PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 6 रसोई का प्रबन्ध

Punjab State Board PSEB 9th Class Home Science Book Solutions Chapter 6 रसोई का प्रबन्ध Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 9 Home Science Chapter 6 रसोई का प्रबन्ध

PSEB 9th Class Home Science Guide रसोई का प्रबन्ध Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
रसोई घर का महत्त्वपूर्ण भाग क्यों होती है ?
उत्तर-
रसोई में घर के सदस्यों के लिए खाना तैयार किया जाता है तथा गृहिणी का मुख्य काम रसोई में ही होता है तथा उसका अधिक समय रसोई में ही व्यतीत होता है। इस तरह रसोई, घर का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है।

प्रश्न 2.
पुरानी किस्म और नई किस्म की रसोई में मुख्य क्या अन्तर है ?
उत्तर-
पुरानी किस्म की रसोई में सारा काम ज़मीन पर बैठकर किया जाता था जैसे खाना पकाने तथा खाना खाने के लिए पटड़े अथवा पीड़ी पर ही बैठा जाता था।
नई किस्म की रसोई में सारा काम खड़े होकर किया जाता है तथा बार-बार उठने-बैठने के लिए समय तथा शक्ति खराब नहीं होती। फ्रिज आदि भी रसोई में ही होता है।

PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 6 रसोई का प्रबन्ध

प्रश्न 3.
कार्य व्यवस्था से क्या भाव है ?
उत्तर-
रसोई घर में कार्य किस तरह किया जाए अर्थात् विभिन्न कार्यों के प्रबन्ध को कार्य व्यवस्था कहा जाता है।
रसोई के कार्य को तीन कार्य क्षेत्रों में बांटा गया है-(i) भोजन की तैयारी (ii) पकाना तथा परोसना (iii) हौदी।

प्रश्न 4.
रसोई कितने प्रकार की हो सकती हैं ?
उत्तर-
नई रसोई में खड़े होकर काम करने के लिए शैल्फें होती हैं। शैल्फ के अनुसार पांच किस्म की रसोइयां हो सकती हैं –
(i) एक दीवार वाली
(ii) दो दीवारों वाली
(iii) एल (L) आकार वाली
(iv) यू (U) आकार वाली तथा
(v) टूटे यू (U) आकार वाली।

प्रश्न 5.
रसोई में बिजली के स्विच कैसे होने चाहिएं ?
उत्तर-
रसोई में बिजली के उपकरणों के प्रयोग के हिसाब से स्विच होने चाहिएं। अनावश्यक स्विच नहीं लगाने चाहिएं।

प्रश्न 6.
रसोई में कैसे रंगों का प्रयोग करना चाहिए और क्यों ?
उत्तर-
रसोई में हल्के रंगों का प्रयोग करना चाहिए क्योंकि हल्के रंग खुलेपन का अनुभव करवाते हैं।

प्रश्न 7.
रसोई के साथ स्टोर की ज़रूरत कब और क्यों होती है ?
उत्तर-
जिन घरों में रसोई का सामान इकट्ठा खरीदा जाता है उन घरों में रसोई के साथ स्टोर भी होना चाहिए तथा जाली के दरवाज़े हमेशा बन्द रखने चाहिएं। रसोई साफ-सुथरी होनी चाहिए।

प्रश्न 8.
मक्खी-मच्छर से बचाव के लिए आप रसोई में क्या प्रबन्ध करोगे ?
उत्तर-
मच्छर-मक्खी से बचाव के लिए रसोई के दरवाज़ों तथा खिड़कियों पर जाली लगी होनी चाहिए तथा रसोई के जाली के दरवाज़े हमेशा बन्द रखने चाहिएं। रसोई साफ सुथरी होनी चाहिए।

प्रश्न 9.
रसोई की सफ़ाई क्यों ज़रूरी है ?
उत्तर-
रसोई की साफ़-सफ़ाई बहुत ज़रूरी है क्योंकि यदि रसोई गन्दी होगी तो कई जीव-जन्तुओं को अपना घर बनाने का अवसर मिल जायेगा क्योंकि रसोई में खाद्य पदार्थ उन्हें आसानी से उपलब्ध हो सकते हैं। रसोई में जहरीली दवाइयों का प्रयोग भी नहीं किया जा सकता इसलिए यह अति आवश्यक हो जाता है कि रसोई की सफाई का विशेष ध्यान रखा जाए।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 10.
घर में रसोई का चयन कैसे करना चाहिए ?
उत्तर-

  1. रसोई का चुनाव घर तथा घर वालों की संख्या के अनुसार किया जाना चाहिए।
  2. रसोई ऐसे स्थान पर होनी चाहिए जहां हवा तथा सीधी रोशनी पहुंच सके।
  3. दरवाज़े तथा खिड़कियां हवा की दिशा में होनी चाहिएं।
  4. रसोई में आग की गर्मी होती है इसलिए रसोई में धूप नहीं आनी चाहिए नहीं तो गर्मियों में रसोई अधिक गर्म हो जाएगी।
  5. रसोई न तो अधिक बड़ी हो तथा न ही अधिक छोटी। छोटी रसोई में काम करना कठिन हो जाता है। अधिक बड़ी रसोई में अधिक मेहनत करनी पड़ती है।
  6. रसोई को शौचालय अथवा नालियों से दूर र नायें ताकि इनकी दुर्गंध रसोई तक न पहुंच सके।

PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 6 रसोई का प्रबन्ध

प्रश्न 11.
रसोई, घर का सबसे महत्त्वपूर्ण भाग है। इस तथ्य को स्पष्ट करो।
उत्तर-
मनुष्य काम-काज करने के लिए ऊर्जा भोजन से प्राप्त करता है तथा भोजन रसोई घर में पकाया जाता है। इस तरह रसोई का मनुष्य के जीवन में काफ़ी महत्त्वपूर्ण स्थान है। गृहिणी रसोई की मालकिन होती है, उसका काफ़ी समय रसोई में बीतता है। इस तरह हम कह सकते हैं कि रसोई, घर का सबसे महत्त्वपूर्ण हिस्सा है।

प्रश्न 12.
रसोई में काम करने के मुख्य केन्द्र कौन-से हैं ? और वहां क्या-क्या कार्य किए जाते हैं ?
उत्तर-
रसोई में काम करने के तीन मुख्य केन्द्र हैं –

  1. भोजन की तैयारी
  2. भोजन पकाना तथा परोसना
  3. हौदी।

1. भोजन की तैयारी-भोजन पकाने से पहले सब्जियों को छीलने, काटने, चुनने आदि की तैयारी की जाती है। खाना पकाने के लिए अन्य सम्बन्धित कार्य भी यहीं होते हैं। इसलिए रसोई खुली होनी चाहिए। समय तथा शक्ति बचाने के लिए हौदी तथा खाना पकाने वाली जगह साथ-साथ होनी चाहिए तथा रैफ्रिजरेटर का दरवाज़ा काऊंटर (शैल्फ) की तरफ नहीं खुलना चाहिए नहीं तो फ्रिज में से सामान निकाल कर शैल्फ पर रखने में परेशानी होगी।

2. भोजन पकाने तथा परोसने वाली जगह-रसोई में एक हिस्से में खाना पका कर गर्म-गर्म परोसा जाता है। यहां बिजली का चूल्हा, गैस, स्टोव अथवा अंगीठी आदि रवी होती है जिसके आस-पास जगह खुली होनी चाहिए ताकि खाना पकाते समय आसानी रहे । खाना पकाने वाले बर्तन इस जगन के नजदीक शेफ डालकर का नाम । कड़छिया गश चम्मच
मिटियां लगाती।

3. हौदी-हौदी का प्रयोग साधारणत: बर्तन साफ़ करने के लिए किया जाता है। रेफ्रिजरेटर में भोजन पदार्थ रखने से पहले उन्हें अच्छी तरह धोने के लिए भी हौदी का प्रयोग होता है। खाना पकाने तथा इसकी तैयारी के समय भी पानी यहां लगी टूटी से लिया जाता है। इसलिए रसोई में हौदी आसान पहुंच के अन्दर होनी चाहिए, कोने में नहीं। हौदी के नज़दीक बर्तन तथा आवश्यक सामान रखने का स्थान भी होना चाहिए। आस-पास का पानी निचुड़ कर हौदी में ही गिरना चाहिए।

प्रश्न 13.
नई और पुरानी किस्म की रसोई में क्या अन्तर होता है ?
उत्तर-
रसोई के दरवाज़े तथा खिड़कियों पर जाली लगी होनी चाहिए तथा इन दरवाज़ों को हमेशा बन्द रखना चाहिए। इस तरह मक्खी-मच्छर रसोई में नहीं आ सकेंगे। रसोई में रोशनदानों का होना भी अनिवार्य है। रसोई का धुआं निकालने के लिए चिमनी अथवा एग्ज़ास्ट पंखा लगा लेना चाहिए। साधारण परिवार के लिए रसोई का आकार 9x 10 फुट का होता है। परन्तु यह घर के आकार के अनुसार भी हो सकता है।

नई तथा पुरानी किस्म की रसोई में अन्तर-पुराने किस्म की रसोई में ज़मीन पर बैठकर ही सारा काम किया जाता है। परन्तु नई किस्म की रसोइयों में खड़े होकर सारा काम किया जाता है। इसलिए शैल्फें बनायी जाती हैं। इन शैल्फों की ऊँचाई साधारणतः फर्श से 2½ फुट होती है पर गृहिणी की लम्बाई के अनुसार यह ऊँचाई अधिक या कम भी हो सकती है।

प्रश्न 14.
नई किस्म की किन्हीं तीन रसोइयों के बारे में बताओ।
उत्तर-
रसोई में पाई जाने वाली शैल्फ के अनुसार रसोइयां पांच तरह की हैं। इनमें से तीन का विवरण निम्नलिखित है –
1. एल (L) आकार की रसोई-साधारण घरों में (L) आकार की रसोई ही प्रचलित है। इसकी एक बाजू लम्बी होती है तथा दूसरी छोटी होती है। ऐसी रसोई में साधारणतः लम्बी तरफ काम करने के दो केन्द्र हो सकते हैं जैसे हौदी तथा तैयारी का केन्द्र तथा छोटी बाजू की ओर खाना पकाने का केन्द्र होता है।PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 6 रसोई का प्रबन्ध (1)

PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 6 रसोई का प्रबन्ध

2. यू (U) आकार की रसोई-रसोइयों में से यू (U) किस्म की रसोई सब किस्मों से अच्छी मानी जाती है तथा यह काफ़ी प्रचलित भी है। ऐसी रसोई में खाना पकाने का केन्द्र एक बाजू के बीच होता है तथा दूसरी बाजू तैयारी के केन्द्र के रूप में प्रयोग की जाती है। हौदी यू के तल पर हो सकती है। ऐसी रसोई में काम करने के लिए तथा सामान रखने के लिए अल्मारियां बनाने के लिए काफ़ी स्थान होता है। ऐसी रसोई में अधिक चलना-फिरना भी नहीं पड़ता तथा रसोई रास्ता भी नहीं बनती।

PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 6 रसोई का प्रबन्ध (2)

3. टूटे यू (U) आकार की रसोई-ऐसी रसोई में यू (U) के तल वाली तरफ शैल्फ पूरे नहीं होते पर यू आकार की रसोई की तरह इसमें काम करने तथा सामान रखने के लिए काफ़ी जगह होती है।

PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 6 रसोई का प्रबन्ध (3)

प्रश्न 15.
रसोई का सामान रखने के लिए क्या-क्या प्रबन्ध किये जा सकते है ?
उत्तर-
रसोई में सामान रखने के लिए दीवारों में अल्मारियां अथवा रैक बनाये होते हैं। अल्मारियां अपनी आवश्यकतानुसार कम अथवा अधिक बनायी जा सकती हैं। शैल्फें, रैक अथवा अल्मारियां काम करने के अन्य केन्द्र जैसे भोजन की तैयारी, पकाने का केन्द्र तथा

PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 6 रसोई का प्रबन्ध (4)

हौदी अनुसार ही बनाई जाती हैं। रसोई में बर्तन रखने के लिए एल्यूमीनियम अथवा स्टील के स्टैंड भी लगाये जा सकते हैं। यह दीवार में ही फिट हो जाते हैं। इनमें प्लेटें, कटोरियां, गिलास आदि रखने के लिए अलग-अलग जगह बनी होती है।
वस्तुओं को रैफ्रिजरेटर अथवा जालीदार अल्मारी में रखना चाहिए। कोई भी वस्तु नंगी नहीं रखनी चाहिए।

प्रश्न 16.
रसोई की योजना बनाते समय किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए ?
उत्तर-
रसोई की योजना बनाते समय विचार करने वाली बातें इस तरह हैं –

  1. पानी के लिए हौदी में टूटी का प्रबन्ध होना चाहिए अथवा किसी बाल्टी आदि को टूटी लगा कर पानी से भरकर रख लेना चाहिए।
  2. रसोई में सामान रखने के लिए अल्मारियां, रैक आदि पर कड़छियां, चम्मच, चाकू आदि टांगने के लिए खूटियां आदि होनी चाहिएं।
  3. रसोई का फर्श पक्का संगमरमर, दार टाइलों, लिनोलियम आदि का तथा जल्दी साफ हो सकने वाला तथा अधिक ढलान वाला होना चाहिए ताकि इसे आसानी से धोया जा सके। परन्तु रसोई का फर्श फिसलन वाला नहीं होना चाहिए।
  4. फर्श की तरह रसोई की दीवारें भी साफ़ हो सकने वाली होनी चाहिएं। इन पर पेंट अथवा धोए जा सकने वाले पेपर का प्रयोग भी किया जा सकता है।
  5. रसोई में एक ही दरवाज़ा रखना चाहिए क्योंकि अधिक दरवाज़े काम करने की जगह तो घटाते ही हैं तथा चलने-फिरने तथा सामान रखने में भी रुकावट पैदा करते हैं।
  6. धुआँ बाहर निकालने के लिए चूल्हे के ऊपर चिमनी (अथवा एग्ज़ास्ट फैन) अवश्य होनी चाहिए नहीं तो धुआं दूसरे कमरों में फैल जायेगा।
  7. रसोई में बिजली के उपकरणों के प्रयोग के अनुसार ही बिजली के स्विच लगाने चाहिएं।
  8. रसोई में हमेशा हल्के रंगों का प्रयोग करना चाहिए। हल्के रंग खुलेपन का अनुभव करवाते हैं।

प्रश्न 17.
रसोई की सफ़ाई से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
रसोई के प्रत्येक स्थान को धो-पोंछ कर साफ़ करना चाहिए। भोजन समाप्त हो जाने के पश्चात् बचा हुआ भोजन दूसरे साफ़ बर्तनों में रखकर जालीदार अलमारी अथवा रेफ्रिजरेटर में रख देना चाहिए। जूठे बर्तनों को साफ़ करने के स्थान पर ही साफ़ किया जाना चाहिए। भोजन पकाने तथा परोसने के स्थान को पहले गीले तथा फिर सूखे कपड़े से पोंछ कर साफ़ करना चाहिए। बर्तनों को साफ़ करके उचित स्थान पर टिका कर रखना चाहिए। नल, फर्श, सिंक (हौदी) आदि को साफ़ करके सूखा रखने की कोशिश करनी चाहिए। रसोई घर में चौकी, तख्त, मेज़ कुर्सी की सफ़ाई भी हर रोज़ की जानी चाहिए तथा फर्श को भी पानी से रोज़ साफ़ करना चाहिए। सिंक (हौदी) को झाड़ अथवा कूची से रगड़ कर धोना चाहिए।

PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 6 रसोई का प्रबन्ध

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 18.
रसोई हमारे घर का ज़रूरी अंग है, क्यों ?
उत्तर-
मनुष्य की सारी भाग-दौड़ का मुख्य कारण वास्तव में पेट की भूख को मिटानाहै तथा भाग-दौड़ तभी की जा सकती है यदि पेट भरा हो। ‘भूखे पेट भजन न होय’.वाली कहावत से सभी परिचित ही हैं। भोजन जहां मनुष्य को काम-काज करने के लिए आवश्यक ऊर्जा प्रदान करता है, वहीं उसे जीवित रखने में भी सहायक है।
परन्तु भोजन बनाया कहां जाता है, रसोई में। इस तरह रसोई मनुष्य के जीवन में एक विशेष महत्त्व रखती है। पुराने समयों से ही यह बांट कर ली गयी थी कि बाहरी काम आदमी करेगा तथा घर के काम जैसे भोजन पकाना आदि गृहिणी करेगी। इस तरह यदि आदमी सारा दिन घर से बाहर काम करता है तो गृहिणी भी लगभग सारा दिन स्वादिष्ट तथा पौष्टिक भोजन की तैयारी में रसोई में ही बिताती है। इस तरह रसोई हमारे घर तथा जिंदगी का आवश्यक अंग है।

प्रश्न 19.
रसोई बनाते समय आप कौन-कौन सी बातों का ध्यान रखोगे ?

प्रश्न 20.
नई और पुरानी किस्म की रसोई के बारे में बताओ। इनमें क्या अन्तर है ?
उत्तर-
रसोई की किस्में –
1. पुरानी किस्म-पुरानी किस्म की रसोई में साधारणतः सारा काम ज़मीन पर बैठ कर ही किया जाता है। भारत में अधिकांश घरों विशेष कर गांवों में इस तरह की रसोइयां हैं। ऐसी रसोई में अंगीठी अथवा चूल्हा ज़मीन पर ही बनाया जाता है। बैठने के लिए पटड़े अथवा पीड़ी का प्रयोग किया जाता है। रसोई में ही पीड़ी अथवा पटड़े पर बैठकर खाना खा लिया जाता है।

बैठकर खाना पकाते समय कोई भी चीज़ लेने अथवा रखते समय बार-बार उठना पड़ता है जैसे बर्तन, भोजन, पानी अथवा कोई अन्य वस्तु । इस तरह उठने-बैठने पर काफ़ी समय तथा शक्ति लग जाती है क्योंकि सारा सामान बैठने वाली के नज़दीक नहीं रखा जा सकता। समय के साथ-साथ शक्ति अधिक लगने के कारण शरीर को अधिक तकलीफ देनी पड़ती है। सफ़ाई के पक्ष से भी इस तरीके को सही नहीं कहा जा सकता क्योंकि काम करते हुए सारा सामान ज़मीन पर रखना पड़ता है।

2. नई किस्म की रसोइयां-विज्ञान की उन्नति से नए-नए उपकरणों की खोज हुई तथा इनके प्रयोग से काम आसान तरीके सें तथा कम समय में होने लगा है। समय तथा शक्ति की बचत हो सके इसलिए नई किस्म की रसोइयां बनने लगी हैं। इनमें खड़े-खड़े ही सभी काम कर लिए जाते हैं, बार-बार उठने-बैठने के लिए समय तथा शक्ति व्यर्थ नहीं जाते। फ्रिज़ के लिए भी साधारणतः रसोई में ही जगह बना ली जाती है। काम करने के लिए जो शैल्फ होती है उसके अनुसार पांच प्रकार की रसोइयां होती हैं –
(i) एक दीवार वाली
(ii) दो दीवारों वाली
(iii) एल (L) आकार वाली
(iv) यू (U) आकार वाली
(v) टूटे यू (U) आकार वाली।
नई किस्म तथा पुरानी किस्म की रसोई में अन्तर निम्नलिखित अनुसार हैं –

नई किस्म पुरानी किस्म
1. इसमें सभी काम खड़े होकर ही किये जाते हैं।

2. गैस चूल्हे अथवा अन्य नये उपकरणों का प्रयोग किया जाता है।

3. समय तथा शक्ति की बचत हो जाती है।

4. भोजन पकाते समय सफ़ाई का ध्यान रखा जा सकता है।

1. इसमें सभी काम बैठ कर किए जाते हैं।

2. वही पुराने चूल्हों, स्टोव तथा अंगीठियों का प्रयोग किया जाता है।

3. समय तथा शक्ति दोनों व्यर्थ होते हैं।

4. क्योंकि सारा सामान ज़मीन पर रखना पड़ता है इसलिए सफ़ाई के पक्ष से भी यह रसोई बढ़िया नहीं है।

प्रश्न 21.
रसोई की सफ़ाई क्यों ज़रूरी है ? इसके अन्तर्गत क्या-क्या आता है ?
उत्तर-
रसोई की सफ़ाई बहुत ही ज़रूरी है क्योंकि रसोई में खाद्य पदार्थ रखे होते हैं इसलिए यदि सफ़ाई न रखी जाये तो कई तरह के जीव-जन्तु पैदा हो जाते हैं। खाद्य पदार्थों वाली अल्मारियों में जहरीले रसायन पदार्थ अथवा कीटनाशक दवाइयों का प्रयोग नहीं किया जा सकता। जीव-जन्तु पैदा न हों इसलिए रसोई की सफ़ाई करते रहना आवश्यक हो जाता है।

रसोई की सफ़ाई आसानी से की जा सके इसके लिए फर्श पक्के होने चाहिएं। खाना पकाने के पश्चात् रसोई को अच्छी तरह धोएं तथा सप्ताह में एक बार साबुन, डिटर्जेंट अथवा सोडे वाले गर्म पानी से रसोई को ज़रूर साफ़ करो। चूल्हे की सफ़ाई भी हर रोज़ करनी चाहिए। रसोई धोने के पश्चात् पोचा फेरकर सुखा लेनी चाहिए।

रसोई की अल्मारियों, डिब्बे रखने वाले स्थानों, दीवारों तथा छतों को भी सप्ताह अथवा पन्द्रह दिनों में एक बार जरूर साफ़ कर लें। रसोई में अनावश्यक सामान इकट्ठा न करें। बर्तन अथवा फालतू डिब्बों को इकट्ठा करके स्टोर में रख दो। कभी-कभी इन बर्तनों तथा स्टोर की भी सफ़ाई करनी चाहिए।

रसोई की दीवारों पर नमी नहीं होनी चाहिए। यदि फफूंदी आदि लग जाये तो दवाई आदि से इसे दूर करो।

रसोई में ढक्कन वाले कूड़ेदान का प्रयोग करो। कूड़ा इसी में डालें परन्तु इकट्ठा न होने दें नहीं तो मक्खी-मच्छर पैदा हो जाते हैं।

रसोई के अन्दर अलग जूतों का प्रयोग करो क्योंकि बाहर पहनने वाले जूतों पर गन्दगी लगी हो सकती है। रसोई के आगे पायेदान रखना चाहिए ताकि हर कोई पैर पौंछ कर ही अन्दर आये।

PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 6 रसोई का प्रबन्ध

Home Science Guide for Class 9 PSEB रसोई का प्रबन्ध Important Questions and Answers

रिक्त स्थान भरें

  1. पुरानी किस्म की रसोई में सारे काम …………………… कर किए जाते थे।
  2. रसोई के काम करने के …………………. केन्द्र होते हैं।
  3. साधारण परिवार के लिए रसोई का आकार .. ………………. होता है।
  4. नई किस्म की रसोइयां …………………….. प्रकार की होती हैं।
  5. रसोई में फफूंदी से बचाव के लिए नीले थोथे तथा …………………. के घोल का प्रयोग करें।

उत्तर-

  1. बैठ
  2. तीन
  3. 9 x 10 फुट
  4. पांच
  5. बोरिक पाऊडर।

एक शब्द में उत्तर दें

प्रश्न 1.
रसोई में शेल्फों की साधारण ऊंचाई कितनी होती है ?
उत्तर-
अढाई 2- फुट।

प्रश्न 2.
रसोई का फर्श कैसा होना चाहिए ?
उत्तर-
पक्का ।

प्रश्न 3.
रसोई में कितने दरवाज़े होने चाहिए ?
उत्तर-
एक ही।

प्रश्न 4.
रसोई में कैसे रंगों का प्रयोग करना चाहिए ?
उत्तर-
हल्के रंगों का।

प्रश्न 5.
रसोई में कैसे कूड़ेदान होने चाहिए ?
उत्तर-
ढक्कन वाले।

PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 6 रसोई का प्रबन्ध

ठीक/ग़लत बताएं

  1. रसोई के कार्य को तीन भागों में बांटा गया है।
  2. रसोई में हल्के रंगों का प्रयोग करना चाहिए।
  3. रसोई के द्वार खुले रखने चाहिए।
  4. आम घरों में L आकार की रसोई प्रचलित है।
  5. रसोई की शैल्फों की ऊंचाई अढाई (2½) फुट होती है।
  6. रसोई का फर्श पक्का होना चाहिए।

उत्तर-

  1. ठीक
  2. ठीक
  3. ग़लत
  4. ठीक
  5. ठीक
  6. ठीक।

बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
निम्न में ठीक तथ्य हैं
(A) पुरानी किस्म की रसोई में सारा कार्य धरती पर बैठ कर किया जाता है
(B) नई किस्म की रसोई में समय तथा शक्ति की बचत हो जाती है
(C) रसोई की दीवारों पर सीलन नहीं होनी चाहिए
(D) सभी ठीक।
उत्तर-(D) सभी ठीक।

प्रश्न 2.
ग़लत तथ्य हैं
(A) रसोई ऐसे स्थान पर होनी चाहिए जहां हवा तथा प्रकाश पहुंच सके।
(B) रसोई के दरवाज़ों तथा खिड़कियों पर जाली लगी होनी चाहिए तथा दरवाज़े सदा खुले रखने चाहिए।
(C) गृहिणी रसोई की मालकिन होती है, उसका अधिकतम समय रसोई में व्यतीत होता है।
(D) सभी ग़लत।
उत्तर-(B) रसोई के दरवाज़ों तथा खिड़कियों पर जाली लगी होनी चाहिए तथा दरवाज़े सदा खुले रखने चाहिए।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
पहले चूल्हे एक तरफ आंगन में क्यों बनाये जाते थे ?
उत्तर-
क्योंकि पहले धुएं वाला ईंधन प्रयोग किया जाता था इसलिए कमरों के अन्दर रसोई का चूल्हा नहीं बनाया जा सकता था। इसलिए चूल्हा एक तरफ आंगन में ही बनाया जाता था।

प्रश्न 2.
आजकल रसोई में कौन-से ईंधनों का प्रयोग किया जाता है ?
उत्तर-
मिट्टी का तेल, गोबर गैस, खाना पकाने वाली गैस तथा बिजली आदि का प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न 3.
विशेष पकवान बनाते समय योजना क्यों बनानी चाहिए ?
उत्तर-
विशेष पकवान के लिए खास वस्तुएं, खाद्य पदार्थों की ज़रूरत होती है। इसलिए पहले आवश्यक वस्तुओं की सूची तथा पकाने की योजना बना लेनी चाहिए। मान लो बिना योजना के केसर कुल्फी बनाने लग जायें तो बाद में घर में केसर न हो तो मायूसी का सामना करना पडेगा।

PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 6 रसोई का प्रबन्ध

प्रश्न 4.
रसोई में शेल्फों की ऊँचाई कितनी होनी चाहिए ?
उत्तर-
रसोई में साधारणतः शेल्फों की ऊँचाई 2½ फुट होती है पर गृहिणी की लम्बाई के अनुसार अधिक अथवा कम भी हो सकती है।

प्रश्न 5.
पुरानी किस्म की रसोई में समय तथा शक्ति कैसे नष्ट होते हैं ?
उत्तर-
ऐसी रसोई में बार-बार उठने-बैठने से समय तथा शक्ति नष्ट होते हैं क्योंकि सारा सामान ज़मीन पर नहीं रखा जा सकता।

प्रश्न 6.
रसोई में काम करने के केन्द्रों की योजना किस तरह की होनी चाहिए ?
उत्तर-
इसके लिए योजना इस तरह बनाएं कि काम करने वाले को अधिक-से-अधिक जगह उपलब्ध हो तथा कम-से-कम चलना पड़े। काम करने के तीन केन्द्रों में तालमेल होना चाहिए।

प्रश्न 7.
रसोई में अधिक दरवाज़े क्यों नहीं होने चाहिएं ?
उत्तर-
अधिक दरवाज़े एक तो जगह अधिक घेरेंगे तथा दूसरे काम में रुकावट डालते हैं।

प्रश्न 8.
रसोई में फफूंदी का कंट्रोल कैसे किया जा सकता है ?
उत्तर-
रसोई में फफूंदी का कंट्रोल करने के लिए नीला थोथा दो हिस्से अथवा बोरिक पाऊडर एक हिस्से को 20 हिस्से पानी में घोलकर फफूंदी वाला स्थान धो लेना चाहिए।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
एक दीवार वाली तथा दो दीवारों वाली रसोई बारे बतायें।
उत्तर-
1. एक दीवार वाली रसोई-ऐसी रसोई में भोजन की तैयारी, खाना पकाने तथा परोसने का केन्द्र तथा हौदी सब कुछ एक ही दीवार के साथ होती है इसलिए इसमें अधिक चलना फिरना पड़ता है। इस तरह समय तथा शक्ति अधिक लगते हैं।

PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 6 रसोई का प्रबन्ध (5)

2. दो दीवारों वाली रसोई-ऐसी रसोई में आमने-सामने दोनों दीवारों पर शेल्फें बनी होती हैं। काम करने के दो केन्द्र एक दीवार से तथा तीसरा केन्द्र सामने वाली दीवार के साथ होता है। ऐसी रसोई में काफ़ी जगह होती है तथा जगह की मुश्किल नहीं होती परन्तु यदि दोनों तरफ दरवाज़े हों तो रसोई रास्ता ही बन जाती है।PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 6 रसोई का प्रबन्ध (6)

PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 6 रसोई का प्रबन्ध

रसोई का प्रबन्ध PSEB 9th Class Home Science Notes

  • रसोई, घर का एक महत्त्वपूर्ण भाग है।
  • रसोई का चुनाव कई बातों जैसे ईंधन कौन-सा प्रयोग किया जाता है, घर के सदस्य कितने हैं आदि पर निर्भर करता है।
  • रसोई में काम के मुख्य तीन केन्द्र हैं जैसे भोजन की तैयारी, पकाना तथा परोसना, हौदी।
  • मक्खी-मच्छर से बचाव के लिए जाली वाले दरवाजे लगाने चाहिएं।
  • रसोई साधारण परिवार के लिए 9 x 10 वर्ग फुट की ठीक रहती है।
  • रसोई में खड़े होकर काम करने के लिए शैल्फों की फर्श से ऊंचाई 2½ फुट अथवा गृहिणी की लम्बाई के अनुसार अधिक कम हो सकती है।
  • पुरानी किस्म की रसोई में सारे काम बैठ कर किये जाते थे तथा नई किस्म की रसोई में सारे काम खड़े होकर किये जाते हैं।
  • नई किस्म की रसोइयां पांच तरह की हो सकती हैं-एक दीवार वाली, दो दीवारों वाली, एल आकार वाली, यू आकार वाली तथा टूटे यू आकार वाली।
  • रसोई में पानी का प्रबन्ध होना चाहिए।
  • सामान रखने के लिए रसोई में अल्मारियां अथवा रैक आदि होने चाहिएं।
  • रसोई का फर्श पक्का तथा जल्दी साफ़ हो सकने वाला होना चाहिए।
  • रसोई में यदि फफूंदी की शिकायत हो तो नीले थोथे तथा बोरिक पाऊडर के घोल से इसकी रोकथाम की जा सकती है।
  • रसोई में हल्के रंगों का इस्तेमाल करना चाहिए।
  • जिन घरों में रसोई का सामान इकट्ठा खरीदा जाता है वहां रसोई के साथ स्टोर भी होना ज़रूरी है।
  • रसोई की साफ़-सफ़ाई का विशेष ध्यान रखना चाहिए नहीं तो कई तरह के जीव-जन्तु रसोई में पैदा हो जाते हैं।

PSEB 9th Class SST Solutions History Chapter 4 श्री गुरु अर्जन देव जी : सिक्ख धर्म के विकास में योगदान और उनकी शहीदी

Punjab State Board PSEB 9th Class Social Science Book Solutions History Chapter 4 श्री गुरु अर्जन देव जी : सिक्ख धर्म के विकास में योगदान और उनकी शहीदी Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 9 Social Science History Chapter 4 श्री गुरु अर्जन देव जी : सिक्ख धर्म के विकास में योगदान और उनकी शहीदी

SST Guide for Class 9 PSEB श्री गुरु अर्जन देव जी : सिक्ख धर्म के विकास में योगदान और उनकी शहीदी Textbook Questions and Answers

(क) बहुविकल्पीय प्रश्न :

प्रश्न 1.
गुरु अर्जन देव जी की माता जी का नाम
(क) बीबी भानी
(ख) सभराई देवी
(ग) बीबी अमरो
(घ) बीबी अनोखी।
उत्तर-
(क) बीबी भानी

प्रश्न 2.
गुरु रामदास जी के बड़े पुत्र का नाम
(क) महादेव
(ख) अर्जन देव
(ग) पिरथी चन्द
(घ) हरगोबिंद।
उत्तर-
(ग) पिरथी चन्द

प्रश्न 3.
गुरु हरिगोबिंद जी को जहांगीर ने कौन-से किले में कैद किया था ?
(क) ग्वालियर
(ख) लाहौर
(ग) दिल्ली
(घ) जयपुर।
उत्तर-
(क) ग्वालियर

प्रश्न 4.
खुसरो गुरु अर्जन देव जी को कहां मिला ?
(क) गोइंदवाल
(ख) हरिगोबिंदपुर
(ग) करतारपुर
(घ) संतोखसर।
उत्तर-
(क) गोइंदवाल

PSEB 9th Class SST Solutions History Chapter 4 श्री गुरु अर्जन देव जी : सिक्ख धर्म के विकास में योगदान और उनकी शहीदी

प्रश्न 5.
श्री गुरु अर्जन देव जी को जहांगीर द्वारा कब शहीद किया गया ?
(क) 24 मई, 1606 ई०
(ख) 30 मई, 1606 ई०
(ग) 30 मई, 1581 ई०
(घ) 24 मई, 1675 ई०
उत्तर-
(ख) 30 मई, 1606 ई०

(ख) रिक्त स्थान भरो :

1. श्री गुरु अर्जन देव जी का गुरुकाल …….. से …….. तक था।
2. 1590 ई० में श्री गुरु अर्जन देव जी ने ………. नामक सरोवर बनावाया।

उत्तर-

  1. 1581 ई०-1606 ई०
  2. तरनतारन।

(ग) सही मिलान करो :

(क) – (ख)
1. श्री गुरु अर्जन देव जी की शहीदी – 1. जहांगीर
2. मीरी पीरी – 2. 30 मई 1606 ई०
3. साईं मियां मीर – 3. श्री गुरु हरिगोबिंद जी
4. खुसरो – 4. श्री हरिमंदर साहिब की नींव रखना।

उत्तर-

  1. 30 मई 1606 ई०
  2. श्री गुरु हरिगोबिंद जी
  3. श्री हरिमंदर साहिब की नींव रखना
  4. जहांगीर।

(घ) अंतर बताओ :

मीरी और पीरी
उत्तर-‘मीरी’ और ‘पीरी’ नामक दो तलवारें थीं-जो श्री गुरु हरगोबिन्द जी ने धारण की थीं। इनमें ‘मीरी’ तलवार सांसारिक विषयों में नेतृत्व का प्रतीक थी, जबकि ‘पीरी’ तलवार आध्यात्मिक विषयों में नेतृत्व को प्रतीक दर्शाती थी।

अति लघु उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
सिक्खों के पांचवें गुरु कौन थे ?
उत्तर-
श्री गुरु अर्जन देव जी।

प्रश्न 2.
श्री हरिमंदर साहिब जी की नींव कब और किसने रखी ?
उत्तर-
श्री हरिमंदर साहिब की नींव 1588 ई० में प्रसिद्ध सूफी फकीर मियां मीर जी ने रखी।

प्रश्न 3.
श्री गुरु अर्जन देव जी ने आदि ग्रंथ साहिब जी को किससे लिखवाया ?
उत्तर-
भाई गुरदास जी से।

प्रश्न 4.
आदि ग्रंथ साहिब जी का संकलन कार्य कब पूरा हुआ ?
उत्तर-
1604 ई० में।

प्रश्न 5.
नक्शबंदी नामक लहर का नेता कौन था ?
उत्तर-
शेख अहमद सरहंदी।

PSEB 9th Class SST Solutions History Chapter 4 श्री गुरु अर्जन देव जी : सिक्ख धर्म के विकास में योगदान और उनकी शहीदी

प्रश्न 6.
श्री हरिमंदर साहिब के पहले ग्रंथी कौन थे ?
उत्तर-
बाबा बुड्ढा जी।

प्रश्न 7.
‘दसवंध’ से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
दसवंध से भाव यह है कि प्रत्येक सिख अपनी आय का दसवां भाग गुरु जी के नाम भेंट करे।

लघु उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
गुरु रामदास जी ने गुरुगद्दी किसे और कब सौंपी ?
उत्तर-
गुरु रामदास जी को अपने तीनों पुत्रों में से एक को गुरु पद सौंपना था। उन्होंने तीनों के विषय में काफी सोच-विचार किया। उनमें से एक (महादेव) फकीर था। उसे सांसारिक विषयों से कोई लगाव न था। अतः गुरु जी ने उसे गुरु पद देना उचित न समझा। उनका दूसरा पुत्र पृथीचंद अथवा पृथिया भी इस पद के अयोग्य था क्योंकि वह धोखेबाज तथा षड्यंत्रकारी था। इन परिस्थितियों में गुरु रामदास जी ने 1581 ई० में अपने छोटे पुत्र अर्जन देव को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया।

प्रश्न 2.
श्री गुरु अर्जन देव जी की शहीदी का संक्षेप में वर्णन करें।
उत्तर-
मुगल सम्राट जहांगीर के पुत्र खुसरो ने उसके विरुद्ध विद्रोह कर दिया था। खुसरो पराजित होकर गुरु अर्जन देव जी के पास आया। गुरु जी ने उसे आशीर्वाद दिया। इस आरोप में जहांगीर ने गुरु अर्जन देव पर दो लाख रुपए का जुर्माना लगा दिया। परंतु गुरु जी ने जुर्माना देने से इन्कार कर दिया। इसलिए उन्हें बंदी बना लिया गया और 30 मई 1606 ई० को अनेक यातनाएं देकर शहीद कर दिया। सिख परम्परा में गुरु अर्जन देव जी को ‘शहीदों का सिरताज’ कहा जाता है।

प्रश्न 3.
‘जहांगीर की धार्मिक असहष्णुिता’ से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
मुग़ल सम्राट अकबर के विपरीत सम्राट जहांगीर एक कट्टर मुसलमान था। वह अपने धर्म को बढ़ाना चाहता था। परंतु उस समय हर जाति व धर्म के लोग सिक्ख धर्म की उदारता और सरल शिक्षाओं से प्रभावित होकर सिक्ख धर्म को अपना रहे थे। जहांगीर सिख धर्म की बढ़ती लोकप्रियता को सहन नहीं कर सका और वह गुरु अर्जन देव जी से ईर्ष्या करने लगा। अंततः इसी कारण गुरु जी की शहादत हुई।

प्रश्न 4.
चंदूशाह कौन था और वह श्री गुरु अर्जन देव जी के विरुद्ध क्यों हो गया ?
उत्तर-
चंदूशाह लाहौर दरबार (मुग़ल राज्य) का प्रभावशाली अधिकारी.था। उसकी पुत्री का विवाह गुरु अर्जन देव जी के पुत्र हरगोबिंद के साथ होना निश्चित हुआ था, परंतु चंदू शाह अहंकारी था। गुरु जी ने संगत की सलाह मानते हुए इस रिश्ते से साफ इंकार कर दिया। चंदूशाह ने इसे अपना अपमान समझा और गुरु जी का विरोधी बन बैठा। उसने बादशाह अकबर को गुरु जी के विरुद्ध भड़काया, परंतु वह असफल रहा। बाद में उसने मुग़ल बादशाह जहांगीर को गुरु जी के विरुद्ध कार्यवाही करने के लिए उकसाया, जोकि अंततः गुरु जी की शहादत का कारण बना।

प्रश्न 5.
श्री गुरु अर्जन देव जी की शहीदी का तत्कालीन कारण क्या था ?
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी मुग़ल सम्राट् जहांगीर के समय में मई, 1606 ई० में हुई। इस शहीदी के पीछे मुख्यत: जहांगीर की कट्टर धार्मिक नीति का हाथ था। गुरु जी ने जहांगीर के विद्रोही पुत्र खुसरो को आशीर्वाद दिया था। उन्होंने गुरु घर में आने पर उसका आदर-सम्मान किया और उसे लंगर भी छकाया। गुरु जी का यह कार्य राजनीतिक अपराध माना गया। गुरु जी द्वारा आदि ग्रंथ साहिब की रचना ने जहांगीर का संदेह और भी बढ़ा दिया। गुरु जी के शत्रुओं ने जहांगीर को बताया कि आदि ग्रंथ साहिब में इस्लाम धर्म के विरुद्ध काफी कुछ लिखा गया है। अतः जहांगीर ने गुरु जी को दरबार में बुलावा भेजा। उसने गुरु जी को आदेश दिया कि वे इस्लाम धर्म के प्रवर्तक हज़रत मुहम्मद साहिब के विषय में भी कुछ लिखें परंतु गुरु जी ने इस संबंध में ईश्वर के आदेश के सिवा किसी अन्य के आदेश का पालन करने से इंकार कर दिया। यह उत्तर सुनकर मुग़ल सम्राट ने गुरु अर्जन देव जी को कठोर शारीरिक कष्ट देकर शहीद करने डालने का आदेश जारी कर दिया।

प्रश्न 6.
मसंद प्रथा का सिख धर्म के विकास में क्या योगदान है ?
उत्तर-मसंद प्रथा से अभिप्राय उस प्रथा से है जिसका आरंभ गुरु रामदास जी ने सिक्खों से नियमित रूप से भेंटें एकत्रित करने तथा उसे समय पर गुरु जी तक पहुंचाने के लिए किया था। गुरु जी को अमृतसर तथा संतोखसर नामक दो तालाबों की खुदवाई के लिए और लंगर चलाने तथा धर्म प्रचार करने के लिए काफ़ी धन चाहिए था। अतः उन्होंने अपने कुछ शिष्यों को विभिन्न प्रदेशों में धन एकत्रित करने के लिए भेजा। गुरु जी द्वारा भेजे गए इन शिष्यों को ‘मसंद’ कहा जाता था। इस प्रकार मसंद प्रणाली का आरंभ हुआ। सिक्खों के लिए मसंद प्रथा बहुत महत्त्वपूर्ण सिद्ध हुई। इस प्रथा द्वारा गुरु जी को एक निश्चित आय प्राप्त होने लगी और धर्म प्रचार का कार्य भी सुचारु रूप से चलने लगा। परंतु आगे चलकर मसंद कपटी और भ्रष्टाचारी हो गए। इसलिए दसवें गुरु गोबिंद सिंह जी ने इस प्रथा का अंत कर दिया।

PSEB 9th Class SST Solutions History Chapter 4 श्री गुरु अर्जन देव जी : सिक्ख धर्म के विकास में योगदान और उनकी शहीदी

दीर्घ उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
गुरु अर्जन देव जी का सिक्ख धर्म के विकास में क्या योगदान है ? विस्तारपूर्वक लिखें।
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी के गुरुगद्दी संभालते ही सिक्ख धर्म के इतिहास ने नवीन दौर में प्रवेश किया। उनके प्रयास से हरिमंदर साहिब बना और सिक्खों को अनेक तीर्थ स्थान मिले। यही नहीं उन्होंने गुरु ग्रंथ साहिब का संकलन किया जिसे आज सिक्ख धर्म में वही स्थान प्राप्त है जो हिंदुओं में रामायण, मुसलमानों में कुरान शरीफ तथा इसाइयों में बाइबिल को प्राप्त है। संक्षेप में, गुरु अर्जन देव जी के कार्यों तथा सफलताओं का वर्णन इस प्रकार है-

1. हरिमंदर साहिब का निर्माण-गुरु रामदास जी के ज्योति जोत समाने के पश्चात् गुरु अर्जन देव जी ने अमृतसर तथा संतोखसर नामक तालाबों का निर्माण कार्य पूरा किया। उन्होंने ‘अमृतसर’ तालाब के बीच हरिमंदर साहिब का निर्माण करवाया। हरिमंदर साहिब की नींव 1588 ई० में सूफ़ी फ़कीर मीयां मीर जी ने रखी। 1604 ई० में हरिमंदर साहिब में आदि ग्रंथ साहिब का प्रकाश किया गया। बाबा बुड्ढा जी यहां के पहले ग्रंथी बने। गुरु साहिब ने हरिमंदर साहिब के चारों ओर एक-एक द्वार रखवाया। ये द्वार इस बात का प्रतीक हैं कि यह स्थान सभी जातियों तथा धर्मों के लोगों के लिए खुला है।

2. तरनतारन की स्थापना-गुरु अर्जन देव जी ने अमृतसर के अतिरिक्त अन्य अनेक नगरों, सरोवरों तथा स्मारकों का निर्माण करवाया। तरनतारन भी इनमें से एक था। उन्होंने इसका निर्माण प्रदेश के ठीक मध्य में करवाया। अमृतसर की भांति तरनतारन भी सिक्खों का प्रसिद्ध तीर्थ स्थान बन गया।

3. लाहौर में बाऊली का निर्माण-गुरु अर्जन देव जी ने अपनी लाहौर यात्रा के दौरान डब्बी बाज़ार में एक बाऊली का निर्माण करवाया। इस बाऊली के निर्माण से निकटवर्ती प्रदेशों के सिक्खों को एक तीर्थ स्थान की प्राप्ति हुई।

4. हरगोबिंदपुर तथा छहरटा की स्थापना-गुरु जी ने अपने पुत्र हरगोबिंद के जन्म की खुशी में ब्यास नदी के तट पर हरगोबिंदपुर नामक नगर की स्थापना की। इसके अतिरिक्त उन्होंने अमृतसर के निकट पानी की कमी को दूर करने के लिए एक कुएं का निर्माण करवाया। इस कुएं पर छः रहट चलते थे। इसलिए इसको छहरटा के नाम से पुकारा जाने लगा।

5. करतारपुर की नींव रखना-गुरु जी ने 1593 ई० में जालंधर दोआब में एक नगर की स्थापना की जिसका नाम करतारपुर रखा गया। यहां उन्होंने एक तालाब का निर्माण करवाया जो गंगसर के नाम से प्रसिद्ध है।

6. मसंद प्रथा का विकास-गुरु अर्जन देव जी ने सिक्खों को आदेश दिया कि वे अपनी आय का 1/10 भाग (दशांश अथवा दसवंद) आवश्यक रूप से मसंदों को जमा कराएं। मसंद वैसाखी के दिन इस राशि को अमृतसर के केंद्रीय कोष में जमा करवा देते थे। राशि को एकत्रित करने के लिए वे अपने प्रतिनिधि नियुक्त करने लगे। इन्हें ‘संगती’ कहते थे।

7. आदि ग्रंथ साहिब का संकलन-श्री गुरु अर्जन देव जी के समय तक सिक्ख धर्म काफी लोकप्रिय हो चुका था। सिक्ख गुरुओं ने बड़ी मात्रा में बाणी की रचना कर ली थी। स्वयं श्री गुरु अर्जुन देव जी ने भी 30 रागों में 2218 शब्दों की रचना की थी। गुरुओं के नाम पर कुछ लोगों ने भी बाणी की रचना शुरु कर दी थी। इस लिए श्री गुरु अर्जन देव जी ने सिक्खों को गुरु साहिबान की शुद्ध गुरबाणी का ज्ञान करवाने तथा गुरुओं की बाणी की संभाल करने के लिए आदि ग्रंथ साहिब जी का संकलन किया। ग्रंथ के संकलन का कार्य अमृतसर में रामसर सरोवर के किनारे एकांत स्थान पर शुरु किया गया। श्री गुरु अर्जन देव जी ने स्वयं बोलते गए और भाई गुरदास जी लिखते गए। आदि ग्रंथ साहिब में सिक्ख गुरुओं की बाणी के अतिरिक्त कई हिन्दू भक्तों, सूफी-संतों, भट्टों और गुरुसिक्खों के शब्दों को शामिल किया गया था।। 1604 ई० में आदि ग्रंथ साहिब जी के संकलन का कार्य सम्पूर्ण हुआ और इसका प्रथम प्रकाश श्री हरिमंदिर साहिब में किया गया। बाबा बुड्ढा जी को इसका पहला ग्रंथी नियुक्त किया गया।

8. घोड़ों का व्यापार-गुरु जी ने सिक्खों को घोड़ों का व्यापार करने के लिए प्रेरित किया। इससे सिक्खों को निम्नलिखित लाभ हुए

  • उस समय घोड़ों के व्यापार से बहुत लाभ होता था। परिणामस्वरूप सिक्ख लोग भी धनी हो गए। अब उनके लिए दसवंद (1/10) देना कठिन न रहा।
  • इस व्यापार से सिक्खों को घोड़ों की अच्छी परख हो गई। यह बात उनके लिए सेना संगठन के कार्य में बड़ी काम आई।

9. धर्म प्रचार कार्य-गुरु अर्जन देव जी ने धर्म-प्रचार द्वारा भी अनेक लोगों को अपना शिष्य बना लिया। उन्होंने अपनी आदर्श शिक्षाओं, सद्व्यवहार, नम्र स्वभाव तथा सहनशीलता से अनेक लोगों को प्रभावित किया।
संक्षेप में, इतना कहना ही काफ़ी है कि गुरु अर्जन देव जी के काल में सिक्ख धर्म ने बहुत प्रगति की। आदि ग्रंथ साहिब की रचना हुई, तरनतारन, करतारपुर तथा छहरटा अस्तित्व में आए तथा हरिमंदर साहिब सिक्ख धर्म की शोभा बन गया।

प्रश्न 2.
श्री गुरु अर्जन देव जी की शहीदी के कारणों का वर्णन करें।
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी उन महापुरुषों में से एक थे जिन्होंने धर्म की खातिर अपने प्राणों की आहुति दे दी। उनकी शहीदी के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं-

1. सिक्ख-धर्म का विस्तार-गुरु अर्जन देव जी के समय सिख धर्म का तेजी से विस्तार हो रहा था। कई नगरों की स्थापना, श्री हरिमंदर साहिब के निर्माण तथा आदि ग्रंथ साहिब के संकलन के कारण लोगों की सिक्ख धर्म में आस्था बढ़ती जा रही थी। दसबंध प्रथा के कारण गुरु साहिब की आय में वृद्धि हो रही थी। अतः लोग गुरु अर्जन देव जी को ‘सच्चे पातशाह’ कह कर पुकारने लगे थे। मुग़ल सम्राट जहांगीर इस स्थिति को राजनीतिक संकट के रूप में देख रहा था।

2. जहांगीर की धार्मिक कट्टरता-1605 ई० में जहांगीर मुग़ल सम्राट् बना। वह सिक्खों के प्रति घृणा की भावना रखता था। इसलिए वह गुरु जी से घृणा करता था। वह या तो उनको मारना चाहता था और या फिर उन्हें मुसलमान बनने के लिए बाध्य करना चाहता था। अत: यह मानना ही पड़ेगा कि गुरु जी की शहीदी में जहांगीर का पूरा हाथ था।

3. पृथिया (पिरथी चन्द) की शत्रुता-गुरु रामदास जी ने गुरु अर्जन देव जी की बुद्धिमत्ता से प्रभावित होकर उन्हें अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया था। परंतु यह बात गुरु अर्जन देव जी का बड़ा भाई पृथिया सहन न कर सका। उसने मुग़ल सम्राट अकबर से यह शिकायत की कि गुरु अर्जन देव जी एक ऐसे धार्मिक ग्रंथ (आदि ग्रंथ साहिब) की रचना कर रहे हैं, जो इस्लाम धर्म के सिद्धांतों के विरुद्ध है, परंतु सहनशील अकबर ने गुरु जी के विरुद्ध कोई कार्यवाही न की। इसके बाद पृथिया लाहौर के गवर्नर सुलेही खां तथा वहां के वित्त मंत्री चंदृशाह से मिलकर गुरु अर्जन देव जी के विरुद्ध षड्यंत्र रचने लगा। मरने से पहले वह मुग़लों के मन में गुरु जी के विरुद्ध घृणा के बीज बो गया।

4. नक्शबंदियों का विरोध-नक्शबंदी लहर एक मुस्लिम लहर थी जो गैर-मुसलमानों को कोई भी सुविधा दिए जाने के विरुद्ध थे। इस लहर के एक नेता शेख अहमद सरहिंदी के नेतृत्व में मुसलमानों ने गुरु अर्जन देव जी के विरुद्ध सम्राट अकबर से शिकायत की। परन्तु एक उदारवादी शासक होने के कारण, अकबर ने नक्शबंदियों की शिकायतों की ओर कोई ध्यान न दिया। अतः अकबर की मृत्यु के बाद नक्शबंदियों ने जहांगीर को गुरु साहिब के विरुद्ध भड़काना शुरु कर दिया।

5. चंदू शाह की शत्रुता-चंदू शाह लाहौर का दीवान था। गुरु अर्जन देव जी ने उसकी पुत्री के साथ अपने पुत्र का विवाह करने से इंकार कर दिया था। अत: उसने पहले सम्राट अकबर को तथा बाद में जहांगीर को गुरु जी के विरुद्ध यह कह कर भड़काया कि उन्होंने विद्रोही राजकुमार की सहायता की है। जहांगीर पहले ही गुरु जी के बढ़ते हुए प्रभाव को रोकना चाहता था। इसलिए वह गुरु जी के विरुद्ध कठोर पग उठाने के लिए तैयार हो गया।

6. आदि ग्रंथ साहिब का संचलन-गुरु जी ने आदि ग्रंथ साहिब का संकलन किया था। गुरु जी के शत्रुओं ने जहांगीर को बताया कि आदि ग्रंथ साहिब में इस्लाम धर्म के विरुद्ध बहुत कुछ लिखा गया है। अतः जहांगीर ने गुरु जी को आदेश दिया कि आदि ग्रंथ साहिब में से ऐसी सभी बातें निकाल दी जाएं जो इस्लाम धर्म के विरुद्ध हों। इस पर गुरु जी ने उत्तर दिया, “आदि ग्रंथ साहिब से हम एक भी अक्षर निकालने के लिए तैयार नहीं हैं क्योंकि इसमें हमने कोई भी ऐसी बात नहीं लिखी जो किसी धर्म के विरुद्ध हो।” कहते हैं कि यह उत्तर पाकर जहांगीर ने गुरु अर्जन देव जी से कहा कि वे इस ग्रंथ में मुहम्मद साहिब के विषय में भी कुछ लिख दें। परंतु गुरु जी ने जहांगीर की यह बात स्वीकार न की और कहा कि इस विषय में ईश्वर के आदेश के सिवा किसी अन्य के आदेश का पालन नहीं किया जा सकता।

7. राजकुमार खुसरो का मामला (तात्कालिक कारण)-खुसरो जहांगीर का सबसे बड़ा पुत्र था। उसने अपने पिता के विरुद्ध विद्रोह कर दिया। जहांगीर की सेनाओं ने उसका पीछा किया। वह भाग कर गुरु अर्जन देव जी की शरण में पहुंचा। कहते हैं कि गुरु जी ने उसे आशीर्वाद दिया और उसे लंगर भी छकाया। परंतु गुरु साहिब के विरोधियों ने जहाँगीर के कान भरे कि गुरु साहिब ने खुसरो की धन से सहायता की है। इसे गुरु जी का अपराध माना गया और उन्हें बंदी बनाने का आदेश दिया गया।

8. शहीदी-गुरु साहिब को 24 मई 1606 ई० को बंदी के रूप में लाहौर लाया गया। उपर्युक्त बातों के कारण जहांगीर की धर्मान्धता चरम सीमा पर पहुंच गई थी। अतः उसने गुरु अर्जन देव जी को शहीद करने का आदेश जारी कर दिया। शहीदी से पहले गुरु साहिब को कठोर यातनाएं दी गई। कहा जाता है कि उन्हें तपते लोहे पर बिठाया गया और उनके शरीर पर गर्म रेत डाली गई। 30 मई 1606 ई० में गुरु जी शहीदी को प्राप्त हुए। उन्हें शहीदों का ‘सरताज’ कहा जाता है।
शहीदी का महत्त्व-गुरु अर्जन देव जी की शहीदी को सिक्ख इतिहास में बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है।

  • गुरु जी की शहीदी ने सिक्खों में सैनिक भावना जागृत की। अत: शांतिप्रिय सिक्ख जाति ने लड़ाकू जाति का रूप धारण कर लिया। वास्तव में वे ‘संत सिपाही’ बन गए।
  • गुरु जी की शहीदी से पूर्व सिक्खों तथा मुग़लों के आपसी संबंध अच्छे थे। परंतु इस शहीदी ने सिक्खों की धार्मिक भावनाओं को भड़का दिया और उनके मन में मुग़ल राज्य के प्रति घृणा पैदा हो गई।
  • इस शहीदी से सिक्ख धर्म को लोकप्रियता मिली। सिक्ख अब अपने धर्म के लिए अपना सब कुछ बलिदान करने के लिए तैयार हो गए।
    नि:संदेह गुरु अर्जन देव जी की शहीदी सिक्ख इतिहास में एक नया मोड़ सिद्ध हुई। इसने शांतिप्रिय सिक्खों को संत सिपाही बना दिया। उन्होंने समझ लिया कि यदि उन्हें अपने धर्म की रक्षा करनी है तो उन्हें शस्त्र धारण करने ही पड़ेंगे।

प्रश्न 3.
श्री गुरु अर्जन देव जी की शहीदी का सिक्ख धर्म पर क्या प्रभाव पड़ा ? वर्णन करें।
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी सिक्ख इतिहास की एक बड़ी महत्त्वपूर्ण घटना है। इस शहीदी से यों तो सारी हिंदू जाति प्रभावित हुई परंतु सिक्खों पर इसका विशेष रूप से प्रभाव पड़ा। इस विषय में डॉ० ट्रंप ने लिखा है-“गुरु अर्जन देव जी की शहीदी सिक्ख संप्रदाय के विकास के लिए एक युग प्रवर्तक थी। उस समय एक ऐसा सघर्ष आरंभ हुआ जिसने सुधार आंदोलन के पूर्ण स्वरूप को ही बदल दिया। गुरु अर्जन देव जी अन्याय को सहन न कर सके और उन्होंने मुग़ल सरकार द्वारा किए जा रहे अत्याचारों का बड़े साहस तथा निर्भीकता से विरोध किया और अंत में अपने प्राणों तक की बलि दे दी। गुरु अर्जन देव जी की शहीदी का महत्त्व निम्नलिखित बातों से स्पष्ट हो जाता है

1. सिक्ख संप्रदाय में महान् परिवर्तन : गुरु हरगोबिन्द साहिब की नयी नीति-गुरु अर्जन देव जी की शहीदी के कारण सिक्ख संप्रदाय में एक बहुत बड़ा परिवर्तन आया। शहीदी के पश्चात् सिक्खों ने अनुभव किया कि वे बिना शस्त्र उठाये धर्म की रक्षा नहीं कर सकते। कहते हैं कि अपनी शहीदी से पूर्व गुरु अर्जन देव जी ने अपने पुत्र को एक
संदेश भेजा था जो इस प्रकार था, “उसे पूर्णतया सुसज्जित होकर गद्दी पर बैठना चाहिए और अपनी योग्यता अनुसार – सेना रखनी चाहिए।” अतः अपने पिता जी के उपदेश के अनुसार सिक्खों के छठे गुरु हरगोबिंद जी ने गुरुगद्दी पर बैठने के बाद नई नीति अपनाई। उन्होंने ‘मीरी’ तथा ‘पीरी’ नामक दो तलवारें धारण कीं। कुछ समय बाद उन्होंने सिक्खों को राजनीतिक तथा सैनिक कार्यों के लिए संगठित किया तथा एक भवन का निर्माण कराया जो आज ‘अकाल तख्त’ के नाम से प्रसिद्ध है। केवल इतना ही नहीं, उन्होंने अमृतसर नगर की रक्षा के लिए किलाबंदी भी कराई। परंतु सेना के लिए अभी शस्त्रों तथा घोड़ों की बड़ी आवश्यकता थी। अतः उन्होंने अपने शिष्यों को घोड़ों तथा शस्त्र भेंट देने का आदेश दिया। शीघ्र ही सिक्खों को सैनिक प्रशिक्षण देना आरंभ कर दिया गया। इस प्रकार सिक्ख भक्तों ने संत सैनिकों का रूप धारण कर लिया।
1. “The Death of Guru Arjun is therefore, the great turning point in the development of the Sikh community.”
-Dr. E. Trump

2. सिक्खों तथा मुग़लों के संबंधों में टकराव-मुग़ल सम्राट अकबर बड़ा उदार हृदय था और उसके विचार धार्मिक थे। वह सिक्ख गुरु साहिबान का बड़ा आदर करता था। अतः उसके समय में मुग़लों तथा सिक्खों के संबंध बड़े मैत्रीपूर्ण रहे। परंतु जहांगीर एक कट्टर मुसलमान था इसलिए वह गुरु अर्जन देव जी के विरुद्ध हो गया। उसने गुरु जी को अनेक शारीरिक यातनाएं दी और बड़ी निर्दयतापूर्वक उनको शहीद करा दिया। इससे सिक्खों में रोष की लहर दौड़ गई और उनके मुग़लों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध शत्रुता में बदल गये। इस संबंध में इतिहासकार लतीफ ने लिखा है, “इससे सिक्खों की धार्मिक भावनाएं भड़क उठी थीं और इस सब से गुरु नानक देव जी के सच्चे अनुयायियों के हृदय में मुसलमान शक्ति के प्रति घृणा के ऐसे बीज बो गए जिनकी जड़ें बड़ी गहरी थीं।” सिक्ख अब यह भली-भांति समझ गए थे कि धर्म की रक्षा के लिए उन्हें मुग़लों का मुकाबला करना पड़ेगा। इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए गुरु हरगोबिंद जी ने सैनिक तैयारियां आरंभ कर दी। इस प्रकार मुग़लों तथा सिक्खों में संघर्ष बिल्कुल अनिवार्य हो गया और गुरु हरगोबिंद जी के समय में खुले रूप में युद्ध छिड़ गया।

PSEB 9th Class SST Solutions History Chapter 4 श्री गुरु अर्जन देव जी : सिक्ख धर्म के विकास में योगदान और उनकी शहीदी

3. सिक्खों पर अत्याचार-गुरु अर्जन देव जी की शहीदी के पश्चात् मुग़ल शासकों ने सिक्खों पर बड़े अत्याचार किये। शाहजहां के समय में सिक्खों तथा मुग़लों के संबंध और भी खराब हो गये। गुरु हरगोबिंद जी को ग्वालियर के किले में बंदी बना लिया गया। छठे गुरु जी के काल में मुग़लों तथा सिक्खों के बीच कई युद्ध लड़े गये। 1675 ई० में गुरु तेग बहादुर जी को इस्लाम धर्म स्वीकार करने के लिए कहा गया। जब उन्होंने ऐसा करने से इंकार कर दिया तो मुग़ल सम्राट औरंगज़ेब ने उनको शहीद करा दिया। दसवें गुरु गोबिंद सिंह जी के समय में भी सिक्खों पर मुग़लों के अत्याचार जारी रहे। मुग़ल सम्राट ने सिक्खों का दमन करने के लिए विशाल सेनाएं भेजीं। सिक्खों तथा मुग़ल सेनाओं में भयंकर युद्ध हुआ जिसमें गुरु गोबिंद सिंह जी के दो पुत्र लड़ते हुए शहीद हो गए। उनके दो पुत्रों को जीवित ही दीवार में चिनवा दिया गया। बंदा बहादुर की पराजय के पश्चात् 740 सिक्खों को पकड़ कर इस्लाम धर्म स्वीकार करने के लिए विवश किया गया। जब उन्होंने ऐसा करने से इंकार कर दिया तो उनका वध कर दिया गया। 1716 ई० से 1746 ई० तक भाई मनी सिंह, भाई तारा सिंह, भाई बूटा सिंह तथा भाई महताब सिंह आदि अनेक सिक्खों को शहीद कर दिया गया।

4. सिक्खों में एकता-गुरु अर्जन देव जी की शहीदी के कारण सिक्खों में एकता की भावना उत्पन्न हुई। गुरु जी की शहीदी व्यर्थ नहीं गई बल्कि इससे सिक्खों को एक नया उत्साह तथा एक नई शक्ति मिली। वे अत्याचारों का विरोध करने के लिए एकत्रित हो गये। श्री खुशवंत सिंह ने लिखा है, “गुरु अर्जन देव जी का रक्त सिक्ख संप्रदाय तथा पंजाबी राज्य का बीज सिद्ध हुआ।”2 सच तो यह है कि गुरु अर्जन देव जी की शहीदी के परिणामस्वरूप सिक्खों का अपने धार्मिक नेता में विश्वास और भी बढ़ गया। सिक्ख संप्रदाय अब पहले से कहीं अधिक संगठित हो गया। धर्म की रक्षा के लिये अब सिक्ख अपना सब कुछ न्यौछावर करने को तैयार हो गए।

5. भावी सिक्ख इतिहास पर प्रभाव-गुरु अर्जन देव जी की शहीदी का भावी सिक्ख इतिहास पर गहरा प्रभाव पड़ा। उनकी शहीदी के परिणामस्वरूप ही सिक्खों ने अत्याचार का विरोध करने के लिये शस्त्र उठाने का निश्चय किया। उन्होंने शक्तिशाली मुग़ल शासकों से टक्कर ली और युद्धों में अपने साहस, निर्भीकता तथा वीरता का परिचय दिया। गुरु गोबिंद सिंह जी के पश्चात् सिक्खों ने साहस न छोड़ा और बंदा बहादुर के नेतृत्व में उन्होंने पंजाब के अधिकतर भागों पर अधिकार कर लिया। सिक्खों की शक्ति निरंतर बढ़ती गई और 18वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में उन्होंने बारह स्वतंत्र राज्य स्थापित किए जो ‘मिसलों’ के नाम से प्रसिद्ध हुए। कुछ समय पश्चात् महाराजा रणजीत सिंह ने अफगानों तथा मिसल सरदारों को पराजित करके पंजाब में एक शक्तिशाली राज्य की स्थापना की। इन सभी बातों से स्पष्ट होता है कि गुरु अर्जन देव जी की शहीदी भावी सिक्ख इतिहास को निर्धारित करने का एक बहुत बड़ा कारण सिद्ध हुई।
1. “A struggle was thus becoming, more or less inevitable and it openly broke out under Guru Arjun’s son and successor, Guru Hargobind.”
-Dr. Indu Bhushan Banerjee
2.“Arjun’s blood became the seed of the Sikh Church as well as of the Punjabi nation.”-Khuswant Singh

