PSEB 10th Class Welcome Life Solutions Chapter 2 तर्कशील सोच

Punjab State Board PSEB 10th Class Welcome Life Book Solutions Chapter 2 तर्कशील सोच Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 10 Welcome Life Chapter 2 तर्कशील सोच

PSEB 10th Class Welcome Life Guide तर्कशील सोच Textbook Questions and Answers

अभ्यास – I

प्रश्न 1.
पंजाब का दूसरा भाग कहाँ स्थित है?
(a) दिल्ली
(b) कनाडा
(c) पाकिस्तान
(d) राजस्थान।
उत्तर-
(b) पाकिस्तान ।

प्रश्न 2.
पंजाब में कितने विधानसभा क्षेत्र हैं?
(a) 116
(b) 21
(c) 31
(d) 117
उत्तर-
(d) 117.

प्रश्न 3.
पंजाब में कितने संसदीय निर्वाचन क्षेत्र (लोकसभा) हैं?
(a) 117
(b) 13
(c) 21
(d) 22.
उत्तर-
(b) 13.

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प्रश्न 4.
यूनानियों ने पंजाब को किस नाम से बुलाया?
(a) सप्त-सिंधु
(b) पेंटापोटामिया
(c) पंचनद
(d) सिंध।
उत्तर-
(b) पेंटापोटामिया।

प्रश्न 5.
पंजाब का विश्व का सबसे पुराना विश्वविद्यालय कौन-सा है?
(a) पंजाबी विश्वविद्यालय
(b) पंजाब विश्वविद्यालय
(c) तक्षशिला विश्वद्यिालय
(d) नालंदा विश्वविद्यालय।
उत्तर-
(b) तक्षशिला विश्वद्यिालय।

अभ्यास-II

वर्कशीट के लिए प्रश्न

प्रश्न 1.
संदीप के मन में कौन-सी गलत धारणा थी?
उत्तर-
संदीप के दिमाग में यह गलत धारणा थी कि उत्पाद और टॉनिक शारीरिक शक्ति बढ़ाते हैं और एथलीट खेलों में बेहतर प्रदर्शन करते हैं। वह मेहनत के बजाय दवा और उत्पाद लेना पसंद कर रहे थे जो कि ग़लत धारणा है।

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प्रश्न 2.
मैडम ने अपनी जवान छात्राओं को क्या समझाया?
उत्तर-
मैडम ने जवान छात्राओं को समझाया कि वे अपने मन में गलत धारणा न रखें। कई लोग अपने मज़बूत शरीर को दिखाने के लिए दवाओं का उपयोग करते हैं जो कि ग़लत है। बच्चे स्टेशल मीडिया विज्ञापनों के जाल में फंस जाते हैं। इन विज्ञापनों के जाल में फंसने से पहले हमें सावधानी से सोचने की ज़रूरत है। इन दवाओं को लेने के बजाय, हमें मेहनत और देसी आहार पर अधिक ध्यान देना चाहिए। मैडम ने लड़कियों से कहा कि हमारे पास बहुत से उदाहरण हैं जहाँ सामान्य परिवारों के कई खिलाड़ियों ने कड़ी मेहनत की है और बहुत सफलता प्राप्त की है।

प्रश्न 3.
प्रिंट मीडिया इलेक्ट्रॉनिक और सोशल मीडिया को देखते समय किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
उत्तर-
कंपनियों प्रिंट मीडिया और सोशल मीडिया पर अपने उत्पादों का विज्ञापन करती हैं। इस प्रकार के विज्ञापन किसी भी टीवी चैनल का हिस्सा नहीं हैं और इन पर लिखा होता है कि यह एक कंपनी का विज्ञापन है। इसलिए, इससे पहले कि हम उन्हें खरीदें और उनके जाल में पड़ें। हमें उनके बारे में सच्चाई का पता लगाना चाहिए। हमें तर्कसंगत रूप से सोचना चाहिए कि क्या यह संभव है। यदि नहीं, तो हमें वह उत्पाद नहीं खरीदना चाहिए।

प्रश्न 4.
हम गलतफहमियों से कैसे छुटकारा पा सकते हैं?
उत्तर-
हमें किसी भी चीज़ के बारे में तर्कसंगत रूप से सोचना चाहिए कि यह सही है या ग़लत। हमें दूसरों से बात करनी चाहिए और यदि हमारे विचार मेल खाते हैं, तो हमें गलतफहमी को दूर करना चाहिए और इसके पीछे के कारण पर विचार करना चाहिए।

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Welcome Life Guide for Class 10 PSEB तर्कशील सोच Important Questions and Answers

(क) बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
कौन-से छात्र अद्वितीय और सफल होते हैं?
(a) वह जो समय को महत्त्व देता है
(b) वह जो खेल खेलता है
(c) जो सोशल मीडिया पर मस्त हो
(d) इनमें से कोई भी नहीं।
उत्तर-
(a) वह जो समय को महत्त्व देता है।

प्रश्न 2.
समाज में लैंगिक भेदभाव को किसने दूर किया है?
(a) धर्म
(b) विज्ञान और प्रौद्योगिकी
(c) सोसायटी
(d) सरकार।
उत्तर-
(b) विज्ञान और प्रौद्योगिकी।

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प्रश्न 3.
कौन-सा उदाहरण हमें महिलाओं की हिम्मत और दया के बारे में बताता है?
(a) माई भागो
(b) माता गुजरी
(c) रानी लक्ष्मीबाई
(d) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(d) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 4.
क्या हम आधुनिक समय में लैंगिक भेदभाव देख सकते हैं?
(a) हाँ
(b) नहीं
(c) पता नहीं
(d) कुछ नहीं कह सकते।
उत्तर-
(a) हाँ!

प्रश्न 5.
हमें किस की कद्र करनी चाहिए?
(a) पैसे की
(b) समय की
(c) अंधविश्वास की
(d) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(b) समय की।

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प्रश्न 6.
वर्तमान युग में हम ……….. का सही उपयोग करके बचत कर सकते हैं।
(a) धर्म
(b) सोशल मीडिया
(c) समाचार पत्र
(d) पत्रिका।
उत्तर-
(b) सोशल मीडिया।

प्रश्न 7.
………….. के साथ हम अपना समय अच्छे से बिता सकते हैं?
(a) नियोजन
(b) मोबाइल
(c) टी०वी०
(d) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(a) नियोजन।

प्रश्न 8.
आधुनिक क्रांतिकारी परिवर्तनों के वर्तमान युग में ……… की भूमिका काफी बढ़ गई है।
(a) धर्म
(b) सरकार
(c) संचार के साधन
(d) व्यक्तिगत साधन।
उत्तर-
(c) संचार के साधन।

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प्रश्न 9.
संचार के साधनों से हमें क्या मिलता है?
(a) सूचना
(b) ज्ञान
(c) मनोरंजन
(d) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(d) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 10.
संचार के साधनों का अवगण क्या है?
(a) एक व्यक्ति स्वाभाविक हो जाता है।
(b) बच्चे बुरी आदतों को अपनाते हैं।
(c) बच्चे अपने वास्तविक उद्देश्य से विचलित होते हैं।
(d) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(d) उपरोक्त सभी।

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(ख) खाली स्थान भरें

  1. …………. के उपयोग से हम अपने लक्ष्यों को प्राप्त कर सकते हैं।
  2. ………….. के उपयोग से हमें बहुत-सी जानकारी मिलती है।
  3. ………….. का दुरुपयोग नहीं होना चाहिए।
  4. आदि काल से ही समाज में ………… और ……….. के बीच भेदभाव चल रहा है।
  5. हमें मन में …………… धारणाएं नहीं रखनी चाहिए।

उत्तर-

  1. समय,
  2. संचार के साधनों,
  3. सोशल मीडिया,
  4. लड़के, लड़कियां,
  5. ग़लत।

(ग) सही/ग़लत चुनें

  1. हमें ग़लत धारणाओं से बचना चाहिए।
  2. लिंग आधारित भेदभाव आधुनिक समाज की एक धारणा है।
  3. लड़कों और लड़कियों के बीच भेदभाव प्राचीन काल से चला आ रहा है।
  4. कई लोग मीडिया के जाल में फंस जाते हैं।
  5. खाने के उत्पाद खेलकूद के लिए आवश्यक हैं।

उत्तर-

  1. सही,
  2. ग़लत,
  3. सही,
  4. सही,
  5. ग़लत।

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(घ) कॉलम से मेल करें

कॉलम ए — कॉलम बी
(a) भेदभाव — (i) संचार का साधन
(b) विचित्र — (ii) सप्त सिंधु
(c) अनुसूची — (iii) अंतर
(d) इंटरनेट — (iv) विशेष
(e) पंजाब — (v) टाइम टेबल।
उत्तर-
(a) भेदभाव — (iii) अंतर
(b) विचित्र — (iv) विशेष
(c) अनुसूची — (v) टाइम टेबल
(d) इंटरनेट — (i) संचार का साधन
(e) पंजाब — (ii) सप्त सिंधु।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
क्या समाज में लिंग आधारित भेदभाव होता है?
उत्तर-
हां, समाज में लिंग आधारित भेदभाव होता है।

प्रश्न 2.
किस ने समाज में लिंग आधारित भेदभाव को कम किया है?
उत्तर-
विज्ञान और प्रौद्योगिकी ने समाज में लिंग आधारित भेदभाव को काफी कम कर दिया है।

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प्रश्न 3.
किन पहलुओं से, हम एक लड़के और लड़की के बीच अंतर नहीं देख सकते?
उत्तर-
साहस, मानसिक स्तर, कड़ी मेहनत इत्यादि के दृष्टिकोण से।

प्रश्न 4.
महिलाओं की बहादुरी, वीरता और दयालुता का उदाहरण दें।
उत्तर-
माई भागो, माता गुजरी, रानी लक्ष्मीबाई इत्यादि महिलाएं बहादुरी, वीरता और दयालुता की उदाहरणे है।

प्रश्न 5.
क्या आधुनिक समय में कोई लिंग आधारित भेदभाव है?
उत्तर–
हाँ, आधुनिक समय में लिंग आधारित भेदभाव है।

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प्रश्न 6.
कौन-से छात्र विशिष्ट तथा सफल हैं?
उत्तर-
समय को महत्त्व देने वाले छात्र विशिष्ट तथा सफल हैं।

प्रश्न 7.
हमें समय की कद्र क्यों करनी चाहिए?
उत्तर-
क्योंकि एक बार समय निकल जाने के बाद कभी वापस नहीं आता।

प्रश्न 8.
समय बर्बाद होने पर क्या होता है?
उत्तर-
समय हमारी कद्र नहीं करेगा और हम जीवन में सफल नहीं हो पाएंगे।

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प्रश्न 9.
कौन-सा छात्र जीवन में सफल हो जाता है?
उत्तर-
जो छात्र समय की योजना बनाते हैं, वह जीवन में सफल हो जाते हैं।

प्रश्न 10.
समय नियोजन से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
इसका मतलब है कि समय हमें इस तरह से लगाना चाहिए कि हर मिनट का उपयोग हो सके।

प्रश्न 11.
हम अपना समय कैसे बचा सकते हैं?
उत्तर-
सोशल मीडिया का प्रयोग करके हम अपना समय बचा सकते हैं।

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प्रश्न 12.
सोशल मीडिया का उपयोग करने से क्या फायदा है?
उत्तर-
हमें सोशल मीडिया से बहुत सारी जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

प्रश्न 13.
आधुनिक समय में किसकी भूमिका काफ़ी बढ़ गई है?
उत्तर-
आधुनिक समय में संचार के साधनों की भूमिका काफी बढ़ गई है।

प्रश्न 14.
मीडिया चलाने वाली कंपनियों का मुख्य उद्देश्य क्या है?
उत्तर-
उनका मुख्य उद्देश्य पैसा कमाना है।

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प्रश्न 15.
संचार के साधन हमें क्या प्रदन करते हैं?
उत्तर-
वह हमें विभिन्न प्रकार की जानकरी प्रदान करते हैं।

प्रश्न 16.
संचार के दुरुपयोग के सधनों का नुकसान क्या है?
उत्तर-
लोग गलत आदतें अपनाते हैं और अपने वास्तविक उद्देश्यों से भटक जाते हैं।

प्रश्न 17.
इंटरनेट और मोबाइल का उपयोग करने से पहले छात्रों को क्या प्रतिज्ञा करनी चाहिए?
उत्तर-
उन्हें यह संकल्प लेना चाहिए कि वह उनका उपयोग केवल अपना ज्ञान बढ़ाने के लिए करेंगे।

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प्रश्न 18.
इंटरनेट और संचार के साधनों का सही उपयोग करने से क्या लाभ है?
उत्तर-
वह अपने ज्ञान को बढ़ाते हैं और एक व्यक्ति के व्यक्तित्व को चमकते हैं।

प्रश्न 19.
गेम खेलने के लिए उत्पादों और टॉनिक का उपयोग करना आवश्यक है?
उत्तर-
नहीं, ऐसी चीज़ों का उपयोग करने की कोई आवश्यकता नहीं है।

प्रश्न 20.
हम एक खेल में कैसे महारत हासिल कर सकते हैं?
उत्तर-
निरंतर अभ्यास से, हम एक खेल में महारत हासिल कर सकते हैं।

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लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
लिंग भेदभाव से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
समाज में दो लिंग होते हैं-पुरुष और स्त्री। यदि उनके बीच कोई भेदभाव होता है, तो इसे लैंगिक भेदभाव कहा जाता है। हमारे समाज में, पुरुषों की तुलना में महिलाओं में बहत भेदभाव किया जाता है। उदाहरण के लिए कुछ कार्य हैं, जिनके बारे में यह कहा जाता है कि वे केवल पुरुषों के लिए हैं। पुरुष शारीरिक रूप से शक्तिशाली होते हैं और वे महिलाओं के साथ भेदभाव करते हैं। महिलाओं को कोई अधिकार नहीं दिया गया। इसे लैंगिक भेदभाव कहा जाता है।

प्रश्न 2.
क्या वर्तमान समाज में लैंगिक भेदभाव मौजूद है?
उत्तर-
हां, वर्तमान समाज में लिंग भेदभाव अभी भी मौजूद है। इसका सामान्य उदाहरण किसी भी कार्य स्थल पर देखा जा सकता है जहां महिलाओं को पुरुषों की तुलना में कम वेतन दिया जाता है। राजनीतिक जीवन में बहुत कम महिलाएं हैं। ज्यादातर अपराध महिलाओं से जुड़े हैं। हालांकि उन्हें संविधान द्वारा समान अधिकार दिए गए हैं, लेकिन समाज में समानता प्राप्त करने में असमर्थ हैं।

प्रश्न 3.
क्या हमें लड़कों और लड़कियों के बीच भेदभाव को खत्म करना चाहिए?
उत्तर-
हाँ, समाज में इस भेदभाव को खत्म करना चाहिए। एक आदर्श समाज समानता पर आधारित है और ऐसे समाज में कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए। यदि हम पुरुषों और महिलाओं द्वारा किए गए कार्यों को देखते हैं, तो हम आसानी से देख सकते हैं कि महिलाओं को अधिक कठिन काम दिए जाते हैं और उन्हें पूरा करने के लिए बहुत धैर्य की आवश्यकता होती है। पुरुष इस तरह के कार्यों को उचित तरीके से पूरा करने में असमर्थ हैं। इसीलिए भेदभाव को खत्म करना होगा और सामाजिक समानता लाने के प्रयास करने होंगे।

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प्रश्न 4.
हमें समय की कद्र क्यों करनी चाहिए?
उत्तर-
ऐसा कहा जाता है कि अतीत वापस नहीं आता है। एक बार समय समाप्त हो जाता है, चाहे आप कितनी भी कोशिश कर लें, यह वापस नहीं आएगा। यदि हम समय को महत्त्व देते हैं, तो हम अपने सभी काम समय पर और सही तरीके से कर पाएंगे, समय का सही मूल्य पड़ेगा। समय सार का होगा और हमारा जीवन सफल होगा। इसलिए, सबसे पहले यह महत्त्वपूर्ण है कि हमें अपना समय बचाना चाहिए। यदि हम अपने समय का ध्यान रखते हैं तो निश्चित रूप से हम जीवन में प्रगति कर पाएंगे और अपने लक्ष्यों को प्राप्त कर पाएंगे। इसीलिए कहा जाता है कि समय अमूल्य है और हमें इसे बर्बाद नहीं करना चाहिए।

प्रश्न 5.
“समय का सही उपयोग समय का सबसे अच्छा सदुपयोग है।” कथन स्पष्ट करो।
उत्तर-
यह सही कहा जाता है कि समय का सही उपयोग समय का सबसे ,सदुपयोग है। वास्तव में यह हमारे हाथ में है कि हम अपने समय का उपयोग कैसे करते हैं। यदि कोई व्यक्ति अपने समय का बुद्धिमानी से उपयोग करता है, शिक्षा प्राप्त करता है और प्रगति करने के लिए प्रयास करता है, तो उसका ज्ञान और धन निश्चित रूप से बढ़ता है। लेकिन यदि वह ऐसा नहीं करता, न तो ज्ञान और न ही पैसा उसके पास जाता है। एक छात्र को हमेशा अपना खुद का टाइम टेबल बनाने और सभी विषयों पर बराबर ध्यान देने के लिए कहा जाता है। यदि वह अपनी समय सारिणी निर्धारित नहीं करता है और व्यर्थ में समय बिताता है, तो आने वाले समय में उसके लिए सही नहीं होगा। इसलिए सभी को अपने समय का सदुपयोग जीवन में प्रगति करने के लिए करना चाहिए।

प्रश्न 6.
हम बेहतर तरीके से सोशल मीडिया का उपयोग कैसे कर सकते हैं?
उत्तर-
हमारे जीवन में सोशल मीडिया का महत्त्व इन दिनों बहुत बढ़ गया है। फेसबुक, इंस्टाग्राम, गूगल इत्यादि सोशल मीडिया में शामिल हैं। इनमें से गूगल हमारे लिए बहुत मददगार हो सकता है। हर प्रकार की जानकारी गूगल पर उपलब्ध है। कोई फर्क नहीं पड़ता कि विषय क्या है, गूगल हमें एक सेकंड के भीतर जानकारी प्रदान करता है। इसके अलावा जब हम काम करते हुए थक जाते हैं, तो हम फेसबुक, इंस्टाग्राम इत्यादि पर अपना मनोरंजन कर सकते हैं। इस तरह, हम अपने जीवन को कई तरीकों से दिलचस्प बना सकते हैं, उनका सही इस्तेमाल कर सकते हैं।

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प्रश्न 7.
स्कूल के शिक्षा द्वारा छात्रों के व्हाट्सएप समूह बनाने के क्या लाभ हैं?
उत्तर-

  1. व्याटसएप ग्रुप बनाकर, शिक्षक छात्रों को होमवर्क दे सकते हैं।
  2. यदि छात्रों को पढ़ाई करते समय कोई समस्या आती है, तो वह शिक्षकों से प्रश्न पूछ सकते हैं।
  3. छात्र एक-दूसरे के प्रश्नों का उत्तर देते हैं जिससे सभी छात्र पाठ की दोहराई कर सकते हैं।
  4. छात्र परीक्षा के समय में एक-दूसरे के करीब आते हैं और एक-दूसरे की मदद करते हैं।
  5. समूह का उचित उपयोग बच्चों के लिए फायदेमंद है क्योंकि वे जानते हैं कि किसी विशेष क्षण में क्या करना है या क्या नहीं करना है।

प्रश्न 8.
क्या हम उत्पादों और टॉनिक का उपयोग करके अपने खेल में सुधार कर सकते हैं?
उत्तर-
नहीं, खेल उत्पादों और टॉनिक का सेवन करके नहीं सुधारा जा सकता। यह केवल एक विशेष क्षण के लिए शारीरिक शक्ति बढ़ा सकता है। यदि शरीर को इसकी आदत हो जाए तो शरीर क्षतिग्रस्त हो सकता है। खेल को केवल हार्डवर्क से ही बेहतर बनाया जा सकता है और बड़ी सफलता प्राप्त की जा सकती है। यह एक गलत धारणा है कि उत्पादों और टॉनिक का सेवन करके खेल को बेहतर बनाया जा सकता है। हमें इस तरह की गलतफहमियों से दूर रहना चाहिए।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न-हम मोबाइल, इंटरनेट और संचार के अन्य साधनों का सही उपयोग कैसे कर सकते हैं?
उत्तर-वर्तमान समय में हमारे जीवन में संचार की भूमिका बहुत बढ़ गई है और हम इसका भरपूर उपयोग कर रहे हैं। हमें इसकी आदत नहीं बनानी चाहिए । इसके बजाय हमें इसका उचित उपयोग करना चाहिए। निम्नलिखित विधियों के साथ हम मोबाइल, इंटरनेट और संचार के अन्य साधनों का सही उपयोग कर सकते हैं

  1. हमें मोबाइल फोन पर गेम नहीं खेलनी चाहिए, हमें इसका उपयोग ज्ञान प्राप्त करने के लिए करना चाहिए।
  2. हर प्रकार की जानकारी गूगल पर उपलब्ध है। संचार के साधनों का उपयोग कर हमें जानकारी एकत्र करनी चाहिए और अपने विषय में कुशल बनना चाहिए।
  3. वर्तमान में, छात्र मोबाइल और इंटरनेट के साथ शिक्षा ले रहे हैं। इसका इस्तेमाल समझदारी से करना चाहिए।
  4. मोबाइल या कंप्यूटर के अधिक उपयोग से हमारी आँखों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। इसका उपयोग सीमित सीमा तक किया जाना चाहिए।
  5. ऐसे साधनों का उपयोग करके हम अपने व्यक्तित्व का विकास कर सकते हैं और एक बेहतर भविष्य का निर्माण कर सकते हैं।
  6. इनकी सहायता से छात्र अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं अर्थात् जीवन में प्रगति कर सकते हैं।

PSEB 10th Class Welcome Life Solutions Chapter 2 तर्कशील सोच

तर्कशील सोच PSEB 10th Class Welcome Life Notes

  • सदियों से हमारे समाज में लड़कों और लड़कियों के बीच भेदभाव किया जाता है। लड़कों को लड़कियों से बेहतर माना जाता है और इसका मुख्या कारण पुरुष प्रधान समाज है।
  • आधुनिक समय में विज्ञान और प्रौद्योगिकी ने इस लिंग भेदभाव को बहुत हद तक खत्म कर दिया है। यद्यपि यह भेदभाव कम हुआ है लेकिन फिर भी यह भेदभाव अभी भी कई क्षेत्रों में व्याप्त है।
  • हमारे पास इतिहास में कई उदाहरणें हैं जिनसे हमें पता चलता है कि आवश्यकता पड़ने पर महिलाओं ने बहुत साहस दिखाया है; जैसे कि रानी लक्ष्मीबाई। यह हमें महिलाओं में कुछ गुणों को भी दिखाता है जैसे कि साहस, दूसरों की मदद करना इत्यादि।
  • समाज में रहते हुए, हमें हर प्रकार के भेदभाव का विरोध करना चाहिए और समाज में समानता लाने का प्रयास करना चाहिए।
  • हमें समय का बुद्धिमानी से उपयोग करना चाहिए। यदि आज हम समय को महत्त्व नहीं देते हैं, तो कल यह हमें महत्त्व नहीं देगा।
  • यह आवश्यक है कि हमें एक समय सारणी बनानी चाहिए और उसके अनुसार अपना जीवन ढालना चाहिए। यह हमारे जीवन में अनुशासन लाएगी और हम सही समय पर सब कुछ करने में सक्षम होंगे।
  • हमें सोशल मीडिया का बेहतर तरीके से उपयोग करना चाहिए। हमें अच्छा ज्ञान प्राप्त करना चाहिए और केवल उस समय को सोशल मीडिया के लिए समर्पित करना चाहिए जिसकी आवश्यकता है। मनोरंजन के लिए, हम सोशल मीडिया को छोड़कर अन्य साधनों का उपयोग कर सकते हैं।
  • हमें रचनात्मक तरीके से मोबाइल, इंटरनेट और संचार के अन्य साधनों का उपयोग करना चाहिए। वे हमें अध्ययन के लिए बहुत अच्छी सामग्री प्रदान करते हैं। इनका सही तरीके से उपयोग करके हम एक बेहतर व्यक्तित्व का निर्माण कर सकते हैं। प्रत्येक छात्र को रचनात्मक तरीके से उनका उपयोग करना चाहिए।
  • हमारे आसपास बहुत सारी नकारात्मकता फैली हुई है। हमें किसी भी तरह की नकारात्मकता से बचना चाहिए और जितना हो सके सकारात्मकता को अपनाने और फैलाने की कोशिश करनी चाहिए।
  • साथ ही, हमें समाज में मौजूद भ्रांतियों से भी बचना चाहिए। हमें अपने विवेक और दिमाग का उपयोग ग़लत धारणाओं से बचने के लिए करना चाहिए और उन्हें समाज से हटाने का प्रयास करना चाहिए।

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 17 यूरोपीयों का भारत में आगमन तथा सर्वोच्चता के लिए संघर्ष

Punjab State Board PSEB 11th Class History Book Solutions Chapter 17 यूरोपीयों का भारत में आगमन तथा सर्वोच्चता के लिए संघर्ष Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 History Chapter 17 यूरोपीयों का भारत में आगमन तथा सर्वोच्चता के लिए संघर्ष

अध्याय का विस्तृत अध्ययन

(विषय-सामग्री की पूर्ण जानकारी के लिए)

प्रश्न-
यूरोपीय पृष्ठभूमि के सन्दर्भ में भारत में पुर्तगाली, डच, अंग्रेज़ व फ्रासीसी कम्पनियों की स्थापना व मुख्य गतिविधियों की चर्चा करें।
उत्तर-
भारत में सर्वप्रथम पुर्तगाली आए। पुर्तगाली नाविक वास्कोडिगामा ने 1498 ई० में भारत का नवीन मार्ग खोजा। इसके बाद पुर्तगालियों ने भारत से व्यापार आरम्भ कर दिया। पुर्तगालियों को उन्नति करते देखकर यूरोप की अन्य जातियों जैसेअंग्रेज़, डच, डैनिश तथा फ्रांसीसियों ने भी भारत के साथ व्यापार करने के लिए अपनी व्यापारिक कम्पनियां स्थापित कर ली। इन कम्पनियों का वर्णन इस प्रकार है-

I. पुर्तगाली कम्पनी-

भारत तथा युरोप के देशों में प्राचीनकाल से ही व्यापार होता था। भारत के सूती कपडे, रेशमी कपड़े, गर्म मसाले आदि की यूरोप की मण्डियों में बड़ी मांग थी। अतः यूरोप के देश भारत के साथ अपने व्यापारिक सम्बन्ध स्थापित करने के बड़े इच्छुक थे। सबसे पहले 1498 ई० में पुर्तगाल के एक नाविक वास्कोडिगामा ने भारत का एक नया समुद्री मार्ग खोज निकाला। इसके कुछ समय बाद ही पुर्तगालियों ने भारत के साथ व्यापार करना आरम्भ कर दिया। धीरे-धीरे उन्होंने भारत में अपने अनेक उपनिवेश स्थापित कर लिए। 1509 ई० में अल्बुकर्क पुर्तगेजों का गवर्नर बनकर भारत आया। वह भारत में पुर्तगेजी राज्य स्थापित करना चाहता था। थोड़े ही समय में उसने बीजापुर तथा मलाया पर अपना अधिकार कर लिया। उसने गोवा को अपनी राजधानी बनाया। पुर्तगेज़ों ने बड़ी तेज़ी से अपनी शक्ति को आगे बढ़ाया। सोलहवीं शताब्दी में उन्होंने हिन्द-महासागर की अनेक बन्दरगाहों पर अपना अधिकार कर लिया। 1515 ई० में फारस की खाड़ी की उर्मज़ बन्दरगाह पर उनका अधिकार हो गया। इसके पश्चात् उन्होंने बसीन, मुम्बई और दियों पर नियन्त्रण स्थापित कर लिया। 1580 में पुर्तगाल स्पेन के साथ मिल गया। स्पेन ने पुर्तगाल के उपनिवेशों की ओर कोई ध्यान नहीं दिया। इसका परिणाम यह हुआ कि गोवा, दियू और दमन को छोड़कर शेष सभी उपनिवेश उनसे छीन गए। धीरे-धीरे उनकी शक्ति का पूरी तरह पतन हो गया।

II. डच ईस्ट इण्डिया कम्पनी –

डच व्यापारी हॉलैण्ड के निवासी थे। वे पुर्तगाल से पूर्वी देशों का माल खरीदते थे और उसे उत्तरी यूरोप में बेचकर काफ़ी धन कमाते थे। उनके व्यापार की मुख्य वस्तु गर्म मसाले थे। कुछ समय पश्चात् पुर्तगाल को स्पेन ने अपने देश में मिला लिया। फलस्वरूप डच व्यापारियों को पुर्तगाल से माल मिलना बन्द हो गया और उन्हें गर्म मसाले प्राप्त करने के लिए अन्य साधन ढूंढने पड़े। 1595 ई० में चार डच जहाज़ आशा अन्तरीप के मार्ग से भारत पहुंचने में सफल हो गए और उनको व्यापार की आशा फिर से बन्ध गई। _

1602 ई० में डचों ने डच ईस्ट इण्डिया कम्पनी की स्थापना की। डच संसद् ने इस कम्पनी को व्यापार करने के साथसाथ दुर्ग बनाने, युद्ध तथा सन्धि करने और प्रदेश जीतने का अधिकार भी दे दिया। इस प्रकार भारत में डच शक्ति के विस्तार का आरम्भ हुआ। वे इण्डोनेशिया के गर्म मसाले के द्वीपों-जावा और सुमात्रा में अधिक रुचि लेने लगे। उन्होंने पुर्तगालियों को इण्डोनेशिया से मार भगाया और वहां के व्यापार पर अपना अधिकार स्थापित कर लिया। 1623 ई० में जब अंग्रेजों ने पूर्वी द्वीपों में बसने पर प्रयत्न किया तो डचों ने उसे विफल बना दिया। इस प्रकार डच शक्ति बढ़ती गई और उन्होंने सूरत, भड़ौच, कोचीन, अहमदाबाद, नागापट्टम तथा मसौलीपट्टम में भी अपने व्यापारिक केन्द्र स्थापित कर लिए। बंगाल और बिहार में भी उन्होंने अपने केन्द्र स्थापित किए। वे भारत से कपड़ा, रेशम, शोरा, अफ़ीम तथा नील खरीद कर यूरोप के देशों में बेचने लगे। इस प्रकार भारत में उनकी शक्ति काफ़ी बढ़ गई। परन्तु कुछ एक कारणों से थोड़े ही वर्षों के पश्चात् भारत में उनका पतन हो गया।

III. अंग्रेजी व्यापारिक कम्पनी

पुर्तगाली लोग भारत के व्यापार से खूब धन कमा रहे थे। उन्हें व्यापार करते देखकर अंग्रेज़ों के मन में भी भारत से व्यापार करने की इच्छा उत्पन्न हुई। 1600 ई० में लन्दन के कुछ व्यापारियों ने इंग्लैण्ड की महारानी एलिज़ाबेथ प्रथम से भारत के साथ व्यापार करने का आज्ञा-पत्र प्राप्त किया। आज्ञा -पत्र मिलने पर उन्होंने एक व्यापारिक कम्पनी बनाई और उसका नाम ईस्ट इण्डिया कम्पनी रखा। इस कम्पनी ने जहांगीर के शासन काल में भारत में अपना व्यापार करना आरम्भ कर दिया। इस व्यापार से कम्पनी को खूब धन मिलने लगा और इसकी शक्ति बढ़ने लगी। कुछ ही समय में इसने सूरत, कालीकट, मछलीपट्टम, मुम्बई, कासिम बाज़ार, हुगली, कलकत्ता (कोलकाता) आदि स्थानों पर अपनी व्यापारिक कोठिया स्थापित कर लीं। इस प्रकार भारत में अंग्रेजी ईस्ट इण्डिया कम्पनी का व्यापार दिन प्रतिदिन बढ़ने लगा।

IV. फ्रांसीसी ईस्ट इण्डिया कम्पनी

पुर्तगालियों, डचों तथा अंग्रेजों को भारत के साथ व्यापार करता देखकर फ्रांसीसियों के मन में भी इस व्यापार से लाभ उठाने की लालसा जागी। अतः उन्होंने भी 1664 ई० में अपनी व्यापारिक कम्पनी स्थापित कर ली। इस कम्पनी ने सूरत और मसौलीपट्टम में अपनी व्यापारिक बस्तियां बसा लीं। उन्होंने भारत के पूर्वी तट पर पांडीचेरी नगर बसाया और उसे अपनी राजधानी बना लिया। उन्होंने बंगाल में चन्द्रनगर की नींव रखी। 1721 ई० में मारीशस तथा माही पर उनका अधिकार हो गया। इस प्रकार फ्रांसीसियों ने पश्चिमी तट, पूर्वी तट तथा बंगाल में अपने पांव अच्छी तरह जमा लिए और वे अंग्रेजों के प्रतिद्वन्दी बन गए।

1741 ई० में डुप्ले भारत में फ्रांसीसी क्षेत्रों का गवर्नर जनरल बनकर आया। वह बड़ा कुशल व्यक्ति था और भारत में फ्रांसीसी राज्य स्थापित करना चाहता था। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए अंग्रेजों तथा फ्रांसीसियों के बीच संघर्ष होना आवश्यक था। अत: 1744 ई० से 1764 ई० तक के बीस वर्षों में भारत में फ्रांसीसियों और अंग्रेजों के बीच छिड़ गया। यह संघर्ष कर्नाटक के युद्धों के नाम से प्रसिद्ध है। इन युद्धों में अन्तिम विजय अंग्रेजों की हुई। फ्रांसीसियों के पास केवल पांच बस्तियां- पांडिचेरी, चन्द्रनगर, माही, थनाओ तथा मारीशस ही रह गईं। इन बस्तियों में वे अब केवल व्यापार ही कर सकते थे।

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महत्त्वपूर्ण परीक्षा-शैली प्रश्न

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न

1. उत्तर एक शब्द से एक वाक्य तक

प्रश्न 1.
यूरोप में भारत की मुख्यतः कौन-सी दो वस्तुओं की मांग अधिक थी ?
उत्तर-
कपड़ा तथा गर्म मसाले।

प्रश्न 2.
डच लोग किस देश के रहने वाले थे ?
उत्तर-
हालैंड के।

प्रश्न 3.
कर्नाटक की लड़ाइयां किन दो यूरोपीय कम्पनियों के बीच हुई ?
उत्तर-
अंग्रेज़ी तथा फ्रांसीसी कम्पनियों के बीच।

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प्रश्न 4.
बक्सर की लड़ाई के बाद बंगाल के दो कठपुतली नवाबों के नाम बताओ।
उत्तर-
मीर जाफर तथा नज़ामुद्दौला।

प्रश्न 5.
सिराजुद्दौला कहां का नवाब था ?
उत्तर-
बंगाल का।

2. रिक्त स्थानों की पूर्ति

(i) पुर्तगाल के लोग ईसाई धर्म के ……….. सम्प्रदाय के अनुयायी थे।
(ii) फ्रांसीसी सेनाओं ने ………….. को कर्नाटक में तथा ………….. को हैदराबाद में गद्दी दिलवाई।
(iii) बुसे एक …………. कमाण्डर था।
(iv) अंग्रेजों को ………….. ई० में बंगाल की दीवानी मिली।
(v) प्लासी की लड़ाई में ……………… की विजय हुई।
उत्तर-
(i) कैथोलिक
(ii) चन्दा साहिब, मुज़फ़्फ़र जंग
(iii) फ्रांसीसी
(iv) 1765
(v) अंग्रेज़ों।

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3. सही गलत कथन

(i) यूरोप के व्यापारी भारत में अपना माल बेचने और बदले में यहां से सोना-चांदी लेने आए थे। — (x)
(ii) अंग्रेज़ और फ्रांसीसी कम्पनियां भारत में तभी लड़ती थीं जब यूरोप में इंग्लैंड और फ्रांस के बीच लड़ाई होती थी। — (√)
(iii) यूरोप की कम्पनियों ने अपनी स्वार्थ-साधना के लिये भारत के राजनीतिक मामलों में हस्तक्षेप करना शुरू किया। — (√)
(iv) मीर कासिम प्लासी की लड़ाई के बाद बंगाल का नवाब बना। — (x)
(v) मुग़ल बादशाह और अवध तथा बंगाल के नवाबों ने इलाहाबाद में ईस्ट इण्डिया कम्पनी के साथ संधि पर हस्ताक्षर किए। — (√)

4. बहु-विकल्पीय प्रश्न

प्रश्न (i)
किस लड़ाई के पश्चात् बंगाल पर पूरी तरह अंग्रेजों का अधिकार हो गया ?
(A) प्लासी की लड़ाई
(B) कर्नाटक की तीसरी लड़ाई
(C) पानीपत की तीसरी लड़ाई
(D) बक्सर की लड़ाई।
उत्तर-
(D) बक्सर की लड़ाई।

प्रश्न (ii)
भारत में अंग्रेजी राज्य का संस्थापक किसे माना जाता है ?
(A) क्लाइव
(B) लॉर्ड वेलेजली
(C) लॉर्ड डल्हौज़ी
(D) लॉर्ड कार्नवालिस।
उत्तर-
(A) क्लाइव

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प्रश्न (iii)
डुप्ले कौन था ?
(A) अंग्रेज गवर्नर-जनरल
(B) फ्रांसीसी गवर्नर-जनरल
(C) डच गवर्नर-जनरल
(D) पुर्तगाली गवर्नर-जनरल।
उत्तर-
(B) फ्रांसीसी गवर्नर-जनरल

प्रश्न (iv)
प्लासी की लड़ाई के बाद बंगाल का नवाब बना-
(A) सिराजुद्दौला
(B) अली वर्दी खां
(C) मीर जाफर
(D) क्लाइव।
उत्तर-
(C) मीर जाफर

प्रश्न (v)
फैक्ट्री से अभिप्राय है-
(A) व्यापारिक केन्द्र
(B) विशाल बाज़ार
(C) बड़ा रेलवे प्लेटफार्म
(D) लगान वसूली केन्द्र।
उत्तर-
(A) व्यापारिक केन्द्र

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॥. अति छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत में यूरोपीयों की व्यापारिक तथा राजनीतिक गतिविधियों के बारे में जानकारी के चार मुख्य स्रोतों के नाम बताएं।
उत्तर-
भारत में यूरोपीयों के व्यापारिक तथा राजनीतिक गतिविधियों के बारे में जानकारी हमें यूरोपीय कम्पनियों के रिकार्डों, यूरोपीय यात्रियों के वृत्तान्तों, व्यापारिक बस्तियों की इमारतों तथा तस्वीरों से प्राप्त होती है।

प्रश्न 2.
अंग्रेजी ईस्ट इण्डिया कम्पनी के व्यापारिक रिकार्ड किस नाम से जाने जाते हैं तथा ये कहां उपलब्ध
उत्तर-
अंग्रेज़ी ईस्ट इण्डिया कम्पनी के व्यापारिक रिकार्ड फैक्टरी रिकार्ड के नाम से जाने जाते हैं। ये भारत तथा इंग्लैण्ड में उपलब्ध हैं।

प्रश्न 3.
यूरोप में भारत की मुख्यतः किन दो वस्तुओं की मांग थी ?
उत्तर-
यूरोप में भारत के सूती कपड़े तथा गर्म मसाले की बहुत मांग थी।

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प्रश्न 4.
यूरोप तथा भारत में स्थलमार्ग कितना लम्बा था तथा भूमध्य सागर किस देश के व्यापारियों के नियन्त्रण में था ?
उत्तर-
यूरोप तथा भारत में स्थल मार्ग दस हजार किलोमीटर से भी अधिक लम्बा था। भूमध्य सागर पर इटली के नगर वेनिस के व्यापारियों का नियन्त्रण था।

प्रश्न 5.
जहाजरानी के लिए विशेष विद्यालय यूरोप के किस देश में स्थापित किया गया ? अफ्रीका के दक्षिणी इलाके से होता हुआ कौन-सा यूरोपीय कप्तान हिन्द महासागर में पहुंचा ?
उत्तर-
जहाजरानी के लिए विशेष विद्यालय पुर्तगाल में स्थापित किया गया। बार्थोलोम्यू डायज अफ्रीका के दक्षिणी किनारे से होता हुआ हिन्द महासागर में पहुंचा।

प्रश्न 6.
भारत के पश्चिमी तट पर पहुंचने वाला पहला यूरोपीय कौन था तथा वह कब और कहाँ पहुँचा ?
उत्तर-
भारत के पश्चिमी तट पर पहुंचने वाला पहला यूरोपीय वास्कोडिगामा था। वह 1498 में कालीकट पहुंचा।

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प्रश्न 7.
पुर्तगाल के लोग ईसाई धर्म के किस सम्प्रदाय के अनुयायी थे तथा वे किसको अपना धार्मिक नेता मानते थे?
उत्तर-
पुर्तगाल के लोग रोमन कैथोलिक सम्प्रदाय के अनुयायी थे। वे पोप को अपना धार्मिक नेता मानते थे।

प्रश्न 8.
पोप ने 1454 की घोषणा द्वारा विश्व को किन दो यूरोपीय देशों में बाँट दिया ?
उत्तर-
पोप ने 1454 की घोषणा द्वारा विश्व को पुर्तगाल और स्पेन में बाँट दिया।

प्रश्न 9.
भारत में पुर्तगालियों के चार महत्त्वपूर्ण केन्द्रों के नाम बताओ।
उत्तर-
भारत में पुर्तगालियों के चार महत्त्वपूर्ण केन्द्र गोआ, दीव, दमन तथा दादर थे।

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प्रश्न 10.
पुर्तगालियों ने भारत से बाहर कौन-से चार व्यापारिक केन्द्र स्थापित किए थे ?
उत्तर-
पुर्तगालियों ने भारत से बाहर लाल सागर में सकोत्रा, ईरान की खाड़ी में उरमज, दक्षिणी-पूर्वी एशिया में मलक्का तथा चीन में मकाओ नामक व्यापारिक केन्द्र स्थापित किए हुए थे।

प्रश्न 11.
किस महाद्वीप में कौन-से देश की खोज से पुर्तगालियों की भारत में रुचि कम हुई ?
उत्तर-
दक्षिणी अमेरिका में ब्राजील की खोज से पुर्तगालियों की रुचि भारत में कम हो गई।

प्रश्न 12.
डच लोग किस देश के रहने वाले थे और उनका बेड़ा दक्षिणी-पूर्वी एशिया में कब पहुंचा ?
उत्तर-
डच लोग हॉलैण्ड के रहने वाले थे। 1595 में उनका बेड़ा दक्षिणी-पूर्वी एशिया में पहुंचा।

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प्रश्न 13.
डच लोगों के व्यापारिक संगठन का क्या नाम था तथा यह कब बना ?
उत्तर-
डच लोगों के व्यापारिक संगठन का नाम यूनाइटिड ईस्ट इण्डिया कम्पनी था। यह संगठन 1602 में बना था।

प्रश्न 14.
डच लोगों ने भारत में कौन-से चार व्यापारिक केन्द्र स्थापित किए ?
उत्तर-
डच लोगों ने भारत में कोचीन, सूरत, नागपट्टम, पुलीकट नामक व्यापारिक केन्द्र स्थापित किए।

प्रश्न 15.
अंग्रेजों के व्यापारिक संगठन का नाम क्या था तथा यह कब बना ?
उत्तर-
अंग्रेजों के व्यापारिक संगठन का नाम ईस्ट इण्डिया कम्पनी था। यह संगठन 1600 में बना।

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प्रश्न 16.
भारत आने से पहले अंग्रेजों ने अपना व्यापार कहां आरम्भ किया तथा किस विशेष घटना के बाद उन्होंने भारत की ओर अधिक ध्यान दिया ?
उत्तर-
भारत में आने से पहले अंग्रेजों ने अपना व्यापार दक्षिणी-पूर्वी एशिया में आरम्भ किया। अंबोओना की अंग्रेज़ी फैक्टरी पर डचों का अधिकार होने तथा अंग्रेजों की हत्या होने के पश्चात् अंग्रेजों ने भारत की ओर अधिक ध्यान दिया।

प्रश्न 17.
मुग़ल बादशाह जहांगीर के दरबार में किस अंग्रेज़ प्रतिनिधि ने तथा कब व्यापारिक छूट को प्राप्त करने का असफल प्रयत्न किया ?
उत्तर-
मुग़ल बादशाह जहांगीर के दरबार में कप्तान विलियम हाकिन्ज ने 1607-11 में व्यापारिक छूट प्राप्त करने का असफल प्रयत्न किया।

प्रश्न 18.
अंग्रेजी कम्पनी का कौन-सा प्रतिनिधि किस मुगल बादशाह से किस वर्ष में व्यापारिक छूट प्राप्त करने में सफल रहा ?
उत्तर-
अंग्रेज़ प्रतिनिधि सर टामस रो 1618 में मुगल बादशाह जहांगीर से व्यापारिक छूट प्राप्त करने में सफल रहा।

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प्रश्न 19.
फैक्टरी से क्या अभिप्राय है तथा अंग्रेजों ने अपनी आरम्भिक फैक्टरियां किन चार स्थानों में स्थापित की ?
उत्तर-
फैक्टरी से अभिप्राय व्यापारिक केन्द्र से है। अंग्रेजों ने आरम्भिक फैक्टरियां सूरत, अहमदाबाद, अड़ौच तथा आगरा में स्थापित की।

प्रश्न 20.
अंग्रेज़ कम्पनी का प्रमुख कार्यालय पहले कहां स्थापित हुआ तथा बाद में इसे किस स्थान पर बना दिया गया ?
उत्तर-
अंग्रेज़ कम्पनी का प्रमुख कार्यालय सूरत में स्थापित हुआ था। परन्तु बाद में इसे बम्बई (मुम्बई) में बना दिया गया।

प्रश्न 21.
अंग्रेज कम्पनी की मद्रास (चेन्नई) व कलकत्ता (कोलकाता) की फैक्टरियां कब स्थापित हुई ?
उत्तर-
1640 में मद्रास (चेन्नई) की फैक्टरी तथा 1690 में कलकत्ता (कोलकाता ) की फैक्टरी स्थापित हुई।

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प्रश्न 22.
अंग्रेज़ भारत से किन चार वस्तुओं को बाहर भेजते थे ?
उत्तर-
अंग्रेज़ नील, चीनी, गर्म मसाला तथा अफ़ीम भारत से बाहर भेजते थे।

प्रश्न 23.
अंग्रेज़ यूरोप से भारत में कौन सी-चार वस्तुएं बेचने के लिए लाते थे ?
उत्तर-
अंग्रेज़ कलई, सिक्का, पारा तथा कपड़ा यूरोप से भारत में बेचने के लिए लाते थे।

प्रश्न 24.
अंग्रेजों को बंगाल में बिना महसूल व्यापार करने का अधिकार किस मुगल बादशाह से तथा कब मिला ?
उत्तर-
18वीं शताब्दी के दूसरे दशक में मुगल बादशाह फर्रुखसियर ने अंग्रेजों को बंगाल में बिना कर दिए व्यापार करने का अधिकार दे दिया था।

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प्रश्न 25.
किस यूरोपीय देश ने सबसे अन्त में तथा कब अपनी व्यापारिक कम्पनी स्थापित की ?
उत्तर-
यूरोपीय देशों में सबसे अन्त में फ्रांस ने व्यापारिक कम्पनी स्थापित की। यह कम्पनी 1664 में स्थापित हुई।

प्रश्न 26.
फ्रांसीसियों की मुख्य दो फैक्टरियां कौन-सी थीं तथा ये कब स्थापित की गईं ?
उत्तर-
फ्रांसीसियों ने अपनी दो मुख्य फैक्टरियां 1674 में पांडिचेरी में तथा 1690 में चन्द्रनगर में स्थापित की।

प्रश्न 27.
1725 के बाद फ्रांसीसियों ने भारत में अन्य कौन-सी दो बस्तियां स्थापित की ?
उत्तर-
1725 के बाद फ्रांसीसियों ने माही तथा कारीकल के स्थान पर बस्तियां स्थापित की।

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प्रश्न 28.
फ्रांसीसी कम्पनी ने किन दो महत्त्वपूर्ण अफ़सरों के अधीन उन्नति की तथा इनमें कौन तथा कब कम्पनी का गवर्नर जनरल बना ?
उत्तर-
फ्रांसीसी कम्पनी ने डूमा तथा डुप्ले के अधीन बहुत उन्नति की। 1741 में डुप्ले कम्पनी का गवर्नर-जनरल बना।

प्रश्न 29.
यूरोप में किस देश के राज्य सिंहासन के युद्ध के साथ कर्नाटक की पहली लड़ाई आरम्भ हुई तथा यह यूरोप में किस सन्धि द्वारा समाप्त हुई ?
उत्तर-
यूरोप में आस्ट्रिया के राजसिंहासन के युद्ध के साथ कर्नाटक की पहली लड़ाई आरम्भ हुई। यह लड़ाई 1748 मे एक्स-ला-शैपल की सन्धि के द्वारा समाप्त हुई।।

प्रश्न 30.
कर्नाटक की पहली लड़ाई किन दो यूरोपीय कम्पनियों के बीच लड़ी गई तथा उसमें किस कम्पनी का पलड़ा भारी रहा ?
उत्तर-
कर्नाटक की पहली लड़ाई अंग्रेज़ी तथा फ्रांसीसी कम्पनियों के बीच लड़ी गई। इसमें ईस्ट इण्डिया कम्पनी का पलड़ा भारी रहा।

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प्रश्न 31.
कर्नाटक की दूसरी लड़ाई के दौरान फ्रांसीसियों ने किन दो भारतीय राज्यों के झगड़ों में भाग लेने का निश्चय किया ?
उत्तर-
कर्नाटक की दूसरी लड़ाई के दौरान फ्रांसीसियों ने हैदराबाद तथा कर्नाटक के राज्यों के झगड़ों में भाग लेने का निश्चय किया।

प्रश्न 32.
फ्रांसीसी सेनाओं ने कर्नाटक तथा हैदराबाद में किन दो व्यक्तियों को गद्दी दिलाई ?
उत्तर-
फ्रांसीसी सेनाओं ने चन्दा साहिब को कर्नाटक में तथा मुजफ्फर जंग को हैदराबाद में गद्दी दिलवाई।

प्रश्न 33.
कौन-सा फ्रांसीसी अफ़सर हैदराबाद में रहने लग गया तथा निजाम ने कौन-सा इलाका फ्रांसीसियों को दे दिया।
उत्तर-
फ्रांसीसी कमाण्डर बुसे हैदराबाद में रहने लगा। निजाम ने ‘उत्तरी सरकारों’ का इलाका फ्रांसीसियों को दे दिया।

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प्रश्न 34.
कर्नाटक की दूसरी लड़ाई में अंग्रेजों ने मुहम्मद अली की सहायता किस भारतीय शासक के विरुद्ध की तथा इसके लिए किस अंग्रेज़ को भेजा गया ?
उत्तर-
कर्नाटक की दूसरी लड़ाई में अंग्रेजों ने मुहम्मद अली की सहायता चन्दा साहिब के विरुद्ध की। मुहम्मद अली की सहायता के लिए राबर्ट क्लाइव को भेजा गया।

प्रश्न 35.
कर्नाटक की तीसरी लड़ाई यूरोप के किस युद्ध के साथ जुड़ी हुई थी तथा यह कब आरम्भ हुआ एवं कब समाप्त हुआ ?
उत्तर-
कर्नाटक की तीसरी लड़ाई यूरोप के सप्त-वर्षीय युद्ध के साथ जुड़ी हुई थी। यह युद्ध 1756 में आरम्भ हुआ तथा 1763 में समाप्त हुआ।

प्रश्न 36.
कर्नाटक की तीसरी लड़ाई में किस अंग्रेज़ कमाण्डर ने कौन-से फ्रांसीसी गर्वनर-जनरल को हराया तथा कौन-से फ्रांसीसी जनरल को कैद किया ?
उत्तर-
कर्नाटक की तीसरी लड़ाई में अंग्रेज़ी कमाण्डर आयर कूट ने फ्रांसीसी गवर्नर-जनरल काऊंट लाली को परास्त किया। उसने फ्रांसीसी जनरल बुसे को कैद कर लिया।

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प्रश्न 37.
कर्नाटक की तीसरी लड़ाई के दौरान अंग्रेजों ने फ्रांसीसियों के किन दो मुख्य केन्द्रों पर अधिकार कर लिया ?
उत्तर-
कर्नाटक की तीसरी लड़ाई के दौरान अंग्रेजों ने फ्रांसीसियों के दो मुख्य केन्द्रों पांडिचेरी तथा चन्द्र नगर पर अधिकार कर लिया।

प्रश्न 38.
सिराजुद्दौला कहां का शासक था तथा इसने किस अंग्रेज़ी फैक्टरी पर तथा कब आक्रमण किया ?
उत्तर-
सिराजुद्दौला बंगाल का शासक था। उसने कलकत्ता (कोलकाता) की अंग्रेज़ी फैक्टरी पर 1756 में आक्रमण किया।

प्रश्न 39.
किन दो अंग्रेज अफसरों ने कलकत्ता (कोलकाता) पर दोबारा आक्रमण किया तथा कब ?
उत्तर-
एडमिरल वाटसन तथा राबर्ट क्लाइव ने 1757 में दोबारा कलकत्ता (कोलकाता) पर आक्रमण कर दिया।

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प्रश्न 40.
प्लासी की लड़ाई कब तथा किनके बीच हुई ?
उत्तर–
प्लासी की लड़ाई 23 जून, 1757 को सिराजुद्दौला तथा अंग्रेजों के बीच हुई।

प्रश्न 41.
प्लासी की लड़ाई के बाद बनाए गए बंगाल के दो नवाबों के नाम बताएं।
उत्तर-
प्लासी की लड़ाई के बाद मीर जाफर तथा मीर कासिम को बंगाल का नवाब बनाया गया।

प्रश्न 42.
बक्सर की लड़ाई कब और किनके बीच लड़ी गई ?
उत्तर-
बक्सर की लड़ाई 22 अक्तूबर, 1764 को हुई। यह लड़ाई अंग्रेजों तथा मीर कासिम के बीच हुई।

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प्रश्न 43.
बक्सर की लड़ाई के बाद बंगाल के दो कठपुतली नवाबों के नाम बताएं।
उत्तर-
बक्सर की लड़ाई के बाद मीर जाफर तथा नजामुद्दौला को बंगाल का कठपुतली नवाब बनाया गया।

प्रश्न 44.
किस अंग्रेज अफसर ने किस मुग़ल बादशाह से तथा कब बंगाल की दीवानी के अधिकार प्राप्त किए ?
उत्तर-
क्लाइव ने मुग़ल बादशाह शाहआलम द्वितीय से 1765 में बंगाल की दीवानी के अधिकार प्राप्त किए।

प्रश्न 45.
दीवानी के बदले अंग्रेजों ने मुगल बादशाह को क्या देना स्वीकार कर लिया ?
उत्तर-
दीवानी के बदले अंग्रेजों ने मुग़ल बादशाह को 26 लाख रुपया वार्षिक खिराज देना स्वीकार कर लिया।

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प्रश्न 46.
दीवानी के अन्तर्गत अंग्रेजों को कौन-से दो कार्यों का दायित्व मिला तथा उन्होंने यह किसको सौंप दिया ?
उत्तर-
दीवानी के अन्तर्गत अंग्रेजों को लगान वसूल करने तथा न्याय करने का दायित्व मिल गया। उन्होंने इस दायित्व को मुहम्मद रज़ा खां को सौंप दिया।

II. छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत में पुर्तगालियों ने अपनी शक्ति किन परिस्थितियों में स्थापित की ?
उत्तर-
यूरोप के देश भारत के साथ अपने व्यापारिक सम्बन्ध स्थापित करने के बड़े इच्छुक थे। सबसे पहले 1498 ई० में पुर्तगाल के एक नाविक वास्कोडिगामा ने भारत का नया समुद्री मार्ग खोज निकाला। इसके कुछ समय बाद ही पुर्तगालियों ने भारत के साथ व्यापार करना आरम्भ कर दिया। धीरे-धीरे उन्होंने भारत में अपने अनेक उपनिवेश स्थापित कर लिये। 1509 ई० में अल्बुकर्क पुर्तगालियों का गवर्नर बनकर भारत आया। वह भारत में पुर्तगाली राज्य स्थापित करना चाहता था। थोड़े ही समय में उसने बीजापुर तथा मलाया पर अपना अधिकार कर लिया। उसने गोवा को अपनी राजधानी बनाया। पुर्तगालियों ने बड़ी तेज़ी से अपनी शक्ति को बढ़ाया। सोलहवीं शताब्दी में उन्होंने हिन्द महासागर की अनेक बन्दरगाहों पर अधिकार कर लिया।

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प्रश्न 2.
भारत में पुर्तगालियों की शक्ति कम होने के क्या कारण थे ?
उत्तर-
1580 ई० में पुर्तगाल स्पेन के साथ मिल गया। स्पेन ने पुर्तगाल के उपनिवेशों की ओर कोई ध्यान नहीं दिया। इसका परिणाम यह हुआ कि गोवा, दियू और दमन को छोड़कर शेष सभी उपनिवेश उनसे छिन गए। धीरे-धीरे उनकी शक्ति का पूरी तरह पतन हो गया। उनके पतन के अनेक कारण थे। (1) पुर्तगाली अधिकारियों का अपनी मुस्लिम प्रजा से व्यवहार अच्छा न था। (2) वे लोगों को बलपूर्वक ईसाई बनाना चाहते थे। इस कारण लोग उनसे घृणा करने लगे। (3) अल्बुकर्क के पश्चात् कोई योग्य पुर्तगाली गवर्नर भारत न आया। (4) 1580 ई० में स्पेन ने पुर्तगाल को जीत कर अपने राज्य में मिला लिया। इस कारण पुर्तगाल भारत में अपने उपनिवेशों की रक्षा न कर सका।

प्रश्न 3.
भारत में अंग्रेजी कम्पनी के व्यापारिक केन्द्रों तथा व्यापार के बारे में बताएं।
उत्तर-
पुर्तगाली लोग भारत के व्यापार से खूब धन कमा रहे थे। उन्हें व्यापार करते देखकर अंग्रेजों के मन में भी भारत से व्यापार करने की इच्छा उत्पन्न हुई। 1600 में अंग्रेजों ने ईस्ट इण्डिया कम्पनी की स्थापना की। इस कम्पनी ने जहांगीर के शासन काल में भारत में अपना व्यापार करना आरम्भ कर दिया। इस व्यापार से कम्पनी को खूब धन मिलने लगा और इसकी शक्ति बढ़ने लगी। कुछ ही समय में इसने सूरत, कालीकट, मछलीपट्टम, बम्बई (मुम्बई), कासिम बाज़ार, हुगली, कलकत्ता (कोलकाता) आदि स्थानों पर अपनी व्यापारिक कोठियां स्थापित कर लीं। इस प्रकार भारत में अंग्रेजी व्यापारिक कम्पनी का व्यापार दिन-प्रतिदिन बढ़ता चला गया।

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प्रश्न 4.
फ्रांसीसी कम्पनी के विरुद्ध अंग्रेजी कम्पनी की सफलता के क्या कारण थे ?
उत्तर-
फ्रांसीसी कम्पनी के विरूद्ध अंग्रेजी कम्पनी की सफलता के मुख्य कारण ये थे
(1) अंग्रेजों के पास फ्रांसीसियों से अधिक शक्तिशाली जहाज़ी बेड़ा था।
(2) इंग्लैण्ड की सरकार अंग्रेज़ी कम्पनी की धन से सहायता करती थी। परन्तु फ्रांसीसी सरकार फ्रांसीसियों की सहायता नहीं करती थी।

(3) अंग्रेजी कम्पनी की आर्थिक दशा फ्रांसीसी कम्पनी से काफ़ी अच्छी थी। अंग्रेज़ कर्मचारी बड़े मेहनती थे और आपस में मिल-जुल कर काम करते थे। राजनीतिक में भाग लेते हुए भी अंग्रेजों ने व्यापार का पतन न होने दिया। इसके विपरीत फ्रांसीसी एक-दूसरे के साथ द्वेष रखते थे तथा राजनीति में ही अपना समय नष्ट कर देते थे।

(4) प्लासी की लड़ाई (1756 ई०) के बाद बंगाल का धनी प्रदेश अंग्रेज़ों के प्रभाव में आ गया था। यहां के अपार धन से अंग्रेज़ अपनी सेना को खूब शक्तिशाली बना सकते थे।।

प्रश्न 5.
प्लासी की लड़ाई के क्या कारण थे तथा इसका क्या परिणाम निकला ?
उत्तर–
प्लासी की लड़ाई 1757 ई० में अंग्रेजों तथा बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला के मध्य हुई। उनमें कई बातों के कारण अनबन रहती थी जो प्लासी की लड़ाई का कारण बनी। सिराजुद्दौला 1756 ई० में बंगाल का नवाब बना। अंग्रेजों ने इस शुभ अवसर पर उसे कोई उपहार नहीं दिया। इसके कारण नवाब अंग्रेजों से रुष्ट हो गया। अंग्रेजी कम्पनी को 1715 ई० में करमुक्त व्यापार करने के लिए आज्ञा-पत्र मिला था, परन्तु कम्पनी के कर्मचारी अपने निजी व्यापार के लिए इसका प्रयोग करने लगे थे। नवाब यह बात सहन नहीं कर सकता था। अंग्रेज़ों ने कलकत्ता (कोलकाता) की किलेबन्दी आरम्भ कर दी थी। यह बात भी प्लासी के युद्ध का कारण बनी।

परिणाम-प्लासी के युद्ध के महत्त्वपूर्ण परिणाम निकले-

  • सिराजुद्दौला के स्थान पर मीर जाफर बंगाल का नवाब बना। नया नवाब अंग्रेजों का आभारी था और उनकी इच्छा का दास था।
  • नये नवाब ने कम्पनी को बंगाल, बिहार तथा उड़ीसा में खुला व्यापार करने की आज्ञा दे दी।
  • अंग्रेज़ों को बहुत धन मिला। नवाब ने कम्पनी के कर्मचारियों को उपहार दिए।
  • कम्पनी को कलकत्ता(कोलकाता) के समीप 24 परगना के क्षेत्र की ज़मींदारी मिल गई।

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प्रश्न 6.
बक्सर की लड़ाई के क्या कारण थे तथा इसका क्या परिणाम हुआ ?
उत्तर-
बक्सर का युद्ध 1764 ई० में बंगाल के नवाब मीर कासिम तथा अंग्रेजों के बीच आपसी झगड़ों का परिणाम था। उनमें अनेक बातों के कारण अनबन रहती थी। मीर कासिम एक योग्य शासक था। वह अंग्रेज़ों की दृष्टि से बचकर अपनी स्थिति दृढ़ करना चाहता था। इसके लिए वह अपना कोष कलकत्ता (कोलकाता) से मुंगेर ले गया। उसने अपनी सेना को फिर से संगठित किया। इन बातों से अंग्रेजों के मन में मीर कासिम के प्रति सन्देह बढ़ने लगे।

बंगाल में केवल कम्पनी को बिना कर दिये व्यापार करने की आज्ञा थी परन्तु कम्पनी के कर्मचारी आज्ञा-पत्र की आड़ में अपना तथा भारतीय व्यापारियों का माल भी कर दिए बिना ले जाने का यत्न करने लगे। नवाब ने इस बात का प्रयत्न किया कि अंग्रेज़ व्यापारिक अधिकारों का दुरुपयोग न करें। अंग्रेजों को यह बात अच्छी न लगी। इसलिए वे नवाब से युद्ध छेड़ने का बहाना ढूँढने लगे।

परिणाम- वास्तव में बक्सर के युद्ध का बड़ा ऐतिहासिक महत्त्व है। इस युद्ध के कारण बंगाल, बिहार तथा उड़ीसा में अंग्रेज़ों की स्थिति काफ़ी दृढ़ हो गई। बक्सर की विजय ने प्लासी के अधूरे काम को पूरा कर दिया।

प्रश्न 7.
अंग्रेजों ने बंगाल की दीवानी किस तरह प्राप्त की तथा इसका क्या महत्त्व था ?
उत्तर-
अंग्रेज़ बंगाल के नवाब मीर कासिम को गद्दी से हटाना चाहते थे। उनके बीच 22 अक्तूबर, 1764 ई० को बक्सर का युद्ध हुआ। इसमें जीत अंग्रेजों की हुई। अब नये सिरे से मीर जाफर को बंगाल का नवाब बना दिया गया। 1765 ई० में मीर जाफर की मृत्यु हो गई और उसका पुत्र नज़ामुद्दौला नवाब बना दिया गया। परन्तु उसकी स्थिति तो कठपुतली सी भी न रही।

क्लाइव ने शाहआलम द्वितीय को इलाहाबाद और उसके आस-पास का इलाका देकर तथा 26 लाख रुपया वार्षिक खिराज देना स्वीकार करके मुग़ल बादशाह से बंगाल की ‘दीवानी’ के अधिकार ले लिए। इससे लगान वसूल करना और न्याय आदि का काम भी अंग्रेजों को मिल गया। इस प्रकार अंग्रेजों ने यह कार्य मुहम्मद रजा खां को सौंप दिया। बंगाल का नवाब अब नाममात्र का नवाब रह गया। सारा प्रशासन मुहम्मद रज़ा खां के हाथों में था और मुहम्मद रज़ा खां अंग्रेज़ों के हाथों की कठपुतली बन गया। इस प्रकार बंगाल का राज्य अंग्रेज़ों के अधिकार में आ गया।

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प्रश्न 8.
भारत में डच शक्ति के उत्थान की व्याख्या करो।।
उत्तर-
डच व्यापारी हालैण्ड के निवासी थे। वे पुर्तगाल से पूर्वी देशों का माल खरीदते थे और उसे उत्तरी यूरोप में बेच कर काफ़ी धन कमाते थे। उनके व्यापार की मुख्य वस्तु गर्म मसाले थे। कुछ समय पश्चात् पुर्तगाल को स्पेन ने अपने देश में मिला लिया। फलस्वरूप डच व्यापारियों को पुर्तगाल से माल मिलना बन्द हो गया। 1602 ई० में डचों ने डच ईस्ट इण्डिया कम्पनी की स्थापना की। डच पार्लियामैण्ट ने इस कम्पनी को व्यापार करने के साथ-साथ दुर्ग बनाने, युद्ध तथा सन्धि करने और प्रदेश जीतने का अधिकार भी दे दिया। वे इण्डोनेशिया के गर्म मसाले के द्वीपों-जावा और सुमात्रा में अधिक रुचि लेने लगे। उन्होंने पुर्तगालियों को इण्डोनेशिया से मार भगाया और वहां के व्यापार पर अपना अधिकार स्थापित कर लिया। 1623 ई० में जब अंग्रेज़ों ने पूर्वी द्वीपों में बसने का प्रयत्न किया, तो डचों ने उसे विफल बना दिया। इस प्रकार डच शक्ति बढ़ती गई और उन्होंने सूरत, भड़ौच, कोचीन, अहमदाबाद, नागोपट्टम तथा मसौलीपट्टम में अपने व्यापारिक केन्द्र स्थापित कर लिये।

प्रश्न 9.
दक्षिणी भारत में फ्रांसीसी शक्ति स्थापित करने की डुप्ले की योजना क्यों असफल हो गई ?
उत्तर-
दक्षिणी भारत में फ्रांसीसी शक्ति स्थापित करने की डुप्ले की योजना अनेक कारणों से असफल रही। स्वयं योग्य . होते हुए भी परिस्थितियों तथा भाग्य ने उसका साथ नहीं दिया। फ्रांस की सरकार ने उसकी पूर्ण आर्थिक सहायता नहीं की। यद्यपि उसने भारत में अंग्रेजों को पराजित कर दिया, तो भी फ्रांसीसी सरकार ने इंग्लैण्ड से सन्धि करते समय डुप्ले की सफलता पर पानी फेर दिया। सन्धि के अनुसार डुप्ले को विजित प्रदेश तथा कैदी लौटाने पड़े। इसके अतिरिक्त फ्रांसीसी अधिकारी एकदूसरे से लड़ते-झगड़ते रहते थे। अंग्रेजों की समुद्री शक्ति ने भी उसकी योजना को विफल बना दिया।

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प्रश्न 10.
भारत में अंग्रेजी साम्राज्य के इतिहास में क्लाइव को एक महत्त्वपूर्ण स्थान क्यों दिया जाता है ?
अथवा
भारत में क्लाइव को अंग्रेज़ी राज्य का संस्थापक क्यों कहा जाता है ?
उत्तर-
क्लाइव अंग्रेजी साम्राज्य के लिए वरदान सिद्ध हुआ। इस अकेले व्यक्ति ने जो कुछ किया वे भारत में विद्यमान सारे अंग्रेज़ अधिकारी न कर सके। यदि कर्नाटक के दूसरे युद्ध में क्लाइव ने अर्काट के घेरे की सलाह न दी होती, तो भारत के अंग्रेजी साम्राज्य का अस्तित्व ही नष्ट हो जाता। इस युद्ध के बाद अंग्रेज़ एक निर्णायक शक्ति के रूप में उभरे जिसका पूर्ण श्रेय क्लाइव को जाता है। इसलिए इसे भारत में ब्रिटिश साम्राज्य का संस्थापक भी कहा जाता है। उसने अंग्रेज़ी ईस्ट इण्डिया कम्पनी के लिए बंगाल को विजय किया, द्वैध शासन द्वारा प्रशासनिक ढांचे की नींव रखी और बंगाल में डचों की शक्ति को समाप्त किया। उसने इलाहाबाद की सन्धि द्वारा कम्पनी के लिए बंगाल, बिहार तथा उड़ीसा की दीवानी प्राप्त की और मुग़ल सम्राट को कम्पनी का पेन्शनर बना दिया। इसी कारण इसे अंग्रेजी साम्राज्य के इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है।

IV. निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
दक्षिण भारत में अंग्रेज़ फ्रांसीसी संघर्ष अथवा कर्नाटक की लड़ाइयों का संक्षिप्त वर्णन करें।
अथवा
कर्नाटक के तीनों युद्धों का अलग-अलग वर्णन करते हुए उनके कारणों, घटनाओं तथा परिणामों की चर्चा कीजिए।
उत्तर-
1744 से 1763 ई० तक दक्षिणी भारत में अंग्रेजों और फ्रांसीसियों के बीच एक लम्बा संघर्ष हुआ। उनके बीच तीन युद्ध हुए जो कर्नाटक के युद्धों के नाम से प्रसिद्ध हैं।

1. कनाटक का पहला युद्ध –

कर्नाटक का पहला युद्ध 1746 से 1748 ई० तक हुआ। इस युद्ध का वर्णन इस प्रकार है :-
कारण-

  • यूरोप में इंग्लैण्ड तथा फ्रांस के बीच घोर शत्रुता थी। इसलिए भारत में भी ये दोनों जातियां एक-दूसरे को अपना शत्रु समझती थीं।।
  • अंग्रेज़ और फ्रांसीसी दोनों ही भारत के सारे व्यापार पर अपना-अपना अधिकार करना चाहते थे। इसलिए दोनों एकदूसरे को भारत से बाहर निकालने का प्रयत्न करने लगे।
  • इसी बीच इंग्लैण्ड और फ्रांस के बीच युद्ध छिड़ गया। परिणामस्वरूप भारत में भी अंग्रेजों और फ्रांसीसियों में लड़ाई शुरू हो गई।

घटनाएं-1745 ई० में अंग्रेज़ी जल सेना ने एक फ्रांसीसी बेड़े पर अधिकार कर लिया और पांडिचेरी पर आक्रमण करने का प्रयास किया। बदला लेने के लिए फ्रांसीसी गवर्नर-जनरल डुप्ले ने 1746 ई० में मद्रास (चेन्नई) पर अधिकार कर लिया। क्योंकि मद्रास, (चेन्नई) कर्नाटक, राज्य में स्थित था, इसलिए अंग्रेजों ने कर्नाटक के नवाब से रक्षा की प्रार्थना की। नवाब ने युद्ध रोकने के लिए 10 हजार सैनिक भेज दिए। इस सेना का सामना फ्रांसीसियों की एक छोटी-सी सैनिक टुकड़ी से हुआ। फ्रांसीसी सेना ने नवाब की सेनाओं को बुरी तरह पराजित किया। 1748 ई० में यूरोप में युद्ध बन्द हो गया। परिणामस्वरूप भारत में भी दोनों जातियों के बीच युद्ध समाप्त हो गया।

