PSEB 12th Class Sociology Solutions Chapter 1 जनजातीय समाज

Punjab State Board PSEB 12th Class Sociology Book Solutions Chapter 1 जनजातीय समाज Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Sociology Chapter 1 जनजातीय समाज

पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न (TEXTUAL QUESTIONS)

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न

A. बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत में सबसे बड़ी जनजाति कौन-सी है ?
(क) संथाल
(ख) भील
(ग) मुण्डा
(घ) गौंड।
उत्तर-
(क) संथाल।

प्रश्न 2.
‘ट्राइब’ शब्द की उत्पत्ति किस शब्द से हुई है ?
(क) यूनानी
(ख) लातीनी
(ग) यूनानी व लातीनी
(घ) लातीनी व जर्मनी।
उत्तर-
(ख) लातीनी।

प्रश्न 3.
जाति पर आधारित रिज़ले का वर्गीकरण नहीं है ?
(क) इण्डो -आर्यन
(ख) पहाड़ी कृषि
(ग) मंगोलयड
(घ) साइथो-द्राविड़।
उत्तर-
(ख) पहाड़ी कृषि।।

प्रश्न 4.
भील जनजाति कौन सी बोली बोलती है ?
(क) उरिया
(ख) छत्तीसगढ़ी
(ग) भीली
(घ) गोंडी।
उत्तर-
(ग) भीली।

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प्रश्न 5.
पर्यावरण की विकृति (पतन) का क्या कारण है ?
(क) आवास
(ख) गैसें
(ग) विस्थापन
(घ) वन कटाव।
उत्तर-
(ख) गैसें।

B. रिक्त स्थान भरें-

1. रोमनों द्वारा जनजाति की पहचान ………… इकाई है।
2. भारत के संविधान ने………….शब्द के प्रयोग को स्वीकृति प्रदान की है।
3. ………. तथा ………… जनजातीय समाज का सांस्कृतिक वर्गीकरण है।
4. स्थानांतरित कृषि को ………. कृषि भी कहा जाता है।
5. …………… तथा ……….. वन कटाव के मुख्य कारण हैं।
6. ………… तथा ………… जनजातीय समाज के दो मुख्य मुद्दे हैं।
उत्तर-

  1. राजनीतिक,
  2. अनुसूचित जनजाति,
  3. द्राविड़, इण्डो आर्यन,
  4. झूम,
  5. नगरीकरण, औद्योगीकरण,
  6. जंगलों का कटाव, विस्थापित करना।

C. सही/ग़लत पर निशान लगाएं

1. भारत जनजातीय जनसंख्या की दृष्टि से दूसरे स्थान पर है।
2. डॉ० जी० एस० घूर्ये ने जनजातियों को गिरिजन कहा है।
3. मुण्डा जनजाति मुण्डारी बोली बोलता है।
4. जनजातियों का जीववाद तथा टोटमवाद में विश्वास होता है।
5. वन कटाव का जलवायु तथा जैव विविधता पर कोई प्रभाव नहीं है।
6. भूमि अधिग्रहण तथा बाँध इमारतें विस्थापन के कारण हैं।
उत्तर-

  1. सही
  2. ग़लत
  3. सही
  4. सही
  5. ग़लत
  6. सही।

D. निम्नलिखित शब्दों का मिलान करें-

कॉलम ‘ए’ — कॉलम ‘बी’
मुंदारी — सर हरबर्ट रिज़ले
लकड़ी की खाने — विक्रय द्वारा विवाह
मंगोलियड — मुण्डा
बाँध निर्माण — वन कटाव
वधू के मूल्य का नकद भुगतान — विस्थापन
उत्तर
कॉलम ‘ए’ — कॉलम ‘बी’
मुंदारी — विक्रय द्वारा विवाह
मंगोलियड — मुण्डा
बाँध निर्माण — वन कटाव
वधू के मूल्य का नकद भुगतान — सर हरबर्ट रिज़ले
वधू के मूल्य का नकद भुगतान — विक्रय द्वारा विवाह

II. अति लघु उत्तरों वाले प्रश्न-

प्रश्न 1. भारत में जनजातियों का कुल प्रतिशत कितना है ?
उत्तर-8.2%.

प्रश्न 2. स्काइथिन तथा द्राविड़ों में मिश्रण क्या कहलाता है ?
उत्तर-स्काइथिन-द्राविड़।

प्रश्न 3. शिकार संग्रह व मछली पकड़ने पर आधारित जनजातियां क्या कहलाती हैं ?
उत्तर-जंगल-शिकारी।

प्रश्न 4. भोजन समस्या, स्वास्थ्य मुद्दे, जैव विभिन्नता की हानि तथा जलवायु परिवर्तन आदि किसके कारण हैं ?
उत्तर-जंगलों के कटाव।

प्रश्न 5. उद्योग, खान, बाँध निर्माण, भूमि अधिग्रहण किसके मुख्य कारण हैं ?
उत्तर-विस्थापन के।

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प्रश्न 6. जनजातीय समाज से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-वह समाज जो हमारी सभ्यता से दूर जंगलों, पहाड़ों व घाटियों में रहते हैं तथा जिनका विशेष भौगोलिक क्षेत्र, भाषा, संस्कृति व धर्म होता है।

प्रश्न 7. भारत का सबसे बड़ा जनजातीय समुदाय कौन-सा है ?
उत्तर- भारत का सबसे बड़ा जनजातीय समुदाय संथाल है जो मुख्य रूप से पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखण्ड तथा ओडिशा में पाया जाता है।

प्रश्न 8. ‘ट्राइब’ शब्द की उत्पत्ति किस शब्द से हुई है ?
उत्तर-शब्द जनजाति अंग्रेजी भाषा के शब्द Tribe का हिन्दी रूपांतर है जो लातीनी भाषा के शब्द ‘tribuz’ से निकला है जिसका अर्थ है एक तिहाई (One third)।

प्रश्न 9. भारतीय संदर्भ में जनजातियों को अनुसूचित जनजातियां किसने कहा है ?
उत्तर- भारतीय संविधान की प्रारूप समिति के प्रधान डॉ० बी० आर० अम्बेडकर ने जनजातियों को अनुसूचित जनजातियां कहा था।

प्रश्न 10: भील जनजाति कौन-सी बोली बोलता है ?
उत्तर- भील जनजाति भीली भाषा बोलती है।

प्रश्न 11. जनजातीय समाज का नस्लीय विभाजन किसने किया ?
उत्तर-जनजातीय समाज का नस्लीय वर्गीकरण सर हरबर्ट रिज़ले ने दिया था।

प्रश्न 12. सोहरई किस जनजाति का फसल कटाई उत्सव (त्योहार) है ?
उत्तर-सोहरई संथाल जनजाति का फसल कटाई त्योहार है।

III. लघु उत्तरों वाले प्रश्न-

प्रश्न 1.
जनजातीय समाज की तीन विशेषताएं लिखो।
उत्तर-

  1. प्रत्येक जनजातीय समाज एक विशेष भौगोलिक क्षेत्र में रहता है।
  2. जनजाति कुछेक परिवारों का समूह होता है जो आपस में रक्त सम्बन्धी होते हैं।
  3. प्रत्येक जनजाति का एक विशेष नाम होता है जैसे कि गारो, खासी, नागा इत्यादि।

प्रश्न 2.
मुखियापन से आप क्या समझते हैं ? ।
उत्तर-
प्रत्येक जनजाति की अपनी राजनीतिक व्यवस्था होती है जिसमें मुखिया को आयु अथवा शारीरिक शक्ति के आधार पर चुना जाता है। मुखिया के पास पूर्ण सत्ता होती है तथा जनजाति के सभी सदस्य उसके निर्णय को पूर्ण महत्त्व देते हैं। अन्तिम शक्ति उसके हाथों में होती है।

प्रश्न 3.
जीविका आर्थिकता क्या है ?
उत्तर-
जनजातियाँ जीविका आर्थिकता वाली होती हैं जो शिकार एकत्र करने, मछलियां पकड़ने अथवा जंगलों से वस्तुएं एकत्र करने पर निर्भर होती हैं। यहाँ लेन-देन की व्यवस्था होती है। उनकी आर्थिकता मुनाफे पर नहीं बल्कि अपनी आवश्यकताएं पूर्ण करने पर निर्भर होती है।

प्रश्न 4.
इण्डो-आर्यन प्रकार की जनजाति से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
इस प्रकार की जनजातियां पंजाब, राजस्थान तथा कश्मीर में होती हैं। शारीरिक दृष्टि से यह लोग लंबे होते हैं। इनका रंग साफ होता है, काली आंखें, शरीर तथा चेहरे पर अधिक बाल तथा लंबी नाक होती है।

प्रश्न 5.
मंगोलियड जनजाति से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
मंगोल प्रकार की जनजाति हिमालय क्षेत्र की बैल्ट में मिलते हैं विशेषतया उत्तर-पूर्वी सीमा, नेपाल तथा बर्मा में। उनकी मुख्य विशेषताएं हैं चौड़ा सिर, सांवला रंग तथा चेहरे पर कम बाल। उनका कद छोटा होता है।

प्रश्न 6.
संथाल जनजाति क्या है ?
उत्तर-
संथाल भारत की सबसे बड़ी जनजाति है जो बिहार, पश्चिम बंगाल, झारखण्ड तथा ओडिशा में पाई जाती है। यह संथाली, बंगाली, उड़िया तथा हिंदी बोलते हैं। उनका प्रमुख त्योहार सोहराई है तथा यह सूर्य भगवान् की पूजा करते हैं। कन्या मूल्य प्रथा यहां पर प्रचलित है।

प्रश्न 7.
वन कटाव क्या है ?
उत्तर-
वातावरण के पतन का मुख्य कारण वन कटाव है। वनों के कटाव का अर्थ है पेड़ों को काटना। जंगलों के कटाव का मुख्य कारण कृषि की भूमि का विस्तार है। परन्तु जनसंख्या तथा तकनीक के बढ़ने के कारण लोगों ने जंगलों का कटाव शुरू किया। इसके साथ औद्योगीकरण ने भी जंगलों के कटाव में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।

प्रश्न 8.
विस्थापन से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
किसी को उसके वास्तविक स्थान से दूर किसी स्थान पर ले जाकर बसाने को विस्थापन कहते हैं। यह जनजातियों की प्रमुख समस्या है। किसी को उसके घर से विस्थापित करना उसके लिए काफ़ी दुखदायक है। जनजातीय क्षेत्रों में बहुत-सी वस्तुएं मिलती हैं जिस कारण उन्हें विस्थापित किया जाता है।

IV. दीर्घ उत्तरों वाले प्रश्न-

प्रश्न 1.
जनजातीय समाज पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
अथवा
जनजातीय समाज।
उत्तर-जनजाति एक ऐसा समूह है जो हमारी सभ्यता, संस्कृति से दूर पहाड़ों, जंगलों, घाटियों इत्यादि में आदिम व प्राचीन अवस्था में रहता है। इन जनजातियों में मिलने वाले समाज को जनजातीय समाज कहा जाता है। यह वर्गहीन समाज होता है जहाँ किसी प्रकार का स्तरीकरण नहीं पाया जाता है। इन समाजों की अधिकतर जनसंख्या पहाड़ों या जंगली इलाकों में पाई जाती है। यह समाज साधारणतया स्वैः निर्भर होते हैं जिनका स्वयं पर नियंत्रण होता है तथा यह किसी अन्य के नियंत्रण से दूर होते हैं। इनकी संरचना नगरीय व ग्रामीण समाजों से बिल्कुल ही अलग होती है।

प्रश्न 2.
जनजातीय समाज का सांस्कृतिक वर्गीकरण करें।
उत्तर-
मजूमदार तथा मदान ने जनजातियों को सांस्कृतिक आधार पर विभाजित किया है-

  • वे जनजातियां जो नगरीय या ग्रामीण समुदायों से सांस्कृतिक दृष्टि से दूर या पीछे हैं अर्थात् वे जनजातियां जो विकसित समुदायों के नज़दीक नहीं पहुंच सकी हैं।
  • वे जनजातियां जो ग्रामीण-नगरीय समुदायों की संस्कृति से प्रभावित हुई हैं। इन जनजातियों में ग्रामीण नगरीय प्रभाव के कारण कई समस्याएं उत्पन्न हो गई हैं।
  • वे जनजातियां जो ग्रामीण व नगरीय समुदायों के पूर्णतया सम्पर्क में आ चुकी हैं तथा इस कारण उन्हें किसी प्रकार की समस्या का सामना नहीं करना पड़ता।

प्रश्न 3.
जनजातीय समाज का नस्लीय वर्गीकरण करें।
उत्तर-
सर हरबर्ट रिज़ले ने जनजातियों को प्रजाति के आधार पर विभाजित किया है-

  • इण्डो आर्यन।
  • द्राविड़।
  • मंगोल।
  • आर्यो-द्राविड़ (हिंदुस्तानी)।
  • मंगोल-द्राविड़ (बंगाली)।
  • साईथो-द्राविड़।
  • टर्को-ईरानी।

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प्रश्न 4.
जनजातीय समाज का भाषीय वर्गीकरण करें।
उत्तर-
भारत में मिलने वाली भाषाओं को मुख्य रूप से चार भागों में विभाजित किया जा सकता है-

  • इण्डो युरोपियन अथवा आर्यन भाषा-इस भाग में साधारणतया पंजाबी, हिन्दी, बंगाली, गुजराती, उडिया इत्यादि भाषाएं आती हैं। ___(ii) द्राविड़ भाषा परिवार-यह भाषा परिवार मध्य तथा पूर्व भारत में पाया जाता है। इसमें तेलुगु, मलयालम, तामिल, कन्नड़ इत्यादि भाषाएं आती हैं।
  • आस्ट्रिक भाषा परिवार-यह भाषा परिवार मध्य तथा पूर्व भारत में मिलता है। इस भाषा परिवार में भुण्डा तथा कोल इत्यादि भाषाएं आती हैं। (iv) चीनी तिब्बती भाषाएं-भारत की कुछ जनजातियां इन भाषाओं का भी प्रयोग करती हैं।

प्रश्न 5.
जनजातीय समाज का एकीकृत वर्गीकरण करें।
उत्तर-
एल० पी० विद्यार्थी तथा बी० के० राय के अनुसार यह चार प्रकार के होते हैं-

  • जनजातीय समुदाय-वे जनजातियां जो अभी भी अपने वास्तविक स्थान पर रहती हैं तथा अपने विशेष ढंग से जीवन जीती हैं।
  • अर्द्ध-जनजातीय समुदाय-उन जनजातियों के लोग जो कम या अधिक ग्रामीण क्षेत्रों में बस चुके हैं तथा जिन्होंने कृषि या अन्य संबंधित पेशों को अपना लिया है।
  • संक्रमित जनजातीय समुदाय-वे जनजातीय समुदाय जो नगरीय या अर्द्ध-नगरीय क्षेत्रों की तरफ प्रवास कर गए हैं तथा आधुनिक पेशों को अपना लिया है जैसे कि उद्योगों में कार्य करना। इन्होंने नगरीय विशेषताओं को भी अपना लिया है।
  • पूर्ण समावेशी जनजातीय समुदाय-यह वे जनजातीय समुदाय हैं जिन्होंने पूर्णतया हिंदू धर्म को अपना लिया

प्रश्न 6.
गोंड तथा भील जनजाति में अंतर बताएं।
उत्तर-
गोंड जनजाति-गोंड जनजाति देश की सबसे बड़ी जनजातियों में से एक है। यह माना जाता है कि यह द्राविड़ समूह से संबंधित है। यह लोग मध्य प्रदेश, आन्ध्र प्रदेश, बिहार, ओडिशा इत्यादि राज्यों में मिलते हैं। यह लोग गोंडी या छत्तीसगढ़ी भाषाएं बोलते हैं। यह कृषि-जंगलों पर आधारित अर्थव्यवस्था में रहते हैं तथा कुछेक समूह अभी भी स्थानांतरित कृषि करते हैं।

भील जनजाति-यह भी देश की बड़ी जनजातियों में से एक है। इसे भीलाला भी कहते हैं। यह मध्य प्रदेश, आन्ध्र प्रदेश, गुजरात, राजस्थान, त्रिपुरा इत्यादि में रहते हैं। यह भीली भाषा बोलते हैं। इनके जीवन जीने का मुख्य स्रोत कृषि है। होली इनका महत्त्वपूर्ण त्योहार है।

प्रश्न 7.
वन कटाव के तीन कारण लिखें।
उत्तर-

  • कृषि के लिए-जनजातीय लोग काफी समय से स्थानांतरित कृषि करते आ रहे हैं। वह जंगलों को काटकर या आग लगाकर भूमि साफ करते व कृषि करते हैं।
  • लकड़ी के लिए-बढ़ती जनसंख्या की लकड़ी की आवश्यकता पूर्ण करने के लिए वनों को काटा जाता है ताकि घरों का फर्नीचर बन सके।
  • नगरीकरण-बढ़ती जनसंख्या को रहने के लिए घर चाहिए तथा इस कारण नगर बड़े होने शुरू हो गए। लोगों ने वनों को काटकर घर बनाने शुरू कर दिए।

प्रश्न 8.
विस्थापन हेतु उत्तरदायी तीन कारणों का उल्लेख करें।
उत्तर-

  • भूमि अधिग्रहण-सरकार को सड़कें बनाने या नैशनल पार्क बनाने के लिए भूमि की आवश्यकता होती है। इस कारण वह भूमि पर कब्जा कर लेती है। जो लोग वहाँ पर रहते हैं उन्हें वहाँ से विस्थापित कर दिया जाता है।
  • बाँध बनाना-सरकार बाढ़ को रोकने तथा बिजली बनाने के लिए बाँध बनाती है। इस कारण जनजातीय या अन्य लोगों को उनके घरों से विस्थापित करके अन्य स्थानों पर बसाया जाता है।
  • उद्योग-उद्योग लगाने के लिए काफ़ी भूमि की आवश्यकता होती है तथा वह भूमि सरकार जनता से छीनकर अपने कब्जे में ले लेती है। इस कारण लोगों को विस्थापित करना पड़ता है।

प्रश्न 9.
जनजातीय समाज में हुए किन्हीं पाँच सामाजिक परिवर्तनों का वर्णन करें।
अथवा
जनजातीय समाज में सामाजिक परिवर्तन के तीन कारण लिखो।
उत्तर-

  • जनजातीय समाजों की सामाजिक संरचना में परिवर्तन आ रहा है। उनके रहन-सहन, खाने-पीने, शिक्षा तथा राजनीतिक जीवन में बहुत-से परिवर्तन आ रहे हैं।
  • अब जनजातीय समाजों के लोग धीरे-धीरे अपने परम्परागत पेशों को छोड़ कर अन्य पेशों को अपना रहे हैं। वे उद्योगों में मजदूरी कर रहे हैं, खानों में कार्य कर रहे हैं तथा अन्य पेशों को अपना रहे हैं।
  • विश्वव्यापीकरण के समय में ये लोग अलग नहीं रह सकते। इस कारण ये लोग अपने क्षेत्रों को छोड़कर नज़दीक के ग्रामीण या नगरीय क्षेत्रों में जा रहे हैं।
  • अब ये लोग देश की मुख्य धारा में मिल रहे हैं तथा देश की राजनीतिक व्यवस्था में बढ़-चढ़ कर भाग ले रहे
  • इन लोगों को संविधान ने आरक्षण का लाभ भी दिया है। ये लोग इस नीति का फायदा उठा कर धीरे-धीरे प्रगति कर रहे हैं।

V. अति दीर्घ उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
जनजातीय समाज से आपका क्या तात्पर्य है ? इसकी विशेषताओं का विस्तार से वर्णन करें।
अथवा
जनजातीय समाज को परिभाषित कीजिए।
उत्तर-
हमारे देश में एक सभ्यता ऐसी भी है जो हमारी सभ्यता से दूर पहाड़ों, जंगलों, घाटियों इत्यादि में आदिम तथा प्राचीन अवस्था में रहती है। इस सभ्यता को कबीला, आदिवासी, जनजाति इत्यादि जैसे नामों से पुकारा जाता है। भारतीय संविधान में इन्हें पट्टीदार जनजाति भी कहा गया है। जनजातीय समाज वर्गहीन समाज होता है। इसमें किसी प्रकार का स्तरीकरण नहीं पाया जाता है। प्राचीन समाजों में कबीले को बहुत ही महत्त्वपूर्ण सामाजिक समूह माना जाता था। जनजातीय समाज की अधिकतर जनसंख्या पहाड़ों अथवा जंगली इलाकों में पाई जाती है। ये लोग सम्पूर्ण भारत में पाए जाते हैं।

ये समाज साधारणतया स्वः निर्भर होते हैं जिनका अपने ऊपर नियन्त्रण होता है तथा ये किसी के भी नियन्त्रण से दूर होते हैं। जनजातीय समाज शहरी समाजों तथा ग्रामीण समाजों की संरचना तथा संस्कृति से बिल्कुल ही अलग होते हैं। इन्हें हम तीन श्रेणियों में विभाजित कर सकते हैं-शिकार करने वाले, मछली पकड़ने वाले तथा कन्दमूल इकट्ठा करने वाले, स्थानान्तरित तथा झूम कृषि करने वाले, स्थानीय रूप से कृषि करने वाले। ये लोग हमारी संस्कृति, सभ्यता तथा समाज से बिल्कुल ही अलग होते हैं।

जनजाति की परिभाषाएं (Definitions of Tribe)

1. इम्पीरियल गजेटियर ऑफ़ इण्डिया (Imperial Gazeteer of India) के अनुसार, “जनजाति परिवारों का एक ऐसा समूह होता है जिसका एक नाम होता है, इसके सदस्य एक ही भाषा बोलते हैं तथा एक ही भू-भाग में रहते हैं तथा अधिकार रखते हैं अथवा अधिकार रखने का दावा करते हैं तथा जो अन्तर्वैवाहिक हों चाहे अब न हों।”

2. डी० एन० मजूमदार (D. N. Majumdar) के अनुसार, “एक जनजाति परिवार अथवा परिवार समूहों का एक ऐसा समूह एकत्र होता है जिसका एक नाम होता है। इसके सदस्य एक निश्चित स्थान पर रहते हैं, एक ही भाषा बोलते हैं तथा प्यार, पेशे तथा उद्योगों के विषय में कुछ नियमों की पालना करते हैं तथा उन्होंने आपसी आदान-प्रदान तथा फर्जी की पारस्परिकता की एक अच्छी तरह जांची हुई व्यवस्था विकसित कर ली है।”

