PSEB 6th Class Agriculture Solutions Chapter 1 पंजाब में कृषि-एक झलक

Punjab State Board PSEB 6th Class Agriculture Book Solutions Chapter 1 पंजाब में कृषि-एक झलक Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 6 Agriculture Chapter 1 पंजाब में कृषि-एक झलक

PSEB 6th Class Agriculture Guide पंजाब में कृषि-एक झलक Textbook Questions and Answers

(क) एक-दो शब्दों में उत्तर दीजिए

प्रश्न 1.
पंजाब की कुल जी० डी० पी० (Gross Domestic Product) का कितने प्रतिशत खेती में आता है ?
उत्तर-
14 प्रतिशत।

प्रश्न 2.
पंजाब में कितने भूमि क्षेत्रफल पर कृषि होती है ?
उत्तर-
40 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल।

प्रश्न 3.
पंजाब में कितनी भूमि पर कपास की खेती होती है ?
उत्तर-
दक्षिणी-पश्चिमी पंजाब में। (5.60 लाख हेक्टेयर वर्ष 2011-12)

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प्रश्न 4.
पंजाब की कृषि को नई दिशा किसने दी ?
उत्तर-
पंजाब एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी बनने के बाद हरित क्रांति ने।

प्रश्न 5.
पंजाब के कितने क्षेत्रफल पर सिंचाई होती है ?
उत्तर-
98 प्रतिशत क्षेत्रफल।

प्रश्न 6.
पंजाब दूध के उत्पादन में पूरे भारत में कौन-से स्थान पर है ?
उत्तर-
चौथे स्थान पर है।

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प्रश्न 7.
पंजाब के कितने प्रतिशत लोग कृषि पर निर्भर हैं ?
उत्तर-
दो तिहाई लोग।

(ख) एक-दो वाक्यों में उत्तर दीजिए-

प्रश्न 1.
पिछले चार दशकों से पंजाब का भारत के अन्न भंडार में क्या योगदान रहा है ?
उत्तर-
पिछले चार दशकों में पंजाब भारत के अन्न भंडार में 22-60 प्रतिशत चावल और 33-75 प्रतिशत गेहूँ का योगदान डाल रहा है।

प्रश्न 2.
पंजाब की कृषि में ठहराव आने का मुख्य कारण क्या है ?
उत्तर-
गेहूँ-धान के फसली चक्र में फंस कर पंजाब के प्राकृतिक स्रोतों, पानी और मिट्टी का भी ज़रूरत से ज्यादा प्रयोग किया गया है जिससे पानी का स्तर नीचे चला गया है और मिट्टी की उपजाऊ शक्ति भी कम हो गई है तथा जलवायु प्रदूषित हो गई है। इन कारणों से पंजाब की कृषि वृद्धि दर कम हो गई है और कृषि में एक ठहराव आ गया है।

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प्रश्न 3.
कृषकों को सिंचाई के लिए गहरे ट्यूबवैलों और सबमरसीबल पम्पों का क्यों सहारा लेना पड़ रहा है ?
उत्तर-
हरित क्रांति लाने के लिए और अधिक कमाई के लिए पंजाब में पानी का प्रयोग बहुत ज्यादा किया गया जिससे भूमिगत पानी का स्तर बहुत नीचे चला गया है। पंजाब में लगभग 50 प्रतिशत क्षेत्रफल में पानी का स्तर 20 मीटर से नीचे हो गया है इसलिए सिंचाई के लिए गहरे ट्यूबवैल और सबमरसीबल पम्प का सहारा लेना पड़ रहा है।

प्रश्न 4.
भूमि को विषैला कौन बना रहा है ?
उत्तर-
कीटनाशकों, खादों, नदीननाशकों आदि रसायनों का अनावश्यक प्रयोग फसल काटने के बाद ; जैसे-धान की पराली को आग लगाना आदि जैसे काम हैं जो मिट्टी को विषैला बना रहे हैं।

प्रश्न 5.
पंजाब के प्राकृतिक स्रोतों को बनाने के लिए क्या आवश्यक है ?
उत्तर-
पंजाब के कुदरती स्रोतों को बचाने के लिए कृषि चक्रों को बदलने और कृषि में विभिन्नता लाने की ज़रूरत है। गेहूँ-धान फसली चक्र के स्थान पर दालें, तेल बीज, सब्जियों और फलों आदि की कृषि की जानी चाहिए।

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प्रश्न 6.
कृषकों की आर्थिक स्थिति क्यों गंभीर हो रही है ?
उत्तर-
मिट्टी की उपजाऊ शक्ति बढ़ाने के लिए खादों के प्रयोग पर हो रहा खर्च, नदीननाशकों, कीटनाशकों आदि का खर्च, पानी का स्तर नीचे जाने के कारण सबमरसीबल के प्रयोग पर खर्च, इसको चलाने के लिए बिजली का खर्च आदि बहुत बढ़ गए हैं। ऐसा एक ही फसली चक्र में फँसने के कारण हुआ है। गेहूँ-धान के अलावा अन्य फसलों के मण्डीकरण में किसान इतना निपुण नहीं हुआ है और इस कारण उसको फसल का पूरा मूल्य नहीं मिलता। इस तरह किसान का कुल लाभ बहुत ही कम रह गया है और उसकी आर्थिक स्थिति बहुत ही गंभीर हो गई है।

प्रश्न 7.
पंजाब के महत्त्वपूर्ण कृषि सहायक व्यवसाय कौन-से हैं ?
उत्तर-
पशु पालना जैसे गाय, भैंसें दूध के लिए, मुर्गी पालना, खुम्बों की काशत, मधुमक्खी पालना, मछली पालना आदि महत्त्वपूर्ण कृषि सहायक धन्धे हैं।

प्रश्न 8.
धान की पराली को खेतों में आग लगाने से क्या नुकसान होते हैं ?
उत्तर-
धान की पराली को खेतों में आग लगाने से मिट्टी के उपजाऊ तत्त्व समाप्त हो जाते हैं और कई मित्र कीट भी मर जाते हैं और इसके साथ पानी-हवा का प्रदूषण भी होता है।

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प्रश्न 9.
मण्डीकरण की समस्या का समाधान कैसे किया जा सकता है ?
उत्तर-
मण्डीकरण की समस्या किसान अपने संगठन बना कर हल कर सकते हैं।

प्रश्न 10.
कृषकों पर ऋण का बोझ क्यों बढ़ रहा है ?
उत्तर-
कृषि से सम्बन्धित रसायनों जैसे खाद, नदीननाशकों, कीटनाशकों आदि के अनावश्यक प्रयोग के कारण किसानों का खर्च बढ़ा है और किसानों पर कों का बोझ बढ़ता जा रहा है।

(ग) पाँच-छः वाक्यों में उत्तर दीजिए –

प्रश्न 1.
पंजाब में हरित क्रांति का श्रेय किसे जाता है ?
उत्तर-
पंजाब एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी बनने के बाद हरित क्रांति ने पंजाब की कृषि को एक नई दिशा दी। इस हरित क्रांति का श्रेय मेहनतकश किसानों, कृषि वैज्ञानिकों, कृषि नीतियों जैसे कम-से-कम निश्चित मूल्य और यकीनी मण्डीकरण, कर्जे की आसान उपलब्धता, रासायनिक खादों, कीटनाशकों, सिंचाई साधनों के प्रसार ने भी इसमें बहुत योगदान डाला है। हरित क्रांति के कारण किसानों की आमदन में बहुत फायदा हुआ है। इसमें गेहूँ-चावल की अधिक पैदावार वाली उन्नत किस्मों का भी योगदान है।

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प्रश्न 2.
पंजाब में दूध के मण्डीकरण के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर-
पंजाब में फसलों की पैदावार के अलावा पशु पालना और दुधारू पशुओं से भी आमदन प्राप्त की जा सकती है। पंजाब दूध की पैदावार में पूरे देश में से चौथे स्थान पर है। पंजाब में दूध के मण्डीकरण के लिए कई सहकारी संस्थाएं और निजी कंपनियां गांवों में अपनी सभाओं द्वारा दूध इकट्ठा करती हैं। मिल्कफैड एक ऐसी संस्था है। दूध की अधिक पैदावार के कारण एक सफेद क्रांति आई और किसान इससे अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं।

प्रश्न 3.
बहुभांति कृषि से क्या भाव है ?
उत्तर-
पंजाब में गेहूँ-चावल की पैदावार बहुत हो रही है और किसानों को इससे अच्छी आमदन भी हो रही है, पर बार-बार एक ही फसली चक्र के कारण भूमि, पानी और हवा को बहुत हानि हो रही है और अब कृषि वृद्धि की दर में भी कमी आ रही है। कृषि में आई स्थिरता को दूर करने के लिए कृषि में विभिन्नता लाना समय की मुख्य ज़रूरत है।

कृषि विभिन्नता में कई तरह की फसलों को हर साल बदल-बदल कर बोना होता है। जैसे-दालें, तेल बीज, सब्जियां और फलों की कृषि की जा सकती है। वर्तमान समय में सब्जियों तथा फलों की मांग बढ़ गई है और इससे अच्छी आमदन हो सकती है।

प्रश्न 4.
कृषकों को किस-किस क्षेत्र में निपुणता प्राप्त करने की आवश्यकता
उत्तर-
गेहूँ-चावल की फसल से, दूध की पैदावार से तो कमाई हो रही है परन्तु गेहूँचावल के फसली चक्र से भूमि की उपजाऊ शक्ति कम हो रही है और पानी का स्तर भी नीचे हो रहा है। इसलिए किसानों को बदल-बदल कर साल दर साल विभिन्न-विभिन्न फसलों जैसे दालं, तेल बीज, सब्जियां और फलों की कृषि करनी चाहिए। यह तभी सम्भव है यदि किसान इन फसली पैदावार को बढ़ाने में निपुण हों और उनके मण्डीकरण में भी निपुण हों। रसायनों की सूझ-बूझ से प्रयोग की निपुणता भी ज़रूरी है।

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प्रश्न 5.
पंजाब के प्राकृतिक स्रोतों को किससे खतरा है ?
उत्तर-
पंजाब एक कृषि प्रधान प्रदेश है और हरित क्रांति में भी पंजाब एक अग्रणी प्रदेश रहा है। पर इस दौर में पंजाब गेहूँ-चावल के फसली चक्र में ही फंस गया और कृषि विभिन्नता की तरफ ध्यान नहीं दिया गया। इस कारण पंजाब में 50 प्रतिशत जगह से पानी का स्तर लगभग 20 मीटर तक गहरा हो गया है। भूमि की उपजाऊ शक्ति भी कम हो रही है और अधिक उपज लेने के लिए रासायनिक खादें, कीटनाशकों आदि जैसे रसायनों के ज़्यादा प्रयोग के कारण पंजाब के प्राकृतिक स्रोतों का बहुत नुकसान हो रहा है। इन स्रोतों की अनावश्यक ज़रूरत से इनको बहुत खतरा है।

(घ) एक-दो वाक्यों में उत्तर दीजिए

प्रश्न 1.
पंजाब की कुल आय का कितने प्रतिशत कृषि से आता है ?
उत्तर-
14 प्रतिशत।

प्रश्न 2.
पंजाब में कपास कौन-से क्षेत्र में पाई जाती है ?
उत्तर-
दक्षिणी-पश्चिमी पंजाब में।

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प्रश्न 3.
पंजाब में लगभग कितनी मात्रा में रासायनिक खुराकी तत्त्व कृषि में प्रयोग होते हैं ?
उत्तर-
250 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर।

प्रश्न 4.
पंजाब के प्राकृतिक स्रोतों को बचाने के लिए किस चीज़ की मुख्य आवश्यकता है ?
उत्तर-
कृषि विभिन्नता अथवा बहुभांति कृषि की।

प्रश्न 5.
पंजाब के कुल कृषि योग्य क्षेत्रफल पर कितने प्रतिशत में धान की फसल होती है ?
उत्तर-
60 प्रतिशत भाग।

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Agriculture Guide for Class 6 PSEB पंजाब में कृषि-एक झलक Important Questions and Answers

बहुत छोटे उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
पंजाब की कृषि वृद्धि दर टिकाऊ क्यों नहीं है ?
उत्तर-
क्योंकि यह दर 1980 में 4.6 प्रतिशत थी तथा वर्ष 2000 में कम हो कर 2.3 प्रतिशत रह गई।

प्रश्न 2.
वर्ष 2011-12 में गेहूँ की औसतन पैदावार कितनी रही ?
उत्तर-
51 क्विटल प्रति हेक्टेयर।

प्रश्न 3.
वर्ष 2011-12 में धान का औसतन पैदावार बताओ।
उत्तर-
60 क्विटल प्रति हेक्टेयर।

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प्रश्न 4.
कपास पंजाब के किस क्षेत्र की महत्त्वपूर्ण फसल है ?
उत्तर-
दक्षिणी-पश्चिमी पंजाब की।