परिणाम-

  • इस युद्ध में फ्रांसीसी विजयी रहे। फलस्वरूप भारत में उनकी शक्ति की धाक जम गई।
  • युद्ध की समाप्ति पर दोनों पक्षों ने एक-दूसरे के विजित प्रदेश लौटा दिए।

2. कर्नाटक का दूसरा युद्ध-
कारण-(1) अंग्रेज़ तथा फ्रांसीसी दोनों ही भारत में साम्राज्य स्थापित करना चाहते थे। वे एक-दूसरे को भारत से बाहर निकालना चाहते थे।
(2) हैदराबाद तथा कर्नाटक के राज्यों की स्थिति के कारण भी कर्नाटक का दूसरा युद्ध हुआ। इन दोनों राज्यों में राजगद्दी के लिए दो-दो प्रतिद्वन्दी खड़े हो गये। हैदराबाद में नासिर जंग तथा मुज़फ्फर जंग और कर्नाटक में अनवरुद्दीन तथा चन्दा साहिब। फ्रांसीसी सेना नायक इप्ले ने मुजफ्फर जंग और चन्दा साहिब का साथ दिया और उन्हें राजगद्दी पर बिठा दिया। बाद में मुज़फ्फर जंग की मृत्यु पर निजाम के तीसरे पुत्र सलाबत जंग को हैदराबाद की राजगद्दी पर बिठाया गया। चन्दा साहिब का विरोधी अनवरुद्दीन लड़ता हुआ मारा गया और उसके पुत्र मुहम्मद अली को। त्रिचनापल्ली में घेर लिया गया। फलस्वरूप चन्दा साहिब ने फ्रासीसियों को बहुतसा धन तथा प्रदेश दिए। मुजफ्फर जंग से भी फ्रांसीसियों को काफ़ी सारा धन प्राप्त हुआ था। इस प्रकार भारत में उनका प्रभाव बढ़ने लगा।

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(3) फ्रांसीसी प्रभाव को बढ़ते देखकर अंग्रेज़ों को ईर्ष्या हुई। उन्होंने शीघ्र ही अनवरुद्दीन के पुत्र मुहम्मद अली का साथ दिया और युद्ध-क्षेत्र में उत्तर आये।

घटनाएं-अंग्रेजों ने सर्वप्रथम मुहम्मद अली को छुड़ाने का प्रयत्न किया। इस काम के लिए कम्पनी के एक क्लर्क क्लाइव ने चन्दा साहिब की राजधानी अर्काट को घेरे में लेने का सुझाव दिया। ज्यों ही अंग्रेजी सेनाओं ने अर्काट को घेरे में ले लिया, चन्दा साहिब को चिन्ता हुई। उसने शीघ्र ही त्रिचनापल्ली का घेरा उठा लिया। इसी बीच क्लाइव ने अर्काट को भी जीत लिया। फ्रांसीसी सेनाओं को कई अन्य स्थानों पर भी पराजित किया गया। चन्दा साहिब को बन्दी बना लिया गया और उसका वध पर दिया गया। शीघ्र ही फ्रांसीसियों ने युद्ध को बन्द करने की घोषणा कर
दी।

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परिणाम-

  • दोनों जातियों ने एक-दूसरे के जीते हुए प्रदेश लौटा दिए।
  • उन्होंने एक-दूसरे को भविष्य में देशी नरेशों के झगड़ों में भाग न लेने का वचन दिया।
  • इस युद्ध के कारण भारत में फ्रांसीसियों की प्रतिष्ठा कम हो गई।

3. कर्नाटक का तीसरा युद्ध-

कर्नाटक का तीसरा युद्ध 1756 ई० से 1763 ई० तक लड़ा गया। दूसरे युद्ध की भान्ति इस युद्ध में भी फ्रांसीसी पराजित हुए और अंग्रेज़ विजयी रहे।

कारण-1756 ई० में इंग्लैण्ड और फ्रांस के बीच यूरोप में एक बार फिर युद्ध (सप्तवर्षीय) युद्ध छिड़ गया। परिणाम यह हुआ कि भारत में भी फ्रांसीसियों और अंग्रेजों के बीच युद्ध आरम्भ हो गया।

घटनाएं-फ्रांसीसी सेनापति काऊंट लाली ने अंग्रेज़ों के किले सेंट डेविड पर अपना अधिकार कर लिया। फिर उसने मद्रास (चेन्नई) पर आक्रमण किया; परन्तु वहां उसे पराजय का मुंह देखना पड़ा। 1760 ई० में एक अंग्रेज़ सेनापति आयरकूट ने भी वन्देवाश की लड़ाई में फ्रांसीसियों को बुरी तरह हराया। इसके तीन वर्ष बाद पेरिस की सन्धि के अनुसार यूरोप में सप्तवर्षीय युद्ध बन्द हो गया। परिणामस्वरूप भारत में भी दोनों जातियों का युद्ध समाप्त हो गया।

परिणाम-

  • फ्रांसीसियों की शक्ति लगभग नष्ट हो गई। उनके पास अब केवल पांडिचेरी, माही तथा चन्द्रनगर के प्रदेश ही रहने दिए गए। वे इन प्रदेशों में केवल व्यापार कर सकते थे।
  • अंग्रेज़ भारत की सबसे बड़ी शक्ति बन गए। अब भारत में उनके साथ टक्कर लेने वाली कोई यूरोपियन जाति न रही।

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प्रश्न 2.
भारत में अंग्रेज़ों की सफलता तथा फ्रांसीसियों की असफलता के कारणों की विवेचना कीजिए।
उत्तर-
भारत में अंग्रेज़ों की सफलता तथा फ्रांसीसियों की असफलता के मुख्य कारण निम्नलिखित थे
1. अंग्रेज़ों का शक्तिशाली बेड़ा-अंग्रेजों के पास एक शक्तिशाली समुद्री बेड़ा था। इसकी सहायता से वे आवश्यकता के समय इंग्लैण्ड से सैनिक और युद्ध का सामान मंगवा सकते थे। इसके विपरीत फ्रांसीसियों का समुद्री बेड़ा कमजोर था।

2. अच्छी आर्थिक दशा-अंग्रेज़ों की आर्थिक दशा काफ़ी अच्छी थी। वे युद्ध के समय भी अपना व्यापार जारी रखते थे। परन्तु फ्रांसीसी राजनीति में अधिक उलझे रहते थे जिसके कारण उनके पास धन का अभाव था।

3. इंग्लैण्ड द्वारा धन से सहायता-इंग्लैण्ड की सरकार भारत में अंग्रेजी कम्पनी की धन से सहायता करती थी। इसके विपरीत फ्रांसीसियों को उनकी सरकार कोई सहायता नहीं देती थी।

4. अंग्रेजों की बंगाल विजय-बंगाल विजय के कारण भारत का एक धनी प्रान्त अंग्रेजों के हाथ में आ गया। युद्ध जीतने के लिए धन की बड़ी आवश्यकता होती है। युद्ध के दिनों में अंग्रेज़ों का बंगाल में व्यापार चलता रहा। यहां के कमाये गये धन के कारण उन्हें दक्षिण के युद्धों में विजय मिली।

5. डुप्ले की वापसी-फ्रांसीसी सरकार द्वारा डुप्ले को वापस बुलाना एक भूल थी। डुप्ले भारत की राजनीति से परिचित था। उसे यह पता था कि साम्राज्य स्थापित करने की योजना को किस प्रकार लागू करना है, परन्तु डुप्ले के वापस चले जाने के कारण फ्रांसीसियों की स्थिति एक ऐसे जहाज़ की तरह हो गई जिसका कोई चालक न हो।

6. परिश्रमी कर्मचारी-अंग्रेज़ कर्मचारी बड़े परिश्रमी थे। वे एक होकर कार्य करते थे। इसके विपरीत फ्रांसीसी कर्मचारी एक-दूसरे से द्वेष रखते थे। परिणामस्वरूप फ्रांसीसी अंग्रेज़ों का सामना न कर सके।

7. योग्य अंग्रेज सेनानायक-अंग्रेज़ों में क्लाइव, सर आयरकूट और मेजर लारेंस आदि अधिकारी बड़े ही योग्य थे। इसके विपरीत फ्रांसीसी सेनानायक डुप्ले, लाली और बुसे इतने योग्य नहीं थे। यह बात भी अंग्रेज़ों की विजय का कारण थी।

8. काऊंट लाली की भूल-कर्नाटक के तीसरे युद्ध में फ्रांसीसी काऊंट लाली ने एक बहुत बड़ी भूल की। उसने अपने साथ बुसे को हैदराबाद से बुला दिया। बुसे के हैदराबाद छोड़ते ही हैदराबाद का निज़ाम अंग्रेजों से मिल गया। परिणामस्वरूप अंग्रेजों की शक्ति बढ़ गई और वे फ्रांसीसियों को पराजित करने में सफल रहे।

प्रश्न 3.
प्लासी तथा बक्सर की लड़ाइयों के सन्दर्भ में यह बताओ कि अंग्रेजों ने बंगाल में अपना राज्य कैसे स्थापित किया ?
अथवा
इलाहाबाद की संधि (1765 ई०) क्या थी ? भारत में अंग्रेजी साम्राज्य की स्थापना में इसका क्या योगदान था ?
उत्तर-
अंग्रेजों को बंगाल में अपना राज्य स्थापित करने के लिए दो महत्त्वपूर्ण लड़ाइयां लड़नी पड़ी। ये लड़ाइयां थींप्लासी की लड़ाई तथा बक्सर की लड़ाई। प्लासी की लड़ाई अंग्रेजों तथा बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला के बीच 1757 ई० में हुई। नवाब सिराजुद्दौला पराजित हुआ और उसके स्थान पर मीर जाफर को बंगाल का नवाब बनाया गया। नये नवाब ने कम्पनी को अनेक व्यापारिक सुविधाएं दीं और बहुत-सा धन भी उपहार के रूप में दिया। 1764 ई० में अंग्रेजों ने बक्सर की लड़ाई में बंगाल के नवाब शुजाउद्दौला ने भी उसकी सहायता की थी। अंग्रेजों ने इस विजय का लाभ 1765 ई० में इलाहाबाद की सन्धि द्वारा उठाया और बंगाल में अपने पांव पक्की तरह से जमा लिए। अंग्रेजों द्वारा बंगाल विजय के लिए लड़े गए दोनों युद्धों तथा इलाहाबाद की सन्धि का वर्णन इस प्रकार है-

प्लासी की लड़ाई-23 जून, 1757 ई० को प्लासी के मैदान में दोनों पक्षों में युद्ध आरम्भ हो गया। युद्ध के आरम्भ होते ही मीर जाफर तथा नवाब के कुछ अन्य सेनापति दूर खड़े होकर युद्ध का तमाशा देखने लगे। अकेला नवाब अधिक देर तक न लड़ सका। युद्ध में उसका एक विश्वसनीय सेनापति मीर मदन भी मारा गया। परिणामस्वरूप उसकी सेना में भगदड़ मच गई और अंग्रेज़ विजयी रहे। नवाब स्वयं प्राण बचाकर मुर्शिदाबाद भाग गया। परन्तु वहां मीर जाफर के पुत्र मीरन ने उसका वध कर दिया। युद्ध के बाद मीर जाफर को बंगाल का नया नवाब बनाया गया। कम्पनी को नये नवाब से 24 परगनों का प्रदेश मिल गया। अंग्रेजों को बहुत-सा धन भी मिला। मीर जाफर ने कम्पनी को लगभग 70 लाख रुपया दिया। इस प्रकार अंग्रेजों के लिए भारत में राज्य स्थापित करने का मार्ग खुल गया। बंगाल जैसे प्रान्त पर प्रभुत्व स्थापित हो जाने से उनके साधन काफ़ी बढ़ गए। किसी इतिहासकार ने ठीक ही कहा है-“इसने (प्लासी की लड़ाई ने) अंग्रेजों के लिए बंगाल और अन्ततः सम्पूर्ण भारत का स्वामी बनाने का मार्ग प्रशस्त किया।”

बक्सर की लड़ाई-23 अक्तूबर, 1764 ई० को मीर कासिम अपनी सेना सहित जिसमें 600 सैनिक थे बंगाल की ओर बढ़ा। उसका सामना करने के लिए अंग्रेजों ने मेजर मुनरो के नेतृत्व में एक सेना भेजी। बक्सर के स्थान पर दोनों में टक्कर हो गई। एक भयंकर युद्ध के पश्चात् मीर कासिम पराजित हुआ और प्राण बचाकर भाग निकला। शाह आलम तथा शुजाउद्दौला ने आत्म-समर्पण कर दिया। इस प्रकार अंग्रेज़ विजयी रहे। अंग्रेजों के लिए इस युद्ध के महत्त्वपूर्ण परिणाम निकले-

  • कम्पनी का बंगाल पर अधिकार हो गया।
  • अंग्रेजों को मुग़ल सम्राट् से बंगाल, बिहार तथा उड़ीसा की दीवानी मिल गई।
  • दीवानी के बदले अंग्रेजों ने मुग़ल सम्राट को 26 लाख रुपये वार्षिक पेंन्शन तथा कड़ा और इलाहाबाद के प्रदेश दिए। इस तरह सम्राट अंग्रेज़ों का कृपा पात्र बन गया।
  • अवध का नवाब शुजाउद्दौला भी इस युद्ध में पराजित हुआ था। उसने अंग्रेजों को 50 लाख रुपये हरज़ाने के रूप में दिए।

इलाहाबाद की सन्धि-अंग्रेज़ों ने अपनी बक्सर की विजय का लाभ 1765 ई० में इलाहाबाद की सन्धि द्वारा उठाया। इसके फलस्वरूप अवध के नवाब ने बक्सर के युद्ध की क्षति पूर्ति के लिए 15 लाख रुपया देना स्वीकार कर लिया। उससे कड़ा और इलाहाबाद के प्रदेश भी ले लिए गए। अवध की रक्षा के लिए अवध में एक अंग्रेज सेना रखने की व्यवस्था की गई जिसका खर्च अवध के नवाब को देना था। अंग्रेज़ अवध में बिना कोई कर दिए व्यापार कर सकते थे। इस प्रकार इलाहाबाद की सन्धि से अवध एक मध्यस्थ राज्य (Buffer State) बन गया। मुग़ल सम्राट शाहआलम से क्लाइव ने अलग समझौता किया। 9 अगस्त, 1765 को उसने शाह आलम से भेंट की। उसने कड़ा तथा इलाहाबाद के प्रदेश शाहआलम को सौंप दिए और इसके बदले में बंगाल, बिहार तथा उड़ीसा की दीवानी के अधिकार प्राप्त कर लिए। यह भी निश्चित हुआ कि कम्पनी सम्राट को 26 लाख रुपया वार्षिक देगी। दीवानी का मिलना कम्पनी के लिए वरदान सिद्ध हुआ। क्लाइव ने एक तीर से दो निशाने किए। उसने मुग़ल सम्राट को भी अपनी मुट्ठी में कर लिया और अंग्रेज़ी कम्पनी को बंगाल की सर्वोच्च शक्ति भी बना दिया।

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प्रश्न 4.
लॉर्ड क्लाइव को भारत में अंग्रेजी साम्राज्य का संस्थापक क्यों कहा जाता है ? किन्हीं पांच बिंदुओं के आधार पर इसे स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
इसमें कोई सन्देह नहीं कि भारत में अंग्रेज़ी राज्य का संस्थापक लॉर्ड क्लाइव था। उससे पूर्व और उसके बाद अंग्रेज़ अधिकारी भारत में आए परन्तु किसी ने ‘क्लाइव’ जैसी निपुणता नहीं दिखाई। उससे पूर्व भारत में कभी अंग्रेजी राज्य स्थापित नहीं हुआ था। बाद में भी जो कुछ हुआ वह क्लाइव द्वारा स्थापित राज्य का विकास मात्र ही था। निम्नलिखित कार्यों के कारण क्लाइव को भारत में ब्रिटिश राज्य का संस्थापक कहा जाता है :-

1. अर्काट की विजय-अर्काट की विजय का सम्बन्ध कर्नाटक के दूसरे युद्ध से है। इस लड़ाई में अंग्रेज़-फ्रांसीसी एकदूसरे के विरुद्ध लड़ रहे थे। फ्रांसीसियों ने अंग्रेज़ों पर पूरा दबाव डाला हुआ था और उनकी विजय निश्चित जान पड़ती थी। यदि इस युद्ध में फ्रांसीसी जीत जाते तो भारत से अंग्रेजी कम्पनी को अपना बोरिया-बिस्तर गोल करना पड़ता। युद्ध में अंग्रेजों की स्थिति बड़ी डावांडोल थी, परन्तु क्लाइव ने युद्ध का पासा ही पलट दिया। उसने अर्काट के घेरे का सुझाव दिया। अर्काट पर अंग्रेजों का अधिकार होते ही फ्रांसीसी पराजित हुए और दक्षिण में अंग्रेज़ी प्रभाव नष्ट होने से बच गया।

2. प्लासी की विजय-प्लासी की विजय भारत में अंग्रेजी साम्राज्य का द्वार माना जाता है। इस विजय के कारण अंग्रेजों का प्रभाव बढ़ गया। बंगाल का नवाब उनके हाथों की कठपुतली बन गया। वे जिसे चाहते, बंगाल का नवाब बना सकते थे। इस विजय का एकमात्र श्रेय क्लाइव को ही जाता है। इस विजय से दो लाभ पहुंचे। एक तो बंगाल अंग्रेजी साम्राज्य की आधारशिला बन गया। दूसरे, बंगाल के धन के कारण अंग्रेज़ भारत में फ्रांसीसी शक्ति को नष्ट करने में पूर्णतया सफल रहे।

3. दीवानी की प्राप्ति-दक्षिण और बंगाल में अंग्रेजी प्रभाव बढ़ना ही साम्राज्य की स्थापना के लिए काफ़ी नहीं था। कर इकट्ठा करने के लिए अधिकार प्राप्त होना शासन का महत्त्वपूर्ण तत्त्व माना जाता है। कहते हैं, “शासक वही जो कर उगाहे।” यह महत्त्वपूर्ण कार्य भी क्लाइव ने ही अंग्रेजों के लिए लिया। उसने 1765 ई० में मुग़ल सम्राट शाह आलम के साथ इलाहाबाद की सन्धि की। इसके अनुसार अंग्रेजों को बंगाल, बिहार और उड़ीसा की दीवानी प्राप्त हो गई। दीवानी से अभिप्राय यह था कि उन्हें इन प्रान्तों से भूमि कर उगाहने का अधिकार मिल गया।

4. शाह आलम का संरक्षण-क्लाइव मुग़ल सम्राट शाह आलम को पूर्ण रूप से अंग्रेज़ी सत्ता के प्रभाव के अधीन ले गया। उसने अपनी इच्छानुसार अंग्रेज़ी कम्पनी के लिए अधिकार प्राप्त किए। मुग़ल सम्राट पर अधिकार मात्र ही उस समय बड़ी प्रतिष्ठा की बात मानी गई। इसका अन्य भारतीय शक्तियों पर बड़ा प्रभाव पड़ा।

5. सुयोग्य शासक-एक अच्छा साम्राज्य-निर्माता होने के साथ-साथ एक कुशल प्रशासक भी होता है। क्लाइव में भी ये दोनों गुण विद्यमान थे। उसने कम्पनी के कर्मचारियों को भेंट लेने की मनाही कर दी, उनके निजी व्यापार पर रोक लगा दी और उनका दोहरा भत्ता बन्द कर दिया। इस तरह ज्यों ही कम्पनी शासक के रूप में उभरी, क्लाइव ने उसके स्वरूप को स्थिरता प्रदान की।

सच तो यह है कि क्लाइव ने बड़े क्रम से भारत में अंग्रेज़ी सत्ता स्थापित की। सर्वप्रथम उसने दक्षिण में अंग्रेज़ी प्रभाव की सुरक्षा की, फिर उसने बंगाल पर महत्त्वपूर्ण विजय प्राप्त की और अन्त में कम्पनी की राजनीतिक शक्ति में वृद्धि की। इस तरह उसने राजनीतिज्ञ तथा संगठनकर्ता के रूप में कम्पनी को ठोस रूप प्रदान किया। किसी ने ठीक ही कहा है, “लॉर्ड क्लाइव भारत में अंग्रेजी साम्राज्य का कर्णधार था जिसने न केवल साम्राज्य की नींव ही रखी, बल्कि उसको दृढ़ भी बनाया।”

PSEB 11th Class Physical Education Solutions Chapter 7 टूर्नामैंट

Punjab State Board PSEB 11th Class Physical Education Book Solutions Chapter 7 टूर्नामैंट Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Physical Education Chapter 7 टूर्नामैंट

PSEB 11th Class Physical Education Guide टूर्नामैंट Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
टूर्नामैंट का शब्दकोशीय अर्थ लिखिए। (What is dictionary meaning of a Tournament ?)
उत्तर-
टूर्नामेंट का शब्दकोशी अर्थ है-‘खेल मुकाबले’। ये टूर्नामैंट समय-समय पर अलग-अलग खेलों से सम्बन्धित, अलग-अलग आयोजकों द्वारा करवाए जाते हैं। ये टूर्नामैंट एक खेल रूपी लड़ी है जिसमें भाग लेने वाले को हार या जीत का मौका मिलता है। टूर्नामैंट निश्चित नियमों तथा रणनीति में करवाए जाते हैं जिसमें प्रत्येक सहभागी को इसकी पालना करनी पड़ती है। ये टूर्नामैंट हमारे अन्दर छुपी हुई मृत प्रतिभा को बाहर निकालने का ढंग है। जैसे कि प्राचीन समय में बेरहमी को खेलों द्वारा प्रकाशित किया जाता था तथा किसी एक प्रतियोगी की मौत होने पर ही प्रतियोगिता समाप्त होती थी। परंतु समय के साथ-साथ इन प्रतियोगिताओं की प्रकृति भी बदल गई है। आधुनिक समय में स्पोर्ट्स प्रतियोगिता कुछ नियमों के अनुसार ही खेली जाती है।

प्रश्न 2.
टूर्नामैंट करवाते समय किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए ? (What precautions should be taken while organising a tournament ?)
उत्तर-
टूर्नामैंट करवाते समय ध्यान रखने योग्य बातें—
1. टूर्नामैंट की सफलता सही योजना पर निर्भर करती हैं। किसी टूर्नामैंट का आयोजन करने से पहले अधिकारियों के निम्नलिखित बातों की जानकारी होनी अनिवार्य है—

  • टूर्नामेंट के पहले के काम या कर्तव्य
  • टूर्नामैंट के दौरान काम या कर्त्तव्य
  • टूर्नामेंट के बाद काम या कर्त्तव्य।

2. टूर्नामैंट के पहले के काम या कर्त्तव्य-ये काम टूर्नामैंट की शुरुआत में किए जाते हैं। वास्तव में शारीरिक शिक्षा के अध्यापक या कोच द्वारा तैयार किए फलसफे का रूप होते हैं। ये इस प्रकार हैं

  • टूर्नामैंट के स्थान, तरीका आदि को तय करना तथा योजना, प्रबन्ध तैयार करना।
  • स्वीकृति की योजनाएं तथा प्रबन्धों के लिए वित्तीय सहायता उपलब्ध करवाना तथा नगर निगम से टूर्नामैंट की स्वीकृति लेना।
  • मुख्य ज़रूरतें जैसे कि प्लेफील्ड, साजो-सामान, अधिकारी, रिहायश, भोजन तथा खिलाड़ियों तथा अफसरों के लिए रिफरैशमैंट आदि का प्रबन्ध करना।
  • अलग-अलग कमेटियों का निर्माण करना ताकि वह सुव्यवस्थित तथा सुचारु काम कर सकें।
  • टूर्नामेंट में भाग लेने वाली टीमों से उनके टूर्नामेंट में पहुँचाने का ब्योरा लेना ताकि सुचारू ढंग के साथ फिक्चर और कई और ज़रूरी प्रबन्ध किये जा सकें।

3. टूर्नामैंट के दौरान काम या कर्त्तव्य-ये कर्त्तव्य टूर्नामेंट के शुरू से लेकर अन्तिम दिन तक पूरे किए जाते हैं, ये इस प्रकार हैं—

  • सारे प्रबन्ध खासतौर पर खेल क्षेत्र, साजो-समान आदि की जांच करना।
  • खिलाड़ियों के दूसरे दस्तावेजों की योग्यता की जांच करना।
  • कमेटियों के काम की जांच करते रहना ताकि वह अपनी जिम्मेदारी अच्छी तरह कर सके।
  • खिलाड़ियों और अफसरों के रिफरैशमैंट तथा खाने का प्रबन्ध करना।
  • टीम की स्कोरशीट तथा रिकार्ड पर नज़र रखनी आदि।
  • खिलाड़ियों के लिए डॉक्टरी सहायता प्रदान करनी।
  • टूर्नामैंट की प्रगति के बारे में घोषणा करनी।
  • खिलाड़ियों तथा अधिकारियों के ठहराव के स्थान से उनके आने तथा जाने के लिए ट्रांसपोर्ट की व्यवस्था करनी।

4. टूर्नामैंट के बाद के काम या कर्त्तव्य-जो काम टूर्नामेंट के बाद किए जाते हैं। वे इस प्रकार हैं—

  • जीती हुई टीमों को मैडल तथा ट्राफियां बाँटना।
  • टूर्नामैंट के प्रबन्ध में इस्तेमाल किए सामान तथा बचे हुए सामान को वापिस करना।
  • टूर्नामेंट की सफलता का प्रेस नोट तैयार करवाना।
  • अधिकारियों तथा ठेकेदारों के शेष आदि अदा करना।
  • टीमों के रिकार्ड का प्रबन्ध करना।
  • उधार लिए जाने पर साजो-सामान और अन्य कीमती सामान वापिस करना।
  • अथॉरिटी को अन्तिम रिपोर्ट सौंपना आदि काम शामिल होते हैं।

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प्रश्न 3.
इंट्राम्यूरल खेल प्रतियोगिता क्या है ? (What is Interamural Tournament ?)
उत्तर-
इंट्राम्यूरल शब्द लेटिन भाषा के शब्द ‘इंट्रा’ जिससे भाव है-‘अन्दर’ तथा ‘म्यूरल’ जिस से भाव है’दीवार’ से लिया जाता है अर्थात् वह गतिविधियां तथा टूर्नामेंट जोकि कैंपस या संस्थाओं के अन्दर आयोजित किए जाते हैं, उन्हें इंट्राम्यूरल कहा जाता है। इनमें किसी एक कैंप के सभी विद्यार्थी भाग लेते हैं सिर्फ विद्यार्थियों की संख्या के अनुसार उन्हें अलग-अलग ग्रुपों में बांट लिया जाता है। इन गतिविधियों का मुख्य उद्देश्य संस्था के भीतर स्वै-इच्छित भागीदारी, हौंसले, मार्गदर्शन आदि का विकास करना है।

प्रश्न 4.
निम्नलिखित पर नोट लिखें : (Write notes on the following.)
(i) खेल प्रबंध (Sports Management)
(ii) चैलेंज टूर्नामैंट (Challenges Tournaments)
(iii) सीढ़ीनुमा साइक्लिक विधि (Ladder and Cyclic Method)
उत्तर-
(i) खेल प्रबंध-बढ़िया खेल मुकाबलों के लिए खेल प्रबंध का होना बहुत आवश्यक है। यदि खेल प्रबन्ध सुचारु ढंग से न किया जाए तो सारा खेल प्रोग्राम खराब हो सकता है इसीलिए योग्य अधिकारियों की जरूरत पड़ती है। खेल के स्तर को देखते हुए अलग-अलग समितियाँ बनाई जाती हैं। जैसे—

  1. टूर्नामैंट प्रधान
  2. टूर्नामैंट कमेटी
  3. रिफ्रेशमैंट कमेटी
  4. वित्त सचिव
  5. सचिव
  6. कन्वीनर
  7. ज्यूरी ऑफ अपील कमेटी आदि।

इन अधिकारियों को खेल के नियम, प्रतियोगिताओं का स्तर क्या है ? खेल कार्यक्रम के क्या उद्देश्य होंगे ? के बारे में पूरा ज्ञान होना चाहिए। इसके अलावा जो खेल अधिकारी टूर्नामैंट करवा रहे होते हैं। उन्हें अपने फैसलों में निष्पक्ष होना चाहिए।

(ii) चैलेंज टूर्नामैंट-चैलेंज से भाव है-चुनौती देना। ये मुकाबला तब करवाया जाता है जब खिलाड़ी अपने से ताकतवर खिलाड़ी को चुनौती देता है और ये टूर्नामैंट फिर चलता रहता है। इस टूर्नामेंट में एक-एक खिलाड़ी या दोदो खिलाड़ी दोनों तरफ होते हैं। टेबल टेनिस बॉक्सिंग, बैडमिंटन इस टूर्नामैंट की उदाहरणें हैं। चैलेंज टूर्नामेंट के दो ढंग होते हैं-

  1. सीढ़ी,
  2. मीनार।

(iii) सीढ़ीनुमा तथा साइक्लिक विधि-इस तरह के तरीके में इस बात का ध्यान रखा जाता है कि सभी टीमों को घड़ी की सुई की भांति घुमाया जाता है और अगर भाग लेने वाली टीमों की संख्या दो से भाग होने वाली है। जैसे 4.6.8 आदि। नम्बर 1 वाली टीम को एक स्थान पर रहने देना चाहिए व शेष टीमें भी अपने क्रमानुसार घूमती हैं। परन्तु अगर टीमों की कुल संख्या दो से भाग होने वाली न हो जैसे 5, 7, 9 इत्यादि तो बाई को तय कर लिया जाता है व सभी टीमों को घड़ी की सुई की भांति घूमना पड़ता है।
8 टीमों का कार्यक्रम (Fixture of 8 Teams)
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स्टेयर केस तरीका (Stair Case Method)—यह भी एक अच्छा तरीका है। इसमें सीढ़ी की तरह का कार्यक्रम तैयार किया जाता है। सबसे पहले नम्बर एक टीम को शेष टीमों के साथ मैच के लिए लिखा जाता है। लेकिन नम्बर दो टीम से ही शुरू होते हैं। दूसरी सीढ़ी में नम्बर दो वाली टीम का मैच नम्बर तीन वाली टीम से शुरू होकर आखिर तक चलता है। इस तरह जितनी सीढ़ी नीचे चली जाती है टीम नम्बर बढ़ जाता है। 9 टीमों का कार्यक्रम इस तरह बनता है।
(Fixture of Teams)
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प्रश्न 5.
बाई से क्या अभिप्राय है ? इसको ‘सिंगल नॉक आऊट सिस्टम’ में कैसे निकाला जाता है ? (What is meant by a Bye ? How is it drawn or decided in a single knock out system ?)
उत्तर-
बाई से अभिप्राय है कि जिस टीम को बाई दी जाती है, वह टीम पहले राउंड में मैच नहीं खेलती। यदि टीमों की संख्या 22 (पावर आफ टू) है तो किसी टीम को बाई देने की जरूरत पड़ती है। अब यह देखना है कि बाई कितनी और कैसे दी जाएँ। बाई देने के लिए पर्चियां डाली जाती है।
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उपरोक्त फिक्सचर में किसी भी टीम को बाई (Bye) नहीं दी गई क्योंकि टीमों की संख्या 22 (Power of Two) है। इसी तरह यदि कुल टीमें 11 हैं तो पहले भाग में टीमों की संख्या = 6 तथा दूसरे भाग में = 5
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अब प्रश्न यह है कि 11 टीमें यदि प्रतियोगिता में हैं तो कितनी बाइयां देनी पड़ेगी ?
कुल टीमें (N – 11)
अगली सम संख्या (Next in Power or two)
2 × 2 × 2 × 2 = 16
(ईवन नम्बर) 2, 4, 8, (16)
इस फिक्सचर में कुल टीमें = 16 (16 – 11)= 5 बाइयां देनी पड़ेंगी।
यदि यह टूर्नामेंट पिछले साल करवाया गया था तो उसकी पहले और दूसरे दर्जे की टीम को अलग-अलग अर्द्ध में रखकर बाइयाँ देनी हैं। बाकी बाइज़ लॉटरी व्यवस्था द्वारा देनी पड़ेगी।
बाइज देने की विधि-एक कागज़ पर टीमों की कुल संख्या लिखकर (Lots) लॉटरी द्वारा बाइज़ बाँटनी चाहिए।

  1. पहली बाई (Bye) दूसरे भाग की अंतिम टीम को देनी चाहिए।
  2. दूसरी बाई (Bye) पहले भाग की टीम को देनी चाहिए।
  3. तीसरी बाई (Bye) पहले भाग की अंतिम टीम को देनी चाहिए।
  4. चौथी बाई (Bye) पहले भाग की अंतिम टीम को देनी चाहिए। इस क्रम से बाइज़ की बाँट करनी चाहिए। उदाहरण के तौर पर यदि 11 टीमें भाग ले रही हैं तो फिक्सचर में बाई निम्नांकित अनुसार दी जायेगी :

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प्रश्न 6.
यदि सिंगल नॉक आऊट साइक्लिक विधि में 19 टीमें भाग लेती हैं तो कितनी बाइयां दी जाएगी और कितने मैच होंगे ?
(If 19 teams take part in a single knock out systein tournament then how many boxes will be given and how many matches will be played ?)
उत्तर-
इसमें 13 बाइयां दी जाएगी और 2 Half बनाई जाएगी। . . मैचों की कुल संख्या = 10 होगी।

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प्रश्न 7.
मिश्रित साइक्लिक विधि को कितने भागों में बांटा जाता है ? (How many parts is mixed tournament divided into ?).
उत्तर-
मिश्रित टूर्नामैंट-जब टूर्नामेंट में खेलने वाली टीमों की संख्या अधिक होती है तो उस समय ये मैच करवाए जाते है। इसमें टीमों को पूलों में बांट दिया जाता हैं तथा ग्रुपों की टीमें लीग या नॉक आऊट के आधार पर अपने ही पूल में खेलती है। अपने पूल में पूल के विजेता का फैसला कर लिया जाता है। फिर पूलों के विजेता आपस में नॉक आऊट या लीग टूर्नामैंट (समय तथा स्थान के अनुसार) खेलकर विजेता का फैसला किया जाता है। यदि बड़े टूर्नामैंट हैं तो राज्य या देश को जोनल स्तर पर बाँट लिया जाता है। इस तरह एक ज़ोन की टीमें आपस में भिड़कर अपने जोन के चैंपियन का . फैसला करती हैं। इनसे पैसे और समय की बचत होती है।

प्रश्न 8.
नॉक आऊट पर लीग साइक्लिक विधि के लाभ तथा हानियों के बारे में लिखो। (Write about the merits and demerits of knock out and league Tournaments.)
उत्तर-
नॉक आऊट के लाभ और हानियाँसिंगल नाक आऊट तरीके के अच्छे पहलू (Good points of Single knock out system)-सिंगल नाक आऊट प्रणाली के अच्छे पहलू इस तरह के हो सकते हैं—

  1. इस तरह के मुकाबलों में खर्च बहुत कम होता है क्योंकि हारने वाली टीम मुकाबले से बाहर हो जाती है।
  2. खेलों का स्तर ऊपर उठाने व अच्छा खेल बनाने में मदद मिलती है क्योंकि प्रत्येक टीम मुकाबले से बाहर होने पर बचने के लिए अच्छे खेल का प्रदर्शन करती है।
  3. मुकाबलों के लिए समय भी बहुत कम लगता है व मुकाबले कम-से-कम समय में खत्म हो जाते हैं।
  4. दूसरी प्रणाली की अपेक्षा हमें अधिकारियों की भी बहुत कम ज़रूरत होती है।

सिंगल नाक आऊट तरीके के दोषपूर्ण पहलू (Bad points of single knock out system)-सिंगल नाक आऊट प्रणाली के कुछ बुरे पहलू भी हैं। जिसकी चर्चा हम निम्नलिखित के अनुसार कर सकते हैं—

  1. अच्छी-से-अच्छी टीम भी कई बार कमजोर टीम से पराजित हो जाती है और इस तरह अच्छी टीम का खेल देखने को नहीं मिलता है।
  2. अचानक पराजित होने वाली टीम से पूर्ण न्याय नहीं होता है। कई बार टीम कई वास्तविक कारणों से पराजित हो जाती है।
  3. खेलों का उत्साह अच्छी टीम से पराजित होने के साथ ही खत्म हो जाता है।
  4. प्रत्येक टीम पर हार का एक मनोवैज्ञानिक दबाव जैसा बना रहता है जिस कारण टीमें भयभीत होकर खेलती हैं।

लीग टूर्नामैंट के लाभ (Advantages of league tournament)—लीग टूर्नामेंट के लाभ इस तरह हैं—

  1. श्रेष्ठ टीम ही टूर्नामेंट में विजयी होती है।
  2. मैच खेलने के लिए दूसरी टीम के जीतने का इन्तज़ार नहीं किया जाता है।
  3. प्रैक्टिस के लिए या खेल में सुधार के लिए अच्छा तरीका है।
  4. खेल लोकप्रिय करने का अच्छा तरीका है।
  5. दर्शकों को खेल देखने के लिए बहुत मैच मिल जाते हैं।
  6. अधिकारियों को किसी टीम के चुनाव के लिए खिलाड़ियों का खेल देखने का बहुत समय मिलता है व टीम चुनाव ठीक होता है।
  7. टीमों के खिलाड़ी भी लम्बे समय तक एक-दूसरे के सम्पर्क में रहते हैं जिससे एक-दूसरे को समझने का अवसर मिलता है।

लोग टूर्नामेंट के नुकसान (Disadvantages of league tournament)—

  1. कमजोर टीम प्रत्येक बार हारने के कारण खेल में अपनी रुचि नहीं दिखाती हैं जिससे मुकाबले का मज़ा किरकिरा हो जाता है।
  2. इस तरह के मुकाबले में खर्च बहुत अधिक होता है।
  3. लीग मुकाबले के लिए प्रबन्ध बहुत अधिक करना पड़ता है समय भी बहुत लगता है।
  4. खिलाड़ियों को बहुत दिन तक अपने घर से दूर रहना पड़ता है।

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Physical Education Guide for Class 11 PSEB टूर्नामैंट Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

प्रश्न 1.
‘खेल मुकाबले जिसमें अलग-अलग टीमों में मुकाबले के कई चक्र चलते हैं।’ इसको क्या कहते हैं ?
उत्तर-
इसको टूर्नामैंट कहते हैं।

प्रश्न 2.
यह किसकी किसमें हैं ?
(a) नाक आऊट टूर्नामैंट
(b) राउंड रोबिन या लीग टूर्नामेंट
(c) मिले-जुले टूर्नामैंट
(d) चैलेज टूर्नामैंट।
उत्तर-
टूर्नामैंट।

प्रश्न 3.
टूर्नामैंट के लिए ध्यान देने योग्य बातें कौन-सी हैं ?
(a) टूर्नामैंट करवाने के लिए आवश्यक समय होना चाहिए
(b) टूर्नामैंट करवाने के लिए आवश्यक समान का प्रबंध टूर्नामेंट से पहले कर लेना चाहिए।
(c) टूर्नामैंट में हिस्सा लेने वाली टीमों की जानकारी टूर्नामैंट शुरू होने से पहले लेनी चाहिए।
(d) टूर्नामेंट में खर्च होने वाली धनराशि भी पहले से ही निश्चित होनी चाहिए ताकि धन की कमी के कारण टूर्नामेंट में कोई विघटन न हो।
उत्तर-
उपरोक्त सभी।

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प्रश्न 4.
नाक आऊट टूर्नामैंट में 19 टीमों में कितनी बाइयां होती हैं?
उत्तर-
नाक आऊट टूर्नामैंट में 19 टीमों में 13 बाइयां होती हैं।

प्रश्न 5.
(a) किस तरह के मुकाबलों में खर्च बहुत कम होता है। क्यों जो हारने वाली टीम मुकाबले से बाहर हो जाती है।
(b) खेलों का स्तर बहुत ऊंचा होता है और अच्छी खेलों को तरक्की देने में सहायता मिलती है क्योंकि हर टीम मुकाबले से बाहर होने से बचने के लिए अच्छी से अच्छी खेल का प्रदर्शन करती है।
(c) मुकाबलों के लिए समय भी बहुत थोड़ा लगता है। मुकाबलें कम से कम समय में खत्म हो जाते हैं।
(d) दूसरे सिस्टम की बदौलत इसमें थोड़े अधिकारियों की जरूरत होती है।
उत्तर-
नाक-आऊट।

प्रश्न 6.
लीग टूर्नामैंट की हानियाँ क्या हैं ?
(a) कमज़ोर टीम प्रत्येक बार हारने के कारण खेल में अपनी रुचि नहीं दिखाती है। जिससे मुकाबले का मजा किरकिरा हो जाता है।
(b) इस तरह के मुकाबले में खर्च बहुत अधिक होता है।
(c) लीग मुकाबले के लिए प्रबन्ध अधिक करना पड़ता है। समय भी बहुत लगता है।
(d) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(d) उपरोक्त सभी।

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प्रश्न 7.
टूर्नामैंट कितने प्रकार के होते हैं ?
उत्तर-
टूर्नामैंट चार प्रकार के होते हैं।

प्रश्न 8.
खेल प्रबंधन के लिए कोई दो कमेटियों के नाम लिखो।
उत्तर-

  1. टूर्नामैंट कमेटी
  2. रिफ्रेशमैंट कमेटी।

प्रश्न 9.
चैलेंज टूर्नामैंट में नतीजा निकालने के कौन-से दो तरीके अपनाए जा सकते हैं ?
उत्तर-

  1. सीढ़ीनुमा
  2. साइक्लिग ढंग।

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अति छोटे उत्तरों वाले प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
टूर्नामैंट का शब्दकोशी अर्थ क्या है ?
उत्तर-
टूर्नामैंट का शब्दकोशी अर्थ है, “खेल मुकाबले, जिसमें अलग-अलग टीमों के बीच मुकाबले के कई राउंड चलते हैं।” टूर्नामैंट में अलग-अलग टीमों के बीच खेल मुकाबले एक निर्धारित प्रोग्राम अनुसार करवाए जाते हैं।

प्रश्न 2.
टूर्नामैंट करवाते समय कौन-सी दो बातों का ध्यान रखना चाहिए ?
उत्तर-

  1. टुर्नामैंट को करवाने के लिए आवश्यक समय होना चाहिए।
  2. टूर्नामेंट में हिस्सा ले रही टीमों की जानकारी टूर्नामैंट शुरू होने से पहले होनी चाहिए।

प्रश्न 3.
इंटरा-म्यूरल खेल मुकाबले क्या हैं ?
उत्तर-
जब किसी एक स्कूल के विद्यार्थी क्लास या हाऊस बना के आपस में खेलते हैं तो उसको इटरा-म्युरल खेल गुकाबले कहा जाता है।

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प्रश्न 4.
टूर्नामैंट की किस्में लिखों।
उत्तर-
(a) नॉक आऊट टूर्नामैंट
(b) लीग टूर्नामेंट
(c) मिले-जुले टूर्नामेंट
(d) चैलेंज टूर्नामैंट।

छोटे उत्तरों वाले प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
कन्सोलेशन टूर्नामैंट क्या होते हैं ?
उतर-
पहले राऊंड में हारने वाली टीमों को एक और अवसर देने के लिये जो ढंग अपनाया जाता है उसको onsolation कहा जाता है। इस तरह करने से अच्छी टीम को एक बार हारने के बाद दोबारा खेलने का अवसर दिया जाता है। यह टूर्नामैंट दो प्रकार के होते हैं—

  1. पहली किस्म का कन्सोलेशन
  2. दूसरी किस्म का कन्सोलेशन।

प्रश्न 2.
टूर्नामैंट करवाने के लिए कौन-कौन सी बातों का ध्यान रखना चाहिए ?
उत्तर-

  1. टूर्नामैंट करवाने के लिए ज़रूरत के समान का प्रबंध टूर्नामेंट से पहले कर लेना चाहिए।
  2. टूर्नामेंट करवाने के लिए जरूरी समय होना चाहिए।
  3. टूर्नामेंट में हिस्सा ले रही टीमों की जानकारी टूर्नामेंट शुरू होने से पहले ले लेनी चाहिए।

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प्रश्न 3.
नाक आऊट टूर्नामैंट के लाभ लिखो।
उत्तर-

  1. इस तरह के मुकाबलों में खर्च बहुत कम होता है। क्योंकि हारने वाली टीम मुकाबले से बाहर हो जाती है।
  2. खेलों का स्तर ऊपर उठाने व अच्छा खेल बनाने में मदद मिलती है। क्योंकि प्रत्येक टीम मुकाबले से बाहर होने पर बचने के लिए अच्छे खेल का प्रदर्शन करती है। .
  3. मुकाबलों के लिए समय भी बहुत कम लगता है व मुकाबले कम-से-कम समय में खत्म हो जाते हैं।

प्रश्न 4.
लीग टूर्नामेंट की हानियां लिखो।
उत्तर-

  1. इस तरह के मुकाबले में खर्च बहुत अधिक होता है।
  2. लीग मुकाबले के लिए प्रबन्ध बहुत अधिक करना पड़ता है। समय भी बहुत लगता है।
  3. खिलाड़ियों को बहुत दिन तक अपने घर से दूर रहना पड़ता है।

प्रश्न 5.
टूर्नामैंट की किस्में लिखें।
उत्तर-
टूर्नामैंटों की किस्में (Kinds of Tournaments)-टूर्नामैंट कई प्रकार के करवाए जाते हैं। इसलिए टूर्नामैंट की किस्मों का ज्ञान बहुत ज़रूरी हो जाता है। इनके बिना न तो मुकाबले में भाग लेने का ही मज़ा आता है और न ही देखने में आनन्द प्राप्त होता है। अक्सर टूर्नामैंट निम्नलिखित किस्मों के होते हैं—

  1. नाक आऊट टूर्नामैंट (Knock out Tournament)
  2. राऊंड रोबिन या लीग टूर्नामेंट (Round Robin or league Tournaments)
  3. मिले जुले टूर्नामैंट (Combination Tournaments)
  4. चैलेंज टूर्नामैंट (Challenge Tournaments)

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प्रश्न 6.
सीडिंग क्या होती है ?
उत्तर-
अच्छी टीमों के लिए सीडिंग (Seeding of Good Teams) अच्छी टीमों को उनकी पहले से बनी अच्छी साख के अनुसार सीडिंग दी जाती है। सीडिंग हमेशा पावर ऑफ टू होनी चाहिए। इनके Lots नहीं निकाले जाते बल्कि इनको अलग-अलग गुणों में रखा जाता है। सामान्य तौर पर बाई Second टीमों को ही दी जाती है।

मान लो कि हमें 11 टीमों का Seedings तरीके से कार्यक्रम तय करना है व सीडिंग 4 टीमों की करनी है।
इसलिए हम दो टीमों को ऊपर हॉफ में रखेंगे व दो टीमों को नीचे वाले हॉफ में रखेंगे। कार्यक्रम में हमें Bye नियम के अनुसार पांच टीमों को देनी पड़ती है। इस कारण यह बाइयां पहले चारों Second वाली टीमों को दी जाएंगी और एक किसी अन्य टीम को दी जाएगी।

प्रश्न 7.
मिश्रित टूर्नामैंट क्या होते हैं ?
उत्तर-
मिश्रित टूर्नामैंट-जब टूर्नामेंट में खेलने वाली टीमों की संख्या अधिक होती है तो मिश्रित टूर्नामेंट करवाए जाते हैं। मिश्रित टूर्नामेंट में टीमों को पूलों में बांटा जाता हैं। ये ग्रुपों की टीमें लीग या नॉक आऊट के आधार पर अपने ही पूल में खेलती है। अपने पूल में पूल के विजेता का फैसला कर लिया जाता है। उसके बाद पूलों के विजेता आपस . में नॉक आऊट या लीग टूर्नामैंट (समय तथा स्थान के अनुसार) खेलकर विजेता का फैसला किया जाता है।

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प्रश्न 8.
बैगनाल वाइल्ड टूर्नामैंट क्या होते हैं ?
उत्तर-
बैगनाल वाइल्ड टूर्नामेंट (Begnal Wild Tournament)-बैगनाल वाइल्ड टूर्नामैंट भी अपनी किस्म का एक अनोखा टूर्नामैंट है। यह दूसरे ढंगों से कुछ भिन्न है। इस टूर्नामैंट की एक खास विशेषता है कि प्रतियोगिता में तीन स्थानों तक पोजीशनें निश्चित होती हैं—

  • प्रथम स्थान (First Place)
  • द्वितीय स्थान (Second Place)
  • तृतीय स्थान (Third Place)

जो टीम सभी टीमों को बिना हारे जीत लेती है, वह मुकाबले में प्रथम स्थान प्राप्त करती है।
दूसरा स्थान उस टीम को दिया जाता है, जो टीम पहले स्थान पर रहने वाली टीम से हारती है और वे फिर सारी टीमें केवल उस टीम को छोड़कर जो पहले स्थान पर रहने वाली टीम के साथ फाइनल में खेली थीं, परस्पर मैच खेलती है। इस प्रकार जो टीम अंत में पहुंचती है, वह उस टीम के साथ दूसरे स्थान के लिए अपना फाइनल मैच खेलती है, जोकि पहले स्थान पर रहने वाली टीम से फाइनल में हारी थी।

तीसरे स्थान के लिए मुकाबला दूसरे स्थान पर रहने वाली टीम से जो टीमें हारती हैं, वे परस्पर मैच खेलती हैं परन्तु दूसरे स्थान पर रहने वाली टीम से जो टीम अंत में हारती हैं, वह इसमें भाग नहीं लेतीं, बल्कि वह टीम अंत में ही इनमें से विजेता टीम के साथ अंतिम मैच खेलती है। . उदाहरणस्वरूप-बैगनाल वाइल्ड टूर्नामेंट के तरीके द्वारा किये गये फ़िक्सचर का एक नमूना इस प्रकार हो सकता है—

12 टीमों का बैगनाल वाइल्ड फ़िक्सचर
(Fixture for Bengnal Wild Tournament)
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उपरोक्त फ़िक्सचर के अनुसार टीमों की स्थिति (Position) इस प्रकार रही—
प्रथम स्थान = नम्बर 4 टीम
द्वितीय स्थान = नम्बर 6 टीम
तृतीय स्थान = नम्बर 12 टीम

प्रश्न 9.
टीमों का फिक्सचर बनाएं।
उत्तर-
9 टीमों का फिक्सचर (Fixture of Nine Teams)—
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बड़े उत्तर वाला प्रश्न (Long Answer Type Question)

प्रश्न-
कन्सोलेशन टूर्नामैंट क्या है ? यह कितनी किस्मों के होते हैं ?
उत्तर-
कन्सोलेशन टूर्नामैंट (Consolation Tournament)—पहले राऊंड में हारने वाली टीमों को एक और अवसर देने के लिए जो तरीका अपनाया जाता है उसको Consolation कहा जाता है। इस तरह करने के साथ अच्छी टीम को एक बार हारने के बाद पुनः खेलने का अवसर दिया जाता है। यह टूर्नामैंट कई तरह के होते हैं।

  1. पहली तरह का कन्सोलेशन
  2. दूसरी तरह का कन्सोलेशन

अब इन दोनों तरह के कन्सोलेशन के कार्यक्रम तय करने का तरीका जान लेना जरूरी है
1. पहली तरह का कन्सोलेशन (Consolation of First Type)—इसमें प्रत्येक टीम को खेलने के दो अवसर मिलते हैं जो टीमें पहले राऊंड में हार जाती हैं वह फिर आपस में खेलती हैं। इस तरह के कार्यक्रम बनाने वाले को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि वह टीमें जिनको नियमित राऊंड में बाई दी जाती है उसको पुनः बाई नहीं दी जाए।
उदाहरण के तौर पर टूर्नामेंट में नौ टीमें भाग ले रही हैं व इस टूर्नामेंट के लिए पहली तरह का कॉन्सोलेशन का कार्यक्रम बनाया जाता है तो इस तरह बनाया जाएगा।
टीमों की संख्या = 9
बाइयों की संख्या = 16-9 = 7
ऊपर वाले हॉफ में टीमें = 5
नीचे वाले हॉफ में टीमें = 4
9 टीमों का कार्यक्रम इस तरह होगा—
नियमित राऊंड (Regular Round)
PSEB 11th Class Physical Education Solutions Chapter 7 टूर्नामैंट 8

2. दूसरी तरह का कन्सोलेशन (Consolation of Second Type) दूसरी किस्म के कन्सोलेशन में जो टीम किसी भी राऊंड में हारती है वह फिर दोबारा खेलती है। इस तरह हारने वाली टीम को एक अवसर और दिया जाता है। जो टीमें रेगुलर राऊंड में परस्पर खेलती हैं उनको इस प्रकार के कन्सोलेशन फिक्सचर में पहले राऊंड में नहीं रखा जाना चाहिए। इस प्रकार के फिक्सचर बनाने के लिए दो तरीके अपनाए जाते हैं। अब देखते हैं कि पहली विधि अनुसार फिक्सचर किस प्रकार बनेगा।
दूसरी किस्म के कन्सोलेशन की फिक्सचर
PSEB 11th Class Physical Education Solutions Chapter 7 टूर्नामैंट 9
पहले राऊंड में हारने वाली टीमें = 1,3,6,7
दूसरे राऊंड में हारने वाली टीमें = 4,8
तीसरे राऊंड में हारने वाली टीमें = 2

PSEB 10th Class Home Science Solutions Chapter 1 गृह व्यवस्था व अच्छा प्रबन्धक

Punjab State Board PSEB 10th Class Home Science Book Solutions Chapter 1 गृह व्यवस्था व अच्छा प्रबन्धक Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 10 Home Science Chapter 1 गृह व्यवस्था व अच्छा प्रबन्धक

PSEB 10th Class Home Science Guide गृह व्यवस्था व अच्छा प्रबन्धक Textbook Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
गृह व्यवस्था की परिभाषा लिखो।
अथवा
गृह व्यवस्था से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
गृह व्यवस्था घर के साधनों का सही ढंग से प्रयोग करके पारिवारिक आवश्यकताओं को पूर्ण करने की कला है। एक अच्छा गृह प्रबन्धक साधनों के कमसे-कम प्रयोग से भी पारिवारिक उद्देश्यों को प्राप्त कर लेता है।

प्रश्न 2.
घर और मकान में क्या अन्तर है?
उत्तर-
मकान मिट्टी, सीमेन्ट, ईंटों, पत्थर आदि का बना ढांचा होता है जो हमें बारिश, तूफान, गर्मी, सर्दी, जंगली जानवर और चोर डाकुओं से बचाता है। परन्तु घर एक परिवार के सदस्यों की भावनाओं का सूचक है। जहाँ परिवार के सभी सदस्य इकट्ठे होकर अपनी समस्याओं का समाधान ढूंढ कर जीवन सुखमयी बनाते हैं।

प्रश्न 3.
लक्ष्य से आप क्या समझते हो?
अथवा
पारिवारिक लक्ष्य क्या होते हैं?
उत्तर-
लक्ष्य परिवार के सदस्यों के वे कार्य होते हैं जिनको वह अकेले या मिलकर करते हैं। प्रत्येक परिवार के कुछ-न-कुछ लक्ष्य अवश्य निर्धारित होते हैं जो समय-समय पर बदलते रहते हैं।

प्रश्न 4.
परिवार के साधनों को मुख्य रूप से कौन-से दो भागों में बांटा जा सकता है?
उत्तर-
परिवार के साधनों को दो मुख्य भागों में विभाजित किया जा सकता है

  1. मानवीय साधन जैसे काम करने की योग्यता, कुशलता और स्वास्थ्य।
  2. भौतिक साधन जैसे समय, पैसा, जायदाद आदि।

PSEB 10th Class Home Science Solutions Chapter 1 गृह व्यवस्था व अच्छा प्रबन्धक

प्रश्न 5.
व्यक्ति की योग्यता तथा रुचि कौन-से साधन हैं और कैसे?
उत्तर-
योग्यता और रुचि महत्त्वपूर्ण मानवीय साधन हैं क्योंकि ये साधन मनुष्य में समाए हुए होते हैं और मनुष्य का ही भाग हैं। इनके अस्तित्व के बिना किसी भी भौतिक साधन का योग्य प्रयोग असम्भव है।

प्रश्न 6.
समय और शक्ति कौन-से साधन हैं?
उत्तर-
समय एक भौतिक साधन है और प्रत्येक व्यक्ति के पास रोज़ाना 24 घण्टे का समय होता है। शक्ति एक मानवीय साधन है क्योंकि यह मनुष्य का भाग है जो कि भिन्न-भिन्न व्यक्तियों में भिन्न-भिन्न होती है। इन साधनों के सदुपयोग से पारिवारिक लक्ष्यों को प्राप्त किया जा सकता है।

छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 7.
घर के साधनों में समय और शक्ति की व्यवस्था महत्त्वपूर्ण कैसे है?
उत्तर-
समय और शक्ति ऐसे साधन हैं जिनको बचाकर नहीं रखा जा सकता। इनकी उपयोगिता इनके सही प्रयोग से जुड़ी हुई है। जिस परिवार में समय और परिवार के सदस्यों की शक्ति को सही ढंग से प्रयोग में लाया जाता है वह परिवार अपने लक्ष्यों की प्राप्ति आसानी से कर लेता है।

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प्रश्न 8.
अच्छे गृह प्रबन्धक में काम करने का उत्साह तथा निर्णय लेने की शक्ति का होना क्यों ज़रूरी है?
उत्तर-
अच्छे गृह प्रबन्धक में काम करने का उत्साह इसलिए आवश्यक है कि इससे परिवार के शेष सदस्य भी काम करने के लिए उत्साहित होते हैं। गृह प्रबन्धक की फैसला लेने की शक्ति से समय की बचत होती है और परिवार के शेष सदस्यों को प्रतिनिधित्व मिलता है।

प्रश्न 9.
अच्छे प्रबन्धक को गृह व्यवस्था की जानकारी क्यों जरूरी है?
उत्तर-
अच्छी गृह व्यवस्था का मुख्य उद्देश्य लक्ष्यों की पूर्ति करना है। इन लक्ष्यों की पूर्ति के लिए गृह प्रबन्धक के पास योग्यता और कुशलता का होना अति आवश्यक है। योग्यता और कुशलता प्राप्त करने के लिए गृह व्यवस्था की प्रारम्भिक जानकारी का होना अति आवश्यक है। इस जानकारी से ही यह गृह प्रबन्धक अपने परिवार के मानवीय और भौतिक साधनों का उचित प्रयोग करने के योग्य हो सकता है। इस तरह वह पारिवारिक लक्ष्यों की पूर्ति कर सकता है।

प्रश्न 10.
अच्छे प्रबन्धक में काम करने का उत्साह होना क्यों जरूरी है?
उत्तर–
पारिवारिक लक्ष्यों की पूर्ति के लिए गृह प्रबन्धक में काम करने का उत्साह होना इसलिए आवश्यक है क्योंकि घर में एक प्रबन्धक की भूमिका एक नेता वाली होती है। यदि प्रबन्धक में काम करने का उत्साह होगा तो शेष सदस्य भी घर के काम में योगदान देंगे। एक आलसी गृह प्रबन्धक घर के अन्य सदस्यों को भी आलसी बना देता है जिससे घर का सारा वातावरण खराब हो जाता है और परिवार अपने लक्ष्यों की पूर्ति नहीं कर सकता।

प्रश्न 11.
घर के अच्छे प्रबन्ध सम्बन्धी जानकारी कहां से ली जा सकती है?
उत्तर-
घर का अच्छा प्रबन्ध कोई बच्चों का खेल नहीं है। इसलिए गृहिणी को घर के सभी साधनों को सूझ-बूझ से प्रयोग करने की जानकारी का होना अति आवश्यक है। पुराने समय में यह जानकारी परिवार के बड़े-बूढ़ों से प्राप्त हो जाती थी, परन्तु आजकल इस जानकारी के लिए और साधन भी हैं। स्कूलों और कॉलेजों में गृह विज्ञान का विषय पढ़ाया जाता है जहाँ गृह प्रबन्ध से सम्बन्धित ज्ञान प्रदान किया जाता है। इसके अतिरिक्त रेडियो, टेलीविज़न, समाचार-पत्र, मैगज़ीन आदि से अच्छे गृह प्रबन्ध की जानकारी मिलती है।

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प्रश्न 12.
विज्ञान की प्रगति से गृह व्यवस्था कैसे जुड़ी हुई है?
उत्तर-
विज्ञान की उन्नति से गृह प्रबन्ध में कई बढ़िया परिवर्तन आए हैं। आजकल बाज़ार में ऐसे उपकरण मिलते हैं जिनसे गृहिणी का समय और शक्ति दोनों की बहुत बचत होती है। जैसे मिक्सी, आटा गूंथने की मशीन, कपड़े धोने वाली मशीन, फ्रिज, माइक्रोवेव ओवन आदि। इन उपकरणों का सही प्रयोग करके गृहिणियां अपने गृह प्रबन्ध को अच्छे ढंग से चला सकती हैं। इसके अतिरिक्त टेलीविज़न और इन्टरनेट जैसे वैज्ञानिक उपकरण भी नई-से-नई जानकारी प्रदान करके गृहिणियों की सहायता करते हैं।

प्रश्न 13.
घर में वृद्ध हों तो गृह व्यवस्था कैसे प्रभावित होती है?
उत्तर-
क्योंकि बुजुर्गों की आवश्यकताएं परिवार के शेष सदस्यों से भिन्न होती हैं इसलिए घर के प्रबन्ध में कुछ विशेष परिवर्तन करने पड़ते हैं जैसे बुजुर्गों की खुराक को ध्यान में रखकर खाना बनाया जाता है। उठने और सोने का समय भी बुजुर्गों के अनुकूल ही रखा जाता है। घर में शोर-गुल को रोकना पड़ता है। बुजुर्गों के लिए पूजा-पाठ आदि का प्रबन्ध किया जाता है। इस तरह कई ढंगों से घर की व्यवस्था प्रभावित होती है।

प्रश्न 14.
गृह व्यवस्था करने के लिए किन-किन साधनों का प्रयोग किया जाता है तथा इनका महत्त्व क्या है?
उत्तर-
गृह व्यवस्था में परिवार के मानवीय और भौतिक साधन एक अभिन्न भूमिका निभाते हैं, परिवार की जायदाद, आमदन, भौतिक साधन हैं पर इनका पारिवारिक लक्ष्यों के लिए योग्य प्रयोग परिवार के मानवीय साधन पर निर्भर करता है। एक मेहनती और संयम से चलने वाला परिवार कम साधनों के बावजूद एक बढ़िया ज़िन्दगी व्यतीत कर सकता है जबकि एक नालायक और खर्चीला परिवार अधिक जायदाद और आमदन के बावजूद भी मुश्किल में होता है। इसलिए अच्छी व्यवस्था के लिए अच्छे भौतिक साधनों के साथ-साथ अच्छे मानवीय साधनों का होना भी अति आवश्यक है।

प्रश्न 15.
अच्छी गृह व्यवस्था का मुख्य उद्देश्य लक्ष्यों की पूर्ति करना है। स्पष्टीकरण दें।
उत्तर-
अच्छी गृह व्यवस्था का उद्देश्य लक्ष्यों की पूर्ति करना ही है। प्रत्येक परिवार के कुछ-न-कुछ लक्ष्य होते हैं। लक्ष्य परिवार के सदस्यों के वे कार्य होते हैं जिनको वह अकेले या मिलकर करते हैं। प्रत्येक परिवार के कुछ-न-कुछ लक्ष्य अवश्य निर्धारित होते हैं जो समय-समय पर बदलते रहते हैं। समय अनुसार इनको दो भागों में विभाजित किया जाता है —

  1. छोटे समय के लक्ष्य (Short Term Goals) जैसे बच्चों को स्कूल भेजना, काम पर जाना और घर के अन्य रोज़ाना कार्य।
  2. दीर्घ समय के लक्ष्य (Long Term Goals) जैसे मकान बनाना, बच्चों के विवाह करने आदि।
    इन लक्ष्यों को इनकी किस्म अनुसार दो भागों में बांटा जा सकता है

    1. व्यक्तिगत लक्ष्य
    2. पारिवारिक लक्ष्य।

व्यक्तिगत लक्ष्य जैसे बड़े बच्चे ने डॉक्टर बनना है। पारिवारिक लक्ष्य जैसे परिवार के लिए घर बनाना है।
इन लक्ष्यों की पूर्ति के लिए परिवार के साधनों का योग्य प्रयोग अति आवश्यक है। इसके योग्य प्रयोग के लिए गृह प्रबन्धक की कुशलता योग्यता और ज्ञान पर निर्भर करती है। इसलिए एक अच्छी गृह व्यवस्था से लक्ष्यों की पूर्ति हो सकती है।

PSEB 10th Class Home Science Solutions Chapter 1 गृह व्यवस्था व अच्छा प्रबन्धक

प्रश्न 16.
अच्छे प्रबन्धक के किन्हीं छः गुणों के बारे में लिखो।
उत्तर-
घर की सही व्यवस्था पारिवारिक खुशी का आधार है। इसलिए घर की व्यवस्था चलाने वाले व्यक्ति का गुणवान होना आवश्यक है। एक अच्छे गृह प्रबन्धक में निम्नलिखित गुणों का होना अति आवश्यक है

  1. अच्छा खाना बनाना-एक अच्छी गृहिणी को खाना पकाना आना चाहिए जोकि घर के सभी सदस्यों की आवश्यकता अनुसार हो।
  2. समय की कीमत के बारे जानकारी-आजकल की तेज़ रफ्तार ज़िन्दगी में गृहिणियों को कई काम करने पड़ते हैं, जैसे बच्चों को स्कूल भेजना, पति को दफ्तर भेजना आदि। ये काम समय अनुसार ही होने चाहिएं। इसलिए गृहिणी को समय का ठीक प्रयोग करना चाहिए।
  3. अर्थशास्त्र के बारे में ज्ञान-आजकल महंगाई के ज़माने. में एक समझदार गृहिणी को बजट बनाना और उसके अनुसार चलना चाहिए।
  4. काम करने का उत्साह-एक अच्छे प्रबन्धक को अपने घर के सभी कामों को करने का उत्साह होना चाहिए। इससे घर के शेष सदस्य भी काम करने के लिए उत्साहित होंगे।
  5. सोचने और फैसला लेने की शक्ति-घर के प्रबन्ध में काम करने के साथसाथ सोच शक्ति का होना भी अति आवश्यक है। जो गृहिणी दिमाग से काम लेती है वह कम पैसे और शक्ति से भी बढ़िया घर व्यवस्था चला सकती है।
  6. सहनशीलता और स्व:नियन्त्रण-एक अच्छे गृह प्रबन्धक या गृहिणी में सहनशीलता का होना अति आवश्यक है। जहाँ गृहिणी में सहनशीलता और स्व:नियन्त्रण नहीं होता उन घरों का प्रबन्ध भी अच्छा नहीं होता।

प्रश्न 17.
अच्छी गृह व्यवस्था का क्या महत्त्व है?
उत्तर-
परिवार की सुख-शान्ति और खुशहाली के लिए अच्छी गृह व्यवस्था का होना आवश्यक है। निम्नलिखित कारणों के कारण अच्छी व्यवस्था हमारी ज़िन्दगी के लिए और भी महत्त्वपूर्ण बन जाती है

  1. घर को खूबसूरत और खुशहाल बनाना-अच्छी गृह व्यवस्था से ही घर अधिक सुन्दर, सजीला और खुशहाल हो सकता है। यदि व्यवस्था अच्छी हो तो कम साधनों से भी परिवार खुशी और उन्नति प्राप्त कर सकता है।
  2. स्वास्थ्य सम्भाल-अच्छी गृह व्यवस्था में गृह परिवार के सदस्यों का स्वास्थ्य अच्छा रह सकता है। सन्तुलित खुराक, सफ़ाई आदि एक अच्छी व्यवस्था वाले घर में प्राप्त होती है।
  3. अच्छी गृह व्यवस्था में ही बच्चों का उचित मानसिक विकास होता है तथा वे अपनी पढ़ाई और कैरियर में उच्च मंज़िलें प्राप्त करते हैं।

इनके अतिरिक्त परिवार को आनन्दमयी बनाना, साधनों का सही प्रयोग और आपसी प्यार एक अच्छी व्यवस्था में ही सम्भव हो सकता है।

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निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 18.
अच्छे गृह प्रबन्धक में क्या गुण होने ज़रूरी हैं?
उत्तर-
अच्छा गृह प्रबन्ध गृह प्रबन्धक की योग्यता पर ही निर्भर करता है। गृह प्रबन्धक के गुण और अवगुण किसी घर को स्वर्ग बना सकते हैं और किसी को नरक। घर को सामाजिक गुणों का झूला कहा जाता है। प्रत्येक इन्सान का प्रारम्भिक व्यक्तित्व घर में ही बनता है। इसलिए घर का वातावरण बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। बढ़िया पारिवारिक व्यवस्था तथा वातावरण पैदा करने के लिए गृह प्रबन्धक में निम्नलिखित योग्यताओं या गुणों का होना आवश्यक है

  1. मानसिक गुण (Psychological Qualities)
  2. शारीरिक गुण (Physical Qualities)
  3. सामाजिक और नैतिक गुण (Social and Moral Qualities)
  4. ग्रहणशीलता (Adaptability)
  5. काम में कुशलता (Efficient Worker)
  6. तकनीकी गुण (Technical Qualities)
  7. बाह्य गुण (Outdoor Qualities)

1. मानसिक गुण (Psychological Qualities)

  1. बुद्धि (Intelligence) — सफल गृहिणी के लिए बुद्धि एक आवश्यक विशेषता है। किसी मुश्किल को अच्छी तरह समझने, पूरे हालात का जायजा लेने, पहले अनुभवों से हुई जानकारी को नई समस्या के समाधान के लिए प्रयोग कर उद्देश्यों की पूर्ति करना गृहिणी की बुद्धिमत्ता पर आधारित है।
  2. ज्ञान (Knowledge) — ज्ञान भी एक साधन है। यह साधन घर को अच्छी तरह चलाने में सहायक होता है। इसके अतिरिक्त यह हमें अन्य मानवीय और भौतिक साधनों के बारे में परिचित कराता है जोकि घरेलू उद्देश्यों की प्राप्ति में सहायक होता है।
  3. उत्साह (Enthusiasm) — उत्साह बढ़िया शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य का सूचक है। एक सफल गृह प्रबन्धक के लिए यह गुण बहुत आवश्यक है। यदि गृहिणी घर के काम के लिए उत्साहित होगी तो परिवार के अन्य सदस्यों पर भी अच्छा प्रभाव होता है। वे भी काम में रुचि लेते हैं। उत्साह होने से प्रत्येक काम आसान लगता है और ज्ञान-इन्द्रियों की हरकत तेज़ हो जाती है।
  4. मानवीय स्वभाव को समझने का सामर्थ्य (Ability to Understand Human Nature) — परिवार के सभी सदस्यों के स्वभाव भिन्न-भिन्न होते हैं। इस कारण ही उनकी रुचियां और आवश्यकताएं भी भिन्न-भिन्न होती हैं। गृह प्रबन्धक को इन सबका ध्यान रखना चाहिए। परिवार के सदस्यों की रुचियों, योग्यताओं और आवश्यकताओं की जानकारी, योजना बनाने और काम के विभाजन में सहायक होती है।
  5. कल्पना शक्ति (Imagination) — गृह प्रबन्ध सम्बन्धी आयोजन के लिए रचनात्मक कल्पना शक्ति का होना आवश्यक गुण है। कल्पना शक्ति से गृहिणी योजना बनाते समय ही आने वाली समस्याओं को देख सकती है और उनका हल ढूंढने में सफल हो सकती है।
  6. निर्णय लेने की शक्ति (Decision Making Power) — गृह प्रबन्ध में निर्णय लेने का बहुत महत्त्व है। ठीक निर्णय लेना प्रबन्धक की दूर दृष्टि पर निर्भर करता है और इसके लिए अच्छे तजुर्बे की भी आवश्यकता होती है। इसलिए. गृह प्रबन्धक में निर्णय लेने की शक्ति एक आवश्यक विशेषता है।

2. शारीरिक गुण (Physical Qualities) — गृहिणी के लिए शारीरिक गुणों का होना भी बहुत आवश्यक है। यदि वह निरोग और तन्दुरुस्त होगी तो अपने घर के कार्यों और उद्देश्यों को और परिवार के सदस्यों की इच्छाओं की प्राप्ति उत्साहपूर्ण कर सकती है। तन्दुरुस्ती उसको काम के लिए उत्साहित करती है। बीमार और आलसी गृहिणी अपने परिवार के उद्देश्यों की प्राप्ति में पूर्ण सफल नहीं हो सकती।

3. सामाजिक और नैतिक गुण (Social and Moral Qualities) — परिवार समाज की प्रारम्भिक इकाई है और इन्सान समाज में रहना, सामाजिक और नैतिक गुण परिवार में से ही ग्रहण करता है।

  1. दृढ़ता (Firmness) — जिस गृहिणी में यह गुण होता है वह अपने उद्देश्यों और इच्छाओं की प्राप्ति के लिए हमेशा यत्नशील रहती है। वह कठिनाइयों का बहुत हौसले और बहादुरी से सामना करने के योग्य होती है। इस गुण के परिणामस्वरूप ही वह अपने लिए गए निर्णयों की प्राप्ति के लिए हमेशा यत्नशील रहती है और सफलता प्राप्त करती है।
  2. सहयोग (Co-operation) — गृह प्रबन्धक के इस गुण से घर परिवार खुशहाल रहता है। सहयोग भाव एक दूसरे के काम करने, लेन-देन से आपसी निकटता बढ़ती है और गृहिणी का बोझ भी कम हो जाता है। सहयोग के कारण ही बहुत-से काम पूरे हो जाते हैं।
  3. प्यार, हमदर्दी और स्वःनियन्त्रण की भावना (Love, Sympathy and Self-Control) — प्यार, हमदर्दी से ही गृहिणी दूसरों का सहयोग प्राप्त कर सकती है और बच्चों के लिए आदर्श बन सकती है। एक समझदार गृहिणी में बातचीत करने के ढंग, बच्चों या छोटों को प्यार, बड़ों का सत्कार और दुःखियों से हमदर्दी होनी चाहिए। वह अपने गुणों के कारण ही परिवार की सुख-शान्ति बनाए रख सकती है।
  4. सहनशक्ति और धैर्य (Tolerance and Patience) — गृहिणी के मानवीय स्वभाव को समझते हुए सहनशक्ति और धैर्य से काम लेना चाहिए ताकि परिवार में आपसी मतभेद और तनाव पैदा न हो। परिवार में कोई दुःखदायक घटना घटने पर धीरज और हौसला रखकर शेष सदस्यों को भी धैर्य देना चाहिए ताकि परिवार संकटमयी समय से आसानी से निकल सके।

4. ग्रहणशीलता (Adaptability) — ग्रहणशीलता के गुण से गृहिणी दूसरों के ज्ञान और तजुर्बे से लाभ उठाकर अपने घर-प्रबन्ध के काम को और भी बढ़िया ढंग से चला सकती है। वैसे भी समाज परिवर्तनशील है, इसलिए गृहिणी की योजना इतनी लचकदार होनी चाहिए कि वह बदलती परिस्थितियों के अनुसार अपनी योजना और अपने आपको ढाल सके। परिस्थितियां और मानवीय आवश्यकताएं रोजाना परिवर्तित होती रहती हैं। यदि वह बदलती आवश्यकताओं और परिस्थितियों के अनुसार अपने आप को ढाल सके तभी वह आगे बढ़ सकती है।

5. काम में कुशलता (Efficient Worker) — घर का बढ़िया गृह प्रबन्ध, गृहिणी की काम में कुशलता पर निर्भर करता है। इससे काम कम समय में, कम थकावट से और अच्छे ढंग से करके खुशी मिलती है। पर यह सब तभी हो सकता है यदि गृहिणी में सिलाई, कढ़ाई, खाना बनाने, परोसने और घर की सजावट आदि के गुण होंगे।

6. तकनीकी गुण (Technical Qualities) — गृहिणी के तकनीकी ज्ञान से न सिर्फ धन की बचत होती है बल्कि रुकावट दूर करके समय भी बचा लिया जाता है। गृहिणी में छोटी-छोटी वस्तुओं की तकनीकी जानकारी होना बहुत आवश्यक है जैसे फ्यूज़ लगाना, गैस का चूल्हा ठीक करना, बिजली के प्लग की मुरम्मत और छोटे-छोटे उपकरणों की मुरम्मत आदि का ज्ञान होना आवश्यक है।

7. बाह्य गुण (Outdoor Qualities) — आज के युग में विशेषकर जब गृह प्रबन्धक घर की चार-दीवारी तक ही सीमित नहीं रह गया इसलिए इसके गुणों का महत्त्व और भी बढ़ जाता है। इसलिए उसको बैंक, डाकघर, बीमा आदि सेवाओं के बारे में जानकारी होनी चाहिए और साइकल, स्कूटर और कार चलानी आनी चाहिए। इसके साथ-साथ यातायात के साधनों और खरीदारी करने के गुणों का ज्ञान होना चाहिए ताकि आवश्यकता पड़ने पर उसको किसी पर निर्भर न करना पड़े और अपने गुणों के कारण परिवार को उन्नति के रास्ते पर लेकर खुशहाल बना सके।

प्रश्न 19.
अच्छी गृह व्यवस्था के लिए अच्छे प्रबन्धक की आवश्यकता है। क्या आप इस तथ्य से सहमत हैं? यदि हो तो क्यों?
अथवा
गृह व्यवस्था से क्या अभिप्राय है? इसके महत्त्व के बारे में विस्तारपूर्वक लिखें।
उत्तर-
गृह प्रबन्ध का महत्त्व (Importance of Home Management) — प्रबन्ध प्रत्येक घर में होता है यद्यपि अमीर हो या ग़रीब। पर इसकी गुणवत्ता में ही अन्तर होता है। पारिवारिक खुशहाली और सुख-शान्ति समूचे गृह प्रबन्ध का निष्कर्ष है। निम्नलिखित महत्त्व के कारण यह परिवार के लिए लाभदायक है

  1. रहन-सहन का स्तर ऊंचा होता है । (Rise in standard of living.)
  2. पारिवारिक कार्यों को वैज्ञानिक ढंगों से किया जा सकता है। (Use of scientific methods and appliances for working.)
  3. कुशलता का विकास होता है। (Development of skill.)
  4. सीमित साधनों से बढ़िया जीवन गुज़ारा जा सकता है। (More satisfaction with limited resources.)
  5. जीवन खुशहाल और सुखमयी होता है। (Life becomes pleasant and comfortable.)
  6. बच्चों के लिए शिक्षा और उनका योगदान (Children learn by contributing their share and responsibility.)