3. गिलिन तथा गिलिन (Gillin and Gillin) के अनुसार, “जनजातियां स्थानीय कुलों तथा वंशों की एक व्यवस्था है जो एक समान भू-भाग में रहते हैं, समान भाषा बोलते हैं तथा एक जैसी ही संस्कृति का अनुसरण करते हैं।” ।
इस तरह इन अलग-अलग परिभाषाओं के आधार पर हम कह सकते हैं कि कबीले छोटे समाजों के रूप में एक सीमित क्षेत्र में पाए जाते हैं। कबीले अपनी सामाजिक संरचना, भाषा, संस्कृति जैसे कई पक्षों के आधार पर एक-दूसरे से अलग-अलग तथा स्वतन्त्र होते हैं। हरेक जनजाति की अलग ही भाषा, संस्कृति, परम्पराएं तथा खाने-पीने इत्यादि के ढंग होते हैं। इनमें एकता की भावना होती है क्योंकि ये एक निश्चित भू-भाग में मिलजुल कर रहते हैं। ये बहुतसे परिवारों का एकत्र समूह होता है जिसमें काफ़ी पहले अन्तर्विवाह भी होता था। आजकल इन जनजातीय लोगों को भारत सरकार तथा संविधान ने सुरक्षा तथा विकास के लिए बहुत-सी सुविधाएं जैसे कि आरक्षण इत्यादि दिए हैं तथा धीरे-धीरे ये लोग मुख्य धारा में आ रहे हैं।

जनजाति की विशेषताएं (Characteristics of a Tribe)-

1. परिवारों का समूह (Collection of Families)-जनजाति बहुत-से परिवारों का समूह होता है जिनमें साझा उत्पादन होता है। वे जितना भी उत्पादन करते हैं उससे अपनी ज़रूरतें पूर्ण कर लेते हैं। वे कुछ भी इकट्ठा नहीं करते हैं जिस कारण उनमें सम्पत्ति की भावना नहीं होती है। इस कारण ही इन परिवारों में एकता बनी रहती है।

2. साझा भौगोलिक क्षेत्र (Common Territory)-जनजाति में लोग एक साझे भौगोलिक क्षेत्र में रहते हैं। एक ही भौगोलिक क्षेत्र में रहने के कारण यह बाकी समाज से अलग होते हैं तथा रहते हैं। ये बाकी समाज की पहुँच से बाहर होते हैं क्योंकि इनकी अपनी ही अलग संस्कृति होती है तथा ये किसी बाहर वाले का हस्तक्षेप पसन्द नहीं करते इसलिए ये बाकी समाज से कोई रिश्ता नहीं रखते। इनका अपना अलग ही एक संसार होता है। इनमें सामुदायिक भावना पायी जाती है क्योंकि ये साझे भू-भाग में रहते हैं।

3. साझी भाषा तथा साझा नाम (Common Language and Common Name)-प्रत्येक जनजाति की एक अलग ही भाषा होती है जिस कारण ये एक-दूसरे से अलग होते हैं। हमारे देश में जनजातियों की संख्या के अनुसार ही उनकी भाषाएं पायी जाती हैं। प्रत्येक जनजाति का अपना एक अलग नाम होता है तथा उस नाम से ही वह जनजाति जाना जाता है।

4. खण्डात्मक समाज (Segmentary Society)-प्रत्येक जनजातीय समाज दुसरे जनजातीय समाज से कई आधारों जैसे कि खाने-पीने के ढंगों, भाषा, भौगोलिक क्षेत्र इत्यादि के आधार पर अलग होता है। ये कई आधारों पर अलग होने के कारण एक-दूसरे से अलग होते हैं तथा एक-दूसरे का हस्तक्षेप पसन्द नहीं करते। इनमें किसी भी आधार पर भेदभाव नहीं पाया जाता। इस कारण इन्हें खण्डात्मक समूह भी कहते हैं।

5. साझी संस्कृति (Common Culture)- प्रत्येक जनजाति के रहने-सहने के ढंग, धर्म, भाषा, टैबु इत्यादि एक-दूसरे से अलग होते हैं। परन्तु ये सभी एक ही जनजाति में समान होते हैं। इस तरह सभी कुछ अलग होने के कारण एक ही जनजाति के अन्दर सभी व्यक्तियों की संस्कृति भी समान ही होती है।

6. आर्थिक संरचना (Economic Structure)-प्रत्येक जनजाति के पास अपनी ही भूमि होती है जिस पर वे अधिकतर स्थानान्तरित कृषि ही करते हैं। वे केवल अपनी ज़रूरतों को पूर्ण करना चाहते हैं जिस कारण उनका उत्पादन भी सीमित होता है। वे चीज़ों को एकत्र नहीं करते जिस कारण उनमें सम्पत्ति को एकत्र करने की भावना नहीं होती है। इस कारण ही जनजातीय समाज में वर्ग नहीं होते। प्रत्येक वस्तु पर सभी का समान अधिकार होता है तथा इन समाजों में कोई भी उच्च अथवा निम्न नहीं होता है।

7. आपसी सहयोग (Mutual Cooperation)-जनजाति का प्रत्येक सदस्य जनजाति के अन्य सदस्यों को अपना पूर्ण सहयोग देता है ताकि जनजाति की सभी आवश्यकताओं को पूर्ण किया जा सके। जनजाति में प्रत्येक व्यक्ति को सुरक्षा भी प्राप्त होती है। अगर जनजाति के किसी सदस्य के साथ किसी अन्य जनजाति के सदस्य लड़ाई करते हैं तो पहली जनजाति के अन्य सदस्य अपने साथी से मिलकर दूसरी जनजाति से संघर्ष करने के लिए तैयार रहते हैं। प्रत्येक जनजाति के मुखिया का यह फर्ज होता है कि वह अपनी जनजाति का मान सम्मान रखे। जनजाति के मुखिया के निर्णय को सम्पूर्ण जनजाति द्वारा मानना ही पड़ता है तथा वे मुखिया के निर्णय का सम्मान भी इसी कारण ही करते हैं। जनजाति के सभी सदस्य जनजाति के प्रति वफ़ादार रहते हैं।

8. राजनीतिक संगठन (Political Organization)-जनजातियों में गांव एक महत्त्वपूर्ण इकाई होता है तथा 10-12 गांव मिलकर एक राजनीतिक संगठन का निर्माण करते हैं। ये बहुत से संगठन अपनी एक कौंसिल बना लेते हैं तथा प्रत्येक कौंसिल का एक मुखिया होता है। प्रत्येक कबाइली समाज इस कौंसिल के अन्दर ही कार्य करता है। कौंसिल का वातावरण लोकतान्त्रिक होता है। जनजाति का प्रत्येक सदस्य जनजाति के प्रति वफ़ादार होता है।

9. श्रम विभाजन (Division of Labour)-जनजातीय समाज में बहुत ही सीमित श्रम-विभाजन तथा विशेषीकरण पाया जाता है। लोगों में अंतर के कई आधार होते हैं जैसे कि उम्र, लिंग, रिश्तेदारी इत्यादि। इनके अतिरिक्त कुछ कार्य अथवा भूमिकाएं विशेष भी होती हैं जैसे कि एक मुखिया तथा एक पुजारी होता है। साथ में एक वैद्य भी होता है जो बीमारी के समय दवा देने का कार्य भी करता है।

10. स्तरीकरण (Stratification)-जनजातीय समाजों में वैसे तो स्तरीकरण होता ही नहीं है, अगर होता भी है तो वह भी सीमित ही होता है क्योंकि इन समाजों में न तो कोई वर्ग होता है तथा न ही कोई जाति व्यवस्था होती है। केवल लिंग अथवा रिश्तेदारी के आधार पर ही थोड़ा-बहुत स्तरीकरण पाया जाता है।

PSEB 12th Class Sociology Solutions Chapter 1 जनजातीय समाज

प्रश्न 2.
जनजातीय समाज के वर्गीकरण पर विस्तृत लेख लिखें।
अथवा
जनजातीय समाज के आर्थिक वर्गीकरण को लिखें।
उत्तर-
जनजातियां भारतीय समाज का एक अभिन्न अंग हैं। भारतीय जनजातियों को प्रजाति, आर्थिक व एकीकरण के आधार पर कई भागों में विभाजित किया जा सकता है जिनका वर्णन इस प्रकार है

1. भारतीय जनजातियों का प्रजातीय वर्गीकरण-सर हरबर्ट रिज़ले ने भारतीय लोगों को वैज्ञानिक आधार पर वर्गीकृत किया है। उनके अनुसार भारत में तीन प्रकार की प्रजातियां द्राविड़, इण्डो-आर्यन तथा मंगोल लोग रहते हैं तथा ये एक-दूसरे में मिश्रित भी हैं। इस कारण भारतीय लोगों के रंग में अंतर होता है। इसलिए रिज़ले ने इन्हें सात प्रकार में विभाजित किया है

  • इण्डो आर्यन-इस प्रकार का जनजातीय समुदाय राजस्थान व कश्मीर में मिलता है। इसके सदस्यों में कश्मीरी, ब्राह्मण, क्षत्रिय व जाट आते हैं। शारीरिक दृष्टि से ये लंबे होते हैं, रंग साफ होता है, काली आँखें तथा चेहरे व शरीर
  • द्राविड़-ये लोग सिलॉन (Ceylon) से लेकर पश्चिमी बंगाल की गंगा घाटी तक फैले हुए हैं जिसमें चेन्नई, हैदराबाद, मध्य भारत व छोटा नागपुर शामिल है। इन्हें भारत के वास्तविक निवासी भी कहा जाता है। ये काले रंग के होते हैं। काली आंखें, लंबा सिर तथा चौड़ा नाक इनकी शारीरिक विशेषताएं हैं।
  • मंगोल-मंगोल जनजातियां हिमालय के नज़दीक के क्षेत्रों में मिलती हैं जिनमें उत्तर पूर्व सीमा के नज़दीक, नेपाल व बर्मा शामिल हैं। उनकी मुख्य शारीरिक विशेषताएं हैं-चौड़ा सिर, काला रंग व पीलापन तथा चेहरे पर कम बाल। उनका कद औसत से कम होता है।
  • आर्य-द्राविड़ (हिन्दुस्तानी)-इस प्रकार की जनजाति आर्य व द्राविड़ लोगों के मिश्रण के कारण सामने आई है। ये लोग उत्तर प्रदेश, राजस्थान के कुछ भागों तथा बिहार में मिलते हैं। इनका रंग हल्के भूरे से काले रंग तक का होता है। नाक मध्यम से चौड़ा तथा कद आर्य-द्राविड़ लोगों से छोटा होता है।
  • मंगोल-द्राविड (बंगाली)-इस प्रकार की जनजाति द्राविड़ तथा मंगोल लोगों के मिश्रण के कारण सामने आयी है। यह बंगाल व ओडीशा में मिलते हैं। इनके सिर चौड़े, रंग काला, चेहरे पर अधिक बाल तथा मध्यम कद होता
  • साईथो-द्राविड़-यह प्रकार साइथो तथा द्राविड़ लोगों का मिश्रण है। यह भारत के पश्चिमी भाग, गुजरात से लेकर कुर्ग तक में मिलते हैं। इनमें मध्य प्रदेश तथा महाराष्ट्र के लोग भी शामिल होते हैं। इनका कद मध्यम, साफ रंग, चौड़ा सिर व पतला नाक होता है।
  • तुर्की-ईरानी-ये लोग अफगानिस्तान, ब्लुचिस्तान तथा North-Western Frontier Province (पाकिस्तान) में मिलते हैं। शायद ये लोग तुर्की तथा पारसी तत्वों के मिश्रण से बने हैं।

2. भारतीय जनजातियों का आर्थिक वर्गीकरण-भारतीय जनजातियों को उनकी आर्थिकता के आधार पर भी वर्गीकृत किया गया है। प्रकृति, मनुष्य तथा आत्माएं सभी जनजातियों के लिए कई प्रकार के कार्य करते हैं। इस कारण इन्हें छः प्रकारों में विभाजित कर सकते हैं

(i) भोजन इकट्ठा करने वाले तथा शिकारी (Food gatherers and Hunters)-बहुत-से कबीले दूर-दूर के जंगलों तथा पहाड़ों पर रहते हैं। चाहे यातायात के साधनों के कारण बहुत-से कबीले मुख्य धारा में आकर मिल गए हैं तथा उन्होंने कृषि के कार्य को अपना लिया है। परन्तु फिर भी कुछ कबीले ऐसे हैं जो अभी भी भोजन इकट्ठा करके तथा शिकार करके अपना जीवन व्यतीत करते हैं। वे जड़ें, फल, शहद इत्यादि इकट्ठा करते हैं तथा छोटे-छोटे जानवरों का शिकार भी करते हैं। कुछ कबीले कई चीज़ों का लेन-देन भी करते हैं। इस तरह कृषि के न होने की सूरत में वह अपनी आवश्यकताएं पूर्ण कर लेते हैं।

जो कबीले इस प्रकार से अपनी आवश्यकताएं पूर्ण करते हैं उनको प्राचीन कबीले कहा जाता है। ये लोग शिकार करने के साथ-साथ जंगलों से फल, शहद, जड़ें इत्यादि भी इकट्ठा करते हैं। इस तरह वे कृषि के बिना भी अपनी आवश्यकताएं पूर्ण कर लेते हैं। जिस प्रकार से वे जानवरों का शिकार करते हैं उससे उनकी संस्कृति के बारे में भी पता चल जाता है। उनके समाजों में औज़ारों तथा साधनों की कमी होती है जिस कारण ही वे. प्राचीन कबीलों के प्रतिरूप होते हैं। उनके समाजों में अतिरिक्त उत्पादन की धारणा नहीं होती है। इसका कारण यह है कि वे न तो अतिरिक्त उत्पादन को सम्भाल सकते हैं तथा न ही अतिरिक्त चीजें पैदा कर सकते हैं। वे तो टपरीवास अथवा घुमन्तु जीवन व्यतीत करते हैं। चेंचु, कटकारी, कमर, बैजा, खरिया, कुछ, पलियन इत्यादि कबीले साधारणतया इस प्रकार का जीवन जीते हैं।

(ii) स्थानान्तरित अथवा झूम कृषि करने वाले (Shifting Agriculturists)-झूम अथवा स्थानान्तरित प्रकार की कृषि कबीलों में काफ़ी प्राचीन समय से प्रचलित है। इस तरह की कृषि में कोई कबीला पहले तो जंगल के एक हिस्से को आग लगाकर अथवा काट कर साफ करता है। फिर उसके ऊपर वे कृषि करना प्रारम्भ कर देते हैं। कृषि के प्राचीन साधन होने के कारण उनको उत्पादन कम प्राप्त होता है। जब उत्पादन मिलना बन्द हो जाता है अथवा बहुत कम हो जाता है तो वे उस भूमि के हिस्से को छोड़कर किसी और हिस्से पर इस प्रकार से ही कृषि करते हैं। कृषि में इस प्रकार की बहुत आलोचना हुई है। लोहरा, नागा, खासी, कुकी, साऊरा, कोरवा इत्यादि कबीले इस प्रकार की कृषि करते हैं। इस प्रकार की कृषि से उत्पादन बहुत ही कम होता है जिस कारण कबीले वालों की स्थिति काफ़ी दयनीय होती है।

इस तरह की कृषि से क्योंकि उत्पादन बहुत ही कम होता है इसलिए इस प्रकार की कृषि को बंद करने की कोशिशें की जा रही हैं। अगर इस प्रकार की कृषि को बन्द न किया गया तो धीरे-धीरे जंगल खत्म हो जाएंगे तथा उन कबीलों की आर्थिक स्थिति और भी निम्न हो जाएगी। जंगलों के कटने से भूमि के खिसकने (Land erosion) का खतरा भी पैदा हो जाता है। चाहे देश के कई भागों में इस प्रकार की कृषि पर पाबन्दी लगा दी गई है परन्तु फिर भी देश के कई भागों में स्थानान्तरित कृषि अभी भी बदस्तूर चल रही है। इस तरह की कृषि को बंद करने के लिए यह ज़रूरी है कि सरकार इन कबीलों को आर्थिक मदद अथवा इनके रोज़गार का प्रबन्ध करे ताकि इस कृषि के बन्द होने से उनकी रोजीरोटी का साधन ही खत्म न हो जाए।

(iii) चरवाहे (Pastoralists)-चरवाहा अर्थव्यवस्था जनजातीय अर्थव्यवस्था का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है। लोग अलग-अलग उद्देश्यों के लिए पशुओं को पालते हैं जैसे कि दूध लेने के लिए, मीट के लिए, ऊन के लिए, भार ढोने के लिए इत्यादि। भारत में रहने वाले चरवाहे कबीले स्थायी जीवन व्यतीत करते हैं तथा मौसम के अनुसार ही चलते हैं। पहाड़ी क्षेत्रों में रहने वाले कबीले अधिक सर्दी के समय मैदानी क्षेत्रों में अपने पशुओं के साथ चले जाते हैं तथा गर्मियों में वापस अपने क्षेत्रों में चले आते हैं। भारतीय कबीलों में प्रमुख चरवाहा कबीला हिमाचल प्रदेश में रहने वाला गुज्जर कबीला है जो व्यापार के उद्देश्य से गाय तथा भेड़ों को पालता है। इसके साथ-साथ तमिलनाडु के टोडस कबीले में भी यह प्रथा प्रचलित है। यह कबीला जानवरों को पालता है तथा उनसे दूध प्राप्त करता है। दूध को या तो विनिमय के लिए प्रयोग किया जाता है या फिर अपनी आवश्यकताएं पूर्ण करने के लिए प्रयोग किया जाता है। भारतीय कबीलों में चरवाहे साधारणतया स्थापित जीवन व्यतीत करते हैं तथा उनसे कई प्रकार की चीजें जैसे कि दूध, ऊन, मांस इत्यादि प्राप्त करते हैं। वे पशुओं जैसे कि भेड़ों, बकरियों इत्यादि का व्यापार भी करते हैं।

(iv) किसान (Cultivators) बहुत से कबीले हल की सहायता से कृषि करते हैं। पुरुष तथा स्त्रियां दोनों ही इस प्रकार की कृषि में बराबर रूप से हिस्सेदार होते हैं। जिन कबीलों ने ईसाई धर्म को अपना लिया है उनकी कृषि करने की तकनीक में भी बढ़ोत्तरी हो गयी है। मिजो, अपातालिस, ऊराओं, हो, थारो, गौंड कबीले इत्यादि इस प्रकार की कृषि करते हैं।

(v) दस्तकार (Artisons)-वैसे तो आमतौर पर सभी ही कबीले दस्तकारी का कार्य करते हैं परन्तु उनमें से कुछ कबीले ऐसे भी हैं जो केवल दस्तकारी के आधार पर अपना गुजारा करते हैं। कई कबीले अपनी आय बढ़ाने के लिए अपने अतिरिक्त समय में दस्तकारी का कार्य करते हैं। कबीले टोकरियां बनाकर, बुनकर, धातु के कार्य करके, सूत को कात कर अपना गुजारा करते हैं। वे बांस की चीजें बनाते हैं। चीनी के बर्तन, औज़ार बनाकर, बढ़ई का कार्य करके भी वे दस्तकारी का कार्य करते हैं। कबीलों के लोग मिट्टी तथा धातु के खिलौने बनाने के लिए भी प्रसिद्ध हैं।

(vi) औद्योगिक मजदूरी (Industrial Labour) यातायात तथा संचार के साधनों का विकास होने से तथा जंगलों के कम होने से कबीले मुख्य धारा के नज़दीक आ रहे हैं। जंगलों के कम होने से उनके परम्परागत गुज़ारे के ढंग कम हो रहे हैं जिस कारण उनको गुज़ारा करने के लिए तथा पैसे कमाने के लिए नए तरीके ढूंढ़ने पड़ रहे हैं। इसी के बीच एक नई चीज़ औद्योगिक मज़दूरी सामने आयी है। औद्योगिक मज़दूरी के लिए या तो वह औद्योगिक क्षेत्रों में जाते हैं या फिर उनके क्षेत्रों में ही उद्योग लग जाते हैं। बहुत-से जनजातीय लोगों ने असम के चाय के बागानों, उद्योगों इत्यादि में नौकरी कर ली है। मध्य प्रदेश, बिहार तथा झारखण्ड के कबीलों के लोग वहां की खानों तथा उद्योगों में कार्य करने लग गए हैं। बहुत-से कबाइली लोग शहरों में गैर-विशेषज्ञ मज़दूरी (Non-Specialized Labour) का कार्य भी करते हैं।

3. एकीकरण के स्तर के आधार पर भारतीय जनजातियों का वर्गीकरण-जनजातियां भारतीय जनसंख्या का एक आवश्यक अंग हैं। इन्होंने अपनी अलग पहचान को बरकरार रखा है। उन्होंने गैर-जनजातीय लोगों के साथ भी अच्छा तालमेल बना लिया है जो उनके सम्पर्क में आए हैं। एल० पी० विद्यार्थी, बी० के० राए इत्यादि ने जनजातियों को चार भागों में विभाजित किया है-

  • जनजातीय समुदाय-वह जनजातियां जो अभी भी अपने वास्तविक स्थान पर रहती हैं तथा अपने विशेष ढंग से जीवन जीती हैं।
  • अर्द्ध-जनजातीय समुदाय-उन जनजातियों के लोग जो कम या अधिक ग्रामीण क्षेत्रों में बस चुके हैं तथा जिन्होंने कृषि या संबंधित पेशों को अपना लिया है।
  • संक्रमित जनजातीय समुदाय-वह जनजातीय समुदाय जो नगरीय या अर्द्ध-नगरीय क्षेत्रों की तरफ प्रवास कर रहे हैं तथा आधुनिक पेशों को अपना रहे हैं जैसे कि उद्योगों में कार्य करने वाले। इन्होंने नगरीय लक्षणों का अपना लिया
  • पूर्ण समावेशी जनजातीय समुदाय-यह वह जनजातीय समुदाय हैं जिन्होंने पूर्णतया हिन्दू धर्म को अपना लिया है।

प्रश्न 3.
वन कटाव क्या है ? वन कटाव हेतु उत्तरदायी कारणों पर प्रकाश डालें।
अथवा
वन कटाव क्या है ? वन कटाव के लिए जिम्मेवार कारणों की चर्चा कीजिए।
अथवा
वन कटाव क्या है? वन कटाव के लिए उत्तरदायी कारणों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
वातावरण के पतन के प्रमुख कारणों में से एक वनों का कटाव है। इसका अर्थ है वृक्षों का काटा जाना। वृक्षों के कटने के अतिरिक्त कृषि वाले क्षेत्र का बढ़ना तथा चरागाहों के कारण भी वनों का कटाव बढ़ता है। पुराने समय में जनजातियों के लोग अपना गुजारा कर लेते थे क्योंकि उनके पास वन तथा अन्य प्राकृतिक स्रोत मौजूद थे। वह अपना गज़ारा करने के लिए वनों पर निर्भर थे। परन्तु औद्योगीकरण, नगरीकरण, कृषि, जनसंख्या के बढ़ने, लकड़ी की आवश्यकता बढ़ने के कारण वनों का कटाव बढ़ गया है जिसका जनजातियों के गुजारे पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष प्रभाव पड़ा है। जंगलों के कम होने का वातावरण पर काफ़ी बुरा प्रभाव पड़ा है।

