PSEB 8th Class English Vocabulary Synonyms

Punjab State Board PSEB 8th Class English Book Solutions English Vocabulary Synonyms Exercise Questions and Answers, Notes.

PSEB 8th Class English Vocabulary Synonyms

A Synonym is a word with the same meaning (एक सामान अये) as another word; as

Word – Synonym
abode – home
actual – real
allow – permit
add – plus
annual – yearly
arrive – reach
beauty – loveliness
beautiful – pretty
begin – start
big – large
brave – bold
briefa – short
calm – peaceful
centre – middle
clever – intelligent

PSEB 8th Class English Vocabulary Synonyms

close – shut
costly – expensive
corn – grain
damp – wet
daily – everyday
definite – certain
difficult – tough
enemy – foe
example – instance
excellent – wonderful
fear – terror/horror
foolish – stupid/silly
fun – enjoyment
grief – sorrow
happy – glad
hollow – empty
hot – warm
kind – generous
loving – affectiodate
perfect – ideal
quiet – silent
reply – answer
right – correct
small – tiny
smell – scent
soft – tender
taste – flavour
timeless – unending
unitet – cooperate
vacant – empty
wealthy – rich
wide – broad

PSEB 8th Class English Vocabulary One Word Substitution

Punjab State Board PSEB 8th Class English Book Solutions English Vocabulary One Word Substitution Exercise Questions and Answers, Notes.

PSEB 8th Class English Vocabulary One Word Substitution

Group of Words Words
1. one who has become dependent on something Addict
2. one who produces works of art Artist
3. a number of sheep Flock
4. one who writes books Author
5. one who cuts hair Barber
6. a building in which aircraft housed Hanger
7. a building where an audience auditorium
8. one who plays a note in a play or movie sits
9. one who treats all teeth problems Actor
10. one who grows crops Dentist
11. one who works in gold Farmers
12. a period of ten years Goldsmith
13. a performance given by a number of musicians decade
14. one who works in iron Concert
15. one who sells meat Blacksmith
16. one who works with wood Butcher
17. a study of animals Carpenter
18. one who lives at the same time Zoology
19. one who sells medicines Contemporary
20 one who mends shoes Chemist
21. one who settles in another country Cobbler
22. one who treats the sick immigrant
23. person working in the same place Doctor
24. one who sells flowers Colleague
25. a doctor who treats mental illness Florist

PSEB 8th Class English Vocabulary One Word Substitution

PSEB 8th Class English Vocabulary Words as per Dictionary Order

Punjab State Board PSEB 8th Class English Book Solutions English Vocabulary Words as per Dictionary Order Exercise Questions and Answers, Notes.

PSEB 8th Class English Vocabulary Words as per Dictionary Order

यदि English भाषा के शब्दों को अंग्रेज़ी Albhabet (A, B, C ….. Y, Z) के क्रम में लिखा जाए तो शब्दों का Dictionary order या Alphabetical Order कहा जाता है। Dictionary में कोई शब्द ढूंढ़ने के लिए हमारे लिए इस क्रम को जानना बहुत ज़रूरी है। वैसे भी शब्दों के किसी समूह को जब Dictionary Order में लिखा जाता है, तो उसमें से किसी भी शब्द को ढूंढ़ना आसान हो जाता है।

PSEB 8th Class English Vocabulary Words as per Dictionary Order

Dictionary Order में लिखने का तरीका-किसी दिए गए शब्द समूह को Dictionary Order में लिखने के लिए निम्नलिखित विधि अपनाएं:
1. सबसे पहले शब्दों के पहले letter (अक्षर) पर ध्यान दें। Alphabet में पहले आने वाले अक्षर से शुरू होने वाला शब्द सबसे पहले आयेगा। जैसे-पहले A, फिर B …..
2. यदि दो या दो से अधिक शब्दों का letter एक जैसा हो तो शब्द के दूसरे letter को follow करें।
3. हो सकता है किन्हीं दो शब्दों के पहले दो अक्षर एक जैसे हों। ऐसे में तीसरे अक्षर (letter) के अनुसार शब्दों को क्रम-बद्ध किया जाएगा।

इसी विधि का अनुसरण करते हुए आगे बढ़ते जाएं, जब तक कि पूरा शब्द-समूह क्रमबद्ध न हो जाए।

Worked Out Examples

Write the given words as per dictionary order:
Question 1.
Apple, Orange, Banana, Mango, Grapes.
Answer:
Apple, Banana, Grapes, Mango, Orange.

Question 2.
Tomato, Potato, Carrot, Radish, Onion.
Answer:
Carrot, Onion, Potato, Radish, Tomato.

Question 3.
Active, Absent, Addition, Aeroplane, Almond.
Answer: Absent, Active, Addition, Aeroplane, Almond.

PSEB 8th Class English Vocabulary Words as per Dictionary Order

Question 4.
January, June, July, April, August.
Answer:
April, August, January, July, June.

Question 5.
Black, Brown, Birthday, Blood, Beautiful.
Answer:
Beautiful, Birthday, Black, Blood, Brown.

Question 6.
Earth, Essay, Father, Farmer, Brother.
Answer:
Brother, Earth, Essay, Father, Farmer.

Question 7.
Watch, Which, Small, Smell, Bitch.
Answer:
Bitch, Small, Smell, Watch, Which.

Question 8.
School, Office, Post-office, Soldier, Knife.
Answer:
Knife, Office, Post-office, School, Soldier.

Question 9.
Barber, Author, Cobbler, Actor, Dancer.
Answer:
Actor, Author, Barber, Cobbler, Dancer.

Question 10.
Bear, Horse, Tiger, Lion, Lamb.
Answer:
Bear, Horse, Lamb, Lion, Tiger.

PSEB 8th Class English Vocabulary Words as per Dictionary Order

Exercise for Practice

Arrange the following group of words in Alphabetical/Dictionary Order:
1. Teacher, Artist, Student, Tailor, Gardener.
2. Bird, Book, Cycle, Circle, Circus.
3. Music, Monitor, May, Marker, March.
4. Agra, Delhi, Dehradun, Capital, Child.
5. Table, Toy, Chair, Friend, Tree.
6. Mouse, Magician, Rabbit, Manager, Prince.
7. King, Kite, Zebra, Zoo, Shirt
8. Grass, Green, Leaves, Pitcher, Picture.
9. Morning, Evening, Night, Afternoon, Dawn.
10. Coffee, Indian, Inkpot, Insect, Mountain.

PSEB 8th Class Hindi Vyakaran क्रिया

Punjab State Board PSEB 8th Class Hindi Book Solutions Hindi Grammar Kriya क्रिया Exercise Questions and Answers, Notes.

PSEB 8th Class Hindi Grammar क्रिया

प्रश्न 1.
क्रिया की परिभाषा लिखकर कर्म के आधार पर क्रिया के भेद लिखो।
अथवा
क्रिया की परिभाषा सोदाहरण दें।
अथवा
क्रिया किसे कहते हैं ? कर्म के आधार पर क्रिया के कितने भेद हैं ?
उत्तर:
जिस शब्द के द्वारा किसी कार्य के करने या होने का बोध होता है, उसे क्रिया कहते हैं; जैसे-
(i) भगवान् की पूजा करो।
(ii) कृष्ण राधा को देखता है,
(iii) किसान बैल को हाँकता है,
(iv) पानी बहता है।
इन वाक्यों में पूजा करना, देखना, हाँकना तथा बहना क्रियाएँ हैं कि क्योंकि इनसे कार्य करने या होने का बोध होता है।

कर्म के अनुसार क्रिया के दो भेद हैं-
1. अकर्मक :
जिस क्रिया के व्यापार का फल कर्ता पर ही पड़े (कर्म न हो) अकर्मक क्रिया कहलाती है। जैसे-कृष्ण रोता है। मोहन भागता है।

2. सकर्मक :
जिस क्रिया के व्यापार का फल कर्ता को छोड़ कर कर्म पर ही पड़े, उसे सकर्मक क्रिया कहते हैं; जैसे-श्याम पुस्तक पढ़ता है। मोहन पेंसिल देता है।

सकर्मक क्रिया के भेद :
(i) एककर्मक क्रिया-जिन क्रियाओं का एक कर्म होता है, वे एककर्मक क्रियाएँ कहलाती हैं; जैसे-शोभा फूल तोड़ती है। सतीश पुस्तक पढ़ता है। ‘फूल’ तथा ‘पुस्तक’ इन वाक्यों में कर्म हैं।
(ii) द्विकर्मक क्रियाएँ-कुछ सकर्मक क्रियाएँ ऐसी होती हैं जिनमें दो कर्म आ जाते है, उन्हें द्विकर्मक क्रियाएँ कहते हैं; जैसे-राम मुझे पुस्तक देता है। ‘मुझे’ तथा ‘पुस्तक’ दोनों ही वाक्य में कर्म हैं। अतः ‘उक्त वाक्य में’ द्विकमर्क क्रिया है।

PSEB 8th Class Hindi Vyakaran क्रिया

प्रश्न 2.
रचना की दृष्टि से क्रिया के भेद लिखो।
उत्तर:
रचना की दृष्टि से क्रिया के निम्नलिखित भेद हैं
1. सामान्य क्रिया : जहाँ केवल एक क्रिया का प्रयोग किया जाए वह सामान्य क्रिया कहलाती है; जैसे-अनिल आया। सोहन ने पढ़ा। मैंने खाया।
2. संयुक्त क्रिया : दो या दो से अधिक धातुओं से मिलकर बनने वाली क्रियाएँ संयुक्त क्रियाएँ कहलाती हैं; जैसे-लिखना चाहता है, पढ़ सकता है, जा सकता है।
3. नामधातु क्रिया : संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण से बनने वाली क्रियाओं को नाम धातु क्रिया कहते हैं; जैसे-हथियाना, बतियाना, लतियाना आदि।
4. प्रेरणार्थक क्रिया : जो क्रिया या कर्ता स्वयं क्रिया न करके किसी अन्य को क्रिया करने की प्रेरणा देता है, उस क्रिया को प्रेरणार्थक क्रिया कहते हैं; जैसे-सुनाना, लिखाना, पढ़ाना, कराना।

प्रेरणार्थक क्रियाएँ
मूल धातु
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5. पूर्वकालिक क्रिया : जब कोई क्रिया मुख्य क्रिया से पूर्व ही समाप्त हो जाए तो उसे पूर्वकालिक क्रिया कहते हैं; जैसे-सीता खाना खा कर स्कूल जाएगी। यहाँ पर ‘जाएगी’ मुख्य क्रिया है और ‘खा कर’ पूर्वकालिक क्रिया है।

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

1. निम्नलिखित क्रियाओं में से सकर्मक और अकर्मक क्रियाएँ छाँट कर लिखो

प्रश्न 1.
तोड़ना, रोना, मरना, मारना, उबालना, लड़ना, गिरना।
उत्तर:
अकर्मक – तोड़ना, मारना, उबालना।
सकर्मक – रोना, मरना, लड़ना, गिरना।

2. नीचे लिखे वाक्यों में जो क्रियाएँ हैं, उन्हें छाँट कर लिखो

प्रश्न 1.
(क) राम ने पत्र लिखा।
(ख) मोहन अपनी जगह से उठ बैठा।
(ग) रमा पुस्तक पढ़ रही है।
(घ) वह देखो, चन्द्रमा निकल आया।
उत्तर:
(क) लिखा
(ख) उठ बैठा
(ग) पढ़ रही है
(घ) देखो, निकल आया।

3. निम्नलिखित शब्दों के नाम धातु रूप को वाक्यों में प्रयोग करें-

हाथ, बात, दुःख, आप, शर्म।
उत्तर:
1. हाथ = हथियाना – उसने मेरी पुस्तक हथिया ली।
2. बात = बतियाना – शिमला आने से पूर्व मुझे बतिया देना।
3. दुःख = दुखाना – कभी किसी का दिल नहीं दुखाना चाहिए।
4. आप = अपनाना – सदा सद्गुणों को अपनाना चाहिए।
5. शर्म = शर्माना – पेट भर कर खाओ, शर्माओ मत।

PSEB 8th Class Hindi Vyakaran क्रिया

बहुविकल्पीय प्रश्न निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर सही विकल्प चुनकर लिखें

प्रश्न 1.
क्रिया के कितने भेद हैं ?
(क) एक
(ख) दो
(ग) तीन
(घ) चार।
उत्तर:
दो।

प्रश्न 2.
क्रियापद चुन कर लिखें
(क) राम
(ख) ने
(ग) पत्र
(घ) लिखा।
उत्तर:
लिखा।

प्रश्न 3.
श्याम पुस्तक पढ़ता है-में कौन-सी क्रिया है ?
(क) अकर्मक
(ख) सकर्मक
(ग) द्विकर्मक
(घ) प्रेरणार्थक।
उत्तर:
सकर्मक।

PSEB 8th Class Hindi Vyakaran क्रिया

प्रश्न 4.
पूजा सोती है-में कौन-सी क्रिया है ?
(क) अकर्मक
(ख) सकर्मक
(ग) द्विकर्मक
(घ) प्रेरणार्थक।
उत्तर:
अकर्मक।

प्रश्न 5.
पूनम ने आद्या को हलवा दिया-में कौन-सी क्रिया है ?
(क) सकर्मक
(ख) प्रेरणार्थक
(ग) द्विकर्मक
(घ) अकर्मक।
उत्तर:
द्विकर्मक।

PSEB 8th Class Hindi Vyakaran विशेषण

Punjab State Board PSEB 8th Class Hindi Book Solutions Hindi Grammar Visheshan विशेषण Exercise Questions and Answers, Notes.

PSEB 8th Class Hindi Grammar विशेषण

प्रश्न 1.
विशेषण किसे कहते हैं ? विशेषण के कितने भेद हैं ?
उत्तर:
जो शब्द संज्ञा या सर्वनाम की विशेषता प्रकट करे, विशेषण कहलाता है; जैसे-वीर पुरुष। इसमें वीर शब्द पुरुष की विशेषता प्रकट करता है। इसलिए यह विशेषण है। विशेषण के चार भेद हैं
(1) गुणवाचक
(2) परिमाणवाचक
(3) संख्यावाचक
(4) निर्देशक या सार्वनामिक।
1. गुणवाचक : जो शब्द किसी पदार्थ के गुण, दोष, आकार, रंग, अवस्था, समय आदि का बोध कराए, उसे ‘गुणवाचक विशेषण’ कहते हैं; जैसे-भला मनुष्य, काला घोड़ा, निचला कमरा।

2. परिमाणवाचक :
जो शब्द किसी संज्ञा या सर्वनाम की माप या तोल सम्बन्धी विशेषता को प्रकट करें, उन्हें ‘परिमाणवाचक विशेषण’ कहते हैं; जैसे-दो मीटर कपड़ा, चार किलो मिठाई। इसके दो भेद हैं
(i) निश्चित परिमाणवाचक-जिस विशेषण से संज्ञा या सर्वनाम के निश्चित परिमाण का बोध हो; जैसे-दो क्विटल, चार लिटर।
(ii) अनिश्चित परिमाणवाचक-जिस विशेषण से संज्ञा या सर्वनाम के निश्चित परिमाण का बोध न हो; जैसे-कुछ दूध, थोड़ा घी, बहुत मिठाई।

3. संख्यावाचक :
जो शब्द किसी संज्ञा या सर्वनाम की संख्या (गिनती) का ज्ञान कराए, उसे ‘संख्यावाचक विशेषण’ कहते हैं; जैसे-एक पुस्तक, दस लड़के। इसके भी दो भेद निम्नलिखित हैं
(i) निश्चित संख्यावाचक-जो निश्चित संख्या का ज्ञान कराए; जैसे-पाँच लड़कियाँ, दुगुना बोझ।
(ii) अनिश्चित संख्यावाचक-जो निश्चित संख्या का बोध न कराए; जैसे-सभी छात्र, कुछ लोग, कई दिन।

4. निर्देशन या सार्वनामिक :
जो सर्वनाम संज्ञा के साथ उसके संकेत या निर्देश के रूप में आता है, वह विशेषण बन जाता है; जैसे-यह घोड़ा, वह पुस्तक। निर्देशक विशेषण को निर्देशवाचक, संकेतवाचक, सांकेतिक और सार्वनामिक विशेषण भी कहा जाता है।

PSEB 8th Class Hindi Vyakaran विशेषण

प्रश्न 2.
विशेषण और विशेष्य किसे कहते हैं ?
उत्तर:
विशेषण जिस शब्द की विशेषता बताता है उसे विशेष्य कहते हैं। विशेषण संज्ञा या सर्वनाम की विशेषता प्रकट करने वाले शब्द को कहते हैं।
जैसे-मुर्ख लड़का’ में मुर्ख विशेषण है तथा लड़का विशेष्य।

प्रश्न 3.
सर्वनाम और सार्वनामिक विशेषण में क्या अंतर है ? उदाहरण देकर समझाइए।
उत्तर-संज्ञा के स्थान पर प्रयुक्त होने वाले शब्द ‘सर्वनाम’ कहलाते हैं परन्तु यदि वाक्य में वे किसी संज्ञा से पहले प्रयुक्त होकर उसकी ओर संकेत करते हैं तो वे सर्वनाम न रह कर विशेषण बन जाते हैं; जैसे-यह चुप बैठा है। वह रोटी खाता है। (यह, वहसर्वनाम)। ये कपड़े मेरे हैं। वह पुस्तक किसकी है ? (ये, यह–सार्वनामिक विशेषण)।

प्रश्न 4.
विशेषणों की तुलना से क्या अभिप्राय है ? तुलना की दृष्टि से विशेषण की कितनी अवस्थाएँ होती हैं ?
उत्तर-संज्ञाओं के गुण-दोषों की न्यूनता-अधिकता का बोध कराए जाने को विशेषण की तुलना कहा जाता है। तुलना के विचार से विशेषण की तीन अवस्थाएँ हैं
(1) मूलावस्था
(2) उत्तरावस्था
(3) उत्तमावस्था।

1. मूलावस्था : इसमें विशेष्य की किसी से तुलना नहीं की जाती; जैसे–मोहन सुन्दर
2. उत्तरावस्था : इसमें दो पदार्थों की तुलना की जाती है और एक की अधिकता या न्यूनता दिखाई जाती है; जैसे-राम श्याम से अधिक चतुर है।
3. उत्तमावस्था : इसमें एक की तुलना दो से अधिक वस्तुओं से की जाती है और इसे सबसे ऊँचा या सबसे नीचा दर्शाया जाता है; जैसे-राम अपनी श्रेणी में सबसे चतुर है।

आवश्यक जानकारी :
विशेषण की पहली अवस्था (मूलावस्था) में विशेषण शब्द के साथ कोई प्रत्यय नहीं लगता जबकि उत्तरावस्था में ‘तर’ और उत्तमावस्था में ‘तम’ प्रत्यय लगते हैं। कुछ उदाहरण-
मूलावस्था – उत्तरावस्था – उत्तमावस्था
योग्य – योग्यतर – योग्यतम
प्रिय – प्रियतर – प्रियतम
अधिक – अधिकतर – अधिकतम
निकट – निकटतर – निकटतम

PSEB 8th Class Hindi Vyakaran विशेषण

प्रश्न 5.
परिमाण वाचक विशेषण किसे कहते हैं और ये कितने प्रकार के हैं ?
उत्तर:
परिमाण वाचक विशेषण-जो शब्द किसी संज्ञा या सर्वनाम की मापतोल सम्बन्धी विशेषता को प्रकट करे उन्हें परिमाण वाचक विशेषण कहते हैं; जैसे-दो मीटर कपड़ा, चार किलो मिठाई। इसके दो भेद हैं
(1) निश्चित परिमाण वाचक।
(2) अनिश्चित परिमाण वाचक।

प्रश्न 6.
सार्वनामिक विशेषण किसे कहते हैं ? उदाहरण देकर लिखिए।
उत्तर:
सार्वनामिक विशेषण-जो सर्वनाम संज्ञा के साथ उसके संकेत या निर्देश के रूप में आता है, वह विशेषण बन जाता है; जैसे-यह घोड़ा, वह पुस्तक। इनमें ‘यह’ और ‘वह’ सार्वनामिक विशेषण है।

अति लघुत्तरात्मक प्रश्न

1. निम्नलिखित वाक्यों में से सार्वनामिक विशेषण छाँटिए

प्रश्न 1.
(क) वे विद्यार्थी लगातार परिश्रम करते हैं।
(ख) यह भारत का सर्वप्रिय फल है।
(ग) वह बच्चा खेल रहा है।
उत्तर:
(क) वे
(घ) यह
(ग) वह।

2. नीचे लिखे वाक्यों में से विशेषण चुनिए

प्रश्न 1.
(1) काला घोड़ा सबसे आगे निकल गया।
(2) मनोहर के घर सफ़ेद गाय है।
(3) वीर पुरुष किसी से नहीं डरता।
(4) पर्वत से भारी चट्टान नीचे जा गिरी।
(5) हमेशा बुरे लोगों से दूर रहो।
(6) हमें अब पता चला कि हममें क्या कमी है ?
(7) वह विकराल डाकू सामने आ खड़ा हुआ।
(8) उसका भाई बहुत निपुण है।
उत्तर:
(1) काला
(2) सफ़ेद
(3) वीर
(4) भारी
(5) बुरे
(6) कमी
(7) विकराल
(8) निपुण।

PSEB 8th Class Hindi Vyakaran विशेषण

3. नीचे लिखे सन्दर्भ में से विशेषण छांटो

प्रश्न 1.
सहसा उन्हें किसी की कठोर आवाज़ सुनाई दी-“ठहरो”। वृद्ध ने रुक कर और पीछे मुड़कर देखा तो जंगल की झाड़ियाँ चीरता हुआ वह विकराल डाकू सामने आ खड़ा हुआ। ऊँचा कद, काला शरीर, विकराल चेहरा, लाल आँखें, उठे हुए केश, बड़ी-बड़ी मूंछे और हाथ में तेज़ कटार। निश्चय ही वह मनुष्य नहीं दैत्य दिखाई देता था।
उत्तर:
कठोर, विकराल, ऊँचा, काला, लाल, बड़ी-बड़ी तेज़।

4. नीचे दिए गए कोष्ठक में से उपयुक्त विशेषण शब्द चुनकर रिक्त स्थानों में भरो

प्रश्न 1.
(उत्साही, क्रूर, हज़ारों, धर्म के रक्षक, विरक्त, निर्भीक) ।
मालाधारी………….. व्यक्ति भी तलवार उठा लेता है। खालसा धर्म के प्रवर्तक तथा ………… गुरु गोबिन्द सिंह जी ने बन्दा बैरागी को तत्कालीन………….. मुग़ल सरकार से …………. बेगुनाहों के खून का बदला लेने के लिए आशीर्वाद देकर भेजा। वह बचपन से ही …………. और …………… प्रकृति का था।
उत्तर:
विरक्त, धर्म के रक्षक, क्रूर, हज़ारों, उत्साही, निर्भीक।

5. निम्नलिखित शब्दों में से संज्ञा, सर्वनाम तथा विशेषण अलग-अलग करें

प्रश्न 1.
कर्तव्य, हम, अधिकार, वे, वृद्ध, अचल।
उत्तर:
संज्ञा – कर्त्तव्य, अधिकार, वृद्ध।
सर्वनाम – हम, वे।
विशेषण – अचल।

6. नीचे लिखे गद्यांश में से संज्ञा, सर्वनाम तथा विशेषण शब्द चुनो

प्रश्न 1.
महापुरुषों के जीवन के आलोक में जब हम अपने आपको पढ़ते हैं तब हमें पता चलता है कि हम में क्या कमी है, हमारी कमजोरियाँ क्या हैं, हमारा जीवन इतना आलोकहीन क्यों है ? हम इस सत्य से परिचित होते हैं कि हमारे अन्दर भी उतनी ही शक्ति छिपी है, जितनी कि महापुरुषों के पास थी।
उत्तर:
संज्ञाएँ-महापुरुषों, शक्ति, जीवन, सत्य। सर्वनाम-हम, अपने। विशेषण-कमी, आलोकहीन।

PSEB 8th Class Hindi Vyakaran विशेषण

बहुविकल्पीय प्रश्न निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर सही विकल्प चुनकर लिखें

प्रश्न 1.
विशेषण के कितने भेद हैं ?
(क) एक
(ख) दो
(ग) तीन
(घ) चार।
उत्तर:
चार।

प्रश्न 2.
विशेषण छाँट कर लिखें
(क) काला
(ख) घोड़ा
(ग) भाग
(घ) गया।
उत्तर:
काला।

प्रश्न 3.
‘इतिहास’ शब्द का विशेषण क्या है ?
(क) इतिहासिक
(ख) ऐतिहासिक
(ग) इतिहासता
(घ) ऐतिहासिकता।
उत्तर:
ऐतिहासिक।

PSEB 8th Class Hindi Vyakaran विशेषण

प्रश्न 4.
‘साहसी’ का विशेषण नहीं है
(क) साहसिक
(ख) साहस
उत्तर:
साहस।

प्रश्न 5.
चार किलो दूध लाना में रेखांकित विशेषण है
(क) संख्यावाचक
(ख) गुणवाचक
(ग) परिमाणवाचक
(घ) सार्वनाम वाचक।
उत्तर:
परिमाणवाचक।

PSEB 8th Class Hindi Vyakaran सर्वनाम

Punjab State Board PSEB 8th Class Hindi Book Solutions Hindi Grammar Sarvanam सर्वनाम Exercise Questions and Answers, Notes.

PSEB 8th Class Hindi Grammar सर्वनाम

प्रश्न 1.
सर्वनाम किसे कहते हैं ? सर्वनाम के कितने भेद हैं ? भेदों के नाम लिखो।
अथवा
सर्वनाम की परिभाषा लिखो और उसके भेद भी बताओ।
उत्तर:
वाक्य में संज्ञा के स्थान पर प्रयुक्त होने वाले विकारी शब्दों को सर्वनाम कहते हैं; जैसे-सोहन, मोहन के साथ उनके घर गया। इस वाक्य में ‘उसके’ सर्वनाम मोहन के स्थान पर प्रयुक्त हुआ है। सर्वनाम के छः भेद हैं

1. पुरुष वाचक – जिससे वक्ता (बोलने वाला), श्रोता (सुनने वाला) और जिसके सम्बन्ध में चर्चा हो रही है उसका ज्ञान प्राप्त हो।
जैसे- अन्य पुरुष – वह, वे
मध्यम पुरुष – तू, तुम
उत्तम पुरुष – मैं, हम

2. निश्चय वाचक – इस सर्वनाम से वक्ता के समीप या दूर की वस्तु का निश्चय होता है; जैसे-यह, ये, वह, वे।

3. अनिश्चय वाचक – इस सर्वनाम से किसी पुरुष एवं वस्तु का निश्चित ज्ञान नहीं होता है; जैसे-कोई, कुछ।

4. संबंध वाचक – इस सर्वनाम से दो संज्ञाओं में परस्पर संबंध का ज्ञान होता है; जैसे-जो, सो। जो करेगा, सो भरेगा।

5. प्रश्न वाचक – इस सर्वनाम का प्रयोग प्रश्न पूछने और कुछ जानने के लिए होता है; जैसे-कौन, क्या। आप कौन हैं ? मैं क्या करूंगा ?

6. निज वाचक – जिन वाक्यों में सर्वनाम शब्दों का प्रयोग कर्ता स्वयं अपने लिए करता है, उसे निज वाचक सर्वनाम कहते हैं; जैसे-मैं अपने विद्यालय गया। यह अपनी पुत्री है। मोहन ने अपना पाठ याद किया।
यहाँ पर ‘अपने’, ‘अपनी’ और ‘अपना’ शब्द निज वाचक सर्वनाम के रूप में प्रयोग किए गए हैं। इसलिए ये शब्द निज वाचक सर्वनाम कहलाएंगे।

PSEB 8th Class Hindi Vyakaran सर्वनाम

प्रश्न 2.
निजवाचक सर्वनाम किसे कहते हैं ? उदाहरण सहित लिखिए।
उत्तर:
निजवाचक सर्वनाम-जिन वाक्यों में सर्वनाम शब्दों का प्रयोग कर्ता स्वयं अपने लिए करता है, उसे निजवाचक सर्वनाम कहते हैं; जैसे-मैं अपने विद्यालय गया। उसने अपना पाठ याद कर लिया है।

प्रश्न 3.
पुरुष वाचक सर्वनाम किसे कहते हैं ? और ये कितने प्रकार के हैं ? उदाहरण देकर स्पष्ट करें।
उत्तर:
पुरुष वाचक सर्वनाम-जिन सर्वनाम शब्दों के द्वारा वक्ता, श्रोता और जिसके सम्बन्ध में चर्चा हो रही है, उसका ज्ञान प्राप्त हो, वह पुरुषवाचक सर्वनाम कहलाता है। यह तीन प्रकार के हैं-
(1) उत्तम पुरुष : जैसे-मैं, तुम।
(2) मध्यम पुरुष : जैसे-तू, तुम।
(3) अन्य पुरुष : जैसे, वह, वे आदि।

बहुविकल्पीय प्रश्न सही शब्द चुन कर उत्तर लिखें

प्रश्न 1.
सर्वमान के कितने भेद हैं ?
(क) दो
(ख) चार
(ग) छः
(घ) आठ।
उत्तर:
छः।

प्रश्न 2.
‘यह’ कौन सा सर्वनाम है ?
(क) निजवाचक
(ख) निश्चयवाचक
(ग) संबंधवाचक
(घ) प्रश्नवाचक।
उत्तर:
निश्चयवाचक।

PSEB 8th Class Hindi Vyakaran सर्वनाम

प्रश्न 3.
संबंधवाचक सर्वनाम का वाचक है
(क) जो
(ख) कौन
(ग) कोई
(घ) यह।
उत्तर:
जो।

प्रश्न 4.
सर्वनाम छाँट कर लिखें
(क) हम
(ख) कल
(ग) घूमने
(घ) गए।
उत्तर:
हम।

अति लघुत्तरात्मक प्रश्न

1. नीचे लिखे वाक्यों में से सर्वनाम चुनिए

(क) मैं खेलने जा रहा था।
(ख) हम कल घूमने गए।
(ग) मैं स्कूल जाता हूँ।
(घ) हरीश ने कहा कि वह आज स्कूल नहीं जाएगा।
(ङ) सोहन मोहन के साथ उसके घर को गया।
(च) पूनम तथा उसकी माता अमृतसर गए हैं।
(छ) माता जी ने पुत्रों से कहा, “तुम यहीं बैठे रहो।”
(ज) मुख्याध्यापक जी ने कहा, “हमें सत्य पर डटे रहना चाहिए।”
(झ) मैं छोटा बच्चा थोड़े ही हूँ।
(ञ) हम कल दिल्ली गए।
उत्तर:
(क) मैं
(ख) हम
(ग) मैं
(घ) वह
(ङ) उसके
(च) उसकी
(छ) तुम
(ज) हमें
(झ) मैं
(ञ) हम।

PSEB 8th Class Hindi Vyakaran सर्वनाम

2. नीचे के रिक्त स्थानों में सर्वनाम की पूर्ति करें

(क) हरि ने …………माँ से कहा कि …………. आज व्रत रमूंगा।
(ख) मोहन ने …………… मित्र से कहा कि ………….. आज घर पर रहेगा।
(ग) दुष्ट ………… दुष्टता नहीं छोड़ता।
(घ) पिता ने …………. पुत्र से कहा बेटा ………….. सच बोलना चाहिए।
(ङ) सेठ ने …………… नौकर को डाँटकर कहा …………… सीधे हो जाओ।
उत्तर:
(क) अपनी, मैं
(ख) अपने, वह
(ग) अपनी
(घ) अपने, तुम्हें
(ङ) अपने, तुम।

PSEB 8th Class Hindi Vyakaran संज्ञा के विकार (लिंग, वचन, करक)

Punjab State Board PSEB 8th Class Hindi Book Solutions Hindi Grammar Sangya ke Vikar (ling, vachan, karak) संज्ञा के विकार (लिंग, वचन, करक) Exercise Questions and Answers, Notes.

PSEB 8th Class Hindi Grammar संज्ञा के विकार (लिंग, वचन, करक)

प्रश्न 1.
संज्ञा शब्दों में विकार किनके कारण होता है ?
उत्तर:
लिंग, वचन और कारक के कारण संज्ञा शब्दों में विकार होता है। इनको विकारक तत्व भी कहते हैं।

(अ) लिंग

प्रश्न 1.
लिंग किसे कहते हैं ? उसके भेद बताओ।
उत्तर:
संज्ञा के जिस रूप से स्त्री या पुरुष जाति का बोध हो उसे लिंग कहते हैं। हिन्दी में दो लिंग हैं-
(i) पुल्लिग
(ii) स्त्रीलिंग।
1. पुल्लिग : संज्ञा के जिस रूप से पुरुष जाति का बोध हो, उसे पुल्लिग कहते हैं; जैसे-लड़का, शेर, धोबी।
2. स्त्रीलिंग : संज्ञा के जिस रूप से स्त्री जाति का बोध हो, उसे स्त्रीलिंग कहते हैं; जैसे-लड़की, शेरनी, धोबिन।
आवश्यक निर्देश-लिंग परिवर्तन और उसके नियम स्मरण तालिका (Memory Chart) में देखें।

PSEB 8th Class Hindi Vyakaran संज्ञा के विकार (लिंग, वचन, करक)

(आ) वचन

प्रश्न 1.
वचन किसे कहते हैं और वचन कितने प्रकार के होते हैं ?
उत्तर:
संज्ञा के जिस रूप से किसी वस्तु के एक अथवा अनेक होने का बोध हो, उसे वचन कहते हैं।
हिन्दी में दो वचन हैं-
(i) एकवचन
(ii) बहुवचन।

1. एकवचन : संज्ञा का जो रूप एक ही वस्तु का बोध कराए, उसे एकवचन कहते हैं; जैसे-लड़का, घोड़ा, बहन आदि।
2. बहवचन : संज्ञा का जो रूप एक से अधिक वस्तुओं का बोध कराए, उसे बहुवचन कहा जाता है; जैसे-लड़कियाँ, घोड़े, बहनें आदि।
आवश्यक निर्देश : वचन परिवर्तन सम्बन्धी नियम स्मरण तालिका (Memory Chart) में विस्तार से देखिए।

(इ) कारक

प्रश्न 1.
कारक किसे कहते हैं ? इसके कितने भेद हैं ? उदाहरण सहित लिखें।
उत्तर:
संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से उस वाक्य का दूसरे शब्दों से सम्बन्ध जाना जाता है उस रूप को कारक कहते हैं; जैसे-मोहन ने पुस्तक को मेज़ पर रख दिया।
विभक्ति : कारक प्रकट करने के लिए संज्ञा अथवा सर्वनाम के साथ ‘ने’, ‘को’, ‘से’ आदि जो चिह्न लगाए जाते हैं, उन्हें विभक्ति कहा जाता है। हिन्दी में आठ कारक हैं। इनके नाम और विभक्ति चिह्न इस प्रकार हैं
कारक – विभक्ति चिह्न
(1) कर्ता – ने
(2) कर्म – को
(3) करण – से, के द्वारा, के साथ
(4) सम्प्रदान – को, के लिए, वास्ते
(5) अपादान – से (पृथक्त्व बोधक)
(6) सम्बन्ध – का, के, की
(7) अधिकरण – में, पर
(8) सम्बोधन – हे, अरे, रे।
1. कर्ता : संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से क्रिया के करने वाले का बोध होता है, उसे कर्ता कारक कहा जाता है; जैसे-(i) मोहन पुस्तक पढ़ता है। (ii) सोहन ने दूध पीया।
2. कर्म : संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप पर क्रिया के व्यापार का फल पड़ता हो, उसे कर्म कारक कहते हैं; जैसे-श्याम पाठशाला जाता है।
3. करण : संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से कर्ता के काम करने के साधन का बोध हो उसे करण कारक कहा जाता है; जैसे-राम ने बाण से बाली को मारा।
4. सम्प्रदान : संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप के लिए क्रिया की जाए, उसे सम्प्रदान कारक कहा जाता है; जैसे-अध्यापक विद्यार्थियों के लिए पुस्तकें लाया।
5. अपादान : संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से पृथक्कता, आरम्भ, भिन्नता आदि का बोध होता हो, उसे अपादान कारक कहा जाता है; जैसे-वृक्ष से पत्ते गिरते हैं।
6. सम्बन्ध : संज्ञा या सर्वनाम का जो रूप एक वस्तु का दूसरी वस्तु के साथ सम्बन्ध प्रकट करे, उसे सम्बन्ध कारक कहते हैं; जैसे-यह मोहन का घर है।
7. अधिकरण : संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से क्रिया के आधार का बोध हो उसे अधिकरण कारक कहते हैं; जैसे-वीर सैनिक युद्ध भूमि में मारा गया।
8. सम्बोधन : संज्ञा का जो रूप चेतावनी या किसी को पुकारने का सूचक हो; जैसेहे ईश्वर ! हमारी रक्षा करो। .

PSEB 8th Class Hindi Vyakaran संज्ञा के विकार (लिंग, वचन, करक)

प्रश्न 2.
कर्ता कारक की परिभाषा उदाहरण सहित लिखिए।
उत्तर:
संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से क्रिया के करने वाले का बोध होता है, उसे कर्ता कारक कहा जाता है; जैसे-मोहन पुस्तक पढ़ता है-इस वाक्य में कर्ता कारक है।

प्रश्न 3.
नीचे लिखे कारकों में क्या भेद हैं ? स्पष्ट कीजिए
(क) कर्ता और कर्म।
(ख) करण और अपादान में अन्तर।
(ग) संबंध और सम्प्रदान।
उत्तर:
(क) कर्ता और कर्म कर्ता :

कर्ता कर्म
(1) कर्ता कारक में संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से क्रिया को करने वाले का बोध कराया जैसे-देव ने कविता पढ़ी। (1) कर्म कारक में किसी वस्तु या व्यक्ति पर क्रिया के व्यापार का फल पड़ता है; जैसे-अध्यापक छात्र को पढ़ाता है|
(2) कर्ता कारक का सामान्य विभक्ति चिह्न ‘ने’ होता है। (2) कर्म कारक का विभक्ति चिह्न ‘को’ होता है।

(ख) करण और अपादान :

करण अपादान
(1) करण कारक क्रिया के साधन का बोध कराने वाले संज्ञा के रूप को कहते हैं; जैसे-सुनील कलम से लिखता है। (1) अपादान कारक संज्ञा के किसी रूप से किसी वस्तु के दूसरी वस्तु से अलग होने का बोध कराता है; जैसे-वृक्ष से पत्ता गिरता है।
(2) इसके विभक्ति चिह्न ‘से’, ‘के साथ’, ‘के द्वारा’ आदि होते हैं। (2) इसका विभक्ति चिह्न ‘से’ है।

(ग) संबंध और सम्प्रदान :

संबंध सम्प्रदान
(1) संबंध कारक में संज्ञा के किसी रूप का दूसरी वस्तु से संबंध सूचित किया जाता है; जैसेराम चरित मानस तुलसी कृत महाकाव्य है। (1) सम्प्रदान कारक में किसी वस्तु के लिए कोई क्रिया की जाती है; जैसे-वह स्नान के लिए नदी पर जाता है।
(2) इसके विभक्ति चिह्न ‘के’, ‘की’, ‘रा’, ‘रे’, ‘री’, ‘ना’, ‘ने’, ‘नी’ आदि हैं। (2) इसके विभक्ति चिहन ‘का’, ‘को’ तथा ‘के लिए’ हैं।
(3) संबंध कारक का रूप, लिंग और वचन आदि के कारण बदल जाता है। (3) सम्प्रदान कारक का रूप, लिंग और वचन आदि के कारण नहीं बदलता है।

PSEB 8th Class Hindi Vyakaran संज्ञा के विकार (लिंग, वचन, करक)

प्रश्न 4.
सम्प्रदान और कर्म कारक में क्या अंतर है ? उदाहरण देकर स्पष्ट करें।
उत्तर:
सम्प्रदान कारक-सम्प्रदान कारक में किसी वस्तु के लिए’ क्रिया की जाती है; जैसे-वह पढ़ने के लिए विद्यालय गया। इसका विभक्ति चिह्न ‘के लिए’ है।
कर्म कारक : कर्म कारक में किसी व्यक्ति या वस्तु पर क्रिया के व्यापार का फल पड़ता है; जैसे-पुलिस ने चोर को पकड़ा। इसका विभक्ति चिहन ‘को’ है।

प्रश्न 5.
करण और अपादान कारक में अंतर बताइए। उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
करण और अपादान कारक में अंतर :
करण कारक : करण कारक क्रिया के साधन का बोध कराने वाले संज्ञा के रूप को कहते हैं; जैसे-वह साइकिल से स्कूल गया। सोहन कलम से लिखता है। इसका विभक्ति चिह्न ‘से’ है लेकिन इसका अर्थ के साथ या के द्वारा होता है।
अपादान कारक : अपादान कारक संज्ञा के किसी रूप से किसी वस्तु के दूसरी वस्तु से अलग होने का बोध कराता है; जैसे-वृक्षों से पत्ते गिरते हैं। इसका विभक्ति चिह्न ‘से’ है लेकिन इसका अर्थ वस्तु से अलग होने का भाव दर्शाता है।

प्रश्न 6.
अपादान कारक किसे कहते हैं ? उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
संज्ञा का सर्वनाम के जिस रूप से पृथक्कता, आरम्भ, भिन्नता आदि का बोध होता हो, उसे अपादान कारक कहा जाता है। जैसे-वृक्ष से पत्ते गिरते हैं-इस वाक्य में से अपादान कारक है।

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

1. प्रत्येक का सही उत्तर छाँट कर लिखिए

प्रश्न (क)
नदी का बहुवचन क्या है ?
(क) नदियाँ
(ख) नदीयाँ
(ग) नदियों।
उत्तर:
(क) नदियाँ

PSEB 8th Class Hindi Vyakaran संज्ञा के विकार (लिंग, वचन, करक)

प्रश्न (ख)
नीति का बहुवचन क्या है ?
(क) नीतीयाँ
(ख) नीतियों
(ग) नीतियाँ।
उत्तर:
(ख) नीतियाँ

प्रश्न (ग)
खिड़की का बहुवचन क्या है ?
(क) खिड़कियों
(ख) खिड़कीयाँ
(ग) खिड़कियाँ।
उत्तर:
(ग) खिड़कियाँ।

2. निम्नलिखित के स्त्रीवाचक रूप बनाओ और उस स्त्रीवाचक रूप को बहुवचन में बदलो-

शब्द – स्त्रीवाचक – बहुवचन
कवि – …………….. – ………….
नर – …………….. – ………….
चूहा – …………….. – ………….
वर – …………….. – ………….
बेटा – …………….. – ………….
लड़का – …………….. – ………….
पति – …………….. – ………….
छात्र – …………….. – ………….
उत्तर:
शब्द – स्त्रीवाचक – बहुवचन
(i) कवि – कवयित्री – कवयित्रियाँ
(ii) नर – नारी – नारियाँ
(ii) चूहा – चुहिया – चुहियाँ
(iv) वर – वधू – वधुएँ
(v) बेटा – बेटी – बेटियाँ
(vi) लड़का – लड़की – लड़कियाँ
(vii) पति – पत्नी – पत्नियाँ
(viii) छात्र – छात्रा – छात्राएँ

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3. नीचे लिखे वाक्यों को कारक चिहनों से भरो

(क) उस ……………अपनी बेटी ऋतु के लिए पुस्तकें खरीदीं।
(ख) पेड़………….. पत्ता गिरता है।
(ग) दूध ………… सेहत अच्छी रहती है।
(घ) अध्यापक कुर्सी………………. बैठता है।
(ङ) तुम यह कोट लेकर किस ………… देना चाहते हो ? ।
उत्तर:
(क) ने
(ख) से
(ग) से
(घ) पर
(ङ) को।

4. निम्नलिखित वाक्यों में से कारक छाँटिये तथा कारक का नाम भी लिखिए

(i) मनुष्य धन के लिए देश विदेश भटकता है।
(ii) चोर चलती गाड़ी से कूद गया।
(iii) राम ने मोहन को पुस्तक दी।
(iv) वह घोड़े से गिर गया।
(v) वृक्ष से पत्ते गिरते हैं।
(vi) हे वीरो ! देश की रक्षा करो।
(vii) प्रकाश से अन्धकार नष्ट होता है।
(viii) रोगियों की सेवा करो।
(ix) समुद्र में लहरें उठती हैं।
(x) पीड़ितों को दान दो।
(xi) मोहन का ज्वर उतर गया।
(xii) भिखारी को भिक्षा दे दो।
(xiii) भिखारी को भगा दो।
(xiv) बच्चे छत पर खेल रहे हैं।
उत्तर:
(i) धन के लिए-सम्प्रदान कारक।
(ii) गाड़ी से-अपादान कारक।।
(iii) राम ने-कर्ता कारक, मोहन को-कर्म कारक।
(iv) घोड़े से-अपादान कारक।
(v) वृक्ष से-अपादान कारक।
(vi) हे वीरो-संबोधन कारक, देश की-संबंध कारक।
(vii) प्रकाश से-करण कारक।
(viii) रोगियों की-संबंध कारक।
(ix) समुद्र में-अधिकरण कारक।
(x) पीड़ितों को-कर्म कारक।
(xi) मोहन का संबंध कारक।
(xii) भिखारी को-कर्मकारक।
(xiii) भिखारी को-कर्मकारक।
(xiv) छत पर-अधिकरण।

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बहुविकल्पीय प्रश्न निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर सही विकल्प चुनकर लिखें

प्रश्न 1.
संज्ञा के कितने भेद हैं ?
(क) एक
(ख) दो
(ग) तीन
(घ) चार।
उत्तर:
तीन।

प्रश्न 2.
लिंग कितने होते हैं ?
(क) एक
(ख) दो
(ग) तीन
(घ) चार।
उत्तर:
दो।

प्रश्न 3.
वचन कितने होते हैं ?
(क) एक
(ख) दो
(ग) तीन
(घ) चार।
उत्तर:
दो।

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प्रश्न 4.
कारक के कितने भेद हैं ?
(क) दो
(ख) चार
(ग) सात
(घ) आठ।
उत्तर:
आठ।

प्रश्न 5.
वृक्ष से पत्ते गिरते हैं, रेखांकित में कारक है
(क) संप्रदान
(ख) अपादान
(ग) करण
(घ) कर्म।
उत्तर:
अपादान।

प्रश्न 6.
‘नदी’ का बहुवचन है
(क) नदियाँ
(ख) नदीयाँ
(ग) नदियों
(घ) नदीयों
उत्तर:
नदियाँ।

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प्रश्न 7.
‘शेर’ का स्त्रीलिंग है
(क) शेरि
(ख) शेरी
(ग) शेरिनी
(घ) शेरनी।
उत्तर:
शेरनी।

प्रश्न 8.
संज्ञा शब्द चुनें
(क) घोड़ा
(ख) बहुत
(ग) तेज़
(घ) दौड़ा।
उत्तर;
घोड़ा।

PSEB 8th Class Hindi रचना निबंध लेखन

Punjab State Board PSEB 8th Class Hindi Book Solutions Hindi Rachana Nibandh Lekhan निबंध लेखन Exercise Questions and Answers, Notes.