प्रश्न 5.
1980 में पंजाब की कृषि वृद्धि दर कितनी थी और 2000 में कितनी रह गई ?
उत्तर-
1980 में 4.6 प्रतिशत थी जो 2000 में 2.3 प्रतिशत रह गई।

छोटे उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
खेतों में धान की पुआल को आग लगाने से क्या होता है ?
उत्तर-
इससे मिट्टी के उपजाऊ तत्त्व जल जाते हैं तथा वातावरण प्रदूषित हो जाता है।

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प्रश्न 2.
कृषि सहायक व्यवसाय कौन-से हैं ?
उत्तर-
मुर्गी पालना, खुम्बों की काश्त, मधुमक्खी पालना, मछली पालना आदि।

प्रश्न 3.
हरित क्रान्ति में पदार्थों तथा तकनीकी के अलावा किन का योगदान रहा ?
उत्तर-
इस में किसानों का श्रम, प्रसार कामे तथा विज्ञानिकों का योगदान रहा।

बड़े उत्तर वाला प्रश्न

प्रश्न-
मण्डीकरण की समस्या कैसे हल की जा सकती है ?
उत्तर-
पंजाब में गेहूँ-धान को छोड़ कर अन्य फसलों के मण्डीकरण में बहुत बड़ी समस्याएं आती हैं। इन समस्याओं को सहकारी सभाएं खेती सम्बन्धी अच्छी नीतियां तथा किसान स्तर पर अपने संगठन बना कर समाधान कर सकते हैं। किसानों को मण्डीकरण में निपुण होने की आवश्यकता है तथा व्यापारिक सोच अपनाने की आवश्यकता है।

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पंजाब में कृषि-एक झलक PSEB 6th Class Agriculture Notes

  • पंजाब एक कृषि प्रधान प्रदेश है। इस में दो तिहाई लोग कृषि पर निर्भर हैं।
  • पंजाब की कुल आय का 14 प्रतिशत हिस्सा कृषि से आता है।
  • पंजाब में 40 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल पर कृषि होती है जोकि देश की कुल कृषि योग्य भूमि का 1.5 प्रतिशत बनता है।
  • भारत में गेहूँ के कुल उत्पादन का 22 प्रतिशत और चावल के कुल उत्पादन का 11% भाग पंजाब का होता है।
  • वर्ष 2011-12 में गेहूँ की औसतन उपज 51 क्विटल और धान की औसतन उपज 60 क्विटल प्रति हेक्टेयर रही।
  • हरित क्रांति में पंजाब का बहुत योगदान रहा।
  • आज पंजाब के 98 प्रतिशत क्षेत्रफल में सिंचाई होती है और लगभग 250 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर रासायनिक खुराकी तत्त्व कृषि में प्रयोग होते हैं।
  • पूरे देश में पंजाब दूध के उत्पादन में चौथे स्थान पर है।
  • पंजाब में इस समय सहकारी संस्था मिल्कफैड और कई निजी कम्पनियां गांवों में अपनी सभाओं के द्वारा दूध लेती हैं।
  • पंजाब में कृषि वृद्धि दर 1980 में 4.6 प्रतिशत और 2000 के दशक में इसमें कमी आई तथा यह कम हो कर 2.3 प्रतिशत तक आ गई है।
  • पंजाब में 50 प्रतिशत से अधिक क्षेत्रफल में पानी का स्तर 20 मीटर से गहरा हो गया है।
  • पंजाब में उपजाऊ मिट्टी, बढ़िया सिंचाई साधन परिश्रमी कृषक हैं और समय अनुसार कृषि नज़रिया बदल कर कृषि में आए ठहराव को दूर किया जा सकता है।

PSEB 6th Class Social Science Solutions Chapter 18 भारत तथा विश्व

Punjab State Board PSEB 6th Class Social Science Book Solutions History Chapter 18 भारत तथा विश्व Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 6 Social Science History Chapter 18 भारत तथा विश्व

SST Guide for Class 6 PSEB भारत तथा विश्व Textbook Questions and Answers

I. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखें

प्रश्न 1.
रेशमी-मार्ग से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
चीन को यूरोप के साथ जोड़ने वाले मार्ग को रेशमी-मार्ग कहा जाता है। प्राचीन काल में इस मार्ग द्वारा सबसे अधिक रेशम का व्यापार होता था।

प्रश्न 2.
सातवाहन काल की कुछ महत्त्वपूर्ण बन्दरगाहों के नाम बताएं।
उत्तर-
सातवाहन काल में भारत के दक्षिणी तथा पश्चिमी समुद्री तट के साथ-साथ अनेक महत्त्वपूर्ण बन्दरगाहें थीं।
1. दक्षिणी तट की प्रमुख बन्दरगाहें- (1) कावेरीपट्टनम, (2) महाबलिपुरम, (3) पुहार, (4) कोरकई।
2. पश्चिमी तट की प्रमुख बन्दरगाहें-(1) शूरपारक, (2) भृगुकच्छ।

प्रश्न 3.
भारत के ईरान से सम्बन्ध कैसे स्थापित हुए?
उत्तर-
600 ई० पू० में ईरान के वेचेमिनीड वंश के शासकों ने आक्रमण करके भारत के उत्तर-पश्चिमी भागों पर अपना अधिकार जमा लिया। फलस्वरूप भारत के ईरान के साथ सम्बन्ध स्थापित हुए।

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प्रश्न 4.
भारत से रोम को कौन-सी वस्तुएँ निर्यात की जाती थीं?
उत्तर-
भारत से रोम को मसाले, कीमती हीरे, बढ़िया कपड़ा, इत्र, हाथी दांत का सामान, लोहा, रंग, चावल, तोते तथा मोर आदि पक्षियों तथा बन्दर आदि जानवरों का निर्यात किया जाता था।

प्रश्न 5.
यूरोप से कौन-सी वस्तुएं आयात की जाती थीं?
उत्तर-
यूरोप से शीशा तथा शीशे की बनी वस्तुओं का आयात किया जाता था।

II. रिक्त स्थानों की पूर्ति करें

  1. ……….. ई० पू० में ईरान के …………… वंश के शासकों ने भारत के उत्तरपश्चिमी भागों पर अधिकार कर लिया।
  2. अशोक तथा कनिष्क शासकों के राज्यकाल में बौद्ध भिक्षुओं को बौद्ध धर्म का प्रचार करने ………, ………, ……… तथा …………….. में भेजा गया।
  3. …………. तथा …………… शासकों ने जहाज़ बनाने तथा समुद्रं पार की खोजों को प्रोत्साहित किया।
  4. अरबों ने सिंध पर …………… ई० में अधिकार कर लिया।
  5. कम्पूचिया के …………… मंदिर में भारत के महाकाव्य ………… तथा ………… में से दृश्यों को मूर्ति कला में चित्रण किया गया है।

उत्तर-

  1. 600, वेचेमिनीड
  2. श्रीलंका, बर्मा/चीन/मध्य एशिया
  3. चेर, चोल तथा पाण्डेय
  4. 712
  5. अंगकोरवाट, रामायण, महाभारत।

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III. सही जोड़े बनायें

  1. सोने के सिक्के – (क) शूरपारक
  2. बन्दरगाह – (ख) रेशम
  3. चीन – (ग) स्थल-मार्ग
  4. रेशमी-मार्ग – (घ) रोम

उत्तर-
सही जोड़े

  1. सोने के सिक्के – रोम
  2. बन्दरगाह – शूरपारक
  3. चीन – रेशम
  4. रेशमी-मार्ग – स्थल-मार्ग

IV. सही (✓) अथवा ग़लत (✗) बताएं

  1. भारतीय संस्कृति ने भारतीयों की पहचान बनाई।
  2. भारत के मिस्र के साथ कोई सम्बन्ध नहीं थे।
  3. बुद्ध की पाषाण-तराशी की बड़ी प्रतिमाएँ बामियान (अफ़गानिस्तान) में पाई गई थीं।
  4. भारतीय वस्तुएं रोम की मण्डियों में अधिक दामों पर बिकती थीं।
  5. चेर, चोल तथा पांड्य शासकों ने समुद्र पार जहाज़ बनाने तथा खोजों को प्रोत्साहित किया।

उत्तर-

  1. (✓)
  2. (✗)
  3. (✓)
  4. (✓)
  5. (✗)

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PSEB 6th Class Social Science Guide भारत तथा विश्व Important Questions and Answers

कम से कम शब्दों में उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
चीन को यूरोप के साथ जोड़ने वाला व्यापारिक मार्ग क्या कहलाता था?
उत्तर-
रेशमी मार्ग, सिल्क मार्ग।।

प्रश्न 2.
बामियान (अफगानिस्तान) में प्रसिद्ध बौद्ध स्मारकों को किसने नष्ट किया?
उत्तर-
तालिबान शासकों ने।

प्रश्न 3.
अरबों ने सिंध पर कब अधिकार किया?
उत्तर-
712 ई० में।

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बहु-विकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
अंगकोरवाट का मंदिर कहां स्थित है?
(क) चम्पा
(ख) चीन
(ग) कम्पूचिया।
उत्तर-
(ग) कम्पूचिया

प्रश्न 2.
शून्य संख्या भारत की देन है। विश्व में इस संख्या का प्रसार निम्न में से किसने किया?
(क) हिन्दुओं ने
(ख) अरबों ने
(ग) बौद्धों ने।
उत्तर-
(ख) अरबों ने

प्रश्न 3.
प्राचीन काल में भारतीय राजाओं के प्रयत्नों से मध्य एशिया तथा एशिया के कुछ अन्य देशों में बौद्ध धर्म का प्रसार हुआ? इस कार्य में निम्न में से किस राजा का योगदान नहीं था?
(क) समुद्रगुप्त
(ख) कनिष्क
(ग) अशोक।
उत्तर-
(क) समुद्रगुप्त

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अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत के दूसरे देशों के साथ सम्बन्धों का मुख्य कारण क्या था?
उत्तर
भारत के दूसरे देशों के साथ सम्बन्धों का मुख्य कारण व्यापार था।

प्रश्न 2.
अंगकोरवाट का मन्दिर कहां है तथा इसका निर्माण किसने करवाया?
उत्तर-
अंगकोरवाट का मन्दिर कम्बुज में है। इस मन्दिर का निर्माण राजा सूर्यवर्मा द्वितीय ने करवाया।

प्रश्न 3.
चम्पा (वियतनाम) के कोई दो भारतीय राजाओं के नाम बताएं।
उत्तर-
चम्पा (वियतनाम) के दो भारतीय राजा थे –

  1. भद्रवर्मा तथा
  2. रुद्रदमन।

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प्रश्न 4.
चम्पा (वियतनाम) की राजधानी का नाम बताएं।
उत्तर-
चम्पा (वियतनाम) की राजधानी माइसन थी।

प्रश्न 5.
इण्डोनेशिया के प्रमुख द्वीपों के नाम लिखें जहां भारतीय सभ्यता का प्रचार हुआ।
उत्तर-
भारतीय सभ्यता का प्रचार इण्डोनेशिया के जावा, सुमात्रा, बाली तथा बोर्नियो द्वीपों में हुआ।

प्रश्न 6.
बोरबुदुर का मन्दिर कहां है?
उत्तर-
बोरबुदुर का मन्दिर जावा में है।

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प्रश्न 7.
चीन में कौन-से बौद्ध विद्वान् को कैद करके ले गए थे?
उत्तर-
चीन में बौद्ध विद्वान् कुमारजीव को कैद करके ले गए थे।

प्रश्न 8.
चीन में प्रमुख रूप से कौन-से भारतीय धर्म का प्रसार हुआ?
उत्तर–
चीन में प्रमुख रूप से बौद्ध धर्म का प्रसार हुआ।

प्रश्न 9.
अरबों के हमले के दो कारण बताएं।
उत्तर-

  1. अरब लोग अपने साम्राज्य का विस्तार करना चाहते थे।
  2. वे भारत में इस्लाम धर्म का प्रचार करना चाहते थे।

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प्रश्न 10.
अरबों के आक्रमण के समय सिन्ध का राजा कौन था?
उत्तर-
अरबों के आक्रमण के समय सिन्ध का राजा दाहिर था।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
कम्बोडिया के साथ भारतीय सम्बन्धों की जानकारी दीजिए।
उत्तर-
कम्बोडिया में चौथी शताब्दी में हिन्दू राज्य की स्थापना हुई। 357 ई० में यहां चन्द्रगुप्त नामक राजा सिंहासन पर बैठा। पांचवीं शताब्दी में यहां कौंडन्य नामक एक व्यक्ति ने अपना राज्य स्थापित किया। उसके प्रभावाधीन कम्बोडिया के बहुत-से लोगों ने भारतीय संस्कृति को अपना लिया। कम्बोडिया के एक शासक गुणवर्मन ने एक विष्णु मंदिर बनवाया।