रहन-सहन का स्तर ऊंचा होता है — जीवन का स्तर तभी ऊंचा उठ सकता है, यादि सीमित साधनों के योग्य प्रयोग से अधिक-से-अधिक लाभ उठाया जाए और एक अच्छी गृहिणी प्रबन्ध द्वारा अपनी मुख्य आवश्यकताओं और उद्देश्यों को न पहल देकर बच्चों की शिक्षा, स्वास्थ्य, समय, व्यक्तित्व को पहल देती है और हमेशा परिवार के उद्देश्यों के लिए यत्नशील रहती है। ऐसे परिवार के सदस्य सन्तुष्ट और अच्छे व्यक्तित्व के मालिक होते हैं और वे समाज में अपनी जगह बना लेते हैं। इन सब से ही परिवार का स्तर ऊँचा होता है।

2. पारिवारिक कार्यों को वैज्ञानिक ढंगों से किया जा सकता है — आधुनिक युग की गृहिणी सिर्फ घर तक ही सीमित नहीं रहती बल्कि वह घरों से बाहर भी काम करती है। दोनों ज़िम्मेदारियों को अच्छी तरह निभाने के लिए उसको अधिक समय और शक्ति की आवश्यकता है। वह घरेलू कामों को मशीनी उपकरणों से करने से समय और शक्ति दोनों ही बचा लेती है जैसे मिक्सी, प्रेशर कुक्कर, फ्रिज, कपड़े धोने वाली मशीन और बर्तन साफ़ करने वाली मशीन आदि।

3. कुशलता का विकास होता है — गृह प्रबन्ध करते समय साधनों का उचित प्रयोग गृहिणी की आन्तरिक कला और रुचि का विकास करती है। जैसे कि घर को कम-से-कम व्यय करके कैसे सजाया जाए कि घर की सुन्दरता भी बढ़े और अधिकसे-अधिक सन्तुष्टि भी मिले।

4. सीमित साधनों से बढ़िया जीवन गुजारा जा सकता है — प्रत्येक परिवार में ही आय और साधन सीमित होते हैं आवश्यकताएं असीमित। परिवार की खुशी बनाये रखने के लिए गृह प्रबन्ध द्वारा असीमित आवश्यकताओं को सीमित आय में पूरा करने के लिए गृहिणी को घर के खर्चे का बजट बनाकर और आवश्यकताओं को महत्ता के अनुसार क्रमानुसार कर लेना चाहिए। सबसे ज़रूरी और मुख्य आवश्यकताओं को पहले पूरा करके फिर अगली आवश्यकताओं की ओर ध्यान दिया जा सकता है। इससे कम-से-कम साधनों से अधिक-से-अधिक सन्तुष्टि प्राप्त की जा सकती है।

5. जीवन खुशहाल और सुखमयीं होता है — गृह प्रबन्ध का मुख्य उद्देश्य खुशहाल परिवार का सृजन है। अच्छे प्रबन्ध से परिवार के प्रत्येक सदस्य की आवश्यकताओं, रुचियों और सुविधाओं का ध्यान रखा जाता है; जिससे परिवार खुश और सन्तुष्ट रहता है। इसके अतिरिक्त गृह प्रबन्ध से

  1. पारिवारिक सदस्यों को सन्तुष्टि और मानसिक सन्तुष्टि मिलती है जो एक अच्छे व्यक्तित्व के लिए बहुत आवश्यक है।
  2. परिवार फिजूल खर्ची से बच जाता है क्योंकि यदि बजट बनाकर खर्च किया जाए तो फिजुल खर्ची की सम्भावना ही नहीं रहती।
  3. घरेलू उलझनें हल हो जाती हैं और इससे
  4. परिवार के आराम और मनोरंजन को भी आँखों से ‘ओझल नहीं किया जाता।

6. बच्चों के लिए शिक्षा और उनका योगदान-घर के वातावरण की बच्चे के जीवन पर अमिट छाप रहती है। एक खुशहाल परिवार के बच्चे हमेशा सन्तुष्ट होते हैं। अपने मां-बाप के अच्छे घरेलू प्रबन्ध से प्रभावित होकर बच्चे भी अच्छी शिक्षा लेते हैं और अपनी ज़िन्दगी में सफल होते हैं। जिन परिवारों में सभी सदस्य इकट्ठे होकर अपने उद्देश्य के लिए योजनाबन्दी करते हैं और प्रत्येक अपनी-अपनी योग्यता और ज़िम्मेदारी से सहयोग देता है तो उद्देश्यों की पूर्ति बड़ी आसानी से हो जाती है और परिवार का प्रत्येक सदस्य सन्तुष्ट होता है। भाव गृह प्रबन्ध खुश और सुखी परिवार का आधार है।

PSEB 10th Class Home Science Solutions Chapter 1 गृह व्यवस्था व अच्छा प्रबन्धक

प्रश्न 20.
अच्छा गृह प्रबन्धक बनने के लिए अपने में क्या सुधार लाये जा सकते हैं ?
उत्तर-
गृह प्रबन्धक, गृह व्यवस्था का धुरा होता है। घर की पूरी व्यवस्था उसके इर्द-गिर्द घूमती है। पारिवारिक लक्ष्यों की पूर्ति और घर की खुशहाली, सुख-शान्ति उसकी योग्यता पर ही निर्भर करती है। ग्रहणशीलता अर्थात् वातावरण के अनुसार अपने आपको ढालना, घर की आवश्यकताओं के अनुसार अपनी कमज़ोरियों को दूर करना अच्छे गृह प्रबन्धक की निशानियां हैं। अच्छे गृह प्रबन्धक को अपने आप में निम्नलिखित सुधार लाने चाहिएं —

1. ज्ञान को बढ़ाना-ज्ञान एक बहुत ही अनमोल मानवीय स्रोत है और ज्ञान प्राप्त करने से ही व्यक्ति समझदार और योग्य बनता है। गृह प्रबन्ध के मसले में ज्ञान का बहुत महत्त्व है। एक अच्छी गृहिणी, घर से सम्बन्धित मामलों में हर समय जानकारी प्राप्त करने के लिए तैयार रहती है। आजकल विज्ञान का युग है और समाज में बहुत तेजी से परिवर्तन आ रहे हैं।
कपड़े, भोजन, स्वास्थ्य, वैज्ञानिक उपकरणों के बारे में ज्ञान होना गृह प्रबन्धक की आवश्यकता है। इसलिए अच्छे गृह प्रबन्धक को अपने ज्ञान का स्तर बढ़ाना चाहिए।

2. कार्य में कुशलता प्राप्त करनी-कार्य में कुशलता एक सफल गृहिणी का महत्त्वपूर्ण गुण है। घर के कार्य ऐसे होते हैं जिनमें कुशलता प्राप्त करने के लिए गृहिणी को लगातार मेहनत करने की आवश्यकता पड़ती है। जैसे पौष्टिक और स्वादिष्ट खाना प्रत्येक घर की आवश्यकता है। समझदार गृहिणी अपनी कोशिश से बढ़िया खाना बनाना सीख सकती है। इस तरह घर के अन्य कार्य जैसे कपड़े सिलना, वैज्ञानिक उपकरणों का सही प्रयोग, घर की सफ़ाई आदि में प्रत्येक गृहिणी को कुशलता प्राप्त करनी चाहिए।

3. सामाजिक और नैतिक गुणों का विकास करना-परिवार समाज की एक प्रारम्भिक इकाई है। कोई भी परिवार समाज से अलग नहीं रह सकता। इसलिए समाज में परिवार का एक इज्जत योग्य स्थान बनाने के लिए गृहिणी को सामाजिक गुणों का विकास करना चाहिए। आस-पड़ोस से बढ़िया सम्बन्ध रखने, सामाजिक जिम्मेदारियों को अच्छी तरह निभाना, दूसरे लोगों से सहयोग करना, मुसीबत के समय किसी के काम आना, ग़रीबों से हमदर्दी रखना आदि गुण विकसित करके एक गृहिणी समाज में परिवार की इज्जत बढ़ा सकती है।

4. परिवार के सदस्यों की मानसिक बनावट को समझना-परिवार के सदस्यों का स्वभाव और मानसिकता भिन्न-भिन्न होती है जो गृहिणी हमारे परिवार के सदस्यों से एक तरह व्यवहार करती है, उसको सफल गृहिणी नहीं कहा जा सकता। इसलिए एक सफल गृहिणी को परिवार के सभी सदस्यों की मानसिकता को ध्यान में रखकर ही उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति के यत्न करने चाहिए ताकि परिवार के सभी सदस्य खुश रह सकें।

5. सहनशीलता और धैर्य-सहनशीलता और धैर्य ऐसे गुण हैं जो प्रत्येक सफल गृह प्रबन्धक में होने चाहिएं। यदि गृहिणी में इनकी कमी है तो उस घर में कभी सुख शान्ति नहीं रह सकती। गृहिणी परिवार का एक धुरा होता है। सारा परिवार अपनी आवश्यकताओं के लिए उसकी ओर देखता है और गृहिणी को प्रत्येक सदस्य की बात धैर्य से सुनकर उसका समाधान ढूंढना चाहिए। इससे घर का वातावरण ठीक रहता है। यदि गृहिणी में ही सहनशीलता की कमी है तो घर में अशान्ति और लड़ाई झगड़े होंगे और घर की बदनामी होगी और परिवार अपने उद्देश्य पूरे नहीं कर सकेगा। ऐसे वातावरण में बच्चों के व्यक्तित्व का विकास बढ़िया नहीं होगा इसलिए एक अच्छी गृहिणी को सहनशीलता और धैर्य रखने के गुण विकसित करने चाहिएं।

6. तकनीकी गुणों का विकास-आजकल विज्ञान का युग है। एक सफल प्रबन्धक के लिए घर में प्रयोग आने वाले उपकरणों की सही प्रयोग की जानकारी बहुत आवश्यक है और यह जानकारी इन उपकरणों के साथ दिए गए निर्देशों में से आसानी से प्राप्त की जा सकती है। इस जानकारी से इन उपकरणों को घर के प्रबन्ध में आसानी से प्रयोग कर सकती है और अपनी शक्ति और समय बचा सकती है।
आजकल की तेज़ रफ्तार ज़िन्दगी में प्रत्येक गृहिणी को कार या स्कूटर की ड्राइविंग भी अवश्य सीखनी चाहिए। इससे उसमें घर की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए दूसरों पर निर्भरता कम होगी। इसके अतिरिक्त बच्चों को पढ़ाने के लिए हर जानकारी प्राप्त करने के लिए कम्प्यूटर और इन्टरनेट के बारे में सीखना चाहिए।

Home Science Guide for Class 10 PSEB गृह व्यवस्था व अच्छा प्रबन्धक Important Questions and Answers

अति लघु उत्तराय प्रश्न

प्रश्न 1.
छोटे समय के लक्ष्य की उदाहरण दें।
उत्तर-
बच्चों को स्कूल भेजना।

प्रश्न 2.
दीर्घ समय के लक्ष्य की उदाहरण दें।
अथवा
लम्बी अवधि के टीचे का उदाहरण दें।
उत्तर-
मकान बनाना।

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प्रश्न 3.
मानवीय साधनों की दो उदाहरण दें।
उत्तर-
कुशलता, स्वास्थ्य, योग्यता आदि।

प्रश्न 4.
शक्ति कैसा साधन है?
उत्तर-
मानवीय साधन।

प्रश्न 5.
अच्छे गृह प्रबन्धक में काम करने का उत्साह क्यों आवश्यक है?
उत्तर-
इससे परिवार के अन्य सदस्य भी काम करने के लिए उत्साहित होते हैं।

प्रश्न 6.
लक्ष्यों को किस्म के अनुसार कितने भागों में बांटा जा सकता है?
उत्तर-
दो भागों में व्यक्तिगत लक्ष्य तथा पारिवारिक लक्ष्य।

प्रश्न 7.
गृह प्रबन्धक के मानसिक गुण बताओ।
उत्तर-
बुद्धि, ज्ञान, उत्साह, निर्णय लेने की शक्ति, कल्पना शक्ति आदि।

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प्रश्न 8.
गृह प्रबन्धक के सामाजिक तथा नैतिक गुण बताओ।
उत्तर-
दृढ़ता, सहयोग, प्यार, हमदर्दी, स्वः नियन्त्रण की भावना आदि।

प्रश्न 9.
अच्छे गृह प्रबन्धक के दो गुण बताओ।
उत्तर-
अच्छा खाना पकाना, सोचने तथा निर्णय लेने की शक्ति।

प्रश्न 10.
समय, पैसा तथा घर का सामान कैसा साधन है?
अथवा
समय, पैसा तथा जायदाद कैसे साधन हैं?
उत्तर-
भौतिक साधन।

प्रश्न 11.
कुशलता तथा योग्यता कैसे साधन हैं?
उत्तर-
मानवीय साधन।

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प्रश्न 12.
मकान बनाना किस अरसे का लक्ष्य है?
उत्तर-
लम्बे अरसे का।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
गृह व्यवस्था के साथ गृहिणी समय का ठीक उपयोग कैसे करती है?
उत्तर-
अच्छी गृहिणी घर के सारे कार्य को योजनाबद्ध ढंग से करती है। वह कार्य करने के लिए समय सारिणी निश्चित करती हैं तथा घर के सभी सदस्यों को कार्य इसी सारिणी के अनुसार करने के लिए प्रेरित करती है। घर के भिन्न-भिन्न कार्य सदस्यों में बाँट देती है। इस प्रकार सभी कार्य समयानुसार निपट जाते हैं तथा समय भी बच जाता है।

प्रश्न 2.
अच्छे प्रबन्धक के कोई दो गुणों के बारे में बताएं।
उत्तर-
देखें उपरोक्त प्रश्नों में।

प्रश्न 3.
कोई दो विद्वानों द्वारा दी गई गृह विज्ञान की परिभाषाएं दें।
उत्तर-

  1. पी० निक्कल तथा जे० एम० डोरसी के अनुसार, गृह प्रबन्ध परिवार के उद्देश्यों को प्राप्त करने के इरादे से परिवार में उपलब्ध साधनों को योजनाबद्ध तथा संगठित करके अमल में लाने का नाम है।
  2. गुड्ड जॉनसन के अनुसार, गृह व्यवस्था करना सभी देशों में एक आम व्यवसाय (कार्य) है तथा इस व्यवसाय में अन्य व्यवसायों से अधिक लोग कार्यरत हैं। इसमें धन का प्रयोग भी अधिक होता है तथा यह लोगों के स्वास्थ्य की दृष्टि से सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है।

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प्रश्न 4.
गृह व्यवस्था व्यक्तित्व का विकास किस प्रकार करती है?
उत्तर-
यदि गृह व्यवस्था अच्छी हो तो मनुष्य घर में सुख, आनन्द की प्राप्ति कर लेता है तथा सन्तुलित रहता है। ऐसे आनन्दमयी तथा सुखी वातावरण का प्रभाव बच्चों पर भी अच्छा पड़ता है तथा उसका सर्वपक्षीय विकास होता है। घर में ही बच्चों में कार्य करने सम्बन्धी लगन लगती है। बहुत से महान् कलाकारों को यह वरदान घर से ही प्राप्त हुआ है।

प्रश्न 5.
अच्छे प्रबन्धक के तीन गुणों का वर्णन करें।
उत्तर-
देखें उपरोक्त प्रश्न।

प्रश्न 6.
अच्छे गृह प्रबन्धक में निर्णय लेने की शक्ति और सहनशीलता का होना क्यों जरूरी है?
उत्तर-
देखें उपरोक्त प्रश्नों में।

PSEB 10th Class Home Science Solutions Chapter 1 गृह व्यवस्था व अच्छा प्रबन्धक

प्रश्न 7.
घर एक निजी स्वर्ग का स्थान है क्यों?
उत्तर-
घर का प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में सबसे महत्त्वपूर्ण स्थान होता है। घर में न केवल मनुष्य की भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति होती है, बल्कि उसकी भावनात्मक आवश्यकताएं भी पूर्ण होती हैं। घर का प्रत्येक मनुष्य की खुशियों तथा उसके व्यक्तित्व . के विकास में सबसे अधिक योगदान होता है। इसलिये घर को निजी स्वर्ग भी कहा जाता है।

प्रश्न 8.
अच्छे प्रबन्धक के लिए अर्थशास्त्र का ज्ञान क्यों ज़रूरी है?
उत्तर-
अच्छे प्रबन्धक को बजट बनाना तथा उसके अनुसार कार्य करना आना चाहिए। उपभोक्तावाद के इस युग में कौन-सी वस्तुओं को अधिक खरीद कर लाभ हो सकता है तथा कुछ वस्तुओं को आवश्यकता के अनुसार खरीदना चाहिए। कुछ पैसे भविष्य के लिए बचा कर रखने चाहिए। आमदनी तथा खर्च में सामंजस्य होना चाहिए। यह तभी सम्भव है यदि गृह प्रबन्धक को अर्थशास्त्र का ज्ञान होगा।

प्रश्न 9.
अच्छी गृह व्यवस्था के लिए समय और शक्ति की व्यवस्था क्यों ज़रूरी है?
उत्तर-
देखें उपरोक्त प्रश्नों में।

प्रश्न 10.
परिवार के साधनों को कितने भागों में बांटा जा सकता है? विस्तार में लिखो।
उत्तर-
देखें उपरोक्त प्रश्नों में।

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प्रश्न 11.
गृह प्रबन्धक को अच्छा खरीददार होना क्यों ज़रूरी है?
उत्तर-
गृह प्रबन्धक को अच्छा खरीददार होना चाहिए। उसको घर के सदस्यों की आवश्यकताओं का पता होना चाहिए तथा ऐसा सामान खरीदना चाहिए जो सभी के लिए लाभदायक हो। बाज़ार में सर्वे करके बढ़िया तथा सस्ता सामान खरीदना चाहिए। लम्बे समय तक स्टोर की जाने वाली वस्तुओं को, जब वे सस्ती हों, अधिक मात्रा में खरीद लेना चाहिए। केवल वही वस्तुओं को खरीदना चाहिए जिनकी घर में आवश्यकता हो तथा लाभकारी हों।

प्रश्न 12.
अच्छे गृह प्रबन्धक में काम करने का उत्साह तथा होशियारी का होना क्यों ज़रूरी है?
उत्तर-
देखें उपरोक्त प्रश्नों में।

प्रश्न 13.
लक्ष्यों से क्या भाव है?
उत्तर-
देखें उपरोक्त प्रश्न 3 (2-4 वाक्य वाला)।

प्रश्न 14.
गृह प्रबन्धक की क्या महत्ता है?
उत्तर-
देखें उपरोक्त प्रश्नों में।

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प्रश्न 15.
समय के अनुसार लक्ष्य कैसे बांटा जा सकता है?
उत्तर-
उदाहरण सहित बताओ।

  1. छोटे समय के लक्ष्य (Short Term Goals) जैसे बच्चों को स्कूल भेजना, काम पर जाना और घर के अन्य रोज़ाना कार्य।
  2. दीर्घ समय के लक्ष्य (Long Term Goals) जैसे मकान बनाना, बच्चों के विवाह करने आदि।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
अच्छी गृह व्यवस्था का महत्त्व विस्तारपूर्वक बताएं।
उत्तर-
अच्छी गृह व्यवस्था का महत्त्व इस प्रकार है

  1. घर को सुन्दर तथा खुशहाल बनाना-अच्छी गृह व्यवस्था से घर सुन्दर, खुशहाल, सजीला बन जाता है। बेशक साधन सीमित हों तो भी घर को सुन्दर, बढ़िया
    तथा सुखी बनाया जा सकता है। प्रत्येक सदस्य अपनी बुद्धि विवेक के अनुसार घर
    की खुशहाली में योगदान डालता है।
  2. पारिवारिक स्तर को ऊँचा उठाना-गृह व्यवस्था अच्छी हो तो पारिवारिक स्तर ऊँचा उठाने में सहायता मिलती है। घर में ही मनुष्य को अपनी सफलता के लिए सीढ़ी का पहला सोपान प्राप्त होता है जिस पर चढ़ कर वह सफलता प्राप्त कर सकता है।
  3. व्यक्तित्व का विकास-यदि घर की व्यवस्था अच्छी हो तो मनुष्य घर में सुख, आनन्द की प्राप्ति कर लेता है तथा सन्तुलित रहता है। ऐसे आनन्ददायक तथा सुखी वातावरण का प्रभाव बच्चों पर पड़ता है तथा उसका सर्वपक्षीय विकास होता है। घर से ही बच्चों में किसी काम को करने की लगन लगती है। बहुत से महान् कलाकारों को यह वरदान घर से ही प्राप्त हुआ है।
  4. समय का उचित प्रयोग-समय एक ऐसा सीमित साधन है जिसे बचाया नहीं जा सकता। इसलिए समय का उचित प्रयोग करके कार्य को सरल बनाया जा सकता है। गृह व्यवस्था अच्छे ढंग से की जाए तो घर के सभी कार्य समय पर निपट जाते हैं। अच्छी गृहिणी परिवार के सदस्यों को एक समय सारणी में ढाल लेती है तथा घर के काम परिवार के सदस्यों में बांट देती है। प्रत्येक सदस्य अपनी सामर्थ्य अनुसार काम करता है तथा घर में खुशी बनी रहती है।
  5. मानसिक सन्तोष-जब गृह व्यवस्था अच्छी हो तो मानसिक सन्तोष की प्राप्ति होती है। घर के लक्ष्य बहुत ऊँचे न हों तथा गृह व्यवस्था अच्छी हो तो लक्ष्यों की प्राप्ति सरलता से हो जाती है। इस प्रकार मानसिक सन्तुष्टि मिलती है।

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प्रश्न 2.
अच्छे प्रबन्धक के गुणों का वर्णन करें।
उत्तर-
देखें उपरोक्त प्रश्नों में।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

I. रिक्त स्थान भरें

  1. ………. ही गृह विज्ञान का आधार है।
  2. मकान बनाना ………………….. समय का लक्ष्य है।
  3. शक्ति एक ………………… साधन है।
  4. बच्चे को डॉक्टर अथवा इन्जीनियर बनाना …………………. समय का लक्ष्य
  5. समय, पैसा तथा जायदाद (सम्पत्ति) …………………. साधन हैं।
  6. योग्यता, रुचि तथा कुशलता ………………….. साधन हैं।
  7. बढ़िया गृह व्यवस्था से ………………….. संतोष की प्राप्ति होती है।
  8. प्यार, हमदर्दी, सहयोग आदि गृह प्रबन्धक के ……………… गुण हैं।

उत्तर-

  1. गृह व्यवस्थ,
  2. लम्बे,
  3. भौतिक,
  4. लम्बे,
  5. भौतिक,
  6. मानवी,
  7. मानसिक,
  8. सामाजिक तथा नैतिक।

II. ठीक गलत बताएं

  1. मकान बनाना लम्बे समय का लक्ष्य है।
  2. अच्छे गृह प्रबन्धक के लिए बजट बनाना कोई आवश्यक नहीं है।
  3. शक्ति मानवीय साधन है।
  4. पैसा मानवीय साधन है।
  5. बच्चों को स्कूल भेजना छोटे समय का लक्ष्य है।

उत्तर-

  1. ठीक,
  2. ग़लत,
  3. ठीक,
  4. ग़लत,
  5. ठीक।

III. बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
भौतिक साधन है
(क) पैसा
(ख) जायदाद
(ग) घर का सामान
(घ) सभी ठीक।
उत्तर-
(घ) सभी ठीक।

प्रश्न 2.
गृह प्रबन्धक के ‘मानसिक गुण हैं
(क) बुद्धि
(ख) उत्साह
(ग) ज्ञान
(घ) सभी ठीक।
उत्तर-
(घ) सभी ठीक।

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प्रश्न 3.
मानवीय साधन नहीं हैं
(क) शक्ति
(ख) ज्ञान
(ग) पैसा
(घ) कुशलता।
उत्तर-
(ग) पैसा

गृह व्यवस्था व अच्छा प्रबन्धक PSEB 10th Class Home Science Notes

  • गृह व्यवस्था पारिवारिक लक्ष्यों की प्राप्ति की कला है।
  • मकान भौतिक वस्तुओं से बनता है परन्तु घर भावनाओं से बनता है।
  • प्रत्येक परिवार के पास मानवीय और भौतिक साधन होते हैं।
  • समय एक ऐसा साधन है जो प्रत्येक के पास बराबर होता है।
  • अच्छे गृह प्रबन्धक में उत्साह और निर्णय लेने की योग्यता होनी चाहिए।
  • एक अच्छा प्रबन्धक वैज्ञानिक उपकरणों को घरेलू व्यवस्था के लिए सुलझे ढंग से प्रयोग करता है।
  • परिवार के सभी सदस्यों की आवश्यकताएं पूरी करनी गृह प्रबन्धक का फर्ज है।
  • अच्छा गृह प्रबन्धक पारिवारिक लक्ष्यों की पूर्ति इस ढंग से करता है कि कम-से-कम साधन खर्च हों।
  • अच्छा गृह प्रबन्धक परिवार के सदस्यों के स्वास्थ्य और बच्चों की शिक्षा प्रति विशेष ध्यान देता है।

घर की व्यवस्था एक कला है जिस द्वारा परिवार के सभी सदस्यों की मानसिक और भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति करके घर में एक खुशहाल वातावरण पैदा किया जाता है। परिवार की खुशहाली और खुशी, पारिवारिक साधनों के साथ-साथ गृह प्रबन्धक की योग्यता पर भी निर्भर करती है।

PSEB 6th Class Social Science Solutions Chapter 8 प्राचीन इतिहास का अध्ययन – स्त्रोत

Punjab State Board PSEB 6th Class Social Science Book Solutions History Chapter 8 प्राचीन इतिहास का अध्ययन – स्त्रोत Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 6 Social Science History Chapter 8 प्राचीन इतिहास का अध्ययन – स्त्रोत

SST Guide for Class 6 PSEB प्राचीन इतिहास का अध्ययन – स्त्रोत Textbook Questions and Answers

I. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दो

प्रश्न 1.
पूर्व-इतिहास तथा इतिहास में क्या अन्तर है?
उत्तर-

  1. पूर्व इतिहास-मानव जीवन के जिस काल का कोई लिखित विवरण प्राप्त नहीं है, उसे पूर्व-इतिहास कहते हैं।
  2. इतिहास- इतिहास से भाव मानव जीवन के उस काल से है जिसका लिखित विवरण मिलता है।

प्रश्न 2.
वैदिक साहित्य के कौन-कौन से ग्रन्थ मिलते हैं?
उत्तर-
वैदिक साहित्य के निम्नलिखित ग्रन्थ मिलते हैं –

  1. वेद,
  2. ब्राह्मण ग्रन्थ,
  3. आरण्यक,
  4. उपनिषद्,
  5. सूत्र,
  6. महाकाव्य, (रामायण तथा महाभारत),
  7. पुराण।

प्रश्न 3.
अभिलेख (शिलालेख) हमें इतिहास जानने में किस प्रकार सहायता करते हैं?
उत्तर-
अभिलेख उन लेखों को कहते हैं जो पत्थर के स्तम्भों, चट्टानों, तांबे की प्लेटों, मिट्टी की तख्तियों तथा मन्दिर की दीवारों पर प्रचलित संकेतों अथवा अक्षरों में खुदे हुए होते हैं। ये इतिहास जानने में हमारी बहुत सहायता करते हैं। इनमें उस समय की महत्त्वपूर्ण घटनाओं का वर्णन किया गया है, जिस समय में ये लिखे गए थे। सम्राट अशोक के अभिलेख उसके धर्म तथा राज्य के विस्तार के बारे में बताते हैं। समुद्रगुप्त तथा स्कन्दगुप्त के.अभिलेखों से उनकी उपलब्धियों के बारे में पता चलता है। ताम्र-पत्रों से प्राचीन काल में भूमि को ख़रीदने-बेचने तथा भूमि दान करने की व्यवस्था का पता चलता है।

PSEB 6th Class Social Science Solutions Chapter 7 प्राचीन इतिहास का अध्ययन – स्त्रोत

प्रश्न 4.
इतिहास के पुरातात्विक स्रोतों से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
पुरातन इमारतों, बर्तनों, दैनिक उपयोग की वस्तुओं, सिक्कों तथा प्राचीन अभिलेखों को इतिहास के पुरातात्विक स्रोत कहा जाता है।

प्रश्न 5.
महाकाव्य स्रोत के रूप में हमारी सहायता कैसे करते हैं?
उत्तर-
रामायण तथा महाभारत नामक दो महाकाव्य वैदिक काल में लिखे गए थे। इन महाकाव्यों से हमें प्राचीन भारतीय इतिहास विशेष तौर पर आर्यों के आगमन के पश्चात् प्राचीन भारत की सामाजिक, धार्मिक तथा सांस्कृतिक स्थिति के बारे में पता चलता है।

प्रश्न 6.
इतिहास के साहित्यिक स्रोतों पर एक संक्षिप्त नोट लिखें।
उत्तर-
इतिहास के साहित्यिक स्रोतों में वेद, ब्राह्मण ग्रन्थ, आरण्यक, उपनिषद्, सूत्र, महाकाव्य, पुराण, बौद्ध तथा जैन ग्रन्थ आदि शामिल हैं। ये ग्रन्थ हमें धर्म के अलावा उस समय की घटनाओं तथा समाज के बारे में जानकारी देते हैं जिस समय ये लिखे गए थे। प्राचीन काल के नियमों तथा कानूनों से सम्बन्धित पुस्तकों, जिन्हें ‘धार्मिक शास्त्र’ कहा जाता है, की भी रचना हुई। मनुस्मृति ऐसी पुस्तकों में से मुख्य है। कौटिल्य ने शासन प्रबन्ध के बारे में ‘अर्थशास्त्र’ नामक ग्रन्थ लिखा। भास तथा कालिदास आदि विद्वानों द्वारा बहुतसे नाटक लिखे गए। बहुत-सी कहानियां भी लिखी गईं। इनके अतिरिक्त आर्यभट्ट तथा वराहमिहिर आदि वैज्ञानिकों ने अपनी खोजों के बारे में पुस्तकें लिखीं।

PSEB 6th Class Social Science Solutions Chapter 8 प्राचीन इतिहास का अध्ययन – स्त्रोत

प्रश्न 7.
स्मारकों के अध्ययन से हमें क्या जानकारी मिलती है?
उत्तर-
सैंकड़ों वर्ष पहले बने स्तम्भों, किलों तथा महलों आदि को स्मारक कहते हैं। स्मारकों के अध्ययन से हमें महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक जानकारी मिलती है। इनसे हमें पता चलता है कि प्राचीन भारत में लोगों का सांस्कृतिक जीवन कैसा था।

II. रिक्त स्थानों की पूर्ति करें

  1. इतिहास ………… का अध्ययन है।
  2. इतिहास ……….. के लिए अतीत का अध्ययन है।
  3. कौटिल्य द्वारा ………….. नाम की पुस्तक लिखी गई।
  4. पुस्तकें, साहित्यिक स्रोत, प्राचीन खण्डहर तथा वस्तुएं ……. स्रोत कहलाती हैं।

उत्तर-

  1. अतीत
  2. भविष्य
  3. अर्थशास्त्र
  4. इतिहास के।

III. निम्नलिखित के सही जोड़े बनायें

(1) आर्यभट्ट – (क) महाकाव्य
(2) रामायण – (ख) वेद
(3) सामवेद – (ग) कौटिल्य
(4) अर्थशास्त्र – (घ) वैज्ञानिक।
उत्तर-
सही जोड़े
(1) आर्यभट्ट – (घ) वैज्ञानिक
(2) रामायण – (क) महाकाव्य
(3) सामवेद – (ख) वेद
(4) अर्थशास्त्र – (ग) कौटिल्य।

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IV. सही (✓) अथवा ग़लत (✗) का निशान लगायें

  1. मनुस्मृति धर्मशास्त्र ग्रन्थ है।
  2. आरण्यक वैदिक साहित्य का भाग नहीं हैं।
  3. सिक्के इतिहास का स्रोत नहीं हैं।
  4. अशोक ने अपना सन्देश पाषाण-स्तम्भों (पत्थरों के स्तम्भों) पर खुदवाया।

उत्तर-

  1. (✓)
  2. (✗)
  3. (✗)
  4. (✓)

PSEB 6th Class Social Science Guide प्राचीन इतिहास का अध्ययन – स्त्रोत Important Questions and Answers

कम से कम शब्दों में उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
किन्हीं दो प्राचीन भारतीय स्मारकों के नाम बताइए जिनके अवशेष ऐतिहासिक जानकारी जुटाते हैं।
उत्तर-
अशोक के स्तम्भ, नालंदा विश्वविद्यालय।

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प्रश्न 2.
‘इपिग्राफी’ क्या होती है?
उत्तर-
अभिलेखों के अध्ययन को ‘इपिग्राफी’ कहते हैं।

बहु-विकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
इतिहास के पुरातात्विक स्रोतों में निम्न में से क्या शामिल नहीं है?
(क) सिक्के
(ख) धार्मिक पुस्तकें
(ग) प्राचीन इमारतें।
उत्तर-
(ख) धार्मिक पुस्तकें

प्रश्न 2.
नीचे दर्शाया चित्र ‘सांची का स्तूप’ किस प्रकार का ऐतिहासिक स्त्रोत है?
PSEB 6th Class Social Science Solutions Chapter 7 प्राचीन इतिहास का अध्ययन – स्त्रोत 1
(क) साहित्यिक
(ख) सामाजिक
(ग) पुरातात्विक
उत्तर-
(ग) पुरातात्विक

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प्रश्न 3.
निम्न में कौन से वैज्ञानिकों ने अपने आविष्कारों के बारे में पुस्तकें लिखी जो इतिहास लेखन में सहायता करती हैं?
(क) आर्यभट्ट तथा वराहमिहिर
(ख) कौटिल्य तथा कालिदास
(ग) समुद्रगुप्त तथा स्कंदगुप्त।
उत्तर-
(क) आर्यभट्ट तथा वराहमिहिर

प्रश्न 4.
निम्न में से किस प्राचीन राजा का उसके कार्यों के बारे में अभिलेख मिलता है?
(क) समुद्रगुप्त
(ख) अशोक
(ग) उपरोक्त दोनों।
उत्तर-
(ग) उपरोक्त दोनों।

अति लघ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
इतिहास के चार साहित्यिक स्रोतों के नाम लिखें।
उत्तर-
(1) वेद,
(2) ब्राह्मण ग्रंथ,
(3) उपनिषद्,
(4) महाकाव्य।

PSEB 6th Class Social Science Solutions Chapter 8 प्राचीन इतिहास का अध्ययन – स्त्रोत

प्रश्न 2.
किसी एक प्राचीन धर्मशास्त्र ग्रंथ का नाम लिखें।
उत्तर-
मनुस्मृति।

प्रश्न 3.
धर्मशास्त्र क्या है?
उत्तर-
प्राचीन काल के नियमों तथा कानूनों से सम्बन्धित पुस्तकों को धर्मशास्त्र कहा जाता है।

प्रश्न 4.
कहानी लेखन का आरम्भ कहां हुआ?
उत्तर-
भारत में।

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प्रश्न 5.
आर्यभट्ट तथा वराहमिहिर आदि वैज्ञानिकों की पुस्तकों से क्या पता चलता है?
उत्तर-
आर्यभट्ट तथा वराहमिहिर आदि वैज्ञानिकों की पुस्तकों से पता चलता है कि प्राचीन काल में विज्ञान तथा गणित के क्षेत्र में भारत अन्य देशों की तुलना में बहुत आगे था।

प्रश्न 6.
रामायण तथा महाभारत के लेखकों के नाम लिखें।
उत्तर-
रामायण के लेखक महाऋषि वाल्मीकि तथा महाभारत के लेखक महाऋषि वेद व्यास हैं।

प्रश्न 7.
चार पुरातत्त्व स्रोत कौन-से हैं?
उत्तर-

  1. प्राचीन भवन,
  2. प्राचीन अभिलेख,
  3. प्राचीन सिक्के,
  4. प्राचीन वस्तुएं।

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प्रश्न 8.
प्राचीन काल में ताम्रपत्रों का प्रयोग किस लिए किया जाता था? .
उत्तर-
प्राचीन काल में ताम्रपत्रों का प्रयोग भूमि को ख़रीदने व बेचने तथा भूमि-दान के दस्तावेज बनाने के लिए किया जाता था।

प्रश्न 9.
सम्राट अशोक कौन था?
उत्तर-
सम्राट अशोक मौर्य वंश का सबसे महान् शासक था।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
इतिहास के अध्ययन से हमें क्या पता चलता है?
उत्तर-
इतिहास के अध्ययन से हमें पता चलता है कि आरम्भ में मनुष्य कैसे रहता था तथा किस प्रकार समय के साथ-साथ सभ्यताओं का विकास हुआ।

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प्रश्न 2.
इतिहास के अध्ययन का हमारे भविष्य से क्या संबंध है?
उत्तर-
इतिहास को अच्छे भविष्य के लिए अतीत का अध्ययन कहा जाता है। यदि हम भविष्य में एक मज़बूत तथा आदर्श समाज की स्थापना करना चाहते हैं तो हमारे लिए यह जानना बहुत ज़रूरी है कि हम वर्तमान स्थिति तक किस प्रकार पहुंचे हैं। इस सब का ज्ञान इतिहास के अध्ययन से ही प्राप्त हो सकता है।

प्रश्न 3.
रामायण तथा महाभारत के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर-
रामायण तथा महाभारत दो महत्त्वपूर्ण महाकाव्य हैं जो प्रारम्भिक वैदिक काल में लिखे गए थे। रामायण के लेखक महाऋषि वाल्मीकि हैं तथा इसमें 24000 श्लोक हैं। महाभारत कई शताब्दियों में भिन्न-भिन्न लेखकों द्वारा विस्तार में लिखी गई रचनाओं का समूह है। परन्तु आम विचार है कि इसके लेखक महाऋषि वेद व्यास हैं।

प्रश्न 4.
इतिहास के अध्ययन में प्राचीन सिक्कों का क्या महत्त्व है?
उत्तर-
प्राचीन काल के सिक्के कली, तांबे, कांसे, चांदी तथा सोने आदि के बने हुए हैं। इन पर राजाओं के चित्र, जानवरों के चित्र, धार्मिक चिन्ह, सिक्के जारी करने वालों के नाम तथा तिथियां आदि लिखी हुई हैं। इनसे हमें प्राचीन राजाओं, उनके वंशों, प्राचीन काल के धार्मिक विश्वासों तथा लोगों के आर्थिक जीवन आदि के बारे में जानकारी महत्त्वपूर्ण होती है।

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प्रश्न 5.
सम्राट अशोक ने अपना सन्देश साधारण लोगों तक पहुंचाने के लिए क्या । किया?
उत्तर-
सम्राट अशोक ने अपना सन्देश साधारण लोगों तक पहुंचाने के लिए उसे चट्टानों तथा पत्थर के विशाल स्तम्भों पर खुदवाया ताकि लोग उसे पढ़ सकें। अनपढ़ लोगों को इसे समय-समय पढ़ कर सुनाया भी जाता था।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न-
इतिहास के अध्ययन के स्रोत के रूप में अभिलेखों का महत्त्व बताएं।
उत्तर-
इतिहास के अध्ययन के स्रोत के रूप में अभिलेखों का बहुत महत्त्व है। प्राचीन काल में पत्थरों के स्तम्भों, मिट्टी की तख़्तियों, तांबे की प्लेटों तथा मन्दिरों की दीवारों पर अभिलेख लिखे जाते थे। इन अभिलेखों से उस काल की महत्त्वपूर्ण घटनाओं का पता चलता है, जिस काल में ये लिखे गए थे।

1. अशोक ने मानवता के कल्याण के लिए अपना सन्देश चट्टानों तथा पत्थर के बड़ेबड़े स्तम्भों पर खुदवाकर सम्पूर्ण देश में फैला दिया ताकि लोग उसके विचारों को पढ़कर उन पर चल सकें। इन अभिलेखों से अशोक के धर्म तथा राज्य-विस्तार का पता चलता है।

2. अन्य कई राजाओं ने भी अपनी उपलब्धियों तथा विजयों को पत्थर के स्तम्भों पर खुदवाया। समुद्रगुप्त की उपलब्धियों का वर्णन उसके राज्य कवि हरिषेन ने इलाहाबाद में स्थित स्तम्भ-लेख में किया है।

3. दिल्ली में कुतुबमीनार के समीप स्थित लौह-स्तम्भ पर लिखित अभिलेख में चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य की उपलब्धियों का वर्णन है।

4. प्राचीन काल में भूमि को ख़रीदने-बेचने तथा भूमि को दान करने के लिए तांबे की प्लेटों का प्रयोग किया जाता था, जिन्हें ताम्र-पत्र कहते हैं। ताम्र-पत्र महत्त्वपूर्ण सरकारी दस्तावेज़ हैं।

5. मिट्टी की तख़्तियों तथा मन्दिरों की दीवारों पर लिखित अभिलेखों से महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक जानकारी प्राप्त होती है।

PSEB 6th Class Social Science Solutions Chapter 8 प्राचीन इतिहास का अध्ययन – स्त्रोत

प्राचीन इतिहास का अध्ययन – स्त्रोत PSEB 6th Class Social Science Notes

  • हेसटोरिया – ‘हेसटोरिया’ यूनानी भाषा का शब्द है जिससे इतिहास शब्द की उत्पत्ति हुई है।
  • हैरोडोटस – हैरोडोटस को इतिहास का पितामह कहा जाता है।
  • इतिहास – इतिहास अतीत का अध्ययन है। यह हमें बताता है कि आरंभ में मनुष्य किस प्रकार रहता था और किस प्रकार समय के साथ-साथ सभ्यता का विकास हुआ।
  • इतिहास के स्त्रोत – वे तथ्य जो मानव की कहानी जानने में सहायता करते हैं, इतिहास के स्रोत कहलाते हैं।
  • धर्म शास्त्र – प्राचीन काल के नियमों तथा कानूनों से सम्बन्धित पुस्तकों को धर्म शास्त्र कहा जाता है।
  • कहानी लेखन का आरम्भ – कहानी लेखन का आरम्भ सबसे पहले भारत में हुआ था।
  • पुरातत्त्ववेता – जो व्यक्ति प्राचीन इमारतों, वस्तुओं, सिक्कों तथा अभिलेखों का अध्ययन करता है, उसे पुरातत्त्ववेता कहते हैं।
  • सिक्कों की विद्या न्यूमिसम्टोलोजी – सिक्कों के अध्ययन को सिक्कों की विद्या कहते हैं।
  • इपिग्राफी – अभिलेखों के अध्ययन को इपिग्राफी कहा जाता है।
  • ताम्र-पत्र – प्राचीन काल में ताम्र-पत्रों का प्रयोग भूमि को ख़रीदने, बेचने तथा भूमि दान करने के लिए किया जाता था।

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 4 मौर्य युग

Punjab State Board PSEB 11th Class History Book Solutions Chapter 4 मौर्य युग Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 History Chapter 4 मौर्य युग

अध्याय का विस्तृत अध्ययन

(विषय सामग्री की पूर्ण जानकारी के लिए)

प्रश्न 1.
मौर्य साम्राज्य की स्थापना एवं प्रशासनिक संगठन की चर्चा करें।
उत्तर-
मौर्य साम्राज्य की स्थापना चन्द्रगुप्त मौर्य ने की थी और उसी ने ही इस साम्राज्य को सुदृढ़ प्रशासनिक ढांचा प्रदान किया। उससे पहले देश में अनेक छोटे-छोटे राज्य तथा शक्तिशाली कबीले थे। विदेशी सत्ता भी पांव जमाए हुए. थी। इन कठिनाइयों में चन्द्रगुप्त का एकमात्र शस्त्र था-चाणक्य। उसने चाणक्य की सहायता से अनेक प्रदेशों को विजय किया और उन्हें संगठित करके भारत में विशाल साम्राज्य की स्थापना की। उसका साम्राज्य भारत का पहला महान् साम्राज्य माना जाता है। अशोक ने कलिंग प्रदेश को विजय करके मौर्य साम्राज्य में वृद्धि की। उसने प्रशासन को पूर्ण रूप से जन-हितकारी बनाने के लिए कुछ महत्त्वपूर्ण प्रशासनिक परिवर्तन भी किए। संक्षेप में, मौर्य साम्राज्य की स्थापना एवं प्रशासनिक संगठन का वर्णन इस प्रकार है

I. साम्राज्य की स्थापना

1. पंजाब विजय-चन्द्रगुप्त मौर्य ने सबसे पहले पंजाब को जीता। यह प्रदेश उन दिनों सिकन्दर के प्रतिनिधि फिलिप के अधीन था। परन्तु 325 ई० पू० में फिलिप का वध कर दिया गया जिससे राज्य में असंतोष फैल गया। 323 ई० पू० में सिकन्दर की भी मृत्यु हो गई। अवसर का लाभ उठा कर चन्द्रगुप्त ने पंजाब पर आक्रमण कर दिया और उस पर अपना अधिकार कर लिया।

2. उत्तर-पश्चिमी भारत की विजय-पंजाब-विजय के पश्चात् चन्द्रगुप्त ने उत्तर-पश्चिमी भारत पर आक्रमण किया और यह प्रदेश भी अपने अधिकार में ले लिया। इस प्रकार उसके राज्य की सीमा सिन्धु नदी के पूर्वी तट को छूने लगी।

3. मगध विजय-मगध उत्तरी भारत का सबसे शक्तिशाली राज्य था। वहां नन्द वंश का शासन था। कहते हैं कि नन्द राजाओं की सेना में 6 लाख पैदल, 12 हज़ार घुड़सवार, 2 हजार चार-चार घोड़ों वाले रथ तथा 3 हज़ार हाथी शामिल थे, परन्तु इस शक्तिशाली राज्य से युद्ध करना चन्द्रगुप्त का सबसे बड़ा उद्देश्य था। इसका कारण यह था कि जहां के एक नन्द शासक ने चन्द्रगुप्त के गुरु चाणक्य का अपमान किया था और चाणक्य ने नन्द वंश का समूल नाश करने की शपथ ले रखी थी।

मगध विजय के लिए एक बड़ा भयंकर युद्ध लड़ा गया। इस युद्ध में राजा घनानन्द, उसके परिवार के कई सदस्य और और अनगिनत सैनिक मारे गए। कहते हैं कि नन्द वंश का केवल एक ही व्यक्ति बचा था जो संन्यासी बनकर जंगलों में चला गया। परन्तु चाणक्य ने इसका भी पीछा किया और इसका नाश करके अपनी शपथ पूरी की।
मगध विजय के बाद (321 ई० पू० में) चन्द्रगुप्त राजसिंहासन पर बैठा।

4. बंगाल विजय-चन्द्रगुप्त ने अब अपना ध्यान अन्य पूर्वी राज्यों की ओर लगाया। कुछ समय पश्चात् उसने बंगाल पर भी अधिकार कर लिया।

5. सैल्यूकस की पराजय-सैल्यूकस सिकन्दर का सेनापति था। सिकन्दर की मृत्यु के बाद उसने लगभग पूरे पश्चिमी तथा मध्य एशिया पर अपना अधिकार कर लिया था। अब वह भारत के उन सभी प्रदेशों को भी विजय करना चाहता था जो कभी सिकन्दर के अधीन थे। 305 ई० पू० में उसने भारत पर आक्रमण कर दिया। चन्द्रगुप्त ने इसका बड़ी वीरता से सामना किया। यूनानी लेखकों के विवरण से पता चलता है कि सैल्यूकस इस युद्ध में पराजित हुआ और उसे चन्द्रगुप्त के साथ इन शर्तों पर सन्धि करनी पड़ी-(i) सैल्यूकस ने आधुनिक काबुल, कन्धार तथा बिलोचिस्तान के प्रदेश चन्द्रगुप्त को दे दिए। (ii) मैगस्थनीज़ सैल्यूकस की ओर से राजदूत के रूप में पाटलिपुत्र आया। (iii) चन्द्रगुप्त ने सैल्यूकस को उपहार के रूप में 500 हाथी दिए। (iv) सैल्यूकस ने अपनी पुत्री हेलन का विवाह चन्द्रगुप्त से कर दिया।

6. अन्य विजयें-चन्द्रगुप्त ने कुछ अन्य प्रदेशों पर भी विजय प्राप्त की। ऐसा समझा जाता है कि सौराष्ट्र का प्रदेश चन्द्रगुप्त के अधीन था। जैन तथा तमिल साहित्य के अनुसार तो चन्द्रगुप्त का साम्राज्य दक्षिण में उत्तरी मैसूर (कर्नाटक) तक फैला हुआ था। __इस प्रकार चन्द्रगुप्त ने भारत में एक महान् साम्राज्य की नींव रखी। उसका साम्राज्य उत्तर में हिमाचल से लेकर दक्षिण में उत्तरी मैसूर (कर्नाटक) तक फैला हुआ था। पूर्व में बंगाल तथा पश्चिम में हिन्दकुश पर्वत उसके राज्य की सीमाएं थीं। उसके साम्राज्य में अफगानिस्तान, बिलोचिस्तान, समस्त उत्तरी मैदान, सौराष्ट्र, मैसूर (कर्नाटक) आदि प्रदेश सम्मिलित थे। पाटलिपुत्र (आधुनिक पटना) इस साम्राज्य की राजधानी थी।

II. प्रशासनिक संगठन

1. केन्द्रीय शासन-मौर्य शासन चार मौलिक इकाइयों में बंटा हुआ था। केन्द्रीय शासन का मुखिया स्वयं सम्राट् होता था। उसकी शक्तियां असीम थीं, परन्तु वह मुख्य रूप से सात कार्य करता था : (i) कानून बनाना तथा कर लगाना। (ii) न्याय की व्यवस्था करना । (iii) कानून लागू करवाना तथा कर एकत्रित करवाना। (iv) सेनापति के रूप में सेना का संगठन तथा संचालन करना। (v) प्रजा की भलाई के लिए कार्य करना । (vi) शासन कार्यों की देखभाल करना तथा गुप्तचरों की सूचना के अनुसार कार्यवाही करना। (vii) मन्त्रियों, कुमारों, राजदूतों तथा राज्य के अन्य अधिकारियों की नियुक्ति करना। सम्राट् ने राज्य कार्यों में अपनी सहायता तथा परामर्श के लिए एक मन्त्रिपरिषद् की स्थापना की व्यवस्था हुई थी। परन्तु राजा मन्त्रिपरिषद् का निर्णय मानने के लिए बाध्य नहीं था। मन्त्रियों को अलग-अलग विभाग सौंपे गए थे। उसके प्रसिद्ध मन्त्री थे-पुरोहित, सेनापति, समाहर्ता, सन्निधाता अथवा कोषाध्यक्ष, दुर्गपाल, दण्डपाल तथा व्यावहारिक। कौटिल्य उसका प्रधानमन्त्री था। मन्त्रियों में पुरोहित का बड़ा आदर था। मन्त्रियों के अतिरिक्त कुछ अन्य अधिकारी भी थे। इनमें आमात्य, महामात्र तथा अध्यक्ष प्रमुख थे। अशोक के समय में राजुक, प्रादेशिक, युक्त नामक अधिकारी भी नियुक्त किए जाने लगे थे। इनका कार्य मन्त्रियों की सहायता करना था।

2. प्रान्तीय शासन-प्रान्तीय शासन का मुखिया ‘कुमार’ कहलाता था। यह पद प्रायः राज-घराने के किसी व्यक्ति को ही सौंपा जाता था। उसका मुख्य कार्य प्रान्त में शान्ति और व्यवस्था बनाए रखना तथा राज्यादेशों का पालन करवाना था। उसकी सहायता के लिए अनेक कर्मचारी होते थे। चन्द्रगुप्त ने अपने साम्राज्य को चार प्रान्तों में विभक्त किया हुआ था।

  • मगध प्रान्त- इस प्रान्त में मगध प्रदेश सम्मिलित था। इस प्रान्त का शासन सीधा राजा के हाथों में था।
  • पश्चिमी प्रान्तइस प्रान्त में गुजरात तथा मालवा के प्रदेश सम्मिलित थे। उज्जैन इस प्रान्त की राजधानी थी।
  • उत्तर-पश्चिमी प्रान्तइस प्रान्त में अफगानिस्तान, बिलोचिस्तान, पंजाब आदि प्रदेश शामिल थे। इनकी राजधानी तक्षशिला थी।
  • दक्षिणी प्रान्त-इस प्रान्त में विन्ध्याचल पर्वत से उत्तरी मैसूर तक का प्रदेश सम्मिलित था। यहां की राजधानी स्वर्णगिरि थी।

3. स्थानीय शासन-नगर का प्रबन्ध नगर अध्यक्ष’ के अधीन होता था। उसका कार्य नगर में शान्ति की स्थापना करना, कर इकट्ठा करना तथा शिक्षा का प्रबन्ध करना था। ‘नगर अध्यक्ष’ की सहायता के लिए ‘स्थानिक’ तथा ‘गोप’ नामक दो कर्मचारी होते थे। पाटलिपुत्र, तक्षशिला तथा उज्जैन जैसे बड़े-बड़े नगरों के प्रबन्ध के लिए परिषदें स्थापित की गई थीं। प्रत्येक नगर की परिषद् में 30 सदस्य होते थे और प्रत्येक परिषद् 6 समितियों में विभाजित थी। प्रत्येक समिति में पांच सदस्य होते थे। पहली समिति का कार्य शिल्पकारों के हितों की रक्षा करना था। उनके वेतन भी यही समिति नियत करती थी। उन व्यक्तियों को मृत्युदण्ड दिया जाता था जो किसी शिल्पकार को हाथों या आंखों से वंचित करते थे। दूसरी समिति विदेशियों के हितों की रक्षा करती थी। तीसरी समिति जन्म-मरण का विवरण रखती थी। चौथी समिति का कार्य व्यापार तथा व्यापारियों के नियम लागू करना था। पांचवीं समिति तैयार माल का निरीक्षण करती थी। वस्तुओं में मिलावट करने वालों को जुर्माना किया जाता था। छठी समिति का कार्य बिक्री कर एकत्रित करना था। नगर की शिक्षा, अस्पतालों, मन्दिरों तथा अन्य जन-कल्याण सम्बन्धी संस्थाओं का प्रबन्ध परिषद् के 30 सदस्य मिलकर करते थे।

ग्राम का प्रबन्ध पंचायतों के हाथ में था। ग्राम का मुखिया ‘ग्रामिक’ अथवा ‘ग्रामिणी’ कहलाता था। उसका चुनाव ग्राम के लोगों द्वारा ही होता था। केन्द्रीय सरकार पंचायत के कार्यों में हस्तक्षेप नहीं करती थी। लगभग 10 ग्रामों के ऊपर ‘गोप’ नाम का अधिकारी होता था।

4. सैनिक संगठन – मौर्य साम्राटों ने एक विशाल सेना का आयोजन कर रखा था | मैगस्थनीज़ के अनुसार चंद्रगुप्त मौर्य की सेना में 6 लाख पैदल, 30 हज़ार घुड़सवार, 9 हज़ार हाथी तथा 8 हज़ार रथ सम्मिलित थे। प्रत्येक रथ में तीन तथा प्रत्येक हाथी पर चार सैनिक होते थे। कृषक वर्ग को छोड़ कर सैनिकों की संख्या राज्य के अन्य सभी वर्गों में सबसे अधिक थी। उनका काम केवल लड़ाई करना था तथा उन्हें शान्ति के समय भी नियमित रूप से नकद वेतन दिया जाता था। सेना के प्रबन्ध के लिए तीस सदस्यों की परिषद् की व्यवस्था थी। इस परिषद् को आगे 6 समितियों में बांटा हुआ था। प्रत्येक समिति में पांच सदस्य होते थे और प्रत्येक समिति का अपना अलग कार्य था।

(क) पहली समिति का कार्य उन जहाजों की देखभाल करना था जो समुद्री लुटेरों को दण्ड देने के लिए होते थे। यह व्यापारियों से कर भी वसूल करती थी। इनके अध्यक्ष को ‘नावाध्यक्ष’ कहते थे।

(ख) दूसरी समिति का कार्य सेना को माल पहुंचाने वाली बैलगाड़ियों की देख-रेख करना था। इसके अध्यक्ष को ‘गो-अध्यक्ष’ कहते थे।
(ग) तीसरी समिति पैदल सैनिकों के हितों की रक्षा करती थी।
(घ) चौथी समिति का कार्य घुड़सवार सैनिकों की देखभाल करना था। इसके अध्यक्ष को ‘अश्वाध्यक्ष’ कहते थे।
(ङ) पांचवीं समिति हाथियों का प्रबन्ध करती थी तथा उनकी देखभाल करती थी। इसके अध्यक्ष को ‘हस्तीध्यक्ष’ कहते थे।
(च) छठी समिति का काम युद्ध में प्रयोग किए जाने वाले रथों का प्रबन्ध करना था। इसके अध्यक्ष को ‘अश्वाध्यक्ष’ कहते थे।

सच तो यह है कि चन्द्रगुप्त मौर्य एक महान् विजेता था। उसी के प्रयत्नों से ही भारत में महान् मौर्य साम्राज्य की स्थापना हुई। साम्राज्य का प्रशासनिक ढांचा भी आदर्श था। केन्द्रीय तथा प्रान्तीय शासन पूरी तरह से उसके नियन्त्रण में था। नगर तथा ग्राम प्रशासन भी उच्च आदर्शों पर आधारित था। न्याय निष्पक्ष था और सैनिक प्रबन्ध में किसी प्रकार की कोई कमी नहीं थी। प्रजा के हितों का विशेष रूप से ध्यान रखा जाता था। चन्द्रगुप्त मौर्य की सराहना करते हुए श्री भार्गव ने ठीक ही कहा है, “निःसन्देह वह अपने समय का सबसे शक्तिशाली शासक था।”

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 4 मौर्य युग

प्रश्न 2.
मौर्य काल के समाज एवं अर्थव्यवस्था की चर्चा करें।
उत्तर-
मौर्यकालीन भारत की सामाजिक एवं आर्थिक व्यवस्था की जानकारी हमें कौटिल्य के अर्थशास्त्र, मैगस्थनीज़ के वृत्तान्त तथा अशोक के अभिलेखों से मिलती है। इसका वर्णन इस प्रकार है

I. सामाजिक अवस्था

1. जाति-प्रथा-मौर्य काल में जाति-प्रथा भारतीय समाज का अभिन्न अंग बन चुकी थी। अर्थशास्त्र में चारों वर्गों का उल्लेख मिलता है। इसके अतिरिक्त प्रत्येक वर्ण के कर्तव्यों का भी वर्णन किया गया है। अशोक के शिलालेखों से भी जातिप्रथा का बोध होता है। शिलालेख V में कहा गया है कि महामात्रों की नियुक्ति ब्राह्मणों, विटों (अर्थात् वैश्यों), अनाथों आदि के हित के लिए की गई है। इस बात से स्पष्ट हो जाता है कि मौर्य समाज में कई जातियां थीं। समाज में ब्राह्मणों का आदर था। मैगस्थनीज़ लिखता है कि ब्राह्मणों को न तो कर देने पड़ते थे और न ही विवाह सम्बन्धी विषयों में उन पर कोई रोक थी। वे अपनी जाति से बाहर भी विवाह कर सकते थे। ब्राह्मणों के अतिरिक्त वैश्वों का भी समाज में आदर था। शूद्रों पर दया की जाती थी। शिलालेखों में अशोक ने आदेश दिया कि लोग उनसे अच्छा व्यवहार करें। मैगस्थनीज़ ने भी सात जातियों का वर्णन किया है। ये सात जातियां हैं-दार्शनिक, कृषक, सैनिक, शिकारी, शिल्पकार, निम्न श्रेणी के कर्मचारी, मन्त्री व उच्च अधिकारी। इससे स्पष्ट है कि उसे भारतीय जाति-प्रथा का ज्ञान था।

2. स्त्री का स्थान तथा विवाह व्यवस्था-मौर्यकालीन समाज में स्त्रियों की दशा अधिक अच्छी नहीं थी। पर्दा प्रथा प्रचलित थी। उन्हें उच्च शिक्षा नहीं दी जाती थी। वेश्यावृत्ति भी प्रचलित थी। कई वेश्याएं तो गुप्तचरों के रूप में कार्य करती थीं। स्त्रियों में जन्म, विवाह तथा रोगों सम्बन्धी अन्धविश्वास प्रचलित थे। इतना होने पर भी मौर्यकाल में स्त्रियों ने अपनी स्थिति को संवारा हुआ था। उन्हें पारिवारिक सम्पत्ति में भाग (Share) मिलता था। दहेज प्रथा प्रचलित थी। दुराचारी पति को तलाक दिया जा सकता था। विधवाएं पुनः विवाह कर सकती थीं। स्त्रियां अंग-रक्षिकाएं हुआ करती थीं। कुछ स्त्रियां उद्योग-धंधों में भी निपुण थीं। उन दिनों आठ प्रकार के विवाह प्रचलित थे। अर्थशास्त्र में उन विवाहों का वर्णन आता है। लड़की की शादी की आयु 12 वर्ष थी लड़के की 16 वर्ष होती थी। उच्च समाज में बहु-विवाह की प्रथा प्रचलित थी। बिन्दुसार की 16 पत्नियों का तथा अशोक की 5 पत्नियों का उल्लेख मिलता है। मैगस्थनीज़ भी लिखता है कि भारत के कुछ धनी लोग कई स्त्रियों से विवाह करते थे।

3. भोजन, आमोद-प्रमोद तथा अन्य तथ्य-अधिकतम लोग मांसाहारी थे। वे अनेक पशु-पक्षियों का मांस प्रयोग करते थे। परन्तु बौद्ध धर्म के प्रसार के कारण शाकाहारी लोगों की संख्या बढ़ने लगी थी। स्वयं अशोक ने शाही रसोई के लिए पशुओं का वध बंद करवा दिया था। शाकाहारी लोग गेहूँ की चपातियां तथा सब्जियों का प्रयोग करते थे। लोगों के आमोद-प्रमोद के कई साधन थे। राजा शिकार से अपना दिल बहलाया करता था। शिकार पर जाता हुआ राजा पूरी सज-धज से निकलता था। उसके साथ-साथ अंग-रक्षिकाएं, सैनिक तथा अनेक लोग जाते थे। नट, वादक, नर्तक आदि अपने-अपने ढंग से जनता का मनोरंजन करते थे। ग्रामों में अनेक प्रकार के खेल-तमाशे होते थे। जुआ खेलने का भी रिवाज था। उस समय भारतीय लोग सौंदर्य प्रेमी थे। पुरुषों तथा स्त्रियों में आभूषण पहनने का रिवाज था। वस्त्रों पर सोने की कढ़ाई का काम होता था। अधिक धनी लोग रत्न आदि धारण करते थे। राज्य के बड़े-बड़े अधिकारी छत्र धारण करके सवारियों पर निकलते थे।

II. अर्थव्यवस्था

1. कृषि-मौर्य काल में भी आज की भान्ति लोगों का मुख्य व्यवसाय कृषि था। मैगस्थनीज़ के अनुसार देश में कृषक वर्ग की संख्या सबसे अधिक थी। खेत जोतने के लिए हल तथा बैलों की जोड़ी से काम किया जाता था। सिंचाई के लिए किसानों को केवल वर्षा पर ही निर्भर नहीं रहना पड़ता था। कृषकों को सिंचाई सुविधाएं प्रदान करने के लिए मौर्य शासकों ने कई नहरों तथा झीलों का निर्माण करवाया। चन्द्रगुप्त मौर्य द्वारा सौराष्ट्र में बनवाई गई सुदर्शन झील इस बात की पुष्टि करती है कि मौर्य शासक अपने कृषकों को सिंचाई सुविधाएं प्रदान करना अपना परम कर्तव्य समझते थे। भूमि को उपजाऊ बनाने के लिए खाद का प्रयोग होता था। उस समय की मुख्य उपजें गेहूँ, चावल, चना, गन्ना मटर, कपास आदि थीं।

2. व्यापार-मौर्य काल में आन्तरिक तथा विदेशी व्यापार दोनों ही उन्नति की चरम सीमा पर पहुंच चुके थे। आन्तस्कि व्यापार मुख्यतः स्थल मार्गों द्वारा होता था। पाटलिपुत्र देश के सभी भागों से इन्हीं मार्गों द्वारा जुड़ा हुआ था। इन मार्गों की देखभाल के लिए विशेष अधिकारियों की नियुक्ति की जाती थी। स्थल मार्गों के अतिरिक्त नदियों द्वारा भी कुछ आंतरिक व्यापार किया जाता था। उस समय देश के विभिन्न भाग विभिन्न वस्तुओं के लिए प्रसिद्ध थे। यदि कश्मीर अपने हीरों के लिए प्रसिद्ध था तो बंगाल मलमल के लिए। इसी प्रकार यदि हिमाचल प्रदेश चमड़े के लिए प्रसिद्ध था तो नेपाल अपनी ऊनी वस्तुओं के लिए। विदेशी व्यापार जल तथा स्थल दोनों मार्गों द्वारा होता था। उस समय हमारे व्यापारिक सम्बन्ध चीन, ईरान तथा मित्र आदि देशों से थे। चीन में रेशमी कपड़ा तथा ईरान से मोती भारत में आते थे। भारत से मिस्र को नील, हाथी दांत तथा मोती आदि भेजे जाते थे।

