओं पर आधारित होती है परन्तु समाज अमूर्त व्यवस्था है क्योंकि यह सामाजिक संबंधों पर आधारित होता है जोकि अमूर्त होते हैं।

4. सभा चेतन रूप से लोगों के प्रयासों से विकसित होती है परन्तु समाज स्वयं ही विकसित हो जाते हैं तथा इसमें चेतन प्रयासों की आवश्यकता नहीं होती।

5. सभा का एक औपचारिक ढांचा होता है जिसमें प्रधान, सैक्रेटरी, कैशियर, सदस्य इत्यादि होते हैं तथा इनका चुनाव निश्चित समय के लिए होता है परन्तु समाज का कोई औपचारिक ढांचा नहीं होता तथा सभी व्यक्ति ही इसके सदस्य होते हैं। यह तमाम आयु इसकी सदस्यता नहीं छोड़ सकते।

6. सभा की उत्पत्ति केवल उन व्यक्तियों के प्रयासों का परिणाम होती है जिनके इसके साथ उद्देश्य जुड़े हुए होते हैं परन्तु समाज की उत्पत्ति सभी लोगों की सहमति से होती है तथा इसके साथ किसी व्यक्ति विशेष का स्वार्थ नहीं जुड़ा होता।

7. व्यक्ति अपने उद्देश्यों की प्राप्ति के पश्चात् सभा को अचानक ही खत्म कर देते हैं परन्तु कोई भी व्यक्ति को तोड़ नहीं सकता तथा इसका अस्तित्व खत्म नहीं हो सकता।

8. सभा की उत्पत्ति विचार से नहीं बल्कि उद्देश्य से संबंधित होती है परन्तु समाज की उत्पत्ति सामाजिक संबंधों पर निर्भर करती है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

I. बहुविकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions) :

प्रश्न 1.
यह शब्द किसके हैं-“मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है।”
(A) मैकाइवर
(B) वैबर
(C) अरस्तु
(D) प्लेटो।
उत्तर-
(D) प्लेटो।

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प्रश्न 2.
समाज के निर्माण के लिए समानता तथा अन्तरों की क्या आवश्यकता है ?
(A) सम्बन्ध बनाने के लिए
(B) सामाजिक प्रगति के लिए
(C) समाज को जनसंख्यात्मक रूप में आगे बढ़ाने के लिए
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(D) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 3.
मार्क्स के अनुसार ऐतिहासिक दृष्टि से सबसे पहला समाज कौन-सा था ?
(A) आदिम साम्यवादी
(B) सामन्तवादी
(C) दास मूलक
(D) पूंजीवादी।
उत्तर-
(A) आदिम साम्यवादी।

प्रश्न 4.
व्यक्ति और व्यक्तियों के साथ सामाजिक सम्बन्ध क्यों बनाता है ?
(A) अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए
(B) स्वयं निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए
(C) अपने आपको स्वार्थी व्यक्तियों के उत्पीड़न से बचने के लिए
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(D) उपरोक्त सभी।

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प्रश्न 5.
व्यक्ति एवं समाज एक-दूसरे के …….. माने जाते हैं।
(A) विरुद्ध
(B) पूरक
(C) समान
(D) कोई नहीं।
उत्तर-
(B) पूरक।

प्रश्न 6.
इनमें से समाज में क्या पाया जाता है ?
(A) समानता
(B) सहयोग
(C) संघर्ष
(D) संघर्ष तथा सहयोग।
उत्तर-
(D) संघर्ष तथा सहयोग।

प्रश्न 7.
व्यक्तियों का एक संगठन जो किन्हीं सामान्य उद्देश्यों की पूर्ति के लिए बनाया गया है, उसे क्या कहते है ?
(A) एक समाज
(B) समाज
(C) समूह
(D) एक संगठन।
उत्तर-
(A) एक समाज।

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प्रश्न 8.
इनमें से कौन समुदाय के बीच नहीं आता ?
(A) केरल के लोग दिल्ली में
(B) अमेरिका में जन्मे लोग
(C) ट्रेड यूनियन आन्दोलन
(D) कोई नहीं।
उत्तर-
(D) कोई नहीं।

प्रश्न 9.
समाज किसका जाल है ?
(A) सामाजिक परिमापों का
(B) एक-दूसरे के साथ सम्बन्धों का
(C) व्यक्तिगत रिश्तों का
(D) कोई नहीं।
उत्तर-
(B) एक-दूसरे के साथ सम्बन्धों का।

प्रश्न 10.
व्यक्ति तथा समाज में क्या सम्बन्ध है ?
(A) मनुष्य प्रकृति से सामाजिक है तथा वह अकेला नहीं रह सकता
(B) मनुष्य अपनी आवश्यकताओं के लिए समाज में रहता है
(C) समाज व्यक्ति का व्यक्तित्व बनाता है
(D) उपर्युक्त सभी।
उत्तर-
(D) उपर्युक्त सभी।

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II. रिक्त स्थान भरें (Fill in the blanks) :

1. समाज ……………. पर आधारित होता है।
2. समुदाय लोगों की ……………. से स्वयं ही विकसित हो जाता है।
3. …………. की स्थापना विशेष उद्देश्य की पूर्ति के लिए सोच समझ कर की जाती है।
4. ………….. की सदस्यता व्यक्ति की इच्छा पर आधारित होती है।
5. समाज ……… होता है।
6. ……….. समाज में टोटम का महत्त्व होता है।
7. ………. की सदस्यता औपचारिक होती है।
उत्तर-

  1. सामाजिक संबंधों,
  2. अन्तक्रियाओं,
  3. समिति,
  4. समिति,
  5. अमूर्त,
  6. आदिवासी,
  7. समिति।