प्रश्न 2.
प्राचीन काल में जावा के भारत के साथ क्या सम्बन्ध थे?
उत्तर-
जावा राज्य की स्थापना 56 ई० में एक हिन्दू राजा ने की। दूसरी शताब्दी में वहां भारतीय उपनिषदों का प्रचार हुआ। चीनी यात्री फाह्यान ने 418 ई० में जावा की यात्रा की। उसने देखा कि वहां हिन्दू धर्म का काफ़ी प्रभाव है। जावा में कई मन्दिर बनवाए गए थे। इन मन्दिरों में शिव, विष्णु तथा ब्रह्मा की पूजा होती थी। वहां हिन्दू धर्म के साथ-साथ बौद्ध धर्म भी लोकप्रिय हआ। वहां का बोरोबुदर का बौद्ध मन्दिर संसार भर में प्रसिद्ध है।

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प्रश्न 3.
बर्मा (म्यांमार) में भारतीय सभ्यता के प्रसार के बारे में बताएं।
उत्तर-
बर्मा (म्यांमार) के साथ भारत के सम्बन्ध महात्मा बुद्ध के समय से ही थे। हिन्दू उपनिवेश की स्थापना के पश्चात् यहां भारतीय सभ्यता तथा संस्कृति का प्रसार होने लगा। यहां के अधिकतर लोग बौद्ध धर्म की हीनयान शाखा के अनुयायी थे। 11वीं शताब्दी में अनिरुद्ध ने बर्मा (म्यांमार) में अपना राज्य स्थापित किया। उसके उत्तराधिकारियों ने यहां प्रसिद्ध आनन्द मन्दिर बनवाया। आज भी बर्मा (म्यांमार) में बौद्ध धर्म प्रचलित है।

प्रश्न 4.
अरबों के हमलों का तात्कालिक कारण क्या था?
उत्तर-
अरबों के कुछ व्यापारियों को देवल (सिन्ध राज्य) बन्दरगाह पर डाकुओं ने लूट लिया था। उनके खलीफा ने सिन्ध के राजा दाहिर से इस घटना का मुआवज़ा मांगा। परन्तु राजा दाहिर ने यह कह कर मुआवजा देने से इन्कार कर दिया कि देवल के डाकू उसके अधीन नहीं हैं। यह सुनकर बसरा के गवर्नर ने राजा दाहिर पर हमला कर दिया, जिसे दाहिर ने हरा दिया।

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निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
इण्डोनेशिया तथा भारत के सम्बन्धों के बारे में बताएं।
उत्तर-
इण्डोनेशिया में जावा, सुमात्रा, बाली, बोर्नियो आदि द्वीप शामिल थे। यहां प्रथम शताब्दी में भारतीयों का आगमन शुरू हो गया था।
1. जावा-जावा में 56 ई० में हिन्दु राज्य की स्थापना हुई थी। वहां कई मन्दिर बने जिनमें शिव, विष्णु, ब्रह्मा आदि भारतीय देवताओं की पूजा होती थी। जावा में 15वीं शताब्दी तक भारतीय संस्कृति का प्रचलन रहा।

2. सुमात्रा-सुमात्रा का पुराना हिन्दू राजा श्री विजय था। इसकी स्थापना चौथी शताब्दी में हुई। चीनी यात्री इत्सिंग लिखता है कि सुमात्रा बौद्ध ज्ञान का केन्द्र था। 684 ई० में सुमात्रा में एक बौद्ध राजा शासन करता था।

3. बाली-बाली भी हिन्दू उपनिवेश था। यहां भी हिन्दू मन्दिर थे। यहां के लोगों को वेदों, महाभारत तथा रामायण का ज्ञान था। समाज में चार जातियां थीं। चीनी वृत्तांत से पता चलता है कि बाली एक सभ्य तथा अमीर हिन्दू समाज था।

4. बोर्नियो-बोर्नियो भी हिन्दू उपनिवेश था। यहां के राजा मूलवर्मा का वर्णन मिलता है कि उसने एक यज्ञ में 20,000 गऊएं दान दी थीं। ब्राह्मणों का समाज में ऊंचा स्थान था। यहां भी मन्दिरों का निर्माण किया गया।

प्रश्न 2.
श्रीलंका, चीन तथा तिब्बत में बौद्ध धर्म का प्रचार किस प्रकार हुआ?
उत्तर-
श्रीलंका, चीन तथा तिब्बत में बौद्ध धर्म के प्रचार का वर्णन इस प्रकार है –
1. श्रीलंका-श्रीलंका में सबसे पहले अशोक ने बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए प्रचारक भेजे। उसने अपने पुत्र महेन्द्र तथा पुत्री संघमित्रा को वहां भेजा। इसके पश्चात् अन्य कई बौद्ध भिक्षु भी श्रीलंका गए तथा उन्होंने वहां बौद्ध धर्म का प्रचार किया। उन्होंने वहां पर कई बौद्ध ग्रन्थ भी लिखे। आज भी श्रीलंका में ज्यादातर लोग बौद्ध धर्म के अनुयायी हैं।

2. चीन-चीन में बौद्ध भिक्षु प्रथम शताब्दी में गए। भिक्षु कुमारजीव ने यहां बौद्ध धर्म के प्रसार में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। उसने कई बौद्ध ग्रन्थों का चीनी भाषा में अनुवाद किया। धीरे-धीरे यह धर्म सारे देश में फैल गया। इस धर्म से प्रभावित होकर कई चीनी यात्री बौद्ध धर्म के सिद्धान्तों का अध्ययन करने के लिए भारत आए। इनमें से फाह्यान तथा ह्यूनसांग प्रमुख थे।

3. तिब्बत-तिब्बत एक पहाड़ी प्रान्त है जो चीन तथा भारत के मध्य स्थित है। यहां बौद्ध धर्म का प्रचार सातवीं शताब्दी में शुरू हुआ। कुछ तिब्बती विद्वान् भारत आए तथा यहां उन्होंने बौद्ध धर्म का अध्ययन किया। दो भारतीय विद्वानों शांति रक्षक तथा पद्म संभव ने तिब्बत में जाकर बौद्ध धर्म का प्रचार किया। यहां की राजधानी ल्हासा में अनेक बौद्ध मठ बनवाए गए। आज भी तिब्बत के अधिकतर लोग बौद्ध धर्म के अनुयायी हैं।

PSEB 6th Class Social Science Solutions Chapter 18 भारत तथा विश्व

प्रश्न 3.
अरबों के सिन्ध पर आक्रमण के कारण लिखें।
उत्तर-
मुहम्मद-बिन-कासिम ने 712 ई० में सिन्ध पर आक्रमण किया था।
कारण-
1. अरब के मुसलमान शासक भारत पर आक्रमण करके इसे अरब साम्राज्य का एक भाग बनाना चाहते थे।

2. उन्होंने भारत की अपार धन-दौलत के बारे में सुन रखा था। वे भारत पर हमला करके यहां का धन लूटना चाहते थे।

3. वे भारत में इस्लाम धर्म का प्रसार करना चाहते थे।

4. अरब के कुछ व्यापारी अपने जहाज़ लेकर देवल बन्दरगाह पर रुके। वहां कुछ समुद्री डाकुओं ने उनका माल लूट लिया। खलीफा को जब इस बात का पता चला तो उसे बहुत गुस्सा आया। उसने बसरा के गर्वनर को सिन्ध पर हमला करने की आज्ञा दी। बसरा के गर्वनर ने सिन्ध के राजा दाहिर से लूटेरों द्वारा लूटे गए माल का मुआवजा मांगा। परन्तु दाहिर ने यह कहकर मुआवजा देने से इन्कार कर दिया कि समुद्री लुटेरे उसके अधीन नहीं हैं। यह जवाब मिलते ही बसरा के गर्वनर ने सिन्ध पर आक्रमण कर दिया, लेकिन वह हार गया। इस पराजय के पश्चात् उसने एक विशाल सेना तैयार की तथा 712 ई० में मुहम्मदबिन-कासिम को सिन्ध पर आक्रमण करने के लिए भेज दिया।

प्रश्न 4.
अरबों के सिन्ध पर आक्रमण का क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर-
अरबों के सिन्ध पर आक्रमण का प्रभाव बहुत थोड़े समय के लिए ही रहा क्योंकि उनकी जीत स्थायी नहीं थी। लेकिन इस आक्रमण के कुछ अप्रत्यक्ष परिणाम निकले, जिनका वर्णन इस प्रकार है –

  1. अरब देशों को भारत की राजनीतिक कमज़ोरी का पता चल गया।
  2. भारत तथा पश्चिमी देशों के मध्य एक नवीन रास्ता खुल गया।
  3. भारत में इस्लाम धर्म का प्रवेश तथा प्रचार हुआ।
  4. अरब लोगों ने भारत से बहुत कुछ सीखा, जैसे तारों की विद्या, चित्रकारी, दवाइयां तथा संगीत आदि।
  5. कई भारतीय विद्वानों को बगदाद बुलाया गया। वहां उन्होंने भारतीय संस्कृति का प्रचार किया।

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भारत तथा विश्व PSEB 6th Class Social Science Notes

  • सातवाहन काल में भारत की महत्त्वपूर्ण बन्दरगाहें – सातवाहन राजाओं के शासन काल में भारत के समुद्र तट के साथ-साथ अनेक महत्त्वपूर्ण बन्दरगाहें थीं। इनमें से प्रमुख बन्दरगाहें कावेरीपट्टनम, महाबलिपुरम, पुहार, कोरकई, शूरपारक तथा भृगुकच्छ आदि थीं।
  • रेशमी-मार्ग – रेशमी-मार्ग एक स्थल मार्ग है जो चीन को यूरोप के साथ जोड़ता है। प्राचीन काल में इस मार्ग द्वारा सबसे अधिक रेशम का व्यापार होता था।
  • पलिनी – पलिनी रोम का एक लेखक था। प्राचीन काल में भारत रोम से अपनी वस्तुओं का मूल्य सोना लेकर वसूल करता था तथा पलिनी को इस बात का बहुत दुःख था।
  • भारत का निर्यात – भारत दूसरे देशों को मसाले, कीमती हीरे, बढ़िया कपड़ा, इत्र, हाथी दांत का सामान, लोहा, रंग, चावल तथा कई प्रकार के जानवरों एवं पक्षियों का निर्यात करता था।
  • भारत का आयात – भारत दूसरे देशों से सोने तथा चांदी के सिक्के, धातुएं, शराब तथा काँच एवं काँच की वस्तुएं आदि आयात करता था।
  • वेचेमिनीड – वेचेमिनीड वंश ईरान का शासक वंश था। 600 ई० पू० में इस वंश के शासकों ने भारत के उत्तर-पश्चिमी भागों पर अपना अधिकार जमा लिया था।
  • अंगकोरवाट – अंगकोरवाट कम्पूचिया में स्थित एक मन्दिर है। इस मन्दिर में रामायण तथा महाभारत में से | दृश्यों को मूर्तिकला में चित्रित किया गया है।
  • अरबों का सिन्ध पर अधिकार – अरबों ने 712 ई० में सिन्ध पर अधिकार कर लिया तथा भारत में अपनी व्यापारिक बस्तियां स्थापित की।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 11 सामाजिक परिवर्तन

Punjab State Board PSEB 11th Class Sociology Book Solutions Chapter 11 सामाजिक परिवर्तन Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Sociology Chapter 11 सामाजिक परिवर्तन

पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न (Textual Questions)

I. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 1-15 शब्दों में दीजिए :

प्रश्न 1.
सामाजिक परिवर्तन को परिभाषित कीजिए।
उत्तर-
सामाजिक संबंधों में कई प्रकार के परिवर्तन आते रहते हैं तथा इसे ही सामाजिक परिवर्तन कहते हैं।

प्रश्न 2.
सामाजिक परिवर्तन के मूल स्त्रोतों के नाम लिखिए।
उत्तर-
सामाजिक परिवर्तन के तीन मूल स्रोत हैं-Innovation, Discovery and Diffusion.

