PSEB 12th Class History Solutions Chapter 5 गुरु अंगद देव जी, गुरु अमरदास जी और गुरु रामदास जी के अधीन सिख धर्म का विकास

Punjab State Board PSEB 12th Class History Book Solutions Chapter 5 गुरु अंगद देव जी, गुरु अमरदास जी और गुरु रामदास जी के अधीन सिख धर्म का विकास Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 History Chapter 5 गुरु अंगद देव जी, गुरु अमरदास जी और गुरु रामदास जी के अधीन सिख धर्म का विकास

निबंधात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

गरु अंगद देव जी का प्रारंभिक जीवन (Early Career of Guru Angad Dev Ji)

प्रश्न 1.
गुरु अंगद देव जी के प्रारंभिक जीवन के बारे में आप क्या जानते हैं ? संक्षिप्त वर्णन करें। (What do you know about the early career of Guru Angad Dev Ji ? Explain briefly.)
उत्तर-
गुरु अंगद देव जी अथवा भाई लहणा जी सिखों के दूसरे गुरु थे। उनका गुरु काल 1539 ई० से 1552 ई० तक रहा। गुरु अंगद देव जी के प्रारंभिक जीवन का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है—

1.जन्म और माता-पिता (Birth and Parentage)-गुरु अंगद देव जी का पहला नाम भाई लहणा जी था। उनका जन्म 31 मार्च, 1504 ई० को मत्ते की सराय नामक गाँव में हुआ। आपके पिता जी का नाम फेरूमल था तथा वह क्षत्रिय परिवार से संबंध रखते थे। लहणा जी की माता जी का नाम सभराई देवी था। वह बहुत धार्मिक विचारों वाली स्त्री थी। भाई लहणा जी पर उनके धार्मिक विचारों का गहरा प्रभाव पड़ा।

2. बचपन और विवाह (Childhood and Marriage)-भाई लहणा जी जब युवा हुए तो वह अपने पिता जी के कार्य में हाथ बंटाने लगें। 15 वर्ष के होने पर उनका विवाह उसी गाँव के निवासी श्री देवी चंद की सुपुत्री बीबी खीवी जी के साथ कर दिया गया। आपके घर दो पुत्रों दातू और दासू तथा दो पुत्रियों बीबी अमरो और बीबी अनोखी ने जन्म लिया। 1526 ई० में बाबर के पंजाब आक्रमण के समय फेरूमल जी अपने परिवार को लेकर खडूर साहिब नामक गाँव में आ गए। शीघ्र ही फेरूमल जी का देहांत हो गया, जिस कारण परिवार का समूचा उत्तरदायित्व भाई लहणा जी के कंधों पर आ पड़ा।

3. लहणा जी गुरु नानक देव जी के अनुयायी बने (Lehna Ji becomes the disciple of Guru Nanak Dev Ji)-भाई लहणा जी गुरु नानक देव जी से भेंट करने से पूर्व दुर्गा माता के भक्त थे। वह प्रतिवर्ष ज्वालामुखी (जिला काँगड़ा) देवी के दर्शन के लिए जाते थे। एक दिन खडूर साहिब में भाई जोधा जी के मुख से ‘आसा दी वार’ का पाठ सुना। यह पाठ सुनकर भाई लहणा जी इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने गुरु नानक देव जी के दर्शन करने का दृढ़ निश्चय कर लिया। आगामी वर्ष जब भाई लहणा जी ज्वालामुखी की यात्रा के लिए निकले तो वह मार्ग में करतारपुर में गुरु नानक देव जी के दर्शनों के लिए रुके। वह गुरु साहिब के महान् व्यक्तित्व और मधुर वाणी को सुनकर अत्यधिक प्रभावित हुए, इसलिए भाई लहणा जी गुरु नानक देव जी के अनुयायी बन गए और गुरु-चरणों में ही अपना जीवन व्यतीत करने का निर्णय किया।

4. गुरुगद्दी की प्राप्ति (Assumption of Guruship)-भाई लहणा जी ने पूर्ण श्रद्धा के साथ गुरु नानक साहिब की अथक सेवा की। भाई लहणा की सच्ची भक्ति और अपार प्रेम को देखकर गुरु नानक देव जी ने गुरुगद्दी उनके सुपुर्द करने का निर्णय किया। गुरु नानक साहिब ने एक नारियल और पाँच पैसे भाई लहणा जी के सम्मुख रखकर उन्हें अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया। भाई लहणा को अंगद का नाम दिया गया। यह घटना 7 सितंबर, 1539 ई० की है। गुरु नानक साहिब द्वारा गुरु अंगद देव जी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त करना सिख-इतिहास की एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण घटना मानी जाती है। यदि गुरु नानक साहिब अपने ज्योति-जोत समाने से पूर्व ऐसा न करते तो निस्संदेह सिख धर्म का अस्तित्व लुप्त हो जाना था। इसका कारण यह था कि सिख धर्म अभी अच्छी प्रकार से संगठित नहीं था। गुरु नानक देव जी के उपदेशों से जो लोग प्रभावित हुए थे उनकी संख्या दूसरे लोगों की अपेक्षा नगण्य थी। गुरु अंगद देव जी की नियुक्ति से सिख धर्म को एक निश्चित दिशा प्राप्त हुई तथा इसका आधार मज़बूत हुआ। जी० सी० नारंग का यह कहना पूर्णत: सही है,

“यदि गुरु नानक जी उत्तराधिकारी की नियुक्ति के बिना ही ज्योति जोत समा जाते तो आज सिख धर्म नहीं होना था।”1

गुरु अंगद देव जी के अधीन सिरव धर्म का विकास (Development of Sikhism Under Guru Angad Dev Ji)

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 5 गुरु अंगद देव जी, गुरु अमरदास जी और गुरु रामदास जी के अधीन सिख धर्म का विकास

प्रश्न 2.
सिख-धर्म के विकास में गुरु अंगद देव जी का क्या योगदान है ? वर्णन कीजिए ।
(What is the contribution of Guru Angad Dev Ji to the development of Sikhism ? Explain.)
अथवा
सिख धर्म के आरंभिक विकास में गुरु अंगद देव जी का क्या योगदान था ?
(What was the contribution of Guru Angad Dev Ji to the early development of Sikhism ?)
उत्तर-
गुरु अंगद देव जी 1539 ई० में सिखों के दूसरे गुरु बने। वह 1552 ई० तक गुरुगद्दी पर आसीन रहे। जिस समय गुरु अंगद देव जी गुरुगद्दी पर बैठे थे, उस समय सिख पंथ के सामने कई संकट विद्यमान थे। पहला सिख धर्म का हिंदू धर्म में विलीन हो जाने का खतरा था। दूसरा बड़ा ख़तरा उदासियों से था। सिख अनुयायियों की कम संख्या होने के कारण बहुत से सिख उदासी मत में शामिल होते जा रहे थे। गुरु अंगद साहिब ने अपने यत्नों से सिख पंथ के सम्मुख विद्यमान इन खतरों को दूर किया। गुरु अंगद साहिब ने सिख पंथ के विकास में जो महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई उसका वर्णन निम्नलिखित अनुसार है—

1. गुरमुखी को लोकप्रिय बनाना (Popularisation of Gurmukhi)-गुरुं अंगद देव जी ने गुरमुखी लिपि को लोकप्रिय बनाने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने इसके रूप में एक नया निखार लाया। अब इस लिपि को समझना सामान्य लोगों के लिए सरल हो गया। सिखों के सभी धार्मिक ग्रंथों की रचना इस लिपि में हुई। इस लिपि का नाम गुरमुखी [गुरुओं के मुख से निकली हुई] होने के कारण यह सिखों को गुरु के प्रति अपने कर्तव्य का स्मरण दिलाती रही। इस प्रकार यह लिपि सिखों की अपनी अलग पहचान बनाए रखने में सहायक सिद्ध हुई। इस लिपि के प्रसार के कारण सिखों में तीव्रता से विद्या का प्रसार भी होने लगा। एच० एस० भाटिया एवं एस० आर० बख्शी के अनुसार,
“गुरु अंगद देव जी ने सिखों को हिंदुओं एवं मुसलमानों से एक अलग भाषा दी तथा उन्हें यह अनुभव करवाया कि वे अलग लोग हैं।”2.

2. वाणी का संग्रह (Collection of Hymns)-गुरु अंगद देव जी का दूसरा महान् कार्य गुरु नानक देव जी की वाणी को एकत्रित करना था। यह वाणी एक स्थान पर न होकर अलग-अलग स्थानों पर बिखरी हुई थी। गुरु अंगद साहिब ने इस समूची वाणी को एकत्रित किया। सिख परंपराओं के अनुसार गुरु अंगद देव जी ने एक श्रद्धालु सिख भाई बाला जी को बुलाकर गुरु नानक साहिब के जीवन के संबंध में भाई पैड़ा मौखा जी से एक जन्म साखी लिखवाई। इस साखी को भाई बाला जी की जन्म साखी के नाम से जाना जाता है। कुछ विद्वान् इस तथ्य से सहमत नहीं हैं कि भाई बाला जी की जन्म साखी को गुरु अंगद देव जी के समय लिखा गया था। गुरु अंगद साहिब ने स्वयं ‘नानक’ के नाम से वाणी की रचना की। इस प्रकार गुरु अंगद देव जी ने वाणी के वास्तविक रूप को बिगड़ने से बचाया। दूसरा, इसने आदि ग्रंथ साहिब जी की तैयारी के लिए महत्त्वपूर्ण आधार तैयार किया।

3. लंगर प्रथा का विस्तार (Expansion of Langar System)-लंगर प्रथा के विकास का श्रेय गुरु अंगद देव जी को जाता है। लंगर का समूचा प्रबंध उनकी धर्म पत्नी बीबी खीवी जी करते थे। लंगर में सभी व्यक्ति बिना किसी ऊँच-नीच, जाति के भेदभाव के इकट्ठे मिलकर छकते थे। इस लंगर के लिए सारी माया गुरु जी के सिख देते थे। इस प्रथा के कारण सिखों में परस्पर सहयोग की भावना बढ़ी। इसने हिंदू समाज में फैली जाति-प्रथा पर कड़ा प्रहार किया। इस प्रकार इस संस्था ने सामाजिक एवं आर्थिक असमानता को दूर करने में प्रशंसनीय योगदान दिया। इसके कारण सिख धर्म की ख्याति दूर-दूर तक फैल गई। प्रसिद्ध इतिहासकार प्रोफैसर हरबंस सिंह का यह कहना पूर्णतः सही है, “सामाजिक क्रांति लाने में यह (लंगर) संस्था महत्त्वपूर्ण साधन सिद्ध हुई।”3

4. संगत का संगठन (Organisation of Sangat)-गुरु अंगद देव जी ने गुरु नानक देव जी द्वारा स्थापित संगत संस्था को भी संगठित किया। संगत से अभिप्राय था-एकत्रित होकर बैठना। संगत में सभी धर्मों के लोगस्त्री और पुरुष भाग ले सकते थे। यह संगत सुबह-शाम गुरु जी के उपदेशों को सुनने के लिए एकत्रित होती थी। इस संस्था ने सामाजिक असमानता को दूर करने तथा सिखों को संगठित करने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।

5. उदासी मत का खंडन (Denunciation of the Udasi Sect)-उदासी मत की स्थापना गुरु नानक देव जी के बड़े सुपुत्र बाबा श्रीचंद जी ने की थी। यह मत संन्यास अथवा त्याग के जीवन पर बल देता था। बहुत से सिख उदासी मत को मान्यता देने लग पड़े थे। ऐसी परिस्थितियों में यह संकट उत्पन्न हो गया था कि कहीं सिख गुरु नानक देव जी उपदेशों को भूल कर उदासी मत न अपना लें। अतः गुरु अंगद देव जी ने उदासी मत का कड़ा विरोध किया तथा स्पष्ट किया कि उदासी मत के सिद्धांत सिख धर्म के सिद्धांतों से.सर्वथा विपरीत हैं एवं जो सिख उदासी मत में विश्वास रखता है, वह सच्चा सिख नहीं हो सकता। इस प्रकार गुरु अंगद देव जी ने सिख मत के अस्तित्व को बनाए रखा।

6. शारीरिक शिक्षा (Physical Training)-गुरु अंगद देव जी यह मानते थे कि जिस प्रकार आत्मा की उन्नति के लिए नाम का जाप करना आवश्यक है, ठीक उसी प्रकार शारीरिक स्वस्थता के लिए व्यायाम करना भी आवश्यक है। इस उद्देश्य के साथ गुरु जी ने खडूर साहिब में एक अखाड़ा बनवाया। यहाँ सिख प्रतिदिन प्रातःकाल मल्ल युद्ध तथा अन्य व्यायाम करते थे।

7. गोइंदवाल साहिब की स्थापना (Foundation of Goindwal Sahib)-गुरु अंगद देव जी ने खडूर साहिब के समीप गोइंदवाल साहिब नामक एक नए नगर की स्थापना की। इस नगर का निर्माण कार्य एक श्रद्धालु सेवक अमरदास की देख-रेख में 1546 ई० में आरंभ हुआ। यह नगर शीघ्र ही सिखों का एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थान बन गया।

8. हुमायूँ से भेंट (Meeting with Humayun)-1540 ई० में मुग़ल बादशाह हुमायूँ शेरशाह सूरी के हाथों पराजय के पश्चात् पंजाब पहुँचा। वह खडूर साहिब गुरु अंगद देव जी से आशीर्वाद लेने के लिए पहुँचा। उस समय गुरु जी समाधि में लीन थे। हुमायूँ ने इसे अपना अपमान समझकर तलवार निकाल ली। उस समय गुरु जी ने अपनी आँखें खोली और हुमायूँ से कहा कि, “यह तलवार जिसका तुम मुझ पर प्रयोग करने लगे हो, वह तलवार शेरशाह सूरी के विरुद्ध लड़ाई करते समय कहाँ थी ?” ये शब्द सुनकर हुमायूँ अत्यंत लज्जित हुआ और उसने गुरु जी से क्षमा माँगी। गुरु जी ने हुमायूँ को आशीर्वाद देते हुए कहा कि तुम्हें कुछ समय प्रतीक्षा करने के पश्चात् राज्य सिंहासन प्राप्त होगा। गुरु जी की यह भविष्यवाणी सत्य निकली। इस भेंट के कारण सिखों तथा मुग़लों के मध्य मैत्रीपूर्ण संबंध स्थापित हुए।

9. उत्तराधिकारी की नियुक्ति (Nomination of the Successor)-गुरु अंगद देव जी का सिख पंथ के विकास के लिए सबसे महान् कार्य अमरदास जी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त करना था। गुरु अंगद देव जी ने काफ़ी सोच-समझकर इस उच्च पद के लिए अमरदास जी का चुनाव किया। गुरु जी ने अमरदास जी के सम्मुख एक नारियल और पाँच पैसे रखकर अपना शीश झुकाया। इस प्रकार अमरदास जी को सिखों का तीसरा गुरु नियुक्त किया गया। गुरु अंगद देव जी 29 मार्च, 1552 ई० को ज्योति जोत समा गए।

10. गुरु अंगद देव जी की सफलताओं का मूल्याँकन (Estimate of Guru Angad Dev Ji’s Achievements)-इस प्रकार हम देखते हैं कि गुरु अंगद देव जी ने अपनी गुरुगद्दी के काल में सिख पंथ के विकास में बहुत प्रशंसनीय योगदान दिया। गुरु जी ने गुरमुखी लिपि का प्रचार करके, गुरु नानक साहिब की वाणी को एकत्रित करके, संगत और पंगत संस्थाओं का विस्तार करके, सिख पंथ को उदासी मत से अलग करके, गोइंदवाल साहिब की स्थापना करके और अपना उत्तराधिकारी नियुक्त करके सिख पंथ की नींव को और सुदृढ़ किया। गुरु अंगद देव जी की सफलताओं का मूल्यांकन करते हुए प्रसिद्ध इतिहासकार के० एस० दुग्गल का कहना है,

“यह आश्चर्य वाली बात है कि गुरु अंगद साहिब ने अपने अल्प समय के दौरान कितनी अधिक सफलता प्राप्त कर ली थी।”4
एक अन्य प्रसिद्ध इतिहासकार एस० एस० जौहर के अनुसार,
“गुरु अंगद देव जी का गुरु काल सिख पंथ के इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण मोड़ था।”5

1. “Had Nanak died without a successor, there would have been no Sikhism today.” G.C. Narang, Transformation of Sikhism (New Delhi : 1989) p. 29.
2. “Guru Angad Dev Ji gave the Sikhs a written language different from the language of the Hindus and Muslims and thus made them realise that they were separate people.” H.S. Bhatia and S.R. Bakshi, Encyclopaedic History of the Sikhs and Sikhism (New Delhi : 1999) Vol. 1, p. 12.
3. “This served as an instrument of a far-reaching social revolution.” Prof. Harbans Singh, The Heritage of the Sikhs (Delhi : 1994) p. 31.
4. “It is amazing how much Guru Angad could achieve in the short time at his disposal.” K.S. Duggal, The Sikh Gurus : Their Lives and Teachings (New Delhi : 1993) p. 71.
5. “The pontificate of Guru Angad Dev is indeed a turning point in the history of Sikh faith.” S.S. Johar, Handbook on Sikhism (Delhi : 1979) p. 26.

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 5 गुरु अंगद देव जी, गुरु अमरदास जी और गुरु रामदास जी के अधीन सिख धर्म का विकास

प्रश्न 3.
गुरु अंगद देव जी के जीवन तथा सिख पंथ के विकास में उनके योगदान की चर्चा करें।
(Discuss the life and contribution of Guru Angad Dev Ji to the development of Sikhism.)
अथवा
गुरु अंगद देव जी के जीवन एवं सफलता का संक्षिप्त वर्णन करें। (Describe in brief, the life and achievements of Guru Angad Dev Ji.)
उत्तर-
गुरु अंगद देव जी 1539 ई० में सिखों के दूसरे गुरु बने। वह 1552 ई० तक गुरुगद्दी पर आसीन रहे। जिस समय गुरु अंगद देव जी गुरुगद्दी पर बैठे थे, उस समय सिख पंथ के सामने कई संकट विद्यमान थे। पहला सिख धर्म का हिंदू धर्म में विलीन हो जाने का खतरा था। दूसरा बड़ा ख़तरा उदासियों से था। सिख अनुयायियों की कम संख्या होने के कारण बहुत से सिख उदासी मत में शामिल होते जा रहे थे। गुरु अंगद साहिब ने अपने यत्नों से सिख पंथ के सम्मुख विद्यमान इन खतरों को दूर किया। गुरु अंगद साहिब ने सिख पंथ के विकास में जो महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई उसका वर्णन निम्नलिखित अनुसार है—

1. गुरमुखी को लोकप्रिय बनाना (Popularisation of Gurmukhi)-गुरुं अंगद देव जी ने गुरमुखी लिपि को लोकप्रिय बनाने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने इसके रूप में एक नया निखार लाया। अब इस लिपि को समझना सामान्य लोगों के लिए सरल हो गया। सिखों के सभी धार्मिक ग्रंथों की रचना इस लिपि में हुई। इस लिपि का नाम गुरमुखी [गुरुओं के मुख से निकली हुई] होने के कारण यह सिखों को गुरु के प्रति अपने कर्तव्य का स्मरण दिलाती रही। इस प्रकार यह लिपि सिखों की अपनी अलग पहचान बनाए रखने में सहायक सिद्ध हुई। इस लिपि के प्रसार के कारण सिखों में तीव्रता से विद्या का प्रसार भी होने लगा। एच० एस० भाटिया एवं एस० आर० बख्शी के अनुसार,
“गुरु अंगद देव जी ने सिखों को हिंदुओं एवं मुसलमानों से एक अलग भाषा दी तथा उन्हें यह अनुभव करवाया कि वे अलग लोग हैं।”2.

2. वाणी का संग्रह (Collection of Hymns)-गुरु अंगद देव जी का दूसरा महान् कार्य गुरु नानक देव जी की वाणी को एकत्रित करना था। यह वाणी एक स्थान पर न होकर अलग-अलग स्थानों पर बिखरी हुई थी। गुरु अंगद साहिब ने इस समूची वाणी को एकत्रित किया। सिख परंपराओं के अनुसार गुरु अंगद देव जी ने एक श्रद्धालु सिख भाई बाला जी को बुलाकर गुरु नानक साहिब के जीवन के संबंध में भाई पैड़ा मौखा जी से एक जन्म साखी लिखवाई। इस साखी को भाई बाला जी की जन्म साखी के नाम से जाना जाता है। कुछ विद्वान् इस तथ्य से सहमत नहीं हैं कि भाई बाला जी की जन्म साखी को गुरु अंगद देव जी के समय लिखा गया था। गुरु अंगद साहिब ने स्वयं ‘नानक’ के नाम से वाणी की रचना की। इस प्रकार गुरु अंगद देव जी ने वाणी के वास्तविक रूप को बिगड़ने से बचाया। दूसरा, इसने आदि ग्रंथ साहिब जी की तैयारी के लिए महत्त्वपूर्ण आधार तैयार किया।

3. लंगर प्रथा का विस्तार (Expansion of Langar System)-लंगर प्रथा के विकास का श्रेय गुरु अंगद देव जी को जाता है। लंगर का समूचा प्रबंध उनकी धर्म पत्नी बीबी खीवी जी करते थे। लंगर में सभी व्यक्ति बिना किसी ऊँच-नीच, जाति के भेदभाव के इकट्ठे मिलकर छकते थे। इस लंगर के लिए सारी माया गुरु जी के सिख देते थे। इस प्रथा के कारण सिखों में परस्पर सहयोग की भावना बढ़ी। इसने हिंदू समाज में फैली जाति-प्रथा पर कड़ा प्रहार किया। इस प्रकार इस संस्था ने सामाजिक एवं आर्थिक असमानता को दूर करने में प्रशंसनीय योगदान दिया। इसके कारण सिख धर्म की ख्याति दूर-दूर तक फैल गई। प्रसिद्ध इतिहासकार प्रोफैसर हरबंस सिंह का यह कहना पूर्णतः सही है, “सामाजिक क्रांति लाने में यह (लंगर) संस्था महत्त्वपूर्ण साधन सिद्ध हुई।”3

4. संगत का संगठन (Organisation of Sangat)-गुरु अंगद देव जी ने गुरु नानक देव जी द्वारा स्थापित संगत संस्था को भी संगठित किया। संगत से अभिप्राय था-एकत्रित होकर बैठना। संगत में सभी धर्मों के लोगस्त्री और पुरुष भाग ले सकते थे। यह संगत सुबह-शाम गुरु जी के उपदेशों को सुनने के लिए एकत्रित होती थी। इस संस्था ने सामाजिक असमानता को दूर करने तथा सिखों को संगठित करने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।

5. उदासी मत का खंडन (Denunciation of the Udasi Sect)-उदासी मत की स्थापना गुरु नानक देव जी के बड़े सुपुत्र बाबा श्रीचंद जी ने की थी। यह मत संन्यास अथवा त्याग के जीवन पर बल देता था। बहुत से सिख उदासी मत को मान्यता देने लग पड़े थे। ऐसी परिस्थितियों में यह संकट उत्पन्न हो गया था कि कहीं सिख गुरु नानक देव जी उपदेशों को भूल कर उदासी मत न अपना लें। अतः गुरु अंगद देव जी ने उदासी मत का कड़ा विरोध किया तथा स्पष्ट किया कि उदासी मत के सिद्धांत सिख धर्म के सिद्धांतों से.सर्वथा विपरीत हैं एवं जो सिख उदासी मत में विश्वास रखता है, वह सच्चा सिख नहीं हो सकता। इस प्रकार गुरु अंगद देव जी ने सिख मत के अस्तित्व को बनाए रखा।

6. शारीरिक शिक्षा (Physical Training)-गुरु अंगद देव जी यह मानते थे कि जिस प्रकार आत्मा की उन्नति के लिए नाम का जाप करना आवश्यक है, ठीक उसी प्रकार शारीरिक स्वस्थता के लिए व्यायाम करना भी आवश्यक है। इस उद्देश्य के साथ गुरु जी ने खडूर साहिब में एक अखाड़ा बनवाया। यहाँ सिख प्रतिदिन प्रातःकाल मल्ल युद्ध तथा अन्य व्यायाम करते थे।

7. गोइंदवाल साहिब की स्थापना (Foundation of Goindwal Sahib)-गुरु अंगद देव जी ने खडूर साहिब के समीप गोइंदवाल साहिब नामक एक नए नगर की स्थापना की। इस नगर का निर्माण कार्य एक श्रद्धालु सेवक अमरदास की देख-रेख में 1546 ई० में आरंभ हुआ। यह नगर शीघ्र ही सिखों का एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थान बन गया।

8. हुमायूँ से भेंट (Meeting with Humayun)-1540 ई० में मुग़ल बादशाह हुमायूँ शेरशाह सूरी के हाथों पराजय के पश्चात् पंजाब पहुँचा। वह खडूर साहिब गुरु अंगद देव जी से आशीर्वाद लेने के लिए पहुँचा। उस समय गुरु जी समाधि में लीन थे। हुमायूँ ने इसे अपना अपमान समझकर तलवार निकाल ली। उस समय गुरु जी ने अपनी आँखें खोली और हुमायूँ से कहा कि, “यह तलवार जिसका तुम मुझ पर प्रयोग करने लगे हो, वह तलवार शेरशाह सूरी के विरुद्ध लड़ाई करते समय कहाँ थी ?” ये शब्द सुनकर हुमायूँ अत्यंत लज्जित हुआ और उसने गुरु जी से क्षमा माँगी। गुरु जी ने हुमायूँ को आशीर्वाद देते हुए कहा कि तुम्हें कुछ समय प्रतीक्षा करने के पश्चात् राज्य सिंहासन प्राप्त होगा। गुरु जी की यह भविष्यवाणी सत्य निकली। इस भेंट के कारण सिखों तथा मुग़लों के मध्य मैत्रीपूर्ण संबंध स्थापित हुए।

9. उत्तराधिकारी की नियुक्ति (Nomination of the Successor)-गुरु अंगद देव जी का सिख पंथ के विकास के लिए सबसे महान् कार्य अमरदास जी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त करना था। गुरु अंगद देव जी ने काफ़ी सोच-समझकर इस उच्च पद के लिए अमरदास जी का चुनाव किया। गुरु जी ने अमरदास जी के सम्मुख एक नारियल और पाँच पैसे रखकर अपना शीश झुकाया। इस प्रकार अमरदास जी को सिखों का तीसरा गुरु नियुक्त किया गया। गुरु अंगद देव जी 29 मार्च, 1552 ई० को ज्योति जोत समा गए।

10. गुरु अंगद देव जी की सफलताओं का मूल्याँकन (Estimate of Guru Angad Dev Ji’s Achievements)-इस प्रकार हम देखते हैं कि गुरु अंगद देव जी ने अपनी गुरुगद्दी के काल में सिख पंथ के विकास में बहुत प्रशंसनीय योगदान दिया। गुरु जी ने गुरमुखी लिपि का प्रचार करके, गुरु नानक साहिब की वाणी को एकत्रित करके, संगत और पंगत संस्थाओं का विस्तार करके, सिख पंथ को उदासी मत से अलग करके, गोइंदवाल साहिब की स्थापना करके और अपना उत्तराधिकारी नियुक्त करके सिख पंथ की नींव को और सुदृढ़ किया। गुरु अंगद देव जी की सफलताओं का मूल्यांकन करते हुए प्रसिद्ध इतिहासकार के० एस० दुग्गल का कहना है,

“यह आश्चर्य वाली बात है कि गुरु अंगद साहिब ने अपने अल्प समय के दौरान कितनी अधिक सफलता प्राप्त कर ली थी।”4
एक अन्य प्रसिद्ध इतिहासकार एस० एस० जौहर के अनुसार,
“गुरु अंगद देव जी का गुरु काल सिख पंथ के इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण मोड़ था।”5

1. “Had Nanak died without a successor, there would have been no Sikhism today.” G.C. Narang, Transformation of Sikhism (New Delhi : 1989) p. 29.
2. “Guru Angad Dev Ji gave the Sikhs a written language different from the language of the Hindus and Muslims and thus made them realise that they were separate people.” H.S. Bhatia and S.R. Bakshi, Encyclopaedic History of the Sikhs and Sikhism (New Delhi : 1999) Vol. 1, p. 12.
3. “This served as an instrument of a far-reaching social revolution.” Prof. Harbans Singh, The Heritage of the Sikhs (Delhi : 1994) p. 31.
4. “It is amazing how much Guru Angad could achieve in the short time at his disposal.” K.S. Duggal, The Sikh Gurus : Their Lives and Teachings (New Delhi : 1993) p. 71.
5. “The pontificate of Guru Angad Dev is indeed a turning point in the history of Sikh faith.” S.S. Johar, Handbook on Sikhism (Delhi : 1979) p. 26.

गुरु अमरदास जी का आरंभिक जीवन एवं कठिनाइयाँ (Early Career and Difficulties of Guru Amar Das Ji)

प्रश्न 4.
गुरु अमरदास जी के आरंभिक जीवन एवं कठिनाइयों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए। (Give a brief account of the early career and difficulties of Guru Amar Das Ji.)
उत्तर-
सिखों के तीसरे गुरु अमरदास जी के आरंभिक जीवन एवं कठिनाइयों का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है—

1. जन्म और माता-पिता (Birth and Parentage)-गुरु अमरदास जी का जन्म 5 मई, 1479 ई० को जिला अमृतसर के बासरके गाँव में हुआ। आपके पिता जी का नाम तेज भान था। वे भल्ला जाति के क्षत्रिय परिवार से संबंध रखते थे। गुरु जी के पिता जी काफ़ी धनवान थे। गुरु अमरदास जी की माता जी के नाम के संबंध में इतिहासकारों को कोई निश्चित जानकारी प्राप्त नहीं है।

2. बचपन और विवाह (Childhood and Marriage)-गुरु अमरदास जी बचपन से ही धार्मिक प्रवृत्ति के थे। अमरदास जी ने बड़े होकर अपने पिता जी का काम संभाल लिया। क्योंकि आपके माता-पिता विष्णु के पुजारी थे, इसलिए आप भी वैष्णव मत के अनुयायी बन गए। 24 वर्ष की आयु में आपका विवाह देवी चंद की सुपुत्री, मनसा देवी से कर दिया गया। आपके घर दो पुत्रों-बाबा मोहन और बाबा मोहरी और दो पुत्रियों-बीबी दानी और बीबी भानी ने जन्म लिया।

3. गुरु अंगद देव जी का सिख बनना (To become Guru Angad Dev Ji Disciple)-एक बार जब अमरदास जी हरिद्वार यात्रा से लौट रहे थे तो वे मार्ग में एक साधु से मिले। उन दोनों ने इकट्टे भोजन किया। भोजन के पश्चात् उस साधु ने अमरदास जी से पूछा कि उनका गुरु कौन है ? अमरदास जी ने उत्तर दिया कि उनका गुरु कोई नहीं है। उस साधु ने कहा, “मैंने एक गुरु विहीन व्यक्ति के हाथों भोजन खाकर पाप किया है और अपना जन्म भ्रष्ट कर लिया है। मुझे प्रायश्चित्त के लिए पुनः गंगा में स्नान करना पड़ेगा।” इसका आपके मन पर गहरा प्रभाव पड़ा तथा आपने गुरु धारण करने का दृढ़ निश्चय किया।

एक दिन अमरदास जी ने बीबी अमरो के मुख से गुरु नानक देव जी की वाणी सुनी तो बहुत प्रभावित हुए। इसलिए अमरदास जी ने गुरु अंगद देव जी के, दर्शन करने का निर्णय किया। वे गुरु जी के दर्शनों के लिए खडूर साहिब गए तथा उनके अनुयायी बन गए। उस समय गुरु जी की आयु 62 वर्ष की थी।

4. गुरुगद्दी की प्राप्ति (Assumption of Guruship)—अमरदास जी ने खडूर साहिब में रह कर 11 वर्षों तक गुरु अंगद देव जी की अथक सेवा की। वे प्रतिदिन गुरु साहिब जी के स्नान के लिए ब्यास नदी से, जो वहाँ से तीन मील की दूरी पर स्थित थी, पानी से भरा घड़ा अपने सिर पर उठाकर लाते तथा गुरु-घर में आई संगतों की तन-मन से सेवा करते। 1552 ई० की बात है कि अमरदास जी सदा की भाँति ब्यास से पानी लेकर लौट रहे थे। अंधेरा होने के कारण अमरदास जी को ठोकर लगी और वह गिर पड़े। साथ ही एक जुलाहे का घर था। आवाज़ सुनकर जुलाहा उठा और उसने पूछा कि कौन है। जुलाहिन ने कहा कि यह अवश्य अमरु निथावाँ (जिसके पास कोई स्थान न हो) होगा। धीरे-धीरे यह बात गुरु अंगद देव जी तक पहुँची। उन्होंने कहा कि आज से अमरदास ‘निथावाँ’ नहीं होगा, बल्कि निथावों को सहारा देगा। मार्च, 1552 ई० में गुरु अंगद साहिब ने अमरदास जी के सम्मुख एक नारियल और पाँच पैसे रखकर अपना शीश झुकाया और उन्हें अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया। इस प्रकार अमरदास जी 73 वर्ष की आयु में सिखों के तीसरे गुरु बने।

गुरु अमरदास जी की प्रारंभिक कठिनाइयाँ
(Guru Amar Das Ji’s Early Difficulties)
गुरुगद्दी प्राप्त करने के पश्चात् गुरु अमरदास जी, गुरु अंगद साहिब जी के आदेश पर खडूर साहिब से गोइंदवाल आ गए। यहाँ गुरु जी को आरंभ में कुछ कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। इनका संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित है—

1. दासू और दातू का विरोध (Opposition of Dasu and Datu)—गुरु अमरदास जी को अपने गुरुकाल के आरंभ में, गुरु अंगद देव जी के पुत्रों दासू और दातू के विरोध का सामना करना पड़ा। उन्होंने गुरु जी को गुरु मानने से इंकार कर दिया तथा स्वयं को असली उत्तराधिकारी घोषित किया। उनका कहना था कि कल तक हमारे घर का पानी भरने वाला आज गुरु कैसे बन सकता है। एक दिन दातू ने क्रोधित होकर गोइंदवाल साहिब जाकर भरे दरबार में गुरु जी को ठोकर मारी जिसके कारण वह गद्दी से नीचे गिर पड़े। इस पर भी गुरु साहिब ने बहुत ही नम्रता से दातू से क्षमा माँगी। इसके पश्चात् गुरु जी गोइंदवाल साहिब को छोड़कर अपने गाँव बासरके चले गए। सिख संगतों ने दातू को अपना गुरु मानने से इंकार कर दिया। अंततः निराश होकर वह खडूर साहिब लौट गया। बाबा बुड्डा जी तथा अन्य सिख संगतों के कहने पर गुरु अमरदास जी पुनः गोइंदवाल साहिब आ गए।

2. बाबा श्रीचंद का विरोध (Opposition of Baba Sri Chand)-बाबा श्रीचंद जी गुरु नानक जी के ज्येष्ठ पुत्र होने के कारण गुरुगद्दी पर अपना अधिकार समझते थे। उन्होंने गुरु अंगद देव जी का विरोध इसलिए न किया क्योंकि उन्हें गुरुगद्दी गुरु नानक साहिब ने स्वयं सौंपी थी। परंतु गुरु अंगद देव जी के पश्चात् उन्होंने अपने पिता की गद्दी प्राप्त करने का प्रयत्न किया। बाबा श्रीचंद जी के अनेक समर्थक थे। गुरु अमरदास जी ने ऐसे समय में दृढ़ता से काम लेते हुए सिखों को स्पष्ट किया कि उदासी संप्रदाय के सिद्धांत गुरु नानक देव जी के उपदेशों के विपरीत हैं। उनके तर्कों से प्रभावित होकर सिखों ने बाबा श्रीचंद जी का साथ छोड़ दिया। इस प्रकार गुरु अमरदास जी ने सिखों को उदासी संप्रदाय से सदैव के लिए पृथक् कर दिया।

3. गोइंदवाल साहिब के मुसलमानों का विरोध (Opposition by the Muslims of Goindwal Sahib)–गोइंदवाल साहिब में गुरु अमरदास जी की बढ़ती हुई ख्याति देखकर वहाँ के मुसलमानों ने सिखों को तंग करना आरंभ कर दिया। वे सिखों का सामान चोरी कर लेते। वे सतलुज नदी से जल भर कर लाने वाले सिखों के घड़े पत्थर मार कर तोड़ देते थे। सिख इस संबंध में गुरु जी से शिकायत करते। अमरदास जी ने सिखों को शांत रहने का उपदेश दिया। एक बार गाँव में कुछ सशस्त्र व्यक्ति आ गए। इन मुसलमानों का उनसे किसी बात पर झगड़ा हो गया। उन्होंने बहुत से मुसलमानों को यमलोक पहुँचा दिया। लोग सोचने लगे कि मुसलमानों को परमात्मा की ओर से यह दंड मिला है। इस प्रकार उनका सिख धर्म में विश्वास और दृढ़ हो गया।

4. हिंदुओं द्वारा विरोध (Opposition by the Hindus)-इसका कारण यह था कि गुरु अमरदास जी के सामाजिक सुधारों से प्रभावित होकर बहुत से लोग सिख धर्म में शामिल होते जा रहे थे। सिख धर्म में ऊँच-नीच का भेदभाव नहीं किया जाता था। लंगर में सब एक साथ भोजन करते थे। इसके अतिरिक्त बाऊली का निर्माण होने से सिखों को एक अलग तीर्थ स्थान भी मिल गया था। गोइंदवाल साहिब के उच्च जातियों के हिंदू यह बात सहन न कर सके। उन्होंने अपने बादशाह अकबर के पास यह झूठी शिकायत की कि गुरु जी हिंदू धर्म के विरुद्ध प्रचार कर रहे हैं। इस आरोप की जाँच के लिए अकबर ने गुरु साहिब को अपने दरबार में बुलाया। गुरु अमरदास जी ने अपने श्रद्धालु भाई जेठा जी को भेजा। भाई जेठा जी से मिलने के पश्चात् अकबर ने गुरु जी को निर्दोष घोषित किया। इससे सिख लहर को और उत्साह मिला।

गुरु अमरदास जी का आरंभिक जीवन एवं कठिनाइयाँ
(Early Career and Difficulties of Guru Amar Das Ji)

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 5 गुरु अंगद देव जी, गुरु अमरदास जी और गुरु रामदास जी के अधीन सिख धर्म का विकास

प्रश्न 4.
गुरु अमरदास जी के आरंभिक जीवन एवं कठिनाइयों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए। (Give a brief account of the early career and difficulties of Guru Amar Das Ji.)
उत्तर-
सिखों के तीसरे गुरु अमरदास जी के आरंभिक जीवन एवं कठिनाइयों का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है—

1. जन्म और माता-पिता (Birth and Parentage)-गुरु अमरदास जी का जन्म 5 मई, 1479 ई० को जिला अमृतसर के बासरके गाँव में हुआ। आपके पिता जी का नाम तेज भान था। वे भल्ला जाति के क्षत्रिय परिवार से संबंध रखते थे। गुरु जी के पिता जी काफ़ी धनवान थे। गुरु अमरदास जी की माता जी के नाम के संबंध में इतिहासकारों को कोई निश्चित जानकारी प्राप्त नहीं है।

2. बचपन और विवाह (Childhood and Marriage)-गुरु अमरदास जी बचपन से ही धार्मिक प्रवृत्ति के थे। अमरदास जी ने बड़े होकर अपने पिता जी का काम संभाल लिया। क्योंकि आपके माता-पिता विष्णु के पुजारी थे, इसलिए आप भी वैष्णव मत के अनुयायी बन गए। 24 वर्ष की आयु में आपका विवाह देवी चंद की सुपुत्री, मनसा देवी से कर दिया गया। आपके घर दो पुत्रों-बाबा मोहन और बाबा मोहरी और दो पुत्रियों-बीबी दानी और बीबी भानी ने जन्म लिया।

3. गुरु अंगद देव जी का सिख बनना (To become Guru Angad Dev Ji Disciple)-एक बार जब अमरदास जी हरिद्वार यात्रा से लौट रहे थे तो वे मार्ग में एक साधु से मिले। उन दोनों ने इकट्ठे भोजन किया। भोजन के पश्चात् उस साधु ने अमरदास जी से पूछा कि उनका गुरु कौन है २ अमरदास जी ने उत्तर दिया कि उनका गुरु कोई नहीं है। उस साधु ने कहा, “मैंने एक गुरु विहीन व्यक्ति के हाथों भोजन खाकर पाप किया है और अपना जन्म भ्रष्ट कर लिया है। मुझे प्रायश्चित्त के लिए पुनः गंगा में स्नान करना पड़ेगा।” इसका आपके मन पर गहरा प्रभाव पड़ा तथा आपने गुरु धारण करने का दृढ़ निश्चय किया।

एक दिन अमरदास जी ने बीबी अमरो के मुख से गुरु नानक देव जी की वाणी सुनी तो बहुत प्रभावित हुए। इसलिए अमरदास जी ने गुरु अंगद देव जी के, दर्शन करने का निर्णय किया। वे गुरु जी के दर्शनों के लिए खडूर साहिब गए तथा उनके अनुयायी बन गए। उस समय गुरु जी की आयु 62 वर्ष की थी।

4. गुरुगद्दी की प्राप्ति (Assumption of Guruship)-अमरदास जी ने खडूर साहिब में रह कर 11 वर्षों तक गुरु अंगद देव जी की अथक सेवा की। वे प्रतिदिन गुरु साहिब जी के स्नान के लिए ब्यास नदी से, जो वहाँ से तीन मील की दूरी पर स्थित थी, पानी से भरा घड़ा अपने सिर पर उठाकर लाते तथा गुरु-घर में आई संगतों की तन-मन से सेवा करते। 1552 ई० की बात है कि अमरदास जी सदा की भाँति ब्यास से पानी लेकर लौट रहे थे। अंधेरा होने के कारण अमरदास जी को ठोकर लगी और वह गिर पड़े। साथ ही एक जुलाहे का घर था। आवाज़ सुनकर जुलाहा उठा और उसने पूछा कि कौन है। जुलाहिन ने कहा कि यह अवश्य अमरु निथावाँ (जिसके पास कोई स्थान न हो) होगा। धीरे-धीरे यह बात गुरु अंगद देव जी तक पहुँची। उन्होंने कहा कि आज से अमरदास ‘निथावाँ’ नहीं होगा, बल्कि निथावों को सहारा देगा। मार्च, 1552 ई० में गुरु अंगद साहिब ने अमरदास जी के सम्मुख एक नारियल और पाँच पैसे रखकर अपना शीश झुकाया और उन्हें अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया। इस प्रकार अमरदास जी 73 वर्ष की आयु में सिखों के तीसरे गुरु बने।

गुरु अमरदास जी की प्रारंभिक कठिनाइयाँ (Guru Amar Das Ji’s Early Difficulties)
गुरुगद्दी प्राप्त करने के पश्चात् गुरु अमरदास जी, गुरु अंगद साहिब जी के आदेश पर खडूर साहिब से गोइंदवाल आ गए। यहाँ गुरु जी को आरंभ में कुछ कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। इनका संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित है—

1. दासू और दातू का विरोध (Opposition of Dasu and Datu)-गुरु अमरदास जी को अपने गुरुकाल के आरंभ में, गुरु अंगद देव जी के पुत्रों दासू और दातू के विरोध का सामना करना पड़ा। उन्होंने गुरु जी को गुरु मानने से इंकार कर दिया तथा स्वयं को असली उत्तराधिकारी घोषित किया। उनका कहना था कि कल तक हमारे घर का पानी भरने वाला आज गुरु कैसे बन सकता है। एक दिन दातू ने क्रोधित होकर गोइंदवाल साहिब जाकर भरे दरबार में गुरु जी को ठोकर मारी जिसके कारण वह गद्दी से नीचे गिर पड़े। इस पर भी गुरु साहिब ने बहुत ही नम्रता से दातू से क्षमा माँगी। इसके पश्चात् गुरु जी गोइंदवाल साहिब को छोड़कर अपने गाँव बासरके चले गए। सिख संगतों ने दातू को अपना गुरु मानने से इंकार कर दिया। अंततः निराश होकर वह खडूर साहिब लौट गया। बाबा बुड्डा जी तथा अन्य सिख संगतों के कहने पर गुरु अमरदास जी पुनः गोइंदवाल साहिब आ गए।

2. बाबा श्रीचंद का विरोध (Opposition of Baba Sri Chand)-बाबा श्रीचंद जी गुरु नानक जी के ज्येष्ठ पुत्र होने के कारण गुरुगद्दी पर अपना अधिकार समझते थे। उन्होंने गुरु अंगद देव जी का विरोध इसलिए न किया क्योंकि उन्हें गुरुगद्दी गुरु नानक साहिब ने स्वयं सौंपी थी। परंतु गुरु अंगद देव जी के पश्चात् उन्होंने अपने पिता की गद्दी प्राप्त करने का प्रयत्न किया। बाबा श्रीचंद जी के अनेक समर्थक थे। गुरु अमरदास जी ने ऐसे समय में दृढ़ता से काम लेते हुए सिखों को स्पष्ट किया कि उदासी संप्रदाय के सिद्धांत गुरु नानक देव जी के उपदेशों के विपरीत हैं। उनके तर्कों से प्रभावित होकर सिखों ने बाबा श्रीचंद जी का साथ छोड़ दिया। इस प्रकार गुरु अमरदास जी ने सिखों को उदासी संप्रदाय से सदैव के लिए पृथक् कर दिया।

3. गोइंदवाल साहिब के मुसलमानों का विरोध (Opposition by the Muslims of Goindwal Sahib)-गोइंदवाल साहिब में गुरु अमरदास जी की बढ़ती हुई ख्याति देखकर वहाँ के मुसलमानों ने सिखों को तंग करना आरंभ कर दिया। वे सिखों का सामान चोरी कर लेते। वे सतलुज नदी से जल भर कर लाने वाले सिखों के घड़े पत्थर मार कर तोड़ देते थे। सिख इस संबंध में गुरु जी से शिकायत करते। अमरदास जी ने सिखों को शांत रहने का उपदेश दिया। एक बार गाँव में कुछ सशस्त्र व्यक्ति आ गए। इन मुसलमानों का उनसे किसी बात पर झगड़ा हो गया। उन्होंने बहुत से मुसलमानों को यमलोक पहुँचा दिया। लोग सोचने लगे कि मुसलमानों को परमात्मा की ओर से यह दंड मिला है। इस प्रकार उनका सिख धर्म में विश्वास और दृढ़ हो गया।

4. हिंदुओं द्वारा विरोध (Opposition by the Hindus)—इसका कारण यह था कि गुरु अमरदास जी के सामाजिक सुधारों से प्रभावित होकर बहुत से लोग सिख धर्म में शामिल होते जा रहे थे। सिख धर्म में ऊँच-नीच का भेदभाव नहीं किया जाता था। लंगर में सब एक साथ भोजन करते थे। इसके अतिरिक्त बाऊली का निर्माण होने से सिखों को एक अलग तीर्थ स्थान भी मिल गया था। गोइंदवाल साहिब के उच्च जातियों के हिंदू यह बात सहन न कर सके। उन्होंने अपने बादशाह अकबर के पास यह झूठी शिकायत की कि गुरु जी हिंदू धर्म के विरुद्ध प्रचार कर रहे हैं। इस आरोप की जाँच के लिए अकबर ने गुरु साहिब को अपने दरबार में बुलाया। गुरु अमरदास जी ने अपने श्रद्धालु भाई जेठा जी को भेजा। भाई जेठा जी से मिलने के पश्चात् अकबर ने गुरु जी को निर्दोष घोषित किया। इससे सिख लहर को और उत्साह मिला।

गुरु अमरदास जी के समय सिख धर्म का विकास (Development of Sikhism Under Guru Amar Das Ji)

प्रश्न 5.
सिख पंथ के विकास में गुरु अमरदास जी के योगदान का वर्णन करें।
(Describe the contribution of Guru Amar Das Ji in the development of Sikhism.)
अथवा
सिख धर्म के विकास में गुरु अमरदास जी ने क्या योगदान दिया? (What were the contribution of Guru Amar Das Ji in the development of Sikhism ?)
अथवा
गुरु अमरदास जी की सिख धर्म के विकास में की गई सेवाओं का वर्णन करो।
(Describe the services rendered by Guru Amar Das Ji for the development of Sikh Religion.) .
अथवा
गुरु अमरदास जी के सिख पंथ के संगठन तथा प्रसार के लिए किए गए कार्यों का संक्षिप्त वर्णन करें।
(Describe in brief the organisational development and spread of Sikhism by Guru Amar Das Ji.)
अथवा
सिख धर्म के संगठन एवं विकास के लिए गुरु अमरदास जी ने क्या-क्या कार्य किए ? .
(What were the measures taken by Guru Amar Das Ji for the consolidation and expansion of Sikhism ?)
उत्तर-
सिखों के तीसरे गुरु, गुरु अमरदास जी 1552 ई० से 1574 ई० तक गुरुगद्दी पर रहे। क्योंकि सिख धर्म अभी पूर्णतः संगठित नहीं हुआ था अतः गुरु जी ने इस दिशा में अनेक पग उठाए। गुरु अमरदास जी ने गुरु अंगद देव जी द्वारा आरंभ किए कार्यों को जारी रखा और बहुत-सी नई प्रथाओं तथा संस्थाओं की स्थापना की।—

1. गोइंदवाल साहिब में बाऊली का निर्माण (Construction of the Baoli at Goindwal Sahib)गुरु अमरदास जी का सिख पंथ के विकास की ओर पहला पग गोइंदवाल साहिब में एक बाऊली का निर्माण करना था। इस बाऊली का निर्माण कार्य 1552 ई० से 1559 ई० तक चला। इस बाऊली तक पहुँचने के लिए 84 सीढ़ियाँ बनाई गई थीं। गुरु जी ने यह घोषणा की कि जो यात्री प्रत्येक सीढ़ी पर शुद्ध हृदय से जपुजी साहिब का पाठ करेगा तथा पाठ के पश्चात् बाऊली में स्नान करेगा वह 84 लाख योनियों से मुक्त हो जाएगा। बाऊली के निर्माण से सिख पंथ को एक पवित्र तीर्थ स्थान मिल गया। अब उन्हें हिंदुओं के तीर्थ स्थानों पर जाने की आवश्यकता न रही। इसके साथ ही वहाँ लोगों की पानी की समस्या भी हल हो गई। लोग बड़ी संख्या में गोइंदवाल साहिब आने लगे। इससे सिख धर्म के प्रसार को बल मिला। एच० एस० भाटिया तथा एस० आर० बक्शी के शब्दों में, “गुरु अमरदास जी का गुरुगद्दी काल, सिख आंदोलन के इतिहास में एक नया मोड़ प्रमाणित हुआ।”6
PSEB 12th Class History Solutions Chapter 5 गुरु अंगद देव जी, गुरु अमरदास जी और गुरु रामदास जी के अधीन सिख धर्म का विकास 2
BAOLI SAHIB : GOINDWAL SAHIB

2. लंगर संस्था का विस्तार (Expansion of Langar Institution)—गुरु अमरदास जी ने, गुरु नानक देव जी द्वारा स्थापित लंगर संस्था का और विस्तार किया। गुरु जी ने यह घोषणा की कि कोई भी यात्री लंगर छके बिनां उनके दर्शन नहीं कर सकता। “पहले पंगत फिर संगत’ का नारा दिया गया। यहाँ तक कि मुग़ल बादशाह अकबर तथा हरिपुर के राजा ने भी गुरु जी से भेंट से पूर्व पंगत में बैठकर लंगर खाया था। इस लंगर में विभिन्न धर्मों और जातियों के लोग सम्मिलित होते थे। यह लंगर देर रात तक चलता रहता था। लंगर संस्था सिख धर्म के प्रचार में बड़ी सहायक प्रमाणित हुई । इससे जाति-प्रथा को गहरा आघात पहुँचा। इसने निम्न जातियों को समाज में एक नया सम्मान दिया। इससे सिखों में परस्पर भ्रातृत्व की भावना का विकास हुआ। डॉक्टर फौजा सिंह के अनुसार,
“इस (लंगर) संस्था ने जाति प्रथा को गहरी चोट पहुँचाई तथा सामाजिक एकता के लिए मार्ग साफ किया।”7

3. वाणी का संग्रह (Collection of Hymns)—गुरु अमरदास जी का दूसरा महत्त्वपूर्ण कार्य गुरु नानक देव जी तथा गुरु अंगद देव जी की वाणी का संग्रह करना था। गुरु साहिब ने स्वयं 907 शब्दों की रचना की। ऐसा करने से आदि ग्रंथ साहिब जी के संकलन के लिए आधार तैयार हो गया।

4. मंजी प्रथा (Manji System)-मंजी प्रथा की स्थापना गुरु अमरदास जी के सबसे महत्त्वपूर्ण कार्यों में से एक थी। सिखों की संख्या में वृद्धि के कारण गुरु साहिब के लिए प्रत्येक सिख तक पहुँच पाना संभव नहीं था। उन्होंने अपने उपदेश दूर-दूर के क्षेत्रों में रहने वाले सिखों तक पहुँचाने के लिए 22 मंजियों की स्थापना की। इन मंजियों की स्थापना एक ही समय पर नहीं बल्कि अलग-अलग समय पर की गई। प्रत्येक मंजी के मुखिया को मंजीदार कहते थे। ये मंजीदार अधिक-से-अधिक लोगों को सिख धर्म में सम्मिलित होने के लिए प्रेरित करते थे। क्योंकि मंजीदार मंजी (चारपाई) पर बैठकर प्रचार करते थे, इसलिए यह प्रथा इतिहास में मंजी प्रथा के नाम से विख्यात हुई। मंजी प्रथा की स्थापना के परिणामस्वरूप सिख धर्म की प्रसिद्धि दूर-दूर तक फैल गई। डॉक्टर डी० एस० ढिल्लों के अनुसार,
“मंजी प्रथा की स्थापना ने सिख पंथ की प्रसार गतिविधियों में उल्लेखनीय योगदान दिया।”8

5. उदासी संप्रदाय का खंडन (Denunciation of the Udasi Sect)-गुरु अमरदास जी के समय में उदासी संप्रदाय सिख संप्रदाय के अस्तित्व के लिए खतरा बना हुआ था। बहुत से सिख बाबा श्रीचंद जी से प्रभावित होकर उदासी संप्रदाय में सम्मिलित होने लगे थे। ऐसे समय गुरु अमरदास जी ने बड़े साहस से काम लिया। उन्होंने सिखों को समझाया कि सिख धर्म उदासी मत से बिल्कुल अलग है। उनका कहना था कि सिख धर्म गृहस्थ मार्ग अपनाने तथा संसार में रह कर श्रम करने की शिक्षा देता है। दूसरी ओर उदासी मत मुक्ति की खोज में वनों में मारेमारे फिरने की शिक्षा देता है। गुरु साहिब के आदेश पर सिखों ने उदासी मत से सदैव के लिए अपने संबंध तोड़ लिए। इस प्रकार गुरु अमरदास जी ने सिख धर्म को हिंदू धर्म में विलीन होने से बचा लिया।

6. सामाजिक सुधार (Social Reforms)-गुरु अमरदास जी एक महान् समाज सुधारक थे। समाज में जाति बंधन कठोर रूप धारण कर चुका था। उस समय निम्न जाति के लोगों पर बहुत अत्याचार होते थे। गुरु अमरदास जी ने जाति प्रथा का ज़ोरदार शब्दों में खंडन किया। उन्होंने जाति का अहंकार करने वाले को मूर्ख तथा गंवार बताया। गुरु अमरदास जी ने समाज में प्रचलित सती-प्रथा का डट कर विरोध किया। गुरु जी का कथन था—
सतीआ एहि न आखीअनि जो मड़ियाँ लग जलनि॥
सतीआ सेई नानका जो विरहा चोट मरनि॥
अर्थात् उस स्त्री को सती नहीं कहा जा सकता जो पति की चिता में जल कर मर जाती है। वास्तव में सती वही है जो पति के बिछोह को सहन न करती हुई विरह के आघात से मर जाए। गुरु अमरदास जी ने बाल-विवाह तथा पर्दा प्रथा का विरोध किया। उन्होंने विधवा विवाह तथा अंतर्जातीय विवाह का समर्थन किया। उन्होंने मादक द्रव्यों के सेवन पर प्रतिबंध लगा दिया। इसके अतिरिक्त गुरु अमरदास जी ने सिखों के जन्म, विवाह तथा मृत्यु के अवसरों के लिए विशेष रस्में प्रचलित की। ये रस्में बिल्कुल सरल थीं। संक्षेप में गुरु अमरदास जी ने एक आदर्श-समाज का निर्माण किया।

7. अकबर का गोइंदवाल साहिब आगमन (Akbar’s visit to Goindwal Sahib)-मुग़ल सम्राट अकबर 1568 ई० में गुरु साहिब के दर्शनों के लिए गोइंदवाल साहिब आया। उसने गुरु अमरदास जी को मिलने से पूर्व संगत में बैठ कर लंगर खाया। वह गुरु जी के व्यक्तित्व और लंगर व्यवस्था से बहुत प्रभावित हुआ। उसने कुछ गाँवों की जागीर देने की गुरु जी को पेशकश की। परंतु गुरु जी ने यह जागीर लेने से इंकार कर दिया। अकबर की इस यात्रा का लोगों के दिल पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा। वे भारी संख्या में सिख धर्म में सम्मिलित होने लगे। इस कारण सिख धर्म और भी लोकप्रिय हो गया।

8. उत्तराधिकारी की नियुक्ति (Nomination of the Successor)-गुरु अमरदास जी ने 1574 ई० में अपने दामाद भाई जेठा जी की नम्रता तथा सेवा भाव से प्रभावित होकर उन्हें अपना उत्तराधिकारी नियुक्त करने का निर्णय किया। गुरु जी ने न केवल भाई जेठा जी को अपना उत्तराधिकारी ही बनाया अपितु गुरुगद्दी उनके वंश में रहने का आशीर्वाद भी दिया। गुरु अमरदास जी 1 सितंबर, 1574 ई० को गोइंदवाल साहिब में ज्योति-जोत समा गए।

9. गुरु अमरदास जी की सफलताओं का मूल्याँकन (Estimate of Guru Amar Das Ji’s Achievements)-गुरु अमरदास जी के नेतृत्व में सिख पंथ ने महत्त्वपूर्ण विकास किया। गुरु जी ने गोइंदवाल साहिब में बाऊली का निर्माण करके, लंगर प्रथा का विस्तार करके, पूर्व गुरुओं की वाणी को एकत्र करके, सामाजिक कुरीतियों का विरोध करके, उदासी संप्रदाय का खंडन करके सिख पंथ के इतिहास में एक मील पत्थर का काम किया। प्रसिद्ध इतिहासकार संगत सिंह के अनुसार,

“गुरु अमरदास जी के अधीन सिख पंथ का तीव्र विकास हुआ।”9
एक अन्य प्रसिद्ध इतिहासकार डॉक्टर डी० एस० ढिल्लों के अनुसार,
“सिख पंथ के विकास में गुरु अमरदास जी ने प्रशंसनीय योगदान दिया।”10

6. “The pontificate of Guru Amar Das Ji is thus a turning point in the history of the Sikh movement.” H. S. Bhatia and S.R. Bakshi, Encyclopaedic History of the Sikhs and Sikhism (New Delhi : 1999) Vol. 1, p. 15.
7. “This institution gave a shattering blow to the rigidity of the caste system and paved the way for social equality.” Dr. Fauja Singh, Perspectives on Guru Amar Das (Patiala : 1982) p. 25.
8. “The establishment of Manji System gave a big thrust to the missionary activities of the Sikhs.” Dr. D.S. Dhillon, Sikhism : Origin and Development (New Delhi : 1988) p. 207.
9. “Under Guru Amar Das, Sikhism made rapid strides.” Sangat Singh, The Sikhs in History (New Delhi : 1996) p. 29. 10. “Guru Amar Das’s contribution to the growth of the Sikh Panth was great.” Dr. D.S. Dhillon, Sikhism : Origin and Development (New Delhi : 1988) p. 94.