III. सही गलत (True/False) :

1. समाज की सदस्यता व्यक्ति की इच्छा पर निर्भर करती है।
2. समाज सामाजिक संबंधों के कारण बनता है।
3. समुदाय स्वयं विकसित होता है।
4. समिति का निर्माण जानबूझ कर दिया जाता है।
5. समिति की सदस्यता अनौपचारिक होती है।
6. मानवीय समाज में भाषा का बहुत महत्त्व होता है।
7. संस्था किसी कार्य या उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए परिमापों की व्यवस्था है।
उत्तर-

  1. गलत,
  2. सही,
  3. सही,
  4. सही,
  5. गलत,
  6. सही,
  7. सहीं।

IV. एक शब्द/पंक्ति वाले प्रश्न उत्तर (One Wordline Question Answers) :

प्रश्न 1.
व्यक्तियों के समूह को कौन समाज कहता है ?
उत्तर-
एक साधारण व्यक्ति, व्यक्तियों के समूह को समाज कहता है।

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प्रश्न 2.
अगर समाज के सदस्यों के बीच सहयोग खत्म हो जाए तो क्या होगा ?
उत्तर-
अगर समाज के सदस्यों के बीच सहयोग खत्म हो जाए तो समाज खत्म हो जाएगा।

प्रश्न 3.
समाज………..पर आधारित है।
उत्तर-
समाज सम्बन्धों पर आधारित है।

प्रश्न 4.
किसने कहा था कि, “समाज समानताओं एवं असमानताओं के बिना चल नहीं सकता।”
उत्तर-
यह शब्द वैस्टमार्क के हैं।

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प्रश्न 5.
किताब SOCIETY का लेखक………….है।
उत्तर-
किताब SOCIETY के लेखक मैकाइवर तथा पेज हैं।

प्रश्न 6.
समाज अमूर्त क्यों होता है ?
उत्तर-
क्योंकि समाज सम्बन्धों का जाल है तथा सम्बन्ध अमूर्त होते हैं और हम सम्बन्धों को देख नहीं सकते।

प्रश्न 7.
समाज की एक विशेषता बताएं।
उत्तर-
समाज सम्बन्धों पर आधारित होता है तथा भिन्नताओं और समानताओं पर आधारित होता है।

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प्रश्न 8.
समाज क्या होता है ?
उत्तर-
साधारण शब्दों में, व्यक्तियों के समूह को समाज कहते हैं, परन्तु समाजशास्त्र में सामाजिक सम्बन्धों के जाल को समाज कहते हैं।

प्रश्न 9.
समाज का प्रमुख आधार क्या होता है ?
उत्तर-
समाज की इकाइयों अर्थात् व्यक्तियों में पाये जाने वाले सामाजिक सम्बन्ध समाज के प्रमुख आधार हैं।

प्रश्न 10.
समुदाय क्या है ?
उत्तर-
समुदाय मनुष्यों का एक भौगोलिक समूह है जहाँ व्यक्ति अपना सम्पूर्ण जीवन व्यतीत करता है।

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प्रश्न 11.
क्या मनुष्यों में सभी समूह समुदाय होते हैं ?
उत्तर-
जी नहीं, वे संस्थाएं अथवा कई अन्य प्रकार के समूह भी हो सकते हैं।

प्रश्न 12.
समुदाय का शाब्दिक अर्थ बताएं।
उत्तर-
समुदाय शब्द अंग्रेज़ी के Community शब्द का हिन्दी रूपांतर है जिसका अर्थ है इकट्ठे मिलकर बनाना।

प्रश्न 13.
शब्द Community किन दो लातीनी शब्दों को मिलाकर बना है ?
उत्तर-
शब्द Community लातीनी भाषा के शब्दों Com तथा Munus से मिलकर बना है।

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प्रश्न 14.
समुदाय कैसे विकसित होता है ?
उत्तर-
समुदाय लोगों की अंतक्रियाओं से स्वयं ही विकसित हो जाता है।

प्रश्न 15.
समुदाय का जन्म किस प्रकार होता है ?
उत्तर-
समुदाय का जन्म अपने आप ही हो जाता है।

प्रश्न 16.
क्या समुदाय में सामुदायिक भावना होती है ?
उत्तर-
जी हाँ, समुदाय में सामुदायिक भावना होती है।

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प्रश्न 17.
सभा क्या है ?
उत्तर-
जब कुछ लोग किसी विशेष उद्देश्य के लिए आपस में सहयोग करते हैं तथा संगठन बनाते हैं तो इस संगठित हुए संगठन को सभा कहते हैं।

प्रश्न 18.
सभा की स्थापना कैसे होती है ?
उत्तर-
सभा की स्थापना विशेष उद्देश्य की पूर्ति के लिए सोच-समझ कर की जाती है।

प्रश्न 19.
सभा की सदस्यता का आधार क्या है ?
उत्तर-
सभा की सदस्यता का आधार व्यक्ति की इच्छा है अर्थात् वह अपनी इच्छा से सभा का सदस्य बनता है।

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प्रश्न 20.
सभा की सदस्यता किस प्रकार की होती है ?
उत्तर-
सभा की सदस्यता औपचारिक होती है।

प्रश्न 21.
सभा तथा समुदाय में एक अन्तर बताएं।
उत्तर-
समुदाय अपने आप विकसित होता है। इसे बनाया नहीं जाता परन्तु किसी संभा का निर्माण चेतन प्रयासों से किया जाता है।

अति लघु उतरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
समाज।
उत्तर-
समाज का अर्थ केवल लोगों के इकट्ठे होने से नहीं है बल्कि समाज के लोगों में पाए जाने वाले संबंधों के जाल से है जिससे लोग एक-दूसरे से जुड़े होते थे। तब लोगों के बीच संबंध बनते हैं तो समाज का निर्माण होता है।