प्रश्न 3.
सामाजिक परिवर्तन की दो विशेषताएं बताइए।
उत्तर-

  1. सामाजिक परिवर्तन सर्वव्यापक प्रक्रिया है जो प्रत्येक समाज में आता है।
  2. सामाजिक परिवर्तन में तुलना आवश्यक है।

प्रश्न 4.
आन्तरिक परिवर्तन क्या है ?
उत्तर-
वह परिवर्तन जो समाज के अन्दर ही विकसित होते हैं, आन्तरिक परिवर्तन होते हैं।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 11 सामाजिक परिवर्तन

प्रश्न 5.
सामाजिक परिवर्तन के लिए जिम्मेदार कुछ कारकों के नाम लिखो।
उत्तर-
प्राकृतिक कारक, विश्वास तथा मूल्य, समाज सुधारक, जनसंख्यात्मक कारक, तकनीकी कारक, शैक्षिक कारक इत्यादि।

प्रश्न 6.
प्रगति क्या है ?
उत्तर-
जब हम अपने किसी ऐच्छिक उद्देश्य की प्राप्ति के रास्ते की तरफ बढ़ते हैं तो इस परिवर्तन को प्रगति कहते हैं।

प्रश्न 7.
नियोजित परिवर्तन के उदाहरण लिखो।
उत्तर-
लोगों को पढ़ाना लिखाना, ट्रेनिंग देना नियोजित परिवर्तन की उदाहरण हैं।

प्रश्न 8.
अनियोजित परिवर्तन के दो उदाहरण लिखो।
उत्तर–
प्राकृतिक आपदा जैसे कि बाढ़, भूकम्प इत्यादि से समाज पूर्णतया बदल जाता है।

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II. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 30-35 शब्दों में दीजिए :

प्रश्न 1.
सामाजिक परिवर्तन का अर्थ बताइए।
उत्तर-
जब समाज के अलग-अलग भागों में परिवर्तन आए तथा वह परिवर्तन अगर सभी नहीं तो समाज के अधिकतर लोगों के जीवन को प्रभावित करे तो उसे सामाजिक परिवर्तन कहा जाता है। इसका अर्थ है कि समाज के लोगों के जीवन जीने के तरीकों में संरचनात्मक परिवर्तन आ जाता है।

प्रश्न 2.
प्रसार (Diffusion) क्या है ?
उत्तर-
प्रसार का अर्थ है किसी वस्तु को बहुत अधिक फैलाना। उदाहरण के लिए जब सांस्कृतिक विचार एक समूह से दूसरे समूह तक फैल जाते हैं तो इसे प्रसार कहा जाता है। सभी समाजों में सामाजिक परिवर्तन आमतौर पर प्रसार के कारण ही आता है।

प्रश्न 3.
उद्भव तथा क्रान्ति को संक्षिप्त रूप में लिखो।
उत्तर-

  • उद्भव-जब परिवर्तन एक निश्चित दिशा में हो तथा तथ्य के गुणों तथा रचना में परिवर्तन हो तो उसे उद्भव कहते हैं।
  • क्रान्ति-वह परिवर्तन जो अचनचेत तथा अचानक हो जाए, क्रान्ति होता है। इससे मौजूदा व्यवस्था खत्म हो जाती है तथा नई व्यवस्था कायम हो जाती है।

प्रश्न 4.
तीन मुख्य तरीकों की सूची बनाएं जिसमें सामाजिक परिवर्तन होता है।
उत्तर-
समाज में तीन मूल चीजों में परिवर्तन से परिवर्तन आता है-

  1. समूह का व्यवहार
  2. सामाजिक संरचना
  3. सांस्कृतिक गुण।

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प्रश्न 5.
वह तीन स्त्रोत क्या हैं जिनसे परिवर्तन आता है ?
उत्तर-

  1. Innovation मौजूदा वस्तुओं की सहायता से कुछ नया तैयार करना Innovation होता है। इसमें मौजूदा तकनीकों का प्रयोग करके नई तकनीक का इजाद किया जाता है।
  2. Discovery-इसका अर्थ है कुछ नया पहली बार सामने आना या सीखना। इसका अर्थ है कुछ नया इजाद जिसके बारे में हमें कुछ पता नहीं है।
  3. Diffusion-इसका अर्थ है किसी वस्तु का फैलना। जैसे सांस्कृतिक विचारक समूह से दूसरे तक फैल जाना फैलाव होता है।

प्रश्न 6.
सामाजिक तथा सांस्कृतिक परिवर्तन के मध्य संक्षिप्त रूप में अन्तर कीजिए।
उत्तर-

  • सामाजिक परिवर्तन चेतन या अचेतन रूप में आ सकता है परन्तु सांस्कृतिक परिवर्तन हमेशा चेतन रूप से आता है।
  • सामाजिक परिवर्तन वह परिवर्तन है जो केवल सामाजिक संबंधों में आता है परन्तु सांस्कृतिक परिवर्तन वह परिवर्तन है जो धर्म, विचारों, मूल्यों, विज्ञान इत्यादि में आता है।

III. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 75-85 शब्दों में दीजिए :

प्रश्न 1.
सामाजिक परिवर्तन के मुख्य प्रकार क्या हैं ? संक्षिप्त रूप में इन पर विचार-विमर्श करें।
उत्तर-
उद्विकास, प्रगति, विकास तथा क्रान्ति सामाजिक परिवर्तन के मुख्य प्रकार हैं। जब परिवर्तन आन्तरिक तौर पर क्रमवार, धीरे-धीरे हों तथा सामाजिक संस्थाएं साधारण से जटिल हो जाएं तो वह उद्विकास होता है। जब किसी चीज़ में परिवर्तन आए तथा यह किसी ऐच्छिक दिशा में आए तो इसे विकास कहते हैं। जब लोग किसी निश्चित उद्देश्य को प्राप्त करने के रास्ते की तरफ बढ़े तथा उद्देश्य को प्राप्त कर लें तो इसे प्रगति कहते हैं। जब परिवर्तन अचनचेत तथा अचानक आए व मौजूदा व्यवस्था बदल जाए तो इसे क्रान्ति कहते हैं।

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प्रश्न 2.
सामाजिक परिवर्तन के जनसंख्यात्मक परिवर्तन का संक्षिप्त रूप वर्णन करो।
उत्तर-
जनसंख्यात्मक परिवर्तन का भी सामाजिक परिवर्तन पर प्रभाव पड़ता है। सामाजिक संगठन, परम्पराएं, संस्थाएं, प्रथाएं इत्यादि के ऊपर जनसंख्यात्मक कारकों का प्रभाव पड़ता है। जनसंख्या का घटना-बढ़ना, स्त्री-पुरुष अनुपात में आए परिवर्तन का सामाजिक संबंधों पर प्रभाव पड़ता है। जनसंख्या में आया परिवर्तन समाज की आर्थिक प्रगति में रुकावट का कारण भी बनता है तथा कई प्रकार की सामाजिक समस्याओं का कारण बनता है। बढ़ रही जनसंख्या, बेरोज़गारी, भुखमरी की स्थिति उत्पन्न करती है जिससे समाज में अशांति, भ्रष्टाचार इत्यादि बढ़ता है।

प्रश्न 3.
सामाजिक परिवर्तन के लिए ज़िम्मेदार चार कारकों को लिखो।
उत्तर-

  • प्राकृतिक कारक-प्राकृतिक कारक जैसे कि बाढ़, भूकम्प इत्यादि के कारण समाज में परिवर्तन आ जाता है तथा इसका स्वरूप ही बदल जाता है।
  • जनसंख्यात्मक कारक-जनसंख्या के घटने-बढ़ने से स्त्री और पुरुष के अनुपात के घटने-बढ़ने से भी सामाजिक परिवर्तन आ जाता है।
  • तकनीकी कारक-समाज में अगर मौजूदा तकनीकों में अगर काफ़ी अधिक परिवर्तन आ जाए तो भी सामाजिक परिवर्तन आ जाता है।
  • शिक्षात्मक कारक-जब समाज की अधिकतर जनसंख्या शिक्षा ग्रहण करने लग जाए तो भी सामाजिक परिवर्तन आना शुरू हो जाता है।

प्रश्न 4.
शैक्षिक कारक तथा तकनीकी कारक के मध्य कुछ अंतरों को दर्शाइए।
उत्तर-

  • शैक्षिक कारक तकनीकी कारक का कारण बन सकते हैं परन्तु तकनीकी कारकों के कारण शैक्षिक कारक प्रभावित नहीं होता।
  • शिक्षा के बढ़ने के साथ जनता का प्रत्येक सदस्य प्रभावित हो सकता है परन्तु तकनीकी कारकों का जनता पर प्रभाव धीरे-धीरे पड़ता है। (iii) शिक्षा से नियोजित परिवर्तन लाया जा सकता है परन्तु तकनीकी कारकों की वजह से नियोजित तथा अनियोजित परिवर्तन दोनों आ सकते हैं।

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IV. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 250-300 शब्दों में दें :

प्रश्न 1.
सामाजिक परिवर्तन को परिभाषित कीजिए । इसकी विशेषताओं पर विस्तृत रूप से विचार विमर्श करें।
उत्तर-
सामाजिक परिवर्तन का अर्थ (Meaning of Social Change)-परिवर्तन शब्द एक मूल्य रहित शब्द है। यह हमें अच्छे-बुरे या किसी नियम के बारे में नहीं बताता है। आम भाषा में परिवर्तन वह अन्तर होता है जो किसी वस्तु की वर्तमान स्थिति में व पिछली स्थिति में होता है। जैसे आज किसी के पास पैसा है कल नहीं था। पैसे से उसकी स्थिति में परिवर्तन आया है। परिवर्तन में तुलना अनिवार्य है क्योंकि यदि हमें किसी परिवर्तन को स्पष्ट करना है तो वह तुलना करके स्पष्ट किया जा सकता है। इस तरह सामाजिक परिवर्तन समाज से सम्बन्धित होता है। जब समाज या सामाजिक सम्बन्धों में परिवर्तन आता है तो उसको सामाजिक परिवर्तन कहते हैं।

मानवीय समाज में मिलने वाले प्रत्येक तरह के परिवर्तन सामाजिक परिवर्तन नहीं होते। सामाजिक परिवर्तन का सम्बन्ध सामाजिक सम्बन्धों में मिलने वाले परिवर्तनों से है। इन सामाजिक सम्बन्धों में हम समाज के भिन्न-भिन्न भागों में पाए गए सम्बन्ध व आपसी क्रियाओं को शामिल करते हैं। परिवर्तन के अर्थ असल में किसी भी चीज़ में उसके पिछले व वर्तमान आकार से तुलना करें तो हमें कुछ अन्तर नज़र आने लगता है। यह पाया गया अन्तर ही सामाजिक परिवर्तन होता है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि सामाजिक परिवर्तन सामाजिक क्रियाओं, आकार, सम्बन्धों, संगठनों आदि में पाए जाने वाले अन्तर से सम्बन्धित होता है। मानव स्वभाव द्वारा ही परिवर्तनशील प्रकृति वाला होता है। इसी कारण कोई समाज स्थिर नहीं रह सकता।

परिभाषाएं (Definitions) –
1. गिलिन व गिलिन (Gillin & Gillin) के अनुसार, “सामाजिक परिवर्तन जीवन के प्रचलित तरीकों में पाए गए अन्तर को कहते हैं, चाहे यह परिवर्तन भौगोलिक स्थिति के परिवर्तन से हों या सांस्कृतिक साधनों, जनसंख्या के आकार या विचारधाराओं के परिवर्तन से व चाहे प्रसार द्वारा सम्भव हो सकते हों या समूह में हुई नई खोजों के परिणामस्वरूप हों।”

2. किंगस्ले डेविस (Kingsley Davis) के अनुसार, “सामाजिक परिवर्तन का अर्थ केवल उन परिवर्तनों से है जो सामाजिक संगठन भाव सामाजिक संरचना व कार्यों में होते हैं।”

3. जोंस (Jones) के अनुसार, “सामाजिक परिवर्तन वह शब्द है जिस को हम सामाजिक प्रक्रियाओं, सामाजिक तरीकों, सामाजिक अन्तक्रियाओं या सामाजिक संगठन इत्यादि में पाए गए परिवर्तनों के वर्णन करने के लिए हैं।”

उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर हम कह सकते हैं कि सभी समाजशास्त्रियों ने सामाजिक अन्तक्रियाओं, सामाजिक संगठन, सामाजिक सम्बन्धों, सामाजिक प्रक्रियाओं इत्यादि में किसी एक पक्ष में जब कोई भी भिन्नता या अन्तर पैदा होता है तो वह सामाजिक परिवर्तन कहलाता है। इस प्रकार हम यह भी कहते हैं कि प्रत्येक परिवर्तन सामाजिक परिवर्तन नहीं होता। सामाजिक परिवर्तन समाज के सामाजिक सम्बन्धों या संगठनों या क्रियाओं में पाया जाता है।

सामाजिक परिवर्तन की प्रकृति या विशेषताएँ (Nature or Characteristics of Social Change) –

1. सामाजिक परिवर्तन सर्वव्यापक होता है (Social Change is Universal)—सामाजिक परिवर्तन ऐसा परिवर्तन है जो सभी समाज में पाया जाता है। कोई भी समाज पूरी तरह स्थिर नहीं होता क्योंकि परिवर्तन प्रकृति का नियम होता है। चाहे कोई समाज आदिम हो या चाहे आधुनिक, परिवर्तन प्रत्येक समाज से सम्बन्धित रहा है। समाज में जनसंख्यात्मक परिवर्तन, अनुसन्धान व खोजों के कारण परिवर्तन, आदर्शों व कद्रों-कीमतों में परिवर्तन हमेशा आते रहते हैं। यह ठीक है कि सामाजिक परिवर्तन की गति प्रत्येक समाज में अलग-अलग होती है परन्तु परिवर्तन हमेशा सर्वव्यापक ही होता है।