PSEB 9th Class Social Science Guide श्री गुरु अर्जन देव जी : सिक्ख धर्म के विकास में योगदान और उनकी शहीदी Important Questions and Answers

I. बहुविकल्पीय प्रश्न :

प्रश्न 1.
आदि ग्रंथ साहिब का संकलन किया
(क) गुरु अमरदास जी ने
(ख) गुरु अर्जन देव जी ने
(ग) गुरु रामदास जी ने
(घ) गुरु तेग़ बहादुर जी ने।
उत्तर-
(ख) गुरु अर्जन देव जी ने

प्रश्न 2.
हरिमंदर साहिब का पहला ग्रंथी नियुक्त किया गया
(क) भाई पृथिया को
(ख) श्री महादेव जी को
(ग) बाबा बुड्डा जी को
(घ) नत्थामल जी को।
उत्तर-
(ग) बाबा बुड्डा जी को

प्रश्न 3.
छहरटा का निर्माण करवाया
(क) गुरु तेग़ बहादुर जी ने
(ख) गुरु हरगोबिंद जी ने
(ग) गुरु अर्जन देव जी ने
(घ) गुरु रामदास जी ने।
उत्तर-
(ग) गुरु अर्जन देव जी ने

प्रश्न 4.
मीरी और पीरी नामक तलवारें धारण की
(क) गुरु अर्जन देव जी ने
(ख) गुरु हरगोबिंद जी ने
(ग) गुरु तेग़ बहादुर जी ने
(घ) गुरु रामदास जी ने।
उत्तर-
(ख) गुरु हरगोबिंद जी ने

प्रश्न 5.
जहाँगीर के काल में शहीद होने वाले सिख गुरु थे
(क) गुरु अंगद देव जी
(ख) गुरु अमरदास जी
(ग) गुरु अर्जन देव जी
(घ) गुरु तेग बहादुर जी।
उत्तर-
(ग) गुरु अर्जन देव जी

II. रिक्त स्थान भरें :

  1. गुरु अर्जन देव जी को अपने सबसे बड़े भाई ……. की शत्रुता का सामना करना पड़ा।
  2. गुरु अर्जन देव जी का जन्म 15 अप्रैल, 1563 को ……….. में हुआ।
  3. ………. शहीदी देने वाले प्रथम सिख गुरु थे।
  4. हरिमंदर साहिब का निर्माण कार्य ……… ई० में पूरा हुआ।
  5. ………….. सिक्खों के छठे गुरु थे।

उत्तर-

  1. पृथिया अथवा पिरथिया
  2. गोइंदवाल साहिब
  3. गुरु अर्जन साहिब
  4. 1601
  5. गुरु हरगोबिंद जी।।

PSEB 9th Class SST Solutions History Chapter 4 श्री गुरु अर्जन देव जी : सिक्ख धर्म के विकास में योगदान और उनकी शहीदी

III. सही मिलान करो :

(क) – (ख)
1. हरिमंदर साहिब – (i) आध्यात्मिक विषयों में नेतृत्व का प्रतीक
2. मीरी – (ii) तरनतारन
3. श्री गुरु अर्जन देव जी – (iii) सांसारिक विषयों में नेतृत्व का प्रतीक
4. पीरी – (iv) मसंद प्रथा
5. दसवंद – (v) प्रसिद्ध सूफी संत मियां मीर

उत्तर-

  1. प्रसिद्ध सूफी संत मियां मीर
  2. सांसारिक विषयों में नेतृत्व का प्रतीक
  3. तरनतारन
  4. आध्यात्मिक विषयों में नेतृत्व का प्रतीक
  5. मसंद

अति लघु उत्तरों वाले प्रश्न

उत्तर एक लाइन अथवा एक शब्द में :

(I)

प्रश्न 1.
हरिमंदर साहिब की नींव कब तथा किसने रखी ?
उत्तर-
हरिमंदर साहिब की नींव 1588 ई० में उस समय के प्रसिद्ध सूफी संत मियां मीर ने रखी।

प्रश्न 2.
हरिमंदर साहिब के चारों तरफ दरवाज़े रखने से क्या भाव है ?
उत्तर-
हरिमंदर साहिब के चारों तरफ दरवाज़े रखने से भाव यह है कि यह पवित्र स्थान सभी वर्गों, सभी जातियों और सभी धर्मों के लिए समान रूप से खुला है।

प्रश्न 3.
गुरु अर्जन देव जी ने रावी तथा ब्यास के मध्य में किस शहर की नींव रखी तथा कब ?
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी ने रावी तथा ब्यास के बीच 1590 ई० में तरनतारन नगर की नींव रखी।

प्रश्न 4.
गुरु अर्जन देव जी द्वारा स्थापित किए गए चार शहरों के नाम लिखिए।
उत्तर-
तरनतारन, करतारपुर, हरगोबिंदपुर तथा छहरटा।

प्रश्न 5.
‘दसवंध’ से क्या भाव है ?
उत्तर-
‘दसवंध’ से भाव यह है कि प्रत्येक सिक्ख अपनी आय का दसवां भाग गुरु जी के नाम भेंट करें।

प्रश्न 6.
लाहौर की बाऊली (जल स्रोत) के बारे में जानकारी दीजिए।
उत्तर-
लाहौर के डब्बी बाज़ार में बाऊली का निर्माण गुरु अर्जन देव जी ने करवाया।

प्रश्न 7.
गुरु अर्जन देव जी को आदि ग्रंथ साहिब की स्थापना की आवश्यकता क्यों पड़ी ?
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी सिक्खों को एक पवित्र धार्मिक ग्रंथ देना चाहते थे, ताकि वे गुरु साहिबान की शुद्ध वाणी को पढ़ या सुन सकें।

प्रश्न 8.
गुरु अर्जन देव जी के समय में घोड़ों के व्यापार का कोई एक लाभ बताएं।
उत्तर-
इस व्यापार से सिक्ख धनी बने और गुरु साहिब के खजाने में भी धन की वृद्धि हुई।
अथवा
इससे जाति-प्रथा को करारी चोट लगी।

प्रश्न 9.
गुरु अर्जन देव जी के समाज सुधार के कोई दो काम लिखो।
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी ने विधवा विवाह के पक्ष में प्रचार किया और सिक्खों को शराब तथा अन्य नशीली वस्तुओं का सेवन करने से मना किया।

प्रश्न 10.
गुरु अर्जन देव जी तथा अकबर के संबंधों का वर्णन करो।
उत्तर-
गुरु अर्जन देव के सम्राट अकबर के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध थे।

PSEB 9th Class SST Solutions History Chapter 4 श्री गुरु अर्जन देव जी : सिक्ख धर्म के विकास में योगदान और उनकी शहीदी

प्रश्न 11.
जहांगीर गुरु अर्जन देव जी को क्यों शहीद करना चाहता था ?
उत्तर-
जहांगीर को गुरु अर्जन देव जी की बढ़ती हुई ख्याति से ईर्ष्या थी।
अथवा
जहांगीर को इस बात का दुःख था कि हिंदुओं के साथ-साथ कई मुसलमान भी गुरु साहिब से प्रभावित हो रहे हैं।

प्रश्न 12.
मीरी तथा पीरी तलवारों की विशेषताएं बताएं।
उत्तर-
‘मीरी’ तलवार सांसारिक विषयों में नेतृत्व का प्रतीक थी, जबकि ‘पीरी’ तलवार आध्यात्मिक विषयों में नेतृत्व का प्रतीक थी।

प्रश्न 13.
गुरु हरगोबिंद जी के राजसी चिह्नों का वर्णन करें।
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद साहिब ने कलगी, छत्र, तख्त और दो तलवारें धारण की और ‘सच्चे पातशाह’ की उपाधि धारण की।

प्रश्न 14.
अमृतसर की किलेबंदी के बारे में गुरु हरगोबिंद जी ने क्या किया ?
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद साहिब ने अमृतसर की रक्षा के लिए इसके चारों ओर एक दीवार बनवाई और नगर में ‘लोहगढ़’ नामक एक किले का निर्माण करवाया।

प्रश्न 15.
गुरु हरगोबिंद साहिब ने अपने अंतिम दस वर्ष कहां और कैसे व्यतीत किए ?
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद साहिब ने अपने जीवन के अंतिम दस वर्ष कीरतपुर में धर्म-प्रचार में व्यतीत किए।

प्रश्न 16.
जहांगीर के काल में कौन-से सिख गुरु शहीद हुए थे ?
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी।।

प्रश्न 17.
गुरु तेग बहादुर जी की शहीदी किस मुग़ल शासक के काल में हुई ?
उत्तर-
औरंगज़ेब।

प्रश्न 18.
सिक्खों के पांचवें मुरु कौन थे ?
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी।

प्रश्न 19.
अमृतसर में हरिमंदर साहिब का निर्माण किसने करवाया ?
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी ने।

प्रश्न 20.
‘मीणा’ सम्प्रदाय किसने चलाया ?
उत्तर-
पृथी चंद (पिरथिया) ने।

PSEB 9th Class SST Solutions History Chapter 4 श्री गुरु अर्जन देव जी : सिक्ख धर्म के विकास में योगदान और उनकी शहीदी

(II)

प्रश्न 1.
‘दसवंद’ (आय का दसवां भाग) का संबंध किस प्रथा से है ?
उत्तर-
मसंद प्रथा से।

प्रश्न 2.
‘आदि ग्रंथ’ साहिब का संकलन (सम्पादन) कार्य कब पूरा हुआ ?
उत्तर-
1604 ई० में।

प्रश्न 3.
‘आदि ग्रंथ’ साहिब का संकलन कार्य किसने किया ?
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी ने।

प्रश्न 4.
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी कब हुई ?
उत्तर-
1606 ई० में।

प्रश्न 5.
मीरी तथा पीरी नामक दो तलवारें किसने धारण की ?
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद जी ने।

प्रश्न 6.
गुरु हरगोबिंद जी का पठान सेनानायक कौन था ?
उत्तर-
पैंदा खां।

प्रश्न 7.
अकाल तख़त का निर्माण, सिक्खों के किस गुरु ने किया ?
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद जी ने।

प्रश्न 8.
अमृतसर की किलाबंदी किसने करवाई ?
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद जी ने।

प्रश्न 9.
कीरतपुर शहर के लिए जमीन किसने भेंट की थी ?
उत्तर-
राजा कल्याण चंद ने।

प्रश्न 10.
किस मुग़ल बादशाह ने गुरु हरगोबिंद जी को ग्वालियर के किले में बंदी बनाया ?
उत्तर-
जहांगीर ने।

प्रश्न 11.
गुरुगद्दी की प्राप्ति में गुरु अर्जन देव जी की कोई एक कठिनाई बताओ।
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी को अपने भाई पृथिया की शत्रुता तथा विरोध का सामना करना पड़ा।
अथवा
गुरु अर्जन देव जी का ब्राह्मणों तथा कट्टर मुसलमानों ने विरोध किया।

PSEB 9th Class SST Solutions History Chapter 4 श्री गुरु अर्जन देव जी : सिक्ख धर्म के विकास में योगदान और उनकी शहीदी

प्रश्न 12.
शहीदी देने वाले प्रथम सिक्ख गुरु का नाम बताओ।
उत्तर-
शहीदी देने वाले प्रथम गुरु का नाम गुरु अर्जन साहिब था।

प्रश्न 13.
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी का एक प्रभाव लिखो।
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी ने सिक्खों को धर्म की रक्षा के लिए शस्त्र उठाने के लिए प्रेरित किया।
अथवा
गुरु जी की शहीदी के परिणामस्वरूप सिक्खों और मुग़लों के संबंध बिगड़ गए।

प्रश्न 14.
हरिमंदर साहिब की योजना को कार्य रूप देने में किन दो व्यक्तियों ने गुरु अर्जन साहिब की सहायता की ?
उत्तर-
हरिमंदर साहिब की योजना को कार्य रूप देने में भाई बुड्डा जी तथा भाई गुरदास जी ने गुरु अर्जन साहिब की सहायता की।

प्रश्न 15.
हरिमंदर साहब का निर्माण कार्य कब पूरा हुआ ?
उत्तर-
हरिमंदर साहिब का निर्माण कार्य 1601 ई० में पूरा हुआ।

प्रश्न 16.
मसंद कौन थे और वे संगतों से उनकी आय का कौन-सा भाग एकत्र करते थे ?
उत्तर-
गुरु जी के प्रतिनिधियों को मसनद कहा जाता था तथा वे संगतों से उनकी आय का दसवां भाग एकत्र करते थे।

प्रश्न 17.
आदि ग्रंथ साहिब का संकलन किन्होंने किया ?
उत्तर-
आदि ग्रंथ साहिब का संकलन कार्य गुरु अर्जन देव जी ने किया।

प्रश्न 18.
आदि ग्रंथ साहिब का संकलन कब संपूर्ण हुआ ?
उत्तर-
आदि ग्रंथ साहिब का संकलन कार्य 1604 ई० में संपूर्ण हुआ।

प्रश्न 19.
‘आदि ग्रंथ साहिब’ को कहां स्थापित किया गया ?
उत्तर-
आदि ग्रंथ साहिब को अमृतसर के हरिमंदर साहिब में स्थापित किया गया।

प्रश्न 20.
हरिमंदर साहिब का पहला ग्रंथी किस व्यक्ति को नियुक्त किया गया ?
उत्तर-
हरिमंदर साहिब का पहला ग्रंथी बाबा बुड्डा जी को नियुक्त किया गया।

(III)
प्रश्न 1.
‘आदि ग्रंथ साहिब में क्रमशः गुरु नानक देव जी, गुरु अंगद देव जी, गुरु अमरदास जी तथा गुरु रामदास जी के कितने-कितने शब्द हैं ?
उत्तर-
आदि ग्रंथ साहिब में गुरु नानक देव जी के 974, गुरु अंगद देव जी के 62, गुरु अमरदास जी के 907 तथा गुरु रामदास जी के 679 शब्द हैं।

प्रश्न 2.
गुरु हरगोबिंद जी ने धार्मिक तथा शस्त्र चलाने की शिक्षा किससे प्राप्त की ?
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद जी ने धार्मिक तथा शस्त्र चलाने की शिक्षा भाई बुड्डा जी से प्राप्त की।

PSEB 9th Class SST Solutions History Chapter 4 श्री गुरु अर्जन देव जी : सिक्ख धर्म के विकास में योगदान और उनकी शहीदी

प्रश्न 3.
गुरु हरगोबिंद जी की गद्दी पर बैठते समय आयु कितनी थी ?
उत्तर-
गुरुगद्दी पर बैठते समय उनकी आयु केवल ग्यारह वर्ष की थी।

प्रश्न 4.
गुरु हरगोबिंद जी द्वारा नवीन नीति (सैन्य-नीति) अपनाने का कोई एक कारण बताओ।
उत्तर-
आत्म रक्षा तथा धर्म की रक्षा के लिए गुरु जी ने नवीन नीति का सहारा लिया।

प्रश्न 5.
गुरु हरगोबिंद साहिब के समय तक कौन-कौन से चार स्थान सिक्खों के तीर्थ स्थान बन चुके थे ?
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद साहिब के समय तक गोइंदवाल, अमृतसर, तरनतारन तथा करतारपुर सिक्खों के तीर्थ स्थान बन चुके थे।

प्रश्न 6.
सिक्ख धर्म के संगठन एवं विकास में किन चार संस्थाओं ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई ?
उत्तर-
सिक्ख धर्म के संगठन एवं विकास में ‘पंगत’, ‘संगत’, ‘मंजी’ तथा ‘मसंद’ संस्थाओं ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।

प्रश्न 7.
गुरु हरगोबिंद साहिब के किन्हीं चार सेनानायकों के नाम बताओ।
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद साहिब के चार सेनानायकों के नाम विधिचंद, पीराना, जेठा और पैंदे खां थे।

प्रश्न 8.
गुरु हरगोबिंद साहिब ने अपने दरबार में किन दो संगीतकारों को वीर रस के गीत गाने के लिए नियुक्त किया ?
उत्तर-
उन्होंने अपने दरबार में अब्दुल तथा नत्थामल नामक दो संगीतकारों को वीर रस के गीत गाने के लिए नियुक्त किया।

प्रश्न 9.
गुरु हरगोबिंद जी को बंदी बनाए जाने का एक कारण बताओ।
उत्तर-
जहांगीर को गुरु साहिब की नवीन नीति पसंद न आई।
अथवा चंदू शाह ने जहांगीर को गुरु जी के विरुद्ध भड़काया जिससे वह गुरु जी का विरोधी हो गया।

प्रश्न 10.
गुरु हरगोबिंद जी को ‘बंदी छोड़ बाबा’ की उपाधि क्यों प्राप्त हुई ?
उत्तर-
52 बंदी राजाओं को मुक्त कराने के कारण।

प्रश्न 11.
गुरु हरगोबिंद जी के राय में मुग़लों और सिक्खों के बीच कितने युद्ध हुए ? यह युद्ध कब और कहां हुए ?
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद जी के समय में मुग़लों और सिक्खों के बीच तीन युद्ध हुए। लहिरा (1631), अमृतसर (1634) तथा करतारपुर (1635)।

प्रश्न 12.
गुरु हरगोबिंद साहिब के समय के चार प्रमुख प्रचारकों के नाम लिखो।
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद साहिब के समय के चार प्रमुख प्रचारकों के नाम अलमस्त, ‘फूल, गौड़ा तथा बलु हसना थे।

लघु उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
हरिमंदर साहिब के बारे में जानकारी दीजिए ।
उत्तर-
गुरु रामदास जी के ज्योति जोत समाने के पश्चात् गुरु अर्जन देव जी ने ‘अमृतसर’ सरोवर के बीच हरिमंदर साहिब का निर्माण करवाया। इसका नींव पत्थर 1589 ई० में सूफी फ़कीर मियां मीर जी ने रखा। गुरु जी ने इसके चारों ओर एक-एक द्वार रखवाया। ये द्वार इस बात के प्रतीक हैं कि यह मंदर सभी जातियों तथा धर्मों के लोगों के लिए समान रूप से खुला है। हरिमंदर साहिब का निर्माण कार्य भाई बुड्डा जी की देख-रेख में 1601 ई० में पूरा हुआ। 1604 ई० में हरिमंदर साहिब में आदि ग्रंथ साहिब की स्थापना की गई और भाई बुड्डा जी वहां के पहले ग्रंथी बने।
हरिमंदर साहिब शीघ्र ही सिक्खों के लिए ‘मक्का’ तथा ‘गंगा-बनारस’ अर्थात् एक बहुत बड़ा तीर्थ-स्थल बन गया।

प्रश्न 2.
तरनतारन साहिब के बारे में आप क्या जानते हो ?
उत्तर-
तरनतारन का निर्माण गुरु अर्जन देव जी ने करवाया। इसके निर्माण का सिक्ख इतिहास में बड़ा महत्त्व है। अमृतसर की भांति तरनतारन भी सिक्खों का प्रसिद्ध तीर्थ स्थान बन गया। हज़ारों की संख्या में यहां सिक्ख यात्री स्नान करने के लिए आने लगे। उनके प्रभाव में आकर माझा प्रदेश के अनेक जाट सिक्ख धर्म के अनुयायी बन गए। इन्हीं जाटों श्री गुरु अर्जन देव जी : सिक्ख धर्म के विकास में योगदान और उनकी शहीदी ने आगे चल कर मुग़लों के विरुद्ध युद्धों में बढ़-चढ़ कर भाग लिया और असाधारण वीरता का परिचय दिया। डॉ. इंदू भूषण बनर्जी ठीक ही लिखते हैं, “जाटों के सिक्ख धर्म में प्रवेश से सिक्ख इतिहास को एक नया मोड़ मिला।”

प्रश्न 3.
मसंद प्रथा से सिक्ख धर्म को क्या लाभ हुए ?
उत्तर-
सिक्ख धर्म के संगठन तथा विकास में मसंद प्रथा का विशेष महत्त्व रहा। इसके महत्त्व को निम्नलिखित बातों जाना जा सकता है

  1. गुरु जी की आय अब निरंतर तथा लगभग निश्चित हो गई। आय के स्थायी हो जाने से गुरु जी को अपने रचनात्मक कार्यों को पूरा करने में बहुत सहायता मिली। उन्होंने इस धन राशि से न केवल अमृतसर तथा संतोखसर के सरोवरों का निर्माण कार्य संपन्न किया अपितु अन्य कई नगरों, तालाबों, कुओं आदि का भी निर्माण किया।
  2. मसंद प्रथा के कारण जहां गुरु जी की आय निश्चित हुई वहां सिक्ख धर्म का प्रचार भी ज़ोरों से हुआ। गुरु अर्जन देव जी ने पंजाब से बाहर भी मसंदों की नियुक्ति की। इससे सिक्ख धर्म का प्रचार क्षेत्र बढ़ गया।
  3. मसंद प्रथा से प्राप्त होने वाली स्थायी आय से गुरु जी अपना दरबार लगाने लगे। वैशाखी के दिन जब दूर-दूर से आए मसंद तथा श्रद्धालु भक्त गुरु जी से भेंट करने आते तो वे बड़ी नम्रता से गुरु जी के सम्मुख शीश झुकाते थे। उनके ऐसा करने से गुरु जी का दरबार वास्तव में शाही दरबार-सा बन गया और गुरु जी ने ‘सच्चे पातशाह’ की उपाधि धारण कर ली।

PSEB 9th Class SST Solutions History Chapter 4 श्री गुरु अर्जन देव जी : सिक्ख धर्म के विकास में योगदान और उनकी शहीदी

प्रश्न 4.
गुरु हरगोबिंद साहिब की सेना के संगठन का वर्णन करो।
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद जी ने आत्मरक्षा के लिए सेना का संगठन किया। इस सेना में अनेक शस्त्रधारी सैनिक तथा स्वयं सेवक सम्मिलित थे। माझा के अनेक युद्ध प्रिय युवक गुरु जी की सेना में भर्ती हो गए। मोहसिन फानी के मतानुसार, गुरु जी की सेना में 800 घोड़े, 300 घुड़सवार तथा 60 बंदूकची थे। उनके पास 500 ऐसे स्वयं सेवक भी थे जो वेतन नहीं लेते थे। यह सिक्ख सेना पांच जत्थों में बंटी हुई थी। इनके जत्थेदार थे-विधिचंद, पीराना, जेठा, पैरा तथा लंगाह । इसके अतिरिक्त पैंदा खां के नेतृत्व में एक पृथक् पठान सेना भी थी।

प्रश्न 5.
गुरु हरगोबिंद जी के रोज़ाना जीवन के बारे में लिखें।
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद जी की नवीन नीति के अनुसार उनकी दिनचर्या में भी कुछ परिवर्तन आए। नई दिनचर्या के अनुसार वह प्रात:काल स्नान आदि करके हरिमंदर साहिब में धार्मिक उपदेश देने के लिए चले जाते थे और फिर अपने सिक्खों तथा सैनिकों में प्रातःकाल का लंगर कराते थे। इसके पश्चात् वह कुछ समय के लिए विश्राम करके शिकार के लिए निकल पड़ते थे। गुरु जी ने अब्दुल तथा नत्था मल को वीर रस की वारें सुनाने के लिए नियुक्त किया। उन्होंने दुर्बल मन को सबल बनाने के लिए अनेक गीत मंडलियां बनाईं। इस प्रकार गुरु जी ने सिक्खों में नवीन चेतना और नये उत्साह का संचार किया।

प्रश्न 6.
आदि ग्रंथ साहिब के संकलन अथवा सम्पादना पर एक नोट लिखो।
उत्तर-
श्री गुरु अर्जन देव जी के समय तक सिक्ख धर्म काफी लोकप्रिय हो चुका था। सिक्ख गुरुओं ने बड़ी मात्रा में बाणी की रचना कर ली थी। स्वयं श्री गुरु अर्जन देव जी ने भी 30 रागों में 2218 शब्दों की रचना की थी। गुरुओं के नाम पर कुछ लोगों ने भी बाणी की रचना शुरू कर दी थी। इसलिए श्री गुरु अर्जन देव जी ने सिक्खों को गुरु साहिबान की शुद्ध गुरबाणी का ज्ञान करवाने तथा गुरुओं की बाणी की संभाल करने के लिए आदि ग्रंथ साहिब जी का संकलन किया। ग्रंथ के संकलन का कार्य अमृतसर में रामसर सरोवर के किनारे एकांत स्थान पर शुरु किया गया। श्री गुरु अर्जन देव जी स्वयं बोलते गए और भाई गुरदास जी लिखते गए। आदि ग्रंथ साहिब में सिक्ख गुरुओं की बाणी के अतिरिक्त कई हिन्दू भक्तों, सूफीसंतों, भट्टों और गुरुसिक्खों के शब्दों को शामिल किया गया था। 1604 ई० में आदि ग्रंथ साहिब जी के संकलन का कार्य संपूर्ण हुआ और इसका प्रथम प्रकाश श्री हरिमंदर साहिब में किया गया। बाबा बुड्ढा जी को इसका पहला ग्रंथी नियुक्त किया गया। इस प्रकार सिक्खों को एक अलग धार्मिक ग्रंथ मिल गया।

प्रश्न 7.
अकाल तख्त के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद साहिब हरिमंदर साहिब में सिक्खों को धार्मिक शिक्षा देते थे। उन्हें राजनीति की शिक्षा देने के लिए गुरु साहिब ने हरिमंदर साहिब के सामने पश्चिम की ओर एक नया भवन बनाया जिसका नाम अकाल तख्त (ईश्वर की गद्दी) रखा गया। इस नए भवन के अंदर 12 फुट ऊंचे एक चबूतरे का निर्माण भी करवाया गया। इस चबूतरे पर बैठ कर वह सिक्खों की सैनिक तथा राजनीतिक समस्याओं का समाधान करने लगे। इसी स्थान पर वह अपने सैनिकों को वीर रस के जोशीले गीत सुनवाते थे। अकाल तख्त के निकट वह सिक्खों को व्यायाम करने के लिए प्रेरित करते थे।

प्रश्न 8.
मसंद प्रथा से क्या भाव है तथा इसका क्या उद्देश्य था ?
उत्तर-
मसंद प्रथा से हमारा अभिप्राय उस प्रथा से है जिसका आरंभ गुरु रामदास जी ने सिक्खों से नियमित रूप से भेटें एकत्रित करने तथा उसे समय पर गुरु जी तक पहुंचाने के लिए किया था। गुरु जी को अमृतसर तथा संतोखसर नामक दो तालाबों की खुदाई के लिए और लंगर चलाने तथा धर्म प्रचार करने के लिए भी काफ़ी धन चाहिए था। परंतु सिक्ख संगतों से चढ़ावे के रूप में पर्याप्त तथा निश्चित धनराशि प्राप्त नहीं होती थी। अत: उन्होंने अपने कुछ शिष्यों को विभिन्न प्रदेशों में धन एकत्रित करने के लिए भेजा। गुरु जी द्वारा भेजे गए इन शिष्यों को ‘मसंद’ कहा जाता था। इस प्रकार मसंद प्रणाली का आरंभ हुआ।

प्रश्न 9.
गुरु अर्जन देव जी की शहादत पर एक नोट लिखिए।
उत्तर-
मुग़ल सम्राट अकबर के गुरु अर्जन देव जी के साथ बहुत अच्छे संबंध थे, परंतु अकबर की मृत्यु के पश्चात् जहांगीर ने सहनशीलता की नीति को छोड़ दिया। वह उस अवसर की खोज में रहने लगा जब वह सिक्ख धर्म पर करारी चोट कर सके। इसी बीच जहांगीर के पुत्र खुसरो ने उसके विरुद्ध विद्रोह कर दिया। खुसरो पराजित होकर गुरु अर्जन देव जी के पास आया। गुरु जी ने उसे आशीर्वाद दिया। इस आरोप में जहांगीर ने गुरु अर्जन देव जी पर दो लाख रुपये का जुर्माना लगा दिया। परंतु गुरु अर्जन देव जी ने जुर्माना देने से इंकार कर दिया। इसलिए उन्हें बंदी बना लिया गया और अनेक यातनाएं देकर शहीद कर दिया गया। गुरु अर्जन देव जी की शहीदी से सिक्ख भड़क उठे। वे समझ गए कि उन्हें अब अपने धर्म की रक्षा के लिए शस्त्र धारण करने पड़ेंगे।

PSEB 9th Class SST Solutions History Chapter 4 श्री गुरु अर्जन देव जी : सिक्ख धर्म के विकास में योगदान और उनकी शहीदी

प्रश्न 10.
आदि ग्रंथ साहिब का सिक्ख इतिहास में क्या महत्त्व है ?
उत्तर-
आदि ग्रंथ साहिब के संकलन से सिक्ख इतिहास को एक ठोस आधारशिला मिली। यह सिक्खों के लिए पवित्र और प्रामाणिक बन गया। उनके जन्म, नामकरण, विवाह, मृत्यु आदि सभी संस्कार इसी ग्रंथ को साक्षी मान कर संपन्न होने लगे। इसके अतिरिक्त आदि ग्रंथ साहिब के प्रति श्रद्धा रखने वाले सभी सिक्खों में जातीय प्रेम की भावना जागृत हुई और वे एक अलग पंथ के रूप में उभरने लगे। आगे चल कर इसी ग्रंथ साहिब को ‘गुरु पद’ प्रदान किया गया और सभी सिक्ख इसे गुरु मान कर पूजने लगे। आज सभी सिक्ख गुरु ग्रंथ साहिब में संग्रहित वाणी को आलौकिक ज्ञान का भंडार मानते हैं। उनका विश्वास है कि इसका श्रद्धापूर्वक अध्ययन करने से सच्चा आनंद प्राप्त होता है।

प्रश्न 11.
आदि ग्रंथ साहिब के ऐतिहासिक महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
आदि ग्रंथ साहिब सिक्खों का पवित्र धार्मिक ग्रंथ है। यद्यपि इसे ऐतिहासिक दृष्टिकोण से नहीं लिखा गया, तो भी इसका अत्यंत ऐतिहासिक महत्त्व है। इसके अध्ययन से हमें 16वीं तथा 17वीं शताब्दी के पंजाब के राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक तथा सांस्कृतिक जीवन की अनेक बातों का पता चलता है। गुरु नानक देव जी ने अपनी वाणी में लोधी शासन तथा पंजाब के लोगों पर बाबर द्वारा किये गये अत्याचारों की घोर निंदा की। उस समय की सामाजिक अवस्था के विषय में पता चलता है कि देश में जाति-प्रथा जोरों पर थी, नारी का कोई आदर नहीं था तथा समाज में अनेक व्यर्थ के रीति-रिवाज प्रचलित थे। इसके अतिरिक्त धर्म नाम की कोई चीज़ नहीं रही थी। गुरु नानक देव जी ने स्वयं लिखा है “न कोई हिंदू है, न कोई मुसलमान” अर्थात् दोनों ही धर्मों के लोग पथ भ्रष्ट हो चुके थे।

प्रश्न 12.
किन्हीं चार परिस्थितियों का वर्णन करो जो गुरु अर्जन देव जी की शहीदी के लिए उत्तरदायी थीं।
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी के मुख्य कारण निम्नलिखित थे-

  1. जहांगीर की धार्मिक कट्टरता-मुग़ल सम्राट जहांगीर गुरु जी से घृणा करता था। वह या तो उन्हें मारना चाहता
    था या फिर उन्हें मुसलमान बनने के लिए बाध्य करना चाहता था।
  2. पृथिया की शत्रुता-गुरु रामदास जी ने गुरु अर्जन देव जी की बुद्धिमत्ता से प्रभावित होकर उन्हें अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया था, परंतु यह बात गुरु अर्जन देव जी का बड़ा भाई पृथिया सहन न कर सका। इसलिए वह गुरु साहिब के विरुद्ध षड्यंत्र रचने लगा।
  3. गुरु अर्जन देव जी पर जुर्माना-धीरे-धीरे जहांगीर की धर्मांधता चरम सीमा पर पहुंच गई। उसने विद्रोही राजकुमार खुसरो की सहायता करने के अपराध में गुरु जी पर दो लाख रुपये जुर्माना कर दिया। परंतु गुरु जी ने यह जुर्माना देने से इंकार कर दिया। इस पर उसने गुरु जी को कठोर शारीरिक कष्ट देकर शहीद कर दिया।

प्रश्न 13.
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी की क्या प्रतिक्रिया हुई ?
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी की सिक्खों पर महत्त्वपूर्ण प्रतिक्रिया हुई-

  1. गुरु अर्जन देव जी ने ज्योति-जोत समाने से पहले अपने पुत्र हरगोबिंद के नाम यह संदेश छोड़ा, “वह समय बड़ी तेजी से आ रहा है जब भलाई और बुराई की शक्तियों की टक्कर होगी। अत: मेरे पुत्र तैयार हो जा, आप शस्त्र पहन और अपने अनुयायियों को शस्त्र पहना।” गुरु जी के इन अंतिम शब्दों ने सिक्खों में सैनिक भावना को जागृत कर दिया। अब सिक्ख ‘संत सिपाही’ बन गए जिनके एक हाथ में माला थी और दूसरे हाथ में तलवार।
  2. गुरु जी की शहीदी से पूर्व सिक्खों तथा मुग़लों के आपसी संबंध अच्छे थे। परंतु इस शहीदी ने सिक्खों की धार्मिक भावनाओं को भड़का दिया जिससे मुग़ल-सिक्ख संबंधों में टकराव पैदा हो गया।
  3. इस शहीदी से सिक्ख धर्म को लोकप्रियता मिली। सिक्ख अब अपने धर्म के लिए अपना सर्वस्व बलिदान करने को तैयार हो गए। नि:संदेह गुरु अर्जन देव जी की शहीदी सिक्ख इतिहास में एक नया मोड़ सिद्ध हुई।

प्रश्न 14.
गुरु अर्जन देव जी के चरित्र तथा व्यक्तित्व के किन्हीं चार महत्त्वपूर्ण पहलुओं को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
पांचवें सिक्ख गुरु अर्जन देव जी उच्च कोटि के चरित्र तथा व्यक्तित्व के स्वामी थे। उनके चरित्र के चार विभिन्न पहलुओं का वर्णन इस प्रकार है-

  1. गुरु जी एक बहुत बड़े धार्मिक नेता और संगठनकर्ता थे। उन्होंने सिक्ख धर्म का उत्साहपूर्वक प्रचार किया और मसंद प्रथा में आवश्यक सुधार करके सिक्ख समुदाय को एक संगठित रूप प्रदान किया।
  2. गुरु साहिब एक महान् निर्माता भी थे। उन्होंने अमृतसर नगर का निर्माण कार्य पूरा किया, वहां के सरोवर में हरिमंदर साहिब का निर्माण करवाया और तरनतारन, हरगोबिंदपुर आदि नगर बसाये। लाहौर में उन्होंने एक बावली बनवाई।
  3. उन्होंने ‘आदि ग्रंथ साहिब’ का संकलन करके एक महान् संपादक होने का परिचय दिया।
  4. उनमें एक समाज सुधारक के भी सभी गुण विद्यमान थे। उन्होंने विधवा विवाह का प्रचार किया और नशीली वस्तुओं के सेवन को बुरा बताया। उन्होंने एक बस्ती की स्थापना करवाई जहाँ रोगियों को औषधियों के साथ-साथ मुफ्त भोजन तथा वस्त्र भी दिए जाते थे।

प्रश्न 15.
किन्हीं चार परिस्थितियों का वर्णन करो जिनके कारण गुरु हरगोबिंद जी को नवीन नीति अपनानी पड़ी।
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद जी ने निम्नलिखित कारणों से नवीन नीति को अपनाया

  1. मुग़लों की शत्रुता तथा हस्तक्षेप-मुग़ल सम्राट जहांगीर ने गुरु अर्जन देव जी की शहीदी के बाद भी सिक्खों के प्रति दमन की नीति जारी रखी। फलस्वरूप नए गुरु हरगोबिंद जी के लिए सिक्खों की रक्षा करना आवश्यक हो गया
    और उन्हें नवीन नीति का आश्रय लेना पड़ा।
  2. गुरु अर्जन देव जी की शहीदी-गुरु अर्जन देव जी की शहीदी से यह स्पष्ट हो गया था कि यदि सिक्ख धर्म को बचाना है तो सिक्खों को माला के साथ-साथ शस्त्र भी धारण करने पड़ेंगे। इसी उद्देश्य से गुरु जी ने ‘नवीन नीति’ अपनाई।
  3. गुरु अर्जन देव जी के अंतिम शब्द-गुरु अर्जन देव जी ने शहीदी से पहले अपने संदेश में सिक्खों को शस्त्र धारण करने के लिए कहा था। अतः गुरु हरगोबिंद जी ने सिक्खों को आध्यात्मिक शिक्षा देने के साथ-साथ सैनिक शिक्षा भी देनी आरंभ कर दी।
  4. जाटों का सिक्ख धर्म में प्रवेश-जाटों के सिक्ख धर्म में प्रवेश के कारण भी गुरु हरगोबिंद जी को नवीन नीति अपनाने पर विवश होना पड़ा। ये लोग स्वभाव से ही स्वतंत्रता प्रेमी थे और युद्ध में उनकी विशेष रुचि थी।

PSEB 9th Class SST Solutions History Chapter 4 श्री गुरु अर्जन देव जी : सिक्ख धर्म के विकास में योगदान और उनकी शहीदी

प्रश्न 16.
गुरु हरगोबिंद जी के जीवन तथा कार्यों पर प्रकाश डालो।
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद जी सिक्खों के छठे गुरु थे। उन्होंने सिक्ख पंथ को एक नया मोड़ दिया।

  1. उन्होंने गुरुंगद्दी पर बैठते ही दो तलवारें धारण कीं। एक तलवार मीरी की और दूसरी पीरी की। इस प्रकार सिक्ख गुरु धार्मिक नेता होने के साथ-साथ राजनीतिक नेता भी बन गये।।
  2. उन्होंने हरिमंदर साहिब के सामने एक नया भवन बनवाया। यह भवन अकाल तख्त के नाम से प्रसिद्ध है। गुरु हरगोबिंद जी ने सिक्खों को शस्त्रों का प्रयोग करना भी सिखलाया।
  3. जहांगीर ने गुरु हरगोबिंद जी को ग्वालियर के किले में बंदी बना लिया। कुछ समय के पश्चात् जहांगीर को पता चल गया कि गुरु जी निर्दोष हैं। इसलिए उनको छोड़ दिया गया। परंतु गुरु जी के कहने पर जहांगीर को उनके साथ के बंदी राजाओं को भी छोड़ना पड़ा।
  4. गुरु जी ने मुग़लों के साथ युद्ध भी किए। मुग़ल सम्राट शाहजहां ने तीन बार गुरु जी के विरुद्ध सेना भेजी। गुरु जी ने बड़ी वीरता से उनका सामना किया। फलस्वरूप मुग़ल विजय प्राप्त करने में सफल न हो सके।

दीर्घ उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
मसंद प्रथा के आरंभ, विकास तथा लाभों का वर्णन करो।
उत्तर-
आरंभ-मसंद प्रथा को चौथे गुरु रामदास जी ने आरंभ किया। जब गुरु जी ने संतोखसर तथा अमृतसर नामक तालाबों की खुदवाई आरंभ की तो उन्हें बहुत-से धन की आवश्यकता अनुभव हुई। अतः उन्होंने अपने सच्चे शिष्यों को अपने अनुयायियों से चंदा एकत्रित करने के लिए देश के विभिन्न भागों में भेजा। गुरु जी द्वारा भेजे गए ये लोग मसंद कहलाते थे।
विकास-गुरु अर्जन साहिब ने मसंद प्रथा को नया रूप प्रदान किया ताकि उन्हें अपने निर्माण कार्यों को पूरा करने के लिए निरंतर तथा लगभग निश्चित धन राशि प्राप्त होती रहे। उन्होंने निम्नलिखित तरीकों द्वारा मसंद प्रथा का रूप निखारा

  1. गुरु जी ने अपने अनुयायियों से भेंट में ली जाने वाली धन राशि निश्चित कर दी। प्रत्येक सिक्ख के लिए अपनी आय का दसवां भाग (दसवंद) प्रतिवर्ष गुरु जी के लंगर में देना अनिवार्य कर दिया गया।
  2. गुरु अर्जन देव जी ने दसवंद की राशि एकत्रित करने के लिए अपने प्रतिनिधि नियुक्त किए जिन्हें मसंद कहा जाता था। ये मसंद एकत्रित की गई धन राशि को प्रति वर्ष वैशाखी के दिन अमृतसर में स्थित गुरु जी के कोष में जमा करते थे। जमा की गई राशि के बदले मसंदों को रसीद दी जाती थी।
  3. इन मसंदों ने दसवंद एकत्रित करने के लिए अपने प्रतिनिधि नियुक्त किए हुए थे जिन्हें संगतिया कहते थे। संगतिये दूर-दूर के क्षेत्रों से दसवंद एकत्रित करके मसंदों को देते थे जो उन्हें गुरु जी के कोष में जमा कर देते थे।
  4. मसंद अथवा संगतिये दसवंद की राशि में से एक पैसा भी अपने पास रखना पाप समझते थे। इस बात को स्पष्ट करते हुए गुरु जी ने कहा था कि जो कोई भी दान की राशि खाएगा, उसे शारीरिक कष्ट भुगतना पड़ेगा।
  5. ये मसंद न केवल अपने क्षेत्र में दसवंद एकत्रित करते थे अपितु धर्म प्रचार का कार्य भी करते थे। मसंदों की नियुक्ति करते समय गुरु जी इस बात का विशेष ध्यान रखते थे कि वे उच्च चरित्र के स्वामी हों तथा सिक्ख धर्म में उनकी अटूट श्रद्धा हो।

महत्त्व अथवा लाभ-सिक्ख धर्म के संगठन तथा विकास में मसंद प्रथा का विशेष योगदान रहा है। सिक्ख धर्म के संगठन में इस प्रथा के महत्त्व को निम्नलिखित बातों से जाना जा सकता है

  1. गुरु जी की आय अब निरंतर तथा लगभग निश्चित हो गई। आय के स्थायी हो जाने से गुरु जी को अपने रचनात्मक कार्यों को पूरा करने में बहुत सहायता मिली। इन कार्यों ने सिक्ख धर्म के प्रचार तथा प्रसार में काफ़ी सहायता दी।
  2. पहले धर्म प्रचार का कार्य मंजियों द्वारा होता था। ये मंजियां पंजाब तक ही सीमित थीं। परंतु गुरु अर्जन देव जी ने पंजाब के बाहर भी मसंदों की नियुक्ति की। इससे सिक्ख धर्म का प्रचार क्षेत्र बढ़ गया।
  3. मसंद प्रथा से प्राप्त होने वाली स्थायी आय से गुरु जी अपना दरबार लगाने लगे। वैशाखी के दिन जब दूर-दूर से आए मसंद तथा श्रद्धालु भक्त गुरु जी को भेंट देने आते तो वे बड़ी नम्रता से गुरु जी के सम्मुख शीश झुकाते थे। उनके ऐसा करने से गुरु जी का दरबार वास्तव में ही दरबार जैसा बन गया और गुरु जी ने ‘सच्चे पातशाह’ की उपाधि धारण कर ली। सच तो यह है कि एक विशेष अवधि तक मसंद प्रथा ने सिक्ख धर्म के प्रचार तथा प्रसार में प्रशंसनीय योगदान दिया।

प्रश्न 2.
गुरु हरगोबिंद जी की नई नीति का वर्णन करो।
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी के पश्चात् उनके पुत्र हरगोबिंद जी सिक्खों के छठे गुरु बने। उन्होंने एक नई नीति को जन्म दिया। यह नीति गुरु अर्जन देव की शहीदी का परिणाम थी। इस नीति का प्रमुख उद्देश्य सिक्खों को शांतिप्रिय होने के साथ निडर तथा साहसी बनाना था। गुरु साहिब द्वारा अपनाई गई नवीन नीति की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित थीं-

  1. राजसी चिह्न तथा ‘सच्चे पातशाह’ की उपाधि धारण करना-नवीन नीति का अनुसरण करते हुए गुरु हरगोबिंद जी ने ‘सच्चे पातशाह’ की उपाधि धारण की तथा अनेक राजसी चिह्न धारण करने आरंभ कर दिए। उन्होंने शाही वस्त्र धारण किए और सेली तथा टोपी पहनना बंद कर दिया क्योंकि ये फ़कीरी के प्रतीक थे। इसके विपरीत उन्होंने दो तलवारें, छत्र और कलगी धारण कर लीं। गुरु जी अब अपने अंगरक्षक भी रखने लगे।
  2. मीरी तथा पीरी-गुरु हरगोबिंद जी अब सिक्खों के आध्यात्मिक नेता होने के साथ-साथ उनके सैनिक नेता भी बन गए। वे सिक्खों के पीर भी थे और मीर भी। इन दोनों बातों को स्पष्ट करने के लिए उन्होंने पीरी तथा मीरी नामक दो तलवारें धारण की। उन्होंने सिक्खों को व्यायाम करने, कुश्तियां लड़ने, शिकार खेलने तथा घुड़सवारी करने की प्रेरणा दी। इस प्रकार उन्होंने संत सिक्खों को संत सिपाहियों का रूप भी दे दिया।
  3. अकाल तख्त का निर्माण-गुरु जी सिक्खों को आध्यात्मिक शिक्षा देने के अतिरिक्त सांसारिक विषयों में भी उनका पथ-प्रदर्शन करना चाहते थे। हरिमंदर साहिब में वे सिक्खों को धार्मिक शिक्षा देने लगे। परंतु सांसारिक विषयों में सिक्खों का पथ-प्रदर्शन करने के लिए उन्होंने हरिमंदर साहिब के सामने एक नया भवन बनवाया जिसका नाम अकाल तख्त (ईश्वर की गद्दी) रखा गया।
  4. सेना का संगठन-गुरु हरगोबिंद जी ने आत्मरक्षा के लिए सेना का संगठन किया। इस सेना में अनेक शस्त्रधारी सैनिक तथा स्वयं सेवक सम्मिलित थे। माझा, मालवा तथा दोआबा के अनेक युद्ध प्रिय युवक गुरु जी की सेना में भर्ती हो गए। उनके पास 500 ऐसे स्वयं सेवक भी थे जो वेतन भी नहीं लेते थे। ये पांच जत्थों में विभक्त थे। इसके अतिरिक्त पैंदे खां नामक पठान के अधीन पठानों की एक अलग सैनिक टुकड़ी थी।
  5. घोड़ों तथा शस्त्रों की भेंट-गुरु हरगोबिंद जी ने अपनी नवीन-नीति को अधिक सफल बनाने के लिए एक अन्य महत्त्वपूर्ण पग उठाया। उन्होंने अपने सिक्खों से आग्रह किया कि वे जहां तक संभव हो शस्त्र तथा घोड़े ही उपहार में भेट करें। परिणामस्वरूप गुरु जी के पास काफ़ी मात्रा में सैनिक सामग्री इकट्ठी हो गई।
  6. अमृतसर की किलेबंदी-गुरु जी ने सिक्खों की सुरक्षा के लिए रामदासपुर (अमृतसर) के चारों ओर एक दीवार बनवाई। इस नगर में दुर्ग का निर्माण भी किया गया जिसे लोहगढ़ का नाम दिया गया। इस किले में काफ़ी सैनिक सामग्री रखी गई।
  7. गुरु जी की दिनचर्या में परिवर्तन-गुरु हरगोबिंद जी की नवीन नीति के अनुसार उनकी दिनचर्या में भी कुछ परिवर्तन आए। नई दिनचर्या के अनुसार वे प्रात:काल स्नान आदि करके हरिमंदर साहिब में धार्मिक उपदेश देने के लिए चले जाते थे और फिर अपने सैनिकों में प्रात:काल का भोजन बांटते थे। इसके पश्चात् वे कुछ समय के लिए विश्राम करके शिकार के लिए निकल पड़ते थे। गुरु जी ने अब्दुल तथा नत्थामल को जोशीले गीत ऊंचे स्वर में गाने के लिए नियुक्त किया। इस प्रकार गुरु जी ने सिक्खों में नवीन चेतना और नये उत्साह का संचार किया।
  8. आत्मरक्षा की भावना-गुरु हरगोबिंद जी की नवीन नीति आत्मरक्षा की भावना पर आधारित थी। वह सैनिक बल द्वारा न तो किसी के प्रदेश पर अधिकार करने के पक्ष में थे और न ही वह किसी पर आक्रमण करने के पक्ष में थे। यह सच है कि उन्होंने मुग़लों के विरुद्ध अनेक युद्ध किए। परंतु इन युद्धों का उद्देश्य मुग़लों के प्रदेश छीनना नहीं था, बल्कि उनसे अपनी रक्षा करना था।

PSEB 9th Class SST Solutions History Chapter 4 श्री गुरु अर्जन देव जी : सिक्ख धर्म के विकास में योगदान और उनकी शहीदी

प्रश्न 3.
नई नीति के अतिरिक्त गुरु हरगोबिंद जी ने सिक्ख धर्म के विकास के लिए अन्य क्या कार्य किए ?
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद जी पांचवें गुरु अर्जन देव जी के इकलौते पुत्र थे। उनका जन्म जून,1595 ई० में अमृतसर जिले के एक गांव वडाली में हुआ था। अपने पिता जी की शहीदी पर 1606 ई० में वह गुरुगद्दी पर बैठे और 1645 ई० तक सिक्ख धर्म का सफलतापूर्वक नेतृत्व किया। गुरु साहिब द्वारा किए कार्यों का वर्णन इस प्रकार है-

  1. कीरतपुर में निवास-कहलूर का राजा कल्याण चंद गुरु हरगोबिंद साहब का भक्त था। उसने गुरु साहिब को कुछ भूमि भेंट की। गुरु साहिब ने इस भूमि पर नगर का निर्माण करवाया। 1635 ई० में गुरु जी ने इस नगर में निवास कर लिया। उन्होंने अपने जीवन के अंतिम दस वर्ष यहीं पर धर्म का प्रचार करते हुए व्यतीत किए।
    PSEB 9th Class SST Solutions History Chapter 4 श्री गुरु अर्जन देव जी सिक्ख धर्म के विकास में योगदान और उनकी शहीदी 1
  1. पहाड़ी राजाओं को सिक्ख बनाना-गुरु हरगोबिंद साहब ने अनेक.पहाड़ी लोगों को अपना सिक्ख बनाया। यहां तक कि कई पहाड़ी राजे भी उनके सिक्ख बन गए। परंतु यह प्रभाव अस्थायी सिद्ध हुआ। कुछ समय पश्चात् पहाड़ी राजाओं ने पुनः हिंदू धर्म की मूर्ति-पूजा आदि प्रथाओं को अपनाना आरंभ कर दिया। ये प्रथाएं गुरु साहिबान की शिक्षाओं के अनुकूल नहीं थीं।
  2. गुरु हरगोबिंद जी की धार्मिक यात्राएं-ग्वालियर के किले से रिहा होने के पश्चात् गुरु हरगोबिंद साहब के मुग़ल सम्राट जहांगीर से मैत्रीपूर्ण संबंध स्थापित हो गए। इस शांतिकाल में गुरु जी ने धर्म प्रचार के लिए यात्राएं कीं। सबसे पहले वह अमृतसर से लाहौर गए। वहां पर आप ने गुरु अर्जन देव जी की स्मृति में गुरुद्वारा डेरा साहब बनवाया। लाहौर से गुरु जी गुजरांवाला तथा भिंभर (गुजरात) होते हुए कश्मीर पहुंचे। यहां पर आप ने ‘संगत’ की स्थापना की। भाई सेवा दास जी को इस संगत का मुखिया नियुक्त किया गया।
    गुरु हरगोबिंद जी ननकाना साहब भी गए। वहां से लौट कर उन्होंने कुछ समय अमृतसर में बिताया। वह उत्तर प्रदेश में नानकमता (गोरखमता) भी गए। गुरु जी की राजसी शान देखकर वहां के योगी नानकमता छोड़ कर भाग गए। वहां से लौटते समय गुरु जी पंजाब के मालवा क्षेत्र में गए। तख्तूपुरा, डरौली भाई (फिरोज़पुर) में कुछ समय ठहर कर गुरु जी पुनः अमृतसर लौट आए।
  3. धर्म-प्रचारक भेजना-गुरु हरगोबिंद जी 1635 ई० तक युद्धों में व्यस्त रहे। इसलिए उन्होंने अपने पुत्र बाबा गुरदित्ता जी को सिक्ख धर्म के प्रचार एवं प्रसार के लिए नियुक्त किया। बाबा गुरदित्ता जी ने सिक्ख धर्म के प्रचार के लिए चार मुख्य प्रचारकों-अलमस्त, फूल, गौंडा तथा बलु हसना को नियुक्त किया। इन प्रचारकों के अतिरिक्त गुरु हरगोबिंद जी ने भाई विधिचंद को बंगाल तथा भाई गुरदास को काबुल तथा बनारस में धर्म-प्रचार के लिए भेजा।
  4. हरराय जी को उत्तराधिकारी नियुक्त करना-अपना अंतिम समय निकट आते देख गुरु हरगोबिंद जी ने अपने पौत्र हरराय (बाबा गुरुदित्ता जी के छोटे पुत्र) को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया।

श्री गुरु अर्जन देव जी : सिक्ख धर्म के विकास में योगदान और उनकी शहीदी PSEB 9th Class History Notes

  • गुरु अर्जन देव जी – गुरु अर्जन देव जी सिक्खों के पांचवें गुरु थे। उन्होंने अमृतसर में हरिमंदर साहिब का निर्माण कार्य पूरा करवाया, श्री गुरु ग्रंथ साहिब की बीड़ तैयार की और उसे हरिमंदर साहिब में स्थापित किया। बाबा बुड्डा जी को वहां का प्रथम ग्रंथी नियुक्त किया गया। गुरु साहिब ने धर्म की रक्षा के लिए अपनी शहीदी देकर सिक्ख धर्म को सुदृढ़ बनाया। गुरु साहिब ने तरनतारन तथा करतारपुर नामक नगरों की नींव भी रखी।
  • मसंद प्रथा – ‘मसंद’ फ़ारसी भाषा के शब्द मसनद से लिया गया है। इसका अर्थ है-‘उच्च स्थान’। गुरु रामदास जी द्वारा स्थापित इस संस्था को गुरु अर्जन देव जी ने संगठित रूप दिया। परिणामस्वरूप उन्हें सिक्खों से निश्चित धन-राशि प्राप्त होने लगी।
  • आदि ग्रंथ का संकलन – आदि ग्रंथ साहिब का संकलन कार्य गुरु अर्जन देव जी ने किया। गुरु अर्जन देव जी लिखवाते जाते थे और उनके प्रिय शिष्य भाई गुरदास जी लिखते जाते थे। आदि ग्रंथ साहिब का संकलन कार्य 1604 ई० में संपूर्ण हुआ।
  • तरनतारन की स्थापना – गुरु अर्जन देव जी ने अमृतसर के अतिरिक्त अन्य अनेक नगरों, सरोवरों तथा स्मारकों का निर्माण करवाया। तरनतारन भी इनमें से एक था। उन्होंने इसका निर्माण प्रदेश के ठीक मध्य में करवाया। अमृतसर की भांति तरनतारन भी सिक्खों का प्रसिद्ध तीर्थ स्थान बन गया।
  • करतारपुर की नींव रखना – गुरु जी ने 1593 ई० में जालंधर दोआब में एक नगर की स्थापना की जिसका नाम करतारपुर रखा गया। यहां उन्होंने एक तालाब का निर्माण करवाया जो गंगसर के नाम से प्रसिद्ध है।
  • मसंद प्रथा में सुधार – गुरु अर्जन देव जी ने मसंद प्रथा में सुधार लाने की आवश्यकता अनुभव की। उन्होंने सिक्खों को आदेश दिया कि वह अपनी आय का 1/10 भाग आवश्यक रूप से मसंदों को जमा कराएं। मसंद वैसाखी के दिन इस राशि को अमृतसर के केंद्रीय कोष में जमा करवा देते थे। राशि को एकत्रित करने के लिए वे अपने प्रतिनिधि नियुक्त करने लगे। इन्हें ‘संगती’ कहते थे। दशांश इकट्ठा करने के अतिरिक्त मसंद उस क्षेत्र में सिक्ख धर्म का प्रचार भी करते थे।
  • लाहौर में बावली का निर्माण – गुरु अर्जन देव जी ने अपनी लाहौर यात्रा के दौरान डब्बी बाज़ार में एक बावली का निर्माण करवाया। इसके निर्माण से बावली के निकटवर्ती प्रदेशों के सिक्खों को एक तीर्थ स्थान की प्राप्ति हई।
  • हरगोबिंदपुर तथा छहरटा की स्थापना – गुरु जी ने अपने पुत्र हरगोबिंद के जन्म की खुशी में ब्यास नदी के तट पर हरगोबिंदपुर नामक नगर की स्थापना की। इसके अतिरिक्त उन्होंने अमृतसर के निकट पानी की कमी को दूर करने के लिए एक कुएं का निर्माण करवाया। इस कुएं पर छः रहट चलते थे। इसलिए इसको छरहरटा के नाम से पुकारा जाने लगा।
  • मीरी तथा पीरी – गुरु हरगोबिंद साहिब ने ‘मीरी’ और ‘पीरी’ नामक दो तलवारें धारण की। उनके द्वारा धारण की गई ‘मीरी’ तलवार सांसारिक विषयों में नेतृत्व का प्रतीक थी। पीरी’ तलवार आध्यात्मिक विषयों में नेतृत्व का प्रतीक थी।
  • अकाल तख्त साहिब – गुरु अर्जन देव जी की शहीदी के पश्चात् गुरु हरगोबिन्द जी ने 1606 ई० में अमृतसर में अकाल तख्त साहिब का निर्माण करवाया।
  • 1581 ई० – श्री गुरु अर्जन देव जी गुरुगद्दी पर विराजमान हुए।
  • 1588 ई० -हरिमंदर साहिब की नींव प्रसिद्ध सूफी फकीर मियां मीर जी ने रखी।
  • 1590 ई० -गुरु अर्जन देव जी ने माझे के खारा गांव में तरनतारन नामक सरोवर बनवाया।
  • 1593 ई० -करतारपुर की स्थापना की और गंगसर सरोवर का निर्माण।
  • 1595 ई० -व्यास नदी के किनारे हरगोबिंदपुर नगर बसाया।
  • 1604 ई० -आदि ग्रंथ साहिब जी का संपादन कार्य पूर्ण हुआ।
  • 1606 ई० – श्री गुरु अर्जन देव जी ने गुरु हरिगोबिंद जी को सिक्खों का छठा गुरु नियुक्त किया।
  • 30 मई, 1606 ई० – श्री गुरु अर्जन देव जी की शहीदी।

PSEB 9th Class SST Solutions History Source Based Questions and Answers

Punjab State Board PSEB 9th Class Social Science Book Solutions History Source Based Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 9 Social Science History Source Based Questions and Answers

Question 1.
Punjab is also the land of the great Sikh Gurus. It is the place where Sri Guru Nanak Dev Ji gave the message of humanity to the world and Sri Guru Gobind Singh Ji established the ‘Khalsa Panth’. Inspired by Guru Gobind Singh Ji, Banda Singh Bahadur led Sikhs to face Mughal tyranny with courage and sacrifice to establish the Sikh rule. Later on, on these very foundations, Maharaja Ranjit Singh was able to build a sovereign Sikh empire. The contribution of Punjab’s martyrs and freedom fighters is also remarkable in Indian National Movement.
(а) ‘Punjab is the land of the great Sikh Gurus’. Give two examples in favour of the statement.
Answers:

  • It is the place where Sri Guru Nanak Dev Ji gave the message of humanity to the world.
  • On this land, Guru Gobind Singh Ji established Khalsa Panth.

(b) How and who founded a sovereign Sikh empire in Punjab?
Answer:
A sovereign Sikh empire in Punjab was founded by Maharaja Ranjit Singh. First of all, by taking inspiration from Guru Gobind Singh Ji, Banda Singh Bahadur led Sikhs to face Mughal tyranny with courage and sacrifice to establish the Sikh rule. Later on, on these very foundations, Maharaja Ranjit Singh was able to build a sovereign Sikh empire.

Question 2.
At the time of independence, Indian Punjab (Eastern Punjab) had Ambala, Amritsar, Bhatinda, Ferozepur, Jullundur, Gurdaspur, Gurgaon (Gurugram), Hissar, Hoshiarpur, Kangra, Kapurthala, Mohindergarh, Patiala, Rohtak, Sangrur and Simla disticts.
On 1 November 1966, District Ambala, Karnal, Rohtak, Hissar, Gurgaon, Mohindergarh and Jind Tehsil became a part of Haryana State. District Simla, Kangra and Una Tehsil became a part of Union territory of Himachal Pradesh of that time.
(a) What is meant by Eastern Punjab at the time of independence? Name four districts included in it.
Answer:
At the time of independence, areas of Punjab which became part of India, were given the name of Eastern Punjab. It included drainage system of the Sutlej and Beas rivers. Now it is known as Punjab. Four districts of this region are Ambala, Amritsar, Bathinda and Jalandhar.

(b) Which areas were included in Punjab at the time of reorganization of states in 1956?
Answer:
In 1956, Malwa region was dismantled and was made a part of Punjab. This region is spread from Sutlej to Ghagar rivers.

(c) When was Punjab reorganised on linguistic basis? What was its impact on Punjab?
Answer:
On 1st Nov. 1966, Punjab was reorganized on a linguistic basis. According to it, Haryana was carved out of Punjab. Some mountainous regions of Punjab were given to Himachal Pradesh.

PSEB 9th Class SST Solutions History Source Based Questions and Answers

Question 3.
Dialects of Punjabi
According to a survey conducted by Punjabi University, Patiala, there are 28 dialects of Punjabi language. These include Indian Punjabi dialects like Majhi, Doabi, Malwai, Puadhi and Dogri. Majhi is spoken in Gurdaspur, Pathankot, Amritsar and Tarn Taran districts of Punjab. The Taksali version of Punjabi is the closest to this language. Doabi is spoken in Jalandhar, Shaheed Bhagat Singh Nagar, Kapurthala and Hoshiarpur districts. Ferozepur, Fazilka, Faridkot, Sri Muktsar Sahib, Moga, Bathinda, Barnala, Mansa and Ludhiana districts are the areas where mainly Malwai dialect is spoken. The areas of Puadhi dialect are Ropar, Mohali, Fatehgarh Sahib and Patiala. Dogri is predominantly spoken in the Jammu region of Jammu and Kashmir province.
(a) How many dialects of Punjabi language are there? Which of these is the main Indian Punjabi dialect?
Answer:
There are 28 dialects of Punjabi. Out of all these only Majhi, Malwai, Puadhi and Dogri are the main Indian Punjabi dialects.

(b) Which version of Punjabi is closest to this language? In which districts of Punjab, this dialect is spoken?
Answer:
The Majhi version of Punjabi is closest to this language. This dialect is mainly spoken in Gurdaspur, Pathankot, Amritsar and Tarn Taran districts.

(c) Name three districts each where Doabi, Malwai and Puadhi are spoken.
Answer:

  • Doabi: Jalandhar, Kapurthala and Hoshiarpur.
  • Malwai: Firozepur, Moga and Bathinda.
  • Puadhi: Mohali, Fatehgarh Sahib and Patiala.

Question 4.
Sacred Thread Ceremony
At the age of nine, according to the Hindu traditions, (Janeu) the sacred thread ceremony was performed. When the family purohit Pandit Hardyal wanted to put the sacred thread, Guru Nanak Dev Ji refused to wear it. In this way at the age of 9, he challenged the religious and social orthodoxy.
(a) When was the sacred thread ceremony performed?
Answer:
According to the Hindu traditions, at the age of nine, the sacred thread ceremony was performed with Guru Nanak Dev Ji.

(b) Explain the sacred thread ceremony performed with Guru Nanak Dev Ji.
Answer:
Guru Nanak Dev Ji had not yet completed his early education when it was decided to perform the sacred thread ceremony for Guru Nanak Dev Ji by his parents. A day was fixed for the ceremony as an auspicious day. All the relatives and Brahmins were invited. Pandit Hardyal recited the hymns (mantras) and asked Guru Nanak Dev Ji to sit before him and wear the sacred thread. Guru Nanak Dev Ji refused to wear the thread. Guru Sahib said that he did not need any such thread for his physical body but a permanent thread for his soul. Guru Sahib further stated that he needed such a thread which was not made of cotton yarn but of the yarn of right virtues.

Question 5.
In order to get him interested in worldly affairs, his father Mehta Kalu gave Sri Guru Nanak Dev Ji some rupees. He sent him to the nearest town-Chuharkana to do business. On his way, the Guru met a group of Faqirs (ascetics) who were huftgry for several days. Sri Guru Nanak Dev Ji spent all the money in feeding them. When Sri Guru Nanak Dev Ji returned home and narrated the incident to his father, he was very disappointed. This incident is called the Sacha Sauda (True Transaction).
(a) What is meant by Sacha Sauda?
Answer:
The meaning of Sacha Sauda is True Transaction which Guru Nanak Dev ji did by spending his Rs. 20 in feeding the hungry Faqirs.

(b) What professions did Guru Nanak Dev Ji adopt in his early life?
Answer:
Guru Nanak Dev Ji had started showing disinterest in his education and worldly affairs at a very young age. His father engaged him in cattle grazing to divert his interest to worldly affairs. While on cattle-grazing rounds, he remained engrossed in deep meditation and his cattle strayed into fields of the other people. Troubled by the complaints of neighbouring farmers, his father decided to put him in business. He gave him twenty rupees to start some business but Guru Nanak Dev Ji spent all the money in feeding the saints and wanderers. This incident of his life is popular as ‘Sachha Sauda’ or the Pious Deal.