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गुरु अमरदास जी के सामाजिक सुधार (Social Reforms of Guru Amar Das Ji)

प्रश्न 6.
गुरु अमरदास जी के सामाजिक सुधारों का मूल्यांकन करें। (Examine the social reforms of Guru Amar Das Ji.)
अथवा
“गुरु अमरदास जी एक महान् समाज सुधारक थे।” बताएँ।
(“Guru Amar Das Ji was a great social reformer.” Discuss.)
उत्तर-
गुरु अमरदास जी का नाम सिख इतिहास में एक महान् समाज सुधारक के रूप में भी प्रसिद्ध है। वह सिखों की सामाजिक संरचना को एक नया रूप देना चाहते थे। वह सिखों को तात्कालीन समाज के जटिल नियमों से मुक्त करना चाहते थे ताकि उनमें आपसी भ्रातृत्व स्थापित हो। गुरु अमरदास जी के सामाजिक सुधार का संक्षिप्त वर्णन निम्न अनुसार है—

1. जातीय भेद-भाव तथा छुआ-छूत का खंडन (Denunciation of Caste Distinctions and Untouchability)—गुरु अमरदास जी ने जातीय एवं छुआ-छूत की प्रथाओं का जोरदार शब्दों में खंडन किया। उनका कथन था कि जाति पर अभिमान करने वाले मूर्ख तथा गंवार हैं। उन्होंने संगतों को यह हुक्म दिया कि जो कोई उनके दर्शन करना चाहता है उसे पहले पंगत में लंगर छकना पड़ेगा। इसके अतिरिक्त गुरु जी ने कुछ कुएँ खुदवाए। इन कुओं से प्रत्येक जाति के लोगों को पानी लेने का अधिकार था। इस प्रकार गुरु अमरदास जी ने आपसी भ्रातृत्व का प्रचार किया।

2. लड़कियों की हत्या का खंडन (Denunciation of Female Infanticide)-उस समय लड़कियों के जन्म को अशुभ माना जाता था। समाज में लड़कियों के जन्म लेते ही उन्हें मार दिया जाता था। गुरु अमरदास जी ने इस कुप्रथा का जोरदार शब्दों में खंडन किया। उनका कथन था कि जो व्यक्ति ऐसा करता है वह घोर पाप का सहभागी बनता है । उन्होंने सिखों को इस अपराध से दूर रहने का उपदेश दिया।

3. बाल विवाह का खंडन (Denunciation of Child Marriage)-उस समय समाज में प्रचलित परंपराओं के अनुसार लड़कियों का विवाह छोटी आयु में ही कर दिया जाता था। इस कारण समाज में स्त्रियों की दशा बहुत दयनीय हो गई थी। गुरु अमरदास जी ने बाल विवाह के विरुद्ध प्रचार किया।

4. सती प्रथा का खंडन (Denunciation of Sati System) उस समय समाज में प्रचलित कुप्रथाओं में से सबसे घृणा योग्य कुप्रथा सती प्रथा की थी। इस अमानवीय प्रथा के अनुसार यदि किसी दुर्भाग्यशाली स्त्री के पति की मृत्यु हो जाती थी तो उसे जबरन पति की चिता के साथ जीवित जला दिया जाता था। गुरु अमरदास जी ने शताब्दियों से चली आ रही इस कुप्रथा के विरुद्ध एक ज़ोरदार अभियान चलाया। गुरु साहिब का कथन था
सतीआ एहि न आखीअनि जो मड़ियाँ लग जलनि॥
सतीआ सेई नानका जो विरहा चोटि मरनि॥
भाव उस स्त्री को सती नहीं कहा जा सकता जो पति की चिता में जल कर मर जाती है। वास्तव में सती तो वह है जो अपने पति के वियोग की पीड़ा में प्राण त्याग दे।

5. पर्दा प्रथा का खंडन (Denunciation of Purdah System)-उसं समय समाज में पर्दा प्रथा का प्रचलन भी काफ़ी बढ़ गया था। यह प्रथा स्त्रियों के शारीरिक तथा मानसिक विकास में एक बड़ी बाधा थी। इसलिए गुरु अमरदास जी ने इस प्रथा की जोरदार शब्दों में आलोचना की। उन्होंने यह आदेश दिया कि संगत अथवा लंगर में सेवा करते समय कोई भी स्त्री पर्दा न करे।

6. नशीली वस्तुओं का विरोध (Prohibition of Intoxicants)-उस समय समाज में शराब तथा अन्य नशीले पदार्थों का प्रयोग बहुत बढ़ गया था। इस कारण समाज का दिन-प्रतिदिन नैतिक पतन होता जा रहा था। इसलिए गुरु अमरदास जी ने इन नशों के विरुद्ध जोरदार प्रचार किया। उनका कथन था कि जो मनुष्य शराब पीता है उसकी बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है। वह अपने-पराए का भेद भूल जाता है। मनुष्य को ऐसी झूठी शराब नहीं पीनी चाहिए, जिस कारण वह परमात्मा को भूल जाए।

7. विधवा विवाह के पक्ष में (Favoured Widow Marriage)—जो स्त्रियाँ सती होने से बच जाती थीं, उन्हें सदैव विधवा का जीवन व्यतीत करना पड़ता था। समाज की ओर से विधवा विवाह पर प्रतिबंध लगा हुआ थां। विधवा का जीवन नरक के समान था। गुरु अमरदास जी ने इस प्रथा को खेदजनक बताया। उनका कथन था कि हमें विधवा का पूरा सम्मान करना चाहिए। गुरु जी ने बाल विधवा के पुनर्विवाह के पक्ष में प्रचार किया।

8. जन्म, विवाह तथा मृत्यु के समय के नवीन नियम (New Ceremonies related to Birth, Marriage and Death)-उस समय समाज में जन्म, विवाह तथा मृत्यु से संबंधित जो रीति-रिवाज प्रचलित थे, वे बहुत जटिल थे। गुरु साहिब ने सिखों के लिए इन अवसरों पर विशेष नियम बनाए। ये नियम पूर्णतः सरल थे। गुरु साहिब ने जन्म, विवाह तथा अन्य अवसरों पर गाने के लिए अनंदु साहिब की रचना की। इसमें 40 पौड़ियाँ हैं। इसके अतिरिक्त विवाह समय लावाँ की नई प्रथा आरंभ की गई।।

9. त्योहार मनाने का नवीन ढंग (New Mode of Celebrating Festivals)—गुरु अमरदास जी ने सिखों को वैसाखी, माघी तथा दीवाली के त्योहारों को नवीन ढंग से मनाने के लिए कहा। इन तीनों त्योहारों के अवसरों पर बड़ी संख्या में सिख गोइंदवाल साहिब पहुँचते थे। गुरु साहिब का यह पग सिख पंथ के प्रचार में बड़ा सहायक सिद्ध हुआ। प्रसिद्ध इतिहासकार डॉक्टर बी० एस० निझर के अनुसार,
“गुरु अमरदास जी द्वारा आरंभ किए गए इन सामाजिक सुधारों को सिख पंथ के इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण मोड़ लाने वाले समझे जाने चाहिएँ।”11

प्रश्न 7.
गुरु अमरदास जी के जीवन एवं सफलताओं का वर्णन कीजिए। (Describe the life and achievements of Guru Amar Das Ji.)
अथवा
गुरु अमरदास जी को गुरुगद्दी पर विराजमान होते समय किन-किन मुश्किलों का सामना करना पड़ा ? सिख मत के संगठन और विस्तार के लिए उनके द्वारा उठाए गए कदमों की चर्चा कीजिए ।
(What were the difficulties faced by Guru Amar Das Ji at the time of his accession ? Discuss the steps taken by him to consolidate and expand Sikhism.)
उत्तर-
इस प्रश्न के उत्तर के लिए विद्यार्थी कृपया प्रश्न 5 एवं 6 का उत्तर संयुक्त रूप से लिखें।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 5 गुरु अंगद देव जी, गुरु अमरदास जी और गुरु रामदास जी के अधीन सिख धर्म का विकास

प्रश्न 8.
1539 ई० से 1574 ई० तक सिख पंथ के विकास की चर्चा करें। (Examine the development of Sikhism from 1539 to 1574 A.D.)
अथवा
सिख धर्म के विकास में गुरु अंगद देव जी तथा गुरु अमरदास जी के योगदान का वर्णन करें।
(Describe the contribution of Guru Angad Dev Ji and Guru Amar Das Ji in the development of Sikhism.)
उत्तर-
सिखों के तीसरे गुरु, गुरु अमरदास जी 1552 ई० से 1574 ई० तक गुरुगद्दी पर रहे। क्योंकि सिख धर्म अभी पूर्णतः संगठित नहीं हुआ था अतः गुरु जी ने इस दिशा में अनेक पग उठाए। गुरु अमरदास जी ने गुरु अंगद देव जी द्वारा आरंभ किए कार्यों को जारी रखा और बहुत-सी नई प्रथाओं तथा संस्थाओं की स्थापना की।—

1. गोइंदवाल साहिब में बाऊली का निर्माण (Construction of the Baoli at Goindwal Sahib)गुरु अमरदास जी का सिख पंथ के विकास की ओर पहला पग गोइंदवाल साहिब में एक बाऊली का निर्माण करना था। इस बाऊली का निर्माण कार्य 1552 ई० से 1559 ई० तक चला। इस बाऊली तक पहुँचने के लिए 84 सीढ़ियाँ बनाई गई थीं। गुरु जी ने यह घोषणा की कि जो यात्री प्रत्येक सीढ़ी पर शुद्ध हृदय से जपुजी साहिब का पाठ करेगा तथा पाठ के पश्चात् बाऊली में स्नान करेगा वह 84 लाख योनियों से मुक्त हो जाएगा। बाऊली के निर्माण से सिख पंथ को एक पवित्र तीर्थ स्थान मिल गया। अब उन्हें हिंदुओं के तीर्थ स्थानों पर जाने की आवश्यकता न रही। इसके साथ ही वहाँ लोगों की पानी की समस्या भी हल हो गई। लोग बड़ी संख्या में गोइंदवाल साहिब आने लगे। इससे सिख धर्म के प्रसार को बल मिला। एच० एस० भाटिया तथा एस० आर० बक्शी के शब्दों में, “गुरु अमरदास जी का गुरुगद्दी काल, सिख आंदोलन के इतिहास में एक नया मोड़ प्रमाणित हुआ।”6
PSEB 12th Class History Solutions Chapter 5 गुरु अंगद देव जी, गुरु अमरदास जी और गुरु रामदास जी के अधीन सिख धर्म का विकास 2
BAOLI SAHIB : GOINDWAL SAHIB

2. लंगर संस्था का विस्तार (Expansion of Langar Institution)—गुरु अमरदास जी ने, गुरु नानक देव जी द्वारा स्थापित लंगर संस्था का और विस्तार किया। गुरु जी ने यह घोषणा की कि कोई भी यात्री लंगर छके बिनां उनके दर्शन नहीं कर सकता। “पहले पंगत फिर संगत’ का नारा दिया गया। यहाँ तक कि मुग़ल बादशाह अकबर तथा हरिपुर के राजा ने भी गुरु जी से भेंट से पूर्व पंगत में बैठकर लंगर खाया था। इस लंगर में विभिन्न धर्मों और जातियों के लोग सम्मिलित होते थे। यह लंगर देर रात तक चलता रहता था। लंगर संस्था सिख धर्म के प्रचार में बड़ी सहायक प्रमाणित हुई । इससे जाति-प्रथा को गहरा आघात पहुँचा। इसने निम्न जातियों को समाज में एक नया सम्मान दिया। इससे सिखों में परस्पर भ्रातृत्व की भावना का विकास हुआ। डॉक्टर फौजा सिंह के अनुसार,
“इस (लंगर) संस्था ने जाति प्रथा को गहरी चोट पहुँचाई तथा सामाजिक एकता के लिए मार्ग साफ किया।”7

3. वाणी का संग्रह (Collection of Hymns)—गुरु अमरदास जी का दूसरा महत्त्वपूर्ण कार्य गुरु नानक देव जी तथा गुरु अंगद देव जी की वाणी का संग्रह करना था। गुरु साहिब ने स्वयं 907 शब्दों की रचना की। ऐसा करने से आदि ग्रंथ साहिब जी के संकलन के लिए आधार तैयार हो गया।

4. मंजी प्रथा (Manji System)-मंजी प्रथा की स्थापना गुरु अमरदास जी के सबसे महत्त्वपूर्ण कार्यों में से एक थी। सिखों की संख्या में वृद्धि के कारण गुरु साहिब के लिए प्रत्येक सिख तक पहुँच पाना संभव नहीं था। उन्होंने अपने उपदेश दूर-दूर के क्षेत्रों में रहने वाले सिखों तक पहुँचाने के लिए 22 मंजियों की स्थापना की। इन मंजियों की स्थापना एक ही समय पर नहीं बल्कि अलग-अलग समय पर की गई। प्रत्येक मंजी के मुखिया को मंजीदार कहते थे। ये मंजीदार अधिक-से-अधिक लोगों को सिख धर्म में सम्मिलित होने के लिए प्रेरित करते थे। क्योंकि मंजीदार मंजी (चारपाई) पर बैठकर प्रचार करते थे, इसलिए यह प्रथा इतिहास में मंजी प्रथा के नाम से विख्यात हुई। मंजी प्रथा की स्थापना के परिणामस्वरूप सिख धर्म की प्रसिद्धि दूर-दूर तक फैल गई। डॉक्टर डी० एस० ढिल्लों के अनुसार,
“मंजी प्रथा की स्थापना ने सिख पंथ की प्रसार गतिविधियों में उल्लेखनीय योगदान दिया।”8

5. उदासी संप्रदाय का खंडन (Denunciation of the Udasi Sect)-गुरु अमरदास जी के समय में उदासी संप्रदाय सिख संप्रदाय के अस्तित्व के लिए खतरा बना हुआ था। बहुत से सिख बाबा श्रीचंद जी से प्रभावित होकर उदासी संप्रदाय में सम्मिलित होने लगे थे। ऐसे समय गुरु अमरदास जी ने बड़े साहस से काम लिया। उन्होंने सिखों को समझाया कि सिख धर्म उदासी मत से बिल्कुल अलग है। उनका कहना था कि सिख धर्म गृहस्थ मार्ग अपनाने तथा संसार में रह कर श्रम करने की शिक्षा देता है। दूसरी ओर उदासी मत मुक्ति की खोज में वनों में मारेमारे फिरने की शिक्षा देता है। गुरु साहिब के आदेश पर सिखों ने उदासी मत से सदैव के लिए अपने संबंध तोड़ लिए। इस प्रकार गुरु अमरदास जी ने सिख धर्म को हिंदू धर्म में विलीन होने से बचा लिया।

6. सामाजिक सुधार (Social Reforms)-गुरु अमरदास जी एक महान् समाज सुधारक थे। समाज में जाति बंधन कठोर रूप धारण कर चुका था। उस समय निम्न जाति के लोगों पर बहुत अत्याचार होते थे। गुरु अमरदास जी ने जाति प्रथा का ज़ोरदार शब्दों में खंडन किया। उन्होंने जाति का अहंकार करने वाले को मूर्ख तथा गंवार बताया। गुरु अमरदास जी ने समाज में प्रचलित सती-प्रथा का डट कर विरोध किया। गुरु जी का कथन था—
सतीआ एहि न आखीअनि जो मड़ियाँ लग जलनि॥
सतीआ सेई नानका जो विरहा चोट मरनि॥
अर्थात् उस स्त्री को सती नहीं कहा जा सकता जो पति की चिता में जल कर मर जाती है। वास्तव में सती वही है जो पति के बिछोह को सहन न करती हुई विरह के आघात से मर जाए। गुरु अमरदास जी ने बाल-विवाह तथा पर्दा प्रथा का विरोध किया। उन्होंने विधवा विवाह तथा अंतर्जातीय विवाह का समर्थन किया। उन्होंने मादक द्रव्यों के सेवन पर प्रतिबंध लगा दिया। इसके अतिरिक्त गुरु अमरदास जी ने सिखों के जन्म, विवाह तथा मृत्यु के अवसरों के लिए विशेष रस्में प्रचलित की। ये रस्में बिल्कुल सरल थीं। संक्षेप में गुरु अमरदास जी ने एक आदर्श-समाज का निर्माण किया।

7. अकबर का गोइंदवाल साहिब आगमन (Akbar’s visit to Goindwal Sahib)-मुग़ल सम्राट अकबर 1568 ई० में गुरु साहिब के दर्शनों के लिए गोइंदवाल साहिब आया। उसने गुरु अमरदास जी को मिलने से पूर्व संगत में बैठ कर लंगर खाया। वह गुरु जी के व्यक्तित्व और लंगर व्यवस्था से बहुत प्रभावित हुआ। उसने कुछ गाँवों की जागीर देने की गुरु जी को पेशकश की। परंतु गुरु जी ने यह जागीर लेने से इंकार कर दिया। अकबर की इस यात्रा का लोगों के दिल पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा। वे भारी संख्या में सिख धर्म में सम्मिलित होने लगे। इस कारण सिख धर्म और भी लोकप्रिय हो गया।

8. उत्तराधिकारी की नियुक्ति (Nomination of the Successor)-गुरु अमरदास जी ने 1574 ई० में अपने दामाद भाई जेठा जी की नम्रता तथा सेवा भाव से प्रभावित होकर उन्हें अपना उत्तराधिकारी नियुक्त करने का निर्णय किया। गुरु जी ने न केवल भाई जेठा जी को अपना उत्तराधिकारी ही बनाया अपितु गुरुगद्दी उनके वंश में रहने का आशीर्वाद भी दिया। गुरु अमरदास जी 1 सितंबर, 1574 ई० को गोइंदवाल साहिब में ज्योति-जोत समा गए।

9. गुरु अमरदास जी की सफलताओं का मूल्याँकन (Estimate of Guru Amar Das Ji’s Achievements)-गुरु अमरदास जी के नेतृत्व में सिख पंथ ने महत्त्वपूर्ण विकास किया। गुरु जी ने गोइंदवाल साहिब में बाऊली का निर्माण करके, लंगर प्रथा का विस्तार करके, पूर्व गुरुओं की वाणी को एकत्र करके, सामाजिक कुरीतियों का विरोध करके, उदासी संप्रदाय का खंडन करके सिख पंथ के इतिहास में एक मील पत्थर का काम किया। प्रसिद्ध इतिहासकार संगत सिंह के अनुसार,

“गुरु अमरदास जी के अधीन सिख पंथ का तीव्र विकास हुआ।”9
एक अन्य प्रसिद्ध इतिहासकार डॉक्टर डी० एस० ढिल्लों के अनुसार,
“सिख पंथ के विकास में गुरु अमरदास जी ने प्रशंसनीय योगदान दिया।”10

6. “The pontificate of Guru Amar Das Ji is thus a turning point in the history of the Sikh movement.” H. S. Bhatia and S.R. Bakshi, Encyclopaedic History of the Sikhs and Sikhism (New Delhi : 1999) Vol. 1, p. 15.
7. “This institution gave a shattering blow to the rigidity of the caste system and paved the way for social equality.” Dr. Fauja Singh, Perspectives on Guru Amar Das (Patiala : 1982) p. 25.
8. “The establishment of Manji System gave a big thrust to the missionary activities of the Sikhs.” Dr. D.S. Dhillon, Sikhism : Origin and Development (New Delhi : 1988) p. 207.
9. “Under Guru Amar Das, Sikhism made rapid strides.” Sangat Singh, The Sikhs in History (New Delhi : 1996) p. 29. 10. “Guru Amar Das’s contribution to the growth of the Sikh Panth was great.” Dr. D.S. Dhillon, Sikhism : Origin and Development (New Delhi : 1988) p. 94.
11. “These social reforms introduced by Guru Amar Das must be regarded as a turning point in the history of Sikhism.” Dr. B.S. Nijjar, op. cit., p. 83.

“गुरु रामदास जी का जीवन तथा सफलताएँ । (Life and Achievements of Guru Ram Das JI)

प्रश्न 9.
चौथे गुरु रामदास जी के जीवन तथा उनके सिख धर्म तथा सिख पंथ के संगठन में दिए गए योगदान पर एक विस्तृत नोट लिखें।
(Write an informative note on the life history of the fourth Guru Ram Das Ji and his contribution to the Sikh faith and the organisation of the Sikh Panth.)
अथवा
गुरु रामदास जी के अधीन सिख पंथ के विकास का वर्णन करें। (Write a detailed note on the development of Sikhism under Guru Ram Das Ji.)
अथवा
गुरु रामदास जी के जीवन व सफलताओं का वर्णन करो। (Describe the life and achievements of Guru Ram Das Ji.)
अथवा
सिख पंथ में गुरु रामदास जी का क्या योगदान है ?
(Describe the contribution of Guru Ram Das Ji in the development of Sikhism.)
अथवा
सिख इतिहास में गुरु रामदास जी का क्या योगदान है ? (What was the contribution of Guru Ram Das Ji to the development of Sikh History ?)
उत्तर-
गुरु रामदास जी सिखों के चौथे गुरु थे। वह 1574 ई० से लेकर 1581 ई० तक गुरुगद्दी पर आसीन रहे। उनके गुरुकाल में सिख पंथं के संगठन और विकास में महत्त्वपूर्ण प्रगति हुई । गुरु रामदास जी के आरंभिक जीवन और उनके अधीन सिख पंथ के विकास का संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित अनुसार है—

I. गुरु रामदास जी का प्रारंभिक जीवन
(Early Career of Guru Ram Das Ji)

1. जन्म और माता-पिता (Birth and Parentage)-गुरु रामदास जी का जन्म 24 सितंबर, 1534 ई० को चूना मंडी, लाहौर में हुआ था। आपको पहले भाई जेठा जी के नाम से जाना जाता था। आपके पिता जी का नाम हरिदास तथा माता जी का नाम दया कौर था। वे सोढी जाति के क्षत्रिय परिवार से संबंध रखते थे। जेठा जी के माता-पिता बहुत निर्धन थे।

2. बचपन और विवाह (Childhood and Marriage)—भाई जेठा जी बचपन से ही धार्मिक विचारों वाले थे। एक बार आपके माता जी ने आपको उबले हुए चने बेच कर कुछ कमाने को कहा। बाहर जाते समय उन्हें कुछ भूखे साधु मिल गए। आपने सारे चने इन भूखे साधुओं को खिला दिए और स्वयं खाली हाथ लौट आए। आप लोगों की सेवा करने के लिए सदैव तैयार रहते थे। एक बार आपको एक सिख जत्थे के साथ गोइंदवाल साहिब जाने का अवसर मिला। आप वहाँ पर गुरु अमरदास जी के व्यक्तित्व से इतने प्रभावित हुए कि उनके शिष्य बन गए। गुरु अमरदास जी भाई जेठा जी की भक्ति और गुणों को देखकर बहुत प्रभावित हुए। इसलिए गुरु साहिब ने 1553 ई० में अपनी छोटी लड़की बीबी भानी जी का विवाह उनके साथ कर दिया। भाई जेठा जी के घर तीन लड़कों का जन्म हुआ। उनके नाम पृथी चंद (पृथिया), महादेव और अर्जन थे।

3. गुरुगद्दी की प्राप्ति (Assumption of Guruship)—विवाह के पश्चात् भी भाई जेठा जी गोइंदवाल साहिब में ही रहे तथा पहले की तरह गुरु जी की सेवा करते रहे। भाई जेठा जी की निष्काम सेवा, नम्रता और मधुर स्वभाव ने गुरु अमरदास जी का मन मोह लिया था। इसलिए 1 सितंबर, 1574 ई० में गुरु अमरदास जी ने अपने ज्योति-जोत समाने से पूर्व भाई जेठा जी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया। उस समय से भाई जेठा जी को रामदास जी कहा जाने लगा। इस प्रकार गुरु रामदास जी सिखों के चौथे गुरु बने।

II. गुरु रामदास जी के समय सिख पंथ का विकास (Development of Sikhism under Guru Ram Das Ji)
गुरु रामदास जी का गुरुकाल 1574 ई० से 1581 ई० तक था। उनका गुरुकाल का समय बहुत ही कम था। फिर भी उन्होंने सिख पंथ के विकास तथा संगठन में प्रशंसनीय योगदान दिया।—

1. रामदासपुरा की स्थापना (Foundation of Ramdaspura)-गुरु रामदास जी की सिख पंथ को सबसे महत्त्वपूर्ण देन रामदासपुरा अथवा अमृतसर की स्थापना करना था। रामदासपुरा की स्थापना 1577 ई० में हुई। इस शहर को बसाने के लिए गुरु साहिब ने यहाँ भिन्न-भिन्न व्यवसायों से संबंध रखने वाले 52 व्यापारियों को बसाया। इन व्यापारियों ने जो बाजार बसाया वह ‘गुरु का बाज़ार’ नाम से प्रसिद्ध हुआ। गुरु साहिब ने रामदासपुरा में दो सरोवरों अमृतसर एवं संतोखसर की खुदवाई का विचार बनाया। अमृतसर सरोवर के निर्माण का कार्य बाबा बुड्डा जी की देखरेख में हुआ। शीघ्र ही अमृत सरोवर के नाम पर ही रामदासपुरा का नाम अमृतसर पड़ गया। अमृतसर की स्थापना से सिखों को उनका मक्का मिल गया। यह शीघ्र ही सिखों का सर्वाधिक प्रसिद्ध धर्म-प्रचार केंद्र बन गया।

2. मसंद प्रथा का आरंभ (Introduction of Masand System)—गुरु रामदास जी को रामदासपुरा में अमृतसर एवं संतोखसर नामक दो सरोवरों की खुदवाई के लिए धन की आवश्यकता पड़ी। इसलिए गुरु साहिब ने अपने प्रतिनिधियों को अलग-अलग स्थानों पर भेजा ताकि वे सिख मत का प्रचार कर सकें और संगतों से धन एकत्रित कर सकें। यह संस्था मसंद प्रथा के नाम से प्रसिद्ध हुई। मसंद प्रथा के कारण ही सिख मत का दूर-दूर तक प्रचार हुआ। एस० एस० गाँधी के अनुसार,
“मसंद प्रथा ने सिख पंथ को संगठित करने में बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।”12

3. उदासियों से समझौता (Reconciliation With Udasis)-गुरु रामदास जी के समय की एक महत्त्वपूर्ण घटना उदासी तथा सिख संप्रदाय के मध्य समझौता था। एक बार उदासी मत के संस्थापक बाबा श्रीचंद जी गुरु रामदास जी के दर्शनों के लिए अमृतसर आए। वह गुरु साहिब की नम्रता से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने उस दिन के पश्चात् सिख मत का विरोध नहीं किया। यह समझौता सिख पंथ के विकास के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण प्रमाणित हुआ।

4. कुछ अन्य महत्त्वपूर्ण कार्य (Some other important Works)-गुरु जी के अन्य महत्त्वपूर्ण कार्यों में वाणी की रचना (679 शब्द) करना था। उन्होंने चार लावों द्वारा विवाह प्रथा को प्रोत्साहित किया। गुरु साहिब ने पहले से चली आ रही संगत, पंगत और मंजी नामक संस्थाओं को जारी रखा। गुरु साहिब ने समाज में प्रचलित कुरीतियों जैसे-जाति प्रथा, सती प्रथा, बाल विवाह आदि का भी ज़ोरदार शब्दों में खंडन किया।

5. अकबर के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध (Friendly Relations with Akbar)-गुरु रामदास जी के समय में भी सिखों के मुग़ल बादशाह अकबर से मैत्रीपूर्ण संबंध स्थापित रहे। अकबर ने गुरु रामदास जी से लाहौर में मुलाकात की थी। गुरु जी के विचारों से प्रभावित होकर उसने गुरु साहिब के कहने पर पंजाब के कृषकों का एक वर्ष के लिए लगान माफ कर दिया। फलस्वरूप गुरु साहिब की ख्याति में और वृद्धि हुई।

6. उत्तराधिकारी की नियुक्ति (Nomination of the Successor)-1581 ई० में गुरु रामदास जी ने अपने ज्योति-जोत समाने से पूर्व अपने सबसे छोटे पुत्र अर्जन देव जी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया। इसका कारण यह था कि गुरु साहिब के सबसे बड़े पुत्र पृथिया ने अपने षड्यंत्रों के कारण उन्हें नाराज़ कर लिया था। दूसरे पुत्र महादेव को सांसारिक कार्यों में कोई रुचि नहीं थी। अर्जन साहिब प्रत्येक पक्ष से गुरुगद्दी के योग्य थे। गुरु रामदास जी 1 सितंबर, 1581 ई० को ज्योति-जोत समा गए।

7. गुरु रामदास जी की सफलताओं का मूल्याँकन (Estimate of the Achievements of Guru Ram Das Ji)-गुरु रामदास जी अपने गुरुगद्दी काल में सिख पंथ को एक नया स्वरूप देने में सफल हुए। गुरु जी ने रामदासपुरा एवं मसंद प्रथा की स्थापना से, उदासियों के साथ समझौता करके, अपनी वाणी की रचना करके, समाज में प्रचलित कुरीतियों का खंडन करके, संगत, पंगत एवं मंजी संस्थाओं को जारी रख कर तथा अकबर के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध स्थापित करके सिख धर्म की नींव को और सुदृढ़ किया। अंत में हम प्रसिद्ध इतिहासकार डॉक्टर डी० एस० ढिल्लों के इन शब्दों से सहमत हैं,
“गुरु रामदास जी ने अपने लगभग 7 वर्षों के गुरुकाल में सिख पंथ को दृढ़ ढाँचा एवं दिशा प्रदान की।”13

12. “Masand System played a big role in consolidating Sikhism.” S. S. Gandhi, History of the Sikhs (Delhi : 1978) p. 209.
13. “During the short period of his guruship of about seven years, Guru Ram Das provided a well-knit community with a form and content.” Dr. D. S. Dhillon, Sikhism : Origin and Development (New Delhi : 1988) p. 100.

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 5 गुरु अंगद देव जी, गुरु अमरदास जी और गुरु रामदास जी के अधीन सिख धर्म का विकास

प्रश्न 10.
1539 ई० से 1581 ई० तक सिख पंथ के विकास का संक्षिप्त वर्णन करें।
(Describe briefly the development of Sikhism from 1539 to 1581 A.D.)
उत्तर-
गुरु अंगद देव जी 1539 ई० में सिखों के दूसरे गुरु बने। वह 1552 ई० तक गुरुगद्दी पर आसीन रहे। जिस समय गुरु अंगद देव जी गुरुगद्दी पर बैठे थे, उस समय सिख पंथ के सामने कई संकट विद्यमान थे। पहला सिख धर्म का हिंदू धर्म में विलीन हो जाने का खतरा था। दूसरा बड़ा ख़तरा उदासियों से था। सिख अनुयायियों की कम संख्या होने के कारण बहुत से सिख उदासी मत में शामिल होते जा रहे थे। गुरु अंगद साहिब ने अपने यत्नों से सिख पंथ के सम्मुख विद्यमान इन खतरों को दूर किया। गुरु अंगद साहिब ने सिख पंथ के विकास में जो महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई उसका वर्णन निम्नलिखित अनुसार है—

1. गुरमुखी को लोकप्रिय बनाना (Popularisation of Gurmukhi)-गुरुं अंगद देव जी ने गुरमुखी लिपि को लोकप्रिय बनाने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने इसके रूप में एक नया निखार लाया। अब इस लिपि को समझना सामान्य लोगों के लिए सरल हो गया। सिखों के सभी धार्मिक ग्रंथों की रचना इस लिपि में हुई। इस लिपि का नाम गुरमुखी [गुरुओं के मुख से निकली हुई] होने के कारण यह सिखों को गुरु के प्रति अपने कर्तव्य का स्मरण दिलाती रही। इस प्रकार यह लिपि सिखों की अपनी अलग पहचान बनाए रखने में सहायक सिद्ध हुई। इस लिपि के प्रसार के कारण सिखों में तीव्रता से विद्या का प्रसार भी होने लगा। एच० एस० भाटिया एवं एस० आर० बख्शी के अनुसार,
“गुरु अंगद देव जी ने सिखों को हिंदुओं एवं मुसलमानों से एक अलग भाषा दी तथा उन्हें यह अनुभव करवाया कि वे अलग लोग हैं।”2.

2. वाणी का संग्रह (Collection of Hymns)-गुरु अंगद देव जी का दूसरा महान् कार्य गुरु नानक देव जी की वाणी को एकत्रित करना था। यह वाणी एक स्थान पर न होकर अलग-अलग स्थानों पर बिखरी हुई थी। गुरु अंगद साहिब ने इस समूची वाणी को एकत्रित किया। सिख परंपराओं के अनुसार गुरु अंगद देव जी ने एक श्रद्धालु सिख भाई बाला जी को बुलाकर गुरु नानक साहिब के जीवन के संबंध में भाई पैड़ा मौखा जी से एक जन्म साखी लिखवाई। इस साखी को भाई बाला जी की जन्म साखी के नाम से जाना जाता है। कुछ विद्वान् इस तथ्य से सहमत नहीं हैं कि भाई बाला जी की जन्म साखी को गुरु अंगद देव जी के समय लिखा गया था। गुरु अंगद साहिब ने स्वयं ‘नानक’ के नाम से वाणी की रचना की। इस प्रकार गुरु अंगद देव जी ने वाणी के वास्तविक रूप को बिगड़ने से बचाया। दूसरा, इसने आदि ग्रंथ साहिब जी की तैयारी के लिए महत्त्वपूर्ण आधार तैयार किया।

3. लंगर प्रथा का विस्तार (Expansion of Langar System)-लंगर प्रथा के विकास का श्रेय गुरु अंगद देव जी को जाता है। लंगर का समूचा प्रबंध उनकी धर्म पत्नी बीबी खीवी जी करते थे। लंगर में सभी व्यक्ति बिना किसी ऊँच-नीच, जाति के भेदभाव के इकट्ठे मिलकर छकते थे। इस लंगर के लिए सारी माया गुरु जी के सिख देते थे। इस प्रथा के कारण सिखों में परस्पर सहयोग की भावना बढ़ी। इसने हिंदू समाज में फैली जाति-प्रथा पर कड़ा प्रहार किया। इस प्रकार इस संस्था ने सामाजिक एवं आर्थिक असमानता को दूर करने में प्रशंसनीय योगदान दिया। इसके कारण सिख धर्म की ख्याति दूर-दूर तक फैल गई। प्रसिद्ध इतिहासकार प्रोफैसर हरबंस सिंह का यह कहना पूर्णतः सही है, “सामाजिक क्रांति लाने में यह (लंगर) संस्था महत्त्वपूर्ण साधन सिद्ध हुई।”3

4. संगत का संगठन (Organisation of Sangat)-गुरु अंगद देव जी ने गुरु नानक देव जी द्वारा स्थापित संगत संस्था को भी संगठित किया। संगत से अभिप्राय था-एकत्रित होकर बैठना। संगत में सभी धर्मों के लोगस्त्री और पुरुष भाग ले सकते थे। यह संगत सुबह-शाम गुरु जी के उपदेशों को सुनने के लिए एकत्रित होती थी। इस संस्था ने सामाजिक असमानता को दूर करने तथा सिखों को संगठित करने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।

5. उदासी मत का खंडन (Denunciation of the Udasi Sect)-उदासी मत की स्थापना गुरु नानक देव जी के बड़े सुपुत्र बाबा श्रीचंद जी ने की थी। यह मत संन्यास अथवा त्याग के जीवन पर बल देता था। बहुत से सिख उदासी मत को मान्यता देने लग पड़े थे। ऐसी परिस्थितियों में यह संकट उत्पन्न हो गया था कि कहीं सिख गुरु नानक देव जी उपदेशों को भूल कर उदासी मत न अपना लें। अतः गुरु अंगद देव जी ने उदासी मत का कड़ा विरोध किया तथा स्पष्ट किया कि उदासी मत के सिद्धांत सिख धर्म के सिद्धांतों से.सर्वथा विपरीत हैं एवं जो सिख उदासी मत में विश्वास रखता है, वह सच्चा सिख नहीं हो सकता। इस प्रकार गुरु अंगद देव जी ने सिख मत के अस्तित्व को बनाए रखा।

6. शारीरिक शिक्षा (Physical Training)-गुरु अंगद देव जी यह मानते थे कि जिस प्रकार आत्मा की उन्नति के लिए नाम का जाप करना आवश्यक है, ठीक उसी प्रकार शारीरिक स्वस्थता के लिए व्यायाम करना भी आवश्यक है। इस उद्देश्य के साथ गुरु जी ने खडूर साहिब में एक अखाड़ा बनवाया। यहाँ सिख प्रतिदिन प्रातःकाल मल्ल युद्ध तथा अन्य व्यायाम करते थे।

7. गोइंदवाल साहिब की स्थापना (Foundation of Goindwal Sahib)-गुरु अंगद देव जी ने खडूर साहिब के समीप गोइंदवाल साहिब नामक एक नए नगर की स्थापना की। इस नगर का निर्माण कार्य एक श्रद्धालु सेवक अमरदास की देख-रेख में 1546 ई० में आरंभ हुआ। यह नगर शीघ्र ही सिखों का एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थान बन गया।

8. हुमायूँ से भेंट (Meeting with Humayun)-1540 ई० में मुग़ल बादशाह हुमायूँ शेरशाह सूरी के हाथों पराजय के पश्चात् पंजाब पहुँचा। वह खडूर साहिब गुरु अंगद देव जी से आशीर्वाद लेने के लिए पहुँचा। उस समय गुरु जी समाधि में लीन थे। हुमायूँ ने इसे अपना अपमान समझकर तलवार निकाल ली। उस समय गुरु जी ने अपनी आँखें खोली और हुमायूँ से कहा कि, “यह तलवार जिसका तुम मुझ पर प्रयोग करने लगे हो, वह तलवार शेरशाह सूरी के विरुद्ध लड़ाई करते समय कहाँ थी ?” ये शब्द सुनकर हुमायूँ अत्यंत लज्जित हुआ और उसने गुरु जी से क्षमा माँगी। गुरु जी ने हुमायूँ को आशीर्वाद देते हुए कहा कि तुम्हें कुछ समय प्रतीक्षा करने के पश्चात् राज्य सिंहासन प्राप्त होगा। गुरु जी की यह भविष्यवाणी सत्य निकली। इस भेंट के कारण सिखों तथा मुग़लों के मध्य मैत्रीपूर्ण संबंध स्थापित हुए।

9. उत्तराधिकारी की नियुक्ति (Nomination of the Successor)-गुरु अंगद देव जी का सिख पंथ के विकास के लिए सबसे महान् कार्य अमरदास जी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त करना था। गुरु अंगद देव जी ने काफ़ी सोच-समझकर इस उच्च पद के लिए अमरदास जी का चुनाव किया। गुरु जी ने अमरदास जी के सम्मुख एक नारियल और पाँच पैसे रखकर अपना शीश झुकाया। इस प्रकार अमरदास जी को सिखों का तीसरा गुरु नियुक्त किया गया। गुरु अंगद देव जी 29 मार्च, 1552 ई० को ज्योति जोत समा गए।

10. गुरु अंगद देव जी की सफलताओं का मूल्याँकन (Estimate of Guru Angad Dev Ji’s Achievements)-इस प्रकार हम देखते हैं कि गुरु अंगद देव जी ने अपनी गुरुगद्दी के काल में सिख पंथ के विकास में बहुत प्रशंसनीय योगदान दिया। गुरु जी ने गुरमुखी लिपि का प्रचार करके, गुरु नानक साहिब की वाणी को एकत्रित करके, संगत और पंगत संस्थाओं का विस्तार करके, सिख पंथ को उदासी मत से अलग करके, गोइंदवाल साहिब की स्थापना करके और अपना उत्तराधिकारी नियुक्त करके सिख पंथ की नींव को और सुदृढ़ किया। गुरु अंगद देव जी की सफलताओं का मूल्यांकन करते हुए प्रसिद्ध इतिहासकार के० एस० दुग्गल का कहना है,

“यह आश्चर्य वाली बात है कि गुरु अंगद साहिब ने अपने अल्प समय के दौरान कितनी अधिक सफलता प्राप्त कर ली थी।”4
एक अन्य प्रसिद्ध इतिहासकार एस० एस० जौहर के अनुसार,
“गुरु अंगद देव जी का गुरु काल सिख पंथ के इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण मोड़ था।”5

1. “Had Nanak died without a successor, there would have been no Sikhism today.” G.C. Narang, Transformation of Sikhism (New Delhi : 1989) p. 29.
2. “Guru Angad Dev Ji gave the Sikhs a written language different from the language of the Hindus and Muslims and thus made them realise that they were separate people.” H.S. Bhatia and S.R. Bakshi, Encyclopaedic History of the Sikhs and Sikhism (New Delhi : 1999) Vol. 1, p. 12.
3. “This served as an instrument of a far-reaching social revolution.” Prof. Harbans Singh, The Heritage of the Sikhs (Delhi : 1994) p. 31.
4. “It is amazing how much Guru Angad could achieve in the short time at his disposal.” K.S. Duggal, The Sikh Gurus : Their Lives and Teachings (New Delhi : 1993) p. 71.
5. “The pontificate of Guru Angad Dev is indeed a turning point in the history of Sikh faith.” S.S. Johar, Handbook on Sikhism (Delhi : 1979) p. 26.

संक्षिप्त उत्तरों वाले प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
गुरु अंगद देव जी का सिख पंथ के विकास में योगदान बताएँ। (Explain the contribution of Guru Angad Dev Ji to the development of Sikhism.)
अथवा
सिख पंथ के विकास में गुरु अंगद देव जी ने क्या-क्या कार्य किए ?
(What did Guru Angad Dev Ji do for the development of Sikh Panth ?)
अथवा
गुरु अंगद देव जी की किन्हीं तीन ऐसी सफलताओं का वर्णन करें जिनके कारण सिख धर्म का विकास हुआ।
(Write any three achievemnents of Guru Angad Dev Ji for the development of Sikhism.)
अथवा
सिख पंथ के विकास में गुरु अंगद देवो के कोई तीन कार्य बताएँ।
(Mention any three achievements of Guru Angad Dev Ji for the development of Sikhism.)
अथवा
गुरु अंगद देव जी पर एक संक्षिप्त नोट लिखें। (Write a short note on Guru Angad Dev Ji.)
उत्तर-

  1. गुरु अंगद देव जी ने खडूर साहिब को अपने प्रचार का मुख्य केंद्र बनाया।
  2. उन्होंने गुरमुखी लिपि को एक नया रूप प्रदान किया।
  3. गुरु अंगद देव जी ने संगत और पंगत संस्थाओं को अधिक विकसित किया।
  4. उन्होंने अपने अनुयायियों में कठोर अनुशासन लागू किया।
  5. उन्होंने सिख पंथ को उदासी मत से पृथक् करने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।
  6. उन्होंने गोइंदवाल साहिब नामक एक नए नगर की स्थापना की।

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प्रश्न 2.
गुरु अंगद देव जी ने गुरमुखी लिपि को लोकप्रिय बनाने के लिए क्या योगदान दिया ?
(What contribution was made by Guru Angad Dev Ji to improve Gurmukhi script ?)
अथवा
गुरमुखी लिपि को प्रचलित करने के लिए गुरु अंगद देव जी ने क्या योगदान दिया ?
(What contribution was made by Guru Angad Dev Ji to popularise Gurmukhi script ?)
उत्तर-
गुरु अंगद देव जी ने गुरमुखी लिपि को संशोधित कर नया रूप प्रदान किया। परिणामस्वरूप, इस लिपि को समझना लोगों के लिए सरल हो गया। इस लिपि में सिखों के सभी धार्मिक ग्रंथों की रचना हुई। इस लिपि के कारण ब्राह्मण वर्ग को कड़ा आघात पहुँचा क्योंकि वे संस्कृत को ही धर्म की भाषा मानते थे। इस लिपि के लोकप्रिय होने के कारण सिख मत के प्रचार में बड़ी सहायता मिली। यह लिपि विद्या के प्रसार में भी सहायक सिद्ध हुई।

प्रश्न 3.
गुरु अंगद देव जी ने उदासी मत का खंडन किस प्रकार किया ? (How did Guru Angad Dev Ji denounce the Udasi sect ?)
उत्तर-
गुरु अंगद देव जी का सिख मत के विकास की ओर एक अन्य प्रशंसनीय कार्य उदासी मत का खंडन करना था। इस मत की स्थापना गुरु नानक देव जी के बड़े सुपुत्र बाबा श्रीचंद जी ने की थी। यह मत संयास अथवा त्याग के जीवन पर बल देता था, जबकि गुरु नानक देव जी गृहस्थ जीवन के पक्ष में थे। उदासी मत के शेष सिद्धांत गुरु नानक देव जी के सिद्धांतों से मिलते थे। इस कारण बहुत-से सिख उदासी मत को मान्यता देने लग पड़े थे। ऐसी परिस्थितियों में गुरु अंगद साहिब ने उदासी मत का कड़ा विरोध किया। उन्होंने स्पष्ट किया कि जो सिख उदासी मत में विश्वास रखता है, वह सच्चा सिख नहीं हो सकता।

प्रश्न 4.
गुरु अंगद देव जी तथा हुमायूँ में हुई भेंट की संक्षेप जानकारी दें।
(Give a brief account of the meeting between Guru Angad Dev Ji and Humayun.)
उत्तर-
1540 ई० में मुग़ल बादशाह हुमायूँ को शेरशाह सूरी के हाथों कन्नौज के स्थान पर कड़ी पराजय हुई थी। पराजय के पश्चात् हुमायूँ खडूर साहिब गुरु अंगद देव जी से आशीर्वाद लेने के लिए पहुँचा। उस समय गुरु जी समाधि में इतने लीन थे कि उन्होंने आँखें खोलकर नं देखा। हुमायूँ ने क्रोधित होकर अपनी तलवार म्यान से निकाल ली। उसी समय गुरु जी ने अपनी आँखें खोली और हुमायूँ से कहा कि, “यह तलवार शेरशाह सूरी के विरुद्ध लड़ाई करते समय कहाँ थी ?” ये शब्द सुनकर हुमायूँ अत्यंत लज्जित हुआ और उसने गुरु जी से क्षमा माँग ली।

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प्रश्न 5.
संगत के बारे में आप क्या जानते हैं ? (What do you know about Sangat ?)
उत्तर-
संगत संस्था की स्थापना गुरु नानक देव जी ने की थी। संगत संस्था से अभिप्राय एकत्रित रूप में मिलकर बैठने से था। यह संगत सुबह-शाम गुरु जी के उपदेशों तथा सतनाम का जाप करने के लिए एकत्रित होते थी। गुरु अंगद देव जी ने इस संस्था को अधिक संगठित किया। संगत में बिना किसी जाति-पाति अथवा धर्म के भेद-भाव के कोई भी आ सकता था। संगत को ईश्वर का रूप समझा जाता था।

प्रश्न 6.
पंगत अथवा लंगर से आपका क्या भाव है ? (What do you mean by Pangat or Langar ?)
अथवा
लंगर प्रथा के बारे में आप क्या जानते हैं ?
(What do you know about Langar system ?)
अथवा
पंगत अथवा लंगर व्यवस्था पर एक नोट लिखें।
(Write a note on Pangat or Langar.)
उत्तर-
पंगत (लंगर) संस्था की स्थापना भी गुरु नानक देव जी ने की थी। इसके अंतर्गत धर्मों तथा वर्गों के लोग बिना किसी भेदभाव के एक जगह बैठकर खाते थे। गुरु अंगद देव जी ने इसे जारी रखा और गुरु अमरदास जी ने इस संस्था को अधिक विकसित किया। इस संस्था ने समाज में जाति-प्रथा और असमानता की भावनाओं को समाप्त करने में बड़ी सहायता की।

प्रश्न 7.
संगत एवं पंगत के महत्त्व पर एक संक्षिप्त नोट लिखो।
(Write a short note on importance of Sangat and Pangat.)
अथवा
संगत तथा पंगत से आपका क्या अभिप्राय है ?
(What do you mean by Sangat and Pangat ?)
उत्तर-
1540 ई० में मुग़ल बादशाह हुमायूँ को शेरशाह सूरी के हाथों कन्नौज के स्थान पर कड़ी पराजय हुई थी। पराजय के पश्चात् हुमायूँ खडूर साहिब गुरु अंगद देव जी से आशीर्वाद लेने के लिए पहुँचा। उस समय गुरु जी समाधि में इतने लीन थे कि उन्होंने आँखें खोलकर नं देखा। हुमायूँ ने क्रोधित होकर अपनी तलवार म्यान से निकाल ली। उसी समय गुरु जी ने अपनी आँखें खोली और हुमायूँ से कहा कि, “यह तलवार शेरशाह सूरी के विरुद्ध लड़ाई करते समय कहाँ थी ?” ये शब्द सुनकर हुमायूँ अत्यंत लज्जित हुआ और उसने गुरु जी से क्षमा माँग ली।

पंगत (लंगर) संस्था की स्थापना भी गुरु नानक देव जी ने की थी। इसके अंतर्गत धर्मों तथा वर्गों के लोग बिना किसी भेदभाव के एक जगह बैठकर खाते थे। गुरु अंगद देव जी ने इसे जारी रखा और गुरु अमरदास जी ने इस संस्था को अधिक विकसित किया। इस संस्था ने समाज में जाति-प्रथा और असमानता की भावनाओं को समाप्त करने में बड़ी सहायता की।

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प्रश्न 8.
गुरुगद्दी प्राप्त करने के पश्चात् गुरु अमरदास जी को जिंन आरंभिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा उनका संक्षेप वर्णन कीजिए।
(What problems did Guru Amar Das Ji face in the early years of his pontificate ?)
उत्तर-

  1. गुरुगद्दी पर विराजमान होने के पश्चात् गुरु अमरदास जी को सबसे पहले गुरु अंगद देव जी के पुत्रों दासू तथा दातू के विरोध का सामना करना पड़ा। उन्होंने गुरु पुत्र होने के नाते गुरुगद्दी पर अपना अधिकार जताया।
  2. गुरु नानक देव जी के बड़े पुत्र बाबा श्रीचंद भी गुरुगद्दी पर अपना अधिकार समझते थे। उन्होंने भी गुरु अमरदास जी का विरोध करना आरंभ कर दिया।
  3.  गुरु अमरदास जी की बढ़ती हुई ख्याति देख कर गोइंदवाल साहिब के मुसलमान सिखों से ईर्ष्या करने लगे। उन्होंने सिखों के लिए अनेक समस्याएँ उत्पन्न कर दी।

प्रश्न 9.
सिख धर्म के विकास में गुरु अमरदास जी के योगदान के बारे में बताओ।
(Give the contribution of Guru Amar Das Ji for the development of Sikh religion.)
अथवा
सिख धर्म के विकास में गुरु अमरदास जी द्वारा की गई तीन मुख्य सेवाओं का वर्णन करो।
(Write down the three services done by Guru Amar Das Ji for the development of Sikh religion.)
अथवा
गुरु अमरदास जी के कार्यों का मूल्यांकन कीजिए। (From an estimate of the works of Guru Amar Das Ji.)
अथवा
सिख धर्म के विकास में गुरु अमरदास जी के तीन कार्य बताएँ। (Write any three works of Guru Amar Das Ji for the spread of Sikhism.)
अथवा
सिख पंथ के विकास में गुरु अमरदास जी के योगदान का अध्ययन करें। (Study the contribution of Guru Amar Das Ji to the growth of Sikhism.)
उत्तर-

  1. गुरु अमरदास जी ने सर्वप्रथम गोइंदवाल साहिब में बाऊली का निर्माण किया। शीघ्र ही यह सिखों का एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थान बन गया।
  2. उन्होंने लंगर संस्था का अधिक विस्तार किया।
  3. उन्होंने सिख पंथ के प्रचार के लिए मंजी प्रथा की स्थापना की।
  4. गुरु साहिब ने सिख मत को उदासी मत से अलग रखकर लुप्त होने से बचा लिया।
  5. गुरु अमरदास जी ने समाज में प्रचलित कुरीतियों का जोरदार शब्दों में खंडन किया।

प्रश्न 10.
सिख इतिहास में गोइंदवाल साहिब की बाऊली के निर्माण का क्या महत्त्व है ?
(What is importante of the construction of the Baoli of Goindwal Sahib in Sikh History ?)
अथवा
गोइंदवाल साहिब को सिख धर्म का केंद्र क्यों कहा जाता है ? (Why is Goindwal Sahib called the centre of Sikhism-?)
उत्तर-
गुरु अमरदास जी का सिख पंथ के विकास की ओर पहला कदम गोइंदवाल साहिब में एक बाऊली का निर्माण करवाना था। इस पवित्र बाऊली का निर्माण कार्य 1552 ई० से 1559 ई० तक चला। इस बाऊली के निर्माण के पीछे गुरु साहिब के दो उद्देश्य थे। पहला, सिखों को हिंदुओं से अलग तीर्थ स्थान देना चाहते थे। दूसरा, वह वहाँ के लोगों की पानी की कठिनाई को दूर करना चाहते थे। बाऊली के निर्माण से सिखों को एक पवित्र तीर्थ स्थान मिल गया।

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प्रश्न 11.
गुरु अमरदास जी के द्वारा किए गए सामाजिक सुधारों का संक्षेप में वर्णन करें। (Describe briefly the social reforms of Guru Amar Das Ji.)
अथवा
गुरु अमरदास जी के कोई तीन सामाजिक सुधारों का वर्णन करें।
(Describe any three social reforms of Guru Amar Das Ji.)
अथवा
गुरु अमरदास जी को समाज सुधारक क्यों कहा जाता है ?
(Why is.Guru Amar Das called a social reformer ?)
अथवा
गुरु अमरदास जी को समाज सुधारक किन कारणों के लिए कहा जाता है ? (Why is Guru Amar Das Ji called a social reformer ?)
उत्तर-

  1. गुरु अमरदास जी ने सती प्रथा का डटकर विरोध किया।
  2. गुरु साहिब ने बाल विवाह और पर्दा प्रथा का भी विरोध किया।
  3. उन्होंने समाज में प्रचलित जाति प्रथा की बड़े जोरदार शब्दों में आलोचना की।
  4. गुरु अमरदास जी नशीले पदार्थों के सेवन के विरुद्ध थे।
  5. उन्होंने सिखों के जन्म, विवाह और मृत्यु के अवसरों के लिए विशेष रस्में बनाईं।

प्रश्न 12.
गुरु अमरदास जी ने स्त्री जाति के कल्याण के लिए कौन-से सुधार किए ?
(What reforms were made by Guru Amar Das Ji for the welfare of women ?)
उत्तर-

  1. गुरु अमरदास जी ने नवजन्मी कन्याओं को मारने का विरोध किया।
  2. गुरु जी ने बाल विवाह का जोरदार शब्दों में खंडन किया।
  3. उन्होंने पर्दा प्रथा की भी निंदा की।

प्रश्न 13.
मंजी प्रथा क्या थी ? सिख धर्म के विकास में इसने क्या योगदान दिया ?
(What was Manji system ? How did it contribute to the development of Sikhism ?)
अथवा
मंजी प्रथा के बारे में आप क्या जानते हैं ? (What do you know about Manji system ?) .
अथवा
मंजी प्रथा पर एक नोट लिखें। (Write a note on Manji system.)
उत्तर-
गुरु अमरदास जी का एक और महान् कार्य मंजी प्रथा की स्थापना था। उनके समय में सिखों की संख्या इतनी बढ़ गई थी कि गुरु जी के लिए प्रत्येक व्यक्ति तक पहुँचना असंभव था। अतः गुरु साहिब ने अपने उपदेशों को दूर के प्रदेशों तक पहुँचाने के लिए 22 मंजियों की स्थापना की। प्रत्येक मंजी के मुखिया को मंजीदार कहते थे। मंजीदार अधिक-से-अधिक लोगों को सिख धर्म में सम्मिलित होने के लिए प्रेरित करते थे। इसके अतिरिक्त वे सिखों से धन एकत्रित करके गुरु साहिब तक पहुँचाते थे।

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प्रश्न 14.
मंजीदार के प्रमुख कार्य क्या थे ? (What were the main functions of the Manjidar ?)
उत्तर-

  1. वे सिख धर्म के प्रचार के लिए अथक प्रयास करते थे ?
  2. वे गुरु साहिब के आदेशों को सिख संगतों तक पहुँचाते थे।
  3. वे लोगों को धार्मिक शिक्षा देते थे तथा गुरमुखी भाषा का अध्ययन करवाते थे।

प्रश्न 15.
गुरु अमरदास जी के मुग़लों के साथ कैसे संबंध थे ? (What type of relations did Guru Amar Das Ji have with the Mughals ?)
अथवा
मुगल बादशाह अकबर तथा गुरु अमरदास जी के मध्य संबंधों का उल्लेख कीजिए।
(Describe the relations between Mughal emperor Akbar and Guru Amar Das Ji.)
अथवा
मुगल सम्राट अकबर तथा गुरु अमरदास जी के बीच संबंधों का उल्लेख करें। (Explain the relations between the Mughal emperor Akbar and Guru Amar Das Ji.).
उत्तर-
गुरु अमरदास जी के मुग़लों के साथ संबंध मैत्रीपूर्ण थे। 1568 ई० में अकबर गोइंदवाल साहिब आया। उसने गुरु साहिब के दर्शन करने से पूर्व मर्यादानुसार लंगर खाया। वह गुरु साहिब के व्यक्तित्व और लंगर प्रबंध से बहुत प्रभावित हुआ। उसने लंगर प्रबंध को चलाने के लिए कुछ गाँवों की जागीर गुरु जी की सुपुत्री बीबी भानी जी के नाम लगा दी। अकबर की इस यात्रा के कारण गुरु अमरदास जी की प्रसिद्धि बहुत दूर-दूर तक फैल गई। इससे सिख धर्म का प्रसार और प्रचार बढ़ा।

प्रश्न 16.
गुरु रामदास जी का सिख धर्म को क्या योगदान था ?
(What was the contribution of Guru Ram Das Ji to Sikh religion ?)
अथवा
सिख मत के विकास में गुरु रामदास जी द्वारा दिये गए योगदान का वर्णन करो।
(Explain the contribution of Guru Ram Das Ji to the growth of Sikhism.)
उत्तर-
गुरु रामदास जी का गुरु काल 1574 ई० से 1581 ई० तक रहा। गुरु साहिब ने सर्वप्रथम रामदासपुरा (अमृतसर) की स्थापना की। इसके अतिरिक्त गुरु साहिब ने यहाँ पर दो सरोवरों अमृतसर और संतोखसर की खुदाई का कार्य भी आरंभ किया। गुरु साहिब ने सिख धर्म के प्रचार तथा उसके विकास के लिए धन एकत्रित करने के लिए मसंद प्रथा की स्थापना की। गुरु रामदास जी ने सिखों और उदासियों के मध्य लंबे समय से चले आ रहे मतभेदों को समाप्त किया। गुरु साहिब ने संगत और पंगत संस्थाओं को जारी रखा।

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प्रश्न 17.
रामदासपुरा (अमृतसर) की स्थापना का सिख इतिहास में क्या महत्त्व है ?
[What is the importance of foundation of Ramdaspura (Amritsar) in Sikh History ?]
उत्तर-
गुरु रामदास जी की सिख पंथ को सबसे महत्त्वपूर्ण देन 1577 ई० में रामदासपुरा अथवा अमृतसर की स्थापना करना था। गुरुगद्दी प्राप्त करने के पश्चात् गुरु साहिब स्वयं यहाँ आ गए थे। इस शहर को बसाने के लिए गुरु साहिब ने यहाँ भिन्न-भिन्न व्यवसायों से संबंधित 52 अन्य व्यापारियों को बसाया। अमृतसर की स्थापना सिख पंथ के इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है। इससे सिखों को एक अलग तीर्थ स्थान मिल गया।

प्रश्न 18.
उदासी मत पर एक संक्षिप्त नोट लिखें। (Write a short note on Udasi sect.)
अथवा
उदासी प्रथा के बारे में आप क्या जानते हैं ? (What do you know about Udasi system ?)
अथवा
बाबा श्रीचंद जी पर एक संक्षिप्त नोट लिखें। (Write a brief note on Baba Sri Chand Ji.) .
उत्तर-
उदासी मत की स्थापना गुरु नानक देव जी के बड़े पुत्र बाबा श्रीचंद जी ने की थी। यह मत त्याग और वैराग्य पर बल देता था। यह मत योग तथा प्रकृति उपासना में भी विश्वास रखता था। बहुत-से सिख बाबा श्रीचंद जी के जीवन से प्रभावित होकर उदासी मत में सम्मिलित होने लग पड़े थे। इसलिए गुरु अंगद देव जी और गुरु अमरदास जी ने जोरदार शब्दों में उदासी मत का खंडन किया। उनका कहना था कि कोई भी सच्चा सिख उदासी नहीं हो सकता था। गुरु अमरदास जी के काल में उदासियों एवं सिखों के बीच समझौता हो गया।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

(i) एक शब्द से एक पंक्ति तक के उत्तर (Answer in One Word to One Sentence)

प्रश्न 1.
सिखों के दूसरे गुरु कौन थे ?
उत्तर-
गुरु अंगद देव जी।

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प्रश्न 2.
गुरु अंगद देव जी का जन्म कब हुआ?
उत्तर-
1504 ई०।

प्रश्न 3.
गुरु अंगद देव जी का जन्म कहाँ हुआ?
उत्तर-
मत्ते की सराए (श्री मुक्तसर साहिब)।

प्रश्न 4.
गुरु अंगद देव जी की माता जी का नाम क्या था?
उत्तर-
सभराई देवी जी।।

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प्रश्न 5.
गुरु अंगद देव जी के पिता जी का क्या नाम था ?
उत्तर-
फेरूमल जी।

प्रश्न 6.
गुरु अंगद देव जी का आरंभिक नाम क्या था?
उत्तर-
भाई लहणा जी।

प्रश्न 7.
गुरु अंगद देव जी ने गुरुगद्दी कब प्राप्त की?
उत्तर-
1539 ई०।

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प्रश्न 8.
भाई लहणा जी को गुरु अंगद देव जी का नाम किसने दिया?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी।

प्रश्न 9.
गुरु अंगद देव जी का विवाह किससे हुआ?
उत्तर-
बीबी खीवी जी।

प्रश्न 10.
गुरु अंगद देव जी के पुत्रों के नाम लिखो।
उत्तर-
दातू और दास।

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प्रश्न 11.
गुरु अंगद देव जी की पुत्रियों के नाम लिखो।
उत्तर-
बीबी अमरो तथा बीबी अनोखी।

प्रश्न 12.
गुरु अंगद देव जी की धार्मिक गतिविधियों का केंद्र कौन-सा था?
उत्तर-
खडूर साहिब।

प्रश्न 13.
गुरुमुखी लिपि को किस गुरु साहिब ने लोकप्रिय बनाया?
उत्तर-
गुरु अंगद देव जी।

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प्रश्न 14.
गोइंदवाल साहिब की नींव किस गुरु साहिब ने रखी?
अथवा
गोइंदवाल साहिब की स्थापना किस गुरु जी ने की थी?
अथवा
दूसरे गुरु साहिब ने किस नगर की स्थापना की थी?
उत्तर-
गुरु अंगद साहिब जी।

प्रश्न 15.
गोइंदवाल साहिब की नींव कब रखी गई थी?
उत्तर-
1546 ई०।

प्रश्न 16.
सिख पंथ के विकास में गुरु अंगद देव जी का कोई एक महत्त्वपूर्ण योगदान बताएँ।
अथवा
गुरु अंगद देव जी ने सिख धर्म के प्रसार के लिए क्या किया?
उत्तर-
उन्होंने गुरुमुखी लिपि को लोकप्रिय बनाया।

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प्रश्न 17.
उदासी मत का संस्थापक कौन था?
उत्तर-
बाबा श्रीचंद जी।

प्रश्न 18.
उदासी मत से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
इस मत में संन्यासी जीवन पर बल दिया जाता था।

प्रश्न 19.
कौन-से मुग़ल बादशाह ने गुरु अंगद साहिब जी से खडूर साहिब में मुलाकात की?
अथवा
किस मुगल बादशाह ने गुरु अंगद देव जी के साथ मुलाकात की?
उत्तर-
हुमायूँ।

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प्रश्न 20.
मुगल बादशाह हुमायूँ ने किस गुरु साहिब जी से आशीर्वाद लिया था ?
उत्तर-
गुरु अंगद देव जी।

प्रश्न 21.
सिखों के तीसरे गुरु कौन थे ?
उत्तर-
गुरु अमरदास जी।

प्रश्न 22.
गुरु अमरदास जी का जन्म कब हुआ ?
उत्तर-
1479 ई० में।

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प्रश्न 23.
गुरु अमरदास जी का जन्म कहाँ हुआ ?
उत्तर-
बासरके गाँव में।

प्रश्न 24.
गुरु अमरदास जी की माता जी का नाम बताएँ।
उत्तर-
सुलक्खनी जी।

प्रश्न 25.
गुरु अमरदास जी के पिता जी का क्या नाम था ?
उत्तर-
तेजभान जी।

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प्रश्न 26.
गुरु अमरदास जी किस जाति से संबंधित थे ?
उत्तर-
भल्ला

प्रश्न 27.
बीबी भानी कौन थी ?
अथवा
बीबी दानी कौन थी ?
उत्तर-
गुरु अमरदास जी की सुपुत्री।

प्रश्न 28.
बाबा मोहरी जी किस गुरु साहिब के सुपुत्र थे ?
उत्तर-
बाबा मोहरी जी गुरु अमरदास जी के सुपुत्र थे।

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प्रश्न 29.
गुरु अमरदास जी जिस समय गुरुगद्दी पर बैठे तो उस समय उनकी आयु क्या थी ?
उत्तर-
73 वर्ष।

प्रश्न 30.
गुरु अमरदास जी गुरुगद्दी पर कब विराजमान हुए ?
उत्तर-
1552 ई० में।

प्रश्न 31.
गुरु अमरदास जी का गुरुकाल बताएँ ।
उत्तर-
1552 ई० से 1574 ई०।

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प्रश्न 32.
गोइंदवाल साहिब में बाऊली का निर्माण किसने करवाया ?
उत्तर-
गुरु अमरदास जी।

प्रश्न 33.
गोइंदवाल साहिब में पवित्र बाऊली का निर्माण कब किया गया ?
उत्तर-
1552 ई० में।

प्रश्न 34.
गोइंदवाल साहिब की बाऊली में कितनी सीढ़ियाँ बनाई गई थीं ?
उत्तर-
84.

