PSEB 9th Class SST Solutions Geography Chapter 3a भारत : जलप्रवाह

Punjab State Board PSEB 9th Class Social Science Book Solutions Geography Chapter 3a भारत : जलप्रवाह Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 9 Social Science Geography Chapter 3a भारत : जलप्रवाह

SST Guide for Class 9 PSEB भारत : जलप्रवाह Textbook Questions and Answers

(क) नक्शा कार्य (Map Work) :

प्रश्न 1.
भारत के रेखाचित्र में अंकित करें-
(i) गंगा
(ii) ब्रह्मपुत्र
(iii) सांबर व वुलर झीलें
(iv) गोबिंद सागर झील
उत्तर-
यह प्रश्न विद्यार्थी MBD Map Master की सहायता से स्वयं करें।

प्रश्न 2.
भारत के रेखाचित्र में दिखायें-
(i) गंगा के दाएं व बाएं किनारों से मिलने वाली तीन-तीन सहायक नदियां ।
(ii) पश्चिम की ओर बहने वाली दो प्रायद्वीपीय नदियां।
(iii) पूर्व की ओर बहकर बंगाल की खाड़ी में गिरने वाली तीन प्रायद्वीपीय नदियां।
उत्तर-
यह प्रश्न विद्यार्थी MBD Map Master की सहायता से स्वयं करें।

(ख) निम्न वस्तुनिष्ठ प्रश्नों के उत्तर दें:

प्रश्न 1.
इनमें से कौन-सी नदी गंगा की सहायक नदी नहीं है ?
(i) यमुना
(ii) ब्यास
(iii) गंडक
(iv) सोन।
उत्तर-
(ii) ब्यास।

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प्रश्न 2.
कौन-सी झील प्राकृतिक नहीं है ?
(i) रेणुका
(ii) चिल्का
(iii) डल
(iv) रणजीत सागर।
उत्तर-
(iv) रणजीत सागर।

प्रश्न 3.
भारत का सबसे बड़ा नदी तंत्र कौन-सा है ?
(i) गंगा जलतंत्र
(it) गोदावरी जलतंत्र
(iii) ब्रह्मपुत्र जलतंत्र
(iv) सिन्धु जलतंत्र
उत्तर-
(i) गंगा जलतंत्र।

प्रश्न 4.
विश्व का सबसे बड़ा डैल्टा कौन-सा है ?
उत्तर-
सुन्दरवन डैल्टा।

प्रश्न 5.
दोआबा क्या होता है ?
उत्तर-
दो दरियाओं के बीच के क्षेत्र को दोआबा कहते हैं।

प्रश्न 6.
सिंध की लंबाई कितनी है और भारत में इसका कितना हिस्सा पड़ता है ?
उत्तर-
सिंधु दरिया की कुल लंबाई 2880 किलोमीटर है तथा भारत में इसका 709 किलोमीटर भाग पड़ता है।

प्रश्न 7.
प्रायद्वीपीय भारत की कोई तीन नदियों के नाम लिखें जो बंगाल की खाड़ी में गिरती हैं ?
उत्तर-
गोदावरी, कृष्णा, कावेरी, महानदी।

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प्रश्न 8.
भारतीय नदी तंत्र को कितने भागों में बांटा जाता है ?
उत्तर-
भारतीय नदी तंत्र को हम चार भागों में बांट सकते हैं तथा वह हैं-हिमालय की नदियां, प्रायद्वीपीय तन्त्र, तट की नदियां, आन्तरिक नदी तथा झीलें।

प्रश्न 9.
सिन्ध नदी कौन-से ग्लेशियर में से जन्म लेती है ?
उत्तर-
सिन्धु नदी बोखर-छू ग्लेशियर से निकलता है जो तिब्बत में स्थित है।

प्रश्न 10.
किसी दो मौसमी नदियों के नाम लिखें।
उत्तर-
वेलुमा, कालीनदी, सुबरनरेखा इत्यादि।

प्रश्न 11.
महानदी का उद्गम स्थान क्या है ? इसकी दो सहायक नदियां बतायें।
उत्तर-
महानदी का उदम्म स्थान छत्तीसगढ़ में दण्डाकारनिया है। शिवनाथ, मण्ड, ऊँग इत्यादि महानदी की सहायक नदियाँ हैं।

प्रश्न 12.
भारत की कोई पाँच प्राकृतिक झीलों के नाम लिखें।
उत्तर-
डल झील, चिल्का, सूर्यताल, वूलर, खजियार, पुष्कर इत्यादि।

(ग) इन प्रश्नों के संक्षेप उत्तर लिखें:

प्रश्न 1.
गंगा में प्रदूषण बढ़ता जा रहा है। इसकी रोकथाम के लिए क्या किया गया है ?
उत्तर-
इसमें कोई शंका नहीं है कि गंगा का प्रदूषण लगातार बढ़ रहा है। इसका प्रमुख कारण उद्योगों की गंदगी, कीटनाशक इत्यादि हैं। इस प्रदूषण को रोकने के लिए सरकार ने कई प्रयास किए हैं जैसे कि

  1. अप्रैल 1980 में केन्द्र सरकार ने गंगा एक्शन प्लान बनाया तथा गंगा की सफाई का कार्य शुरू किया।
  2. गंगा एक्शन प्लान को जारी रखते हुए 2009 में सरकार ने नेशनल गंगा बेसिन अथॉरिटी का गठन किया जिसका मुख्य कार्य गंगा का प्रदूषण रोकना था।
  3. 2014 में केन्द्र सरकार ने गंगा की सफाई के लिए एक विशेष मंत्रालय का गठन किया तथा इसके लिए एक मन्त्री की नियुक्ति भी की।
  4. अब तक सरकार गंगा की सफाई के लिए सैंकड़ों करोड़ों रुपए खर्च कर चुकी है।

प्रश्न 2.
भारत के अन्दरूनी जलतंत्र पर नोट लिखें।
उत्तर-
भारत में बहुत-सी नदियां बहती हैं तथा इनमें से कई नदियां किसी न किसी समुद्र में जाकर मिल जाती हैं परन्तु कुछ नदियां ऐसी होती हैं जो समुद्र में नहीं पहुंच पाती तथा रास्ते में ही विलीन हो जाती हैं या खत्म हो जाती हैं। इसे ही अन्दरूनी जलतंत्र कहा जाता है। इसकी सबसे महत्त्वपूर्ण उदाहरण घग्गर नदी है जो 465 किलोमीटर चलने के पश्चात् राजस्थान में अलोप हो जाती है। इस प्रकार लद्दाख में बहने वाली नदियां तथा राजस्थान में बहने वाली लुनी नदी भी इसकी उदाहरण है।

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प्रश्न 3.
वृद्ध गंगा क्या है ? इसकी सहायक नदियों के नाम लिखें।
उत्तर-
गोदावरी नदी दक्षिण भारत की सबसे बड़ी नदी है जबकि गंगा उत्तरी भारत की सबसे बड़ी नदी है। गंगा की भांति गोदावरी भी मार्ग में अनेक सहायक नदियों से जल प्राप्त करती है। पूर्वी घाट को पार करती हुई वह एक गहरी घाटी में से होकर गुजरती है। इसके द्वारा लगभग 190 हज़ार वर्ग किलोमीटर भूमि को जल प्राप्त होता है। इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह गंगा नदी से भी प्राचीन है। इस कारण इसे दक्षिण की वृद्ध गंगा कहते हैं।

प्रश्न 4.
धुंआधार झरना कौन-सी नदी पर है ? उसकी सहायक नदियों के नाम भी लिखें।
उत्तर-

  1. धुंआधार झरना नर्मदा नदी पर स्थित है जो कि मध्य प्रदेश में जबलपुर नाम के स्थान पर बनता है।
  2. नर्मदा नदी की प्रमुख सहायक नदियां हैं- शकर, भुरनेर, रीजल, दुधी, बरना, हीरा इत्यादि।

(घ) निम्न प्रश्नों के विस्तृत उत्तर लिखें :

प्रश्न 1.
हिमालय व प्रायद्वीपीय नदियां कौन-कौन सी हैं ? इनकी विशेषताओं में क्या अंतर है।
उत्तर-

  1. हिमालय की नदियां-यह वह नदियां हैं जो हिमालय पर्वत से निकलती हैं तथा इनमें सम्पूर्ण वर्ष पानी रहता है। उदाहरण के लिए सिन्धु, गंगा, ब्रह्मपुत्र इत्यादि। .
  2. प्रायद्वीपीय नदियां- वह नदियां जो प्रायद्वीपीय पठार अथवा दक्षिण भारत में होती हैं उन्हें प्रायद्वीपीय नदियां कहा जाता है। उदाहरण के लिए नर्मदा, तापी, महानदी, गोदावरी, कृष्णा, कावेरी इत्यादि।

अन्तर (Differences)

हिमालय की नदियाँ द्वीपीय पठार की नदियाँ
(1) इन नदियों की लंबाई बहुत अधिक है। (1) इनकी लंबाई अपेक्षाकृत कम है।
(2) ये नदियाँ बारहमासी हैं। वर्षा ऋतु में इनमें वर्षा  का जल बहता है। ग्रीष्म ऋतु में हिमालय की  हिम पिघलने से इन नदियों को जल मिलता रहता है। (2) ये नदियाँ मौसमी हैं। इनमें केवल वर्षा ऋतु में ही जल रहता है। ग्रीष्मकाल में ये नदियाँ शुष्क हो जाती हैं।
(3) ये नदियाँ काँप के जमाव से एक विस्तृत मैदान  का जल बहता है। (3) ये नदियाँ अधिक विस्तृत मैदान नहीं बनाती हैं। का निर्माण करती हैं। केवल इन नदियों के मुहाने पर ही संकरे मैदान बनते हैं।
(4) इन नदियों से जल-विद्युत् उत्पन्न की जाती है  और सिंचाई के लिए सारा वर्ष जल प्राप्त किया जाता है। (4) इन नदियों से सम्पूर्ण वर्ष सिंचाई नहीं की जा सकती।
(5) ये नदियाँ यातायात की दृष्टि से उपयोगी नहीं हैं। (5) ये नदियाँ यातायात की सुविधा प्रदान करती  हैं।
(6) ये नदियाँ अपने मार्ग में महाखड्ड (गार्ज) बनाती  हैं। इस प्रकार ये गहरी घाटियों में से होकर बहती हैं। (6) ये नदियाँ महत्त्वपूर्ण जल-प्रपात बनाती हैं। ये उथली घाटियों में से होकर बहती हैं।
(7) इनकी अपरदन क्षमता बहुत ही अधिक है। इसलिए इनमें अवसाद की मात्रा बहुत अधिक होती है। (7) इनकी अपरदन क्षमता अपेक्षाकृत कम है। इसलिए  इनमें अवसाद की मात्रा कम होती है।
(8) अवसाद के जमाव से ये नदियाँ मैदानों में बड़ी संख्या में विसरों का निर्माण करती हैं। (8) चट्टानी धरातल होने तथा अवसाद की कमी होने के कारण ये नदियाँ विसरों का निर्माण नहीं कर पातीं।

 

प्रश्न 2.
भारत के कोई तीन नदी तंत्रों से बोध करवाएं तथा किसी एक की व्याख्या भी करें।
उत्तर-
भारत की नदियों को तीन भागों में बाँटा जा सकता है-हिमालय से निकलने वाली नदियां, प्रायद्वीपीय पठार की नदियां तथा तटीय नदियां। इनका वर्णन इस प्रकार है
I. हिमालय पर्वत से निकलने वाली नदियां-

  1. सिंधु नदी-यह नदी मानसरोवर झील के उत्तर में बोखर-छू ग्लेशियर से निकलती है। यह कश्मीर राज्य में दक्षिण-पूर्व से उत्तर-पश्चिम की ओर बहती है। यह नदी मार्ग में गहरी घाटियाँ बनाती है। यह पाकिस्तान से होती हुई अरब सागर में जा गिरती है। सतलुज, रावी, ब्यास, चिनाब तथा जेहलम इसकी सहायक नदियाँ हैं।
  2. गंगा नदी-यह नदी गंगोत्री हिमनदी के गौ-मुख के स्थान पर निकलती है। आगे चलकर इसमें अलकनंदा तथा मंदाकिनी नदियाँ भी मिल जाती हैं। यह शिवालिक की पहाड़ियों से होती हुई हरिद्वार पहुँचती है। अंत में यह खाड़ी बंगाल में जा गिरती है। इसकी सहायक नदियों में यमुना, रामगंगा, गोमती, घाघरा, गंडक, चंबल, बेतवा, सोन तथा कोसी नदियाँ प्रमुख हैं।
  3. ब्रह्मपुत्र नदी-यह नदी मानसरोवर झील के पूर्व में ‘चेमायुंगडुंग’ नामक हिमनदी से निकलती है। यह तिब्बत, भारत तथा बंगला देश से होती हुई गंगा नदी में जा मिलती है। यहाँ से ब्रह्मपुत्र तथा गंगा का इकट्ठा पानी पद्मा नदी के नाम से आगे बढ़ता है। अंत में यह बंगाल की खाड़ी में जा गिरती है। यह नदी अपने मुहाने पर सुंदरवन नामक डेल्टा का निर्माण करती है।

II. प्रायद्वीपीय पठार की नदियाँ-

  1. महानदी-यह नदी छत्तीसगढ़ में बस्तर की पहाड़ियों से दंदाकारनिया से निकलती है। छत्तीसगढ़ तथा ओडिशा से होती हुई यह खाड़ी बंगाल में जा गिरती है।
  2. गोदावरी नदी-यह नदी पश्चिमी घाट के उत्तरी भाग (सहयाद्री) से निकलती है। यह महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश से होती हुई बंगाल की खाड़ी में जा गिरती है।।
  3. कृष्णा नदी-यह नदी महाबलेश्वर के निकट पश्चिमी घाट से निकलती है। यह कर्नाटक और आंध्र प्रदेश से होती हुई बंगाल की खाड़ी में जा गिरती है। इसकी सहायक नदियों में भीमा, तुंगभद्रा तथा घाट प्रभा प्रमुख हैं।
  4. कावेरी नदी-यह नदी पश्चिमी घाट के दक्षिणी भाग से तालकांवेरी से आरंभ होकर खाड़ी बंगाल में जा गिरती है। मार्ग में यह कर्नाटक और तमिलनाडु राज्यों से गुजरती है। यह शिव-समुद्रम नामक स्थान पर एक सुंदर जल-प्रपात बनाती है।
  5. नर्मदा नदी-यह नदी अमरकंटक के निकट मैकाल की पहाड़ियों से निकलती है तथा खंबात की खाड़ी में जा गिरती है।
  6. ताप्ती नदी-यह नदी सतपुड़ा पर्वत श्रेणियों से अल्ताई के पवित्र कुंड से निकलती है। यह नदी भी अंत में खंबात की खाड़ी में जा गिरती है।

III. तटीय नदियां-भारत के दक्षिणी भाग को तीन समुद्र अरब सागर, बंगाल की खाड़ी तथा हिंद महासागर लगते हैं तथा इनके तटों के साथ बहती हुई नदियों को तटीय नदियां कहा जाता है। इनकी लंबाई काफी कम होती है तथा यह कम समय के लिए बहती हैं। वर्षा की ऋतु में इन नदियों में काफी पानी आ जाता है। वेलुमा, पालाइ, मांडोवी, डापोरा, कालीनदी, शेरावती, नेत्रावती, पेरियार, पोनानी, सुबरनरेखा, खारकायी, पलार, वेराई इत्यादि प्रमुख तटीय नदियां हैं।

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प्रश्न 3.
उत्तर तथा दक्षिण भारत की नदियों के आर्थिक उपयोगों की चर्चा करें।
उत्तर-
किसी देश की अर्थव्यवस्था में नदियाँ महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। भारत की नदियाँ कोई अपवाद नहीं हैं। ये उत्तरी मैदानों को उपजाऊ बनाती हैं। ये सिंचाई के लिए जल जुटाती हैं तथा पेयजल की आपूर्ति करती हैं। यही नहीं ये परिवहन तथा जल विद्युत निर्माण की दृष्टि से भी अत्यंत उपयोगी हैं। भारत की अर्थव्यवस्था में इनके महत्त्व का वर्णन इस प्रकार है-

  1. जलोढ़ मिट्टी-नदियाँ उपजाऊ जलौढ़ मिट्टी का निर्माण करती हैं। इस प्रकार की मिट्टी नदियों द्वारा लाई गई रेत तथा मृत्तिका के जमा होने से बनती है। नदियाँ प्रतिवर्ष मिट्टी की नई परतें बिछाती रहती हैं। इसलिये इस प्रकार की मिट्टी बहुत उपजाऊ होती है। भारत में जलौढ़ मिट्टी बहुत विस्तृत भाग में पाई जाती है। सतलुज-गंगा का मैदान, ब्रह्मपुत्र नदी की घाटी, महानदी, गोदावरी, कृष्णा तथा कावेरी नदियों के डेल्टों और पूर्वी तथा पश्चिमी तटीय मैदानों में इस प्रकार की मिट्टी पाई जाती है। यह मिट्टी कृषि के लिए बहुत उपयोगी है।
  2. मानव सभ्यता का विकास-नदियाँ प्राचीनकाल से ही मानव सभ्यता के विकास तथा प्रगति में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती रही हैं। भारत की प्रथम महान् सभ्यता सिंधु नदी घाटी में ही फली-फूली थी। वास्तव में नदियों ने आरंभ से ही लोगों को जीवन के विकास तथा प्रगति के लिए आदर्श दशाएँ प्रदान की। नदियों को आरंभ में परिवहन के लिए प्रयोग में लाया गया। इस प्रकार विभिन्न मानव-बस्तियों के बीच संपर्क स्थापित हुआ। नदियों के निकट लोग गेहूँ तथा चावल जैसे खाद्यान्न उगाने लगे। यहाँ उन्हें रेत में मिश्रित सोना, ताँबा, लोहा आदि खनिज भी प्राप्त हुए।
  3. बहु-उद्देशीय परियोजनाएँ तथा सिंचाई-नहरें-नदियों पर भाखड़ा बाँध, दामोदर घाटी परियोजना आदि बहुउद्देशीय परियोजनाएँ बनाई गई हैं। पं० जवाहर लाल नेहरू ने इन परियोजनाओं को ‘आधुनिक भारत के मंदिर’ कह कर पुकारा। ये परियोजनाएँ भारत के लोगों की विभिन्न आवश्यकताओं को पूरा करती हैं। इन आवश्यकताओं में सिंचाई, विद्युत् उत्पादन, नौका वाहन, बाढ़ नियंत्रण, मत्स्य पालन, मिट्टी का संरक्षण, पर्यटन इत्यादि शामिल हैं।
  4. पीने का जल-नदियाँ पीने के जल का मुख्य स्रोत हैं। बड़े-बड़े नगरों में पीने के जल की आपूर्ति नदियों के जल से ही की जाती है। इस जल का शुद्धिकरण करके इसे पीने योग्य बनाया जाता है।
  5. अवसादी निक्षेप-नदियाँ अवसादी निक्षेपों का निर्माण करती हैं। इन निक्षेपों में वनस्पति तथा प्राणी-अवशेष पाए जाते हैं। ये अवशेष गल-सड़ कर कोयले तथा पेट्रोलियम में बदल जाते हैं।
  6. झीलों का उदय-कुछ नदियाँ झीलों को जन्म देती हैं। उदाहरण के लिए श्रीनगर की वूलर झील नदीनिर्मित ही है। झीलों से मनुष्य को भोजन के रूप में मछली प्राप्त होती है। ये जलवायु को सम बनाने में भी सहायता करती है।

PSEB 9th Class Social Science Guide भारत : जलप्रवाह Important Questions and Answers

बहुविकल्पीय प्रश्न :

प्रश्न 1.
हिमालय की अधिकतर नदियां ……….. हैं।
(क) मौसमी
(ख) छ:मासी
(ग) बारहमासी
(घ) कोई नहीं।
उत्तर-
(ग) बारहमासी

प्रश्न 2.
हिमालय की दो मुख्य नदियां हैं-
(क) कृष्णा व कावेरी
(ख) नर्मदा व तापी
(ग) कृष्णा व तुगभद्रा
(घ) सिन्धु व ब्रह्मपुत्र
उत्तर-
(घ) सिन्धु व ब्रह्मपुत्र

प्रश्न 3.
भारत की सबसे बड़ी नदी है-
(क) गंगा
(ख) कावेरी
(ग) ब्रह्मपुत्र
(घ) सतलुज
उत्तर-
(क) गंगा

प्रश्न 4.
गंगा नदी कहां से निकलती है ?
(क) हरिद्वार
(ख) देव प्रयाग
(ग) गंगोत्री
(घ) सांभर
उत्तर-
(ग) गंगोत्री

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प्रश्न 5.
दो दरियाओं के बीच के क्षेत्र को ……..कहते हैं।
(क) दोआब
(ख) जल विभाजन
(ग) अप्रवाह क्षेत्र
(घ) जल निकास स्वरूप
उत्तर-
(क) दोआब

प्रश्न 6.
इनमें से कौन-सी हिमालय की प्रमुख नदी है ?
(क) गंगा
(ख) सिन्धु
(ग) ब्रह्मपुत्र
(घ) उपर्युक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 7.
सिन्धु नदी की कुल लंबाई कितनी है ?
(क) 2500 कि०मी०
(ख) 2880 कि०मी०
(ग) 2720 कि०मी०
(घ) 3020 कि०मी०
उत्तर-
(ख) 2880 कि०मी०

प्रश्न 8.
गंगा तथा ब्रह्मपुत्र नदियां ………… डैल्टा बनाती हैं।
(क) सुन्दरवन
(ख) अमरकंटक
(ग) नामचा बरवा
(घ) कुमाऊँ।
उत्तर-
(क) सुन्दरवन

रिक्त स्थानों की पूर्ति :

  1. गंगा की कुल लंबाई ………. कि०मी० है।
  2. घाघरा गंडक, कोसी, सोन नदियां ……….. नदी की सहायक नदियां हैं।
  3. ब्रह्मपुत्र ………….. नामक स्थान से भारत में प्रवेश करती है।
  4. ब्रह्मपुत्र की कुल लंबाई ……….. कि०मी० है।
  5. ………. द्वीप दुनिया का सबसे बड़ा नदी में बीच का द्वीप है।
  6. लुनी नदी राजस्थान में ………… से निकलती है।

उत्तर-

  1. 2525,
  2. गंगा,
  3. नामचा बरवा,
  4. 2900,
  5. मंजुली,
  6. पुष्कर।

सही/गलत :

1. साबरमती नदी देबार झील से निकलती है।
2. लुनी नदी की लंबाई 495 किलोमीटर है।
3. कृष्णा को वृद्ध गंगा भी कहते हैं।
4. तटीय नदियों की लंबाई काफी अधिक होती है।
5. भाखड़ा डैम के पीछे गोबिन्द सागर झील बनाई गई है।
6. 1980 में गंगा एक्शन प्लान बनाया गया था।
उत्तर-

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अति लघु उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
जलप्रवाह क्या होता है ?
उत्तर-
किसी क्षेत्र में बहने वाली नदियों तथा नहरों के जाल को जलप्रवाह कहते हैं।

प्रश्न 2.
दोआब क्या होता है ?
उत्तर-
दो दरियाओं के बीच मौजूद क्षेत्र को दोआब कहते हैं।

प्रश्न 3.
जल विभाजक का अर्थ बताएं।
उत्तर-
जब कोई ऊंचा क्षेत्र, जैसे कि पर्वत, जब दो नदियों या जल प्रवाहों को विभाजित करता हो तो उस क्षेत्र को जल विभाजक कहते हैं।

प्रश्न 4.
अप्रवाह क्षेत्र क्या होता है ?
उत्तर-
किसी नदी या उसकी सहायक नदियों के नज़दीक का क्षेत्र जहां से वह पानी प्राप्त करते हैं उसे अप्रवाह क्षेत्र कहते हैं।

प्रश्न 5.
जल निकास स्वरूप किसे कहते हैं ?
उत्तर-
जब पृथ्वी पर बहता हुआ पानी अलग-अलग स्वरूप बनाता है तो इसे जल निकास स्वरूप कहते हैं।

प्रश्न 6.
जल निकास स्वरूप के प्रकार बताएं।
उत्तर-
द्रुमाकृतिक अप्रवाह, जालीनुमा प्रवाह, आयताकार अप्रवाह तथा अरीय अप्रवाह।

प्रश्न 7.
भारत के नदी तंत्र को हम किन चार भागों में विभाजित कर सकते हैं ?
उत्तर-
हिमालय की नदियां, प्रायद्वीपीय नदी तंत्र, तट की नदियां तथा आंतरिक नदी तंत्र तथा झीलें।

प्रश्न 8.
देश के मुख्य जल विभाजक कौन से हैं ?
उत्तर-
हिमालय पर्वत श्रेणी तथा दक्षिण का प्रायद्वीपीय पठार।

प्रश्न 9.
सिन्धु नदी की सहायक नदियों के नाम बताएं।
उत्तर-
सतलुज, रावी, ब्यास तथा जेहलम।।

प्रश्न 10.
गंगा की सहायक नदियों के नाम बताएं।
उत्तर-
यमुना, सोन, घाघरा, गंडक, बेतवा, कोसी इत्यादि।

प्रश्न 11.
कौन सी नदियां Antecedent Drainage की उदाहरण हैं।
उत्तर-
सिन्धु, सतलुज, अलकनंदा, गंडक, कोसी तथा ब्रह्मपुत्र ।

प्रश्न 12.
तिब्बत में सिन्धु नदी को क्या कहते हैं ?
उत्तर-
तिब्बत में सिन्धु नदी को सिंघी खम्बत या शेर का मुख कहते हैं।

प्रश्न 13.
सिन्धु नदी की कुल लंबाई कितनी है ?
उत्तर-
2880 किलोमीटर।

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प्रश्न 14.
भारत की पवित्र नदी किसे माना जाता है ?
उत्तर-
गंगा नदी को भारत की पवित्र नदी माना जाता है।

प्रश्न 15.
गंगा की मुख्य धारा को क्या कहते हैं?
उत्तर-
गंगा की मुख्य धारा को भगीरथी कहते हैं।

प्रश्न 16.
गंगा तथा ब्रह्मपुत्र कौन से डैल्टा को बनाती है ?
उत्तर-
सुन्दरवन डैल्टा को।

प्रश्न 17.
गंगा की कुल लंबाई कितनी है ?
उत्तर-
2525 किलोमीटर।

प्रश्न 18.
ब्रह्मपुत्र नदी कहां से शुरू होती है ?
उत्तर-
ब्रह्मपुत्र नदी तिब्बत में कैलाश पर्वत में आंगसी ग्लेशियर से शुरू होती है।

प्रश्न 19.
तिब्बत में ब्रह्मपुत्र नदी को क्या कहा जाता है ?
उत्तर-
तिब्बत में ब्रह्मपुत्र नदी को सांगपो (Tsengpo) कहा जाता है।

प्रश्न 20.
भारत में ब्रह्मपुत्र किस स्थान पर आती है ?
उत्तर-
नमचा बरवा।।

प्रश्न 21.
ब्रह्मपुत्र की सहायक नदियों के नाम बताएं।
उत्तर-
सुबरनगिरी, कमिंग, धनगिरी, दिहांग, लोहित इत्यादि।

प्रश्न 22.
दक्षिण की कौन-सी नदियां पश्चिम दिशा की तरफ बहती हैं ?
उत्तर-
नर्मदा तथा ताप्ती नदियां।

प्रश्न 23.
दक्षिण की कौन सी नदियां पूर्व दिशा की तरफ बहती हैं ?
उत्तर-
महानदी, गोदावरी, कृष्णा तथा कावेरी।

प्रश्न 24.
आंतरिक जल निकास प्रणाली क्या होती है ?
उत्तर-
देश की कई नदियां समुद्र तक पहुंचने से पहले ही खत्म हो जाती हैं तथा इन सब को ही आन्तरिक जल निकास प्रणाली कहा जाता है।

प्रश्न 25.
देश की आंतरिक जल निकास प्रणाली की तीन नदियों के नाम लिखें।
उत्तर-
घग्गर नदी, लूनी नदी, सरस्वती नदी।

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प्रश्न 26.
प्रायद्वीपीय पठार में प्राकृतिक झीलें कहां मिलती हैं ?
उत्तर-
लोनार (महाराष्ट्र), चिल्का (ओडिशा), पुलीक (तमिलनाडु), पैरीयार (केरल), कोलेरू (सीमांध्र) इत्यादि।

प्रश्न 27.
चिल्का झील की लंबाई कितनी है तथा यह कहां पर स्थित है ?
उत्तर-
चिल्का झील 70 कि०मी० लंबी है तथा यह ओडिशा में स्थित है।

प्रश्न 28.
गंगा एक्शन प्लान कब तथा कहां पर शुरू किया गया था ?
उत्तर-
गंगा एक्शन प्लान 1986 में गंगा के प्रदूषण को रोकने के लिए शुरू किया गया था।

प्रश्न 29.
महानदी की लंबाई कितनी है ?
उत्तर-
858 किलोमीटर।

प्रश्न 30.
गोदावरी, कृष्णा, कावेरी तथा नर्मदा की लंबाई कितनी है ?
उत्तर-
गोदावरी-1465 किलोमीटर, कृष्णा- 140 किलोमीटर, कावेरी-800 किलोमीटर, नर्मदा-1312 किलोमीटर।

प्रश्न 31.
गोदावरी की सहायक नदियों के नाम लिखें।
उत्तर-
धेनगंगा, वेनगंगा, वार्धा, इन्द्रावती, मंजरा, साबरी।

प्रश्न 32.
कावेरी की सहायक नदियों के नाम बताएं।
उत्तर-
हेरावती, हीरानेगी, अमरावती, काबानी।

प्रश्न 33.
ताप्ती नदी की सहायक नदियों के नाम बताएं।
उत्तर-
गिरना, मिंडोला, पूर्णा, पंजारा, शिप्रा, अरुणावती इत्यादि।

प्रश्न 34.
लुनी नदी के बारे में बताएं।
उत्तर-
लुनी नदी पुष्कर, राजस्थान में से निकलती है। इसकी लंबाई 465 किलोमीटर है तथा यह कच्छ के रेगिस्तान में खत्म हो जाती है।

प्रश्न 35.
जम्मू-कश्मीर में प्रमुख झीलों के नाम बताएं।
उत्तर-
डल झील तथा वूलर झील।

प्रश्न 36.
राजस्थान में खारे पानी की झील कौन-सी है ?
उत्तर-
सांबर झील।

प्रश्न 37.
उद्योगों में से कौन-से जहरीले पदार्थ निकाल कर नदियों में फैंके जाते हैं ?
उत्तर-कोडमीयम, आर्सेनिक, सिक्का, तांबा, मैग्नीशियम, पारा, जिंक, निक्कल इत्यादि।

लघु उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
हिमालय की नदियाँ सदानीरा (बारहमासी) क्यों हैं?
उत्तर-
सदानीरा का अर्थ है सारा साल अथवा बारहमास बहने वाली। हिमालय की नदियों को शुष्क ऋतु तथा वर्षा ऋतु दोनों ही ऋतुओं में जल प्राप्त होता है। वर्षा ऋतु में ये वर्षा से जल प्राप्त करती हैं। शुष्क ऋतु में हिमालय की बर्फ पिघल कर इन्हें जल प्रदान करती है। यही कारण है कि हिमालय की नदियाँ सदानीरा अथवा बारहमासी हैं। गंगा तथा ब्रह्मपुत्र हिमालय की बारहमासी नदियों के उदाहरण हैं।

प्रश्न 2.
हिमालय के तीन मुख्य नदी-तंत्रों के नाम बताओ। प्रत्येक की दो सहायक नदियों के नाम बताएं।
उत्तर-
हिमालय के तीन मुख्य नदी तंत्र तथा उनकी सहायक नदियाँ निम्नलिखित हैं-

  1. सिंधु नदी तंत्र-इसकी मुख्य सहायक नदियाँ सतलुज, रावी, ब्यास, चिनाब, झेलम इत्यादि हैं।
  2. गंगा नदी तंत्र-इस नदी तंत्र की मुख्य सहायक नदियाँ यमुना, घाघरा, गोमती, गंडक, सोन, बेतवा इत्यादि हैं। 3. ब्रह्मपुत्र नदी तंत्र-इसकी मुख्य सहायक नदियाँ दिबांग, लोहित, केनुला इत्यादि हैं।

प्रश्न 3.
ब्रह्मपुत्र की घाटी का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
उत्तर-
ब्रह्मपुत्र का उद्गम स्थान तिब्बत में सिंधु और सतलुज के उद्गम के निकट ही है। ब्रह्मपुत्र की लंबाई सिंधु नदी के बराबर है। परंतु इसका अधिकांश विस्तार तिब्बत में है। तिब्बत में इसका नाम सांगपो है। नामचा बरवा नामक पर्वत के पास यह तीखा मोड़ लेकर भारत में प्रवेश करती है। अरुणाचल प्रदेश में इसे दिहांग के नाम से पुकारते हैं। लोहित, दिहांग तथा दिबांग के संगम के पश्चात् इसका नाम ब्रह्मपुत्र पड़ता है। बंग्लादेश के उत्तरी भाग में इसका नाम जमुना है तथा मध्य भाग में इसे पद्मा कहते हैं । दक्षिण में पहुँच कर ब्रह्मपुत्र और गंगा आपस में मिल जाती हैं, तब इस संयुक्त धारा को मेघना कहते हैं।

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प्रश्न 4.
गंगा नदी प्रणाली का विवरण दें।
उत्तर-
गंगा नदी प्रणाली के मुख्य पहलुओं का वर्णन इस प्रकार हैजन्म-स्थान-गंगा नदी गंगोत्री हिमानी से निकलती है।
सहायक नदियाँ-गंगा की मुख्य सहायक नदियाँ यमुना, रामगंगा, घाघरा, बाघमती, महानंदा, गोमती, गंडक, छोटी गंडक, जलांगी, भैरव, कोसी, दामोदर, सोनत टोंस, केन, बेतवा तथा चंबल इत्यादि हैं।
लंबाई-गंगा नदी की कुल लंबाई 2525 कि० मी० है, जिसमें से यह 2415 कि० मी० की यात्रा भारत में तय करती है।
डेल्टा व अन्य विशेषताएँ-गंगा ब्रह्मपुत्र नदी के साथ मिलकर संसार का सबसे बड़ा डेल्टा बनाती है। अंततः यह पश्चिमी बंगाल के 24 परगना जिले में सुंदरवन डेल्टे के मार्ग से बंगाल की खाड़ी में मिल जाती है।

प्रश्न 5.
भारतीय पठार की पूर्व-प्रवाहिनी नदियों की जानकारी दें।
उत्तर-
भारतीय पठार पर महानदी, गोदावरी, कृष्णा, कावेरी इत्यादि महत्त्वपूर्ण नदियाँ बहती हैं। ये सभी नदियाँ पूर्व की ओर बहती हई बंगाल की खाड़ी में मिलती हैं।

  1. महानदी मध्य प्रदेश में छत्तीसगढ़ पठार की पहाड़ी श्रेणियों से निकलती है।
  2. गोदावरी भारतीय पठार की सबसे बड़ी नदी है। यह सहयाद्रि पर्वत में त्र्यंबकेश्वर के निकट से निकलती है। इस नदी में वर्ष भर पानी रहता है। गंगा नदी की तरह इस नदी ने भी अपने मुहाने पर विस्तृत डेल्टा क्षेत्र का निर्माण किया है।
  3. कृष्णा नदी सहयाद्रि के महाबलेश्वर स्थान से उदय होती है। इसमें भीमा, कोयना, पंचगंगा, तुंगभद्रा इत्यादि नदियाँ मिलती हैं।

प्रश्न 6.
प्रायद्वीपीय पठार के पश्चिम की ओर बहने वाली नदियों का विवरण दें।।
उत्तर-
प्रायद्वीपीय पठार के पश्चिम में बहने वाली नदियों के नाम हैं-माही, साबरमती, नर्मदा तथा ताप्ती।

  1. माही-माही नदी विंध्याचल पर्वत से निकलती है। इसकी कुल लंबाई 533 कि० मी० है। यह खंबात नगर के समीप खंबात की खाड़ी की दाईं ओर जाकर गिरती है।
  2. साबरमती-साबरमती उदयपुर के पास मेश्वा से निकलती है। यह मौसमी नदी 416 कि० मी० लंबी है। अंत में यह गांधीनगर और अहमदाबाद से होती हुई खंबात की खाड़ी में गिरती है।
  3. नर्मदा-यह नदी अमरकंटक पठार से निकलती है और 1312 कि० मी० की यात्रा तय करती हुई जबलपुर, होशंगाबाद होती हुई भडोच के समीप खंबात की खाड़ी में गिरती है।
  4. ताप्ती-दक्षिण की अन्य नदियों की भांति ताप्ती नदी भी मौसमी नदी है, जो मध्य प्रदेश के बेतूल जिले में मुलताई के पास आरंभ होती है और अंत में सूरत के समीप अरब सागर में जा गिरती है। इसकी लंबाई 724 किलोमीटर है।

प्रश्न 7.
हिमालय से निकलने वाली नदियों की प्रमुख विशेषताएँ बताओ।
उत्तर-

  1. हिमालय से निकलने वाली अधिकतर नदियाँ उत्तर भारत में बहती हैं।
  2. ये नदियाँ काफ़ी लंबी हैं तथा बारह मास बहती हैं। वर्षा के समय इन नदियों में बहुत बड़ी मात्रा में पानी बहता है। ग्रीष्म काल में हिमालय की बर्फ पिघलने से इनमें पर्याप्त जल रहता है।
  3. मैदानी भागों में ये नदियाँ कांप का संचयन करती हैं जिससे नदियों के कछार उपजाऊ बनते हैं।
  4. ये नदियाँ सिंचाई और जल विद्युत निर्माण की दृष्टि से भी उपयोगी हैं।
  5. इनका मंद गति से बहने वाला जल यातायात की सुविधा प्रदान करता है।
  6. हिमालय की अधिकतर नदियाँ बंगाल की खाड़ी में गिरती हैं। इसकी एकमात्र मुख्य नदी सिंधु ही अरब सागर में गिरती है।

प्रश्न 8.
सिंधु तथा उसकी सहायक नदी सतलुज पर एक संक्षिप्त नोट लिखो।
उत्तर-
सिंधु-सिंधु नदी हिमालय में मानसरोवर के उत्तर में उदय होती है। यह कश्मीर से होती हुई पाकिस्तान में प्रवेश करती है और अरब सागर में जा गिरती है। इसकी लंबाई लगभग 2900 कि० मी० है। परंतु इसका केवल 700 कि० मी० लंबाई का प्रवाह भारत में है।
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सतलुज-सतलुज नदी का उदय मानसरोवर के समीप ही रक्षताल से होता है । यह हिमाचल प्रदेश और पंजाब राज्य से होती हुई पाकिस्तान में जाकर सिंधु में मिल जाती है। सतलुज की सहायक नदियाँ-जेहलम, चिनाब, रावी, ब्यास आदि भी हिमालय से निकलती हैं। इन नदियों के जल का उपयोग मुख्यतः पंजाब में सिंचाई के लिए किया जाता है।

प्रश्न 9.
भारत की झीलों पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखो।
उत्तर-
भारत में झीलों की संख्या अधिक नहीं है। डल, वूलर, सांभर, चिल्का, कोलेरू, पुलीकट, वेबनाद, लोणार आदि भारत की प्रमुख झीलें हैं।

  1. इनमें से सात झीलें कुमाऊँ हिमालय क्षेत्र के नैनीताल जिले में हैं।
  2. डल तथा वूलर झीलें उत्तरी कश्मीर में हैं। ये पर्यटकों के लिए आकर्षण स्थल हैं।
  3. राजस्थान में जयपुर के समीप सांभर और महाराष्ट्र में बुलढाणा जिले में लोणार में खारे पानी की झीलें हैं।
  4. ओडिशा की चिल्का झील भारत की सबसे बड़ी खारे पानी की झील है।
  5. चेन्नई (मद्रास) के समीप पुलीकट अनूप झील है।
  6. गोदावरी और कृष्णा नदी के डेल्टा प्रदेश के बीच कोलेरू नामक मीठे पानी की झील है।
  7. केरल के किनारों के साथ-साथ लंबी-लंबी अनूप झीलें हैं। इन्हें कयाल कहते हैं। इनमें से बनाद खारे पानी का सबसे बड़ा कयाल है।

प्रश्न 10.
“पश्चिमी तटवर्ती नदियां डैल्टा नहीं बनातीं।” व्याख्या करो।
उत्तर-
पश्चिमी तट की मुख्य नदियां नर्मदा तथा ताप्ती हैं। यह नदियां काफी कम दूरी तय करती हैं तथा काफी तेज़ गति से अरब सागर में मिलती हैं। परंतु डैल्टा बनाने के लिए नदियों की गति का कम होना आवश्यक है। इस लिए नर्मदा तथा ताप्ती नदियां डैल्टा नहीं बना पातीं। इनकी लहरें तथा ज्वार अधिक प्रभावशाली होते हैं।

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दीर्घ उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत के अंदरूनी अर्थात् आंतरिक जल निकास प्रणाली का वर्णन करें।
उत्तर-
देश की बहुत-सी नदियाँ समुद्र तक पहुँचने से पहले ही मार्ग में शुष्क भूमि या झील में समाप्त हो जाती हैं। इस प्रकार आंतरिक स्थलवर्ती क्षेत्रों में ही विसर्जित होने वाले पानी के निकास को आंतरिक जल-निकास प्रणाली कहा जाता है। इस प्रकार की जल-निकास प्रणाली का अध्ययन नदियों के उद्गम व विलीन स्थान के आधार पर किया जाता है।
I. उद्गम स्थान के आधार पर भारत में ऐसी निकास प्रणाली हिमालय तथा अरावली पर्वतों की ढलानों में जन्म लेती है।
1. हिमालय क्षेत्र-हिमालय क्षेत्र में शिवालिक और लद्दाख की अंतर्मुखी जल-निकास प्रणाली आती है।

  1. शिवालिक पर्वत श्रेणियों में घग्घर नदी लगभग 1500 मीटर की ऊँचाई वाली मोरनी की पहाड़ियों से आरंभ होकर पंचकुला के समीप मैदान में प्रवेश करती है। यह पंजाब-हरियाणा की सीमा से राजस्थान के हनुमानगढ़ नगर तक पहुँच जाती है। परंतु मार्ग में यह सिंचाई तथा अधिक वाष्पीकरण के कारण समाप्त हो जाती है। इसकी सहायक नदियों में सुखना, टांगरी, मारकंडा व सरस्वती मुख्य हैं।
  2. घग्घर के अतिरिक्त चंडीगढ़ के आस-पास बहने वाली जैयंती राव तथा पटियाली राव छोटे नाले भी इस प्रकार की जल-निकास प्रणाली में आते हैं।
  3. तराई के क्षेत्र में भी इस तरह की नदियाँ मिलती हैं जो दक्षिण हिमालय की ढलानों से उतर कर भाबर क्षेत्रों में विलीन हो जाती हैं।
  4. लद्दाख की अंतर-पर्वतीय पठारी भाग की अकसाई चिन नदी भी इस प्रकार की प्रणाली का निर्माण करती है।

2. अरावली क्षेत्र-

  1. अरावली क्षेत्र में वर्षा की ऋतु में कई नदियाँ-नाले जन्म लेते हैं। इनकी पश्चिमी ढलानों पर विकसित होने वाली नदियाँ सांभर झील, जयपुर झील या फिर बालू के टिब्बों में समा जाती हैं।
  2. लूनी नदी सांभर झील के पास से शुरू होकर कच्छ के रण में विलीन हो जाती है।

II. विलीन स्थान के आधार पर-इस आंतरिक जल-निकास प्रणाली में बहुत-सी छोटी-छोटी नदियाँ-नाले या बरसाती जलधाराएँ (पंजाबी में चौ कहते हैं) पानी का निकास धरातल पर गहरे खड्डों यानी झीलों (Lakes) में करती हैं। ये झीलें हिमालय, थार मरुस्थल व प्रायद्वीपीय पठार जैसे तीनों ही मुख्य प्राकृतिक भूखंडों में मिलती हैं।
1. हिमालय की झीलें-हिमालय की झीलों का वर्गीकरण इस प्रकार है-

  1. कश्मीर क्षेत्र की डल, वूलर, अनंतनाग, शेषनाग, वैरीनाग जैसी झीलें विश्व-प्रसिद्ध हैं।
  2. कुमाऊँ हिमालय में भीमताल, चंद्रपालताल, नैनीताल, पुनाताल इत्यादि झीलें प्रमुख हैं।

2. थार मरुस्थल-इसमें सांभर, साल्टलेक, जीवई, छोपारबाढ़ाबंध, साईपद व जैसोमंद झीलें आती हैं।
3. प्रायद्वीपीय पठार-इसमें महाराष्ट्र की लोनार, ओडिशा की चिल्का, तमिलनाडु की पुलीकट, केरल की पेरियार आदि प्राकृतिक झीलें हैं।

प्रश्न 2.
बंगाल की खाड़ी में पहुंचने वाली जल-निकास प्रणाली का विवरण दें।
उत्तर-
भारत की अधिकांश नदियाँ बंगाल की खाड़ी में गिरती हैं। खाड़ी बंगाल में गिरने वाले नदी तंत्रों का वर्णन इस प्रकार है गंगा नदी तंत्र-गंगा उत्तराखंड के हिमालय क्षेत्र में गंगोत्री से निकलती है। हरिद्वार के पास यह उत्तरी मैदान में प्रवेश करती है। इसके पश्चिम में यमुना नदी है, जो इलाहाबाद में इससे मिल जाती है। यमुना में दक्षिण की ओर से चंबल, सिंध, बेतवा और केन नामक नदियाँ आकर मिलती हैं। ये सभी नदियाँ मैदान में प्रवेश करने से पूर्व मालवा के पठार पर बहती हैं। दक्षिण पठार से आकर सीधे गंगा में मिलने वाली एकमात्र बड़ी नदी सोन है। आगे बढ़कर पूर्व में दामोदर नदी गंगा में आकर मिलती है। इलाहाबाद के बाद गंगा में मिलने वाली हिमालय की कुछ नदियाँ पश्चिम से पूर्व की ओर इस प्रकार हैं-गोमती, घाघरा, गंडक और कोसी। भारत में गंगा की लंबाई 2415 किलोमीटर है।

ब्रह्मपुत्र नदी तंत्र-ब्रह्मपुत्र का उद्गम स्थल भी तिब्बत में सिंधु और सतलुज के उद्गम के निकट ही है। यह नदी बड़ी भारी मात्रा में जल बहाकर ले जाती है। ब्रह्मपुत्र की लंबाई सिंधु के बराबर है, लेकिन इसका अधिकतर मार्ग तिब्बत में है। तिब्बत में यह हिमालय के समानांतर बहती है, जहाँ इसका नाम सांगपो है। नामचाबरवा नामक पर्वत के पास इसने तीखा मोड़ लिया है। यहीं इसने 5500 मीटर गहरा महाखड्ड बनाया है। भारत में इसकी लंबाई 885 किलोमीटर है। लोहित, दिहांग तथा दिबांग के संगम के बाद इसका नाम ब्रह्मपुत्र पड़ता है। इस नदी में विशाल जलराशि का प्रवाह होता है। बंगलादेश के उत्तरी भाग में इसका नाम सूरमा है तथा मध्य भाग में इसे पद्मा कहते हैं। दक्षिण में बढ़कर ब्रह्मपुत्र और गंगा आपस में मिल जाती हैं। तब इन दोनों की संयुक्त धारा को मेघना कहते हैं।

प्रायद्वीपीय भू-भाग की नदियाँ–प्रायद्वीप की प्रमुख नदियाँ महानदी, गोदावरी, कृष्णा तथा कावेरी हैं जो खाड़ी बंगाल में जा गिरती हैं।

प्रश्न 3.
अरब सागर की जल निकास प्रणाली की व्याख्या करें।
उत्तर-
भारत की कुछ नदियां अरब सागर में जाकर मिलती हैं जिनका वर्णन इस प्रकार है
सिन्धु-सिन्धु नदी की लंबाई 2880 किलोमीटर है परंतु इसका अधिकतर भाग पाकिस्तान में बहता है। यह तिब्बत में शुरू होकर कश्मीर से होते हुए पाकिस्तान में प्रवेश कर जाती है। सतलुज, रावी, ब्यास तथा जेहलम इसकी प्रमुख सहायक नदियां हैं। एक-एक करके यह नदियां अंत में सिन्धु नदी में मिल जाती हैं तथा फिर सिन्धु नदी अथवा सम्पूर्ण जल अरब सागर की गोद में मिला देती है।

प्रायद्वीपीय नदियां-प्रायद्वीपीय भारत की नर्मदा तथा ताप्ती नदियां पश्चिमी दिशा की तरफ बहते हुए अरब सागर में जा मिलती हैं । यह दोनों नदियां तंग तथा लंबी घाटियों से होते हुए बहती हैं । नर्मदा नदी के उत्तर में विंध्याचल पर्वत श्रेणी तथा दक्षिण में सतपुड़ा पर्वत श्रेणी है। सतपुड़ा के दक्षिण में ताप्ती नदी है। कहा जाता है कि यह नदी घाटियां काफी पुरातन हैं। यह नदियां तंग नदी मुखों के द्वारा समुद्र में मिल जाती हैं।

प्रश्न 4.
जल निकास स्वरूप तथा इसके प्रकारों का वर्णन करें।
उत्तर-
जल विकास स्वरूप- जब पृथ्वी के किसी भाग पर पानी बहता है तो यह अलग-अलग प्रकार के स्वरूप बनाता है जिसे हम जल विकास स्वरूप अथवा अप्रवाह प्रतिरूप (Drainage Pattern) कहते हैं। जब भी कोई नदी अथवा दरिया अलग-अलग क्षेत्रों में से बहता है तो बहता हुआ पानी कुछ निश्चित प्रतिरूपों का निर्माण करता है। यह प्रतिरूप चार प्रकार के होते हैं-

  1. द्रमाकृतिक अथवा वृक्ष के समान अप्रवाह (Dendritic Pattern)
  2. आयताकार अथवा समांतर अप्रवाह (Parellel Pattern)
  3. जालीनुमा अप्रवाह (Trallis Pattern)
  4. अरीय अथवा चक्रीय अप्रवाह (Radial Pattern)

PSEB 9th Class SST Solutions Geography Chapter 3a भारत जलप्रवाह 2

जल निकास स्वरूप में पानी की धाराएँ एक निश्चित स्वरूप बनाती हैं जोकि उस क्षेत्र की भूमि की ढलान, जलवायु संबंधी अवस्थाओं तथा वहां पर मौजूद चट्टानों की प्रकृति पर निर्भर करता है।

  1. द्रमाकृतिक अथवा वृक्ष के समान अप्रवाह-द्रमाकृतिक अपवाह उस समय बनता है जब धाराएं उस स्थान की भूमि की ढलान के अनुसार बहती हैं। इस अप्रवाह में मुख्य धारा तथा उसकी सहायक नदियां एक पेड़ की शाखाओं की तरह लगती हैं।
  2. आयताकार अथवा समांतर अप्रवाह-आयताकार अप्रवाह प्रतिरूप प्रबल संधित शैलीय भूभाग पर विकसित होता है।
  3. जालीनुमा अप्रवाह-जब सहायक नदियां मुख्य नदी से समकोण पर मिलती हैं तो जालीनुमा अप्रवाह का निर्माण होता है।
  4. अरीय अथवा चक्रीय अप्रवाह-अरीय अप्रवाह उस समय विकसित होता है जब केन्द्रीय शिखर या गुम्बद जैसी संरचना धाराएं विभिन्न दिशाओं में एकत्रित होती हैं। एक ही अप्रवाह श्रेणी में अलग-अलग प्रकार के अप्रवाह भी मिल जाते हैं।

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प्रश्न 5.
नदी-जल-प्रदूषण के मुख्य कारण क्या हैं ? इसे कैसे रोका जा सकता है ?
उत्तर-
नदी-जल-प्रदूषण से अभिप्राय है-नदियों के जल में अपशिष्ट पदार्थों तथा विषैले रसायनों का मिलना। आज हमारे देश में नदी-जल-प्रदूषण की गंभीर समस्या बनी हुई है। गंगा तथा यमुना का जल तो बहुत अधिक प्रदूषित हो चुका है। ऐसे जल के उपयोग से पीलिया, पेचिस तथा टाइफाइड जैसी बीमारियाँ फैलती हैं। इससे जल जीवों के लिए भी खतरा उत्पन्न हो गया है।
नदी-जल-प्रदूषण के कारण-नदी-जल-प्रदूषण के लिए स्वयं मनुष्य उत्तरदायी है। वह निम्नलिखित तरीकों से नदियों के जल को प्रदूषित कर रहा है-

  1. कारखानों के अपशिष्ट पदार्थ तथा विषैले रसायन मिला जल नदियों में बहा दिया जाता है। उदाहरण के लिए चमड़ा साफ़ करने वाले कारखानों से निकला गंदा जल आस-पास की नदियों के जल को प्रदूषित कर रहा है।
  2. लोग अपने घरों का कूड़ा-कर्कट तथा गंदा जल नदियों में बहा देते हैं। यह जल बड़े नालों में से होता हुआ नदियों में जा मिलता है।
  3. किसान खेतों में उर्वरकों तथा कीटनाशकों का उपयोग करते हैं। ये पदार्थ वर्षा के जल के साथ बहकर नदियों में जा मिलते हैं।
  4. भारत की लगभग सभी मुख्य नदियों पर बाँध बनाए गए हैं। इससे नदियों का जल-स्तर बढ़ गया है तथा जल के प्रवाह की गति कम हो गई है। परिणामस्वरूप कई प्रकार का खतरनाक अवसाद जल में घुला रहता है और वहीं इकट्ठा होता रहता है।
  5. कुछ नदियों पर धोबी-घाट बने हुए हैं जहाँ मैले कपड़े धोए जाते हैं। इस प्रकार नदियों का जल गंदा तथा विषैला होता रहता है।

नदी-जल-प्रदूषण को रोकने के उपाय-नदी-जल के प्रदूषण को रोकने के लिए निम्नलिखित तरीके अपनाए जाने चाहिएं

  1. प्रदूषित जल का पुनः चक्रण-नगरों के प्रदूषित जल को नगरों के निकट ही वैज्ञानिक ढंग से संशोधित करना चाहिए। इस प्रकार यह पुनः पीने योग्य बन जाएगा और नदी-जल-प्रदूषण पर भी नियंत्रण किया जा सकेगा।
  2. वनारोपण-अधिक-से-अधिक वन लगाए जाने चाहिए। वनस्पति धरातलीय प्रवाह को नियंत्रित करती है तथा कई अपशिष्ट पदार्थों को नदियों में बह जाने से रोकती है।
  3. खेतों की मेड़बंदी-खेतों में हल चलाते समय खेत के चारों ओर ऊँची मेड़ बना देनी चाहिए। यह मेड़ हल्की वर्षा या बाढ़ के समय मिट्टी तथा कीटनाशकों को खेतों से बाहर नहीं जाने देती।
  4. वैधानिक उपाय तथा जागरुकता-लोगों को जागरूक बना कर तथा वैधानिक उपायों द्वारा जल के प्रदूषण को रोकना भी अनिवार्य है। औद्योगिक इकाइयों द्वारा नदियों में गंदे जल की निकासी पर कड़ा प्रतिबंध लगा देना चाहिए। नदियों पर बने धोबी घाट हटा देने चाहिए।
  5. दंडनीय अपराध बनाना-वास्तव में जल को प्रदूषित करना एक दंडनीय अपराध बना देना चाहिए।

भारत : जलप्रवाह PSEB 9th Class Geography Notes

  • अप्रवाह प्रणाली-किसी प्रदेश की मुख्य नदी तथा उसकी सहायक नदियाँ मिलकर जल प्रवाह की एक विशेष रूपरेखा बनाती हैं। इसे अप्रवाह प्रणाली कहते हैं।
  • सहायक नदी-वह नदी जो अपने जल को मुख्य नदी में मिला देती है, उसे मुख्य नदी की सहायक नदी कहते हैं।
  • भारत की मुख्य नदियाँ-भारत की नदियों को मुख्य रूप से दो भागों में विभाजित किया जा सकता है-हिमालय की नदियाँ तथा प्रायद्वीपीय पठार की नदियाँ हिमालय की मुख्य नदियाँ सिंधु, गंगा तथा ब्रह्मपुत्र हैं। प्रायद्वीपीय भारत की मुख्य नदियों में कावेरी, कृष्णा, गोदावरी, ताप्ती तथा नर्मदा के नाम लिए जा सकते हैं।
  • झीलें-भारत की प्रमुख झीलें डल, वूलर, सांभर, चिल्का, कोलेरू, पुलिकट इत्यादि हैं।
  • नदियों का महत्त्व नदियाँ पेयजल की आपूर्ति करती हैं, सिंचाई सुविधाएँ तथा परिवहन सुविधाएँ प्रदान करती हैं। नदियों पर बाँध बना कर जल विद्युत् भी प्राप्त की जाती है।।
  • नदी-प्रदूषण-नदियों में गिरने वाले अपशिष्ट पदार्थों तथा रासायनिक पदार्थों रे नदियों का जल निरंतर प्रदूषित हो रहा है। यह जल पीने योग्य नहीं है।
  • नदी-प्रदूषण को रोकने के उपाय-नदी-जल के उचित प्रबंधन, खेतों की मेड़बंदी तथा राष्ट्रीय जल ग्रिड का निर्माण करके नदी के प्रदूषण को रोका जा सकता है।

PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 13 वस्त्रों की धुलाई

Punjab State Board PSEB 9th Class Home Science Book Solutions Chapter 13 वस्त्रों की धुलाई Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 9 Home Science Chapter 13 वस्त्रों की धुलाई

PSEB 9th Class Home Science Guide वस्त्रों की धुलाई Textbook Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
वस्त्र धोने से पूर्व आप क्या-क्या तैयारी करेंगे?
उत्तर-

  1. वस्त्रों की उधड़ी सिलाइयां लगा लेनी चाहिएं। यदि रफू, बटन, हुकों आदि की ज़रूरत हो तो लगा लो।
  2. वस्त्रों की जेबों आदि को देख लो, बैल्टें, बक्कल आदि उतार दो।
  3. वस्त्रों को रंग अनुसार, रेशे अनुसार, आकार अनुसार, गन्दगी अनुसार छांट कर अलग कर लो।
  4. यदि वस्त्रों पर कोई दाग धब्बे हैं तो पहले इन्हें दूर करो।

प्रश्न 2.
वस्त्रों को छांटने से आप क्या समझते हो?
उत्तर-
वस्त्रों को छांटने का अर्थ है कि वस्त्रों को उनके रंग, रेशे, आकार तथा गन्दगी के आधार पर अलग-अलग कर लेना क्योंकि सारे रेशे एक विधि से नहीं धोए जा सकते इसलिए सूती, ऊनी, रेशमी, नायलॉन, पालिएस्टर के अनुसार वस्त्र अलग कर लिये जाते हैं।
सफ़ेद वस्त्र रंगदार वस्त्रों से पहले धोने चाहिएं क्योंकि रंगदार वस्त्रों से कई बार रंग निकलने लगता है।
छोटे वस्त्र पहले धो लो तथा बड़े जैसे चादरें, खेस आदि को बाद में। कम गन्दे वस्त्र हमेशा पहले धोएं तथा अधिक गन्दे बाद में।

प्रश्न 3.
धोने से पूर्व वस्त्रों की मुरम्मत करनी क्यों जरूरी है?
उत्तर-
कई बार वस्त्र सिलाइयों से अथवा उलेड़ियों से उधड़ जाते हैं अथवा किसी चीज़ में फँसकर फट जाते हैं। ऐसी हालत में वस्त्रों को धोने से पहले मरम्मत कर लेनी चाहिए नहीं तो और फटने अथवा उधड़ने का डर रहता है।

PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 13 वस्त्रों की धुलाई

प्रश्न 4.
कौन-कौन सी बातों के आधार पर आप वस्त्रों को धोने से पहले छांटोगे?
उत्तर-
वस्त्रों की छंटाई उनके रंग, रेशों, आकार तथा गन्दगी के आधार पर की जाती है।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 5.
सूती वस्त्रों की धुलाई कैसी की जाती है?
उत्तर-