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प्रश्न 2.
समाज की परिभाषा।
उत्तर-
पारसन्ज़ के अनुसार, “समाज को उन संबंधों की पूर्ण जटिलता के रूप में पारिभाषित किया जा सकता है जो कार्यों के करने से उत्पन्न हुए हों तथा यह कार्य व उद्देश्य के रूप में किए गए हों चाहे वह आंतरिक हों या सांकेतिक।”

प्रश्न 3.
समाज की दो विशेषताएं।
उत्तर-

  1. समाज संबंधों पर आधारित होता है, लोगों के बीच बिना संबंधों के समाज का निर्माण नहीं हो सकता।
  2. समाज समानताओं तथा भिन्नताओं पर आधारित होता है। दोनों के बिना समाज कायम नहीं हो सकता।

प्रश्न 4.
अमूर्तता।
उत्तर-
समाज अमूर्त होता है क्योंकि यह संबंधों का जाल है। इन संबंधों को हम देख नहीं सकते तथा न ही स्पर्श कर सकते हैं। इन्हें तो केवल महसूस किया जा सकता है क्योंकि हम इन्हें स्पर्श नहीं कर सकते इसलिए यह अमूर्त होता है।

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प्रश्न 5.
समाज में भाषा का महत्त्व।
उत्तर-
मानवीय समाज में भाषा का बहुत महत्त्व होता है क्योंकि भाषा ही अपने विचार व्यक्त करने का सबसे महत्त्वपूर्ण साधन है। बिना भाषा के संबंध स्थापित नहीं हो सकते तथा समाज स्थापित नहीं हो सकता ।

प्रश्न 6.
मानवीय समाज तथा पशुओं के समाज में एक अन्तर।
उत्तर-
मानवीय समाज में केवल मनुष्य ही है जो बोल सकते हैं तथा अपने विचारों को स्पष्ट रूप दे सकते हैं। अन्य कोई पशु या प्राणी बोल नहीं सकता। वह केवल तरह-तरह की आवाजें निकाल सकते हैं।

प्रश्न 7.
समुदाय।
उत्तर-
जब कुछ व्यक्ति एक समूह में एक विशेष इलाके में संगठित रूप में रहते हैं तथा वह किसी विशेष उद्देश्य की पूर्ति के लिए नहीं बल्कि अपना जीवन ही वहीं व्यतीत करते हैं तो उसे हम समुदाय कहते हैं।

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प्रश्न 8.
समुदाय का शाब्दिक अर्थ।।
उत्तर-
समुदाय अंग्रेज़ी के Community का हिंदी रूपांतर है। यह लातीनी भाषा के दो शब्दों Com जिसका अर्थ है इकट्ठे मिलकर रहना तथा Munus जिसका अर्थ है बनाना, से मिल कर बना है तथा इकट्ठे होकर इसका अर्थ है इकट्ठे मिल कर बनाना।

प्रश्न 9.
सभा का अर्थ।
उत्तर-
सभा सहयोग के ऊपर आधारित होती है। जब कुछ लोग किसी विशेष उद्देश्य के लिए आपस में सहयोग करते हैं तथा संगठन बनाते हैं तो इस संगठित हुए संगठन को सभा कहते हैं।

प्रश्न 10.
सभा की परिभाषा।
उत्तर-
गिलिन तथा गिलिन के अनुसार, “सभा व्यक्तियों का ऐसा समूह है जो किसी निश्चित उद्देश्य या उद्देश्यों के लिए परस्पर संबंधित होते हैं तथा स्वीकृत कार्य प्रणालियों तथा व्यवहारों द्वारा संगठित रहते हैं।”

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 3 समाज, समुदाय तथा समिति

प्रश्न 11.
संस्था का अर्थ।
उत्तर-
संस्था किसी कार्य या उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए परिमापों की व्यवस्था है। संस्था तो किसी विशेष महत्त्वपूर्ण मानवीय क्रिया के द्वारा केंद्रित रूढ़ियों तथा लोकरीतियों का गुच्छा है। संस्थाएं तो संरचित प्रक्रियाएं हैं जिनके द्वारा व्यक्ति अपने कार्य करता है।

प्रश्न 12.
संस्था का एक आवश्यक तत्त्व।
उत्तर-
विचार संस्था का आवश्यक तत्त्व है। किसी आवश्यकता को पूर्ण करने के लिए एक विचार की शुरुआत होती है जिसे समूह अपने लिए आवश्यक समझता है। इस कारण इसकी रक्षा के लिए संस्था विकसित होती है।

प्रश्न 13.
संस्था के प्रकार।
उत्तर-
वैसे तो संस्थाएं कई प्रकार की होती हैं परन्तु यह मुख्य रूप से चार प्रकार की होती हैं तथा वह हैं-

  1. सामाजिक संस्थाएं
  2. धार्मिक संस्थाएं
  3. राजनीतिक संस्थाएं
  4. तथा आर्थिक संस्थाएं।

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लघु उतरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
समाज का अर्थ।
उत्तर-
जब समाजशास्त्री समाज शब्द का उपयोग करते हैं तो उनका अभिप्राय केवल लोगों के योग मात्र से नहीं बल्कि उनका अर्थ होता है। समाज के लोगों में पाए गए सम्बन्धों के जाल से जिससे लोग एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। केवल कुछ लोग इकट्ठे करने से समाज नहीं बन जाता। समाज केवल तब ही बनता है जब समाज के उन लोगों में अर्थ पूर्ण सम्बन्ध बन जाते हैं। यह सम्बन्ध अमूर्त होते हैं हम इन्हें देख नहीं सकते हैं। यह जीवन के हर रूप में मौजूद होते हैं इन सम्बन्धों को एक-दूसरे से भिन्न नहीं किया जा सकता। यह तो आपस में इतने अन्तर्सम्बन्धित होते हैं कि इनको अलग करना कठिन है। यह सभी सम्बन्ध जो व्यक्तियों में होते हैं, इनके जाल को ही समाज कहते हैं। इन्हें हम देख नहीं सकते इसलिए यह अमूर्त होते हैं।