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प्रश्न 35.
गुरु अमरदास जी की कोई एक सफलता लिखें।
उत्तर-
गोइंदवाल साहिब में बाऊली का निर्माण।

प्रश्न 36.
मंजी प्रथा की स्थापना किस गुरु साहिब ने की ?
उत्तर-
गुरु अमरदास जी।

प्रश्न 37.
गुरु अमरदास जी ने कितनी मंजियों की स्थापना की ?
उत्तर-
22 मंजियों की।

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प्रश्न 38.
मंजी प्रथा का उद्देश्य क्या था ?
उत्तर-
सिख मत का प्रचार करना।

प्रश्न 39.
मंजी प्रथा ने सिख धर्म के विकास में क्या योगदान दिया ?
उत्तर-
मंजी प्रथा ने सिख धर्म को लोकप्रिय बनाया।

प्रश्न 40.
गुरु अमरदास जी ने कितने शब्दों की रचना की ?
उत्तर-
907 शब्दों की।

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प्रश्न 41.
आनंदु साहिब वाणी की रचना किस गुरु साहिब ने की थी ?
उत्तर-
गुरु अमरदास जी।

प्रश्न 42.
गुरु अमरदास जी का कोई एक महत्त्वपूर्ण सामाजिक सुधार बताएँ।
उत्तर-
गुरु अमरदास जी ने सती प्रथा का खंडन किया।

प्रश्न 43.
गुरु अमरदास जी से भेंट करने कौन-सा मुग़ल बादशाह गोइंदवाल साहिब आया था ?
उत्तर-
अकबर।

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प्रश्न 44.
मुग़ल बादशाह अकबर गोइंदवाल साहिब कब आया था ?
उत्तर-
1568 ई०।

प्रश्न 45.
गुरु अमरदास जी ने अपना उत्तराधिकारी किसे नियुक्त किया ?
उत्तर-
गुरु रामदास जी।

प्रश्न 46.
गुरु अमरदास जी कब ज्योति-जोत समाए ?
उत्तर-
1574 ई०।

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प्रश्न 47.
सिखों के चौथे गुरु कौन थे ?
उत्तर-
गुरु रामदास जी।

प्रश्न 48.
गुरु रामदास जी का गुरु काल कौन-सा था ?
उत्तर-
1574 ई० से 1581 ई०

प्रश्न 49.
गुरु रामदास जी का जन्म कब हुआ?
उत्तर-
1534 ई०।

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प्रश्न 50.
गुरु रामदास जी का आरंभिक नाम क्या था?
अथवा
गुरु रामदास जी का पहला नाम क्या था ?
उत्तर-
भाई जेठा जी।

प्रश्न 51.
गुरु रामदास जी की माता जी का क्या नाम था?
उत्तर-
दया कौर।

प्रश्न 52.
गुरु रामदास जी के पिता जी का क्या नाम था?
उत्तर-
हरिदास।

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प्रश्न 53.
गुरु रामदास जी का संबंध किस जाति से था ?
उत्तर-
सोढी।

प्रश्न 54.
सोढी सुल्तान किस गुरु साहिब को कहा जाता है ?
उत्तर-
गुरु रामदास जी को।

प्रश्न 55.
गुरु रामदास जी का विवाह किससे हुआ था ?
अथवा
गुरु रामदास जी की पत्नी का नाम लिखो।
उत्तर-
बीबी भानी जी से।

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प्रश्न 56.
बीबी भानी कौन थी?
उत्तर-
गुरु रामदास जी की पत्नी।

प्रश्न 57.
गुरु रामदास जी के पुत्रों के क्या नाम थे ?
उत्तर-
पृथी चंद, महादेव तथा अर्जन देव जी।

प्रश्न 58.
पृथी चंद कौन था ?
उत्तर-
गुरु रामदास जी का ज्येष्ठ पुत्र।

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प्रश्न 59.
गुरु रामदास जी कब गुरुगद्दी पर बैठे ?
उत्तर-
1574 ई०।

प्रश्न 60.
सिख पंथ के विकास के लिए रामदास जी द्वारा किए गए कोई एक कार्य का वर्णन कीजिए।
अथवा
गुरु रामदास जी की कोई एक महत्त्वपूर्ण सफलता का उल्लेख करें।
उत्तर-
रामदासपुरा शहर की स्थापना।

प्रश्न 61.
रामदासपुरा की स्थापना कब की गई थी ?
उत्तर-
1577 ई०।

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प्रश्न 62.
रामदासपुरा किस नाम से प्रसिद्ध हुआ ?
उत्तर-
अमृतसर।

प्रश्न 63.
अमृतसर का पहला नाम क्या था ?
उत्तर-
रामदासपुरा।

प्रश्न 64.
अमृतसर नगर की नींव कब रखी गई थी ?
उत्तर-
1577 ई०।

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प्रश्न 65.
अमृसतर की स्थापना किस गुरु साहिब जी ने की ?
उत्तर-
गुरु रामदास जी।

प्रश्न 66.
सिखों और उदासियों के बीच समझौता किस गुरु के समय में हुआ ?
उत्तर-
गुरु रामदास जी।

प्रश्न 67.
मसंद प्रथा किसने चलाई थी ?
अथवा
मसंद प्रथा किस गरु ने शुरू की ?
उत्तर-
गुरु रामदास जी।

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प्रश्न 68.
मसंद प्रथा का कोई एक उद्देश्य बताओ।
उत्तर-
सिख धर्म का प्रचार करना।

प्रश्न 69.
‘चार लावां’ का उच्चारण किस गुरु साहिब ने किया ?
अथवा
विवाह के समय लावां की प्रथा किस गुरु साहिब ने आरंभ की थी?
उत्तर-
गुरु रामदास जी ने।

प्रश्न 70.
गुरु रामदास जी ने कितने शब्दों की रचना की ?
उत्तर-
679 शब्दों की।

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प्रश्न 71.
चार लावों की रचना किस गुरु साहिब ने की थी ?
उत्तर-
गुरु रामदास जी ने।

प्रश्न 72.
गुरु रामदास जी कब ज्योति-ज्योत समाए थे ?
उत्तर-
1581 ई० में।

प्रश्न 73.
गुरु रामदास जी के उत्तराधिकारी कौन थे ?
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी।

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(ii) रिक्त स्थान भरें (Fill in the Blanks)

प्रश्न 1.
सिखों के दूसरे गुरु ……………. थे।
उत्तर-
(अंगद देव जी)

प्रश्न 2.
गुरु अंगद देव जी का आरंभिक नाम ……………… था।
उत्तर-
(भाई लहणा जी)

प्रश्न 3.
गुरु अंगद देव जी का जन्म ………………. को हुआ।
उत्तर-
(1504 ई०)

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प्रश्न 4.
गुरु अंगद देव जी के पिता जी का नाम ……… था।
उत्तर-
(फेरूमल)

प्रश्न 5.
गुरु अंगद देव जी …………… में गुरुगद्दी पर बैठे थे।
उत्तर-
(1539 ई०)

प्रश्न 6.
गुरमुखी लिपि को ………….. ने लोकप्रिय बनाया।
उत्तर-
(गुरु अंगद देव जी)

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प्रश्न 7.
……………… उदासी मत के संस्थापक थे।
उत्तर-
(बाबा श्री चंद जी)

प्रश्न 8.
गुरु अंगद देव जी ने गोइंदवाल साहिब की स्थापना ……………… में की।
उत्तर-
(1546 ई०)

प्रश्न 9.
गुरु अंगद देव जी …………. में ज्योति-ज्योत समाए।
उत्तर-
(1552 ई०)

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प्रश्न 10.
सिखों के तीसरे गुरु ……………….. थे।
उत्तर-
(गुरु अमरदास जी)

प्रश्न 11.
गुरु अमरदास जी का जन्म ………………. में हुआ।
उत्तर-
(1479 ई०)

प्रश्न 12.
गुरु अमरदास जी ………… जाति के साथ संबंधित थे।
उत्तर-
(भल्ला )

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प्रश्न 13.
गुरु अमरदास जी …………….. में गुरुगद्दी पर बैठे।
उत्तर-
(1552 ई०)

प्रश्न 14.
गुरु अमरदास जी …………….. की आयु में सिखों के तीसरे गुरु बने।
उत्तर-
(73 वर्ष)

प्रश्न 15.
गुरु अमरदास जी ने …………. में बाऊली का निर्माण करवाया।
उत्तर-
(गोइंदवाल साहिब)

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प्रश्न 16.
गुरु अमरदास जी ने गोइंदवाल साहिब में बाऊली का निर्माण …………. में आरंभ करवाया।
उत्तर-
(1552 ई०)

प्रश्न 17.
मंजी प्रथा की स्थापना ……………… ने की थी।
उत्तर-
(गुरु अमरदास जी)

प्रश्न 18.
मुग़ल बादशाह ……………. गोइंदवाल साहिब में गुरु अमरदास जी से मिलने आया था।
उत्तर-
(अकबर)

प्रश्न 19.
गुरु अमरदास जी और मुग़ल बादशाह …………. के मध्य मुलाकात हुई।
उत्तर-
(अकबर)

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प्रश्न 20.
गुरु अमरदास जी …………….. में ज्योति-ज्योत समाए।
उत्तर-
(1574 ई०)

प्रश्न 21.
…………….. सिखों के चौथे गुरु थे।
उत्तर-
(गुरु रामदास जी)

प्रश्न 22.
गुरु रामदास जी का आरंभिक नाम ……………. था।
उत्तर-
(भाई जेठा जी)

प्रश्न 23.
गुरु रामदास जी …………… जाति से संबंधित थे। ।
उत्तर-
(सोढी)

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प्रश्न 24.
गुरु रामदास जी का विवाह …………….. के साथ हुआ था।
उत्तर-
(बीबी भानी)

प्रश्न 25.
गुरु रामदास जी …………………… में गुरुगद्दी पर बैठे। .
उत्तर-
(1574 ई०)

प्रश्न 26.
गुरु रामदास जी ने …………….. में रामदासपुरा की स्थापना की।
उत्तर-
(1577 ई०)

प्रश्न 27.
………………. ने मसंद प्रथा की स्थापना की।
उत्तर-
(गुरु रामदास जी)

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(ii) ठीक अथवा गलत (True or False)

नोट-निम्नलिखित में से ठीक अथवा गलत चुनें-

प्रश्न 1.
गुरु अंगद देव जी सिखों के तीसरे गुरु थे।
उत्तर-
गलत

प्रश्न 2.
गुरु अंगद देव जी का आरंभिक नाम भाई लहणा जी था।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 3.
गुरु अंगद देव जी के पिता जी का नाम तेज भान था।
उत्तर-
गलत

प्रश्न 4.
गुरु अंगद देव जी की माता जी का नाम सभराई देवी था।
उत्तर-
ठीक

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प्रश्न 5.
गुरु अंगद देव जी का विवाह बीबी खीवी के साथ हुआ था।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 6.
गुरु अंगद देव जी 1539 ई० में सिखों के दूसरे गुरु बने।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 7.
गुरु अंगद देव जी ने फ़ारसी को लोकप्रिय बनाने के लिए महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।
उत्तर-
गलत

प्रश्न 8.
उदासी मत की स्थापना बाबा श्रीचंद जी ने की थी।
उत्तर-
ठीक

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प्रश्न 9.
गुरु अंगद देव जी की मुग़ल बादशाह अकबर के साथ भेंट हुई थी।
उत्तर-
गलत

प्रश्न 10.
गुरु अंगद देव जी 1539 ई० में ज्योति-ज्योत समाए थे।
उत्तर-
गलत

प्रश्न 11.
गुरु अमरदास जी सिखों के तीसरे गुरु थे।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 12.
गुरु अमरदास जी का जन्म 1479 ई० को हुआ था।
उत्तर-
ठीक

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प्रश्न 13.
गुरु अमरदास जी के पिता जी का नाम तेज़ भान था।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 14.
बीबी भानी गुरु अमरदास जी की पुत्री का नाम था।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 15.
गुरु अमरदास जी 1552 ई० में गुरुगद्दी पर विराजमान हुए।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 16.
गुरु अमरदास जी ने गोइंदवाल साहिब में बाऊली का निर्माण करवाया।
उत्तर-
ठीक

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प्रश्न 17.
गुरु रामदास जी ने मंजी प्रथा की स्थापना की थी।
उत्तर-
गलत

प्रश्न 18.
गुरु अमरदास जी ने सती प्रथा का जोरदार शब्दों में खंडन किया।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 19.
गुरु रामदास जी सिखों के चौथे गुरु थे।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 20.
गुरु रामदास जी का आरंभिक नाम भाई जेठा जी था।
उत्तर-
ठीक

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प्रश्न 21.
गुरु रामदास जी सोढी जाति से संबंधित थे।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 22.
गुरु रामदास जी की पत्नी का नाम बीबी भानी था।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 23.
गुरु रामदास जी 1574 ई० को गुरुगद्दी पर बिराजमान हुए।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 24.
रामदासपुरा की स्थापना 1577 ई० में की गई।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 25.
गुरु अमरदास जी ने मसंद प्रथा को आरंभ किया था।
उत्तर-
गलत

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प्रश्न 26.
गुरु रामदास जी के समय सिखों और उदासियों के मध्य समझौता हो गया था।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 27. गुरु रामदास जी ने सिखों में चार लावाँ द्वारा विवाह करने की मर्यादा आरंभ की।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 28.
गुरु रामदास जी 1581 ई० में ज्योति-ज्योत समाए थे।
उत्तर-
ठीक

(iv) बहु-विकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions)

नोट-निम्नलिखित में से ठीक उत्तर का चयन कीजिए

प्रश्न 1.
सिखों के दूसरे गुरु कौन थे ?
(i) गुरु अमरदास जी
(ii) गुरु रामदास जी
(ii) गुरु अंगद देव जी
(iv) गुरु अर्जन देव जी।
उत्तर-
(iii)

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प्रश्न 2.
गुरु अंगद देव जी का जन्म कब हुआ?
(i) 1469 ई० में
(ii) 1479 ई० में
(iii) 1501 ई० में
(iv) 1504 ई० में।
उत्तर-
(iv)

प्रश्न 3.
गुरु अंगद देव जी का जन्म कहाँ हुआ ?
(i) मत्ते की सराय
(ii) कीरतपुर साहिब
(iii) गोइंदवाल साहिब
(iv) हरीके।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 4.
गुरु अंगद देव जी का आरंभिक नाम क्या था ?
(i) भाई जेठा जी
(ii) भाई लहणा जी
(iii) भाई गुरदित्ता जी
(iv) भाई दासू जी।
उत्तर-
(ii)

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प्रश्न 5.
गुरु अंगद देव जी के पिता जी कौन थे ?
(i) त्याग मल जी
(ii) फेरूमल जी
(iii) तेजभान जी
(iv) मेहरबान जी।
उत्तर-
(ii)

प्रश्न 6.
गुरु अंगद देव जी की माता जी का क्या नाम था ?
(i) लक्ष्मी देवी जी
(ii) सभराई देवी जी
(iii) मनसा देवी जी
(iv) सुभाग देवी जी।
उत्तर-
(ii)

प्रश्न 7.
गुरु अंगद देव जी की पत्नी कौन थी ?
(i) बीबी खीवी जी
(ii) बीबी नानकी जी
(iii) बीबी अमरो जी
(iv) बीबी भानी जी।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 8.
गुरु अंगद देव जी कब गुरुगद्दी पर बैठे ?
(i) 1529 ई० में
(ii) 1538 ई० में
(iii) 1539 ई० में ।
(iv) 1552 ई० में।
उत्तर-
(ii)

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प्रश्न 9.
गुरु अंगद देव जी की धार्मिक गतिविधियों का केंद्र कौन-सा था ?
(i) गोइंदवाल साहिब
(ii) अमृतसर
(iii) खडूर साहिब
(iv) सुल्तानपुर लोधी।
उत्तर-
(iii)

प्रश्न 10.
किस गुरु साहिब ने गुरुमुखी लिपि को लोकप्रिय बनाया ?
(i) गुरु नानक देव जी ने
(ii) गुरु अंगद देव जी ने
(iii) गुरु अमरदास जी ने
(iv). गुरु गोबिंद सिंह जी ने।
उत्तर-
(ii)

प्रश्न 11.
उदासी मत का संस्थापक कौन था ?
(i) बाबा श्री चंद जी
(ii) बाबा लख्मी दास जी
(iii) बाबा मोहन जी
(iv) बाबा मोहरी जी।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 12.
गुरु अंगद साहिब ने किस नगर की स्थापना की थी ?
(i) करतारपुर
(ii) तरनतारन
(iii) कीरतपुर साहिब
(iv) गोइंदवाल साहिब।
उत्तर-
(iv)

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प्रश्न 13.
कौन-सा मुग़ल बादशाह गुरु अंगद साहिब को मिलने के लिए खडूर साहिब आया था ?
(i) बाबर
(ii) हुमायूँ
(iii) अकबर
(iv) जहाँगीर।
उत्तर-
(ii)

प्रश्न 14.
गुरु अंगद साहिब जी कब ज्योति-जोत समाए ?
(i) 1550 ई० में
(ii) 1551 ई० में
(iii) 1552 ई० में
(iv) 1554 ई० में।
उत्तर-
(iii)

प्रश्न 15.
सिखों के तीसरे गुरु कौन थे ?
(i) गुरु अंगद देव जी
(ii) गुरु रामदास जी
(iii) गुरु अमरदास जी
(iv) गुरु अर्जन देव जी।
उत्तर-
(iii)

प्रश्न 16.
गुरु अमरदास जी का जन्म कब हुआ ?
(i) 1458 ई० में
(ii) 1465 ई० में
(iii) 1469 ई० में
(iv) 1479 ई० में।
उत्तर-
(iv)

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प्रश्न 17.
गुरु अमरदास जी का जन्म कहाँ हुआ ?
(i) खडूर साहिब
(ii) हरीके
(iii) बासरके
(iv) गोइंदवाल साहिब।
उत्तर-
(iii)

प्रश्न 18.
गुरु अमरदास जी के पिता जी का क्या नाम था ?
(i) तेजभान भल्ला
(ii) मेहरबान
(iii) मोहन दास
(iv) फेरूमल।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 19.
बीबी भानी जी कौन थी ?
(i) गुरु अंगद देव जी की पुत्री
(ii) गुरु अमरदास जी की पत्नी
(iii) गुरु अमरदास जी की पुत्री
(iv) गुरु रामदास जी की पुत्री।
उत्तर-
(iii)

प्रश्न 20.
आनंदु साहिब की रचना किस गुरु साहिबान ने की थी ?
(i) गुरु नानक देव जी ने
(ii) गुरु अंगद देव जी ने
(iii) गुरु अमरदास जी ने
(iv) गुरु रामदास जी ने।
उत्तर-
(iii) गुरु अमरदास जी ने

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प्रश्न 21.
किस गुरु साहिबान ने मंजी प्रथा की स्थापना की थी ?
(i) गुरु अंगद देव जी ने
(ii) गुरु अमरदास जी ने
(iii) गुरु रामदास जी ने
(iv) गुरु अर्जन देव जी ने।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 22.
मंजी प्रथा की स्थापना का मुख्य उद्देश्य क्या था ?
(i) सिख धर्म का प्रचार करना
(ii) लंगर के लिए अनाज इकट्ठा करना
(iii) गुरुद्वारे का निर्माण करना ।
(iv) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 23.
गुरु अमरदास जी ने कुल कितनी मंजियों की स्थापना की ? (
(i) 20
(ii) 24
(iii) 26
(iv) 22
उत्तर-
(iv)

प्रश्न 24.
गुरु अमरदास जी ने निम्नलिखित में से किस बुराई का खंडन किया ?
(i) बाल विवाह.
(ii) सती प्रथा
(iii) पर्दा प्रथा
(iv) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(iv)

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प्रश्न 25.
गुरु अमरदास जी की धार्मिक गतिविधियों का केंद्र कौन-सा था ?
(i) अमृतसर
(ii) गोइंदवाल साहिब
(iii) खडूर साहिब
(iv) लाहौर।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 26.
गुरु अमरदास जी कब ज्योति-जोत समाए थे ?
(i) 1552 ई० में
(ii) 1564 ई० में
(iii) 1568 ई० में
(iv) 1574 ई० में।
उत्तर-
(iv)

प्रश्न 27.
सिखों के चौथे गुरु कौन थे ?
(i) गुरु रामदास जी
(ii) गुरु अमरदास जी
(iii) गुरु अर्जन देव जी
(iv) गुरु हरकृष्ण जी।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 28.
गुरु रामदास जी का जन्म कब हुआ ?
(i) 1479 ई० में
(ii) 1524 ई० में
(iii) 1534 ई० में
(iv) 1539 ई० में।
उत्तर-
(iii)

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प्रश्न 29.
गुरु रामदास जी का आरंभिक नाम क्या था ?
(i) भाई बाला जी
(ii) भाई जेठा जी
(iii) भाई लहणा जी
(iv) भाई मरदाना जी।
उत्तर-
(ii)

प्रश्न 30.
गुरु रामदास जी के पिता जी का क्या नाम था ?
(i) हरीदास जी
(i) अमरदास जी
(iii) तेजभान जी
(iv) फेरूमल जी।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 31.
गुरु रामदास जी की माता जी का क्या नाम था ?
(i) दया कौर जी
(ii) रूप कौर जी
(iii) सुलक्खनी जी
(iv) लक्ष्मी जी।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 32.
गुरु रामदास जी कौन-सी जाति से संबंधित थे ?
(i) बेदी
(ii) भल्ला
(iii) सोढी
(iv) सेठी।
उत्तर-
(iii)

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प्रश्न 33.
गुरु रामदास जी का विवाह किसके साथ हुआ था ?
(i) बीबी दानी जी
(i) बीबी भानी जी
(iii) बीबी अमरो जी
(iv) बीबी अनोखी जी।
उत्तर-
(ii)

प्रश्न 34.
पृथी चंद कौन था ?
(i) गुरु रामदास का बड़ा भाई
(ii) गुरु अर्जन देव जी का बड़ा भाई
(iii) गुरु अर्जन देव जी का पुत्र
(iv) गुरु हरगोबिंद जी का पुत्र।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 35.
गुरु रामदास जी गुरुगद्दी पर कब बैठे ?
(i) 1534 ई० में
(ii) 1552 ई० में
(iii) 1554 ई० में
(iv) 1574 ई० में।
उत्तर-
(iv)

प्रश्न 36.
रामदासपुरा अथवा अमृतसर की स्थापना किस गुरु साहिबान ने की थी ?
(i) गुरु अमरदास जी ने ।
(ii) गुरु रामदास जी ने
(iii) गुरु अर्जन देव जी ने
(iv) गुरु हरगोबिंद जी ने।
उत्तर-
(ii)

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प्रश्न 37.
गुरु जी ने रामदासपुरा की नींव कब रखी थी ?
(i) 1574 ई० में
(ii) 1575 ई० में
(iii) 1576 ई० में
(iv) 1577 ई० में।
उत्तर-
(iv)

प्रश्न 38.
मसंद प्रथा का आरंभ किस गुरु ने किया था ?
(i) गुरु रामदास जी
(ii) गुरु अर्जन देव जी
(iii) गुरु अमरदास जी
(iv) गुरु तेग़ बहादुर जी।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 39.
किस गुरु साहिबान के समय उदासियों और सिखों के बीच समझौता हुआ था ? ।
(i) गुरु अंगद देव जी
(ii) गुरु अमरदास जी
(iii) गुरु रामदास जी
(iv) गुरु अर्जन देव जी।
उत्तर-
(iii)

प्रश्न 40.
चार लावां की प्रथा किस गुरु साहिबान ने आरंभ की ?
(i) गुरु अमरदास जी ने
(ii) गुरु रामदास जी ने
(iii) गुरु अर्जन देव जी ने
(iv) गुरु हरगोबिंद जी ने।
उत्तर-
(ii)

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प्रश्न 41.
कौन-सा मुगल बादशाह गुरु रामदास जी को मिलने आया था ?
(i) बाबर
(i) हुमायूँ
(iii) अकबर
(iv) औरंगज़ेब।
उत्तर-
(iii)

प्रश्न 42.
गुरु रामदास जी कब ज्योति-जोत समाए.?
(i) 1565 ई० में
(ii) 1571 ई० में
(iii) 1575 ई० में
(iv) 1581 ई० में।
उत्तर-
(iv)

Long Answer Type Question

प्रश्न 1.
सिख धर्म के विकास में गुरु अंगद देव जी द्वारा दिए गए योगदान पर चर्चा करें।
(Give description about Guru Angad Dev Ji’s contribution to the development of Sikhism.)
अथवा
सिख पंथ के विकास में गुरु अंगद देव जी ने क्या-क्या कार्य किए ? (What did Guru Angad Dev Ji do for the development of Sikh Panth ?)
अथवा
गुरु अंगद देव जी की किन्हीं छः ऐसी सफलताओं का वर्णन करें जिनके कारण सिख धर्म का विकास हुआ। (Write six achievements of Guru Angad Dev Ji for the development of Sikhism.)
अथवा
सिख पंथ के विकास में गुरु अंगद देव जी के कार्यों का मूल्यांकन कीजिए। (Form an estimate of the works of Guru Angad Dev Ji for the spread of Sikhism.)
अथवा
गुरु अंगद देव जी पर एक संक्षिप्त नोट लिखें। (Write a short note on Guru Angad Dev Ji.) .
उत्तर-
गुरु अंगद देव जी 1539 ई० में सिखों के दूसरे गुरु बने। वह 1552 ई० तक गुरुगद्दी पर आसीन रहे। इस समय के दौरान गुरु अंगद देव जी ने सिख धर्म के विकास के लिए निम्नलिखित मुख्य काम किए—
1. गुरमुखी को लोकप्रिय बनाना—गुरु अंगद देव जी ने गुरमुखी लिपि को लोकप्रिय बनाने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने इसके रूप में एक नया निखार लाया। अब इस लिपि को समझना सामान्य लोगों के लिए सरल हो गया। इस लिपि के प्रसार के कारण सिखों में तीव्रता से विद्या का प्रसार भी होने लगा।

2. लंगर प्रथा का विस्तार-लंगर प्रथा के विकास का श्रेय गुरु अंगद देव जी को जाता है। लंगर का समूचा प्रबंध उनकी धर्म पत्नी माता खीवी जी करते थे। लंगर में सभी व्यक्ति बिना किसी ऊँच-नीच, जाति के भेदभाव के इकट्ठे मिलकर छकते थे। इस लंगर के लिए सारी माया गुरु जी के सिख देते थे। इस प्रथा के कारण सिखों में परस्पर सहयोग की भावना बढ़ी।

3. संगत का संगठन-गुरु अंगद देव जी ने गुरु नानक देव जी द्वारा स्थापित संगत संस्था को भी संगठित किया। संगत से अभिप्राय था-एकत्रित होकर बैठना। संगत में सभी धर्मों के लोग-स्त्री और पुरुष भाग ले सकते थे। यह संगत सुबह-शाम गुरु जी के उपदेशों को सुनने के लिए एकत्रित होती थी। इस संस्था ने सामाजिक असमानता को दूर करने तथा सिखों को संगठित करने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।

4. उदासी मत का खंडन-उदासी मत की स्थापना गुरु नानक देव जी के बड़े सुपुत्र बाबा श्रीचंद जी ने की थी। यह मत संन्यास अथवा त्याग के जीवन पर बल देता था। बहुत-से सिख उदासी मत को मान्यता देने लग पड़े थे। ऐसी परिस्थितियों में यह संकट उत्पन्न हो गया था कि कहीं सिख गुरु नानक देव जी के उपदेशों को भूल कर उदासी मत न अपना लें। अत: गुरु अंगद देव जी ने उदासी मत का कड़ा विरोध करके सिख मत के अस्तित्व को बनाए रखा।

5. गोइंदवाल साहिब की स्थापना—गुरु अंगद देव जी ने खर साहिब के समीप गोइंदवाल साहिब नामक एक नए नगर की स्थापना की। इस नगर का निर्माण कार्य एक श्रद्धालु सेवक अमरदास की देख-रेख में 1546 ई० में आरंभ हुआ। यह नगर शीघ्र ही सिखों का एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थान बन गया।

6. उत्तराधिकारी की नियुक्ति-गुरु अंगद देव जी का सिख पंथ के विकास में सबसे महान् कार्य अपना उत्तराधिकारी नियुक्त करना था। इसलिए उन्होंने अपने श्रद्धालु अमरदास जी का चुनाव किया।

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प्रश्न 2.
गुरु अंगद देव जी ने गुरुमुखी लिपि को हरमन प्यारा बनाने के लिए क्या योगदान दिया ?
(What contribution was made by Guru Angad Dev Ji to improve Gurumukhi script ?)
अथवा
सिख धर्म के विकास में गुरु अंगद देव जी द्वारा गुरुमुखी को लोकप्रिय बनाने का क्या प्रभाव पड़ा ?
(What impact did the popularisation of Gurumukhi by Guru Angad Dev Ji leave on the growth of Sikhism ?)
उत्तर-
गुरु अंगद देव जी ने गुरुमखी लिपि को लोकप्रिय बनाकर सिख पंथ के विकास की ओर प्रथम महत्त्वपूर्ण पग उठाया। गुरुमुखी लिपि का आविष्कार किसने किया इस संबंध में इतिहासकारों में मतभेद हैं। डॉक्टर आई० बी० बैनर्जी का कथन है कि गुरु ग्रंथ साहिब में गुरु नानक देव जी द्वारा रचित राग आसा अंकित है। इसमें 35 अक्षरों पर आधारित एक पट्टी की रचना की गई है जिसमें गुरुमुखी के सभी 35 अक्षरों का प्रयोग किया गया है। इससे सिद्ध होता है कि गुरुमुखी लिपि का प्रचलन गुरु अंगद देव जी के समय से पूर्व हो चुका था।

यह ठीक है कि गुरुमुखी लिपि गुरु अंगद देव जी से पूर्व अस्तित्व में आ चुकी थी। इसे उस समय लंडा लिपि कहा जाता था। इसे पढ़कर कोई भी व्यक्ति बहुत सरलता से भ्रम में पड़ सकता था। इसलिए गुरु अंगद देव जी ने इसके रूप में एक नया निखार लाया। अब इस लिपि को समझना सामान्य लोगों के लिए भी बहुत सरल हो गया था। सिखों के सभी धार्मिक ग्रंथों की रचना इस लिपि में हुई। इस लिपि का नाम गुरुमुखी अर्थात् गुरुओं के मुख से निकली हुई होने के कारण यह सिखों को गुरु के प्रति अपने कर्तव्य का स्मरण दिलाती रही। इस प्रकार यह लिपि सिखों को अपनी अलग पहचान बनाए रखने में सहायक सिद्ध हुई। इस लिपि के प्रसार के कारण सिखों में तीव्रता से विद्या का प्रसार होने लगा। इसके अतिरिक्त इस लिपि के प्रचलित होने से ब्राह्मण वर्ग को कड़ा आघात पहुँचा क्योंकि वे संस्कृत को ही. धर्म की भाषा मानते थे। नि:संदेह गुरुमुखी लिपि का प्रचार सिख पंथ के विकास के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण सिद्ध हुआ।

प्रश्न 3.
संगत एवं पंगत के महत्त्व पर एक संक्षिप्त नोट लिखें। (Write a short note on the importance of Sangat and Pangat.)
अथवा
संगत एवं पंगत के बारे में आप क्या जानते हैं ? (What do you know about Sangat and Pangat ?)
उत्तर-
1. संगत-संगत संस्था से अभिप्राय एकत्रित रूप में मिलकर बैठने से था। यह संगत सुबह-शाम गुरु जी के उपदेशों को सुनने के लिए एकत्रित होती थी। इस संस्था की स्थापना गुरु नानक देव जी ने की थी। गुरु अंगद देव जी ने इस संस्था को अधिक संगठित किया। संगत में कोई भी स्त्री अथवा पुरुष बिना किसी जाति-पाति अथवा धर्म के भेद-भाव के सम्मिलित हो सकता था। संगत को ईश्वर का रूप समझा जाता था। संगत में जाने वाले व्यक्ति का काया कल्प हो जाता था। उसकी सभी मनोकामनाएँ पूर्ण होती थीं। वह भवसागर से पार हो जाता था। निस्संदेह यह संस्था सिख पंथ के विकास के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण सिद्ध हुई।

2. पंगत-पंगत (लंगर) संस्था की स्थापना गुरु नानक देव जी ने की थी। गुरु अंगद देव जी ने इसे जारी रखा और गुरु अमरदास जी ने इस संस्था को अधिक विकसित किया। मुगल सम्राट अकबर और हरिपुर के राजा ने भी गुरु अमरदास जी के दर्शन करने से पूर्व लंगर खाया था। लंगर प्रत्येक धर्म और जाति के लोगों के लिए खुला था। सिख धर्म के प्रसार में लंगर संस्था का योगदान बहुत महत्त्वपूर्ण था। इस संस्था ने समाज में जाति प्रथा और छुआछूत की भावनाओं को समाप्त करने में भी बड़ी सहायता की। इस संस्था के कारण सिखों में परस्पर भ्रातृत्व की भावना का विकास हुआ।

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प्रश्न 4.
गुरुगद्दी प्राप्त करने के पश्चात् गुरु अमरदास जी को जिन आरंभिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा उनका संक्षेप वर्णन कीजिए।
(What problems had Guru Amar Das Ji to face in the early years of his pontificate ?)
उत्तर-
गुरुगद्दी प्राप्त करने के पश्चात् गुरु अमरदास जी को जिन आरंभिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा उनका संक्षेप वर्णन निम्नलिखित है—

1. दासू और दातू का विरोध-गुरु अमरदास जी को अपने गुरुकाल के आरंभ में, गुरु अंगद देव जी के पुत्रों दासू और दातू के विरोध का सामना करना पड़ा। उन्होंने गुरु जी को गुरु मानने से इंकार कर दिया तथा स्वयं को असली उत्तराधिकारी घोषित किया। सिखों ने उन्हें अपना गुरु मानने.से इंकार कर दिया। इस समय दातू ने भी माता खीवी जी के कहने पर अपना विरोध छोड़ दिया था।

2. बाबा श्रीचंद जी का विरोध-बाबा श्रीचंद जी गुरु नानक देव जी के ज्येष्ठ पुत्र होने के कारण गुरुगद्दी पर अपना अधिकार समझते थे। बाबा श्रीचंद जी के अनेक समर्थक थे। गुरु अमरदास जी ने ऐसे समय में दृढ़ता से काम लेते हुए सिखों को स्पष्ट किया कि उदासी संप्रदाय के सिद्धांत गुरु नानक देव जी के उपदेशों के विपरीत हैं। उनके तर्कों से प्रभावित होकर सिखों ने बाबा श्रीचंद जी का साथ छोड़ दिया।

3. गोइंदवाल साहिब के मुसलमानों का विरोध-गोइंदवाल साहिब में गुरु अमरदास जी की बढ़ती हुई ख्याति देखकर वहाँ के मुसलमानों ने सिखों को परेशान करना आरंभ कर दिया। वे सिखों का सामान चोरी कर लेते। वे सतलुज नदी से जल भर कर लाने वाले सिखों के घड़े पत्थर मार कर तोड़ देते थे। सिख इस संबंध में गुरु जी से शिकायत करते। अमरदास जी ने सिखों को शाँत रहने का उपदेश दिया।

4. हिंदुओं द्वारा विरोध-इसका कारण यह था कि गुरु अमरदास जी के सामाजिक सुधारों से प्रभावित होकर बहुत-से लोग सिख धर्म में शामिल होते जा रहे थे। सिख धर्म में ऊँच-नीच का भेदभाव नहीं किया जाता था। बाऊली का निर्माण होने से सिखों को एक अलग तीर्थ स्थान भी मिल गया था। गोइंदवाल साहिब के उच्च जातियों के हिंदू यह बात सहन न कर सके। उन्होंने मुग़ल बादशाह अकबर के पास यह झूठी शिकायत की कि गुरु जी हिंदू धर्म के विरुद्ध प्रचार कर रहे हैं। अकबर ने गुरु जी को निर्दोष घोषित किया।

प्रश्न 5.
गुरु अमरदास जी के समय होने वाले सिख धर्म के विकास का विवरण दीजिए।
(Give an account of the development of Sikhism Under Guru Amar Das Ji.)
अथवा
सिख धर्म के विकास में गुरु अमरदास जी द्वारा किये गये छः महत्त्वपूर्ण कार्यों का वर्णन करें।
(Give six contributions of Guru Amar Das Ji for the development of Sikhism.)
अथवा
गुरु अमरदास जी के कार्यों का मूल्याँकन कीजिए। (Form an estimate of the works of Guru Amar Das Ji.)
अथवा
सिख पंथ के विकास में गुरु अमरदास जी के कार्यों के बारे में आप क्या जानते हैं ? (What do you know about the works of Guru Amat Das Ji for the spread of Sikhism ?)
अथवा
सिख पंथ के विकास में गुरु अमरदास जी के योगदान का अध्ययन करें। (Study the contribution of Guru Amar Das Ji to the growth of Sikhism.)
उत्तर-
गुरु अमरदास जी 1552 ई० से 1574 ई० तक गुरुगद्दी पर रहे। इस समय के दौरान गुरु अमरदास जी ने सिख पंथ के संगठन के लिए निम्नलिखित प्रशंसनीय काम किए—

1. गोइंदवाल साहिब में बाऊली का निर्माण—गुरु अमरदास जी का सिख पंथ के विकास की ओर प्रथम पग गोइंदवाल साहिब में एक बाऊली का निर्माण करना था। इस बाऊली का निर्माण कार्य 1552 ई० से 1559 ई० तक चला। इस बाऊली तक पहुँचने के लिए 84 सीढ़ियाँ बनाई गई थीं। बाऊली के निर्माण से सिख पंथ को एक पवित्र तीर्थ स्थान मिल गया।

2. लंगर संस्था का विस्तार-गुरु अमरदास जी ने, गुरु नानक देव जी द्वारा स्थापित लंगर संस्था का और विस्तार किया। गुरु जी ने यह घोषणा की कि कोई भी यात्री लंगर छके बिना उनके दर्शन नहीं कर सकता। इस लंगर में विभिन्न धर्मों और जातियों के लोग सम्मिलित होते थे। यह संस्था सिख धर्म के प्रचार में बड़ी सहायक प्रमाणित हुई । इससे जाति-प्रथा को गहरा आघात पहुँचा।

3. मंजी प्रथा-मंजी प्रथा की स्थापना गुरु अमरदास जी के सबसे महत्त्वपूर्ण कार्यों में से एक थी। सिखों की संख्या में वृद्धि के कारण गुरु साहिब के लिए प्रत्येक सिख तक पहुँच पाना संभव नहीं था। उन्होंने अपने उपदेश दूर-दूर के क्षेत्रों में रहने वाले सिखों तक पहुँचाने के लिए 22 मंजियों की स्थापना की । मंजी प्रथा की स्थापना के परिणामस्वरूप सिख धर्म की प्रसिद्धि दूर-दूर तक फैल गई।

4. उदासी संप्रदाय का खंडन—गुरु अमरदास जी के समय में उदासी संप्रदाय सिख संप्रदाय के अस्तित्व के लिए ख़तरा बना हुआ था। बहुत-से सिख बाबा श्रीचंद जी से प्रभावित होकर उदासी संप्रदाय में सम्मिलित होने लगे थे। ऐसे समय गुरु अमरदास जी ने सिखों को समझाया कि सिख धर्म उदासी मत से बिल्कुल अलग है। इस प्रकार गुरु अमरदास जी ने सिख धर्म को हिंदू धर्म में विलीन होने से बचा लिया।

5. सामाजिक सुधार-गुरु अमरदास जी एक महान् समाज सुधारक थे। उन्होंने जाति प्रथा, सती प्रथा, बालविवाह तथा पर्दा प्रथा का जोरदार शब्दों में खंडन किया। उन्होंने विधवा विवाह का समर्थन किया। इसके अतिरिक्त गुरु अमरदास जी ने सिखों के जन्म, विवाह तथा मृत्यु के अवसरों के लिए विशेष रस्में प्रचलित की। संक्षेप में गुरु अमरदास जी ने एक आदर्श समाज का निर्माण किया।

6. वाणी का संग्रह-गुरु अमरदास जी का अगला महत्त्वपूर्ण कार्य गुरु नानक देव जी तथा गुरु अंगद देव जी की वाणी का संग्रह करना था। गुरु साहिब ने स्वयं 907 शब्दों की रचना की। इस से आदि ग्रंथ साहिब के संकलन के लिए सामग्री एकत्र हो गई।

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प्रश्न 6.
सिख इतिहास में गोइंदवाल साहिब की बाऊली के निर्माण का क्या महत्त्व है ?
(What is the importance of the construction of the Baoli of Goindwal Sahib in Sikh History ?)
उत्तर-
गुरु अमरदास जी का सिख पंथ के विकास की ओर पहला पग गोइंदवाल में एक बाऊली का निर्माण करना था। इस बाऊली का निर्माण-कार्य 1552 ई० में आरंभ किया गया था और यह 1559 ई० में संपूर्ण हुआ था। गोइंदवाल साहिब में बाऊली के निर्माण के पीछे गुरु अमरदास जी के दो उद्देश्य थे। पहला, वह सिखों को एक अलग तीर्थ स्थान देना चाहते थे ताकि उन्हें हिंदू धर्म से अलग किया जा सके। दूसरे, वह वहाँ के लोगों की पानी के संबंध में कठिनाई को दूर करना चाहते थे। इस बाऊली तक पहुँचने के लिए 84 सीढ़ियाँ बनाई गई थीं। बाऊली का निर्माण कार्य पूर्ण होने पर गुरु जी ने यह घोषणा की कि जो यात्री प्रत्येक सीढ़ी पर शुद्ध हृदय से जपुजी साहिब का पाठ करेगा तथा पाठ के पश्चात् बाऊली में स्नान करेगा वह 84 लाख योनियों से मुक्त हो जाएगा। बाऊली का निर्माण सिख पंथ के विकास के लिए एक बहुत महत्त्वपूर्ण कार्य प्रमाणित हुआ। इससे सिखों को एक पवित्र तीर्थ स्थान मिल गया। सिखों को हिंदुओं के तीर्थ स्थानों पर जाने की आवश्यकता नहीं थी। दूसरा बाऊली के निर्माण के कारण सिखों की साफ पीने के पानी की समस्या दूर हो गई। इससे पहले लोग ब्यास नदी से पानी लाते थे जोकि बरसात के दिनों में गंदा हो जाता था। बड़ी संख्या में सिखों के गोइंदवाल साहिब में पहुँचने पर गुरु अमरदास जी की ख्याति दूर-दूर तक फैल गई। इसके अतिरिक्त विभिन्न जातियों के लोगों के द्वारा बाऊली में स्नान करने से जाति प्रथा को एक गहरा धक्का लगा।

प्रश्न 7.
गुरु अमरदास जी के द्वारा किए गए सामाजिक सुधारों का संक्षेप में वर्णन करें। (Describe briefly the social reforms of Guru Amar Das Ji.)
अथवा
गुरु अमरदास जी के छः सामाजिक सुधारों का वर्णन करें।
(Describe six social reforms of Guru Amar Das Ji.)
अथवा
गुरु अमरदास जी को समाज सुधारक क्यों कहा जाता है ? (Why is Guru Amar Das called a social reformer ?)
अथवा
समाज सुधारक के रूप में गुरु अमरदास जी पर एक संक्षिप्त नोट लिखें। (Write a short note on Guru Amar Das Ji as a social reformer.)
उत्तर-
1. जातीय भेद-भाव तथा छुआ-छूत का खंडन-गुरु अमरदास जी ने जातीय एवं छुआ-छूत की प्रथाओं का जोरदार शब्दों में खंडन किया। उन्होंने संगतों को यह हुक्म दिया कि जो कोई उनके दर्शन करना चाहता है उसे पहले पंगत में लंगर छकना पड़ेगा। इस प्रकार गुरु अमरदास जी ने आपसी भ्रातृत्व का प्रचार किया।

2. लड़कियों की हत्या का खंडन-उस समय लड़कियों के जन्म को अच्छा नहीं माना जाता था। अतः कुछ लोग लड़कियों के जन्म लेते ही उन्हें मार देते थे। गुरु अमरदास जी ने इस कुप्रथा का जोरदार शब्दों में खंडन किया। उनका कथन था कि जो व्यक्ति ऐसा करता है वह घोर पाप का सहभागी बनता है । उन्होंने सिखों को इस अपराध से दूर रहने का उपदेश दिया।

3. बाल विवाह का खंडन-उस समय समाज में प्रचलित परंपराओं के अनुसार लड़कियों का विवाह छोटी आयु में ही कर दिया जाता था। इस कारण समाज में स्त्रियों की दशा बहुत दयनीय हो गई थी। गुरु अमरदास जी ने बाल विवाह के विरुद्ध प्रचार किया।

4. सती प्रथा का खंडन-उस समय समाज में प्रचलित कुप्रथाओं में से सबसे घृणा योग्य कुप्रथा सती प्रथा की थी। इस अमानवीय प्रथा के अनुसार यदि किसी स्त्री के पति की मृत्यु हो जाती थी तो उसे जबरन पति की चिता के साथ जीवित जला दिया जाता था। गुरु अमरदास जी ने शताब्दियों से चली आ रही इस कुप्रथा के विरुद्ध एक ज़ोरदार अभियान चलाया।

5. पर्दा प्रथा का खंडन-उस समय समाज में पर्दा प्रथा का प्रचलन भी काफ़ी बढ़ गया था। यह प्रथा स्त्रियों के शारीरिक तथा मानसिक विकास में एक बड़ी बाधा थी। इसलिए गुरु अमरदास जी ने इस प्रथा की जोरदार शब्दों में आलोचना की। उन्होंने यह आदेश दिया कि संगत अथवा लंगर में सेवा करते समय कोई भी स्त्री पर्दा न करे।

6. नशीली वस्तुओं का खंडन-उस समय कुछ लोग नशीली वस्तुओं का प्रयोग करने लग पड़े थे। गुरु अमरदास जी ने इन वस्तुओं के सेवन की जोरदार शब्दों में आलोचना की।

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प्रश्न 8.
मंजी प्रथा क्या थी ? सिख धर्म के विकास में इसने क्या योगदान दिया? (What was the Manji System ? How did it contribute to the development of Sikhism ?)
अथवा
मंजी प्रथा के बारे में आप क्या जानते हैं ?
(What do you know about Manji System ?)
अथवा
मंजी प्रथा पर एक नोट लिखें। (Write a note on Manji System.)
उत्तर-
सिख धर्म के विकास में मंजी प्रथा ने प्रशंसनीय भूमिका निभाई। इस महत्त्वपूर्ण संस्था के संस्थापक गुरु अमरदास जी थे। मंजी प्रथा के आरंभ एवं विकास का संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित अनुसार है—
1. आवश्यकता-गुरु अमरदास जी के अथक प्रयासों तथा उनके जादुई व्यक्तित्व के कारण बड़ी संख्या में लोग सिख धर्म में सम्मिलित हो गए थे। क्योंकि सिखों की संख्या बहुत बढ़ गई थी तथा वे पंजाब के बाहर के प्रदेशों में फैले हुए थे इसलिए गुरु साहिब के लिए निजी रूप से इन तक पहुँचना कठिन हो गया। दूसरा, इस समय गुरु अमरदास जी बहुत वृद्ध हो चुके थे। अतः गुरु अमरदास जी ने मंजी प्रथा को आरंभ करने की आवश्यकता अनुभव की।

2. मंजी प्रथा से अभिप्राय-गुरु अमरदास जी अपने सिखों को उपदेश देते समय एक विशाल चारपाई पर बैठते थे। इसे मंजा कहा जाता था। अन्य सिख ज़मीन अथवा दरी पर बैठकर उनके उपदेश सुनते थे। गुरु जी ने अपने जीवन काल में 22 मंजियों की स्थापना की थी। इनके मुखी मंजीदार कहलाते थे। ये मंजीदार गुरु जी के प्रति अपना सम्मान प्रकट करने के लिए एक छोटी चारपाई का प्रयोग करते थे। इस कारण यह संस्था मंजी प्रथा कहलाने लगी।

3. मंजीदार के कार्य-मंजीदार अपने अधीन प्रदेश में गुरु साहिबान का प्रतिनिधित्व करता था। वह अनेक प्रकार के कार्यों के लिए उत्तरदायी था।

  • वह सिख धर्म के प्रचार के लिए अथक प्रयास करता था।
  • वह गुरु साहिब के हुक्मों को सिख संगत तक पहुँचाता था।
  • वह लोगों को धार्मिक शिक्षा देता था।
  • वह लोगों को गुरुमुखी भाषा पढ़ाता था।
  • वह अपने प्रदेश की संगतों के साथ वर्ष में कम-से-कम एक बार गुरु जी के दर्शनों के लिए गोइंदवाल साहिब आते थे।

4. मंजी प्रथा का महत्त्व-सिख धर्म के विकास एवं संगठन में मंजी प्रथा ने बहुमूल्य योगदान दिया। मंजीदारों के प्रभाव से बड़ी संख्या में लोग सिख धर्म में सम्मिलित होने लगे। इसके दूरगामी प्रभाव पड़े। मंजीदार धर्म प्रचार के अतिरिक्त संगत से लंगर एवं अन्य कार्यों के लिए धन भी एकत्र करते थे। गुरु अमरदास जी ने इस धन को सिख धर्म के विकास कार्यों पर खर्च किया। इससे सिख धर्म की लोकप्रियता में काफ़ी वृद्धि हुई।

प्रश्न 9.
गुरु अमरदास जी के मुगलों के साथ कैसे संबंध थे ? (What type of relations did Guru Amar Das Ji have with the Mughals ?)
अथवा
मुगल बादशाह अकबर तथा गुरु अमरदास जी के मध्य संबंधों का उल्लेख कीजिए । (Describe the relations between Mughal emperor Akbar and Guru Amar Das Ji.)
अथवा
मुगल सम्राट अकबर तथा गुरु अमरदास जी के बीच संबंधों का उल्लेख करें। (Explain the relations between the Mughal emperor Akbar and Guru Amar Das Ji.)
उत्तर-
गुरु अमरदास जी के मुग़लों के साथ संबंध बहुत अच्छे थे। उस समय भारत में मुग़ल बादशाह अकबर का शासन था। गुरु अमरदास जी की ‘अरदास’ के फलस्वरूप अकबर को चित्तौड़ के अभियान में सफलता प्राप्त हुई थी। इसलिए गुरु साहिब का आभार. प्रकट करने के लिए अकबर 1568 ई० में गोइंदवाल साहिब आया था। उसने गुरु साहिब के दर्शन करने से पूर्व मर्यादानुसार अन्य संगत के साथ मिलकर लंगर खाया। वह गुरु साहिब के व्यक्तित्व और लंगर प्रबंध से बहुत प्रभावित हुआ। उसने लंगर प्रबंध को चलाने के लिए कुछ गाँवों की जागीर की पेशकश की। गुरु जी ने इस जागीर को स्वीकार करने से इसलिए इंकार कर दिया कि उनके सिख लंगर के लिए बहुत दान देते हैं। अकबर की इस यात्रा के कारण गुरु अमरदास जी की प्रसिद्धि बहुत दूर-दूर तक फैल गई तथा बहुत-से लोग सिख धर्म में सम्मिलित हो गए।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 5 गुरु अंगद देव जी, गुरु अमरदास जी और गुरु रामदास जी के अधीन सिख धर्म का विकास

प्रश्न 10.
गुरु रामदास जी द्वारा सिख धर्म के विकास के लिए किए गए छः महत्त्वपूर्ण योगदानों की चर्चा करें।
(Give the six important contributions of Guru Ram Das Ji for the development of Sikhism.
अथवा
गुरु रामदास जी का सिख धर्म को क्या योगदान था ? (What was the contribution of Guru Ram Das Ji to Sikh religion ?)
अथवा
सिख मत के विकास में गुरु रामदास जी द्वारा दिये गए योगदान का वर्णन करो। (Explain the contribution of Guru Ram Das Ji to the growth of Sikhism.)
उत्तर-
1. रामदासपुरा की स्थापना-गुरु रामदास जी की सिख पंथ को सबसे महत्त्वपूर्ण देन रामदासपुरा अथवा अमृतसर की स्थापना करना था। रामदासपुरा की स्थापना 1577 ई० में हुई। इस शहर को बसाने के लिए गुरु साहिब ने यहाँ भिन्न-भिन्न व्यवसायों से संबंध रखने वाले 52 व्यापारियों को बसाया। इन व्यापारियों ने जो बाज़ार बसाय वह ‘गुरु का बाज़ार’ नाम से प्रसिद्ध हुआ। अमृतसर की स्थापना से सिखों को उनका मक्का मिल गया। यह शीघ्र ही सिखों का सर्वाधिक प्रसिद्ध धर्म-प्रचार केंद्र बन गया।

2. मसंद प्रथा का आरंभ-गुरु रामदास जी को रामदासपुरा में अमृतसर एवं संतोखसर नामक दो सरोवरों की खुदवाई के लिए धन की आवश्यकता पड़ी। इसलिए गुरु साहिब ने अपने प्रतिनिधियों को अलग-अलग स्थानों पर भेजा ताकि वे सिख मत का प्रचार कर सकें और संगतों से धन एकत्रित कर सकें। यह संस्था मसंद प्रथा के नाम से प्रसिद्ध हुई। मसंद प्रथा के कारण ही सिख मत का दूर-दूर तक प्रचार हुआ।

3. उदासियों से समझौता-गुरु रामदास जी के समय की एक महत्त्वपूर्ण घटना उदासी तथा सिख संप्रदाय के मध्य समझौता था। एक बार उदासी मत के संस्थापक बाबा श्रीचंद जी गुरु रामदास जी के दर्शनों के लिए अमृतसर आए। वह गुरु साहिब की नम्रता से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने उस दिन के पश्चात् सिख मत का विरोध नहीं किया। यह समझौता सिख पंथ के विकास के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण प्रमाणित हुआ।

4. कुछ अन्य महत्त्वपूर्ण कार्य-गुरु जी के अन्य महत्त्वपूर्ण कार्यों में वाणी की रचना (679 शब्द) करना था। उन्होंने चार लावों द्वारा विवाह प्रथा को प्रोत्साहित किया। गुरु साहिब ने पहले से चली आ रही संगत, पंगत और मंजी नामक संस्थाओं को जारी रखा। गुरु साहिब ने समाज में प्रचलित कुरीतियों जैसे-जाति प्रथा, सती प्रथा, बाल विवाह आदि का भी ज़ोरदार शब्दों में खंडन किया।

5. अकबर के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध-गुरु रामदास जी के समय में भी सिखों के मुग़ल बादशाह अकबर से मैत्रीपूर्ण संबंध स्थापित रहे। अकबर ने गुरु रामदास जी से लाहौर में मुलाकात की थी। उसने गुरु साहिब के कहने पर पंजाब के कृषकों का एक वर्ष के लिए लगान माफ कर दिया। फलस्वरूप गुरु साहिब की ख्याति में और वृद्धि हुई।

6. उत्तराधिकारी की नियुक्ति-गुरु रामदास जी ने 1581 ई० मे गुरु अर्जन देव जी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया। इस कारण सिख पंथ के विकास का कार्य जारी रहा।

प्रश्न 11.
रामदासपुरा (अमृतसर) की स्थापना का सिख इतिहास में क्या महत्त्व है ?
(What is the importance of the foundation of Ramdaspura (Amritsar) in Sikh History ?)
उत्तर-
गुरु रामदास जी की सिख पंथ को सबसे महत्त्वपूर्ण देन 1577 ई० में रामदासपुरा अथवा अमृतसर की स्थापना करना था। गुरुगद्दी प्राप्त करने के पश्चात् गुरु साहिब स्वयं यहाँ आ गए थे। इस शहर को बसाने के लिए गुरु साहिब ने यहाँ भिन्न-भिन्न व्यवसायों से संबंधित 52 अन्य व्यापारियों को बसाया। इन व्यापारियों ने जो बाज़ार बसाया वह ‘गुरु का बाजार’ नाम से प्रसिद्ध हुआ। शीघ्र ही यह एक प्रसिद्ध व्यापारिक केंद्र बन गया। गुरु साहिब ने रामदासपुरा में दो सरोवरों अमृतसर एवं संतोखसर की खुदवाई का विचार बनाया। पहले अमृतसर सरोवर की खुदवाई का कार्य आरंभ किया गया। अमृतसर की स्थापना सिख पंथ के इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है। इससे सिखों को एक अलग तीर्थ स्थान मिल गया जो शीघ्र ही उनका सर्वाधिक प्रसिद्ध धर्म-प्रचार केंद्र बन गया। इसे सिखों का मक्का कहा जाने लगा। इस के अतिरिक्त यह सिखों की एकता एवं स्वतंत्रता का प्रतीक भी बन गया।

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प्रश्न 12.
उदासी मत पर एक संक्षिप्त नोट लिखें। , (Write a short note on Udasi Sect.)
अथवा
उदासी प्रथा के बारे में आप क्या जानते हैं ? (What do you know about Udasi System ?)
अथवा
बाबा श्रीचंद जी पर एक संक्षिप्त नोट लिखें। (Write a brief note on Baba Sri Chand Ji.)
उत्तर-
1. बाबा श्रीचंद जी-उदासी मत की स्थापना गुरु नानक देव जी के बड़े सुपुत्र बाबा श्रीचंद जी ने की थी। यह मत संन्यास अथवा त्याग के जीवन पर बल देता था जबकि गुरु नानक देव जी गृहस्थ जीवन के पक्ष में थे। उदासी मत के शेष सभी सिद्धांत गुरु नानक देव जी के सिद्धांतों से मिलते थे। इस कारण बहुत-से सिख उदासी मत को मान्यता देने लग पड़े थे। ऐसी परिस्थितियों में यह संकट उत्पन्न हो गया था कि कहीं सिख गुरु नानक देव जी के उपदेशों को भूलकर उदासी मत न अपना लें। इस संबंध में एक ठोस और शीघ्र निर्णय लिए जाने की आवश्यकता थी।

2. गुरु अंगद देव जी-गुरु अंगद देव जी ने उदासी मत का कड़ा विरोध किया। उन्होंने स्पष्ट किया कि उदासी मत के सिद्धांत सिख धर्म के सिद्धांतों से सर्वथा विपरीत हैं एवं जो सिख उदासी मत में विश्वास रखता है, वह सच्चा सिख नहीं हो सकता।

3. गुरु अमरदास जी-गुरु अमरदास जी ने सिखों को समझाया कि सिख धर्म उदासी मत से बिल्कुल अलग है। उनका कहना था कि जहाँ सिख धर्म गृहस्थ मार्ग अपनाने तथा अपनी आजीविका के लिए सच्चा श्रम करने की शिक्षा देता है, वहाँ उदासी मत अपने सामाजिक उत्तरदायित्वों से भाग जाने तथा संसार को त्याग कर मुक्ति की खोज में वनों में मारे-मारे फिरने की शिक्षा देता है। गुरु साहिब के अथक प्रयत्नों से सिखों ने उदासी मत से सदैव के लिए अपने संबंध तोड़ लिए।’

4. गुरु रामदास जी-गुरु रामदास जी के समय उदासियों एवं सिखों के मध्य समझौता हुआ। एक बार उदासी मत के संस्थापक बाबा श्रीचंद जी गुरु अमरदास जी के दर्शनों के लिए अमृतसर आए। श्रीचंद जी गुरु साहिब की नम्रता से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने उस दिन के पश्चात् सिख मत का विरोध करना बंद कर दिया। सिखों का उदासियों से यह समझौता सिख पंथ के लिए बहुत लाभप्रद प्रमाणित हुआ। इससे एक तो सिखों और उदासियों के बीच चला आ रहा परस्पर तनाव दूर हो गया। दूसरा, उदासियों ने सिख मत का प्रचार करने में प्रशंसनीय योगदान दिया।। इससे सिख धर्म की लोकप्रियता में वृद्धि हुई।

Source Based Questions

नोट-निम्नलिखित अनुच्छेदों को ध्यानपूर्वक पढ़िए और उनके अंत में पूछे गए प्रश्नों का उत्तर दीजिए।

1
भाई लहणा जी गुरु नानक देव जी से भेंट करने से पूर्व दुर्गा माता के भक्त थे। वे प्रतिवर्ष अपने साथ भक्तों का एक जत्था लेकर ज्वालामुखी (ज़िला काँगड़ा) देवी के दर्शन के लिए जाते थे, किंतु जिस सत्य की उन्हें तलाश थी, उसकी प्राप्ति न हो सकी। एक दिन खडूर साहिब में भाई जोधा जी जो गुरु नानक देव जी के एक श्रद्धालु सिख थे, के मुख से आसा दी वार’ का पाठ सुना। यह पाठ सुनकर भाई लहणा जी इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने गुरु नानक देव जी के दर्शन करने का दृढ़ निश्चय किया। आगामी वर्ष जब भाई लहणा जी अपने जत्थे को साथ लेकर ज्वालामुखी की यात्रा के लिए निकले तो वे मार्ग में करतारपुर में गुरु नानक देव जी के दर्शन के लिए रुके। वे गुरु साहिब के महान् व्यक्तित्व
और मधुर वाणी को सुनकर इतने अधिक प्रभावित हुए कि उन्होंने अनुभव किया कि जिस मंज़िल की उन्हें वर्षों से तलाश थी, आज वह मंज़िल उनके सामने है।

  1. भाई लहणा जी गुरु नानक देव जी को मिलने से पहले किस देवी के भक्त थे ?
  2. भाई लहणा जी ने खडूर साहिब में किस के मुख से आसा दी वार’ का पाठ सुना था ?
  3. ‘आसा दी वार’ का पाठ सुनकर भाई लहणा जी ने क्या फैसला किया ?
  4. भाई लहणा जी गुरु नानक देव जी के शिष्य क्यों बन गए ?
  5. भाई लहणा जी गुरु नानक देव जी को कहाँ मिले थे ?
    • करतारपुर में
    • ज्वालामुखी में
    • कीरतपुर में
    • अमृतसर में।

उत्तर-

  1. भाई लहणा जी गुरु नानक देव जी को मिलने से पहले देवी दुर्गा के भक्त थे।
  2. भाई लहणा जी ने खडूर साहिब में भाई जोधा जी के मुख से ‘आसा दी वार’ का पाठ सुना था।
  3. ‘आसा दी वार’ का पाठ सुनकर भाई लहणा जी ने गुरु नानक देव जी के दर्शन करने का फैसला किया।
  4. वह गुरु नानक देव जी के व्यक्तित्व से तथा वाणी से बहुत प्रभावित हुए।
  5. करतारपुर में।

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2
गुरु अंगद साहिब ने गुरमुखी लिपि को लोकप्रिय बनाकर सिख पंथ के विकास की ओर प्रथम महत्त्वपूर्ण पग उठाया। यह सही है कि यह लिपि गुरु अंगद देव जी से पूर्व अस्तित्व में आ चुकी थी, परंतु इसे पढ़कर कोई भी व्यक्ति बहुत सरलता से भ्रम में पड़ सकता था। इसलिए गुरु अंगद देव जी इसके रूप में एक नया निखार लाए। अब इस लिपि को समझना सामान्य लोगों के लिए भी बहुत सरल हो गया था। सिखों के सभी धार्मिक ग्रंथों की रचना इस लिपि में हुई। इस लिपि का नाम गुरमुखी [अर्थात् गुरुओं के मुख से निकली हुई] होने के कारण यह सिखों को गुरु के प्रति अपने कर्तव्य का स्मरण दिलाती रही। इस प्रकार यह लिपि सिखों की अपनी अलग पहचान बनाए रखने में सहायक सिद्ध हुई। इस लिपि के प्रसार के कारण सिखों में तीव्रता से विद्या का प्रसार होने लगा। इसके अतिरिक्त इस लिपि के प्रचलित होने से ब्राह्मण वर्ग को कड़ा आघात पहुँचा क्योंकि वे संस्कृत को ही धर्म की भाषा समझते थे।

  1. किस गुरु साहिबान ने गुरमुखी लिपि का प्रचलन किया ?
  2. गुरमुखी लिपि से पहले कौन-सी लिपि का प्रचलन था ?
  3. गुरमुखी से क्या भाव है ?
  4. गुरमुखी लिपि का क्या महत्त्व था ?
  5. सिखों के सभी धार्मिक ग्रंथों की रचना ……….. लिपि में हुई। ……….