2. सामाजिक परिवर्तन में निश्चित भविष्यवाणी नहीं हो सकती (Definite prediction is not possible in Social Change) सामाजिक परिवर्तन में किसी प्रकार की भी निश्चित भविष्यवाणी करनी असम्भव होती है। इसका कारण यह है कि समाज में पाए गए सामाजिक सम्बन्धों में कोई भी निश्चितता नहीं होती। इनमें परिवर्तन होता रहता है। सामाजिक परिवर्तन समुदायक परिवर्तन होता है। इस का अर्थ यह नहीं है कि सामाजिक परिवर्तन का कोई नियम नहीं होता या हम इसके बारे में कोई अनुमान नहीं लगा सकते। इस का अर्थ सिर्फ इतना है कि कई बार किसी कारण एकदम परिवर्तन हो जाता है जिनके बारे में हमने सोचा भी नहीं होता।

3. सामाजिक परिवर्तन की गति एक समान नहीं होती (Speed of Social Change is not uniform)सामाजिक परिवर्तन चाहे सर्वव्यापक होता है परन्तु उसकी गति भिन्न-भिन्न समाज में भिन्न-भिन्न होती है। किसी समाज में यह बहुत तेजी से पाई जाती है व किसी समाज में इसकी रफतार बहुत धीमी होती है। उदाहरणत: यदि हम प्राचीन समाज व आधुनिक समाज की तुलना करें तो हम क्या देखते हैं कि आधुनिक समाज में इसकी रफ्तार, प्राचीन समाज की तुलना बहुत ही तेज़ होती है।

4. सामाजिक परिवर्तन सामुदायिक परिवर्तन होता है (Social Change is Community Change)जब भी समाज में हम परिवर्तन अकेले व्यक्ति या कुछ व्यक्तियों के जीवन में देखें तो इस प्रकार का परिवर्तन सामाजिक परिवर्तन नहीं कहलाता क्योंकि सामाजिक परिवर्तन व्यक्तिगत नहीं होता। यह वह परिवर्तन होता है जो विशाल समुदाय में रहते हुए व्यक्तियों के जीवन जीने के तरीके (Life Patterns) में आता है। इस विवरण के आधार पर हम यह कह सकते हैं कि समाज में जिस परिवर्तन के आने से एक व्यक्ति या कुछ लोग ही परिवर्तित हों तो वह व्यक्तिगत परिवर्तन कहलाता है तथा जिस परिवर्तन के आने से सम्पूर्ण समुदाय प्रभावित हो ऐसे परिवर्तन को ही हम सामाजिक परिवर्तन कहते हैं। इसी कारण ही यह व्यक्तिगत नहीं बल्कि सामाजिक होता है।

5. सामाजिक परिवर्तन कई कारणों की अन्तक्रिया के परिणामस्वरूप होता है (Social Change Results from Interactions of number of Factors) सामाजिक परिवर्तन में पाए जाने वाले कारकों में कोई भी एक कारक उत्तरदायी नहीं होता। हमारा समाज उलझी हुई प्रकृति का है। इसके प्रत्येक क्षेत्र में किसी-न-किसी कारण परिवर्तन होता रहता है। साधारणतः हम देखते हैं कि समाज में अधिक प्रगति, तकनीकी क्षेत्र में विकास, वातावरण में परिवर्तन या जनसंख्या इत्यादि में परिवर्तन होता ही रहता है। चाहे यह ठीक है कि एक विशेष कारक का प्रभाव भी परिवर्तन के लिए उत्तरदायी होता है परन्तु उस अकेले कारक के ऊपर ही दूसरे कारकों का प्रभाव होता है या वह उससे जुड़े होते हैं। वास्तव में सामाजिक प्रकटन में आपसी निर्भरता पाई जाती है।

6. सामाजिक परिवर्तन प्रकृति का नियम होता है (Change is law of nature)-सामाजिक परिवर्तन का पाया जाना प्रकृति का नियम है। यदि हम न भी चाहें परिवर्तन तो भी समाज में होना ही होता है। प्राकृतिक शक्तियां जिन पर हम पूरी तरह नियन्त्रण नहीं रख सकते यह परिवर्तन अपने आप ही ले आती है। मानव स्वभाव द्वारा ही परिवर्तनशील होता है। समाज में परिवर्तन या तो प्राकृतिक शक्तियों से आता है या फिर व्यक्ति के योजनाबद्ध तरीकों के द्वारा। समाज में व्यक्तियों की आवश्यकताएं, इच्छाएँ इत्यादि परिवर्तित होती रहती हैं। हम हमेशा नई वस्तु की इच्छा करते रहते हैं व उसको प्राप्त करने के लिए यत्न करने शुरू कर देते हैं इसलिए व्यक्ति की परिवर्तनशील प्रकृति भी सामाजिक परिवर्तन के लिए उत्तरदायी होती है। इस प्रकार जैसे-जैसे व्यक्ति को किसी चीज़ की ज़रूरत पैदा होती है उसी तरह परिवर्तन आना शुरू हो जाता है। इस तरह परिवर्तन प्रत्येक व्यक्ति की इच्छा भी होती है।

7. सामाजिक परिवर्तन की रफ़्तार में एकरूपता नहीं होती (Social Change is not Uniform)-चाहे हम देखते हैं परिवर्तन सब समाजों में पाया जाता है परन्तु इसकी रफ़्तार समाज में एक जैसी नहीं होती। कुछ समाजों में इसकी रफ़्तार बहुत तेज़ होती है व कुछ में बहुत ही धीमी। जो व्यक्ति जिस समाज में रह रहा होता है उसको उस समाज में हो रहे परिवर्तन की जानकारी होती है। पहले परिवर्तन कैसा था व अब इसकी गति किस प्रकार की है। यदि हम आधुनिक समय में नज़र डालें तो भी हम देखते हैं कि परिवर्तन की गति कुछ क्षेत्रों में बहुत तेज़ है व कुछ में बहुत धीमी। जैसे छोटे शहरों में बड़े शहरों की तुलना में परिवर्तन की गति बहुत ही धीमी पाई गई है।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 11 सामाजिक परिवर्तन

प्रश्न 2.
सामाजिक परिवर्तन के स्त्रोतों को विस्तृत रूप में दर्शाइए।
उत्तर-
सामाजिक परिवर्तन के स्रोतों के बारे में डब्ल्यू० जी० आगबर्न (W.G. Ogburn) ने विस्तार सहित वर्णन किया है। आगबर्न के अनुसार सामाजिक परिवर्तन मुख्य रूप से निम्नलिखित तीन स्रोतों में से एक अधिक स्रोतों के अनुसार आता है तथा वे तीन स्रोत हैं

(i) Innovation
(ii) Discovery
(iii) प्रसार Diffusion

(i) Innovation-Innovation का अर्थ है मौजूदा तत्त्वों का प्रयोग करके कुछ नया तैयार करना। उदाहरण के लिए पुरानी कार की तकनीक का प्रयोग करके कार की नई तकनीक तैयार करके उसके तेज़ भागने की तकनीक ढूंढ़ना तथा उसके ईंधन की खपत को कम करने के तरीके ढूंढ़ना। Innovation भौतिक (तकनीकी) भी हो सकती है तथा सामाजिक भी। यह रूप (Form) में कार्य (Function) में, अर्थ (Meaning) अथवा सिद्धान्त (Principle) में भी परिवर्तन हो सकता है। नए आविष्कारों के साथ सामाजिक संरचना में भी परिवर्तन आ जाते हैं जिस कारण सम्पूर्ण समाज ही बदल जाता है।

(ii) Discovery-जब किसी वस्तु को पहली बार ढूंढ़ा जाता है अथवा किसी वस्तु के बारे में पहली बार पता चलता है तो इसे Discovery कहा जाता है। उदाहरण के लिए पहली बार किसी ने कार बनाई होगी अथवा स्कूटर बनाया होगा अथवा किसी वैज्ञानिक ने कोई नया पौधा ढूंढ़ा होगा। इसे हम Discovery का नाम दे सकते हैं। इसका अर्थ है कि वस्तुएं तो संसार में पहले से ही मौजूद हैं परन्तु हमें उनके बारे में कुछ पता नहीं है। इससे संस्कृति में काफ़ी कुछ जुड़ जाता है। चाहे इसे बनाने वाली वस्तुएं पहले ही संसार में मौजूद थीं परन्तु इसके सामने आने के पश्चात् यह हमारी संस्कृति का हिस्सा बन गईं। परन्तु यह सामाजिक परिवर्तन का कारक उस समय बनता है जब इसे प्रयोग में लाया जाता है न कि जब इसके बारे में पता चलता है। सामाजिक तथा सांस्कृतिक स्थितियाँ Discovery के सामर्थ्य को बढ़ा या फिर घटा देते हैं।

(iii) प्रसार Diffusion-फैलाव का अर्थ है किसी वस्तु का अधिक-से-अधिक फैलना। उदाहरण के लिए जब एक समूह के सांस्कृतिक विचार दूसरे समूह तक फैल जाते हैं तो इसे फैलाव कहा जाता है। लगभग सभी समाजों में सामाजिक परिवर्तन फैलाव के कारण आता है। यह समाज के बीच तथा समाजों के बीच कार्य करता है। जब समाजों के बीच संबंध बनते हैं तो फैलाव होता है। यह द्वि-पक्षीय प्रक्रिया है। फैलाव के कारण जब एक संस्कृति के तत्व दूसरे समाज में जाते हैं तो उसमें परिवर्तन आ जाते हैं तथा फिर दूसरी संस्कृति उन्हें अपना लेती है। उदाहरण के लिए इंग्लैंड की अंग्रेज़ी तथा भारतीयों की अंग्रेज़ी में काफी अंतर होता है। जब भारत पर अंग्रेजों का कब्जा था तो ब्रिटिश तत्व भारतीय संस्कृति में मिल गए परन्तु उनके सभी तत्वों को भारतीयों ने नहीं अपनाया था। इस प्रकार फैलाव होते समय तत्वों में परिवर्तन भी आ जाता है।

प्रश्न 3.
सामाजिक परिवर्तन को प्रभावित करने वाले कारक लिखो।
उत्तर-
1. भौतिक वातावरण (Physical Environment)- भौतिक वातावरण में उन प्रक्रियाओं द्वारा परिवर्तन होते हैं जिन के ऊपर मनुष्यों का कोई नियन्त्रण नहीं होता। इन परिवर्तनों की वजह से मनुष्य के लिए नई दिशाएं पैदा होती हैं जो मनुष्यों की संस्कृति को अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करती हैं। भौगोलिक वातावरण में वह सभी निर्जीव घटनाएं आती हैं जो किसी-न-किसी तरीके से सामाजिक जीवन को प्रभावित करती हैं। मौसम में परिवर्तन जैसे वर्षा, गर्मी, सर्दी ऋतु का बदलना, भूचाल, बिजली का गिरना, टोपोग्राफी सम्बन्धी परिवर्तन जैसे मिट्टी में खनिज पदार्थों का होना, नहरों का होना, चट्टानों का होना इत्यादि गहरे रूप से सामाजिक जीवन को प्रभावित करते हैं। भौतिक परिवर्तन व्यक्ति के शरीर की कार्य करने की योग्यता को प्रभावित करते हैं। व्यक्ति का व्यवहार गर्मी तथा सर्दी के दिनों में अलग-अलग होता है। मौसम के बदलने से शरीर के कार्य करने के तरीके में फर्क पड़ता है। सर्दी में लोग तेज़ी से कार्य करते हैं। गर्मी में लोगों को ज़्यादा गुस्सा आता है।

व्यक्ति उन भौगोलिक हालातों में रहना पसन्द करते हैं जहां जीवन आसानी से व्यतीत हो सके। व्यक्ति वहां रहना पसंद नहीं करता जहां प्राकृतिक आपदाएं जैसे कि बाढ़, भूकम्प इत्यादि हमेशा आते रहते हों। इसके विपरीत व्यक्ति वहां रहने लगते हैं जहां जीवन जीने की सभी सुविधाएं उपलब्ध हों। भौगोलिक वातावरण में परिवर्तनों के कारण जनसंख्या का सन्तुलन बिगड़ जाता है जिस कारण कई समस्याएं पैदा हो जाती हैं। भौगोलिक वातावरण संस्कृति को भी प्रभावित करता है। जहां भूमि उपजाऊ होगी, वहां लोग ज्यादातर कृषि करेंगे तथा समुद्र के नजदीक रहने वाले लोग मछलियां पकड़ेंगे।

2. जैविक कारक (Biological Factor)-कई समाज शास्त्रियों के अनुसार जीव वैज्ञानिक कारक सामाजिक परिवर्तन का महत्त्वपूर्ण कारक है। जीव वैज्ञानिक कारक सामाजिक परिवर्तन का महत्त्वपूर्ण कारक है। जैविक कारक का अर्थ है जनसंख्या के वह गुणात्मक पक्ष जो वंश परम्परा (Heredity) के कारण पैदा होते हैं। जैसे मनुष्य का लिंग जन्म के समय ही निश्चित हो जाता है तथा इस आधार पर ही आदमी तथा औरतों के बीच अलग-अलग शारीरिक अन्तर मिलते हैं। इस अन्तर के कारण उनका सामाजिक व्यवहार भी अलग होता है। औरतें घर को संभालती हैं, बच्चे पालती हैं जबकि आदमी पैसे कमाने का कार्य करता है। यदि किसी समाज में आदमी तथा औरतों में समान अनुपात नहीं होता तो कई सामाजिक मुश्किलें पैदा हो जाती हैं।