PSEB 8th Class Hindi रचना निबंध लेखन

1. श्री गुरु नानक देव जी

सिक्खों के पहले गुरु नानक देव जी का जन्म सन् 1469 ई० में लाहौर के निकट स्थित ‘राय भोए की तलवंडी (वर्तमान में पाकिस्तान स्थित ननकाना साहब)’ में हुआ। इनकी माता का नाम तृप्ता देवी जी तथा पिता का नाम मेहता कालू जी था। बचपन से आप आत्मचिंतन में लीन रहा करते थे और आपका अधिकतर समय साधु संतों की सेवा में बीतता था। गुरु नानक देव जी का विवाह बटाला निवासी मूलचन्द की सुपुत्री सुलक्खणी जी के साथ हुआ जिनसे इन्हें दो पुत्र-श्रीचन्द और लखमी दास प्राप्त हुए।

जब गुरु नानक देव जी 20 वर्ष के हुए तब वह जिला कपूरथला के पास सुल्तानपुर लोधी नामक स्थान में अपनी बहन नानकी के पास आ गए। वहाँ इनके बहनोई ने इन्हें वहाँ के गवर्नर दौलत खाँ के यहाँ मोदीखाने में नौकरी दिलवा दी! यहीं गुरु नानक देव जी के तोलने में तेरह-तेरह की जगह ‘तेरा-तेरा’ रटने की कथा भी विख्यात है। यहीं उनके बेईं में प्रवेश करने और तीन दिन तक अदृश्य रहने की घटना घटी। वास्तव में उन दिनों गुरु जी ‘सच्चखण्ड’ में पहुँच गए थे। यहीं गुरु जी ने ‘न को हिन्दू न को मुसलमान’ की घोषणा की।

सन् 1500 से 1521 तक गुरु जी ने देश-विदेश की चार यात्राएँ की जो गुरु जी की चार उदासियों के नाम से प्रसिद्ध हैं। इन यात्राओं में गुरु जी ने हिन्दुओं और मुसलमानों के तीर्थ स्थानों की यात्रा भी की। इन्होंने ईश्वर के निराकार स्वरूप की उपासना की। जीवन के अन्तिम भाग सन् 1521 से 1539 गुरु जी करतारपुर में रहे। वहाँ उन्होंने अनेक गोष्ठियों का आयोजन किया। इनमें सिद्ध गोष्ठी विशेष उल्लेखनीय है। सन् 1539 ई० में गुरु गद्दी भाई लहना जी, जो बाद में गुरु अंगद देव जी कहलाए, को सौंप कर ईश्वरीय ज्योति में विलीन हो गए।

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2. गुरु तेग़ बहादुर जी

गुरु तेग़ बहादुर जी ने धर्म की रक्षा के लिए जो बलिदान दिया, उसके कारण उन्हें हिन्द की चादर या धर्म की चादर कहा जाता है। गुरु तेग़ बहादुर जी का जन्म 1 अप्रैल सन् 1621 ई० को अमृतसर में छठे गुरु हरगोबिन्द जी के घर हुआ। अमृतसर में यह पवित्र स्थान ‘गुरु के महल’ के नाम से जाना जाता है। आपका बचपन का नाम त्यागमल था। सन् 1635 ई० में 14 वर्षीय त्यागमल ने सिक्खों और मुग़ल सेना के बीच करतारपुर में हुए युद्ध में तलवार के ऐसे जौहर दिखाए कि प्रसन्न होकर उनका नाम तलवार के धनी अर्थात् तेग़ बहादुर रख दिया। गुरु तेग़ बहादुर जी के पिता सैनिक गतिविधियों का संचालन करने के लिए कीरतपुर आ गए परन्तु गुरु तेग़ बहादुर जी अपने ननिहाल बाबा बकाला में ही रहे और प्रभुचिंतन में अपना समय बिताने लगे। सन् 1645 में इनके पिता ने अपने पौत्र हरराय को गुरु गद्दी सौंप दी किन्तु गुरु तेग़ बहादुर जी ने कोई आपत्ति नहीं की। बाबा बकाला में आप कोई बीस वर्ष तक रहे। 30 मार्च, सन् 1664 में गुरु हरकिशन जी के ज्योति जोत समाने के बाद उन्हीं के आदेशानुसार गुरु तेग़ बहादुर जी अगस्त 1664 ई० में गुरु गद्दी पर आसीन हुए।

गुरु तेग बहादुर जी ने धर्म प्रचार के लिए किसी सुरक्षित स्थान के लिए बिलासपुर के राजा से माखोवाल गाँव से कुछ ज़मीन खरीदी। वहाँ अपनी माता के नाम पर ‘चक्क नानकी’ नामक नगर बसाया, जो बाद में आनन्दपुर साहब के नाम से विख्यात हुआ। इसी दौरान औरंगजेब के हिन्दुओं पर आत्याचार बढ़ रहे थे। उन्हीं अत्याचारों से बचने के लिए गुरु जी के पास कुछ कश्मीरी पण्डित आए और गुरु जी से अपनी सुरक्षा की प्रार्थना की।

गुरु जी ने कहा कि ‘स्थिति किसी महापुरुष का बलिदान चाहती है।’ तभी पास बैठे उनके नौ वर्षीय पुत्र गोबिन्द राय बोल पड़े, ‘पिता जी आपसे बढ़कर बलिदान के योग्य महापुरुष और कौन हो सकता है ?’ गुरु जी अपने पुत्र की बात को समझ गए और धर्म की रक्षा के लिए दिल्ली पहुँच गए। उन्हें बन्दी बना लिया गया और इस्लाम धर्म स्वीकार करने के लिए कहा गया। गुरु जी अपने धर्म पर अडिग रहे। 11 नवम्बर, सन् 1675 ई० को गुरु जी ने चाँदनी चौक में शहीदी प्राप्त की। वहीं आजकल गुरुद्वारा शीशगंज स्थित है।

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3. गुरु गोबिन्द सिंह जी

महान योद्धा, कुशल प्रशासक, प्रबुद्ध धर्म गुरु और योग्य राष्ट्र नायक गुरु गोबिन्द सिंह जी का जन्म 22 दिसम्बर, सन् 1666 ई० को पटना (बिहार) में सिक्खों के नौवें गुरु तेग़ बहादुर जी के घर हुआ। छ: वर्ष की अवस्था तक गुरु जी पटना में ही रहे फिर आप पिता द्वारा बसाए नगर आनन्दपुर साहब में आ गए। आनन्दपुर में ही एक दिन कुछ कश्मीरी पण्डितों ने आकर गुरु तेग़ बहादुर जी से अपनी सुरक्षा की प्रार्थना की। गुरु जी ने कहा, ‘स्थिति किसी महापुरुष का बलिदान चाहती है।’ पास बैठे नौ वर्षीय बालक गोबिन्दराय ने कहा, ‘पिता जी आपसे बढ़कर बलिदान योग्य महापुरुष कौन हो सकता है।’ पुत्र की बात समझ कर गुरु जी ने दिल्ली के चाँदनी चौक में 11 नवम्बर, सन् 1675 ई० में शहीदी प्राप्त की।

नवम् गुरु की शहीदी के बाद नौ वर्ष की अवस्था में गोबिन्द राय जी गुरु गद्दी पर बैठे। गद्दी पर बैठते ही गुरु जी ने अपनी शक्ति बढ़ानी शुरू कर दी जिससे अनेक राजाओं और मुगल सरदारों को ईर्ष्या होने लगी। इसी ईर्ष्या के फलस्वरूप गुरु जी को पांवटा से छ: मील दूर भंगाणी नामक स्थान पर कहलूर के राजा भीम चन्द के साथ युद्ध लड़ना पड़ा। उस युद्ध में गुरु जी को पहली जीत प्राप्त हुई। इसके बाद गुरु जी ने पहाड़ी राजाओं की ओर से लड़ते हुए नादौन में आलिफ खाँ को पराजित किया। इस युद्ध से पहाड़ी राजाओं को गुरु जी की शक्ति का पता चल गया।

सन् 1699 की वैशाखी को गुरु जी ने खालसा पंथ की स्थापना की। उन्होंने आनन्दपुर साहिब में पाँच प्यारों को अमृत छकाया और उनसे स्वयं अमृत छका। इस अवसर पर गुरु जी ने अपना नाम गोबिन्द राय से गोबिन्द सिंह कर लिया और अपने सब शिष्यों को अपने नाम के साथ सिंह लगाने का आदेश दिया। गुरु जी की शक्ति को बढ़ता देख औरंगजेब ने उसे समाप्त करने का निश्चय कर लिया। अप्रैल 1704 को मुगल सेना ने आनन्दपुर साहब को घेर लिया। यह घेरा दिसम्बर 1704 तक जारी रहा। मुग़ल सेना ने उन्हें भरोसा दिलाया कि आनन्दपुर साहब को छोड़ने पर उन्हें कोई हानि नहीं पहुँचाई जाएगी। किन्तु सरसा नदी को पार करते समय मुग़ल सेना ने विश्वासघात करते हुए गुरु जी की सेना पर आक्रमण कर दिया। अफरातफरी में गुरु जी की माता और दोनों छोटे साहिबजादे उनसे बिछुड़ गए। गुरु जी किसी तरह चमकौर की गढ़ी पहुँचे। चमकौर के युद्ध में सिक्खों ने मुग़ल सेना का डटकर मुकाबला किया। इस युद्ध में गुरु जी के दोनों बड़े साहिबजादे अजीत सिंह और जुझार सिंह शहीद हो गए। उधर गुरु जी के दोनों छोटे साहिबजादों जोरावार सिंह और फतेह सिंह को सरहिन्द के नवाब ने जीवित दीवार में चुनवाकर शहीद कर दिया। अपने चारों साहिबजादों की कुर्बानी से गुरु जी विचलित नहीं हुए।

अपने अन्तिम दिनों में गुरु जी नांदेड़ (महाराष्ट्र) में रहने लगे। वहीं एक दिन गुल खाँ नामक पठान ने उन्हें छुरा घोंप दिया। गुरु जी का घाव कई दिनों बाद भरा। अभी वे पूरी तरह स्वस्थ नहीं हुए थे कि एक कठोर धनुष पर चिल्ला चढ़ाते हुए उनका घाव खुल गया और 7 अक्तूबर, सन् 1708 को गुरु जी ज्योति जोत समा गए।

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4. महात्मा गाँधी

देश के महान् नेता महात्मा गाँधी का पूरा नाम मोहन दास कर्मचन्द गाँधी था। इनका जन्म 2 अक्तूबर, सन् 1869 को गुजरात के पोरबन्दर नामक स्थान पर हुआ। इनके पिता पोरबन्दर, राजकोट और बीकानेर राज्यों के दीवान पद पर रहे। इनकी माता पुतलीबाई बड़ी धर्मनिष्ठ स्वभाव वाली स्त्री थी। उन्हीं की शिक्षा का बाल मोहनदास पर यथेष्ठ प्रभाव पड़ा।

सन् 1887 में इन्होंने मैट्रिक की परीक्षा पास की। सन् 1888 में आप इंग्लैण्ड में बैरिस्ट्री पढ़ने के लिए चले गए। इंग्लैण्ड से वापस आकर आप ने पोरबन्दर में वकालत शुरू कर दी। कुछ समय पश्चात् इन्हें एक मुकद्दमे के सिलसिले में दक्षिणी अफ्रीका जाना पड़ा। वहां आप ने भारतीयों के साथ होने वाले दुर्व्यवहार से आहत होकर आपने एक आन्दोलन चलाया जिसके कारण वहाँ भारतीयों के सम्मान की रक्षा होने लगी। भारत लौटकर गाँधी जी ने देश की राजनीति में भाग लेना शुरू कर दिया। सन् 1914 के प्रथम महा युद्ध में आपने अंग्रेज़ों की इस शर्त पर सहायता की कि युद्ध जीतने की सूरत में अंग्रेज़ भारत को आजाद कर देंगे किन्तु अंग्रेजों ने विश्वासघात करते हुए रोल्ट एक्ट और जलियांवाला बाग के नरसंहार की घटना पुरस्कार रूप में दी।

सन् 1920 में गाँधी जी ने असहयोग आन्दोलन शुरू किया जिसमें हिंसा आ जाने पर सन् 1922 में इन्होंने यह आन्दोलन वापस ले लिया। सन् 1930 में गाँधी जी ने नमक आन्दोलन शुरू किया। सन् 1942 में गाँधी जी ने देश को भारत छोड़ो का नारा दिया। इसी दौरान देश की जनता सरदार भगत सिंह और चन्द्रशेखर जैसे क्रान्तिकारियों के बलिदान से जागरूक हो चुकी थी। नेता जी सुभाष चन्द्र बोस की आजाद हिन्द फौज के बढ़ते आक्रमण से डरकर अंग्रेजों ने 15 अगस्त, सन् 1947 को भारत को एक स्वाधीन देश घोषित कर दिया किन्तु जाते-जाते अंग्रेज़ देश का बंटवारा कर गए जिसके परिणामस्वरूप देश में हिन्दू मुस्लिम दंगे भड़क उठे। दंगों को शान्त करने के लिए गाँधी जी ने मरण व्रत रखा। 30 जनवरी, सन् 1948 की शाम 6 बजे नात्थूराम गोडसे नामक युवक ने गाँधी जी की हत्या कर दी। इस तरह देश से एक युग पुरुष उठ गया।

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5. पंजाब केसरी लाला लाजपत राय

पंजाब केसरी लाला लाजपत राय जी का जन्म 28 जनवरी, सन् 1865 ई० में जिला फिरोज़पुर के एक गाँव ढुडिके में हुआ। सन् 1880 में मैट्रिक की परीक्षा पास करने के बाद आपने मुख्तारी की परीक्षा पास की और हिसार में वकालत शुरू कर दी। सन् 1892 में आप लाहौर चले गए। वहाँ उन्होंने कई वर्षों तक बिना वेतन लिए डी० ए० वी० कॉलेज में अध्यापन कार्य किया। आपने अपने गाँव दुडिके में अपने पिता के नाम पर राधा कृष्ण हाई स्कूल खोला।

लाला जी का राजनीति में प्रवेश संयोग से हुआ। उस समय सर सैय्यद अहमद खां मुसलमानों को भड़काने वाले और राष्ट्र विरोधी लेख लिख रहे थे। लाला जी पहले व्यक्ति थे जिसने इसके विरुद्ध आवाज़ उठाई। इसी के परिणामस्वरूप सन् 1888 में कांग्रेस के इलाहाबाद अधिवेशन में लाला जी का जोरदार स्वागत हुआ। सन् 1893 के कांग्रेस अधिवेशन में भी लाला जी ने ओजपूर्ण भाषण दिए और कांग्रेस को अपनी कार्रवाई अंग्रेज़ी में न कर हिन्दुस्तानी में करने पर विवश कर दिया। लाला जी सन् 1902, सन् 1908 और सन् 1913 में इंग्लैंड गए और वहाँ के लोगों को अपने भाषणों और लेखों द्वारा भारत की वास्तविक स्थिति से अवगत करवाया। सन् 1914 में प्रथम महायुद्ध छिड़ने पर लाला जी अमेरिका चले गए। वहाँ उन्होंने ‘इंडियन होम लीग’ की स्थापना की और ‘यंग इंडिया’ नामक साप्ताहिक पत्र भी निकाला।

देश में वापस आने पर सन् 1921 में लाला जी को कांग्रेस के विशेष अधिवेशन का अध्यक्ष चुना गया। महात्मा गाँधी के असहयोग आन्दोलन में भाग लेने पर इन्हें जेल भी जाना पड़ा।
30 अक्तूबर, सन् 1928 को साइमन कमीशन लाहौर पहुँचा। सरदार भगत सिंह की नौजवान भारत सभा ने इसका विरोध किया। इस विरोध प्रदर्शन की अगुवाई लाला जी ही कर रहे थे। जुलूस पर लाठीचार्ज किया गया। लाहौर के डी० एस० पी० सांडर्स ने लाला जी पर ताबड़तोड़ लाठियाँ बरसाईं। जिसके परिणामस्वरूप 17 नवम्बर, सन् 1928 की सुबह लाला जी का देहान्त हो गया। बाद में सरदार भगत सिंह ने सांडर्स की हत्या कर लाला जी की मौत का बदला लिया।

PSEB 8th Class Hindi रचना निबंध लेखन

6. शहीदे आज़म सरदार भगत सिंह

देश की स्वतन्त्रता के लिए शहीद होने वालों में सरदार भगत सिंह का नाम प्रमुख है। सरदार भगत सिंह का जन्म 28 सितम्बर, सन् 1907 को जिला लायलपुर (पाकिस्तान) के गाँव बंगा में हुआ। आपका पैतृक गाँव नवांशहर के निकट खटकड़ कलां है। आपकी आरम्भिक शिक्षा गाँव में ही हुई। फिर आपने लाहौर के डी०ए०वी० स्कूल से मैट्रिक पास की। कॉलेज में दाखिला लेते ही आप क्रान्तिकारियों के सम्पर्क में आ गए, जिसके परिणामस्वरूप आपने पढ़ाई छोड़ दी। देश भक्ति और क्रान्ति के संस्कार भगत सिंह को विरासत में मिले थे। आपके पिता किशन सिंह और चाचा अजीत सिंह इन्कलाबी गतिविधियों में भाग लेते रहे थे।

सरदार भगत सिंह महात्मा गाँधी की अहिंसावादी नीति को पसन्द नहीं करते थे। क्योंकि उनका विचार था अहिंसात्मक आन्दोलन से देश को आजादी नहीं मिल सकती। इसी उद्देश्य से उन्होंने सन् 1926 में ‘नौजवान भारत सभा’ का गठन किया। उनके जोश और उत्साह को देखकर महात्मा गाँधी को भी मानना पड़ा कि जिस वीरता और साहस का ये नौजवान प्रदर्शन कर रहे थे उसकी उपेक्षा नहीं की जा सकती। सरदार भगत सिंह और क्रान्तिकारी साथियों का समर्थन कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं पं० जवाहर लाल नेहरू और सुभाष चन्द्र बोस ने भी किया।

9 सितम्बर, सन् 1928 में दिल्ली के फिरोजशाह कोटला मैदान में क्रान्तिकारी युवकों की एक बैठक हुई, जिसमें हिन्दुस्तान समाजवादी प्रजातन्त्र सेना का गठन किया गया। सरदार भगत सिंह इसके सचिव और चन्द्रशेखर आजाद को कमाण्डर बनाया गया। 30 अक्तूबर, सन् 1928 को साइमन कमीशन लाहौर पहुँचा। नौजवान भारत सभा ने उसके विरोध में प्रदर्शन किया। इस प्रदर्शन में जुलूस की अगुवाई कर रहे लाला लाजपत राय घायल हो गए। 17 नवम्बर, सन् 1928 को उनका निधन हो गया। सरदार भगत सिंह ने लाला जी पर लाठियाँ बरसाने वाले डी० एस० पी० सांडर्स की हत्या कर अपने प्रिय नेता की हत्या का बदला ले लिया। गिरफ्तारी से बचने के लिए आप भेस बदलकर रातों रात लाहौर से निकलकर बंगाल चले गए।

ब्रिटिश सरकार की शोषण नीतियों के प्रति विरोध प्रकट करने के लिए सरदार भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने 8 अप्रैल, सन् 1929 को केन्द्रीय विधानसभा में एक धमाके वाला खाली बम फेंका। वे वहाँ से भागे नहीं बल्कि इन्कबाल जिन्दाबाद के नारे लगाते रहे। सरदार भगत सिंह जानते थे कि अंग्रेजी सरकार इस जुर्म में उन्हें फाँसी की सज़ा देगी। वे अपनी कुर्बानी से देश में जागृति लाना चाहते थे।

17 अक्तूबर, सन् 1930 को सरदार भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फाँसी की सज़ा सुना दी गई। सज़ा सुनाए जाने के अवसर पर सरदार भगत सिंह और उनके साथियों ने ‘इन्कलाब ज़िन्दाबाद’ के खूब नारे लगाए। 24 मार्च, सन् 1931 को सरदार भगत सिंह और उनके साथियों को फाँसी दी जानी थी लेकिन अंग्रेज़ी सरकार ने जनता के रोष से डरकर 23 मार्च, सन् 1931 को ही लाहौर जेल में फाँसी दे दी और उनके शव सतलुज किनारे हुसैनीवाला नामक स्थान पर जला दिए।

सरदार भगत सिंह ने शहीदी पाकर भारतीय जनता में एक नया जोश भर दिया। आखिर 15 अगस्त, सन् 1947 को हमारा देश आज़ाद हुआ। भारतवासी सदा उनके ऋणी रहेंगे।

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7. स्वामी विवेकानन्द

कलकत्ता हाईकोर्ट में सफल वकील श्री विश्वनाथ दत्त के घर 12 जनवरी, सन् 1863 को स्वामी विवेकानन्द का जन्म हुआ। उनका बचपन का नाम नरेन्द्र दत्त था। इनकी माता भुवनेश्वरी देवी इन्हें स्नेह से केवल रामायण व महाभारत की कहानियाँ सुनाकर साहसी, बहादुर और निडर बनाने की प्रेरणा देती थी। नरेन्द्र उन्हें अपना प्रथम गुरु मानते थे। उन्हीं से नरेन्द्र ने अंग्रेज़ी और बंगला भाषाएँ सीखीं। परिणामतः नरेन्द्र में प्रारम्भ से ही देश-प्रेम, त्याग, तपस्या व ध्यान के संस्कार फलने फूलने लगे। स्नातक की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात् इनके पिता इनका विवाह कर देना चाहते थे किन्तु नियति को कुछ और ही मंजूर था। नरेन्द्र परमहंस राम कृष्ण के सम्पर्क में आए और उनकी असाधारण आध्यात्मिक व धार्मिक उपलब्धियों से प्रभावित होकर उनके शिष्य बन गए और सन् 1883 में उन्होंने संन्यास ले लिया और नरेन्द्र दत्त से स्वामी विवेकानन्द हो गए। 16 अगस्त, सन् 1886 परमहंस राम कृष्ण का देहान्त हो जाने पर उन्होंने अपने साथी संन्यासियों और भक्तजनों ने मिलकर रामकृष्ण मिशन की स्थापना की। इस संस्थान ने देश और विदेश में अनेक प्रशंसनीय और अभूतपूर्ण कार्य किये हैं।

उन्नीसवीं शताब्दी के अन्त में कलकत्ता में प्लेग का भयंकर रोग फैल गया। स्वामी जी ने अनेक रोगियों को मौत के मुँह से बचाया। उनकी सेवा की और बंगाल से प्लायन करने से रोका। सेवा कार्य में धन की कमी आने पर उन्होंने अपना बैलूर मठ बेचने का निर्णय किया। यह सुनकर बहुत से धनवान लोगों ने उन्हें धन दिया जिससे सेवा कार्य बिना किसी बाधा के चलता रहा।

11 सितम्बर, सन् 1893 को अमरीका के शिकागो शहर में स्वामी जी ने विश्व धर्म सम्मेलन की धर्म संसद् में जो ओजस्वी, ज्ञानपूर्ण और मौलिक भाषण दिया उससे प्रभावित होकर लाखों अमरीकन उनके भक्त और शिष्य बन गए। उनके प्रवचनों से अमरीका में धूम मच गई। स्वामी जी लगभग ढाई वर्षों तक अमरीका में रहे और वहाँ भारतीय संस्कृति, अध्यात्म व वेदान्त का प्रचार-प्रसार करते रहे। भारत लौटने पर उनका भव्य स्वागत किया गया।

सारे देश ने उन्हें सिर आँखों पर बैठाया। किन्तु 4 जुलाई, सन् 1902 को इस धर्म वीर, कर्म सूर्य और ज्ञान समुद्र का मात्र 39 वर्ष की अवस्था में निधन हो गया। स्वामी जी का यह सन्देश हमें सदा प्रेरणा देता रहेगा। “जिस समय तुम भयभीत होते हो, उसी समय तुम दुर्बल होते हो। भय ही जगत में सब अनर्थ का मूल है। सबसे पहले हमारे नवयुवक बलवान होने चाहिए, धर्म बाद में आवेगा मेरे तरुण मित्रो निडर और बलवान बनो।”

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8. सतगुरु राम सिंह जी

नामधारी सिक्ख समुदाय के संस्थापक सतगुरु राम सिंह जी का जन्म 3 फरवरी, सन् 1816 ई० में जिला लुधियाना के एक गाँव राइयाँ में बाबा जस्सा सिंह जी के घर हुआ। छः वर्ष की छोटी सी आयु में आपका विवाह कर दिया गया। युवावस्था में आप महाराजा रणजीत सिंह के पुत्र नौनिहाल सिंह की फौज में भर्ती हो गए। कुछ समय बाद नौकरी छोड़कर श्री भैणी साहब में आकर प्रभु सिमरन और समाज सेवा में लग गए। साथ ही देश को आजाद करवाने के लिए यत्न करने लगे। 12 अप्रैल, सन् 1857 ई० को वैशाखी के पावन दिन आपने पाँच शिष्यों को अमृतपान कराकर नामधारी सिक्ख समुदाय की नींव रखी। गुरु जी ने लोगों में आत्म सम्मान जगाने, भक्ति और वीरता पैदा करने तथा सामाजिक कुरीतियों को दूर करने का प्रचार शुरू किया। गुरु जी ने देश में कई जगह प्रचार केन्द्र स्थापित किए और प्रत्येक केन्द्र को सूबे की संज्ञा दी। गुरु जी के उपदेशों से प्रभावित होकर हज़ारों लोग नामधारी बन गए। अंग्रेज़ी शासन के विरुद्ध कूकें (हुंकार) मारने के कारण इतिहास में नामधारी सिक्ख कूका नाम से प्रसिद्ध हो गए।

नामधारी ईश्वर को एक मानते हैं। गुरवाणी का पाठ, पाँच ककारों का धारण करना, सफेद रंग के कपड़े पहनना, सफेद रंग की ऊन के 108 मनकों की माला धारण करना इनके मुख्य धार्मिक सिद्धान्त हैं।

सत् गुरु राम सिंह जी ने अनेक सामाजिक बुराइयों का विरोध करते हुए जन साधारण को जागरूक किया। इनमें बाल विवाह, कन्या वध, गौवध, पुरोहितवाद, मूर्ति पूजा, माँस एवं नशीले पदार्थों के सेवन का विरोध प्रमुख थीं। गुरु जी ने दहेज प्रथा का विरोध करते हुए मात्र सवा रुपए में सामूहिक अंतर्जातीय विवाह की प्रथा आरम्भ की।

नामधारी समुदाय ने राष्ट्रीय भावना से ओत-प्रोत राजनीतिक गतिविधियों में भी सक्रिय भाग लिया। सतगुरु राम सिंह जी ने भारत को आजाद कराने के उद्देश्य से असहयोग व स्वदेशी आन्दोलन आरम्भ किया। इसी आन्दोलन का महात्मा गाँधी ने सन् 1920 में प्रयोग किया। गुरु जी ने अपनी अलग डाक व्यवस्था के प्रबन्ध कर लिए। उन्होंने अंग्रेज़ी अदालतों और स्कूलों का बहिष्कार कर न्याय और शिक्षा के अपने प्रबन्ध किये। अंग्रेज़ों को लगने लगा कि गुरु जी ने एक समानान्तर सरकार बना ली है। नामधारी सिक्खों ने अंग्रेजों द्वारा स्थापित गौवध के लिए बनाये जाने वाले बूचड़खानों का डटकर विरोध किया। उन्होंने ऐसे बूचड़खानों पर हमला करके अंग्रेजों को बता दिया कि भारतीय अपने धर्म में किसी का हस्तक्षेप सहन नहीं कर सकते।

अंग्रेज़ों से विरोध करने के कारण सन् 1871 में रायकोट, अमृतसर और लुधियाना में 9 नामधारी सिक्खों को फाँसी दी और सन् 1872 में मालेरकोटला के खुले मैदान में 65 नामधारियों को खड़े करके तोपों से उड़ाकर शहीद कर दिया। नामधारियों के आन्दोलन को सरकार विरुद्ध घोषित करके गुरु जी को गिरफ्तार करने रंगून (तत्कालीन बर्मा) भेज दिया गया जहाँ सन् 1885 में गुरु जी ने इस नश्वर शरीर को त्यागा।

सत् गुरु राम सिंह जी द्वारा चलाया नामधारी समुदाय आज भी भैणी साहब से सादा, पवित्र और आडम्बर रहित जीवन का प्रचार कर रहा है।

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9. बाबा साहब अम्बेदकर

बाबा साहब अम्बेदकर का जन्म 14 अप्रैल, सन् 1891 को मध्य प्रदेश में इन्दौर के निकट मऊ-छावनी नामक स्थान पर हुआ। आपके पिता श्री राम जी राव ने आपका नाम भीम राव रखा। आपने सोलह वर्ष की अवस्था में मैट्रिक की परीक्षा पास कर ली। स्कूल में ही एक अध्यापक ने इनके नाम के साथ अम्बेदकर शब्द जोड़ दिया। और तब से यह भीम राव अम्बेदकर के नाम से जाने जाने लगे।

सन् 1912 में अम्बेदकर जी ने बी० ए० की डिग्री प्राप्त कर ली। सन् 1913 में बड़ौदा नरेश से छात्रवृत्ति पाकर आप विदेश चले गए। वहाँ आप सन् 1917 तक रहे और कोलम्बिया विश्वविद्यालय से आपने एम० ए०, पी एच डी० एवं एल० एल० बी० की डिग्रियाँ प्राप्त की। स्वदेश लौटकर बड़ौदा राज्य के सैनिक सचिव नियुक्त हुए लेकिन कुछ समय पश्चात् आपने वह पद छोड़ दिया और मुम्बई के सिडेनहम कॉलेज में पढ़ाना शुरू कर दिया। तत्पश्चात् आजीविका चलाने के लिए आपने वकालत का पेशा भी अपनाया। लोगों में जागृति लाने के लिए आपने ‘बहिष्कृत हितकारिणी’ और ‘बहिष्कृत भारत’ नामक समाचार-पत्र निकाले। सन् 1927 में आप मुम्बई विधान सभा के सदस्य मनोनीत हुए।

इसी बीच महात्मा गाँधी जैसे राष्ट्रीय नेताओं के साथ मिलकर निम्न वर्ग के उत्थान के लिए अनेक कार्य किये, अनेक आन्दोलन चलाये। इनमें 20 मार्च, सन् 1927 में चलाया चोबदार-तालाब सत्याग्रह उल्लेखनीय है।

सन् 1947 में देश की पहली राष्ट्रीय सरकार में आप कानून मन्त्री बने। आपको संविधान सभा का सदस्य बनाया गया। आपके ही प्रयत्नों से धर्म-निरपेक्ष भारतीय संविधान की रचना की गई जिसमें प्रत्येक नागरिक को चाहे वह किसी भी जाति, वर्ण का हो, समान अधिकार दिए गए। आप ही के यत्नों से हिन्दी को राष्ट्रभाषा का स्थान मिला। प्रौढ़ावस्था तक आते-आते बाबा साहब अम्बेदकर जी ने नागपुर में बौद्ध धर्म में दीक्षा ले ली। 6 दिसम्बर, सन् 1956 को यह मसीहा इस दुनिया से उठ गया।

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10. भारत की प्रथम महिला अंतरिक्ष यात्री

कल्पना चावला ने एक स्वर्णिम इतिहास की रचना की है। उसने 1997 ई० में अन्तरिक्ष की सफल यात्रा की थी। इस प्रकार उसने भारत की पहली महिला अन्तरिक्ष यात्री होने का गौरव प्राप्त किया। कल्पना बहुत कुछ कर दिखाना चाहती थी। वह एक बार फिर अन्तरिक्ष का कोना-कोना टटोलना चाहती थी। उसने 16 जनवरी, सन् 2003 को फिर अन्तरिक्ष अभियान में शामिल अमरीकी अन्तरिक्षयान कोलम्बिया में उड़ान भरी। दुर्भाग्य से यह यान वापसी पर दुर्घटना का शिकार होकर नष्ट हो गया। कल्पना चावला हमेशा के लिए अन्तरिक्ष में विलीन हो गई। उसके यान के 6 अन्य यात्री भी सदा की नींद सो गए। इस दुर्घटना से सारा भारत शोकग्रस्त हो उठा। कल्पना स्वयं मिट गई परन्तु उनके साहस, शौर्य और कर्त्तव्य भावना सर्वदा के लिए अन्तरिक्ष की बड़ी गहराई से अंकित हो गए हैं। हरियाणा (करनाल) की यह वीरांगना समस्त भारतीय नारी-समाज का प्रकाश-स्तम्भ बन गई है। भारत एक होनहार बेटी से वंचित हो गया।

बयालीस वर्षीय कल्पना का जन्म करनाल में हुआ। उच्च-मध्यम परिवार में जन्मी कल्पना की प्रारम्भिक शिक्षा करनाल में ही सम्पन्न हुई। उसकी गणना अपने स्कूल के योग्यतम छात्र-छात्राओं में की जाती थी। प्रारम्भ से ही उसके सपने बहुत ऊँचे थे। उसके मन में अन्तरिक्ष में उड़ान भरने की लालसा बाल्यकाल में ही पनपने लगी थी। करनाल में वह अपने बड़े भाई के साथ विमान उड़ाने के प्रशिक्षण केंद्र में जाया करती थी। स्कूली शिक्षा की समाप्ति पर कल्पना ने चण्डीगढ़ में उच्च शिक्षा प्राप्त की और उसने अन्तरिक्ष विज्ञान में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की। तदन्नतर कल्पना अमरीका के नासा अन्तरिक्ष अभियान केंद्र में नियुक्त हो गई। यहीं पर उसका अन्तरिक्ष अभियान का क्रम प्रारम्भ हो गया। नासा ने सन् 1997 ई० में कल्पना को अन्तरिक्ष अभियान के लिए चुना और उसने बड़ी सफलता के साथ यह यात्रा परिपूर्ण की थी। उसकी गणना विश्व के श्रेष्ठतम अन्तरिक्ष यात्रियों में होने लगी थी।

कल्पना चावला के हृदय में अनेक कल्पनाएं मचल रही थीं। वह चाहती थी कि अन्तरिक्ष के प्रत्येक रहस्य की खोज की जानी चाहिए। 16 जनवरी, सन् 2003 ई० को जब वह दूसरी बार अन्तरिक्ष यात्रा पर निकली तो अन्तरिक्ष के इन्हीं अज्ञात रहस्यों का अन्वेषण करना था। कैंसर जैसे भीषण रोगों पर नियन्त्रण पाने का विचार भी इस में निहित था। विधि की विडम्बना कहिए, कि कुछ ही मिनटों में मिलने वाली महानतम उपलब्धि हाथ से छूट कर बिखर गई। कल्पना अपने छ: अन्य साथियों के साथ मौत का शिकार हो गई। कोलम्बिया धरती को चूमने से कुछ ही क्षण पहले जलकर राख हो गया। टुकड़े-टुकड़े होकर वह धरती पर इधर-उधर बिखर गया। भारत की कल्पना भी लुप्त हो गई और उसके दिल में मचल रही स्वर्णिम कल्पनाएँ वीरता का महान् सन्देश देकर बिखर गई।

कल्पना चावला ने जिस अटूट साहस, धैर्य, वीरता और कर्त्तव्यनिष्ठा का जो मार्ग प्रशस्त किया है, वह भारत के युवा वर्ग के लिए हमेशा प्रेरणा का स्त्रोत रहेगा। कल्पना चावला के जीवन से भारतीय नारी समाज को एक नई स्फूर्ति प्राप्त हुई है। यह बात पूर्णतया स्पष्ट हो गई है कि भारतीय नारी प्रत्येक क्षेत्र में एक नया कीर्तिमान स्थापित कर सकती है। उसके लिए कुछ भी दुर्लभ नहीं है। पृथ्वी हो या अन्तरिक्ष प्रत्येक स्थान उसकी पहुँच से परे नहीं है।

भारत अपनी इस महान् वीरांगना को नहीं भूलना चाहेगा। कल्पना चावला की स्मृति में करनाल में एक विशालतम अस्पताल खोलने की योजना को साकार रूप दिया जा रहा है। विविध पुरस्कार कल्पना के नाम पर आरम्भ हो रहे हैं। अनेक स्कूल-कॉलेज कल्पना की कल्पना को साकार करने के लिए तत्पर हैं । सम्भव है भारत में कल्पना की स्मृति में अन्तरिक्ष अभियान के लिए कोई योजना कार्यान्वित की जाए। यह एक स्वाभाविक एवं निश्चित तथ्य है प्रत्येक राष्ट्र अपने वीरों और वीरांगनाओं के बताए मार्ग पर चल कर ही प्रगति के शिखरों को छू सकता है।

कल्पना चावला भारतीय इतिहास की एक महान् धरोहर बन गई है। वह साहस के प्रतीक के रूप में भारतीयों का मार्ग-दर्शन करती रहेगी। देश की युवा-शक्ति कल्पना के मार्ग पर चलते हुए राष्ट्र की गरिमा को चार चाँद लगाएगी। कल्पना एक स्थान विशेष की धरोहर नहीं, बल्कि समग्र राष्ट्र की प्रकाशमान दीप शिखर है जो प्रेरणा, प्रोत्साहन, कर्त्तव्यानुभूति और अदम्य उत्साह का मार्ग प्रशास्त करती रहेगी। अन्त में हम कहेंगे- “कल्पना और तुम्हारी कल्पनाओं को शत-शत नमस्कार।”