  1. पहले वस्त्र को कुछ समय के लिए भिगोकर रखा जाता है ताकि मैल उगल जाये। इस तरह साबुन, मेहनत तथा समय कम लगता है।
  2. कीटाणु रहित करने के लिए वस्त्रों को पानी में 10-15 मिनट के लिए उबाला जाता
  3. पहले से भीगे वस्त्रों को पानी से निकालकर निचोड़ा जाता है तथा साबुन अथवा अन्य किसी डिटर्जेंट आदि से वस्त्रों को रगड़कर, मलकर अथवा थापी से धोया जाता है। अधिक गन्दे हिस्से जैसे कालर, कफ आदि को ब्रुश आदि से रगड़कर साफ़ किया जाता है।
  4. उबालने अथवा साबुन वाले पानी से धोने के पश्चात् कपड़ों को साफ़ पानी से 24 बार खंगाल कर सारा पानी निकाल देना चाहिए। फिर उन्हें अच्छी तरह निचोड़ लो ।।
  5. आवश्यकतानुसार नील अथवा मावा आदि देकर वस्त्र निचोड़कर झाड़कर सूखने के लिए डाल दो।

प्रश्न 6.
ऊनी वस्त्र धोते समय बहुत सावधानी प्रयोग करने की ज़रूरत क्यों पड़ती है?
उत्तर-
ऊनी रेशे पानी में डालने से कमजोर हो जाते हैं तथा लटक जाते हैं। गर्म पानी में डालने पर तथा रगड़कर धोने से यह रेशे जुड़ जाते हैं । सोडे वाले साबुन से धोने पर भी यह रेशे जुड़ जाते हैं। इसलिए ऊनी वस्त्र धोते समय काफ़ी सावधानी की जरूरत होती है।
इनको धोते समय ध्यान रखो कि जितना भी पानी प्रयोग किया जाये सारे का तापमान एक-सा होना चाहिए। कभी भी गर्म पानी तथा सोडे वाले साबुन का प्रयोग न को धोने के वस्त्रों की धुलाई लिए वस्त्र को हाथ से धीरे-धीरे दबाते रहना चाहिए तथा ऊनी वस्त्र को लटकाकर सुखाना नहीं चाहिए। वस्त्र को समतल स्थान पर सीधा रखकर सुखाना चाहिए।

प्रश्न 7.
अपने ऊनी स्वैटर की धुलाई आप कैसे करोगे?
उत्तर-

  1. पहले स्वैटर से नर्म ब्रुश से ऊपरी मिट्टी झाड़ी जाती है।
  2. यदि स्वैटर ऐसा हो कि धोने के पश्चात् उसके बेढंगे हो जाने का डर हो तो धोने से पहले इसका खाका अखबार अथवा खाकी कागज़ पर उतार लेना चाहिए। ताकि धोने के पश्चात् इसको फिर से पहले आकार में लाया जा सके।
  3. पहले ऊनी वस्त्र को पानी में से डुबो कर निकाल लो तथा हाथों से दबाकर पानी निकाल दो। शिकाकाई, रीठे, जैनटिल अथवा लीसापोल को गुनगुने पानी में घोल कर झाग बना लो । फिर इस निचोड़े पानी को इस साबुन वाले पानी में हाथों से धीरे-धीरे दबाकर रगड़े बगैर साफ़ करो।
  4. वस्त्र को साफ़ पानी में धीरे-धीरे खंगालकर इस में से साबुन अच्छी तरह निकाल दो तथा अतिरिक्त पानी तौलिए में दबाकर निकाल लो।
  5. वस्त्र को बनाये हुए खाके पर रखकर इसके आकार में ले आयो तथा समतल स्थान जैसे-चारपाई पर वस्त्र बिछाकर इसके ऊपर सीधा डालकर छांव में सुखाओ।

प्रश्न 8.
भिगोने से सूती, ऊनी और रेशमी वस्त्रों में से कौन-कौन से कमज़ोर हो जाते हैं और इनका धोने से क्या सम्बन्ध है?
उत्तर-
भिगोने से ऊनी तथा रेशमी वस्त्र कमजोर हो जाते हैं जबकि सूती वस्त्र मज़बूत होते हैं। इनका धोने के साथ यह सम्बन्ध है कि ऊपर बताये कारण से सूती वस्त्रों को तो धोने से पहले कुछ समय के लिए भिगो कर रखा जाता है। परन्तु ऊनी तथा रेशमी वस्त्रों को भिगो कर नहीं रखा जाता।

प्रश्न 9.
ऐसी किस्म के वस्त्रों के बारे में बताओ जिन्हें उबाल कर धोया जा सकता है? ऐसे वस्त्र को धोते समय क्या-क्या सावधानियां बरतनी चाहिएं?
उत्तर-
सूती वस्त्रों को उबालकर धोया जा सकता है। इन वस्त्रों को धोते समय . निम्नलिखित सावधानियों की ज़रूरत है

  1. सिलाइयों से उधड़े अथवा किसी अन्य कारण से फटे वस्त्र को धोने से पहले मरम्मत कर लो।
  2. सूती, लिनन, ऊनी, नायलॉन, पॉलिएस्टर, रेशमी वस्त्रों को अलग-अलग कर लो।
  3. सफ़ेद वस्त्रों को पहले धोएं तथा रंगदार को बाद में।
  4. अधिक मैले वस्त्रों को बाद में धोएं।
  5. रोगी के वस्त्रों को 10-15 मिनट के लिए पानी में उबालो तथा बाद में धोएं।
  6. छोटे तथा बड़े वस्त्रों को अलग-अलग करके धोएं।

प्रश्न 10.
रेशमी वस्त्रों की धुलाई कैसे की जाती है?
उत्तर-

  1. रीठे, शिकाकाई अथवा जैनटिल को गुनगुने पानी में घोलकर झाग बनायो तथा इसमें वस्त्र को हाथों से धीरे-धीरे दबाकर धोएं तथा बाद पार पानी से 3-4 या खंगाल कर निकाल लो। वस्त्र को खंगालते समय एक चम्मच सिरका डाल लो । इससे वस्त्र में चमक आ जायेगी।
  2. धोने के पश्चात् रेशमी वस्त्र को गेहूँ का मावा दो ताकि इसकी प्राकृतिक ऐंठन कायम रखी जा सके।
  3. इन वस्त्रों को हमेशा छांव में सुखाएं। आधे सूखे वस्त्रों को इस्तरी करने के लिए उतार लो।

प्रश्न 11.
सूती, ऊनी और रेशमी वस्त्रों को इस्त्री करने में क्या अन्तर है?
उत्तर-
सूती वस्त्रों की प्रैस-सूखे वस्त्रों पर पानी छिड़ककर इन्हें नम कर लिया जाता है तथा कुछ समय के लिए लपेट कर रख दिया जाता है ताकि वस्त्र एक जैसे नम हो जाएं। जब प्रैस अच्छी तरह गर्म हो जाये तो वस्त्र के उल्टे तरफ पहले सिलाइयां, प्लीट, उलेड़ियों वाले फट्टे आदि प्रैस करो। वस्त्र की सीधी तरफ वस्त्र की लम्बाई की ओर प्रैस करो । कालर, कफ, बाजू आदि को पहले इस्तरी करो । प्रेस करने के पश्चात् वस्त्रों को तह लगा कर रख दें अथवा हैंगर पर टांग दें।
ऊनी वस्त्र की प्रेस-ऊनी वस्त्र पर प्रैस सीधी सम्पर्क में नहीं लाई जाती, इससे ऊनी रेशे जल जाते हैं। मलमल के एक सफ़ेद वस्त्र को गीला करके ऊनी वस्त्र पर बिछायो तथा हल्की गर्म प्रैस से उसको प्रैस करो। एक स्थान पर प्रैस 3-4 सैकिण्ड से अधिक न रखो। प्रैस करने के पश्चात् वस्त्र की तह लगा दो।
रेशमी वस्त्रों की इस्त्री-वस्त्रों को नम तौलिए में लपेटकर नम कर लो। पानी का छींटा देने से दाग पड़ सकते हैं। हल्की गर्म इस्त्री से इस्त्री करो । इस्तरी करने के पश्चात् यदि वस्त्र नम हों तो इन्हें सुखा लो तथा सूखने के बाद ही सम्भालो।

PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 13 वस्त्रों की धुलाई

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 12.
वस्त्र धोने से पूर्व क्या-क्या तैयारी करनी चाहिए? सूती वस्त्रों की धुलाई कैसे की जाती है?
उत्तर-
सूती वस्त्रों की प्रैस-सूखे वस्त्रों पर पानी छिड़ककर इन्हें नम कर लिया जाता है तथा कुछ समय के लिए लपेट कर रख दिया जाता है ताकि वस्त्र एक जैसे नम हो जाएं। जब प्रैस अच्छी तरह गर्म हो जाये तो वस्त्र के उल्टे तरफ पहले सिलाइयां, प्लीट, उलेड़ियों वाले फट्टे आदि प्रैस करो। वस्त्र की सीधी तरफ वस्त्र की लम्बाई की ओर प्रैस करो । कालर, कफ, बाजू आदि को पहले इस्तरी करो । प्रेस करने के पश्चात् वस्त्रों को तह लगा कर रख दें अथवा हैंगर पर टांग दें।
ऊनी वस्त्र की प्रेस-ऊनी वस्त्र पर प्रैस सीधी सम्पर्क में नहीं लाई जाती, इससे ऊनी रेशे जल जाते हैं। मलमल के एक सफ़ेद वस्त्र को गीला करके ऊनी वस्त्र पर बिछायो तथा हल्की गर्म प्रैस से उसको प्रैस करो। एक स्थान पर प्रैस 3-4 सैकिण्ड से अधिक न रखो। प्रैस करने के पश्चात् वस्त्र की तह लगा दो।
रेशमी वस्त्रों की इस्त्री-वस्त्रों को नम तौलिए में लपेटकर नम कर लो। पानी का छींटा देने से दाग पड़ सकते हैं। हल्की गर्म इस्त्री से इस्त्री करो । इस्तरी करने के पश्चात् यदि वस्त्र नम हों तो इन्हें सुखा लो तथा सूखने के बाद ही सम्भालो।

प्रश्न 13.
सूती और ऊनी वस्त्रों की धुलाई कैसे की जाती है? इन्हें धोते समय क्या-क्या सावधानियां बरतनी चाहिए?
उत्तर-
सूती वस्त्रों की प्रैस-सूखे वस्त्रों पर पानी छिड़ककर इन्हें नम कर लिया जाता है तथा कुछ समय के लिए लपेट कर रख दिया जाता है ताकि वस्त्र एक जैसे नम हो जाएं। जब प्रैस अच्छी तरह गर्म हो जाये तो वस्त्र के उल्टे तरफ पहले सिलाइयां, प्लीट, उलेड़ियों वाले फट्टे आदि प्रैस करो। वस्त्र की सीधी तरफ वस्त्र की लम्बाई की ओर प्रैस करो । कालर, कफ, बाजू आदि को पहले इस्तरी करो । प्रेस करने के पश्चात् वस्त्रों को तह लगा कर रख दें अथवा हैंगर पर टांग दें।
ऊनी वस्त्र की प्रेस-ऊनी वस्त्र पर प्रैस सीधी सम्पर्क में नहीं लाई जाती, इससे ऊनी रेशे जल जाते हैं। मलमल के एक सफ़ेद वस्त्र को गीला करके ऊनी वस्त्र पर बिछायो तथा हल्की गर्म प्रैस से उसको प्रैस करो। एक स्थान पर प्रैस 3-4 सैकिण्ड से अधिक न रखो। प्रैस करने के पश्चात् वस्त्र की तह लगा दो।
रेशमी वस्त्रों की इस्त्री-वस्त्रों को नम तौलिए में लपेटकर नम कर लो। पानी का छींटा देने से दाग पड़ सकते हैं। हल्की गर्म इस्त्री से इस्त्री करो । इस्तरी करने के पश्चात् यदि वस्त्र नम हों तो इन्हें सुखा लो तथा सूखने के बाद ही सम्भालो।

Home Science Guide for Class 9 PSEB वस्त्रों की धुलाई Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

रिक्त स्थान भरें

  1. ……………….. वस्त्रों को सीधा प्रैस के सम्पर्क में न लाएं।
  2. ………………. रेशे गर्म पानी में डालने से जुड़ जाते हैं।
  3. जुकाम वाले रूमाल को ……………….. मिले पानी में भिगोना चाहिए।
  4. सिल्क के वस्त्रों को …………………. में सुखाना चाहिए।

उत्तर-

  1. ऊनी,
  2. ऊनी,
  3. नमक,
  4. छाया।

एक शब्द में उत्तर दें

प्रश्न 1.
वस्त्रों को कलफ देने से क्या होता है?
उत्तर-
अकड़ाव आ जाता है।

प्रश्न 2.
ऊनी वस्त्र को कैसे नहीं सुखाना चाहिए?
उत्तर-
लटका कर।।

प्रश्न 3.
पहले कौन-से वस्त्र धोने चाहिए?
उत्तर-
सफेद।

ठीक/ग़लत बताएं

  1. सफ़ेद कपड़े पहले धोने चाहिए।
  2. ऊनी कपड़ों को लटका कर नहीं सूखाना चाहिए।
  3. सूती कपड़ों को पानी का छींटा देकर प्रेस करें।
  4. भिगोने से ऊनी कपड़े मज़बूत हो जाते हैं।
  5. रेशमी कपड़ों को धूप में ही सुखाना चाहिए।

उत्तर-

  1. ठीक,
  2. ठीक,
  3. ठीक,
  4. ग़लत,
  5. ग़लत।

बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
ठीक तथ्य हैं-
(A) कपड़े घर में तथा लांडरी में धुलाए जा सकते हैं
(B) ऊनी कपड़ों को सीधा प्रैस के सम्पर्क में न लाएं
(C) अधिक मैले कपड़ों को सदा अन्त में धोएं।
(D) सभी ठीक।
उत्तर-
(D) सभी ठीक।

प्रश्न 2.
ठीक तथ्य नहीं हैं
(A) धोने से पहले कपड़ों की मुरम्मत कर लेनी चाहिए
(B) ऊनी स्वैटर को तार पर लटका कर सुखाएं
(C) रेशमी कपड़ों को छांव में सुखाएं
(D) ऊनी कपड़ों को रीठा, शिकाकाई, जैनटिल आदि से धोना चाहिए।
उत्तर-
(B) ऊनी स्वैटर को तार पर लटका कर सुखाएं

वस्त्रों की धुलाई PSEB 9th Class Home Science Notes

  • वस्त्रों की अच्छी धुलाई से वस्त्र नये जैसे तथा स्वच्छ हो जाते हैं।
  • वस्त्र घर में अथवा लाऊण्डरी में धुलाए जा सकते हैं।
  • वस्त्र धोने से पहले इनकी मरम्मत, छंटाई तथा दाग़ उतारने का काम कर लेना चाहिए।
  • वस्त्रों की छंटाई रेशों, रंग, आकार तथा गन्दगी के अनुसार करनी चाहिए।
  • सूती वस्त्र पानी में भिगोने पर मज़बूत हो जाते हैं जबकि ऊनी तथा रेशमी वस्त्र पानी में भिगो कर रखने पर कमजोर हो जाते हैं।
  • सूती वस्त्रों को कीटाणु रहित करने के लिए उबलते पानी में 10-15 मिनट के लिए रखना चाहिए।
  • सफ़ेद वस्त्र पहले धोने चाहिएं।
  • सूती वस्त्रों को पानी का छींटा देकर प्रैस करो ।
  • ऊनी, रेशमी वस्त्रों को रीठा, शिकाकाई, जैंटील आदि से धोना चाहिए।
  • ऊनी वस्त्रों को लटका कर नहीं सुखाना चाहिए।
  • ऊनी वस्त्रों को सीधा प्रैस के सम्पर्क में न लायें।
  • रेशमी/ सिल्क के वस्त्र को पानी छिड़क कर नम न करो बल्कि किसी नम तौलिए में लपेटकर नम करो तथा प्रैस करो ।

PSEB 9th Class SST Solutions Civics Chapter 2 लोकतंत्र का अर्थ एवं महत्त्व

Punjab State Board PSEB 9th Class Social Science Book Solutions Civics Chapter 2 लोकतंत्र का अर्थ एवं महत्त्व Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 9 Social Science Civics Chapter 2 लोकतंत्र का अर्थ एवं महत्त्व

SST Guide for Class 9 PSEB लोकतंत्र का अर्थ एवं महत्त्व Textbook Questions and Answers

(क) रिक्त स्थान भरें :

  1. ……….. के अनुसार लोकतंत्र ऐसी प्रणाली है जिसमें प्रत्येक व्यक्ति की भागीदारी होती है।
  2. डेमोक्रेसी यूनानी भाषा के दो शब्दों ………. व ……… से मिलकर बना है।

उत्तर-

  1. सीले
  2. Demos, Crati

(ख) बहुविकल्पी प्रश्न :

प्रश्न 1.
लोकतंत्र की सफलता के लिए निम्नलिखित में से कौन-सी शर्त अनिवार्य है :
(अ) साक्षर नागरिक
(आ) चेतन नागरिक
(इ) वयस्क मताधिकार
(ई) उपर्युक्त सभी।
उत्तर-
(ई) उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 2.
लोकतंत्र का शाब्दिक अर्थ है-
(अ) एक व्यक्ति का शासन
(आ) नौकरशाही का शासन
(इ) सैनिक तानाशाही
(ई) लोगों का शासन।
उत्तर-
(ई) लोगों का शासन।

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(ग) निम्नलिखित कथनों में सही के लिए तथा गलत के लिए चिन्ह लगाए :

  1. लोकतंत्र में भिन्न-भिन्न विचार रखने की स्वतंत्रता नहीं होती।
  2. लोकतंत्र स्पष्ट रूप में हिंसात्मक साधनों के विरुद्ध है भले ही ये समाज की भलाई के लिए ही क्यों न अपनाए जाएं।
  3. लोकतंत्र में व्यक्तियों को कई प्रकार के अधिकार दिए जाते हैं।
  4. नागरिकों का चेतन होना लोकतंत्र के लिए अनिवार्य है।

उत्तर-

  1. (✗)
  2. (✓)
  3. (✓)
  4. (✓)

अति लघु उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
डेमोक्रेसी किन दो शब्दों से बना है ? उनके शाब्दिक अर्थ लिखें।
उत्तर-
डेमोक्रेसी यूनानी भाषा के दो शब्दों Demos तथा Cratia से मिलकर बना है। Demos का अर्थ है, जनता तथा Cratia का अर्थ है, शासन। इस प्रकार इसका शाब्दिक अर्थ हुआ जनता का शासन।

प्रश्न 2.
लोकतंत्र शासन प्रणाली के सर्वप्रिय होने के दो कारण लिखें।
उत्तर-

  1. इसमें जनता को अभिव्यक्ति का अधिकार होता है।
  2. इसमें सरकार चुनने में जनता की भागीदारी होती है।

प्रश्न 3.
लोकतंत्र के मार्ग में आने वाली दो बाधाएं लिखें।
उत्तर-
क्षेत्रवाद, जातिवाद तथा क्षेत्रवाद लोकतंत्र के मार्ग में आने वाली बाधाएं हैं।

प्रश्न 4.
लोकतंत्र की कोई एक परिभाषा लिखें।
उत्तर-
डाईसी के अनुसार, “लोकतंत्र सरकार का एक ऐसा रूप है जिसमें शासक दल समस्त राष्ट्र का तुलनात्मक रूप में एक बहुत बड़ा भाग होता है।”

प्रश्न 5.
लोकतंत्र के लिए कोई दो आवश्यक शर्ते (दशाएं) लिखें।
उत्तर-
राजनीतिक स्वतंत्रता तथा आर्थिक समानता लोकतंत्र की सफलता के लिए आवश्यक शर्ते हैं।

प्रश्न 6.
लोकतंत्र के कोई दो सिद्धांत लिखें।
उत्तर-

  1. लोकतंत्र सहिष्णुता के सिद्धांतों पर आधारित है।
  2. लोकतंत्र में सभी को अपने विचार व्यक्त करने का अधिकार होता है।

प्रश्न 7.
लोकतंत्र में शासन की शक्ति का स्रोत कौन होते हैं ?
उत्तर-
लोकतंत्र में शासन की शक्ति का स्रोत लोग होते हैं।

PSEB 9th Class SST Solutions Civics Chapter 2 लोकतंत्र का अर्थ एवं महत्त्व

प्रश्न 8.
लोकतंत्र के दो प्रकार कौन-कौन से हैं ?
उत्तर-
लोकतंत्र दो प्रकार का होता है-प्रत्यक्ष लोकतंत्र तथा अप्रत्यक्ष लोकतंत्र ।

लघु उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
लोकतंत्र की सफलता के लिए कोई दो अनिवार्य शर्तों का वर्णन करें।
उत्तर-

  1. राजनीतिक स्वतंत्रता-लोकतंत्र की सफलता के लिए जनता को राजनीतिक स्वतंत्रता होनी चाहिए। उन्हें भाषण देने, संघ बनाने, विचार व्यक्त करने तथा सरकार की अनुचित नीतियों की आलोचना करने का अधिकार होना चाहिए।
  2. नैतिक आचरण-लोकतंत्र को सफल बनाने के लिए लोगों का आचरण भी उच्च होना चाहिए। अगर लोग व नेता भ्रष्ट होंगे तो लोकतंत्र ठीक ढंग से कार्य नहीं कर पाएगा।

प्रश्न 2.
निर्धनता लोकतंत्र के मार्ग में बाधा कैसे बनती है ? वर्णन करें।
उत्तर-
इसमें कोई शक नहीं है कि निर्धनता लोकतंत्र के मार्ग में बाधा है। सबसे पहले तो निर्धन व्यक्ति अपने मत का प्रयोग ही नहीं करता क्योंकि उसके लिए मत का प्रयोग करने से अधिक आवश्यक है अपने परिवार के लिए पैसा कमाना। इसके साथ-साथ कई बार निर्धन व्यक्ति अपने मत को बेचने पर भी मजबूर हो जाता है। अमीर लोग निर्धन लोगों के मत खरीद कर चुनाव जीत लेते हैं। निर्धन व्यक्ति अपने विचारों को खुल कर अभिव्यक्त भी नहीं कर सकते।

प्रश्न 3.
निरक्षरता लोकतंत्र के मार्ग में बाधा कैसे बनती है। स्पष्ट करें।
उत्तर-
लोकतंत्र का सबसे बड़ा शत्रु तो निरक्षरता ही है। एक अनपढ़ व्यक्ति, जिसे लोकतंत्र का अर्थ भी नहीं पता होता, लोकतंत्र में कोई भूमिका नहीं निभा सकता। इस कारण लोकतांत्रिक मूल्यों का पतन होता है कि सभी लोग इसमें भाग लेते हैं। अनपढ़ व्यक्ति को देश की राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक समस्याओं के बारे में भी पता नहीं होता। इस कारण वह नेताओं के झूठे वायदों का शिकार बनकर अपने मत का ठीक ढंग से प्रयोग भी नहीं कर पाते।

प्रश्न 4.
“राजनीतिक समानता लोकतंत्र की सफलता के लिए ज़रूरी है।” इस कथन की व्याख्या करें।
उत्तर-
यह सत्य है कि राजनीतिक समानता लोकतंत्र की सफलता के लिए आवश्यक है। लोकतंत्र की सफलता के लिए यह आवश्यक है कि लोगों को भाषण देने की स्वतंत्रता होनी चाहिए, उन्हें एकत्र होने तथा संघ बनाने की भी स्वतंत्रता होनी चाहिए। इसके साथ-साथ उन्हें सरकार की गलत नीतियों की आलोचना करने तथा अपने विचारों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता भी होनी चाहिए। ये सब स्वतंत्रताएं केवल लोकतंत्र में ही प्राप्त होती है जिस कारण लोकतंत्र सफल हो पाता है।

PSEB 9th Class SST Solutions Civics Chapter 2 लोकतंत्र का अर्थ एवं महत्त्व

प्रश्न 5.
“राजनीतिक दलों का अस्तित्व लोकतंत्र के लिए जरूरी है।” इस कथन की व्याख्या करें।
अथवा
राजनीतिक दल लोकतंत्र की गाड़ी के पहिए होते हैं। इस कथन की व्याख्या करें।
उत्तर-
लोकतंत्र के लिए राजनीतिक दलों का अस्तित्व काफी आवश्यक है। वास्तव में राजनीतिक दल एक विशेष विचारधारा के यंत्र होते हैं तथा विचारों के अंतरों के कारण ही अलग-अलग राजनीतिक दल सामने आते है। अलगअलग विचारों को राजनीतिक दलों के द्वारा ही सामने लाया जाता है। इन विचारों को सरकार के सामने राजनीतिक दलों द्वारा ही रखा जाता है। इस प्रकार राजनीतिक दल जनता तथा सरकार के बीच एक सेतु का कार्य करते हैं। इसके अतिरिक्त चुनाव लड़ने के लिए भी राजनीतिक दलों की आवश्यकता होती है तथा चुनाव के लिए लोकतंत्र मुमकिन ही नहीं है।

प्रश्न 6.
शक्तियों का विकेंद्रीकरण लोकतंत्र के लिए क्यों जरूरी है ?
उत्तर-
लोकतंत्र का एक आधारभूत सिद्धांत है शक्तियों का विभाजन तथा विकेंद्रीकरण का अर्थ है शक्तियों का सरकार के सभी स्तरों में विभाजन। अगर शक्तियों का विकेंद्रीकरण नहीं होगा तो शक्तियां कुछेक हाथों या किसी एक समूह के हाथों में केंद्रित होकर रह जाएंगी। इससे देश में तानाशाही उत्पन्न होने का खतरा उत्पन्न हो जाएगा तथा लोकतंत्र खत्म हो जाएगा। अगर शक्तियों का विभाजन हो जाएगा तो तानाशाही नहीं हो पाएगी तथा व्यवस्था सुचारू रूप से कार्य कर पाएगी। इसलिए शक्तियों का विकेंद्रीकरण लोकतंत्र के लिए आवश्यक है।

प्रश्न 7.
लोकतंत्र के किन्हीं दो सिद्धांतों की व्याख्या करें।
उत्तर-

  1. लोकतंत्र सहिष्णुता के सिद्धांत पर आधारित है। लोकतंत्र में सभी को अपने विचार व्यक्त करने की स्वतंत्रता होती है।
  2. लोकतंत्र व्यक्ति के व्यक्तित्व के गौरव को विश्वसनीय बनाता है। इस वजह से ही लगभग लोकतांत्रिक देशों ने अपने नागरिकों को समानता प्रदान करने के लिए कई प्रकार के अधिकार दिए हैं।

PSEB 9th Class SST Solutions Civics Chapter 2 लोकतंत्र का अर्थ एवं महत्त्व

दीर्घ उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों का संक्षेप में वर्णन करें।
उत्तर-

  1. लोकतंत्र में सभी व्यक्तियों को अपने विचार प्रकट करने, आलोचना करने तथा अन्य लोगों से असहमत होने का अधिकार होता है।
  2. लोकतंत्र सहिष्णुता के सिद्धांत पर आधारित है। लोकतंत्र में सभी को अपने विचार व्यक्त करने की स्वतंत्रता होती है।
  3. लोकतंत्र व्यक्ति के व्यक्तित्व के गौरव को विश्वसनीय बनाता है। इस वजह से लगभग सभी लोकतांत्रिक देशों ने अपने नागरिकों को समानता प्रदान करने के लिए कई प्रकार के अधिकार दिए हैं।
  4. किसी भी लोकतंत्र में आंतरिक तथा अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों को सुलझाने के लिए शांतिपूर्ण तरीकों पर बल दिया जाता है।
  5. लोकतंत्र हिंसात्मक साधनों के प्रयोग पर बल नहीं देता भले ही यह समाज के हितों के लिए ही क्यों न किए जाएं।
  6. लोकतंत्र एक ऐसी प्रकार की सरकार है जिसके पास प्रभुसत्ता अर्थात् स्वयं निर्णय लेने की शक्ति होती है।
  7. लोकतंत्र बहुसंख्यकों का शासन होता है परंतु इसमें अल्पसंख्यकों को भी समान अधिकार दिए जाते हैं।
  8. लोकतांत्रिक ढंग से चुनी गई सरकार हमेशा संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार कार्य करती है।
  9. लोकतंत्र में सरकार एक जनप्रतिनिधित्व वाली सरकार होती है। जिसे जनता द्वारा चुना जाता है। जनता को अपने प्रतिनिधि को चुनने का अधिकार होता है।
  10. लोकतंत्र में चुनी गई सरकार को संवैधानिक प्रक्रिया द्वारा ही बदला जा सकता है। सरकार बदलने के लिए हम हिंसा का प्रयोग नहीं कर सकते।

प्रश्न 2.
लोकतंत्र के मार्ग में बाधाओं का संक्षेप में वर्णन करें।
उत्तर-
संपूर्ण विश्व में लोकतंत्र एक सर्वप्रचलित शासन व्यवस्था है परंतु इसके सफलतापूर्वक चलने के रास्ते में कुछ बाधाएं हैं जिनका वर्णन इस प्रकार है-

  1. जातिवाद तथा सांप्रदायिकता-अपनी जाति को बढ़ावा देना या अपने धर्म को अन्य धर्मों से ऊंचा समझना देश को तोड़ने का कार्य करता है जो लोकतंत्र के रास्ते में बाधा बनता है।
  2. क्षेत्रवाद-क्षेत्रवाद का अर्थ है अन्य क्षेत्रों या संपूर्ण देश की तुलना में अपने क्षेत्र को प्राथमिकता देना। इससे लोगों की मानसिकता संकीर्ण हो जाती है तथा वह राष्ट्रीय हितों को महत्त्व नहीं देते। इससे राष्ट्रीय एकता को खतरा उत्पन्न हो जाता है।
  3. अनपढ़ता-अनपढ़ता भी लोकतंत्र के रास्ते में एक बाधा है। एक अनपढ़ व्यक्ति को लोकतांत्रिक मूल्यों तथा अपनी वोट के महत्त्व का पता नहीं होता। अनपढ़ व्यक्ति या तो वोट देने नहीं जाते या फिर अपना वोट बेच देते हैं। इससे लोकतंत्र की सफलता पर संदेह होना शुरू हो जाता है।
  4. अस्वस्थ व्यक्ति-अगर देश की जनता अस्वस्थ अथवा बीमार होगी तो वह देश की प्रगति में कोई योगदान नहीं दे पाएगी। ऐसे व्यक्ति सार्वजनिक व राजनीतिक कार्यों में भी रुचि नहीं रखते।
  5. उदासीन जनता-अगर जनता उदासीन है तथा वह सामाजिक व राजनीतिक दायित्वों के प्रति कोई ध्यान नहीं देते तो वह निश्चय ही लोकतंत्र के रास्ते में बाधक हैं। वह अपने मताधिकार का भी ठीक ढंग से प्रयोग नहीं कर पाते। उनकी नेताओं का भाषण सुनने में भी कोई रुचि नहीं होती तथा यह बात ही लोकतंत्र के विरोध में जाती है।

प्रश्न 3.
लोकतंत्र की सफलता के लिए किन्हीं पांच शर्तों का वर्णन करें।
उत्तर-
लोकतंत्र में सफलतापूर्वक काम करने के लिए निम्नलिखित परिस्थितियों का होना आवश्यक समझा जाता

  1. जागरूक नागरिकता-जागरूक नागरिक प्रजातंत्र की सफलता की पहली शर्त है। निरंतर देख रेख ही स्वतंत्रता की कीमत है। नागरिक अपने अधिकार और कर्तव्यों के प्रति जागरूक होने चाहिए। सार्वजनिक मामलों पर हर नागरिक को सक्रिय भाग लेना चाहिए। राजनीतिक समस्याओं और घटनाओं के प्रति सचेत रहना चाहिए। राजनीतिक चुनाव में बढ़-चढ़ कर भाग लेना चाहिए आदि-आदि।
  2. प्रजातंत्र से प्रेम-प्रजातंत्र की सफलता के लिए यह आवश्यक है कि नागरिकों के दिलों में प्रजातंत्र के लिए प्रेम होना चाहिए। बिना प्रजातंत्र से प्रेम के प्रजातंत्र कभी सफल नहीं हो सकता।
  3. शिक्षित नागरिक-प्रजातंत्र की सफलता के लिए शिक्षित नागरिकों का होना आवश्यक है। शिक्षित नागरिक प्रजातंत्र शासन की आधारशिला है। शिक्षा से ही नागरिकों को अपने अधिकारों तथा कर्तव्यों का ज्ञान होता है। शिक्षित नागरिक शासन की जटिल समस्याओं को समझ सकते हैं और उनको सुलझाने के लिए सुझाव दे सकते हैं।
  4. प्रैस की स्वतंत्रता-प्रजातंत्र की सफलता के लिए प्रेस की स्वतंत्रता आवश्यक है। 5. सामाजिक समानता-प्रजातंत्र की सफलता के लिए सामाजिक समानता की भावना का होना आवश्यक है।

PSEB 9th Class SST Solutions Civics Chapter 2 लोकतंत्र का अर्थ एवं महत्त्व

प्रश्न 4.
लोकतांत्रिक शासन प्रणाली की एक परिभाषा दें तथा लोकतंत्र के महत्त्व का संक्षेप में वर्णन करें।
उत्तर-
साधारण शब्दों में लोकतंत्र ऐसी शासन प्रणाली है जिसमें शासकों का चुनाव लोगों द्वारा किया जाता है।

  1. प्रो० डायसी के अनुसार, “प्रजातंत्र ऐसी शासन प्रणाली है, जिसमें शासक वर्ग समाज का अधिकांश भाग हो।”
  2. लोकतंत्र की बहुत सुंदर, सरल तथा लोकप्रिय परिभाषा अमेरिका के भूतपूर्व राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन ने दी है”प्रजातंत्र जनता की, जनता के लिए और जनता द्वारा सरकार है।”

लोकतंत्र का महत्त्व-आजकल के समय में लगभग सभी देशों में लोकतांत्रिक सरकार है तथा इस कारण ही लोकतंत्र का महत्त्व काफी बढ़ जाता है। लोकतंत्र का महत्त्व इस प्रकार है-

  1. समानता-लोकतंत्र में किसी प्रकार का भेदभाव नहीं किया जाता क्योंकि यह समानता पर आधारित होता है। इसके अमीर, गरीब सभी को एक समान अधिकार दिए जाते हैं तथा सभी के वोट का मूल्य एक समान होता है।
  2. जनमत का प्रतिनिधित्व-लोकतंत्र वास्तव में सम्पूर्ण जनता का प्रतिनिधित्व करता है। लोकतांत्रिक सरकार जनता द्वारा चुनी जाती है तथा सरकार लोगों की इच्छा के अनुसार ही कानून बनाती है। अगर सरकार जनमत के अनुसार कार्य नहीं करती तो जनता उसे बदल भी सकती है।
  3. व्यक्तिगत स्वतंत्रता का रक्षक-केवल लोकतंत्र ही ऐसी सरकार है जिसमें जनता की व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा की जाती है। लोकतंत्र में सभी को अपने विचार व्यक्त करने, आलोचना करने तथा संघ बनाने की पूर्ण स्वतंत्रता होती है। लोकतंत्र में तो प्रेस की स्वतंत्रता को भी संभाल कर रखा जाता है जिसे लोकतंत्र का पहरेदार माना जाता है।
  4. राजनीतिक शिक्षा-लोकतंत्र में लगातार चुनाव होते रहते हैं, जिससे जनता को समय-समय पर राजनीतिक शिक्षा मिलती रहती है। अलग-अलग राजनीतिक दल जनमत का निर्माण करते हैं, जनता को सरकार के कार्यों के बारे में बताते है तथा सरकार का मूल्यांकन करते रहते हैं। इससे जनता में राजनीतिक चेतना का भी विकास होता है।
  5. नैतिक गुणों का विकास-शासन की सभी व्यवस्थाओं में से केवल लोकतंत्र ही है जो जनता में नैतिक गुणों का विकास करता है तथा उनके आचरण के उत्थान में सहायता करता है। यह व्यवस्था ही जनता में सहयोग, सहनशीलता जैसे गुणों का विकास करती है।

PSEB 9th Class Social Science Guide लोकतंत्र का अर्थ एवं महत्त्व Important Questions and Answers

बहुविकल्पीय प्रश्न :

प्रश्न 1.
तानाशाही सरकार निम्नलिखित में से किस देश में पाई जाती है?
(क) उत्तरी कोरिया
(ख) भारत।
(ग) रूस
(घ) नेपाल।
उत्तर-
(क) उत्तरी कोरिया

प्रश्न 2.
प्रजातंत्र में निर्णय लिए जाते हैं-
(क) सर्वसम्मति से
(ख) दो-तिहाई बहुमत से
(ग) गुणों के आधार पर
(घ) बहुमत से।
उत्तर-
(घ) बहुमत से।

प्रश्न 3.
यह किसने कहा है, “प्रजातंत्र ऐसा शासन है जिसमें प्रत्येक व्यक्ति भाग लेता है।”
(क) लॉर्ड ब्राइस
(ख) डॉ० गार्नर
(ग) प्रो० सीले
(घ) प्रो० लॉस्की।
उत्तर-
(ग) प्रो० सीले

प्रश्न 4.
यह किसने कहा है, “प्रजातंत्र जनता की, जनता के लिए और जनता द्वारा सरकार है।”
(क) अब्राहम लिंकन
(ख) वाशिंगटन
(ग) जैफरसन
(घ) प्रो० डायसी।
उत्तर-
(क) अब्राहम लिंकन

PSEB 9th Class SST Solutions Civics Chapter 2 लोकतंत्र का अर्थ एवं महत्त्व

प्रश्न 5.
जिस शासन प्रणाली में शासकों का चुनाव जनता द्वारा किया जाता है, उसे क्या कहा जाता है ?
(क) अधिनायकतंत्र
(ख) राजतंत्र
(ग) लोकतंत्र
(घ) कुलीनतंत्र।
उत्तर-
(ग) लोकतंत्र

प्रश्न 6.
निम्न में से कौन-सी लोकतंत्र की विशेषता नहीं है ?
(क) लोकतंत्र जनता का राज है
(ख) संसद् सेना के अधीन होती है
(ग) लोकतंत्र में शासक जनता द्वारा चुने जाते हैं
(घ) लोकतंत्र में चुनाव स्वतंत्र एवं निष्पक्ष होते हैं।
उत्तर-
(ख) संसद् सेना के अधीन होती है

प्रश्न 7.
निम्न में से किस देश में लोकतंत्र है ?
(क) उत्तरी कोरिया
(ख) चीन
(ग) साऊदी अरब
(घ) स्विट्ज़रलैंड।
उत्तर-
(घ) स्विट्ज़रलैंड।

प्रश्न 8.
लोकतंत्र के लिए निम्न में से किस तत्त्व का होना अनिवार्य है?
(क) एक दलीय प्रणाली
(ख) स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव
(ग) अनियमित चुनाव
(घ) प्रैस पर सरकारी नियंत्रण।
उत्तर-
(घ) प्रैस पर सरकारी नियंत्रण।

प्रश्न 9.
निम्न में से कौन-सी लोकतंत्र की विशेषता नहीं है ?
(क) स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव
(ख) वयस्क मताधिकार
(ग) निर्णय लेने की अंतिम शक्ति जनता के निर्वाचित प्रतिनिधियों के पास
(घ) सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग।
उत्तर-
(घ) सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग।

रिक्त स्थान भरें :

  1. Demos तथा Cratia …………. भाषा के शब्द हैं।
  2. ……… में शासक जनता के प्रतिनिधि के रूप में शासन चलाते हैं।
  3. राजनीतिक दल ………. के यंत्र हैं।
  4. व्यावहारिक रूप में लोकतंत्र ………. का शासन होता है।
  5. सन् ……….. में भारत में महिलाओं को पुरुषों के समान अधिकार प्राप्त हो गए।
  6. चीन में प्रत्येक …….. वर्ष के बाद चुनाव होते हैं।
  7. मैक्सिको ……… में स्वतंत्र हुआ।

उत्तर-

  1. यूनानी
  2. लोकतंत्र
  3. विचारधारा
  4. बहुसंख्यक
  5. 1950
  6. पांच
  7. 19301

सही/गलत:

  1. तानाशाही में शासक जनता द्वारा निर्वाचित किए जाते हैं।
  2. चुनाव करने की स्वतंत्रता ही लोकतंत्र का मूल आधार है।
  3. लोकतांत्रिक सरकार संविधान के अनुसार कार्य नहीं करती है।
  4. तानाशाही में व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा की जाती है।।
  5. परवेज मुशर्रफ ने 1999 ई० में पाकिस्तान में सत्ता संभाल ली थी।
  6. चीन में केवल एक राजनीतिक दल साम्यवादी दल है।
  7. PRI चीन का राजनीतिक दल है। ।

उत्तर-

  1. (✗)
  2. (✓)
  3. (✗)
  4. (✗)
  5. (✓)
  6. (✓)
  7. (✗).

PSEB 9th Class SST Solutions Civics Chapter 2 लोकतंत्र का अर्थ एवं महत्त्व

अति लघु उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
डेमोक्रेसी शब्द किस भाषा से लिया गया है?
उत्तर-
यूनानी भाषा से।

प्रश्न 2.
ग्रीक भाषा के शब्द डिमोस (Demos) का अर्थ लिखें।
उत्तर-
डिमोस का अर्थ है लोग।

प्रश्न 3.
ग्रीक भाषा के शब्द ‘क्रेटिया’ का अर्थ लिखें।
उत्तर-
क्रेटिया का अर्थ है शासन।

प्रश्न 4.
‘डैमोक्रेसी’ का शाब्दिक अर्थ लिखें।
उत्तर-
जनता का शासन।

प्रश्न 5.
लोकतंत्र की साधारण परिभाषा लिखें।
उत्तर-
लोकतंत्र एक ऐसी शासन प्रणाली है जिसमें शासकों का चुनाव जनता द्वारा किया जाता है।

प्रश्न 6.
क्या नेपाल में लोकतंत्र है? अपने उत्तर के पक्ष में एक तर्क लिखें।
उत्तर-
नेपाल में लोकतंत्र है क्योंकि लोगों को अपनी सरकार चुनने का अधिकार है।

प्रश्न 7.
लोकतंत्र की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता लिखें।
उत्तर-
लोकतंत्र, स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव पर आधारित होना चाहिए।

प्रश्न 8.
सऊदी अरब में लोकतंत्र न होने का कारण लिखें।
उत्तर-
सऊदी अरब का राजा जनता द्वारा निर्वाचित नहीं है।

प्रश्न 9.
लोकतांत्रिक शासन प्रणाली का एक गुण लिखें।
उत्तर-
लोकतंत्र में नागरिकों को अधिकार एवं स्वतंत्रताएं प्राप्त होती हैं।

प्रश्न 10.
लोकतंत्र का एक दोष लिखें।
उत्तर-
लोकतंत्र में गुणों की अपेक्षा संख्या को अधिक महत्त्व दिया जाता है।

प्रश्न 11.
लोकतंत्र की एक परिभाषा लिखें।
उत्तर-
प्रो० सीले के अनुसार, “प्रजातंत्र ऐसा शासन है जिसमें प्रत्येक व्यक्ति भाग लेता है।”

PSEB 9th Class SST Solutions Civics Chapter 2 लोकतंत्र का अर्थ एवं महत्त्व

प्रश्न 12.
लोकतंत्र की सफलता के लिए दो आवश्यक शर्ते लिखें।
उत्तर-

  1. जागरूक नागरिकता प्रजातंत्र की सफलता की प्रथम शर्त है।
  2. प्रजातंत्र की सफलता के लिए यह आवश्यक है कि नागरिकों के दिलों में प्रजातंत्र के लिए प्रेम होना चाहिए।

प्रश्न 13.
जब शासन की सभी शक्तियां एक व्यक्ति में केंद्रित हों तो उस शासन प्रणाली को क्या कहा जाता है?
उत्तर-
तानाशाही।

प्रश्न 14.
वर्तमान युग में लोकतंत्र का कौन-सा रूप प्रचलित है?
उत्तर-
प्रतिनिधित्व लोकतंत्र अथवा अप्रत्यक्ष लोकतंत्र।

प्रश्न 15.
प्रतिनिधित्व लोकतंत्र की एक विशेषता लिखें।
उत्तर-
प्रतिनिधित्व लोकतंत्र में लोगों के निर्वाचित प्रतिनिधि शासन चलाते हैं।

प्रश्न 16.
तानाशाही की एक विशेषता लिखें।
उत्तर-
तानाशाही में एक व्यक्ति या एक पार्टी का शासन होता है। सभी नागरिकों को शासन में भाग लेने का अधिकार प्राप्त नहीं होता।

प्रश्न 17.
“लोकतंत्र अन्य सभी शासन प्रणालियों से उत्तम है।” एक कारण बताओ।
उत्तर-
लोकतंत्र अन्य शासन प्रणालियों से श्रेष्ठ है क्योंकि यह अधिक उत्तरदायी शासन प्रणाली है और लोगों की आवश्यकताओं एवं हितों का भी ध्यान रखा जाता है।

प्रश्न 18.
क्या मैक्सिको (Mexico) में लोकतंत्र है? अपने उत्तर के पक्ष में एक तर्क लिखें।
उत्तर-
मैक्सिको में लोकतंत्र नहीं है क्योंकि वहां पर चुनाव स्वतंत्र एवं निष्पक्ष नहीं होते।

प्रश्न 19.
किन्हीं दो देशों का नाम लिखें जहाँ पर लोकतंत्र नहीं पाया जाता।
उत्तर-

  1. चीन
  2. उत्तरी कोरिया।

प्रश्न 20.
चीन में सदैव किस पार्टी की सरकार बनती है ?
उत्तर-
चीन में सदैव साम्यवादी पार्टी की सरकार बनती है।

प्रश्न 21.
मैक्सिको में 1930 से 2000 तक किस पार्टी को जीत मिलती रही ?
उत्तर-
मैक्सिको में 1930 से 2000 तक पी० आर० आई० (इंस्टीट्यूशनल रिवोल्यूशनरी पार्टी) को ही जीत मिलती रही।

प्रश्न 22.
फिजी के लोकतंत्र में क्या कमी है ?
उत्तर-
फिजी में फिजीअन लोगों के वोट की कीमत भारतीय लोगों के वोट की कीमत से अधिक होती है।

लघु उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
लोकतंत्र का अर्थ बताओ।
उत्तर-
लोकतंत्र (Democracy) ग्रीक भाषा के दो शब्दों डिमोस (Demos) और क्रेटिया (Cratia) से मिल कर बना है। डिमोस का अर्थ है ‘लोग’ और ‘क्रेटिया’ का अर्थ है ‘शासन’ या सत्ता। इस प्रकार डेमोक्रेसी का शाब्दिक अर्थ है वह शासन जिसमें शासन या सत्ता लोगों के हाथों में हो। दूसरे शब्दों में, लोकतंत्र का अर्थ है प्रजा का शासन।

प्रश्न 2.
प्रत्यक्ष प्रजातंत्र किसे कहते हैं?
उत्तर-
प्रत्यक्ष प्रजातंत्र ही प्रजातंत्र का वास्तविक रूप है। जब जनता स्वयं कानून बनाए, राजनीति को निश्चित करे तथा सरकारी कर्मचारियों पर नियंत्रण रखे, उस व्यवस्था को प्रत्यक्ष प्रजातंत्र कहते हैं। समय-समय पर समस्त नागरिकों की सभा एक स्थान पर बुलाई जाती है और उनमें सार्वजनिक मामलों पर विचार होता है। गांव की ग्राम सभा प्रत्यक्ष प्रजातंत्र का सरल उदाहरण है।

प्रश्न 3.
तानाशाही का अर्थ एवं परिभाषा लिखें।
उत्तर-
तानाशाही में शासन की सत्ता एक व्यक्ति में निहित होती है। तानाशाह अपनी शक्तियों का प्रयोग अपनी इच्छानुसार करता है और वह किसी के प्रति उत्तरदायी नहीं होता। वह तब तक अपने पद पर बना रहता है जब तक शासन की शक्ति उसके हाथों में रहती है। फोर्ड ने तानाशाही की परिभाषा देते हुए कहा है, “तानाशाही राज्य के अध्यक्ष द्वारा गैर-कानूनी शक्ति प्राप्त करना है।”

प्रश्न 4.
तानाशाही की चार विशेषताएँ लिखें।
उत्तर-

  1. राज्य की निरंकुशता-राज्य निरंकुश होता है। तानाशाह की शक्तियां असीमित होती हैं।
  2. एक नेता का गुण-गान-तानाशाही में नेता का गुण-गान किया जाता है। नेता में पूर्ण विश्वास किया जाता है और उसे राष्ट्रीय एकता का प्रतीक माना जाता है।
  3. राजनीतिक दल का अभाव या एक-दलीय व्यवस्था-तानाशाही शासन व्यवस्था में या तो कोई राजनीतिक दल नहीं होता या एक ही दल होता है।
  4. अधिकारों और स्वतंत्रताओं का न होना-तानाशाही में नागरिकों को अधिकारों तथा स्वतंत्रताओं से वंचित कर दिया जाता है।

प्रश्न 5.
लोकतांत्रिक शासन प्रणाली और अलोकतांत्रिक शासन प्रणाली में दो अंतर लिखें।
उत्तर-

  1. लोकतांत्रिक शासन प्रणाली में शासन जनता के निर्वाचित प्रतिनिधियों द्वारा चलाया है। अलोकतांत्रिक शासन में शासन एक व्यक्ति या एक पार्टी द्वारा चलाया जाता है।
  2. लोकतांत्रिक शासन प्रणाली में चुनाव नियमित, स्वतंत्र व निष्पक्ष होना अनिवार्य है। अलोकतांत्रिक शासन प्रणाली में चुनावों का होना आवश्यक नहीं है। यदि चुनाव होते हैं तो स्वतंत्र व निष्पक्ष नहीं होते।

PSEB 9th Class SST Solutions Civics Chapter 2 लोकतंत्र का अर्थ एवं महत्त्व

प्रश्न 6.
लोकतंत्र के मार्ग में आने वाली किन्हीं दो बाधाओं का वर्णन करें।
उत्तर-

  1. अनपढ़ता-लोकतंत्र के मार्ग की सबसे बड़ी बाधा अनपढ़ता है। अनपढ़ता के कारण स्वस्थ जनमत का निर्माण नहीं हो पाता। अशिक्षित व्यक्ति को न तो अधिकारों का ज्ञान होता है और न कर्त्तव्यों का। वह मताधिकार का महत्त्व नहीं समझ पाता।
  2. सामाजिक असमानता-लोकतंत्र की दूसरी गंभीर बाधा सामाजिक असमानता है। सामाजिक असमानता ने लोगों में निराशा तथा असंतोष को बढ़ावा दिया है। राजनीतिक दल सामाजिक असमानता का लाभ उठाने का प्रयास करते हैं।

प्रश्न 7.
“एक व्यक्ति एक वोट’ से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
‘एक व्यक्ति एक वोट’ से अभिप्राय जाति, धर्म, वर्ग, लिंग तथा वंश के भेदभाव के बिना सभी को मताधिकार का समान अधिकार प्रदान करना। वास्तव में एक व्यक्ति एक वोट राजनीतिक समानता का ही दूसरा नाम हैं। राष्ट्र निर्माण एवं राष्ट्रीय एकता के लिए एक व्यक्ति एक वोट का अधिकार आवश्यक है।

प्रश्न 8.
पाकिस्तान में लोकतंत्र को कैसे खत्म किया गया ?
उत्तर-
1999 में पाकिस्तान के सेना प्रमुख परवेज मुशर्रफ ने सैनिक षड्यंत्र करके लोकतांत्रिक सरकार को खत्म करके सत्ता हथिया ली। संसद् द्वारा प्रांतों की असैंबलियों की शक्तियां भी कम कर दी गई। एक कानून पास करके स्वयं को राष्ट्रपति घोषित कर दिया तथा व्यवस्था कर दी कि राष्ट्रपति जब चाहे संसद् को भंग कर सकता है। इस प्रकार वहां पर मुशर्रफ ने पाकिस्तान में लोकतंत्र को खत्म कर दिया।

प्रश्न 9.
चीन में लोकतंत्र क्यों नहीं है ?
उत्तर-चाहे चीन में प्रत्येक पांच वर्ष के पश्चात् चुनाव होते हैं परंतु वहां पर केवल एक राजनीतिक दल साम्यवादी दल है। लोगों को केवल उस दल को ही वोट देना पड़ता है। साम्यवादी दल द्वारा मनोनीत उम्मीदवार ही चुनाव लड़ सकते हैं। संसद् के कुछ सदस्य सेना से भी लिए जाते हैं। जिस देश में कोई विरोधी दल या चुनाव लड़ने के लिए दूसरा दल न हो वहां पर लोकतंत्र हो ही नहीं सकता है।

दीर्घ उत्तरों वाले प्रश्

प्रश्न 1.
लोकतंत्र की मुख्य विशेषताएं लिखें।
उत्तर-
लोकतंत्र की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं-

  1. जनता की प्रभुसत्ता-प्रजातंत्र में प्रभुसत्ता जनता में निहित होती है और जनता ही शक्ति का स्रोत होती है।
  2. जनता का शासन-प्रजातंत्र में शासन जनता द्वारा प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष तौर पर चलाया जाता है। प्रजातंत्र में प्रत्येक निर्णय बहुमत से लिया जाता है।
  3. जनता का हित-प्रजातंत्र में शासन जनता के हित के लिए चलाया जाता है।
  4. समानता-समानता प्रजातंत्र का मूल आधार है। प्रजातंत्र में प्रत्येक मनुष्य को समान समझा जाता है। जन्म, जाति, शिक्षा, धन आदि के आधार पर मनुष्यों में भेद-भाव नहीं किया जाता। सभी मनुष्यों को समान राजनीतिक अधिकार प्राप्त होता है। कानून के सामने सभी व्यक्ति समान होते हैं।
  5. वयस्क मताधिकार-प्रत्येक वयस्क नागरिक को एक वोट डालने का अधिकार होना चाहिए। प्रत्येक वोट का मूल्य एक ही होना चाहिए।
  6. निर्णय लेने की शक्ति-निर्णय लेने की अंतिम शक्ति जनता के निर्वाचित प्रतिनिधियों के पास होनी चाहिए।
  7. स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव-लोकतंत्र में चुनाव स्वतंत्र एवं निष्पक्ष होने चाहिए ताकि सत्ता में बैठे लोग भी चुनाव हार सकें।
  8. कानून का शासन-लोकतंत्र में कानून का शासन होता है। सभी कानून के सामने समान होते हैं। कानून सर्वोत्तम होता है।

प्रश्न 2.
लोकतंत्र के गुण लिखें।
उत्तर-
प्रजातंत्र में निम्नलिखित गुण पाये जाते हैं-

  1. यह सर्वसाधारण के हितों की रक्षा करता है-प्रजातंत्र की यह सबसे बड़ी विशेषता है कि इसमें राज्य के किसी विशेष वर्ग के हितों की रक्षा न करके समस्त जनता के हितों की रक्षा की जाती है। प्रजातंत्र में शासक सत्ता को एक अमानत मानते हैं और उसका प्रयोग सार्वजनिक कल्याण के लिए किया जाता है।
  2. यह जनमत पर आधारित है-प्रजातंत्र शासन जनमत पर आधारित है अर्थात् शासन जनता की इच्छानुसार चलाया जाता है। जनता अपने प्रतिनिधियों को निश्चित अवधि के लिए चुनकर भेजती है। यदि प्रतिनिधि जनता की इच्छानुसार शासन नहीं चलाते तो उन्हें दोबारा नहीं चुना जाता है। इस शासन प्रणाली में सरकार जनता की इच्छाओं की ओर विशेष ध्यान देती है।
  3. यह समानता के सिद्धांत पर आधारित है-प्रजातंत्र में सभी नागरिकों को समान माना जाता है। किसी भी व्यक्ति को जाति, धर्म, लिंग के आधार पर कोई विशेष अधिकार नहीं दिये जाते। प्रत्येक वयस्क को बिना भेदभाव के मतदान, चुनाव लड़ने तथा सार्वजनिक पद प्राप्त करने का समान अधिकार प्राप्त है। सभी मनुष्यों को कानून के सामने समान माना जाता है।
  4. राजनीतिक शिक्षा-लोकतंत्र में नागरिकों को अन्य शासन प्रणालियों की अपेक्षा अधिक राजनीतिक शिक्षा मिलती है।
  5. क्रांति का डर नहीं-लोकतंत्र में क्रांति की संभावना बहुत कम होती है।
  6. नागरिकों के गौरव में वृद्धि-लोकतंत्र में नागरिकों के गौरव में वृद्धि होती है।
  7. विवादों एवं मतभेदों का हल-लोकतंत्र में विवादों और मतभेदों को दूर किया जाता है। सभी समस्याओं का हल शांतिपूर्ण तरीकों से किया जाता है।

प्रश्न 3.
लोकतंत्र के मुख्य दोष लिखें।
उत्तर-
जहां एक ओर लोकतंत्र में इतने गुण पाए जाते हैं वहीं दूसरी ओर इसमें निम्नलिखित अवगुण भी पाए जाते

  1. यह अज्ञानियों, अयोग्य तथा मूल् का शासन है-प्रजातंत्र को अयोग्यता की पूजा बताया जाता है। इसका कारण यह है कि जनता में अधिकांश व्यक्ति अयोग्य, मूर्ख, अज्ञानी तथा अनपढ़ होते हैं।
  2. यह गुणों के स्थान पर संख्या को अधिक महत्त्व देता है-प्रजातंत्र में गुणों की अपेक्षा संख्या को अधिक महत्त्व दिया जाता है। यदि किसी विषय को 60 मूर्ख ठीक कहें और 59 बुद्धिमान गलत कहें तो मूल् की ही बात को माना जाएगा। इस प्रकार लोकतंत्र में मूों का शासन होता है।
  3. यह उत्तरदायी शासन नहीं है-वास्तव में प्रजातंत्र अनुत्तरदायी शासन है। इसमें नागरिक केवल चुनाव वाले दिन ही संप्रभु होते हैं। परंतु चुनावों के पश्चात् नेता जानते हैं कि जनता उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकती अतः अपनी मनमानी करते हैं।
  4. यह बहुत खर्चीला है-लोकतंत्र में आम चुनावों का प्रबंध पर बहुत धन खर्च हो जाता है।
  5. अमीरों का शासन-लोकतंत्र कहने को तो प्रजा का शासन है परंतु वास्तव में यह अमीरों का शासन है।
  6. अस्थायी तथा कमजोर शासन-लोकतंत्र में नेतृत्व में शीघ्र परिवर्तन होने के कारण सरकार अस्थायी तथा कमज़ोर होती है। बहु-दलीय प्रणाली के अंतर्गत किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत प्राप्त न होने के कारण मिली-जुली सरकार बनाई जाती है। मिली-जुली सरकार अस्थायी और कमजोर होती है।
  7. भ्रष्टाचार-लोकतंत्र में भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता है।
  8. नैतिक स्तर में गिरावट-चुनाव में विजयी होने के लिए सभी तरह के साधनों का प्रयोग किया जाता है जिससे नैतिक स्तर में गिरावट आती है।

प्रश्न 4.
क्या आप इस विचार से सहमत हैं कि लोकतंत्र सर्वश्रेष्ठ शासन प्रणाली है? अपने उत्तर के पक्ष में तर्क दें।
उत्तर-
वर्तमान युग में संसार के अधिकांश देशों में लोकतंत्र पाया जाता है। लोकतंत्र को स्वतंत्र, कुलीनतंत्र, तानाशाही इत्यादि शासन प्रणालियों से निम्नलिखित कारणों से उत्तम माना जाता है।