उत्तर-

  1. गुरु अंगद देव जी ने गुरमुखी लिपि का प्रचलन किया था।
  2. गुरमुखी लिपि से पहले लंडे महाजनी लिपि का प्रचलन था।
  3. गुरमुखी लिपि से भाव है गुरुओं के मुख से निकली हुई।
  4. इसके प्रचार के कारण ब्राह्मण वर्ग को करारी चोट पहुँची क्योंकि वे केवल संस्कृत को ही पवित्र भाषा मानते
  5. गुरमुखी।

3
गुरु अमरदास जी का सिख पंथ के विकास की ओर पहला पग गोइंदवाल साहिब में एक बाऊली का निर्माण करना था। इस बाऊली का निर्माण कार्य 1552 ई० में आरंभ किया गया था और यह 1559 ई० में संपूर्ण हुआ था। इस बाऊली के निर्माण के पीछे गुरु साहिब के दो उद्देश्य थे। पहला, वह सिखों को एक अलग तीर्थ स्थान देना चाहते थे ताकि उन्हें हिंदू धर्म से अलग किया जा सके। दूसरा, वह वहाँ के लोगों की पानी के संबंध में कठिनाई को दूर करना चाहते थे। इस बाऊली तक पहुँचने के लिए 84 सीढ़ियाँ बनाई गई थीं। बाऊली का निर्माण कार्य पूर्ण होने पर गुरु जी ने यह घोषणा की कि जो यात्री प्रत्येक सीढ़ी पर शुद्ध हृदय से जपुजी साहिब का पाठ करेगा तथा पाठ के पश्चात् बाऊली में स्नान करेगा वह 84 लाख योनियों से मुक्त हो जाएगा। बाऊली का निर्माण सिख पंथ के विकास के लिए एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण कार्य प्रमाणित हुआ।

  1. गोइंदवाल साहिब में बाऊली का निर्माण किस गुरु साहिब ने करवाया था ?
  2. गोइंदवाल साहिब में बाऊली का निर्माण कार्य कब आरंभ हुआ ?
    • 1552 ई०
    • 1559 ई०
    • 1562 ई०
    • 1569 ई०
  3. गोइंदवाल साहिब में बाऊली के निर्माण कार्य को कुल कितना समय लगा ?
  4. गोइंदवाल साहिब की बाऊली तक पहुँचने के लिए कुल कितनी सीढ़ियों का निर्माण किया गया ?
  5. बाऊली का निर्माण सिख पंथ के लिए कैसे महत्त्वपूर्ण सिद्ध हुआ ?

उत्तर-

  1. गोइंदवाल साहिब में बाऊली का निर्माण गुरु अमरदास जी ने करवाया था।
  2. 1552 ई०।
  3. गोइंदवाल साहिब में बाऊली के निर्माण को कुल 7 वर्ष लगे।
  4. गोइंदवाल साहिब की बाऊली तक पहुँचने के लिए कुल 84 सीढ़ियाँ बनवाई गईं।
  5. इस कारण सिख धर्म को एक नया उत्साह मिला।

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4
मंजी प्रथा की स्थापना गुरु अमरदास जी के सबसे महत्त्वपूर्ण कार्यों में से एक थी। गुरु अमरदास जी के समय सिखों की संख्या में भारी वृद्धि हुई थी। इसलिए गुरु साहिब के लिए प्रत्येक सिख तक पहुँच पाना संभव नहीं था। उन्होंने अपने उपदेश दूर-दूर के क्षेत्रों में रहने वाले सिखों तक पहुँचाने के लिए 22 मंजियों की स्थापना की। यहाँ यह बात स्मरणीय है कि गुरु जी ने इन मंजियों की स्थापना एक ही समय पर नहीं की थी अपितु यह क्रम उनके समस्त गुरुकाल के दौरान चलता रहा। प्रत्येक मंजी के मुखिया को मंजीदार कहते थे। मंजीदार का पद केवल बहुत ही पवित्र सिख को दिया जाता था। मंजीदार का प्रचार क्षेत्र किसी विशेष प्रदेश तक सीमित नहीं था। वह अपनी इच्छानुसार अपने प्रचार हेतु किसी भी स्थान पर जा सकते थे। ये मंजीदार अधिक-से-अधिक लोगों को सिखं धर्म में सम्मिलित होने के लिए प्रेरित करते थे तथा सिखों से धन एकत्र करके गुरु साहिब तक पहुँचाते थे।

  1. मंजी प्रथा की स्थापना किस गुरु साहिब ने की थी ?
  2. कुल कितनी मंजियों की स्थापना की गई थी ?
  3. मंजी का मुखिया कौन होता था ?
  4. मंजीदार का कोई एक मुख्य कार्य लिखें।
  5. मंजीदार का प्रचार क्षेत्र किसी विशेष ………. तक सीमित नहीं था।

उत्तर-

  1. मंजी प्रथा की स्थापना गुरु अमरदास जी ने की थी।
  2. कुल 22 मंजियों की स्थापना की गई थी।
  3. मंजी का मुखिया मंजीदार होता था।
  4. वे सिख धर्म का प्रचार करते थे।
  5. प्रदेश।

5
गुरु रामदास जी की सिख पंथ को सबसे महत्त्वपूर्ण देन रामदासपुरा अथवा अमृतसर की स्थापना करना था। गुरुगद्दी प्राप्त करने के पश्चात् गुरु साहिब स्वयं यहाँ आ गए थे। उन्होंने 1577 ई० में रामदासपुरा की स्थापना की। इस शहर को बसाने के लिए गुरु साहिब ने यहाँ भिन्न-भिन्न व्यवसायों से संबंधित 52 अन्य व्यापारियों को बसाया। इन व्यापारियों ने जो बाज़ार बसाया वह ‘गुरु का बाज़ार’ नाम से प्रसिद्ध हुआ। शीघ्र ही यह एक प्रसिद्ध व्यापारिक केंद्र बन गया। गुरु साहिब ने रामदासपुरा में दो सरोवरों अमृतसर एवं संतोखसर की खुदवाई का विचार बनाया। पहले अमृतसर सरोवर की खुदाई का कार्य आरंभ किया गया। इस कार्य की देखभाल के लिए बाबा बुड्डा जी को नियुक्त किया गया। बाद में अमृत सरोवर के नाम पर रामदासपुरा का नाम अमृतसर पड़ गया। अमृतसर की स्थापना सिख पंथ के इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है। इससे सिखों को एक अलग तीर्थ स्थान मिल गया जो शीघ्र ही उनका सर्वाधिक प्रसिद्ध धर्म-प्रचार केंद्र बन गया।

  1. रामदासपुरा की स्थापना किस गुरु साहिब ने की थी ?
  2. रामदासपुरा के पश्चात् इसे किस नाम से जाना जाने लगा ?
  3. रामदासपुरा में व्यापारियों के लिए बनाए गए बाज़ार का नाम क्या था ?
  4. रामदासपुरा की स्थापना का क्या महत्त्व था ?
  5. रामदासपुरा की स्थापना कब की गयी थी ?
    • 1571 ई०
    • 1573 ई०
    • 1575 ई०
    • 1577 ई०।

उत्तर-

  1. रामदासपुरा की स्थापना गुरु रामदास जी ने की थी।
  2. रामदासपुरा के पश्चात् इसे अमृतसर के नाम से जाना जाने लगा।
  3. रामदासपुरा में व्यापारियों के लिए बनाए गए बाज़ार का नाम ‘गुरु का बाज़ार’ था।
  4. इसके कारण सिखों को उनका सबसे पवित्र तीर्थ स्थान मिला।
  5. 1577 ई०।

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गुरु अंगद देव जी, गुरु अमरदास जी और गुरु रामदास जी के अधीन सिख धर्म का विकास PSEB 12th Class History Notes

  • गुरु अंगद देव जी का प्रारंभिक जीवन (Early Career of Guru Angad Dev Ji)-गुरु अंगद देव जी का जन्म 31 मार्च, 1504 ई० को मत्ते की सराय नामक गाँव में हुआ-उनका आरंभिक नाम भाई लहणा जी था-आपके पिता जी का नाम फेरूमल तथा माता जी का नाम सभराई देवी थाआपका विवाह आपके ही गाँव के श्री देवी चंद की सुपुत्री बीबी खीवी जी से हुआ-एक बार आप ज्वाला जी की यात्रा पर गए तो आपने करतारपुर में गुरु नानक देव जी के दर्शन किए-गुरु नानक देव जी के व्यक्तित्व से प्रभावित होकर आप उनके अनुयायी बन गए-आपकी अथक सेवा से प्रसन्न होकर गुरु नानक देव जी ने 7 सितंबर, 1539 ई० को आपको गुरु गद्दी सौंप दी।
  • गुरु अंगद देव जी के अधीन सिख धर्म का विकास (Development of Sikhism Under Guru Angad Dev Ji)-गुरु अंगद देव जी ने गुरमुखी लिपि को लोकप्रिय बनाया-गुरु जी ने गुरु नानक साहिब की वाणी को एकत्रित किया-उन्होंने स्वयं 62 शब्दों की रचना की-उन्होंने भाई बाला जी से गुरु नानक देव जी के जीवन के संबंध में एक जन्म साखी लिखवाई-गुरु जी ने लंगर प्रथा का विकास किया-संगत संस्था को और अधिक संगठित किया-उदासी मत का खंडन करके गुरु जी ने सिखमत के अलग अस्तित्व को बनाए रखने में सफलता प्राप्त की-आपने खडूर साहिब के समीप 1546 ई० में गोइंदवाल साहिब नामक नए नगर की स्थापना की-आपने मुग़ल बादशाह हुमायूँ को
    आशीर्वाद देकर सिखों तथा मुग़लों के मध्य मैत्रीपूर्ण संबंध स्थापित किए।
  • ज्योति जोत समाना (Immersed in Eternal Light)-अपना अंत समय निकट देखकर गुरु अंगद देव जी ने अमरदास जी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया-29 मार्च, 1552 ई० को गुरु अंगद देव जी ज्योति जोत समा गए।
  • गुरु अमरदास जी का आरंभिक जीवन और कठिनाइयाँ (Early Career and Difficulties of Guru Amar Das ji)—गुरु अमरदास जी का जन्म 5 मई, 1479 ई० को जिला अमृतसर के गाँव बासरके में हुआ–आपके पिता जी का नाम तेजभान भल्ला था-आपका विवाह देवी चंद जी की सुपुत्री मनसा देवी जी से हुआ-आप 62 वर्ष की आयु में गुरु अंगद देव जी के अनुयायी बने-आप मार्च, 1552 ई० में सिखों के तीसरे गुरु नियुक्त हुए-उस समय आपकी आयु 73 वर्ष थी-आपको गुरुगद्दी सौंपे जाने का गुरु अंगद देव जी के पुत्रों दासू और दातू ने कड़ा विरोध किया-आपको गुरु नानक देव जी के बड़े सुपुत्र बाबा श्री चंद जी का भी विरोध सहना पड़ा-गुरु अमरदास जी को कट्टर मुसलमानों तथा ब्राह्मण वर्ग के भी कड़े विरोध का सामना करना पड़ा।
  • गुरु अमरदास जी के समय सिख धर्म का विकास (Development of Sikhism Under Guru Amar Das Ji)—गुरु अमरदास जी 1552 ई० से 1574 ई० तक गुरगद्दी पर आसीन रहे। गुरु अमरदास जी की गतिविधियों का केंद्र गोइंदवाल साहिब था-गुरु अमरदास जी ने गोइंदवाल साहिब में 84 सीढ़ियों वाली एक बाऊली का निर्माण करवाया-उन्होंने लंगर संस्था का विकास किया-गुरु जी ने गुरु नानक देव जी और गुरु अंगद देव जी की बाणी का संग्रह किया-गुरु अमरदास जी ने स्वयं 907 शब्दों की रचना की-गुरु जी ने दूर-दूर के क्षेत्रों में सिख धर्म के प्रचार के लिए 22 मंजियों की स्थापना की-गुरु जी ने उदासी संप्रदाय का खंडन किया-गुरु अमरदास जी ने समाज में प्रचलित कुप्रथाओं का डट कर विरोध किया-गुरु जी ने सिखों के जन्म, विवाह तथा मृत्यु के अवसरों के लिए विशेष रस्में प्रचलित की-1568 ई० में अकबर के गोइंदवाल साहिब आगमन से सिखों और मुग़लों में मैत्रीपूर्ण संबंध स्थापित हुए।
  • ज्योति जोत समाना (Immersed in Eternal Light)-1574 ई० में गुरु अमरदास जी ने अपने दामाद भाई जेठा जी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया-1 सितंबर, 1574 ई० को गुरु जी ज्योति जोत समा गए।
  • गुरु रामदास जी का प्रारंभिक जीवन (Early Career of Guru Ram Das Ji)-गुरु रामदास जी का जन्म 24 सितंबर, 1534 ई० को चूना मंडी, लाहौर में हआ था-आपका आरंभिक नाम भाई जेठा जी था-आपके पिता जी का नाम हरिदास और माता जी का नाम दया कौर था-आप गुरु अमरदास जी के व्यक्तित्व से प्रभावित होकर उनके अनुयायी बन गए-1553 ई० में आपका विवाह गुरु अमरदास जी की छोटी लड़की बीबी भानी जी के साथ हुआ-1574 ई० में आप गुरु गद्दी पर विराजमान हुए-आप सिखों के चौथे गुरु थे।
  • गुरु रामदास जी के समय सिख मत का विकास (Development of Sikhism under Guru Ram Das Ji)-1577 ई० में गुरु रामदास जी ने रामदासपुरा अथवा अमृतसर की स्थापना की-रामदासपुरा में अमृतसर और संतोखसर नामक दो सरोवरों की खुदवाई का कार्य आरंभ किया गया-सिख मत्त के प्रचार तथा संगतों से धन को एकत्रित करने के लिए मसंद प्रथा आरंभ की गईउदासी संप्रदाय तथा सिखमत में समझौता सिख पंथ के विकास में एक मील पत्थर सिद्ध हुआसंगत, पंगत और मंजी संस्थाओं को जारी रखा गया-मुग़ल बादशाह अकबर के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध और दृढ़ हुए।
  • ज्योति जोत समाना (Immersed in Eternal Light)—ज्योति जोत समाने से पूर्व, गुरु रामदास जी ने अपने छोटे पुत्र अर्जन देव जी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया-1 सितंबर, 1581 ई० को गुरु जी ज्योति जोत समा गए।

PSEB 10th Class SST Solutions History Chapter 5 गुरु गोबिन्द सिंह जी का जीवन, खालसा की संरचना, युद्ध तथा उनका व्यक्तित्व

Punjab State Board PSEB 10th Class Social Science Book Solutions History Chapter 5 गुरु गोबिन्द सिंह जी का जीवन, खालसा की संरचना, युद्ध तथा उनका व्यक्तित्व Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 10 Social Science History Chapter 5 गुरु गोबिन्द सिंह जी का जीवन, खालसा की संरचना, युद्ध तथा उनका व्यक्तित्व

SST Guide for Class 10 PSEB गुरु गोबिन्द सिंह जी का जीवन, खालसा की संरचना, युद्ध तथा उनका व्यक्तित्व Textbook Questions and Answers

(क) निम्नलिखित प्रत्येक प्रश्न का उत्तर एक शब्द/एक पंक्ति (1-15 शब्दों) में लिखो

प्रश्न 1.
गुरु गोबिन्द राय जी का जन्म कब और कहां हुआ ? उनके माता-पिता का नाम भी बताओ।
उत्तर-
22 दिसम्बर, 1666 ई० को पटना में। उनकी माता का नाम गुजरी जी और पिता का नाम श्री गुरु तेग़ बहादुर जी था।

प्रश्न 2.
बचपन में पटना में गुरु गोबिन्द जी क्या-क्या खेल खेलते थे?
उत्तर-
नकली लड़ाइयां तथा अदालत लगाकर अपने साथियों के झगड़ों का निपटारा करना।

प्रश्न 3.
गुरु गोबिन्द राय जी ने किस-किस अध्यापक से शिक्षा ली?
उत्तर-
काज़ी पीर मुहम्मद, पण्डित हरजस, राजपूत बजर सिंह, भाई साहिब चन्द, भाई सतिदास आदि से।

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प्रश्न 4.
कश्मीरी पण्डितों की क्या समस्या थी ? गुरु तेग़ बहादुर जी ने उसे कैसे हल किया?
उत्तर-
औरंगज़ेब कश्मीरी पण्डितों को ज़बरदस्ती मुसलमान बनाना चाहता था। गुरु तेग़ बहादुर जी ने इस समस्या को आत्म-बलिदान देकर हल किया।

प्रश्न 5.
भंगानी की विजय के बाद गुरु गोबिन्द राय ने कौन-कौन से किले बनवाए?
उत्तर-
आनन्दगढ़, केशगढ़, लोहगढ़ तथा फतेहगढ़।

प्रश्न 6.
पांच प्यारों के नाम लिखिए।
उत्तर-
भाई दया सिंह, भाई धर्म सिंह, भाई मोहकम सिंह, भाई साहब सिंह तथा भाई हिम्मत सिंह।

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प्रश्न 7.
गुरु गोबिन्द सिंह जी ज्योति जोत कैसे समाए?
उत्तर-
एक पठान ने गुरु साहिब के पेट में छुरा घोंप दिया।

प्रश्न 8.
‘खण्डे का पाहुल’ तैयार करते समय किन-किन बाणियों का पाठ किया जाता है?
उत्तर-
जपुजी साहिब, आनन्द साहिब, जापु साहिब, सवैये, चौपाई आदि बाणियों का।

प्रश्न 9.
खालसा का सृजन कब और कहां किया गया?
उत्तर-
1699 ई० में आनन्दपुर साहिब में।

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प्रश्न 10.
बिलासपुर के राजा भीमचन्द पर खालसा की स्थापना का क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर-
उसने गुरु जी के विरुद्ध कई पहाड़ी राजाओं से गठजोड़ कर लिया।

प्रश्न 11.
नादौन के युद्ध का क्या कारण था?
उत्तर-
पहाड़ी राजाओं ने गुरु साहिब से मित्रता स्थापित करके मुग़ल सरकार को वार्षिक कर देना बन्द कर दिया था।

प्रश्न 12.
मुक्तसर का पुराना नाम क्या था? इसका यह नाम क्यों रखा गया?
उत्तर-
खिदराना। खिदराना के युद्ध में शहीदी को प्राप्त हुए सिक्खों को 40 मुक्ते’ का नाम दिया गया और उनकी याद में खिदराना का नाम मुक्तसर रखा गया।

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प्रश्न 13.
‘ज़फ़रनामा’ नामक पत्र गुरु जी ने किसे लिखा था?
उत्तर-
मुग़ल सम्राट औरंगजेब को।

प्रश्न 14.
गुरु गोबिन्द सिंह जी की प्रसिद्ध चार रचनाओं के नाम लिखिए।
उत्तर-
जापु साहिब, ज़फ़रनामा, अकाल उस्तति तथा शस्त्र नाम माला।

(ख) निम्नलिखित प्रत्येक प्रश्न का उत्तर लगभग 30-50 शब्दों में लिखिए

प्रश्न 1.
गुरु गोबिन्द सिंह जी ने पटना में अपना बचपन कैसे बिताया?
उत्तर-
गुरु गोबिन्द सिंह जी ने बचपन के पांच वर्ष पटना में व्यतीत किए। वहां उनकी देख-रेख उनके मामा कृपाल ने की। कहते हैं कि घूड़ाम (पटियाला में स्थित) का एक मुस्लिम फ़कीर भीखणशाह बालक गोबिन्द राय के दर्शनों के लिए पटना गया था। बालक को देखते ही उसने यह भविष्यवाणी की थी कि “यह बालक बड़ा होकर महान् पुरुष बनेगा और लोगों का पथ-प्रदर्शन करेगा।” उसकी यह भविष्यवाणी बिल्कुल सत्य सिद्ध हुई। गुरु जी में महानता के लक्षण बाल्यकाल से ही दिखाई देने लगे थे। वे अपने साथियों को दो टोलियों में बांटकर युद्ध का अभ्यास किया करते थे और उन्हें कौड़ियां तथा मिठाई आदि देते थे। वे उनके झगड़ों का निपटारा भी करते थे। कोई भी निर्णय करते समय वे बड़ी सूझबूझ से काम लेते थे।

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प्रश्न 2.
गुरु गोबिन्द सिंह जी के राजसी चिह्नों का वर्णन करो।
उत्तर-
गुरु गोबिन्द सिंह जी ने अपने दादा गुरु हरगोबिन्द जी की भान्ति राजसी चिह्नों को अपनाया। वे राजगद्दी जैसे ऊँचे सिंहासन पर विराजमान होने लगे और अपनी पगड़ी पर कलगी सजाने लगे। उन्होंने अपने सिक्खों के दीवान सुन्दर तथा मूल्यवान् तम्बुओं में लगाने आरम्भ कर दिये। वे साहसी सिक्खों के साथ-साथ अपने पास हाथी तथा घोड़े भी रखने लगे। वे आनन्दपुर के जंगलों में शिकार खेलने जाते। इसके अतिरिक्त उन्होंने ‘रणजीत नगारा’ भी बनवाया।

प्रश्न 3.
खालसा के नियमों का वर्णन करो।
उत्तर-
खालसा की स्थापना 1699 ई० में गुरु गोबिन्द सिंह जी ने की । खालसा के नियम निम्नलिखित थे

  1. प्रत्येक खालसा अपने नाम के साथ ‘सिंह’ शब्द लगाएगा । खालसा स्त्री अपने नाम के साथ ‘कौर’ शब्द लगाएगी ।
  2. खालसा में प्रवेश से पूर्व प्रत्येक व्यक्ति को ‘खण्डे के पाहुल’ का सेवन करना पड़ेगा । तभी वह स्वयं को खालसा कहलवाएगा।
  3. प्रत्येक ‘सिंह’ आवश्यक रूप से पांच ‘ककार’ धारण करेगा-केश, कड़ा, कंघा, किरपान तथा कछहरा।
  4. सभी सिक्ख प्रतिदिन प्रात:काल स्नान करके उन पांच बाणियों का पाठ करेंगे जिनका उच्चारण ‘खण्डे का पाहुल’ तैयार करते समय किया गया था।

प्रश्न 4.
भंगानी के युद्ध के क्या कारण थे?
उत्तर-
भंगानी की लड़ाई 1688 ई० में पहाड़ी राजाओं तथा गुरु गोबिन्द राय जी के बीच हुई । इस लड़ाई के निम्नलिखित कारण थे

  1. पहाड़ी राजा गुरु गोबिन्द राय जी की सैनिक गतिविधियों को अपने लिए खतरा समझते थे।
  2. गुरु जी मूर्ति-पूजा के विरोधी थे । परन्तु पहाड़ी राजा मूर्ति-पूजा में विश्वास करते थे।
  3. गुरु जी ने मुगल सेना में से निकाले गए 500 पठानों को अपनी सेना में भर्ती कर लिया था। पहाड़ी राजा मुग़ल सरकार के स्वामिभक्त थे । इसलिए वे गुरु जी के विरुद्ध हो गए।
  4. मुग़ल फ़ौजदारों ने पहाड़ी राजाओं को गुरु जी के विरुद्ध उकसा दिया था।
  5. गुरु जी के साथ पहाड़ी राजा भीमचन्द की पुरानी शत्रुता थी। भीमचन्द के पुत्र की बारात गढ़वाल जा रही थी, परन्तु सिक्खों ने इन्हें पाऊंटा साहब से न गुज़रने दिया। परिणामस्वरूप पहाड़ी राजाओं ने गुरु जी से युद्ध करने का निर्णय कर लिया।

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प्रश्न 5.
आनन्दपुर साहिब की दूसरी लड़ाई कब हुई? इसका संक्षेप में वर्णन करो।
उत्तर-
आनन्दपुर की दूसरी लड़ाई 1704 ई० में हुई। आनन्दपुर साहिब के पहले युद्ध में गुरु गोबिन्द साहिब से पहाड़ी राजा बुरी तरह पराजित हुए थे। सन्धि के बाद भी वे पुनः सैनिक तैयारियां करने लगे । उन्होंने गुज्जरों को अपने साथ मिला लिया । मुगल सम्राट ने भी उनकी सहायता की प्रार्थना को स्वीकार कर लिया । 1704 ई० में सरहिन्द के गवर्नर वज़ीर खां ने सिक्खों की शक्ति को कुचलने के लिए विशाल सेना भेजी। सभी ने मिलकर आनन्दपुर का घेरा डाल दिया। गुरु जी ने अपने वीर सिक्खों की सहायता से डट कर मुग़लों का सामना किया, परन्तु धीरे-धीरे सिक्खों की रसद समाप्त हो गई । उन्हें भूख और प्यास सताने लगी। इस कठिन समय में 40 सिक्ख बेदावा लिखकर गुरु जी का साथ छोड़कर चले गए। अन्त में 21 दिसम्बर, 1704 ई० को माता गुजरी जी के कहने पर गुरु जी ने आनन्दपुर साहिब को छोड़ दिया।

प्रश्न 6.
चमकौर साहिब की लड़ाई पर नोट लिखें।
उत्तर-
सरसा नदी को पार करके गुरु गोबिंद सिंह जी चमकौर पहुंचे। वहां उन्होंने गांव के ज़मींदार के कच्चे मकान में आश्रय लिया परन्तु पहाड़ी राजाओं तथा मुग़ल सेनाओं ने उन्हें वहां भी घेर लिया। उस समय गुरु जी के साथ केवल 40 सिक्ख तथा उनके दोनों साहिबजादे अजीत सिंह तथा जुझार सिंह थे। फिर भी गुरु जी ने साहस न छोड़ा और मुग़लों का डट कर सामना किया। इस युद्ध में उनके दोनों साहिबजादे वीरगति को प्राप्त हुए। इसके अतिरिक्त 35 सिक्ख भी लड़ते-लड़ते शहीद हो गए। इनमें तीन प्यारे भी शामिल थे। परिस्थितियां बिल्कुल विपरीत थीं। अत: सिक्खों के प्रार्थना करने पर गुरु जी अपने पांच साथियों सहित माछीवाड़ा के जंगलों की ओर चले गए।

प्रश्न 7.
खिदराना की लड़ाई का वर्णन करो।
उत्तर-
चमकौर के युद्ध के पश्चात् गुरु गोबिन्द सिंह जी खिदराना में दाब नामक स्थान पर पहुंचे। वहां मुग़लों से उनका अन्तिम युद्ध हुआ। इस युद्ध में वे 40 सिक्ख भी गुरु जी के साथ आ मिले जो आनन्दपुर के दूसरे युद्ध में उनका साथ छोड़ गए थे। उन्होंने अपनी गुरु भक्ति का परिचय दिया और लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। उनकी इस गुरु भक्ति तथा बलिदान से गुरु जी बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने वहां इन शहीदों की मुक्ति के लिए प्रार्थना की । ये 40 शहीद इतिहास में ’40 मुक्ते ‘ कहलाते हैं। इस लड़ाई में माई भागो विशेष रूप से गुरु साहिब के पक्ष में लड़ने के लिए पहुंची थी। वह भी बुरी तरह से घायल हुई। अंत में गुरु साहिब विजयी रहे और मुग़ल सेना परास्त होकर भाग खड़ी हुई।

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प्रश्न 8.
गुरु गोबिन्द सिंह जी के सेनानायक के रूप में व्यक्तित्व का वर्णन करो।
उत्तर-
गुरु गोबिन्द सिंह जी एक कुशल सेनापति तथा वीर सैनिक थे । पहाड़ी राजाओं तथा मुग़लों के विरुद्ध लड़े गए प्रत्येक युद्ध में उन्होंने अपने वीर सैनिक होने का परिचय दिया। तीर चलाने, तलवार चलाने तथा घुड़सवारी करने में तो वे विशेष रूप से निपुण थे। गुरु जी में एक उच्च कोटि के सेनानायक के भी सभी गुण विद्यमान थे। उन्होंने कम सैनिक तथा कम युद्ध सामग्री के होते हुए भी पहाड़ी राजाओं तथा मुग़लों के नाक में दम कर दिया। चमकौर की लड़ाई में तो उनके साथ केवल चालीस सिक्ख थे, परन्तु गुरु जी के नेतृत्व में उन्होंने वे हाथ दिखाए कि एक बार तो हज़ारों की मुग़ल सेना घबरा उठी।

(ग) निम्नलिखित प्रत्येक प्रश्न का उत्तर लगभग 100-120 शब्दों में लिखिए

प्रश्न 1.
गुरु गोबिन्द सिंह जी के जीवन के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर-
गुरु गोबिन्द सिंह जी सिक्खों के दसवें तथा अन्तिम गुरु थे। उनमें आध्यात्मिक नेता, उच्चकोटि के संगठनकर्ता, सफल सेनानायक, प्रतिभाशाली विद्वान् तथा महान् सुधारक सभी के गुण विद्यमान थे। उनके जीवन का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है —
जन्म तथा माता-पिता — गुरु गोबिन्द सिंह जी का जन्म 22 दिसम्बर,1666 ई० में पटना (बिहार की राजधानी) में हुआ। वह गुरु तेग़ बहादुर जी के इकलौते पुत्र थे। उनकी माता का नाम गुजरी जी था। आरम्भ में उनका नाम गोबिन्द दास रखा गया परन्तु कुछ समय पश्चात् उन्हें गोबिन्द राय भी कहा जाने लगा।

पटना में बचपन — गोबिन्द राय जी ने अपने जीवन के प्रारम्भिक पाँच वर्ष पटना में व्यतीत किए। बचपन में वह ऐसे खेल खेलते थे, जिनसे यह पता चलता था कि एक दिन वह धार्मिक एवं महान् नेता बनेंगे। वह अपने साथियों की दौड़ें, कुश्तियाँ तथा नकली युद्ध करवाया करते थे। वह स्वयं भी इन खेलों में भाग लेते थे। वह अपने साथियों के झगडे का निपटारा करने के लिए अदालत भी लगाया करते थे। __ लखनौर में दस्तार — बंदी की रस्म-1671 ई० में बालक गोबिन्द राय जी की लखनौर में दस्तारबन्दी की रस्म पूरी की गई।
शिक्षा-1672 ई० के आरम्भ में गुरु तेग़ बहादुर जी अपने परिवार सहित चक नानकी (आनन्दपुर साहिब) में रहने लगे। यहां गोबिन्दराय जी को संस्कृत, फारसी तथा पंजाबी भाषा के साथ-साथ घुड़सवारी तथा अस्त्र-शस्त्र चलाने की शिक्षा दी गई।

पिता की शहादत तथा गुरु — गद्दी की प्राप्ति-1675 ई० में गुरु साहिब के पिता गुरु तेग़ बहादुर जी ने मुग़ल अत्याचारों के विरोध में अपनी शहीदी दे दी। पिता जी की शहादत के पश्चात् गोबिन्द राय जी ने गुरुगद्दी सम्भाली और सिक्खों का नेतृत्व करना आरम्भ किया।

विवाह-कुछ विद्वानों के अनुसार गोबिन्द राय जी ने माता जीतो, माता सुन्दरी तथा माता साहिब कौर नामक तीन स्त्रियों से विवाह किया था। परंतु कुछ विद्वान ये तीनों नाम माता जीतो जी के ही मानते हैं। गुरु जी के चार पुत्र हुएसाहिबजादा अजीत सिंह, साहिबजादा जुझार सिंह, साहिबजादा जोरावर सिंह तथा साहिबजादा फतह सिंह।

सेना का संगठन — सिक्ख धर्म की रक्षा के लिए गुरु साहिब के लिए सेना का संगठन करना अत्यन्त आवश्यक था। अत: गुरु साहिब जी की ओर से यह घोषणा कर दी गई कि जिस सिक्ख के चार पुत्र हों, उनमें से वह दो पुत्रों को उनकी सेना में भर्ती करवाए। सिक्खों को यह भी आदेश दिया गया कि वे अन्य वस्तुओं के स्थान पर घोड़े तथा शस्त्र भेंट करें। परिणामस्वरूप शीघ्र ही गुरु साहब के पास बहुत-से सैनिक तथा युद्ध-सामग्री इकट्ठी हो गई। उन्होंने सढौरा के पीर बुद्ध शाह के 500 पठान सैनिकों को भी अपनी सेना में शामिल कर लिया।

गुरु जी के राजसी चिह्न तथा शानदार दरबार — गुरु गोबिन्द राय जी ने भी अपने दादा गुरु हरगोबिन्द जी की भान्ति राजसी चिह्नों को अपनाया। वह राजगद्दी की तरह ऊँचे सिंहासन पर विराजमान होने लगे और अपनी पगड़ी पर कलगी सजाने लगे। उन्होंने सिक्खों के दीवान सुन्दर तथा मूल्यवान् तम्बुओं में लगाने आरम्भ कर दिए। वह साहसी सिक्खों के साथ-साथ अपने पास हाथी तथा घोड़े भी रखने लगे। वह आनन्दपुर के जंगलों में शिकार खेलने जाते। इसके अतिरिक्त उन्होंने ‘रणजीत नगारा’ भी बनवाया।
गुरु जी पाऊँटा साहब में — गुरु साहिब द्वारा आनन्दपुर साहिब में की गई कार्यवाहियाँ बिलासपुर के राजा भीमचन्द को अच्छी नहीं लगीं। इसलिए वह किसी-न-किसी बहाने गुरु जी से युद्ध करना चाहता था। परन्तु गुरु जी उससे लड़ाई करके अपनी सैनिक शक्ति नहीं गंवाना चाहते थे। इसलिए वह नाहन के राजा मेदिनी प्रकाश के निमन्त्रण पर नाहन राज्य में चले गए। वहां उन्होंने यमुना नदी के किनारे एक सुन्दर एकान्त स्थान को चुन लिया। उस स्थान का नाम ‘पाऊँटा’ रखा गया।
खालसा की स्थापना से पहले (पूर्व खालसा काल) की लड़ाइयां —

  1. 1688 ई० में गुरु जी को भंगानी की लड़ाई लड़नी पड़ी। इस युद्ध में गुरु जी ने राजा फतह शाह तथा उसके साथियों को हराया।
  2. इसी बीच मुग़ल सम्राट औरंगज़ेब ने 1693 ई० में पंजाब के शासकों को आदेश दिया कि वे गुरु जी के विरुद्ध युद्ध छेड़ें। अतः कांगड़ा प्रदेश के फ़ौजदार ने अपने पुत्र खानजादा को गुरु जी के विरुद्ध भेजा, परन्तु सिक्खों ने उसे हरा दिया।
  3. 1696 ई० के आरम्भ में कांगड़ा प्रदेश के फ़ौजदार ने हुसैन खान को गुरु जी के विरुद्ध भेजा। परन्तु वह पहाड़ी राजाओं के साथ ही उलझ कर रह गया।

खालसा की स्थापना — 1699 ई० में बैसाखी के दिन गुरु गोबिन्द राय जी ने खालसा की साजना की। उन्होंने अमृत तैयार करके पाँच प्यारों-दया राम, धर्म दास, मोहकम चन्द, साहब चन्द तथा हिम्मत राय को छकाया और उनके नाम के साथ ‘सिंह’ शब्द लगाया। गुरु जी ने स्वयं भी अपने नाम के साथ ‘सिंह’ शब्द जोड़ा।
उत्तर खालसा काल की लड़ाइयां-खालसा की स्थापना के बाद के काल को ‘उत्तर खालसा काल’ कहा जाता है। इस काल में गुरु जी युद्धों में ही उलझे रहे। उन्होंने 1701 ई० में आनन्दपुर का पहला युद्ध, 1702 ई० में निरमोह का युद्ध, 1702 ई० में ही बसौली का युद्ध, 1704 ई० में आनन्दपुर का दूसरा युद्ध, शाही टिब्बी का युद्ध तथा 1705 ई० में चमकौर का युद्ध लड़ा। चमकौर से निकलकर वह माछीवाड़ा, दीना कांगड़ आदि स्थानों से होते हुए खिदराना (मुक्तसर) पहुँचे। वहाँ 1705 ई० में उन्होंने मुग़ल सेना को हराया। खिदराना से वह तलवंडी साबो चले गए। ___ गुरु साहिब का ज्योति-जोत समाना-गुरु गोबिन्द सिंह जी सितम्बर, 1708 ई० में नंदेड़ (दक्षिण) पहुँचे। एक दिन सायं एक पठान ने गुरु साहिब के पेट में छुरा घोंप दिया। इसी घाव के कारण 7 अक्तूबर, 1708 ई० को गुरु जी ज्योति-जोत समा गए।

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प्रश्न 2.
गुरु गोबिन्द सिंह जी को खालसा के सृजन की आवश्यकता क्यों पड़ी?
उत्तर-
प्रत्येक वर्ग, जाति, धर्म तथा समुदाय के जीवन में एक ऐसा भी दिन आता है जब उसका रूप परिवर्तन होता है सिक्ख धर्म के इतिहास में भी एक ऐसा दिन आया जब गुरु नानक देव जी के सन्त ‘सिंह’ बनकर उभरे। यह महान परिवर्तन 1699 ई० में गुरु गोबिन्द सिंह जी द्वारा खालसा की स्थापना से आया। गुरु साहिब को निम्नलिखित कारणों से खालसा की स्थापना की आवश्यकता पड़ी

  1. प्रथम नौ गुरु साहिबान के कार्य-खालसा की स्थापना की पृष्ठभूमि गुरु नानक देव जी के समय से ही तैयार हो रही थी। गुरु नानक देव जी ने जाति-प्रथा तथा मूर्ति-पूजा का खण्डन किया और अत्याचारों के विरुद्ध आवाज़ उठाई। इस प्रकार उन्होंने खालसा की स्थापना के बीज बोये। गुरु नानक देव जी के पश्चात् सभी गुरु साहिबान ने इन्हीं बातों का बढ़-चढ़ कर प्रचार किया। गुरु अर्जन देव जी की शहीदी को देखते हुए छठे गुरु हरगोबिन्द जी ने ‘नवीन नीति’ का अनुसरण किया और सिक्खों को ‘सन्त सिपाही’ बना दिया। नौवें गुरु तेग़ बहादुर जी ने धर्म की रक्षा के लिए अपना जीवन बलिदान कर दिया और शहीदी से पूर्व अपने सिक्खों से ये शब्द कहे-“न किसी से डरो और न किसी को डराओ।” उनके इन शब्दों से सिक्खों में वीरता और साहस के भाव उत्पन्न हुए जो खालसा की स्थापना की आधारशिला बने।
  2. औरंगजेब के अत्याचार-गुरु गोबिन्द सिंह जी के समय में मुग़लों के अत्याचार दिन-प्रतिदिन बढ़ते जा रहे थे। मुग़ल सम्राट औरंगज़ेब ने हिन्दुओं के अनेक मन्दिर गिरवा दिये थे और उन्हें सरकारी पदों से हटा दिया था। उसने हिन्दुओं पर अतिरिक्त कर और कुछ अन्य अनुचित प्रतिबन्ध भी लगा दिये। सबसे बढ़कर वह हिन्दुओं को बलपूर्वक मुसलमान बना रहा था। फलस्वरूप हिन्दू धर्म का अस्तित्व मिटने को था। गुरु गोबिन्द सिंह जी अत्याचारों के विरोधी थे और वे अत्याचारी को मिटाने के लिए दृढ़ संकल्प थे। इसलिए उन्होंने खालसा पंथ की स्थापना करके एक शक्तिशाली सेना का संगठन किया।
  3. जाति-पाति का अस्तित्व-भारतीय समाज में अभी तक भी बहुत-सी बुराइयां चली आ रही थीं। इनमें से एक बुराई जाति-प्रथा की थी। ऊँच-नीच के भेदभाव के कारण हिन्दू जाति पतन की ओर जा रही थी। गंडा सिंह के मतानुसार जाति-पाति राष्ट्रीय एकता के मार्ग में एक बहुत बड़ी बाधा बन गई थी। शूद्रों तथा उच्च जाति के लोगों के बीच एक बहुत बड़ा अन्तर आ चुका था। इस अन्तर को मिटाने के लिए इस समय कोई गम्भीर कदम उठाना अत्यन्त आवश्यक था। इसी कारण से गुरु गोबिन्द सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना करने का विचार किया। गुरु जी चाहते थे कि इस पंथ के लोग अपने सभी भेद-भावों को भूल कर एकता के सूत्र में बंध जायें।
  4. पहाड़ी राजाओं द्वारा गुरु जी का विरोध-खालसा की स्थापना से पहले गुरु गोबिन्द सिंह जी शिवालिक की पहाड़ी रियासतों के राजाओं के साथ मिलकर अत्याचारी मुग़ल साम्राज्य के विरुद्ध एक संयुक्त मोर्चा बनाना चाहते थे। परन्तु शीघ्र ही गुरु जी को यह पता चल गया कि पहाड़ी राजाओं पर विश्वास नहीं किया जा सकता। ऐसी दशा में गुरु गोबिन्द सिंह जी ने निश्चय कर लिया कि औरंगज़ेब के अत्याचारों का सामना करने के लिये उनका अपना सैनिक दल होना आवश्यक है। अतः उन्होंने खालसा पंथ की स्थापना की।
  5. गुरु जी के जीवन का उद्देश्य–’बचित्तर नाटक’, जोकि गुरु जी की आत्मकथा है, में गुरु साहिब ने लिखा है कि उनके निजी जीवन का उद्देश्य संसार में धर्म का प्रचार करना, अत्याचारी लोगों का नाश करना तथा सन्त-महात्माओं की रक्षा करना है। किसी शस्त्रधारी धार्मिक संगठन के बिना यह उद्देश्य पूरा नहीं हो सकता था। फलस्वरूप गुरु साहिब ने खालसा की स्थापना आवश्यक समझी।

प्रश्न 3.
खालसा की स्थापना का क्या महत्त्व था?
उत्तर-
खालसा की स्थापना सिक्ख इतिहास की एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण घटना मानी जाती है। डॉ० हरिराम गुप्ता के शब्दों में, “खालसा की स्थापना देश के धार्मिक तथा राजनीतिक इतिहास की एक युग-प्रवर्तक घटना थी।” (“The creation of the Khalsa was an epoch making event in the religious and political history of the country.”)
इस घटना का महत्त्व निम्नलिखित बातों से जाना जा सकता है —

  1. गुरु नानक देव जी द्वारा प्रारम्भ किए गए कार्यों की पूर्ति-गुरु नानक देव जी ने सिक्ख धर्म की नींव रखी थी। गुरु गोबिन्द सिंह जी ने खालसा का सृजन करके उनके द्वारा प्रारम्भ किए गए कार्य को सम्पन्न किया।
  2. मसन्द प्रथा का अन्त-चौथे गुरु रामदास जी ने ‘मसन्द प्रथा’ का आरम्भ किया था। मसन्दों ने सिक्ख धर्म के प्रचार तथा प्रसार में उल्लेखनीय योगदान दिया था। परन्तु गुरु तेग़ बहादुर जी के समय तक मसन्द लोग स्वार्थी, लोभी तथा भ्रष्टाचारी हो गए थे। इसलिए गुरु गोबिन्द सिंह जी ने अपने सिक्खों को आदेश दिया कि वे मसन्दों से कोई सम्बन्ध न रखें। परिणामस्वरूप मसन्द-प्रथा समाप्त हो गई।
  3. खालसा संगतों के महत्त्व में वृद्धि-गुरु गोबिन्द सिंह जी ने खालसा संगत को ‘खण्डे का पाहुल’ छकाने का अधिकार दिया। उन्हें आपस में मिलकर निर्णय करने का अधिकार भी दिया गया। परिणामस्वरूप खालसा संगतों का महत्त्व बढ़ गया।
  4. सिक्खों की संख्या में वृद्धि-गुरु गोबिन्द सिंह जी ने अपने सिक्खों को अमृत छका कर खालसा बनाया। इसके उपरान्त गुरु साहिब ने यह आदेश दे दिया कि खालसा के कोई पाँच सदस्य अमृत छका कर किसी को भी खालसा में शामिल कर सकते हैं। फलस्वरूप सिक्खों की संख्या में निरन्तर वृद्धि होने लगी।
  5. सिक्खों में नई शक्ति का संचार-खालसा की स्थापना से सिक्खों में एक नई शक्ति का संचार हुआ। अमृत छकने के बाद वे स्वयं को ‘सिंह’ कहलाने लगे। ‘सिंह’ कहलाने के कारण उनमें भय तथा कायरता का कोई अंश न रहा। वे अपना चरित्र भी शुद्ध रखने लगे। इसके अतिरिक्त खालसा जाति-पाति का भेदभाव समाप्त हो जाने से सिंहों में एकता की भावना मज़बूत हुई।
  6. मुग़लों का सफलतापूर्वक विरोध-गुरु गोबिन्द सिंह जी ने खालसा का सृजन करके सिक्खों में वीरता तथा साहस की भावनाएं भर दीं। उन्होंने चिड़िया को बाज़ से तथा एक सिक्ख को एक लाख से लड़ना सिखाया। परिणामस्वरूप गुरु जी के सिक्खों ने 1699 ई० से 1708 ई० तक मुगलों के साथ कई सफलतापूर्वक युद्ध लड़े।।
  7. गुरु साहिब के पहाड़ी राजाओं से युद्ध-खालसा की स्थापना से पहाड़ी राजा भी घबरा गए। विशेष रूप से बिलासपुर का राजा भीमचन्द गुरु साहिब की सैनिक कार्यवाहियों को देख कर भयभीत हो उठा। उसने अन्य कई पहाड़ी राजाओं से गठजोड़ करके गुरु साहिब की शक्ति को दबाने का प्रयास किया। अतः गुरु साहिब को पहाड़ी राजाओं से कई युद्ध करने पड़े।
  8. सिक्ख सम्प्रदाय का पृथक् स्वरूप-गुरु गोबिन्द सिंह जी के काल तक सिक्खों के अपने कई तीर्थ-स्थान बन गए थे। उनके लिए पवित्र ग्रन्थ ‘आदि ग्रन्थ साहिब’ का संकलन भी हो चुका था। वे अपने ही ढंग से तीज-त्योहार मनाते थे। अब खालसा की स्थापना से सिक्खों ने पाँच ‘ककारों’ का पालन करना आरम्भ कर दिया। इस प्रकार उन्होंने अपने बाहरी स्वरूप को भी जन-साधारण से अलग कर लिया।
  9. लोकतान्त्रिक तत्त्वों का प्रचलन-गुरु गोबिन्द सिंह जी ने ‘पाँच प्यारों’ को अमृत छकाने के बाद स्वयं उनके हाथों से अमृत छका। उन्होंने यह आदेश दिया कि कोई भी पाँच सिंह या संगत किसी भी व्यक्ति को अमृत छका कर सिंह बना सकती है। अपने ज्योति जोत समाने से पहले गुरु जी ने गुरु-शक्ति को ‘गुरु ग्रन्थ साहिब’ तथा खालसा में बांट कर लोकतान्त्रिक परम्परा की नींव रखी।
  10. सिक्खों की राजनीतिक शक्ति का उत्थान-खालसा के संगठन से सिक्खों में वीरता, निडरता, हिम्मत तथा आत्म-बलिदान की भावनाएँ जागृत हो उठीं। परिणामस्वरूप सिक्ख एक राजनीतिक शक्ति के रूप में उभरे।
    सच तो यह है कि खालसा की स्थापना ने ‘सिंहों’ को ऐसा अडिग विश्वास प्रदान किया जिसे कभी भी विचलित नहीं किया जा सकता।

PSEB 10th Class SST Solutions History Chapter 5 गुरु गोबिन्द सिंह जी का जीवन, खालसा की संरचना, युद्ध तथा उनका व्यक्तित्व

प्रश्न 4.
गुरु गोबिन्द सिंह जी की पूर्व खालसा काल की लड़ाइयों का वर्णन करो।
उत्तर-
गुरु गोबिन्द सिंह जी के जीवन काल में 1675 ई० से 1699 ई० तक का समय पूर्व खालसा काल के नाम से विख्यात है। इस काल में गुरु साहिब ने निम्नलिखित लड़ाइयां लड़ी___

  1. भंगानी का युद्ध-बिलासपुर का राजा भीमचन्द गुरु जी की बढ़ती हुई सैनिक शक्ति से घबरा उठा और वह उनके विरुद्ध युद्ध की तैयारी करने लगा। यह बात नाहन के राजा मेदिनी प्रकाश के लिए चिन्ताजनक थी। इसलिए उसने गुरु जी से सम्बन्ध बढ़ाने चाहे और गुरु जी को अपने यहां आमन्त्रित किया। गुरु जी पाऊंटा पहुंचे और वहां उन्होंने पौण्टा नामक किले का निर्माण करवाया। कुछ समय पश्चात् भीमचन्द ने अपने पुत्र की बारात को पाऊंटा में से गुज़ारना चाहा, परन्तु गुरु जी जानते थे कि उसकी नीयत ठीक नहीं है। इसलिए उन्होंने भीमचन्द को पाऊंटा में से गुज़रने की आज्ञा न दी। भीमचन्द ने इसे अपना अपमान समझा और अपने पुत्र के विवाह के पश्चात् अन्य पहाड़ी राजाओं की सहायता से गुरु जी पर आक्रमण कर दिया। पाऊंटा से कोई 6 मील दूर भंगानी के स्थान पर घमासान लड़ाई लड़ी गई। इस लड़ाई में गुरु जी ने पहाड़ी राजाओं को बुरी तरह से परास्त किया।
  2. नादौन का युद्ध-भंगानी की विजय के पश्चात् भीमचन्द और अन्य पहाड़ी राजाओं ने गुरु जी से मित्रता कर ली और मुग़ल सम्राट को कर देना बन्द कर दिया। इस पर सरहिन्द के मुग़ल गवर्नर ने अलिफ खां के नेतृत्व में पहाड़ी राजाओं तथा गुरु जी के विरुद्ध एक विशाल सेना भेजी। कांगड़ा से 20 मील दूर नादौन के स्थान पर घमासान युद्ध हुआ। इस युद्ध में मुग़ल बुरी तरह पराजित हुए।
  3. मुग़लों से संघर्ष-मुग़ल सम्राट औरंगज़ेब उस समय दक्षिण में था जब गुरु साहिब की शक्ति बढ़ रही थी। उसने पंजाब में मुग़ल फ़ौजदारों को आदेश दिया कि वह गुरु साहिब के विरुद्ध कार्यवाही करें।
    1. सर्वप्रथम कांगड़ा प्रदेश के फ़ौजदार दिलावर खां ने अपने पुत्र खानज़ादा रुस्तम खां के अधीन गुरु साहिब के विरुद्ध 1694 ई० में मुहिम भेजी। सिक्ख पहले ही उससे दो-दो हाथ करने को तैयार थे। उन्होंने शत्रु पर अभी कुछ गोले ही बरसाए थे कि खानजादा तथा उसके साथी भयभीत होकर भाग गए। इस प्रकार गुरु साहिब को बिना युद्ध किए ही विजय प्राप्त हुई।
    2. 1696 ई० के आरम्भ में दिलावर खां ने हुसैन खां को आनन्दपुर साहब पर आक्रमण करने के लिए भेजा। मार्ग में हुसैन खां ने गुलेर तथा जसवान के राजाओं से कर मांगा। परन्तु उन्होंने कर देने की बजाय हुसैन खां से युद्ध करने का निर्णय कर लिया। भीमचन्द (बिलासपुर) तथा किरपाल चन्द (कांगड़ा) हुसैन खां से जा मिले। परन्तु गुरु जी ने अपने कुछ सिक्खों को हुसैन खां के विरुद्ध भेजा। हुसैन खां की पराजय हुई और वह मारा गया।
    3. हुसैन खां की मृत्यु के पश्चात् दिलावर खां ने जुझार सिंह तथा चंदेल राय के नेतृत्व में सेनाएँ भेजीं। परन्तु वे भी आनन्दपुर साहिब में पहुँचने से पहले ही राजा राजसिंह (जसवान) से पराजित होकर भाग गईं।
    4. अंततः मुग़ल सम्राट औरंगजेब ने शहज़ादा मुअज्जम को गुरु साहिब तथा पहाड़ी राजाओं के विरुद्ध भेजा। उसने लाहौर पहुँच कर मिर्जा बेग के नेतृत्व में एक विशाल सेना पहाड़ी राजाओं के विरुद्ध भेजी। वह पहाड़ी राजाओं को परास्त करने में सफल रहा।

प्रश्न 5.
गुरु गोबिन्द सिंह जी की उत्तर-काल की लड़ाइयों का वर्णन करो।
उत्तर-
उत्तर-खालसा काल में गुरु जी अनेक युद्धों में उलझे रहे। इन युद्धों का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है —

  1. आनन्दपुर का प्रथम युद्ध 1701 ई०-खालसा की स्थापना से पहाड़ी राजा घबरा गए। अतः बिलासपुर के राजा भीमचन्द ने गुरु जी को पत्र लिखा कि वे या तो आनन्दपुर छोड़ दें या जितना समय वह वहाँ रहे हैं उसका किराया दें। गुरु जी ने उसकी इस अनुचित माँग को अस्वीकार कर दिया। इस पर भीमचन्द ने अन्य पहाड़ी राजाओं के साथ मिलकर आनन्दपुर पर आक्रमण कर दिया। गुरु जी कम सैनिकों के होते हुए भी उन्हें परास्त करने में सफल हो गए। तत्पश्चात् पहाड़ी राजाओं ने मुग़लों से सहायता प्राप्त की और एक बार फिर आनन्दपुर पर आक्रमण किया। इस बार भी उन्हें मुँह की खानी पड़ी। विवश होकर उन्हें गुरु जी से सन्धि करनी पड़ी। सन्धि की शर्त के अनुसार गुरु साहिब आनन्दपुर छोड़कर निरमोह नामक स्थान पर चले गये।
  2. निरमोह का युद्ध 1702 ई०-राजा भीमचन्द ने अनुभव किया कि उसके लिए सिक्खों की शक्ति को समाप्त करना असम्भव है। अतः उसने मुग़ल सरकार से सहायता की मांग की। 1702 ई० के आरम्भ में एक ओर से राजा भीमचन्द की सेना और दूसरी ओर से सरहिन्द के सूबेदार के नेतृत्व में मुग़ल सेना ने निरमोह पर आक्रमण कर दिया। आस-पास के गूजरों ने भी आक्रमणकारियों का साथ दिया। सिक्खों ने बड़ी वीरता से शत्रु का सामना किया। एक रात तथा एक दिन तक लड़ाई होती रही। अन्त में गुरु जी ने शत्रु की सेना को भागने पर विवश कर दिया।
  3. सतलुज की लड़ाई 1702 ई०-निरमोह की विजय के पश्चात् गुरु जी ने निरमोह छोड़ने का निर्णय कर लिया। उन्होंने अभी सतलुज नदी को पार भी नहीं किया था कि शत्रु सेना ने उन पर पुनः आक्रमण कर दिया। लगभग चार घण्टे युद्ध चला जिसमें गुरु जी विजयी रहे।
  4. बसौली का युद्ध 1702 ई०-सतलुज नदी को पार करके गुरु जी अपने सिक्खों सहित बसौली में चले गए। यहां भी राजा भीमचन्द की सेना ने गुरु जी की सेना का पीछा किया। परन्तु गुरु जी ने उन्हें फिर से हरा दिया। क्योंकि बसौली तथा जसवान के राजा गुरु जी के मित्र थे, इसलिए भीमचन्द ने गुरु जी से समझौता करने में ही अपनी भलाई समझी। यह सन्धि 1702 ई० के मध्य में हुई। परिणामस्वरूप गुरु जी फिर से आनन्दपुर में आ गए।
  5. आनन्दपुर का दूसरा युद्ध 1704-पहाड़ी राजाओं ने एक संघ स्थापित करके गुरु जी से आनन्दपुर छोड़कर चले जाने के लिए कहा। जब गुरु जी ने उनकी मांग को स्वीकार न किया तो उन्होंने गुरु जी पर धावा बोल दिया। परन्तु उन्हें एक बार फिर मुंह की खानी पड़ी। अपनी पराजय का बदला लेने के लिए भीमचन्द तथा अन्य पहाड़ी राजाओं ने मुग़ल सरकार से सहायता प्राप्त कर गुरु जी पर आक्रमण कर दिया और आनन्दपुर साहिब को चारों ओर से घेर लिया। परिणामस्वरूप सिक्खों के लिए युद्ध जारी रखना कठिन हो गया। सिक्खों ने आनन्दपुर छोड़कर जाना चाहा, परन्तु गुरु जी न माने। इस संकट के समय में चालीस सिक्ख अपना ‘बेदावा’ लिख कर गुरु जी का साथ छोड़ गए। अन्त में 21 दिसम्बर, 1704 ई० को माता गुजरी जी के कहने पर गुरु साहिब ने आनन्दपुर साहिब को छोड़ दिया।
  6. शाही टिब्बी का युद्ध-गुरु गोबिन्द सिंह जी द्वारा आनन्दपुर छोड़ देने के पश्चात् शत्रु ने आनन्दपुर पर अपना अधिकार कर लिया। उन्होंने सिक्खों का पीछा भी किया। गुरु जी के आदेश पर उनके सिक्ख ऊधे सिंह ने अपने 50 साथियों के साथ शत्रु की विशाल सेना का शाही टिब्बी नामक स्थान पर डट कर सामना किया। भले ही ये सभी सिक्ख शहीद हो गए, तो भी उन्होंने सैंकड़ों शत्रुओं को मौत के घाट उतार दिया।
  7. सरसा की लड़ाई-आगे बढ़ते हुए गुरु साहिब तथा उनके साथी सरसा नदी पर पहुँचे। शत्रु की सेना भी उनके निकट पहुँच चुकी थी। गुरु जी ने अपने एक मुख्य सिक्ख भाई जीवन सिंह रंगरेटा को लगभग 100 सिक्खों सहित शत्रु का सामना करने के लिए पीछे छोड़ दिया था। इन सिक्खों ने शत्रु का डट कर सामना किया तथा शत्रु को भारी क्षति पहुँचाई। । उस समय सरसा नदी में बाढ़ आई हुई थी। फिर भी गुरु जी, उनके सैंकड़ों सिक्ख तथा साथी अपने घोड़ों सहित नदी में कूद पड़े। इस भाग-दौड़ में बहुत-से सिक्ख तथा गुरु जी के छोटे साहिबजादे ज़ोरावर सिंह तथा फतेह सिंह तथा माता गुजरी जी उनसे बिछुड़ गए।
  8. चमकौर का युद्ध 1705 ई०-सरसा नदी को पार करके गुरु जी चमकौर पहुंचे। परन्तु पहाड़ी राजाओं तथा मुग़ल सेनाओं ने उन्हें वहाँ भी घेर लिया। उस समय गुरु जी के साथ केवल 40 सिक्ख तथा उनके दो साहिबजादे अजीत सिंह तथा जुझार सिंह थे। फिर भी गुरु जी ने मुग़लों का डट कर सामना किया। इस युद्ध में 35 सिक्ख तथा दोनों साहिबजादे अजीत सिंह तथा जुझार सिंह वीरगति को प्राप्त हुए। गुरु साहिब खिदराना पहुंचे।
  9. खिदराना का युद्ध 1705 ई०-खिदराना में मुग़लों से गुरु जी का अन्तिम युद्ध हुआ। इस युद्ध में वे 40 सिक्ख भी गुरु जी के साथ आ मिले जो आनन्दपुर के दूसरे युद्ध में उनका साथ छोड़ गए थे। गुरु जी के पास लगभग 2000 सिक्ख थे जिन्हें 10,000 मुग़ल सैनिकों का सामना करना पड़ा। गुरु जी के पास पुनः आए सिक्खों ने अपनी गुरु भक्ति का परिचय दिया और लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। उनकी गुरु भक्ति तथा बलिदान से गुरु जी बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने वहां इन शहीदों की मुक्ति के लिए प्रार्थना की। ये 40 शहीद इतिहास में 40 मुक्ते’ कहलाते हैं। आज भी सिक्ख अपनी अरदास के समय इन्हें याद करते हैं। उनकी याद में खिदराना का नाम मुक्तसर पड़ गया।

PSEB 10th Class SST Solutions History Chapter 5 गुरु गोबिन्द सिंह जी का जीवन, खालसा की संरचना, युद्ध तथा उनका व्यक्तित्व

प्रश्न 6.
मनुष्य के रूप में आप गुरु गोबिन्द सिंह जी के बारे में क्या जानते हैं?
उत्तर-
गुरु गोबिन्द सिंह जी सिक्ख इतिहास की महानतम् विभूतियों में से एक थे। वह सचरित्र, साहस, सन्तोष तथा सहनशीलता की मूर्ति थे। मानव के रूप में इनका और कहीं उदाहरण मिलना कठिन ही नहीं, अपितु असम्भव है। आदर्श मानव के रूप में गुरु साहिब के चरित्र के विभिन्न पक्षों का वर्णन इस प्रकार है —