प्रश्न 2.
समाज की विशेषताएं।
उत्तर-

  1. समाज सामाजिक सम्बन्धों पर आधारित होता है।
  2. समाज भिन्नताओं व समानताओं पर आधारित होता है।
  3. समाज के व्यक्ति एक-दूसरे पर अन्तर्निर्भर होते हैं।
  4. समाज अमूर्त होता है, क्योंकि यह सम्बन्धों का जाल है।
  5. समाज का सबसे महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त उसकी जनसंख्या होती है।
  6. समाज में सहयोग व संघर्ष ज़रूरी होता है।

प्रश्न 3.
समुदाय।
उत्तर-
आम शब्दों में, जब कुछ व्यक्ति एक समूह में एक विशेष क्षेत्र में संगठित रूप से रहते हैं व वह किसी विशेष उद्देश्य की पूर्ति के लिए नहीं बल्कि अपना जीवन ही वहां बिताते हैं तो उसको हम समुदाय कहते हैं। यह एक मूर्त संकल्प है। समुदाय की स्थापना जान-बूझ कर नहीं की जाती। इसका तो विकास अपने आप ही हो जाता है।

समुदाय का अपना एक भौगोलिक क्षेत्र होता है जहां सदस्य आप अपनी ज़रूरतों को पूरा कर लेते हैं। जब वह आपस में अपनी ज़रूरतें पूरी करते हैं तो उनमें ‘हम’ की भावना पैदा हो जाती है।

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प्रश्न 4.
समुदाय की विशेषताएं।
उत्तर-

  1. प्रत्येक समुदाय में ‘हम’ की भावना होती है।
  2. समुदाय के सदस्यों में एकता की भावना होती है।
  3. समुदाय के सदस्य अपनी ज़रूरतें पूरी करने के लिए एक-दूसरे पर निर्भर होते हैं।
  4. समुदाय में स्थिरता होती है व इसके सदस्य अस्थायी नहीं बल्कि स्थायी होते हैं।
  5. समुदाय के लोग समुदाय में ही अपना जीवन व्यतीत कर देते हैं।
  6. प्रत्येक समुदाय का अपना भौगोलिक क्षेत्र होता है जिस में वह रहता है।
  7. समुदाय का कोई विशेष उद्देश्य नहीं होता। यह तो अपने आप ही पैदा हो जाता है।

प्रश्न 5.
सभा।
उत्तर-
सभा सहयोग पर आधारित होती है। जब कुछ लोग विशेष उद्देश्य के लिए आपस में सहयोग करते हैं व संगठन बनाते हैं तो इस संगठित हुए संगठन को सभा कहते हैं। आम शब्दों में, किसी विशेष उद्देश्य के लिए बनाए गए संगठन को सभा कहते हैं। सभा का एक निश्चित उद्देश्य होता है जिसकी पूर्ति के बाद इसको छोड़ा जा सकता है।

प्रश्न 6.
सभा की विशेषताएं।
उत्तर-

  1. सभा व्यक्तियों का समूह होती है।
  2. सभा की स्थापना किसी विशेष उद्देश्य की पूर्ति के लिए सोच-विचार कर की जाती है।
  3. सभा के निश्चित उद्देश्य होते हैं।
  4. सभा का जन्म व विनाश होता रहता है।
  5. सभा की सदस्यता व्यक्ति की इच्छा पर आधारित होती है।
  6. सभा की सदस्यता पारम्परिक होती है।
  7. प्रत्येक सभा अपने कुछ अधिकारियों का चनाव करती है।
  8. प्रत्येक सभा के कुछ निश्चित उद्देश्य होते हैं।

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बड़े उत्तरों वाले प्रश्न :

प्रश्न 1.
समाज का अर्थ, परिभाषाओं तथा विशेषताओं के साथ बताएं।
उत्तर-
समाज का अर्थ-
साधारण भाषा में समाज का अर्थ ‘व्यक्तियों के समूह’ से लिया जाता है। बहुत से विद्वान् इस शब्द का प्रयोग इसी अर्थ में करते हैं। इस प्रकार समाज का अर्थ किसी समूह के व्यक्तियों द्वारा लिया जा सकता है अपितु उनके मध्य के रिश्तों से नहीं। कभी-कभी समाज के अर्थ को किसी संस्था के नाम से भी लिया जाता है जैसेआर्य समाज, ब्रह्म समाज इत्यादि। इस प्रकार साधारण व्यक्ति की भाषा में समाज का अर्थ इन्हीं अर्थों में लिया जाता है, परन्तु समाजशास्त्र में इस शब्द का अर्थ कुछ और ही अर्थों में लिया जाता है।

समाजशास्त्र में ‘समाज’ शब्द का अर्थ लोगों के समूह से नहीं लिया जाता अपितु उनके बीच में पैदा हुए रिश्तों के फलस्वरूप जो सम्बन्ध पैदा हुए हैं उनसे लिया जाता है। सामाजिक रिश्तों में लोगों का बहुत महत्त्व होता है। वे समाज का एक महत्त्वपूर्ण अंग हैं यह एक प्रक्रिया है न कि वस्तु। समाज में एक आवश्यक वस्तु लोगों के बीच के रिश्ते एवं अन्तर्सम्बन्धों के बीच के नियम हैं जिसके साथ समाज के सदस्य एक-दूसरे के साथ रहते हैं। जब समाजशास्त्री समाज शब्द का अर्थ साधारण रूप में करते हैं तो उनका अर्थ समाज में होने वाले सामाजिक सम्बन्धों के जाल से है और जब वह समाज शब्द को विशेष रूप में प्रयोग करते हैं तो उनका अर्थ होता है कि समाज उन व्यक्तियों का समूह है जिनमें विशेष प्रकार के सम्बन्ध पाए जाते हैं।