शारीरिक लक्षण पैतृकता द्वारा निश्चित होते हैं तथा यह लक्षण समानता तथा अन्तरों को पैदा करते हैं जैसे कोई गोरा है या काला है। अमेरिका में यह गोरे-काले का अन्तर ईर्ष्या का कारण होता है। गोरी स्त्री को सुन्दर समझते हैं तथा काली स्त्री को वह सम्मान नहीं मिलता जो गोरी स्त्री को मिलता है। व्यक्ति का स्वभाव भी पैतृकता के लक्षणों से सम्बन्धित होता है। बच्चे का स्वभाव माता-पिता के स्वभाव के अनुसार होता है। व्यक्तियों में ज्यादा या कम गुस्सा होता है। ग्रन्थियों में दोष व्यक्तियों में सन्तुलन स्थापित करने नहीं देता। पैतृकता तथा बुद्धि का सम्बन्ध भी माना जाता है। मनुष्य का स्वभाव तथा दिमाग सामाजिक जीवन में बहुत महत्त्वपूर्ण होते हैं। संक्षेप में हम कह सकते हैं कि मनुष्य को विरासत में मिले गुण उसके व्यक्तिगत गुणों को निर्धारित करते हैं। यह गुण मनुष्य की अन्तक्रियाओं को प्रभावित करते हैं। अन्तक्रियाओं के कारण मानवीय सम्बन्ध पैदा होते हैं जिन के आधार पर सामाजिक व्यवस्था तथा संरचना निर्धारित होती है। यदि इनमें कोई परिवर्तन होता है तो वह सामाजिक परिवर्तन होता है।

3. जनसंख्यात्मक कारक (Demographic Factor)-जनसंख्या की बनावट आकार, वितरण इत्यादि भी सामाजिक संगठन पर प्रभाव डालते हैं। जिन देशों की जनसंख्या ज्यादा होती है वहां कई प्रकार की सामाजिक समस्याएं जैसे कि निर्धनता, अनपढ़ता, बेरोज़गारी, निम्न जीवन स्तर इत्यादि पैदा हो जाती हैं। जैसे भारत तथा चीन में ज़्यादा जनसंख्या के कारण कई प्रकार की समस्याएं तथा निम्न जीवन स्तर पाया जाता है। वह देश जहां जनसंख्या कम है-जैसे कि ब्रिटेन, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया इत्यादि में कम समस्याएं तथा उच्च जीवन स्तर है। जिन देशों की जनसंख्या ज़्यादा होती है वहां जन्म दर कम करने की कई प्रथाएं प्रचलित होती हैं। जैसे भारत में परिवार नियोजन का प्रचार किया जा रहा है। परिवार नियोजन के कारण छोटे परिवार सामने आते हैं तथा छोटे परिवारों के कारण सामाजिक सम्बन्धों में परिवर्तन आ जाते हैं।

जिन देशों में जनसंख्या कम होती है वहां अलग प्रकार के सम्बन्ध पाए जाते हैं। वहां औरतों की स्थिति उच्च होती है तथा परिवार नियोजन की कोई धारणा नहीं होती है। संक्षेप में, जनसंख्या के आकार के कारण लोगों के बीच की अन्तक्रिया के प्रतिमानों में निश्चित रूप से परिवर्तन आ जाता है।

इस तरह जनसंख्या की बनावट के कारण भी परिवर्तन आ जाते हैं। जनसंख्या की बनावट में आम उम्र विभाजन, जनसंख्या का क्षेत्रीय विभाजन, लिंग अनुपात, नस्ली बनावट, ग्रामीण शहरी अनुपात, तकनीकी स्तर पर जनसंख्या का अनुपात, आवास-प्रवास के कारण परिवर्तन पाया जाता है। जनसंख्या के यह गुण सामाजिक संरचना पर बहुत प्रभाव डालते हैं तथा इन तथ्यों को ध्यान में रखे बिना कोई समस्या हल नहीं हो सकती। जैसे बूढ़ों की अपेक्षा जवान परिवर्तन को जल्दी स्वीकार करते हैं तथा ज्यादा उत्साह दिखाते हैं।

4. सांस्कृतिक कारक (Cultural Factors) संस्कृति के भौतिक तथा अभौतिक हिस्से में परिवर्तन सामाजिक सम्बन्धों पर गहरा प्रभाव डालते हैं। परिवार नियोजन की धारणा ने पारिवारिक संस्था पर प्रभाव डाला है। कम बच्चों के कारण उनकी अच्छी देखभाल, उच्च शिक्षा तथा उच्च व्यक्तित्व का विकास होता है। सांस्कृतिक कारणों के कारण सामाजिक परिवर्तन की दिशा भी निश्चित हो जाती है। यह न सिर्फ सामाजिक परिवर्तन की दिशा निश्चित करती है बल्कि गति प्रदान करके उसकी सीमा भी निर्धारित करती है।

5. तकनीकी कारक (Technological Factor)–चाहे तकनीकी कारक संस्कृति के भौतिक हिस्से के अंग हैं परन्तु इसका अपना ही बहुत ज्यादा महत्त्व है। सामाजिक परिवर्तन में तकनीकी कारक बहुत महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं। तकनीक हमारे समाज को परिवर्तित कर देती है। यह परिवर्तन चाहे भौतिक वातावरण में होता है परन्तु इससे समाज की प्रथाओं, परम्पराओं, संस्थाओं में परिवर्तन आ जाता है। बिजली से चलने वाले यन्त्रों, संचार के साधनों, रोज़ाना जीवन में प्रयोग होने वाली मशीनों ने हमारे जीवन तथा समाज को बदल कर रख दिया है। मशीनों के आविष्कार से उत्पादन बड़े पैमाने पर शुरू हुआ, श्रम विभाजन तथा विशेषीकरण बढ़ गया। शहरों का तेजी से विकास हुआ, जीवन स्तर उच्च हुआ, उद्योग बढ़े परन्तु झगड़े, बीमारियां, दुर्घटनाएं बढ़ीं, गांव शहरों तथा कस्बों में बदलने लग गए, धर्म का प्रभाव कम हुआ, संघर्ष बढ़ गया। इस जैसे कुछ सामाजिक जीवन के पक्ष हैं जिन पर तकनीक का बहुत असर हुआ। आजकल के समय में तकनीकी कारक सामाजिक परिवर्तन का बहुत बड़ा कारक

6. विचारात्मक कारक (Ideological Factor)-इन कारकों के अतिरिक्त अलग-अलग विचारधाराओं का आगे आना भी परिवर्तन का कारण बनता है। उदाहरणत: परिवार की संस्था में परिवर्तन, दहेज प्रथा का आगे आना, औरतों की शिक्षा का बढ़ना, जाति प्रथा का प्रभाव कम होना, लैंगिक सम्बन्धों में परिवर्तन आने से सामाजिक परिवर्तन आए हैं। नई विचारधाराओं के कारण व्यक्तिगत सम्बन्धों तथा सामाजिक सम्बन्धों में बहुत परिवर्तन आए संक्षेप में, नए विचार तथा सिद्धान्त, आविष्कारों तथा आर्थिक दशाओं को प्रभावित करते हैं। वह सीधे रूप से प्राचीन परम्पराओं, विश्वासों, व्यवहारों, आदर्शों के विरुद्ध खड़े होते हैं। वास्तव में समाज में क्रान्ति ही नई विचारधारा लेकर आती है।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 11 सामाजिक परिवर्तन

प्रश्न 4.
सामाजिक परिवर्तन से आपका क्या अर्थ है ? सामाजिक परिवर्तन का जनसंख्यात्मक कारक बताओ।
उत्तर-
सामाजिक परिवर्तन का अर्थ-देखें पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न IV (1)

जनसंख्यात्मक कारक (Demographic Factor)-यदि हम समाज को ध्यान से देखें तो हम देखते हैं कि जनसंख्या हमारे समाज में सदैव कम या अधिक होती रहती है। समाज में बहुत-सी समस्याओं का सम्बन्ध जनसंख्या से ही सम्बन्धित होता है। यदि हम 19वीं शताब्दी की तरफ नजर डालें तो हम देखते हैं कि जनसंख्यात्मक कारक काफी सीमा तक सामाजिक परिवर्तन के लिए जिम्मेदार हैं। जनसंख्यात्मक कारकों का प्रभाव केवल भारत देश के साथ ही सम्बन्धित नहीं रहा बल्कि इसका प्रभाव प्रत्येक देश में रहा है। यह ठीक है कि हमारे भारत देश में बढ़ती हुई जनसंख्या कई प्रकार की समस्याएं पैदा कर रही है जैसे आर्थिक दृष्टिकोण से देश को कमज़ोर करना। सामाजिक बुराइयां पैदा करना इत्यादि। परन्तु इसका प्रभाव भिन्न-भिन्न देशों में अलग-अलग रहा है।

इस प्रकार हम देखते हैं कि जनसंख्यात्मक कारक हमारे सामाजिक ढांचे, संगठनों, कार्यों, क्रियाओं, आदर्शों इत्यादि में काफ़ी परिवर्तन लाता है। सामाजिक परिवर्तन इसके साथ सम्बन्धित रहता है। जनसंख्यात्मक कारकों के बारे में विचार पेश करने से पहले हमारे लिए यह समझना आवश्यक हो जाता है कि जनसंख्यात्मक कारकों का क्या अर्थ है।

जनसंख्यात्मक कारकों का अर्थ (Meaning of Demographic Factors)-जनसंख्यात्मक कारकों का सम्बन्ध जनसंख्या के कम या अधिक होने से होता है अर्थात् इसमें हम जनसंख्या का आकार, घनत्व और विभाजन इत्यादि को शामिल करते हैं। जनसंख्यात्मक कारक सामाजिक परिवर्तन का एक ऐसा कारक है जो हमारे समाज के ऊपर सीधा प्रभाव डालता है। किसी भी समाज का अमीर या ग़रीब होना भी जनसंख्यात्मक कारकों के ऊपर निर्भर करता है अर्थात् जिन देशों की जनसंख्या अधिक होती है उन देशों के लोगों का जीवन स्तर निम्न होता है और जिन देशों की जनसंख्या कम होती है, उन समाजों या देशों में लोगों के रहने-सहने का स्तर काफ़ी ऊंचा होता है। उदाहरणत: हम देखते हैं कि भारत व चीन जैसे देशों की जनसंख्या अधिक होने के कारण दिन-प्रतिदिन समस्याएं बढ़ती रहती हैं। दूसरी तरफ़ ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, अमेरिका आदि देशों की जनसंख्या कम होने की वजह से वहां के लोगों का रहन-सहन व जीवन स्तर काफ़ी ऊंचा होता है। इस प्रकार उपरोक्त दोनों उदाहरणों से हम कह सकते हैं कि जनसंख्या का हमारे समाज में सामाजिक परिवर्तन के लिये बहुत बड़ा हाथ होता है।

जनसंख्यात्मक कारकों के बीच जन्म दर और मृत्यु दर बढ़ने एवं कम होने का प्रभाव भी हमारे समाज के ऊपर पड़ता है। उपरोक्त विवरण से हम इस परिणाम पर पहुंचते हैं कि समाज में कई प्रकार के परिवर्तन केवल जनसंख्या के बढ़ने व कमी से ही सम्बन्धित होते हैं। किसी भी देश की बढ़ती जनसंख्या उसके लिये कई प्रकार की समस्याएं खड़ी कर देती है।

अब हम यह देखेंगे कि जनसंख्यात्मक कारक कैसे हमारे समाज के बीच सामाजिक परिवर्तन लाने के लिये ज़िम्मेदार होता है। सर्वप्रथम हम वह प्रभाव देखेंगे जो जनसंख्या की वृद्धि की वजह से पाये जाते हैं अर्थात् जन्म दर की वृद्धि के साथ पाये जाने वाले प्रभाव। इस प्रकार हम अब यह वर्णन करेंगे कि जनसंख्यात्मक कारण हमारे जीवन को कैसे प्रभावित करते हैं ?