  1. प्रभावशाली आकृति-गुरु गोबिन्द सिंह जी एक सुन्दर आकृति वाले पुरुष थे। उनका कद लम्बा, रंग गोरा, माथा चौड़ा तथा शरीर गठा हुआ था। उनके चेहरे पर एक विशेष चमक थी। वह शस्त्र धारण करके रहते थे. उनकी पगड़ी पर कलगी लगी रहती थी और उनके हाथ में बाज़ होता था।
  2. आदर्श पुत्र तथा पिता-गुरु जी आदर्श पुत्र तथा पिता थे। अपने पिता को यह कहकर कि “बलिदान देने के लिए आपसे बढ़कर योग्य कौन हो सकता है,” उन्होंने एक आदर्श पुत्र होने का ज्वलन्त उदाहरण दिया। धर्म के लिए उन्होंने अपने चारों पुत्रों को हँसते-हँसते बलिदान कर दिया। उनके दो पुत्र दीवार में जीवित चिनवा दिए गए। उनके अन्य दो पुत्र आनन्दपुर के दूसरे युद्ध में शहीद हो गए थे। यह गुरु जी के आदर्श पिता होने का स्पष्ट प्रमाण है। गुरु जी अपनी माता जी की आज्ञा का पालन करना भी अपना बहुत बड़ा कर्त्तव्य समझते थे। उन्होंने अपनी माता जी के कहने पर आनन्दपुर का किला खाली कर दिया था।
  3. दृढ़ संकल्प-गुरु गोबिन्द सिंह जी एक दृढ़ संकल्प वाले व्यक्ति थे। भयंकर से भयंकर विपत्तियां भी उन्हें अपने मार्ग से विचलित न कर सकीं। अभी वह 9 वर्ष के ही थे कि उनके पिता ने धर्म की रक्षा के लिए अपना बलिदान दे दिया। उनके दो पुत्रों को दीवार में जीवित चिनवा दिया गया। उनके अन्य दो पुत्र युद्ध में शहीदी को प्राप्त हुए। इतना होने पर भी गुरु जी अपने पथ से विचलित नहीं हुए। उन्होंने सत्य के मार्ग पर चलते हुए आजीवन संघर्ष जारी रखा।
  4. उदार तथा सहनशील-मुग़ल सम्राट औरंगज़ेब ने अपनी धार्मिक कट्टरता के कारण गुरु गोबिन्द सिंह जी के पिता गुरु तेग़ बहादुर जी को शहीद कर दिया था, फिर भी गुरु गोबिन्द सिंह जी के मन में मुसलमानों के प्रति कोई घृणा नहीं थी। गुरु साहिब के उदार तथा सहनशील स्वभाव के कारण ही पीर मुहम्मद, पीर बुद्ध शाह, निहंग खान, नबी खां, गनी खां जैसे मुसलमान गुरु जी के मित्र थे। गुरु जी की सेना में भी अनेक मुसलमान तथा पठान सैनिक थे।
  5. सर्वगुण-सम्पन्न-गुरु जी एक सर्वगुण-सम्पन्न व्यक्ति थे। वे निडर, सहनशील तथा स्वतन्त्र विचारों वाले व्यक्ति थे। उस समय की सबसे बड़ी शक्ति मुग़ल भी उन्हें न डरा सकी। उन्होंने अपने पुत्रों का बलिदान दे दिया, परन्तु मुग़लों के सामने घुटने न टेके। उनके स्वतन्त्र विचारों का ज्ञान हमें उनकी रचना ‘ज़फ़रनामा’ से हो जाता है। ज़फ़रनामा में उन्होंने औरंगजेब की शक्ति को ललकारा था। उन्होंने इसमें औरंगज़ेब के पिठू कर्मचारियों की खुले रूप से निन्दा की है। इन सब बातों से हमें पता चलता है कि गुरु जी एक स्वतन्त्र विचारों वाले व्यक्ति थे।

प्रश्न 7.
चमकौर साहिब तथा खिदराना की लड़ाई का वर्णन करें।
उत्तर-
चमकौर साहिब तथा खिदराना की लड़ाइयां गुरु गोबिन्द सिंह जी द्वारा लड़ी गईं दो महत्त्वपूर्ण लड़ाइयां थीं। . ये दोनों लड़ाइयां गुरु साहिब ने उत्तर खालसा काल में लड़ी।

  1. चमकौर का युद्ध 1705 ई०-सरसा नदी को पार करके गुरु साहिब अपने सिक्खों सहित चमकौर साहिब पहुंच गए। उस समय उनके साथ केवल 40 सिक्ख थे। उनके दो बड़े साहिबजादे अजीत सिंह तथा जुझार सिंह उनके साथ थे। वहां उन्होंने एक कच्ची गढ़ी में शरण ली। इसी बीच शत्रु सेना ने उन पर आक्रमण कर दिया। सिक्खों ने इसका उत्तर बड़ी वीरता से दिया। गुरु जी के दोनों साहिबजादे बड़े साहस से लड़े। शत्रु को मारते-काटते वे शहीदी को प्राप्त हुए। पाँच प्यारों में से तीन प्यारे-साहिब सिंह, मोहकम सिंह तथा हिम्मत सिंह ने भी इसी युद्ध में शहादत प्राप्त की। अन्त में गुरु जी के सिंहों में से केवल पांच सिंह ही रह गए। उन्होंने हुक्मनामे के रूप में गुरु जी को चमकौर साहिब छोड़ जाने के लिए विवश कर दिया। भाई दया सिंह तथा भाई धरम सिंह उनके साथ गढ़ी से बाहर चले गए। शेष सिंह लड़ते-लड़ते वीरगति को प्राप्त हुए।
    गुरु गोबिन्द सिंह जी माछीवाड़ा, आलमगीर, दीना आदि स्थानों से होते हुए खिदराना की ओर चले गए।
  2. खिदराना का युद्ध 1705 ई०-चमकौर साहिब से चलकर गुरु गोबिन्द सिंह जी जब खिदराना में ढाब नामक स्थान पर पहुंचे तो उस समय तक उनके साथ असंख्य सिक्ख शामिल हो चुके थे। वे 40 सिंह जो आनन्दपुर के दूसरे युद्ध में गुरु जी को ‘बेदावा’ लिख कर गुरु साहिब का साथ छोड़ गए थे, वे भी वहां पहुंच गए। उनके साथ माई भागो विशेष रूप से गुरु जी के पक्ष में लड़ने के लिए वहाँ पहुंची थी। कुल मिला कर गुरु जी के पास लगभग 2,000 सिक्ख थे।
    दूसरी ओर सरहिन्द का सूबेदार वज़ीर खां 10,000 सैनिकों की विशाल सेना लेकर वहां पहुंचा। 29 दिसम्बर, 1705 ई० को खिदराना की ढाब नामक स्थान पर घमासान युद्ध हुआ। इस युद्ध में भी गुरु साहिब तथा उनके साथियों ने अपने अद्वितीय शौर्य का परिचय दिया। उन्होंने शत्रु की भयंकर मार-काट की। वहाँ पानी की कमी के कारण मुग़लों के लिए लड़ना बड़ा कठिन था। परिणामस्वरूप मुग़ल सेना परास्त हो कर भाग खड़ी हुई। चाहे माई भागो बुरी तरह से घायल हुई तथा बेदावा लिखने वाले 40 सिंह भी शहीद हो गए, परन्तु विजय गुरु जी की ही हुई। गुरु जी ने चालीस सिंहों की वीरता देख कर उनके मुखिया भाई महा सिंह के सामने उनकी ओर से दिया गया ‘बेदावा’ फाड़ दिया। उन सिक्खों को अब इतिहास में ‘चालीस मुक्ते’ कह कर याद किया जाता है। उनकी याद में ही खिदराना का नाम ‘मुक्तसर’ पड़ गया।

PSEB 10th Class Social Science Guide गुरु गोबिन्द सिंह जी का जीवन, खालसा की संरचना, युद्ध तथा उनका व्यक्तित्व Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

I. उत्तर एक शब्द अथवा एक लाइन में

प्रश्न 1.
(i) गुरु गोबिन्द सिंह जी के बचपन का क्या नाम था?
(ii) उन्होंने कब से कब तक गुरु गद्दी का संचालन किया?
उत्तर-
(i) गुरु गोबिन्द सिंह जी के बचपन का नाम गोबिन्द राय था।
(ii) उन्होंने 1675 ई० में गुरु गद्दी सम्भाली। गुरु जी ने 1708 ई० तक गुरु गद्दी का संचालन किया।

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प्रश्न 2.
गुरु गोबिन्द सिंह जी ने कौन-सा नगारा बनवाया?
उत्तर-
गुरु गोबिन्द सिंह जी ने एक नगारा बनवाया जिसे रणजीत नगारा के नाम से पुकारा जाता था।

प्रश्न 3.
(i) आनन्दपुर का प्रथम युद्ध किस-किस के बीच हुआ?
(ii) इस युद्ध में किसकी विजय हुई?
उत्तर-
(i) आनन्दपुर का प्रथम युद्ध बिलासपुर के पहाड़ी राजा भीमचन्द तथा गुरु गोबिन्द सिंह जी के बीच हुआ।
(ii) इस युद्ध में गुरु जी ने पहाड़ी राजा को बुरी तरह परास्त किया।

प्रश्न 4.
आनन्दपुर के दूसरे युद्ध में किसकी विजय हुई?
उत्तर-
आनन्दपुर के दूसरे युद्ध में गुरु गोबिन्द सिंह जी की विजय हई।

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प्रश्न 5.
(i) भंगानी का युद्ध कब हुआ?
(ii) दो पहाड़ी राजाओं के नाम बताओ जो इस युद्ध में गुरु गोबिन्द सिंह जी के विरुद्ध लड़े।
उत्तर-
(i) भंगानी का युद्ध 1688 ई० में हुआ।
(ii) इस युद्ध में बिलासपुर का राजा भीमचन्द तथा कांगड़ा का राजा कृपाल चन्द गुरु साहिब के विरुद्ध लड़े।

प्रश्न 6.
(i) आनन्दपुर की सभा में कितने व्यक्तियों ने अपने आपको बलिदान देने के लिए उपस्थित किया?
(ii) उसमें से पहला व्यक्ति कौन था?
उत्तर-
(i) इस सभा में पांच व्यक्तियों ने अपने आपको बलिदान देने के लिए उपस्थित किया।
(ii) इनमें से पहला व्यक्ति लाहौर का दयाराम खत्री था।

प्रश्न 7.
खालसा के सदस्य आपस में मिलते समय किन शब्दों से एक-दूसरे का अभिवादन करते हैं?
उत्तर-
खालसा के सदस्य ‘वाहिगुरु जी का खालसा’, ‘वाहिगुरु जी की फतेह’ कह कर एक-दूसरे का अभिवादन करते हैं।

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प्रश्न 8.
(i) गुरु जी के दो साहिबजादों के नाम बताओ जिन्हें जीवित दीवार में चिनवा दिया गया था।
(ii) उनके किन दो साहिबजादों ने चमकौर के युद्ध में शहीदी दी?
उत्तर-
(i) गुरु जी के दो साहिबजादों जोरावर सिंह तथा फतेह सिंह को जीवित दीवार में चिनवा दिया गया।
(ii) चमकौर के युद्ध में शहीदी देने वाले दो साहिबजादे थे-अजीत सिंह तथा जुझार सिंह।

प्रश्न 9.
गुरु गोबिन्द राय जी के बचपन के प्रथम पांच वर्ष कहां बीते?
उत्तर-
पटना में।

प्रश्न 10.
गुरु गोबिन्द राय जी की दस्तारबंदी कहां हुई?
उत्तर-
लखनौर में।

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प्रश्न 11.
गुरु तेग बहादुर जी की शहीदी कब हुई?
उत्तर-
11 नवम्बर, 1675 ई० को।

प्रश्न 12.
गुरु तेग बहादुर साहिब के शीश का, अन्तिम संस्कार किसने और कहां किया?
उत्तर-
गुरु तेग़ बहादुर साहिब के शीश का अन्तिम संस्कार भाई नेता तथा गोबिन्द्र राय जी ने आनन्दपुर साहिब में किया।

प्रश्न 13.
गुरु गोबिन्द राय जी द्वारा अपनाए गए किसी एक राजसी चिन्ह का नाम बताओ।
उत्तर-
कलगी।

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प्रश्न 14.
‘पाऊंटा साहिब’ का क्या अर्थ है?
उत्तर-
‘पाऊंटा साहिब’ का अर्थ है-पैर रखने का स्थान।

प्रश्न 15.
सढौरा की पठान सेना का नेता कौन था?
उत्तर-
पीर बुद्धू शाह।।

प्रश्न 16.
गुरु गोबिन्द सिंह जी ने खिदराना (मुक्तसर) में मुगल सेना को कब हराया?
उत्तर-
1705 में।

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प्रश्न 17.
गुरु गोबिन्द सिंह जी कब और कहां ज्योति जोत समाए?
उत्तर-
गुरु गोबिन्द सिंह जी 7 अक्तूबर, 1708 को नंदेड़ में ज्योति जोत समाए।

प्रश्न 18.
किस मुगल बादशाह ने हिन्दुओं को इस्लाम धर्म अपनाने पर विवश किया?
उत्तर-
औरंगजेब ने।

प्रश्न 19.
गुरु गोबिन्द सिंह जी की जीवन कथा से सम्बन्धित ग्रन्थ कौन-सा है?
उत्तर-
बचित्तर नाटक।

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प्रश्न 20.
खालसा स्त्री अपने नाम के साथ कौन-सा अक्षर लगाती है?
उत्तर-
कौर।

प्रश्न 21.
खालसा को कितने ‘ककार’ धारण करने होते हैं?
उत्तर-
पांच।

प्रश्न 22.
मसन्द प्रथा को किसने समाप्त किया?
उत्तर-
गुरु गोबिन्द सिंह जी ने।

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प्रश्न 23.
सिक्खों के अन्तिम तथा दसवें गुरु कौन थे?
उत्तर-
गुरु गोबिन्द सिंह जी।

प्रश्न 24.
प्रत्येक खालसा के नाम के साथ लगा ‘सिंह’ शब्द किस बात का प्रतीक है?
उत्तर-
यह शब्द उनकी वीरता तथा निडरता का प्रतीक है।

प्रश्न 25.
नादौन का युद्ध कब हुआ?
उत्तर-
1690 ई० में।

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प्रश्न 26.
उत्तर-खालसा काल की समयावधि क्या थी?
उत्तर-
1699-1708 ई०।

प्रश्न 27.
निरमोह का युद्ध कब हुआ?
उत्तर-
1702 ई० में।

प्रश्न 28.
आनन्दपुर साहिब में ‘बेदावा’ लिखने वाले 40 सिंहों को खिदराना के युद्ध में क्या नाम दिया गया?
उत्तर-
चालीस मुक्ते।

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प्रश्न 29.
आनन्दपुर साहिब के दूसरे युद्ध में ‘बेदावा’ लिखने वाले 40 सिक्खों का मुखिया कौन था?
उत्तर-
भाई महा सिंह।

प्रश्न 30.
गुरु गोबिन्द सिंह साहिब के जीवन काल का अन्तिम युद्ध कौन सा था?
उत्तर-
खिदराना का युद्ध।

प्रश्न 31.
‘आदि ग्रन्थ साहिब’ को अन्तिम रूप किसने दिया?
उत्तर-
गुरु गोबिन्द सिंह साहिब जी ने।

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II. रिक्त स्थानों की पूर्ति

  1. गुरु गोबिन्द राय जी के पिता का नाम …………….. और माता का नाम ………. था।
  2. खालसा की स्थापना …………… ई० में हुआ।
  3. मुक्तसर का पुराना नाम …………….. था।
  4. गुरु गोबिन्द सिंह जी ने ‘जफ़रनामा’ नामक पत्र मुग़ल सम्राट् ………….. को लिखा।
  5. श्री गुरु …………. को लोकतंत्र प्रणाली का प्रारम्भकर्ता कहा जाता है।
  6. मसन्द प्रथा को …………… ने समाप्त किया।
  7. आनन्दपुर साहिब के दूसरे युद्ध में ‘बेदावा’ लिखने वाले 40 सिखों का मुखिया ……… था।

उत्तर-

  1. श्री गुरु तेग़ बहादुर जी, गुजरी जी,
  2. 1699,
  3. खिदराना,
  4. औरंगज़ेब,
  5. गोबिंद सिंह जी,
  6. गुरु गोबिन्द सिंह जी,
  7. भाई महा सिंह।

III. बहविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
गुरु गोबिन्द राय जी का जन्म हुआ
(A) 2 दिसंबर, 1666 ई० को
(B) 22 दिसंबर, 1666 ई० को
(C) 22 दिसंबर, 1661 ई० को
(D) 2 दिसंबर, 1661 ई० को।
उत्तर-
(B)

प्रश्न 2.
गुरु गोबिन्द जी ने शिक्षा ली
(A) काजी पीर मुहम्मद
(B) पटना में
(C) भाई सतिदास
(D) अमृतसर में।
उत्तर-
(D) अमृतसर में।

प्रश्न 3.
ख़ालसा का सृजन हुआ
(A) करतारपुर में
(B) पण्डित हरजस से
(C) आनंदपुर साहिब में
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(C) आनंदपुर साहिब में

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प्रश्न 4.
भंगानी का युद्ध कब हुआ?
(A) 1699 ई० में
(B) 1705 ई० में
(C) 1688 ई० में
(D) 1675 ई० में।
उत्तर-
(C) 1688 ई० में

प्रश्न 5.
गुरु गोबिन्द सिंह जी ने खिदराना (श्री मुक्तसर साहिब) में मुग़ल सेना को पराजित किया
(A) 1688 ई० में
(B) 1699 ई० में
(C) 1675 ई० में
(D) 1705 ई० में।
उत्तर-
(B) 1699 ई० में

IV. सत्य-असत्य कथन

प्रश्न-सत्य/सही कथनों पर (✓) तथा असत्य/ग़लत कथनों पर (✗) का निशान लगाएं

  1. पहाड़ी राजाओं ने अब तक मुग़लों के विरुद्ध गुरु गोबिंद सिंह जी का साथ दिया।
  2. ‘खालसा’ की स्थापना पटना में हुई।
  3. ‘बचित्तर नाटक’ गुरु गोबिंद सिंह जी की आत्मकथा है।
  4. ‘चालीस मुक्तों’ का संबंध खिदराना के युद्ध से है।
  5. सिक्ख परम्परा में ‘खण्डे के पाहुल’ की बहुत बड़ी महिमा है।

उत्तर-

  1. (✗),
  2. (✗),
  3. (✓),
  4. (✓),
  5. (✓).

V. उचित मिलान

  1. ज़फरनामा लखनौर
  2. गोबिन्द राय जी की दस्तारबंदी – पीर बुद्ध शाह
  3. सढौरा की पठान सेना का नेता – गुरु गोबिन्द सिंह जी
  4. मसन्द प्रथा को समाप्त किया – मुग़ल सम्राट औरंगजेब

उत्तर-

  1. ज़फरनामा-मुग़ल सम्राट औरंगजेब,
  2. गोबिन्द राय जी की दस्तारबंदी-लखनौर,
  3. सढौरा की पठान सेना का नेता-पीर बुद्धू शाह,
  4. मसन्द प्रथा को समाप्त किया-गुरु गोबिन्द सिंह जी।

PSEB 10th Class SST Solutions History Chapter 5 गुरु गोबिन्द सिंह जी का जीवन, खालसा की संरचना, युद्ध तथा उनका व्यक्तित्व

छोटे उत्तर वाले प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
पहाड़ी राजाओं तथा गुरु गोबिन्द सिंह जी के बीच भंगानी के युद्ध ( 1688 ई०) पर एक संक्षिप्त नोट लिखो।
(Sure)
उत्तर-
पहाड़ी राजा गुरु जी द्वारा की जा रही सैनिक तैयारियों को अपने लिए खतरा समझते थे। इस कारण वे गुरु जी के विरुद्ध थे। इन्हीं दिनों एक और घटना घटी। बिलासपुर के पहाड़ी राजा भीमचन्द ने अपने पुत्र की बारात को पाऊंटा से गुजारना चाहा, परन्तु गुरु जी ने उसे पाऊंटा से गुजरने की आज्ञा न दी। भीमचन्द ने इसे अपना अपमान समझा
और उसने पुत्र के विवाह के पश्चात् अन्य पहाड़ी राजाओं की सहायता से गुरु जी पर आक्रमण कर दिया। पाऊंटा से कोई 6 मील दूर भंगानी नामक स्थान पर घमासान लड़ाई लड़ी गई। युद्ध में पठान तथा उदासी सैनिक गुरु जी का साथ छोड़ गए। परन्तु ठीक उसी समय सढौरा का पीर बुद्धू शाह गुरु जी की सहायता के लिए आ पहुंचा। अपने 4 पुत्रों और 700 शिष्यों सहित उनकी सहायता से गुरु जी ने पहाड़ी राजाओं को बुरी तरह परास्त किया। यह गुरु जी की पहली महत्त्वपूर्ण विजय थी।

प्रश्न 2.
खालसा की स्थापना पर एक संक्षिप्त नोट लिखो।
उत्तर-
1699 ई० को वैशाखी के दिन गुरु गोबिन्द सिंह जी ने आनन्दपुर में एक विशाल सभा बुलाई। इस सभा में लगभग 80 हजार लोग शामिल हुए। जब सभी लोग अपने-अपने स्थान पर बैठ गए तो गुरु जी ने नंगी तलवार घुमाते हुए कहा-“क्या आप में कोई ऐसा सिक्ख है जो धर्म के लिए अपना सिर दे सके ?” गुरु जी ने इस वाक्य को तीन बार दोहराया। तब लाहौर निवासी दयाराम ने अपने को बलिदान के लिए पेश किया। गुरु जी उसे शिविर में ले गए। बाहर आकर उन्होंने एक बार फिर बलिदान की मांग की। तब क्रमशः धर्मदास, मोहकमचन्द, साहिब चन्द, हिम्मत राय बलिदान के लिए उपस्थित हुए। सिक्ख इतिहास में इन पांच व्यक्तियों को ‘पंज प्यारे’ कह कर पुकारा जाता है। गुरु जी ने दोधारी तलवार खण्डा से तैयार किया हुआ पाहुल अर्थात् अमृत उन्हें छकाया। वे ‘खालसा’ कहलाए और सिंह बन गए। गुरु जी ने स्वयं भी उनके हाथों से अमृतपान किया। इस प्रकार गुरु गोबिन्द राय से गुरु गोबिन्द सिंह जी बन गए।

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प्रश्न 3.
पूर्व खालसा काल ( 1675 से 1699) में गुरु गोबिन्द सिंह जी की किन्हीं चार सफलताओं का वर्णन करो।
उत्तर-
इस काल में गुरु साहिब की चार सफलताओं का वर्णन इस प्रकार है

  1. सेना का संगठन-गुरु गोबिन्द सिंह जी अभी 9 वर्ष के ही थे कि उनके पिता को हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए शहीदी देनी पड़ी! गुरु जी ने धर्म की रक्षा करनी थी। इसलिए उन्होंने सेना का संगठन करना आरम्भ कर दिया।
  2. रणजीत नगारे का निर्माण-गुरु जी ने एक नगारा भी बनवाया जिसे रणजीत नगारा के नाम से पुकारा जाता था। शिकार पर निकलते समय इस नगारे को बजाया जाता था।
  3. पाऊंटा दुर्ग का निर्माण-गुरु जी नाहन के राजा मेदिनी प्रकाश के निमन्त्रण पर उसके यहां गए। वहां उन्होंने पाऊंटा नामक किले का निर्माण करवाया।
  4. पहाड़ी राजाओं से संघर्ष-1688 ई० में बिलासपुर के राजा भीमचन्द ने अन्य पहाड़ी राजाओं की सहायता से गुरु जी पर आक्रमण कर दिया। भंगानी नामक स्थान पर घमासान लड़ाई हुई। युद्ध में गुरु जी ने पहाड़ी राजाओं को बुरी तरह परास्त किया।

प्रश्न 4.
सिक्ख इतिहास में खालसा की स्थापना का क्या महत्त्व है?
उत्तर-
सिक्ख इतिहास में खालसा की स्थापना एक अति महत्त्वपूर्ण घटना मानी जाती है।

  1. इसकी स्थापना से सिक्खों के एक नए वर्ग-सन्त सिपाहियों का जन्म हुआ। इससे पहले सिक्ख केवल नाम जपने को ही वास्तविक धर्म मानते थे, परन्तु अब गुरु जी ने तलवार को भी धर्म का आवश्यक अंग बना दिया।
  2. खालसा की स्थापना से सिक्खों की संख्या लगातार बढ़ने लगी। खालसा के नियमों के अनुसार कोई भी पांच सदाचारी सिक्ख ‘खण्डे का पाहुल’ छका कर अर्थात् अमृतपान करा कर किसी को भी खालसा पन्थ में सम्मिलित कर सकते थे।
  3. खालसा की स्थापना से पंजाब में जातीय भेदभाव की दीवारें टूटने लगी और शताब्दियों से पिसती आ रही दलित जातियों को नया जीवन मिला।
  4. खालसा की स्थापना से सिक्खों में वीरता की भावना उत्पन्न हुई। निर्बल से निर्बल सिक्ख भी सिंह (शेर) का रूप धारण करके सामने आया।

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प्रश्न 5.
गुरु गोबिन्द सिंह जी के चरित्र एवं व्यक्तित्व की कोई चार महत्त्वपूर्ण विशेषताएं बताओ।
उत्तर-
गुरु गोबिन्द सिंह जी एक महान् चरित्र तथा व्यक्तित्व के स्वामी थे।

  1. महान् विद्वान्-गुरु साहिब एक उच्च कोटि के विद्वान् भी थे। उन्हें पंजाबी, संस्कृत, फ़ारसी तथा ब्रज भाषा का पूरा ज्ञान था। उन्होंने अनेक काव्यों की रचना की जिसमें ‘अकाल उस्तत’, ‘बचित्तर नाटक’ तथा ‘चण्डी दी वार’ प्रमुख हैं।
  2. महान् संगठनकर्ता, सैनिक तथा सेनानायक-गुरु जी एक महान् संगठनकर्ता, सैनिक तथा सेनानायक थे। उन्होंने खालसा की स्थापना करके सिक्खों को सैनिक रूप से संगठित किया। उन्होंने कई लड़ाइयों में अपने सैनिकों का कुशल नेतृत्व भी किया।
  3. महान् सन्त तथा धार्मिक नेता-गुरु साहिब एक महान् सन्त तथा धार्मिक नेता के गुणों से परिपूर्ण थे। उन्होंने अपने सिक्खों में गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं का प्रचार किया और धर्म की रक्षा के लिए उन्हें लड़ना सिखाया।
  4. उच्चकोटि के समाज सुधारक-गुरु साहिब ने जाति-पाति का विरोध किया और अन्य सामाजिक कुरीतियों की घोर निन्दा की।

प्रश्न 6.
क्या गुरु गोबिन्द सिंह जी एक राष्ट्र-निर्माता थे ? किन्हीं चार तथ्यों के आधार पर अपने तथ्यों की पुष्टि कीजिए।
उत्तर-
गुरु गोबिन्द सिंह जी निःसन्देह एक महान् राष्ट्र निर्माता थे।

  1. गुरु साहिबान ने गुरु नानक देव जी द्वारा रखी गई नींव के ऊपर एक ऐसे महल का निर्माण किया जहां बैठ कर लोग अपने भेदभाव भूल गए। मुसलमानों से युद्ध करने में उनका उद्देश्य कोई अलग राज्य स्थापित करना नहीं था बल्कि देश से अत्याचारों का नाश करना था। उनका मुग़लों से कोई धार्मिक विरोध नहीं था।
  2. गुरु साहिब ने खालसा की स्थापना करके सिक्खों में एकता की भावना उत्पन्न की। इससे खालसा के द्वार सभी जातियों के लिए समान रूप से खुले थे। अतः गुरु जी द्वारा स्थापित यह संस्था एक राष्ट्रीय संस्था ही थी।
  3. गुरु साहिब ने जिस साहित्य की रचना की वह किसी एक जाति के लिए नहीं अपितु पूरे राष्ट्र के लिए है।
  4. गुरु साहिब द्वारा समाज सुधार कार्य भी राष्ट्र निर्माण से ही प्रेरित था।

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बड़े उत्तर वाले प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
भंगानी के युद्ध ( 1688 ई०) का विस्तृत वर्णन कीजिए।
उत्तर-
भंगानी का युद्ध 1688 ई० में पहाड़ी राजाओं तथा गुरु गोबिन्द सिंह जी के बीच हुआ। इस युद्ध में भाग लेने वाले प्रमुख पहाड़ी राजा थे-बिलासपुर का शासक भीमचन्द, कटोच का शासक कृपाल, श्रीनगर का शासक फतेहशाह, गुलेर का शासक गोपालचन्द तथा जस्सोवाल का शासक केसर चन्द। इन राजाओं का मुखिया बिलासपुर का राजा भीमचन्द था।
कारण-गुरु जी तथा पहाड़ी राजाओं के बीच भंगानी के युद्ध के मुख्य कारण निम्नलिखित थे

  1. गुरु जी ने अपने अनुयायियों को अपनी सेना में भर्ती करना आरम्भ कर दिया था। उन्होंने सैनिक सामग्री भी इकट्ठी करनी आरम्भ कर दी थी। पहाड़ी राजा गुरु जी की इन सैनिक गतिविधियों को सन्देह की दृष्टि से देखने लगे।
  2. पहाड़ी राजा मूर्ति-पूजा में विश्वास रखते थे, परन्तु गुरु जी ने पाऊंटा में रहते हुए मूर्ति-पूजा का घोर खण्डन किया।
  3. गुरु जी अब शाही ठाठ-बाठ से रहने लगे थे। उनके इस कार्य से भी पहाड़ी राजाओं के मन में ईर्ष्या पैदा हो गई।
  4. गुरु जी पहाड़ी प्रदेश में रहकर सैनिक तैयारियां कर रहे थे। अत: पहाड़ी राजा यह नहीं चाहते थे कि गुरु जी के कारण उन्हें सम्राट औरंगज़ेब से उलझना पड़े।
  5. सिक्ख गुरु जी को बहुमूल्य भेटें देते रहते थे। इन भेंटों के कारण पहाड़ी राजा गुरु जी से ईर्ष्या करने लगे थे।
  6. इस युद्ध का तात्कालिक कारण यह था कि बिलासपुर के पहाड़ी राजा भीमचन्द ने अपने पुत्र की बारात को पाऊंटा में से गुज़ारना चाहा। परन्तु गुरु जी को उसकी नीयत पर सन्देह था, इसलिए उन्होंने उसे ऐसा करने की अनुमति न दी। क्रोध में आकर उसने अन्य पहाड़ी राजाओं की सहायता से गुरु जी पर आक्रमण कर दिया।

घटनाएं-गुरु साहिब ने युद्ध के लिए भंगानी नामक स्थान को चुना। युद्ध शुरू होते ही गुरु जी के लगभग 500 पठान सैनिक उनका साथ छोड़ गए। परंतु उसी समय सढौरा के पीर बुद्ध शाह अपने चार पुत्रों तथा 700 अनुयायियों सहित गुरु जी से आ मिला। 22 सितंबर 1688 ई० को दोनों पक्षों में एक घमासान युद्ध हुआ। वीरतापूर्वक लड़ते हुए सिक्खों ने पहाड़ी राजाओं को बुरी तरह हराया।

युद्ध का महत्त्व-भंगानी की विजय गुरु गोबिन्द सिंह जी के जीवन की पहली तथा अत्यन्त महत्त्वपूर्ण विजय थी। इसका निम्नलिखित महत्त्व था

  1. इस विजय से गुरु जी की शक्ति की धाक जम गई।
  2. गुरु जी को विश्वास हो गया कि वह अपने अनुयायियों को अच्छी तरह से संगठित करके मुग़लों के अत्याचारों का सफलतापूर्वक सामना कर सकते हैं।
  3. पहाड़ी राजाओं ने गुरु जी का विरोध छोड़कर उनसे मित्रतापूर्ण सम्बन्ध स्थापित कर लिए।
  4. इस विजय ने गुरु जी को पाऊंटा साहिब छोड़कर फिर से आनन्दपुर में जाने का अवसर प्रदान किया।
  5. राजा भीमचन्द ने विशेषकर गुरु जी से मित्रता की नीति अपनाई।
  6. गुरु साहिब ने भीमचन्द की मित्रता का लाभ उठाते हुए आनन्दपुर में आनन्दगढ़, केशगढ़, लोहगढ़ तथा फतेहगढ़ नामक चार किलों का निर्माण करवाया।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित बिन्दुओं के आधार पर गुरु गोबिन्द सिंह जी के चरित्र एवं व्यक्तित्व का वर्णन कीजिए

  1. संगठनकर्ता
  2. सन्त तथा धार्मिक नेता
  3. समाज सुधारक
  4. कवि तथा विद्वान्।

उत्तर-

  1. संगठनकर्ता के रूप में गुरु गोबिन्द सिंह जी एक महान् संगठनकर्ता थे। उनकी संगठन शक्ति असाधारण थी। उन्होंने ‘खालसा की स्थापना’ करके सामाजिक तथा धार्मिक भेदभावों के कारण बिखरी हुई सिक्ख जनता को एक सूत्र में पिरो दिया। गुरु जी पहले भारतीय नेता थे, जिन्होंने प्रजातन्त्रात्मक सिद्धान्त सिखाए तथा अपने अनुयायियों को गुरमत्ता अर्थात् सब. की राय पर चलने को तैयार किया।” वास्तव में ही गुरु गोबिन्द सिंह जी ने ‘खालसा’ का द्वार सभी जातियों के लिए खोलकर एक राष्ट्रीय संगठन को जन्म दिया।
  2. सन्त तथा धार्मिक नेता के रूप में गुरु जी एक धार्मिक नेता के रूप में महान् थे। सहनशीलता उनके धर्म का विशेष गुण था। उन्हें इस्लाम धर्म उतना ही प्यारा था जितना कि अपना धर्म, परन्तु गुरु, जी का धर्म यह आज्ञा नहीं देता था कि माला हाथ में लिए चुपचाप अत्याचारों को सहन करते जाओ। उनकी ‘खालसा स्थापना’ का मुख्य उद्देश्य ही अत्याचारों का विरोध करना था।
    एक सन्त होने के नाते गुरु जी को सर्वशक्तिमान ईश्वर पर पूरा भरोसा था और वह अपने सभी कार्य उसी की कृपा पर छोड़ देते थे। उनके महान् सन्त होने का सबसे बड़ा प्रमाण यह है कि उनकी नज़र में धन की कोई कीमत नहीं थी। उन्हें जब कभी भी कहीं से धन प्राप्त हुआ, उन्होंने सारे का सारा धन निर्धनों तथा ज़रूरतमन्दों में बांट दिया।
  3. समाज सुधारक के रूप में गुरु गोबिन्द सिंह जी एक महान् सुधारक भी थे। उन्होंने जाति-प्रथा और मूर्ति-पूजा आदि सामाजिक बुराइयों का घोर खण्डन किया। उनके द्वारा स्थापित ‘खालसा’ में सभी जातियों के लोग प्रवेश पा सकते थे। गुरु जी के प्रयत्नों से वे जातियां जो समाज पर कलंक समझी जाती थीं अब वीर योद्धा बन गईं और उन्होंने देश तथा धर्म की रक्षा का भार सम्भाल लिया। गुरु जी ने यज्ञ, बलि आदि व्यर्थ के कर्म काण्डों का खुला विरोध किया और समाज को एक आदर्श रूप प्रदान किया।
  4. कवि तथा विद्वान् के रूप में गुरु गोबिन्द सिंह जी एक उच्च कोटि के कवि तथा विद्वान् थे। उन्हें पंजाबी, संस्कृत, फारसी, हिन्दी आदि सभी भाषाओं का पूरा ज्ञान था। उन्हें कविता लिखने का विशेष चाव था। उनकी कविताएं मार्मिकता तथा वीरता से परिपूर्ण हैं। जापु साहिब, ज़फ़रनामा, चण्डी दी वार, अकाल उस्तत तथा बचित्तर नाटक गुरु जी की महत्त्वपूर्ण रचनाएं मानी जाती हैं। गुरु जी कवियों की संगति में बैठने में भी विशेष रुचि लेते थे। पाऊंटा में रहते हुए उनके पास 52 कवि थे।

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प्रश्न 3.
‘खालसा’ की स्थापना किस प्रकार हुई? इसके सिद्धान्तों का वर्णन करो।
उत्तर-
‘खालसा’ की स्थापना 1699 ई० में गुरु गोबिन्द सिंह जी ने की। इसे सिक्ख इतिहास की महानतम घटना माना जाता है। खालसा की स्थापना के मुख्य चरण निम्नलिखित थे

  1. पांच प्यारों का चुनाव-1699 ई० में बैसाखी के दिन गुरु गोबिन्द सिंह जी ने आनन्दपुर साहिब में सिक्खों की एक विशाल सभा बुलाई। इस सभा में विभिन्न प्रदेशों से 80,000 के लगभग लोग इकट्ठे हुए। गुरु जी सभा में पधारे और तलवार को म्यान से निकाल कर घुमाते हुए कहा-“कोई ऐसा सिक्ख है जो धर्म के लिए अपने प्राणों का बलिदान दे सके।” यह सुनकर सभा में सन्नाटा छा गया। गुरु जी ने अपने शब्दों को तीन बार दोहराया। अन्त में दयाराम नामक एक क्षत्रिय ने अपने आपको बलिदान के लिए प्रस्तुत किया। गुरु जी उसे समीप लगे एक तम्बू में ले गये। कुछ समय के पश्चात् वह तम्बू से बाहर आए और उन्होंने एक और व्यक्ति का शीश मांगा। इस बार दिल्ली निवासी धर्मदास जाट ने अपने आप को भेंट किया। गुरु गोबिन्द सिंह जी ने यह क्रम तीन बार फिर दोहराया। क्रमशः मोहकम चन्द, साहिब चन्द तथा हिम्मत राय नामक तीन अन्य व्यक्तियों ने अपने आपको बलिदान के लिए प्रस्तुत किया। यहां यह स्पष्ट करना उचित होगा कि गुरु जी ने यह सब कुछ अपने अनुयायियों की परीक्षा लेने के लिए किया। तम्बू में गुरु जी ने उनके साथ क्या किया, इस बारे में वह स्वयं भली-भान्ति जानते थे। अन्त में गुरु जी पांचों व्यक्तियों को सभा के सामने लाए और उन्हें ‘पंज प्यारे’ की उपाधि दी।
  2. खण्डे का पाहुल-पांच प्यारों का चुनाव करने के पश्चात् गुरु जी ने उन्हें अमृतपान करवाया जिसे ‘खण्डे का पाहुल’ कहा जाता है। यह अमृत गुरु जी ने विभिन्न बाणियों का पाठ करते हुए स्वयं तैयार किया।
    सभी प्यारों के नाम के पीछे ‘सिंह’ शब्द जोड़ दिया गया। फिर गुरु जी ने पांच प्यारों के हाथ से स्वयं अमृत छका। इस प्रकार ‘खालसा’ का जन्म हुआ।

खालसा पंथ के सिद्धान्त

खालसा पंथ के सिद्धान्त निम्नलिखित हैं

  1. ‘खालसा’ में प्रवेश करने के लिए प्रत्येक व्यक्ति को ‘खण्डे का पाहुल’ का सेवन करना पड़ेगा। तब वह स्वयं को खालसा कहलवाएगा।
  2. प्रत्येक खालसा अपने नाम के साथ ‘सिंह’ शब्द लगाएगा और खालसा स्त्री अपने नाम के साथ ‘कौर’ शब्द लगाएगी।
  3. प्रत्येक खालसा पाँच ‘ककार’-केश, कंघा, कड़ा, कछहरा तथा किरपान धारण करेगा।
  4. खालसा केवल एक ईश्वर में विश्वास रखेगा तथा किसी देवी-देवता तथा मूर्ति की पूजा से दूर रहेगा।
  5. वह प्रात:काल जल्दी उठ कर स्नान करेगा और पाँच बाणियों-जपुजी साहिब, जापु साहिब, आनन्द साहिब, सवैये तथा चौपाई का पाठ करेगा।
  6. वह दस नाखूनों की किरत अर्थात् मेहनत की कमाई करेगा। वह अपनी नेक कमाई में से धार्मिक कार्यों के लिए दसवन्द (दसवां हिस्सा) भी निकालेगा।
  7. वह जाति-पाति तथा ऊँच-नीच के भेदभाव में विश्वास नहीं रखेगा।
  8. प्रत्येक खालसा गुरु तथा पंथ के लिए अपना सर्वस्व बलिदान करने को सदैव तैयार रहेगा।
  9. वह अस्त्र-शस्त्र धारण करेगा और धर्म की रक्षा के लिए युद्ध लड़ने के लिए तत्पर रहेगा।
  10. वह तम्बाकू तथा अन्य नशीली वस्तुओं का सेवन नहीं करेगा।
  11. वह नैतिकता का पालना करेगा और अपने चरित्र को शुद्ध रखेगा।
  12. खालसा लोग आपस में मिलते समय ‘वाहिगुरु जी का खालसा, वाहिगुरु जी की फतह’ कह कर एकदूसरे का अभिवादन करेंगे।

PSEB 10th Class SST Solutions History Chapter 5 गुरु गोबिन्द सिंह जी का जीवन, खालसा की संरचना, युद्ध तथा उनका व्यक्तित्व

गुरु गोबिन्द सिंह जी का जीवन, खालसा की संरचना, युद्ध तथा उनका व्यक्तित्व PSEB 10th Class History Notes

  • जन्म तथा माता-पिता-गुरु गोबिन्द साहिब का जन्म 22 दिसम्बर, 1666 ई० को पटना में हुआ। उनके पिता गुरु तेग़ बहादुर जी थे। उनकी माता जी का नाम गुजरी जी था।
  • बचपन तथा शिक्षा-गुरु गोबिन्द सिंह जी के बचपन का नाम गोबिन्द राय था। उनके जीवन के आरम्भिक पांच वर्ष पटना में बीते। उन्होंने फ़ारसी की शिक्षा काज़ी पीर मुहम्मद से तथा गुरुमुखी की शिक्षा भाई सतिदास से प्राप्त की। उन्होंने संस्कृत का ज्ञान पण्डित हरजस से तथा घुड़सवारी और अस्त्र-शस्त्र चलाने की शिक्षा (सैनिक शिक्षा) बजर सिंह नामक राजपूत से प्राप्त की।
  • सैनिक संगठन-गुरु गोबिन्द सिंह जी सिक्खों को सैनिक शक्ति बनाना चाहते थे। अतः उन्होंने भेंट में हथियार तथा घोड़े प्राप्त करने को अधिक महत्त्व दिया।
  • खालसा की स्थापना–’खालसा की स्थापना’ गुरु गोबिन्द सिंह जी ने 1699 ई० में की । खालसा की स्थापना के तीन प्रमुख उद्देश्य थे-मुग़लों के बढ़ते हुए अत्याचारों से मुक्ति, जाति प्रथा के दोषों को समाप्त करना तथा दोषपूर्ण मसन्द प्रथा का अन्त करना ।
  • पांच ककार-खालसा के पांच ककार थे-केश, कंघा, कड़ा, किरपाण तथा कछहरा।
  • खालसा की स्थापना का महत्त्व-खालसा की स्थापना से सिक्खों में एक नए वर्ग सन्त सिपाहियों का जन्म हुआ जिसके परिणामस्वरूप सिक्ख आगे चलकर राजनीतिक शक्ति के रूप में उभरे।
  • साहित्यिक रचनाएं-गुरु साहिब ने पाऊंटा में, ‘अकाल उस्तत’, ‘शस्त्र नाम माला’ तथा ‘चण्डी दी वार’ की रचना की।
  • भंगानी का युद्ध-भंगानी का युद्ध 1688 ई० में हुआ । इस युद्ध में बिलासपुर का राजा भीमचन्द तथा कांगड़ा का राजा कृपाल चन्द गुरु साहिब के विरुद्ध लड़े और पराजित हुए।
  • नादौन का युद्ध-नादौन का युद्ध 1690 ई० में हुआ। यह युद्ध मुग़लों और पहाड़ी राजाओं के बीच हुआ। गुरु गोबिन्द सिंह जी इस युद्ध में पहाड़ी राजाओं के पक्ष में लड़े थे। उन्होंने मुग़ल सेनाओं को परास्त किया।
  • आनन्दपुर का प्रथम युद्ध, 1701 ई०-आनन्दपुर का प्रथम युद्ध बिलासपुर के पहाड़ी राजा भीमचन्द तथा गुरु गोबिन्द सिंह जी के बीच हुआ। इस युद्ध में गुरु जी ने पहाड़ी राजा को बुरी तरह परास्त किया।
  • आनन्दपुर का दूसरा युद्ध, 1704 ई०-आनन्दपुर के दूसरे युद्ध में बिलासपुर, कांगड़ा तथा गुलेर के पहाड़ी राजा गुरु साहिब के विरुद्ध लड़े । इस युद्ध में गुरु गोबिन्द सिंह जी की विजय हुई।
  • ज्योति-जोत समाना-गुरु जी 1708 ई० में मुग़ल सम्राट् बहादुरशाह के साथ दक्षिण की ओर गए। कुछ समय के लिए वह नांदेड़ नामक स्थान पर ठहरे। वहीं पर 7 अक्तूबर, 1708 ई० को छुरा लगने से ‘गुरु साहिब’ ज्योतिजोत समा गए।

PSEB 8th Class Home Science Solutions Chapter 1 निजी देखभाल

Punjab State Board PSEB 8th Class Home Science Book Solutions Chapter 1 निजी देखभाल Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 8 Home Science Chapter 1 निजी देखभाल

PSEB 8th Class Home Science Guide निजी देखभाल Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
भोजन के तत्त्वों के नाम लिखिए।
उत्तर-
कार्बोज, प्रोटीन, वसा, विटामिन तथा लवण।

प्रश्न 2.
ऊर्जा प्रदान करने वाले तत्त्व कौन-से होते हैं ?
उत्तर-
कार्बोहाइड्रेट्स तथा वसा।

प्रश्न 3.
प्रोटीन के दो प्रमुख प्राप्ति स्त्रोत बताएं।
उत्तर-
अण्डा व दालें।

PSEB 8th Class Home Science Solutions Chapter 1 निजी देखभाल

प्रश्न 4.
कैल्शियम हमारे शरीर के लिए क्यों आवश्यक है ?
अथवा
कैल्शियम का शरीर के लिए प्रमुख कार्य क्या है ?
अथवा
कैल्शियम के कोई दो लाभ बताओ।
उत्तर-

  1. शरीर में अस्थियों और दाँतों का निर्माण करना।
  2. स्नायुओं को स्वस्थ रखता है।

प्रश्न 5.
भारतीय आहार में प्रमुख कमी कौन-सी है ?
उत्तर-
भोजन में कैलोरियों की मात्रा कम होना।

प्रश्न 6.
गर्मियों में सूती कपड़े क्यों पहने जाते हैं ?
उत्तर-
सूती कपड़े गर्मी के संचालक हैं तथा पानी कम चूसते हैं।

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प्रश्न 7.
सिल्क के कपड़े मुख्यतः सर्दियों में पहने जाने का कारण लिखें।
उत्तर-
सिल्क गर्मी का अच्छा संचालक नहीं है इसलिए इसे सर्दियों में प्रयोग करते हैं।

प्रश्न 8.
खाने के साथ ज्यादा पानी क्यों नहीं पीना चाहिए?
उत्तर-
खाने के साथ अधिक पानी नहीं पीना चाहिए, क्योंकि भोजन को पचाने वाले रस पतले हो जाते हैं और भोजन जल्दी से पचता नहीं है।

प्रश्न 9.
पैरों के लिए जूते और जुराब का चुनाव करते समय सबसे अधिक ध्यान रखने योग्य बात कौन-सी है ?
उत्तर-
जुराबें और जूते तंग नहीं हों। जूते खुले भी न हों तथा जुराबों का इलास्टिक तंग न हो।

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लघूत्तर प्रश्न

प्रश्न 1.
आवश्यकता से अधिक या कम खाने के क्या नुकसान हैं ?
उत्तर-
अगर आवश्यकता से अधिक खाना खाते हैं तो आमाशय और आंतों को अधिक मेहनत करनी पड़ती है। इससे गुर्दो पर भी अधिक दबाव पड़ता है। खाए हुए भोजन में उबाल-सा आ जाता है जिससे गैस बनती है। इससे पेट खराब हो जाता है। मुंह से बदबू आने लग जाती है और सिर दखने लग जाता है।

अगर अधिक समय तक आवश्यकता से अधिक भोजन खाया जाए तो पेट की बीमारियां हो जाती हैं, जैसे-आमाशय की बीमारियां, गुर्दो में खराबी और खून का दबाव बढ़ सकता है। तन्तुओं में अधिक चर्बी जम जाती है और आदमी मोटा हो जाता है। पेशाब में शक्कर आने का रोग हो जाता है।

अगर आवश्यकता से कम खाना खाते हैं तो भार में कमी आ जाती है, कमज़ोरी और खून की कमी हो जाती है। कम खाने से बीमारियों का सामना करने की शक्ति कम हो जाती है और विशेषकर तपेदिक होने का डर रहता है। बच्चे यदि कम खाना खाएं तो मन्द बुद्धि के हो जाते हैं और जल्दी थक जाते हैं। उनके शरीर का विकास भी पूरा नहीं होता और उनका कद और भार भी अपनी आयु के अनुसार कम रहता है।

प्रश्न 2.
क्रीम और तेल क्यों प्रयोग किए जाते हैं ? इनकी जगह और क्या इस्तेमाल किया जा सकता है ?
उत्तर-
प्रतिदिन साबुन के साथ स्नान करने और सिर धोने से त्वचा खुश्क हो जाती है। हमारी त्वचा की ऊपरी तह के तन्तु भी झड़कर त्वचा पर जम जाते हैं और त्वचा को खुश्क करते हैं। ये सैल सिकरी के रूप में सिर में देखे जा सकते हैं। पतझड़ और सर्दियों में त्वचा अधिक खुश्क हो जाती है जिसके लिए ज़रूरी हो जाता है कि त्वचा को चमकदार और लचकदार बनाने के लिए सिर और शरीर की किसी तेल के साथ मालिश करनी चाहिए। सिर और त्वचा पर तेल सिर्फ मला ही नहीं जाता बल्कि मालिश की जाती है। इस तरह करने से हमारी त्वचा के नीचे की तेल की ग्रन्थियाँ हरकत में आ जाती हैं और इनसे कुदरती तेल निकलते हैं जो हमारी त्वचा को मुलायम रखते हैं।

चेहरे पर लगाने के लिए आजकल कई तरह की क्रीमें बाजार में मिलती हैं। विशेषकर सर्दियों में बच्चों के मुँह फट जाते हैं। इसको ठीक करने के लिए भी चिकनाई वाली क्रीम लगाई जाती है। आजकल और भी कई तरह की क्रीमें मिलती हैं, जिनको लगाने से चेहरे की कील, छाइयां दूर होती हैं और चेहरे पर निखार आता है। तेल और क्रीम की जगह मक्खन, ग्लिसरीन या ग्लिसरीन में नींबू का रस मिलाकर इस्तेमाल कर सकते हैं। इनसे भी चेहरा मुलायम होता है।

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प्रश्न 3.
टेलकम पाउडर के क्या लाभ हैं ?
उत्तर-
टेलकम पाउडर से निम्नलिखित लाभ हैं-

  1. टेलकम पाउडर पसीने को सोख लेता है।
  2. इसे लगाने से पसीने की बदबू नहीं आती है।
  3. टेलकम पाउडर के इस्तेमाल से कपड़ों पर पसीने का धब्बा नहीं होता।
  4. इसका इस्तेमाल दवाइयों के रूप में भी किया जाता है।

प्रश्न 4.
कपड़े क्यों पहने जाते हैं ? (पंजाब बोर्ड, 2002, 03, 04, 06)
अथवा
कपड़ों की आवश्यकता के क्या कारण हैं ?
उत्तर-

  1. गर्मी, सर्दी और मौसम की कठिनाइयों से बचने के लिए कपड़े पहने जाते हैं।
  2. कपड़े पहने हों तो मच्छर, कीट आदि के काटने से बचा जा सकता है।
  3. गिरने पर शरीर पर चोट का प्रभाव कम होता है।
  4. अग्निशमन करने वालों के कपड़े विशेष रेशे से बनते हैं, जिनमें आग कम लगती है।

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प्रश्न 5.
कपड़ों के रेशे कितनी प्रकार के होते हैं ? वर्णन करो।
अथवा
पहनने वाले वस्त्र किन-किन रेशों से बने होते हैं ? वर्णन कीजिए।
उत्तर-
कपड़ों के रेशे मुख्य रूप से पाँच प्रकार के होते हैं-
(1) सूती कपड़े,
(2) लिनन,
(3) रेशम
(4) ऊन,
(5) टैरीलीन, नाइलॉन आदि।

1. सूती कपड़े-ये कपास से बनाये जाते हैं। सूती कपड़े गर्मी के अच्छे संचालक होते हैं और पानी को बहुत अधिक नहीं सोखते। सूती कपड़ा अधिक मज़बूत और सस्ता होता है।
निजी देखभाल इसलिए प्रत्येक घरों में इसका इस्तेमाल किया जाता है। गर्मियों के दिनों में नीचे पहनने और ऊपर पहनने के लिए तथा सर्दियों में नीचे पहनने के लिए इन कपड़ों का इस्तेमाल किया जाता है।

2. लिनन-यह पौधों से बनाई जाती है। यह सूती कपड़े की अपेक्षा अधिक महंगी होती है। देखने में यह सूती कपड़े की अपेक्षा अधिक चमकदार, स्पर्श करने में मुलायम और सूती कपड़े की अपेक्षा अधिक अच्छी लगती है, परन्तु पहनने और धोने में सूती कपड़े के समान ही होती है।

3. रेशम- यह रेशम के कीड़ों से बनायी जाती है। यह गर्मी की अच्छी संचालक नहीं होती और पानी भी अधिक नहीं सोखता है। इसलिए इसका इस्तेमाल सर्दियों में किया जाता है। रेशम नर्म और चमकदार होने के कारण पहनी हुई लगती है। लेकिन महंगी होने के कारण इसका अधिक इस्तेमाल नहीं किया जाता।

4. ऊन-यह गर्मी की अच्छी संचालक नहीं होती। पानी भी अधिक सोखती है। इसलिए ऊनी कपड़े सर्दियों में पहने जाते हैं। ऊनी कपड़े खुले बुने हुए होते हैं। इनके छेदों में हवा भर जाती है, जो शरीर की गर्मी को बाहर नहीं जाने देती। पोले होने के बावजूद भी यह शरीर में नहीं चिपकती क्योंकि यह अधिक पानी सोखती है। ऊनी कपड़े थोड़े खुरदरे होते हैं। इसलिए ऊनी रेशों के नीचे पहनने वाले कपड़े नहीं बनाए जाते।

5. टैरीलीन, नाइलॉन आदि-ये कपड़े पहनने में हल्के, धोने में आसान और अधिक दिनों तक चलते हैं। ये कपड़े पानी को नहीं सोखते और गर्मी के अच्छे संचालक नहीं होते। इसलिए गर्मियों में नहीं पहने जा सकते। ये धोने में आसान और बिना प्रैस किए ही पहने जा सकते हैं। इसकी जुराबें और जाँघिए भी बनाए जाते हैं।

प्रश्न 6.
जूते और जुराबें किस प्रकार की होनी चाहिए ?
उत्तर-
जूते और जुराबें नाप के अनुसार होनी चाहिएं। जूते तंग भी न हों तथा न ही खुले हों। दोनों स्थितियों में पैरों में दर्द होगा या जख्म हो सकते हैं। जुराबों का ईलास्टिक भी तंग न हो।

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प्रश्न 7.
तंग कपड़े पहनने से क्या हानियाँ होती हैं ?
उत्तर-
तंग कपड़े पहनने से निम्नलिखित हानियां होती हैं

  1. तंग कपड़े पहनने से खून का दौरा, साँस लेने की क्रिया, पाचन क्रिया और मांसपेशियों की हिलजुल ठीक तरह नहीं हो सकती।
  2. तंग कपड़े पहनने से ठीक ढंग से उटना, बैठना और काम करना मुश्किल हो जाता
  3. पेटियाँ ज्यादा कसकर नहीं बाँधनी चाहिएं और लचकदार हिस्से भी ज्यादा तंग नहीं होने चाहिएं।
  4. तंग पोशाक में खुली पोशाक की अपेक्षा अधिक सर्दी लगती है।

प्रश्न 8.
निशास्ते वाले भोजन पदार्थों से कौन-सा पौष्टिक तत्त्व मिलता है ?
उत्तर-
निशास्ते वाले भोजन पदार्थों से कार्बोहाइड्रेट पौष्टिक तत्त्व मिलता है। इससे हमें ऊर्जा मिलती है तथा हमारा शरीर कार्य करने में सक्षम होता है।

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प्रश्न 9.
वनस्पति और प्राणीजन प्रोटीन में क्या अन्तर है ?
अथवा
प्रोटीन की प्राप्ति के स्रोत बताओ।
उत्तर-
वनस्पति तथा प्राणीजन प्रोटीन में अन्तर-

वनस्पति प्रोटीन प्राणी जन प्रोटीन
1. अनाज-गेहूँ, ज्वार, बाजरा, चावल, मकई, रागी, जई से प्राप्त होता है। 1. जन्तु प्रोटीन-अण्डा, मांस, मछली, कलेजी आदि से प्राप्त होता है।
2. दालें-अरहर, उरद, मूंग, मसूर, सोयाबीन व चने की दाल, चपटी सेम, सूखी मटर आदि से प्राप्त होता है। 2. दूध व दूध से बने पदार्थ- गाय, भैंस, बकरी व माता का दूध, सूखा दूध, दही, पनीर आदि से प्राप्त होता है।

 

प्रश्न 10.
तन्तुओं की मरम्मत और नये तन्तुओं के निर्माण के लिए भोजन के कौनसे पौष्टिक तत्त्व आवश्यक हैं ?
अथवा
शरीर के विकास के लिए भोजन का कौन-सा पोषक तत्त्व ज़रूरी है ?
उत्तर-
तन्तुओं की मरम्मत तथा नये तन्तु बनाने के लिए भोजन में प्रोटीन नामक पौष्टिक तत्व होता है। इस तत्व को दालों, पनीर, दूध, दही, मीट, अण्डा आदि से प्राप्त किया जा सकता है। सोयाबीन इसका सबसे सस्ता स्रोत है।

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प्रश्न 11.
कोई ऐसा भोजन बताओ, जिसे पूर्ण आहार कहा जा सके।
उत्तर-
ऐसा भोजन पदार्थ जिसमें से हमें सभी पौष्टिक तत्व प्राप्त हो जाएं को पूर्ण आहार कहा जाता है। ऐसे दो पदार्थ हैं :-

  1. दूध
  2. अण्डा।

प्रश्न 12.
तेल से शरीर की मालिश करने का क्या लाभ है ?
उत्तर-
तेल से शरीर पर मालिश करने का लाभ यह है कि हमारी त्वचा के नीचे की तेल की ग्रन्थियां हरकत में आ जाती हैं और इनसे कुदरती तेल निकलते हैं जो हमारी त्वचा को मुलायम रखते हैं।

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प्रश्न 13.
त्वचा के नीचे स्थित तेल ग्रन्थियों को उत्तेजित करने के लिए क्या करना चाहिए ?
उत्तर-
त्वचा के नीचे की तेल ग्रन्थियों को उत्तेजित करने के लिए तेल से मालिश करना चाहिए।

प्रश्न 14.
कोल्ड क्रीम और वेनिशिंग क्रीम में क्या अन्तर है ?
उत्तर-
कोल्ड क्रीम और वेनिशिंग क्रीम में अन्तर

कोल्ड क्रीम केनिशिंग क्रीम
(1) कोल्ड क्रीम सर्दियों में इस्तेमाल की जाती है। (1) वेनिशिंग क्रीम किसी भी ऋतु में  इस्तेमाल की जा सकती है।
(2) कोल्ड क्रीम में चिकनाई होती है। (2) वेनिशिंग क्रीम में चिकनाई नहीं होती है।

 

प्रश्न 15.
ठीक ढंग से कपड़े पहनने का क्या महत्त्व है ?
उत्तर-
ठीक ढंग के कपड़े पहनने का निम्नलिखित महत्त्व है-

  1. यह शरीर को गर्मी, सर्दी और बाहर की चोटों से बचाता है।
  2. यह शरीर की गर्मी को ठीक रखता है।
  3. ठीक ढंग के कपड़े अपने आपको सजाने और मर्यादा रखने के लिए भी पहनते हैं।

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प्रश्न 16.
जूते पैरों के नाप के क्यों होने चाहिएं ?
उत्तर–
पाँव के बूट न तंगा और न ही अधिक खुले बल्कि माप के होने चाहिए। तंग जूतों में पाँव घुटे रहते हैं और पाँव पर छाले पड़ जाते हैं। अधिक खुले जूते में भी पाँव हिलता रहता है जिससे ज़ख्म हो सकते हैं। इसलिए जूते माप के ही खरीदने चाहिएं।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भोजन के कौन-कौन से तत्त्व हैं और ये कौन-कौन से स्रोतों से मिलते हैं ?
उत्तर-
भोजन के तत्त्व छ: प्रकार के होते हैं-
(1) कार्बोहाइड्रेट,
(2) वसा (चिकनाई),
(3) प्रोटीन,
(4) पानी,
(5) खनिज लवण,
(6) विटामिन।
प्राप्ति के स्रोत-

  1. कार्बोहाइड्रेट के स्रोत-चावल, आटा, आलू, शक्करकंदी, केला, गुड़, चीनी, शहद, फल।
  2. वसा (चिकनाई) स्रोत-दूध, घी, मक्खन, तेल, तेलों के बीज, सूखे मेवे, जानवरों की चर्बी और वनस्पति घी।
  3. प्रोटीन के स्रोत-वनस्पति प्रोटीन–सोयाबीन, राजमाह, चने, दालें, मटर, फलियों से। पशु-प्रोटीन-अण्डा, दूध, मांस, मछली और मुर्गे आदि।
  4. पानी के स्रोत-भोजन जो हम खाते हैं तथा पानी जो हम पीते हैं।
  5. खनिज लवण के स्रोत–दूध, कलेजी, अण्डे, हरी सब्जियां, फल आदि।
  6. विटामिन के स्त्रोत-दूध, दही, अण्डे का पीला भाग, मछली के यकृत के तेल, मछली, घी, मक्खन, हरी पत्तेदार सब्जियां, टमाटर, गाजर, पका पपीता, आम, कद्, सन्तरा, नींबू आदि।

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प्रश्न 2.
भोजन खाते समय किन-किन बातों का ध्यान रखना आवश्यक है ?
उत्तर-
भोजन खाते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना आवश्यक है-

  1. भोजन हमेशा ताज़ा और खुशबूदार होना चाहिए ताकि खाने का दिल करे।
  2. भोजन बासी, ज़रूरत से कम या अधिक पका हुआ नहीं होना चाहिए।
  3. सुबह और शाम के खाने में भिन्नता होनी चाहिए।
  4. खाना हमेशा समय पर खाना चाहिए।
  5. आवश्यकता से अधिक खाना खाने से पेट खराब हो सकता है, क्योंकि आमाशय को अधिक कार्य करना पड़ता है।
  6. खाने के साथ अधिक पानी नहीं पीना चाहिए क्योंकि भोजन को पचाने वाले रस पतले हो जाते हैं और भोजन जल्दी पचता नहीं है।
  7. भोजन को धीरे-धीरे अच्छी तरह चबाकर खाना चाहिए।