वनों के कटाव के कारण (Causes of Deforestation)-

(i) कृषि के लिए-जनसंख्या के बढ़ने के कारण कृषि की भूमि की कमी हो गई। इस कारण वनों को काटा गया ताकि कृषि के अन्तर्गत भूमि को बढ़ाया जा सके। वह किसान जिनके पास भूमि नहीं होती, वह जंगलों को काट देते हैं ताकि वह अपनी आजीविका कमा सकें। बहुत से आदिवासी स्थानांतरित कृषि करते हैं तथा जंगलों को काटते हैं।

(ii) लकड़ी के लिए वनों को काटना-बहुत से उद्योगों में लकड़ी को कच्चे माल के रूप में प्रयोग किया जाता है जिस कारण वनों को काटा जाता है। जनसंख्या के बढ़ने के साथ घरों के लिए तथा फर्नीचर के लिए लकड़ी की लगातार आवश्यकता पड़ती है। औद्योगिक क्रान्ति के बाद तो लकड़ी की माँग काफ़ी अधिक बढ़ गई। इस कारण लकड़ी को भारत में जंगलों से हासिल किया गया क्योंकि यह लकड़ी बढ़िया होती थी तथा मज़दूरी भी सस्ती होती थी।

(iii) भोजन बनाने के लिए वनों को काटना-चाहे खाना बनाने के लिए वनों से लकड़ी एकत्र करके वनों की कमी नहीं होती परन्तु फिर भी लकड़ी को जलाया जाता है ताकि खाना बनाया जा सके व गर्मी प्राप्त की जा सके। इस कारण जनजातीय लोग पेड़ काटते हैं, लकड़ी एकत्र करके रखते हैं तथा उससे कोयला बनाते हैं।

(iv) औद्योगीकरण व नगरीकरण-उद्योगों को बनाने के लिए व नगरों को बसाने के लिए भूमि की आवश्यकता थी। इस कारण वनों को काटकर भूमि को साफ किया गया। इसका वातावरण पर भी बुरा प्रभाव पड़ा तथा वनों पर भी विपरीत प्रभाव पड़ा। इस कारण जनजातीय लोगों को भी अपने घर बार छोड़ने पड़े।

(v) चरागाहों को बढ़ाने के लिए-बढ़ते जानवरों की खाने की आवश्यकता पूर्ण करने के लिए चरागाहों को बढ़ाया गया। इस वजह से वनों को साफ किया गया तथा घास को उगाया गया। इस प्रकार वनों को काटा गया।

(vi) कागज़ उद्योग के लिए-लकड़ी को कागज़ के रूप में बदला जाता है जोकि पढ़ाई-लिखाई, व्यापार तथा अन्य बहुत से क्षेत्रों में काम आता है। पिछले कुछ दशकों से कागज़ की खपत सम्पूर्ण संसार में काफी बढ़ गई है। लकडी का गुदा कागज़ बनाने के लिए प्रयोग किया जाता है। इस प्रकार कागज़ के बनने के कारण वनों की कटाई बढ़ गई।

(vii) व्यापारिक कार्यों के लिए-बहुत सी कम्पनियां लकड़ी को कच्चे माल के रूप में प्रयोग करती हैं जिस कारण वह विशेष प्रकार के पेड़ लगाने पर बल देती हैं। इस प्रकार जो पेड़ वह लगाते हैं उन्हें जल्दी ही काट दिया जाता है। इस कारण वनों की कटाई में बढ़ौतरी होती है।

PSEB 12th Class Sociology Solutions Chapter 1 जनजातीय समाज

प्रश्न 4.
विस्थापन क्या है ? इसका विस्तार से वर्णन करें।
अथवा
विस्थापन के लिए भूमि अधिग्रहण तथा बाँध निर्माण उत्तरदायी कारण हैं। व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
किसी को उसके रहने के वास्तविक स्थान से उजाड़ कर अन्य स्थान पर लेकर जाने को विस्थापन कहते हैं। यह उन समस्याओं में से एक है जिनका सामना जनजातीय लोग कर रहे हैं। लोगों को उनके वास्तविक स्थान से विस्थापित करने से उन्हें बहुत-सी मानसिक, शारीरिक तथा आर्थिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। जनजातीय जनता औद्योगीकरण तथा नगरीकरण के प्रभावों को झेल रही है। जनजातीय क्षेत्रों में बहुत से प्राकृतिक स्रोत होते हैं तथा उन स्रोतों का कच्चे माल, शक्ति तथा बाँध (Dam) बनाने के लिए शोषण किया जाता हैं। इस प्रकार जनजातीय लोगों को उनकी भूमि से हटा दिया जाता है तथा मुआवजे के रूप में थोड़े बहुत पैसे दे दिए जाते है। वह उस पैसे को नशा करने या अन्य फालतू कार्यों पर खर्च कर देते हैं। इस प्रकार उनके पास न तो भूमि रहती है व न ही पैसा। उन्हें गुज़ारा करने के लिए उद्योगों में मजदूरों के रूप में कार्य करना पड़ता है। चाहे औद्योगीकरण के कारण जनजातीय लोगों को रोजगार मिल जाता है परन्तु अनपढ़ता के कारण वे शिक्षित या अर्द्ध शिक्षित नौकरी प्राप्त नहीं कर पाते।

कई विद्वानों का कहना है कि मध्य प्रदेश, झारखण्ड, पश्चिम बंगाल तथा ओडिशा में स्टील के कारखाने लगने के कारण बहुत से जनजातीय लोगों को उनके क्षेत्रों से उजाड़ा गया। उनमें से बहुत ही कम लोग सरकार द्वारा दी गई सुविधाओं का लाभ उठा सके हैं। उन लोगों को जो भूमि दी गई वहां पर सिंचाई का प्रबन्ध नहीं था जिस कारण वह भूमि उनके लिए लाभदायक सिद्ध नहीं हो पाई।

उन्हें भूमि के बदले जो पैसा दिया जाता है उसे ठीक ढंग से प्रयोग नहीं किया जाता। इसे उस समय तक जीवन जीने के लिए प्रयोग किया जाता है जब तक कोई अन्य कार्य नहीं मिल जाता। इसके अतिरिक्त उद्योगों की तरफ से अथवा नगर बसाने वालों की तरफ से कोई अन्य स्थान नहीं दिया जाता। उद्योगों के मालिक जनजातीय लोगों का लाभ करने के स्थान पर अपने उद्योग स्थापित करने तथा मुनाफा कमाने की तरफ ही ध्यान देते हैं। जनजातीय लोगों के पास कोई अन्य विकल्प नहीं होता जिस कारण वह छोटे-छोटे कच्चे घर बनाकर शहरों के बाहर बस्तियां बना कर रहते हैं ये बस्तियां गंदी बस्तियों में परिवर्तित हो जाती हैं। इससे उन्हें बहुत सी अन्य समस्याओं का सामना करना पड़ता है।

प्रश्न 5.
जनजातीय समाज में हुए सामाजिक परिवर्तनों का विवेचन करें।
उत्तर-
1. सामाजिक संरचना में आ रहे परिवर्तन (Changes in Social Structure)—सभी जनजातियों के सामाजिक जीवन का मुख्य आधार रिश्तेदारी अथवा नातेदारी तथा परिवार हैं। अलग-अलग जनजातियों में इन सामाजिक संस्थाओं तथा उन संस्थाओं में सम्बन्ध परिवर्तित हो रहे हैं। जनजातियों के संयुक्त परिवार खत्म हो रहे हैं तथा केन्द्रीय परिवार अस्तित्व में आ रहे हैं। पितृवंशी जनजातियों जैसे कि हो, गौंड, भील इत्यादि में इस प्रकार का परिवर्तन आ रहा है। परन्तु मातृवंशी कबीलों में कोई विशेष परिवर्तन नहीं आ रहा है। इन जनजातियों के परिवार अभी भी मातृस्थानीय तथा मातृ प्रधान हैं। परिवार में निर्णय लेने का अधिकार अभी भी परिवार के मुखिया के हाथों में हैं। कई जनजातियों जैसे कि भील, गौंड, नागा, बोंगा इत्यादि में पहले बहुपत्नी प्रथा प्रचलित थी। परन्तु आधुनिकीकरण के कारण इन जनजातियों में एकविवाही परिवार अस्तित्व में आ रहे हैं। जनजातियों की सामाजिक व्यवस्था में कुल (Clan) व्यवस्था का महत्त्वपूर्ण स्थान है। जब तक जनजातियों के लोग एक निश्चित इलाके में रहते थे तब कुल बहुत ही शक्तिशाली हुआ करते थे। परन्तु जब से जनजातीय लोग काम की तलाश में जनजातियों से बाहर उद्योगों की तरफ जाना शुरू हो गए हैं, व्यक्ति पर कुलों का नियन्त्रण कम हो गया है। अब कुल नियन्त्रण का साधन नहीं रहे। अब तो कुलों का महत्त्व केवल विवाह के समय ही देखने को मिलता है।

चाहे जनजातियों की नातेदारी व्यवस्था में बहुत अधिक परिवर्तन नहीं आए हैं परन्तु यातायात के साधनों के विकसित होने के कारण नातेदारी का क्षेत्र बहुत बड़ा हो गया है। भील, संथाल इत्यादि जनजातियों अपने बच्चों का विवाह बहुत दूर-दूर के क्षेत्रों में करते हैं। यातायात के साधनों के कारण वह एक-दूसरे के पास बहुत ही आसानी से जा सकते हैं। इस कारण अब नातेदारी छोटे क्षेत्र से बढ़ कर बड़े क्षेत्र में फैल गई है।

जनजातीय समाज की विवाह की प्रथा में भी बहुत परिवर्तन आए हैं। कई जनजातियों में बहुपत्नी विवाह प्रचलित थे जोकि अब कम होते जा रहे हैं तथा एक विवाह करने की प्रथा आगे आ रही है। जनजातियों में विवाह करने के ढंग भी बदलते जा रहे हैं। अपहरण विवाह तो बिल्कुल ही खत्म हो गए हैं क्योंकि कानूनन अपहरण करना एक अपराध माना गया है। इसी तरह गौंड तथा बोंगा जनजातियों में प्रचलित सेवा विवाह की प्रथा भी कम हो रही है। विवाह करने की परम्परागत प्रथाएं खत्म हो रही हैं तथा एक विवाह करने की व्यवस्था को अपनाया जा रहा है। जनजातियों के लोग हिन्दू समाज के नज़दीक होने के कारण, हिन्दू समाज में प्रचलित रीति-रिवाजों तथा प्रथाओं को अपना रहे हैं।

जनजातियों में धर्म को जीववाद (Animism) की श्रेणी में रखा जाता है। परन्तु अंग्रेज़ी सरकार के आने के कारण उनके धर्म में कई परिवर्तन आने शुरू हो गए हैं। इसका कारण यह है कि वह दूसरे समूहों के सम्पर्क में आना शुरू हो गए हैं जिससे उनका सामाजिक जीवन काफ़ी प्रभावित हुआ है। उनमें धर्म परिवर्तन होना भी शुरू हो गया है। कुछ लोगों ने तो हिन्दू धर्म को अपना लिया है तथा कुछ लोगों ने ईसाई धर्म को अपना लिया है। इन्होंने जन्म, विवाह तथा मृत्यु के समय होने वाले संस्कार भी हिन्दू धर्म अपना लिए हैं। अब सभी जनजातीय मरे हुए व्यक्ति का दाह संस्कार करते हैं। वह विवाह के समय हवन करते हैं तथा अग्नि के इर्द-गिर्द फेरे भी लेते हैं। अब वह हिन्दुओं के त्योहारों को भी धूमधाम से मनाते हैं। यह कहना गलत नहीं होगा कि जनजातीय हिन्दू सामाजिक व्यवस्था का अंग बन गए हैं। ईसाई मिशनरियों ने जनजातियों की भलाई के लिए काफ़ी कार्य किया जिस कारण बहुत से कबाइली लोगों ने ईसाई धर्म को अपना लिया है।

2. शिक्षा के कारण परिवर्तन (Changes due to Education)-भारत की स्वतन्त्रता के पश्चात् जनजातियों में शिक्षा लेने के सम्बन्धी विचारधारा में बहुत परिवर्तन आए हैं तथा शिक्षा का बहुत अधिक प्रसार हुआ है। आंकड़े कहते हैं कि बहुत-से जनजातीय लोग प्राइमरी तक या मिडिल तक ही पढ़ते हैं। परन्तु अगर वह कॉलेज अथवा विश्वविद्यालय के स्तर तक पहुंच जाते हैं तो उनको नौकरी आसानी से मिल जाती है क्योंकि उनके लिए सीटें आरक्षित होती हैं । चौहान के अनुसार राजस्थान के जनजातियों में बच्चे प्राथमिक शिक्षा तो प्राप्त करते हैं परन्तु इसके बाद उनकी संख्या कम होती जाती है। अगर उनमें से कोई उच्च शिक्षा प्राप्त कर लेता है तो वह उच्च श्रेणी में पहुंच जाता है। नायक के अनुसार जो भील लोग शिक्षा प्राप्त कर लेते हैं, उनकी सामाजिक स्थिति काफ़ी उच्च हो जाती है। नायक के अनुसार शिक्षा प्राप्त करने के बाद भील लोग केन्द्रीय परिवार ही पसन्द करते हैं तथा कृषि और परम्परागत पेशों को छोड़ कर और कोई पेशा अपना रहे हैं। शिक्षा के कारण उनमें राजनीतिक चेतना भी आई है। भील लोगों के कई सुधारवादी आन्दोलन भी चले जिनमें पढ़े-लिखे लोगों ने बढ़-चढ़ कर भाग लिया।

3. अर्थव्यवस्था में परिवर्तन (Change in Economy)-प्राचीन समय में जनजातीय लोग सिर्फ अपनी ज़रूरतों के लिए (Subsistence) उत्पादन किया करते थे। वह आवश्यकता से अधिक उत्पादन नहीं करते थे। आधुनिकीकरण के कारण उनकी आर्थिकता भी बदल रही है। यातायात तथा संचार के साधनों के विकास होने के कारण वह अब दूरदूर के इलाकों से जुड़ गए हैं। अब उनकी अर्थव्यवस्था निर्वाह (Subsistence) से मण्डी की आर्थिकता की तरफ बदल गई है। इस कारण अब वह जल्दी बिकने वाली फसलें अधिक उगाते हैं। अब वह आवश्यकता से अधिक पैदा करते हैं तथा अधिक उत्पादन को मण्डियों में बेचते हैं। सरकार की तरफ से जनजातियों को दी गई आर्थिक सुरक्षा तथा पंचवर्षीय योजनाओं के कार्यक्रमों के कारण अब उनकी आर्थिकता देश की आर्थिकता में मिलती जा रही है। परन्तु इससे उनकी आर्थिक व्यवस्था में सुधार नहीं हुआ है। उनकी प्रति व्यक्ति आय देश की आय की तुलना में काफ़ी कम है।

अब जनजातियों के लोगों को जायदाद रखने के अधिकार प्रदान किए गए हैं क्योंकि संविधान में भारत के सभी नागरिकों को जायदाद रखने का अधिकार दिया है। अब जनजातियों के लोग अपनी मर्जी से कोई भी पेशा अपना सकते हैं। वह सरकारी बैंकों से कर्जा भी ले सकते हैं।

अब जनजातीय लोग शहरों में जाकर उद्योगों में कार्य करने लग गए हैं तथा शहरों में रहकर ही कोई कार्य करने लग गए हैं। अब उनके लिए रोजी-रोटी कमाने के लिए और साधन भी पैदा हो गए हैं। जो जनजातीय लोग अधिक पैसा कमा रहे हैं उनकी सामाजिक स्थिति भी ऊंची हो रही है। यह लोग आर्थिक तौर पर ऊंचे होने के साथ-साथ राजनीतिक तौर पर भी जनजातियों के नेता बन गए हैं तथा पंचायतों या और लोकतान्त्रिक संस्थाओं में चुने जा रहे हैं। यह लोग अब उच्च वर्ग में पहुंच गए हैं। अमीर लोग अधिक अमीर हो रहे हैं तथा गरीब लोग अधिक गरीब हो रहे हैं। अमीर तथा गरीब के बीच का अन्तर बढ़ता जा रहा है।

एफ० जी० बेली (F. G. Bailey) के अनुसार गौंड जनजातीय के लोग उड़ीसा में देश की अर्थव्यवस्था की मुख्य धारा में आ गए हैं तथा इस तरह ही वह राजनीतिक क्षेत्र में आ गए हैं। इस प्रकार जनजातियों के लोग देश की आर्थिक तथा राजनीतिक व्यवस्था का हिस्सा बन गए हैं।

मण्डी अर्थव्यवस्था से जनजातियों के लोगों का जीवन स्तर ऊंचा हो गया है। उनकी आवश्यकताएं तथा इच्छाएं बहुत ही बढ़ गई हैं। अब वह हाथ से कार्य करने की जगह सफेदपोश नौकरियां करनी पसन्द करते हैं। कबाइली उच्च वर्ग ने निम्न वर्ग का शोषण करना भी शुरू कर दिया है।

4. राजनीतिक परिवर्तन (Political Change)-प्राचीन समय में जनजातियों के राजनीतिक कार्य कुलों (Clans) द्वारा चलते थे जिस कारण जनजातीय क्षेत्रों में हमेशा संघर्ष की स्थिति बनी रहती थी। इसका कारण यह है कि अलग-अलग कुल राजनीतिक शक्ति प्राप्त करने का प्रयास करते रहते थे। देश की स्वतन्त्रता के बाद कबीलों के राजनीतिक जीवन में बहुत परिवर्तन आया है। अब उनकी राजनीति में कुल अथवा नातेदारी का कोई महत्त्व नहीं है। अब सम्पूर्ण देश में एक जैसी राजनीतिक व्यवस्था स्थापित हो गई है। इस कारण जनजातियों की परम्परागत राजनीतिक व्यवस्था तो बिल्कुल ही खत्म हो गई है। कुछ समाजशास्त्रियों के अनुसार अब परम्परागत जनजातीय राजनीतिक व्यवस्था की जगह नई प्रजातान्त्रिक व्यवस्था स्थापित हो गई है। इस कारण जनजातियों की नेतृत्व की प्रकृति भी बदल गई है। अब नेतृत्व रिश्तेदारी पर आधारित नहीं होता है। अब परम्परागत राजनीतिक संघ कमजोर पड़ गए हैं तथा उनके कार्य सरकारी प्रशासन कर रहा है। अब अगर कोई व्यक्ति अपराध करता है तो उसका फैसला अदालत में होता है जनजातीय पंचायत में नहीं। इस कारण जनजातीय पंचायतों का महत्त्व काफ़ी कम हो गया है चाहे सिविल मामलों के फैसले अब भी वह ही करती हैं।

5. सामाजिक सांस्कृतिक परिवर्तन (Socio-Cultural Change)-सांस्कृतिक पक्ष से भी जनजातियों के लोगों के परम्परागत रीति-रिवाज बदल रहे हैं। यह परिवर्तन सात्मीकरण की प्रक्रिया के कारण आ रहे हैं। बहुत से जनजातियों के लोग ईसाई प्रभाव के अन्तर्गत रहन-सहन के पश्चिमी ढंग अपना रहे हैं। इन लोगों पर हिन्दू धर्म के रस्मों-रिवाजों का काफ़ी प्रभाव पड़ा है। इनकी भाषा, खाने-पीने के ढंग, कपड़े पहनने के ढंग भी बदल रहे हैं। आधुनिक शिक्षा के प्रसार ने भी इनकी संस्कृति में काफ़ी परिवर्तन ला दिया है। __बहुत से जनजातीय जो पहले हिन्दू धर्म के संस्कारों में विश्वास नही रखते थे अब वह जीवन के कई अवसरों जैसे कि जन्म, विवाह, मृत्यु, इत्यादि के समय ब्राह्मणों को बुलाने लग गए हैं। जनजातियों के लोगों ने दूसरे समूहों के लोगों के परिमापों तथा मूल्यों को भी अपनाना शुरू कर दिया है। इन परिवर्तनों के कारण ही अब वह हिन्दू समाज से जुड़ना शुरू हो गए हैं तथा उनका अलगपन भी लगभग खत्म होता जा रहा है।

PSEB 12th Class Sociology Solutions Chapter 1 जनजातीय समाज

प्रश्न 6.
वन कटाव तथा विस्थापन में अन्तर बताएं।
उत्तर-
वातावरण के पतन के प्रमुख कारणों में से एक वनों का कटाव है। इसका अर्थ है वृक्षों का काटा जाना। वृक्षों के कटने के अतिरिक्त कृषि वाले क्षेत्र का बढ़ना तथा चरागाहों के कारण भी वनों का कटाव बढ़ता है। पुराने समय में जनजातियों के लोग अपना गुजारा कर लेते थे क्योंकि उनके पास वन तथा अन्य प्राकृतिक स्रोत मौजूद थे। वह अपना गज़ारा करने के लिए वनों पर निर्भर थे। परन्तु औद्योगीकरण, नगरीकरण, कृषि, जनसंख्या के बढ़ने, लकड़ी की आवश्यकता बढ़ने के कारण वनों का कटाव बढ़ गया है जिसका जनजातियों के गुजारे पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष प्रभाव पड़ा है। जंगलों के कम होने का वातावरण पर काफ़ी बुरा प्रभाव पड़ा है।

वनों के कटाव के कारण (Causes of Deforestation)-

(i) कृषि के लिए-जनसंख्या के बढ़ने के कारण कृषि की भूमि की कमी हो गई। इस कारण वनों को काटा गया ताकि कृषि के अन्तर्गत भूमि को बढ़ाया जा सके। वह किसान जिनके पास भूमि नहीं होती, वह जंगलों को काट देते हैं ताकि वह अपनी आजीविका कमा सकें। बहुत से आदिवासी स्थानांतरित कृषि करते हैं तथा जंगलों को काटते हैं।

(ii) लकड़ी के लिए वनों को काटना-बहुत से उद्योगों में लकड़ी को कच्चे माल के रूप में प्रयोग किया जाता है जिस कारण वनों को काटा जाता है। जनसंख्या के बढ़ने के साथ घरों के लिए तथा फर्नीचर के लिए लकड़ी की लगातार आवश्यकता पड़ती है। औद्योगिक क्रान्ति के बाद तो लकड़ी की माँग काफ़ी अधिक बढ़ गई। इस कारण लकड़ी को भारत में जंगलों से हासिल किया गया क्योंकि यह लकड़ी बढ़िया होती थी तथा मज़दूरी भी सस्ती होती थी।

(iii) भोजन बनाने के लिए वनों को काटना-चाहे खाना बनाने के लिए वनों से लकड़ी एकत्र करके वनों की कमी नहीं होती परन्तु फिर भी लकड़ी को जलाया जाता है ताकि खाना बनाया जा सके व गर्मी प्राप्त की जा सके। इस कारण जनजातीय लोग पेड़ काटते हैं, लकड़ी एकत्र करके रखते हैं तथा उससे कोयला बनाते हैं।