समाज (Society)—जब समाजशास्त्री ‘समाज’ शब्द का प्रयोग करते हैं तो उनका अर्थ सिर्फ लोगों के समूह मात्र से नहीं होता बल्कि उनका अर्थ होता है समाज के लोगों में पाए जाने वाले सम्बन्धों के जाल से जिसके साथ लोग एक-दूसरे के साथ जुड़े हुए हैं। सिर्फ कुछ लोगों को इकट्ठा करने से ही समाज नहीं बन जाता। समाज उस समय ही बनता है जब समाज के उन लोगों में अर्थपूर्ण संबंध स्थापित हो जाएं। यह सम्बन्ध अस्थिर होते हैं। हम इन्हें देख नहीं सकते और न ही इनका कोई ठोस रूप होता है। हम केवल इन्हें महसूस कर सकते हैं। यह जीवन के प्रत्येक रूप में मौजूद होते हैं। इन सम्बन्धों को एक-दूसरे से अलग नहीं किया जा सकता। यह तो आपस में इतने अन्तर्सम्बन्धित होते हैं कि इनको अलग-अलग करना बहुत मुश्किल है। यह सभी सम्बन्ध जो व्यक्तियों के बीच होते हैं, इनके जाल को ही समाज कहते हैं। हम इन्हें देख नहीं सकते इसीलिए यह अमूर्त होते हैं।

कुछ लेखक यह विचार करते हैं कि समाज तभी बनता है जब इसके सदस्य एक-दूसरे को जानते हों और उनके कुछ आपसी हित हों। उदाहरण के लिए यदि कोई दो व्यक्ति बस में सफर कर रहे हों और एक-दूसरे को जानते न हों, तो वह समाज नहीं बना सकते। परन्तु यदि वही दो व्यक्ति आपस में बातचीत करनी शुरू कर देते हैं, एक-दूसरे के बारे में जानना शुरू कर देते हैं तो समाज का अस्तित्व कायम होना शुरू हो जाता है। उन दोनों के बीच में एक-दूसरे की तरफ व्यवहार ज़रूरी है।

वास्तव में समाज, सामाजिक सम्बन्धों का जाल है। व्यक्ति जो एक स्थान पर रहते हैं उनके बीच आपसी सम्बन्ध होते हैं और एक-दूसरे के साथ लाभ जुड़े होते हैं। वह एक-दूसरे के ऊपर निर्भर होते हैं और इस प्रकार समाज का निर्माण करते हैं।

परिभाषाएँ (Definitions)-
1. मैकाइवर और पेज (Maclver and Page) के अनुसार, “समाज व्यवहारों एवं प्रक्रियाओं की, अधिकार एवं परस्पर सहयोग की, अनेक समूहों एवं विभागों की, मानव व्यवहार के नियन्त्रण एवं स्वाधीनता की व्यवस्था है। इस निरन्तर परिर्वतनशील व्यवस्था को हम ‘समाज’ कहते हैं। यह सामाजिक सम्बन्धों का जाल है।”

2. गिडिंग्ज़ (Giddings) के अनुसार, “समाज एक संगठन है, यह पारस्परिक औपचारिक सम्बन्धों का ऐसा मेल है जिसके कारण उसके अन्तर्गत सभी व्यक्ति एक-दूसरे के साथ जुड़े रहते हैं।”

3. टालक्ट पारसन्ज (Talcot Parsons) के अनुसार, “समाज को उन सम्बन्धों की पूर्ण जटिलता के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जो कार्यों के कारण से पैदा हुए हों और कार्य एवं उद्देश्य के रूप में किए गए हों चाहे वह आन्तरिक हों या सांकेतिक।”

4. कूले (Cooley) के अनुसार, “समाज स्वरूपों या प्रक्रियाओं का एक जाल है जिसमें हर कोई एक-दूसरे के साथ क्रिया करके जीता और आगे बढ़ता है और सभी एक-दूसरे के साथ इस प्रकार जुड़े होते हैं कि एक के प्रभावित होने के साथ बाकी सभी भी प्रभावित होते हैं।”

इस प्रकार समाज की ऊपर लिखी परिभाषाओं को देख कर हम यह कह सकते हैं कि यह परिभाषाएँ दो प्रकार की हैं। पहली प्रकार की हैं कार्यात्मक (Functional) परिभाषाएँ और दूसरी प्रकार की हैं संगठनात्मक (Structural) परिभाषाएँ। कार्यात्मक पक्ष से हम समाज को इस तरह परिभाषित कर सकते हैं कि यह समूहों का जाल है जिसमें अनुपूरक प्रकार के रिश्ते हों जो एक-दूसरे के साथ और जिन व्यक्तियों को अपने जीवन के काम करने में मदद करें और व्यक्ति को और व्यक्तियों के साथ रहते हुए उस की इच्छाएं पूरी करने में मदद करें।

संगठनात्मक पक्ष से समाज तो हमारे रीति-रिवाजों, आदतों, संस्थाओं, इच्छाओं आदि की एक सामाजिक विरासत है। इस प्रकार समाज कार्यात्मक एवं संगठनात्मक रूप, दोनों के साथ परिभाषित किया गया है कि यह व्यक्तियों के आपसी रिश्तों के साथ बना है और साथ ही साथ यह एक व्यवस्था है, एक जाल है न कि लोगों का एकत्र। हम समाज को इस प्रकार परिभाषित कर सकते हैं कि समाज मनुष्य के सम्बन्धों का वह संगठन है जिसको मनुष्यों द्वारा निर्मित, संचालित और परिवर्तित किया जाता है। सरल शब्दों में समाज एक अमूर्त धारणा है, समाज लोगों का सिर्फ समूह नहीं है। यह समाज सामाजिक सम्बन्धों का संगठन या व्यवस्था है।