3. अन्य उद्योग-धन्धे-कृषि तथा व्यापार के अतिरिक्त मौर्य काल के लोग कुछ अन्य उद्योग-धन्धे भी करते थे। उस समय सूती कपड़ा, ऊनी कपड़ा तथा रेशमी कपड़ा उद्योग विशेष रूप से चमका हुआ था। मथुरा, काशी तथा वत्स आदि सूती कपड़ा उद्योग के मुख्य केन्द्र बन गए थे। लोग कपड़ों पर सोने तथा चांदी की कढ़ाई का भी काम बड़े सुन्दर ढंग से करते थे। बहुत-से लोग अपनी आजीविका वनों से प्राप्त करते थे। लकड़ी काटना, ढोना, उससे दैनिक प्रयोग की वस्तुएं तैयार करना उनके प्रमुख कार्य थे। कुछ लोग धातुओं से बर्तन तथा आभूषण बनाने का कार्य करते थे। उस समय भारत में सोना, चांदी, तांबा और लोहा पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध थे। लोहे तथा तांबे का प्रयोग अस्त्र-शस्त्र में और सोने-चांदी का प्रयोग आभूषणों में होता था। मौर्य काल में चमड़े का उद्योग भी खूब पनपा हुआ था। चमड़े का प्रयोग जूते बनाने तथा शस्त्र बनाने में किया जाता था। लोगों को विभिन्न रंगों के जूते पहनने का बड़ा चाव था। – सच तो यह है कि मौर्यकालीन समाज उच्च तथा निम्न तथ्यों का मिश्रण था। लोग मांसाहारी भी थे तथा शाकाहारी भी। कुछ क्षेत्रों में स्त्रियों की दशा बहुत अच्छी थी तो कुछ में नहीं। कृषि के अतिरिक्त कई अन्य व्यवसाय भी प्रचलित थे। कौटिल्य का अर्थशास्त्र, मैगस्थनीज़ का वृत्तान्त तथा पुराण इस बात के साक्षी हैं कि मौर्यकालीन भारत की सामाजिक तथा आर्थिक अवस्था अन्य युगों से यदि अच्छी नहीं थी तो खराब भी नहीं थी।

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 4 मौर्य युग

महत्त्वपूर्ण परीक्षा-शैली प्रश्न

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न

1. उत्तर एक शब्द से एक वाक्य तक

प्रश्न 1.
मौर्य वंश के इतिहास की जानकारी के दो महत्त्वपूर्ण स्रोत बताओ।
उत्तर-
इण्डिका तथा अर्थशास्त्र मौर्य वंश की जानकारी के दो महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं।

प्रश्न 2.
मैगस्थनीज कब से कब तक मौर्य दरबार में रहा ?
उत्तर-
मैगस्थनीज 302 ई० पू० से 298 ई० पू० तक मौर्य दरबार में रहा।

प्रश्न 3.
विशाखदत्त का “मुद्राराक्षस” मौर्य वंश से संबंधित किस घटना पर प्रकाश डालता है ?
उत्तर-
विशाखदत्त का “मुद्राराक्षस” मौर्य वंश की स्थापना पर प्रकाश डालता है।

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 4 मौर्य युग

प्रश्न 4.
चन्द्रगुप्त मौर्य को राजगद्दी दिलाने में किस व्यक्ति का सबसे अधिक योगदान था ?
उत्तर-
चन्द्रगुप्त मौर्य को राजगद्दी दिलाने में कौटिल्य का सबसे अधिक योगदान था।

प्रश्न 5.
कौटिल्य ने मगध के किस राजवंश का समूल नाश किया ?
उत्तर-
कौटिल्य ने मगध के नन्द वंश का समूल नाश किया।

प्रश्न 6.
मौर्य वंश की स्थापना से भारत में किस विदेशी सत्ता का अन्त हुआ ?
उत्तर-
मौर्य वंश की स्थापना से भारत में यूनानी सत्ता का अन्त हुआ।

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 4 मौर्य युग

प्रश्न 7.
चन्द्रगुप्त मौर्य और सैल्यूकस के बीच युद्ध कब हुआ ?
उत्तर-
चन्द्रगुप्त मौर्य और सैल्यूकस के बीच युद्ध 305 ई० पू० में हुआ।

प्रश्न 8.
मौर्य काल में स्थायी गुप्तचरों को क्या कहते थे ?
उत्तर-
मौर्य काल में स्थायी गुप्तचरों को ‘समस्त’ कहते थे।

प्रश्न 9.
मौर्यवंश का दूसरा शासक कौन था ?
उत्तर-
मौर्यवंश का दूसरा शासक बिन्दुसार था।

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प्रश्न 10.
अशोक महान् का सिंहासनारोहण कब हुआ ?
उत्तर-
अशोक महान् का सिंहासनारोहण 273 ई० पू० में हुआ।

प्रश्न 11.
अशोक ने कौन-सा प्रदेश जीता ?
उत्तर-
अशोक ने कलिंग प्रदेश जीता।

प्रश्न 12.
कलिंग युद्ध के परिणामस्वरूप अशोक ने कौन-सा धर्म अपनाया ?
उत्तर-
कलिंग युद्ध के परिणामस्वरूप अशोक ने बुद्ध धर्म अपनाया।

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2. रिक्त स्थानों की पूर्ति

(i) मकदूनिया के शासक सिकंदर ने …………….. ई० पू० में भारत पर आक्रमण किया।
(ii) …………… मगध का अंतिम राजवंश था।
(iii) मौर्य वंश का संस्थापक …………… था।
(iv) चन्द्रगुप्त मौर्य के अधीन मगध की राजधानी ………….. थी।
(v) अशोक ने …………… बौद्ध सभा बुलवाई।
उत्तर-
(i) 326
(ii) नंद वंश
(iii) चन्द्रगुप्त मौर्य
(iv) पाटलिपुत्र
(v) तीसरी।

3. सही/ग़लत कथन-

(i) सैल्यकस ने चन्द्रगप्त मौर्य को पराजित किया। — (×)
(ii) अशोक ने लोहे के विशाल स्तम्भ बनवाए। — (×)
(iii) महामात्र सिकन्दर के अफ़सर थे। — (×)
(iv) अशोक ने कलिंग युद्ध के पश्चात् बौद्ध धर्म अपनाया। — (√)
(v) अजातशत्रु ने सुदर्शन झील का निर्माण करवाया। — (√)

4. बहु-विकल्पीय प्रश्न

प्रश्न (i)
‘इण्डिका’ का लेखक था-
(A) चन्द्रगुप्त मौर्य
(B) मैगस्थनीज़
(C) कौटिल्य
(D) जीवक।
उत्तर-
(C) कौटिल्य

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 4 मौर्य युग

प्रश्न (ii)
‘अर्थशास्त्र’ का लेखक था-
(A) मैगस्थनीज़
(B) सैल्यूकस
(C) कौटिल्य
(D) नागार्जुन।
उत्तर-
(B) सैल्यूकस

प्रश्न (iii)
‘सांची’ का स्तूप बनवाया था-
(A) अशोक
(B) चन्द्रगुप्त मौर्य
(C) हर्षवर्धन
(D) समुद्रगुप्त।
उत्तर-
(A) अशोक

प्रश्न (iv)
चार शेरों वाला अशोक स्तम्भ है-
(A) इलाहाबाद स्तंभ
(B) महरौली का स्तंभ
(C) देवगिरी का स्तंभ
(D) सारनाथ का स्तंभ।
उत्तर-
(D) सारनाथ का स्तंभ।

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 4 मौर्य युग

प्रश्न (v)
चन्द्रगुप्त के दरबार में यूनानी राजदूत था-
(A) सैल्यूकस
(B) मैगस्थनीज़
(C) कंटकशोधन
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(A) सैल्यूकस

II. अति छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
गांधार की राजधानी का क्या नाम था तथा इससे सम्बन्धित दो ईरानी शासकों के नाम बताएं।
उत्तर-
गांधार की राजधानी तक्षशिला थी। इससे सम्बन्धित दो ईरानी शासक थे-सायरेस तथा डोरिअस प्रथम।

प्रश्न 2.
सिंध नदी के उस पार के क्षेत्र में प्रयोग की जाने वाली लिपि का नाम बताएं तथा इस पर किस देश की लिपि का प्रभाव था ?
उत्तर-
सिंध नदी के उस पार के क्षेत्र में खरोष्ठी लिपि का प्रयोग किया जाता था। इस लिपि पर ईरान की अरामी लिपि का प्रभाव था।

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प्रश्न 3.
संसार के सबसे पहले इतिहासकार का नाम क्या था तथा वह भारतीयों के बारे में कौन-सी दो दिलचस्प बातें बताता है ?
उत्तर-
संसार का सबसे पहला इतिहासकार हैरोडोटस था। वह बताता है कि अकीमानी सेना के हिन्दुस्तानी सिपाहियों के वस्त्र सूती थे और तीर लोहे के नोक वाले थे।

प्रश्न 4.
सिकन्दर के सम्पर्क में आए पंजाब के दो राज्यों के नाम।
उत्तर-
सिकन्दर के सम्पर्क में आए पंजाब के दो राज्य थे-पुरु तथा छोटा पुरु।

प्रश्न 5.
सिकन्दर किन लोगों के साथ युद्ध में घायल हुआ और ये किस इलाके के रहने वाले थे ?
उत्तर-
सिकन्दर मल्लों के साथ युद्ध में बुरी तरह घायल हुआ और ये लोग मध्य सिन्धु घाटी में रहते थे।

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प्रश्न 6.
सिकन्दर की मृत्यु कब और कहां हुई ?
उत्तर-
सिकन्दर की मृत्यु 323 ई० पू० में बेबिलोन के स्थान पर हुई।

प्रश्न 7.
सिकन्दर कब से कब तक भारत में रहा तथा भारतीय इतिहास के तिथि क्रम के लिए सिकन्दर के आक्रमण का क्या महत्त्व है ?
उत्तर-
सिकन्दर 327 ई० पू० से 325 ई० पू० तक भारत में रहा। उसके आक्रमण की तिथि भारतीय इतिहास के तिथि क्रम की पहली निश्चित घटना मानी जाती है और इसे भारतीय इतिहास के तिथि क्रम का आधार माना जाता है।

प्रश्न 8.
सिकन्दर के आक्रमण के समय मगध के शासक का नाम तथा उसकी राजधानी का नाम क्या था ?
उत्तर-
सिकन्दर के आक्रमण के समय मगध का शासक महापद्मनन्द था। उसकी राजधानी पाटलिपुत्र थी।

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प्रश्न 9.
चन्द्रगुप्त का सम्बन्ध किस कबीले तथा वर्ण के साथ माना जाता है ?
उत्तर-
चन्द्रगुप्त का सम्बन्ध मौर्य कबीले से तथा वैश्व वर्ण से था।

प्रश्न 10.
चन्द्रगुप्त ने अपने राजनीतिक जीवन के आरम्भ में उत्तर-पश्चिम में कौन-से दो प्रदेश जीते तथा वहां वह किस विजेता को मिला था ?
उत्तर-
चन्द्रगुप्त ने उत्तर-पश्चिम में पंजाब तथा सिन्ध के प्रदेश जीते। यहां वह महान् विजेता सिकन्दर से मिला था।

प्रश्न 11.
चन्द्रगुप्त के दो उत्तराधिकारियों के नाम बताएं।
उत्तर-
चन्द्रगुप्त के दो उत्तराधिकारी थे-बिन्दुसार और अशोक।

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प्रश्न 12.
चन्द्रगुप्त के मुख्य सलाहकार तथा उसकी पुस्तक का क्या नाम था ?
उत्तर-
चन्द्रगुप्त के मुख्य सलाहकार का नाम कौटिल्य (चाणक्य) था। कौटिल्य की प्रसिद्ध पुस्तक अर्थशास्त्र है।

प्रश्न 13.
चन्द्रगुप्त के दरबार में आए यूनानी राजदूत तथा उसकी किताब का नाम बताओ।
उत्तर-
चन्द्रगुप्त के दराबर में आए यूनानी राजदूत का नाम मैगस्थनीज़ था। उसकी पुस्तक का नाम था-इण्डिका।

प्रश्न 14.
कलिंग विजय करने वाले मौर्य शासक का नाम क्या था और यह विजय कब की गई ?
उत्तर-
कलिंग को विजय करने वाला मौर्य शासक अशोक था। यह विजय 261 ई० पू० में की गई।

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प्रश्न 15.
मौर्य सैनिक प्रबन्ध के चार मुख्य भाग कौन-से थे ?
उत्तर-
मौर्य सैनिक प्रबन्ध के चार मुख्य भाग थे-प्यादे (पैदल), घुड़सवार, रथ, हाथी, सवार एवं शस्त्रागार।

प्रश्न 16.
मौर्य साम्राज्य के उपराज्यों की राजधानियों के नाम बताओ।
उत्तर-
मौर्य साम्राज्य उपराज्यों में बंटा हुआ था। केन्द्रीय प्रान्त की राजधानी पाटलिपुत्र, उत्तर-पश्चिमी प्रान्त की तक्षशिला, पश्चिमी प्रान्त की उज्जैन, पूर्वी प्रान्त की तोशाली तथा दक्षिणी प्रान्त की राजधानी सुवर्णगिरि थी।

प्रश्न 17.
मौर्य प्रशासन में जिले को क्या कहा जाता था तथा इसके तीन प्रमुख अधिकारियों के नाम।
उत्तर-
मौर्य प्रशासन में जिले को जनपद कहा जाता था। इसके तीन प्रमुख अधिकारी प्रादेशिक, राजुक तथा युक्त थे।

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प्रश्न 18.
मौर्य काल में सिक्के का नाम क्या था ?
उत्तर-
मौर्य काल में प्रचलित सिक्के का नाम ‘पण’ था।

प्रश्न 19.
मौर्य काल में महामंत्री तथा सेनापति को क्या वेतन मिलता था ?
उत्तर-
मौर्य काल में महामन्त्री तथा सेनापति दोनों को ही 48,000 पण वेतन के रूप में मिलते थे।

प्रश्न 20.
ठप्पों वाले सिक्के पर मिलने वाले कुछ सांकेतिक चिन्ह।
उत्तर-
ठप्पों वाले सिक्कों पर मुख्य रूप से सूर्य, पर्वत, चांद, पशु, हथियार आदि के सांकेतिक चिन्ह मिलते हैं।

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प्रश्न 21.
मौर्य काल में शिल्पकारों की श्रेणियों की कौन-सी तीन विशेषताएं थीं ?
उत्तर-
मौर्य काल में शिल्पकारों की श्रेणियों की तीन विशेषताएं थीं-धंधे का स्थानीयकरण, व्यवसाय का पैतृक होना तथा एक सरकार के नेतृत्व में काम करना।

प्रश्न 22.
मौर्य काल में पशुचार कबीले कौन-से चार पशु पालते थे ?
उत्तर-
मौर्य काल में पशुचार कबीले गाय, भैंस, बकरी और भेड़ पालते थे।

प्रश्न 23.
मौर्य काल में अस्तित्व में आई चार जातियों के नाम लिखिए।
उत्तर-
मौर्य काल में अस्तित्व में आई चार जातियां थीं-कुम्हार, जुलाहे, नाई और नर्तकियां।

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प्रश्न 24.
अशोक के शिलालेख कौन-सी दो लिपियों में हैं ?
उत्तर-
अशोक के शिलालेख ब्राह्मी तथा खरोष्ठी लिपियों में हैं।

प्रश्न 25.
अशोक के लौरिया नन्दनगढ़ तथा सारनाथ के स्तम्भों के सिरों पर कौन-से जानवर की मूर्ति बनी हुई है तथा ये स्तम्भ वर्तमान भारत के किन दो राज्यों में हैं ?
उत्तर-
अशोक के लौरिया नन्दनगढ़ सारनाथ के स्तम्भों पर शेर की मूर्ति बनी हुई है। ये वर्तमान भारत के बिहार तथा उत्तर प्रदेश में है।

प्रश्न 26.
मौर्य काल में इतिहास की जानकारी के चार प्रकार के स्रोतों का नाम बताएं।
उत्तर-
मौर्य काल के इतिहास की जानकारी के चार स्रोत हैं-कौटिल्य का अर्थशास्त्र, मैगस्थनीज़ की इण्डिका, अशोक के अभिलेख तथा समकालीन सिक्के।

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III. छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
क्या सिकन्दर का आक्रमण भारत के इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण घटना है ?
उत्तर-
सिकन्दर के आक्रमण का भारतीय इतिहास पर सीधे तौर पर कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ा। सिकन्दर की मृत्यु के पश्चात् उसके सेनापति पंजाब के किसी भी भाग को अपने अधीन रखने में असफल रहे। वे दस वर्षों के अन्दर-अन्दर गांधार भी खाली कर गए। संभवतः यही कारण है कि प्राचीन भारतीय साहित्य में सिकन्दर के नाम का कहीं कोई उल्लेख नहीं मिलता। इतना अवश्य है कि उसके सेनापति सैल्यूकस ने ईरान और बल्ख में अपना राज्य स्थापित कर लिया और उसके राज्य का मौर्य साम्राज्य के साथ सम्पर्क तथा आदान-प्रदान रहा। इसका व्यापार तथा कला के क्षेत्र में कुछ प्रभाव अवश्य पड़ा। सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि सिकन्दर के आक्रमण की तिथि भारतीय इतिहास के तिथिक्रम में पहली निश्चित घटना मानी जाती है। इसलिए इसे भारतीय इतिहास के तिथिक्रम का आधार माना जाता है।

प्रश्न 2.
मौर्य कालीन धार्मिक उच्च वर्ग के विषय में चर्चा करो।
उत्तर-
मौर्य काल की सामाजिक व्यवस्था में सैद्धान्तिक रूप से सबसे ऊंचा पद ब्राह्मणों का था। व्यावहारिक रूप में भी उनके कुछ विशेष अधिकार समझे जाते थे। चन्द्रगुप्त मौर्य का प्रमुख सलाहकार कौटिल्य था जोकि एक ब्राह्मण था। मैगस्थनीज़ के अनुसार ब्राह्मण एक छोटा किन्तु प्रभावशाली वर्ग था। इस वर्ग का कार्य मुख्यतः यज्ञ करना, मृतक संस्कार करना और ज्योतिष लगाना था। मैगस्थनीज़ के अनुसार वह दर्शन में जीवन को एक स्वप्न की भांति मानते थे। संभवतः यह संकेत दार्शनिकों की ओर है। परन्तु दार्शनिकों के अतिरिक्त मैगस्थनीज़ ब्राह्मणों और श्रमणों का भी उल्लेख करता है। अशोक के शिला आदेशों में भी ब्राह्मणों एवं श्रमणों का उल्लेख प्रायः साथ-साथ इकट्ठा किया गया है। इससे हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि उस समय बौद्ध, जैन और आजीविक भिक्षुओं का महत्त्व उतना ही था जितना कि ब्राह्मणों का ।

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प्रश्न 3.
सैल्यूकस पर एक नोट लिखो।
उत्तर-
सैल्यूकस सिकन्दर का सेनापति था। सिकन्दर की मृत्यु के पश्चात् उसने सम्पूर्ण पश्चिमी तथा मध्य एशिया पर अपनी सत्ता स्थापित कर ली थी। 305 ई० पू० में उसने भारत पर आक्रमण कर दिया। भारत में उस समय चन्द्रगुप्त मौर्य अपनी शक्ति बढ़ा रहा था। उसने सैल्यूकस का सामना किया और उसे पराजित किया। अतः सैल्यूकस को चन्द्रगुप्त के साथ संधि करनी पड़ी । संधि के अनुसार सैल्यूकस ने आधुनिक काबुल, कन्धार तथा बिलोचिस्तान के प्रदेश चन्द्रगुप्त को दे दिए। मैगस्थनीज़ सैल्यूकस का राजदूत बनकर चन्द्रगुप्त मौर्य की राजधानी में आया। बदले में चन्द्रगुप्त ने सैल्यूकस को उपहार के रूप में 500 हाथी दिए।

प्रश्न 4.
चन्द्रगुप्त मौर्य की प्रमुख विजयों का संक्षिप्त वर्णन करो।
अथवा
चन्द्रगुप्त मौर्य ने किस प्रकार मौर्य राजवंश का शासन स्थापित किया ?
उत्तर-
चन्द्रगुप्त मौर्य एक महान् विजेता था। उसने अनेक विजय प्राप्त की और भारत में मौर्य साम्राज्य की नींव रखी। सबसे पहले उसने 326 ई० पू०में पंजाब पर आक्रमण किया और इसे यूनानियों के अधिकार से मुक्त कराया। इसके बाद उसने उत्तर-पश्चिमी भारत पर विजय प्राप्त की। उसकी सबसे बड़ी विजय मगध के नन्दों के विरुद्ध थी। मगध पर उसने 324 ई० पू० में अधिकार किया। यही प्रदेश भारत में मौर्य साम्राज्य की आधारशिला बना। मगध के बाद चन्द्रगुप्त ने बंगाल पर विजय प्राप्त की और फिर सैल्यूकस से युद्ध किया। युद्ध में सैल्यूकस बुरी तरह से पराजित हुआ। चन्द्रगुप्त मौर्य ने सौराष्ट्र और मैसूर को भी विजय किया।

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प्रश्न 5.
चन्द्रगुप्त मौर्य के शासन-प्रबन्ध की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
चन्द्रगुप्त मौर्य ने एक कुशल शासन-प्रणाली की नींव रखी। केन्द्रीय शासन का मुखिया स्वयं सम्राट् था। उसकी शक्तियां असीम थीं। अपनी सहायता के लिए उसने अनेक मंत्रियों की नियुक्ति की हुई थी। सारा शासन चार प्रान्तों में बंटा हुआ था। प्रान्त के मुखिया को कुमार कहते थे। वह प्रायः राजघराने का ही कोई व्यक्ति होता था। नगरों का प्रबन्ध नगर अध्यक्ष के अधीन था। बड़े-बड़े नगरों के प्रबन्ध के लिए 30-30 सदस्यों की परिषदें थीं। प्रत्येक परिषद् पांच-पांच सदस्यों के छ: बोर्डों में बंटी हुई थी। गाँवों का शासन पंचायतों के हाथ में था। न्याय के लिए दीवानी और फौजदारी अदालतें थीं। प्रजा के हितों की ओर विशेष ध्यान दिया जाता था। चन्द्रगुप्त मौर्य का सैनिक संगठन भी उच्चकोटि का था। सेना में 6 लाख पैदल, 30 हजार घुड़सवार , 9 हज़ार हाथी और 8 हज़ार रथ शामिल थे।

प्रश्न 6.
मैगस्थनीज़ कौन था ? उसने भारतीय समाज के बारे में क्या लिखा है ?
अथवा
मैगस्थनीज़ पर एक टिप्पणी लिखो।
उत्तर-
मैगस्थनीज़ चन्द्रगुप्त मौर्य के दरबार में एक यूनानी राजदूत था। वह चन्द्रगुप्त मौर्य की राजधानी पाटलिपुत्र में 302 ई० पू० से 298 ई० पू० तक रहा। इन पांच वर्षों में उसने भारत में जो कुछ सुना, देखा अथवा अनुभव किया, उसका वर्णन उसने ‘इण्डिका’ नामक एक पुस्तक में किया है। उसके अनुसार मौर्य काल में भारतीय समाज 7 वर्गों में बंटा हुआ था। ब्राह्मणों तथा दार्शनिकों को समाज में उच्च स्थान प्राप्त था। भारत में दास-प्रथा प्रचलित नहीं थी। लोगों का मुख्य भोजन गेहूँ, फल, चावल तथा दूध था। यज्ञ तथा बलि के अवसर पर लोग मदिरापान भी करते थे। उस समय लोगों का मुख्य व्यवसाय कृषि था। कृषि काफ़ी उन्नत थी। सिंचाई का प्रबन्ध राज्य करता था। कुछ लोग व्यापार भी करते थे। वस्र बनाने का उद्योग काफ़ी उन्नत था।

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प्रश्न 7.
कौटिल्य का अर्थशास्त्र क्या है ? भारतीय इतिहास में इसका क्या महत्त्व है ?
अथवा
कौटिल्य के अर्थशास्त्र पर एक टिप्पणी लिखो।
उत्तर-
कौटिल्य का अर्थशास्त्र राजनीति से सम्बन्धित एक महत्त्वपूर्ण ग्रंथ है। इसकी रचना कौटिल्य ने की थी जो एक बहुत बड़ा विद्वान् और चन्द्रगुप्त मौर्य का प्रधानमन्त्री था। उसने इस ग्रंथ में प्रशासन के सिद्धान्तों का वर्णन किया है। इस ग्रंथ का भारतीय इतिहास में बहुत महत्त्व है। यह ग्रंथ मौर्य काल का सुन्दर चित्र प्रस्तुत करता है। इसमें हमें चन्द्रगुप्त मौर्य के शासन प्रबन्ध तथा उसके चारित्रिक गुणों की जानकारी मिलती है। यह ग्रंथ मौर्य काल के समाज पर भी प्रकाश डालता है। सबसे बड़ी बात यह है कि इसमें दिए गए शासन के सिद्धान्तों की झलक आज के भारतीय शासन में भी देखी जा सकती है।

प्रश्न 8.
महाराजा अशोक ने बौद्ध धर्म को फैलाने के लिए क्या-क्या कार्य किए ?
अथवा
अशोक ने किस प्रकार बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार किया ?
उत्तर-
कलिंग युद्ध के बाद महाराजा अशोक ने बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए अपना तन, मन, धन, सब कुछ लगा दिया। उसने जिन सिद्धान्तों का प्रचार किया, उनका पालन स्वयं भी किया। उसने इस धर्म के नियमों को स्तम्भों, शिलाओं तथा गुफाओं पर खुदवाया। ये नियम आम बोल-चाल की भाषा में खुदवाए गए ताकि साधारण लोग भी इन्हें पढ़ सकें। उसने अनेक स्तूप तथा विहार बनवाए जो बौद्ध धर्म के प्रचार का केन्द्र बने। उसने बौद्ध भिक्षुओं को आर्थिक सहायता दी। उसने बौद्ध धर्म के तीर्थस्थानों की यात्रा की। अशोक का पुत्र महेन्द्र तथा उसकी पुत्री संघमित्रा बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए लंका में गए। इस प्रकार अशोक ने बौद्ध धर्म को विश्व धर्म बना दिया।

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प्रश्न 9.
कलिंग युद्ध के कारण अशोक के जीवन में क्या-क्या परिवर्तन आए ?
अथवा
कलिंग युद्ध के महत्त्व का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
कलिंग युद्ध 260 ई० पू० में हुआ। भले ही इस युद्ध में अशोक विजयी रहा तो भी युद्ध में हुए रक्तपात को देखकर अशोक का जीवन बिल्कुल ही बदल गया। उसके जीवन में आए कुछ महत्त्वपूर्ण परिवर्तनों का वर्णन इस प्रकार है

  • कलिंग युद्ध में हुए रक्तपात को देखकर अशोक शांतिप्रिय बन गया और उसने बौद्ध धर्म को ग्रहण कर लिया।
  • कलिंग के युद्ध के बाद अशोक प्रजापालक बन गया। उसने प्रदेशों को जीतने के स्थान पर लोगों के दिलों को जीतना अपना उद्देश्य बना लिया।
  • इस युद्ध के पश्चात् अशोक अंहिसा का पुजारी बन गया। उसने मांस खाना छोड़ दिया और शिकार खेलना बन्द कर दिया। उसने युद्धों को भी त्याग दिया।
  • अशोक अब बौद्ध धर्म के प्रचार कार्य में जुट गया। उसने इसे राजधर्म घोषित कर दिया। उसने बौद्ध धर्म के प्रचार
    के लिए विदेशों में भी प्रचारक भेजे।

प्रश्न 10.
गुप्तचर व्यवस्था ने मौर्य साम्राज्य की किस प्रकार सहायता की ?
उत्तर-
गुप्तचर व्यवस्था ने मौर्य सम्राट को देश में शांति तथा व्यवस्था बनाए रखने में बहुत सहायता की। चन्द्रगुप्त मौर्य के प्रधानमंत्री कौटिल्य का विचार था कि राजा को साम्राज्य में गुप्तचरों का एक जाल बिछा देना चाहिए। इन्हें राज्य में हो रही छोटी-बड़ी घटनाओं का पता लगाकर राजा को सूचित करना चाहिए । यहां तक कि मंत्रियों तथा राजकुमारों पर भी गुप्तचरों की निगरानी होनी चाहिए। इन बातों को ध्यान में रखते हुए चन्द्रगुप्त मौर्य ने एक गुप्तचर विभाग की स्थापना की। वह गुप्तचरों से प्राप्त सूचनाओं पर तुरन्त कार्यवाही करता था जिससे राज्य में शांति-व्यवस्था भंग नहीं हो सकती थी। अशोक के समय में गुप्तचरों को ‘परिवारिक’ कहा जाता था। चन्द्रगुप्त मौर्य की भांति वह भी गुप्तचरों से प्राप्त सूचनाओं को बहुत महत्त्व देता था। वास्तव में मौर्य साम्राज्य की सफलता में गुप्तचरों का बड़ा हाथ था।

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प्रश्न 11.
मौर्य साम्राज्य में अधिकारियों को वेतन किस प्रकार मिलता था ? अधिक वेतन के क्या सामाजिक तथा आर्थिक परिणाम निकले ?
उत्तर-
मौर्य साम्राज्य कई प्रशासनिक इकाइयों में विभाजित था। प्रत्येक प्रशासनिक इकाई के प्रबन्ध के लिए अनेक अधिकारी नियुक्त थे। अधिकारियों का वेतन बहुत अधिक होता था। उदाहरणस्वरूप प्रधानमंत्री तथा सेनापति दोनों को 48 हज़ार पण वेतन मिलता था। राजसभा अधिकारी तथा संगृहिती का वेतन 24-24 हज़ार पण था। अन्य अधिकारियों को 500500 पण वेतन मिलता था। अधिक वेतनों का देश की सामाजिक तथा आर्थिक व्यवस्था पर बुरा प्रभाव पड़ा । इससे जहां राजकोष पर बोझ बढ़ा, वहां देश में अमीर-गरीब का अन्तर भी बढ़ने लगा। अधिकारियों को वेतन देने के लिए अधिक कर लगाने पड़े जिससे साधारण जनता दिन-प्रतिदिन निर्धन होने लगी।

प्रश्न 12.
मौर्य काल में भाषा तथा साहित्य के विकास के विषय में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर-
मौर्य काल साहित्यिक दृष्टि से काफ़ी महत्त्वपूर्ण था। तत्कालीन साहित्य से ज्ञात होता है कि उस समय संस्कृत भाषा के साथ-साथ ‘प्राकृत भाषा’ का भी काफ़ी विकास हो रहा था, परन्तु संस्कृत भाषा का महत्त्व अधिक था। इस काल का मुख्य ग्रंथ ‘अर्थशास्त्र’ संस्कृत में ही लिखा गया था। इसे चन्द्रगुप्त मौर्य के गुरु कौटिल्य ने लिखा था। प्राकृत भाषा का प्रयोग मुख्य रूप से उस समय के वंश साहित्य में मिलता है। जातक कथाओं की भाषा प्राकृत ही है। प्राकृत भाषा की लोकप्रियता का पता हमें इस बात से लगता है कि सम्राट अशोक ने अपने राज्यादेशों में इसी भाषा का प्रयोग किया है। इसके लिए ब्राह्मी लिपि अपनाई गई। गांधार प्रदेश में अशोक ने अपने शिलालेखों में खरोष्ठी लिपि का प्रयोग किया।

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प्रश्न 13.
मैगस्थनीज़ पाटलिपुत्र नगर के प्रशासन के बारे में क्या बताता है ?
उत्तर-
मैगस्थनीज़ के अनुसार पाटलिपुत्र नगर का प्रशासन अन्य बड़े नगरों की भांति चलता था। इसके प्रबन्ध के लिए ‘नागरिक’ नामक अधिकारी होता था। उसकी सहायता के लिए ‘स्थानिक ‘ तथा ‘गोप’ नामक दो कर्मचारी होते थे। एक न्याय अधिकारी भी उसकी सहायता करता था। मैगस्थनीज़ ने नगर प्रबन्ध के लिए अधिकारियों की छः समितियों का उल्लेख भी किया है। प्रत्येक समिति में पांच सदस्य होते थे। पहली तथा दूसरी समिति क्रमश: शिल्पकारों तथा विदेशियों के हितों की रक्षा करती थी। तीसरी समिति जन्म-मरण का विवरण रखती थी। चौथी समिति का कार्य व्यापार तथा व्यापारियों के लिए नियम लाग करना था। पांचवीं समिति तैयार माल का निरीक्षण करती थी। छठी समिति का कार्य बिक्री कर एकत्रित करना था। नगर की शिक्षा, अस्पतालों, मंदिरों तथा अन्य जन-कल्याण सम्बन्धी संस्थाओं का प्रबन्ध परिषद् के 30 सदस्य मिलकर करते थे।

प्रश्न 14.
मौर्यकाल में कृषकों तथा खेती-बाड़ी की क्या स्थिति थी ?
उत्तर-
मौर्य साम्राज्य में किसानों की स्थिति काफ़ी महत्त्वपूर्ण थी तथा सामाजिक वर्गों में उनको दूसरा स्थान प्राप्त था। किसानों की कई श्रेणियां थीं। इनमें छोटे ज़मींदार तथा खेतीहर किसान प्रमुख थे। किसान उपज का चौथा हिस्सा कर के रूप में देते थे। कुछ किसानों को राज्य की ओर से सिंचाई की सुविधाएं भी प्राप्त थीं। इसलिए इन किसानों को कुछ अधिक कर भी देना पड़ता था। सरकार खेती के काम की ओर विशेष रूप से ध्यान देती थी। अभी ज़मींदारी व्यवस्था पूर्णतः अस्तित्व में नहीं आई थी। इसलिए किसानों का सरकार से सीधा सम्पर्क’ था। सरकार द्वारा किसी बस्ती या ग्राम से सामूहिक कर वसूल नहीं किया जाता था। प्रत्येक किसान को अपना पृथक्-पृथक् कर चुकाना पड़ता था। कर वसूल करने वाले कर्मचारी ईमानदार होते थे तथा किसानों से अच्छा व्यवहार करते थे।

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प्रश्न 15.
मौर्यकाल में शिल्पकारों का संगठन कैसा था ?
उत्तर-
किसानों की भांति मौर्य काल के कारीगरों तथा शिल्पियों की स्थिति भी बहुत महत्त्वपूर्ण थी। मैंगस्थनीज़ ने तत्कालीन सामाजिक वर्गीकरण में इन्हें चौथा स्थान दिया है। व्यापार की उन्नति के कारण शिल्पियों तथा कारीगरों की संख्या काफ़ी बढ़ गई थी। प्रत्येक श्रेणी के शिल्पकारों ने अपना संगठन भी बना लिया था। प्रत्येक संगठन का एक नेता होता था । शिल्पकारों की प्रत्येक श्रेणी के लोगों का अपना पृथक् धंधा होता था। यदि एक श्रेणी के कारीगर खेती-बाड़ी के यन्त्र बनाते थे तो दूसरी श्रेणी के शिल्पकार घरेलू प्रयोग के बर्तन आदि बनाते थे। इसी प्रकार स्वर्णकारों, मूर्तिकारों, जुलाहों , कुम्हारों , लोहारों तथा हाथी दांत का काम करने वालों की अपनी- अपनी श्रेणियां थीं।

प्रश्न 16.
मौर्य कला की विशेषताएं क्या थी ?
उत्तर-
मौर्य युग की कला एवं भवन निर्माण के बहुत ही कम नमूने हम तक पहुंचे हैं। हमें उस समय के कुछ विवरणों से ही मौर्य कला एवं भवन निर्माण कला की उत्कृष्टता की जानकारी मिलती है। उस समय अधिकतर भवन लकड़ी से बनाए जाते थे। इसलिए वे शीघ्र ही नष्ट हो गए। लकड़ी के स्थान पर पत्थर का प्रयोग अशोक के शासनकाल में शुरू हुआ। उसने अपने महल के स्तम्भ पत्थरों से बनवाए जिनकी शिल्पकला अति सुन्दर थी। अनुमान है कि यह काम गांधार के संगतराशों ने किया जो पत्थर के काम में काफी निपुण थे। मौर्य कला का सर्वोत्तम नमूना उड़ीसा में धौलि में स्थित हाथी की मूर्ति है। इस मूर्ति में कलात्मक दक्षता से भी अधिक सजीवता एवं ओज झलकता है । पुरातात्विक खुदाइयों द्वारा कई स्थानों से देवी की मिट्टी की प्रतिमाएं भी मिली हैं। इनका रूप तथा सच्चा दर्शनीय है।

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प्रश्न 17.
मौर्य साम्राज्य के पतन के क्या कारण थे ?
उत्तर-
मौर्य साम्राज्य के पतन के मुख्य कारण निम्नलिखित थे
1. अशोक के बाद राज्य की बागडोर दशरथ, सम्पति और बृहद्रथ जैसे राजाओं के हाथ में आ गई। ये सभी शासक शासन चलाने के अयोग्य थे।

2. मौर्य वंश में उत्तराधिकारी का कोई विशेष नियम नहीं था । अत: एक शासक के मरते ही राजकुमारों में राजगद्दी के लिए युद्ध छिड़ जाता था।

3. अशोक ने बौद्ध धर्म के प्रचार तथा जनहित कार्यों पर बड़ी उदारता से धन खर्च किया। फलस्वरूप राजकोष खाली हो गया और धन के अभाव में न तो प्रशासन को ठीक ढंग से चलाया जा सका और न ही विद्रोहों को दबाया जा सका।

4. कलिंग युद्ध के पश्चात् अशोक ने युद्ध न करने का निर्णय किया। उसने सैनिक शक्ति का विस्तार करना भी छोड़ दिया। परिणामस्वरूप मौर्य वंश की सैनिक शक्ति कम हो गई।

5. मौर्य राज्य को निर्बल होते देखकर विदेशी आक्रमणकारियों ने भी भारत के सीमान्त प्रदेशों पर आक्रमण करने आरम्भ कर दिए। उनके आक्रमणों से मौर्य शक्ति को बड़ी क्षति पहुंची ।

IV. निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
सिकन्दर कौन था ? उसके आक्रमण के समय भारत की राजनीतिक दशा का वर्णन करें ।
उत्तर-
सिकन्दर मकदूनिया के शासक फिलिप का पुत्र था। पिता की मृत्यु के पश्चात् वह 336 ई० पूर्व में गद्दी पर बैठा। सिंहासन पर बैठते ही उसने एक विशाल सेना साथ लेकर अपना विश्व विजय अभियान आरम्भ किया। सबसे पहले उसने पश्चिमी एशिया और मिस्र को विजय किया। मिस्र को विजय करने के पश्चात् अपने नाम को अमर बनाने के लिए सिकन्दर ने वहां सिकन्दरिया नामक नगर बसाया जो आज भी इसी नाम से पुकारा जाता है। इसके पश्चात् उसने अरबेला की लड़ाई में ईरान के सम्राट को पराजित किया। इस प्रकार 11 वर्ष में सिकन्दर ने ईरान से लेकर अफगानिस्तान तक के समस्त प्रदेश पर अपना झंडा फहराया। तत्पश्चात् उसने हिन्दूकुश पर्वत को पार करके भारत में प्रवेश किया।

सिकन्दर के आक्रमण के समय भारत की राजनीतिक दशा-सिकन्दर के आक्रमण के समय भारत की राजनीतिक दशा बड़ी शोचनीय थी। देश में अनेक छोटे-छोटे स्वतन्त्र राज्य थे जो प्रायः आपस में लड़ते-झगड़ते रहते थे। भारत का कुछ भाग (उत्तरी-पश्चिमी) छोटे-छोटे स्वतन्त्र कबीलों के अधीन भी था। इन कबीलों के लोग बड़े वीर तथा युद्धप्रिय थे परन्तु उनमें भी एकता का अभाव था। देश में कुछ गणतन्त्र भी थे। इन राज्यों तथा गणतन्त्रों का वर्णन इस प्रकार है-

1. राजा आम्भी-आम्भी का राज्य सिन्ध तथा जेहलम नदियों के बीच में स्थित था। आम्भी अपने पड़ोसी राजा पुरु अथवा पोरस का घोर शत्रु था। वह सिकन्दर के साथ मिलकर पोरस को नीचा दिखाना चाहता था। अतः उसने सिकन्दर से युद्ध करने की बजाय उसका स्वागत किया और कीमती उपहार भेंट किए।

2. पुरु अथवा पोरस-पोरस का राज्य जेहलम और चिनाब नदियों के बीच में था। उसने सिकन्दर का डट कर सामना किया । परन्तु युद्ध में पोरस की हार हुई।

3. छोटे पुरु (पोरस) का राज्य-छोटे पुरु का राज्य चिनाब नदी के पार स्थित था। सिकन्दर के आने का समाचार सुनकर वह पहले ही नन्द राज्य के प्रदेश में भाग गया ।

4. मगध-यह राज्य ब्यास नदी के पार स्थित था। यहां नन्द वंश का शासन था। नन्द शासक के पास एक शक्तिशाली सेना थी। सिकन्दर के सैनिक इस सेना के साथ युद्ध करने से डरते थे। इसलिए सिकन्दर को ब्यास नदी पार किये बिना ही वापस लौटना पड़ा।

5. अन्य राज्य–सिकन्दर के आक्रमण के समय कुछ अन्य जातियां तथा कबीले भी थे। इनमें कठ, आरेष्ट, निसा, कष्टक आदि जातियाँ प्रमुख थीं।

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 4 मौर्य युग

प्रश्न 2.
सिकन्दर के
(क) भारतीय अभियान का वर्णन करते हुए भारत में
(ख) उसकी विजय के कारण बताओ।
उत्तर-
(क) सिकन्दर के भारतीय अभियान-सिकन्दर के भारतीय अभियानों का वर्णन इस प्रकार है-

1. अश्वक जाति से टक्कर-सिकन्दर को सर्वप्रथम भारत के उत्तर में रहने वाली अश्वक जाति से टक्कर लेनी पड़ी। ये लोग वर्तमान स्वात तथा कुमाऊं की घाटियों में रहते थे। सिकन्दर अश्वक जाति को पराजित करने में सफल रहा।

2. राजा आम्भी द्वारा सिकन्दर का स्वागत-326 ई० पू० में सिकन्दर ने अपनी सेना सहित सिन्धु नदी को पार किया और आम्भी के राज्य में जा पहुंचा। आम्भी ने ही सिकन्दर को भारत पर आक्रमण करने का निमन्त्रण दिया था। आम्भी की अपने पड़ोसी राजा पुरु से शत्रुता थी, अतः उसने सिकन्दर को पुरु पर आक्रमण करने के लिए भी प्रोत्साहित किया। आम्भी के राज्य में सिकन्दर का शानदार स्वागत किया गया।’

3. पोरस से युद्ध और मित्रता-पोरस का राज्य जेहलम और चिनाब नदियों के मध्य स्थित था। जेहलम नदी के तट पर सिकन्दर और पोरस की सेनाओं में घमासान युद्ध हुआ। इस युद्ध में पोरस पराजित हुआ और उसे बन्दी बना लिया गया। बन्दी के रूप में उसे सिकन्दर के सामने लाया गया । सिकन्दर ने पूछा, “तुम्हारे साथ कैसा व्यवहार किया जाए ?” पोरस ने बड़ी वीरता से उत्तर दिया- “जैसा एक राजा को दूसरे राजा से करना चाहिए।” पोरस के इस निर्भीक उत्तर से सिकन्दर बहुत प्रभावित हुआ। फलस्वरूप उसने पोरस का राज्य उसे लौटा दिया और उससे मित्रता कर ली।

4. छोटे पोरस के राज्य पर अधिकार-पोरस से मित्रता स्थापित करने के पश्चात् सिकन्दर छोटे पुरु के राज्य में पहुंचा। वह इतना कायर था कि वह सिकन्दर के आक्रमण का समाचार सुनते ही नन्द राज्य के प्रदेश में भाग गया। सिकन्दर ने उसके राज्य पर अधिकार कर लिया और वह प्रदेश अपने मित्र पोरस को दे दिया।

5. अन्य जातियों से टक्कर-सिकन्दर ने अपने मार्ग में आने वाली अद्रेष्ट, कठ, मलोई आदि जातियों को भी पराजित किया। इनमें से अद्रेष्ट तथा कठ जातियां बड़ी वीर थीं। यद्यपि सिकन्दर ने इन जातियों पर विजय प्राप्त कर ली परन्तु उसे बड़ी हानि उठानी पड़ी।
सिकन्दर की वापसी तथा मृत्यु-आद्रेष्ट और कठ जातियों को पराजित करने के पश्चात् सिकन्दर ने ब्यास नदी पार करने का निश्चय किया और उसके पश्चिमी तट पर आ डटा। ब्यास नदी के पूर्व में मगध का विशाल राज्य स्थित था। सिकन्दर इस विशाल राज्य को विजय करना चाहता था, परन्तु उसके सैनिकों ने आगे बढ़ने से इन्कार कर दिया। इसका कारण यह था कि सिकन्दर के सैनिक लगातार युद्धों से थक चुके थे, इसलिए वे अब स्वदेश लौटना चाहते थे। फिर भारत की जलवायु भी उनके अनुकूल न थी। इसके अतिरिक्त सिकन्दर के सैनिक मगध जैसे शक्तिशाली राज्य से टक्कर नहीं लेना चाहते थे। अत: सिकन्दर को ब्यास नदी से ही वापस लौटना पड़ा । मार्ग में बेबीलोन के स्थान पर उसकी मृत्यु हो गई।

(ख) सिकन्दर की विजय के कारण-भारत में सिकन्दर की विजय तथा भारतीयों की पराजय के मुख्य कारण निम्नलिखित थे-

  • भारत में राजनीतिक एकता का अभाव-सिकन्दर की विजय का मुख्य कारण भारतीय शासकों की आपसी फूट थी। भारत के लगभग सभी शासक एक-दूसरे को नीचा दिखाने का प्रयत्न करते रहते थे। सिकन्दर ने उनकी फूट का लाभ उठाया और एक-एक करके सभी शासकों को पराजित कर दिया।
  • सिकन्दर का उच्च कोटि का नेतृत्व-सिकन्दर एक वीर तथा अनुभवी योद्धा था । वह सेना का नेतृत्व करना भलीभांति जानता था। उसके कुशल नेतृत्व ने भारत में उसे विजय दिलाई।
  • युद्ध करने का अच्छा ढंग-भारतीयों की अपेक्षा यूनानियों का युद्ध करने का ढंग अच्छा था।
  • वर्षा–युद्ध के समय लगातार वर्षा होने लगी जिससे युद्ध के मैदान में दलदल हो गई। भारतीय रथों के पहिए इस दलदल में धंस गए। इसके अतिरिक्त दलदल और फिसलन के कारण भारतीय सैनिक अपने धनुष बाण का ठीक प्रयोग न कर सके।
    सच तो यह है कि सिकन्दर की सफलता का कोई महत्त्व नहीं था। वह इस देश में थोड़े समय के लिए रहा । उसके जाते ही उसका राज्य भारतीय राजाओं ने फिर विजय कर लिया।

प्रश्न 3.
चन्द्रगुप्त मौर्य की विजयों का वर्णन कीजिए । उसने भारत में राजनीतिक एकता किस प्रकार स्थापित की ?
अथवा
चन्द्रगुप्त मौर्य की पंजाब तथा सेल्यूकस पर विजय की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
चन्द्रगुप्त मौर्य न केवल एक सफल विजेता ही था बल्कि एक कुशल शासन प्रबन्धक भी था। उसका जन्म 345 ई० पू० में हुआ। कहते हैं कि चन्द्रगुप्त के जन्म से पहले ही उसके पिता का देहान्त हो गया था और उसकी मां अपने भाइयों के साथ पाटलिपुत्र आ गई थी। यहीं पर उसने चन्द्रगुप्त को जन्म दिया। सुरक्षा के लिए उसकी मां ने बालक को एक ग्वाले को सौंप दिया परन्तु उस ग्वाले ने चन्द्रगुप्त को एक शिकारी के हाथ बेच दिया। शिकारी ने उसे पशु चराने के लिए लगा दिया । वह गांव के खाली स्थान पर दिन भर बच्चों के साथ खेला करता था । इन खेलों में प्रायः वह राजा बनता था और न्याय करता था । एक दिन चाणक्य ने चन्द्रगुप्त को ऐसा खेल खेलते देखा । वह उसकी योग्यता से इतना प्रभावित हुआ कि उसने तुरन्त शिकारी को 1000 कार्षापन देकर चन्द्रगुप्त को खरीद लिया। वह उसे शिक्षा दिलवाने के लिए तक्षशिला ले आया। चाणक्य से सात-आठ वर्ष तक शिक्षा पा कर चन्द्रगुप्त युद्ध-कला तथा शासन-कार्यों में पूरी तरह निपुण हो गया। . चन्द्रगुप्त मौर्य की विजयें-चन्द्रगुप्त मौर्य एक सफल विजेता था। विजेता के रूप में उसकी तुलना नेपोलियन तथा अकबर के साथ की जाती है। वह बड़ा ही वीर और साहसी था। उसने एक विशाल सेना का गठन किया जिसमें 6 लाख पैदल, 30 हज़ार घुड़सवार, 9 हज़ार हाथी और 8 हज़ार रथ शामिल थे। इस सेना की सहायता से उसने निम्नलिखित विजय प्राप्त की-

1. पंजाब विजय-चन्द्रगुप्त मौर्य ने सबसे पहले पंजाब को जीता। यह प्रदेश उन दिनों सिकन्दर के प्रतिनिधि फिलिप के अधीन था। परन्तु 325 ई० पू० में फिलिप का वध कर दिया गया जिससे राज्य में असन्तोष फैल गया। 323 ई० पू० में सिकन्दर की भी मृत्यु हो गई। अवसर का लाभ उठाकर चन्द्रगुप्त ने पंजाब पर आक्रमण कर दिया और उस पर अपना अधिकार कर लिया।

2. उत्तरी-पश्चिमी भारत की विजय-पंजाब-विजय के पश्चात् चन्द्रगुप्त ने उत्तर-पश्चिमी भारत पर आक्रमण किया और यह प्रदेश भी अपने अधिकार में ले लिया । इस प्रकार उसके राज्य की सीमा सिन्धु नदी के पूर्वी तट को छूने लगी।

3. मगध विजय-मगध उत्तरी भारत का सबसे शक्तिशाली राज्य था। यहां नन्द वंश का शासन था। कहते हैं कि नन्द राजाओं की सेना में 6 लाख पैदल, 10 हजार घुड़सवार, 2 हज़ार चार-चार घोड़ों वाले रथ तथा 3 हज़ार हाथी शामिल थे परन्तु इस शक्तिशाली राज्य से युद्ध करना चन्द्रगुप्त का एक सबसे बड़ा उद्देश्य था। वह यह था कि यहां के एक नन्द शासक ने चन्द्रगुप्त के गुरु चाणक्य का अपमान किया था और चाणक्य ने नन्द वंश का समूल नाश करने की शपथ ले रखी थी।

मगध की विजय के लिए एक बड़ा भयंकर युद्ध लड़ा गया। इस युद्ध में राजा घनानन्द, उसके परिवार के कई सदस्य और अनगिनत सैनिक मारे गए। कहते हैं कि नन्द वंश का केवल एक ही व्यक्ति बचा था जो संन्यासी बन कर जंगलों में चला गया परन्तु चाणक्य ने उसका भी पीछा किया और उसका नाश करके अपनी शपथ पूरी की । – मगध विजय के बाद (321 ई०पू० में) चन्द्रगुप्त राजसिंहासन पर बैठा।

4. बंगाल विजय-चन्द्रगुप्त ने अब अपना ध्यान अन्य पूर्वी राज्यों की ओर लगाया। कुछ समय पश्चात् उसने बंगाल पर भी अधिकार कर लिया।

5. सैल्यूकस की पराजय-सैल्यूकस सिकन्दर का सेनापति था। सिकन्दर की मृत्यु के बाद उसने लगभग पूरे पश्चिमी तथा मध्य एशिया पर अपना अधिकार कर लिया था। अब वह भारत के उन सभी प्रदेशों को भी विजय करना चाहता था जो कभी सिकन्दर के अधीन थे। 305 ई०पू० में उसने भारत पर आक्रमण कर दिया। चन्द्रगुप्त ने उसका बड़ी वीरता से सामना किया। यूनानी लेखकों के विवरण से पता चलता है कि सैल्यूकस इस युद्ध में पराजित हुआ और उसे चन्द्रगुप्त के साथ इन शर्तों पर सन्धि करनी पड़ी–

  • सैल्यूकस ने आधुनिक काबुल, कन्धार तथा बिलोचिस्तान के प्रदेश चन्द्रगुप्त को दे दिए।
  • मैगस्थनीज़ सैल्यूकस की ओर से राजदूत के रूप में पाटलिपुत्र आया।
  • चन्द्रगुप्त ने सैल्यूकस को उपहार के रूप में 500 हाथी दिए ।
  • सैल्यूकस ने अपनी पुत्री हेलन का विवाह चन्द्रगुप्त से कर दिया।

6. अन्य विजयें-चन्द्रगुप्त ने कुछ अन्य प्रदेशों पर भी विजय प्राप्त की। ऐसा समझा जाता है कि सौराष्ट्र का प्रदेश चन्द्रगुप्त के अधीन था। जैन तथा तमिल साहित्य के अनुसार तो चन्द्रगुप्त का साम्राज्य दक्षिण में उत्तरी मैसूर (कर्नाटक) तक फैला हुआ था।

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प्रश्न 4.
चन्द्रगुप्त मौर्य के
(क) असैनिक व
(ख) सैनिक शासन का वर्णन करो।।
उत्तर-
चन्द्रगुप्त मौर्य एक कुशल शासन प्रबन्धक था। उसका शासन प्रबन्ध उच्चकोटि का था जिसका वर्णन इस प्रकार

(क) असैनिक प्रशासन-
1. केन्द्रीय शासन-केन्द्रीय शासन का मुखिया सम्राट् था। वह सेना का मुख्य सेनापति, न्याय का स्रोत तथा सुचारु शासन के लिए उत्तरदायी था। उसकी सहायता के लिए मन्त्रियों की एक परिषद् थी । मन्त्री उच्च कुल से सम्बन्धित होते थे और मन्त्रि परिषद की बैठकें गुप्त होती थीं। राजा का मुख्य काम जनता की भलाई करना था।

2. प्रान्तीय प्रबन्ध-चन्द्रगुप्त ने अपने साम्राज्य को चार प्रान्तों में विभक्त किया हुआ था- मध्य प्रान्त, पश्चिमी प्रान्त, उत्तरी-पश्चिमी प्रान्त तथा दक्षिणी प्रान्त। प्रान्त का मुखिया ‘कुमार’ कहलाता था। कुमार राजघराने से सम्बन्ध रखता था।

3. नगर प्रबन्ध-नगर का प्रबन्ध ‘नगर अध्यक्ष ‘ के अधीन होता था परन्तु पाटिलपुत्र तथा तक्षशिला जैसे बड़े नगरों का प्रबन्ध 30 सदस्यों की एक परिषद् के हाथ में होता था । परिषद् को 6 समितियों में बांटा हुआ था। इन समितियों का काम विदेशियों का ब्यौरा, जन्म-मरण का हिसाब, व्यापार आदि की सुरक्षा करना था।

4. अन्य विशेषताएं-

  • ग्राम का प्रशासन पंचायतों के हाथ में था। लगभग 10 ग्रामों के ऊपर ‘गोप’ नाम का अधिकारी होता था।
  • राज्यों मे दो प्रकार के न्यायालय थे। धर्मस्थायी (दीवानी) तथा ‘कृष्टकशोधन’ (फौजदारी) । दण्ड बड़े कठोर थे। चोरी करने, डाका डालने तथा किसी की हत्या करने पर मृत्यु-दण्ड दिया जाता था।
  • साम्राज्य को सुदृढ़ बनाने के लिए चन्द्रगुप्त मौर्य ने अपने सारे राज्य में गुप्तचर छोड़ रखे थे। स्त्रियां भी गुप्तचरों के रूप में कार्य करती थीं।
  • चन्द्रगुप्त मौर्य ने प्रजा के हितों को ध्यान में रखते हुए सिंचाई की उचित व्यवस्था की सड़कें बनवाईं, उनके दोनों ओर छायादार वृक्ष लगवाये, धर्मशालाएं बनवाईं तथा कुएं खुदवाये।
  • राज्य की आय का प्रमुख स्रोत भूमि-कर था जो उपज का 1/6 भाग होता था।

(ख) सैनिक प्रबन्ध चन्द्रगुप्त मौर्य ने एक विशाल सेना का संगठन किया हुआ था। उसकी सेना में 6 लाख पैदल सैनिक, 30 हजार घुड़सवार, १ हज़ार हाथी और 8 हजार रथ सम्मिलित थे। इस विशाल सेना के प्रबन्ध के लिए 30 सदस्यों की एक समिति नियुक्त की गई थी।

युद्ध में तलवार,धनुष-बाण, कवच आदि शत्रों का प्रयोग किया जाता था। इस विशाल सेना के प्रबन्ध के लिए 30 सदस्यों की एक परिषद् नियुक्त की गई थी। यह परिषद् पांच-पांच सदस्यों की 6 समितियों में विभाजित थीं-

  • पहली समिति का कार्य उन जहाजों की देखभाल करना था जो समुद्री लुटेरों को दण्ड देने के लिए होते थे । यह समिति व्यापारियों से कर भी वसूल करती थी ।
  • दूसरी समिति का कार्य सेना को माल पहुंचाने वाली बैलगाड़ियों की देख-रेख करना था। इसका अध्यक्ष गोपाध्यक्ष’ कहलाता था ।
  • तीसरी समिति का कार्य पैदल सैनिकों के हितों की रक्षा करना था।
  • चौथी समिति का कार्य घुड़सवारों की देखभाल करना था। इनके अध्यक्ष को ‘अश्वाध्यक्ष’ कहते थे।
  • पांचवीं समिति का कार्य हाथियों का प्रबन्ध तथा उनकी देखभाल करना था।
  • छठी समिति युद्ध में प्रयोग होने वाले रथों का प्रबन्ध करती थी । इसका अध्यक्ष ‘रथाध्यक्ष’ कहलाता था।

सच तो यह है कि चन्द्रगुप्त एक सफल शासक सिद्ध हुआ। उसके प्रशासनिक प्रबन्ध को देखते हुए डॉ० वी० ए० स्मिथ कहते हैं,”कही भी ऐसे संगठन का उदाहरण मिलना कठिन है।”
(“ No similar organisation is recorded elsewhere.”)

प्रश्न 5.
सम्राट अशोक की कलिंग विजय का वर्णन करो और इसके परिणाम बताओ।
अथवा
अशोक की कलिंग विजय के कोई पांच महत्त्वपूर्ण परिणाम लिखिए।
उत्तर-
कलिंग विजय-राजतिलक के बाद अशोक ने अपने साम्राज्य का विस्तार करने की नीति अपनाई। चन्द्रगुप्त मौर्य की दक्षिण विजय अधूरी रह गई थी, क्योंकि कलिंग का राज्य अभी तक स्वतन्त्र था। अतः अशोक ने कलिंग पर विजय करने का निश्चय किया और 261 ई०पू० में एक विशाल सेना के साथ कलिंग पर आक्रमण कर दिया। कलिंग के राजा के पास भी एक विशाल सेना थी। मैगस्थनीज़ के अनुसार उसकी सेना में 60 हज़ार पैदल, एक हजार घुड़सवार तथा 700 हाथी थे। अशोक और कलिंग के राजा के बीच बड़ा भयंकर युद्ध हुआ। इस युद्ध में अशोक की जीत हुई। अशोक के एक अभिलेख से पता चलता है कि युद्ध में लगभग एक लाख व्यक्ति मारे गए तथा उससे कहीं अधिक घायल हुए। इस युद्ध में डेढ़ लाख व्यक्तियों को बन्दी भी बनाया गया।

परिणाम-कलिंग युद्ध के बड़े भयंकर परिणाम निकले। युद्ध में एक लाख व्यक्ति मारे गए और लगभग डेढ़ लाख व्यक्ति बन्दी बनाए गए। इससे भी अधिक व्यक्ति महामारी के कारण मर गए। कलिंग की गलियां रक्त और लाशों से भर गईं। अशोक ने जब यह मार्मिक दृश्य देखा तो उसका मन तड़प उठा। फलस्वरूप अशोक का जीवन ही बदल गया। उसके जीवन में एक ऐसी क्रान्ति आई कि वह कठोर राजा से दयालु सम्राट् बन गया। संक्षेप में इस युद्ध के कारण अशोक के जीवन में निम्नलिखित परिवर्तन हुए-

  • बौद्ध बनना-कलिंग के युद्ध में हुए रक्तपात ने अशोक को शान्तिप्रय बना दिया। वह बौद्ध धर्म का अनुयायी बन गया, क्योंकि इस धर्म का अहिंसा सम्बन्धी सिद्धान्त उसे युद्धों से दूर रख सकता था।
  • अहिंसा का अनुसरण-अशोक के दिल में युद्ध का स्थान ‘अहिंसा ‘ ने ले लिया । उसने मांस खाना और शिकार खेलना बन्द कर दिया।
  • बौद्ध धर्म का प्रचार-अशोक ने अब बौद्ध धर्म का प्रचार करना आरम्भ कर दिया। उसने इसे राजधर्म बनाया। बौद्ध भिक्षुओं के लिए मठ तथा विहार बनवाए और बौद्ध धर्म की शिक्षाओं को स्तम्भों पर खुदवाया। अशोक ने बौद्ध-धर्म के प्रचार के लिए विदेशों में प्रचारक भेजे। इस प्रकार बौद्ध-धर्म एक विश्व-धर्म बन गया।
  • प्रजापालक बनना-कलिंग के युद्ध ने अशोक को प्रजापालक बना दिया। अब वह किसी प्रदेश को जीतने की बजाय लोगों के दिलों को जीतना चाहता था। इसलिए उसने लोगों की भलाई के लिए अनेक कार्य किए। उसने सड़कें बनवाई तथा उनके दोनों ओर वृक्ष लगवाए। उसने बहुत-से कुएं खुदवाए और अस्पताल तथा विश्राम-गृह बनवाए।
  • धर्म महापात्रों की नियुक्ति-अशोक ने अपनी जनता के चरित्र को ऊंचा उठाने के लिए धर्म महापात्र नियुक्त किए। नये कर्मचारी गांव-गांव तथा नगर-नगर में घूमते थे और लोगों को नैतिक शिक्षा देते थे।
  • तीर्थ यात्राएं-कलिंग युद्ध के पश्चात् अशोक ने अनेक तीर्थ यात्राएं की। वह जहां भी जाता, जनता को अहिंसा और नैतिकता का उपदेश देता था।

संक्षेप में, इतना ही काफ़ी है कि कलिंग युद्ध के कारण अशोक दया, धर्म और सच्चाई का पुजारी बन गया। उसने जनता का कल्याण करना अपने जीवन का उद्देश्य बना लिया। इस प्रकार देश में एक नवीन युग का आरम्भ हुआ- ” ऐसे युग का आरम्भ जो शान्ति और सामाजिक उत्थान का युग था।”

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प्रश्न 6.
(क) अशोक के धम्म से आप क्या समझते हैं ?
(ख) इसका अशोक की साम्राज्य नीति पर क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर-
(क) अशोक का धम्म-अशोक ने अपनी प्रजा के नैतिक उत्थान के लिए कुछ सिद्धान्त बनाए। इन सिद्धान्तों को अशोक का ‘धम्म’ अथवा ‘धर्म’ कहा जाता है। अशोक के धर्म (धम्म) के मुख्य सिद्धान्तों का वर्णन इस प्रकार है-

1. बड़ों का आदर-अशोक के धर्म के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को अपने माता-पिता और गुरुओं का आदर करना चाहिए।

2. छोटों के प्रति सद्भाव-अशोक के धर्म में अपने से छोटों, नौकरों तथा दासों के साथ अच्छा व्यवहार करने की शिक्षा दी गई है। इसके अनुसार, धनी लोगों को निर्धनों की सहायता करनी चाहिए।

3. अहिंसा-अशोक के धर्म में अहिंसा पर बल दिया गया है। इसके अनुसार किसी भी प्राणी को दुःख नहीं देना चाहिए। अशोक ने स्वयं भी शिकार खेलना तथा मांस खाना छोड़ दिया।

4. पाप-रहित जीवन-मनुष्य को पाप से दूर रहना चाहिए। ईर्ष्या, क्रोध, अहंकार और झूठ पाप हैं। मनुष्य को इन दोषों से बचना चाहिए।

5. दान-अशोक के धर्म के अनुसार दान का बहुत महत्त्व है। इस धर्म में ज्ञान के प्रसार को सबसे बड़ा दान माना गया

6. सत्य बोलना-मनुष्य को झूठ से बच कर रहना चाहिए और सदा सत्य बोलना चाहिए।

7. सहनशीलता-अशोक के धर्म के अनुसार सभी धर्म बराबर हैं अतः हमें सभी धर्मों का समान आदर करना चाहिए।

8. सच्चे रीति-रिवाज-मनुष्य को सदाचारी जीवन बिताना चाहिए और नेक काम करने चाहिएं। यही सच्चे रीति-रिवाज

9. कर्म सिद्धान्त-अशोक के अनुसार हम सबको अपने कर्मों का फल अगले जन्म में भुगतना पड़ता है। इसलिए हमें सदा अच्छे कर्म करने चाहिएं।

10. आत्म-विश्लेषण-मनुष्य को समय-समय पर आत्म-विश्लेषण करना चाहिए। यही मार्ग है जिस पर चलकर मनुष्य अपनी बुराइयों को दूर कर सकता है।

(ख) अशोक के धम्म का उसकी साम्राज्य नीति पर प्रभाव-अशोक के धम्म ने उसकी साम्राज्य नीति पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव डाले। धम्म के प्रचार से देश में शांति, समृद्धि और नैतिकता के एक नए युग का प्रारम्भ हुआ। संक्षेप में अशोक के धर्म ने उसकी साम्राज्य नीति पर निम्नलिखित प्रभाव डाले-

1. धार्मिक एकता-अशोक के धर्म में सभी धर्मों के मुख्य सिद्धान्त सम्मिलित थे। इस धर्म को अपनाकर लोहन धार्मिक भेदभाव भूल कर एकता के सूत्र में बंध गए। सभी लोग एक-दूसरे के धर्म का आदर करने लगे।

2. प्रजाहितार्थ कार्य-अशोक के धर्म का उसकी साम्राज्य नीति पर मुख्य प्रभाव यह भी पड़ा कि सभी राज्याधिकारी प्रजा के साथ नम्रता तथा दयालुता का व्यवहार करने लगे। प्रजा की भलाई के लिए अनगिनत कार्य किए गए। परिणामस्वरूप प्रजा सुखी तथा समृद्ध जीवन व्यतीत करने लगी। .

3. अपराधों का अन्त-अशोक के धर्म के फलस्वरूप राज्य में अपराधों का अन्त हो गया। इसका करण यह था कि सभी लोग सुखी थे। किसी को भी किसी प्रकार की कमी अथवा कष्ट नहीं था। . .

4. धर्म विजय-अशोक अपना तथा अपनी प्रजा का परलोक सुधारना चाहता था। कलिंग विजय के बाद उसने अपना शेष जीवन अपने धर्म के प्रचार में लगा दिया। अब ‘दिग्विजय’ के स्थान पर ‘धर्म-विजय’ उसके जीवन का लक्ष्य बन गया।

5. सदाचार का जीवन-अशोक का धर्म नैतिक सिद्धान्तों का संग्रह था। इसे अपनाकर उसकी प्रजा का नैतिक उत्थान हुआ। सभी लोग सदाचार का जीवन व्यतीत करने लगे।

6. अशोक महान्-अशोक ने स्वयं को भी इन सिद्धान्तों के आधार पर ढाला। फलस्वरूप उसका व्यक्तित्व निखर उठा और उसकी गणना संसार के महान् सम्राटों में की जाने लगी।

7. सच तो यह है कि अशोक के धम्म के कारण उसकी प्रजा में एकता आई और लोग एक-दूसरे के धर्म का आदर करने लगे। राजा स्वयं प्रजापालक बन गया और वह दिन-रात प्रजा की भलाई के कार्य करने लगा। राजा की भांति जनता का भी नैतिक उत्थान हुआ और देश में शांति तथा समृद्धि का युग आरम्भ हुआ।

प्रश्न 7.
अशोक ने बौद्ध धर्म को किस प्रकार बढ़ाया ? धर्म के विषय में अशोक की धारणा क्या थी ?
अथवा
अशोक द्वारा बौद्ध धर्म के प्रचार एवं प्रसार के लिए किए गए किन्हीं पांच कार्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
अशोक ने बौद्ध-धर्म की बड़ी सेवा की। कलिंग युद्ध से उसके हृदय को बड़ी ठेस लगी थी। उस समय बौद्धधर्म के सरल सिद्धान्तों के कारण ही उसके मन को शान्ति मिली। उसने बौद्ध-धर्म स्वीकार कर लिया और अपना सारा जीवन इसके प्रचार कार्य में लगा दिया। उसके द्वारा इस धर्म के लिए किए गए प्रचार कार्यों का वर्णन इस प्रकार है-

1. व्यक्तिगत आदर्श-राजा अशोक ने अपने व्यक्तिगत उदाहरण द्वारा लोगों को बौद्ध-धर्म स्वीकार करने के लिए प्रेरित किया। उसने जिन सिद्धान्तों को अपने लोगों में प्रचार किया, उनका स्वयं भी पालन किया।

2. बौद्ध-धर्म का अनुयायी बनना-कलिंग युद्ध के पश्चात् अशोक स्वयं बौद्ध बन गया। वह सच्चे मन से इस धर्म के प्रचार कार्य में जुट गया। अपने सम्राट को एक भिक्षु के रूप में देख कर जनता बहुत प्रभावित हुई। फलस्वरूप अनेक लोग बौद्ध-धर्म के अनुयायी बन गए।

3. राज्यादेश-बौद्ध-धर्म के प्रसार के लिए अशोक ने इस धर्म के नियमों को स्तम्भों, गुफाओं तथा शिलाओं पर खुदवाया। जनता इन नियमों से प्रभावित हो कर बौद्ध-धर्म को ग्रहण करने लगी।

4. विहार और स्तूप बनवाना-अशोक ने बौद्ध-धर्म के प्रचार के लिए अनेक विहार तथा स्तूप बनवाए। ये स्तूप तथा विहार बौद्ध-धर्म के प्रचार के केन्द्र बने।

5. तीसरी बौद्ध सभा-अशोक ने 252 ई० पू० में बौद्ध-धर्म की तीसरी सभा पाटलिपुत्र में बुलाई। इस सभा के कारण बौद्धों में एकता स्थापित हुई और यह धर्म अधिक लोकप्रिय हुआ।

6. धार्मिक नाटक-अशोक ने धार्मिक नाटकों द्वारा जनता को यह समझाने का प्रयत्न किया कि बौद्ध धर्म के सिद्धान्तों के अनुसार पवित्र जीवन व्यतीत करने से स्वर्ग की प्राप्ति होती है। इस प्रकार के दृश्यों से प्रभावित होकर अनेक लोगों ने बौद्धधर्म अपना लिया।

7. धार्मिक यात्राएं-अशोक की धार्मिक यात्राएं भी बौद्ध-धर्म के प्रचार में बड़ी सहायक सिद्ध हुईं। बौद्ध-धर्म ग्रहण करने के पश्चात् उसने बौद्ध-धर्म से सम्बन्धित स्थानों की यात्राएं कीं। मार्ग में उसने अनेक सभाओं का आयोजन करके बौद्धधर्म के सिद्धान्तों का प्रचार किया।

8. धर्म महापात्रों की नियुक्ति-अशोक ने धर्म का प्रचार करने के लिए ‘धर्म महापात्र’ नामक विशेष कर्मचारियों की नियुक्ति की। वे देश के विभिन्न भागों में जाकर नैतिक सिद्धान्तों का प्रचार करते थे। अप्रत्यक्ष रूप से इससे भी बौद्ध-धर्म के प्रचार कार्य में सहायता मिली।

9. बोलचाल की भाषा में प्रचार-अशोक ने पाली भाषा में शिलाओं, स्तम्भों आदि पर बौद्ध मत की शिक्षाएं खुदवाईं। उसने कुछ प्रसिद्ध बौद्ध ग्रन्थों का अनुवाद भी पाली भाषा में करवाया क्योंकि पाली भाषा उस समय की बोलचाल की भाषा थी। इसलिए जनसाधारण तक बौद्ध धर्म के सिद्धान्तों तथा भिक्षुओं को पहुंचाना सरल हो गया।

10. विदेशों में प्रचार-अशोक ने बौद्ध-धर्म का प्रचार केवल अपने ही देश में नहीं बल्कि विदेशों में भी किया। उसने अपने प्रचारकों को श्रीलंका, चीन, सीरिया, मिस्र आदि देशों में भेजा। अशोक का पुत्र महेन्द्र तथा पुत्री संघमित्रा बौद्ध-धर्म के प्रचार के लिए श्रीलंका गए। इस प्रकार अशोक के प्रयत्नों से अनेक देशों में बौद्ध-धर्म लोकप्रिय हुआ।

सच तो यह है कि अशोक ने बौद्ध-धर्म के प्रचार में बड़ा उत्साह दिखाया। उसने एक साधारण धर्म का विश्व स्तर पर धर्म बना दिया। बौद्ध-धर्म के प्रति उनकी सेवाओं को देखते हुए यह बात ठीक जान पड़ती है, “बौद्ध धर्म के इतिहास में धर्म के संस्थापक के बाद दूसरा स्थान अशोक को ही प्राप्त है।”

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प्रश्न 8.
सम्राट अशोक का मूल्यांकन करें। क्या वह वास्तव में ही महान् था ? कोई पांच तर्क दीजिए।
अथवा
अशोक को एक महान् सम्राट् क्यों कहा जाता है ?
उत्तर-
अशोक निःसन्देह एक महान् सम्राट् था। उसकी महानता तक संसार का कोई अन्य सम्राट नहीं पहुंच सका। जहां अन्य सम्राट तलवार के बल पर राज्य करना चाहते थे, वहां अशोक लोगों के दिलों पर राज्य करना चाहता था और वह भी प्रेम और सहानुभूति से। अन्त में अशोक अपने मनोरथ में सफल हुआ। आज भी हम उसे एक महान् सम्राट् कहते हैं। जिन बातों ने अशोक को एक महान् सम्राट् बना दिया, वे निम्नलिखित हैं-

1. मानवता की सेवा-कलिंग के युद्ध के पश्चात् अशोक ने अपने जीवन का एकमात्र लक्ष्य मानवता की सेवा करना बना लिया। उसने ऐश्वर्य के जीवन का त्याग कर दिया और शिकार खेलने की बजा धार्मिक भ्रमण करके लोगों को उपदेश देने प्रारम्भ कर दिए। उसने स्वयं मांस खाना छोड़ दिया। कितना महान् था यह आदर्श। संसार के इतिहास में ऐसा उदाहरण मिलना कठिन है। किसी ने ठीक ही कहा है, “अपनी जनता के आध्यात्मिक और नैतिक कल्याण के लिए किए जाने वाले प्रयत्नों से वह अथक था और साहस में अटल।”

2. पशुओं की रक्षा-अशोक प्रथम सम्राट् था जिसने न केवल मनुष्यों के लिए अपितु पशुओं के लिए भी अस्पताल खुलवाए। उसके राज्य में जानवरों का शिकार सर्वथा निषिद्ध था। 243 ई० पू० अशोक ने घोषणा की, जिसके अनुसार वर्ष में 56 दिन ऐसे निश्चित किए गए जब उसके राज्य का कोई भी व्यक्ति किसी भी दशा में पशु-वध नहीं कर सकता था। अशोक चाहता था कि उसके राज्य में कोई भी व्यक्ति किसी प्राणी को कष्ट न पहुंचाए। अशोक प्रचार करता था, “प्रत्येक जीव को प्रकृति द्वारा निर्धारित उसके अन्तिम क्षण तक श्वास लेने का अधिकार है। जिस सम्राट् का इतना आदर्श हो उसे कौन महान् नहीं कहेगा।

3. प्रजा हितार्थ कार्य-अशोक अपनी प्रजा को अपनी सन्तान समझता था। प्रजा की भलाई के लिए उसने अपने राज्य में सड़कों का निर्माण करवाया। इनके किनारों पर छायादार वृक्ष लगवाए, धर्मशालाएं बनवाईं, अस्पताल खुलवाए। इन अस्पतालों में रोगियों को मुफ्त दवा दी जाती थी।

4. आदर्श प्रशासन-अशोक का शासन प्रबन्ध उच्चकोटि का था। उसने महामात्रों की नियुक्त की हुई थी जो राजा को प्रजा के कष्टों की सूचना देते रहते थे। न्याय करते समय किसी के साथ पक्षपात नहीं किया जाता था।

5. बौद्ध-धर्म का प्रचार-कलिंग युद्ध के बाद अशोक ने बौद्ध-धर्म अपना लिया। उसने इस धर्म के प्रचार के लिए दूसरे देशों में भी प्रचारक भेजे। एक छोटे-से धर्म को विश्व धर्म बनाना अशोक जैसे महान् सम्राट् का ही कार्य था।

6. शान्तिप्रिय-कलिंग युद्ध के पश्चात् अशोक को युद्धों से घृणा हो गई। उसने युद्धों को त्याग दिया और शान्ति का पुजारी बन गया।

7. कला-अशोक के राज्यकाल में कला में बहुत उन्नति हुई। उसने अनेक स्तूपों और विहारों का निर्माण करवाया। उसने श्रीनगर और देवपटन नामक दो नए नगर भी बसाए।

8. अशोक धम्म-अशोक ने अपने प्रजा के नैतिक उत्थान के लिए धम्म का प्रचार किया। इसके अनुसार मनुष्य को सदाचार का जीवन बिताना चाहिए और माता-पिता तथा गुरुजनों का सत्कार करना चाहिए।

9. धार्मिक सहनशीलता-अशोक सभी धर्मों का एक समान आदर करता था। इसलिए उसने बौद्ध-धर्म के प्रचार के साथ-साथ अन्य धर्मों की सहायता की। इस बात से उसकी महानता का पता चलता है।

10. विशाल साम्राज्य-अशोक का राज्य विशाल था। उसने शासक बनने के बाद इसका और भी विस्तार किया। उसका राज्य हिमालय से लेकर कर्नाटक तक, खाड़ी बंगाल से हिन्दुकुश तक और पश्चिम में अरब सागर तक फैला हुआ था।
“Every creature has the right to retain the breath of life until the last moment permitted by nature.”