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11. महाराजा रणजीत सिंह

शेरे पंजाब कहे जाने वाले महाराजा रणजीत सिंह का जन्म 2 नवम्बर, सन् 1780 ई० को गुजरांवाला (पाकिस्तान) में हुआ। आपके पिता का नाम महासिंह था जो सुकरचकिया मिसल के सरदार थे। आपकी माता राजकौर जींद की फुलकिया मिसल के सरदार की बेटी थी। आपका बचपन का नाम बुध सिंह था, किन्तु आपके पिता ने अपनी जम्मू विजय को याद रखने के लिए आपका नाम रणजीत सिंह रख दिया।

महाराजा रणजीत सिंह ने उस समय छोटे-छोटे राज्यों को और मिसलों को एक किया। मुसलमानों और पठानों को हरा कर समय की माँग को देखते हुए रोपड़ (रूपनगर) के स्थान पर अंग्रेजों के साथ समझौता कर एक सुदृढ़ सिक्ख राज्य की स्थापना की।

महाराजा रणजीत सिंह एक महान् योद्धा और कुशल प्रशासक थे। दस वर्ष की आयु में आपने पहली जीत प्राप्त की। विजयी रणजीत सिंह जब लौटे तो उनके पिता की मृत्यु हो चुकी थी, किन्तु उन्होंने अपनी योग्यता और वीरता से अपने अधिकार को स्थिर रखा। महाराजा रणजीत सिंह ने पन्द्रह वर्ष की आयु में महताब कौर से विवाह किया। किन्तु यह विवाह सफल न हो सका। तब उन्होंने सन् 1798 ई० में दूसरा विवाह किया जो सफल रहा।

सत्रह वर्ष की उम्र तक पहुँचते-पहुँचते आपने सारी मिसलो का नेतृत्व अपने हाथ में ले लिया। उन्नीस वर्ष की अवस्था में लाहौर पर अधिकार करके उसे अपनी राजधानी बनाया। धीरे-धीरे आपने जम्मू-कश्मीर, अमृतसर, मुल्तान, पेशावर आदि क्षेत्रों को अपने अधीन कर एक विशाल पंजाब राज्य की स्थापना की।

महाराजा रणजीत सिंह की उदारता और छोटे बच्चों से प्रेम की अनेक घटनाएँ प्रचलित हैं। आप एक कुशल प्रशासक और न्यायप्रिय शासक थे। सभी जातियों के लोग आपकी सेना में थे। महाराजा जहाँ वीरों, विद्वानों का आदर कर उन्हें इनाम देते थे, वहाँ अत्याचारी जागीरदारों को दंड भी देते थे। वे बिना किसी भेदभाव से सभी उत्सवों और पर्यों में भाग लेते थे। यही कारण है कि जब सन् 1839 में आपकी मृत्यु हुई तो सभी धर्मों के लोगों ने आप की आत्मा की शान्ति के लिए प्रार्थना की।

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12. अमर शहीद मेजर भूपेन्द्र सिंह

मेजर भूपेन्द्र सिंह का नाम उन शहीदों में स्वर्णाक्षरों में लिखा जाएगा जिन्होंने देशहित में अपने प्राण न्योछावर कर दिए। सन् 1965 के पाकिस्तान के साथ हुए युद्ध में मेजर भूपेन्द्र सिंह ने जो अद्भुत शौर्य दिखाया उसके लिए भारतीय सदा उनके ऋणी रहेंगे।

मेजर भूपेन्द्र सिंह लुधियाना जिले के रहने वाले थे। देश सेवा और देश भक्ति की भावना उनमें कूट-कूट कर भरी थी। उन्होंने पाकिस्तान के साथ स्यालकोट फ्रंट की लड़ाई में अपने उच्च अधिकारी से टैंकों के संचालन की आज्ञा माँगी। आज्ञा पाकर अगले ही दिन मेजर भूपेन्द्र ने तुरन्त शत्रु पर आक्रमण करने का निश्चय किया। मेजर सिंह के टैंकों ने इतनी भयंकर गोलाबारी की कि शत्रु पक्ष के अनेक टैंक ध्वस्त हो गए। मेजर सिंह के नेतृत्व वाले टैंक दल ने शत्रु के 21 टैंक नष्ट कर दिए, इनमें सात तो अकेले मेजर सिंह ने नष्ट किये थे। कुछ टैंकों को मेजर सिंह ने सही हालत में अपने अधिकार में ले लिया। पाकिस्तानी टैंकों की सहायता उनके विमान भी करने लगे। वे हड़बड़ी में बम फेंक रहे थे। दुर्भाग्य से जिस टैंक में मेजर सिंह बैठे थे उस पर पाकिस्तानी विमान द्वारा फेंकी गई एक मिजाइल आ लगी। उनका टैंक जलने लगा।

मेजर सिंह साहस से काम लेते हुए टैंक से बाहर कूद पड़े। अभी वे अपने लिए सुरक्षित स्थान ढूँढ ही रहे थे कि उनके साथियों की जलते हुए टैंकों से बचाओ-बचाओ की आवाजें सुनाई दी। मेजर सिंह ने अपनी जान की परवाह न करते हुए अपने तीन साथियों को जलते हुए टैंकों से बाहर निकाला। उनके कपड़ों को आग लग चुकी थी जिससे उनका सारा शरीर झुलस चुका था। अपने साथियों की जान बचाने के बाद वे स्वयं बेहोश होकर गिर पड़े। उन्हें तुरन्त सेना अस्पताल पठानकोट पहुंचाया गया। वहाँ से उन्हें दिल्ली लाया गया। उनकी वीरता और साहस की कहानी सुन कर प्रधानमन्त्री श्री लाल बहादुर शास्त्री स्वयं अस्पताल आए। उनके आने पर मेजर सिंह ने कहा-‘काश मेरे हाथ इस योग्य होते कि मैं उन्हें सैल्यूट कर सकता’-इस वीर की यह हालत देख शास्त्री जी की भी आँखें भर आईं। मेजर सिंह कुछ दिन मौत से लड़ते रहे फिर एक दिन भारत माँ का यह शूरवीर हम से सदा के लिए विदा हो गया।

भारत सरकार ने इस वीर सपूत को महावीर चक्र.(मरणोपरान्त) देकर सम्मानित किया। मेजर भूपेन्द्र सिंह की शहादत युवा पीढ़ी को सदा प्रेरित करती रहेगी।

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13. पंजाब के ग्रामीण मेले और त्योहार

देवी-देवताओं, गुरुओं, पीर-पैगम्बरों, ऋषि-मुनियों एवं महात्माओं की पंजाब की धरती अपने कर्मठ किसानों और वीर सपूतों के कारण देश भर के सभी प्रान्तों में शिरोमणि है। पंजाब को मेले और त्योहारों के लिए भी जाना जाता है। साल के शुरू में ही लोहड़ी का त्योहार और माघी का मेला आता है। लोहड़ी पौष मास के अन्तिम दिन मनाया जाता है।

कड़ाके की सर्दी की परवाह न करते हुए युवक-युवतियों की टोलियाँ-दे माई लोहड़ी, जीवे तेरी जोड़ी या सुन्दर मुन्दरिये हो, तेरा कौन विचारा-के गीत गाते हुए उन घरों से विशेषकर लोहड़ी माँगते हैं जिनके घरों में पुत्र का विवाह हुआ हो या पुत्र उत्पन्न हुआ हो। लोहड़ी से अगले दिन मुक्तसर में चालीस मुक्तों की याद में माघी का मेला मनाया जाता है। वैसे माघ महीने की संक्रान्ति को सभी पवित्र सरोवरों और नदियों में स्नान कर लोग पुण्य लाभ कमाते माघी के बाद बसंत पंचमी का त्योहार आता है, जो सारे पंजाब में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन लोग पतंग उड़ाते हैं और घरों में पीले चावल या पीला हलवा बनाते हैं और पीले वस्त्र पहनते हैं। प्रकृति भी उस दिन पीली चुनरी (सरसों के फूल खेतों के रूप में) ओढ़ लेती है। पुरानी पटियाला और कपूरथला रियासतों में यह दिन बड़े हर्षोल्लास से मनाया जाता था। इसी दिन बटाला में वीर हकीकत राय की समाधि पर एक बड़ा भारी मेला लगता है।

बसन्त पंचमी के बाद बैसाखी का त्योहार आता है। इस दिन किसान अपनी गेहूँ की फसल को तैयार देखकर झूम उठता है और गा उठता है-‘जट्टा ओ आई बिसाखी, मुक्क गई फसलाँ दी राखी’। गाँव-गाँव शहर-शहर मेले लगते हैं। इसके बाद सावन महीने में पूर्णिमा को रक्षा बन्धन का त्योहार आता है। यह त्योहार भाईबहन के पवित्र रिश्ते का प्रतीक है। इसी महीने पंजाब का एक ग्रामीण त्योहार भी आता है। इस त्योहार को मायके आई विवाहित लड़कियों का तीज का त्योहार कहा जाता है। मायके आई विवाहित लड़कियाँ सखियों संग झूला झूलती हैं और मन की बातें खुल कर करती हैं।

उपर्युक्त मेलों और त्योहारों के अतिरिक्त पंजाब में कुछ धार्मिक मेले भी होते हैं। इनमें सबसे बड़ा आनन्दपुर साहब में लगने वाला होला-मुहल्ला का मेला है। ग्रामीण मेलों में किला रायपुर का मिनी ओलिम्पिक मेला प्रसिद्ध है। कुछ मेलों में पशुओं की मण्डियाँ भी लगती हैं। पंजाब के ये मेले और त्योहार आपसी भाई-चारे के प्रतीक हैं। हमें इन्हें पूरी श्रद्धा के साथ मनाना चाहिए।

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14. जीवन में त्योहारों का महत्त्व

कहा जाता है कि जीवन संघर्ष का दूसरा नाम है और मनुष्य शुरू से संघर्ष के बाद, आराम या मनोरंजन चाहता है। इसलिए मनुष्य ने ऐसे अवसरों की तलाश की जिनमें वह अपने सब दुःख-दर्द भूल कर कुछ क्षणों के लिए खुल कर हँस गा सके। हमारे पर्व या त्योहार यही काम करते हैं। त्योहार वाले दिन, चाहे एक दिन के लिए ही सही हम यह भूलने की कोशिश करते हैं कि हम गरीब हैं, दुःखी हैं। आराम जीवन की जरूरत है, परिवर्तन मानव-स्वभाव की माँग है। हमारे पर्व या त्योहार इस ज़रूरत और माँग को पूरा करते हैं।

त्योहार का नाम सुनते ही सभी के मन में उल्लास एवम् स्फूर्ति भर जाती है। त्योहार के दिन हम आनन्द के साथ-साथ जातीय गौरव का भी अनुभव करते हैं। ये त्योहार आपसी भाईचारे के प्रतीक हैं। इनमें सभी धर्मों, सम्प्रदायों के लोग बिना किसी भेदभाव के भाग लेते हैं। जहाँ ये त्योहार आपसी सम्बन्धों को सुदृढ़े करते हैं, वहाँ राष्ट्रीय एकता को भी बढ़ावा देते हमारे देश में मनाए जाने वाले त्योहार धर्म और राजनीति के उच्चतम आदर्शों को प्रस्तुत करते हैं। प्रत्येक पर्व या त्योहार किसी-न-किसी आदर्श चरित्र से जुड़ा है। जैसे बसन्तोत्सव हमें भगवान् शंकर के कामदहन और श्रीकृष्ण के पूतनावध की याद दिलाता है। आषाढ़ में काल की दुर्निवार गति की याद में भगवान जगन्नाथ जी की रथ यात्रा होती है। श्रावणी पूर्णिमा रक्षाबन्धन के त्योहार द्वारा हिन्दू समाज में भ्रातृत्व का स्मरण दिलाया जाता है। दीवाली के दिन हम लक्ष्मी पूजन के साथ नरकासुर वध की घटना को याद करते हैं। रामनवमी के दिन हमें भगवान् राम के जीवन से त्याग, तपस्या और जन सेवा की शिक्षा मिलती है।

हमारे देश में अनेक त्योहार ऋतुओं या फसलों से भी जुड़े हैं जैसे लोहड़ी, होली, बैशाखी, श्रावणी पूर्णिमा आदि। कुछ त्योहारों पर व्रत रखने की भी परम्परा है जैसे महाशिवरात्रि, जन्माष्टमी, गणेश चतुर्थी आदि। स्वास्थ्य की दृष्टि से इन व्रतों की बहुत उपयोगिता है। ये व्रत व्यक्ति की पाचन क्रिया को सही रखते हैं। संक्षेप में कहा जाए तो हमारे पर्व या त्योहार आत्म शुद्धि का साधन हैं । त्योहार हमारे जीवन में खुशियाँ लाते हैं। त्योहारों के अवसर पर हम अपने सब राग, द्वेष, मद, मोह को भस्मीभूत करके, ऊँच-नीच का, जाति-पाति का भेद भुला कर, एक होकर आनन्द मनाते हैं। इन्हीं त्योहारों ने हमारी प्राचीन संस्कृति को और सामाजिक मूल्यों को बचाए रखा है।

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15. लोहड़ी

लोहड़ी का त्योहार विक्रमी संवत् के पौष मास के अन्तिम दिन अर्थात् मकर संक्रान्ति (माघी) से एक दिन पहले मनाया जाता है। इसे हम ऋतु सम्बन्धी त्योहार भी कह सकते हैं। अंग्रेजी कलैण्डर के अनुसार साल का यह पहला त्योहार होता है। इस दिन सर्दी अपने पूर्ण यौवन पर होती है। लोग अपने-अपने घरों में आग जलाकर उसमें मूंगफली, रेवड़ियों, फूलमखानों की आहुति डालते हैं और लोक गीतों को गाते हुए नाचते हुए आग तापते हैं।

लोहड़ी वाले दिन माता-पिता अपनी विवाहिता बेटियों के घर उपर्युक्त चीजें और वस्त्राभूषण भेजते हैं। जिनके घर लड़के की शादी हुई हो या लड़का पैदा हुआ हो, वे लोग अपने नाते-रिश्तेदारों को बुलाकर धूमधाम से लोहड़ी का त्योहार मनाते हैं। लोगों ने अब लड़की के जन्म पर भी लोहड़ी मनाना शुरू कर दिया है। पुराने जमाने में लड़के-लड़कियाँ समूह में घर-घर जाकर लोहड़ी माँगते थे और आग जलाने के लिए उपले और लकड़ियाँ एकत्र करते थे। साथ ही वे ‘दे माई लोहड़ी, तेरी जीवे जोड़ी’, ‘गीगा जम्यां परात गुड़ वंडिया’ तथा ‘सुन्दर मुन्दरिये हो, तेरा कौन विचारा-दुल्ला भट्ठी वाला’ जैसे लोक गीत भी गाया करते थे। युग और परिस्थितियाँ बदलने के साथ-साथ लोहड़ी माँगने की यह प्रथा लुप्त होती जा रही है। लोग अब अपने घरों में कम होटलों में अधिक लोहड़ी मनाते हैं और आग जलाने के स्थान पर डी०जे० पर फिल्मी गाने गाते हैं लोक गीत तो जैसे लोग भूल ही गए हैं। बस लोहड़ी के अवसर पर पीना-पिलाना और नाचना-गाना ही शेष बचा है।

कुछ लोग लोहड़ी के त्योहार को फसली त्योहार मानते हैं। गन्ने की फसल तैयार हो जाती है और गुड़-शक्कर बनना शुरू हो जाता है। सरसों की फसल भी तैयार हो जाती। मकई की फसल घरों में आ चुकी होती है। शायद इन्हीं कारणों से आज भी गन्ने के रस की खीर, सरसों का साग और मकई की रोटी बनाने का रिवाज है। समय चाहे कितना बदल गया हो, किन्तु लोहड़ी के त्योहार को आपसी भाईचारे और पंजाबी संस्कृति का त्योहार माना जाता है।

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16. होली

हिन्दुओं के त्योहारों में होली का त्योहार एक प्रमुख त्योहार है। रंगों का यह त्योहार फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। प्राचीन काल में इस दिन को हिरण्यकश्यप के पुत्र प्रह्लाद और उसकी बुआ होलिका से जोड़ कर देखा जाता था। होलिका दहन की घटना को याद कर सामूहिक रूप से अग्नि प्रज्वलित की जाती थी और यह कल्पना की जाती थी राक्षसी प्रवृत्ति वाली होलिका जल गई है। आज भी कुछ स्थानों पर होली बसन्त के बाद महीना भर मनाई जाती है। वृन्दावन और बरसाने की होली देखने तो देश-विदेश से कई लोग आते हैं।

होली रंगों का और मेल मिलाप का त्योहार है, किन्तु आज की युवा पीढ़ी ने इसे हुड़दंग बाजी का त्योहार बना दिया है। होली के त्योहार को ही कई लोग गांजा, सुल्फा, भांग या शराब पीना शुभ समझते हैं, किन्तु ऐसा करना कभी भी शुभ नहीं माना जाता। यदि किसी पवित्र त्योहार के दिन हम व्यसनों और कुरीतियों की ओर बढ़ते हैं तो इससे हम त्योहार के वास्तविक महत्त्व से बहुत दूर हट जाते हैं।

होली के अवसर पर पहले लोग अबीर, गुलाल से रंग खेलते थे, किन्तु आज हम सस्ते के चक्कर में सिंथेटिक रंगों से होली खेलते हैं। जो स्वास्थ्य के लिए अत्यन्त हानिकारक हैं। इन रंगों के आँखों में पड़ने से आँखों की रोशनी जाने का खतरा बना रहता है। आज आवश्यकता है होली के त्योहार की पवित्रता से युवा पीढी को, बच्चों को परिचित करवाने की। इसके लिए हमारे धार्मिक और सामाजिक नेताओं को आगे आना चाहिए, होली आपसी भाईचारे का, मेल-मिलाप का त्योहार है, हमें यह त्योहार ऊँच-नीच का, छोटे-बड़े का भेद भुला देना सिखाता है। हमें इस दिन लोगों में खुशियाँ बाँटनी चाहिए न कि दुःख या कष्ट पहुँचाना। हमें बड़ों की ही नहीं डॉक्टरों की सलाह पर भी ध्यान देना चाहिए।

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17. वैशाखी

वैशाखी का त्योहार वैशाख मास की संक्रान्ति को मनाया जाता है। पहले पहल यह त्योहार फसली त्योहार माना जाता था जिसे किसान लोग अपनी गेहूँ की फसल तैयार हो जाने पर मनाते थे। इस दिन गाँव-गाँव मेले लगते हैं। कई स्थानों पर यह मेला दो-दो अथवा तीन-तीन दिनों तक चलता है। नौजवान लोग भाँगड़ा डालते हैं। लोग सजधज कर इन मेलों में शामिल होते हैं । इस त्योहार को शीत ऋतु के प्रस्थान और ग्रीष्म ऋतु के आगमन का त्योहार भी माना जाता है। लोग पवित्र नदियों व सरोवरों में जाकर स्नान करते हैं और गुरुद्वारों में मत्था टेक कर निहाल होते हैं।

वैशाखी के दिन रबी की फ़सल पक कर तैयार हो जाती है जिससे किसानों के ही नहीं, मज़दूरों और शिल्पकारों और दुकानदारों के चेहरे पर रौनक आ जाती है। वास्तव में सारा व्यापार रबी की अच्छी फसल पर ही निर्भर करता है। _वैसाखी का यह पर्व हमें सन् 1699 का वह दिन भी याद दिलाता है जिस दिन गुरु गोबिन्द सिंह जी ने खालसे की स्थापना की थी। गुरु जी कहा करते थे-जब शान्ति एवं समझौते के सभी तरीके असफल हो जाते हैं तब तलवार उठाने में नहीं झिझकना चाहिए। – वैशाखी का यह पर्व पहले उत्तर भारत में ही विशेषकर गाँवों में मनाया जाता था, किन्तु सन् 1919 में इसी दिन जलियांवाला बाग में हुए नरसंहार को याद करते हुए वैशाखी का यह पर्व सारे भारत में मनाया जाता है और जलियांवाला बाग में शहीदों को याद किया जाता है।

वैशाखी वाले दिन से ही नवीन विक्रमी वर्ष का आरम्भ माना जाता है। कई जगहों पर इसी दिन साहुकार लोग अपने नए बही खाते खोलते हैं और मनौतियाँ मनाते हैं। पंजाब के किसान तो खुशी से झूम कर गा उठते हैं-‘जट्टा ओ आई वैशाखी, मुक्क गई फसलाँ दी राखी’। युवक भाँगड़ा डालते हैं तो युवतियाँ गिद्दा डालती हैं। इसी कारण वैशाखी के त्योहार को पंजाब के ग्रामीण मेलों का सिरताज कहा जाता है।

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18. रक्षाबन्धन

रक्षाबन्धन का त्योहार श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इसी कारण कई लोग इसे श्रावणी पर्व के नाम से भी याद करते हैं। इसी त्योहार के दिन से कार्तिक शुक्ला एकादशी तक चतुर्मास भी मनाया जाता है। पुराने जमाने में ऋषि-मुनि और ब्राह्मण इन चार महीनों में यात्रा नहीं करते थे, अपने आश्रमों में ही रहते थे। राज्य की ओर से उनके रहने खाने-पीने का प्रबन्ध किया जाता था। आजकल इस नियम का पालन केवल जैन साधु एवं साधवियाँ ही कर रहे हैं।

रक्षाबन्धन का त्योहार भाई-बहन के प्यार से कब से सीमित हो गया इसका इतिहास में कोई प्रमाण नहीं मिलता। केवल चित्तौड़ की महारानी करमवती द्वारा मुग़ल सम्राट् हुमायूँ को भेजी राखी की घटना का ही उल्लेख मिलता है। हुमायूँ ने राखी मिलने पर गुजरात के मुसलमान शासक को हरा कर अपनी मुँह बोली बहन के राज्य की रक्षा की थी, किन्तु शुरूशुरू में रक्षाबन्धन केवल ब्राह्मण ही अपने यजमानों के ही बाँधा करते थे। समय के परिवर्तन के साथ राजपूत स्त्रियों ने अपने पतियों की कलाई पर युद्ध में जाते समय रक्षाबन्धन बाँधना शुरू कर दिया।

आजकल यह त्योहार केवल भाई-बहनों का त्योहार बन कर ही रह गया है। बहन अपने भाई की कलाई पर राखी बाँधती है और भाई उसकी सुरक्षा की प्रतिज्ञा करता है। किन्तु आज बहन स्वयं आत्मनिर्भर हो गई है। अपने परिवार का (माता-पिता, भाई-बहन का) भरण पोषण करती है फिर वह अपनी सुरक्षा की गारण्टी क्यों चाहेगी। दूसरे आज यह त्योहार मात्र परम्परा का निर्वाह बन कर रह गया है। आज बहन अबला नहीं सबला नारी हो गई है।

पुराने जमाने में विवाहित स्त्रियाँ अपने मायके चली जाती थीं। वह अपनी सहेलियों संग झूला झुलती, आमोद-प्रमोद में दिन बिताती हैं। शायद इसीलिए बड़े-बुजुर्गों ने श्रावण महीने में सास-बहू के इकट्ठा रहने पर रोक लगा दी थी, किन्तु आज बड़ों के इस आदेश या नियम की कोई पालना नहीं करता। हमें चाहिए कि आज प्रत्येक त्योहार को हम पूर्ण श्रद्धा के साथ मनाएँ और अपनी जाति के गौरव और अपने देश की संस्कृति का ध्यान रखें। समय और परिस्थिति के अनुसार उसमें उचित सुधार कर लें।

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19. दशहरा (विजयदशमी)

दशहरा (विजयदशमी) का त्योहार देश भर में शारदीय नवरात्रों के बाद दशमी तिथि को मनाया जाता है। प्रसिद्ध एवं सर्वज्ञात रूप से विजयदशमी के त्योहार को भगवान श्रीराम की लंकापति रावण पर विजय के रूप में अथवा धर्म की अधर्म पर और सत्य की असत्य पर विजय के रूप में मनाया जाता है। नवरात्र के नौ दिनों में देश के विभिन्न नगरों और गाँवों में दशहरे का मेला लगता है जिसमें रामलीला का मंचन होता है और श्रीराम के जीवन से जुड़ी अनेक झाँकियाँ निकाली जाती हैं। जिन गाँवों में यह मेला नहीं लगता वहाँ के लोग निकट के नगर में यह मेला देखने जाते हैं । दशमी के दिन रावण, कुम्भकरण और मेघनाथ के बड़े-बड़े पुतले, जो रामलीला मैदान में स्थापित किए होते हैं, जलाए जाते हैं।

विजयदशमी का यह त्योहार बंगाल में दुर्गा पूजा के रूप में मनाया जाता है। प्रान्त भर में माँ दुर्गा की विशाल मूर्तियाँ बनाई जाती हैं और विजयदशमी के दिन गंगा में या निकट की नदियों में विसर्जित की जाती हैं। प्राचीन काल में क्षत्रिय लोग शक्ति के प्रतीक शस्त्रों की पूजा किया करते थे। महाराष्ट्र में विजयदशमी सीमोल्लंघन के रूप में मनाई जाती है। सायंकाल गाँव के लोग नए वस्त्र पहन गाँव की सीमा पार कर शमी वृक्ष के पत्तों के रूप में ‘सोना’ लूट कर गाँव लौटते हैं और उस सुवर्ण का आदान-प्रदान करते हैं।

प्राचीन इतिहास के अनुसार इसी दिन देवराज इन्द्र ने महादानव वृत्रासुर पर विजय प्राप्त की थी। पाण्डवों ने भी इसी दिन अपना तेरह वर्षों का अज्ञातवास पूरा कर द्रौपदी का वरण किया था।
विजयदशमी धार्मिक दृष्टि से आत्म-शुद्धि का पर्व है। राष्ट्रीय दृष्टि से यह दिन सैन्य संवर्धन का दिन है। शक्ति के उपकरण शस्त्रों की पूजा का दिन है। हम स्वयं को आराधना
और तप से उन्नत करें, धर्म की, सत्य की अधर्म और असत्य पर विजय को याद रखें और राष्ट्र की सैन्य शक्ति को सुदृढ़ करें, यही विजयदशमी का संदेश है।

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20. दीपावली

दीपावली का त्योहार कार्तिक महीने की अमावस्या को मनाया जाता है। इस त्योहार को भगवान् श्रीराम, सीताजी और लक्ष्मण जी सहित लंका विजय के बाद अयोध्या लौटे थे। इस अवसर पर अयोध्यावासियों ने घी के दीपक जलाकर उनका स्वागत किया था। यह त्योहार प्रायः सम्पूर्ण भारत में मनाया जाता है। लोग अपने घरों और दुकानों को साफ़ कर सजाते हैं। बाज़ारों में चहल-पहल बढ़ जाती है। लोग एक-दूसरे को शुभकामनाएँ और उपहार भेंट करते हैं।

दीपावली का यह त्योहार पाँच दिनों तक मनाया जाता है। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की योदशी को धनतेरस के रूप में मनाया जाता है। इस दिन लोग बर्तन या गहने खरीदना शुभ मानते हैं। इससे अगला दिन नरक चौदस अथवा छोटी दीवाली के नाम से प्रसिद्ध है। कहते हैं कि इसी दिन भगवान् श्रीकृष्ण ने नरकासुर नामक राक्षस का वध किया था। अमावस्या की रात को दीवाली का मुख्य पर्व होता है। इस रात धन की देवी लक्ष्मी जी और विघ्ननाशक गणेश जी की पूजा की जाती है। लक्ष्मी जी और गणेश जी की समन्वित पूजा का अर्थ है धन का मंगलमय संचयन और उसका धर्म सम्मत उपयोग। अमावस्या से अगला दिन विश्वकर्मा दिवस के रूप में मनाया जाता है। इसी दिन गोवर्धन पूजा का भी विधान है तथा कार्तिक शुक्ला द्वितीया को भाई-बहन का दूसरा बड़ा त्योहार भाई दूज के रूप में मनाया जाता है। इस तरह पाँच दिनों तक चलने वाला दीवाली का त्योहार समाप्त हो जाता है।

दीवाली के अवसर पर जुआ खेलने की कुप्रथा का भी प्रचलन है। इस कुप्रथा को बन्द होना चाहिए। भले ही जुआ खेलना एक कानूनी अपराध है, किन्तु फिर भी लोग जुआ खेलते हैं। दीवाली के अवसर पर पटाखे चलाने और आतिशवाजी भी हमें बन्द कर देने चाहिए। हर वर्ष करोड़ों रुपए पटाखे चलाकर ही हम नष्ट कर देते हैं। इन रुपयों से लाखों भूखों को रोटी दी जा सकती है। लाखों गरीब बच्चों को पढ़ाया जा सकता है। दीवाली के इस त्योहार को हमें बदली परिस्थितियों के अनुसार मनाना चाहिए। हमें प्रयत्न करना चाहिए कि हम पर्यावरण को पटाखों से प्रदूषित न करें। दीपावली प्रकाश का पर्व है न कि प्रदूषण का। दीपावली निश्चित रूप से ऐसा त्योहार है जिसे पूरे देश में धूमधाम से मनाया जाता है।

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21. वसन्त ऋतु

वसन्त ऋतु को ऋतुओं का राजा कहा जाता है। यह ऋतु अंग्रेज़ी महीने के मार्च-अप्रैल और विक्रमी संवत् के महीनों चैत्र-वैशाख महीनों में आती है, किन्तु लोग वसन्त आगमन का त्योहार वसन्त पंचमी का त्योहार माघ महीने की पंचमी को ही मना लेते हैं। कहा जाता है आया वसन्त तो पाला उड़त अर्थात् इस ऋतु में शीत का अन्त हो जाता है। मानव शरीर में नई चेतना एवं स्फूर्ति का अनुभव होने लगता है। इस ऋतु में शरीर में नए रक्त का संचार होता है। प्रकृति भी नए रूप और यौवन के साथ प्रकट होती है। हर तरफ मादकता छायी रहती है। वृक्षों पर नई कोंपलें फूट निकलती हैं और बागों में तरह-तरह के फूल खिल उठते हैं। खेतों में फूली सरसों देखकर लगता है जैसे प्रकृति ने पीली चुनरी ओढ़ रखी हो। शायद इसीलिए वसन्त को कामदेव का पुत्र माना जाता है। कामदेव के घर पुत्रोत्पत्ति का समाचार पाकर प्रकृति नाच उठती है। हर तरफ हरियाली छा जाती है। शीत मन्द और सुगन्ध भरी वायु बहने लगती है। फूलों पर भौरे मँडराने लगते हैं।

बसन्तागमन की सूचना हमें कोयल की कूहू कुहू से मिल जाती है और प्रकृति की इस मादकता का प्रभाव मानव जीवन पर पड़ना शुरू हो जाता है। कहा जाता है कि ज्ञान की देवी सरस्वती का जन्म इसी दिन हुआ था। इसी दिन धर्मवीर हकीकत राय ने धर्म के नाम पर अपना बलिदान दिया था। वसन्त पंचमी के दिन बटाला में उनकी समाधि पर बड़ा भारी मेला लगता है। साहित्य जगत् के लोग भी कविवर निराला का जन्म दिन वसन्त पंचमी वाले दिन ही मनाते हैं।

वसन्त पंचमी के दिन अनेक नगरों में मेले लगते हैं। दिन में कुश्तियाँ होती हैं और शास्त्रीय गायन की सभा सजती है। दिन में लोग पतंग उड़ाते हैं। लखनऊ में पतंगबाजी के मुकाबले सारे देश में प्रसिद्ध हैं। इस दिन लोग पीले कपड़े पहनते हैं। घरों में पीले चावल (जर्दा) या पीला हलवा बनाया जाता है। जब तक मेरा रंग दे वसन्ती चोला नी माए’ गीत गाया जाता रहेगा, वसन्त ऋतु हमें सरदार भगत सिंह और वीर हकीकत राय शहीदों की याद दिलाती रहेगी।

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22. मेरे जीवन का उद्देश्य

संसार में मनुष्य के दो ही उद्देश्य होते हैं। पहला आध्यात्मिक और दूसरा भौतिक या सांसारिक। आध्यात्मिक लक्ष्य-ईश्वर प्राप्ति सबका समान होता है किन्तु सांसारिक लक्ष्य मनुष्य अपनी योग्यता और परिस्थितियों के अनुसार चुनता है और उसे पूरा करने का यत्न करता है।

मैंने बचपन से ही यह सोच रखा है कि मैं बड़ा होकर एक प्राध्यापक बनूँगा। प्राध्यापक बन कर जहाँ मैं अपनी ज्ञान की भूख मिटा सकूँगा वहाँ समाज, देश की भी सेवा कर सकूँगा। जितने भी डॉक्टर, इंजीनियर बनते हैं उन्हें बनाने वाले प्राध्यापक ही होते हैं। कहते हैं सारा पानी इसी पुल के नीचे से गुज़रता है। बड़ों ने ठीक कहा है कि किसी भी देश या जाति के भविष्य को अगर कोई बनाने वाला है तो वह अध्यापक है। किसी भी देश या जाति के चरित्र को यदि कोई बनाने वाला है तो वह अध्यापक है। शायद इसी कारण कबीर जी गुरु (अध्यापक) को ईश्वर से बड़ा मानते हैं। भले ही आज न तो वैसे शिष्य रहे हैं और न ही अध्यापक किन्तु फिर भी अध्यापक की महत्ता कम नहीं हुई।

आज के माता-पिता के पास अपने बच्चों को पढ़ाने, सिखाने या कुछ बनाने का समय ही नहीं है। केवल अध्यापक ही है जो अपने छात्रों के अन्दर छिपी प्रतिभा को पहचानता है और उसे सही रूप देता है। इसलिए मैं भी एक अच्छा और आदर्श अध्यापक बनना चाहता हूँ। इसके लिए मुझे पहले एम० ए० करना पड़ेगा फिर बी० एड० या पी एच०- डी० ।

इसके लिए काफ़ी मेहनत की ज़रूरत है। आजकल प्रतियोगिता का युग है। अत: मुझे सभी परीक्षाएँ अच्छे अंकों से पास करनी होगी। इसके लिए हिम्मत और लग्न चाहिए क्योंकि कहा भी है हिम्मत करे इन्सान तो क्या हो नहीं सकता।

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23. चिड़िया घर की सैर

परीक्षा समाप्त होने के बाद मोहन के व्यस्तता के दिन बीत गए। वह पुस्तकालय जाकर कुछ पुस्तकें लाने की बात सोच ही रहा था कि जयपुर से उसके चाचा जी आ गए। बातचीत में उन्होंने पूछा ‘तुमने चिड़िया घर देखा हैं ?’ मोहन ने उत्तर दिया- “चाचा जी बहुत पहले लखनऊ का चिड़िया घर देखा था; दिल्ली का चिड़िया घर नहीं देख पाया।” । दूसरे दिन चाचा और भतीजा बस में बैठकर चिड़िया घर पहुंच गए। दोनों टिकट लेकर अन्दर गए। आगे बढ़ने पर पक्षियों के बड़े पिंजड़ेनुमा वास स्थान मिले। उनके भीतर भान्ति-भान्ति के पक्षी किल्लोल कर रहे थे। कई पक्षियों को मोहन पहचानता था, जैसेतीतर, मैना, चैती, दुबकी, फुदकी आदि। जिनको वह नहीं पहचानता था, उनके नाम बाहर की नाम पट्टिका में पढ़ लेता था। नाम पट्टिका में पक्षी का जीव-विज्ञानी नाम हिन्दी और अंग्रेजी में लिखा था। नाम के दो हिस्से थे-एक पक्षीकुल का नाम और दूसरा उस कुल की उपजाति का नाम। पक्षी का लोक-प्रचलित नाम भी अन्त में दिया हुआ था। पक्षी की आदतें भी दी हुई थी। कहाँ पाया जाता है, यह जानकारी भी दी हुई थी।

आगे हंस-कुल पक्षियों के लिए खुला बाड़ा बना था। ये पक्षी जल में रहते हैं, इसलिए बाड़े में तालाब भी बना था। उनको आजादी से विचरने देने के लिए यह बाड़ा ऊपर से खुला हुआ था। बीच-बीच में पेड़ लगे थे। पानी में सफ़ेद रंग की बत्तखें तैर रही थीं। हंस भी तैर रहे थे। तैरते हुए हंस बड़े सुन्दर लग रहे थे। उनकी गर्दन के पास गुलाबी रंग होता है। लोच वाली घुमावदार गर्दन बड़ी प्यारी लग रही थी।
पक्षियों के और भी घर बने थे, किन्तु उन्हें छोड़कर बाई और घूम पड़ा, जिधर हिरनों के बाड़े थे। आज मोहन ने हिरन की आंखें बड़े ध्यान में देखीं। कितनी प्यारी आंखें थीं! कितने सुन्दर आकर्षक नेत्र ! मोहन को आज मृगनयनी शब्द का अर्थ ठीक-ठीक समझ में आया। हिरन के बाद नील गायों का बाड़ा था। यह नाम विचित्र है क्योंकि नाम तो गाय का है और पशु हिरन जाति का है।

बगल के बाडे में मोहन को कंगारू दिखाई पड़ा। उसे पहचानने में मोहन को कोई कठिनाई नहीं हुई। कंगारू का चित्र उसने बहुत देखा था। यदि चाचा जी न भी दिखाते, तो भी वह कंगारू को पहचान लेता। तभी कंगारू ने अजीव तरह से उचक कर छलांग लगाई। कंगारू के पेट में विचित्र-सी थैली बनी थी जिसमें उसका बच्चा बैठा हुआ था। वह चकित दृष्टि से इस अनजाने संसार को देख रहा था। कंगारू के भागते ही चाचा जी आगे बढ़े। अगला बाड़ा बनैले सूअर का था। उसके लिए पानी का तालाब काफ़ी गहराई में बना था। वहां वह विचरता हुआ अपने थूथुन से जाने क्या ढूंढ रहा था। बनैला सूअर बहुत फुर्तीला होता है। बनैले सूअर के बाड़े से लगा हुआ वास-स्थान सफ़ेद भालू का था। उसके विचरने के लिए काफ़ी बड़ा भू-भाग छोड़ा गया था। यह भू-भाग इस प्रकार से बना था कि जंगल का भ्रम होता था। भालू को गर्मी लग रही थी, इसी से वह इधर-उधर टहल रहा था, स्थिर बैठ नहीं पा रहा था। यह भालू खेल वाले भालू से अलग किस्म का था। यह बड़ा भी था और उसका रंग भी काला नहीं था।

तभी बड़ी जोर की दहाड़ सुनाई पड़ी। सभी दर्शकों के कान खड़े हो गए। सभी समझ गए कि पास में ही शेर दहाड़ रहा है। लोग पास वाले बाड़े की ओर लपके ? वहां सींखचे दोहरे और ऊंचे थे। अन्दर देखने पर दूर-दूर तक शेर के दर्शन नहीं हुए। तभी एक दहाड़ फिर सुनाई पड़ी। इस बार ध्वनि के स्त्रोत को ढूंढने में कठिनाई नहीं हुई। दोपहर हो चली थी। तीन बजे तक घर लौटने का कार्यक्रम था। अब हम जल्दी-जल्दी अन्य पशुओं को देखने लगे। जानवरों के इस अद्भुत संसार को देखकर बड़ा रोमांच हो रहा था। यह कभी न भूलने वाला प्रसंग था। चाचा जी ने कहा-अब बस। बाहर निकल कर हम घर को ओर रवाना हो गए।

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24. सदाचार

सदाचार का अर्थ है अच्छा आचरण अर्थात् व्यवहार। सदाचार से मनुष्य में अनेक अच्छे गुण आते हैं जैसे वह दूसरों के प्रति विनम्रता, आदर भाव, दया भाव रखता है। सदाचार से ही व्यक्ति में नैतिकता और सत्यनिष्ठा आती है। सदाचार ही मनुष्य को आदर्श नागरिक बनाता है। सदाचारी मनुष्य में साम्प्रदायिक भेद नहीं होता और न ही ईर्ष्या द्वेष होता है। वह मानव मात्र से प्रेम करता है जिससे समाज में व्यवस्था और शान्ति स्थापित होती है।

प्राणियों में मनुष्य को सर्वश्रेष्ठ प्राणी इसलिए माना जाता है क्योंकि उसके पास बौद्धिक शक्ति होती है। इसी शक्ति के आधार पर व्यक्ति अच्छे बुरे या सत् असत् का निर्णय करता है शास्त्रों में सत् को धर्म तथा सदाचार, सत् को जानता और उस पर आचरण करना परम धर्म माना गया है। गुरुओं ने भी सच्चे आचरण को ही महत्त्व दिया है। सदाचार का मुख्य गुण सत् है। हमारी आस्था है कि सदा सत्य की जीत होती है, झूठ की नहीं। सत्यवादी हरिश्चन्द्र की कथा सुन कर ही बचपन में महात्मा गाँधी इतने प्रभावित हुए कि जीवन भर उन्होंने सत्य का सहारा लिया और देश को स्वतन्त्र कराया।

बच्चा सामान्य रूप से सत्य ही बोलता है। हम स्वार्थवश ही उसे झूठ बोलना सिखाते हैं। हमें बच्चे को झूठ बोलने का अवसर नहीं देना चाहिए क्योंकि सत्यवादी बालक निर्भय हो जाता है और छल कपट या अपराध से दूर भागता है। ऐसा बालक सबका विश्वास पात्र बन जाता है। अहिंसा, नम्रता और नैतिकता सदाचार के अन्य गुण हैं इनमें से नैतिकता सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है। बच्चों में नैतिकता लाने के लिए उनकी संगति का ध्यान रखना बहुत ज़रूरी है। अच्छी संगति से ही बच्चों का चरित्र निर्माण होता है। वह स्वस्थ एवं नीरोग रहता है। माता-पिता की सेवा करता है, उनका कहा मानता है।

इस तरह सदाचार में सत्यवादिता, नम्रता, प्रेम भावना, नैतिकता आदि गुणों का समावेश है। जिसे अपनाने से मनुष्य अपना जीवन सार्थक करता है, मान-सम्मान पाता है, समाज तथा राष्ट्र का हित करता है।