1.ग़रीबी (Poverty) तेजी के साथ बढ़ती हुई जनसंख्या लोगों को उनकी रोजाना की रोटी की आवश्यकताओं को पूरा करने से भी बाधित कर देती है। मालथस के सिद्धान्त के अनुसार जनसंख्या में वृद्धि रेखा गणित के अनुसार होती है अर्थात् 6×6 = 36 परन्तु आर्थिक स्त्रोतों के उत्पादन में वृद्धि अंक गणित की तरह ही होती है अर्थात् 6 + 6 = 12 । कहने का अर्थ यह है कि यदि देश में 36 व्यक्ति अनाज खाने वाले होते हैं तो उत्पादन केवल 12 व्यक्तियों की आवश्यकताओं को पूरा कर सकता है। इस कारण ही ग़रीबी या भूखमरी की समस्याओं में वृद्धि होती है। कहने का तात्पर्य यह है कि आर्थिक स्रोतों में विकास काफ़ी मन्द गति के साथ होता है और जब भी जन्म दर में वृद्धि होगी तो उसका सीधा प्रभाव देश की आर्थिक स्थिति पर ही पड़ता है।

2. पैतृक व्यवसाय या कृषि (Hereditary occupation of Agriculture)-भारत एक कृषि प्रधान देश है। यहां की अधिकतर जनसंख्या कृषि व्यवसाय से ही सम्बन्धित है अर्थात् कृषि व्यवसाय केवल एक व्यक्ति से सम्बन्धित न होकर बहुत सारे व्यक्तियों से मिल-जुल कर होने वाला व्यवसाय है। इस कारण बच्चों की अधिक संख्या भी आवश्यक हो जाती है क्योंकि यदि परिवार बड़ा होगा तो ही कृषि सम्भव है।

3. अनपढ़ता (Illiteracy)-भारतवर्ष में अनपढ़ता भी जनसंख्या वृद्धि का एक बड़ा कारण है। यहां की अधिकतर जनसंख्या अनपढ़ ही है। अनपढ़ लोग कुछ अंधविश्वासों में अधिक फंस जाते हैं जैसे पुत्र का होना आवश्यक समझना, बच्चे परमात्मा की देन इत्यादि या फिर उनमें छोटे परिवार प्रति चेतनता ही नहीं होती है। उनको छोटे परिवार के कोई लाभ भी नज़र नहीं आते हैं। इसी कारण ही उनका स्तर बिल्कुल निम्न हो जाता है। वह शिक्षा ग्रहण सम्बन्धी, अपना जीवन स्तर ऊपर करने सम्बन्धी, बच्चों के स्वास्थ्य के प्रति चेतन नहीं होते हैं। यह सब अनपढ़ता के कारण ही होता है।

4. सांस्कृतिक पाबन्दियां (Cultural Restrictions) भारतीयों पर संस्कृति का इतना गहरा प्रभाव पड़ा होता है कि वह अपने आप को इन सांस्कृतिक पाबन्दियों से मुक्त नहीं कर पाते हैं। परन्तु यदि कोई व्यक्ति इन पाबन्दियों को तोड़ता है तो सभी व्यक्ति उसके साथ बातचीत तक करनी बन्द कर देते हैं। उदाहरण के लिये भारत में पिता की मृत्यु के पश्चात् मुक्ति तब प्राप्त होती है यदि उसका पुत्र उसको अग्नि देगा। इस कारण उसके लिये पुत्र प्राप्ति आवश्यक हो जाती है। यहां तक कि उसको समाज में भी पुत्र प्राप्ति पश्चात् ही सत्कार मिलता है। इस प्रकार उपरोक्त सांस्कृतिक पाबन्दियों के कारण वह प्रगति भी नहीं कर पाता।

5. सुरक्षा (Safety)-वास्तव में प्रत्येक व्यक्ति यह सोचना आरम्भ कर देता है, कि वह जब बूढ़ा होगा और उसके बच्चे ही उसकी सुरक्षा करेंगे। बच्चों की अधिक संख्या ही उसे तसल्ली देती है कि उसके बुढ़ापे का सहारा रहेगा। .

6. बेरोज़गारी (Unemployment)-जैसे-जैसे समाज में औद्योगिकीकरण एवं शहरीकरण का विकास हुआ तो, उसके साथ बेरोज़गारी में भी वृद्धि हो गई। लोगों को रोजगार ढूंढ़ने के लिये अपने घरों से बाहर निकलना पड़ा। गांवों के लोग अधिकतर शहरों में जाकर रहने लग पड़े। इसी कारण शहरों में जनसंख्या की वृद्धि हो गई और जिस कारण रहने-सहने के लिये मकानों की कमी हो गई और महंगाई हो गई। घरेलू उत्पादन का कार्य कारखानों में चला गया। मशीनों के साथ कार्य पहले से बढ़िया एवं कम समय में होने लग गया। इस कारण जब मशीनों ने कई व्यक्तियों की जगह ले ली तो इस कारण बेरोज़गारी का होना स्वाभाविक सा हो गया।

7. रहने-सहने का निम्न स्तर (Low Standard of Living)-जनसंख्या के बढ़ने के साथ जब ग़रीबी एवं बेरोज़गारी भी उस रफ्तार से बढ़ने लगी, तो उसके साथ लोगों के रहने के स्तर में भी कमी आई। कमाने वाले सदस्यों की संख्या कम हो गई, खाने वाले सदस्यों की संख्या में वृद्धि हो गई। दिन-प्रतिदिन बढ़ती महंगाई की वजह से लोगों को अपने बच्चों को सुविधाएं प्रदान करना कठिन हो गया। रहने-सहने की कीमतों में वृद्धि होने से लोगों के रहने-सहने के स्तर में कमी आई।

जनसंख्या सम्बन्धी आई समस्याओं को देखते हुए भारतीय सरकार ने भी कई कदम उठाये। सर्वप्रथम ग़रीबी का कारण बढ़ती हुई जनसंख्या ही माना गया। इसके हल के लिये परिवार नियोजन से सम्बन्धित कार्यों को आरम्भ किया गया। इसके अन्तर्गत कॉपर-टी, गर्भ निरोधक गोलियों का प्रयोग एवं नसबन्दी आप्रेशन इत्यादि नये आधुनिक प्रयोग आरम्भ किये गये। इस के अतिरिक्त लोगों में लड़का पैदा होने सम्बन्धी दृष्टिकोण में परिवर्तन लाने के लिये, फिल्मों, टी० वी० इत्यादि की सहायता ली गई ताकि लोग लड़के एवं लड़की में अन्तर न समझें। इसके साथ ही बढ़ती जनसंख्या पर काबू पाया जायेगा। बड़े परिवारों के स्थान पर छोटे परिवारों को सरकार की तरफ़ से सहायता मिली।

8. आवास (Immigration)-जनसंख्या के ऊपर आवास एवं प्रवास का भी काफ़ी प्रभाव पड़ता है। उदाहरण के तौर पर हम देखते हैं कि भारत में बाहर के देशों जैसे-बांग्लादेश, तिब्बत, नेपाल, श्रीलंका आदि के लोग काफ़ी संख्या में आकर रहने लग गये हैं। इनके आवास के कारण हमारी जनसंख्या में भी वृद्धि हो जाती है। ग़रीबी, भुखमरी, महंगाई और कई प्रकार की समस्याएं इसी परिणामस्वरूप पैदा होती हैं।

9. प्रवास (Emigration)-जैसे भारत में आवास पाया जाता है वैसे ही प्रवास पाया जाता है। प्रवास का अर्थ यह है कि भारत के लोग यहां से बाहर जाकर बसने लग गये हैं। बड़ी बात तो इस सम्बन्ध में यह है कि भारत में अच्छी शिक्षा प्राप्त करने वाले इन्जीनीयर, डॉक्टर इत्यादि बाहर जाकर बसने में दिलचस्पी दिखाते हैं। भारत देश उनकी शिक्षा प्राप्ति हेतु काफ़ी धन भी लगाता है परन्तु उनके द्वारा प्राप्त शिक्षा का लाभ दूसरे देश के लोग ही उठाते हैं। एक कारण यह भी है कि हमारा देश उनको उनकी योग्यतानुसार धन नहीं देता है। यहां तक कि कई बार उनको बेरोज़गारी का सामना भी करना पड़ता है क्योंकि पढ़े-लिखे लोग जो देश को सुधारने में सहायता कर सकते हैं वह अपनी योग्यता का प्रयोग दूसरे देशों में करते हैं। यहां तक कि उनके विदेश जाने से उनका अपना परिवार तक भी टूट जाता है। उनकी देखभाल करने वाला भी कोई नहीं होता। इसका प्रभाव हमारी सम्पूर्ण संरचना पर पड़ता है।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 11 सामाजिक परिवर्तन

प्रश्न 5.
सामाजिक परिवर्तन की प्रक्रिया में शैक्षिक कारक की भूमिका पर विचार-विमर्श करो।
उत्तर-
सामाजिक परिवर्तनों को लाने में शिक्षा भी एक महत्त्वपूर्ण कारक है। वास्तव में शिक्षा प्रगति का मुख्य आधार है। इसको प्राप्त करके व्यक्ति के ज्ञान में वृद्धि होती है। इस कारण इसको प्राप्त करके ही व्यक्ति मानवीय समाज में पाई जाने वाली समस्याओं का भी हल ढूंढ लेता है। जिन देशों में पढ़े-लिखे लोगों की संख्या अधिक होती है वह देश दूसरे देशों के मुकाबले अधिक विकासशील एवं प्रगतिशील होते हैं। इसका कारण यह है कि पढ़ालिखा व्यक्ति समाज में व्याप्त बुराइयों को दूर करने में अपना पूर्ण सहयोग देता है। भारतीय समाज में अनपढ़ लोगों की प्रतिशतता अधिक पाई जाती है। इस कारण लोग अत्यधिक अन्ध विश्वासी, वहम से भरे एवं बुरी परम्पराओं में पूर्णत: जकड़े रहते हैं। इनसे व्यक्ति को बाहर निकालने के लिए यह आवश्यक होता है कि उसके मन को उचित रूप से शिक्षित किया जाये। शैक्षिक कारणों के सामाजिक प्रभावों को जानने से पूर्व इस शिक्षा के अर्थ के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे।

शब्द ‘Education’ लातीनी भाषा के शब्द ‘Educere’ से निकला है जिसका अर्थ होता है “To bring up”। शिक्षा का अर्थ व्यक्ति को केवल पुस्तकों का ज्ञान देना ही नहीं होता बल्कि व्यक्ति के बीच अच्छी आदतों का निर्माण करके उसको भविष्य के लिए तैयार करने से भी होता है। ऐण्डरसन (Anderson) के अनुसार, “शिक्षा एक सामाजिक प्रक्रिया है जिसके द्वारा व्यक्ति उन वस्तुओं की शिक्षा प्राप्त करता है, जो उसको समाज के बीच ज़िन्दगी व्यतीत करने के लिए तैयार करती हैं।”

इस प्रकार हम इस विवरण के आधार पर कह सकते हैं कि शिक्षा के द्वारा समाज की परम्पराएं, रीति-रिवाज, रूढ़ियां, आदि अगली पीढ़ी तक पहुंचाये जाते हैं। यह औपचारिक एवं अनौपचारिक दोनों तरीकों से प्रदान की जाती हैं। रस्मी शिक्षा प्रणाली, व्यक्ति शिक्षण संस्थाओं जैसे स्कूल, कॉलेज एवं यूनिवर्सिटी में से प्राप्त करता है।

शैक्षिक कारक एवं परिवार (Educational Factors and Social Changes)-

1. शैक्षिक कारक एवं परिवार (Educational Factor and Family) शैक्षिक कारकों का परिवार की संस्था के ऊपर गहरा प्रभाव पड़ा है। प्राचीन समाजों के बीच व्यक्ति केवल अपनी ज़िन्दगी व्यतीत करने के लिए ही रोजी-रोटी का प्रबन्ध करता था। परिवार के सभी सदस्य एक प्रकार के ही व्यवसाय में लगे रहते थे। रहनेसहने का स्तर काफ़ी नीचा था, क्योंकि लोगों में प्रगति करने की चेतनता ही नहीं होती थी। जैसे-जैसे शिक्षा सम्बन्धी चेतनता आई तो धीरे-धीरे नई परम्पराओं एवं कीमतों का विकास हुआ। लोगों के जीवन स्तर-शैली में भी परिवर्तन आया।

जैसे-जैसे पहले-पहले वह एक ही व्यवसाय में लगे रहते थे लेकिन धीरे-धीरे जागृति आयी और अपनी इच्छा व योग्यतानुसार वह अलग-अलग कार्य करने लग गए। इस प्रकार प्राचीन समाज से चली आ रही संयुक्त पारिवारिक प्रणाली की जगह केन्द्रीय परिवार ने ले ली। आधुनिक विचारों के बीच यदि व्यक्ति मेहनत करता है तो वह अपना गुजारा चला सकता है और अपने रहने-सहने के स्तर को भी उठा सकता है। अतः उसको अपनी स्थिति योग्यतानुसार मिलने लगी है न कि नैतिकता के अनुसार। इस प्रकार शैक्षिक कारकों के प्रभाव के साथ परिवारों की संरचना और कार्यों में भी परिवर्तन आया। ऐसे परिवार जिनमें पति-पत्नी दोनों कार्यों में व्यस्त हों तो बच्चों की पढ़ाई व देखभाल करैचों में होने लग पड़ी। इस कारण परिवार का अपने सदस्यों पर नियन्त्रण भी कम हो गया।