  1. लोगों के हितों की रक्षा-लोकतंत्र अन्य शासन प्रणालियों से उत्तम है क्योंकि इसमें जनता की आवश्यकताओं की पूर्ति की जाती है। लोकतंत्र में किसी विशेष वर्ग के हितों की रक्षा न करके समस्त जनता के हितों की रक्षा की जाती है।
  2. जनमत पर आधारित-लोकतंत्र ही एक ऐसी शासन प्रणाली है जो जनमत पर आधारित है। शासन जनता की इच्छानुसार चलाया जाता है।
  3. उत्तरदायी शासन-लोकतंत्र श्रेष्ठ है क्योंकि लोकतंत्र में सरकार अपने समस्त कार्यों के लिए जनता के प्रति उत्तरदायी होती है। जो सरकार लोगों के हितों की रक्षा नहीं करती उसे बदल दिया जाता है।
  4. नागरिकों के गौरव में वृद्धि-लोकतंत्र ही एक ऐसी शासन प्रणाली है जिसमें नागरिकों के गौरव में वृद्धि होती है। सभी नागरिकों को समान राजनीतिक अधिकार प्राप्त होते हैं। जब एक आम नागरिक के घर बड़े-बड़े नेता वोट मांगने आते हैं तो उससे उसके गौरव की वृद्धि होती है।
  5. समानता पर आधारित-सभी नागरिकों को शासन में भाग लेने का समान अधिकार प्राप्त होता है और कानून के सामने भी सभी नागरिकों को समान माना जाता है।
  6. विचार-विमर्श एवं वाद-विवाद-लोकतंत्र में अच्छे निर्णय लिए जाते हैं, क्योंकि सभी निर्णय विचारविमर्श और वाद-विवाद से लिए जाते हैं।
  7. आलोचना का अधिकार-प्रजातंत्र में सरकार की आलोचना करने का अधिकार प्राप्त होता है।
  8. निर्णयों पर पुनर्विचार-लोकतंत्र अन्य शासन प्रणालियों से उत्तम है क्योंकि इसमें गलत निर्णयों को बदलना आसान है। लोकतंत्र में भी गलत निर्णय हो सकते हैं पर सार्वजनिक वाद-विवाद के बाद उन्हें बदला जा सकता है।

प्रश्न 5.
मैक्सिको में कैसे लोकतंत्र का दमन किया जाता रहा है ?
उत्तर-
मैक्सिको को 1930 में स्वतंत्रता प्राप्त हुई तथा वहां प्रत्येक 6 वर्ष के पश्चात् राष्ट्रपति के चुनाव होते थे। परंतु सन् 2000 तक वहां केवल PRI (संस्थागत क्रांतिकारी दल) ही चुनाव जीतती आई है। इसके कुछ कारण हैं जैसे कि

  1. PRI शासित दल होने के कारण कुछ अनुचित साधनों का प्रयोग करती थी ताकि चुनाव जीते जा सकें।
  2. सरकारी अधिकारियों व कर्मचारियों को पार्टी की सभाओं में मौजूद रहने के लिए बाध्य किया जाता था।
  3. सरकारी अध्यापकों को अपने विद्यार्थियों के माता-पिता को PRI के पक्ष में वोट देने के लिए कहने को कहा जाता था।
  4. अंतिम क्षणों में मतदान वाले दिन मतदान केंद्र ही बदल दिया जाता था ताकि लोग वोट ही न दे पाएं। इस प्रकार वहां पर निष्पक्ष मतदान नहीं हो पाते थे तथा लोकतंत्र का दमन किया जाता था।

PSEB 9th Class SST Solutions Civics Chapter 2 लोकतंत्र का अर्थ एवं महत्त्व

लोकतंत्र का अर्थ एवं महत्त्व PSEB 9th Class Civics Notes

  • लोकतंत्र एक प्रकार की सरकार है जिसे जनता द्वारा एक निश्चित समय के लिए सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार से चुना जाता है।
  • लोकतंत्र अंग्रेजी के शब्द Democracy का हिंदी अनुवाद है। (Democracy) Damos तथा cratia दो यूनानी शब्दों से बना है । (Demos) का अर्थ है, जनता तथा Cratia का अर्थ है, शासन। इस प्रकार Democracy का अर्थ है, जनता का शासन।
  • लोकतंत्र एक ऐसी संगठनात्मक व्यवस्था है जिसमें राजनीतिक शक्ति प्राप्त करने के लिए लोगों की स्वतंत्र प्रतिभागिता को विश्वसनीय बनाया जाता है।
  • लोकतंत्र की सबसे उपयुक्त परिभाषा अमेरिका के 16वें राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन ने दी थी। उनके अनुसार लोकतंत्र जनता की, जनता के लिए तथा जनता द्वारा निर्वाचित सरकार है।
  • लोकतंत्र का सबसे प्रथम आधारभूत सिद्धांत यह है कि इसमें सभी को अपने विचार प्रकट करने तथा आलोचना करने की स्वतंत्रता होती है।
  • लोकतंत्र का आजकल के समय में काफी अंतर है क्योंकि यह व्यक्तिगत स्वतंत्रता का लक्ष्य है, यह शक्ति व प्रगति का सूचक है, यह संपूर्ण जनता का प्रतिनिधित्व करती है इत्यादि।
  • आजकल के समय में लोकतंत्र के रास्ते में कई बाधाएं आ रही हैं जैसे कि जातिवाद, सांप्रदायिकता, क्षेत्रवाद निर्धनता, समाज के विकास के प्रति उदासीनता इत्यादि।
  • लोकतंत्र की स्वतंत्रता के लिए कुछेक आवश्यक शर्ते हैं जैसे कि इसमें राजनीतिक स्वतंत्रता होनी चाहिए, आर्थिक तथा सामाजिक समानता होनी चाहिए, लोग साक्षर तथा चेतन होने चाहिए, उनका नैतिक व्यवहार उच्च कोटि का होना चाहिए इत्यादि।
  • बहुत से देश ऐसे हैं जहां पर लोकतंत्र के नाम पर जनता से धोखा होता है। उदाहरण के लिए पाकिस्तान, चीन, फिजी, मैक्सिको इत्यादि। पाकिस्तान में लोकतंत्र पर हमेशा सेना का पहरा होता है। चीन में केवल एक ही राजनीतिक दल है, फिजी में वोट की शक्ति का अंतर है तथा मैक्सिकों में सरकार चुनाव जीतने के लिए गलत हथकंडे अपनाती है।
  • लोकतंत्र दो प्रकार का होता है-प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष। अप्रत्यक्ष लोकतंत्र को प्रतिनिधि लोकतंत्र भी कहा जाता है जिसमें जनता प्रत्यक्ष रूप से अपने प्रतिनिधि चुनती है।
  • आजकल के समय में जनसंख्या के काफी बढ़ने के कारण प्रत्यक्ष लोकतंत्र मुमकिन नहीं है। यह तो प्राचीन समय के यूनान जैसे नगर राज्यों में होता था जहां पर जनसंख्या हजारों में होती थी।

PSEB 9th Class SST Solutions History Chapter 3 सिक्ख धर्म का विकास (1539 ई०-1581 ई०)

Punjab State Board PSEB 9th Class Social Science Book Solutions History Chapter 3 सिक्ख धर्म का विकास Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 9 Social Science History Chapter 3 सिक्ख धर्म का विकास

SST Guide for Class 9 PSEB सिक्ख धर्म का विकास Textbook Questions and Answers

(क) बहुविकल्पीय प्रश्न :

प्रश्न 1.
किस गुरु जी ने गोइंदवाल में बाउली का निर्माण शुरू करवाया ?
(क) श्री गुरु अंगद देव जी
(ख) श्री गुरु अमरदास जी
(ग) श्री गुरु रामदास जी
(घ) श्री गुरु नानक देव जी।
उत्तर-
(क) श्री गुरु अंगद देव जी

प्रश्न 2.
मंजीदारों की कुल संख्या कितनी थी ?
(क) 20
(ख) 21
(ग) 22
(घ) 23
उत्तर-
(ग) 22

प्रश्न 3.
मुग़ल सम्राट अकबर कौन-से गुरु साहिब के दर्शन के लिए गोइंदवाल आए ?
(क) गुरु नानक देव जी
(ख) गुरु अंगद देव जी
(ग) गुरु अमरदास जी
(घ) गुरु रामदास जी।
उत्तर-
(ग) गुरु अमरदास जी

PSEB 9th Class SST Solutions History Chapter 3 सिक्ख धर्म का विकास (1539 ई०-1581 ई०)

प्रश्न 4.
भाई लहणा जी गुरु नानक देव जी के दर्शन करने के लिए कहां गए ?
(क) श्री अमृतसर साहिब
(ख) करतारपुर
(ग) गोइंदवाल
(घ) लाहौर।
उत्तर-
(ख) करतारपुर

प्रश्न 5.
गुरु रामदास जी ने अपने पुत्रों में से गुरुगद्दी किसको दी ?
(क) पृथीचंद
(ख) महादेव
(ग) अर्जन देव
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(ग) अर्जन देव

(ख) रिक्त स्थान भरें :

  1. गुरु अंगद देव जी ने गुरुमुखी लिपि में ……………… लिखा।
  2. ……… जी हर साल हरिद्वार में गंगा स्नान के लिए जाते थे।
  3. …………. ने गोईंदवाल में बाउली का निर्माण पूरा करवाया।
  4. गुरु रामदास जी ने ………….. नगर की स्थापना की।
  5. ‘लावां’ बाणी ……….. जी की प्रसिद्ध रचना है।

उत्तर-

  1. ‘बाल बोध’
  2. गुरु अमरदास
  3. गुरु अमरदास जी
  4. रामदासपुर (अमृतसर)
  5. गुरु रामदास जी।

(ग) सही मिलान करें:

(क) – (ख)
1. बाबा बुड्ढा जी – (अ) अमृत सरोवर
2. मसंद प्रथा – (आ) श्री गुरु रामदास जी
3. भाई लहणा – (इ) श्री गुरु अंगद देव जी
4. मंजी प्रथा – (ई) श्री गुरु अमरदास जी।

उत्तर-

  1. अमृत सरोवर
  2. श्री गुरु रामदास जी
  3. श्री गुरु अंगद देव जी
  4. श्री गुरु अमरदास जी।

(घ) अंतर बताओ :

प्रश्न -संगत और पंगत।
उत्तर-संगत-संगत से अभिप्राय गुरु शिष्यों के उस समूह से है जो एक साथ बैठकर गुरु जी के उपदेशों पर अमल करते थे।
पंगत-पंगत के अनुसार गुरु के शिष्य इकट्ठे मिल-बैठकर एक ही रसोई में पका खाना खाते थे।

अति लघु उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
गुरु अंगद देव जी का पहला नाम क्या था ?
उत्तर-
गुरु अंगद देव जी का पहला नाम भाई लहणा था।

प्रश्न 2.
‘गुरुमुखी’ से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
गुरुमुखी का अर्थ है गुरुओं के मुख से निकलने वाली।

प्रश्न 3.
मंजीदार किसे कहा जाता था ?
उत्तर-
मंजियों के प्रमुख को मंजीदार कहा जाता था जो गुरु साहिब व संगत के मध्य एक कड़ी का कार्य करते थे।

PSEB 9th Class SST Solutions History Chapter 3 सिक्ख धर्म का विकास (1539 ई०-1581 ई०)

प्रश्न 4.
अमृतसर का पुराना नाम क्या था ?
उत्तर-
अमृतसर का पुराना नाम रामदासपुर था।

प्रश्न 5.
गुरु रामदास जी का मूल नाम क्या था ?
उत्तर-
भाई जेठा जी।

प्रश्न 6.
मसंद प्रथा से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
मसंद प्रथा के अनुसार गुरु के मसंद स्थानीय सिख संगत के लिए गुरु के प्रतिनिधि होते थे।

लघु उत्तरों वाले प्रश्न।

प्रश्न 1.
मंजी प्रथा पर नोट लिखो।
उत्तर-
मंजी प्रथा की स्थापना गुरु अमरदास जी ने की थी। उनके समय में सिक्खों की संख्या काफ़ी बढ चकी थी। परंतु गुरु जी की आयु अधिक होने के कारण उनके लिए एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाकर अपनी शिक्षाओं का प्रचार करना कठिन हो गया। अतः उन्होंने अपने सारे आध्यात्मिक प्रदेश को 22 भागों में बांट दिया। इनमें से प्रत्येक भाग को ‘मंजी’ कहा जाता था। इसके प्रमुख को मंजीदार। प्रत्येक मंजी छोटे-छोटे स्थानीय केंद्रों में बंटी हुई थी जिन्हें पीड़ियां (Piris) कहते थे। सिख संगत इनके द्वारा अपनी भेंट गुरु साहिब तक पहुंचाती थी। मंजी प्रणाली का सिक्ख धर्म के इतिहास में विशेष महत्त्व है। डॉ० गोकुल चंद नारंग के शब्दों में, “गुरु जी के इस कार्य ने सिक्ख धर्म की नींव सुदृढ़ करने तथा देश के सभी भागों में प्रचार कार्य को बढ़ाने में विशेष योगदान दिया।”

प्रश्न 2.
गुरु अंगद देव जी का गुरुमुखी लिपि के विकास में क्या योगदान है ?
उत्तर-
गुरुमुखी लिपि गुरु अंगद देव जी से पहले प्रचलित थी। गुरु जी ने इसें गुरुमुखी का नाम देकर इसका मानकीकरण किया। कहते हैं कि गुरु अंगद देव जी ने गुरुमुखी के प्रचार के लिए गुरुमुखी वर्णमाला में बच्चों के लिए ‘बाल बोध’ की रचना की। जनसाधारण की भाषा होने के कारण इससे सिक्ख धर्म के प्रचार के कार्य को बढ़ावा मिला। आज सिक्खों के सभी धार्मिक ग्रंथ इसी भाषा में हैं।

प्रश्न 3.
गुरु अमरदास जी के द्वारा किये गए समाज सुधार के कार्यों पर नोट लिखो।
उत्तर-
गुरु अमरदास जी ने अनेक महत्त्वपूर्ण सामाजिक सुधार किए-

  1. गुरु अमरदास जी ने जाति मतभेद का खंडन किया। गुरु जी का विश्वास था कि जाति मतभेद परमात्मा की इच्छा के विरुद्ध है। इसलिए गुरु जी के लंगर में जाति-पाति तथा छुआछूत को कोई स्थान नहीं दिया था।
  2. उस समय सती प्रथा जोरों से प्रचलित थी। गुरु जी ने इस प्रथा के विरुद्ध ज़ोरदार आवाज़ उठाई।
  3. गुरु जी ने स्त्रियों में प्रचलित पर्दे की प्रथा की भी घोर निंदा की। वे पर्दे की प्रथा को समाज की उन्नति के मार्ग में एक बहुत बड़ी बाधा मानते थे।
  4. गुरु अमरदास जी नशीली वस्तुओं के सेवन के भी घोर विरोधी थे। उन्होंने अपने अनुयायियों को सभी नशीली
    वस्तुओं से दूर रहने का निर्देश दिया।

इन सब कार्यों से स्पष्ट है कि गुरु अमरदास जी निःसंदेह एक महान् सुधारक थे।

प्रश्न 4.
अमृतसर की स्थापना पर नोट लिखो।
उत्तर-
गुरु रामदास जी ने रामदासपुर की नींव रखी। आजकल इस नगर को अमृतसर कहते हैं। गुरु साहिब ने 1577 ई० में यहां अमृतसर तथा संतोखसर नामक दो सरोवरों की खुदाई आरंभ की, परंतु उन्होंने देखा कि गोइंदवाल में रहकर खुदाई के कार्य का निरीक्षण करना कठिन है। अतः उन्होंने यहीं डेरा डाल दिया। कई श्रद्धालु लोग भी यहीं आ कर बस गए और कुछ ही समय में सरोवर के चारों ओर एक छोटा-सा नगर बस गया। इसे रामदासपुर का नाम दिया गया। गुरु जी ने इस नगर को हर प्रकार से आत्मनिर्भर बनाने के लिए एक बाज़ार की स्थापना की जिसे आजकल ‘गुरु का बाज़ार’ कहते हैं। इस नगर के निर्माण से सिक्खों को एक महत्त्वपूर्ण तीर्थ स्थान मिल गया जिससे सिक्ख धर्म के विकास में सहायता मिली।

दीर्घ उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
श्री गुरु अंगद देव जी ने सिक्ख पंथ के विकास के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण कार्य किए। वर्णन करो।
उत्तर-
श्री गुरु नानक देव जी (1539 ई०) के पश्चात् गुरु अंगद देव जी गुरुगद्दी पर आसीन हुए। उनका नेतृत्व सिक्ख धर्म के लिए वरदान सिद्ध हुआ। उन्होंने निम्नलिखित ढंग से सिक्ख धर्म के विकास में योगदान दिया

  1. गुरुमुखी लिपि में सुधार-गुरु अंगद देव जी ने गुरुमुखी लिपि को मानक रूप दिया। कहते हैं कि गुरु अंगद देव जी ने गुरुमुखी के प्रचार के लिए गुरुमुखी वर्णमाला में बच्चों के लिए ‘बाल बोध’ की रचना की। उन्होंने अपनी वाणी की रचना भी इसी लिपि में की। जनसाधारण की भाषा (लिपि) होने के कारण इससे सिक्ख धर्म के प्रचार के कार्य को बढ़ावा मिला। आज सिक्खों के सभी धार्मिक ग्रंथ इसी लिपि में हैं।
  2. गुरु नानक देव जी की जन्म-साखी-श्री गुरु अंगद देव जी ने श्री गुरु नानक देव जी की सारी बाणी को एकत्रित करके भाई बाला से गुरु जी की जन्म-साखी (जीवन-चरित्र) लिखवाई। इससे सिक्ख गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं का पालन करने लगे।
  3. लंगर प्रथा-श्री गुरु अंगद देव जी ने लंगर प्रथा जारी की। उन्होंने यह आज्ञा दी कि जो कोई उनके दर्शन को आए, उसे पहले लंगर में भोजन कराया जाए। यहां प्रत्येक व्यक्ति बिना किसी भेद-भाव के भोजन करता था। इससे जाति-पाति की भावनाओं को धक्का लगा और सिक्ख धर्म के प्रसार में सहायता मिली।.
  4. उदासियों से सिक्ख धर्म को अलग करना-गुरु नानक देव जी के बड़े पुत्र श्रीचंद जी ने उदासी संप्रदाय की स्थापना की थी। उन्होंने संन्यास का प्रचार किया। यह बात गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं के विरुद्ध थी। गुरु अंगद देव जी ने सिक्खों को स्पष्ट किया कि सिक्ख धर्म महारथियों का धर्म है। इसमें संन्यास का कोई स्थान नहीं है। उन्होंने यह भी घोषणा की कि वह सिक्ख जो संन्यास में विश्वास रखता है, सच्चा सिक्ख नहीं है। इस प्रकार उदासियों को सिक्ख संप्रदाय से अलग करके गुरु अंगद देव जी ने सिक्ख धर्म को ठोस आधार प्रदान किया।
  5. गोइंदवाल साहिब का निर्माण-गुरु अंगद देव जी ने 1596 ई० में गोइंदवाल साहिब नामक नगर की स्थापना की। गुरु अमरदास के समय में यह नगर एक प्रसिद्ध धार्मिक केंद्र बन गया। आज भी यह सिक्खों का एक पवित्र धार्मिक स्थान है।
  6. अनुशासन को बढ़ावा-गुरु जी बड़े ही अनुशासन प्रिय थे। उन्होंने सत्ता और बलवंड नामक दो प्रसिद्ध रबाबियों को अनुशासन भंग करने के कारण दरबार से निकाल दिया, परंतु बाद में भाई लद्धा के प्रार्थना करने पर गुरु जी ने उन्हें क्षमा कर दिया। इस घटना से सिक्खों में अनुशासन की भावना को बल मिला।
  7. उत्तराधिकारी की नियुक्ति-गुरु अंगद देव जी ने.13 वर्ष तक निष्काम भाव से सिक्ख धर्म की सेवा की। 1552 ई० में ज्योति-जोत समाये से पूर्व उन्होंने अपने पुत्रों की बजाय भाई अमरदास जी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया। उनका यह कार्य सिख इतिहास में बहुत ही महत्त्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि इससे सिक्ख धर्म का प्रचार कार्य जारी रहा।
  8. सच तो यह है कि गुरु अंगद देव जी ने सिक्ख धर्म को पृथक् पहचान प्रदान की। गुरुमुखी लिपि के प्रसार के कारण नानक पंथियों को नवीन बाणी मिली। लंगर प्रथा के कारण वे जाति-बंधनों से मुक्त हुए। इस प्रकार सिक्ख धर्म हिंदू धर्म से अलग रूप धारण करने लगा। इन सबका श्रेय गुरु अंगद देव जी को ही जाता है।

प्रश्न 2.
श्री गुरु अमरदास जी का सिक्ख धर्म के विकास में क्या योगदान है ?
उत्तर-
गुरु अमरदास जी को सिक्ख धर्म में विशिष्ट स्थान प्राप्त है। गुरु नानक देव जी ने धर्म का जो बीज बोया था, वह गुरु अंगद देव जी के काल में अंकुरित हो गया। गुरु अमरदास जी ने इस नवीन खिले अंकुर के गिर्द बाड़ लगा दी, ताकि हिंदू धर्म इसे अपने में ही न समा ले। कहने का अभिप्राय यह है कि उन्होंने सिक्खों को सामाजिक जीवन व्यतीत करने के लिए नवीन रीति-रिवाज़ प्रदान किए जिससे सिक्ख धर्म हिंदू धर्म से अलग राह पर चल पड़ा। निःसंदेह वह एक महान् व्यक्ति थे। पेन (Payne) ने उन्हें उत्साही प्रचारक बताया है। एक अन्य इतिहासकार ने उन्हें बुद्धिमान तथा न्यायप्रिय गुरु कहा है। कुछ भी हो उनके गुरु काल में सिक्ख धर्म नवीन दिशाओं में प्रवाहित हुआ। संक्षेप में गुरु अमरदास जी के कार्यों का वर्णन इस प्रकार है–

1. गोइंदवाल साहिब की बावली का निर्माण-गुरु अमरदास जी ने सर्वप्रथम गोइंदवाल साहिब के स्थान पर एक बावली (जल-स्रोत) का निर्माण कार्य पूरा किया जिसका शिलान्यास गुरु अंगद देव जी के समय रखा गया था। गुरु अमरदास जी ने इस बावली की तह तक पहुंचने के लिए 84 सीढ़ियां बनवाईं। गुरु जी के अनुसार प्रत्येक सीढ़ी पर जपुजी साहिब का पाठ करने से ही जन्म-मरण की चौरासी लाख योनियों के चक्कर से मुक्ति मिलेगी। गोइंदवाल साहिब की बावली सिक्ख धर्म का एक प्रसिद्ध तीर्थ-स्थान बन गई।

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2. लंगर प्रथा-गुरु अमरदास जी ने लंगर प्रथा का विस्तार करके सिक्ख धर्म के विकास की ओर एक और महत्त्वपूर्ण कदम उठाया। उन्होंने लंगर के लिए कुछ विशेष नियम बनाए। अब कोई भी व्यक्ति लंगर में भोजन किए बिना गुरु जी से नहीं मिल सकता था। लंगर में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा शूद्र सभी जातियों के लोग एक ही पंक्ति में बैठकर एक ही रसोई में बना भोजन करते थे।
लंगर प्रथा सिक्ख धर्म के प्रचार में बड़ी सहायक सिद्ध हुई। इससे जाति-पाति तथा रंग-रूप के भेद भावों को बड़ा धक्का लगा और लोगों में समानता की भावना का विकास हुआ। परिणामस्वरूप सिक्ख एकता के सूत्र में बंधने लगे।

3. सिक्ख गुरु साहिबान के शब्दों को एकत्रित करना-गुरु नानक देव जी के शब्दों तथा श्लोकों को गुरु अंगद देव जी ने एकत्रित करके उनके साथ अपने रचे हुए शब्द भी जोड़ दिए थे। यह सारी सामग्री गुरु अंगद देव जी ने गुरु अमरदास जी को सौंप दी थी। गुरु अमरदास जी ने भी कुछ-एक नए श्लोकों की रचना की और उन्हें पहले वाले संकलन (collection) के साथ मिला दिया। इस प्रकार विभिन्न गुरु साहिबान के श्लोकों तथा उपदेशों के एकत्रित हो जाने से एक ऐसी सामग्री तैयार की गई जो आदि ग्रंथ साहिब के संकलन का आधार बनी। इस कार्य में उनके पोते ने इनकी बड़ी सहायता की।

4. मंजी प्रथा-गुरु अमरदास जी के समय में सिक्खों की संख्या काफी बढ़ चुकी थी। परंतु वृद्धावस्था के कारण गुरु साहिब जी के लिए एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाकर अपनी शिक्षाओं का प्रचार करना कठिन हो गया था। अतः उन्होंने अपने पूरे आध्यात्मिक साम्राज्य को 22 प्रांतों में बांट दिया। इनमें से प्रत्येक प्रांत को मंजी’ कहा जाता था। प्रत्येक मंजी सिक्ख धर्म के प्रचार का एक केंद्र थी जिसके संचालन का कार्यभार गुरु जी ने अपने किसी विद्वान् श्रद्धालु शिष्य को सौंप रखा था।  गुरु अमरदास जी द्वारा स्थापित मंजी प्रणाली का सिक्ख धर्म के इतिहास में विशेष महत्त्व है। डॉ० गोकुल चंद नारंग के शब्दों में, “गुरु जी के इस कार्य ने सिक्ख धर्म की नींव सुदृढ़ करने तथा देश के सभी भागों में प्रचार कार्य बढ़ाने में विशेष योगदान दिया।”

5. उदासियों से सिक्खों को पृथक् करना-गुरु अमरदास जी के गुरुकाल के आरंभिक वर्षों में उदासी संप्रदाय काफी लोकप्रिय हो चुका था। इस बात का भय होने लगा कि कहीं सिक्ख धर्म उदासी संप्रदाय में ही विलीन न हो जाए। इसलिए गुरु साहिब ने जोरदार शब्दों में उदासी संप्रदाय के सिद्धांतों का खंडन किया। उन्होंने अपने अनुयायियों को समझाया कि कोई भी व्यक्ति, जो उदासी नियमों का पालन करता है, सच्चा सिक्ख नहीं हो सकता। गुरु जी के इन प्रयत्नों से सिक्ख उदासियों से पृथक् हो गए और सिक्ख धर्म का अस्तित्व मिटने से बच गया।

6. मुगल सम्राट अकबर का गोइंदवाल आना-गुरु अमरदास जी के व्यक्तित्व से प्रभावित होकर मुग़ल सम्राट अकबर गोइंदवाल आया। गुरु जी के दर्शन से पहले उसने पंक्ति में बैठ कर लंगर खाया। लंगर की व्यवस्था से अकबर बहुत प्रभावित हुआ। कहते हैं उसी वर्ष पंजाब में अकाल पड़ा था। गुरु जी के आग्रह पर अकबर ने पंजाब के किसानों का लगान माफ़ कर दिया था।

7. नई परंपराएं-गुरु अमरदास जी ने सिक्खों को व्यर्थ के रीति-रिवाजों का त्याग करने का उपदेश दिया। हिंदुओं में किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाने पर खूब रोया-पीटा जाता था। परंतु गुरु अमरदास जी ने सिक्खों को रोने-पीटने के स्थान पर ईश्वर का नाम लेने का उपदेश दिया। उन्होंने विवाह की भी नई विधि आरंभ की जिसे आनंद कारज कहते हैं।

8. अनंदु साहिब की रचना-गुरु अमरदास जी ने एक नई बाणी की रचना की जिसे अनंदु साहिब कहा जाता है। इस राग के प्रवचन से सिक्खों में वेद-मंत्रों के उच्चारण का महत्त्व बिल्कुल समाप्त हो गया।
सच तो यह है कि गुरु अमरदास जी का गुरुकाल (1552 ई०-1574 ई०) सिक्ख धर्म के इतिहास में विशेष महत्त्व रखता है। गुरु जी के द्वारा बावली का निर्माण, मंजी प्रथा के आरंभ, लंगर प्रथा के विस्तार तथा नए रीति-रिवाजों ने सिक्ख धर्म के संगठन में बड़ी सहायता की।

प्रश्न 3.
श्री गुरु रामदास जी ने सिख पंथ के विकास के लिए कौन-से महत्त्वपूर्ण कार्य किए ? वर्णन करो।
उत्तर-
श्री गुरु रामदास जी सिक्खों के चौथे गुरु थे। इनके बचपन का नाम भाई जेठा था। उनके सेवाभाव से प्रसन्न होकर गुरु अमरदास जी ने उन्हें गुरुगद्दी सौंपी थी। उन्होंने 1574 ई० से 1581 ई० तक गुरुगद्दी का संचालन किया और उन्होंने निम्नलिखित कार्यों द्वारा सिख धर्म की मर्यादा को बढ़ाया।

1. अमृतसर का शिलान्यास-गुरु रामदास जी ने रामदासपुर की नींव रखी। आजकल इस नगर को अमृतसर कहते हैं। 1577 ई० में गुरु जी ने यहां अमृतसर तथा संतोखसर नामक दो सरोवरों की खुदाई आरंभ की। परंतु उन्होंने देखा कि गोइंदवाल में रहकर खुदाई के कार्य का निरीक्षण करना कठिन है, अतः उन्होंने यहीं डेरा डाल दिया। कई श्रद्धालु लोग भी यहीं आ बसे। कुछ ही समय में सरोवर के चारों ओर एक छोटा-सा नगर बस गया। इसे रामदासपुर का नाम दिया गया। गुरु जी इस नगर को हर प्रकार से आत्म-निर्भर बनाना चाहते थे। अत: उन्होंने 52 अलग-अलग प्रकार के व्यापारियों को आमंत्रित किया। उन्होंने एक बाज़ार की स्थापना की जिसे आजकल ‘गुरु का बाज़ार’ कहते हैं। इस नगर के निर्माण से सिक्खों को एक महत्त्वपूर्ण तीर्थ स्थान मिल गया और उन्होंने हिंदुओं के तीर्थस्थानों की यात्रा करनी बंद कर दी।

2. मसंद प्रथा का आरंभ-गुरु रामदास जी को अमृतसर तथा संतोखसर नामक सरोवरों की खुदाई के लिए काफ़ी धन की आवश्यकता थी। अतः उन्होंने मसंद प्रथा का आरंभ किया। उन्होंने अपने शिष्यों को दूर देशों में धर्म प्रचार करने तथा वहां से धन एकत्रित करने के लिए भेजा। इन मसंदों ने विभिन्न प्रदेशों में सिक्ख धर्म का खूब प्रचार किया तथा काफ़ी धन राशि एकत्रित की। वास्तव में इस प्रथा ने सिक्ख धर्म के प्रसार में काफी योगदान दिया। इससे सिक्ख एक लड़ी में पिरोए गए तथा उनमें भावनात्मक एकता आ गई।

3. उदासियों के मतभेद की समाप्ति-गुरु अंगद देव जी तथा गुरु अमरदास जी ने सिक्खों को उदासी संप्रदाय से अलग कर दिया था। परंतु गुरु रामदास जी ने उदासियों से बड़ा विनम्रतापूर्ण व्यवहार किया। कहा जाता है कि उदासी संप्रदाय का नेता बाबा श्रीचंद एक बार गुरु रामदास जी से मिलने आए। उसने गुरु जी का मज़ाक उड़ाते हुए गुरु जी से यह प्रश्न किया- “सुनाओ दाढ़ा इतना लंबी क्यों है ?” गुरु जी ने बड़े विनम्र भाव से उत्तर दिया, “आप जैसे सत्य पुरुषों के चरण झाड़ने के लिए।” यह बात सुन कर श्रीचंद जी बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने गुरु जी की श्रेष्ठता को स्वीकार कर लिया। इस प्रकार उदासी संप्रदाय तथा सिक्ख गुरु साहिबान का काफी समय से चला आ रहा द्वेष-भाव समाप्त हो गया। यह बात सिक्ख मत के प्रसार में बहुत सहायक सिद्ध हुई।
सच तो यह कि गुरु रामदास जी ने भी गुरु अमरदास जी की भांति सिक्ख मत को इसका अलग अस्तित्व प्रदान करने का हर सभव प्रयास किया।

प्रश्न 4.
गुरुओं द्वारा नये नगरों की स्थापना और नई परंपराओं की शुरुआत ने सिख धर्म के विकास में क्या योगदान दिया ?
उत्तर-
गुरु साहिबान ने सिख धर्म के प्रचार तथा सिखों की समृद्धि के लिए अनेक नगर बसाये। नए नगर बसाने का एक उद्देश्य यह भी था कि सिक्खों को अपने अलग तीर्थ-स्थान दिए जाएं ताकि उनमें एकता एवं संगठन की भावना मज़बूत हो। गुरु साहिबान ने समाज में प्रचलित परम्पराओं से हट कर कुछ नई परम्पराएं भी आरंभ की। इनसे सिख समाज में सरलता आई और सिख धर्म का विकास तेज़ी से हुआ।
I. नये नगरों का योगदान

  1. गोइंदवाल साहिब-गोइंदवाल साहिब नामक नगर की स्थापना गुरु अंगद देव जी ने की। इस नगर का निर्माण 1546 ई० में आरंभ हुआ था। इसका निर्माण कार्य उन्होंने अपने शिष्य अमरदास जी को सौंप दिया। गुरु अमरदास जी ने अपने गुरुकाल में यहां बाऊली साहब का निर्माण करवाया। इस प्रकार गोइंदवाल साहिब सिक्खों का एक प्रसिद्ध धार्मिक केंद्र बन गया।
  2. रामदासपुर-गुरु रामदास जी ने रामदासपुर की नींव रखी। आजकल इस नगर को अमृतसर कहते हैं। 1577 ई० में गुरु जी ने यहां अमृतसर तथा संतोखसर नामक दो तालाबों की खुदाई आरंभ की। कुछ ही समय में तालाब के चारों ओर एक छोटा-सा नगर बस गया। इसे रामदासपुर का नाम दिया गया। गुरु जी इस नगर को हर प्रकार से आत्मनिर्भर बनाना चाहते थे। अतः उन्होंने 52 अलग-अलग प्रकार के व्यापारियों को आमंत्रित किया। उन्होंने एक बाजार की स्थापना की जिसे आजकल ‘गुरु का बाज़ार’ कहते हैं। इस नगर के निर्माण से सिक्खों को एक महत्त्वपूर्ण तीर्थ-स्थान मिल गया।
  3. तरनतारन-तरनतारन का निर्माण गुरु अर्जन देव जी ने ब्यास तथा रावी नदियों के मध्य करवाया। इसका निर्माण 1590 ई० में हुआ। अमृतसर की भांति तरनतारन भी सिक्खों का प्रसिद्ध तीर्थ स्थान बन गया। हजारों की संख्या में यहां सिक्ख यात्री स्नान करने के लिए आने लगे।
  4. करतारपुर-गुरु अर्जन देव जी ने 1593 ई० में जालंधर दोआब में एक नगर की स्थापना की जिसका नाम करतारपुर अर्थात् ‘ईश्वर का शहर’ रखा गया। यहां उन्होंने एक कुआं भी खुदवाया जो गंगसर के नाम से प्रसिद्ध है। यह नगर जालंधर दोआब में सिक्ख धर्म के प्रचार का केंद्र बन गया।
  5. हरगोबिंदपुर तथा छहरटा-गुरु अर्जन देव जी ने अपने पुत्र हरगोबिंद के जन्म की खुशी में ब्यास नदी के तट पर हरगोबिंदपुर नगर की स्थापना की। इसके अतिरिक्त उन्होंने अमृतसर के निकट पानी की कमी को दूर करने के लिए एक कुएं का निर्माण करवाया। इस कुएं पर छः रहट चलते थे। इसलिए इसको छहरटा के नाम से पुकारा जाने लगा। धीरे-धीरे यहां एक नगर बस गया जो आज भी विद्यमान है।
  6. चक नानकी-चक नानकी की नींव कीरतपुर के निकट गुरु तेग बहादुर साहिब ने रखी। इस नगर की भूमि गुरु साहिब ने 19 जून, 1665 ई० को 500 रुपये में खरीदी थी।

II. नयी परम्पराओं का योगदान

  1. गुरु नानक देव जी ने ‘संगत’ तथा ‘पंगत’ प्रथा की परंपरा चलाई। इससे सिखों में एक साथ बैठ कर नाम सिमरण करने की भावना का विकास हुआ। परिणामस्वरूप सिख भाईचारा मज़बूत हुआ।
  2. आनंद कारज से विवाह की व्यर्थ रस्मों से सिखों को छुटकारा मिला और विवाह सरल रीति से होने लगे। इस परंपरा के कारण और भी बहुत से लोग सिख धर्म से जुड़ गए। .
  3. मृत्यु के अवसर पर रोने-पीटने की परंपरा को छोड़ प्रभु सिमरण पर बल देने से सिखों में गुरु भक्ति की भावना मजबूत हुई।

PSEB 9th Class Social Science Guide पंजाब : सिक्ख धर्म का विकास Important Questions and Answers

I. बहुविकल्पीय प्रश्न :

प्रश्न 1.
गोइंदवाल साहिब में बाऊली (जल-स्रोत) की नींव रखी
(क) गुरु अर्जन देव जी ने
(ख) गुरु नानक देव जी ने
(ग) गुरु अंगद देव जी ने
(घ) गुरु तेग़ बहादुर जी ने।
उत्तर-
(ग) गुरु अंगद देव जी ने

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प्रश्न 2.
गुरु रामदास जी ने नगर बसाया
(क) अमृतसर
(ख) जालंधर
(ग) कीरतपुर साहिब
(घ) गोइंदवाल साहिब।
उत्तर-
(क) अमृतसर

प्रश्न 3.
गुरु अर्जन देव जी ने रावी तथा व्यास के बीच किस नगर की नींव रखी ?
(क) जालंधर
(ख) गोइंदवाल साहिब
(ग) अमृतसर
(घ) तरनतारन।
उत्तर-
(घ) तरनतारन।

प्रश्न 4.
गुरु अंगद देव जी को गुरुगद्दी मिली-
(क) 1479 ई० में
(ख) 1539 ई० में
(ग) 1546 ई० में
(घ) 1670 ई० में।
उत्तर-
(ख) 1539 ई० में

प्रश्न 5.
गुरु अंगद देव जी ज्योति-जोत समाये
(क) 1552 ई० में
(ख) 1538 ई० में
(ग) 1546 ई० में
(घ) 1479 ई० में।
उत्तर-
(क) 1552 ई० में

प्रश्न 6.
‘बाबा बकाला’ वास्तव में थे-
(क) गुरु तेग़ बहादुर जी
(ख) गुरु हरकृष्ण जी
(ग) गुरु गोबिंद सिंह जी
(घ) गुरु अमरदास जी।
उत्तर-
(क) गुरु तेग़ बहादुर जी

प्रश्न 7.
गुरु गोबिंद सिंह जी का जन्म हुआ
(क) कीरतपुर साहिब में
(ख) पटना में
(ग) दिल्ली में
(घ) तरनतारन में।
उत्तर-
(ख) पटना में

प्रश्न 8.
गुरु अमरदास जी ज्योति-जोत समाए
(क) 1564 ई० में
(ख) 1538 ई० में
(ग) 1546 ई० में
(घ) 1574 ई० में।
उत्तर-
(घ) 1574 ई० में।

प्रश्न 9.
गुरुगद्दी को पैतृक रूप दिया
(क) गुरु अमरदास जी ने
(ख) गुरु रामदास जी ने
(ग) गुरु गोबिंद सिंह जी ने
(घ) गुरु तेग़ बहादुर जी ने।
उत्तर-
(क) गुरु अमरदास जी ने

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रिक्त स्थान भरें :

  1. गुरु ………… का पहला नाम भाई लहना था।
  2. …………….. सिक्खों के चौथे गुरु थे।
  3. …………. नामक नगर की स्थापना गुरु अंगद देव जी ने की।
  4. गुरु हरगोबिंद साहिब ने अपने जीवन के अंतिम दस वर्ष ……….. में धर्म प्रचार में व्यतीत किए।
  5. गुरु अंगद देव जी के पिता का नाम श्री ………….. और माता का नाम ………….. था।
  6. ‘उदासी’ मत गुरु नानक देव जी के बड़े पुत्र …………….. जी ने स्थापित किया।
  7. मंजियों की स्थापना गुरु ………… ने की।

उत्तर-

  1. अंगद साहिब
  2. गुरु रामदास जी
  3. गोइंदवाल साहिब
  4. फेरूमल, सभराई देवी
  5. कीरतपुर साहि
  6. बाबा श्रीचंद
  7. अमर दास जी।

सही मिलान करो :

(क) – (ख)
1. भाई लहना – (i) श्री गुरु नानक देव जी
2. अकबर – (ii) बाबा श्री चंद
3. लंगर प्रथा – (iii) अमृतसर
4. उदासी मत – (iv) श्री गुरु अंगद देव जी
5. रामदासपुर – (v) श्री गुरु अमरदास जी

उत्तर-

  1. श्री गुरु अंगद देव जी
  2. श्री गुरु अमरदास जी
  3. श्री गुरु नानक देव जी
  4. बाबा श्री चंद
  5. अमृतसर

अति लघु उत्तरों वाले प्रश्न

उत्तर एक लाइन अथवा एक शब्द में :

(I)

प्रश्न 1.
भाई लहना किस गुरु साहिब का पहला नाम था ?
उत्तर-
गुरु अंगद साहिब का।

प्रश्न 2.
लंगर प्रथा से क्या भाव है ?
उत्तर-
लंगर प्रथा अथवा पंगत से भाव उस प्रथा से है जिसके अनुसार सभी जातियों के लोग बिना किसी भेदभाव के एक ही पंक्ति में बैठकर खाना खाते थे।

प्रश्न 3.
गोइंदवाल साहिब में बाऊली (जल स्रोत) की नींव किस गुरु साहिब ने रखी थी ?
उत्तर-
गोइंदवाल साहिब में बाऊली की नींव गुरु अंगद देव जी ने रखी थी।

प्रश्न 4.
अकबर कौन-से गुरु साहिब को मिलने गोइंदवाल साहिब आया ?
उत्तर-
अकबर गुरु अमरदास जी से मिलने गोइंदवाल साहिब आया था।

प्रश्न 5.
मसंद प्रथा के दो उद्देश्य लिखिए।
उत्तर-
मसंद प्रथा के दो मुख्य उद्देश्य थे- सिक्ख धर्म के विकास कार्यों के लिए धन एकत्रित करना तथा सिक्खों को संगठित करना।

प्रश्न 6.
सिक्खों के चौथे गुरु कौन थे तथा उन्होंने कौन-सा शहर बसाया ?
उत्तर-
गुरु रामदास जी सिक्खों के चौथे गुरु थे जिन्होंने रामदासपुर (अमृतसर) नामक नगर बसाया।

प्रश्न 7.
लंगर प्रथा के बारे में आप क्या जानते हो ?
उत्तर-
लंगर प्रथा का आरंभ गुरु नानक साहिब ने सामाजिक भाईचारे के लिए किया।

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प्रश्न 8.
गुरु अंगद देव जी संगत प्रथा के द्वारा सिक्खों को क्या उपदेश देते थे ?
उत्तर-
गुरु अंगद देव जी संगत प्रथा के द्वारा सिक्खों को ऊंच-नीच के भेदभाव को भूल कर प्रेमपूर्वक रहने की शिक्षा देते थे।

प्रश्न 9.
गुरु अंगद देव जी की पंगत-प्रथा के बारे में जानकारी दो ।
उत्तर-
गुरु अंगद देव जी ने गुरु नानक देव जी के द्वारा चलाई गई पंगत-प्रथा को आगे बढ़ाया जिसका खर्च सिक्खों की कार सेवा से चलता था।

प्रश्न 10.
गुरु अंगद देव जी द्वारा स्थापित अखाड़े के बारे में लिखिए।
उत्तर-
गुरु अंगद देव जी ने सिक्खों को शारीरिक रूप से स्वस्थ रखने के लिए खडूर साहिब के स्थान पर एक अखाड़ा बनवाया।

प्रश्न 11.
गोइंदवाल साहिब के बारे में आप क्या जानते हो ?
उत्तर-
गोइंदवाल साहिब नामक नगर की स्थापना गुरु अंगद देव जी ने की जो सिक्खों का एक प्रसिद्ध धार्मिक केंद्र बन गया।

प्रश्न 12.
गुरु अमरदास जी के जाति-पाति के बारे में विचार बताओ।
उत्तर-
गुरु अमरदास जी जातीय भेदभाव तथा छुआछूत के विरोधी थे।

प्रश्न 13.
सती प्रथा के बारे में गुरु अमरदास जी के क्या विचार थे ?
उत्तर-
गुरु अमरदास जी ने सती प्रथा का खंडन किया।

प्रश्न 14.
गुरु अमरदास जी द्वारा निर्मित शहर गोइंदवाल साहिब दूसरे धार्मिक स्थानों से कैसे अलग था ?
उत्तर-
गोइंदवाल साहिब सिक्खों के सामूहिक परिश्रम से बना था जिसमें न तो किसी देवी-देवता की पूजा की जाती थी और न ही इसमें किसी पुजारी की आवश्यकता थी।

प्रश्न 15.
गुरु अमरदास जी ने जन्म, विवाह तथा मृत्यु संबंधी क्या सुधार किए ? ।
उत्तर-
गुरु अमरदास जी ने जन्म तथा विवाह के अवसर पर ‘आनंद’ बाणी का पाठ करने की प्रथा चलाई और सिक्खों को आदेश दिया कि वे मृत्यु के अवसर पर ईश्वर की स्तुति तथा भक्ति के शब्दों का गायन करें।

प्रश्न 16.
रामदासपुर या अमृतसर की स्थापना की महत्ता बताइए।
उत्तर-
रामदासपुर की स्थापना से सिक्खों को एक अलग तीर्थ-स्थान तथा महत्त्वपूर्ण व्यापारिक केंद्र मिल गया।

प्रश्न 17.
गुरु रामदास जी तथा अकबर बादशाह की मुलाकात का महत्त्व बताइए।
उत्तर-
गुरु रामदास जी की अकबर से मुलाकात से दोनों में मैत्रीपूर्ण संबंध स्थापित हुए।

प्रश्न 18.
गुरु अंगद देव जी का नाम अंगद देव कैसे पड़ा ?
उत्तर-
गुरु अंगद देव जी गुरु नानक देव जी के लिए सर्दी की रात में दीवार बना सकते थे तथा कीचड़ से भरी घास की गठरी उठा सकते थे, इसलिए गुरु जी ने उनका नाम अंगद अर्थात् शरीर का एक अंग रख दिया।

प्रश्न 19.
भाई लहना (गुरु अंगद साहिब) के माता-पिता का नाम क्या था ?
उत्तर-
भाई लहना (गुरु अंगद साहिब) के पिता का नाम फेरूमल और माता का नाम सभराई देवी था।

प्रश्न 20.
गुरु अंगद साहिब का बचपन किन दो स्थानों पर बीता ?
उत्तर-
गुरु अंगद साहिब का बचपन हरिके तथा खडूर साहिब में बीता।

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(II)

प्रश्न 1.
सिक्खों के दसरे गुरु कौन थे ?
उत्तर-
गुरु अंगद देव जी।

प्रश्न 2.
गुरु अंगद देव जी का पहला नाम क्या था ?
उत्तर-
भाई लहना जी।

प्रश्न 3.
गुरु अंगद देव जी को गुरुगद्दी कब सौंपी गई ?
उत्तर-
1539 ई० में।

प्रश्न 4.
लहना जी का विवाह किसके साथ हुआ और उस समय उनकी आयु कितनी थी ?
उत्तर-
लहना जी का विवाह 15 वर्ष की आयु में श्री देवीचंद जी की सुपुत्री बीबी खीवी से हुआ।

प्रश्न 5.
लहना जी के कितने पुत्र और पुत्रियां थीं ? उनके नाम भी लिखो।
उत्तर-
लहना जी के दो पुत्र दातू तथा दासू तथा दो पुत्रियां बीबी अमरो तथा बीबी अनोखी थीं।

प्रश्न 6.
‘उदासी’ मत किसने स्थापित किया ?
उत्तर-
‘उदासी’ मत गुरु नानक देव जी के बड़े पुत्रं बाबा श्रीचंद जी ने स्थापित किया।

प्रश्न 7.
गुरु अंगद साहिब ने ‘उदासी’ मत के प्रति क्या रुख अपनाया ?
उत्तर-
गुरु अंगद साहिब ने उदासी मत को गुरु नानक साहिब के उद्देश्यों के प्रतिकूल बताया और इस मत का विरोध किया।

प्रश्न 8.
गुरु अंगद देव जी की धार्मिक गतिविधियों का केंद्र कौन-सा स्थान था ?
उत्तर-
गुरु अंगद देव जी की धार्मिक गतिविधियों का केंद्र अमृतसर जिले में खडूर साहिब था।

प्रश्न 9.
लंगर प्रथा किसने चलाई ?
उत्तर-
लंगर प्रथा गुरु नानक देव जी ने चलाई।

प्रश्न 10.
उदासी संप्रदाय किसने चलाया ?
उत्तर-
बाबा श्रीचंद जी ने।

प्रश्न 11.
गोइंदवाल साहिब की स्थापना (1546 ई०) किसने की ?
उत्तर-
गुरु अंगद देव जी ने।

प्रश्न 12.
गुरु अंगद देव जी ने अखाड़े का निर्माण कहां करवाया ?
उत्तर-
खडूर साहिब में।

प्रश्न 13.
गुरु अंगद देव जी ज्योति-जोत कब समाये ?
उत्तर-
1552 ई० में।

प्रश्न 14.
गुरु अमरदास जी का जन्म कब और कहां हुआ था ?
उत्तर-
गुरु अमरदास जी का जन्म 1479 ई० में जिला अमृतसर में स्थित बासरके नामक गांव में हुआ था।

प्रश्न 15.
गुरु अमरदास जी को गद्दी संभालते समय किस कठिनाई का सामना करना पड़ा ?
उत्तर-
गुरु अमरदास जी को गुरु अंगद देव जी के पुत्रों दासू और दातू के विरोध का सामना करना पड़ा ।
अथवा
गुरु जी को गुरु नानक देव जी के बड़े पुत्र बाबा श्रीचंद के विरोध का भी सामना करना पड़ा।

प्रश्न 16.
गोइंदवाल साहिब में बाऊली का निर्माण कार्य किसने पूरा करवाया ?
उत्तर-
गुरु अमरदास जी ने।

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प्रश्न 17.
मंजी प्रथा किस गुरु जी ने आरंभ करवाई ?
उत्तर-
गुरु अमरदास जी ने।

प्रश्न 18.
‘आनंद’ नामक बाणी की रचना किसने की ?
उत्तर-
गुरु अमरदास जी ने।

प्रश्न 19.
गुरु अमरदास जी ने किन दो अवसरों के लिए सिक्खों के लिए विशिष्ट रीतियां निश्चित की ?
उत्तर-
गुरु अमरदास जी ने आनंद विवाह की पद्धति आरंभ की जिसमें जन्म तथा मरण के अवसरों पर सिक्खों के लिए विशिष्ट रीतियां निश्चित की गईं।

प्रश्न 20.
गुरु अमरदास जी द्वारा सिक्ख मत के प्रसार के लिए किया गया कोई एक कार्य लिखो।।
उत्तर-
गुरु अमरदास जी ने गोइंदवाल साहिब में बाउली का निर्माण किया।
अथवा
उन्होंने मंजी प्रथा की स्थापना की तथा लंगर प्रथा का विस्तार किया।

(III)

प्रश्न 1.
गुरु अमरदास जी ने सिक्खों को कौन-कौन से तीन त्योहार मनाने का आदेश दिया ?
उत्तर-
उन्होंने सिक्खों को वैशाखी, माघी तथा दीवाली के त्योहार मनाने का आदेश किया।

प्रश्न 2.
गुरु अमरदास जी के काल में सिक्ख अपने त्योहार मनाने के लिए कहां एकत्रित होते थे ?
उत्तर-
सिक्ख अपने त्योहार मनाने के लिए गुरु अमरदास जी के पास गोइंदवाल साहिब में एकत्रित होते थे।

प्रश्न 3.
गुरु अमरदास जी ज्योति-जोत कब समाए ?
उत्तर-
गुरु अमरदास जी 1574 ई० में ज्योति-जोत समाए।

प्रश्न 4.
गुरुगद्दी को पैतृक रूप किसने दिया ?
उत्तर-
गुरुगदी को पैतृक रूप गुरु अमरदास जी ने दिया।

प्रश्न 5.
सिक्खों के चौथे गुरु कौन थे ?
उत्तर-
श्री गुरु रामदास जी।

प्रश्न 6.
अमृतसर शहर की नींव किसने रखी ?
उत्तर-
गुरु रामदास जी ने।

प्रश्न 7.
मसंद प्रथा का आरंभ सिक्खों के किस गुरु ने आरंभ किया ?
उत्तर-
श्री गुरु रामदास जी ने।

प्रश्न 8.
गुरु रामदास जी की पत्नी का क्या नाम था ?
उत्तर-
गुरु रामदास जी की पत्नी का नाम बीबी भानी जी था।

प्रश्न 9.
गुरु रामदास जी के कितने पुत्र थे ? पुत्रों के नाम भी बताओ।
उत्तर-
गुरु रामदास जी के तीन पुत्र थे-पृथी चंद, महादेव तथा अर्जन देव।

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प्रश्न 10.
गुरु रामदास जी द्वारा सिक्ख धर्म के विस्तार के लिए किया गया कोई एक कार्य बताओ।
उत्तर-
गुरु रामदास जी ने अमृतसर नगर बसाया। इस नगर के निर्माण से सिक्खों को एक महत्त्वपूर्ण तीर्थ स्थान मिल गया।
अथवा
उन्होंने मसंद प्रथा को आरंभ किया। मसंदों ने सिक्ख धर्म का खूब प्रचार किया।

प्रश्न 11.
अमृतसर नगर का प्रारंभिक नाम क्या था ?
उत्तर-
अमृतसर नगर की प्रारंभिक नाम रामदासपुर था।

प्रश्न 12.
गुरु रामदास जी द्वारा खुदवाए गए दो सरोवरों के नाम लिखो।
उत्तर-
गुरु रामदास जी द्वारा खुदवाए गए दो सरोवर संतोखसर तथा अमृतसर हैं।

प्रश्न 13.
गुरु रामदास जी ने अमृतसर सरोवर के चारों ओर जो ब्राज़ार बसाया वह किस नाम से प्रसिद्ध हुआ ?
उत्तर-
‘गुरु का बाज़ार’।

प्रश्न 14.
गुरु रामदास जी ने ‘गुरु का बाज़ार’ की स्थापना किस उद्देश्य से की ?
उत्तर-
गुरु रामदास जी अमृतसर नगर को हर प्रकार से आत्म-निर्भर बनाना चाहते थे। इसी कारण उन्होंने 52 अलग-अलग प्रकार के व्यापारियों को आमंत्रित किया और इस बाज़ार की स्थापना की।

प्रश्न 15.
गुरु रामदास जी ने महादेव को गुरुगद्दी के अयोग्य क्यों समझा ?
उत्तर-
महादेव फ़कीर स्वभाव का था तथा उसे सांसारिक विषयों से कोई लगाव नहीं था।

प्रश्न 16.
गुरु रामदास जी ने पृथी चंद को गुरुगद्दी के अयोग्य क्यों समझा ?
उत्तर-
गुरु रामदास जी ने पृथी चंद को गुरुपद के अयोग्य इसलिए समझा क्योंकि वह धोखेबाज़ और षड्यंत्रकारी था।

लघु उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
गुरु अमरदास जी ने सिक्खों को उदासी मत से कैसे अलग किया ?
उत्तर-
उदासी संप्रदाय की स्थापना गुरु नानक देव जी के बड़े पुत्र श्रीचंद जी ने की थी। उसने संन्यास का प्रचार किया। यह बात गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं के विरुद्ध थी। गुरु अंगद देव जी ने सिक्खों को स्पष्ट किया कि सिक्ख धर्म गृहस्थियों का धर्म है। इसमें संन्यास का कोई स्थान नहीं है। उन्होंने यह भी घोषणा की कि वह सिक्ख जो संन्यास में विश्वास रखता है, सच्चा सिक्ख नहीं है। इस प्रकार उदासियों को सिक्ख संप्रदाय से अलग करके गुरु अंगद देव जी ने सिक्ख धर्म को ठोस आधार प्रदान किया।

प्रश्न 2.
गुरु अमरदास जी ने ब्याह की रस्मों में क्या सुधार किए ?
उत्तर-
गुरु अमरदास जी के समय समाज में जाति मतभेद का रोग इतना बढ़ चुका था कि लोग अपनी जाति से बाहर विवाह करना धर्म के विरुद्ध मानने लगे थे। गुरु जी का विश्वास था कि ऐसे रीति-रिवाज लोगों में फूट डालते हैं। इसीलिए उन्होंने सिक्खों को जाति-मतभेद भूल कर अंतर्जातीय विवाह करने का आदेश दिया। उन्होंने विवाह की रीतियों में भी सुधार किया। उन्होंने विवाह के समय रस्मों, फेरों के स्थान पर ‘लावां’ की प्रथा आरंभ की।

प्रश्न 3.
गोइंदवाल साहिब की बाऊली (जल स्रोत) का वर्णन करो।
उत्तर-
गुर अमरदास जी ने गोइंदवाल साहिब नामक स्थान पर बाऊली (जल स्रोत) का निर्माण कार्य पूरा किया जिसका शिलान्यास गुरु अंगद देव जी के समय में किया गया था। गुरु अमरदास जी ने इस बावली में 84 सीढ़ियां बनवाई। उन्होंने अपने शिष्यों को बताया कि जो सिक्ख प्रत्येक सीढ़ी पर श्रद्धा और सच्चे मन से ‘जपुजी साहिब’ का पाठ करके स्नान करेगा वह जन्म-मरण के चक्कर से मुक्त हो जाएगा और मोक्ष को प्राप्त करेगा। डॉ. इंदू भूषण बनर्जी लिखते हैं, “इस बाऊली की स्थापना सिक्ख धर्म के इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण कार्य था।” गोइंदवाल साहिब की बाऊली सिक्ख धर्म का प्रसिद्ध तीर्थ स्थान बन गई। इस बाऊली पर एकत्रित होने से सिक्खों में आपसी मेलजोल की भावना भी बढ़ी और वे परस्पर संगठित होने लगे।

प्रश्न 4.
आनंद साहिब बारे लिखो।
उत्तर-
गुरु अमरदास जी ने एक नई बाणी की रचना की जिसे आनंद साहिब कहा जाता है। गुरु साहिब ने अपने सिक्खों को आदेश दिया कि जन्म, विवाह तथा खुशी के अन्य अवसरों पर ‘आनंद’ साहिब का पाठ करें। इस बाणी से सिक्खों में वेद-मंत्रों के उच्चारण का महत्त्व बिल्कुल समाप्त हो गया। आज भी सभी सिक्ख जन्म, विवाह तथा खुशी के अन्य अवसरों पर इसी बाणी को गाते हैं।

प्रश्न 5.
सिक्खों तथा उदासियों में हुए समझौते के बारे में जानकारी दीजिए।
उत्तर-
गुरु अंगद देव जी तथा गुरु अमरदास जी ने सिक्खों को उदासी संप्रदाय से अलग कर दिया था, परंतु गुर रामदास जी ने उदासियों से बड़ा विनम्रतापूर्ण व्यवहार किया। उदासी संप्रदाय के संचालक बाबा श्रीचंद जी एक बार गुरु रामदास जी से मिलने गए। उनके बीच एक महत्त्वपूर्ण वार्तालाप भी हुआ। श्रीचंद जी गुरु साहिब की विनम्रता से बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने गुरु जी की श्रेष्ठता को स्वीकार कर लिया। इस प्रकार उदासियों ने सिक्ख गुरु साहिबान का विरोध करना छोड़ दिया।

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प्रश्न 6.
गुरु साहिबान के समय के दौरान बनी बाऊलियों (जल स्रोतों) का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
गुरु साहिबान के समय में निम्नलिखित बाऊलियों का निर्माण हुआ