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25. नैतिक शिक्षा

नैतिक शिक्षा से अभिप्राय उन मूल्यों, गुणों और आस्थाओं की शिक्षा से है, जिन पर मानव की निजी और समाज की सर्वश्रेष्ठ समृद्धि निर्भर करती है। नैतिक शिक्षा व्यक्ति के आन्तरिक सद्गुणों को विकसित एवं संपुष्ट करती है, क्योंकि व्यक्ति समष्टि का ही एक अंश है, इसलिए उसके सद्गुणों के विकास का अर्थ है-“समग्र समाज का सुसभ्य एवं सुसंस्कृत होना।” नैतिक शिक्षा और नैतिकता में कोई अन्तर नहीं है अर्थात् नैतिक शिक्षा को ही नैतिकता माना जाता है। समाज जिसे ठीक मानता है, वह नैतिक है और जिसे ठीक नहीं मानता वह अनैतिक है। कर्त्तव्य की आन्तरिक भावना नैतिकता है, जो उचित एवं अनुचित पर बल देती है। नैतिकता की विभिन्न परिभाषाएँ इस प्रकार हैं-
महात्मा गाँधी नैतिक कार्य उसे मानते थे, जिसमें सदैव सार्वजनिक कल्याण की भावना निहित हो। स्वेच्छा से शुभ कर्मों का आचरण ही नैतिकता है।

पंडित मदन मोहन मालवीय के कथनानुसार, “नैतिकता मनुष्य की उन्नति का मूल आधार है। नैतिकता विहीन मनुष्य पशु से भी निम्न है। नैतिकता एक व्यापक गुण सर्वपल्ली डॉ० राधाकृष्णन् के अनुसार, “नैतिकता व्यक्ति के आध्यात्मिक, बौद्धिक एवं सामाजिक विकास का आधार है। नैतिकता का प्रभाव व्यक्ति के सभी क्रियाकलापों पर पड़ता है।” पश्चिमी विचारक नैतिकता को एक धार्मिक गुण मानते हैं। इन गुणों में आत्म-संयम, त्याग, दया, परोपकार, सहष्णुिता, सेवा आदि सम्मिलित हैं।। इसी कारण हरबर्ट ने उच्चतर विचारों के सृजन एवं निम्न प्रवृत्तियों के दमन को नैतिकता कहा है।

नैतिक शिक्षा वस्तुतः मानवीय सद्वृत्तियों को उजागर करती है। यदि यह कहा जाए कि नैतिक शिक्षा ही मानवता का मूल है तो असंगत न होगा। नैतिक शिक्षा के अभाव में मानवता पनप ही नहीं सकती। क्योंकि मानव की कुत्सित वृत्तियाँ विश्व के लिए अभिशाप हैं। इन्हें केवल नैतिक शिक्षा से ही नियन्त्रित किया जा सकता है। इसी के माध्यम से उसमें नव-चेतना का संचार हो सकता है। नैतिक शिक्षा ही व्यक्ति को उसके परम आदर्श की प्रेरणा दे सकती है और उसे श्रेष्ठ मनुष्य बनाती है।

नैतिक शिक्षा का सम्बन्ध छात्र-छात्रओं की आन्तरिक वृत्तियों से है। नैतिक शिक्षा उनके चरित्र-निर्माण का एक माध्यम है। चरित्र ही जीवन का मूल आधार है। अंग्रेजी में यह कथन प्रसिद्ध हैं
“If wealth is gone, nothing is gone,
If health is gone, something is gone,
If character is gone, everything is gone.”
(यदि हमने धन खोया तो कुछ नहीं खोया, यदि हमने स्वास्थ्य खोया तो कुछ खोया, परन्तु यदि हमने अपना चरित्र खोया तो अपना सब कुछ खो दिया।)

इसलिए चरित्र की रक्षा करना नैतिक शिक्षा का मूल उद्देश्य है। नैतिकता को आचरण में स्वीकार किए बिना मनुष्य जीवन में वास्तविक सफलता नहीं प्राप्त कर सकता। छात्रछात्राओं के चरित्र को विकसित एवं संवद्धित करने के लिए नैतिक शिक्षा अनिवार्य है। नैतिक शिक्षा के प्रमुख उद्देश्य इस प्रकार हैं-
(i) सर्वांगीण विकास-छात्र-छात्राओं के नैतिक गुणों को प्रफुल्लित करना नैतिक शिक्षा का मुख्य उद्देश्य है, कि वे आगे चलकर देश के आदर्श नागरिक बन सकें। शिष्टाचार, सदाचार, अनुशासन, आत्म संयम, विनम्रता, करुणा, परोपकार, साहस, मानवप्रेम, देशभक्ति, परिश्रम, धैर्यशीलता आदि नैतिक गुण हैं। इनका उत्तरोत्तर विकास नितान्त आवश्यक है। यह कार्य नैतिक शिक्षा के द्वारा ही परिपूर्ण हो सकता है।

(ii) धार्मिक सहिष्णुता-छात्र-छात्राओं में धार्मिक सहिष्णुता को विकसित करना भी नैतिक शिक्षा का उद्देश्य है। छात्र विभिन्न धर्मों के मूल तत्वों से परिचित हों, आज के सन्दर्भ में यह बहुत ही आवश्यक बात है क्योंकि ऐसी स्थिति में ही उन्हें सभी धर्मों के समन्वय सूत्रों की एकता दिखाई देगी। छात्रों के हृदय में धार्मिक सहिष्णुता विकसित होगी। उन्हें धार्मिक संकीर्णता से दूर रखने में नैतिक शिक्षा ही उपयोगी सिद्ध हो सकती है।

(iii) देश-भक्ति-नैतिक शिक्षा से ही छात्र-छात्राओं में देश-भक्ति के अटूट भाव पल्लवित हो सकते हैं। वैयक्तिक स्वार्थों से ऊपर उठकर उनमें देश के हित को प्राथमिकता प्रदान करने के विचार पनप सकते हैं। नैतिक शिक्षा से छात्र देश के प्रति सदैव जागरूक रहते हैं।

(iv) विश्व बन्धुत्व की भावना-नैतिक शिक्षा से छात्र-छात्राओं में विश्व बन्धुत्व की भावना को जागृत किया जा सकता है। जब छात्रों में यह भाव विकसित होगा कि मानव उस विराट पुरुष की कृति है तो उनके समक्ष “वसुधैव कुटुम्बकम्” का महान् आदर्श साकार हो सकता है। यह तभी हो सकता है, जब उन्हें नैतिक शिक्षा दी गई हो।

महात्मा गाँधी जी कहा करते थे-“स्कूल या कॉलेज पवित्रता का मन्दिर होना चाहिए, जहाँ कुछ भी अपवित्र या निकृष्ट न हो। स्कूल-कॉलेज तो चरित्र निर्माण की शालाएँ हैं।” इस कथन का सारांश यही है कि नैतिक शिक्षा छात्र-छात्राओं के लिए अनिवार्य हैं।

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26. दाँतों की आत्म-कथा
अथवा
दाँत कुछ कहते हैं

हमारा निवास स्थान मुँह है। हमारी टीम के 32 सदस्य हैं। हमारा मुख्य काम भोजन को चबाना है। भोजन के छोटे-छोटे टुकड़े करना और पीस कर चबाना हमारे परिवार के विभिन्न सदस्यों का काम है। भोजन को चबाने के अलावा ठीक प्रकार से और सही बोलने के लिए भी हमारा होना बहुत ज़रूरी है। हमारा जन्म शरीर के दूसरे अंगों की तरह न होकर बाद में एक-एक, दोदो करके मसूढ़ों पर होता है। हम आपकी सेवा तभी कर सकेंगे यदि आप भी हमारा ठीक से ध्यान रखेंगे। नियमित रूप से हमारी सफ़ाई होनी चाहिए। अगर सफ़ाई न हो तो भोजन के छोटे-छोटे टुकड़े हम में फंसे रह जाते हैं। वे वहाँ पड़े-पड़े सड़ने लगते हैं। इनमें कीटाणु पैदा होकर एक प्रकार का तेज़ाब तैयार कर देते हैं। इस तेजाब के प्रभाव से एनेमल की ऊपरी तह संक्षारित (नष्ट) हो जाती है। एनेमल की तह हटते ही ये कीटाणु हमारी जड़ों तक पहुँच कर हमें खोखला कर देते हैं। अन्त में हम एक-एक करके आपकी सेवा करना छोड़ देते हैं।

सफ़ाई के अलावा हमें अपने व्यायाम की भी ज़रूरत होती है। सख्त पदार्थ खाने से हमारा व्यायाम होता है। मगर बहुत सख्त चीज़ हम से तुड़वाने की कोशिश न करो। हो सकता है ऐसा करने में हमारा कोई साथी जवाब दे जाए। यदि आप अपने आपको तन्दरुस्त रखना चाहते हैं तो पहले हमें स्वस्थ रखें। हमें स्वस्थ रखने के लिए कैल्शियम, फॉस्फोरस, विटामिन सी और डी युक्त भोजन खाना चाहिए। अगर किसी भी कारण से हमारी सेहत कमज़ोर होती दिखाई दे तो तुरन्त ही डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए न कि खुद ही कोई उल्टा-पुल्टा इलाज करने लग जाएँ। क्योंकि नीमहकीम खतरा जान। आप हमारे मालिक हैं और हम आपके सेवक हैं। हम आपके दाँत हैं जिनके महत्त्व के बारे में किसी ने कहा है-दाँत गए तो स्वाद ही गया।

सबको अपने दाँतों का ख्याल रखना चाहिए। बच्चों में दाँतों की देख-रेख के विचार शुरू से ही पैदा करने चाहिएँ। खूबसूरत दाँत सबको अच्छे लगते हैं। बहुत-सी बीमारियां दाँतों की खराबी के कारण पैदा हो जाती हैं। इसलिए हमेशा अपने दाँतों की रक्षा करो।

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27. सह-शिक्षा

सह-शिक्षा का तात्पर्य है, लड़के लड़कियों का एक साथ पढ़ना। भारत में सह-शिक्षा का प्रचलन अंग्रेज़ी शासन के समय उन्नीसवीं सदी में हुआ। कुछ धार्मिक संस्थाएँ सहशिक्षा का विरोध कर रही हैं। ऐसी संस्थाओं ने अपने अधीन चलने वाले स्कूल और कॉलेज लड़के और लड़कियों के लिए अलग-अलग खोल रखे हैं। किन्तु सह-शिक्षा आज के समय की आवश्यकता बन चुकी है। इसे विकास और प्रगति के साथ जोड़कर देखा जाता है।

सह-शिक्षा भले ही उन्नीसवीं सदी में भारत में आई किन्तु प्राचीन भारत में भी सहशिक्षा का प्रचलन था। गुरुकुलों में ऋषिकन्याएँ भी अन्य कुमारों के साथ पढ़ा करती थीं। क्योंकि उन दिनों गुरुकुल को एक पवित्र स्थान माना जाता था। बाल्मीकि जी के आश्रम में आत्रेयी और कण्व ऋषि के आश्रम में शकुन्तला और उसकी सखियाँ अन्य कुमारों के साथ ही पढ़ती थीं। उस युग में ही नहीं आज भी चरित्र निर्माण के लिए सह-शिक्षा एक ज़रूरी कदम माना जाता था और है।

सह-शिक्षा शिक्षा पर होने वाले खर्च को भी बचाती है। जब हमारे समाज सुधारकों ने स्त्री शिक्षा पर बल दिया तब लड़कियों के लिए अलग से स्कूल खोलना आर्थिक दृष्टि से सम्भव न था अतः लड़कियों को लड़कों के स्कूल में ही भर्ती किया जाने लगा।

सह-शिक्षा का एक लाभ यह भी है कि लड़के-लड़कियों के एक साथ पढ़ने पर उनके स्वाभाविक गुणों का विकास होता है। उनमें विनय, शिष्टाचार, आचरण की शुद्धता तथा एक-दूसरे से सहानुभूति के भाव जाग्रत होते हैं। दोनों के साथ पढ़ने पर एक स्वस्थ वातावरण पैदा होता है। लड़के-लड़कियाँ एक-दूसरे के स्वभाव को समझने में सक्षम होते सह-शिक्षा के लाभ से आँख मूंदते हुए आज भी बहुत-से लोग इसका विरोध कर रहे हैं । वे अपने पक्ष में बौद्ध विहारों की पुरानी घटना का हवाला देने के साथ-साथ टेलीविज़न पर दिखाए एक कार्यक्रम का भी हवाला देते हैं जिसमें दिखाया गया था कि किस प्रकार सह-शिक्षा वाले स्कूलों में लड़के-लड़कियाँ बिगड़ रहे हैं। कुछ भी हो हर एक चीज़ के यहाँ लाभ होते हैं वहाँ कुछ हानियाँ तो होती ही हैं।

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28. मेरा पंजाब

पंजाब को पाँच पानियों की धरती कहा जाता है किन्तु विभाजन के बाद यह प्रदेश तीन पानियों (नदियों) की धरती ही रह गया है। 1 नवम्बर, सन् 1966 से पंजाब में से हरियाणा और हिमाचल प्रदेश अलग कर दिए गए, जिससे वर्तमान पंजाब और छोटा हो गया है। वर्तमान पंजाब का क्षेत्रफल 50,362 वर्ग किलोमीटर है तथा सन् 2001 को जनसंख्या के आँकड़ों के अनुसार इसकी जनसंख्या 2.42 करोड़ है।

गुरुओं, पीरों-पैगम्बरों, ऋषि मुनियों की पंजाब की इस धरती ने भारत पर होने वाले प्रत्येक आक्रमण का सामना किया। यूनान के सिकन्दर महान् के आक्रमण को तो पंजाबियों ने खदेड़ दिया था किन्तु मुहम्मद गौरी के आक्रमण का आपसी फूट के कारण मुकाबला न कर सके। राष्ट्रीयता की कमी के कारण यहाँ मुसलमानी शासन स्थापित हो गया। किन्तु शूरवीरता, देशभक्ति पंजाबियों की रग-रग में भरी रही। इसका प्रमाण पंजाबियों ने पहले तथा दूसरे विश्व युद्ध में तथा सन् 1948, 1965 और 1971 के पाकिस्तान के हुए युद्धों तथा मई 1999 में हुए कारगिल युद्ध में दिया।

पंजाबी लोग दुनिया के कोने-कोने में फैले हुए हैं वहाँ उन्होंने अपने परिश्रमी स्वरूप की धाक जमा दी है। पंजाब के किसान देश के अन्य भण्डार में सबसे अधिक अनाज देते हैं इसका कारण यहाँ की उपजाऊ भूमि, आधुनिक कृषि तकनीक तथा सिंचाई सुविधाओं का विस्तार है। यहाँ की मुख्य उपज गेहूँ, कपास, गन्ना, मक्की और मूंगफली आदि है। सब्जियों में आलू, मटर की पैदावार के लिए पंजाब जाना जाता है। पंजाब में औद्योगिक क्षेत्र में भी काफ़ी उन्नति की है। लुधियाना हौजरी के सामान के लिए, जालन्धर खेलों के सामान के लिए, अमृतसर सूती व ऊनी कपड़े के उत्पादन के लिए जाने जाते हैं। मण्डी गोबिन्दगढ़ इस्पात उद्योग तथा नंगल और बठिण्डा खाद बनाने के कारखानों के लिए जाने जाते हैं।

शिक्षा के प्रसार के लिए पंजाब देशभर में दूसरे नम्बर पर है। पंजाब में छ: विश्वविद्यालय, सैंकड़ों कॉलेज और हज़ारों स्कूल हैं। पंजाब की इस प्रगति के कारण इस प्रदेश में प्रति व्यक्ति की औसत आय 20 से 30 हज़ार वार्षिक है। गुरुओं, पीरों, महात्माओं और वीरों की यह धरती उन्नति के शिखरों को छू रही है।

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29. चण्डीगढ़

चण्डीगढ़ देश का पहला पूर्णतः आयोजित शहर है। इस शहर की नींव 7 अक्तूबर, सन् 1953 को देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ० राजेन्द्र प्रसाद द्वारा रखी गयी थी। इस सुन्दर और आदर्श शहर की योजना फ्रांस के एक इंजीनियर एस० डी० कारबूजियर द्वारा तैयार की गई है। पूरा शहर आयतकार सैक्टरों में बँटा हुआ है। प्रत्येक सैक्टर को स्वावलम्बी बनाने के लिए स्कूल, डाकखाना, डिस्पैंसरी, धार्मिक स्थान, मार्कीट, पार्क आदि की व्यवस्था की गई है। सैक्टर 17 को केवल क्रय-विक्रय, होटलों, कार्यालयों आदि के लिए ही रखा गया है। अधिकांश उद्योग राम दरबार में स्थापित हैं।

पयर्टकों के लिए भी यहाँ अनेक दर्शनीय स्थान हैं, जिनमें रॉक-गार्डन, सुखना लेक, रोज़ गार्डन आदि प्रमुख हैं। जहाँ की चौड़ी-चौड़ी सड़कें और सड़कों के दोनों ओर लगे छायादार वृक्ष इस शहर की शोभा को चार चाँद लगाते हैं। शिक्षा के क्षेत्र में भी चण्डीगढ़ किसी से पीछे नहीं है। पूरा सैक्टर 14 पंजाब विश्वविद्यालय के लिए रखा गया है। सैक्टर 12 में इन्जीनियरिंग कॉलेज, सैक्टर 32 में मैडिकल कॉलेज तथा कोई दर्जन भर लड़के-लड़कियों के कॉलेज हैं।

चिकित्सा के क्षेत्र में भी चण्डीगढ़ पंजाब और हरियाणा की सेवा कर रहा है। सैक्टर 12 में पी० जी० आई०, सैक्टर 16 और सैक्टर 32 में सरकारी अस्पताल हैं। सांस्कृतिक, धार्मिक एवं सामाजिक गतिविधियों के लिए सैक्टर 15 में गुरु गोबिन्द सिंह भवन, लाला लाजपतराय भवन विद्यमान है तो सैक्टर 18 में टैगोर थियेटर बना है।

चण्डीगढ़ के विषय में एक विशेष बात यह है कि इसमें कोई 13 नम्बर का सैक्टर नहीं चण्डीगढ़ में सचिवालय, विधानसभा तथा उच्च न्यायालय के भवन आधुनिक वास्तुकला का सुन्दर नमूना है। चण्डीगढ़ को बाबूओं का शहर भी कहा जाता है क्योंकि बहुत-से सरकारी कर्मचारी अवकाश प्राप्त करने के बाद यहीं बस गए हैं। चण्डीगढ़ में अनेक बहुराष्ट्रीय कम्पनियों ने अपने कार्यालय खोलकर इस शहर की रौनक को और भी बढ़ा दिया है। केन्द्रीय आँकड़ा संस्थान सन् 2005-06 की जो रिपोर्ट भारतीय संसद् में 5-12-2007 को प्रस्तुत की गई थी उसके अनुसार चण्डीगढ़ देश भर में प्रतिव्यक्ति की वार्षिक औसत आय के हिसाब से सबसे आगे है। 2001 की जनगणना के अनुसार चण्डीगढ़ की जनसंख्या नौ लाख के करीब थी। जो निश्चय रूप से अब बहुत अधिक बढ़ चुकी है। इसे देश भर के सुंदर नगरों में स्थान दिया जाता है।

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30. प्रातः काल की सैर

कहा जाता है कि प्रातः काल उठना, सैर को जाना व्यक्ति के स्वस्थ व निरोग रहने का सबसे बढ़िया और सस्ता साधन है। शीघ्र सोने और शीघ्र उठने से व्यक्ति स्वस्थ, सम्पन्न और बुद्धिमान बनता है। लेकिन आजकल कोई भी छात्र इस नियम का पालन नहीं करता। इस का बड़ा कारण तो यह है कि छात्र देर रात तक टेलीविज़न से चिपके रहते हैं और फिर सुबह सवेरे स्कूल जाने की तैयारी करनी होती है। छात्रों को यह बात अच्छी तरह समझ लेनी चाहिए कि उनके लिए जितनी पढ़ाई ज़रूरी है उतना ही अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखना भी ज़रूरी है और स्वस्थ रहने के लिए छात्रों को ही नहीं बल्कि प्रत्येक व्यक्ति को प्रात:काल में सैर अवश्य करनी चाहिए।

प्रात:काल का समय अत्यन्त सुहावना होता है। व्यक्ति को शुद्ध प्रदूषण रहित वायु मिलती है। प्रात:कालीन सैर के अनेक लाभ हैं। यह ईश्वर द्वारा दी गई ऐसी औषधि है जो प्रत्येक अमीर-गरीब को समान रूप से नि:शुल्क मिलती है। प्रात:काल की सैर मनुष्य को नीरोग रखने में सहायक होती है। व्यक्ति का शरीर बलिष्ठ और सुन्दर बनता है। मस्तिष्क को शक्ति और शान्ति मिलती है जिससे व्यक्ति की स्मरण शक्ति का विकास होता है, जिसकी विद्यार्थियों को बहुत ज़रूरत है।

हमारे शास्त्रों में लिखा है कि प्रात:काल में, सूर्योदय से पहले, पीपल के वृक्ष के नीचे खड़े होकर 21 बार गायत्री मन्त्र का जाप करना चाहिए। आज के वैज्ञानिक भी इस तथ्य को स्वीकार करते हैं कि पीपल का वृक्ष यों तो 24 घण्टे ऑक्सीजन छोड़ता है किन्तु ब्रह्म मुहूर्त में वह दुगुनी ऑक्सीजन छोड़ता है और गायत्री मन्त्र ऐसा मन्त्र है जिसके उच्चारण से शरीर के प्रत्येक अंग में ऑक्सीजन पहुँचती है। अतः इस तथ्य को प्रातः सैर करते हुए ध्यान में रखना चाहिए।

प्रात:काल की सैर करते समय हमें अपनी चाल न बहुत तेज़ और न बहुत धीमी रखनी चाहिए। दूसरे प्रात:काल की सैर नियमित रूप से की जानी चाहिए तभी उसका लाभ होगा। हमें याद रखना चाहिए कि प्रात:कालीन सैर शारीरिक दृष्टि से ही नहीं मानसिक दृष्टि से भी अत्यन्त गुणकारी है।

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31. स्वतन्त्रता दिवस-15 अगस्त

15 अगस्त भारत के राष्ट्रीय त्योहारों में से एक है। इस दिन भारत को स्वतन्त्रता प्राप्त हुई थी। लगभग डेढ़ सौ वर्षों की अंग्रेजों की गुलामी से भारत मुक्त हुआ था। राष्ट्र के स्वतन्त्रता संग्राम में अनेक युवाओं ने बलिदान दिए थे। नेता जी सुभाष चन्द्र बोस का लाल किले पर तिरंगा फहराने का सपना इसी दिन सच हुआ था।

देश में स्वतन्त्रता दिवस सभी भारतवासी बिना किसी प्रकार के भेदभाव के अपने-अपने ढंग से प्रायः हर नगर, गाँव में तो मनाते ही हैं, विदेशों में रहने वाले भारतवासी भी इस दिन को बड़े उत्साह के साथ मनाते हैं। राष्ट्रीय स्तर पर स्वतन्त्रता दिवस का मुख्य कार्यक्रम दिल्ली के लाल किले पर होता है। लाल किले के सामने का मैदान और सड़कें दर्शकों से खचाखच भरी होती हैं। 15 अगस्त की सुबह देश के प्रधानमन्त्री पहले राजघाट पर जाकर महात्मा गाँधी की समाधि पर श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं फिर लाल किले के सामने पहुँच सेना के तीनों अंगों तथा अन्य बलों की परेड का निरीक्षण करते हैं।

उन्हें सलामी दी जाती है और फिर प्रधानमन्त्री लाल किले की प्राचीर पर जाकर तिरंगा फहराते हैं, राष्ट्रगान गाया जाता है और राष्ट्र ध्वज को 31 तोपों से सलामी दी जाती है। ध्वजारोहण के पश्चात् प्रधानमन्त्री राष्ट्र को सम्बोधित करते हुए एक भाषण देते हैं। अपने इस भाषण में प्रधानमन्त्री देश के कष्टों, कठिनाइयों, विपदाओं की चर्चा कर उनसे राष्ट्र को मुक्त करवाने का संकल्प करते हैं। देश की भावी योजनाओं पर प्रकाश डालते हैं। अपने भाषण के अन्त में प्रधानमन्त्री तीन बार जयहिंद का घोष करते हैं। तीन बार जयहिंद का घोष करने की प्रथा भारत के पहले प्रधानमन्त्री पं० जवाहर लाल नेहरू ने शुरू की थी, जिसका उनके बाद आने वाले सारे प्रधानमन्त्री अनुसरण करते हैं। प्रधानमन्त्री के साथ एकत्रित जनसमूह जयहिंद का नारा लगाते हैं। अन्त में राष्ट्रीय गीत के साथ प्रात:कालीन समारोह समाप्त हो जाता है।

सायंकाल में सरकारी भवनों पर विशेषकर लाल किले में रोशनी की जाती है। प्रधानमन्त्री दिल्ली के प्रमुख नागरिकों, सभी राजनीतिक दलों के नेताओं, विभिन्न धर्मों के आचार्यों और विदेशी राजदूतों एवं कूटनीतिज्ञों को सरकारी भोज पर आमन्त्रित करते हैं।

15 अगस्त राष्ट्र की स्वतन्त्रता के लिए शहीद होने वाले वीरों को याद करने का दिन भी है। इस दिन शहीदों की समाधियों पर माल्यार्पण किया जाता है। 15 अगस्त अन्य कारणों से भी महत्त्वपूर्ण है। इस दिन पाण्डिचेरी के सन्त महर्षि अरविन्द का जन्मदिन है तथा स्वामी विवेकानन्द के गुरु स्वामी रामकृष्ण परमहंस की पुण्यतिथि है। इस दिन हमें अपने राष्ट्र ध्वज को नमस्कार कर यह संकल्प दोहराना चाहिए कि हम अपने तन, मन, धन से अपनी स्वतन्त्रता की रक्षा करेंगे।

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32. गणतन्त्र दिवस-26 जनवरी

भारत के राष्ट्रीय पर्वो में 26 जनवरी को मनाया जाने वाला गणतन्त्र दिवस विशेष महत्त्व रखता है। हमारा देश 15 अगस्त, सन् 1947 को अनेक बलिदान देने के बाद, अनेक कष्ट सहने के बाद स्वतन्त्र हुआ था। किन्तु स्वतन्त्रता के पश्चात् भी हमारे देश में ब्रिटिश संविधान ही लागू था। अतः हमारे नेताओं ने देश को गणतन्त्र बनाने के लिए अपना संविधान बनाने का निर्णय किया। देश का अपना संविधान 26 जनवरी, सन् 1950 के दिन लागू किया गया। संविधान लागू करने की तिथि 26 जनवरी ही क्यों रखी गई इसकी भी एक पृष्ठभूमि है। 26 जनवरी, सन् 1930 को पं० जवाहर लाल नेहरू ने अपनी दृढ़ता एवं ओजस्विता का परिचय देते हुए पूर्ण स्वतन्त्रता के समर्थन में जुलूस निकाले, सभाएं कीं। अतः संविधान लागू करने की तिथि भी 26 जनवरी ही रखी गई।

26 जनवरी को प्रात: 10 बजकर 11 मिनट पर मांगलिक शंख ध्वनि से भारत के गणराज्य बनने की घोषण की गई। डॉ० राजेन्द्र प्रसाद को सर्वसम्मति से देश का प्रथम राष्ट्रपति चुना गया। राष्ट्रपति भवन जाने से पूर्व डॉ० राजेन्द्र प्रसाद ने राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की समाधि पर पुष्पांजलि अर्पित की। उस दिन संसार भर के देशों से भारत को गणराज्य बनने पर शुभकामनाओं के सन्देश प्राप्त हुए।

गणतन्त्र दिवस का मुख्य समारोह देश की राजधानी दिल्ली में मनाया जाता है। सबसे पहले देश के प्रधानमन्त्री इण्डिया गेट पर प्रज्ज्वलित अमर ज्योति जाकर राष्ट्र की ओर से शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। मुख्य समारोह विजय चौक पर मनाया जाता है। यहाँ सड़क के दोनों ओर अपार जन समूह गणतन्त्र के कार्यक्रमों को देखने के लिए एकत्रित होते हैं। शुरू-शुरू में राष्ट्रपति भवन से राष्ट्रपति की सवारी छः घोड़ों की बग्गी पर चला करती थी। किन्तु सुरक्षात्मक कारणों से सन् 1999 से राष्ट्रपति गणतन्त्र दिवस समारोह में बग्घी में नहीं कार में पधारते हैं। परम्परानुसार किसी अन्य राष्ट्र के राष्ट्राध्यक्ष या राष्ट्रपति अतिथि रूप में उनके साथ होते हैं। तीनों सेनाध्यक्ष राष्ट्रपति का स्वागत करते हैं। तत्पश्चात् राष्ट्रपति प्रधानमन्त्री का अभिवादन स्वीकार कर आसन ग्रहण करते हैं।

इसके बाद शुरू होती है गणतन्त्र दिवस की परेड। सबसे पहले सैनिकों की टुकड़ियाँ होती हैं, उसके बाद घोड़ों, ऊँटों पर सवार सैन्य दस्तों की टुकड़ियाँ होती हैं। सैनिक परेड के पश्चात् युद्ध में प्रयुक्त होने वाले अस्त्र-शस्त्रों का प्रदर्शन होता है। इस प्रदर्शन से दर्शकों में सुरक्षा और आत्मविश्वास की भावना पैदा होती है। सैन्य प्रदर्शन के पश्चात् विविधता में एकता दर्शाने वाली विभिन्न राज्यों की सांस्कृतिक झांकियाँ एवं लोक नृतक मण्डलियाँ इस परेड में शामिल होती हैं।

सायंकाल को सरकारी भवनों पर रोशनी की जाती है तथा रंग-बिरंगी आतिशबाजी छोड़ी जाती है। इस प्रकार सभी तरह के आयोजन भारतीय गणतन्त्र की गरिमा और गौरव के अनुरूप ही होते हैं। जिन्हें देखकर प्रत्येक भारतीय यह प्रार्थना करता है कि अमर रहे गणतन्त्र हमारा।

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33. राष्ट्र भाषा हिन्दी

भारत 15 अगस्त, 1947 को स्वतन्त्र हुआ और 26 जनवरी, 1950 से अपना संविधान लागू हुआ। भारतीय संविधान के सत्रहवें अध्याय की धारा 343 (1) के अनुसार ‘देवनागरी लिपि में हिन्दी’ को भारतीय संघ की राजभाषा और देश की राष्ट्रभाषा घोषित किया गया है। संविधान में ऐसी व्यवस्था की गई थी सन् 1965 से देश के सभी कार्यालयों, बैंकों, आदि में सारा कामकाज हिन्दी में होगा। किन्तु खेद का विषय है कि स्वतन्त्रता प्राप्ति के साठ वर्ष बाद भी सारा काम काज अंग्रेज़ी में ही हो रहा है। देश का प्रत्येक व्यक्ति यह बात जानता है कि अंग्रेजी एक विदेशी भाषा है और हिन्दी हमारी अपनी भाषा है।

महात्मा गाँधी जैसे नेताओं ने भी हिन्दी भाषा को ही अपनाया था हालांकि उनकी अपनी मातृ भाषा गुजराती थी। उन्होंने हिन्दी के प्रचार के लिए ही ‘दक्षिण भारत में हिन्दी प्रचार सभा’ प्रारम्भ की थी। उन्हीं के प्रयास का यह परिणाम है कि आज तमिलनाडु में हिन्दी भाषा पढ़ाई जाती है, लिखी और बोली जाती है। वास्तव में हिन्दी को राष्ट्रभाषा का दर्जा इसलिए दिया गया क्योंकि यह भाषा देश के अधिकांश भाग में लिखी-पढी और बोली जाती है। इसकी लिपि और वर्णमाला वैज्ञानिक और सरल है। आज हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, मध्य प्रदेश, राजस्थान की राजभाषा हिन्दी घोषित हो चुकी है।

हिन्दी भाषा का विकास उस युग में भी होता रहा जब भारत की राजभाषा हिन्दी नहीं थी। मुग़लकाल में राजभाषा फ़ारसी थी, तब भी सूर, तुलसी, आदि कवियों ने श्रेष्ठ हिन्दी साहित्य की रचना की। उन्नीसवीं शताब्दी में अंग्रेज़ी शासन के दौरान अंग्रेज़ी राजभाषा रही तब भी भारतेन्दु, मैथिलीशरण गुप्त और प्रसाद जी आदि कवियों ने उच्च कोटि का साहित्य रचा। इसका एक कारण यह भी था कि हिन्दी सर्वांगीण रूप से हमारे धर्म, संस्कृति और सभ्यता और नीति की परिचायक है। भारतेन्दु हरिशचन्द्र जी ने आज से 150 साल पहले ठीक ही कहा था

निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल। . बिन निज भाषा ज्ञान के, मिटत न हिय को शूल लेकिन खेद का विषय है कि स्वतन्त्रता प्राप्ति के पैंसठ वर्ष से भी अधिक हो जाने के बाद भी हिन्दी के साथ सौतेला व्यवहार हो रहा है। अपने विभिन्न राजनीतिक स्वार्थों के कारण विभिन्न राजनेता इसके वांछित और स्वाभाविक विकास में रोड़े अटका रहे हैं। अंग्रेज़ों की विभाजन करो और राज करो की नीति पर आज हमारी सरकार भी चल रही है जो देश की विभिन्न जातियों, सम्प्रदायों और, वर्गों के साथ-साथ भाषाओं में जनता को बाँट रही है ऐसा वह अपने वोट बैंक को ध्यान में रख कर कर रही है। यह मानसिकता हानिकारक है और इसे दूर किया जाना चाहिए। हमें अंग्रेजी की दासता से मुक्त होना चाहिए।

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34. राष्ट्रीय एकता

भारत एक अरब से ऊपर. जनसंख्या वाला देश है जिसमें विभिन्न धर्मों, सम्प्रदायों, जातियों के लोग रहते हैं। उनकी भाषाएं भी अलग-अलग हैं, उनकी वेश-भूषा, रीति रिवाज भी अलग-अलग हैं किन्तु फिर भी सब एक हैं जैसे एक माला में रंग-बिरंगे फूल होते हैं। भारत एक धर्म-निरपेक्ष राष्ट्र है। हमारी राष्ट्रभाषा एक है। देश के सभी लोगों को समान अधिकार प्राप्त हैं। – नवम्बर, 2008 में मुम्बई में पाकिस्तानी आतंकवादियों के आक्रमण के समय भारतवासियों ने जिस प्रकार एक जुटता दिखाई उसका उदाहरण मिलना कठिन है। इससे पूर्व भी पाकिस्तानी आक्रमणों के समय अथवा प्राकृतिक आपदाओं के समय ऐसी ही एक जुटता दिखाई थी। इस से यह स्पष्ट होता है कि भारतवासियों में राष्ट्रीयता की भावना कूट-कूट कर भरी है। वे चाहे किसी धर्म को मानते हों, किसी जाति के हों, यही कहते हैं-गर्व से कहो कि हम भारतीय हैं।

पाकिस्तान और उसके भारत में मौजूद कुछ पिठू पाण्डवों की इस उक्ति को भूल जाते हैं कि उन्होंने कहा था पाण्डव पाँच हैं और कौरव 100 किसी बाहरी शत्रु के लिए हम एक सौ पाँच हैं। वास्तव में पाकिस्तान हमारी उन्नति और विकास को देखकर ईर्ष्या से जलभुन रहा है। पिछले साठ वर्षों में भी वहाँ लोकतन्त्रात्मक शासन प्रणाली चालू नहीं हो सकी। इसलिए अपनी कमियों को छिपाने के लिए अपने लोगों का ध्यान बँटाने के लिए कभी कश्मीर का मुद्दा और कभी कोई दूसरा मुद्दा उठाता रहा है।

पड़ोसी देश ही नहीं कुछ भारतीय भी हमारी राष्ट्रीयता को खंडित करने पर तुले हैं। ऐसे लोग अपने स्वार्थ, अपने वोट बैंक और सत्ता हथियाने के चक्र में जो प्रान्तवाद का नारा लगाते हैं। अभी हाल ही में महाराष्ट्र में प्रान्तवाद के नाम पर जो हिंसा और गुण्डागर्दी हुई वह हमारी राष्ट्रीयता को खंडित करने वाला ही कदम है। हमारा ऐसा मानना है कि सरकार ने भी भाषा के नाम पर देश का बंटवारा कर राष्ट्रीयता को ठेस पहुँचाई है। रही-सही कसर वोट बैंक की राजनीति कर रही है। यदि ईमानदारी से इन बातों को दूर करने का प्रयत्न किया जाए तो राष्ट्रीय एकता के बलबूते भारत विकसित देशों में शामिल हो सकता है।

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35. साम्प्रदायिक सद्भाव

साम्प्रदायिक एकता के प्रथम दर्शन हमें सन् 1857 के स्वतन्त्रता संग्राम के दौरान देखने को मिले। उस समय हिन्दू-मुसलमानों ने कंधे से कंधा मिलाकर अंग्रेज़ों से टक्कर ली थी। अंग्रेज़ बड़ी चालाक कौम थी। उस की चालाकी से मुहम्मद अली जिन्ना ने सन् 1940 में पाकिस्तान की माँग की और अंग्रेजों ने देश छोड़ने से पहले साम्प्रदायिक आधार पर देश के दो टुकड़े कर दिये। विश्व में पहली बार आबादी का इतना बड़ा आदान-प्रदान हुआ। हिन्दू-मुस्लिम दंगे हुए जिसमें लाखों मारे गए।

सन् 1950 में देश का संविधान बना और भारत को एक धर्म-निरपेक्ष गणतन्त्र घोषित किया गया। प्रत्येक जाति, धर्म, सम्प्रदाय को पूर्ण स्वतन्त्रता दी गई और सब धर्मों को समान सम्मान दिया गया। आप जानकर शायद हैरान होंगे कि विश्व में सर्वाधिक मुस्लिम जनसंख्या भारत में ही है। बहुत-से देशभक्त मुसलमान पाकिस्तान नहीं गए। लेकिन पाकिस्तान क्योंकि बना ही धर्म पर आधारित देश था अतः वह आज तक हमारे देश के साम्प्रदायिक सद्भाव को नष्ट करने की कोशिश कर रहा है। पाकिस्तान में स्वतन्त्रता के साठ वर्ष बाद भी जनतान्त्रिक प्रणाली लागू नहीं हो सकी और भारत विश्व का सबसे बड़ा जनतान्त्रिक देश बन गया है।

हम यह जानते हैं कि कोई भी धर्म हिंसा, घृणा या विद्वेष नहीं सिखाता। सभी धर्म या सम्प्रदाय मनुष्य की नैतिकता, सहिष्णुता व शान्ति का पाठ पढ़ाते हैं। किन्तु कुछ कट्टरपन्थी धार्मिक नेता अपने स्वार्थ के लिए लोगों में धार्मिक भावनाएँ भड़का कर देश में अशान्ति और अराजकता फैलाने का यत्न करते हैं। हमें याद रखना चाहिए कि मज़हब नहीं सिखाता आपस में वैर रखना, हिन्दी हैं हम वतन है हिन्दोस्तां हमारा। साम्प्रदायिक सद्भाव बनाए रखने पर ही हम विकासशील देशों की सूची से निकल कर विकसित देशों में शामिल हो सकते हैं।

हमारी सरकार भले ही धर्म-निरपेक्ष होने का दावा करती है किन्तु वोट बैंक की राजनीति को ध्यान में रखकर वह एक ही धर्म की तुष्टिकरण के लिए जो कुछ कर रही है उसके कारण धर्मों और जातियों में दूरी कम होने की बजाए और भी बढ़ रही है। धर्मनिरपेक्षता को यदि सही अर्थों में लागू किया जाए तो कोई कारण नहीं कि धार्मिक एवं साम्प्रदायिक सद्भाव न बन सके। जनता को भी चाहिए कि वह साम्प्रदायिक सद्भाव बिगाड़ने वाले नेताओं से चाहे वे धार्मिक हों या राजनीतिक, बचकर रहे, उनकी बातों में न आएँ।

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36. टेलीविज़न के लाभ-हानियाँ

मानव आदिकाल से ही काम के बाद मनोरंजन के साधनों की खोज में रहा है। प्राचीन काल में नाटक, रासलीला, रामलीला या त्योहार मनुष्य के मनोरंजन का साधन हुआ करते थे। फिर रेडियो, सिनेमा या ग्रामोफोन द्वारा लोगों के मनोरंजन के साधन बने। आज सबसे प्रभावी मनोरंजन का साधन टेलीविज़न है।

टेलीविज़न का आविष्कार स्काटलैण्ड के इंजीनियर जॉन एलन बेयर्ड ने सन् 1926 ई० में किया था। इस का सर्वप्रथम प्रयोग ब्रिटिश इण्डिया कार्पोरेशन ने किया था। भारत में इसका प्रसारण सन् 1964 से ही सम्भव हो सका और इसे रंगीन बनाने में लगभग बीस वर्ष लग गए। पंजाब में पहला टेलीविज़न केन्द्र अमृतसर में स्थापित हुआ जो बाद में दूरदर्शन केन्द्र जालन्धर में स्थानांतरित कर दिया गया। पहल पहले लोग कार्यक्रम दूरदर्शन पर ही देखा करते थे किन्तु सैटेलाइट नैटबर्क के आगमन से टेलीविज़न की दुनिया में क्रान्तिकारी मोड़ ला दिया। आज देश भर में कोई सवा-सौ चैनल अपने कार्यक्रम प्रसारित कर रहे हैं, जिसमें समाचार, खेलकूद, धार्मिक, नाटक, संगीत, सामान्य जानकारी के अलग से चैनल हैं। आज अनेक चैनल क्षेत्रीय भाषाओं में अपने कार्यक्रम प्रसारित कर रहे हैं। आज टेलीविज़न नैटवर्क (केबल) दर्शकों का भरपूर मनोरंजन कर रहे हैं। इन चैनलों द्वारा शिक्षा एवं धर्म का प्रचार भी किया जा रहा है। टेलीविज़न के कारण हम घर बैठे अपने मन पसंद सीरियल, गीत, फिल्में आदि देख सकते हैं।

कहते हैं जहाँ फूल होते हैं वहाँ काँटे भी होते हैं। टेलीविज़न के जहाँ अनेक लाभ हैं वहाँ कई हानियाँ भी हैं। सब से बड़ी हानि यह है कि लोगों का आपस में मिलना-जुलना कम हो गया है। लोग मिलने-जुलने की अपेक्षा अपना मनपसन्द सीरियल या फिल्म देखना पसन्द करते हैं। विद्यार्थियों की खेलकूद और अतिरिक्त पढ़ाई में रुचि कम हो गई है। युवावर्ग टेलीविज़न पर अश्लील गाने देखकर बिगड़ रहा है। लगातार कई घण्टे टेलीविज़न से चिपके रहने के कारण बच्चों की आँखों पर नज़र की ऐनकें लग गई हैं।