PSEB 9th Class SST Solutions History Source Based Questions and Answers

Question 6.
Guru Nank Dev Ji visited the holy place at Mecca. Guru Nanak Dev Ji went off to sleep with his feet towards Kabba. The qazi (Ruknaudin) objected to this, calling Guru Ji a Kafir. Guru Nanak Dev Ji very politely told him to move his feet in the direction where Allah did not exist. The qazi did not have an answei ) this and realized his mistake. In this way, Guru Nanak Dev Ji spread the message that God is Omnipresent. When the qazi asked him which religion was better Hinduism or Islam, Guru Ji replied that without good deeds, both will weep and wail.
(a) Which places did Guru Nanak Dev Ji visit during his 9th udasi?
Answer:
Guru Ji completed his fourth Udasi from 1517-1521 A.D. During this Udasi, he visited western Asia. He visited places such as Multan, Mecca, Madina, Baghdad, Qandhar, Kabul, Jalalabad, Peshawar etc.

(b) Which incident did happen with Guru Ji at Mecca? What message did Guru ji give to the people?
Answer:
Guru ji reached Mecca while preaching during his Journey. Mecca is a religious place of Muslims. There he fell asleep with his feet towards Kabba. Qazi Rukandin objected to it but Guru Ji remained calm. Then he said, “You put my feet on the side where Allah is not there.” Then Qazi started thinking and realised his mistake. With this incident, Guru gave a massage that God is omnipresent.

Question 7.
Guru Nanak Dev Ji reached Hasan Abdal after visiting Mecca Madina. An arrogant Muslim Faqir named Wali Qandhari lived on a steep hill there. He had stopped the flow of water from reaching the town below the hill. Despite the pleas of the town people, he did not allow the flow of water. He also refused water to Bhai Mardana. When Guru Nanak Dev Ji came to know of it he pushed aside a rock nearby and a fountain of water sprang up. In a fit of rage Wali Qandhari threw a rock at Guru Nanak Dev Ji but Guru Nanak Dev Ji halted the stone with his hand and shattered Wali Qandhari’s ego. This place is known as Gurudwara Sri Panja Sahib (now in Pakistan).
(a) What name is given to the Journeys of Guru Nanak Dev Ji? What was the objective of these Journeys?
Answer:
The Journeys of Guru Nanak Dev Ji are known as Udasis. The main objective of these Journeys was to remove superstitions and to show the people correct path of religion.

(b) Discuss in short the incident happened with Guru Ji at Hasan Abdal.
Answers :
Guru Ji reached Hasan Abdal after visiting Mecca. Here Guru Ji encountered an arrogant Muslim Faqir Wali Qandhari. He had stopped the flow of water from reaching the town below the hill. Guru Ji pushed aside the rock nearby and a fountain of water sprang up. Wali Qandhari became angry and threw a rock at Guru Ji but Guru Ji halted the stone with his hand and shattered Wali Qandhari’s ego. Then he became a disciple of Guru Ji.

Question 8.
Event of Sayyidpur (Eminabad)
During the fourth travel (Udasi) in 1520 A.D. when Guru Nanak Dev Ji was at Sayyidpur (Emnabad), Babur invaded it. Mughal soldiers committed a lot of atrocities on the people of Sayyidpur and looted them. They imprisoned numerous people. In his bani, Guru Nanak Dev Ji mentioned about the atrocities committed by Babur on the people of Punjab.
(a) What was the earlier name of Sayyidpur? When did Guru Ji reached here during his fourth Udasi?
Answer:
The earlier name of Sayyidpur was Emnabad. During his fourth Udasi, Guru Ji reached here in 1520 A.D.

(b) Explain Babur’s attack on Sayyidpur. From which Guru’s Bani do we get its information?
Answer:
We get information about Babur’s attack on Sayyidpur from Guru Nanak Dev Ji’s Bani. When Guru Ji reached here, Babur had already attacked Sayyidpur. His soldiers mercilessly killed many females, males and children and looted everything. The people of Sayyidpur were also subject to cruelties. Many of them were made slaves.

PSEB 9th Class SST Solutions History Source Based Questions and Answers

Question 9.
The full name of Babur is Zahir-ud-din Mohammad. Babur, who had conquered Central Asia, was the first Mughal Emperor in India. He was the descendant of Taimur on his father’s side and Genghis Khan on his mother’s side. He wrote his autobiography, Tuzk-i-Baburi in his mother tongue, Turkey.
(a) Give a brief description of Babur. When did he first attack on India?
Answer:
The full name of Babur is Zahir-ud-din Mohammad Babur. He lived in Central Asia. He was the descendent of Taimur from his father’s side and Genghis Khan on his mother’s side. He was the first Mughal Emperor whose first attack on India was in 1519 A.D.

(b) What is the name of autobiography of Babur? In which language it is written?
Answer:
The name of autobiography of Babur is Tuzk-i-Baburi and it is written in Turkish language. It is also known as Babur-Nama.

Question 10.
True Service yields Fruit in the End
At Khadoor Sahib Sri Guru Amardas ji led a life of service and devotion. He took up the service of fetching water from the river Beas everyday to bathe Sri Guru Angad Dev Ji. Sri Guru Angad Dev ji was impressed by the devotion of Sri Guru Amardas ji and made him his successor. On the other hand, Dattu and Dassu, the sons of Sri Guru Angad Dev ji, considered themselves as suitable for Guruship and were jealous of Sri Guru Amar Das ji. Baba Buddha ji told the two that Guruship is not an ancestral property, only true service yields fruit in the end. Due to intense and selfless devotion of Sri Guru Amar Das ji, Sri Guru Angad Dev ji appointed him the successor of Gurudom.
(a) When did Guru Amardas Ji get Gurgaddi? What was his age at that time?
Answer:
Guru Amardas Ji became third Guru in 1552 A.D. and he was of 73 years of age at that time.

(b) How did Guru Amardas Ji get Gurgaddi?
Answer:
Guru Amardas Ji was a disciple Sikh of Guru Angad Dev Ji. Even in’his old age, he was always busy in serving Guru Angad Dev Ji. He took up the service of fetching water from the river Beas everyday to bathe Guru Angad Dev Ji. At this time, Dattu and Dassu, the sons of Guru Angad Dev Ji considered themselves as suitable for Guruship. They were jealous of Guru Amardas ji. On the instane of Baba Buddha Ji true service yielded fruit and Guru Angad Dev ji appointed Guru Amardas Ji as the successor of Gurudom.

Question 11.
Guru Ji established manji system to spread and promulgate Sikhism. He established 22 Manjis. The head of the Manji was called a Manjidar. These Manjidars used to act as a bridge between Guru ji and Sikh Sangat. The Sangat used to send their offerings to Guru Ji through these Manjidars. Thus, the Sangat of distant areas was connected with the Guru Ji. This system contributed a lot in the systematic development of Sikhism.
(a) Which Guru Ji started Manji System? Briefly explain.
Answer:
The Manji System was founded by Guru Amar Das Ji . The number of his Sikh followers had increased immensely by the time of Guru Amar Das Ji. However, Guru Ji was very old and it was difficult for him to visit his large spiritual empire of Sikh followers in order to spread his teachings. Hence, Guru Sahib divided his spiritual empire into 22 regions called the Manjis. Each Manji was further divided into Pidees.

(b) Which two Manjis were kept under women devotees? Name them.
Answer:
The Manjis of Kabul and Kashmir were kept under women devotees. They were Mai Seva and Mai Bhagbari respectively.

PSEB 9th Class SST Solutions History Source Based Questions and Answers

Question 12.
Having failed in his various attempts to attain Guruship Prithia (Prithi Chand) started a new sect known as ‘Meena Sect’. Prithia’s son Mehrbaan, was a great scholar. He was the successor of the Meena Sect after his father. He composed the ‘Janam Sakhi’ of Sri Guru Nanak Dev Ji, which is considered an important work.
Questions :
(а) Who was Prithia (Prithi Chand)? Why did he not get Gurugaddi?
Answer:
Prithia was the eldest son of Guru Arjan Dev Ji. He considered his right over Gurudom but he was selfish, dihonest and deceiver. That’s why Guru Ram Das Ji refused to give him Gurudom.

(b) Briefly describe the functions of Mehrbaan, the son of Prithia.
Answer:
Mehrbaan was a great scholar. He was the successor of the Meena Sect after his father Prithia. He collected the information about the life of Guru Nanak Dev Ji and composed the Janam Sakhi. His Janam Sakhi is considered as an important work.

Question 13.
There are 1430 pages (organs) of Shri Guru Granth Sahib Ji. Guru Granth contains the Bani (hymns) of six Gurus, 15 saints, 11 Bhattas, 4 Sikhs. It includes 974 hymns of Guru Nanak Dev Ji, 63 hymns, of Guru Angad Dev Ji, 907 hymns of Guru Amardas Ji, 679 hymns of Guru Ram Das Ji, 2218 hymns and 116 Shabads of Guru Arjan Dev Ji, 116 Shabads and 2 Shalokas of Guru Tegh Bahadur Ji. The Bani of Kabir (weaver), Farid (Sufi Saint), Ravidas (Cobbler), Surdas (Brahmin), Namdev (Dyer), Jaidev (Brahmin), Trilochan (Vaish), Dhanna (Peasant), Pipa (Masons), Sain (Barber), Sadna (Bucther), Parmanand, Ramanand etc. also included in the Shri Guru Granth Sahib Ji. They all belonged to different castes and religion. It includes hymns of Bal, Dal, Nal, Sal, Ganga Das, Mathura, Bheekha, Kirt, Harbans (Bhatts) and compositions of Guru Sikhs Mardana, Satta, Balwand and Sundar.
(а) How many pages are there in Shri Guru Granth Sahib Ji? What name is given to them?
Answer:
There are 1430 pages in Shri Guru Granth Sahib Ji. They are known as organs.

(b) Write a note on the compilation of Shri Adi Granth Sahib Ji?
Answer:
Guru Arjan Dev Ji bestowed upon the Sikhs a sacred and religious book by compiling the Adi Granth Sahib. Guru Arjan Dev Ji compiled Adi Granth Sahib at Ramsar. Bhai Gurdas Ji assisted Guru Sahib in its compilation. The work of compilation was completed in 1604. Guru Sahib included the hymns of the first four Gurus followed by the hymns of Bhakti Saints and finally the sayings of Bhatt Bahiyah. Guru Arjan Dev Ji included his own Bani in the holy book.

PSEB 9th Class SST Solutions History Source Based Questions and Answers

Question 14.
Ancient Regime (French ‘Old Order’)
Before the French Revolution, the Bourbon family of kings ruled France. Political and social system of France prior to the French Revolution under the regime, everyone was a subject of the king of France as well as a member of an estate and province. French society was divided into three orders : clergy, nobility and others (the third estate).
(a) When did the French Revolution take place? Which dynasty ruled over France before the revolution?
Answer:
The French Revolution took place in 1780 A. D. and the Bourbon family ruled over France before its revolution.

(b) What type of social condition of France was there at that time?
Answer:
Before the French Revolution, French Society was divided into three classes First Estate i.e. the Clergy, Second Estate i.e. Nobility and Third Estate i.e. the General Public :

  • The First Estate included the Clergy. They did not pay any taxes. They were on the higher posts even without having the ability.
  • The Second Estate included major Nobles who had large pieces of land.
  • The Third Estate included lawyers, doctors, teachers etc. They did not get any of the higher posts even if they had the ability to do so. The common public was also included in this. They had to pay taxes to the state as well as to the Church. They had to do begar and were exploited for many years.

Question 15.
Enlightenment: Age of Reason
The 18th century has been called the “Age of Reason”. The French philosophers asserted that man was not born to suffer as Christianity preached, but he was born
to be happy. The man can attain happiness if reason is allowed to destroy prejudice. They either denied the existence of God or ignored Him and asserted the doctrine of ‘Nature’ and understood its laws and faith in ‘Reason’.
(а) Why is the 18th century known as the Age of Reason. Name three French philosophers attached with this age.
Answer:
18th century is known as the age of reason because nothing in this age was accepted with reason or challenge. Everything was checked on the basis of reason.

(b) Which views were given by the French philosophers of this age?
Answer:
The French philosophers believed that man was not born to suffer but he was born to be happy. The man can attain happiness if reason is allowed to destroy prejudice. They either denied the existence of God or ignored him and asserted the doctrine of ‘Nature’.

Question 16.
The Bastille was an ancient fortress in Paris that had long been used to house political prisoners. It was a symbol of old regime.
(a) What was Bastille? Which day is known as Bastille day and why?
Answer:
The Bastille was an ancient fortress in Paris that had long been used to house political prisoners. 14th July is celebrated as the Bastille day because on this day people attacked Bastille and it fell down.

(b) Discuss the fall of Rastille in the French Revolution and its importance.
Answer:
On 14th July 1789, angry mob attacked the Bastille-prison at Paris. This prison was the symbol of the autocratic powers of monarchy. On the same day, the king ordered the army to enter the city. A rumour spread that the king was about to order the army to fire the poeple. So, around 7000 men and women assembled in front of the town hall. They organised a public army. In search of arms, they forcibly entered the public buildings. So, hundreds of people stormed into the prison of Bastille where they expected lot of arms and ammunition. In this conflict, the commander of Bastille died. Political prisoners were released although they were only seven in number. Fortress of Bastille was destroyed.

PSEB 9th Class SST Solutions History Source Based Questions and Answers

Question 17.
Olympe de Gouges
She was one of the most important among the politically active women in revolutionary France. She protested against the Constitution and the Declaration of Rights of Man and Citizen as they excluded women from basic rights that each human being was entitled to. She criticized the Jacobins government for closing down the women’s clubs. She was tried by the National Convention, which charged her with treason. Soon after this she was executed.
(a) Who was Olympe de Gouges? How did she die?
Answer:
Olympe de Gouges was one of the most important politically active women in revolutionary France. She was tried by the National convention which charged her with treason. Soon after this, she was executed.

(b) Write briefly about her political activities.
Answer:
Olympe de Gouges opposed the Declaration of Rights of Men and Citizens. It was so because, it excluded women from basic rights that each human being was entitiled to. She also criticised the Jacobins government for closing down the women’s clubs. That’s why she was tried by the National Convention finally executed.

Question 18.
Liberalism-These responses are basically the responses of thise people who accepted and wanted radical restructuring as well as transformation in the system.
Conservatism-These people were in the favour of change but they wanted that it should be introduced gradually without altering the basic structure of the society.
Socialism-It gives stress on the welfare of whole society. Instead of individual profit, it stresses on social welfare.
(a) Define Conservatism.
Answer:
Conservatism:Conservatism never likes changes but if change is necessary then it should be introduced gradually and due respect should be given to the old regime or it should come without changing the basic structure of society.

(b) Define Liberalism.
Answer:
Liberalism:Liberalism believes in bringing change in society and its radical restructuring as well as transformation in the system.

Question 19.
Industrialization in Russia
In order to make Russia a great power the Tsar began a policy of rapid industrialisation in late 19th century. A number of steel, iron and other industries were established in and around Moscow and Urals. Mostly foreign owned these industries emoployed a number of workers. Men, women and children started going to factories due to industrialization. Poor working conditions, low wages etc., combined with a new sense of common identity fostered by Socialism led most of these workers to form unions of their own.
(a) What is meant by the word Tsar? When did the system of Tsar start in Russia?
Answer:
The word ‘Tsar’ literally meant ‘Supreme ruler’. Tsardom in Russia began in 1547 A.D.

(b) With what objective, the Tsar started the industrialisation in Russia? What was its impact on the labour class?
Answer:
At the time of Russian Revolution, Russia was ruled by Tsar Nicholas II. To make Russia a great power, he began a policy of rapid industrialisation in the late 19th century. Many iron, steel and other industries were established in and around Moscow and Urals. But most of these industries were owned by foreign industrialists. They employed many Russian workers who were greatly exploited. Poor working conditions and low wages combined these labourers. Under the influence of Socialism, they formed their unions and a sense of common identity.

PSEB 9th Class SST Solutions History Source Based Questions and Answers

Question 20.
Duma: derived from the Russian word meaning ‘to think’, the Russian parliament. The Revolution of 1905 shook the Tsar so much that he agreed to the formation of a Duma in 1906 to advise him and to create legislation. The present day, Russian Parliament is also known as Duma.
(a) What is meant by the word ‘Duma’? Why did the Tsar of Russia establish Duma?
Answer:
Duma is a Russian word which means ‘to think’. The Revolution of 1905 shook the Tsar and he was forced to form the Duma.

(b) What was Duma? What were its functions?
Answer:
Its function was to advice the Tsar and to make laws for the Russian people. Duma was an elected Parliament which advised the Tsar to perform his functions. But Tsar only let conservatives to enter Duma. He kept liberals and revolutionaries away from Duma.

Question 21.
Bolsheviks Party Leader Lenin
The Bolsheviks, another group, were convinced that in a country like Russia where there were no democratic rights, no parliament, such a party organized on Parliamentary lines could not work and could not be effective. The leader was Lenin who devoted himself to the task of organizing the Bolshevik Party. He was influenced by the ideas of Karl Marx and Engels, and was regarded as the greatest leader of the Socialist Movement after Marx.
(a) Who was Lenin?
Answer:
Lenin was the leader of Bolshevik party in Russia. He is considered as the greatest leader of the Socialist Movement, after Karl Marx.

(b) Explain briefly the work done by Lenin. What was his April thesis?
Answer:
After the fall of Czar, he returned to Russia in April 1917 and united the peasants and workers under the Bolshevik Party and organized the revolution against the Provisional Government. He described the Russian empire as a prison of nation.

Under the leadership of Lenin, the Bolshevik Party put forward clear policies

  • to end the war,
  • to transfer land to the tillers, besides
  • giving all powers to the Soviets and equal status to all. This was April’s Thesis.

PSEB 9th Class SST Solutions History Source Based Questions and Answers

Question 22.
Industrial Revolution
Industrial Revolution refers to rapid technical changes in the process of production of a number of goods, during 1750-1850 (First in England and later in other countries of Europe and U.S.A.). With the invention of new sources of power and machines, the production got replaced by machines instead of doing it by hand or tools. Industrial Revolution increased the need of raw material and food, this led to substantial deforestation in most of the regions of the world. The tremendous deforestation has deeply affected the life of forest dwellers and the Environment.
(а) What is meant by the Industrial Revolution?
Answer:
Industrial revolution was a technological revolution that took place during 1750’s to 1850’s. Many changes came in the production system during this period in England and other European countries.

(b) What was the impact of the industrial revolution on forests, forest society and atmosphere?
Answer:
Due to the industrial revolution, handmade tools were replaced by machines which increased the production of goods to a great extent. The demand of raw materials was greatly increased in the industrial nations of Europe. The demand of food items also increased with increase in population. Finally, for the development of agriculture, there started cutting down of forests. Deforestation started everywhere which had a really bad effect on the atmosphere.

PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 5 घर का सामान

Punjab State Board PSEB 9th Class Home Science Book Solutions Chapter 5 घर का सामान Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 9 Home Science Chapter 5 घर का सामान

PSEB 9th Class Home Science Guide घर का सामान Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
किसी भी उपकरण को खरीदते समय पारिवारिक बजट को ध्यान में रखना क्यों जरूरी है ?
उत्तर-
कोई उपकरण खरीदने से पहले यह देख लेना चाहिए कि क्या परिवार का बजट इतना है कि इसे खरीदा जा सके। यदि गृहिणी के पास समय तथा शक्ति हो तो उसको कम खर्च वाले उपकरण खरीद लेने चाहिएं। यदि आवश्यकता से अधिक खर्च कर लिया जाए तो घर के अन्य कार्य छूट सकते हैं।

प्रश्न 2.
दो ऐसे उपकरणों के नाम लिखो जिनसे समय और शक्ति की बचत हो सके।
उत्तर-
कपड़े धोने वाली मशीन, कुकिंग रेंज, टोस्टर, बिजली की मिक्सी, माइक्रोवेव ओवन आदि।

प्रश्न 3.
घरेलू उपकरणों की आवश्यकता क्यों होती है ?
उत्तर-
आज के युग में मानवीय उद्देश्य तथा ज़रूरतें बढ़ गई हैं। इसलिए समय तथा शक्ति बचाने के लिए उपकरणों का प्रयोग किया जाता है। उपकरणों की मदद से कम समय में कार्य किया जा सकता है।

PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 5 घर का सामान

प्रश्न 4.
घर में रैफ्रिजरेटर की ज़रूरत क्यों होती है ?
उत्तर-
यह खाने वाले पदार्थों को ठण्डा रखने के काम आता है। इसमें फल तथा सब्जियां ताज़े रहते हैं। भोजन मिट्टी तथा धूल से बचा रहता है तथा इसका स्वाद तथा शक्ल ठीक रहती है। सब्जियां तथा फल एक बार लाये जा सकते हैं तथा बार-बार बाज़ार नहीं जाना पड़ता।

प्रश्न 5.
कपड़े धोने वाली मशीनें कौन-कौन सी हो सकती हैं ?
उत्तर-
ये मशीनें दो तरह की हो सकती हैं (i) ऑटोमैटिक (ii) नॉन-आटोमौटिक। ऑटोमैटिक मशीनें अपने आप कपड़ों को धोती, खंगालती तथा निचोड़ती हैं। नॉनऑटोमैटिक मशीनें केवल कपड़े धोती हैं।

प्रश्न 6.
कपड़े धोने वाली ऑटोमैटिक मशीन के दो लाभ लिखें ?
उत्तर-
ऑटोमैटिक मशीनें कपड़ों को धोती, खंगालती तथा निचोड़ती हैं। मशीन के प्रयोग से साबुन तथा समय दोनों की बचत होती है तथा मेहनत की भी बचत हो जाती है। अधिक वर्षा वाले इलाकों अथवा जहां कपड़ों को बाहर सुखाने का इन्तजाम नहीं हो सकता वहां ऑटोमैटिक कपड़े धोने वाली मशीन काफ़ी लाभदायक सिद्ध हुई है क्योंकि कपड़े मशीन में ही सूख जाते हैं।

प्रश्न 7.
बिजली की प्रैस घर में क्यों ज़रूरी है?
उत्तर-
मनुष्य का व्यक्तित्व उस द्वारा पहने हुए बढ़िया कपड़ों के कारण बढ़िया तथा बुरे कपड़ों के कारण बुरा लगता है। प्रैस से कपड़ों में से सिलवटें आदि निकल जाती हैं तथा यह पहने हए सन्दर लगते हैं। घर में प्रैस हो तो समय तथा शक्ति बचाई जा सकती
प्रैसें दो तरह की हो सकती हैं-ऑटोमैटिक तथा नॉन-ऑटोमैटिक। ऑटोमैटिक प्रैसें भाप वाली भी हो सकती हैं तथा कइयों में रेग्यूलेटर भी लगा होता है।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 8.
बायोगैस के बारे में आप क्या जानते हो ?
उत्तर-
बायोगैस जानवरों के मल-मूत्र से तैयार होती है। बायोगैस में लगभग 60% मीथेन गैस होती है जो ज्वलनशील गैस है। इसको नालियों द्वारा गांवों के घरों में भेजा जाता है। इसका प्रयोग भोजन पकाने में किया जाता है। बायोगैस को सिलिण्डरों में नहीं भरा जा सकता। बचा हुआ मल-मूत्र खाद के रूप में खेतों में प्रयोग किया जा सकता है।

प्रश्न 9.
टोस्टर किस काम आता है और यह कैसा होता है ?
उत्तर-
टोस्टर-टोस्टर डबलरोटी के टुकड़ों को सीधे सेक से सेंकने तथा कुरकुरा करने के लिए प्रयोग किया जाता है। इसका प्रयोग साधारणत: प्रत्येक घर में किया जाता है। यह तीन तरह के होते हैं- (i) ऑटोमैटिक (ii) नॉन-ऑटोमोटिक (iii) सेमी-ऑटोमैटिक।
ऑटोमैटिक टोस्टर में ताप कण्ट्रोल, समय सूचक के रंग सूचक यन्त्र लगे होते हैं । यह भी तीन तरह के होते हैं-कुएं के आकार के-इसमें डबलरोटी तथा स्लाइस डाले जाते हैं। जब यह सेंके जाते हैं तो अपने आप बाहर आ जाते हैं। इसमें डबलरोटी के बुरादे के लिए ट्रे भी लगी होती है। भट्ठी के आकार वाले टोस्टर में बन्द तथा रोल भी गर्म किए जाते हैं। इसमें बाहर निकालने के लिए ट्रे की भी व्यवस्था होती है। तीसरा कुएं तथा भट्ठी के मिश्रण वाले टोस्टर में डबल रोटी, केक, रोल्स सेंकने के लिए कम तापमान वाला भाग बना होता है।

PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 5 घर का सामान (1)

PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 5 घर का सामान

प्रश्न 10.
मिक्सी आजकल हर घर में ज़रूरी समझी जाती है। क्यों ?
उत्तर-
इस उपकरण में गीले तथा सूखे भोजन पदार्थ पीसे जाते हैं । हाथ से कूटने तथा पीसने से समय तथा शक्ति दोनों ही अधिक लगते हैं। परन्तु मिक्सी में कूटने पीसने अथवा पीठी बनाना आदि के लिए प्रयोग करने से गृहिणी की शक्ति तथा समय दोनों की ही बचत हो जाती है। इसलिए समय तथा शक्ति बचाने के लिए मिक्सी आजकल हर घर में आवश्यक हो गई है।

PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 5 घर का सामान (2)

प्रश्न 11.
यदि बिजली की मिक्सी घर में न हो तो उसके स्थान पर किस उपकरण का प्रयोग किया जाता हैं और कैसे ?
उत्तर-
यदि घर में बिजली की मिक्सी न हो तो हाथ से चलाने वाले ग्राइंडर का प्रयोग किया जाता है। इससे मसाला आदि पीसने का कार्य किया जाता है। यह लोहे का बना हुआ होता है। इसको एक पेंच की मदद से फिट किया जाता है। मसाला डालने के लिए इसके ऊपर एक मुंह सा बना होता है। इस में गीला अथवा सूखा मसाला डालकर इसको हत्थी से घुमाया जाता है। पीसा हुआ मसाला आगे नाली के रास्ते से बाहर आ जाता है। हाथ से चलाने वाली इस तरह की ही कीमा बनाने तथा जूस निकालने वाली मशीनें भी मिल जाती हैं।

PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 5 घर का सामान (3)

प्रश्न 12.
प्रैशर कुक्कर के क्या लाभ हैं और यह किस धातु का बना हुआ होता है ?
उत्तर-
प्रैशर कुक्कर में खाना शीघ्र पक जाता है विशेषकर पहाड़ी क्षेत्रों में तो इसका काफ़ी महत्त्व है। क्योंकि इससे भाप बाहर नहीं निकलती, खाने के पौष्टिक तत्त्व खराब नहीं होते। खाना एक पतीले से 1/3 समय में पक जाता है। इससे मेहनत, समय तथा पैसे की भी बचत होती है। सब्जियों का स्वाद तथा रंग भी ठीक रहता है।
प्रैशर कुक्कर एल्यूमीनियम, प्रैस्ड एल्यूमीनियम अथवा स्टेनलेस स्टील का बना हो सकता है।

प्रश्न 13.
गैस के चूल्हे के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर-
गैस का चूल्हा—गैस से खाना बनाने का काम आसान तथा सफ़ाई से होता है। क्योंकि गैस से बर्तन काले नहीं होते। गैस के चूल्हे एक, दो तथा तीन बर्नरों वाले भी मिलते हैं। गैसे के चूल्हे को रबड़ की नाली से सिलिण्डर से जोड़ा जाता है। बर्नरों के आगे रेग्यूलेटर लगे होते हैं जो सेक को अधिक, कम करने तथा चूल्हा वाल्व बन्द करने का कार्य करते हैं। सिलिण्डर पर भी रेग्यूलेटर लगा होता है जो सिलिण्डर से गैस को चूल्हे तक पहुँचाता है।PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 5 घर का सामान (4)

कुकिंग रेंज-कुकिंग रेंज से भोजन पकाने के लिए बहुत कम समय लगता है। इसमें बेकिंग तथा ग्रिलिंग भी की जाती है। कुकिंग रेंज गैस से चलने वाले तथा बिजली से चलने वाले भी होते हैं। इसकी बॉडी स्टील की अथवा लोहे की बनी होती है। इसके ऊपर चार चूल्हे होते हैं, उसके नीचे ग्रिल, फिर ओवन होता है। गैस पावर प्लग में लगाई जाती है तथा बिजली वाले की तार पावर प्लग में लगाई जाती है। कई कुकिंग रेंज में ओवन के नीचे एक और डिब्बा बना होता है जिसमें भोजन पकाकर रख दो तो काफ़ी समय गर्म रहता है। इसके सामने वाली तरफ चूल्हों के नीचे रेग्यूलेटर लगे होते हैं जो तापमान को कण्ट्रोल करते हैं।PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 5 घर का सामान (5)

PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 5 घर का सामान

प्रश्न 14.
अन्य ईंधनों की अपेक्षा सौर कुक्कर कैसे लाभदायक है?
उत्तर-
सौर कुक्कर सूर्य की ऊर्जा से कार्य करता है। सूर्य की किरणें सौर कुक्कर के पैराबोलिक परावर्तक यन्त्र की सतह पर पड़ती हैं तथा ताप ऊर्जा पैदा करती हैं। इस ऊर्जा का प्रयोग भोजन पकाने में होता है।

PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 5 घर का सामान (6)

सौर कुक्कर निम्नलिखित कारणों से लाभदायक हैं –

  1. भारत एक गर्म देश है। यहां सारा वर्ष सूर्य की रोश नी तथा गर्मी उपलब्ध रहती है। सोलर कुक्कर क्योंकि सूर्य की किरणों से ऊर्जा प्राप्त करता है इसलिए यहां यह कुक्कर बहुत कामयाब है। इस तरह सौर कुक्कर ऊर्जा पैदा करने का एक सस्ता साधन है।
  2. सौर कुक्कर में खाना पकाने को 3 से 7 घण्टे का समय लगता है।
  3. सौर कुक्कर में खाना पकाने से कोई भी बाई-प्रोडक्ट नहीं पैदा होता। इसलिए वातावरण में प्रदूषण पैदा नहीं करता।

प्रश्न 15.
ओवन किस काम आता है?
उत्तर-
विद्युत् ओवन-यह गोल आकार का अथवा चौकोर डिब्बे के आकार का यन्त्र होता है। यह केक, बिस्कुट, डबलरोटी, पीज़ा, तथा सब्जियां आदि बेक करने के काम आता है। गोल ओवन साधारणतः एल्यूमीनियम का बना होता है तथा चौकोर किसी जंग रहित धातु अथवा एल्यूमीनियम का होता है। इसके दो भाग होते हैं – तल तथा ढक्कन। निचले भाग में एलीमेन्ट लगा होता है। इस गोल चैम्बर के बाहर की ओर एक स्थान पर नियन्त्रण बॉक्स लगा होता है जिस पर थर्मोस्टेट, इण्डीकेटर तथा एक सॉकेट लगी होती है। थर्मोस्टेट से जितना तापमान चाहिए, कर लिया जाता है। जब ओवन इच्छित तापमान पर पहुंच जाता है तो विद्युत् प्रवाह आरभ हो जाता है। यह सिस्टम ऑटोमैटिक ओवन में ही होता है। बाजार में रेग्यूलेटर के बिना भी ओवन मिलते हैं परन्तु यह कम लाभदायक होते हैं। इनमें तापमान बहुत बढ़ने से भोजन जल जाता है।PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 5 घर का सामान (7)

बेकिंग करते समय इसका ढक्कन निचले भाग पर फिट किया जाता है। ढक्कन के दोनों तरफ प्लास्टिक के हैण्डल लगे होते हैं। जिससे ढक्कन को उतारना तथा चढ़ाना आसान होता है। ढक्कन के ऊपरी तरफ बीच में कांच की खिड़की बनी होती है यहां से भोजन की स्थिति का अन्दाज़ा लगाया जा सकता है। कांच के आस-पास दो छिद्र होते हैं जिसमें कोई सूई अथवा सिलाई डालकर भोजन की स्थिति का पता लगाया जा सकता है। ओवन के साथ एक गोल बर्तन तथा एक प्लेट (Base Plate) मिलती है। कोई भोजन बनाते समय यह प्लेट नीचे रखकर ऊपर गोल भोजन वाला बर्तन रखा जाता है, यह प्लेट एक सहारे का काम करती है।

प्रश्न 16.
माइक्रो ओवन किस काम आता है ?
उत्तर-
यह बिजली से चलने वाला भोजन पकाने के लिए प्रयोग किया जाने वाला उपकरण है। सूक्ष्म-तरंग अथवा माइक्रोवेव में विद्युत्-चुम्बकीय तरंगें पैदा करने के लिए एक चुम्बकीय यन्त्र मेग्नेट्रॉन लगा होता है। भोजन इन सूक्ष्म तरंगों को चूस लेता है जिससे भोजन अणु 24500 लाख प्रति सैकिण्ड की गति से कांपते हैं। इस तरह भोजन के अणु आपस में इतनी तेज़ी से रगड़ खाते हैं तथा इस तरह बहुत ज्यादा गर्मी पैदा होती है तथा मिनटों में ही भोजन पक कर तैयार हो जाता है। माइक्रोवेव में भोजन अपने में पाई जाने वाली नमी के अनुसार ही भोजन पकने के दौरान पैदा हुई विद्युत् चुम्बकीय ऊर्जा को सोखता है। इस तरह भोजन को एक सार पकाने में मुश्किल आती है।

प्रश्न 17.
स्टोव कितनी प्रकार के हो सकते हैं और कौन-कौन से ?
उत्तर-
स्टोव मिट्टी के तेल से चलने वाले स्टोव दो तरह के होते हैं-हवा भरने वाले तथा बत्तियों वाले।PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 5 घर का सामान (8)

बत्तियों वाला स्टोव बत्तियों वाले स्टोव की टंकी में जब तेल डाला जाता है तो बत्तियां तेल चूस कर जलती हैं तथा पम्प वाले स्टोव में टंकी में तेल भरने के पश्चात् इसका तेल वाला मुंह अच्छी तरह बन्द करके हवा भरने से तेल बर्नर पर आ जाता है, फिर आग से इसको जलाया जाता है।

PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 5 घर का सामान

प्रश्न 18.
रसोई के बर्तन कौन-कौन सी धातुओं से बने होते हैं ?
उत्तर-
रसोई के बर्तन पीतल, तांबा, एल्यूमीनियम तथा नॉन स्टिक, चांदी, लोहा तथा स्टील आदि धातुओं तथा मिश्रित धातुओं के बने होते हैं। आजकल स्टेनलेस स्टील से बने हुए बर्तन काफ़ी प्रचलित हैं। इसका कारण है कि यह एक चमकीली धातु होने के कारण इसको बार-बार पॉलिश करने की ज़रूरत नहीं पड़ती। इस पर तेज़ाब तथा क्षार का प्रभाव भी नहीं होता तथा इसको जंग भी नहीं लगता।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 19.
घर के सामान का चयन करते समय किन बातों को ध्यान में रखोगे ?
उत्तर-
घर के सामान के चुनाव के समय निम्नलिखित बातें ध्यान में रखनी चाहिएं –
(i) कीमत, (ii) डिज़ाइन, (iii) स्तर, (iv) सम्भाल तथा रख-रखाव, (v) उपयोगिता, सेवा सुविधाएं तथा गारण्टी।
(i) कीमत-कोई भी उपकरण खरीदते समय उसकी उपयोगिता के साथ-साथ उसकी कीमत को भी ध्यान में रखना बहुत ज़रूरी है। उदाहरणत: यदि मिक्सी की खरीद करनी है तो यह ध्यान में रखना आवश्यक है कि वह काटने, पीसने, जूस निकालने तथा आटा गूंथना आदि सभी काम करती हो न कि विभिन्न कार्यों के लिए विभिन्न मशीनों को खरीदना पड़े। इसलिए ऐसी स्थिति में फूड प्रोसैसर ही ठीक रहता है। दूसरी बात यह आवश्यक नहीं कि महंगे उपकरण ही अच्छे होते हैं। कई बार स्थानिक (local) अच्छी कम्पनियां भी अपनी मशहरी के लिए कम कीमत रखती हैं। इसलिए विभिन्न स्थानों से कीमत की तुलना करनी बहुत आवश्यक है।

(ii) डिज़ाइन किसी भी उपकरण की खरीददारी के समय उसका डिज़ाइन एक महत्त्वपूर्ण विषय है। डिज़ाइन उपकरण के आकार, भार, सन्तुलन तथा पकड़ने की सुविधाओं आदि से सम्बन्धित है। उपकरण का आकार परिवार के सदस्यों की संख्या पर निर्भर करता है। डिज़ाइन हमेशा साधारण होना चाहिए ताकि साफ़ सफ़ाई करना आसान हो। भार तथा सन्तुलन ठीक होना चाहिए ताकि उपकरण को चलाते समय वह ठीक से टिका रहे। यदि उपकरण हिलता-जुलता होगा, भार सन्तुलन ठीक नहीं होगा तो उपकरण के गिरने का खतरा रहता है। उपकरण को पकड़ने के लिए कोई हैण्डल अथवा ऐसी जगह बनी हो जहां से आसानी से तथा पूरी जकड़ से पकड़ा जा सके।

(iii) स्तर–उपकरणों की खरीद हमेशा विश्वसनीय, बढ़िया तथा स्टैंडर्ड अर्थात् राष्ट्रीय, अन्तर्राष्ट्रीय कम्पनियों से करनी चाहिए जैसे कि विद्वान् कहते हैं कि “महंगा रोए एक बार, सस्ता रोए बार-बार” अर्थात् बहुत बार हम कीमत कम होने के कारण वस्तु खरीद लेते हैं जो कि थोड़े समय में ही खराब हो जाती है जबकि महंगी तथा विश्वसनीय कम्पनी की चीज़ बढ़िया तथा टिकाऊ होती है।
यह समान खरीदते समय आई० एस० आई० (ISI) के मार्के का भी ध्यान रखना चाहिए। जिन कम्पनियों की वस्तुएं आई० एस० आई० (Indian Standard Institute) द्वारा प्रमाणित हों वही खरीदनी चाहिए।

(iv) सम्भाल तथा रख-रखाव-बर्तनों अथवा उपकरणों को खरीदते समय उनकी सम्भाल तथा रख-रखाव का भी बहुत महत्त्व है। यदि खरीदे गए बर्तन अथवा उपकरण की सम्भाल अधिक है तो वह गृहिणी के कार्य को आसान करने की बजाए और भी बढ़ा देता है। जैसे कि पीतल के बर्तनों की सम्भाल, स्टील के बर्तनों से अधिक है। इस तरह है बजाए कि पूरे उपकरण की सफ़ाई के। इसलिए अलग-अलग होने वाले पुों को प्राथमिकता देनी चाहिए।

(v) उपयोगिता—किसी वस्तु की खरीद के समय परिवार तथा परिवार के सदस्यों के लिए उसकी उपयोगिता का ध्यान रखना चाहिए। किसी उपकरण को सामाजिक स्तर की निशानी के रूप में नहीं खरीदना चाहिए अपितु परिवार तथा गृहिणी के लिए उसकी महत्ता तथा उपयोगिता को ध्यान में रखकर ही खरीददारी करनी चाहिए। वस्तुओं के प्रयोग का सही ढंग, प्रयोग के लिए दी सावधानियां इनकी उपयोगिता को बढ़ाने में सहायक हो सकती हैं। बिजली अथवा गैस से चलने वाले उपकरणों को बिजली तथा गैस की उपलब्धि को ध्यान में रखकर ही प्रयोग करना चाहिए।

(vi) सेवा सुविधाएं तथा गारण्टी-बहुत सारे उपकरणों में प्रयोग करते-करते कोईन-कोई खराबी पड़ जाती है जिससे उसके पुर्जे तथा विशेषज्ञ मकैनिकों की आवश्यकता होती है। कई स्टैण्डर्ड की कम्पनियां ये सुविधाएं बढ़िया प्रदान करती हैं, इसलिए जो कम्पनी ये सुविधाएं प्रदान कर सके उनके उपकरणों को खरीदने को प्राथमिकता देनी चाहिए। ऐसी मरम्मत की सुविधा तथा पुर्जे न मिलने से उपकरण व्यर्थ हो जाता है। इसी तरह खरीददारी दौरान उपकरण का गारण्टी का समय तथा गारण्टी समय में किस-किस तरह की सुविधा मिल सकती है, इस बारे जानकारी भी लेना बहुत आवश्यक है। बहुतसी कम्पनियां गारण्टी समय में मुफ्त मरम्मत करती हैं तथा कई परिस्थितियों में उपकरण को बदल भी देते हैं।

प्रश्न 20.
रेफ्रिजरेटर और कपड़े धोने वाली मशीन के क्या-क्या कार्य हैं ?
उत्तर-
फ्रिज के कार्य-फ्रिज का प्रयोग खाने वाली वस्तुओं को ठण्डा करके स्टोर करने के लिए किया जाता है। इसमें कुछ दिनों के लिए सब्जियां तथा फल स्टोर किए जा सकते हैं, इस तरह बार-बार बाज़ार जाकर समय नष्ट नहीं होता। अन्य भी खाने वाली वस्तुएं इसमें रखी जा सकती हैं।
फ्रिज की सफ़ाई तथा देखभाल

  1. हर महीने फ्रिज की पूरी सफ़ाई करनी चाहिए। सफ़ाई करने के लिए सबसे पहले इसका विद्युत् स्विच बन्द करके तार निकाल लेनी चाहिए। फिर सभी शैल्फों, चिल ट्रे, किस्प ट्रे तथा उससे ऊपर वाला कांच आदि बाहर निकाल लेने चाहिएं। कैबिनेट का आन्तरिक हिस्सा तथा दरवाज़े की गास्टक रबड़ की लाइनिंग को साबुन वाले गर्म पानी से साफ़ करो। इसके पश्चात् इस को अच्छी तरह धोकर सुखाओ तथा कपड़े से पोंछ दें। कैबिनेट के बाहरी हिस्से को बड़े ध्यान से सोडे के गुनगुने घोल (एक बड़ा चम्मच सोडा एक लिटर पानी में ) साफ़ करो तथा धोकर सुखा दो। इसके पश्चात् इसको नर्म सूखे कपड़े से रगड़ कर चमकाया जा सकता है। इस सारी सफ़ाई को डीफ्रास्टिंग के समय करने को प्राथमिकता देनी चाहिए। फ्रिज की मोटर से धूल मिट्टी उतारने के लिए लम्बे हैण्डल वाला ब्रुश प्रयोग करना चाहिए।
  2. भोजन को ठीक तापमान वाले खाने में ही रखना चाहिए जैसे कि मीट तथा मछली को पॉलीथीन के लिफ़ाफों में अच्छी तरह बन्द करके फ्रीज़र में रखना चाहिए। मक्खन तथा अण्डे आदि दरवाज़े में बनी जगह पर रखने चाहिएं।
  3. भोजन पदार्थों को ढक कर रखना चाहिए।
  4. फ्रिज को कभी भी बहुत ज्यादा न भरो क्योंकि इससे चैम्बर में हवा का प्रवाह ठीक तरह नहीं होता।
  5. दरवाज़े को बार-बार नहीं खोलना चाहिए।
  6. फ्रिज के इर्द-गिर्द हवा के प्रवाह के लिए कम-से-कम दीवार से 20 सेंटीमीटर की दूरी होनी चाहिए। परन्तु आजकल ऐसे फ्रिज आ रहे हैं जिनके लिए बहुत थोड़ी दूरी (10 सें० मी०) भी रखी जा सकती है।
  7. बर्फ को कभी भी चाकू अथवा किसी तेज़ धार वाली चीज़ से नहीं खरोंचना चाहिए।
  8. फ्रिज को कभी भी ऐसे स्थान पर नहीं रखना चाहिए जहां सूर्य की किरणें सीधी पड़ती हों।
  9. फ्रिज को हमेशा समतल फ़र्श पर रखना चाहिए नहीं तो कण्डैन्सर की मोटर ठीक तरह से कार्य नहीं करेगी तथा दरवाज़ा ठीक तरह से बन्द नहीं हो सकेगा।
  10. थर्मोस्टेट के डायल को इस स्थिति में रखना चाहिए कि जहां फ्रीज़र लगभग 18°C तापमान बनाए रखे।

PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 5 घर का सामान (9)

कपड़े धोने वाली मशीन-यह भी बिजली से चलने वाला उपकरण है। इसमें कपड़े धोने, खंगालने तथा निचोड़ने जैसे सभी कार्य हो जाते हैं।
सफ़ाई तथा देखभाल –

  1. मशीन खरीदते समय इसके साथ एक छोटी-सी किताब मिलती है जिसमें इसका प्रयोग तथा सम्भाल बारे आवश्यक निर्देश दिए होते हैं। इस किताब को अच्छी तरह पढ़कर मशीन का प्रयोग करना चाहिए।
  2. मशीन में कभी भी मशीन की क्षमता से अधिक कपड़े नहीं डालने चाहिएं।
  3. धुलाई समाप्त होते ही ‘वाश-टब’ तथा कपड़े सुखाने वाले टब को खाली कर देना चाहिए। फिर वाश टब में साफ़ पानी डालकर तथा मशीन चलाकर इसको अच्छी तरह धोकर रखना चाहिए। महीने में एक बार विलोडक को बाहर निकालकर साफ़ करके सुखाकर अगली बार प्रयोग के लिए अलग करके रख लेना चाहिए।
  4. कभी भी टब को साफ़ करने के लिए कोई सख्त ब्रुश अथवा डिटरजेंट न प्रयोग करें। टब की सफ़ाई के लिए कभी-कभी सिरके के घोल में कपड़ा भिगोकर साफ़ किया जाता है।
  5. मशीन का ढक्कन थोड़ा सा खुला रहने दें ताकि मशीन में से गन्दी बदबू न आए।
  6. पानी निकालने वाली नाली को नीचे करके सारे पानी को निकाल देना चाहिए नहीं तो धीरे-धीरे यह रबड़ की नाली खराब हो जाएगी।
  7. टब में पानी हमेशा टब में बने निशान तक ही डालना चाहिए।
  8. यदि कभी आवश्यकता हो तो मशीन की मरम्मत हमेशा किसी विश्वासपात्र दुकानदार से ही करवानी चाहिए।

PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 5 घर का सामान

प्रश्न 21.
रसोई में काम आने वाले बिजली के दो उपकरणों के कार्य और देखभाल के बारे में बताओ।
उत्तर-
रसोई में काम आने वाले बिजली के यन्त्रों में मिक्सी तथा फ्रिज आते हैं। मिक्सी के कार्य-इस उपकरण में गीले तथा सूखे भोजन पदार्थ पीसे जाते हैं। इसमें कूटने, पीसने अथवा पीठी बनाना आदि कार्य किये जाते हैं। इससे समय तथा शक्ति की बचत हो जाती है।
सफ़ाई तथा देखभाल –

  1. चलती हुई मोटर पर कभी भी मिक्सी को उतारने अथवा लगाने की कोशिश न करें।
  2. जग को बहुत ज्यादा नहीं भरना चाहिए तथा कम-से-कम इतना पदार्थ अवश्य हो कि ब्लेड पदार्थ में डूबे हों।
  3. तैयार चीज़ को जग से निकालने से पहले स्विच बन्द कर देना चाहिए तथा सामान हमेशा लकड़ी की चम्मच अथवा स्पेचूला से ही निकालना चाहिए।
  4. इसको साफ़ करने के लिए गीले कपड़े से साफ़ करके फिर सूखे कपड़े से पोंछ दो। जग तथा ब्लेड को साबुन तथा गुनगुने पानी के घोल से साफ़ करके पानी से धो लें। फिर सूखे कपड़े से सुखा कर रखो।
  5. मोटर को लगातार अधिक समय के लिए न चलाएं नहीं तो गर्म होकर मोटर सड़ सकती है।
  6. सुरक्षा के तौर पर हमेशा पहले प्लग को स्विच में से निकाल देना चाहिए तथा उसके पश्चात् जग को मोटर से अलग करना चाहिए।
    नोट-फ्रिज के कार्य तथा देखभाल के लिए देखो प्रश्न नं० 20।

प्रश्न 22.
रसोई में बिजली के बिना चलने वाले दो उपकरणों के कार्य और देखभाल के बारे में बताओ।
उत्तर-
प्रैशर कुक्कर तथा गैस का चूल्हा बिजली के बगैर चलने वाले उपकरण हैं।
प्रैशर कुक्कर का कार्य-प्रैशर कुक्कर खाना पकाने के काम आता है तथा इसमें खाना जल्दी पक जाता है। इससे खाने के पौष्टिक तत्त्व भी खराब नहीं होते।
प्रैशर कुक्कर सफ़ाई तथा देखभाल –

  1. कुक्कर को प्रयोग से पहले उसकी भाप नली साफ़ कर लेनी चाहिए।
  2. प्रयोग से पहले इसका सेफ्टी वाल्व चैक कर लेना चाहिए।
  3. कुक्कर को कभी भी पूरा ऊपर तक नहीं भरना चाहिए, केवल दो तिहाई हिस्सा ही भरना चाहिए।
  4. कुक्कर को बहुत समय तक आग पर नहीं रखना चाहिए।
  5. इसमें कोई भी भोजन पानी के बिना नहीं डालना चाहिए।
  6. कुक्कर को साफ़ करने के पश्चात् ढक्कन खोलकर रखना चाहिए।
  7. समय-समय पर इसकी रबड़ चैक करते रहना चाहिए।
  8. कुक्कर को कभी भी सोडे से साफ़ नहीं करना चाहिए।
  9. कुक्कर के ढक्कन को न तो आग पर ले जाना चाहिए तथा न ही आग के नज़दीक।

गैस चूल्हे का कार्य-इसका प्रयोग खाना बनाने के लिए किया जाता है। इसमें सेक को अधिक, कम करने के लिए रेग्यूलेटर लगे होते हैं।
गैस चूल्हे की देखभाल तथा सफ़ाई –

  1. हमेशा गैस खोलने से पहले माचिस जलानी चाहिए।
  2. इसकी लौ बर्तन से बाहर नहीं होनी चाहिए।
  3. जब काम हो जाए तो पहले सिलिण्डर से गैस बन्द करो तथा फिर चूल्हे के स्विच से। इस तरह करने से पाइप की गैस प्रयोग हो जाती है।
  4. रबड़ की नाली को समय-समय पर चैक करते रहना चाहिए नहीं तो गैस लीक होने का डर रहता है।
  5. गैस सिलिण्डर को आग वाले बर्तनों पर नहीं रखना चाहिए नहीं तो आग लगने का डर रहता है।
  6. प्रयोग के पश्चात् गैस स्टोव को अच्छी तरह साफ़ करना चाहिए।
  7. बर्तनों को साफ़ करने के लिए कभी-कभी सोडे के पानी में उबाल लेना चाहिए।

प्रश्न 23.
आजकल गैस के चूल्हे का प्रयोग क्यों बढ़ रहा है ? यह कैसा होता है और इसकी देखभाल कैसे की जाती है ?
उत्तर-
गैस का चूल्हा खाना पकाने के लिए प्रयोग किया जाता है। यह एक साफ़सुथरा तथा आसान साधन है। इसको जलाना तथा बुझाना बहुत ही असान होता है। इससे बर्तन भी काले नहीं होते। इसलिए इसका प्रयोग बढ़ रहा है।
शेष उत्तर के लिए देखें प्रश्न 13 तथा 22।

प्रश्न 24.
नॉन स्टिक बर्तन कैसे होते हैं ? किस काम आते हैं और इनकी देखभाल कैसे की जाती है ?
उत्तर-
नॉन स्टिक बर्तन एल्यूमीनियम के होते हैं जिनके अन्दर टेफ्लोन की परत चढी होती है। इनमें खाने वाली चीज़ चिपकती नहीं इसलिए घी का प्रयोग बहुत कम मात्रा में करके चीज़ों को पकाया जा सकता है। इसमें खाने को हिलाने के लिए धातु का चम्मच अथवा कांटे के स्थान पर लकड़ी का चम्मच प्रयोग किया जाता है ताकि टेफ्लोन की परत उतर न जाए। फ्राइपैन आदि के हैण्डल लकड़ी अथवा एक विशेष प्रकार के प्लास्टिक के होते हैं जोकि गर्म नहीं होते। हैण्डल की लम्बाई इस तरह होती है कि उसके भार से पैन उलट न जाए।
सम्भाल –

  1. गर्म बर्तन में पानी नहीं डालना चाहिए, इस तरह करने से धातु खराब हो जाती है।
  2. इस बर्तन में स्टील के चम्मच, कड़छी अथवा कांटे का प्रयोग न करके लकड़ी के चम्मच का प्रयोग करो।
  3. कोई खाने की चीज़ पैन में सड़ गई हो तो पैन में पानी तथा सोडा डालकर धीरे-धीरे गर्म करना चाहिए ताकि जला हुआ खाना जल्दी तथा बिना खरोंचे उतर जाए। इन बर्तनों को प्लास्टिक के फूंदे से साबुन वाले गुनगुने पानी से साफ़ करना चाहिए। अधिक कठोर फूंदे से इस पर खरोंचें पड़ सकती हैं तथा कोटिंग भी खराब हो सकती है।

PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 5 घर का सामान

प्रश्न 25.
रसोई के बर्तनों की देखभाल कैसे करोगे ? क्या भिन्न-भिन्न धातुओं के बर्तनों की देखभाल भी अलग-अलग की जाती है ?
उत्तर-
विभिन्न किस्मों की धातुओं की सफ़ाई

बर्तनों की किस्म विशेषताएं सफाई तथा देखभाल विशेष सावधानी सफाई के लिए चीजें
1. स्टेनलेस स्टील स्टील, लोहे तथा कार्बन के मिश्रण से बनता है । यह एक मज़बूत धातु है। इससे भोजन पकाने, परोसने तथा भोजन पदार्थ सम्भालने वाले बर्तन बनते हैं। स्टील के बर्तनों को साफ़ करना आसान होता है। किसी साबुन अथवा डिटर्जेंट तथा गर्म पानी से साफ़ करके, साफ़ पानी में धो लें। साफ़ तथा सूखे कपड़े से पोंछ कर सुखा लो। बर्तन में से जले हुए दाग उतारने के लिए स्टील वूल प्रयोग की जा सकती है। चिकनाई उतारने के लिए अखबार का प्रयोग करना चाहिए। स्टील के बर्तनों को अधिक सेंक नहीं लगाना चाहिए नहीं तो काले निशान पड़ जाते हैं। कुछ मसाले भी स्टील को पीला कर देते हैं। यह दाग कच्चे आलू से उतारे जा सकते है। 1. साबुन तथा डिटर्जेंट

2. रोएं-रहित साफ़ कपड़ा

3. स्टील वूल

4. स्पंज/स्क्रबर

5. कच्चा आलू

2. पीतल यह तांबे तथा जिंक का मिश्रण है। इससे बर्तन तथा सजावट का सामान बनाया जाता है। यह भी एक मजबूत धातु है। पीतल के बर्तनों को विम अथवा राख से साफ़ करके पानी से धोएं, फिर सूखे कपड़े से पोंछ कर सुखाएं। यदि दाग हों तो नींबू का रस अथवा इमली तथा नमक से रगड़ें। सजावट की चीजों के लिए गुनगुने पानी का प्रयोग किया जा सकता है। खाने वाले बर्तनों की बाहर से सिरका तथा नमक के मिश्रण से पॉलिश की जा सकती है। यह बर्तन के अन्दर प्रयोग नहीं करना चाहिए। सजावट के सामान पर ब्रासो की”पॉलिश प्रयोग की जा सकती है। 1. गर्म पानी, विम, राख तथा सोडा आदि।

2. नींबू, सिरका, इमली तथा नमक आदि।

3. नर्म कपड़ा

4. ब्रासो पॉलिश

3. एल्यूमीनियम यह एक हल्की धातु होती है। इस पर ऑक्सीकरण का कोई प्रभाव नहीं होता। यह धातु हल्की तथा नर्म होती है। गर्म पानी तथा कोई नर्म डिटर्जेंट अथवा साबुन के घोल से साफ़ करना चाहिए। तेल तथा डिटर्जेंट इसका रंग खराब कर देते हैं। भोजन के सड़ने अथवा दागों को उतारने के लिए गर्म पानी में भिगो कर रख दो, फिर लकड़ी के चम्मच अथवा प्लास्टिक के स्क्रबर से साफ़ करो। लोहे की तारों वाला, स्क्रबर एल्यूमीनियम में लाइनें बना देता है। यदि एल्यूमीनियम का बर्तन काला हो जाये तो कच्चे टमाटर बर्तन में पकाओ अथवा एक गिलास में पानी, 1 चम्मच सिरका डालकर तब तक गर्म करो जब तक कालापन दूर न हो जाये। उस के पश्चात् स्टील वूल तथा साबुन से साफ़ करो। 1. गर्म पानी

2. नर्म साबुन

3. टमाटर, सिरका

4. स्टील वूल

4. लोहा लोहे को यदि पहले गर्म न किया जाए तो ऑक्सीकरण से इस पर जंग लग जाता है। यह धातु भारी तथा कठोर होती है, परन्तु गिरने पर टूट जाती है। गर्म, साबुन वाले पानी में धोना चाहिए, फिर साफ़ पानी में धोकर पोंछ कर सुखा लो अथवा फिर गर्म करके सुखाओ। जले हुए भोजन को उतारने के लिए गर्म पानी में भिगोकर लकड़ी के चम्मच से खरोंचें। जरूरत पड़ने पर बेकिंग पाऊडर छिड़क कर साफ़ किया जा सकता है अथवा फिर छनी हुई रेत से भी रगड़ा जा सकता है। कास्ट आयरन के बर्तनों की सीज़निंग आवश्यक होती है नहीं तो जंग लग जाता है तथा भोजन बर्तन के नीचे लगने लगता है। इसलिए घी अथवा रेत को धीमी आंच पर बर्तन में डालकर काफ़ी देर तक गर्म करो। यह बर्तन कुछ ते” चूस जायेगा। बचा हुआ तेल अथवा घी निकालकर अखबार से पोंछ कर साबुन वाले गर्म पानी से धो लें। लोहे पर किसी प्रकार की पॉलिश की ज़रूरत नहीं। यदि जंग के दाग हों तो मिट्टी के तेल तथा स्टील वूल से साफ़ किए जा सकते हैं। 1. साबुन

2. तारों वाला ब्रुश

3. रेत तथा स्टील वूल

4. बेकिंग सोडा

5. तेल / घी

6. मिट्टी का तेल

5. चांदी यह सफेद रंग की चमकदार धातु होती है। इस पर नमक का हानिकारक प्रभाव होता है। हवा, भोजन तथा धुएं में पाई जाने वाली गन्धक से काले धब्बे पड़ जाते हैं। इस लिए इसकी विशेष देखभाल तथा सम्भाल करनी पड़ती है। इसके गहने, बर्तन तथा सजावट की चीजें बनती हैं। साबुन वाले गर्म पानी में थोड़ा-सा सोडा मिलाकर धोना चाहिए। फिर साफ़ पानी से निकालकर अच्छी तरह पोंछकर सुखाएं। चांदी के बर्तनों में कभी भी बचा हुआ भोजन नहीं रहने देना चाहिए। उसी समय साफ़ कर देना चाहिए। यह बर्तन अधिक समय तक पानी में भी नहीं रहना चाहिए। पोंछ कर सुखाकर टिशू पेपर अथवा फलालेन के कपड़े में लपेट कर रखो। यदि लम्बे समय तक सम्भालना हो तो थोड़ी-सी वैसलीन अथवा तेल मलकर टिशू पेपर में लपेटकर फलालेन की गुथली में रखना चाहिए। पॉलिश लगाने के पश्चात् चीज़ को धीरे से लपेटना चाहिए नहीं तो उस पर उंगलियों के निशान पड़ जाते हैं। पॉलिश करने के लिए सिल्वो का प्रयोग किया जाता है। साफ़ तथा नर्म कपड़े पर लगा कर अच्छी तर चमकाना चाहिए। चांदी की पॉलिश घर में भी बनाई जा सकती है।

सूखी पॉलिश

सामान- सफेदी–8 हिस्से, जौहरी की लाली 1 हिस्सा।

विधि-दोनों चीज़ों को अच्छी तरह मिलाकर एक डिब्बे में डालकर रख लो।तरल पॉलिश सामान-(1) साबुन के टुकड़े 15 ग्राम

(2) जौहरी की लाली-8 हिस्से

(3) मैथिलेटिड स्प्रिट-2 बड़े चम्मच

(4) सफेदी-80 ग्राम

(5) अमोनिया-1 बड़ा चम्मच

(6) उबलता हुआ पानी–250

ग्राम

विधि-साबुन को गर्म पानी में घोल लें तथा ठण्डा होने को रखें। बाकी सारा सूखा सामान एक चौड़े मुंह वाली शीशी में डाल दो, इस पर साबुन का घोल डालो। बाद में अमोनिया तथा स्प्रिट डालकर बोतल का ढक्कन बन्द कर दो। प्रयोग से पहले बोतल को अच्छी तरह हिला लो।

1. साबुन

2. नर्म तथा मुलायम कपड़ा

3. पॉलिश

6. कांच तथा चीनी मिट्टी साधारणतः यह भोजन परोसने वाले बर्तन ही होते हैं पर आजकल कांच के बर्तन ताप निरोधक भी हैं जिनको गैस अथवा ओवन में प्रयोग किया जाता है। गर्म बर्तनों को ठण्डे पानी में नहीं डालना चाहिए। इन बर्तनों को गर्म, साबुन वाले पानी से धोना चाहिए। पानी में थोड़ा-सा बेकिंग सोडा डालने से जमा हुआ भोजन आसानी से उतर जाता है। यदि फ़िर भी बर्तन साफ़ न हों तो लकड़ी का चम्मच अथवा प्लास्टिक का ब्रुश प्रयोग किया जा सकता है। इन बर्तनों को रात भर गन्दे नहीं रहने देना चाहिए। इससे दाल सब्जियों के दाग़ पड़ जाते हैं। साफ़ करके सूखे कपड़े से पोंछ कर सुखा कर रखें। इन बर्तनों के लिए किसी पॉलिश की ज़रूरत नहीं होती। प्रयोग से पहले यदि थोड़ा-सा घी अथवा तेल बर्तन को लगाया जाए तो भोजन नहीं चिपकता। 1. साबुन

2. बेकिंग सोडा

3. नर्म कपड़ा

7. प्लास्टिक प्लास्टिक के बर्तन भोजन परोसने तथा खाद्य पदार्थ सम्भालने के लिए प्रयोग किए जाते हैं। यह बर्तन अधिक ताप सहन नहीं कर सकते, पिघल जाते हैं। धूप में इनका रंग भी खराब हो जाला है। गुनगुने साबुन वाले घोल में स्पंज से साफ़ करने चाहिएं। झरियों आदि में फंसी गन्दगी को साफ़ करने के लिए दांतों वाले ब्रुश का प्रयोग करो। यदि गन्दगी बहुत अधिक जमी है तो मिट्टी के तेल से साफ़ किये जा सकते हैं। धोने के पश्चात् अच्छी तरह सुखा कर पोंछ कर रखो। इन पर किसी पॉलिश की ज़रूरत नहीं। 1. नर्म साबुन

2. मिट्टी का तेल

3. नर्म कपड़ा

प्रश्न 26.
प्रैशर कुक्कर के कार्य और बनावट के बारे में बताओ।
उत्तर-
1. प्रैशर कुक्कर—यह एक बन्द प्रकार का पतीला है, जिसमें बनने वाली भाप का दबाव भोजन को थोड़े समय में पका देता है। इसमें बने भोजन की पौष्टिकता भी बनी रहती है। साथ ही गृहिणी के समय तथा शक्ति का भी बचाव होता है। इस बर्तन को प्रैशर कुक्कर कहा जाता है। यह दबाये अथवा ढाले हुए एल्यूमीनियम अथवा स्टेनलैस स्टील की चादर से बनाये जाते हैं। यह एक गहरे तल वाला बर्तन होता है, जिसकी एक तरफ हैण्डल लगा होता है। इसके ऊपर एक ढक्कन होता है, इस ढक्कन पर दबाव नली वाल्व, वेट तथा सुरक्षित वाल्व लगा होता है। ढक्कन के साथ एक रबड़ का छल्ला होता है, जो इसे अच्छी तरह बन्द करता है। यह साधारणतः दो तरह के होते हैं। पहली किस्म के कुक्कर में एक ढक्कन होता है जो निचले बर्तन (पतीले जैसे) के ऊपरी घेरे के अन्दर सरक जाता है तथा इसका हुक हैण्डल से लगाने के पश्चात् यह कुक्कर की हवा निकलने से रोक देता है (हॉकिन्स तथा यूनाइटिड प्रेशर कुक्कर आदि) दूसरी किस्म के कुक्कर में इसका ढक्कन निचले बर्तन के किनारे से बाहर की ओर लगता है। ढक्कन तथा बर्तन पर बने तीर के निशान ढक्कन बन्द करने तथा खोलने का ढंग बताते हैं। इसमें भी रबड़ का छल्ला एक मज़बूत सील का काम करता है। इसमें पकाने वाले प्रत्येक भोजन के लिए अलग-अलग समय होता है। किसी के लिए दो मिनट, किसी के लिए पांच मिनट आदि। समय पूरा होने पर कुक्कर को आग से उतार लो तथा ठण्डा करने के पश्चात् खोलना चाहिए।

PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 5 घर का सामान (10)

PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 5 घर का सामान

प्रश्न 27.
पीतल और चांदी के सजावटी सामान को कैसे साफ़ और पॉलिश करोगे ?