  1. गोइंदवाल साहिब की बाऊली-गोइंदवाल साहिब की बाऊली का शिलान्यास गुरु अंगद देव जी के समय में हुआ था। गुरु अमदास जी ने इस बाऊली को पूर्ण करवाया। उन्होंने इसके जल तक पहुंचने के लिए 84 सीढ़ियाँ बनवाईं। उन्होंने अपने शिष्यों को बताया कि जो सिक्ख प्रत्येक सीढ़ी पर श्रद्धा और सच्चे मन से जपुजी साहिब का पाठ करेगा वह जन्म-मरण की चौरासी लाख योनियों के चक्कर से मुक्त हो जाएगा।
  2. लाहौर की बाऊली-लाहौर के डब्बी बाज़ार में स्थित इस बाऊली का निर्माण गुरु अर्जन साहिब ने करवाया। यह बाऊली सिक्खों का एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थान बन गई।

प्रश्न 7.
गुरु अंगद
देव जी द्वारा सिक्ख संस्था (पंथ) के विकास के लिए किए गए किन्हीं चार कार्यों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
श्री गुरु नानक देव जी (1539 ई०) के पश्चात् गुरु अंगद देव जी गुरुगद्दी पर आसीन हुए। उनका नेतृत्व सिक्ख धर्म के लिए वरदान सिद्ध हुआ। उन्होंने निम्नलिखित कार्यों द्वारा सिक्ख धर्म के विकास में योगदान दिया-

  1. गुरुमुखी लिपि का मानकीकरण-गुरु अंगद देव जी ने गुरुमुखी लिपि को मानक रूप दिया। कहते हैं कि गुरु अंगद देव जी ने गुरुमुखी के प्रचार के लिए गुरुमुखी वर्णमाला में ‘बाल बोध’ की रचना की।
  2. गुरु नानक देव जी की जन्म-साखी-श्री गुरु अंगद देव जी ने श्री गुरु नानक देव जी की सारी बाणी को एकत्रित करके भाई बाला से गुरु जी की जन्म साखी (जीवन-चरित्र) लिखवाई। इससे सिक्ख गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं का पालन करने लगे।
  3. लंगर प्रथा-श्री गुरु अंगद देव जी ने लंगर प्रथा जारी रखी। इस प्रथा से जाति-पाति की भावनाओं को धक्का लगा और सिक्ख धर्म के प्रसार में सहायता मिली।
  4. गोइंदवाल साहिब का निर्माण-गुरु अंगद देव जी ने गोइंदवाल साहिब नामक नगर की स्थापना की। गुरु अमरदास के समय में यह नगर एक प्रसिद्ध धार्मिक केंद्र बन गया। आज भी यह सिक्खों का एक पवित्र धार्मिक स्थान है।

प्रश्न 8.
सिक्ख पंथ में गुरु और सिक्ख (शिष्य) की परंपरा कैसे स्थापित हुई ?
उत्तर-
गुरु नानक साहिब के 1539 में ज्योति-जोत समाने से पूर्व एक विशेष धार्मिक भाई-चारा अस्तित्व में आ चुका था। गुरु नानक देव जी इसे जारी रखना चाहते थे। इसीलिए उन्होंने अपने जीवन काल में ही अपने शिष्य भाई लहना जी को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया। भाई लहना जी ने गुरु नानक साहिब के ज्योति-जोत समाने के पश्चात् गुरु अंगद देव जी के नाम से गुरुगद्दी संभाली। इस प्रकार गुरु और सिक्ख (शिष्यों) की परंपरा स्थापित हुई और सिक्ख इतिहास में यह विचार गुरु पंथ के सिद्धांत के रूप में विकसित हुआ ।

प्रश्न 9.
गुरु नानक साहिब ने अपने पुत्रों के होते हुए भाई लहना जी को अपना उत्तराधिकारी क्यों बनाया ?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी ने अपने दो पुत्रों श्री चंद तथा लखमी दास (चंद) के होते हुए भी भाई लहना को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया था। उसके पीछे कुछ विशेष कारण थे-

  1. आदर्श गृहस्थ जीवन का पालन गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं का मुख्य सिद्धांत था, परंतु उनके दोनों पुत्र गुरु जी के इस सिद्धांत का पालन नहीं कर रहे थे। इसके विपरीत भाई लहना गुरु नानक देव जी के सिद्धांत का पालन सच्चे मन से कर रहे थे।
  2. नम्रता तथा सेवा-भाव भी गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं का मूल मंत्र था, परंतु बाबा श्रीचंद नम्रता तथा सेवा-भाव दोनों ही गुणों से खाली थे। दूसरी ओर, भाई लहना इन गुणों की साक्षात मूर्ति थे।
  3. गुरु नानक देव जी को वेद-शास्त्रों तथा ब्राह्मण वर्ग की सर्वोच्चता में विश्वास नहीं था। वे संस्कृत को भी पवित्र भाषा स्वीकार नहीं करते थे, परंतु उनके पुत्र श्रीचंद जी को संस्कृत भाषा तथा वेद-शास्त्रों में गूढ विश्वास था।

प्रश्न 10.
गुरु अंगद देव जी के समय में लंगर प्रथा तथा उसके महत्त्व का वर्णन करो।
उत्तर-
लंगर में सभी सिक्ख एक साथ बैठ कर भोजन करते थे। गुरु अंगद देव जी ने इस प्रथा को काफ़ी प्रोत्साहन दिया। लंगर प्रथा के विस्तार तथा प्रोत्साहन के कई महत्त्वपूर्ण परिणाम निकले। यह प्रथा धर्म प्रचार कार्य का एक शक्तिशाली साधन बन गई। निर्धनों के लिए एक सहारा बनने के अतिरिक्त यह प्रचार तथा विस्तार का एक महान् यंत्र बनी। गुरु जी के अनुयायियों द्वारा दिए गए अनुदानों, चढ़ावे इत्यादि को इसने निश्चित रूप दिया। हिंदुओं द्वारा स्थापित की गई दान संस्थाएं अनेक थीं, परंतु गुरु जी का लंगर संभवत: पहली संस्था थी जिसका खर्च समस्त सिक्खों के संयुक्त दान तथा भेंटों से चलाया जाता था। इस बात ने सिक्खों में ऊंच-नीच की भावना को समाप्त करके एकता की भावना जागृत की।

प्रश्न 11.
गुरु अंगद देव जी के जीवन की किस घटना से उनके अनुशासनप्रिय होने का प्रमाण मिलता है ?
उत्तर-
गुरु अंगद देव जी ने सिक्खों के समक्ष अनुशासन का एक बहुत बड़ा उदाहरण प्रस्तुत किया। कहा जाता है कि सत्ता और बलवंड नामक दो प्रसिद्ध रबाबी उनके दरबार में रहते थे। उन्हें अपनी कला पर इतना अभिमान हो गया कि वे गुरु जी के आदेशों का उल्लंघन करने लगे। वे इस बात का प्रचार करने लगे कि गुरु जी की प्रसिद्धि केवल हमारे ही मधुर रागों और शब्दों के कारण है। इतना ही नहीं उन्होंने तो गुरु नानक देव जी की महत्ता का कारण भी मरदाना का मधुर संगीत बताया। गुरु जी ने इस अनुशासनहीनता के कारण सत्ता और बलवंड को दरबार से निकाल दिया। अंत में श्रद्धालु भाई लद्धा जी की प्रार्थना पर ही उन्हें क्षमा किया गया। इस घटना का सिक्खों पर गहरा प्रभाव पड़ा। परिणामस्वरूप सिक्ख धर्म में अनुशासन का महत्त्व बढ़ गया।

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प्रश्न 12.
गुरु अमरदास जी गुरु अंगद देव जी के शिष्य कैसे बने ? उन्हें गुरुगद्दी कैसे मिली ?
उत्तर-
गुरु अमरदास जी ने एक दिन गुरु अंगद देव जी की पुत्री बीबी अमरो के मुंह से गुरु नानक देव जी की बाणी सुनी। वे बाणी से इतने प्रभावित हुए कि तुरंत गुरु अंगद देव जी के पास पहुंचे और उनके शिष्य बन गये। इसके पश्चात् गुरु अमरदास जी ने 1541 से 1552 ई० तक (गुरुगद्दी मिलने तक) खडूर साहिब में रह कर गुरु अंगद देव जी की खूब सेवा की। एक दिन कड़ाके की ठंड में अमरदास जी गुरु अंगद देव जी के स्नान के लिए पानी का घड़ा लेकर आ रहे थे। मार्ग में ठोकर लगने से वह गिर पडे। यह देख कर एक बनकर की पत्नी ने कहा कि यह अवश्य निथावां (जिसके पास कोई स्थान न हो) अमरू ही होगा। इस घटना की सूचना जब गुरु अंगद देव जी को मिली तो उन्होंने अमरदास को अपने पास बुलाकर घोषणा की कि, “अब से अमरदास निथावां नहीं होगा, बल्कि अनेक निथावों का सहारा होगा।” मार्च, 1552 ई० में गुरु अंगद देव जी ने अमरदास जी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त कर दिया। इस प्रकार गुरु अमरदास जी सिक्खों के तीसरे गुरु बने।

प्रश्न 13.
गुरु अमरदास जी के समय में लंगर प्रथा के विकास का वर्णन करो।
उत्तर-
गुरु अमरदास जी ने लंगर के लिए कुछ विशेष नियम बनाये। अब कोई भी व्यक्ति लंगर में भोजन किए बिना गुरु जी से नहीं मिल सकता था। कहा जाता है कि सम्राट अकबर को गुरु जी के दर्शन करने से पहले लंगर में भोजन करना पड़ा था। गुरु जी का लंगर प्रत्येक जाति, धर्म और वर्ग के लोगों के लिए खुला था। लंगर में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा शूद्र सभी जातियों के लोग एक ही पंक्ति में बैठकर भोजन करते थे। इससे जाति-पाति तथा रंग-रूप के भेदभावों को बड़ा धक्का लगा और लोगों में समानता की भावना का विकास हुआ। परिणामस्वरूप सिक्ख एकता के सूत्र में बंधने लगे।

प्रश्न 14.
गुरु अमरदास जी के समय में मंजी प्रथा के विकास पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
मंजी प्रथा की स्थापना गुरु अमरदास जी ने की थी। उनके समय में सिक्खों की संख्या काफ़ी बढ़ चुकी थी। परंतु गुरु जी की आयु अधिक होने के कारण यह बहुत कठिन हो गया कि वे एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाकर अपनी शिक्षाओं का प्रचार करें। अतः उन्होंने अपने सारे आध्यात्मिक प्रदेश को 22 भागों में बांट दिया। इनमें से प्रत्येक भाग को ‘मंजी’ तथा उसके मुखिया को मंजीदार कहा जाता था। प्रत्येक मंजी छोटे-छोटे स्थानीय केंद्रों में बंटी हुई थी जिन्हें पीढ़ियाँ (Piris) कहते थे। मंजी प्रणाली का सिक्ख धर्म के इतिहास में विशेष महत्त्व है। डॉ० गोकुल चंद नारंग के शब्दों में, “गुरु जी के इस कार्य ने सिक्ख धर्म की नींव सुदृढ़ करने तथा देश के सभी भागों में प्रचार कार्य को बढ़ाने में विशेष योगदान दिया होगा।”

प्रश्न 15.
“गुरु अमरदास जी एक महान् समाज सुधारक थे।” इस कथन के पक्ष में कोई चार तर्क दीजिए।
उत्तर-
गुरु अमरदास जी ने निम्नलिखित महत्त्वपूर्ण सामाजिक सुधार किए-

  1. गुरु अमरदास जी ने जाति मतभेद का खंडन किया। गुरु जी का विश्वास था कि जाति मतभेद परमात्मा की इच्छा के विरुद्ध है। इसलिए गुरु जी के लंगर में जाति-पाति का कोई भेद-भाव नहीं रखा जाता था।
  2. उस समय सती प्रथा जोरों से प्रचलित थी। गुरु जी ने इस प्रथा के विरुद्ध जोरदार आवाज़ उठाई। .
  3. गुरु जी ने स्त्रियों में प्रचलित पर्दे की प्रथा की भी घोर निंदा की। वे पर्दे की प्रथा को समाज की उन्नति के मार्ग में एक बहुत बड़ी बाधा मानते थे।
  4. गुरु अमरदास जी नशीली वस्तुओं के सेवन के भी घोर विरोधी थे। उन्होंने अपने अनुयायियों को सभी नशीली वस्तुओं से दूर रहने का निर्देश दिया।

दीर्घ उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
गुरु अंगद साहिब ने सिक्ख धर्म के विकास के लिए क्या योगदान दिया?
उत्तर-
श्री गुरु नानक देव जी (1539 ई०) के पश्चात् गुरु अंगद देव जी गुरुगद्दी पर आसीन हुए। उनका नेतृत्व सिक्ख धर्म के लिए वरदान सिद्ध हुआ। उन्होंने अग्रलिखित ढंग से सिक्ख धर्म के विकास में योगदान दिया

  1. गुरुमुखी लिपि में सुधार-गुरु अंगद देव जी ने गुरुमुखी लिपि में सुधार किया। कहते हैं कि गुरु अंगद देव जी ने गुरुमुखी के प्रचार के लिए गुरुमुखी वर्णमाला में बाल बोध’ की रचना की। जनसाधारण की भाषा होने के कारण इससे सिक्ख धर्म के प्रचार के कार्य को बढ़ावा मिला। आज सिक्खों के सभी धार्मिक ग्रंथ इसी भाषा में हैं।
  2. गुरु नानक देव जी की जन्म-साखी-श्री गुरु अंगद देव जी ने श्री गुरु नानक देव जी की सारी बाणी को एकत्रित करके भाई बाला से गुरु जी की जन्म-साखी (जीवन-चरित्र) लिखवाई। इससे सिक्ख गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं का पालन करने लगे।
  3. लंगर प्रथा-श्री गुर अंगद देव जी ने लंगर प्रथा जारी रखी। उन्होंने यह आज्ञा दी कि जो कोई उनके दर्शन को आए, उसे पहले लंगर में भोजन कराया जाए। यहां प्रत्येक व्यक्ति बिना किसी भेद-भाव के भोजन करता था। इससे जाति-पाति की भावनाओं को धक्का लगा और सिक्ख धर्म के प्रसार में सहायता मिली।
  4. उदासियों से सिक्ख धर्म को अलग करना-गुरु नानक देव जी के बड़े पुत्र श्रीचंद जी ने उदासी संप्रदाय की स्थापना की थी। उन्होंने संन्यास का प्रचार किया। यह बात गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं के विरुद्ध थी। अतः गुरु अंगद देव जी ने उदासियों से नाता तोड़ लिया।
  5. गोइंदवाल का निर्माण-गुरु अंगद देव जी ने गोइंदवाल नामक नगर की स्थापना की। गुरु अमरदास जी के समय में यह नगर सिक्खों का एक प्रसिद्ध धार्मिक केंद्र बन गया। आज भी यह सिक्खों का एक पवित्र धार्मिक स्थान
  6. अनुशासन को बढ़ावा-गुरु जी बड़े ही अनुशासन प्रिय थे। उन्होंने सत्ता और बलवंड नामक दो प्रसिद्ध रबाबियों को अनुशासन भंग कराने के कारण दरबार से निकाल दिया, परंतु बाद में भाई लद्धा के प्रार्थना करने पर गुरु जी ने उन्हें क्षमा कर दिया।
    सच तो यह है कि गुरु अंगद देव जी ने सिक्ख धर्म को पृथक् पहचान प्रदान की।

प्रश्न 2.
गुरु अमरदास जी ने सिक्ख धर्म के विकास के लिए क्या-क्या कार्य किए ?
उत्तर-
गुरु अमरदास जी को सिक्ख धर्म में विशिष्ट स्थान प्राप्त है। गुरु नानक देव जी ने धर्म का जो बीज बोया था वह गुरु अंगद देव जी के काल में अंकुरित हो गया। गुरु अमरदास जी ने अपने कार्यों से इस नये पौधे की रक्षा की। संक्षेप में, गुरु अमरदास जी के कार्यों का वर्णन इस प्रकार है

  1. गोइंदवाल साहिब की बावली का निर्माण-गुरु अमरदास जी ने सर्वप्रथम गोइंदवाल साहिब के स्थान पर एक बावली (जल-स्रोत) का निर्माण कार्य पूरा किया जिसका शिलान्यास गुरु अंगद देव जी के समय रखा गया था। गुरु अमरदास जी ने इस बावली की तह तक पहुंचने के लिए 84 सीढ़ियां बनवाईं। गुरु जी के अनुसार प्रत्येक सीढ़ी पर जपुजी साहिब का पाठ करने से जन्म-मरण की चौरासी लाख योनियों के चक्कर से मुक्ति मिलेगी। गोइंदवाल साहिब की बावली सिक्ख धर्म का एक प्रसिद्ध तीर्थ-स्थान बन गई।
  2. लंगर प्रथा-गुरु अमरदास जी ने लंगर प्रथा का विस्तार करके सिक्ख धर्म के विकास की ओर एक और महत्त्वपूर्ण कदम उठाया। उन्होंने लंगर के लिए कुछ विशेष नियम बनाए। अब कोई भी व्यक्ति लंगर में भोजन किए बिना गुरु जी से नहीं मिल सकता था। लंगर प्रथा से जाति-पाति तथा रंग-रूप के भेदभावों को बड़ा धक्का लगा और लोगों में समानता की भावना का विकास हुआ। परिणामस्वरूप सिक्ख एकता के सूत्र में बंधने लगे।
  3. सिक्ख गुरु साहिबान के शब्दों को एकत्रित करना-गुरु नानक देव जी के शब्दों तथा श्लोकों को गुरु अंगद देव जी ने एकत्रित करके उनके साथ अपने रचे हुए शब्द भी जोड़ दिए थे। यह सारी सामग्री गुरु अंगद देव जी ने गुरु अमरदास जी को सौंप दी थी। गुरु अमरदास जी ने कुछ-एक नए श्लोकों की रचना की और उन्हें पहले वाले संकलन (collection) के साथ मिला दिया। इस प्रकार विभिन्न गुरु साहिबान के शब्दों तथा उपदेशों के एकत्र हो जाने से ऐसी सामग्री तैयार हो गई जो आदि ग्रंथ साहिब के संकलन का आधार बनी।
  4. मंजी प्रथा-वृद्धावस्था के कारण गुरु साहिब जी के लिए एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाकर अपनी शिक्षाओं का प्रचार करना कठिन हो गया था। अतः उन्होंने अपने पूरे आध्यात्मिक साम्राज्य को 22 प्रांतों में बांट दिया। इनमें से प्रत्येक प्रांत को ‘मंजी’ कहा जाता था। प्रत्येक मंजी सिक्ख धर्म के प्रचार का एक केंद्र थी। गुरु अमरदास जी द्वारा स्थापित मंजी प्रणाली का सिक्ख धर्म के इतिहास में विशेष महत्त्व है। डॉ० गोकुल चंद नारंग के शब्दों में, “गुरु जी के इस कार्य ने सिक्ख धर्म की नींव सुदृढ़ करने तथा देश के सभी भागों में प्रचार कार्य बढ़ाने में विशेष योगदान दिया।”
  5. उदासियों से सिक्खों को पृथक् करना-गुरु साहिब ने उदासी संप्रदाय के सिद्धांतों का जोरदार शब्दों में खंडन किया। उन्होंने अपने अनुयायियों को समझाया कि कोई भी व्यक्ति, जो उदासी नियमों का पालन करता है, सच्चा सिक्ख नहीं हो सकता। गुरु जी के इन प्रयत्नों से सिक्ख उदासियों से पृथक् हो गए और सिक्ख धर्म का अस्तित्व मिटने से बच गया।
  6. नई परंपराएं-गुरु अमरदास जी ने सिक्खों को व्यर्थ के रीति-रिवाजों का त्याग करने का उपदेश दिया। हिंदुओं में किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाने पर खूब रोया-पीटा जाता था। परंतु गुरु अमरदास जी ने सिक्खों को रोने-पीटने के स्थान पर ईश्वर का नाम लेने का उपदेश दिया। उन्होंने विवाह की भी नई विधि आरंभ की जिसे आनंद कारज कहते हैं।
  7. आनंद साहिब की रचना-गुरु अमरदास जी ने एक नई बाणी की रचना की जिसे आनंद साहिब कहा जाता सच तो यह है कि गुरु अमरदास जी का गुरु काल सिक्ख धर्म के इतिहास में विशेष महत्त्व रखता है। गुरु जी के द्वारा बाऊली का निर्माण, मंजी प्रथा के आरंभ, लंगर प्रथा के विस्तार तथा नए रीति-रिवाजों ने सिख धर्म के संगठन में बड़ी सहायता की।

PSEB 9th Class SST Solutions History Chapter 3 सिक्ख धर्म का विकास (1539 ई०-1581 ई०)

प्रश्न 3.
गुरु अमरदास जी के द्वारा किए गए सुधारों का वर्णन करो। .
उत्तर-
गुरु अमरदास जी के समय में समाज अनेकों बुराइयों का शिकार हो चुका था। गुरु जी इस बात को भली-भांति समझते थे, इसलिए उन्होंने कई महत्त्वपूर्ण सामाजिक सुधार किए। सामाजिक क्षेत्र में गुरु जी के कार्यों का वर्णन निम्नलिखित है-

  1. जाति-पाति का विरोध-गुरु अमरदास जी ने जाति-मतभेद का खंडन किया। उनका विश्वास था कि जातीय मतभेद परमात्मा की इच्छा के विरुद्ध है। .
  2. छुआछूत की निंदा-गुरु अमरदास जी ने छुआछूत को समाप्त करने के लिए महत्त्वपूर्ण कार्य किया। उनके लंगर में जाति-पाति का कोई भेदभाव नहीं था। वहां सभी लोग एक साथ बैठकर भोजन करते थे।
  3. विधवा विवाह-गुरु अमरदास के समय में विधवा विवाह निषेध था। किसी स्त्री को पति की मृत्यु के पश्चात् सारा जीवन विधवा के रूप में व्यतीत करना पड़ता था। गुरु जी ने विधवा विवाह को उचित बताया और इस प्रकार स्त्री जाति को समाज में योग्य स्थान दिलाने का प्रयत्न किया।
  4. सती-प्रथा की भर्त्सना-उस काल के समाज में एक और बड़ी बुराई सती-प्रथा की थी। जी० वी० स्टॉक के अनुसार, गुरु अमरदास जी ने सती-प्रथा की सबसे पहले निंदा की। उनका कहना था कि वह स्त्री सती नहीं कही जा सकती जो अपने पति के मृत शरीर के साथ जल जाती है। वास्तव में वही स्त्री सती है जो अपने पति के वियोग की पीड़ा को सहन करे।
  5. पर्दे की प्रथा का विरोध-गुरु जी ने स्त्रियों में प्रचलित पर्दे की प्रथा की भी घोर निंदा की। वह पर्दे की प्रथा को समाज की उन्नति के मार्ग में एक बहुत बड़ी बाधा मानते थे। इसलिए उन्होंने स्त्रियों को बिना पर्दा किए लंगर की सेवा करने तथा संगत में बैठने का आदेश दिया।
  6. नशीली वस्तुओं की निंदा-गुरु अमरदास जी ने अपने अनुयायियों को नशीली वस्तुओं से दूर रहने का उपदेश दिया। उन्होंने अपने एक ‘शब्द’ में शराब सेवन की खूब निंदा की है।
  7. सिक्खों में भ्रातृत्व की भावना-गुरु जी ने सिक्खों को यह आदेश दिया कि वे माघी, दीपावली और वैशाखी आदि त्योहारों को एक साथ मिलकर नई परंपरा के अनुसार मनायें। इस प्रकार उन्होंने सिक्खों में भ्रातृत्व की भावना जागृत करने का प्रयास किया।
  8. जन्म तथा मृत्यु के संबंध में नये नियम-गुरु अमरदास जी ने सिक्खों को जन्म-मृत्यु तथा विवाह के अवसरों पर नये रिवाजों का पालन करने को कहा। ये रिवाज हिंदुओं के रीति-रिवाजों से बिल्कुल भिन्न थे। इनके लिए ब्राह्मण वर्ग को बुलाने की कोई आवश्यकता न थी। इस प्रकार गुरु साहिब ने सिक्ख धर्म को पृथक् पहचान प्रदान की।
    सच तो यह है कि गुरु अमरदास जी ने अपने कार्यों से सिक्ख धर्म को नया बल दिया।

प्रश्न 4.
गुरु रामदास जी ने सिक्ख धर्म के विकास के लिए क्या यत्न किए ?
उत्तर-
गुरु रामदास जी सिक्खों के चौथे गुरु थे। उन्होंने सिक्ख पंथ के विकास में निम्नलिखित योगदान दिया

  1. अमृतसर का शिलान्यास-गुरु रामदास जी ने रामदासपुर की नींव रखी। आजकल इस नगर को अमृतसर कहते हैं। 1577 ई० में गुरु जी ने यहां अमृतसर तथा संतोखसर नामक दो सरोवरों की खुदाई आरंभ की। कुछ ही समय में सरोवर के चारों ओर एक छोटा-सा नगर बस गया। इसे रामदासपुर का नाम दिया गया। गुरु जी इस नगर को हर प्रकार से आत्म-निर्भर बनाना चाहते थे। अत: उन्होंने 52 अलग-अलग प्रकार के व्यापारियों को आमंत्रित किया। उन्होंने एक बाज़ार की स्थापना की जिसे आजकल ‘गुरु का बाज़ार’ कहते हैं।
  2. मसंद प्रथा का आरंभ-गुरु रामदास जी को अमृतसर तथा संतोखसर नामक सरोवरों की खुदाई के लिए काफ़ी धन की आवश्यकता थी। अत: उन्होंने मसंद प्रथा का आरंभ किया। इसके अनुसार गुरु के मसंद स्थानीय सिख संगत के लिए गुरु के प्रतिनिधि के रूप में कार्य करते थे। वे संगत को गुरु घर से जोड़ते थे और उनकी साझा समस्याओं का समाधान भी करते थे। इन मसंदों ने विभिन्न प्रदेशों में सिक्ख धर्म का खूब प्रचार किया तथा काफ़ी धन राशि एकत्रित की।
  3. उदासियों से मत-भेद की समाप्ति-गुरु अंगद देव जी तथा गुरु अमरदास जी ने सिक्खों को उदासी संप्रदाय से अलग कर दिया था। परंतु गुरु रामदास जी ने उदासियों से बड़ा विनम्रतापूर्ण व्यवहार किया। उदासी संप्रदाय के संचालक बाबा श्रीचंद जी एक बार गुरु रामदास जी से मिलने आए। दोनों के बीच एक महत्त्वपूर्ण वार्तालाप हुआ। श्रीचंद जी गुरु साहिब की विनम्रता से बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने गुरु जी की श्रेष्ठता को स्वीकार कर लिया।
  4. सामाजिक सुधार-गुरु रामदास जी ने गुरु अमरदास जी द्वारा आरंभ किए गए नए सामाजिक रीति-रिवाजों को जारी रखा। उन्होंने सती प्रथा की घोर निंदा की, विधवा पुनर्विवाह की अनुमति दी तथा विवाह और मृत्यु संबंधी कुछ नए नियम जारी किए।
  5. अकबर के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध -मुग़ल सम्राट अकबर सभी धर्मों के प्रति सहनशील था। वह गुरु रामदास जी का बड़ा सम्मान करता था। कहा जाता है कि गुरु रामदास जी के समय में एक बार पंजाब बुरी तरह अकाल की चपेट में आ गया जिससे किसानों की दशा बहुत खराब हो गई, परंतु गुरु जी के कहने पर अकबर ने पंजाब के कृषकों का पूरे वर्ष का लगान माफ कर दिया।
  6. गुरुगद्दी का पैतृक सिद्धांत-गुरु रामदास जी ने गुरुगद्दी को पैतृक रूप प्रदान किया। उन्होंने ज्योति जोत समाने से कुछ समय पूर्व गुरुगद्दी अपने छोटे, परंतु सबसे योग्य पुत्र अर्जन देव जी को सौंप दी। गुरु रामदास जी ने गुरुगद्दी को पैतृक बनाकर सिक्ख इतिहास में एक नवीन अध्याय का श्रीगणेश किया। परंतु एक बात ध्यान देने योग्य है कि गुरु पद का आधार गुण तथा योग्यता ही रहा।
    सच तो यह है कि गुरु रामदास जी ने बहुत ही कम समय तक सिक्ख मत का मार्ग-दर्शन किया। परंतु इस थोड़े समय में ही उनके प्रयत्नों से सिक्ख धर्म के रूप में विशेष निखार आया।

सिक्ख धर्म का विकास PSEB 9th Class History Notes

  1.  गुरु अंगद देव जी – दूसरे सिक्ख गुरु अंगद देव जी ने गुरु नानक साहिब की बाणी एकत्रित की और इसे गुरुमुखी लिपि में लिखा। उनका यह कार्य गुरु अर्जन साहिब द्वारा संकलित ‘ग्रंथ साहिब’ की तैयारी का पहला चरण सिद्ध हुआ। गुरु अंगद देव जी ने स्वयं भी गुरु नानक देव जी के नाम से बाणी की रचना की। इस प्रकार उन्होंने गुरु पद की एकता को दृढ़ किया। संगत और पंगत की संस्थाएं गुरु अंगद साहिब के अधीन भी जारी रहीं।
  2. गुरु अमरदास जी – गुरु अमरदास जी सिक्खों के तीसरे गुरु थे। वह 22 वर्ष तक गुरुगद्दी पर रहे। वह खडूर साहिब से गोइंदवाल साहिब चले गए। वहां उन्होंने एक बाउली बनवाई जिसमें उनके सिक्ख (शिष्य) धार्मिक अवसरों पर स्नान करते थे। गुरु अमरदास जी. ने विवाह की एक सरल विधि प्रचलित की और उसे आनंद-कारज का नाम दिया। उनके समय में सिक्खों की संख्या काफ़ी बढ़ गई।
  3. गुरु रामदास जी – चौथे गुरु रामदास जी ने रामदासपुर (आधुनिक अमृतसर) में रह कर प्रचार कार्य आरंभ किया। इसकी नींव गुरु अमरदास जी के जीवन-काल के अंतिम वर्षों में रखी गई थी। श्री रामदास जी ने रामदासपुर में एक बहुत बड़ा सरोवर बनवाया जो अमृतसर अर्थात् अमृत के सरोवर के नाम से प्रसिद्ध हुआ। उन्हें अमृतसर तथा संतोखसर नामक तालाबों की खुदाई के लिए काफ़ी धन की आवश्यकता थी। इसलिए उन्होंने मसंद प्रथा का श्रीगणेश किया। उन्होंने गुरुगद्दी को पैतृक रूप भी प्रदान किया।
  4. गुरुमुखी लिपि को मानकीकरण – गुरु अंगद देव जी ने गुरुमुखी लिपि का मानकीकरण किया। कहते हैं कि गुरु अंगद देव जी ने गुरुमुखी के प्रचार के लिए गुरुमुखी वर्णमाला में बच्चों के लिए ‘बाल बोध’ की रचना की। आम लोगों की बोली होने के कारण इससे सिक्ख धर्म के प्रचार के कार्य को बढ़ावा मिला। आज सिक्खों के सभी धार्मिक ग्रंथ इसी भाषा में हैं।
  5. मंजी प्रथा –   गुरु अमरदास जी के समय में सिक्खों की संख्या काफी बढ़ चुकी थी। परंतु वृद्धावस्था के कारण गुरु साहिब जी के लिए एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाकर अपनी शिक्षाओं का प्रचार करना कठिन हो गया था। अत: उन्होंने अपने सारे आध्यात्मिक साम्राज्य को 22 प्रांतों में बांट दिया। इनमें से प्रत्येक प्रांत को ‘मंजी’ कहा जाता था। प्रत्येक मंजी सिक्ख धर्म के प्रचार का एक केंद्र थी जिसके संचालन का कार्यभार गुरु जी ने अपने किसी विद्वान् श्रद्धालु शिष्य को सौंप रखा था।
  6. अनंदु साहिब की रचना – गुरु अमरदास जी ने एक नई बाणी की रचना की जिसे ‘अनंदु साहिब’ कहा जाता है। इस बाणी से सिक्खों में वेद-मंत्रों के उच्चारण का महत्त्व बिल्कुल समाप्त हो गया।
  7. गोइंदवाल साहिब का निर्माण – गुरु अंगद देव जी ने गोइंदवाल साहिब नामक नगर की स्थापना की। गुरु अमरदास जी के समय में यह नगर एक प्रसिद्ध धार्मिक केंद्र बन गया। आज भी यह सिक्खों का एक पवित्र धार्मिक स्थान है।
  8. लंगर प्रथा का विस्तार – श्री गुरु अंगद देव जी ने श्री गुरु नानक देव जी द्वारा आरम्भ की गई लंगर प्रथा का विस्तार किया। उन्होंने यह आज्ञा दी कि जो कोई उनके दर्शन को आए, वह पहले लंगर में भोजन करे। यहां प्रत्येक व्यक्ति बिना किसी भेद-भाव के भोजन करता था। इससे जाति-पाति की भावनाओं को धक्का लगा और सिक्ख धर्म के प्रसार में सहायता मिली।
  9. 31 मार्च, 1504-श्री गुरु अंगद देव जी का जन्म।
  10. 2 सितंबर, 1539 ई० से 29 मार्च 1552 ई०-गुरु अंगद देव जी गुरुगद्दी पर विराजमान रहे।
  11. 1546 ई०-श्री गुरु अंगद देव जी द्वारा गोइंदवाल साहिब नगर की स्थापना।
  12. 29 मार्च, 1552-श्री गुरु अंगद देव जी ज्योति-जोत समाए।
  13. 5 मई, 1479 ई०-श्री गुरु अमरदास जी का जन्म।
  14. मार्च 1552 ई०-श्री गुरु अमरदास जी गुरुगद्दी पर विराजमान।
  15. मार्च 1559 ई०- श्री गुरु अमरदास जी ने गोइंदवाल साहिब में बाउली का निर्माण कार्य पूरा किया।
  16. 1574 ई०- श्री गुरु अमरदास जी ज्योति-जोत समाए।
  17. 24 सितंबर, 1534 ई०-श्री गुरु रामदास जी का जन्म।
  18. 1574 ई० से 1581 ई०-श्री गुरु रामदास जी गुरुगद्दी पर विराजमान रहे।
  19. 1 सितंबर, 1581 ई०-श्री गुरु रामदास जी ज्योति-जोत समाए।

PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 12 सफ़ाईकारी और अन्य पदार्थ

Punjab State Board PSEB 9th Class Home Science Book Solutions Chapter 12 सफ़ाईकारी और अन्य पदार्थ Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 9 Home Science Chapter 12 सफ़ाईकारी और अन्य पदार्थ

PSEB 9th Class Home Science Guide सफ़ाईकारी और अन्य पदार्थ Textbook Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
किसी एक सहायक सफाईकारक पदार्थ का नाम लिखें।
उत्तर-
कपड़े धोने वाला सोडा।

प्रश्न 2.
साबुन बनाने के लिए जरूरी पदार्थ कौन-से हैं?
उत्तर-
साबुन बनाने के लिए चर्बी तथा खार आवश्यक पदार्थ हैं। नारियल, महुए, सरसों, जैतून का तेल, सूअर की चर्बी आदि चर्बी के रूप में प्रयोग किये जा सकते हैं। जबकि खार कास्टिक सोडा अथवा पोटाश से प्राप्त की जाती है।

प्रश्न 3.
साबुन बनाने की कौन-कौन सी विधियाँ हैं?
उत्तर-
साबुन बनाने की दो विधियाँ हैं-(i) गर्म तथा (ii) ठण्डी विधि।

प्रश्न 4.
वस्त्रों में कड़ापन क्यों लाया जाता है?
उत्तर-

  1. वस्त्रों में ऐंठन लाने से यह मुलायम हो जाते हैं तथा इनमें चमक आ जाती है।
  2. मैल भी वस्त्र के ऊपर ही रह जाती है जिस कारण कपड़े को धोना आसान हो जाता
  3. वस्त्र में जान पड़ जाती है। देखने में मज़बूत लगता है।

PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 12 सफ़ाईकारी और अन्य पदार्थ

प्रश्न 5.
वस्त्रों से दाग उतारने वाले पदार्थों को मुख्य रूप से कितने भागों में बांटा जा सकता है?
उत्तर-
इन्हें दो भागों में बांटा जा सकता है

  1. ऑक्सीडाइजिंग ब्लीच-इससे ऑक्सीजन निकलकर धब्बे को रंग रहित कर देती है। हाइड्रोजन पराऑक्साइड, सोडियम परबोरेट आदि ऐसे पदार्थ हैं।
  2. रिड्यूसिंग एजेंट-यह पदार्थ धब्बे से ऑक्सीजन निकालकर उसे रंग रहित कर देते हैं। सोडियम बाइसल्फाइट तथा सोडियम हाइड्रोसल्फेट ऐसे पदार्थ हैं।

प्रश्न 6.
साबुन और साबुन रहित सफ़ाईकारी पदार्थ में क्या अन्तर है?
उत्तर-

साबुन साबुन रहित सफ़ाईकारी पदार्थ
(1) साबुन प्राकृतिक तेलों जैसे नारियल, जैतून, सरसों आदि अथवा चर्बी जैसे सूभर की चर्बी आदि से बनता है। (1) साबुन रहित सफ़ाईकारी पदार्थ शोधक रासायनिक पदार्थों से बनता है।
(2) साबुन का प्रयोग भारी पानी में नहीं किया जा सकता। (2) इनका प्रयोग भारी पानी में भी किया जा सकता है।
(3) साबुन को जब कपड़े पर रगड़ा जाता है तो सफ़ेद-सी झाग बनती है। (3) इनमें कई बार सफ़ेद झाग नहीं बनती।

प्रश्न 7.
वस्त्रों को सफ़ेद करने वाले पदार्थ कौन-कौन से हैं?
उत्तर-
वस्त्रों को सफ़ेद करने वाले पदार्थ हैं-नील तथा टीनोपॉल अथवा रानीपॉल।
नील-नील दो प्रकार के होते हैं-

  1. पानी में घुलनशील तथा
  2. पानी में अघुलनशील नील। इण्डिगो, अल्ट्रामैरीन तथा प्रशियन नील पहली प्रकार के नील हैं। यह पानी के नीचे बैठ जाते हैं। इन्हें अच्छी तरह से मलना पड़ता है।
    एनीलिन दूसरी तरह के नील हैं। यह पानी में घुल जाते हैं।
    टीनोपॉल-यह भी सफ़ेद वस्त्रों को और सफ़ेद तथा चमकदार करने के लिए प्रयोग किये जाते हैं।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 8.
ठण्डी विधि द्वारा कौन-कौन सी वस्तुओं से साबुन कैसे तैयार किया जा सकता है? इसकी क्या हानियां हैं?
उत्तर-
ठण्डी विधि द्वारा साबुन तैयार करने के लिए निम्नलिखित सामान लोकास्टिक सोडा अथवा पोटाश-250 ग्राम महुआ अथवा नारियल तेल-1 लीटर पानी- 3/4 किलोग्राम मैदा- 250 ग्राम।
किसी मिट्टी के बर्तन में कास्टिक सोडा तथा पानी को मिलाकर 2 घण्डे तक रख दो। तेल तथा मैदे को अच्छी तरह घोल लो तथा फिर इसमें सोडे का घोल धीरे-धीरे डालो तथा मिलाते रहो। पैदा हुई गर्मी से साबुन तैयार हो जाएगा। इसको किसी सांचे में डालकर सुखा लो तथा चक्कियां काट लो।
हानियां-साबुन में अतिरिक्त खार तथा तेल और ग्लिसरॉल आदि साबुन में रह जाते हैं। अधिक खार वाले साबुन कपड़ों को हानि पहुँचाते हैं।

प्रश्न 9.
साबुन किन-किन किस्मों में मिलता है?
उत्तर-
साबुन निम्नलिखित किस्मों में मिलता है

  1. साबुन की चक्की-साबुन चक्की के रूप में प्रायः मिल जाता है। चक्की को गीले वस्त्र पर रगड़कर इसका प्रयोग किया जाता है।
  2. साबुन का पाऊडर-यह साबुन तथा सोडियम कार्बोनेट का बना होता है। इसको गर्म पानी में घोलकर कपड़े धोने के लिए प्रयोग किया जाता है। इसमें सफ़ेद-सफ़ेद सूती वस्त्रों को अच्छी तरह साफ़ किया जाता है।
  3. साबुन का चूरा-यह बन्द पैकटों में मिलता है। इसको पानी में उबालकर सूती वस्त्र कुछ देर भिगो कर रखने के पश्चात् इसमें धोया जाता है। रोगियों के वस्त्रों को भी । कीटाणु रहित करने के लिए साबुन के उबलते घोल का प्रयोग किया जाता है।
  4. साबुन की लेस-एक हिस्सा साबुन का चूरा लेकर पाँच हिस्से पानी डालकर तब तक उबालो जब तक लेस-सी तैयार न हो जाये। इसको ठण्डा होने पर बोतलों में डालकर रख लो तथा ज़रूरत पड़ने पर पानी डालकर धोने के लिए इसे प्रयोग किया जा सकता है।

PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 12 सफ़ाईकारी और अन्य पदार्थ

प्रश्न 10.
अच्छे साबुन की पहचान क्या है?
उत्तर-

  1. साबुन हल्के पीले रंग का होना चाहिए। गहरे रंग के साबुन में मिलावट भी हो सकती है।
  2. साबुन हाथ लगाने पर थोड़ा कठोर होना चाहिए। अधिक नर्म साबुन में ज़रूरत से अधिक पानी हो सकता है जो केवल भार बढ़ाने के लिए ही होता है।
  3. हाथ लगाने पर अधिक कठोर तथा सूखा नहीं होना चाहिए। कुछ घटिया किस्म के साबुनों में भार बढ़ाने वाले पाऊडर डाले होते हैं जो वस्त्र धोने में सहायक नहीं होते।
  4. अच्छा साबुन स्टोर करने पर, पहले की तरह रहता है, जबकि घटिया साबुनों पर स्टोर करने पर सफ़ेद पाऊडर-सा बन जाता है। इनमें आवश्यकता से अधिक खार होती है जोकि वस्त्र को खराब भी कर सकती है।
  5. अच्छा साबुन जुबान पर लगाने से ठीक स्वाद देता है जबकि मिलावट वाला साबुन जुबान पर लगाने से तीखा तथा कड़वा स्वाद देता है।

प्रश्न 11.
साबुन रहित प्राकृतिक सफ़ाईकारी पदार्थ कौन-से हैं?
उत्तर-
साबुन रहित प्राकृतिक, सफ़ाईकारी पदार्थ हैं-रीठे तथा शिकाकाई। इनकी फलियों को सुखा कर स्टोर कर लिया जाता है।

  1. रीठा-रीठों की बाहरी छील के रस में वस्त्र साफ़ करने की शक्ति होती है। रीठों की छील उतारकर पीस लो तथा 250 ग्राम छील को कुछ घण्टे के लिए एक लिटर पानी में भिगो कर रखो तथा फिर इन्हें उबालो वस्त्र तथा ठण्डा करके छानकर बोतलों में भरकर रखा जा सकता है। इसके प्रयोग से ऊनी, रेशमी वस्त्र ही नहीं अपितु सोने, चांदी के आभूषण भी साफ़ किये जा सकते हैं।
  2. शिकाकाई-इसका भी रीठों की तरह घोल बना लिया जाता है। इससे कपड़े निखरते ही नहीं अपितु उनमें चमक भी आ जाती है। इससे सिर भी धोया जा सकता है।

प्रश्न 12.
साबुन रहित रासायनिक सफ़ाईकारी पदार्थों से आप क्या समझते हो ? इनके क्या लाभ हैं?
उत्तर-
साबुन प्राकृतिक तेल अथवा चर्बी से बनते हैं जबकि रासायनिक सफ़ाईकारी शोधक रासायनिक पदार्थों से बनते हैं। यह चक्की, पाऊडर तथा तरल के रूप में उपलब्ध हो सकते हैं।
लाभ-

  1. इनका प्रयोग हर तरह के सूती, रेशमी, ऊनी तथा बनावटी रेशों के लिए किया जा सकता है।
  2. इनका प्रयोग गर्म, ठण्डे, हल्के अथवा भारी सभी प्रकार के पानी में किया जा सकता है।

प्रश्न 13.
साबुन और अन्य साबुन रहित सफ़ाईकारी पदार्थों के अतिरिक्त वस्त्रों की । धुलाई के लिए कौन-से सहायक सफ़ाईकारी पदार्थ प्रयोग किये जाते हैं?
उत्तर-
सहायक सफ़ाईकारी पदार्थ निम्नलिखित हैं

  1. वस्त्र धोने वाला सोडा-इसको सफ़ेद सूती वस्त्रों को धोने के लिए प्रयोग किया जाता है। परन्तु रंगदार सूती वस्त्रों का रंग हल्का पड़ जाता है तथा रेशे कमजोर हो जाते हैं।
    यह रवेदार होता है तथा उबलते पानी में तुरन्त घुल जाता है। इससे सफ़ाई की प्रक्रिया में वृद्धि होती है। इसका प्रयोग भारी पानी को हल्का करने के लिए, चिकनाहट साफ़ करने तथा दाग़ उतारने के लिए किया जाता है।
  2. बोरैक्स (सुहागा)-इसका प्रयोग सफ़ेद सूती वस्त्रों के पीलेपन को दूर करने के लिए तथा चाय, कॉफी, फल, सब्जियों आदि के दाग उतारने के लिए किया जाता है। इसके हल्के घोल में मैले वस्त्र भिगोकर रखने पर उनकी मैल उगल आती है। इससे वस्त्रों में ऐंठन भी लाई जाती है।
  3. अमोनिया- इसका प्रयोग रेशमी तथा ऊनी कपड़ों से चिकनाहट के दाग दूर करने के लिए किया जाता है।
  4. एसिटिक एसिड-रेशमी वस्त्र को इसके घोल में खंगालने से इनमें चमक आ जाती है। इसका प्रयोग वस्त्रों से अतिरिक्त नील का प्रभाव कम करने के लिए भी किया जाता है। रेशमी, ऊनी वस्त्र की रंगाई के समय भी इसका प्रयोग किया जाता है।
  5. ऑग्जैलिक एसिड-इसका प्रयोग छार की बनी चटाइयों, टोकरियों तथा टोपियों आदि को साफ़ करने के लिए किया जाता है। स्याही, जंग, दवाई आदि के दाग उतारने के लिए भी इसका प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न 14.
वस्त्रों से दागों का रंगकाट करने के लिए क्या प्रयोग किया जाता है?
उत्तर-
कपड़ों से दागों का रंगकाट करने के लिए ब्लीचों का प्रयोग होता है। ये दो प्रकार के होते हैं।

  1. ऑक्सीडाइजिंग ब्लीच-जब इनका प्रयोग धब्बे पर किया जाता है, इसकी ऑक्सीजन धब्बे से क्रिया करके इसको रंग रहित कर देती है तथा दाग उतर जाता है। प्राकृतिक धूप, हवा तथा नमी, पोटाशियम परमैंगनेट, हाइड्रोजन पराक्साइड, सोडियम परबोरेट, हाइपोक्लोराइड आदि ऐसे रंग काट हैं।
  2. रिड्यूसिंग ब्लीच-जब इनका प्रयोग धब्बे पर किया जाता है तो यह धब्बे से ऑक्सीजन निकालकर इसको रंग रहित कर देते हैं। सोडियम बाइसल्फाइट, सोडियम हाइड्रोसल्फाइट ऐसे ही रंग काट हैं। ऊनी तथा रेशमी वस्त्रों पर इनका प्रयोग आसानी से किया जा सकता है।
    परन्तु तेज़ रंग काट से वस्त्र खराब भी हो जाते हैं।

प्रश्न 15.
वस्त्रों को नील क्यों दिया जाता है?
उत्तर-
सफ़ेद सूती तथा लिनन के वस्त्रों पर बार-बार धोने से पीलापन-सा आ जाता है। इसको दूर करने के लिए वस्त्रों को नील दिया जाता है तथा वस्त्र की सफ़ेदी बनी रहती है।

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प्रश्न 16.
नील की मुख्य कौन-कौन सी किस्में हैं?
उत्तर-
नील मुख्यतः दो प्रकार का होता है

  1. पानी मैं अघुलनशील नील-इण्डिगो, अल्ट्रामैरीन तथा प्रशियन नील ऐसे नील हैं। इसके कण पानी के नीचे बैठ जाते हैं, इसलिए वस्त्रों को देने से पहले नील वाले पानी में अच्छी तरह हिलाना पड़ता है।
  2. पानी में घुलनशील नील-इनको पानी में थोड़ी मात्रा में घोलना पड़ता है तथा इससे वस्त्र पर थोड़ा नीला रंग आ जाता है। इस तरह वस्त्र का पीलापन दूर हो जाता है। एनीलिन नील ऐसा ही नील है।

प्रश्न 17.
नील देते समय ध्यान में रखने योग्य बातें कौन-सी हैं?
उत्तर-

  1. नील सफ़ेद वस्त्रों को देना चाहिए रंगीन कपड़ों को नहीं।
  2. यदि नील पानी में अघुलनशील हो तो पानी को हिलाते रहना चाहिए नहीं तो वस्त्रों पर नील के धब्बे से पड़ जाएंगे।
  3. नील के धब्बे दूर करने के लिए वस्त्र को सिरके वाले पानी में खंगाल लेना चाहिए। (4) नील दिए वस्त्रों को धूप में सुखाने पर उनमें और भी सफ़ेदी आ जाती है।

प्रश्न 18.
नील देते समय धब्बे क्यों पड़ जाते हैं? यदि धब्बे पड़ जायें तो क्या करना चाहिए?
उत्तर-
अघुलनशील नील के कण पानी के नीचे बैठ जाते हैं तथा इस तरह वस्त्रों को नील देने से वस्त्रों पर कई बार नील के धब्बे पड़ जाते हैं। जब नील के धब्बे पड़ जाएं तो वस्त्र को सिरके के घोल में खंगाल लेना चाहिए।

प्रश्न 19.
वस्त्रों में कड़ापन लाने के लिए किन वस्तुओं का प्रयोग किया जाता है?
उत्तर-
वस्त्रों में ऐंठन लाने के लिए निम्नलिखित पदार्थों का प्रयोग किया जाता है

  1. मैदा अथवा अरारोट-इसको पानी में घोलकर गर्म किया जाता है।
  2. चावलों का पानी-चावलों को पानी में उबालने के पश्चात् बचे पानी जिसको छाछ कहते हैं का प्रयोग वस्त्र में ऐंठन लाने के लिए किया जाता है।
  3. आलू-आलू काटकर पीस लिया जाता है तथा पानी में गर्म करके वस्त्रों में ऐंठन लाने के लिए प्रयोग किया जाता है।
  4. गूंद-गूंद को पीसकर गर्म पानी में घोल लिया जाता है तथा घोल को पतले वस्त्र में छान लिया जाता है। इसका प्रयोग रेशमी वस्त्रों, लेसों तथा वैल के वस्त्रों में ऐंठन लाने के लिए किया जाता है।
  5. बोरैक्स (सुहागा)-आधे लीटर पानी में दो बड़े चम्मच सुहागा घोल कर लेसों पर इसका प्रयोग किया जाता है।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 20.
वस्त्रों की धुलाई के लिए कौन-कौन से पदार्थ प्रयोग में लाए जा सकते हैं?
उत्तर-
स्वयं उत्तर दें।

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प्रश्न 21.
किस प्रकार के वस्त्रों को सफ़ेद करने की आवश्यकता पड़ती है? वस्त्रों में कड़ापन किन पदार्थों के द्वारा लाया जा सकता है?
उत्तर-
सफ़ेद सूती तथा लिनन के वस्त्रों को बार-बार धोने पर इन पर पीलापन सा आ जाता है। इनका यह पीलापन दूर करने के लिए नील देना पड़ता है।

वस्त्रों में ऐंठन लाने के लिए निम्नलिखित पदार्थों का प्रयोग किया जाता है

  1. मैदा अथवा अरारोट-इसको पानी में घोलकर गर्म किया जाता है।
  2. चावलों का पानी-चावलों को पानी में उबालने के पश्चात् बचे पानी जिसको छाछ कहते हैं का प्रयोग वस्त्र में ऐंठन लाने के लिए किया जाता है।
  3. आलू-आलू काटकर पीस लिया जाता है तथा पानी में गर्म करके वस्त्रों में ऐंठन लाने के लिए प्रयोग किया जाता है।
  4. गूंद-गूंद को पीसकर गर्म पानी में घोल लिया जाता है तथा घोल को पतले वस्त्र में छान लिया जाता है। इसका प्रयोग रेशमी वस्त्रों, लेसों तथा वैल के वस्त्रों में ऐंठन लाने के लिए किया जाता है।
  5. बोरैक्स (सुहागा)-आधे लीटर पानी में दो बड़े चम्मच सुहागा घोल कर लेसों पर इसका प्रयोग किया जाता है।

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वस्तुनिष्ठ प्रश्न

रिक्त स्थान भरें

  1. साबुन वसा तथा …………………. के मिश्रण से बनता है।
  2. ………………. के बाहरी छिलके के रस में वस्त्रों को साफ़ करने की शक्ति होती है।
  3. अच्छा साबुन जीभ पर लगाने से ……………….. स्वाद देता है।
  4. सोडियम हाइपोक्लोराइट को …………………. पानी कहते हैं।
  5. सोडियम परबोरेट …………….. काट पदार्थ है।

उत्तर-

  1. क्षार,
  2. रीठों,
  3. ठीक,
  4. जैवले,
  5. आक्सीडाइजिंग।

एक शब्द में उत्तर दें

प्रश्न 1.
एक रिडयूसिंग काट पदार्थ का नाम लिखें।
उत्तर-
सोडियम बाइसल्फाइट।

प्रश्न 2.
पानी में अघुलनशील नील का नाम लिखें।
उत्तर-
इण्डिगो।

प्रश्न 3.
गोंद का प्रयोग किस कपड़े में कड़ापन लाने के लिए किया जा सकता
उत्तर-
वायल के वस्त्रों में।

प्रश्न 4.
रासायनिक साबुन रहित सफाईकारी पदार्थों में से कोई एक नाम बताएं।
उत्तर-
शिकाकाई।

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ठीक/ग़लत बताएं

  1. साबुन बनाने की दो विधियां हैं-गर्म तथा ठण्डी।
  2. हाइड्रोजन पराक्साइड, रिड्यूसिंग ब्लीच है।
  3. साबुन बनाने के लिए चर्बी तथा क्षार आवश्यक पदार्थ हैं।
  4. कपड़ों में अकड़ाव लाने वाले पदार्थ हैं – मैदा, अरारोट, चावलों का पानी आदि।
  5. सफेद कपड़ों को धुलने के बाद नील दिया जाता है।

उत्तर-

  1. ठीक
  2. ग़लत
  3. ठीक
  4. ठीक
  5. ठीक।

बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
साबुन रहित प्राकृतिक, सफ़ाईकारी पदार्थ है
(A) रीठा
(B) शिकाकाई
(C) दोनों ठीक
(D) दोनों ग़लत।
उत्तर-
(C) दोनों ठीक

प्रश्न 2.
पानी में घुलनशील नील नहीं है
(A) इंडीगो
(B) अल्ट्रामैरीन
(C) परशियन नील
(D) सभी।
उत्तर-
(D) सभी।

प्रश्न 3.
कपड़ों में अकड़ाव लाने वाले पदार्थ हैं
(A) चावलों का पानी
(B) गोंद
(C) मैदा
(D) सभी।
उत्तर-
(D) सभी।

प्रश्न 4.
पानी में घुलनशील नील है
(A) एनीलीन
(B) इंडीगो
(C) अल्ट्रामैरीन
(D) परशियन नील।
उत्तर-
(A) एनीलीन

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लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
साबुन बनाने की गर्म विधि के बारे बताओ।
उत्तर-
तेल को गर्म करके धीरे-धीरे इसमें कास्टिक सोडा डाला जाता है। इस मिश्रण को गर्म किया जाता है। इस तरह चर्बी अम्ल तथा ग्लिसरीन में बदल जाती है। फिर उसमें नमक डाला जाता है, इससे साबुन ऊपर आ जाता है तथा ग्लिसरीन, अतिरिक्त खार तथा नमक नीचे चले जाते हैं । साबुन में सुगन्ध तथा रंग ठण्डा होने पर मिलाये जाते हैं तथा चक्कियां काट ली जाती हैं।

प्रश्न 2.
कपड़ों को नील कैसे दिया जाता है?
उत्तर-
नील देते समय वस्त्र को धोकर साफ़ पानी से निकाल लेना चाहिए। नील को किसी पतले वस्त्र में पोटली बनाकर पानी में खंगालना चाहिए। वस्त्र को अच्छी तरह निचोड़कर तथा बिखेरकर नील वाले पानी में डालो तथा बाद में वस्त्र को धूप में सुखाओ।

प्रश्न 3.
वस्त्रों की सफ़ाई करने के लिए कौन-कौन से पदार्थों का प्रयोग किया जाता है? नाम बताओ।
उत्तर-
वस्त्रों की सफ़ाई करने के लिए निम्नलिखित पदार्थों का प्रयोग किया जाता है साबुन, रीठे, शिकाकाई, रासायनिक साबुन रहित सफ़ाईकारी पदार्थ (जैसे निरमा, रिन, लिसापोल आदि), कपड़े धोने वाला सोडा, अमोनिया, बोरैक्स, एसिटिक एसिड, ऑग्ज़ैलिक एसिड, ब्लीच, नील, रानीपॉल आदि।

प्रश्न 4.
ठण्डी विधि से साबुन बनाने का लाभ लिखें।
उत्तर-
ठण्डी विधि के लाभ

  1. इसमें मेहनत अधिक नहीं लगती।
  2. साबुन भी जल्दी बन जाता है।
  3. यह एक सस्ती विधि है।

सफ़ाईकारी और अन्य पदार्थ PSEB 9th Class Home Science Notes

  • साबुन चर्बी तथा खार के मिश्रण हैं।
  • साबुन दो विधियों से तैयार किया जा सकता है-ठण्डी विधि तथा गर्म विधि।
  • साबुन कई तरह के मिलते हैं-साबुन की चक्की, साबुन का चूरा, साबुन का पाऊडर, साबुन की लेस।
  • साबुन रहित सफाईकारी पदार्थ हैं-रीठे, शिकाकाई, रासायनिक साबुन रहित सफ़ाईकारी पदार्थ।
  • सहायक सफ़ाईकारी पदार्थ हैं-कपड़े धोने वाला सोडा, अमोनिया, बोरेक्स, एसिटिक एसिड, ऑम्जैलिक एसिड।
  • रंग काट दो तरह के होते हैं-ऑक्सीडाइजिंग ब्लीच तथा रिड्यूसिंग ब्लीच।
  • नील, टीनोपाल आदि का प्रयोग कपड़ों को सफ़ेद रखने के लिए किया जाता है।
  • नील दो तरह के होते हैं-घुलनशील तथा अघुलनशील पदार्थ।
  • कपड़ों में ऐंठन अथवा अकड़न लाने वाले पदार्थ हैं-मैदा अथवा अरारोट, चावलों का पानी, आलू , गोंद, बोरैक्स।

PSEB 9th Class SST Solutions Economics Chapter 2 मानव-संसाधन

Punjab State Board PSEB 9th Class Social Science Book Solutions Economics Chapter 2 मानव-संसाधन Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 9 Social Science Economics Chapter 2 मानव-संसाधन

SST Guide for Class 9 PSEB मानव-संसाधन Textbook Questions and Answers

(क) वस्तुनिष्ठ प्रश्न

रिक्त स्थान भरें:

(i) भारत का विश्व में जनसंख्या के आकार के अनुसार …….. स्थान है।
(ii) अशिक्षित लोग समाज में परिसम्पत्ति की अपेक्षा ………….. बन जाते हैं।
(iii) देश की जनसंख्या का आकार, इसकी कार्यकुशलता, शैक्षिक योग्यता उत्पादकता आदि ………………… कहलाते हैं।
(iv) …………. क्षेत्र में प्राकृतिक साधनों का उपयोग करके उत्पादन क्रियाएं की जाती है।
(v) ……… क्रियाएं वस्तुओं व सेवाओं के उत्पादन में सहायक होती हैं।

उत्तर-

  1. दूसरे
  2. दायित्व
  3. मानव संसाधन
  4.  प्राथमिक
  5. आर्थिक।

बहुविकल्पी प्रश्न :