प्रश्न 3.
साबुन का निजी सफ़ाई में क्या महत्त्व है ?
उत्तर-
हमारे शरीर की त्वचा के नीचे तेल की ग्रन्थियां होती हैं, जिनमें से तेल निकलकर त्वचा पर आता रहता है। ऊपर की त्वचा के तन्तु भी टूटते रहते हैं जो कि तेल के कारण त्वचा के साथ चिपके रहते हैं। वातावरण से उड़कर मिट्टी और कपड़ों की चूर्ण भी त्वचा के साथ लग जाती है। गर्मियों में शरीर पर पसीना भी बहुत आता है। यदि इन सारी चीज़ों को शरीर से न साफ़ किया जाए तो त्वचा के साथ ही चिपकी रह जाएगी जिनमें बैक्टीरिया पलने लगेंगे। इससे न केवल शरीर से बदबू आने लगती है, बल्कि कई तरह के त्वचा के रोग भी हो जाते हैं। इनको सिर्फ पानी के साथ ही धोने से साफ़ नहीं किया जा सकता है। साबुन मलने से चिकनाई पानी में घुल जाती है और फिर मैल भी पानी से साफ़ हो जाती है। पूरे शरीर पर साबुन मलने से थोड़ी मालिश भी होती है जिससे त्वचा में हरकत होती है। स्नान के लिए हमेशा नरम साबुन का इस्तेमाल करना चाहिए।

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प्रश्न 4.
कपड़े पहनते समय कौन-कौन सी बातें ध्यान में रखना आवश्यक हैं ?
उत्तर-
कपड़े पहनते समय निम्नलिखित बातें ध्यान में रखना आवश्यक हैं-

  1. मौसम के अनुसार कपड़े पहनने चाहिए जिससे शरीर का तापमान ठीक रहे।
  2. गर्मियों में हल्के, खुले और फीके रंगों के कपड़े पहनने चाहिए।
  3. सर्दियों में काले या गाढ़े रंग के कपड़े पहनना लाभदायक है, क्योंकि ये रंग सबसे अधिक सूरज की किरणों को सोख लेते हैं।
  4. नीचे के कपड़े जो शरीर के साथ चिपके होते हैं रोज़ बदलने चाहिएं।
  5. रात और दिन में पहनने वाले कपड़े अलग-अलग होना चाहिएं। (6) गीले कपड़े नहीं पहनने चाहिएं।

Home Science Guide for Class 8 PSEB निजी देखभाल Important Questions and Answers

I. बहुविकल्पी प्रश्न

प्रश्न 1.
विटामिन B की कमी से कौन-सा रोग होता है ?
(क) बेरी-बेरी
(ख) स्कर्वी
(ग) अंधराता
(घ) अनीमिया।
उत्तर-
(क) बेरी-बेरी

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प्रश्न 2.
विटामिन C का स्रोत नहीं है
(क) आँवला
(ख) संगतरा
(ग) नींबू
(घ) कोई नहीं।
उत्तर-
(घ) कोई नहीं

प्रश्न 3.
ऊन के रेशों की सतह कैसी होती है ?
(क) खुरदरी
(ख) मुलायम
(ग) चीकनी
(घ) कोई नहीं।
उत्तर-
(क) खुरदरी

प्रश्न 4.
पानी में घुलनशील विटामिन है
(क) A
(ख) D
(ग) C
(घ) कोई नहीं।
उत्तर-
(ग) C

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प्रश्न 5.
कोल्ड क्रीम का प्रयोग ……… मौसम में किया जाता है।
(क) सर्द
(ख) गर्म
(ग) वरसात
(घ) कोई नहीं।
उत्तर-
(क) सर्द

प्रश्न 6.
दूध कैसा आहार है ?
(क) पूर्ण
(ख) आधा
(ग) अपूर्ण
(घ) साधारण।
उत्तर-
(क) पूर्ण

प्रश्न 7.
शरीर की सफ़ाई के लिए आवश्यक है। (From Board M.Q.P.)
(क) साबुन
(ख) तेल
(ग) क्रीम तथा पाऊडर
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(क) साबुन

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II. ठीक/गलत बताएं

  1. सोयाबीन में प्रोटीन तत्त्व मिलता है।
  2. आँवले में विटामिन C होता है।
  3. कोल्ड क्रीम में चिकनाई होती है।
  4. निशास्ते वाले भोजन में प्रोटीन अधिक होता है। 5. तंग वस्त्र पहनना अच्छी बात है।

उत्तर-

III. रिक्त स्थान भरें

  1.  ………………. क्रीम किसी भी ऋतु में प्रयोग की जा सकती है।
  2. शरीर का निर्माण करने वाले तत्त्व प्रोटीन तथा …….
  3. वनस्पति वाली खुराक में अधिक ……………… होता है।
  4. सिर और शरीर पर ………………. लगाने से त्वचा चमकदार रहती है।

उत्तर-

  1. वेनिशिंग,
  2. खनिज लवण,
  3. फोक,
  4. तेल।

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IV. एक शब्द में उत्तर देंप्रश्न

प्रश्न 1.
नींबू और संतरे में कौन-सा विटामिन पाया जाता है ?
उत्तर-
विटामिन सी।

प्रश्न 2.
विटामिन सी की कमी से कौन-सा रोग हो जाता है ?
उत्तर-
स्कर्वी।

प्रश्न 3.
दूध को कैसा आहार कहा जाता है ?
उत्तर-
सम्पूर्ण आहार।

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प्रश्न 4.
बेरी-बेरी रोग किस विटामिन की कमी से होता है ?
उत्तर-
विटामिन B की कमी से।

प्रश्न 5.
भोजन के कौन-से. पौष्टिक तत्त्व में नाइट्रोजन पाई जाती है ?
उत्तर-
प्रोटीन में।

प्रश्न 6.
विटामिन B की कमी से कौन-सा रोग हो जाता है ?
उत्तर-
बेरी बेरी।

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प्रश्न 7.
भोजन का कौन-सा पौष्टिक तत्त्व सोयाबीन में सब से अधिक पाया जाता
उत्तर-
प्रोटीन तत्त्व।

प्रश्न 8.
नींबू तथा आंवले में कौन-सा विटामिन पाया जाता है ?
उत्तर-
विटामिन

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
भोजन के तत्त्वों के नाम लिखें।
उत्तर-
कार्बोज, प्रोटीन, चिकनाई, विटामिन तथा लवण।

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प्रश्न 2.
भोजन के तत्त्व शरीर के लिए क्यों आवश्यक होते हैं ?
उत्तर-
शरीर को जीवित रखने तथा शारीरिक विकास हेतु।

प्रश्न 3.
भोजन के हमारे शरीर के लिए प्रमुख कार्य क्या हैं ?
उत्तर-
शरीर निर्माण, ऊर्जा प्रदान करना, शरीर में होने वाली क्रियाओं पर नियन्त्रण करना तथा शरीर को रोग निवारक क्षमता प्रदान करना।

प्रश्न 4.
हमारे शरीर का पोषण करने वाले तत्त्व क्या कहलाते हैं ?
उत्तर-
पोषक तत्त्व।

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प्रश्न 5.
शरीर का निर्माण करने वाले तत्त्व क्या होते हैं ?
उत्तर-
प्रोटीन्स तथा खनिज लवण।

प्रश्न 6.
शरीर की सुरक्षा करने वाले पदार्थ कौन-से होते हैं ?
उत्तर-
विटामिन्स तथा खनिज लवण।

प्रश्न 7.
जल का शरीर के लिए प्रमुख कार्य क्या है ?
उत्तर-
यह पोषक तत्त्वों तथा शरीर क्रियाओं के नियमन का कार्य करता है।

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प्रश्न 8.
कार्बोज किस-किस तत्त्व से मिलकर बनते हैं ?
उत्तर-
कार्बन, हाइड्रोजन तथा ऑक्सीजन।

प्रश्न 9.
प्रोटीन किस-किस तत्त्व से मिलकर बने होते हैं ?
उत्तर-
कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन, नाइट्रोजन, फॉस्फोरस एवं गन्धक।

प्रश्न 10.
कार्बोज के दो प्रमुख प्राप्ति स्रोत बताएं।
उत्तर-
अनाज तथा गन्ना।

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प्रश्न 11.
प्रोटीन के दो प्रमुख स्रोत बताएं।
उत्तर-
अण्डा तथा दालें।

प्रश्न 12.
किन-किन वनस्पतियों में प्रोटीन अधिक पाया जाता है ?
उत्तर-
दालें, अनाज, सोयाबीन, अखरोट, मूंगफली, बादाम, सेम के बीज, मटर आदि।

प्रश्न 13.
जन्तुओं से प्राप्त किन-किन पदार्थों में प्रोटीन अधिक मात्रा में होती है ?
उत्तर-
दूध, दही, मक्खन, पनीर, अण्डे, मांस, मछली।

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प्रश्न 14.
कौन-कौन से स्टार्चयुक्त पदार्थों में कार्बोहाइड्रेट अधिक पाया जाता है ?
उत्तर-
चावल, गेहूँ, शकरकन्द, मक्का, साबूदाना, जौ, अखरोट, आलू आदि।

प्रश्न 15.
वसा के दो प्रमुख स्त्रोत बताइए।
उत्तर-
तेलीय बीज तथा दूध।।

प्रश्न 16.
शरीर के लिए आवश्यक पाँच खनिज तत्त्व बताइए।
उत्तर-
कैल्शियम, फॉस्फोरस, लोहा, आयोडीन तथा सोडियम।

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प्रश्न 17.
हमारे शरीर को जल-प्राप्ति के प्रमुख स्त्रोत क्या हैं ?
उत्तर-

  1. भोजन जो हम खाते हैं, तथा
  2. पानी जो हम पीते हैं।

प्रश्न 18.
कार्बोहाइड्रेट का प्रमुख कार्य क्या है ?
उत्तर-
शरीर की क्रियाशीलता हेतु ऊर्जा प्रदान करना।

प्रश्न 19.
शरीर में वसा का प्रमुख कार्य क्या है ?
उत्तर-
शरीर को ऊर्जा तथा शक्ति प्रदान करना।

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प्रश्न 20.
लोहा प्राप्ति के प्रमुख साधन क्या हैं ?
उत्तर-
लिवर, मांस, मछली, अण्ड, हरी पत्तेदार सब्जियाँ, अनाज, पूर्ण गेहूँ, दालें, सेला चावल आदि।

प्रश्न 21.
(1) लोहा शरीर के लिए क्यों आईयक है ?
(2) लोहे की कमी से कौन-सा रोग हो जाता
उत्तर-

  1. प्रोटीन के साथ संयोग करके हीमोग्लोबिन का निर्माण करता है।
  2. अनीमिया।

प्रश्न 22.
शरीर में सोडियम का एक कार्य बताइए।
उत्तर-
शरीर में क्षार तथा अम्ल का सन्तुलन बनाए रखना।

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प्रश्न 23.
(i) विटामिन ‘ए’ की कमी के चार मुख्य प्राव लि
अथवा
विटामिन ‘ए’ की कमी से कौन-सा रोग होता है ?
(ii) आँखों की रोशनी के लिए कौन-सा विटामिन ज़रूरी है ?
(iii) अंधराता रोग ( रतौंधी) किस विटामिन की कमी से होता है ?
उत्तर-

  1. अंधराता रोग,
  2. मांसपेशियां कमज़ोर हो जाती हैं,
  3. शरीर दुर्बल हो जाता है,
  4. रोग क्षमता कम हो जाती है।

प्रश्न 24.
रिकेटरोधी विटामिन किसे कहते हैं ?
उत्तर-
विटामिन D को।

प्रश्न 25.
विटामिन C की प्राप्ति के प्रमुख साधन क्या हैं ?
उत्तर-
खट्टे रसदार फल, जैसे-आँवला, सन्तरा, टमाटर आदि।

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प्रश्न 26.
कौन-कौन से शर्करायुक्त पदार्थों में कार्बोहाइड्रेट अधिक पाया जाता है ?
उत्तर-
शहद, चीनी, गुड़, शीरा, चुकन्दर, अंगूर तथा अन्य मीठे फल।

प्रश्न 27.
जन्तुओं से प्राप्त होने वाले वसा पदार्थ कौन-से हैं ?
उत्तर-
घी, दूध, मक्खन, क्रीम, दही, पनीर, जानवरों की चर्बी, मछली, अण्डे की सफेदी।

प्रश्न 28.
वनस्पति से प्राप्त होने वाले वसा पदार्थ कौन-से हैं ?
उत्तर-
मूंगफली, सरसों, तिल, नारियल, बादाम, अखरोट, चिलगोजा आदि।

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प्रश्न 29.
प्रोटीन की कमी से होने वाले दो रोग कौन-से हैं ?
उत्तर-
मेरेस्मस तथा क्वाशियोरकर।

प्रश्न 30.
आवश्यकता से अधिक मात्रा में कार्बोज लेने से कौन-से रोग हो जाते हैं ?
उत्तर-

  1. मोटापा या मेदुरता, तथा
  2. मधुमेह (डायबिटीज़)।

प्रश्न 31.
शरीर में आवश्यकता से कम मात्रा में कार्बोहाइड्रेट का क्या प्रभाव होता है ?
उत्तर-

  1. दुर्बलता,
  2. शरीर की क्रियाशीलता कम होना,
  3. त्वचा में झुर्रियाँ पड़ना,
  4. त्वचा का लटक जाना,
  5. आन्तरिक अवयवों के विकास में अवरुद्धि।

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प्रश्न 32.
शरीर में आयोडीन की कमी से कौन-सा रोग हो जाता है ?
उत्तर-
गोइटर (Goitre)

प्रश्न 33.
रेयॉन के वस्त्रों पर अम्ल तथा क्षार का क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर-
शक्तिशाली अम्ल तथा क्षार दोनों से ही रेयॉन के वस्त्रों को हानि होती है।

प्रश्न 34.
रेयॉन किस प्रकार का रेशा है ?
उत्तर-
सेल्यूलोज से उत्पादित कृत्रिम रेशा।

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प्रश्न 35.
रेयॉन के वस्त्रों को धोते समय क्या बातें वर्जित हैं ?
उत्तर-
वस्त्र को पानी में फुलाना, ताप, शक्तिशाली रसायनों तथा ऐल्कोहल का प्रयोग।

प्रश्न 36.
रेयॉन के वस्त्रों की धुलाई के लिए कौन-सी विधि उपयुक्त होती है ?
उत्तर-
गूंधने और निपीडन की विधि।

प्रश्न 37.
रेयॉन के वस्त्रों को कहाँ सुखाना चाहिए ?
उत्तर-
छायादार स्थान पर तथा बिना लटकाये हुए चौरस स्थान पर।

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प्रश्न 38.
रेयॉन के वस्त्रों पर इस्तरी किस प्रकार करनी चाहिए ?
उत्तर-
कम गर्म इस्तरी वस्त्र के उल्टी तरफ़ से करनी चाहिए। इस्तरी करते समय वस्त्र में हल्की सी नमी होनी चाहिए।

प्रश्न 39.
ऊन का तन्तु कैसा होता है ?
उत्तर-
काफी कोमल, मुलायम और प्राणिजन्य।

प्रश्न 40.
ऊन का तन्तु आपस में किन कारणों से जुड़ जाता है ?
उत्तर-
नमी, क्षार, दबाव तथा गर्मी के कारण।

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प्रश्न 41.
ऊन के तन्तुओं की सतह कैसी होती है ?
उत्तर-
खुरदरी।

प्रश्न 42.
ऊन के रेशों की सतह खुरदरी क्यों होती है ?
उत्तर-
क्योंकि ऊन की सतह पर परस्पर व्यापी शल्क होते हैं।

प्रश्न 43.
ऊन के रेशों की सतह के शल्कों की प्रकृति कैसी होती है ?
उत्तर-
लसलसी, जिससे शल्क जब पानी के सम्पर्क में आते हैं तो फूलकर नरम हो जाते हैं।

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प्रश्न 44.
ऊन के रेशों के शत्रु क्या हैं ?
उत्तर-
नमी, ताप और क्षार

प्रश्न 45.
ताप के अनिश्चित परिवर्तन से रेशों पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर-
रेशों में जमाव व सिकुड़न हो जाती है।

प्रश्न 46.
ऊन के वस्त्रों को किस प्रकार के साबुन से धोना चाहिए ?
उत्तर-
कोमल प्रकृति के शुद्ध क्षार रहित साबुन से।

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प्रश्न 47.
धुलाई से कभी-कभी ऊन क्यों जुड़ जाती है ?
उत्तर-
ऊनी वस्त्र को धोते समय जब उसे पानी या साबुन के घोल में हिलाया डुलाया जाता है तो ऊन के तन्तुओं के रेशे आपस में एक-दूसरे के ऊपर चढ़ जाते हैं जिसके फलस्वरूप ऊन जुड़ जाती है।

प्रश्न 48.
शरीर की वृद्धि के लिए भोजन का कौन-सा तत्त्व आवश्यक है ?
उत्तर-
प्रोटीन।

प्रश्न 49.
साबुन का निजी सफ़ाई में क्या महत्त्व है ?
उत्तर-
साबुन चिकनाई को अपने में घोल लेता है तथा इस प्रकार जो मैल चिकनाई के साथ चिपकी होती है, भी पानी डालने से निकल जाती है।

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प्रश्न 50.
विटामिन-सी की कमी से कौन-सा रोग हो जाता है ?
उत्तर-
स्कर्वी।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
पोषण तत्त्व या पोषक तत्त्व (Nutrients) क्या होते हैं ?
उत्तर-
वे तत्त्व जो हमारे शरीर का पोषण करते हैं, पोषण तत्त्व या पोषक तत्त्व कहलाते हैं। ये भोजन के घटक (Components) होते हैं। ये शरीर की वृद्धि, जनन तथा स्वस्थ जीवनयापन के लिए आवश्यक होते हैं। साधारण रूप में छ: प्रकार के तत्त्व या भोज्य घटक हैं जो हमारे शरीर का पोषण करते हैं। ये हैं-

  1. प्रोटीन्स (Proteins),
  2. वसा 15 (Fats),
  3. कार्बोज (Carbohydrates),
  4. खनिज लवण (Minerals),
  5. विटामिन्स (Vitamins),
  6. जल (Water)

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प्रश्न 2.
प्रोटीन क्या है ? आहार में इसकी कमी से क्या हानियाँ हैं ?
उत्तर-
प्रोटीन भोजन के आवश्यक तत्त्वों में से एक तत्त्व है।
जीवद्रव्य का निर्माण करने वाला मुख्य पदार्थ प्रोटीन है। पानी के अतिरिक्त शरीर में सर्वाधिक अंश प्रोटीन का है। प्रोटीन शरीर के तन्तु, रक्त, एन्जाइम, अन्तःस्रावी ग्रन्थियों से निकलने वाले हारमोन्स, कोमल तन्तु एवं अस्थियों में होता है। प्रोटीन, कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन, नाइट्रोजन के संयोग से बना ऐसा यौगिक है जो विभिन्न प्रकार के ऐमीनो अम्लों के संयोजन से बनता है।
कमी और हानियाँ-

  1. बच्चों के आहार में प्रोटीन की कमी हो जाने से उसका विकास रुक जाता है।
  2. सूखा और क्वाशियारकर रोग हो जाता है।
  3. वयस्कों में इसकी कमी से भार होने के साथ एनीमिया रोग भी हो जाता है।

प्रश्न 3.
विभिन्न पोषक तत्त्वों (Nutrients) के विशिष्ट कार्य बताइए।
उत्तर-
विभिन्न पोषक तत्त्वों के विशिष्ट कार्य निम्नलिखित हैं-
1. कार्बोज-इनका प्रमुख कार्य ऊर्जा प्रदान करना है। जिन कार्बोजों का शरीर में उसी समय उपभोग नहीं हो पाता, वे संग्रह कर लिए जाते हैं। ये वसा के रूप में परिवर्तित होकर संग्रहीत होते हैं। ये संग्रहीत पदार्थ जब आवश्यकता होती है तब ऊर्जा प्रदान करते हैं।

2. प्रोटीन-प्रोटीन का मुख्य कार्य नए ऊतकों का निर्माण तथा पूर्व-निर्मित कोशिकाओं की मरम्मत करना होता है। प्रोटीन सुरक्षा प्रदान करने वाले तथा नियामक (Regulator) भी होते हैं। आवश्यकता से अधिक मात्रा में ग्रहण किए गए प्रोटीन, कार्बोज तथा बसा में परिवर्तित होकर शरीर में संग्रहीत हो जाते हैं।

3. वसा-वसा का मुख्य कार्य शरीर को ऊर्जा प्रदान करना है। ये वसा घुलित विटामिनों तथा आवश्यक वसीय अम्लों के वाहक भी होते हैं। आवश्यकता से अधिक ग्रहण किए गए वसा शरीर में चर्बी के रूप में जमा हो जाते हैं।

4. खनिज-इनका कार्य शरीर-निर्माण (हड्डी, दाँत और कोमल ऊतकों के रचनात्मक भाग) तथा नियमन (पेशी संकुचन) होता है।

5. विटामिन-इनका कार्य शरीर की वृद्धि तथा विभिन्न शारीरिक क्रियाओं के नियमन का होता है। . 6. जल-शरीर का आवश्यक भाग जल होता है। जल पोषक तत्त्वों के संवहन तथा शारीरिक क्रियाओं के नियमन का कार्य करता है।

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प्रश्न 4.
भोजन का हमारे शरीर के लिए मुख्य कार्य क्या है ?
उत्तर-
भोजन हमारे शरीर को गर्मी और शक्ति देता है। नए कोष बनाता है और पुरानों की मुरम्मत करता है और हमारे शरीर में ऐसे हारमोन्स और एन्जाइम बनाता है जिससे हमारा शरीर ठीक अवस्था में रहता है।

प्रश्न 5.
क्रीम और तेल का निजी सफाई में क्या महत्त्व है ?
उत्तर-
सिर तथा शरीर पर तेल लगाने से त्वचा की खुश्की दूर हो जाती है तथा एक चमक सी आ जाती है। क्रीम से चेहरा चमकदार तथा निखर जाता है कई क्रीमों से चेहरे पर कील तथा छाइयां दूर हो जाते हैं।

प्रश्न 6.
वस्त्रों के रेशे मुख्यतः कितनी प्रकार के होते हैं ?
उत्तर-
वस्त्रों के रेशे मुख्यतः पांच प्रकार के होते हैं-सूती, लिनन, रेशम, ऊन, टैरीलीन।

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प्रश्न 7.
कोल्ड क्रीम के बारे में क्या जानते हो ?
उत्तर-
कोल्ड क्रीम का प्रयोग सर्दियों में होता है तथा इसमें चिकनाई होती है ताकि खुश्की दूर की जा सके।

प्रश्न 8.
भारतीय खुराक में कमियां क्या हैं ?
उत्तर-
भारतीय खुराक की साधारण कमियाँ निम्नलिखित हैं-

  1. भोजन में कैलोरी की मात्रा कम होना।
  2. भोजन मे प्रोटीन की कमी।
  3. प्राणीजन प्रोटीन का बहुत कम या बिल्कुल न होना।
  4. चिकनाई का बहुत कम होना और प्राणीजन चिकनाई का न होना।
  5. एक या अधिक विटामिनों की कमी होना।
  6. एक या अधिक खनिज लवण की कमी, खासकर चूना और लोहे की कमी।

प्रश्न 9.
यदि आवश्यकता से कम भोजन खाया जाए तो क्या होता है ?
उत्तर-
कई बार ऐसी परिस्थितियां बन जाती हैं, जब भोजन की उपलब्धता पूर्ण रूप से नहीं होती है तथा हम कम भोजन खाने के लिए मजबूर हो जाते हैं; जैसे-लड़ाई के दिनों में, बाढ़ की स्थिति में, भुखमरी जैसे हालात होने पर। पूर्ण आहार न मिलने पर शरीर का भार कम होने लगता है, कमज़ोरी हो जाती है, रक्त की कमी हो जाती है, रोगों से लड़ने की शक्ति भी कम हो जाती है। बच्चे यदि पूरा भोजन नहीं लेते तो वे बुद्ध बन जाते हैं।

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प्रश्न 10.
आवश्यकता से अधिक भोजन खाने से क्या होता है ?
उत्तर-
ऐसी स्थिति में अमाशय तथा आंतों को अधिक कार्य करना पड़ता है। गुर्दो पर बोझ पड़ता है। पेट में गैस पैदा होती है। मुँह में से बदबू आने लगती है तथा सिर दर्द करने लगता है। पेट सम्बन्धी रोग हो जाते हैं, रक्त दबाव बढ़ जाता है तथा कई अन्य रोग हो सकते हैं।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
कार्बोज के विभिन्न स्रोत तथा कार्य बताइए।
उत्तर-
शरीर को शक्ति प्रदान करने का मुख्य साधन कार्बोहाइड्रेट है।
स्रोत या साधन–सबसे अधिक कार्बोज अनाजों में मिलता है, इसके बाद जड़ व तने वाली सब्जियों में। कुछ मात्रा में दालों एवं फलों में भी मिलता है।

  1. शुद्ध कार्बोहाइड्रेट भोज्य पदार्थ-चीनी, गुड़, शहद, साबूदाना एवं अरारोट ।
  2. अनाज-गेहूँ, चावल, ज्वार, बाजरा, रांगी, जौ, मक्की।
  3. दालें-उड़द, मूंग, अरहर, चने की दाल, मसूर, कुलथ आदि।
  4. जड़ एवं भूमि कन्द-आलू, शकरकन्दी, चुकन्दर आदि।
  5. ताजे व सूखे फल-अंजीर, खजूर, अंगूर, किशमिश, मुनक्का, खुमानी आदि।
    PSEB 8th Class Home Science Solutions Chapter 1 निजी देखभाल 1
    चित्र 1.1 कार्बोज प्राप्त करने के साधन

उपयोग-

  1. कार्बोज शरीर को शक्ति प्रदान करते हैं। एक ग्राम कार्बोज के जलने पर हमें चार कैलोरी शक्ति मिलती है।
  2. यह प्रोटीन द्वारा उत्पन्न हुई अतिरिक्त ऊर्जा को नष्ट होने से बचाता है।
  3. यह विटामिन ‘K’ तथा नियासिन के निर्माण में शरीर में पाए जाने वाले जीवाणुओं की सहायता करता है। …
  4. कार्बोज शरीर के ताप को एक-सा रखते हैं।
  5. कार्बोज नलिकाविहीन ग्रन्थियों के रस निष्कासन में सहायक हैं।

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प्रश्न 2.
वसा के स्त्रोत तथा कार्य लिखिए।
उत्तर-
1. स्रोत-
(1) तेल और घी-मूंगफली, सरसों का तेल, नारियल का तेल, देसी घी, वनस्पति घी एवं मक्खन।।
2. मेवा व बीज-बादाम, काजू, नारियल, मूंगफली, पिस्ता, अखरोट, सोयाबीन आदि।
3. दूध व दूध से बने पदार्थ-गाय-भैंस का दूध, खोआ, सूखा दूध आदि। मांसाहारी भोजन-अण्डा, मांस, मछली, लिवर आदि।
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चित्र 1.2 वसा प्राप्त करने के साधन
4. कार्य-

  1. वसा का प्रमुख कार्य हमारे शरीर को ऊर्जा तथा शक्ति प्रदान करना है। वसाएँ ऊर्जा के सबसे अधिक सान्द्रित स्रोत हैं। 1 ग्राम वसा से हमें 9 कैलोरी ऊर्जा प्राप्त होती है।
  2. वसा में शरीर के लिए आवश्यकतानुसार ऊर्जा संग्रह का गुण होता है।
  3. वसाएं वसा घुलित विटामिनों (A, D, E, K) को शरीर में पहुंचाती हैं तथा इन विटामिनों के अवशोषण में सहायता करती हैं।
  4. वसाएं वसीय अम्लों का स्रोत होती हैं। ये बाल्यावस्था में वृद्धि के लिए अत्यन्त आवश्यक होती हैं और त्वचा को स्वस्थ बनाए रखती हैं।
  5. वसाएं शरीर के अंगों के चारों ओर गद्दी का कार्य करती हैं। उन्हें ठीक स्थान पर सीधे रखती हैं। उन्हें चोटों से बचाती हैं तथा स्नायुओं की रक्षा भी करती हैं।
  6. वसाएँ ताप की अल्पचालक होने के कारण शरीर की ऊर्जा की हानि को रोकती हैं।
  7. वसाओं की उपस्थिति से भोजन के स्वाद तथा परितृप्ति में वृद्धि होती है।

प्रश्न 3.
भारतीय आहार की कमियों के बारे में लिखें।
उत्तर-
स्वयं उत्तर दें।

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निजी देखभाल PSEB 8th Class Home Science Notes

  • भोजन हमारे शरीर को गर्मी और शक्ति देता है।
  • भोजन हमारे शरीर में ऐसे हारमोन्स और एन्ज़ाइम बनाता है जिससे हमारा शरीर ठीक अवस्था में रहता है।
  • भोजन के तत्त्व 6 प्रकार के होते हैं-कार्बोहाइड्रेट, वसा, प्रोटीन, पानी, खनिज लवण और विटामिन।
  • कार्बोहाइड्रेट, वसा और प्रोटीन हमारे शरीर को गर्मी और काम करने की शक्ति देते है।
  • कार्बोहाइड्रेट हमें निशास्ते वाली चीज़ों-चावल, आटा, आलू, शक्करकंदी, केला, गुड़, चीनी, शहद और फलों से मिलता है।
  • वसा-दूध, घी, मक्खन, तेल, तेलों के बीज, सूखे मेवे, जानवरों की चर्बी और वनस्पति घी से मिलती है।
  • प्रोटीन-वनस्पति और प्राणीजन दोनों साधनों से मिलती है।
  • खनिज लवण हमें दूध, कलेजी, अण्डे, हरी सब्जियों और फलों से भी मिलते हैं।
  • आवश्यकता से अधिक खाना खाने से आमाशय और आँतों को अधिक मेहनत करनी पड़ती है।
  • कम खाने से बीमारियों का सामना करने की शक्ति कम हो जाती है और विशेषकर तपेदिक रोग होने का डर रहता है। बच्चे यदि कम खाना खाएं तो मन्द बुद्धि के हो
    जाते हैं और जल्दी थक जाते हैं।
  • स्नान करने के लिए हमेशा नरम साबुन का इस्तेमाल करना चाहिए।
  • हमेशा स्नान करते समय अच्छे साबुनों का ही इस्तेमाल करना चाहिए, जैसे- हमाम, रैक्सोना, लिरिल, सन्दल मोती आदि।
  • कई साबुनों में कीटाणुनाशक दवाई कारबोलिक और नीम आदि भी पाए जाते हैं, जैसे-लाइफबॉय, डीटोल, नीको और नीम साबुन में।
  • छोटे बच्चों के लिए जैतून का तेल या खास बनाए हुए तेलों की मालिश करनी चाहिए।
  • सूती कपड़े गर्मी के अच्छे संचालक होते हैं और पानी को भी ज्यादा नहीं सोखते।
  • रेशम-यह रेशम के कीड़ों से बनायी जाती है।
  • टैरीलीन, नाइलॉन-ये कपड़े पहनने में हल्के, धोने में आसान और अधिक दिनों तक चलने वाले होते हैं।
  • मौसम के अनुसार इस तरह के कपड़े पहनने चाहिएं जिससे शरीर का तापमान ठीक रहता है। गर्मियों में हल्के, खुले और फीके रंगों के कपड़े पहनने चाहिएं।
  • रंगदार कपड़े नीचे पहनने वाले कपड़ों के लिए इस्तेमाल नहीं करने चाहिएं।
  • पोशाक में तंग (कसे) पोशाक से कम सर्दी लगती है। खुले कपड़े पहनने से कपड़ों और शरीर के बीच में एक हवा की तह बन जाती है जिस कारण शरीर की गर्मी
    बाहर नहीं निकलती।
  •  गर्मियों में बाहर जाते समय सिर पर टोपी डालनी चाहिए ताकि सिर पर सूर्य की किरणों का असर न हो।
  •  गर्मियों में चप्पल पहननी चाहिए, खेलते समय बच्चों को कपड़े के बूट पहनने चाहिएं।

PSEB 10th Class Welcome Life Solutions Chapter 3 आपसी संबंध

Punjab State Board PSEB 10th Class Welcome Life Book Solutions Chapter 3 आपसी संबंध Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 10 Welcome Life Chapter 3 आपसी संबंध

PSEB 10th Class Welcome Life Guide आपसी संबंध Textbook Questions and Answers

अभ्यास-I

प्रश्न 1.
इस नाटक को पढ़ने के बाद आपको क्या महसूस हुआ?
उत्तर-
इस नाटक को पढ़ने के बाद, हमने महसूस किया कि हमें बड़ों के साथ दुर्व्यवहार नहीं करना चाहिए बल्कि उनके साथ अच्छा व्यवहार करना चाहिए। जब हम बच्चे थे, तो उन्होंने हमें बड़े प्यार से पाला और जब वे काफी बूढ़े हो गए और वे कुछ नहीं कर सकते, तो हमें उनसे दूर नहीं होना चाहिए, बल्कि उसी प्यार से उनकी सेवा करनी चाहिए जैसे उन्होंने की थी। ऐसे करने से उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है और हमारे बच्चों को यह भी प्रेरित करता है कि हम बड़ों के साथ कैसा व्यवहार करें।

प्रश्न 2.
आप अपने बड़ों की देखभाल कैसे करते हैं?
उत्तर-

  1. हम अपने बड़ों के साथ कभी दुर्व्यवहार नहीं करते हैं। इसके बजाय हम उनके साथ बड़े प्यार से बात करते हैं। इससे उन्हें खुशी होती है, चाहे वे कितनी भी कठिनाई का सामना कर रहे हों।
  2. हम उन्हें प्यार से खिलाते हैं ताकि वे अलग-अलग महसूस न करें।
  3. हम अपने बड़ों के साथ प्यार से बैठते हैं और उनके जीवन के अनुभवों को सुनते हैं ताकि हम जीवन में वे गलतियां न करें जो शायद उन्होंने की हों।
  4. कभी-कभी हमें उनके साथ बैठना और बातचीत करनी चाहिए ताकि वे अकेलापन महसूस न करें।

प्रश्न 3.
नाटक का कौन-सा चरित्र है, आप सबसे अधिक सहनशील व्यक्ति पाते हैं?
उत्तर-
मुझे रितंबर (पोता) नाटक में सबसे अधिक सहनशील चरित्र के रूप में मिलता है। इसका कारण यह है कि वह अपनी दादी से बहुत प्यार करता है लेकिन वह उसके लिए कर कुछ नहीं सकता। वह देखता है कि कैसे उसके पिता (करणबीर) और मां (सिमरन) उसकी दादी के साथ दुर्व्यवहार करते हैं। कई बार वह इसका विरोध करता है लेकिन असहाय है। उसकी दादी को वृद्धाश्रम भेज दिया जाता है लेकिन वह कुछ नहीं कर पाता। उसके पास धैर्य दिखाने के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं बचा।

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प्रश्न 4.
नाटक के पात्रों के बारे में अपनी राय दें। 1. दादी 2. रितंबर 3. माँ 4. करणबीर।
उत्तर-

  1. दादी-वह इस लघु नाटक की बेहतरीन पात्र है क्योंकि वह जानती थी कि करणबीर उनका गोद लिया
    पुत्र है और कुछ और कहने की बजाय वह कहती है कि उसे एक वृद्धाश्रम भेज दे। यह घर में चल रहे रोज़ाना के झगड़े को रोक देगा। वह वृद्धाश्रम में गर्मी में रहती है लेकिन अपने बेटे को दो पंखे और फ्रिज दान करने के लिए कहती है ताकि दूसरों को भीषण गर्मी से राहत मिल सके। इस तरह, वह भाग्य के रूप में हर दुःख को समाप्त करती है।
  2. रितंबर-रितंबर लघु नाटक का सबसे सहनशील चरित्र है क्योंकि वह अपनी दादी से बहुत प्यार करता है, , लेकिन वह अपनी दादी के लिए कुछ नहीं कर सकता। वह अपनी दादी के लिए अपने माता-पिता से भी लड़ता है लेकिन वे कभी भी उसकी भावनाओं की परवाह नहीं करते। इसलिए वह काफी सहनशील लगता है।
  3. माँ (सिमरन)-सिमरन ने इस नाटक में बहू का किरदार निभाया है और वह दोहरे चरित्र की है। एक तरफ वह अपनी सास को सताती है और अपने पति को उसे वृद्धाश्रम भेजने के लिए मजबूर करती है और दूसरी तरफ वह अपने भाई को धमकी देती है कि वह माँ की देखभाल करे। इस तरह उसे एक क्रूर बहू और एक प्यारी बेटी के रूप में चित्रित किया गया है।
  4. पापा (करणबीर)-करणबीर नाटक का एक पात्र है जो अपनी माँ को वृद्धाश्रम भेजता है। उसने कभी अपने बेटे की परवाह नहीं की और न ही कभी अपनी माँ के लिए कोई प्यार दिखाया। अंत में, जब उसे पता चलता है कि वह गोद लिया पुत्र है, तो वह अपनी माँ को वापस अपने घर ले जाने का फैसला करता है।

अभ्यास-II

स्थिति 1:
आप एक सड़क पर जा रहे हैं। आपके सामने, एक लड़का एक केला खा रहा है और वह केले के छिलके को सड़क पर फेंक देता है, तो आपकी प्रतिक्रिया क्या होगी?
(i) आप लड़के को उसकी ग़लती के बारे में समझाएंगे।
(ii) आप केले के छिलके को उठाने के लिए किसी और को बुलाएंगे।
(iii) आप स्वयं केले के छिलके को उठाकर कूड़ेदान में फेंक देंगे।
(iv) आप पुलिस को कॉल करेंगे और लड़के की शिकायत करेंगे।
उत्तर-
(i) आप लड़के को उसकी ग़लती के बारे में समझाएंगे।

स्थिति 2:
आपके जन्मदिन पर आपके दोस्तों ने आपको खाली चॉक बाक्स गिफ्ट किया है। बाक्स पूरी तरह से खाली है। आपकी प्रतिक्रिया क्या होगी?
(i) आप उनसे बात करनी बंद कर देंगे।
(ii) आप उन्हें देखेंगे और मुस्कुराएंगे।
(iii) आप उनकी उपेक्षा करेंगे।
(iv) आप उनके प्रति गुस्से में देखेंगे।
उत्तर-
(i) आप उन्हें देखेंगे और मुस्कुराएंगे।

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Welcome Life Guide for Class 10 PSEB आपसी संबंध Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

(क) बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
रितंबर की आयु क्या है?
(a) 7-8 वर्ष
(b) 8-9 वर्ष
(c) 9-10 वर्ष
(d) 11-12 वर्ष।
उत्तर-
(a) 7-8 वर्ष।

प्रश्न 2.
करणबीर को किसने कहा कि वह गोद लिया हुआ बेटा है?
(a) माँ ने
(b) सिमरन ने
(c) प्रबंधक ने
(d) रितंबर ने।
उत्तर-
(c) प्रबंधक ने।

प्रश्न 3.
दादी को उनके बेटे करणबीर ने कहां भेजा था?
(a) सिमरन के घर पर
(b) वृद्धाश्रम
(c) तीर्थ यात्रा
(d) घूमने के लिए।
उत्तर-
(b) वृद्धाश्रम।

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प्रश्न 4.
………… की सामाजिक सीमाएं होती हैं?
(a) देशों
(b) संबंधों
(c) राज्यों
(d) ये सभी।
उत्तर-
(b) संबंधों।

प्रश्न 5.
संबंधों को क्यों बना कर रखना चाहिए?
(a) संबंधों को तोड़ने के लिए
(b) संबंध बनाने के लिए
(c) संबंधों को बचाने के लिए
(d) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(c) संबंधों को बचाने के लिए।

प्रश्न 6.
जब भी हम किसी से विदाई लेते हैं
(a) धन्यवाद कहना चाहिए
(b) मीठी यादें साझा करके
(c) फोन नंबर साझा करके
(d) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(d) उपरोक्त सभी।

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प्रश्न 7.
जिस कहानी को अंत तक नहीं ला सकते
(a) उसको अच्छा मोड़ देकर छोड़ देना चाहिए
(b) उसको घसीटना चाहिए
(c) उसको बढ़ाना चाहिए
(d) उसको जबरदस्ती आगे बढ़ाना चाहिए।
उत्तर-
(a) उसको अच्छा मोड़ देकर छोड़ देना चाहिए।

प्रश्न 8.
इनमें से कौन-सी अच्छे व्यवहार की विशेषता है?
(a) खुश रहो
(b) आशावादी रहो
(c) मीठा बोला
(d) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(d) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 9.
सभी पात्रों में से कौन चतुर है?
(a) दादी
(b) रितंबर
(c) सिमरन
(d) प्रबंधक।
उत्तर-
(c) सिमरन।

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(ख) खाली स्थान भरें

  1. ………….. के साथ समय बिताना उनकी असली पूजा है।
  2. सिमरन ने अपने …………. को माँ की देखभाल करने के लिए कहा।
  3. करणबीर अपनी माँ को ………… में छोड़ देता है।
  4. ………….. महीनों के बाद, करणबीर अपनी माँ को मिलने के लिए जाता है।
  5. ………….. करणबीर से कहता है कि उसके पिता ने उसे वृद्धाश्रम से गोद लिया था।
  6. हर ………… की एक सीमा होती है।
  7. …………. हमारे व्यक्तित्व को चमका देता है।

उत्तर-

  1. बुजुर्ग.
  2. भाई.
  3. वृद्धाश्रम,
  4. छह,
  5. प्रबंधक,
  6. रिश्ते,
  7. अच्छा व्यवहार।

(ग) सही/ग़लत चुनें

  1. करणबीर रितंबर का पिता था।
  2. हमें बुरी यादों को भूल जाना चाहिए।
  3. हमें एक अच्छे मोड़ पर संबंधों को छोड़ना चाहिए।
  4. व्यक्ति पूरे जीवन के लिए संबंध बनाए रखते हैं।
  5. अच्छा व्यवहार हमारे व्यक्तित्व को चमका देता है।
  6. हमें सामाजिक मर्यादाओं का परीक्षण नहीं करना चाहिए।

उत्तर-

  1. सही,
  2. सही,
  3. सही,
  4. ग़लत,
  5. सही,
  6. ग़लत।

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(घ) कॉलम से मेल करें

कॉलम ए — कॉलम बी
(a) ओमिनियस — (i) निषिद्ध
(b) टी०बी० — (ii) विधि
(c) मापदंड — (iii) जो किसी के बारे में ग़लत सोचता है
(d) प्रतिबंध — (iv) रोग
(e) शिष्टाचार — (v) नियम।
उत्तर-
(a) ओमिनियस — (iii) जो किसी के बारे में ग़लत सोचता है
(b) टी०बी० — (iv) रोग
(c) मापदंड — (v) नियम
(d) प्रतिबंध — (i) निषिद्ध
(e) शिष्टाचार — (ii) विधि।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
हम अपने बुजुर्गों की पूजा कैसे कर सकते हैं?
उत्तर-
समय बिताना और उनकी सेवा करना ही बुजुर्गों की सच्ची पूजा है।

प्रश्न 2.
‘मनहूस’ कौन है?
उत्तर-दादी के अनुसार, “जो बुरा है, दूसरों के बारे में बुरा सोचता है और जो घर पर पूरे दिन लड़ता है वह एक मनहूस है।
(iv) रोग

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प्रश्न 3.
सिमरन ने रितंबर को उसकी दादी के पास जाने से क्यों रोका?
उत्तर-
क्योंकि सिमरन ने सोचा कि दादी को खांसी है, टी०बी० है और रितंबर को बीमार कर सकती है।

प्रश्न 4.
करणबीर को अपनी माँ को वृद्धाश्रम में छोड़ने के लिए किसने कहा?
उत्तर-
सिमरन ने करणबीर को अपनी माँ को वृद्धाश्रम में छोड़ने के लिए कहा।

प्रश्न 5.
सिमरन ने किसको और क्या खुशखबरी दी?
उत्तर-
सिमरन ने अपने भाई को खुशखबरी दी कि करणबीर ने अपनी माँ को वृद्धाश्रम में छोड़ दिया है।

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प्रश्न 6.
सिमरन ने अपने भाई को क्या धमकी दी?
उत्तर-
सिमरन ने अपने भाई को धमकी दी कि वह माँ की देखभाल करे नहीं तो वह उसे अपने घर ले जाएगी।

प्रश्न 7.
रितंबर ने अपने पिता को क्या बताया?
उत्तर-
रितंबर ने अपने पिता से कहा कि एक दिन वह अपने पिता को भी किसी वृद्धाश्रम भेज देगा।

प्रश्न 8.
दादी ने अपने बेटे को वृद्धाश्रम क्यों बुलाया?
उत्तर-
क्योंकि वह चाहती थी कि करणबीर दो पंखे और फ्रिज वृद्धाश्रम में दान करे।

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प्रश्न 9.
प्रबंधक ने करणबीर को क्या रहस्य बताया?
उत्तर-
प्रबंधक ने करणबीर को बताया कि पैंतीस साल पहले, उसके पिता ने उसे इसी वृद्धाश्रम से गोद लिया था।

प्रश्न 10.
करणबीर को अपनी ग़लती का एहसास कब हुआ?
उत्तर-
जब उसने महसूस किया कि वह गोद लिया हुआ बेटा है, तो उसे अपनी ग़लती का एहसास हुआ।

प्रश्न 11.
करणबीर ने ग़लती का एहसास होने पर क्या किया?
उत्तर-
वह अपनी माँ को अपने घर वापस ले आया।

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प्रश्न 12.
हमें किस सीमा को पार नहीं करना चाहिए?
उत्तर-
हमें रिश्तों की सीमा को पार नहीं करना चाहिए।

प्रश्न 13.
हमें समाज में क्या जांच करनी चाहिए?
उत्तर-
हमें समाज द्वारा तय की गई सीमाओं की जांच करनी चाहिए।

प्रश्न 14.
हमें किस शिष्टाचार को समझना चाहिए?
उत्तर-
हमें रिश्तों के शिष्टाचार को समझना चाहिए।

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प्रश्न 15.
रिश्तों को बनाए रखते हुए क्या देखना है?
उत्तर-
हमें रिश्तों की सीमा नहीं लांघनी चाहिए।

प्रश्न 16.
रिश्ते निभाते समय किस चीज़ का ध्यान रखना चाहिए?
उत्तर-
रिश्ते निभाते समय हमें ध्यान रखना चाहिए कि किसी ओर हम इतना भी न जाएं कि और रिश्तों को भूल ही जाएं।

प्रश्न 17.
क्या सभी रिश्ते जीवन भर चलते हैं?
उत्तर-
नहीं, सभी रिश्ते जीवन भर नहीं चलते।

PSEB 10th Class Welcome Life Solutions Chapter 3 आपसी संबंध

प्रश्न 18.
हम किसी से विदाई कैसे ले सकते हैं?
उत्तर-
हमें किसी से उचित शिष्टाचार से विदाई लेनी चाहिए।

प्रश्न 19.
एक अच्छे व्यवहार की विशेषताएं क्या हैं?
उत्तर-
खुश रहना, सकारात्मक रहना, कड़ी मेहनत करना, धीरे बोलना इत्यादि ऐसी विशेषताएं हैं जिनमें हमें संबंधों की सीमाएं पार नहीं करनी चाहिएं।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
नाटक की शुरुआत कैसे होती है?
उत्तर-
नाटक की शुरुआत घर के ड्राइंग रूम में होती है जहां दादी और उसका पोता रितंबर बैठे हैं और खेल रहे हैं। पोते ने दादी को उसके साथ खेलने के लिए कहा लेकिन वह थकने पर उसे मना कर देती है। फिर पोता अपनी दादी से पूछता है कि ‘ओमिनस’ का अर्थ क्या है। सबसे पहले दादी उसे समझने के लिए छोटा कहकर उसे टाल देती है लेकिन अंत में वह उसे बताती है कि वह व्यक्ति ओमिनस (Ominous) है जो खुद बुरा है और दूसरों के लिए बुरा सोचता है और जिसके कारण घर हमेशा मुसीबत में रहता है।

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प्रश्न 2.
सिमरन (माँ) क्यों नहीं चाहती कि उसका बेटा अपनी दादी के साथ खेले?
उत्तर-
सिमरन को उसकी सास पसंद नहीं थी। जब सास को खांसी होती है, तो वह सोचती है कि वह टी०बी० की मरीज है और अपनी दादी के साथ खेलने से रितंबर भी उसी से पीड़ित हो जाएगा। इसके साथ ही वह यह भी कहती है कि उसकी सास कभी भी घर का काम नहीं करती और पूरे दिन खांसती रहती है। इसलिए सिमरन नहीं चाहती कि उसका बेटा अपनी दादी के साथ खेले।

प्रश्न 3.
अपने बेटे और बहू का झगड़ा होते देख दादी क्या कहती है?
उत्तर-
जब करणबीर घर वापस आता है तो सिमरन उसकी माँ के बारे में बहुत बुरा बोलती है। सिमरन यह भी कहती है कि बुढिया को पता नहीं है कि उसने किस बीमारी से संपर्क किया है और पूरे दिन खांसी होती है। जब दादी उन दोनों के बीच लड़ाई सुनती है तो वह अपने बेटे से कहती है कि लड़ने की ज़रूरत नहीं है। इससे बेहतर है कि उसे किसी वृद्धाश्रम में छोड़ आए। वहां पर वह अपने बचे हुए दिन काट लेगी। करणबीर अपनी मां को वृद्धाश्रम छोड़ आता है।

प्रश्न 4.
दादी छह महीने के बाद अपने बेटे को वृद्धाश्रम क्यों बुलाती है?
उत्तर-
वह बड़ी समस्या के साथ वृद्धाश्रम में पहले छह महीने बिताती है लेकिन उसके बाद वह अपने बेटे को बुलाती है। सिमरन और करणबीर को लगता है कि वह अपनी मौत के किनारे पर है और इसलिए उसने उन्हें बुलाया है। जब वे वहां जाते हैं तो मां अपने पुत्र करणबीर को वहां दो पंखे दान करने के लिए कहती है क्योंकि वहां काफी गर्मी है। वह उसे फ्रिज दान करने के लिए भी कहती है क्योंकि गर्मियों के दौरान पानी बहुत गर्म होता है। वह करणबीर को कहती है कि जब उसका बेटा रितंबर उसे वृद्धाश्रम में छोड़ देगा, तो उसके आखिरी दिन आराम से व्यतीत होंगे।

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प्रश्न 5.
करणबीर को अपनी ग़लती का एहसास कब होता है?
उत्तर-
जब करणबीर वृद्धाश्रम में अपनी माँ से मिलने गया, तो उसने उससे दो पंखे और एक फ्रिज वहां पर दान करने के लिए कहा। जब करणबीर अपनी माँ से बात कर रहा था तो उस समय वृद्धाश्रम का प्रबंधक वहां आता है, उसे पहचानता है और उसे बताता है कि वृद्ध महिला के पति हरदेव सिंह बराड़ ने उसे उसी वृद्धाश्रम से गोद लिया था। यह सुनने के बाद करणबीर को अपनी ग़लती का एहसास होता है और वह अपनी माँ को अपने साथ वापस ले जाता है।

प्रश्न 6.
संबंध छोड़ने का शिष्टाचार क्या है?
उत्तर-
एक व्यक्ति अपने जीवन काल के दौरान कई रिश्ते बनाता है। कुछ रिश्ते जीवन भर चलते हैं लेकिन कुछ रिश्ते रास्ते में टूट जाते हैं और दिल के एक कोने में रह जाते हैं। कई बार, हमें एहसास होता है कि यह रिश्ता लंबे समय तक नहीं रहेगा और इसे यहां रोकना बेहतर है। इसलिए हमें ऐसे रिश्ते को उचित तरीके से खत्म करना चाहिए। हमें दूसरे व्यक्ति से बात करनी चाहिए और विनम्रता से उसे यह बताना चाहिए कि अब रिश्ते को निभाना संभव नहीं है। इसके आगे बढ़ना बेहतर है। रिश्ते से आगे बढ़ने का यह सबसे अच्छा तरीका है।

प्रश्न 7.
“अच्छा व्यवहार और रवैया हमारे व्यक्तित्व को चमका देता है”। स्पष्ट करो।
उत्तर-
इस तथ्य से कोई इनकार नहीं है कि अच्छा व्यवहार और रवैया हमारे व्यक्तित्व को चमका देता है। किसी विशेष समय में, हम कैसे प्रतिक्रिया या व्यवहार करते हैं, यह सब हमारे व्यक्तित्व के बारे में बताता है। इसलिए हमें इस तरह से व्यवहार करना सीखना चाहिए कि यह दूसरों के लिए एक सबक बन जाए। इसलिए, हमें खुश रहना चाहिए, कड़ी मेहनत करनी चाहिए, सकारात्मक बनना चाहिए और दूसरों के साथ विनम्रता से बात करनी चाहिए। ये एक अच्छे व्यवहार के गुण हैं और यह हमारे व्यक्तित्व के बारे में भी बताते हैं।

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दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
सभी रिश्तों की सामाजिक सीमाएं होती हैं।” कथन की व्याख्या करो।
उत्तर-
हमारे समाज ने कुछ नियम बनाए हैं कि हमारे रिश्ते कुछ सीमाओं के भीतर रहने के लिए बाध्य हैं, इसके अतिरिक्त यह भी बताया गया है कि हर रिश्ते में कितनी सीमा की आवश्यकता होती है। इसलिए हम कभी भी अपनी सीमाओं को पार नहीं करते हैं। हमारे माता-पिता, शिक्षक, दोस्त इत्यादि हमें लगातार ऐसी सीमाओं के बारे में बताते हैं। इसलिए हमें ऐसी सीमाओं की पहचान करनी चाहिए। सीमाओं का उल्लंघन न करें, यह हमारे साथ-साथ समाज के लिए भी अच्छा होगा।

घर के अंदर संबंध घनिष्ठता रखते हैं लेकिन घर के बाहर के रिश्ते बनावटी होते हैं और निकटता कम होती है। यह हमारे प्यार और तीव्रता पर निर्भर करता है। कई बार हम किसी अजनबी के साथ बहुत अच्छे संबंध बना लेते हैं और कभी-कभी हमारे खून के रिश्तेदारों के साथ भी खटास भरे रिश्ते बन जाते हैं। रिश्ते निभाना आसान नहीं होता। यह पेंसिल के साथ कागज़ पर एक रेखा खींचने जैसा नहीं है। यह ऐसा रिश्ता है जो जल्दी खत्म नहीं हो सकता। इसलिए रिश्तों की मर्यादा बनाए रखना ज़रूरी है।

प्रश्न 2.
रिश्ता तोड़ने या छोड़ते समय किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
उत्तर-
हम सभी एक सामाजिक जीवन जीते हैं और एक सामाजिक जीवन जीते हए, हम कई रिश्ते बनाते हैं। कछ रिश्ते जीवन भर चलते हैं लेकिन कुछ रिश्ते खत्म हो जाते हैं। किसी रिश्ते को खत्म करते समय, हमें कुछ बातों को ध्यान में रखना चाहिए ताकि यदि भविष्य में उस रिश्ते को पुनर्जीवित करने की आवश्यकता होती है, तो हम आसानी से ऐसा कर सकेंगे। हमें रिश्ते को खत्म करते समय निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखना चाहिए

  1. व्यक्ति के साथ बिताया गया समय याद रखें और उसे अच्छे से धन्यवाद दें।
  2. खट्टी यादें छोड़ दें और केवल अच्छी यादों को याद रखें और साझा करें।
  3. यदि आप उस व्यक्ति के साथ संपर्क रखना चाहते हैं।
  4. यदि आप उस व्यक्ति पर विश्वास नहीं करते हैं, तो आप भावुक न हों और उस व्यक्ति के साथ निजी जानकारी साझा न करें।
  5. उस व्यक्ति पर क्रोधित न हों या बदला लेने की कोशिश न करें ताकि बाद में पछताना न पड़े। इसलिए यह कहा जाता है कि एक कहानी को एक अच्छे मोड़ पर समाप्त करना अच्छा होगा जिसे अंत तक नहीं लिया जा सकता।

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आपसी संबंध PSEB 10th Class Welcome Life Notes

  • यह अध्याय एक छोटे नाटक से शुरू होता है, जो हमें बताता है कि हमें हमारे बुजुर्गों का सम्मान करना चाहिए।
  • नाटक की शुरुआत दादी और उसके पोते (रितंबर) के बीच हुई बातचीत से शुरू होता है। जो दोनों के बीच आंतरिक प्रेम और सहानुभूति को दिखाता है।
  • फिर कहानी में बहू (सिमरन) प्रवेश करती है जो अपने बेटे (रितंबर) को उसकी दादी से दूर रखना चाहती है।
  • तब दादी का बेटा (करणबीर सिंह बराड़) सामने आता है और उसकी पत्नी (सिमरन) उसे बताती है कि उसकी माँ (दादी) अपने पोते (रितंबर) को मेरे (सिमरन) खिलाफ उकसा रही है। वह करणबीर से पूछती है कि या तो वह अपनी माँ को वृद्धाश्रम भेज दे या वह अपनी मां के घर चली जाएगी।
  • अंत में दादी आती है और अपने बेटे करणबीर से कहती है कि उसे वृद्धाश्रम भेज दे क्योंकि वह यहां नहीं रह सकती।
  • एक तरफ करणबीर अपनी माँ को वृद्धाश्रम भेजता है और दूसरी तरफ सिमरन अपने भाई को माँ की देखभाल करने की धमकी देती है कि नहीं तो वह माँ को अपने घर ले जाएगी।
  • फिर छह महीने बाद दृश्य बदल जाता है जब वृद्धाश्रम से करणबीर की माँ का फोन आता है कि वह उसे मिलना चाहती है।
    करणबीर और सिमरन को लगता है कि यह उसका आखिरी समय है और इसलिए वह दोनों उससे मिलने के लिए तैयार हो गए।
  • दादी अपने बेटे करणबीर को दो पंखे और एक फ्रिज वृद्धाश्रम में दान करने के लिए कहती है क्योंकि लोगों को वहां बहुत सारी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। करणबीर चीज़ों को दान करने के लिए सहमत हो जाता है।
  • इसी समय वृद्धाश्रम का प्रबंधक आता है, करणबीर को पहचानता है और उसे बताता है कि पैंतीस साल पहले उसके पिता हरदेव सिंह ने उसे यहां से गोद लिया था। यदि वह उसे न अपनाता तो वह कहीं भिखारी होता।
  • प्रबंधक की बात सुनने के बाद, करणबीर और सिमरन को एहसास हुआ कि उन्होंने अपनी माँ के साथ गलत किया है। उन्होंने माँ को सॉरी कहा और अपने घर ले गये।
  • यह लघु नाटक हमें बताता है कि हमें अपने बड़ों के साथ दुर्व्यवहार नहीं करना चाहिए। इसके बजाय हमें उनका सम्मान करना चाहिए और उनसे आशीर्वाद लेना चाहिए।
  • हर रिश्ते की एक सामाजिक सीमा होती है और हमें ऐसी सीमाओं का ध्यान रखना चाहिए।
  • सभी रिश्ते महत्त्वपूर्ण हैं और उनके महत्त्व को ध्यान में रखते हुए हमें अपनी सीमाएं बनाए रखनी चाहिए।
  • करीबी और दूर के रिश्तों में प्यार और तीव्रता होनी चाहिए। इसलिए रिश्तों की मर्यादा में रहना चाहिए।
  • व्यक्ति जीवन में कई तरह के रिश्ते बनाता है। कुछ रिश्ते जीवन भर चलते हैं और कुछ रास्ते में ही टूट जाते हैं। कुछ रिश्ते सिर्फ दिल में रहते हैं।
  • कल्पना कीजिए कि यदि हमें कोई रिश्ता छोड़ने की ज़रूरत है, तो हमें कुछ बातों को ध्यान में रखना चाहिए। हमें एक-दूसरे को धन्यवाद कहना चाहिए। फोन नंबर साझा करना चाहिए इत्यादि।
  • हमें बच्चों के साथ अच्छा व्यवहार करना चाहिए और यह अच्छा व्यवहार हमारे व्यक्तित्व की पहचान बन जाता है।

PSEB 7th Class Physical Education Objective Questions and Answers

Punjab State Board PSEB 7th Class Physical Education Book Solutions Physical Education Objective Questions and Answers.

