PSEB 9th Class SST Solutions History Chapter 8 पहनावे का सामाजिक इतिहास

Punjab State Board PSEB 9th Class Social Science Book Solutions History Chapter 8 पहनावे का सामाजिक इतिहास Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 9 Social Science History Chapter 8 पहनावे का सामाजिक इतिहास

SST Guide for Class 9 PSEB पहनावे का सामाजिक इतिहास Textbook Questions and Answers

(क) बहुविकल्पीय प्रश्न :

प्रश्न 1.
सूती कपड़ा किससे बनता है ?
(क) कपास
(ख) जानवरों की खाल
(ग) रेशम के कीड़े
(घ) ऊन।
उत्तर-
(क) कपास

प्रश्न 2.
बनावटी रेशे का विचार सबसे पहले किस वैज्ञानिक ने दिया ?
(क) मेरी क्यूरी
(ख) राबर्ट हुक्क
(ग) लुइस सुबाब
(घ) लार्ड कर्जन।
उत्तर-(ख) राबर्ट हुक्क

प्रश्न 3.
कौन-सी शताब्दी में यूरोप के लोग अपने सामाजिक स्तर, वर्ग अथवा लिंग के अनुसार कपड़े पहनते थे ?
(क) 15वीं
(ख) 16वीं
(ग) 17वीं
(घ) 18वीं।
उत्तर-(घ) 18वीं।

प्रश्न 4.
किस देश के व्यापारियों ने भारत की छींट का आयात शुरू किया ?
(क) चीन
(ख) इंग्लैंड
(ग) इटली
(घ) फ्रांस।
उत्तर-(ख) इंग्लैंड

(ख) रिक्त स्थान भरें :

  1. पुरातत्व वैज्ञानिकों को ………… के नज़दीक हाथी दांत की बनी हुई सुइयाँ प्राप्त हुईं।
  2.  रेशम का कीड़ा प्रायः ………. के वृक्षों पर पाला जाता है।
  3. ……….. वस्त्रों के अवशेष मिस्र, बेबीलोन, सिंधु घाटी की सभ्यता से मिले हैं।
  4. औद्योगिक क्रांति का आरंभ ……………. महाद्वीप में हुआ था।
  5. स्वदेशी आंदोलन ……….. ई० में आरंभ हुआ।

उत्तर-

  1. कोस्तोनकी (रूस)
  2. शहतूत
  3. ऊनी
  4. यूरोप
  5. 1905

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(ग) सही मिलान करो :

1. बंगाल का विभाजन – रविंद्रनाथ टैगोर
2. रेशमी कपड़ा – चीन
3. राष्ट्रीय गान – 1789 ई०
4. फ्रांसीसी क्रांति – महात्मा गांधी
5. स्वदेशी लहर – लार्ड कर्जन।
उत्तर-

  1. लार्ड कर्जन
  2. चीन
  3. रविंद्रनाथ टैगोर
  4. 1789 ई०
  5. महात्मा गांधी।

(घ) अंतर स्पष्ट करो :

प्रश्न 1.
1. ऊनी कपड़ा और रेशमी कपड़ा
2. सूती कपड़ा और कृत्रिम रेशों से बना कपड़ा।
उत्तर-
1. ऊनी कपड़ा और रेशमी कपड़ा ऊनी कपड़ा
ऊन से बनता है। ऊन वास्तव में एक रेशेदार प्रोटीन है, जो विशेष प्रकार की चमड़ी की कोशिकाओं से बनती है। ऊन भेड़, बकरी, याक, खरगोश आदि जानवरों से भी प्राप्त की जाती है। मैरिनो नामक भेड़ों की ऊन सबसे उत्तम मानी जाती है। मिस्र, बेबीलोन, सिंधु घाटी की सभ्यता में ऊनी वस्त्रों के अवशेष मिले हैं। इससे मालूम होता है कि उस समय के लोग भी ऊनी कपड़े पहनते थे।

रेशमी कपड़ा-
रेशमी कपड़ा रेशम के कीड़ों से प्राप्त रेशों से बनता है। रेशम का कीड़ा अपनी सुरक्षा के लिए अपने इर्द-गिर्द एक कवच तैयार करता है। यह कवच उसकी लार का बना होता है। इस कवच से ही रेशमी धागा तैयार किया जाता है। रेशम का कीड़ा प्रायः शहतूत के वृक्षों पर पाला जाता है। रेशमी कपड़ों की तकनीक सबसे पहले चीन में विकसित हुई। भारत में भी हज़ारों वर्षों से रेशमी कपड़े का प्रयोग किया जा रहा है।

2. सूती कपड़ा और कृत्रिम रेशों से बना कपड़ा
सूती कपड़ा-
सूती कपड़ा कपास से बनाया जाता है। भारत में लोग सदियों से सूती वस्त्र पहनते आ रहे हैं। कपास और सूती वस्त्रों के प्रयोग के ऐतिहासिक प्रमाण प्राचीन सभ्यताओं में भी मिलते हैं। सिंधु घाटी की सभ्यता में कपास और सूती कपड़े के प्रयोग के बारे में प्रमाण मिले हैं। ऋग्वेद के मंत्रों में भी कपास के विषय में चर्चा की गई है।

कृत्रिम (बनावटी) रेशे से बने कपड़े-
कृत्रिम रेशे बनाने का विचार सबसे पहले एक अंग्रेज़ वैज्ञानिक राबर्ट हुक्क (Robert Hook) के मन में आया। इसके बारे में एक फ्रांसीसी वैज्ञानिक ने भी लिखा। परंतु सन् 1842 ई० में अंग्रेज़ी वैज्ञानिक लुइस सुबाब ने बनावटी रेशों से कपड़े तैयार करने की एक मशीन तैयार की। कृत्रिम रेशों को तैयार करने के लिए शहतूत, एल्कोहल, रबड़, मनक्का, चर्बी और कुछ अन्य वनस्पतियां प्रयोग में लाई जाती हैं। नायलोन, पोलिस्टर और रेयान मुख्य कृत्रिम रेशे हैं। पोलिस्टर और सूत से बना कपड़ा टेरीकाट भारत में बहुत प्रयोग किया जाता है। आजकल अधिकतर लोग कृत्रिम रेशों से बने वस्त्रों का ही उपयोग करते हैं।

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अति लघु उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
आदिकाल में मनुष्य शरीर ढकने के लिए किसका प्रयोग करता था ?
उत्तर-
आदिकाल में मनुष्य शरीर ढकने के लिए पत्तों, वृक्षों की छाल और जानवरों की खाल का प्रयोग करता था।

प्रश्न 2.
कपड़े कितनी तरह के रेशों से बनते हैं ?
उत्तर-
कपड़े चार तरह के रेशों से बनते हैं-सूती, ऊनी, रेशमी तथा कृत्रिम।

प्रश्न 3.
किस किस्म की भेड़ों की ऊन सबसे बढ़िया होती है ?
उत्तर-
मैरिनो।

प्रश्न 4.
स्त्रियों ने सबसे पहले किस देश में पहनावे की आज़ादी संबंधी आवाज़ उठाई ?
उत्तर-
फ्रांस।

प्रश्न 5.
इंग्लैंड औद्योगिक क्रांति से पहले सूती कपड़ा किस देश से आयात करता था ?
उत्तर-
भारत से।

प्रश्न 6.
खादी लहर चलाने वाले प्रमुख भारतीय नेता का नाम बताओ।
उत्तर-
महात्मा गांधी।

प्रश्न 7.
नामधारी संप्रदाय के लोग किस रंग के कपड़े पहनते हैं ?
उत्तर-
सफेद।

लघु उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
मनुष्य को पहनावे की ज़रूरत क्यों पड़ी ?
उत्तर-
पहनावा व्यक्ति की बौद्धिक, मानसिक व आर्थिक स्थिति का प्रतीक है। पहनावे का प्रयोग केवल तन ढकने के लिए ही नहीं किया जाता, बल्कि इसके द्वारा मनुष्य की सभ्यता, सामाजिक स्तर आदि का भी पता चलता है। इसलिए मनुष्य को पहनावे की ज़रूरत पड़ी।

प्रश्न 2.
रेशमी कपड़ा कैसे तैयार होता है ?
उत्तर-
रेशमी कपड़ा रेशम के कीड़ों से प्राप्त रेशों से बनता है। रेशम का कीड़ा प्रायः शहतूत के वृक्षों पर पाला जाता है। यह कीड़ा अपनी सुरक्षा के लिए अपने इर्द-गिर्द एक कवच बना लेता है। यह कवच उसकी लार का बना होता है। इस कवच से ही रेशमी धागा तैयार किया जाता है। रेशमी कपड़ों की तकनीक सबसे पहले चीन में विकसित हुई।

प्रश्न 3.
औद्योगिक क्रांति का मनुष्य के पहनावे पर क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर-
18वीं-19वीं शताब्दी में औद्योगिक क्रांति का मनुष्य के पहनावे पर निम्नलिखित प्रभाव पड़े :

  1. सूती कपड़े का उत्पादन बहुत अधिक बढ़ गया। अतः लोग मशीनों से बना सूती कपड़ा पहनने लगे।
  2. बनावटी रेशों से वस्त्र बनाने की तकनीक विकसित होने के बाद बड़ी संख्या में लोग कृत्रिम रेशों से बनाए गए वस्त्र पहनने लगे। इसका कारण यह था कि ये वस्त्र बहुत हल्के होते थे और इन्हें धोना भी आसान था परिणामस्वरूप भारीभरकम वस्त्र धीरे-धीरे विलुप्त होने लगे।
  3. वस्त्र सस्ते हो गए। फलस्वरूप कम वस्त्र पहनने वाले लोग भी अधिक से अधिक वस्त्रों का प्रयोग करने लगे।

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प्रश्न 4.
स्त्रियों के पहरावे पर महायुद्धों का क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर-
महायुद्धों के परिणामस्वरूप महिलाओं के पहरावे में निम्नलिखित परिवर्तन आये-

  1. आभूषणों तथा विलासमय वस्त्रों का त्याग–अनेक महिलाओं ने आभूषणों तथा विलासमय वस्त्रों का त्याग कर दिया। फलस्वरूप सामाजिक बंधन टूट गए और उच्च वर्ग की महिलाएं अन्य वर्गों की महिलाओं के समान दिखाई देने लगीं।
  2. छोटे वस्त्र-प्रथम विश्व युद्ध (1914-1918) के दौरान व्यावहारिक आवश्यकताओं के कारण वस्त्र छोटे हो गए। 1917 ई० तक ब्रिटेन में 70 हजार महिलाएं गोला-बारूद के कारखानों में काम करने लगी थी। कामगार महिलाएं ब्लाउज़, पतलून के अतिरिक्त स्कार्फ पहनती थीं जिसे बाद में खाकी ओवरआल और टोपी में बदल दिया गया। स्कर्ट की लंबाई कम हो गई। शीघ्र ही पतलून पश्चिमी महिलाओं की पोशाक का अनिवार्य अंग बन गई जिससे उन्हें चलनेफिरने में अधिक आसानी हो गई।
  3. वस्त्रों के रंग तथा बालों के आकार में परिवर्तन-भड़कीले रंगों का स्थान सादा रंगों ने लिया। अनेक महिलाओं ने सुविधा के लिए अपने बाल छोटे करवा लिए।
  4. सादा वस्त्र तथा खेलकूद-बीसवीं शताब्दी के आरंभ में बच्चे नए स्कूलों में सादा वस्त्रों पर बल देने और हारश्रृंगार को निरुत्साहित करने लगे। व्यायाम और खेलकूद लड़कियों के पाठ्यक्रम का अंग बन गए। खेल के समय लड़कियों को ऐसे वस्त्रों की आवश्यकता थी जिससे उनकी गति में बाधा न पड़े। जब वे काम पर जाती थीं तो वे आरामदेह और सुविधाजनक वस्त्र पहनती थीं।

प्रश्न 5.
स्वदेशी आंदोलन से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
संकेत-इसके लिए दीर्घ उत्तरों वाले प्रश्न का प्रश्न क्रमांक 4 पढ़ें।

प्रश्न 6.
राष्ट्रीय पोशाक तैयार करने से संबंधित किए गए यत्नों का संक्षेप वर्णन करो।
उत्तर-
19वीं शताब्दी के अंत में राष्ट्रीयता की भावना जागृत हुई। राष्ट्र की सांकेतिक पहचान के लिए राष्ट्रीय पोशाक पर विचार किया जाने लगा। भारत के विभिन्न भागों में उच्च वर्गों में स्त्री-पुरुषों ने स्वयं ही वस्त्रों के नए-नए प्रयोग करने आरंभ कर दिए। 1870 के दशक में बंगाल के टैगोर परिवार ने भारत के स्त्री तथा पुरुषों की राष्ट्रीय पोशाक के डिजाइन के प्रयोग आरंभ किए। रविंद्रनाथ टैगोर ने सुझाव दिया कि भारतीय तथा यूरोपीय वस्त्रों को मिलाने के स्थान पर हिंदू तथा मुस्लिम वस्त्रों के डिजाइनों को आपस में मिलाया जाए। इस प्रकार बटनों वाले एक लंबे कोट (अचकन) को भारतीय पुरुषों के लिए आदर्श पोशाक माना गया।

भिन्न-भिन्न क्षेत्रों की परंपराओं को ध्यान में रखकर भी एक वेशभूषा तैयार करने का प्रयास किया गया। 1870 के दशक के अंत में सतेंद्रनाथ टैगोर की पत्नी ज्ञानदानंदिनी टैगोर ने राष्ट्रीय पोशाक तैयार करने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने साड़ी पहनने के लिए पारसी स्टाइल को अपनाया। इसमें साड़ी को बाएं कंधे पर पिन किया जाता था। साड़ी के साथ मिलते-जुलते ब्लाउज तथा जूते पहने जाते थे। जल्दी ही इसे ब्रह्म समाज की स्त्रियों ने अपना लिया। अतः इसे ब्रालिका साड़ी के नाम से जाना जाने लगा। शीघ्र ही यह शैली महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश के ब्रह्म-समाजियों तथा गैरब्रह्मसमाजियों में प्रचलित हो गई।

प्रश्न 7.
पंजाबी महिलाओं के पहनावे पर संक्षिप्त नोट लिखो।
उत्तर-
पंजाब अंग्रेजी शासन के अधीन (1849 ई०) सबसे बाद में आया। इसलिए पंजाब के लोगों विशेषकर महिलाओं के कपड़ों पर विदेशी संस्कृति का प्रभाव बहुत ही कम दिखाई दिया। पंजाब मुख्य रूप से अपनी परंपरागत ग्रामीण संस्कृति से जुड़ा रहा और यहां की महिलाएं परंपरागत वेशभूषा ही अपनाती रहीं। सलवार, कुर्ता और दुपट्टा
ही पंजाबी महिलाओं की पहचान बनी रही। विवाह के अवसर पर वे रंगबिरंगे वस्त्र तथा भारी आभूषण पहनती थीं। लड़कियां विवाह के अवसर पर फुलकारी निकालती थीं। दुपट्टों को गोटा लगा कर आकर्षक बनाया जाता था। सूटों पर कढ़ाई भी की जाती थी। शहरी औरतें साड़ी और ब्लाउज़ भी पहनती थीं। सर्दियों में स्वेटर, कोटी और स्कीवी पहनने का रिवाज था।

दीर्घ उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
कपड़ों में प्रयोग किए जाने वाले विभिन्न रेशों का वर्णन करें।
उत्तर-
नए-नए रेशों के आविष्कार के कारण लोग भिन्न-भिन्न प्रकार के रेशों से बने कपड़े पहनने लगे। मौसम. सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, राजनैतिक व धार्मिक प्रभावों के कारण लोगों के पहनावे में निरंतर परिवर्तन आता रहा है जोकि आज भी जारी है।
पहनावे के इतिहास के लिए अलग-अलग तरह के रेशों के बारे में जानना ज़रूरी है, इनका वर्णन इस प्रकार है-

  1. सूती कपड़ा-सूती कपड़ा कपास से बनाया जाता है। भारत में लोग सदियों से सूती वस्त्र पहनते आ रहे हैं। कपास और सूती वस्त्रों के प्रयोग के ऐतिहासिक प्रमाण प्राचीन सभ्यताओं में भी मिलते हैं। सिंधु घाटी की सभ्यता में से भी कपास और सूती कपड़े के प्रयोग के बारे में प्रमाण मिले हैं। ऋग्वेद के मंत्रों में भी कपास के विषय में चर्चा की गई है।
  2. ऊनी कपड़ा-ऊन वास्तव में एक रेशेदार प्रोटीन है, जो विशेष प्रकार की चमड़ी की कोशिकाओं से बनती है। ऊन भेड़, बकरी, याक, खरगोश आदि जानवरों से भी प्राप्त की जाती है। मैरिनो नामक भेड़ों की ऊन सबसे उत्तम मानी जाती है। मिस्र, बेबीलोन, सिंधु घाटी की सभ्यता में ऊनी वस्त्रों के अवशेष मिले हैं। इससे मालूम होता है कि उस समय के लोग भी ऊनी कपड़े पहनते थे।
  3. रेशमी कपड़ा-रेशमी कपड़ा रेशम के कीड़ों से प्राप्त रेशों से बनता है। रेशम का कीड़ा अपनी सुरक्षा के लिए अपने इर्द-गिर्द एक कवच तैयार करता है। यह कवच उसकी लार का बना होता है। इस कवच से ही रेशमी धागा तैयार किया जाता है। रेशम का कीड़ा प्रायः शहतूत के वृक्षों पर पाला जाता है। रेशमी कपड़ों की तकनीक सबसे पहले चीन में विकसित हुई। भारत में भी रेशमी कपड़े का प्रयोग हज़ारों वर्षों से किया जा रहा है।
  4. कृत्रिम रेशे से बना कपड़ा-कृत्रिम रेशे बनाने का विचार सबसे पहले एक अंग्रेज़ वैज्ञानिक राबर्ट हुक्क (Robert Hook) के मन में आया। इसके बारे में एक फ्रांसीसी वैज्ञानिक ने भी लिखा। परन्तु सन् 1842 ई० में अंग्रेज़ी वैज्ञानिक लुइस सुबाब ने बनावटी रेशों से कपड़े तैयार करने की एक मशीन तैयार की। कृत्रिम रेशों को तैयार करने के लिए शहतूत, एल्कोहल, रबड़, मनक्का, चर्बी और कुछ अन्य वनस्पतियां प्रयोग में लाई जाती हैं। नायलोन, पोलिस्टर ओर रेयान मुख्य कृत्रिम रेशे हैं। पोलिस्टर और सूत से बना कपड़ा टैरीकाट भारत में बहुत प्रयोग किया जाता है। आजकल अधिकतर लोग कृत्रिम रेशों से बने वस्त्रों का उपयोग करते हैं।

प्रश्न 2.
औद्योगिक क्रांति ने साधारण लोगों के पहनावे पर क्या प्रभाव डाला ? वर्णन करें।
उत्तर-
18वीं-19वीं शताब्दी में औद्योगिक क्रांति ने समस्त विश्व के सामाजिक, राजनैतिक और आर्थिक ढांचे पर अपना गहरा प्रभाव डाला। इससे लोगों के विचारों तथा जीवन-शैली में परिवर्तन आया, परिणामस्वरूप लोगों के पहनावे में भी परिवर्तन आया।
कपड़े का उत्पादन मशीनों से होने के कारण कपड़ा सस्ता हो गया और वह बाज़ार में अधिक मात्रा में आ गया। यह मशीनी कपड़ा होने के कारण अलग-अलग डिज़ाइनों में आ गया। इसलिए लोगों के पास पोशाकों की संख्या में वृद्धि हो गई। संक्षेप में आम लोगों के पहनावे पर औद्योगिक क्रांति के निम्नलिखित प्रभाव पड़े।

  1. रंग-बिरंगे वस्त्रों का प्रचलन–18वीं शताब्दी में यूरोप के लोग अपने सामाजिक स्तर, वर्ग अथवा लिंग के अनुरूप कपड़े पहनते थे। पुरुषों व स्त्रियों के पहनावें में बहुत अंतर था। महिलाएं पहनावे में स्कर्ट और ऊंची एड़ी वाले जूते पहनती थीं। पुरुष पहनावे में नैक्टाई का प्रयोग करते थे। समाज के उच्च वर्ग का पहनावा आम लोगों से अलग होता
    था परंतु 1789 ई० की फ्रांसीसी क्रांति ने कुलीन वर्ग के लोगों के विशेष अधिकारों को समाप्त कर दिया। इसके परिणामस्वरूप सभी वर्गों के लोग भी अपनी इच्छा के अनुसार रंग-बिरंगे कपड़े पहनने लगे। फ्रांस के लोग स्वतंत्रता के प्रतीक के रूप में लाल टोपी पहनते थे। इस प्रकार आम लोगों द्वारा रंग-बिरंगे कपड़े पहनने का प्रचलन पूरे विश्व में प्रसिद्ध हो गया।

2. स्त्रियों के पहनावे में परिवर्तन-

  1. फ्रांसीसी क्रांति व फिजूल-खर्च रोकने संबंधी कानूनों से पहनावे में किए सुधारों को स्त्रियों ने स्वीकार नहीं किया। 1830 ई० में इंग्लैंड में कुछ महिला-संस्थाओं ने स्त्रियों के लिए लोकतांत्रिक अधिकारों की मांग शुरू कर दी। जैसे ही सफरेज आंदोलन का प्रसार हुआ, तो अमेरिका की 13 ब्रिटिश बस्तियों में पहनावा-सुधार आंदोलन शुरू हुआ।
  2. प्रैस व साहित्य ने तंग कपड़े पहनने के कारण नवयुवतियों को होने वाली बीमारियों के बारे में बताया उनका मानना था कि तंग पहनावे से शरीर का विकास, मेरूदंड में विकार व रक्त संचार प्रभावित होता है। इसलिए बहुत सारे महिला-संगठनों ने सरकार से लड़कियों की शारीरिक, सामाजिक और आर्थिक स्थिति को बेहतर बनाने के लिए पोशाकों में सुधारों की माँग की।
  3. अमेरिका में भी कई महिला-संगठनों ने स्त्रियों के लिए पारंपरिक पोशाक की निंदा की। कई महिला-संस्थाओं ने लंबे गाउन की अपेक्षा स्त्रियों के लिए सुविधाजनक परिधान पहनने की मांग की क्योंकि यदि स्त्रियों की पोशाक आरामदायक होगी, तभी वे आसानी से काम कर सकेंगी।
  4. 1870 ई० में दो संस्थाएं ‘नेशनल वूमैन सफरेज़ ऐसोसिएशन’ और ‘अमेरिकन वुमैन सफरेज़ ऐसोसिएशन’ ने मिलकर स्त्रियों के पहनावे में सुधार करने के लिए आंदोलन आरंभ किया। रूढ़िवादी विचारधारा के लोगों के कारण यह आंदोलन असफल रहा। फिर भी स्त्रियों की सुंदरता और पहनावे के नमूनों में परिवर्तन होना आरंभ हो गया।

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प्रश्न 3.
भारत में औपनिवेशिक शासन के दौरान पहनावे में हुए परिवर्तनों का वर्णन करो।
उत्तर-
औपनिवेशिक शासन के दौरान जब पश्चिमी वस्त्र शैली भारत में आई तो अनेक पुरुषों ने इन वस्त्रों को अपना लिया। इसके विपरीत स्त्रियां परंपरागत कपड़े ही पहनती रहीं।
कारण-

  1. भारत का पारसी समुदाय काफ़ी धनी था। वे लोग पश्चिमी संस्कृति से भी प्रभावित थे। अत: सबसे पहले पारसी लोगों ने ही पश्चिमी वस्त्रों को अपनाया। भद्रपुरुष दिखाई देने के लिए उन्होंने बिना कालर के लंबे कोट, बूट और छड़ी को अपनी पोशाक का अंग बना लिया।
  2. कुछ पुरुषों ने पश्चिमी वस्त्रों को आधुनिकता का प्रतीक समझ कर अपनाया।
  3. भारत के जो लोग मिशनरियों के प्रभाव में आकर ईसाई बन गये थे, उन्होंने भी पश्चिमी वस्त्र पहनने शुरू कर दिए।
  4. कुछ बंगाली बाबू कार्यालयों में पश्चिमी वस्त्र पहनते थे, जबकि घर में आकर अपनी परंपरागत पोशाक धारण कर लेते थे।