(iv) औद्योगीकरण व नगरीकरण-उद्योगों को बनाने के लिए व नगरों को बसाने के लिए भूमि की आवश्यकता थी। इस कारण वनों को काटकर भूमि को साफ किया गया। इसका वातावरण पर भी बुरा प्रभाव पड़ा तथा वनों पर भी विपरीत प्रभाव पड़ा। इस कारण जनजातीय लोगों को भी अपने घर बार छोड़ने पड़े।

(v) चरागाहों को बढ़ाने के लिए-बढ़ते जानवरों की खाने की आवश्यकता पूर्ण करने के लिए चरागाहों को बढ़ाया गया। इस वजह से वनों को साफ किया गया तथा घास को उगाया गया। इस प्रकार वनों को काटा गया।

(vi) कागज़ उद्योग के लिए-लकड़ी को कागज़ के रूप में बदला जाता है जोकि पढ़ाई-लिखाई, व्यापार तथा अन्य बहुत से क्षेत्रों में काम आता है। पिछले कुछ दशकों से कागज़ की खपत सम्पूर्ण संसार में काफी बढ़ गई है। लकडी का गुदा कागज़ बनाने के लिए प्रयोग किया जाता है। इस प्रकार कागज़ के बनने के कारण वनों की कटाई बढ़ गई।

(vii) व्यापारिक कार्यों के लिए-बहुत सी कम्पनियां लकड़ी को कच्चे माल के रूप में प्रयोग करती हैं जिस कारण वह विशेष प्रकार के पेड़ लगाने पर बल देती हैं। इस प्रकार जो पेड़ वह लगाते हैं उन्हें जल्दी ही काट दिया जाता है। इस कारण वनों की कटाई में बढ़ौतरी होती है।

किसी को उसके रहने के वास्तविक स्थान से उजाड़ कर अन्य स्थान पर लेकर जाने को विस्थापन कहते हैं। यह उन समस्याओं में से एक है जिनका सामना जनजातीय लोग कर रहे हैं। लोगों को उनके वास्तविक स्थान से विस्थापित करने से उन्हें बहुत-सी मानसिक, शारीरिक तथा आर्थिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। जनजातीय जनता औद्योगीकरण तथा नगरीकरण के प्रभावों को झेल रही है। जनजातीय क्षेत्रों में बहुत से प्राकृतिक स्रोत होते हैं तथा उन स्रोतों का कच्चे माल, शक्ति तथा बाँध (Dam) बनाने के लिए शोषण किया जाता हैं। इस प्रकार जनजातीय लोगों को उनकी भूमि से हटा दिया जाता है तथा मुआवजे के रूप में थोड़े बहुत पैसे दे दिए जाते है। वह उस पैसे को नशा करने या अन्य फालतू कार्यों पर खर्च कर देते हैं। इस प्रकार उनके पास न तो भूमि रहती है व न ही पैसा। उन्हें गुज़ारा करने के लिए उद्योगों में मजदूरों के रूप में कार्य करना पड़ता है। चाहे औद्योगीकरण के कारण जनजातीय लोगों को रोजगार मिल जाता है परन्तु अनपढ़ता के कारण वे शिक्षित या अर्द्ध शिक्षित नौकरी प्राप्त नहीं कर पाते।

कई विद्वानों का कहना है कि मध्य प्रदेश, झारखण्ड, पश्चिम बंगाल तथा ओडिशा में स्टील के कारखाने लगने के कारण बहुत से जनजातीय लोगों को उनके क्षेत्रों से उजाड़ा गया। उनमें से बहुत ही कम लोग सरकार द्वारा दी गई सुविधाओं का लाभ उठा सके हैं। उन लोगों को जो भूमि दी गई वहां पर सिंचाई का प्रबन्ध नहीं था जिस कारण वह भूमि उनके लिए लाभदायक सिद्ध नहीं हो पाई।

उन्हें भूमि के बदले जो पैसा दिया जाता है उसे ठीक ढंग से प्रयोग नहीं किया जाता। इसे उस समय तक जीवन जीने के लिए प्रयोग किया जाता है जब तक कोई अन्य कार्य नहीं मिल जाता। इसके अतिरिक्त उद्योगों की तरफ से अथवा नगर बसाने वालों की तरफ से कोई अन्य स्थान नहीं दिया जाता। उद्योगों के मालिक जनजातीय लोगों का लाभ करने के स्थान पर अपने उद्योग स्थापित करने तथा मुनाफा कमाने की तरफ ही ध्यान देते हैं। जनजातीय लोगों के पास कोई अन्य विकल्प नहीं होता जिस कारण वह छोटे-छोटे कच्चे घर बनाकर शहरों के बाहर बस्तियां बना कर रहते हैं ये बस्तियां गंदी बस्तियों में परिवर्तित हो जाती हैं। इससे उन्हें बहुत सी अन्य समस्याओं का सामना करना पड़ता है।

अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न (OTHER IMPORTANT QUESTIONS)

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न

A. बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
जनजातियों के लोग कहाँ पर रहते हैं ?
(क) जंगलों में
(ख) पहाड़ों में
(ग) घाटियों में
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 2.
इनमें से जनजातियों के लोगों को किस अन्य नाम से पुकारा जाता है ?
(क) वनवासी
(ख) आदिम जाति
(ग) अनुसूचित जनजाति
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 3.
डॉ० बी० आर० अंबेडकर ने जनजातियों को क्या नाम दिया था ?
(क) पहाड़ी
(ख) अनुसूचित जनजातीय
(ग) आदिवासी
(घ) वनवासी।
उत्तर-
(ख) अनुसूचित जनजातीय।

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प्रश्न 4.
देश की जनसंख्या में जनजातियों की जनसंख्या का प्रतिशत कितना है ?
(क) 8.2%
(ख) 9.2%
(ग) 7.2%
(घ) 10.2%
उत्तर-
(क) 8.2%.

प्रश्न 5.
भारत की सबसे बड़ी जनजाति कौन-सी है ?
(क) संथाल
(ख) नागा
(ग) भील
(घ) मुण्डा ।
उत्तर-
(क) संथाल।

प्रश्न 6.
जनजातियों का नस्लीय वर्गीकरण किसने दिया था ?
(क) मजूमदार
(ख) मदान
(ग) सर हरबर्ट रिज़ले
(घ) नदीम हसनैन।
उत्तर-
(ग) सर हरबर्ट रिज़ले।

प्रश्न 7.
किसी व्यक्ति की एक स्थिति से दूसरी स्थिति में गति की क्रिया क्या कहलाती है ?
(क) विस्थापन
(ख) गतिशीलता
(ग) भूमि अधिग्रहण
(घ) वन कटाव।
उत्तर-
(ख) गतिशीलता।

B. रिक्त स्थान भरें-

1. गौंड जनजाति……… समूह से संबंध रखती है।
2. भील लोगों में जीवन जीने का मुख्य पेशा ………… है।
3. कन्या मूल्य प्रथा ……….. जनजाति में प्रचलित है।
4. ……………. के कारण जनजातीय लोगों को उनके क्षेत्रों से निकाला जा रहा है।
5. …………. प्रकार के परिवार में सत्ता माता के हाथों में होती है।
उत्तर-

  1. द्राविड़
  2. कृषि
  3. संथाल
  4. विस्थापन
  5. मातृसत्तात्मक।

C. सही/ग़लत पर निशान लगाएं-

1. झूम कृषि जनजातियों के लोग करते हैं।
2. गौंड जनजाति पंजाब में मिलती है।
3. भारत में सात जनजातियां हैं जिनकी जनसंख्या एक लाख से अधिक है।
4. सत्ता के आधार पर परिवार के दो प्रकार होते हैं।
5. रहने के स्थान के आधार पर चार प्रकार के परिवार होते हैं।
उत्तर-

  1. सही
  2. ग़लत
  3. सही
  4. सही
  5. सही।

II. एक शब्द/एक पंक्ति वाले प्रश्न उत्तर

प्रश्न 1. भारत के किस भाग में सबसे अधिक जनजातियां रहती हैं ?
उत्तर-मध्य भारत तथा उत्तर पश्चिमी हिस्से में देश की सबसे अधिक जनजातियां रहती हैं।

प्रश्न 2. जनजातियों के लोग कहाँ रहते है ?
उत्तर-जनजातियों के लोग हमारी सभ्यता से दूर जंगलों, पहाड़ों तथा घाटियों में रहते हैं।

प्रश्न 3. जनजातियों को किन अन्य नामों से जाना जाता है ?
उत्तर-उन्हें वन्यजाति, वनवासी, पहाड़ी, आदिम जाति, आदिवासी, जनजाति तथा अनुसूचित जनजाति जैसे नामों से जाना जाता है।

प्रश्न 4. संविधान में जनजातियों को किस नाम से जाना जाता है।
उत्तर-संविधान में जनजातियों को अनुसूचित जनजातियों के नाम से जाना जाता है ?

प्रश्न 5. किसने जनजातियों को आदिवासी के स्थान पर अनुसूचित जनजाति का नाम दिया ?
उत्तर-डॉ० बी० आर० अंबेडकर ने उन्हें अनुसूचित जनजाति का नाम दिया था।

प्रश्न 6. शब्द जनजाति कहाँ से निकला है ?
उत्तर-शब्द जनजाति लातीनी भाषा के शब्द Tribuz से बना है जिसका अर्थ है एक तिहाई।

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प्रश्न 7. भारतीय संविधान के किस अनुच्छेद में अनुसूचित जनजातियों का नाम दर्ज है ?
उत्तर-भारतीय संविधान के अनुच्छेद 342 में अनुसूचित जनजातियों का नाम दर्ज है।

प्रश्न 8. नागा, खासी तथा टोडा जनजातियां कहां रहती हैं ?
उत्तर-नागा लोग नागालैंड में, खासी लोग असम में तथा टोडा लोग नीलगिरी पहाड़ियों में रहते हैं।

प्रश्न 9. गोंड तथा भील लोग कौन-सी भाषा बोलते हैं ?
उत्तर-गोंड लोग गोंडी भाषा तथा भील लोग भीली भाषा बोलते हैं।

प्रश्न 10. संथाल तथा मुण्डा जनजाति कौन-सी भाषा बोलते हैं ?
उत्तर-संथाल लोग संथाली भाषा तथा मुण्डा लोग मुण्डारी भाषा बोलते हैं।

प्रश्न 11. भारतीय जनसंख्या का कितना प्रतिशत जनजातियां हैं ?
उत्तर-2011 में जनजातियों का प्रतिशत 8.2% था।

प्रश्न 12. भारत के कौन-से राज्यों में जनजातियों की जनसंख्या सबसे अधिक तथा कम है ?
उत्तर-मिज़ोरम में जनजातियों की जनसंख्या का प्रतिशत सबसे अधिक तथा गोवा में सबसे कम है।

प्रश्न 13. भारत के कौन-से केंद्र शासित प्रदेशों में जनजातियों की जनसंख्या अधिक तथा कम है ?
उत्तर-लक्षद्वीप में इनकी जनसंख्या सबसे अधिक तथा अण्डेमान व निकोबार में सबसे कम है।

प्रश्न 14. भारत की सबसे बड़ी जनजाति कौन-सी है तथा यह कहाँ मिलती है ?
उत्तर-संथाल भारत की सबसे बड़ी जनजाति है तथा यह पश्चिमी बंगाल, बिहार, झारखण्ड तथा ओडिशा में मिलती है।

प्रश्न 15. जनजातीय समाज में श्रम विभाजन किस आधार पर होता है ?
उत्तर-जनजातीय समाज में श्रम विभाजन आयु तथा लिंग के आधार पर होता है।

प्रश्न 16. जनजातीय समाज में किस प्रकार की आर्थिकता होती है ?
उत्तर-जनजातीय समाजों में निर्वाह व्यवस्था के साथ-साथ लेन-देन की व्यवस्था मौजूद होती है।

प्रश्न 17. किसने भारतीय जनजातियों को प्रजाति के आधार पर विभाजित किया है ?
उत्तर-सर हरबर्ट रिज़ले ने भारतीय जनजातियों को प्रजाति के आधार पर विभाजित किया है।

प्रश्न 18. झूम कृषि के अलग-अलग नाम बताएं।
उत्तर-झूम कृषि को भारत में झूमिंग, मैक्सिको में मिलपा, ब्राज़ील में रोका तथा मलेशिया में लडांण्ग के नाम से जाना जाता है।

प्रश्न 19. भारत की उन सात जनजातियों के नाम बताएं जिनकी जनसंख्या एक लाख से अधिक है ?
उत्तर-गोंड, भील, संथाल, मीना, उराओं, मुण्डा तथा खौंड।

प्रश्न 20. गोंड जनजाति कहाँ मिलती है ?
उत्तर-गोंड जनजाति मध्य प्रदेश, आन्ध्र प्रदेश, बिहार, ओडिशा में मिलता है।

प्रश्न 21. गोंड जनजाति कौन-सी भाषा बोलती है ?
उत्तर-गोंड जनजाति गौंडी तथा छतीसगड़ी भाषा बोलती है।

प्रश्न 22. भील जनजाति कहाँ पर मिलती है ?
उत्तर-भील जनजाति मध्य प्रदेश, आन्ध्र प्रदेश, गुजरात, राजस्थान, त्रिपुरा इत्यादि में मिलती है।

प्रश्न 23. भील लोग कौन-सी भाषा बोलते हैं तथा उनका महत्त्वपूर्ण त्योहार बताएं।
उत्तर- भील लोग भीली भाषा बोलते हैं तथा होली उनका प्रमुख त्योहार है।

प्रश्न 24. संथाल जनजाति कहाँ मिलती है ?
उत्तर-संथाल जनजाति बिहार, पश्चिम बंगाल, झारखण्ड तथा ओडिशा में मिलती है।

प्रश्न 25. संथाल लोग कौन-सी भाषा बोलते हैं ?
उत्तर-संथाल लोग संथाली, उड़िया, बांग्ला तथा बिहार वाली हिंदी बोलते हैं।

प्रश्न 26. सत्ता के आधार पर कितने प्रकार की जनजातियां मिलती हैं ?
उत्तर-सत्ता के आधार पर दो प्रकार की जनजातियां मिलती हैं-पितृ सत्तात्मक तथा मातृसत्तात्मक।

प्रश्न 27. रहने के स्थान के आधार पर कितने प्रकार की जनजातियां मिलती हैं ?
उत्तर-चार प्रकार की-पितृ स्थानीय, मातृ-स्थानीय, द्वि-स्थानीय व नवस्थानीय जनजातियां।

प्रश्न 28. वंश के आधार पर कितने प्रकार की जनजातियां मिलती हैं ?
उत्तर-तीन प्रकार के-पितृ वंशी, मातृवंशी व द्विवंशी जनजातियां।

प्रश्न 29. जनजातीय समाजों में विवाह के कितने प्रकार मिलते हैं ?
उत्तर-जनजातीय समाजों में विवाह करने के नौ प्रकार मिलते हैं।

प्रश्न 30. केन्द्रीय भारत में कौन-सी जनजातियाँ निवास करती हैं?
उत्तर-गोंड, भील, संथाल, ओरायोन्स जैसी जनजातियाँ केन्द्रीय भारत में निवास करती है।

प्रश्न 31. जी०एस० घूर्ये ने जनजातियों को क्या नाम दिया था?
उत्तर-जी०एस० घूर्ये ने जनजातियों को पिछड़े हिन्दू का नाम दिया था।

प्रश्न 32. भारत की सबसे बड़ी जनजाति कौन-सी है तथा यह कहाँ पाई जाती है?
उत्तर-संथाल भारत की सबसे बड़ी जनजाति है तथा यह पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखण्ड व ओडिशा में पाई जाती

प्रश्न 33. जनजातीय समाज की एक विशेषता बताए।
उत्तर-एक जनजाति परिवारों का एकत्र है जो एक साझे क्षेत्र में रहती है तथा जिसका एक साझा नाम व भाषा होती है।

प्रश्न 34. किन्हीं दो मातृवंशीय जनजातियों के नाम बताएँ।
उत्तर-गारो तथा खासी मातृवंशीय जनजातियां है।

प्रश्न 35. जनजातियों की आर्थिकता की एक विशेषता बताएं।
उत्तर-जनजातियों की अर्थव्यवस्था छोटे पैमाने पर जीविकोपार्जन तथा सामान्य तकनीक के प्रयोग से उनकी परिस्थितियाँ के अनुरूप होती है।

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III. अति लघु उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
किन जनजातियों को अनुसूचित जनजाति कहा जाता है ?
उत्तर-
हमारे देश भारत में बहुत सी जनजातियां अलग-अलग क्षेत्रों में रहती हैं। जिन जनजातियों के नाम संविधान की अनुसूची में दर्ज है तथा जो अपनी जनजातीय स्थिति को बना कर रख रहे हैं, उन्हें अनुसूचित जनजातियां कहा जाता है।

प्रश्न 2.
जनजाति क्या होती है ?
उत्तर-
जनजाति एक सामाजिक समूह होता है जो एक विशेष भौगोलिक क्षेत्र में प्राकृतिक स्थितियों में रहता है तथा जिसके लोगों के बीच सांस्कृतिक समानता तथा एकीकृत सामाजिक संगठन होता है। इनकी अपनी ही भाषा तथा धर्म होता है।

प्रश्न 3.
अलग-अलग विद्वानों ने जनजातियों को कौन-सा नाम दिया है ?
उत्तर-
वैसे तो जनजातियों को आदिवासी कहा जाता है। परन्तु जी० एस० घूर्ये ने इन्हें पिछड़े हिंदू कहा है। महात्मा गांधी ने इन्हें गिरीजन कहा है। जे० एच० हट्टन ने इन्हें आदिम जनजाति तथा भारतीय संविधान में इन्हें अनुसूचित जनजाति कहा गया है

प्रश्न 4.
संविधान के अनुच्छेद 342 के अनुसार अनुसूचित जनजाति की क्या विशेषताएं हैं ?
उत्तर-

  • आदिम विशेषताएं
  • भौगोलिक अलगपन
  • विशेष संस्कृति
  • नज़दीक के समूहों से सम्पर्क करने में शर्म
  • आर्थिक रूप से पिछड़े हुए।

प्रश्न 5.
जनजातीय समाज की दो विशेषताएं बताएं।
उत्तर-

  • जनजातीय समाज एक विशेष भौगोलिक क्षेत्र में रहता है जिसे हम परिवारों का समूह भी कह सकते हैं।
  • प्रत्येक जनजाति की अपनी ही एक विशेष संस्कृति, भाषा तथा धर्म होता है। वह किसी को भी अपने मामले में दखल नहीं देने देते।

प्रश्न 6.
मुखियापन का क्या अर्थ है ?
उत्तर–
प्रत्येक जनजाति की अपनी एक राजनीतिक व्यवस्था होती है जिसका मुखिया शारीरिक शक्ति, आयु अथवा तजुर्बे के आधार पर चुना जाता है। मुखिया के पास निरकुंश शक्तियां होती हैं तथा उसका निर्णय अन्तिम होता है। जनजाति के सभी सदस्य उसके निर्णय को मानते हैं।

प्रश्न 7.
निर्वाह अर्थव्यवस्था क्या होती है ? .
उत्तर-
जनजातियों की अर्थव्यवस्था निर्वाह पर आधारित होती है तथा वहाँ के उत्पादन के साधन शिकार, मछली पकड़ना, एकत्र करना व जंगली उत्पाद होते हैं। वह कुछ भी बचा कर नहीं रखते तथा जो कुछ भी एकत्र करते हैं, खत्म कर देते हैं। परन्तु पिछले कुछ समय से उनकी अर्थव्यवस्था परिवर्तित हो रही है।

प्रश्न 8.
जनजातियों में श्रम विभाजन किस प्रकार का होता है ?
उत्तर-
जनजातीय समाजों में श्रम विभाजन आयु तथा लिंग के आधार पर होता है। इन समाजों में विशेषीकरण नहीं पाया जाता जैसे कि आजकल के आधुनिक समाजों में मिलता है। सभी इकट्ठे मिलकर शिकार करते हैं तथा चीजें एकत्र करते हैं। स्त्रियां घरों की देखभाल करती है।

प्रश्न 9.
द्राविड़ प्रकार की जनजातियों के बारे में बताएं।
उत्तर-
इस प्रकार की जनजातियां पश्चिम बंगाल की गंगा घाटी से लेकर श्रीलंका तक फैली हुई हैं जिसमें चेन्नई, हैदराबाद, मध्य भारत तथा छोटा नागपुर के इलाके शामिल हैं। इन्हें भारत के मूल निवासी भी कहा जाता है। इनका रंग काला, काली आँखें, लंबा सिर तथा चौड़ा नाक होता है।

प्रश्न 10.
बी० के० राए ने जनजातियों का क्या वर्गीकरण दिया है ?
उत्तर-

  • वह जनजातियां जो हिंदू सामाजिक व्यवस्था में शामिल हो चुके हैं।
  • वह जनजातियां जो हिंदू सामाजिक व्यवस्था की तरफ सकारात्मक झुकाव रखती हैं।
  • वह जनजातियां जो हिंदू सामाजिक व्यवस्था की तरफ नकारात्मक झुकाव रखती हैं।
  • वह जनजातियां जो हिंदू सामाजिक व्यवस्था से बिल्कुल ही अलग हैं।

प्रश्न 11.
पितृसत्तात्मक जनजाति का क्या अर्थ है ?
उत्तर-
वह परिवार जिसमें पिता की सत्ता चलती है तथा परिवार पिता की आज्ञा मानता है। वंश पिता के नाम से चलता है तथा पिता की सम्पत्ति पुत्रों को मिलती है। घर का मुखिया पिता होता है तथा यह एक विवाही परिवार होता है। पिता की प्रधानता के कारण इसे पितृसत्तात्मक कहा जाता है।

प्रश्न 12.
मातृसत्तात्मक जनजाति का क्या अर्थ है ?
उत्तर-
वह जनजाति जिसमें माता की सत्ता चलती है तथा परिवार माता के अनुसार चलता है। वंश माता के नाम से चलता है तथा सम्पत्ति माता से पुत्री को प्राप्त होती है। घर की मुखिया माता होती है। माता की प्रधानता के कारण इसे मातृसत्तात्मक कहते हैं।

प्रश्न 13.
जनजातीय समाजों में आजकल कौन-से मुद्दे प्रमुख हैं ?
उत्तर-
इन समाजों में आजकल दो प्रमुख मुद्दे हैं-वनों का कटाव व विस्थापन। वनों को काटा जा रहा है जिस वजह से इनके रोज़गार के साधन खत्म हो रहे हैं। दूसरा है इन्हें इनके मूल स्थानों से उजाड़ कर नए स्थानों पर बसाया जा रहा है।