समाज की विशेषताएँ (Characteristics of Society) –

1. समाज सम्बन्धों पर आधारित होता है (Society is based on relationships)-मैकाइवर और पेज के अनुसार, “समाज सामाजिक सम्बन्धों का जाल है।” इसका अर्थ यह हुआ कि समाज सम्बन्धों पर आधारित होता है। यहाँ ‘जाल’ शब्द का प्रयोग क्यों हुआ ? क्योंकि समाज में हजारों प्रकार के सम्बन्ध पाए जाते हैं। सिर्फ एक परिवार में 15 से ज्यादा तरह के सम्बन्ध पाए जा सकते हैं। इस से हम अंदाज़ा लगा सकते हैं कि समाज में कितने प्रकार के सम्बन्ध मौजूद होंगे। समाज केवल मनुष्यों का समूह मात्र नहीं है।

2. समाज अन्तरों और समानताओं पर आधारित होता है (Society depends upon likeness and differences)—समाज अन्तरों एवं समानताओं, दोनों पर आधारित होता है। दोनों के बिना समाज कायम नहीं रह सकता। यह चाहे एक-दूसरे के विरोध में रहती हैं परन्तु यह एक-दूसरे के बिना भी नहीं रह सकतीं। समाज में कभी समानता आती है और कभी अंतर आते है और इसलिए यह एक-दूसरे के पूरक होते हैं। सामाजिक सम्बन्ध तब ही स्थापित हो सकते हैं यदि किसी प्रकार की समानता हो क्योंकि इसके बिना एक-दूसरे के प्रति खिंचाव नहीं उत्पन्न हो सकता और समाज उत्पन्न नहीं हो सकता। इसके अतिरिक्त अन्तरों का होना भी आवश्यक है।

3. अन्तर्निर्भरता (Inter-dependence)- समाज के बने रहने के लिए अन्तर्निर्भरता एक आवश्यक तत्त्व है। मनुष्य को अपनी ज़रूरतों को पूरा करने हेतु अन्य व्यक्तियों के साथ सम्बन्ध रखने पड़ते हैं क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति की इतनी समर्था नहीं होती कि वह सभी कार्य अपने आप कर सके । उसको अन्य व्यक्तियों पर निर्भर रहना ही पड़ता है। व्यक्ति जैसे-जैसे बड़ा होता जाता है वैसे-वैसे दूसरों पर निर्भर होता जाता है क्योंकि उसकी आवश्यकताएं बढ़ती जाती हैं। इस प्रकार अन्तर्निर्भरता समाज का एक ज़रूरी तत्त्व है।

4. समाज अमूर्त होता है (Society is abstract)-समाज अमूर्त होता है क्योंकि यह सम्बन्धों का जाल है इन सम्बन्धों को हम देख नहीं सकते और न ही स्पर्श सकते हैं। इनको तो हम सिर्फ महसूस कर सकते हैं। क्योंकि हम सम्बन्धों को स्पर्श नहीं सकते इसीलिए इनका कोई ठोस रूप नहीं होता। इसीलिए यह अमूर्त होते हैं। क्योंकि सम्बन्ध अमूर्त होते हैं इसीलिए सम्बन्धों द्वारा बना समाज भी अमूर्त होता है।

5. जनसंख्या (Population)-समाज का सबसे महत्त्वपूर्ण तत्त्व मनुष्य है। मनुष्यों के बिना कोई समाज नहीं बन सकता। यदि मनुष्य ही नहीं होंगे तो सम्बन्ध कौन स्थापित करेगा और समाज कैसे बनेगा। व्यक्तियों के अस्तित्व के बिना समाज का अस्तित्व होना नामुमकिन है। इसीलिए ज़रूरी है कि जनसंख्या हो। जनसंख्या के होने के लिए भी कई चीजें ज़रूरी हैं जैसे-जनसंख्या को काफ़ी मात्रा में भोजन उपलब्ध हो, जनसंख्या की हर मुसीबत से सुरक्षा हो, समाज का और जनसंख्या का आगे बढ़ना ज़रूरी है क्योंकि यदि जनसंख्या न बढ़ी तो एक दिन सभी लोग खत्म हो जाएंगे। इस प्रकार जनसंख्या के बिना समाज का बनना नामुमकिन है।

6. समाज में सहयोग और संघर्ष ज़रूरी होता है (Co-operation and conflict are must for society)-जैसे समानताएं और अंतर समाज के अस्तित्व के लिए ज़रूरी हैं उसी प्रकार सहयोग एवं संघर्ष भी समाज के अस्तित्व के लिए ज़रूरी है। सहयोग समाज के निर्माण का एक ज़रूरी तत्त्व है। समाज में मनुष्य रहते हैं और वह एक-दूसरे पर निर्भर होते हैं। यह अन्तर्निर्भरता तब ही होती है यदि उनके बीच सहयोग होगा। एक बच्चे को बड़ा करने में कई हाथ महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और यह सिर्फ सहयोग पर आधारित है। परिवार भी तब ही आगे बढ़ता है यदि पति-पत्नी आपस में सहयोग करें। इस तरह समाज के हर पक्ष में सहयोग की आवश्यकता है। इसी तरह संघर्ष भी ज़रूरी है। जीवन जीने के लिए व्यक्ति को कई प्रकार की शक्तियों से लड़ना पड़ता है। जीने के लिए व्यक्ति को संघर्ष करना पड़ता है।

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प्रश्न 3.
सभा की परिभाषा दें। सभा की विशेषताओं पर विस्तार से लिखें।
अथवा
सभा के अर्थ तथा लक्षणों की व्याख्या करें ।
उत्तर-
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और सामाजिक प्राणी होने के नाते उसकी कुछ आवश्यकताएं भी होती हैं। अपनी इन आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए व्यक्ति कई प्रकार की कोशिशें करता है। वह तीन प्रकार की कोशिशें करता है-