11. पड़ोसी राज्यों की सहायता-अशोक ने पड़ोसी राज्यों में सेनाएं भेजने की बजाय प्रचारक भेजे। उसने दूसरे देशों को दवाइयां आदि भेज कर भी उनकी सहायता की। यह बात उसकी महानता की प्रतीक है।

इन कार्यों को देखते हुए हम कह सकते हैं कि अशोक वास्तव में ही इतिहास के महान् सम्राटों में से एक था। डॉ० आर० के० मुखर्जी ने ठीक ही कहा है, “विश्व के इतिहास में अशोक के समान कोई उदाहरण मिलना कठिन है।”

प्रश्न 9.
मौर्य साम्राज्य के पतन के कारणों का विश्लेषण करें। ब्राह्मणों की इसमें क्या भूमिका थी ?
उत्तर-
मौर्य साम्राज्य के पतन के कारणों का वर्णन इस प्रकार है
1. अयोग्य उत्तराधिकारी-अशोक के बाद राज्य की बागडोर दशरथ, सम्प्रति और वृहद्रथ जैसे राजाओं के हाथों में आ गई। ये सभी शासक शासन चलाने के अयोग्य थे।

2. विस्तृत साम्राज्य-अशोक के समय में मौर्य साम्राज्य काफ़ी विस्तृत हो गया था। अशोक के निर्बल उत्तराधिकारी इस विशाल साम्राज्य की रक्षा न कर सके।

3. उत्तराधिकारी के नियम का अभाव-मौर्य वंश के उत्तराधिकारी का कोई विशेष निवेश नहीं था। अतः एक शासक के मरते ही राजकुमारों में राजगद्दी के लिए युद्ध छिड़ जाता था। स्वयं अशोक ने अपने 99 भाइयों का वध करके राजगद्दी प्राप्त की थी। इन गृह-युद्धों के कारण मौर्य शक्ति क्षीण होती गई।

4. आन्तरिक विद्रोह-अशोक की मृत्यु के बाद उसके साम्राज्य में आन्तरिक विद्रोह आरम्भ हो गया। अनेक प्रान्तीय गवर्नरों ने अपने आपको स्वतन्त्र घोषित कर दिया। फलस्वरूप मौर्य साम्राज्य छिन्न-भिन्न होने लगा।

5. धन का अभाव-राज्य को चलाने के लिए धन का बड़ा महत्त्व होता है, परन्तु अशोक ने बौद्ध-धर्म के प्रचार तथा जनहित कार्यों पर बड़ी उदारता से खर्च किया। फलस्वरूप राजकोश खाली हो गया और धन के अभाव में न तो प्रशासन को ठीक ढंग से चलाया जा सका और न ही विद्रोहों को दबाया जा सका।

6. कर्मचारियों के अत्याचार-मौर्य साम्राज्य के दूर स्थित प्रान्तों का शासन प्रबन्ध अच्छा नहीं था। वहां सरकारी कर्मचारी लोगों पर बड़े अत्याचार करते थे। धीरे-धीरे ये अत्याचार इतने अधिक बढ़ गए कि लोग विद्रोह करने पर उतर आए।

7. सैनिक शक्ति की कमी-कलिंग युद्ध के पश्चात् अशोक ने युद्ध न करने का निर्णय किया। उसने सैनिक शक्ति बढ़ाने की ओर ध्यान देना भी छोड़ दिया। परिणामस्वरूप मौर्य वंश की सैनिक शक्ति कम हो गई।

8. विदेशी आक्रमण-मौर्य राज्य को निर्बल होते देखकर विदेशी आक्रमणकारियों ने भारत के सीमान्त प्रदेशों पर आक्रमण करने आरम्भ कर दिए। उनके आक्रमणों से मौर्य शक्ति को बड़ी क्षति पहुंची। इस प्रकार मौर्य वंश का धीरे-धीरे अन्त हो गया।

9. ब्राह्मणों की शत्रुता-अशोक के समय हिन्दू-धर्म का काफ़ी पतन हुआ। ब्राह्मण इस बात को सहन न कर सके और वे मौर्य वंश के विरुद्ध हो गए। आखिर एक ब्राह्मण सेनापति ने मौर्य वंश के अन्तिम शासक का वध कर दिया। इस प्रकार मौर्य वंश का पूरी तरह पतन हो गया।

PSEB 7th Class Social Science Solutions Chapter 17 18वीं शताब्दी में भारत में नए राज्यनीतिक शक्तियों की स्थापना

Punjab State Board PSEB 7th Class Social Science Book Solutions History Chapter 17 18वीं शताब्दी में भारत में नए राज्यनीतिक शक्तियों की स्थापना Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 7 Social Science History Chapter 17 18वीं शताब्दी में भारत में नए राज्यनीतिक शक्तियों की स्थापना

SST Guide for Class 7 PSEB 18वीं शताब्दी में भारत में नए राज्यनीतिक शक्तियों की स्थापना Textbook Questions and Answers

(क) निम्न प्रश्नों के उत्तर दीजिए

प्रश्न 1.
18वीं शताब्दी में स्थापित हुई किन्हीं चार प्रादेशिक शक्तियों के नाम लिखें।
उत्तर-
दक्षिण भारत की शक्तियाँ-मराठे, हैदराबाद के निज़ाम तथा मैसूर में हैदरअली और टीपू सुल्तान। उत्तरी भारत की शक्तियाँ-बंगाल, अवध, बुंदेलखंड, मथुरा तथा पंजाब।

प्रश्न 2.
पाठ में उत्तरकालीन मुग़लों की सूची बनाएं।
उत्तर-
बहादुर शाह, जहांदार शाह, फरुख्सीयर, मुहम्मद शाह तथा बहादुरशाह जफ़र।

प्रश्न 3.
18वीं शताब्दी में अवध के उत्थान का संक्षेप में वर्णन करो।
उत्तर-
सआदत खां-अवध के स्वतन्त्र राज्य का संस्थापक सआदत खां था। वह 1722 ई० में मुग़ल बादशाह मुहम्मद शाह के अधीन अवध का सूबेदार बना था। उसने राज्य की आर्थिक स्थिति में सुधार किए। उसने खेती-बाड़ी की ओर विशेष ध्यान दिया। 1739 ई० में उसकी मृत्यु हो गई।

सफदर जंग-सआदत खां की मृत्यु के पश्चात् सफदर जंग अवध का नया शासक बना। उसने 1754 ई० में रूहेलखण्ड के प्रदेश जीत लिये। 1775 ई० में उसकी मृत्यु हो गई।

शुजाउद्दौला तथा आसफुद्दौला-सफदर जंग के पश्चात् क्रमशः शुजाउद्दौला तथा आसफुद्दौला अवध के शासक बने। अंग्रेज़ गवर्नर-जनरल वॉरेन हेस्टिंग्ज़ ने आसफुद्दौला को फैजाबाद की संधि करने के लिए विवश कर दिया। उसने आसफुद्दौला को अवध में रखी गई अंग्रेजी सेना के बदले मिलने वाली धनराशि बढ़ाने के लिए भी मज़बूर किया। 1797 ई० में आसफुद्दौला की मृत्यु हो गई।

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प्रश्न 4.
18वीं शताब्दी में सिक्ख किस प्रकार शक्तिशाली बने ?
उत्तर-
18वीं शताब्दी में मुग़लों तथा सिक्खों के बीच एक लंबा संघर्ष हुआ। इसी संघर्ष ने सिक्खों को शक्तिशाली बना दिया था।

श्री गुरु गोबिंद सिंह जी के अधीन सिक्ख-मुग़लों ने सिक्खों पर बहुत अत्याचार किए थे। मुग़ल अत्याचारों का सामना करने के लिए गुरु गोबिंद सिंह जी ने सिक्खों को वीर योद्धा बनाने का निर्णय किया। इस उद्देश्य से उन्होंने 1699 ई० में खालसा पंथ की स्थापना की। इसके बाद मुग़लों तथा सिक्खों के बीच कई लड़ाइयां हुईं। इनमें आनंदपुर साहिब की पहली तथा दूसरी,लड़ाई, चमकौर साहिब की लड़ाई तथा खिदराना की लड़ाई प्रमुख थी। चमकौर साहिब की लड़ाई में गुरु साहिब के दो बड़े साहिबज़ादे अजीत सिंह तथा जुझार सिंह शहीद हो गए। 1706 ई० में गुरु साहिब ने खिदराना अथवा मुक्तसर की लड़ाई में मुग़लों को बुरी तरह हराया। 1708 ई० में गुरु साहिब ज्योति जोत समा गए। इससे पूर्व उन्होंने बंदा बहादुर को सिक्खों का नेतृत्व सौंप दिया था।

बंदा बहादुर के अधीन सिक्ख-बंदा बहादुर ने 1709 ई० में कैथल से अपनी विजयों की शुरुआत की। इसके पश्चात् उसने समाना, कपूरी तथा सढौरा पर विजय प्राप्त की। बंदा बहादुर ने श्री गुरु गोबिन्द सिंह जी के पुत्रों की शहीदी का बदला लेने के लिए जलालाबाद, करनाल, पानीपत, अमृतसर, गुरुदासपुर, कलानौर तथा पठानकोट पर विजय प्राप्त की। इस प्रकार उसने पंजाब में सिक्ख राज्य की स्थापना की। उसने लौहगढ़ को अपनी राजधानी बनाया। 1715 ई० में मुग़लों ने बंदा बहादुर तथा उसके साथियों को बंदी बना लिया। उन्हें दिल्ली भेज दिया गया, जहां 9 जून, 1716 ई० को उन्हें शहीद कर दिया गया।

पंजाब के गवर्नरों द्वारा सिक्खों पर अत्याचार-
1. मुग़ल सम्राट् फरुख्सीयर ने 1716 ई० में अबदुसमन्द खां को पंजाब का सूबेदार नियुक्त किया। उसने अपने शासन- काल में अनगिनत सिक्खों का कत्ल किया। इस कारण मुग़ल बादशाह फरुख्सीयर ने उसे ‘राज्य की तलवार’ की उपाधि दी।

2. 1726 ई० में अबदुसमन्द खां के पुत्र जकरिया खां को पंजाब का सूबेदार नियुक्त किया गया। उसने सिक्खों का दमन करने के लिए कठोर नीति अपनाई। उसने बड़ी संख्या में सिक्खों को मरवा डाला। उसके शासनकाल में भाई मनी सिंह भाई, भाई मेहताब सिंह, भाई तारू सिंह तथा भाई हकीकत राय जैसे व्यक्तियों ने शहीदी दी। परंतु वह सिक्खों का पूरी तरह से दमन करने में असफल रहा।

3. 1745 ई० में जकरिया खां का पुत्र याहिया खां पंजाब का सूबेदार बना। उसने भी सिक्खों के प्रति दमनकारी . नीति जारी रखी। उसने काहनूवाल (गुरदासपुर) में सिक्खों पर अचानक हमला कर दिया। इस हमले के दौरान 700 सिक्ख मारे गए तथा 3000 सिक्खों को बंदी बना लिया गया। इस घटना को छोटा घल्लूघारा कहा जाता है।

4. 1748 ई० में मीर मन्नू पंजाब का नया सूबेदार बना। उसने भी बड़ी संख्या में सिक्खों का कत्ल करवाया। परंतु वह सिक्खों की ओर पूरा ध्यान न दे सका। परिणामस्वरूप सिक्खों ने अपनी शक्ति को और अधिक संगठित कर लिया।

अहमदशाह अब्दाली के आक्रमण तथा पंजाब में स्वतंत्र सिक्ख राज्य की स्थापना-अहमदशाह अब्दाली अफगानिस्तान का शासक था। उसने पंजाब पर आठ बार आक्रमण किया। 1765 ई० में सिक्खों ने लाहौर पर अधिकार करके अपनी स्वतन्त्रता की घोषणा कर दी। परंतु उनका कोई नेता न होने के कारण उन्होंने अपने आप को जत्थों (समूहों) में संगठित कर लिया। इन जत्थों को मिसलें कहा जाता था। ये संख्या में 12 थीं। प्रत्येक मिसल का एक सरदार होता था जो अपनी मिसल का शासन चलाता था। 18वीं सदी के अंत में शुकरचकिया मिसल के सरदार रणजीत सिंह ने सभी मिसलों को एकत्रित करके पंजाब में स्वतंत्र राज्य की स्थापना की।

प्रश्न 5.
हैदरअली तथा टीपू सुल्तान ने मैसूर को किस प्रकार एक शक्तिशाली राज्य बनाया ?
उत्तर-
हैदरअली तथा टीपू सुल्तान मैसूर के दो प्रसिद्ध शासक थे। उन्होंने अंग्रेजों से ज़बरदस्त टक्कर ली।

हैदरअली-हैदरअली 1761 में मैसूर का शासक बना। उसने अपने शासनकाल में मैसूर के शासन प्रबन्ध को कुशल बनाया। वह सभी धर्मों का सत्कार करता था। उसने बहुत-से हिंदुओं को ऊंचे पदों पर नियुक्त किया। उसने बहुत-से क्षेत्रों को जीत कर मैसूर को एक शक्तिशाली राज्य बनाया। उसने मराठों, हैदराबाद के निज़ाम, कर्नाटक के शासकों तथा अंग्रेजों के साथ अनेक लड़ाइयां लड़ी। हैदरअली तथा अंग्रेज़ों के बीच दो लड़ाइयां हुईं जिन्हें ऐंग्लो-मैसूर युद्ध कहा जाता है। प्रथम ऐंग्लो-मैसूर युद्ध में हैदरअली ने अंग्रेजों को बुरी तरह पराजित किया। 1780 ई० में उनके बीच दूसरा युद्ध हुआ। यह युद्ध अभी चल ही रहा था कि हैदरअली की मृत्यु हो गई।

टीपू सुल्तान-हैदरअली की मृत्यु के पश्चात् उसका पुत्र टीपू सुल्तान मैसूर का शासक बना। अपने पिता की भांति वह भी एक योग्य शासक था। उसने शासन प्रबन्ध में अनेक सुधार किए। उसे मैसूर का टाइगर कहा जाता है। वह एक महान् देशभक्त था। वह भारत में अंग्रेजों के अत्याचारी शासन का अन्त करना चाहता था। इसलिए उसने अपनी सेना का आधुनिकीकरण किया और उसे आधुनिक शस्त्रों से लैस किया। उसने राज्य के उद्योग तथा व्यापार को उन्नत किया। वह 1799 ई० में अंग्रेजों के साथ मैसूर के चौथे युद्ध में लड़ते हुए मारा गया।

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प्रश्न 6.
शिवाजी ने मराठा साम्राज्य की स्थापना करने में क्या योगदान दिया?
उत्तर-
शिवाजी एक महान् देशभक्त थे। वह भारत में मुसलमानों के अत्याचारी शासन को समाप्त करके एक स्वतंत्र हिन्दू राज्य की स्थापना करना चाहते थे। उन्होंने निम्नलिखित विजयों द्वारा स्वतन्त्र मराठा साम्राज्य की स्थापना की –
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आरम्भिक विजयें –
(1) शिवाजी की पहली विजय तोरण दुर्ग (1646 ई०) पर थी। 1648 ई० में उन्होंने सिंहगड, पुरन्धर तथा कोंकण के दुर्ग पर अपना अधिकार जमा लिया।

(2) उन्होंने जावली के सरदार चन्दराव को मरवा कर जावली को भी अपने अधिकार में ले लिया।

(3) शिवाजी की बढ़ती हुई शक्ति को देख कर बीजापुर का सुल्तान चिन्ता में पड़ गया। उसने शिवाजी के विरुद्ध अपने सेनापति अफ़जल खां को भेजा। अफ़जल खां ने धोखे से शिवाजी को मारने का प्रयत्न किया। परन्तु इस प्रयास में वह स्वयं मारा गया। अन्त में शिवाजी तथा बीजापुर के सुल्तान के बीच सन्धि हो गई।

मुगलों से टक्कर-शिवाजी ने अब मुग़लों के प्रदेशों पर आक्रमण करने आरम्भ कर दिए। औरंगज़ेब ने उनके विरुद्ध अपने मामा शाइस्ता खां को भेजा, परन्तु शिवाजी ने उसे पूना से मार भगाया।

अब औरंगजेब ने राजा जयसिंह और राजकुमार मुअज्जम को भेजा। जयसिंह ने शिवाजी से कई किले छीन लिए और उन्हें सन्धि करने के लिए मजबूर कर दिया। शिवाजी आगरा पहुंचे जहां उन्हें कैद कर लिया गया। परन्तु मौका पाकर शिवाजी आगरा से भाग निकले और अपने प्रदेश महाराष्ट्र पहुंचने में सफल हो गए।
1674 ई० में उन्होंने छत्रपति की उपाधि धारण की। उन्होंने मुग़लों से युद्ध जारी रखे। दक्षिण में उन्होंने जिंजी, बैलौर तथा कनारा के प्रदेश जीत लिए। 1680 ई० में उनका देहान्त हो गया।

(ख) रिक्त स्थान की पूर्ति करो

  1. मुहम्मद शाह ने …………. तक राज्य किया।
  2. मुर्शिद कुली खां ……….. था।
  3. हैदरअली …………. का शासक था।
  4. सआदत खां ………….. ई० में अवध का सूबेदार बना।
  5. शिवाजी …………. साम्राज्य का संस्थापक था।
  6. गोकुल …………… का नेता था।
  7. बन्दा बहादुर का वास्तविक नाम ……

उत्तर-

  1. 1719 से 1748 ई०
  2. बंगाल तथा उड़ीसा का सूबेदार
  3. मैसूर
  4. 1722
  5. मराठा
  6. जाटों
  7. लक्ष्मण दास।

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(ग) निम्नलिखित प्रत्येक कथन के आगे ठीक (✓) अथवा गलत (✗) का चिन्ह लगाएं

  1. फरुखसियर दिल्ली का शासक बना।
  2. मुर्शिद कुली खां अवध का सूबेदार था।
  3. निज़ाम-अल-मुल्क हैदराबाद रियासत का संस्थापक था।
  4. राजा राम शिवाजी का उत्तराधिकारी बना।
  5. 1740 ई० में बालाजी राव तीसरा पेशवा बना।
  6. बदन सिंह गोकुल का उत्तराधिकारी था।
  7. बंदा बहादुर ने पंजाब में सिक्ख राज्य की स्थापना की।

उत्तर-

  1. (✓)
  2. (✗)
  3. (✓)
  4. (✗)
  5. (✓)
  6. (✗)
  7. (✓)

निम्नलिखित के ठीक जोड़े बनाओ

कॉलम ‘क’ – कॉलम ‘ख’

  1. बहादुर शाह की – 1739 ई० में मृत्यु हो गई।
  2. शुज्जाउद्दीन की – 20 अप्रैल, 1627 ई० को हुआ।
  3. हैदरअली की – 1712 ई० में मृत्यु हो गई।
  4. टीपू सुल्तान को – मैसूर का टाइगर कहा जाता था।
  5. शिवाजी का जन्म – 1782 ई० में मृत्यु हो गई।
  6. श्री गुरु गोबिन्द सिंह जी ने– 27 अक्तूबर, 1670 ई० को हुआ।
  7. बंदा बहादुर का जन्म – खालसा पन्थ की स्थापना 1699 ई० में की।

उत्तर-

  1. बहादुर शाह की 1712 ई० में मृत्यु हो गई।
  2. शुज्जाउद्दीन की 1739 ई० में मृत्यु हो गई।
  3. हैदरअली की 1782 ई० में मृत्यु हो गई।
  4. टीपू सुल्तान को मैसूर का टाइगर कहा जाता था।
  5. शिवाजी का जन्म 20 अप्रैल, 1627 ई० को हुआ।
  6. श्री गुरु गोबिन्द सिंह जी ने खालसा पन्थ की स्थापना 1699 ई० में की।
  7. बंदा बहादुर का जन्म 27 अक्तूबर, 1670 ई० को हुआ।

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PSEB 7th Class Social Science Guide 18वीं शताब्दी में भारत में नए राज्यनीतिक शक्तियों की स्थापना Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
उत्तरकालीन मुगल कौन थे ?
उत्तर-
औरंगज़ेब की मृत्यु के पश्चात् जिन मुग़ल शासकों ने राज्य किया उन्हें उत्तरकालीन मुग़ल कहा जाता है। वे इतने शक्तिहीन तथा अयोग्य थे कि साम्राज्य के दूर के प्रान्तों को इकट्ठा न रख सके।

प्रश्न 2.
अठारहवीं शताब्दी में भारत में स्वतन्त्र राज्यों के उदय का एक कारण लिखो।
उत्तर-
1707 ई० में मुग़ल शासक औरंगजेब की मृत्यु हो गई तो उस के कमज़ोर उत्तराधिकारियों के शासनकाल में अनेक शक्तियों ने स्वतन्त्र राज्य स्थापित कर लिए।

प्रश्न 3.
बंगाल में मुर्शिद कुली खां ने अपनी शक्ति को कैसे बढ़ाया ?
उत्तर-
मुर्शिद कुली खां ने बिहार तथा उड़ीसा को अपने राज्य में मिला लिया। इससे उसकी शक्ति का विस्तार हुआ।

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प्रश्न 4.
बंगाल के शासक मुर्शिद कुली खां के दो उत्तराधिकारियों के नाम लिखो।
उत्तर-
मुर्शिद कुली खां के दो सफल उत्तराधिकारी शुजाउद्दीन तथा अलीवर्दी खां थे।

प्रश्न 5.
अलीवर्दी खां कहां का शासक था ? उसने कितने समय तक शासन किया ?
उत्तर-
अलीवर्दी खां बंगाल का शासक था। उसने 1740 से 1756 ई० तक शासन किया।

प्रश्न 6.
हैदराबाद में स्वतन्त्र राज्य की स्थापना किसने और कब की ?
उत्तर-
हैदराबाद में स्वतन्त्र राज्य की स्थापना निज़ामुलमुल्क आसफजाह ने की। उसने इस राज्य की स्थापना 1724 ई० में की।

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प्रश्न 7.
हैदराबाद राज्य के संस्थापक निज़ामुल्मुल्क आसफजाह के कोई दो कार्य लिखो।
उत्तर-

  1. उसने राज्य में शान्ति व्यवस्था स्थापित की और शासन में महत्त्वपूर्ण सुधार किए।
  2. उसने हिन्दुओं तथा मुसलमानों से समान व्यवहार किया।

प्रश्न 8.
हैदराबाद राज्य के पतन का कोई एक कारण लिखो। .
उत्तर-
1748 ई० में हैदराबाद के शक्तिशाली शासक आसफजाह की मृत्यु हो गई। उसके उत्तराधिकारी अयोग्य निकले। परिणामस्वरूप हैदराबाद राज्य का पतन आरम्भ हो गया।

प्रश्न 9.
अवध के स्वतन्त्र राज्य का संस्थापक कौन था ? उसे कौन-सी पदवी मिली हुई थी ?
उत्तर-
अवध के स्वतन्त्र राज्य का संस्थापक सआदत्त खां था। उसे बुरहानुउल मुल्क की पदवी मिली हुई थी।

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प्रश्न 10.
अवध के स्वतन्त्र शासक सआदत्त खां का कोई एक महत्त्वपूर्ण कार्य लिखिए।
उत्तर-
अवध के शासक सआदत्त खां ने नई भू-नीति लागू की। इससे किसानों की दशा में बहुत सुधार हुआ।

प्रश्न 11.
सआदत्त खां (अवध का शासक)का उत्तराधिकारी कौन था ? उसकी किसी एक सफलता का वर्णन करो।
उत्तर-
सआदत्त खां का उत्तराधिकारी उसका भतीजा और दामाद सफदरजंग था। उसने इलाहाबाद क्षेत्र को अपने राज्य में मिलाया।

प्रश्न 12.
अठारहवीं शताब्दी के दो प्रसिद्ध विदेशी आक्रमणकारियों के नाम बताओ। उन्होंने भारत पर कबकब आक्रमण किए ?
उत्तर-
18वीं शताब्दी के दो प्रसिद्ध आक्रमणकारी थे-नादिरशाह और अहमदशाह अब्दाली। नादिरशाह ने 1739 ई० में भारत पर आक्रमण किया। अहमदशाह अब्दाली ने 1748 से 1758 तक पांच बार भारत पर आक्रमण किया।

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प्रश्न 13.
‘मिसल’ से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
18वीं शताब्दी में पंजाब में सिक्ख सरदारों ने अपने छोटे-छोटे स्वतन्त्र जत्थे बना लिए थे। इन्हें मिसल कहा जाता था। इनकी कुल संख्या 12 थी।

प्रश्न 14.
पंजाब में किस शासक ने मिसलों का अन्त किया ? उसका सम्बन्ध किस मिसल से था ?
उत्तर-
पंजाब में रणजीत सिंह ने मिसलों का अन्त करके एक शक्तिशाली राज्य की स्थापना की। वह सुकरचकिया मिसल से सम्बन्ध रखता था।

प्रश्न 15.
मैसूर राज्य के दो स्वतन्त्र शासकों के नाम बताओ।
उत्तर-
मैसूर राज्य के दो स्वतन्त्र शासक हैदरअली और टीपू सुल्तान थे।

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प्रश्न 16.
पेशवा कौन थे ? सबसे पहला पेशवा कौन था ? .
उत्तर-
मराठा राज्य में प्रधानमन्त्री को पेशवा कहते थे। साहूजी के अधीन पेशवा मराठा राज्य के वास्तविक शासक बन गए। सबसे पहला पेशवा बालाजी विश्वनाथ था।

प्रश्न 17.
बालाजी विश्वनाथ कब पेशवा बना ? उसका कोई एक काम लिखो।
उत्तर-
बालाजी विश्वनाथ 1713 ई० में पेशवा बना। उसने साहूजी की माता को मुग़ल कैद से रिहा करवाया।

प्रश्न 18.
बालाजी विश्वनाथ के दो उत्तराधिकारियों के नाम बताओ।
उत्तर-
बालाजी विश्वनाथ के दो उत्तराधिकारी थे :–
बाजीराव प्रथम तथा बालाजी बाजीराव।

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प्रश्न 19.
पेशवा बाजीराव प्रथम का कोई एक कार्य लिखो।
उत्तर-
पेशवा बाजीराव प्रथम ने अनेक प्रदेश विजय किए। उसने मराठा राज्य का विस्तार दिल्ली तक कर दिया।

प्रश्न 20.
मराठों की किसी एक कमज़ोरी का वर्णन करो।
उत्तर-
मराठा सरदार आपस में ईर्ष्या और द्वेष रखते थे। यह कमज़ोरी बाद में उनके पतन का कारण बनी।

प्रश्न 21.
जाटों के नेताओं के नाम लिखो जिन्होंने मुगलों से संघर्ष किया।
उत्तर-
मुग़लों के साथ संघर्ष करने वाले मुख्य जाट नेता गोकुल, राजाराम तथा चूड़ामणि (चूड़ामन) थे।

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प्रश्न 22.
शिवाजी का जन्म कब हुआ ?
उत्तर-
शिवाजी का जन्म 1627 ई० में हुआ।

प्रश्न 23.
शाइस्ता खां कौन था ?
उत्तर-
शाइस्ता खां औरंगज़ेब का मामा था। वह एक योग्य सेनानायक था। औरंगज़ेब ने उसे दक्षिण का गवर्नर नियुक्त किया था।

प्रश्न 24.
पुरन्धर की सन्धि के बारे में लिखो।
उत्तर-
पुरन्धर की सन्धि मुग़ल सेनानायक मिर्जा राजा जयसिंह तथा शिवाजी के बीच हुई। इस सन्धि के अनुसार शिवाजी ने मुगलों की अधीनता स्वीकार कर ली। उन्हें अपने 23 किले मुग़लों को देने पड़े।

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प्रश्न 25.
शिवाजी के विरुद्ध भेजे गए बीजापुर के अधिकारी का क्या नाम था और उसे किसने भेजा था ?
उत्तर-
शिवाजी के विरुद्ध भेजे गए बीजापुर के अधिकारी का नाम अफ़जल खां था। उसे बीजापुर के सुल्तान ने भेजा था।

प्रश्न 26.
शिवाजी राजगद्दी पर कब बैठे और उन्होंने कौन-सी उपाधि धारण की ?
उत्तर-
शिवाजी 1674 ई० में राजगद्दी पर बैठे और उन्होंने छत्रपति की उपाधि धारण की।

प्रश्न 27.
बन्दा बहादुर के समय में सरहिन्द का फौजदार कौन था और उसे बन्दा बहादुर ने किस लड़ाई में मारा ?
उत्तर-
बन्दा बहादुर के समय में सरहिन्द का फौजदार वज़ीर खां था। उसे बन्दा बहादुर ने चप्परचिड़ी के युद्ध में मारा।

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प्रश्न 28.
शिवाजी ने अफ़ज़ल खां का वध कैसे किया ?
उत्तर-
अफ़जल खां शिवाजी को धोखे से मारना चाहता था। इसलिए उसने शिवाजी को अकेले मिलने के लिए कहा और साथ ही यह भी कहा कि वह उनसे सन्धि करना चाहता है, परन्तु शिवाजी उसकी चाल भांप गए। वे अपने कपड़ों के नीचे कवच पहन कर तथा बिछुआ छिपा कर अफ़जल खां से मिलने जा पहुँचे। दोनों आपस में गले मिले।

अफ़जल खां ने धोखे से शिवाजी के पेट में छुरा घोंपने की कोशिश की, परन्तु शिवाजी ने शीघ्र ही अपना बिछुआ उसके पेट में घोंप कर उसे मार डाला।

प्रश्न 29.
शिवाजी का शाइस्ता खां के साथ टकराव का वर्णन करें।
उत्तर-
मुग़ल सम्राट औरंगज़ेब शिवाज़ी की बढ़ती हुई शक्ति का दमन करना चाहता था। उसने अपने मामा शाइस्ता खां को दक्षिण का सूबेदार नियुक्त किया। शाइस्ता खां ने दो-तीन वर्षों में ही मराठों के कई दुर्ग विजय कर लिए और पूना पर अधिकार कर लिया। शाइस्ता खां को वर्षा के कारण कुछ समय पूना में व्यतीत करना पड़ा। शिवाजी ने अवसर का लाभ उठाते हुए 400 सैनिकों सहित एक बारात के रूप में पूना में प्रवेश किया। आधी रात के समय उन्होंने शाइस्ता खां के निवास स्थान पर आक्रमण कर दिया। इस आक्रमण में शाइस्ता खां का बेटा और उसके 40 सैनिक मारे गए। इस विजय से शिवाजी के सम्मान में बड़ी वृद्धि हुई।

प्रश्न 30.
पानीपत का तीसरा युद्ध कब और किस-किस के बीच हुआ ? इस युद्ध में किस की विजय हुई ?
उत्तर-
पानीपत का तीसरा युद्ध 1761 ई० में अहमदशाह अब्दाली तथा मराठों के बीच हुआ। इस युद्ध में अहमदशाह अब्दाली की विजय हुई।

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प्रश्न 31.
पानीपत के तीसरे युद्ध का मुख्य कारण क्या था ?
उत्तर-
मराठों ने उत्तरी भारत में पंजाब तक अपना विस्तार कर लिया था। अफ़गानिस्तान का शासक अहमदशाह अब्दाली पंजाब के अधिकांश क्षेत्र को अपने साम्राज्य का अंग मानता था। अतः उसने मराठों को दण्ड देने के लिए उनके साथ पानीपत के मैदान में युद्ध किया।

प्रश्न 32.
पानीपत के तीसरे युद्ध में मराठों की पराजय का कोई एक कारण लिखो।
उत्तर-
युद्ध में मराठों की सैनिक व्यवस्था ठीक नहीं थी। अब्दाली की चतुराई से मराठों को दक्षिण दिशा से कोई सहायता न मिल पाई। अतः वे पराजित हुए।

प्रश्न 33.
पानीपत के तीसरे युद्ध का एक परिणाम लिखिए।
उत्तर-
इस युद्ध से मराठा शक्ति का अन्त हो गया। उनके अनेक वीर सैनिक तथा सेनापति मारे गए।

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प्रश्न 34.
पेशवा बालाजी बाजीराव की मृत्यु कब हुई ? उसकी मृत्यु का क्या कारण था ?
उत्तर-
पेशवा बालाजी बाजीराव की मृत्यु 1761 ई० में हुई। पानीपत के तीसरे युद्ध में मसठों की पराजय उसकी मृत्यु का मुख्य कारण था।

प्रश्न 35.
उत्तरकालीन मुग़लों की संक्षिप्त जानकारी दीजिए।
उत्तर-
औरंगजेब के अयोग्य उत्तराधिकारी उत्तरकालीन मुग़ल कहलाते हैं। इनका संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है –

बहादुर शाह प्रथम (1707-1712)-मुग़ल बादशाह बहादुर शाह ने छ: वर्ष तक राज्य किया। परन्तु वह मराठों तथा सिक्खों पर काबू न पा सका। 1712 ई० में उसकी मृत्यु हो गई।

जहांदार शाह-बहादुर शाह प्रथम की मृत्यु के बाद उसका पुत्र जहांदार शाह राजगद्दी पर बैठा। उसने कुछ ही महीनों तक शासन किया। उसके राज्यकाल में दो सैयद भाई हुसैन अली तथा अब्दुल बहुत ही शक्तिशाली हो गए थे। वे जहांदार शाह को अपने हाथों की कठपुतली बनाना चाहते थे। परन्तु वे अपने उद्देश्य में सफल न हो सके। अत: उन्होंने जहांदार शाह का वध कर दिया।

फरुख्सीयर (1713-1719 ई०)-जहांदार की मृत्यु के पश्चात् उसका भतीजा फरुख्सीयर शासक बना। वह केवल नाम मात्र का ही राजा था। राज्य का वास्तविक शासन हुसैन अली तथा अब्दुल के हाथ में ही था, जिन्हें सैयद भाई कहा जाता था। 1719 ई० में सैयद भाइयों ने उसका भी वध कर दिया।

मुहम्मदशाह-मुहम्मदशाह अगला प्रसिद्ध मुग़ल शासक था। उसने 1719 से 1748 ई० तक शासन किया। उसके शासनकाल में सैयद भाइयों का प्रभाव समाप्त हो गया। परन्तु उसने साम्राज्य को संगठित करने का प्रयास नहीं किया। अतः शक्तिशाली गवर्नरों ने देश के भिन्न-भिन्न भागों में अपने स्वतन्त्र राज्य स्थापित कर लिए।

बहादुरशाह ज़फ़र-बहादुरशाह ज़फ़र अन्तिम मुग़ल बादशाह था। उसे 1858 ई० में अंग्रेज़ों ने गद्दी से उतार कर मुग़ल साम्राज्य का अन्त कर दिया।

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प्रश्न 36.
बंगाल राज्य के उत्थान और पतन का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
बंगाल मुग़ल साम्राज्य का एक समृद्ध प्रान्त था। यहां का सूबेदार मुर्शिद कुली खां था। औरंगज़ेब की मृत्यु के पश्चात् बंगाल पर मुगलों का नियन्त्रण कमज़ोर पड़ गया। अवसर का लाभ उठा कर मुर्शिद कुली खां ने बंगाल में एक स्वतन्त्र राज्य स्थापित कर लिया। विभिन्न शासकों के अधीन बंगाल राज्य के विकास का वर्णन इस प्रकार है –

1. मुर्शिद कुली खां-मुर्शिद कुली खां बंगाल राज्य का संस्थापक था। उसने 1714 से 1718 ई० के बीच बिहार तथा उड़ीसा को अपने राज्य में मिला कर अपनी शक्ति और भी बढ़ा ली।

2. अन्य शासक-बंगाल के अन्य प्रसिद्ध शासक शुजाउद्दीन (1727-39), सरफराज (1739) तथा अलीवर्दी खां (1740-56 ई०) थे। इन सभी शासकों ने राज्य में शान्ति व्यवस्था स्थापित की। उन्होंने कृषि, व्यापार और उद्योगों की उन्नति के लिए भी कार्य किया। इस प्रकार बंगाल राज्य काफ़ी समृद्ध हो गया।

3. राज्य का पतन-बंगाल के शासकों ने राज्य की समृद्धि के लिए कार्य अवश्य किए, परन्तु राज्य की सुरक्षा की ओर कोई ध्यान न दिया। परिणामस्वरूप बंगाल राज्य का पतन हो गया।

प्रश्न 37.
हैदराबाद का स्वतन्त्र राज्य के रूप में उदय एवं विकास का वर्णन कीजिए। इस राज्य का पतन कैसे हुआ?
अथवा
हैदराबाद के शासक निजामुलमुल्क आसफजाह की प्रमुख सफलताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
हैदराबाद मुग़ल साम्राज्य के अधीन दक्षिणी भारत का एक प्रान्त था। 1724 ई० में वहां निज़ामुलमुल्क आसफजाह ने स्वतन्त्र राज्य की स्थापना की। उसने तत्कालीन मुग़ल शासक मुहम्मद शाह के प्रति अपनी स्वामी भक्ति अवश्य दिखाई परन्तु यह सब कुछ दिखावा मात्र ही था।

आसफजाह की सफलताएं-आसफजाह एक सफल शासक था। उसने राज्य में शान्ति-व्यवस्था स्थापित की और शासन-प्रबन्ध में अनेक सुधार किए। उसने अपनी हिन्दू प्रजा के साथ अच्छा व्यवहार किया। उसने अपनी सेना को भी शक्तिशाली बनाया और शक्तिशाली मराठों से अपने राज्य की रक्षा की। 1748 ई० में उसकी मृत्यु हो गई।

राज्य का पतन-आसफजाह के उत्तराधिकारी बड़े कमज़ोर और अयोग्य थे। अत: वे अधिक समय तक अपनी स्वतन्त्रता की रक्षा न कर सके।

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प्रश्न 38.
बन्दा बहादुर पर नोट लिखो।
उत्तर-
बन्दा बहादुर का जन्म 27 अक्तूबर, 1670 ई० को पुंछ (जम्मू) में हुआ था। उसका वास्तविक नाम लक्ष्मणदास था। वह दक्षिण में गुरु गोबिन्द सिंह जी के सम्पर्क में आया। गुरु जी से प्रभावित होकर वह स्वयं को गुरु जी का बन्दा कहने लगा। गुरु साहिब ने उसे ‘बहादुर’ की उपाधि दी। इस प्रकार वह बन्दा बहादुर कहलाने लगा। गुरु जी का आदेश पा कर वह पंजाब आया और उसने सिक्खों का नेतृत्व किया। उसने मुग़लों के विरुद्ध कड़ा संघर्ष किया। उसने सरहिन्द के फौजदार वज़ीर खां से गुरु पुत्रों की हत्या का बदला लिया और उसे मौत के घाट उतार दिया। वास्तव में उसने हर उस स्थान को जीतने का प्रयास किया जहां के शासकों ने गुरु जी को कष्ट देने का प्रयास किया था। परन्तु अन्त में वह पकड़ा गया। 9 जून, 1716 ई० में उसे तथा उसके 25 प्रमुख साथियों को दिल्ली में शहीद कर दिया गया। उसकी शहीदी पंजाब के इतिहास में हमेशा स्वर्ण अक्षरों में लिखी जाएगी।

प्रश्न 39.
औरंगजेब के शासनकाल में जाटों तथा राजपूतों के विद्रोह के बारे में लिखो।
उत्तर-
औरंगजेब का शासनकाल अत्यन्त अशान्तिपूर्ण रहा। इसका कारण था औरंगजेब की अनुचित नीतियों के कारण होने वाले विद्रोह। इन विद्रोहों का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है –

1. जाट-जाटों ने 1669 ई० में विद्रोह किया। उन्होंने मुग़ल फौजदार को मार डाला। सम्राट ने जाटों के विद्रोह को बड़ी कठोरता से दबाया। परन्तु जाट औरंगज़ेब के शासनकाल में उत्पात मचाते रहे और सम्राट् उन्हें न रोक सका।

2. राजपूत-अकबर के समय में राजपूतों और मुग़लों में मित्रतापूर्ण सम्बन्ध थे। परन्तु औरंगजेब ने अपनी कट्टर धार्मिक नीति के कारण उन्हें भी अपना विरोधी बना लिया। फलस्वरूप औरंगज़ेब को मेवाड़ और मारवाड़ के राजपूतों से एक लम्बे युद्ध में उलझना पड़ा। मारवाड़ के वीर दुर्गादास ने छापामार लड़ाई द्वारा मुग़लों को बड़ी क्षति पहुँचाई।

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प्रश्न 40.
मराठों (शिवाजी) की शासन व्यवस्था की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
शिवाजी ने एक स्वतन्त्रं मराठा राज्य स्थापित किया था। उन्होंने अपने राज्य में एक कुशल शासन-व्यवस्था की नींव रखी। इसकी मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित थीं –

1. राजा-सारे शासन का मुखिया राजा था। उसे ‘छत्रपति’ कहते थे। राजा के अनेक अधिकार थे। वह अपनी इच्छा से कोई भी शासन-सम्बन्धी कार्य कर सकता था। उसने अपनी सहायता के लिए अष्ट-प्रधान नामक परिषद् नियुक्त की हुई थी।

2. अष्ट-प्रधान-शिवाजी ने अपनी सहायता के लिए आठ मन्त्री नियुक्त किए हुए थे। इन मन्त्रियों के समूह को अष्ट-प्रधान कहा जाता था। सबसे बड़े मन्त्री को पेशवा कहते थे।

3. भूमि का प्रबन्ध-सैनिकों के वेतन तथा अन्य खर्चों के लिए शिवाजी ने नए सिरे से भूमि का प्रबन्ध किया। उन्होंने सारी भूमि को फिर से नपवाया और उपज के अनुसार भूमिकर निश्चित किया। मराठों की कर व्यवस्था में चौथ तथा सरदेशमुखी दो प्रमुख कर थे। चौथ नामक कर मुग़ल क्षेत्रों से लोगों की सुरक्षा के बदले वसूल किया जाता था।

4. न्याय प्रबन्ध-शिवाजी बड़े न्यायप्रिय थे। उन्होंने न्याय के लिए पंचायतों की व्यवस्था की।

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सही उत्तर चुनिए :

प्रश्न 1.
मैसूर के शासक हैदरअली के उत्तराधिकारी को मैसूर का टाइगर’ कहा जाता है। उसका नाम बताइए।
(i) टीपू सुल्तान
(ii) शुजाउद्दौला
(iii) सफदरजंग।
उत्तर-
(i) टीपू सुल्तान।

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प्रश्न 2.
चित्र में दिखाए गए मराठा शासक की बढ़ती हुई शक्ति को नष्ट करने का प्रयास किसने किया?
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(i) अंग्रेजों ने
(ii) हैदर अली ने
(iii) औरंगजेब ने।
उत्तर-
(iii) औरंगजेब ने।

प्रश्न 3.
सवाई राजा जयसिंह ने निम्न में से क्या बनवाया?
(i) जंतर-मंतर
(ii) विशाल मन्दिर
(iii) सुन्दर राजदरबार।
उत्तर-
(i) जंतर-मंतर।

प्रश्न 4.
नीचे अन्तिम मुगल बादशाह का चित्र दिया गया है। इसका क्या नाम था ?
PSEB 7th Class Social Science Solutions Chapter 17 18वीं शताब्दी में भारत में नए राज्यनीतिक शक्तियों की स्थापना 4
(i) जहांदार शाह
(ii) बहादुर शाह ज़फ़र
(iii) मुहम्मद शाह।
उत्तर-
(i) बहादुर शाह जफ़र।

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18वीं शताब्दी में भारत में नए राज्यनीतिक शक्तियों की स्थापना PSEB 7th Class Social Science Notes

  • नवीन राज्यों का उदय – 18वीं शताब्दी में मुग़ल साम्राज्य के खंडहरों पर अनेक नए राज्यों का उदय हुआ। इनमें से मुख्य राज्य थे-बंगाल, हैदराबाद, अवध, पंजाब, मैसूर तथा मराठा राज्य।
  • मराठा – मुग़लों के पतन के बाद भारत की सबसे शक्तिशाली जाति का नाम।
  • अष्ट प्रधान – शिवाजी के शासन काल के आठ मन्त्रियों की परिषद्।
  • पेशवा – अष्ट प्रधान का मुखिया।
  • पंजाब (सिक्ख) – पंजाब में दस गुरुओं ने सिक्ख पंथ का विकास किया। दसवें. गुरु गोबिन्द सिंह जी ने खालसा की स्थापना द्वारा उन्हें सैनिक रूप दिया। बाद में बंदा बहादुर ने पंजाब में सिक्ख राज्य की स्थापना की।
  • बंगाल – बंगाल में मुग़ल सूबेदार मुर्शिद कुली खां ने स्वतन्त्र राज्य की स्थापना की। अन्त में यह राज्य अंग्रेज़ों के अधीन हो गया।
  • अवध – अवध में स्वतन्त्र राज्य का संस्थापक सआदत खां था। अवध के नवाबों ने ‘लखनवी संस्कृति’ को जन्म दिया।
  • मैसूर – मैसूर में 1761 ई० में हैदरअली ने स्वतन्त्र राज्य की स्थापना की। उसने मैसूर के हिन्दू राजा नंजाराज से सत्ता छीनी।

PSEB 10th Class SST Solutions History Chapter 4 गुरु अंगद देव जी से लेकर गुरु तेग बहादुर जी तक सिक्ख गुरुओं का योगदान

Punjab State Board PSEB 10th Class Social Science Book Solutions History Chapter 4 गुरु अंगद देव जी से लेकर गुरु तेग बहादुर जी तक सिक्ख गुरुओं का योगदान Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 10 Social Science History Chapter 4 गुरु अंगद देव जी से लेकर गुरु तेग बहादुर जी तक सिक्ख गुरुओं का योगदान

SST Guide for Class 10 PSEB गुरु अंगद देव जी से लेकर गुरु तेग बहादुर जी तक सिक्ख गुरुओं का योगदान Textbook Questions and Answers

(क) निम्नलिखित प्रत्येक प्रश्न का उत्तर एक शब्द/एक पंक्ति (1-15 शब्दों) में लिखो

प्रश्न 1.
भाई लहना किस गुरु का पहला नाम था?
उत्तर-
गुरु अंगद साहिब का।

प्रश्न 2.
लंगर प्रथा से क्या भाव है?
उत्तर-
लंगर प्रथा अथवा पंगत से भाव उस प्रथा से है जिसके अनुसार सभी जातियों के लोग बिना किसी भेदभाव के एक ही पंगत में इकट्ठे बैठकर खाना खाते थे।

प्रश्न 3.
गोइन्दवाल में बाऊली (जल स्त्रोत) की नींव किस गुरु ने रखी थी?
उत्तर-
गोइन्दवाल में बाऊली की नींव गुरु अंगद देव जी ने रखी थी।

PSEB 10th Class SST Solutions History Chapter 4 गुरु अंगद देव जी से लेकर गुरु तेग बहादुर जी तक सिक्ख गुरुओं का योगदान

प्रश्न 4.
अकबर कौन-से गुरु को मिलने गोइन्दवाल आया?
उत्तर-
अकबर गुरु अमरदास जी से मिलने गोइन्दवाल आया था।

प्रश्न 5.
मसन्द प्रथा के उद्देश्य लिखिए।
उत्तर-
मसन्द प्रथा के मुख्य उद्देश्य थे-सिक्ख धर्म के विकास कार्यों के लिए धन एकत्रित करना तथा सिक्खों को संगठित करना।

प्रश्न 6.
सिक्खों के चौथे गुरु कौन थे तथा उन्होंने कौन-सा शहर बसाया?
उत्तर-
गुरु रामदास जी सिक्खों के चौथे गुरु थे जिन्होंने रामदासपुर (अमृतसर) नामक नगर बसाया।

PSEB 10th Class SST Solutions History Chapter 4 गुरु अंगद देव जी से लेकर गुरु तेग बहादुर जी तक सिक्ख गुरुओं का योगदान

प्रश्न 7.
हरिमंदिर साहिब की नींव कब तथा किसने रखी?
उत्तर-
हरिमंदिर साहिब की नींव 1589 ई० में उस समय के प्रसिद्ध सूफ़ी सन्त मियां मीर ने रखी।

प्रश्न 8.
हरिमंदिर साहिब के चारों तरफ दरवाज़े रखने से क्या भाव है?
उत्तर-
हरिमंदिर साहिब के चारों तरफ दरवाज़े रखने से भाव यह है कि यह पवित्र स्थान सभी वर्गों, सभी जातियों और सभी धर्मों के लिए समान रूप से खुला है।

प्रश्न 9.
गुरु अर्जन देव जी द्वारा स्थापित किए गए चार शहरों के नाम लिखिए।
उत्तर-
तरनतारन, करतारपुर, हरगोबिन्दपुर तथा छहरटा।

PSEB 10th Class SST Solutions History Chapter 4 गुरु अंगद देव जी से लेकर गुरु तेग बहादुर जी तक सिक्ख गुरुओं का योगदान

प्रश्न 10.
‘दसवन्ध’ से क्या भाव है?
उत्तर-
‘दसवन्ध’ से भाव यह है कि प्रत्येक सिक्ख अपनी आय का दसवां भाग गुरु जी के नाम भेंट करे।

प्रश्न 11.
‘आदि ग्रन्थ’ का संकलन क्यों किया गया?
उत्तर-
आदि ग्रन्थ साहिब का संकलन सिक्खों को गुरु साहिबान की शुद्धतम तथा प्रामाणिक वाणी का ज्ञान करवाने के लिए किया गया।

प्रश्न 12.
लंगर प्रथा के बारे में आप क्या जानते हो?
उत्तर-
लंगर प्रथा का आरम्भ गुरु नानक साहिब ने सामाजिक भाईचारे के लिए किया।

PSEB 10th Class SST Solutions History Chapter 4 गुरु अंगद देव जी से लेकर गुरु तेग बहादुर जी तक सिक्ख गुरुओं का योगदान

प्रश्न 13.
गुरु अंगद देव जी संगत प्रथा के द्वारा सिक्खों को क्या उपदेश देते थे?
उत्तर-
गुरु अंगद देव जी संगत प्रथा के द्वारा सिक्खों को ऊंच-नीच के भेदभाव को भूल कर प्रेमपूर्वक रहने की शिक्षा देते थे।

प्रश्न 14.
गुरु अंगद देव जी की पंगत-प्रथा के बारे में जानकारी दो।
उत्तर-
गुरु अंगद देव जी ने गुरु नानक देव जी के द्वारा चलाई गई पंगत-प्रथा (लंगर) को आगे बढ़ाया जिसका खर्च सिक्खों की कार सेवा से चलता था।

प्रश्न 15.
गुरु अंगद देव जी द्वारा स्थापित अखाड़े के बारे में लिखिए।
उत्तर-
गुरु अंगद देव जी ने सिक्खों को शारीरिक रूप से मज़बूत बनाने के लिए खडूर साहिब के स्थान पर एक अखाड़ा बनवाया।

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प्रश्न 16.
गोइन्दवाल के बारे में आप क्या जानते हो?
उत्तर-
गोइन्दवाल नामक नगर की स्थापना गुरु अंगद देव जी ने की जो सिक्खों का एक प्रसिद्ध धार्मिक केन्द्र बन गया।

प्रश्न 17.
गुरु अमरदास जी के जाति-पाति के बारे में विचार बताओ।
उत्तर-
गुरु अमरदास जी जातीय भेदभाव तथा छुआछूत के विरोधी थे।

प्रश्न 18.
सती प्रथा के बारे में गुरु अमरदास जी के क्या विचार थे?
उत्तर-
गुरु अमरदास जी ने सती प्रथा का खण्डन किया।

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प्रश्न 19.
गुरु अमरदास जी ने जन्म, विवाह तथा मृत्यु सम्बन्धी क्या सुधार किए?
उत्तर-
गुरु अमरदास जी ने जन्म तथा विवाह के अवसर पर ‘आनन्द’ वाणी का पाठ करने की प्रथा चलाई और सिक्खों को आदेश दिया कि वे मृत्यु के समय ईश्वर का स्तुति तथा भक्ति के शब्दों का गायन करें।

प्रश्न 20.
रामदासपुर या अमृतसर की स्थापना की महत्ता बताइए।
उत्तर-
रामदासपुर की स्थापना से सिक्खों को एक अलग तीर्थ-स्थान तथा महत्त्वपूर्ण व्यापारिक केन्द्र मिल गया।

प्रश्न 21.
लाहौर की बाऊली (जल स्त्रोत) के बारे में जानकारी दीजिए।
उत्तर-
लाहौर के डब्बी बाज़ार में बाऊली का निर्माण गुरु अर्जन देव जी ने करवाया।

PSEB 10th Class SST Solutions History Chapter 4 गुरु अंगद देव जी से लेकर गुरु तेग बहादुर जी तक सिक्ख गुरुओं का योगदान

प्रश्न 22.
गुरु अर्जन देव जी को आदि ग्रन्थ साहिब की स्थापना की आवश्यकता क्यों पड़ी?
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी सिक्खों को एक पवित्र धार्मिक ग्रन्थ देना चाहते थे, ताकि वे गुरु साहिबान की शुद्ध वाणी को पढ़ तथा सुन सकें।

प्रश्न 23.
गुरु अर्जन देव जी के समय घोड़ों के व्यापार के लाभ बताएं।
उत्तर-
इस व्यापार से सिक्ख धनी बने और गुरु साहिब के खज़ाने में भी धन की वृद्धि हुई।

प्रश्न 24.
गुरु अर्जन देव जी के समाज सुधार के कोई दो काम लिखो।
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी ने विधवा विवाह के पक्ष में प्रचार किया और सिक्खों को शराब तथा अन्य नशीली वस्तुओं का सेवन करने से मना किया।

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प्रश्न 25.
गुरु अर्जन देव जी तथा अकबर के सम्बन्धों का वर्णन करो।
उत्तर-
गुरु अर्जन देव के सम्राट अकबर के साथ मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध थे।

प्रश्न 26.
जहांगीर गुरु अर्जन देव जी को क्यों शहीद करना चाहता था?
उत्तर-
जहांगीर को गुरु अर्जन देव जी की बढ़ती हुई ख्याति से ईर्ष्या थी।
अथवा
जहांगीर को इस बात का दुःख था कि हिन्दुओं के साथ-साथ कई मुसलमान भी गुरु साहिब से प्रभावित हो रहे हैं।

प्रश्न 27.
मीरी तथा पीरी तलवारों की विशेषताएं बताएं।
उत्तर-
‘मीरी’ तलवार सांसारिक विषयों में नेतृत्व का प्रतीक थी, जबकि पीरी’ लकार आध्यात्मिक विषयों में नेतृत्व का प्रतीक थी।

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प्रश्न 28.
अमृतसर की किलाबन्दी बारे गुरु हरगोबिन्द जी ने क्या किया?
उत्तर-
गुरु हरगोबिन्द साहिब ने अमृतसर की रक्षा के लिए इसके चारों ओर एक दीवार बनवाई और नगर में ‘लोहगढ़’ नामक एक किले का निर्माण करवाया।

(ख) निम्नलिखित प्रत्येक प्रश्न का उत्तर लगभग 30-50 शब्दों में लिखिए

प्रश्न 1.
गोइन्दवाल की बाऊली (जल स्रोत) का वर्णन करो।
उत्तर-
गोइन्दवाल नामक स्थान पर बाऊली (जल स्रोत) का निर्माण कार्य गुरु अमरदास जी ने पूरा किया जिसका शिलान्यास गुरु अंगद देव जी के समय में किया गया था। गुरु अमरदास जी ने इस बावली में 84 सीढ़ियां बनवाईं। उन्होंने अपने शिष्यों को बताया कि जो सिक्ख प्रत्येक सीढ़ी पर श्रद्धा और सच्चे मन से ‘जपुजी साहिब’ का पाठ करके 84वीं सीढ़ी पर स्नान करेगा वह जन्म-मरण के चक्कर से मुक्त हो जाएगा और मोक्ष को प्राप्त करेगा। डॉ० इन्दू भूषण बनर्जी लिखते हैं, “इस बाऊली की स्थापना सिक्ख धर्म के इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण कार्य था।” गोइन्दवाल की बाऊली सिक्ख धर्म का प्रसिद्ध तीर्थ स्थान बन गई। इस बाऊली पर एकत्रित होने से सिक्खों में आपसी मेल-जोल की भावना भी बढ़ी और वे परस्पर संगठित होने लगे।

प्रश्न 2.
मंजी-प्रथा से क्या भाव है तथा इसका क्या उद्देश्य था?
उत्तर-
मंजी प्रथा की स्थापना गुरु अमरदास जी ने की थी। उनके समय में सिक्खों की संख्या काफ़ी बढ़ चुकी थी। परन्तु गुरु जी की आयु अधिक होने के कारण उनके लिए एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाकर अपनी शिक्षाओं का प्रचार करना कठिन हो गया था। अत: उन्होंने अपने सारे आध्यात्मिक प्रदेश को 22 भागों में बांट दिया। इनमें से प्रत्येक भाग को ‘मंजी’ कहा जाता था। प्रत्येक मंजी छोटे-छोटे स्थानीय केन्द्रों में बंटी हुई थी जिन्हें पीढ़ियां (Piris) कहते थे। मंजी प्रणाली का सिक्ख धर्म के इतिहास में विशेष महत्त्व है। डॉ० गोकुल चन्द नारंग के शब्दों में, “गुरु जी के इस कार्य ने सिक्ख धर्म की नींव सुदृढ़ करने तथा देश के सभी भागों में इसका प्रचार कार्य को बढ़ाने में विशेष योगदान दिया।”

PSEB 10th Class SST Solutions History Chapter 4 गुरु अंगद देव जी से लेकर गुरु तेग बहादुर जी तक सिक्ख गुरुओं का योगदान

प्रश्न 3.
गुरु अमरदास जी ने सिक्खों को उदासी मत से कैसे अलग किया?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी के बड़े पुत्र श्रीचन्द जी ने उदासी सम्प्रदाय की स्थापना की थी। उसने संन्यास का प्रचार किया। यह बात गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं के विरुद्ध थी। गुरु अंगद देव जी ने सिक्खों को स्पष्ट किया कि सिक्ख धर्म गृहस्थियों का धर्म है। इसमें संन्यास का कोई स्थान नहीं है। उन्होंने यह भी घोषणा की कि वह सिक्ख जो संन्यास में विश्वास रखता है, सच्चा सिक्ख नहीं है। इस प्रकार उदासियों को सिक्ख सम्प्रदाय से अलग करके गुरु अंगद देव जी ने सिक्ख धर्म को ठोस आधार प्रदान किया।

प्रश्न 4.
गुरु अमरदास जी ने ब्याह की रस्मों में क्या सुधार किए?
उत्तर-गुरु अमरदास जी के समय समाज में जाति मतभेद का रोग इतना बढ़ चुका था कि लोग अपनी जाति से बाहर विवाह करना धर्म के विरुद्ध मानने लगे थे। गुरु जी का विश्वास था कि ऐसे रीति-रिवाज लोगों में फूट डालते हैं। इसीलिए उन्होंने सिक्खों को जाति-मतभेद भूल कर अन्तर्जातीय विवाह करने का आदेश दिया। उन्होंने विवाह की रीतियों में भी सुधार किया। उन्होंने विवाह के समय रस्मों, फेरों के स्थान पर ‘लावां’ की प्रथा आरम्भ की।

प्रश्न 5.
आनन्द साहिब बारे लिखो।
उत्तर-
गुरु अमरदास जी ने एक नई वाणी की रचना की जिसे आनन्द साहिब कहा जाता है। गुरु साहिब ने अपने सिक्खों को आदेश दिया कि जन्म, विवाह तथा खुशी के अन्य अवसरों पर ‘आनन्द’ साहिब का पाठ करें। इस राग के प्रवचन से सिक्खों में वेद-मन्त्रों के उच्चारण का महत्त्व बिल्कुल समाप्त हो गया। आज भी सभी सिक्ख जन्म-विवाह तथा प्रसन्नता के अन्य अवसरों पर इसी राग को गाते हैं।

प्रश्न 6.
रामदासपुर या अमृतसर की स्थापना का वर्णन करो।
उत्तर-
गुरु रामदास जी ने रामदासपुर की नींव रखी। आजकल इस नगर को अमृतसर कहते हैं। गुरु साहिब ने 1577 ई० में यहां अमृतसर तथा सन्तोखसर नामक दो सरोवरों की खुदाई आरम्भ की, परन्तु उन्होंने देखा कि गोइन्दवाल में रहकर खुदाई के कार्य का निरीक्षण करना कठिन है। अत: उन्होंने यहीं डेरा डाल दिया। कई श्रद्धालु लोग भी यहीं आ कर बस गए और कुछ ही समय में सरोवर के चारों ओर एक छोटा-सा नगर बस गया। इसे रामदासपुर का नाम दिया गया। गुरु जी ने इस नगर को हर प्रकार से आत्मनिर्भर बनाने के लिए एक बाज़ार की स्थापना की जिसे आजकल ‘गुरु का बाज़ार’ कहते हैं। इस नगर के निर्माण से सिक्खों को एक महत्त्वपूर्ण तीर्थ स्थान मिल गया जिससे सिक्ख धर्म के विकास में सहायता मिली।

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प्रश्न 7.
सिक्खों तथा उदासियों में हुए समझौते के बारे में जानकारी दीजिए।
उत्तर-
गुरु अंगद देव जी तथा गुरु अमरदास जी ने सिक्खों को उदासी सम्प्रदाय से अलग कर दिया था, परन्तु गुरु रामदास जी ने उदासियों से बड़ा विनम्रतापूर्ण व्यवहार किया। उदासी सम्प्रदाय के संचालक बाबा श्री चन्द जी एक बार गुरु रामदास जी से मिलने गए। उनके बीच एक महत्त्वपूर्ण वार्तालाप भी हुआ। श्री चन्द जी गुरु साहिब की विनम्रता से बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने गुरु जी की श्रेष्ठता को स्वीकार कर लिया। इस प्रकार उदासियों ने सिक्ख गुरु साहिबान का विरोध करना छोड़ दिया।

प्रश्न 8.
हरिमंदिर साहिब बारे में जानकारी दीजिए ।
उत्तर-
गुरु रामदास जी के ज्योति जोत समाने के पश्चात् गुरु अर्जन देव जी ने ‘अमृतसर’ सरोवर के बीच हरिमंदिर साहिब का निर्माण करवाया। इसका नींव पत्थर 1589 ई० में सूफी फ़कीर मियां मीर जी ने रखा। गुरु जी ने इसके चारों ओर एक-एक द्वार रखवाया। ये द्वार इस बात के प्रतीक हैं कि यह धर्म-स्थल सभी जातियों तथा धर्मों के लोगों के लिए समान रूप से खुला है। हरमंदर साहिब का निर्माण कार्य भाई बुड्डा जी की देख-रेख में 1601 ई० में पूरा हुआ। 1604 ई० में हरिमंदिर साहिब में आदि ग्रन्थ साहिब की स्थापना की गई और भाई बुड्डा जी वहां के पहले ग्रन्थी बने।
हरिमंदिर साहिब शीघ्र ही सिक्खों के लिए मक्का’ तथा ‘गंगा-बनारस’ अर्थात् एक बहुत बड़ा तीर्थ-स्थल बन गया।

प्रश्न 9.
तरनतारन साहिब के बारे में आप क्या जानते हो?
उत्तर-
तरनतारन का निर्माण गुरु अर्जन देव जी ने करवाया। इसके निर्माण का सिक्ख इतिहास में बड़ा महत्त्व है। अमृतसर की भान्ति तरनतारन भी सिक्खों का प्रसिद्ध तीर्थ स्थान बन गया। हजारों की संख्या में यहां सिक्ख यात्री स्नान करने के लिए आने लगे। उनके प्रभाव में आकर माझा प्रदेश के अनेक जाट सिक्ख धर्म के अनुयायी बन गए। इन्हीं जाटों ने आगे चल कर मुग़लों के विरुद्ध युद्धों में बढ़-चढ़ कर भाग लिया और असाधारण वीरता का परिचय दिया। डॉ० इन्दू भूषण बनर्जी ठीक ही लिखते हैं, “जाटों के सिक्ख धर्म में प्रवेश से सिक्ख इतिहास को एक नया मोड़ मिला।”

प्रश्न 10.
गुरु साहिबों के समय दौरान बनी बाऊलियों (जल स्रोतों) का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
गुरु साहिबों के समय में निम्नलिखित बाऊलियों का निर्माण हुआ

  1. गोइन्दवाल की बाऊली-गोइंदवाल की बाऊली का शिलान्यास गुरु अंगद देव जी के समय में हुआ था। गुरु अमरदास जी ने इस बाऊली को पूर्ण करवाया। उन्होंने इसके जल तक पहुंचने के लिए 84 सीढ़ियां बनवाईं। उन्होंने अपने शिष्यों को बताया कि जो सिक्ख प्रत्येक सीढ़ी पर श्रद्धा और सच्चे मन से जपुजी साहिब (Japuji Sahib) का पाठ करेगा वह जन्म-मरण की चौरासी लाख योनियों के चक्कर से मुक्त हो जाएगा।
  2. लाहौर की बाऊली-लाहौर के डब्बी बाज़ार में स्थित इस बाऊली का निर्माण गुरु अर्जन साहिब ने करवाया। यह बाऊली सिक्खों का एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थान बन गई।

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प्रश्न 11.
मसन्द प्रथा से सिक्ख धर्म को क्या लाभ हुए?
उत्तर-
सिक्ख धर्म के संगठन तथा विकास में मसन्द प्रथा का विशेष महत्त्व रहा। इसके महत्त्व को निम्नलिखित बातों से जाना जा सकता है —

  1. गुरु जी की आय अब नियमित तथा लगभग निश्चित हो गई। आय के स्थायी हो जाने से गुरु जी को अपने रचनात्मक कार्यों को पूरा करने में बहुत सहायता मिली। उन्होंने इस धन राशि से न केवल अमृतसर तथा सन्तोखसर के सरोवरों का निर्माण कार्य सम्पन्न किया अपितु अन्य कई नगरों, तालाबों, कुओं आदि का भी निर्माण किया।
  2. मसन्द प्रथा के कारण जहां गुरु जी की आय निश्चित हुई वहां सिक्ख धर्म का प्रचार भी ज़ोरों से हुआ। गुरु अर्जन देव जी ने पंजाब से बाहर भी मसन्दों की नियुक्ति की। इससे सिक्ख धर्म का प्रचार क्षेत्र बढ़ गया।
  3. मसन्द प्रथा से प्राप्त होने वाली स्थायी आय से गुरु जी अपना दरबार लगाने लगे। वैशाखी के दिन जब दूरदूर से आए मसन्द तथा श्रद्धालु गुरु जी से भेंट करने आते तो वे बड़ी नम्रता से गुरु जी के सम्मुख शीश झुकाते थे। उनके ऐसा करने से गुरु जी का दरबार वास्तव में शाही दरबार-सा बन गया और गुरु जी ने ‘सच्चे पातशाह’ की उपाधि धारण कर ली।