Home Science Guide for Class 9 PSEB घर का सामान Important Questions and Answers

रिक्त स्थान भरो

  1. कुकिंग रेंज साधारणतः …………………. चूल्हों वाले होते हैं।
  2. ………… डबलरोटी के टुकड़ों को सीधा सेंकने के लिए प्रयोग होता है।
  3. फ्रिज के बर्फ वाले खाने में तापमान …………………. °C होता है।
  4. मिक्सी को ………………. भाग से अधिक न भरें।
  5. सौर कुक्कर में खाना पकाने में …………………. घंटे का समय लगता है।

उत्तर-

  1. चार
  2. टोस्टर
  3. 7
  4. 2/3
  5. 3 से 7।

एक शब्द में उत्तर दें

प्रश्न 1.
गैस सिलेण्डर में कितनी गैस होती है ?
उत्तर-
लगभग 15 कि०ग्रा०।

प्रश्न 2.
स्टेनलेस स्टील की खोज कब की गई ?
उत्तर-
1912 में।

प्रश्न 3.
माइक्रोवेव ओवन में भोजन के अणुओं के कांपने की गति बताएं।
उत्तर-
24500 लाख प्रति सेकंड।

प्रश्न 4.
प्रैशर कुक्कर में पतीले की अपेक्षा कितने समय में खाना पक जाता
उत्तर-
एक तिहाई समय।

प्रश्न 5.
हमें कौन-सी मोहर लगी प्रेस खरीदनी चाहिए ?
उत्तर-
आई०एस०आई० मोहर लगी।

ठीक/ग़लत बताएं

  1. उपकरण खरीदते समय परिवार के बजट की चिन्ता न करें।
  2. फ्रीज़ के बर्फ वाले भाग का तापमान -7°C होता है।
  3. मिक्सी को पूरा भर कर चलाएं।
  4. कुकिंग रेंज प्रायः चार चूल्हों वाले होते हैं।
  5. माइक्रोवेव ओवन में सूक्ष्म तरंगों से गर्मी पैदा होती है।
  6. माइक्रोवेव में भोजन के अणु 24500 लाख प्रति सैकंड की गति से कांपते

उत्तर-

  1. ग़लत
  2. ठीक
  3. ग़लत
  4. ठीक
  5. ठीक
  6. ठीक।

बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
घर के सामान का चयन कौन-सी बातों को ध्यान में रखकर करोगे ?
(A) कीमत
(B) स्तर
(C) उपयोगिक
(D) सभी।
उत्तर-
(D) सभी।

PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 5 घर का सामान

प्रश्न 2.
ठीक तथ्य हैं –
(A) माइक्रोवेव बिजली से चलने वाला भोजन पकाने के लिए प्रयोग होने वाला उपकरण है।
(B) मिट्टी के तेल से चलने वाले स्टोव दो तरह के होते हैं।
(C) स्टोव की टंकी सदा दो तिहाई ही भरनी चाहिए।
(D) सभी ठीक।
उत्तर-
(D) सभी ठीक।

प्रश्न 3.
माइक्रोवेव में भोजन के अणुयों की कंपन गति है –
(A) 20000 लाख प्रति सैकंड
(B) 24500 लाख प्रति सैकंड
(C) 50000 लाख प्रति सैकंड
(D) 10000 लाख प्रति सैकंड।
उत्तर-
(B) 24500 लाख प्रति सैकंड

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
घरेलू उपकरण नज़दीक की दुकान से क्यों खरीदने चाहिएं ?
उत्तर-
कई बार जब उपकरण में कोई त्रुटि आ जाती है तो नज़दीक के दुकानदार से इसकी मरम्मत करवाना आसान रहता है।

प्रश्न 2.
घरेलू उपकरण कैसे दुकानदार से खरीदने चाहिएं ?
उत्तर-
इनको ऐसे दुकानदार से खरीदो जो कि ग्राहक को महत्ता देते हों तथा जिनके पास कम्पनी की चीज़ बेचने का लाइसैंस हो।

प्रश्न 3.
प्रैशर कुक्कर को प्रयोग करते समय कौन-सी बातों को ध्यान में रखोगे ?
उत्तर-

  1. यदि दो वस्तुएं इकट्ठी अर्थात् एक समय में ही पकानी चाहें तो इस बात का ध्यान रखने की ज़रूरत है कि जो वस्तुएं पकाना चाहते हो, उन्हें पकाने के लिए लगभग एक-सा समय लगे।
  2. ढक्कन बन्द करते समय यह देखना ज़रूरी है कि कहीं रबड़ का छल्ला न निकला हो।
  3. भोजन पकाते समय पानी हमेशा आवश्यक मात्रा में ही हो।
  4. जब भाप निकास नली से निकलती दिखाई दे तो दबाव को ठीक कर देना चाहिए अर्थात् सेक कम कर दो।
  5. भोजन पकाने के पश्चात् कुक्कर को कभी भी नहीं खोलना चाहिए, ऐसा करने से भाप तुरन्त तेज़ी से बाहर निकलती है तथा इससे मुंह की चमड़ी जलने का भय रहता है।

प्रश्न 4.
स्टोव की देखभाल तथा सफ़ाई के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर-
देखभाल तथा सफ़ाई –

  1. बत्तियों वाले स्टोव की बत्तियां ऊपर से काटते रहना चाहिए।
  2. स्टोव की टंकी हमेशा दो तिहाई ही भरनी चाहिए।
  3. रोज़ाना स्टोव को गीले कपड़े से बाहर से अच्छी तरह साफ़ करना चाहिए।
  4. जलते हुए स्टोव में कभी भी तेल नहीं डालना चाहिए।
  5. हवा वाले स्टोव में अधिक हवा भरने से स्टोव फट सकता है।

प्रश्न 5.
टोस्टर की देखभाल तथा सफ़ाई कैसे की जाती है ?
उत्तर-
देखभाल तथा सफ़ाई –

  1. टोस्ट को निकालने के लिए कभी भी चाकू अथवा कांटे का प्रयोग नहीं करना चाहिए क्योंकि इससे ऐलीमेण्ट की तार को नुकसान हो सकता है।
  2. हर बार टोस्टर को प्रयोग के पश्चात् टोस्टर को उल्टा करके डबलरोटी के टुकड़ों को निकालने के लिए टोस्टर को हाथ से हल्का थपथपा दो।
  3. प्रयोग के समय हमेशा टोस्टर को तापरोधक तथा बिजली के कुचालक स्थान पर ही रखना चाहिए।
  4. काम खत्म करके टोस्टर को बिजली के सम्पर्क से अलग करके ठण्डा होने दें, फिर तार को इसके आस-पास लपेट कर रख दो।

प्रश्न 6.
कपड़े धोने वाली मशीन का चुनाव करते समय कौन-सी बातें ध्यान में रखनी चाहिएं ?
उत्तर-

  1. मशीन की लागत तथा उसे चलाते समय होने वाले खर्च की जानकारी प्राप्त कर लेनी चाहिए।
  2. मशीन की गारण्टी बारे जानकारी प्राप्त कर लेनी चाहिए।
  3. मशीन में कोई तीखी चीज़ न हो जिससे अटक कर कपड़ों के फटने का डर हो।
  4. मशीन की तारें ताप रोकने वाली हों।
  5. मशीन पर एनेमल की परत होनी चाहिए। एल्यूमीनियम की मशीन शीघ्र खराब हो जाती है तथा स्टैनलैस स्टील की मशीन की लागत अधिक होती है।

प्रश्न 7.
उपकरण अच्छी कम्पनी का ही खरीदना चाहिए ? क्यों ?
उत्तर-
कोई भी उपकरण अच्छी कम्पनी का इसलिए खरीदना चाहिए क्योंकि अच्छी कम्पनियां अपने उपकरणों पर गारण्टी देती हैं। यदि यह खराब हो जाएं तो कम्पनी वाले उपकरण को मुफ्त ठीक कर देते हैं।

प्रश्न 8.
उपकरण ज़रूरत के अनुसार खरीदना चाहिए न कि सजावट के लिए । क्यों ?
उत्तर-
उपकरणों का प्रयोग तथा खरीद इसलिए किया जाता है ताकि समय तथा शक्ति बच जाए। इसलिए इन्हें आवश्यकतानुसार खरीदना चाहिए न कि सजावट के लिए।

PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 5 घर का सामान

प्रश्न 9.
रैफ्रिजरेटर की देखभाल कैसे की जाती है ?
उत्तर-
खाने वाली चीज़ों को ठीक तापमान के अनुसार शैल्फ में रखो जैसे मांस तथा मछली को बर्फ़ वाले खाने (freezer) में तथा सब्जियों को निचली तरफ रखो। सारे फ्रिज में बदबू न फैले इसलिए मांस मछली को प्लास्टिक के लिफ़ाफे में डालकर रखो । फ्रिज में खाना हमेशा ढककर रखो। 15 दिन बाद फ्रिज की सफ़ाई अवश्य करो ताकि फालतू बर्फ़ तथा जमा हुआ पानी साफ़ हो जाए। इससे फ्रिज़ की कार्यकुशलता बढ़ती है। फ्रिज का दरवाज़ा बार-बार नहीं खोलना चाहिए। इससे फ्रिज का तापमान घटता है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
कपड़े धोने वाली मशीन के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर-
कपड़े धोने वाली मशीन-विशेषतः काम-काजी गृहणियों के लिए यह मशीन बहुत लाभदायक है। यह कपड़े धोने के कार्य को बहुत आसान कर देती है। आजकल दो तरह की कपड़े धोने की मशीनें मिलती हैं। एक विलोडक किस्म तथा दूसरी बेलनाकार। यह विलोडक मोटर के चलने से घूमता है। इसके इर्द-गिर्द ब्लेड लगे होते हैं। इन ब्लेडों की संख्या, आकार तथा बनावट अलग-अलग होती है।

PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 5 घर का सामान (11)

इसके अतिरिक्त ये मशीनें स्वैचालित तथा अर्द्ध-स्वैचालित भी होती हैं। फुली ऑटोमैटिक मशीनों में एक ही टब होता है। इसकी पानी लेने वाली नाली की पक्की फिटिंग पानी वाली टूटी से की जाती है जहां से मशीन चलाने पर यह अपने आप पानी लेकर, सर्फ लेकर, धोकर तथा सुखा कर ही बन्द होती है। जबकि सेमी-ऑटोमैटिक मशीन में दो टब होते हैं। एक कपड़े धोने के लिए तथा दूसरा कपड़े खंगालने तथा सुखाने के लिए। इसमें कपड़े धोने के पश्चात् कपड़ों को निकाल कर दूसरे टब में डाला जाता है तथा पानी का रुख भी दूसरे टब में करना पड़ता है। फिर यहां कपड़े खंगालने के पश्चात् पानी बन्द कर दिया जाता है तथा कपड़े अपने आप सूख जाते हैं।

प्रश्न 2.
विद्युत् प्रैस बारे आप क्या जानते हैं ? इसकी देखभाल तथा सफ़ाई बारे आप क्या जानते हैं ?
उत्तर-
विद्युत् प्रैस कपड़ों की सिलवटें निकालने तथा चमक लाने के लिए प्रैस का प्रयोग किया जाता है। प्रैसें भी कई तरह की होती हैं, जैसे-शुष्क प्रैस; वाष्प तथा शुष्क प्रैस : छिड़काव, वाष्प तथा शुष्क प्रैस। शुष्क प्रैसें सिंथैटिक कपड़ों के लिए ठीक होती हैं जबकि सूती तथा ऊनी कपड़ों के लिए छिड़काव तथा वाष्य प्रैसे बढ़िया रहती हैं। ऐसी प्रैस से कपड़े भी अच्छे प्रैस होते हैं तथा समय और शक्ति भी कम लगते हैं। इन पैसों में एक थर्मोस्टेट होता है जो तापमान को कण्ट्रोल करता है। इसके ऊपर ही विभिन्न कपड़ों के नाम भी लिखे होते हैं जैसे-सती, ऊनी, रेशमी आदि। जिस तरह के कपडे प्रेस करने हों, थर्मोस्टेट को वहां सैट किया जाता है। इन प्रैसों में पानी डालने के लिए सामने एक रास्ता बना होता है। प्रेस के साथ ही एक कप भी मिलता है जिससे पानी डाला जाता है। प्रेस के सामने हैण्डल से एक यन्त्र होता है जिसको दबाने से सामने से पानी का छिड़काव हो जाता है। इसी तरह भाप के लिए प्रैस के तल पर छिद्र होते हैं जिनके द्वारा भाप निकलती है। प्रैस के तल की प्लेट जंग रहित धातु की बनी होती है। बिजली की तार प्रेस के पीछे लगी होती है।
देखभाल तथा सफ़ाई –

1. प्रेस के प्रयोग के पश्चात् इसका प्लग स्विच से निकाल देना चाहिए।
2. प्रयोग के बाद ठण्डी होने पर तार हैण्डल के इर्द-गिर्द लपेट कर अच्छी तरह से खड़ी करके रखनी चाहिए।
PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 5 घर का सामान (12)

3. वाष्प तथा छिड़काव वाली प्रैस में हमेशा डिसटिल्ड पानी ही डालना चाहिए।
4. दाग लगने पर तल को खरोंचना नहीं चाहिए अपितु प्रैस को पूरा गर्म करके अखबार पर नमक डालकर उस पर फेरना चाहिए, दाग साफ़ हो जाएंगे।
5. अधिक गन्दी प्रैस को पैराफिन मोम से साफ़ किया जा सकता है।

प्रश्न 3.
कुकिंग रेंज की देखभाल तथा सफ़ाई बारे क्या जानते हो ?
उत्तर-
देखभाल तथा सफ़ाई –

  1. बिजली से चलने वाले कुकिंग रेंज को लकड़ी के फट्टे पर रखना चाहिए।
  2. कुकिंग रेंज को प्रयोग के पश्चात् ठण्डा होने पर साफ़ करना चाहिए।
  3. इसकी सफ़ाई के लिए पानी तथा साबुन का प्रयोग करना चाहिए तथा बाद में सूखे कपड़े से पोंछना चाहिए। यदि फिर भी सफ़ाई ठीक न हो तो सोडे का प्रयोग किया जा सकता है, पर यदि कुकिंग रेंज एल्यूमीनियम का है तो फिर सोडा प्रयोग न करें।
  4. बर्तनों की सफ़ाई के लिए कभी-कभी इन्हें सोडे के पानी में उबाल देना चाहिए। फिर ब्रुश से साफ़ करके पानी से धोकर धूप में सुखा लें।
  5. ओवन तथा ग्रिल से भोजन निकालने के पश्चात् थोड़ी देर उसके दरवाजे खुले रहने देने चाहिएं क्योंकि भोजन पकने के दौरान भाप से अन्दर नमी हो जाती है, दरवाजा खुला रखने से यह सूख जाएगी नहीं तो जंग लग सकता है।

प्रश्न 4.
घरेलू उपकरणों के सुरक्षित प्रयोग के लिए कुछ ध्यान रखने योग्य बातें बताओ।
उत्तर-

  1. जब कोई भी उपकरण खरीदते हैं तो उसके साथ एक छोटी-सी किताब मिलती है जिसमें उपकरण की बनावट तथा प्रयोग बारे जानकारी दी होती है, उसको अच्छी तरह पढ़कर उसमें दिये निर्देशों के अनुसार इनका प्रयोग करना चाहिए।
  2. बिजली वाले यन्त्रों को प्लग लगाते समय दो पिनों वाले प्लग के स्थान पर तीन पिनों वाले प्लग को प्राथमिकता देनी चाहिए क्योंकि इसमें तीसरी तार अर्थ वाली होती है। यदि कभी शार्ट सर्किट हो जाए तो उपकरण जलने से बच जाता है।
  3. बिजली वाले यन्त्रों को बच्चों की पहुंच से दूर रखना चाहिए।
  4. बिजली वाले यन्त्रों को कभी भी चलते समय गीले हाथ नहीं लगाने चाहिएं।
  5. प्रयोग के पश्चात् साफ़ करते समय यन्त्र की मोटर में पानी नहीं पड़ना चाहिए। उसे केवल गीले कपड़े से ही साफ़ करना चाहिए।
  6. बिजली के यन्त्र की कभी भी सीधी तारें नहीं लगानी चाहिएं। विद्युत् टेस्ट पैन तथा विद्युत् निरोधक टेप घर में अवश्य रखने चाहिएं।
  7. प्रयोग के पश्चात् पहले यन्त्र का बटन बन्द करना चाहिए तथा फिर प्लग में से शू निकालना चाहिए।
  8. गैस के चूल्हों को साफ़ रखना चाहिए। गैस वाली नाली की समय-समय पर परख करते रहना चाहिए ताकि गलने अथवा टूटने से गैस लीक न हो। हो सके तो हर छः मास पश्चात् पाइप बदल लेनी चाहिए।
  9. गैस के प्रयोग के पश्चात् इसको रेग्यूलेटर से बन्द करो तथा फिर चूल्हे के स्विच बन्द करो।
  10. गैस का सिलिण्डर बदलते समय बहुत सावधानी रखनी चाहिए। सिलिण्डर बदलने के पश्चात् साबुन वाला घोल अथवा गैस टैस्ट करने वाला तरल लगाकर टैस्ट कर लेना चाहिए कि गैस लीक तो नहीं कर रही। लीक करता हुआ सिलिण्डर नहीं लगाना चाहिए।
  11. बत्तियों वाले स्टोव की बत्तियां हमेशा साफ़ रखनी चाहिएं ताकि स्टोव धुआं न दें। कभी भी जलते स्टोव में तेल नहीं डालना चाहिए।

PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 5 घर का सामान

घर का सामान PSEB 9th Class Home Science Notes

  • घरेलू उपकरणों के प्रयोग से समय तथा शक्ति दोनों की बचत हो जाती है।
  • बाज़ार में सर्वेक्षण करने के पश्चात् ही सामान खरीदना चाहिए।
  • सामान ऐसे दुकानदार से खरीदो जो कम्पनी की ओर से नियत डीलर हो तथा ग्राहक को महत्ता देता हो।
  • उपकरण अच्छी कम्पनी के ही खरीदने चाहिएं।
  • उपकरण खरीदते समय पारिवारिक बजट का ध्यान रखना चाहिए।
  • फ्रिज खाने वाले पदार्थों को ठण्डा रखने के काम आता है।
  • फ्रिज बिजली से चलता है तथा इसमें 4-5 °C से भी कम तापमान होता है।
  • फ्रिज के बर्फ वाले खाने में तापमान – 7°C होता है।
  • कपड़े धोने वाली मशीन बिजली से चलती है तथा इससे कपड़े धोने का काम आसान हो जाता है।
  • यह मशीन दो तरह की होती है, ऑटोमैटिक तथा सेमी-ऑटोमैटिक।
  • ऑटोमैटिक मशीनें कपड़ों को धोती, खंगालती तथा निचोड़ती हैं।
  • बिजली से चलने वाली प्रैसें दो तरह की होती हैं: ऑटोमैटिक तथा सेमी ऑटोमैटिक।
  • प्रैस का जो हिस्सा कपड़े को छूता है उसे तला कहते हैं।
  • टोस्टर का प्रयोग डबलरोटी के टुकड़ों को सेंकने के लिए किया जाता है।
  • मिक्सी से मसाले पीसना, रगड़ना तथा मिलाने का काम आसानी से हो जाता
  • इससे मिल्क शेक, जूस, सूप, आदि बनाए जाते हैं।
  • विभिन्न कामों के लिए मिक्सी में अलग-अलग ब्लेड लगे होते हैं।
  • मिक्सी को 2/3 हिस्से से अधिक नहीं भरना चाहिए तथा उपरि ढक्कन बन्द करके रखना चाहिए।
  • बिजली की मिक्सी महंगी होने के कारण कुछ लोग हाथ से चलने वाला ग्राइंडर प्रयोग करते हैं। इसमें गीला अथवा सूखा मसाला डालकर पीसा जाता है।
  • प्रेशर कुक्कर दालें, सब्जियां बनाने के काम आता है। यह एल्यूमीनियम अथवा स्टील का बना होता है।
  • प्रैशर कुक्कर का ढक्कन बन्द करके इस पर एक भार लगाया जाता है, यह ध्यान रखें कि इस भार वाला सुराख खुला होना चाहिए।
  • कुक्कर में खाना पकने को एक तिहाई समय लग जाता है।
  • प्रैशर कुक्कर में भोजन के पौष्टिक तत्त्व खराब नहीं होते।
  • खाना पकाने का कार्य गैस के चूल्हे पर किया जाता है।
  • मुम्बई, कोलकाता आदि जैसे शहरों में गैस पानी की तरह पाइपों द्वारा घरों में जाती है।
  • गैस का चूल्हा खाना पकाने का एक साफ़-सुथरा तथा आसान साधन है।
  • कुकिंग रेंज साधारणतः चार चूल्हों वाले होते हैं।
  • इनके साथ भूनने, सेंकने तथा उबालने अथवा तलने का कार्य किया जा सकता है। इस तरह समय की बचत हो जाती है।
  • यदि गैस चूल्हे अथवा गैस लीकेज में समस्या आए तो विशेषज्ञ से ही खुलवाएं।
  • मिट्टी के तेल से चलने वाले स्टोव दो तरह के होते हैं, पम्म वाले तथा बत्तियों वाले।
  • रसोई के बर्तन कई धातुओं के बने हो सकते हैं। जैसे, पीतल, तांबा, चांदी, एल्यूमीनियम, लोहा तथा स्टील आदि।
  • बायोगैस प्लांट में जानवरों के मलमूत्र से गैस बनाई जाती है जिसे गोबर गैस कहते हैं।
  • सोलर कुक्कर. ऐसा उपकरण है जोकि सौर ऊर्जा का प्रयोग करके खाना पकाने के काम आता है।
  • ओवन बिजली अथवा गैस पर काम करने वाला उपकरण है। इसमें भोजन बेक किया जाता है तथा सेंका जाता है।
  • माइक्रोवेव ओवन एक विशेष प्रकार का ओवन होता है। इसमें विद्युत् चुम्बकीय तरंगें पैदा करने वाला चुम्बकीय यन्त्र लगा होता है। यह सूक्ष्म तरंगें (माइक्रोवेवस) पैदा करता है।
  • सूक्ष्म तरंगों को चूसने पर गर्मी पैदा होती है। भोजन के अणु 24500 लाख प्रति सैकिण्ड की गति से कांपते हैं। अणुओं को इतना तेज़ी से रगड़ने पर बहुत गर्मी पैदा होती है।
  • स्टील की सफ़ाई साबुन अथवा विम तथा पानी से की जाती है।
  • काँच के बर्तनों को गिलास, कप, प्लेट आदि को विम आदि से साफ़ किया जाता है।
  • मेल्मोवेयर नई तरह का कठोर प्लास्टिक होता है। इसकी सफ़ाई साबुन वाले पानी अथवा डिटर्जेंट के घोल में कपड़ा भिगोकर की जाती है। अधिक गन्दा होने की सूरत में सोडे का पानी (सोडा बाइकार्बोनेट) का प्रयोग किया जा सकता है।

PSEB 9th Class SST Solutions Geography Chapter 3a भारत : जलप्रवाह

Punjab State Board PSEB 9th Class Social Science Book Solutions Geography Chapter 3a भारत : जलप्रवाह Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 9 Social Science Geography Chapter 3a भारत : जलप्रवाह

SST Guide for Class 9 PSEB भारत : जलप्रवाह Textbook Questions and Answers

(क) नक्शा कार्य (Map Work) :

प्रश्न 1.
भारत के रेखाचित्र में अंकित करें-
(i) गंगा
(ii) ब्रह्मपुत्र
(iii) सांबर व वुलर झीलें
(iv) गोबिंद सागर झील
उत्तर-
यह प्रश्न विद्यार्थी MBD Map Master की सहायता से स्वयं करें।

प्रश्न 2.
भारत के रेखाचित्र में दिखायें-
(i) गंगा के दाएं व बाएं किनारों से मिलने वाली तीन-तीन सहायक नदियां ।
(ii) पश्चिम की ओर बहने वाली दो प्रायद्वीपीय नदियां।
(iii) पूर्व की ओर बहकर बंगाल की खाड़ी में गिरने वाली तीन प्रायद्वीपीय नदियां।
उत्तर-
यह प्रश्न विद्यार्थी MBD Map Master की सहायता से स्वयं करें।

(ख) निम्न वस्तुनिष्ठ प्रश्नों के उत्तर दें:

प्रश्न 1.
इनमें से कौन-सी नदी गंगा की सहायक नदी नहीं है ?
(i) यमुना
(ii) ब्यास
(iii) गंडक
(iv) सोन।
उत्तर-
(ii) ब्यास।

PSEB 9th Class SST Solutions Geography Chapter 3a भारत : जलप्रवाह

प्रश्न 2.
कौन-सी झील प्राकृतिक नहीं है ?
(i) रेणुका
(ii) चिल्का
(iii) डल
(iv) रणजीत सागर।
उत्तर-
(iv) रणजीत सागर।

प्रश्न 3.
भारत का सबसे बड़ा नदी तंत्र कौन-सा है ?
(i) गंगा जलतंत्र
(it) गोदावरी जलतंत्र
(iii) ब्रह्मपुत्र जलतंत्र
(iv) सिन्धु जलतंत्र
उत्तर-
(i) गंगा जलतंत्र।

प्रश्न 4.
विश्व का सबसे बड़ा डैल्टा कौन-सा है ?
उत्तर-
सुन्दरवन डैल्टा।

प्रश्न 5.
दोआबा क्या होता है ?
उत्तर-
दो दरियाओं के बीच के क्षेत्र को दोआबा कहते हैं।

प्रश्न 6.
सिंध की लंबाई कितनी है और भारत में इसका कितना हिस्सा पड़ता है ?
उत्तर-
सिंधु दरिया की कुल लंबाई 2880 किलोमीटर है तथा भारत में इसका 709 किलोमीटर भाग पड़ता है।

प्रश्न 7.
प्रायद्वीपीय भारत की कोई तीन नदियों के नाम लिखें जो बंगाल की खाड़ी में गिरती हैं ?
उत्तर-
गोदावरी, कृष्णा, कावेरी, महानदी।

PSEB 9th Class SST Solutions Geography Chapter 3a भारत : जलप्रवाह

प्रश्न 8.
भारतीय नदी तंत्र को कितने भागों में बांटा जाता है ?
उत्तर-
भारतीय नदी तंत्र को हम चार भागों में बांट सकते हैं तथा वह हैं-हिमालय की नदियां, प्रायद्वीपीय तन्त्र, तट की नदियां, आन्तरिक नदी तथा झीलें।

प्रश्न 9.
सिन्ध नदी कौन-से ग्लेशियर में से जन्म लेती है ?
उत्तर-
सिन्धु नदी बोखर-छू ग्लेशियर से निकलता है जो तिब्बत में स्थित है।

प्रश्न 10.
किसी दो मौसमी नदियों के नाम लिखें।
उत्तर-
वेलुमा, कालीनदी, सुबरनरेखा इत्यादि।

प्रश्न 11.
महानदी का उद्गम स्थान क्या है ? इसकी दो सहायक नदियां बतायें।
उत्तर-
महानदी का उदम्म स्थान छत्तीसगढ़ में दण्डाकारनिया है। शिवनाथ, मण्ड, ऊँग इत्यादि महानदी की सहायक नदियाँ हैं।

प्रश्न 12.
भारत की कोई पाँच प्राकृतिक झीलों के नाम लिखें।
उत्तर-
डल झील, चिल्का, सूर्यताल, वूलर, खजियार, पुष्कर इत्यादि।

(ग) इन प्रश्नों के संक्षेप उत्तर लिखें:

प्रश्न 1.
गंगा में प्रदूषण बढ़ता जा रहा है। इसकी रोकथाम के लिए क्या किया गया है ?
उत्तर-
इसमें कोई शंका नहीं है कि गंगा का प्रदूषण लगातार बढ़ रहा है। इसका प्रमुख कारण उद्योगों की गंदगी, कीटनाशक इत्यादि हैं। इस प्रदूषण को रोकने के लिए सरकार ने कई प्रयास किए हैं जैसे कि

  1. अप्रैल 1980 में केन्द्र सरकार ने गंगा एक्शन प्लान बनाया तथा गंगा की सफाई का कार्य शुरू किया।
  2. गंगा एक्शन प्लान को जारी रखते हुए 2009 में सरकार ने नेशनल गंगा बेसिन अथॉरिटी का गठन किया जिसका मुख्य कार्य गंगा का प्रदूषण रोकना था।
  3. 2014 में केन्द्र सरकार ने गंगा की सफाई के लिए एक विशेष मंत्रालय का गठन किया तथा इसके लिए एक मन्त्री की नियुक्ति भी की।
  4. अब तक सरकार गंगा की सफाई के लिए सैंकड़ों करोड़ों रुपए खर्च कर चुकी है।

प्रश्न 2.
भारत के अन्दरूनी जलतंत्र पर नोट लिखें।
उत्तर-
भारत में बहुत-सी नदियां बहती हैं तथा इनमें से कई नदियां किसी न किसी समुद्र में जाकर मिल जाती हैं परन्तु कुछ नदियां ऐसी होती हैं जो समुद्र में नहीं पहुंच पाती तथा रास्ते में ही विलीन हो जाती हैं या खत्म हो जाती हैं। इसे ही अन्दरूनी जलतंत्र कहा जाता है। इसकी सबसे महत्त्वपूर्ण उदाहरण घग्गर नदी है जो 465 किलोमीटर चलने के पश्चात् राजस्थान में अलोप हो जाती है। इस प्रकार लद्दाख में बहने वाली नदियां तथा राजस्थान में बहने वाली लुनी नदी भी इसकी उदाहरण है।

PSEB 9th Class SST Solutions Geography Chapter 3a भारत : जलप्रवाह

प्रश्न 3.
वृद्ध गंगा क्या है ? इसकी सहायक नदियों के नाम लिखें।
उत्तर-
गोदावरी नदी दक्षिण भारत की सबसे बड़ी नदी है जबकि गंगा उत्तरी भारत की सबसे बड़ी नदी है। गंगा की भांति गोदावरी भी मार्ग में अनेक सहायक नदियों से जल प्राप्त करती है। पूर्वी घाट को पार करती हुई वह एक गहरी घाटी में से होकर गुजरती है। इसके द्वारा लगभग 190 हज़ार वर्ग किलोमीटर भूमि को जल प्राप्त होता है। इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह गंगा नदी से भी प्राचीन है। इस कारण इसे दक्षिण की वृद्ध गंगा कहते हैं।

प्रश्न 4.
धुंआधार झरना कौन-सी नदी पर है ? उसकी सहायक नदियों के नाम भी लिखें।
उत्तर-

  1. धुंआधार झरना नर्मदा नदी पर स्थित है जो कि मध्य प्रदेश में जबलपुर नाम के स्थान पर बनता है।
  2. नर्मदा नदी की प्रमुख सहायक नदियां हैं- शकर, भुरनेर, रीजल, दुधी, बरना, हीरा इत्यादि।

(घ) निम्न प्रश्नों के विस्तृत उत्तर लिखें :

प्रश्न 1.
हिमालय व प्रायद्वीपीय नदियां कौन-कौन सी हैं ? इनकी विशेषताओं में क्या अंतर है।
उत्तर-

  1. हिमालय की नदियां-यह वह नदियां हैं जो हिमालय पर्वत से निकलती हैं तथा इनमें सम्पूर्ण वर्ष पानी रहता है। उदाहरण के लिए सिन्धु, गंगा, ब्रह्मपुत्र इत्यादि। .
  2. प्रायद्वीपीय नदियां- वह नदियां जो प्रायद्वीपीय पठार अथवा दक्षिण भारत में होती हैं उन्हें प्रायद्वीपीय नदियां कहा जाता है। उदाहरण के लिए नर्मदा, तापी, महानदी, गोदावरी, कृष्णा, कावेरी इत्यादि।

अन्तर (Differences)

हिमालय की नदियाँ द्वीपीय पठार की नदियाँ
(1) इन नदियों की लंबाई बहुत अधिक है। (1) इनकी लंबाई अपेक्षाकृत कम है।
(2) ये नदियाँ बारहमासी हैं। वर्षा ऋतु में इनमें वर्षा  का जल बहता है। ग्रीष्म ऋतु में हिमालय की  हिम पिघलने से इन नदियों को जल मिलता रहता है। (2) ये नदियाँ मौसमी हैं। इनमें केवल वर्षा ऋतु में ही जल रहता है। ग्रीष्मकाल में ये नदियाँ शुष्क हो जाती हैं।
(3) ये नदियाँ काँप के जमाव से एक विस्तृत मैदान  का जल बहता है। (3) ये नदियाँ अधिक विस्तृत मैदान नहीं बनाती हैं। का निर्माण करती हैं। केवल इन नदियों के मुहाने पर ही संकरे मैदान बनते हैं।
(4) इन नदियों से जल-विद्युत् उत्पन्न की जाती है  और सिंचाई के लिए सारा वर्ष जल प्राप्त किया जाता है। (4) इन नदियों से सम्पूर्ण वर्ष सिंचाई नहीं की जा सकती।
(5) ये नदियाँ यातायात की दृष्टि से उपयोगी नहीं हैं। (5) ये नदियाँ यातायात की सुविधा प्रदान करती  हैं।
(6) ये नदियाँ अपने मार्ग में महाखड्ड (गार्ज) बनाती  हैं। इस प्रकार ये गहरी घाटियों में से होकर बहती हैं। (6) ये नदियाँ महत्त्वपूर्ण जल-प्रपात बनाती हैं। ये उथली घाटियों में से होकर बहती हैं।
(7) इनकी अपरदन क्षमता बहुत ही अधिक है। इसलिए इनमें अवसाद की मात्रा बहुत अधिक होती है। (7) इनकी अपरदन क्षमता अपेक्षाकृत कम है। इसलिए  इनमें अवसाद की मात्रा कम होती है।
(8) अवसाद के जमाव से ये नदियाँ मैदानों में बड़ी संख्या में विसरों का निर्माण करती हैं। (8) चट्टानी धरातल होने तथा अवसाद की कमी होने के कारण ये नदियाँ विसरों का निर्माण नहीं कर पातीं।

 

प्रश्न 2.
भारत के कोई तीन नदी तंत्रों से बोध करवाएं तथा किसी एक की व्याख्या भी करें।
उत्तर-
भारत की नदियों को तीन भागों में बाँटा जा सकता है-हिमालय से निकलने वाली नदियां, प्रायद्वीपीय पठार की नदियां तथा तटीय नदियां। इनका वर्णन इस प्रकार है
I. हिमालय पर्वत से निकलने वाली नदियां-

  1. सिंधु नदी-यह नदी मानसरोवर झील के उत्तर में बोखर-छू ग्लेशियर से निकलती है। यह कश्मीर राज्य में दक्षिण-पूर्व से उत्तर-पश्चिम की ओर बहती है। यह नदी मार्ग में गहरी घाटियाँ बनाती है। यह पाकिस्तान से होती हुई अरब सागर में जा गिरती है। सतलुज, रावी, ब्यास, चिनाब तथा जेहलम इसकी सहायक नदियाँ हैं।
  2. गंगा नदी-यह नदी गंगोत्री हिमनदी के गौ-मुख के स्थान पर निकलती है। आगे चलकर इसमें अलकनंदा तथा मंदाकिनी नदियाँ भी मिल जाती हैं। यह शिवालिक की पहाड़ियों से होती हुई हरिद्वार पहुँचती है। अंत में यह खाड़ी बंगाल में जा गिरती है। इसकी सहायक नदियों में यमुना, रामगंगा, गोमती, घाघरा, गंडक, चंबल, बेतवा, सोन तथा कोसी नदियाँ प्रमुख हैं।
  3. ब्रह्मपुत्र नदी-यह नदी मानसरोवर झील के पूर्व में ‘चेमायुंगडुंग’ नामक हिमनदी से निकलती है। यह तिब्बत, भारत तथा बंगला देश से होती हुई गंगा नदी में जा मिलती है। यहाँ से ब्रह्मपुत्र तथा गंगा का इकट्ठा पानी पद्मा नदी के नाम से आगे बढ़ता है। अंत में यह बंगाल की खाड़ी में जा गिरती है। यह नदी अपने मुहाने पर सुंदरवन नामक डेल्टा का निर्माण करती है।

II. प्रायद्वीपीय पठार की नदियाँ-

  1. महानदी-यह नदी छत्तीसगढ़ में बस्तर की पहाड़ियों से दंदाकारनिया से निकलती है। छत्तीसगढ़ तथा ओडिशा से होती हुई यह खाड़ी बंगाल में जा गिरती है।
  2. गोदावरी नदी-यह नदी पश्चिमी घाट के उत्तरी भाग (सहयाद्री) से निकलती है। यह महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश से होती हुई बंगाल की खाड़ी में जा गिरती है।।
  3. कृष्णा नदी-यह नदी महाबलेश्वर के निकट पश्चिमी घाट से निकलती है। यह कर्नाटक और आंध्र प्रदेश से होती हुई बंगाल की खाड़ी में जा गिरती है। इसकी सहायक नदियों में भीमा, तुंगभद्रा तथा घाट प्रभा प्रमुख हैं।
  4. कावेरी नदी-यह नदी पश्चिमी घाट के दक्षिणी भाग से तालकांवेरी से आरंभ होकर खाड़ी बंगाल में जा गिरती है। मार्ग में यह कर्नाटक और तमिलनाडु राज्यों से गुजरती है। यह शिव-समुद्रम नामक स्थान पर एक सुंदर जल-प्रपात बनाती है।
  5. नर्मदा नदी-यह नदी अमरकंटक के निकट मैकाल की पहाड़ियों से निकलती है तथा खंबात की खाड़ी में जा गिरती है।
  6. ताप्ती नदी-यह नदी सतपुड़ा पर्वत श्रेणियों से अल्ताई के पवित्र कुंड से निकलती है। यह नदी भी अंत में खंबात की खाड़ी में जा गिरती है।

III. तटीय नदियां-भारत के दक्षिणी भाग को तीन समुद्र अरब सागर, बंगाल की खाड़ी तथा हिंद महासागर लगते हैं तथा इनके तटों के साथ बहती हुई नदियों को तटीय नदियां कहा जाता है। इनकी लंबाई काफी कम होती है तथा यह कम समय के लिए बहती हैं। वर्षा की ऋतु में इन नदियों में काफी पानी आ जाता है। वेलुमा, पालाइ, मांडोवी, डापोरा, कालीनदी, शेरावती, नेत्रावती, पेरियार, पोनानी, सुबरनरेखा, खारकायी, पलार, वेराई इत्यादि प्रमुख तटीय नदियां हैं।

PSEB 9th Class SST Solutions Geography Chapter 3a भारत : जलप्रवाह

प्रश्न 3.
उत्तर तथा दक्षिण भारत की नदियों के आर्थिक उपयोगों की चर्चा करें।
उत्तर-
किसी देश की अर्थव्यवस्था में नदियाँ महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। भारत की नदियाँ कोई अपवाद नहीं हैं। ये उत्तरी मैदानों को उपजाऊ बनाती हैं। ये सिंचाई के लिए जल जुटाती हैं तथा पेयजल की आपूर्ति करती हैं। यही नहीं ये परिवहन तथा जल विद्युत निर्माण की दृष्टि से भी अत्यंत उपयोगी हैं। भारत की अर्थव्यवस्था में इनके महत्त्व का वर्णन इस प्रकार है-

  1. जलोढ़ मिट्टी-नदियाँ उपजाऊ जलौढ़ मिट्टी का निर्माण करती हैं। इस प्रकार की मिट्टी नदियों द्वारा लाई गई रेत तथा मृत्तिका के जमा होने से बनती है। नदियाँ प्रतिवर्ष मिट्टी की नई परतें बिछाती रहती हैं। इसलिये इस प्रकार की मिट्टी बहुत उपजाऊ होती है। भारत में जलौढ़ मिट्टी बहुत विस्तृत भाग में पाई जाती है। सतलुज-गंगा का मैदान, ब्रह्मपुत्र नदी की घाटी, महानदी, गोदावरी, कृष्णा तथा कावेरी नदियों के डेल्टों और पूर्वी तथा पश्चिमी तटीय मैदानों में इस प्रकार की मिट्टी पाई जाती है। यह मिट्टी कृषि के लिए बहुत उपयोगी है।
  2. मानव सभ्यता का विकास-नदियाँ प्राचीनकाल से ही मानव सभ्यता के विकास तथा प्रगति में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती रही हैं। भारत की प्रथम महान् सभ्यता सिंधु नदी घाटी में ही फली-फूली थी। वास्तव में नदियों ने आरंभ से ही लोगों को जीवन के विकास तथा प्रगति के लिए आदर्श दशाएँ प्रदान की। नदियों को आरंभ में परिवहन के लिए प्रयोग में लाया गया। इस प्रकार विभिन्न मानव-बस्तियों के बीच संपर्क स्थापित हुआ। नदियों के निकट लोग गेहूँ तथा चावल जैसे खाद्यान्न उगाने लगे। यहाँ उन्हें रेत में मिश्रित सोना, ताँबा, लोहा आदि खनिज भी प्राप्त हुए।
  3. बहु-उद्देशीय परियोजनाएँ तथा सिंचाई-नहरें-नदियों पर भाखड़ा बाँध, दामोदर घाटी परियोजना आदि बहुउद्देशीय परियोजनाएँ बनाई गई हैं। पं० जवाहर लाल नेहरू ने इन परियोजनाओं को ‘आधुनिक भारत के मंदिर’ कह कर पुकारा। ये परियोजनाएँ भारत के लोगों की विभिन्न आवश्यकताओं को पूरा करती हैं। इन आवश्यकताओं में सिंचाई, विद्युत् उत्पादन, नौका वाहन, बाढ़ नियंत्रण, मत्स्य पालन, मिट्टी का संरक्षण, पर्यटन इत्यादि शामिल हैं।
  4. पीने का जल-नदियाँ पीने के जल का मुख्य स्रोत हैं। बड़े-बड़े नगरों में पीने के जल की आपूर्ति नदियों के जल से ही की जाती है। इस जल का शुद्धिकरण करके इसे पीने योग्य बनाया जाता है।
  5. अवसादी निक्षेप-नदियाँ अवसादी निक्षेपों का निर्माण करती हैं। इन निक्षेपों में वनस्पति तथा प्राणी-अवशेष पाए जाते हैं। ये अवशेष गल-सड़ कर कोयले तथा पेट्रोलियम में बदल जाते हैं।
  6. झीलों का उदय-कुछ नदियाँ झीलों को जन्म देती हैं। उदाहरण के लिए श्रीनगर की वूलर झील नदीनिर्मित ही है। झीलों से मनुष्य को भोजन के रूप में मछली प्राप्त होती है। ये जलवायु को सम बनाने में भी सहायता करती है।

PSEB 9th Class Social Science Guide भारत : जलप्रवाह Important Questions and Answers

बहुविकल्पीय प्रश्न :

प्रश्न 1.
हिमालय की अधिकतर नदियां ……….. हैं।
(क) मौसमी
(ख) छ:मासी
(ग) बारहमासी
(घ) कोई नहीं।
उत्तर-
(ग) बारहमासी

प्रश्न 2.
हिमालय की दो मुख्य नदियां हैं-
(क) कृष्णा व कावेरी
(ख) नर्मदा व तापी
(ग) कृष्णा व तुगभद्रा
(घ) सिन्धु व ब्रह्मपुत्र
उत्तर-
(घ) सिन्धु व ब्रह्मपुत्र

प्रश्न 3.
भारत की सबसे बड़ी नदी है-
(क) गंगा
(ख) कावेरी
(ग) ब्रह्मपुत्र
(घ) सतलुज
उत्तर-
(क) गंगा

प्रश्न 4.
गंगा नदी कहां से निकलती है ?
(क) हरिद्वार
(ख) देव प्रयाग
(ग) गंगोत्री
(घ) सांभर
उत्तर-
(ग) गंगोत्री

PSEB 9th Class SST Solutions Geography Chapter 3a भारत : जलप्रवाह

प्रश्न 5.
दो दरियाओं के बीच के क्षेत्र को ……..कहते हैं।
(क) दोआब
(ख) जल विभाजन
(ग) अप्रवाह क्षेत्र
(घ) जल निकास स्वरूप
उत्तर-
(क) दोआब

प्रश्न 6.
इनमें से कौन-सी हिमालय की प्रमुख नदी है ?
(क) गंगा
(ख) सिन्धु
(ग) ब्रह्मपुत्र
(घ) उपर्युक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 7.
सिन्धु नदी की कुल लंबाई कितनी है ?
(क) 2500 कि०मी०
(ख) 2880 कि०मी०
(ग) 2720 कि०मी०
(घ) 3020 कि०मी०
उत्तर-
(ख) 2880 कि०मी०

प्रश्न 8.
गंगा तथा ब्रह्मपुत्र नदियां ………… डैल्टा बनाती हैं।
(क) सुन्दरवन
(ख) अमरकंटक
(ग) नामचा बरवा
(घ) कुमाऊँ।
उत्तर-
(क) सुन्दरवन

रिक्त स्थानों की पूर्ति :

  1. गंगा की कुल लंबाई ………. कि०मी० है।
  2. घाघरा गंडक, कोसी, सोन नदियां ……….. नदी की सहायक नदियां हैं।
  3. ब्रह्मपुत्र ………….. नामक स्थान से भारत में प्रवेश करती है।
  4. ब्रह्मपुत्र की कुल लंबाई ……….. कि०मी० है।
  5. ………. द्वीप दुनिया का सबसे बड़ा नदी में बीच का द्वीप है।
  6. लुनी नदी राजस्थान में ………… से निकलती है।

उत्तर-

  1. 2525,
  2. गंगा,
  3. नामचा बरवा,
  4. 2900,
  5. मंजुली,
  6. पुष्कर।

सही/गलत :

1. साबरमती नदी देबार झील से निकलती है।
2. लुनी नदी की लंबाई 495 किलोमीटर है।
3. कृष्णा को वृद्ध गंगा भी कहते हैं।
4. तटीय नदियों की लंबाई काफी अधिक होती है।
5. भाखड़ा डैम के पीछे गोबिन्द सागर झील बनाई गई है।
6. 1980 में गंगा एक्शन प्लान बनाया गया था।
उत्तर-

PSEB 9th Class SST Solutions Geography Chapter 3a भारत : जलप्रवाह

अति लघु उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
जलप्रवाह क्या होता है ?
उत्तर-
किसी क्षेत्र में बहने वाली नदियों तथा नहरों के जाल को जलप्रवाह कहते हैं।

प्रश्न 2.
दोआब क्या होता है ?
उत्तर-
दो दरियाओं के बीच मौजूद क्षेत्र को दोआब कहते हैं।

प्रश्न 3.
जल विभाजक का अर्थ बताएं।
उत्तर-
जब कोई ऊंचा क्षेत्र, जैसे कि पर्वत, जब दो नदियों या जल प्रवाहों को विभाजित करता हो तो उस क्षेत्र को जल विभाजक कहते हैं।

प्रश्न 4.
अप्रवाह क्षेत्र क्या होता है ?
उत्तर-
किसी नदी या उसकी सहायक नदियों के नज़दीक का क्षेत्र जहां से वह पानी प्राप्त करते हैं उसे अप्रवाह क्षेत्र कहते हैं।

प्रश्न 5.
जल निकास स्वरूप किसे कहते हैं ?
उत्तर-
जब पृथ्वी पर बहता हुआ पानी अलग-अलग स्वरूप बनाता है तो इसे जल निकास स्वरूप कहते हैं।

प्रश्न 6.
जल निकास स्वरूप के प्रकार बताएं।
उत्तर-
द्रुमाकृतिक अप्रवाह, जालीनुमा प्रवाह, आयताकार अप्रवाह तथा अरीय अप्रवाह।

प्रश्न 7.
भारत के नदी तंत्र को हम किन चार भागों में विभाजित कर सकते हैं ?
उत्तर-
हिमालय की नदियां, प्रायद्वीपीय नदी तंत्र, तट की नदियां तथा आंतरिक नदी तंत्र तथा झीलें।

प्रश्न 8.
देश के मुख्य जल विभाजक कौन से हैं ?
उत्तर-
हिमालय पर्वत श्रेणी तथा दक्षिण का प्रायद्वीपीय पठार।

प्रश्न 9.
सिन्धु नदी की सहायक नदियों के नाम बताएं।
उत्तर-
सतलुज, रावी, ब्यास तथा जेहलम।।

प्रश्न 10.
गंगा की सहायक नदियों के नाम बताएं।
उत्तर-
यमुना, सोन, घाघरा, गंडक, बेतवा, कोसी इत्यादि।

प्रश्न 11.
कौन सी नदियां Antecedent Drainage की उदाहरण हैं।
उत्तर-
सिन्धु, सतलुज, अलकनंदा, गंडक, कोसी तथा ब्रह्मपुत्र ।

प्रश्न 12.
तिब्बत में सिन्धु नदी को क्या कहते हैं ?
उत्तर-
तिब्बत में सिन्धु नदी को सिंघी खम्बत या शेर का मुख कहते हैं।

प्रश्न 13.
सिन्धु नदी की कुल लंबाई कितनी है ?
उत्तर-
2880 किलोमीटर।

PSEB 9th Class SST Solutions Geography Chapter 3a भारत : जलप्रवाह

प्रश्न 14.
भारत की पवित्र नदी किसे माना जाता है ?
उत्तर-
गंगा नदी को भारत की पवित्र नदी माना जाता है।

प्रश्न 15.
गंगा की मुख्य धारा को क्या कहते हैं?
उत्तर-
गंगा की मुख्य धारा को भगीरथी कहते हैं।

प्रश्न 16.
गंगा तथा ब्रह्मपुत्र कौन से डैल्टा को बनाती है ?
उत्तर-
सुन्दरवन डैल्टा को।

प्रश्न 17.
गंगा की कुल लंबाई कितनी है ?
उत्तर-
2525 किलोमीटर।

प्रश्न 18.
ब्रह्मपुत्र नदी कहां से शुरू होती है ?
उत्तर-
ब्रह्मपुत्र नदी तिब्बत में कैलाश पर्वत में आंगसी ग्लेशियर से शुरू होती है।

प्रश्न 19.
तिब्बत में ब्रह्मपुत्र नदी को क्या कहा जाता है ?
उत्तर-
तिब्बत में ब्रह्मपुत्र नदी को सांगपो (Tsengpo) कहा जाता है।

प्रश्न 20.
भारत में ब्रह्मपुत्र किस स्थान पर आती है ?
उत्तर-
नमचा बरवा।।

प्रश्न 21.
ब्रह्मपुत्र की सहायक नदियों के नाम बताएं।
उत्तर-
सुबरनगिरी, कमिंग, धनगिरी, दिहांग, लोहित इत्यादि।

प्रश्न 22.
दक्षिण की कौन-सी नदियां पश्चिम दिशा की तरफ बहती हैं ?
उत्तर-
नर्मदा तथा ताप्ती नदियां।

प्रश्न 23.
दक्षिण की कौन सी नदियां पूर्व दिशा की तरफ बहती हैं ?
उत्तर-
महानदी, गोदावरी, कृष्णा तथा कावेरी।

प्रश्न 24.
आंतरिक जल निकास प्रणाली क्या होती है ?
उत्तर-
देश की कई नदियां समुद्र तक पहुंचने से पहले ही खत्म हो जाती हैं तथा इन सब को ही आन्तरिक जल निकास प्रणाली कहा जाता है।

प्रश्न 25.
देश की आंतरिक जल निकास प्रणाली की तीन नदियों के नाम लिखें।
उत्तर-
घग्गर नदी, लूनी नदी, सरस्वती नदी।

PSEB 9th Class SST Solutions Geography Chapter 3a भारत : जलप्रवाह

प्रश्न 26.
प्रायद्वीपीय पठार में प्राकृतिक झीलें कहां मिलती हैं ?
उत्तर-
लोनार (महाराष्ट्र), चिल्का (ओडिशा), पुलीक (तमिलनाडु), पैरीयार (केरल), कोलेरू (सीमांध्र) इत्यादि।

प्रश्न 27.
चिल्का झील की लंबाई कितनी है तथा यह कहां पर स्थित है ?
उत्तर-
चिल्का झील 70 कि०मी० लंबी है तथा यह ओडिशा में स्थित है।

प्रश्न 28.
गंगा एक्शन प्लान कब तथा कहां पर शुरू किया गया था ?
उत्तर-
गंगा एक्शन प्लान 1986 में गंगा के प्रदूषण को रोकने के लिए शुरू किया गया था।

प्रश्न 29.
महानदी की लंबाई कितनी है ?
उत्तर-
858 किलोमीटर।

प्रश्न 30.
गोदावरी, कृष्णा, कावेरी तथा नर्मदा की लंबाई कितनी है ?
उत्तर-
गोदावरी-1465 किलोमीटर, कृष्णा- 140 किलोमीटर, कावेरी-800 किलोमीटर, नर्मदा-1312 किलोमीटर।

प्रश्न 31.
गोदावरी की सहायक नदियों के नाम लिखें।
उत्तर-
धेनगंगा, वेनगंगा, वार्धा, इन्द्रावती, मंजरा, साबरी।

प्रश्न 32.
कावेरी की सहायक नदियों के नाम बताएं।
उत्तर-
हेरावती, हीरानेगी, अमरावती, काबानी।

प्रश्न 33.
ताप्ती नदी की सहायक नदियों के नाम बताएं।
उत्तर-
गिरना, मिंडोला, पूर्णा, पंजारा, शिप्रा, अरुणावती इत्यादि।

प्रश्न 34.
लुनी नदी के बारे में बताएं।
उत्तर-
लुनी नदी पुष्कर, राजस्थान में से निकलती है। इसकी लंबाई 465 किलोमीटर है तथा यह कच्छ के रेगिस्तान में खत्म हो जाती है।

प्रश्न 35.
जम्मू-कश्मीर में प्रमुख झीलों के नाम बताएं।
उत्तर-
डल झील तथा वूलर झील।

प्रश्न 36.
राजस्थान में खारे पानी की झील कौन-सी है ?
उत्तर-
सांबर झील।

प्रश्न 37.
उद्योगों में से कौन-से जहरीले पदार्थ निकाल कर नदियों में फैंके जाते हैं ?
उत्तर-कोडमीयम, आर्सेनिक, सिक्का, तांबा, मैग्नीशियम, पारा, जिंक, निक्कल इत्यादि।

लघु उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
हिमालय की नदियाँ सदानीरा (बारहमासी) क्यों हैं?
उत्तर-
सदानीरा का अर्थ है सारा साल अथवा बारहमास बहने वाली। हिमालय की नदियों को शुष्क ऋतु तथा वर्षा ऋतु दोनों ही ऋतुओं में जल प्राप्त होता है। वर्षा ऋतु में ये वर्षा से जल प्राप्त करती हैं। शुष्क ऋतु में हिमालय की बर्फ पिघल कर इन्हें जल प्रदान करती है। यही कारण है कि हिमालय की नदियाँ सदानीरा अथवा बारहमासी हैं। गंगा तथा ब्रह्मपुत्र हिमालय की बारहमासी नदियों के उदाहरण हैं।

प्रश्न 2.
हिमालय के तीन मुख्य नदी-तंत्रों के नाम बताओ। प्रत्येक की दो सहायक नदियों के नाम बताएं।
उत्तर-
हिमालय के तीन मुख्य नदी तंत्र तथा उनकी सहायक नदियाँ निम्नलिखित हैं-

  1. सिंधु नदी तंत्र-इसकी मुख्य सहायक नदियाँ सतलुज, रावी, ब्यास, चिनाब, झेलम इत्यादि हैं।
  2. गंगा नदी तंत्र-इस नदी तंत्र की मुख्य सहायक नदियाँ यमुना, घाघरा, गोमती, गंडक, सोन, बेतवा इत्यादि हैं। 3. ब्रह्मपुत्र नदी तंत्र-इसकी मुख्य सहायक नदियाँ दिबांग, लोहित, केनुला इत्यादि हैं।

प्रश्न 3.
ब्रह्मपुत्र की घाटी का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
उत्तर-
ब्रह्मपुत्र का उद्गम स्थान तिब्बत में सिंधु और सतलुज के उद्गम के निकट ही है। ब्रह्मपुत्र की लंबाई सिंधु नदी के बराबर है। परंतु इसका अधिकांश विस्तार तिब्बत में है। तिब्बत में इसका नाम सांगपो है। नामचा बरवा नामक पर्वत के पास यह तीखा मोड़ लेकर भारत में प्रवेश करती है। अरुणाचल प्रदेश में इसे दिहांग के नाम से पुकारते हैं। लोहित, दिहांग तथा दिबांग के संगम के पश्चात् इसका नाम ब्रह्मपुत्र पड़ता है। बंग्लादेश के उत्तरी भाग में इसका नाम जमुना है तथा मध्य भाग में इसे पद्मा कहते हैं । दक्षिण में पहुँच कर ब्रह्मपुत्र और गंगा आपस में मिल जाती हैं, तब इस संयुक्त धारा को मेघना कहते हैं।

PSEB 9th Class SST Solutions Geography Chapter 3a भारत : जलप्रवाह

प्रश्न 4.
गंगा नदी प्रणाली का विवरण दें।
उत्तर-
गंगा नदी प्रणाली के मुख्य पहलुओं का वर्णन इस प्रकार हैजन्म-स्थान-गंगा नदी गंगोत्री हिमानी से निकलती है।
सहायक नदियाँ-गंगा की मुख्य सहायक नदियाँ यमुना, रामगंगा, घाघरा, बाघमती, महानंदा, गोमती, गंडक, छोटी गंडक, जलांगी, भैरव, कोसी, दामोदर, सोनत टोंस, केन, बेतवा तथा चंबल इत्यादि हैं।
लंबाई-गंगा नदी की कुल लंबाई 2525 कि० मी० है, जिसमें से यह 2415 कि० मी० की यात्रा भारत में तय करती है।
डेल्टा व अन्य विशेषताएँ-गंगा ब्रह्मपुत्र नदी के साथ मिलकर संसार का सबसे बड़ा डेल्टा बनाती है। अंततः यह पश्चिमी बंगाल के 24 परगना जिले में सुंदरवन डेल्टे के मार्ग से बंगाल की खाड़ी में मिल जाती है।

प्रश्न 5.
भारतीय पठार की पूर्व-प्रवाहिनी नदियों की जानकारी दें।
उत्तर-
भारतीय पठार पर महानदी, गोदावरी, कृष्णा, कावेरी इत्यादि महत्त्वपूर्ण नदियाँ बहती हैं। ये सभी नदियाँ पूर्व की ओर बहती हई बंगाल की खाड़ी में मिलती हैं।

  1. महानदी मध्य प्रदेश में छत्तीसगढ़ पठार की पहाड़ी श्रेणियों से निकलती है।
  2. गोदावरी भारतीय पठार की सबसे बड़ी नदी है। यह सहयाद्रि पर्वत में त्र्यंबकेश्वर के निकट से निकलती है। इस नदी में वर्ष भर पानी रहता है। गंगा नदी की तरह इस नदी ने भी अपने मुहाने पर विस्तृत डेल्टा क्षेत्र का निर्माण किया है।
  3. कृष्णा नदी सहयाद्रि के महाबलेश्वर स्थान से उदय होती है। इसमें भीमा, कोयना, पंचगंगा, तुंगभद्रा इत्यादि नदियाँ मिलती हैं।

प्रश्न 6.
प्रायद्वीपीय पठार के पश्चिम की ओर बहने वाली नदियों का विवरण दें।।
उत्तर-
प्रायद्वीपीय पठार के पश्चिम में बहने वाली नदियों के नाम हैं-माही, साबरमती, नर्मदा तथा ताप्ती।

  1. माही-माही नदी विंध्याचल पर्वत से निकलती है। इसकी कुल लंबाई 533 कि० मी० है। यह खंबात नगर के समीप खंबात की खाड़ी की दाईं ओर जाकर गिरती है।
  2. साबरमती-साबरमती उदयपुर के पास मेश्वा से निकलती है। यह मौसमी नदी 416 कि० मी० लंबी है। अंत में यह गांधीनगर और अहमदाबाद से होती हुई खंबात की खाड़ी में गिरती है।
  3. नर्मदा-यह नदी अमरकंटक पठार से निकलती है और 1312 कि० मी० की यात्रा तय करती हुई जबलपुर, होशंगाबाद होती हुई भडोच के समीप खंबात की खाड़ी में गिरती है।
  4. ताप्ती-दक्षिण की अन्य नदियों की भांति ताप्ती नदी भी मौसमी नदी है, जो मध्य प्रदेश के बेतूल जिले में मुलताई के पास आरंभ होती है और अंत में सूरत के समीप अरब सागर में जा गिरती है। इसकी लंबाई 724 किलोमीटर है।

प्रश्न 7.
हिमालय से निकलने वाली नदियों की प्रमुख विशेषताएँ बताओ।
उत्तर-

  1. हिमालय से निकलने वाली अधिकतर नदियाँ उत्तर भारत में बहती हैं।
  2. ये नदियाँ काफ़ी लंबी हैं तथा बारह मास बहती हैं। वर्षा के समय इन नदियों में बहुत बड़ी मात्रा में पानी बहता है। ग्रीष्म काल में हिमालय की बर्फ पिघलने से इनमें पर्याप्त जल रहता है।
  3. मैदानी भागों में ये नदियाँ कांप का संचयन करती हैं जिससे नदियों के कछार उपजाऊ बनते हैं।
  4. ये नदियाँ सिंचाई और जल विद्युत निर्माण की दृष्टि से भी उपयोगी हैं।
  5. इनका मंद गति से बहने वाला जल यातायात की सुविधा प्रदान करता है।
  6. हिमालय की अधिकतर नदियाँ बंगाल की खाड़ी में गिरती हैं। इसकी एकमात्र मुख्य नदी सिंधु ही अरब सागर में गिरती है।

प्रश्न 8.
सिंधु तथा उसकी सहायक नदी सतलुज पर एक संक्षिप्त नोट लिखो।
उत्तर-
सिंधु-सिंधु नदी हिमालय में मानसरोवर के उत्तर में उदय होती है। यह कश्मीर से होती हुई पाकिस्तान में प्रवेश करती है और अरब सागर में जा गिरती है। इसकी लंबाई लगभग 2900 कि० मी० है। परंतु इसका केवल 700 कि० मी० लंबाई का प्रवाह भारत में है।
PSEB 9th Class SST Solutions Geography Chapter 3a भारत जलप्रवाह 1

सतलुज-सतलुज नदी का उदय मानसरोवर के समीप ही रक्षताल से होता है । यह हिमाचल प्रदेश और पंजाब राज्य से होती हुई पाकिस्तान में जाकर सिंधु में मिल जाती है। सतलुज की सहायक नदियाँ-जेहलम, चिनाब, रावी, ब्यास आदि भी हिमालय से निकलती हैं। इन नदियों के जल का उपयोग मुख्यतः पंजाब में सिंचाई के लिए किया जाता है।

प्रश्न 9.
भारत की झीलों पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखो।
उत्तर-
भारत में झीलों की संख्या अधिक नहीं है। डल, वूलर, सांभर, चिल्का, कोलेरू, पुलीकट, वेबनाद, लोणार आदि भारत की प्रमुख झीलें हैं।

  1. इनमें से सात झीलें कुमाऊँ हिमालय क्षेत्र के नैनीताल जिले में हैं।
  2. डल तथा वूलर झीलें उत्तरी कश्मीर में हैं। ये पर्यटकों के लिए आकर्षण स्थल हैं।
  3. राजस्थान में जयपुर के समीप सांभर और महाराष्ट्र में बुलढाणा जिले में लोणार में खारे पानी की झीलें हैं।
  4. ओडिशा की चिल्का झील भारत की सबसे बड़ी खारे पानी की झील है।
  5. चेन्नई (मद्रास) के समीप पुलीकट अनूप झील है।
  6. गोदावरी और कृष्णा नदी के डेल्टा प्रदेश के बीच कोलेरू नामक मीठे पानी की झील है।
  7. केरल के किनारों के साथ-साथ लंबी-लंबी अनूप झीलें हैं। इन्हें कयाल कहते हैं। इनमें से बनाद खारे पानी का सबसे बड़ा कयाल है।

प्रश्न 10.
“पश्चिमी तटवर्ती नदियां डैल्टा नहीं बनातीं।” व्याख्या करो।
उत्तर-
पश्चिमी तट की मुख्य नदियां नर्मदा तथा ताप्ती हैं। यह नदियां काफी कम दूरी तय करती हैं तथा काफी तेज़ गति से अरब सागर में मिलती हैं। परंतु डैल्टा बनाने के लिए नदियों की गति का कम होना आवश्यक है। इस लिए नर्मदा तथा ताप्ती नदियां डैल्टा नहीं बना पातीं। इनकी लहरें तथा ज्वार अधिक प्रभावशाली होते हैं।

PSEB 9th Class SST Solutions Geography Chapter 3a भारत : जलप्रवाह

दीर्घ उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत के अंदरूनी अर्थात् आंतरिक जल निकास प्रणाली का वर्णन करें।
उत्तर-
देश की बहुत-सी नदियाँ समुद्र तक पहुँचने से पहले ही मार्ग में शुष्क भूमि या झील में समाप्त हो जाती हैं। इस प्रकार आंतरिक स्थलवर्ती क्षेत्रों में ही विसर्जित होने वाले पानी के निकास को आंतरिक जल-निकास प्रणाली कहा जाता है। इस प्रकार की जल-निकास प्रणाली का अध्ययन नदियों के उद्गम व विलीन स्थान के आधार पर किया जाता है।
I. उद्गम स्थान के आधार पर भारत में ऐसी निकास प्रणाली हिमालय तथा अरावली पर्वतों की ढलानों में जन्म लेती है।
1. हिमालय क्षेत्र-हिमालय क्षेत्र में शिवालिक और लद्दाख की अंतर्मुखी जल-निकास प्रणाली आती है।

  1. शिवालिक पर्वत श्रेणियों में घग्घर नदी लगभग 1500 मीटर की ऊँचाई वाली मोरनी की पहाड़ियों से आरंभ होकर पंचकुला के समीप मैदान में प्रवेश करती है। यह पंजाब-हरियाणा की सीमा से राजस्थान के हनुमानगढ़ नगर तक पहुँच जाती है। परंतु मार्ग में यह सिंचाई तथा अधिक वाष्पीकरण के कारण समाप्त हो जाती है। इसकी सहायक नदियों में सुखना, टांगरी, मारकंडा व सरस्वती मुख्य हैं।
  2. घग्घर के अतिरिक्त चंडीगढ़ के आस-पास बहने वाली जैयंती राव तथा पटियाली राव छोटे नाले भी इस प्रकार की जल-निकास प्रणाली में आते हैं।
  3. तराई के क्षेत्र में भी इस तरह की नदियाँ मिलती हैं जो दक्षिण हिमालय की ढलानों से उतर कर भाबर क्षेत्रों में विलीन हो जाती हैं।
  4. लद्दाख की अंतर-पर्वतीय पठारी भाग की अकसाई चिन नदी भी इस प्रकार की प्रणाली का निर्माण करती है।

2. अरावली क्षेत्र-

  1. अरावली क्षेत्र में वर्षा की ऋतु में कई नदियाँ-नाले जन्म लेते हैं। इनकी पश्चिमी ढलानों पर विकसित होने वाली नदियाँ सांभर झील, जयपुर झील या फिर बालू के टिब्बों में समा जाती हैं।
  2. लूनी नदी सांभर झील के पास से शुरू होकर कच्छ के रण में विलीन हो जाती है।