प्रश्न 1. कृषि अर्थव्यवस्था किस क्षेत्र की उदाहरण है ?
(अ) प्राथमिक
(आ) सेवाएां
(इ) गौण।
उत्तर-
(अ) प्राथमिक

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प्रश्न 2.
कृषि क्षेत्र में 5 से 7 मास लोग बेकार रहते है, इस बेकारी को क्या कहते हैं ?
(अ) छिपी बेरोज़गारी
(आ) मौसमी बेरोज़गारी
(इ) शिक्षित बेरोज़गारी।
उत्तर-
(आ) मौसमी बेरोज़गारी

प्रश्न 3.
भारत में जनसंख्या की कार्यशीलता की आयु की सीमा क्या है ?
(अ) 15 वर्ष से 59 वर्ष तक
(आ) 18 वर्ष से 58 वर्ष तक
(इ) 16 वर्ष से 60 वर्ष तक।
उत्तर-
(अ) 15 वर्ष से 59 वर्ष तक

प्रश्न 4.
2011 की जनगणना के अनुसार भारत की जनसंख्या है ?
(अ) 1210.19 मिलियन
(आ) 130 मिलियन
(इ) 121.19 मिलियन।
उत्तर-
(अ) 1210.19 मिलियन

सही/गलत :

  1. एक गृहिणी का अपने गृह में कार्य करना एक आर्थिक क्रिया है।
  2. नगर में अधिक छिपी हुई बेरोज़गारी होती है।
  3. मानव पूंजी में निवेश करने से देश विकसित होता है।
  4. अर्थव्यवस्था के विकास के लिए एक देश की जनसंख्या का स्वस्थ होना ज़रूरी है।
  5. सन् 1951 से 2011 तक भारत की साक्षरता दर में वृद्धि हुई है।

उत्तर-

  1. गलत
  2. गलत
  3. सही
  4. सही

अति लघु उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
दो प्राकृतिक साधनों के नाम बनाएं।
उत्तर-
दो प्राकृतिक साधन निम्न हैं1. वायु 2. खनिज।

प्रश्न 2.
जर्मनी एवं जापान जैसे देशों ने तीव्र गति से आर्थिक विकास कैसे किया ?
उत्तर-
जर्मनी तथा जापान जैसे देशों में मानव पूंजी निर्माण में निवेश करके तीव्र आर्थिक विकास किया है।

प्रश्न 3.
आर्थिक क्रियाएं क्या हैं ?
उत्तर-
आर्थिक क्रियाएं वे क्रियाएं हैं जो धन कमाने के उद्देश्य से की जाती हैं।

प्रश्न 4.
गुरुप्रीत तथा मनदीप द्वारा की गई दो आर्थिक क्रियाएं कौन-सी हैं ?
उत्तर-
गुरुप्रीत खेत में काम करता है तथा मनदीप को एक निजी बस्ती में रोजगार मिल गया है।

प्रश्न 5.
गौण-क्षेत्र की कोई दो उदाहरण दें।
उत्तर-
गौण-क्षेत्र के दो उदाहरण निम्नलिखित हैं-

  1. चीनी का गन्ने से निर्माण।
  2. कपास से कपड़े का निर्माण ।

प्रश्न 6.
गैर आर्थिक (अनार्थिक) क्रियाएं कौन-सी हैं ?
उत्तर-
गैर आर्थिक क्रियाएं वे क्रियाएं हैं जो धन कमाने के उद्देश्य से नहीं की जाती हैं।

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प्रश्न 7.
जनसंख्या की गुणवत्ता के दो निर्धारकों के नाम बताएं।
उत्तर-

  1. अच्छी शिक्षा
  2. लोगों का अच्छा स्वास्थ्य।

प्रश्न 8.
सर्वाधिक साक्षर राज्य का नाम क्या है ?
उत्तर-
केरल।

प्रश्न 9.
6 से 14 वर्ष तक के आयु वर्ग के सभी बच्चों को एलीमैंटरी शिक्षा प्रदान करने के लिए उठाए गए कदम का नाम बताएं।
उत्तर-
सर्व शिक्षा अभियान।

प्रश्न 10.
भारत में जनसंख्या की कार्यशीलता आयु की सीमा क्या है ?
उत्तर-
15-59 वर्ष।

प्रश्न 11.
भारत सरकार द्वारा रोज़गार अवसर प्रदान करने के लिए उठाए गए दो कार्यक्रमों का नाम बताएं।
उत्तर-

  1. स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योजना।
    संपूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना।

(स्व) लघु उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
मानव संसाधन से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
किसी देश की जनसंख्या का वह भाग जो कुशलता, शिक्षा उत्पादकता तथा स्वास्थ्य से संपन्न होता है उसे मानव संसाधन कहते हैं। मानव संसाधन एक महत्त्वपूर्ण संसाधन है क्योंकि यह प्राकृतिक संसाधनों को अधिक उपयोगी बना देता है। एक देश जिसमें शिक्षित तथा प्रशिक्षित व्यक्ति अधिक संख्या में हों उनकी उत्पादकता अधिक होती है।

प्रश्न 2.
मानव संसाधन किस प्रकार भूमि व भौतिक पूंजी जैसे अन्य साधनों से श्रेष्ठ है ?
उत्तर-
मानव संसाधन अन्य साधनों जैसे भूमि व भौतिक पूंजी से इसलिए उत्तम है क्योंकि यह अन्य साधन स्वयं नियोजित नहीं हो सकते। मानव संसाधन ही इन साधनों का प्रयोग करता है। इस तरह बड़ी जनसंख्या एक दायित्व नहीं है। इन्हें मानवीय पूंजी में निवेश करके संपत्ति में बदला जा सकता है। उदाहरण के लिए शिक्षा व स्वास्थ्य पर किया गया व्यय लोगों को प्रशिक्षित व शिक्षित तथा स्वस्थ बनाता है जिससे आधुनिक तकनीक का प्रयोग करके देश का विकास किया जा सकता है।

प्रश्न 3.
आर्थिक व अनार्थिक क्रियाओं में क्या अन्तर है।
उत्तर-
इनमें भेद निम्न हैं-

आर्थिक क्रियाएं अनार्थिक क्रियाएं
1. आर्थिक क्रियाएं अर्थव्यवस्था में वस्तुओं व सेवाओं का प्रवाह करती हैं। 1. अनार्थिक क्रियाओं से वस्तुओं व सेवाओं का कोई  प्रवाह अर्थव्यवस्था में नहीं होता।
2. जब आर्थिक क्रियाओं में वृद्धि होती है तो इसका अर्थ है अर्थव्यवस्था प्रगति में है। 2. अनार्थिक क्रियाओं में होने वाली कोई भी वृद्धि अर्थव्यवस्था की प्रगति की निर्धारक नहीं है।
3. आर्थिक क्रियाओं से वास्तविक व राष्ट्रीय आय में वृद्धि होती है। 3. अनार्थिक क्रियाओं में से कोई राष्ट्रीय आय व वास्तविक आय में वृद्धि नहीं होती।

 

प्रश्न 4.
मानव पूंजी निर्माण में शिक्षा की क्या भूमिका है ?
उत्तर-
शिक्षा मानव पूंजी निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है-

  1. शिक्षा आर्थिक तथा सामाजिक विकास का मुख्य साधन है।
  2. शिक्षा विज्ञान और तकनीक के विकास में सहायता करती है।
  3. शिक्षा श्रमिकों की कार्यकुशलता को बढ़ाती है।
  4. शिक्षा लोगों की मानसिक क्षमताओं को बढ़ाने में सहायता करता है।
  5. शिक्षा राष्ट्रीय आय को बढ़ाती है। प्राकृतिक गुणवत्ता को बढ़ाती है और प्राथमिक कुशलता में वृद्धि करती है।

प्रश्न 5.
भारत सरकार द्वारा शिक्षा के प्रसार के लिए कौन-से कदम उठाए गए हैं।
उत्तर-
भारत सरकार ने निम्न कदम उठाए हैं :

  1. शिक्षा संस्थानों का निर्माण किया जा रहा है।
  2. प्राथमिक विद्यालयों को लगभग 5,00,000 गांवों में खोला गया है।
  3. ‘सर्व शिक्षा अभियान’ सभी को अनिवार्य शिक्षा प्रदान करवाने की सिफ़ारिश करती है जो 6-14 वर्ष के सभी बच्चों को अनिवार्य शिक्षा देती है।
  4. बच्चों के पौष्टिक स्तर को बढ़ाने के लिए ‘मिड-डे-मील’ योजना शुरू की गई है।
  5. सभी जिलों में नवोदय विद्यालय खोले गए हैं।

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प्रश्न 6.
बेरोज़गारी शब्द की व्याख्या करें। देश की बेरोज़गारी दर को निर्धारित करते समय किस वर्ग के लोगों को सम्मिलित नहीं किया जाता ?
उत्तर-
बेरोज़गारी वह स्थिति है जिसमें वह व्यक्ति जो प्रचलित मज़दूरी की दर पर काम करने को तैयार होता है पर उसे काम नहीं मिलता है। किसी देश में कार्यशील जनसंख्या वह जनसंख्या होती है जो 15-59 वर्ष की आयु के बीच होती है। 15 से कम आयु के बच्चों और 59 से अधिक आयु के वृद्ध यदि काम ढूंढ़ते भी हैं तो उन्हें बेरोज़गार नहीं कहा जाता।

प्रश्न 7.
भारत में बेरोजगारी के दो कारण बताएं।
उत्तर-
कारण (Causes)-

  1. जनसंख्या में वृद्धि (Increase in Population)-भारत में बेरोज़गारी का मुख्य कारण जनसंख्या में होने वाली वृद्धि है। जनसंख्या बढ़ने से देश को संपत्ति का एक बड़ा भाग इस जनसंख्या की आवश्यकताओं को पूरा करने में खर्च हो जाता है और रोज़गार के अवसरों को बढ़ाने के लिए कम साधन बचते हैं।
  2. दोषपूर्ण शिक्षा प्रणाली (Defected Education System) सरकार ने लोगों के जीवन स्तर को उठाने के लिए कई कॉलेजों और स्कूलों की स्थापना की है जिसमें आज करोड़ों छात्र शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। परंतु उनको रोज़गार नहीं मिलता जिसका मुख्य कारण दोषपूर्ण शिक्षा प्रणाली का होना है।

प्रश्न 8.
छिपी बेरोज़गारी व मौसमी बेरोज़गारी में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर-

छिपी बेरोजगारी मौसमी बेरोजगारी
1. नगरीय क्षेत्र बेरोज़गारी का वह प्रश्न है जिसमें श्रमिक कार्य करते हुए प्रतीत होते हैं पर ये वास्तव में होते नहीं हैं। 1. यह बेरोज़गारी का वह प्रकार है जिसमें श्रमिक कुछ  विशेष मौसम में ही कार्य प्राप्त करते हैं।
2. यह प्रायः कषि क्षेत्र में पायी जाती है। 2. वह प्रायः कृषि संबंधी उद्योगों में पायी जाती है।
3. यह प्रायः ग्रामीण क्षेत्रों में पायी जाती है। 3. वह ग्रामीण व शहरी दोनों क्षेत्रों में पायी जाती है।

 

प्रश्न 9.
नगरीय क्षेत्र में शिक्षित बेकारी में तीव्र गति से क्यों वृद्धि हो रही है ?
उत्तर-
शिक्षित बेरोज़गारी शहरी बेरोज़गारी का उदाहरण हैं। यह शहरी क्षेत्रों में ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में अधिक पाई जाती है। शहरों में तीव्र गति से खुलने वाले स्कूल व शैक्षिक संस्थानों से शिक्षित बेरोज़गारी को बढ़ाया है क्योंकि रोज़गार का स्तर इतना नहीं बढ़ा है जितनी विद्यालयों की संख्या बढ़ी है।

प्रश्न 10.
बेरोज़गार लोग समाज के लिए परिसम्पत्ति की अपेक्षा बोझ (देनदारी) क्यों बन जाते हैं। स्पष्ट करो।
उत्तर-
बेरोजगार व्यक्ति एक देश के लिए संपत्ति के स्थान पर दायित्व होता है क्योंकि इससे मानव शक्ति संसाधनों का दुरुपयोग होता है। बेरोज़गारी गरीबी को बढ़ाता है। इससे निराशा की स्थिति उत्पन्न होती है। बेरोज़गार लोग कार्यशील जनसंख्या पर निर्भर रहते हैं।

प्रश्न 11.
अशिक्षित व कमज़ोर स्वास्थ्य वाले लोग अर्थव्यवस्था को कैसे प्रभावित करते हैं ?
उत्तर-
जनसंख्या की गुणवत्ता किसी देश की संवृद्धि का निर्धारण करती है। शिक्षित जनसंख्या देश के लिए संपत्ति होती है तथा अस्वस्थ लोग अर्थव्यवस्था के लिए दायित्व होता है। किसी देश की संवृद्धि के लिए शिक्षित जनसंख्या एक महत्त्वपूर्ण आगत है। यह आधुनिकीकरण तथा सामर्थ्य को बढ़ाता है। शिक्षित व्यक्ति न केवल अपनी व्यक्तिगत संवृद्धि को मानव-संसाधन बढ़ाता है बल्कि समुदाय की भी संवृद्धि बढ़ाता है। जबकि दूसरी ओर अस्वस्थता वह स्थिति है जिसमें लोग शारीरिक व बौद्धिक रूप से ठीक नहीं होते हैं।

PSEB 9th Class SST Solutions Economics Chapter 2 मानव-संसाधन

अन्य अभ्यास के प्रश्न

क्रिया-1

अपने गांव अथवा अपनी कॉलोनी में जाकर मालूम करें कि:
(i) भिन्न-भिन्न घरों की औरतें गृहकार्य करती हैं अथवा बाहर कार्य करने जाती है ?
(ii) उनका कार्य आर्थिक क्रिया में आता है अथवा गैर आर्थिक क्रिया में ?
(iii) आर्थिक व गैर-आर्थिक क्रियाओं के दो-दो उदाहरण दें।
(iv) आपके घर में आपकी माता जी द्वारा किया गया कार्य आर्थिक अथवा गैर-आर्थिक क्रिया में किस के अंतर्गत आता
उत्तर-

  1. मेरे गांव में अधिकतर महिलाएं अपने घरों में ही कार्य करती हैं। कुछ महिलाएं बाहर काम करने भी जाती हैं। जो दफ्तरों में दूसरे घरों में साफ़-सफाई के लिए भी जाती हैं।
  2. जो महिलाएं अपने घरों में घरेलू कार्य कर रही हैं जैसे खाना बनाना, साफ सफाई करना, बच्चों की देखभाल करना, पशुओं को चारा डालना आदि सभी क्रियाएं गैर आर्थिक क्रियाएं ही हैं। दूसरी ओर जो महिलाएं दफ्तरों में कार्य कर रही हैं तथा दूसरों के घरों में काम कर रही हैं वे क्रियाएं आर्थिक क्रियाएं हैं।
  3. आर्थिक क्रिया के उदाहरण-
    • राज द्वारा एक बहु-राष्ट्रीय कंपनी में कार्य करना
    • डॉक्टर द्वारा अस्पताल में रोगियों की देखभाल करना।
      गैर-आर्थिक क्रिया के उदाहरण-

      •  गृहिणी द्वारा किया गया घरेलू कार्य
      • एक अध्यापक द्वारा अपने बच्चे को घर में पढ़ाना।
      • मेरी माता जी एक अध्यापिका हैं। उनका कार्य आर्थिक क्रिया में आता है।

क्रिया-2

PSEB 9th Class SST Solutions Economics Chapter 2 मानव-संसाधन 1
जनगणना वर्ष के आंकड़े
ग्राफ 2.1 भारत में साक्षरता दर

ग्राफ 2.1 का अध्ययन कीजिए तथा निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए :
(i) क्या वर्ष 1951 से 2011 तक व्यक्तियों की साक्षरता दर में वृद्धि हुई है ?
(ii) भारत ने किस वर्ष 50% की साक्षरता दर को पार किया ?
(iii) किस वर्ष भारत की साक्षरता दर सर्वाधिक रही ?
(iv) महिलाओं की साक्षरता दर किस वर्ष अधिकतम है ?
(v) अपने अध्यापक से चर्चा कीजिए। भारत में पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं की साक्षरता दर कम क्यों है ?
उत्तर-

  1. हाँ वर्ष 1951 से 2011 तक साक्षरता-दर लगातार बढ़ी है जो कि ग्राफ 2.1 से स्पष्ट है।
  2. वर्ष 2001 में भारत में साक्षरता दर 50% से पार हुई थी।
  3. वर्ष 2011 में भारत की साक्षरता-दर सबसे अधिक है।
  4. वर्ष 2011 में महिलाओं की साक्षरता-दर सबसे अधिक है।
  5. भारत में पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं की साक्षरता-दर इसलिए कम है क्योंकि लोग लड़कों की अपेक्षा लड़कियों को स्कूल कम भेजते हैं। लड़कियों को ये घरेलू कार्यों में लगा देते हैं।

क्रिया-3

तालिका 2.2. भारत में स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार स्वास्थ्य सुविधाएं
PSEB 9th Class SST Solutions Economics Chapter 2 मानव-संसाधन 2

आइए चर्चा करें:

सारणी 2.2 को पढ़िए तथा निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
(i) वर्ष 1951 से 2010 तक डिसपैंसरी व अस्पतालों की संख्या में कितनी वृद्धि है।
(ii) वर्ष 2001 से 2013 तक चिकित्सकों की संख्या में कितनी वृद्धि हुई।
(iii) वर्ष 1981 से 2013 तक स्वास्थ्य संस्थाओं में बैडों की संख्या कितनी वृद्धि हुई।
(iv) अपने गांव अथवा निकटवर्ती गांव की डिसपैंसरी में जाकर मालूम कीजिए तथा ज्ञात कीजिए कि इनमें कौन-सी सुविधाएं दी जा रही हैं तथा किन की आवश्यकता अधिक है ?
उत्तर-

  1. तालिका 2.2 से स्पष्ट है कि वर्ष 1951 से 2010 तक औषधालयों व अस्पतालों की संख्या बढ़ी नहीं है। अर्थात् कुछ वर्षों में बढ़ी है तथा कुछ में कम हुई है।
  2. हाँ, वर्ष 2001 से 2016 तक डॉक्टरों की संख्या बढ़ी है।
  3. हाँ, वर्ष 1981-2016 तक बिस्तरों की संख्या बढ़ी है।
  4. नज़दीक के औषधालय का दौरा करने से ज्ञात हुआ कि वहाँ स्टॉफ की कमी थी। यहाँ तक कि वहाँ डॉक्टर भी उपलब्ध नहीं था। केवल एक थर्मासिस्ट व चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी थे। अन्य सुविधाएं ठीक थीं।

PSEB 9th Class Social Science Guide मानव-संसाधन Important Questions and Answers

रिक्त स्थान भरें :

  1. जनसंख्या के आकार में चीन विश्व में ……… स्थान पर है।
  2. अस्वस्थ लोग समाज के लिए ………. होते हैं न कि एक परिसंपत्ति।
  3. जापान ने …………… संसाधनों में निवेश किया है।
  4. गृहणी द्वारा किया गया घरेलू कार्य एक …………… क्रिया है।
  5. वर्ष 2011 में भारत में …………. राज्य की साक्षरता दर सबसे कम थी।
  6. 2011 जनगणना के अनुसार भारत की साक्षरता दर ………… प्रतिशत है।

उत्तर-

  1. पहला
  2. दायित्व
  3. मानव
  4. गैर-आर्थिक
  5. बिहार
  6. 74.

बहुविकल्पीय प्रश्न :

प्रश्न 1.
जनसंख्या अर्थव्यवस्था पर हो सकती है ? …
(क) दायित्व
(ख) परिसंपत्ति
(ग) उपरोक्त दोनों
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(ग) उपरोक्त दोनों

PSEB 9th Class SST Solutions Economics Chapter 2 मानव-संसाधन

प्रश्न 2.
मानव पूंजी निर्माण किस में निवेश से होता है ?
(क) शिक्षा
(ख) चिकित्सा
(ग) प्रशिक्षण
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 3.
भारत में मानव पूंजी निर्माण को दर्शाता है-
(क) हरित क्रांति
(ख) सूचना प्रौद्योगिकी क्रांति
(ग) उपरोक्त दोनों
(घ) मज़दूर क्रांति।
उत्तर-
(ख) सूचना प्रौद्योगिकी क्रांति

प्रश्न 4.
शीला द्वारा अपने घर में खाना बनाना, कपड़े धोना, बर्तन साफ करना आदि कौन-सी क्रिया है ?
(क) आर्थिक
(ख) ग़ैर-आर्थिक
(ग) धन क्रिया
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(ख) ग़ैर-आर्थिक

प्रश्न 5.
कृषि, वानिकी व पशुपालन कौन-से क्षेत्रक के अंतर्गत आते हैं ?
(क) प्राथमिक
(ख) द्वितीयक
(ग) तृतीयक
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(क) प्राथमिक

प्रश्न 6.
उत्खनन और विनिर्माण किस क्षेत्रक में आते हैं ?
(क) द्वितीयक
(ख) तृतीयक
(ग) प्राथमिक
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(क) द्वितीयक

प्रश्न 7.
व्यापार, परिवहन, संचार व बैंकिंग सेवाएं आदि कौन-से क्षेत्रक में आती हैं ?
(क) प्राथमिक
(ख) द्वितीयक
(ग) तृतीयक
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(ग) तृतीयक

प्रश्न 8.
भारत में जीवन प्रत्याशा कितने वर्ष है ?
(क) 66
(ख) 70
(ग) 55
(घ) 75.8.
उत्तर-
(घ) 75.8.

प्रश्न 9.
भारत में अशोधित जन्म-दर प्रति हज़ार व्यक्तियों के पीछे कितनी है ?
(क) 26.1
(ख) 28.2
(ग) 20.4
(घ) 35.1.
उत्तर-
(क) 26.1

प्रश्न 10.
भारत में मृत्यु-दर प्रति हज़ार व्यक्तियों के पीछे कितनी है ?
(क) 9.8
(ख) 8.7
(ग) 11.9
(घ) 25.1.
उत्तर-
(ख) 8.7

प्रश्न 11.
2001 में भारत में साक्षरता-दर कितने प्रतिशत थी ?
(क) 65
(ख) 75
(ग) 60
घ) 63.
उत्तर-
(क) 65

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प्रश्न 12.
2001 में ग्रामीण क्षेत्र में कौन-सी बेरोज़गारी पायी जाती है ?
(क) मौसमी
(ख) प्रच्छन्न बेरोज़गारी।
(ग) उपरोक्त दोनों
(घ) ऐच्छिक बेरोज़गारी।
उत्तर-
(ग) उपरोक्त दोनों

प्रश्न 13.
नगरीय क्षेत्रों में कौन-सी बेरोज़गारी अधिकांशतः पायी जाती है ?
(क) मौसमी
(ख) ऐच्छिक
(ग) प्रच्छन्न
(घ) शिक्षित।
उत्तर-
(घ) शिक्षित।

प्रश्न 14.
श्रमिकों का गांव से शहरों की ओर काम की तलाश में जाना क्या कहलाता है ?
(क) प्रवास
(ख) आवास
(ग) खोज
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(क) प्रवास

प्रश्न 15.
देश की उत्पादन क्षमता में वृद्धि किसके निवेश से होती है ?
(क) भूमि में
(ख) भौतिक पूंजी में
(ग) मानव पूंजी में
(घ) उपरोक्त सभी में।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी में।

प्रश्न 16.
इनमें से कौन प्राथमिक क्षेत्र का उदाहरण है ?
(क) कृषि
(ख) विनिमय
(ग) संचार
(घ) व्यापार।
उत्तर-
(क) कृषि

प्रश्न 17.
इनमें से कौन द्वितीयक क्षेत्र का उदाहरण है ?
(क) कृषि
(ख) विनिर्माण
(ग) संचार
(घ) बैंकिंग।
उत्तर-
(ख) विनिर्माण

प्रश्न 18.
इनमें से कौन तृतीयक क्षेत्र का उदाहरण है ?
(क) कृषि
(ख) विनिर्माण
(ग) बैंकिंग
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(ग) बैंकिंग

प्रश्न 19.
आर्थिक क्रियाएं कितने प्रकार की होती हैं ?
(क) एक
(ख) दो
(ग) तीन
(घ) चार।
उत्तर-
(ख) दो

प्रश्न 20.
किस वर्ष भारत में साक्षरता-दर सबसे अधिक थी ?
(क) 2001
(ख) 1991
(ग) 2000
(घ) 1981.
उत्तर-
(क) 2001

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प्रश्न 21.
किस प्रकार के लोग समाज के लिए दायित्व होते हैं ?
(क) शिक्षित
(ख) स्वस्थ
(ग) अस्वस्थ
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(ग) अस्वस्थ

प्रश्न 22.
भारत में सर्व शिक्षा अभियान कब लागू किया गया ?
(क) 2008
(ख) 2010
(ग) 2007
(घ) 2005.
उत्तर-
(ख) 2010

प्रश्न 23.
इनमें से किस देश ने मानव संसाधन पर अधिक मात्रा में निवेश किया है?
(क) पाकिस्तान
(ख) चीन
(ग) भारत
(घ) जापान।
उत्तर-
(घ) जापान।

प्रश्न 24.
इनमें से कौन एक बाज़ार क्रिया है?
(क) एक शिक्षक द्वारा स्कूल में पढ़ाना।
(ख) एक शिक्षक द्वारा अपने बच्चे को पढ़ाना।
(ग) एक कृषक द्वारा स्वयं उपभोग के लिए सब्जियां उगना।
(घ) एक माता द्वारा बच्चों की देखभाल करना।
उत्तर-
(क) एक शिक्षक द्वारा स्कूल में पढ़ाना।

सही/गलत :

  1. शिक्षित व स्वस्थ जनसंख्या दायित्व होती है।
  2. 2011 जनगणना के अनुसार पुरुषों की साक्षरता दर 82.10 प्रतिशत है।
  3. ‘ भारत में वर्ष 1983 से 2011 तक औसत बेरोज़गारी दर 9 प्रतिशत रही है।
  4. गुणवत्ता वाली जनसंख्या अच्छी शिक्षा तथा स्वास्थ्य पर निर्भर नहीं करती है।
  5. खनन तथा वानिकी द्वितीय क्षेत्र की क्रियाएं हैं।

उत्तर-

  1. गलत
  2. सही
  3. सही
  4. गलत
  5. गलत।

अति लघु उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
जनसंख्या मानव पूंजी में कब बदलती है ?
उत्तर-
जब शिक्षा, प्रशिक्षण और चिकित्सा सेवाओं में निवेश किया जाता है तो जनसंख्या मानव पूंजी में बदल जाती है।

प्रश्न 2.
मानव पूंजी निर्माण से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
जब मानव संसाधन को और अधिक शिक्षा तथा स्वास्थ्य द्वारा विकसित किया जाता है तो उसे मानव पूंजी निर्माण कहते हैं।

प्रश्न 3.
मानव पूंजी निर्माण के भारत को दो लाभ बताएं।
उत्तर-
मानव पूंजी निर्माण से भारत में हरित क्रांति आई है जिससे खाद्यान्नों की उत्पादकता में कई गुणा वृद्धि हुई है। मानव पूंजी निर्माण से ही भारत में सूचना प्रौद्योगिकी में क्रांति एक आश्चर्यजनक उदाहरण है।

प्रश्न 4.
जापान कैसे विकसित देश बना ?
उत्तर-
जापान ने मानव संसाधन पर निवेश किया है। उनके पास कोई प्राकृतिक संसाधन नहीं थे। वे अब अपने देश के लिए आवश्यक प्राकृतिक संसाधनों का आयात कर लेते हैं।

प्रश्न 5.
क्या 1951 से जनसंख्या की साक्षरता-दर बढ़ी है ?
उत्तर-
हां, साक्षरता-दर 1951 के 18 प्रतिशत से बढ़कर 2001 में 65 प्रतिशत हो गई है।

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प्रश्न 6.
कोई देश विकसित कैसे बन सकता है ?
उत्तर-
कोई भी देश लोगों में विशेष रूप से शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में निवेश से विकसित बन सकता है।

प्रश्न 7.
भारत में जीवन प्रत्याशा कितनी है ?
उत्तर-
यह वर्ष 2017 में 75.8 वर्ष थी।

प्रश्न 8.
बेरोज़गारी क्या होती है ?
उत्तर-
बेरोज़गारी उस समय विद्यमान कही जाती है, जब प्रचलित मज़दूरी की दर पर काम करने के लिए इच्छुक लोग रोज़गार नहीं पा सकते।

प्रश्न 9.
जन्म-दर से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
जन्म-दर से अभिप्राय प्रति हज़ार व्यक्तियों के पीछे जितने बच्चे जन्म लेते हैं, उससे है।

प्रश्न 10.
मृत्यु-दर से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर–
प्रति हज़ार व्यक्तियों के पीछे जितने लोगों की मृत्यु होती है वही मृत्यु-दर कहलाती है।

प्रश्न 11.
बेरोज़गारी क्या है ?
उत्तर-
एक स्थिति जिसमें श्रमिक बाज़ार में प्रचलित मज़दूरी पर काम करने को तैयार हैं पर उन्हें काम नहीं मिलता है।

प्रश्न 12.
राष्ट्रीय आय क्या होती है ?
उत्तर-
यह एक देश द्वारा उत्पादित वस्तुओं व सेवाओं का कुल योग होता है।

प्रश्न 13.
सर्व शिक्षा अभियान क्या है ?
उत्तर-
यह एक ऐसा कार्यक्रम है जिसमें 6-14 वर्ष के सभी आयु वर्ग के बच्चों को प्रारंभिक शिक्षा प्रदान की जाती है।

प्रश्न 14.
कार्य बल संख्या में किस वर्ग की जनसंख्या को शामिल किया गया है ?
उत्तर-
कार्य बल जनसंख्या में 15 से 59 वर्ष के व्यक्तियों को शामिल किया जाता है।

प्रश्न 15.
किसी कार्य को करने के लिए पांच व्यक्ति चाहिए पर उसमें 8 व्यक्ति लगे हैं। इसे कौन-सी बेरोज़गारी कहा जाएगा?
उत्तर-
प्रच्छन्न बेरोज़गारी।

प्रश्न 16.
मौसमी बेरोज़गारी क्या है ?
उत्तर-
इस तरह की बेरोज़गारी में व्यक्ति वर्ष के कुछ विशेष महीनों में कार्य प्राप्त कर पाते हैं।

प्रश्न 17.
इनमें से कौन-से तत्त्व मानव के विकास के गुणों को बढ़ाते हैं ?
उत्तर-
शिक्षा तकनीकी एवं स्वास्थ्य।

प्रश्न 18.
तृतीयक कार्य क्षेत्र से संबंधित दो कार्य क्षेत्र बताएं।
उत्तर-

  1. परिवहन
  2. बैंकिंग।

लघु उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
जनसंख्या की गुणवत्ता की व्याख्या करें।
उत्तर-
जनसंख्या की गुणवत्ता साक्षरता-दर, जीवन-प्रत्याशा से निरूपित व्यक्तियों के स्वास्थ्य और देश के लोगों द्वाराप्राप्त कौशल निर्माण पर निर्भर करती है। यह अंततः देश की संवृद्धि-दर निर्धारित करती है। अस्वस्थ व निरक्षर जनसंख्या अर्थव्यवस्था पर बोझ होती है तथा स्वस्थ व साक्षर जनसंख्या परिसंपत्तियां होती हैं।

प्रश्न 2.
शिक्षा के महत्त्व की व्याख्या करें।
उत्तर-
शिक्षा का महत्त्व निम्नलिखित है-

  1. शिक्षा अच्छी नौकरी और अच्छे वेतन के रूप में फल देती है।
  2. यह विकास के लिए महत्त्वपूर्ण आगत है।
  3. इससे जीवन के मूल्य विकसित होते हैं।
  4. यह राष्ट्रीय आय और सांस्कृतिक समृद्धि में वृद्धि करती है।
  5. यह प्रशासन की कार्य-क्षमता बढ़ाती है।

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प्रश्न 3.
बेरोज़गारी के प्रभावों का वर्णन करें।
उत्तर-
बेरोज़गारी के निम्नलिखित प्रभाव पड़ते हैं

  1. बेरोज़गारी से जनशक्ति संसाधन की बर्बादी होती है। जो लोग अर्थव्यवस्था के लिए परिसंपत्ति होते हैं, बेरोज़गारी के कारण बोझ में बदल जाते हैं।
  2. इससे युवकों में निराशा और हताशा की भावना बढ़ती है।
  3. बेरोज़गारी से आर्थिक बोझ में वृद्धि होती है। कार्यरत जनसंख्या पर बेरोज़गारी की निर्भरता बढ़ती है।
  4. इससे समाज के जीवन की गुणवत्ता पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
  5. किसी अर्थव्यवस्था के समग्र विकास पर बेरोज़गारी का अधिकतर प्रभाव पड़ता है। इसमें वृद्धि मंदीग्रस्त अर्थव्यवस्था का सूचक है।

प्रश्न 4.
छिपी बेरोज़गारी से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
छिपी बेरोज़गारी या प्रच्छन्न बेरोज़गारी के अंतर्गत लोग नियोजित प्रतीत होते हैं, उनके पास भूमि होती है, जहां उन्हें काम मिलता है। ऐसा प्रायः कृषिगत काम में लगे परिजनों में होता है। किसी काम में पांच लोगों की आवश्यकता है लेकिन उसमें आठ लोग होते हैं। इनमें तीन अतिरिक्त हैं। अगर तीन लोगों को हटा दिया जाए तो खेत की उत्पादकता में कोई कमी नहीं आएगी। खेत में पांच लोगों के काम की आवश्यकता है और तीन अतिरिक्त लोग प्रच्छन्न रूप से नियोजित हैं।

प्रश्न 5.
मौसमी बेरोज़गारी से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
मौसमी बेरोज़गारी तब होती है, जब लोग वर्ष के कुछ महीनों में रोजगार प्राप्त नहीं कर पाते हैं। कृषि पर आश्रित लोग आमतौर पर इस तरह की समस्या से जूझते हैं। वर्ष में कुछ व्यस्त मौसम होते हैं जब बुआई, कटाई और गहाई होती है। कुछ विशेष महीनों में कृषि पर आश्रित लोगों को अधिक काम नहीं मिल पाता।

प्रश्न 6.
शिक्षित बेरोज़गारी से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
शहरी क्षेत्रों के मामले में शिक्षित बेरोज़गारी एक सामान्य परिघटना बन गई है। मैट्रिक स्नातक और स्नातकोत्तर डिग्री धारी अनेक युवक रोजगार पाने में असमर्थ हैं। एक अध्ययन में यह बात सामने आई है कि मैट्रिक की तुलना में स्नातक युवकों में बेरोज़गारी अधिक तेजी से बढ़ी है। एक विरोधाभासी जनशक्ति स्थिति सामने आई है कि कुछ विशेष श्रेणियों में जनशक्ति के आधिक्य के साथ ही कुछ अन्य श्रेणियों में जनशक्ति की कमी विद्यमान है।

प्रश्न 7.
बाज़ार व गैर-बाज़ार क्रियाओं का अर्थ स्पष्ट करें।
उत्तर-
बाज़ार क्रियाओं में वेतन या लाभ के उद्देश्य से की गई क्रियाओं के लिए पारिश्रमिक भुगतान किया जाता है। इनमें सरकारी सेवा सहित वस्तु सेवाओं का उत्पादन शामिल है। गैर-बाज़ार क्रियाओं से अभिप्राय स्व- उपभोग के लिए उत्पादन है। इनमें प्राथमिक उत्पादों का उपभोग और प्रसंस्करण तथा अचल संपत्तियों का स्वलेखा उत्पादन आता है।

प्रश्न 8.
जनसंख्या एक मानवीय साधन है, व्याख्या करें।
उत्तर-
यह विशाल जनसंख्या का एक सकारात्मक पहलू है जिसे प्रायः उस वक्त अनदेखा कर दिया जाता है जब हम इसके नकारात्मक पहलू को देखते हैं अर्थात् भोजन, शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं तक जनसंख्या की पहुंच की समस्याओं पर विचार करते समय। जब इस विद्यमान मानव संसाधन को और अधिक शिक्षा तथा स्वास्थ्य द्वारा विकसित किया जाता है, तब हम इसे मानव पूँजी निर्माण कहते हैं।

प्रश्न 9.
द्वितीयक व तृतीयक क्षेत्रों में कौन-सी क्रियाएँ की जानी हैं ?
उत्तर-
द्वितीयक क्षेत्रों में उत्खनन और विनिर्माण शामिल है, जबकि तृतीयक क्षेत्र में परिवहन, बैंकिंग, संचार, बीमा, व्यापार, शिक्षा आदि किए जाते हैं।

प्रश्न 10.
आर्थिक क्रियाएं क्या होती हैं ? व्याख्या करें।
उत्तर-
आर्थिक क्रियाएं वह क्रियाएं होती हैं जिनके फलस्वरूप वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन होता है। ये क्रियाएं राष्ट्रीय आय में मूल्य वर्धन करते हैं। आर्थिक क्रियाएं दो प्रकार की होती हैं।-
1. बाज़ार क्रियाएं
2. गैर-बाज़ार क्रियाएं।।

  1. बाज़ार क्रियाएं-बाज़ार क्रियाओं में वेतन या लाभ के उद्देश्य से की गई क्रियाओं के लिए पारिश्रमिक का भुगतान किया जाता है।
  2. गैर-बाज़ार क्रियाएं-इसमें स्व-उपभोग के लिए उत्पादन क्रियाओं को शामिल किया जाता है। इनमें प्राथमिक उत्पादों का उपभोग और प्रसंस्करण तथा अचल संपत्तियों का स्वलेखा उत्पादन आता है।

प्रश्न 11.
बाज़ार क्रियाओं व गैर-बाज़ार क्रियाओं में भेद करें।
उत्तर-
बाज़ार क्रियाओं व गैर-बाज़ार क्रियाओं में निम्नलिखित अंतर हैं-

बाज़ार क्रियाएं गैर-बाज़ार क्रियाएं
1. बाज़ार क्रियाओं में वेतन या लाभ के उद्देश्य से की गई सेवाओं के लिए पारिश्रमिक का भुगतान किया जाता है। 1. गैर-बाज़ार क्रियाओं में स्व: उपभोग के लिए उत्पादन किया जाता है।
2. इसमें वस्तुओं व सेवाओं का उत्पादन सरकारी सेवाओं के साथ किया जाता है। 2. इसमें प्राथमिक उत्पादों का उपभोग और प्रसंस्करण एवं अचल संपत्तियों का स्वलेखा उत्पादन आता है।
3. इसके मुख्य उदाहरण, शिक्षक द्वारा स्कूल में पढ़ाना, खनन का कार्य इत्यादि हैं। 3. प्राथमिक उत्पादों का उपभोग व अचल संपत्तियों का स्वलेखा आदि इसके उदाहरण हैं।

 

प्रश्न 12.
1. ग्रामीण क्षेत्रों में पायी जाने वाली दो प्रकार की बेरोज़गारियां कौन-सी हैं ?
2. उन चार कारणों को बताएं जिन पर संख्या की गुणवत्ता निर्भर करती है।
3. कौन-सा क्षेत्रक (प्राथमिक क्षेत्रक में ) अर्थव्यवस्था में सबसे अधिक जनशक्ति को नियोजित करता है?
उत्तर-

1.

  • प्रच्छन्न बेरोज़गारी तथा
  • मौसमी बेरोज़गारी या ग्रामीण क्षेत्रों में पाए जाने वाली दो मुख्य बेरोज़गारियां हैं।

2.

  • स्वास्थ्य
  • जीवन प्रत्याशा
  • शिक्षा
  • कार्यकुशलता।

3.कृषि क्षेत्र एक ऐसा क्षेत्र है जो अर्थव्यवस्था में अधिकतर जनशक्ति को नियोजित करता है।

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प्रश्न 13.
1. वे दो मुख्य क्रियाएं बताएं जो प्राथमिक क्षेत्र में की जाती हैं।
2. वे दो मुख्य क्रियाएं बताएं जो तृतीय क्षेत्र में की जाती हैं।
3. वे दो मुख्य क्रियाएं बताएं जो द्वितीय क्षेत्र में की जाती हैं।
उत्तर-
1.

  • मत्सय पालन
  • खनन

2.

  • बैंकिंग
  • बीमा

3.

  • उल्ख नन
  • विनिर्माण।

प्रश्न 14.
1. ऐसे चार तत्व बताएं जो मानव संसाधन की गुणवत्ता को बढ़ाते हैं ?
2. उत्पादन के चार संसाधनों के नाम बताएं।
उत्तर-
1.

  • शिक्षा
  • स्वास्थ्य
  • तकनीकी
  • प्रशिक्षण।

2.

  • भूमि
  • पूंजी
  • श्रम
  • उद्यमी।

प्रश्न 15.
सर्व शिक्षा अभियान क्या है?
उत्तर-
सर्व शिक्षा अभियान 6-14 वर्ष आयु वर्ग के सभी स्कूली बच्चों को वर्ष 2010 तक प्राथमिक शिक्षा प्रदान करने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है। राज्यों, स्थानीय सरकारों और प्राथमिक शिक्षा सार्वभौमिक लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए समुदाय की सहभागिता के साथ केंद्रीय सरकार की एक समयबद्ध पहल है।

प्रश्न 16.
1. कृषि क्षेत्र में कौन-सी बेरोज़गारियां पाई जाती हैं ?
2. प्रच्छन्न बेरोज़गारी का अर्थ बताएं।
उत्तर-

  1. प्रच्छन्न व मौसमी बेरोज़गारी कृषि क्षेत्र में पाई जाती है।
  2. प्रच्छन्न बेरोज़गारी से अभिप्राय उस बेरोज़गारी से है जिसमें लोग कार्य करते हुए प्रतीत होते हैं पर वे होते नहीं हैं।

प्रश्न 17.
मानव पूंजी में किया जाने वाला निवेश बाद में बदलकर भौतिक पूंजी में किए गए निवेश का रूप धारण कर लेता है। व्याख्या करें।
उत्तर-

  1. मानव पूंजी श्रमिकों की उत्पादकता को बढ़ाता है।
  2. मानव पूंजी श्रमिकों की गुणवत्ता में वृद्धि करता है।
  3. स्वस्थ, शिक्षित व प्रशिक्षित व्यक्ति उत्पादन के साधनों का कुशल प्रयोग कर सकते हैं।
  4. एक देश मानव संसाधनों का निर्यात करके विदेशी विनिमय प्राप्त कर सकता है।

प्रश्न 18.
इन सभी कार्यों को प्राथमिक, द्वितीयक व तृतीयक समूहों में बांटे।
बैंकिंग, बीमा, डेयरी, उत्खनन, खनन, संचार, शिक्षा, मत्स्य पालन, मुर्गी पालन, कृषि, विनिर्माण, वानिकी, पर्यटन तथा व्यापार।
उत्तर-

प्राथमिक क्षेत्र द्वितीयक क्षेत्र तृतीयक क्षेत्र
1. डेयरी 1. उत्खनन 1. बैंकिंग
2. खनन 2. विनिर्माण 2. बीमा
3. मत्स्य पालन 3. संचार
4. मुर्गी पालन 4. शिक्षा
5. कृषि 5. पर्यटन
6. वानिकी 6. व्यापार।

 

प्रश्न 19.
शिक्षा के क्षेत्र में दसवीं पंचवर्षीय योजना के मुख्य उद्देश्य क्या हैं ?
उत्तर-
शिक्षा के क्षेत्र में दसवीं पंचवर्षीय योजना के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं-

  1. दसवीं योजना अंत तक उच्च शिक्षा में 18-23 वर्ष आयु वर्ग के नामांकन में वर्तमान 6 प्रतिशत से 9 प्रतिशत तक की वृद्ध करने का प्रयास किया गया है।
  2. यह रणनीति पहुंच में वृद्धि, गुणवत्ता, राज्यों के लिए विशेष पाठ्यक्रम में परिवर्तन को स्वीकार करना, व्यवसायीकरण तथा सूचना प्रौद्योगिकों के उपयोग का जाल बिछाने पर केंद्रित है।
  3. दसवीं योजना दूरस्थ शिक्षा, संचार प्रौद्योगिकी की शिक्षा देने वाले शिक्षण संस्थानों के अभिसरण पर भी केंद्रित है।

प्रश्न 20.
बेरोज़गारी क्या है? भारत में बेरोज़गारी के मुख्य प्रकार क्या हैं ?
उत्तर-
बेरोज़गारी वह स्थिति है जिसमें श्रमिक मज़दूरी की वर्तमान दर पर काम करने को तैयार होते हैं पर उन्हें काम नहीं मिलता है।
बेरोज़गारी के प्रकार-

  1. मौसमी बेरोजगारी
  2. शिक्षित बेरोज़गारी
  3. प्रच्छन्न बेरोज़गारी
  4. संरचनात्मक बेरोज़गारी
  5. तकनीकी बेरोज़गारी।

प्रश्न 21.
ग्रामीण क्षेत्रों में पाई जाने वाली दो प्रकार की मुख्य बेरोज़गारी क्या है ? इसके लिए मुख्य चार कारण बताएं।
उत्तर-
मौसमी बेरोज़गारी व प्रच्छन्न बेरोज़गारी ग्रामीण क्षेत्रों में पायी जाने वाली मुख्य बेरोज़गारियां हैं। कारण-

  1. कृषि क्षेत्र में विविधता की कमी।
  2. पूंजी की कमी।
  3. अति जनसंख्या के कारण बड़े परिवार।
  4. लघु व कुटीर उद्योग का अल्पविकास।

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प्रश्न 22.
प्रच्छन्न बेरोज़गारी व शिक्षित बेरोज़गारी में अंतर करें।
उत्तर-
प्रच्छन्न बेरोज़गारी व शिक्षित बेरोज़गारी में निम्नलिखित अंतर हैं :

प्रच्छन्न बेरोजगारी शिक्षित बेरोजगारी
1. प्रच्छन्न बेरोज़गारी वह बेरोज़गारी है जिसमें व्यक्ति कार्य करते हुए प्रतीत होते हैं पर वह होते नहीं हैं। 1. शिक्षित बेरोज़गारी वह स्थिति है जिसमें व्यक्ति शिक्षित होते हैं पर उनके पास रोज़गार नहीं होता है।
2. यह प्रायः ग्रामीण क्षेत्रों में पायी जाती है। 2. यह प्रायः शहरी क्षेत्रों में पायी जाती है।

 

प्रश्न 23.
तीनों क्षेत्रकों में रोज़गार की स्थिति का वर्णन करें।
उत्तर-

  1. प्राथमिक क्षेत्रक-भारत में, प्राथमिक क्षेत्रक में अर्थव्यवस्था की अधिकतर जनसंख्या नियोजित है। परंतु इसमें प्रच्छन्न बेरोज़गारी विद्यमान है। इसमें अब और अधिक व्यक्ति नियोजित करने की क्षमता नहीं है। इसलिए बाकी श्रमिक द्वितीयक व ततीयक क्षेत्रों की ओर जा रहे हैं।
  2. द्वितीयक क्षेत्रक-द्वितीयक क्षेत्रक में लघु स्तरीय विनिर्माण भी अधिक व्यक्तियों को रोज़गार प्रदान करता है। ग्रामीण क्षेत्रों में और अधिक व्यक्तियों को नियोजित करने के लिए गांवों में कुटीर उद्योगों की स्थापना की जानी चाहिए।
  3. तृतीयक क्षेत्रक-तृतीयक क्षेत्र भारत में से बेरोज़गारी को दूर करने के लिए एक महत्त्वपूर्ण क्षेत्रक है।

प्रश्न 24.
मौसमी बेरोज़गारी क्या होती है? इस बेरोज़गारी के लिए उत्तरदायी मुख्य कारण क्या है ?
उत्तर-
मौसमी बेरोज़गारी तब होती है जब लोग वर्ष के कुछ महीनों में रोजगार प्राप्त नहीं कर पाते हैं। कृषि पर आश्रित लोग आमतौर पर इस तरह की समस्या से जूझते हैं।
कारण-

  1. कृषि की विविधता में कमी।।
  2. ग्रामीण क्षेत्रों में लघु एवं कुटीर उद्योगों की कमी।
  3. कृषि के व्यापारीकरण का अभाव।

प्रश्न 25.
प्रच्छन्न बेरोज़गारी क्या है? उदाहरण सहित व्याख्या करें।
उत्तर-
प्रच्छन्न बेरोज़गारी के अंतर्गत लोग नियोजित प्रतीत होते है। उनके पास भूखंड होता है, जहाँ उन्हें काम मिलता है। ऐसा प्रायः कृषिगत काम में लगे परिजनों में होता है। किसी काम में पांच लोगों की आवश्यकता होती है लेकिन उसमें आठ लोग लगे होते हैं। इसमें तीन लोग अतिरिक्त हैं। ये तीनों इसी खेत पर काम करते हैं जिस पर पांच लोग काम करते हैं। इन तीनों द्वारा किया गया अंशदान पांच लोगों द्वारा किए गए योगदान में कोई बढ़ोत्तरी नहीं करता। यदि तीन लोगों को हटा दिया जाए तो उत्पादकता में कोई कमी नहीं आयेगी। खेत में पांच लोगों के काम की आवश्यकता होती है और तीन अतिरिक्त लोग प्रच्छन्न रूप से नियोजित होते हैं।

प्रश्न 26.
मानवीय पूंजी उत्पादन का सबसे महत्त्वपूर्ण साधन क्यों हैं ? तीन कारण दें।
उत्तर-
मानवीय पूंजी उत्पादन का सबसे महत्त्वपूर्ण साधन निम्नलिखित कारणों से हैं-

  1. कुछ उत्पादन क्रियाओं में ज़रूरी कार्यों को करने के लिए बहुत ज्यादा पढ़े-लिखे कर्मियों की ज़रूरत होती है।
  2. बहुत-सी क्रियाओं में शारीरिक कार्य करने वाले श्रमिकों की ज़रूरत होती है।
  3. केवल मानवीय पूंजी में ही उद्यमवृत्ति का गुण पाया जाता है।

प्रश्न 27.
जापान जैसे देश कैसे धनी व विकसित बने ? तीन कारणों से व्याख्या करें।
उत्तर-
जापान जैसे देश के धनी व विकसित बनने के तीन कारणों की व्याख्या निम्नलिखित है-

  1. उन्होंने लोगों में विशेष रूप से शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में निवेश किया है।
  2. उन लोगों ने भूमि और पूंजी जैसे अन्य संसाधनों का कुशल उपयोग किया है।
  3. इन लोगों ने जो कुशलता और प्रौद्योगिकी विकसित की, उसी से ये देश धनी व विकसित बने हैं।

प्रश्न 28.
भारत में स्वास्थ्य स्तर की स्थिति की व्याख्या करें।
उत्तर-
किसी व्यक्ति का स्वास्थ्य उसे अपनी क्षमता को प्राप्त करने और बीमारियों से लड़ने की ताकत देता है। अस्वस्थ लोग किसी संगठन के लिए बोझ बन जाते हैं। वास्तव में, स्वास्थ्य अपना कल्याण करने का एक अपरिहार्य आधार है। इसलिए जनसंख्या की स्वास्थ्य स्थिति को सुधारना किसी देश की प्राथमिकता होती है। हमारी राष्ट्रीय नीति का लक्ष्य भी जनसंख्या के अल्प सुविधा प्राप्त वर्गों पर विशेष ध्यान देते हुए स्वास्थ्य सेवाओं, परिवार कल्याण और पोष्टिक सेवा तक इनकी पहुंच को बेहतर बनाना है। पिछले पांच दशकों में भारत ने सरकारी और निजी क्षेत्रों में प्राथमिक, द्वितीयक तथा तृतीयक सेवाओं के लिए आपेक्षित एक विस्तृत स्वास्थ्य आधारित संरचना और जनशक्ति का निर्माण किया है।

प्रश्न 29.
बेरोज़गारी क्या है ? इसके मुख्य प्रभाव क्या होते हैं ?
उत्तर-
बेरोज़गारी उस समय विद्यमान कही जाती है, जब प्रचलित मज़दूरी की दर पर काम करने के लिए इच्छुक लोग रोज़गार नहीं पा सके। प्रभाव-बेरोज़गारी से जनशक्ति संसाधन की बर्बादी होती है। जो लोग अर्थव्यवस्था के लिए परिसंपत्ति होते हैं, बेरोज़गारी के कारण दायित्व में बदल जाते हैं, युवकों में निराशा और हताशा की भावना होती है। लोगों के पास अपने परिवार का भरण-पोषण करने के लिए पर्याप्त मुद्रा नहीं होती। शिक्षित लोगों के साथ जो कार्य करने के इच्छुक हैं और सार्थक रोजगार प्राप्त करने में असमर्थ हैं, यह एक बड़ा सामाजिक अपव्यय है। बेरोज़गारी से आर्थिक बोझ में वृद्धि होती है। कार्यरत जनसंख्या पर बेरोज़गारी की निर्भरता बढ़ती है। किसी व्यक्ति और साथ-ही साथ समाज के जीवन की गुणवत्ता पर बुरा प्रभाव पड़ता है।

प्रश्न 30.
मानव पूंजी निर्माण क्या है ? मानव पूंजी संसाधन अन्य संसाधनों से भिन्न कैसे हैं ?
उत्तर-
मानव पूंजी निर्माण से अभिप्राय ऐसे व्यक्ति उपलब्ध करवाना और उनकी संख्या में वृद्धि करना है जो शिक्षित, कुशल तथा अनुभव संपन्न हों, जो एक देश के आर्थिक विकास के लिए बहुत आवश्यक है। व्यक्तियों को अच्छी शिक्षा, स्वास्थ्य संबंधी सुविधाएं, उनकी जीवन प्रत्याशा में वृद्धि, शिशु मृत्यु-दर में कमी करके और उनको तकनीकी ज्ञान देकर उन्हें मानव पूंजी बनाया जा सकता है। मानव पूंजी संसाधन भूमि व भौतिक पूंजी जैसे अन्य संसाधनों से भिन्न है क्योंकि मानव संसाधन भूमि और भौतिक पूंजी जैसे अन्य संसाधनों का प्रयोग कर सकता है। अन्य साधन अपने आप उपयोगी नहीं हो सकते।

PSEB 9th Class SST Solutions Economics Chapter 2 मानव-संसाधन

प्रश्न 31.
1. सकल राष्ट्रीय उत्पादक क्या होता है?
2. जापान के पास कोई प्राकृतिक संसाधन नहीं है, फिर भी वे विकसित देश कैसे हैं ? कारण बताएं।
उत्तर-

  1. सकल राष्ट्रीय उत्पादन एक देश के निवासियों के द्वारा एक वर्ष की अवधि में उत्पादित सभी अंतिम वस्तुओं व सेवाओं के उत्पादक का मूल्य है।
    • जापान देश ने मानव संसाधन पर भारी निवेश किया है।
    • उन्होंने लोगों में विशेष रूप से उनकी शिक्षा व स्वास्थ्य पर निवेश किया।
    • शिक्षित व स्वस्थ व्यक्ति भूमि व पूंजी जैसे साधनों का अधिक कुशल उपयोग कर सकते हैं।

प्रश्न 32.
किसी देश के लिए उसकी जनसंख्या के स्वास्थ्य के स्तर में सुधार करना मुख्य पहल होती है। कारण बताएं।
उत्तर-

  1. अच्छा स्वास्थ्य श्रमिकों की निपुणता को बढ़ाता है।
  2. एक अस्वस्थ श्रमिक देश के लिए दायित्व होता है।
  3. स्वस्थ नागरिक उत्पादन का मूलभूत संसाधन होता है।
  4. किसी व्यक्ति का स्वास्थ्य उसे अपनी क्षमता को प्राप्त करने और बीमारियों से लड़ने की ताकत देता है।

प्रश्न 33.
किस प्रकार अर्थव्यवस्था के समग्र विकास पर बेरोज़गारी का अहितकर प्रभाव पड़ता है? चार बिंदुओं पर इसकी व्याख्या कीजिए।
उत्तर-

  1. बेरोज़गारी से जनशक्ति संसाधन की बर्बादी होती है जो लोग अर्थव्यवस्था के लिए परिसंपत्ति होते हैं। बेरोज़गारी के कारण दायित्व में बदल जाते हैं।
  2. युवकों में इससे निराशा और हताशा की भावना होती है क्योंकि इनके पास अपने परिवार का भरण-पोषण करने के लिए पर्याप्त मुद्रा नहीं होती।
  3. बेरोज़गारी से आर्थिक बोझ में वृद्धि होती है।
  4. कार्यरत जनसंख्या पर बेरोज़गारी की निर्भरता बढ़ती जाती है जिससे समाज के जीवन की गुणवत्ता पर बुरा प्रभाव पड़ता है।

प्रश्न 34.
भारतीय अर्थव्यवस्था में द्वितीयक क्षेत्र के महत्त्व के बिंदु बताइए।
उत्तर-
इसके महत्त्व के निम्न बिंदु हैं-

  1. इस क्षेत्रक में विनिर्माण के द्वारा प्राकृतिक संसाधनों को अन्य वस्तुओं में बदला जाता है।
  2. सभी औद्योगिक क्रियाएं इस क्षेत्र में होती हैं।
  3. इस क्षेत्र की क्रियाएं प्राथमिक व तृतीयक क्षेत्रक के विकास में सहायता करती है।
  4. इस क्षेत्र के उत्पादन से अर्थव्यवस्था में प्रतियोगिता संभव होती है।

प्रश्न 35.
औपचारिक व अनौपचारिक क्षेत्र में तुलना करें।
उत्तर-
इनमें अंतर निम्न बिंदुओं द्वारा दर्शाया जा सकता है-

औपचारिक क्षेत्र अनौपचारिक क्षेत्र
1. इस क्षेत्र में 10 या 10 से अधिक व्यक्ति नियोजित होते हैं। 1. इसमें 10 से कम व्यक्ति या कई बार एक भी व्यक्ति नियोजित नहीं होता है।
2. इसमें श्रम बल का बहुत कम प्रतिशत लगभग 7 प्रतिशत नियोजित होता है। 2. इसमें श्रम बल का बहुत अधिक भाग लगभग 93 प्रतिशत नियोजित होता है।
3. इसमें श्रमिक सामाजिक सुरक्षा लाभ प्राप्त करते हैं। 3. इसमें श्रमिकों को सामाजिक सुरक्षा के लाभ प्राप्त नहीं होते हैं।
4. इसमें संवृद्धि के बढ़ने से रोज़गार भी बढ़ता है। 4. इसमें संवृद्धि के बढ़ने से रोज़गार कम होता है।

दीर्घ उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत में मानव पूंजी निर्माण में क्या समस्याएँ हैं ? समझाइए।
उत्तर-
भारत में मानव पूंजी निर्माण में निम्न समस्याएँ हैं

  1. निर्धनता (Poverty)-भारत के अधिकतर लोग निर्धन हैं जो प्राथमिक स्तर की शिक्षा और स्वास्थ्य संबंधी सुविधाएं जुटाने में भी असफल हैं। अतः निर्धनता मानव पूंजी निर्माण की एक मुख्य समस्या है।
  2. अनपढ़ता (Illeteracy)-भारत के अधिकतर लोग निरक्षर हैं जिससे वह शिक्षा और स्वास्थ्य संबंधी सुविधाओं के लाभ को नहीं समझ पाते हैं और मानव पूंजी निर्माण में सहयोग नहीं देते हैं।
  3. सीमित क्षेत्रों में ज्ञान (Knowledge in Limited Area)—मानव पूंजी का ज्ञान कुछ क्षेत्रों तक ही सीमित है। अभी बहुत-से क्षेत्र ऐसे हैं जहाँ इसका अर्थ भी पता नहीं है।
  4. स्वास्थ्य संबंधी सुविधाओं का अभाव (Lack of Medical Facilities)-भारत में स्वास्थ्य संबंधी सुविधाएं कुछ ही क्षेत्रों तक सीमित हैं। सभी क्षेत्रों में अच्छी स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध न होने के कारण सभी लोग शारीरिक तथा मानसिक रूप से स्वस्थ नहीं हैं।
  5. शिक्षा संबंधी सुविधाओं का अभाव (Lack of Educational Facilities)-भारत में शिक्षा संबंधी सुविधाएं भी कुछ क्षेत्रों तक ही सीमित हैं। अभी तक कुछ क्षेत्रों में तो प्राथमिक स्तर की भी शिक्षा उपलब्ध नहीं है। अत: यह भी मानवीय पूंजी निर्माण की एक मुख्य समस्या है।
  6. जनसंख्या में वृद्धि (Increase in population)-देश में जनसंख्या में हो रही तीव्र वृद्धि से मानव पूंजी निर्माण में हमेशा बाधा आती रही है।