इतना होने के बावजूद ग्रामीण समाज में पुरुषों तथा स्त्रियों के पहरावे में कोई विशेष अंतर नहीं आया। केवल मशीनों से बना कपड़ा सुंदर तथा सस्ता होने के कारण अधिक प्रयोग किया जाने लगा। इसके अतिरिक्त भारतीय पहरावे तथा पश्चिमी पहरावे के बीच टकराव की घटनाएं भी सामने आईं। परंतु जातिगत नियमों में बंधा भारतीय ग्रामीण समुदाय पश्चिमी पोशाक-शैली से दूर ही रहा।
समाज में स्त्रियों की स्थिति-इससे पता चलता है कि समाज पुरुष-प्रधान था जिसमें नारी स्वतंत्र नहीं थी। उसका कार्य घर की चार दीवारी तक ही सीमित था। वह नौकरी पेशा नहीं थी।

प्रश्न 4.
भारतीय लोगों के पहनावे पर स्वदेशी आंदोलन का क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर-
1905 ई० में अंग्रेज़ी सरकार ने बंगाल का विभाजन कर दिया। इसे बंग-भंग भी कहा जाता है। स्वदेशी आंदोलन बंग-भंग के विरोध में चला। बहिष्कार भी स्वदेशी आंदोलन का एक अंग था। यह राजनीतिक विरोध कम, परंतु कपड़ों से जुड़ा विरोध अधिक था। लोगों ने इंग्लैंड से आने वाले कपड़े को पहनने से इंकार कर दिया और देश में ही बने कपड़े को पहल दी। गांधी जी द्वारा प्रचलित खादी स्वदेशी पोशाक की पहचान बन गई। विदेशी कपड़े की जगह-जगह होली जलाई गई और विदेशी कपड़े की दुकानों पर धरने दिए।
वास्तव में विदेशी संस्कृति से जुड़ी प्रत्येक वस्तु का त्याग करके स्वदेशी माल अपनाया गया। इस आंदोलन ने ग्रामीणों को रोज़गार प्रदान किया और वहां के कपड़ा उद्योग में नई जान डाली। इसलिए ग्रामीण समुदाय अपनी परम्परागत वस्त्रशैली से ही जुड़ा रहा। बहुत से लोगों ने खादी को भी अपनाया। परंतु खादी बहुत अधिक महंगी होने के कारण बहुत कम स्त्रियों ने इसे अपनाया। गरीबी के कारण वे कई गज़ लम्बी साड़ी के लिए महंगी-खादी नहीं खरीद पाती थीं।

प्रश्न 5.
पंजाबी लोगों के पहनावे संबंधी अपने विचार लिखो।
उत्तर-
पंजाबी महिलाओं का पहनावा-इसके लिए लघु उत्तरों वाले प्रश्नों में क्रमांक 7 पढ़ें पुरुषों का पहनावा-पंजाबी पुरुषों का पहनावा कोई अपवाद नहीं था। वे भी विदेशी पहनावे के प्रभाव से लगभग अछूते ही रहे। क्योंकि पंजाब कृषि प्रधान प्रदेश रहा है इसीलिए यहां के पुरुषों का पहनावा परंपरागत किसानों जैसा रहा। वे कुर्ता, चादरा पहनते थे और सिर पर पगड़ी पहनते थे। कुछ पंजाबी किसान सिर पर पगड़ी के स्थान पर परना (साफ़ा) भी लपेट लेते थे। पुरुष मावा लगी तुरेदार पगड़ी बड़े गर्व से पहनते थे। आज कुछ पुरुष पगड़ी के नीचे फिफ्टी भी बांधते हैं। यह कम लंबाई की एक छोटी पगड़ी होती है। विवाह-शादी के अवसर पर लाल गुलाबी अथवा सिंदूरी रंग की पगड़ी बांधी जाती थी। शोक के समय वे सफ़ेद अथवा हल्के रंग की पगड़ी बांधते थे। निहंग सिंहों तथा नामधारी संप्रदाय के लोगों का अपना अलग पहनावा है। उदाहरण के लिए नामधारी लोग सफेद रंग के कपड़े पहनते हैं। धीरेधीरे कुर्ते-चादरे की जगह कुर्ते-पायजामे ने ले ली।
अब पंजाबी पहनावे का रूप और भी बदल रहा है। आज पढ़े-लिखे तथा नौकरी पेशा लोग कमीज़ तथा पेंट (पतलून) का प्रयोग करने लगे हैं। पुरुषों के पहनावे में भी विविधता आ रही है। वे मुख्य रूप से पंजाबी जूती और बूट आदि पहनते हैं।

PSEB 9th Class Social Science Guide पहनावे का सामाजिक इतिहास Important Questions and Answers

I. बहुविकल्पीय प्रश्न :

प्रश्न 1.
मध्यकालीन फ्रांस में वस्त्रों के प्रयोग का आधार था
(क) लोगों की आय
(ख) लोगों का स्वास्थ्य
(ग) सामाजिक स्तर
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(ग) सामाजिक स्तर

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प्रश्न 2.
मध्यकालीन फ्रांस में निम्न वर्ग के लिए जिस चीज़ का प्रयोग वर्जित था
(क) विशेष कपड़े
(ख) मादक द्रव्य (शराब)
(ग) विशेष भोजन
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 3.
फ्रांस में वस्त्रों का जो रंग देशभक्त नागरिक का प्रतीक नहीं था
(क) नीला
(ख) पीला
(ग) सफ़ेद
(घ) लाल।
उत्तर-
(ख) पीला

प्रश्न 4.
फ्रांस में स्वतंत्रता को दर्शाती थी
(क) लाल टोपी
(ख) काली टोपी
(ग) सफ़ेद पतलून
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(क) लाल टोपी

प्रश्न 5.
वस्त्रों की सादगी किस भावना की प्रतीक थी ?
(क) स्वतंत्रता
(ख) समानता
(ग) बंधुत्व
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(ख) समानता

प्रश्न 6.
फ्रांस में व्यय-नियामक कानून (संपचुअरी कानून) समाप्त किए
(क) फ्रांसीसी क्रांति ने
(ख) राजतंत्र ने
(ग) सामंतों ने
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(क) फ्रांसीसी क्रांति ने

प्रश्न 7.
विक्टोरियन इंग्लैंड में उस स्त्री को आदर्श स्त्री माना जाता था जो
(क) लंबी तथा मोटी हो
(ख) छोटे कद की तथा भारी हो
(ग) पीड़ा और कष्ट सहन कर सके
(घ) पूरी तरह वस्त्रों से ढकी हो।
उत्तर-
(ग) पीड़ा और कष्ट सहन कर सके

प्रश्न 8.
इंग्लैंड में महिलाओं के लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए (सफ्रेज) आंदोलन चला
(क) 1800 के दशक में
(ख) 1810 के दशक में
(ग) 1820 के दशक में
(घ) 1830 के दशक में।
उत्तर-
(घ) 1830 के दशक में।

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प्रश्न 9.
इंग्लैंड में वूलन टोपी पहनना कानूनन अनिवार्य क्यों था?
(क) पवित्र दिनों के महत्त्व के लिए
(ख) उच्च वर्ग की शान के लिए
(ग) वूलन उद्योग के संरक्षण के लिए
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(ग) वूलन उद्योग के संरक्षण के लिए

प्रश्न 10.
विक्टोरियन इंग्लैंड की स्त्रियों में जिस गुण का विकास बचपन से ही कर दिया जाता था
(क) विनम्रता
(ख) कर्त्तव्यपरायणता
(ग) आज्ञाकारिता
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 11.
विक्टोरियन इंग्लैंड के पुरुषों में निम्न गुण की अपेक्षा की जाती थी
(क) निर्भीकता
(ख) स्वतंत्रता
(ग) गंभीरता
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 12.
वस्त्रों को ढीले-ढाले डिज़ाइन में बदलने वाली पहली महिला श्रीमती अमेलिया बलूमर (Mrs. Amelia Bloomer) का संबंध था
(क) अमेरिका
(ख) जापान
(ग) भारत
(घ) रूस।
उत्तर-
(क) अमेरिका

प्रश्न 13.
1600 ई० के बाद इंग्लैंड की महिलाओं को जो सस्ता व अच्छा कपड़ा मिला वह था
(क) इंग्लैंड की मलमल
(ख) भारत की छींट
(ग) भारत की मलमल
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(ख) भारत की छींट

प्रश्न 14.
इंग्लैंड से सूती कपड़े का निर्यात आरंभ हुआ
(क) औद्योगिक क्रांति के बाद
(ख) द्वितीय विश्व युद्ध के बाद
(ग) 18वीं शताब्दी में
(घ) 17वीं शताब्दी के अंत में।
उत्तर-
(क) औद्योगिक क्रांति के बाद

प्रश्न 15.
स्कर्ट के आकार में एकाएक परिवर्तन आया
(क) 1915 ई० में
(ख) 1947 ई० में
(ग) 1917 ई० में
(घ) 1942 ई० में।
उत्तर-
(क) 1915 ई० में

प्रश्न 16.
भारत में पश्चिमी वस्त्रों को अपनाया गया
(क) 20वीं शताब्दी में
(ख) 16वीं शताब्दी में
(ग) 19वीं शताब्दी में
(घ) 17वीं शताब्दी में।
उत्तर-
(ग) 19वीं शताब्दी में

प्रश्न 17.
भारत में पश्चिमी वस्त्र शैली को सर्वप्रथम अपनाया
(क) मुसलमानों ने
(ख) पारसियों ने
(ग) हिंदुओं ने
(घ) ईसाइयों ने।
उत्तर-
(ख) पारसियों ने

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प्रश्न 18.
विक्टोरियन इंग्लैंड में लड़कियों को बचपन से ही सख्त फीतों में बँधे कपड़ों अर्थात् स्टेज़ में कसकर क्यों बाँधा जाता था ?
(क) क्योंकि इन कपड़ों में लड़कियां सुंदर लगती थीं।
(ख) क्योंकि ऐसे वस्त्र पहनने वाली लड़कियां फैशनेबल मानी जाती थीं
(ग) क्योंकि यह विश्वास किया जाता था कि एक आदर्श नारी को पीड़ा और कष्ट सहन करने चाहिएं
(घ) क्योंकि नारी आज़ादी से घूम-फिर न सके और घर पर ही रहे।
उत्तर-
(ग) क्योंकि यह विश्वास किया जाता था कि एक आदर्श नारी को पीड़ा और कष्ट सहन करने चाहिएं

प्रश्न 19.
खादी का संबंध निम्न में से किससे है ?
(क) भारत में बनने वाला सूती वस्त्र
(ख) भारत में बनी छींट
(ग) हाथ से कते सूत से बना मोटा कपड़ा
(घ) भारत में बना मशीनी कपड़ा।
उत्तर-
(ग) हाथ से कते सूत से बना मोटा कपड़ा

प्रश्न 20.
महात्मा गांधी ने हाथ से कती हुई खादी पहनने को बढ़ावा दिया क्योंकि
(क) यह आयातित वस्त्रों से सस्ती थी
(ख) इससे भारतीय मिल-मालिकों को लाभ होता
(ग) यह आत्मनिर्भरता का लक्षण था
(घ) वह रेशम के कीड़े मारने के विरुद्ध थे।
उत्तर-
(ग) यह आत्मनिर्भरता का लक्षण था

प्रश्न 21.
गोलाबारूद की फैक्ट्रियों में काम करने वाली महिलाओं के लिए कैसा कपड़ा पहनना व्यावहारिक नहीं था?
(क) ओवर ऑल और टोपियां
(ख) पैंट और ब्लाउज़
(ग) छोटे स्कर्ट और स्कार्फ
(घ) लहराते गाउन और कार्सेट्स।
उत्तर-
(घ) लहराते गाउन और कार्सेट्स।

प्रश्न 22.
‘पादुका सम्मान’ नियम किस गवर्नर-जनरल के समय अधिक सख़्त हुआ ?
(क) लॉर्ड वेलज़ेली
(ख) लॉर्ड विलियम बेंटिंक
(ग) लॉर्ड डल्हौज़ी
(घ) लॉर्ड लिटन।
उत्तर-
(ग) लॉर्ड डल्हौज़ी

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प्रश्न 23.
हिंदुस्तानियों से मिलने पर ब्रिटिश अफ़सर कब अपमानित महसूस करते थे ?
(क) जब हिंदुस्तानी अपना जूता नहीं उतारते थे
(ख) जब हिंदुस्तानी अपनी पगड़ी नहीं उतारते थे
(ग) जब हिंदुस्तानी हैट पहने होते थे
(घ) जब हिंदुस्तानी उन्हें अपना हैट उतारने को कहते थे।
उत्तर-
(ख) जब हिंदुस्तानी अपनी पगड़ी नहीं उतारते थे

II. रिक्त स्थान भरो:

  1. फ्रांस में … …….. स्वतंत्रता को दर्शाती थी।
  2. फ्रांस में व्यय-नियायक कानून (संपचुअरी कानून) का संबंध …………… से है।
  3. ………………. के दशक में इंग्लैंड में महिलाओं के लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए (सफ्रेज) आंदोलन चला।
  4. …………. वस्त्रों को ढीले-ढाले डिज़ाइन में बदलने वाली पहली अमरीकी महिला थी।
  5. भारत में पश्चिमी वस्त्रों को सबसे पहले …………….. समुदाय ने अपनाया।

उत्तर-

  1. लाल टोपी
  2. पहनावे
  3. 18304.
  4. श्रामता अमालया बलमर
  5. पारसा।

III. सही मिलान करो

(क) – (ख)
1. महिलाओं के लोकतांत्रिक अधिकार – (i) घुटनों से ऊपर पतलून पहनने वाले लोग।
2. वूलन टोपी – (ii) हाथ से कते सूत से बना मोटा कपड़ा।
3. भारत की छींट – (iii) सफ्रेज आंदोलन।
4. खादी – (iv) इंग्लैंड में वूलन उद्योग संरक्षण।
5. सेन्स क्लोट्टीज़ – (v) सस्ता तथा अच्छा कपड़ा।

उत्तर-

  1. सफेज आंदोलन
  2. इंग्लैंड में वूलन उद्योग संरक्षण
  3. सस्ता तथा अच्छा कपडा
  4. हाथ से कते सूत से बना मोटा कपडा
  5. घुटनों से ऊपर पतलून पहनने वाले लोग।

अति लघु उत्तरों वाले प्रश्न

उत्तर एक लाइन अथवा एक शब्द में :

प्रश्न 1.
इंग्लैंड में कुछ विशेष दिनों में ऊनी टोपी पहनना अनिवार्य क्यों कर दिया गया?
उत्तर-
अपने ऊनी उद्योग के संरक्षण के लिए।

प्रश्न 2.
वस्त्रों संबंधी नियम के समाप्त होने के बाद भी यूरोप के विभिन्न वर्गों में वेशभूषा संबंधी अंतर समाप्त क्यों न हो सका?
उत्तर-
निर्धन लोग अमीरों जैसे वस्त्र नहीं पहन सकते थे।

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प्रश्न 3.
जेकोबिन क्लब्ज़ के सदस्य स्वयं को क्या कहते थे?
उत्तर-
सेन्स क्लोट्टीज़ (Sans Culottes)।

प्रश्न 4.
सेन्स क्लोट्टीज़ का शाब्दिक अर्थ क्या है?
उत्तर-
घुटनों से ऊपर रहने वाली पतलून पहनने वाले लोग।

प्रश्न 5.
विक्टोरिया काल की स्त्रियों को सुंदर बनाने में किस बात की भूमिका रही?
उत्तर-
उनकी तंग वेशभूषा की।

प्रश्न 6.
इंग्लैंड में ‘रेशनल ड्रैस सोसायटी’ की स्थापना कब हुई ?
उत्तर-
1881 में।

प्रश्न 7.
एक अमरीकी ‘वस्त्र सुधारक’ का नाम बताओ।
उत्तर-
श्रीमती अमेलिया ब्लूमर (Mrs. Amelia Bloomer)।

प्रश्न 8.
किस विश्व विख्यात घटना ने स्त्रियों के वस्त्रों में मूल परिवर्तन ला दिया?
उत्तर-
प्रथम विश्व युद्ध ने।

प्रश्न 9.
भारत के साथ व्यापार के परिणामस्वरूप कौन-सा भारतीय कपड़ा इंग्लैंड की स्त्रियों में लोकप्रिय हुआ?
उत्तर-
छींट।

प्रश्न 10.
कृत्रिम धागों से बने वस्त्रों की कोई दो विशेषताएं बताओ।
उत्तर-

  1. धोने में आसान,
  2. संभाल करना आसान।

प्रश्न 11.
भारत में पश्चिमी वस्त्रों को सबसे पहले किस समुदाय ने अपनाया?
उत्तर-
पारसी।

प्रश्न 12.
ट्रावनकोर में दासता का अंत कब हुआ?
उत्तर-
1855 ई० में।

प्रश्न 13.
भारत में पगड़ी किस बात की प्रतीक मानी जाती थी?
उत्तर-
सम्मान की।

प्रश्न 14.
भारत में राष्ट्रीय वस्त्र के रूप में किस वस्त्र को सबसे अच्छा माना गया ?
उत्तर-
अचकन (बटनों वाला एक लंबा कोट)।

प्रश्न 15.
स्वदेशी आंदोलन किस बात के विरोध में चला?
उत्तर-
1905 के बंगाल-विभाजन के विरोध में।

प्रश्न 16.
बंगाल का विभाजन किसने किया?
उत्तर-
लॉर्ड कर्जन ने।

प्रश्न 17.
स्वदेशी आंदोलन में किस बात पर विशेष बल दिया गया?
उत्तर-
अपने देश में बने माल के प्रयोग पर।

प्रश्न 18.
महात्मा गांधी ने किस प्रकार के वस्त्र के प्रयोग पर बल दिया?
उत्तर-
खादी पर।

लघु उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
फ्रांस के सम्प्चुअरी (Sumptuary) कानून क्या थे ?
उत्तर-
लगभग 1294 से लेकर 1789 की फ्रांसीसी क्रांति तक फ्रांस के लोगों को सम्प्चुअरी कानूनों का पालन करना पड़ता था। इन कानूनों द्वारा समाज के निम्न वर्ग के व्यवहार को नियंत्रित करने का प्रयास किया गया। इनके अनुसार-

  1. निम्न वर्ग के लोग कुछ विशेष प्रकार के वस्त्रों तथा विशेष प्रकार के भोजन का प्रयोग नहीं कर सकते थे।
  2. उनके लिए मादक द्रव्यों के प्रयोग की मनाही थी।
  3. उनके लिए कुछ विशेष क्षेत्रों में शिकार करना भी वर्जित था।

वास्तव में ये कानून लोगों के सामाजिक स्तर को दर्शाने के लिए बनाए गए थे। उदाहरण के लिए अरमाइन (ermine) फर, रेशम, मखमल, जरी जैसी कीमती वस्तुओं का प्रयोग केवल राजवंश के लोग ही कर सकते थे। अन्य वर्गों के लोग इस सामग्री का प्रयोग नहीं कर सकते थे।

प्रश्न 2.
यूरोपीय पोशाक संहिता और भारतीय पोशाक संहिता के बीच कोई दो फर्क बताइए।
उत्तर-

  1. यूरोपीय ड्रेस कोड (पोशाक संहिता) में तंग वस्त्रों को महत्त्व दिया जाता था ताकि चुस्ती बनी रहे। इसके विपरीत भारतीय ड्रेस कोड में ढीले-ढाले वस्त्रों का अधिक महत्त्व था। उदाहरण के लिए यूरोपीय लोग कसी हुई पतलून पहनते थे। परंतु भारतीय धोती अथवा पायजामा पहनते थे।
  2. यूरोपीय ड्रेस कोड में स्त्रियों के वस्त्र ऐसे होते थे जो उनकी शारीरिक बनावट को आकर्षक बनाएं। उदाहरण के लिए इंग्लैंड की महिलाएं अपनी कमर को सीधा रखने तथा पतला बनाने के लिए कमर पर एक तंग पेटी पहनती थीं। वे एक तंग अधोवस्त्र का प्रयोग भी करती थीं। इसके विपरीत भारतीय महिलाएं रंग-बिरंगे वस्त्र पहन कर अपनी सुंदरता बढ़ाती थीं। वे प्रायः रंगदार साड़ियां प्रयोग करती थीं।

प्रश्न 3.
1805 ई० में अंग्रेज अफसर बेंजामिन हाइन ने बंगलोर में बनने वाली चीज़ों की एक सूची बनाई थी, जिसमें निम्नलिखित उत्पाद भी शामिल थे :

  • अलग-अलग किस्म और नाम वाले जनाना कपड़े
  • मोटी छींट
  • मखमल
  • रेशमी कपड़े

बताइए कि बीसवीं सदी के प्रारंभिक दशकों में इनमें से कौन-कौन से किस्म के कपड़े प्रयोग से बाहर चले गए होंगे और क्यों ?
उत्तर-
20वीं शताब्दी के आरंभ में मलमल का प्रयोग बंद हो गया होगा। इसका कारण यह है कि इस समय तक इंग्लैंड के कारखानों में बना सूती कपड़ा भारत के बाजारों में बिकने लगा था। यह कपड़ा देखने में सुंदर, हल्का तथा सस्ता था। अतः भारतीयों ने मलमल के स्थान पर इस कपड़े का प्रयोग करना आरंभ कर दिया था।

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प्रश्न 4.
विंस्टन चर्चिल ने कहा था कि महात्मा गांधी ‘राजद्रोही मिडिल टेम्पल वकील’ से ज़्यादा कुछ नहीं हैं और (अधनंगे फकीर का दिखावा) कर रहे हैं।
चर्चिल ने यह वक्तव्य क्यों दिया और इससे महात्मा गांधी की पोशाक की प्रतीकात्मक शक्ति के बारे में क्या पता चलता है ?
उत्तर-
गांधी जी की छवि एक महात्मा के रूप में उभर रही थी। वह भारतीयों में अधिक-से-अधिक लोकप्रिय होते जा रहे थे। फलस्वरूप राष्ट्रीय आंदोलन दिन-प्रतिदिन सबल होता जा रहा था। विंस्टन चर्चिल यह बात सहन नहीं कर पा रहे थे। इसलिए उन्होंने उक्त टिप्पणी की।
महात्मा गांधी की पोशाक पवित्रता, सादगी तथा निर्धनता की प्रतीक थी। अधिकांश भारतीय जनता के भी यही लक्षण थे। अतः ऐसा लगता था जैसे महात्मा गांधी के रूप में पूरा राष्ट्र ब्रिटिश साम्राज्यवाद को चुनौती दे रहा हो।

प्रश्न 5.
सम्प्चुअरी (Sumptuary laws) कानूनों द्वारा उत्पन्न असमानताओं पर फ्रांसीसी क्रांति का क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर-
फ्रांसीसी क्रांति ने सम्प्चुअरी कानूनों (Sumptuary laws) द्वारा उत्पन्न सभी असमानताओं को समाप्त कर दिया। इसके बाद पुरुष और स्त्रियां दोनों ही खुले और आरामदेह वस्त्र पहनने लगे। फ्रांस के रंग-नीला, सफेद और लाल लोकप्रिय हो गए क्योंकि ये देशभक्त नागरिक के प्रतीक चिह्न थे। अन्य राजनीतिक प्रतीक भी अपने वेश-भूषा के अंग बन गए। इनमें स्वतंत्रता की लाल टोपी, लंबी पतलून और टोपी पर लगने वाला क्रांति का बैज (Cockade) शामिल थे। वस्त्रों की सादगी समानता की भावना को व्यक्त करती थी।