  • पहली कोशिश यह होती है कि वह अपनी आवश्यकताएं बिना किसी सहायता के पूर्ण करें, पर आज कल के आधुनिक समाज में अकेले रह पाना और अकेले ही अपनी ज़रूरतें पूरी कर पाना सम्भव नहीं है।
  • दूसरा तरीका यह होता है वह अपनी आवश्यकता की चीजें दुनिया से छीनकर पूरी कर सके। पर दूसरों से छीनकर अपनी आवश्यकताएं पूरी करना मुमकिन नहीं है क्योंकि यह तरीका गैर-सामाजिक है और मनुष्य समाज में रहते हुए इस तरह के तरीके नहीं अपना सकता।
  • तीसरा आखिरी और सबसे बढ़िया तरीका यह है कि मनुष्य समाज में रहते हुए दूसरों के साथ सहयोग करते हुए अपनी ज़रूरतें पूरी करे क्योंकि यह ही जीवन का आधार है।

सभा भी इसी सहयोग पर आधारित है। जब कुछ लोग किसी विशेष उद्देश्य के लिए आपस में सहयोग करते हैं और संगठन बनाते हैं तो इस संगठित हुए संगठन को सभा कहते हैं। आम शब्दों में, किसी विशेष मकसद के लिए बनाए गए संगठन को सभा कहते हैं। सभा का एक निश्चित उद्देश्य होता है जिसकी पूर्ति के बाद इसको छोड़ भी जा सकता है।

मनुष्य का स्वभाव और ज़रूरतें उसको समाज में रहने के लिए मजबूर करती हैं। जानवरों की तरह मनुष्यों की सिर्फ शारीरिक ज़रूरतें ही नहीं होतीं बल्कि इनसे ज्यादा ज़रूरी सामाजिक आवश्यकताएं भी होती हैं जिनको पूरा करना उसके लिए आवश्यक होता है। इस तरह जब समाज के अलग-अलग व्यक्ति अपनी आवश्यकताएं पूरी करने के लिए एक-दूसरे के साथ सहयोग करते हैं तो इसके साथ सभा या समिति का जन्म होता है। यहां एक बात ध्यान रखने वाली है कि व्यक्ति अपनी आवश्यकताएं पूर्ण होने के बाद इसको छोड़ भी सकता है।

परिभाषाएं (Definitions)-

  • बोगार्डस (Bogardus) के अनुसार, “सभा आम तौर पर कुछ उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए व्यक्तियों का मिल कर काम करना है।”
  • जिन्सबर्ग (Ginsberg) के अनुसार, “सभा परस्पर सम्बन्धित उन सामाजिक प्राणियों का एक समूह है जो एक निश्चित उद्देश्य या उद्देश्यों की पूर्ति के लिए आम संगठन बना लेते हैं।”
  • गिलिन और गिलिन (Gillin and Gillin) के अनुसार, “सभा व्यक्तियों का ऐसा समूह है जो किसी निश्चित उद्देश्य या उद्देश्यों के लिए परस्पर सम्बन्धित होते हैं और स्वीकृत कार्य प्रणालियों और व्यवहारों द्वारा संगठित. रहते हैं।”

उपरोक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि सभा के तीन मुख्य आधार हैं-

  • सब कुछ व्यक्तियों का समूह है।
  • यह संगठन सहयोग पर आधारित है।
  • इसके द्वारा कुछ उद्देश्यों की पूर्ति होती है।

इस तरह सभा हमारी सभी ज़रूरतों को पूरा नहीं कर सकती। संक्षेप में जब कोई व्यक्ति संगठित रूप में सोचविचार करके कुछ विशेष कामों की पूर्ति के लिए आपस में सहयोग करते हैं उस संगठन या समूह को सभा कहते

सभा की विशेषताएं (Characteristics of Association) –
1. सभा व्यक्तियों का समूह है (Group of people)-सभा की स्थापना कुछ व्यक्तियों के द्वारा की जाती है जिसके कारण इसको समूह कहा जाता है। इस तरह सभा मूर्त है क्योंकि व्यक्ति मूर्त होते हैं।

2. विचारपूर्वक स्थापना (Thoughtful establishment)—सभा समुदाय की तरह अपने आप ही पैदा नहीं हो जाती। इसका निर्माण तो किसी विशेष उद्देश्य की पूर्ति के लिए सोच-समझ कर और विचार करने से स्थापित किया जाता है।

3. निश्चित उद्देश्य (Definite aim)- सभा के निश्चित उद्देश्य होते हैं। सभा हमारे सामाजिक जीवन की सारी ज़रूरतें नहीं बल्कि कुछ ज़रूरतें पूरी करती है और साथ ही साथ अपने सदस्यों के हितों की रक्षा करती है।

4. सभाओं का जन्म और विनाश होता रहता है (Association takes birth and comes to an end)- सभा का स्वभाव अस्थायी होता है क्योंकि इसकी स्थापना कुछ विशेष उद्देश्यों की पूर्ति के लिए होती है और उन सारे उद्देश्यों की पूर्ति के बाद सभा की ज़रूरत भी खत्म हो जाती है।

5. सदस्यता इच्छा पर आधारित होती है (Membership is based on wish)—सभा व्यक्तियों का इच्छुक संगठन होता है। व्यक्ति अपनी इच्छा के अनुसार इसका सदस्य बन सकता है और जब चाहे इसको छोड़ सकता है। इसका कारण यह है कि व्यक्ति को जब लगता है कि सभा उसके लिए लाभदायक है तो वह उसको अपना लेता है और जब उसका फायदा पूरा हो जाता है तो उसे छोड़ देता है।