प्रश्न 2.
मानवीय पूंजी की आर्थिक विकास में भूमिका बताइए।
उत्तर-
मानवीय पूंजी निम्न तरह से आर्थिक विकास में सहायक होती है-

  1. श्रम की कार्यकुशलता (Efficiency of Labour)—मानवीय पूंजी श्रमिकों की कार्यकुशलता को बढ़ाने में सहायक होती है और कुशल श्रमिकों को रोजगार प्रदान करके उत्पादकता को बढ़ाया जा सकता है जो आर्थिक विकास के लिए अति आवश्यक है।
  2. प्रशिक्षण तथा तकनीकी ज्ञान (Training and Technical Knowledge)-मानवीय श्रम बनने के लिए लोगों में प्रशिक्षण तथा तकनीकी ज्ञान का होना बहुत आवश्यक है। प्रशिक्षित श्रमिक ही अपने कार्य को अधिक तीव्रता, अधिक मात्रा और अधिक कुशलता से कर सकते हैं जो आर्थिक विकास के लिए आवश्यक है।
  3. व्यवसाय का बढ़ता हुआ आकार (Large Size of Business)-व्यवसाय के बढ़ते हुए आकार के कारण अधिकतर यंत्रीकरण किया गया है जो केवल प्रशिक्षित श्रमिकों द्वारा संचालित किए जा सकते हैं और उत्पादन में सहायक होते हैं।
  4. उत्पादन लागत में कमी (Decrease in Production Cost) यदि उत्पादन प्रशिक्षित श्रमिकों द्वारा किया जाता है तो उत्पादन अधिक होता है और उत्पादन लागत कम आती है जिससे उद्यमियों के लाभ बढ़ते हैं और उन्हें व्यवसाय में और अधिक निवेश की प्रेरणा मिलती है।
  5. औद्योगीकरण का आधार (Bases of Industrialisation)-अल्पविकसित देशों में औद्योगीकरण का आधार रखने के लिए मानव पूंजी निर्माण में निवेश करना आवश्यक है। क्योंकि अधिकतर मानवीय पूंजी होने से औद्योगीकरण का विस्तार होगा।

PSEB 9th Class SST Solutions Economics Chapter 2 मानव-संसाधन

मानव-संसाधन PSEB 9th Class Economics Notes

  • संसाधन – अपनी क्षमता को बढ़ाने के लिए व्यक्ति, संगठन या राष्ट्र | द्वारा किए गए प्रयास संसाधन हैं।
  • प्राकृतिक संसाधन – वायु, खनिज, भूमि, जल आदि का प्रयोग मनुष्य की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए किया जाता है इन्हें ही प्राकृतिक संसाधन कहते हैं।
  • मानवीय संसाधन – किसी राष्ट्र की जनसंख्या का वह भाग जो कार्यकुशलता, शिक्षा प्रशिक्षण व स्वास्थ्य से संपन्न है।
  • जापान व जर्मनी के आर्थिक विकास के कारण – इनका मानव पूंजी निर्माण में निवेश खासकर स्वास्थ्य व शिक्षा में।
  • भारत, बांग्लादेश व पाकिस्तान में अल्पविकास के कारण – उनकी अशिक्षित, अस्वस्थ व अकार्यकुशल बड़ी जनसंख्या।
  • आर्थिक क्रियाएं – वे सभी कार्य जो धन कमाने के उद्देश्य से किए जाते हैं।
  • गैर आर्थिक क्रियाएं – वे सभी कार्य जो धन कमाने के उद्देश्य से नहीं किए जाते हैं।
  • प्राथमिक क्षेत्र – प्राथमिक क्षेत्र वह क्षेत्र है जो प्राकृतिक संसाधनों के प्रयोग द्वारा वस्तुएं निर्मित करता है।
  • प्राथमिक क्षेत्र की किस्मों के उदाहरण – कृषि, पशु-पालन, डेयरी, मुर्गीपालन, मत्सय पालन, खनन, वानिकी आदि।
  • द्वितीयक क्षेत्र – द्वितीयक क्षेत्र वे क्षेत्र हैं जो प्राथमिक क्षेत्र के उत्पाद का कच्चे माल के रूप में प्रयोग करके अंतिम उत्पाद तैयार करता है।
  • तृतीयक क्षेत्र – वह क्षेत्र जो सेवाओं का निर्माण करता है।
  • जनसंख्या, संपत्ति या दायित्व के रूप में – अशिक्षित व अस्वस्थ जनसंख्या किसी देश के लिए दायित्व है जबकि शिक्षित व स्वस्थ जनसंख्या किसी देश के लिए संपत्ति है।
  • बेरोजगारी – जब कोई व्यक्ति मज़दूरी की प्रचलित दर पर काम करने को | तैयार हो पर उसे काम न मिले।
  • मौसमी बेरोजगारी – इसका अर्थ है जब लोग पूरे वर्ष में कुछ महीने काम न करें व रोजगार के लिए भटकते रहें।
  • अदृश्य बेरोज़गारी। – यह बेरोज़गारी का वह रूप है जिसमें श्रमिक कार्य करते हुए प्रतीत होते हैं पर वे वास्तव में होते नहीं हैं।

PSEB 9th Class SST Solutions History Chapter 8 पहनावे का सामाजिक इतिहास

Punjab State Board PSEB 9th Class Social Science Book Solutions History Chapter 8 पहनावे का सामाजिक इतिहास Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 9 Social Science History Chapter 8 पहनावे का सामाजिक इतिहास

SST Guide for Class 9 PSEB पहनावे का सामाजिक इतिहास Textbook Questions and Answers

(क) बहुविकल्पीय प्रश्न :

प्रश्न 1.
सूती कपड़ा किससे बनता है ?
(क) कपास
(ख) जानवरों की खाल
(ग) रेशम के कीड़े
(घ) ऊन।
उत्तर-
(क) कपास

प्रश्न 2.
बनावटी रेशे का विचार सबसे पहले किस वैज्ञानिक ने दिया ?
(क) मेरी क्यूरी
(ख) राबर्ट हुक्क
(ग) लुइस सुबाब
(घ) लार्ड कर्जन।
उत्तर-(ख) राबर्ट हुक्क

प्रश्न 3.
कौन-सी शताब्दी में यूरोप के लोग अपने सामाजिक स्तर, वर्ग अथवा लिंग के अनुसार कपड़े पहनते थे ?
(क) 15वीं
(ख) 16वीं
(ग) 17वीं
(घ) 18वीं।
उत्तर-(घ) 18वीं।

प्रश्न 4.
किस देश के व्यापारियों ने भारत की छींट का आयात शुरू किया ?
(क) चीन
(ख) इंग्लैंड
(ग) इटली
(घ) फ्रांस।
उत्तर-(ख) इंग्लैंड

(ख) रिक्त स्थान भरें :

  1. पुरातत्व वैज्ञानिकों को ………… के नज़दीक हाथी दांत की बनी हुई सुइयाँ प्राप्त हुईं।
  2.  रेशम का कीड़ा प्रायः ………. के वृक्षों पर पाला जाता है।
  3. ……….. वस्त्रों के अवशेष मिस्र, बेबीलोन, सिंधु घाटी की सभ्यता से मिले हैं।
  4. औद्योगिक क्रांति का आरंभ ……………. महाद्वीप में हुआ था।
  5. स्वदेशी आंदोलन ……….. ई० में आरंभ हुआ।

उत्तर-

  1. कोस्तोनकी (रूस)
  2. शहतूत
  3. ऊनी
  4. यूरोप
  5. 1905

PSEB 9th Class SST Solutions History Chapter 8 पहनावे का सामाजिक इतिहास

(ग) सही मिलान करो :

1. बंगाल का विभाजन – रविंद्रनाथ टैगोर
2. रेशमी कपड़ा – चीन
3. राष्ट्रीय गान – 1789 ई०
4. फ्रांसीसी क्रांति – महात्मा गांधी
5. स्वदेशी लहर – लार्ड कर्जन।
उत्तर-

  1. लार्ड कर्जन
  2. चीन
  3. रविंद्रनाथ टैगोर
  4. 1789 ई०
  5. महात्मा गांधी।

(घ) अंतर स्पष्ट करो :

प्रश्न 1.
1. ऊनी कपड़ा और रेशमी कपड़ा
2. सूती कपड़ा और कृत्रिम रेशों से बना कपड़ा।
उत्तर-
1. ऊनी कपड़ा और रेशमी कपड़ा ऊनी कपड़ा
ऊन से बनता है। ऊन वास्तव में एक रेशेदार प्रोटीन है, जो विशेष प्रकार की चमड़ी की कोशिकाओं से बनती है। ऊन भेड़, बकरी, याक, खरगोश आदि जानवरों से भी प्राप्त की जाती है। मैरिनो नामक भेड़ों की ऊन सबसे उत्तम मानी जाती है। मिस्र, बेबीलोन, सिंधु घाटी की सभ्यता में ऊनी वस्त्रों के अवशेष मिले हैं। इससे मालूम होता है कि उस समय के लोग भी ऊनी कपड़े पहनते थे।

रेशमी कपड़ा-
रेशमी कपड़ा रेशम के कीड़ों से प्राप्त रेशों से बनता है। रेशम का कीड़ा अपनी सुरक्षा के लिए अपने इर्द-गिर्द एक कवच तैयार करता है। यह कवच उसकी लार का बना होता है। इस कवच से ही रेशमी धागा तैयार किया जाता है। रेशम का कीड़ा प्रायः शहतूत के वृक्षों पर पाला जाता है। रेशमी कपड़ों की तकनीक सबसे पहले चीन में विकसित हुई। भारत में भी हज़ारों वर्षों से रेशमी कपड़े का प्रयोग किया जा रहा है।

2. सूती कपड़ा और कृत्रिम रेशों से बना कपड़ा
सूती कपड़ा-
सूती कपड़ा कपास से बनाया जाता है। भारत में लोग सदियों से सूती वस्त्र पहनते आ रहे हैं। कपास और सूती वस्त्रों के प्रयोग के ऐतिहासिक प्रमाण प्राचीन सभ्यताओं में भी मिलते हैं। सिंधु घाटी की सभ्यता में कपास और सूती कपड़े के प्रयोग के बारे में प्रमाण मिले हैं। ऋग्वेद के मंत्रों में भी कपास के विषय में चर्चा की गई है।

कृत्रिम (बनावटी) रेशे से बने कपड़े-
कृत्रिम रेशे बनाने का विचार सबसे पहले एक अंग्रेज़ वैज्ञानिक राबर्ट हुक्क (Robert Hook) के मन में आया। इसके बारे में एक फ्रांसीसी वैज्ञानिक ने भी लिखा। परंतु सन् 1842 ई० में अंग्रेज़ी वैज्ञानिक लुइस सुबाब ने बनावटी रेशों से कपड़े तैयार करने की एक मशीन तैयार की। कृत्रिम रेशों को तैयार करने के लिए शहतूत, एल्कोहल, रबड़, मनक्का, चर्बी और कुछ अन्य वनस्पतियां प्रयोग में लाई जाती हैं। नायलोन, पोलिस्टर और रेयान मुख्य कृत्रिम रेशे हैं। पोलिस्टर और सूत से बना कपड़ा टेरीकाट भारत में बहुत प्रयोग किया जाता है। आजकल अधिकतर लोग कृत्रिम रेशों से बने वस्त्रों का ही उपयोग करते हैं।

PSEB 9th Class SST Solutions History Chapter 8 पहनावे का सामाजिक इतिहास

अति लघु उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
आदिकाल में मनुष्य शरीर ढकने के लिए किसका प्रयोग करता था ?
उत्तर-
आदिकाल में मनुष्य शरीर ढकने के लिए पत्तों, वृक्षों की छाल और जानवरों की खाल का प्रयोग करता था।

प्रश्न 2.
कपड़े कितनी तरह के रेशों से बनते हैं ?
उत्तर-
कपड़े चार तरह के रेशों से बनते हैं-सूती, ऊनी, रेशमी तथा कृत्रिम।

प्रश्न 3.
किस किस्म की भेड़ों की ऊन सबसे बढ़िया होती है ?
उत्तर-
मैरिनो।

प्रश्न 4.
स्त्रियों ने सबसे पहले किस देश में पहनावे की आज़ादी संबंधी आवाज़ उठाई ?
उत्तर-
फ्रांस।

प्रश्न 5.
इंग्लैंड औद्योगिक क्रांति से पहले सूती कपड़ा किस देश से आयात करता था ?
उत्तर-
भारत से।

प्रश्न 6.
खादी लहर चलाने वाले प्रमुख भारतीय नेता का नाम बताओ।
उत्तर-
महात्मा गांधी।

प्रश्न 7.
नामधारी संप्रदाय के लोग किस रंग के कपड़े पहनते हैं ?
उत्तर-
सफेद।

लघु उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
मनुष्य को पहनावे की ज़रूरत क्यों पड़ी ?
उत्तर-
पहनावा व्यक्ति की बौद्धिक, मानसिक व आर्थिक स्थिति का प्रतीक है। पहनावे का प्रयोग केवल तन ढकने के लिए ही नहीं किया जाता, बल्कि इसके द्वारा मनुष्य की सभ्यता, सामाजिक स्तर आदि का भी पता चलता है। इसलिए मनुष्य को पहनावे की ज़रूरत पड़ी।

प्रश्न 2.
रेशमी कपड़ा कैसे तैयार होता है ?
उत्तर-
रेशमी कपड़ा रेशम के कीड़ों से प्राप्त रेशों से बनता है। रेशम का कीड़ा प्रायः शहतूत के वृक्षों पर पाला जाता है। यह कीड़ा अपनी सुरक्षा के लिए अपने इर्द-गिर्द एक कवच बना लेता है। यह कवच उसकी लार का बना होता है। इस कवच से ही रेशमी धागा तैयार किया जाता है। रेशमी कपड़ों की तकनीक सबसे पहले चीन में विकसित हुई।

प्रश्न 3.
औद्योगिक क्रांति का मनुष्य के पहनावे पर क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर-
18वीं-19वीं शताब्दी में औद्योगिक क्रांति का मनुष्य के पहनावे पर निम्नलिखित प्रभाव पड़े :

  1. सूती कपड़े का उत्पादन बहुत अधिक बढ़ गया। अतः लोग मशीनों से बना सूती कपड़ा पहनने लगे।
  2. बनावटी रेशों से वस्त्र बनाने की तकनीक विकसित होने के बाद बड़ी संख्या में लोग कृत्रिम रेशों से बनाए गए वस्त्र पहनने लगे। इसका कारण यह था कि ये वस्त्र बहुत हल्के होते थे और इन्हें धोना भी आसान था परिणामस्वरूप भारीभरकम वस्त्र धीरे-धीरे विलुप्त होने लगे।
  3. वस्त्र सस्ते हो गए। फलस्वरूप कम वस्त्र पहनने वाले लोग भी अधिक से अधिक वस्त्रों का प्रयोग करने लगे।

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प्रश्न 4.
स्त्रियों के पहरावे पर महायुद्धों का क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर-
महायुद्धों के परिणामस्वरूप महिलाओं के पहरावे में निम्नलिखित परिवर्तन आये-

  1. आभूषणों तथा विलासमय वस्त्रों का त्याग–अनेक महिलाओं ने आभूषणों तथा विलासमय वस्त्रों का त्याग कर दिया। फलस्वरूप सामाजिक बंधन टूट गए और उच्च वर्ग की महिलाएं अन्य वर्गों की महिलाओं के समान दिखाई देने लगीं।
  2. छोटे वस्त्र-प्रथम विश्व युद्ध (1914-1918) के दौरान व्यावहारिक आवश्यकताओं के कारण वस्त्र छोटे हो गए। 1917 ई० तक ब्रिटेन में 70 हजार महिलाएं गोला-बारूद के कारखानों में काम करने लगी थी। कामगार महिलाएं ब्लाउज़, पतलून के अतिरिक्त स्कार्फ पहनती थीं जिसे बाद में खाकी ओवरआल और टोपी में बदल दिया गया। स्कर्ट की लंबाई कम हो गई। शीघ्र ही पतलून पश्चिमी महिलाओं की पोशाक का अनिवार्य अंग बन गई जिससे उन्हें चलनेफिरने में अधिक आसानी हो गई।
  3. वस्त्रों के रंग तथा बालों के आकार में परिवर्तन-भड़कीले रंगों का स्थान सादा रंगों ने लिया। अनेक महिलाओं ने सुविधा के लिए अपने बाल छोटे करवा लिए।
  4. सादा वस्त्र तथा खेलकूद-बीसवीं शताब्दी के आरंभ में बच्चे नए स्कूलों में सादा वस्त्रों पर बल देने और हारश्रृंगार को निरुत्साहित करने लगे। व्यायाम और खेलकूद लड़कियों के पाठ्यक्रम का अंग बन गए। खेल के समय लड़कियों को ऐसे वस्त्रों की आवश्यकता थी जिससे उनकी गति में बाधा न पड़े। जब वे काम पर जाती थीं तो वे आरामदेह और सुविधाजनक वस्त्र पहनती थीं।

प्रश्न 5.
स्वदेशी आंदोलन से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
संकेत-इसके लिए दीर्घ उत्तरों वाले प्रश्न का प्रश्न क्रमांक 4 पढ़ें।

प्रश्न 6.
राष्ट्रीय पोशाक तैयार करने से संबंधित किए गए यत्नों का संक्षेप वर्णन करो।
उत्तर-
19वीं शताब्दी के अंत में राष्ट्रीयता की भावना जागृत हुई। राष्ट्र की सांकेतिक पहचान के लिए राष्ट्रीय पोशाक पर विचार किया जाने लगा। भारत के विभिन्न भागों में उच्च वर्गों में स्त्री-पुरुषों ने स्वयं ही वस्त्रों के नए-नए प्रयोग करने आरंभ कर दिए। 1870 के दशक में बंगाल के टैगोर परिवार ने भारत के स्त्री तथा पुरुषों की राष्ट्रीय पोशाक के डिजाइन के प्रयोग आरंभ किए। रविंद्रनाथ टैगोर ने सुझाव दिया कि भारतीय तथा यूरोपीय वस्त्रों को मिलाने के स्थान पर हिंदू तथा मुस्लिम वस्त्रों के डिजाइनों को आपस में मिलाया जाए। इस प्रकार बटनों वाले एक लंबे कोट (अचकन) को भारतीय पुरुषों के लिए आदर्श पोशाक माना गया।

भिन्न-भिन्न क्षेत्रों की परंपराओं को ध्यान में रखकर भी एक वेशभूषा तैयार करने का प्रयास किया गया। 1870 के दशक के अंत में सतेंद्रनाथ टैगोर की पत्नी ज्ञानदानंदिनी टैगोर ने राष्ट्रीय पोशाक तैयार करने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने साड़ी पहनने के लिए पारसी स्टाइल को अपनाया। इसमें साड़ी को बाएं कंधे पर पिन किया जाता था। साड़ी के साथ मिलते-जुलते ब्लाउज तथा जूते पहने जाते थे। जल्दी ही इसे ब्रह्म समाज की स्त्रियों ने अपना लिया। अतः इसे ब्रालिका साड़ी के नाम से जाना जाने लगा। शीघ्र ही यह शैली महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश के ब्रह्म-समाजियों तथा गैरब्रह्मसमाजियों में प्रचलित हो गई।

प्रश्न 7.
पंजाबी महिलाओं के पहनावे पर संक्षिप्त नोट लिखो।
उत्तर-
पंजाब अंग्रेजी शासन के अधीन (1849 ई०) सबसे बाद में आया। इसलिए पंजाब के लोगों विशेषकर महिलाओं के कपड़ों पर विदेशी संस्कृति का प्रभाव बहुत ही कम दिखाई दिया। पंजाब मुख्य रूप से अपनी परंपरागत ग्रामीण संस्कृति से जुड़ा रहा और यहां की महिलाएं परंपरागत वेशभूषा ही अपनाती रहीं। सलवार, कुर्ता और दुपट्टा
ही पंजाबी महिलाओं की पहचान बनी रही। विवाह के अवसर पर वे रंगबिरंगे वस्त्र तथा भारी आभूषण पहनती थीं। लड़कियां विवाह के अवसर पर फुलकारी निकालती थीं। दुपट्टों को गोटा लगा कर आकर्षक बनाया जाता था। सूटों पर कढ़ाई भी की जाती थी। शहरी औरतें साड़ी और ब्लाउज़ भी पहनती थीं। सर्दियों में स्वेटर, कोटी और स्कीवी पहनने का रिवाज था।

दीर्घ उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
कपड़ों में प्रयोग किए जाने वाले विभिन्न रेशों का वर्णन करें।
उत्तर-
नए-नए रेशों के आविष्कार के कारण लोग भिन्न-भिन्न प्रकार के रेशों से बने कपड़े पहनने लगे। मौसम. सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, राजनैतिक व धार्मिक प्रभावों के कारण लोगों के पहनावे में निरंतर परिवर्तन आता रहा है जोकि आज भी जारी है।
पहनावे के इतिहास के लिए अलग-अलग तरह के रेशों के बारे में जानना ज़रूरी है, इनका वर्णन इस प्रकार है-

  1. सूती कपड़ा-सूती कपड़ा कपास से बनाया जाता है। भारत में लोग सदियों से सूती वस्त्र पहनते आ रहे हैं। कपास और सूती वस्त्रों के प्रयोग के ऐतिहासिक प्रमाण प्राचीन सभ्यताओं में भी मिलते हैं। सिंधु घाटी की सभ्यता में से भी कपास और सूती कपड़े के प्रयोग के बारे में प्रमाण मिले हैं। ऋग्वेद के मंत्रों में भी कपास के विषय में चर्चा की गई है।
  2. ऊनी कपड़ा-ऊन वास्तव में एक रेशेदार प्रोटीन है, जो विशेष प्रकार की चमड़ी की कोशिकाओं से बनती है। ऊन भेड़, बकरी, याक, खरगोश आदि जानवरों से भी प्राप्त की जाती है। मैरिनो नामक भेड़ों की ऊन सबसे उत्तम मानी जाती है। मिस्र, बेबीलोन, सिंधु घाटी की सभ्यता में ऊनी वस्त्रों के अवशेष मिले हैं। इससे मालूम होता है कि उस समय के लोग भी ऊनी कपड़े पहनते थे।
  3. रेशमी कपड़ा-रेशमी कपड़ा रेशम के कीड़ों से प्राप्त रेशों से बनता है। रेशम का कीड़ा अपनी सुरक्षा के लिए अपने इर्द-गिर्द एक कवच तैयार करता है। यह कवच उसकी लार का बना होता है। इस कवच से ही रेशमी धागा तैयार किया जाता है। रेशम का कीड़ा प्रायः शहतूत के वृक्षों पर पाला जाता है। रेशमी कपड़ों की तकनीक सबसे पहले चीन में विकसित हुई। भारत में भी रेशमी कपड़े का प्रयोग हज़ारों वर्षों से किया जा रहा है।
  4. कृत्रिम रेशे से बना कपड़ा-कृत्रिम रेशे बनाने का विचार सबसे पहले एक अंग्रेज़ वैज्ञानिक राबर्ट हुक्क (Robert Hook) के मन में आया। इसके बारे में एक फ्रांसीसी वैज्ञानिक ने भी लिखा। परन्तु सन् 1842 ई० में अंग्रेज़ी वैज्ञानिक लुइस सुबाब ने बनावटी रेशों से कपड़े तैयार करने की एक मशीन तैयार की। कृत्रिम रेशों को तैयार करने के लिए शहतूत, एल्कोहल, रबड़, मनक्का, चर्बी और कुछ अन्य वनस्पतियां प्रयोग में लाई जाती हैं। नायलोन, पोलिस्टर ओर रेयान मुख्य कृत्रिम रेशे हैं। पोलिस्टर और सूत से बना कपड़ा टैरीकाट भारत में बहुत प्रयोग किया जाता है। आजकल अधिकतर लोग कृत्रिम रेशों से बने वस्त्रों का उपयोग करते हैं।

प्रश्न 2.
औद्योगिक क्रांति ने साधारण लोगों के पहनावे पर क्या प्रभाव डाला ? वर्णन करें।
उत्तर-
18वीं-19वीं शताब्दी में औद्योगिक क्रांति ने समस्त विश्व के सामाजिक, राजनैतिक और आर्थिक ढांचे पर अपना गहरा प्रभाव डाला। इससे लोगों के विचारों तथा जीवन-शैली में परिवर्तन आया, परिणामस्वरूप लोगों के पहनावे में भी परिवर्तन आया।
कपड़े का उत्पादन मशीनों से होने के कारण कपड़ा सस्ता हो गया और वह बाज़ार में अधिक मात्रा में आ गया। यह मशीनी कपड़ा होने के कारण अलग-अलग डिज़ाइनों में आ गया। इसलिए लोगों के पास पोशाकों की संख्या में वृद्धि हो गई। संक्षेप में आम लोगों के पहनावे पर औद्योगिक क्रांति के निम्नलिखित प्रभाव पड़े।

  1. रंग-बिरंगे वस्त्रों का प्रचलन–18वीं शताब्दी में यूरोप के लोग अपने सामाजिक स्तर, वर्ग अथवा लिंग के अनुरूप कपड़े पहनते थे। पुरुषों व स्त्रियों के पहनावें में बहुत अंतर था। महिलाएं पहनावे में स्कर्ट और ऊंची एड़ी वाले जूते पहनती थीं। पुरुष पहनावे में नैक्टाई का प्रयोग करते थे। समाज के उच्च वर्ग का पहनावा आम लोगों से अलग होता
    था परंतु 1789 ई० की फ्रांसीसी क्रांति ने कुलीन वर्ग के लोगों के विशेष अधिकारों को समाप्त कर दिया। इसके परिणामस्वरूप सभी वर्गों के लोग भी अपनी इच्छा के अनुसार रंग-बिरंगे कपड़े पहनने लगे। फ्रांस के लोग स्वतंत्रता के प्रतीक के रूप में लाल टोपी पहनते थे। इस प्रकार आम लोगों द्वारा रंग-बिरंगे कपड़े पहनने का प्रचलन पूरे विश्व में प्रसिद्ध हो गया।

2. स्त्रियों के पहनावे में परिवर्तन-

  1. फ्रांसीसी क्रांति व फिजूल-खर्च रोकने संबंधी कानूनों से पहनावे में किए सुधारों को स्त्रियों ने स्वीकार नहीं किया। 1830 ई० में इंग्लैंड में कुछ महिला-संस्थाओं ने स्त्रियों के लिए लोकतांत्रिक अधिकारों की मांग शुरू कर दी। जैसे ही सफरेज आंदोलन का प्रसार हुआ, तो अमेरिका की 13 ब्रिटिश बस्तियों में पहनावा-सुधार आंदोलन शुरू हुआ।
  2. प्रैस व साहित्य ने तंग कपड़े पहनने के कारण नवयुवतियों को होने वाली बीमारियों के बारे में बताया उनका मानना था कि तंग पहनावे से शरीर का विकास, मेरूदंड में विकार व रक्त संचार प्रभावित होता है। इसलिए बहुत सारे महिला-संगठनों ने सरकार से लड़कियों की शारीरिक, सामाजिक और आर्थिक स्थिति को बेहतर बनाने के लिए पोशाकों में सुधारों की माँग की।
  3. अमेरिका में भी कई महिला-संगठनों ने स्त्रियों के लिए पारंपरिक पोशाक की निंदा की। कई महिला-संस्थाओं ने लंबे गाउन की अपेक्षा स्त्रियों के लिए सुविधाजनक परिधान पहनने की मांग की क्योंकि यदि स्त्रियों की पोशाक आरामदायक होगी, तभी वे आसानी से काम कर सकेंगी।
  4. 1870 ई० में दो संस्थाएं ‘नेशनल वूमैन सफरेज़ ऐसोसिएशन’ और ‘अमेरिकन वुमैन सफरेज़ ऐसोसिएशन’ ने मिलकर स्त्रियों के पहनावे में सुधार करने के लिए आंदोलन आरंभ किया। रूढ़िवादी विचारधारा के लोगों के कारण यह आंदोलन असफल रहा। फिर भी स्त्रियों की सुंदरता और पहनावे के नमूनों में परिवर्तन होना आरंभ हो गया।

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प्रश्न 3.
भारत में औपनिवेशिक शासन के दौरान पहनावे में हुए परिवर्तनों का वर्णन करो।
उत्तर-
औपनिवेशिक शासन के दौरान जब पश्चिमी वस्त्र शैली भारत में आई तो अनेक पुरुषों ने इन वस्त्रों को अपना लिया। इसके विपरीत स्त्रियां परंपरागत कपड़े ही पहनती रहीं।
कारण-

  1. भारत का पारसी समुदाय काफ़ी धनी था। वे लोग पश्चिमी संस्कृति से भी प्रभावित थे। अत: सबसे पहले पारसी लोगों ने ही पश्चिमी वस्त्रों को अपनाया। भद्रपुरुष दिखाई देने के लिए उन्होंने बिना कालर के लंबे कोट, बूट और छड़ी को अपनी पोशाक का अंग बना लिया।
  2. कुछ पुरुषों ने पश्चिमी वस्त्रों को आधुनिकता का प्रतीक समझ कर अपनाया।
  3. भारत के जो लोग मिशनरियों के प्रभाव में आकर ईसाई बन गये थे, उन्होंने भी पश्चिमी वस्त्र पहनने शुरू कर दिए।
  4. कुछ बंगाली बाबू कार्यालयों में पश्चिमी वस्त्र पहनते थे, जबकि घर में आकर अपनी परंपरागत पोशाक धारण कर लेते थे।

इतना होने के बावजूद ग्रामीण समाज में पुरुषों तथा स्त्रियों के पहरावे में कोई विशेष अंतर नहीं आया। केवल मशीनों से बना कपड़ा सुंदर तथा सस्ता होने के कारण अधिक प्रयोग किया जाने लगा। इसके अतिरिक्त भारतीय पहरावे तथा पश्चिमी पहरावे के बीच टकराव की घटनाएं भी सामने आईं। परंतु जातिगत नियमों में बंधा भारतीय ग्रामीण समुदाय पश्चिमी पोशाक-शैली से दूर ही रहा।
समाज में स्त्रियों की स्थिति-इससे पता चलता है कि समाज पुरुष-प्रधान था जिसमें नारी स्वतंत्र नहीं थी। उसका कार्य घर की चार दीवारी तक ही सीमित था। वह नौकरी पेशा नहीं थी।

प्रश्न 4.
भारतीय लोगों के पहनावे पर स्वदेशी आंदोलन का क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर-
1905 ई० में अंग्रेज़ी सरकार ने बंगाल का विभाजन कर दिया। इसे बंग-भंग भी कहा जाता है। स्वदेशी आंदोलन बंग-भंग के विरोध में चला। बहिष्कार भी स्वदेशी आंदोलन का एक अंग था। यह राजनीतिक विरोध कम, परंतु कपड़ों से जुड़ा विरोध अधिक था। लोगों ने इंग्लैंड से आने वाले कपड़े को पहनने से इंकार कर दिया और देश में ही बने कपड़े को पहल दी। गांधी जी द्वारा प्रचलित खादी स्वदेशी पोशाक की पहचान बन गई। विदेशी कपड़े की जगह-जगह होली जलाई गई और विदेशी कपड़े की दुकानों पर धरने दिए।
वास्तव में विदेशी संस्कृति से जुड़ी प्रत्येक वस्तु का त्याग करके स्वदेशी माल अपनाया गया। इस आंदोलन ने ग्रामीणों को रोज़गार प्रदान किया और वहां के कपड़ा उद्योग में नई जान डाली। इसलिए ग्रामीण समुदाय अपनी परम्परागत वस्त्रशैली से ही जुड़ा रहा। बहुत से लोगों ने खादी को भी अपनाया। परंतु खादी बहुत अधिक महंगी होने के कारण बहुत कम स्त्रियों ने इसे अपनाया। गरीबी के कारण वे कई गज़ लम्बी साड़ी के लिए महंगी-खादी नहीं खरीद पाती थीं।

प्रश्न 5.
पंजाबी लोगों के पहनावे संबंधी अपने विचार लिखो।
उत्तर-
पंजाबी महिलाओं का पहनावा-इसके लिए लघु उत्तरों वाले प्रश्नों में क्रमांक 7 पढ़ें पुरुषों का पहनावा-पंजाबी पुरुषों का पहनावा कोई अपवाद नहीं था। वे भी विदेशी पहनावे के प्रभाव से लगभग अछूते ही रहे। क्योंकि पंजाब कृषि प्रधान प्रदेश रहा है इसीलिए यहां के पुरुषों का पहनावा परंपरागत किसानों जैसा रहा। वे कुर्ता, चादरा पहनते थे और सिर पर पगड़ी पहनते थे। कुछ पंजाबी किसान सिर पर पगड़ी के स्थान पर परना (साफ़ा) भी लपेट लेते थे। पुरुष मावा लगी तुरेदार पगड़ी बड़े गर्व से पहनते थे। आज कुछ पुरुष पगड़ी के नीचे फिफ्टी भी बांधते हैं। यह कम लंबाई की एक छोटी पगड़ी होती है। विवाह-शादी के अवसर पर लाल गुलाबी अथवा सिंदूरी रंग की पगड़ी बांधी जाती थी। शोक के समय वे सफ़ेद अथवा हल्के रंग की पगड़ी बांधते थे। निहंग सिंहों तथा नामधारी संप्रदाय के लोगों का अपना अलग पहनावा है। उदाहरण के लिए नामधारी लोग सफेद रंग के कपड़े पहनते हैं। धीरेधीरे कुर्ते-चादरे की जगह कुर्ते-पायजामे ने ले ली।
अब पंजाबी पहनावे का रूप और भी बदल रहा है। आज पढ़े-लिखे तथा नौकरी पेशा लोग कमीज़ तथा पेंट (पतलून) का प्रयोग करने लगे हैं। पुरुषों के पहनावे में भी विविधता आ रही है। वे मुख्य रूप से पंजाबी जूती और बूट आदि पहनते हैं।

PSEB 9th Class Social Science Guide पहनावे का सामाजिक इतिहास Important Questions and Answers

I. बहुविकल्पीय प्रश्न :

प्रश्न 1.
मध्यकालीन फ्रांस में वस्त्रों के प्रयोग का आधार था
(क) लोगों की आय
(ख) लोगों का स्वास्थ्य
(ग) सामाजिक स्तर
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(ग) सामाजिक स्तर

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प्रश्न 2.
मध्यकालीन फ्रांस में निम्न वर्ग के लिए जिस चीज़ का प्रयोग वर्जित था
(क) विशेष कपड़े
(ख) मादक द्रव्य (शराब)
(ग) विशेष भोजन
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 3.
फ्रांस में वस्त्रों का जो रंग देशभक्त नागरिक का प्रतीक नहीं था
(क) नीला
(ख) पीला
(ग) सफ़ेद
(घ) लाल।
उत्तर-
(ख) पीला

प्रश्न 4.
फ्रांस में स्वतंत्रता को दर्शाती थी
(क) लाल टोपी
(ख) काली टोपी
(ग) सफ़ेद पतलून
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(क) लाल टोपी

प्रश्न 5.
वस्त्रों की सादगी किस भावना की प्रतीक थी ?
(क) स्वतंत्रता
(ख) समानता
(ग) बंधुत्व
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(ख) समानता

प्रश्न 6.
फ्रांस में व्यय-नियामक कानून (संपचुअरी कानून) समाप्त किए
(क) फ्रांसीसी क्रांति ने
(ख) राजतंत्र ने
(ग) सामंतों ने
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(क) फ्रांसीसी क्रांति ने

प्रश्न 7.
विक्टोरियन इंग्लैंड में उस स्त्री को आदर्श स्त्री माना जाता था जो
(क) लंबी तथा मोटी हो
(ख) छोटे कद की तथा भारी हो
(ग) पीड़ा और कष्ट सहन कर सके
(घ) पूरी तरह वस्त्रों से ढकी हो।
उत्तर-
(ग) पीड़ा और कष्ट सहन कर सके

प्रश्न 8.
इंग्लैंड में महिलाओं के लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए (सफ्रेज) आंदोलन चला
(क) 1800 के दशक में
(ख) 1810 के दशक में
(ग) 1820 के दशक में
(घ) 1830 के दशक में।
उत्तर-
(घ) 1830 के दशक में।

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प्रश्न 9.
इंग्लैंड में वूलन टोपी पहनना कानूनन अनिवार्य क्यों था?
(क) पवित्र दिनों के महत्त्व के लिए
(ख) उच्च वर्ग की शान के लिए
(ग) वूलन उद्योग के संरक्षण के लिए
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(ग) वूलन उद्योग के संरक्षण के लिए

प्रश्न 10.
विक्टोरियन इंग्लैंड की स्त्रियों में जिस गुण का विकास बचपन से ही कर दिया जाता था
(क) विनम्रता
(ख) कर्त्तव्यपरायणता
(ग) आज्ञाकारिता
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 11.
विक्टोरियन इंग्लैंड के पुरुषों में निम्न गुण की अपेक्षा की जाती थी
(क) निर्भीकता
(ख) स्वतंत्रता
(ग) गंभीरता
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 12.
वस्त्रों को ढीले-ढाले डिज़ाइन में बदलने वाली पहली महिला श्रीमती अमेलिया बलूमर (Mrs. Amelia Bloomer) का संबंध था
(क) अमेरिका
(ख) जापान
(ग) भारत
(घ) रूस।
उत्तर-
(क) अमेरिका

प्रश्न 13.
1600 ई० के बाद इंग्लैंड की महिलाओं को जो सस्ता व अच्छा कपड़ा मिला वह था
(क) इंग्लैंड की मलमल
(ख) भारत की छींट
(ग) भारत की मलमल
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(ख) भारत की छींट

प्रश्न 14.
इंग्लैंड से सूती कपड़े का निर्यात आरंभ हुआ
(क) औद्योगिक क्रांति के बाद
(ख) द्वितीय विश्व युद्ध के बाद
(ग) 18वीं शताब्दी में
(घ) 17वीं शताब्दी के अंत में।
उत्तर-
(क) औद्योगिक क्रांति के बाद

प्रश्न 15.
स्कर्ट के आकार में एकाएक परिवर्तन आया
(क) 1915 ई० में
(ख) 1947 ई० में
(ग) 1917 ई० में
(घ) 1942 ई० में।
उत्तर-
(क) 1915 ई० में

प्रश्न 16.
भारत में पश्चिमी वस्त्रों को अपनाया गया
(क) 20वीं शताब्दी में
(ख) 16वीं शताब्दी में
(ग) 19वीं शताब्दी में
(घ) 17वीं शताब्दी में।
उत्तर-
(ग) 19वीं शताब्दी में

प्रश्न 17.
भारत में पश्चिमी वस्त्र शैली को सर्वप्रथम अपनाया
(क) मुसलमानों ने
(ख) पारसियों ने
(ग) हिंदुओं ने
(घ) ईसाइयों ने।
उत्तर-
(ख) पारसियों ने

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प्रश्न 18.
विक्टोरियन इंग्लैंड में लड़कियों को बचपन से ही सख्त फीतों में बँधे कपड़ों अर्थात् स्टेज़ में कसकर क्यों बाँधा जाता था ?
(क) क्योंकि इन कपड़ों में लड़कियां सुंदर लगती थीं।
(ख) क्योंकि ऐसे वस्त्र पहनने वाली लड़कियां फैशनेबल मानी जाती थीं
(ग) क्योंकि यह विश्वास किया जाता था कि एक आदर्श नारी को पीड़ा और कष्ट सहन करने चाहिएं
(घ) क्योंकि नारी आज़ादी से घूम-फिर न सके और घर पर ही रहे।
उत्तर-
(ग) क्योंकि यह विश्वास किया जाता था कि एक आदर्श नारी को पीड़ा और कष्ट सहन करने चाहिएं

प्रश्न 19.
खादी का संबंध निम्न में से किससे है ?
(क) भारत में बनने वाला सूती वस्त्र
(ख) भारत में बनी छींट
(ग) हाथ से कते सूत से बना मोटा कपड़ा
(घ) भारत में बना मशीनी कपड़ा।
उत्तर-
(ग) हाथ से कते सूत से बना मोटा कपड़ा

प्रश्न 20.
महात्मा गांधी ने हाथ से कती हुई खादी पहनने को बढ़ावा दिया क्योंकि
(क) यह आयातित वस्त्रों से सस्ती थी
(ख) इससे भारतीय मिल-मालिकों को लाभ होता
(ग) यह आत्मनिर्भरता का लक्षण था
(घ) वह रेशम के कीड़े मारने के विरुद्ध थे।
उत्तर-
(ग) यह आत्मनिर्भरता का लक्षण था

प्रश्न 21.
गोलाबारूद की फैक्ट्रियों में काम करने वाली महिलाओं के लिए कैसा कपड़ा पहनना व्यावहारिक नहीं था?
(क) ओवर ऑल और टोपियां
(ख) पैंट और ब्लाउज़
(ग) छोटे स्कर्ट और स्कार्फ
(घ) लहराते गाउन और कार्सेट्स।
उत्तर-
(घ) लहराते गाउन और कार्सेट्स।

प्रश्न 22.
‘पादुका सम्मान’ नियम किस गवर्नर-जनरल के समय अधिक सख़्त हुआ ?
(क) लॉर्ड वेलज़ेली
(ख) लॉर्ड विलियम बेंटिंक
(ग) लॉर्ड डल्हौज़ी
(घ) लॉर्ड लिटन।
उत्तर-
(ग) लॉर्ड डल्हौज़ी

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प्रश्न 23.
हिंदुस्तानियों से मिलने पर ब्रिटिश अफ़सर कब अपमानित महसूस करते थे ?
(क) जब हिंदुस्तानी अपना जूता नहीं उतारते थे
(ख) जब हिंदुस्तानी अपनी पगड़ी नहीं उतारते थे
(ग) जब हिंदुस्तानी हैट पहने होते थे
(घ) जब हिंदुस्तानी उन्हें अपना हैट उतारने को कहते थे।
उत्तर-
(ख) जब हिंदुस्तानी अपनी पगड़ी नहीं उतारते थे

II. रिक्त स्थान भरो:

  1. फ्रांस में … …….. स्वतंत्रता को दर्शाती थी।
  2. फ्रांस में व्यय-नियायक कानून (संपचुअरी कानून) का संबंध …………… से है।
  3. ………………. के दशक में इंग्लैंड में महिलाओं के लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए (सफ्रेज) आंदोलन चला।
  4. …………. वस्त्रों को ढीले-ढाले डिज़ाइन में बदलने वाली पहली अमरीकी महिला थी।
  5. भारत में पश्चिमी वस्त्रों को सबसे पहले …………….. समुदाय ने अपनाया।

उत्तर-

  1. लाल टोपी
  2. पहनावे
  3. 18304.
  4. श्रामता अमालया बलमर
  5. पारसा।

III. सही मिलान करो

(क) – (ख)
1. महिलाओं के लोकतांत्रिक अधिकार – (i) घुटनों से ऊपर पतलून पहनने वाले लोग।
2. वूलन टोपी – (ii) हाथ से कते सूत से बना मोटा कपड़ा।
3. भारत की छींट – (iii) सफ्रेज आंदोलन।
4. खादी – (iv) इंग्लैंड में वूलन उद्योग संरक्षण।
5. सेन्स क्लोट्टीज़ – (v) सस्ता तथा अच्छा कपड़ा।

उत्तर-

  1. सफेज आंदोलन
  2. इंग्लैंड में वूलन उद्योग संरक्षण
  3. सस्ता तथा अच्छा कपडा
  4. हाथ से कते सूत से बना मोटा कपडा
  5. घुटनों से ऊपर पतलून पहनने वाले लोग।

अति लघु उत्तरों वाले प्रश्न

उत्तर एक लाइन अथवा एक शब्द में :

प्रश्न 1.
इंग्लैंड में कुछ विशेष दिनों में ऊनी टोपी पहनना अनिवार्य क्यों कर दिया गया?
उत्तर-
अपने ऊनी उद्योग के संरक्षण के लिए।

प्रश्न 2.
वस्त्रों संबंधी नियम के समाप्त होने के बाद भी यूरोप के विभिन्न वर्गों में वेशभूषा संबंधी अंतर समाप्त क्यों न हो सका?
उत्तर-
निर्धन लोग अमीरों जैसे वस्त्र नहीं पहन सकते थे।

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प्रश्न 3.
जेकोबिन क्लब्ज़ के सदस्य स्वयं को क्या कहते थे?
उत्तर-
सेन्स क्लोट्टीज़ (Sans Culottes)।

प्रश्न 4.
सेन्स क्लोट्टीज़ का शाब्दिक अर्थ क्या है?
उत्तर-
घुटनों से ऊपर रहने वाली पतलून पहनने वाले लोग।

प्रश्न 5.
विक्टोरिया काल की स्त्रियों को सुंदर बनाने में किस बात की भूमिका रही?
उत्तर-
उनकी तंग वेशभूषा की।

प्रश्न 6.
इंग्लैंड में ‘रेशनल ड्रैस सोसायटी’ की स्थापना कब हुई ?
उत्तर-
1881 में।

प्रश्न 7.
एक अमरीकी ‘वस्त्र सुधारक’ का नाम बताओ।
उत्तर-
श्रीमती अमेलिया ब्लूमर (Mrs. Amelia Bloomer)।

प्रश्न 8.
किस विश्व विख्यात घटना ने स्त्रियों के वस्त्रों में मूल परिवर्तन ला दिया?
उत्तर-
प्रथम विश्व युद्ध ने।

प्रश्न 9.
भारत के साथ व्यापार के परिणामस्वरूप कौन-सा भारतीय कपड़ा इंग्लैंड की स्त्रियों में लोकप्रिय हुआ?
उत्तर-
छींट।

प्रश्न 10.
कृत्रिम धागों से बने वस्त्रों की कोई दो विशेषताएं बताओ।
उत्तर-

  1. धोने में आसान,
  2. संभाल करना आसान।

प्रश्न 11.
भारत में पश्चिमी वस्त्रों को सबसे पहले किस समुदाय ने अपनाया?
उत्तर-
पारसी।

प्रश्न 12.
ट्रावनकोर में दासता का अंत कब हुआ?
उत्तर-
1855 ई० में।

प्रश्न 13.
भारत में पगड़ी किस बात की प्रतीक मानी जाती थी?
उत्तर-
सम्मान की।

प्रश्न 14.
भारत में राष्ट्रीय वस्त्र के रूप में किस वस्त्र को सबसे अच्छा माना गया ?
उत्तर-
अचकन (बटनों वाला एक लंबा कोट)।

प्रश्न 15.
स्वदेशी आंदोलन किस बात के विरोध में चला?
उत्तर-
1905 के बंगाल-विभाजन के विरोध में।

प्रश्न 16.
बंगाल का विभाजन किसने किया?
उत्तर-
लॉर्ड कर्जन ने।

प्रश्न 17.
स्वदेशी आंदोलन में किस बात पर विशेष बल दिया गया?
उत्तर-
अपने देश में बने माल के प्रयोग पर।

प्रश्न 18.
महात्मा गांधी ने किस प्रकार के वस्त्र के प्रयोग पर बल दिया?
उत्तर-
खादी पर।

लघु उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
फ्रांस के सम्प्चुअरी (Sumptuary) कानून क्या थे ?
उत्तर-
लगभग 1294 से लेकर 1789 की फ्रांसीसी क्रांति तक फ्रांस के लोगों को सम्प्चुअरी कानूनों का पालन करना पड़ता था। इन कानूनों द्वारा समाज के निम्न वर्ग के व्यवहार को नियंत्रित करने का प्रयास किया गया। इनके अनुसार-

  1. निम्न वर्ग के लोग कुछ विशेष प्रकार के वस्त्रों तथा विशेष प्रकार के भोजन का प्रयोग नहीं कर सकते थे।
  2. उनके लिए मादक द्रव्यों के प्रयोग की मनाही थी।
  3. उनके लिए कुछ विशेष क्षेत्रों में शिकार करना भी वर्जित था।

वास्तव में ये कानून लोगों के सामाजिक स्तर को दर्शाने के लिए बनाए गए थे। उदाहरण के लिए अरमाइन (ermine) फर, रेशम, मखमल, जरी जैसी कीमती वस्तुओं का प्रयोग केवल राजवंश के लोग ही कर सकते थे। अन्य वर्गों के लोग इस सामग्री का प्रयोग नहीं कर सकते थे।

प्रश्न 2.
यूरोपीय पोशाक संहिता और भारतीय पोशाक संहिता के बीच कोई दो फर्क बताइए।
उत्तर-

  1. यूरोपीय ड्रेस कोड (पोशाक संहिता) में तंग वस्त्रों को महत्त्व दिया जाता था ताकि चुस्ती बनी रहे। इसके विपरीत भारतीय ड्रेस कोड में ढीले-ढाले वस्त्रों का अधिक महत्त्व था। उदाहरण के लिए यूरोपीय लोग कसी हुई पतलून पहनते थे। परंतु भारतीय धोती अथवा पायजामा पहनते थे।
  2. यूरोपीय ड्रेस कोड में स्त्रियों के वस्त्र ऐसे होते थे जो उनकी शारीरिक बनावट को आकर्षक बनाएं। उदाहरण के लिए इंग्लैंड की महिलाएं अपनी कमर को सीधा रखने तथा पतला बनाने के लिए कमर पर एक तंग पेटी पहनती थीं। वे एक तंग अधोवस्त्र का प्रयोग भी करती थीं। इसके विपरीत भारतीय महिलाएं रंग-बिरंगे वस्त्र पहन कर अपनी सुंदरता बढ़ाती थीं। वे प्रायः रंगदार साड़ियां प्रयोग करती थीं।

प्रश्न 3.
1805 ई० में अंग्रेज अफसर बेंजामिन हाइन ने बंगलोर में बनने वाली चीज़ों की एक सूची बनाई थी, जिसमें निम्नलिखित उत्पाद भी शामिल थे :

  • अलग-अलग किस्म और नाम वाले जनाना कपड़े
  • मोटी छींट
  • मखमल
  • रेशमी कपड़े

बताइए कि बीसवीं सदी के प्रारंभिक दशकों में इनमें से कौन-कौन से किस्म के कपड़े प्रयोग से बाहर चले गए होंगे और क्यों ?
उत्तर-
20वीं शताब्दी के आरंभ में मलमल का प्रयोग बंद हो गया होगा। इसका कारण यह है कि इस समय तक इंग्लैंड के कारखानों में बना सूती कपड़ा भारत के बाजारों में बिकने लगा था। यह कपड़ा देखने में सुंदर, हल्का तथा सस्ता था। अतः भारतीयों ने मलमल के स्थान पर इस कपड़े का प्रयोग करना आरंभ कर दिया था।

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प्रश्न 4.
विंस्टन चर्चिल ने कहा था कि महात्मा गांधी ‘राजद्रोही मिडिल टेम्पल वकील’ से ज़्यादा कुछ नहीं हैं और (अधनंगे फकीर का दिखावा) कर रहे हैं।
चर्चिल ने यह वक्तव्य क्यों दिया और इससे महात्मा गांधी की पोशाक की प्रतीकात्मक शक्ति के बारे में क्या पता चलता है ?
उत्तर-
गांधी जी की छवि एक महात्मा के रूप में उभर रही थी। वह भारतीयों में अधिक-से-अधिक लोकप्रिय होते जा रहे थे। फलस्वरूप राष्ट्रीय आंदोलन दिन-प्रतिदिन सबल होता जा रहा था। विंस्टन चर्चिल यह बात सहन नहीं कर पा रहे थे। इसलिए उन्होंने उक्त टिप्पणी की।
महात्मा गांधी की पोशाक पवित्रता, सादगी तथा निर्धनता की प्रतीक थी। अधिकांश भारतीय जनता के भी यही लक्षण थे। अतः ऐसा लगता था जैसे महात्मा गांधी के रूप में पूरा राष्ट्र ब्रिटिश साम्राज्यवाद को चुनौती दे रहा हो।

प्रश्न 5.
सम्प्चुअरी (Sumptuary laws) कानूनों द्वारा उत्पन्न असमानताओं पर फ्रांसीसी क्रांति का क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर-
फ्रांसीसी क्रांति ने सम्प्चुअरी कानूनों (Sumptuary laws) द्वारा उत्पन्न सभी असमानताओं को समाप्त कर दिया। इसके बाद पुरुष और स्त्रियां दोनों ही खुले और आरामदेह वस्त्र पहनने लगे। फ्रांस के रंग-नीला, सफेद और लाल लोकप्रिय हो गए क्योंकि ये देशभक्त नागरिक के प्रतीक चिह्न थे। अन्य राजनीतिक प्रतीक भी अपने वेश-भूषा के अंग बन गए। इनमें स्वतंत्रता की लाल टोपी, लंबी पतलून और टोपी पर लगने वाला क्रांति का बैज (Cockade) शामिल थे। वस्त्रों की सादगी समानता की भावना को व्यक्त करती थी।

प्रश्न 6.
वस्त्रों की शैली पुरुषों तथा स्त्रियों के बीच अंतर पर बल देती थी। इस कथन की पुष्टि कीजिए।
उत्तर-
पुरुषों और स्त्रियों के वस्त्रों के फैशन में अंतर था। विक्टोरिया कालीन स्त्रियों को बचपन से ही विनीत, आज्ञाकारी, विनम्र और कर्तव्यपारायण बनने के लिए तैयार किया जाता था। उसी को आदर्श महिला माना जाता था जो कष्ट और पीड़ा सहन करने की क्षमता रखती हो। पुरुषों से यह अपेक्षा की जाती थी कि वे गंभीर, शक्तिशाली, स्वतंत्र
और आक्रामक हों जबकि स्त्रियां, विनम्र, चंचल, नाजुक तथा आज्ञाकारी हों। वस्त्रों के मानकों में इन आदर्शों की झलक मिलती थी। बचपन से ही लड़कियों को तंग वस्त्र पहनाए जाते थे। इसका उद्देश्य उनके शारीरिक विकास को नियंत्रित करना था। जब लड़कियाँ थोड़ी बड़ी होती तो उन्हें तंग कारसैट्स (Corsets) पहनने पड़ते थे। तंग कपड़े पहने पतली कमर वाली स्त्रियों को आकर्षक एवं शालीन माना जाता था। इस प्रकार विक्टोरिया कालीन पहरावे ने चंचल एवं आज्ञाकारी महिला की छवि उभारने में भूमिका निभाई।

प्रश्न 7.
यूरोप की बहुत-सी स्त्रियां नारीत्व के आदर्शों में विश्वास रखती थीं। उदाहरण देकर समझाइए।
उत्तर-
इसमें कोई संदेह नहीं कि बहुत-सी महिलाएं नारीत्व के आदर्शों में विश्वास रखती थीं। ये आदर्श उस वायु में थे जिसमें वे सांस लेती थीं, उस साहित्य में थे जो वे पढ़ती थीं और उस शिक्षा में थे जो वह स्कूल और घर में ग्रहण करती थीं। बचपन से ही वे यह विश्वास लेकर बड़ी होती थीं कि पतली कमर होना नारी धर्म है। महिला के लिए पीड़ा सहन करना अनिवार्य था। आकर्षक और नारी सुलभ लगने के लिए वे कोरसैट्ट (Corset) पहनती थीं। कोरसै? उनके शरीर को जो यातना तथा पीड़ा पहुंचाता था, उसे वे स्वाभाविक रूप से सहन करती थीं।

प्रश्न 8.
महिला-मैगज़ीनों के अनुसार तंग वस्त्र तथा ब्रीफ़ (Corsets) महिलाओं को क्या हानि पहुँचाते हैं ? इस संबंध में डॉक्टरों का क्या कहना था ?
उत्तर-
कई महिला मैगज़ीनों ने महिलाओं को तंग कपड़ों तथा ब्रीफ़ (Corsets) से होने वाली हानियों के बारे में लिखा। ये हानियां निम्नलिखित थीं-

  1. तंग पोशाक और कोरसैट्स (Corsets) छोटी लड़कियों को विकृत. तथा रोगी बनाती हैं।
  2. ऐसे वस्त्र शारीरिक विकास और रक्त संचार में बाधा डालते हैं।
  3. ऐसे वस्त्रों से मांसपेशियां (muscles) अविकसित रह जाती हैं और रीढ़ की हड्डी में झुकाव आ जाता है।
    डॉक्टरों का कहना था कि महिलाओं को अत्यधिक कमज़ोरी और प्रायः मूर्छित हो जाने की शिकायत रहती है। उनका शरीर निढाल रहता है।

प्रश्न 9.
अमेरिका के पूर्वी तट पर बसे गोरों ने महिलाओं की पारंपरिक पोशाक की किन बातों के कारण आलोचना की ?
उत्तर-
अमेरिका के पूर्वी तट पर बसे गोरों ने महिलाओं की पारंपरिक पोशाक की कई बातों के कारण आलोचना की। उनका कहना था कि

  1. लंबी स्कर्ट झाड़ का काम करती है और इसमें धूल तथा गंदगी इकट्ठी हो जाती है। इससे बीमारी पैदा होती है।
  2. यह स्कर्ट भारी और विशाल है। इसे संभालना कठिन है। 3. यह चलने फिरने में रुकावट डालती है। अत: यह महिलाओं के लिए काम करके रोज़ी कमाने में बाधक है।
    उनका कहना था कि वेशभूषा में सुधार महिलाओं की स्थिति में बदलाव लाएगा। यदि वस्त्र आरामदेह और सुविधाजनक हों तो महिलाएं काम कर सकती हैं, अपनी रोज़ी कमा सकती हैं और स्वतंत्र भी हो सकती हैं।

प्रश्न 10.
ब्रिटेन में हुई औद्योगिक क्रांति भारत के वस्त्र उद्योग के पतन का कारण कैसे बनी ?
उत्तर-
ब्रिटेन की औद्योगिक क्रांति से पहले भारत के हाथ से बने सूती वस्त्र की संसार भर में जबरदस्त मांग थी। 17वीं शताब्दी में पूरे विश्व के सूती वस्त्र का एक चौथाई भाग भारत में ही बनता था। 18वीं शताब्दी में अकेले बंगाल में दस लाख बुनकर थे। परंतु ब्रिटेन की औद्योगिक क्रांति ने कताई और बुनाई का मशीनीकरण कर दिया। अत: भारत की कपास कच्चे माल के रूप में ब्रिटेन में जाने लगी और वहां पर बना मशीनी माल भारत आने लगा। भारत में बना कपड़ा इसका मुकाबला न कर सका जिससे उसकी मांग घटने लगी। फलस्वरूप भारत के बुनकर बड़ी संख्या में बेरोजगार हो गये और मुर्शिदाबाद, मछलीपट्टनम तथा सूरत जैसे सूती वस्त्र केंद्रों का पतन हो गया।

दीर्घ उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
समूचे राष्ट्र को खादी पहनाने का गांधी जी का सपना भारतीय जनता के केवल कुछ हिस्सों तक ही सीमित क्यों रहा ?
PSEB 9th Class SST Solutions History Chapter 8 पहनावे का सामाजिक इतिहास 1im1
उत्तर-
गांधी जी पूरे देश को खादी पहनाना चाहते थे। परंतु उनका यह विचार कुछ ही वर्गों तक सीमित रहा। अन्य वर्गों को खादी से कोई लगाव नहीं था। इसके मुख्य कारण निम्नलिखित थे-