PSEB 7th Class Physical Education Objective Questions and Answers

बहुविकल्पीय प्रश्न

पाठ-1 : मनुष्य का शरीर

प्रश्न 1.
मानव शरीर को कितने भागों में बांटा जा सकता है ?
(क) दो
(ख) तीन
(ग) चार
(घ) पाँच।
उत्तर-
(क) दो

प्रश्न 2.
हमारे शरीर में कुल कितनी हड्डियां हैं ?
(क) 300
(ख) 250
(ग) 275
(घ) 206
उत्तर-
(घ) 206

प्रश्न 3.
शारीरिक ढाँचे के कार्य हैं
(क) सुरक्षा
(ख) आकार
(ग) गतिशीलता
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 4.
रक्त प्रवाह प्रणाली के अंग
(क) हृदय
(ख) धमनियां
(ग) शिराएं
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 5.
हमारे शरीर में मुख्य प्रणालियां हैं
(क) मांसपेशी प्रणाली
(ख) रक्त प्रवाह प्रणाली
(ग) श्वास क्रिया प्रणाली
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी।

पाठ-2 : शारीरिक शक्ति एवं व्यायाम के लाभ

प्रश्न 1.
शारीरिक क्षमता के गुण
(क) गति
(ख) शक्ति
(ग) साहस (क्षमता), लचकता
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 2.
व्यायाम के लाभ हैं
(क) रोग दूर हो जाते हैं
(ख) शरीर में से व्यर्थ पदार्थ बाहर निकल जाते हैं
(ग) मनुष्य की आयु बढ़ जाती है
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 3.
व्यायाम के और अधिक लाभ
(क) रक्त साफ रहता है
(ख) मांसपेशियां मज़बूत हो जाती हैं
(ग) रक्त में सफेद रक्त के कण बढ़ जाते हैं
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी।

पाठ-3 : शारीरिक ढांचा और इसकी कुरूपताएं

प्रश्न 1.
अच्छे शारीरिक ढांचे के लाभ हैं
(क) ढांचा सुन्दर लगता है
(ख) दौड़ना, चुस्ती, फुर्ती बनी रहती है
(ग) स्वास्थ्य ठीक रहता है
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 2.
शारीरिक ढांचे की कुरूपताएं
(क) कूबड़ का निकलना
(ख) कुल्हों का आगे की ओर निकलना
(ग) रीढ़ की हड्डी का टेढ़ा होना
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 3.
कूबड़ के निकलने के कारण
(क) नज़र का कमज़ोर होना
(ख) ऊंचा सुनाई देना
(ग) कम रोशनी में आगे की ओर झुक कर पढ़ना
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 4.
कूबड़पन दूर करने की विधियां
(क) उठते-बैठते और चलते समय ठोडी को ऊपर की ओर करना
(ख) पीठ के नीचे तकिया रखकर लेटना
(ग) दीवार से लगी सीढ़ी से लटकना
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 5.
कमर के अधिक आगे निकल जाने के कारण
(क) बच्चों में पेट आगे निकल कर चलने की आदत
(ख) ज़रूरत से ज्यादा भोजन करना ।
(ग) स्त्रियों का ज्यादा बच्चे पैदा करना
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 6.
कमर की कुरूपता को दूर करने के उपाय
(क) सीधे खड़े होकर शरीर के ऊपरी भाग को आगे झुकाना और सीधा करना
(ख) पीठ के बल लेटकर उठना और फिर लेटना
(ग) सावधान अवस्था में खड़े होकर बार-बार पैरों को स्पर्श करना
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 7.
चपटे पैर ठीक करने की कसरत
(क) पंजों के भार चलना
(ख) पंजों के बल साइकिल चलाना
(ग) डंडेदार सीढ़ियों पर चढ़ना-उतरना
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी।

पाठ-4 : रवेल में लगने वाली चोटें व उनका इलाज

प्रश्न 1.
प्रत्यक्ष चोटों की किस्में
(क) रगड़
(ख) त्वचा का फटना
(ग) गहरा घाव
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 2.
जोड़ के उतरने का क्या भाव है ?
(क) हड्डी जोड़ से बाहर आ जाती है
(ख) जोड़ गति करना बंद कर देता है
(ग) खिलाड़ी खेलने में असमर्थ हो जाता है
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 3.
मोच के कारण
(क) चोट वाले स्थान पर तीव्र दर्द होता है
(ख) चोट वाले जोड़ पर सूजन आ जाती है
(ग) चोट वाले स्थान का रंग लाल हो जाता है
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 4.
खेल में चोटें लगने के कारण
(क) खेल के प्रति कम जानकारी
(ख) असावधानी
(ग) शरीर को कम गर्माना
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 5.
हड्डी के उतरने के लक्षण
(क) जोड़ का आकार बदल जाता है
(ख) अंग गति नहीं कर सकता
(ग) तीव्र दर्द होता है
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 6.
खिंचाव के कारण
(क) चोट वाले स्थान पर दर्द होता है
(ख) खिलाड़ी दौड़ नहीं सकता
(ग) चोटिल स्थान पर सूजन आ जाती है
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी।

पाठ-5 : योग

प्रश्न 1.
आसन की कितनी किस्में हैं ?
(क) तीन
(ख) दो
(ग) एक
(घ) उपरोक्त में से कोई नहीं।
उत्तर-
(क) तीन

प्रश्न 2.
योग का भाव बताएं
(क) जुड़ना
(ख) जोड़
(ग) आत्मा को परमात्मा के साथ जोड़ना
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 3.
आसनों के सिद्धांत
(क) आसन करने के लिए आयु और लिंग का ध्यान रखना
(ख) आसन करते समय ज़ोर न लगाना
(ग) आसन धीरे-धीरे करना
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 4.
योग की गलत धारणाएं
(क) योग को किसी विशेष धर्म से जोड़ना
(ख) योग केवल पुरुषों के लिए है
(ग) योग केवल रोगियों के लिए है
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 5.
आसन करने के सिद्धान्त
(क) आसन करते समय मांसपेशियों में तनाव आवश्यक है
(ख) गर्भवती महिलाओं को और हृदय के मरीजों को कठिन आसन नहीं करने चाहिए।
(ग) आसन कुदरत के सिद्धान्तों के अनुसार करने चाहिए
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी।

पाठ-6 : रवेलों का महत्त्व

प्रश्न 1.
बड़ी खेलों के नाम
(क) फुटबाल, हॉकी, क्रिकेट, टेबल टेनिस
(ख) खो-खो, बॉस्कटबाल
(ग) बैडमिन्टन, कुश्ती और कबड्डी
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 2.
छोटी खेलों के नाम
(क) रूमाल उठाना, कोटला छपाकी, गुल्ली डण्डा
(ख) लीडर ढूंढ़ना, बिल्ली चूहा, तीन-तीन या चार-चार
(ग) राजा-रानी, मथौला घोड़ी, दायरे वाली खो-खो .
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 3.
मनुष्य की मूल कुशलताएं
(क) चलना
(ख) दौड़ना
(ग) कूदना और फैंकना
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 4.
खेलने के लाभ
(क) वृद्धि और विकास
(ख) समय का उचित प्रयोग
(ग) भावनाओं पर काबू पाना
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 5.
खेलों से व्यक्ति में कौन-कौन से गुण पैदा होते हैं ?
(क) अच्छा स्वास्थ्य
(ख) सुडोल शरीर
(ग) तेज़ बुद्धि का विकास
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 6.
राष्ट्र को खेलों के लाभ
(क) राष्ट्रीय एकता
(ख) सीमाओं की रक्षा
(ग) अच्छे और अनुभवी नेता
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी।

पाठ-7 : स्काऊटिंग और गाइडिंग

प्रश्न 1.
स्काऊटिंग और गाइडिंग के लाभ
(क) बच्चों को ताकतवर और वफादार बनाते हैं
(ख) जात-पात और नफरत से दूरी
(ग) दूसरे प्रांतों के लोगों से मुलाकात
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 2.
स्काऊटिंग के नियम
(क) स्काऊटिंग की आन विश्वसनीय
(ख) स्काऊटिंग वफादार होता है
(ग) स्काऊटिंग सभी का दोस्त
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 3.
स्काऊटिंग शिक्षा के साथ बहुमुखी विकास
(क) यह बच्चों को ताकतवर, वफादार, देशभक्त बनाते हैं
(ख) स्काऊट रैलियों से अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध बनते हैं
(ग) स्काऊट अपने प्राध्यापक और सीनियर का आदेश मानते हैं और लोगों के प्रति प्यार बढ़ता है
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 4.
स्काऊटिंग लहर का जन्मदाता कौन था ?
(क) लार्ड बैटन पावल
(ख) मार्क मिलन
(ग) माडलैस
(घ) कोई नहीं।
उत्तर-
(क) लार्ड बैटन पावल

प्रश्न 5.
स्काऊटिंग लहर सबसे पहले कहां आरम्भ हुई ?
(क) बर्तानिया
(ख) होलैण्ड
(ग) अमेरिका
(घ) उपरोक्त कोई नहीं।
उत्तर-
(क) बर्तानिया

पाठ-8 : नशीले पदार्थों के विद्यार्थियों पर कुप्रभाव

प्रश्न 1.
नशीले पदार्थों के नाम बताएं
(क) शराब
(ख) तम्बाकू
(ग) भांग और अफीम
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 2.
कोई दो प्रणालियों के नाम बताएं जिनका प्रभाव नशीले पदार्थों से होता है
(क) पाचन प्रणाली
(ख) रक्त संचार प्रणाली
(ग) मानसिक प्रणाली
(घ) हड्डी प्रणाली।
उत्तर-
(क) पाचन प्रणाली और (ख) रक्त संचार प्रणाली

प्रश्न 3.
खिलाड़ी पर पड़ने वाले नशीले पदार्थों के बुरे प्रभाव लिखें
(क) बेफिक्री
(ख) गैर-ज़िम्मेदार
(ग) चक्कर आना
(घ) उपरोक्त में से कोई नहीं।
उत्तर-
(क) बेफिक्री और (ख) गैर-ज़िम्मेदार

प्रश्न 4.
नशीले पदार्थों से छुटकारा पाने के ढंग लिखें
(क) प्रेरणा
(ख) कान्फ्रेंस
(ग) मनोचिकित्सक
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 5.
तम्बाकू पीने के बुरे प्रभाव
(क) कैंसर का खतरा बढ़ जाता है
(ख) तम्बाकू से टी०बी० हो सकती है
(ग) पेट खराब रहता है
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 6.
शराब के हमारे स्वास्थ्य पर कुप्रभाव
(क) दिमाग पर बुरा प्रभाव
(ख) गुर्दे कमज़ोर हो जाते हैं
(ग) पाचन प्रणाली खराब हो सकती है
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी।

PSEB 7th Class Home Science Solutions Chapter 1 व्यक्तिगत स्वास्थ्य विज्ञान

Punjab State Board PSEB 7th Class Home Science Book Solutions Chapter 1 व्यक्तिगत स्वास्थ्य विज्ञान Textbook Exercise Questions and Answers.

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PSEB 7th Class Home Science Guide व्यक्तिगत स्वास्थ्य विज्ञान Textbook Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
स्वस्थ त्वचा की क्या पहचान है?
उत्तर-
चिकनी, ठोस और जगह पर होती है।

प्रश्न 2.
स्वस्थ बाल कैसे होते हैं?
उत्तर-
चमकीले और साफ़।

प्रश्न 3.
आँखों को नीरोग रखने के लिए क्या करना चाहिए?
उत्तर-
आँखों को धुआँ, धूल, धूप तथा तेज़ रोशनी से बचाना चाहिए।

PSEB 7th Class Home Science Solutions Chapter 1 व्यक्तिगत स्वास्थ्य विज्ञान

लघूत्तर प्रश्न

प्रश्न 1.
खुश्क त्वचा और चिकनी चमड़ी वालों को अपनी चमड़ी ठीक रखने के लिए कौन-से ढंग प्रयोग में लाने चाहिएँ?
उत्तर-
खुश्क त्वचा और चिकनी चमड़ी वालों को विशेष तौर से सर्दियों में रात को सोने से पहले मुँह धोकर ग्लिसरीन में नींबू का रस मिलाकर लगाना चाहिए और साबुन
की जगह बेसन से मुँह धोना चाहिए।

प्रश्न 2.
अगर किसी की आँखें दर्द करती हों या जुकाम लगा हो तो उसका रूमाल क्यों प्रयोग नहीं करना चाहिए?
उत्तर-
आँखों का दर्द या जुकाम एक छूत की बीमारी है। अगर आँखें दर्द करती हों या जुकाम लगा हो तो रोगी को अपना रूमाल अलग रखना चाहिए, नहीं तो यह रोग दूसरों में भी फैल जाएगा।

प्रश्न 3.
कान में कोई तीखी वस्तु क्यों नहीं घुमानी चाहिए?
उत्तर-
कान में कोई नुकीली वस्तु चलाने से बाह्य कान में घाव हो जाते हैं और पर्दा भी फट जाने का डर रहता है इसलिए कानों में कोई नुकीली वस्तु नहीं चलाना चाहिए।

PSEB 7th Class Home Science Solutions Chapter 1 व्यक्तिगत स्वास्थ्य विज्ञान

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
व्यक्तिगत सफ़ाई से क्या अभिप्राय है ? नाक, गले और चेहरे को कैसे साफ़ रखा जा सकता है? स्पष्ट करें।
उत्तर-
व्यक्तिगत सफ़ाई का अभिप्राय है अपने शरीर की सफ़ाई तथा अन्य बातों जैसे खुराक, व्यायाम, सोना या आराम करना आदि पर भी ध्यान देना, जिससे शरीर स्वस्थ और ठीक हालत में रह सके।

नाक की सफ़ाई-नाक श्वास लेने व निकालने का मार्ग है। नाक के अन्दर भी चिपचिपा या लेसदार स्राव निकलता है। नाक को रोज़ाना अन्दर से बाहर की ओर को साफ़ करना चाहिए। नाक की सफ़ाई बहुत आवश्यक है। यदि नाक में गन्दगी होगी तो शरीर के अन्दर नाक से श्वास नहीं जा पाएगी और श्वास-नली में संक्रमण हो सकता है। मुँह से साँस लेना रोगों का घर है। नाक को बहुत ज़ोर से सिनकना नहीं चाहिए अन्यथा नाक और गले के कृमि श्रवण नली द्वारा कान के बीच वाले भाग में पहुँचकर श्रवण शक्ति को प्रभावित कर सकते हैं। गले की सफ़ाई-गले को साफ़ करने के लिए बच्चे को गरारे करना सिखाना चाहिए। रात को सोने से पहले बच्चे का मुँह और गला साफ़ करना चाहिए। अगर बच्चे का गला खराब हो तो पानी उबालकर गुनगुना करके उसमें नमक डालकर गरारे करवाने चाहिएँ। अगर गले में टोन्सिल होने का शक हो तो डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए। लापरवाही करने से बच्चा बीमार रहता है और उसका शारीरिक विकास ठीक नहीं हो पाता है।

चेहरे की सफ़ाई-प्रतिदिन चेहरे को अच्छी तरह बढ़िया साबुन तथा गुनगुने पानी के साथ दो-तीन बार धोना चाहिए। साबुन हमेशा हाथों पर मलकर मुँह पर लगाना चाहिए। इसके बाद मुँह को कई बार गुनगुने पानी से धोना चाहिए ताकि साबुन साफ़ हो जाए। इसके बाद साफ़ तौलिये से मुंह को अच्छी तरह पोंछना चाहिए ताकि रोम छिद्र खुल जाएँ।

प्रश्न 2.
सुन्दर दिखने के लिए चेहरे की सफ़ाई क्यों आवश्यक है?
उत्तर-
सुन्दर दिखने के लिए प्रतिदिन दो-तीन बार एक बढ़िया साबुन से चेहरे को धोकर साफ़ तौलिये से पोंछना चाहिए। चेहरे को साफ़ करते समय आँखें, नाक, कान, गला, मुँह और दाँतों का ध्यान रखना चाहिए। इन अंगों को साफ़ करते समय जो रूमाल, तौलिया या और कोई अन्य वस्तु इस्तेमाल की जाए वह अच्छी तरह साफ़ और स्वच्छ होना
चाहिए।

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प्रश्न 3.
त्वचा गन्दी क्यों हो जाती है ? उसको कैसे साफ़ रखा जा सकता है ?
उत्तर-
भारतवर्ष जैसे गर्म देश में रहने वाले लोगों की त्वचा अधिक गन्दी होती है, क्योंकि यहाँ अधिक पसीना आता है। पसीना एक दूषित पदार्थ है और इसमें अनेक पदार्थ जैसे उपचर्म की टूटी-फूटी कोशिकाएँ, धूल के कण आदि के अलावा अनेक जीवाणु भी फँस जाते हैं तथा इन पदार्थों को सड़ाते हैं। इससे दुर्गन्ध आने लगती है। अनेक प्रकार के चर्म रोग उत्पन्न हो जाते हैं।

त्वचा की सफाई के लिए प्रतिदिन ताजे या हल्के गुनगुने पानी से स्नान करना आवश्यक है। इससे (वचा के छिद्र खुल जाते हैं और पसीना निकलता रहता है। त्वचा से गन्दगी हट जाने से बीमारियों की आशंका नहीं रहती है। स्नान करते समय शरीर को साबुन आदि से साफ़ करना अच्छा रहता है। शरीर को रगड़ना भी आवश्यक है ताकि इसकी मॉलिश हो सके।

प्रश्न 4.
आप अपने बालों की रक्षा कैसे करोगे?
उत्तर-
बालों की रक्षा
(i) सप्त एक बार बाल में तेल लगाकर अच्छी तरह मॉलिश करना चाहिए।
(ii) बालों को धोने के बाद अच्छी तरह तौलिये से पोंछकर, फिर खुला छोड़कर सुखाना चाहिए।)
(iii) जब तक बाल अच्छी तरह सूख न जाएँ जूड़ा या चोटी नहीं बनानी चाहिए।
(iv) प्रतिदिन दो बार बालों में कंघी करना चाहिए।
(v) कंघी या ब्रुश को प्रत्येक सप्ताह धोकर अच्छी तरह धूप में सुखाना चाहिए।

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Home Science Guide for Class 7 PSEB व्यक्तिगत स्वास्थ्य विज्ञान Important Questions and Answers

अति छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
WHO के विचार से स्वास्थ्य क्या है?
उत्तर-
WHO (विश्व स्वास्थ्य संगठन) के विचार से स्वास्थ्य में मनुष्य का सम्पूर्ण शारीरिक, मानसिक व संवेगात्मक कल्याण निहित है।

प्रश्न 2.
जीवन में सुखी रहने के लिए क्या आवश्यक है?
उत्तर-
शरीर का स्वस्थ और शक्तिशाली होना।

प्रश्न 3.
त्वचा को नियमित रूप से साफ़ करना आवश्यक क्यों है?
उत्तर-
त्वचा से पसीना और अपशिष्ट पदार्थ बाहर निकलते हैं। यदि त्वचा को साफ़ नहीं किया जाए तो मैल जम जाता है जिसके कारण त्वचा के छिद्र बंद हो जाते हैं, इसलिए त्वचा को नियमित रूप से साफ़ करना आवश्यक है।

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प्रश्न 4.
दाँतों को साफ़ करना आवश्यक क्यों है?
उत्तर–
दाँतों को खोखले होने से, गिरने से, दर्द होने से बचने के लिए दाँतों को साफ़ करना आवश्यक है।

प्रश्न 5.
कानों में सलाई या तिनका क्यों नहीं फेरना चाहिए?
उत्तर-
कानों में सलाई या तिनका फेरने से बाह्य कान में घाव हो जाते हैं और पर्दा भी फट सकता है इसलिए कानों में सलाई नहीं फेरनी चाहिए।

प्रश्न 6.
कान का संक्रमण होने पर इसका इलाज तुरन्त क्यों करवाना चाहिए?
उत्तर-
कान का संक्रमण होने पर यदि इसका इलाज न करवाया जाए तो यह दिमाग़ तक नुकसान पहुँचा सकता है इसलिए इसका इलाज तुरन्त करवा लेना चाहिए।

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प्रश्न 7.
नियमित व्यायाम व उत्तम आसन शरीर के लिए क्यों आवश्यक हैं?
उत्तर-
शरीर को सुन्दर, सुगठित व स्वस्थ रखने के लिए।

प्रश्न 8.
दाँतों को केरीज रोग से बचाने के लिए क्या उपाय किए जाने चाहिए?
उत्तर-

  1. भोजन के बाद कुल्ला करना चाहिए,
  2. दाँतों को अंगुली से साफ़ करना चाहिए।

प्रश्न 9.
दाँतों का केरीज रोग क्या होता है?
उत्तर-
दाँतों में कार्बोहाइड्रेट युक्त तथा मीठे पदार्थों के सड़ने से जीवाणुओं की क्रिया से एसिड बनता है जो दाँतों के एनेमल को क्षीण कर देता है।

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प्रश्न 10.
पायरिया रोग के लक्षण क्या हैं?
उत्तर-

  1. मसूड़े सूजने लगते हैं,
  2. मसूड़ों में पीड़ा होती है,
  3. मसूड़ों से दाँत अलग होने लगते हैं,
  4. मुँह से दुर्गन्ध आती है।

प्रश्न 11.
स्वस्थ आँखें कैसी होती हैं?
उत्तर-
चौकन्नी, साफ़ और मलविहीन।

प्रश्न 12.
स्वस्थ नाक की क्या पहचान है?
उत्तर-
साफ़ और साँस लेती हुई होती है।

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प्रश्न 13.
स्वस्थ मुख और होंठ कैसे होते हैं?
उत्तर-
स्वस्थ मुख प्रसन्न और आनन्दित तथा स्वस्थ होंठ लाल और गीले होते हैं।

प्रश्न 14.
स्वस्थ गला किसे कहते हैं?
उत्तर-
साफ़, गीला तथा बाधा विहीन होता है।

प्रश्न 15.
स्वस्थ दाँत कैसे होते हैं?
उत्तर-
साफ़, सही और कष्टविहीन होते हैं।

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प्रश्न 16.
स्वस्थ मसूड़े कैसे होने चाहिएँ?
उत्तर-
ठोस तथा लाल।

प्रश्न 17.
स्वस्थ तथा अस्वस्थ हाथ में क्या अन्तर होता है?
उत्तर-
हाथ की हथेलियाँ लाल होने पर स्वस्थ तथा पीली होने पर अस्वस्थ मानी जाती।

छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
व्यायाम शरीर के लिए क्यों आवश्यक है?
उत्तर-
व्यायाम हमारे स्वास्थ्य के लिए तथा शरीर को निरोग रखने के लिए अत्यन्त आवश्यक है। इसके विभिन्न कारण हैं

  1. व्यायाम करने से भोजन शीघ्र पच जाता है तथा भूख खुलकर लगती है।
  2. व्यायाम करने से शरीर की गन्दगी शीघ्र बाहर निकल जाती है।
  3. व्यायाम करने से शरीर की मांसपेशियाँ मज़बूत हो जाती हैं जिससे शरीर मजबूत होता है।

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प्रश्न 2.
नियमित स्नान के क्या लाभ हैं ?
उत्तर-
नियमित स्नान से शरीर को निम्न लाभ होते हैं-

  1. त्वचा की स्वच्छता होती है।
  2. रोमकूपों के मुँह खुल जाते हैं।
  3. स्नान के बाद तौलिए से शरीर रगडने से रक्त संचरण उत्तम होता है।
  4. स्नान से हानिकारक पदार्थों तथा रोगाणुओं से मुक्ति मिलती है।
  5. धुलकर बह जाने से पसीने की दुर्गन्ध जाती रहती है।

प्रश्न 3.
नाखूनों की सफ़ाई क्यों आवश्यक है ? नाखूनों को किस प्रकार साफ़ करना चाहिए?
उत्तर-
नाखूनों के अन्दर किसी प्रकार की गन्दगी नहीं रहनी चाहिए क्योंकि भोजन के साथ इनमें उपस्थित रोगों के कीटाणु, जीवाणु आदि आहार-नाल में पहुँचकर विकार उत्पन्न करेंगे। नाखूनों को काटते रहना चाहिए अथवा ब्रुश इत्यादि से भली-भाँति साफ़ करना चाहिए।

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बड़े उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
व्यक्तिगत सफ़ाई का स्वास्थ्य में क्या महत्त्व है?
उत्तर-
यह सर्वविदित मान्यता है कि स्वस्थ शरीर जीवन धारण के योग्य होता है। जिसका शरीर स्वस्थ नहीं वह जीवन धारण करने के बाद भी सांसारिक सुखों का उपभोग नहीं कर सकता। अस्वस्थ मनुष्य का जीवन दूसरों के लिए भार हो जाता है। अतः मनुष्य का स्वस्थ रहने के लिए प्रकृति के नियमों का पालन करना, उसके अनुकूल चलना और बच्चों को भी उसी के अनुसार चलाना चाहिए। व्यक्तिगत स्वास्थ्य के अन्तर्गत स्वास्थ्य के नियमों के अतिरिक्त शारीरिक या शरीर के प्रत्येक अंग की सफ़ाई का बहुत अधिक महत्त्व है।
व्यक्तिगत सफ़ाई के अन्तर्गत निम्नलिखित की सफ़ाई आती है

  1. मुँह व दाँतों की सफ़ाई-इससे दाँत खोखले होने, गिरने तथा किसी प्रकार का रोग होने से बचे रहते हैं।
  2. आँखों की सफ़ाई-इससे आँखें चौकन्नी, साफ़ और मलविहीन रहती हैं। आँखों की सफ़ाई रहने से आँखों के रोग नहीं होते।
  3. नाक की सफ़ाई-इससे श्वास-नली में संक्रमण नहीं होता।
  4. कानों की सफ़ाई-इससे कानों में दर्द व खुजली नहीं होती और जीवाणुओं का आक्रमण भी नहीं होता।
  5. त्वचा की सफ़ाई-त्वचा की सफ़ाई से त्वचा के रोग नहीं होते तथा शरीर में फुर्ती बनी रहती है।
  6. हाथों तथा नाखूनों की सफ़ाई-नाखूनों में गन्दगी जमा होने से कई रोगों के कीटाणु पनपने लगते हैं और हाथों से मुँह में चले जाते हैं।
  7. वस्त्रों में सफ़ाई-स्वच्छ व साफ़-सुथरे कपड़े पहनने से शरीर स्वस्थ व मन प्रसन्न रहता है। गन्दे वस्त्रों में रोग के कीटाणु पनपते हैं जो शरीर को रोगी बनाने में सहायक होते है।

प्रश्न 2.
आँख और नाक को कैसे साफ़ रखा जा सकता है?
उत्तर-
आँखों की सफाई व सुरक्षा-आँखें हमारे शरीर में अत्यन्त ही महत्त्वपूर्ण अंग है। इनसे ही हम विभिन्न वस्तुओं को देख सकते हैं। इसलिए यह कहावत है कि ‘आँखें हैं तो जहान है’ कही जाती है। इनकी स्वच्छता तथा सुरक्षा के लिए निम्नलिखित उपाय किए जाने चाहिएं

  1. आँखों को बाहर की गन्दगी जैसे धूल-मिट्टी, कूड़ा-करकट, कीट-पतंगे आदि से बचाना चाहिए। कुछ धूल तथा जीवाणु तो आँख के द्वारा बाहर निकल जाते हैं यदि किसी कारण से आँखों में कुछ गिर जाए तो उसको नार्मल सेलाइन या साफ़ जल से धो डालना चाहिए।
  2. मुँह तथा आँखों को कई बार धोने तथा पोंछने से सफ़ाई होती है।
  3. गन्दे हाथों से अथवा गन्दे रूमाल से आँखों को नहीं पोंछना चाहिए, न ही इन्हें रगड़ना या मलना चाहिए।
  4. तौलिया, साबन, बाल्टी, मग तथा मँह पोंछने का कपडा जिनका उपयोग दसरे व्यक्ति करते हों, प्रयोग नहीं करना चाहिए, विशेषकर दुखती आँखों वाले व्यक्ति का।
  5. आँखों को तेज़ धूप, चकाचौंध अथवा तेज़ रोशनी से बचाना चाहिए। इसके लिए धूप के चश्मे आदि का प्रयोग किया जा सकता है।
  6. कम प्रकाश में लिखना-पढ़ना अथवा कोई महीन काम करना आँखों के लिए घातक सिद्ध हो सकता है।
  7. आँखों की विभिन्न बीमारियों जैसे-रोहे इत्यादि से आँखों को बचाना चाहिए और यदि इनमें से कोई रोग हो तो तुरन्त ही नेत्र-विशेषज्ञ की सलाह लेनी चाहिए।

नाक की सफ़ाई-नाक श्वास लेने व निकालने का मार्ग है। नाक के अन्दर भी चिपचिपा या लेसदार स्राव निकलता है। नाक को रोजाना अन्दर से बाहर की ओर को साफ़ करना चाहिए। नाक की सफ़ाई बहुत आवश्यक है। यदि नाक में गन्दगी होगी तो शरीर के अन्दर नाक से श्वास नहीं जा पाएगी और श्वास-नली में संक्रमण हो सकता है। मुँह से साँस लेना रोगों का घर है। नाक को बहुत ज़ोर से सिनकना नहीं चाहिए अन्यथा नाक और गले के कृमि श्रवण नली द्वारा कान के बीच वाले भाग में पहुँचकर श्रवण शक्ति को प्रभावित कर सकते हैं।

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एक शब्द में उत्तर दें

प्रश्न 1.
कान को ……….. वस्तु से साफ़ नहीं करना चाहिए।
उत्तर-
नुकीली।

प्रश्न 2.
त्वचा से पसीना तथा ………….. पदार्थ बाहर निकलते हैं।
उत्तर-
अपशिष्ट।

प्रश्न 3.
आँखों की एक बीमारी का नाम बताएं।
उत्तर-
रोहे।

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प्रश्न 4.
नियमित स्नान से किसके मुँह खुल जाते हैं?
उत्तर-
रोमकूपों के।

प्रश्न 5.
…………. से आंखें नहीं पोछनी चाहिए।
उत्तर-
गंदे रूमाल से।

प्रश्न 6.
…………… बाल चमकीले तथा साफ़ होते हैं।
उत्तर-
स्वस्थ।

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प्रश्न 7.
नियमित स्नान का एक लाभ बताएं।
उत्तर-
त्वचा की सफाई हो जाती है।

व्यक्तिगत स्वास्थ्य विज्ञान PSEB 7th Class Home Science Notes

  • प्रतिदिन चेहरे को अच्छी तरह बढ़िया साबुन तथा गुनगुने पानी से दो-तीन बार धोना चाहिए।
  • चेहरे की त्वचा को ठीक रखने के लिए रात को सोने से पहले मुँह को अच्छी तरह साबुन से धोने के बाद बेसन का उबटन मलना चाहिए और उसके बाद गुनगुने पानी से मुँह को धो लेना चाहिए।
  • नाक को प्रतिदिन साफ़ करना चाहिए ताकि नाक का रास्ता साफ़ हो जाए और अच्छी तरह साँस लिया जा सके।
  • गले को साफ़ करने के लिए बच्चे को गरारे करना सिखाना चाहिए।
  • बच्चे का गला खराब हो तो पानी को उबालकर गुनगुना करके उसमें नमक डालकर गरारे करवाने चाहिए।
  • बालों तथा सिर की सफ़ाई करने की उतनी ही आवश्यकता है जितनी चमड़ी की। सिर और बालों को सप्ताह में एक-दो बार अवश्य धोना चाहिए।
  • सप्ताह में एक बार सिर में तेल लगाकर अच्छी तरह मॉलिश करना चाहिए, जिससे नाड़ियों को उत्तेजित किया जा सके।
  • प्रतिदिन पानी और साबन के साथ स्नान करना चाहिए और बाद में साफ़ तौलिए से पूरे शरीर को अच्छी तरह पोंछना चाहिए।
  • तेल के साथ मॉलिश करना और भाप के साथ स्नान करना स्वास्थ्य और ताज़गी के लिए अच्छे समझे जाते हैं।
  • खुश्क चमड़ी वालों को विशेष तौर से सर्दियों में रात को सोते समय मुँह धोकर ग्लिसरीन में नींबू का रस मिलाकर लगाना चाहिए और साबुन की जगह बेसन से मुँह धोना चाहिए।

PSEB 6th Class Social Science Solutions Chapter 10 हड़प्पा सभ्यता

Punjab State Board PSEB 6th Class Social Science Book Solutions History Chapter 10 हड़प्पा सभ्यता Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 6 Social Science History Chapter 10 हड़प्पा सभ्यता

SST Guide for Class 6 PSEB हड़प्पा सभ्यता Textbook Questions and Answers

I. निम्न प्रश्नों के उत्तर लिखें

प्रश्न 1.
हड़प्पा सभ्यता के कुछ महत्त्वपूर्ण नगरों के नाम बतायें।
उत्तर-
हड़प्पा सभ्यता के महत्त्वपूर्ण नगर हड़प्पा, मोहनजोदड़ो, लोथल, कालीबंगन, बनवाली आदि थे।

प्रश्न 2.
सिन्धु घाटी के लोगों के सामाजिक जीवन के बारे में आप क्या जानते
उत्तर–
सिन्धु घाटी सभ्यता के लोगों का सामाजिक जीवन बहुत विकसित था। समाज में तीन वर्गों के लोग रहते थे। पहला वर्ग अमीर लोगों, दूसरा वर्ग किसानों तथा छोटे-छोटे पेशेवर लोगों का और तीसरा वर्ग मज़दूरों का था। लोगों का रहन-सहन आज की तरह ही था। लोगों के भोजन के मुख्य पदार्थ गेहूं, ज्वार, चावल, दालें, फल, सब्जियां तथा दूध थे। कुछ लोग मांसाहारी भी थे। लोग सूती तथा ऊनी, दोनों प्रकार के कपड़े पहनते थे। स्त्रियां तथा पुरुष, दोनों शृंगार करते थे तथा आभूषण पहनते थे। अमीर लोग सोने-चांदी एवं कीमती पत्थरों के आभूषण जबकि ग़रीब लोग हड्डियों, पकी मिट्टी तथा मनकों के बने हुए आभूषण पहनते थे।

लोग खेलों के शौकीन थे। नाचना-गाना, जुआ अथवा चौपड़ खेलना, शिकार करना आदि मनोरंजन के मुख्य साधन थे। बच्चों के खेलने के लिए पकी मिट्टी के तरह-तरह के खिलौने बनाये जाते थे, जिनमें जानवरों की मूर्तियां तथा बैलगाड़ियां आदि प्रमुख थीं।

प्रश्न 3.
सिन्धु घाटी सभ्यता की नगर योजना के बारे में एक नोट लिखें।
उत्तर-
सिन्धु घाटी सभ्यता में नगर-निर्माण उच्चकोटि का था। नगर दो भागों में बंटे हुए थे-ऊंचा भाग तथा निचला भाग। ऊंचे भाग में बड़े-बड़े धार्मिक तथा सार्वजनिक भवन थे। यहां शासक वर्ग के लोग रहते थे। निचले भाग में साधारण लोगों के निवास स्थान थे। नगरों की सड़कें सीधी जाती थीं तथा एक-दूसरी को समकोण पर काटती थीं। नगरों में नालियों की बहुत अच्छी व्यवस्था की गई थी, जिसके कारण नगर में सफ़ाई रहती थी।

PSEB 6th Class Social Science Solutions Chapter 10 हड़प्पा सभ्यता

प्रश्न 4.
हड़प्पा सभ्यता के पतन के क्या कारण थे?
उत्तर-
लगभग 1500 ई० पूर्व हड़प्पा सभ्यता का पतन हो गया। इस सभ्यता के पतन के कारणों के बारे में निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता। भिन्न-भिन्न विद्वानों ने अपने-अपने अनुमान के अनुसार इसके पतन के कारण बताये हैं –

1. कुछ विद्वानों का विचार है कि आर्य लोगों ने सिन्धु घाटी के लोगों के साथ युद्ध करके उन्हें हरा दिया था। फलस्वरूप हड़प्पा सभ्यता नष्ट हो गई। परन्तु इस विचार को आज कोई महत्त्व नहीं दिया जाता।

2. कुछ विद्वानों के अनुसार सिन्धु तथा इसकी सहायक नदियों में लगातार बाढ़ आने के कारण इस सभ्यता का नाश हो गया।

3. कुछ विद्वानों का कथन है कि लगभग 1900 ई० पू० सरस्वती नदी के सूख जाने के कारण हड़प्पा सभ्यता के लोग पूर्व की ओर गंगा के मैदान में चले गए थे। .

4. कुछ विद्वानों के अनुसार भूकम्प अथवा किसी अन्य प्राकृतिक विपदा के कारण इस सभ्यता का अन्त हो गया था।

5. कुछ विद्वानों के अनुसार सिन्धु घाटी की भूमि में रेगिस्तान फैल गया तथा इसमें ण की मात्रा बढ़ गई। परिणामस्वरूप भूमि की उपजाऊ-शक्ति समाप्त हो गई। अतः धु घाटी के लोग अन्य स्थानों पर जाकर रहने लगे।

प्रश्न 5.
सिन्धु घाटी के लोगों का आर्थिक जीवन कैसा था?
उत्तर–
सिन्धु घाटी के लोगों का आर्थिक जीवन समृद्ध था। लोगों के मुख्य व्यवसाय कृषि, पशुपालन तथा व्यापार थे। इसके अतिरिक्त लोग कुछ अन्य उद्योग-धन्धे भी करते थे।

1. कृषि-सिन्धु घाटी के लोगों का मुख्य व्यवसाय कृषि था। सिंचाई नदियों द्वारा की जाती थी। गेहूं, चावल, जौ तथा कपास की कृषि मुख्य रूप में होती थी। खेतों को हल तथा बैलों के साथ जोता जाता था। लोग तिल तथा सरसों भी पैदा करते थे।

2. पशुपालन-लोग बैल, भैंस, भेड़, बकरियां, ऊंट, हाथी, घोड़े तथा कुत्ते पालते थे।

3. व्यापार-नगर व्यापार के केन्द्र थे। गाड़ियों तथा नौकाओं में माल लाया जाता था। मुद्रा की कमी के कारण व्यापार वस्तुओं की अदला-बदली द्वारा ही होता था। व्यापार देशी तथा विदेशी, दोनों प्रकार का था। विदेशी व्यापार मुख्य तौर पर अफ़गानिस्तान, ईरान तथा मैसोपोटामिया के साथ होता था।

4. अन्य उद्योग-धन्धे-पत्थर तथा तांबे की अनेक वस्तुएं बनाई जाती थीं। शिल्पकार मूर्तियां, बर्तन, औज़ार तथा हथियार आदि बनाते थे। कपड़े की छपाई तथा सूत कातने का कार्य भी होता था।

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प्रश्न 6.
पंजाब में हड़प्पा सभ्यता के किन्हीं दो केन्द्रों के बारे में लिखें।
उत्तर-
पुरातत्त्व विशेषज्ञों ने पंजाब में खुदाई करके हड़प्पा सभ्यता के अनेक केन्द्रों की खोज की है। ये केन्द्र संघोल, रोहीड़ा, सुनेत तथा कोटला निहंग खान हैं। इन केन्द्रों में से संघोल तथा रोहीड़ा केन्द्रों का वर्णन इस प्रकार है –

1. संघोल-संघोल एक छोटा-सा गांव है जो ज़िला लुधियाना में लुधियाना-चण्डीगढ़ सड़क पर स्थित है। इसे ‘ऊंचा गांव’ भी कहा जाता है। यहां की खुदाई से 2000 ई० पूर्व के समय के लोगों की जानकारी प्राप्त हुई है। यहां कुछ मूर्तियां, मिट्टी के बर्तन, माला के मनके तथा तांबे के औज़ार मिले हैं। इन वस्तुओं का सम्बन्ध हड़प्पा सभ्यता से है।

2. रोहीड़ा-रोहीड़ा जिला संगरूर में स्थित है। यहां की खुदाई से बर्तन, पकी ईंटें, मिट्टी के खिलौने आदि मिले हैं। यहां खुदाई का काम 1976-77 ई० में किया गया था।

II. रिक्त स्थानों की पूर्ति करें

  1. हड़प्पा सभ्यता मिस्र की सभ्यता से लगभग ………… गुणा विशाल थी।
  2. पंजाब में ………, …, ………. तथा …….. में इस (हड़प्पा) सभ्यता के अवशेष प्राप्त हुए हैं।
  3. मकान …………. तथा ……………. के बने हुए थे।
  4. एक विशाल …………. भवन मोहनजोदड़ो से प्राप्त हुआ है।
  5. मर्द तथा स्त्रियां दोनों …………. तथा …………. के शौकीन थे।
  6. लोग …………. की पूजा करते थे।
  7. पीपल के वृक्ष को ………….. समझा जाता था।

उत्तर-

  1. बीस
  2. कोटला निहंग खां, संघोल, रोहिड़ा, सुनेत
  3. पक्की ईंटों, लकड़ी
  4. स्तम्भों वाला
  5. आभूषणों (गहनों), फैशन
  6. मातृ देवी
  7. पवित्र।

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III. सही जोड़े बनायें

(1) पशुपति – (क) बन्दरगाह
(2) मोहनजोदड़ो – (ख) लेखन कला
(3) लोथल – (ग) देवता
(4) चित्रलिपि – (घ) विशाल स्नानगृह।
उत्तर-सही जोड़े
(1) पशुपति – देवता
(2) मोहनजोदड़ो – विशाल स्नानगृह
(3) लोथल – बन्दरगाह
(4) चित्रलिपि – लेखन कला

IV. सही (✓) अथवा ग़लत (✗) का निशान लगायें

  1. रोपड़ पाकिस्तान में स्थित है।
  2. हड़प्पा के लोग मातृदेवी की पूजा नहीं करते थे।
  3. पंजाब में सिन्धु सभ्यता के कोई अवशेष नहीं मिले हैं।
  4. सिन्धु घाटी के लोगों को लेखन कला नहीं आती थी।

उत्तर-

  1. (✗)
  2. (✗)
  3. (✗)
  4. (✗)

PSEB 6th Class Social Science Guide हड़प्पा सभ्यता Important Questions and Answers

कम से कम शब्दों में उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
पंजाब का एक हड़प्पा-स्थल लुधियाना जिले में स्थित है जिसे उच्चपिंड कहा जाता है। क्या आप उसका नाम बता सकते हैं?
उत्तर-
संघोल।

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प्रश्न 2.
हड़प्पा तथा मोहनजोदड़ो हड़प्पा सभ्यता के दो प्रमुख स्थल हैं। बताइए इनके अवशेष वर्तमान में किस देश में हैं?
उत्तर-
पाकिस्तान में।

प्रश्न 3.
सिंधु घाटी की सभ्यता की कांस्य की नृत्यांगना की मूर्ति किस प्राचीन स्थल से मिली है?
उत्तर-
मोहनजोदड़ो।

बहु-विकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
निम्न में से कौन-सा हड़प्पा स्थल हरियाणा से संबंध नहीं रखता?
(क) सुनेत
(ख) बनवाली
(ग) मिताथल
उत्तर-
(क) सुनेत

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प्रश्न 2.
नीचे दिखाई गई योगी की मूर्ति का संबंध निम्न में से किस सभ्यता से है?
PSEB 6th Class Social Science Solutions Chapter 9 हड़प्पा सभ्यता 1
(क) गुप्तकालीन सभ्यता
(ख) वैदिक सभ्यता
(ग) हड़प्पा सभ्यता।
उत्तर-
(ग) हड़प्पा सभ्यता

प्रश्न 3.
हड़प्पा की कुछ मुद्राओं पर एक चित्रलिपि में लेख मिलते हैं। इससे क्या पता चलता है?
(क) लोग मुद्राएं बनाने में निपुण थे।
(ख) उन्हें लेखन कला का ज्ञान था।
(ग) वे मूर्तियों पर उनके बनाने की तिथि लिखते थे।
उत्तर-
(ख) उन्हें लेखन कला का ज्ञान था।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
हड़प्पा सभ्यता को सिन्धु घाटी सभ्यता क्यों कहते हैं?
उत्तर-
हड़प्पा सभ्यता के कई स्थान सिन्धु तथा इसकी सहायक नदियों के किनारे हुए थे। इसीलिए इसे सिन्धु घाटी सभ्यता भी कहते हैं।

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प्रश्न 2.
हड़प्पा की सभ्यता के आरम्भ होने का लगभग समय बताएं।
उत्तर-
हड़प्पा सभ्यता का आरम्भ आज से लगभग 7000 वर्ष पूर्व हुआ।

प्रश्न 3.
हड़प्पा सभ्यता की सड़कों की क्या विशेषता थी?
उत्तर-
हड़प्पा सभ्यता की सड़कें सीधी थीं तथा एक-दूसरी को समकोण पर काटती थीं। वायु चलने पर ये अपने आप साफ़ हो जाती थीं।

प्रश्न 4.
हड़प्पा सभ्यता का विशाल स्नानगृह कहां मिला है?
उत्तर-
हड़प्पा सभ्यता का विशाल स्नानगृह मोहनजोदड़ो में मिला है।

PSEB 6th Class Social Science Solutions Chapter 10 हड़प्पा सभ्यता

प्रश्न 5.
पंजाब में हड़प्पा सभ्यता के किन्हीं चार स्थानों के नाम बताएं।
उत्तर-
पंजाब में हड़प्पा सभ्यता के चार स्थान संघोल, रोहिड़ा, सुनेत तथा कोटला निहंग खां हैं।

प्रश्न 6.
हड़प्पा सभ्यता की नालियों की दो विशेषताएं बताएं।
उत्तर-

  1. हड़प्पा सभ्यता की नालियां भूमिगत थीं।
  2. शहर की नालियों का पानी एक बड़ी नाली द्वारा शहर से बाहर जाता था।

प्रश्न 7.
वर्तमान हरियाणा में हड़प्पा सभ्यता के स्थानों के नाम बताएं।
उत्तर-
(1) बनावली,
(2) राखीगढ़ी,
(3) मिताथल,
(4) कुनाल।

PSEB 6th Class Social Science Solutions Chapter 10 हड़प्पा सभ्यता

प्रश्न 8.
पंजाब में हड़प्पा सभ्यता के स्थानों की खुदाई करने वाले दो पुरातत्ववेताओं के नाम लिखो।
उत्तर-
आर० डी० बैनर्जी तथा दया राम साहनी।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
संसार की आरम्भिक सभ्यताओं का विकास नदियों के किनारों पर क्यों हुआ?
उत्तर-
संसार की आरम्भिक सभ्यताओं का विकास नदियों के किनारों पर निम्नलिखित कारणों से हुआ –

  1. नदी घाटियों का निर्माण नदियों द्वारा लाई गई मिट्टी से हुआ था। इसलिए ये बहुत । उपजाऊ थे।
  2. लोगों को पर्याप्त मात्रा में पानी प्राप्त होता था।
  3. यातायात तथा सामान लाने-ले जाने के लिए नदियों का प्रयोग किया जा सकता था।

प्रश्न 2.
संसार की आरम्भिक सभ्यताओं के चार केन्द्र बताओ।
उत्तर-
संसार की आरम्भिक सभ्यताओं के चार केन्द्र ये थे –

  1. नील नदी की घाटी (मिस्र),
  2. दज़ला तथा फ़रात नदियों की घाटी (मैसोपोटामिया),
  3. सिन्धु नदी की घाटी (सिन्धु),
  4. ह्वांग-हो तथा यंगसी-क्यांग नदियों की घाटी (चीन)।

PSEB 6th Class Social Science Solutions Chapter 10 हड़प्पा सभ्यता

प्रश्न 3.
हड़प्पा सभ्यता का विस्तार बताएं।
उत्तर-
हड़प्पा सभ्यता का विस्तार भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तर-पश्चिमी भाग में लगभग सिन्धु नदी से लेकर प्राचीन सरस्वती (आधुनिक घग्गर नदी) नदी तक था। इसमें वर्तमान पाकिस्तान, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, गुजरात, पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कुछ भाग तथा दक्षिणी अफगानिस्तान शामिल थे।

प्रश्न 4.
हड़प्पा सभ्यता के मकानों के निर्माण का वर्णन करें।
उत्तर-
हड़प्पा सभ्यता में मकान पकी ईंटों तथा लकड़ी से बनाये जाते थे। मकान के निर्माण में पत्थरों का प्रयोग बहुत कम किया जाता था। बड़े मकानों में अनेक कमरे होते थे जबकि छोटे मकान एक या दो कमरों वाले होते थे। प्रत्येक घर में एक रसोईघर तथा स्नान-गृह होता था। कई बड़े मकान दो-मंजिला भी होते थे तथा इनमें एक आंगन तथा कुआं होता था। मकान की नालियों का निकास बाहर गली की भूमिगत नालियों में होता था।

प्रश्न 5.
हड़प्पा सभ्यता के मुख्य भवनों के बारे में बताएं।
उत्तर-
हड़प्पा सभ्यता के मुख्य भवन निम्नलिखित थे –

1. विशाल स्नानगृह-यह वर्माकार भवन मोहनजोदड़ो में मिला है। ऐसा माना जाता है कि विशेष अवसरों पर लोग स्नान करने के लिए यहां इकट्ठे होते थे।
2. अनाज के गोदाम-ये भवन हड़प्पा तथा मोहनजोदड़ो में मिले हैं।
3. सभा भवन-मोहनजोदड़ो में स्तम्भों वाला एक भवन मिला है। इसका प्रयोग शायद सभा करने के लिए किया जाता था।

PSEB 6th Class Social Science Solutions Chapter 10 हड़प्पा सभ्यता

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
हड़प्पा सभ्यता के लोगों के भोजन, वस्त्रों तथा आभूषणों के बारे में बताएं।
उत्तर-
भोजन-हड़प्पा सभ्यता के लोगों का भोजन सभ्य लोगों जैसा था। वे गेहूं, चावल, सब्जियां, फल तथा दूध का प्रयोग करते थे। कुछ लोग माँस तथा मछली भी ख़ाते थे

वस्त्र-हड़प्पा सभ्यता के लोग सूती तथा ऊनी वस्त्र पहनते थे। खुदाई में पुरुष की एक मूर्ति मिली है जिससे पता चलता है कि लोग धोती की तरह की एक पोशाक र कन्धों पर शाल जैसे वस्त्र का प्रयोग करते थे। स्त्रियों के वस्त्र भी कुछ इसी प्रकार के

आभूषण-हड़प्पा सभ्यता की स्त्रियां तथा पुरुष, दोनों आभूषण पहनने के शौका थे। आभूषण सोने, चाँदी, हाथी दांत तथा तांबे आदि के बनाये जाते थे। मुख्य आभूषणों में हार, बालों के गहने, हाथ के कंगन, अंगूठियां आदि सम्मिलित थीं। स्त्रियों के कुछ विशेष गहने तरागड़ी, नाक के कांटे, बुंदे, पायजेब आदि थे। धनी लोग सोने, चाँदी, हाथी दांत तथा कीमती मोतियों के बने गहने पहनते थे, जबकि निर्धन लोग सिप्पियों, हड्डियों, तांबे तथा पत्थर के आभूषणों का प्रयोग करते थे।

प्रश्न 2.
पंजाब के कौन-से स्थानों से हड़प्पा सभ्यता के अवशेष प्राप्त हुए हैं? किन्हीं चार स्थानों के बारे में विस्तार से लिखें।
उत्तर-
विभिन्न खुदाइयों से पता चलता है कि पंजाब भी हड़प्पा सभ्यता का मुख्य केन्द्र था। यहाँ निम्नलिखित स्थानों से हड़प्पा सभ्यता के अवशेष मिले हैं –

1. संघोल-संघोल एक छोटा-सा गांव है जो लुधियाना-चण्डीगढ़ सड़क पर स्थित है। इसे ‘ऊँचा गांव’ भी कहते हैं। यहां की खुदाइयों से 2000 ई० पूर्व के समय के लोगों की जानकारी प्राप्त हुई है। यहां कुछ मूर्तियां, मिट्टी के बर्तन, माला के मनके तथा तांबे के औज़ार मिले हैं। इन वस्तुओं का सम्बन्ध हड़प्पा सभ्यता से है।

2. रोहिड़ा-रोहिड़ा मण्डी अहमदगढ़ से 6 किलोमीटर दूर है। यहां की खुदाइयों से बर्तन, पकी ईंटें, मिट्टी के खिलौने आदि मिले हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि यहां हड़प्पा संस्कृति तथा रोहिड़ा की अपनी संस्कृति साथ-साथ फलती-फूलती रहीं।

3. सुनेत-सुनेत ज़िला लुधियाना में स्थित है। यहां की खुदाइयों से 1800 ई० पूर्व से 1400 ई० पूर्व तक की सभ्यता की जानकारी मिलती है।

4. रोपड़-यहां की खुदाइयों से मिट्टी के बर्तन तथा माला के मनके मिले हैं। ऐसा लगता है कि यह स्थान हड़प्पा सभ्यता के समय काफ़ी समृद्ध था।

PSEB 6th Class Social Science Solutions Chapter 10 हड़प्पा सभ्यता

हड़प्पा सभ्यता PSEB 6th Class Social Science Notes

  • हड़प्पा सभ्यता के विभिन्न नाम – हड़प्पा सभ्यता को सिन्धु घाटी सभ्यता एवं सिन्धुसरस्वती सभ्यता भी कहा जाता है।
  • हड़प्पा सभ्यता का उदय – हड़प्पा सभ्यता का उदय आज से लगभग सात हज़ार वर्ष पूर्व भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तर-पश्चिमी भागों में हुआ था।
  • हड़प्पा सभ्यता की जानकारी – हड़प्पा सभ्यता की जानकारी 1921-1922 ई० में पाकिस्तान के हड़प्पा तथा मोहनजोदड़ो नामक स्थानों पर खुदाई से प्राप्त हुई थी।
  • हड़प्पा सभ्यता की नगर योजना – हड़प्पा सभ्यता की नगर योजना आधुनिक महानगरों के समान सुनियोजित थी।
  • हड़प्पा सभ्यता का सबसे महत्त्वपूर्ण भवन – हड़प्पा सभ्यता का सबसे महत्त्वपूर्ण भवन मोहनजोदड़ो का विशाल स्नानगृह थे।
  • हड़प्पा सभ्यता के लोगों के प्रमुख खाद्य पदार्थ – हड़प्पा सभ्यता के लोगों के प्रमुख खाद्य पदार्थ गेहूँ, ज्वार, चावल, दालें, फल, सब्जियां तथा दूध थे।
  • हड़प्पा सभ्यता के लोगों के वस्त्र – हड़प्पा सभ्यता के लोग ऊनी व सूती, दोनों प्रकार के वस्त्र पहनते थे।
  • हड़प्पा सभ्यता के लोगों के मनोरंजन के प्रमुख साधन – हड़प्पा सभ्यता के लोगों के मनोरंजन के प्रमुख साधन नृत्य, जुआ खेलना, चौपड़, शिकार तथा दौड़ इत्यादि थे।
  • हड़प्पा सभ्यता के लोगों के प्रमुख व्यवसाय – कृषि तथा पशुपालन हड़प्पा सभ्यता के लोगों के प्रमुख व्यवसाय थे।
  • हड़प्पा सभ्यता के लोगों के विदेशी व्यापार के मार्ग – हड़प्पा सभ्यता के लोग दूसरे देशों के साथ जल व स्थल, दोनों मार्गों द्वारा व्यापार करते थे।
  • हड़प्पा सभ्यता के लोगों के देवीदेवता – हड़प्पा सभ्यता के लोग मातृदेवी, पशुपति (भगवान् शिव), बैल तथा पीपल की उपासना करते थे।
  • हड़प्पा सभ्यता का पतन – हड़प्पा सभ्यता का पतन लगभग 1500 ई० पू० में हुआ।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 2 तुलनात्मक राजनीति

Punjab State Board PSEB 12th Class Political Science Book Solutions Chapter 2 तुलनात्मक राजनीति Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Political Science Chapter 2 तुलनात्मक राजनीति

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
तुलनात्मक राजनीति से आप क्या समझते हैं ? (What do you understand by Comparative Politics ?)
उत्तर-
तुलनात्मक राजनीति आधुनिक राजनीति विज्ञान की महत्त्वपूर्ण देन है। तुलनात्मक राजनीति वर्तमान में विश्वव्यापी स्तर पर राजनीति-शास्त्रियों व विचारकों के अध्ययन की प्रमुख विषय-वस्तु बन चुकी है। तुलनात्मक राजनीति का अध्ययन यद्यपि ऐतिहासिक काल से चला आ रहा है तथापि इसका महत्त्व आधुनिक युग में ही बढ़ा है। इसका कारण यह है कि प्रत्येक विषय के वैज्ञानिक अध्ययन के लिए तुलनात्मक अध्ययन अनिवार्य है और बिना तुलनात्मक अध्ययन के किसी भी विषय की वैज्ञानिक व्याख्या सम्भव नहीं है। यही बात राजनीति विज्ञान पर लागू होती है।

तुलनात्मक राजनीति का अध्ययन आधुनिक राजनीति शास्त्र की इस बदलती हुई प्रवृत्ति का परिचायक है। यद्यपि तुलनात्मक राजनीति का सामान्य अर्थ विदेशी सरकारों का संवैधानिक अध्ययन (Constitutional study of foreign government) है किन्तु आधुनिक राजनीति शास्त्र सम्पूर्ण विश्व की राजनीतिक पद्धति की कल्पना करता है।

तुलनात्मक राजनीति का अर्थ तथा परिभाषाएँ (Meaning and Definitions of Comparative Politics)तुलनात्मक राजनीति का अर्थ किन्हीं दो देशों अथवा दो सरकारों की राजनीति की तुलना करना अथवा कुछ देशों के संविधानों की तुलना नहीं है। तुलनात्मक राजनीति से हमारा अभिप्राय राजनीतिक संस्थाओं के तुलनात्मक अध्ययन से है। राजनीतिक संस्थाएं सरकार अथवा शासन के विभिन्न अंगों को कहा जाता है। शासन राज्य की एक मुख्य संस्था है जिसके मुख्य तीन अंग होते हैं-कार्यपालिका, विधानपालिका तथा न्यायपालिका। स्तरों की दृष्टि से शासन में केन्द्रीय सरकार, प्रादेशिक सरकार तथा स्थानीय सरकारें होती हैं, शासकीय प्रशासन, वित्तीय प्रशासन, असैनिक सरकार तथा अन्य सामाजिक मूल्य भी शासन के महत्त्वपूर्ण अंग होते हैं। यह सभी अंग तथा अन्य शासकीय अंग राजनीतिक संस्थाएं कहलाती हैं। तुलनात्मक राजनीति का उद्देश्य विभिन्न राजनीतिक व्यवस्थाओं (Political Systems) अथवा शासन की राजनीतिक संस्थाओं (Political Institutions) का तुलनात्मक अध्ययन करना है। तुलनात्मक राजनीति के विद्वानों ने भिन्न-भिन्न परिभाषाएं दी हैं, जिनमें मुख्य परिभाषाएं निम्नलिखित हैं-

1. एडवर्ड ए० फ्रीमैन (Edward A. Freeman) के अनुसार, “तुलनात्मक राजनीति संस्थाओं तथा सरकारों के विविध प्रकारों का एक तुलनात्मक विवेचन तथा विश्लेषण है।”

2. जीन ब्लोण्डेल (Jean Blondel) के अनुसार, “तुलनात्मक राजनीति वर्तमान विश्व में राष्ट्रीय सरकारों के प्रतिमानों का अध्ययन है।”

3. राल्फ बराइबन्ती (Ralf Braibanti) के अनुसार, “तुलनात्मक राजनीति सम्पूर्ण सामाजिक व्यवस्था के उन तत्त्वों
की पहचान और व्याख्या है जो राजनीतिक कार्यों तथा उनके संस्थागत प्रकाशन को प्रभावित करते हैं।”

4. आर० सी० मैक्रीडीस (R. C. Macridis) के शब्दों में, “हैरोडोटस तथा अरस्तु के समय से ही राजनीतिक मूल्यों, विश्वासों, संस्थाओं, सरकारों और राजनीतिक व्यवस्थाओं में विविधताएं जीवन्त रही हैं और इन विविधताओं में समान तत्त्वों की छानबीन करने का जो पद्धतीय प्रयास है उसे तुलनात्मक राजनीति का विश्लेषण कहा जाना चाहिए।”

उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि तुलनात्मक राजनीति के अन्तर्गत केवल सरकारों का ही तुलनात्मक अध्ययन नहीं होता बल्कि इससे राजनीतिक व गैर-राजनीतिक, कानूनी व गैर-कानूनी, संवैधानिक व संविधानातिरिक्त, कबीलों की राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक आदि तथ्यों का भी अध्ययन किया जाता है। इसमें सम्पूर्ण समाज के उन तथ्यों का अध्ययन जो किसी भी रूप में राजनीतिक प्रणाली को प्रभावित करते हैं तुलनात्मक राजनीति का अध्ययन संस्थागत अथवा सैद्धान्तिक न होकर व्यावहारिक है।

प्रश्न 2.
तुलनात्मक राजनीति की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन करो। (Describe the main characteristics of Comparative Politics.)
उत्तर-
तुलनात्मक राजनीति की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
1. मूल्य मुक्त धारणा (Value-free theory) तुलनात्मक सरकार के विद्वान् अपना अध्ययन कुछ मूल्यों को ध्यान में रखकर ही करते थे। इसलिए उन्होंने कुछ ही विषयों पर बार-बार लिखा। परन्तु तुलनात्मक राजनीति के विद्वान् मूल्य निरपेक्ष अध्ययन पर बल देते हैं।

2. अन्तः अनुशासनात्मक दृष्टिकोण (Inter-Disciplinary Approach)-तुलनात्मक राजनीति एक अन्तः अनुशासनात्मक दृष्टिकोण अथवा धारणा है। इसके विद्वान् अधिक-से-अधिक उन उपकरणों व शास्त्रीय अवधारणाओं का प्रयोग करते हैं जो वे समाजशास्त्र, मनोविज्ञान, मानवशास्त्र, अर्थशास्त्र, जीव विज्ञान इत्यादि से ग्रहण करते हैं।

3. विश्लेषणात्मक व व्याख्यात्मक अध्ययन (Analytical and Explanatory Study)—आधुनिक दृष्टिकोण में परिकल्पनाएं की जाती हैं, परीक्षण किए जाते हैं तथा आंकड़ों को एकत्रित किया जाता है। विश्लेषणात्मक पद्धति से परिकल्पनाओं की जांच की जाती है और जांच के आधार पर उन परिकल्पनाओं का धारण, संशोधन अथवा खण्डन किया जाता है। तुलनात्मक राजनीति में विश्लेषणात्मक पद्धति का महत्त्व दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है।

4. विकासशील देशों का अध्ययन (Study of Developing Countries) आधुनिक तुलनात्मक राजनीति में केवल पश्चिमी देशों का ही अध्ययन नहीं किया जाता है वरन एशिया, लैटिन अमेरिका तथा अफ्रीका के विकासशील देशों के अध्ययन की ओर भी ध्यान दिया जाता है।

5. वैज्ञानिक तथा व्यवस्थित अध्ययन (Scientific and Systematic Study) तुलनात्मक राजनीति में वैज्ञानिक तथा व्यवस्थित अध्ययन को अपनाया जाता है क्योंकि इसमें कार्य-करण और क्रिया-प्रतिक्रिया का सम्बन्ध स्थापित करने की कोशिश की जाती है।

6. व्यवस्थामूलक दृष्टिकोण (Systematic Approach)-तुलनात्मक राजनीति में संविधान के अध्ययन की अपेक्षा राजनीतिक व्यवस्था के अध्ययन को अधिक महत्त्वपूर्ण माना जाता है और उसी के आधार पर राजनीतिक प्रतिक्रियाओं तथा संस्थाओं का तुलनात्मक अध्ययन किया जाता है।

7. व्यवहारवादी अध्ययन सम्बन्धी दृष्टिकोण (Behavioural Approach of Study)—तुलनात्मक राजनीति के आधुनिक उपागम ‘व्यवहारवादी दृष्टिकोण’ पर आधारित हैं, जिसके अन्तर्गत राजनीतिक संस्थाओं के अध्ययन के साथ-साथ मानव स्वभाव, सामाजिक व राजनीतिक पर्यावरण का भी अध्ययन किया जाता है।।

8. संरचनात्मक व कार्यात्मक दृष्टिकोण (Structural and functional Approach)-आधुनिक दृष्टिकोण की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता यह है कि यह संरचना तथा कार्य मूलक दृष्टिकोण है। आधुनिक युग में सभी विद्वान् इस बात पर सहमत हैं कि राजनीतिक व्यवस्थाओं तथा संस्थाओं की संरचना और कार्यों में बहुत ही घनिष्ठ सम्बन्ध होता है। दोनों एक-दूसरे को प्रभावित ही नहीं करते, अपितु एक-दूसरे के नियामक भी होते हैं।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 2 तुलनात्मक राजनीति

लघु उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
तुलनात्मक राजनीति से क्या भाव है ?
अथवा
तुलनात्मक राजनीति का क्या अर्थ है ?
उत्तर-
तुलनात्मक राजनीति का अर्थ किन्हीं दो देशों अथवा दो सरकारों की राजनीति की तुलना करना अथवा कुछ देशों के संविधानों की तुलना करना नहीं है। तुलनात्मक राजनीति से हमारा अभिप्राय राजनीतिक संस्थाओं के तुलनात्मक अध्ययन से है। अब यह प्रश्न उठता है कि राजनीतिक संस्थाएं क्या हैं। राजनीतिक संस्थाएं सरकार अथवा शासन के विभिन्न अंगों को कहा जाता है। शासन राज्य की एक मुख्य संस्था है, जिसके मुख्य तीन अंग होते हैं-कार्यपालिका, विधानपालिका तथा न्यायपालिका। स्तरों की दृष्टि से शासन में केन्द्रीय सरकार, प्रादेशिक सरकार तथा स्थानीय सरकारें होती हैं। शासकीय प्रशासन, वित्तीय व्यवस्था, असैनिक सरकार तथा अन्य सामाजिक मूल्य भी शासन के महत्त्वपूर्ण अंग होते हैं। ये सभी अंग तथा अनेक अन्य शासकीय अंग राजनीतिक संस्थाएं कहलाते हैं। तुलनात्मक राजनीति का उद्देश्य विभिन्न राजनीतिक व्यवस्थाओं (Political System) अथवा शासन की राजनीतिक संस्थाओं (Political Institutions) का तुलनात्मक अध्ययन करना है।