6. सभा की सदस्यता औपचारिक होती है (Formal membership)-इसकी सदस्यता औपचारिक होती है। वह जब चाहे इसको अपना सकता है और जब चाहे इसको छोड़ सकता है पर इसके लिए उसको त्याग-पत्र या प्रार्थना-पत्र देना पड़ता है और सदस्यता फीस भी देनी पड़ती है।

7. हर सभा कुछ अधिकारियों को चुनती है (Selection of officers) हर सभा अपने कामों के लिए कुछ अधिकारियों को चुनती है जैसे प्रधान, उप-प्रधान, सैक्रेटरी कैशियर इत्यादि। इन सबका चुनाव भी निश्चित समय पर होता है।

8. हर सभा के कुछ निश्चित नियम होते हैं (Definite rules)-हर सभा अपने कामों की पूर्ति के लिए नियम भी बनाती है और हर सदस्य को इन नियमों के अन्तर्गत रहकर काम करना पड़ता है।

9. सहयोग की भावना (Feeling of co-operation)—सभा का जन्म सहयोग की भावना पर आधारित होता है। किसी विशेष उद्देश्य की प्राप्ति हेतु सहयोग की भावना ही व्यक्ति को सभा का निर्माण करने के लिए प्रेरित करती है।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 3 समाज, समुदाय तथा समिति

समाज, समुदाय तथा समिति PSEB 11th Class Sociology Notes

  • अरस्तु के अनुसार मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। वह अकेला नहीं रह सकता। व्यक्ति समाज से बाहर न तो रह सकता है तथा न ही इसके बारे में सोच सकता है। उसे अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए अन्य लोगों पर निर्भर रहना पड़ता है।
  • व्यक्ति को अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए अन्य लोगों से संबंध बनाने पड़ते हैं तथा सामाजिक संबंधों के जाल को समाज कहते हैं। जब दो अथवा दो से अधिक लोगों के बीच संबंध बनते हैं तो हम कह सकते हैं कि समाज का निर्माण हो रहा है।
  • सम्पूर्ण संसार में बहुत-से समाज मिल जाते हैं जैसे कि जनजातीय समाज, ग्रामीण समाज, औद्योगिक समाज, उत्तर-औद्योगिक समाज इत्यादि। अलग-अलग समाजशास्त्रियों ने समाजों को अलग-अलग आधारों पर विभाजित किया है। उदाहरण के लिए काम्ते (बौद्धिक विकास), स्पैंसर (संरचनात्मक जटिलता),
    मार्गन (सामाजिक विकास), टोनीज़ (सामाजिक संबंधों के प्रकार), दुर्थीम (एकता के प्रकार) इत्यादि।
  • समाज की बहुत-सी विशेषताएं होती हैं जैसे कि यह अमूर्त होता है, यह समानताओं तथा अंतरों पर आधारित होता है, इसमें सहयोग तथा संघर्ष दोनों होते हैं, इसमें स्तरीकरण की व्यवस्था होती है इत्यादि।
  • व्यक्ति का समाज से काफ़ी गहरा संबंध होता है क्योंकि व्यक्ति अकेला नहीं रह सकता। उसे जीवन जीने के लिए अन्य व्यक्तियों की आवश्यकता होती है। दुर्थीम के अनुसार समाज हमारे जीवन के प्रत्येक पक्ष से संबंधित है तथा उसमें मौजूद है। समाज के लिए भी व्यक्ति सबसे महत्त्वपूर्ण होते हैं क्योंकि व्यक्ति के बिना समाज का कोई अस्तित्व ही नहीं है।
  • जब कुछ व्यक्ति एक समूह में एक विशेष भौगोलिक क्षेत्र में संगठित रूप से रहते हैं तथा वह किसी विशेष उद्देश्य की पूर्ति के लिए नहीं बल्कि अपना सम्पूर्ण जीवन ही वहां पर व्यतीत करते हैं तो उसे समुदाय कहते हैं। समुदाय में ‘हम’ भावना आवश्यक रूप में पाई जाती है।
  • समुदाय के कुछ आवश्यक तत्त्व होते हैं जैसे कि लोगों का समूह, निश्चित क्षेत्र, सामुदायिक भावना, समान संस्कृति इत्यादि। समाज तथा समुदाय में काफ़ी अंतर होता है।
  • सभा सहयोग पर आधारित होती है। जब कुछ लोग किसी विशेष उद्देश्य की पूर्ति के लिए आपस में सहयोग करते हैं तथा संगठन बनाते हैं तो इस संगठित संगठन को सभा कहते हैं।
  • एकत्रता (Aggregate)-किसी स्थान पर इक्ट्ठे हुए लोगों का समूह जिनमें आपस में कोई संबंध नहीं होता।
  • सहयोग (Co-operation)-जब कुछ लोग किसी उद्देश्य की प्राप्ति के लिए एक-दूसरे की सहायता करते हैं तो उसे सहयोग कहते हैं।
  • संस्था (Institution) समुदाय के बीच व्यक्तियों के व्यवहार को नियमित करने वाला सामाजिक व्यवस्था का एक साधन।
  • कानून (Law)-लिखे हुए नियम जिन्हें किसी सरकारी संस्था द्वारा लागू किया जाता है।
  • पहचान (Identity)—एक व्यक्ति अथवा समूह के चरित्र की विशेषताएं जो यह बताती हैं कि वे कौन हैं तथा उनके लिए अर्थपूर्ण हैं।
  • उत्पादन के साधन (Means of Production)—वह साधन जिनसे समाज में भौतिक वस्तुओं का उत्पादन किया जाता है, जिनमें न केवल तकनीक बल्कि उत्पादकों के आपसी संबंध भी शामिल हैं।
  • हम भावना (We-feeling)-वह शक्तिशाली भावना जिससे एक समूह के सदस्य स्वयं को पहचानते हैं तथा अन्य लोगों से अलग करते हैं। इससे उनमें शक्तिशाली एकता भी दिखती है।