हमें चाहिए कि टेलीविज़न के लाभ को ध्यान में रखकर ही इसका उपयोग करना चाहिए। हमें वही कार्यक्रम देखने चाहिए जो ज्ञानवर्धक हों। टेलीविज़न एक वरदान है इसे शाप न बनने देना चाहिए।

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37. समाचार-पत्रों के लाभ

आज भले ही टेलीविज़न पर अनेक चैनल केवल समाचार ही प्रसारित कर रहे हैं फिर भी समाचार-पत्रों का महत्त्व कम नहीं हुआ है। आज के युग में समाचार-पत्र हमारे जीवन का एक आवश्यक अंग बन गए हैं। जिस दिन घर में समाचार-पत्र नहीं आता या देर से आता है तो हम उतावले हो उठते हैं। जिज्ञासा मानव स्वभाव की एक प्रवृत्ति रही है और समाचार पत्र हमारी इस जिज्ञासा को शान्त करते हैं। समाचार- पत्र हमें घर बैठे ही देशविदेश में हुई घटनाओं, समाचारों की सूचना दे देते हैं। समाचार-पत्रों के अनेक लाभ हैं जिनमें से कुछ का उल्लेख हम यहाँ पर कर रहे है।

समाचार-पत्र प्रचार का एक बहुत बड़ा साधन है। चुनाव के समय विभिन्न राजनीतिक दल समाचार-पत्रों में विज्ञापन देकर अपनी-अपनी पार्टी के पक्ष को प्रस्तुत करते हैं। विभिन्न व्यापारिक संस्थान भी अपने उत्पाद का विज्ञापन समाचार-पत्र में देकर अपने उत्पाद की बिक्री में वृद्धि करते हैं।

समाचार-पत्रों के माध्यम से ही आजकल हम नौकरी, विवाह, प्रवेश सूचना आदि सूचनाएँ प्राप्त करते हैं। समाचार-पत्रों में वर्गीकृत विज्ञापन का स्तम्भ हमें अनेक प्रकार की सूचनाएँ प्रदान करते हैं। समाचार-पत्रों के मैगजीन अनुभाग हमें धर्म, स्वास्थ्य, समाजशास्त्र, ज्योतिष, वास्तु शास्त्र, आयकर सम्बन्धी सूचनाएँ प्रदान करते हैं। समाचार-पत्रों के माध्यम से ही हमें रेडियो, टेलीविज़न के कार्यक्रमों की समय सारणी भी प्राप्त हो जाती है। समाचार-पत्रों के माध्यम से ही हमें पुस्तकों, फिल्मों की समीक्षा भी पढ़ने को मिल जाती

समाचार-पत्र पाठकों को भ्रष्टाचार, समाज की कुरीतियों जैसे भ्रूण हत्या आदि से जागरूक करते हैं और समाज में सुधार या नव-निर्माण का कार्य करते हैं। समाचार-पत्रों की कुछ हानियाँ भी हैं। कुछ समाचार-पत्र अपने पत्र की बिक्री बढ़ाने के लिए झूठी तथा सनसनी भरे समाचार छाप कर जनमानस को दूषित करते हैं। ऐसा ही कार्य वे समाचार-पत्र भी करते हैं जो पक्षपात पूर्ण समाचार और टिप्पणियाँ छापते हैं। समाचार-पत्रों में बड़ी शक्ति है। इस का सही प्रयोग होना चाहिए।

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38. दहेज प्रथा एक अभिशाप

कोई भी प्रथा जब शुरू होती है तो अच्छे उद्देश्य से शुरू होती है किन्तु धीरे-धीरे वही प्रथा कुप्रथा बन जाती है। कुछ ऐसा ही हाल दहेज प्रथा का भी है। दहेज प्रथा कितनी प्राचीन है यह तो नहीं कहा जा सकता। किन्तु इतना अवश्य है कि यह प्रथा जब शुरू हुई होगी तब लड़की को अपने पिता की सम्पत्ति में भागीदार नहीं माना जाता था और मातापिता उसके विवाह अवसर पर अपनी सम्पत्ति में से कुछ भाग लड़की को उपहार के रूप में भेंट करते थे। इसी उपहार को कालान्तर में दहेज का नाम दे दिया गया। किन्तु आज जब लड़की अपने पिता की सम्पत्ति में बराबर की हिस्सेदार है, लड़की अब स्वयं कमाने लगी है और पुरुष की आर्थिक दृष्टि से गुलाम नहीं रही है, दहेज देने का तर्क नज़र नहीं आता। किन्तु हम लकीर के फकीर अभी तक इस प्रथा को चलाए जा रहे हैं।

समय के परिवर्तन के साथ-साथ दहेज प्रथा एक कुप्रथा बन गई है और इसे नारी जाति के लिए ही नहीं समाज के लिए भी एक अभिशाप बन कर रह गई है। कुछ अमीर लोगों ने लड़की की शादी पर दिखावे के लिए ज़रूरत से ज्यादा खर्च करना शुरू कर दिया। देखा-देखी मध्यमवर्ग में भी यह रोग फैलता गया। यह समझा जाने लगा कि लड़के के माता-पिता लड़की को नहीं लड़के को या उसके माता-पिता को उपहार दे रहे हैं। देखादेखी लड़कों वालों की भूख बढ़ती गई और खुल कर दहेज की माँग की जाने लगी। मनवांछित दहेज न मिल पाने पर लड़की को ससुराल में तंग किया जाने लगा। दहेज के लालच में लक्ष्मी मानी जाने वाली बहू को जला कर मार दिया जाने लगा। दहेज की बलि पर न जाने आज तक कितनी ही भोली-भाली लड़कियाँ चढ़ चुकी हैं।

भले ही सरकार ने दहेज विरोधी कई कानून बनाए हैं लेकिन इन कानूनों की सरेआम धज्जियाँ उड़ाई जा रही हैं। पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने जनवरी, 2007 में शादी विवाह में बारातियों की संख्या सम्बन्धी एक आदेश जारी किया था किन्तु इस आदेश की न तो कोई पालना कर रहा है और न ही कोई अधिकारी पालना करवा रहा है। हमारे विचार से दहेज के इस अभिशाप से युवा वर्ग ही समाज को मुक्ति दिलवा सकता है। बिना दहेज के विवाह करके।

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39. कम्प्यूटर का जीवन में महत्त्व

आज के युग को कम्प्यूटर का युग कहा जाता है। यह आधुनिक युग का एक ऐसा आविष्कार है जिसने मनुष्य की अनेक समस्याओं का समाधान कर दिया है। कम्प्यूटर ने मनुष्य का समय और श्रम बचा दिया है। साथ ही दी है पूर्णता और शुद्धता अर्थात् एक्युरेसी। कम्प्यूटर का प्रयोग आज जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में लाभकारी सिद्ध हो रहा है। इसी बात को देखते हुए पंजाब सरकार ने स्कूलों में कम्प्यूटर शिक्षा को अनिवार्य बना दिया है। इस आदेश से कम्प्यूटर का प्रवेश आज आम घरों में भी हो गया है।

कम्प्यूटर का सबसे बड़ा लाभ शिक्षा विभाग को हुआ है। कम्प्यूटर की सहायता से परीक्षा परिणाम कुछ ही दिनों में घोषित होने लगे हैं। चुनाव प्रक्रिया में भी इसका प्रयोग चुनाव नतीजों को कुछ ही घंटों में घोषित किया जाने लगा है। बैंकों, रेलवे स्टेशनों, सरकारी और गैर-सरकारी कार्यालयों में कम्प्यूटर के प्रयोग से काम को बड़ा सरल बना दिया है। यहाँ तक कि अब तो कई दुकानदार भी अपने बही खाते रखने या बिल बनाने के लिए कम्प्यूटर का प्रयोग करने लगे हैं। आज प्रत्येक समाचार पत्र कम्प्यूटर पर ही तैयार होने लगा है। कम्प्यूटर की एक अन्य चमत्कारी सुविधा इंटरनैट के उपयोग की है। इंटरनेट पर हमें विविध विषयों की जानकारी तो प्राप्त होती ही है, साथ ही हमें अपने मित्रों, रिश्तेदारों को ई-मेल द्वारा सन्देश भेजने की सुविधा भी प्राप्त होती है। कम्प्यूटर के साथ एक विशेष उपकरण (कैमरा इत्यादि) लगा कर हम दूर बैठे अपने मित्रों, रिश्तेदारों से सीधे बातचीत भी कर सकते हैं।

प्रकृति का यह नियम है कि जो वस्तु हमारे लिए लाभकारी होती है उसकी कई हानियाँ भी होती हैं। बच्चे कम्प्यूटर वीडियो गेम्स खेलने में व्यस्त रहते हैं और अपना कीमती समय नष्ट करते हैं। युवा वर्ग अश्लील वैवसाइट देख कर, इंटरनैट पर अश्लील चित्र एवं चित्र भेज कर बिगड़ रहे हैं। कम्प्यूटर पर अधिक देर तक बैठने पर नेत्रों की ज्योति पर तो प्रभाव पड़ता ही है शरीर में अनेक रोग भी पैदा होते हैं। अत: हमें चाहिए कि इस मशीनी मस्तिष्क के गुणों को ध्यान में रखकर ही इसका प्रयोग करना चाहिए।

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40. बढ़ते प्रदूषण की समस्या

मानव और प्रकृति के बीच जब संतुलन बिगड़ जाता है तो हमारा वातावरण दूषित हो जाता है। आज हमारे देश में प्रदूषण की समस्या बड़ी गम्भीर बनी हुई है। प्रदूषण के कारण ही हमारे जीवन की सुरक्षा को भी खतरा बना हुआ है। हमारे देश में प्रदूषण चार प्रकार का है-जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण तथा भूमि प्रदूषण। इन्हीं प्रदूषणों के कारण हमें शुद्ध पीने का पानी, शुद्ध वायु, शांत वातावरण और भूमि की उर्वरा शक्ति नहीं मिल पा रही है।

देश में तेजी से हो रहा औद्योगीकरण प्रदूषण फैलाने का बड़ा कारण बन रहा है। कल कारखानों से उठने वाला धुआँ हमारी वायु को तो प्रदूषित करता है। इन कल कारखानों से छोड़ा जा रहा रसायन युक्त जल हमारे जल और भूमि को भी प्रदूषित कर रहा है। औद्योगीकरण के साथ-साथ शहरीकरण ने भी जल और वायु को दूषित कर दिया है। बड़ेबड़े नगरों में सीवरेज और कल कारखानों का दूषित जल पास की नदियों में डाला जाता है, शहरों में चलने वाले वाहनों का धुआँ वायु को दूषित कर रहा है और कूड़े कर्कट के ढेर वातावरण को दूषित कर रहे हैं शहरीकरण के कारण अनेक वृक्षों की कटाई हो रही है। हम यह नहीं समझते कि वृक्ष ही हमें शुद्ध वायु प्रदान करते हैं। पीपल जैसा वृक्ष तो हमें 24 घंटे शुद्ध आक्सीजन प्रदान करता है किन्तु हम धड़ाधड़ वृक्षकाट रहे हैं।

शहरों में ही नहीं गाँवों में भी प्रदूषण फैलाने के अनेक कार्य होते हैं। किसान लोग अधिक पैदावार की होड़ में कीटनाशक दवाओं और कृत्रिम खादों का प्रयोग करके भूमि की उर्वरा शक्ति को घटा रहे हैं। चावल की पराली को खेतों में ही जलाकर वायु प्रदूषण फैला रहे हैं। आज हम जो फल सब्जियाँ खाते हैं वे सब कीटनाशक दवाइयों से ग्रसित होती हैं। ये सब प्रदूषण फैलाने के साथ-साथ जन-साधारण के स्वास्थ्य को भी प्रभावित करती हैं।

यदि इस बढ़ते प्रदूषण को रोकने का कोई उपाय न किया गया तो आने वाला समय हमारे लिए अत्यन्त भयानक और घातक सिद्ध होगा। प्रदूषण रोकने के लिए हमें बड़े-बड़े उद्योगों के स्थान पर कुटीर उद्योगों को बढ़ावा देना होगा। वृक्ष लगाने के अभियान को और तेज़ करना होगा। वाहनों में धुआँ रहित पेट्रोल-डीज़ल के प्रयोग को अनिवार्य बनाना होगा। कल कारखानों में वाटर ट्रीटमेंट प्लांट लगाने अनिवार्य करने होंगे। प्रदूषण का जन्म ही न हो, ऐसा हमारा प्रयास होना चाहिए।

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41. बढ़ती जनसंख्या की समस्या

किसी भी देश की उन्नति और आर्थिक विकास बहुत कुछ उस देश की जनसंख्या पर निर्भर होता है। भारत को जिन समस्याओं से जूझना पड़ रहा है उनमें तीव्र गति से बढ़ती हुई जनसंख्या की समस्या प्रमुख है। देश के विभाजन के समय सन् 1947 में देश की जनसंख्या 33 करोड़ थी जो अब 125 करोड़ से भी अधिक हो गई है। आज जनसंख्या की दृष्टि से भारत विश्व में चीन के बाद दूसरे नम्बर पर है। जिस गति से हमारे देश की जनसंख्या बढ़ रही है उसे देखकर लगता है कि यह शीघ्र ही चीन को पीछे छोड़ जाएगा।

देश की बढ़ती जनसंख्या अनेक समस्याओं को जन्म दे रही है। जैसे खाद्य सामग्री की कमी, आवास की कमी, रोजगार के साधनों की कमी आदि। देश की धरती तो उतनी ही है उस पर देश के औद्योगीकरण और बिजली परियोजनाओं के लिए बहुत-सी उपजाऊ भूमि का अधिग्रहण किया जा चुका है। इस तरह खेती योग्य भूमि भी दिनों दिन घटती जा रही है। माना कि नई तकनीक से उपज में काफ़ी वृद्धि हुई है। अनाज के क्षेत्र में देश आत्मनिर्भर हो गया है किन्तु यह स्थिति कब तक रहेगी कहा नहीं जा सकता।

जनसंख्या वृद्धि को रोकने के लिए सरकार परिवार नियोजन जैसी कई योजनाओं पर काम कर रही है किन्तु इस योजना का लाभ अशिक्षित और गरीब लोग नहीं उठा रहे। कहा जा सकता है कि जनसंख्या वृद्धि के कारण गरीबी, अशिक्षा, अन्धविश्वास और रूढिवादिता है। जनसंख्या वृद्धि में एक कारण यह भी हो सकता है कि भारत में औसत आयु साठ सालों में 21 से बढ़कर 65 तक जा पहुँची है। साथ ही स्वास्थ्य सुविधाओं के बढ़ने से शिशु मृत्यु दर में भी काफी कमी आई है। बालविवाह अभी भी रुके नहीं।

यदि सरकार और जनता ने मिलजुल कर जनसंख्या की वृद्धि पर रोक लगाने का कोई उपाय न किया तो देश को एक दिन खाने के लाले पड़ जाएंगे। हरित क्रान्ति, सफेद क्रान्ति जैसी कोई भी क्रान्ति कारगर सिद्ध न हो सकेगी अतः इस समस्या का समाधान ढूँढ़ना अत्यावश्यक है।

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42. बढ़ती महँगाई की समस्या

आज आम लोगों के सामने सबसे बड़ी समस्या महंगाई की बनी हुई है। बड़ों के मुँह से हम खाद्य पदार्थों के जो भाव सुनते हैं तो हमें या तो झूठ लगता है या सपना। आज महँगाई इतनी बढ़ गई है कि आम आदमी को दो जून की रोटी जुटाना भी कठिन हो रहा है। पंजाबी कवि सूबा सिंह ने ठीक ही कहा है-‘घयो लभदा नहीं धुन्नी नूं लान जोगा, कित्थों खानियाँ रांझे ने चूरियाँ’-सचमुच आज देसी घी दो सौ रुपए किलो से ऊपर बिक रहा है जो कभी तीन-चार रुपए किलो मिला करता था। तेल, घी, दालें तो अमीर आदमी की पहुँच वाली बन कर रह गई हैं। गरीब तो बस यही कहकर संतोष कर लेते हैं कि ‘रूखी सूखी खायकर, ठंडा पानी पी।’

पेट्रोल, डीज़ल और रसोई गैस की बढ़ती कीमतों ने तो जलती पर तेल छिड़कने का काम किया है। पेट्रोल, डीजल की कीमतें बढ़ने से बसों की यात्रा तो महँगी हुई ही है ट्रकों का माल भाड़ा भी बढ़ गया है, जिसके कारण फलों, सब्जियों, दालों इत्यादि खाद्य पदार्थों के दाम भी बढ़ गए हैं। सरकार अपने कर्मचारियों का प्रत्येक वर्ष दो बार महँगाई भत्ता बढ़ाती है, इससे कर्मचारियों को तो राहत मिलती नहीं उलटे चीज़ों की कीमतें अवश्य बढ़ जाती हैं।

महँगाई बढ़ने के साथ ही कालाबाजारी, तस्करी और काला धन, जमाखोरी जैसी समस्या बढ़ने लगती है। वर्ष 2008 के अन्त में विश्वव्यापी जो मंदी का दौर आया उसने महँगाई को और भी बढ़ा दिया। उस पर सोने पर सुहागे का काम किया सरकार की दुलमुल नीतियों ने। सरकार अपने मन्त्रियों के वेतन तो हर साल बढ़ा देती है किन्तु सरकारी कर्मचारी पे कमीशनों का कई वर्षों तक मुँह ताकते रहते हैं। मन्त्री अपनी कुर्सी बचाए रखने के लिए सत्ता में बने रहने के लिए बड़े-बड़े उद्योगों को जो सहूलतें दे रहे हैं उससे महँगाई बढ़ रही है। महँगाई कैसे रुके या कैसे रोकी जाए यह हमारी समझ से तो बाहर है। हाँ यदि सरकार चाहे और दृढ़ संकल्प हो महँगाई पर कुछ हद तक रोक लग सकती है।

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43. नशा बन्दी

भारत में नेशीली वस्तुओं का प्रयोग दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। विशेषकर हमारी युवा पीढ़ी इस लत की अधिक शिकार हो रही है। यह चिन्ता का कारण है। उपन्यास सम्राट प्रेमचन्द जी ने कहा था कि जिस देश में करोड़ों लोग भूखे मरते हों वहाँ शराब पीना, गरीबों के रक्त पीने के बराबर है। किन्तु शराब ही नहीं अन्य नशीले पदार्थों के सेवन का प्रचलन बढ़ता ही जा रहा है। कोई भी खुशी का मौका हो शराब पीने पिलाने के बिना वह अवसर सफल नहीं माना जाता। होटलों, क्लबों में खुले आम शराब पी-पिलाई जाती है। पीने वालों को पीने का बहाना चाहिए। शराब को दारू अर्थात् दवाई भी कहा जाता है किन्तु कौन ऐसा है जो इसे दवाई की तरह पीता है। यहाँ तो बोतलों की बोतलें चढ़ाई जाती हैं। शराब महँगी होने के कारण नकली शराब का धन्धा भी फल-फूल रहा है। इस नकली शराब के कारण कितने लोगों को जान गंवानी पड़ी है, यह हर कोई जानता है। कितने ही राज्यों की सरकारों ने सम्पूर्ण नशाबन्दी लागू करने का प्रयास किया। किन्तु वे असफल रहीं। ताज़ा उदाहरण हरियाणा का लिया जा सकता है। कितने ही होटल बन्द हो गए और नकली शराब बनाने वालों की चाँदी हो गई। विवश होकर सरकार को नशाबन्दी समाप्त करनी पड़ी।

पंजाब में भी सन् 1964 में टेकचन्द कमेटी ने नशाबन्दी लागू करने का बारह सूत्री कार्यक्रम दिया था। किन्तु जो सरकार शराब की बिक्री से करोड़ों रुपए कमाती हो, वह इसे कैसे लागू कर सकती है। आप शायद हैरान होंगे कि पंजाब में शराब की खपत देश भर में सब से अधिक है, किसी ने ठीक ही कहा है बुरी कोई भी आदत हो वह आसानी से नहीं जाती। किन्तु सरकार यदि दृढ़ निश्चय कर ले तो क्या नहीं हो सकता। सरकार को ही नहीं जनता को भी इस बात का ध्यान रखना होगा कि नशा अनेक झगड़ों को ही जन्म नहीं देता बल्कि वह नशा करने वाले के स्वास्थ्य को भी प्रभावित करता है। ज़रूरत है जनता में जागरूकता पैदा करने की। नशाबन्दी राष्ट्र की प्रगति के लिए आवश्यक है। शराब की बोतलों पर चेतावनी लिखने से काम न चलेगा, कुछ ठोस कदम उठाने होंगे।

यह देखने में आया है कि देश का युवा वर्ग ही नहीं, किशोर वर्ग नशों की लपेट में आ रहा है। हमारे नेता यह कहते नहीं थकते कि देश में मादक द्रव्यों का प्रसार विदेशी शत्रुओं के कारण हो रहा है किन्तु अपने युवाओं को, बच्चों को समझाया तो जा सकता है। नशीले पदार्थों से इस पीढ़ी को बचाने का भरसक प्रयास किया जाना चाहिए नहीं तो देश कमजोर हो जाएगा और साँप निकल जाने के बाद लकीर पीटने का कोई लाभ न होगा।

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44. खेलों का जीवन में महत्त्व

खेल-कूद हमारे जीवन की एक महत्त्वपूर्ण आवश्यकता है। ये हमारे मनोरंजन का प्रमुख साधन भी हैं। पुराने ज़माने में जो लोग व्यायाम नहीं कर सकते थे अथवा खेल-कूद में भाग नहीं ले सकते थे वे शतरंज, ताश जैसे खेलों से अपना मनोरंजन कर लिया करते थे। दौड़ना भागना, कूदना इत्यादि भी खेलों का ही एक अंग है। ऐसी खेलों में भाग लेकर हमारे शरीर की मांसपेशियाँ तथा शरीर के दूसरे अंग स्वस्थ हो जाया करते हैं। खेल-कूद में भाग लेकर व्यक्ति की मासिक थकावट दूर हो जाती है।

स्वस्थ जीवन के लिए खेलों में भाग लेना अत्यावश्यक है। इस तरह व्यक्ति का मन भी स्वस्थ होता है। उसकी पाचन शक्ति भी ठीक रहती है, भूख खुलकर लगती है, नींद डटकर आती है, परिणामस्वरूप कोई भी बीमारी ऐसे व्यक्ति के पास आते डरती है। इससे व्यक्ति के चारित्रिक गुणों का भी विकास करता है। खिलाड़ी चाहे किसी भी खेल का हो अनुशासनप्रिय होता है। क्रोध, ईर्ष्या, घृणा आदि हानिकारक भावनाओं का वह शिकार नहीं होता। खेलों में ही उसे देश प्रेम और एकता की शिक्षा मिलती है।

खेलों से अनुशासन और आत्म-नियन्त्रण भी पैदा होता है और अनुशासन जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में आवश्यक है। बिना अनुशासन के व्यक्ति जीवन में उन्नति और विकास नहीं कर सकता। खेल हमें अनुशासन का प्रशिक्षण देते हैं। किसी भी खेल में रैफ्री या अंपायर नियमों का उल्लंघन करने वाले खिलाड़ी को दण्डित भी करता है। इसलिए हर खिलाड़ी खेल के नियमों का पालन कड़ाई से करता है। खेल के मैदान में सीखा गया यह अनुशासन व्यक्ति को आगे चलकर जीवन के अन्य क्षेत्रों में भी काम आता है। देखा गया है कि खिलाड़ी सामान्य लोगों से अधिक अनुशासित होते हैं।

खेलों से सहयोग व सहकार की भावना भी उत्पन्न होती है। इसे टीम भावना या खेल भावना भी कहा जाता है। केवल खेल ही ऐसी क्रिया है जिसमें सीखे गए उपयुक्त गुण व्यक्ति के व्यावहारिक जीवन में बहुत काम आते हैं। आने वाले जीवन में व्यक्ति सब प्रकार की स्थितियों, परिस्थितियों और व्यक्तियों के साथ काम करने में सक्षम हो जाता है। टीम भावना से काम करने वाला व्यक्ति दूसरों से अधिक सामाजिक होता है। वह दूसरों में जल्दी घुल-मिल जाता है। उसमें सहन शक्ति और त्याग भावना दूसरों से अधिक मात्रा में पाई जाती है।

इससे स्पष्ट है कि खेल जीवन की वह चेतन शक्ति है जो दिव्य ज्योति से साक्षात्कार करवाती है। अत: उम्र और शारीरिक शक्ति के अनुसार कोई न कोई खेल अवश्य खेलना चाहिए। खेल ही हमारे जीवन में एक नई आशा, महत्त्वाकांक्षा और ऊर्जा का संचार करते हैं। खेलों के द्वारा ही जीवन में नए-नए रंग भरे जा सकते हैं, इन्द्रधनुषी सुन्दर या मनोरम बनाया जा सकता है।

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45. व्यायाम का महत्त्व

महर्षि चरक के अनुसार शरीर की जो चेष्टा देह को स्थिर करने एवं उसका बल बढ़ाने वाली हो, उसे व्यायाम कहते हैं। शरीर को स्वस्थ रखना व्यक्ति का प्रथम कर्त्तव्य है। शरीर को स्वस्थ रखने के लिए व्यायाम की नितांत आवश्यकता है। – व्यायाम से हमारा अभिप्रायः वह नहीं है जो आज से कुछ वर्ष पहले समझा जाता था। अर्थात् दण्ड पेलना, बैठक लगाना आदि किन्तु आज के संदर्भ में व्यायाम का अर्थ किसी ऐसे काम करने से है जिससे हमारा शरीर स्वस्थ रहे। पुराने जमाने में स्त्रियाँ दूध दोहती थीं, बिलोती थीं, घर में झाड़ देती थीं, कपड़े धोती थीं और बाहर से कुएँ से खींचकर पीने के लिए पानी.लाया करती थीं। ये सब क्रियाएँ व्यायाम का ही एक भाग हुआ करती थीं। किन्तु आजकल की स्त्रियों के पास इन सब व्यायामों के लिए समय ही नहीं है। जिसका परिणाम यह है कि आज की स्त्री अनेक रोगों का शिकार हो रही है।

पुराने जमाने में पुरुष भी सुबह सवेरे सैर को निकल जाया करते थे। बाहर ही स्नान इत्यादि करते थे। इस तरह उनका व्यायाम हो जाता था। हमारे बड़े बुर्जुगों ने हमारी दिनचर्या कुछ ऐसी निश्चित कर दी जिससे हमारा व्यायाम भी होता रहे और हमें पता भी न चले। जैसे सूर्य उदय होने से पहले उठना, बाहर सैर को जाना, दातुन कुल्ला करना आदि व्यायाम के ही अंग थे। समय बदलने के साथ-साथ हम व्यायाम के उस परिणाम को भूलते जा रहे हैं कि व्यायाम करने से व्यक्ति निरोग रहता है। उसके शरीर में चुस्ती-फुर्ती आती है। पाचन शक्ति ठीक रहती है और शरीर सुडौल बना रहता है।

जो लोग व्यायाम नहीं करते, वे आलसी और निकम्मे बन जाते हैं। सदा किसी-नकिसी रोग का शिकार बने रहते हैं। आज का न ही पुरुष न ही स्त्री, घर का छोटा-मोटा काम भी अपने हाथ से नहीं करना चाहता। सारा दिन कुर्सी पर बैठ कर काम करने वाला कर्मचारी यदि कोई व्यायाम नहीं करेगा तो वह स्वयं बीमारी को बुलावा देने का ही काम करेगा। भला हो स्वामी रामदेव का जिन्होंने लोगों को योग और प्राणायाम की ओर मोड़कर थोड़ा-बहुत व्यायाम करने की प्रेरणा दी है। उनका कहना है कि प्रत्येक व्यक्ति को अपनी शक्ति और शारीरिक आवश्यकता के अनुसार व्यायाम अवश्य करना चाहिए।

एक विद्यार्थी के लिए व्यायाम का अधिक महत्त्व है क्योंकि अपनी इस चढ़ती उम्र में जितना सुन्दर और अच्छा शरीर वह बना सकता है, जितनी भी शक्ति का संचय वह कर सकता है, उसे कर लेना चाहिए। यदि इस उम्र में उसने अपने स्वास्थ्य की ओर ध्यान न दिया तो सारी उम्र वह पछताता ही रहेगा। अतः हमारी विद्यार्थी वर्ग को सलाह है कि वह अपने इस जीवन में खेल-कूद में अवश्य भाग लें, योगासन और प्राणायाम, जो शरीर के लिए श्रेष्ठ व्यायाम है अवश्य करें। प्रातः और सायं भ्रमण के लिए अवश्य घर से बाहर निकलें क्योंकि आने वाला जीवन कोई सरलता लिए हुए नहीं आएगा। तब संघर्ष की मात्रा अधिक बढ़ जाएगी और व्यायाम के लिए समय निकालना कठिन हो जाएगा। अत: जो कुछ करना है इसी विद्यार्थी जीवन में ही कर लेना चाहिए।

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46. समय का सदुपयोग

कहा जाता है कि आज का काम कल पर मत छोड़ो। जिस किसी ने भी यह बात कही है उसने समय के महत्त्व को ध्यान में रखकर ही कही है। समय सबसे मूल्यवान् वस्तु है। खोया हुआ धन फिर प्राप्त हो सकता है किन्तु खोया हुआ समय फिर लौट कर नहीं आता। इसीलिए कहा गया है समय बीत जाने पर सिवाय पछतावे के कुछ हाथ नहीं आता। विद्यार्थी जीवन में भी समय के महत्त्व को एवं उसके सदुपयोग को जो नहीं समझता और विद्यार्थी जीवन आवारागर्दी और ऐशो आराम से जीवन व्यतीत कर देता है वह जीवन भर पछताता रहता है।

विद्यार्थी जीवन में समय का सदुपयोग करना बहुत जरूरी है। क्योंकि विद्यार्थी जीवन बहुत छोटा होता है। इस जीवन में प्राप्त होने वाले समय का जो विद्यार्थी सही सदुपयोग कर लेते हैं वे ही भविष्य में सफलता की सीढ़ियाँ चढ़ते हैं। और जो समय को नष्ट करते हैं, वे स्वयं नष्ट हो जाते हैं।

इसलिए हमारे दार्शनिकों, संतों आदि ने अपने काम को तुरन्त मनोयोग से करने की सलाह दी है। उन्होंने कहा है कि ‘काल करे सो आज कर आज करे सो अब।’ कल किसने देखा है अतः दृष्टि वर्तमान पर रखो और उसका भरपूर प्रयोग करो। कर्मयोगी की यही पहचान है। जीवन दुर्लभ ही नहीं क्षणभंगुर भी है अतः जब तक साँस है तब तक समय का सदुपयोग करके हमें अपना जीवन सुखी बनाना चाहिए।

इतिहास साक्षी है कि संसार में जिन लोगों ने भी समय के महत्त्व को समझा वे जीवन में सफल रहे। पृथ्वी राज चौहान समय के मूल्य को न समझने के कारण ही गौरी से पराजित हुआ। नेपोलियन भी वाटरलू के युद्ध में पाँच मिनटों के महत्त्व को न समझ पाने के कारण पराजित हुआ। इसके विपरीत जर्मनी के महान् दार्शनिक कांट ने जो अपना जीवन समय के बंधन में बाँधकर कुछ इस तरह बिताते थे कि लोग उन्हें दफ्तर जाते देख अपनी घड़ियाँ मिलाया करते थे।

आधुनिक जीवन में तो समय का महत्त्व और भी ज्यादा बढ़ गया है। आज जीवन में भागम भाग और जटिलता इतनी अधिक बढ़ गई है कि यदि हम समय के साथ-साथ कदम मिलाकर न चलें तो जीवन की दौड़ में पिछड़ जाएँगे। आज समय का सदुपयोग करते हुए सही समय पर सही काम करना हमारे जीवन की सबसे बड़ी आवश्यकता है।

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47. आँखों देखा हॉकी मैच

भले ही आज लोग क्रिकेट के दीवाने बने हुए हैं। परन्तु हमारा राष्ट्रीय खेल हॉकी ही है। लगातार कई वर्षों तक भारत हॉकी के खेल में विश्वभर में सब से आगे रहा किन्तु खेलों में भी राजनीतिज्ञों के दखल के कारण हॉकी के खेल में हमारा स्तर दिनों दिन गिर रहा है। 70 मिनट की अवधि वाला यह खेल अत्यन्त रोचक, रोमांचक और उत्साहवर्धक होता है। मेरा सौभाग्य है कि मुझे ऐसा ही एक हॉकी मैच देखने को मिला।

यह मैच नामधारी एकादश और रोपड़ हॉक्स की टीमों के बीच रोपड़ के खेल परिसर में खेला गया। दोनों टीमें अपने-अपने खेल के लिए पंजाब भर में जानी जाती हैं। दोनों ही टीमों में राष्ट्रीय स्तर के कुछ खिलाड़ी भाग ले रहे थे। रोपड़ हॉक्स की टीम क्योंकि अपने घरेलू मैदान पर खेल रही थी इसलिए उसने नामधारी एकादश को मैच के आरम्भिक दस मिनटों में दबाए रखा। उसके फारवर्ड खिलाड़ियों ने दो-तीन बार विरोधी गोल पर आक्रमण किये। परन्तु नामधारी एकादश का गोलकीपर बहुत चुस्त और होशियार था। उसने अपने विरोधियों के सभी आक्रमणों को विफल बना दिया। तब नामधारी एकादश ने तेज़ी पकड़ी और देखते ही देखते रोपड़ हॉक्स के विरुद्ध एक गोल दाग दिया।

गोल होने पर रोपड़ हॉक्स की टीम ने भी एक जुट होकर दो-तीन बार नामधारी एकादश पर कड़े आक्रमण किये परन्तु उनका प्रत्येक आक्रमण विफल रहा। इसी बीच रोपड़ हॉक्स को दो पेनल्टी कार्नर भी मिले पर वे इसका लाभ न उठा सके। नामधारी एकादश ने कई अच्छे मूव बनाये उनका कप्तान बलजीत सिंह तो जैसे बलबीर सिंह ओलंपियन की याद दिला रहा था। इसी बीच नामधारी एकादश को भी एक पेनल्टी कार्नर मिला जिसे उन्होंने बड़ी खूबसूरती से गोल में बदल दिया। इससे रोपड़ हॉक्स के खिलाड़ी हताश हो गये । रोपड़ के दर्शक भी उनके खेल को देख कर कुछ निराश हुए । मध्यान्तर के समय नामधारी एकादश दो शून्य से आगे थी। मध्यान्तर के बाद खेल बड़ी तेज़ी से शुरू हुआ। रोपड़ हॉक्स के खिलाड़ी बड़ी तालमेल से आगे बढ़े और कप्तान हरजीत सिंह ने दायें कोण से एक बढ़िया हिट लगाकर नामधारी एकादश पर एक गोल कर दिया। इस गोल से रोपड़ हॉक्स के जोश में जबरदस्त वृद्धि हो गयी। उन्होंने अगले पाँच मिनटों में दूसरा गोल करके मैच बराबरी पर ला दिया। दर्शक खुशी के मारे नाच उठे। मैच समाप्ति की सीटी के बजते ही दर्शकों ने अपने खिलाड़ियों को मैदान में जाकर शाबाशी दी। मैच का स्तर इतना अच्छा था कि मैच देख कर आनन्द आ गया।

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48. आँखों देखा फुटबाल मैच

विश्वभर में फुटबाल का खेल सर्वाधिक लोकप्रिय है। केवल यही एक ऐसा खेल है जिसे देखने के लिए लाखों की संख्या में दर्शक जुटते हैं। फुटबाल के खिलाड़ी भी विश्व भर में सबसे अधिक सम्मान एवं धन प्राप्त करते हैं। 90 मिनट का यह खेल अत्यन्त रोचक, जिज्ञासा भरा होता है। संयोग से पिछले महीने मुझे पंजाब पुलिस और जे० सी० टी० फगवाड़ा की टीमों के बीच हुए मैच को देखने का अवसर मिला। जे० सी० टी० की टीम पिछले वर्ष संतोष ट्राफी की विजेता टीम रही थी। मैच शुरू होते ही पंजाब पुलिस ने विरोधी टीम पर काफी दबाव बनाये रखा परन्तु जे० सी० टी० की टीम भी कोई कम नहीं थी। उसके खिलाड़ियों को थोड़ा अवसर भी मिलता तो वे पंजाब पुलिस के क्षेत्र में जा पहुँचते।

पंजाब पुलिस ने अपना आक्रमण और भी तेज़ कर दिया। उनके खिलाड़ियों में आपसी तालमेल और पासिंग तो देखते ही बनता था। उनकी हर मूव को देखकर दर्शक वाह! वाह। कर उठते थे। इस मैच को देखने के लिए पंजाब पुलिस के कई वरिष्ट अधिकारी भी मैदान में मौजूद थे। सैंकड़ों की संख्या में सिपाही भी अपने खिलाड़ियों को उत्साहित करने के लिए बक-अप कर रहे थे। पहले मध्यान्तर के 26वें मिनट में पंजाब पुलिस के खिलाड़ियों ने इतना बढ़िया मूव बनाया कि जे० सी० टी० के खिलाड़ी देखते ही रह गये और पंजाब पुलिस ने एक गोल दाग दिया। दर्शक दीर्घा में बैठे लोग खुशी से नाच उठे। इस गोल के बाद जे० सी० टी० के खिलाड़ी रक्षा पर उतर आए। जब भी बाल लेकर आगे बढ़ते पंजाब पुलिस के खिलाड़ी उन से बाल छीन लेते। इसी बीच जे० सी० टी० की टीम ने एक ज़ोरदार आक्रमण किया किन्तु पंजाब पुलिस के गोल कीपर की दाद देनी होगी कि उसने गोल को फुर्ती से बचा लिया। उधर पंजाब पुलिस ने अपना दबाव फिर बढ़ाना शुरू किया। मध्यान्तर के समय पंजाब पुलिस की टीम एक शून्य से आगे थी। दूसरे मध्यान्ह के 45 मिनट में खेल में काफ़ी तेजी आई परन्तु पंजाब पुलिस के गोल कीपर ने कई निश्चित गोल बचा कर अपनी टीम को जीत दिलाई। मैच समाप्त होते ही पंजाब पुलिस के कर्मचारियों ने अपनी टीम के खिलाड़ियों को कंधों पर उठा लिया। आज उन्होंने देश की एक प्रसिद्ध टीम को हराया था। कोई दो घण्टे तक मैंने इस मैच का जैसा आनन्द उठाया वह मुझे वर्षों याद रहेगा।

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49. श्रम का महत्त्व
अथवा
परिश्रम सफलता की कुंजी है

श्रम का अर्थ है-मेहनत। श्रम ही मनुष्य-जीवन की गाड़ी को खींचता है। चींटी से लेकर हाथी तक सभी जीव बिना श्रम के जीवित नहीं रह सकते। फिर मनुष्य तो अन्य सभी प्राणियों से श्रेष्ठ हैं। संसार की उन्नति-प्रगति मनुष्य के श्रम पर निर्भर करती है। श्रम करने की आदत बचपन में ही डाली जाए तो अच्छा है।

परिश्रम के अभाव में जीवन की गाड़ी नहीं चल ही सकती। यहां तक कि स्वयं का उठना-बैठना, खाना-पीना भी सम्भव नहीं हो सकता फिर उन्नति और विकास की कल्पना भी नहीं की जा सकती। आज संसार में जो राष्ट्र सर्वाधिक उन्नत हैं, वे परिश्रम के बल पर ही इस उन्नत दशा को प्राप्त हुए हैं। जिस देश के लोग परिश्रमहीन एवं साहसहीन होंगे, वह प्रगति नहीं कर सकता। परिश्रमी मिट्टी से सोना बना लेते हैं।

परिश्रम का अभिप्राय ऐसे परिश्रम से है जिससे निर्माण हो, रचना हो, जिस परिश्रम से निर्माण नहीं होता, उसका कुछ अर्थ नहीं। जो व्यक्ति आलस्य का जीवन बिताते हैं, वे कभी उन्नति नहीं कर सकते। आलस्य जीवन को अभिशापमय बना देता है। हमारा देश सदियों तक पराधीन रहा। इसका आधारभूत कारण भारतीय जीवन में व्याप्त आलस्य एवं हीन भावना थी। यदि छात्र परिश्रम न करें तो परीक्षा में कैसे सफल हों। मज़दूर भी मेहनत का पसीना बहाकर सड़कों, भवनों, बांधों, मशीनों तथा संसार के लिए उपयोगी वस्तुओं का निर्माण करते हैं। मूर्तिकार, चित्रकार अद्भुत कलाओं का निर्माण करते हैं। कवि और लेखक सब परिश्रम द्वारा ही अपनी रचनाओं से संसार को लाभ पहुँचाते हैं। कालिदास, तुलसीदास, टैगोर, शेक्सपीयर आदि परिश्रम के बल पर ही अमर हो गए हैं। परिश्रम के बल पर ही वे अपनी रचनाओं के रूप में अमर हैं।

कुछ लोग श्रम की अपेक्षा भाग्य को महत्त्व देते हैं। उनका कहना है कि भाग्य में जो है वह अवश्य मिलेगा, अतः दौड़-धूप करना व्यर्थ है। यह तर्क निराधार है। यह ठीक है कि भाग्य का भी हमारे जीवन में महत्त्व है, लेकिन आलसी बनकर बैठे रहना और असफलता के लिए भाग्य को कोसना किसी प्रकार भी उचित नहीं। परिश्रम के बल पर मनुष्य भाग्य की रेखाओं को भी बदल सकता है। आज हमारे देश में अनेक समस्याएँ हैं। उन सबसे समाधान का साधन परिश्रम है। परिश्रम के द्वारा ही बेकारी की, खाद्य की और अर्थ की समस्या का अन्त किया जा सकता है।

परिश्रम व्यक्ति स्वावलम्बी, ईमानदार, सत्यवादी, चरित्रवान् और सेवा भाव से युक्त होता है। परिश्रम करने वाले व्यक्ति का स्वास्थ्य भी ठीक रहता है। परिश्रम के द्वारा ही मनुष्य अपनी, परिवार की, जाति की तथा राष्ट्र की उन्नति में सहयोग दे सकता है। अतः मनुष्य को परिश्रम करने की प्रवत्ति विद्यार्थी जीवन में ग्रहण करनी चाहिए।