प्रश्न 12.
गुरु हरगोबिन्द साहिब की सेना के संगठन का वर्णन करो।
उत्तर-
गुरु हरगोबिन्द जी ने आत्मरक्षा के लिए सेना का संगठन किया। इस सेना में अनेक शस्त्रधारी सैनिक तथा स्वयं सेवक सम्मिलित थे। माझा के अनेक युद्ध प्रिय युवक गुरु जी की सेना में भर्ती हो गए। मोहसिन फानी के मतानुसार, गुरु जी की सेना में 800 घोड़े, 300 घुड़सवार तथा 60 बन्दूकची थे। उनके पास 500 ऐसे स्वयं सेवक भी थे जो वेतन नहीं लेते थे। यह सिक्ख सेना पांच जत्थों में बंटी हुई थी। इनके जत्थेदार थे-विधिचंद, पीराना, जेठा, पैरा तथा लंगाह । इसके अतिरिक्त पैंदा खां के नेतृत्व में एक पृथक् पठान सेना भी थी।

प्रश्न 13.
गुरु हरगोबिन्द जी के रोज़ाना जीवन के बारे में लिखें।
उत्तर-
गुरु हरगोबिन्द जी की नवीन नीति के अनुसार उनकी दिनचर्या में भी कुछ परिवर्तन आए। नई दिनचर्या के अनुसार वह प्रात:काल स्नान आदि करके हरमंदर साहिब में धार्मिक उपदेश देने के लिए चले जाते थे और फिर अपने सिक्खों तथा सैनिकों को प्रातःकाल का लंगर कराते थे। इसके पश्चात् वह कुछ समय के लिए विश्राम करके शिकार के लिए निकल पड़ते थे। गुरु जी ने अब्दुल तथा नत्था मल को वीर रस की वारें सुनाने के लिए नियुक्त किया। उन्होंने दुर्बल मन को सबल बनाने के लिए अनेक गीत मंडलियां बनाईं। इस प्रकार गुरु जी ने सिक्खों में नवीन चेतना और नये उत्साह का संचार किया।

प्रश्न 14.
अकाल तख्त के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर-
गुरु हरगोबिन्द साहिब हरमंदर साहिब में सिक्खों को धार्मिक शिक्षा देते थे। उन्हें राजनीति की शिक्षा देने के लिए गुरु साहिब ने हरमंदर साहिब के सामने पश्चिम की ओर एक नया भवन बनाया जिसका नाम अकाल तख्त (ईश्वर की गद्दी) रखा गया। इस नए भवन के अन्दर 12 फुट ऊंचे एक चबूतरे का निर्माण भी करवाया गया। इस चबूतरे पर बैठ कर वह सिक्खों की सैनिक तथा राजनीतिक समस्याओं का समाधान करने लगे। इसी स्थान पर वह अपने सैनिकों को वीर रस के जोशीले गीत सुनवाते थे। अकाल तख्त के निकट वह सिक्खों को व्यायाम करने के लिए प्रेरित करते थे।

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प्रश्न 15.
गुरु अंगद देव जी द्वारा सिक्ख संस्था (पंथ) के विकास के लिए किए गए किन्हीं चार कार्यों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
श्री गुरु नानक देव जी महाराज (1539 ई०) के पश्चात् गुरु अंगद देव जी गुरुगद्दी पर आसीन हुए। उनका नेतृत्व सिक्ख धर्म के लिए वरदान सिद्ध हुआ। उन्होंने निम्नलिखित कार्यों द्वारा सिक्ख धर्म के विकास में योगदान दिया —

  1. गुरुमुखी लिपि में सुधार-गुरु अंगद देव जी ने गुरुमुखी लिपि में सुधार किया। कहते हैं कि गुरु अंगद देव जी ने गुरुमुखी के प्रचार के लिए गुरुमुखी वर्णमाला में ‘बाल बोध’ की रचना की।
  2. गुरु नानक देव जी की जन्म-साखी-श्री गुरु अंगद देव जी ने श्री गुरु नानक देव जी की सारी वाणी को एकत्रित करके भाई बाला से गुरु जी की जन्म-साखी (जीवन-चरित्र) लिखवाई। इससे सिक्ख गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं का पालन करने लगे।
  3. लंगर प्रथा-श्री गुरु अंगद देव जी ने लंगर प्रथा जारी रखी। इस प्रथा से जाति-पाति की भावनाओं को धक्का लगा और सिक्ख धर्म के प्रसार में सहायता मिली।
  4. गोइन्दवाल का निर्माण-गुरु अंगद देव जी ने गोइन्दवाल नामक नगर की स्थापना की। गुरु अमरदास के समय में यह नगर एक प्रसिद्ध धार्मिक केन्द्र बन गया। आज भी यह सिक्खों का एक पवित्र धार्मिक स्थान है।

प्रश्न 16.
‘मसन्द प्रथा’ सिक्ख धर्म के विकास के लिए किस प्रकार लाभदायक सिद्ध हुई?
उत्तर-
प्रश्न नं० 11 देखें।

प्रश्न 17.
गुरु अर्जन देव जी की शहादत पर एक नोट लिखिए।
उत्तर-
मुग़ल सम्राट अकबर के पंचम पातशाह (सिक्ख गुरु) गुरु अर्जन देव जी के साथ बहुत अच्छे सम्बन्ध थे, परन्तु अकबर की मृत्यु के पश्चात् जहांगीर ने सहनशीलता की नीति छोड़ दी। वह उस अवसर की खोज में रहने लगा जब वह सिक्ख धर्म पर करारी चोट कर सके। इसी बीच जहांगीर के पुत्र खुसरो ने उसके विरुद्ध विद्रोह कर दिया। खुसरो पराजित होकर गुरु अर्जन देव जी के पास आया। गुरु जी ने उसे आशीर्वाद दिया। इस आरोप में जहांगीर ने गुरु अर्जन देव जी पर दो लाख रुपये का जुर्माना लगा दिया। परन्तु गुरु अर्जन देव जी ने जुर्माना देने से इन्कार कर दिया। इसलिए उन्हें बन्दी बना लिया गया और अनेक यातनाएं देकर शहीद कर दिया गया। गुरु अर्जन देव जी की शहीदी से सिक्ख भड़क उठे। वे समझ गए कि उन्हें अब अपने धर्म की रक्षा के लिए शस्त्र धारण करने पड़ेंगे।

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(ग) निम्नलिखित प्रत्येक प्रश्न का उत्तर लगभग 100-120 शब्दों में लिखिए

प्रश्न 1.
गुरु अंगद देव जी ने सिक्ख धर्म के विकास के लिए क्या योगदान दिया?
उत्तर-
गुरु अंगद देव जी सिक्खों के दूसरे गुरु थे। उनका नेतृत्व सिक्ख धर्म के लिए वरदान सिद्ध हुआ। उन्होंने निम्नलिखित ढंग से सिक्ख धर्म के विकास में योगदान दिया —

  1. गुरुमुखी लिपि में सुधार-गुरु अंगद देव जी ने गुरुमुखी लिपि में सुधार किया। कहते हैं कि गुरु अंगद देव जी ने गुरुमुखी के प्रचार के लिए गुरुमुखी वर्णमाला में ‘बाल बोध’ की रचना की। जनसाधारण की भाषा होने के कारण इससे सिक्ख धर्म के प्रचार के कार्य को बढ़ावा मिला। आज सिक्खों के सभी धार्मिक ग्रन्थ इसी भाषा में हैं।
  2. गुरु नानक देव जी की जन्म-साखी-श्री गुरु अंगद देव जी ने श्री गुरु नानक देव जी की सारी वाणी को एकत्रित करके भाई बाला से गुरु जी की जन्म-साखी (जीवन-चरित्र) लिखवाई। इससे सिक्ख गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं का पालन करने लगे।
  3. लंगर प्रथा-श्री गुरु अंगद देव जी ने लंगर प्रथा जारी रखी। उन्होंने यह आज्ञा दी कि जो कोई उनके दर्शन को आए, उसे पहले लंगर में भोजन कराया जाए। यहां प्रत्येक व्यक्ति बिना किसी भेद-भाव के भोजन करता था। इससे जाति-पाति की भावनाओं को धक्का लगा और सिक्ख धर्म के प्रसार में सहायता मिली।
  4. उदासियों को सिक्ख धर्म से निकालना-गुरु नानक देव जी के बड़े पुत्र श्रीचन्द जी ने उदासी सम्प्रदाय की स्थापना की थी। उन्होंने संन्यास का प्रचार किया। यह बात गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं के विरुद्ध थी। अतः गुरु अंगद देव जी ने उदासियों से नाता तोड़ लिया।
  5. गोइन्दवाल का निर्माण-गुरु अंगद देव जी ने गोइन्दवाल नामक नगर की स्थापना की। गुरु अमरदास जी के समय में यह नगर सिक्खों का एक प्रसिद्ध धार्मिक केन्द्र बन गया। आज भी यह सिक्खों का एक पवित्र धार्मिक स्थान है।
  6. अनुशासन को बढ़ावा-गुरु जी बड़े ही अनुशासन प्रिय थे। उन्होंने सत्ता और बलवंड नामक दो प्रसिद्ध रबाबियों को अनुशासन भंग करने के कारण दरबार से निकाल दिया, परन्तु बाद में भाई लद्धा के प्रार्थना करने पर गुरु जी ने उन्हें क्षमा कर दिया।
    सच तो यह है कि गुरु अंगद देव जी ने सिक्ख धर्म को पृथक् पहचान प्रदान की।

प्रश्न 2.
गुरु अमरदास जी ने सिक्ख धर्म के विकास के लिए क्या-क्या कार्य किए?
उत्तर-
गुरु अमरदास जी को सिक्ख धर्म में विशिष्ट स्थान प्राप्त है। गुरु नानक देव जी ने धर्म का जो बीज बोया था वह गुरु अंगद देव जी के काल में अंकुरित हो गया। गुरु अमरदास जी ने अपने कार्यों से इस नये पौधे की रक्षा की। संक्षेप में, गुरु अमरदास जी के कार्यों का वर्णन इस प्रकार है —

  1. गोइन्दवाल की बावली का निर्माण-गुरु अमरदास जी ने सर्वप्रथम गोइन्दवाल के स्थान पर एक बावली (जल-स्रोत) का निर्माण कार्य पूरा किया जिसका शिलान्यास गुरु अंगद देव जी के समय रखा गया था। गुरु अमरदास जी ने इस बावली की तह तक पहुंचने के लिए 84 सीढ़ियां बनवाईं। गुरु जी के अनुसार प्रत्येक सीढ़ी पर जपुजी साहिब का पाठ करने से जन्म-मरण की चौरासी लाख योनियों के चक्कर से मुक्ति मिलेगी। गोइन्दवाल की बावली सिक्ख धर्म का एक प्रसिद्ध तीर्थ-स्थान बन गई।
  2. लंगर प्रथा-गुरु अमरदास जी ने लंगर प्रथा का विस्तार करके सिक्ख धर्म के विकास की ओर एक और महत्त्वपूर्ण कदम उठाया। उन्होंने लंगर के लिए कुछ विशेष नियम बनाए। अब कोई भी व्यक्ति लंगर में भोजन किए बिना गुरु जी से नहीं मिल सकता था। लंगर प्रथा से जाति-पाति तथा रंग-रूप के भेदभावों को बड़ा धक्का लगा और लोगों में समानता की भावना का विकास हुआ। परिणामस्वरूप सिक्ख एकता के सूत्र में बंधने लगे।
  3. सिक्ख गुरु साहिबान के शब्दों को एकत्रित करना-गुरु नानक देव जी के शब्दों तथा श्लोकों को गुरु अंगद देव जी ने एकत्रित करके उनके साथ अपने रचे हुए शब्द भी जोड़ दिए थे। यह सारी सामग्री गुरु अंगद देव जी ने गुरु अमरदास जी को सौंप दी थी। गुरु अमरदास जी ने कुछ-एक नए श्लोकों की रचना की और उन्हें पहले वाले संकलन (collection) के साथ मिला दिया। इस प्रकार विभिन्न गुरु साहिबान के शब्दों तथा उपदेशों के एकत्र हो जाने से ऐसी सामग्री तैयार हो गई जो आदि-ग्रन्थ साहिब के संकलन का आधार बनी।
  4. मंजी प्रथा-वृद्धावस्था के कारण गुरु साहिब जी के लिए एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाकर अपनी शिक्षाओं का प्रचार करना कठिन हो गया था। अतः उन्होंने अपने पूरे आध्यात्मिक साम्राज्य को 22 प्रान्तों में बांट दिया। इनमें से प्रत्येक प्रान्त को मंजी’ कहा जाता था। प्रत्येक मंजी सिक्ख धर्म के प्रचार का एक केन्द्र थी। गुरु अमरदास जी द्वारा स्थापित मंजी प्रणाली का सिक्ख धर्म के इतिहास में विशेष महत्त्व है। डॉ० गोकुल चन्द नारंग के शब्दों में, “गुरु जी के इस कार्य ने सिक्ख धर्म की नींव सुदृढ़ करने तथा देश के सभी भागों में प्रचार कार्य बढ़ाने में विशेष योगदान दिया।”
  5. उदासियों से सिक्खों को पृथक करना-गुरु साहिब ने उदासी सम्प्रदाय के सिद्धान्तों का जोरदार शब्दों में खण्डन किया। उन्होंने अपने अनुयायियों को समझाया कि कोई भी व्यक्ति, जो उदासी नियमों का पालन करता है, सच्चा सिक्ख नहीं हो सकता। गुरु जी के इन प्रयत्नों से सिक्ख उदासियों से पृथक् हो गए और सिक्ख धर्म का अस्तित्व मिटने से बच गया।
  6. नई परम्पराएं-गुरु अमरदास जी ने सिक्खों को व्यर्थ के रीति-रिवाजों का त्याग करने का उपदेश दिया। हिन्दुओं में किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाने पर खूब रोया-पीटा जाता था। परन्तु गुरु अमरदास जी ने सिक्खों को रोने-पीटने के स्थान पर ईश्वर का नाम लेने का उपदेश दिया। उन्होंने विवाह की भी नई विधि आरम्भ की जिसे आनन्द कारज कहते हैं।
  7. आनन्द साहिब की रचना-गुरु अमरदास जी ने एक नई वाणी की रचना की जिसे आनन्द साहिब कहा जाता है।
    सच तो यह है कि गुरु अमरदास जी का गुरु काल सिक्ख धर्म के इतिहास में विशेष महत्त्व रखता है। गुरु जी के द्वारा बाऊली का निर्माण, मंजी प्रथा के आरम्भ, लंगर प्रथा के विस्तार तथा नए रीति-रिवाजों ने सिक्ख धर्म के संगठन में बड़ी मज़बूती प्रदान की।

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प्रश्न 3.
गुरु अमरदास जी के द्वारा किए गए सुधारों का वर्णन करो।
उत्तर-
गुरु अमरदास जी के समय में समाज अनेकों बुराइयों का शिकार हो चुका था। गुरु जी इस बात को भलीभान्ति समझते थे, इसलिए उन्होंने कई महत्त्वपूर्ण सामाजिक सुधार किए। सामाजिक क्षेत्र में गुरु जी के कार्यों का वर्णन इस प्रकार है —

  1. जाति-पाति का विरोध-गुरु अमरदास जी ने जाति-मतभेद का खण्डन किया। उनका विश्वास था कि जातीय तभेद परमात्मा की इच्छा के विरुद्ध है।
  2. छुआछूत की निन्दा-गुरु अमरदास जी ने छुआछूत को समाप्त करने के लिए महत्त्वपूर्ण कार्य किया। उनके लंगर में जाति-पाति का कोई भेदभाव नहीं था। वहां सभी लोग एक साथ बैठकर भोजन करते थे।
  3. विधवा विवाह-गुरु अमरदास के समय में विधवा विवाह निषेध था। किसी स्त्री को पति की मृत्यु के पश्चात् सारा जीवन विधवा के रूप में व्यतीत करना पड़ता था। गुरु जी ने विधवा विवाह को उचित बताया और इस प्रकार स्त्री जाति को समाज में योग्य स्थान दिलाने का प्रयत्न किया।
  4. सती-प्रथा की भर्त्सना-उस काल के समाज में एक और बड़ी बुराई सती-प्रथा की थी। जी० वी० स्टॉक के अनुसार, गुरु अमरदास जी ने सती-प्रथा की सबसे पहले निन्दा की। उनका कहना था कि वह स्त्री सती नहीं कही जा सकती जो अपने पति के मृत शरीर के साथ जल जाती है। वास्तव में वही स्त्री सती है जो अपने पति के वियोग की पीड़ा को सहन करे।
  5. पर्दे की प्रथा का विरोध-गुरु जी ने स्त्रियों में प्रचलित पर्दे की प्रथा की भी घोर निन्दा की। वह पर्दे की प्रथा को समाज की उन्नति के मार्ग में एक बहुत बड़ी बाधा मानते थे। इसलिए उन्होंने स्त्रियों को बिना पर्दा किए लंगर की सेवा करने तथा संगत में बैठने का आदेश दिया।
  6. नशीली वस्तुओं की निन्दा-गुरु अमरदास जी ने अपने अनुयायियों को नशीली वस्तुओं से दूर रहने का उपदेश दिया। उन्होंने अपने एक ‘शब्द’ में शराब सेवन की खूब निन्दा की है। गुरु अमरदास जी गुरु नानक देव जी की भान्ति ऐसी शराब का सेवन करना चाहते थे जिसका नशा कभी न उतरे। वह नशा बेहोश करने वाला न होकर, समाज सेवा के लिए प्रेरित करने वाला होना चाहिए।
  7. सिक्खों में भ्रातृत्व की भावना-गुरु जी ने सिक्खों को यह आदेश दिया कि वे माघी, दीपावली और वैशाखी आदि त्योहारों को एक साथ मिलकर नई परंपरा के अनुसार मनायें। इस प्रकार उन्होंने सिक्खों में भ्रातृत्व की भावना जागृत करने का प्रयास किया।
  8. जन्म तथा मृत्यु के सम्बन्ध में नये नियम-गुरु अमरदास जी ने सिक्खों को जन्म-मृत्यु तथा विवाह के अवसरों पर नये रिवाजों का पालन करने को कहा। ये रिवाज हिन्दुओं के रीति-रिवाजों से बिल्कुल भिन्न थे। इनके लिए ब्राह्मण वर्ग को बुलाने की कोई आवश्यकता न थी। इस प्रकार गुरु साहिब ने सिक्ख धर्म को पृथक् पहचान प्रदान की।
    सच तो यह है कि गुरु अमरदास जी ने अपने कार्यों से सिक्ख धर्म को नया बल दिया।

प्रश्न 4.
गुरु रामदास जी ने सिक्ख धर्म के विकास के लिए क्या यल किए?
उत्तर-
गुरु रामदास जी सिक्खों के चौथे. गुरु थे। उन्होंने सिक्ख पंथ के विकास में निम्नलिखित योगदान दिया —

  1. अमृतसर का शिलान्यास-गुरु रामदास जी ने रामदासपुर की नींव रखी। आजकल इस नगर को अमृतसर कहते हैं। 1577 ई० में गुरु जी ने यहां अमृतसर तथा सन्तोखसर नामक दो सरोवरों की खुदाई आरम्भ की। कुछ ही समय में सरोवर के चारों ओर एक छोटा-सा नगर बस गया। इसे रामदासपुर का नाम दिया गया। गुरु जी इस नगर को हर प्रकार से आत्मनिर्भर बनाना चाहते थे। अत: उन्होंने 52 अलग-अलम प्रकार के व्यापारियों को आमन्त्रित किया। उन्होंने एक बाजार की स्थापना की जिसे आजकल ‘गुरु का बाज़ार’ कहते हैं।
  2. मसन्द प्रथा का आरम्भ-गुरु रामदास जी को अमृतसर तथा सन्तोखसर नामक सरोवरों की खुदाई के लिए काफ़ी धन की आवश्यकता थी। अतः उन्होंने मसन्द प्रथा का आरम्भ किया। इन मसन्दों ने विभिन्न प्रदेशों में सिक्ख धर्म का खूब प्रचार किया तथा काफ़ी धन राशि एकत्रित की।
  3. उदासियों से मत-भेद की समाप्ति-गुरु अंगद देव जी तथा गुरु अमरदास जी ने सिक्खों को उदासी.सम्प्रदाय से अलग कर दिया था। परन्तु गुरु रामदास जी ने उदासियों से बड़ा विनम्रतापूर्ण व्यवहार किया। उदासी सम्प्रदाय के संचालक बाबा श्री चन्द जी एक बार गुरु रामदास जी से मिलने आए। दोनों के बीच एक महत्त्वपूर्ण वार्तालाप हुआ। श्री चन्द जी गुरु साहिब की विनम्रता से बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने गुरु जी की. श्रेष्ठता को स्वीकार कर लिया।
  4. सामाजिक सुधार-गुरु रामदास जी ने गुरु अमरदास जी द्वारा आरम्भ किए गए नए सामाजिक रीति-रिवाजों को जारी रखा। उन्होंने सती प्रथा की घोर निन्दा की, विधवा पुनर्विवाह की अनुमति दी तथा विवाह और मत्यु-सम्बन्धी कुछ नए नियम जारी किए।
  5. अकबर के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध -मुग़ल सम्राट अकबर सभी धर्मों के प्रति सहनशील था। वह गुरु रामदास जी का बड़ा सम्मान करता था। कहा जाता है कि गुरु रामदास जी के समय में एक बार पंजाब बुरी तरह अकाल की चपेट में आ गया जिससे किसानों की दशा बहुत खराब हो गई, परन्तु गुरु जी के कहने पर अकबर ने पंजाब के कृषकों. का पूरे वर्ष का लगान माफ कर दिया।’
  6. गुरुगद्दी का पैतृक सिद्धान्त-गुरु रामदास जी ने गुरुगद्दी को पैतृक रूप प्रदान किया। उन्होंने ज्योति जोत समाने से कुछ समय पूर्व गुरु-गद्दी अपने छोटे, परन्तु सबसे योग्य पुत्र अर्जन देव जी को सौंप दी।
    गुरु रामदास जी ने गुरुगद्दी को पैतृक बनाकर सिक्ख इतिहास में एक नवीन अध्याय का श्रीगणेश किया। परन्तु एक बात ध्यान देने योग्य है कि गुरु पद का आधार गुण तथा योग्यता ही रहा।
    सच तो यह है कि गुरु रामदास जी ने बहुत ही कम समय तक सिक्ख मत का मार्ग-दर्शन किया। परन्तु इस थोड़े समय में ही उनके प्रयत्नों से सिक्ख धर्म के रूप में विशेष निखार आया।

प्रश्न 5.
गुरु अर्जन देव जी ने सिक्ख धर्म के विकास के लिए क्या योगदान दिया?
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी के गुरुगद्दी सम्भालते ही सिक्ख धर्म के इतिहास ने नवीन दौर में प्रवेश किया। उनके प्रयास से हरमंदर साहिब बना और सिक्खों को अनेक तीर्थ स्थान मिले। यही नहीं उन्होंने गुरु ग्रन्थ साहिब का संकलन किया जिसे आज सिक्ख धर्म में वही स्थान प्राप्त है जो हिन्दुओं में रामायण, मुसलमानों में कुरान शरीफ तथा इसाइयों में बाइबिल को प्राप्त है। संक्षेप में, गुरु अर्जन देव जी के कार्यों तथा सफलताओं का वर्णन इस प्रकार है —

  1. हरमंदर साहिब का निर्माण-गुरु रामदास जी के ज्योति जोत समाने के पश्चात् गुरु अर्जन देव जी ने अमृतसर तथा सन्तोखसर नामक तालाबों का निर्माण कार्य पूरा किया। उन्होंने ‘अमृतसर’ तालाब के बीच हरमंदर साहिब का निर्माण करवाया। गुरु जी ने इसके चारों ओर एक-एक द्वार रखवाया। ये द्वार इस बात का प्रतीक हैं कि यह मंदर सभी जातियों तथा धर्मों के लोगों के लिए खुला है।
  2. तरनतारन की स्थापना-गुरु अर्जन देव जी ने अमृतसर के अतिरिक्त अन्य अनेक नगरों, सरोवरों तथा स्मारकों का निर्माण करवाया। तरनतारन भी इनमें से एक था। उन्होंने इसका निर्माण प्रदेश के ठीक मध्य में करवाया। अमृतसर की भान्ति तरनतारन भी सिक्खों का प्रसिद्ध तीर्थ स्थान बन गया।
  3. लाहौर में बाऊली का निर्माण-गुरु अर्जन देव जी ने अपनी लाहौर यात्रा के दौरान डब्बी बाज़ार में एक बाऊली का निर्माण करवाया। इस बाऊली के निर्माण से निकटवर्ती प्रदेशों के सिक्खों को एक तीर्थ स्थान की प्राप्ति हुई।
  4. हरगोबिन्दपुर तथा छरहटा की स्थापना-गुरु जी ने अपने पुत्र हरगोबिन्द के जन्म की खुशी में ब्यास नदी के तट पर हरगोबिन्दपुर नामक नगर की स्थापना की। इसके अतिरिक्त उन्होंने अमृतसर के निकट पानी की कमी को दूर करने के लिए एक कुएं का निर्माण करवाया। इस कुएं पर छः रहट चलते थे। इसलिए इसको छहरटा के नाम से पुकारा जाने लगा।
  5. करतारपुर की नींव रखना-गुरु जी ने 1593 ई० में जालन्धर दोआब में एक नगर की स्थापना की जिसका नाम करतारपुर रखा गया। यहां उन्होंने एक तालाब का निर्माण करवाया जो गंगसर के नाम से प्रसिद्ध है।
  6. मसन्द प्रथा का विकास-गुरु अर्जन देव जी ने सिक्खों को आदेश दिया कि वे अपनी आय का 1/10 भाग (दशांश अथवा दसवंद) आवश्यक रूप से मसन्दों को जमा कराएं। मसन्द वैसाखी के दिन इस राशि को अमृतसर के केन्द्रीय कोष में जमा करवा देते थे। राशि को एकत्रित करने के लिए वे अपने प्रतिनिधि नियुक्त करने लगे। इन्हें ‘संगती’ . कहते थे।
  7. आदि ग्रन्थ साहिब का संकलन-गुरु अर्जन देव जी ने आदि ग्रन्थ साहिब का संकलन करके सिक्खों को एक धार्मिक ग्रन्थ प्रदान किया। गुरु जी ने रामसर में आदि ग्रन्थ साहिब का संकलन कार्य आरम्भ कर दिया। इस कार्य में भाई गुरदास जी ने गुरु जी को सहयोग दिया। अन्त में आदि ग्रन्थ साहिब की रचना का कार्य 1604 ई० में सम्पन्न हुआ। इस पवित्र ग्रन्थ में उन्होंने अपने से पहले चार गुरु साहिबान की वाणी, फिर अपने भक्तों की वाणी तथा उसके पश्चात् भट्टों की वाणी का संग्रह किया।
  8. घोड़ों का व्यापार-गुरु जी ने सिक्खों को घोड़ों का व्यापार करने के लिए प्रेरित किया। इससे सिक्खों को निम्नलिखित लाभ हुए
    (i) उस समय घोड़ों के व्यापार से बहुत लाभ होता था। परिणामस्वरूप सिक्ख लोग भी धनी हो गए। अब उनके लिए दसवंद (1/10) देना कठिन न रहा।
    (ii) इस व्यापार से सिक्खों को घोड़ों की अच्छी परख हो गई। यह बात उनके लिए सेना संगठन के कार्य में बड़ी काम आई।
  9. धर्म प्रचार कार्य-गुरु अर्जन देव जी ने धर्म-प्रचार द्वारा भी अनेक लोगों को अपना शिष्य बना लिया। उन्होंने अपनी आदर्श शिक्षाओं, सद्व्यवहार, नम्र स्वभाव तथा सहनशीलता से अनेक लोगों को प्रभावित किया।
    संक्षेप में, इतना कहना ही काफ़ी है कि गुरु अर्जन देव जी के काल में सिक्ख धर्म ने बहुत प्रगति की। आदि ग्रन्थ साहिब की रचना हुई, तरनतारन, करतारपुर तथा छहरटा अस्तित्व में आए तथा हरमंदर साहिब सिक्ख धर्म की शोभा बन गया।

PSEB 10th Class SST Solutions History Chapter 4 गुरु अंगद देव जी से लेकर गुरु तेग बहादुर जी तक सिक्ख गुरुओं का योगदान

प्रश्न 6.
मसन्द प्रथा के आरम्भ, विकास तथा लाभों का वर्णन करो।
उत्तर-
आरम्भ-मसन्द प्रथा को चौथे गुरु रामदास जी ने आरम्भ किया। जब गुरु जी ने सन्तोखसर तथा अमृतसर के तालाबों की, खुदवाई आरम्भ करवाई तो उन्हें बहुत-से धन की आवश्यकता अनुभव हुई। अतः उन्होंने अपने सच्चे शिष्यों को अपने अनुयायियों से चन्दा एकत्रित करने के लिए देश के विभिन्न भागों में भेजा। गुरु जी द्वारा भेजे गए ये लोग मसन्द कहलाते थे।
विकास-गुरु अर्जन साहिब ने मसन्द प्रथा को नया रूप प्रदान किया ताकि उन्हें अपने निर्माण कार्यों को पूरा करने के लिए निरन्तर तथा लगभग निश्चित धन राशि प्राप्त होती रहे। उन्होंने निम्नलिखित बातों द्वारा मसन्द प्रथा का रूप निखारा —

  1. गुरु जी ने अपने अनुयायियों से भेंट में ली जाने वाली धन राशि निश्चित कर दी। प्रत्येक सिक्ख के लिए अपनी आय का दसवां भाग (दसवन्द) प्रतिवर्ष गुरु जी के लंगर में देना अनिवार्य कर दिया गया।
  2. गुरु अर्जन देव जी ने दसवन्द की राशि एकत्रित करने के लिए अपने प्रतिनिधि नियुक्त किए जिन्हें मसन्द कहा जाता था। ये मसन्द एकत्रित की गई धन राशि को प्रति वर्ष वैशाखी के दिन अमृतसर में स्थित गुरु जी के कोष में जमा करते थे। जमा की गई राशि के बदले मसन्दों को रसीद दी जाती थी।
  3. इन मसन्दों ने दसवन्द एकत्रित करने के लिए अपने प्रतिनिधि नियुक्त किए हुए थे जिन्हें संगतिया कहते थे। संगतिये दूर-दूर के क्षेत्रों से दसवन्द एकत्रित करके मसन्दों को देते थे जो उन्हें गुरु जी के कोष में जमा कर देते थे।
  4. मसन्द अथवा संगतिये दसवन्द की राशि में से एक पैसा भी अपने पास रखना पाप समझते थे। इस बात को स्पष्ट करते हुए गुरु जी ने कहा था कि जो कोई भी दान की राशि खाएगा, उसे शारीरिक कष्ट भुगतना पड़ेगा।
  5. ये मसन्द न केवल अपने क्षेत्र में दसवन्द एकत्रित करते थे अपितु धर्म प्रचार का कार्य भी करते थे। मसन्दों की नियुक्ति करते समय गुरु जी इस बात का विशेष ध्यान रखते थे कि वे उच्च चरित्र के स्वामी हों तथा सिक्ख धर्म में उनकी अटूट श्रद्धा हो।

महत्व अथवा लाभ-सिक्ख धर्म के संगठन तथा विकास में मसन्द प्रथा का विशेष महत्त्व रहा है। सिक्ख धर्म के संगठन में इस प्रथा के महत्त्व को निम्नलिखित बातों से जाना जा सकता है —

  1. गुरु जी की आय अब निरन्तर तथा लगभग निश्चित हो गई। आय के स्थायी हो जाने से गुरु जी को अपने रचनात्मक कार्यों को पूरा करने में बहुत सहायता मिली। उनके इन कार्यों ने सिक्ख धर्म के प्रचार तथा प्रसार में काफ़ी सहायता दी।
  2. पहले धर्म प्रचार का कार्य मंजियों द्वारा होता था। ये मंजियां पंजाब तक ही सीमित थीं। परन्तु गुरु अर्जन देव जी ने पंजाब के बाहर भी मसन्दों की नियुक्ति की। इससे सिक्ख धर्म का प्रचार क्षेत्र बढ़ गया।
  3. मसन्द प्रथा से प्राप्त होने वाली स्थायी आय से गुरु जी अपना दरबार लगाने लगे। वैशाखी के दिन जब दूर-दूर से आए मसन्द तथा श्रद्धालु भक्त गुरु जी को भेंट करने आते तो वे बड़ी नम्रता से गुरु जी के सम्मुख शीश झुकाते थे। उनके ऐसा करने से गुरु जी का दरबार वास्तव में शाही दरबार सा बन गया और गुरु जी ने ‘सच्चे पातशाह’ की उपाधि धारण कर ली।
    सच तो यह है कि एक विशेष अवधि तक मसन्द प्रथा ने सिक्ख धर्म के प्रचार तथा प्रसार में प्रशंसनीय योगदान दिया।

प्रश्न 7.
गुरु हरगोबिन्द जी की नई नीति का वर्णन करो।
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी के पश्चात् उनके पुत्र हरगोबिन्द जी सिक्खों के छठे गुरु बने। उन्होंने एक नई नीति को जन्म दिया। इस नीति का प्रमुख उद्देश्य सिक्खों को शान्ति-प्रिय होने के साथ निडर तथा साहसी बनाना था। गुरु साहिब द्वारा अपनाई गई नवीन नीति की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित थीं —

  1. राजसी चिह्न तथा ‘सच्चे पातशाह’ की उपाधि धारण करना–नवीन नीति का अनुसरण करते हुए गुरु हरगोबिन्द जी ने ‘सच्चे.पातशाह’ की उपाधि धारण की तथा अनेक राजसी चिह्न धारण करने आरम्भ कर दिए। उन्होंने शाही वस्त्र धारण किए और सेली तथा टोपी पहनना बन्द कर दिया क्योंकि ये फ़कीरी के प्रतीक थे। इसके विपरीत उन्होंने दो तलवारें, छत्र और कलगी धारण कर ली। गुरु जी अब अपने अंगरक्षक भी रखने लगे।
  2. मीरी तथा पीरी-गुरु हरगोबिन्द जी अब सिक्खों के आध्यात्मिक नेता होने के साथ-साथ उनके सैनिक नेता भी बन गए। वे सिक्खों के पीर भी थे और मीर भी। इन दोनों बातों को स्पष्ट करते हुए उन्होंने पीरी तथा मीरी नामक दो तलवारें धारण की। उन्होंने सिक्खों को व्यायाम करने, कुश्तियां लड़ने, शिकार खेलने तथा घुड़सवारी करने की प्रेरणा दी। इस प्रकार उन्होंने सन्त सिक्खों को सन्त सिपाहियों का रूप भी दे दिया।
  3. अकाल तख्त का निर्माण-गुरु जी सिक्खों को आध्यात्मिक शिक्षा देने के अतिरिक्त सांसारिक विषयों में भी उनका पथ-प्रदर्शन करना चाहते थे। हरमंदर साहिब में वे सिक्खों को धार्मिक शिक्षा देने लगे। परन्तु सांसारिक विषयों में सिक्खों का पथ-प्रदर्शन करने के लिए उन्होंने हरमंदर साहिब के सामने एक नया भवन बनाया जिसका नाम अकाल तख्त (ईश्वर की गद्दी) रखा गया।
  4. सेना का संगठन-गुरु हरगोबिन्द जी ने आत्मरक्षा के लिए सेना का संगठन किया। इस सेना में अनेक शस्त्रधारी सैनिक तथा स्वयं सेवक सम्मिलित थे। माझा, मालवा तथा दोआबा के अनेक युद्ध प्रिय युवक गुरु जी की सेना में भर्ती हो गए। उनके पास 500 ऐसे स्वयं सेवक भी थे जो वेतन नहीं लेते थे। ये पांच जत्थों में विभक्त थे। इसके अतिरिक्त पैंदे खां नामक पठान के अधीन पठानों की एक पृथक सेना थी।
  5. घोड़े तथा शस्त्रों की भेंट-गुरु हरगोबिन्द जी ने अपनी नवीन-नीति को अधिक सफल बनाने के लिए एक अन्य महत्त्वपूर्ण पग उठाया। उन्होंने अपने सिक्खों से आग्रह किया कि वे जहां तक सम्भव हो शस्त्र तथा घोड़े ही उपहार में भेट करें। परिणामस्वरूप गुरु जी के पास काफ़ी मात्रा में सैनिक सामग्री इकट्ठी हो गई। .
  6. अमृतसर की किलेबन्दी-गुरु जी ने सिक्खों की सुरक्षा के लिए रामदासपुर (अमृतसर) के चारों ओर एक दीवार बनवाई। इस नगर में दुर्ग का निर्माण भी किया गया जिसे लोहगढ़ का नाम दिया गया। इस किले में काफ़ी सैनिक सामग्री रखी गई।
  7. गुरु जी की दिनचर्या में परिवर्तन-गुरु हरगोबिन्द जी की नवीन नीति के अनुसार उनकी दिनचर्या में भी कुछ परिवर्तन आए। नई दिनचर्या के अनुसार वे प्रातःकाल स्नान आदि करके हरमंदर साहिब में धार्मिक उपदेश देने के लिए चले जाते थे और फिर अपने सैनिकों में प्रात:काल का भोजन बांटते थे। इसके पश्चात् वे कुछ समय के लिए विश्राम करके शिकार के लिए निकल पड़ते थे। गुरु जी ने अब्दुल तथा नत्थामल को जोशीले गीत ऊंचे स्वर में गाने के लिए नियुक्त किया। इस प्रकार गुरु जी ने सिक्खों में नवीन चेतना और नये उत्साह का संचार किया।
  8. आत्मरक्षा की भावना-गुरु हरगोबिन्द जी की नवीन नीति आत्मरक्षा की भावना पर आधारित थी। वह सैनिक बल द्वारा न तो किसी के प्रदेश पर अधिकार करने के पक्ष में थे और न ही वह किसी पर जबरदस्ती आक्रमण करने के पक्ष में थे। यह सच है कि उन्होंने मुग़लों के विरुद्ध अनेक युद्ध किए। परन्तु इन युद्धों का उद्देश्य मुग़लों के प्रदेश छीनना नहीं था, बल्कि उनसे अपनी रक्षा करना था।

प्रश्न 8.
नई नीति के अतिरिक्त गुरु हरगोबिन्द जी ने सिक्ख धर्म के विकास के लिए अन्य क्या कार्य किए ?
उत्तर-
गुरु हरगोबिन्द जी पांचवें गुरु अर्जन देव जी के इकलौते पुत्र थे। उनका जन्म जून,1595 ई० में अमृतसर जिले के एक गांव वडाली में हुआ था। अपने पिता जी की शहीदी पर 1606 ई० में वह गुरु गद्दी पर बैठे और 1645 ई० तक सिक्ख धर्म का सफलतापूर्वक नेतृत्व किया। गुरु साहिब द्वारा किए कार्यों का वर्णन इस प्रकार है —

  1. कीरतपुर में निवास-कहलूर का राजा कल्याण चन्द गुरु हरगोबिन्द साहब का भक्त था। उसने गुरु साहिब को कुछ भूमि भेंट की। गुरु साहिब ने इस भूमि पर कीरतपुर नगर का निर्माण करवाया। 1635 ई० में गुरु जी ने इस नगर में निवास कर लिया। उन्होंने अपने जीवन के अन्तिम दस वर्ष यहीं पर धर्म का प्रचार करते हुए व्यतीत किए।
  2. पहाड़ी राजाओं को सिक्ख बनाना-गुरु हरगोबिन्द साहब ने अनेक पहाड़ी लोगों को अपना सिक्ख बनाया। . यहां तक कि कई पहाड़ी राजा भी उनके सिक्ख बन गए। परन्तु यह प्रभाव अस्थायी सिद्ध हुआ। कुछ समय पश्चात् पहाड़ी राजाओं ने पुनः हिन्दू धर्म की मूर्ति-पूजा आदि प्रथाओं को अपनाना आरम्भ कर दिया। ये प्रथाएं गुरु साहिबान की शिक्षाओं के अनुकूल नहीं थीं।
  3. गुरु हरगोबिन्द जी की धार्मिक यात्राएं-ग्वालियर के किले से रिहा होने के पश्चात् गुरु हरगोबिन्द साहब के मुग़ल सम्राट् जहांगीर से मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध स्थापित हो गए। इस शान्तिकाल में गुरु जी ने धर्म प्रचार के लिए यात्राएं की। सबसे पहले वह अमृतसर से लाहौर गए। वहाँ पर आप ने गुरु अर्जन देव जी की स्मृति में गुरुद्वारा डेरा साहब बनवाया। लाहौर से गुरु जी गुजरांवाला तथा भिंभर (गुजरात) होते हुए कश्मीर पहुंचे। यहाँ पर आप ने ‘संगत’ की स्थापना की। भाई सेवा दास जी को इस संगत का मुखिया नियुक्त किया गया।
    गुरु हरगोबिन्द जी ननकाना साहब भी गए। वहाँ से लौट कर उन्होंने कुछ समय अमृतसर में बिताया। वह उत्तर प्रदेश में नानकमता (गोरखमता) भी गए। गुरु जी की राजसी शान देखकर वहां के योगी नानकमता छोड़ कर भाग गए। वहाँ से लौटते समय गुरु जी पंजाब के मालवा क्षेत्र में गए। तख्तूपुरा, डरौली भाई (फिरोजपुर) में कुछ समय ठहर कर गुरु जी पुनः अमृतसर लौट आए।
  4. धर्म-प्रचारक भेजना-गुरु हरगोबिन्द जी 1635 ई० तक युद्धों में व्यस्त रहे। इसलिए उन्होंने अपने पुत्र बाबा गुरदित्ता जी को सिक्ख धर्म के प्रचार एवं प्रसार के लिए नियुक्त किया। बाबा गुरदित्ता जी ने सिक्ख धर्म के प्रचार के लिए चार मुख्य प्रचारकों-अलमस्त, फूल, गौंडा तथा बलु हसना को नियुक्त किया। इन प्रचारकों के अतिरिक्त गुरु हरगोबिन्द जी ने भाई विधिचन्द को बंगाल तथा भाई गुरदास को काबुल तथा बनारस में धर्म-प्रचार के लिए भेजा।
  5. हरराय जी को उत्तराधिकारी नियुक्त करना-अपना अन्तिम समय निकट आते देख गुरु हरगोबिन्द जी ने अपने पौत्र हरराय (बाबा गुरुदित्ता जी के छोटे पुत्र) को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया।

PSEB 10th Class SST Solutions History Chapter 4 गुरु अंगद देव जी से लेकर गुरु तेग बहादुर जी तक सिक्ख गुरुओं का योगदान

प्रश्न 9.
सिक्ख धर्म के विकास के लिए गुरु हरराय जी के कामों (कार्यों) का वर्णन करो।
उत्तर-
गुरु हरराय जी सिक्खों के सातवें गुरु थे। उन्होंने गुरु हरगोबिन्द साहिब के ज्योति जोत समाने के पश्चात् गुरुगद्दी सम्भाली। वह स्वभाव से कोमल मन तथा शान्तिप्रिय व्यक्ति थे। उनके गुरु काल (1645-1661 ई०) में सिक्ख धर्म के विकास का वर्णन इस प्रकार है —

  1. सिक्ख धर्म के प्रति सेवाएं-गुरु हरराय जी ने युद्ध की नीति को त्याग दिया और सदा शान्ति की नीति का अनुसरण किया। वह जीवन भर गुरु नानक देव जी के पद-चिह्नों पर चले। उनका अधिकतर समय कीरतपुर में व्यतीत हुआ। उन्होंने सिक्ख धर्म का खूब प्रचार किया। वे लोगों को धार्मिक जीवन व्यतीत करने के लिए प्रेरित करते थे और उन्हें सन्मार्ग पर चलने की शिक्षा देते थे। उन्होंने सिक्ख धर्म के प्रचार के लिए निम्नलिखित कार्य किए
    1. वह प्रतिदिन प्रातः तथा सायंकाल धर्म सभाएं करके सिक्ख धर्म का प्रचार करते थे। वह लोगों को धार्मिक जीवन व्यतीत करने के लिए प्रोत्साहित करते थे।
    2. उन्होंने अनेक लोगों को सिक्ख धर्म का अनुयायी बनाया। उनके नए शिष्यों में प्रमुख व्यक्तियों के नाम थेबैरागी भक्त गीर, भाई संगतिया, भाई गोंदा तथा भाई भगत।
    3. उन्होंने सिक्ख धर्म के प्रचार के लिए स्थान-स्थान पर प्रचारक भेजे। उन्होंने ‘भक्त गीर’ नाम के एक बैरागी को अपना चेला बना लिया। गुरु जी ने उसका नाम भक्त भगवान् रखा और उसे पूर्व में धर्म प्रचार का कार्य सौंप दिया। वह इतना प्रभावशाली प्रचारक सिद्ध हुआ कि उसने भारतवर्ष में लगभग 360 गद्दियां स्थापित की। इनमें से कुछ गद्दियां आज भी मौजूद हैं। गुरु हरराय जी स्वयं भी धर्म प्रचार के लिए पंजाब में कई स्थानों पर गए और उन्होंने वहां अनेक अनुयायी बनाए। उन्होंने मुख्य रूप से करतारपुर, मुकन्दपुर (जालन्धर), दोसांझ तथा मालवा में धर्म-प्रचार का कार्य किया। इस प्रकार गुरु हरराय जी के काल में सिक्ख धर्म में बड़ी उन्नति हुई।
  2. फूल और उसके परिवार को आशीर्वाद देना-गुरु हरराय जी एक बार मालवा के एक गांव नथाना (Nathana) में गए। वहां उन्होंने फूल नामक एक गूंगे बालक को आशीर्वाद दिया कि वह बड़ा धनवान् तथा प्रसिद्ध व्यक्ति बनेगा और उसकी सन्तान के घोड़े यमुना का पानी पीयेंगे। इसके अतिरिक्त वे कई पीढ़ियों तक राज करेंगे और जितनी गुरु की सेवा करेंगे उतना ही उनका सम्मान बढ़ेगा। गुरु जी की भविष्यवाणी सत्य निकली। फूल की सन्तान ने नाभा, जींद और पटियाला के राज्यों पर राज किया।
  3. दारा शिकोह को आशीर्वाद-गुरु हरराय जी बड़े शान्तिप्रिय व्यक्ति थे और लड़ाई-झगड़े से दूर ही रहना चाहते थे। शाहजहां के बड़े पुत्र दारा शिकोह के साथ उनके मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध थे। 1657-58 ई० में शाहजहां के बेटों में सिंहासन प्राप्ति के लिए युद्ध आरम्भ हो गया। इसमें औरंगजेब की जीत हुई और दारा को पराजय का मुंह देखना पड़ा। दारा अपने बच्चों सहित पंजाब की ओर भाग निकला। दारा गुरु जी से परिचित था। अतः गुरु जी से आशीर्वाद प्राप्त करने तथा उनसे सहायता लेने के लिए वह उनके पास गया। गुरु जी बहुत शान्तिप्रिय व्यक्ति थे। वह दारा को सैनिक सहायता नहीं दे सकते थे। अत: उन्होंने दारा को केवल शरण और आशीर्वाद दिया।
  4. गुरु हरराय जी का दिल्ली बुलाया जाना-मुग़ल सम्राट औरंगजेब गुरु हरराय जी द्वारा दारा शिकोह को दी जाने वाली सहायता के बारे में जानना चाहता था। अतः उसने गुरु जी को दिल्ली बुलवा भेजा। गुरु जी ने स्वयं जाने की बजाए अपने पुत्र रामराय को औरंगजेब के दरबार में भेज दिया। औरंगजेब ने रामराय से बहुत-से प्रश्न किए जिनका रामराय ने बड़ी योग्यतापूर्वक उत्तर दिया। औरंगजेब यह सिद्ध करना चाहता था कि कुछ बातें ग्रन्थ साहिब में मुसलमानों के विरुद्ध लिखी हुई हैं। इसी उद्देश्य से उसने गुरु नानक देव जी की ‘आसा दी वार’ के एक श्लोक की ओर इशारा किया जिसका भाव इस प्रकार है-“मुसलमान की मिट्टी कुम्हार के भट्टे में जाकर जल सकती है, क्योंकि इससे बर्तन और ईंट बनता है। ज्यों-ज्यों यह जलती है, यह चिल्लाती है।” रामराय ने चतुराई दिखाते हुए जान-बूझ कर कुछ शब्द बदल दिये। रामराय ने औरंगजेब को बताया कि श्लोक में ‘मुसलमान’ शब्द भूल से लिखा गया है। वास्तव में यह शब्द ‘बेइमान’ है, परन्तु जब गुरु जी को इस बात का पता चला तो वे बड़े दुःखी हुए। उन्होंने रामराय के विषय में यह घोषणा की कि ऐसे डरपोक को गुरुगद्दी पर बैठने का कोई हक नहीं है।
  5. हरकृष्ण जी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त करनी-गुरुं हरराय जी रामराय को उसकी कायरता के कारण क्षमा न कर सके। अतः उन्होंने रामराय को गुरुगद्दी से वंचित कर दिया और अपने पांच वर्षीय पुत्र हरकृष्ण को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त कर दिया। लगभंग सत्रह वर्ष तक गुरुगद्दी सम्भालने के पश्चात् 6 अक्तूबर, 1661 को गुरु हरराय जी ज्योति-जोत समा गए।

प्रश्न 10.
गुरु हरकृष्ण जी ने सिक्ख धर्म के विकास के लिए क्या योगदान दिया?
उत्तर-
गुरु हरकृष्ण जी का जन्म 7 जुलाई, 1656 ई० को कीरतपुर में हुआ। उनकी माता का नाम सुलखणी तथा पिता का नाम गुरु हरराय जी था। वह 1661 ई० में सिक्खों के आठवें गुरु बने। इस समय उनकी आयु केवल पांच वर्ष की थी। एक बालक होने के कारण गुरु हरकृष्ण जी को ‘बाल गुरुं’ के नाम से भी याद किया जाता है। उनके गुरुकाल की प्रमुख घटनाओं का वर्णन इस प्रकार है

  1. रामराय का विरोध-गुरु हरकृष्ण जी को अपने स्वार्थी भाई रामराय के विरोध का सामना भी करना पड़ा। रामराय सातवें गुरु हरराय जी का बड़ा पुत्र होने के नाते गुरुगद्दी पर अपना अधिकार समझता था। वह किसी भी मूल्य पर गुरुगद्दी के अधिकार को खोना नहीं चाहता था। अत: उसने औरंगजेब के दरबार में न्याय की मांग की। औरंगजेब उस समय विद्रोहों को दबाने में लगा हुआ था। इसलिए वह इस ओर कोई विशेष ध्यान न दे सका, परन्तु कुछ समय पश्चात् उसने दोनों भाइयों का झगड़ा निपटाने का फैसला कर लिया। उसने गुरु हरकृष्ण जी को दिल्ली आने के लिये आमन्त्रित किया।
  2. गुरु जी दिल्ली में-गुरु हरकृष्ण जी मार्ग में सिक्ख धर्म का प्रचार करते हुए दिल्ली पहुंचे। वहां वह मिर्जा राजा जय सिंह के घर ठहरे। राजा जय सिंह ने गुरु साहिब की सूझ-बूझ देखने के लिए अपनी महारानी को एक दासी के वस्त्र पहना कर अन्य दासियों के बीच बिठा दिया। तब गुरु जी को महारानी की गोद में बैठने के लिये कहा गया। गुरु जी ने सभी स्त्रियों के चेहरों को ध्यानपूर्वक देखा और महारानी को पहचान गए। वह झट से उसकी गोद में जा बैठे। राजा जय सिंह गुरु साहिब की सूझबूझ से बहुत प्रभावित हुआ। इस स्थान पर आजकल गुरुद्वारा बंगला साहिब बना हुआ है।
  3. ज्योति-जोत समाना-उन दिनों दिल्ली में चेचक तथा हैजे की बीमारियां फैली हुई थीं। गुरु जी ने बीमारों और ज़रूरतमन्दों की अथक सेवा की परन्तु गुरु जी को चेचक के भयंकर रोग ने जकड़ लिया । उन्होंने अपना अन्त समय निकट जान अपना उत्तराधिकारी घोषित करने का प्रयास किया। वह केवल ‘बाबा बकाला’ के ही शब्द बोल सके तथा उस परम ज्योति में समा गए। बाबा बकाला से अभिप्राय यह था कि उनका उत्तराधिकारी बकाला गांव (अमृतसर) में है। यह घटना 30 मार्च, 1664 ई० की थी। गुरु जी की याद में यमुना के किनारे गुरुद्वारा बाला साहिब का निर्माण करवाया गया।

प्रश्न 11.
गुरु तेग बहादुर जी की मालवा-यात्रा का वर्णन करो।
उत्तर-
1673 ई० के मध्य में गुरु तेग़ बहादुर साहिब मालवा प्रदेश की यात्रा पर गए। इस यात्रा में उनकी पत्नी गुजरी जी तथा पुत्र गोबिन्द दास भी उनके साथ थे।

  1. गुरु साहिब सर्वप्रथम सैफ़ाबाद पहुंचे। सैफ़ाबाद में गुरु साहिब की यह दूसरी यात्रा थी। यहां के मनसबदार – नवाब सैफूद्दीन ने उनका पुनः हार्दिक स्वागत किया। उसने गुरु साहिब तथा उनके परिवार को दुर्ग में ठहराया। गुरु साहिब यहां तीन मास तक रहे। यहां रहकर उन्होंने सिख धर्म का प्रचार किया।
  2. सैफ़ाबाद के पश्चात् गुरु साहिब ने मालवा तथा बांगर प्रदेश के अनेक गांवों तथा नगरों की यात्रा की। डॉ० त्रिलोचन सिंह के अनुसार, इस प्रदेश में गुरु साहिब ने लगभग 10 स्थानों का भ्रमण किया। इनमें से कुछ महत्त्वपूर्ण स्थान ये थे : मूलोवाल, सेखों, ढिल्लवां, जोगा, भीखी, खीवा, समऊं, खियाला, मौंड, तलवंडी साबो, भठिंडा, बराह, धमधान आदि। इन सभी स्थानों पर आज भी गुरुद्वारे बने हुए हैं जो गुरु साहिब की यात्रा की याद दिलाते हैं। मूलोवाल में गुरु साहिब में पानी की कमी को दूर करने के लिए एक कुआं खुदवाया। अन्य गांव भी काफ़ी पिछड़े हुए थे। गुरु साहिब ने इन सभी गांवों में लोगों के कष्टों को दूर करने का प्रयास किया। गुरु साहिब 1673 से 1675 ई० के बीच इस प्रदेश के गांवों का भ्रमण करते रहे और यहां के लोगों में धर्म का प्रचार करते रहे।

प्रभाव-मालवा में गुरु साहिब की यात्राओं का लोगों पर गहरा प्रभाव पड़ा

  1. गुरु साहिब के प्रेमपूर्वक व्यवहार से प्रभावित होकर वहां के ज़मींदारों ने किसानों के साथ अच्छा व्यवहार करना आरम्भ कर दिया।
  2. गुरु साहिब ने स्थान-स्थान पर धर्म-प्रचार केन्द्र स्थापित किए। उनके आकर्षक व्यक्तित्व तथा मधुर वाणी से प्रभावित होकर हज़ारों लोग उनके शिष्य बन गए।
  3. उनके उपदेशों के फलस्वरूप लोगों में नई चेतना का संचार हुआ। उनमें नया धार्मिक उत्साह उत्पन्न हुआ और वे साहसी एवं निडर बने। सिक्खों में ऐसे उत्साह एवं एकता को देखकर मुग़ल सरकार भी चिन्ता में पड़ गई।

PSEB 10th Class SST Solutions History Chapter 4 गुरु अंगद देव जी से लेकर गुरु तेग बहादुर जी तक सिक्ख गुरुओं का योगदान

PSEB 10th Class Social Science Guide गुरु अंगद देव जी से लेकर गुरु तेग बहादुर जी तक सिक्ख गुरुओं का योगदान Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

I. उत्तर एक शब्द अथवा एक लाइन में

प्रश्न 1.
गुरु अंगद देव जी का नाम अंगद देव कैसे पड़ा?
उत्तर-
गुरु अंगद देव जी गुरु नानक देव जी के लिए सर्दी की रात में दीवार बना सकते थे तथा कीचड़ से भरी घास की गठरी उठा सकते थे, इसलिए गुरु जी ने उनका नाम अंगद अर्थात् शरीर का एक अंग रख दिया।

प्रश्न 2.
लहना (गुरु अंगद साहिब) के माता-पिता का नाम क्या था?
उत्तर-
लहना (गुरु अंगद साहिब) के पिता का नाम फेरूमल और माता का नाम सभराई देवी था।

प्रश्न 3.
गुरु अंगद साहिब का बचपन किन दो स्थानों पर बीता?
उत्तर-
गुरु अंगद साहिब का बचपन हरिके तथा खडूर साहिब में बीता।

प्रश्न 4.
लहना जी का विवाह किसके साथ हुआ और उस समय उनकी आयु कितनी थी?
उत्तर-
लहना जी का विवाह 15 वर्ष की आयु में ‘मत्ते दी सराय’ के निवासी श्री देवीचन्द जी की सुपुत्री बीबी खीवी से हुआ।

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प्रश्न 5.
लहना जी के कितने पुत्र और पुत्रियां थीं ? उनके नाम भी लिखो।
उत्तर-
लहना जी के दो पुत्र दत्तू तथा दस्सू तथा दो पुत्रियां बीबी अमरों तथा बीबी अनोखी थीं।

प्रश्न 6.
‘उदासी’ मत किसने स्थापित किया?
उत्तर-
‘उदासी’ मत गुरु नानक देव जी के बड़े पुत्र बाबा श्री चन्द जी ने स्थापित किया।

प्रश्न 7.
गुरु अंगद साहिब ने ‘उदासी’ मत के प्रति क्या रुख अपनाया?
उत्तर-
गुरु अंगद साहिब ने उदासी मत को गुरु नानक साहिब के उद्देश्यों के प्रतिकूल बताया और इस मत का विरोध किया।

प्रश्न 8.
गुरु अंगद देव जी की धार्मिक गतिविधियों का केन्द्र कौन-सा स्थान था?
उत्तर-
गुरु अंगद देव जी की धार्मिक गतिविधियों का केन्द्र अमृतसर जिले में खडूर साहिब था।

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प्रश्न 9.
गुरु अमरदास जी का जन्म कब और कहां हुआ था?
उत्तर-
गुरु अमरदास जी का जन्म 1479 ई० में जिला अमृतसर में स्थित बासरके नामक गाँव में हुआ था।

प्रश्न 10.
गुरु अमरदास जी को गद्दी सम्भालते समय किस कठिनाई का सामना करना पड़ा?
उत्तर-
गुरु अमरदास जी को गुरु अंगद देव जी के पुत्रों दासू और दातू के विरोध का सामना करना पड़ा।
अथवा
गुरु जी को गुरु नानक देव जी के बड़े पुत्र बाबा श्रीचन्द के विरोध का भी सामना करना पड़ा।

प्रश्न 11.
सिक्खों के दूसरे गुरु कौन थे?
उत्तर-
गुरु अंगद देव जी।

प्रश्न 12.
गुरु अंगद देव जी का पहला नाम क्या था?
उत्तर-
भाई लहना।

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प्रश्न 13.
गुरु अंगद देव जी को गुरु-गही कब सौंपी गई?
उत्तर-
1538 ई० में।

प्रश्न 14.
लंगर प्रथा किसने चलाई?
उत्तर-
लंगर प्रथा गुरु नानक देव जी ने चलाई।

प्रश्न 15.
उदासी सम्प्रदाय किसने चलाया?
उत्तर-
श्रीचन्द जी ने।

प्रश्न 16.
गोइन्दवाल की स्थापना (1546 ई०) किसने की?
उत्तर-
गुरु अंगद देव जी ने।

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प्रश्न 17.
गुरु अंगद देव जी ज्योति-जोत कब समाये?
उत्तर-
1552 ई० में।

प्रश्न 18.
गुरु अंगद देव जी ने अखाड़े का निर्माण कहाँ करवाया?
उत्तर-
खडूर साहिब में।

प्रश्न 19.
गोइन्दवाल में बाऊली का निर्माण कार्य किसने पूरा करवाया?
उत्तर-
गुरु अमरदास जी ने।

प्रश्न 20.
जहांगीर के काल में कौन-से सिख गुरु शहीद हुए थे?
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी।

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प्रश्न 21.
गुरु तेग़ बहादुर जी की शहीदी किस मुगल शासक के काल में हुई?
उत्तर-औरंगज़ेब।

प्रश्न 22.
मंजी प्रथा किस गुरु जी ने आरम्भ करवाई?
उत्तर-
गुरु अमरदास जी ने।

प्रश्न 23.
‘आनन्द’ नामक बाणी की रचना किसने की?
उत्तर-
गुरु अमरदास जी ने।

प्रश्न 24.
अमृतसर शहर की नींव किसने रखी?
उत्तर-
गुरु रामदास जी ने।

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प्रश्न 25.
सिक्खों के चौथे गुरु कौन थे?
उत्तर-
श्री गुरु रामदास जी।

प्रश्न 26.
मसंद प्रथा का आरम्भ सिक्खों के किस गुरु ने आरम्भ किया?
उत्तर-
श्री गुरु रामदास जी ने।

प्रश्न 27.
सिक्खों के पांचवें गरु कौन थे?
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी।

प्रश्न 28.
अमृतसर में हरमंदर साहिब का निर्माण किसने करवाया?
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी ने।

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प्रश्न 29.
गुरु अर्जन देव जी ने कौन-कौन से शहर बसाये?
उत्तर-
तरनतारन, करतारपुर तथा हरगोबिन्दपुर।

प्रश्न 30.
‘दसवंद’ (आय का दसवां भाग) का सम्बन्ध किस प्रथा से है?
उत्तर-
मसंद प्रथा से।

प्रश्न 31.
‘आदि ग्रन्थ’ साहिब का संकलन कार्य कब पूरा हुआ?
उत्तर-
1604 ई० में।

प्रश्न 32.
‘आदि ग्रन्थ’ साहिब का संकलन कार्य किसने किया?
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी ने।

प्रश्न 33.
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी कब हुई?
उत्तर-
1606 ई० में।

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प्रश्न 34.
मीरी तथा पीरी नामक दो तलवारें किसने धारण की?
उत्तर-
गुरु हरगोबिन्द जी ने।

प्रश्न 35.
गुरु हरगोबिन्द जी का पठान सेनानायक कौन था?
उत्तर-
पैदा खां।

प्रश्न 36.
अकाल तख़्त का निर्माण, लोहगढ़ का निर्माण तथा सिक्ख सेना का संगठन सिक्खों के किस गुरु ने किया?
उत्तर-
गरु हरगोबिन्द जी ने।

प्रश्न 37.
अमृतसर की किलाबन्दी किसने करवाई?
उत्तर-
गुरु हरगोबिन्द जी ने।

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प्रश्न 38.
कीरतपुर शहर के लिए जमीन किसने भेंट की थी?
उत्तर-
राजा कल्याण चन्द ने।

प्रश्न 39.
किस मुग़ल बादशाह ने गुरु हरगोबिन्द जी को ग्वालियर के किले में बन्दी बनाया?
उत्तर-
जहांगीर ने।

प्रश्न 40.
सिक्खों के सातवें गुरु कौन थे?
उत्तर-
श्री गुरु हरराय जी।

प्रश्न 41.
शाहजहां के किस पुत्र को गुरु हरराय जी का आशीर्वाद प्राप्त हुआ?
उत्तर-
दारा शिकोह को।

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प्रश्न 42.
‘आसा-दी-वार’ के एक श्लोक का अर्थ बदलने की ग़लती किसने की?’
उत्तर-
रामराय ने।

प्रश्न 43.
गुरु हरकृष्ण जी गुरु-गद्दी पर कब बैठे?
उत्तर-
1661 ई० में।

प्रश्न 44.
दिल्ली में गुरु हरकृष्ण जी किसके बंगले पर ठहरे?
उत्तर-
गुरु हरकृष्ण जी दिल्ली में राजा जयसिंह के बंगले पर ठहरे।

प्रश्न 45.
बालगुरु के नाम से कौन विख्यात है?
उत्तर-
गुरु हरकृष्ण जी।

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प्रश्न 46.
गुरुद्वारा बंगला साहिब कहाँ स्थित है?
उत्तर-
दिल्ली में।

प्रश्न 47.
‘बाबा बकाला’ वास्तव में कौन थे?
उत्तर-
गुरु तेग़ बहादुर जी।

प्रश्न 48.
गुरु तेग़ बहादुर जी ने घूके वाली गाँव का नाम क्या रखा?
उत्तर-
गुरु का बाग।

प्रश्न 49.
गुरु तेग़ बहादुर जी की शहादत कब हुई?
उत्तर-
1675 ई० में।

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प्रश्न 50.
गुरु गोबिन्द सिंह जी का जन्म कहाँ हुआ?
उत्तर-
पटना में।

प्रश्न 51.
गुरु गोबिन्द सिंह जी का जन्म कब हुआ?
उत्तर-
22 दिसम्बर, 1666.

प्रश्न 52.
गुरु तेग़ बहादुर जी की शहीदी कहाँ हुई?
उत्तर-
दिल्ली में।

प्रश्न 53.
गुरु अमरदास जी के कितने पुत्र तथा पुत्रियां थीं? उनके नाम लिखो।
उत्तर-
गुरु अमरदास जी के दो पुत्र थे। मोहन तथा मोहरी तथा उनकी दो पुत्रियां दानी और भानी थीं।

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प्रश्न 54.
गोइन्दवाल की बावली में कितनी सीढ़ियां बनवाई गईं और क्यों?
उत्तर-
इस बावली में 84 सीढ़ियां बनवाई गईं क्योंकि गुरु साहिब ने घोषणा की थी कि प्रत्येक सीढ़ी पर बैठ कर जपुजी साहिब का पाठ करने वाले को 84 लाख योनियों के चक्कर से मुक्ति मिल जाएगी।

प्रश्न-55.
‘मंजियों’ की स्थापना किस गुरु साहिब ने की?
उत्तर-
‘मंजियों’ की स्थापना गुरु अमरदास जी ने की।

प्रश्न 56.
गुरु अमरदास जी ने किन दो अवसरों के लिए सिक्खों के लिए विशिष्ट रीतियां निश्चित की?
उत्तर-
गुरु अमरदास जी ने आनन्द विवाह की पद्धति आरम्भ की जिसमें जन्म तथा मरण के अवसरों पर सिक्खों के लिए विशिष्ट रीतियां निश्चित की गईं।

प्रश्न 57.
गुरु अमरदास जी द्वारा सिक्ख मत के प्रसार के लिए किया गया कोई एक कार्य लिखो।
उत्तर-
गुरु अमरदास जी ने गोइन्दवाल में बावली का निर्माण किया।
अथवा
उन्होंने मंजी प्रथा की स्थापना की तथा लंगर प्रथा का विस्तार किया।

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प्रश्न 58.
गुरु अमरदास जी ने सिक्खों को कौन-कौन से तीन त्योहार मनाने का आदेश दिया?
उत्तर-
उन्होंने सिक्खों को वैशाखी, माघी तथा दीवाली के त्योहार मनाने का आदेश किया।

प्रश्न 59.
गुरु अमरदास जी के काल में सिक्ख अपने त्योहार मनाने के लिए कहां एकत्रित होते थे?
उत्तर-
सिक्ख अपने त्योहार मनाने के लिए गुरु अमरदास जी के पास गोइन्दवाल में एकत्रित होते थे।

प्रश्न 60.
गुरु अमरदास जी ज्योति-जोत कब समाए?
उत्तर-
गुरु अमरदास जी 1574 ई० में ज्योति-जोत समाए।

प्रश्न 61.
गुरुगद्दी को पैतृक रूप किसने दिया?
उत्तर-
गुरुगद्दी को पैतृक रूप गुरु अमरदास जी ने दिया।

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प्रश्न 62.
गुरु अमरदास जी ने गुरु-गद्दी किस घराने को सौंपी?
उत्तर-
गुरु अमरदास जी ने यह गद्दी गुरु रामदास जी तथा बीबी भानी जी के सोढी घराने को सौंपी।

प्रश्न 63.
गुरु रामदास जी की पत्नी का क्या नाम था?
उत्तर-
गुरु रामदास जी की पत्नी का नाम बीबी भानी था।

प्रश्न 64.
गुरु रामदास जी के कितने पुत्र थे? पुत्रों के नाम भी बताओ।
उत्तर-
गुरु रामदास जी के तीन पुत्र थे-पृथी चन्द, महादेव तथा अर्जन देव।

प्रश्न 65.
गुरु रामदास जी द्वारा सिक्ख धर्म के विस्तार के लिए किया गया कोई एक कार्य बताओ।
उत्तर-
गुरु रामदास जी ने अमृतसर नगर बसाया। इस नगर के निर्माण से सिक्खों को एक महत्त्वपूर्ण तीर्थ स्थान मिल गया।
अथवा
उन्होंने मसन्द प्रथा को आरम्भ किया। मसन्दों ने सिक्ख धर्म का खूब प्रचार किया।

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प्रश्न 66.
अमृतसर नगर का प्रारम्भिक नाम क्या था? इसकी स्थापना किसने की थी?
उत्तर-
अमृतसर नगर का प्रारम्भिक नाम रामदासपुर था तथा इस नगर की स्थापना चौथे गुरु रामदास जी ने की।

प्रश्न 67.
गुरु रामदास जी द्वारा खुदवाए गए दो सरोवरों के नाम लिखो।
उत्तर-
गुरु रामदास जी द्वारा खुदवाए गए दो सरोवर संतोखसर तथा अमृतसर हैं।

प्रश्न 68.
गुरु रामदास जी ने अमृतसर सरोवर के चारों ओर जो बाज़ार बसाया वह किस नाम से प्रसिद्ध हुआ?
उत्तर-
गुरु रामदास जी द्वारा बसाया गया यह बाज़ार ‘गुरु का बाज़ार’ के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

प्रश्न 69.
गुरु रामदास जी ने “गुरु का बाज़ार’ की स्थापना किस उद्देश्य से की?
उत्तर-
गुरु रामदास जी अमृतसर नगर को हर प्रकार से आत्म-निर्भर बनाना चाहते थे। इसी कारण उन्होंने 52 अलग-अलग प्रकार के व्यापारियों को आमन्त्रित किया और इस बाज़ार की स्थापना की।

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प्रश्न 70.
गुरु अर्जन देव जी का जन्म कब और कहां हुआ?
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी का जन्म 15 अप्रैल, 1563 ई० को गोइन्दवाल में हुआ।

प्रश्न 71.
गुरु अर्जन देव जी के माता-पिता का नाम लिखो।
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी के पिता का नाम गुरु रामदास जी तथा उनकी माता जी का नाम बीबी भानी था।

प्रश्न 72.
गुरु रामदास जी ने महादेव को गुरु गद्दी के अयोग्य क्यों समझा?
उत्तर-
महादेव फ़कीर स्वभाव का था तथा उसे सांसारिक विषयों से कोई लगाव नहीं था।

प्रश्न 73.
गुरु रामदास जी ने पृथी चन्द को गुरु गद्दी के अयोग्य क्यों समझा?
उत्तर-
गुरु रामदास जी ने पृथी चंद को गुरुपद के अयोग्य इसलिए समझा क्योंकि वह धोखेबाज़ और षड्यन्त्रकारी था।

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प्रश्न 74.
गुरु गद्दी की प्राप्ति में गुरु अर्जन देव जी की कोई एक कठिनाई बताओ।
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी को अपने भाई पृथिया की शत्रुता तथा विरोध का सामना करना पड़ा।
अथवा
गुरु अर्जन देव जी का ब्राह्मणों तथा कट्टर मुसलमानों ने विरोध किया।

प्रश्न 75.
शहीदी देने वाले प्रथम सिक्ख गुरु का नाम बताओ।
उत्तर-
शहीदी देने वाले प्रथम गुरु का नाम गुरु अर्जन साहिब था।

प्रश्न 76.
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी का एक प्रभाव लिखो।
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी ने सिक्खों को शस्त्र उठाने के लिए प्रेरित किया। वे समझ गए कि धर्म की रक्षा के लिए शस्त्र उठाना आवश्यक है।
अथवा
गुरु जी की शहीदी के परिणामस्वरूप सिक्खों और मुग़लों के सम्बन्ध बिगड़ गए।

प्रश्न 77.
हरमंदर साहिब की योजना को कार्य रूप देने में किन दो व्यक्तियों ने गुरु अर्जन साहिब की सहायता की?
उत्तर-
हरमंदर साहिब की योजना को कार्य रूप देने में भाई बुड्डा जी तथा भाई गुरदास जी ने गुरु अर्जन साहिब की सहायता की।

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प्रश्न 78.
हरमंदर साहब का निर्माण कार्य कब पूरा हुआ?
उत्तर-
हरमंदर साहिब का निर्माण कार्य 1601 ई० में पूरा हुआ।

प्रश्न 79.
गुरु जी के प्रतिनिधियों को क्या कहते थे और वे संगतों से उनकी आय का कौन-सा भाग एकत्र करते थे?
उत्तर-
गुरु जी के प्रतिनिधियों को मसन्द कहा जाता था तथा वे संगतों से उनकी आय का दसवां भाग एकत्र करते थे।

प्रश्न 80.
आदि ग्रन्थ साहिब का संकलन किन्होंने किया?
उत्तर-
आदि ग्रन्थ साहिब का संकलन कार्य गुरु अर्जन देव जी ने किया।

प्रश्न 81.
आदि ग्रन्थ साहिब का संकलन कब सम्पूर्ण हुआ?
उत्तर-
आदि ग्रन्थ साहिब का संकलन कार्य 1604 ई० में सम्पूर्ण हुआ।

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प्रश्न 82.
‘आदि ग्रन्थ साहिब’ को कहां स्थापित किया गया?
उत्तर-
आदि ग्रन्थ साहिब को अमृतसर के हरमंदर साहिब में स्थापित किया गया। .