प्रश्न 6.
वस्त्रों की शैली पुरुषों तथा स्त्रियों के बीच अंतर पर बल देती थी। इस कथन की पुष्टि कीजिए।
उत्तर-
पुरुषों और स्त्रियों के वस्त्रों के फैशन में अंतर था। विक्टोरिया कालीन स्त्रियों को बचपन से ही विनीत, आज्ञाकारी, विनम्र और कर्तव्यपारायण बनने के लिए तैयार किया जाता था। उसी को आदर्श महिला माना जाता था जो कष्ट और पीड़ा सहन करने की क्षमता रखती हो। पुरुषों से यह अपेक्षा की जाती थी कि वे गंभीर, शक्तिशाली, स्वतंत्र
और आक्रामक हों जबकि स्त्रियां, विनम्र, चंचल, नाजुक तथा आज्ञाकारी हों। वस्त्रों के मानकों में इन आदर्शों की झलक मिलती थी। बचपन से ही लड़कियों को तंग वस्त्र पहनाए जाते थे। इसका उद्देश्य उनके शारीरिक विकास को नियंत्रित करना था। जब लड़कियाँ थोड़ी बड़ी होती तो उन्हें तंग कारसैट्स (Corsets) पहनने पड़ते थे। तंग कपड़े पहने पतली कमर वाली स्त्रियों को आकर्षक एवं शालीन माना जाता था। इस प्रकार विक्टोरिया कालीन पहरावे ने चंचल एवं आज्ञाकारी महिला की छवि उभारने में भूमिका निभाई।

प्रश्न 7.
यूरोप की बहुत-सी स्त्रियां नारीत्व के आदर्शों में विश्वास रखती थीं। उदाहरण देकर समझाइए।
उत्तर-
इसमें कोई संदेह नहीं कि बहुत-सी महिलाएं नारीत्व के आदर्शों में विश्वास रखती थीं। ये आदर्श उस वायु में थे जिसमें वे सांस लेती थीं, उस साहित्य में थे जो वे पढ़ती थीं और उस शिक्षा में थे जो वह स्कूल और घर में ग्रहण करती थीं। बचपन से ही वे यह विश्वास लेकर बड़ी होती थीं कि पतली कमर होना नारी धर्म है। महिला के लिए पीड़ा सहन करना अनिवार्य था। आकर्षक और नारी सुलभ लगने के लिए वे कोरसैट्ट (Corset) पहनती थीं। कोरसै? उनके शरीर को जो यातना तथा पीड़ा पहुंचाता था, उसे वे स्वाभाविक रूप से सहन करती थीं।

प्रश्न 8.
महिला-मैगज़ीनों के अनुसार तंग वस्त्र तथा ब्रीफ़ (Corsets) महिलाओं को क्या हानि पहुँचाते हैं ? इस संबंध में डॉक्टरों का क्या कहना था ?
उत्तर-
कई महिला मैगज़ीनों ने महिलाओं को तंग कपड़ों तथा ब्रीफ़ (Corsets) से होने वाली हानियों के बारे में लिखा। ये हानियां निम्नलिखित थीं-

  1. तंग पोशाक और कोरसैट्स (Corsets) छोटी लड़कियों को विकृत. तथा रोगी बनाती हैं।
  2. ऐसे वस्त्र शारीरिक विकास और रक्त संचार में बाधा डालते हैं।
  3. ऐसे वस्त्रों से मांसपेशियां (muscles) अविकसित रह जाती हैं और रीढ़ की हड्डी में झुकाव आ जाता है।
    डॉक्टरों का कहना था कि महिलाओं को अत्यधिक कमज़ोरी और प्रायः मूर्छित हो जाने की शिकायत रहती है। उनका शरीर निढाल रहता है।

प्रश्न 9.
अमेरिका के पूर्वी तट पर बसे गोरों ने महिलाओं की पारंपरिक पोशाक की किन बातों के कारण आलोचना की ?
उत्तर-
अमेरिका के पूर्वी तट पर बसे गोरों ने महिलाओं की पारंपरिक पोशाक की कई बातों के कारण आलोचना की। उनका कहना था कि

  1. लंबी स्कर्ट झाड़ का काम करती है और इसमें धूल तथा गंदगी इकट्ठी हो जाती है। इससे बीमारी पैदा होती है।
  2. यह स्कर्ट भारी और विशाल है। इसे संभालना कठिन है। 3. यह चलने फिरने में रुकावट डालती है। अत: यह महिलाओं के लिए काम करके रोज़ी कमाने में बाधक है।
    उनका कहना था कि वेशभूषा में सुधार महिलाओं की स्थिति में बदलाव लाएगा। यदि वस्त्र आरामदेह और सुविधाजनक हों तो महिलाएं काम कर सकती हैं, अपनी रोज़ी कमा सकती हैं और स्वतंत्र भी हो सकती हैं।

प्रश्न 10.
ब्रिटेन में हुई औद्योगिक क्रांति भारत के वस्त्र उद्योग के पतन का कारण कैसे बनी ?
उत्तर-
ब्रिटेन की औद्योगिक क्रांति से पहले भारत के हाथ से बने सूती वस्त्र की संसार भर में जबरदस्त मांग थी। 17वीं शताब्दी में पूरे विश्व के सूती वस्त्र का एक चौथाई भाग भारत में ही बनता था। 18वीं शताब्दी में अकेले बंगाल में दस लाख बुनकर थे। परंतु ब्रिटेन की औद्योगिक क्रांति ने कताई और बुनाई का मशीनीकरण कर दिया। अत: भारत की कपास कच्चे माल के रूप में ब्रिटेन में जाने लगी और वहां पर बना मशीनी माल भारत आने लगा। भारत में बना कपड़ा इसका मुकाबला न कर सका जिससे उसकी मांग घटने लगी। फलस्वरूप भारत के बुनकर बड़ी संख्या में बेरोजगार हो गये और मुर्शिदाबाद, मछलीपट्टनम तथा सूरत जैसे सूती वस्त्र केंद्रों का पतन हो गया।

दीर्घ उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
समूचे राष्ट्र को खादी पहनाने का गांधी जी का सपना भारतीय जनता के केवल कुछ हिस्सों तक ही सीमित क्यों रहा ?
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उत्तर-
गांधी जी पूरे देश को खादी पहनाना चाहते थे। परंतु उनका यह विचार कुछ ही वर्गों तक सीमित रहा। अन्य वर्गों को खादी से कोई लगाव नहीं था। इसके मुख्य कारण निम्नलिखित थे-

  1. कई लोगों को गांधी जी की भांति अर्द्धनग्न रहना पसंद नहीं था। वे एकमात्र लंगोट पहनना सभ्यता के विरुद्ध समझते थे। उन्हें इसमें लाज भी आती थी।
  2. खादी महंगी थी और देश के अधिकतर लोग निर्धन थे। कुछ स्त्रियां नौ-नौ गज़ की साड़ियां पहनती थीं। उनके लिए खादी की साड़ियां पहन पाना संभव नहीं था।
  3. जो लोग पश्चिमी वस्त्रों के प्रति आकर्षित हुए थे, उन्होंने भी खादी पहनने से इंकार कर दिया।
  4. देश का मुस्लिम समुदाय अपनी परंपरागत वेशभूषा बदलने को तैयार नहीं था।

प्रश्न 2.
अठारहवीं शताब्दी में पोशाक शैलियों और सामग्री में आए बदलावों के क्या कारण थे ?
उत्तर-
18वीं शताब्दी में पोशाक शैलियों तथा उनमें प्रयोग होने वाली सामग्री में निम्नलिखित कारणों से परिवर्तन आए-

  1. फ्रांसीसी क्रांति ने संप्चुअरी कानूनों को समाप्त कर दिया।
  2. राजतंत्र तथा शासक वर्ग के विशेषाधिकार समाप्त हो गए।
  3. फ्रांस के रंग-लाल, नीला तथा सफ़ेद-देशभक्ति के प्रतीक बन गए अर्थात् इन रंगों के वस्त्र लोकप्रिय होने लगे।
  4. समानता को महत्त्व देने के लिए लोग साधारण वस्त्र पहनने लगे।
  5. लोगों की वस्त्रों के प्रति रुचियां भिन्न-भिन्न थीं।
  6. स्त्रियों में सौंदर्य की भावना ने वस्त्रों में बदलाव ला दिया।
  7. लोगों की आर्थिक दशा ने भी वस्त्रों में अंतर ला दिया।

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प्रश्न 3.
अमेरिका में 1870 के दशक में महिला वेशभूषा में सुधार के लिए चलाए गए अभियान की संक्षिप्त जानकारी दीजिए।
उत्तर-
1870 के दशक में नेशनल वुमन सफ्रेज ऐसोसिएशन (National Women Suffrage Association) और अमेरिकन वुमन सफ्रेज ऐसोसिएशन (American Suffrage Association) ने महिला वेशभूषा में सुधार का अभियान चलाया। पहले संगठन की मुखिया स्टेंटन (Stanton) तथा दूसरे संगठन की मुखिया लूसी स्टोन (Lucy Stone) थीं। उन्होंने नारा लगाया वेशभूषा को सरल एवं सादा बनाओ, स्कर्ट का आकार छोटा करो और कारसैट्स (Corsets) का प्रयोग बंद करो। इस प्रकार अटलांटिक के दोनों ओर वेश-भूषा में विवेकपूर्ण सुधार का अभियान चल पड़ा। परंतु सुधारक सामाजिक मूल्यों को शीघ्र ही बदलने में सफल न हो पाये। उन्हें उपहास तथा आलोचना का सामना करना पड़ा। रूढ़िवादियों ने हर स्थान पर परिवर्तन का विरोध किया। उन्हें शिकायत थी कि जिन महिलाओं ने पारंपरिक पहनावा त्याग दिया है, वे सुंदर नहीं लगतीं। उनका नारीत्व और चेहरे की चमक समाप्त हो गई है। निरंतर आक्षेपों का सामना होने के कारण बहुत-सी महिला सुधारकों ने पुनः पारंपरिक वेश-भूषा को अपना लिया।
कुछ भी हो उन्नीसवीं शताब्दी के अंत तक परिवर्तन स्पष्ट दिखाई देने लगे। विभिन्न दबावों के कारण सुंदरता के आदर्शों और वेशभूषा की शैली दोनों में बदलाव आ गया। लोग उन सुधारकों के विचारों को स्वीकार करने लगे जिनका उन्होंने पहले उपहास उड़ाया था। नए युग के साथ नई मान्यताओं का सूत्रपात हुआ।

प्रश्न 4.
17वीं शताब्दी से 20वीं शताब्दी के आरंभिक वर्षों तक ब्रिटेन में वस्त्रों में होने वाले परिवर्तनों की जानकारी दीजिए। . .
उत्तर-
17वीं शताब्दी से पहले ब्रिटेन की अति साधारण महिलाओं के पास फलैक्स, लिनन तथा ऊन के बने बहुत ही कम वस्त्र होते थे। इनकी धुलाई भी कठिन थी।
भारतीय छींट-1600 के बाद भारत के साथ व्यापार के कारण भारत की सस्ती, सुंदर तथा आसान रख-रखाव वाली भारतीय छींट इंग्लैंड (ब्रिटेन) पहुंचने लगी। अनेक यूरोपीय महिलाएं इसे आसानी से खरीद सकती थीं और पहले से अधिक वस्त्र जुटा सकती थीं।

औद्योगिक क्रांति और सूती कपड़ा-उन्नीसवीं शताब्दी में औद्योगिक क्रांति के समय बड़े पैमाने पर सूती वस्त्रों का उत्पादन होने लगा। वह भारत सहित विश्व के अनेक भागों को सूती वस्त्रों का निर्यात भी करने लगा। इस प्रकार सूती कपड़ा बहुत बड़े वर्ग को आसानी से उपलब्ध होने लगा। 20वीं शताब्दी के आरंभ तक कृत्रिम रेशों से बने वस्त्रों ने वस्त्रों को और अधिक सस्ता कर दिया। इनकी धुलाई और संभाल भी अधिक आसान थी। वस्त्रों के भार तथा लंबाई में परिवर्तन-1870 के दशक के अंतिम वर्षों में भारी भीतरी वस्त्रों का धीरे-धीरे त्याग कर दिया गया। अब वस्त्र पहले से अधिक हल्के, अधिक छोटे और अधिक सादे हो गए। फिर भी 1914 तक वस्त्रों की लंबाई में कमी नहीं आई। परंतु 1915 तक स्कर्ट की लंबाई एकाएक कम हो गई। अब यह घुटनों तक पहुंच गई।

प्रश्न 5.
अंग्रेजों की भारतीय पगड़ी तथा भारतीयों की अंग्रेजों के टोप के प्रति क्या प्रतिक्रिया थी और क्यों?
उत्तर-
भिन्न-भिन्न संस्कृतियों में कुछ विशेष वस्त्र विरोधाभासी संदेश देते हैं। इस प्रकार की घटनाएं संशय और विरोध पैदा करती हैं। ब्रिटिश भारत में भी वस्त्रों का बदलाव इन विरोधों से होकर निकला। उदाहरण के लिए हम पगड़ी और टोप को लेते हैं। जब यूरोपीय व्यापारियों ने भारत आना आरंभ किया तो उनकी पहचान उनके टोप से की जाने लगी। दूसरी ओर भारतीयों की पहचान उनकी पगड़ी थी। ये दोनों पहनावे न केवल देखने में भिन्न थे, बल्कि ये अलगअलग बातों के सूचक भी थे। भारतीयों की पगड़ी सिर को केवल धूप से ही नहीं बचाती थी बल्कि यह उनके आत्मसम्मान का चिह्न भी थी। बहुत से भारतीय अपनी क्षेत्रीय अथवा राष्ट्रीय पहचान दर्शाने के लिए जान बूझ कर भी पगड़ी पहनते थे। इसके विपरीत पाश्चात्य परंपरा में टोप को सामाजिक दृष्टि से उच्च व्यक्ति के प्रति सम्मान दर्शाने के लिए उतारा जाता था। इस परंपरावादी भिन्नताओं ने संशय की स्थिति उत्पन्न कर दी। जब कोई भारतीय किसी अंग्रेज़ अधिकारी से मिलने जाता था और अपनी पगड़ी नहीं उतारता था तो वह अधिकारी स्वयं को अपमानित महसूस करता था।

प्रश्न 6.
1862 में ‘जूता सभ्याचार’ (पादुका सम्मान) संबंधी मामले का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
भारतीयों को अंग्रेज़ी अदालतों में जूता पहन कर जाने की अनुमति नहीं थी। 1862 ई० में सूरत की अदालत में जूता सभ्याचार संबंधी एक प्रमुख मामला आया। सूरत की फ़ौजदारी अदालत में मनोकजी कोवासजी एंटी (Manockjee Cowasjee Entee) नामक व्यक्ति ने जिला जज के सामने जूता उतारकर जाने से मना कर दिया था। जज ने उन्हें जूता उतारने के लिए बाध्य किया, क्योंकि बड़ों का सम्मान करना भारतीयों की परंपरा थी। परंतु मनोकजी अपनी बात पर अड़े रहे। उन्हें अदालत में जाने से रोक दिया गया। अतः उन्होंने विरोध स्वरूप एक पत्र मुंबई (बंबई) के गवर्नर को लिखा।

अंग्रेज़ों ने दबाव देकर कहा कि क्योंकि भारतीय किसी पवित्र स्थान अथवा घर में जूता उतार कर प्रवेश करते हैं, इसलिए वे अदालत में भी जूता उतार कर प्रवेश करें। इसके विरोध में भारतीयों ने प्रत्युत्तर में कहा कि पवित्र स्थान तथा घर में जूता उतार कर जाने के पीछे दो विभिन्न अवधारणाएं हैं। प्रथम इससे मिट्टी और गंदगी की समस्या जुड़ी है। सड़क पर चलते समय जूतों को मिट्टी लग जाती है। इस मिट्टी को सफ़ाई वाले स्थानों पर नहीं जाने दिया जा सकता था। दूसरे, वे चमड़े के जूते को अशुद्ध और उसके नीचे की गंदगी को प्रदूषण फैलाने वाला मानते हैं। इसके अतिरिक्त, अदालत जैसा सार्वजनिक स्थान आखिर घर तो नहीं है। परंतु इस विवाद का कोई हल न निकला। अदालत में जूता पहनने की अनुमति मिलने में बहुत से वर्ष लग गए।

प्रश्न 7.
भारत में चले स्वदेशी आंदोलन पर एक टिप्पणी लिखिए।
उत्तर-
स्वदेशी आंदोलन 1905 के बंग-भंग के विरोध में चला। भले ही इसके पीछे राष्ट्रीय भावना काम कर रही थी तो भी इसके पीछे मुख्य रूप से पहनावे की ही राजनीति थी।
पहले तो लोगों से अपील की गई कि वे सभी प्रकार के विदेशी उत्पादों का बहिष्कार करें और माचिस तथा सिगरेट जैसी चीज़ों को बनाने के लिए अपने उद्योग लगाएं। जन आंदोलन में शामिल लोगों ने शपथ ली कि वे औपनिवेशिक राज का अंत करके ही दम लेंगे। खादी का प्रयोग देशभक्ति का प्रतीक बन गया। महिलाओं से अनुरोध किया गया कि वे रेशमी कपड़े तथा काँच की चूड़ियां फेंक दें और शंख की चूड़ियां पहनें। हथकरघे पर बने मोटे कपड़े को लोकप्रिय बनाने के लिए गीत गाए गए तथा कविताएं रची गईं।

वेशभूषा में बदलाव की बात उच्च वर्ग के लोगों को अधिक भायी क्योंकि साधनहीन ग़रीबों के लिए नई चीजें खरीद पाना मुश्किल था। लगभग पंद्रह साल के बाद उच्च वर्ग के लोग भी फिर से यूरोपीय पोशाक पहनने लगे। इसका कारण यह था कि भारतीय बाजारों में भरी पड़ी सस्ती ब्रिटिश वस्तुओं को चुनौती देना लगभग असंभव था। इन सीमाओं के बावजूद स्वदेशी के प्रयोग ने महात्मा गांधी को यह सीख अवश्य दी कि ब्रिटिश राज के विरुद्ध प्रतीकात्मक लड़ाई में कपड़े की कितनी महत्त्वपूर्ण भूमिका हो सकती है।

प्रश्न 8.
वस्त्रों के साथ गांधी जी के प्रयोगों के बारे में बताएं।
उत्तर-
गांधी जी ने समय के साथ-साथ अपने पहनावे को भी बदला। एक गुजराती बनिया परिवार में जन्म लेने के कारण बचपन में वह कमीज़ के साथ धोती अथवा पायजामा पहनते थे और कभी-कभी कोट भी। लंदन में उन्होंने पश्चिमी सूट अपनाया। भारत में वापिस आने पर उन्होंने पश्चिमी सूट के साथ पगड़ी पहनी।
शीघ्र ही गांधी जी ने सोचा कि ठोस राजनीतिक दबाव के लिए पहनावे को अनोखे ढंग से अपनाना उचित होगा। 1913 में डर्बन में गांधी जी ने सिर के बाल कटवा लिए और धोती कुर्ता पहन कर भारतीय कोयला मज़दूरों के साथ विरोध करने के लिए खड़े हो गए। 1915 ई० में भारत वापसी पर उन्होंने काठियावाड़ी किसान का रूप धारण कर लिया। अंततः 1921 में उन्होंने अपने शरीर पर केवल एक छोटी सी धोती धारण कर ली। गांधी जी इन पहनावों को जीवन भर नहीं अपनाना चाहते थे। वह तो केवल एक या दो महीने के लिए ही किसी भी पहनावे को प्रयोग के रूप में अपनाते थे। परंतु शीघ्र ही उन्होंने अपने पहनावे को ग़रीबों के पहनावे का रूप दे दिया। इसके बाद उन्होंने अन्य वेशभूषाओं का त्याग कर दिया और जीवन भर एक छोटी सी धोती पहने रखी। इस वस्त्र के माध्यम से वह भारत के साधारण व्यक्ति की छवि पूरे विश्व में दिखाने में सफल रहे और भारत-राष्ट्र का प्रतीक बन गये।
PSEB 9th Class SST Solutions History Chapter 8 पहनावे का सामाजिक इतिहास 2

PSEB 9th Class SST Solutions History Chapter 8 पहनावे का सामाजिक इतिहास

पहनावे का सामाजिक इतिहास PSEB 9th Class History Notes

  • सम्प्चुअरी कानून – मध्यकालीन फ्रांस के ये कानून निम्न वर्ग के व्यवहार को नियंत्रित करते थे। इनके अनुसार वे लोग राजवंश के लोगों जैसी वेश-भूषा धारण नहीं कर सकते थे।
  • नारी सुंदरता तथा वस्त्र – इंग्लैंड में नारी सुंदरता को विशेष महत्त्व दिया जाता था। अतः उन्हें विशेष प्रकार के तंग वस्त्र पहनाए जाते थे ताकि उनकी शारीरिक बनावट में निखार आए।
  • वस्त्रों के प्रति स्त्रियों की प्रतिक्रिया – सभी-स्त्रियों ने निर्धारित वस्त्र-शैली को स्वीकार न किया। कई स्त्रियों ने पीड़ा और कष्ट देने वाले वस्त्रों का विरोध किया।
  • नयी सामग्री – 17वीं शताब्दी में ब्रिटेन की अधिकतर स्त्रियां फ्लैक्स, लिनन या ऊन से बने वस्त्र पहनती थीं जिन्हें धोना कठिन था। बाद में वे सूती वस्त्र (कपास से बने) पहनने लगीं। ये सस्ते भी थे और इन्हें धोना भी आसान था।
  • महायुद्ध और पहरावा – दो महायुद्धों के परिणामस्वरूप पहरावे में काफ़ी अंतर आया। कामकाजी महिलाएं पतलून, ब्लाऊज़ तथा स्कार्फ पहनने लगीं।
  • भारत में पश्चिमी वस्त्र – भारत में पश्चिमी वस्त्रों को सर्वप्रथम पारसियों ने अपनाया। दफ्तरों में काम करने वाले बंगाली बाबू तथा ईसाई धर्म ग्रहण करने वाले पिछड़े लोग भी पश्चिमी वस्त्र पहनने लगे।
  • जूतों सम्बन्धी टकराव – ब्रिटिश काल में अदालतों में जूते पहन कर जाने पर रोक थी। यह नियम टकराव का विषय बन गया।
  • स्वदेशी आंदोलन – यह आंदोलन 1905 के बंगाल-विभाजन (लॉर्ड कर्जन द्वारा) के विरोध में चला। इसमें ब्रिटिश वस्तुओं का बहिष्कार किया गया तथा स्वदेशी माल के प्रयोग पर बल दिया गया। इससे भारतीय उद्योगों को बल मिला।
  • खादी – गांधी जी पूरे भारत को खादी पहनाना चाहते थे। परंतु कुछ वर्गों में पश्चिमी वस्त्रों का आकर्षण था। इसके अतिरिक्त खादी अपेक्षाकृत महंगी थी। अतः गांधी जी का सपना पूरा न हो सका।
  • फिफ्टी – सिक्ख सैनिक पाँच मीटर की पगड़ी बांधते थे, परंतु युद्ध के दौरान हमेशा भारी और लंबी पगड़ी पहनना संभव नहीं था। इसलिए सैनिकों के लिए पगड़ी की लंबाई कम करके दो मीटर कर दी गई। इस छोटी पगड़ी को फिफ्टी कहा जाता था।
  • पंजाबी लोगों का पहनावा एवं सभ्यता – पंजाबी लोगों के पहनावे और सभ्यता पर अंग्रेजी शासन का बहुत कम प्रभाव पड़ा। स्त्रियों का पहनावा लंबा कुर्ता, सलवार तथा दुपट्टा ही रहा। पुरुष मुख्य रूप से कुर्ता, पायजामा तथा पगड़ी पहनते थे। शादी विवाह पर रंगदार तथा सजावट वाले कपड़े पहनने का रिवाज़ था। शोक के समय सफेद अथवा हल्के रंग के वस्त्र पहने जाते थे। परंतु आज के ग्लोबल विश्व में पंजाबी पहनावे का रूप बदलता जा रहा है।
  • 1842 – अंग्रेज़ वैज्ञानिक लुइस सुबाब द्वारा कृत्रिम रेशों से कपड़ा तैयार करने की मशीन का निर्माण।
  • 1830 ई. – इग्लैंड में महिला संस्थानों द्वारा स्त्रियों के लिए लोकतांत्रिक अधिकारों की मांग।
  • 1870 ई. – दो संस्थाओं नेशनल वुमैन सफरेज़ एसोसिएशन और ‘अमेरिकन वुमैन सफरेज़ एसोसिएशन’ द्वारा स्त्रियों के पहनावे में सुधार के लिए आंदोलन ।

PSEB 9th Class Agriculture Solutions Chapter 4 Marketing of Farm Produce

Punjab State Board PSEB 9th Class Agriculture Book Solutions Chapter 4 Marketing of Farm Produce Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 9 Agriculture Chapter 4 Marketing of Farm Produce

Agriculture Guide for Class 9 PSEB Marketing of Farm Produce Textbook Questions and Answers

(A) Answer in 1-2 words:

Question 1. Is the efficient marketing of produce start before or after harvesting of the crop?
Answer:
Before harvesting.