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50. किसी धार्मिक स्थान की यात्रा
अथवा
किसी पर्वतीय यात्रा का वर्णन
अथवा
वैष्णो देवी की यात्रा

इस बार नवरात्रे शुरू होते ही हमने मित्रों सहित माता वैष्णों देवी के दर्शन का निश्चय किया। प्रात: आठ बजे हम चण्डीगढ़ के बस स्टैण्ड पर पहुंचे। वहाँ से हमने पठानकोट के लिए बस ली। वहाँ से हमने जम्मू के लिए बस ली। जम्मू हम सायँ कोई सात बजे पहुँच गए। रात हमने जम्मू की एक धर्मशाला में गुजारी। रात में ही हमने जम्मू के ऐतिहासिक रघुनाथ जी तथा शिव मन्दिर के दर्शन किये। अगले दिन प्रातः काल में ही कटरा जाने वाली बस में सवार हुए। रास्ते भर सभी यात्री माता की भेंटें गाते हुए जय माँ शेराँ वाली के नारे लगा रहे थे। कटरा जम्मू से कोई पचास किलोमीटर दूर है। कटरा पहुँचकर हमने अपना नाम दर्ज करवाया और पर्ची ली। रात हमने कटरा में बिताई। दूसरे दिन सुबह ही हम माता की जय पुकारते हुए माँ के दरबार की ओर पैदल चल दिए। कटरा से भक्तों को पैदल ही चलना पड़ता है। कटरा से माँ के दरबार को जाने के लिए दो रास्ते हैं। एक सीढ़ियों वाला मार्ग है और दूसरा साधारण। हमने साधारण रास्ता ही चुना। सभी भक्त जन माँ की जय पुकारते हुए बड़े उत्साह से आगे बढ़ रहे थे। पाँच किलोमीटर चलकर हम चरण पादुका मंदिर पहुंचे।

चरण पादुका मन्दिर से चलकर हम आद कुमारी मंदिर पहुंचे। यह मन्दिर कटरा और माता के भवन के मध्य में स्थित है। यहाँ श्रद्धालुओं के रहने और भोजन की अच्छी व्यवस्था है। आदकुमारी मन्दिर से हम गर्भवास गुफा की ओर चल पड़े। हमने भी इस गुफा को पार किया और माँ से जन्म मरण से छुटकारा दिलाने की प्रार्थना की। आगे का मार्ग बड़ा दुर्गम था। शायद इसी कारण इसे हाथी-मत्था की चढ़ाई कहते हैं। इस चढ़ाई को पार करके हम बाण गंगा और भैरों घाटी को पार कर माता के मन्दिर के निकट पहुँच गए। वहाँ हमने

अपना नाम दर्ज करवाया बारी आने पर हमने माँ वैष्णो देवी के दर्शन किये। मन्दिर की गुफा में तीन पिण्डियां हैं, जो महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती के नाम से विख्यात हैं। हमने माँ के चरणों में माथा टेका, प्रसाद लिया और पीछे के रास्ते से बाहर आ गए। बाहर आकर हमने कन्या पूजन किया और कन्याओं को दक्षिणा देकर उनसे आशीर्वाद प्राप्त किया। वापसी पर हम भैरव मन्दिर के दर्शन करते हुए कटरा आ गए। कटरा से जम्मू और पठानकोट होते हुए चण्डीगढ़ वापस आ गए।

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51. मेरा प्रिय खिलाड़ी

मेरा प्रिय खिलाड़ी सचिन तेंदुलकर है। तेंदुलकर जगत के सर्वाधिक प्रायोजित खिलाड़ी हैं। विश्व भर में उनके अनेक प्रशंसक हैं। उन्हें लिटल मास्टर या मास्टर बलास्टर के नाम से भी जाना जाता है। इनका पूरा नाम सचिन रमेश तेंदुलकर, माता का नाम रजनी तेंदुलकर तथा पिता का नाम रमेश तेंदुलकर है। इनका जन्म 24 अप्रैल, सन् 1973 ई० को राजापुर, मुंबई में हुआ था। इनके माता-पिता नौकरी करते थे, इसलिए ग्यारह वर्ष तक इनका तथा इनके भाई अजीत, नितिन तथा बहन सविता का पालन-पोषण इनकी नानी ने किया था। मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर अढ़ाई वर्ष की आयु में ही मुगरी का बल्ला बना कर प्लास्टिक की गेंद से अपनी नानी और बड़े भाई अजीत के साथ खेलते थे। उनकी नानी लक्ष्मी बाई गिजे ने इन्हें इनके तीसरे जन्मदिन पर गेंद-बल्ला उपहार में दिया तो रोज़ क्रिकेट खेलना उनका नियम ही बन गया था। सन् 1995 ई० में इनका विवाह अंजली से हुआ। इनकी पुत्री सारा तथा पुत्र अर्जुन है। सचिन अपनी नानी को अपना क्रिकेट और जीवन गुरु मानते हैं।

पढ़ाई के साथ-साथ इन्होने क्रिकेट खेलना शुरू किया। कोच रमाकांत अचरेकर इन्हें घण्टों अभ्यास कराते थे और स्टम्प्स पर सिक्का रखकर गेंदबाज़ों को कहते थे, जो सचिन को आऊट करेगा, सिक्का उसे मिलेगा तथा आऊट नहीं होने पर सिक्का सचिन का होगा। सचिन के पास ऐसे जमा किए हुए तेरह सिक्के हैं। सचिन ने पहला प्रथम श्रेणी मैच सन् 1988 ई० में चौदह वर्ष की आयु में मुंबई के लिए विनोद काम्बली के साथ मिलकर खेला और दोनों ने मिलकर 664 दौड़ों की अविजित पारी खेली, जिसे देखकर विरोधी टीम ने आगे खेलने से मना कर दिया था।

सचिन ने अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट सन् 1989 ई० में पाकिस्तान के विरुद्ध कराची में खेला था। अब तक वे अपने नाम अनेक रिकार्ड कर चुके हैं। वे ऑफ स्पिन, लेग स्पिन, गुगली गेंदबाजी भी करते हैं। वे भारतीय सैनिकों को अपना आदर्श मान कर संघर्ष करना सीखे हैं। वे बहुत विनम्र, धैर्यवान, संयमी एवं विवेकी हैं। उन्होंने 2 अप्रैल, सन् 2011 ई० में विश्वकप जिताया। इन्हें सन् 1994 में अर्जुन पुरस्कार, राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार, सन् 1999 में पद्मश्री और सन् 2008 में पदम् विभूषण सम्मान दिया गया था। 2013 में भारतीय पोस्टल ने तेंदुलकर का एक टिकट जारी किया। 2014 में उन्हें मुम्बई इंडियन टीम के ‘आइकन’ के रूप में नियुक्त किया। सचिन तेंदुलकर मेरे हमेशा ही आदर्श रहेंगे।

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52. मन के जीते जीत है मन के हारे हार

मानव-शरीर यदि रथ के समान है तो यह मन उसका चालक है। मनुष्य के शरीर की असली शक्ति उसका मन है। मन के अभाव में शरीर का कोई अस्तित्व ही नहीं। मन ही वह प्रेरक शक्ति है जो मनुष्य से बड़े-से-बड़े काम करवा लेती है। यदि मन में दुर्बलता का भाव आ जाए तो शक्तिशाली शरीर और विभिन्न प्रकार के साधन व्यर्थ हो जाते हैं। उदाहरण के लिए एक सैनिक को लिया जा सकता है। यदि उसने अपने मन को जीत लिया है तो वह अपनी शारीरिक शक्ति एवं अनुमान से कहीं अधिक सफलता दिखा सकता है। यदि उसका मन हार गया तो बड़े-बड़े मारक अस्त्र-शस्त्र भी उसके द्वारा अपना प्रभाव नहीं दिखा सकते। मन की शक्ति के बल पर ही मनुष्य ने अनेक आविष्कार किए हैं। मन की शक्ति मनुष्य को अनवरत साधना की प्रेरणा देती है और विजयश्री उनके सामने हाथ जोड़कर खड़ी हो जाती है। जब तक मन में संकल्प एवं प्रेरणा का भाव नहीं जागता तब तक हम किसी भी कार्य में सफलता प्राप्त नहीं कर सकते। एक ही काम में एक व्यक्ति सफलता प्राप्त कर लेता है और दूसरा असफल हो जाता है। इसका कारण दोनों के मन की शक्ति की भिन्नता है। जब तक हमारा मन शिथिल है तब तक हम कुछ भी नहीं कर सकते। अतः ठीक ही कहा गया है-“मन के हारे-हार है मन के जीते जीत।”

53. सत्संगति

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। उसे दूसरे के साथ किसी-न-किसी रूप में संपर्क स्थापित करना पड़ता है। अच्छे लोगों की संगति जीवन को उत्थान की ओर ले जाती है तो बुरी संगति पतन का द्वार खोल देती है। संगति के प्रभाव से कोई नहीं बच सकता। हम जैसी संगति करते हैं, वैसा ही हमारा आचरण बन जाता है। रहीम ने कहा-
“कदली सीप भुजंग मुख, स्वाति एक गुण तीन।
जैसे संगति बैठिए, तैसोई गुण दीन॥”

सत्संगति का महत्त्व – सत्संगति जीवन के लिए वरदान की तरह है। सत्संगति के द्वारा मनुष्य अनेक प्रकार की अच्छी बातें सीखता है। जिसको अच्छी संगति प्राप्त हो जाए उसका जीवन सफल बन जाता है। अच्छी संगति में रहने पर अच्छे संस्कार पैदा होते हैं। बुरी संगति बुरे विचारों को जन्म देती है। मनुष्य की पहचान उसकी संगति से होती है। अच्छे परिवार में जन्म लेने वाला बालक बुरी संगति में पड़ कर बुरा बन जाता है। इसी प्रकार बुरे परिवार में जन्म लेने वाले बालक को यदि अच्छी संगति प्राप्त हो जाती है तो वह अच्छा एवं सदाचारी बन जाता है-
“बिनु सत्संगु विवेक न होई।
राम कृपा बिनु सुलभ न सोई॥”

सत्संगति मनुष्य के जीवन को सफल बनाती है तो कुसंगति जीवन को नष्ट करती है। कहा भी है, “दुर्जन यदि विद्वान् भी हो तो उसका साथ छोड़ देना चाहिए। मणि धारण करने वाला सांप क्या भयंकर नहीं होता।” बुरी आदतें मनुष्य बुरी संगति से सीखता है। बुरी पुस्तकें, अश्लील चल-चित्र आदि भी मनुष्य को विनाश की ओर ले जाते हैं। बुरे लोगों से बचने की प्रेरणा देते हुए सूरदास जी ने कहा है-
“छाडि मन हरि बिमुखन को संग।
चाके संग कुबुद्धि उपजत हैं परत भजन में भंग॥”

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54. मेरा परिवार

परिवार शब्द सुनते ही मन में एक सुखद सा एहसास होता है क्योंकि परिवार किसी के जीवन के लिए बहुत ही महत्त्वपूर्ण होता है। परिवार के बिना यह जीवन अधूरा सा लगता है। एक परिवार बच्चों के लिए पहला स्कूल बनता है जहां से वे संस्कृति, परंपरा और सबसे ज़रूरी आधारभूत पारिवारिक मूल्यों को सीखते हैं। परिवार ही है, जो समाज में एक बेहतर चरित्र को बनाने में मदद करता है।

परिवार एक छोटा परिवार, छोटा मूल परिवार, बड़ा मूल परिवार या संयुक्त परिवार हो सकता है। एक परिवार में बहुत सारे रिश्ते हो सकते हैं जैसे दादा-दादी, माता-पिता, पतिपत्नी, भाई-बहन, चाचा-चाची, चचेरे भाई-बहन इत्यादि। मेरा परिवार एक छोटा मूल परिवार है जो एक मध्यम वर्ग परिवार से संबंधित है। मेरे परिवार में चार सदस्य हैं। पिता जी, माता जी, मैं तथा मेरी छोटी बहन। हम लोग पंजाब के पटियाला शहर में रहते हैं। हमारा दो मंजिला घर है। जिसमें माता-पिता का तथा मेरा और मेरी बहन का अलग-अलग कक्ष है।

मेरी माता जी बहुत प्यारी है। वह हमारी छोटी-छोटी ज़रूरतों का ध्यान रखती हैं। वह सुबह से रात तक हमारे कामों में लगी रहती हैं। मेरे पिताजी एक व्यापारी है। वह भी हमारे लिए बहुत मेहनत करते हैं। मेरी छोटी बहन पाँचवी में पढ़ती है। वह भी बहुत प्यारी है। वह पढ़ने में होशियार है। मेरा परिवार एक परिपूर्ण, सकारात्मक और खुशहाल परिवार है जो मुझे और मेरी बहन को ढेर सारा प्यार, उत्साह और सुरक्षा देता है। मेरे दादा-दादी जी पटियाला के ही एक गाँव में रहते हैं। वे वहाँ खेती का काम सम्भालते हैं। गर्मियों की छुट्टियों में मैं अपने दादा-दादी जी के पास जाता हूँ, वहाँ मेरे चाचा-चाची तथा चचेरे भाई-बहन भी रहते हैं। हम गाँव के अपने घर में खूब मस्ती करते हैं। मेरे माता-पिता मेरे दादा-दादी का बहुत ध्यान रखते हैं। वे जब भी गाँव जाते हैं तो उनकी ज़रूरत का ढेर सारा समान ले जाते है।
मेरा परिवार प्रेम, स्नेह तथा विश्वास जैसे गुणों से भरपूर एक अटूट धागे से बंधा हुआ है। भगवान करे मेरा परिवार दिन दुगनी रात चौगुनी उन्नति करे।

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55. विद्यार्थी और अनुशासन

विद्यार्थी का जीवन समाज और देश की अमूल्य निधि होता है। विद्यार्थी समाज की रीढ़ हैं क्योंकि वे ही आगे चल कर राज नेता बनते हैं। देश की बागडोर थाम कर राष्ट्र निर्माता बनते हैं। समाज तथा देश की प्रगति इन्हीं पर निर्भर है। अतएव विद्यार्थी का जीवन पूर्णत: अनुशासित होना चाहिए। वे जितने अनुशासित बनेंगे उतना ही अच्छा समाज और देश बनेगा।

विद्यार्थी जीवन को सुंदर बनाने के लिए अनुशासन का विशेष महत्त्व है। अनुशासन को जो लोग बंधन समझते हैं वे मुर्खता करते हैं। जिस प्रकार हमारे शरीर का संचालन मस्तिष्क द्वारा होता है और हमारी सब कर्मेंद्रियाँ अपना-अपना कार्य करती हैं। यदि कर्मेंद्रियां अपना-अपना कार्य करना बंद कर दें तो हमारा जीवन कठिन हो जाएगा। इसी भांति अनुशासित जीवन के अभाव में हमारा जीवन नष्ट-भ्रष्ट होकर गतिहीन और दिशाहीन हो जाएगा।

अनुशासन दो शब्दों से मिलकर बना है-अनु और शासन। अनु का अर्थ है पीछे और शासन का अर्थ है आज्ञा । अतः अनुशासन का अर्थ है-आज्ञा के पीछे-पीछे चलना। समाज और राष्ट्र की व्यवस्था और उन्नति के लिए जो नियम बनाए गए हैं उनका पालन करना ही अनुशासन है। अतः हम जो भी कार्य अनुशासनबद्ध होकर करेंगे तो सफलता निश्चित ही प्राप्त होगी। अनुशासन के अंतर्गत उठना-बैठना, खाना-पीना, बोलना-चालना, सीखनासिखाना, आदर-सत्कार आदि सभी कार्य सम्मिलित हैं। इन सभी कार्यों में अनुशासन का महत्त्व है।

अनुशासन की शिक्षा स्कूल की परिधि में ही संभव नहीं है। घर से लेकर स्कूल, खेल के मैदान, समाज के परकोटों तक में अनुशासन की शिक्षा ग्रहण की जा सकती है। अनुशासनप्रियता विद्यार्थी के जीवन को जगमगा देती है। विद्यार्थियों का कर्तव्य है कि उन्हें पढ़ने के समय पढ़ना और खेलने के समय खेलना चाहिए। एकाग्रचित्त होकर अध्ययन करना, बड़ों का आदर करना, छोटों से स्नेह करना ये सभी गुण अनुशासित छात्र के हैं। जो छात्र माता-पिता तथा गुरु की आज्ञा मानते हैं, वे परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त करते हैं तथा उनका जीवन अच्छा बनता है। वे आत्मविश्वासी, स्वावलंबी तथा संयमी बनते हैं और जीवन का लक्ष्य प्राप्त करने में सक्षम हो जाते हैं।

अनुशासन भी दो प्रकार का होता है-(i) आंतरिक, (ii) बाह्य। दूसरे प्रकार का अनुशासन परिवार तथा विद्यालयों में देखने को मिलता है। यह भय पर आधारित होता है। जब तक विद्यार्थी में भय बना रहता है तब तक नियमों का पालन करता है। भय समाप्त होते ही वह उद्दण्ड हो जाता है। भय से प्राप्त अनुशासन से बालक डरपोक हो जाता है।

आंतरिक अनुशासन ही सच्चा अनुशासन है। जो कुछ सत्य है, कल्याणकारक है, उसे स्वेच्छा से मानना ही आंतरिक अनुशासन कहा जाता है। आत्मानुशासित व्यक्ति अपने शरीर, बुद्धि, मन पर पूरा-पूरा नियंत्रण स्थापित कर लेता है। जो अपने पर नियंत्रण कर लेता है वह दुनिया पर नियंत्रण कर लेता है। अनुशासन से जीवन सुखमय तथा सुंदर बनता है। अनुशासनप्रिय व्यक्ति अपने जीवन के लक्ष्य को सुगमता से प्राप्त कर लेते हैं। हमें चाहिए कि अनुशासन में रहकर अपने जीवन को सुखी, संपन्न एवं सुंदर बनाएं।

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56. स्वच्छता अभियान

स्वच्छता अभियान को ‘स्वच्छ भारत अभियान’ या ‘स्वच्छ भारत मिशन’ भी कहा जाता है। यह अभियान भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी जी के स्वप्न स्वच्छ भारत को पूर्ण करने हेतू शुरू किया गया। यह एक राष्ट्रीय स्तर का अभियान है। इस अभियान को अधिकारिक तौर पर राजघाट, नई दिल्ली में 2 अक्तूबर, 2014 को महात्मा गाँधी जी की 145वीं जयन्ती पर प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी द्वारा शुरू किया गया। स्वच्छता अभियान में प्रत्येक भारतवासी से आग्रह किया था कि वे इस अभियान से जुड़े और अपने आसपास के क्षेत्रों की साफ-सफाई करें। इस अभियान को सफल बनाने के लिए उन्होंने देश के 11 महत्त्वपूर्ण एवं प्रभावी लोगों को इसका प्रचार करने के लिए चुना जिनमें कुछ ऐसे फिल्मकार, क्रिकेटर तथा महान लोग हैं जिनको लोग सुनना पसंद करते हैं। इस अभियान के अंतर्गत कई शहरी तथा ग्रामीण योजनाएं बनाई गई जिसमें शहरों तथा गांवों में सार्वजनिक शौचालय बनाने की योजनाएं हैं। सरकारी कार्यालयों तथा सार्वजनिक स्थलों पर पान, गुटखा, धूम्रपान जैसे गंदगी फैलाने वाले उत्पादों पर रोक लगा दी गई। इस अभियान को सफल बनाने के लिए स्वयं मोदी जी ने सड़कों पर साफसफाई की थी जिसे देखकर लोगों में भी साफ-सफाई के प्रति उत्साह पैदा हो गया।

स्वच्छता अभियान के लिए बहुत सारे नारों का भी प्रयोग किया गया है ; जैसे
1. एक कदम स्वच्छा की ओर।
2. स्वच्छता अपनाना है, समाज में खुशियां लाना है।
3. गाँधी जी के सपनों का भारत बनाएंगे, चारों तरफ स्वच्छता फैलाएंगे।
स्वच्छता अभियान को अपनाने से कोई हानि नहीं अपितु लाभ ही लाभ होंगे। इससे हमारे आस-पास की हर जगह साफ-सुथरी होगी। साफ-शुद्ध वातावरण में हम और हमारा परिवार बीमार कम पड़ेगा। देश में हर तरफ खुशहाली आएगी और आर्थिक विकास होगा।

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57. मोबाइल के लाभ और हानियां

एक समय था जब टेलीफ़ोन पर किसी दूसरे से बात करने के लिए देर तक प्रतीक्षा करनी पड़ती थी। किसी दूसरे नगर या देश में रहने वालों से बातचीत टेलीफ़ोन एक्सचेंज के माध्यम से कई-कई घण्टों के इन्तज़ार के बाद संभव हो पाती थी किन्तु अब मोबाइल के माध्यम से कहीं भी कभी भी सेकेंडों में बात की जा सकती है। सेटेलाइट मोबाइल फ़ोन के लिए यह कार्य और भी अधिक आसानी से सम्भव हो जाता है। तुरन्त बात करने और सन्देश पहुँचाने को इससे सुगम उपाय सामान्य लोगों के पास अब तक और कोई नहीं है। विज्ञान के इस अद्भुत करिश्मे की पहुंच इतनी सरल, सस्ती और विश्वसनीय है कि आज यह छोटे-बड़े, अमीर-गरीब, बच्चे-बूढ़े सभी के पास दिखाई देता है।

मोबाइल फ़ोन दुनिया को वैज्ञानिकों की ऐसी अद्भुत देन है जिसने समय की बचत कर दी है, धन को बचाया है और दूरियाँ कम कर दी हैं। व्यक्ति हर अवस्था में अपनों से जुड़ा-सा रहता है। कोई भी पल-पल की जानकारी दे सकता है, ले सकता है और इसी कारण यह हर व्यक्ति के लिए उसकी सम्पत्ति-सा बन गया है, जिसे वह सोते-जागते अपने पास ही रखना चाहता है। कार में, रेलगाड़ी में, पैदल चलते हुए, रसोई में, शौचालय में, बाज़ार में मोबाइल फ़ोन का साथ तो अनिवार्य-सा हो गया है। व्यापारियों और शेयर मार्किट से सम्बन्धित लोगों के लिए तो प्राण वायु ही बन चुका है। दफ़्तरों, संस्थाओं और सभी प्रतिष्ठिानों में इसकी रिंग टोन सुनाई देती रहती है।

मोबाइल फ़ोन की उपयोगिता पर तो प्रश्न ही नहीं किया जा सकता। देश-विदेश में किसी से भी बात करने के अतिरिक्त यह लिखित संदेश, शुभकामना संदेश, निमंत्रण आदि मिनटों में पहुँचा देता है। एसएमएस के द्वारा रंग-बिरंगी तस्वीरों के साथ संदेश पहुँचाए जा सकते हैं। अब तो मोबाइल फ़ोन चलते-फिरते कम्प्यूटर ही बन चुके हैं, जिनके माध्यम से आप अपने टी०वी० के चैनल भी देख-सुन सकते हैं। यह संचार का अच्छा माध्यम तो है ही, साथ ही साथ वीडियो गेम्स का भंडार भी है। यह टॉर्च, घड़ी, संगणक, संस्मारक, रेडियो आदि की विशेषताओं से युक्त है। इससे उच्च कोटि की फोटोग्राफ़ी की जा सकती है। वीडियोग्राफ़ी का काम भी इससे लिया जा सकता है। इससे आवाज़ रिकॉर्ड की जा सकती है और उसे कहीं भी, कभी भी सुनाया जा सकता है। एक तरह से यह छोटा-सा उपकरण अलादीन का चिराग ही तो है।

मोबाइल फ़ोन केवल सुखों का आधार ही नहीं है बल्कि कई तरह की असुविधाओं और मुसीबतों का कारण भी है। बार-बार बजने वाली इसकी घंटी परेशानी का बड़ा कारण बनती है। जब व्यक्ति गहरी नींद में डूबा हो तो इसकी घंटी कर्कश प्रतीत होती है। मन में खीझ-सी उत्पन्न होती है। अनचाही गुमनाम कॉल आने से असुविधा का होना स्वाभाविक ही है। मोबाइल फ़ोन से जहाँ रिश्तों में प्रगाढ़ता बढ़ी है वहाँ. इससे छात्रछात्राओं की दिशा में भटकाव भी आया है। फ़ोन-मित्रों की संख्या बढ़ी है जिससे उनका वह समय जो पढ़ने-लिखने में लगना चाहिए था वह गप्पें लगाने में बीत जाता है। इससे धन भी व्यर्थ खर्च होता है। अधिकांश युवा वाहन चलाते समय भी मोबाइल फ़ोन से चिपके ही रहते हैं और ध्यान बँट जाने के कारण बहुत बार दुर्घटनाग्रस्त हो जाते हैं। मोबाइल फ़ोन अपराधी तत्वों के लिए सहायक बनकर बड़े-बड़े अपराधों के संचालन में सहायक बना हुआ है। जेल में बंद अपराधी भी चोरी-छिपे इसके माध्यम से अपने साथियों को दिशा-निर्देश देकर अपराध, फिरौती और अपहरण का कारण बनते हैं।

मोबाइल फ़ोन अदृश्य तरंगों से ध्वनि संकेतों का प्रेषण करते हैं जो मानव-समाज के लिए ही नहीं अपितु अन्य जीव-जन्तुओं के लिए भी हानिकारक होती हैं। ये मस्तिष्क को प्रभावित करती हैं। कानों पर बुरा प्रभाव डालती हैं और दृश्य के तारतम्य को बिगाड़ती है। यही कारण है कि चिकित्सकों द्वारा पेसमेकर प्रयोग करने वाले रोगियों को मोबाइल फ़ोन प्रयोग न करने का परामर्श दिया जाता है। वैज्ञानिकों ने प्रमाणित कर दिया है कि भविष्य में नगरों में रहने वाली चिड़ियों की अनेक प्रजातियाँ अदृश्य तरंगों के प्रभाव से वहाँ नहीं रह पाएँगी। वे वहाँ से कहीं दूर चली जाएँगी या मर जाएँगी, जिससे खाद्य श्रृंखला भी प्रभावित होगी। प्रत्येक सुख के साथ दुःख किसी-न-किसी प्रकार से जुड़ा ही रहता है। मोबाइल फ़ोन के द्वारा दिए गए सुखों और सुविधाओं के साथ कष्ट भी जुड़े हुए हैं।

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58. आदर्श विद्यार्थी

महात्मा गाँधी कहा करते थे, “शिक्षा ही जीवन है।” इसके समक्ष सभी धन फीके हैं। विद्या के बिना मनुष्य कंगाल बन जाता है, क्योंकि विद्या का ही प्रकाश जीवन को आलोकित करता है। विद्याध्ययन का समय बाल्यकाल से आरंभ होकर युवावस्था तक रहता है। यों तो मनुष्य जीवन भर कुछ-न-कुछ सीखता रहता है, किंतु नियमित अध्ययन के लिए यही अवस्था उपयुक्त है। मनुष्य की उन्नति के लिए विद्यार्थी जीवन एक महत्त्वपूर्ण अवस्था है। इस काल में वे जो कुछ सीख पाते हैं, वह जीवन-पर्यंत उनकी सहायता करता है। इसके अभाव में मनुष्य का विकास नहीं हो सकता। जिस बालक को यह जीवन बिताने का अवसर प्राप्त नहीं हुआ वह जीवन के वास्तविक सुख से वंचित रह जाता है।।

यह वह अवस्था है जिसमें अच्छे नागरिकों का निर्माण होता है। यह वह जीवन है जिसमें मनुष्य के मस्तिष्क और आत्मा के विकास का सूत्रपात होता है। यह वह अमूल्य समय है जो मानव जीवन में सभ्यता और संस्कृति का बीजारोपण करता है। इस जीवन की समता मानव जीवन का कोई अन्य भाग नहीं कर सकता।

ब्रह्मचर्य विकास का मूल है। यही विद्यार्थी को उसके लक्ष्य पर केंद्रित करता है। शरीर, आत्मा और मन में संयम रखकर विद्यार्थियों को उनके लक्ष्य की ओर अग्रसर होने में सहायता करता है। शालीनता, निष्ठा, नियमित, कर्तव्य भावना तथा परिश्रम की ओर रुचि पैदा करता है और दुर्व्यसन, पतन तथा आत्म-हनन से रक्षा करता है। सदाचार ही जीवन स्वस्थ शरीर में स्वस्थ आत्मा निवास करती है। अतएव आवश्यक है कि विद्यार्थी अपने अंगों का समुचित विकास करे। खेल-कूद, दौड़, व्यायाम आदि के द्वारा शरीर भी बलिष्ठ होता है और मनोरंजन के द्वारा मानसिक श्रम का बोझ भी उतर जाता है। खेल के नियम में स्वभाव और मानसिक प्रवृत्तियाँ भी सध जाती हैं।

महान् बनने के लिए महत्त्वाकाँक्षा भी आवश्यक है। विद्यार्थी अपने लक्ष्य में तभी सफल हो सकता है जब कि उसके हृदय में महत्त्वाकाँक्षा की भावना हो। ऊपर दृष्टि रखने पर मनुष्य ऊपर ही उठता जाता है। मनोरथ सिद्द करने के लिए जो उद्योग किया जाता है, वही आनंद प्राप्ति का कारण बनता है। यही उद्योग वास्तव में जीवन का चिह्न है।

आज भारत के विद्यार्थी का स्तर गिर चुका है। उसके पास न सदाचार है न आत्मबल। इसका कारण विदेशियों द्वारा प्रचारित अनुपयोगी शिक्षा प्रणाली है। अभी तक भी उसी का अंधाधुंध अनुकरण चल रहा है। जब तक इस सड़ी-गली विदेशी शिक्षा पद्धति को उखाड़ नहीं फेंका जाता, तब तक न तो विद्यार्थी का जीवन ही आदर्श बन सकता है और न ही शिक्षा सर्वांगपूर्ण हो सकती है। इसलिए देश के भाग्य विधाताओं को इस ओर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है।

PSEB 8th Class Hindi रचना पत्र-लेखन

Punjab State Board PSEB 8th Class Hindi Book Solutions Hindi Rachana Patra Lekhan पत्र-लेखन Exercise Questions and Answers, Notes.

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अनौपचारिक (पारिवारिक या सामाजिक) पत्र की रूप-रेखा

अपने से बड़ों को पत्र-पिता को पत्र

18 लाजपतराय नगर
जी० टी० रोड़,
जालन्धर।
दिसम्बर 18, ……..

पूज्य पिता जी,
सादर प्रणाम।
आपका कृपा पत्र मिला, समाचार ज्ञात हुआ। निवेदन है कि ……………………………………………………………………………………………………………………….. …………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………

पूज्य माता जी को मेरा प्रणाम कहना।

आपका आज्ञाकारी,
…………………
…………………

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प्रशासनिक पत्र की रूप-रेखा

उच्च अधिकारियों को लिखा जाने वाला पत्र
सेवा में
उपायुक्त महोदय,
ज़िला पंजाब।

विषय – लाउडस्पीकर के प्रयोग पर पाबन्दी लगाये जाने बारे। श्रीमान जी,
सविनय निवेदन है कि ……………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………….
…………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………
2. …………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………….
3. …………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………….
…………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………

धन्यवाद सहित,

आपका आज्ञाकारी,
(हस्ताक्षर) नाम व पता ……………
…………….

दिनांक ……………
आपके पाठ्यक्रम में केवल दो ही प्रकार के पत्र रखे गये हैं। जैसे-
(क) प्रार्थना पत्र या आवेदन पत्र तथा (ख) व्यक्तिगत पत्र या पारिवारिक पत्र ।
प्रार्थना पत्र/आवेदन पत्र प्रशासनिक पत्रों की कोटि में आते हैं-इसमें मुख्याध्यापक। मुख्याध्यापिका को लिखे जाने वाले पत्र, उच्च अधिकारियों को लिखे जाने वाले शिकायत या सुझाव सम्बन्धी पत्र आते हैं। इन्हें अनौपचारिक पत्रों की कोटि में रखा जाता है। हाथ से लिखे बधाई पत्र, निमन्त्रण पत्र, सांत्वना पत्र आदि भी अनौपचारिक पत्रों की कोटि में आते हैं। इनमें और व्यक्तिगत पत्रों में अन्तर यह होता है कि ये बहुत लम्बे नहीं लिखे जाते अर्थात् ऐसे पत्र संक्षेप में ही लिखने चाहिएं-
निमन्त्रण पत्र या शोक पत्र छपे हुए भेजे जाते हैं उन्हें औपचारिक पत्रों की कोटि में रखा जाता है। जैसे किसी बड़े नेता को उसके जन्म दिवस पर या चुनाव में जीत प्राप्त करने पर लिखे जाने वाले पत्र दो चार पंक्तियों में ही होते हैं-इसी कारण इन्हें औपचारिक पत्र कहते हैं-

विशेष रूप से ध्यान देने योग्य बात –
ऊपर दी गई रूप रेखा के अनुसार ही पत्र लिखने चाहिएं, चाहे वे व्यक्तिगत पत्र हों या प्रशासनिक (प्रार्थना पत्र आदि) प्रायः देखने में आता है कि लोग इन नियमों का पालन नहीं करते हैं। हालांकि इस छोटी-सी बात को दफ्तरों का साधारण कर्मचारी जानता है। वह ऊपर दिये गए नियमों के अनुसार ही पत्र लिखता अथवा टाइप करता है। आगे चल कर इन नियमों का पालन करते हुए लिखे गये पत्र को ही अच्छे अंक दिये जाते हैं। आशा है आप पत्र लिखते समय इन नियमों का पूरी तरह पालन करेंगे।

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(ख) आवश्यक प्रार्थना-पत्र और अन्य पत्र

1. मान लीजिए आपका नाम रेखा है और आप आर्य हाई स्कूल, जालन्धर छावनी में पढ़ती हैं। अपने स्कूल की मुख्याध्यापिका को एक पत्र लिखिए, जिसमें बीमारी के कारण छुट्टी के लिए प्रार्थना की गई हो।

सेवा में
श्रीमती मुख्याध्यापिका जी,
आर्य हाई स्कूल,
जालन्धर छावनी।
श्रीमती जी,

सविनय निवेदन है कि मुझे कल रात को अकस्मात् ज्वर (बुखार) हो गया था और अभी तक उतरा नहीं। डॉक्टर साहिब ने दवा देने के साथ-साथ पूर्ण विश्राम करने के लिए कहा है। इसलिए मैं दो दिन स्कूल में उपस्थित नहीं हो सकती। अत: आप मुझे दो दिन की छुट्टी देकर कृतार्थ करें। आपका अति धन्यवाद होगा। आपकी आज्ञाकारी शिष्या,
रेखा।
आठवीं ‘ए’
19 अप्रैल, 20….

2. मान लीजिए आपका नाम पंकज है और आप राजकीय हाई स्कूल, करतारपुर में आठवीं कक्षा में पढ़ते हैं। अपने स्कूल के मुख्याध्यापक को प्रार्थना-पत्र लिखिए जिसमें भाई के विवाह के कारण अवकाश दिया जाए।
अथवा
अपने मुख्याध्यापक को भाई या बहन के विवाह के कारण अवकाश लेने के लिए प्रार्थना-पत्र लिखें।

सेवा में
श्रीमान् मुख्याध्यापक जी,
राजकीय हाई स्कूल,
करतारपुर।
श्रीमान् जी,

सविनय प्रार्थना है कि मेरे बड़े भाई का विवाह 12 अक्तूबर को होना निश्चित हुआ है। अत: मेरा इसमें सम्मिलित होना आवश्यक है। बारात 12 तारीख को दिल्ली जाएगी और 14 अक्तूबर की सुबह वापस लौटेगी। इसलिए इन दिनों मैं स्कूल में उपस्थित नहीं हो सकता। कृपया मुझे तीन दिन की छुट्टी देकर अनुगृहीत करें।
धन्यवाद सहित,

आपका आज्ञाकारी शिष्य,
पंकज।
आठवीं ‘बी’
दिनांक 11 अक्तूबर, 20….

3. मान लीजिए आपका नाम सदेश है और आप डी० ए० वी० हाई स्कूल लुधियाना में पढ़ते हैं। अपने स्कूल के मुख्याध्यापक को एक प्रार्थना-पत्र लिखें जिसमें जुर्माना मुआफी के लिए प्रार्थना की गई हो।

सेवा
में मुख्याध्यापक जी,
डी० ए० वी० हाई स्कूल,
लुधियाना।
श्रीमान् जी,

सविनय निवेदन है कि कल हमारे अंग्रेजी के अध्यापक महोदय ने हमारी मासिक परीक्षा लेनी थी, किन्तु प्रात: स्कूल आते समय रास्ते में मेरी साइकिल पंक्चर हो गई। इस कारण मैं स्कूल देर से पहुँचा और परीक्षा में भाग न ले सका। अध्यापक महोदय ने मेरी इस सच्ची बात का विश्वास न किया और मुझे 20 रु० जुर्माना कर दिया। मैं यह जुर्माना नहीं दे सकता क्योंकि मेरे पिता जी बड़े ग़रीब हैं। वैसे अंग्रेजी विषय में मैं बहुत अच्छा हूँ। इस बार त्रैमासिक (तिमाही) परीक्षा में मेरे 100 में से 80 अंक आए थे। मैं आज तक स्कूल में अकारण अनुपस्थित नहीं रहा।।
कृपया मेरा जुर्माना माफ़ कर दें। मैं आपका अत्यन्त धन्यवादी हूँगा।

आपका आज्ञाकारी शिष्य,
सुदेश।
आठवीं ‘ए’

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4. मान लीजिए आपका नाम देवेन्द्र है और आप एस० डी० हाई स्कूल, होशियारपुर में पढ़ते हैं। अपने स्कूल के मुख्याध्यापक को एक प्रार्थना-पत्र लिखें जिसमें शिक्षा शुल्क (फीस) क्षमा करने की प्रार्थना की गई हो।

सेवा में
श्रीमान् मुख्याध्यापक जी,
एस० डी० हाई स्कूल,
होशियारपुर।
मान्यवर महोदय,

सविनय प्रार्थना यह है कि मैं आपके स्कूल में आठवीं श्रेणी में पढ़ता हूँ। मेरे पिता जी एक दुकान पर काम करते हैं। उनकी मासिक आय केवल 2500 रुपये है। हम घर में पाँच सदस्य हैं। आजकल इस महँगाई के समय में निर्वाह होना अति कठिन है। ऐसी दशा में मेरे पिता जी मेरी स्कूल की फीस देने में असमर्थ हैं।

मेरी पढ़ाई में विशेष रुचि है। मैं हमेशा अपनी कक्षा में प्रथम स्थान पर रहता आया हूँ। मैं स्कूल की जूनियर हॉकी टीम का कप्तान भी हूँ। मेरे सभी अध्यापक मेरे आचरण से पूर्णतया सन्तुष्ट हैं। अतः आप से मेरी विनम्र प्रार्थना है है कि आप मेरी पूरी फीस माफ़ कर मुझे आगे पढ़ने का सुअवसर प्रदान करने की कृपा करें।
मैं जीवन भर आपका आभारी रहूँगा।

आपका आज्ञाकारी शिष्य,
देवेन्द्र।
कक्षा आठवीं ‘ए’
रोल नं0 22
11 मई, 20….

5. मान लीजिए आपका नाम कमल मोहन है और आप राजकीय हाई स्कूल, करतारपुर में पढ़ते हैं। अपने स्कूल के मुख्याध्यापक को प्रार्थना-पत्र लिखें, जिसमें किसी स्कूल फण्ड से पुस्तकें लेकर देने की प्रार्थना की गई हो।

सेवा में
श्रीमान् मुख्याध्यापक जी,
राजकीय हाई स्कूल,
करतारपुर।
श्रीमान् जी,

निवेदन है कि मैं आपके स्कूल में कक्षा आठवीं ‘ए’ का अत्यन्त निर्धन विद्यार्थी हूँ। जैसा कि आप जानते हैं कि पिछले वर्ष मेरे पिता जी की मृत्यु हो गई है। मेरी माँ पढ़ीलिखी नहीं है। आय का अन्य कोई साधन नहीं है। मेरे अलावा मेरे दो छोटे भाई हैं, जिनमें से एक छठी कक्षा में पढ़ता है। माँ हम सब का मेहनत मजदूरी करके पालन-पोषण कर रही है और पढ़ा-लिखा रही है। नवम्बर का महीना बीत रहा है और अभी तक मेरे पास एक भी पाठ्य-पुस्तक नहीं है। अभी तक मैं साथियों से पुस्तकें माँग कर काम चला रहा हूँ। परन्तु परीक्षा के समय मेरे साथी चाह कर भी अपनी पाठ्य-पुस्तकें नहीं दे पाएँगे। यह बात स्मरण करके अपनी बेबसी का बेहद एहसास होता है। वार्षिक परीक्षा दो-तीन महीने बाद शुरू होने वाली है।

अतः आपसे नम्र प्रार्थना है कि आप मुझे निर्धन छात्र कोष या पुस्तकालय से सभी आवश्यक पाठ्य-पुस्तकें दिलाने की कृपा करें। आपके इस उपकार का मैं जीवनभर आभारी रहूँगा।

आपका आज्ञाकारी शिष्य,
कमल मोहन।
कक्षा आठवीं ‘ए’
रोल नं0 20
11 नवम्बर, 20….

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6. मान लीजिए आपका नाम चन्द्रशेखर है और आप डी० ए० वी० हाई स्कूल, अमृतसर में पढ़ते हैं। अपने स्कूल के मुख्याध्यापक को प्रार्थना-पत्र लिखें जिसमें छात्रवृत्ति (वजीफा) देने की प्रार्थना की हो।
अथवा
अपने स्कूल के मुख्याध्यापक को आर्थिक सहायता के लिए प्रार्थना-पत्र लिखें।

सेवा में
मुख्याध्यापक जी,
डी० ए० वी० हाई स्कूल,
अमृतसर।
श्रीमान् जी,

सविनय निवेयन है कि मैं आपके स्कूल में कक्षा आठवीं ‘ए’ का विद्यार्थी हूँ। मैं एक मध्यम वर्गीय परिवार से सम्बन्ध रखता हूँ। मेरे पिता जी एक स्थानीय कार्यालय में केवल 2500 रुपये मासिक पर कार्य करते हैं। हम परिवार में कुल छः सदस्य हैं। महँगाई के समय में इतने कम वेतन में निर्वाह होना अति कठिन है। अत: मेरे पिता जी मुझे आगे पढ़ाने से इन्कार कर रहे हैं।
मेरी पढ़ाई में विशेष रुचि है। मैं सदा अपनी कक्षा में प्रथम रहता आया हूँ। मेरे सभी अध्यापक मुझ से अतीव प्रसन्न हैं। अतः आपसे मेरी विनम्र प्रार्थना है कि आप मुझे स्कूल के आरक्षित कोष (फण्ड) से छात्रवृत्ति प्रदान करने की कृपा करें।
मैं जीवन-भर आपका आभारी रहूँगा।

आपका आज्ञाकारी शिष्य,
चन्द्रशेखर।
कक्षा आठवीं ‘ए’
5 मई, 20….