प्रश्न 83.
हरमंदर साहिब का पहला ग्रन्थी किस व्यक्ति को नियुक्त किया गया?
उत्तर-
हरमंदर साहिब का पहला ग्रन्थी बाबा बुड्डा जी. को नियुक्त किया गया।

प्रश्न 84.
‘आदि ग्रन्थ साहिब’ में क्रमशः गुरु नानक देव जी, गुरु अंगद देव जी, गुरु अमरदास जी तथा गुरु रामदास जी के कितने-कितने शब्द हैं?
उत्तर-
आदि ग्रन्थ साहिब में गुरु नानक देव जी के 976, गुरु अंगद देव जी के 61, गुरु अमरदास जी के 907 तथा गुरु रामदास जी के 679 शब्द हैं।

प्रश्न 85.
गुरु हरगोबिन्द जी ने धार्मिक तथा शस्त्र चलाने की शिक्षा किससे प्राप्त की?
उत्तर-
गुरु हरगोबिन्द जी ने धार्मिक तथा शस्त्र चलाने की शिक्षा भाई बुड्डा जी से प्राप्त की।

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प्रश्न 86.
गुरु हरगोबिन्द जी की गद्दी पर बैठते समय आयु कितनी थी?
उत्तर-
गुरु गद्दी पर बैठते समय उनकी आयु केवल ग्यारह वर्ष की थी।

प्रश्न 87.
गुरु हरगोबिन्द जी द्वारा नवीन नीति (सैन्य-नीति) अपनाने की कोई एक कारण बताओ।
उत्तर-
मुग़लों और सिक्खों के आपसी सम्बन्ध बिगड़ चुके थे। अतः सिक्खों की रक्षा के लिए गुरु जी ने नवीन नीति का सहारा लिया।
अथवा
सिक्ख धर्म में जाटों के प्रवेश से भी सैन्य-नीति को बल मिला।

प्रश्न 88.
गुरु हरगोबिन्द साहिब के समय तक कौन-कौन से चार स्थान सिक्खों के तीर्थ स्थान बन चुके थे?
उत्तर-
गुरु हरगोबिन्द साहिब के समय तक गोइन्दवाल, अमृतसर, तरनतारन तथा करतारपुर सिक्खों के तीर्थ स्थान बन चुके थे।

प्रश्न 89.
सिक्ख धर्म के संगठन एवं विकास में किन चार संस्थाओं ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई?
उत्तर-
सिक्ख धर्म के संगठन एवं विकास में ‘पंगत’, ‘संगत’, ‘मंजी’ तथा ‘मसन्द’ संस्थाओं ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।

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प्रश्न 90.
गुरु हरगोबिन्द साहिब के किन्हीं चार सेनानायकों के नाम बताओ।
उत्तर-
गुरु हरगोबिन्द साहिब के चार सेनानायकों के नाम विधिचन्द, पीराना, जेठा और पैंदे खां थे।

प्रश्न 91.
गुरु हरगोबिन्द साहिब ने अपने दरबार में किन दो संगीतकारों को वीर रस के गीत गाने के लिए नियुक्त किया?
उत्तर-
उन्होंने अपने दरबार में अब्दुल तथा नत्थामल नामक दो संगीतकारों को वीर रस के गीत गाने के लिए नियुक्त किया।

प्रश्न 92.
गुरु हरगोबिन्द जी को बन्दी बनाए जाने का एक कारण बताओ।
उत्तर-
जहांगीर को गुरु साहिब की नवीन नीति पसन्द न आई।
अथवा
चन्दू शाह ने जहांगीर को गुरु जी के विरुद्ध भड़काया जिससे वह गुरु जी का विरोधी हो गया।

प्रश्न 93.
गुरु हरगोबिन्द जी को ‘बन्दी छोड़ बाबा’ की उपाधि क्यों प्राप्त हुई?
उत्तर-
52 बन्दी राजाओं को मुक्त कराने के कारण।

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प्रश्न 94.
गुरु हरगोबिन्द जी के समय में मुगलों और सिक्खों के बीच कितने युद्ध हुए? यह युद्ध कब और कहां हुए?
उत्तर-
गुरु हरगोबिन्द जी के समय में मुग़लों और सिक्खों के बीच तीन युद्ध हुए। लहिरा (1631), अमृतसर (1634) तथा करतारपुर (1635)।

प्रश्न 95.
गुरु हरगोबिन्द साहिब के समय के चार प्रमुख प्रचारकों (उदासियों) के नाम लिखो।
उत्तर-
गुरु हरगोबिन्द साहिब के समय के चार प्रमुख प्रचारकों (उदासियों) के नाम अलमस्त, फूल, गौड़ा तथा बलु हसना थे।

प्रश्न 96.
गुरु हरराय जी के माता-पिता का नाम बताओ।
उत्तर-
गुरु हरराय जी के पिता का नाम बाबा गुरदित्ता जी तथा उनकी माता का नाम निहाल कौर जी था।

प्रश्न 97.
गुरु हरराय जी के बेटों के नाम बताएं।
उत्तर-
गुरु हरराय जी के बेटों के नाम थे-रामराय तथा हरकृष्ण।

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प्रश्न 98.
गुरु हरराय जी के किन्हीं चार प्रमुख नवीन शिष्यों के नाम बताओ।
उत्तर-
गुरु हरराय जी के चार प्रमुख नवीन शिष्यों के नाम थे-बैरागी भक्त गीर, भाई संगतिया, भाई गौंडी तथा भाई भगतू।

प्रश्न 99.
गुरु हरराय जी ने धर्म प्रचार के लिए किन तीन व्यक्तियों को नियुक्त किया?
उत्तर-
गुरु हरराय जी ने धर्म प्रचार के लिए कई व्यक्तियों को नियुक्त किया जिनमें से प्रमुख थे-भक्त भगवान, भाई फेरू और भाई गौंडा।

प्रश्न 100.
दिल्ली में गुरु हरकृष्ण जी जहां रुके थे आज वहां कौन-सा गुरुद्वारा है?
उत्तर-
दिल्ली में गुरु हरकृष्ण जी मिर्जा राजा जय सिंह के घर ठहरे, वहां उस स्थान पर आजकल गुरुद्वारा बंगला साहिब बना हुआ है।

II. रिक्त स्थानों की पूर्ति

  1. गुरु …………. का पहला नाम भाई लहना था।
  2. ……………. सिक्खों के चौथे गुरु थे।
  3. ……………. नामक नगर की स्थापना गुरु अंगद देव जी ने की।
  4. गुरु हरगोबिन्द साहिब ने अपने जीवन के अंतिम दस वर्ष …………. में धर्म प्रचार में व्यतीत किए।
  5. गुरु अंगद देव जी के पिता का नाम श्री …………….. और मां का नाम माता ………….. था।
  6. ‘उदासी’ मत गुरु नानक देव जी के बड़े पुत्र ………… जी ने स्थापित किया।
  7. मंजियों की स्थापना गुरु ………….. ने की।
  8. गुरु अर्जन देव जी का जन्म 15 अप्रैल, 1563 ई० को ………… में हुआ।
  9. ……….. शहीदी देने वाले प्रथम सिक्ख गुरु थे।
  10. हरमंदर साहब का निर्माण कार्य …………. ई० में पूरा हुआ।

उत्तर-

  1. अंगद साहिब,
  2. गुरु रामदास जी,
  3. गोइंदवाल साहिब,
  4. कीरतपुर साहिब,
  5. फेरूमल तथा सभराई देवी,
  6. बाबा श्रीचंद,
  7. अमर दास जी,
  8. गोइंदवाल साहिब
  9. गुरु अर्जन साहिब,
  10. 1601.

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III. बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
गोइंदवाल साहिब में बाऊली (जल-स्रोत) की नींव रखी-
उत्तर –
(A) गुरु अर्जन देव जी ने
(B) गुरु नानक देव जी ने
(C) गुरु अंगद देव जी ने
(D) गुरु तेग़ बहादुर जी ने।
उत्तर-
(C) गुरु अंगद देव जी ने

प्रश्न 2.
गुरु रामदास जी ने नगर बसाया-
(A) अमृतसर
(B) जालंधर
(C) कीरतपर साहिब
(D) गोइंदवाल साहिब।
उत्तर-
(A) अमृतसर

प्रश्न 3.
गुरु अर्जन देव जी ने रावी तथा ब्यास के बीच किस नगर की नींव रखी?
(A) जालंधर
(B) गोइंदवाल साहिब
(C) अमृतसर
(D) तरनतारन।
उत्तर-
(D) तरनतारन।

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प्रश्न 4.
गुरु अंगद देव जी को गुरुगद्दी मिली
(A) 1479 ई० में
(B) 1539 ई० में
(C) 1546 ई० में
(D) 1670 ई० में।
उत्तर-
(B) 1539 ई० में

प्रश्न 5.
गुरु अंगद देव जी ज्योति-जोत समाये
(A) 1552 ई० में
(B) 1538 ई० में
(C) 1546 ई० में
(D) 1479 ई० में।
उत्तर-
(A) 1552 ई० में

प्रश्न 6.
जहांगीर के काल में शहीद होने वाले सिख गुरु थे
(A). गुरु अंगद देव जी
(B) गुरु अमरदास जी
(C) गुरु अर्जन देव जी
(D) गुरु राम दास जी।
उत्तर-
(C) गुरु अर्जन देव जी

प्रश्न 7.
गुरु हरकृष्ण जी गुरु गद्दी पर बैठे
(A) 1661 ई० में
(B) 1670 ई० में
(C) 1666 ई० में
(D) 1538 ई० में।
उत्तर-
(A) 1661 ई० में

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प्रश्न 8.
बालगुरु के नाम से विख्यात हैं
(A) गुरु तेग़ बहादुर जी
(B) गुरु हरकृष्ण जी
(C) गुरु गोबिन्द सिंह जी
(D) गुरु अमरदास जी।
उत्तर-
(B) गुरु हरकृष्ण जी

प्रश्न 9.
‘बाबा बकाला’ वास्तव में थे
(A) गुरु तेग़ बहादुर जी
(B) गुरु हरकृष्ण जी
(C) गुरु गोबिन्द सिंह जी
(D) गुरु अमरदास जी।
उत्तर-
(A) गुरु तेग़ बहादुर जी

प्रश्न 10.
गुरु गोबिन्द सिंह जी का जन्म हुआ
(A) कीरतपुर साहिब में
(B) पटना में
(C) दिल्ली में
(D) तरनतारन में।
उत्तर-
(B) पटना में

प्रश्न 11.
गुरु अमरदास जी ज्योति-जोत समाए
(A) 1564 ई० में
(B) 1538 ई० में
(C) 1546 ई० में
(D) 1574 ई० में।
उत्तर-
(D) 1574 ई० में।

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प्रश्न 12.
गुरुगद्दी को पैतृक रूप दिया
(A) गुरु अमरदास जी ने
(B) गुरु रामदास जी ने
(C) गुरु गोबिन्द सिंह जी ने
(D) गुरु तेग़ बहादुर जी ने।
उत्तर-
(A) गुरु अमरदास जी ने

प्रश्न 13.
आदि ग्रंथ साहिब का संकलन किया-
(A) गुरु अमरदास जी ने
(B) गुरु अर्जन देव जी ने
(C) गुरु रामदास जी ने
(D) गुरु तेग़ बहादुर जी ने।
उत्तर-
(B) गुरु अर्जन देव जी ने

प्रश्न 14.
हरमंदर साहिब का पहला ग्रन्थी नियुक्त किया गया
(A) भाई पृथिया को
(B) श्री महादेव जी को
(C) बाबा बुड्डा जी को
(D) नत्थामल जी को।
उत्तर-
(C) बाबा बुड्डा जी को

प्रश्न 15.
दिल्ली में गुरु हरराय जी किस के घर-ठहरे?
(A) राजा जय सिंह के
(B) गुरु हरगोबिन्द जी के
(C) बैरागी भक्त गीर के
(D) मुगल शासक जहांगीर के।
उत्तर-
(A) राजा जय सिंह के

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IV. सत्य-असत्य कथन

प्रश्न-सत्य/सही कथनों पर (✓) तथा असत्य/ग़लत कथनों पर (✗) का निशान लगाएं

  1. गुरु अंगद साहिब का पहला नाम भाई लहना था।
  2. अकबर गुरु अमरदास जी से मिलने गोइन्दवाल आया था।
  3. गुरु रामदास जी सिखों के छठे गुरु थे।
  4. हरमंदर साहिब की नींव गुरु रामदास जी ने रखी।
  5. गुरु अर्जन देव जी ने रावी और ब्यास नदियों के बीच तरनतारन नगर की नींव रखी।
  6. गोइन्दवाल नामक नगर की स्थापना गुरु तेग बहादुर जी ने की थी।
  7. जहांगीर को गुरु अर्जन देव जी की बढ़ती हुई ख्याति से ईर्ष्या थी।
  8. गुरु हरगोबिन्द साहिब ने अपने जीवन के अन्तिम दस वर्ष कीरतपुर में धर्म प्रचार में व्यतीत किए।
  9. गुरुद्वारा बंगला साहिब पटना में स्थित है।
  10. गुरु तेग़ बहादुर जी की शहादत 1675 ई० में हुई।

उत्तर-

  1. (✓),
  2. (✓),
  3. (✗),
  4. (✗),
  5. (✓),
  6. (✗),
  7. (✓),
  8. (✓)
  9. (✗),
  10. (✓)

V. उचित मिलान

  1. भाई लहना – गुरु रामदास जी
  2. अकबर गोइन्दवाल में मिलने आया – सूफी संत मियां मीर
  3. सिक्खों के चौथे गुरु – गुरु अंगद साहिब
  4. हरमंदर साहिब की नींव रखी – गुरु अमरदास जी

उत्तर-

  1. भाई लहना-गुरु अंगद साहिब,
  2. अकबर गोइन्दवाल में मिलने आया-गुरु अमरदास जी,
  3. सिक्खों के चौथे गुरु-गुरु रामदास जी,
  4. हरमंदर साहिब की नींव रखी-सूफी संत मियां मीर।

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छोटे उत्तर वाले प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
सिक्ख पन्थ में गुरु और सिक्ख (शिष्य) की परम्परा कैसे स्थापित हुई?
उत्तर-
गुरु नानक साहिब के 1539 में ज्योति-जोत समाने से पूर्व एक विशेष धार्मिक भाई-चारा अस्तित्व में आ चुका था। गुरु नानक देव जी इसे जारी रखना चाहते थे इसीलिए उन्होंने अपने जीवन काल में ही अपने शिष्य भाई लहना जी को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया। भाई लहना जी ने गुरु नानक साहिब के ज्योति-जोत समाने के पश्चात् गुरु अंगद देव जी के नाम से गुरुगद्दी सम्भाली। इस प्रकार गुरु और सिक्ख (शिष्यों) की परम्परा स्थापित हुई और सिक्ख इतिहास के बाद के समय में यह विचार गुरु पन्थ के सिद्धान्त के रूप में विकसित हुआ।

प्रश्न 2.
गुरु नानक साहिब ने अपने पुत्रों के होते हुए भाई लहना जी को अपना उत्तराधिकारी क्यों बनाया?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी ने अपने दो पुत्रों श्री चन्द तथा लक्षमी दास के होते हुए भी भाई लहना को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया था। उसके पीछे कुछ विशेष कारण थे

  1. आदर्श गृहस्थ जीवन का पालन गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं का मुख्य सिद्धान्त था, परन्तु उनके दोनों पुत्र गुरु जी के इस सिद्धान्त का पालन नहीं कर रहे थे। इसके विपरीत भाई लहना गुरु नानक देव जी के सिद्धान्त का पालन सच्चे मन से कर रहे थे।
  2. नम्रता तथा सेवा-भाव भी गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं का मूल मन्त्र था, परन्तु बाबा श्री चन्द नम्रता तथा सेवा-भाव दोनों ही गुणों से खाली थे। दूसरी ओर, भाई लहना नम्रता तथा सेवा-भाव की साक्षात् मूर्ति थे।
  3. गुरु नानक देव जी को वेद-शास्त्रों तथा ब्राह्मण वर्ग की सर्वोच्चता में विश्वास नहीं था। वे संस्कृत को भी पवित्र भाषा स्वीकार नहीं करते थे, परन्तु उनके पुत्र श्रीचन्द जी को संस्कृत भाषा तथा वेद-शास्त्रों में गूढ़ विश्वास था।

प्रश्न 3.
गुरु अंगद देव जी के समय में लंगर प्रथा तथा उसके महत्त्व का वर्णन करो।
उत्तर-
लंगर में सभी सिक्ख मिल कर भोजन करते थे। गुरु अंगद देव जी ने इस प्रथा को काफ़ी प्रोत्साहन दिया। लंगर प्रथा के विस्तार तथा प्रोत्साहन के कई महत्त्वपूर्ण परिणाम निकले। यह प्रथा धर्म प्रचार कार्य का एक शक्तिशाली साधन बन गई। निर्धनों के लिए एक आश्रय स्थान का कार्य करने के अतिरिक्त यह प्रचार तथा प्रसिद्धि का एक महान् यन्त्र बनी। गुरु जी के अनुयायियों द्वारा दिए गए अनुदानों, चंढ़ावे इत्यादि को इसने निश्चित रूप दिया। हिन्दुओं द्वारा अकेले में स्थापित की गई दान संस्थाएं अनेक थीं, परन्तु गुरु जी का लंगर सम्भवतः पहली संस्था थी जिसका खर्च समस्त सिक्खों के संयुक्त दान तथा भेटों से चलाया जाता था। इस बात ने सिक्खों में ऊंच-नीच की भावना को समाप्त करके एकता की भावना जागृत की।

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प्रश्न 4.
गुरु अंगद देव जी के जीवन की किस घटना से उनके अनुशासनप्रिय होने का प्रमाण मिलता है?
उत्तर-
गुरु अंगद देव जी ने सिक्खों के समक्ष अनुशासन का एक बहुत बड़ा उदाहरण प्रस्तुत किया। कहा जाता है कि सत्ता और बलवण्ड नामक दो प्रसिद्ध रबाबी उनके दरबार में रहते थे। उन्हें अपनी कला पर इतना अभिमान हो गया कि वे गुरु जी के आदेशों का उल्लंघन करने लगे। वे इस बात का प्रचार करने लगे कि गुरु जी की प्रसिद्धि केवल हमारे ही मधुर रागों और शब्दों के कारण है। इतना ही नहीं उन्होंने तो गुरु नानक देव जी की महत्ता का कारण भी मरदाना का मधुर संगीत बताया। गुरु जी ने इस अनुशासनहीनता के कारण सत्ता और बलवण्ड को दरबार से निकाल दिया। अन्त में श्रद्धालु भाई लद्धा जी की प्रार्थना पर ही उन्हें क्षमा किया गया। इस घटना का सिक्खों पर गहरा प्रभाव पड़ा। परिणामस्वरूप सिक्ख धर्म में अनुशासन का महत्त्व बढ़ गया।

प्रश्न 5.
गुरु अमरदास जी गुरु अंगद देव जी के शिष्य कैसे बने? उन्हें गुरु गद्दी कैसे मिली?
उत्तर-
गुरु अमरदास जी ने एक दिन गुरु अंगद देव जी की पुत्री बीबी अमरो के मुंह से गुरु नानक देव जी की वाणी सुनी। वे वाणी से इतने प्रभावित हुए कि तुरन्त गुरु अंगद देव जी के पास पहुंचे और उनके शिष्य बन गये। इसके पश्चात् गुरु अमरदास जी ने 1541 से 1552 ई० तक (गुरुगद्दी मिलने तक) खडूर साहिब में रह कर गुरु अंगद देव जी की खूब सेवा की। एक दिन कड़ाके की ठण्ड में अमरदास जी गुरु अंगद देव जी के स्नान के लिए पानी का घड़ा लेकर आ रहे थे। मार्ग में ठोकर लगने से वह गिर पड़े। यह देख कर एक बुनकर की. पत्नी ने कहा कि यह अवश्य निथावां (जिसके पास कोई स्थान न हो) अमरू ही होगा। इस घटना की सूचना जब गुरु अंगद देव जी को मिली तो उन्होंने अमरदास को अपने पास बुलाकर घोषणा की कि, “अब से अमरदास निथावां नहीं होगा, बल्कि अनेक निथावों का सहारा होगा।” मार्च, 1552 ई० में गुरु अंगद देव जी ने अमरदास जी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त कर दिया। इस प्रकार गुरु अमरदास जी सिक्खों के तीसरे गुरु बने।

प्रश्न 6.
गुरु अमरदास जी के समय में लंगर प्रथा के विकास का वर्णन करो।
उत्तर-
गुरु अमरदास जी ने लंगर के लिए कुछ विशेष नियम बनाये। अब कोई भी व्यक्ति लंगर में भोजन किए बिना गुरु जी से नहीं मिल सकता था। कहा जाता है कि सम्राट अकबर को गुरु जी के दर्शन करने से पहले लंगर में भोजन करना पड़ा था। गुरु जी का लंगर प्रत्येक जाति, धर्म और वर्ग के लोगों के लिए खुला था। लंगर में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा शूद्र सभी जातियों के लोग एक ही पंक्ति में बैठकर भोजन करते थे। इससे जाति-पाति तथा रंग-रूप के भेद-भावों को बड़ा धक्का लगा और लोगों में समानता की भावना का विकास हुआ। परिणामस्वरूप सिक्ख एकता के सूत्र में बंधने लगे।

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प्रश्न 7.
गुरु अमरदास जी के समय में मंजी प्रथा के विकास पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
मंजी प्रथा की स्थापना गुरु अमरदास जी ने की थी। उनके समय में सिक्खों की संख्या काफी बढ़ चुकी थी। परन्तु गुरु जी की आयु अधिक होने के कारण यह बहुत कठिन हो गया कि वे एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाकर अपनी शिक्षाओं का प्रचार करें। अत: उन्होंने अपने सारे आध्यात्मिक प्रदेश को 22 भागों में बांट दिया। इनमें से प्रत्येक भाग को ‘मंजी’ कहा जाता था। प्रत्येक मंजी छोटे-छोटे स्थानीय केन्द्रों में बंटी हुई थी जिन्हें पीड़ियां (Piris) कहते थे। मंजी प्रणाली का सिक्ख धर्म के इतिहास में विशेष महत्त्व है। डॉ० गोकुल चन्द नारंग के शब्दों में, “गुरु जी के इस कार्य ने सिक्ख धर्म की नींव सुदृढ़ करने तथा देश के सभी भागों में प्रचार कार्य को बढ़ाने में विशेष योगदान दिया होगा।”

प्रश्न 8.
“गुरु अमरदास जी एक महान् समाज सुधारक थे।” इस कथन के पक्ष में कोई चार तर्क दीजिए।
उत्तर-
गुरु अमरदास जी ने निम्नलिखित महत्त्वपूर्ण सामाजिक सुधार किए-

  1. गुरु अमरदास जी ने जाति मतभेद का खण्डन किया। गुरु जी का विश्वास था कि जाति मतभेद परमात्मा की इच्छा के विरुद्ध है। इसलिए गुरु जी के लंगर में जाति-पाति का कोई भेद-भाव नहीं रखा जाता था।
  2. उस समय सती प्रथा जोरों से प्रचलित थी। गुरु जी ने इस प्रथा के विरुद्ध जोरदार आवाज़ उठाई।
  3. गुरु जी ने स्त्रियों में प्रचलित पर्दे की प्रथा की भी घोर निन्दा की। वे पर्दे की प्रथा को समाज की उन्नति के मार्ग में एक बहुत बड़ी बाधा मानते थे।
  4. मुरु अमरदास जी नशीली वस्तुओं के सेवन के भी घोर विरोधी थे। उन्होंने अपने अनुयायियों को सभी नशीली वस्तुओं से दूर रहने का निर्देश दिया।

प्रश्न 9.
पंथ के विकास में गुरु अर्जन देव जी के योगदान की चर्चा कीजिए।
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी सिक्खों के पांचवें गुरु थे। उन्होंने सिक्ख धर्म के विकास के लिए अनेक कार्य किये

  1. उन्होंने अमृतसर में हरमंदर साहिब का निर्माण कार्य पूरा करवाया।
  2. उन्होंने तरनतारन और करतारपुर नगरों की नींव रखी।
  3. उन्होंने श्री गुरु ग्रन्थ साहिब की बीड़ तैयार की और उसे हरमंदर साहिब में स्थापित किया। उन्होंने बाबा बुड्डा जी को वहां का प्रथम ग्रन्थी नियुक्त किया।
  4. सिक्ख पहले अपनी इच्छा से गुरु जी को भेंट देते थे, परन्तु अब गुरु जी ने सिक्खों से आय का दसवां भाग एकत्रित करने के लिए स्थान-स्थान पर सेवक रखे। इन सेवकों को मसन्द कहते थे।

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प्रश्न 10.
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी पर एक संक्षिप्त नोट लिखो। सिक्ख इतिहास में इसका क्या महत्त्व है?
उत्तर-
मुग़ल सम्राट अकबर के गुरु अर्जन देव जी के साथ बहुत अच्छे सम्बन्ध थे। परन्तु अकबर की मृत्यु के पश्चात् जहांगीर ने सहनशीलता की नीति को छोड़ दिया। वह उस अवसर की खोज में रहने लगा जब वह सिक्ख धर्म पर करारी चोट कर सके। इसी बीच जहांगीर के पुत्र खुसरो ने उसके विरुद्ध विद्रोह कर दिया। खुसरो पराजित होकर गुरु अर्जन देव जी के पास आया। गुरु जी ने उसे आशीर्वाद दिया। इस आरोप में जहांगीर ने गुरु अर्जन देव जी पर दो लाख रुपये जुर्माना लगा दिया। परन्तु गुरु जी ने जुर्माना देने से इन्कार कर दिया। इसलिए उन्हें बन्दी बना लिया गया और अनेक यातनाएं देकर शहीद कर दिया गया। गुरु अर्जन देव जी की शहीदी से सिक्ख भड़क उठे। वे समझ गए कि उन्हें अब अपने धर्म की रक्षा के लिए शस्त्र धारण करने पड़ेंगे।

प्रश्न 11.
आदि ग्रन्थ साहिब का सिक्ख इतिहास में क्या महत्त्व है?
उत्तर-
आदि ग्रन्थ साहिब के संकलन से सिक्ख इतिहास को एक ठोस आधारशिला मिली। यह सिक्खों के लिए पवित्र और प्रमाणिक बन गया। उनके जन्म, नामकरण, विवाह, मृत्यु आदि सभी संस्कार इसी ग्रन्थ को साक्षी मान कर सम्पन्न होने लगे। इसके अतिरिक्त आदि ग्रन्थ साहिब के प्रति श्रद्धा रखने वाले सभी सिक्खों में जातीय प्रेम की भावना जागृत हुई और वे एक अलग पंथ के रूप में उभरने लगे। आगे चल कर इसी ग्रन्थ साहिब को ‘गुरु पद’ प्रदान किया गया और सभी सिक्ख इसे गुरु मान कर पूजने लगे। आज सभी सिक्ख गुरु ग्रन्थ साहिब में संग्रहित वाणी को आलौकिक ज्ञान का भण्डार मानते हैं। उनका विश्वास है कि इसका श्रद्धापूर्वक अध्ययन करने से सच्चा आनन्द प्राप्त होता है।

प्रश्न 12.
आदि ग्रन्थ साहिब के ऐतिहासिक महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
आदि ग्रन्थ साहिब सिक्खों का पवित्र धार्मिक ग्रन्थ है। यद्यपि इसे ऐतिहासिक दृष्टिकोण से नहीं लिखा गया, तो भी इसका अत्यन्त ऐतिहासिक महत्त्व है। इसके अध्ययन से हमें 16वीं तथा 17वीं शताब्दी के पंजाब के राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक तथा सांस्कृतिक जीवन की अनेक बातों का पता चलता है। गुरु नानक देव जी ने अपनी वाणी में लोधी शासन तथा पंजाब के लोगों पर बाबर द्वारा किये गये अत्याचारों की घोर निन्दा की। उस समय की सामाजिक अवस्था के विषय में पता चलता है कि देश में जाति-प्रथा जोरों पर थी, नारी का कोई आदर नहीं था तथा समाज में अनेक व्यर्थ के रीति-रिवाज प्रचलित थे। इसके अतिरिक्त धर्म माम की कोई चीज नहीं रही थी। गुरु नानक देव जी ने स्वयं लिखा है “न कोई हिन्दू है, न कोई मुसलमान” अर्थात् दोनों ही धर्मों के लोग पथ भ्रष्ट हो चुके थे।

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प्रश्न 13.
किन्हीं चार परिस्थितियों का वर्णन करो जो गुरु अर्जन देव जी की शहीदी के लिए उत्तरदायी थीं।
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी के मुख्य कारण निम्नलिखित थे —

  1. जहांगीर की धार्मिक कट्टरता-मुग़ल सम्राट जहांगीर गुरु जी से घृणा करता था। वह या तो उन्हें मारना चाहता था या फिर उन्हें मुसलमान बनने के लिए बाध्य करना चाहता था।
  2. पृथिया की शत्रुता-गुरु रामदास जी ने गुरु अर्जन देव जी की बुद्धिमत्ता से प्रभावित होकर उन्हें अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया था, परन्तु यह बात गुरु अर्जन देव जी का बड़ा भाई पृथिया सहन न कर सका। इसलिए वह गुरु साहिब के विरुद्ध षड्यन्त्र रचने लगा।
  3. गुरु जी का शाही ठाठ-बाठ-गुरु जी ने एक शानदार दरबार की स्थापना कर ली थी और वह शाही ठाठ-बाठ से रहने लगे थे। उन्होंने अब ‘सच्चा पातशाह’ की उपाधि धारण कर ली थी। मुग़ल सम्राट् जहांगीर इस बात को सहन न कर सका और उसने गुरु जी के विरुद्ध कार्यवाही करने का निश्चय कर लिया।
  4. गुरु अर्जन देव जी पर जुर्माना-धीरे-धीरे जहांगीर की धर्मान्धता चरम सीमा पर पहुंच गई। उसने विद्रोही राजकुमार खुसरो की सहायता करने के अपराध में गुरु जी पर दो लाख रुपये जुर्माना कर दिया। परंतु गुरु जी ने यह जुर्माना देने से इन्कार कर दिया। इस पर उसने गुरु जी को कठोर शारीरिक कष्ट देकर शहीद कर दिया।

प्रश्न 14.
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी की क्या प्रतिक्रिया हुई?
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी की महत्त्वपूर्ण प्रतिक्रिया हुई —

  1. गुरु अर्जन देव जी ने ज्योति-जोत समाने से पहले अपने पुत्र हरगोबिन्द के नाम यह सन्देश छोड़ा, “वह समय बड़ी तेजी से आ रहा है जब भलाई और बुराई की शक्तियों की टक्कर होगी। अतः मेरे पुत्र तैयार हो जा, आप शस्त्र पहन और अपने अनुयायियों को शस्त्र पहना।” गुरु जी के इन अन्तिम शब्दों ने सिक्खों में सैनिक भावना को जागृत कर लिया। अब सिक्ख ‘सन्त सिपाही’ बन गए जिनके एक हाथ में माला थी और दूसरे हाथ में तलवार।।
  2. गुरु जी की शहीदी से पूर्व सिक्खों तथा मुग़लों के आपसी सम्बन्ध अच्छे थे। परन्तु इस शहीदी ने सिक्खों की धार्मिक भावनाओं को भड़का दिया जिससे उनके मन में मुगल राज्य के प्रति घृणा उत्पन्न हो गई।
  3. इस शहीदी से सिक्ख धर्म को लोकप्रियता मिली। सिक्ख अब अपने धर्म के लिए अपना सर्वस्व बलिदान करने को तैयार हो गए। निःसन्देह गुरु अर्जन देव जी की शहीदी सिक्ख इतिहास में एक नया मोड़ सिद्ध हुई।

प्रश्न 15.
गुरु अर्जन देव जी के चरित्र तथा व्यक्तित्व के किन्हीं चार महत्त्वपूर्ण पहलुओं को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
पांचवें सिक्ख गुरु अर्जन देव जी उच्च कोटि के चरित्र तथा व्यक्तित्व के स्वामी थे। उनके चरित्र के चार विभिन्न पहलुओं का वर्णन इस प्रकार है —

  1. गुरु जी एक बहुत बड़े धार्मिक नेता और संगठनकर्ता थे। उन्होंने सिक्ख धर्म का उत्साहपूर्वक प्रचार किया और मसन्द प्रथा में आवश्यक सुधार करके सिक्ख समुदाय को एक संगठित रूप प्रदान किया।
  2. गुरु साहिब एक महान् निर्माता भी थे। उन्होंने अमृतसर नगर का निर्माण कार्य पूरा किया, वहां के सरोवर में हरमंदर साहिब का निर्माण करवाया और तरनतारन, हरगोबिन्दपुर आदि नगर बसाये। लाहौर में उन्होंने एक बावली बनवाई।
  3. उन्होंने ‘आदि ग्रन्थ साहिब’ का संकलन करके एक महान् सम्पादक होने का परिचय दिया।
  4. उनमें एक समाज सुधारक के भी सभी गुण विद्यमान थे। उन्होंने विधवा विवाह का प्रचार किया और नशीली वस्तुओं के सेवन को बुरा बताया। उन्होंने एक बस्ती की स्थापना करवाई जहां रोगियों को औषधियों के साथ-साथ मुफ्त भोजन तथा वस्त्र भी दिए जाते थे।

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प्रश्न 16.
किन्हीं चार परिस्थितियों का वर्णन करो जिनके कारण गुरु हरगोबिन्द जी को नवीन नीति अपनानी पड़ी।
उत्तर-
गुरु हरगोबिन्द जी ने निम्नलिखित कारणों से नवीन नीति को अपनाया

  1. मुगलों की शत्रुता तथा हस्तक्षेप-मुग़ल सम्राट् जहांगीर ने गुरु अर्जन देव जी की शहीदी के बाद भी सिक्खों के प्रति दमन की नीति जारी रखी। फलस्वरूप नए गुरु हरगोबिन्द जी के लिए सिक्खों की रक्षा करना आवश्यक हो गया और उन्हें नवीन नीति का आश्रय लेना पड़ा।
  2. गुरु अर्जन देव जी की शहीदी-गुरु अर्जन देव जी की शहीदी से यह स्पष्ट हो गया था कि यदि सिक्ख धर्म को बचाना है तो सिक्खों को माला के साथ-साथ शस्त्र भी धारण करने पड़ेंगे। इसी उद्देश्य से गुरु जी ने ‘नवीन नीति’ अपनाई।
  3. गुरु अर्जन देव जी के अन्तिम शब्द-गुरु अर्जन देव जी ने शहीदी से पहले अपने सन्देश में सिक्खों को शस्त्र धारण करने के लिए कहा था। अतः गुरु हरगोबिन्द जी ने सिक्खों को आध्यात्मिक शिक्षा देने के साथ-साथ सैनिक शिक्षा भी देनी आरम्भ कर दी।
  4. जाटों का सिक्ख धर्म में प्रवेश-जाटों के सिक्ख धर्म में प्रवेश के कारण भी गुरु हरगोबिन्द जी को नवीन नीति अपनाने पर विवश होना पड़ा। ये लोग स्वभाव से ही स्वतन्त्रता प्रेमी थे और युद्ध में उनकी विशेष रुचि थी।

प्रश्न 17.
गुरु हरगोबिन्द जी के जीवन तथा कार्यों पर प्रकाश डालो।
उत्तर-
गुरु हरगोबिन्द जी सिक्खों के छठे गुरु थे। उन्होंने सिक्ख पन्थ को एक नया मोड़ दिया। –

  1. उन्होंने गुरुगद्दी पर बैठते ही दो तलवारें धारण की। एक तलवार मीरी की और दूसरी पीरी की। इस प्रकार सिक्ख गुरु धार्मिक नेता होने के साथ-साथ राजनीतिक नेता भी बन गये।
  2. उन्होंने हरमंदर साहिब के सामने एक नया भवन बनवाया। यह भवन अकाल तख्त के नाम से प्रसिद्ध है। गुरु हरगोबिन्द जी ने सिक्खों को शस्त्रों का प्रयोग करना भी सिखलाया।
  3. जहांगीर ने गुरु हरगोबिन्द जी को ग्वालियर के किले में बन्दी बना लिया। कुछ समय के पश्चात् जहांगीर को पता चल गया कि गुरु जी निर्दोष हैं। इसलिए उनको छोड़ दिया गया। परन्तु गुरु जी के कहने पर जहांगीर को उनके साथ के बन्दी राजाओं को भी छोड़ना पड़ा।
  4. गुरु जी ने मुग़लों के साथ युद्ध भी किए। मुग़ल सम्राट् शाहजहां ने तीन बार गुरु जी के विरुद्ध सेना भेजी। गुरु जी ने बड़ी वीरता से उनका सामना किया। फलस्वरूप मुग़ल विजय प्राप्त करने में सफल न हो सके।

प्रश्न 18.
सिक्ख धर्म के प्रति गुरु हरराय जी की कोई चार सेवाएं बताओ।
उत्तर-
गुरु हरराय जी ने सिक्ख धर्म के प्रचार के लिए निम्नलिखित कार्य किए

  1. वे प्रतिदिन प्रातः तथा सायंकाल को धर्म सभाएं करके सिक्ख धर्म का प्रचार करते थे। वे लोगों को धार्मिक जीवन व्यतीत करने के लिए प्रोत्साहित करते थे।
  2. उन्होंने अनेक लोगों को इस धर्म का अनुयायी बनाया। उनके नवीन शिष्यों में प्रमुख व्यक्तियों के नाम थेबैरागी भक्त गीर, भाई संगतिया, भाई गौंडा तथा भाई भगतु।
  3. उन्होंने सिक्ख धर्म के प्रचार के लिए स्थान-स्थान पर प्रचारक भेजे। उन्होंने ‘भक्त गीर’ नामक एक बैरागी साधु को अपना शिष्य बना लिया और उसका नाम भक्त भगवान् रखा। उसने भारतवर्ष में लगभग 360 गद्दियां स्थापित की। इनमें से कुछ गद्दियां आज भी मौजूद हैं।
  4. गुरु हरराय जी स्वयं भी धर्म प्रचार के लिए पंजाब में कई स्थानों पर गए और उन्होंने वहां अनेक अनुयायी बनाए।

PSEB 10th Class SST Solutions History Chapter 4 गुरु अंगद देव जी से लेकर गुरु तेग बहादुर जी तक सिक्ख गुरुओं का योगदान

बड़े उत्तर वाले प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
उन परिस्थितियों का वर्णन करो जो गुरु अर्जन देव जी की शहीदी के लिए उत्तरदायी थीं। इस शहीदी का क्या महत्त्व है?
अथवा
“गुरु अर्जन देव जी के बलिदान ने सिक्ख इतिहास के पन्ने पलट दिए।” इस कथन की पुष्टि करो।
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी उन महापुरुषों में से एक थे जिन्होंने धर्म की खातिर अपने प्राणों की आहुति दे दी। उनकी शहीदी के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं.

  1. सिक्ख धर्म का विस्तार-गुरु अर्जन देव जी के समय सिख धर्म का तेजी से विस्तार हो रहा था। कई नगरों की स्थापना, श्री हरमंदर साहिब के निर्माण तथा आदि ग्रंथ साहिब के संकलन के कारण लोगों की सिक्ख धर्म में आस्था बढ़ती जा रही थी। दसबंध प्रथा के कारण गुरु साहिब की आय में वृद्धि हो रही थी। अतः लोग गुरु अर्जन देव जी को ‘सच्चे पातशाह’ कह कर पुकारने लगे थे। मुग़ल सम्राट् जहांगीर इस स्थिति को राजनीतिक संकट के रूप में देख रहा था।
  2. जहांगीर की धार्मिक कट्टरता-1605 ई० में जहांगीर मुग़ल सम्राट् बना। यह सिक्खों के प्रति घृणा की भावना रखता था। इसलिए वह गुरु जी से घृणा करता था। वह या तो उनको मारना चाहता था और या फिर उन्हें मुसलमान बनने के लिए बाध्य करना चाहता था। अत: यह मानना ही पड़ेगा कि गुरु जी की शहीदी में जहांगीर का पूरा हाथ था।
  3. पृथिया (पिरथी चन्द) की शत्रुता-गुरु रामदास जी ने गुरु अर्जन देव जी की बुद्धिमता से प्रभावित होकर उन्हें अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया था। परन्तु यह बात गुरु अर्जन देव जी का बड़ा भाई पृथिया सहन न कर सका। उसने मुगल सम्राट अकबर से यह शिकायत की कि गुरु अर्जन देव जी एक ऐसे धार्मिक ग्रंथ (आदि ग्रंथ साहिब) की रचना कर रहे हैं, जो इस्लाम धर्म के सिद्धांतों के विरुद्ध है, परन्तु सहनशील अकबर ने गुरु जी के विरुद्ध कोई कार्यवाही न की। इसके बाद पृथिया लाहौर के गवर्नर सुलेही खां तथा वहां के वित्त मंत्री चंदुशाह से मिलकर गुरु अर्जन देव जी के विरुद्ध षड्यंत्र रचने लगा। मरने से पहले वह मुग़लों के मन में गुरु जी के विरुद्ध घृणा के बीज बो गया।
  4. नक्शबंदियों का विरोध-नक्शबंदी लहर एक मुस्लिम लहर थी जो गैर मुसलमानों को कोई भी सुविधा दिए जाने के विरुद्ध थे। इस लहर के एक नेता शेख अहमद सरहिंदी के नेतृत्व में मुसलमानों ने गुरु अर्जन देव जी के विरुद्ध सम्राट अकबर से शिकायत की। परन्तु एक उदारवादी शासक होने के कारण अकबर ने नक्शबंदियों की शिकायतों की ओर कोई ध्यान न दिया। अत: अकबर की मृत्यु के बाद नक्शबंदियों ने जहांगीर को गुरु साहिब के विरुद्ध भड़कना शुरु कर दिया।
  5. चन्दू शाह की शत्रुता-चन्दू शाह लाहौर का दीवान था। गुरु अर्जन देव जी ने उसकी पुत्री के साथ अपने पुत्र का विवाह करने से इन्कार कर दिया था। अतः उसने पहले सम्राट अकबर को तथा बाद में जहांगीर को गुरु जी के विरुद्ध यह कह कर भड़काया कि उन्होंने विद्रोही राजकुमार की सहायता की है। जहांगीर पहले ही गुरु जी के बढ़ते हुए प्रभाव को रोकना चाहता था। इसलिए वह गुरु जी के विरुद्ध कठोर पग उठाने के लिए तैयार हो गया।
  6. आदि ग्रन्थ साहिब का संकलन-गुरु जी ने आदि ग्रन्थ साहिब का संकलन किया था। गुरु जी के शत्रुओं ने जहांगीर को बताया कि आदि ग्रन्थ साहिब में इस्लाम धर्म के विरुद्ध बहुत कुछ लिखा गया है। अत: जहांगीर ने गुरु जी को आदेश दिया कि आदि ग्रन्थ साहिब में से ऐसी सभी बातें निकाल दी जाएं जो इस्लाम धर्म के विरुद्ध हों। इस पर गुरु जी ने उत्तर दिया, “आदि ग्रन्थ साहिब से हम एक भी अक्षर निकालने के लिए तैयार नहीं हैं क्योंकि इसमें हमने कोई भी ऐसी बात नहीं लिखी जो किसी धर्म के विरुद्ध हो।” कहते हैं कि यह उत्तर पाकर जहांगीर ने गुरु अर्जन देव जी से कहा कि वे इस ग्रन्थ में मुहम्मद साहिब के विषय में भी कुछ लिख दें। परन्तु गुरु जी ने जहांगीर की यह बात स्वीकार न की और कहा कि इस विषय में ईश्वर के आदेश के सिवा किसी अन्य के आदेश का पालन नहीं किया जा सकता।
  7. राजकुमार खुसरो का मामला (तात्कालिक कारण)-खुसरो जहांगीर का सबसे बड़ा पुत्र था। उसने अपने पिता के विरुद्ध विद्रोह कर दिया। जहांगीर की सेनाओं ने उसका पीछा किया। वह भाग कर गुरु अर्जन देव जी की शरण में पहुंचा। कहते हैं कि गुरु जी ने उसे आशीर्वाद दिया और उसे लंगर भी छकाया। परन्तु गुरु साहिब के विरोधियों ने जहांगीर के कान भरे कि गुरु साहिब ने खुसरो की धन से सहायता की है। इसे गुरु जी का अपराध माना गया और उन्हें बंदी बनने का आदेश दिया गया।
  8. शहीदी-गुरु साहिब को 24 मई, 1606 ई० को बंदी के रूप में लाहौर लाया गया। उपर्युक्त बातों के कारण जहांगीर की धर्मान्धता चरम सीमा पर थी। अतः उसने गुरु अर्जन देव जी को शहीद करने का आदेश जारी कर दिया। शहीदी से पहले गुरु साहिब को कठोर यातनाएं दी गईं। कहा जाता है कि उन्हें तपते लोहे पर बिठाया गया और उनके शरीर पर गर्म रेत डाली गई। 30 मई 1606 ई० को गुरु जी शहीदी को प्राप्त हुए। उन्हें शहीदों का ‘सरताज’ कहा जाता है।
    शहीदी का महत्त्व-गुरु अर्जन देव जी की शहीदी को सिक्ख इतिहास में बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है।

    1. गुरु जी की शहीदी ने सिक्खों में सैनिक भावना जागृत की। अतः शान्तिप्रिय सिक्ख जाति ने लड़ाकू जाति का रूप धारण कर लिया। वास्तव में वे ‘सन्त सिपाही’ बन गए।
    2. गुरु जी की शहीदी से पूर्व सिक्खों तथा मुगलों के आपसी सम्बन्ध अच्छे थे। परन्तु इस शहीदी ने सिक्खों की धार्मिक भावनाओं को भड़का दिया और उनके मन में मुग़ल राज्य के प्रति घृणा पैदा हो गई।
    3. इस शहीदी से सिक्ख धर्म को लोकप्रियता मिली। सिक्ख अब अपने धर्म के लिए अपना सब कुछ बलिदान करने के लिए तैयार हो गए।
      निःसन्देह गुरु अर्जन देव जी की शहीदी सिक्ख इतिहास में एक नया मोड़ सिद्ध हुई। इसने शान्तिप्रिय सिक्खों को सन्त सिपाही बना दिया। उन्होंने समझ लिया कि यदि उन्हें अपने धर्म की रक्षा करनी है तो उन्हें शस्त्र धारण करने ही पड़ेंगे।

प्रश्न 2.
उन परिस्थितियों का वर्णन करो जो गुरु तेग बहादुर जी की शहीदी के लिए उत्तरदायी थीं। सिक्ख इतिहास में इसका क्या महत्त्व है?
उत्तर-
गुरु तेग़ बहादुर जी की शहीदी निम्नलिखित कारणों से हुई.

  1. सिक्खों और मुगलों में बढ़ता हुआ विरोध-जहांगीर ने सिक्ख गुरु अर्जन देव जी को शहीद किया था। अतः सिक्खों ने आत्मरक्षा के लिए शस्त्र धारण करने आरम्भ कर दिए थे। उनके शस्त्र धारण करते ही मुग़लों तथा सिक्खों में शत्रुता इतनी गहरी हो गई जो आगे चलकर गुरु तेग़ बहादुर जी के बलिदान का कारण बनी।
  2. औरंगजेब की असहनशीलता की नीति-औरंगजेब एक कट्टर सुन्नी मुसलमान था। उसने अपनी हिन्दू जनता । पर अत्याचार करने शुरू कर दिए और उन पर अनेक प्रतिबन्ध लगा दिए। उन्हें जबरदस्ती मुसलमान बनाने का प्रयास भी किया। औरंगज़ेब द्वारा निर्दोष लोगों पर लगाए जा रहे प्रतिबन्धों ने गुरु तेग बहादुर जी के मन पर बड़ा गहरा प्रभाव डाला और उन्होंने निश्चय कर लिया कि वे अपनी जान देकर भी इन अत्याचारों से लोगों की रक्षा करेंगे। आखिर उन्होंने यही किया।
  3. सिक्ख धर्म का उत्साहपूर्ण प्रचार-गुरु नानक देव जी के पश्चात् गुरु तेग़ बहादुर जी ही सिक्खों के एक ऐसे गुरु थे जिन्होंने स्थान-स्थान पर भ्रमण करके सिक्ख मत का प्रचार किया। औरंगजेब सिक्ख धर्म के इस प्रचार को सहन न कर सका। वह मन ही मन सिक्ख गुरु तेग बहादुर जी से ईर्ष्या करने लगा।
  4. राम राय की शत्रुता-गुरु हरकृष्ण जी के भाई रामराय ने औरंगजेब से शिकायत की कि गुरु जी का धर्म प्रचार का कार्य राष्ट्र हित के विरुद्ध है। उसकी बातों में आकर औरंगजेब ने गुरु जी को सफ़ाई पेश करने के लिए मुग़ल दरबार में (दिल्ली) बुलाया और यहां गुरु जी ने अपने प्राणों की आहुति दे दी।
  5. कश्मीरी ब्राह्मणों की पुकार-कुछ कश्मीरी ब्राह्मण मुसलमानों के अत्याचारों से तंग आ चुके थे। गुरु साहिब ने महसूस किया कि धर्म को बलिदान की आवश्यकता है। अतः उन्होंने ब्राह्मणों से कहा कि वे औरंगजेब से जाकर कहें कि “पहले गुरु तेग़ बहादुर को मुसलमान बनाओ, फिर हम सब लोग भी आपके धर्म को स्वीकार कर लेंगे।”

इस प्रकार आत्म-बलिदान की भावना से प्रेरित होकर गुरु तेग़ बहादुर जी दिल्ली की ओर चल पड़े जहां उन्हें शहीद कर दिया गया। महत्त्व-इतिहास में गुरु तेग़ बहादुर साहिब की शहीदी के महत्त्व को निम्नलिखित बातों के आधार पर जाना जा सकता है

  1. धर्म की रक्षा के लिए बलिदान की परम्परा को बनाये रखना-गुरु तेग़ बहादुर जी ने धर्म की रक्षा के लिए अपने जीवन का बलिदान देकर गुरु साहिबान द्वास बलिदान की परम्परा को बनाए रखा।
  2. मुग़लों के अत्याचारों के विरुद्ध घृणा तथा बदले की भावनाएं-गुरु तेग बहादुर जी के बलिदान से सारे पंजाब में मुग़लों के अत्याचारों के विरुद्ध घृणा तथा बदले की भावनाएं भड़क उठीं।
  3. खालसा की स्थापना-गुरु तेग़ बहादुर जी के बलिदान से गुरु गोबिन्द सिंह जी इस परिणाम पर पहुंचे कि जब तक भारत में मुग़ल राज्य रहेगा, तब तक धार्मिक अत्याचार समाप्त नहीं होंगे। मुग़ल अत्याचारों का सामना करने के लिए उन्होंने 1699 ई० में आनन्दपुर साहिब में खालसा की स्थापना की।
  4. मुगल साम्राज्य को धक्का-गुरु तेग बहादुर जी के बलिदान ने मुग़ल साम्राज्य की नींव हिला दी। गुरु गोबिन्द सिंह जी के वीर खालसा मुग़ल साम्राज्य से निरन्तर जूझते रहे जिससे मुग़लों की शक्ति को भारी धक्का लगा।

PSEB 10th Class SST Solutions History Chapter 4 गुरु अंगद देव जी से लेकर गुरु तेग बहादुर जी तक सिक्ख गुरुओं का योगदान

गुरु अंगद देव जी से लेकर गुरु तेग बहादुर जी तक सिक्ख गुरुओं का योगदान PSEB 10th Class History Notes

  • गुरु अंगद देव जी-दूसरे सिक्ख गुरु अंगद देव जी ने गुरु नानक साहिब की वाणी एकत्रित की और इसे गुरुमुखी लिपि में लिखा। उनका यह कार्य गुरु अर्जन साहिब द्वारा संकलित ‘ग्रन्थ साहिब’ की तैयारी का पहला चरण सिद्ध हुआ। गुरु अंगद देव जी ने स्वयं भी गुरु नानक देव जी के नाम से वाणी की रचना की। इस प्रकार उन्होंने गुरु पद की एकता को दृढ़ किया। संगत और पंगत की संस्थाएं गुरु अंगद साहिब के अधीन भी जारी रहीं।
  • गुरु अमरदास जी-गुरु अमरदास जी सिक्खों के तीसरे गुरु थे। वह 22 वर्ष तक गुरुगद्दी पर रहे। वह खडूर साहिब से गोइन्दवाल चले गए। वहां उन्होंने एक बावली बनवाई जिसमें उनके सिक्ख (शिष्य) धार्मिक अवसरों पर स्नान करते थे। गुरु अमरदास जी ने विवाह की एक साधारण विधि प्रचलित की और इसे आनन्द-कारज का नाम दिया। उनके समय में सिक्खों की संख्या काफ़ी बढ़ गई।
  • गुरु रामदास जी-चौथे गुरु रामदास जी ने रामदासपुर (आधुनिक अमृतसर) में रह कर प्रचार कार्य आरम्भ किया। इसकी नींव गुरु अमरदास जी के जीवन-काल के अन्तिम वर्षों में रखी गई थी। श्री रामदास जी ने रामदासपुर में एक बहुत बड़ा सरोवर बनवाया जो अमृतसर अर्थात् अमृत के सरोवर के नाम से प्रसिद्ध हुआ। उन्हें अमृतसर तथा सन्तोखसर नामक तालाबों की खुदाई के लिए काफ़ी धन की आवश्यकता थी। इसलिए उन्होंने मसन्द प्रथा का श्रीगणेश किया। उन्होंने गुरुगद्दी को पैतृक रूप भी प्रदान किया।
  • गुरु अर्जन देव जी-गुरु अर्जन देव जी सिक्खों के पांचवें गुरु थे। आपने अमृतसर में हरमंदर साहिब का निर्माण कार्य पूरा करवाया। आपने तरनतारन और करतारपुर नगरों की नींव रखी। आपने श्री गुरु ग्रन्थ साहिब की बीड़ तैयार की और उसे हरमंदर साहिब में स्थापित किया। बाबा बुड्डा जी को वहां का प्रथम ग्रन्थी नियुक्त किया गया। गुरु साहिब ने धर्म की रक्षा के लिए अपनी शहीदी देकर सिक्ख धर्म को सुदृढ़ बनाया।
  • गुरु हरगोबिन्द जी-गुरु हरगोबिन्द जी सिक्खों के छठे गुरु थे। उन्होंने गुरुगद्दी पर बैठते ही ‘नवीन नीति’ अपनाई। इसके अनुसार वह सिक्खों के धार्मिक नेता होने के साथ-साथ राजनीतिक नेता भी बन गये। उन्होंने हरमंदर साहिब के सामने एक नया भवन बनवाया। यह भवन अकाल तख्त के नाम से प्रसिद्ध है। गुरु हरगोबिन्द जी ने सिक्खों को शस्त्रों का प्रयोग करना भी सिखलाया।
  • श्री गुरु हरराय जी तथा श्री हरकृष्ण जी-गुरु हरगोबिन्द जी के पश्चात् श्री गुरु हरराय जी तथा श्री गुरु हरकृष्ण जी ने सिक्खों का धार्मिक नेतृत्व किया। उनका समय सिक्ख इतिहास में शान्तिकाल कहलाता है।
  • श्री गुरु तेग बहादुर जी-नौवें गुरु तेग़ बहादुर जी गुरु नानक देव जी की भान्ति शान्त स्वभाव, गुरु अर्जन देव जी की भान्ति आत्म-त्यागी तथा पिता गुरु हरगोबिन्द जी की भान्ति साहसी तथा निर्भीक थे। उन्होंने बड़ी निर्भीकता से सिक्ख धर्म का नेतृत्व किया। उन्होंने अपनी शहीदी द्वारा सिक्ख धर्म में एक नवीन क्रान्ति पैदा कर दी।
  • मसन्द प्रथा-‘मसन्द’ फ़ारसी भाषा के शब्द मसनद से लिया गया है। इसका अर्थ है-‘उच्च स्थान’। गुरु रामदास जी द्वारा स्थापित इस संस्था को गुरु अर्जन देव जी ने संगठित रूप दिया। परिणामस्वरूप उन्हें सिक्खों से निश्चित धन-राशि प्राप्त होने लगी।
  • आदि ग्रन्थ का संकलन-आदि ग्रन्थ साहिब का संकलन कार्य गुरु अर्जन देव जी ने किया। गुरु अर्जन देव जी लिखवाते जाते थे और उनके प्रिय शिष्य भाई गुरदास जी लिखते जाते थे। आदि ग्रन्थ साहिब का संकलन कार्य 1604 ई० में सम्पूर्ण हुआ।
  • मीरी तथा पीरी-गुरु हरगोबिन्द साहिब ने ‘मीरी’ और ‘पीरी’ नामक दो तलवारें धारण कीं। उनके द्वारा धारण की गई ‘मीरी’ तलवार सांसारिक विषयों में नेतृत्व का प्रतीक थी। ‘पीरी’ तलवार आध्यात्मिक विषयों में नेतृत्व का प्रतीक थी।

PSEB 7th Class Agriculture Solutions Chapter 5 फसलों में खरपतवार और उनकी रोकथाम

Punjab State Board PSEB 7th Class Agriculture Book Solutions Chapter 5 फसलों में खरपतवार और उनकी रोकथाम Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 7 Agriculture Chapter 5 फसलों में खरपतवार और उनकी रोकथाम

PSEB 7th Class Agriculture Guide फसलों में खरपतवार और उनकी रोकथाम Textbook Questions and Answers

(क) एक-दो शब्दों में उत्तर दें:

प्रश्न 1.
धान-गेहूँ फसली चक्र वाले खेतों में आने वाले किसी एक खरपतवार का नाम लिखो।
उत्तर-
गुल्ली डंडा।

प्रश्न 2.
गेहूँ में चौड़ी पत्ती वाला कौन-सा खरपतवार आता है ?
उत्तर-
मैना, मैनी, तकला, जंगली पालक।

प्रश्न 3.
धान में कौन-सा खरपतवार आता है ?
उत्तर-
सवांक, मोथा, घरिल्ला, सनी।

PSEB 7th Class Agriculture Solutions Chapter 5 फसलों में खरपतवार और उनकी रोकथाम

प्रश्न 4.
फसल और खरपतवार उगने से पहले कौन-से खरपतवार-नाशक का उपयोग किया जाता है ?
उत्तर-
ट्रेफलान।

प्रश्न 5.
खड़ी फसल में जब खरपतवार उगे हों, तब कौन-से खरपतवार-नाशक का उपयोग किया जाता है ?
उत्तर-
टोपिक।

प्रश्न 6.
सुरक्षित हुड लगाकर कौन-से खरपतवार-नाशक का प्रयोग किया जाता है ?
उत्तर-
राऊंड अप।

PSEB 7th Class Agriculture Solutions Chapter 5 फसलों में खरपतवार और उनकी रोकथाम

प्रश्न 7.
गुडाई में काम आने वाले दो खेती यंत्रों के नाम लिखो।
उत्तर-
खुरपा, कसौला, व्हील हो, त्रिफाली।

प्रश्न 8.
खरपतवार को काबू करने के लिए उपयोग में आने वाले कोई एक काश्तकारी ढंग का नाम लिखो।
उत्तर-
फसलों की अदला-बदली।

प्रश्न 9.
खरपतवार-नाशकों के छिड़काव के लिए उपयोग में आने वाली नोज़ल का नाम लिखो।
उत्तर-
फ्लैट फैन या फ्लड जैट नोज़ल।

PSEB 7th Class Agriculture Solutions Chapter 5 फसलों में खरपतवार और उनकी रोकथाम

प्रश्न 10.
क्या एक खेत में लगातार एक ही किस्म के खरपतवार-नाशक का छिड़काव करना चाहिए ?
उत्तर-
एक ही किस्म के खरपतवार-नाशकों का छिड़काव नहीं करना चाहिए।

(ख) एक-दो वाक्यों में उत्तर दें:

प्रश्न 1.
खरपतवार क्या होते हैं ?
उत्तर-
मुख्य फसल में उगे अवांछित, पौधे जो फसल की काश्त के साथ उग जाते हैं तथा फसल का भोजन, पानी तथा प्रकाश खींच लेते हैं उन्हें खरपतवार कहा जाता है।

प्रश्न 2.
घास वाले खरपतवारों की पहचान कैसे की जाती है ?
उत्तर-
घास वाले खरपतवारों के पत्ते लम्बे, पतले तथा नाडियां सीधी लम्बी-लम्बी होती हैं।

PSEB 7th Class Agriculture Solutions Chapter 5 फसलों में खरपतवार और उनकी रोकथाम

प्रश्न 3.
चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों की पहचान कैसे की जाती है ?
उत्तर-
इन खरपतवारों के पत्ते चौड़े होते हैं तथा नाड़ियों का समूह होता है।

प्रश्न 4.
फसलों में खरपतवारों की किस्म और बहुलता किस पर निर्भर करती है ?
उत्तर-
खरपतवारों की किस्म तथा बहुलता फसली चक्र, खादों की मात्रा, पानी के साधन, मिट्टी की किस्म पर निर्भर करती है।

प्रश्न 5.
गुडाई करने में कौन-सी मुश्किलें आती हैं ?
उत्तर-
गुडाई महंगी पड़ती है, समय भी अधिक लगता है, कई बार गुडाई करने के लिए मज़दूर नहीं मिलते तथा सावन की ऋतु में वर्षा के कारण गुडाई करनी संभव नहीं होती।

PSEB 7th Class Agriculture Solutions Chapter 5 फसलों में खरपतवार और उनकी रोकथाम

प्रश्न 6.
खरीफ के खरपतवार बड़ी समस्या क्यों पैदा करते हैं ?
उत्तर-
खरीफ की फसलों के समय वर्षा अधिक होने के कारण पानी की कमी नहीं आती तथा खरपतवार बढ़िया ढंग से फलते-फूलते हैं, इसलिए एक बड़ी समस्या पैदा करते हैं।

प्रश्न 7.
खरपतवार-नाशकों का छिड़काव कैसे मौसम में करना चाहिए ?
उत्तर-
खरपतवार-नाशकों का छिड़काव शांत मौसम वाले दिन करना चाहिए तथा जब हवा न चलती हो।

प्रश्न 8.
गेहूँ में गुल्ली डंडे की रोकथाम काश्तकारी ढंग से कैसे की जाती है ?
उत्तर-
गेहूँ में गुल्ली डंडे की रोकथाम काश्तकारी ढंग से की जा सकती है। इसमें फसलों की अदला-बदली कर के इस खरपतवार की रोकथाम की जा सकती है।

PSEB 7th Class Agriculture Solutions Chapter 5 फसलों में खरपतवार और उनकी रोकथाम

प्रश्न 9.
रबी की फसलों में आने वाले खरपतवारों के नाम लिखो।
उत्तर-
रबी की फसलों में गुल्ली डंडा, जौंघर, जंगली जवी, मैना, मैनी, जंगली पालक, कंटीली पालक, बटन बूटी, जंगली मटरी, बिल्ली बूटी, तकला, पित्त पापड़ा आदि।

प्रश्न 10.
खरपतवार फसलों से कौन-कौन से ऊर्जा-स्रोतों के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं ?
उत्तर-
खरपतवार खादों, पानी, सूर्य के प्रकाश, भोजन आदि ऊर्जा स्रोतों के लिए फसलों से प्रतिस्पर्धा (मुकाबला) करते हैं।

(ग) पाँच-छ: वाक्यों में उत्तर दें:

प्रश्न 1.
फसलों में खरपतवारों की रोकथाम करना क्यों ज़रूरी है ?
उत्तर-
फसलों में कुछ अवांछित तथा अनावश्यक पौधे अपने आप उग पड़ते हैं जिन्हें खरपतवार कहा जाता है। इनका खेतों में मुख्य फसल के साथ उगना हानिकारक होता है। यह मुख्य फसल के साथ खादों, पानी, सूर्य के प्रकाश पोषक तत्त्वों को लेने के लिए मुकाबला करते हैं। खरपतवारों के कारण मुख्य फसलों की गुणवत्ता पर खराब प्रभाव पड़ता है तथा इसकी पैदावार भी कम हो जाती है। इसलिए फसलों में नदीनों (खरपतवारों) की रोकथाम करना ज़रूरी है।

PSEB 7th Class Agriculture Solutions Chapter 5 फसलों में खरपतवार और उनकी रोकथाम

प्रश्न 2.
काश्तकारी ढंग से खरपतवारों को कैसे काबू किया जा सकता है ?
उत्तर-
खरपतवारों को काबू करने के लिए कई बार काश्तकारी ढंग का प्रयोग किया जाता है। कई खरपतवार एक ही फसल के बोने पर आते हैं, ऐसा इसलिए होता है कि खरपतवार की प्राथमिक आवश्यकताएं इसी मुख्य फसल से पूरी होती हैं। जैसे गेहूँ की फसल में गुल्ली डंडा। ऐसे खरपतवार की रोकथाम के लिए फसलों की अदला-बदली करके बुआई की जाती है। अधिक फैलने वाली फसलों को बोकर तथा उनकी दोहरी रौणी बोई जाए तो भी खरपतवार कम होते हैं। खाद को छींटा (छट्टा) की बजाय पोरा करने से, दोनों ओर बिजाई करने से, सियाड़ों में फासला घटाने से भी नदीनों पर काबू करने में सहायता मिलती है।

प्रश्न 3.
खरपतवार-नाशक क्या होते हैं और इनके उपयोग के क्या लाभ हैं ?
उत्तर-
यह रासायनिक दवाइयां होती हैं, जो खरपतवारों को मार देती हैं । यह खरपतवारों की रोकथाम का एक प्रभावशाली ढंग है। इसमें फसल में खरपतवार जमने से पहले ही मारे जा सकते हैं, इस तरह यह फसल के साथ खाद, हवा, पानी, प्रकाश, पोषक तत्त्वों के लिए प्रतिस्पर्धा करने के योग्य नहीं रहते तथा इस तरह फसल की पैदावार भी बढ़ती है और गुणवत्ता भी परन्तु इन दवाइयों का अनावश्यक प्रयोग नहीं करना चाहिए।

प्रश्न 4.
उपयोग के समय के अनुसार खरपतवार-नाशकों की कितनी श्रेणियां हैं ?
उत्तर-
उपयोग के समय के अनुसार खरपतवार-नाशक की चार श्रेणियां होती हैं—

  1. बुआई के लिए खेत तैयार करके फसल बोने से पहले उपयोग
  2. फसल उगने से पहले उपयोग
  3. खड़ी फसल में उपयोग
  4. खाली स्थान पर उपयोग।

PSEB 7th Class Agriculture Solutions Chapter 5 फसलों में खरपतवार और उनकी रोकथाम

प्रश्न 5.
खरपतवार-नाशकों का छिड़काव करते समय कौन-सी सावधानियां रखनी चाहिएं ?
उत्तर-
खरपतवार-नाशक के छिड़काव के समय सावधानियां—

  1. खरपतवारों के प्रयोग के समय हाथों में दस्ताने अवश्य पहनने चाहिएं।
  2. खरपतवार दवाइयों के छिड़काव के लिए सदा फ्लैट फैन या फ्लड जैट नोज़ल का प्रयोग करना चाहिए।
  3. खरपतवार-नाशकों का प्रयोग शांत मौसम वाले दिन ही करना चाहिए।
  4. फसल उगने से पहले प्रयोग किए जाने वाले खरपतवार-नाशकों का प्रयोग सुबह या शाम के समय ही करना चाहिए, दोपहर के समय नहीं करना चाहिए।
  5. खरपतवार-नाशकों को बच्चों से दूर ताले में रखना चाहिए।
  6. खरपतवार-नाशकों को खरीदते समय दुकानदार से पक्का बिल अवश्य ही लें।
  7. खरपतवार-नाशकों का घोल छिड़काव वाले पम्प में डालने से पहले ही तैयार करना चाहिए।
  8. खरपतवार-नाशकों का छिड़काव सारी फसल के ऊपर एक जैसा करना चाहिए।

Agriculture Guide for Class 7 PSEB फसलों में खरपतवार और उनकी रोकथाम Important Questions and Answers

बहुत छोटे उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
घास वाले खरपतवारों में नाड़ियां कैसी होनी चाहिए ?
उत्तर-
लम्बी तथा सीधी।

प्रश्न 2.
चौड़े पत्ते वाले खरपतवार की नाड़ियां कैसी होती हैं ?
उत्तर-
इनमें नाड़ियों का समूह होता है।

PSEB 7th Class Agriculture Solutions Chapter 5 फसलों में खरपतवार और उनकी रोकथाम

प्रश्न 3.
खरीफ की फसल में खरपतवारों के कारण पैदावार कितनी कम हो जाती है ?
उत्तर-
20-25%.