IV. लघु उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
कबीला अथवा जनजाति।
उत्तर-
कबीला अथवा जनजाति व्यक्तियों का एक ऐसा समूह है जो हमारी सभ्यता से दूर पहाड़ों, जंगलों, घाटियों इत्यादि में आदिम तथा प्राचीन अवस्था में रहता है। यह समूह एक विशेष भौगोलिक क्षेत्र में रहता है जिसकी अपनी ही अलग भाषा, अपनी संस्कृति, अपना ही धर्म होता है। यह समूह अन्तर्वैवाहिक समूह होते हैं तथा प्यार, पेशे तथा उद्योगों के विषय में कुछ नियमों की पालना करते हैं। यह लोग हमारी संस्कृति, सभ्यता तथा समाज से बिल्कुल ही अलग होते हैं। अलग-अलग कबीले अपनी सामाजिक संरचना, भाषा, संस्कृति इत्यादि जैसे कई पक्षों के आधार पर एक-दूसरे से अलग होते हैं।

प्रश्न 2.
कबाइली समाज।
अथवा
जनजाति समाज।
उत्तर-
जनजाति एक ऐसा समूह है जो हमारी सभ्यता, संस्कृति से दूर पहाड़ों, जंगलों, घाटियों इत्यादि में आदिम तथा प्राचीन अवस्था में रहता है। इन कबीलों में पाए जाने वाले समाज को कबाइली समाज कहा जाता है। जनजातीय समाज वर्गहीन समाज होता है। इसमें किसी प्रकार का स्तरीकरण नहीं पाया जाता है। प्राचीन समाजों में जनजातीय को बहुत ही महत्त्वपूर्ण सामाजिक समूह माना जाता था। जनजातीय समाज की अधिकतर जनसंख्या पहाड़ों अथवा जंगली इलाकों में पाई जाती है। यह समाज साधारणतया स्वैः निर्भर होते हैं जिनका अपने ऊपर नियन्त्रण होता है तथा यह किसी के भी नियन्त्रण से दूर होते हैं। कबाइली समाज, शहरी समाजों तथा ग्रामीण समाजों की संरचना तथा संस्कृति से बिल्कुल ही अलग होते हैं।

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प्रश्न 3.
जनजाति की दो परिभाषाएं।
उत्तर-
(i) इम्पीरियल गजेटियर आफ इंडिया (Imperial Gazeteer of India) के अनुसार, “जनजाति परिवारों का एक ऐसा समूह होता है जिसका एक नाम होता है, इसके सदस्य एक ही भाषा बोलते हैं तथा एक ही भू-भाग में रहते हैं तथा अधिकार रखते हैं या अधिकार रखने का दावा करते हैं तथा जो अन्तर्वैवाहिक हों चाहे अब न हों।”

(ii) डी० एन० मजूमदार (D. N. Majumdar) के अनुसार, “एक जनजाति, परिवार अथवा परिवार समूहों का एक ऐसा समूह एकत्र होता है जिसका एक नाम होता है। इसके सदस्य एक निश्चित स्थान पर रहते हैं, एक ही भाषा बोलते हैं तथा प्यार, पेशे तथा उद्योगों के विषय में कुछ नियमों की पालना करते हैं तथा उन्होंने आपसी आदान-प्रदान तथा फर्जी की पारस्परिकता की एक अच्छी तरह जांच की हुई व्यवस्था विकसित कर ली है।”

प्रश्न 4.
जनजातीय समाज की चार विशेषताएं।
उत्तर-

  • कबीला बहुत-से परिवारों का समूह होता है जिसमें साझा उत्पादन होता है तथा उस उत्पादन से वह अपनी आवश्यकताएं पूर्ण करते हैं।
  • जनजातियों के लोग एक साझे भौगोलिक क्षेत्र में रहते हैं तथा एक ही भौगोलिक क्षेत्र में रहने के कारण यह बाकी समाज से अलग होते तथा रहते हैं।
  • प्रत्येक जनजातीय की साझी भाषा तथा अलग-अलग नाम होता है जिस कारण यह एक-दूसरे से अलग होते
  • प्रत्येक जनजातीय के रहने-सहने के ढंग, धर्म, भाषा, टैबू इत्यादि एक-दूसरे से अलग होते हैं जिस कारण इनकी संस्कृति ही अलग-अलग होती है। ..

प्रश्न 5.
कबीला एक साझे भौगोलिक क्षेत्र में रहता है। स्पष्ट करें।
उत्तर-
जनजातीय के लोग एक साझे भौगोलिक क्षेत्र में रहते हैं। एक ही भौगोलिक क्षेत्र में रहने के कारण यह बाकी समाज से अलग होते हैं तथा रहते हैं। यह और समाज की पहुंच से बाहर होते हैं। क्योंकि इनकी अलग संस्कृति होती है तथा यह किसी बाहर वाले का दखल पसन्द नहीं करते। इसलिए यह बाकी समाज से कोई रिश्ता नहीं रखते हैं। इनका अपना अलग ही एक संसार होता है। इनमें सामुदायिक भावना पाई जाती है क्योंकि यह साझे भू-भाग में रहते हैं।

प्रश्न 6.
जनजाति एक खण्डात्मक समाज होता है। कैसे ?
उत्तर-
प्रत्येक जनजाति समाज दूसरे जनजातीय समाज से कई आधारों पर जैसे कि खाने पीने के ढंगों, भाषा, भौगोलिक क्षेत्र इत्यादि के आधार पर अलग होता है। यह कई आधारों पर एक-दूसरे से अलग होने के कारण एकदूसरे से अलग होते हैं तथा एक-दूसरे का दखल भी पसन्द नहीं करते। इनमें किसी भी आधार पर भेदभाव नहीं पाया जाता है। इस कारण इनको खण्डात्मक समाज भी कहते हैं।

प्रश्न 7.
जनजातीय समाजों की आर्थिक संरचना के बारे में बताएं।
उत्तर-
प्रत्येक जनजाति के पास अपनी ही भूमि होती है जिस पर वह अधिकतर झूम कृषि तथा स्थानान्तरित कृषि करते हैं। वह केवल अपनी आवश्यकताओं को पूर्ण करना चाहते हैं जिस कारण उनका उत्पादन भी सीमित होता है। वह चीज़ों को इकट्ठा नहीं करते जिस कारण उनमें सम्पत्ति इकट्ठी करने की भावना नहीं होती है। इस कारण ही जनजातीय समाज में कोई वर्ग नहीं होते हैं। प्रत्येक वस्तु पर सभी का बराबर अधिकार होता है तथा इन समाजों में कोई उच्च अथवा निम्न नहीं होता है।

प्रश्न 8.
जनजातीय समाज के सामाजिक जीवन के बारे में बताएं।
उत्तर-
जनजातीय समाजों में जीवन बहुत ही साधारण तथा एकता से भरपूर होता है। यह आर्थिक, धार्मिक, शैक्षिक अथवा मनोरंजक भागों में नहीं बंटा हुआ होता जोकि आधुनिक समाजों
में प्रत्येक व्यक्ति को कई भूमिकाएं निभाने के लिए बाध्य करता है। जनजातीय समाजों में सामाजिक अन्तक्रिया प्राथमिक समूहों वाली होती है। समाज की व्यवस्था परम्पराओं तथा रूढ़ियों पर निर्भर करती है न कि जनजातीय नेताओं की शक्ति पर सज़ा देने का ढंग साधारणतया समूह से निकाल देना होता है न कि शारीरिक सज़ा देना। बच्चों का समाजीकरण परिवार में रोज़ाना जीवन की आपसी अन्तक्रियाओं से हो जाता है। यह समाज आकार में छोटे तथा अन्तर्वैवाहिक होते हैं।

प्रश्न 9.
प्रजातीय आधार पर जनजातियों का विभाजन।
उत्तर-
मजूमदार तथा मदान के अनुसार भारत के जनजातियों को भौगोलिक विस्तार के आधार पर तीन भागों में बांटा जा सकता है तथा वे हैं-

  • उत्तर पूर्वोत्तर क्षेत्र
  • मध्यवर्तीय क्षेत्र
  • दक्षिणी क्षेत्र । इन तीन क्षेत्रों में तीन विशेष प्रकार के प्रजातीय तत्त्व मिलते हैं चाहे इनका कोई कठोर विभाजन नहीं किया जा सकता। ये तीन प्रजातीय हैं
    (i) मंगोल (Mangoloid) (ii) आदि आग्नेय (Proto-Austroloid) (iii) नीग्रिटो (Negrito)।

प्रश्न 10.
भौगोलिक आधार पर जनजातियों का विभाजन।
उत्तर-
डॉ० वी० एस० गुहा (Dr. V.S. Guha) ने भारतीय जनजातियों को तीन भौगोलिक क्षेत्रों में बांटा है-

  • उत्तर तथा उत्तर पूर्वी क्षेत्र-यह क्षेत्र लेह तथा शिमला के पूर्व मेलुशाई पर्वत तक फैला है जिसे हिमाचल, पूर्वी पंजाब, उत्तर प्रदेश, पूर्वी कश्मीर, असम के पहाड़ी क्षेत्र शामिल हैं। इनमें प्रमुख जनजातियां गद्दी, नागा, कूकी, खासी, थारू, भूटिया इत्यादि हैं।
  • मध्यवर्तीय क्षेत्र-इस क्षेत्र में गंगा के दक्षिण तथा कृष्णा नदी के उत्तर के बीच का विंध्याचल, सतपुडा के प्राचीन पठारों तथा पहाड़ों की पट्टी का क्षेत्र है। इसमें मुण्डा, भील, संथाल, हो, चंचु इत्यादि जनजातीय आते हैं।
  • दक्षिणी क्षेत्र-इसमें कृष्णा नदी के दक्षिण की तरफ का सम्पूर्ण क्षेत्र आता है। पुलयन, मलायन, चेंचु, टोडा, कोटा इत्यादि जनजातियां इस क्षेत्र में होती हैं।

प्रश्न 11.
भाषा के आधार पर जनजातियों का विभाजन।
उत्तर-
भारत में मिलने वाली भाषाओं को चार मुख्य हिस्सों में बांटा जा सकता है :

  • इण्डो यूरोपियन अथवा आर्यन भाषाएं-पंजाबी, हिन्दी, बंगाली, गुजराती, उड़िया इत्यादि भाषाएं इसमें आती हैं।
  • द्रविड़ भाषा परिवार-इसमें तेलुगू, मलयालम, तमिल, कन्नड़ इत्यादि भाषाएं आती हैं।
  • आस्ट्रिक भाषा परिवार-इसमें भुण्डा, कोल इत्यादि भाषाएं आती हैं।
  • चीनी-तिब्बती भाषाएं (Tibeto-Chinese Languages)—भारत के कुछ जनजातीय लोग इन भाषाओं का प्रयोग करते हैं।

प्रश्न 12.
बहुपत्नी विवाह।
उत्तर-
जब एक पुरुष का विवाह दो अथवा अधिक स्त्रियों से होता है तो इस प्रकार के विवाह को बहुपत्नी विवाह कहते हैं। इस प्रकार के विवाह को प्राचीन समय में समाज में मान्यता प्राप्त थी। लुशाई, टोडा, गोंड, नागा इत्यादि जनजातियों में यह विवाह प्रचलित था। यह दो प्रकार का होता है। प्रतिबन्धित बहुपत्नी विवाह में व्यक्ति सीमित संख्या में ही पत्नियां रख सकता है तथा वह उस सीमा से आगे नहीं बढ़ सकता है। अप्रतिबन्धित बहुपत्नी विवाह में वह जितना चाहे मर्जी पत्नियां रख सकता है। उस पर कोई प्रतिबन्ध नहीं होता है।

प्रश्न 13.
बहुपति विवाह।
उत्तर-
जैसे कि नाम से ही पता चलता है कि इस प्रकार के विवाह में एक पत्नी के कई पति होते हैं जैसे कि महाभारत में द्रोपदी के पांच पति थे। खस, टोडा, कोट इत्यादि जनजातियों में इस प्रकार का विवाह पाया जाता है। कपाड़िया के अनुसार, “बहुपति विवाह एक ऐसी संस्था है, जिसमें एक स्त्री के एक ही समय में एक से अधिक पति होते हैं अथवा इस प्रथा के अनुसार सभी भाइयों की सामूहिक रूप से एक पत्नी अथवा कई पत्नियां होती हैं।” यह दो प्रकार का होता है-भ्रातृ बहुपति विवाह तथा गैर-भ्रातृ बहुपति विवाह।

प्रश्न 14.
भ्रातृ बहुपति विवाह।
उत्तर-
विवाह की इस प्रथा के अनुसार एक स्त्री के कई पति होते हैं तथा वह आपस में भाई होते हैं। बड़ा भाई बच्चों का पिता समझा जाता है तथा छोटे भाई बड़े भाई की आज्ञा के बिना अपनी पत्नी से सम्बन्ध स्थापित नहीं कर सकते। खस जनजाति में इस प्रकार का विवाह प्रचलित है यदि कोई और भाई कहीं और विवाह करवाता है तो उसकी पत्नी भी सभी भाइयों की पत्नी होती है। यदि विवाह के बाद कोई भाई जन्म लेता है तो उसको भी उस स्त्री का पति समझा जाता है।

प्रश्न 15.
गैर भ्रातृ बहुपति विवाह।
उत्तर-
इस प्रकार के विवाह में स्त्री के सभी पति आपस में भाई नहीं होते बल्कि एक-दूसरे से दूर अलग-अलग स्थानों पर रहते हैं। पत्नी एक निश्चित समय के लिए अलग-अलग पतियों के पास जाकर रहती है। उस निश्चित समय के दौरान कोई और पति पत्नी से सम्बन्ध कायम नहीं कर सकता है। पत्नी के गर्भवती होने के समय यदि कोई पति उसे तीर कमान भेंट करता है तो उसको बच्चे का पिता समझा जाता है।

PSEB 12th Class Sociology Solutions Chapter 1 जनजातीय समाज

प्रश्न 16.
खरीद द्वारा विवाह।
उत्तर-
बहुत-से जनजातियों में इस प्रकार का विवाह प्रचलित है। इस प्रकार के विवाह में दुल्हन का मूल्य पैसे अथवा फसल के रूप में दिया जाता है। चाहे इस प्रकार के विवाह में दुल्हन को खरीदा जाता है परन्तु इसको खरीद फ़रोख्त का साधन नहीं समझा जाना चाहिए, बल्कि इसमें तो एक प्रकार से लड़की के माता-पिता को लड़की को पालने तथा बड़ा करने का मुआवजा दिया जाता है। संथाल, हो, नागा, मुण्डा, ऊराओं इत्यादि जनजातियों में इस प्रकार का विवाह प्रचलित है।

प्रश्न 17.
विनिमय द्वारा विवाह।
उत्तर-
इस प्रकार का विवाह दुल्हन के मूल्य को देने से बचने के लिए सामने आया था। कई जनजातियों में दुल्हन का मूल्य इतना अधिक होता है कि व्यक्ति उस मूल्य को दे नहीं सकता है। इस कारण दो घर आपस में स्त्रियों का लेनदेन (Exchange) कर लेते हैं। व्यक्ति पत्नी के लिए अपनी बहन अथवा घर की किसी स्त्री को विनिमय के रूप में दे देता है। भारतीय हिन्दू समाज में भी इस प्रकार का विवाह प्रचलित था।

प्रश्न 18.
अपहरण द्वारा विवाह।
उत्तर-
कई जनजातीय समाजों में इस प्रकार का विवाह प्रचलित है। पहले तो यह नियम प्रचलित होता था कि विवाह के लिए माता-पिता सहमति दे देते थे परन्तु समय के साथ-साथ विचार बदल रहे हैं। यदि विवाह के लिए मातापिता सहमति नहीं देते हैं तो लड़की को अपहरण करने का ढंग ही बच जाता है। बाद में दोनों घरों के बुजुर्ग उनके विवाह के लिए मान जाते हैं। ऊँचा दुल्हन मूल्य भी इस प्रकार के विवाह का एक कारण है।

प्रश्न 19.
सेवा द्वारा विवाह।
उत्तर-
इस प्रकार के विवाह को खरीद विवाह का ही एक रूप कह सकते हैं। कई बार निर्धन व्यक्ति दुल्हन का मूल्य नहीं दे सकते परन्तु वह विवाह भी करवाना चाहते हैं। इसलिए लड़का-लड़की के माता-पिता के पास कुछ समय के लिए नौकरी करता है तथा कुछ समय बाद लड़की के माता-पिता दोनों के विवाह को स्वीकृति दे देता है। लड़के को ही पुत्र के सारे उत्तरदायित्व पूर्ण करने पड़ते हैं। लड़की का पिता ही लड़के के रहने-सहने तथा खाने-पीने का प्रबन्ध करता है। मुण्डा, ऊराओं, बोंगा इत्यादि जनजातियों में यह विवाह प्रचलित है।

प्रश्न 20.
आज़माइश विवाह।
उत्तर-
इस प्रकार के विवाह का मुख्य उद्देश्य लड़के लड़की को आपस में एक-दूसरे को समझने का पूर्ण मौका प्रदान करना है। इस प्रकार के विवाह में लड़का लड़की के घर जाकर रहता है तथा लड़का-लड़की को आपस में मिलने तथा बात करने की आज्ञा होती है। यदि कुछ दिन लड़की के घर रहने के बाद अर्थात् आज़माइश करने के बाद लड़के को यह लगता है कि दोनों का स्वभाव मिलता है तो दोनों का विवाह हो जाता है नहीं तो लड़का लड़की के पिता को मुआवजे के रूप में कुछ पैसा देकर चला जाता है। कुकी जनजाति में इस प्रकार का विवाह प्रचलित है।

प्रश्न 21.
अयोग्य दखल द्वारा विवाह।
उत्तर-
इस प्रकार के विवाह में लड़की प्यार की शरण लेती है। लड़की किसी ऐसे जवान व्यक्ति से विवाह करने की इच्छा रखती है जो विवाह के लिए राजी नहीं होता है। इसलिए लड़की की बेइज्जती होती है। उसको कठोर व्यवहार तथा तानों का सामना करना पड़ता है। उसको पीटा जाता है, खाना नहीं दिया जाता तथा बाहर भी रखा जाता है। परन्तु यदि फिर भी लड़की अपना इरादा नहीं बदलती तो उसका विवाह उस व्यक्ति से करना ही पड़ता है।

प्रश्न 22.
आपसी सहमति द्वारा विवाह।
उत्तर-
कई जनजातियों में इस प्रकार का विवाह प्रचलित है। इसको राजी खुशी का विवाह भी करते हैं। लड़की अपनी मर्जी से लड़के के साथ घर से भाग जाती है तथा जब तक माता-पिता उनके विवाह को मान्यता नहीं दे देते हैं, वह वापिस नहीं आती है। इस प्रकार का विवाह सभी समाजों में प्रचलित है।

प्रश्न 23.
परख द्वारा विवाह।
उत्तर-
इस प्रकार के विवाह में लड़के तथा लड़की को कुछ समय तक लड़की के घर इकट्ठा रहने की आज्ञा मिल जाती है। यदि वह एक-दूसरे को पसन्द करते हैं तो उनके माता-पिता उनका विवाह कर देते हैं। परन्तु यदि उनको एक-दूसरे का स्वभाव ठीक नहीं लगता है तो वह अलग हो जाते हैं परन्तु लड़के को लड़की के पिता को कुछ मुआवज़ा देना पड़ता है।

प्रश्न 24.
टोटम बहिर्विवाह।
उत्तर-
टोटम बहिर्विवाह के नियम के अनुसार एक टोटम की पूजा करने वाले आपस में विवाह नहीं करवा सकते हैं। टोटम का अर्थ है कि लोग किसी पौधे अथवा जानवर को अपना देवता मान लेते हैं। इस प्रकार का नियम भारत के जनजातीय समाजों में पाया जाता है जिसमें व्यक्ति अपने टोटम से बाहर विवाह करवाता है।

प्रश्न 25.
पितृ स्थानीय परिवार।
उत्तर-
इस प्रकार के परिवार में लड़की विवाह के उपरान्त अपने पिता का घर छोड़कर अपने पति के घर जाकर रहने लग जाती है और पति के माता-पिता व पति के साथ वहीं घर बसाती है। इस प्रकार के परिवार आमतौर पर प्रत्येक समाज में मिल जाते हैं।

प्रश्न 26.
नव स्थानीय परिवार।
उत्तर-
इस प्रकार के परिवार पहली दोनों किस्मों से भिन्न हैं। इसमें पति-पत्नी कोई भी एक-दूसरे के पिता के घर जाकर नहीं रहते, बल्कि वह किसी और स्थान पर जाकर नया घर बसाते हैं। इसलिए इसको नव स्थानीय परिवार कहते हैं। आजकल के औद्योगिक समाज में इस तरह के परिवार आम पाए जाते हैं।

प्रश्न 27.
पितृसत्तात्मक व्यवस्था।
उत्तर-
जैसे कि नाम से ही ज्ञात होता है कि इस प्रकार के परिवारों की सत्ता या शक्ति पूरी तरह से पिता के हाथ में होती है। परिवार के सम्पूर्ण कार्य पिता के हाथ में होते हैं। वह ही परिवार का कर्त्ता होता है। परिवार के सभी छोटे या बड़े कार्यों में पिता का ही कहना माना जाता है। परिवार के सभी सदस्यों पर पिता का ही नियन्त्रण होता है। इस तरह का परिवार पिता के नाम पर ही चलता है। पिता के वंश का नाम पुत्र को मिलता है व पिता के वंश का महत्त्व होता है। आजकल इस प्रकार के परिवार मिलते हैं।

प्रश्न 28.
मातृसत्तात्मक परिवार।
उत्तर-
जैसे कि नाम से ही स्पष्ट है कि परिवार में सत्ता या शक्ति माता के हाथ में ही होती है। बच्चों पर माता के रिश्तेदारों का अधिकार अधिक होता है न कि पिता के रिश्तेदारों का। स्त्री ही मूल पूर्वज मानी जाती है। सम्पत्ति का वारिस पुत्र नहीं बल्कि मां का भाई या भान्जा होता है। परिवार मां के नाम से चलता है। इस प्रकार के परिवार भारत में कुछ जनजातियों में जैसे गारो, खासी आदि में मिल जाते हैं। ।

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प्रश्न 29.
कन्या मूल्य अथवा दुल्हन मूल्य।।
उत्तर-
इस प्रकार का विवाह जनजातीय समाजों में पाया जाता है। इसमें व्यक्ति को किसी लड़की को अपनी पत्नी बनाने के लिए उसका मूल्य उसके पिता को देना पड़ता है क्योंकि उन्होंने उसका पालन-पोषण करके उसे बड़ा किया है। दुल्हन का मूल्य लड़की के पिता की आर्थिक तथा सामाजिक स्थिति पर निर्भर होता है। यदि एक व्यक्ति कन्या का मूल्य नहीं चुका सकता तो कई व्यक्ति मिलकर उसका मूल्य चुकाते हैं। इस कारण वह लड़की उन सभी व्यक्तियों की पत्नी होती है।