7. मान लीजिए आपका नाम संजीव है और आप राजकीय हाई स्कल, फाजिल्का में पढ़ते हैं। अपने स्कूल के मुख्याध्यापक को एक प्रार्थना-पत्र लिखें जिसमें उचित कारण बताते हुए सैक्शन बदलने की प्रार्थना की गई हो।

सेवा में
श्रीमान् मुख्याध्यापक जी,
राजकीय हाई स्कूल,
फाजिल्कां।
मान्यवर महोदय,

सविनय निवेदन है कि मैं आपके स्कूल में आठवीं श्रेणी ‘सी’ सैक्शन में पढ़ रहा हूँ। मैं अपना सैक्शन बदलना चाहता हूँ। मेरे सैक्शन ‘सी’ में अधिकतर छात्र ड्राइंग विषय के हैं, जबकि मैंने संस्कृत विषय ले रखा है। पढ़ाई की सुविधा के विचार से मैं ‘ए’ सैक्शन में जाना चाहता हूँ। इसी सैक्शन में मेरे मुहल्ले के सभी छात्र पढ़ते हैं। सैक्शन अलगअलग होने से मेरे लिए पढ़ाई में कुछ रुकावट पड़ जाती है क्योंकि मैं उनसे पूर्ण सहयोग प्राप्त नहीं कर पा रहा।

इसके अतिरिक्त ‘ए’ सैक्शन में पढ़ने वाले छात्रों को योग्यता के आधार पर रखा जाता है। मैं इस त्रैमासिक परीक्षा में अपनी श्रेणी में प्रथम आया हूँ। इस कारण मुझे ‘ए’ सैक्शन के उन योग्य छात्रों में बैठ कर पढ़ने की अनुमति दी जाए, ताकि मेरा ठीक से विकास हो सके। मेरी प्रार्थना है कि मुझे आठवीं ‘सी’ सैक्शन से ‘ए’ सैक्शन में जाने की अनुमति प्रदान की जाए। मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि पढ़ाई में मैं किसी भी छात्र से पीछे नहीं रहूँगा।

आपका आज्ञाकारी शिष्य,
संजीव।
आठवीं ‘सी’
रोल नं० 40
तिथि 25 सितम्बर, 20….

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8. मान लीजिए आपका नाम रोहित है और आप सरकारी हाई स्कूल लुधियाना में आठवीं कक्षा में पढ़ते हैं। अपने स्कूल के मुख्याध्यापक को एक प्रार्थना-पत्र लिखिए, जिसमें स्कूल में पीने के पानी की कमी की ओर ध्यान दिलाते हुए नया नल लगवाने की प्रार्थना की गई हो।

सेवा में
मुख्याध्यापक जी,
सरकारी हाई स्कूल,
लुधियाना।
श्रीमान् जी,

सविनय प्रार्थना है कि स्कूल में पीने के पानी की उचित व्यवस्था नहीं है। एक ही नल है, जो स्कूल के सभी विद्यार्थियों के लिए काफ़ी नहीं है। जब दोपहर के समय आधी छुट्टी होती है तो विद्यार्थी नल की ओर दौड़ते हैं। वहाँ इतनी भीड़ हो जाती है कि आधी छुट्टी का सारा समय पानी पीने की धक्का-मुक्की में ही बीत जाता है। बहुत से विद्यार्थी फिर भी पानी प्राप्त करने से वंचित रह जाते हैं। इसलिए विद्यार्थियों की इस उचित कठिनाई को ध्यान में रखते हुए स्कूल में एक नया नल लगवाने की कृपा की जाए। गर्मियों के मौसम में तो हर विद्यार्थी पानी पीने की इच्छा रखता है। आपका

आज्ञाकारी शिष्य,
रोहित।
आठवीं ‘बी’
रोल नं० 28
तिथि 5 अप्रैल, 20….

9. मान लीजिए आपका नाम अशोक कुमार है और आप सरकारी हाई स्कूल, मानसा में पढ़ते हैं। अपने मुख्याध्यापक को प्रार्थना-पत्र लिखिए, जिसमें स्कूल छोड़ने का प्रमाण-पत्र (सर्टीफिकेट) देने की प्रार्थना की गई हो।
सेवा में
मुख्याध्यापक महोदय,
सरकारी हाई स्कूल,
मानसा।
महोदय,

निवेदन है कि मेरे पिता जी का स्थानांतरण मानसा से अमृतसर हो गया है वे कल यहाँ से अमृतसर जा रहे हैं और साथ में परिवार भी जा रहा है। इस अवस्था में मेरा यहाँ अकेला रहना बहुत मुश्किल है। इसलिए आपसे अनुरोध है कि आप कृपा करके मुझे स्कूल छोड़ने का प्रमाण-पत्र प्रदान कीजिए ताकि मैं वहाँ जाकर स्कूल में प्रविष्ट हो सकूँ।

आपका विनीत शिष्य,
अशोक कुमार।
आठवीं ‘ख’
रोल नं० 10
तिथि 11 जुलाई, 20….

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10. अपने स्कूल के मुख्याध्यापक को प्रार्थना-पत्र लिखिए जिसमें उन्हें स्कूल के पुस्तकालय में हिन्दी की पुस्तकें मंगवाने के लिए कहा गया हो।

सेवा में
श्रीमान् मुख्याध्यापक जी,
राजकीय हाई स्कूल,
करतारपुर।
श्रीमान् जी,

सविनय निवेदन यह है कि मैं आपके स्कूल में कक्षा दसवीं ‘बी’ छात्र हूँ। मैं आपको यह सूचित करना चाहता हूँ कि हमारे स्कूल के पुस्तकालय में हमारे लिए उपयोगी हिन्दी विषय की पुस्तकें बहुत कम हैं। पिछले तीन-चार वर्षों से हिन्दी विषय की पुस्तकें नहीं खरीदी गई हैं। सभी पुरानी किताबें ही हैं। अतः आपसे निवेदन है कि हिन्दी विषयों से । सम्बन्धित ज्ञान वर्धक पुस्तकें तथा रसाले शीघ्र मंगवा दें।

इस कार्य के लिए हम सब छात्र-छात्राएँ आपके अत्यन्त आभारी होंगे।

आपका आज्ञाकारी शिष्य,
शुभम
कक्षा आठवीं।

11. आप अपनी गली की सफाई के लिए स्वास्थ्य अधिकारी को एक पत्र लिखो।
अथवा
नगरपालिका (म्युनिसिपल कमेटी) पटियाला के स्वास्थ्य अधिकारी को अपनी गली की सफ़ाई के विषय में शिकायत पत्र लिखो।
अथवा
अपने नगर की नगरपालिका के स्वास्थ्याधिकारी को पत्र लिखें, जिसमें ठीक प्रकार से सफ़ाई न करने के कारण मुहल्ले के सफ़ाई कर्मचारी की शिकायत करें।
अथवा
नगरपालिका के महापौर को अपने क्षेत्र की सफाई ठीक ढंग से न होने की शिकायत करते हुए पत्र लिखिए।

सेवा में
स्वास्थ्याध्यक्ष महोदय,
नगरपालिका,
पटियाला।
महोदय,

मैं आपका ध्यान एक आवश्यक बात की ओर आकृष्ट करवाना अपना कर्त्तव्य समझते हैं। मेन रोड के दाहिने मोड़ के साथ लगे हुए भट्टाँ मुहल्ला का जमादार मोहन लाल अपने कर्त्तव्य का पूरी तरह से पालन नहीं कर रहा है। बार-बार रोकने पर भी वह बाहर से लाई हुई गन्दगी को मकान नं0 70 की नुक्कड़ पर डाल देता है। सारे मुहल्ले का कूड़ाकर्कट भी वहीं फेंकता है, कई-कई दिन तक वहाँ कूड़ा-कर्कट पड़ा रहता है जिससे बदबू उत्पन्न हो जाती है। चलने-फिरने वालों को नाक बन्द करके जाना पड़ता है। दुर्गन्ध के अतिरिक्त 24 घंटे मक्खी-मच्छरों के झुंड उस पर मँडराते रहते हैं। नालियों का पानी खड़ा हो जाता है और आने-जाने में बाधा पड़ती है। रात के समय अन्धेरे में तो यह स्थान नरक बन जाता है। गन्दी वायु के कारण रोग फूटने का भय बना रहता है। हमने उसे कई बार समझाया, किन्तु उसके कानों पर तक नहीं रेंगती। उल्टे गाली-गलौच पर उतर आता है।

आशा है कि आप यथाशीघ्र कोई कठोर कार्यवाही करेंगे।

सधन्यवाद
भवदीय
अमरजीत सिंह
तिथि 6 मई, 20….

PSEB 8th Class Hindi रचना पत्र-लेखन

12. पत्रों के सही वितरण न होने पर आप अपने स्थानीय पोस्टमास्टर को प्रार्थनापत्र लिखो।
अथवा
पोस्टमास्टर को डाकिए की शिकायत का पत्र लिखें।

रेलवे कालोनी,
होशियारपुर।
30 अप्रैल, 20….
सेवा में
पोस्टमास्टर महोदय,
होशियारपुर।
श्रीमान् जी,

निवेदन है कि हमारी रेलवे कालोनी का डाकिया सुन्दर दास बहुत आलसी और लापरवाह है। वह ठीक समय पर पत्र नहीं पहुँचाता। जिस कारण कई बार तो हमें पत्रों का उत्तर देने से भी वंचित रहना पड़ता है। इसके अतिरिक्त वह बच्चों के हाथ पत्र देकर चला जाता है। वे पत्र इधर-उधर फेंक देते हैं। कल ही रामनाथ का पत्र नाली में गिरा हुआ पाया गया। हमने उसे कई बार सावधान किया है पर वह आदत से मजबूर है।
अतः आप से सनम्र प्रार्थना है कि या तो उसे आगे के लिए समझा दें या कोई और डाकिया नियुक्त कर दें ताकि हमें और हानि न उठानी पड़े।
सधन्यवाद,
भवदीय
सिमरन कौर

13. जिले के मुख्य स्वास्थ्य अधिकारी को एक प्रार्थना-पत्र लिखो जिसमें अपने गाँव में एक डिस्पैंसरी खोलने की प्रार्थना की गई हो।

सेवा में
मुख्य स्वास्थ्य अधिकारी,
जिला होशियारपुर।
श्रीमान् जी,

निवेदन है कि हमारा गाँव गढ़दीवाला होशियारपुर से 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इसकी जनसंख्या लगभग चार हज़ार है। परन्तु बड़े खेद की बात है कि इस गाँव में कोई डिस्पैंसरी नहीं है। गाँववासियों को छोटी-छोटी बीमारियों के इलाज के लिए शहर भागना पड़ता है। इससे उन्हें काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है सर्दी के मौसम में छोटे बच्चों व बूढ़ों को बीमारी की हालत में शहर ले जाना बहुत ही कठिन है।
इस गाँव में डिस्पैंसरी की बहुत आवश्यकता है। हमारा आपसे निवेदन है कि इस पिछड़े क्षेत्र के लोगों के स्वास्थ्य की ओर भी ध्यान दिया जाए। हमारे गाँव में यदि डिस्पैंसरी खुल जाती है तो इससे आसपास के गाँवों को भी लाभ पहुँच सकता है। आशा है कि आप हमारी इस प्रार्थना की ओर तुरन्त ध्यान देकर डिस्पैंसरी खोलने के लिए शीघ्र उचित पग उठायें।

सधन्यवाद,
भवदीय
अजीत सिंह
तिथि 17 मई, 20….

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14. अपने पिता जी को पत्र लिखो जिसमें आपके स्कूल का वर्णन हो।

सत्य निवास,
होशियारपुर।
17 मई, 20….
पूज्य पिता जी,
सादर प्रणाम।

ईश्वर की कृपा और आपके आशीर्वाद से मैं आठवीं कक्षा में अच्छे अंकों से पास हो गया हूँ। अब मेरा दाखिला अपने ही स्कूल के सैकण्डरी शाखा में हो गया है। मैं संक्षेप में आपको अपने स्कूल के विषय में बता रहा हूँ। मेरे स्कूल का वातावरण मेरे अनुकूल है। यहाँ पर छात्रों की संख्या बहुत है। यहाँ पर लगभग एक हजार छात्र पढ़ते हैं। प्रत्येक श्रेणी के चार-चार विभाग हैं। स्कूल का भवन बड़ा आकर्षक है। इसके अगले भाग में बड़ी सुन्दर फुलवाड़ी है।

हमारे स्कूल के कमरे स्वच्छ तथा विशाल हैं। उनमें बिजली के पंखों का प्रबन्ध है। सफ़ाई का विशेष ध्यान रखा जाता है। यहाँ के अध्यापकों का चरित्र बड़ा ऊँचा है। वे अपने-अपने विषय के विद्वान् हैं। मुख्याध्यापक जी बड़े परिश्रमी तथा छात्रों के साथ सहानुभूति रखने वाले हैं। विद्यार्थियों के खेलने के लिए एक विशाल क्रीड़ा क्षेत्र है, जिसमें शाम को विद्यार्थी खेलते हैं। हमारे स्कूल में एक पुस्तकालय भी है, जिसमें भिन्न-भिन्न विषयों पर हज़ारों पुस्तकें हैं। इसके अतिरिक्त एक विज्ञानशाला है, जिसमें विज्ञान का सारा सामान है। स्कूल पढ़ाई, खेलों तथा अन्य विषयों में अपने शहर में एक उन्नत स्कूल है। इसका परिणाम हर वर्ष बहुत बढ़िया रहता है। मैं सब प्रकार से ठीक हूँ। कुशल समाचार लिखते रहा करें। माता जी को प्रमाण।

आपका सुपुत्र,
अरुण।

15. अपने मित्र को पत्र लिखो, उससे पूछो कि तुम गर्मियों की छुट्टियाँ कहाँ और कैसे बिताओगे। अपना विचार भी उसे बताओ।
अथवा
अपने मित्र/सखी को गर्मियों के अवकाश में अपने पास बुलाने के लिए पत्र लिखिए।
362, माडल टाउन,
जालन्धर।
18 जून, 20….
प्रिय विनोद,
सप्रेम नमस्ते।

बहुत समय से आपका पत्र नहीं आया, क्या कारण है ? स्वास्थ्य तो ठीक है ? आपको याद होगा कि जब इस बार शिशिर के अवकाश में मैं आपके पास आया था तो आपने ग्रीष्मावकाश एक साथ यहाँ बिताने का वचन दिया था। अब उस वचन को पूरा करने का समय आ गया है। यहाँ मेरे पास अलग दो कमरे हैं। स्थान बिल्कुल एकान्त है। बिजली तथा पंखा लगा हुआ है। साथ ही खेलने के लिए अलग एक छोटा-सा क्रीडांगन है। यहाँ शाम को टैनिस खेला करेंगे और प्रात:काल दौड़ा करेंगे जिससे हमारा शरीर बलवान् और सुन्दर बनेगा।

मेरे अभिन्न मित्र राकेश ने भी मेरा साथ देने का वचन दिया है। उसके पिता जी यहाँ एक स्कूल के प्रधानाध्यापक हैं। उनसे भी समय-समय पर सहायता ली जा सकेगी। इस विषय में मैंने उनसे बात कर ली है। उन्होंने सहर्ष सहायता देना स्वीकार कर लिया है। मेरे पिता जी तथा माता जी का भी आपको यहाँ बुलाने का आग्रह है। आशा है, हमारा कार्यक्रम बहुत ही सुन्दर और रुचिकर होगा। आप कब आने का कष्ट कर रहे हैं, लिखें। माता-पिता को मेरा सादर प्रणाम कहना।

आपका प्रिय मित्र,
राजीव।

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16. ‘मेरे जीवन का उद्देश्य’ विषय पर अपने विचार अपने पिता जी को एक पत्र द्वारा सूचित करो।

कबीर भवन,
गांधी नगर।
गुरदासपुर।
20 अप्रैल, 20….
पूज्य पिता जी,
सादर प्रणाम।

अब मैं अपने स्कूल की परीक्षा से प्रायः निपट चुका हूँ। अब आगे मुझे क्या करना चाहिए। मेरे जीवन का उद्देश्य क्या होगा ? मैं अपने जीवन में क्या बन पाऊँगा ? इसका उत्तर देना कठिन है। फिर भी मैं अपने मन के विचार लिख रहा हूँ।

पिता जी, आप मेरी स्वाभाविक रुचियों और प्रवृत्तियों से परिचत ही हैं। उन्हीं के अनुसार मैं अपने जीवन का लक्ष्य निर्धारित करना चाहता हूँ। .मेरा विचार एक अच्छा डॉक्टर बनने का है। आप जानते हैं कि हमारा देश स्वास्थ्य की दृष्टि से पिछड़ा हुआ है। प्रति वर्ष लाखों लोग विभिन्न रोगों का शिकार हो जाते हैं। चिकित्सा के अभाव में असमय ही मृत्यु का ग्रास बन जाते हैं। सरकार ने रोगों को दूर करने के लिए अनेक कदम उठाये हैं। फिर भी इतने बड़े देश के लिए यह ऊँट के मुँह में जीरा के समान हैं। हमारे देश में डॉक्टरों और वैद्यों की कमी तो नहीं, फिर भी निर्धन लोग अर्थाभाव के कारण उनकी सेवा से लाभ उठाने से वंचित रह जाते हैं। कस्बों और ग्रामों के चिकित्सालयों में बड़े-बड़े रोगों की दवाएँ नहीं मिलती। इसलिए ग्रामीण भाई चिकित्सा के अभाव में तड़प-तड़प कर जीवन-यात्रा पूरी करते हैं। पिता जी, ऐसी शोचनीय अवस्था देखकर मेरा संकल्प डॉक्टर बनने का है। इससे देश-सेवा होगी और जीवन का लक्ष्य पूरा होगा। आशा है कि आप मेरे विचारों से सहमत होंगे। मुझे इस कार्य में मनसा-वाचा-कर्मणा अधिकाधिक सहायता देंगे।

माता जी को प्रणाम।
आपका आज्ञाकारी पुत्र,
सुखदेव।

17. अपने छोटे भाई को पत्र लिखिए जिसमें प्रतिदिन समाचार-पत्र पढ़ने की आवश्यकता पर बल दिया हो।
अथवा
अपने छोटे भाई को पत्र लिखकर उसे समाचार-पत्र पढ़ने की प्रेरणा दीजिए।
परीक्षा भवन,
……….शहर।
15 मार्च, 20….
प्रिय संजीव,
चिरंजीव रहो।

तुम्हारा पत्र आज ही प्राप्त हुआ। यह जानकर मुझे अत्यन्त प्रसन्नता हुई है कि तुम अपनी श्रेणी में प्रथम आए हो। मैं समझता हूँ कि तुम अपने पुस्तकीय ज्ञान को पाने में काफ़ी मेहनत करते हो, परन्तु तुम्हें आज के संसार के विषय में भी ज्ञान रखना चाहिए। इसके लिए तुम प्रतिदिन समाचार-पत्र पढ़ने की आदत डालो। समाचार-पत्र पढ़ने से देशदेशान्तर की राजनीतिक एवं आर्थिक स्थिति का ज्ञान प्राप्त होता है। समाचार-पत्र दुनिया के व्यापारिक एवं आर्थिक हालात की अच्छी जानकारी देते हैं। उनमें बाजार भाव, वस्तुओं के विज्ञापन, रोज़गार सम्बन्धी सूचनाएँ आदि मिलती हैं।

समाचार-पत्रों में साहित्यिक चर्चा भी होती है तथा इतिहास सम्बन्धी खोजपूर्ण लेख भी मिलते हैं। समाचार-पत्र पढ़ने से हमारा मस्तिष्क वर्तमान के प्रति सजग हो जाता है। हम यह जान जाते हैं कि हमारे चारों तरफ क्या हो रहा है? जो व्यक्ति समाचार-पत्र नहीं पढ़ते, वे आज के युग के क्रिया-कलाप नहीं जान पाते तथा कुएँ में मेंढक की तरह पड़े रहते हैं।

इसलिए मेरा तुमसे यही कहना है कि तुम प्रतिदिन समाचार-पत्र पढ़ा करो और आम जानकारी में वृद्धि किया करो। मुझे पूर्ण विश्वास है कि तुम मेरे विचारों की तरफ ध्यान दोगे।
तुम्हारा अग्रज,
राजीव।

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18. हाथ का कोई काम सीखने की इच्छा व्यक्त करते हुए एक पत्र लिखकर अपने पिताजी से उसकी अनुमति माँगिए।

केंद्रीय विद्यालय,
अमृतसर।
17 मार्च, 20….
आदरणीय पिता जी,
सादर नमस्कार।

इस वर्ष हमारे विद्यालय में दस्तकारी-शिक्षा नाम से एक नया पाठ्यक्रम शुरू हो रहा है। इस पाठ्यक्रम में हाथ से काम करने की व्यवस्था है। विद्यालय में एक वर्कशॉप भी स्थापित है। यहाँ रेडियो बनाने, टेलीविज़न के पुों को अलग करने और जोड़ने, फोटोग्राफ़ी तथा बढ़ई आदि के काम की शिक्षा दी जाएगी। पिताजी, आप जानते हैं कि हाथ से काम करने की कला में कुशल होना कितना उपयोगी है। इससे व्यक्ति की आजीविका की समस्या का समाधान हो जाता है। यदि आप आज्ञा दें तो मैं भी इस नए पाठ्यक्रम के लिए अपना नाम लिखवा दूं। यह अतिरिक्त शिक्षा अवश्य ही जीवन में उपयोगी साबित
होगी।

कृपया उत्तर शीघ्र दें क्योंकि 31 मार्च तक नाम लिखवा देना ज़रूरी है।
आपका पुत्र
राकेश कुमार।

19. अपने चाचा जी को अपने जन्मदिन पर घड़ी भेजने के लिए धन्यवाद पत्र लिखें।

परीक्षा भवन,
……….शहर।
12 अगस्त, 20….
पूज्य चाचा जी,
सादर प्रणाम।

मेरे जन्म-दिन पर आपका भेजा हुआ पार्सल प्राप्त हुआ। जब मैंने इस पार्सल को खोल कर देखा तो उसमें एक सुन्दर घड़ी देखकर मन अतीव प्रसन्न हुआ। कई वर्षों से इसका अभाव मुझे खटक रहा था।
कई बार विद्यालय जाने में भी विलम्ब हो जाता था। निस्सन्देह अब मैं अपने आपको नियमित बनाने का प्रयत्न करूँगा। इसको पाकर मुझे असीम प्रसन्नता हुई। इसके लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। पूज्य चाची जी को चरण वन्दना। रमेश को नमस्ते। मुझे शैली बहुत याद आती है। उसे मेरी प्यार भरी चपत लगाइए। आपका प्रिय भतीजा, रोहित।

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20. अपनी बहन को पत्र लिख कर रक्षा-बन्धन की शुभ कामनाएँ भेजिए।

49, माल रोड,
अमृतसर।
11 जुलाई, 20….
प्रिय बहन रमा,
सप्रेम नमस्ते।

आज ही तुम्हारा पत्र मिला और उसमें प्रेम का प्रतीक रक्षा-सूत्र भी प्राप्त हो गया। रक्षा-बन्धन हमारा अनादि काल से चला आ रहा एक पवित्र त्योहार है। राखी के एक-एक तार में से बहन का भाई के प्रति पवित्र प्यार झाँकता हुआ दिखाई देता है। तुम्हारा भेजा हुआ रक्षा-सूत्र कल प्रातः जब मैं अपनी कलाई पर बाँधूंगा तो मैं अपना अहो भाग्य समझूगा। ईश्वर का लाख-लाख धन्यवाद है, जिसने मुझे तुम्हारी जैसी कोमल हृदय वाली बहन दी है।
मैं सोचता हूँ कि मैं राखी के बदले तुम्हें क्या शुभ कामना भेजूं ? मैं यही चाहता हूँ कि नन्हीं बहन जीवन भर सुख शान्ति से भरपूर रहे। साथ ही रक्षा-बन्धन का त्योहार हमारे पावन-प्रेम को बढ़ाता रहे।
मैं तो चाहता था कि इस बार रक्षा-बन्धन का त्योहार तुम्हारे पास ही आकर मनाता पर अचानक एक आवश्यक काम आ पड़ा। अतः पत्र द्वारा भेजी गई मेरी शुभ कामनाएँ स्वीकार करो। घर में सब को यथायोग्य प्रणाम। तुम्हारा भाई, राकेश कुमार।

21. रक्षाबन्धन के पवित्र त्योहार पर आप के भाई ने उपहार भेजा है। उस उपहार की उपयोगिता बताते हुए उसका धन्यवाद पत्र के द्वारा करें।

19 लाजपतराय नगर,
जालन्धर।
दिनांक 12 अगस्त, 20…..
आदरणीय भाई संजीव,
नमस्ते।

मेरे द्वारा भेजी गई राखी की पावती भेजते समय आपने जो मुझे पण्डित जवाहर लाल नेहरू जी द्वारा लिखित पुस्तक डिस्कवरी ऑफ इण्डिया का हिन्दी संस्करण ‘भारत की खोज’ भेजा है, उसके लिए मेरे पास आप का धन्यवाद करने के लिए शब्द नहीं हैं।’
आदरणीय भाई यदि आप मुझे कोई सोने की चीज़ भेजते तो भी मुझे इतनी खुशी न होती जितनी इस पुस्तक को प्राप्त कर हुई है। वैसे तो पुस्तकें अमूल्य निधि होती हैं किन्तु इस पुस्तक को पढ़कर आठवीं की इस छोटी कक्षा में अपने देश के प्राचीन इतिहास के बारे में पूरी जानकारी मुझे प्राप्त हो जाएगी। मैंने पहली बार किसी राजनीतिज्ञ द्वारा लिखी साहित्यिक कृति देखी है। मेरी रुचि को ध्यान में रखते हुए आपने जो यह उपहार भेजा है इसके लिए मैं एक बार फिर आपका धन्यवाद करती हूँ।

आशा है आपका स्नेह और आशीर्वाद सदा बना रहेगा।

आपकी बहन
सुमन।

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22. अपनी छोटी बहन/अपने छोटे भाई को आठवीं की परीक्षा में असफल रहने पर सांत्वना पत्र लिखें।
519, राम कुटीर,
बटाला।
5 जुलाई, 20…..
प्रिय सुमन,
प्रसन्न रहो।

पिता जी का अभी-अभी पत्र आया है। तुम्हारे असफल होने का समाचार मिला। मुझे तो पहले ही तुम्हारे पास होने की आशा नहीं थी। इसमें तुम्हारा कोई दोष नहीं। जिन परिस्थितियों में तुमने परीक्षा दी, उसमें असफल रहना स्वाभाविक ही था। पहले माता जी बीमार हुए। फिर तुम स्वयं बुखार में फँस गई। जिस कष्ट को सहन करके तुमने परीक्षा दी वह मुझ से छिपा नहीं। इस पर तुम्हें रंच मात्र भी खेद नहीं करना चाहिए। तुम अपने मन से यह बात निकाल दो कि हम तुम्हारे असफल होने पर नाराज़ हैं। हाँ, अब अगले वर्ष की परीक्षा के लिए अभी से तैयार हो जाओ। किसी पुस्तक की आवश्यकता हो तो लिखो। डट कर पढ़ाई करो। माता जी व पिता जी को प्रणाम।

तुम्हारा प्यारा भाई,
राजू।

23. मित्र की दादा जी के निधन पर संवेदना पत्र।

201, मॉडल टाऊन,
पठानकोट।
29 मई, 20…..
प्रिय सुनील,

अभी-अभी तुम्हारा पत्र मिला। पूज्य दादा जी की मृत्यु का दुखद समाचार पाकर आँखों में अन्धकार-सा छा गया। पैरों तले जमीन खिसक गई। बार-बार सोचता हूँ-कहीं यह स्वप्न तो नहीं। थोड़े दिन हुए मैं उनको कश्मीर-मेल पर चढ़ा कर आया था। न कोई दुःख न कष्ट। उनका हँसता हुआ चेहरा अभी तक मेरे सामने मँडरा रहा है। उनके आशीर्वाद कानों में गूंज रहे हैं। उनकी मधुर वाणी समुद्र समान गम्भीर और शान्त स्वभाव, सबके साथ स्नेहपूर्ण व्यवहार सदा स्मरण रहेगा।

प्रिय मित्र, भाग्य रेखा मिटाई नहीं जा सकती। मनुष्य सोचता कुछ है, होता कुछ और ही है। ईश्वरीय कार्यों में कौन दखल दे सकता है। इसलिए धैर्य के सिवा और कोई चारा नहीं। मेरी प्रार्थना है कि अब शोक को छोड़ कर कर्त्तव्य की चिन्ता करो। रोने-धोने से कुछ नहीं बनेगा। इससे स्वास्थ्य ही बिगड़ता है। अनिल और नलिनी को सान्त्वना दो। अन्त में मेरी ईश्वर से प्रार्थना है कि वह दिवंगत आत्मा को शान्ति प्रदान करे।

तुम्हारा अपना,
नरेश शर्मा।

24. मित्र को नव-वर्ष का बधाई पत्र।

102, गांधी नगर,
फिरोजपुर।
31 दिसम्बर, 20…..
प्रिय राज,
नमस्ते।

कल नव वर्ष का शुभागमन हो रहा है। इस शुभ अवसर पर मैं आपको बहुतबहुत बधाई देता हूँ। कामना करता हूँ कि यह नूतन वर्ष आपको सुख और समृद्धि देने वाला हो। परिवार में सुख और शान्ति का प्रसार हो। शारीरिक आरोग्यता के साथ लक्ष्मी अपनी कृपा की वर्षा करती रहे।
अन्त: में पुनः पुनः मंगल कामना।

आपका प्रिय मित्र,
विजय कुमार।

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25. पुस्तकें मँगवाने के लिए पुस्तक विक्रेता को पत्र।

आर्य हाई स्कूल,
अबोहर।
12 जुलाई, 20…..
सेवा में
प्रबन्धक महोदय,
मल्होत्रा बुक डिपो,
रेलवे रोड,
जालन्धर।
महोदय,
कृपया निम्नलिखित पुस्तकें वी० पी० पी० द्वारा शीघ्रातिशीघ्र भेज कर अनुगृहीत करें। पुस्तकें भेजते समय इस बात का ध्यान रखें कि कोई पुस्तक मैली व फटी न हो। आपके नियमानुसार पाँच सौ रुपये मनीआर्डर द्वारा पेशगी भेज रहा हूँ।
ये पुस्तकें आठवीं श्रेणी के लिए पंजाब स्कूल शिक्षा बोर्ड के नये पाठ्यक्रम पर आधारित होनी चाहिएँ। पुस्तकें
1. MBD हिन्दी गाइड               8 प्रतियाँ
2. MBD इतिहास गाइड           5 प्रतियाँ
3. MBD संस्कृत गाइड            6 प्रतियाँ
4. MBD इंग्लिश गाइड            8 प्रतियाँ

भवदीय,
मोहन लाल।

26. अपने मित्र को पत्र लिखें, जिसमें पढ़ाई के साथ-साथ जीवन में खेलों के महत्त्व पर प्रकाश डाला गया हो।

परीक्षा भवन,
………. शहर।
15 नवम्बर, 20 ….
प्रिय कृष्ण,
नमस्कार।

परीक्षा में तुम्हारी शानदार सफलता ने मेरा मन प्रसन्नता से भर दिया। पर यह जानकर मुझे दुःख भी हुआ कि यह सफलता तुम्हें स्वास्थ्य गंवा कर मिली है। कैसा महँगा व्यवसाय रहा। मुझे पता लगा कि तुम पहले से भी अधिक किताबी कीड़े बन गए हो। न तुम खेलों में भाग लेते हो और न तुम बाहर भ्रमण के लिए ही जाते हो।

केवल पढ़ना व्यर्थ है। उसका मनन भी करना पड़ता है। उसके लिए समय पर मस्तिष्क को विश्राम देना अनिवार्य है। मैं तुम्हें सत्परामर्श देता हूँ कि तुम खेलों में भाग लिया करो। तुम जानते हो कि स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क का विकास होता है।

खेल शरीर को स्वस्थ रखने के साथ-साथ हमारे अन्दर और भी कई गुण पैदा करते हैं। जब हम एक टीम के रूप में खेलते हैं तो हमारे अन्दर अनुशासन और सहयोग की भावना का भी विकास होता है।
पुस्तकीय शिक्षा से जहाँ हमारे अन्दर ज्ञान की वृद्धि और अच्छे-बुरे की पहचान करने के गुण उत्पन्न होते हैं, वहाँ खेल हमारे अन्दर प्रत्येक कार्य को खेल की भावना से करने के संस्कार उत्पन्न करती है। इसलिए विद्यार्थी के व्यक्तित्व के पूर्ण विकास के लिए खेलों का बड़ा महत्त्व है। अत: मेरी सम्मति के अनुसार खेलों में भाग लेने के लिए कुछ समय अवश्य निकाल लेना।

तुम्हारा मित्र,
बलदेव।

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27. आपके शहर मोहाली के क्रिकेट स्टेडियम में भारत और पाकिस्तान के बीच क्रिकेट मैच खेला जा रहा है। अपने दोस्त को पत्र लिखें कि वह उस दिन उसके घर आ जाए ताकि वे मिलकर क्रिकेट मैच का आनंद उठा सकें।

डी० ए० वी० हाई स्कूल,
लुधियाना
16 अगस्त, 20….
प्रिय अनूप,
नमस्ते।

कुछ दिनों से तुम्हारा कोई पत्र प्राप्त नहीं हुआ और तुम्हें मिले.हुए भी काफ़ी समय हो गया है। मैं यह सोच ही रहा था कि तुम्हारे साथ किस प्रकार भेंट हो। मुझे पता चला कि हमारे शहर मोहाली के क्रिकेट स्टेडियम में भारत और पाकिस्तान के बीच क्रिकेट मैच खेला जा रहा है। इससे बढ़िया अवसर तुम्हें मिलने का और क्या हो सकता है क्योंकि मुझे ज्ञात है कि मेरी तरह तुम भी क्रिकेट मैच देखने के बहुत शौकीन हो। यह मैच 3 सितंबर होने जा रहा है। मेरा सुझाव है कि तुम मेरे घर आ जाओ ताकि हम दोनों मिलकर क्रिकेट मैच का आनंद उठा सकें। अतः पत्र द्वारा भेजी मेरी प्रार्थना स्वीकार करो। घर में सबको प्रणाम।

तुम्हारा मित्र
सुखदेव

28. आपके नगर में विश्व पुस्तक मेले का आयोजन किया जा रहा है। दूसरे शहर में रहने वाले अपने किसी मित्र को पत्र लिखकर पुस्तक मेले में आने का निमंत्रण दीजिए।

19, लाजपतराय नगर,
जालन्धर।
दिनांक 12 अगस्त, 20……
प्रिय राजेश,
नमस्ते।

तुम्हारा पत्र आज ही प्राप्त हुआ। यह जानकर प्रसन्नता हुई कि सब कुशल मंगल है तथा तुमने मेरे द्वारा भेजी गई किताबें भी पढ़ ली हैं। हमारे शहर में 18 अगस्त से 24 अगस्त तक विश्व पुस्तक सम्मेलन आयोजित होने जा रहा है। हमारे शहर से तथा विदेशों से भी कई प्रकाशक इस पुस्तक मेले में भाग ले रहे हैं। यहां पर कई पुरानी किताबों के स्टॉल भी लगे होंगे। पुस्तक प्रेमियों के लिए यह एक अच्छा मौका है। मुझे पता है कि तुम भी पुस्तक पढ़ने के शौकीन हो। तुम अपनी पसन्द की पुस्तकें, वाजिब दाम में यहां से खरीद सकते हो। इसीलिए मैं तुम्हें भी इस पुस्तक मेले में आने के लिए आमन्त्रित कर रहा हूँ। तुम्हारे उत्तर की प्रतीक्षा में।

तुम्हारा प्रिय मित्र
सुधीर।

29. कुसंगति में फँसे अपने छोटे भाई को पत्र लिखें, जिसमें सदाचार के गुण बताते हुए सत्संगति की ओर प्रेरित किया गया हो।

परीक्षा भवन,
शहर।
15 मार्च, 20 ….
प्रिय भाई राजीव,
चिरंजीव रहो।

पन्द्रह-बीस दिन से तुम्हारा कोई पत्र नहीं मिला। हमारा सब का ध्यान तुम्हारी ओर ही लगा रहता है। हमें डर लगा रहता है कि तुम कहीं पढ़ाई से विमुख होकर कुसंगति का शिकार न हो जाओ। जीवन की उन्नति का आधार सदाचार है। सदाचार का अर्थ हैश्रेष्ठ आचरण । इसमें सत्य, उच्च विचार, नैतिकता आदि गुण आते हैं। वस्तुतः नैतिक मूल्यों के बिना, मनुष्य-जीवन ही व्यर्थ है। सदाचारहीन व्यक्ति अपना तो सर्वनाश कर ही लेता है, वह अपने समाज और राष्ट्र को भी कलंकित कर देता है। उसका विवेक नष्ट हो जाता है। उसे भले-बुरे का ज्ञान ही नहीं रहता।

प्रिय राजीव ! विद्या की देवी सदाचारी पर ही रीझती है। आज तक जितने भी महापुरुष हुए हैं, वे सदाचार के बल पर ही ऊँचे उठे हैं। विद्या प्राप्ति के लिए जीवन में कठोर तप और साधना करनी पड़ती है। तप और साधना सदाचारी ही कर सकता है। आचारहीन तो हाथ ही मलता रह जाता है, विद्या रूपी सुवासित फूल उसे कभी प्राप्त नहीं हो पाता। वह प्रख्यात उक्ति एक बार फिर तुम्हें याद दिलाना चाहता हूँ कि-‘आचारहीन न पुनन्ति वेदाः’ अर्थात् चरित्रहीन व्यक्ति को देव भी पवित्र नहीं कर सकते।

प्रिय भाई ! शिक्षा-काल में तो सदाचार की महती आवश्यकता रहती है क्योंकि संयम, धैर्य, सहिष्णुता, गुरु सेवा, व्रत आदि गुणों से ही पूर्ण शिक्षा उपलब्ध होती है। सदाचार का सूर्य शिक्षा का प्रकाश फैला सकता है। इसलिए मेरा बार-बार तुम से यही अनुरोध है कि जीवन में सदाचार को अपनाओ। गुरुजनों की आज्ञा से सदाचारी रहते हुए विद्या प्राप्ति के लिए जुट जाओ। किसी चीज़ की आवश्यकता हो तो नि:संकोच लिख भेजो। पत्र का उत्तर शीघ्र दे दिया करो।

तुम्हारा बड़ा भाई,
राकेश।

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30. अपनी सखी को भाई के विवाह में शामिल होने के लिए निमन्त्रण पत्र लिखो।

13, विकास नगर,
खन्ना मण्डी।
18 मार्च, 20 …
प्रिय अनु सप्रेम नमस्ते।

तुम्हें यह जान कर अत्यन्त प्रसन्नता होगी कि मेरे बड़े भाई विजय कुमार का शुभ विवाह दिल्ली में सेठ राम लाल की सुपुत्री सीमा से इसी मास की 24 तारीख को होना निश्चित हुआ है। इस विवाह में आप जैसे सभी इष्ट-मित्र तथा बन्धुओं का शामिल होना अत्यावश्यक है। अतः आपको भाई साहब की बारात में भी चलना पड़ेगा। विवाहोत्सव का कार्यक्रम आगे दिया जा रहा है
23 तारीख             दोपहर                                    1 बजे प्रीतिभोज।
23 तारीख             सायं                                        6 बजे घुड़चढ़ी।
24 तारीख             बारात का दिल्ली प्रस्थान            प्रात: 5 बजे।

आशा है कि तुम 22 तारीख को पहुँच जाओगी। मीना और मंजू भी 22 तारीख को यहाँ पहुँच जायगी।

तुम्हारी अनन्य सखी,
सुमन।

31. अपने छोटे भाई को एक पत्र लिखो जिसमें “मानव जीवन पर सिनेमा का प्रभाव” विषय पर विचार प्रकट किये गए हों।

113, मोहन मोहल्ला,
सरहिन्द।
14 मार्च, 20 ….
प्रिय राजीव,
सप्रेम नमस्ते।

तुम्हारा पत्र मिला जिसमें तुमने अपने आजकल के दैनिक कार्यकाल की एक झलक प्रस्तुत की है। मुझे यह जानकर अचम्भा हुआ कि सिनेमा देखना भी तुम्हारे दैनिक कार्यक्रम में सम्मिलित है। सिनेमा मानव जीवन के लिए सर्वथा अहितकर है। तुम मनोविनोद के लिए सिनेमा जाते हो और सिनेमा के मानसिक प्रभाव पर विचार करते हो। किन्तु मैं तो सिनेमा के दुष्परिणामों को सदा सम्मुख रखता हूँ और यही कारण है कि मैंने अपनी आयु में कुछ बार ही सिनेमा देखा और अब देखने का विचार नहीं है। सिनेमा के प्रति मेरी यह अटल धारणा क्यों बनी है, इसके कई कारण हैं

(1) फिल्म कम्पनियों का मुख्य उद्देश्य धन बटोरना है। अतः वे दर्शकों की रुचि अनुसार सदा प्रेम कहानियाँ ही प्रस्तुत करते हैं। आज की फिल्मों के प्रायः गाने, कथोपकथन, नृत्य तथा अभिनय आदि अश्लील और वासना भड़काने वाले हैं।
(2) सिनेमा हॉल का वातावरण भी प्रायः दूषित हो जाता है। यहाँ अनेक प्रकार के संक्रामक रोगों के कीटाणु होते हैं, जो कई प्रकार के रोग उत्पन्न करते हैं।
(3) सिनेमा देखने से धन का भी नाश होता है।
(4) इन दिनों सिनेमा का एक और विचित्र प्रभाव भी हमारे सम्मुख आ रहा है। वह यह कि आज का प्रत्येक युवक अभिनेता और अभिनेत्री बनने का इच्छुक हो रहा है। पिछले दिनों हमारे स्कूल की दशम कक्षा के दो विद्यार्थी अचानक घर से पैसे लेकर मुम्बई भाग निकले।
आशा है, तुम मेरे विचारों पर अवश्य ध्यान दोगे। पूज्य पिता जी और माता जी जी सेवा में चरण वन्दना। रेणु को प्यार।