II. विलीन स्थान के आधार पर-इस आंतरिक जल-निकास प्रणाली में बहुत-सी छोटी-छोटी नदियाँ-नाले या बरसाती जलधाराएँ (पंजाबी में चौ कहते हैं) पानी का निकास धरातल पर गहरे खड्डों यानी झीलों (Lakes) में करती हैं। ये झीलें हिमालय, थार मरुस्थल व प्रायद्वीपीय पठार जैसे तीनों ही मुख्य प्राकृतिक भूखंडों में मिलती हैं।
1. हिमालय की झीलें-हिमालय की झीलों का वर्गीकरण इस प्रकार है-

  1. कश्मीर क्षेत्र की डल, वूलर, अनंतनाग, शेषनाग, वैरीनाग जैसी झीलें विश्व-प्रसिद्ध हैं।
  2. कुमाऊँ हिमालय में भीमताल, चंद्रपालताल, नैनीताल, पुनाताल इत्यादि झीलें प्रमुख हैं।

2. थार मरुस्थल-इसमें सांभर, साल्टलेक, जीवई, छोपारबाढ़ाबंध, साईपद व जैसोमंद झीलें आती हैं।
3. प्रायद्वीपीय पठार-इसमें महाराष्ट्र की लोनार, ओडिशा की चिल्का, तमिलनाडु की पुलीकट, केरल की पेरियार आदि प्राकृतिक झीलें हैं।

प्रश्न 2.
बंगाल की खाड़ी में पहुंचने वाली जल-निकास प्रणाली का विवरण दें।
उत्तर-
भारत की अधिकांश नदियाँ बंगाल की खाड़ी में गिरती हैं। खाड़ी बंगाल में गिरने वाले नदी तंत्रों का वर्णन इस प्रकार है गंगा नदी तंत्र-गंगा उत्तराखंड के हिमालय क्षेत्र में गंगोत्री से निकलती है। हरिद्वार के पास यह उत्तरी मैदान में प्रवेश करती है। इसके पश्चिम में यमुना नदी है, जो इलाहाबाद में इससे मिल जाती है। यमुना में दक्षिण की ओर से चंबल, सिंध, बेतवा और केन नामक नदियाँ आकर मिलती हैं। ये सभी नदियाँ मैदान में प्रवेश करने से पूर्व मालवा के पठार पर बहती हैं। दक्षिण पठार से आकर सीधे गंगा में मिलने वाली एकमात्र बड़ी नदी सोन है। आगे बढ़कर पूर्व में दामोदर नदी गंगा में आकर मिलती है। इलाहाबाद के बाद गंगा में मिलने वाली हिमालय की कुछ नदियाँ पश्चिम से पूर्व की ओर इस प्रकार हैं-गोमती, घाघरा, गंडक और कोसी। भारत में गंगा की लंबाई 2415 किलोमीटर है।

ब्रह्मपुत्र नदी तंत्र-ब्रह्मपुत्र का उद्गम स्थल भी तिब्बत में सिंधु और सतलुज के उद्गम के निकट ही है। यह नदी बड़ी भारी मात्रा में जल बहाकर ले जाती है। ब्रह्मपुत्र की लंबाई सिंधु के बराबर है, लेकिन इसका अधिकतर मार्ग तिब्बत में है। तिब्बत में यह हिमालय के समानांतर बहती है, जहाँ इसका नाम सांगपो है। नामचाबरवा नामक पर्वत के पास इसने तीखा मोड़ लिया है। यहीं इसने 5500 मीटर गहरा महाखड्ड बनाया है। भारत में इसकी लंबाई 885 किलोमीटर है। लोहित, दिहांग तथा दिबांग के संगम के बाद इसका नाम ब्रह्मपुत्र पड़ता है। इस नदी में विशाल जलराशि का प्रवाह होता है। बंगलादेश के उत्तरी भाग में इसका नाम सूरमा है तथा मध्य भाग में इसे पद्मा कहते हैं। दक्षिण में बढ़कर ब्रह्मपुत्र और गंगा आपस में मिल जाती हैं। तब इन दोनों की संयुक्त धारा को मेघना कहते हैं।

प्रायद्वीपीय भू-भाग की नदियाँ–प्रायद्वीप की प्रमुख नदियाँ महानदी, गोदावरी, कृष्णा तथा कावेरी हैं जो खाड़ी बंगाल में जा गिरती हैं।

प्रश्न 3.
अरब सागर की जल निकास प्रणाली की व्याख्या करें।
उत्तर-
भारत की कुछ नदियां अरब सागर में जाकर मिलती हैं जिनका वर्णन इस प्रकार है
सिन्धु-सिन्धु नदी की लंबाई 2880 किलोमीटर है परंतु इसका अधिकतर भाग पाकिस्तान में बहता है। यह तिब्बत में शुरू होकर कश्मीर से होते हुए पाकिस्तान में प्रवेश कर जाती है। सतलुज, रावी, ब्यास तथा जेहलम इसकी प्रमुख सहायक नदियां हैं। एक-एक करके यह नदियां अंत में सिन्धु नदी में मिल जाती हैं तथा फिर सिन्धु नदी अथवा सम्पूर्ण जल अरब सागर की गोद में मिला देती है।

प्रायद्वीपीय नदियां-प्रायद्वीपीय भारत की नर्मदा तथा ताप्ती नदियां पश्चिमी दिशा की तरफ बहते हुए अरब सागर में जा मिलती हैं । यह दोनों नदियां तंग तथा लंबी घाटियों से होते हुए बहती हैं । नर्मदा नदी के उत्तर में विंध्याचल पर्वत श्रेणी तथा दक्षिण में सतपुड़ा पर्वत श्रेणी है। सतपुड़ा के दक्षिण में ताप्ती नदी है। कहा जाता है कि यह नदी घाटियां काफी पुरातन हैं। यह नदियां तंग नदी मुखों के द्वारा समुद्र में मिल जाती हैं।

प्रश्न 4.
जल निकास स्वरूप तथा इसके प्रकारों का वर्णन करें।
उत्तर-
जल विकास स्वरूप- जब पृथ्वी के किसी भाग पर पानी बहता है तो यह अलग-अलग प्रकार के स्वरूप बनाता है जिसे हम जल विकास स्वरूप अथवा अप्रवाह प्रतिरूप (Drainage Pattern) कहते हैं। जब भी कोई नदी अथवा दरिया अलग-अलग क्षेत्रों में से बहता है तो बहता हुआ पानी कुछ निश्चित प्रतिरूपों का निर्माण करता है। यह प्रतिरूप चार प्रकार के होते हैं-

  1. द्रमाकृतिक अथवा वृक्ष के समान अप्रवाह (Dendritic Pattern)
  2. आयताकार अथवा समांतर अप्रवाह (Parellel Pattern)
  3. जालीनुमा अप्रवाह (Trallis Pattern)
  4. अरीय अथवा चक्रीय अप्रवाह (Radial Pattern)

PSEB 9th Class SST Solutions Geography Chapter 3a भारत जलप्रवाह 2

जल निकास स्वरूप में पानी की धाराएँ एक निश्चित स्वरूप बनाती हैं जोकि उस क्षेत्र की भूमि की ढलान, जलवायु संबंधी अवस्थाओं तथा वहां पर मौजूद चट्टानों की प्रकृति पर निर्भर करता है।

  1. द्रमाकृतिक अथवा वृक्ष के समान अप्रवाह-द्रमाकृतिक अपवाह उस समय बनता है जब धाराएं उस स्थान की भूमि की ढलान के अनुसार बहती हैं। इस अप्रवाह में मुख्य धारा तथा उसकी सहायक नदियां एक पेड़ की शाखाओं की तरह लगती हैं।
  2. आयताकार अथवा समांतर अप्रवाह-आयताकार अप्रवाह प्रतिरूप प्रबल संधित शैलीय भूभाग पर विकसित होता है।
  3. जालीनुमा अप्रवाह-जब सहायक नदियां मुख्य नदी से समकोण पर मिलती हैं तो जालीनुमा अप्रवाह का निर्माण होता है।
  4. अरीय अथवा चक्रीय अप्रवाह-अरीय अप्रवाह उस समय विकसित होता है जब केन्द्रीय शिखर या गुम्बद जैसी संरचना धाराएं विभिन्न दिशाओं में एकत्रित होती हैं। एक ही अप्रवाह श्रेणी में अलग-अलग प्रकार के अप्रवाह भी मिल जाते हैं।

PSEB 9th Class SST Solutions Geography Chapter 3a भारत : जलप्रवाह

प्रश्न 5.
नदी-जल-प्रदूषण के मुख्य कारण क्या हैं ? इसे कैसे रोका जा सकता है ?
उत्तर-
नदी-जल-प्रदूषण से अभिप्राय है-नदियों के जल में अपशिष्ट पदार्थों तथा विषैले रसायनों का मिलना। आज हमारे देश में नदी-जल-प्रदूषण की गंभीर समस्या बनी हुई है। गंगा तथा यमुना का जल तो बहुत अधिक प्रदूषित हो चुका है। ऐसे जल के उपयोग से पीलिया, पेचिस तथा टाइफाइड जैसी बीमारियाँ फैलती हैं। इससे जल जीवों के लिए भी खतरा उत्पन्न हो गया है।
नदी-जल-प्रदूषण के कारण-नदी-जल-प्रदूषण के लिए स्वयं मनुष्य उत्तरदायी है। वह निम्नलिखित तरीकों से नदियों के जल को प्रदूषित कर रहा है-

  1. कारखानों के अपशिष्ट पदार्थ तथा विषैले रसायन मिला जल नदियों में बहा दिया जाता है। उदाहरण के लिए चमड़ा साफ़ करने वाले कारखानों से निकला गंदा जल आस-पास की नदियों के जल को प्रदूषित कर रहा है।
  2. लोग अपने घरों का कूड़ा-कर्कट तथा गंदा जल नदियों में बहा देते हैं। यह जल बड़े नालों में से होता हुआ नदियों में जा मिलता है।
  3. किसान खेतों में उर्वरकों तथा कीटनाशकों का उपयोग करते हैं। ये पदार्थ वर्षा के जल के साथ बहकर नदियों में जा मिलते हैं।
  4. भारत की लगभग सभी मुख्य नदियों पर बाँध बनाए गए हैं। इससे नदियों का जल-स्तर बढ़ गया है तथा जल के प्रवाह की गति कम हो गई है। परिणामस्वरूप कई प्रकार का खतरनाक अवसाद जल में घुला रहता है और वहीं इकट्ठा होता रहता है।
  5. कुछ नदियों पर धोबी-घाट बने हुए हैं जहाँ मैले कपड़े धोए जाते हैं। इस प्रकार नदियों का जल गंदा तथा विषैला होता रहता है।

नदी-जल-प्रदूषण को रोकने के उपाय-नदी-जल के प्रदूषण को रोकने के लिए निम्नलिखित तरीके अपनाए जाने चाहिएं

  1. प्रदूषित जल का पुनः चक्रण-नगरों के प्रदूषित जल को नगरों के निकट ही वैज्ञानिक ढंग से संशोधित करना चाहिए। इस प्रकार यह पुनः पीने योग्य बन जाएगा और नदी-जल-प्रदूषण पर भी नियंत्रण किया जा सकेगा।
  2. वनारोपण-अधिक-से-अधिक वन लगाए जाने चाहिए। वनस्पति धरातलीय प्रवाह को नियंत्रित करती है तथा कई अपशिष्ट पदार्थों को नदियों में बह जाने से रोकती है।
  3. खेतों की मेड़बंदी-खेतों में हल चलाते समय खेत के चारों ओर ऊँची मेड़ बना देनी चाहिए। यह मेड़ हल्की वर्षा या बाढ़ के समय मिट्टी तथा कीटनाशकों को खेतों से बाहर नहीं जाने देती।
  4. वैधानिक उपाय तथा जागरुकता-लोगों को जागरूक बना कर तथा वैधानिक उपायों द्वारा जल के प्रदूषण को रोकना भी अनिवार्य है। औद्योगिक इकाइयों द्वारा नदियों में गंदे जल की निकासी पर कड़ा प्रतिबंध लगा देना चाहिए। नदियों पर बने धोबी घाट हटा देने चाहिए।
  5. दंडनीय अपराध बनाना-वास्तव में जल को प्रदूषित करना एक दंडनीय अपराध बना देना चाहिए।

भारत : जलप्रवाह PSEB 9th Class Geography Notes

  • अप्रवाह प्रणाली-किसी प्रदेश की मुख्य नदी तथा उसकी सहायक नदियाँ मिलकर जल प्रवाह की एक विशेष रूपरेखा बनाती हैं। इसे अप्रवाह प्रणाली कहते हैं।
  • सहायक नदी-वह नदी जो अपने जल को मुख्य नदी में मिला देती है, उसे मुख्य नदी की सहायक नदी कहते हैं।
  • भारत की मुख्य नदियाँ-भारत की नदियों को मुख्य रूप से दो भागों में विभाजित किया जा सकता है-हिमालय की नदियाँ तथा प्रायद्वीपीय पठार की नदियाँ हिमालय की मुख्य नदियाँ सिंधु, गंगा तथा ब्रह्मपुत्र हैं। प्रायद्वीपीय भारत की मुख्य नदियों में कावेरी, कृष्णा, गोदावरी, ताप्ती तथा नर्मदा के नाम लिए जा सकते हैं।
  • झीलें-भारत की प्रमुख झीलें डल, वूलर, सांभर, चिल्का, कोलेरू, पुलिकट इत्यादि हैं।
  • नदियों का महत्त्व नदियाँ पेयजल की आपूर्ति करती हैं, सिंचाई सुविधाएँ तथा परिवहन सुविधाएँ प्रदान करती हैं। नदियों पर बाँध बना कर जल विद्युत् भी प्राप्त की जाती है।।
  • नदी-प्रदूषण-नदियों में गिरने वाले अपशिष्ट पदार्थों तथा रासायनिक पदार्थों रे नदियों का जल निरंतर प्रदूषित हो रहा है। यह जल पीने योग्य नहीं है।
  • नदी-प्रदूषण को रोकने के उपाय-नदी-जल के उचित प्रबंधन, खेतों की मेड़बंदी तथा राष्ट्रीय जल ग्रिड का निर्माण करके नदी के प्रदूषण को रोका जा सकता है।

PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 13 वस्त्रों की धुलाई

Punjab State Board PSEB 9th Class Home Science Book Solutions Chapter 13 वस्त्रों की धुलाई Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 9 Home Science Chapter 13 वस्त्रों की धुलाई

PSEB 9th Class Home Science Guide वस्त्रों की धुलाई Textbook Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
वस्त्र धोने से पूर्व आप क्या-क्या तैयारी करेंगे?
उत्तर-

  1. वस्त्रों की उधड़ी सिलाइयां लगा लेनी चाहिएं। यदि रफू, बटन, हुकों आदि की ज़रूरत हो तो लगा लो।
  2. वस्त्रों की जेबों आदि को देख लो, बैल्टें, बक्कल आदि उतार दो।
  3. वस्त्रों को रंग अनुसार, रेशे अनुसार, आकार अनुसार, गन्दगी अनुसार छांट कर अलग कर लो।
  4. यदि वस्त्रों पर कोई दाग धब्बे हैं तो पहले इन्हें दूर करो।

प्रश्न 2.
वस्त्रों को छांटने से आप क्या समझते हो?
उत्तर-
वस्त्रों को छांटने का अर्थ है कि वस्त्रों को उनके रंग, रेशे, आकार तथा गन्दगी के आधार पर अलग-अलग कर लेना क्योंकि सारे रेशे एक विधि से नहीं धोए जा सकते इसलिए सूती, ऊनी, रेशमी, नायलॉन, पालिएस्टर के अनुसार वस्त्र अलग कर लिये जाते हैं।
सफ़ेद वस्त्र रंगदार वस्त्रों से पहले धोने चाहिएं क्योंकि रंगदार वस्त्रों से कई बार रंग निकलने लगता है।
छोटे वस्त्र पहले धो लो तथा बड़े जैसे चादरें, खेस आदि को बाद में। कम गन्दे वस्त्र हमेशा पहले धोएं तथा अधिक गन्दे बाद में।

प्रश्न 3.
धोने से पूर्व वस्त्रों की मुरम्मत करनी क्यों जरूरी है?
उत्तर-
कई बार वस्त्र सिलाइयों से अथवा उलेड़ियों से उधड़ जाते हैं अथवा किसी चीज़ में फँसकर फट जाते हैं। ऐसी हालत में वस्त्रों को धोने से पहले मरम्मत कर लेनी चाहिए नहीं तो और फटने अथवा उधड़ने का डर रहता है।

PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 13 वस्त्रों की धुलाई

प्रश्न 4.
कौन-कौन सी बातों के आधार पर आप वस्त्रों को धोने से पहले छांटोगे?
उत्तर-
वस्त्रों की छंटाई उनके रंग, रेशों, आकार तथा गन्दगी के आधार पर की जाती है।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 5.
सूती वस्त्रों की धुलाई कैसी की जाती है?
उत्तर-

  1. पहले वस्त्र को कुछ समय के लिए भिगोकर रखा जाता है ताकि मैल उगल जाये। इस तरह साबुन, मेहनत तथा समय कम लगता है।
  2. कीटाणु रहित करने के लिए वस्त्रों को पानी में 10-15 मिनट के लिए उबाला जाता
  3. पहले से भीगे वस्त्रों को पानी से निकालकर निचोड़ा जाता है तथा साबुन अथवा अन्य किसी डिटर्जेंट आदि से वस्त्रों को रगड़कर, मलकर अथवा थापी से धोया जाता है। अधिक गन्दे हिस्से जैसे कालर, कफ आदि को ब्रुश आदि से रगड़कर साफ़ किया जाता है।
  4. उबालने अथवा साबुन वाले पानी से धोने के पश्चात् कपड़ों को साफ़ पानी से 24 बार खंगाल कर सारा पानी निकाल देना चाहिए। फिर उन्हें अच्छी तरह निचोड़ लो ।।
  5. आवश्यकतानुसार नील अथवा मावा आदि देकर वस्त्र निचोड़कर झाड़कर सूखने के लिए डाल दो।

प्रश्न 6.
ऊनी वस्त्र धोते समय बहुत सावधानी प्रयोग करने की ज़रूरत क्यों पड़ती है?
उत्तर-
ऊनी रेशे पानी में डालने से कमजोर हो जाते हैं तथा लटक जाते हैं। गर्म पानी में डालने पर तथा रगड़कर धोने से यह रेशे जुड़ जाते हैं । सोडे वाले साबुन से धोने पर भी यह रेशे जुड़ जाते हैं। इसलिए ऊनी वस्त्र धोते समय काफ़ी सावधानी की जरूरत होती है।
इनको धोते समय ध्यान रखो कि जितना भी पानी प्रयोग किया जाये सारे का तापमान एक-सा होना चाहिए। कभी भी गर्म पानी तथा सोडे वाले साबुन का प्रयोग न को धोने के वस्त्रों की धुलाई लिए वस्त्र को हाथ से धीरे-धीरे दबाते रहना चाहिए तथा ऊनी वस्त्र को लटकाकर सुखाना नहीं चाहिए। वस्त्र को समतल स्थान पर सीधा रखकर सुखाना चाहिए।

प्रश्न 7.
अपने ऊनी स्वैटर की धुलाई आप कैसे करोगे?
उत्तर-

  1. पहले स्वैटर से नर्म ब्रुश से ऊपरी मिट्टी झाड़ी जाती है।
  2. यदि स्वैटर ऐसा हो कि धोने के पश्चात् उसके बेढंगे हो जाने का डर हो तो धोने से पहले इसका खाका अखबार अथवा खाकी कागज़ पर उतार लेना चाहिए। ताकि धोने के पश्चात् इसको फिर से पहले आकार में लाया जा सके।
  3. पहले ऊनी वस्त्र को पानी में से डुबो कर निकाल लो तथा हाथों से दबाकर पानी निकाल दो। शिकाकाई, रीठे, जैनटिल अथवा लीसापोल को गुनगुने पानी में घोल कर झाग बना लो । फिर इस निचोड़े पानी को इस साबुन वाले पानी में हाथों से धीरे-धीरे दबाकर रगड़े बगैर साफ़ करो।
  4. वस्त्र को साफ़ पानी में धीरे-धीरे खंगालकर इस में से साबुन अच्छी तरह निकाल दो तथा अतिरिक्त पानी तौलिए में दबाकर निकाल लो।
  5. वस्त्र को बनाये हुए खाके पर रखकर इसके आकार में ले आयो तथा समतल स्थान जैसे-चारपाई पर वस्त्र बिछाकर इसके ऊपर सीधा डालकर छांव में सुखाओ।

प्रश्न 8.
भिगोने से सूती, ऊनी और रेशमी वस्त्रों में से कौन-कौन से कमज़ोर हो जाते हैं और इनका धोने से क्या सम्बन्ध है?
उत्तर-
भिगोने से ऊनी तथा रेशमी वस्त्र कमजोर हो जाते हैं जबकि सूती वस्त्र मज़बूत होते हैं। इनका धोने के साथ यह सम्बन्ध है कि ऊपर बताये कारण से सूती वस्त्रों को तो धोने से पहले कुछ समय के लिए भिगो कर रखा जाता है। परन्तु ऊनी तथा रेशमी वस्त्रों को भिगो कर नहीं रखा जाता।

प्रश्न 9.
ऐसी किस्म के वस्त्रों के बारे में बताओ जिन्हें उबाल कर धोया जा सकता है? ऐसे वस्त्र को धोते समय क्या-क्या सावधानियां बरतनी चाहिएं?
उत्तर-
सूती वस्त्रों को उबालकर धोया जा सकता है। इन वस्त्रों को धोते समय . निम्नलिखित सावधानियों की ज़रूरत है

  1. सिलाइयों से उधड़े अथवा किसी अन्य कारण से फटे वस्त्र को धोने से पहले मरम्मत कर लो।
  2. सूती, लिनन, ऊनी, नायलॉन, पॉलिएस्टर, रेशमी वस्त्रों को अलग-अलग कर लो।
  3. सफ़ेद वस्त्रों को पहले धोएं तथा रंगदार को बाद में।
  4. अधिक मैले वस्त्रों को बाद में धोएं।
  5. रोगी के वस्त्रों को 10-15 मिनट के लिए पानी में उबालो तथा बाद में धोएं।
  6. छोटे तथा बड़े वस्त्रों को अलग-अलग करके धोएं।

प्रश्न 10.
रेशमी वस्त्रों की धुलाई कैसे की जाती है?
उत्तर-

  1. रीठे, शिकाकाई अथवा जैनटिल को गुनगुने पानी में घोलकर झाग बनायो तथा इसमें वस्त्र को हाथों से धीरे-धीरे दबाकर धोएं तथा बाद पार पानी से 3-4 या खंगाल कर निकाल लो। वस्त्र को खंगालते समय एक चम्मच सिरका डाल लो । इससे वस्त्र में चमक आ जायेगी।
  2. धोने के पश्चात् रेशमी वस्त्र को गेहूँ का मावा दो ताकि इसकी प्राकृतिक ऐंठन कायम रखी जा सके।
  3. इन वस्त्रों को हमेशा छांव में सुखाएं। आधे सूखे वस्त्रों को इस्तरी करने के लिए उतार लो।

प्रश्न 11.
सूती, ऊनी और रेशमी वस्त्रों को इस्त्री करने में क्या अन्तर है?
उत्तर-
सूती वस्त्रों की प्रैस-सूखे वस्त्रों पर पानी छिड़ककर इन्हें नम कर लिया जाता है तथा कुछ समय के लिए लपेट कर रख दिया जाता है ताकि वस्त्र एक जैसे नम हो जाएं। जब प्रैस अच्छी तरह गर्म हो जाये तो वस्त्र के उल्टे तरफ पहले सिलाइयां, प्लीट, उलेड़ियों वाले फट्टे आदि प्रैस करो। वस्त्र की सीधी तरफ वस्त्र की लम्बाई की ओर प्रैस करो । कालर, कफ, बाजू आदि को पहले इस्तरी करो । प्रेस करने के पश्चात् वस्त्रों को तह लगा कर रख दें अथवा हैंगर पर टांग दें।
ऊनी वस्त्र की प्रेस-ऊनी वस्त्र पर प्रैस सीधी सम्पर्क में नहीं लाई जाती, इससे ऊनी रेशे जल जाते हैं। मलमल के एक सफ़ेद वस्त्र को गीला करके ऊनी वस्त्र पर बिछायो तथा हल्की गर्म प्रैस से उसको प्रैस करो। एक स्थान पर प्रैस 3-4 सैकिण्ड से अधिक न रखो। प्रैस करने के पश्चात् वस्त्र की तह लगा दो।
रेशमी वस्त्रों की इस्त्री-वस्त्रों को नम तौलिए में लपेटकर नम कर लो। पानी का छींटा देने से दाग पड़ सकते हैं। हल्की गर्म इस्त्री से इस्त्री करो । इस्तरी करने के पश्चात् यदि वस्त्र नम हों तो इन्हें सुखा लो तथा सूखने के बाद ही सम्भालो।

PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 13 वस्त्रों की धुलाई

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 12.
वस्त्र धोने से पूर्व क्या-क्या तैयारी करनी चाहिए? सूती वस्त्रों की धुलाई कैसे की जाती है?
उत्तर-
सूती वस्त्रों की प्रैस-सूखे वस्त्रों पर पानी छिड़ककर इन्हें नम कर लिया जाता है तथा कुछ समय के लिए लपेट कर रख दिया जाता है ताकि वस्त्र एक जैसे नम हो जाएं। जब प्रैस अच्छी तरह गर्म हो जाये तो वस्त्र के उल्टे तरफ पहले सिलाइयां, प्लीट, उलेड़ियों वाले फट्टे आदि प्रैस करो। वस्त्र की सीधी तरफ वस्त्र की लम्बाई की ओर प्रैस करो । कालर, कफ, बाजू आदि को पहले इस्तरी करो । प्रेस करने के पश्चात् वस्त्रों को तह लगा कर रख दें अथवा हैंगर पर टांग दें।
ऊनी वस्त्र की प्रेस-ऊनी वस्त्र पर प्रैस सीधी सम्पर्क में नहीं लाई जाती, इससे ऊनी रेशे जल जाते हैं। मलमल के एक सफ़ेद वस्त्र को गीला करके ऊनी वस्त्र पर बिछायो तथा हल्की गर्म प्रैस से उसको प्रैस करो। एक स्थान पर प्रैस 3-4 सैकिण्ड से अधिक न रखो। प्रैस करने के पश्चात् वस्त्र की तह लगा दो।
रेशमी वस्त्रों की इस्त्री-वस्त्रों को नम तौलिए में लपेटकर नम कर लो। पानी का छींटा देने से दाग पड़ सकते हैं। हल्की गर्म इस्त्री से इस्त्री करो । इस्तरी करने के पश्चात् यदि वस्त्र नम हों तो इन्हें सुखा लो तथा सूखने के बाद ही सम्भालो।

प्रश्न 13.
सूती और ऊनी वस्त्रों की धुलाई कैसे की जाती है? इन्हें धोते समय क्या-क्या सावधानियां बरतनी चाहिए?
उत्तर-
सूती वस्त्रों की प्रैस-सूखे वस्त्रों पर पानी छिड़ककर इन्हें नम कर लिया जाता है तथा कुछ समय के लिए लपेट कर रख दिया जाता है ताकि वस्त्र एक जैसे नम हो जाएं। जब प्रैस अच्छी तरह गर्म हो जाये तो वस्त्र के उल्टे तरफ पहले सिलाइयां, प्लीट, उलेड़ियों वाले फट्टे आदि प्रैस करो। वस्त्र की सीधी तरफ वस्त्र की लम्बाई की ओर प्रैस करो । कालर, कफ, बाजू आदि को पहले इस्तरी करो । प्रेस करने के पश्चात् वस्त्रों को तह लगा कर रख दें अथवा हैंगर पर टांग दें।
ऊनी वस्त्र की प्रेस-ऊनी वस्त्र पर प्रैस सीधी सम्पर्क में नहीं लाई जाती, इससे ऊनी रेशे जल जाते हैं। मलमल के एक सफ़ेद वस्त्र को गीला करके ऊनी वस्त्र पर बिछायो तथा हल्की गर्म प्रैस से उसको प्रैस करो। एक स्थान पर प्रैस 3-4 सैकिण्ड से अधिक न रखो। प्रैस करने के पश्चात् वस्त्र की तह लगा दो।
रेशमी वस्त्रों की इस्त्री-वस्त्रों को नम तौलिए में लपेटकर नम कर लो। पानी का छींटा देने से दाग पड़ सकते हैं। हल्की गर्म इस्त्री से इस्त्री करो । इस्तरी करने के पश्चात् यदि वस्त्र नम हों तो इन्हें सुखा लो तथा सूखने के बाद ही सम्भालो।

Home Science Guide for Class 9 PSEB वस्त्रों की धुलाई Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

रिक्त स्थान भरें

  1. ……………….. वस्त्रों को सीधा प्रैस के सम्पर्क में न लाएं।
  2. ………………. रेशे गर्म पानी में डालने से जुड़ जाते हैं।
  3. जुकाम वाले रूमाल को ……………….. मिले पानी में भिगोना चाहिए।
  4. सिल्क के वस्त्रों को …………………. में सुखाना चाहिए।

उत्तर-

  1. ऊनी,
  2. ऊनी,
  3. नमक,
  4. छाया।

एक शब्द में उत्तर दें

प्रश्न 1.
वस्त्रों को कलफ देने से क्या होता है?
उत्तर-
अकड़ाव आ जाता है।

प्रश्न 2.
ऊनी वस्त्र को कैसे नहीं सुखाना चाहिए?
उत्तर-
लटका कर।।

प्रश्न 3.
पहले कौन-से वस्त्र धोने चाहिए?
उत्तर-
सफेद।

ठीक/ग़लत बताएं

  1. सफ़ेद कपड़े पहले धोने चाहिए।
  2. ऊनी कपड़ों को लटका कर नहीं सूखाना चाहिए।
  3. सूती कपड़ों को पानी का छींटा देकर प्रेस करें।
  4. भिगोने से ऊनी कपड़े मज़बूत हो जाते हैं।
  5. रेशमी कपड़ों को धूप में ही सुखाना चाहिए।

उत्तर-

  1. ठीक,
  2. ठीक,
  3. ठीक,
  4. ग़लत,
  5. ग़लत।

बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
ठीक तथ्य हैं-
(A) कपड़े घर में तथा लांडरी में धुलाए जा सकते हैं
(B) ऊनी कपड़ों को सीधा प्रैस के सम्पर्क में न लाएं
(C) अधिक मैले कपड़ों को सदा अन्त में धोएं।
(D) सभी ठीक।
उत्तर-
(D) सभी ठीक।

प्रश्न 2.
ठीक तथ्य नहीं हैं
(A) धोने से पहले कपड़ों की मुरम्मत कर लेनी चाहिए
(B) ऊनी स्वैटर को तार पर लटका कर सुखाएं
(C) रेशमी कपड़ों को छांव में सुखाएं
(D) ऊनी कपड़ों को रीठा, शिकाकाई, जैनटिल आदि से धोना चाहिए।
उत्तर-
(B) ऊनी स्वैटर को तार पर लटका कर सुखाएं

वस्त्रों की धुलाई PSEB 9th Class Home Science Notes

  • वस्त्रों की अच्छी धुलाई से वस्त्र नये जैसे तथा स्वच्छ हो जाते हैं।
  • वस्त्र घर में अथवा लाऊण्डरी में धुलाए जा सकते हैं।
  • वस्त्र धोने से पहले इनकी मरम्मत, छंटाई तथा दाग़ उतारने का काम कर लेना चाहिए।
  • वस्त्रों की छंटाई रेशों, रंग, आकार तथा गन्दगी के अनुसार करनी चाहिए।
  • सूती वस्त्र पानी में भिगोने पर मज़बूत हो जाते हैं जबकि ऊनी तथा रेशमी वस्त्र पानी में भिगो कर रखने पर कमजोर हो जाते हैं।
  • सूती वस्त्रों को कीटाणु रहित करने के लिए उबलते पानी में 10-15 मिनट के लिए रखना चाहिए।
  • सफ़ेद वस्त्र पहले धोने चाहिएं।
  • सूती वस्त्रों को पानी का छींटा देकर प्रैस करो ।
  • ऊनी, रेशमी वस्त्रों को रीठा, शिकाकाई, जैंटील आदि से धोना चाहिए।
  • ऊनी वस्त्रों को लटका कर नहीं सुखाना चाहिए।
  • ऊनी वस्त्रों को सीधा प्रैस के सम्पर्क में न लायें।
  • रेशमी/ सिल्क के वस्त्र को पानी छिड़क कर नम न करो बल्कि किसी नम तौलिए में लपेटकर नम करो तथा प्रैस करो ।

PSEB 9th Class SST Solutions Civics Chapter 2 लोकतंत्र का अर्थ एवं महत्त्व

Punjab State Board PSEB 9th Class Social Science Book Solutions Civics Chapter 2 लोकतंत्र का अर्थ एवं महत्त्व Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 9 Social Science Civics Chapter 2 लोकतंत्र का अर्थ एवं महत्त्व

SST Guide for Class 9 PSEB लोकतंत्र का अर्थ एवं महत्त्व Textbook Questions and Answers

(क) रिक्त स्थान भरें :

  1. ……….. के अनुसार लोकतंत्र ऐसी प्रणाली है जिसमें प्रत्येक व्यक्ति की भागीदारी होती है।
  2. डेमोक्रेसी यूनानी भाषा के दो शब्दों ………. व ……… से मिलकर बना है।

उत्तर-

  1. सीले
  2. Demos, Crati

(ख) बहुविकल्पी प्रश्न :

प्रश्न 1.
लोकतंत्र की सफलता के लिए निम्नलिखित में से कौन-सी शर्त अनिवार्य है :
(अ) साक्षर नागरिक
(आ) चेतन नागरिक
(इ) वयस्क मताधिकार
(ई) उपर्युक्त सभी।
उत्तर-
(ई) उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 2.
लोकतंत्र का शाब्दिक अर्थ है-
(अ) एक व्यक्ति का शासन
(आ) नौकरशाही का शासन
(इ) सैनिक तानाशाही
(ई) लोगों का शासन।
उत्तर-
(ई) लोगों का शासन।

PSEB 9th Class SST Solutions Civics Chapter 2 लोकतंत्र का अर्थ एवं महत्त्व

(ग) निम्नलिखित कथनों में सही के लिए तथा गलत के लिए चिन्ह लगाए :

  1. लोकतंत्र में भिन्न-भिन्न विचार रखने की स्वतंत्रता नहीं होती।
  2. लोकतंत्र स्पष्ट रूप में हिंसात्मक साधनों के विरुद्ध है भले ही ये समाज की भलाई के लिए ही क्यों न अपनाए जाएं।
  3. लोकतंत्र में व्यक्तियों को कई प्रकार के अधिकार दिए जाते हैं।
  4. नागरिकों का चेतन होना लोकतंत्र के लिए अनिवार्य है।

उत्तर-

  1. (✗)
  2. (✓)
  3. (✓)
  4. (✓)

अति लघु उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
डेमोक्रेसी किन दो शब्दों से बना है ? उनके शाब्दिक अर्थ लिखें।
उत्तर-
डेमोक्रेसी यूनानी भाषा के दो शब्दों Demos तथा Cratia से मिलकर बना है। Demos का अर्थ है, जनता तथा Cratia का अर्थ है, शासन। इस प्रकार इसका शाब्दिक अर्थ हुआ जनता का शासन।

प्रश्न 2.
लोकतंत्र शासन प्रणाली के सर्वप्रिय होने के दो कारण लिखें।
उत्तर-

  1. इसमें जनता को अभिव्यक्ति का अधिकार होता है।
  2. इसमें सरकार चुनने में जनता की भागीदारी होती है।

प्रश्न 3.
लोकतंत्र के मार्ग में आने वाली दो बाधाएं लिखें।
उत्तर-
क्षेत्रवाद, जातिवाद तथा क्षेत्रवाद लोकतंत्र के मार्ग में आने वाली बाधाएं हैं।

प्रश्न 4.
लोकतंत्र की कोई एक परिभाषा लिखें।
उत्तर-
डाईसी के अनुसार, “लोकतंत्र सरकार का एक ऐसा रूप है जिसमें शासक दल समस्त राष्ट्र का तुलनात्मक रूप में एक बहुत बड़ा भाग होता है।”

प्रश्न 5.
लोकतंत्र के लिए कोई दो आवश्यक शर्ते (दशाएं) लिखें।
उत्तर-
राजनीतिक स्वतंत्रता तथा आर्थिक समानता लोकतंत्र की सफलता के लिए आवश्यक शर्ते हैं।

प्रश्न 6.
लोकतंत्र के कोई दो सिद्धांत लिखें।
उत्तर-

  1. लोकतंत्र सहिष्णुता के सिद्धांतों पर आधारित है।
  2. लोकतंत्र में सभी को अपने विचार व्यक्त करने का अधिकार होता है।

प्रश्न 7.
लोकतंत्र में शासन की शक्ति का स्रोत कौन होते हैं ?
उत्तर-
लोकतंत्र में शासन की शक्ति का स्रोत लोग होते हैं।

PSEB 9th Class SST Solutions Civics Chapter 2 लोकतंत्र का अर्थ एवं महत्त्व

प्रश्न 8.
लोकतंत्र के दो प्रकार कौन-कौन से हैं ?
उत्तर-
लोकतंत्र दो प्रकार का होता है-प्रत्यक्ष लोकतंत्र तथा अप्रत्यक्ष लोकतंत्र ।

लघु उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
लोकतंत्र की सफलता के लिए कोई दो अनिवार्य शर्तों का वर्णन करें।
उत्तर-

  1. राजनीतिक स्वतंत्रता-लोकतंत्र की सफलता के लिए जनता को राजनीतिक स्वतंत्रता होनी चाहिए। उन्हें भाषण देने, संघ बनाने, विचार व्यक्त करने तथा सरकार की अनुचित नीतियों की आलोचना करने का अधिकार होना चाहिए।
  2. नैतिक आचरण-लोकतंत्र को सफल बनाने के लिए लोगों का आचरण भी उच्च होना चाहिए। अगर लोग व नेता भ्रष्ट होंगे तो लोकतंत्र ठीक ढंग से कार्य नहीं कर पाएगा।

प्रश्न 2.
निर्धनता लोकतंत्र के मार्ग में बाधा कैसे बनती है ? वर्णन करें।
उत्तर-
इसमें कोई शक नहीं है कि निर्धनता लोकतंत्र के मार्ग में बाधा है। सबसे पहले तो निर्धन व्यक्ति अपने मत का प्रयोग ही नहीं करता क्योंकि उसके लिए मत का प्रयोग करने से अधिक आवश्यक है अपने परिवार के लिए पैसा कमाना। इसके साथ-साथ कई बार निर्धन व्यक्ति अपने मत को बेचने पर भी मजबूर हो जाता है। अमीर लोग निर्धन लोगों के मत खरीद कर चुनाव जीत लेते हैं। निर्धन व्यक्ति अपने विचारों को खुल कर अभिव्यक्त भी नहीं कर सकते।

प्रश्न 3.
निरक्षरता लोकतंत्र के मार्ग में बाधा कैसे बनती है। स्पष्ट करें।
उत्तर-
लोकतंत्र का सबसे बड़ा शत्रु तो निरक्षरता ही है। एक अनपढ़ व्यक्ति, जिसे लोकतंत्र का अर्थ भी नहीं पता होता, लोकतंत्र में कोई भूमिका नहीं निभा सकता। इस कारण लोकतांत्रिक मूल्यों का पतन होता है कि सभी लोग इसमें भाग लेते हैं। अनपढ़ व्यक्ति को देश की राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक समस्याओं के बारे में भी पता नहीं होता। इस कारण वह नेताओं के झूठे वायदों का शिकार बनकर अपने मत का ठीक ढंग से प्रयोग भी नहीं कर पाते।

प्रश्न 4.
“राजनीतिक समानता लोकतंत्र की सफलता के लिए ज़रूरी है।” इस कथन की व्याख्या करें।
उत्तर-
यह सत्य है कि राजनीतिक समानता लोकतंत्र की सफलता के लिए आवश्यक है। लोकतंत्र की सफलता के लिए यह आवश्यक है कि लोगों को भाषण देने की स्वतंत्रता होनी चाहिए, उन्हें एकत्र होने तथा संघ बनाने की भी स्वतंत्रता होनी चाहिए। इसके साथ-साथ उन्हें सरकार की गलत नीतियों की आलोचना करने तथा अपने विचारों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता भी होनी चाहिए। ये सब स्वतंत्रताएं केवल लोकतंत्र में ही प्राप्त होती है जिस कारण लोकतंत्र सफल हो पाता है।

PSEB 9th Class SST Solutions Civics Chapter 2 लोकतंत्र का अर्थ एवं महत्त्व

प्रश्न 5.
“राजनीतिक दलों का अस्तित्व लोकतंत्र के लिए जरूरी है।” इस कथन की व्याख्या करें।
अथवा
राजनीतिक दल लोकतंत्र की गाड़ी के पहिए होते हैं। इस कथन की व्याख्या करें।
उत्तर-
लोकतंत्र के लिए राजनीतिक दलों का अस्तित्व काफी आवश्यक है। वास्तव में राजनीतिक दल एक विशेष विचारधारा के यंत्र होते हैं तथा विचारों के अंतरों के कारण ही अलग-अलग राजनीतिक दल सामने आते है। अलगअलग विचारों को राजनीतिक दलों के द्वारा ही सामने लाया जाता है। इन विचारों को सरकार के सामने राजनीतिक दलों द्वारा ही रखा जाता है। इस प्रकार राजनीतिक दल जनता तथा सरकार के बीच एक सेतु का कार्य करते हैं। इसके अतिरिक्त चुनाव लड़ने के लिए भी राजनीतिक दलों की आवश्यकता होती है तथा चुनाव के लिए लोकतंत्र मुमकिन ही नहीं है।

प्रश्न 6.
शक्तियों का विकेंद्रीकरण लोकतंत्र के लिए क्यों जरूरी है ?
उत्तर-
लोकतंत्र का एक आधारभूत सिद्धांत है शक्तियों का विभाजन तथा विकेंद्रीकरण का अर्थ है शक्तियों का सरकार के सभी स्तरों में विभाजन। अगर शक्तियों का विकेंद्रीकरण नहीं होगा तो शक्तियां कुछेक हाथों या किसी एक समूह के हाथों में केंद्रित होकर रह जाएंगी। इससे देश में तानाशाही उत्पन्न होने का खतरा उत्पन्न हो जाएगा तथा लोकतंत्र खत्म हो जाएगा। अगर शक्तियों का विभाजन हो जाएगा तो तानाशाही नहीं हो पाएगी तथा व्यवस्था सुचारू रूप से कार्य कर पाएगी। इसलिए शक्तियों का विकेंद्रीकरण लोकतंत्र के लिए आवश्यक है।

प्रश्न 7.
लोकतंत्र के किन्हीं दो सिद्धांतों की व्याख्या करें।
उत्तर-

  1. लोकतंत्र सहिष्णुता के सिद्धांत पर आधारित है। लोकतंत्र में सभी को अपने विचार व्यक्त करने की स्वतंत्रता होती है।
  2. लोकतंत्र व्यक्ति के व्यक्तित्व के गौरव को विश्वसनीय बनाता है। इस वजह से ही लगभग लोकतांत्रिक देशों ने अपने नागरिकों को समानता प्रदान करने के लिए कई प्रकार के अधिकार दिए हैं।

PSEB 9th Class SST Solutions Civics Chapter 2 लोकतंत्र का अर्थ एवं महत्त्व

दीर्घ उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों का संक्षेप में वर्णन करें।
उत्तर-

  1. लोकतंत्र में सभी व्यक्तियों को अपने विचार प्रकट करने, आलोचना करने तथा अन्य लोगों से असहमत होने का अधिकार होता है।
  2. लोकतंत्र सहिष्णुता के सिद्धांत पर आधारित है। लोकतंत्र में सभी को अपने विचार व्यक्त करने की स्वतंत्रता होती है।
  3. लोकतंत्र व्यक्ति के व्यक्तित्व के गौरव को विश्वसनीय बनाता है। इस वजह से लगभग सभी लोकतांत्रिक देशों ने अपने नागरिकों को समानता प्रदान करने के लिए कई प्रकार के अधिकार दिए हैं।
  4. किसी भी लोकतंत्र में आंतरिक तथा अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों को सुलझाने के लिए शांतिपूर्ण तरीकों पर बल दिया जाता है।
  5. लोकतंत्र हिंसात्मक साधनों के प्रयोग पर बल नहीं देता भले ही यह समाज के हितों के लिए ही क्यों न किए जाएं।
  6. लोकतंत्र एक ऐसी प्रकार की सरकार है जिसके पास प्रभुसत्ता अर्थात् स्वयं निर्णय लेने की शक्ति होती है।
  7. लोकतंत्र बहुसंख्यकों का शासन होता है परंतु इसमें अल्पसंख्यकों को भी समान अधिकार दिए जाते हैं।
  8. लोकतांत्रिक ढंग से चुनी गई सरकार हमेशा संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार कार्य करती है।
  9. लोकतंत्र में सरकार एक जनप्रतिनिधित्व वाली सरकार होती है। जिसे जनता द्वारा चुना जाता है। जनता को अपने प्रतिनिधि को चुनने का अधिकार होता है।
  10. लोकतंत्र में चुनी गई सरकार को संवैधानिक प्रक्रिया द्वारा ही बदला जा सकता है। सरकार बदलने के लिए हम हिंसा का प्रयोग नहीं कर सकते।

प्रश्न 2.
लोकतंत्र के मार्ग में बाधाओं का संक्षेप में वर्णन करें।
उत्तर-
संपूर्ण विश्व में लोकतंत्र एक सर्वप्रचलित शासन व्यवस्था है परंतु इसके सफलतापूर्वक चलने के रास्ते में कुछ बाधाएं हैं जिनका वर्णन इस प्रकार है-

  1. जातिवाद तथा सांप्रदायिकता-अपनी जाति को बढ़ावा देना या अपने धर्म को अन्य धर्मों से ऊंचा समझना देश को तोड़ने का कार्य करता है जो लोकतंत्र के रास्ते में बाधा बनता है।
  2. क्षेत्रवाद-क्षेत्रवाद का अर्थ है अन्य क्षेत्रों या संपूर्ण देश की तुलना में अपने क्षेत्र को प्राथमिकता देना। इससे लोगों की मानसिकता संकीर्ण हो जाती है तथा वह राष्ट्रीय हितों को महत्त्व नहीं देते। इससे राष्ट्रीय एकता को खतरा उत्पन्न हो जाता है।
  3. अनपढ़ता-अनपढ़ता भी लोकतंत्र के रास्ते में एक बाधा है। एक अनपढ़ व्यक्ति को लोकतांत्रिक मूल्यों तथा अपनी वोट के महत्त्व का पता नहीं होता। अनपढ़ व्यक्ति या तो वोट देने नहीं जाते या फिर अपना वोट बेच देते हैं। इससे लोकतंत्र की सफलता पर संदेह होना शुरू हो जाता है।
  4. अस्वस्थ व्यक्ति-अगर देश की जनता अस्वस्थ अथवा बीमार होगी तो वह देश की प्रगति में कोई योगदान नहीं दे पाएगी। ऐसे व्यक्ति सार्वजनिक व राजनीतिक कार्यों में भी रुचि नहीं रखते।
  5. उदासीन जनता-अगर जनता उदासीन है तथा वह सामाजिक व राजनीतिक दायित्वों के प्रति कोई ध्यान नहीं देते तो वह निश्चय ही लोकतंत्र के रास्ते में बाधक हैं। वह अपने मताधिकार का भी ठीक ढंग से प्रयोग नहीं कर पाते। उनकी नेताओं का भाषण सुनने में भी कोई रुचि नहीं होती तथा यह बात ही लोकतंत्र के विरोध में जाती है।

प्रश्न 3.
लोकतंत्र की सफलता के लिए किन्हीं पांच शर्तों का वर्णन करें।
उत्तर-
लोकतंत्र में सफलतापूर्वक काम करने के लिए निम्नलिखित परिस्थितियों का होना आवश्यक समझा जाता

  1. जागरूक नागरिकता-जागरूक नागरिक प्रजातंत्र की सफलता की पहली शर्त है। निरंतर देख रेख ही स्वतंत्रता की कीमत है। नागरिक अपने अधिकार और कर्तव्यों के प्रति जागरूक होने चाहिए। सार्वजनिक मामलों पर हर नागरिक को सक्रिय भाग लेना चाहिए। राजनीतिक समस्याओं और घटनाओं के प्रति सचेत रहना चाहिए। राजनीतिक चुनाव में बढ़-चढ़ कर भाग लेना चाहिए आदि-आदि।
  2. प्रजातंत्र से प्रेम-प्रजातंत्र की सफलता के लिए यह आवश्यक है कि नागरिकों के दिलों में प्रजातंत्र के लिए प्रेम होना चाहिए। बिना प्रजातंत्र से प्रेम के प्रजातंत्र कभी सफल नहीं हो सकता।
  3. शिक्षित नागरिक-प्रजातंत्र की सफलता के लिए शिक्षित नागरिकों का होना आवश्यक है। शिक्षित नागरिक प्रजातंत्र शासन की आधारशिला है। शिक्षा से ही नागरिकों को अपने अधिकारों तथा कर्तव्यों का ज्ञान होता है। शिक्षित नागरिक शासन की जटिल समस्याओं को समझ सकते हैं और उनको सुलझाने के लिए सुझाव दे सकते हैं।
  4. प्रैस की स्वतंत्रता-प्रजातंत्र की सफलता के लिए प्रेस की स्वतंत्रता आवश्यक है। 5. सामाजिक समानता-प्रजातंत्र की सफलता के लिए सामाजिक समानता की भावना का होना आवश्यक है।

PSEB 9th Class SST Solutions Civics Chapter 2 लोकतंत्र का अर्थ एवं महत्त्व

प्रश्न 4.
लोकतांत्रिक शासन प्रणाली की एक परिभाषा दें तथा लोकतंत्र के महत्त्व का संक्षेप में वर्णन करें।
उत्तर-
साधारण शब्दों में लोकतंत्र ऐसी शासन प्रणाली है जिसमें शासकों का चुनाव लोगों द्वारा किया जाता है।

  1. प्रो० डायसी के अनुसार, “प्रजातंत्र ऐसी शासन प्रणाली है, जिसमें शासक वर्ग समाज का अधिकांश भाग हो।”
  2. लोकतंत्र की बहुत सुंदर, सरल तथा लोकप्रिय परिभाषा अमेरिका के भूतपूर्व राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन ने दी है”प्रजातंत्र जनता की, जनता के लिए और जनता द्वारा सरकार है।”

लोकतंत्र का महत्त्व-आजकल के समय में लगभग सभी देशों में लोकतांत्रिक सरकार है तथा इस कारण ही लोकतंत्र का महत्त्व काफी बढ़ जाता है। लोकतंत्र का महत्त्व इस प्रकार है-

  1. समानता-लोकतंत्र में किसी प्रकार का भेदभाव नहीं किया जाता क्योंकि यह समानता पर आधारित होता है। इसके अमीर, गरीब सभी को एक समान अधिकार दिए जाते हैं तथा सभी के वोट का मूल्य एक समान होता है।
  2. जनमत का प्रतिनिधित्व-लोकतंत्र वास्तव में सम्पूर्ण जनता का प्रतिनिधित्व करता है। लोकतांत्रिक सरकार जनता द्वारा चुनी जाती है तथा सरकार लोगों की इच्छा के अनुसार ही कानून बनाती है। अगर सरकार जनमत के अनुसार कार्य नहीं करती तो जनता उसे बदल भी सकती है।
  3. व्यक्तिगत स्वतंत्रता का रक्षक-केवल लोकतंत्र ही ऐसी सरकार है जिसमें जनता की व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा की जाती है। लोकतंत्र में सभी को अपने विचार व्यक्त करने, आलोचना करने तथा संघ बनाने की पूर्ण स्वतंत्रता होती है। लोकतंत्र में तो प्रेस की स्वतंत्रता को भी संभाल कर रखा जाता है जिसे लोकतंत्र का पहरेदार माना जाता है।
  4. राजनीतिक शिक्षा-लोकतंत्र में लगातार चुनाव होते रहते हैं, जिससे जनता को समय-समय पर राजनीतिक शिक्षा मिलती रहती है। अलग-अलग राजनीतिक दल जनमत का निर्माण करते हैं, जनता को सरकार के कार्यों के बारे में बताते है तथा सरकार का मूल्यांकन करते रहते हैं। इससे जनता में राजनीतिक चेतना का भी विकास होता है।
  5. नैतिक गुणों का विकास-शासन की सभी व्यवस्थाओं में से केवल लोकतंत्र ही है जो जनता में नैतिक गुणों का विकास करता है तथा उनके आचरण के उत्थान में सहायता करता है। यह व्यवस्था ही जनता में सहयोग, सहनशीलता जैसे गुणों का विकास करती है।

PSEB 9th Class Social Science Guide लोकतंत्र का अर्थ एवं महत्त्व Important Questions and Answers

बहुविकल्पीय प्रश्न :

प्रश्न 1.
तानाशाही सरकार निम्नलिखित में से किस देश में पाई जाती है?
(क) उत्तरी कोरिया
(ख) भारत।
(ग) रूस
(घ) नेपाल।
उत्तर-
(क) उत्तरी कोरिया

प्रश्न 2.
प्रजातंत्र में निर्णय लिए जाते हैं-
(क) सर्वसम्मति से
(ख) दो-तिहाई बहुमत से
(ग) गुणों के आधार पर
(घ) बहुमत से।
उत्तर-
(घ) बहुमत से।

प्रश्न 3.
यह किसने कहा है, “प्रजातंत्र ऐसा शासन है जिसमें प्रत्येक व्यक्ति भाग लेता है।”
(क) लॉर्ड ब्राइस
(ख) डॉ० गार्नर
(ग) प्रो० सीले
(घ) प्रो० लॉस्की।
उत्तर-
(ग) प्रो० सीले

प्रश्न 4.
यह किसने कहा है, “प्रजातंत्र जनता की, जनता के लिए और जनता द्वारा सरकार है।”
(क) अब्राहम लिंकन
(ख) वाशिंगटन
(ग) जैफरसन
(घ) प्रो० डायसी।
उत्तर-
(क) अब्राहम लिंकन

PSEB 9th Class SST Solutions Civics Chapter 2 लोकतंत्र का अर्थ एवं महत्त्व

प्रश्न 5.
जिस शासन प्रणाली में शासकों का चुनाव जनता द्वारा किया जाता है, उसे क्या कहा जाता है ?
(क) अधिनायकतंत्र
(ख) राजतंत्र
(ग) लोकतंत्र
(घ) कुलीनतंत्र।
उत्तर-
(ग) लोकतंत्र

प्रश्न 6.
निम्न में से कौन-सी लोकतंत्र की विशेषता नहीं है ?
(क) लोकतंत्र जनता का राज है
(ख) संसद् सेना के अधीन होती है
(ग) लोकतंत्र में शासक जनता द्वारा चुने जाते हैं
(घ) लोकतंत्र में चुनाव स्वतंत्र एवं निष्पक्ष होते हैं।
उत्तर-
(ख) संसद् सेना के अधीन होती है

प्रश्न 7.
निम्न में से किस देश में लोकतंत्र है ?
(क) उत्तरी कोरिया
(ख) चीन
(ग) साऊदी अरब
(घ) स्विट्ज़रलैंड।
उत्तर-
(घ) स्विट्ज़रलैंड।

प्रश्न 8.
लोकतंत्र के लिए निम्न में से किस तत्त्व का होना अनिवार्य है?
(क) एक दलीय प्रणाली
(ख) स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव
(ग) अनियमित चुनाव
(घ) प्रैस पर सरकारी नियंत्रण।
उत्तर-
(घ) प्रैस पर सरकारी नियंत्रण।

प्रश्न 9.
निम्न में से कौन-सी लोकतंत्र की विशेषता नहीं है ?
(क) स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव
(ख) वयस्क मताधिकार
(ग) निर्णय लेने की अंतिम शक्ति जनता के निर्वाचित प्रतिनिधियों के पास
(घ) सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग।
उत्तर-
(घ) सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग।

रिक्त स्थान भरें :

  1. Demos तथा Cratia …………. भाषा के शब्द हैं।
  2. ……… में शासक जनता के प्रतिनिधि के रूप में शासन चलाते हैं।
  3. राजनीतिक दल ………. के यंत्र हैं।
  4. व्यावहारिक रूप में लोकतंत्र ………. का शासन होता है।
  5. सन् ……….. में भारत में महिलाओं को पुरुषों के समान अधिकार प्राप्त हो गए।
  6. चीन में प्रत्येक …….. वर्ष के बाद चुनाव होते हैं।
  7. मैक्सिको ……… में स्वतंत्र हुआ।

उत्तर-

  1. यूनानी
  2. लोकतंत्र
  3. विचारधारा
  4. बहुसंख्यक
  5. 1950
  6. पांच
  7. 19301

सही/गलत:

  1. तानाशाही में शासक जनता द्वारा निर्वाचित किए जाते हैं।
  2. चुनाव करने की स्वतंत्रता ही लोकतंत्र का मूल आधार है।
  3. लोकतांत्रिक सरकार संविधान के अनुसार कार्य नहीं करती है।
  4. तानाशाही में व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा की जाती है।।
  5. परवेज मुशर्रफ ने 1999 ई० में पाकिस्तान में सत्ता संभाल ली थी।
  6. चीन में केवल एक राजनीतिक दल साम्यवादी दल है।
  7. PRI चीन का राजनीतिक दल है। ।

उत्तर-

  1. (✗)
  2. (✓)
  3. (✗)
  4. (✗)
  5. (✓)
  6. (✓)
  7. (✗).