Question 2.
What is the major job of the Market Committee for the farmers?
Answer:
To protect the interests of the farmers.

Question 3.
If there is faulty weighment of produce to whom the farmers should complain?
Answer:
Higher officials of the Market Committee.

PSEB 9th Class Agriculture Solutions Chapter 4 Marketing of Farm Produce

Question 4.
Before the farmers bring their produce in the market what are the two major issues to be taken care of?
Answer:

  • Moisture content should not be more than the prescribed limit.
  • Cleaning of produce.

Question 5.
Name the agency which has established bulk handling units at Mandi Gobindgarh, Moga, and Jagraon.
Answer:
Food Corporation of India (FCI).

Question 6.
Which form is to be procured by the farmers from the commission agents after the weighment of produce?
Answer:
J-Form.

Question 7.
What are different sources of market information about the prices of different kind of farm produce?
Answer:
TV, Radio and Newspaper etc.

Question 8.
What is basis on which the government procurement agencies quote the prices of agricultural produce in regulated market?
Answer:
On the basis of moisture content.

Question 9.
In the case of doubtful weighment of the produce what per cent of produce is rechecked for test weighment free of cost?
Answer:
10% of the produce free of cost.

Question 10.
Which Act, gives right to the farmers for test weighment of the produce?
Answer:
Under Market Act 1961.

PSEB 9th Class Agriculture Solutions Chapter 4 Marketing of Farm Produce

(B) Answer in 1-2 sentences:

Question 1.
What are different issues relating to the farming on which the expert needs to be consulted?
Answer:
For sowing, hoeing, irrigation, right combination of chemical fertilizers, use of weedicides and insecticides, harvesting and threshing etc. experts needs to be consulted.

Question 2.
What points are to be taken care of in choosing the crops for cultivation?
Answer:
Farmers should choose such crops which can produce more monetary benefits, they should sow best quality variety of the crop.

Question 3.
Before bringing produce to the market what major factors are to be examined?
Answer:

  • Moisture content should be according to the prescribed limits.
  • Bring the crop after grading.
  • Weigh the product before bringing it to the market.

Question 4.
What factors should be taken care of while disposal of farm produce in the market?
Answer:
Farmer should supervise his produce at the time of cleaning, weighing and at the time of auction. This is done to avoid any losses in the form of price. If farmer finds the offered price to be less than his expectations, he can refuse to sell his produce. In case of any problem in the disposal of his produce he can contact the higher officials of the Market Committee.

Question 5.
What are advantages of disposing of the produce at the bulk handling units/silos?
Answer:
Advantages of disposing of the produce at the bulk handling units/silos are

  • on-the-spot payment in cash.
  • time is saved and bag filling and weighment is done without paying i.e. no market charges.
  • produce is saved from losses occuring due to natural calamities like rain, storms, etc.

Question 6.
Why the supervision of the produce is important in the market?
Answer:
It is commonly seen that palledars mix produce of one farmer with the produce of other farmer and sometimes they mix- the produce with waste material. This causes losses to the farmers. Therefore, supervision of the produce is important in the market.

PSEB 9th Class Agriculture Solutions Chapter 4 Marketing of Farm Produce

Question 7.
What are advantages of the knowledge of prices of produce in different markets?
Answer:
Depending on the produce volume arrivals in the market prices keep fluctuating. Farmers should remain informed about the prices in the nearby markets, so that they can sell their produce when rates are higher.

Question 8.
What are two major functions of the Market Committee?
Answer:

  • Main job of the Market Committee is to protect the interests of the farmers in the market.
  • Market Committee coordinates the auction process.
  • It also ensures the right weighment of the produce.

Question 9.
What is meant by Grading?
Answer:
Produce is categorised in different groups based on size, colour, little damaged, etc. one can earn higher profits by grading or categorizing the produce.

Question 10.
What are the advantages of taking J-Form?
Answer:
Farmers should get J-Form after the sale of the produce. This form contains all the details about the weight of the produce, price and total charges are mentioned, name of purchaser etc. This form also helps in getting bonus later on announced by Government and fudging of the market fees by the commission agents can be saved.

(C) Answer in 5-6 sentences :

Question 1.
Write Short note on Public intervention in marketing.
Answer:
In olden times farmers were totally dependent on the lenders or businessmen. They usually paid less amount to the farmers for their produce. Now government has set certain laws which help the farmers against such loot. Government has established Market Committees and Cooperative societies. Farmers are getting right price for their produce because government announces MSP for wheat and rice etc. In case of any doubt farmer can get weighed his produce again free of cost. Government has established mechanical handling units. Farmer can get Form-J from the purchaser after selling his produce. This form helps the farmer to avail bonus announced by the government.

PSEB 9th Class Agriculture Solutions Chapter 4 Marketing of Farm Produce

Question 2.
Give a brief account of Cooperative Marketing.
Answer:
Farmers can get right price for their produce by cooperative marketing. These societies usually act as commission agencies. These societies are formed by farmers themselves. These help the farmers to get good price of their produce. Through these societies farmers can get their payments from the purchaser easily and quickly. These societies help the farmers by providing other facilities; e.g. loans, fertilizers, insecticides are provided to the farmers at lower interest rate and subsidized rates.

Question 3.
What are advantages of grading of the produce ?
Answer:
Graded produce can be sold at higher price. Good part of the produce can be sold separately. The other part of the produce which may be little damaged or may not be looking good can be sold differently. If damaged produce is placed below the good crop and sold in this way. For few days we can sell such produce but later on it will badly affect our goodwill and purchaser will always have doubt on the quality of our produce. If we sell our produce honestly, purchaser will wait for us and we can survive in the market for longer time.

Question 4.
Write a brief note on mechanical handling units.
Answer:
The Punjab Mandi Board has established some mechanical handling units in some of the mandies. These help in the cleaning of produce, bag filling and weighment by mechanical methods within no time. If labourers are to_do this work, it takes hours to finish the work. Farmer has to spend very low time in such units. Payment is done on the spot. Food Corporation of India has set up bulk handling units for storage and handling of grains of wheat on large scale at Moga, Gobindgarh and JJagraon. Farmers can sell their produce directly here. Payment is done on the same day, there are no market charges, produce is also saved from natural calamities; like rain, storms etc.

Question 5.
What are advantages of efficient marketing of farm produce?
Answer:
Crop growing requires lot of time and hard work, farmers should get proper price for their produce. For this, marketing plays an important role. Farmers should take care of the marketing from the time they sow their crop. Farmers should cultivate such crops which can bring more monetary benefits. Best quality seed of improved variety of the crop which can bring more benefit, should be sown. Take care of the growing crop. Farmers should take expert opinion for sowing, hoeing, application of fertilizer, irrigation, harvesting etc. Bring the produce in the market after grading and weighing. Try to reach the market in time so that produce can be sold on the same day.

Very Short Answer Type Questions:

Question 1.
How can we get right price of our produce?
Answer:
By taking care of the marketing of the produce.

Question 2.
When does the right marketing start?
Answer:
From the time of sowing.

Question 3.
What should be moisture content in the produce?
Answer:
It should be according to the prescribed limits.

Question 4.
Where should the farmer be at the time of cleaning, weighment and auction?
Answer:
He should be near his produce.

Question 5.
What type of crops should be cultivated ? Which can bring more benefits?
Answer:
Cultivate those crops which are in demand and can be sold easily and at good price.

PSEB 9th Class Agriculture Solutions Chapter 4 Marketing of Farm Produce

Question 6.
Should farmers collect information about nearby market before going to market for selling his produce?
Answer:
Yes, he should collect information about the market.

Question 7.
Is there any need to take care of for proper marketing or not?
Answer:
It is very important to take care of the marketing.

Question 8.
Why should farmer weigh his produce before going to sell it in the market?
Answer:
This helps the farmer to know how much money he may get in the market.

Question 9.
Why is it necessary to get form-J ?
Answer:
Form-J contains the details of earning, expenditure etc. and farmer can get an idea of total.

Question 10.
If farmer is not getting right price for his produce, to whom he should complain?
Answer:
He should take the help of market inspector.

Question 11.
What is the benefit of grading of the produce?
Answer:
We can get higher price by grading our produce.

Question 12.
What should a farmer do to make his goodwill?
Answer:
Farmer should sell his produce with honesty to make his goodwill.

Question 13.
What is the meaning of the marketing of the produce?
Answer:
To get higher and proper price for the produce in the market.

Question 14.
What is the requirement to get best quality produce?
Answer:
Treated best quality improved seeds and good management.

Question 15.
How much extra a farmer can earn if produce is sold by grading?
Answer:
10 to 20%.

Question 16.
When should the produce be brought to the market?
Answer:
In the morning.

Question 17.
If we harvest before proper ripening of the erop, what happens?
Answer:
Grain shrinks and quality deteriorates.

Question 18.
What-happens if harvesting is done late i.e. delayed?
Answer:
Grain loss occurs and yield becomes less.

PSEB 9th Class Agriculture Solutions Chapter 4 Marketing of Farm Produce

Question 19.
Where is the grading assistant posted?
Answer:
In the market.

Short Answer Type Questions:

Question 1.
What do you mean by proper method to store the produce?
Answer:
Proper method 4;o store the crops means all the things involving hoeing, use of insecticides, pesticides, fertilizers, watering, harvesting and threshing etc. Expert opinion should be taken to do all these activities.

Question 2.
What should a farmer do to get more price for his produce?
Answer:

  • Farmer should bring his produce in the market after weighment.
  • He should grade his produce in different categories before bringing it to the market.
  • Moisture content in the grains or products should be according to the prescribed value.

Long Answer Type Questions:

Question 1.
What points should be kept in mind to sell the produce in the market?
Answer:

  • The farmer should supervise his produce at the time of cleaning, weighment and auction.
  • If farmer is facing some problem in the disposal of his produce or if he does not get proper price for his produce, he should contact the higher officials of the market.
  • At the time of weighment farmers should check the legal marks of approval by the government on the balance and on the weights.
  • Farmer should get receipt after selling his produce.

Question 2.
What points should be kept in mind by farmers to earn more profit?
Answer:

  • Cultivate those crops which are in demand and can be sold easily and at higher price.
  • Sow after knowing the best quality improved varieties.
  • Protect the crop and preserve the produce properly.
  • Take expert opinion for various activities, like hoeing, use of insecticides, pesticides, fertilizers, irrigation, harvesting, and threshing, etc.

PSEB 9th Class Agriculture Solutions Chapter 4 Marketing of Farm Produce

PSEB 9th Class Agriculture Guide Marketing of Farm Produce Important Questions and Answers

Multiple Choice Questions:

1. Produce should he brought to the market :
(a) at night
(b) in the morning
(c) in the evening
(d) while it is raining.
Answer:
(b) in the morning

2. Effect of late harvesting is :
(a) Grain loss occur
(b) Nothing happen
(c) We get more profit
(d) All wrong
Answer:
(a) Grain loss occur

3. Correct statement is :
(a) Produce should be brought to market after grading.
(b) Market act 1961 gives right to the farmers for test weighment of the produce.
(c) Farmers should get form J
(d) All correct
Answer:
(d) All correct

4. Farmers can earn extra if produce is sold by grading :
(a) 10-20%
(b) 50%
(c) 1%
(d) 40%.
Answer:
(a) 10-20%

True/False:

1. If marketing is done in a proper way one can earn more income.
Answer:
True

2. Sowing, hoeing, irrigation, use of weedicides and insecticides etc. should be done with the expert opinions.
Answer:
True

3. For good marketing, one should take care of the crop from the time of sowing.
Answer
True

4. Get form and receipt from the purchaser so that farmer could know their gains and investment.
Answer:
True

5. Farmers should not keep and get the information and knowledge of the markets near them.
Answer:
False

PSEB 9th Class Agriculture Solutions Chapter 4 Marketing of Farm Produce

Fill in the Blanks:

1. After threshing, ……………… the produce.
Answer:
weigh

2. Produce should be marketed through ……………… societies.
Answer:
cooperative

3. Punjab Mandi Board has set up ……………… units in Punjab in some of the man dies.
Answer:
mechanical handling

4. Bulk handling units have been established by ……………… at Mandi Gobindgarh, Moga, and Jagraon for storage and handling of wheat on large scale.
Answer:
Food Corporation of India

5. ………………. can be known from Radio, T.V., and Newspapers, etc.
Answer:
Rates

PSEB 9th Class Physical Education Solutions Chapter 4 प्राथमिक सहायता

Punjab State Board PSEB 9th Class Physical Education Book Solutions Chapter 4 प्राथमिक सहायता Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 9 Physical Education Chapter 4 प्राथमिक सहायता

PSEB 9th Class Physical Education Guide प्राथमिक सहायता Textbook Questions and Answers

बहुत छोटे उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
प्राथमिक सहायता के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर-
डॉक्टरी सहायता के मिलने से पहले जो रोगी या घायल की चिकित्सा की जाती है, उसे प्राथमिक सहायता (First Aid) कहते हैं।

प्रश्न 2.
फ्रैक्चर का क्या अर्थ है ?
उत्तर-
किसी हड्डी के टूटने या उसमें दरार पड़ जाने को फ्रैक्चर कहा जाता है।

प्रश्न 3.
बेहोशी क्या है ?
उत्तर-
बेहोशी का अर्थ है चेतना का खोना।

PSEB 9th Class Physical Education Solutions Chapter 4 प्राथमिक सहायता

प्रश्न 4.
विद्युत् का झटका क्या है ?
उत्तर-
विद्युत् की नंगी तार जिसमें धारा प्रवाहित हो रही हो, के अचानक हाथ से लगने से जो झटका लगता है।

प्रश्न 5.
फ्रैक्चर की किन्हीं दो किस्मों के नाम लिखें।
उत्तर-
(1) सरल फ्रैक्चर (2) बहुखण्ड फ्रैक्चर ।

प्रश्न 6.
जटिल फ्रैक्चर अधिक हानिकारक होता है। ठीक अथवा ग़लत?
उत्तर-
ठीक।

प्रश्न 7.
दबी हुई फ्रैक्चर का नुकसान नहीं होता ? ठीक अथवा ग़लत ?
उत्तर-
ग़लत।

प्रश्न 8.
बेहोशी के कोई दो चिन्ह लिखें।
उत्तर-

  1. रोगी की नब्ज़ धीरे-धीरे चलती है
  2. त्वचा ठण्डी हो जाती है।

प्रश्न 9.
जोड़ का उतरना क्या होता है ?
उत्तर-
हड्डी का जोड़ वाले स्थान से खिसकना, जोड़ उतरना (Dislocation) कहलाता

प्रश्न 10.
पट्टे के तनाव अथवा मोच में अन्तर होता है ?
उत्तर-
हां, अन्तर होता है।

PSEB 9th Class Physical Education Solutions Chapter 4 प्राथमिक सहायता

छोटे उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
प्राथमिक सहायता के विषय में आप क्या जानते हैं ?
(What do you know about First Aid ?)
उत्तर-
हमारे दैनिक जीवन में प्रायः दुर्घनाएं तो होती रहती हैं। स्कूल जाते समय साइकिल से टक्कर, खेल के मैदान में चोट लग जाना आदि। प्रायः घटना स्थल पर डॉक्टर उपस्थित नहीं होता। डॉक्टर के पहुंचने से पहले रोगी या घायल को जो सहायता दी जाती है, उसे प्राथमिक सहायता (First Aid) कहते हैं।

प्रश्न 2.
प्राथमिक सहायता के क्या नियम हैं ?
(Describe the various rules of First Aid ?)
उत्तर-
प्राथमिक सहायता के मुख्य नियम इस प्रकार हैं –

  • रोगी को हमेशा आरामदायक हालत में रखो।
  • रोगी को हमेशा धैर्य देना चाहिए।
  • रोगी को प्रेम और हमदर्दी देनी चाहिए।
  • यदि खून बह रहा हो तो सबसे पहले खून बन्द करने का प्रबन्ध करना चाहिए।
  • भीड़ को अपने इर्द-गिर्द से दूर कर दो।
  • रोगी के कपड़े इस ढंग से उतारो जिससे उसे कोई तकलीफ़ न हो।
  • उसे तुरन्त डॉक्टर के पास ले जाना चाहिए।
  • उतनी देर तक सहायता देते रहना चाहिए जितनी देर तक उसमें प्राण बाकी हैं।
  • यदि सांस रुकता हो तो बनावटी सांस देने का प्रबन्ध करना चाहिए।
  • यदि ज़ख्म छिल गया हो तो उसे साफ़ करके पट्टी बांध दो।
  • दुर्घटना के समय जिस चीज़ की पहले आवश्यकता हो उसे पहले करना चाहिए।
  • रोगी को नशीली चीज़ न दो।
  • हड्डी टूटने की हालत में रोगी को ज्यादा हिलाना-जुलाना नहीं चाहिए।
  • रोगी को हमेशा खुली हवा में रखो।
  • यदि रोगी सड़क पर धूप में पड़ा हो तो उसे ठंडी छांव में पहुंचाना चाहिए।

प्रश्न 3.
प्राथमिक सहायता क्या होती है ? इसकी हमें क्यों ज़रूरत है ?
(What is First Aid ? Why we need it ?)
उत्तर-
हमारे जीवन में प्रायः दुर्घटनाएं होती रहती हैं। खेल के मैदान में खेलते समय, सड़क पर चलते समय, स्कूल की प्रयोगशाला में काम करते समय, घर में सीढ़ियां चढ़तेउतरते समय, रसोई घर में काम करते हुए या स्नानागृह में स्नान करते समय व्यक्ति किसी भी प्रकार की दुर्घटना का शिकार हो सकता है। कई बार खेल के मैदान में अनेक दुर्घटनाएं हो जाती हैं। इन दुर्घटनाओं से बचाव के लिए आवश्यक है कि खेल का मैदान न ही अधिक कठोर हो और नन्ही अधिक नर्म। खेल का सामान भी ठीक प्रकार का बना हो और खेल किसी कुशल-प्रबन्धक की देख-रेख में खेली जाए। ऐसे समय यह तो सम्भव नहीं कि डॉक्टर हर जगह मौजूद हो। डॉक्टर के पहुंचने से पहले या डॉक्टर तक ले जाने से पहले उपलब्ध साधनों से दुर्घटना ग्रस्त व्यक्ति को जो सहायता दी जाती है, उसे प्राथमिक सहायता कहते हैं।

इस प्रकार डॉक्टरी सहायता के मिलने से पहले जो रोगी या घायल की चिकित्सा की जाती है, उसे प्राथमिक सहायता (First Aid) कहते हैं।
यदि घायल या दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति को प्राथमिक सहायता प्रदान न की जाए तो हो सकता है कि घटना स्थल पर ही दम तोड़ दे।
अन्त में हम यह कह सकते हैं कि प्राथमिक सहायता घायल या रोगी के लिए जीवनरूपी अमृत के समान है। इसलिए प्राथमिक सहायता जीवन में महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है।

प्रश्न 4.
हॉकी खेलते समय यदि तुम्हारे घुटने की हड्डी उतर जाए तो आप क्या करोगे ?
(What will you do if you got dislocation of your knee joint while playing Hockey ?)
उत्तर-
यदि हॉकी खेलते समय मेरे घुटने की हड्डी उतर जाये तो मैं इसका इलाज इस प्रकार करूंगा हड्डी को इलास्टिक वाली पट्टी बांधूगा। मैं यह पूरी कोशिश करूंगा कि चोट वाली जगह पर किसी भी प्रकार का भार न पड़े। चोट वाली जगह पर स्लिग डाल लूंगा ताकि हड्डी में हिलजुल न हो।

बड़े उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
प्राथमिक सहायक (First Aider) के गुणों और कर्तव्यों का वर्णन करो।
(What are the qualities and duties of First Aider ?)
उत्तर–
प्राथमिक सहायक में निम्नलिखित गुण होने चाहिएं –

  • प्राथमिक सहायक चुस्त तथा समझदार हो।
  • वह शैक्षणिक योग्यता रखता हो।
  • उसमें सहन-शक्ति होनी चाहिए।
  • उसका दूसरों से व्यवहार अच्छा हो।
  • दूसरों से किसी प्रकार का भेद-भाव न करे।
  • प्रत्येक कार्य को तेज़ी से करे।
  • उसका स्वास्थ्य अच्छा होना चाहिए।
  • उसका चरित्र अच्छा हो।
  • उसमें यह शक्ति होनी चाहिए कि कठिन से कठिन कार्य को आसानी से करे।
  • वह ईमानदार होना चाहिए।
  • वह चुस्त होना चाहिए।
  • उसमें योजना बनाने की शक्ति होनी चाहिए।
  • प्राथमिक सहायक सहानुभूतिपूर्ण होना चाहिए।
  • वह साहस वाला होना चाहिए।
  • प्राथमिक सहायक सोचने की शक्ति वाला होना चाहिए।

प्राथमिक सहायक के कर्त्तव्य इस प्रकार हैं –

  1. पहला कार्य पहले करना चाहिए।
  2. रोगी को सदैव हौसला देना चाहिए।
  3. जितना शीघ्र हो सके डॉक्टर का प्रबन्ध करना चाहिए।
  4. यदि आवश्यक हो तो रोगी के कपड़े आवश्यकतानुसार उतार देने चाहिएं।
  5. रोगी के प्राण बचाने के लिए अन्तिम श्वास तक सहायता करनी चाहिए।
  6. रोगी को सदैव आराम की दशा में रखें।
  7. रोगी के इर्द-गिर्द शोर न हो।
  8. यदि रक्त बह रहा हो तो रक्त को बन्द करने का प्रबन्ध पहले करना चाहिए।
  9. रोगी को सदैव खुली वायु में रखें।
  10. यदि दुर्घटना बिजली के करंट या गैस से हुई हो तो एक-दम बिजली या गैस बन्द कर दें।

प्रश्न 2.
पट्टे के तनाव से क्या अभिप्राय है ? इसके कारण, चिन्ह तथा उपचार का वर्णन करो।
(What is strain ? Describe its causes, symptoms and treatment.)
उत्तर-
मांसपेशियों के खिंचाव को ही मांसेपशियों का तनाव कहते हैं। ऐसी दशा में मांसपेशियों में सूजन आ जाती है तथा अत्यधिक पीड़ा होती है।
मांसपेशियों में तनाव के कारण (Causes of Strain) मांसपेशियों में तनाव के . कारण निम्नलिखित हैं –

  • शरीर में से पसीने के रूप में पानी का निकास हो जाना।
  • आवश्यकता से अधिक थकावट।
  • शरीर के अंगों का परस्पर समन्वय न होना।
  • खेल के मैदान का अधिक कठोर होना।
  • मांसपेशियों को एक दम हरकत में लाना।
  • शरीर को गर्म (Warm up) न करना।
  • खेल के सामान का ठीक न होना।
  • शरीर की शक्ति का उचित अनुपात में न होना।

चिन्ह (Symptoms)-

  • मांसपेशियों में अचानक खिंचाव सा आ सकता है।
  • मांसपेशियां कमज़ोरी के कारण काम करने के योग्य नहीं रहतीं।
  • चोट लगने के एक दम बाद पीड़ा महसूस होती है।
  • चोट वाली जगह पर गड्डा दिखाई देता है।
  • कभी-कभी चोट वाली जगह के आस-पास की जगह नीले रंग की हो जाती है।
  • चोट वाली जगह नर्म लगती है।