प्रश्न 2.
तुलनात्मक राजनीति की कोई तीन परिभाषाएं लिखें।
अथवा
तुलनात्मक राजनीति की कोई चार परिभाषाएं लिखें।
उत्तर-
तुलनात्मक राजनीति की तीन परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं-

  • एडवर्ड ए० फ्रीमैन के अनुसार, “तुलनात्मक राजनीतिक संस्थाओं तथा सरकारों के विविध प्रकारों का एक तुलनात्मक विवेचन तथा विश्लेषण है।”
  • जीन ब्लोण्डेल के अनुसार, “तुलनात्मक राजनीति वर्तमान विश्व में राष्ट्रीय सरकारों के प्रतिमानों का अध्ययन है।”
  • एम० कर्टिस के अनुसार, “तुलनात्मक राजनीति राजनीतिक संस्थाओं की कार्यप्रणाली और राजनीतिक व्यवहार में पाई जाने वाली महत्त्वपूर्ण नियमितताओं, समानताओं और अन्तरों से सम्बन्धित है।”
  • राल्फ बराइबत्ती के अनुसार, “तुलनात्मक राजनीति सम्पूर्ण सामाजिक व्यवस्था के उन तत्त्वों की पहचान और व्याख्या है जो राजनीतिक कार्यों तथा उनके संस्थागत प्रकाशन को प्रभावित करती है।”

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 2 तुलनात्मक राजनीति

प्रश्न 3.
तुलनात्मक राजनीति की कोई तीन विशेषताएं लिखें।
अथवा
तुलनात्मक राजनीति की कोई चार विशेषताएं लिखिए।
उत्तर-

  • मूल्य मुक्त धारणा–तुलनात्मक सरकार के विद्वान् अपना अध्ययन कुछ मूल्यों को ध्यान में रखकर ही करते थे। इसलिए उन्होंने कुछ ही विषयों पर बार-बार लिखा। परन्तु तुलनात्मक राजनीति के विद्वान् मूल्य निरपेक्ष अध्ययन पर बल देते हैं।
  • अन्तः अनुशासनात्मक दृष्टिकोण—तुलनात्मक राजनीति एक अन्तः अनुशासनात्मक दृष्टिकोण अथवा धारणा है। इसके विद्वान् अधिक-से-अधिक उन उपकरणों व शास्त्रीय अवधारणाओं का प्रयोग करते हैं जो वे समाजशास्त्र, मनोविज्ञान, मानवशास्त्र, अर्थशास्त्र जीव विज्ञान इत्यादि से ग्रहण करते हैं।
  • विश्लेषणात्मक व व्याख्यात्मक अध्ययन–आधुनिक दृष्टिकोण में परिकल्पनाएं की जाती हैं, परीक्षण किए जाते हैं तथा आंकड़ों को एकत्रित किया जाता है। विश्लेषणात्मक पद्धति से परिकल्पनाओं की जांच की जाती है और जांच के आधार पर उन परिकल्पनाओं का धारण, संशोधन अथवा खण्डन किया जाता है। तुलनात्मक राजनीति में विश्लेषणात्मक पद्धति का महत्त्व दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है।
  • वैज्ञानिक तथा व्यवस्थित अध्ययन-तुलनात्मक राजनीति में वैज्ञानिक तथा व्यवस्थित अध्ययन अपनाया जाता है।

प्रश्न 4.
तुलनात्मक राजनीति के अध्ययन की क्या महत्ता है ?
उत्तर-

  • तुलनात्मक राजनीति के अध्ययन से राजनीतिक व्यवहार को समझने में सहायता मिलती है।
  • तुलनात्मक राजनीति के अध्ययन से भिन्न-भिन्न राजनीतिक व्यवस्थाओं की समानताओं तथा असमानताओं को समझा जा सकता है।
  • तुलनात्मक राजनीति के अध्ययन से विकासशील देशों की राजनीतिक व्यवस्थाओं को समझने में सहायता मिलती है।
  • तुलनात्मक राजनीति का अध्ययन राजनीति को एक वैज्ञानिक अध्ययन बनाता है।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 2 तुलनात्मक राजनीति

प्रश्न 5.
तुलनात्मक राजनीति और तुलनात्मक सरकार में अंतर लिखिए ?
उत्तर-

  • विषय क्षेत्र सम्बन्धी अन्तर-तुलनात्मक सरकार का विषय क्षेत्र तुलनात्क राजनीति के क्षेत्र से सीमित
  • जन्म सम्बन्धी अन्तर-तुलनात्मक सरकार का विषय लगभग उतना ही पुराना है जितना कि स्वयं राजनीति शास्त्र पुराना है। राजनीति शास्त्र के पितामह अरस्तु ने अपने समय की 158 सरकारों की तुलनात्मक अधययन करके तुलनात्मक विश्लेषण सम्बन्धी अपने विचार दिये थे। परन्तु तुलनात्मक सरकार की अपेक्षा राजनीति एक नया विषय है।
  • उद्देश्य सम्बन्धी अन्तर-तुलनात्मक सरकार व तुलनात्मक राजनीति में मुख्य अन्तर उद्देश्य सम्बन्धी है। प्रत्येक विषय के अध्ययन का कोई-न-कोई उद्देश्य अवश्य होता है। तुलनात्मक सरकार के अध्ययन के बावजूद इसका उद्देश्य स्पष्ट नहीं होता जबकि तुलनात्मक राजनीति के अध्ययन से इसका उद्देश्य सिद्धान्त निर्माण (Theory Building) स्पष्ट हो जाता है।
  • तुलनात्मक शासन सैद्धान्तिक और संस्थागत अध्ययन है, जबकि तुलनात्मक राजनीति व्यावहारिक और वैज्ञानिक अध्ययन है।

प्रश्न 6.
तुलनात्मक राजनीति के रास्ते में आने वाली किन्हीं चार रुकावटों के बारे में लिखिए।
उत्तर-

  • क्षेत्र सम्बन्धी रुकावट-तुलनात्मक राजनीति के रास्ते में पहली रुकावट यह आती है कि इसके क्षेत्र में क्या-क्या शामिल किया जाए ?
  • दृष्टिकोण सम्बन्धी रुकावट-तुलनात्मक राजनीति के रास्ते में दूसरी रुकावट यह है कि इसके अध्ययन के लिए किन-किन दृष्टिकोणों का प्रयोग किया जाए ?
  • विकासशील देशों की परिस्थितियां-तुलनात्मक राजनीति के रास्ते में विकासशील देशों की खराब आर्थिक एवं सामाजिक परिस्थितियां रुकावट पैदा करती हैं।
  • कठिन शब्दावली-तुलनात्मक राजनीति की शब्दावली कठिन है।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 2 तुलनात्मक राजनीति

अति लघु उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
तुलनात्मक राजनीति का क्या अर्थ है ?
उत्तर-
तुलनात्मक राजनीति से हमारा अभिप्राय राजनीतिक संस्थाओं के तुलनात्मक अध्ययन से है। अब यह प्रश्न उठता है कि राजनीतिक संस्थाएं क्या हैं। राजनीतिक संस्थाएं सरकार अथवा शासन के विभिन्न अंगों को कहा जाता है। तुलनात्मक राजनीति का उद्देश्य विभिन्न राजनीतिक व्यवस्थाओं (Political System) अथवा शासन की राजनीतिक संस्थाओं (Political Institutions) का तुलनात्मक अध्ययन करना है।

प्रश्न 2.
तुलनात्मक राजनीति की दो परिभाषाएं लिखें।
उत्तर-

  • एडवर्ड ए० फ्रीमैन के अनुसार, “तुलनात्मक राजनीतिक संस्थाओं तथा सरकारों के विविध प्रकारों का एक तुलनात्मक विवेचन तथा विश्लेषण है।”
  • जीन ब्लोण्डेल के अनुसार, “तुलनात्मक राजनीति वर्तमान विश्व में राष्ट्रीय सरकारों के प्रतिमानों का अध्ययन है।”

प्रश्न 3.
तुलनात्मक राजनीति के अधीन कौन-से दो विषयों की तुलना की जा सकती है ?
उत्तर-
तुलनात्मक राजनीति के अधीन शासन एवं राजनीति की तुलना की जाती है अर्थात् इनके अधीन किन्हीं दो देशों के शासन एवं उनकी राजनीति की तुलना की जाती है।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 2 तुलनात्मक राजनीति

प्रश्न 4.
तुलनात्मक राजनीति की दो विशेषताएं लिखिए।
उत्तर-

  • मूल्य मुक्त धारणा–तुलनात्मक राजनीति के विद्वान् मूल्य निरपेक्ष अध्ययन पर बल देते हैं।
  • अन्त: अनुशासनात्मक दृष्टिकोण—तुलनात्मक राजनीति एक अन्तः अनुशासनात्मक दृष्टिकोण अथवा धारणा चारणा है

प्रश्न 5.
तुलनात्मक राजनीति के विषय क्षेत्र के कोई दो मुख्य विषय लिखिए।
उत्तर-

  • तुलनात्मक राजनीति में विभिन्न राज्यों की सरकारी संरचनाओं का व्यापक विवरण मिलता है।
  • तुलनात्मक राजनीति में राजनीतिक दलों के संगठन, कार्यक्रम तथा कार्यों का अध्ययन करता है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न-

प्रश्न I. एक शब्द/वाक्य वाले प्रश्न-उत्तर

प्रश्न 1.
राजनीतिक शास्त्र में तुलनात्मक अध्ययन का प्रतिपादक किसे माना जाता है ?
उत्तर-
राजनीतिक शास्त्र में तुलनात्मक अध्ययन का प्रतिपादक अरस्तू को माना जाता है।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 2 तुलनात्मक राजनीति

प्रश्न 2.
अरस्तू ने कितने संविधानों का तुलनात्मक अध्ययन किया था ?
उत्तर-
रस्तू ने लगभग 158 संविधानों का तुलनात्मक अध्ययन किया था।

प्रश्न 3.
तुलनात्मक राजनीति से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
तुलनात्मक राजनीति से हमारा अभिप्राय राजनीति संस्थाओं के तुलनात्मक अध्ययन से है।

प्रश्न 4.
तुलनात्मक राजनीति की कोई एक परिभाषा लिखिए।
उत्तर-
एडवर्ड ए० फ्रीमैन के अनुसार, “तुलनात्मक राजनीति संस्थाओं तथा सरकारों के विविध प्रकारों का एक तुलनात्मक विवेचन तथा विश्लेषण है।”

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प्रश्न 5.
तुलनात्मक राजनीति और तुलनात्मक सरकार में अन्तर बताएं।
उत्तर-
तुलनात्मक सरकार सैद्धान्तिक और संस्थागत अध्ययन है, जबकि तुलनात्मक राजनीति व्यावहारिक और वैज्ञानिक अध्ययन है।

प्रश्न 6.
तुलनात्मक राजनीति के विषय क्षेत्र का कोई एक मुख्य विषय लिखें।
उत्तर-
विभिन्न देशों की सरकारी संरचनाओं का अध्ययन।

प्रश्न 7.
तुलनात्मक राजनीति की कोई दो विशेषताएं लिखें।
अथवा
तुलनात्मक राजनीति की कोई एक विशेषता लिखिए।
उत्तर-
(1) मूल्य मुक्त धारणा।
(2) अन्तः अनुशासनात्मक दृष्टिकोण।

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प्रश्न 8.
तुलनात्मक शासन एवं राजनीति में किस पर अधिक बल दिया गया है ?
उत्तर-
अंत: अनुशासन अध्ययन पर अधिक बल दिया गया है।

प्रश्न 9.
तुलनात्मक राजनीति की कोई एक समस्या लिखिए।
उत्तर-
संयुक्त शब्दावली का अभाव।

प्रश्न 10.
किन विद्वानों ने परम्परावादी दृष्टिकोण का निर्जीव राजनीति विज्ञान कहकर खण्डन किया है?
उत्तर-
आधुनिक विद्वानों ने।

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प्रश्न II. खाली स्थान भरें-

1. तुलनात्मक राजनीति से अभिप्राय राजनीतिक संस्थाओं के ………….. अध्ययन से है।
2. शासन राज्य की एक मुख्य संस्था है, जिसके मुख्य तीन अंग होते हैं :- कार्यपालिका, ……………. एवं न्यायपालिका।
3. …………… के अनुसार तुलनात्मक राजनीति संस्थाओं तथा सरकारों के विविध प्रकारों का एक तुलनात्मक विवेचन एवं विश्लेषण है।
4. ……………. के अनुसार, तुलनात्मक राजनीति वर्तमान विश्व में राष्ट्रीय सरकारों के प्रतिमानों का अध्ययन है।
उत्तर-

  1. तुलनात्मक
  2. विधानपालिका
  3. एडवर्ड ए० फ्रीमैन
  4. जीन ब्लोण्डेल।

प्रश्न III. निम्नलिखित वाक्यों में से सही एवं ग़लत का चुनाव करें-

1. तुलनात्मक राजनीति परम्परागत राजनीति विज्ञान की देन है।
2. तुलनात्मक राजनीति से अभिप्राय राजनीतिक संस्थाओं के तुलनात्मक अध्ययन से है।
3. तुलनात्मक राजनीति की एक विशेषता मूल्य मुक्त अध्ययन है।
4. तुलनात्मक राजनीति में अन्तः अनुशासनात्मक दृष्टिकोण पर बल नहीं दिया जाता।
5. मैक्रीडीस एवं वार्ड के अनुसार तुलनात्मक राजनीति एक ऐसा गाइड है, जो घर बैठे-बिठाए हमें देश-विदेश की सैर करा देता है।
उत्तर-

  1. ग़लत
  2. सही
  3. सही
  4. ग़लत
  5. सही।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 2 तुलनात्मक राजनीति

प्रश्न IV. बहुविकल्पीय प्रश्न –

प्रश्न 1.
“राजनीति में मानव स्वभाव” नामक पुस्तक किसने लिखी?
(क) राबर्ट डहल
(ख) लुसियन पाई
(ग) डेविड एप्टर
(घ) ग्राम वालेस।
उत्तर-
(घ) ग्राम वालेस।

प्रश्न 2.
तुलनात्मक राजनीति का आरम्भ कब से माना जाता है?
(क) 19वीं शताब्दी से
(ख) 20वीं शताब्दी के प्रारंभ से
(ग) 18वीं शताब्दी से
(घ) 17वीं शताब्दी से।
उत्तर-
(ख) 20वीं शताब्दी के प्रारंभ से

प्रश्न 3.
तुलनात्मक सरकार एवं तुलनात्मक राजनीति में –
(क) कोई अन्तर नहीं
(ख) अन्तर है
(ग) उपरोक्त दोनों
(घ) उपरोक्त में से कोई नहीं।
उत्तर-
(ख) अन्तर है

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 2 तुलनात्मक राजनीति

प्रश्न 4.
“तुलनात्मक राजनीति का अर्थ समकालीन विश्व में राष्ट्रीय सरकारों के ढांचे का अध्ययन है।” यह कथन किसका है ?
(क) एडवर्ड फ्रीमैन
(ख) अरस्तू
(ग) जीन ब्लोण्डेल
(घ) ज्यूफ्री के० राबर्टस।
उत्तर-
(ग) जीन ब्लोण्डेल

प्रश्न 5.
तुलनात्मक शासन एवं राजनीति में ज़ोर दिया जाता है-
(क) ऐतिहासिक अध्ययन पर
(ख) केवल संवैधानिक ढांचे पर
(ग) अन्तःअनुशासन अध्ययन पर
(घ) उपरोक्त में से कोई नहीं।
उत्तर-
(ग) अन्तःअनुशासन अध्ययन पर

PSEB 7th Class Social Science Solutions Chapter 18 लोकतन्त्र तथा समानता

Punjab State Board PSEB 7th Class Social Science Book Solutions Civics Chapter 18 लोकतन्त्र तथा समानता Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 7 Social Science Civics Chapter 18 लोकतन्त्र तथा समानता

SST Guide for Class 7 PSEB लोकतन्त्र तथा समानता Textbook Questions and Answers

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 1-15 शब्दों में लिखें

प्रश्न 1.
लोकतंत्रीय सरकार से क्या भाव है ?
उत्तर-
लोकतंत्र (प्रजातन्त्र) लोगों की अपनी सरकार होती है, अर्थात् वहां का शासन लोगों की इच्छानुसार चलाया जाता है। कानून के अनुसार भी शासन चलाने की शक्ति लोगों के हाथ में होती है। प्रजातन्त्र में कानून का शासन (Rule of Law) होता है। प्रजातान्त्रिक सरकार लोगों द्वारा ही बनाई जाती है और वह लोगों के कल्याण के लिए ही कार्य करती है। अब्राहिम लिंकन के शब्दों में प्रजातान्त्रिक सरकार ‘लोगों की, लोगों द्वारा और लोगों के लिए’ होती है।

प्रश्न 2.
‘कानून के शासन’ से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
कानून के शासन से अभिप्राय यह है कि देश का शासन निश्चित कानूनों अथवा नियमों के अनुसार चलाया जाता है। सरकार इन नियमों की अवहेलना नहीं कर सकती। उसकी शक्ति का स्रोत कानून होते हैं।

प्रश्न 3.
मताधिकार का लोकतंत्र में क्या महत्त्व है ?
उत्तर-
आधुनिक लोकतंत्र प्रतिनिधि लोकतंत्र है। इसमें नागरिक अपने प्रतिनिधियों का चुनाव करते हैं जो सरकार चलाते हैं और कानून बनाते हैं। इन प्रतिनिधियों का चुनाव वोट अथवा मताधिकार द्वारा किया जाता है। यदि सरकार अयोग्य हो, तो उसे भी मताधिकार द्वारा बदला जाता है। इसलिए लोकतंत्र में मताधिकार बहुत ही महत्त्वपूर्ण होता है।

PSEB 7th Class Social Science Solutions Chapter 18 लोकतन्त्र तथा समानता

प्रश्न 4.
प्रधानात्मक सरकार कौन-सी होती है ?
उत्तर-
कृपया इसके लिए 50-60 शब्दों वाला प्रश्न नं. 4 पढ़ें।

प्रश्न 5.
लोकतंत्र में लोकमत का क्या महत्त्व है ?
उत्तर-
लोकमत से अभिप्राय लोगों की इच्छा से है। लोकतंत्र में नीतियों का निर्माण लोकमत के आधार पर ही होता है। लोकमत की उपेक्षा करने वाली सरकार को अगले चुनावों में बदल दिया जाता है। इस प्रकार लोकतन्त्र में लोकमत बहुत ही महत्त्वपूर्ण होता है।

प्रश्न 6.
कौन से देश में आज भी प्रत्यक्ष लोकतंत्र है ?
उत्तर-
स्विट्ज़रलैण्ड में आज भी प्रत्यक्ष लोकतंत्र है।

PSEB 7th Class Social Science Solutions Chapter 18 लोकतन्त्र तथा समानता

(ख) निम्नलिखित प्रश्नों का उत्तर 50-60 शब्दों में लिखें :

प्रश्न 1.
लोकतंत्र के अस्तित्व में आने संबंधी संक्षिप्त नोट लिखें।
उत्तर-
लोकतंत्र (प्रजातन्त्र) का आरम्भ यूनान के शहर ऐथन्ज़ में हुआ। वहां का प्रजातन्त्र लगभग 2500 वर्ष पुराना है। यह प्रत्यक्ष (सीधा) लोकतंत्र था जिसमें सभी लोग मिलकर शासन चलाते थे। वे लोग वर्ष में कई बार एकत्रित होकर सभा किया करते थे। वहां पर लोगों द्वारा राज्य प्रबन्ध चलाने के निर्णय लिए जाते थे। उस समय सीधा लोकतंत्र इसलिए सम्भव था क्योंकि लोगों की संख्या कम थी और सभी एक स्थान पर बैठकर निर्णय ले सकते थे। सीधा प्रजातन्त्र इसलिए भी सम्भव था क्योंकि उस समय लोकतान्त्रिक देशों में स्त्रियों, विदेशियों और दासों को शासन में भाग लेने का अधिकार नहीं था।

प्रश्न 2.
स्वतन्त्रता की धारणा के विकास के संबंध में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर-
स्वतन्त्रता लोकतन्त्र का मूल आधार है। इस धारणा का विकास 17वीं शताब्दी में इंग्लैंड की शानदार क्रान्ति तथा 18वीं शताब्दी में फ्रांस की क्रान्ति के साथ हुआ। आरम्भ में मतदान का अधिकार केवल धनी लोगों को ही प्राप्त था। समय की आवश्यकता के अनुसार सभी वयस्क स्त्री-पुरुषों को मतदान का अधिकार दिया गया।

19वीं और 20वीं शताब्दी में प्रजातन्त्र के समानता के अधिकार ने और ज़ोर पकड़ा। यह अधिकार पहले केवल राजनीतिक क्षेत्र तक ही सीमित था। समय की आवश्यकता के अनुसार आर्थिक तथा सामाजिक क्षेत्रों में भी समानता के अधिकार पर बल दिया जाने लगा। लोगों को कई प्रकार की स्वतन्त्रताएं भी दी गईं। इनमें विचारों की स्वतन्त्रता प्रमुख थी।

प्रश्न 3.
लोकतन्त्र सबसे पहले किस देश में स्थापित हुआ ?
उत्तर-
लोकतन्त्र सबसे पहले यूनान में स्थापित हुआ। वहां लोकतन्त्र का विकास ऐथन्स नगर में हुआ। वहां का लोकतन्त्र लगभग 2500 वर्ष पुराना है। ऐथन्स के लोग साल में कई बार इकट्ठे होते थे और सभा करते थे। इन सभाओं में वे मिलकर निर्णय लेते थे कि राज्य प्रबन्ध किस प्रकार चलाया जाए।

PSEB 7th Class Social Science Solutions Chapter 18 लोकतन्त्र तथा समानता

प्रश्न 4.
लोकतंत्रीय सरकार के चार भिन्न-भिन्न स्वरूपों का नाम लिखें।
उत्तर-
(1) प्रधानात्मक सरकार
(2) संसदीय सरकार
(3) एकात्मक सरकार
(4) संघात्मक सरकार।
1. प्रधानात्मक (अध्यक्षात्मक) सरकार-प्रधानात्मक सरकार में राष्ट्रपति सीधे लोगों द्वारा चुना जाता है। वह राज्य का वास्तविक शासक होता है। इसलिए राष्ट्रपति और मन्त्री एक ही राजनीतिक दल से नहीं होते। इस प्रकार की प्रधानात्मक लोकतान्त्रिक सरकार अमेरिका में है। वहां का राष्ट्रपति भारत के राष्ट्रपति की अपेक्षा अधिक शक्तिशाली है।

2. संसदीय सरकार-संसदीय अथवा संसदात्मक सरकार में संसद् अधिक शक्तिशाली होती है। राष्ट्रपति केवल नाममात्र का मुखिया होता है। राज्य की वास्तविक शक्ति प्रधानमन्त्री के पास होती है। मन्त्रिपरिषद् के सभी सदस्य संसद् अर्थात् विधानपालिका से ही लिए जाते हैं। इसलिए संसदात्मक सरकार में विधानपालिका एवं कार्यपालिका में तालमेल बना रहता है।

3. एकात्मक सरकार-एकात्मक प्रजातन्त्र में राज्यों और केन्द्र के बीच शक्तियों का विभाजन होता है। परन्तु केन्द्र राज्यों की अपेक्षा अधिक शक्तिशाली होता है। हमारे भारत का संविधान भी संघात्मक है, परन्तु किसी आन्तरिक संकट के समय केन्द्रीय सरकार की शक्तियां बढ़ जाती हैं।

4. संघात्मक सरकार-संघात्मक सरकार में संविधान लिखित एवं कठोर होता है। राज्यों और केन्द्र के बीच शक्तियों का बंटवारा होता है। प्रत्येक राज्य की अपनी सरकार होती है। भारत में भी संघात्मक सरकार है।

प्रश्न 5.
संसदीय लोकतंत्र से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
संसदात्मकं अथवा संसदीय लोकतन्त्र में संसद् अधिक शक्तिशाली होती है। राष्ट्रपति नाममात्र का मुखिया होता है। राज्य की वास्तविक शक्ति प्रधानमन्त्री के पास होती है। मन्त्रिपरिषद् के सभी सदस्य संसद् अर्थात् विधानपालिका से ही लिये जाते हैं। इसलिए संसदीय सरकार में विधानपालिका तथा कार्यपालिका के बीच तालमेल बना रहता है।

PSEB 7th Class Social Science Solutions Chapter 18 लोकतन्त्र तथा समानता

प्रश्न 6.
लोकतंत्रीय सरकार की कोई दो विशेषताएं लिखें।
उत्तर-
लोकतंत्र को प्रजातंत्र भी कहा जाता है। आधुनिक युग में लोकतंत्रीय सरकार को सर्वश्रेष्ठ सरकार माना जाता है। सफल लोकतंत्र के लिए कुछ शर्तों का होना अनिवार्य है। लोकतन्त्र सरकार की विशेषताओं का संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित है :–

1. सत्तेत नागरिक-प्रजातन्त्र सरकार का मूल आधार लोकमत है, जिसके आधार पर सरकार चलाई जाती है। इसलिए लोगों का सचेत होना बहुत आवश्यक है। इसका अर्थ यह है कि जनता राजनीतिक रूप से परिपक्व हो। ऐसे लोग ही अपने प्रतिनिधियों पर नियन्त्रण रख सकते हैं।

2. योग्य एवं सचेत नेतागण-यदि सरकार पढ़े-लिखे तथा सचेत नेताओं द्वारा चलाई जायेगी, तो सरकार योग्य होगी। केवल समझदार मतदाता (वोटर) ही ऐसे नेताओं को चुन सकते हैं।

3. अनुशासित नागरिक एवं राजनीतिक दल-प्रजातन्त्र में लोगों का अनुशासित होना बहुत आवश्यक है। तभी वे सरकार की गलत नीतियों और अनुचित कार्यों का विरोध करके सरकार को ठीक ढंग से कार्य करने पर विवश कर सकते हैं। लोगों में दूसरों के विचारों के प्रति आदर भी होना चाहिए। लोगों के राजनीतिक विचारों में भिन्नता के आधार पर राजनीतिक दल बनते हैं। लोगों के प्रतिनिधि चुनाव द्वारा चुने जाते हैं। चुनावों के लिए राजनीतिक दल बहुत ही महत्त्वपूर्ण होते हैं। राजनीतिक दल लोगों को सरकार के कार्यों के बारे सूचित करके लोक मत बनाने में सहायता करते हैं। इसलिए राजनीतिक दलों का सचेत और अनुशासित होना अति आवश्यक है।

4. सामाजिक एवं आर्थिक समानता-प्रजातन्त्र में धनी एवं निर्धन का अन्तर नहीं होना चाहिए। यदि सभी नागरिक सामाजिक और आर्थिक रूप से समान नहीं होंगे तो प्रजातन्त्र सफल नहीं हो सकता। इसलिए समाज में जाति, धर्म और भाषा के आधार पर कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए।

5. सहनशीलता-लोकतन्त्र में बहुमत प्राप्त दल का शासन होता है। परन्तु दल का उदार होना आवश्यक है। विरोधी दल को भी शासक दल के प्रति सहनशील होना चाहिए। सहनशीलता प्रजातन्त्र की सफलता के लिए एक महत्त्वपूर्ण विशेषता है।
नोट-विद्यार्थी कोई दो लिखें।

प्रश्न 7.
सामाजिक तथा आर्थिक समानता से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
सामाजिक समानता-सामाजिक समानता का अर्थ है कि सामाजिक दृष्टि से सभी व्यक्ति समान हैं। किसी के साथ जन्म स्थान, रंग, धर्म, जाति, लिंग आदि के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जाता। सभी व्यक्ति समाज के उपयोगी अंग हैं। किसी व्यक्ति विशेष को कोई विशेष महत्त्व नहीं दिया जाता।

आर्थिक समानता-आर्थिक समानता का अर्थ है कि देश में धनी एवं निर्धन का अन्तर नहीं होना चाहिए। समाज के किसी वर्ग का शोषण न हो। इसका अर्थ यह भी है कि उत्पादन के साधन कुछ एक व्यक्तियों के हाथों में सीमित न हों। सभी को रोज़ी कमाने के समान अवसर प्राप्त हों।

PSEB 7th Class Social Science Solutions Chapter 18 लोकतन्त्र तथा समानता

प्रश्न 8.
आधुनिक युग में लोकतंत्रीय सरकार अत्यधिक प्रिय क्यों है ?
उत्तर-
आज संसार के अधिकतर देशों में लोकतन्त्रीय सरकार है। ऐसी सरकार कल्याणकारी होती है और मानव अधिकारों एवं स्वतन्त्रता को विशेष महत्त्व देती है। लोकतन्त्र में कानून की दृष्टि में सभी बराबर माने जाते हैं। ये कानून भी लोगों के अपने प्रतिनिधियों द्वारा बनाए जाते हैं। लोकतन्त्र को लोकप्रिय बनाने वाले कई अन्य आधार भी हैं जिनका संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है :–

1. समानता-प्रजातन्त्र में अमीरी-गरीबी, धर्म या जाति के आधार पर किसी से कोई भेदभाव नहीं किया जाता। कानून की दृष्टि से सब समान होते हैं। इसलिए तानाशाही सरकार की अपेक्षा प्रजातान्त्रिक सरकार अधिक लोकप्रिय

2. स्वतन्त्रता-प्रजातन्त्र में लोग हर पक्ष में स्वतन्त्र होते हैं। वे कोई भी व्यवसाय अपनाने, अपने विचारों को प्रकट करने और किसी भी क्षेत्र में रहने के लिए स्वतन्त्र होते हैं। परन्तु तानाशाही राज्य में लोगों को तानाशाह राजा की आज्ञा अनुसार चलना पड़ता है।

3. निर्णय लेने की कार्य विधि-प्रजातन्त्र में राज्य प्रबन्ध चलाने के लिए निर्णय लेने का एक विशेष ढंग होता है, जोकि लोगों के हाथ में होता है। लोग अपने प्रतिनिधि चुनकर विधानपालिका में भेजते हैं। ये प्रतिनिधि शासन चलाने के लिए कानून बनाते हैं। विधानपालिका में बहमत दल सरकार बनाती है। सरकार लोगों की इच्छानुसार कार्य करती है। यदि सरकार लोगों की इच्छानुसार कार्य न करे, तो जनता, उसे अगले चुनावों में बदल सकती है।

4. नागरिकों की सक्रिय भागीदारी-प्रजातन्त्र में सभी मतदाता चुनाव लड़ सकते हैं या चुनाव में अपना मत इच्छानुसार दे सकते हैं। देश के शासन में सभी बराबर के भागीदार हैं। तानाशाही राज्यों में ऐसा नहीं होता। इसलिए आधुनिक समय में प्रजातान्त्रिक सरकार अधिक लोकप्रिय है।

5. मतभेद दूर करना-प्रजातन्त्र में किसी पर भी अपना विचार थोपा नहीं जाता, बल्कि सभी के विचारों का आदर किया जाता है। शासक दल विरोधी दल के सुझावों पर उदारता से विचार करता है। दूसरी ओर विरोधी दल सरकार के कार्यों में उदारता से सहयोग देता है। इस प्रकार प्रजातन्त्र में वैचारिक मतभेदों को उदारतापूर्वक दूर किया जाता है। इसी कारण प्रजातान्त्रिक सरकार अधिक पसन्द की जाती है।

6. मानव गौरव (शान) में वृद्धि-स्वतन्त्रता, समानता तथा भाईचारा प्रजातन्त्र के मुख्य सिद्धान्त हैं। इनके आधार पर ही फ्रांस में प्रजातन्त्र का आरम्भ हुआ। प्रजातन्त्र में केवल राजनीतिक स्वतन्त्रता और समानता ही नहीं होती, अपितु सामाजिक तथा आर्थिक समानता भी होती है। इसके लिए सरकार सभी देशवासियों को रोज़ी कमाने के लिए समान अवसर प्रदान करती है। आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के लिए नौकरियों में स्थान आरक्षित किये जाते हैं। इस प्रकार प्रजातन्त्र में मानव गौरव और शान को बढ़ाने के लिए हर सम्भव प्रयत्न किया जाता है।

(ग) खाली स्थान भरें

  1. भारत एक ………….. गणराज्य है।
  2. हमारे देश की केन्द्रीय सरकार का नाममात्र का प्रधान …………… है और राज्य सरकारों के मुख्य ……………. होते हैं।
  3. लोकतंत्र का आरम्भ ………………. के शहर ……………… में हुआ।
  4. ………………. ही ऐसा देश है जहां आज भी प्रत्यक्ष लोकतंत्र है।
  5. लोकतंत्र का आरम्भिक सिद्धांत …………. तथा ……………. है।

उत्तर-

  1. लोकतंत्रीय,
  2. राष्ट्रपति, राज्यपाल,
  3. यूनान, एथेंस
  4. स्विट्ज़रलैण्ड
  5. स्वतन्त्रता तथा समानता।

PSEB 7th Class Social Science Solutions Chapter 18 लोकतन्त्र तथा समानता

(घ) निम्नलिखित वाक्यों में ठीक (✓) या गलत (✗) का निशान लगाओ

  1. भारत एक लोकतंत्रीय गणराज्य है।
  2. स्विट्ज़रलैण्ड ही ऐसा देश है जहाँ आज भी प्रत्यक्ष लोकतंत्र चल रहा है।
  3. वोट डालने का अधिकार केवल कुछ बालिगों (वयस्कों) को ही प्राप्त है।
  4. लोकतंत्रीय देश में कानून का राज्य होता है।
  5. आधुनिक लोकतंत्र की स्थापना पहले फ्रांस देश में हुई थी।

संकेत-

  1. (✓)
  2. (✓)
  3. (✗)
  4. (✓)
  5. (✗)

(ङ) बहु-वैकल्पिक प्रश्नोत्तर

निम्नलिखित प्रश्नों के सही उत्तर पर निशान लगाएं :–
प्रश्न 1.
लोकतांत्रिक सरकार लोगों की, लोगों के लिए तथा लोगों के द्वारा-यह कथन है
(क) इब्राहिम लिंकन
(ख) लास्की
(ग) डेविड ईस्टन।
उत्तर-
(क) इब्राहिम लिंकन

PSEB 7th Class Social Science Solutions Chapter 18 लोकतन्त्र तथा समानता

प्रश्न 2.
आधुनिक युग में किस सरकार को सर्वोत्तम माना जाता है ?
(क) तानाशाही सरकार
(ख) लोकतांत्रिक सरकार
(ग) सैनिक शासन।
उत्तर-
(ख) लोकतांत्रिक सरकार

प्रश्न 3.
लोकतांत्रिक सरकार वाले देशों में देश के मुखिया कितनी तरह के होते हैं ?
(क) चार
(ख) पाँच
(ग) दो।
उत्तर-
(ग) दो।

PSEB 7th Class Social Science Guide लोकतन्त्र तथा समानता Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
प्रजातन्त्र (लोकतन्त्र) की दो विशेषताएं बताओ।
उत्तर-

  1. लोकतन्त्र में शासन चलाने की शक्ति लोगों के हाथ में होती है।
  2. लोकतन्त्र में सरकार की नीतियों का निर्णय लोगों की इच्छा के अनुसार लिया जाता है।

PSEB 7th Class Social Science Solutions Chapter 18 लोकतन्त्र तथा समानता

प्रश्न 2.
लोकतन्त्र कौन-कौन से दो प्रकार का होता है ?
उत्तर-

  1. प्रत्यक्ष अथवा सीधा लोकतन्त्र
  2. अप्रत्यक्ष अथवा प्रतिनिधि लोकतन्त्र।

प्रश्न 3.
प्रत्यक्ष लोकतन्त्र तथा अप्रत्यक्ष लोकतन्त्र में क्या अन्तर है ?
उत्तर-
प्रत्यक्ष लोकतन्त्र में शासन की नीतियों के निर्माण में सभी नागरिक सीधे रूप में भाग लेते हैं। इसके विपरीत अप्रत्यक्ष लोकतन्त्र में नागरिक अपने प्रतिनिधि चुनते हैं जो शासन की नीतियों का निर्माण करते हैं।

प्रश्न 4.
लोकतन्त्रीय सरकार में देश के मुखिया कौन-कौन से दो प्रकार के होते हैं ? भारत से उदाहरण दें।
उत्तर-
लोकतन्त्रीय सरकार में देश के दो प्रकार के मुखिया होते हैं-नाममात्र मुखिया और वास्तविक मुखिया। हमारे देश की केन्द्रीय सरकार का नाममात्र का मुखिया राष्ट्रपति और राज्यों में राज्यपाल है जबकि केन्द्र में वास्तविक मुखिया प्रधानमन्त्री और राज्य में मुख्यमन्त्री होता है।

PSEB 7th Class Social Science Solutions Chapter 18 लोकतन्त्र तथा समानता

प्रश्न 5.
गणराज्य क्या होता है ?
उत्तर-
जिस देश का प्रमुख लोगों के द्वारा चुना जाता है उसे गणराज्य कहा जाता है।

प्रश्न 6.
हम भारत को लोकतान्त्रिक गणराज्य क्यों कहते हैं ?
उत्तर-
भारत एक लोकतन्त्र है। देश का मुखिया अर्थात् राष्ट्रपति लोगों द्वारा चुना जाता है। इसलिए भारत को लोकतान्त्रिक गणराज्य कहते हैं।

प्रश्न 7.
राजतन्त्रीय लोकतन्त्र क्या होता है ? एक उदाहरण भी दें।
उत्तर-
राजतन्त्रीय लोकतन्त्र में देश का मुखिया राजा या रानी होते हैं। वे लोगों द्वारा नहीं चुने जाते बल्कि उनका पद परम्परागत होता है। वे नाममात्र के मुखिया होते हैं। इंग्लैंड में राजतन्त्रीय लोकतन्त्र है।

PSEB 7th Class Social Science Solutions Chapter 18 लोकतन्त्र तथा समानता

प्रश्न 8.
प्रजातन्त्र (लोकतन्त्र) का मुख्य सिद्धान्त क्या है ? यह किस बात पर आधारित है ?
उत्तर-
लोकतन्त्र का मुख्य सिद्धान्त कानून का शासन है। यह मानव की स्वतन्त्रता तथा समानता पर आधारित है।

प्रश्न 9.
व्यापक (सार्वभौम) वयस्क मताधिकार क्या होता है ?
उत्तर-
जब देश के सभी वयस्क स्त्री-पुरुषों को बिना किसी भेदभाव के मतं देने का अधिकार दिया जाता है, तो उसे सार्वभौम वयस्क मताधिकार कहा जाता है।

प्रश्न 10.
कार्यपालिका तथा विधानपालिका के प्रभाव की दृष्टि से लोकतान्त्रिक सरकार कौन-कौन से दो प्रकार की होती है ?
उत्तर-

  1. प्रधानात्मक (अध्यक्षात्मक) सरकार
  2. संसदीय सरकार।

PSEB 7th Class Social Science Solutions Chapter 18 लोकतन्त्र तथा समानता

प्रश्न 11.
केन्द्र तथा राज्य सरकारों के बीच शक्तियों के विभाजन के आधार पर लोकतान्त्रिक सरकार कौन-कौन से दो प्रकार की होती है ?
उत्तर-

  1. एकात्मक सरकार
  2. संघात्मक सरकार।

प्रश्न 12.
“लोकतन्त्र अथवा प्रजातन्त्र राज्य सरकार का एक प्रकार नहीं, अपितु एक जीवन-परीक्षण है।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
प्रजातन्त्र में समाज में किसी भी आधार पर किसी के साथ भेदभाव नहीं किया जाता। कानून की दृष्टि में अमीर-गरीब, स्त्री-पुरुष सब समान हैं। प्रत्येक को अपने व्यक्तित्व का विकास करने का अधिकार होता है। जाति या जन्म के आधार पर किसी को भी कोई विशेष सुविधा प्राप्त नहीं होती, क्योंकि प्रजातान्त्रिक समाज में इस प्रकार के भेद-भाव के लिए कोई स्थान नहीं होता। यदि आर्थिक एवं सामाजिक पक्ष से सभी स्त्री-पुरुष समान होंगे तभी सभी लोग राजनीतिक पक्ष से भी समान होंगे। इसीलिए प्रजातन्त्र राज्य सरकार का एक प्रकार नहीं अपितु एक जीवन परीक्षण है।

सही जोड़े बनाइए:

  1. लोकतन्त्र का आरम्भ – यूरोप
  2. आधुनिक लोकतन्त्र की सबसे पहले स्थापना – भारत
  3. प्रधानात्मक लोकतन्त्र – एथेंस (यूनान)
  4. संसदीय सरकार – अमेरिका

उत्तर-

  1. लोकतन्त्र का आरम्भ – एथेंस (यूनान)
  2. आधुनिक लोकतन्त्र की सबसे पहले स्थापना – यूरोप
  3. प्रधानात्मक लोकतन्त्र – अमेरिका
  4. संसदीय सरकार – भारत।

PSEB 7th Class Social Science Solutions Chapter 18 लोकतन्त्र तथा समानता

लोकतन्त्र तथा समानता PSEB 7th Class Social Science Notes

  • लोकतन्त्र – लोकतन्त्र जनता का शासन होता है। इसमें शासन की सारी शक्ति जनता के पास होती है। शासन को कानून के अनुसार चलाया जाता है।
  • स्वतन्त्रता और समानता – स्वतन्त्रता और समानता लोकतन्त्र के मूल आधार हैं।
  • कानून का शासन – कानून के शासन से अभिप्राय ऐसे शासन से है जिसमें शासक अपनी इच्छानुसार नहीं बल्कि एक निश्चित संविधान के अनुसार शासन करता है। ऐसे शासन में राज्य का मुखिया जनता पर मनमानी नहीं कर सकता और जनता उससे पूछ सकती है कि उसने अमुक कार्य क्यों किया है। इस शासन प्रणाली को हम संवैधानिक शासन-प्रणाली भी कह सकते हैं।
  • प्रत्यक्ष लोकतन्त्र – प्रत्यक्ष लोकतन्त्र में जनता स्वयं अपने शासन का संचालन करती है। आज के युग में प्रत्यक्ष लोकतन्त्र की सम्भावना नहीं है।
  • अप्रत्यक्ष लोकतन्त्र – अप्रत्यक्ष लोकतन्त्र में शासन चलाने का कार्य जनता के प्रतिनिधि करते हैं। अतः अप्रत्यक्ष लोकतन्त्र में प्रतिनिधियों के चयन का कार्य अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। यह कार्य निर्वाचनों के द्वारा किया जाता है।
  • प्रजातन्त्र तथा राजनैतिक दल – प्रजातन्त्र में राजनैतिक दलों का सरकार पर नियन्त्रण होता है। विपक्षी दल सरकार की आलोचना करते हैं और उसके कार्यों पर नियन्त्रण रखते हैं।
  • जनमत अथवा लोकमत – प्रजातन्त्र की सफलता के लिए जनमत की भूमिका अति अनिवार्य है। स्वस्थ जनमत राजनीतिक दलों पर नियन्त्रण रखता है।
  • लोकतन्त्र तथा चुनाव – लोकतन्त्र में चुनावों का विशेष महत्त्व है। लोग चुनावों द्वारा ही अपने प्रतिनिधि चुनते हैं और अयोग्य सरकार को बदलते हैं।
  • व्यापक वयस्क मताधिकार – जब सभी वयस्कों को मतदान का अधिकार दिया जाता है तो उसे व्यापक वयस्क मताधिकार कहा जाता है। यह समानता के नियम पर आधारित है।
  • तानाशाही – तानाशाही राज्य में शासन की शक्ति एक या कुछ एक तानाशाह लोगों के हाथ में होती है। ऐसे देशों में चुनाव नहीं कराये जाते और न ही सरकार लोगों की इच्छा के आधार पर चलाई जाती है। केवल तानाशाह के पास ही शासन की सारी शक्ति होती है।

PSEB 6th Class Social Science Solutions Chapter 9 आदि-मानव – पाषाण युग

Punjab State Board PSEB 6th Class Social Science Book Solutions History Chapter 9 आदि-मानव – पाषाण युग Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 6 Social Science History Chapter 9 आदि-मानव – पाषाण युग

SST Guide for Class 6 PSEB आदि-मानव – पाषाण युग Textbook Questions and Answers

I. निम्नलिखित के संक्षिप्त उत्तर लिखें

प्रश्न 1.
पुरा-पाषाण युग के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर-
पुरा-पाषाण युग उस युग को कहा जाता है जब मनुष्य एक शिकारी तथा संग्राहक था। इस युग में मनुष्य का जीवन प्राकृतिक वस्तुओं पर निर्भर था। उसे आग का कोई ज्ञान नहीं था, इसलिए वह जंगली कन्द-मूल तथा जानवरों का कच्चा मांस खाता था। जंगली जानवरों से अपनी रक्षा के लिए वह समूह बनाकर रहता था। वह रात को वृक्षों पर अथवा गुफ़ाओं में रहता था। वह आम तौर पर वस्त्रहीन रहता था, परन्तु कभी-कभी अपने शरीर को बहुत अधिक सर्दी तथा गर्मी से बचाने के लिए जानवरों की खालों, वृक्षों के पत्तों तथा छिलकों से ढक लेता था। जानवरों के शिकार के लिए वह पत्थर से बने हथियारों अथवा वृक्षों की शाखाओं का प्रयोग करता था।

प्रश्न 2.
नव-पाषाण युग के पाँच महत्त्वपूर्ण लक्षण बतायें।
उत्तर-
पाषाण युग के तीसरे तथा अन्तिम युग को ‘नव-पाषाण युग’ कहा जाता है। इस युग के पाँच महत्त्वपूर्ण लक्षण निम्नलिखित थे –

  1. मानव एक स्थान पर टिक कर रहने लगा था। उसने अनाज उगाना तथा भोजन पकाना आरम्भ कर दिया था।
  2. मानव के औज़ार पहले से अधिक तेज़ तथा हल्के थे जिसके कारण उसकी काम करने की क्षमता बढ़ गई थी।
  3. मानव ने भोजन पकाने तथा रखने के लिए पकी मिट्टी के बर्तन बनाने सीख लिए थे।
  4. मानव ने गुफ़ाओं की दीवारों पर चित्र बनाकर अपनी कला का प्रदर्शन करना शुरू कर दिया था।
  5. मानव कीमती पत्थरों, पकी मिट्टी तथा हाथी दांत आदि के मनके बनाकर उन्हें आभूषणों के रूप में प्रयोग करने लगा था।

प्रश्न 3.
मध्य-पाषाण युग के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर-
मध्य-पाषाण युग का आरम्भ पुरा-पाषाण युग के पश्चात् हुआ। इस युग में मानव के जीवन स्तर में कुछ सुधार हुआ। उसने कई नई चीजें सीखीं। उसने टूटे हुए पत्थर के टुकड़ों के स्थान पर नुकीले तथा तराशे हुए पत्थर के हथियार जैसे कि कुल्हाड़ी, भाले, गंडासे आदि बनाने आरम्भ कर दिए। वह इन औज़ारों तथा हथियारों को लकड़ी की एक लम्बी छड़ से बांध कर प्रयोग में लाने लगा। उसे इस बात का भी पता चल गया कि अनाज को काफ़ी समय तक इकट्ठा करके रखा जा सकता है। इसलिए उसने अनाज को इकट्ठा करना शुरू कर दिया। वह गुफ़ाओं के अतिरिक्त लकड़ी, बांस तथा पत्तों की झोंपड़ियां भी बनाने लगा था। फलस्वरूप मनुष्य गांव बनाकर स्थायी रूप से रहने लगा।

PSEB 6th Class Social Science Solutions Chapter 9 आदि-मानव – पाषाण युग

प्रश्न 4.
पहिये के आविष्कार ने मानव की क्या सहायता की?
उत्तर-
मानव के विकास में पहिये के आविष्कार का बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान है। इस आविष्कार के कारण मानव ने बड़ी तेजी से उन्नति की। इस आविष्कार ने मानव जीवन को कई प्रकार से आसान बना दिया।

  1. पहिये का प्रयोग जानवरों द्वारा खींची जाने वाली गाड़ियों में होने लगा। परिणामस्वरूप मानव के लिए यात्रा करना तथा सामान ढोना आसान हो गया।
  2. पहिये ने पानी खींचने में मानव की सहायता की।
  3. मानव ने पहिये की सहायता से मिट्टी के बर्तन बनाने आरम्भ कर दिए।

प्रश्न 5.
गुहा-चित्रों के बारे में एक नोट लिखें।
उत्तर-
गुहा-चित्रों से अभिप्राय गुफा-चित्रों से है। आदि-मानव गुफ़ाओं तथा पत्थर के विश्राम-गृहों में रहते समय इनकी दीवारों पर नुकीले पत्थरों तथा रंगों की सहायता से मानवों, जानवरों तथा शिकार के चित्र बनाता था। ये चित्र आमतौर पर रेखा-चित्र होते थे परन्तु कई बार वह इनमें रंग भी भरता था। ऐसे चित्र भारत के अनेक भागों तथा संसार में कई स्थानों पर प्राप्त हुए हैं। भारत में मध्य प्रदेश में भोपाल के निकट भीमबैठका के गुहा-चित्र देखने योग्य हैं, जिनमें मानवों को नाचते हुए दिखाया गया है। इससे पता चलता है कि पाषाण युग में नृत्य मनोरंजन का एक साधन था तथा लोग समूहों में नाचते-गाते थे।

II. सही जोड़े बनायें

  1. पेलियोलिथिक एज – (क) गुहा मानव
  2. मेसोलिथिक एज – (ख) गुहा-चित्र
  3. भीमबैठका – (ग) प्राचीन पाषाण युग
  4. शिकारी-खाद्य संग्रहक – (घ) मध्य पाषाण युग।

उत्तर-सही जोड़े

  1. पेलियोलिथिक एज – गुहा मानव
  2. मेसोलिथिक एज – मध्य पाषाण युग
  3. भीमबैठका – गुहा-चित्र
  4. शिकारी-खाद्य संग्रहक – प्राचीन पाषाण युग।

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III. सही (✓) अथवा ग़लत (✗) का निशान लगायें

  1. पुरा-पाषाण युग में मानव कृषि के लिए हल चलाता था।
  2. अग्नि का आविष्कार एक वैज्ञानिक ने किया।
  3. पाषाण युग के गुहा-चित्र अनेक स्थानों से मिले हैं।
  4. नव पाषाण युग का अर्थ आधुनिक समय है।

उत्तर-

  1. (✗)
  2. (✗)
  3. (✓)
  4. (✗)

PSEB 6th Class Social Science Guide आदि-मानव – पाषाण युग Important Questions and Answers

कम से कम शब्दों में उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
एक ऐसा युग था जब मानव जानवरों का शिकार करता था और कच्चा मांस खाता था। क्या आप उस युग का नाम बता सकते हैं?
उत्तर-
पुरा पाषाण युग।

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प्रश्न 2.
मानव ने मनके बनाने के लिए सर्वप्रथम किस चीज़ का प्रयोग किया?
उत्तर-
कीमती पत्थर।

बहु-विकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
दर्शाए गए चित्र में आदि मनुष्य मिट्टी के बर्तन बना रहा है। इस के लिए वह किस चीज़ का प्रयोग करता था?
PSEB 6th Class Social Science Solutions Chapter 8 आदि-मानव – पाषाण युग 1
(क) चाक अथवा पहिया
(ख) नुकीले पत्थर
(ग) तांबे का सांचा
उत्तर-
(क) चाक अथवा पहिया

प्रश्न 2.
आदि-मानव ने अग्नि का प्रयोग किस काम में नहीं किया?
(क) धातु पिघलाना
(ख) भोजन पकाना
(ग) मिट्टी के बर्तन पकाना।
उत्तर-(क) धातु पिघलाना

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अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
पुरा-पाषाण युग को अंग्रेज़ी में क्या कहते हैं? यूनानी भाषा में इसका क्या अर्थ है?
उत्तर-
पुरा-पाषाण युग को अंग्रेज़ी में ‘पेलियोलिथिक पीरियड’ कहते हैं। यूनानी भाषा में इसका अर्थ ‘पुराना पत्थर’ है।

प्रश्न 2.
पुरा-पाषाण युग में आदि-मानव के कौन-कौन से औज़ार तथा हथियार थे? मानव इनका प्रयोग किस लिए करता था?
उत्तर-
पुरा-पाषाण युग में पत्थर की बनी कुल्हाड़ियां, भाले तथा गंडासे आदि-मानव के औज़ार तथा हथियार थे। मानव इनका प्रयोग शिकार करने के लिए करता है।

प्रश्न 3.
पाषाण युग का यह नाम क्यों पड़ा?
उत्तर-
इस युग में पत्थर के औज़ारों और हथियारों का प्रयोग होता था। पत्थर के कारण ही इस युग का नाम पाषाण (पत्थर) युग पड़ा।

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प्रश्न 4.
पुरा-पाषाण युग का आरम्भ कब हुआ?
उत्तर-
पुरा-पाषाण युग का आरम्भ लगभग 5 लाख वर्ष से अढ़ाई लाख वर्ष के मध्य में हुआ।

प्रश्न 5.
आग का आविष्कार कब हुआ?
उत्तर-
आग का आविष्कार पुरा-पाषाण युग के अन्तिम चरण में हुआ।

प्रश्न 6.
बुद्धिधारी मानव का जन्म कब हुआ?
उत्तर-
बुद्धिधारी मानव का जन्म पुरा-पाषाण युग के अन्तिम चरण में हुआ।

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प्रश्न 7.
भोजन इकट्ठा करने की अवस्था से आप क्या समझते हैं?
उत्तर-
भोजन इकट्ठा करने की अवस्था वह समय था जब मानव को कृषि का कोई ज्ञान नहीं था। वह कन्द-मूल, फल आदि इकट्ठे करके उन्हें भोजन के रूप में प्रयोग करता था। वह भोजन की तलाश में स्थान-स्थान पर घूमता रहता था।

प्रश्न 8.
नव-पाषाण युग का आरम्भ कब हुआ?
उत्तर-
नव-पाषाण युग का आरम्भ लगभग 10,000 वर्ष से 12,000 वर्ष पूर्व हुआ।

प्रश्न 9.
नव-पाषाण काल का मुख्य आविष्कार क्या था?
उत्तर-
नव-पाषाण काल का मुख्य आविष्कार पहिया था। इस आविष्कार से मानव के जीवन में क्रान्तिकारी परिवर्तन आया।

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प्रश्न 10.
पहिए के आविष्कार के दो लाभ बताएं।
उत्तर-
पहिए के आविष्कार से मिट्टी के बर्तन बनाने तथा यातायात के साधनों में तेजी से परिवर्तन आया।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
आग के आविष्कार ने मनुष्य की किस प्रकार सहायता की?
उत्तर-
आग के आविष्कार ने मनुष्य की बहुत सहायता की। अब मनुष्य ने आग जलाकर भोजन पकाना आरम्भ कर दिया। मनुष्य अपने आपको सर्दियों में गर्म रखने, अपनी गुफाओं तथा विश्राम-गृहों में रात को रोशनी करने तथा जंगली जानवरों से अपनी रक्षा करने के लिए आग का प्रयोग करने लगा था।

प्रश्न 2.
पूर्व ऐतिहासिक काल की जानकारी हमें किससे मिलती है?
उत्तर-
पूर्व ऐतिहासिक काल की जानकारी हमें उन स्थानों की खुदाइयों से प्राप्त । पुरातत्व वस्तुओं से मिलती है जहां उस समय के मानव रहते थे। इन वस्तुओं में मानवों तथा जानवरों की हड्डियां, पुराने औजार तथा हथियार और दैनिक उपयोग की वस्तुएं शामिल हैं।

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प्रश्न 3.
कृषि का आरम्भ किस प्रकार हुआ?
उत्तर-
आदि-मानव अनाज के जो दाने भूमि पर फेंक देता था, उनमें से नए पौधे उत्पन्न होते थे तथा बहुत-सा अनाज प्राप्त होता था। इस प्रकार आदि-मानव ने यह सीखने का प्रयत्न किया कि शीघ्र तथा बढ़िया पैदावार के लिए मिट्टी में बीजों को कब बोना चाहिए तथा कृषि के लिए भूमि को किस प्रकार तैयार करना चाहिए। इससे कृषि का आरंभ हुआ।

प्रश्न 4.
कृषि के आविष्कार का मानव जीवन पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर-
कृषि के आविष्कार ने मानव जीवन पर गहरा प्रभाव डाला। अब मनुष्य को भोजन की खोज के लिए इधर-उधर घूमने की ज़रूरत नहीं थी। उसका खानाबदोश जीवन समाप्त हो गया तथा वह एक स्थान पर टिक कर रहने लगा।

प्रश्न 5.
आदि-मानव के वस्त्रों तथा आभूषणों के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर-
आदि-मानव अपने आपको सर्दी तथा वर्षा आदि से बचाने के लिए जानवरों की खालों तथा वृक्षों की छाल तथा पत्तों से अपने शरीर को ढकता था। पुरुष तथा स्त्रियां दोनों ही आभूषणों का प्रयोग करते थे। ये आभूषण कीमती पत्थरों, पकी मिट्टी तथा हाथी दांत आदि के बने मनके होते थे। लोग ऐसे आभूषण स्वयं बनाते थे।

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निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
आदि-मानव के जीवन के बारे में लिखो।
उत्तर-
आदि-मानव का जीवन बहुत कठोर था। उसके जीवन की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित थीं –
1. खानाबदोश जीवन-वह खानाबदोश था और नग्न रहता था। अपने भोजन की तलाश में वह एक स्थान से दूसरे स्थान पर घूमता रहता था।

2. भोजन-अपनी भूख मिटाने के लिए मानव जंगलों से प्राप्त कन्द-मूल, फल अथवा जानवरों का मांस खाता था। जब एक स्थान पर फल तथा जानवर समाप्त हो जाते थे तो वह उस स्थान को छोड़कर दूसरे स्थान पर चला जाता था। उसे कृषि का कोई ज्ञान नहीं था। वह आग जलाना भी नहीं जानता था। इसलिए वह जानवरों के मांस को कच्चा ही खाता था। अपनी प्यास बुझाने के लिए वह नदियों के किनारे रहना पसन्द करता था।

प्रश्न 2.
नव-पाषाण युग के मानव की भोजन पैदा करने की अवस्था की जानकारी दें।
उत्तर-
नव-पाषाण युग के आरम्भ में मानव भोजन इकट्ठा करने की अवस्था से भोजन पैदा करने की अवस्था में आ गया। अन्य शब्दों में, मानव कृषि करना सीख गया। कृषि के आरम्भ से मानव का जीवन सरल और सभ्य हो गया। उसने अनाज, सब्जियां तथा फल पैदा करने आरम्भ कर दिए। कृषि करने के लिए उसने अपने औज़ारों तथा हथियारों में भी परिवर्तन किए। सिंचाई के लिए पानी की आवश्यकता को पूरा करने के लिए उसने नदियों के किनारे कृषि करना आरम्भ किया। वह मुख्य रूप से गेहूं, चावल तथा जौ उगाता था।
कृषि के कार्य में मानव का परिवार भी उसकी सहायता करता था। इस कार्य में स्त्रियों का बहुत योगदान था।

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प्रश्न 3.
नव-पाषाण युग के मानव के रहन-सहन की जानकारी दें।
उत्तर-
नव-पाषाण युग के आरम्भ होने तक मानव के जीवन तथा रहन-सहन के ढंग में बहुत-से परिवर्तन आ गए। आग की खोज, नए औज़ारों के प्रयोग, पशुपालन तथा कृषि के आरम्भ ने मानव के जीवन को सभ्य बना दिया।

1. स्थिर जीवन-कृषि ने मानव के जीवन में स्थिरता पैदा कर दी। भोजन पैदा करने
अवस्था में पहुंचकर मानव सांस्कृतिक विकास के मार्ग पर अग्रसर हुआ। कृषि ने उसकी भोजन की आवश्यकता को पूरा किया। इसलिए अब उसे भोजन की तलाश में एक स्थान से दूसरे स्थान पर घूमना नहीं पड़ता था। पशुपालन के व्यवसाय के विकास से मानव प्रगति के मार्ग पर चल पड़ा।

2. समाज का निर्माण तथा सहयोग-नव-पाषाण युग में जो लोग कृषि नहीं करते थे, वे कृषकों पर निर्भर थे। इसी प्रकार कृषक अपनी अन्य आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए बढ़ई तथा कुम्हारों पर निर्भर रहते थे। इस प्रकार समाज का निर्माण हुआ तथा सहयोग की भावना का जन्म हुआ।

3. श्रम-विभाजन-विभिन्न व्यवसाय अपनाने से श्रम का विभाजन हुआ तथा धीरेधीरे कार्यों में निपुणता भी आ गई। परिणामस्वरूप व्यवस्थित जीवन का आरम्भ हुआ।

आदि-मानव – पाषाण युग PSEB 6th Class Social Science Notes

  • पृथ्वी पर मानव जीवन का आरंभ – पृथ्वी पर मानव जीवन लगभग 40 लाख वर्ष पूर्व आरंभ हुआ।
  • प्रारम्भिक मानव का रहन-सहन – आरम्भ में मानव का रहन-सहन पशुओं जैसा था।
  • शिकारी-संग्राहक – पुरा-पाषाण युग के आदि-मानव को शिकारी संग्राहक के नाम से जाना जाता है।
  • पाषाण युग – पाषाण युग उस काल को कहा जाता है जब मानव पत्थर के औज़ारों तथा हथियारों का प्रयोग करता था।
  • पाषाण युग का विभाजन – पाषाण युग को पुरा-पाषाण युग, मध्य-पाषाण युग तथा नव-पाषाण युग, तीन भागों में बांटा जाता है।
  • आग की खोज – आग की खोज शायद दो पत्थरों को आपस में रगड़ने से हुई थी।
  • प्रारम्भिक पहिया – प्रारम्भ में मानव लकड़ी के गोल गट्ठों का पहिए के रूप में उपयोग करता था।
  • स्थायी मानव जीवन का आरम्भ – कृषि की खोज के पश्चात् स्थायी मानव जीवन का आरम्भ हुआ।
  • पाषाण-चित्र – आदि मानव गुफ़ाओं तथा विश्राम-स्थलों की दीवारों पर चित्र बनाया करता था। इन्हें पाषाण– चित्र कहते हैं। ऐसे चित्र भोपाल के निकट भीमबैठका में मिले हैं।
  • आदि-मानव के आभूषण – आदि-मानव पत्थरों, पकी मिट्टी तथा हाथी दांत इत्यादि से बने मनकों का आभूषणों के रूप में प्रयोग करता था।