  1. कई लोगों को गांधी जी की भांति अर्द्धनग्न रहना पसंद नहीं था। वे एकमात्र लंगोट पहनना सभ्यता के विरुद्ध समझते थे। उन्हें इसमें लाज भी आती थी।
  2. खादी महंगी थी और देश के अधिकतर लोग निर्धन थे। कुछ स्त्रियां नौ-नौ गज़ की साड़ियां पहनती थीं। उनके लिए खादी की साड़ियां पहन पाना संभव नहीं था।
  3. जो लोग पश्चिमी वस्त्रों के प्रति आकर्षित हुए थे, उन्होंने भी खादी पहनने से इंकार कर दिया।
  4. देश का मुस्लिम समुदाय अपनी परंपरागत वेशभूषा बदलने को तैयार नहीं था।

प्रश्न 2.
अठारहवीं शताब्दी में पोशाक शैलियों और सामग्री में आए बदलावों के क्या कारण थे ?
उत्तर-
18वीं शताब्दी में पोशाक शैलियों तथा उनमें प्रयोग होने वाली सामग्री में निम्नलिखित कारणों से परिवर्तन आए-

  1. फ्रांसीसी क्रांति ने संप्चुअरी कानूनों को समाप्त कर दिया।
  2. राजतंत्र तथा शासक वर्ग के विशेषाधिकार समाप्त हो गए।
  3. फ्रांस के रंग-लाल, नीला तथा सफ़ेद-देशभक्ति के प्रतीक बन गए अर्थात् इन रंगों के वस्त्र लोकप्रिय होने लगे।
  4. समानता को महत्त्व देने के लिए लोग साधारण वस्त्र पहनने लगे।
  5. लोगों की वस्त्रों के प्रति रुचियां भिन्न-भिन्न थीं।
  6. स्त्रियों में सौंदर्य की भावना ने वस्त्रों में बदलाव ला दिया।
  7. लोगों की आर्थिक दशा ने भी वस्त्रों में अंतर ला दिया।

PSEB 9th Class SST Solutions History Chapter 8 पहनावे का सामाजिक इतिहास

प्रश्न 3.
अमेरिका में 1870 के दशक में महिला वेशभूषा में सुधार के लिए चलाए गए अभियान की संक्षिप्त जानकारी दीजिए।
उत्तर-
1870 के दशक में नेशनल वुमन सफ्रेज ऐसोसिएशन (National Women Suffrage Association) और अमेरिकन वुमन सफ्रेज ऐसोसिएशन (American Suffrage Association) ने महिला वेशभूषा में सुधार का अभियान चलाया। पहले संगठन की मुखिया स्टेंटन (Stanton) तथा दूसरे संगठन की मुखिया लूसी स्टोन (Lucy Stone) थीं। उन्होंने नारा लगाया वेशभूषा को सरल एवं सादा बनाओ, स्कर्ट का आकार छोटा करो और कारसैट्स (Corsets) का प्रयोग बंद करो। इस प्रकार अटलांटिक के दोनों ओर वेश-भूषा में विवेकपूर्ण सुधार का अभियान चल पड़ा। परंतु सुधारक सामाजिक मूल्यों को शीघ्र ही बदलने में सफल न हो पाये। उन्हें उपहास तथा आलोचना का सामना करना पड़ा। रूढ़िवादियों ने हर स्थान पर परिवर्तन का विरोध किया। उन्हें शिकायत थी कि जिन महिलाओं ने पारंपरिक पहनावा त्याग दिया है, वे सुंदर नहीं लगतीं। उनका नारीत्व और चेहरे की चमक समाप्त हो गई है। निरंतर आक्षेपों का सामना होने के कारण बहुत-सी महिला सुधारकों ने पुनः पारंपरिक वेश-भूषा को अपना लिया।
कुछ भी हो उन्नीसवीं शताब्दी के अंत तक परिवर्तन स्पष्ट दिखाई देने लगे। विभिन्न दबावों के कारण सुंदरता के आदर्शों और वेशभूषा की शैली दोनों में बदलाव आ गया। लोग उन सुधारकों के विचारों को स्वीकार करने लगे जिनका उन्होंने पहले उपहास उड़ाया था। नए युग के साथ नई मान्यताओं का सूत्रपात हुआ।

प्रश्न 4.
17वीं शताब्दी से 20वीं शताब्दी के आरंभिक वर्षों तक ब्रिटेन में वस्त्रों में होने वाले परिवर्तनों की जानकारी दीजिए। . .
उत्तर-
17वीं शताब्दी से पहले ब्रिटेन की अति साधारण महिलाओं के पास फलैक्स, लिनन तथा ऊन के बने बहुत ही कम वस्त्र होते थे। इनकी धुलाई भी कठिन थी।
भारतीय छींट-1600 के बाद भारत के साथ व्यापार के कारण भारत की सस्ती, सुंदर तथा आसान रख-रखाव वाली भारतीय छींट इंग्लैंड (ब्रिटेन) पहुंचने लगी। अनेक यूरोपीय महिलाएं इसे आसानी से खरीद सकती थीं और पहले से अधिक वस्त्र जुटा सकती थीं।

औद्योगिक क्रांति और सूती कपड़ा-उन्नीसवीं शताब्दी में औद्योगिक क्रांति के समय बड़े पैमाने पर सूती वस्त्रों का उत्पादन होने लगा। वह भारत सहित विश्व के अनेक भागों को सूती वस्त्रों का निर्यात भी करने लगा। इस प्रकार सूती कपड़ा बहुत बड़े वर्ग को आसानी से उपलब्ध होने लगा। 20वीं शताब्दी के आरंभ तक कृत्रिम रेशों से बने वस्त्रों ने वस्त्रों को और अधिक सस्ता कर दिया। इनकी धुलाई और संभाल भी अधिक आसान थी। वस्त्रों के भार तथा लंबाई में परिवर्तन-1870 के दशक के अंतिम वर्षों में भारी भीतरी वस्त्रों का धीरे-धीरे त्याग कर दिया गया। अब वस्त्र पहले से अधिक हल्के, अधिक छोटे और अधिक सादे हो गए। फिर भी 1914 तक वस्त्रों की लंबाई में कमी नहीं आई। परंतु 1915 तक स्कर्ट की लंबाई एकाएक कम हो गई। अब यह घुटनों तक पहुंच गई।

प्रश्न 5.
अंग्रेजों की भारतीय पगड़ी तथा भारतीयों की अंग्रेजों के टोप के प्रति क्या प्रतिक्रिया थी और क्यों?
उत्तर-
भिन्न-भिन्न संस्कृतियों में कुछ विशेष वस्त्र विरोधाभासी संदेश देते हैं। इस प्रकार की घटनाएं संशय और विरोध पैदा करती हैं। ब्रिटिश भारत में भी वस्त्रों का बदलाव इन विरोधों से होकर निकला। उदाहरण के लिए हम पगड़ी और टोप को लेते हैं। जब यूरोपीय व्यापारियों ने भारत आना आरंभ किया तो उनकी पहचान उनके टोप से की जाने लगी। दूसरी ओर भारतीयों की पहचान उनकी पगड़ी थी। ये दोनों पहनावे न केवल देखने में भिन्न थे, बल्कि ये अलगअलग बातों के सूचक भी थे। भारतीयों की पगड़ी सिर को केवल धूप से ही नहीं बचाती थी बल्कि यह उनके आत्मसम्मान का चिह्न भी थी। बहुत से भारतीय अपनी क्षेत्रीय अथवा राष्ट्रीय पहचान दर्शाने के लिए जान बूझ कर भी पगड़ी पहनते थे। इसके विपरीत पाश्चात्य परंपरा में टोप को सामाजिक दृष्टि से उच्च व्यक्ति के प्रति सम्मान दर्शाने के लिए उतारा जाता था। इस परंपरावादी भिन्नताओं ने संशय की स्थिति उत्पन्न कर दी। जब कोई भारतीय किसी अंग्रेज़ अधिकारी से मिलने जाता था और अपनी पगड़ी नहीं उतारता था तो वह अधिकारी स्वयं को अपमानित महसूस करता था।

प्रश्न 6.
1862 में ‘जूता सभ्याचार’ (पादुका सम्मान) संबंधी मामले का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
भारतीयों को अंग्रेज़ी अदालतों में जूता पहन कर जाने की अनुमति नहीं थी। 1862 ई० में सूरत की अदालत में जूता सभ्याचार संबंधी एक प्रमुख मामला आया। सूरत की फ़ौजदारी अदालत में मनोकजी कोवासजी एंटी (Manockjee Cowasjee Entee) नामक व्यक्ति ने जिला जज के सामने जूता उतारकर जाने से मना कर दिया था। जज ने उन्हें जूता उतारने के लिए बाध्य किया, क्योंकि बड़ों का सम्मान करना भारतीयों की परंपरा थी। परंतु मनोकजी अपनी बात पर अड़े रहे। उन्हें अदालत में जाने से रोक दिया गया। अतः उन्होंने विरोध स्वरूप एक पत्र मुंबई (बंबई) के गवर्नर को लिखा।

अंग्रेज़ों ने दबाव देकर कहा कि क्योंकि भारतीय किसी पवित्र स्थान अथवा घर में जूता उतार कर प्रवेश करते हैं, इसलिए वे अदालत में भी जूता उतार कर प्रवेश करें। इसके विरोध में भारतीयों ने प्रत्युत्तर में कहा कि पवित्र स्थान तथा घर में जूता उतार कर जाने के पीछे दो विभिन्न अवधारणाएं हैं। प्रथम इससे मिट्टी और गंदगी की समस्या जुड़ी है। सड़क पर चलते समय जूतों को मिट्टी लग जाती है। इस मिट्टी को सफ़ाई वाले स्थानों पर नहीं जाने दिया जा सकता था। दूसरे, वे चमड़े के जूते को अशुद्ध और उसके नीचे की गंदगी को प्रदूषण फैलाने वाला मानते हैं। इसके अतिरिक्त, अदालत जैसा सार्वजनिक स्थान आखिर घर तो नहीं है। परंतु इस विवाद का कोई हल न निकला। अदालत में जूता पहनने की अनुमति मिलने में बहुत से वर्ष लग गए।

प्रश्न 7.
भारत में चले स्वदेशी आंदोलन पर एक टिप्पणी लिखिए।
उत्तर-
स्वदेशी आंदोलन 1905 के बंग-भंग के विरोध में चला। भले ही इसके पीछे राष्ट्रीय भावना काम कर रही थी तो भी इसके पीछे मुख्य रूप से पहनावे की ही राजनीति थी।
पहले तो लोगों से अपील की गई कि वे सभी प्रकार के विदेशी उत्पादों का बहिष्कार करें और माचिस तथा सिगरेट जैसी चीज़ों को बनाने के लिए अपने उद्योग लगाएं। जन आंदोलन में शामिल लोगों ने शपथ ली कि वे औपनिवेशिक राज का अंत करके ही दम लेंगे। खादी का प्रयोग देशभक्ति का प्रतीक बन गया। महिलाओं से अनुरोध किया गया कि वे रेशमी कपड़े तथा काँच की चूड़ियां फेंक दें और शंख की चूड़ियां पहनें। हथकरघे पर बने मोटे कपड़े को लोकप्रिय बनाने के लिए गीत गाए गए तथा कविताएं रची गईं।

वेशभूषा में बदलाव की बात उच्च वर्ग के लोगों को अधिक भायी क्योंकि साधनहीन ग़रीबों के लिए नई चीजें खरीद पाना मुश्किल था। लगभग पंद्रह साल के बाद उच्च वर्ग के लोग भी फिर से यूरोपीय पोशाक पहनने लगे। इसका कारण यह था कि भारतीय बाजारों में भरी पड़ी सस्ती ब्रिटिश वस्तुओं को चुनौती देना लगभग असंभव था। इन सीमाओं के बावजूद स्वदेशी के प्रयोग ने महात्मा गांधी को यह सीख अवश्य दी कि ब्रिटिश राज के विरुद्ध प्रतीकात्मक लड़ाई में कपड़े की कितनी महत्त्वपूर्ण भूमिका हो सकती है।

प्रश्न 8.
वस्त्रों के साथ गांधी जी के प्रयोगों के बारे में बताएं।
उत्तर-
गांधी जी ने समय के साथ-साथ अपने पहनावे को भी बदला। एक गुजराती बनिया परिवार में जन्म लेने के कारण बचपन में वह कमीज़ के साथ धोती अथवा पायजामा पहनते थे और कभी-कभी कोट भी। लंदन में उन्होंने पश्चिमी सूट अपनाया। भारत में वापिस आने पर उन्होंने पश्चिमी सूट के साथ पगड़ी पहनी।
शीघ्र ही गांधी जी ने सोचा कि ठोस राजनीतिक दबाव के लिए पहनावे को अनोखे ढंग से अपनाना उचित होगा। 1913 में डर्बन में गांधी जी ने सिर के बाल कटवा लिए और धोती कुर्ता पहन कर भारतीय कोयला मज़दूरों के साथ विरोध करने के लिए खड़े हो गए। 1915 ई० में भारत वापसी पर उन्होंने काठियावाड़ी किसान का रूप धारण कर लिया। अंततः 1921 में उन्होंने अपने शरीर पर केवल एक छोटी सी धोती धारण कर ली। गांधी जी इन पहनावों को जीवन भर नहीं अपनाना चाहते थे। वह तो केवल एक या दो महीने के लिए ही किसी भी पहनावे को प्रयोग के रूप में अपनाते थे। परंतु शीघ्र ही उन्होंने अपने पहनावे को ग़रीबों के पहनावे का रूप दे दिया। इसके बाद उन्होंने अन्य वेशभूषाओं का त्याग कर दिया और जीवन भर एक छोटी सी धोती पहने रखी। इस वस्त्र के माध्यम से वह भारत के साधारण व्यक्ति की छवि पूरे विश्व में दिखाने में सफल रहे और भारत-राष्ट्र का प्रतीक बन गये।
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PSEB 9th Class SST Solutions History Chapter 8 पहनावे का सामाजिक इतिहास

पहनावे का सामाजिक इतिहास PSEB 9th Class History Notes

  • सम्प्चुअरी कानून – मध्यकालीन फ्रांस के ये कानून निम्न वर्ग के व्यवहार को नियंत्रित करते थे। इनके अनुसार वे लोग राजवंश के लोगों जैसी वेश-भूषा धारण नहीं कर सकते थे।
  • नारी सुंदरता तथा वस्त्र – इंग्लैंड में नारी सुंदरता को विशेष महत्त्व दिया जाता था। अतः उन्हें विशेष प्रकार के तंग वस्त्र पहनाए जाते थे ताकि उनकी शारीरिक बनावट में निखार आए।
  • वस्त्रों के प्रति स्त्रियों की प्रतिक्रिया – सभी-स्त्रियों ने निर्धारित वस्त्र-शैली को स्वीकार न किया। कई स्त्रियों ने पीड़ा और कष्ट देने वाले वस्त्रों का विरोध किया।
  • नयी सामग्री – 17वीं शताब्दी में ब्रिटेन की अधिकतर स्त्रियां फ्लैक्स, लिनन या ऊन से बने वस्त्र पहनती थीं जिन्हें धोना कठिन था। बाद में वे सूती वस्त्र (कपास से बने) पहनने लगीं। ये सस्ते भी थे और इन्हें धोना भी आसान था।
  • महायुद्ध और पहरावा – दो महायुद्धों के परिणामस्वरूप पहरावे में काफ़ी अंतर आया। कामकाजी महिलाएं पतलून, ब्लाऊज़ तथा स्कार्फ पहनने लगीं।
  • भारत में पश्चिमी वस्त्र – भारत में पश्चिमी वस्त्रों को सर्वप्रथम पारसियों ने अपनाया। दफ्तरों में काम करने वाले बंगाली बाबू तथा ईसाई धर्म ग्रहण करने वाले पिछड़े लोग भी पश्चिमी वस्त्र पहनने लगे।
  • जूतों सम्बन्धी टकराव – ब्रिटिश काल में अदालतों में जूते पहन कर जाने पर रोक थी। यह नियम टकराव का विषय बन गया।
  • स्वदेशी आंदोलन – यह आंदोलन 1905 के बंगाल-विभाजन (लॉर्ड कर्जन द्वारा) के विरोध में चला। इसमें ब्रिटिश वस्तुओं का बहिष्कार किया गया तथा स्वदेशी माल के प्रयोग पर बल दिया गया। इससे भारतीय उद्योगों को बल मिला।
  • खादी – गांधी जी पूरे भारत को खादी पहनाना चाहते थे। परंतु कुछ वर्गों में पश्चिमी वस्त्रों का आकर्षण था। इसके अतिरिक्त खादी अपेक्षाकृत महंगी थी। अतः गांधी जी का सपना पूरा न हो सका।
  • फिफ्टी – सिक्ख सैनिक पाँच मीटर की पगड़ी बांधते थे, परंतु युद्ध के दौरान हमेशा भारी और लंबी पगड़ी पहनना संभव नहीं था। इसलिए सैनिकों के लिए पगड़ी की लंबाई कम करके दो मीटर कर दी गई। इस छोटी पगड़ी को फिफ्टी कहा जाता था।
  • पंजाबी लोगों का पहनावा एवं सभ्यता – पंजाबी लोगों के पहनावे और सभ्यता पर अंग्रेजी शासन का बहुत कम प्रभाव पड़ा। स्त्रियों का पहनावा लंबा कुर्ता, सलवार तथा दुपट्टा ही रहा। पुरुष मुख्य रूप से कुर्ता, पायजामा तथा पगड़ी पहनते थे। शादी विवाह पर रंगदार तथा सजावट वाले कपड़े पहनने का रिवाज़ था। शोक के समय सफेद अथवा हल्के रंग के वस्त्र पहने जाते थे। परंतु आज के ग्लोबल विश्व में पंजाबी पहनावे का रूप बदलता जा रहा है।
  • 1842 – अंग्रेज़ वैज्ञानिक लुइस सुबाब द्वारा कृत्रिम रेशों से कपड़ा तैयार करने की मशीन का निर्माण।
  • 1830 ई. – इग्लैंड में महिला संस्थानों द्वारा स्त्रियों के लिए लोकतांत्रिक अधिकारों की मांग।
  • 1870 ई. – दो संस्थाओं नेशनल वुमैन सफरेज़ एसोसिएशन और ‘अमेरिकन वुमैन सफरेज़ एसोसिएशन’ द्वारा स्त्रियों के पहनावे में सुधार के लिए आंदोलन ।

PSEB 9th Class Physical Education Solutions Chapter 4 प्राथमिक सहायता

Punjab State Board PSEB 9th Class Physical Education Book Solutions Chapter 4 प्राथमिक सहायता Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 9 Physical Education Chapter 4 प्राथमिक सहायता

PSEB 9th Class Physical Education Guide प्राथमिक सहायता Textbook Questions and Answers

बहुत छोटे उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
प्राथमिक सहायता के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर-
डॉक्टरी सहायता के मिलने से पहले जो रोगी या घायल की चिकित्सा की जाती है, उसे प्राथमिक सहायता (First Aid) कहते हैं।

प्रश्न 2.
फ्रैक्चर का क्या अर्थ है ?
उत्तर-
किसी हड्डी के टूटने या उसमें दरार पड़ जाने को फ्रैक्चर कहा जाता है।

प्रश्न 3.
बेहोशी क्या है ?
उत्तर-
बेहोशी का अर्थ है चेतना का खोना।

PSEB 9th Class Physical Education Solutions Chapter 4 प्राथमिक सहायता

प्रश्न 4.
विद्युत् का झटका क्या है ?
उत्तर-
विद्युत् की नंगी तार जिसमें धारा प्रवाहित हो रही हो, के अचानक हाथ से लगने से जो झटका लगता है।

प्रश्न 5.
फ्रैक्चर की किन्हीं दो किस्मों के नाम लिखें।
उत्तर-
(1) सरल फ्रैक्चर (2) बहुखण्ड फ्रैक्चर ।

प्रश्न 6.
जटिल फ्रैक्चर अधिक हानिकारक होता है। ठीक अथवा ग़लत?
उत्तर-
ठीक।

प्रश्न 7.
दबी हुई फ्रैक्चर का नुकसान नहीं होता ? ठीक अथवा ग़लत ?
उत्तर-
ग़लत।

प्रश्न 8.
बेहोशी के कोई दो चिन्ह लिखें।
उत्तर-

  1. रोगी की नब्ज़ धीरे-धीरे चलती है
  2. त्वचा ठण्डी हो जाती है।

प्रश्न 9.
जोड़ का उतरना क्या होता है ?
उत्तर-
हड्डी का जोड़ वाले स्थान से खिसकना, जोड़ उतरना (Dislocation) कहलाता

प्रश्न 10.
पट्टे के तनाव अथवा मोच में अन्तर होता है ?
उत्तर-
हां, अन्तर होता है।

PSEB 9th Class Physical Education Solutions Chapter 4 प्राथमिक सहायता

छोटे उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
प्राथमिक सहायता के विषय में आप क्या जानते हैं ?
(What do you know about First Aid ?)
उत्तर-
हमारे दैनिक जीवन में प्रायः दुर्घनाएं तो होती रहती हैं। स्कूल जाते समय साइकिल से टक्कर, खेल के मैदान में चोट लग जाना आदि। प्रायः घटना स्थल पर डॉक्टर उपस्थित नहीं होता। डॉक्टर के पहुंचने से पहले रोगी या घायल को जो सहायता दी जाती है, उसे प्राथमिक सहायता (First Aid) कहते हैं।

प्रश्न 2.
प्राथमिक सहायता के क्या नियम हैं ?
(Describe the various rules of First Aid ?)
उत्तर-
प्राथमिक सहायता के मुख्य नियम इस प्रकार हैं –

  • रोगी को हमेशा आरामदायक हालत में रखो।
  • रोगी को हमेशा धैर्य देना चाहिए।
  • रोगी को प्रेम और हमदर्दी देनी चाहिए।
  • यदि खून बह रहा हो तो सबसे पहले खून बन्द करने का प्रबन्ध करना चाहिए।
  • भीड़ को अपने इर्द-गिर्द से दूर कर दो।
  • रोगी के कपड़े इस ढंग से उतारो जिससे उसे कोई तकलीफ़ न हो।
  • उसे तुरन्त डॉक्टर के पास ले जाना चाहिए।
  • उतनी देर तक सहायता देते रहना चाहिए जितनी देर तक उसमें प्राण बाकी हैं।
  • यदि सांस रुकता हो तो बनावटी सांस देने का प्रबन्ध करना चाहिए।
  • यदि ज़ख्म छिल गया हो तो उसे साफ़ करके पट्टी बांध दो।
  • दुर्घटना के समय जिस चीज़ की पहले आवश्यकता हो उसे पहले करना चाहिए।
  • रोगी को नशीली चीज़ न दो।
  • हड्डी टूटने की हालत में रोगी को ज्यादा हिलाना-जुलाना नहीं चाहिए।
  • रोगी को हमेशा खुली हवा में रखो।
  • यदि रोगी सड़क पर धूप में पड़ा हो तो उसे ठंडी छांव में पहुंचाना चाहिए।

प्रश्न 3.
प्राथमिक सहायता क्या होती है ? इसकी हमें क्यों ज़रूरत है ?
(What is First Aid ? Why we need it ?)
उत्तर-
हमारे जीवन में प्रायः दुर्घटनाएं होती रहती हैं। खेल के मैदान में खेलते समय, सड़क पर चलते समय, स्कूल की प्रयोगशाला में काम करते समय, घर में सीढ़ियां चढ़तेउतरते समय, रसोई घर में काम करते हुए या स्नानागृह में स्नान करते समय व्यक्ति किसी भी प्रकार की दुर्घटना का शिकार हो सकता है। कई बार खेल के मैदान में अनेक दुर्घटनाएं हो जाती हैं। इन दुर्घटनाओं से बचाव के लिए आवश्यक है कि खेल का मैदान न ही अधिक कठोर हो और नन्ही अधिक नर्म। खेल का सामान भी ठीक प्रकार का बना हो और खेल किसी कुशल-प्रबन्धक की देख-रेख में खेली जाए। ऐसे समय यह तो सम्भव नहीं कि डॉक्टर हर जगह मौजूद हो। डॉक्टर के पहुंचने से पहले या डॉक्टर तक ले जाने से पहले उपलब्ध साधनों से दुर्घटना ग्रस्त व्यक्ति को जो सहायता दी जाती है, उसे प्राथमिक सहायता कहते हैं।

इस प्रकार डॉक्टरी सहायता के मिलने से पहले जो रोगी या घायल की चिकित्सा की जाती है, उसे प्राथमिक सहायता (First Aid) कहते हैं।
यदि घायल या दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति को प्राथमिक सहायता प्रदान न की जाए तो हो सकता है कि घटना स्थल पर ही दम तोड़ दे।
अन्त में हम यह कह सकते हैं कि प्राथमिक सहायता घायल या रोगी के लिए जीवनरूपी अमृत के समान है। इसलिए प्राथमिक सहायता जीवन में महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है।

प्रश्न 4.
हॉकी खेलते समय यदि तुम्हारे घुटने की हड्डी उतर जाए तो आप क्या करोगे ?
(What will you do if you got dislocation of your knee joint while playing Hockey ?)
उत्तर-
यदि हॉकी खेलते समय मेरे घुटने की हड्डी उतर जाये तो मैं इसका इलाज इस प्रकार करूंगा हड्डी को इलास्टिक वाली पट्टी बांधूगा। मैं यह पूरी कोशिश करूंगा कि चोट वाली जगह पर किसी भी प्रकार का भार न पड़े। चोट वाली जगह पर स्लिग डाल लूंगा ताकि हड्डी में हिलजुल न हो।

बड़े उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
प्राथमिक सहायक (First Aider) के गुणों और कर्तव्यों का वर्णन करो।
(What are the qualities and duties of First Aider ?)
उत्तर–
प्राथमिक सहायक में निम्नलिखित गुण होने चाहिएं –

  • प्राथमिक सहायक चुस्त तथा समझदार हो।
  • वह शैक्षणिक योग्यता रखता हो।
  • उसमें सहन-शक्ति होनी चाहिए।
  • उसका दूसरों से व्यवहार अच्छा हो।
  • दूसरों से किसी प्रकार का भेद-भाव न करे।
  • प्रत्येक कार्य को तेज़ी से करे।
  • उसका स्वास्थ्य अच्छा होना चाहिए।
  • उसका चरित्र अच्छा हो।
  • उसमें यह शक्ति होनी चाहिए कि कठिन से कठिन कार्य को आसानी से करे।
  • वह ईमानदार होना चाहिए।
  • वह चुस्त होना चाहिए।
  • उसमें योजना बनाने की शक्ति होनी चाहिए।
  • प्राथमिक सहायक सहानुभूतिपूर्ण होना चाहिए।
  • वह साहस वाला होना चाहिए।
  • प्राथमिक सहायक सोचने की शक्ति वाला होना चाहिए।

प्राथमिक सहायक के कर्त्तव्य इस प्रकार हैं –

  1. पहला कार्य पहले करना चाहिए।
  2. रोगी को सदैव हौसला देना चाहिए।
  3. जितना शीघ्र हो सके डॉक्टर का प्रबन्ध करना चाहिए।
  4. यदि आवश्यक हो तो रोगी के कपड़े आवश्यकतानुसार उतार देने चाहिएं।
  5. रोगी के प्राण बचाने के लिए अन्तिम श्वास तक सहायता करनी चाहिए।
  6. रोगी को सदैव आराम की दशा में रखें।
  7. रोगी के इर्द-गिर्द शोर न हो।
  8. यदि रक्त बह रहा हो तो रक्त को बन्द करने का प्रबन्ध पहले करना चाहिए।
  9. रोगी को सदैव खुली वायु में रखें।
  10. यदि दुर्घटना बिजली के करंट या गैस से हुई हो तो एक-दम बिजली या गैस बन्द कर दें।

प्रश्न 2.
पट्टे के तनाव से क्या अभिप्राय है ? इसके कारण, चिन्ह तथा उपचार का वर्णन करो।
(What is strain ? Describe its causes, symptoms and treatment.)
उत्तर-
मांसपेशियों के खिंचाव को ही मांसेपशियों का तनाव कहते हैं। ऐसी दशा में मांसपेशियों में सूजन आ जाती है तथा अत्यधिक पीड़ा होती है।
मांसपेशियों में तनाव के कारण (Causes of Strain) मांसपेशियों में तनाव के . कारण निम्नलिखित हैं –

  • शरीर में से पसीने के रूप में पानी का निकास हो जाना।
  • आवश्यकता से अधिक थकावट।
  • शरीर के अंगों का परस्पर समन्वय न होना।
  • खेल के मैदान का अधिक कठोर होना।
  • मांसपेशियों को एक दम हरकत में लाना।
  • शरीर को गर्म (Warm up) न करना।
  • खेल के सामान का ठीक न होना।
  • शरीर की शक्ति का उचित अनुपात में न होना।

चिन्ह (Symptoms)-

  • मांसपेशियों में अचानक खिंचाव सा आ सकता है।
  • मांसपेशियां कमज़ोरी के कारण काम करने के योग्य नहीं रहतीं।
  • चोट लगने के एक दम बाद पीड़ा महसूस होती है।
  • चोट वाली जगह पर गड्डा दिखाई देता है।
  • कभी-कभी चोट वाली जगह के आस-पास की जगह नीले रंग की हो जाती है।
  • चोट वाली जगह नर्म लगती है।

PSEB 9th Class Physical Education Solutions Chapter 4 प्राथमिक सहायता

बचाव (Safety Measures) –

  • खेल का मैदान समतल व साफ़-सुथरा होना चाहिए। इसमें कंकर आदि बिखरे नहीं होने चाहिएं।
  • ऊंची तथा लम्बी छलांग के अखाड़े नर्म रखने चाहिएं।
  • खिलाड़ियों को चोटों से बचने के लिए आवश्यक शिक्षा देनी चाहिए।
  • खेल आरम्भ करने से पहले कुछ हल्के व्यायाम करके शरीर को गर्म (Warm up) करना चाहिए।
  • गीले या फिसलन वाले मैदान पर नहीं खेलना चाहिए।
  • खेल का सामान अच्छी प्रकार का होना चाहिए।
  • खिलाड़ियों को परस्पर सद्भावना रखनी चाहिए। खेल कभी क्रोध में आकर नहीं खेलना चाहिए।

इलाज (Treatment)-

  • चोट वाली जगह पर ठंडे पानी की पट्टी या बर्फ़ रखनी चाहिए।
  • चोट वाली जगह पर भार नहीं डालना चाहिए।
  • चोट वाली जगह के अंग को हिलाना नहीं चाहिए।
  • चोट वाली जगह पर 24 घण्टे पश्चात् सेंक या मालिश करना चाहिए।

प्रश्न 3.
मोच के क्या कारण हैं ? इसकी निशानियों तथा उपचार के बारे में वर्णन करो।
(What is sprain ? Discuss its causes, symptoms and treatment.)
उत्तर-
किसी जोड़ के बन्धनों के फट जाने को मोच कहते हैं।

कारण (Causes)-

  • गीले या फिसलन वाले मैदान में खेलना।
  • मैदान में पड़े कंकर आदि का पांव के नीचे आ जाना।
  • खेल के मैदान में गड्डे आदि का होना।
  • अनजान-खिलाड़ी का गलत ढंग से खेलना।
  • अखाड़ों की ठीक तरह से गोडी न करना।

चिन्ह (Symptoms)-

  • थोड़ी देर के बाद मोच वाली जगह पर सूजन होने लगती है।
  • सूजन वाली जगह पर पीड़ा होने लगती है।
  • मोच वाले भाग की सहन करने, कार्य करने की क्षमता कम हो जाती है।
  • गम्भीर मोच की दशा में जोड़ की ऊपरी त्वचा का रंग नीला हो जाता है।

इलाज (Treatment)-मोच.का इलाज इस प्रकार है-

  • मोच वाले स्थान को अधिक हिलाना नहीं चाहिए।
  • घाव वाले स्थान पर 48 घण्टे तक पानी की पट्टियां रखनी चाहिएं।
  • मोच वाले स्थान पर आठ के आकार की पट्टी बांधनी चाहिए।
  • मोच वाले स्थान पर भार नहीं डालना चाहिए।
  • यदि हड्डी टूटी हो तो एक्सरे करवाना चाहिए।
  • 48 से 72. घण्टे के पश्चात् ही सेंक देना चाहिए।
  • मोच वाले स्थान को सदैव ध्यान से रखना चाहिए। जहां एक बार मोच आ जाए, दोबारा फिर आ जाती है। (“Once a sprain, always a sprain.”)
  • मोच ठीक होने के पश्चात् ही क्रियाएं करनी चाहिएं।

प्रश्न 4.
जोड़ के उतरने के कारण, चिन्ह तथा इलाज बताओ।
(Write down the causes, symptoms and treatment of dislocation of joints.)
उत्तर-
हड्डी का जोड़ वाले स्थान से खिसकना जोड़ उतरना (Dislocation) कहलाता है।

कारण (Causes)-

  • किसी बाहरी भार के तेज़ी से हड्डी से टकराने से हड्डी अपनी जगह छोड़ देती है।
  • खेल का सामान शारीरिक शक्ति से अधिक भारी होना।
  • खेल के मैदान का असमतल या अधिक कोठर या नर्म होना।
  • खेल में भाग लेने से पहले शरीर को हल्के व्यायामों से गर्म (Warm up) करना।
  • खिलाड़ी का अचानक गिर जाना।

चिन्ह (Symptoms) –

  • चोट वाली जगह बेढंगी सी दिखाई देती है।
  • चोट वाली जगह अपने आप हिल नहीं सकती।
  • चोट वाली जगह पर सूजन आ जाती है।
  • सोट वाली जगह पर पीड़ा होती है।

इलाज (Treatment)—जोड़ के खिसकने के इलाज इस प्रकार हैं –

  •  ह को इलास्टिक वाली पट्टी बांधनी चाहिए।
  • घाव वाले स्थान पर भार नहीं डालना चाहिए।
  • घ. पाले स्थान पर स्लिग डाल देना चाहिए ताकि हड्डी हिल न सके।
  • जोड़ को अधिक हिलाना नहीं चाहिए।
  • जोड़ को 48 से 72 घण्टे के पश्चात् ही सेंक देना चाहिए।

प्रश्न 5.
हड्डी की टूट या फ्रैक्चर के कारण, चिन्ह तथा इलाज बताओ।
(Mention the causes of Fracture, its symptoms and treatment.)
उत्तर-
हड्डी की टूट के कारण (Causes of Fracture) हड्डी की टूट के निम्नलिखित कारण हो सकते हैं –

  • खिलाड़ी का बहुत जोश, खुशी या क्रोध में बेकाबू होकर खेलना।
  • बहुत सख्त या नर्म मैदान में खिलाड़ी का गिरना।
  • असमतल या फिसलने वाले मैदान में खेलना।
  • किसी योग्य और कुशल व्यक्ति की देख-रेख में खेल न खेला जाना।

चिन्ह (Symptoms)-

  • टूट वाली जगह के समीप सूजन हो जाती है।
  • टूट वाली जगह शक्तिहीन हो जाती है।
  • टूट वाली जगह पर पीड़ा होती है।
  • टूट वाली जगह बेढंगी हिल-जुल होती है।
  • अंग कुरुप हो जाता है।
  • हाथ लगा कर हड्डी की टूट का पता लगाया जा सकता है।

इलाज (Treatment)-

  • टूट वाली जगह को हिलाना नहीं चाहिए।
  • रक्त बहने की दशा में पहले रक्त को रोकने का प्रयास करना चाहिए।
  • घाव वाली जगह पर पट्टी बांध देनी चाहिए।
  • घायल को एक्स-रे के लिए ले जाना चाहिए।
  • टूट वाली जगह पर पट्टियों तथा चपटियों का सहारा बांधना चाहिए।
  • घायल को और इलाज के लिए डॉक्टर के पास पहुंचाना चाहिए।

PSEB 9th Class Physical Education Solutions Chapter 4 प्राथमिक सहायता

प्रश्न 6.
मोच किसे कहते हैं ? इसके लिए प्राथमिक सहायता क्या हो सकती है ?
(What is sprain ? How you will render a first Aid to a person who got Sprain ?)
उत्तर-
मोच (Sprain)—किसी जोड़ के बन्धन (ligaments) का फट जाना मोच (Sprain) कहलाता है। साधारणतया टखने, घुटने, रीढ़ की हड्डी तथा कलाई को मोच आती है।
मोच के प्रकार (Type of Sprain)-मोच निम्नलिखित तीन प्रकार की होती है—

  • नर्म मोच (Mild Sprain)—इस दशा में मोच की जगह में कुछ कमज़ोरी, सूजन तथा पीड़ा अनुभव होती है।
  • दरमियानी मोच (Mediocre Sprain)—इस दशा में सूजन तथा पीड़ा में वृद्धि हो जाती है।
  • पूर्ण मोच (Complete Sprain)—इस दशा में पीड़ा इतनी अधिक हो जाती है कि सहन नहीं की जा सकती।

प्राथमिक सहायता (First Aid) –

  • जिस जगह पर चोट आई हो वहां ज़रा भी हिल-जुल नहीं होनी चाहिए।
  • चोट वाली जगह पर 48 घण्टे तक ठंडे पानी की पट्टियां रखनी चाहिएं।
  • मोच वाली जगह पर भार नहीं डालना चाहिए।
  • टखने में मोच आने की दशा में ‘आठ’ के आकार की पट्टी बांधनी चाहिए।
  • मोच वाली जगह पर 48 घण्टे से 72 घण्टे के पश्चात् सेंक देना वा मालिश करनी चाहिए।
  • हड्डी टूटने की आशंका होने पर एक्सरे करवाना चाहिए।
  • मोच ठीक होने के बाद योग क्रियाएं करनी चाहिएं।

प्रश्न 7.
फ्रैक्चर (टूट) की कितनी किस्में हैं ? सबसे खतरनाक टूट कौन-सी है ?
(Describe the types of Fracture ? Which is the most dangerous fracture ?)
उत्तर-
फ्रैक्चर का अर्थ (Meaning of Fracture)-किसी हड्डी के टूटने या उसमें दरार पड़ जाने को फ्रैक्चर कहा जाता है।
फ्रैक्चर के कारण-हड्डियों के टूटने या उसमें दरार पड़ जाने के कई कारण हो सकते हैं। इसमे से सबसे बड़ा कारण किसी प्रकार की प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष चोट (Direct of Indirect Injury) हो सकती है।

फ्रैक्चर के प्रकार (Types of Fracture)
1. सरल या बन्द फ्रैक्चर (Simple or Closed Fracture)-जब कोई बाह्य घाव न हो जो टूटी हुई हड्डी तक जाता हो। देखें चित्र।
PSEB 9th Class Physical Education Solutions Chapter 4 प्राथमिक सहायता (1)

2. खुला फ्रैक्चर (Compound or Open Fracture)-जब कोई ऐसा घाव हो जो टूटी
PSEB 9th Class Physical Education Solutions Chapter 4 प्राथमिक सहायता (2)

हड्डी तक जाता हो अथवा जब हड्डी के टूटे हुए भाग चमड़ी या मांस को चीर कर बाहर निकल आते हैं और कीटाणु फ्रैक्चर वाले स्थान में प्रविष्ट हो जाते हैं। देखें चित्र।

3. जटिल फ्रैक्चर (Complicated Fracture)-हड्डी टूटने के साथ-साथ दिमाग़, फेफड़े, जिगर, गुर्दे पर चोट लगने से जोड़ भी उतर जाता है। एक जटिल फ्रैक्चर सरल या खुला हो सकता है।
इसके अतिरिक्त कई अन्य फैक्चर भी होते हैं जो प्राथमिक चिकित्सक को पता नहीं चलते। इनमें से मुख्य फ्रैक्चरों का विवरण नीचे दिया जाता है

4. बुहखण्ड फ्रैक्चर (Comminuted Fracture)-जब हड्डी कई स्थानों से टूट जाती है। देखो चित्र।

PSEB 9th Class Physical Education Solutions Chapter 4 प्राथमिक सहायता (3)

5. पचड़ी फ्रैक्चर (Impacted Fracture) जब टूटी हड्डियों के सिरे एक-दूसरे में धंस जाते हैं। देखो चित्र।

PSEB 9th Class Physical Education Solutions Chapter 4 प्राथमिक सहायता (4)

6. कच्चा या हरी लकड़ी जैसी फ्रैक्चर (Green Stick Fracture)—ऐसा फ्रैक्चर प्रायः छोटे बच्चों में होता है। उनकी हड्डियां कोमल होती हैं । जब उनकी हड्डी टूट जाती है तो वह पूरी तरह आर-पार निकल कर टेढ़ी हो जाती है या उसमें दराड़ आ जाती है। देखो चित्र।

PSEB 9th Class Physical Education Solutions Chapter 4 प्राथमिक सहायता (5)

7. दबा हुआ फ्रैक्चर (Depressed Fracture)—जब खोपड़ी के ऊपर वाले भाग या उसके आस-पास कहीं हड्डी टूट जाए या अन्दर धंस जाए। देखें चित्र-पचड़ी फ्रैक्चर।। इनमें सबसे खरतनाक टूट या फ्रैक्चर जटिल फ्रैक्चर है। इस टूट के कारण मनुष्य का जीवन संकट में पड़ जाता है। इसलिए यह फ्रैक्चर सबसे भयानक है।

प्रश्न 8.
बेहोशी क्या है ? इसके चिन्हों तथा इलाज के बारे में बताओ।
(What is unconsciousness ? Mention its symptoms and treatment.)
उत्तर-
बेहोशी (Unconsciousness) बेहोशी का अर्थ है चेतना का खोना। चिन्ह (Symptoms) बहोशी के निम्नलिखित लक्षण होते हैं –

  • नब्ज़ धीमी चलती है।
  • त्वचा ठण्डी और चिपचिपी हो जाती है।
  • चेहरा पीला पड़ जाता है।
  • रक्त का दबाव कम हो जाता है।

इलाज (Treatment) –

  • रोगी की नब्ज़ और दिल की धड़कन अच्छी तरह देख लेनी चाहिए।
  • रोगी की जीभ को पिछली ओर खिसकने नहीं देना चाहिए।
  • यदि शरीर के कपड़े तंग हों तो उतार देने चाहिएं।
  • खुली वायु आने देनी चाहिए।
  • दिल पर मालिश करनी चाहिए।
  • सांस की गति कम होने की दशा में कृत्रिम सांस देना चाहिए।
  • रोगी को पूरा होश न आने तक मुंह के द्वारा कुछ खाने के लिए नहीं देना चाहिए।
  • जब तक रोगी होश में न आए उसे पानी या गर्म चीज़ पीने के लिए देनी चाहिए।
  • रोगी को स्पिरिट अमोनिया सुंघा देनी चाहिए। यदि यह न मिल सके तो प्याज़ ही सुंघा देना चाहिए।
  • जिस कारण से बेहोशी हुई हो उसका इलाज करना चाहिए।

PSEB 9th Class Physical Education Solutions Chapter 4 प्राथमिक सहायता

प्रश्न 9.
सांप के काटने की अवस्था में रोगी को आप कैसी प्राथमिक सहायता देंगे?
(What First Aid will you render to a patient in case of snake bite ?)
उत्तर-
सांप के काटने की अवस्था में प्राथमिक सहायता
(First Aid in case of Snake-bite) सांप के काटने से व्यक्ति की मृत्यु होने की सम्भावना हो सकती है। इसलिए ऐसे व्यक्ति को तुरन्त प्राथमिक सहायता दी जानी चाहिए। सांप द्वारा डंसे व्यक्ति को निम्नलिखित विधि द्वारा प्राथमिक सहायता देनी चाहिए –

  • रक्त परिभ्रमण को रोकना (Stopping the circulation of blood) सर्वप्रथम जिस अंग पर सांप ने डंसा है उस अंग में रक्त परिभ्रमण को रोकना चाहिए। इसके लिए हृदय की ओर वाले भाग के ऊपर के भाग को कपड़े के साथ या रस्सी के साथ कस कर बांध देना चाहिए। यह बन्धन पैर या भुजा के गिर्द घुटने या कुहनी के ऊपर बांधना चाहिए। प्रत्येक 10-20 मिनट के पश्चात् इस को आधे मिनट के लिए ढीला छोड़ना चाहिए। .
  • पानी या लाल दवाई से धोना (Washing with water or Potassium per-manganate)-जिस स्थान पर सांप ने डंक मारा हो उस स्थान को पानी या लाल दवाई (Potassium permanganate) के साथ धो लेना चाहिए।
  • कटाव लगाना (To make an incision)-डंक वाले स्थान को चाकू या ब्लेड के साथ 1″ (2.5 सम) लम्बा और 1″ (1.25 सम) गहरा कटाव लगाना चाहिए। चाकू या ब्लेड को पहले कीटाणु रहित कर लेना चाहिए। कटाव लगाते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि किसी बड़ी रक्त नली को कोई हानि न हो।
  • रोगी को घूमने-फिरने न देना (Not allowing the patient to move)-रोगी को घूमने-फिरने न दिया जाए। रोगी के चलने-फिरने से शरीर में विष फैल जाता है।।
  • शरीर को गर्म रखना (Keeping the body warm) रोगी के शरीर को गर्म रखा जाए। उसको पीने के लिए गर्म चाय देनी चाहिए।
  • कृत्रिम श्वास देना (Administering artificial respiration) रोगी का सांस रुकने की दशा में उसको कृत्रिम श्वास देना चाहिए।
  • रोगी को उत्साहित करना (Encouraging the patient)-रोगी को उत्साहित करना चाहिए।
  • डॉक्टर के पास या अस्पताल में पहुंचाना (Taking toadoctor or hospital)रोगी को शीघ्र ही किसी डॉक्टर के पास या अस्पताल में पहुंचाना चाहिए।

प्रश्न 10.
पानी में डूबने पर आप रोगी को कैसी प्राथमिक सहायता देंगे ?
(What First Aid will you render to a patient of drowning ?)
उत्तर-
पानी में डूबने का उपचार
(The Treatment of Drowning)

नहरों, तालाबों और नदियों में कई बार स्नान करते या इनको पार करते समय कई व्यक्ति डूब जाते हैं।
यदि डूबे हुए व्यक्ति को पानी में से निकाल कर प्राथमिक सहायता दी जाए तो उसके जीवन की रक्षा की जा सकती है। पानी में डूबे हुए व्यक्ति को निम्नलिखित विधि से प्राथमिक सहायता देनी चाहिए –

  • पेट में से पानी निकालना (Removing water from the belly)-डूबे हुए व्यक्ति को पानी से बाहर निकालो। फिर उसको पेट के बल घड़े पर लिटा कर उस के पेट में से पानी निकाला जाएगा। घड़ा न मिलने की अवस्था में उसको पेट के बल लिटा कर । उसे कमर से पकड़ कर ऊपर को उछालो। ऐसा करने से उसके पेट में से पानी निकल जाएगा।
  • रोगी को सूखे कपड़े पहनाना (Making the patient wear dry clothes)रोगी को सूखे कपड़े पहनने के लिए दो।

प्रश्न 11.
जले हुए व्यक्ति को आप कैसी प्राथमिक सहायता देंगे ? (What First Aid will you render to a patient in case of burning ?)
उत्तर-
जलना (Burning)-
कारक तथा प्रभाव (Causes and Effects) – कई बार आग, गर्म बर्तनों, रासायनिक पदार्थ, तेज़ाब तथा विद्युत्धारा से व्यक्ति जल जाता है। इस से त्वचा, मांसपेशियां और ऊतक (Tissues) नष्ट हो जाते हैं।
कभी-कभी गर्म चाय, गर्म दूध, गर्म काफी, भाप या तेजाब से घाव (Scalds) हो जाते हैं। त्वचा लाल हो जाती है, जल जाती है या कपड़े शरीर से चिपक जाते हैं। असहनीय दर्द होता है। कभी-कभी व्यक्ति अधिक जलने से मर भी जाता है।

उपचार (Treatment)-

  • जले हुए भाग का ध्यानपूर्वक उपचार करना चाहिए।
  • यदि कपड़ों को आग लग जाए तो भागना नहीं चाहिए। व्यक्ति को लेट जाना चाहिए और करवटें बदलनी चाहिएं।
  • जिस व्यक्ति के कपड़ों को आग लग जाए उसे कम्बल या मोटे कपड़े से ढक देना चाहिए।

प्रश्न 12.
बिजली के झटके से क्या अभिप्राय है ? आप रोगी को कैसी प्राथमिक सहायता देंगे ?
(What do you mean by electric shock ? How will you treat it ?)
उत्तर-
विद्युत् का झटका (Electric Shock)-

विद्युत् की नंगी तार जिसमें धारा प्रवाहित हो रही हो, को अचानक हाथ लगाने से या लग जाने से झटका लगता है। कई बार व्यक्ति तार से चिपक जाता है, परन्तु कई बार दूर जा गिरता है। विद्युत् के झटके के साथ रोगी बेसुध हो जाता है। कई बार शरीर झुलस भी जाता है। यदि किसी कारण (Main Switch) न मिले तो निम्नलिखित ढंग प्रयोग करने चाहिएं –

  • रबड़ के दस्ताने और सूखी लकड़ी का प्रयोग करना (Using the rubber gloves and dry wood) यदि विद्युत् की शक्ति 5 वोल्ट तक हो तो रबड़ के दस्ताने या सूखी लकड़ी का प्रयोग करके व्यक्ति को बचाना चाहिए। इसमें विद्युत् की धारा नहीं गुज़रती। गीली वस्तु या धातु का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
  • प्लग निकालना (Removing the plug) यदि विद्युत् की तार किसी दूर के स्थान से आ रही है तो प्लग (Plug) निकाल देना चाहिए या फिर तार तोड़ देनी चाहिए।

उपचार (Treatment)-

  • कृत्रिम सांसदेना (Giving artificial respiration)यदि रोगी का सांस बन्द हो तो उसको कृत्रिम सांस देना चाहिए।
  • झुलसे या सड़े अंगों का उपचार (Treatment of Scalded or Burnt part)यदि कोई अंग झुलस या सड़ गया हो तो उसका उपचार करना चाहिए।
  • रोगी को उत्साहित करना (Encouraging the patient) रोगी को उत्साहित करना चाहिए।

PSEB 9th Class Physical Education Solutions Chapter 4 प्राथमिक सहायता

प्राथमिक सहायता PSEB 9th Class Physical Education Notes

  • प्राथमिक सहायता-डॉक्टर के पास ले जाने से पहले रोगी को जो प्राथमिक सहायता दी जाती है ताकि उसकी जीवन रक्षा हो सके, उसे प्राथमिक सहायता कहते
    हैं।
  • प्राथमिक सहायता की ज़रूरत-अगर दुर्घटना के शिकार व्यक्ति को प्राथमिक सहायता न दी जाए तो हो सकता है कि उसकी मृत्यु हो जाए। इसलिए प्राथमिक सहायता रोगी के लिए जीवन रूपी अमृत है।
  • पुट्ठों का तनाव-मांसपेशियों के खिंचें जाने को पुट्ठों का तनाव कहते हैं। आवश्यकता से अधिक थकावट और शरीर के अंगों का आपसी तालमेल न होने के कारण पुट्ठों का तनाव हो जाता है।
  • मोच-किसी जोड़ के बन्धन का फट जाना ही मोच है। मोच वाली जगह को हिलाना नहीं चाहिए और 48 घंटों तक सर्द पानी की पट्टियां करनी चाहिएं और उसके बाद उन्हें गर्म करना चाहिए।
  • फ्रैक्चर-हड्डी टूटना फ्रैक्चर होता है।
  • बेहोशी-बेहोशी का अर्थ चेतना गंवाना है। बेहोशी में नब्ज़ धीरे-धीरे चलती है और चमड़ी ठण्डी हो जाती है।
  • फ्रैक्चर की किस्में-फ्रैक्चर, सादी, गुंझलदार, दबी हुई और बहुखण्डीय हो … सकती है।

PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 9 बाल विकास का अर्थ और महत्त्व

Punjab State Board PSEB 9th Class Home Science Book Solutions Chapter 9 बाल विकास का अर्थ और महत्त्व Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 9 Home Science Chapter 9 बाल विकास का अर्थ और महत्त्व

PSEB 9th Class Home Science Guide बाल विकास का अर्थ और महत्त्व Textbook Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
आधुनिक जीवन में बाल विकास का क्या महत्त्व है?
उत्तर-
बाल विकास की आज के जीवन में बहुत महत्ता है। इसमें बच्चों में मिलने वाली व्यक्तिगत भिन्नताओं, उनके साधारण, असाधारण व्यवहार तथा बच्चे पर वातावरण के प्रभाव को जानने की कोशिश की जाती है।

प्रश्न 2.
बाल विकास की शिक्षा के अन्तर्गत आपको किस के बारे में शिक्षा मिलती है?
उत्तर-
बाल विकास की शिक्षा के अन्तर्गत मिलने वाली शिक्षा

  1. बच्चों की प्रवृत्ति को समझने के लिए
  2. बच्चे के व्यक्तित्व के विकास को समझने के लिए
  3. बच्चे के विकास बारे जानकारी
  4. बच्चे के लिए बढ़िया वातावरण पैदा करना
  5. बच्चों के व्यवहार को कन्ट्रोल करने के लिए
  6. बच्चों का मार्ग दर्शन
  7. पारिवारिक जीवन को खुशियों भरा बनाने के लिए

PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 9 बाल विकास का अर्थ और महत्त्व

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 3.
किन-किन कारणों के कारण बच्चों का विकास उचित प्रकार से नहीं हो सकता?
उत्तर-
बच्चों का विकास कई कारणों से ठीक तरह नहीं होता जैसे

  1. बच्चों को विरासत से ही कुछ कमियां मिली हों जैसे-बच्चा मंद बुद्धि हो सकता है, अंगहीन हो सकता है।
  2. बच्चे में अच्छे गुण होने के बावजूद उसको अच्छा वातावरण न मिल सकने के कारण भी उसके विकास में रुकावट डाल सकता है।
  3. कई बार घरेलू झगड़े भी बच्चे के विकास में रुकावट डालते हैं।
  4. बच्चे की रुचि से विपरीत उससे ज़बरदस्ती कोई कार्य करवाना। जैसे किसी बच्चे को गाने-बजाने का शौक है तो उसे ज़बरदस्ती खेलने को कहा जाए।
  5. बचपन में बच्चे को माता-पिता का प्यार तथा देख-रेख न मिल सकना।

प्रश्न 4.
बाल विकास से आप क्या समझते हो?
उत्तर–
बाल विकास बच्चों की वृद्धि तथा विकास का अध्ययन है। इसमें गर्भ अवस्था से लेकर बालिग होने तक की सम्पूर्ण वृद्धि तथा विकास का अध्ययन करते हैं। इनमें शारीरिक, मानसिक, व्यावहारिक तथा मनोवैज्ञानिक वृद्धि तथा विकास शामिल हैं। इसके अतिरिक्त बच्चों में पाई जाने वाली व्यक्तिगत भिन्नताएं, उनके साधारण तथा असाधारण व्यवहार तथा वातावरण का बच्चे पर प्रभाव को जानने की कोशिश भी की जाती है।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 5.
पारिवारिक सम्बन्धों का महत्त्व बताओ।
उत्तर-
मनुष्य का बच्चा अपनी प्राथमिक आवश्यकताओं के लिए अपने आस-पास के लोगों पर अधिक समय के लिए निर्भर रहता है। बच्चे की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए परिवार होता है। इन ज़रूरतों को किस तरह पूरा किया जाता है इसका बच्चे के व्यक्तित्व पर प्रभाव होता है तथा इसका बड़े होकर पारिवारिक रिश्तों पर भी प्रभाव पड़ता है।
मनुष्य के पारिवारिक रिश्ते उसके सामाजिक जीवन के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण होते हैं। क्योंकि हम इस समाज में ही विचरते हैं, इसलिए हमारे पारिवारिक रिश्ते तथा परिवार से बाहर के रिश्ते हमारे जीवन की खुशी का आधार होते हैं। इस तरह बच्चे के विकास में पारिवारिक सम्बन्ध काफ़ी महत्त्व रखते हैं।

प्रश्न 6.
परिवार की खुशी बच्चों के भविष्य के साथ कैसे जुड़ी हुई है?
उत्तर–
प्रत्येक परिवार की खुशी, उम्मीद तथा भविष्य बच्चों से जुड़ा होता है। बच्चे ही देश का भविष्य होते हैं तथा परिवार में बच्चे यदि शारीरिक तथा मानसिक तौर पर स्वस्थ हों तो परिवार के लिए खुशी का कारण बनते हैं। परिवार खुश हो तो बच्चों के विकास के लिए सहायक रहता है। यदि परिवार में लड़ाई-झगड़े हों अथवा परिवार आर्थिक पक्ष से तंग हो तो इन बातों का बच्चों के भविष्य पर बुरा प्रभाव होता है।

Home Science Guide for Class 9 PSEB बाल विकास का अर्थ और महत्त्व Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

रिक्त स्थान भरें

  1. बाल विकास की शिक्षा से हमें वंश तथा ……….. सम्बन्धी जानकारी मिलती है।
  2. मानव शिशु बाकी प्राणियों के बच्चों में सबसे ……………….. होता है।
  3. व्यक्तियों के …………………. को ही समाज नहीं कहा जा सकता।

उत्तर-

  1. वातावरण,
  2. निर्बल,
  3. समुदाय।

एक शब्द में उत्तर दें

प्रश्न 1.
बच्चे के पालन-पोषण का मूल उत्तरदायित्व किसका है?
उत्तर-
माता-पिता का।

प्रश्न 2.
बाल विकास किस का अध्ययन है?
उत्तर-
बच्चों की वृद्धि तथा विकास।

PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 9 बाल विकास का अर्थ और महत्त्व

ठीक/ग़लत बताएं

  1. बाल विकास तथा बाल मनोविज्ञान का आपस में गहरा संबंध है।
  2. बच्चे के विकास पर आस-पास के वातावरण का प्रभाव पड़ता है।
  3. घरेलू झगड़े बच्चे के विकास पर बुरा प्रभाव डालते हैं।
  4. बच्चे के पालन-पोषण की प्राथमिक जिम्मेवारी उसके मां-बाप की होती है।

उत्तर-

  1. ठीक,
  2. ठीक,
  3. ठीक,
  4. ठीक।

बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
ठीक तथ्य हैं
(A) बचपन में बच्चे को माता-पिता का प्यार तथा देख-रेख न मिलने के कारण विकास अच्छी प्रकार नहीं होता।
(B) बच्चे के व्यवहार तथा रुचियों पर वातावरण का महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है।
(C) प्रत्येक मनुष्य के व्यक्तित्व की जड़ें उसके बचपन में होती हैं।
(D) सभी ठीक।
उत्तर-
(D) सभी ठीक।

प्रश्न 2.
ठीक तथ्य हैं
(A) बच्चे की रुचि के विपरीत उससे जबरदस्ती कोई कार्य करवाने से विकास ठीक नहीं होता।
(B) परिवार की आर्थिक तंगी का प्रभाव बच्चे के विकास पर पड़ता है।
(C) मानव शिशु अन्य प्राणियों के बच्चों में सबसे कमज़ोर होता है।
(D) सभी ठीक।
उत्तर-
(D) सभी ठीक।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
आधुनिक जीवन में बाल विकास का क्या महत्त्व है?
उत्तर-

  1. बाल विकास तथा बाल मनोविज्ञान की सबसे बड़ी देन है। इससे हमें पता चला है कि साधारणतः एक बच्चे से एक अवस्था में क्या आशा रखी जाए। यदि कोई बच्चा इस आशा से बाहर जाए तो उसकी ओर हमें विशेष ध्यान देना होगा।
  2. बाल विकास की पढ़ाई से हमें बच्चों की जरूरतों सम्बन्धी जानकारी प्राप्त होती है। हम बच्चे के मनोविज्ञान को अच्छी तरह समझ कर उसका पालन-पोषण कर सकते हैं जिससे उसका बहुपक्षीय विकास अच्छे ढंग से हो सके।
  3. बाल विकास के अध्ययन से हमें यह जानकारी मिलती है कि साधारण बच्चों से भिन्न बच्चों को किस तरह का वातावरण प्रदान करें कि वह हीन भावना का शिकार न हो जाए। जैसे शारीरिक अथवा मानसिक तौर पर विकलांग बच्चे, मन्द बुद्धि वाले बच्चे अपनी शारीरिक तथा मानसिक कमजोरियों से ऊपर उठकर अपना बहुपक्षीय विकास कर सकें।
  4. बाल विकास पढ़ने से हमें वंश तथा वातावरण सम्बन्धी जानकारी भी मिलती है। एक-दो ऐसे महत्त्वपूर्ण पक्ष हैं जो बच्चे के विकास में बहुत योगदान डालते हैं। वंश से हमें बच्चे के उन गुणों के बारे पता चलता है जो बच्चों को अपने माता-पिता से जन्म से ही मिले होते हैं तथा जिन्हें बदला नहीं जा सकता जैसे नैन-नक्श, कद-काठ, बुद्धि आदि। बच्चे के इर्द-गिर्द को वातावरण कहा जाता है जैसे भोजन, अध्यापक, किताबें, खेलें, मौसम आदि। वातावरण बच्चे के व्यक्तित्व पर गहरा प्रभाव डालता है। अच्छा वातावरण बच्चे के व्यक्तित्व को उभारने में मदद करता है।