प्रश्न 30.
मुखिया।
उत्तर-
प्राचीन राजनीतिक प्रशासन में सबसे ऊँचा पद होता है मुखिया का। यह पैतृक भी हो सकता है तथा किसी प्रकार से भी प्राप्त हो सकता है। कई बार यह लोगों द्वारा चुना जाता है। कई जनजातीय समाजों में दो मुखिया होते हैंपहला शान्ति से सम्बन्धित मुखिया (Peace Chief) तथा दूसरा होता है लड़ाई से सम्बन्धित मुखिया (War Chief)। शान्ति से सम्बन्धित मुखिया जनजातीय कौंसिल का भी सरदार होता है जो आन्तरिक सम्बन्धों को नियमित भी करता है। यह अपराध से सम्बन्धित कुछ मामलों का भी निपटारा करता है। कई जनजातियों में यह निश्चित समय के लिए
भी चुना जाता है। लड़ाई से सम्बन्धित मुखिया लड़ाई के समय दिशा-निर्देश देता है। यह स्थिति किसी भी ऐसे व्यक्ति · को दी जा सकती है जिसमें लड़ाई से सम्बन्धित मामले निपटाने की दक्षता हो।

प्रश्न 31.
Headman.
उत्तर-
जनजातीय समाजों के राजनीतिक संगठन में सबसे प्राचीन पद Headman का होता है। Headman का पद साधारणतया पैतृक, सम्मानदायक तथा प्रभावशाली होता है। वह अपने समूह से सम्बन्धित सभी मामलों का ध्यान रखता है तथा प्रत्येक मौके पर दिशा-निर्देश देता है। कई समाजों में तो वह शिकार के समय भी नेतृत्व करता है। वह सभी प्रकार के मसलों को निपटाता है तथा उसके निर्णय का सम्मान किया जाता है। कई बार वह निरंकुश (despot) हो जाता है परन्तु साधारणतया वह एक लोकतान्त्रिक प्रशासक होता है।

प्रश्न 32.
कौंसिल।
उत्तर-
जनजातीय समाजों के राजनीतिक प्रशासन का महत्त्वपूर्ण हिस्सा बुजुर्गों की कौंसिल होता है। यह सभी प्रकार के जनजातीय समाजों में पायी जाती है क्योंकि किसी भी जनजातीय समाज में जनजातियों प्रशासन को एक व्यक्ति नहीं चला सकता है। यहां तक कि निरंकुश राजा को भी सलाहकारों की मदद की ज़रूरत पड़ती है। कई जनजातियों में तो यह कौंसिल मुखिया अथवा राजा की मृत्यु के पश्चात् नए मुखिया अथवा राजा का भी चुनाव करती है। कौंसिल के अधिकतर सदस्य समाज के बड़े बुजुर्ग होते हैं। कौंसिल में सभी निर्णय बहुमत से लिए जाते हैं।

कौंसिल का सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य जटिल मामलों में मुखिया को सलाह देने का होता है। कौंसिल को गांव, जनजातीय अथवा गोत्र के आधार पर निर्मित किया जाता है। गोत्र की कौंसिल में प्रत्येक उप-समूह के प्रतिनिधि को लिया जाता है। दूसरी कौंसिलें भी इसी प्रकार ही चुनी जाती हैं। कई जनजातियों में कौंसिल के सदस्य चुने जाते हैं।

प्रश्न 33.
जनजातीय अर्थव्यवस्था।
उत्तर-
जनजातीय अर्थव्यवस्था अभी अपनी आरम्भिक अवस्था में ही है। प्रत्येक समाज में लोगों की आवश्यकताएं बढ़ती रहती हैं परन्तु जनजातीय अर्थव्यवस्था में लोगों की आवश्यकता सीमित ही होती है। इन आवश्यकताओं के सीमित होने के कारण यह लोग अपनी आवश्यकताएं अपने इर्द-गिर्द से ही पूर्ण कर लेते हैं। जनजातीय अर्थव्यवस्था की मुख्य विशेषता निजी परिश्रम है अर्थात् प्रत्येक व्यक्ति को अपनी आवश्यकताएं पूर्ण करने के लिए परिश्रम करना पड़ता है। यह लोग शिकार करके, भोजन इकट्ठा करके तथा कृषि करके अपनी आवश्यकताएं पूर्ण करते हैं। इस प्रकार जनजातीय अर्थव्यवस्था आरम्भिक अवस्था में ही है।

प्रश्न 34.
मजूमदार द्वारा जनजातीय अर्थव्यवस्था का किया गया विभाजन।
उत्तर-
मजूमदार ने जनजातीय अर्थव्यवस्था को पेशों के आधार पर 8 भागों में बांटा है :(i) जंगलों में रहने वाली श्रेणी। (ii) पहाड़ों पर कृषि करने वाली श्रेणी। (iii) समतल भूमि पर कृषि करने वाली श्रेणी। (iv) कारीगर वर्ग। (v) पशुपालक श्रेणी। (vi) लोक कलाकार श्रेणी। (vii) किसान श्रेणी। (viii) नौकरी पेशा श्रेणी।

प्रश्न 35.
भोजन इकट्ठा करने वाले तथा शिकारी कबीले।
उत्तर-
बहुत-से जनजातीय दूर-दूर के जंगलों तथा पहाड़ों में रहते हैं। चाहे यातायात के साधनों के कारण बहुत से जनजातीय मुख्य धारा में आ मिले हैं तथा उन्होंने कृषि के कार्यों को अपना लिया है परन्तु बहुत-से कबीले ऐसे भी हैं जो अभी भी भोजन इकट्ठा करके तथा शिकार करके ही अपना जीवन व्यतीत करते हैं। वह जड़ें, फल, शहद इत्यादि इकट्ठा करते हैं तथा छोटे जानवरों का शिकार करते हैं। कुछ जनजातीय कई चीज़ों का विनिमय भी करते हैं। इस प्रकार वह कृषि के न होते हुए भी अपनी आवश्यकताएं पूर्ण कर लेते हैं।

प्रश्न 36.
झूम कृषि अथवा स्थानान्तरित कृषि।
उत्तर-
झूम नाम की कृषि करने का ढंग प्राचीन समय से ही जनजातियों में प्रचलित है। इस प्रकार की कृषि में कोई जनजातीय पहले तो जंगल में एक टुकड़े को आग लगाकर या काट कर साफ कर देता है। फिर उस जगह पर वह कृषि करना शुरू कर देता है। कृषि के प्राचीन साधन होने के कारण उनको काफ़ी कम उत्पादन प्राप्त होता है। जब उत्पादन मिलना बन्द हो जाता है अथवा काफ़ी कम हो जाता है तो वह उस भूमि के टुकड़े को छोड़ देते हैं तथा कृषि करने के लिए किसी और टुकड़े को तैयार करते हैं। लोहटा, नागा, खासी, कुकी, साऊदा कोखा इत्यादि कबीले इस प्रकार की कृषि करते हैं। इस प्रकार की कृषि से उत्पादन बहुत कम होता है जिस कारण जनजातीय वालों की स्थिति काफी दयनीय होती है।

प्रश्न 37.
चरवाहे।
उत्तर-
जनजातीय अर्थव्यवस्था में चरवाहे एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा हैं। जनजातीय लोग अलग-अलग उद्देश्यों के लिए पशुओं को पालते हैं जैसे कि दूध लेने के लिए, मीट के लिए, ऊन के लिए, भार ढोने के लिए इत्यादि। भारत में रहने वाले चरवाहे जनजातीय स्थायी जीवन व्यतीत करते हैं तथा मौसम के अनुसार ही चलते हैं। पहाड़ी क्षेत्रों में रहने वाले अधिकतर कबीले अधिक सर्दी के समय पहाड़ी इलाकों में अपने पशुओं के साथ चले जाते हैं तथा गर्मियों में अपने क्षेत्रों में वापिस चले जाते हैं। भारतीय जनजातियों में प्रमुख चरवाहा जनजातीय हिमाचल प्रदेश में रहने वाला गुजर जनजातीय है जो व्यापार के उद्देश्य के लिए गाएं तथा भेड़ें पालता है।

प्रश्न 38.
दस्तकार।
उत्तर-
वैसे तो साधारणतया सभी जनजातीय दस्तकारी का कार्य करते हैं परन्तु उनमें से कुछ जनजातीय ऐसे भी हैं जो केवल दस्तकारी के आधार पर अपना गुजारा करते हैं। जनजातीय टोकरियां बनाकर, बुनकर, धातु के कार्य करके, सूत को कात कर, चीनी के बर्तन, औज़ार इत्यादि बनाकर भी दस्तकारी का कार्य करते हैं। जनजातियों के लोग मिट्टी तथा धातु के खिलौने बनाने के लिए भी प्रसिद्ध हैं।

प्रश्न 39.
जंगलों से सम्बन्धित समस्या।
उत्तर-
जनजातीय साधारणतया आम जनसंख्या से दूर जंगलों में रहते हैं। यह जंगलों पर अपना अधिकार समझते हैं। वह जंगलों से ही खाने-पीने का सामान इकट्ठा करते हैं, शिकार करते हैं, जंगलों के पेड़ काटकर लकड़ी को बेचते हैं या फिर जंगल साफ़ करके अपना गुजारा करते हैं परन्तु अब जंगलों के सम्बन्ध में कानून बनने से तथा जंगलों को ठेके पर देने से उन्हें काफ़ी समस्या पैदा हो गई है। जंगलों के ठेकेदार न तो लकड़ी काटने देते हैं, न ही कुछ इकट्ठा करने देते हैं तथा न ही कृषि के लिए जंगलों को साफ करने देते हैं। इस प्रकार उनका गुजारा काफ़ी मुश्किल से हो रहा है।

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प्रश्न 40.
जनजातीय समाज में परिवर्तन आने के कारण।
उत्तर-

  • ईसाई मिशनरियों के प्रभाव से जनजातीय समाजों में परिवर्तन आ रहे हैं।
  • यातायात तथा संचार के साधनों के विकास के कारण उन्होंने अपने क्षेत्रों को छोड़ कर दूसरे क्षेत्रों में जाना शुरू कर दिया है।
  • अब उनकी आर्थिकता निर्वाह आर्थिकता से बदल कर मण्डी आर्थिकता की हो गई है। वह अधिक उत्पादन करके मण्डी में बेचने के लिए उत्पादन करते हैं।
  • संविधान में जनजातियों को ऊँचा उठाने के लिए कई प्रकार के संवैधानिक उपबन्ध किए गए हैं जिससे उनकी स्थिति में परिवर्तन आने शुरू हो गए हैं।
  • उनके क्षेत्रों में शिक्षण संस्थाओं के खुलने से आधुनिक शिक्षा का प्रसार हो रहा है जिससे उनकी स्थिति ऊँची हो रही है।

V. बड़े उत्तरों वाले प्रश्न :

प्रश्न 1.
देश की पाँच प्रमुख जनजातियों का वर्णन करें जिनकी जनसंख्या १ लाख या उससे अधिक है।
उत्तर-
1. मुण्डा (Mundas)-मुण्डा जनजाति साधारणतया मध्य प्रदेश, उड़ीसा, बिहार, त्रिपुरा, पश्चिमी बंगाल इत्यादि प्रदेशों में पाई जाती है। मुण्डा जनजाति की लगभग 62% जनसंख्या बिहार में रहती है। उनके रोज़गार का मुख्य साधन कृषि है। इस जनजाति को प्राचीन जनजातियों में से एक माना जाता है। मुण्डा जनजाति में थोड़ी बहुत शिक्षा का प्रसार हुआ है जिस कारण उनको सरकारी तथा अर्द्ध-सरकारी नौकरियां मिल गयी हैं। यह लोग सिंगबोंगा देवता में विश्वास करते हैं। यह लोग अपने पूर्वजों की आत्माओं की भी पूजा करते हैं ताकि अच्छी फसल ली जा सके तथा बीमारियों से मुक्ति मिल सके। मुण्डा जनजाति के लगभग 19% लोग पढ़े-लिखे हैं। वैसे तो उनकी मुख्य भाषा मुण्डरी है परन्तु यह हिन्दी के साथ-साथ सम्बन्धित राज्य की भाषा भी बोलते हैं। इनकी जनसंख्या 20 लाख के करीब है।
मुण्डा लोगों का मुख्य पेशा कृषि है तथा वह अपना गुजारा कृषि के साधनों की मदद से करते हैं। उनमें निरक्षरता बहुत अधिक है। चाहे शिक्षा के बढ़ने से 19% के लगभग जनसंख्या पढ़-लिख गयी है तथा इन पढ़े-लिखे लोगों में से बहुत-से सरकारी तथा गैर-सरकारी नौकरियां भी कर रहे हैं क्योंकि इनके लिए कुछ स्थान आरक्षित भी हैं। यह लोग धर्म में बहुत विश्वास रखते हैं। सिंगबोंगा देवता की पूजा करने के साथ-साथ यह अपने पूर्वजों की आत्माओं की पूजा भी करते हैं ताकि यह आत्माएं उनकी हरेक प्रकार की मुसीबत से रक्षा कर सकें।

2. खौंड (Khonds)-खोंड जनजाति मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार, उड़ीसा, आन्ध्र प्रदेश, पश्चिमी बंगाल इत्यादि प्रदेशों में पाया जाता है। आन्ध्र प्रदेश में इनको कौंड तथा मध्य प्रदेश में इनको खौंड ही कहा जाता है। यह भी एक प्राचीन जनजाति है तथा प्राचीन समय में यह लोग मनुष्यों की बलि भी देते थे। यह सामाजिक तथा धार्मिक पक्ष से बहुत ही मज़बूत हैं। चाहे अंग्रेज़ों के दबाव के कारण इन लोगों ने मनुष्यों की बलि देना बन्द कर दिया था परन्तु फिर भी यह लोग आत्माओं में बहुत विश्वास रखते हैं। यह लोग बहुत ही साधारण जीवन व्यतीत करते हैं। चाहे वह कोंढ़ी उपभाषा बोलते हैं परन्तु उनको उड़िया भाषा भी आती है। यह लोग फलों तथा जड़ों की मदद से अपना जीवन व्यतीत करते हैं। शुरू में यह लोग घुमन्तुओं (Wanderers) का जीवन व्यतीत करते थे परन्तु अब यह मैदानों तथा पहाड़ों पर एक ही जगह पर रहने लग गए हैं। उनका आर्थिक जीवन जंगलों पर आधारित है। वह कृषि भी करते हैं चाहे कृषि करने के ढंग पुराने हैं। इन लोगों में वैसे तो एक विवाह की रस्म प्रचलित है परन्तु इनमें से कुछ लोग बहुविवाह भी करते

यह जनजातीय साधारणतया उड़ीसा के कोरापुट, कालाहांडी जिलों में मिलता है। इनका जीवन बहुत ही साधारण होता है तथा यह लोग फलों तथा जड़ों की मदद से अपना गुजारा करते हैं। पहले तो यह लोग घुमन्तु जीवन व्यतीत करते थे परन्तु अब यह अलग-अलग स्थानों पर पक्के तौर पर रहने लग गए हैं। यह लोग क्योंकि एक जगह पर रहने लग गए हैं इसलिए यह कृषि भी करने लग गए हैं। परन्तु उनके कृषि करने के ढंग बहुत ही प्राचीन तथा परिश्रम करने वाले हैं परन्तु इनका आर्थिक जीवन जंगलों पर ही आधारित होता है।

3. गोंडस (Gonds)-देश की सबसे बड़ी जनजाति गोंडस है तथा यह कहा जाता है कि यह द्राविड़ प्रजाति से सम्बन्ध रखती है। 1991 में इनकी जनसंख्या 75 लाख के लगभग थी। यह कबीला मध्य प्रदेश, गुजरात, बिहार, कर्नाटक, महाराष्ट्र, उड़ीसा, पश्चिमी बंगाल इत्यादि में पाया जाता है। यह लोग एक केन्द्रीय क्षेत्र में इकट्ठे रहते हैं। सम्पूर्ण कबीलों की जनसंख्या का लगभग 15% लोग गोंडस ही हैं। यह लोग कृषि तथा जंगलों पर ही निर्भर करते हैं। इन का मुख्य पेशा कृषि ही है। यह लोग शिकार करके, मछली पकड़कर तथा जंगलों से चीजें इकट्ठी करके अपना गुज़ारा चलाते हैं। इन लोगों में पढ़ाई का चलन कम है जिस कारण सरकारी तथा अर्द्ध-सरकारी नौकरियों में ये लोग बहुत ही कम हैं। वैसे तो इनका अपना धर्म गौंड ही होता है परन्तु अंग्रेजों के प्रभाव से कुछ लोग ईसाई बन गए। ये लोग गोंडी भाषा बोलते हैं। ये पिता प्रधान समाज से सम्बन्ध रखते हैं जिसमें ज़मीन जायदाद का अधिकार लड़के को प्राप्त होता है। उनके अपने ही कानून होते हैं तथा इनकी अपनी पंचायत ही इनके मामले हल करती है।

ये लोग एक क्षेत्र को केन्द्र मान कर उस केन्द्रीय क्षेत्र के इर्द-गिर्द भारी मात्रा में रहते हैं। इस कारण ही नर्मदा घाटी, सतपुड़ा के पठार, नागपुर के मैदानों में इनकी संख्या बहुत अधिक है। वैसे तो इनका धर्म गोंड है परन्तु अंग्रेजी राज्य में इन के क्षेत्रों में ईसाई मिशनरियों द्वारा ईसाई धर्म का काफ़ी प्रचार किया गया जिस कारण इन में से कई लोगों ने ईसाई धर्म को अपना लिया। इन लोगों का आर्थिक जीवन जंगलों तथा कृषि पर निर्भर करता है। बहुत से लोग कृषि करते हैं परन्तु आजकल कई लोगों ने काश्तकारी के कार्य को अपना लिया है। यह मछलियां भी पकड़ते हैं, जंगलों से फल तथा जड़ें भी इकट्ठी करते हैं तथा शिकार भी करते हैं जिससे इनका गुज़ारा हो जाता है। इन लोगों के अपने ही कानून होते हैं तथा अपने मामले निपटाने के लिए इनकी पंचायतें ही महत्त्वपूर्ण भूमिकाएं निभाती हैं।

4. भील (Bhils)-भारत की दूसरी बड़ी जनजाति भील है जिसकी 1981 में जनसंख्या 53 लाख के लगभग थी। यह जनजाति मध्य प्रदेश, गुजरात, राजस्थान, कर्नाटक, आन्ध्र प्रदेश, त्रिपुरा इत्यादि में पाई जाती है। साधारणतया यह जनजाति पश्चिमी मध्य प्रदेश के कई जिलों में पाई जाती है। इनकी भाषा भीली उपभाषा है। इनका आर्थिक जीवन मुख्य तौर पर कृषि पर निर्भर करता है। कुछ लोग जंगलों पर भी निर्भर करते हैं तथा जंगलों से चीजें इकट्ठी करते हैं। यह लोग शिकार भी करते हैं। इनकी संस्कृति तथा धर्म बहुत ही प्राचीन है तथा धर्म तथा जादू इनकी संस्कृति के अभिन्न अंग हैं। यह लोग अपने कबीले में ही विवाह करते हैं। कबीले की व्यवस्था कायम रखने में पंचायत की सबसे बड़ी भूमिका होती है।

वैसे तो बहुत-से भील लोग अपने गुज़ारे के लिए कृषि पर निर्भर करते हैं परन्तु उनमें से कई लोग जंगलों से फल, जड़ों इत्यादि को इकट्ठा करके अपना गुजारा करते हैं। यह लोग शिकार भी करते हैं परन्तु उनके शिकार करने तथा कृषि करने के ढंग प्राचीन हैं। इन लोगों में पढ़ने-लिखने का रिवाज काफ़ी कम है तथा इनमें से बहुत ही कम लोग पढ़े-लिखे हैं। निरक्षरता के कारण ही इन लोगों का मुख्य धारा के लोगों की तरफ से शोषण होता है। वैसे तो सभी जनजातियों में एक ही प्रथा प्रचलित है परन्तु फिर भी कई लोग, विशेषतया मुखिया, बहुविवाह भी करवाते हैं।

5. संथाल (Santhals)-भारत का तीसरी सबसे बड़ा जनजातीय संथाल है। यह जनजातीय बिहार, पश्चिमी बंगाल तथा उड़ीसा में पाई जाती है। इनकी मुख्य भाषा संथाली है। संथाली भाषा के अतिरिक्त यह उडिया, बंगाली. हिन्दी इत्यादि भी बोलते हैं। प्राचीन समय में यह लोग शिकार करके, मछली पकड़ कर तथा जंगलों से चीजें इकट्ठी करके अपना गुज़ारा करते थे परन्तु अब यह कृषि करके अपना गुजारा करते हैं। उनके समाजों में समस्याओं का हल उनकी पंचायतें ही करती हैं। संथाल लोगों में दुल्हन का मूल्य लेने की भी रस्म है तथा औरतों को भी सम्पत्ति में से हिस्सा लेने का अधिकार है। यह लोग सूर्य देवता की पूजा करते हैं तथा अपने देवताओं को खुश करने के लिए पशुओं की बलि भी देते हैं।

इन लोगों में विवाह का अर्थ यौन सम्बन्धों की नियमितता अथवा परिवार को आगे बढ़ाना नहीं है बल्कि उनके अनुसार विवाह का अर्थ है दो परिवारों में मेल। उनके समाजों में प्रेम विवाह भी होते हैं। संथाल स्त्रियों को सम्पत्ति रखने का भी अधिकार होता है तथा विवाह के समय लड़की पिता की सम्पत्ति में से हिस्सा भी लेकर जाती है। दुल्हन के मूल्य की प्रथा भी प्रचलित है। वैसे तो पहले वह शिकार तथा जंगलों से चीजें इकट्ठी करके अपना गुज़ारा करते थे परन्तु समय के साथ-साथ उनकी इन प्रथाओं में भी परिवर्तन आ गया है तथा अब वह स्थायी कृषि कर रहे हैं।

6. मिनास (Minas)-मिनास जनजाति राजस्थान तथा मध्य प्रदेश के कुछ भागों में पाई जाती है। राजस्थान की कुल जनसंख्या के 50% लोग मिनास जनजाति से सम्बन्ध रखते हैं। यह जनजाति भारत की 5 प्रमुख जनजातियों में से एक है। इस जनजाति का मुख्य कार्य कृषि करना है। भूमि के मालिक अलग-अलग होते हैं। सगोत्र विवाह तथा विधवा विवाह भी इस कबीले में होते हैं। यह लोग अपने आपको हिन्दू समझते हैं तथा जीवन के बहुत-से उत्सवों जैसे कि जन्म, विवाह, मृत्यु इत्यादि के समय ब्राह्मणों की सेवा लेते हैं। इस जनजाति में पढ़ाई का स्तर काफ़ी निम्न है तथा 1981 में केवल 14% लोग ही पढ़े-लिखे थे। यह लोग खायी उपभाषा बोलते हैं चाहे वह अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग भाषा बोलते हैं।