तुम्हारा स्नेहभाजक,
प्रेमनाथ।

PSEB 8th Class Hindi रचना पत्र-लेखन

32. अपने मित्र को एक पत्र लिखो जिसमें दहेज प्रथा की बुराइयाँ बताई गई हों।

डी० ए० वी० हाई स्कूल,
होशियारपुर।
1 मार्च, 20 ….
प्रिय मित्र सुशील,
सप्रेम नमस्ते।

आपका प्रेम पत्र मिला। तदर्थ धन्यवाद। बहन रमा की मँगनी के विषय में आपने मुझसे परामर्श माँगा है। दहेज के सम्बन्ध में मेरी सम्मति मांगी है। इसके लिए कुछ शब्द प्रस्तुत हैं- मैं मनु के इस उपदेश का प्रचारक हूँ कि जिस घर में नारियों की पूजा होती है, उस घर में देवता निवास करते हैं। आज इस आदर्श पर पोचा फिर गया है। जिस गृहस्थ के घर में कन्या पैदा होती है वह समझता है कि मुझ पर मुसीबत का पहाड़ टूट पड़ा है। मेरी सम्मति में इन सब बुरी भावनाओं का मूल कारण केवल मात्र दहेज प्रथा है।

आज की प्रचलित दहेज प्रथा ने कई सुन्दर देवियों को पतित होने पर विवश किया है। कइयों ने अपने माता-पिता को कष्ट में देख कर आत्महत्याएँ कर ली। क्या आपको अमृतसर की प्रेमलता की आत्महत्या की घटना स्मरण नहीं है। माता-पिता की इज्जत की रक्षा के लिए उसने अपने प्राणों की बलि दे दी। इस कारण से समाज सुधारकों की आँखें खुलीं। समाज सुधारकों ने इस कुप्रथा का अन्त करने का बीड़ा उठाया।

मेरी अपनी सम्मति में कन्यादान ही महान् दान है। जिस व्यक्ति ने अपने हृदय का टुकड़ा दे दिया उसका यह दान तथा त्याग क्या कम है? आज के नवयुवकों की बढ़ती हुई दहेज की लालसा मुझे बिल्कुल पसन्द नहीं है। वरों की इस प्रकार से बढ़ती हुई कीमतें समाज के भविष्य के लिए महान् संकट बन रही हैं।

मेरी सम्मति में आप रमा बहन के लिए एक ऐसा वर ढूँढ़ें जो हर प्रकार से योग्य, स्वस्थ, समुचित रोज़गार वाला और शिक्षित हो। धनी-मानी और लालची लोगों की ओर एक बार भी नज़र न डालें। समय आ रहा है जबकि स्वतन्त्र भारत के कर्णधार कानून दहेज प्रथा को बन्द कर देंगे। इस सम्बन्ध में बहुत सोचने और घबराने की आवश्यकता नहीं है।

योग्य सेवा से सूचित करें।

आपका अभिन्न हृदय,
मनोहर लाल।

33. अपने छोटे भाई को पत्र लिखो जिसमें प्रातः भ्रमण के लाभ बताए गए हों।

208, कृष्ण नगर,
फगवाड़ा।
1 जून, 20 ….
प्रिय सुरेश,
प्रसन्न रहो।

कुछ दिनों से तुम्हारा कोई पत्र प्राप्त नहीं हुआ। तुम्हारे स्वास्थ्य की बहुत चिन्ता है। व्यक्ति का स्वास्थ्य उसकी पूंजी होता है। स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ आत्मा निवास करती है। गत वर्ष के टाइफाइड का प्रभाव अभी तक तुम्हारे ऊपर बना हुआ है। मेरा एक ही सुझाव है कि तुम प्रातः भ्रमण अवश्य किया करो। यह स्वास्थ्य सुधार के लिए अनिवार्य है। इससे मनुष्य को अनेक लाभ प्राप्त होते हैं।
प्रातः भ्रमण से शरीर चुस्त रहता है। कोई बीमारी पास नहीं फटकती। प्रातः बस्ती के बाहर की वायु बहुत ही शुद्ध होती है। इसके सेवन से स्वच्छ रक्त का संचार होता है। मन खिल उठता है। माँस पेशियाँ बलवान् बनती हैं। स्मरण शक्ति बढ़ती है। प्रात:काल की खेतों की हरियाली से आँखें ताज़ा हो जाती हैं। मुझे पूर्ण आशा है कि तुम मेरे आदेश का पालन

करोगे। नित्य प्रात: उठ कर सैर के लिए जाया करोगे। अधिक क्या कहूँ? तुम्हारे स्वास्थ्य का रहस्य प्रातः भ्रमण में ही छिपा है। पूज्य माता जी को प्रणाम। अनु व शुकील को प्यार।

तुम्हारा अग्रज,
प्रमोद कुमार।

34. मित्र को पास होने की बधाई देते हुए एक पत्र लिखो।
अथवा
मित्र को उसकी परीक्षा में सफलता पर बधाई पत्र लिखो।

108, मॉडल टाऊन,
जालन्धर।
29 अप्रैल, 20 ….
प्रिय मित्र सुधीर,
सप्रेम नमस्ते।

कल तुम्हारा पत्र मिला। यह पढ़ कर बहुत ही प्रसन्नता हुई कि तुम आठवीं श्रेणी में पास हो गए हो। वर्ष भर की मेहनत का ही यह शुभ फल प्राप्त हुआ है। इसके लिए मैं तुम्हें हार्दिक बधाई देता हूँ। जैसे ही मैंने तुम्हारी परीक्षा में सफलता की खबर माता जी को सुनाई, वे हर्ष-विभोर हो उठीं। उन्होंने तुम्हें आशीर्वाद दिया है और कामना की है कि भविष्य में भी तुम इसी प्रकार शानदार सफलता प्राप्त करते रहो।

हाँ, तो मैं आपके पास एक सप्ताह के अन्दर पहुँच जाऊँगा। उसी समय मित्रों को जलपान कराने का कार्यक्रम बना लिया जाएगा। इस बार ठाठ का प्रोग्राम होना चाहिए। इस हर्ष के मौके पर मित्र-मंडली सचमुच ही खुशी से झूम उठेगी। एक बात और लिखना आवश्यक जान पड़ता है कि अब अगली परीक्षा में प्रथम श्रेणी प्राप्त करने का अभी से प्रयास करना शुरू कर दो।

अपने पूज्य माता जी और पिता जी को मेरी चरण वन्दना। शेष मिलने पर।

तुम्हारा मित्र,
राजीव शर्मा।

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35. टी-20 क्रिकेट मैच देखते हुए अपने रोमांच को अपने मित्र को एक पत्र लिखकर व्यक्त कीजिए।

212-पंडित पंतमार्ग,
क, ख, ग नगर।
दिनांक 25 मई, 20…..
प्रिय मित्र सुमित,
नमस्ते।

तुम्हारा पत्र प्राप्त कर अत्यन्त प्रसन्नता हुई कि तुम ग्रीष्मावकाश में यहाँ आ रहे हो। मैं तुम्हारे स्वागत के लिए तैयार हूँ। इस समय मैं आई० पी० एल० का टी-20 क्रिकेट मैच देख रहा हूँ। राजस्थान रॉयल और मुंबई के बीच चल रहा यह मैच हर गेंद पर मेरे दिल की धड़कनें बढ़ा रहा है। चौकों-छक्कों की बरसात हो रही है। मुम्बई को हराने के लिए राजस्थान की टीम ने कमर कस ली और अन्त में राजस्थान ने पाँच विकेट से मुम्बई को हरा ही दिया। दिन-भर तथा कई दिनों तक चलने वाले क्रिकेट मैचों की बजाए मुझे इन टी-20 क्रिकेट मैचों में बहुत आनन्द आ रहा है। आशा है तुम भी देख रहे होंगे। शेष मिलने पर।

तुम्हारे आने की प्रतीक्षा में।

तुम्हारा अभिन्न मित्र,
मानव उनियाल।

36. अपने मित्र को एक पत्र लिखो जिसमें किसी पर्वतीय यात्रा का वर्णन हो।

18, माल रोड,
शिमला।
15 जून, 20 ….
प्रिय मित्र विनोद
सप्रेम नमस्ते।

मैंने आपको दो पत्र लिखे, परन्तु तुम्हारा कोई जवाब नहीं मिला क्या कोई नाराज़गी है ? इस बार हमें गर्मियों की छुट्टियाँ 6 जून को हो गई थीं। मेरा इरादा आप के पास कुछ दिन ठहरने का था, पर अचानक 7 तारीख को शिमला से मामा जी आ गए। वे मुझे शिमला ले गए। जालन्धर से शिमला तक मेरी यात्रा बड़ी ही रोमांचक रही। इसी के सम्बन्ध में शिमला से तुम्हें पत्र लिख रहा हूँ।

मैं और मामा जी सुबह 6 बजे जालन्धर से बस में सवार हुए। बस नॉन स्टाप थी। हम अढ़ाई घण्टे में चण्डीगढ़ पहुँच गए। इसे बाद हम चण्डीगढ़ से कालका पहुँच गए। वहाँ से हमें 12 बजे की ट्रेन पकड़नी थी। कालका से शिमला रेलवे की छोटी लाइन है। वहाँ से शिमला को जाने वाली रेलगाड़ी छोटी है। गाड़ी के डिब्बे छोटे-छोटे हैं। हमारे गाड़ी में बैठने के कुछ ही मिनट बाद गाड़ी चल पड़ी। उसकी रफ्तार बड़ी हल्की थी। वह साँप की तरह बल खाती हुई चल रही थी। सामने पहाड़ी दृश्य बड़े सुहावने लग रहे थे। हिमालय की ऊँची-ऊँची चोटियाँ दिखाई दे रही थीं। हरे-भरे वृक्ष और पर्वतीय नाले मन को मोह रहे थे। इस रास्ते पर एक और मज़ेदार बात थी कि हमें छोटी-बड़ी एक सौ से अधिक सुरंगों के बीच में से गुजरना पड़ा। सुरंगों में पहुँचते ही एक दम अन्धेरा हो जाता था और गाड़ी में बिजली जलने लग जाती थी। अब हम 4 बजे के लगभग शिमला पहुँच गए।

शिमला बहुत ही सुन्दर और स्वास्थ्यवर्धक स्थान है। यहाँ की माल रोड की शोभा दर्शनीय है। चारों तरफ हरियाली छाई रहती है। मुझे यह यात्रा सदैव अविस्मरणीय रहेगी। अपने माता-पिता को मेरा सादर प्रमाण कहना।

तुम्हारा मित्र,
अशोक।

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37. अपने पिता जी को पत्र लिखो जिसमें अपनी परीक्षा में उत्तीर्ण होने की सूचना देते हुए खर्चे के लिए रुपए मँगवाओ।

मॉडल टाऊन,
लुधियाना।
27 अप्रैल, 20 ….
पूजनीय पिता जी,
सादर प्रणाम,

आपको यह जानकर हर्ष होगा कि हमारा परीक्षा परिणाम निकल आया है। मैं 540 अंक लेकर प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हो गया हूँ। अपनी कक्षा में मेरा दूसरा स्थान है। मुझे स्वयं इस बात का दुःख है कि मैं प्रथम स्थान प्राप्त न कर सका। इसका कारण यह है कि मैं दिसम्बर मास में बीमार हो गया था और लगभग 20-25 दिन स्कूल न जा सका। यदि मैं बीमार न हुआ होता तो सम्भवतः छात्रवृत्ति (वज़ीफा) प्राप्त करता। अब मैं मैट्रिक में अधिक अंक प्राप्त करने का यत्न करूँगा।

अब मुझे नई कक्षा के लिए नई पुस्तकें आदि खरीदनी हैं। इधर कुछ दिनों से मेरे पास अच्छे वस्त्र भी नहीं हैं। कुछ मित्र मेरी इस सफलता पर पार्टी भी माँग रहे हैं। इसलिए आप मुझे पाँच सौ रुपए शीघ्र ही भेजने की कृपा करें ताकि मैं अगली कक्षा की पुस्तकें खरीद सकूँ और मित्रों को भी पार्टी दे सकूँ।

आपका आज्ञाकारी बेटा,
दिनेश।

38. बड़े भाई को पत्र लिख कर किसी आँखों देखे मैच का वर्णन करो।

20, आदर्श नगर,
जालन्धर।
16 फरवरी, 20 ….
आदरणीय भाई साहब,
सादर प्रणाम,

ईश्वर की कृपा से आप स्वस्थ और सानन्द होंगे। इस बार पत्र लिखने में इसलिए देर हो गई क्योंकि हमारे स्कूल में जिला टूर्नामैंट हो रहे थे। मैं उसमें व्यस्त था। इस बार हमारे स्कूल की फुटबाल टीम ने कमाल कर दिखाया। उसने जिला भर में प्रथम रह कर ट्राफी प्राप्त की। मैं भी इस टीम का सदस्य था। फाइनल में हमारी टीम का मुकाबला नकोदर के गवर्नमैंट स्कूल की टीम से हुआ। इस रोमांचकारी मैच का संक्षिप्त-सा वर्णन पत्र द्वारा कर रहा हूँ।

फुटबाल प्रतियोगिता में कुल आठ टीमें शामिल हुई थीं। सेमी फाइनल में हमारी टीम की भिड़न्त नूरमहल की टीम से हुई, जिसमें हमारी टीम 2-0 से विजयी रही और उसने फाइनल में प्रवेश किया। दूसरी ओर नकोदर की टीम ने आदमपुर की टीम को 4-0 से रौंद कर फाइनल में प्रवेश किया था। पिछले रविवार को फाइनल मैच हुआ। इस अवसर पर लगभग दस हज़ार दर्शक मैच देखने के लिए उमड़ पड़े थे।

मैच ठीक दोपहर दो बजे शुरू हुआ। रैफ्री की हिसल हुई, दोनों टीमों में एक जोश ठाठे मारने लगा। दोनों टीमों के खिलाड़ियों का गेंद पर पूरा नियन्त्रण था। दोनों ओर के खिलाड़ी आपसी तालमेल के साथ छोटे-छोटे पास देकर खेल रहे थे। मध्यान्तर तक हमारी टीम को गोल करने के दो शानदार अवसर प्राप्त हुए परन्तु सफलता प्राप्त न हो सकी। क्योंकि प्रतिपक्षी टीम की रक्षा पंक्ति बहुत ही चौकन्नी थी। मध्यान्तर तक दोनों टीमें बराबर रहीं। रैफ्री ने जैसे ही मध्यान्तर की ह्विसल दी हज़ारों दर्शक खेल के मैदान में घुस आए। वे अपने-अपने प्रिय खिलाड़ियों का उत्साह बढ़ा रहे थे।

कुछ देर के बाद खेल फिर शुरू हुआ। दोनों ओर के खिलाड़ियों ने सिर-धड़ की बाजी लगा रखी थी। दोनों ओर अद्भुत जोश था, दोनों टीमों की रक्षा पंक्तियाँ किले की दीवारें सिद्ध हो रही थीं। खेल समाप्त होने में केवल दस मिनट शेष रह गए थे। इतने में हमारी टीम को एक पैनल्टी किक मिल गई। हमारी टीम के कैप्टन राकेश ने ऐसा शानदार शॉट लगाया कि विपक्षी टीम का गोल कीपर देखता ही रह गया और गेंद गोली की तरह गोल में जा पहुँची। इस गोल से टीम के हौंसले बढ़ गए फिर हम ने रक्षात्मक खेलना शुरू कर दिया। अन्त में एक गोल से हमें जीत प्राप्त हो गई। खेल समाप्ति की हिसल के साथ ही जिन्दाबाद के नारे लगने शुरू हो गए। हम सब को बढ़िया इनाम मिले। जिला शिक्षा अधिकारी ने हमारी टीम को चमचमाती ट्रॉफी प्रदान की। हम सभी खिलाड़ी खुशी से झूम रहे थे।

पूज्य भाभी जी को प्रणाम। रेणु व कुक्कू को प्यार। कृपया पत्र का उत्तर शीघ्र दें।

आपका छोटा भाई.
विनोद कुमार।
कक्षा आठवीं-सी।

PSEB 8th Class Hindi रचना पत्र-लेखन

39. अपने छोटे भाई को एक पत्र लिखिए जिसमें व्यायाम के महत्त्व पर प्रकाश डाला गया हो।

105 डी० ए० वी० हाई स्कूल,
अमृतसर।
20 मार्च 20 ….
प्रिय अनूप,
चिरंजीव रहो।

माता जी ने अपने पत्र में लिखा है कि तुम्हारा स्वास्थ्य निरंतर गिर रहा है, इससे मुझे बड़ी चिन्ता हुई है। प्रिय भाई। स्वास्थ्य ही मनुष्य की सबसे बड़ी सम्पत्ति है। इसके अभाव में जीवन का कोई भी कार्य सफल नहीं हो सकता है। खाने-पीने का आनन्द भी स्वस्थ व्यक्ति ही उठा सकता है। यह ठीक है कि तुम्हारा अध्ययन पूर्ववत् चल रहा है, परन्तु शीघ्र ही इस गिरते हुए स्वास्थ्य का प्रभाव तुम्हारे अध्ययन पर भी पड़ सकता है। मन एवं मस्तिष्क को बलवान् बनाने में भी स्वास्थ्य का बड़ा योगदान रहता है।

दुर्बलता एक प्रकार का अभिशाप है। शरीर को स्वस्थ एवं सुगठित बनाने के लिए व्यायाम की अत्यन्त आवश्यकता है। शरीर की दुर्बलता को दूर करने के लिए व्यायाम एक औषधि है। व्यायाम से शरीर सुन्दर तथा बलवान् बनता है। कोई बीमारी पास नहीं फटकती। व्यायाम से माँसपेशियों में नए रक्त का संचार होता है तथा पाचन शक्ति बढ़ती है। मुझे पूर्ण आशा है कि तुम मेरे कथन का पालन करोगे। नित्य प्रातः उठकर व्यायाम करोगे। अधिक क्या कहूँ तुम्हारे स्वास्थ्य का रहस्य व्यायाम में ही छिपा है।

पूज्य पिता जी को प्रणाम।

तुम्हारा हितैषी,
मुनीष शर्मा।

PSEB 8th Class Hindi रचना पत्र-लेखन

40. अपने मित्र को पत्र लिखकर अपने स्कूल में होने वाले ‘वन महोत्सव’ का । वर्णन करें।

12 प्रोफैसर कालोनी
बरनाला
15 जनवरी, 20……
प्रिय मित्र सुरेश,

इस पत्र द्वारा मैं तुम्हें अपने स्कूल में मनाये गए वन महोत्सव’ का विवरण लिख रहा हूँ। आशा है इसे पढ़कर और प्रेरणा लेते हुए तुम अपने आस-पड़ोस में पेड़ लगाने का प्रयत्न करेंगे। गत सप्ताह हमारे स्कूल में ‘वन महोत्सव’ मनाया गया। समारोह से पूर्व हमारे क्षेत्र के विधायक महोदय ने वृक्षरोपण का महत्त्व हमें समझाया। उन्होंने बताया कि वृक्ष ही हमें वायु प्रदूषण से सुरक्षित रखते हैं। वर्षा करने में सहायता करते हैं। विधायक महोदय ने बताया कि यदि हम चाहते हैं कि धरती हरी-भरी रहे, नदियाँ अमृत जल बहाती रहें और सबसे बढ़कर मानवता की रक्षा सम्भव हो सके तो हमें पेड़-पौधे लगाने चाहिएं।

विधायक महोदय के भाषण के बाद स्कूल प्रांगण में एक वृक्ष लगाकर वन महोत्सव का श्री गणेश किया। उनके बाद स्कूल के विद्यार्थियों ने खेल मैदान के इर्द-गिर्द पेड़ लगाए और उन्हें थोड़ा जल से सींचा। हमारे प्रधानाचार्य और स्कूल के अध्यापकों ने भी स्कूल परिसर में एक-एक पेड़ लगाया। सब ने इन लगाये पेड़ों के पालन पोषण का भी व्रत लिया। समारोह के अन्त में बच्चों में मिठाई बांटी गई और विद्यार्थी पेड़ लगाओ पर्यावरण बचाओ के नारे लगाते हुए अपने-अपने घरों में चले गए।

तुम्हारा मित्र
रमेश।

PSEB 8th Class Hindi Vyakaran लोकोक्तियाँ

Punjab State Board PSEB 8th Class Hindi Book Solutions Hindi Grammar Lokoktiyan लोकोक्तियाँ Exercise Questions and Answers, Notes.

PSEB 8th Class Hindi Grammar लोकोक्तियाँ

वाक्य प्रयोग सहित लोकोक्तियाँ

1. अन्धों में काना राजा = मूों में थोड़ा पढ़ा (सयाना) ।
प्रयोग – हमारे गाँव की अनपढ़ जनता को पोस्टमैन ही पत्र पढ़कर और सुनाकर आदर पाते हैं क्यों न हो ‘अन्धों में काना राजा’।

2. अधजल गगरी छलकत जाए = कम ज्ञान या धन वाला दिखावा अधिक करता है।
प्रयोग-कृष्णलाल है तो कमेटी में चपरासी लेकिन बातें ऐसी करता है, जैसे कहीं सचिव हो। ठीक है ‘अधजल गगरी छलकत जाए’।

3. अन्त भले का भला = अच्छे काम का फल अच्छा होता है।
प्रयोग – मैं तो सच्चाई और ईमानदारी पर चलने वाला हूँ। मेरा ‘अन्त भले का भला’ में दृढ़ विश्वास है।

4. अन्धी पीसे कुत्ता खाए = कमाए कोई, खाए कोई। प्रयोग-लाला सोहन लाल दिन-रात कोल्हू के बैल की तरह पिसते रहते हैं
और थोड़ी – सी पूँजी जमा करते हैं लेकिन उनके सम्बन्धी हितैषी वनकर गुलछर्रे उड़ाते हैं। ठीक ही कहा है अँधी पीसे कुत्ता खाए।

5. अक्ल बड़ी या भैंस = शारीरिक बल से बुद्धि बल बड़ा होता है।
प्रयोग – मोहन चाहे शारीरिक रूप से हृष्ट-पुष्ट है, परन्तु परीक्षा में सुधा के मुकाबले में उसे बहुत कम नम्बर मिलते हैं। इसीलिए कहा गया है कि अक्ल बड़ी या भैंस।

PSEB 8th Class Hindi Vyakaran लोकोक्तियाँ

6. अब पछताए क्या होत जब चिड़ियाँ चुग गई खेत = हानि होने पर पछताने से क्या लाभ।
प्रयोग – भाई मोहन परिश्रम करते तो पास होते। अब रोने से क्या होगा ? सच है ‘अब पछताए क्या होत जब चिड़िया चुग गई खेत।’

7. आम के आम गुठलियों के दाम = सब प्रकार से लाभदायक सौदा।
प्रयोग – रामदास हरिद्वार जाकर पुराने कपड़े भी बेच आया और गंगा स्नान भी कर आया। इसे कहते हैं-आम के आम गुठलियों के दाम।

8. आँख का अन्धा नाम नयन सुख = काम के प्रतिकूल नाम होना।
प्रयोग – उसका नाम तो भीमसेन है लेकिन है हड्डियों का ढाँचा। इसे कहते हैं ‘आँख का अन्धा नाम नयन सुख’।

9. आ बैल मुझे मार = जान बूझकर मुसीबत मोल लेना।
प्रयोग – अगले स्टेशन पर टी० टी० टिकट चैक कर रहा है। तुम बिना टिकट यात्रा करने की सोच रहे हो। इसे कहते हैं ‘आ बैल मुझे मार’।

10. आसमान से गिरा और खजूर पर अटका = एक मुसीबत से बचकर दूसरी मुसीबत में फँसना।
प्रयोग – चोर ने जब पुलिस को आते देखा तो अन्धेरे की ओर भागा और गड्ढे में गिर जाने से उसकी टाँग टूट गई। बेचारा ‘आसमान से गिरा और खजूर में अटका’।

11. आगे कुआँ पीछे खाई = दोनों ओर मुसीबत।
प्रयोग – सोहन ने आगे शेर आते देखा, पीछे साँप फुकारता, उसकी दशा तो ‘आगे कुआँ पीछे खाई’ वाली हो गई।

12. उल्टा चोर कोतवाल को डाँटे = स्वयं का अपराध अन्य निर्दोष पर लगाना।
प्रयोग – राम की किताब रमेश ने चुराई तो रमेश उल्टे राम पर चोरी का इल्जाम लगाता है। ठीक है ‘उल्टा चोर कोतवाल को डाँटे’।

PSEB 8th Class Hindi Vyakaran लोकोक्तियाँ

13. ऊँट के मुँह में जीरा = अधिक खाने वाले को कम मिलना,
प्रयोग – उस पहलवान के लिए एक चपाती ऊँट के मुँह में जीरे के समान ही है।

14. ऊँची दुकान फीका पकवान = बड़ा दिखावा पर भीतर से खोखला।
प्रयोग – स्कूल का नाम तो रखा ‘तक्षशिला विद्यालय’ परन्तु वहाँ जाकर देखा तो तीन-चार टूटे-फूटे कमरे थे। वही बात है ‘ऊँची दुकान फीका पकवान’।

15. एक अनार सौ बीमार = वस्तु एक, ग्राहक अनेक।
प्रयोग – गाँव में डॉक्टर तो एक है परन्तु बीमारी घर-घर फैली है। वहाँ एक अनार सौ बीमार’ वाली हालत है।

16. एक हाथ से ताली नहीं बजती = दो लड़ने वालों के कारण ही लड़ाई आरम्भ होती है।
प्रयोग – सुधा ने सारा दोष जब अपनी सास पर लगाया तो उसके पति ने कहा यह कैसे हो सकता है, भला एक हाथ से ताली बजती है।

17. एक पंथ दो काज = एक ही उपाय से दो काम निकालना।
प्रयोग – मैं गुरु नानक देव विश्वविद्यालय से फार्म लेने अमृतसर गया था और वहाँ दरबार साहिब और दुर्याणा मन्दिर भी देख आया। इस प्रकार ‘एक पंथ दो काज’ हो गए।

PSEB 8th Class Hindi Vyakaran लोकोक्तियाँ

18. एक ही थैली के चट्टे-बट्टे = सब एक जैसे बुरे।
प्रयोग – इस विभाग के सभी कर्मचारी एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हैं, तुम किसी को भी रिश्वत देकर काम निकाल सकते हो।

19. एक करेला दूसरा नीम चढ़ा = एक बुराई स्वाभाविक हो, दूसरी संगतिजन्य बुराई और इकट्ठी हो जाए।
प्रयोग – दिलीप पढ़ता-लिखता तो था नहीं अब सोहन जुआरिये के साथ जुआ भी खेलने लग पड़ा है। उस पर यह लोकोक्ति चरितार्थ होती है कि “एक करेला, दूसरा नीम चढ़ा।”

20. एक मछली सारे तालाब को गन्दा करती है = एक बुरा व्यक्ति सारे परिवार और समाज को बदनाम कर देता है।
प्रयोग-हमारे स्कूल का नाम सारे राज्य में है लेकिन राम बेकार की शरारतें करता है। वही नहीं जानता कि “एक मछली सारे तालाब को गन्दा करती है।”

21. ओखली में सिर दिया तो मसल से क्या डर = कठिन काम में कष्टों को सहना पड़ता है।
प्रयोग – कृपाराम ने जब चोरी कर ही ली है तो पुलिस का क्या डर ? क्योंकि “ओखली में सिर दिया तो मूसल से क्या डर ?”

22. कंगाली में आटा गीला = एक कष्ट पर दूसरा कष्ट।
प्रयोग – जगदीश पहले तो कठिनाई से गुजारा करता था। अब उसका लड़का बीमार हो गया है। सच है ‘कंगाली में आटा गीला’।

23. करनी और कथनी में अन्तर = कहने और करने में अन्तर।
प्रयोग – आतंकवादियों के विरुद्ध की जाने वाली कार्यवाही में पाकिस्तान के मन्त्री की करनी और कथनी में अन्तर साफ दिखाई पड़ता है।

24. काला अक्षर भैंस बराबर = अनपढ़ व्यक्ति।
प्रयोग – भारत के अधिकतर-ग्रामीणों के लिए काला अक्षर भैंस बराबर है।

PSEB 8th Class Hindi Vyakaran लोकोक्तियाँ

25. काठ की हाँडी बार-बार नहीं चढ़ती = छल-कपट का काम सदा सम्भव नहीं होता।
प्रयोग – मोहन मुझसे रुपए लेकर मुकर गया। जब दुबारा माँगने आया तो मैंने उसे साफ़ कह दिया भाई ‘काठ की हाँडी बार-बार नहीं चढ़ती’।

26. कोयले की दलाली में मुँह काला = बुरी संगति का बुरा प्रभाव।
प्रयोग – जगदीश ने दुष्ट प्रमोद से दोस्ती करके बदनामी प्राप्त की। उसे क्या मालूम था कि ‘कोयले की दलाली में मुँह काला’ होता है।

27. कुत्ते को घी हज़म नहीं होता = नीच आदमी उच्च पदवी मिल जाने पर इतराने लगता है।
प्रयोग – जब से आवारा देव की लाटरी निकली है उसने नौकरी छोड़कर जुआ खेलना शुरू कर दिया है क्योंकि ‘कुत्ते को घी हज़म नहीं होता’।

28. कौआ चला हंस की चाल अपनी चाल भी भूल गया = दूसरों की नकल में अपना गुण भी खो देना।
प्रयोग – धनी राम की नकल करके गरीबू अपनी थोड़ी-सी पूंजी भी गवां बैठा। इसलिए किसी ने कहा है ‘कौआ चला हंस की चाल अपनी चाल भी भूल गया।

29. खोदा पहाड़ निकली चुहिया = परिश्रम अधिक किन्तु लाभ थोड़ा।
प्रयोग – जब हम कांगड़ा का किला देखने चार किलोमीटर पैदल चलकर गए तो वहाँ पर देखा कि सब कुछ खंडहर हो चुका है। तब सब ने कहा कि ‘खोदा पहाड़ निकली चुहिया’।

PSEB 8th Class Hindi Vyakaran लोकोक्तियाँ

30. गंगा गए गंगाराम, जमुना गए जमुनादास = परिस्थिति के अनुसार बदलना।
प्रयोग – आजकल के विधायक तो लोभवश दल बदल लेते हैं। उनकी हालत तो ‘गंगा गए गंगाराम, जमुना गए जमुनादास’ जैसी ही है।

31. धूप में बाल सफ़ेद करना = अनुभव प्राप्त करना।
प्रयोग – बड़ों ने धूप में बाल सफ़ेद नहीं किए होते, हमें उनकी बात माननी चाहिए।

32. घर की मुर्गी दाल बराबर = अपने घर की वस्तु या चीज़ का आदर न होना।
प्रयोग – राम के घर तो पकौड़े भी देसी घी के बनते हैं, घर में चार दुधारू भैंसें हैं। ठीक ही कहा है ‘घर की मुर्गी दाल बराबर’।

33. चिराग तले अन्धेरा = खुद की बुराई नहीं देखना।
प्रयोग-मास्टर जी कहते हैं कि भाइयों से प्रेम करो और खुद भाइयों को पीटते हैं। इसे कहते हैं ‘चिराग तले अन्धेरा’।

34. चार दिन की चाँदनी फिर अन्धेरी रात = सुख सदैव नहीं रहता।
प्रयोग – धन सदा स्थिर नहीं रहता लाला जी, यह तो ‘चार दिन की चाँदनी फिर अन्धेरी रात, सिद्ध होता है।

35. जल में रहकर मगर से वैर = जिस जगह पर रहना हो वहाँ के अधिकारियों से बिगाड़ लेना।
प्रयोग – मैंने मोहन से कहा कि भाई, तूने तो सोहन से झगड़ा करके नौकरी खतरे में डाल ली है। इस तरह ‘जल में रहकर मगर से वैर’ नहीं हो सकता।

36. जिस थाली में खाना उसी में छेद करना = कृतघ्न व्यक्ति।
प्रयोग – सेठ जी ने अपने नौकर की लड़की की शादी के लिए चार हज़ार रुपए तो दे दिए किन्तु जाते समय वह हार भी चुरा कर ले गया। इस प्रकार ‘जिस थाली में खाया, उसी में छेद किया।

37. जिसकी लाठी उसकी भैंस = शक्तिशाली की जीत होती है।
प्रयोग – शिवाजी के शक्तिशाली होने पर उन्होंने दक्षिणी प्रदेश जीत लिया। इसको कहते हैं ‘जिसकी लाठी उसकी की भैंस’।

PSEB 8th Class Hindi Vyakaran लोकोक्तियाँ

38. जहाँ चाह वहाँ राह = तीव्र इच्छा हो तो काम बन जाता है।
प्रयोग – अरे बलदेव, पैसों की परवाह न करो, दिल से मेहनत करो सफलता तुम्हारे कदम चूमेगी, क्योंकि कहा है कि ‘जहाँ चाह वहाँ राह’।

39. जो गरजते हैं वे बरसते नहीं = डींग मारने वाले कुछ करते नहीं।
प्रयोग – अरे जाओ, बड़-बड़ न करो, मैंने बहुत देखे हैं तुम्हारे जैसे जो गरजते हैं, वे बरसते नहीं।

40. झोंपड़ी में रहकर महलों से नाता जोड़ना = अपनी पहुंच से बाहर की इच्छा करना।
प्रयोग – आज मध्यम वर्गीय लोग झोंपड़ी में रहकर महलों से नाता जोड़ने की बात सोच रहे हैं अमीर वे हो नहीं सकते, ग़रीब वे कहाना नहीं चाहते।

41. थोथा चना बाजे घना = कम योग्यता वाला ज्यादा डींगें मारता है।
प्रयोग – मोहन है तो पाँचवीं पास, पर कहता है अपने को साहित्यकार। सच है ‘थोथा चना बाजे घना’।

42. दूर के ढोल सुहावने = बिन देखी वस्तु प्रिय लगती है।
प्रयोग – हमने मंसूरी के बारे में खूब सुन रखा था कि यह तो पहाड़ों की रानी है लेकिन जब उसे देखने गए तो ऐसा कुछ भी न दिखाई दिया जिससे हम भी कह सकें कि मंसूरी बहुत सुन्दर नगर है। सच है ‘दूर के ढोल सुहावने’ लगते हैं।

43. दूध का जला छाछ को फूंक-फूंक कर पीता है = एक बार धोखा खाने वाला हमेशा आशंकित रहता है।
प्रयोग – रामचन्द्र ने जब से लोहे में घाटा खाया, तब से होशियारी से काम करता है। सच है कि ‘दूध का जला छाछ को फूंक-फूंक कर पीता है’।

PSEB 8th Class Hindi Vyakaran लोकोक्तियाँ

44. दूध का दूध पानी का पानी = सच्चा न्याय।
प्रयोग – न्यायाधीश ने प्रवीण और गौतम के झगड़े में निर्णय देते हुए ‘दूध का दूध, पानी का पानी’ करके दिखला दिया।

45. धोबी का कुत्ता न घर का न घाट का = अस्थिर चित्त का व्यक्ति कहीं का नहीं रहता।
प्रयोग – इधर तो तुमने व्यापार में भी घाटा खा लिया और उधर नौकरी भी गई। तुम्हारी तो वही हालत है, ‘धोबी का कुत्ता न घर का न घाट का।

46. न रहेगा बाँस न बजेगी बाँसुरी = कारण को ही समाप्त कर देना।
प्रयोग – अभिमन्यु की वीरता देखकर दुर्योधन ने कहा कि इसे जान से मार डालो। ‘न रहेगा बांस न बजेगी बाँसुरी’।

47. न नौ मन तेल होगा न राधा नाचेगी = अपनी असमर्थता को छिपाने के लिए असम्भव शर्त लगाना।
प्रयोग – सुधा को गीत सुनाने को कहा गया तो वह कहने लगी-आर्केस्ट्रा, हारमोनियम, तबला बजाने वाले हों तो गा सकती हूँ। इस पर सबके मुँह से निकला ‘न नौ मन तेल होगा, न राधा नाचेगी’।

48. नाच न जाने आँगन टेढ़ा = कार्यविधि न जानने पर इधर-उधर के बहाने करना।
प्रयोग – तुलसीदास की चौपाइयों का अर्थ नन्दलाल को आता नहीं। कहने लगे यहाँ श्रोता ही बहुत कम हैं। वाह ! ‘नाच न जाने आँगन टेढ़ा’।

49. नौ नकद न तेरह उधार = ज्यादा उधार की बजाय थोड़ा नकद ही अच्छा है।
प्रयोग – लोभवश रमेश अधिक लाभ लेकर माल उधार बेचता है और लोग पैसे देते नहीं। इससे अच्छा है-नकद बेचो चाहे थोड़ा बेचो। सच है ‘नौ नकद न तेरह उधार’।

50. पाँचों उँगलियाँ बराबर नहीं होती = सब लोग एक जैसे नहीं होते।
प्रयोग – राम ने तो गंगू तेली की लड़की की शादी के लिए उसे तीन हजार रुपए दिए, लेकिन उसके भाई ने श्याम का मकान कुर्क करा लिया । तभी तो कहा है कि ‘पाँचों उँगलियाँ बराबर नहीं होतीं’।

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51. बन्दर क्या जाने अदरक का स्वाद = कदर करने की योग्यता न होना।
प्रयोग – जब मैंने कलावती को खाने के लिए काजू दिए तो उसने फीके हैं कहकर फेंक दिए। सच है, ‘बन्दर क्या जाने अदरक का स्वाद’।

52. भैंस के आगे बीन बजाना = मूर्ख को ज्ञानोपदेश देना।
प्रयोग – कवि सम्मेलन में कविताओं का स्तर बहुत अच्छा था मगर श्रोताओं में आधे व्यक्ति तो अनपढ़ ही थे, तो मुझे लगा कि यहाँ पर तो ‘भैंस के आगे बीन बजाना’ है।

53. मान न मान मैं तेरा मेहमान = जबरदस्ती मेहमान बनना।
प्रयोग – मेरा मित्र महीने भर से मेरे घर ठहरा हुआ है जाने का नाम ही नहीं लेता। इसे कहते हैं मान न मान मैं तेरा मेहमान।

54. मन चंगा तो कठौती में गंगा = यदि मन शुद्ध है, तो तीर्थ घर में ही है।
प्रयोग – पिता जी ने भीम से कहा कि बेटा मन्दिर में जाकर आडम्बर करने से तो अच्छा है कि घर में ही पूजा कर लो और माँ-बाप का आदर करो। जानते हो कि ‘मन चंगा तो कठौती में गंगा’।

55. मुद्दई सुस्त गवाह चुस्त = खुद तो कुछ भी न करना और साथियों से अधिक मदद मिलना।
प्रयोग – रवीन्द्र ने स्वयं तो आवेदन-पत्र तक नहीं भरा था कि चाचा जी उसकी नौकरी के लिए मुख्याध्यापक महोदय से मिल आए। वहीं बात सुनी हुई कि ‘मुद्दई सुस्त गवाह चुस्त’।

56. रस्सी जल गई पर बल न गया = दुर्दशा होने पर भी घमण्डी रहना।
प्रयोग – कत्ल के आरोप में नन्द किशोर की नौकरी तो छूट गई, पर अब भी घर वालों पर पैसे लेने के लिए रौब डालता है। सच है कि ‘रस्सी तो जल गई, पर बल नहीं गया।

57. सहज पके सो मीठा होय = धीरे-धीरे किया जाने वाला काम दृढ़ तथा फलदायक होता है।
प्रयोग – अरे महेश ! परीक्षा की शुरू से ही तैयारी करोगे, तब ही प्रथम स्थान प्राप्त कर सकोगे क्योंकि ‘सहज पके सो मीठा होय’।

58. साँप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे = काम भी हो जाए और हानि भी न हो।
प्रयोग – पिता जी ने दिनेश से कहा कि बेटा, उससे झगड़ा करना ठीक नहीं। कुछ ऐसी तरकीब सोचो कि ‘साँप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे’।

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59. सावन हरे न भादों सूखे = सदा एक-सी अवस्था में रहना।।
प्रयोग – सुरेश निर्धन होने के कारण पाई-पाई के लिए मरता था। लेकिन अब जबकि उसका व्यापार चमक उठा है, अब भी उसकी पाई-पाई के लिए मरने की आदत नहीं गई। उसकी तो ‘सावन हरे न भादों, सूखे’ वाली बात है।

60. सौ सुनार की एक लोहार की = कमज़ोर की सौ चोटों से बलवान की एक चोट ही करारी होती है।
प्रयोग – प्रतिदिन तंग किये जाने पर प्रमोद ने बलदेव से कहा-ध्यान से सुन लो किसी दिन इतना पीढूँगा कि नानी याद आ जाएगी। तुम शायद जानते नहीं कि “सौ सुनार की, एक लोहार की” होती है।

61. होनहार बिरवान के होत चीकने पात = योग्य व्यक्ति की योग्यता का बचपन में ही पता चल जाता है।
प्रयोग – भारत केसरी विजय का बचपन से ही कुश्ती में इतना लगाव था कि गुरु गिरधारी ने कह दिया था कि यह कभी भारत का सर्वश्रेष्ठ पहलवान होगा, क्योंकि ‘होनहार बिरवान के होत चीकने पात’।

62. हाथी के दाँत, खाने के और दिखाने के और = कपटी व्यक्ति।
प्रयोग – आजकल के नेताओं की कथनी और करनी में दिन-रात का अन्तर होता है, क्योंकि वे तो ‘हाथी के दाँत, खाने के और दिखाने के और’ की लोकोक्ति को चरितार्थ करते हैं।

63. हाथ कंगन को आरसी क्या = प्रत्यक्ष को प्रमाण की क्या आवश्यकता है
प्रयोग – कठोर परिश्रम सफलता की गारंटी है आज से ही परिश्रम करना शुरू करें और परिणाम स्वयं देख लें- हाथ कंगन को आरसी क्या’।