PSEB 9th Class Physical Education Solutions Chapter 4 प्राथमिक सहायता

बचाव (Safety Measures) –

  • खेल का मैदान समतल व साफ़-सुथरा होना चाहिए। इसमें कंकर आदि बिखरे नहीं होने चाहिएं।
  • ऊंची तथा लम्बी छलांग के अखाड़े नर्म रखने चाहिएं।
  • खिलाड़ियों को चोटों से बचने के लिए आवश्यक शिक्षा देनी चाहिए।
  • खेल आरम्भ करने से पहले कुछ हल्के व्यायाम करके शरीर को गर्म (Warm up) करना चाहिए।
  • गीले या फिसलन वाले मैदान पर नहीं खेलना चाहिए।
  • खेल का सामान अच्छी प्रकार का होना चाहिए।
  • खिलाड़ियों को परस्पर सद्भावना रखनी चाहिए। खेल कभी क्रोध में आकर नहीं खेलना चाहिए।

इलाज (Treatment)-

  • चोट वाली जगह पर ठंडे पानी की पट्टी या बर्फ़ रखनी चाहिए।
  • चोट वाली जगह पर भार नहीं डालना चाहिए।
  • चोट वाली जगह के अंग को हिलाना नहीं चाहिए।
  • चोट वाली जगह पर 24 घण्टे पश्चात् सेंक या मालिश करना चाहिए।

प्रश्न 3.
मोच के क्या कारण हैं ? इसकी निशानियों तथा उपचार के बारे में वर्णन करो।
(What is sprain ? Discuss its causes, symptoms and treatment.)
उत्तर-
किसी जोड़ के बन्धनों के फट जाने को मोच कहते हैं।

कारण (Causes)-

  • गीले या फिसलन वाले मैदान में खेलना।
  • मैदान में पड़े कंकर आदि का पांव के नीचे आ जाना।
  • खेल के मैदान में गड्डे आदि का होना।
  • अनजान-खिलाड़ी का गलत ढंग से खेलना।
  • अखाड़ों की ठीक तरह से गोडी न करना।

चिन्ह (Symptoms)-

  • थोड़ी देर के बाद मोच वाली जगह पर सूजन होने लगती है।
  • सूजन वाली जगह पर पीड़ा होने लगती है।
  • मोच वाले भाग की सहन करने, कार्य करने की क्षमता कम हो जाती है।
  • गम्भीर मोच की दशा में जोड़ की ऊपरी त्वचा का रंग नीला हो जाता है।

इलाज (Treatment)-मोच.का इलाज इस प्रकार है-

  • मोच वाले स्थान को अधिक हिलाना नहीं चाहिए।
  • घाव वाले स्थान पर 48 घण्टे तक पानी की पट्टियां रखनी चाहिएं।
  • मोच वाले स्थान पर आठ के आकार की पट्टी बांधनी चाहिए।
  • मोच वाले स्थान पर भार नहीं डालना चाहिए।
  • यदि हड्डी टूटी हो तो एक्सरे करवाना चाहिए।
  • 48 से 72. घण्टे के पश्चात् ही सेंक देना चाहिए।
  • मोच वाले स्थान को सदैव ध्यान से रखना चाहिए। जहां एक बार मोच आ जाए, दोबारा फिर आ जाती है। (“Once a sprain, always a sprain.”)
  • मोच ठीक होने के पश्चात् ही क्रियाएं करनी चाहिएं।

प्रश्न 4.
जोड़ के उतरने के कारण, चिन्ह तथा इलाज बताओ।
(Write down the causes, symptoms and treatment of dislocation of joints.)
उत्तर-
हड्डी का जोड़ वाले स्थान से खिसकना जोड़ उतरना (Dislocation) कहलाता है।

कारण (Causes)-

  • किसी बाहरी भार के तेज़ी से हड्डी से टकराने से हड्डी अपनी जगह छोड़ देती है।
  • खेल का सामान शारीरिक शक्ति से अधिक भारी होना।
  • खेल के मैदान का असमतल या अधिक कोठर या नर्म होना।
  • खेल में भाग लेने से पहले शरीर को हल्के व्यायामों से गर्म (Warm up) करना।
  • खिलाड़ी का अचानक गिर जाना।

चिन्ह (Symptoms) –

  • चोट वाली जगह बेढंगी सी दिखाई देती है।
  • चोट वाली जगह अपने आप हिल नहीं सकती।
  • चोट वाली जगह पर सूजन आ जाती है।
  • सोट वाली जगह पर पीड़ा होती है।

इलाज (Treatment)—जोड़ के खिसकने के इलाज इस प्रकार हैं –

  •  ह को इलास्टिक वाली पट्टी बांधनी चाहिए।
  • घाव वाले स्थान पर भार नहीं डालना चाहिए।
  • घ. पाले स्थान पर स्लिग डाल देना चाहिए ताकि हड्डी हिल न सके।
  • जोड़ को अधिक हिलाना नहीं चाहिए।
  • जोड़ को 48 से 72 घण्टे के पश्चात् ही सेंक देना चाहिए।

प्रश्न 5.
हड्डी की टूट या फ्रैक्चर के कारण, चिन्ह तथा इलाज बताओ।
(Mention the causes of Fracture, its symptoms and treatment.)
उत्तर-
हड्डी की टूट के कारण (Causes of Fracture) हड्डी की टूट के निम्नलिखित कारण हो सकते हैं –

  • खिलाड़ी का बहुत जोश, खुशी या क्रोध में बेकाबू होकर खेलना।
  • बहुत सख्त या नर्म मैदान में खिलाड़ी का गिरना।
  • असमतल या फिसलने वाले मैदान में खेलना।
  • किसी योग्य और कुशल व्यक्ति की देख-रेख में खेल न खेला जाना।

चिन्ह (Symptoms)-

  • टूट वाली जगह के समीप सूजन हो जाती है।
  • टूट वाली जगह शक्तिहीन हो जाती है।
  • टूट वाली जगह पर पीड़ा होती है।
  • टूट वाली जगह बेढंगी हिल-जुल होती है।
  • अंग कुरुप हो जाता है।
  • हाथ लगा कर हड्डी की टूट का पता लगाया जा सकता है।

इलाज (Treatment)-

  • टूट वाली जगह को हिलाना नहीं चाहिए।
  • रक्त बहने की दशा में पहले रक्त को रोकने का प्रयास करना चाहिए।
  • घाव वाली जगह पर पट्टी बांध देनी चाहिए।
  • घायल को एक्स-रे के लिए ले जाना चाहिए।
  • टूट वाली जगह पर पट्टियों तथा चपटियों का सहारा बांधना चाहिए।
  • घायल को और इलाज के लिए डॉक्टर के पास पहुंचाना चाहिए।

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प्रश्न 6.
मोच किसे कहते हैं ? इसके लिए प्राथमिक सहायता क्या हो सकती है ?
(What is sprain ? How you will render a first Aid to a person who got Sprain ?)
उत्तर-
मोच (Sprain)—किसी जोड़ के बन्धन (ligaments) का फट जाना मोच (Sprain) कहलाता है। साधारणतया टखने, घुटने, रीढ़ की हड्डी तथा कलाई को मोच आती है।
मोच के प्रकार (Type of Sprain)-मोच निम्नलिखित तीन प्रकार की होती है—

  • नर्म मोच (Mild Sprain)—इस दशा में मोच की जगह में कुछ कमज़ोरी, सूजन तथा पीड़ा अनुभव होती है।
  • दरमियानी मोच (Mediocre Sprain)—इस दशा में सूजन तथा पीड़ा में वृद्धि हो जाती है।
  • पूर्ण मोच (Complete Sprain)—इस दशा में पीड़ा इतनी अधिक हो जाती है कि सहन नहीं की जा सकती।

प्राथमिक सहायता (First Aid) –

  • जिस जगह पर चोट आई हो वहां ज़रा भी हिल-जुल नहीं होनी चाहिए।
  • चोट वाली जगह पर 48 घण्टे तक ठंडे पानी की पट्टियां रखनी चाहिएं।
  • मोच वाली जगह पर भार नहीं डालना चाहिए।
  • टखने में मोच आने की दशा में ‘आठ’ के आकार की पट्टी बांधनी चाहिए।
  • मोच वाली जगह पर 48 घण्टे से 72 घण्टे के पश्चात् सेंक देना वा मालिश करनी चाहिए।
  • हड्डी टूटने की आशंका होने पर एक्सरे करवाना चाहिए।
  • मोच ठीक होने के बाद योग क्रियाएं करनी चाहिएं।

प्रश्न 7.
फ्रैक्चर (टूट) की कितनी किस्में हैं ? सबसे खतरनाक टूट कौन-सी है ?
(Describe the types of Fracture ? Which is the most dangerous fracture ?)
उत्तर-
फ्रैक्चर का अर्थ (Meaning of Fracture)-किसी हड्डी के टूटने या उसमें दरार पड़ जाने को फ्रैक्चर कहा जाता है।
फ्रैक्चर के कारण-हड्डियों के टूटने या उसमें दरार पड़ जाने के कई कारण हो सकते हैं। इसमे से सबसे बड़ा कारण किसी प्रकार की प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष चोट (Direct of Indirect Injury) हो सकती है।

फ्रैक्चर के प्रकार (Types of Fracture)
1. सरल या बन्द फ्रैक्चर (Simple or Closed Fracture)-जब कोई बाह्य घाव न हो जो टूटी हुई हड्डी तक जाता हो। देखें चित्र।
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2. खुला फ्रैक्चर (Compound or Open Fracture)-जब कोई ऐसा घाव हो जो टूटी
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हड्डी तक जाता हो अथवा जब हड्डी के टूटे हुए भाग चमड़ी या मांस को चीर कर बाहर निकल आते हैं और कीटाणु फ्रैक्चर वाले स्थान में प्रविष्ट हो जाते हैं। देखें चित्र।

3. जटिल फ्रैक्चर (Complicated Fracture)-हड्डी टूटने के साथ-साथ दिमाग़, फेफड़े, जिगर, गुर्दे पर चोट लगने से जोड़ भी उतर जाता है। एक जटिल फ्रैक्चर सरल या खुला हो सकता है।
इसके अतिरिक्त कई अन्य फैक्चर भी होते हैं जो प्राथमिक चिकित्सक को पता नहीं चलते। इनमें से मुख्य फ्रैक्चरों का विवरण नीचे दिया जाता है

4. बुहखण्ड फ्रैक्चर (Comminuted Fracture)-जब हड्डी कई स्थानों से टूट जाती है। देखो चित्र।

PSEB 9th Class Physical Education Solutions Chapter 4 प्राथमिक सहायता (3)

5. पचड़ी फ्रैक्चर (Impacted Fracture) जब टूटी हड्डियों के सिरे एक-दूसरे में धंस जाते हैं। देखो चित्र।

PSEB 9th Class Physical Education Solutions Chapter 4 प्राथमिक सहायता (4)

6. कच्चा या हरी लकड़ी जैसी फ्रैक्चर (Green Stick Fracture)—ऐसा फ्रैक्चर प्रायः छोटे बच्चों में होता है। उनकी हड्डियां कोमल होती हैं । जब उनकी हड्डी टूट जाती है तो वह पूरी तरह आर-पार निकल कर टेढ़ी हो जाती है या उसमें दराड़ आ जाती है। देखो चित्र।

PSEB 9th Class Physical Education Solutions Chapter 4 प्राथमिक सहायता (5)

7. दबा हुआ फ्रैक्चर (Depressed Fracture)—जब खोपड़ी के ऊपर वाले भाग या उसके आस-पास कहीं हड्डी टूट जाए या अन्दर धंस जाए। देखें चित्र-पचड़ी फ्रैक्चर।। इनमें सबसे खरतनाक टूट या फ्रैक्चर जटिल फ्रैक्चर है। इस टूट के कारण मनुष्य का जीवन संकट में पड़ जाता है। इसलिए यह फ्रैक्चर सबसे भयानक है।

प्रश्न 8.
बेहोशी क्या है ? इसके चिन्हों तथा इलाज के बारे में बताओ।
(What is unconsciousness ? Mention its symptoms and treatment.)
उत्तर-
बेहोशी (Unconsciousness) बेहोशी का अर्थ है चेतना का खोना। चिन्ह (Symptoms) बहोशी के निम्नलिखित लक्षण होते हैं –

  • नब्ज़ धीमी चलती है।
  • त्वचा ठण्डी और चिपचिपी हो जाती है।
  • चेहरा पीला पड़ जाता है।
  • रक्त का दबाव कम हो जाता है।

इलाज (Treatment) –

  • रोगी की नब्ज़ और दिल की धड़कन अच्छी तरह देख लेनी चाहिए।
  • रोगी की जीभ को पिछली ओर खिसकने नहीं देना चाहिए।
  • यदि शरीर के कपड़े तंग हों तो उतार देने चाहिएं।
  • खुली वायु आने देनी चाहिए।
  • दिल पर मालिश करनी चाहिए।
  • सांस की गति कम होने की दशा में कृत्रिम सांस देना चाहिए।
  • रोगी को पूरा होश न आने तक मुंह के द्वारा कुछ खाने के लिए नहीं देना चाहिए।
  • जब तक रोगी होश में न आए उसे पानी या गर्म चीज़ पीने के लिए देनी चाहिए।
  • रोगी को स्पिरिट अमोनिया सुंघा देनी चाहिए। यदि यह न मिल सके तो प्याज़ ही सुंघा देना चाहिए।
  • जिस कारण से बेहोशी हुई हो उसका इलाज करना चाहिए।

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प्रश्न 9.
सांप के काटने की अवस्था में रोगी को आप कैसी प्राथमिक सहायता देंगे?
(What First Aid will you render to a patient in case of snake bite ?)
उत्तर-
सांप के काटने की अवस्था में प्राथमिक सहायता
(First Aid in case of Snake-bite) सांप के काटने से व्यक्ति की मृत्यु होने की सम्भावना हो सकती है। इसलिए ऐसे व्यक्ति को तुरन्त प्राथमिक सहायता दी जानी चाहिए। सांप द्वारा डंसे व्यक्ति को निम्नलिखित विधि द्वारा प्राथमिक सहायता देनी चाहिए –

  • रक्त परिभ्रमण को रोकना (Stopping the circulation of blood) सर्वप्रथम जिस अंग पर सांप ने डंसा है उस अंग में रक्त परिभ्रमण को रोकना चाहिए। इसके लिए हृदय की ओर वाले भाग के ऊपर के भाग को कपड़े के साथ या रस्सी के साथ कस कर बांध देना चाहिए। यह बन्धन पैर या भुजा के गिर्द घुटने या कुहनी के ऊपर बांधना चाहिए। प्रत्येक 10-20 मिनट के पश्चात् इस को आधे मिनट के लिए ढीला छोड़ना चाहिए। .
  • पानी या लाल दवाई से धोना (Washing with water or Potassium per-manganate)-जिस स्थान पर सांप ने डंक मारा हो उस स्थान को पानी या लाल दवाई (Potassium permanganate) के साथ धो लेना चाहिए।
  • कटाव लगाना (To make an incision)-डंक वाले स्थान को चाकू या ब्लेड के साथ 1″ (2.5 सम) लम्बा और 1″ (1.25 सम) गहरा कटाव लगाना चाहिए। चाकू या ब्लेड को पहले कीटाणु रहित कर लेना चाहिए। कटाव लगाते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि किसी बड़ी रक्त नली को कोई हानि न हो।
  • रोगी को घूमने-फिरने न देना (Not allowing the patient to move)-रोगी को घूमने-फिरने न दिया जाए। रोगी के चलने-फिरने से शरीर में विष फैल जाता है।।
  • शरीर को गर्म रखना (Keeping the body warm) रोगी के शरीर को गर्म रखा जाए। उसको पीने के लिए गर्म चाय देनी चाहिए।
  • कृत्रिम श्वास देना (Administering artificial respiration) रोगी का सांस रुकने की दशा में उसको कृत्रिम श्वास देना चाहिए।
  • रोगी को उत्साहित करना (Encouraging the patient)-रोगी को उत्साहित करना चाहिए।
  • डॉक्टर के पास या अस्पताल में पहुंचाना (Taking toadoctor or hospital)रोगी को शीघ्र ही किसी डॉक्टर के पास या अस्पताल में पहुंचाना चाहिए।

प्रश्न 10.
पानी में डूबने पर आप रोगी को कैसी प्राथमिक सहायता देंगे ?
(What First Aid will you render to a patient of drowning ?)
उत्तर-
पानी में डूबने का उपचार
(The Treatment of Drowning)

नहरों, तालाबों और नदियों में कई बार स्नान करते या इनको पार करते समय कई व्यक्ति डूब जाते हैं।
यदि डूबे हुए व्यक्ति को पानी में से निकाल कर प्राथमिक सहायता दी जाए तो उसके जीवन की रक्षा की जा सकती है। पानी में डूबे हुए व्यक्ति को निम्नलिखित विधि से प्राथमिक सहायता देनी चाहिए –

  • पेट में से पानी निकालना (Removing water from the belly)-डूबे हुए व्यक्ति को पानी से बाहर निकालो। फिर उसको पेट के बल घड़े पर लिटा कर उस के पेट में से पानी निकाला जाएगा। घड़ा न मिलने की अवस्था में उसको पेट के बल लिटा कर । उसे कमर से पकड़ कर ऊपर को उछालो। ऐसा करने से उसके पेट में से पानी निकल जाएगा।
  • रोगी को सूखे कपड़े पहनाना (Making the patient wear dry clothes)रोगी को सूखे कपड़े पहनने के लिए दो।

प्रश्न 11.
जले हुए व्यक्ति को आप कैसी प्राथमिक सहायता देंगे ? (What First Aid will you render to a patient in case of burning ?)
उत्तर-
जलना (Burning)-
कारक तथा प्रभाव (Causes and Effects) – कई बार आग, गर्म बर्तनों, रासायनिक पदार्थ, तेज़ाब तथा विद्युत्धारा से व्यक्ति जल जाता है। इस से त्वचा, मांसपेशियां और ऊतक (Tissues) नष्ट हो जाते हैं।
कभी-कभी गर्म चाय, गर्म दूध, गर्म काफी, भाप या तेजाब से घाव (Scalds) हो जाते हैं। त्वचा लाल हो जाती है, जल जाती है या कपड़े शरीर से चिपक जाते हैं। असहनीय दर्द होता है। कभी-कभी व्यक्ति अधिक जलने से मर भी जाता है।

उपचार (Treatment)-

  • जले हुए भाग का ध्यानपूर्वक उपचार करना चाहिए।
  • यदि कपड़ों को आग लग जाए तो भागना नहीं चाहिए। व्यक्ति को लेट जाना चाहिए और करवटें बदलनी चाहिएं।
  • जिस व्यक्ति के कपड़ों को आग लग जाए उसे कम्बल या मोटे कपड़े से ढक देना चाहिए।

प्रश्न 12.
बिजली के झटके से क्या अभिप्राय है ? आप रोगी को कैसी प्राथमिक सहायता देंगे ?
(What do you mean by electric shock ? How will you treat it ?)
उत्तर-
विद्युत् का झटका (Electric Shock)-

विद्युत् की नंगी तार जिसमें धारा प्रवाहित हो रही हो, को अचानक हाथ लगाने से या लग जाने से झटका लगता है। कई बार व्यक्ति तार से चिपक जाता है, परन्तु कई बार दूर जा गिरता है। विद्युत् के झटके के साथ रोगी बेसुध हो जाता है। कई बार शरीर झुलस भी जाता है। यदि किसी कारण (Main Switch) न मिले तो निम्नलिखित ढंग प्रयोग करने चाहिएं –

  • रबड़ के दस्ताने और सूखी लकड़ी का प्रयोग करना (Using the rubber gloves and dry wood) यदि विद्युत् की शक्ति 5 वोल्ट तक हो तो रबड़ के दस्ताने या सूखी लकड़ी का प्रयोग करके व्यक्ति को बचाना चाहिए। इसमें विद्युत् की धारा नहीं गुज़रती। गीली वस्तु या धातु का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
  • प्लग निकालना (Removing the plug) यदि विद्युत् की तार किसी दूर के स्थान से आ रही है तो प्लग (Plug) निकाल देना चाहिए या फिर तार तोड़ देनी चाहिए।

उपचार (Treatment)-

  • कृत्रिम सांसदेना (Giving artificial respiration)यदि रोगी का सांस बन्द हो तो उसको कृत्रिम सांस देना चाहिए।
  • झुलसे या सड़े अंगों का उपचार (Treatment of Scalded or Burnt part)यदि कोई अंग झुलस या सड़ गया हो तो उसका उपचार करना चाहिए।
  • रोगी को उत्साहित करना (Encouraging the patient) रोगी को उत्साहित करना चाहिए।

PSEB 9th Class Physical Education Solutions Chapter 4 प्राथमिक सहायता

प्राथमिक सहायता PSEB 9th Class Physical Education Notes

  • प्राथमिक सहायता-डॉक्टर के पास ले जाने से पहले रोगी को जो प्राथमिक सहायता दी जाती है ताकि उसकी जीवन रक्षा हो सके, उसे प्राथमिक सहायता कहते
    हैं।
  • प्राथमिक सहायता की ज़रूरत-अगर दुर्घटना के शिकार व्यक्ति को प्राथमिक सहायता न दी जाए तो हो सकता है कि उसकी मृत्यु हो जाए। इसलिए प्राथमिक सहायता रोगी के लिए जीवन रूपी अमृत है।
  • पुट्ठों का तनाव-मांसपेशियों के खिंचें जाने को पुट्ठों का तनाव कहते हैं। आवश्यकता से अधिक थकावट और शरीर के अंगों का आपसी तालमेल न होने के कारण पुट्ठों का तनाव हो जाता है।
  • मोच-किसी जोड़ के बन्धन का फट जाना ही मोच है। मोच वाली जगह को हिलाना नहीं चाहिए और 48 घंटों तक सर्द पानी की पट्टियां करनी चाहिएं और उसके बाद उन्हें गर्म करना चाहिए।
  • फ्रैक्चर-हड्डी टूटना फ्रैक्चर होता है।
  • बेहोशी-बेहोशी का अर्थ चेतना गंवाना है। बेहोशी में नब्ज़ धीरे-धीरे चलती है और चमड़ी ठण्डी हो जाती है।
  • फ्रैक्चर की किस्में-फ्रैक्चर, सादी, गुंझलदार, दबी हुई और बहुखण्डीय हो … सकती है।

PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 9 बाल विकास का अर्थ और महत्त्व

Punjab State Board PSEB 9th Class Home Science Book Solutions Chapter 9 बाल विकास का अर्थ और महत्त्व Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 9 Home Science Chapter 9 बाल विकास का अर्थ और महत्त्व

PSEB 9th Class Home Science Guide बाल विकास का अर्थ और महत्त्व Textbook Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
आधुनिक जीवन में बाल विकास का क्या महत्त्व है?
उत्तर-
बाल विकास की आज के जीवन में बहुत महत्ता है। इसमें बच्चों में मिलने वाली व्यक्तिगत भिन्नताओं, उनके साधारण, असाधारण व्यवहार तथा बच्चे पर वातावरण के प्रभाव को जानने की कोशिश की जाती है।

प्रश्न 2.
बाल विकास की शिक्षा के अन्तर्गत आपको किस के बारे में शिक्षा मिलती है?
उत्तर-
बाल विकास की शिक्षा के अन्तर्गत मिलने वाली शिक्षा

  1. बच्चों की प्रवृत्ति को समझने के लिए
  2. बच्चे के व्यक्तित्व के विकास को समझने के लिए
  3. बच्चे के विकास बारे जानकारी
  4. बच्चे के लिए बढ़िया वातावरण पैदा करना
  5. बच्चों के व्यवहार को कन्ट्रोल करने के लिए
  6. बच्चों का मार्ग दर्शन
  7. पारिवारिक जीवन को खुशियों भरा बनाने के लिए

PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 9 बाल विकास का अर्थ और महत्त्व

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 3.
किन-किन कारणों के कारण बच्चों का विकास उचित प्रकार से नहीं हो सकता?
उत्तर-
बच्चों का विकास कई कारणों से ठीक तरह नहीं होता जैसे

  1. बच्चों को विरासत से ही कुछ कमियां मिली हों जैसे-बच्चा मंद बुद्धि हो सकता है, अंगहीन हो सकता है।
  2. बच्चे में अच्छे गुण होने के बावजूद उसको अच्छा वातावरण न मिल सकने के कारण भी उसके विकास में रुकावट डाल सकता है।
  3. कई बार घरेलू झगड़े भी बच्चे के विकास में रुकावट डालते हैं।
  4. बच्चे की रुचि से विपरीत उससे ज़बरदस्ती कोई कार्य करवाना। जैसे किसी बच्चे को गाने-बजाने का शौक है तो उसे ज़बरदस्ती खेलने को कहा जाए।
  5. बचपन में बच्चे को माता-पिता का प्यार तथा देख-रेख न मिल सकना।