प्रश्न 2.
बाल विकास की शिक्षा के अन्तर्गत आपको किस के बारे में शिक्षा मिलती है?
उत्तर-
बाल विकास के अध्ययन में बच्चों में पाई जाने वाली व्यक्तिगत भिन्नताएं, उनके साधारण तथा असाधारण व्यवहार तथा इर्द-गिर्द का बच्चे पर प्रभाव को जानने की कोशिश भी की जाती है।
प्रत्येक मनुष्य के व्यक्तित्व की जड़ें उसके बचपन में होती हैं। आजकल मनोवैज्ञानिक तथा समाज वैज्ञानिक किसी मनुष्य के व्यवहार को समझने के लिए उसके बचपन के हालातों की जांच-पड़ताल करते हैं। समाज वैज्ञानिक यह बात सिद्ध कर चुके हैं कि वे बच्चे जिन्हें बचपन में प्यार नहीं मिलता बड़े होकर अपराधों की ओर रुचित होते हैं।

  1. बच्चों की प्रवृत्ति को समझने के लिए-बाल विकास के अध्ययन से हम विभिन्न स्तरों पर बच्चों के व्यवहार तथा उनमें होने वाले परिवर्तनों से अवगत होते हैं। एक बच्चा विकास की विभिन्न स्थितियों से किस तरह गुज़रता है इसका पता बाल विकास के अध्ययन द्वारा ही चलता है।
  2. बच्चे के व्यक्तित्व के विकास को समझने के लिए-बाल विकास अध्ययन बच्चे के व्यक्तिगत विकास, उसके चरित्र निर्माण का अध्ययन करता है। ऐसे कौन-से तथ्य हैं जो भिन्न-भिन्न आयु के पड़ावों पर बच्चे के व्यक्तित्व को प्रभावित करते हैं तथा बच्चे के व्यक्तित्व के विकास में रुकावट डालने वाले कौन-से तत्त्व हैं, बाल विकास इनकी खोज करने के पश्चात् बच्चे की मदद करता है।
  3. बच्चे के विकास बारे जानकारी-गर्भ धारण से लेकर बालिग होने तक के शारीरिक विकास का अध्ययन बाल विकास का मुख्य भाग है। बाल विकास अध्ययन की मदद से बच्चे के शारीरिक विकास की रुकावटों तथा कारणों को अच्छी तरह समझ सकते हैं । बाल विकास बच्चे की शारीरिक विकास से सम्बन्धित समस्याओं को समझने में भी हमारी सहायता करता है।
  4. बच्चे के लिए बढ़िया वातावरण पैदा करना-बच्चे के व्यवहार तथा रुचियों पर वातावरण का महत्त्वपूर्ण प्रभाव होता है। बाल विकास के अध्ययन से वातावरण के बच्चे पर पड़ रहे बुरे प्रभावों का पता चलता है। बच्चे के व्यक्तित्व के बढ़िया विकास के लिए बढ़िया वातावरण उत्पन्न करने सम्बन्धी मां-बाप तथा अध्यापकों को सहायता मिलती है।
  5. बच्चों के व्यवहार को कन्ट्रोल करने के लिए-बच्चे का व्यवहार हर समय एक जैसा नहीं होता। बच्चे के व्यवहार से सम्बन्धित समस्याओं जैसे बिस्तर गीला करना, अंगूठा चूसना, डरना, झूठ बोलना आदि का कोई-न-कोई मनोवैज्ञानिक कारण अवश्य होता है। बाल विकास अध्ययन की सहायता से इन समस्याओं के कारणों को समझा तथा हल किया जा सकता है।
  6. बच्चों का मार्ग दर्शन-माता-पिता समय-समय पर बच्चों की रहनुमाई करते हैं। परन्तु आज-कल पढ़े-लिखे मां-बाप मार्ग-दर्शन विशेषज्ञों से बच्चों का मार्ग दर्शन करवाते हैं। यह मार्ग दर्शन विशेषज्ञ मनोवैज्ञानिक विधियों द्वारा उसकी रुचियां, छुपी हुई क्षमता तथा झुकाव का पता लगाकर बच्चों का मनोवैज्ञानिक मार्ग-दर्शन करते हैं।
  7. पारिवारिक जीवन को खुशियों भरा बनाने के लिए-बच्चे हर घर का भविष्य होते हैं। इसलिए उनका पालन-पोषण ऐसे वातावरण में होना चाहिए जो उनकी वृद्धि तथा विकास में सहायक हो। बाल विकास अध्ययन द्वारा हमें ऐसे वातावरण की जानकारी मिलती है। एक बढ़िया वातावरण में ही पारिवारिक प्रसन्नता, शान्ति उत्पन्न होती है। पीछे किए वर्णन से यह पता चलता है कि बाल विकास विज्ञान एक बहुत महत्त्वपूर्ण विषय है जिसकी सहायता से हम बच्चों के शारीरिक, मानसिक तथा भावनात्मक विकास से सम्बन्धित अनेकों पहलुओं से अवगत होते हैं। बच्चों के बचपन को खुशियों भरा बनाने के लिए यह विज्ञान बहुत लाभदायक है। खुशियों भरे बचपन वाले बच्चे ही भविष्य में स्वस्थ तथा प्रसन्न समाज रचेंगे। इस महत्त्वपूर्ण कार्य में बाल विकास विज्ञान की महत्त्वपूर्ण भूमिका है।

PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 9 बाल विकास का अर्थ और महत्त्व

बाल विकास का अर्थ और महत्त्व PSEB 9th Class Home Science Notes

  1. शारीरिक तथा मानसिक तौर पर स्वस्थ बच्चे ही देश का भविष्य हैं।
  2. बच्चे के पालन-पोषण की प्रारम्भिक ज़िम्मेदारी उसके मां-बाप की होती है।
  3. बाल विकास बच्चों की वृद्धि तथा विकास का अध्ययन है।
  4. बाल विकास तथा बाल मनोविज्ञान का आपस में गहरा सम्बन्ध है।
  5. मनुष्य के पारिवारिक रिश्ते उसके सामाजिक जीवन के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण हैं।
  6. सभी रिश्ते तथा सम्बन्ध मिलकर हमारे जीवन को आरामदायक बनाते हैं।

PSEB 9th Class SST Solutions History Chapter 7 वन्य समाज तथा बस्तीवाद

Punjab State Board PSEB 9th Class Social Science Book Solutions History Chapter 7 वन्य समाज तथा बस्तीवाद Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 9 Social Science History Chapter 7 वन्य समाज तथा बस्तीवाद

SST Guide for Class 9 PSEB वन्य समाज तथा बस्तीवाद Textbook Questions and Answers

(क) बहुविकल्पीय प्रश्न :

प्रश्न 1.
औद्योगिक क्रांति किस महाद्वीप में आरंभ हुई ?
(क) एशिया
(ख) यूरोप
(ग) आस्ट्रेलिया
(घ) उत्तरी अमेरिका।
उत्तर-
(ख) यूरोप

प्रश्न 2.
इंपीरियल वन अनुसंधान संस्थान कहां स्थित है ?
(क) दिल्ली
(ख) मुंबई
(ग) देहरादून
(घ) अबोहर।
उत्तर-
(ग) देहरादून

प्रश्न 3.
भारत की आधुनिक बागवानी का जनक किसे कहा जाता है ?
(क) लार्ड डलहौजी
(ख) डाइट्रिच ब्रैडिस
(ग) कैप्टन वाटसन
(घ) लार्ड हार्डिंग।
उत्तर-
(ख) डाइट्रिच ब्रैडिस

PSEB 9th Class SST Solutions History Chapter 7 वन्य समाज तथा बस्तीवाद

प्रश्न 4.
भारत में समुद्री जहाज़ों के लिए किस वृक्ष की लकड़ी सबसे अच्छी मानी जाती है?
(क) बबूल
(ख) ओक
(ग) नीम
(घ) सागवान
उत्तर-
(घ) सागवान

प्रश्न 5.
मुंडा आंदोलन क्रिस क्षेत्र में हुआ ?
(क) राजस्थान
(ख) छोटा नागपुर
(ग) मद्रास
(घ) पंजाब।
उत्तर-
(ख) छोटा नागपुर

(ख) रिक्त स्थान भरें :

  1. …………… और ……………… मनुष्य के लिए अति आवश्यक संसाधन हैं।
  2. कलोनियलइज्म लातीनी भाषा के शब्द ……………… से बना है।
  3. यूरोप में ………… के वृक्ष की लकड़ी से समुद्री जहाज़ बनाए जाते थे।
  4. विरसा मुण्डा को 8 अगस्त 1895 ई० को ………………. नामक स्थान से गिरफ्तार किया गया।
  5. परंपरागत कृषि को …………… कृषि भी कहा जाता था।

उत्तर-

  1. वन, जल
  2. कॉलोनिया
  3. ओक
  4. चलकट
  5. झुमी (स्थानांतरित)।

(ग) सही मिलान करो :

1. विरसा मुंडा – (अ) 2006
2. समुद्री जहाज़ – (आ) बबूल
3. जंड – (इ) धरती बाबा
4. वन अधिकार अधिनियम – (ई) खेजड़ी
5. नीलगिरि की पहाड़ियाँ – (उ) सागवान।
उत्तर-

  1. धरती बाबा
  2. सागवान
  3. खेजड़ी
  4. 2006
  5. बबूल।।

(घ) अंतर बताएं:

प्रश्न 1.
1. आरक्षित वन और सुरक्षित वन
2. वैज्ञानिक बागवानी और प्राकृतिक वन।
उत्तर-
1. आरक्षित वन और सुरक्षित वन-
आरक्षित वन-आरक्षित वन लकड़ी के व्यापारिक उत्पादन के लिए होते थे। इन वनों में पशु चराना व कृषि करना सख्त मना था।
सुरक्षित वन-सुरक्षित वनों में भी पशु चराने व खेती करने पर रोक थी। परंतु इन वनों के प्रयोग करने पर सरकार को कर देना पड़ता था।

2. वैज्ञानिक बागवानी और प्राकृतिक वन-
वैज्ञानिक बागवानी-वन विभाग के नियंत्रण में वृक्ष काटने की वह प्रणाली जिसमें पुराने वृक्ष काटे जाते हैं और नए वृक्ष उगाए जाते हैं।
प्राकृतिक वन-कई पेड़ पौधे जलवायु और मिट्टी की उर्वकता के कारण अपने आप उग आते हैं। फूल फूल कर यह बड़े हो जाते हैं। इन्हें प्राकृतिक वन कहते हैं। इनकी उगने में मानव का कोई योगदान नहीं होता।

PSEB 9th Class SST Solutions History Chapter 7 वन्य समाज तथा बस्तीवाद

अति लघु उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
वन समाज से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
वन समाज से अभिप्राय लोगों के उस समूह से है जिसकी आजीविका वनों पर निर्भर है और वह वनों के आस-पास रहते हैं।

प्रश्न 2.
उपनिवेशवाद से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
एक राष्ट्र अथवा राज्य द्वारा किसी कमज़ोर देश की प्राकृतिक और मानवीय सम्पदा पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष नियंत्रण तथा उसे अपने हितों के लिए उपयोग करना उपनिवेशवाद कहलाता है।

प्रश्न 3.
वनों की कटाई के कोई दो कारण लिखें।
उत्तर-

  1. कृषि का विस्तार।
  2. व्यापारिक फसलों की कृषि।

प्रश्न 4.
भारतीय समुद्री जहाज़ किस वृक्ष की लकड़ी से बनाए जाते थे ?
उत्तर-
सागवान।

प्रश्न 5.
किस प्राचीन भारतीय सम्राट ने जीव-जंतुओं के वध पर प्रतिबंध लगा दिया था
उत्तर-
सम्राट अशोक।

प्रश्न 6.
नीलगिरी की पहाड़ियों पर कौन-कौन से वृक्ष लगाए गए ?
उत्तर-
बबूल (कीकर)।

प्रश्न 7.
चार व्यापारिक फसलों के नाम बताएं।
उत्तर-
कपास, पटसन, चाय, काफी, रबड़ आदि।

प्रश्न 8.
बिरसा मुंडा ने कौन-सा नारा दिया ?
उत्तर-
‘अबुआ देश में अबुआ राज’।

प्रश्न 9.
जोधपुर के राजा को किस समुदाय के लोगों ने बलिदान देकर वृक्षों की कटाई से रोका ?
उत्तर-
बिश्नोई संप्रदाय।

लघु उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
उपनिवेशवाद से क्या अभिप्राय है ? उदाहरण देकर स्पष्ट करें।
उत्तर-
एक राष्ट्र अथवा राज्य द्वारा किसी कमज़ोर देश की प्राकृतिक और मानवीय संपदा पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष नियंत्रण और उसका अपने हितों के लिए उपयोग उपनिवेशवाद कहलाता है। स्वतंत्रता से पहले भारत पर ब्रिटिश सरकार का नियंत्रण इसका उदाहरण है।

प्रश्न 2.
वन व आजीविका में क्या संबंध है ?
उत्तर-
वन हमारे जीवन का आधार हैं । वनों से हमें फल, फूल, जड़ी-बूटियां, रबड़, इमारती लकड़ी तथा ईंधन के लिए लकड़ी आदि मिलती है। वन जंगली-जीवों आश्रय स्थल हैं। पशु-पालन पर निर्वाह करने वाले अधिकतर लोग वनों पर निर्भर हैं। इसके अतिरिक्त वन पर्यावरण को शुद्धता प्रदान करते हैं। वन वर्षा लाने में भी सहायक हैं। वर्षा की पुनरावृत्ति वनों में रहने वाले लोगों की कृषि, पशु-पालन आदि कार्यों में सहायक होती है।

प्रश्न 3.
रेलवे के विस्तार में वनों का प्रयोग कैसे किया गया ?
उत्तर-
औपनिवेशिक शासकों को रेलवे के विस्तार के लिए स्लीपरों की आवश्यकता थी जो कठोर लकड़ी से बनाए जाते थे। इसके अतिरिक्त भाप इंजनों को चलाने के लिए ईंधन भी चाहिए था। इसके लिए भी लकड़ी का प्रयोग किया जाता था। अत: बड़े पैमाने पर वनों को काटा जाने लगा। 1850 के दशक तक केवल मद्रास प्रेजीडेंसी में स्लीपरों के लिए प्रति वर्ष 35,000 वृक्ष काटे जाने लगे थे। इसके लिए लोगों को ठेके दिए जाते थे। ठेकेदार स्लीपरों की आपूर्ति के लिए पेड़ों की अंधाधुंध कटाई करते थे। फलस्वरूप रेलमार्गों के चारों ओर के वन तेज़ी से समाप्त होने लगे। 1882 में जावा से भी 2 लाख 80 हजार स्लीपरों का आयात किया गया।

प्रश्न 4.
1878 ई० के वन अधिनियम के अनुसार वनों के वर्गीकरण का उल्लेख करें।
उत्तर-
1878 में 1865 के वन अधिनियम में संशोधन किया गया। नये प्रावधानों के अनुसार-

  1. वनों को तीन श्रेणियों में बांटा गया : आरक्षित, सुरक्षित व ग्रामीण।
  2. सबसे अच्छे जंगलों को ‘आरक्षित वन’ कहा गया। गांव वाले इन जंगलों से अपने उपयोग के लिए कुछ भी नहीं ले सकते थे।
  3. घर बनाने या ईंधन के लिए गांववासी केवल सुरक्षित या ग्रामीण वनों से ही लकड़ी ले सकते थे।

PSEB 9th Class SST Solutions History Chapter 7 वन्य समाज तथा बस्तीवाद

प्रश्न 5.
समकालीन भारत में वनों की क्या स्थिति है ?
उत्तर-
भारत राष्ट्र ऋषियों-मुनियों व भक्तों की धरती है। इन का वनों से गहरा संबंध रहा है। इसी कारण भारत में यहां वन तथा वन्य जीवों की सुरक्षा करने की परंपरा रही है। प्राचीन भारतीय सम्राट अशोक ने एक शिलालेख पर लिखवाया था उसके अनुसार जीव-जंतुओं को मारा नहीं जाएगा। तोता, मैना, अरुणा, कलहंस, नंदीमुख, सारस, बिना कांटे वाली मछलियां आदि जानवर जो उपयोगी व खाने के योग्य नहीं थे। इस के अतिरिक्त वनों को भी जलाया नहीं जाएगा।

प्रश्न 6.
झूम प्रथा (झूम कृषि) पर नोट लिखें।
उत्तर-
उपनिवेशवाद से पूर्व वनों में पारंपरिक कृषि की जाती थी, इसे झूम प्रथा अथवा झूमी कृषि (स्थानांतरित कृषि) कहा जाता था। कृषि की इस प्रथा के अनुसार जंगल के कुछ भाग के वृक्षों को काट कर आग लगा दी जाती थी। मानसून के बाद उस क्षेत्र में फसल बोई जाती थी, जिसको अक्तूबर-नवंबर में काट लिया जाता था। दो-तीन वर्ष लगातार इसी क्षेत्र में से फसल पैदा की जाती थी। जब उसकी उर्वरा शक्ति कम हो जाती थी, तो इस क्षेत्र में वृक्ष लगा दिए जाते थे, ताकि फिर से वन तैयार हो सके। ऐसे वन 17-18 वर्षों में पुनः तैयार हो जाते थे। वनवासी कृषि के लिए किसी अन्य स्थान को चुन लेते थे।

दीर्घ उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
वनों की कटाई के क्या कारण हैं ? वर्णन करें।
उत्तर-
औद्योगिक क्रांति से कच्चे माल और खाद्यपदार्थों की मांग बढ़ गई। इसके साथ ही विश्व में लकड़ी की मांग भी बढ़ गई, जंगलों की कटाई होने लगी और धीरे-धीरे लकड़ी कम मिलने लगी। इससे वन निवासियों का जीवन व पर्यावरण बुरी तरह प्रभावित हुआ। यूरोपीय देशों की आंख भारत सहित उन देशों पर टिक गई, जो वन-संपदा व अन्य प्राकृतिक संसाधनों से संपन्न थे। इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए डचों, पुर्तगालियों, फ्रांसीसियों और अंग्रेज़ों आदि ने वनों को काटना आरंभ कर दिया। संक्षेप उपनिवेशवाद के अधीन वनों की कटाई के कारण निम्नलिखित थे।

  1. रेलवे-औपनिवेशिक शासकों को रेलवे के विस्तार के लिए स्लीपरों की आवश्यकता थी जो कठोर लकड़ी से बनाए जाते थे। इसके अतिरिक्त भाप इंजनों को चलाने के लिए ईंधन भी चाहिए था। इसके लिए भी लकड़ी का प्रयोग किया जाता था। अत: बड़े पैमाने पर वनों को काटा जाने लगा। 1850 के दशक तक केवल मद्रास प्रेजीडेंसी में स्लीपरों के लिए प्रति वर्ष 35,000 वृक्ष काटे जाने लगे थे। इसके लिए लोगों को ठेके दिए जाते थे। ठेकेदार स्लीपरों की आपूर्ति के लिए पेड़ों की अंधाधुंध कटाई करते थे। फलस्वरूप रेलमार्गों के चारों ओर के वन तेज़ी से समाप्त होने लगे। 1882 में जावा से भी 2 लाख 80 हज़ार स्लीपरों का आयात किया गया।
  2. जहाज़ निर्माण-औपनिवेशिक शासकों को अपनी नौ-शक्ति बढ़ाने के लिए जहाज़ों की आवश्यकता थी। इसके लिए भारी मात्रा में लकड़ी चाहिए थी। अत: मज़बूत लकड़ी प्राप्त करने के लिए टीक और साल के पेड़ लगाए जाने लगे। अन्य सभी प्रकार के वृक्षों को साफ़ कर दिया गया। शीघ्र ही भारत से बड़े पैमाने पर लकड़ी इंग्लैंड भेजी जाने लगी।
  3. कृषि-विस्तार-1600 ई० में भारत का लगभग 1/6 भू-भाग कृषि के अधीन था। परंतु जनसंख्या बढ़ने के साथ-साथ खादानों की मांग बढ़ने लगी। अत: किसान कृषि क्षेत्र का विस्तार करने लगे। इसके लिए वनों को साफ करके नए खेत बनाए जाने लगे। इसके अतिरिक्त ब्रिटिश अधिकारी आरंभ में यह सोचते थे कि वन धरती की शोभा बिगाड़ते हैं। अतः इन्हें काटकर कृषि भूमि का विस्तार किया जाना चाहिए, ताकि यूरोप की शहरी जनसंख्या के लिए भोजन और कारखानों के लिए कच्चा माल प्राप्त किया जा सके। कृषि के विस्तार से सरकार की आय भी बढ़ सकती थी। फलस्वरूप 1880-1920 के बीच 67 लाख हेक्टेयर कृषि क्षेत्र का विस्तार हुआ। इसका सबसे बुरा प्रभाव वनों पर ही पड़ा।
  4. व्यावसायिक खेती-व्यावसायिक खेती से अभिप्राय नकदी फसलें उगाने से है। इन फसलों में जूट (पटसन), गन्ना, गेहूं तथा कपास आदि फ़सलें शामिल हैं। इन फसलों की मांग 19वीं शताब्दी में बढ़ी। ये फसलें उगाने के लिए भी वनों का विनाश करके नई भमियां प्राप्त की गईं।
  5. चाय-कॉफी के बागान-यूरोप में चाय तथा काफ़ी की मांग बढ़ती जा रही थी। अतः औपनिवेशिक शासकों ने वनों पर नियंत्रण स्थापित कर लिया और वनों को काट कर विशाल भू-भाग बागान मालिकों को सस्ते दामों पर बेच दिया। इन भू-भागों पर चाय तथा काफ़ी के बागान लगाए गए।
  6. आदिवासी और किसान-आदिवासी तथा अन्य छोटे-छोटे किसान अपनी झोंपड़ियां बनाने तथा ईंधन के लिए पेड़ों को काटते थे। वे कुछ पेड़ों की जड़ों तथा कंदमूल आदि का प्रयोग भोजन के रूप में भी करते थे। इससे भी वनों का अत्यधिक विनाश हुआ।

प्रश्न 2.
उपनिवेशवाद के अंतर्गत बने वन-अधिनियमों का वन समाज पर क्या प्रभाव पड़ा ? वर्णन करें।
उत्तर-

1. झूम खेती करने वालों को-औपनिवेशिक शासकों ने झूम खेती पर रोक लगा दी और इस प्रकार की खेती करने वाले जन समुदायों को उनके घरों से ज़बरदस्ती विस्थापित कर दिया। परिणामस्वरूप कुछ किसानों को अपना व्यवसाय बदलना पड़ा और कुछ ने इसके विरोध में विद्रोह कर दिया।

2. घुमंतू और चरवाहा समुदायों को-वन प्रबंधन के नये कानून बनने से स्थानीय लोगों द्वारा वनों में पशु चराने तथा शिकार करने पर प्रतिबंध लगा दिया गया। फलस्वरूप कई घुमंतू तथा चरवाहा समुदायों की रोज़ी छिन गई। ऐसा मुख्यत: मद्रास प्रेजीडेंसी के कोरावा, कराचा तथा येरुकुला समुदायों के साथ घटित हुआ। विवश होकर उन्हें कारखानों, खानों तथा बागानों में काम करना पड़ा। ऐसे कुछ समुदायों को ‘अपराधी कबीले’ भी कहा जाने लगा।

3. लकड़ी और वन उत्पादों का व्यापार करने वाली कंपनियों को-वनों पर वन-विभाग का नियंत्रण स्थापित हो जाने के पश्चात् वन उत्पादों (कठोर लकड़ी, रब आदि) के व्यापार को बल मिला। इस कार्य के लिए कई व्यापारिक कंपनियां स्थापित हो गईं। ये स्थानीय लोगों से महत्त्वपूर्ण वन उत्पाद खरीद कर उनका निर्यात करने लगीं और भारी
मुनाफा कमाने लगीं। भारत में ब्रिटिश सरकार ने कुछ विशेष क्षेत्रों में इस व्यापार के अधिकार बड़ी-बड़ी यूरोपीय कंपनियों को दे दिए। इस प्रकार वन उत्पादों के व्यापार पर अंग्रेजी सरकार का नियंत्रण स्थापित हो गया।

4. बागान मालिकों को-ब्रिटेन में चाय, कहवा, रबड़ आदि की बड़ी मांग थी। अतः भारत में इन उत्पादों के बड़ेबड़े बागान लगाए गए। इन बागानों के मालिक मुख्यतः अंग्रेज़ थे। वे मजदूरों का खूब शोषण करते थे और इन उत्पादों के निर्यात से खूब धन कमाते थे।
PSEB 9th Class SST Solutions History Chapter 7 वन्य समाज तथा बस्तीवाद (1)

5. शिकार खेलने वाले राजाओं और अंग्रेज़ अफसरों को-नये वन कानूनों द्वारा वनों में शिकार करने पर रोक लगा दी गई। जो कोई भी शिकार करते पकड़ा जाता था, उसे दंड दिया जाता था। अब हिंसक जानवरों का शिकार करना राजाओं तथा राजकुमारों के लिए एक खेल बन गया। मुगलकाल के कई चित्रों में सम्राटों तथा राजकुमारों को शिकार करते दिखाया गया है।
PSEB 9th Class SST Solutions History Chapter 7 वन्य समाज तथा बस्तीवाद (2)
ब्रिटिश काल में हिंसक जानवरों का शिकार बड़े पैमाने पर होने लगा। इसका कारण यह था कि अंग्रेज़ अफ़सर हिंसक जानवरों को मारना समाज के हित में समझते थे। उनका मानना था कि ये जानवर खेती करने वालों के लिए खतरा उत्पन्न करते हैं। अत: वे अधिक-से-अधिक बाघों, चीतों तथा भेड़ियों को मारने के लिए पुरस्कार देते थे। फलस्वरूप 1875-1925 ई० के बीच पुरस्कार पाने के लिए 80 हज़ार बाघों, 1 लाख 50 हज़ार चीतों तथा 2 लाख भेड़ियों को मार डाला गया। महाराजा सरगुजा ने अकेले 1157 बाघों तथा 2000 चीतों को शिकार बनाया। जार्ज यूल नामक एक ब्रिटिश शासक ने 400 बाघों को मारा।

प्रश्न 3.
मुंडा आंदोलन पर नोट लिखो।
उत्तर-
भूमि, जल तथा वन की रक्षा के लिए किए गए आंदोलनों में मुंडा आंदोलन का प्रमुख स्थान है। यह आंदोलन आदिवासी नेता बिरसा मुंडा के नेतृत्व में चलाया गया।
कारण-

  1. आदिवासी जंगलों को पिता और ज़मीन को माता की तरह पूजते थे। जंगलों से संबंधित बनाए गए कानूनों ने उनको इनसे दूर कर दिया।
  2. डॉ० नोटरेट नामक ईसाई पादरी ने मुंडा कबीले के लोगों तथा नेताओं को ईसाई धर्म अपनाने के लिए प्रेरित किया
    और उन्हें लालच दिया कि उनकी ज़मीनें उन्हें वापिस करवा दी जाएंगी। परंतु बाद में सरकार ने साफ इंकार कर दिया।
  3. बिरसा मुंडा ने अपने विचारों के माध्यम से आदिवासियों को संगठित किया। सबसे पहले उसने अपने आंदोलन में सामाजिक, आर्थिक व सांस्कृतिक पक्षों को मज़बूत बनाया। उसने लोगों को अंधविश्वासों से निकाल कर शिक्षा के साथ जोडने का प्रयत्न किया। जल-जंगल-ज़मीन की रक्षा और उन पर आदिवासियों के अधिकार की बात करके उसने आर्थिक पक्ष से लोगों को अपने साथ जोड़ लिया। इसके अतिरिक्त उसने धर्म और संस्कृति की रक्षा का नारा देकर अपनी संस्कृति बचाने की बात की।

आंदोलन का आरंभ तथा प्रगति-1895 ई० में वन संबंधी बकाए की माफी के लिए आंदोलन चला परंतु सरकार ने आंदोलनकारियों की मांगों को ठुकरा दिया। बिरसा मुंडा ने ‘अबुआ देश में अबुआ राज’ का नारा देकर अंग्रेज़ों के विरुद्ध संघर्ष का बिगुल बजा दिया। 8 अगस्त, 1895 ई० को ‘चलकट’ स्थान पर उसे गिरफ्तार कर लिया गया और दो वर्ष के लिए जेल भेज दिया गया। 1897 ई० में उसकी रिहाई के बाद उस क्षेत्र में अकाल पड़ा। बिरसा मुंडा ने अपने साथियों को साथ लेकर लोगों की सेवा की और अपने विचारों से लोगों को जागृत किया। लोग उसे धरती बाबा के तौर पर पूजने लगे। परंतु सरकार उसके विरुद्ध होती गई। 1897 ई० में लगभग 400 मुंडा विद्रोहियों ने खंटी थाने पर हमला कर दिया। 1898 ई० में तांगा नदी के इलाके में विद्राहियों ने अंग्रेज़ी सेना को पीछे की ओर धकेल दिया, परंतु बाद में अंग्रेजी सेना ने सैकड़ों आदिवासियों को मौत के घाट उतार दिया।

बिरसा मुंडा की गिरफ्तारी, मृत्यु तथा आंदोलन का अंत-14 दिसंबर, 1899 ई० को बिरसा मुंडा ने अंग्रेज़ों के विरुद्ध युद्ध का ऐलान कर दिया, जोकि जनवरी 1900 ई० में सारे क्षेत्र में फैल गया। अंग्रेज़ों ने बिरसा मुंडा की गिरफ्तारी के लिए ईनाम का ऐलान कर दिया। कुछ स्थानीय लोगों ने लालच वश 3 फरवरी, 1900 ई० में बिरसा मुंडा को छल से पकड़वा दिया। उसे रांची जेल भेज दिया गया। वहां अंग्रेजों ने उसे धीरे-धीरे असर करने वाला विष दिया, जिसके कारण 9 जून, 1900 ई० को उसकी मृत्यु हो गई। परंतु उसकी मृत्यु का कारण हैज़ा बताया गया, ताकि मुंडा समुदाय के लोग भड़क न जाएं। उसकी पत्नी, बच्चों और साथियों पर मुकद्दमे चला कर भिन्न-भिन्न प्रकार की यातनाएं दी गईं।
सच तो यह है कि बिरसा मुंडा ने अपने कबीले के प्रति अपनी सेवाओं के कारण अल्प आयु में ही अपना नाम अमर कर लिया। लोगों को अपने अधिकारों के प्रति जागृत करने तथा अपने धर्म एवं संस्कृति की रक्षा के लिए तैयार करने के कारण आज भी लोग बिरसा मुंडा को याद करते हैं।

PSEB 9th Class SST Solutions History Chapter 7 वन्य समाज तथा बस्तीवाद

PSEB 9th Class Social Science Guide वन्य समाज तथा बस्तीवाद Important Questions and Answers

I. बहुविकल्पीय प्रश्न :

प्रश्न 1.
तेंद्र के पत्तों का प्रयोग किस काम में किया जाता है ?
(क) बीड़ी बनाने में ।
(ख) चमड़ा रंगने में
(ग) चाकलेट बनाने में
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(क) बीड़ी बनाने में ।

प्रश्न 2.
चाकलेट में प्रयोग होने वाला तेल प्राप्त होता है
(क) टीक के बीजों से
(ख) शीशम के बीजों से
(ग) साल के बीजों से
(घ) कपास के बीजों से।
उत्तर-
(ग) साल के बीजों से

प्रश्न 3.
आज भारत की कुल भूमि का लगभग कितना भाग कृषि के अधीन है ?
(क) चौथा
(ख) आधा
(ग) एक तिहाई
(घ) दो तिहाई।
उत्तर-
(ख) आधा

प्रश्न 4.
इनमें से वाणिज्यिक अथवा नकदी फसल कौन-सी है ?
(क) जूट
(ख) कपास
(ग) गन्ना
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 5.
कृषि-भूमि के विस्तार का क्या बुरा परिणाम है ?
(क) वनों का विनाश
(ख) उद्योगों को बंद करना
(ग) कच्चे माल का विनाश
(घ) उत्पादन में कमी।
उत्तर-
(क) वनों का विनाश

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प्रश्न 6.
19वीं शताब्दी में इंग्लैंड की रॉयल नेवी के लिए जलयान निर्माण की समस्या उत्पन्न होने का कारण था
(क) शीशम के वनों में कमी
(ख) अनेक वनों की कमी
(ग) कीकर के वनों में कमी
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(ख) अनेक वनों की कमी

प्रश्न 7.
1850 के दशक में रेलवे के स्लीपर बनाए जाते थे
(क) सीमेंट से
(ख) लोहे से
(ग) लकड़ी से
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(ग) लकड़ी से

प्रश्न 8.
चाय और कॉफी के बागान लगाए गए
(क) वनों को साफ़ करके
(ख) वन लगाकर
(ग) कारखाने हटाकर
(घ) खनन को बंद करके।
उत्तर-
(क) वनों को साफ़ करके

प्रश्न 9.
अंग्रेज़ों के लिए भारत में रेलवे का विस्तार करना ज़रूरी था
(क) अपने औपनिवेशिक व्यापार के लिए
(ख) भारतीयों की सुविधा के लिए
(ग) अंग्रेज़ उच्च अधिकारियों की सुविधा के लिए
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(क) अपने औपनिवेशिक व्यापार के लिए

प्रश्न 10.
भारत में वनों का पहला इंस्पेक्टर-जनरल था
(क) फ्रांस का केल्विन
(ख) जर्मनी का डीट्रिख चैंडिस
(ग) इंग्लैंड का क्रिसफोर्ड
(घ) रूस का निकोलस।
उत्तर-
(ख) जर्मनी का डीट्रिख चैंडिस

प्रश्न 11.
भारतीय वन सेवा (Indian Forest Service) की स्थापना कब हुई ?
(क) 1850 में
(ख) 1853 में
(ग) 1860 में
(घ) 1864 में।
उत्तर-
(घ) 1864 में।

प्रश्न 12.
निम्न में से किस वर्ष भारतीय वन अधिनियम बना
(क) 1860 में
(ख) 1864 में
(ग) 1865 में
(घ) 1868 में।
उत्तर-
(ग) 1865 में

प्रश्न 13.
1906 में इंपीरियल फारेस्ट रिसर्च इंस्टीच्यूट (Imperial Forest Research Institute) की स्थापना
(क) देहरादून में
(ख) कोलकाता में
(ग) दिल्ली में
(घ) मुंबई में।
उत्तर-
(क) देहरादून में

प्रश्न 14.
देहरादून के इंपीरियल फारेस्ट इंस्टीच्यूट (स्कूल) में जिस वन्य प्रणाली का अध्ययन कराया जाता था, वह थी
(क) मूलभूत वानिकी
(ख) वैज्ञानिक वानिकी
(ग) बागान वानिकी
(घ) आरक्षित वानिकी।
उत्तर-
(ग) बागान वानिकी

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प्रश्न 15.
1865 के वन अधिनियम में संशोधन हुआ ?
(क) 1878 ई०
(ख) 1927 ई०
(ग) 1878 तथा 1927 ई० दोनों
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(ग) 1878 तथा 1927 ई० दोनों

प्रश्न 16.
1878 के वन अधिनियम के अनुसार ग्रामीण मकान बनाने तथा ईंधन के लिए जिस वर्ग के वनों से लकड़ी नहीं ले सकते थे
(क) आरक्षित वन
(ख) सुरक्षित वन
(ग) ग्रामीण वन
(घ) सुरक्षित तथा ग्रामीण वन।
उत्तर-
(क) आरक्षित वन

प्रश्न 17.
सबसे अच्छे वन क्या कहलाते थे ?
(क) ग्रामीण वन
(ख) आरक्षित वन
(ग) दुर्गम वन
(घ) सुरक्षित वन।
उत्तर-
(ख) आरक्षित वन

प्रश्न 18.
कांटेदार छाल वाला वृक्ष है.
(क) साल
(ख) टीक
(ग) सेमूर
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(ग) सेमूर

प्रश्न 19.
स्थानांतरी कृषि का एक अन्य नाम है
(क) झूम कृषि
(ख) रोपण कृषि
(ग) गहन कृषि
(घ) मिश्रित कृषि।
उत्तर-
(क) झूम कृषि

प्रश्न 20.
स्थानांतरी कृषि में किसी खेत पर अधिक-से-अधिक कितने समय के लिए कृषि होती है ?
(क) 5 वर्ष तक
(ख) 4 वर्ष तक
(ग) 6 वर्ष तक
(घ) 2 वर्ष तक।
उत्तर-
(घ) 2 वर्ष तक।

प्रश्न 21.
चाय के बागानों पर काम करने वाला समुदाय था
(क) मेरुकुला
(ख) कोरवा
(ग) संथाल
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(ग) संथाल

प्रश्न 22.
संथाल परगनों में ब्रिटिश शासन के विरुद्ध विद्रोह करने बाले वन समुदाय का नेता था
(क) बिरसा मुंडा
(ख) सिद्धू
(ग) अलूरी सीता राम राजू
(घ) गुंडा ध्रुव।
उत्तर-
(ख) सिद्धू

प्रश्न 23.
बिरसा मुंडा ने जिस क्षेत्र में वन समुदाय के विद्रोह का नेतृत्व किया
(क) तत्कालीन आंध्र प्रदेश
(ख) केरल
(ग) संथाल परगना
(घ) छोटा नागपुर।
उत्तर-
(घ) छोटा नागपुर।

प्रश्न 24.
बस्तर में ब्रिटिश शासन के विरुद्ध विद्रोह का नेता कौन था ?
(क) गुंडा ध्रुव
(ख) बिरसा मुंडा
(ग) कनु
(घ) सिद्ध।
उत्तर-
(क) गुंडा ध्रुव

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प्रश्न 25.
जावा का कौन-सा समुदाय वन काटने में कुशल था ?
(क) संथाल
(ख) डच
(ग) कलांग
(घ) सामिन।
उत्तर-
(ग) कलांग

II. रिक्त स्थान भरो:

  1. 1850 के दशक में रेलवे …………. के स्लीपर बनाए जाते थे।
  2. जर्मनी का ……………. भारत में पहला इंस्पेक्टर जनरल था।
  3. भारतीय वन अधिनियम ……………….. ई० में बना।
  4. 1906 ई० में ………………. में इंपीरियल फारेस्ट रिसर्च इंस्टीच्यूट की स्थापना हुई।
  5. …………………वन सबसे अच्छे वन कहलाते हैं।

उत्तर-

  1. लकड़ी
  2. डीट्रिख ब्रैडिस
  3. 1865
  4. देहरादून
  5. आरक्षित।

III. सही मिलान करो :

(क) – (ख)
1. तेंदू के पत्ते – (i) छोटा नागपुर
2. भारतीय वन अधिनियम – (ii) बीड़ी बनाने
3. इंपीरियल फारेस्ट रिसर्च इंस्टीचूट – (iii) साल के बीज
4. चाकलेट – (iv) 1865
5. बिरसा मुंडा – (v) 1906
उत्तर-

  1. बॉडी बनाने
  2. 1865
  3. 1906
  4. साल के बीज
  5. छोटा नागपुर।

अति लघु उत्तरों वाले प्रश्न

उत्तर एक लाइन अथवा एक शब्द में :

प्रश्न 1.
वनोन्मूलन (Deforestation) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
वनों का कटाव एवं सफ़ाई।

प्रश्न 2.
कृषि के विस्तारण का मुख्य कारण क्या था ?
उत्तर-
बढ़ती हुई जनसंख्या के लिए भोजन की बढ़ती हुई मांग को पूरा करना।

प्रश्न 3.
वनों के विनाश का कोई एक कारण बताओ।
उत्तर-
कृषि का विस्तारण।

प्रश्न 4.
दो नकदी फसलों के नाम बताओ।
उत्तर-
जूट तथा कपास।

प्रश्न 5.
19वीं शताब्दी के आरंभ में औपनिवेशिक शासक वनों की सफ़ाई क्यों चाहते थे ? कोई एक कारण बताइए।
उत्तर-
वे वनों को ऊसर तथा बीहड़ स्थल समझते थे।

प्रश्न 6.
कृषि में विस्तार किस बात का प्रतीक माना जाता है ?
उत्तर-
प्रगति का।

प्रश्न 7.
आरंभ में अंग्रेज़ शासक वनों को साफ़ करके कृषि का विस्तार क्यों करना चाहते थे ? कोई एक कारण लिखिए।
उत्तर-
राज्य की आय बढ़ाने के लिए।

प्रश्न 8.
इंग्लैंड की सरकार ने भारत में वन संसाधनों का पता लगाने के लिए खोजी दंल कब भेजे ?
उत्तर-
1820 के दशक में।

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प्रश्न 9.
औपनिवेशिक शासकों को किन दो उद्देश्य की पूर्ति के लिए बड़े पैमाने पर मज़बूत लकड़ी की ज़रूरत थी ?
उत्तर-
रेलवे के विस्तार तथा नौ-सेना के लिए जलयान बनाने के लिए।

प्रश्न 10.
रेलवे के विस्तार का वनों पर क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर-
बड़े पैमाने पर वनों का कटाव।

प्रश्न 11.
1864 में ‘भारतीय वन सेवा’ की स्थापना किसने की ?
उत्तर-
डीट्रिख चैंडिस (Dietrich Brandis) ने।

प्रश्न 12.
वैज्ञानिक वानिकी से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
वन विभाग के नियंत्रण में वृक्ष (वन) काटने की वह प्रणाली जिसमें पुराने वृक्ष काटे जाते हैं और नये वृक्ष लगाए जाते हैं।

प्रश्न 13.
बागान का क्या अर्थ है ?
उत्तर-
सीधी पंक्तियों में एक ही प्रजाति के वृक्ष उगाना।

प्रश्न 14.
1878 के वन अधिनियम द्वारा वनों को कौन-कौन से तीन वर्गों में बांटा गया ?
उत्तर-

  1. आरक्षित वन
  2. सुरक्षित वन
  3. ग्रामीण वन।

प्रश्न 15.
किस वर्ग के वनों से ग्रामीण कोई भी वन्य उत्पाद नहीं ले सकते थे ?
उत्तर-
आरक्षित वन।

प्रश्न 16.
मज़बूत लकड़ी के दो वृक्षों के नाम बताओ।
उत्तर-
टीक तथा साल।

प्रश्न 17.
दो वन्य उत्पादों के नाम बताओ जो पोषक गुणों से युक्त होते हैं।
उत्तर-
फल तथा कंदमूल।

प्रश्न 18.
जड़ी-बूटियां किस काम आती हैं ?
उत्तर-
औषधियां बनाने के।

प्रश्न 19.
महुआ के फल से क्या प्राप्त होता है ?
उत्तर-
खाना पकाने और जलाने के लिए तेल।

प्रश्न 20.
विश्व के किन भागों में स्थानांतरी (झूम) खेती की जाती है ?
उत्तर-
एशिया के कुछ भागों, अफ्रीका तथा दक्षिण अमेरिका में।

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लघु उत्तरों वाले प्रश्न।

प्रश्न 1.
औपनिवेशिक काल में कृषि के तीव्र विस्तारीकरण के मुख्य कारण क्या थे ?
उत्तर-
औपनिवेशिक काल में कृषि के तीव्र विस्तारीकरण के मुख्य कारण निम्नलिखित थे-

  1. 19वीं शताब्दी में यूरोप में जूट (पटसन), गन्ना, कपास, गेहूं आदि वाणिज्यिक फसलों की मांग बढ़ गई। अनाज शहरी जनसंख्या को भोजन जुटाने के लिए चाहिए था तथा अन्य फसलों का उद्योगों में कच्चे माल के रूप में प्रयोग किया जाना था। अत: अंग्रेज़ी शासकों ने ये फसलें उगाने के लिए कृषि क्षेत्र का तेजी से विस्तार किया।
  2. 19वीं शताब्दी के आरंभिक वर्षों में अंग्रेज़ शासक वन्य भूमि को ऊसर तथा बीहड़ मानते थे। वे इसे उपजाऊ बनाने के लिए वन साफ़ करके भूमि को कृषि के अधीन लाना चाहते थे। .
  3. अंग्रेज़ शासक यह भी सोचते थे कि कृषि के विस्तार से कृषि-उत्पादन में वृद्धि होगी। फलस्वरूप राज्य को अधिक राजस्व प्राप्त होगा और राज्य की आय में वृद्धि होगी।
    अतः 1880-1920 ई० के बीच कृषि क्षेत्र में 67 लाख हेक्टेयर की बढ़ोत्तरी हुई।

प्रश्न 2.
1820 के बाद भारत में वनों को बड़े पैमाने पर काटा जाने लगा। इसके लिए कौन-कौन से कारक उत्तरदायी थे ?
उत्तर-
1820 के दशक में ब्रिटिश सरकार को मज़बूत लकड़ी की बहुत अधिक आवश्यकता पड़ी। इसे पूरा करने के लिए वनों को बड़े पैमाने पर काटा जाने लगा। लकड़ी की बढ़ती हुई आवश्यकता और वनों के कटाव के लिए निम्नलिखित कारक उत्तरदायी थे-

  1. इंग्लैंड की रॉयल नेवी (शाही नौ-सेना) के लिए जलयान ओक के वृक्षों से बनाए जाते थे। परंतु इंग्लैंड के ओक वन समाप्त होते जा रहे थे और जलयान निर्माण में बाधा पड़ रही थी। अतः भारत के वन संसाधनों का पता लगाया गया और यहां के वृक्ष काट कर लकड़ी इंग्लैंड भेजी जाने लगी।
  2. 1850 के दशक में रेलवे का विस्तार आरंभ हुआ। इससे लकड़ी की आवश्यकता और अधिक बढ़ गई। इसका कारण यह था कि रेल पटरियों को सीधा रखने के लिए सीधे तथा मज़बूत स्लीपर चाहिए थे जो लकड़ी से बनाए जाते थे। फलस्वरूप वनों पर और अधिक बोझ बढ़ गया। 1850 के दशक तक केवल मद्रास प्रेजीडेंसी में स्लीपरों के लिए प्रतिवर्ष 35,000 वृक्ष काटे जाते थे।
  3. अंग्रेज़ी सरकार ने लकड़ी की आपूर्ति बनाये रखने के लिए निजी कंपनियों को वन काटने के ठेके दिये। इन कंपनियों ने वृक्षों को अंधाधुंध काट डाला।

प्रश्न 3.
वैज्ञानिक वानिकी के अंतर्गत वन-प्रबंधन के लिए क्या-क्या पग उठाए गए ?
उत्तर-
वैज्ञानिक वानिकी के अंतर्गत वन प्रबंधन के लिए कई महत्त्वपूर्ण पग उठाए गए-

  1. उन प्राकृतिक वनों को काट दिया गया जिनमें कई प्रकार की प्रजातियों के वृक्ष पाये जाते थे।
  2. काटे गए वनों के स्थान पर बागान व्यवस्था की गई। इसके अंतर्गत सीधी पंक्तियों में एक ही प्रजाति के वृक्ष लगाए गए।
  3. वन अधिकारियों ने वनों का सर्वेक्षण किया और विभिन्न प्रकार के वृक्षों के अधीन क्षेत्र का अनुमान लगाया। उन्होंने वनों के उचित प्रबंध के लिए कार्य योजनाएं भी तैयार की। .
  4. योजना के अनुसार यह निश्चित किया गया कि प्रतिवर्ष कितना वन आवरण काटा जाए। उसके स्थान पर नये वृक्ष लगाने की योजना भी बनाई गई ताकि कुछ वर्षों में नये पेड़ पनप जाएं।

प्रश्न 4.
वनों के बारे में औपनिवेशिक वन अधिकारियों तथा ग्रामीणों के हित परस्पर टकराते थे। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
वनों के संबंध में वन अधिकारियों तथा ग्रामीणों के हित परस्पर टकराते थे। ग्रामीणों को जलाऊ लकड़ी, चारा तथा पत्तियों आदि की आवश्यकता थी। अत: वे ऐसे वन चाहते थे जिनमें विभिन्न प्रजातियों की मिश्रित वनस्पति हो।
इसके विपरीत वन अधिकारी ऐसे वनों के पक्ष में थे जो उनकी जलयान निर्माण तथा रेलवे के प्रसार की आवश्यकताओं को पूरा कर सकें। इसलिए वे कठोर लकड़ी के वृक्ष लगाना चाहते थे जो सीधे और ऊंचे हों। अतः मिश्रित वनों का सफाया करके टीक और साल के वृक्ष लगाए गए।

प्रश्न 5.
वन अधिनियम ने ग्रामीणों अथवा स्थानीय समुदायों के लिए किस प्रकार कठिनाइयां उत्पन्न की ?
उत्तर-
वन अधिनियम से ग्रामीणों की रोजी-रोटी का साधन वन अर्थात् वन्य-उत्पाद ही थे। परंतु वन अधिनियम के बाद उनके द्वारा वनों से लकड़ी काटने, फल तथा जड़ें इकट्ठी करने और वनों में पशु चराने, शिकार एवं मछली पकड़ने पर रोक लगा दी गई। अतः लोग वनों से लकड़ी चोरी करने पर विवश हो गए। यदि वे पकड़े जाते थे, तो मुक्त होने के लिए उन्हें वन-रक्षकों को रिश्वत देनी पड़ती थी। ग्रामीण महिलाओं की चिंता तो और अधिक बढ़ गई। प्रायः पुलिस वाले तथा वन-रक्षक उनसे मुफ़्त भोजन की मांग करते रहते थे और उन्हें डराते-धमकाते रहते थे।

प्रश्न 6.
स्थानांतरी कृषि पर रोक क्यों लगाई गई ? इसका स्थानीय समुदायों पर क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर-
स्थानांतरी कृषि पर मुख्य रूप से तीन कारणों से रोक लगाई गई–

  1. यूरोप के वन-अधिकारियों का विचार था कि इस प्रकार की कृषि वनों के लिए हानिकारक है। उनका विचार था कि जिस भूमि पर छोड़-छोड़ कर कृषि होती रहती है, वहां पर इमारती लकड़ी देने वाले वन नहीं उग सकते।
  2. जब भूमि को साफ़ करने के लिए किसी वन को जलाया जाता था, तो आस-पास अन्य मूल्यवान् वृक्षों को आग लग जाने का भय बना रहता था।
  3. स्थानांतरी कृषि से सरकार के लिए करों की गणना करना कठिन हो रहा था।
    प्रभाव-स्थानांतरी खेती पर रोक लगने से स्थानीय समुदायों को वनों से ज़बरदस्ती बाहर निकाल दिया गया। कुछ लोगों को अपना व्यवसाय बदलना पड़ा और कुछ ने विद्रोह कर दिया।

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प्रश्न 7.
1980 के दशक से वानिकी में क्या नये परिवर्तन आए हैं ?
उत्तर-
1980 के दशक से वानिकी का रूप बदल गया है। अब स्थानीय लोगों ने वनों से लकड़ी इकट्ठी करने के स्थान पर वन संरक्षण को अपना लक्ष्य बना लिया है। सरकार भी जान गई है कि वन संरक्षण के लिए इन लोगों की भागीदारी आवश्यक है। भारत में मिज़ोरम से लेकर केरल तक के घने वन इसलिए सुरक्षित हैं कि स्थानीय लोग इनकी रक्षा करना अपना पवित्र कर्त्तव्य समझते हैं। कुछ गांव अपने वनों की निगरानी स्वयं करते हैं। इसके लिए प्रत्येक परिवार बारी-बारी से पहरा देता है। अतः इन वनों में वन-रक्षकों की कोई भूमिका नहीं रही। अब स्थानीय समुदाय तथा पर्यावरणविद् वन प्रबंधन को कोई भिन्न रूप देने के बारे में सोच रहे हैं।

दीर्घ उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत में वनों का प्रथम इंस्पेक्टर-जनरल कौन था ? वन प्रबंधन के विषय में उसके क्या विचार थे ? इसके लिए उसने क्या किया ?
उत्तर-
भारत में वनों का प्रथम इंस्पेक्टर-जनरल डीट्रिख बेंडीज़ (Dietrich Brandis) था। वह एक जर्मन विशेषज्ञ था। वन प्रबंधन के संबंध में उसके निम्नलिखित विचार थे-

  1. वनों के प्रबंध के लिए एक उचित प्रणाली अपनानी होगी और लोगों को वन-संरक्षण विज्ञान में प्रशिक्षित करना होगा।
  2. इस प्रणाली के अंतर्गत कानूनी प्रतिबंध लगाने होंगे।
  3. वन संसाधनों के संबंध में नियम बनाने होंगे।
  4. वनों को इमारती लकड़ी के उत्पादन के लिए संरक्षित करना होगा। इस उद्देश्य से वनों में वृक्ष काटने तथा पशु चराने को सीमित करना होगा।
  5. जो व्यक्ति नई प्रणाली की परवाह न करते हुए वृक्ष काटता है, उसे दंडित करना होगा।
    अपने विचारों को कार्य रूप देने के लिए बेंडीज़ ने 1864 में ‘भारतीय वन सेवा’ की स्थापना की और 1865 के ‘भारतीय वन अधिनियम’ पारित होने में सहायता पहुंचाई। 1906 में ‘देहरादून में ‘द इंपीरियल फारेस्ट रिसर्च इंस्टीच्यूट’ की स्थापना की गई। यहां वैज्ञानिक वानिकी का अध्ययन कराया जाता था। परंतु बाद में पता चला कि इस अध्ययन में विज्ञान जैसी कोई बात नहीं थी।

प्रश्न 2.
वन्य प्रदेशों अथवा वनों में रहने वाले लोग वन उत्पादों का विभिन्न प्रकार से उपयोग कैसे करते हैं ?
उत्तर-
वन्य प्रदेशों में रहने वाले लोग कंद-मूल-फल, पत्ते आदि वन-उत्पादों का विभिन्ने ज़रूरतों के लिए उपयोग करते हैं।

  1. फल और कंद बहुत पोषक खाद्य हैं, विशेषकर मानसून के दौरान जब फ़सल कट कर घर न आयी हो।
  2. जड़ी-बूटियों का दवाओं के लिए प्रयोग होता है।
  3. लकड़ी का प्रयोग हल जैसे खेती के औज़ार बनाने में किया जाता है।
  4. बांस से बढ़िया बाड़ें बनायी जा सकती हैं। इसका उपयोग छतरियां तथा टोकरियां बनाने के लिए भी किया जा सकता है।
  5. सूखे हुए कुम्हड़े के खोल का प्रयोग पानी की बोतल के रूप में किया जा सकता है।
  6. जंगलों में लगभग सब कुछ उपलब्ध है-
    • पत्तों को आपस में जोड़ कर ‘खाओ-फेंको’ किस्म के पत्तल और दोने बनाए जा सकते हैं।
    • सियादी (Bauhiria vahili) की लताओं से रस्सी बनायी जा सकती है।
    • सेमूर (सूती रेशम) की कांटेदार छाल पर सब्जियां छीली जा सकती है।
    • महुए के पेड़ से खाना पकाने और रोशनी के लिए तेल निकाला जा सकता है।

वन्य समाज तथा बस्तीवाद PSEB 9th Class History Notes

  • वनों का महत्त्व – वन मानव समाज के लिए बहुत ही महत्त्वपूर्ण संसाधन हैं। वनों से हमें इमारती लकड़ी, ईंधन, फल, गोंद, शहद, कागज़ तथा अन्य कई उत्पाद प्राप्त होते हैं। ग्रामीणों के लिए वन आजीविका का महत्त्वपूर्ण साधन हैं।
  • वनोन्मूलन – वनोन्मूलन का अर्थ है-वनों की सफ़ाई। कृषि के विस्तार, रेलवे के विस्तार, जलयान निर्माण आदि कई कार्यों के लिए वनों को बड़े पैमाने पर काटा गया।
  • बागान – ऐसे बड़े-बड़े फार्म जहां एक सीधी पंक्ति में एक ही प्रजाति के वृक्ष लगाए जाते हैं, बागान कहलाते हैं।
  • इमारती लकड़ी के वृक्ष – इमारती लकड़ी मज़बूत तथा कठोर होती है। यह मुख्य साल तथा टीक के वृक्षों से मिलती है।
  • वनों पर नियंत्रण – वनों का महत्त्व ज्ञात होने के बाद औपनिवेशिक शासकों ने वन विभाग की स्थापना की और वन अधिनियम पारित करके वनों पर नियंत्रण कर लिया।
  • वन नियंत्रण के प्रभाव – वनों पर सरकार के नियंत्रण से वनों पर निर्भर रहने वाले आदिवासी कबीलों की रोजी-रोटी छिन गई और उनमें सरकार के विरुद्ध विद्रोह के भाव जाग उठे।
  • स्थानांतरी (झूम) खेती – इस प्रकार की खेती में वनों को साफ़ करके खेत प्राप्त किए जाते हैं। एक-दो वर्ष तक वहां पर कृषि करके उन्हें छोड़ दिया जाता है और किसी अन्य स्थान पर खेत बना लिए जाते हैं। वनों पर सरकारी नियंत्रण के पश्चात् इस प्रकार की कृषि पर रोक लगा दी गई।
  • वैज्ञानिक वानिकी – वन विभाग के नियंत्रण में वृक्ष काटने की वह प्रणली जिसमें पुराने वृक्ष काटे जाते हैं और नए वृक्ष उगाए जाते हैं।
  • बस्तर – बस्तर एक पठार पर स्थित है। वन नियंत्रण से प्रभावित यहां के आदिवासी कबीलों ने अंग्रेज़ी शासन के विरुद्ध विद्रोह किए। इन विद्रोहों का आरंभ ध्रुव कबीले द्वारा हुआ।
  • जावा – जावा इंडोनेशिया का एक प्रदेश है। यहां के डच शासकों ने यहां के वनों का खूब शोषण किया और वहां के स्थानीय लोगों को मज़दूर बनाकर रख दिया। फलस्वरूप उन्होंने विद्रोह कर दिया जिसे दबाने में तीन महीने लग गए।
  • 1855 ई० – – लार्ड डल्हौज़ी ने वनों की सुरक्षा के लिए कानून बनाए। इसकी अधीन मालाबार की पहाड़ियों में सागवान और नीलगिरि की पहाड़ियों में बबूल (कीकर) के वृक्ष लगाए गए।
  • 1864 ई० – वनों की रक्षा संबंधी कानूनों/नियमों की पालना हित भारतीय वन विभाग की स्थापना की गई। इसका मुख्य लक्ष्य व्यापारिक बाग़बानी को प्रोत्साहित करना था।
  • 1865 ई० – भारतीय वन अधिनियम 1865, वनों के प्रबंधन संबंधी कानून बनाने से संबंधित था।
  • 878 ई० – भारतीय वन अधिनियम 1878 इस अधिनियम के अंतर्गत वनों की तीन श्रेणियां बना दी गईं-
    • आरक्षित वन,
    • सुरक्षित वन,
    • ग्रामीण वन।
      इस कानून से जंगलों को निजी संपत्ति से सरकारी संपत्ति बनाने के अधिकार दिए गए और लोगों के जंगलों में जाने व
      उनका प्रयोग करने पर प्रतिबंध लगा दिया गया।
  • 1906 ई० –  इंपीरियल वन अनुसंधान केंद्र, देहरादून की स्थापना की गई।
  • 1927 ई० –  वनों से संबंधित कानूनों को मजबूत करने, जंगली लकड़ी का उत्पादन बढ़ाने, इमारती लकड़ी व अन्य वन्य उपजों पर कर लगाने के उद्देश्य से भारतीय वन अधिनियम 1927 लागू किया गया। इस कानून में उल्लंघन करने वालों को कारावास व भारी जुर्माने का प्रावधान था।