प्रश्न 4.
कद् किए धान के खेत में कुछ खरपतवार बताओ।
उत्तर-
संवाक, मोथा, कनकी।

प्रश्न 5.
खरीफ की कुछ अन्य फसलों में खरपतवार बताएं।
उत्तर-
खब्बल घास, कौआ मक्की, सलारा, मकरा।

PSEB 7th Class Agriculture Solutions Chapter 5 फसलों में खरपतवार और उनकी रोकथाम

प्रश्न 6.
धान फसली चक्र वाले खेतों में कौन-सा खरपतवार अधिक होता है ?
उत्तर-
गुल्ली डंडा/सिट्टी खरपतवार।

प्रश्न 7.
रबी में दूसरे फसली चक्रों में कौन-से खरपतवार होते हैं ?
उत्तर-
जौंधर/जंगली जई आदि।

प्रश्न 8.
गेहूँ में कौन-से खरपतवार देखे जा सकते हैं ?
उत्तर-
मैना, मैनी, जंगली पालक, कंटीली पालक, तकला आदि।

PSEB 7th Class Agriculture Solutions Chapter 5 फसलों में खरपतवार और उनकी रोकथाम

प्रश्न 9.
खरपतवारों की रोकथाम के लिए कितने ढंग हैं ?
उत्तर-
तीन, गुडाई, काश्तकारी ढंग, खरपतवार-नाशक दवाइयां।

प्रश्न 10.
खरपतवार पैदा होने से पहले प्रयोग किए जाने वाले खरपतवारनाशकों के नाम बताओ।
उत्तर-
ट्रेफ्लान।

प्रश्न 11.
बुवाई से 24 घण्टे के अन्दर-अन्दर छिड़काव किए जाने वाले नदीननाशक बताओ।
उत्तर-
स्टोंप।

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प्रश्न 12.
खड़ी फसल में नदीनों के लिए कौन-सी दवाई का प्रयोग किया जाता है?
उत्तर-
टोपिक।

प्रश्न 13.
सुरक्षित हुड्ड लगा कर कौन-सा खरपतवार-नाशक प्रयोग किया जाता
उत्तर-
राऊंड अप।

प्रश्न 14.
फसल उगने से पहले खरपतवार-नाशक किस समय छिड़कना चाहिए ?
उत्तर-
सुबह या शाम के समय।

PSEB 7th Class Agriculture Solutions Chapter 5 फसलों में खरपतवार और उनकी रोकथाम

छोटे उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
धान-गेहूँ फसली चक्र में गुल्ली डंडा के फलने-फूलने का क्या कारण
उत्तर-
धान-गेहूँ का फसली चक्र इसके फलने-फूलने के लिए अनुकूल परिस्थिति देता है।

प्रश्न 2.
खरपतवार की गुडाई करके काबू करने के लिए कौन-से यन्त्र प्रयोग किए जाते हैं ?
उत्तर-
खुरपा, कसौला, व्हील हो, त्रिफाली या ट्रैक्टर से चलने वाले हल, टिल्लर।

प्रश्न 3.
खाद डालने का ढंग, बुआई का ढंग आदि से खरपतवारों की रोकथाम करने का क्या ढंग हैं ?
उत्तर-
खाद को छींटे के स्थान पर पोरे से डालना, दोनों तरफ बुआई करना, सियाडों में फासला कम करना आदि से खरपतवारों की रोकथाम की जा सकती है।

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प्रश्न 4.
खरपतवार-नाशक क्या हैं ?
उत्तर-
खरपतवार-नाशक रासायनिक दवाइयां हैं जो खरपतवारों को मार देती हैं, परन्तु मुख्य फसल को नुकसान नहीं करतीं।

प्रश्न 5.
खरपतवार-नाशकों का प्रयोग किसकी सिफ़ारिश से तथा कितना तथा कब करना चाहिए ?
उत्तर-
इन दवाइयों का प्रयोग पी०ए०यू० लुधियाना की सिफारिशों के अनुसार आवश्यकता पड़ने पर तथा उचित मात्रा में समय पर ही करना चाहिए। इनके अनावश्यक उपयोग से बचना चाहिए।

बड़े उत्तर वाला प्रश्न

प्रश्न-
खरपतवारों की रोकथाम के दो ढंग विस्तारपूर्वक बताएं।
उत्तर-
खरपतवारों की रोकथाम के लिए गुडाई, काश्तकारी ढंग, खरपतवार-नाशकों का प्रयोग किया जाता है।
गुडाई-खरपतवारों को गुडाई करके समाप्त किया जा सकता है। इस कार्य के लिए खुरपा, कसौली, व्हील हो, त्रिफाली, ट्रैक्टर से चलने वाले हल का प्रयोग किया जाता है। परन्तु गुडाई सही समय तथा सही ढंग से करनी चाहिए। इस ढंग के कुछ नुकसान भी हैं; जैसे-कई बार गुडाई करने के लिए मज़दूर नहीं मिलते, वर्षा में गुडाई करनी मुश्किल होती है। यह ढंग महंगा है तथा समय भी अधिक लगता है।

खरपतवार-नाशकों का प्रयोग-ये रासायनिक दवाइयां हैं जो खरपतवारों को नष्ट कर देती हैं परन्तु मुख्य फसल को हानि नहीं पहुंचाते। भिन्न-भिन्न फसलों में भिन्न-भिन्न खरपतवारों के लिए तथा खरपतवारों के उगने के समय के अनुसार भिन्न-भिन्न खरपतवारनाशकों का प्रयोग किया जाता है। यह दवाइयां कुछ सीमा तक ज़हरीली होती हैं तथा इनका प्रयोग पी.ए.यू. लुधियाना की सिफारिशों के अनुसार ही आवश्यकता अनुसार करना चाहिए। एक ही खरपतवार-नाशक का एक ही खेत में लगातार प्रयोग नहीं करना चाहिए।

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फसलों में खरपतवार और उनकी रोकथाम PSEB 7th Class Agriculture Notes

  • मुख्य फसल में उगे अवांछित पौधे जो फसल की काश्त के साथ उगते हैं तथा भोजन खाते हैं, उन्हें खरपतवार कहते हैं।
  • खरपतवार के कारण फसल की पैदावार कम होती है तथा इसकी गुणवत्ता पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है।
  • खरपतवार को दो भागों में बांटा गया है।
  • घास वाले खरपतवार के पत्ते लम्बे, पतले तथा नाड़ियां सीधी तथा लम्बी होती
  • चौड़े पत्तों वाले खरपतवार के पत्ते चौड़े तथा नाड़ियों का समूह होता है।
  • सावन में वर्षा आम होती रहती है इसके कारण खरपतवार एक बड़ी समस्या पैदा करते हैं। इनको पानी की कोई कमी नहीं होती तथा अधिक फलते-फूलते हैं।
  • खरीफ ऋतु में कद्रू किए धान के खेत में खरपतवार हैं-घरिल्ला, सावंकी, सवांक, सनी, कनकी, मोंथा आदि।
  • खरीफ ऋतु के अन्य खरपतवार हैं-बलवती घास, कुत्ता घास, मकरा, मधाना, अरैकनी घास, खब्बल घास, कौआ मक्की, बरु, डिला, सलारा, माकरू बेल
    चौलाई, तांदला आदि।
  • रबी की फसलों में गुल्ली डंडा, जौंधर, जंगली जवी, मैना, मैनी, जंगली पालक, कंटीली पालक, बटन बूटी, जंगली मटरी, बिल्ली बूटी, तकला, पित्त पापड़ा आदि।
  • गुल्ली डंडा गेहूँ में बहुत नुकसान करता है।
  • खरपतवार की रोकथाम के ढंग हैं-गुडाई करना, फसलों की अदला-बदली, खरपतवार-नाशक दवाइयों का प्रयोग।
  • स्टौंप जैसे खरपतवारनाशक का प्रयोग बुवाई के 24 घण्टे के अन्दर-अन्दर किया जाता है।
  • टोपिक जैसे खरपतवारनाशक का प्रयोग जब खड़ी फसल में खरपतवार उगे हों, तब किया जाता है।
  • राऊंड अप जैसे खरपतवारनाशक का प्रयोग नोज़ल को ढककर सीधे ही खरपतवार पर किया जाता है।
  • कई खरपतवारनाशक ज़हरीले होते हैं। इसलिए इनका प्रयोग करते समय बहुत सावधानी रखनी चाहिए।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 5 संस्कृति

Punjab State Board PSEB 11th Class Sociology Book Solutions Chapter 5 संस्कृति Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Sociology Chapter 5 संस्कृति

पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न (Textual Questions)

I. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 1-15 शब्दों में दीजिए :

प्रश्न 1.
संस्कृति के मूल तत्त्वों को बताओ।
उत्तर-
परंपराएं, सामाजिक परिमाप तथा सामाजिक कीमतें संस्कृति के मूल तत्त्व हैं।

प्रश्न 2.
संस्कृति ‘लोगों के रहने का सम्पूर्ण तरीका’ है, किसका कथन है ?
उत्तर-
यह शब्द क्लाईड कल्ककोहन (Clyde Kluckhohn) के हैं।

प्रश्न 3.
किस तरीके से अनपढ़ समाज में संस्कृति को हस्तांतरित किया जाता है ? .
उत्तर-
क्योंकि संस्कृति सीखा हुआ व्यवहार है, इसलिए अनपढ़ समाजों में संस्कृति को सीख कर हस्तांतरित किया जाता है।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 5 संस्कृति

प्रश्न 4.
संस्कृति के वर्गीकरण को विस्तृत रूप में लिखिए ?
उत्तर-
संस्कृति के दो भाग होते हैं-भौतिक संस्कृति तथा अभौतिक संस्कृति।

प्रश्न 5.
अभौतिक संस्कृति के कुछ उदाहरणों के नाम लिखो ?
उत्तर-
विचार, परिमाप, कीमतें, आदतें, आदर्श, परंपराएं इत्यादि।

प्रश्न 6.
सांस्कृतिक पिछड़ेपन का सिद्धांत किसने दिया है।
उत्तर-
सांस्कृतिक पिछड़ेपन का सिद्धांत विलियम एफ० आगबर्न (William F. Ogburn) ने दिया था।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 5 संस्कृति

II. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 30-35 शब्दों में दीजिए :

प्रश्न 1.
संस्कृति क्या है ?
उत्तर-
हमारे रहने-सहने के ढंग, फिलास्फी भावनाएं, विचार, मशीनें, कार, पेन, किताबें इत्यादि सभी अभौतिक तथा भौतिक वस्तुएं हैं तथा यह ही संस्कृति है। ये सभी वस्तुएं समूहों द्वारा ही उत्पन्न तथा प्रयोग की जाती हैं। इस प्रकार संस्कृति वह वस्तु है जिस पर हम कार्य करते हैं, विचार करते हैं तथा अपने पास रखते हैं।

प्रश्न 2.
सांस्कृतिक पिछड़ापन क्या है ?
उत्तर-
संस्कृति के दो भाग होते हैं-भौतिक तथा अभौतिक। नए आविष्कारों के कारण भौतिक संस्कृति में तेजी से परिवर्तन आते हैं परन्तु हमारे विचार, परंपराएं, अर्थात् अभौतिक संस्कृति में उतनी तेज़ी से परिवर्तन नहीं आता है। इस कारण दोनों में अंतर उत्पन्न हो जाता है जिसे सांस्कृतिक पिछड़ापन कहा जाता है।

प्रश्न 3.
सामाजिक मापदंड क्या है ?
उत्तर–
प्रत्येक समाज ने अपने सदस्यों के व्यवहार करने के लिए कुछ नियम बनाए होते हैं जिन्हें परिमाप कहा जाता है। इस प्रकार परिमाप व्यवहार के लिए कुछ दिशा निर्देश हैं। परिमाप समाज के सदस्यों के व्यवहार को निर्देशित तथा नियमित करते हैं। यह संस्कृति का बहुत ही महत्त्वपूर्ण हिस्सा होते हैं।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 5 संस्कृति

प्रश्न 4.
आधुनिक भारत के केन्द्रित मूल्य क्या हैं ?
उत्तर-
आधुनिक भारत की प्रमुख केन्द्रित मूल्य हैं-लोकतान्त्रिक व्यवहार, समानता, न्याय, स्वतन्त्रता, धर्मनिष्पक्षता इत्यादि। अलग-अलग समाजों की अलग-अलग प्रमुख कीमतें होती हैं। छोटे समुदाय किसी विशेष कीमत पर बल देते हैं परन्तु बड़े समाज सर्वव्यापक कीमतों पर बल देते हैं।

प्रश्न 5.
पारम्परिक भारतीय समाज के सन्तुष्ट मूल्यों को बताइए।
उत्तर-
प्रत्येक समाज की अलग-अलग प्रमुख कीमतें होती हैं। कोई समाज किसी कीमत पर बल देता है तो . कोई किसी पर। परंपरागत भारतीय समाज की प्रमुख कीमतें हैं-सब कुछ छोड़ देना (detachment), दुनियादारी तथा धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष के चार पुरुषार्थों की प्राप्ति।

प्रश्न 6.
संस्कृति के ज्ञानात्मक घटकों को कैसे दर्शाया जाता है ?
उत्तर-
संस्कृति के भौतिक भाग को कल्पनाओं, साहित्य, कलाओं, धर्म तथा वैज्ञानिक सिद्धांतों की सहायता से दर्शाया जाता है। विचारों को साहित्य में दर्शाया जाता है तथा इस प्रकार एक संस्कृति की बौद्धिक विरासत को संभाल कर रखा जाता है।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 5 संस्कृति

III. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 75-85 शब्दों में दीजिए :

प्रश्न 1.
किस प्रकार संस्कृति लोगों का सम्पूर्ण जीवन है ?
उत्तर-
इसमें कोई शक नहीं है कि संस्कृति लोगों के जीवन का सम्पूर्ण तरीका है। संस्कृति और कुछ नहीं बल्कि जो कुछ भी हमारे पास है, वह ही संस्कृति है। हमारे विचार, आदर्श, आदतें, कपड़े, पैसे, जायदाद इत्यादि सब कुछ जो मनुष्य ने आदि काल से लेकर आज तक प्राप्त किया है वह उसकी संस्कृति है। अगर इन सभी चीजों को मनुष्य के जीवन में से निकाल दिया जाए तो मनुष्य के जीवन में कुछ भी नहीं बचेगा तथा वह दोबारा आदि मानव. के स्तर पर पहुंच जाएगा। चाहे प्रत्येक समाज की संस्कृति अलग-अलग होती है परन्तु सभी संस्कृतियों में कुछेक तत्त्व ऐसे भी हैं, जो सर्वव्यापक होते हैं। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि संस्कृति लोगों के जीवन का सम्पूर्ण तरीका है।

प्रश्न 2.
भौतिक तथा अभौतिक संस्कृति को विस्तृत रूप में लिखो।
उत्तर-
भौतिक संस्कृति का अर्थ है वह संस्कृति जिसमें व्यक्ति द्वारा बनी सभी वस्तुओं को शामिल किया जाता है। यह संस्कृति मूर्त होती है क्योंकि हम इसको देख सकते हैं, स्पर्श सकते हैं, जैसे-स्कूटर, टी० वी०, मेज़, कुर्सी, बर्तन, बस, कार, जहाज़ आदि उपरोक्त सब वस्तुएं मूर्त हैं पर भौतिक संस्कृति है।

अभौतिक संस्कृति अर्थात् वह संस्कृति जिसमें वह सब वस्तुओं को शामिल किया जाता है जो अमूर्त होती हैं। इन सबको न तो हम पकड़ सकते हैं और न ही देख सकते हैं बल्कि इनको केवल महसूस ही किया जाता है। जैसे परंपराएं (Traditions), रीति-रिवाज (Customs), मूल्य (Values), कलाएं (Skills), परिमाप (Norms) आदि। वे सब वस्तुएं अमूर्त होती हैं। इनको अभौतिक संस्कृति में शामिल किया जाता है।

प्रश्न 3.
संस्कृति के मूल तत्त्वों पर विचार-विमर्श कीजिए।
उत्तर-

  • रिवाज तथा परंपराएं (Customs and Traditions)—सामाजिक व्यवहार के प्रकार हैं जो संगठित होते हैं तथा दोबारा प्रयोग किए जाते हैं। यह व्यवहार करने के स्थायी तरीके हैं। प्रत्येक समाज तथा संस्कृति . के रिवाज तथा परंपराएं अलग-अलग होती हैं।
  • परिमाप (Norms) भी संस्कृति का आवश्यक तत्त्व होते हैं। समाज के प्रत्येक व्यक्ति से यह आशा की जाती है कि वह किस प्रकार से व्यवहार करे। परिमाप व्यवहार करने के वह तरीके हैं जिन्हें मानने की सभी से आशा की जाती है।
  • कीमतें (Values) भी इसका एक अभिन्न अंग होती हैं। प्रत्येक समाज की कुछ कीमतें होती हैं जो मुख्य होती हैं तथा सभी से यह आशा की जाती है कि वह इन कीमतों को माने। इससे उसे यह पता चलता है कि क्या ग़लत है तथा क्या ठीक है।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 5 संस्कृति

प्रश्न 4.
“संस्कृति एक सीखा व्यवहार है।” इस कथन का उदाहरण सहित वर्णन कीजिए।
उत्तर-
इसमें कोई शक नहीं है कि संस्कृति मनुष्यों द्वारा सीखी जाती है। यह कोई जैविक गुण नहीं है जो व्यक्ति जन्म से ही लेकर पैदा होता है। उसे यह अपने माता-पिता से नहीं बल्कि समाज में रहकर धीरे-धीरे समाजीकरण की प्रक्रिया के साथ मिलता है। कोई भी पैदा होने के साथ विचार, भावनाएं साथ लेकर नहीं आता बल्कि वह उस समाज के अन्य लोगों के साथ अन्तक्रियाएं करते हुए सीखता है। हम किसी भी प्रकार का कार्य ले सकते हैं, प्रत्येक कार्य को समाज में रहते हुए सीखा जाता है। इससे यह स्पष्ट है कि संस्कृति सीखा हुआ व्यवहार है।

IV. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 250-300 शब्दों में दें :

प्रश्न 1.
किस प्रकार सामाजिक विश्लेषण में संस्कृति रोज़मर्रा में प्रयोग किए जा रहे शब्द संस्कृति से भिन्न है ?
उत्तर-
दैनिक प्रयोग के शब्द ‘संस्कृति’ के अर्थ समाजशास्त्र के शब्द ‘संस्कृति’ से निश्चित रूप से ही अलग है। दैनिक प्रयोग में संस्कृति कला तक ही सीमित है अथवा कुछ वर्गों, देशों की जीवन शैली के बारे में बताती है। परन्तु समाजशास्त्र में इसके अर्थ कुछ अलग ही हैं। समाजशास्त्र में इसके अर्थ हैं-व्यक्ति ने प्राचीन काल से लेकर आजतक जो कुछ भी प्राप्त किया है या पता किया है वह उसकी संस्कृति है। संस्कार, विचार, आदर्श, प्रतिमान, रूढ़ियां, कुर्सी, मेज़, कार, पैन, किताबें, लिखित ज्ञान इत्यादि जो कुछ भी व्यक्ति ने समाज में रह कर प्राप्त किया है वह उसकी संस्कृति है। इस प्रकार संस्कृति शब्द के अर्थ समाजशास्त्र की दृष्टि में तथा दैनिक प्रयोग में अलग-अलग हैं।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 5 संस्कृति

प्रश्न 2.
संस्कृति से आप क्या समझते हैं ? संस्कृति की विशेषताओं को बताइए।
उत्तर-
पशुओं एवं मनुष्यों में सबसे महत्त्वपूर्ण जो वस्तु अलग है वह है ‘संस्कृति’ जो मनुष्य के पास है, जानवरों के पास नहीं है। मनुष्य के पास सबसे महत्त्वपूर्ण वस्तु जो है वह है संस्कृति । यदि मनुष्य से उसकी संस्कृति ले ली जाए तो उसके पास कुछ नहीं बचेगा। संसार के सभी प्राणियों में से केवल मानव के पास ही योग्यता है कि संस्कृति को बना कर उसे बचाकर रख सके। संस्कृति केवल मनुष्य की अन्तक्रियाओं से ही पैदा नहीं होती है बल्कि मनुष्य की अगली अन्तक्रियाओं को भी रास्ता दिखाती है। संस्कृति व्यक्ति के व्यक्तित्व के निर्माण में सहायता करती है और उसको समाज में रहने योग्य बनाती है। संस्कृति ऐसे वातावरण का निर्माण करती है, जिसमें रहकर व्यक्ति समाज में कार्य करने के योग्य बन जाता है।

इस तरह संस्कृति और व्यक्ति के एक-दूसरे के साथ काफ़ी गहरे सम्बन्ध होते हैं क्योंकि संस्कृति ही व्यक्तियों को पशुओं से और समूहों को एक-दूसरे से अलग करती साधारण भाषा में संस्कृति को पढ़ाई के समानार्थक अर्थों में लिया गया है कि पढ़ा-लिखा व्यक्ति सांस्कृतिक एवं अनपढ़ व्यक्ति असांस्कृतिक है परन्तु संस्कृति का यह अर्थ ठीक नहीं है। समाजशास्त्री संस्कृति का अर्थ काफ़ी व्यापक शब्दों में लेते हैं। समाजशास्त्रियों के अनुसार जिस किसी भी वस्तु का निर्माण व्यक्ति ने अपनी आवश्यकताओं को पूर्ण करने के लिये किया है वह संस्कृति है।

संस्कृति में दो तरह की वस्तुएं होती हैं-(i) भौतिक एवं (ii) अभौतिक। भौतिक वस्तुओं में वह सब कुछ आ जाता है जिसको हम देख सकते हैं और स्पर्श कर सकते हैं। परन्तु अभौतिक वस्तुओं में वह वस्तुएं शामिल होती हैं जिनको हम न तो देख सकते हैं, न ही स्पर्श सकते हैं केवल महसूस (Feel) कर सकते हैं। भौतिक वस्तुओं में मेज़, कुर्सी, किताब, स्कूटर, कार इत्यादि सब कुछ आ जाते है, परन्तु अभौतिक वस्तुओं में हम अपने विचार, संस्कार, तौर-तरीके, भावनाओं एवं भाषाओं को ले सकते हैं। संक्षेप में संस्कृति का अर्थ रहने के ढंग, विचार, भावनाएं, वस्तुएं, मशीनों, कुर्सियों इत्यादि सभी भौतिक एवं अभौतिक पदार्थों से है, अर्थात् व्यक्ति द्वारा प्रयोग की जाने वाली प्रत्येक वस्तु से है चाहे उसने उस वस्तु को बनाया है या नहीं। संस्कृति एक ऐसी वस्तु है जिसके भीतर सभी वह वस्तुएं हैं, जिनके ऊपर समाज के सदस्य विचार करते हैं, कार्य करते हैं और अपने पास रखते हैं।

परिभाषाएं (Definitions) –
1. मैकाइवर व पेज (Maclver and Page) के अनुसार, “हमारे रहने-सहने के ढंगों में, हमारे दैनिक व्यवहार एवं सम्बन्धों में, विचारों के तरीकों में, हमारी कला, साहित्य, धर्म, मनोरंजन के आनन्द में हमारी प्रकृति का जो प्रकटाव होता है, उसे संस्कृति कहते हैं।”

2. बीयरस्टैड (Bierstdt) के अनुसार, “संस्कृति उन वस्तुओं की जटिल समग्रता है, जो समाज के सदस्य के रूप में हम सोचते, करते और रखते हैं।”

3. ऑगबर्न एवं निमकॉफ (Ogburn and Nimkoff) के अनुसार, “संस्कृति मानवीय वातावरण का वह भाग है, जिसमें वह केवल पैदा हुआ है। इसमें इमारतें, हथियार, पहनने वाली वस्तुएं, धर्म एवं वह सभी कार्य करने के तरीके आते हैं, जो व्यक्ति सीखता है।”

4. मजूमदार (Mazumdar) के अनुसार, “संस्कृति मानव की प्राप्तियों भौतिक एवं अभौतिक का सम्पूर्ण मेल होती है जो समाज वैज्ञानिक रूप से भाव जो परम्परा एवं ढांचे क्षितिज एवं लम्ब रूप में संचलित होने के योग्य होती है।”

उपरोक्त परिभाषाओं से यह स्पष्ट है कि संस्कृति में वह सब शामिल है, जो व्यक्ति समाज के बीच रहते हुए सीखता है जैसे-कला कानून, भावनाएं, रीति-रिवाज, पहरावा, खाने-पीने, साहित्य, ज्ञान, विश्वास इत्यादि। ये सभी संस्कृति का भाग हैं और संस्कृति के यह सभी भाग अलग-अलग न होकर बल्कि एक-दूसरे से मिलकर कार्य करते हैं और संगठन बनाते हैं। इस संगठन को ही संस्कृति कहते हैं। संक्षेप में जो वस्तुएं व्यक्ति ने सीखी हैं, या जो कुछ व्यक्ति को अपने पूर्वजों से मिला है इसे संस्कृति कहते हैं । विरासत में हथियार, व्यवहार के तरीके, विज्ञान के तरीके, कार्य करने के तरीके इत्यादि सभी शामिल हैं।

संक्षेप में हम कह सकते हैं कि संस्कृति समूह के द्वारा पैदा की गई, प्रयोग की गई, विचार की गई, प्रत्येक वस्तु के साथ शामिल है। मनुष्य अपने जन्म के पश्चात् कुछ न कुछ सीखना आरम्भ कर देता है और व्यवहार के तौरतरीकों के द्वारा कार्य करने लग पड़ता है। इस कारण इसको सांस्कृतिक पशु भी कहते हैं।

संस्कृति की विशेषताएं तथा कार्य (Functions and Characteristics of Culture)-

1. संस्कति पीढी दर पीढी आगे बढ़ती है (Culture Move from Generation to Generation)संस्कृति को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को दिया जाता है क्योंकि बच्चा अपने माता-पिता से ही व्यवहार के तरीके सीखता है। मनुष्य अपने पूर्वजों की प्राप्तियों से ही काफ़ी कुछ सीखता है। कोई भी किसी कार्य को शुरू से आरम्भ नहीं करना चाहता है। इसलिये वह अपने पूर्वजों के द्वारा किए गये कार्यों को ही आगे बढ़ाता है। इस पीढ़ी दर पीढ़ी का संचार सदियों से चला आ रहा है। इसी कारण ही प्रत्येक व्यक्ति को अलग व्यक्तित्व प्राप्त होता है। कोई भी व्यक्ति पैदा होने के वक्त से अपने साथ कुछ नहीं लेकर आता है, उसको धीरे-धीरे समाज में रहते हएं अपने मातापिता, दादी-दादा, नाना-नानी से बहुत कुछ प्राप्त होता है। इस तरह संस्कृति पीढ़ी दर पीढ़ी संचारित होती रहती है।

2. संस्कृति सामाजिक है (Culture is Social)-संस्कृति कभी भी किसी की व्यक्तिगत मनुष्य की जायदाद नहीं होती। यह तो सामाजिक होती है क्योंकि न तो कोई व्यक्ति संस्कृति को बनाता है और न ही संस्कृति उसकी जायदाद होती है। जब भी कोई व्यक्ति किसी वस्तु का अनुसंधान करता है तो यह वस्तु उसकी न होकर समाज की हो जाती है क्योंकि उस वस्तु को वह अकेला प्रयोग नहीं करता बल्कि सम्पूर्ण समाज प्रयोग करता है। कोई भी वस्तु संस्कृति का भाग तभी कहलाती है जब उस वस्तु को समाज के बहुसंख्यक लोग स्वीकार कर लेते हैं। इस तरह उस वस्तु की सर्वव्यापकता संस्कृति का आवश्यक तत्त्व है। इस तरह हम कह सकते हैं कि संस्कृति व्यक्तिगत नहीं बल्कि सामाजिक है।

3. संस्कृति सीखी जाती है (Culture can be Learned)–संस्कृति मनुष्यों के द्वारा सीखी जाती है। यह कोई जैविक गुण नहीं है जो कि व्यक्ति को अपने माता-पिता से मिलता है। संस्कृति तो व्यक्ति धीरे-धीरे समाजीकरण द्वारा सीखता है। कोई भी पैदा होने के साथ-साथ विचार एवं भावनाएं अपने साथ लेकर नहीं आता बल्कि यह तो वह समाज के अन्य लोगों के साथ अन्तक्रिया करते हुए सीखता है। हम किसी भी प्रकार का कार्य ले सकते हैं। प्रत्येक कार्य को समाज में रहते हुए सीखा जाता है। इससे स्पष्ट है कि संस्कृति सीखा हुआ व्यवहार है।

4. संस्कृति आवश्यकताएं पूरी करती हैं (Culture fulfills needs)-यदि किसी वस्तु का अनुसंधान होता है, तो वह अनुसंधान इसलिये किया जाता है क्योंकि वह उसकी आवश्यकता है। इस तरह संस्कृति के प्रत्येक पक्ष को किसी-न-किसी समय मनुष्यों के सामने किसी-न-किसी की तरफ़ से ले आया गया हो, ताकि अन्य मनुष्यों की आवश्यकता पूरी की जा सके। व्यक्ति गेहूं की पैदावार करनी क्यों सीखा ? क्योंकि मनुष्य को अपनी भूख दूर करने के लिये इसकी आवश्यकता थी। इस तरह व्यक्ति भोजन पैदा करना सीख गया और यही सीखा हुआ व्यवहार संस्कृति का एक हिस्सा बन कर पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ता गया। आवश्यकता केवल जैविक नहीं, बल्कि सामाजिक संस्कृतियां भी हो सकती हैं। भूख के साथ-साथ व्यक्ति को प्यार एवं हमदर्दी की भी आवश्यकता होती है, जो व्यक्ति समाज में रहते हुआ सीखता है। इस तरह संस्कृति के भिन्न-भिन्न हिस्से समाज की भिन्न-भिन्न आवश्यकताओं को पूर्ण करते हैं। संस्कृति का जो भाग लोगों की आवश्यकताएं पूरा नहीं करता वह धीरे-धीरे समाप्त हो जाता है।

5. संस्कृति में परिवर्तन आते रहते हैं (Changes often comes in Culture)-संस्कृति कभी भी एक स्थान पर खड़ी नहीं रहती बल्कि उसमें परिवर्तन आते रहते हैं क्योंकि कोई भी वस्तु एक जगह नहीं रुकती। यह प्रत्येक वस्तु की प्रकृति होती है कि उसमें परिवर्तन आये और जब प्रत्येक वस्तु में परिवर्तन होना निश्चित ही है, तो वह वस्तु परिवर्तनशील है। संस्कृति समाज की प्रत्येक आवश्यकताएं पूरी करती है और समाज की आवश्यकताओं में परिवर्तन आते रहते हैं क्योंकि अवस्थाएं सदैव एक-सी नहीं रहतीं। अवस्थाओं में परिवर्तन आने से आवश्यकताएं भी बदल जाती हैं और आवश्यकताओं में परिवर्तन होने से उनकी पूर्ति करने वाले साधनों में परिवर्तन लाना आवश्यक है। उदाहरण के लिये पहले जनसंख्या कम होने के कारण कृषि हल की सहायता से की जाती थी। परन्तु जनसंख्या के बढ़ने से आवश्यकताएं बढ़ गईं जिससे प्रयुक्त साधन भी बदल गये और हल की जगह ट्रैक्टरों, कम्बाइनों आदि ने ले ली और इससे आवश्यकताएं पूरी की गईं। इस तरह अवस्थाओं के परिवर्तन से संस्कृति में परिवर्तन भी आवश्यक है।

6. एक ही संस्कृति में कई संस्कृतियां होती हैं (One culture consists of many culture)-प्रत्येक संस्कृति के बीच हम कुछ साझे परिमाप, परम्पराएं, भावनाएं, रीति-रिवाज, व्यवहार आदि देख सकते हैं। परन्तु उसके साथ-साथ हम कई तरह के अलग-अलग रहन-सहन के तरीके, खाने-पीने के तरीके, व्यवहार करने के तरीके भी देख सकते हैं जिससे पता चलता है कि एक संस्कृति के बीच ही कई संस्कृतियां विद्यमान होती हैं। उदाहरणार्थ भारतीय संस्कृति में ही कई तरह की संस्कृतियां मिल जायेंगी। क्योंकि भारतवर्ष में कई प्रकार के लोग रहते हैं प्रत्येक व्यक्ति के अपने-अपने खाने-पीने के तरीके, रहने-सहने का ढंग, व्यवहार करने का ढंग है जिससे पता चलता है कि हमारी संस्कृति में कई संस्कृतियां हैं।

प्रश्न 3.
संस्कृति के दो प्रकारों की विस्तृत रूप में चर्चा कीजिए।
उत्तर-
संस्कृति के दो प्रकार हैं तथा वह हैं भौतिक संस्कृति तथा अभौतिक संस्कृति । इनका वर्णन इस प्रकार है-

(i) भौतिक संस्कृति (Material Culture)-भौतिक संस्कृति अप्राकृतिक संस्कृति होती है। इसकी मुख्य विशेषता यह होती है कि व्यक्ति द्वारा बनाई गई सभी वस्तुओं को इसमें शामिल किया जाता है। इस कारण से ही भौतिक संस्कृति मूर्त (concrete) वस्तुओं से संबंध रखती है। इस संस्कृति में पाई जाने वाली सभी वस्तुओं को हम देख या स्पर्श कर सकते हैं। उदाहरण के लिए मशीनें, औज़ार, यातायात के साधन, बर्तन, किताब, पैन इत्यादि। भौतिक संस्कृति मनुष्यों द्वारा किए गए अविष्कारों से संबंधित होती है।

भौतिक संस्कृति में संस्कृति में आया नया तकनीकी ज्ञान भी शामिल है। भौतिक संस्कृति में वह सब कुछ शामिल है जो कुछ आज तक बना है, सुधरा है अथवा हस्तांतरित किया गया है। संस्कृति के यह भौतिक पक्ष अपने सदस्यों को अपने व्यवहार को परिभाषित करने में सहायता करते हैं। उदाहरण के लिए चाहे अलग-अलग क्षेत्रों में कृषि करने वाले लोगों का कार्य चाहे एक जैसा होता है परन्तु वह अलग-अलग प्रकार की मशीनों का प्रयोग करते हैं।

(ii) अभौतिक संस्कृति (Non-material Culture)-अभौतिक संस्कृति की मुख्य विशेषता यह होती है कि यह अमूर्त (Abstract) होती है। अमूर्त का अर्थ उन वस्तुओं से है जिन्हें न तो हम पकड़ सकते हैं तथा न ही स्पर्श कर सकते हैं। उदाहरण के लिए धर्म, परंपराएं, संस्कार, रीति-रिवाज, कला, साहित्य, परिमाप, आदर्श, कीमतें इत्यादि को अभौतिक संस्कृति में शामिल किया जाता है। इन सबके कारण ही समाज में निरन्तरता बनी रहती है। परिमाप तथा कीमतें व्यवहार के तरीकों के आदर्श हैं जो समाज में स्थिरता लाने में सहायता करते हैं।

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प्रश्न 4.
सांस्कृतिक विलम्बना या पिछड़पन को विस्तृत रूप में लिखो।
उत्तर-
सबसे पहले सांस्कृतिक पिछड़ेपन के संकल्प को ऑगबर्न (Ogburn) ने प्रयोग किया ताकि समाज के बीच पैदा हुई समस्याएं और तनाव की स्थितियों को जान सकें। ऑगबर्न पहला समाजशास्त्री था जिसने सांस्कृतिक पिछड़ेपन के संकल्प के विस्तृत अर्थ दिए थे।

यद्यपि स्पैन्सर, समनर, मूलर आदि ने अपनी रचनाओं में सांस्कृतिक पिछड़ेपन शब्द का प्रयोग किया। परन्तु ऑगबन ने सर्वप्रथम ‘सांस्कृतिक पिछड़ेपन’ शब्द का प्रयोग अपनी पुस्तक ‘सोशल चेंज’ (Social change) में 1921 में किया जिसके द्वारा सामाजिक असंगठन तनाव इत्यादि को समझा गया। ऑगबन ऐसा पहला समाजशास्त्री था जिसने सांस्कृतिक पिछड़ेपन को एक सिद्धान्त के रूप में पेश किया। समाजशास्त्रीय विषय में इस सिद्धान्त को अधिकतर स्वीकार किया गया। . सांस्कृतिक पिछड़ेपन का अर्थ (Meaning of Cultural lag)-आधुनिक संस्कृति के दोनों भागों में परिवर्तन समान गति के साथ नहीं होता है। एक भाग में परिवर्तन दूसरे भाग से अधिक गति से होता है। परन्तु संस्कृति एक व्यवस्था है, यह विभिन्न अंगों से मिलकर बनती है। इसके विभिन्न अंगों में परस्पर सम्बन्ध और अन्तर्निर्भरता होती है। संस्कृति की यह व्यवस्था तब तक बनी रह सकती है, जब तक इसके एक भाग में तेजी से परिवर्तन हो और दूसरे भाग में बराबर गति के साथ परिवर्तन हो। वास्तव में होता यह है कि जब संस्कृति का एक भाग किसी अनुसंधान के कारण बदलता है तो उससे सम्बन्धित या उस पर निर्भर भाग में परिवर्तन होता है। परन्तु दूसरे भाग में परिवर्तन होने में काफ़ी समय लग जाता है। दूसरे भाग में परिवर्तन होने में कितना समय लगेगा ये दूसरे भाग की प्रकृति के ऊपर निर्भर करता है। ये पिछड़ापन कई वर्षों तक चलता रहता है जिस कारण संस्कृति में अव्यवस्था पैदा हो जाती है। संस्कृति के दो परस्पर सम्बन्धित या अन्तर्निर्भर भागों के परिवर्तनों में यह पिछड़ापन सांस्कृतिक पिछड़ापन कहलाता है।

पिछड़ापन शब्द अंग्रेजी के शब्द LAG का हिन्दी रूपान्तर है। पिछड़ापन का अर्थ है पीछे रह जाना। इस पिछड़ेपन के अर्थ को ऑगबन ने उदाहरण देकर समझाया है। उनके अनुसार कोई भी वस्तु कई भागों से मिलकर बनती है। यदि उस वस्तु के किसी हिस्से में परिवर्तन आयेगा तो उस वस्तु के दूसरे हिस्से में भी परिवर्तन अवश्य आयेगा तो वह परिवर्तन उस वस्तु के अन्य भागों को भी प्रभावित करेगा। यह भाग जिन पर उस परिवर्तन का प्रभाव पड़ता है धीरे-धीरे समय के साथ आप भी परिवर्तित हो जाते हैं। यह जो परिवर्तन धीरे-धीरे आते हैं इसमें कुछ समय लग जाता है। इस समय के अन्तर से पिछड़ जाना या पीछे रह जाना या पिछड़ापन कहते हैं।

ऑगबर्न ने अपने सांस्कृतिक पिछड़ापन के सिद्धान्त की भी व्याख्या इसी ढंग से की है। उनके अनुसार संस्कृति के दो पक्ष होते हैं जो आपस में सम्बन्धित होते हैं। यदि एक पक्ष में परिवर्तन आता है तो वह दूसरे पक्ष को प्रभावित करता है। यह दूसरे पक्ष धीरे-धीरे अपने आप को इन परिवर्तनों के अनुसार ढाल लेते हैं व उसके अनुकूल बन जाते हैं परन्तु इस ढालने में कुछ समय लग जाता है। इस समय के अन्तर को जो परिवर्तन के आने व अनुकूलन के समय में होता है, सांस्कृतिक पिछड़ापन कहते हैं। जब संस्कृति का कोई भाग तरक्की करके आगे निकल जाता है व दूसरा भाग गति के कारण पीछे रह जाता है तो यह कहा जाता है कि सांस्कृतिक पिछड़ापन मौजूद है।

ऑगबन के अनुसार संस्कृति के दो भाग होते हैं-(1) भौतिक संस्कृति (2) अभौतिक संस्कृति। भौतिक संस्कृति में वह सभी चीजें शामिल हैं जो हम देख सकते हैं या छू सकते हैं जैसे-मशीनें, मेज़, कुर्सी, किताब, टी० वी०, स्कूटर आदि। अभौतिक संस्कृति में वह सभी वस्तुएं शामिल हैं जो हम देख नहीं सकते केवल महसूस कर सकते हैं जैसे-आदतें, विचार, व्यवहार, भावनाएं, तौर-तरीके, रीति-रिवाज इत्यादि। यह दोनों संस्कृति के भाग एक-दूसरे से गहरे रूप में सम्बन्धित हैं। परिवर्तन प्रकृति का नियम है। यदि एक भाग में परिवर्तन आता है, तो दूसरे भाग में परिवर्तन आना अनिवार्य है। यह नियम भौतिक व अभौतिक संस्कृति पर लागू होना भी अनिवार्य है। भौतिक संस्कृति में परिवर्तन आते रहते हैं और यह परिवर्तन अति शीघ्र आते रहते हैं। चूंकि नवीन खोजें होती रहती हैं इसलिए भौतिक संस्कृति तो काफ़ी तेजी से बदल जाती है। यह अभौतिक संस्कृति जिसमें भावनाएं, विचार, रीतिरिवाज आदि शामिल हैं उनमें परिवर्तन नहीं आते या परिवर्तन की गति काफ़ी धीमी होती है। इस कारण भौतिक संस्कृति, जिसमें परिवर्तन की गति कम होती है, पीछे रह जाती है। इस प्रकार भौतिक संस्कृति से अभौतिक संस्कृति के पीछे रह जाने को ही सांस्कृतिक पिछड़ापन कहते हैं।

उपरोक्त विवरण से यह स्पष्ट हो जाता है कि संस्कृति पिछड़ेपन के लिए कई कारण ज़िम्मेदार होते हैं, जिनमें से एक कारण यह भी होता है कि भिन्न-भिन्न संस्कृति के तत्त्वों में परिवर्तन का सामर्थ्य भी भिन्न-भिन्न है। अभौतिक संस्कृति तेजी से परिवर्तन को अपनाने में असफल रह जाती है, जिसके परिणामस्वरूप सांस्कृतिक पिछड़ापन पैदा हो जाता है। 19वीं और 20वीं सदी में औद्योगिक परिवर्तन पहले हुए व परिवार इस परिवर्तन में पिछड़ेपन की वजह से रह गया। मानव के विचार अभी भी हर तरह के परिवर्तन के लिए तैयार नहीं होते अर्थात् लोग वैज्ञानिक खोजों को देखते हैं, पढ़ते हैं परन्तु फिर भी वह अपनी पुरानी परम्पराओं, रीति-रिवाजों को छोड़ने के लिए तैयार नहीं।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

I. बहुविकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions) :

प्रश्न 1.
पशुओं एवं मनुष्यों में पृथकता करने वालों की कौन-सी वस्तु है ?
(A) संस्कृति
(B) A & C
(C) समूह
(D) कोई नहीं।
उत्तर-
(A) संस्कृति।

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प्रश्न 2.
किस वस्तु को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में हस्तान्तरित किया जा सकता है ?
(A) समाज
(B) स्कूटर
(C) संस्कृति
(D) कार।
उत्तर-
(C) संस्कृति।

प्रश्न 3.
संस्कृति के प्रसार के लिए कौन-सी वस्तु आवश्यक नहीं है?
(A) देश का टूटना
(B) लड़ाई
(C) सांस्कृतिक रुकावट
(D) कोई नहीं।
उत्तर-
(C) सांस्कृतिक रुकावट।

प्रश्न 4.
संस्कृतिकरण के लिए क्या आवश्यक है ?
(A) समूह के मूल्य
(B) मनोवैज्ञानिक तैयारी
(C) सामूहिक संस्कृति
(D) कोई नहीं।
उत्तर-
(B) मनोवैज्ञानिक तैयारी।

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प्रश्न 5.
किस समाजशास्त्री ने संस्कृति को भौतिक एवं अभौतिक संस्कृतियों में बांटा था ?
(A) आगबर्न
(B) गिडिंग्ज़
(C) मैकाइवर
(D) पारसन्ज।
उत्तर-
(A) आगबर्न।

प्रश्न 6.
अभौतिक संस्कृति ……………. होती है ?
(A) मूर्त
(B) मूर्त एवं अमूर्त
(C) अमूर्त
(D) कोई नहीं।
उत्तर-
(C) अमूर्त।

प्रश्न 7.
भौतिक संस्कृति ……………… होती है ?
(A) मूर्त
(B) मूर्त एवं अमूर्त
(C) अमूर्त
(D) कोई नहीं।
उत्तर-
(A) मूर्त।

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प्रश्न 8.
कौन-से वर्ष में ऑगबर्न ने ‘संस्कृति पिछड़ापन’ शब्द का प्रयोग किया था?
(A) 1911
(B) 1921
(C) 1931
(D) 1941.
उत्तर-
(B) 1921.

प्रश्न 9.
समीकरण में क्या मिल जाता है ?
(A) समाज
(B) संस्कृतियां
(C) देश
(D) कोई नहीं।
उत्तर-
(B) संस्कृतियां।

प्रश्न 10.
संस्कृति का विकसित रूप क्या है ?
(A) सभ्यता
(B) भौतिक संस्कृति
(C) देश समाज
(D) अभौतिक संस्कृति।
उत्तर-
(A) सभ्यता।

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II. रिक्त स्थान भरें (Fill in the blanks) :

1. …………………… ने संस्कृति को जीने का संपूर्ण ढंग कहा है।
2. संस्कृति के ……… भाग होते हैं।
3. विचार, आदर्श, कीमतें संस्कृति के ………. भाग के उदाहरण हैं।
4. ………….. वह नियम है जिन्हें मानने की सभी से आशा की जाती है।
5. सांस्कृतिक पिछड़ेपन का सिद्धांत …………. ने दिया था।
6. ………… को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तांतरित किया जाता है।
7. कुर्सी, टेबल, कार संस्कृति के ……….. भाग का हिस्सा होते हैं।
उत्तर-

  1. क्लाइड कल्ककोहन,
  2. दो,
  3. अभौतिक,
  4. करें-कीमतें,
  5. विलियम एफ० आगबर्न,
  6. संस्कृति,
  7. भौतिक।

III. सही/गलत (True/False):

1. अरस्तु के अनुसार मनुष्य एक राजनीतिक प्राणी है।
2. आदिकाल से लेकर मनुष्य ने आज तक जो कुछ प्राप्त किया है, वह संस्कृति है।
3. जिन वस्तुओं को हम देख सकते हैं वह भौतिक संस्कृति है।
4. जिन वस्तुओं को हम देख नहीं सकते, वह अभौतिक संस्कृति है।
5. संस्कृति के दो भाग-भौतिक व अभौतिक होते हैं।
6. संस्कृति के अविकसित रूप को सभ्यता कहते हैं।
7. संस्कृति मनुष्यों के बीच अन्तक्रियाओं का परिणाम होती है।
उत्तर-

  1. गलत
  2. सही
  3. सही
  4. सही
  5. सही
  6. गलत
  7. सही।

IV. एक शब्द/पंक्ति वाले प्रश्न उत्तर (One Wordline Question Answers) :

प्रश्न 1.
‘मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है’, यह शब्द किसके हैं ?
उत्तर-
यह शब्द अरस्तु (Aristotle) के हैं।

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प्रश्न 2.
मनुष्यों तथा पशुओं के बीच सबसे अलग वस्तु क्या है ?
उत्तर-
मनुष्यों तथा पशुओं के बीच सबसे अलग वस्तु मनुष्यों की संस्कृति है।

प्रश्न 3.
मनुष्य किस प्रकार के वातावरण में रहता है ?
उत्तर-
मनुष्य दो प्रकार के वातावरण–प्राकृतिक तथा अप्राकृतिक में रहता है।

प्रश्न 4.
संस्कृति क्या है ?
उत्तर-
आदिकाल से लेकर आज तक मनुष्य ने जो कुछ भी प्राप्त किया है, वह संस्कृति है।

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प्रश्न 5.
संस्कृति किस चीज़ का परिमाप है ?
उत्तर-
संस्कृति मनुष्यों के बीच अन्तक्रियाओं का परिमाप होती है।

प्रश्न 6.
संस्कृति कितने प्रकार की होती है ?
उत्तर-
संस्कृति दो प्रकार की होती है-भौतिक संस्कृति तथा अभौतिक संस्कृति।

प्रश्न 7.
भौतिक संस्कृति क्या होती है ?
उत्तर-
जिन वस्तुओं को हम देख या स्पर्श कर सकते हैं, वह भौतिक संस्कृति होती है।

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प्रश्न 8.
हम भौतिक संस्कृति में क्या शामिल कर सकते हैं ?
उत्तर-
हम भौतिक संस्कृति में पुस्तकें, कुर्सी, मेज़, जहाज़, टी० वी०, कार इत्यादि जैसी सभी वस्तुएं शामिल कर सकते हैं।

प्रश्न 9.
अभौतिक संस्कृति क्या होती हैं ? ।
उत्तर-
जिन वस्तुओं को हम देख या स्पर्श नहीं कर सकते, वह अभौतिक संस्कृति का हिस्सा होते हैं।

प्रश्न 10.
हम अभौतिक संस्कृति में क्या शामिल कर सकते हैं ?
उत्तर-
इसमें हम विचार, आदर्श, प्रतिमान, परंपराएं इत्यादि शामिल कर सकते हैं।

प्रश्न 11.
सभ्यता क्या होती है ?
उत्तर-
संस्कति के विकसित रूप को सभ्यता कहते हैं।

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अति लघु उतरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
संस्कृति क्या है ?
उत्तर-
हमारे रहन-सहन के ढंग, फिलासफी, भावनाएं, विचार, मशीनें इत्यादि सभी भौतिक तथा अभौतिक वस्तुएं संस्कृति का हिस्सा होती हैं। यह सभी वस्तुएं समूह की तरफ से उत्पन्न तथा प्रयोग की जाती हैं। इस प्रकार संस्कृति ऐसी वस्तु है जिस पर हम विचार तथा कार्य करके अपने पास रख सकते हैं।

प्रश्न 2.
संस्कृति की दो विशेषताएं बताएं।
उत्तर-

  1. संस्कृति को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तांतरित किया जाता है क्योंकि बच्चा अपने माता-पिता के व्यवहार से ही सीखता है।
  2. संस्कृति व्यक्ति की आवश्यकताएं पूर्ण करती है क्योंकि अगर किसी चीज़ का आविष्कार होता है तथा वह आविष्कार सभी की आवश्यकताएं पूर्ण करता है।

प्रश्न 3.
सभ्यता क्या होती है ?
उत्तर-
संस्कृति के विकसित रूप को ही सभ्यता कहा जाता है। जो भौतिक अथवा उपयोगी वस्तुओं के संगठन, जिनकी सहायता से मनुष्य ने प्राकृतिक तथा अप्राकृतिक वातावरण के ऊपर विजय प्राप्त की है तथा उस पर नियन्त्रण किया है, उसे ही सभ्यता कहा जाता है।

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प्रश्न 4.
पर संस्कृति ग्रहण क्या होता है ?
उत्तर-
पर संस्कृति ग्रहण एक प्रक्रिया है जिसमें दो संस्कृतियों के लोग एक-दूसरे के सम्पर्क में आते हैं तथा वह एक-दूसरे के सभी नहीं तो बहुत से तत्त्वों को ग्रहण करते हैं। इन तत्त्वों को ग्रहण करने की प्रक्रिया के साथ दोनों संस्कृतियों के बीच एक-दूसरे के प्रभाव के अन्तर्गत काफ़ी परिवर्तन आ जाता है।

प्रश्न 5.
सांस्कृतिक प्रसार।
उत्तर-
जब किसी एक समूह के सांस्कृतिक पैटर्न दूसरे समूह में भी प्रचलित हो जाते हैं तो इस प्रकार के प्रसार को सांस्कृतिक प्रसार कहते हैं। यह दो प्रकार का होता है। पहला सांस्कृतिक प्रसार अचानक तथा संयोग से होता है परन्तु दूसरी प्रकार का सांस्कृतिक प्रसार निर्देशित ढंग से प्रसारित किया जाता है।

प्रश्न 6.
सांस्कृतिक पैटर्न।
उत्तर-
जब तत्त्व तथा सांस्कृतिक परिवार आपस में काफ़ी हद तक संबंधित हो जाते हैं तो सांस्कृतिक पैटर्नो का निर्माण होता है। प्रत्येक सांस्कृतिक पैटर्न की समाज में कोई-न-कोई भूमिका अवश्य होती है जो उसे निभानी ही पड़ती है। उदाहरण के लिए परंपराएं।

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प्रश्न 7.
उप-संस्कृति।
उत्तर-
प्रत्येक विशेष समूह के कुछ सांस्कृतिक तत्त्व होते हैं । हिन्दुओं की अपनी एक संस्कृति होती है। हिन्दू संस्कृति भारतीय संस्कृति का ही एक भाग है। एक संस्कृति का एक हिस्सा, जो कुछ विशेषताओं पर आधारित होता है, उप-संस्कृति होता है।

लघु उतरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
संस्कृति।
उत्तर-
संस्कृति मानवीय समाज की विशेषता है, जो मानवीय समाज को पशु समाज से भिन्न करती है। व्यक्ति को सामाजिक व्यक्ति भी संस्कृति के द्वारा बनाया जा सकता है व एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को, एक समूह या एक समुदाय को दूसरे समूह या समुदायों द्वारा भिन्न भी किया जाता है। संस्कृति में हम वह सब चीजें शामिल करते हैं, जो कुछ भी मनुष्य समाज से ग्रहण करता है व सीखता है। जैसे रीति-रिवाज, कानून, पहरावा, संगीत, भाषा साहित्य, ज्ञान, आदर्श, लोकाचार, लोक रीतें इत्यादि। सामाजिक विरासत में शामिल हुई हर चीज़ संस्कृति कहलाती है।

प्रश्न 2.
क्या संस्कृति अमूर्त है ?
उत्तर-
संस्कृति मूर्त भी होती है व अमूर्त भी। इसमें जब हम भौतिक तत्त्वों जैसे कुर्सी, मकान, स्कूटर आदि के बारे में बात करते हैं अर्थात् ये सब वस्तुएं अमूर्त हैं। इसी कारण यह संस्कृति को मूर्त बताते हैं। परन्तु जब हम विश्वास, रीति-रिवाजों आदि की बात करते हैं तो ये सब वस्तुएं अमूर्त होती हैं। भाव कि इन्हें हम देख नहीं सकते। कहने का अर्थ यह है कि संस्कृति न केवल मूर्त है बल्कि अमूर्त भी है क्योंकि इसमें उपरोक्त दोनों तत्त्व पाए जाते है।

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प्रश्न 3.
संस्कृति की दो विशेषताएं।
उत्तर-
1. संस्कृति का संचार पीढ़ी-दर-पीढ़ी होता है (Transmited from generation to generation)—व्यक्ति अपनी पिछली पीढ़ियों के लिए कुछ न कुछ कर सकता है। कोई भी वस्तु नए सिरे से आरम्भ नहीं होती। यह संचार की प्रक्रिया होती है।

2. संस्कृति सामाजिक है (Culture is social) संस्कृति व्यक्तिगत नहीं बल्कि सामाजिक है क्योंकि समाज के अधिक संख्या वाले व्यक्ति उसको अपनाते हैं। सर्व व्यापक संस्कृति का अपनाया जाना ही इसका एक ज़रूरी तत्त्व है।

प्रश्न 4.
संस्कृति कैसे सामाजिक मानी जा सकती है ?
उत्तर-
संस्कृति व्यक्तिगत न होकर सामाजिक होती है। इसको समाज में बहु-गणना के द्वारा स्वीकारा जाता है। उदाहरण के तौर पर यदि किसी भौतिक या अभौतिक तत्त्व को समूह के दो या चार व्यक्ति ही अपनाएं तो यह तत्त्व संस्कृति नहीं कहे जा सकते। – परन्तु यदि इन तत्त्वों को समूह के सारे ही सदस्य स्वीकार कर लेते हैं तो यह संस्कृति बन जाती है। इसी कारण इसको सामाजिक कहा जाता है।

प्रश्न 5.
‘सांस्कृतिक पिछड़ापन’।
अथवा
सांस्कृतिक पश्चतता।
उत्तर-
अंग्रेजी के शब्द ‘lag’ का शाब्दिक अर्थ है to fall behind पीछे रह जाना। इसका अर्थ पीछे रह जाना या पिछड़ जाने से है। समाज में प्रत्येक वस्तु भिन्न-भिन्न भागों से मिल कर बनी होती है व समाज में पाए गए सभी भाग आपस में एक-दूसरे के साथ अन्तर्सम्बन्धी (Inter-related) भी होते हैं जब एक भाग में परिवर्तन आता है। डब्ल्यू० जी० ऑगबर्न (W. G. Ogburn) ने संस्कृति को दो भागों में बांटा-भौतिक संस्कृति व अभौतिक संस्कृति। इसके अनुसार एक हिस्से में पाया गया परिवर्तन दूसरे हिस्से को भी प्रभावित करता है। अर्थात् एक हिस्से में परिवर्तन तेज़ी से आता है व दूसरे में धीमी रफ्तार से। धीमी रफ़्तार से सम्बन्धित भाग कुछ देर पीछे रह जाता है परन्तु कुछ समय बीतने पर अपने आप परिवर्तन के अनुकूल बन जाता है। इनमें पाई गई यह दूरी सांस्कृतिक पिछड़ना कहलाती है।

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प्रश्न 6.
संस्कृति सीखा हुआ व्यवहार है।
उत्तर-
समाज में जब व्यक्ति जन्म लेता है। वह जैविक मानव कहलाता है। परन्तु समाज में रह कर वह समाज के दूसरे व्यक्तियों से सम्पर्क स्थापित कर लेता है। इस सम्पर्क से उसकी बाकी समाज के मैम्बरों से अन्तक्रिया (Interaction) शुरू हो जाती है। इसके शुरू होने के बाद सीखने की प्रक्रिया भी शुरू हो जाती है। यह सीखने की प्रक्रिया व्यक्ति को मानवीय जीव से सांस्कृतिक जीव बना देती है। इस प्रकार संस्कृति सीखा गया व्यवहार होती है।

प्रश्न 7.
पर संस्कृति ग्रहण।
अथवा
सांस्कृतिक संक्रमण।
उत्तर-
पर संस्कृति ग्रहण एक ऐसी प्रक्रिया है जो अलग-अलग पृष्ठभूमियों तथा व्यक्तियों के लगातार सम्पर्क के कारण विकसित होती है। इस कारण मूल संस्कृति तथा दूसरी संस्कृति में परिवर्तन होती है। मैलिनोवस्की के अनूसार पर संस्कृति ग्रहण करने के दो कारण होते हैं। पहला तो वह कारण है जिनका विकास स्वाभाविक रूप में होता है तथा दूसरा जब अलग-अलग संस्कृतियां एक-दूसरे को प्रभावित करती हैं।

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बड़े उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
सभ्यता क्या होती है ? संस्कृति एवं सभ्यता में क्या अन्तर होता है ? .
उत्तर-
संस्कृति के दो भाग होते हैं-(1) भौतिक (2) अभौतिक। भौतिक वस्तुओं में वह सभी वस्तुएं आती हैं, जिन्हें हम स्पर्श कर सकते हैं, देख सकते हैं, जैसे-कुर्सी, मेज़, किताब, इमारत एवं कार, जहाज़ इत्यादि। अभौतिक वस्तुओं में वह वस्तुएं शामिल हैं जिन्हें हम न देख सकते हैं, न ही स्पर्श कर सकते हैं केवल महसूस कर सकते हैं जैसे-विचार, भावनाएं, व्यवहार करने के तरीके, धर्म, संस्कार, आदर्श, इत्यादि। भौतिक संस्कृति मूर्त (Concrete) होती है और अभौतिक संस्कृति अमूर्त होती है। इससे ही सभ्यता का अर्थ भी निकाला जाता है। जो भौतिक एवं उपयोगी वस्तुएं या हथियारों एवं संगठनों, जिनकी सहायता के साथ मनुष्य ने प्राकृतिक और अप्राकृतिक वातावरण के ऊपर विजय प्राप्त की और उस पर नियन्त्रण किया है, को सभ्यता कहते हैं। ये सभी वस्तुएं हमारी सभ्यता का ही भाग हैं। सभ्यता को वास्तव में संस्कृति का विकसित रूप ही कहा जाता है। संस्कृति में वह सब कुछ शामिल होता है, जो व्यक्ति ने आरम्भ से लेकर अब तक प्राप्त किया, पर सभ्यता वह है जिससे मनुष्य आधुनिक बना। सभ्यता का सही अर्थ जानने के लिये यह आवश्यक है कि हम प्रसिद्ध समाजशास्त्रियों की सभ्यता के बारे में दी गई परिभाषाएं जान लें। समाज के अनुसार, “सभ्यता संस्कृति का विकसित एवं जटिल रूप है और यह एक तुलनात्मक शब्द है।”

1. वैबर (Weber) के अनुसार, “सभ्यता में उपयोगी भौतिक पदार्थ और उसका निर्माण करने और प्रयोग करने वाली विधियां शामिल होती हैं।”

2. फिचटर (Fichter) के अनुसार, “सभ्यता को Civilized या सभ्य व्यक्तियों के साथ जोड़ा गया है। उनके अनुसार सभ्य व्यक्ति वह लोग हैं, जो अपने विचारों में स्थिर, पढ़े-लिखे एवं जटिल होते हैं।”

3. ऑगबर्न एवं निमकॉफ (Ogburn and Nimkoff) के अनुसार, “परजीवी संस्कृति के पश्चात् की अवस्था के रूप में सभ्यता की परिभाषा दी जा सकती है।”
इन परिभाषाओं से पता चलता है ऑगबर्न एवं निमकौफ के अनुसार, “सभ्यता संस्कृति का सुधरा हुआ रूप और बाद की अवस्था है।”

4. ग्रीन (Green) के अनुसार, “एक संस्कृति सभ्यता तब बनती है जब उसके पास एक लिखित भाषा, विज्ञान, दर्शन, बहुत अधिक विशेषीकरण वाला श्रम विभाजन, एक जटिल, तकनीकी एवं राजनीतिक पद्धति हो।”

5. गिलिन एवं गिलिन (Gillen and Gillen) के अनुसार, “संस्कृति के अधिक विकसित एवं जटिल रूप को ही सभ्यता कहा जाता है।”

6. मैकाइवर (MacIver) के अनुसार, “सभ्यता आवश्यकताओं को पूरा करने का साधन है। मैकाइवर कहता है कि सभ्यता भौतिक संस्कृति होती है और इसमें वे सब वस्तुएं आती हैं जो उपयोगी हों। इसी प्रकार पुनः मैकाइवर के अनुसार, “सभ्यता का अर्थ उपयोगी वस्तुएं जीवन की स्थितियों को नियन्त्रित करने के लिये मानव के द्वारा योजित सभी संगठन एवं पत्रकर्ता है।”

इस तरह इन परिभाषाओं को देखने के पश्चात् हम कह सकते हैं कि संस्कृति का सुधरा हुआ रूप ही सभ्यता है तथा समाजशास्त्रियों ने सभ्यता को संस्कृति से उच्च स्तर का माना है। परन्तु यहां पर आकर एक मुश्किल खड़ी हो जाती है और वह मुश्किल है कि समाजशास्त्री ‘मैकाइवर और पेज’ इस बात से सहमत नहीं कि केवल भौतिक वस्तुएं ही सभ्यता का भाग हैं। उनके अनुसार भौतिक, धार्मिक, विचारों, भावनाओं, आदर्शों इत्यादि की उन्नति व तरक्की भी संस्कृति का भाग बननी चाहिए।

मैकाइवर व पेज के अनुसार मानव द्वारा बनाई गई सभी वस्तुएं जैसे-मोटर कार, बैंक, पैसा, नोट, इमारतें इत्यादि सभी सभ्यता का भाग हैं। परन्तु यह सब वस्तुएं समाज के बीच रहते हुए, सामाजिक अवस्थाओं को ध्यान में रखते हुए विकसित हुईं। इसके लिये मनुष्य के भौतिक पक्ष के अतिरिक्त सामाजिक पक्ष को भी इसमें शामिल करना चाहिये। इसलिये संस्कृति में धर्म, कला, दर्शन, साहित्य, भावनाएं आदि वस्तुओं को शामिल करना चाहिये। इस तरह उनके अनुसार मानव निर्मित भौतिक वस्तुएं सभ्यता ही हैं और मानव निर्मित अभौतिक वस्तुएं संस्कृति ही है। यहां आकर हमें संस्कृति एवं सभ्यता में कई प्रकार के अंतरों का पता चलता है जिनका वर्णन निम्नलिखित है-

1. सभ्यता उन्नति करती है पर संस्कृति नहीं (Civilization always develops But not the Culture) यदि हम अपने पुराने समय और आजकल के आधुनिक समय की तुलना करें तो यह बात स्पष्ट हो जाती है कि सभ्यता तो उन्नति करती है परन्तु संस्कृति नहीं करती। क्योंकि मशीनें, कारें, मोटरें या आप कह सकते हैं कि भौतिक वस्तुओं में तो समय-समय पर उन्नति आई है, परन्तु धर्म, कला, विचारों आदि के बारे में आप ऐसा नहीं कह सकते जो अभौतिक संस्कृति का ही भाग है। क्या आजकल के लोगों के विचार, धार्मिक भावनाएं आदि पहले समय के लोगों से अधिक ऊंचे एवं उन्नत हैं ? शायद नहीं। इस तरह हम कह सकते हैं कि सभ्यता उन्नति करती है, संस्कृति नहीं।

2. सभ्यता को बिना परिवर्तन के ग्रहण किया जा सकता है, परन्तु संस्कृति को नहीं (Civilization can be taken without change but not Culture)—यह बात बिल्कुल नहीं कि सभ्यता को बिना परिवर्तन के ग्रहण किया जा सकता है परन्तु संस्कृति को नहीं। किसी भी मशीन, ट्रेक्टर, मोटर कार इत्यादि को बिना परिवर्तन के एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में स्थानांतरित किया जा सकता है कि नहीं, यही वस्तुओं, विचार, आदर्शों इत्यादि में भी हो सकता है। शायद नहीं। विचारों, धर्म, आदर्शों इत्यादि को बिना परिवर्तन आदि के ग्रहण नहीं किया जा सकता। क्योंकि विचार धर्म, आदर्श, जैसे-जैसे अगली पीढ़ी को सौंप दिये जाते हैं, उनमें परिवर्तन आना स्वाभाविक है। उदाहरण के लिये अरब देशों के मुसलमानों में और भारतीय मुसलमानों में काफ़ी अन्तर है। इस तरह भारतीय इसाइयों एवं यूरोपीय इसाइयों में काफ़ी अन्तर है।

3. संस्कति आन्तरिक होती है पर सभ्यता बाहरी है (Culture is Internal but Civilization is External)-सभ्यता में बाहर की बहुत-सी वस्तुएं शामिल हैं। इसलिये यह मूर्त (Concrete) है। संस्कृति के बीच व्यक्ति के अन्दर की वस्तुएं जैसे-विचार, भावना, धर्म, आदर्श, व्यवहार के तरीके आदि शामिल हैं। इसलिये यह बाहरी है और अमूर्त (Abstract) है। सभ्यता संस्कृति को प्रकट करती है।

4. सभ्यता को मापा जा सकता है पर संस्कृति को नहीं (Civilization can be measured But not Culture)-सभ्यता को मापा जा सकता है पर संस्कृति को नहीं। सभ्यता के बीच आने वाली सभी वस्तुएं उपयोग होने वाली होती हैं और इनको निश्चित मापदण्डों में रखकर मापा जा सकता है। पर संस्कृति में आने वाली वस्तुएं जैसे-आदर्शों, धर्म, व्यवहार के तरीके, भावनाएं इत्यादि को कौन-से मापदण्डों में रखकर मापेंगे। ये तो बनाये ही नहीं जा सकते। इस तरह हम कह सकते हैं कि सभ्यता को मापा जा सकता है पर संस्कृति को नहीं।

5. सभ्यता बिना कोशिशों से संचारित हो सकती है पर संस्कृति नहीं (Civilization can be passed without efforts but not Culture)-सभ्यता में वह सभी वस्तुएं आती हैं जिनका व्यक्तियों द्वारा उपयोग होता है। क्योंकि इनका सम्बन्ध व्यक्ति के बाहरी जीवन के साथ होता है इसलिये इनको अगली पीढ़ी या किसी और देश को देने के लिये किसी कोशिश की आवश्यकता नहीं पड़ती। पर संस्कृति इसके विपरीत है। संस्कृति का सम्बन्ध उन सभी वस्तुओं से है, जो हमारे अन्दर हैं, जिनको कोई देख नहीं सकता। इनको एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक न पहुंचाया जाए तो यह उस व्यक्ति तक ही समाप्त हो जाएंगी। इसलिये इनको एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक पहुंचाने के लिये किसी विशेष प्रयत्न की आवश्यकता होती है। सभ्यता बिना किसी कोशिश के अपनाई जा सकती है परन्तु संस्कृति को इस तरह अपनाया नहीं जा सकता।

6. सभ्यता बिना हानि के ग्रहण की जा सकती है परन्तु संस्कृति नहीं (Civilization borrowed without change But not Culture)-सभ्यता के कारण ही संचार के साधन विकसित हुए हैं जिसके कारण सभ्यता के सभी साधन संसार में फैल जाते हैं। कितने टी०वी०, रेडियो, किसी एक देश के अधिकार में नहीं हैं। प्रत्येक देश तकनीकी अनुसंधान कर रहा है और प्रत्येक देश इन अनुसंधानों का आपस में आदान-प्रदान कर रहे हैं। सभ्यता को अपनी परिस्थिति के अनुसार थोड़ा-बहुत बदला जा सकता है परन्तु संस्कृति का पूरी तरह त्याग नहीं कर सकते। इस तरह सभ्यता का विस्तार आसानी से, जल्दी और अच्छे बुरे की चिन्ता के बिना होता है परन्तु संस्कृति में परिवर्तन संकोच के साथ होता है।

यद्यपि उपरोक्त संस्कृति एवं सभ्यता में परिवर्तन बताया गया है परन्तु फिर भी दोनों एक-दूसरे से अलग नहीं रह सकते। सभ्यता की कई वस्तुएं संस्कृति की तरफ से प्रभावित होती हैं। सभ्यता की कई वस्तुएं संस्कृति का स्वरूप धारण कर लेती हैं। संस्कृति का उत्पादन किसी-न-किसी तकनीकी प्रक्रिया के ऊपर निर्भर करता है। संक्षेप में सभ्यता समाज की चालक शक्ति है और संस्कृति समाज को दिशा दिखाती है।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 5 संस्कृति

संस्कृति PSEB 11th Class Sociology Notes

  • मनुष्य को जो वस्तु जानवरों से अलग करती है वह है संस्कृति जो मनुष्यों के पास है परन्तु जानवरों के पास नहीं है। अगर मनुष्यों से संस्कृति छीन ली जाए तो वह भी जानवरों के समान ही हो जाएगा। इस प्रकार संस्कृति तथा समाज दोनों ही एक-दूसरे साथ गहरे रूप से अन्तर्सम्बन्धित हैं।
  • मनुष्य ने आदि काल से लेकर आज तक जो कुछ भी प्राप्त किया है वह उसकी संस्कृति है। संस्कृति एक सीखा हुआ व्यवहार है जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी हस्तांतरित किया जाता है। व्यक्ति इसको केवल उस समय ही प्राप्त कर सकता है जब वह किसी समाज का सदस्य होता है।
  • संस्कृति के दो प्रकार होते हैं-भौतिक संस्कृति तथा अभौतिक संस्कृति । भौतिक संस्कृति में वह सब कुछ शामिल है जिसे हम देख या स्पर्श कर सकते हैं जैसे कि कुर्सी, टेबल, कार, पैन, घर इत्यादि। अभौतिक संस्कृति में वह सब कुछ शामिल है जिसे हम देख या स्पर्श नहीं कर सकते जैसे कि हमारे विचार, नियम, परिमाप इत्यादि।
  • संस्कृति तथा परंपराएं एक दूसरे से गहरे रूप से संबंधित हैं। इस प्रकार सामाजिक परिमाप तथा कीमतें भी संस्कृति का महत्त्वपूर्ण हिस्सा होते हैं। अगर इन्हें संस्कृति में से निकाल दिया जाए तो शायद संस्कृति में कुछ भी नहीं बचेगा।
  • संस्कृति के दो भाग होते हैं-भौतिक तथा अभौतिक। इन दोनों भागों में परिवर्तन आते हैं परन्त भौतिक संस्कृति में परिवर्तन तेज़ी से आते हैं तथा अभौतिक संस्कृति में धीरे-धीरे। इस कारण दोनों भागों में अंतर उत्पन्न हो जाता है। भौतिक भाग आगे निकल जाता है तथा अभौतिक भाग पीछे रह जाता है। इस अंतर को सांस्कृतिक पिछड़ापन कहा जाता है।
  • संस्कृति में परिवर्तन आने का अर्थ है समाज के पैटर्न में परिवर्तन आना। यह परिवर्तन अंदरूनी तथा बाहरी कारकों के कारण आता है।
  • संस्कृति (Culture)-आदि काल से लेकर आज तक मनुष्य ने जो कुछ भी प्राप्त किया है वह उसकी संस्कृति है।
  • भौतिक संस्कृति (Material Culture)-संस्कृति का वह भाग जिसे हम देख या स्पर्श कर सकते हैं।
  • अभौतिक संस्कृति (Non-Material Culture)—संस्कृति का वह भाग जिसे हम देख या स्पर्श नहीं कर सकते।
  • सांस्कृतिक पिछड़ापन (Cultural Lag)—संस्कृति के दोनों भागों में परिवर्तन आने से भौतिक संस्कृति आगे निकल जाती है तथा अभौतिक संस्कृति पीछे रह जाती है। दोनों के बीच उत्पन्न हुए अंतर को सांस्कृतिक पिछड़ापन कहते हैं।
  • परिमाप (Norms)-समाज में स्थापित व्यवहार करने के वह तरीके जिन्हें सभी लोग मानते हैं।
  • कीमतें (Values)—वह नियम जिन्हें मानने की सबसे आशा की जाती है।
  • सांस्कृतिक परिवर्तन (Cultural Change)—वह तरीका जिसमें समाज अपनी संस्कृति के पैटर्न बदल लेता है।