प्रश्न 4.
बाल विकास से आप क्या समझते हो?
उत्तर–
बाल विकास बच्चों की वृद्धि तथा विकास का अध्ययन है। इसमें गर्भ अवस्था से लेकर बालिग होने तक की सम्पूर्ण वृद्धि तथा विकास का अध्ययन करते हैं। इनमें शारीरिक, मानसिक, व्यावहारिक तथा मनोवैज्ञानिक वृद्धि तथा विकास शामिल हैं। इसके अतिरिक्त बच्चों में पाई जाने वाली व्यक्तिगत भिन्नताएं, उनके साधारण तथा असाधारण व्यवहार तथा वातावरण का बच्चे पर प्रभाव को जानने की कोशिश भी की जाती है।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 5.
पारिवारिक सम्बन्धों का महत्त्व बताओ।
उत्तर-
मनुष्य का बच्चा अपनी प्राथमिक आवश्यकताओं के लिए अपने आस-पास के लोगों पर अधिक समय के लिए निर्भर रहता है। बच्चे की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए परिवार होता है। इन ज़रूरतों को किस तरह पूरा किया जाता है इसका बच्चे के व्यक्तित्व पर प्रभाव होता है तथा इसका बड़े होकर पारिवारिक रिश्तों पर भी प्रभाव पड़ता है।
मनुष्य के पारिवारिक रिश्ते उसके सामाजिक जीवन के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण होते हैं। क्योंकि हम इस समाज में ही विचरते हैं, इसलिए हमारे पारिवारिक रिश्ते तथा परिवार से बाहर के रिश्ते हमारे जीवन की खुशी का आधार होते हैं। इस तरह बच्चे के विकास में पारिवारिक सम्बन्ध काफ़ी महत्त्व रखते हैं।

प्रश्न 6.
परिवार की खुशी बच्चों के भविष्य के साथ कैसे जुड़ी हुई है?
उत्तर–
प्रत्येक परिवार की खुशी, उम्मीद तथा भविष्य बच्चों से जुड़ा होता है। बच्चे ही देश का भविष्य होते हैं तथा परिवार में बच्चे यदि शारीरिक तथा मानसिक तौर पर स्वस्थ हों तो परिवार के लिए खुशी का कारण बनते हैं। परिवार खुश हो तो बच्चों के विकास के लिए सहायक रहता है। यदि परिवार में लड़ाई-झगड़े हों अथवा परिवार आर्थिक पक्ष से तंग हो तो इन बातों का बच्चों के भविष्य पर बुरा प्रभाव होता है।

Home Science Guide for Class 9 PSEB बाल विकास का अर्थ और महत्त्व Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

रिक्त स्थान भरें

  1. बाल विकास की शिक्षा से हमें वंश तथा ……….. सम्बन्धी जानकारी मिलती है।
  2. मानव शिशु बाकी प्राणियों के बच्चों में सबसे ……………….. होता है।
  3. व्यक्तियों के …………………. को ही समाज नहीं कहा जा सकता।

उत्तर-

  1. वातावरण,
  2. निर्बल,
  3. समुदाय।

एक शब्द में उत्तर दें

प्रश्न 1.
बच्चे के पालन-पोषण का मूल उत्तरदायित्व किसका है?
उत्तर-
माता-पिता का।

प्रश्न 2.
बाल विकास किस का अध्ययन है?
उत्तर-
बच्चों की वृद्धि तथा विकास।

PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 9 बाल विकास का अर्थ और महत्त्व

ठीक/ग़लत बताएं

  1. बाल विकास तथा बाल मनोविज्ञान का आपस में गहरा संबंध है।
  2. बच्चे के विकास पर आस-पास के वातावरण का प्रभाव पड़ता है।
  3. घरेलू झगड़े बच्चे के विकास पर बुरा प्रभाव डालते हैं।
  4. बच्चे के पालन-पोषण की प्राथमिक जिम्मेवारी उसके मां-बाप की होती है।

उत्तर-

  1. ठीक,
  2. ठीक,
  3. ठीक,
  4. ठीक।

बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
ठीक तथ्य हैं
(A) बचपन में बच्चे को माता-पिता का प्यार तथा देख-रेख न मिलने के कारण विकास अच्छी प्रकार नहीं होता।
(B) बच्चे के व्यवहार तथा रुचियों पर वातावरण का महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है।
(C) प्रत्येक मनुष्य के व्यक्तित्व की जड़ें उसके बचपन में होती हैं।
(D) सभी ठीक।
उत्तर-
(D) सभी ठीक।

प्रश्न 2.
ठीक तथ्य हैं
(A) बच्चे की रुचि के विपरीत उससे जबरदस्ती कोई कार्य करवाने से विकास ठीक नहीं होता।
(B) परिवार की आर्थिक तंगी का प्रभाव बच्चे के विकास पर पड़ता है।
(C) मानव शिशु अन्य प्राणियों के बच्चों में सबसे कमज़ोर होता है।
(D) सभी ठीक।
उत्तर-
(D) सभी ठीक।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
आधुनिक जीवन में बाल विकास का क्या महत्त्व है?
उत्तर-

  1. बाल विकास तथा बाल मनोविज्ञान की सबसे बड़ी देन है। इससे हमें पता चला है कि साधारणतः एक बच्चे से एक अवस्था में क्या आशा रखी जाए। यदि कोई बच्चा इस आशा से बाहर जाए तो उसकी ओर हमें विशेष ध्यान देना होगा।
  2. बाल विकास की पढ़ाई से हमें बच्चों की जरूरतों सम्बन्धी जानकारी प्राप्त होती है। हम बच्चे के मनोविज्ञान को अच्छी तरह समझ कर उसका पालन-पोषण कर सकते हैं जिससे उसका बहुपक्षीय विकास अच्छे ढंग से हो सके।
  3. बाल विकास के अध्ययन से हमें यह जानकारी मिलती है कि साधारण बच्चों से भिन्न बच्चों को किस तरह का वातावरण प्रदान करें कि वह हीन भावना का शिकार न हो जाए। जैसे शारीरिक अथवा मानसिक तौर पर विकलांग बच्चे, मन्द बुद्धि वाले बच्चे अपनी शारीरिक तथा मानसिक कमजोरियों से ऊपर उठकर अपना बहुपक्षीय विकास कर सकें।
  4. बाल विकास पढ़ने से हमें वंश तथा वातावरण सम्बन्धी जानकारी भी मिलती है। एक-दो ऐसे महत्त्वपूर्ण पक्ष हैं जो बच्चे के विकास में बहुत योगदान डालते हैं। वंश से हमें बच्चे के उन गुणों के बारे पता चलता है जो बच्चों को अपने माता-पिता से जन्म से ही मिले होते हैं तथा जिन्हें बदला नहीं जा सकता जैसे नैन-नक्श, कद-काठ, बुद्धि आदि। बच्चे के इर्द-गिर्द को वातावरण कहा जाता है जैसे भोजन, अध्यापक, किताबें, खेलें, मौसम आदि। वातावरण बच्चे के व्यक्तित्व पर गहरा प्रभाव डालता है। अच्छा वातावरण बच्चे के व्यक्तित्व को उभारने में मदद करता है।

प्रश्न 2.
बाल विकास की शिक्षा के अन्तर्गत आपको किस के बारे में शिक्षा मिलती है?
उत्तर-
बाल विकास के अध्ययन में बच्चों में पाई जाने वाली व्यक्तिगत भिन्नताएं, उनके साधारण तथा असाधारण व्यवहार तथा इर्द-गिर्द का बच्चे पर प्रभाव को जानने की कोशिश भी की जाती है।
प्रत्येक मनुष्य के व्यक्तित्व की जड़ें उसके बचपन में होती हैं। आजकल मनोवैज्ञानिक तथा समाज वैज्ञानिक किसी मनुष्य के व्यवहार को समझने के लिए उसके बचपन के हालातों की जांच-पड़ताल करते हैं। समाज वैज्ञानिक यह बात सिद्ध कर चुके हैं कि वे बच्चे जिन्हें बचपन में प्यार नहीं मिलता बड़े होकर अपराधों की ओर रुचित होते हैं।

  1. बच्चों की प्रवृत्ति को समझने के लिए-बाल विकास के अध्ययन से हम विभिन्न स्तरों पर बच्चों के व्यवहार तथा उनमें होने वाले परिवर्तनों से अवगत होते हैं। एक बच्चा विकास की विभिन्न स्थितियों से किस तरह गुज़रता है इसका पता बाल विकास के अध्ययन द्वारा ही चलता है।
  2. बच्चे के व्यक्तित्व के विकास को समझने के लिए-बाल विकास अध्ययन बच्चे के व्यक्तिगत विकास, उसके चरित्र निर्माण का अध्ययन करता है। ऐसे कौन-से तथ्य हैं जो भिन्न-भिन्न आयु के पड़ावों पर बच्चे के व्यक्तित्व को प्रभावित करते हैं तथा बच्चे के व्यक्तित्व के विकास में रुकावट डालने वाले कौन-से तत्त्व हैं, बाल विकास इनकी खोज करने के पश्चात् बच्चे की मदद करता है।
  3. बच्चे के विकास बारे जानकारी-गर्भ धारण से लेकर बालिग होने तक के शारीरिक विकास का अध्ययन बाल विकास का मुख्य भाग है। बाल विकास अध्ययन की मदद से बच्चे के शारीरिक विकास की रुकावटों तथा कारणों को अच्छी तरह समझ सकते हैं । बाल विकास बच्चे की शारीरिक विकास से सम्बन्धित समस्याओं को समझने में भी हमारी सहायता करता है।
  4. बच्चे के लिए बढ़िया वातावरण पैदा करना-बच्चे के व्यवहार तथा रुचियों पर वातावरण का महत्त्वपूर्ण प्रभाव होता है। बाल विकास के अध्ययन से वातावरण के बच्चे पर पड़ रहे बुरे प्रभावों का पता चलता है। बच्चे के व्यक्तित्व के बढ़िया विकास के लिए बढ़िया वातावरण उत्पन्न करने सम्बन्धी मां-बाप तथा अध्यापकों को सहायता मिलती है।
  5. बच्चों के व्यवहार को कन्ट्रोल करने के लिए-बच्चे का व्यवहार हर समय एक जैसा नहीं होता। बच्चे के व्यवहार से सम्बन्धित समस्याओं जैसे बिस्तर गीला करना, अंगूठा चूसना, डरना, झूठ बोलना आदि का कोई-न-कोई मनोवैज्ञानिक कारण अवश्य होता है। बाल विकास अध्ययन की सहायता से इन समस्याओं के कारणों को समझा तथा हल किया जा सकता है।
  6. बच्चों का मार्ग दर्शन-माता-पिता समय-समय पर बच्चों की रहनुमाई करते हैं। परन्तु आज-कल पढ़े-लिखे मां-बाप मार्ग-दर्शन विशेषज्ञों से बच्चों का मार्ग दर्शन करवाते हैं। यह मार्ग दर्शन विशेषज्ञ मनोवैज्ञानिक विधियों द्वारा उसकी रुचियां, छुपी हुई क्षमता तथा झुकाव का पता लगाकर बच्चों का मनोवैज्ञानिक मार्ग-दर्शन करते हैं।
  7. पारिवारिक जीवन को खुशियों भरा बनाने के लिए-बच्चे हर घर का भविष्य होते हैं। इसलिए उनका पालन-पोषण ऐसे वातावरण में होना चाहिए जो उनकी वृद्धि तथा विकास में सहायक हो। बाल विकास अध्ययन द्वारा हमें ऐसे वातावरण की जानकारी मिलती है। एक बढ़िया वातावरण में ही पारिवारिक प्रसन्नता, शान्ति उत्पन्न होती है। पीछे किए वर्णन से यह पता चलता है कि बाल विकास विज्ञान एक बहुत महत्त्वपूर्ण विषय है जिसकी सहायता से हम बच्चों के शारीरिक, मानसिक तथा भावनात्मक विकास से सम्बन्धित अनेकों पहलुओं से अवगत होते हैं। बच्चों के बचपन को खुशियों भरा बनाने के लिए यह विज्ञान बहुत लाभदायक है। खुशियों भरे बचपन वाले बच्चे ही भविष्य में स्वस्थ तथा प्रसन्न समाज रचेंगे। इस महत्त्वपूर्ण कार्य में बाल विकास विज्ञान की महत्त्वपूर्ण भूमिका है।

PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 9 बाल विकास का अर्थ और महत्त्व

बाल विकास का अर्थ और महत्त्व PSEB 9th Class Home Science Notes

  1. शारीरिक तथा मानसिक तौर पर स्वस्थ बच्चे ही देश का भविष्य हैं।
  2. बच्चे के पालन-पोषण की प्रारम्भिक ज़िम्मेदारी उसके मां-बाप की होती है।
  3. बाल विकास बच्चों की वृद्धि तथा विकास का अध्ययन है।
  4. बाल विकास तथा बाल मनोविज्ञान का आपस में गहरा सम्बन्ध है।
  5. मनुष्य के पारिवारिक रिश्ते उसके सामाजिक जीवन के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण हैं।
  6. सभी रिश्ते तथा सम्बन्ध मिलकर हमारे जीवन को आरामदायक बनाते हैं।

PSEB 9th Class SST Solutions History Chapter 7 वन्य समाज तथा बस्तीवाद

Punjab State Board PSEB 9th Class Social Science Book Solutions History Chapter 7 वन्य समाज तथा बस्तीवाद Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 9 Social Science History Chapter 7 वन्य समाज तथा बस्तीवाद

SST Guide for Class 9 PSEB वन्य समाज तथा बस्तीवाद Textbook Questions and Answers

(क) बहुविकल्पीय प्रश्न :

प्रश्न 1.
औद्योगिक क्रांति किस महाद्वीप में आरंभ हुई ?
(क) एशिया
(ख) यूरोप
(ग) आस्ट्रेलिया
(घ) उत्तरी अमेरिका।
उत्तर-
(ख) यूरोप

प्रश्न 2.
इंपीरियल वन अनुसंधान संस्थान कहां स्थित है ?
(क) दिल्ली
(ख) मुंबई
(ग) देहरादून
(घ) अबोहर।
उत्तर-
(ग) देहरादून

प्रश्न 3.
भारत की आधुनिक बागवानी का जनक किसे कहा जाता है ?
(क) लार्ड डलहौजी
(ख) डाइट्रिच ब्रैडिस
(ग) कैप्टन वाटसन
(घ) लार्ड हार्डिंग।
उत्तर-
(ख) डाइट्रिच ब्रैडिस

PSEB 9th Class SST Solutions History Chapter 7 वन्य समाज तथा बस्तीवाद

प्रश्न 4.
भारत में समुद्री जहाज़ों के लिए किस वृक्ष की लकड़ी सबसे अच्छी मानी जाती है?
(क) बबूल
(ख) ओक
(ग) नीम
(घ) सागवान
उत्तर-
(घ) सागवान

प्रश्न 5.
मुंडा आंदोलन क्रिस क्षेत्र में हुआ ?
(क) राजस्थान
(ख) छोटा नागपुर
(ग) मद्रास
(घ) पंजाब।
उत्तर-
(ख) छोटा नागपुर

(ख) रिक्त स्थान भरें :

  1. …………… और ……………… मनुष्य के लिए अति आवश्यक संसाधन हैं।
  2. कलोनियलइज्म लातीनी भाषा के शब्द ……………… से बना है।
  3. यूरोप में ………… के वृक्ष की लकड़ी से समुद्री जहाज़ बनाए जाते थे।
  4. विरसा मुण्डा को 8 अगस्त 1895 ई० को ………………. नामक स्थान से गिरफ्तार किया गया।
  5. परंपरागत कृषि को …………… कृषि भी कहा जाता था।

उत्तर-

  1. वन, जल
  2. कॉलोनिया
  3. ओक
  4. चलकट
  5. झुमी (स्थानांतरित)।

(ग) सही मिलान करो :

1. विरसा मुंडा – (अ) 2006
2. समुद्री जहाज़ – (आ) बबूल
3. जंड – (इ) धरती बाबा
4. वन अधिकार अधिनियम – (ई) खेजड़ी
5. नीलगिरि की पहाड़ियाँ – (उ) सागवान।
उत्तर-

  1. धरती बाबा
  2. सागवान
  3. खेजड़ी
  4. 2006
  5. बबूल।।

(घ) अंतर बताएं:

प्रश्न 1.
1. आरक्षित वन और सुरक्षित वन
2. वैज्ञानिक बागवानी और प्राकृतिक वन।
उत्तर-
1. आरक्षित वन और सुरक्षित वन-
आरक्षित वन-आरक्षित वन लकड़ी के व्यापारिक उत्पादन के लिए होते थे। इन वनों में पशु चराना व कृषि करना सख्त मना था।
सुरक्षित वन-सुरक्षित वनों में भी पशु चराने व खेती करने पर रोक थी। परंतु इन वनों के प्रयोग करने पर सरकार को कर देना पड़ता था।

2. वैज्ञानिक बागवानी और प्राकृतिक वन-
वैज्ञानिक बागवानी-वन विभाग के नियंत्रण में वृक्ष काटने की वह प्रणाली जिसमें पुराने वृक्ष काटे जाते हैं और नए वृक्ष उगाए जाते हैं।
प्राकृतिक वन-कई पेड़ पौधे जलवायु और मिट्टी की उर्वकता के कारण अपने आप उग आते हैं। फूल फूल कर यह बड़े हो जाते हैं। इन्हें प्राकृतिक वन कहते हैं। इनकी उगने में मानव का कोई योगदान नहीं होता।

PSEB 9th Class SST Solutions History Chapter 7 वन्य समाज तथा बस्तीवाद

अति लघु उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
वन समाज से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
वन समाज से अभिप्राय लोगों के उस समूह से है जिसकी आजीविका वनों पर निर्भर है और वह वनों के आस-पास रहते हैं।

प्रश्न 2.
उपनिवेशवाद से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
एक राष्ट्र अथवा राज्य द्वारा किसी कमज़ोर देश की प्राकृतिक और मानवीय सम्पदा पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष नियंत्रण तथा उसे अपने हितों के लिए उपयोग करना उपनिवेशवाद कहलाता है।

प्रश्न 3.
वनों की कटाई के कोई दो कारण लिखें।
उत्तर-

  1. कृषि का विस्तार।
  2. व्यापारिक फसलों की कृषि।

प्रश्न 4.
भारतीय समुद्री जहाज़ किस वृक्ष की लकड़ी से बनाए जाते थे ?
उत्तर-
सागवान।

प्रश्न 5.
किस प्राचीन भारतीय सम्राट ने जीव-जंतुओं के वध पर प्रतिबंध लगा दिया था
उत्तर-
सम्राट अशोक।

प्रश्न 6.
नीलगिरी की पहाड़ियों पर कौन-कौन से वृक्ष लगाए गए ?
उत्तर-
बबूल (कीकर)।

प्रश्न 7.
चार व्यापारिक फसलों के नाम बताएं।
उत्तर-
कपास, पटसन, चाय, काफी, रबड़ आदि।

प्रश्न 8.
बिरसा मुंडा ने कौन-सा नारा दिया ?
उत्तर-
‘अबुआ देश में अबुआ राज’।

प्रश्न 9.
जोधपुर के राजा को किस समुदाय के लोगों ने बलिदान देकर वृक्षों की कटाई से रोका ?
उत्तर-
बिश्नोई संप्रदाय।

लघु उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
उपनिवेशवाद से क्या अभिप्राय है ? उदाहरण देकर स्पष्ट करें।
उत्तर-
एक राष्ट्र अथवा राज्य द्वारा किसी कमज़ोर देश की प्राकृतिक और मानवीय संपदा पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष नियंत्रण और उसका अपने हितों के लिए उपयोग उपनिवेशवाद कहलाता है। स्वतंत्रता से पहले भारत पर ब्रिटिश सरकार का नियंत्रण इसका उदाहरण है।

प्रश्न 2.
वन व आजीविका में क्या संबंध है ?
उत्तर-
वन हमारे जीवन का आधार हैं । वनों से हमें फल, फूल, जड़ी-बूटियां, रबड़, इमारती लकड़ी तथा ईंधन के लिए लकड़ी आदि मिलती है। वन जंगली-जीवों आश्रय स्थल हैं। पशु-पालन पर निर्वाह करने वाले अधिकतर लोग वनों पर निर्भर हैं। इसके अतिरिक्त वन पर्यावरण को शुद्धता प्रदान करते हैं। वन वर्षा लाने में भी सहायक हैं। वर्षा की पुनरावृत्ति वनों में रहने वाले लोगों की कृषि, पशु-पालन आदि कार्यों में सहायक होती है।

प्रश्न 3.
रेलवे के विस्तार में वनों का प्रयोग कैसे किया गया ?
उत्तर-
औपनिवेशिक शासकों को रेलवे के विस्तार के लिए स्लीपरों की आवश्यकता थी जो कठोर लकड़ी से बनाए जाते थे। इसके अतिरिक्त भाप इंजनों को चलाने के लिए ईंधन भी चाहिए था। इसके लिए भी लकड़ी का प्रयोग किया जाता था। अत: बड़े पैमाने पर वनों को काटा जाने लगा। 1850 के दशक तक केवल मद्रास प्रेजीडेंसी में स्लीपरों के लिए प्रति वर्ष 35,000 वृक्ष काटे जाने लगे थे। इसके लिए लोगों को ठेके दिए जाते थे। ठेकेदार स्लीपरों की आपूर्ति के लिए पेड़ों की अंधाधुंध कटाई करते थे। फलस्वरूप रेलमार्गों के चारों ओर के वन तेज़ी से समाप्त होने लगे। 1882 में जावा से भी 2 लाख 80 हजार स्लीपरों का आयात किया गया।

प्रश्न 4.
1878 ई० के वन अधिनियम के अनुसार वनों के वर्गीकरण का उल्लेख करें।
उत्तर-
1878 में 1865 के वन अधिनियम में संशोधन किया गया। नये प्रावधानों के अनुसार-

  1. वनों को तीन श्रेणियों में बांटा गया : आरक्षित, सुरक्षित व ग्रामीण।
  2. सबसे अच्छे जंगलों को ‘आरक्षित वन’ कहा गया। गांव वाले इन जंगलों से अपने उपयोग के लिए कुछ भी नहीं ले सकते थे।
  3. घर बनाने या ईंधन के लिए गांववासी केवल सुरक्षित या ग्रामीण वनों से ही लकड़ी ले सकते थे।

PSEB 9th Class SST Solutions History Chapter 7 वन्य समाज तथा बस्तीवाद

प्रश्न 5.
समकालीन भारत में वनों की क्या स्थिति है ?
उत्तर-
भारत राष्ट्र ऋषियों-मुनियों व भक्तों की धरती है। इन का वनों से गहरा संबंध रहा है। इसी कारण भारत में यहां वन तथा वन्य जीवों की सुरक्षा करने की परंपरा रही है। प्राचीन भारतीय सम्राट अशोक ने एक शिलालेख पर लिखवाया था उसके अनुसार जीव-जंतुओं को मारा नहीं जाएगा। तोता, मैना, अरुणा, कलहंस, नंदीमुख, सारस, बिना कांटे वाली मछलियां आदि जानवर जो उपयोगी व खाने के योग्य नहीं थे। इस के अतिरिक्त वनों को भी जलाया नहीं जाएगा।

प्रश्न 6.
झूम प्रथा (झूम कृषि) पर नोट लिखें।
उत्तर-
उपनिवेशवाद से पूर्व वनों में पारंपरिक कृषि की जाती थी, इसे झूम प्रथा अथवा झूमी कृषि (स्थानांतरित कृषि) कहा जाता था। कृषि की इस प्रथा के अनुसार जंगल के कुछ भाग के वृक्षों को काट कर आग लगा दी जाती थी। मानसून के बाद उस क्षेत्र में फसल बोई जाती थी, जिसको अक्तूबर-नवंबर में काट लिया जाता था। दो-तीन वर्ष लगातार इसी क्षेत्र में से फसल पैदा की जाती थी। जब उसकी उर्वरा शक्ति कम हो जाती थी, तो इस क्षेत्र में वृक्ष लगा दिए जाते थे, ताकि फिर से वन तैयार हो सके। ऐसे वन 17-18 वर्षों में पुनः तैयार हो जाते थे। वनवासी कृषि के लिए किसी अन्य स्थान को चुन लेते थे।