PSEB 9th Class SST Solutions Civics Chapter 2 लोकतंत्र का अर्थ एवं महत्त्व

अति लघु उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
डेमोक्रेसी शब्द किस भाषा से लिया गया है?
उत्तर-
यूनानी भाषा से।

प्रश्न 2.
ग्रीक भाषा के शब्द डिमोस (Demos) का अर्थ लिखें।
उत्तर-
डिमोस का अर्थ है लोग।

प्रश्न 3.
ग्रीक भाषा के शब्द ‘क्रेटिया’ का अर्थ लिखें।
उत्तर-
क्रेटिया का अर्थ है शासन।

प्रश्न 4.
‘डैमोक्रेसी’ का शाब्दिक अर्थ लिखें।
उत्तर-
जनता का शासन।

प्रश्न 5.
लोकतंत्र की साधारण परिभाषा लिखें।
उत्तर-
लोकतंत्र एक ऐसी शासन प्रणाली है जिसमें शासकों का चुनाव जनता द्वारा किया जाता है।

प्रश्न 6.
क्या नेपाल में लोकतंत्र है? अपने उत्तर के पक्ष में एक तर्क लिखें।
उत्तर-
नेपाल में लोकतंत्र है क्योंकि लोगों को अपनी सरकार चुनने का अधिकार है।

प्रश्न 7.
लोकतंत्र की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता लिखें।
उत्तर-
लोकतंत्र, स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव पर आधारित होना चाहिए।

प्रश्न 8.
सऊदी अरब में लोकतंत्र न होने का कारण लिखें।
उत्तर-
सऊदी अरब का राजा जनता द्वारा निर्वाचित नहीं है।

प्रश्न 9.
लोकतांत्रिक शासन प्रणाली का एक गुण लिखें।
उत्तर-
लोकतंत्र में नागरिकों को अधिकार एवं स्वतंत्रताएं प्राप्त होती हैं।

प्रश्न 10.
लोकतंत्र का एक दोष लिखें।
उत्तर-
लोकतंत्र में गुणों की अपेक्षा संख्या को अधिक महत्त्व दिया जाता है।

प्रश्न 11.
लोकतंत्र की एक परिभाषा लिखें।
उत्तर-
प्रो० सीले के अनुसार, “प्रजातंत्र ऐसा शासन है जिसमें प्रत्येक व्यक्ति भाग लेता है।”

PSEB 9th Class SST Solutions Civics Chapter 2 लोकतंत्र का अर्थ एवं महत्त्व

प्रश्न 12.
लोकतंत्र की सफलता के लिए दो आवश्यक शर्ते लिखें।
उत्तर-

  1. जागरूक नागरिकता प्रजातंत्र की सफलता की प्रथम शर्त है।
  2. प्रजातंत्र की सफलता के लिए यह आवश्यक है कि नागरिकों के दिलों में प्रजातंत्र के लिए प्रेम होना चाहिए।

प्रश्न 13.
जब शासन की सभी शक्तियां एक व्यक्ति में केंद्रित हों तो उस शासन प्रणाली को क्या कहा जाता है?
उत्तर-
तानाशाही।

प्रश्न 14.
वर्तमान युग में लोकतंत्र का कौन-सा रूप प्रचलित है?
उत्तर-
प्रतिनिधित्व लोकतंत्र अथवा अप्रत्यक्ष लोकतंत्र।

प्रश्न 15.
प्रतिनिधित्व लोकतंत्र की एक विशेषता लिखें।
उत्तर-
प्रतिनिधित्व लोकतंत्र में लोगों के निर्वाचित प्रतिनिधि शासन चलाते हैं।

प्रश्न 16.
तानाशाही की एक विशेषता लिखें।
उत्तर-
तानाशाही में एक व्यक्ति या एक पार्टी का शासन होता है। सभी नागरिकों को शासन में भाग लेने का अधिकार प्राप्त नहीं होता।

प्रश्न 17.
“लोकतंत्र अन्य सभी शासन प्रणालियों से उत्तम है।” एक कारण बताओ।
उत्तर-
लोकतंत्र अन्य शासन प्रणालियों से श्रेष्ठ है क्योंकि यह अधिक उत्तरदायी शासन प्रणाली है और लोगों की आवश्यकताओं एवं हितों का भी ध्यान रखा जाता है।

प्रश्न 18.
क्या मैक्सिको (Mexico) में लोकतंत्र है? अपने उत्तर के पक्ष में एक तर्क लिखें।
उत्तर-
मैक्सिको में लोकतंत्र नहीं है क्योंकि वहां पर चुनाव स्वतंत्र एवं निष्पक्ष नहीं होते।

प्रश्न 19.
किन्हीं दो देशों का नाम लिखें जहाँ पर लोकतंत्र नहीं पाया जाता।
उत्तर-

  1. चीन
  2. उत्तरी कोरिया।

प्रश्न 20.
चीन में सदैव किस पार्टी की सरकार बनती है ?
उत्तर-
चीन में सदैव साम्यवादी पार्टी की सरकार बनती है।

प्रश्न 21.
मैक्सिको में 1930 से 2000 तक किस पार्टी को जीत मिलती रही ?
उत्तर-
मैक्सिको में 1930 से 2000 तक पी० आर० आई० (इंस्टीट्यूशनल रिवोल्यूशनरी पार्टी) को ही जीत मिलती रही।

प्रश्न 22.
फिजी के लोकतंत्र में क्या कमी है ?
उत्तर-
फिजी में फिजीअन लोगों के वोट की कीमत भारतीय लोगों के वोट की कीमत से अधिक होती है।

लघु उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
लोकतंत्र का अर्थ बताओ।
उत्तर-
लोकतंत्र (Democracy) ग्रीक भाषा के दो शब्दों डिमोस (Demos) और क्रेटिया (Cratia) से मिल कर बना है। डिमोस का अर्थ है ‘लोग’ और ‘क्रेटिया’ का अर्थ है ‘शासन’ या सत्ता। इस प्रकार डेमोक्रेसी का शाब्दिक अर्थ है वह शासन जिसमें शासन या सत्ता लोगों के हाथों में हो। दूसरे शब्दों में, लोकतंत्र का अर्थ है प्रजा का शासन।

प्रश्न 2.
प्रत्यक्ष प्रजातंत्र किसे कहते हैं?
उत्तर-
प्रत्यक्ष प्रजातंत्र ही प्रजातंत्र का वास्तविक रूप है। जब जनता स्वयं कानून बनाए, राजनीति को निश्चित करे तथा सरकारी कर्मचारियों पर नियंत्रण रखे, उस व्यवस्था को प्रत्यक्ष प्रजातंत्र कहते हैं। समय-समय पर समस्त नागरिकों की सभा एक स्थान पर बुलाई जाती है और उनमें सार्वजनिक मामलों पर विचार होता है। गांव की ग्राम सभा प्रत्यक्ष प्रजातंत्र का सरल उदाहरण है।

प्रश्न 3.
तानाशाही का अर्थ एवं परिभाषा लिखें।
उत्तर-
तानाशाही में शासन की सत्ता एक व्यक्ति में निहित होती है। तानाशाह अपनी शक्तियों का प्रयोग अपनी इच्छानुसार करता है और वह किसी के प्रति उत्तरदायी नहीं होता। वह तब तक अपने पद पर बना रहता है जब तक शासन की शक्ति उसके हाथों में रहती है। फोर्ड ने तानाशाही की परिभाषा देते हुए कहा है, “तानाशाही राज्य के अध्यक्ष द्वारा गैर-कानूनी शक्ति प्राप्त करना है।”

प्रश्न 4.
तानाशाही की चार विशेषताएँ लिखें।
उत्तर-

  1. राज्य की निरंकुशता-राज्य निरंकुश होता है। तानाशाह की शक्तियां असीमित होती हैं।
  2. एक नेता का गुण-गान-तानाशाही में नेता का गुण-गान किया जाता है। नेता में पूर्ण विश्वास किया जाता है और उसे राष्ट्रीय एकता का प्रतीक माना जाता है।
  3. राजनीतिक दल का अभाव या एक-दलीय व्यवस्था-तानाशाही शासन व्यवस्था में या तो कोई राजनीतिक दल नहीं होता या एक ही दल होता है।
  4. अधिकारों और स्वतंत्रताओं का न होना-तानाशाही में नागरिकों को अधिकारों तथा स्वतंत्रताओं से वंचित कर दिया जाता है।

प्रश्न 5.
लोकतांत्रिक शासन प्रणाली और अलोकतांत्रिक शासन प्रणाली में दो अंतर लिखें।
उत्तर-

  1. लोकतांत्रिक शासन प्रणाली में शासन जनता के निर्वाचित प्रतिनिधियों द्वारा चलाया है। अलोकतांत्रिक शासन में शासन एक व्यक्ति या एक पार्टी द्वारा चलाया जाता है।
  2. लोकतांत्रिक शासन प्रणाली में चुनाव नियमित, स्वतंत्र व निष्पक्ष होना अनिवार्य है। अलोकतांत्रिक शासन प्रणाली में चुनावों का होना आवश्यक नहीं है। यदि चुनाव होते हैं तो स्वतंत्र व निष्पक्ष नहीं होते।

PSEB 9th Class SST Solutions Civics Chapter 2 लोकतंत्र का अर्थ एवं महत्त्व

प्रश्न 6.
लोकतंत्र के मार्ग में आने वाली किन्हीं दो बाधाओं का वर्णन करें।
उत्तर-

  1. अनपढ़ता-लोकतंत्र के मार्ग की सबसे बड़ी बाधा अनपढ़ता है। अनपढ़ता के कारण स्वस्थ जनमत का निर्माण नहीं हो पाता। अशिक्षित व्यक्ति को न तो अधिकारों का ज्ञान होता है और न कर्त्तव्यों का। वह मताधिकार का महत्त्व नहीं समझ पाता।
  2. सामाजिक असमानता-लोकतंत्र की दूसरी गंभीर बाधा सामाजिक असमानता है। सामाजिक असमानता ने लोगों में निराशा तथा असंतोष को बढ़ावा दिया है। राजनीतिक दल सामाजिक असमानता का लाभ उठाने का प्रयास करते हैं।

प्रश्न 7.
“एक व्यक्ति एक वोट’ से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
‘एक व्यक्ति एक वोट’ से अभिप्राय जाति, धर्म, वर्ग, लिंग तथा वंश के भेदभाव के बिना सभी को मताधिकार का समान अधिकार प्रदान करना। वास्तव में एक व्यक्ति एक वोट राजनीतिक समानता का ही दूसरा नाम हैं। राष्ट्र निर्माण एवं राष्ट्रीय एकता के लिए एक व्यक्ति एक वोट का अधिकार आवश्यक है।

प्रश्न 8.
पाकिस्तान में लोकतंत्र को कैसे खत्म किया गया ?
उत्तर-
1999 में पाकिस्तान के सेना प्रमुख परवेज मुशर्रफ ने सैनिक षड्यंत्र करके लोकतांत्रिक सरकार को खत्म करके सत्ता हथिया ली। संसद् द्वारा प्रांतों की असैंबलियों की शक्तियां भी कम कर दी गई। एक कानून पास करके स्वयं को राष्ट्रपति घोषित कर दिया तथा व्यवस्था कर दी कि राष्ट्रपति जब चाहे संसद् को भंग कर सकता है। इस प्रकार वहां पर मुशर्रफ ने पाकिस्तान में लोकतंत्र को खत्म कर दिया।

प्रश्न 9.
चीन में लोकतंत्र क्यों नहीं है ?
उत्तर-चाहे चीन में प्रत्येक पांच वर्ष के पश्चात् चुनाव होते हैं परंतु वहां पर केवल एक राजनीतिक दल साम्यवादी दल है। लोगों को केवल उस दल को ही वोट देना पड़ता है। साम्यवादी दल द्वारा मनोनीत उम्मीदवार ही चुनाव लड़ सकते हैं। संसद् के कुछ सदस्य सेना से भी लिए जाते हैं। जिस देश में कोई विरोधी दल या चुनाव लड़ने के लिए दूसरा दल न हो वहां पर लोकतंत्र हो ही नहीं सकता है।

दीर्घ उत्तरों वाले प्रश्

प्रश्न 1.
लोकतंत्र की मुख्य विशेषताएं लिखें।
उत्तर-
लोकतंत्र की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं-

  1. जनता की प्रभुसत्ता-प्रजातंत्र में प्रभुसत्ता जनता में निहित होती है और जनता ही शक्ति का स्रोत होती है।
  2. जनता का शासन-प्रजातंत्र में शासन जनता द्वारा प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष तौर पर चलाया जाता है। प्रजातंत्र में प्रत्येक निर्णय बहुमत से लिया जाता है।
  3. जनता का हित-प्रजातंत्र में शासन जनता के हित के लिए चलाया जाता है।
  4. समानता-समानता प्रजातंत्र का मूल आधार है। प्रजातंत्र में प्रत्येक मनुष्य को समान समझा जाता है। जन्म, जाति, शिक्षा, धन आदि के आधार पर मनुष्यों में भेद-भाव नहीं किया जाता। सभी मनुष्यों को समान राजनीतिक अधिकार प्राप्त होता है। कानून के सामने सभी व्यक्ति समान होते हैं।
  5. वयस्क मताधिकार-प्रत्येक वयस्क नागरिक को एक वोट डालने का अधिकार होना चाहिए। प्रत्येक वोट का मूल्य एक ही होना चाहिए।
  6. निर्णय लेने की शक्ति-निर्णय लेने की अंतिम शक्ति जनता के निर्वाचित प्रतिनिधियों के पास होनी चाहिए।
  7. स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव-लोकतंत्र में चुनाव स्वतंत्र एवं निष्पक्ष होने चाहिए ताकि सत्ता में बैठे लोग भी चुनाव हार सकें।
  8. कानून का शासन-लोकतंत्र में कानून का शासन होता है। सभी कानून के सामने समान होते हैं। कानून सर्वोत्तम होता है।

प्रश्न 2.
लोकतंत्र के गुण लिखें।
उत्तर-
प्रजातंत्र में निम्नलिखित गुण पाये जाते हैं-

  1. यह सर्वसाधारण के हितों की रक्षा करता है-प्रजातंत्र की यह सबसे बड़ी विशेषता है कि इसमें राज्य के किसी विशेष वर्ग के हितों की रक्षा न करके समस्त जनता के हितों की रक्षा की जाती है। प्रजातंत्र में शासक सत्ता को एक अमानत मानते हैं और उसका प्रयोग सार्वजनिक कल्याण के लिए किया जाता है।
  2. यह जनमत पर आधारित है-प्रजातंत्र शासन जनमत पर आधारित है अर्थात् शासन जनता की इच्छानुसार चलाया जाता है। जनता अपने प्रतिनिधियों को निश्चित अवधि के लिए चुनकर भेजती है। यदि प्रतिनिधि जनता की इच्छानुसार शासन नहीं चलाते तो उन्हें दोबारा नहीं चुना जाता है। इस शासन प्रणाली में सरकार जनता की इच्छाओं की ओर विशेष ध्यान देती है।
  3. यह समानता के सिद्धांत पर आधारित है-प्रजातंत्र में सभी नागरिकों को समान माना जाता है। किसी भी व्यक्ति को जाति, धर्म, लिंग के आधार पर कोई विशेष अधिकार नहीं दिये जाते। प्रत्येक वयस्क को बिना भेदभाव के मतदान, चुनाव लड़ने तथा सार्वजनिक पद प्राप्त करने का समान अधिकार प्राप्त है। सभी मनुष्यों को कानून के सामने समान माना जाता है।
  4. राजनीतिक शिक्षा-लोकतंत्र में नागरिकों को अन्य शासन प्रणालियों की अपेक्षा अधिक राजनीतिक शिक्षा मिलती है।
  5. क्रांति का डर नहीं-लोकतंत्र में क्रांति की संभावना बहुत कम होती है।
  6. नागरिकों के गौरव में वृद्धि-लोकतंत्र में नागरिकों के गौरव में वृद्धि होती है।
  7. विवादों एवं मतभेदों का हल-लोकतंत्र में विवादों और मतभेदों को दूर किया जाता है। सभी समस्याओं का हल शांतिपूर्ण तरीकों से किया जाता है।

प्रश्न 3.
लोकतंत्र के मुख्य दोष लिखें।
उत्तर-
जहां एक ओर लोकतंत्र में इतने गुण पाए जाते हैं वहीं दूसरी ओर इसमें निम्नलिखित अवगुण भी पाए जाते

  1. यह अज्ञानियों, अयोग्य तथा मूल् का शासन है-प्रजातंत्र को अयोग्यता की पूजा बताया जाता है। इसका कारण यह है कि जनता में अधिकांश व्यक्ति अयोग्य, मूर्ख, अज्ञानी तथा अनपढ़ होते हैं।
  2. यह गुणों के स्थान पर संख्या को अधिक महत्त्व देता है-प्रजातंत्र में गुणों की अपेक्षा संख्या को अधिक महत्त्व दिया जाता है। यदि किसी विषय को 60 मूर्ख ठीक कहें और 59 बुद्धिमान गलत कहें तो मूल् की ही बात को माना जाएगा। इस प्रकार लोकतंत्र में मूों का शासन होता है।
  3. यह उत्तरदायी शासन नहीं है-वास्तव में प्रजातंत्र अनुत्तरदायी शासन है। इसमें नागरिक केवल चुनाव वाले दिन ही संप्रभु होते हैं। परंतु चुनावों के पश्चात् नेता जानते हैं कि जनता उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकती अतः अपनी मनमानी करते हैं।
  4. यह बहुत खर्चीला है-लोकतंत्र में आम चुनावों का प्रबंध पर बहुत धन खर्च हो जाता है।
  5. अमीरों का शासन-लोकतंत्र कहने को तो प्रजा का शासन है परंतु वास्तव में यह अमीरों का शासन है।
  6. अस्थायी तथा कमजोर शासन-लोकतंत्र में नेतृत्व में शीघ्र परिवर्तन होने के कारण सरकार अस्थायी तथा कमज़ोर होती है। बहु-दलीय प्रणाली के अंतर्गत किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत प्राप्त न होने के कारण मिली-जुली सरकार बनाई जाती है। मिली-जुली सरकार अस्थायी और कमजोर होती है।
  7. भ्रष्टाचार-लोकतंत्र में भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता है।
  8. नैतिक स्तर में गिरावट-चुनाव में विजयी होने के लिए सभी तरह के साधनों का प्रयोग किया जाता है जिससे नैतिक स्तर में गिरावट आती है।

प्रश्न 4.
क्या आप इस विचार से सहमत हैं कि लोकतंत्र सर्वश्रेष्ठ शासन प्रणाली है? अपने उत्तर के पक्ष में तर्क दें।
उत्तर-
वर्तमान युग में संसार के अधिकांश देशों में लोकतंत्र पाया जाता है। लोकतंत्र को स्वतंत्र, कुलीनतंत्र, तानाशाही इत्यादि शासन प्रणालियों से निम्नलिखित कारणों से उत्तम माना जाता है।

  1. लोगों के हितों की रक्षा-लोकतंत्र अन्य शासन प्रणालियों से उत्तम है क्योंकि इसमें जनता की आवश्यकताओं की पूर्ति की जाती है। लोकतंत्र में किसी विशेष वर्ग के हितों की रक्षा न करके समस्त जनता के हितों की रक्षा की जाती है।
  2. जनमत पर आधारित-लोकतंत्र ही एक ऐसी शासन प्रणाली है जो जनमत पर आधारित है। शासन जनता की इच्छानुसार चलाया जाता है।
  3. उत्तरदायी शासन-लोकतंत्र श्रेष्ठ है क्योंकि लोकतंत्र में सरकार अपने समस्त कार्यों के लिए जनता के प्रति उत्तरदायी होती है। जो सरकार लोगों के हितों की रक्षा नहीं करती उसे बदल दिया जाता है।
  4. नागरिकों के गौरव में वृद्धि-लोकतंत्र ही एक ऐसी शासन प्रणाली है जिसमें नागरिकों के गौरव में वृद्धि होती है। सभी नागरिकों को समान राजनीतिक अधिकार प्राप्त होते हैं। जब एक आम नागरिक के घर बड़े-बड़े नेता वोट मांगने आते हैं तो उससे उसके गौरव की वृद्धि होती है।
  5. समानता पर आधारित-सभी नागरिकों को शासन में भाग लेने का समान अधिकार प्राप्त होता है और कानून के सामने भी सभी नागरिकों को समान माना जाता है।
  6. विचार-विमर्श एवं वाद-विवाद-लोकतंत्र में अच्छे निर्णय लिए जाते हैं, क्योंकि सभी निर्णय विचारविमर्श और वाद-विवाद से लिए जाते हैं।
  7. आलोचना का अधिकार-प्रजातंत्र में सरकार की आलोचना करने का अधिकार प्राप्त होता है।
  8. निर्णयों पर पुनर्विचार-लोकतंत्र अन्य शासन प्रणालियों से उत्तम है क्योंकि इसमें गलत निर्णयों को बदलना आसान है। लोकतंत्र में भी गलत निर्णय हो सकते हैं पर सार्वजनिक वाद-विवाद के बाद उन्हें बदला जा सकता है।

प्रश्न 5.
मैक्सिको में कैसे लोकतंत्र का दमन किया जाता रहा है ?
उत्तर-
मैक्सिको को 1930 में स्वतंत्रता प्राप्त हुई तथा वहां प्रत्येक 6 वर्ष के पश्चात् राष्ट्रपति के चुनाव होते थे। परंतु सन् 2000 तक वहां केवल PRI (संस्थागत क्रांतिकारी दल) ही चुनाव जीतती आई है। इसके कुछ कारण हैं जैसे कि

  1. PRI शासित दल होने के कारण कुछ अनुचित साधनों का प्रयोग करती थी ताकि चुनाव जीते जा सकें।
  2. सरकारी अधिकारियों व कर्मचारियों को पार्टी की सभाओं में मौजूद रहने के लिए बाध्य किया जाता था।
  3. सरकारी अध्यापकों को अपने विद्यार्थियों के माता-पिता को PRI के पक्ष में वोट देने के लिए कहने को कहा जाता था।
  4. अंतिम क्षणों में मतदान वाले दिन मतदान केंद्र ही बदल दिया जाता था ताकि लोग वोट ही न दे पाएं। इस प्रकार वहां पर निष्पक्ष मतदान नहीं हो पाते थे तथा लोकतंत्र का दमन किया जाता था।

PSEB 9th Class SST Solutions Civics Chapter 2 लोकतंत्र का अर्थ एवं महत्त्व

लोकतंत्र का अर्थ एवं महत्त्व PSEB 9th Class Civics Notes

  • लोकतंत्र एक प्रकार की सरकार है जिसे जनता द्वारा एक निश्चित समय के लिए सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार से चुना जाता है।
  • लोकतंत्र अंग्रेजी के शब्द Democracy का हिंदी अनुवाद है। (Democracy) Damos तथा cratia दो यूनानी शब्दों से बना है । (Demos) का अर्थ है, जनता तथा Cratia का अर्थ है, शासन। इस प्रकार Democracy का अर्थ है, जनता का शासन।
  • लोकतंत्र एक ऐसी संगठनात्मक व्यवस्था है जिसमें राजनीतिक शक्ति प्राप्त करने के लिए लोगों की स्वतंत्र प्रतिभागिता को विश्वसनीय बनाया जाता है।
  • लोकतंत्र की सबसे उपयुक्त परिभाषा अमेरिका के 16वें राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन ने दी थी। उनके अनुसार लोकतंत्र जनता की, जनता के लिए तथा जनता द्वारा निर्वाचित सरकार है।
  • लोकतंत्र का सबसे प्रथम आधारभूत सिद्धांत यह है कि इसमें सभी को अपने विचार प्रकट करने तथा आलोचना करने की स्वतंत्रता होती है।
  • लोकतंत्र का आजकल के समय में काफी अंतर है क्योंकि यह व्यक्तिगत स्वतंत्रता का लक्ष्य है, यह शक्ति व प्रगति का सूचक है, यह संपूर्ण जनता का प्रतिनिधित्व करती है इत्यादि।
  • आजकल के समय में लोकतंत्र के रास्ते में कई बाधाएं आ रही हैं जैसे कि जातिवाद, सांप्रदायिकता, क्षेत्रवाद निर्धनता, समाज के विकास के प्रति उदासीनता इत्यादि।
  • लोकतंत्र की स्वतंत्रता के लिए कुछेक आवश्यक शर्ते हैं जैसे कि इसमें राजनीतिक स्वतंत्रता होनी चाहिए, आर्थिक तथा सामाजिक समानता होनी चाहिए, लोग साक्षर तथा चेतन होने चाहिए, उनका नैतिक व्यवहार उच्च कोटि का होना चाहिए इत्यादि।
  • बहुत से देश ऐसे हैं जहां पर लोकतंत्र के नाम पर जनता से धोखा होता है। उदाहरण के लिए पाकिस्तान, चीन, फिजी, मैक्सिको इत्यादि। पाकिस्तान में लोकतंत्र पर हमेशा सेना का पहरा होता है। चीन में केवल एक ही राजनीतिक दल है, फिजी में वोट की शक्ति का अंतर है तथा मैक्सिकों में सरकार चुनाव जीतने के लिए गलत हथकंडे अपनाती है।
  • लोकतंत्र दो प्रकार का होता है-प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष। अप्रत्यक्ष लोकतंत्र को प्रतिनिधि लोकतंत्र भी कहा जाता है जिसमें जनता प्रत्यक्ष रूप से अपने प्रतिनिधि चुनती है।
  • आजकल के समय में जनसंख्या के काफी बढ़ने के कारण प्रत्यक्ष लोकतंत्र मुमकिन नहीं है। यह तो प्राचीन समय के यूनान जैसे नगर राज्यों में होता था जहां पर जनसंख्या हजारों में होती थी।

PSEB 9th Class SST Solutions History Chapter 3 सिक्ख धर्म का विकास (1539 ई०-1581 ई०)

Punjab State Board PSEB 9th Class Social Science Book Solutions History Chapter 3 सिक्ख धर्म का विकास Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 9 Social Science History Chapter 3 सिक्ख धर्म का विकास

SST Guide for Class 9 PSEB सिक्ख धर्म का विकास Textbook Questions and Answers

(क) बहुविकल्पीय प्रश्न :

प्रश्न 1.
किस गुरु जी ने गोइंदवाल में बाउली का निर्माण शुरू करवाया ?
(क) श्री गुरु अंगद देव जी
(ख) श्री गुरु अमरदास जी
(ग) श्री गुरु रामदास जी
(घ) श्री गुरु नानक देव जी।
उत्तर-
(क) श्री गुरु अंगद देव जी

प्रश्न 2.
मंजीदारों की कुल संख्या कितनी थी ?
(क) 20
(ख) 21
(ग) 22
(घ) 23
उत्तर-
(ग) 22

प्रश्न 3.
मुग़ल सम्राट अकबर कौन-से गुरु साहिब के दर्शन के लिए गोइंदवाल आए ?
(क) गुरु नानक देव जी
(ख) गुरु अंगद देव जी
(ग) गुरु अमरदास जी
(घ) गुरु रामदास जी।
उत्तर-
(ग) गुरु अमरदास जी

PSEB 9th Class SST Solutions History Chapter 3 सिक्ख धर्म का विकास (1539 ई०-1581 ई०)

प्रश्न 4.
भाई लहणा जी गुरु नानक देव जी के दर्शन करने के लिए कहां गए ?
(क) श्री अमृतसर साहिब
(ख) करतारपुर
(ग) गोइंदवाल
(घ) लाहौर।
उत्तर-
(ख) करतारपुर

प्रश्न 5.
गुरु रामदास जी ने अपने पुत्रों में से गुरुगद्दी किसको दी ?
(क) पृथीचंद
(ख) महादेव
(ग) अर्जन देव
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(ग) अर्जन देव

(ख) रिक्त स्थान भरें :

  1. गुरु अंगद देव जी ने गुरुमुखी लिपि में ……………… लिखा।
  2. ……… जी हर साल हरिद्वार में गंगा स्नान के लिए जाते थे।
  3. …………. ने गोईंदवाल में बाउली का निर्माण पूरा करवाया।
  4. गुरु रामदास जी ने ………….. नगर की स्थापना की।
  5. ‘लावां’ बाणी ……….. जी की प्रसिद्ध रचना है।

उत्तर-

  1. ‘बाल बोध’
  2. गुरु अमरदास
  3. गुरु अमरदास जी
  4. रामदासपुर (अमृतसर)
  5. गुरु रामदास जी।

(ग) सही मिलान करें:

(क) – (ख)
1. बाबा बुड्ढा जी – (अ) अमृत सरोवर
2. मसंद प्रथा – (आ) श्री गुरु रामदास जी
3. भाई लहणा – (इ) श्री गुरु अंगद देव जी
4. मंजी प्रथा – (ई) श्री गुरु अमरदास जी।

उत्तर-

  1. अमृत सरोवर
  2. श्री गुरु रामदास जी
  3. श्री गुरु अंगद देव जी
  4. श्री गुरु अमरदास जी।

(घ) अंतर बताओ :

प्रश्न -संगत और पंगत।
उत्तर-संगत-संगत से अभिप्राय गुरु शिष्यों के उस समूह से है जो एक साथ बैठकर गुरु जी के उपदेशों पर अमल करते थे।
पंगत-पंगत के अनुसार गुरु के शिष्य इकट्ठे मिल-बैठकर एक ही रसोई में पका खाना खाते थे।

अति लघु उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
गुरु अंगद देव जी का पहला नाम क्या था ?
उत्तर-
गुरु अंगद देव जी का पहला नाम भाई लहणा था।

प्रश्न 2.
‘गुरुमुखी’ से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
गुरुमुखी का अर्थ है गुरुओं के मुख से निकलने वाली।

प्रश्न 3.
मंजीदार किसे कहा जाता था ?
उत्तर-
मंजियों के प्रमुख को मंजीदार कहा जाता था जो गुरु साहिब व संगत के मध्य एक कड़ी का कार्य करते थे।

PSEB 9th Class SST Solutions History Chapter 3 सिक्ख धर्म का विकास (1539 ई०-1581 ई०)

प्रश्न 4.
अमृतसर का पुराना नाम क्या था ?
उत्तर-
अमृतसर का पुराना नाम रामदासपुर था।

प्रश्न 5.
गुरु रामदास जी का मूल नाम क्या था ?
उत्तर-
भाई जेठा जी।

प्रश्न 6.
मसंद प्रथा से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
मसंद प्रथा के अनुसार गुरु के मसंद स्थानीय सिख संगत के लिए गुरु के प्रतिनिधि होते थे।

लघु उत्तरों वाले प्रश्न।

प्रश्न 1.
मंजी प्रथा पर नोट लिखो।
उत्तर-
मंजी प्रथा की स्थापना गुरु अमरदास जी ने की थी। उनके समय में सिक्खों की संख्या काफ़ी बढ चकी थी। परंतु गुरु जी की आयु अधिक होने के कारण उनके लिए एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाकर अपनी शिक्षाओं का प्रचार करना कठिन हो गया। अतः उन्होंने अपने सारे आध्यात्मिक प्रदेश को 22 भागों में बांट दिया। इनमें से प्रत्येक भाग को ‘मंजी’ कहा जाता था। इसके प्रमुख को मंजीदार। प्रत्येक मंजी छोटे-छोटे स्थानीय केंद्रों में बंटी हुई थी जिन्हें पीड़ियां (Piris) कहते थे। सिख संगत इनके द्वारा अपनी भेंट गुरु साहिब तक पहुंचाती थी। मंजी प्रणाली का सिक्ख धर्म के इतिहास में विशेष महत्त्व है। डॉ० गोकुल चंद नारंग के शब्दों में, “गुरु जी के इस कार्य ने सिक्ख धर्म की नींव सुदृढ़ करने तथा देश के सभी भागों में प्रचार कार्य को बढ़ाने में विशेष योगदान दिया।”

प्रश्न 2.
गुरु अंगद देव जी का गुरुमुखी लिपि के विकास में क्या योगदान है ?
उत्तर-
गुरुमुखी लिपि गुरु अंगद देव जी से पहले प्रचलित थी। गुरु जी ने इसें गुरुमुखी का नाम देकर इसका मानकीकरण किया। कहते हैं कि गुरु अंगद देव जी ने गुरुमुखी के प्रचार के लिए गुरुमुखी वर्णमाला में बच्चों के लिए ‘बाल बोध’ की रचना की। जनसाधारण की भाषा होने के कारण इससे सिक्ख धर्म के प्रचार के कार्य को बढ़ावा मिला। आज सिक्खों के सभी धार्मिक ग्रंथ इसी भाषा में हैं।

प्रश्न 3.
गुरु अमरदास जी के द्वारा किये गए समाज सुधार के कार्यों पर नोट लिखो।
उत्तर-
गुरु अमरदास जी ने अनेक महत्त्वपूर्ण सामाजिक सुधार किए-

  1. गुरु अमरदास जी ने जाति मतभेद का खंडन किया। गुरु जी का विश्वास था कि जाति मतभेद परमात्मा की इच्छा के विरुद्ध है। इसलिए गुरु जी के लंगर में जाति-पाति तथा छुआछूत को कोई स्थान नहीं दिया था।
  2. उस समय सती प्रथा जोरों से प्रचलित थी। गुरु जी ने इस प्रथा के विरुद्ध ज़ोरदार आवाज़ उठाई।
  3. गुरु जी ने स्त्रियों में प्रचलित पर्दे की प्रथा की भी घोर निंदा की। वे पर्दे की प्रथा को समाज की उन्नति के मार्ग में एक बहुत बड़ी बाधा मानते थे।
  4. गुरु अमरदास जी नशीली वस्तुओं के सेवन के भी घोर विरोधी थे। उन्होंने अपने अनुयायियों को सभी नशीली
    वस्तुओं से दूर रहने का निर्देश दिया।

इन सब कार्यों से स्पष्ट है कि गुरु अमरदास जी निःसंदेह एक महान् सुधारक थे।

प्रश्न 4.
अमृतसर की स्थापना पर नोट लिखो।
उत्तर-
गुरु रामदास जी ने रामदासपुर की नींव रखी। आजकल इस नगर को अमृतसर कहते हैं। गुरु साहिब ने 1577 ई० में यहां अमृतसर तथा संतोखसर नामक दो सरोवरों की खुदाई आरंभ की, परंतु उन्होंने देखा कि गोइंदवाल में रहकर खुदाई के कार्य का निरीक्षण करना कठिन है। अतः उन्होंने यहीं डेरा डाल दिया। कई श्रद्धालु लोग भी यहीं आ कर बस गए और कुछ ही समय में सरोवर के चारों ओर एक छोटा-सा नगर बस गया। इसे रामदासपुर का नाम दिया गया। गुरु जी ने इस नगर को हर प्रकार से आत्मनिर्भर बनाने के लिए एक बाज़ार की स्थापना की जिसे आजकल ‘गुरु का बाज़ार’ कहते हैं। इस नगर के निर्माण से सिक्खों को एक महत्त्वपूर्ण तीर्थ स्थान मिल गया जिससे सिक्ख धर्म के विकास में सहायता मिली।

दीर्घ उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
श्री गुरु अंगद देव जी ने सिक्ख पंथ के विकास के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण कार्य किए। वर्णन करो।
उत्तर-
श्री गुरु नानक देव जी (1539 ई०) के पश्चात् गुरु अंगद देव जी गुरुगद्दी पर आसीन हुए। उनका नेतृत्व सिक्ख धर्म के लिए वरदान सिद्ध हुआ। उन्होंने निम्नलिखित ढंग से सिक्ख धर्म के विकास में योगदान दिया

  1. गुरुमुखी लिपि में सुधार-गुरु अंगद देव जी ने गुरुमुखी लिपि को मानक रूप दिया। कहते हैं कि गुरु अंगद देव जी ने गुरुमुखी के प्रचार के लिए गुरुमुखी वर्णमाला में बच्चों के लिए ‘बाल बोध’ की रचना की। उन्होंने अपनी वाणी की रचना भी इसी लिपि में की। जनसाधारण की भाषा (लिपि) होने के कारण इससे सिक्ख धर्म के प्रचार के कार्य को बढ़ावा मिला। आज सिक्खों के सभी धार्मिक ग्रंथ इसी लिपि में हैं।
  2. गुरु नानक देव जी की जन्म-साखी-श्री गुरु अंगद देव जी ने श्री गुरु नानक देव जी की सारी बाणी को एकत्रित करके भाई बाला से गुरु जी की जन्म-साखी (जीवन-चरित्र) लिखवाई। इससे सिक्ख गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं का पालन करने लगे।
  3. लंगर प्रथा-श्री गुरु अंगद देव जी ने लंगर प्रथा जारी की। उन्होंने यह आज्ञा दी कि जो कोई उनके दर्शन को आए, उसे पहले लंगर में भोजन कराया जाए। यहां प्रत्येक व्यक्ति बिना किसी भेद-भाव के भोजन करता था। इससे जाति-पाति की भावनाओं को धक्का लगा और सिक्ख धर्म के प्रसार में सहायता मिली।.
  4. उदासियों से सिक्ख धर्म को अलग करना-गुरु नानक देव जी के बड़े पुत्र श्रीचंद जी ने उदासी संप्रदाय की स्थापना की थी। उन्होंने संन्यास का प्रचार किया। यह बात गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं के विरुद्ध थी। गुरु अंगद देव जी ने सिक्खों को स्पष्ट किया कि सिक्ख धर्म महारथियों का धर्म है। इसमें संन्यास का कोई स्थान नहीं है। उन्होंने यह भी घोषणा की कि वह सिक्ख जो संन्यास में विश्वास रखता है, सच्चा सिक्ख नहीं है। इस प्रकार उदासियों को सिक्ख संप्रदाय से अलग करके गुरु अंगद देव जी ने सिक्ख धर्म को ठोस आधार प्रदान किया।
  5. गोइंदवाल साहिब का निर्माण-गुरु अंगद देव जी ने 1596 ई० में गोइंदवाल साहिब नामक नगर की स्थापना की। गुरु अमरदास के समय में यह नगर एक प्रसिद्ध धार्मिक केंद्र बन गया। आज भी यह सिक्खों का एक पवित्र धार्मिक स्थान है।
  6. अनुशासन को बढ़ावा-गुरु जी बड़े ही अनुशासन प्रिय थे। उन्होंने सत्ता और बलवंड नामक दो प्रसिद्ध रबाबियों को अनुशासन भंग करने के कारण दरबार से निकाल दिया, परंतु बाद में भाई लद्धा के प्रार्थना करने पर गुरु जी ने उन्हें क्षमा कर दिया। इस घटना से सिक्खों में अनुशासन की भावना को बल मिला।
  7. उत्तराधिकारी की नियुक्ति-गुरु अंगद देव जी ने.13 वर्ष तक निष्काम भाव से सिक्ख धर्म की सेवा की। 1552 ई० में ज्योति-जोत समाये से पूर्व उन्होंने अपने पुत्रों की बजाय भाई अमरदास जी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया। उनका यह कार्य सिख इतिहास में बहुत ही महत्त्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि इससे सिक्ख धर्म का प्रचार कार्य जारी रहा।
  8. सच तो यह है कि गुरु अंगद देव जी ने सिक्ख धर्म को पृथक् पहचान प्रदान की। गुरुमुखी लिपि के प्रसार के कारण नानक पंथियों को नवीन बाणी मिली। लंगर प्रथा के कारण वे जाति-बंधनों से मुक्त हुए। इस प्रकार सिक्ख धर्म हिंदू धर्म से अलग रूप धारण करने लगा। इन सबका श्रेय गुरु अंगद देव जी को ही जाता है।

प्रश्न 2.
श्री गुरु अमरदास जी का सिक्ख धर्म के विकास में क्या योगदान है ?
उत्तर-
गुरु अमरदास जी को सिक्ख धर्म में विशिष्ट स्थान प्राप्त है। गुरु नानक देव जी ने धर्म का जो बीज बोया था, वह गुरु अंगद देव जी के काल में अंकुरित हो गया। गुरु अमरदास जी ने इस नवीन खिले अंकुर के गिर्द बाड़ लगा दी, ताकि हिंदू धर्म इसे अपने में ही न समा ले। कहने का अभिप्राय यह है कि उन्होंने सिक्खों को सामाजिक जीवन व्यतीत करने के लिए नवीन रीति-रिवाज़ प्रदान किए जिससे सिक्ख धर्म हिंदू धर्म से अलग राह पर चल पड़ा। निःसंदेह वह एक महान् व्यक्ति थे। पेन (Payne) ने उन्हें उत्साही प्रचारक बताया है। एक अन्य इतिहासकार ने उन्हें बुद्धिमान तथा न्यायप्रिय गुरु कहा है। कुछ भी हो उनके गुरु काल में सिक्ख धर्म नवीन दिशाओं में प्रवाहित हुआ। संक्षेप में गुरु अमरदास जी के कार्यों का वर्णन इस प्रकार है–

1. गोइंदवाल साहिब की बावली का निर्माण-गुरु अमरदास जी ने सर्वप्रथम गोइंदवाल साहिब के स्थान पर एक बावली (जल-स्रोत) का निर्माण कार्य पूरा किया जिसका शिलान्यास गुरु अंगद देव जी के समय रखा गया था। गुरु अमरदास जी ने इस बावली की तह तक पहुंचने के लिए 84 सीढ़ियां बनवाईं। गुरु जी के अनुसार प्रत्येक सीढ़ी पर जपुजी साहिब का पाठ करने से ही जन्म-मरण की चौरासी लाख योनियों के चक्कर से मुक्ति मिलेगी। गोइंदवाल साहिब की बावली सिक्ख धर्म का एक प्रसिद्ध तीर्थ-स्थान बन गई।

PSEB 9th Class SST Solutions History Chapter 3 सिक्ख धर्म का विकास (1539 ई०-1581 ई०)

2. लंगर प्रथा-गुरु अमरदास जी ने लंगर प्रथा का विस्तार करके सिक्ख धर्म के विकास की ओर एक और महत्त्वपूर्ण कदम उठाया। उन्होंने लंगर के लिए कुछ विशेष नियम बनाए। अब कोई भी व्यक्ति लंगर में भोजन किए बिना गुरु जी से नहीं मिल सकता था। लंगर में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा शूद्र सभी जातियों के लोग एक ही पंक्ति में बैठकर एक ही रसोई में बना भोजन करते थे।
लंगर प्रथा सिक्ख धर्म के प्रचार में बड़ी सहायक सिद्ध हुई। इससे जाति-पाति तथा रंग-रूप के भेद भावों को बड़ा धक्का लगा और लोगों में समानता की भावना का विकास हुआ। परिणामस्वरूप सिक्ख एकता के सूत्र में बंधने लगे।

3. सिक्ख गुरु साहिबान के शब्दों को एकत्रित करना-गुरु नानक देव जी के शब्दों तथा श्लोकों को गुरु अंगद देव जी ने एकत्रित करके उनके साथ अपने रचे हुए शब्द भी जोड़ दिए थे। यह सारी सामग्री गुरु अंगद देव जी ने गुरु अमरदास जी को सौंप दी थी। गुरु अमरदास जी ने भी कुछ-एक नए श्लोकों की रचना की और उन्हें पहले वाले संकलन (collection) के साथ मिला दिया। इस प्रकार विभिन्न गुरु साहिबान के श्लोकों तथा उपदेशों के एकत्रित हो जाने से एक ऐसी सामग्री तैयार की गई जो आदि ग्रंथ साहिब के संकलन का आधार बनी। इस कार्य में उनके पोते ने इनकी बड़ी सहायता की।

4. मंजी प्रथा-गुरु अमरदास जी के समय में सिक्खों की संख्या काफी बढ़ चुकी थी। परंतु वृद्धावस्था के कारण गुरु साहिब जी के लिए एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाकर अपनी शिक्षाओं का प्रचार करना कठिन हो गया था। अतः उन्होंने अपने पूरे आध्यात्मिक साम्राज्य को 22 प्रांतों में बांट दिया। इनमें से प्रत्येक प्रांत को मंजी’ कहा जाता था। प्रत्येक मंजी सिक्ख धर्म के प्रचार का एक केंद्र थी जिसके संचालन का कार्यभार गुरु जी ने अपने किसी विद्वान् श्रद्धालु शिष्य को सौंप रखा था।  गुरु अमरदास जी द्वारा स्थापित मंजी प्रणाली का सिक्ख धर्म के इतिहास में विशेष महत्त्व है। डॉ० गोकुल चंद नारंग के शब्दों में, “गुरु जी के इस कार्य ने सिक्ख धर्म की नींव सुदृढ़ करने तथा देश के सभी भागों में प्रचार कार्य बढ़ाने में विशेष योगदान दिया।”

5. उदासियों से सिक्खों को पृथक् करना-गुरु अमरदास जी के गुरुकाल के आरंभिक वर्षों में उदासी संप्रदाय काफी लोकप्रिय हो चुका था। इस बात का भय होने लगा कि कहीं सिक्ख धर्म उदासी संप्रदाय में ही विलीन न हो जाए। इसलिए गुरु साहिब ने जोरदार शब्दों में उदासी संप्रदाय के सिद्धांतों का खंडन किया। उन्होंने अपने अनुयायियों को समझाया कि कोई भी व्यक्ति, जो उदासी नियमों का पालन करता है, सच्चा सिक्ख नहीं हो सकता। गुरु जी के इन प्रयत्नों से सिक्ख उदासियों से पृथक् हो गए और सिक्ख धर्म का अस्तित्व मिटने से बच गया।

6. मुगल सम्राट अकबर का गोइंदवाल आना-गुरु अमरदास जी के व्यक्तित्व से प्रभावित होकर मुग़ल सम्राट अकबर गोइंदवाल आया। गुरु जी के दर्शन से पहले उसने पंक्ति में बैठ कर लंगर खाया। लंगर की व्यवस्था से अकबर बहुत प्रभावित हुआ। कहते हैं उसी वर्ष पंजाब में अकाल पड़ा था। गुरु जी के आग्रह पर अकबर ने पंजाब के किसानों का लगान माफ़ कर दिया था।

7. नई परंपराएं-गुरु अमरदास जी ने सिक्खों को व्यर्थ के रीति-रिवाजों का त्याग करने का उपदेश दिया। हिंदुओं में किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाने पर खूब रोया-पीटा जाता था। परंतु गुरु अमरदास जी ने सिक्खों को रोने-पीटने के स्थान पर ईश्वर का नाम लेने का उपदेश दिया। उन्होंने विवाह की भी नई विधि आरंभ की जिसे आनंद कारज कहते हैं।

8. अनंदु साहिब की रचना-गुरु अमरदास जी ने एक नई बाणी की रचना की जिसे अनंदु साहिब कहा जाता है। इस राग के प्रवचन से सिक्खों में वेद-मंत्रों के उच्चारण का महत्त्व बिल्कुल समाप्त हो गया।
सच तो यह है कि गुरु अमरदास जी का गुरुकाल (1552 ई०-1574 ई०) सिक्ख धर्म के इतिहास में विशेष महत्त्व रखता है। गुरु जी के द्वारा बावली का निर्माण, मंजी प्रथा के आरंभ, लंगर प्रथा के विस्तार तथा नए रीति-रिवाजों ने सिक्ख धर्म के संगठन में बड़ी सहायता की।

प्रश्न 3.
श्री गुरु रामदास जी ने सिख पंथ के विकास के लिए कौन-से महत्त्वपूर्ण कार्य किए ? वर्णन करो।
उत्तर-
श्री गुरु रामदास जी सिक्खों के चौथे गुरु थे। इनके बचपन का नाम भाई जेठा था। उनके सेवाभाव से प्रसन्न होकर गुरु अमरदास जी ने उन्हें गुरुगद्दी सौंपी थी। उन्होंने 1574 ई० से 1581 ई० तक गुरुगद्दी का संचालन किया और उन्होंने निम्नलिखित कार्यों द्वारा सिख धर्म की मर्यादा को बढ़ाया।

1. अमृतसर का शिलान्यास-गुरु रामदास जी ने रामदासपुर की नींव रखी। आजकल इस नगर को अमृतसर कहते हैं। 1577 ई० में गुरु जी ने यहां अमृतसर तथा संतोखसर नामक दो सरोवरों की खुदाई आरंभ की। परंतु उन्होंने देखा कि गोइंदवाल में रहकर खुदाई के कार्य का निरीक्षण करना कठिन है, अतः उन्होंने यहीं डेरा डाल दिया। कई श्रद्धालु लोग भी यहीं आ बसे। कुछ ही समय में सरोवर के चारों ओर एक छोटा-सा नगर बस गया। इसे रामदासपुर का नाम दिया गया। गुरु जी इस नगर को हर प्रकार से आत्म-निर्भर बनाना चाहते थे। अत: उन्होंने 52 अलग-अलग प्रकार के व्यापारियों को आमंत्रित किया। उन्होंने एक बाज़ार की स्थापना की जिसे आजकल ‘गुरु का बाज़ार’ कहते हैं। इस नगर के निर्माण से सिक्खों को एक महत्त्वपूर्ण तीर्थ स्थान मिल गया और उन्होंने हिंदुओं के तीर्थस्थानों की यात्रा करनी बंद कर दी।

2. मसंद प्रथा का आरंभ-गुरु रामदास जी को अमृतसर तथा संतोखसर नामक सरोवरों की खुदाई के लिए काफ़ी धन की आवश्यकता थी। अतः उन्होंने मसंद प्रथा का आरंभ किया। उन्होंने अपने शिष्यों को दूर देशों में धर्म प्रचार करने तथा वहां से धन एकत्रित करने के लिए भेजा। इन मसंदों ने विभिन्न प्रदेशों में सिक्ख धर्म का खूब प्रचार किया तथा काफ़ी धन राशि एकत्रित की। वास्तव में इस प्रथा ने सिक्ख धर्म के प्रसार में काफी योगदान दिया। इससे सिक्ख एक लड़ी में पिरोए गए तथा उनमें भावनात्मक एकता आ गई।

3. उदासियों के मतभेद की समाप्ति-गुरु अंगद देव जी तथा गुरु अमरदास जी ने सिक्खों को उदासी संप्रदाय से अलग कर दिया था। परंतु गुरु रामदास जी ने उदासियों से बड़ा विनम्रतापूर्ण व्यवहार किया। कहा जाता है कि उदासी संप्रदाय का नेता बाबा श्रीचंद एक बार गुरु रामदास जी से मिलने आए। उसने गुरु जी का मज़ाक उड़ाते हुए गुरु जी से यह प्रश्न किया- “सुनाओ दाढ़ा इतना लंबी क्यों है ?” गुरु जी ने बड़े विनम्र भाव से उत्तर दिया, “आप जैसे सत्य पुरुषों के चरण झाड़ने के लिए।” यह बात सुन कर श्रीचंद जी बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने गुरु जी की श्रेष्ठता को स्वीकार कर लिया। इस प्रकार उदासी संप्रदाय तथा सिक्ख गुरु साहिबान का काफी समय से चला आ रहा द्वेष-भाव समाप्त हो गया। यह बात सिक्ख मत के प्रसार में बहुत सहायक सिद्ध हुई।
सच तो यह कि गुरु रामदास जी ने भी गुरु अमरदास जी की भांति सिक्ख मत को इसका अलग अस्तित्व प्रदान करने का हर सभव प्रयास किया।

प्रश्न 4.
गुरुओं द्वारा नये नगरों की स्थापना और नई परंपराओं की शुरुआत ने सिख धर्म के विकास में क्या योगदान दिया ?
उत्तर-
गुरु साहिबान ने सिख धर्म के प्रचार तथा सिखों की समृद्धि के लिए अनेक नगर बसाये। नए नगर बसाने का एक उद्देश्य यह भी था कि सिक्खों को अपने अलग तीर्थ-स्थान दिए जाएं ताकि उनमें एकता एवं संगठन की भावना मज़बूत हो। गुरु साहिबान ने समाज में प्रचलित परम्पराओं से हट कर कुछ नई परम्पराएं भी आरंभ की। इनसे सिख समाज में सरलता आई और सिख धर्म का विकास तेज़ी से हुआ।
I. नये नगरों का योगदान

  1. गोइंदवाल साहिब-गोइंदवाल साहिब नामक नगर की स्थापना गुरु अंगद देव जी ने की। इस नगर का निर्माण 1546 ई० में आरंभ हुआ था। इसका निर्माण कार्य उन्होंने अपने शिष्य अमरदास जी को सौंप दिया। गुरु अमरदास जी ने अपने गुरुकाल में यहां बाऊली साहब का निर्माण करवाया। इस प्रकार गोइंदवाल साहिब सिक्खों का एक प्रसिद्ध धार्मिक केंद्र बन गया।
  2. रामदासपुर-गुरु रामदास जी ने रामदासपुर की नींव रखी। आजकल इस नगर को अमृतसर कहते हैं। 1577 ई० में गुरु जी ने यहां अमृतसर तथा संतोखसर नामक दो तालाबों की खुदाई आरंभ की। कुछ ही समय में तालाब के चारों ओर एक छोटा-सा नगर बस गया। इसे रामदासपुर का नाम दिया गया। गुरु जी इस नगर को हर प्रकार से आत्मनिर्भर बनाना चाहते थे। अतः उन्होंने 52 अलग-अलग प्रकार के व्यापारियों को आमंत्रित किया। उन्होंने एक बाजार की स्थापना की जिसे आजकल ‘गुरु का बाज़ार’ कहते हैं। इस नगर के निर्माण से सिक्खों को एक महत्त्वपूर्ण तीर्थ-स्थान मिल गया।
  3. तरनतारन-तरनतारन का निर्माण गुरु अर्जन देव जी ने ब्यास तथा रावी नदियों के मध्य करवाया। इसका निर्माण 1590 ई० में हुआ। अमृतसर की भांति तरनतारन भी सिक्खों का प्रसिद्ध तीर्थ स्थान बन गया। हजारों की संख्या में यहां सिक्ख यात्री स्नान करने के लिए आने लगे।
  4. करतारपुर-गुरु अर्जन देव जी ने 1593 ई० में जालंधर दोआब में एक नगर की स्थापना की जिसका नाम करतारपुर अर्थात् ‘ईश्वर का शहर’ रखा गया। यहां उन्होंने एक कुआं भी खुदवाया जो गंगसर के नाम से प्रसिद्ध है। यह नगर जालंधर दोआब में सिक्ख धर्म के प्रचार का केंद्र बन गया।
  5. हरगोबिंदपुर तथा छहरटा-गुरु अर्जन देव जी ने अपने पुत्र हरगोबिंद के जन्म की खुशी में ब्यास नदी के तट पर हरगोबिंदपुर नगर की स्थापना की। इसके अतिरिक्त उन्होंने अमृतसर के निकट पानी की कमी को दूर करने के लिए एक कुएं का निर्माण करवाया। इस कुएं पर छः रहट चलते थे। इसलिए इसको छहरटा के नाम से पुकारा जाने लगा। धीरे-धीरे यहां एक नगर बस गया जो आज भी विद्यमान है।
  6. चक नानकी-चक नानकी की नींव कीरतपुर के निकट गुरु तेग बहादुर साहिब ने रखी। इस नगर की भूमि गुरु साहिब ने 19 जून, 1665 ई० को 500 रुपये में खरीदी थी।

II. नयी परम्पराओं का योगदान

  1. गुरु नानक देव जी ने ‘संगत’ तथा ‘पंगत’ प्रथा की परंपरा चलाई। इससे सिखों में एक साथ बैठ कर नाम सिमरण करने की भावना का विकास हुआ। परिणामस्वरूप सिख भाईचारा मज़बूत हुआ।
  2. आनंद कारज से विवाह की व्यर्थ रस्मों से सिखों को छुटकारा मिला और विवाह सरल रीति से होने लगे। इस परंपरा के कारण और भी बहुत से लोग सिख धर्म से जुड़ गए। .
  3. मृत्यु के अवसर पर रोने-पीटने की परंपरा को छोड़ प्रभु सिमरण पर बल देने से सिखों में गुरु भक्ति की भावना मजबूत हुई।

PSEB 9th Class Social Science Guide पंजाब : सिक्ख धर्म का विकास Important Questions and Answers

I. बहुविकल्पीय प्रश्न :

प्रश्न 1.
गोइंदवाल साहिब में बाऊली (जल-स्रोत) की नींव रखी
(क) गुरु अर्जन देव जी ने
(ख) गुरु नानक देव जी ने
(ग) गुरु अंगद देव जी ने
(घ) गुरु तेग़ बहादुर जी ने।
उत्तर-
(ग) गुरु अंगद देव जी ने

PSEB 9th Class SST Solutions History Chapter 3 सिक्ख धर्म का विकास (1539 ई०-1581 ई०)

प्रश्न 2.
गुरु रामदास जी ने नगर बसाया
(क) अमृतसर
(ख) जालंधर
(ग) कीरतपुर साहिब
(घ) गोइंदवाल साहिब।
उत्तर-
(क) अमृतसर

प्रश्न 3.
गुरु अर्जन देव जी ने रावी तथा व्यास के बीच किस नगर की नींव रखी ?
(क) जालंधर
(ख) गोइंदवाल साहिब
(ग) अमृतसर
(घ) तरनतारन।
उत्तर-
(घ) तरनतारन।

प्रश्न 4.
गुरु अंगद देव जी को गुरुगद्दी मिली-
(क) 1479 ई० में
(ख) 1539 ई० में
(ग) 1546 ई० में
(घ) 1670 ई० में।
उत्तर-
(ख) 1539 ई० में

प्रश्न 5.
गुरु अंगद देव जी ज्योति-जोत समाये
(क) 1552 ई० में
(ख) 1538 ई० में
(ग) 1546 ई० में
(घ) 1479 ई० में।
उत्तर-
(क) 1552 ई० में

प्रश्न 6.
‘बाबा बकाला’ वास्तव में थे-
(क) गुरु तेग़ बहादुर जी
(ख) गुरु हरकृष्ण जी
(ग) गुरु गोबिंद सिंह जी
(घ) गुरु अमरदास जी।
उत्तर-
(क) गुरु तेग़ बहादुर जी

प्रश्न 7.
गुरु गोबिंद सिंह जी का जन्म हुआ
(क) कीरतपुर साहिब में
(ख) पटना में
(ग) दिल्ली में
(घ) तरनतारन में।
उत्तर-
(ख) पटना में

प्रश्न 8.
गुरु अमरदास जी ज्योति-जोत समाए
(क) 1564 ई० में
(ख) 1538 ई० में
(ग) 1546 ई० में
(घ) 1574 ई० में।
उत्तर-
(घ) 1574 ई० में।

प्रश्न 9.
गुरुगद्दी को पैतृक रूप दिया
(क) गुरु अमरदास जी ने
(ख) गुरु रामदास जी ने
(ग) गुरु गोबिंद सिंह जी ने
(घ) गुरु तेग़ बहादुर जी ने।
उत्तर-
(क) गुरु अमरदास जी ने

PSEB 9th Class SST Solutions History Chapter 3 सिक्ख धर्म का विकास (1539 ई०-1581 ई०)

रिक्त स्थान भरें :

  1. गुरु ………… का पहला नाम भाई लहना था।
  2. …………….. सिक्खों के चौथे गुरु थे।
  3. …………. नामक नगर की स्थापना गुरु अंगद देव जी ने की।
  4. गुरु हरगोबिंद साहिब ने अपने जीवन के अंतिम दस वर्ष ……….. में धर्म प्रचार में व्यतीत किए।
  5. गुरु अंगद देव जी के पिता का नाम श्री ………….. और माता का नाम ………….. था।
  6. ‘उदासी’ मत गुरु नानक देव जी के बड़े पुत्र …………….. जी ने स्थापित किया।
  7. मंजियों की स्थापना गुरु ………… ने की।

उत्तर-

  1. अंगद साहिब
  2. गुरु रामदास जी
  3. गोइंदवाल साहिब
  4. फेरूमल, सभराई देवी
  5. कीरतपुर साहि
  6. बाबा श्रीचंद
  7. अमर दास जी।

सही मिलान करो :

(क) – (ख)
1. भाई लहना – (i) श्री गुरु नानक देव जी
2. अकबर – (ii) बाबा श्री चंद
3. लंगर प्रथा – (iii) अमृतसर
4. उदासी मत – (iv) श्री गुरु अंगद देव जी
5. रामदासपुर – (v) श्री गुरु अमरदास जी

उत्तर-

  1. श्री गुरु अंगद देव जी
  2. श्री गुरु अमरदास जी
  3. श्री गुरु नानक देव जी
  4. बाबा श्री चंद
  5. अमृतसर

अति लघु उत्तरों वाले प्रश्न

उत्तर एक लाइन अथवा एक शब्द में :

(I)

प्रश्न 1.
भाई लहना किस गुरु साहिब का पहला नाम था ?
उत्तर-
गुरु अंगद साहिब का।

प्रश्न 2.
लंगर प्रथा से क्या भाव है ?
उत्तर-
लंगर प्रथा अथवा पंगत से भाव उस प्रथा से है जिसके अनुसार सभी जातियों के लोग बिना किसी भेदभाव के एक ही पंक्ति में बैठकर खाना खाते थे।

प्रश्न 3.
गोइंदवाल साहिब में बाऊली (जल स्रोत) की नींव किस गुरु साहिब ने रखी थी ?
उत्तर-
गोइंदवाल साहिब में बाऊली की नींव गुरु अंगद देव जी ने रखी थी।

प्रश्न 4.
अकबर कौन-से गुरु साहिब को मिलने गोइंदवाल साहिब आया ?
उत्तर-
अकबर गुरु अमरदास जी से मिलने गोइंदवाल साहिब आया था।

प्रश्न 5.
मसंद प्रथा के दो उद्देश्य लिखिए।
उत्तर-
मसंद प्रथा के दो मुख्य उद्देश्य थे- सिक्ख धर्म के विकास कार्यों के लिए धन एकत्रित करना तथा सिक्खों को संगठित करना।

प्रश्न 6.
सिक्खों के चौथे गुरु कौन थे तथा उन्होंने कौन-सा शहर बसाया ?
उत्तर-
गुरु रामदास जी सिक्खों के चौथे गुरु थे जिन्होंने रामदासपुर (अमृतसर) नामक नगर बसाया।

प्रश्न 7.
लंगर प्रथा के बारे में आप क्या जानते हो ?
उत्तर-
लंगर प्रथा का आरंभ गुरु नानक साहिब ने सामाजिक भाईचारे के लिए किया।

PSEB 9th Class SST Solutions History Chapter 3 सिक्ख धर्म का विकास (1539 ई०-1581 ई०)

प्रश्न 8.
गुरु अंगद देव जी संगत प्रथा के द्वारा सिक्खों को क्या उपदेश देते थे ?
उत्तर-
गुरु अंगद देव जी संगत प्रथा के द्वारा सिक्खों को ऊंच-नीच के भेदभाव को भूल कर प्रेमपूर्वक रहने की शिक्षा देते थे।

प्रश्न 9.
गुरु अंगद देव जी की पंगत-प्रथा के बारे में जानकारी दो ।
उत्तर-
गुरु अंगद देव जी ने गुरु नानक देव जी के द्वारा चलाई गई पंगत-प्रथा को आगे बढ़ाया जिसका खर्च सिक्खों की कार सेवा से चलता था।

प्रश्न 10.
गुरु अंगद देव जी द्वारा स्थापित अखाड़े के बारे में लिखिए।
उत्तर-
गुरु अंगद देव जी ने सिक्खों को शारीरिक रूप से स्वस्थ रखने के लिए खडूर साहिब के स्थान पर एक अखाड़ा बनवाया।

प्रश्न 11.
गोइंदवाल साहिब के बारे में आप क्या जानते हो ?
उत्तर-
गोइंदवाल साहिब नामक नगर की स्थापना गुरु अंगद देव जी ने की जो सिक्खों का एक प्रसिद्ध धार्मिक केंद्र बन गया।

प्रश्न 12.
गुरु अमरदास जी के जाति-पाति के बारे में विचार बताओ।
उत्तर-
गुरु अमरदास जी जातीय भेदभाव तथा छुआछूत के विरोधी थे।

प्रश्न 13.
सती प्रथा के बारे में गुरु अमरदास जी के क्या विचार थे ?
उत्तर-
गुरु अमरदास जी ने सती प्रथा का खंडन किया।

प्रश्न 14.
गुरु अमरदास जी द्वारा निर्मित शहर गोइंदवाल साहिब दूसरे धार्मिक स्थानों से कैसे अलग था ?
उत्तर-
गोइंदवाल साहिब सिक्खों के सामूहिक परिश्रम से बना था जिसमें न तो किसी देवी-देवता की पूजा की जाती थी और न ही इसमें किसी पुजारी की आवश्यकता थी।

प्रश्न 15.
गुरु अमरदास जी ने जन्म, विवाह तथा मृत्यु संबंधी क्या सुधार किए ? ।
उत्तर-
गुरु अमरदास जी ने जन्म तथा विवाह के अवसर पर ‘आनंद’ बाणी का पाठ करने की प्रथा चलाई और सिक्खों को आदेश दिया कि वे मृत्यु के अवसर पर ईश्वर की स्तुति तथा भक्ति के शब्दों का गायन करें।

प्रश्न 16.
रामदासपुर या अमृतसर की स्थापना की महत्ता बताइए।
उत्तर-
रामदासपुर की स्थापना से सिक्खों को एक अलग तीर्थ-स्थान तथा महत्त्वपूर्ण व्यापारिक केंद्र मिल गया।

प्रश्न 17.
गुरु रामदास जी तथा अकबर बादशाह की मुलाकात का महत्त्व बताइए।
उत्तर-
गुरु रामदास जी की अकबर से मुलाकात से दोनों में मैत्रीपूर्ण संबंध स्थापित हुए।

प्रश्न 18.
गुरु अंगद देव जी का नाम अंगद देव कैसे पड़ा ?
उत्तर-
गुरु अंगद देव जी गुरु नानक देव जी के लिए सर्दी की रात में दीवार बना सकते थे तथा कीचड़ से भरी घास की गठरी उठा सकते थे, इसलिए गुरु जी ने उनका नाम अंगद अर्थात् शरीर का एक अंग रख दिया।

प्रश्न 19.
भाई लहना (गुरु अंगद साहिब) के माता-पिता का नाम क्या था ?
उत्तर-
भाई लहना (गुरु अंगद साहिब) के पिता का नाम फेरूमल और माता का नाम सभराई देवी था।

प्रश्न 20.
गुरु अंगद साहिब का बचपन किन दो स्थानों पर बीता ?
उत्तर-
गुरु अंगद साहिब का बचपन हरिके तथा खडूर साहिब में बीता।

PSEB 9th Class SST Solutions History Chapter 3 सिक्ख धर्म का विकास (1539 ई०-1581 ई०)

(II)

प्रश्न 1.
सिक्खों के दसरे गुरु कौन थे ?
उत्तर-
गुरु अंगद देव जी।

प्रश्न 2.
गुरु अंगद देव जी का पहला नाम क्या था ?
उत्तर-
भाई लहना जी।

प्रश्न 3.
गुरु अंगद देव जी को गुरुगद्दी कब सौंपी गई ?
उत्तर-
1539 ई० में।

प्रश्न 4.
लहना जी का विवाह किसके साथ हुआ और उस समय उनकी आयु कितनी थी ?
उत्तर-
लहना जी का विवाह 15 वर्ष की आयु में श्री देवीचंद जी की सुपुत्री बीबी खीवी से हुआ।

प्रश्न 5.
लहना जी के कितने पुत्र और पुत्रियां थीं ? उनके नाम भी लिखो।
उत्तर-
लहना जी के दो पुत्र दातू तथा दासू तथा दो पुत्रियां बीबी अमरो तथा बीबी अनोखी थीं।

प्रश्न 6.
‘उदासी’ मत किसने स्थापित किया ?
उत्तर-
‘उदासी’ मत गुरु नानक देव जी के बड़े पुत्रं बाबा श्रीचंद जी ने स्थापित किया।

प्रश्न 7.
गुरु अंगद साहिब ने ‘उदासी’ मत के प्रति क्या रुख अपनाया ?
उत्तर-
गुरु अंगद साहिब ने उदासी मत को गुरु नानक साहिब के उद्देश्यों के प्रतिकूल बताया और इस मत का विरोध किया।

प्रश्न 8.
गुरु अंगद देव जी की धार्मिक गतिविधियों का केंद्र कौन-सा स्थान था ?
उत्तर-
गुरु अंगद देव जी की धार्मिक गतिविधियों का केंद्र अमृतसर जिले में खडूर साहिब था।

प्रश्न 9.
लंगर प्रथा किसने चलाई ?
उत्तर-
लंगर प्रथा गुरु नानक देव जी ने चलाई।

प्रश्न 10.
उदासी संप्रदाय किसने चलाया ?
उत्तर-
बाबा श्रीचंद जी ने।

प्रश्न 11.
गोइंदवाल साहिब की स्थापना (1546 ई०) किसने की ?
उत्तर-
गुरु अंगद देव जी ने।

प्रश्न 12.
गुरु अंगद देव जी ने अखाड़े का निर्माण कहां करवाया ?
उत्तर-
खडूर साहिब में।

प्रश्न 13.
गुरु अंगद देव जी ज्योति-जोत कब समाये ?
उत्तर-
1552 ई० में।

प्रश्न 14.
गुरु अमरदास जी का जन्म कब और कहां हुआ था ?
उत्तर-
गुरु अमरदास जी का जन्म 1479 ई० में जिला अमृतसर में स्थित बासरके नामक गांव में हुआ था।

प्रश्न 15.
गुरु अमरदास जी को गद्दी संभालते समय किस कठिनाई का सामना करना पड़ा ?
उत्तर-
गुरु अमरदास जी को गुरु अंगद देव जी के पुत्रों दासू और दातू के विरोध का सामना करना पड़ा ।
अथवा
गुरु जी को गुरु नानक देव जी के बड़े पुत्र बाबा श्रीचंद के विरोध का भी सामना करना पड़ा।

प्रश्न 16.
गोइंदवाल साहिब में बाऊली का निर्माण कार्य किसने पूरा करवाया ?
उत्तर-
गुरु अमरदास जी ने।

PSEB 9th Class SST Solutions History Chapter 3 सिक्ख धर्म का विकास (1539 ई०-1581 ई०)

प्रश्न 17.
मंजी प्रथा किस गुरु जी ने आरंभ करवाई ?
उत्तर-
गुरु अमरदास जी ने।

प्रश्न 18.
‘आनंद’ नामक बाणी की रचना किसने की ?
उत्तर-
गुरु अमरदास जी ने।

प्रश्न 19.
गुरु अमरदास जी ने किन दो अवसरों के लिए सिक्खों के लिए विशिष्ट रीतियां निश्चित की ?
उत्तर-
गुरु अमरदास जी ने आनंद विवाह की पद्धति आरंभ की जिसमें जन्म तथा मरण के अवसरों पर सिक्खों के लिए विशिष्ट रीतियां निश्चित की गईं।

प्रश्न 20.
गुरु अमरदास जी द्वारा सिक्ख मत के प्रसार के लिए किया गया कोई एक कार्य लिखो।।
उत्तर-
गुरु अमरदास जी ने गोइंदवाल साहिब में बाउली का निर्माण किया।
अथवा
उन्होंने मंजी प्रथा की स्थापना की तथा लंगर प्रथा का विस्तार किया।

(III)

प्रश्न 1.
गुरु अमरदास जी ने सिक्खों को कौन-कौन से तीन त्योहार मनाने का आदेश दिया ?
उत्तर-
उन्होंने सिक्खों को वैशाखी, माघी तथा दीवाली के त्योहार मनाने का आदेश किया।

प्रश्न 2.
गुरु अमरदास जी के काल में सिक्ख अपने त्योहार मनाने के लिए कहां एकत्रित होते थे ?
उत्तर-
सिक्ख अपने त्योहार मनाने के लिए गुरु अमरदास जी के पास गोइंदवाल साहिब में एकत्रित होते थे।

प्रश्न 3.
गुरु अमरदास जी ज्योति-जोत कब समाए ?
उत्तर-
गुरु अमरदास जी 1574 ई० में ज्योति-जोत समाए।

प्रश्न 4.
गुरुगद्दी को पैतृक रूप किसने दिया ?
उत्तर-
गुरुगदी को पैतृक रूप गुरु अमरदास जी ने दिया।

प्रश्न 5.
सिक्खों के चौथे गुरु कौन थे ?
उत्तर-
श्री गुरु रामदास जी।

प्रश्न 6.
अमृतसर शहर की नींव किसने रखी ?
उत्तर-
गुरु रामदास जी ने।

प्रश्न 7.
मसंद प्रथा का आरंभ सिक्खों के किस गुरु ने आरंभ किया ?
उत्तर-
श्री गुरु रामदास जी ने।

प्रश्न 8.
गुरु रामदास जी की पत्नी का क्या नाम था ?
उत्तर-
गुरु रामदास जी की पत्नी का नाम बीबी भानी जी था।

प्रश्न 9.
गुरु रामदास जी के कितने पुत्र थे ? पुत्रों के नाम भी बताओ।
उत्तर-
गुरु रामदास जी के तीन पुत्र थे-पृथी चंद, महादेव तथा अर्जन देव।

PSEB 9th Class SST Solutions History Chapter 3 सिक्ख धर्म का विकास (1539 ई०-1581 ई०)

प्रश्न 10.
गुरु रामदास जी द्वारा सिक्ख धर्म के विस्तार के लिए किया गया कोई एक कार्य बताओ।
उत्तर-
गुरु रामदास जी ने अमृतसर नगर बसाया। इस नगर के निर्माण से सिक्खों को एक महत्त्वपूर्ण तीर्थ स्थान मिल गया।
अथवा
उन्होंने मसंद प्रथा को आरंभ किया। मसंदों ने सिक्ख धर्म का खूब प्रचार किया।

प्रश्न 11.
अमृतसर नगर का प्रारंभिक नाम क्या था ?
उत्तर-
अमृतसर नगर की प्रारंभिक नाम रामदासपुर था।

प्रश्न 12.
गुरु रामदास जी द्वारा खुदवाए गए दो सरोवरों के नाम लिखो।
उत्तर-
गुरु रामदास जी द्वारा खुदवाए गए दो सरोवर संतोखसर तथा अमृतसर हैं।

प्रश्न 13.
गुरु रामदास जी ने अमृतसर सरोवर के चारों ओर जो ब्राज़ार बसाया वह किस नाम से प्रसिद्ध हुआ ?
उत्तर-
‘गुरु का बाज़ार’।

प्रश्न 14.
गुरु रामदास जी ने ‘गुरु का बाज़ार’ की स्थापना किस उद्देश्य से की ?
उत्तर-
गुरु रामदास जी अमृतसर नगर को हर प्रकार से आत्म-निर्भर बनाना चाहते थे। इसी कारण उन्होंने 52 अलग-अलग प्रकार के व्यापारियों को आमंत्रित किया और इस बाज़ार की स्थापना की।