मिनास जनजाति में साधारणतया सगोत्र विवाह होते हैं। विधवा स्त्री को भी दोबारा विवाह करने की आज्ञा है। यह लोग अपने आपको हिन्दुओं से सम्बन्धित कहते हैं तथा जीवन के कई मौकों पर ब्राह्मणों को भी बुलाते हैं। इन लोगों का मुख्य पेशा कृषि है। शिक्षा की दर और जनजातियों की तरह बहुत ही निम्न है चाहे कुछ लोग पढ़-लिख कर सरकारी नौकरियों तक भी पहुंच गए हैं।

7. ऊराओं (Oraons)-ऊराओं जनजाति साधारणतया मध्य प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, पश्चिमी बंगाल, उड़ीसा इत्यादि प्रदेशों में पाई जाती है। यह लोग साधारणतया कृषि पर निर्भर करते हैं परन्तु वह जंगलों पर भी निर्भर करते हैं। ऊराओं जनजातीय के लोग सूर्य देवता की पूजा करते हैं। यह लोग जादू तथा मन्त्रों में भी विश्वास रखते हैं। विवाह के लिए लड़के तथा लड़की की सहमति आवश्यक होती है। दुल्हन के मूल्य की प्रथा भी प्रचलित है। यह लोग कुज़ख भाषा बोलते हैं। बीमारी के समय ओझा सभी का इलाज करता है तथा वह ओझा ही पुजारी का भी कार्य करता है।

प्रश्न 2.
जनजातियों में विवाह के लिए साथी प्राप्त करने के कौन-कौन से ढंग प्रचलित हैं ?
अथवा
जनजातीय समाज में जीवन साथी के चयन के तरीकों की व्यवस्था को लिखो।
उत्तर-
विवाह की संस्था सभी समाजों में समान रूप से प्रचलित है परन्तु हिन्दू समाजों तथा जनजातीय समाजों में विवाह की संस्था एक-दूसरे से अलग है। जनजातियों में विवाह का उद्देश्य है लैंगिक सम्बन्धों का आनन्द, बच्चे पैदा करना तथा साथ निभाना है जबकि हिन्दू समाज में विवाह का अर्थ एक धार्मिक संस्कार है। इस तरह जनजातीय समाज में विवाह के लिए साथी प्राप्त करने के तरीके भी अलग हैं जैसे कि खरीद कर विवाह, विनिमय द्वारा विवाह, खराब करने के द्वारा विवाह, अयोग्य दखल, आज़माइश, आपसी सहमति तथा परख द्वारा विवाह । इन सभी का वर्णन इस प्रकार है-

1. खरीद द्वारा विवाह (Marriage by Purchase)-बहुत से जनजातियों में इस प्रकार का विवाह प्रचलित है। इस तरह के विवाह में लड़की का मूल्य पैसे अथवा फसल के रूप में दिया जाता है। चाहे इस तरह के विवाह में दुल्हन को खरीदा जाता है परन्तु उसे खरीद फरोख्त का साधन नहीं समझा जाना चाहिए। बल्कि इसमें तो लड़की के मां-बाप को लड़की को पालने तथा बड़ा करने का मुआवजा दिया जाता है। संथाल, हो, नागा, मुण्डा इत्यादि जनजातियों में इस प्रकार का विवाह प्रचलित है।

2. विनिमय द्वारा विवाह (Marriage by Exchange)-इस प्रकार का विवाह दुल्हन के मूल्य को देने से बचने के लिए सामने आया। कई जनजातियों में दुल्हन का मूल्य इतना अधिक होता है कि व्यक्ति उसका मूल्य नहीं दे सकता है। इस कारण दो घर आपस में ही स्त्रियों का लेन-देन कर लेते हैं। व्यक्ति पत्नी के लिए अपनी बहन अथवा घर की किसी स्त्री को विनिमय के रूप में दे देता है। भारतीय हिन्दू समाज में भी इस प्रकार का विवाह प्रचलित था।

3. खराब करने के द्वारा विवाह अथवा अपहरण विवाह (Marriage by Capture)-कई जनजातीय समाजों में इस प्रकार का विवाह प्रचलित है। पहले यह नियम प्रचलित होता था कि विवाह के लिए माता-पिता सहमति दे देते थे परन्तु समय के साथ-साथ बच्चों के विचार बदल रहे हैं। अगर विवाह के लिए माता-पिता सहमति नहीं देते हैं तो लड़की का अपहरण करने के अतिरिक्त कोई तरीका नहीं बचता है। बाद में दोनों घरों के बुजुर्ग उनके विवाह के लिए मान जाते हैं। उच्च दुल्हन मूल्य भी इस विवाह का कारण है। हिमाचल तथा छोटा नागपुर के जनजातियों में इस प्रकार का विवाह प्रचलित है।

4. सेवा द्वारा विवाह (Marriage by Service)-इस प्रकार के विवाह को खरीद विवाह का ही एक रूप कह सकते हैं। कई बार ग़रीब लोग दुल्हन का मूल्य नहीं दे सकते परन्तु वह विवाह भी करना चाहते हैं। इसलिए लड़का लड़की के माता-पिता के घर कुछ समय के लिए नौकरी करता है। कुछ समय के बाद लड़की के माता-पिता दोनों के विवाह की स्वीकृति दे देते हैं तथा वह विवाह करके अपना नया घर बसा लेते हैं। पुरम तथा गौंड जनजातीय में लड़के को लड़की के घर 3 साल कार्य करना पड़ता है तथा पुत्र के सभी उत्तरदायित्वों को पूर्ण करना पड़ता है। लड़की का पिता ही लड़के के रहने तथा खाने-पीने का प्रबन्ध करता है। कई जनजातियों में तो ससुर जमाई को दुल्हन का मूल्य देने के लिए पैसे उधार देता है तथा जमाई धीरे-धीरे उस पैसे को वापिस कर देता है। मुण्डा, बोंगा इत्यादि जनजातियों में यह प्रथा प्रचलित है।

5. आज़माइश विवाह (Probationary Marriage)-इस प्रकार के विवाह का मुख्य उद्देश्य लड़के-लड़की को एक-दूसरे को समझने का पूरा मौका प्रदान करना होता है। इस तरह के विवाह में लड़का-लड़की के घर जाकर रहता है तथा लड़का-लड़की को आपस में मिलने तथा बातचीत करने की आज्ञा होती है। अगर कुछ दिन लड़की के घर रहने के बाद लड़के को लगता है कि दोनों का स्वभाव मिलता है तो दोनों का विवाह हो जाता है नहीं तो लड़कालड़की के पिता को मुआवजे के रूप में कुछ पैसे देकर चला जाता है। कुकी जनजाति में इस प्रकार का विवाह प्रचलित

6. अयोग्य दखल द्वारा विवाह (Anader or Intrusion Marriage)-इस प्रकार के विवाह में लड़की सहारा लेती है प्यार का। लड़की किसी ऐसे जवान व्यक्ति से विवाह करने की इच्छा रखती है जो विवाह के लिए राजी नहीं होता है। इसलिए लडकी का अपमान भी होता है। उसको कठोर व्यवहार तथा अपमान का सामना भी करना पड़ता है। उसको पीटा जाता है, खाना नहीं दिया जाता तथा घर से बाहर भी रखा जाता है। परन्तु फिर भी अगर लड़की अपना इरादा नहीं छोड़ती तो उसका विवाह उस व्यक्ति से करना ही पड़ता है।

7. आपसी सहमति द्वारा विवाह (Marriage by Mutual Consent)-कई जनजातियों में इस प्रकार का विवाह भी प्रचलित है। इसको राजी खुशी विवाह भी कहते हैं। लड़की अपनी मर्जी से लड़के के साथ घर से भाग जाती है तथा उस समय तक वापस नहीं आती है जब तक उसके माता-पिता विवाह को मान्यता नहीं दे देते। इस प्रकार का विवाह सभी समाजों में प्रचलित है।

8. परख द्वारा विवाह (Marriage by Trial)-इस प्रकार के विवाह में लड़का तथा लड़की को लड़की के घर कुछ समय इकट्ठे रहने की आज्ञा मिल जाती है। अगर वह एक-दूसरे को पसन्द करते हैं तो उनके बुजुर्ग उनका विवाह कर देते हैं। परन्तु अगर उन दोनों को एक-दूसरे का स्वभाव ठीक नहीं लगता है तो वह अलग हो जाते हैं। परन्तु लड़के को लड़की के पिता को कुछ मुआवज़ा देना पड़ता है। यदि इस दौरान लड़की गर्भवती हो जाए तो दोनों को विवाह करवाना ही पड़ता है।

PSEB 12th Class Sociology Solutions Chapter 1 जनजातीय समाज

प्रश्न 3.
जनजातीय समाज में क्या समस्याएं पाई जाती हैं ? उनको दूर करने के तरीके बताओ।
उत्तर-
जनजातीय समाज हमारी संस्कृति तथा सभ्यता से काफ़ी दूर जंगलों, पड़ाड़ों, घाटियों में रहता है जोकि हमारी पहंच से काफ़ी दूर है। वह न तो किसी के मामले में हस्तक्षेप करते हैं तथा न ही किसी को अपने मामले में हस्तक्षेप करने देते हैं। चाहे वह अब धीरे-धीरे मुख्य धारा में आ रहे हैं जिस कारण अब हमें उनकी समस्याओं के बारे में धीरे-धीरे पता चलता जा रहा है। उनकी सिर्फ एक-दो समस्याएं नहीं हैं। बल्कि बहुत-सी समस्याएं हैं जिनका वर्णन इस प्रकार है

1. आर्थिक समस्याएं ( Economic Problems)-जनजातियों को बहुत सी आर्थिक समस्याओं का सामना कर पड़ रहा है-

(i) ऋण की समस्या (Problem of Debt)-जनजातियों के लोग साधारणतया भोले भाले होते हैं। उनके इस भोलेपन, अज्ञानता तथा निर्धनता का लाभ अनेकों महाजन तथा साहूकार उठा रहे हैं। वह इन जनजातियों के लोगों को ऋण दे देते हैं तथा तमाम उम्र उन से ऋण वसूल करते रहते हैं। इस ऋण का भार उन पर इतना अधिक होता है कि एक तरफ तो वह तमाम आयु ऋण वापिस करने में लगे रहते हैं तथा दूसरी तरफ निर्धन होते रहते हैं।

(ii) कृषि की समस्या (Problem of Agriculture)-जनजातियों के लोग झूम अथवा स्थानान्तरित कृषि करते हैं तथा इनका कृषि करने का तरीका बहुत पुराना है। उनके कृषि करने के प्राचीन ढंगों के कारण उनका उत्पादन भी बहुत कम होता है। पहले वह जंगलों को आग लगा कर साफ़ कर देते हैं तथा फिर उस पर कृषि करते हैं। उत्पादन कम होने के कारण वह दो वक्त की रोटी भी नहीं कमा सकते जिस कारण उनको मजूदरी अथवा नौकरी भी करनी पड़ती है।

(iii) भूमि से सम्बन्धित समस्या (Land Related Problem)-जनजातियों के लोग स्थानान्तरित कृषि करते हैं तथा जंगलों को अपनी इच्छा के अनुसार आग लगाकर साफ़ कर देते हैं तथा भूमि को कृषि के लिए तैयार कर लेते हैं। उस भूमि पर वह अपना अधिकार समझते हैं। परन्तु अब भूमि से सम्बन्धित कानून बन गए हैं तथा उनसे यह अधिकार ले लिया गया है। इसके अतिरिक्त उनकी भूमि हमेशा साहूकारों के पास गिरवी पड़ी रहती है तथा वह इसका लाभ नहीं उठा सकते।

(iv) जंगलों से सम्बन्धित समस्याएं (Problems related to Forests)-जनजातीय साधारणतया आबादी से दूर जंगलों में रहते हैं तथा जंगलों पर अपना अधिकार समझते हैं। वह जंगलों से ही खाने-पीने का सामान इकट्ठा करते हैं, जंगलों के पेड़ काटकर लकड़ी बेचते हैं या फिर जंगल साफ़ करके उन पर कृषि करके अपना गुजारा करते हैं। परन्तु अब जंगलों से सम्बन्धित कानून बनने से तथा जंगलों को ठेके पर देने से बहुत ही मुश्किलें आ रही हैं। जंगलों के ठेकेदार न तो उन्हें लकड़ी काटने देते हैं न ही कुछ इकट्ठा करने देते हैं तथा न ही कृषि के लिए जंगल साफ़ करने देते हैं। इस तरह उनके लिए गुजारा करना बहुत मुश्किल हो गया है।

(v) वह जहां कहीं भी नौकरी अथवा मजदूरी करते हैं उनसे बेगार करवाई जाती है, उन्हें गुलाम बनाकर रखा जाता है तथा मज़दूरी भी कम दी जाती है जोकि उनके लिए बहुत बड़ी समस्या है।

2. सामाजिक समस्याएं (Social Problems)-जनजाति समाज में बहुत-सी सामाजिक समस्याएं मिलती हैं जिनका वर्णन इस प्रकार है

(i) वेश्यावृत्ति (Prostitution)-जनजातियों के लोग साधारणतया निर्धन होते हैं। उनकी इस निर्धनता का लाभ ठेकेदार, साहूकार इत्यादि नाजायज़ तरीके से उठाते हैं। वह उनको पैसों का लालच दिखाकर उनकी स्त्रियां से नाजायज़ सम्बन्ध कायम कर लेते हैं। इस तरह उनकी स्त्रियां धीरे-धीरे वेश्यावृत्ति की तरफ बढ़ रही हैं जिस कारण उनमें कई गुप्त बीमारियां बढ़ रही हैं।

(ii) दुल्हन की कीमत (Price of Bride)-हिन्दुओं की कई जातियों में तो प्राचीन विवाह के ढंगों के अनुसार दुल्हन का मूल्य लड़के को लड़की के माता-पिता को अदा करना पड़ता है। अब जनजातीय धीरे-धीरे हिन्दू धर्म के प्रभाव में आ रहे हैं जिस कारण अब वह भी दुल्हन की कीमत मांगते हैं तथा धीरे-धीरे उसकी कीमत भी बढ़ रही है। किसी भी जनजातीय का आम व्यक्ति इतना मूल्य नहीं दे सकता। अब उनमें अपने बच्चों का विवाह करना मुश्किल हो रहा है।

(iii) बाल विवाह (Child Marriage)-धीरे-धीरे अब जनजातीय हिन्दू धर्म के प्रभाव में आ रहे हैं। हिन्दुओं में शुरू से ही बाल विवाह प्रचलित रहे हैं, चाहे वह अब काफ़ी कम हो रहे हैं। परन्तु जनजातियों ने हिन्दू धर्म के प्रभाव के अन्तर्गत अपने बच्चों के विवाह छोटी उम्र में ही करने शुरू कर दिए हैं जिस कारण उन्हें बहुत-सी मुश्किलें आ रही हैं।

3. सांस्कृतिक समस्याएं (Cultural Problems)-जनजातियाँ अब अन्य संस्कृतियों तथा सभ्यताओं के सम्पर्क में आ रही हैं। इस कारण उनमें कई प्रकार की सांस्कृतिक समस्याएं आ रही हैं जिनका वर्णन निम्नलिखित है
(i) भाषा की समस्या (Problem related to Language)-अब जनजातीय बाहर की संस्कृतियों के सम्पर्क में आ रहे हैं। उनके सम्पर्क में आने से तथा उनसे अन्तक्रिया करने के लिए जनजातियों के लोगों को दूसरे लोगों की भाषाएं सीखनी पड़ रही हैं। अब वह अन्य भाषाएं बोलने लग गए हैं। यहां तक कि उनकी आने वाली पीढ़ी अपनी भाषा के प्रति पूरी तरह उदासीन है तथा वह अपनी भाषा को या तो भुला चुके हैं या भूल रहे हैं। इसका परिणाम यह हुआ है कि उनमें अपनी भाषा से सम्बन्धित करें-कीमतें तथा संस्कृति के आदर्श धीरे-धीरे खत्म हो रहे हैं।

(ii) कलाओं का खात्मा (End of Fine Arts)–जनजातियों के लोग अपनी ललित कलाओं जैसे बर्तन, चित्रकारी, लकड़ी की कारीगरी इत्यादि के लिए मशहूर होते हैं। परन्तु अब वह और संस्कृतियों के प्रभाव के अन्तर्गत अपनी कलाओं को भूलते जा रहे हैं तथा और कार्य करते जा रहे हैं। इस कारण उनकी अनमोल संस्कृति का धीरे-धीरे पतन हो रहा है।

(iii) सांस्कृतिक भिन्नता (Cultural differences) यह आवश्यक नहीं है कि सभी ही जनजातियों के लोग हिन्दू धर्म को ही अपना रहे हैं। बहुत-से ऐसे जनजातीय ऐसे भी हैं जो ईसाई अथवा बौद्ध धर्म को अपना रहे हैं। इस तरह एक ही जनजातीय में अलग-अलग धर्मों के लोग रहते हैं। अलग-अलग धर्म सांस्कृतिक रूप से एक-दूसरे से अलग होते हैं। इसका परिणाम यह निकलता है कि उनमें आपस में ही बहुत-सी सांस्कृतिक समस्याएं खड़ी हो रही हैं। इसके साथ-साथ वह जाति प्रथा को भी अपना रहे हैं। इस सभी का परिणाम यह निकला है कि वह न तो अपनी संस्कृति के रहे तथा न ही और संस्कृतियों को पूरी तरह अपना सके। इस तरह उनमें बहुत-सी सांस्कृतिक समस्याएं पैदा हो गई हैं।

4. शिक्षा की समस्याएं (Educational Problems)—साधारणतया जनजातियों के लोग निर्धन हैं तथा उनकी निर्धनता का सबसे बड़ा कारण उनकी अनपढ़ता है। चाहे अब वह सरकारी शिक्षा के प्रभाव के अन्तर्गत अथवा ईसाईयों के सम्पर्क में आने से धीरे-धीरे पढ़ते जा रहे हैं तथा अंग्रेज़ी शिक्षा प्राप्त करते जा रहे हैं। परन्तु इससे भी कई समस्याएं पैदा हो रही हैं। एक तो वह अपने मूल धन्धे शिक्षा के कारण छोड़ रहे हैं जिस कारण वह अपने सांस्कृतिक तत्त्वों से दूर हो रहे हैं। दूसरी तरफ शिक्षा प्राप्त करके उन्हें नौकरी नहीं मिलती तथा वह बेरोज़गार होते जा रहे हैं। इस तरह शिक्षा लेने से उनकी समस्याएं बढ़ रही हैं।

5. स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याएं (Health Related Problems) क्योंकि यह कबीले आम आदमी से दूर रहते हैं जिस कारण उनमें स्वास्थ्य से सम्बन्धित समस्याएं भी बढ़ रही हैं। उनके इलाकों में बहुत-सी भयंकर बीमारियां फैल जाती हैं जैसे चेचक, हैजा, इत्यादि जिससे बहुत से व्यक्ति मर जाते हैं। इसके साथ वेश्यावृत्ति के कारण तथा गलत यौन सम्बन्धों. के कारण कई प्रकार की गुप्त बीमारियां फैल जाती हैं। जनजातीय लोग उद्योगों में कार्य कर रहे हैं जिस कारण उद्योगों से सम्बन्धित बीमारियां भी बढ़ रही हैं। उनके इलाकों में डॉक्टरों, अस्पतालों, डिस्पैंसरियों का सही प्रबन्ध नहीं है जिस कारण उनके इलाकों में इलाज की व्यवस्था भी बहुत कम है और अन्य संस्कृतियों के सम्पर्क में आने से वह शराब, अफीम इत्यादि चीजों का सेवन कर रहे हैं जिनसे बीमारियां बढ़ रही हैं परन्तु उनका इलाज करने वाला कोई नहीं है।

समस्याओं को दूर करने के उपाय (Ways of Eradicating Problems)-
अगर कोई समस्या होती है तो उसका कोई न कोई हल भी जरूर होता है। इस तरह अगर जनजातियों की कुछ समस्याएं हैं तो उनका हल भी हो सकता है। अगर अच्छे तरीके से योजना बनाई जाए तो उनका हल आसानी से निकाला जा सकता है। उनकी समस्याओं का हल इस प्रकार है

  • उनके समाजों में वेश्यावृत्ति रोकनी चाहिए ताकि नैतिकता का पतन न हो। इसलिए उनको आर्थिक सहायता देनी चाहिए।
  • उनके इलाकों में बाल विवाह रोकने के लिए कानून बनाए जाने चाहिएं।
  • दुल्हन के मूल्य की प्रथा भी खत्म होनी चाहिए ताकि उनके इलाकों में विवाह हो सकें तथा अनैतिक कार्य कम हो जाएं।
  • जनजातियों के लोगों को स्थानान्तरित कृषि को छोड़कर साधारण कृषि के लिए भूमि देनी चाहिए ताकि वह एक जगह पर रहकर कृषि कर सकें।
  • कृषि का उत्पादन बढ़ाने के लिए उनको आधुनिक तकनीकों के बारे में शिक्षा देनी चाहिए। इसके साथ-साथ उनको स्थानान्तरित कृषि कम करने की सलाह भी देनी चाहिए।
  • जंगलों से सम्बन्धित ऐसे कानून बनाए जाने चाहिएं जिससे उनका भी अधिक-से-अधिक फायदा हो सके।
  • उनके इलाकों में घरेलू उद्योग लगाए जाने चाहिएं ताकि वह अपना कार्य कर सकें। इसके लिए उन्हें कर्जे तथा ग्रांटें देनी चाहिएं।
  • उनको उनकी भाषा में ही शिक्षा देनी चाहिए ताकि उनकी भाषा लुप्त ही न हो जाए।
  • उनको दस्तकारी तथा और पेशों से सम्बन्धित शिक्षा देनी चाहिए ताकि पढ़ने-लिखने के बाद अपना ही कोई कार्य कर सकें।
  • उनके इलाकों में शिक्षा की दर बढ़ाने के लिए स्कूल खोले जाने चाहिएं।
  • जनजातीय इलाकों में अस्पतालों का प्रबन्ध करना चाहिए।
  • जनजातीय लोगों को कम्पाऊंडरी की शिक्षा देनी चाहिए ताकि समय पड़ने पर वह कुछ तो अपना इलाज कर सकें।