दीर्घ उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
वनों की कटाई के क्या कारण हैं ? वर्णन करें।
उत्तर-
औद्योगिक क्रांति से कच्चे माल और खाद्यपदार्थों की मांग बढ़ गई। इसके साथ ही विश्व में लकड़ी की मांग भी बढ़ गई, जंगलों की कटाई होने लगी और धीरे-धीरे लकड़ी कम मिलने लगी। इससे वन निवासियों का जीवन व पर्यावरण बुरी तरह प्रभावित हुआ। यूरोपीय देशों की आंख भारत सहित उन देशों पर टिक गई, जो वन-संपदा व अन्य प्राकृतिक संसाधनों से संपन्न थे। इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए डचों, पुर्तगालियों, फ्रांसीसियों और अंग्रेज़ों आदि ने वनों को काटना आरंभ कर दिया। संक्षेप उपनिवेशवाद के अधीन वनों की कटाई के कारण निम्नलिखित थे।

  1. रेलवे-औपनिवेशिक शासकों को रेलवे के विस्तार के लिए स्लीपरों की आवश्यकता थी जो कठोर लकड़ी से बनाए जाते थे। इसके अतिरिक्त भाप इंजनों को चलाने के लिए ईंधन भी चाहिए था। इसके लिए भी लकड़ी का प्रयोग किया जाता था। अत: बड़े पैमाने पर वनों को काटा जाने लगा। 1850 के दशक तक केवल मद्रास प्रेजीडेंसी में स्लीपरों के लिए प्रति वर्ष 35,000 वृक्ष काटे जाने लगे थे। इसके लिए लोगों को ठेके दिए जाते थे। ठेकेदार स्लीपरों की आपूर्ति के लिए पेड़ों की अंधाधुंध कटाई करते थे। फलस्वरूप रेलमार्गों के चारों ओर के वन तेज़ी से समाप्त होने लगे। 1882 में जावा से भी 2 लाख 80 हज़ार स्लीपरों का आयात किया गया।
  2. जहाज़ निर्माण-औपनिवेशिक शासकों को अपनी नौ-शक्ति बढ़ाने के लिए जहाज़ों की आवश्यकता थी। इसके लिए भारी मात्रा में लकड़ी चाहिए थी। अत: मज़बूत लकड़ी प्राप्त करने के लिए टीक और साल के पेड़ लगाए जाने लगे। अन्य सभी प्रकार के वृक्षों को साफ़ कर दिया गया। शीघ्र ही भारत से बड़े पैमाने पर लकड़ी इंग्लैंड भेजी जाने लगी।
  3. कृषि-विस्तार-1600 ई० में भारत का लगभग 1/6 भू-भाग कृषि के अधीन था। परंतु जनसंख्या बढ़ने के साथ-साथ खादानों की मांग बढ़ने लगी। अत: किसान कृषि क्षेत्र का विस्तार करने लगे। इसके लिए वनों को साफ करके नए खेत बनाए जाने लगे। इसके अतिरिक्त ब्रिटिश अधिकारी आरंभ में यह सोचते थे कि वन धरती की शोभा बिगाड़ते हैं। अतः इन्हें काटकर कृषि भूमि का विस्तार किया जाना चाहिए, ताकि यूरोप की शहरी जनसंख्या के लिए भोजन और कारखानों के लिए कच्चा माल प्राप्त किया जा सके। कृषि के विस्तार से सरकार की आय भी बढ़ सकती थी। फलस्वरूप 1880-1920 के बीच 67 लाख हेक्टेयर कृषि क्षेत्र का विस्तार हुआ। इसका सबसे बुरा प्रभाव वनों पर ही पड़ा।
  4. व्यावसायिक खेती-व्यावसायिक खेती से अभिप्राय नकदी फसलें उगाने से है। इन फसलों में जूट (पटसन), गन्ना, गेहूं तथा कपास आदि फ़सलें शामिल हैं। इन फसलों की मांग 19वीं शताब्दी में बढ़ी। ये फसलें उगाने के लिए भी वनों का विनाश करके नई भमियां प्राप्त की गईं।
  5. चाय-कॉफी के बागान-यूरोप में चाय तथा काफ़ी की मांग बढ़ती जा रही थी। अतः औपनिवेशिक शासकों ने वनों पर नियंत्रण स्थापित कर लिया और वनों को काट कर विशाल भू-भाग बागान मालिकों को सस्ते दामों पर बेच दिया। इन भू-भागों पर चाय तथा काफ़ी के बागान लगाए गए।
  6. आदिवासी और किसान-आदिवासी तथा अन्य छोटे-छोटे किसान अपनी झोंपड़ियां बनाने तथा ईंधन के लिए पेड़ों को काटते थे। वे कुछ पेड़ों की जड़ों तथा कंदमूल आदि का प्रयोग भोजन के रूप में भी करते थे। इससे भी वनों का अत्यधिक विनाश हुआ।

प्रश्न 2.
उपनिवेशवाद के अंतर्गत बने वन-अधिनियमों का वन समाज पर क्या प्रभाव पड़ा ? वर्णन करें।
उत्तर-

1. झूम खेती करने वालों को-औपनिवेशिक शासकों ने झूम खेती पर रोक लगा दी और इस प्रकार की खेती करने वाले जन समुदायों को उनके घरों से ज़बरदस्ती विस्थापित कर दिया। परिणामस्वरूप कुछ किसानों को अपना व्यवसाय बदलना पड़ा और कुछ ने इसके विरोध में विद्रोह कर दिया।

2. घुमंतू और चरवाहा समुदायों को-वन प्रबंधन के नये कानून बनने से स्थानीय लोगों द्वारा वनों में पशु चराने तथा शिकार करने पर प्रतिबंध लगा दिया गया। फलस्वरूप कई घुमंतू तथा चरवाहा समुदायों की रोज़ी छिन गई। ऐसा मुख्यत: मद्रास प्रेजीडेंसी के कोरावा, कराचा तथा येरुकुला समुदायों के साथ घटित हुआ। विवश होकर उन्हें कारखानों, खानों तथा बागानों में काम करना पड़ा। ऐसे कुछ समुदायों को ‘अपराधी कबीले’ भी कहा जाने लगा।

3. लकड़ी और वन उत्पादों का व्यापार करने वाली कंपनियों को-वनों पर वन-विभाग का नियंत्रण स्थापित हो जाने के पश्चात् वन उत्पादों (कठोर लकड़ी, रब आदि) के व्यापार को बल मिला। इस कार्य के लिए कई व्यापारिक कंपनियां स्थापित हो गईं। ये स्थानीय लोगों से महत्त्वपूर्ण वन उत्पाद खरीद कर उनका निर्यात करने लगीं और भारी
मुनाफा कमाने लगीं। भारत में ब्रिटिश सरकार ने कुछ विशेष क्षेत्रों में इस व्यापार के अधिकार बड़ी-बड़ी यूरोपीय कंपनियों को दे दिए। इस प्रकार वन उत्पादों के व्यापार पर अंग्रेजी सरकार का नियंत्रण स्थापित हो गया।

4. बागान मालिकों को-ब्रिटेन में चाय, कहवा, रबड़ आदि की बड़ी मांग थी। अतः भारत में इन उत्पादों के बड़ेबड़े बागान लगाए गए। इन बागानों के मालिक मुख्यतः अंग्रेज़ थे। वे मजदूरों का खूब शोषण करते थे और इन उत्पादों के निर्यात से खूब धन कमाते थे।
PSEB 9th Class SST Solutions History Chapter 7 वन्य समाज तथा बस्तीवाद (1)

5. शिकार खेलने वाले राजाओं और अंग्रेज़ अफसरों को-नये वन कानूनों द्वारा वनों में शिकार करने पर रोक लगा दी गई। जो कोई भी शिकार करते पकड़ा जाता था, उसे दंड दिया जाता था। अब हिंसक जानवरों का शिकार करना राजाओं तथा राजकुमारों के लिए एक खेल बन गया। मुगलकाल के कई चित्रों में सम्राटों तथा राजकुमारों को शिकार करते दिखाया गया है।
PSEB 9th Class SST Solutions History Chapter 7 वन्य समाज तथा बस्तीवाद (2)
ब्रिटिश काल में हिंसक जानवरों का शिकार बड़े पैमाने पर होने लगा। इसका कारण यह था कि अंग्रेज़ अफ़सर हिंसक जानवरों को मारना समाज के हित में समझते थे। उनका मानना था कि ये जानवर खेती करने वालों के लिए खतरा उत्पन्न करते हैं। अत: वे अधिक-से-अधिक बाघों, चीतों तथा भेड़ियों को मारने के लिए पुरस्कार देते थे। फलस्वरूप 1875-1925 ई० के बीच पुरस्कार पाने के लिए 80 हज़ार बाघों, 1 लाख 50 हज़ार चीतों तथा 2 लाख भेड़ियों को मार डाला गया। महाराजा सरगुजा ने अकेले 1157 बाघों तथा 2000 चीतों को शिकार बनाया। जार्ज यूल नामक एक ब्रिटिश शासक ने 400 बाघों को मारा।

प्रश्न 3.
मुंडा आंदोलन पर नोट लिखो।
उत्तर-
भूमि, जल तथा वन की रक्षा के लिए किए गए आंदोलनों में मुंडा आंदोलन का प्रमुख स्थान है। यह आंदोलन आदिवासी नेता बिरसा मुंडा के नेतृत्व में चलाया गया।
कारण-

  1. आदिवासी जंगलों को पिता और ज़मीन को माता की तरह पूजते थे। जंगलों से संबंधित बनाए गए कानूनों ने उनको इनसे दूर कर दिया।
  2. डॉ० नोटरेट नामक ईसाई पादरी ने मुंडा कबीले के लोगों तथा नेताओं को ईसाई धर्म अपनाने के लिए प्रेरित किया
    और उन्हें लालच दिया कि उनकी ज़मीनें उन्हें वापिस करवा दी जाएंगी। परंतु बाद में सरकार ने साफ इंकार कर दिया।
  3. बिरसा मुंडा ने अपने विचारों के माध्यम से आदिवासियों को संगठित किया। सबसे पहले उसने अपने आंदोलन में सामाजिक, आर्थिक व सांस्कृतिक पक्षों को मज़बूत बनाया। उसने लोगों को अंधविश्वासों से निकाल कर शिक्षा के साथ जोडने का प्रयत्न किया। जल-जंगल-ज़मीन की रक्षा और उन पर आदिवासियों के अधिकार की बात करके उसने आर्थिक पक्ष से लोगों को अपने साथ जोड़ लिया। इसके अतिरिक्त उसने धर्म और संस्कृति की रक्षा का नारा देकर अपनी संस्कृति बचाने की बात की।

आंदोलन का आरंभ तथा प्रगति-1895 ई० में वन संबंधी बकाए की माफी के लिए आंदोलन चला परंतु सरकार ने आंदोलनकारियों की मांगों को ठुकरा दिया। बिरसा मुंडा ने ‘अबुआ देश में अबुआ राज’ का नारा देकर अंग्रेज़ों के विरुद्ध संघर्ष का बिगुल बजा दिया। 8 अगस्त, 1895 ई० को ‘चलकट’ स्थान पर उसे गिरफ्तार कर लिया गया और दो वर्ष के लिए जेल भेज दिया गया। 1897 ई० में उसकी रिहाई के बाद उस क्षेत्र में अकाल पड़ा। बिरसा मुंडा ने अपने साथियों को साथ लेकर लोगों की सेवा की और अपने विचारों से लोगों को जागृत किया। लोग उसे धरती बाबा के तौर पर पूजने लगे। परंतु सरकार उसके विरुद्ध होती गई। 1897 ई० में लगभग 400 मुंडा विद्रोहियों ने खंटी थाने पर हमला कर दिया। 1898 ई० में तांगा नदी के इलाके में विद्राहियों ने अंग्रेज़ी सेना को पीछे की ओर धकेल दिया, परंतु बाद में अंग्रेजी सेना ने सैकड़ों आदिवासियों को मौत के घाट उतार दिया।

बिरसा मुंडा की गिरफ्तारी, मृत्यु तथा आंदोलन का अंत-14 दिसंबर, 1899 ई० को बिरसा मुंडा ने अंग्रेज़ों के विरुद्ध युद्ध का ऐलान कर दिया, जोकि जनवरी 1900 ई० में सारे क्षेत्र में फैल गया। अंग्रेज़ों ने बिरसा मुंडा की गिरफ्तारी के लिए ईनाम का ऐलान कर दिया। कुछ स्थानीय लोगों ने लालच वश 3 फरवरी, 1900 ई० में बिरसा मुंडा को छल से पकड़वा दिया। उसे रांची जेल भेज दिया गया। वहां अंग्रेजों ने उसे धीरे-धीरे असर करने वाला विष दिया, जिसके कारण 9 जून, 1900 ई० को उसकी मृत्यु हो गई। परंतु उसकी मृत्यु का कारण हैज़ा बताया गया, ताकि मुंडा समुदाय के लोग भड़क न जाएं। उसकी पत्नी, बच्चों और साथियों पर मुकद्दमे चला कर भिन्न-भिन्न प्रकार की यातनाएं दी गईं।
सच तो यह है कि बिरसा मुंडा ने अपने कबीले के प्रति अपनी सेवाओं के कारण अल्प आयु में ही अपना नाम अमर कर लिया। लोगों को अपने अधिकारों के प्रति जागृत करने तथा अपने धर्म एवं संस्कृति की रक्षा के लिए तैयार करने के कारण आज भी लोग बिरसा मुंडा को याद करते हैं।

PSEB 9th Class SST Solutions History Chapter 7 वन्य समाज तथा बस्तीवाद

PSEB 9th Class Social Science Guide वन्य समाज तथा बस्तीवाद Important Questions and Answers

I. बहुविकल्पीय प्रश्न :

प्रश्न 1.
तेंद्र के पत्तों का प्रयोग किस काम में किया जाता है ?
(क) बीड़ी बनाने में ।
(ख) चमड़ा रंगने में
(ग) चाकलेट बनाने में
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(क) बीड़ी बनाने में ।

प्रश्न 2.
चाकलेट में प्रयोग होने वाला तेल प्राप्त होता है
(क) टीक के बीजों से
(ख) शीशम के बीजों से
(ग) साल के बीजों से
(घ) कपास के बीजों से।
उत्तर-
(ग) साल के बीजों से

प्रश्न 3.
आज भारत की कुल भूमि का लगभग कितना भाग कृषि के अधीन है ?
(क) चौथा
(ख) आधा
(ग) एक तिहाई
(घ) दो तिहाई।
उत्तर-
(ख) आधा

प्रश्न 4.
इनमें से वाणिज्यिक अथवा नकदी फसल कौन-सी है ?
(क) जूट
(ख) कपास
(ग) गन्ना
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 5.
कृषि-भूमि के विस्तार का क्या बुरा परिणाम है ?
(क) वनों का विनाश
(ख) उद्योगों को बंद करना
(ग) कच्चे माल का विनाश
(घ) उत्पादन में कमी।
उत्तर-
(क) वनों का विनाश

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प्रश्न 6.
19वीं शताब्दी में इंग्लैंड की रॉयल नेवी के लिए जलयान निर्माण की समस्या उत्पन्न होने का कारण था
(क) शीशम के वनों में कमी
(ख) अनेक वनों की कमी
(ग) कीकर के वनों में कमी
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(ख) अनेक वनों की कमी

प्रश्न 7.
1850 के दशक में रेलवे के स्लीपर बनाए जाते थे
(क) सीमेंट से
(ख) लोहे से
(ग) लकड़ी से
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(ग) लकड़ी से

प्रश्न 8.
चाय और कॉफी के बागान लगाए गए
(क) वनों को साफ़ करके
(ख) वन लगाकर
(ग) कारखाने हटाकर
(घ) खनन को बंद करके।
उत्तर-
(क) वनों को साफ़ करके

प्रश्न 9.
अंग्रेज़ों के लिए भारत में रेलवे का विस्तार करना ज़रूरी था
(क) अपने औपनिवेशिक व्यापार के लिए
(ख) भारतीयों की सुविधा के लिए
(ग) अंग्रेज़ उच्च अधिकारियों की सुविधा के लिए
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(क) अपने औपनिवेशिक व्यापार के लिए

प्रश्न 10.
भारत में वनों का पहला इंस्पेक्टर-जनरल था
(क) फ्रांस का केल्विन
(ख) जर्मनी का डीट्रिख चैंडिस
(ग) इंग्लैंड का क्रिसफोर्ड
(घ) रूस का निकोलस।
उत्तर-
(ख) जर्मनी का डीट्रिख चैंडिस

प्रश्न 11.
भारतीय वन सेवा (Indian Forest Service) की स्थापना कब हुई ?
(क) 1850 में
(ख) 1853 में
(ग) 1860 में
(घ) 1864 में।
उत्तर-
(घ) 1864 में।

प्रश्न 12.
निम्न में से किस वर्ष भारतीय वन अधिनियम बना
(क) 1860 में
(ख) 1864 में
(ग) 1865 में
(घ) 1868 में।
उत्तर-
(ग) 1865 में

प्रश्न 13.
1906 में इंपीरियल फारेस्ट रिसर्च इंस्टीच्यूट (Imperial Forest Research Institute) की स्थापना
(क) देहरादून में
(ख) कोलकाता में
(ग) दिल्ली में
(घ) मुंबई में।
उत्तर-
(क) देहरादून में

प्रश्न 14.
देहरादून के इंपीरियल फारेस्ट इंस्टीच्यूट (स्कूल) में जिस वन्य प्रणाली का अध्ययन कराया जाता था, वह थी
(क) मूलभूत वानिकी
(ख) वैज्ञानिक वानिकी
(ग) बागान वानिकी
(घ) आरक्षित वानिकी।
उत्तर-
(ग) बागान वानिकी

PSEB 9th Class SST Solutions History Chapter 7 वन्य समाज तथा बस्तीवाद

प्रश्न 15.
1865 के वन अधिनियम में संशोधन हुआ ?
(क) 1878 ई०
(ख) 1927 ई०
(ग) 1878 तथा 1927 ई० दोनों
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(ग) 1878 तथा 1927 ई० दोनों

प्रश्न 16.
1878 के वन अधिनियम के अनुसार ग्रामीण मकान बनाने तथा ईंधन के लिए जिस वर्ग के वनों से लकड़ी नहीं ले सकते थे
(क) आरक्षित वन
(ख) सुरक्षित वन
(ग) ग्रामीण वन
(घ) सुरक्षित तथा ग्रामीण वन।
उत्तर-
(क) आरक्षित वन

प्रश्न 17.
सबसे अच्छे वन क्या कहलाते थे ?
(क) ग्रामीण वन
(ख) आरक्षित वन
(ग) दुर्गम वन
(घ) सुरक्षित वन।
उत्तर-
(ख) आरक्षित वन

प्रश्न 18.
कांटेदार छाल वाला वृक्ष है.
(क) साल
(ख) टीक
(ग) सेमूर
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(ग) सेमूर

प्रश्न 19.
स्थानांतरी कृषि का एक अन्य नाम है
(क) झूम कृषि
(ख) रोपण कृषि
(ग) गहन कृषि
(घ) मिश्रित कृषि।
उत्तर-
(क) झूम कृषि

प्रश्न 20.
स्थानांतरी कृषि में किसी खेत पर अधिक-से-अधिक कितने समय के लिए कृषि होती है ?
(क) 5 वर्ष तक
(ख) 4 वर्ष तक
(ग) 6 वर्ष तक
(घ) 2 वर्ष तक।
उत्तर-
(घ) 2 वर्ष तक।

प्रश्न 21.
चाय के बागानों पर काम करने वाला समुदाय था
(क) मेरुकुला
(ख) कोरवा
(ग) संथाल
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(ग) संथाल

प्रश्न 22.
संथाल परगनों में ब्रिटिश शासन के विरुद्ध विद्रोह करने बाले वन समुदाय का नेता था
(क) बिरसा मुंडा
(ख) सिद्धू
(ग) अलूरी सीता राम राजू
(घ) गुंडा ध्रुव।
उत्तर-
(ख) सिद्धू

प्रश्न 23.
बिरसा मुंडा ने जिस क्षेत्र में वन समुदाय के विद्रोह का नेतृत्व किया
(क) तत्कालीन आंध्र प्रदेश
(ख) केरल
(ग) संथाल परगना
(घ) छोटा नागपुर।
उत्तर-
(घ) छोटा नागपुर।

प्रश्न 24.
बस्तर में ब्रिटिश शासन के विरुद्ध विद्रोह का नेता कौन था ?
(क) गुंडा ध्रुव
(ख) बिरसा मुंडा
(ग) कनु
(घ) सिद्ध।
उत्तर-
(क) गुंडा ध्रुव

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प्रश्न 25.
जावा का कौन-सा समुदाय वन काटने में कुशल था ?
(क) संथाल
(ख) डच
(ग) कलांग
(घ) सामिन।
उत्तर-
(ग) कलांग

II. रिक्त स्थान भरो:

  1. 1850 के दशक में रेलवे …………. के स्लीपर बनाए जाते थे।
  2. जर्मनी का ……………. भारत में पहला इंस्पेक्टर जनरल था।
  3. भारतीय वन अधिनियम ……………….. ई० में बना।
  4. 1906 ई० में ………………. में इंपीरियल फारेस्ट रिसर्च इंस्टीच्यूट की स्थापना हुई।
  5. …………………वन सबसे अच्छे वन कहलाते हैं।

उत्तर-

  1. लकड़ी
  2. डीट्रिख ब्रैडिस
  3. 1865
  4. देहरादून
  5. आरक्षित।

III. सही मिलान करो :

(क) – (ख)
1. तेंदू के पत्ते – (i) छोटा नागपुर
2. भारतीय वन अधिनियम – (ii) बीड़ी बनाने
3. इंपीरियल फारेस्ट रिसर्च इंस्टीचूट – (iii) साल के बीज
4. चाकलेट – (iv) 1865
5. बिरसा मुंडा – (v) 1906
उत्तर-

  1. बॉडी बनाने
  2. 1865
  3. 1906
  4. साल के बीज
  5. छोटा नागपुर।

अति लघु उत्तरों वाले प्रश्न

उत्तर एक लाइन अथवा एक शब्द में :

प्रश्न 1.
वनोन्मूलन (Deforestation) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
वनों का कटाव एवं सफ़ाई।

प्रश्न 2.
कृषि के विस्तारण का मुख्य कारण क्या था ?
उत्तर-
बढ़ती हुई जनसंख्या के लिए भोजन की बढ़ती हुई मांग को पूरा करना।

प्रश्न 3.
वनों के विनाश का कोई एक कारण बताओ।
उत्तर-
कृषि का विस्तारण।

प्रश्न 4.
दो नकदी फसलों के नाम बताओ।
उत्तर-
जूट तथा कपास।

प्रश्न 5.
19वीं शताब्दी के आरंभ में औपनिवेशिक शासक वनों की सफ़ाई क्यों चाहते थे ? कोई एक कारण बताइए।
उत्तर-
वे वनों को ऊसर तथा बीहड़ स्थल समझते थे।

प्रश्न 6.
कृषि में विस्तार किस बात का प्रतीक माना जाता है ?
उत्तर-
प्रगति का।

प्रश्न 7.
आरंभ में अंग्रेज़ शासक वनों को साफ़ करके कृषि का विस्तार क्यों करना चाहते थे ? कोई एक कारण लिखिए।
उत्तर-
राज्य की आय बढ़ाने के लिए।

प्रश्न 8.
इंग्लैंड की सरकार ने भारत में वन संसाधनों का पता लगाने के लिए खोजी दंल कब भेजे ?
उत्तर-
1820 के दशक में।

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प्रश्न 9.
औपनिवेशिक शासकों को किन दो उद्देश्य की पूर्ति के लिए बड़े पैमाने पर मज़बूत लकड़ी की ज़रूरत थी ?
उत्तर-
रेलवे के विस्तार तथा नौ-सेना के लिए जलयान बनाने के लिए।