प्रश्न 15.
गुरु रामदास जी ने महादेव को गुरुगद्दी के अयोग्य क्यों समझा ?
उत्तर-
महादेव फ़कीर स्वभाव का था तथा उसे सांसारिक विषयों से कोई लगाव नहीं था।

प्रश्न 16.
गुरु रामदास जी ने पृथी चंद को गुरुगद्दी के अयोग्य क्यों समझा ?
उत्तर-
गुरु रामदास जी ने पृथी चंद को गुरुपद के अयोग्य इसलिए समझा क्योंकि वह धोखेबाज़ और षड्यंत्रकारी था।

लघु उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
गुरु अमरदास जी ने सिक्खों को उदासी मत से कैसे अलग किया ?
उत्तर-
उदासी संप्रदाय की स्थापना गुरु नानक देव जी के बड़े पुत्र श्रीचंद जी ने की थी। उसने संन्यास का प्रचार किया। यह बात गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं के विरुद्ध थी। गुरु अंगद देव जी ने सिक्खों को स्पष्ट किया कि सिक्ख धर्म गृहस्थियों का धर्म है। इसमें संन्यास का कोई स्थान नहीं है। उन्होंने यह भी घोषणा की कि वह सिक्ख जो संन्यास में विश्वास रखता है, सच्चा सिक्ख नहीं है। इस प्रकार उदासियों को सिक्ख संप्रदाय से अलग करके गुरु अंगद देव जी ने सिक्ख धर्म को ठोस आधार प्रदान किया।

प्रश्न 2.
गुरु अमरदास जी ने ब्याह की रस्मों में क्या सुधार किए ?
उत्तर-
गुरु अमरदास जी के समय समाज में जाति मतभेद का रोग इतना बढ़ चुका था कि लोग अपनी जाति से बाहर विवाह करना धर्म के विरुद्ध मानने लगे थे। गुरु जी का विश्वास था कि ऐसे रीति-रिवाज लोगों में फूट डालते हैं। इसीलिए उन्होंने सिक्खों को जाति-मतभेद भूल कर अंतर्जातीय विवाह करने का आदेश दिया। उन्होंने विवाह की रीतियों में भी सुधार किया। उन्होंने विवाह के समय रस्मों, फेरों के स्थान पर ‘लावां’ की प्रथा आरंभ की।

प्रश्न 3.
गोइंदवाल साहिब की बाऊली (जल स्रोत) का वर्णन करो।
उत्तर-
गुर अमरदास जी ने गोइंदवाल साहिब नामक स्थान पर बाऊली (जल स्रोत) का निर्माण कार्य पूरा किया जिसका शिलान्यास गुरु अंगद देव जी के समय में किया गया था। गुरु अमरदास जी ने इस बावली में 84 सीढ़ियां बनवाई। उन्होंने अपने शिष्यों को बताया कि जो सिक्ख प्रत्येक सीढ़ी पर श्रद्धा और सच्चे मन से ‘जपुजी साहिब’ का पाठ करके स्नान करेगा वह जन्म-मरण के चक्कर से मुक्त हो जाएगा और मोक्ष को प्राप्त करेगा। डॉ. इंदू भूषण बनर्जी लिखते हैं, “इस बाऊली की स्थापना सिक्ख धर्म के इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण कार्य था।” गोइंदवाल साहिब की बाऊली सिक्ख धर्म का प्रसिद्ध तीर्थ स्थान बन गई। इस बाऊली पर एकत्रित होने से सिक्खों में आपसी मेलजोल की भावना भी बढ़ी और वे परस्पर संगठित होने लगे।

प्रश्न 4.
आनंद साहिब बारे लिखो।
उत्तर-
गुरु अमरदास जी ने एक नई बाणी की रचना की जिसे आनंद साहिब कहा जाता है। गुरु साहिब ने अपने सिक्खों को आदेश दिया कि जन्म, विवाह तथा खुशी के अन्य अवसरों पर ‘आनंद’ साहिब का पाठ करें। इस बाणी से सिक्खों में वेद-मंत्रों के उच्चारण का महत्त्व बिल्कुल समाप्त हो गया। आज भी सभी सिक्ख जन्म, विवाह तथा खुशी के अन्य अवसरों पर इसी बाणी को गाते हैं।

प्रश्न 5.
सिक्खों तथा उदासियों में हुए समझौते के बारे में जानकारी दीजिए।
उत्तर-
गुरु अंगद देव जी तथा गुरु अमरदास जी ने सिक्खों को उदासी संप्रदाय से अलग कर दिया था, परंतु गुर रामदास जी ने उदासियों से बड़ा विनम्रतापूर्ण व्यवहार किया। उदासी संप्रदाय के संचालक बाबा श्रीचंद जी एक बार गुरु रामदास जी से मिलने गए। उनके बीच एक महत्त्वपूर्ण वार्तालाप भी हुआ। श्रीचंद जी गुरु साहिब की विनम्रता से बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने गुरु जी की श्रेष्ठता को स्वीकार कर लिया। इस प्रकार उदासियों ने सिक्ख गुरु साहिबान का विरोध करना छोड़ दिया।

PSEB 9th Class SST Solutions History Chapter 3 सिक्ख धर्म का विकास (1539 ई०-1581 ई०)

प्रश्न 6.
गुरु साहिबान के समय के दौरान बनी बाऊलियों (जल स्रोतों) का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
गुरु साहिबान के समय में निम्नलिखित बाऊलियों का निर्माण हुआ

  1. गोइंदवाल साहिब की बाऊली-गोइंदवाल साहिब की बाऊली का शिलान्यास गुरु अंगद देव जी के समय में हुआ था। गुरु अमदास जी ने इस बाऊली को पूर्ण करवाया। उन्होंने इसके जल तक पहुंचने के लिए 84 सीढ़ियाँ बनवाईं। उन्होंने अपने शिष्यों को बताया कि जो सिक्ख प्रत्येक सीढ़ी पर श्रद्धा और सच्चे मन से जपुजी साहिब का पाठ करेगा वह जन्म-मरण की चौरासी लाख योनियों के चक्कर से मुक्त हो जाएगा।
  2. लाहौर की बाऊली-लाहौर के डब्बी बाज़ार में स्थित इस बाऊली का निर्माण गुरु अर्जन साहिब ने करवाया। यह बाऊली सिक्खों का एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थान बन गई।

प्रश्न 7.
गुरु अंगद
देव जी द्वारा सिक्ख संस्था (पंथ) के विकास के लिए किए गए किन्हीं चार कार्यों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
श्री गुरु नानक देव जी (1539 ई०) के पश्चात् गुरु अंगद देव जी गुरुगद्दी पर आसीन हुए। उनका नेतृत्व सिक्ख धर्म के लिए वरदान सिद्ध हुआ। उन्होंने निम्नलिखित कार्यों द्वारा सिक्ख धर्म के विकास में योगदान दिया-

  1. गुरुमुखी लिपि का मानकीकरण-गुरु अंगद देव जी ने गुरुमुखी लिपि को मानक रूप दिया। कहते हैं कि गुरु अंगद देव जी ने गुरुमुखी के प्रचार के लिए गुरुमुखी वर्णमाला में ‘बाल बोध’ की रचना की।
  2. गुरु नानक देव जी की जन्म-साखी-श्री गुरु अंगद देव जी ने श्री गुरु नानक देव जी की सारी बाणी को एकत्रित करके भाई बाला से गुरु जी की जन्म साखी (जीवन-चरित्र) लिखवाई। इससे सिक्ख गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं का पालन करने लगे।
  3. लंगर प्रथा-श्री गुरु अंगद देव जी ने लंगर प्रथा जारी रखी। इस प्रथा से जाति-पाति की भावनाओं को धक्का लगा और सिक्ख धर्म के प्रसार में सहायता मिली।
  4. गोइंदवाल साहिब का निर्माण-गुरु अंगद देव जी ने गोइंदवाल साहिब नामक नगर की स्थापना की। गुरु अमरदास के समय में यह नगर एक प्रसिद्ध धार्मिक केंद्र बन गया। आज भी यह सिक्खों का एक पवित्र धार्मिक स्थान है।

प्रश्न 8.
सिक्ख पंथ में गुरु और सिक्ख (शिष्य) की परंपरा कैसे स्थापित हुई ?
उत्तर-
गुरु नानक साहिब के 1539 में ज्योति-जोत समाने से पूर्व एक विशेष धार्मिक भाई-चारा अस्तित्व में आ चुका था। गुरु नानक देव जी इसे जारी रखना चाहते थे। इसीलिए उन्होंने अपने जीवन काल में ही अपने शिष्य भाई लहना जी को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया। भाई लहना जी ने गुरु नानक साहिब के ज्योति-जोत समाने के पश्चात् गुरु अंगद देव जी के नाम से गुरुगद्दी संभाली। इस प्रकार गुरु और सिक्ख (शिष्यों) की परंपरा स्थापित हुई और सिक्ख इतिहास में यह विचार गुरु पंथ के सिद्धांत के रूप में विकसित हुआ ।

प्रश्न 9.
गुरु नानक साहिब ने अपने पुत्रों के होते हुए भाई लहना जी को अपना उत्तराधिकारी क्यों बनाया ?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी ने अपने दो पुत्रों श्री चंद तथा लखमी दास (चंद) के होते हुए भी भाई लहना को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया था। उसके पीछे कुछ विशेष कारण थे-

  1. आदर्श गृहस्थ जीवन का पालन गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं का मुख्य सिद्धांत था, परंतु उनके दोनों पुत्र गुरु जी के इस सिद्धांत का पालन नहीं कर रहे थे। इसके विपरीत भाई लहना गुरु नानक देव जी के सिद्धांत का पालन सच्चे मन से कर रहे थे।
  2. नम्रता तथा सेवा-भाव भी गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं का मूल मंत्र था, परंतु बाबा श्रीचंद नम्रता तथा सेवा-भाव दोनों ही गुणों से खाली थे। दूसरी ओर, भाई लहना इन गुणों की साक्षात मूर्ति थे।
  3. गुरु नानक देव जी को वेद-शास्त्रों तथा ब्राह्मण वर्ग की सर्वोच्चता में विश्वास नहीं था। वे संस्कृत को भी पवित्र भाषा स्वीकार नहीं करते थे, परंतु उनके पुत्र श्रीचंद जी को संस्कृत भाषा तथा वेद-शास्त्रों में गूढ विश्वास था।

प्रश्न 10.
गुरु अंगद देव जी के समय में लंगर प्रथा तथा उसके महत्त्व का वर्णन करो।
उत्तर-
लंगर में सभी सिक्ख एक साथ बैठ कर भोजन करते थे। गुरु अंगद देव जी ने इस प्रथा को काफ़ी प्रोत्साहन दिया। लंगर प्रथा के विस्तार तथा प्रोत्साहन के कई महत्त्वपूर्ण परिणाम निकले। यह प्रथा धर्म प्रचार कार्य का एक शक्तिशाली साधन बन गई। निर्धनों के लिए एक सहारा बनने के अतिरिक्त यह प्रचार तथा विस्तार का एक महान् यंत्र बनी। गुरु जी के अनुयायियों द्वारा दिए गए अनुदानों, चढ़ावे इत्यादि को इसने निश्चित रूप दिया। हिंदुओं द्वारा स्थापित की गई दान संस्थाएं अनेक थीं, परंतु गुरु जी का लंगर संभवत: पहली संस्था थी जिसका खर्च समस्त सिक्खों के संयुक्त दान तथा भेंटों से चलाया जाता था। इस बात ने सिक्खों में ऊंच-नीच की भावना को समाप्त करके एकता की भावना जागृत की।

प्रश्न 11.
गुरु अंगद देव जी के जीवन की किस घटना से उनके अनुशासनप्रिय होने का प्रमाण मिलता है ?
उत्तर-
गुरु अंगद देव जी ने सिक्खों के समक्ष अनुशासन का एक बहुत बड़ा उदाहरण प्रस्तुत किया। कहा जाता है कि सत्ता और बलवंड नामक दो प्रसिद्ध रबाबी उनके दरबार में रहते थे। उन्हें अपनी कला पर इतना अभिमान हो गया कि वे गुरु जी के आदेशों का उल्लंघन करने लगे। वे इस बात का प्रचार करने लगे कि गुरु जी की प्रसिद्धि केवल हमारे ही मधुर रागों और शब्दों के कारण है। इतना ही नहीं उन्होंने तो गुरु नानक देव जी की महत्ता का कारण भी मरदाना का मधुर संगीत बताया। गुरु जी ने इस अनुशासनहीनता के कारण सत्ता और बलवंड को दरबार से निकाल दिया। अंत में श्रद्धालु भाई लद्धा जी की प्रार्थना पर ही उन्हें क्षमा किया गया। इस घटना का सिक्खों पर गहरा प्रभाव पड़ा। परिणामस्वरूप सिक्ख धर्म में अनुशासन का महत्त्व बढ़ गया।

PSEB 9th Class SST Solutions History Chapter 3 सिक्ख धर्म का विकास (1539 ई०-1581 ई०)

प्रश्न 12.
गुरु अमरदास जी गुरु अंगद देव जी के शिष्य कैसे बने ? उन्हें गुरुगद्दी कैसे मिली ?
उत्तर-
गुरु अमरदास जी ने एक दिन गुरु अंगद देव जी की पुत्री बीबी अमरो के मुंह से गुरु नानक देव जी की बाणी सुनी। वे बाणी से इतने प्रभावित हुए कि तुरंत गुरु अंगद देव जी के पास पहुंचे और उनके शिष्य बन गये। इसके पश्चात् गुरु अमरदास जी ने 1541 से 1552 ई० तक (गुरुगद्दी मिलने तक) खडूर साहिब में रह कर गुरु अंगद देव जी की खूब सेवा की। एक दिन कड़ाके की ठंड में अमरदास जी गुरु अंगद देव जी के स्नान के लिए पानी का घड़ा लेकर आ रहे थे। मार्ग में ठोकर लगने से वह गिर पडे। यह देख कर एक बनकर की पत्नी ने कहा कि यह अवश्य निथावां (जिसके पास कोई स्थान न हो) अमरू ही होगा। इस घटना की सूचना जब गुरु अंगद देव जी को मिली तो उन्होंने अमरदास को अपने पास बुलाकर घोषणा की कि, “अब से अमरदास निथावां नहीं होगा, बल्कि अनेक निथावों का सहारा होगा।” मार्च, 1552 ई० में गुरु अंगद देव जी ने अमरदास जी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त कर दिया। इस प्रकार गुरु अमरदास जी सिक्खों के तीसरे गुरु बने।

प्रश्न 13.
गुरु अमरदास जी के समय में लंगर प्रथा के विकास का वर्णन करो।
उत्तर-
गुरु अमरदास जी ने लंगर के लिए कुछ विशेष नियम बनाये। अब कोई भी व्यक्ति लंगर में भोजन किए बिना गुरु जी से नहीं मिल सकता था। कहा जाता है कि सम्राट अकबर को गुरु जी के दर्शन करने से पहले लंगर में भोजन करना पड़ा था। गुरु जी का लंगर प्रत्येक जाति, धर्म और वर्ग के लोगों के लिए खुला था। लंगर में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा शूद्र सभी जातियों के लोग एक ही पंक्ति में बैठकर भोजन करते थे। इससे जाति-पाति तथा रंग-रूप के भेदभावों को बड़ा धक्का लगा और लोगों में समानता की भावना का विकास हुआ। परिणामस्वरूप सिक्ख एकता के सूत्र में बंधने लगे।

प्रश्न 14.
गुरु अमरदास जी के समय में मंजी प्रथा के विकास पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
मंजी प्रथा की स्थापना गुरु अमरदास जी ने की थी। उनके समय में सिक्खों की संख्या काफ़ी बढ़ चुकी थी। परंतु गुरु जी की आयु अधिक होने के कारण यह बहुत कठिन हो गया कि वे एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाकर अपनी शिक्षाओं का प्रचार करें। अतः उन्होंने अपने सारे आध्यात्मिक प्रदेश को 22 भागों में बांट दिया। इनमें से प्रत्येक भाग को ‘मंजी’ तथा उसके मुखिया को मंजीदार कहा जाता था। प्रत्येक मंजी छोटे-छोटे स्थानीय केंद्रों में बंटी हुई थी जिन्हें पीढ़ियाँ (Piris) कहते थे। मंजी प्रणाली का सिक्ख धर्म के इतिहास में विशेष महत्त्व है। डॉ० गोकुल चंद नारंग के शब्दों में, “गुरु जी के इस कार्य ने सिक्ख धर्म की नींव सुदृढ़ करने तथा देश के सभी भागों में प्रचार कार्य को बढ़ाने में विशेष योगदान दिया होगा।”

प्रश्न 15.
“गुरु अमरदास जी एक महान् समाज सुधारक थे।” इस कथन के पक्ष में कोई चार तर्क दीजिए।
उत्तर-
गुरु अमरदास जी ने निम्नलिखित महत्त्वपूर्ण सामाजिक सुधार किए-

  1. गुरु अमरदास जी ने जाति मतभेद का खंडन किया। गुरु जी का विश्वास था कि जाति मतभेद परमात्मा की इच्छा के विरुद्ध है। इसलिए गुरु जी के लंगर में जाति-पाति का कोई भेद-भाव नहीं रखा जाता था।
  2. उस समय सती प्रथा जोरों से प्रचलित थी। गुरु जी ने इस प्रथा के विरुद्ध जोरदार आवाज़ उठाई। .
  3. गुरु जी ने स्त्रियों में प्रचलित पर्दे की प्रथा की भी घोर निंदा की। वे पर्दे की प्रथा को समाज की उन्नति के मार्ग में एक बहुत बड़ी बाधा मानते थे।
  4. गुरु अमरदास जी नशीली वस्तुओं के सेवन के भी घोर विरोधी थे। उन्होंने अपने अनुयायियों को सभी नशीली वस्तुओं से दूर रहने का निर्देश दिया।

दीर्घ उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
गुरु अंगद साहिब ने सिक्ख धर्म के विकास के लिए क्या योगदान दिया?
उत्तर-
श्री गुरु नानक देव जी (1539 ई०) के पश्चात् गुरु अंगद देव जी गुरुगद्दी पर आसीन हुए। उनका नेतृत्व सिक्ख धर्म के लिए वरदान सिद्ध हुआ। उन्होंने अग्रलिखित ढंग से सिक्ख धर्म के विकास में योगदान दिया

  1. गुरुमुखी लिपि में सुधार-गुरु अंगद देव जी ने गुरुमुखी लिपि में सुधार किया। कहते हैं कि गुरु अंगद देव जी ने गुरुमुखी के प्रचार के लिए गुरुमुखी वर्णमाला में बाल बोध’ की रचना की। जनसाधारण की भाषा होने के कारण इससे सिक्ख धर्म के प्रचार के कार्य को बढ़ावा मिला। आज सिक्खों के सभी धार्मिक ग्रंथ इसी भाषा में हैं।
  2. गुरु नानक देव जी की जन्म-साखी-श्री गुरु अंगद देव जी ने श्री गुरु नानक देव जी की सारी बाणी को एकत्रित करके भाई बाला से गुरु जी की जन्म-साखी (जीवन-चरित्र) लिखवाई। इससे सिक्ख गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं का पालन करने लगे।
  3. लंगर प्रथा-श्री गुर अंगद देव जी ने लंगर प्रथा जारी रखी। उन्होंने यह आज्ञा दी कि जो कोई उनके दर्शन को आए, उसे पहले लंगर में भोजन कराया जाए। यहां प्रत्येक व्यक्ति बिना किसी भेद-भाव के भोजन करता था। इससे जाति-पाति की भावनाओं को धक्का लगा और सिक्ख धर्म के प्रसार में सहायता मिली।
  4. उदासियों से सिक्ख धर्म को अलग करना-गुरु नानक देव जी के बड़े पुत्र श्रीचंद जी ने उदासी संप्रदाय की स्थापना की थी। उन्होंने संन्यास का प्रचार किया। यह बात गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं के विरुद्ध थी। अतः गुरु अंगद देव जी ने उदासियों से नाता तोड़ लिया।
  5. गोइंदवाल का निर्माण-गुरु अंगद देव जी ने गोइंदवाल नामक नगर की स्थापना की। गुरु अमरदास जी के समय में यह नगर सिक्खों का एक प्रसिद्ध धार्मिक केंद्र बन गया। आज भी यह सिक्खों का एक पवित्र धार्मिक स्थान
  6. अनुशासन को बढ़ावा-गुरु जी बड़े ही अनुशासन प्रिय थे। उन्होंने सत्ता और बलवंड नामक दो प्रसिद्ध रबाबियों को अनुशासन भंग कराने के कारण दरबार से निकाल दिया, परंतु बाद में भाई लद्धा के प्रार्थना करने पर गुरु जी ने उन्हें क्षमा कर दिया।
    सच तो यह है कि गुरु अंगद देव जी ने सिक्ख धर्म को पृथक् पहचान प्रदान की।

प्रश्न 2.
गुरु अमरदास जी ने सिक्ख धर्म के विकास के लिए क्या-क्या कार्य किए ?
उत्तर-
गुरु अमरदास जी को सिक्ख धर्म में विशिष्ट स्थान प्राप्त है। गुरु नानक देव जी ने धर्म का जो बीज बोया था वह गुरु अंगद देव जी के काल में अंकुरित हो गया। गुरु अमरदास जी ने अपने कार्यों से इस नये पौधे की रक्षा की। संक्षेप में, गुरु अमरदास जी के कार्यों का वर्णन इस प्रकार है

  1. गोइंदवाल साहिब की बावली का निर्माण-गुरु अमरदास जी ने सर्वप्रथम गोइंदवाल साहिब के स्थान पर एक बावली (जल-स्रोत) का निर्माण कार्य पूरा किया जिसका शिलान्यास गुरु अंगद देव जी के समय रखा गया था। गुरु अमरदास जी ने इस बावली की तह तक पहुंचने के लिए 84 सीढ़ियां बनवाईं। गुरु जी के अनुसार प्रत्येक सीढ़ी पर जपुजी साहिब का पाठ करने से जन्म-मरण की चौरासी लाख योनियों के चक्कर से मुक्ति मिलेगी। गोइंदवाल साहिब की बावली सिक्ख धर्म का एक प्रसिद्ध तीर्थ-स्थान बन गई।
  2. लंगर प्रथा-गुरु अमरदास जी ने लंगर प्रथा का विस्तार करके सिक्ख धर्म के विकास की ओर एक और महत्त्वपूर्ण कदम उठाया। उन्होंने लंगर के लिए कुछ विशेष नियम बनाए। अब कोई भी व्यक्ति लंगर में भोजन किए बिना गुरु जी से नहीं मिल सकता था। लंगर प्रथा से जाति-पाति तथा रंग-रूप के भेदभावों को बड़ा धक्का लगा और लोगों में समानता की भावना का विकास हुआ। परिणामस्वरूप सिक्ख एकता के सूत्र में बंधने लगे।
  3. सिक्ख गुरु साहिबान के शब्दों को एकत्रित करना-गुरु नानक देव जी के शब्दों तथा श्लोकों को गुरु अंगद देव जी ने एकत्रित करके उनके साथ अपने रचे हुए शब्द भी जोड़ दिए थे। यह सारी सामग्री गुरु अंगद देव जी ने गुरु अमरदास जी को सौंप दी थी। गुरु अमरदास जी ने कुछ-एक नए श्लोकों की रचना की और उन्हें पहले वाले संकलन (collection) के साथ मिला दिया। इस प्रकार विभिन्न गुरु साहिबान के शब्दों तथा उपदेशों के एकत्र हो जाने से ऐसी सामग्री तैयार हो गई जो आदि ग्रंथ साहिब के संकलन का आधार बनी।
  4. मंजी प्रथा-वृद्धावस्था के कारण गुरु साहिब जी के लिए एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाकर अपनी शिक्षाओं का प्रचार करना कठिन हो गया था। अतः उन्होंने अपने पूरे आध्यात्मिक साम्राज्य को 22 प्रांतों में बांट दिया। इनमें से प्रत्येक प्रांत को ‘मंजी’ कहा जाता था। प्रत्येक मंजी सिक्ख धर्म के प्रचार का एक केंद्र थी। गुरु अमरदास जी द्वारा स्थापित मंजी प्रणाली का सिक्ख धर्म के इतिहास में विशेष महत्त्व है। डॉ० गोकुल चंद नारंग के शब्दों में, “गुरु जी के इस कार्य ने सिक्ख धर्म की नींव सुदृढ़ करने तथा देश के सभी भागों में प्रचार कार्य बढ़ाने में विशेष योगदान दिया।”
  5. उदासियों से सिक्खों को पृथक् करना-गुरु साहिब ने उदासी संप्रदाय के सिद्धांतों का जोरदार शब्दों में खंडन किया। उन्होंने अपने अनुयायियों को समझाया कि कोई भी व्यक्ति, जो उदासी नियमों का पालन करता है, सच्चा सिक्ख नहीं हो सकता। गुरु जी के इन प्रयत्नों से सिक्ख उदासियों से पृथक् हो गए और सिक्ख धर्म का अस्तित्व मिटने से बच गया।
  6. नई परंपराएं-गुरु अमरदास जी ने सिक्खों को व्यर्थ के रीति-रिवाजों का त्याग करने का उपदेश दिया। हिंदुओं में किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाने पर खूब रोया-पीटा जाता था। परंतु गुरु अमरदास जी ने सिक्खों को रोने-पीटने के स्थान पर ईश्वर का नाम लेने का उपदेश दिया। उन्होंने विवाह की भी नई विधि आरंभ की जिसे आनंद कारज कहते हैं।
  7. आनंद साहिब की रचना-गुरु अमरदास जी ने एक नई बाणी की रचना की जिसे आनंद साहिब कहा जाता सच तो यह है कि गुरु अमरदास जी का गुरु काल सिक्ख धर्म के इतिहास में विशेष महत्त्व रखता है। गुरु जी के द्वारा बाऊली का निर्माण, मंजी प्रथा के आरंभ, लंगर प्रथा के विस्तार तथा नए रीति-रिवाजों ने सिख धर्म के संगठन में बड़ी सहायता की।

PSEB 9th Class SST Solutions History Chapter 3 सिक्ख धर्म का विकास (1539 ई०-1581 ई०)

प्रश्न 3.
गुरु अमरदास जी के द्वारा किए गए सुधारों का वर्णन करो। .
उत्तर-
गुरु अमरदास जी के समय में समाज अनेकों बुराइयों का शिकार हो चुका था। गुरु जी इस बात को भली-भांति समझते थे, इसलिए उन्होंने कई महत्त्वपूर्ण सामाजिक सुधार किए। सामाजिक क्षेत्र में गुरु जी के कार्यों का वर्णन निम्नलिखित है-

  1. जाति-पाति का विरोध-गुरु अमरदास जी ने जाति-मतभेद का खंडन किया। उनका विश्वास था कि जातीय मतभेद परमात्मा की इच्छा के विरुद्ध है। .
  2. छुआछूत की निंदा-गुरु अमरदास जी ने छुआछूत को समाप्त करने के लिए महत्त्वपूर्ण कार्य किया। उनके लंगर में जाति-पाति का कोई भेदभाव नहीं था। वहां सभी लोग एक साथ बैठकर भोजन करते थे।
  3. विधवा विवाह-गुरु अमरदास के समय में विधवा विवाह निषेध था। किसी स्त्री को पति की मृत्यु के पश्चात् सारा जीवन विधवा के रूप में व्यतीत करना पड़ता था। गुरु जी ने विधवा विवाह को उचित बताया और इस प्रकार स्त्री जाति को समाज में योग्य स्थान दिलाने का प्रयत्न किया।
  4. सती-प्रथा की भर्त्सना-उस काल के समाज में एक और बड़ी बुराई सती-प्रथा की थी। जी० वी० स्टॉक के अनुसार, गुरु अमरदास जी ने सती-प्रथा की सबसे पहले निंदा की। उनका कहना था कि वह स्त्री सती नहीं कही जा सकती जो अपने पति के मृत शरीर के साथ जल जाती है। वास्तव में वही स्त्री सती है जो अपने पति के वियोग की पीड़ा को सहन करे।
  5. पर्दे की प्रथा का विरोध-गुरु जी ने स्त्रियों में प्रचलित पर्दे की प्रथा की भी घोर निंदा की। वह पर्दे की प्रथा को समाज की उन्नति के मार्ग में एक बहुत बड़ी बाधा मानते थे। इसलिए उन्होंने स्त्रियों को बिना पर्दा किए लंगर की सेवा करने तथा संगत में बैठने का आदेश दिया।
  6. नशीली वस्तुओं की निंदा-गुरु अमरदास जी ने अपने अनुयायियों को नशीली वस्तुओं से दूर रहने का उपदेश दिया। उन्होंने अपने एक ‘शब्द’ में शराब सेवन की खूब निंदा की है।
  7. सिक्खों में भ्रातृत्व की भावना-गुरु जी ने सिक्खों को यह आदेश दिया कि वे माघी, दीपावली और वैशाखी आदि त्योहारों को एक साथ मिलकर नई परंपरा के अनुसार मनायें। इस प्रकार उन्होंने सिक्खों में भ्रातृत्व की भावना जागृत करने का प्रयास किया।
  8. जन्म तथा मृत्यु के संबंध में नये नियम-गुरु अमरदास जी ने सिक्खों को जन्म-मृत्यु तथा विवाह के अवसरों पर नये रिवाजों का पालन करने को कहा। ये रिवाज हिंदुओं के रीति-रिवाजों से बिल्कुल भिन्न थे। इनके लिए ब्राह्मण वर्ग को बुलाने की कोई आवश्यकता न थी। इस प्रकार गुरु साहिब ने सिक्ख धर्म को पृथक् पहचान प्रदान की।
    सच तो यह है कि गुरु अमरदास जी ने अपने कार्यों से सिक्ख धर्म को नया बल दिया।

प्रश्न 4.
गुरु रामदास जी ने सिक्ख धर्म के विकास के लिए क्या यत्न किए ?
उत्तर-
गुरु रामदास जी सिक्खों के चौथे गुरु थे। उन्होंने सिक्ख पंथ के विकास में निम्नलिखित योगदान दिया

  1. अमृतसर का शिलान्यास-गुरु रामदास जी ने रामदासपुर की नींव रखी। आजकल इस नगर को अमृतसर कहते हैं। 1577 ई० में गुरु जी ने यहां अमृतसर तथा संतोखसर नामक दो सरोवरों की खुदाई आरंभ की। कुछ ही समय में सरोवर के चारों ओर एक छोटा-सा नगर बस गया। इसे रामदासपुर का नाम दिया गया। गुरु जी इस नगर को हर प्रकार से आत्म-निर्भर बनाना चाहते थे। अत: उन्होंने 52 अलग-अलग प्रकार के व्यापारियों को आमंत्रित किया। उन्होंने एक बाज़ार की स्थापना की जिसे आजकल ‘गुरु का बाज़ार’ कहते हैं।
  2. मसंद प्रथा का आरंभ-गुरु रामदास जी को अमृतसर तथा संतोखसर नामक सरोवरों की खुदाई के लिए काफ़ी धन की आवश्यकता थी। अत: उन्होंने मसंद प्रथा का आरंभ किया। इसके अनुसार गुरु के मसंद स्थानीय सिख संगत के लिए गुरु के प्रतिनिधि के रूप में कार्य करते थे। वे संगत को गुरु घर से जोड़ते थे और उनकी साझा समस्याओं का समाधान भी करते थे। इन मसंदों ने विभिन्न प्रदेशों में सिक्ख धर्म का खूब प्रचार किया तथा काफ़ी धन राशि एकत्रित की।
  3. उदासियों से मत-भेद की समाप्ति-गुरु अंगद देव जी तथा गुरु अमरदास जी ने सिक्खों को उदासी संप्रदाय से अलग कर दिया था। परंतु गुरु रामदास जी ने उदासियों से बड़ा विनम्रतापूर्ण व्यवहार किया। उदासी संप्रदाय के संचालक बाबा श्रीचंद जी एक बार गुरु रामदास जी से मिलने आए। दोनों के बीच एक महत्त्वपूर्ण वार्तालाप हुआ। श्रीचंद जी गुरु साहिब की विनम्रता से बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने गुरु जी की श्रेष्ठता को स्वीकार कर लिया।
  4. सामाजिक सुधार-गुरु रामदास जी ने गुरु अमरदास जी द्वारा आरंभ किए गए नए सामाजिक रीति-रिवाजों को जारी रखा। उन्होंने सती प्रथा की घोर निंदा की, विधवा पुनर्विवाह की अनुमति दी तथा विवाह और मृत्यु संबंधी कुछ नए नियम जारी किए।
  5. अकबर के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध -मुग़ल सम्राट अकबर सभी धर्मों के प्रति सहनशील था। वह गुरु रामदास जी का बड़ा सम्मान करता था। कहा जाता है कि गुरु रामदास जी के समय में एक बार पंजाब बुरी तरह अकाल की चपेट में आ गया जिससे किसानों की दशा बहुत खराब हो गई, परंतु गुरु जी के कहने पर अकबर ने पंजाब के कृषकों का पूरे वर्ष का लगान माफ कर दिया।
  6. गुरुगद्दी का पैतृक सिद्धांत-गुरु रामदास जी ने गुरुगद्दी को पैतृक रूप प्रदान किया। उन्होंने ज्योति जोत समाने से कुछ समय पूर्व गुरुगद्दी अपने छोटे, परंतु सबसे योग्य पुत्र अर्जन देव जी को सौंप दी। गुरु रामदास जी ने गुरुगद्दी को पैतृक बनाकर सिक्ख इतिहास में एक नवीन अध्याय का श्रीगणेश किया। परंतु एक बात ध्यान देने योग्य है कि गुरु पद का आधार गुण तथा योग्यता ही रहा।
    सच तो यह है कि गुरु रामदास जी ने बहुत ही कम समय तक सिक्ख मत का मार्ग-दर्शन किया। परंतु इस थोड़े समय में ही उनके प्रयत्नों से सिक्ख धर्म के रूप में विशेष निखार आया।

सिक्ख धर्म का विकास PSEB 9th Class History Notes

  1.  गुरु अंगद देव जी – दूसरे सिक्ख गुरु अंगद देव जी ने गुरु नानक साहिब की बाणी एकत्रित की और इसे गुरुमुखी लिपि में लिखा। उनका यह कार्य गुरु अर्जन साहिब द्वारा संकलित ‘ग्रंथ साहिब’ की तैयारी का पहला चरण सिद्ध हुआ। गुरु अंगद देव जी ने स्वयं भी गुरु नानक देव जी के नाम से बाणी की रचना की। इस प्रकार उन्होंने गुरु पद की एकता को दृढ़ किया। संगत और पंगत की संस्थाएं गुरु अंगद साहिब के अधीन भी जारी रहीं।
  2. गुरु अमरदास जी – गुरु अमरदास जी सिक्खों के तीसरे गुरु थे। वह 22 वर्ष तक गुरुगद्दी पर रहे। वह खडूर साहिब से गोइंदवाल साहिब चले गए। वहां उन्होंने एक बाउली बनवाई जिसमें उनके सिक्ख (शिष्य) धार्मिक अवसरों पर स्नान करते थे। गुरु अमरदास जी. ने विवाह की एक सरल विधि प्रचलित की और उसे आनंद-कारज का नाम दिया। उनके समय में सिक्खों की संख्या काफ़ी बढ़ गई।
  3. गुरु रामदास जी – चौथे गुरु रामदास जी ने रामदासपुर (आधुनिक अमृतसर) में रह कर प्रचार कार्य आरंभ किया। इसकी नींव गुरु अमरदास जी के जीवन-काल के अंतिम वर्षों में रखी गई थी। श्री रामदास जी ने रामदासपुर में एक बहुत बड़ा सरोवर बनवाया जो अमृतसर अर्थात् अमृत के सरोवर के नाम से प्रसिद्ध हुआ। उन्हें अमृतसर तथा संतोखसर नामक तालाबों की खुदाई के लिए काफ़ी धन की आवश्यकता थी। इसलिए उन्होंने मसंद प्रथा का श्रीगणेश किया। उन्होंने गुरुगद्दी को पैतृक रूप भी प्रदान किया।
  4. गुरुमुखी लिपि को मानकीकरण – गुरु अंगद देव जी ने गुरुमुखी लिपि का मानकीकरण किया। कहते हैं कि गुरु अंगद देव जी ने गुरुमुखी के प्रचार के लिए गुरुमुखी वर्णमाला में बच्चों के लिए ‘बाल बोध’ की रचना की। आम लोगों की बोली होने के कारण इससे सिक्ख धर्म के प्रचार के कार्य को बढ़ावा मिला। आज सिक्खों के सभी धार्मिक ग्रंथ इसी भाषा में हैं।
  5. मंजी प्रथा –   गुरु अमरदास जी के समय में सिक्खों की संख्या काफी बढ़ चुकी थी। परंतु वृद्धावस्था के कारण गुरु साहिब जी के लिए एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाकर अपनी शिक्षाओं का प्रचार करना कठिन हो गया था। अत: उन्होंने अपने सारे आध्यात्मिक साम्राज्य को 22 प्रांतों में बांट दिया। इनमें से प्रत्येक प्रांत को ‘मंजी’ कहा जाता था। प्रत्येक मंजी सिक्ख धर्म के प्रचार का एक केंद्र थी जिसके संचालन का कार्यभार गुरु जी ने अपने किसी विद्वान् श्रद्धालु शिष्य को सौंप रखा था।
  6. अनंदु साहिब की रचना – गुरु अमरदास जी ने एक नई बाणी की रचना की जिसे ‘अनंदु साहिब’ कहा जाता है। इस बाणी से सिक्खों में वेद-मंत्रों के उच्चारण का महत्त्व बिल्कुल समाप्त हो गया।
  7. गोइंदवाल साहिब का निर्माण – गुरु अंगद देव जी ने गोइंदवाल साहिब नामक नगर की स्थापना की। गुरु अमरदास जी के समय में यह नगर एक प्रसिद्ध धार्मिक केंद्र बन गया। आज भी यह सिक्खों का एक पवित्र धार्मिक स्थान है।
  8. लंगर प्रथा का विस्तार – श्री गुरु अंगद देव जी ने श्री गुरु नानक देव जी द्वारा आरम्भ की गई लंगर प्रथा का विस्तार किया। उन्होंने यह आज्ञा दी कि जो कोई उनके दर्शन को आए, वह पहले लंगर में भोजन करे। यहां प्रत्येक व्यक्ति बिना किसी भेद-भाव के भोजन करता था। इससे जाति-पाति की भावनाओं को धक्का लगा और सिक्ख धर्म के प्रसार में सहायता मिली।
  9. 31 मार्च, 1504-श्री गुरु अंगद देव जी का जन्म।
  10. 2 सितंबर, 1539 ई० से 29 मार्च 1552 ई०-गुरु अंगद देव जी गुरुगद्दी पर विराजमान रहे।
  11. 1546 ई०-श्री गुरु अंगद देव जी द्वारा गोइंदवाल साहिब नगर की स्थापना।
  12. 29 मार्च, 1552-श्री गुरु अंगद देव जी ज्योति-जोत समाए।
  13. 5 मई, 1479 ई०-श्री गुरु अमरदास जी का जन्म।
  14. मार्च 1552 ई०-श्री गुरु अमरदास जी गुरुगद्दी पर विराजमान।
  15. मार्च 1559 ई०- श्री गुरु अमरदास जी ने गोइंदवाल साहिब में बाउली का निर्माण कार्य पूरा किया।
  16. 1574 ई०- श्री गुरु अमरदास जी ज्योति-जोत समाए।
  17. 24 सितंबर, 1534 ई०-श्री गुरु रामदास जी का जन्म।
  18. 1574 ई० से 1581 ई०-श्री गुरु रामदास जी गुरुगद्दी पर विराजमान रहे।
  19. 1 सितंबर, 1581 ई०-श्री गुरु रामदास जी ज्योति-जोत समाए।

PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 12 सफ़ाईकारी और अन्य पदार्थ

Punjab State Board PSEB 9th Class Home Science Book Solutions Chapter 12 सफ़ाईकारी और अन्य पदार्थ Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 9 Home Science Chapter 12 सफ़ाईकारी और अन्य पदार्थ

PSEB 9th Class Home Science Guide सफ़ाईकारी और अन्य पदार्थ Textbook Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
किसी एक सहायक सफाईकारक पदार्थ का नाम लिखें।
उत्तर-
कपड़े धोने वाला सोडा।

प्रश्न 2.
साबुन बनाने के लिए जरूरी पदार्थ कौन-से हैं?
उत्तर-
साबुन बनाने के लिए चर्बी तथा खार आवश्यक पदार्थ हैं। नारियल, महुए, सरसों, जैतून का तेल, सूअर की चर्बी आदि चर्बी के रूप में प्रयोग किये जा सकते हैं। जबकि खार कास्टिक सोडा अथवा पोटाश से प्राप्त की जाती है।

प्रश्न 3.
साबुन बनाने की कौन-कौन सी विधियाँ हैं?
उत्तर-
साबुन बनाने की दो विधियाँ हैं-(i) गर्म तथा (ii) ठण्डी विधि।

प्रश्न 4.
वस्त्रों में कड़ापन क्यों लाया जाता है?
उत्तर-

  1. वस्त्रों में ऐंठन लाने से यह मुलायम हो जाते हैं तथा इनमें चमक आ जाती है।
  2. मैल भी वस्त्र के ऊपर ही रह जाती है जिस कारण कपड़े को धोना आसान हो जाता
  3. वस्त्र में जान पड़ जाती है। देखने में मज़बूत लगता है।

PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 12 सफ़ाईकारी और अन्य पदार्थ

प्रश्न 5.
वस्त्रों से दाग उतारने वाले पदार्थों को मुख्य रूप से कितने भागों में बांटा जा सकता है?
उत्तर-
इन्हें दो भागों में बांटा जा सकता है

  1. ऑक्सीडाइजिंग ब्लीच-इससे ऑक्सीजन निकलकर धब्बे को रंग रहित कर देती है। हाइड्रोजन पराऑक्साइड, सोडियम परबोरेट आदि ऐसे पदार्थ हैं।
  2. रिड्यूसिंग एजेंट-यह पदार्थ धब्बे से ऑक्सीजन निकालकर उसे रंग रहित कर देते हैं। सोडियम बाइसल्फाइट तथा सोडियम हाइड्रोसल्फेट ऐसे पदार्थ हैं।

प्रश्न 6.
साबुन और साबुन रहित सफ़ाईकारी पदार्थ में क्या अन्तर है?
उत्तर-

साबुन साबुन रहित सफ़ाईकारी पदार्थ
(1) साबुन प्राकृतिक तेलों जैसे नारियल, जैतून, सरसों आदि अथवा चर्बी जैसे सूभर की चर्बी आदि से बनता है। (1) साबुन रहित सफ़ाईकारी पदार्थ शोधक रासायनिक पदार्थों से बनता है।
(2) साबुन का प्रयोग भारी पानी में नहीं किया जा सकता। (2) इनका प्रयोग भारी पानी में भी किया जा सकता है।
(3) साबुन को जब कपड़े पर रगड़ा जाता है तो सफ़ेद-सी झाग बनती है। (3) इनमें कई बार सफ़ेद झाग नहीं बनती।

प्रश्न 7.
वस्त्रों को सफ़ेद करने वाले पदार्थ कौन-कौन से हैं?
उत्तर-
वस्त्रों को सफ़ेद करने वाले पदार्थ हैं-नील तथा टीनोपॉल अथवा रानीपॉल।
नील-नील दो प्रकार के होते हैं-

  1. पानी में घुलनशील तथा
  2. पानी में अघुलनशील नील। इण्डिगो, अल्ट्रामैरीन तथा प्रशियन नील पहली प्रकार के नील हैं। यह पानी के नीचे बैठ जाते हैं। इन्हें अच्छी तरह से मलना पड़ता है।
    एनीलिन दूसरी तरह के नील हैं। यह पानी में घुल जाते हैं।
    टीनोपॉल-यह भी सफ़ेद वस्त्रों को और सफ़ेद तथा चमकदार करने के लिए प्रयोग किये जाते हैं।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 8.
ठण्डी विधि द्वारा कौन-कौन सी वस्तुओं से साबुन कैसे तैयार किया जा सकता है? इसकी क्या हानियां हैं?
उत्तर-
ठण्डी विधि द्वारा साबुन तैयार करने के लिए निम्नलिखित सामान लोकास्टिक सोडा अथवा पोटाश-250 ग्राम महुआ अथवा नारियल तेल-1 लीटर पानी- 3/4 किलोग्राम मैदा- 250 ग्राम।
किसी मिट्टी के बर्तन में कास्टिक सोडा तथा पानी को मिलाकर 2 घण्डे तक रख दो। तेल तथा मैदे को अच्छी तरह घोल लो तथा फिर इसमें सोडे का घोल धीरे-धीरे डालो तथा मिलाते रहो। पैदा हुई गर्मी से साबुन तैयार हो जाएगा। इसको किसी सांचे में डालकर सुखा लो तथा चक्कियां काट लो।
हानियां-साबुन में अतिरिक्त खार तथा तेल और ग्लिसरॉल आदि साबुन में रह जाते हैं। अधिक खार वाले साबुन कपड़ों को हानि पहुँचाते हैं।

प्रश्न 9.
साबुन किन-किन किस्मों में मिलता है?
उत्तर-
साबुन निम्नलिखित किस्मों में मिलता है

  1. साबुन की चक्की-साबुन चक्की के रूप में प्रायः मिल जाता है। चक्की को गीले वस्त्र पर रगड़कर इसका प्रयोग किया जाता है।
  2. साबुन का पाऊडर-यह साबुन तथा सोडियम कार्बोनेट का बना होता है। इसको गर्म पानी में घोलकर कपड़े धोने के लिए प्रयोग किया जाता है। इसमें सफ़ेद-सफ़ेद सूती वस्त्रों को अच्छी तरह साफ़ किया जाता है।
  3. साबुन का चूरा-यह बन्द पैकटों में मिलता है। इसको पानी में उबालकर सूती वस्त्र कुछ देर भिगो कर रखने के पश्चात् इसमें धोया जाता है। रोगियों के वस्त्रों को भी । कीटाणु रहित करने के लिए साबुन के उबलते घोल का प्रयोग किया जाता है।
  4. साबुन की लेस-एक हिस्सा साबुन का चूरा लेकर पाँच हिस्से पानी डालकर तब तक उबालो जब तक लेस-सी तैयार न हो जाये। इसको ठण्डा होने पर बोतलों में डालकर रख लो तथा ज़रूरत पड़ने पर पानी डालकर धोने के लिए इसे प्रयोग किया जा सकता है।

PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 12 सफ़ाईकारी और अन्य पदार्थ

प्रश्न 10.
अच्छे साबुन की पहचान क्या है?
उत्तर-

  1. साबुन हल्के पीले रंग का होना चाहिए। गहरे रंग के साबुन में मिलावट भी हो सकती है।
  2. साबुन हाथ लगाने पर थोड़ा कठोर होना चाहिए। अधिक नर्म साबुन में ज़रूरत से अधिक पानी हो सकता है जो केवल भार बढ़ाने के लिए ही होता है।
  3. हाथ लगाने पर अधिक कठोर तथा सूखा नहीं होना चाहिए। कुछ घटिया किस्म के साबुनों में भार बढ़ाने वाले पाऊडर डाले होते हैं जो वस्त्र धोने में सहायक नहीं होते।
  4. अच्छा साबुन स्टोर करने पर, पहले की तरह रहता है, जबकि घटिया साबुनों पर स्टोर करने पर सफ़ेद पाऊडर-सा बन जाता है। इनमें आवश्यकता से अधिक खार होती है जोकि वस्त्र को खराब भी कर सकती है।
  5. अच्छा साबुन जुबान पर लगाने से ठीक स्वाद देता है जबकि मिलावट वाला साबुन जुबान पर लगाने से तीखा तथा कड़वा स्वाद देता है।

प्रश्न 11.
साबुन रहित प्राकृतिक सफ़ाईकारी पदार्थ कौन-से हैं?
उत्तर-
साबुन रहित प्राकृतिक, सफ़ाईकारी पदार्थ हैं-रीठे तथा शिकाकाई। इनकी फलियों को सुखा कर स्टोर कर लिया जाता है।

  1. रीठा-रीठों की बाहरी छील के रस में वस्त्र साफ़ करने की शक्ति होती है। रीठों की छील उतारकर पीस लो तथा 250 ग्राम छील को कुछ घण्टे के लिए एक लिटर पानी में भिगो कर रखो तथा फिर इन्हें उबालो वस्त्र तथा ठण्डा करके छानकर बोतलों में भरकर रखा जा सकता है। इसके प्रयोग से ऊनी, रेशमी वस्त्र ही नहीं अपितु सोने, चांदी के आभूषण भी साफ़ किये जा सकते हैं।
  2. शिकाकाई-इसका भी रीठों की तरह घोल बना लिया जाता है। इससे कपड़े निखरते ही नहीं अपितु उनमें चमक भी आ जाती है। इससे सिर भी धोया जा सकता है।

प्रश्न 12.
साबुन रहित रासायनिक सफ़ाईकारी पदार्थों से आप क्या समझते हो ? इनके क्या लाभ हैं?
उत्तर-
साबुन प्राकृतिक तेल अथवा चर्बी से बनते हैं जबकि रासायनिक सफ़ाईकारी शोधक रासायनिक पदार्थों से बनते हैं। यह चक्की, पाऊडर तथा तरल के रूप में उपलब्ध हो सकते हैं।
लाभ-

  1. इनका प्रयोग हर तरह के सूती, रेशमी, ऊनी तथा बनावटी रेशों के लिए किया जा सकता है।
  2. इनका प्रयोग गर्म, ठण्डे, हल्के अथवा भारी सभी प्रकार के पानी में किया जा सकता है।

प्रश्न 13.
साबुन और अन्य साबुन रहित सफ़ाईकारी पदार्थों के अतिरिक्त वस्त्रों की । धुलाई के लिए कौन-से सहायक सफ़ाईकारी पदार्थ प्रयोग किये जाते हैं?
उत्तर-
सहायक सफ़ाईकारी पदार्थ निम्नलिखित हैं

  1. वस्त्र धोने वाला सोडा-इसको सफ़ेद सूती वस्त्रों को धोने के लिए प्रयोग किया जाता है। परन्तु रंगदार सूती वस्त्रों का रंग हल्का पड़ जाता है तथा रेशे कमजोर हो जाते हैं।
    यह रवेदार होता है तथा उबलते पानी में तुरन्त घुल जाता है। इससे सफ़ाई की प्रक्रिया में वृद्धि होती है। इसका प्रयोग भारी पानी को हल्का करने के लिए, चिकनाहट साफ़ करने तथा दाग़ उतारने के लिए किया जाता है।
  2. बोरैक्स (सुहागा)-इसका प्रयोग सफ़ेद सूती वस्त्रों के पीलेपन को दूर करने के लिए तथा चाय, कॉफी, फल, सब्जियों आदि के दाग उतारने के लिए किया जाता है। इसके हल्के घोल में मैले वस्त्र भिगोकर रखने पर उनकी मैल उगल आती है। इससे वस्त्रों में ऐंठन भी लाई जाती है।
  3. अमोनिया- इसका प्रयोग रेशमी तथा ऊनी कपड़ों से चिकनाहट के दाग दूर करने के लिए किया जाता है।
  4. एसिटिक एसिड-रेशमी वस्त्र को इसके घोल में खंगालने से इनमें चमक आ जाती है। इसका प्रयोग वस्त्रों से अतिरिक्त नील का प्रभाव कम करने के लिए भी किया जाता है। रेशमी, ऊनी वस्त्र की रंगाई के समय भी इसका प्रयोग किया जाता है।
  5. ऑग्जैलिक एसिड-इसका प्रयोग छार की बनी चटाइयों, टोकरियों तथा टोपियों आदि को साफ़ करने के लिए किया जाता है। स्याही, जंग, दवाई आदि के दाग उतारने के लिए भी इसका प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न 14.
वस्त्रों से दागों का रंगकाट करने के लिए क्या प्रयोग किया जाता है?
उत्तर-
कपड़ों से दागों का रंगकाट करने के लिए ब्लीचों का प्रयोग होता है। ये दो प्रकार के होते हैं।

  1. ऑक्सीडाइजिंग ब्लीच-जब इनका प्रयोग धब्बे पर किया जाता है, इसकी ऑक्सीजन धब्बे से क्रिया करके इसको रंग रहित कर देती है तथा दाग उतर जाता है। प्राकृतिक धूप, हवा तथा नमी, पोटाशियम परमैंगनेट, हाइड्रोजन पराक्साइड, सोडियम परबोरेट, हाइपोक्लोराइड आदि ऐसे रंग काट हैं।
  2. रिड्यूसिंग ब्लीच-जब इनका प्रयोग धब्बे पर किया जाता है तो यह धब्बे से ऑक्सीजन निकालकर इसको रंग रहित कर देते हैं। सोडियम बाइसल्फाइट, सोडियम हाइड्रोसल्फाइट ऐसे ही रंग काट हैं। ऊनी तथा रेशमी वस्त्रों पर इनका प्रयोग आसानी से किया जा सकता है।
    परन्तु तेज़ रंग काट से वस्त्र खराब भी हो जाते हैं।

प्रश्न 15.
वस्त्रों को नील क्यों दिया जाता है?
उत्तर-
सफ़ेद सूती तथा लिनन के वस्त्रों पर बार-बार धोने से पीलापन-सा आ जाता है। इसको दूर करने के लिए वस्त्रों को नील दिया जाता है तथा वस्त्र की सफ़ेदी बनी रहती है।

PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 12 सफ़ाईकारी और अन्य पदार्थ

प्रश्न 16.
नील की मुख्य कौन-कौन सी किस्में हैं?
उत्तर-
नील मुख्यतः दो प्रकार का होता है

  1. पानी मैं अघुलनशील नील-इण्डिगो, अल्ट्रामैरीन तथा प्रशियन नील ऐसे नील हैं। इसके कण पानी के नीचे बैठ जाते हैं, इसलिए वस्त्रों को देने से पहले नील वाले पानी में अच्छी तरह हिलाना पड़ता है।
  2. पानी में घुलनशील नील-इनको पानी में थोड़ी मात्रा में घोलना पड़ता है तथा इससे वस्त्र पर थोड़ा नीला रंग आ जाता है। इस तरह वस्त्र का पीलापन दूर हो जाता है। एनीलिन नील ऐसा ही नील है।

प्रश्न 17.
नील देते समय ध्यान में रखने योग्य बातें कौन-सी हैं?
उत्तर-

  1. नील सफ़ेद वस्त्रों को देना चाहिए रंगीन कपड़ों को नहीं।
  2. यदि नील पानी में अघुलनशील हो तो पानी को हिलाते रहना चाहिए नहीं तो वस्त्रों पर नील के धब्बे से पड़ जाएंगे।
  3. नील के धब्बे दूर करने के लिए वस्त्र को सिरके वाले पानी में खंगाल लेना चाहिए। (4) नील दिए वस्त्रों को धूप में सुखाने पर उनमें और भी सफ़ेदी आ जाती है।

प्रश्न 18.
नील देते समय धब्बे क्यों पड़ जाते हैं? यदि धब्बे पड़ जायें तो क्या करना चाहिए?
उत्तर-
अघुलनशील नील के कण पानी के नीचे बैठ जाते हैं तथा इस तरह वस्त्रों को नील देने से वस्त्रों पर कई बार नील के धब्बे पड़ जाते हैं। जब नील के धब्बे पड़ जाएं तो वस्त्र को सिरके के घोल में खंगाल लेना चाहिए।

प्रश्न 19.
वस्त्रों में कड़ापन लाने के लिए किन वस्तुओं का प्रयोग किया जाता है?
उत्तर-
वस्त्रों में ऐंठन लाने के लिए निम्नलिखित पदार्थों का प्रयोग किया जाता है

  1. मैदा अथवा अरारोट-इसको पानी में घोलकर गर्म किया जाता है।
  2. चावलों का पानी-चावलों को पानी में उबालने के पश्चात् बचे पानी जिसको छाछ कहते हैं का प्रयोग वस्त्र में ऐंठन लाने के लिए किया जाता है।
  3. आलू-आलू काटकर पीस लिया जाता है तथा पानी में गर्म करके वस्त्रों में ऐंठन लाने के लिए प्रयोग किया जाता है।
  4. गूंद-गूंद को पीसकर गर्म पानी में घोल लिया जाता है तथा घोल को पतले वस्त्र में छान लिया जाता है। इसका प्रयोग रेशमी वस्त्रों, लेसों तथा वैल के वस्त्रों में ऐंठन लाने के लिए किया जाता है।
  5. बोरैक्स (सुहागा)-आधे लीटर पानी में दो बड़े चम्मच सुहागा घोल कर लेसों पर इसका प्रयोग किया जाता है।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 20.
वस्त्रों की धुलाई के लिए कौन-कौन से पदार्थ प्रयोग में लाए जा सकते हैं?
उत्तर-
स्वयं उत्तर दें।

PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 12 सफ़ाईकारी और अन्य पदार्थ

प्रश्न 21.
किस प्रकार के वस्त्रों को सफ़ेद करने की आवश्यकता पड़ती है? वस्त्रों में कड़ापन किन पदार्थों के द्वारा लाया जा सकता है?
उत्तर-
सफ़ेद सूती तथा लिनन के वस्त्रों को बार-बार धोने पर इन पर पीलापन सा आ जाता है। इनका यह पीलापन दूर करने के लिए नील देना पड़ता है।

वस्त्रों में ऐंठन लाने के लिए निम्नलिखित पदार्थों का प्रयोग किया जाता है

  1. मैदा अथवा अरारोट-इसको पानी में घोलकर गर्म किया जाता है।
  2. चावलों का पानी-चावलों को पानी में उबालने के पश्चात् बचे पानी जिसको छाछ कहते हैं का प्रयोग वस्त्र में ऐंठन लाने के लिए किया जाता है।
  3. आलू-आलू काटकर पीस लिया जाता है तथा पानी में गर्म करके वस्त्रों में ऐंठन लाने के लिए प्रयोग किया जाता है।
  4. गूंद-गूंद को पीसकर गर्म पानी में घोल लिया जाता है तथा घोल को पतले वस्त्र में छान लिया जाता है। इसका प्रयोग रेशमी वस्त्रों, लेसों तथा वैल के वस्त्रों में ऐंठन लाने के लिए किया जाता है।
  5. बोरैक्स (सुहागा)-आधे लीटर पानी में दो बड़े चम्मच सुहागा घोल कर लेसों पर इसका प्रयोग किया जाता है।

Home Science Guide for Class 9 PSEB सफ़ाईकारी और अन्य पदार्थ Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

रिक्त स्थान भरें

  1. साबुन वसा तथा …………………. के मिश्रण से बनता है।
  2. ………………. के बाहरी छिलके के रस में वस्त्रों को साफ़ करने की शक्ति होती है।
  3. अच्छा साबुन जीभ पर लगाने से ……………….. स्वाद देता है।
  4. सोडियम हाइपोक्लोराइट को …………………. पानी कहते हैं।
  5. सोडियम परबोरेट …………….. काट पदार्थ है।

उत्तर-

  1. क्षार,
  2. रीठों,
  3. ठीक,
  4. जैवले,
  5. आक्सीडाइजिंग।

एक शब्द में उत्तर दें

प्रश्न 1.
एक रिडयूसिंग काट पदार्थ का नाम लिखें।
उत्तर-
सोडियम बाइसल्फाइट।

प्रश्न 2.
पानी में अघुलनशील नील का नाम लिखें।
उत्तर-
इण्डिगो।

प्रश्न 3.
गोंद का प्रयोग किस कपड़े में कड़ापन लाने के लिए किया जा सकता
उत्तर-
वायल के वस्त्रों में।

प्रश्न 4.
रासायनिक साबुन रहित सफाईकारी पदार्थों में से कोई एक नाम बताएं।
उत्तर-
शिकाकाई।

PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 12 सफ़ाईकारी और अन्य पदार्थ

ठीक/ग़लत बताएं

  1. साबुन बनाने की दो विधियां हैं-गर्म तथा ठण्डी।
  2. हाइड्रोजन पराक्साइड, रिड्यूसिंग ब्लीच है।
  3. साबुन बनाने के लिए चर्बी तथा क्षार आवश्यक पदार्थ हैं।
  4. कपड़ों में अकड़ाव लाने वाले पदार्थ हैं – मैदा, अरारोट, चावलों का पानी आदि।
  5. सफेद कपड़ों को धुलने के बाद नील दिया जाता है।

उत्तर-

  1. ठीक
  2. ग़लत
  3. ठीक
  4. ठीक
  5. ठीक।

बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
साबुन रहित प्राकृतिक, सफ़ाईकारी पदार्थ है
(A) रीठा
(B) शिकाकाई
(C) दोनों ठीक
(D) दोनों ग़लत।
उत्तर-
(C) दोनों ठीक

प्रश्न 2.
पानी में घुलनशील नील नहीं है
(A) इंडीगो
(B) अल्ट्रामैरीन
(C) परशियन नील
(D) सभी।
उत्तर-
(D) सभी।

प्रश्न 3.
कपड़ों में अकड़ाव लाने वाले पदार्थ हैं
(A) चावलों का पानी
(B) गोंद
(C) मैदा
(D) सभी।
उत्तर-
(D) सभी।

प्रश्न 4.
पानी में घुलनशील नील है
(A) एनीलीन
(B) इंडीगो
(C) अल्ट्रामैरीन
(D) परशियन नील।
उत्तर-
(A) एनीलीन

PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 12 सफ़ाईकारी और अन्य पदार्थ

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
साबुन बनाने की गर्म विधि के बारे बताओ।
उत्तर-
तेल को गर्म करके धीरे-धीरे इसमें कास्टिक सोडा डाला जाता है। इस मिश्रण को गर्म किया जाता है। इस तरह चर्बी अम्ल तथा ग्लिसरीन में बदल जाती है। फिर उसमें नमक डाला जाता है, इससे साबुन ऊपर आ जाता है तथा ग्लिसरीन, अतिरिक्त खार तथा नमक नीचे चले जाते हैं । साबुन में सुगन्ध तथा रंग ठण्डा होने पर मिलाये जाते हैं तथा चक्कियां काट ली जाती हैं।

प्रश्न 2.
कपड़ों को नील कैसे दिया जाता है?
उत्तर-
नील देते समय वस्त्र को धोकर साफ़ पानी से निकाल लेना चाहिए। नील को किसी पतले वस्त्र में पोटली बनाकर पानी में खंगालना चाहिए। वस्त्र को अच्छी तरह निचोड़कर तथा बिखेरकर नील वाले पानी में डालो तथा बाद में वस्त्र को धूप में सुखाओ।

प्रश्न 3.
वस्त्रों की सफ़ाई करने के लिए कौन-कौन से पदार्थों का प्रयोग किया जाता है? नाम बताओ।
उत्तर-
वस्त्रों की सफ़ाई करने के लिए निम्नलिखित पदार्थों का प्रयोग किया जाता है साबुन, रीठे, शिकाकाई, रासायनिक साबुन रहित सफ़ाईकारी पदार्थ (जैसे निरमा, रिन, लिसापोल आदि), कपड़े धोने वाला सोडा, अमोनिया, बोरैक्स, एसिटिक एसिड, ऑग्ज़ैलिक एसिड, ब्लीच, नील, रानीपॉल आदि।

प्रश्न 4.
ठण्डी विधि से साबुन बनाने का लाभ लिखें।
उत्तर-
ठण्डी विधि के लाभ

  1. इसमें मेहनत अधिक नहीं लगती।
  2. साबुन भी जल्दी बन जाता है।
  3. यह एक सस्ती विधि है।

सफ़ाईकारी और अन्य पदार्थ PSEB 9th Class Home Science Notes

  • साबुन चर्बी तथा खार के मिश्रण हैं।
  • साबुन दो विधियों से तैयार किया जा सकता है-ठण्डी विधि तथा गर्म विधि।
  • साबुन कई तरह के मिलते हैं-साबुन की चक्की, साबुन का चूरा, साबुन का पाऊडर, साबुन की लेस।
  • साबुन रहित सफाईकारी पदार्थ हैं-रीठे, शिकाकाई, रासायनिक साबुन रहित सफ़ाईकारी पदार्थ।
  • सहायक सफ़ाईकारी पदार्थ हैं-कपड़े धोने वाला सोडा, अमोनिया, बोरेक्स, एसिटिक एसिड, ऑम्जैलिक एसिड।
  • रंग काट दो तरह के होते हैं-ऑक्सीडाइजिंग ब्लीच तथा रिड्यूसिंग ब्लीच।
  • नील, टीनोपाल आदि का प्रयोग कपड़ों को सफ़ेद रखने के लिए किया जाता है।
  • नील दो तरह के होते हैं-घुलनशील तथा अघुलनशील पदार्थ।
  • कपड़ों में ऐंठन अथवा अकड़न लाने वाले पदार्थ हैं-मैदा अथवा अरारोट, चावलों का पानी, आलू , गोंद, बोरैक्स।

PSEB 9th Class SST Solutions Economics Chapter 2 मानव-संसाधन

Punjab State Board PSEB 9th Class Social Science Book Solutions Economics Chapter 2 मानव-संसाधन Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 9 Social Science Economics Chapter 2 मानव-संसाधन

SST Guide for Class 9 PSEB मानव-संसाधन Textbook Questions and Answers

(क) वस्तुनिष्ठ प्रश्न

रिक्त स्थान भरें:

(i) भारत का विश्व में जनसंख्या के आकार के अनुसार …….. स्थान है।
(ii) अशिक्षित लोग समाज में परिसम्पत्ति की अपेक्षा ………….. बन जाते हैं।
(iii) देश की जनसंख्या का आकार, इसकी कार्यकुशलता, शैक्षिक योग्यता उत्पादकता आदि ………………… कहलाते हैं।
(iv) …………. क्षेत्र में प्राकृतिक साधनों का उपयोग करके उत्पादन क्रियाएं की जाती है।
(v) ……… क्रियाएं वस्तुओं व सेवाओं के उत्पादन में सहायक होती हैं।

उत्तर-

  1. दूसरे
  2. दायित्व
  3. मानव संसाधन
  4.  प्राथमिक
  5. आर्थिक।

बहुविकल्पी प्रश्न :

प्रश्न 1. कृषि अर्थव्यवस्था किस क्षेत्र की उदाहरण है ?
(अ) प्राथमिक
(आ) सेवाएां
(इ) गौण।
उत्तर-
(अ) प्राथमिक