प्रश्न 4.
जनजातीय अर्थव्यवस्था क्या होती है ? इसके स्वरूप का वर्णन करो।
उत्तर-
बहुत-से समाजशास्त्रियों ने मनुष्य के आर्थिक जीवन को कई पड़ावों में विभाजित किया है जैसे कि मनुष्य शिकारी तथा भोजन इकट्ठा करने के रूप में, चरागाह स्तर, कृषि स्तर तथा तकनीकी स्तर। यह माना जाता है कि आज के मनुष्य का आर्थिक जीवन इन स्तरों में से होकर गुज़रा है। इन स्तरों में से गुजरने के बाद ही मनुष्य आज के तकनीकी स्तर पर पहुंचा है। परन्तु अगर हम जनजातीय समाज की आर्थिक व्यवस्था की तरफ देखें तो हमें पता चलता है कि यह अभी भी आर्थिक जीवन की शुरुआत की अवस्था में ही हैं अर्थात् शिकारी तथा भोजन इकट्ठा करने के रूप में ही है। प्रत्येक समाज अपने सदस्यों की आवश्यकताएं पूर्ण करने की कोशिश करता रहता है तथा लोगों की आवश्यकताएं बढ़ती जाती हैं। परन्तु जनजातीय समाज के लोगों की आर्थिक आवश्यकताएं सीमित ही होती हैं। इन आवश्यकताओं के सीमित होने के कारण यह लोग अपनी आवश्यकताएं अपने इर्द-गिर्द के क्षेत्र में ही पूर्ण कर लेते हैं। जनजातीय अर्थव्यवस्था की मुख्य विशेषता निजी परिश्रम है अर्थात् व्यक्ति को अपनी आवश्यकताएं पूर्ण करने के लिए स्वयं परिश्रम करना ही पड़ेगा। कई समाजशास्त्रियों ने जनजातीय अर्थव्यवस्था की परिभाषा दी है जोकि इस प्रकार है :-

1. लूसी मेयर (Lucy Mayor) के अनुसार, “जनजातीय अर्थव्यवस्था का सम्बन्ध उन गतिविधियों से है जिससे लोग अपने भौतिक तथा अभौतिक वातावरण दोनों की व्यवस्था करते हैं तथा उन के अलग-अलग उपयोगों में से कुछ को चुनते हैं ताकि विरोधी उद्देश्यों की पूर्ति के लिए सीमित साधनों का निर्धारण किया जा सके।”

2. पिडिंगटन (Pidington) के अनुसार, “आर्थिक व्यवस्था लोगों की भौतिक आवश्यकताओं की सन्तुष्टि के लिए उत्पादन की व्यवस्था, विभाजन तथा नियन्त्रण और समुदाय में स्वामित्व के अधिकार के दावों को निर्धारित करती है।”
इस तरह इन परिभाषाओं से स्पष्ट है कि अर्थव्यवस्था की मदद से जनजातीय समाज के लोग अपनी ज़रूरतों तथा आर्थिक उद्देश्यों को पूर्ण करते हैं। जब तक हम जनजातीय समाज के साधारण स्वरूप को न समझ लें हम जनजातीय अर्थव्यवस्था को नहीं समझ सकते। जनजातीय अर्थव्यवस्था में सभी व्यक्तियों तथा दोनों लिंगों का बराबर महत्त्व होता है। सभी व्यक्ति, जवान, स्त्रियां, बच्चे इत्यादि रोटी कमाने में लगे होते हैं। इनकी आर्थिक व्यवस्था में कोई भी व्यक्ति किसी के ऊपर किसी भी प्रकार का बोझ नहीं होता है। अगर किसी स्त्री के पति की मृत्यु हो जाती है तो भी वह रोटी कमाने की प्रक्रिया में हिस्सा लेती है ताकि उसका तथा उसके बच्चों का जीवन अच्छी तरह से चल सके। जनजातीय अर्थव्यवस्था में व्यक्तियों की आवश्यकताएं बहुत ही सीमित होती हैं तथा वह अपने इर्द-गिर्द से ही अपनी आवश्यकताएं पूर्ण कर लेते हैं।

जनजातीय अर्थव्यवस्था का स्वरूप (Nature of Tribal Economy)-चाहे आजकल का सभ्य समाज सम्पूर्ण रूप से तकनीक पर निर्भर करता है तथा आर्थिक तौर पर काफ़ी आगे निकल चुका है परन्तु जनजातीय अर्थव्यवस्था अभी भी अपने शुरुआती दौर में है। जनजातीय समाज प्रकृति पर निर्भर करता है। उनके जीवन जीने के मुख्य स्रोत जंगल, पहाड़ तथा भूमि हैं। कई समाजशास्त्रियों ने मनुष्यों के समाज के आर्थिक जीवन के अलग-अलग स्तरों का वर्णन किया है। इन स्तरों को देखने के बाद यह पता चलता है कि जनजातीय समाज का आर्थिक जीवन अभी भी अपने पहले स्तर पर ही है। इसके स्वरूप के मुख्य पहलू इस प्रकार हैं :-

  • जनजातीय समाज में तकनीक का अस्तित्व नहीं होता है। इस कारण ही उन्हें सारा कार्य अपने हाथों से करना पड़ता है। इस कारण ही उनकी आर्थिक आवश्यकताएं बहुत ही कम होती हैं।
  • जनजातीय के लोगों के बीच आर्थिक सम्बन्ध लेन-देन तथा विनिमय दर ही आधारित होते हैं। पैसे की चीज़ों के लेन-देन के लिए व्यापक तौर पर प्रयोग नहीं किया जाता है।
  • जनजातीय अर्थव्यवस्था एक, दो अथवा कुछ व्यक्तियों की कोशिशों का परिणाम नहीं है बल्कि सम्पूर्ण समूह की कोशिशों का परिणाम है।
  • जनजातीय लोगों के व्यापार में लाभ कमाने की भावना नहीं पायी जाती है। व्यापार में हिस्सेदारी, एकता की भावना तथा अपनी ज़रूरतों की पूर्ति की भावना ज़रूर होती है।
  • उनके समाज में नियमित मण्डी नहीं होती है। उनके क्षेत्र के नज़दीक के क्षेत्र में जहां कहीं भी साप्ताहिक मण्डी लगती है वह वहीं पर जाकर अपना माल बेचते हैं। उनकी आर्थिक व्यवस्था में प्रतियोगिता तथा पैसा इकट्ठा करने की प्रवृत्ति नहीं होती है।
  • उनके समाज में किसी आविष्कार को करने की प्रवृत्ति भी नहीं होती है जिस कारण उनकी उन्नति भी कम होती है। उनकी आर्थिक व्यवस्था स्थिर है जोकि अपनी ज़रूरतें पूर्ण करने पर ही आधारित होती है।
  • प्राचीन समय में चीज़ों का उत्पादन बेचने अथवा इकट्ठा करने के लिए नहीं बल्कि खपत करने के लिए होता था। इस तरह जनजातीय समाज में उत्पादन खपत करने के लिए होता है न कि बेचने के लिए। चाहे अब इसमें धीरेधीरे परिवर्तन आ रहा है परन्तु फिर भी उनके समाज में उत्पादन मुख्य तौर पर खपत के लिए ही होता है।
  • जनजातीय समाज में तकनीक की कमी होती है जिस कारण तकनीकी योग्यता पर आधारित विशेषीकरण की कमी होती है। लिंग पर आधारित श्रम विभाजन मौजूद होता है।
  • जनजातीय समाज में लोग धन जमा करने की अपेक्षा खर्च करने पर अधिक विश्वास रखते हैं।

PSEB 12th Class Sociology Solutions Chapter 1 जनजातीय समाज

प्रश्न 5.
जनजातीय समाज में कौन-से कारणों के कारण परिवर्तन आ रहे हैं ? उनका वर्णन करो।
उत्तर-
1. ईसाई मिशनरियों का प्रभाव (Effect of Christian Missionaries) अंग्रेज़ों ने भारत पर कब्जा करने के पश्चात् सबसे पहला कार्य यह किया कि ईसाई मिशनरियों को भारत में धर्म प्रचार की आज्ञा दे दी। ईसाई मिशनरियों ने देश के अलग-अलग भागों में जाकर ईसाई धर्म का प्रचार किया। उनके प्रभाव के अन्तर्गत बहुत से भारतीय ईसाई बन गए। यह मिशनरी जनजातियों के सम्पर्क में आए। इन्होंने देखा कि इन जनजातियों का अपना ही धर्म होता है तथा यह हिन्दू धर्म अथवा किसी और धर्म के प्रभाव के अन्तर्गत नहीं आते हैं। इसलिए इन मिशनरियों ने जनजातीय क्षेत्रों में जोर-शोर से धर्म का प्रचार करना शुरू कर दिया। जनजातीय लोगों को कई प्रकार के लालच दिए गए। उनके क्षेत्रों में स्वास्थ्य केन्द्र, शिक्षा केन्द्र इत्यादि जैसे कई प्रकार की सुविधाएं उपलब्ध करवा दी गईं। इस तरह जनजातीय लोग मिशनरियों के प्रभाव के कारण अपना धर्म छोड़कर ईसाई बनने लग गए। ईसाई बनने से उन्होंने ईसाई धर्म के तौर तरीके, रीति-रिवाज अपनाने शुरू कर दिए जिससे उनके जीवन में बहुत-से परिवर्तन आ गए।

2. यातायात तथा संचार के साधनों का विकास (Development in means of Transport and Communication)-जब अंग्रेज़ भारत में आए तो उन्होंने देखा कि यहां यातायात के साधन बहुत ही प्राचीन हैं इसलिए उन्होंने भारत में यातायात तथा संचार के साधनों का विकास करना शुरू कर दिया। उन्होंने ही 1853 में पहली रेलगाड़ी चलाई तथा डाकतार विभाग की भी स्थापना भी की। चाहे उन्होंने यातायात के साधनों का विकास अपनी सुविधा के लिए किया परन्तु इसके अधिक लाभ भारतीयों को हुए। लोग दूर-दूर क्षेत्रों में पहुंचने लग गए। वह जनजातीय क्षेत्रों तक भी पहुंच गए तथा उन्होंने उन्हें मुख्य धारा में आने के लिए मनाना शुरू कर दिया। स्वतन्त्रता के पश्चात् तो तेजी से यातायात के साधनों का विकास होना शुरू हो गया जिस कारण जनजातीय लोग अपने जनजातीय से दूर-दूर रहते लोगों तक पहुंचना शुरू हो गए। अपनी जनजाति से बाहर निकलने के कारण वह दूसरे समूहों के सम्पर्क में आए तथा धीरे-धीरे उनमें परिवर्तन आने शुरू हो गए।

3. मण्डी आर्थिकता (Market Economy)-प्राचीन समय में जनजातियों की आर्थिकता निर्वाह आर्थिकता होती थी। उनकी आवश्यकताएं बहुत ही सीमित थीं। वह अपनी आवश्यकताएं पूर्ण करने के लिए उत्पादन किया करते थे। वह जंगलों से फल, जड़ें तथा शिकार इत्यादि इकट्ठा किया करते थे। उनके समाजों में अतिरिक्त उत्पादन की प्रथा नहीं थी। वह मण्डियों से तो बिल्कुल ही अनजान थे। परन्तु जैसे-जैसे वह और समूहों के नजदीक आते चले गए तथा यातायात के साधनों के विकास के कारण वह दूर-दूर के क्षेत्रों में जाने लग गए तो उनको मण्डी आर्थिकता के बारे में पता चलना शुरू हो गया। उनको पता चल गया कि थोड़ा सा अधिक उत्पादन करके उसको बेचा जा सकता है। इसके बाद उन्होंने अधिक परिश्रम करके अधिक उत्पादन करना शुरू कर दिया तथा अतिरिक्त उत्पादन को मण्डी में बेचना शुरू कर दिया। इससे उन्हें पैसे प्राप्त होने लग गए तथा उनका जीवन आसान होना शुरू हो गया। इस तरह मण्डी आर्थिकता ने उनके जीवन को बदलना शुरू कर दिया।

4. संवैधानिक उपबन्ध (Constitutional Provision)-भारतीय संविधान में यह लिखा है कि किसी भी भारतीय नागरिक के साथ धर्म, नस्ल, जाति, भाषा अथवा रंग के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा। इसके साथ ही संविधान में यह व्यवस्था की गई कि समाज के कमजोर वर्गों जैसे अनुसूचित जातियों तथा जनजातियों को सुरक्षा प्रदान करने के लिए विशेष रियायतें दी जाएं। इन रियायतों में शैक्षिक संस्थाओं, सरकारी नौकरियों, संसद् तथा विधानसभाओं में इनके लिए कुछ स्थान आरक्षित रखना शामिल था। संविधान ने राज्यों के राज्यपालों को यह अधिकार भी दिया कि वह जनजातियों के सम्बन्ध में एक सलाहकार कौंसिल बनाए जो जनजातियों की भूमि तथा लेन-देन के बारे में नियम बनाए ताकि उन्हें साहूकारों के शोषण से बचाया जा सके। इसके साथ ही जनजातीय क्षेत्रों के विकास के लिए भी संविधान में सरकार को विशेष निर्देश दिए गए हैं। प्रत्येक भारतीय नागरिक को संविधान ने कुछ मौलिक अधिकार दिए हैं ताकि वह अपना जीवन अच्छी तरह जी सकें। यह अधिकार जनजातीय लोगों को भी प्राप्त हैं। इस तरह संविधान में रखे गए उपबन्धों के कारण इनके इलाकों में विकास होना शुरू हो गया तथा इनका जीवन बदलना शुरू हो गया।

5. सरकारी प्रयास (Governmental Efforts) भारत की स्वतन्त्रता के समय इन जनजातियों की स्थिति काफ़ी कमज़ोर थी। इस कारण संविधान में इनके विकास के लिए कई प्रकार की सुविधाएं रखी गई हैं। इन संवैधानिक उपबन्धों के अनुसार सरकार ने इनके विकास करने के प्रयास करने शुरू कर दिए। इनके क्षेत्रों तक सड़कें बनाई गईं। इनके क्षेत्रों में शिक्षण संस्थान खोले गए, स्वास्थ्य केन्द्र, अस्पताल इत्यादि खोले गए ताकि वह बीमारी के समय अपना इलाज करवा सकें। उनको पढ़ने के लिए प्रेरित किया गया। समाज सेवी संस्थाओं को इनके क्षेत्रों में कार्य करने के लिए विशेष सहायता दी गई। इनको साहूकारों के शोषण से बचाने के लिए कानून बनाए गए। इनको मुख्य धारा में लाने की कोशिशें की गईं। इस तरह सरकारी प्रयासों से यह लोग मुख्य धारा के नजदीक आ गए तथा उनका जीवन परिवर्तित होना शुरू हो गया।

6. आधुनिक शिक्षा का प्रसार (Spread of Modern Education) स्वतन्त्रता के बाद सरकार ने शिक्षा के प्रसार पर विशेष जोर दिया। दूर-दूर के क्षेत्रों में स्कूल, कॉलेज खोले गए तथा उन्हें बड़े-बड़े कॉलेजों, विश्वविद्यालयों से जोड़ा गया। उन लोगों को आधुनिक शिक्षा देने के प्रयास किए गए, उनको शिक्षा लेने के लिए प्रेरित किया गया। उनके लिए संविधान में शैक्षिक संस्थाओं तथा नौकरियों में स्थान आरक्षित रखने का प्रावधान रखा गया। समाज सेवी संस्थाओं ने उन्हें शिक्षा लेने के लिए प्रेरित किया। इस तरह सम्पूर्ण समाज के प्रयासों से उन्होंने शिक्षा लेनी शुरू कर दी। वैसे तो वह मिडिल से ऊपर शिक्षा ग्रहण नहीं करते परन्तु जो लोग उच्च शिक्षा के स्तर तक पहुंच गए हैं उनको सीटें आरक्षित. होने के कारण नौकरियां आसानी से प्राप्त होने लग गई हैं। नौकरियां मिलने से उनकी आय अच्छी होने लग गई तथा उनका जीवन स्तर ऊंचा होने लग गया। उनकी सामाजिक स्थिति ऊंची हो गई। उनकी ऊंची स्थिति देख कर दूसरे जनजातियों के लोगों ने शिक्षा प्राप्त करनी शुरू कर दी। इस तरह शिक्षा के प्रसार से उनका जीवन परिवर्तित होना शुरू हो गया।

7. जंगलों का कम होना (Decreasing Forests)-जंगलों के कम होने से जनजातीय लोगों के जीवन में भी परिवर्तन आया। पहले जनजातीय लोगों की आर्थिकता जंगलों पर ही आधारित थी। वह जंगलों में ही रहते थे, जंगलों में कृषि करते थे, जंगलों से ही फल, जड़ें इत्यादि इकट्ठी किया करते थे तथा जंगलों में ही शिकार किया करते थे। परन्तु समय के साथ-साथ जनसंख्या भी बढ़ने लग गई। जनसंख्या बढ़ने से उनकी रहने की समस्या शुरू हुई। इसलिए जंगल कटने शुरू हो गए। जंगल कटने से जंगल घटने शुरू हो गए। जनजातीय लोगों की रोजी-रोटी का साधन खत्म होना शुरू हो गया। इस कारण वह लोग जंगलों को छोड़कर कार्य की तलाश में शहरों की तरफ आने शुरू हो गए। शहरों में आकर उन्होंने अपने परम्परागत पेशे छोड़कर और पेशे अपनाने शुरू कर दिए जिस कारण उनका जीवन बदलना शुरू हो गया।

इसके साथ ही सरकार ने जंगलों को काटने का कार्य ठेकेदारों को देना शुरू कर दिया। जनजातियों के लोग लकड़ी को जंगल में से काटकर उन्हें बेचते थे तथा चीजें इकट्ठी करके उन्हें बेचते थे। ठेकेदारों ने उन्हें ऐसा करने से रोक दिया। इस तरह ही उनकी रोजी रोटी का साधन खत्म हो गया तथा उन्होंने अपने परम्परागत पेशे छोड़ कर अन्य कार्यों को अपनाना शुरू कर दिया।

PSEB 12th Class Sociology Solutions Chapter 1 जनजातीय समाज

जनजातीय समाज PSEB 12th Class Sociology Notes

  • भारतीय जनजातीय विरासत काफ़ी समृद्ध तथा आदिम है। यहां अलग-अलग प्रजातीय तथा भाषायी जनजातियां रहती हैं जो आर्थिक व तकनीकी रूप से अलग अलग स्तरों पर हैं।
  • चाहे भारतीय जनजातियों में बहुत से परिवर्तन आ रहे हैं परन्तु फिर भी यह पिछड़े हुए हैं तथा सरकार इनकी प्रगति की तरफ विशेष ध्यान दे रही है।
  • भारत में जनजातियों को आदिवासी, पिछड़े हुए हिन्दू, गिरीजन, प्राचीन जनजातियां तथा अनुसूचित जनजाति के नाम से जाना जाता है।
  • जनजाति वास्तव में एक ऐसा अन्तर्वैवाहिक समूह होता है जो एक विशेष क्षेत्र में रहता है, जिसकी अपनी एक विशेष भाषा व संस्कृति होती है। तकनीकी रूप से यह प्राचीन अवस्था में रहते हैं। इनकी आर्थिकता निर्वाह करने वाली तथा लेन-देन के ऊपर निर्भर करती है।
  • जनजातियों को अलग-अलग आधारों पर विभाजित किया जाता है। सर हरबर्ट रिजले ने इन्हें प्रजाति के आधार
    पर विभाजित किया है। इन्हें आर्थिक आधार पर तथा देश की मुख्य धारा में शामिल होने के आधार पर भी विभाजित किया जाता है।
  • वैसे तो देश में बहुत-सी जनजातियाँ पाई जाती हैं परन्तु सात मुख्य जनजातियाँ हैं-गौंड, भील, संथाल, मीना,
    ऊराओं, मुण्डा तथा खौंड जिनकी जनसंख्या एक लाख या उससे अधिक है।
  • जनजातीय समाजों में सत्ता, रहने के स्थान तथा वंश के आधार पर कई प्रकार के परिवार पाए जाते हैं। इसके
    साथ-साथ इन लोगों में विवाह करने के भी कई ढंग प्रचलित हैं।
  • जनजातीय समाजों को बहुत-सी समस्याओं का सामना करना पड़ता है परन्तु उनमें सबसे महत्त्वपूर्ण है जंगलों
    की कटाई तथा विस्थापित करना। जंगलों के कटने के कारण जनजातीय लोगों को उनके घरों से विस्थापित करके नए स्थानों पर बसाया जाता है जिस कारण उन्हें काफ़ी समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
  • जनजातीय समाजों में बहुत-से परिवर्तन आ रहे हैं। वह देश की मुख्य धारा से जुड़ रहे हैं, वह अपने नज़दीक
    के समाजों के तौर-तरीकों को अपना रहे हैं, वह अपने पेशों को छोड़ कर अन्य पेशों को अपना रहे हैं तथा अपने क्षेत्रों को छोड़ कर नए क्षेत्रों में रहने जा रहे हैं।
  • साधारण श्रम विभाजन (Simple Division of Labour)-जनजातीय समाजों में समाज साधारण श्रम विभाजन पर आधारित होता है जिसमें आयु तथा लिंग प्रमुख हैं।
  • जीववाद (Animism)-जीववाद आत्मा में विश्वास है कि मृत्यु के बाद भी आत्मा मौजूद है। यह सिद्धान्त टाईलर (Tylor) ने दिया था।
  • टोटमवाद (Totemism)-जब किसी पत्थर, पेड़, जानवर अथवा किसी अन्य वस्तु को जनजाति द्वारा पवित्र मान लिया जाता है तो उसे टोटम कहते हैं। टोटम में विश्वास को टोटमवाद कहा जाता है। उस पवित्र वस्तु को मारा या खाया नहीं जाता। उसकी पूजा की जाती है कि उसमें कोई दैवीय शक्ति मौजूद है।
  • निर्वाह अर्थव्यवस्था (Subsistence Economy)-निर्वाह अर्थव्यवस्था का अर्थ है वह अर्थव्यवस्था जिसमें लोग केवल अपनी आवश्यकताएं पूर्ण करते हैं। जनजातीय समाज साधारण प्रकृति के होते हैं तथा वह शिकार करके, एकत्र करके, मछली पकड़ के तथा जंगलों से वस्तुएं एकत्र करके गुजारा करते हैं। इसके साथ-साथ वहाँ लेन-देन की प्रक्रिया भी प्रचलित है। उनकी आर्थिकता मुनाफे नहीं बल्कि गुज़ारे पर आधारित होती है।
  • स्थानांतरित कृषि (Shifting Cultivation) यह जनजातीय लोगों में कृषि करने का एक तरीका है। अलग-अलग क्षेत्रों में इसे झूम अथवा ग्रामीण कृषि भी कहा जाता है। इस तरीके में पहले जंगल को काट कर साफ कर दिया जाता है, कटे हुए पेड़ों को आग लगा दी जाती है तथा खाली भूमि में बीज बो दिए जाते हैं। बीजों को वर्षा ऋतु से पहले बोया जाता है। वर्षा के बाद फसल तैयार हो जाती है। इसके बाद दोबारा कृषि के लिए नए भूमि के टुकड़े पर तैयारी की जाती है तथा यह प्रक्रिया दोबारा की जाती है।

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