प्रश्न 10.
रेलवे के विस्तार का वनों पर क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर-
बड़े पैमाने पर वनों का कटाव।

प्रश्न 11.
1864 में ‘भारतीय वन सेवा’ की स्थापना किसने की ?
उत्तर-
डीट्रिख चैंडिस (Dietrich Brandis) ने।

प्रश्न 12.
वैज्ञानिक वानिकी से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
वन विभाग के नियंत्रण में वृक्ष (वन) काटने की वह प्रणाली जिसमें पुराने वृक्ष काटे जाते हैं और नये वृक्ष लगाए जाते हैं।

प्रश्न 13.
बागान का क्या अर्थ है ?
उत्तर-
सीधी पंक्तियों में एक ही प्रजाति के वृक्ष उगाना।

प्रश्न 14.
1878 के वन अधिनियम द्वारा वनों को कौन-कौन से तीन वर्गों में बांटा गया ?
उत्तर-

  1. आरक्षित वन
  2. सुरक्षित वन
  3. ग्रामीण वन।

प्रश्न 15.
किस वर्ग के वनों से ग्रामीण कोई भी वन्य उत्पाद नहीं ले सकते थे ?
उत्तर-
आरक्षित वन।

प्रश्न 16.
मज़बूत लकड़ी के दो वृक्षों के नाम बताओ।
उत्तर-
टीक तथा साल।

प्रश्न 17.
दो वन्य उत्पादों के नाम बताओ जो पोषक गुणों से युक्त होते हैं।
उत्तर-
फल तथा कंदमूल।

प्रश्न 18.
जड़ी-बूटियां किस काम आती हैं ?
उत्तर-
औषधियां बनाने के।

प्रश्न 19.
महुआ के फल से क्या प्राप्त होता है ?
उत्तर-
खाना पकाने और जलाने के लिए तेल।

प्रश्न 20.
विश्व के किन भागों में स्थानांतरी (झूम) खेती की जाती है ?
उत्तर-
एशिया के कुछ भागों, अफ्रीका तथा दक्षिण अमेरिका में।

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लघु उत्तरों वाले प्रश्न।

प्रश्न 1.
औपनिवेशिक काल में कृषि के तीव्र विस्तारीकरण के मुख्य कारण क्या थे ?
उत्तर-
औपनिवेशिक काल में कृषि के तीव्र विस्तारीकरण के मुख्य कारण निम्नलिखित थे-

  1. 19वीं शताब्दी में यूरोप में जूट (पटसन), गन्ना, कपास, गेहूं आदि वाणिज्यिक फसलों की मांग बढ़ गई। अनाज शहरी जनसंख्या को भोजन जुटाने के लिए चाहिए था तथा अन्य फसलों का उद्योगों में कच्चे माल के रूप में प्रयोग किया जाना था। अत: अंग्रेज़ी शासकों ने ये फसलें उगाने के लिए कृषि क्षेत्र का तेजी से विस्तार किया।
  2. 19वीं शताब्दी के आरंभिक वर्षों में अंग्रेज़ शासक वन्य भूमि को ऊसर तथा बीहड़ मानते थे। वे इसे उपजाऊ बनाने के लिए वन साफ़ करके भूमि को कृषि के अधीन लाना चाहते थे। .
  3. अंग्रेज़ शासक यह भी सोचते थे कि कृषि के विस्तार से कृषि-उत्पादन में वृद्धि होगी। फलस्वरूप राज्य को अधिक राजस्व प्राप्त होगा और राज्य की आय में वृद्धि होगी।
    अतः 1880-1920 ई० के बीच कृषि क्षेत्र में 67 लाख हेक्टेयर की बढ़ोत्तरी हुई।

प्रश्न 2.
1820 के बाद भारत में वनों को बड़े पैमाने पर काटा जाने लगा। इसके लिए कौन-कौन से कारक उत्तरदायी थे ?
उत्तर-
1820 के दशक में ब्रिटिश सरकार को मज़बूत लकड़ी की बहुत अधिक आवश्यकता पड़ी। इसे पूरा करने के लिए वनों को बड़े पैमाने पर काटा जाने लगा। लकड़ी की बढ़ती हुई आवश्यकता और वनों के कटाव के लिए निम्नलिखित कारक उत्तरदायी थे-

  1. इंग्लैंड की रॉयल नेवी (शाही नौ-सेना) के लिए जलयान ओक के वृक्षों से बनाए जाते थे। परंतु इंग्लैंड के ओक वन समाप्त होते जा रहे थे और जलयान निर्माण में बाधा पड़ रही थी। अतः भारत के वन संसाधनों का पता लगाया गया और यहां के वृक्ष काट कर लकड़ी इंग्लैंड भेजी जाने लगी।
  2. 1850 के दशक में रेलवे का विस्तार आरंभ हुआ। इससे लकड़ी की आवश्यकता और अधिक बढ़ गई। इसका कारण यह था कि रेल पटरियों को सीधा रखने के लिए सीधे तथा मज़बूत स्लीपर चाहिए थे जो लकड़ी से बनाए जाते थे। फलस्वरूप वनों पर और अधिक बोझ बढ़ गया। 1850 के दशक तक केवल मद्रास प्रेजीडेंसी में स्लीपरों के लिए प्रतिवर्ष 35,000 वृक्ष काटे जाते थे।
  3. अंग्रेज़ी सरकार ने लकड़ी की आपूर्ति बनाये रखने के लिए निजी कंपनियों को वन काटने के ठेके दिये। इन कंपनियों ने वृक्षों को अंधाधुंध काट डाला।

प्रश्न 3.
वैज्ञानिक वानिकी के अंतर्गत वन-प्रबंधन के लिए क्या-क्या पग उठाए गए ?
उत्तर-
वैज्ञानिक वानिकी के अंतर्गत वन प्रबंधन के लिए कई महत्त्वपूर्ण पग उठाए गए-

  1. उन प्राकृतिक वनों को काट दिया गया जिनमें कई प्रकार की प्रजातियों के वृक्ष पाये जाते थे।
  2. काटे गए वनों के स्थान पर बागान व्यवस्था की गई। इसके अंतर्गत सीधी पंक्तियों में एक ही प्रजाति के वृक्ष लगाए गए।
  3. वन अधिकारियों ने वनों का सर्वेक्षण किया और विभिन्न प्रकार के वृक्षों के अधीन क्षेत्र का अनुमान लगाया। उन्होंने वनों के उचित प्रबंध के लिए कार्य योजनाएं भी तैयार की। .
  4. योजना के अनुसार यह निश्चित किया गया कि प्रतिवर्ष कितना वन आवरण काटा जाए। उसके स्थान पर नये वृक्ष लगाने की योजना भी बनाई गई ताकि कुछ वर्षों में नये पेड़ पनप जाएं।

प्रश्न 4.
वनों के बारे में औपनिवेशिक वन अधिकारियों तथा ग्रामीणों के हित परस्पर टकराते थे। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
वनों के संबंध में वन अधिकारियों तथा ग्रामीणों के हित परस्पर टकराते थे। ग्रामीणों को जलाऊ लकड़ी, चारा तथा पत्तियों आदि की आवश्यकता थी। अत: वे ऐसे वन चाहते थे जिनमें विभिन्न प्रजातियों की मिश्रित वनस्पति हो।
इसके विपरीत वन अधिकारी ऐसे वनों के पक्ष में थे जो उनकी जलयान निर्माण तथा रेलवे के प्रसार की आवश्यकताओं को पूरा कर सकें। इसलिए वे कठोर लकड़ी के वृक्ष लगाना चाहते थे जो सीधे और ऊंचे हों। अतः मिश्रित वनों का सफाया करके टीक और साल के वृक्ष लगाए गए।

प्रश्न 5.
वन अधिनियम ने ग्रामीणों अथवा स्थानीय समुदायों के लिए किस प्रकार कठिनाइयां उत्पन्न की ?
उत्तर-
वन अधिनियम से ग्रामीणों की रोजी-रोटी का साधन वन अर्थात् वन्य-उत्पाद ही थे। परंतु वन अधिनियम के बाद उनके द्वारा वनों से लकड़ी काटने, फल तथा जड़ें इकट्ठी करने और वनों में पशु चराने, शिकार एवं मछली पकड़ने पर रोक लगा दी गई। अतः लोग वनों से लकड़ी चोरी करने पर विवश हो गए। यदि वे पकड़े जाते थे, तो मुक्त होने के लिए उन्हें वन-रक्षकों को रिश्वत देनी पड़ती थी। ग्रामीण महिलाओं की चिंता तो और अधिक बढ़ गई। प्रायः पुलिस वाले तथा वन-रक्षक उनसे मुफ़्त भोजन की मांग करते रहते थे और उन्हें डराते-धमकाते रहते थे।

प्रश्न 6.
स्थानांतरी कृषि पर रोक क्यों लगाई गई ? इसका स्थानीय समुदायों पर क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर-
स्थानांतरी कृषि पर मुख्य रूप से तीन कारणों से रोक लगाई गई–

  1. यूरोप के वन-अधिकारियों का विचार था कि इस प्रकार की कृषि वनों के लिए हानिकारक है। उनका विचार था कि जिस भूमि पर छोड़-छोड़ कर कृषि होती रहती है, वहां पर इमारती लकड़ी देने वाले वन नहीं उग सकते।
  2. जब भूमि को साफ़ करने के लिए किसी वन को जलाया जाता था, तो आस-पास अन्य मूल्यवान् वृक्षों को आग लग जाने का भय बना रहता था।
  3. स्थानांतरी कृषि से सरकार के लिए करों की गणना करना कठिन हो रहा था।
    प्रभाव-स्थानांतरी खेती पर रोक लगने से स्थानीय समुदायों को वनों से ज़बरदस्ती बाहर निकाल दिया गया। कुछ लोगों को अपना व्यवसाय बदलना पड़ा और कुछ ने विद्रोह कर दिया।

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प्रश्न 7.
1980 के दशक से वानिकी में क्या नये परिवर्तन आए हैं ?
उत्तर-
1980 के दशक से वानिकी का रूप बदल गया है। अब स्थानीय लोगों ने वनों से लकड़ी इकट्ठी करने के स्थान पर वन संरक्षण को अपना लक्ष्य बना लिया है। सरकार भी जान गई है कि वन संरक्षण के लिए इन लोगों की भागीदारी आवश्यक है। भारत में मिज़ोरम से लेकर केरल तक के घने वन इसलिए सुरक्षित हैं कि स्थानीय लोग इनकी रक्षा करना अपना पवित्र कर्त्तव्य समझते हैं। कुछ गांव अपने वनों की निगरानी स्वयं करते हैं। इसके लिए प्रत्येक परिवार बारी-बारी से पहरा देता है। अतः इन वनों में वन-रक्षकों की कोई भूमिका नहीं रही। अब स्थानीय समुदाय तथा पर्यावरणविद् वन प्रबंधन को कोई भिन्न रूप देने के बारे में सोच रहे हैं।

दीर्घ उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत में वनों का प्रथम इंस्पेक्टर-जनरल कौन था ? वन प्रबंधन के विषय में उसके क्या विचार थे ? इसके लिए उसने क्या किया ?
उत्तर-
भारत में वनों का प्रथम इंस्पेक्टर-जनरल डीट्रिख बेंडीज़ (Dietrich Brandis) था। वह एक जर्मन विशेषज्ञ था। वन प्रबंधन के संबंध में उसके निम्नलिखित विचार थे-

  1. वनों के प्रबंध के लिए एक उचित प्रणाली अपनानी होगी और लोगों को वन-संरक्षण विज्ञान में प्रशिक्षित करना होगा।
  2. इस प्रणाली के अंतर्गत कानूनी प्रतिबंध लगाने होंगे।
  3. वन संसाधनों के संबंध में नियम बनाने होंगे।
  4. वनों को इमारती लकड़ी के उत्पादन के लिए संरक्षित करना होगा। इस उद्देश्य से वनों में वृक्ष काटने तथा पशु चराने को सीमित करना होगा।
  5. जो व्यक्ति नई प्रणाली की परवाह न करते हुए वृक्ष काटता है, उसे दंडित करना होगा।
    अपने विचारों को कार्य रूप देने के लिए बेंडीज़ ने 1864 में ‘भारतीय वन सेवा’ की स्थापना की और 1865 के ‘भारतीय वन अधिनियम’ पारित होने में सहायता पहुंचाई। 1906 में ‘देहरादून में ‘द इंपीरियल फारेस्ट रिसर्च इंस्टीच्यूट’ की स्थापना की गई। यहां वैज्ञानिक वानिकी का अध्ययन कराया जाता था। परंतु बाद में पता चला कि इस अध्ययन में विज्ञान जैसी कोई बात नहीं थी।

प्रश्न 2.
वन्य प्रदेशों अथवा वनों में रहने वाले लोग वन उत्पादों का विभिन्न प्रकार से उपयोग कैसे करते हैं ?
उत्तर-
वन्य प्रदेशों में रहने वाले लोग कंद-मूल-फल, पत्ते आदि वन-उत्पादों का विभिन्ने ज़रूरतों के लिए उपयोग करते हैं।

  1. फल और कंद बहुत पोषक खाद्य हैं, विशेषकर मानसून के दौरान जब फ़सल कट कर घर न आयी हो।
  2. जड़ी-बूटियों का दवाओं के लिए प्रयोग होता है।
  3. लकड़ी का प्रयोग हल जैसे खेती के औज़ार बनाने में किया जाता है।
  4. बांस से बढ़िया बाड़ें बनायी जा सकती हैं। इसका उपयोग छतरियां तथा टोकरियां बनाने के लिए भी किया जा सकता है।
  5. सूखे हुए कुम्हड़े के खोल का प्रयोग पानी की बोतल के रूप में किया जा सकता है।
  6. जंगलों में लगभग सब कुछ उपलब्ध है-
    • पत्तों को आपस में जोड़ कर ‘खाओ-फेंको’ किस्म के पत्तल और दोने बनाए जा सकते हैं।
    • सियादी (Bauhiria vahili) की लताओं से रस्सी बनायी जा सकती है।
    • सेमूर (सूती रेशम) की कांटेदार छाल पर सब्जियां छीली जा सकती है।
    • महुए के पेड़ से खाना पकाने और रोशनी के लिए तेल निकाला जा सकता है।

वन्य समाज तथा बस्तीवाद PSEB 9th Class History Notes

  • वनों का महत्त्व – वन मानव समाज के लिए बहुत ही महत्त्वपूर्ण संसाधन हैं। वनों से हमें इमारती लकड़ी, ईंधन, फल, गोंद, शहद, कागज़ तथा अन्य कई उत्पाद प्राप्त होते हैं। ग्रामीणों के लिए वन आजीविका का महत्त्वपूर्ण साधन हैं।
  • वनोन्मूलन – वनोन्मूलन का अर्थ है-वनों की सफ़ाई। कृषि के विस्तार, रेलवे के विस्तार, जलयान निर्माण आदि कई कार्यों के लिए वनों को बड़े पैमाने पर काटा गया।
  • बागान – ऐसे बड़े-बड़े फार्म जहां एक सीधी पंक्ति में एक ही प्रजाति के वृक्ष लगाए जाते हैं, बागान कहलाते हैं।
  • इमारती लकड़ी के वृक्ष – इमारती लकड़ी मज़बूत तथा कठोर होती है। यह मुख्य साल तथा टीक के वृक्षों से मिलती है।
  • वनों पर नियंत्रण – वनों का महत्त्व ज्ञात होने के बाद औपनिवेशिक शासकों ने वन विभाग की स्थापना की और वन अधिनियम पारित करके वनों पर नियंत्रण कर लिया।
  • वन नियंत्रण के प्रभाव – वनों पर सरकार के नियंत्रण से वनों पर निर्भर रहने वाले आदिवासी कबीलों की रोजी-रोटी छिन गई और उनमें सरकार के विरुद्ध विद्रोह के भाव जाग उठे।
  • स्थानांतरी (झूम) खेती – इस प्रकार की खेती में वनों को साफ़ करके खेत प्राप्त किए जाते हैं। एक-दो वर्ष तक वहां पर कृषि करके उन्हें छोड़ दिया जाता है और किसी अन्य स्थान पर खेत बना लिए जाते हैं। वनों पर सरकारी नियंत्रण के पश्चात् इस प्रकार की कृषि पर रोक लगा दी गई।
  • वैज्ञानिक वानिकी – वन विभाग के नियंत्रण में वृक्ष काटने की वह प्रणली जिसमें पुराने वृक्ष काटे जाते हैं और नए वृक्ष उगाए जाते हैं।
  • बस्तर – बस्तर एक पठार पर स्थित है। वन नियंत्रण से प्रभावित यहां के आदिवासी कबीलों ने अंग्रेज़ी शासन के विरुद्ध विद्रोह किए। इन विद्रोहों का आरंभ ध्रुव कबीले द्वारा हुआ।
  • जावा – जावा इंडोनेशिया का एक प्रदेश है। यहां के डच शासकों ने यहां के वनों का खूब शोषण किया और वहां के स्थानीय लोगों को मज़दूर बनाकर रख दिया। फलस्वरूप उन्होंने विद्रोह कर दिया जिसे दबाने में तीन महीने लग गए।
  • 1855 ई० – – लार्ड डल्हौज़ी ने वनों की सुरक्षा के लिए कानून बनाए। इसकी अधीन मालाबार की पहाड़ियों में सागवान और नीलगिरि की पहाड़ियों में बबूल (कीकर) के वृक्ष लगाए गए।
  • 1864 ई० – वनों की रक्षा संबंधी कानूनों/नियमों की पालना हित भारतीय वन विभाग की स्थापना की गई। इसका मुख्य लक्ष्य व्यापारिक बाग़बानी को प्रोत्साहित करना था।
  • 1865 ई० – भारतीय वन अधिनियम 1865, वनों के प्रबंधन संबंधी कानून बनाने से संबंधित था।
  • 878 ई० – भारतीय वन अधिनियम 1878 इस अधिनियम के अंतर्गत वनों की तीन श्रेणियां बना दी गईं-
    • आरक्षित वन,
    • सुरक्षित वन,
    • ग्रामीण वन।
      इस कानून से जंगलों को निजी संपत्ति से सरकारी संपत्ति बनाने के अधिकार दिए गए और लोगों के जंगलों में जाने व
      उनका प्रयोग करने पर प्रतिबंध लगा दिया गया।
  • 1906 ई० –  इंपीरियल वन अनुसंधान केंद्र, देहरादून की स्थापना की गई।
  • 1927 ई० –  वनों से संबंधित कानूनों को मजबूत करने, जंगली लकड़ी का उत्पादन बढ़ाने, इमारती लकड़ी व अन्य वन्य उपजों पर कर लगाने के उद्देश्य से भारतीय वन अधिनियम 1927 लागू किया गया। इस कानून में उल्लंघन करने वालों को कारावास व भारी जुर्माने का प्रावधान था।

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भाग-IV वस्त्र विज्ञान

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ਭਾਗ-I ਗ੍ਰਹਿ ਵਿਵਸਥਾ

ਭਾਗ-II ਭੋਜਨ ਅਤੇ ਪੋਸ਼ਣ ਵਿਗਿਆਨ

ਭਾਗ-III ਬਾਲ ਵਿਕਾਸ ਅਤੇ ਪਰਿਵਾਰਿਕ ਸੰਬੰਧ

ਭਾਗ-IV ਵਸਤਰ ਵਿਗਿਆਨ

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PSEB 9th Class Maths Book Solutions Chapter 14 सांख्यिकी

PSEB 9th Class Maths Book Solutions Chapter 15 प्रायिकता

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PSEB 9th Class English Structure of Question Paper

Class – IX (English)
Time: 3 Hrs.

Theory: 80 marks
INA: 20 marks
(Listening and Speaking Skill-based Practical: 18 marks
Book Bank: 2 marks)
Total: 100 marks

Q.No. Content Maximum Marks (80)
1. Section A : Reading Comprehension
(a) Unseen Reading Comprehension (5 MCQs) (5Q × 1M = 5 Marks)
(b) Unseen Picture/Poster Based Comprehension (5 MCQs) (5Q × 1M = 5 Marks)
2. Section B: Objective Type Questions
It will consist of 8 objective-type questions carrying one mark each.
Objective-type questions may include questions with one word to one-sentence answers.
Fill in the blanks, True/False, or multiple choice type questions.
English Main Course Book (4 Questions)
English Supplementary Reader (4 Questions)
(8Q × 1M = 8 Marks)
3. Section C: English Textbooks
English Main Course Book: Prose
(a) Short Answer Type Questions (3 out of 5) (3Q × 2M = 6 Marks)
(b) Long Answer Type Questions (1 out of 2) (1Q × 3M = 3 Marks)
4. English Main Course Book: Poetry
(a) Stanza (2 out of 3 questions) (2Q × 1.5M = 3 Marks)
(b) Central Idea/Long Answer Type Questions (1 out of 2) (1Q × 3M = 3 Marks)
5. English Supplementary Reader
(3 out of 5 questions)
(3Q × 3M = 9 Marks)
6. Section D: Vocabulary
Vocabulary (4Q × 1M = 4 Marks)
7. Section E: Translation, Grammar, and Composition
(a) Translation from English to Punjabi/Hindi (3 out of 5) (3Q × 1M = 3 Marks)
(b) Translation from Punjabi/Hindi to English (3 out of 5) (3Q × 1M = 3 Marks)
8. Grammar (Do as directed) (10Q × 1M = 10 Marks)
9. (a) Note Making/E-mail messages (with internal choice) (3 Marks)
(b) Paragraph Writing (1 out of 2) (4 Marks)
(c) Letter Writing (1 out of 2) (6 Marks)
10. Marks for Good Handwriting (5 Marks)

Note: abbreviations used: Q – question, M – marks

In Main Coursebook (including poetry) and Supplementary Reader Section, questions will come from the given back exercises of lessons in the prescribed textbooks.

There will be four choices in multiple-choice questions.

For letter writing any two kinds of letters (Personal, Official and Business) with internal choice will be given.

In Question 3(b), one question will be asked from the first-four chapters (‘The Grooming of a Boy’, ‘Plants also Breathe and Feel’, ‘Budgeting your Time’, ‘Journey by Night’); The other question will be asked from the next three chapters (‘The Discovery of Moon’, ‘Three Great Indians’, ‘The Death of Abhimanyu’).

Listening and Speaking skill-based practical: 18 Marks

  • Listening – 10 Marks
  • Speaking – 08 Marks

For the listening test, students will be given a practice sheet containing 10 questions. They will answer all the 10 questions on the basis of an audio clip. Each question will carry 1 mark.

For the speaking test, students will speak 8 correct sentences on the basis of ‘picture and cue words’ provided in the practice sheet. Each correct sentence carries 1 mark.

PSEB 9th Class English Syllabus

Unit-I: Reading Skills

  • Reading Comprehension of unseen passages with five multiple-choice questions.
  • Unseen Picture/Poster-based Comprehension with five multiple-choice questions.

Unit-II: Text Books

  1. English Main Coursebook
  2. Grooming of a Boy
  3. Plants also Breathe and Feel
  4. Budgeting Your Time
  5. Journey by Night
  6. The Discovery of Moon
  7. Three Great Indians
  8. The Death of Abhimanyu

Poetry

  1. Open Thy Eyes and See Thy God (Rabindranath Tagore)
  2. No Men Are Foreign (James Kirkup)
  3. The Nightingale and the Glow-worm (William Cowper)

English Literature book (Supplementary Reader)

  1. The Magic Violin
  2. Wishes Come True
  3. In the Flood
  4. A Letter to God
  5. The Last Leaf
  6. The Bewitched Jacket
  7. The King Who Limped

Unit-III: Vocabulary

  • Nature of Words (Context Meaning)
  • Words as different Parts of Speech
  • Synonyms
  • Antonyms
  • Homonyms
  • Formation of Words

Unit-IV: Grammar

  • Determiners
  • Modals
  • Prepositions
  • Conjunctions
  • Simple and Complex Sentences
  • Voice
  • Narration
  • Non-Finites
  • Tenses (Concord and Sequence)

Unit-V: Guided Creative Writing

  • Note-making
  • E-mail messages
  • Letter Writing
  • Paragraph Writing (not more than 100 words)

Translation

  • Translation from English to Punjabi/Hindi.
  • Translation from Punjabi/Hindi to English.

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