PSEB 9th Class SST Solutions Economics Chapter 2 मानव-संसाधन

प्रश्न 2.
कृषि क्षेत्र में 5 से 7 मास लोग बेकार रहते है, इस बेकारी को क्या कहते हैं ?
(अ) छिपी बेरोज़गारी
(आ) मौसमी बेरोज़गारी
(इ) शिक्षित बेरोज़गारी।
उत्तर-
(आ) मौसमी बेरोज़गारी

प्रश्न 3.
भारत में जनसंख्या की कार्यशीलता की आयु की सीमा क्या है ?
(अ) 15 वर्ष से 59 वर्ष तक
(आ) 18 वर्ष से 58 वर्ष तक
(इ) 16 वर्ष से 60 वर्ष तक।
उत्तर-
(अ) 15 वर्ष से 59 वर्ष तक

प्रश्न 4.
2011 की जनगणना के अनुसार भारत की जनसंख्या है ?
(अ) 1210.19 मिलियन
(आ) 130 मिलियन
(इ) 121.19 मिलियन।
उत्तर-
(अ) 1210.19 मिलियन

सही/गलत :

  1. एक गृहिणी का अपने गृह में कार्य करना एक आर्थिक क्रिया है।
  2. नगर में अधिक छिपी हुई बेरोज़गारी होती है।
  3. मानव पूंजी में निवेश करने से देश विकसित होता है।
  4. अर्थव्यवस्था के विकास के लिए एक देश की जनसंख्या का स्वस्थ होना ज़रूरी है।
  5. सन् 1951 से 2011 तक भारत की साक्षरता दर में वृद्धि हुई है।

उत्तर-

  1. गलत
  2. गलत
  3. सही
  4. सही

अति लघु उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
दो प्राकृतिक साधनों के नाम बनाएं।
उत्तर-
दो प्राकृतिक साधन निम्न हैं1. वायु 2. खनिज।

प्रश्न 2.
जर्मनी एवं जापान जैसे देशों ने तीव्र गति से आर्थिक विकास कैसे किया ?
उत्तर-
जर्मनी तथा जापान जैसे देशों में मानव पूंजी निर्माण में निवेश करके तीव्र आर्थिक विकास किया है।

प्रश्न 3.
आर्थिक क्रियाएं क्या हैं ?
उत्तर-
आर्थिक क्रियाएं वे क्रियाएं हैं जो धन कमाने के उद्देश्य से की जाती हैं।

प्रश्न 4.
गुरुप्रीत तथा मनदीप द्वारा की गई दो आर्थिक क्रियाएं कौन-सी हैं ?
उत्तर-
गुरुप्रीत खेत में काम करता है तथा मनदीप को एक निजी बस्ती में रोजगार मिल गया है।

प्रश्न 5.
गौण-क्षेत्र की कोई दो उदाहरण दें।
उत्तर-
गौण-क्षेत्र के दो उदाहरण निम्नलिखित हैं-

  1. चीनी का गन्ने से निर्माण।
  2. कपास से कपड़े का निर्माण ।

प्रश्न 6.
गैर आर्थिक (अनार्थिक) क्रियाएं कौन-सी हैं ?
उत्तर-
गैर आर्थिक क्रियाएं वे क्रियाएं हैं जो धन कमाने के उद्देश्य से नहीं की जाती हैं।

PSEB 9th Class SST Solutions Economics Chapter 2 मानव-संसाधन

प्रश्न 7.
जनसंख्या की गुणवत्ता के दो निर्धारकों के नाम बताएं।
उत्तर-

  1. अच्छी शिक्षा
  2. लोगों का अच्छा स्वास्थ्य।

प्रश्न 8.
सर्वाधिक साक्षर राज्य का नाम क्या है ?
उत्तर-
केरल।

प्रश्न 9.
6 से 14 वर्ष तक के आयु वर्ग के सभी बच्चों को एलीमैंटरी शिक्षा प्रदान करने के लिए उठाए गए कदम का नाम बताएं।
उत्तर-
सर्व शिक्षा अभियान।

प्रश्न 10.
भारत में जनसंख्या की कार्यशीलता आयु की सीमा क्या है ?
उत्तर-
15-59 वर्ष।

प्रश्न 11.
भारत सरकार द्वारा रोज़गार अवसर प्रदान करने के लिए उठाए गए दो कार्यक्रमों का नाम बताएं।
उत्तर-

  1. स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योजना।
    संपूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना।

(स्व) लघु उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
मानव संसाधन से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
किसी देश की जनसंख्या का वह भाग जो कुशलता, शिक्षा उत्पादकता तथा स्वास्थ्य से संपन्न होता है उसे मानव संसाधन कहते हैं। मानव संसाधन एक महत्त्वपूर्ण संसाधन है क्योंकि यह प्राकृतिक संसाधनों को अधिक उपयोगी बना देता है। एक देश जिसमें शिक्षित तथा प्रशिक्षित व्यक्ति अधिक संख्या में हों उनकी उत्पादकता अधिक होती है।

प्रश्न 2.
मानव संसाधन किस प्रकार भूमि व भौतिक पूंजी जैसे अन्य साधनों से श्रेष्ठ है ?
उत्तर-
मानव संसाधन अन्य साधनों जैसे भूमि व भौतिक पूंजी से इसलिए उत्तम है क्योंकि यह अन्य साधन स्वयं नियोजित नहीं हो सकते। मानव संसाधन ही इन साधनों का प्रयोग करता है। इस तरह बड़ी जनसंख्या एक दायित्व नहीं है। इन्हें मानवीय पूंजी में निवेश करके संपत्ति में बदला जा सकता है। उदाहरण के लिए शिक्षा व स्वास्थ्य पर किया गया व्यय लोगों को प्रशिक्षित व शिक्षित तथा स्वस्थ बनाता है जिससे आधुनिक तकनीक का प्रयोग करके देश का विकास किया जा सकता है।

प्रश्न 3.
आर्थिक व अनार्थिक क्रियाओं में क्या अन्तर है।
उत्तर-
इनमें भेद निम्न हैं-

आर्थिक क्रियाएं अनार्थिक क्रियाएं
1. आर्थिक क्रियाएं अर्थव्यवस्था में वस्तुओं व सेवाओं का प्रवाह करती हैं। 1. अनार्थिक क्रियाओं से वस्तुओं व सेवाओं का कोई  प्रवाह अर्थव्यवस्था में नहीं होता।
2. जब आर्थिक क्रियाओं में वृद्धि होती है तो इसका अर्थ है अर्थव्यवस्था प्रगति में है। 2. अनार्थिक क्रियाओं में होने वाली कोई भी वृद्धि अर्थव्यवस्था की प्रगति की निर्धारक नहीं है।
3. आर्थिक क्रियाओं से वास्तविक व राष्ट्रीय आय में वृद्धि होती है। 3. अनार्थिक क्रियाओं में से कोई राष्ट्रीय आय व वास्तविक आय में वृद्धि नहीं होती।

 

प्रश्न 4.
मानव पूंजी निर्माण में शिक्षा की क्या भूमिका है ?
उत्तर-
शिक्षा मानव पूंजी निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है-

  1. शिक्षा आर्थिक तथा सामाजिक विकास का मुख्य साधन है।
  2. शिक्षा विज्ञान और तकनीक के विकास में सहायता करती है।
  3. शिक्षा श्रमिकों की कार्यकुशलता को बढ़ाती है।
  4. शिक्षा लोगों की मानसिक क्षमताओं को बढ़ाने में सहायता करता है।
  5. शिक्षा राष्ट्रीय आय को बढ़ाती है। प्राकृतिक गुणवत्ता को बढ़ाती है और प्राथमिक कुशलता में वृद्धि करती है।

प्रश्न 5.
भारत सरकार द्वारा शिक्षा के प्रसार के लिए कौन-से कदम उठाए गए हैं।
उत्तर-
भारत सरकार ने निम्न कदम उठाए हैं :

  1. शिक्षा संस्थानों का निर्माण किया जा रहा है।
  2. प्राथमिक विद्यालयों को लगभग 5,00,000 गांवों में खोला गया है।
  3. ‘सर्व शिक्षा अभियान’ सभी को अनिवार्य शिक्षा प्रदान करवाने की सिफ़ारिश करती है जो 6-14 वर्ष के सभी बच्चों को अनिवार्य शिक्षा देती है।
  4. बच्चों के पौष्टिक स्तर को बढ़ाने के लिए ‘मिड-डे-मील’ योजना शुरू की गई है।
  5. सभी जिलों में नवोदय विद्यालय खोले गए हैं।

PSEB 9th Class SST Solutions Economics Chapter 2 मानव-संसाधन

प्रश्न 6.
बेरोज़गारी शब्द की व्याख्या करें। देश की बेरोज़गारी दर को निर्धारित करते समय किस वर्ग के लोगों को सम्मिलित नहीं किया जाता ?
उत्तर-
बेरोज़गारी वह स्थिति है जिसमें वह व्यक्ति जो प्रचलित मज़दूरी की दर पर काम करने को तैयार होता है पर उसे काम नहीं मिलता है। किसी देश में कार्यशील जनसंख्या वह जनसंख्या होती है जो 15-59 वर्ष की आयु के बीच होती है। 15 से कम आयु के बच्चों और 59 से अधिक आयु के वृद्ध यदि काम ढूंढ़ते भी हैं तो उन्हें बेरोज़गार नहीं कहा जाता।

प्रश्न 7.
भारत में बेरोजगारी के दो कारण बताएं।
उत्तर-
कारण (Causes)-

  1. जनसंख्या में वृद्धि (Increase in Population)-भारत में बेरोज़गारी का मुख्य कारण जनसंख्या में होने वाली वृद्धि है। जनसंख्या बढ़ने से देश को संपत्ति का एक बड़ा भाग इस जनसंख्या की आवश्यकताओं को पूरा करने में खर्च हो जाता है और रोज़गार के अवसरों को बढ़ाने के लिए कम साधन बचते हैं।
  2. दोषपूर्ण शिक्षा प्रणाली (Defected Education System) सरकार ने लोगों के जीवन स्तर को उठाने के लिए कई कॉलेजों और स्कूलों की स्थापना की है जिसमें आज करोड़ों छात्र शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। परंतु उनको रोज़गार नहीं मिलता जिसका मुख्य कारण दोषपूर्ण शिक्षा प्रणाली का होना है।

प्रश्न 8.
छिपी बेरोज़गारी व मौसमी बेरोज़गारी में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर-

छिपी बेरोजगारी मौसमी बेरोजगारी
1. नगरीय क्षेत्र बेरोज़गारी का वह प्रश्न है जिसमें श्रमिक कार्य करते हुए प्रतीत होते हैं पर ये वास्तव में होते नहीं हैं। 1. यह बेरोज़गारी का वह प्रकार है जिसमें श्रमिक कुछ  विशेष मौसम में ही कार्य प्राप्त करते हैं।
2. यह प्रायः कषि क्षेत्र में पायी जाती है। 2. वह प्रायः कृषि संबंधी उद्योगों में पायी जाती है।
3. यह प्रायः ग्रामीण क्षेत्रों में पायी जाती है। 3. वह ग्रामीण व शहरी दोनों क्षेत्रों में पायी जाती है।

 

प्रश्न 9.
नगरीय क्षेत्र में शिक्षित बेकारी में तीव्र गति से क्यों वृद्धि हो रही है ?
उत्तर-
शिक्षित बेरोज़गारी शहरी बेरोज़गारी का उदाहरण हैं। यह शहरी क्षेत्रों में ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में अधिक पाई जाती है। शहरों में तीव्र गति से खुलने वाले स्कूल व शैक्षिक संस्थानों से शिक्षित बेरोज़गारी को बढ़ाया है क्योंकि रोज़गार का स्तर इतना नहीं बढ़ा है जितनी विद्यालयों की संख्या बढ़ी है।

प्रश्न 10.
बेरोज़गार लोग समाज के लिए परिसम्पत्ति की अपेक्षा बोझ (देनदारी) क्यों बन जाते हैं। स्पष्ट करो।
उत्तर-
बेरोजगार व्यक्ति एक देश के लिए संपत्ति के स्थान पर दायित्व होता है क्योंकि इससे मानव शक्ति संसाधनों का दुरुपयोग होता है। बेरोज़गारी गरीबी को बढ़ाता है। इससे निराशा की स्थिति उत्पन्न होती है। बेरोज़गार लोग कार्यशील जनसंख्या पर निर्भर रहते हैं।

प्रश्न 11.
अशिक्षित व कमज़ोर स्वास्थ्य वाले लोग अर्थव्यवस्था को कैसे प्रभावित करते हैं ?
उत्तर-
जनसंख्या की गुणवत्ता किसी देश की संवृद्धि का निर्धारण करती है। शिक्षित जनसंख्या देश के लिए संपत्ति होती है तथा अस्वस्थ लोग अर्थव्यवस्था के लिए दायित्व होता है। किसी देश की संवृद्धि के लिए शिक्षित जनसंख्या एक महत्त्वपूर्ण आगत है। यह आधुनिकीकरण तथा सामर्थ्य को बढ़ाता है। शिक्षित व्यक्ति न केवल अपनी व्यक्तिगत संवृद्धि को मानव-संसाधन बढ़ाता है बल्कि समुदाय की भी संवृद्धि बढ़ाता है। जबकि दूसरी ओर अस्वस्थता वह स्थिति है जिसमें लोग शारीरिक व बौद्धिक रूप से ठीक नहीं होते हैं।

PSEB 9th Class SST Solutions Economics Chapter 2 मानव-संसाधन

अन्य अभ्यास के प्रश्न

क्रिया-1

अपने गांव अथवा अपनी कॉलोनी में जाकर मालूम करें कि:
(i) भिन्न-भिन्न घरों की औरतें गृहकार्य करती हैं अथवा बाहर कार्य करने जाती है ?
(ii) उनका कार्य आर्थिक क्रिया में आता है अथवा गैर आर्थिक क्रिया में ?
(iii) आर्थिक व गैर-आर्थिक क्रियाओं के दो-दो उदाहरण दें।
(iv) आपके घर में आपकी माता जी द्वारा किया गया कार्य आर्थिक अथवा गैर-आर्थिक क्रिया में किस के अंतर्गत आता
उत्तर-

  1. मेरे गांव में अधिकतर महिलाएं अपने घरों में ही कार्य करती हैं। कुछ महिलाएं बाहर काम करने भी जाती हैं। जो दफ्तरों में दूसरे घरों में साफ़-सफाई के लिए भी जाती हैं।
  2. जो महिलाएं अपने घरों में घरेलू कार्य कर रही हैं जैसे खाना बनाना, साफ सफाई करना, बच्चों की देखभाल करना, पशुओं को चारा डालना आदि सभी क्रियाएं गैर आर्थिक क्रियाएं ही हैं। दूसरी ओर जो महिलाएं दफ्तरों में कार्य कर रही हैं तथा दूसरों के घरों में काम कर रही हैं वे क्रियाएं आर्थिक क्रियाएं हैं।
  3. आर्थिक क्रिया के उदाहरण-
    • राज द्वारा एक बहु-राष्ट्रीय कंपनी में कार्य करना
    • डॉक्टर द्वारा अस्पताल में रोगियों की देखभाल करना।
      गैर-आर्थिक क्रिया के उदाहरण-

      •  गृहिणी द्वारा किया गया घरेलू कार्य
      • एक अध्यापक द्वारा अपने बच्चे को घर में पढ़ाना।
      • मेरी माता जी एक अध्यापिका हैं। उनका कार्य आर्थिक क्रिया में आता है।

क्रिया-2

PSEB 9th Class SST Solutions Economics Chapter 2 मानव-संसाधन 1
जनगणना वर्ष के आंकड़े
ग्राफ 2.1 भारत में साक्षरता दर

ग्राफ 2.1 का अध्ययन कीजिए तथा निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए :
(i) क्या वर्ष 1951 से 2011 तक व्यक्तियों की साक्षरता दर में वृद्धि हुई है ?
(ii) भारत ने किस वर्ष 50% की साक्षरता दर को पार किया ?
(iii) किस वर्ष भारत की साक्षरता दर सर्वाधिक रही ?
(iv) महिलाओं की साक्षरता दर किस वर्ष अधिकतम है ?
(v) अपने अध्यापक से चर्चा कीजिए। भारत में पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं की साक्षरता दर कम क्यों है ?
उत्तर-

  1. हाँ वर्ष 1951 से 2011 तक साक्षरता-दर लगातार बढ़ी है जो कि ग्राफ 2.1 से स्पष्ट है।
  2. वर्ष 2001 में भारत में साक्षरता दर 50% से पार हुई थी।
  3. वर्ष 2011 में भारत की साक्षरता-दर सबसे अधिक है।
  4. वर्ष 2011 में महिलाओं की साक्षरता-दर सबसे अधिक है।
  5. भारत में पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं की साक्षरता-दर इसलिए कम है क्योंकि लोग लड़कों की अपेक्षा लड़कियों को स्कूल कम भेजते हैं। लड़कियों को ये घरेलू कार्यों में लगा देते हैं।

क्रिया-3

तालिका 2.2. भारत में स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार स्वास्थ्य सुविधाएं
PSEB 9th Class SST Solutions Economics Chapter 2 मानव-संसाधन 2

आइए चर्चा करें:

सारणी 2.2 को पढ़िए तथा निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
(i) वर्ष 1951 से 2010 तक डिसपैंसरी व अस्पतालों की संख्या में कितनी वृद्धि है।
(ii) वर्ष 2001 से 2013 तक चिकित्सकों की संख्या में कितनी वृद्धि हुई।
(iii) वर्ष 1981 से 2013 तक स्वास्थ्य संस्थाओं में बैडों की संख्या कितनी वृद्धि हुई।
(iv) अपने गांव अथवा निकटवर्ती गांव की डिसपैंसरी में जाकर मालूम कीजिए तथा ज्ञात कीजिए कि इनमें कौन-सी सुविधाएं दी जा रही हैं तथा किन की आवश्यकता अधिक है ?
उत्तर-

  1. तालिका 2.2 से स्पष्ट है कि वर्ष 1951 से 2010 तक औषधालयों व अस्पतालों की संख्या बढ़ी नहीं है। अर्थात् कुछ वर्षों में बढ़ी है तथा कुछ में कम हुई है।
  2. हाँ, वर्ष 2001 से 2016 तक डॉक्टरों की संख्या बढ़ी है।
  3. हाँ, वर्ष 1981-2016 तक बिस्तरों की संख्या बढ़ी है।
  4. नज़दीक के औषधालय का दौरा करने से ज्ञात हुआ कि वहाँ स्टॉफ की कमी थी। यहाँ तक कि वहाँ डॉक्टर भी उपलब्ध नहीं था। केवल एक थर्मासिस्ट व चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी थे। अन्य सुविधाएं ठीक थीं।

PSEB 9th Class Social Science Guide मानव-संसाधन Important Questions and Answers

रिक्त स्थान भरें :

  1. जनसंख्या के आकार में चीन विश्व में ……… स्थान पर है।
  2. अस्वस्थ लोग समाज के लिए ………. होते हैं न कि एक परिसंपत्ति।
  3. जापान ने …………… संसाधनों में निवेश किया है।
  4. गृहणी द्वारा किया गया घरेलू कार्य एक …………… क्रिया है।
  5. वर्ष 2011 में भारत में …………. राज्य की साक्षरता दर सबसे कम थी।
  6. 2011 जनगणना के अनुसार भारत की साक्षरता दर ………… प्रतिशत है।

उत्तर-

  1. पहला
  2. दायित्व
  3. मानव
  4. गैर-आर्थिक
  5. बिहार
  6. 74.

बहुविकल्पीय प्रश्न :

प्रश्न 1.
जनसंख्या अर्थव्यवस्था पर हो सकती है ? …
(क) दायित्व
(ख) परिसंपत्ति
(ग) उपरोक्त दोनों
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(ग) उपरोक्त दोनों

PSEB 9th Class SST Solutions Economics Chapter 2 मानव-संसाधन

प्रश्न 2.
मानव पूंजी निर्माण किस में निवेश से होता है ?
(क) शिक्षा
(ख) चिकित्सा
(ग) प्रशिक्षण
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 3.
भारत में मानव पूंजी निर्माण को दर्शाता है-
(क) हरित क्रांति
(ख) सूचना प्रौद्योगिकी क्रांति
(ग) उपरोक्त दोनों
(घ) मज़दूर क्रांति।
उत्तर-
(ख) सूचना प्रौद्योगिकी क्रांति

प्रश्न 4.
शीला द्वारा अपने घर में खाना बनाना, कपड़े धोना, बर्तन साफ करना आदि कौन-सी क्रिया है ?
(क) आर्थिक
(ख) ग़ैर-आर्थिक
(ग) धन क्रिया
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(ख) ग़ैर-आर्थिक

प्रश्न 5.
कृषि, वानिकी व पशुपालन कौन-से क्षेत्रक के अंतर्गत आते हैं ?
(क) प्राथमिक
(ख) द्वितीयक
(ग) तृतीयक
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(क) प्राथमिक

प्रश्न 6.
उत्खनन और विनिर्माण किस क्षेत्रक में आते हैं ?
(क) द्वितीयक
(ख) तृतीयक
(ग) प्राथमिक
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(क) द्वितीयक

प्रश्न 7.
व्यापार, परिवहन, संचार व बैंकिंग सेवाएं आदि कौन-से क्षेत्रक में आती हैं ?
(क) प्राथमिक
(ख) द्वितीयक
(ग) तृतीयक
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(ग) तृतीयक

प्रश्न 8.
भारत में जीवन प्रत्याशा कितने वर्ष है ?
(क) 66
(ख) 70
(ग) 55
(घ) 75.8.
उत्तर-
(घ) 75.8.

प्रश्न 9.
भारत में अशोधित जन्म-दर प्रति हज़ार व्यक्तियों के पीछे कितनी है ?
(क) 26.1
(ख) 28.2
(ग) 20.4
(घ) 35.1.
उत्तर-
(क) 26.1

प्रश्न 10.
भारत में मृत्यु-दर प्रति हज़ार व्यक्तियों के पीछे कितनी है ?
(क) 9.8
(ख) 8.7
(ग) 11.9
(घ) 25.1.
उत्तर-
(ख) 8.7

प्रश्न 11.
2001 में भारत में साक्षरता-दर कितने प्रतिशत थी ?
(क) 65
(ख) 75
(ग) 60
घ) 63.
उत्तर-
(क) 65

PSEB 9th Class SST Solutions Economics Chapter 2 मानव-संसाधन

प्रश्न 12.
2001 में ग्रामीण क्षेत्र में कौन-सी बेरोज़गारी पायी जाती है ?
(क) मौसमी
(ख) प्रच्छन्न बेरोज़गारी।
(ग) उपरोक्त दोनों
(घ) ऐच्छिक बेरोज़गारी।
उत्तर-
(ग) उपरोक्त दोनों

प्रश्न 13.
नगरीय क्षेत्रों में कौन-सी बेरोज़गारी अधिकांशतः पायी जाती है ?
(क) मौसमी
(ख) ऐच्छिक
(ग) प्रच्छन्न
(घ) शिक्षित।
उत्तर-
(घ) शिक्षित।

प्रश्न 14.
श्रमिकों का गांव से शहरों की ओर काम की तलाश में जाना क्या कहलाता है ?
(क) प्रवास
(ख) आवास
(ग) खोज
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(क) प्रवास

प्रश्न 15.
देश की उत्पादन क्षमता में वृद्धि किसके निवेश से होती है ?
(क) भूमि में
(ख) भौतिक पूंजी में
(ग) मानव पूंजी में
(घ) उपरोक्त सभी में।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी में।

प्रश्न 16.
इनमें से कौन प्राथमिक क्षेत्र का उदाहरण है ?
(क) कृषि
(ख) विनिमय
(ग) संचार
(घ) व्यापार।
उत्तर-
(क) कृषि

प्रश्न 17.
इनमें से कौन द्वितीयक क्षेत्र का उदाहरण है ?
(क) कृषि
(ख) विनिर्माण
(ग) संचार
(घ) बैंकिंग।
उत्तर-
(ख) विनिर्माण

प्रश्न 18.
इनमें से कौन तृतीयक क्षेत्र का उदाहरण है ?
(क) कृषि
(ख) विनिर्माण
(ग) बैंकिंग
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(ग) बैंकिंग

प्रश्न 19.
आर्थिक क्रियाएं कितने प्रकार की होती हैं ?
(क) एक
(ख) दो
(ग) तीन
(घ) चार।
उत्तर-
(ख) दो

प्रश्न 20.
किस वर्ष भारत में साक्षरता-दर सबसे अधिक थी ?
(क) 2001
(ख) 1991
(ग) 2000
(घ) 1981.
उत्तर-
(क) 2001

PSEB 9th Class SST Solutions Economics Chapter 2 मानव-संसाधन

प्रश्न 21.
किस प्रकार के लोग समाज के लिए दायित्व होते हैं ?
(क) शिक्षित
(ख) स्वस्थ
(ग) अस्वस्थ
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(ग) अस्वस्थ

प्रश्न 22.
भारत में सर्व शिक्षा अभियान कब लागू किया गया ?
(क) 2008
(ख) 2010
(ग) 2007
(घ) 2005.
उत्तर-
(ख) 2010

प्रश्न 23.
इनमें से किस देश ने मानव संसाधन पर अधिक मात्रा में निवेश किया है?
(क) पाकिस्तान
(ख) चीन
(ग) भारत
(घ) जापान।
उत्तर-
(घ) जापान।

प्रश्न 24.
इनमें से कौन एक बाज़ार क्रिया है?
(क) एक शिक्षक द्वारा स्कूल में पढ़ाना।
(ख) एक शिक्षक द्वारा अपने बच्चे को पढ़ाना।
(ग) एक कृषक द्वारा स्वयं उपभोग के लिए सब्जियां उगना।
(घ) एक माता द्वारा बच्चों की देखभाल करना।
उत्तर-
(क) एक शिक्षक द्वारा स्कूल में पढ़ाना।

सही/गलत :

  1. शिक्षित व स्वस्थ जनसंख्या दायित्व होती है।
  2. 2011 जनगणना के अनुसार पुरुषों की साक्षरता दर 82.10 प्रतिशत है।
  3. ‘ भारत में वर्ष 1983 से 2011 तक औसत बेरोज़गारी दर 9 प्रतिशत रही है।
  4. गुणवत्ता वाली जनसंख्या अच्छी शिक्षा तथा स्वास्थ्य पर निर्भर नहीं करती है।
  5. खनन तथा वानिकी द्वितीय क्षेत्र की क्रियाएं हैं।

उत्तर-

  1. गलत
  2. सही
  3. सही
  4. गलत
  5. गलत।

अति लघु उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
जनसंख्या मानव पूंजी में कब बदलती है ?
उत्तर-
जब शिक्षा, प्रशिक्षण और चिकित्सा सेवाओं में निवेश किया जाता है तो जनसंख्या मानव पूंजी में बदल जाती है।

प्रश्न 2.
मानव पूंजी निर्माण से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
जब मानव संसाधन को और अधिक शिक्षा तथा स्वास्थ्य द्वारा विकसित किया जाता है तो उसे मानव पूंजी निर्माण कहते हैं।

प्रश्न 3.
मानव पूंजी निर्माण के भारत को दो लाभ बताएं।
उत्तर-
मानव पूंजी निर्माण से भारत में हरित क्रांति आई है जिससे खाद्यान्नों की उत्पादकता में कई गुणा वृद्धि हुई है। मानव पूंजी निर्माण से ही भारत में सूचना प्रौद्योगिकी में क्रांति एक आश्चर्यजनक उदाहरण है।

प्रश्न 4.
जापान कैसे विकसित देश बना ?
उत्तर-
जापान ने मानव संसाधन पर निवेश किया है। उनके पास कोई प्राकृतिक संसाधन नहीं थे। वे अब अपने देश के लिए आवश्यक प्राकृतिक संसाधनों का आयात कर लेते हैं।

प्रश्न 5.
क्या 1951 से जनसंख्या की साक्षरता-दर बढ़ी है ?
उत्तर-
हां, साक्षरता-दर 1951 के 18 प्रतिशत से बढ़कर 2001 में 65 प्रतिशत हो गई है।

PSEB 9th Class SST Solutions Economics Chapter 2 मानव-संसाधन

प्रश्न 6.
कोई देश विकसित कैसे बन सकता है ?
उत्तर-
कोई भी देश लोगों में विशेष रूप से शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में निवेश से विकसित बन सकता है।

प्रश्न 7.
भारत में जीवन प्रत्याशा कितनी है ?
उत्तर-
यह वर्ष 2017 में 75.8 वर्ष थी।

प्रश्न 8.
बेरोज़गारी क्या होती है ?
उत्तर-
बेरोज़गारी उस समय विद्यमान कही जाती है, जब प्रचलित मज़दूरी की दर पर काम करने के लिए इच्छुक लोग रोज़गार नहीं पा सकते।

प्रश्न 9.
जन्म-दर से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
जन्म-दर से अभिप्राय प्रति हज़ार व्यक्तियों के पीछे जितने बच्चे जन्म लेते हैं, उससे है।

प्रश्न 10.
मृत्यु-दर से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर–
प्रति हज़ार व्यक्तियों के पीछे जितने लोगों की मृत्यु होती है वही मृत्यु-दर कहलाती है।

प्रश्न 11.
बेरोज़गारी क्या है ?
उत्तर-
एक स्थिति जिसमें श्रमिक बाज़ार में प्रचलित मज़दूरी पर काम करने को तैयार हैं पर उन्हें काम नहीं मिलता है।

प्रश्न 12.
राष्ट्रीय आय क्या होती है ?
उत्तर-
यह एक देश द्वारा उत्पादित वस्तुओं व सेवाओं का कुल योग होता है।

प्रश्न 13.
सर्व शिक्षा अभियान क्या है ?
उत्तर-
यह एक ऐसा कार्यक्रम है जिसमें 6-14 वर्ष के सभी आयु वर्ग के बच्चों को प्रारंभिक शिक्षा प्रदान की जाती है।

प्रश्न 14.
कार्य बल संख्या में किस वर्ग की जनसंख्या को शामिल किया गया है ?
उत्तर-
कार्य बल जनसंख्या में 15 से 59 वर्ष के व्यक्तियों को शामिल किया जाता है।

प्रश्न 15.
किसी कार्य को करने के लिए पांच व्यक्ति चाहिए पर उसमें 8 व्यक्ति लगे हैं। इसे कौन-सी बेरोज़गारी कहा जाएगा?
उत्तर-
प्रच्छन्न बेरोज़गारी।

प्रश्न 16.
मौसमी बेरोज़गारी क्या है ?
उत्तर-
इस तरह की बेरोज़गारी में व्यक्ति वर्ष के कुछ विशेष महीनों में कार्य प्राप्त कर पाते हैं।

प्रश्न 17.
इनमें से कौन-से तत्त्व मानव के विकास के गुणों को बढ़ाते हैं ?
उत्तर-
शिक्षा तकनीकी एवं स्वास्थ्य।

प्रश्न 18.
तृतीयक कार्य क्षेत्र से संबंधित दो कार्य क्षेत्र बताएं।
उत्तर-

  1. परिवहन
  2. बैंकिंग।

लघु उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
जनसंख्या की गुणवत्ता की व्याख्या करें।
उत्तर-
जनसंख्या की गुणवत्ता साक्षरता-दर, जीवन-प्रत्याशा से निरूपित व्यक्तियों के स्वास्थ्य और देश के लोगों द्वाराप्राप्त कौशल निर्माण पर निर्भर करती है। यह अंततः देश की संवृद्धि-दर निर्धारित करती है। अस्वस्थ व निरक्षर जनसंख्या अर्थव्यवस्था पर बोझ होती है तथा स्वस्थ व साक्षर जनसंख्या परिसंपत्तियां होती हैं।

प्रश्न 2.
शिक्षा के महत्त्व की व्याख्या करें।
उत्तर-
शिक्षा का महत्त्व निम्नलिखित है-

  1. शिक्षा अच्छी नौकरी और अच्छे वेतन के रूप में फल देती है।
  2. यह विकास के लिए महत्त्वपूर्ण आगत है।
  3. इससे जीवन के मूल्य विकसित होते हैं।
  4. यह राष्ट्रीय आय और सांस्कृतिक समृद्धि में वृद्धि करती है।
  5. यह प्रशासन की कार्य-क्षमता बढ़ाती है।

PSEB 9th Class SST Solutions Economics Chapter 2 मानव-संसाधन

प्रश्न 3.
बेरोज़गारी के प्रभावों का वर्णन करें।
उत्तर-
बेरोज़गारी के निम्नलिखित प्रभाव पड़ते हैं

  1. बेरोज़गारी से जनशक्ति संसाधन की बर्बादी होती है। जो लोग अर्थव्यवस्था के लिए परिसंपत्ति होते हैं, बेरोज़गारी के कारण बोझ में बदल जाते हैं।
  2. इससे युवकों में निराशा और हताशा की भावना बढ़ती है।
  3. बेरोज़गारी से आर्थिक बोझ में वृद्धि होती है। कार्यरत जनसंख्या पर बेरोज़गारी की निर्भरता बढ़ती है।
  4. इससे समाज के जीवन की गुणवत्ता पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
  5. किसी अर्थव्यवस्था के समग्र विकास पर बेरोज़गारी का अधिकतर प्रभाव पड़ता है। इसमें वृद्धि मंदीग्रस्त अर्थव्यवस्था का सूचक है।

प्रश्न 4.
छिपी बेरोज़गारी से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
छिपी बेरोज़गारी या प्रच्छन्न बेरोज़गारी के अंतर्गत लोग नियोजित प्रतीत होते हैं, उनके पास भूमि होती है, जहां उन्हें काम मिलता है। ऐसा प्रायः कृषिगत काम में लगे परिजनों में होता है। किसी काम में पांच लोगों की आवश्यकता है लेकिन उसमें आठ लोग होते हैं। इनमें तीन अतिरिक्त हैं। अगर तीन लोगों को हटा दिया जाए तो खेत की उत्पादकता में कोई कमी नहीं आएगी। खेत में पांच लोगों के काम की आवश्यकता है और तीन अतिरिक्त लोग प्रच्छन्न रूप से नियोजित हैं।

प्रश्न 5.
मौसमी बेरोज़गारी से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
मौसमी बेरोज़गारी तब होती है, जब लोग वर्ष के कुछ महीनों में रोजगार प्राप्त नहीं कर पाते हैं। कृषि पर आश्रित लोग आमतौर पर इस तरह की समस्या से जूझते हैं। वर्ष में कुछ व्यस्त मौसम होते हैं जब बुआई, कटाई और गहाई होती है। कुछ विशेष महीनों में कृषि पर आश्रित लोगों को अधिक काम नहीं मिल पाता।

प्रश्न 6.
शिक्षित बेरोज़गारी से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
शहरी क्षेत्रों के मामले में शिक्षित बेरोज़गारी एक सामान्य परिघटना बन गई है। मैट्रिक स्नातक और स्नातकोत्तर डिग्री धारी अनेक युवक रोजगार पाने में असमर्थ हैं। एक अध्ययन में यह बात सामने आई है कि मैट्रिक की तुलना में स्नातक युवकों में बेरोज़गारी अधिक तेजी से बढ़ी है। एक विरोधाभासी जनशक्ति स्थिति सामने आई है कि कुछ विशेष श्रेणियों में जनशक्ति के आधिक्य के साथ ही कुछ अन्य श्रेणियों में जनशक्ति की कमी विद्यमान है।

प्रश्न 7.
बाज़ार व गैर-बाज़ार क्रियाओं का अर्थ स्पष्ट करें।
उत्तर-
बाज़ार क्रियाओं में वेतन या लाभ के उद्देश्य से की गई क्रियाओं के लिए पारिश्रमिक भुगतान किया जाता है। इनमें सरकारी सेवा सहित वस्तु सेवाओं का उत्पादन शामिल है। गैर-बाज़ार क्रियाओं से अभिप्राय स्व- उपभोग के लिए उत्पादन है। इनमें प्राथमिक उत्पादों का उपभोग और प्रसंस्करण तथा अचल संपत्तियों का स्वलेखा उत्पादन आता है।

प्रश्न 8.
जनसंख्या एक मानवीय साधन है, व्याख्या करें।
उत्तर-
यह विशाल जनसंख्या का एक सकारात्मक पहलू है जिसे प्रायः उस वक्त अनदेखा कर दिया जाता है जब हम इसके नकारात्मक पहलू को देखते हैं अर्थात् भोजन, शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं तक जनसंख्या की पहुंच की समस्याओं पर विचार करते समय। जब इस विद्यमान मानव संसाधन को और अधिक शिक्षा तथा स्वास्थ्य द्वारा विकसित किया जाता है, तब हम इसे मानव पूँजी निर्माण कहते हैं।

प्रश्न 9.
द्वितीयक व तृतीयक क्षेत्रों में कौन-सी क्रियाएँ की जानी हैं ?
उत्तर-
द्वितीयक क्षेत्रों में उत्खनन और विनिर्माण शामिल है, जबकि तृतीयक क्षेत्र में परिवहन, बैंकिंग, संचार, बीमा, व्यापार, शिक्षा आदि किए जाते हैं।

प्रश्न 10.
आर्थिक क्रियाएं क्या होती हैं ? व्याख्या करें।
उत्तर-
आर्थिक क्रियाएं वह क्रियाएं होती हैं जिनके फलस्वरूप वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन होता है। ये क्रियाएं राष्ट्रीय आय में मूल्य वर्धन करते हैं। आर्थिक क्रियाएं दो प्रकार की होती हैं।-
1. बाज़ार क्रियाएं
2. गैर-बाज़ार क्रियाएं।।

  1. बाज़ार क्रियाएं-बाज़ार क्रियाओं में वेतन या लाभ के उद्देश्य से की गई क्रियाओं के लिए पारिश्रमिक का भुगतान किया जाता है।
  2. गैर-बाज़ार क्रियाएं-इसमें स्व-उपभोग के लिए उत्पादन क्रियाओं को शामिल किया जाता है। इनमें प्राथमिक उत्पादों का उपभोग और प्रसंस्करण तथा अचल संपत्तियों का स्वलेखा उत्पादन आता है।

प्रश्न 11.
बाज़ार क्रियाओं व गैर-बाज़ार क्रियाओं में भेद करें।
उत्तर-
बाज़ार क्रियाओं व गैर-बाज़ार क्रियाओं में निम्नलिखित अंतर हैं-

बाज़ार क्रियाएं गैर-बाज़ार क्रियाएं
1. बाज़ार क्रियाओं में वेतन या लाभ के उद्देश्य से की गई सेवाओं के लिए पारिश्रमिक का भुगतान किया जाता है। 1. गैर-बाज़ार क्रियाओं में स्व: उपभोग के लिए उत्पादन किया जाता है।
2. इसमें वस्तुओं व सेवाओं का उत्पादन सरकारी सेवाओं के साथ किया जाता है। 2. इसमें प्राथमिक उत्पादों का उपभोग और प्रसंस्करण एवं अचल संपत्तियों का स्वलेखा उत्पादन आता है।
3. इसके मुख्य उदाहरण, शिक्षक द्वारा स्कूल में पढ़ाना, खनन का कार्य इत्यादि हैं। 3. प्राथमिक उत्पादों का उपभोग व अचल संपत्तियों का स्वलेखा आदि इसके उदाहरण हैं।

 

प्रश्न 12.
1. ग्रामीण क्षेत्रों में पायी जाने वाली दो प्रकार की बेरोज़गारियां कौन-सी हैं ?
2. उन चार कारणों को बताएं जिन पर संख्या की गुणवत्ता निर्भर करती है।
3. कौन-सा क्षेत्रक (प्राथमिक क्षेत्रक में ) अर्थव्यवस्था में सबसे अधिक जनशक्ति को नियोजित करता है?
उत्तर-

1.

  • प्रच्छन्न बेरोज़गारी तथा
  • मौसमी बेरोज़गारी या ग्रामीण क्षेत्रों में पाए जाने वाली दो मुख्य बेरोज़गारियां हैं।

2.

  • स्वास्थ्य
  • जीवन प्रत्याशा
  • शिक्षा
  • कार्यकुशलता।

3.कृषि क्षेत्र एक ऐसा क्षेत्र है जो अर्थव्यवस्था में अधिकतर जनशक्ति को नियोजित करता है।

PSEB 9th Class SST Solutions Economics Chapter 2 मानव-संसाधन

प्रश्न 13.
1. वे दो मुख्य क्रियाएं बताएं जो प्राथमिक क्षेत्र में की जाती हैं।
2. वे दो मुख्य क्रियाएं बताएं जो तृतीय क्षेत्र में की जाती हैं।
3. वे दो मुख्य क्रियाएं बताएं जो द्वितीय क्षेत्र में की जाती हैं।
उत्तर-
1.

  • मत्सय पालन
  • खनन

2.

  • बैंकिंग
  • बीमा

3.

  • उल्ख नन
  • विनिर्माण।

प्रश्न 14.
1. ऐसे चार तत्व बताएं जो मानव संसाधन की गुणवत्ता को बढ़ाते हैं ?
2. उत्पादन के चार संसाधनों के नाम बताएं।
उत्तर-
1.

  • शिक्षा
  • स्वास्थ्य
  • तकनीकी
  • प्रशिक्षण।

2.

  • भूमि
  • पूंजी
  • श्रम
  • उद्यमी।

प्रश्न 15.
सर्व शिक्षा अभियान क्या है?
उत्तर-
सर्व शिक्षा अभियान 6-14 वर्ष आयु वर्ग के सभी स्कूली बच्चों को वर्ष 2010 तक प्राथमिक शिक्षा प्रदान करने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है। राज्यों, स्थानीय सरकारों और प्राथमिक शिक्षा सार्वभौमिक लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए समुदाय की सहभागिता के साथ केंद्रीय सरकार की एक समयबद्ध पहल है।

प्रश्न 16.
1. कृषि क्षेत्र में कौन-सी बेरोज़गारियां पाई जाती हैं ?
2. प्रच्छन्न बेरोज़गारी का अर्थ बताएं।
उत्तर-

  1. प्रच्छन्न व मौसमी बेरोज़गारी कृषि क्षेत्र में पाई जाती है।
  2. प्रच्छन्न बेरोज़गारी से अभिप्राय उस बेरोज़गारी से है जिसमें लोग कार्य करते हुए प्रतीत होते हैं पर वे होते नहीं हैं।

प्रश्न 17.
मानव पूंजी में किया जाने वाला निवेश बाद में बदलकर भौतिक पूंजी में किए गए निवेश का रूप धारण कर लेता है। व्याख्या करें।
उत्तर-

  1. मानव पूंजी श्रमिकों की उत्पादकता को बढ़ाता है।
  2. मानव पूंजी श्रमिकों की गुणवत्ता में वृद्धि करता है।
  3. स्वस्थ, शिक्षित व प्रशिक्षित व्यक्ति उत्पादन के साधनों का कुशल प्रयोग कर सकते हैं।
  4. एक देश मानव संसाधनों का निर्यात करके विदेशी विनिमय प्राप्त कर सकता है।

प्रश्न 18.
इन सभी कार्यों को प्राथमिक, द्वितीयक व तृतीयक समूहों में बांटे।
बैंकिंग, बीमा, डेयरी, उत्खनन, खनन, संचार, शिक्षा, मत्स्य पालन, मुर्गी पालन, कृषि, विनिर्माण, वानिकी, पर्यटन तथा व्यापार।
उत्तर-

प्राथमिक क्षेत्र द्वितीयक क्षेत्र तृतीयक क्षेत्र
1. डेयरी 1. उत्खनन 1. बैंकिंग
2. खनन 2. विनिर्माण 2. बीमा
3. मत्स्य पालन 3. संचार
4. मुर्गी पालन 4. शिक्षा
5. कृषि 5. पर्यटन
6. वानिकी 6. व्यापार।

 

प्रश्न 19.
शिक्षा के क्षेत्र में दसवीं पंचवर्षीय योजना के मुख्य उद्देश्य क्या हैं ?
उत्तर-
शिक्षा के क्षेत्र में दसवीं पंचवर्षीय योजना के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं-

  1. दसवीं योजना अंत तक उच्च शिक्षा में 18-23 वर्ष आयु वर्ग के नामांकन में वर्तमान 6 प्रतिशत से 9 प्रतिशत तक की वृद्ध करने का प्रयास किया गया है।
  2. यह रणनीति पहुंच में वृद्धि, गुणवत्ता, राज्यों के लिए विशेष पाठ्यक्रम में परिवर्तन को स्वीकार करना, व्यवसायीकरण तथा सूचना प्रौद्योगिकों के उपयोग का जाल बिछाने पर केंद्रित है।
  3. दसवीं योजना दूरस्थ शिक्षा, संचार प्रौद्योगिकी की शिक्षा देने वाले शिक्षण संस्थानों के अभिसरण पर भी केंद्रित है।

प्रश्न 20.
बेरोज़गारी क्या है? भारत में बेरोज़गारी के मुख्य प्रकार क्या हैं ?
उत्तर-
बेरोज़गारी वह स्थिति है जिसमें श्रमिक मज़दूरी की वर्तमान दर पर काम करने को तैयार होते हैं पर उन्हें काम नहीं मिलता है।
बेरोज़गारी के प्रकार-

  1. मौसमी बेरोजगारी
  2. शिक्षित बेरोज़गारी
  3. प्रच्छन्न बेरोज़गारी
  4. संरचनात्मक बेरोज़गारी
  5. तकनीकी बेरोज़गारी।

प्रश्न 21.
ग्रामीण क्षेत्रों में पाई जाने वाली दो प्रकार की मुख्य बेरोज़गारी क्या है ? इसके लिए मुख्य चार कारण बताएं।
उत्तर-
मौसमी बेरोज़गारी व प्रच्छन्न बेरोज़गारी ग्रामीण क्षेत्रों में पायी जाने वाली मुख्य बेरोज़गारियां हैं। कारण-

  1. कृषि क्षेत्र में विविधता की कमी।
  2. पूंजी की कमी।
  3. अति जनसंख्या के कारण बड़े परिवार।
  4. लघु व कुटीर उद्योग का अल्पविकास।

PSEB 9th Class SST Solutions Economics Chapter 2 मानव-संसाधन

प्रश्न 22.
प्रच्छन्न बेरोज़गारी व शिक्षित बेरोज़गारी में अंतर करें।
उत्तर-
प्रच्छन्न बेरोज़गारी व शिक्षित बेरोज़गारी में निम्नलिखित अंतर हैं :

प्रच्छन्न बेरोजगारी शिक्षित बेरोजगारी
1. प्रच्छन्न बेरोज़गारी वह बेरोज़गारी है जिसमें व्यक्ति कार्य करते हुए प्रतीत होते हैं पर वह होते नहीं हैं। 1. शिक्षित बेरोज़गारी वह स्थिति है जिसमें व्यक्ति शिक्षित होते हैं पर उनके पास रोज़गार नहीं होता है।
2. यह प्रायः ग्रामीण क्षेत्रों में पायी जाती है। 2. यह प्रायः शहरी क्षेत्रों में पायी जाती है।

 

प्रश्न 23.
तीनों क्षेत्रकों में रोज़गार की स्थिति का वर्णन करें।
उत्तर-

  1. प्राथमिक क्षेत्रक-भारत में, प्राथमिक क्षेत्रक में अर्थव्यवस्था की अधिकतर जनसंख्या नियोजित है। परंतु इसमें प्रच्छन्न बेरोज़गारी विद्यमान है। इसमें अब और अधिक व्यक्ति नियोजित करने की क्षमता नहीं है। इसलिए बाकी श्रमिक द्वितीयक व ततीयक क्षेत्रों की ओर जा रहे हैं।
  2. द्वितीयक क्षेत्रक-द्वितीयक क्षेत्रक में लघु स्तरीय विनिर्माण भी अधिक व्यक्तियों को रोज़गार प्रदान करता है। ग्रामीण क्षेत्रों में और अधिक व्यक्तियों को नियोजित करने के लिए गांवों में कुटीर उद्योगों की स्थापना की जानी चाहिए।
  3. तृतीयक क्षेत्रक-तृतीयक क्षेत्र भारत में से बेरोज़गारी को दूर करने के लिए एक महत्त्वपूर्ण क्षेत्रक है।

प्रश्न 24.
मौसमी बेरोज़गारी क्या होती है? इस बेरोज़गारी के लिए उत्तरदायी मुख्य कारण क्या है ?
उत्तर-
मौसमी बेरोज़गारी तब होती है जब लोग वर्ष के कुछ महीनों में रोजगार प्राप्त नहीं कर पाते हैं। कृषि पर आश्रित लोग आमतौर पर इस तरह की समस्या से जूझते हैं।
कारण-

  1. कृषि की विविधता में कमी।।
  2. ग्रामीण क्षेत्रों में लघु एवं कुटीर उद्योगों की कमी।
  3. कृषि के व्यापारीकरण का अभाव।

प्रश्न 25.
प्रच्छन्न बेरोज़गारी क्या है? उदाहरण सहित व्याख्या करें।
उत्तर-
प्रच्छन्न बेरोज़गारी के अंतर्गत लोग नियोजित प्रतीत होते है। उनके पास भूखंड होता है, जहाँ उन्हें काम मिलता है। ऐसा प्रायः कृषिगत काम में लगे परिजनों में होता है। किसी काम में पांच लोगों की आवश्यकता होती है लेकिन उसमें आठ लोग लगे होते हैं। इसमें तीन लोग अतिरिक्त हैं। ये तीनों इसी खेत पर काम करते हैं जिस पर पांच लोग काम करते हैं। इन तीनों द्वारा किया गया अंशदान पांच लोगों द्वारा किए गए योगदान में कोई बढ़ोत्तरी नहीं करता। यदि तीन लोगों को हटा दिया जाए तो उत्पादकता में कोई कमी नहीं आयेगी। खेत में पांच लोगों के काम की आवश्यकता होती है और तीन अतिरिक्त लोग प्रच्छन्न रूप से नियोजित होते हैं।

प्रश्न 26.
मानवीय पूंजी उत्पादन का सबसे महत्त्वपूर्ण साधन क्यों हैं ? तीन कारण दें।
उत्तर-
मानवीय पूंजी उत्पादन का सबसे महत्त्वपूर्ण साधन निम्नलिखित कारणों से हैं-

  1. कुछ उत्पादन क्रियाओं में ज़रूरी कार्यों को करने के लिए बहुत ज्यादा पढ़े-लिखे कर्मियों की ज़रूरत होती है।
  2. बहुत-सी क्रियाओं में शारीरिक कार्य करने वाले श्रमिकों की ज़रूरत होती है।
  3. केवल मानवीय पूंजी में ही उद्यमवृत्ति का गुण पाया जाता है।

प्रश्न 27.
जापान जैसे देश कैसे धनी व विकसित बने ? तीन कारणों से व्याख्या करें।
उत्तर-
जापान जैसे देश के धनी व विकसित बनने के तीन कारणों की व्याख्या निम्नलिखित है-

  1. उन्होंने लोगों में विशेष रूप से शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में निवेश किया है।
  2. उन लोगों ने भूमि और पूंजी जैसे अन्य संसाधनों का कुशल उपयोग किया है।
  3. इन लोगों ने जो कुशलता और प्रौद्योगिकी विकसित की, उसी से ये देश धनी व विकसित बने हैं।

प्रश्न 28.
भारत में स्वास्थ्य स्तर की स्थिति की व्याख्या करें।
उत्तर-
किसी व्यक्ति का स्वास्थ्य उसे अपनी क्षमता को प्राप्त करने और बीमारियों से लड़ने की ताकत देता है। अस्वस्थ लोग किसी संगठन के लिए बोझ बन जाते हैं। वास्तव में, स्वास्थ्य अपना कल्याण करने का एक अपरिहार्य आधार है। इसलिए जनसंख्या की स्वास्थ्य स्थिति को सुधारना किसी देश की प्राथमिकता होती है। हमारी राष्ट्रीय नीति का लक्ष्य भी जनसंख्या के अल्प सुविधा प्राप्त वर्गों पर विशेष ध्यान देते हुए स्वास्थ्य सेवाओं, परिवार कल्याण और पोष्टिक सेवा तक इनकी पहुंच को बेहतर बनाना है। पिछले पांच दशकों में भारत ने सरकारी और निजी क्षेत्रों में प्राथमिक, द्वितीयक तथा तृतीयक सेवाओं के लिए आपेक्षित एक विस्तृत स्वास्थ्य आधारित संरचना और जनशक्ति का निर्माण किया है।

प्रश्न 29.
बेरोज़गारी क्या है ? इसके मुख्य प्रभाव क्या होते हैं ?
उत्तर-
बेरोज़गारी उस समय विद्यमान कही जाती है, जब प्रचलित मज़दूरी की दर पर काम करने के लिए इच्छुक लोग रोज़गार नहीं पा सके। प्रभाव-बेरोज़गारी से जनशक्ति संसाधन की बर्बादी होती है। जो लोग अर्थव्यवस्था के लिए परिसंपत्ति होते हैं, बेरोज़गारी के कारण दायित्व में बदल जाते हैं, युवकों में निराशा और हताशा की भावना होती है। लोगों के पास अपने परिवार का भरण-पोषण करने के लिए पर्याप्त मुद्रा नहीं होती। शिक्षित लोगों के साथ जो कार्य करने के इच्छुक हैं और सार्थक रोजगार प्राप्त करने में असमर्थ हैं, यह एक बड़ा सामाजिक अपव्यय है। बेरोज़गारी से आर्थिक बोझ में वृद्धि होती है। कार्यरत जनसंख्या पर बेरोज़गारी की निर्भरता बढ़ती है। किसी व्यक्ति और साथ-ही साथ समाज के जीवन की गुणवत्ता पर बुरा प्रभाव पड़ता है।

प्रश्न 30.
मानव पूंजी निर्माण क्या है ? मानव पूंजी संसाधन अन्य संसाधनों से भिन्न कैसे हैं ?
उत्तर-
मानव पूंजी निर्माण से अभिप्राय ऐसे व्यक्ति उपलब्ध करवाना और उनकी संख्या में वृद्धि करना है जो शिक्षित, कुशल तथा अनुभव संपन्न हों, जो एक देश के आर्थिक विकास के लिए बहुत आवश्यक है। व्यक्तियों को अच्छी शिक्षा, स्वास्थ्य संबंधी सुविधाएं, उनकी जीवन प्रत्याशा में वृद्धि, शिशु मृत्यु-दर में कमी करके और उनको तकनीकी ज्ञान देकर उन्हें मानव पूंजी बनाया जा सकता है। मानव पूंजी संसाधन भूमि व भौतिक पूंजी जैसे अन्य संसाधनों से भिन्न है क्योंकि मानव संसाधन भूमि और भौतिक पूंजी जैसे अन्य संसाधनों का प्रयोग कर सकता है। अन्य साधन अपने आप उपयोगी नहीं हो सकते।

PSEB 9th Class SST Solutions Economics Chapter 2 मानव-संसाधन

प्रश्न 31.
1. सकल राष्ट्रीय उत्पादक क्या होता है?
2. जापान के पास कोई प्राकृतिक संसाधन नहीं है, फिर भी वे विकसित देश कैसे हैं ? कारण बताएं।
उत्तर-

  1. सकल राष्ट्रीय उत्पादन एक देश के निवासियों के द्वारा एक वर्ष की अवधि में उत्पादित सभी अंतिम वस्तुओं व सेवाओं के उत्पादक का मूल्य है।
    • जापान देश ने मानव संसाधन पर भारी निवेश किया है।
    • उन्होंने लोगों में विशेष रूप से उनकी शिक्षा व स्वास्थ्य पर निवेश किया।
    • शिक्षित व स्वस्थ व्यक्ति भूमि व पूंजी जैसे साधनों का अधिक कुशल उपयोग कर सकते हैं।

प्रश्न 32.
किसी देश के लिए उसकी जनसंख्या के स्वास्थ्य के स्तर में सुधार करना मुख्य पहल होती है। कारण बताएं।
उत्तर-

  1. अच्छा स्वास्थ्य श्रमिकों की निपुणता को बढ़ाता है।
  2. एक अस्वस्थ श्रमिक देश के लिए दायित्व होता है।
  3. स्वस्थ नागरिक उत्पादन का मूलभूत संसाधन होता है।
  4. किसी व्यक्ति का स्वास्थ्य उसे अपनी क्षमता को प्राप्त करने और बीमारियों से लड़ने की ताकत देता है।

प्रश्न 33.
किस प्रकार अर्थव्यवस्था के समग्र विकास पर बेरोज़गारी का अहितकर प्रभाव पड़ता है? चार बिंदुओं पर इसकी व्याख्या कीजिए।
उत्तर-

  1. बेरोज़गारी से जनशक्ति संसाधन की बर्बादी होती है जो लोग अर्थव्यवस्था के लिए परिसंपत्ति होते हैं। बेरोज़गारी के कारण दायित्व में बदल जाते हैं।
  2. युवकों में इससे निराशा और हताशा की भावना होती है क्योंकि इनके पास अपने परिवार का भरण-पोषण करने के लिए पर्याप्त मुद्रा नहीं होती।
  3. बेरोज़गारी से आर्थिक बोझ में वृद्धि होती है।
  4. कार्यरत जनसंख्या पर बेरोज़गारी की निर्भरता बढ़ती जाती है जिससे समाज के जीवन की गुणवत्ता पर बुरा प्रभाव पड़ता है।

प्रश्न 34.
भारतीय अर्थव्यवस्था में द्वितीयक क्षेत्र के महत्त्व के बिंदु बताइए।
उत्तर-
इसके महत्त्व के निम्न बिंदु हैं-

  1. इस क्षेत्रक में विनिर्माण के द्वारा प्राकृतिक संसाधनों को अन्य वस्तुओं में बदला जाता है।
  2. सभी औद्योगिक क्रियाएं इस क्षेत्र में होती हैं।
  3. इस क्षेत्र की क्रियाएं प्राथमिक व तृतीयक क्षेत्रक के विकास में सहायता करती है।
  4. इस क्षेत्र के उत्पादन से अर्थव्यवस्था में प्रतियोगिता संभव होती है।

प्रश्न 35.
औपचारिक व अनौपचारिक क्षेत्र में तुलना करें।
उत्तर-
इनमें अंतर निम्न बिंदुओं द्वारा दर्शाया जा सकता है-

औपचारिक क्षेत्र अनौपचारिक क्षेत्र
1. इस क्षेत्र में 10 या 10 से अधिक व्यक्ति नियोजित होते हैं। 1. इसमें 10 से कम व्यक्ति या कई बार एक भी व्यक्ति नियोजित नहीं होता है।
2. इसमें श्रम बल का बहुत कम प्रतिशत लगभग 7 प्रतिशत नियोजित होता है। 2. इसमें श्रम बल का बहुत अधिक भाग लगभग 93 प्रतिशत नियोजित होता है।
3. इसमें श्रमिक सामाजिक सुरक्षा लाभ प्राप्त करते हैं। 3. इसमें श्रमिकों को सामाजिक सुरक्षा के लाभ प्राप्त नहीं होते हैं।
4. इसमें संवृद्धि के बढ़ने से रोज़गार भी बढ़ता है। 4. इसमें संवृद्धि के बढ़ने से रोज़गार कम होता है।

दीर्घ उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत में मानव पूंजी निर्माण में क्या समस्याएँ हैं ? समझाइए।
उत्तर-
भारत में मानव पूंजी निर्माण में निम्न समस्याएँ हैं

  1. निर्धनता (Poverty)-भारत के अधिकतर लोग निर्धन हैं जो प्राथमिक स्तर की शिक्षा और स्वास्थ्य संबंधी सुविधाएं जुटाने में भी असफल हैं। अतः निर्धनता मानव पूंजी निर्माण की एक मुख्य समस्या है।
  2. अनपढ़ता (Illeteracy)-भारत के अधिकतर लोग निरक्षर हैं जिससे वह शिक्षा और स्वास्थ्य संबंधी सुविधाओं के लाभ को नहीं समझ पाते हैं और मानव पूंजी निर्माण में सहयोग नहीं देते हैं।
  3. सीमित क्षेत्रों में ज्ञान (Knowledge in Limited Area)—मानव पूंजी का ज्ञान कुछ क्षेत्रों तक ही सीमित है। अभी बहुत-से क्षेत्र ऐसे हैं जहाँ इसका अर्थ भी पता नहीं है।
  4. स्वास्थ्य संबंधी सुविधाओं का अभाव (Lack of Medical Facilities)-भारत में स्वास्थ्य संबंधी सुविधाएं कुछ ही क्षेत्रों तक सीमित हैं। सभी क्षेत्रों में अच्छी स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध न होने के कारण सभी लोग शारीरिक तथा मानसिक रूप से स्वस्थ नहीं हैं।
  5. शिक्षा संबंधी सुविधाओं का अभाव (Lack of Educational Facilities)-भारत में शिक्षा संबंधी सुविधाएं भी कुछ क्षेत्रों तक ही सीमित हैं। अभी तक कुछ क्षेत्रों में तो प्राथमिक स्तर की भी शिक्षा उपलब्ध नहीं है। अत: यह भी मानवीय पूंजी निर्माण की एक मुख्य समस्या है।
  6. जनसंख्या में वृद्धि (Increase in population)-देश में जनसंख्या में हो रही तीव्र वृद्धि से मानव पूंजी निर्माण में हमेशा बाधा आती रही है।

प्रश्न 2.
मानवीय पूंजी की आर्थिक विकास में भूमिका बताइए।
उत्तर-
मानवीय पूंजी निम्न तरह से आर्थिक विकास में सहायक होती है-

  1. श्रम की कार्यकुशलता (Efficiency of Labour)—मानवीय पूंजी श्रमिकों की कार्यकुशलता को बढ़ाने में सहायक होती है और कुशल श्रमिकों को रोजगार प्रदान करके उत्पादकता को बढ़ाया जा सकता है जो आर्थिक विकास के लिए अति आवश्यक है।
  2. प्रशिक्षण तथा तकनीकी ज्ञान (Training and Technical Knowledge)-मानवीय श्रम बनने के लिए लोगों में प्रशिक्षण तथा तकनीकी ज्ञान का होना बहुत आवश्यक है। प्रशिक्षित श्रमिक ही अपने कार्य को अधिक तीव्रता, अधिक मात्रा और अधिक कुशलता से कर सकते हैं जो आर्थिक विकास के लिए आवश्यक है।
  3. व्यवसाय का बढ़ता हुआ आकार (Large Size of Business)-व्यवसाय के बढ़ते हुए आकार के कारण अधिकतर यंत्रीकरण किया गया है जो केवल प्रशिक्षित श्रमिकों द्वारा संचालित किए जा सकते हैं और उत्पादन में सहायक होते हैं।
  4. उत्पादन लागत में कमी (Decrease in Production Cost) यदि उत्पादन प्रशिक्षित श्रमिकों द्वारा किया जाता है तो उत्पादन अधिक होता है और उत्पादन लागत कम आती है जिससे उद्यमियों के लाभ बढ़ते हैं और उन्हें व्यवसाय में और अधिक निवेश की प्रेरणा मिलती है।
  5. औद्योगीकरण का आधार (Bases of Industrialisation)-अल्पविकसित देशों में औद्योगीकरण का आधार रखने के लिए मानव पूंजी निर्माण में निवेश करना आवश्यक है। क्योंकि अधिकतर मानवीय पूंजी होने से औद्योगीकरण का विस्तार होगा।

PSEB 9th Class SST Solutions Economics Chapter 2 मानव-संसाधन

मानव-संसाधन PSEB 9th Class Economics Notes

  • संसाधन – अपनी क्षमता को बढ़ाने के लिए व्यक्ति, संगठन या राष्ट्र | द्वारा किए गए प्रयास संसाधन हैं।
  • प्राकृतिक संसाधन – वायु, खनिज, भूमि, जल आदि का प्रयोग मनुष्य की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए किया जाता है इन्हें ही प्राकृतिक संसाधन कहते हैं।
  • मानवीय संसाधन – किसी राष्ट्र की जनसंख्या का वह भाग जो कार्यकुशलता, शिक्षा प्रशिक्षण व स्वास्थ्य से संपन्न है।
  • जापान व जर्मनी के आर्थिक विकास के कारण – इनका मानव पूंजी निर्माण में निवेश खासकर स्वास्थ्य व शिक्षा में।
  • भारत, बांग्लादेश व पाकिस्तान में अल्पविकास के कारण – उनकी अशिक्षित, अस्वस्थ व अकार्यकुशल बड़ी जनसंख्या।
  • आर्थिक क्रियाएं – वे सभी कार्य जो धन कमाने के उद्देश्य से किए जाते हैं।
  • गैर आर्थिक क्रियाएं – वे सभी कार्य जो धन कमाने के उद्देश्य से नहीं किए जाते हैं।
  • प्राथमिक क्षेत्र – प्राथमिक क्षेत्र वह क्षेत्र है जो प्राकृतिक संसाधनों के प्रयोग द्वारा वस्तुएं निर्मित करता है।
  • प्राथमिक क्षेत्र की किस्मों के उदाहरण – कृषि, पशु-पालन, डेयरी, मुर्गीपालन, मत्सय पालन, खनन, वानिकी आदि।
  • द्वितीयक क्षेत्र – द्वितीयक क्षेत्र वे क्षेत्र हैं जो प्राथमिक क्षेत्र के उत्पाद का कच्चे माल के रूप में प्रयोग करके अंतिम उत्पाद तैयार करता है।
  • तृतीयक क्षेत्र – वह क्षेत्र जो सेवाओं का निर्माण करता है।
  • जनसंख्या, संपत्ति या दायित्व के रूप में – अशिक्षित व अस्वस्थ जनसंख्या किसी देश के लिए दायित्व है जबकि शिक्षित व स्वस्थ जनसंख्या किसी देश के लिए संपत्ति है।
  • बेरोजगारी – जब कोई व्यक्ति मज़दूरी की प्रचलित दर पर काम करने को | तैयार हो पर उसे काम न मिले।
  • मौसमी बेरोजगारी – इसका अर्थ है जब लोग पूरे वर्ष में कुछ महीने काम न करें व रोजगार के लिए भटकते रहें।
  • अदृश्य बेरोज़गारी। – यह बेरोज़गारी का वह रूप है जिसमें श्रमिक कार्य करते हुए प्रतीत होते हैं पर वे वास्तव में होते नहीं हैं।