2. शैक्षिक कारकों का जाति प्रथा पर प्रभाव (Effect of educational factors on Caste System) भारतीय समाज में जाति प्रथा एक ऐसी सामाजिक बुराई है जिसने प्रगति के रास्ते में कई रुकावटें डाली हैं। जाति प्रथा में शिक्षा केवल उच्च जाति तक ही सीमित थी, और शिक्षा की प्रकार भी धार्मिक ही थी। अंग्रेज़ी सरकार के आने के पश्चात् ही जाति-प्रथा कमजोर होनी आरम्भ हुई क्योंकि उनके लिये सभी जातियों के लोग भारतीय थे। उन्होंने सभी जाति-धर्मों के व्यक्तियों से समान व्यवहार किया। शिक्षा के क्षेत्र में उन्होंने पश्चिमी शिक्षा को महत्त्व दिया। इस कारण ही शिक्षा धर्म-निरपेक्ष हो गई। आधुनिक शिक्षा प्रणाली ने समानता, स्वतन्त्रता एवं भाईचारे जैसे सिद्धान्तों पर जोर दिया। औपचारिक शिक्षा के लिये स्कूल एवं कॉलेज खोले गये। इनमें प्रत्येक जाति से सम्बन्धित व्यक्ति शिक्षा प्राप्त करने लग गये। सभी जातियों के लोग एक साथ पढ़ने से अस्पृश्यता की बुराई समाप्त हुई।

3. शैक्षिक कारकों का विवाह पर प्रभाव (Effect of Educational Factor on Marriage)-विवाह की संस्था में भी शिक्षा के कारण काफ़ी परिवर्तन आया। पढ़े-लिखे लोगों का विवाह सम्बन्धी नज़रिया ही बदल गया। आरम्भ में विवाह पारिवारिक सहमति के बिना सम्भव नहीं थे। परिवार के बुजुर्ग ही अपने लड़के या लड़की के विवाह को तय करते थे और वह समान परिवार में ही विवाह करने का विचार रखते थे। वह लड़की-लड़के के गुणों की बजाय खानदान की तरफ अधिक ध्यान देते थे परन्तु अब लड़के एवं लड़की के व्यक्तिगत गुणों की तरफ ध्यान दिया जाता है। अब विवाह को धार्मिक संस्कार न मानकर एक सामाजिक समझौता माना गया है जोकि कभी भी तोड़ा जा सकता है। आजकल प्रेम विवाह एवं अदालती (Court) विवाह भी प्रचलित हैं। प्राचीन काल में छोटी आयु में ही विवाह कर दिया जाता था जिसके काफ़ी नुकसान होते थे। अब कानून पास करके विवाह की एक आयु निश्चित कर दी गई है। अब एक निश्चित आयु के पश्चात् ही विवाह सम्भव हो सकता है।

4. शिक्षा का सामाजिक स्तरीकरण पर प्रभाव (Effect of Education on Social Stratification)शिक्षा सामाजिक स्तरीकरण के आधारों में एक प्रमुख आधार है। (1) पढ़े-लिखे तथा अनपढ़ व्यक्ति को समाज में स्थिति शिक्षा के द्वारा ही प्राप्त होती है। व्यक्ति समाज में ऊंचा पद प्राप्त करने हेतु ऊंची शिक्षा ग्रहण करता है। जिस प्रकार की शैक्षणिक योग्यता व्यक्ति के पास होती है उसी प्रकार का पद वह प्राप्त करने योग्य हो जाता है। इस प्रकार आधुनिक समाज की जनसंख्या का शिक्षा के आधार पर स्तरीकरण किया जाता है। पढ़े-लिखे व्यक्तियों को समाज में सम्मान की भी प्राप्ति होती है।

प्राचीन समाज में व्यक्ति की स्थिति प्रदत्त होती थी अर्थात् वह जिस परिवार में जन्म लेता था, उसको उसी प्रकार की स्थिति की प्राप्ति होती थी लेकिन शिक्षा को ग्रहण करने के पश्चात् व्यक्ति की स्थिति अर्जित पद की होती है। वर्तमान समाज में व्यक्ति को अपनी स्थिति योग्यतानुसार ही प्राप्त होती है। व्यक्ति अपनी इच्छानुसार, मेहनत के साथ, योग्यता के साथ ऊंचे से ऊंचा पद प्राप्त कर सकता है।

5. शैक्षिक कारकों के कुछ अन्य प्रभाव (Some other effects of Educational Factors) शैक्षिक कारकों के प्रभावों के साथ स्त्रियों की स्थिति में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन आया है। आधुनिक समाज की शिक्षित स्त्री देश के प्रत्येक क्षेत्र में बढ़-चढ़ कर भाग ले रही है। भारत की प्रधानमन्त्री श्रीमती इन्दिरा गांधी ने काफ़ी लम्बा समय राजनीति में बिताया और देश के ऊपर राज किया। शिक्षा के प्रसार के साथ स्त्रियों की वैवाहिक आयु में भी वृद्धि हो गई। वह अपना जीवन साथी चुनने के लिये पूर्ण तौर पर स्वतन्त्र हो गई है। प्रेम विवाह को महत्त्व दिया गया है और तलाकों की संख्या में भी वृद्धि हो गई है। शिक्षा के प्रभाव से स्त्रियों की दशा में परिवर्तन आया है। वह अपना जीवन साथी चुनने के लिए पूर्णता स्वतन्त्र हो गई है। शिक्षा के प्रभाव के कारण ही परिवारों का आकार छोटा हो गया है। पढ़ी-लिखी औरतें अधिक सन्तान उत्पत्ति की नीति को अच्छा नहीं समझती हैं। बच्चों की परवरिश तो पहले से ही बाहर से ही होती है। दूसरा रहने-सहने के स्तर को ऊँचा उठाने की इच्छा ने आर्थिक दबाव भी डाल दिया। एक या दो बच्चों को पढ़ाना-लिखाना सम्भव है। भारतीय समाज में अब स्त्रियां, आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक इत्यादि क्षेत्रों में पुरुषों की बराबरी कर रही हैं। अब वह पुरुषों की गुलामी न करके, ज़िन्दगी व्यतीत करने में उसके मित्र स्वरूप खड़ी हो रही हैं।

6. सामाजिक कंद्रों एवं कीमतों पर प्रभाव (Effect on Social Values) शिक्षा न केवल व्यक्तिगत कद्रों-कीमतों को उत्पन्न करती है बल्कि सामाजिक कद्रों-कीमतों जैसे लोकतन्त्र, समानता इत्यादि को भी बढ़ाती है। यही शिक्षा के कारण ही कानून के आगे सभी व्यक्ति एक समान समझे जाते हैं। शिक्षा के प्रभाव के कारण ही कई सामाजिक कुरीतियों जैसे-जाति-प्रथा, सती प्रथा, बाल-विवाह, विधवा विवाह का न होना इत्यादि समाप्त हुए हैं। शिक्षा के कारण ही विधवा विवाह तथा अन्तर्जातीय विवाह इत्यादि आगे आये हैं। अब शिक्षा के प्रभाव में ही भेदभाव समाप्त हो गया है। स्त्रियों की दशा में काफ़ी सुधार हो गया है और हो रहा है। आधुनिक समाज एवं आधुनिक समाज की कद्रों-कीमतें शिक्षा की ही देन हैं।

7. शिक्षा का व्यवसायों पर प्रभाव (Effect of Education on Occupations)—प्राचीनकाल में व्यवसायों का आधार शिक्षा न होकर जाति व्यवस्था थी। व्यक्ति जिस किसी जाति विशेष में जन्म लेता था, उन्हीं से सम्बन्धित व्यवसायों को ही अपनाना पड़ता था। उस समय शिक्षा का कोई प्रभाव नहीं था, परन्तु आधुनिक समय में शिक्षा को ही महत्त्व दिया जाता है जिस कारण जाति विशेष के स्थान पर व्यक्तिगत योग्यता को ही केवल महत्त्व दिया जाने लगा है। अब व्यक्ति का व्यवसाय इस बात पर निर्भर नहीं करता कि वह किस जाति से सम्बन्धित है ? बल्कि इस बात पर निर्भर करता है कि वह क्या है ? उसकी शैक्षिक योग्यता क्या है ? आजकल यदि व्यक्ति को अपनी योग्यता में वृद्धि करनी है तो उसके लिए शिक्षा अनिवार्य है। यदि व्यक्ति ने उच्च पद प्राप्त करना है तो उसके लिए पढ़ना-लिखना आवश्यक है। पढ़ाई-लिखाई ने जाति की महत्त्वता को काफ़ी कम कर दिया है। अब कोई भी शिक्षा प्राप्त करके ऊंची पदवी प्राप्त कर सकता है।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 11 सामाजिक परिवर्तन

प्रश्न 6.
सामाजिक परिवर्तन की प्रौद्योगिकी (तकनीकी) कारक को विस्तृत रूप में लिखो।
उत्तर-
सामाजिक परिवर्तन लाने के लिए तकनीकी कारक भी भारतीय समाज में काफ़ी प्रबल हैं। समाज में दिन-प्रतिदिन नये-नये आविष्कार एवं खोजें होती रहती हैं जिनका प्रभाव सम्पूर्ण समाज के ऊपर पड़ता है। आधुनिक समय में आविष्कारों में काफ़ी तेजी आई है जिस कारण आधुनिक शताब्दी को वैज्ञानिक युग कहा गया है। तकनीकी में लगातार विकास होता रहता है जिस कारण समाज का विकास होता रहता है और उसमें परिवर्तन आता रहता है। किसी भी समाज की प्रगति वहां की तकनीकी पर निर्भर करती है। आजकल यातायात के साधन, संचार के साधन, डाकतार विभाग इत्यादि में तकनीकी पक्ष से बहुत ही परिवर्तन और प्रगति हुई है।

ऐसा युग मशीनी युग कहा जाता है जिसमें समाज में प्रत्येक क्षेत्र में मशीनों का प्रभाव देखने को मिलता है। कई समाजशास्त्रियों ने तकनीकी कारणों को ही सामाजिक परिवर्तन का मुख्य कारण बताया है।

वास्तव में तकनीकी कारणों में मशीनें, हथियार और उन सभी वस्तुओं को शामिल किया जाता है जिसमें मानवीय शक्ति का प्रयोग किया जाता है। ।

तकनीकी कारण एवं सामाजिक परिवर्तन (Technology & Social Change)-यहां पर हम विचार करेंगे कि कैसे तकनीकी कारणों ने समाज को परिवर्तित किया और जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में परिवर्तन लाने में योगदान दिया है।

1. उत्पादन के क्षेत्र में परिवर्तन (Change in area of production) तकनीक ने उत्पादन के क्षेत्र को तो अपने अधीन ही कर लिया है। कारखानों के खुलने के साथ घरेलू उत्पादन काफ़ी प्रभावित हुए। सबसे महत्त्वपूर्ण परिवर्तन यह आया है कि मशीनों के आने के कारण घरेलू या व्यक्तिगत उत्पादन कारखानों की तरफ चला गया। प्रत्येक क्षेत्र में नई-नई तकनीकों का विकास होने लगा। इसके साथ ही औद्योगीकरण का भी विकास हुआ। घरेलू उत्पादन के समाप्त होने के कारण स्त्रियां भी घर से बाहर निकल आईं। इस कारण स्त्रियों की सामाजिक ज़िन्दगी में काफ़ी परिवर्तन आया। आधुनिक तकनीक का ही बोलबाला होने लग गया। इससे उत्पादन पर खर्च भी कम होने लगा और कम-से-कम समय में अधिक और अच्छा उत्पादन होने लग गया। इन बड़े-बड़े कारखानों में स्त्रियां भी रोज़गार के क्षेत्र में आ गईं। प्राचीन काल में भारत में कपड़े का घरेलू उत्पादन होता था। इसके अतिरिक्त चीनी का निर्माण भी लोग घर में रह कर ही कर लेते थे। परन्तु कारखानों के खुलने के साथ यह उद्योग भी कारखानों में चला गया। आजकल भारतवर्ष में कपड़े एवं चीनी के कई कारखानों के निर्माण के कारण हज़ारों लोग कारखानों में कार्य करने लग गये हैं।

2. संचार के साधनों में विकास (Development in means of communication)-कारखानों में मशीनीकरण होने के साथ बड़े स्तर पर उत्पादन का विकास जिसके साथ संचार का विकास होना भी आवश्यक हो गया था। संचार के साधनों में हुए विकास के साथ, समय एवं स्थान में सम्बन्ध स्थापित हुआ। आधुनिक संचार की तकनीकों जैसे टेलीफोन, रेडियो, टेलीविज़न, पुस्तकें, प्रिंटिंग प्रेस की सहायता के साथ आपसी सम्बन्धों में निर्भरता पैदा हुई।

आरम्भिक काल में संचार केवल बोलचाल, संकेतों की सहायता के साथ पाया जाता था। परन्तु जब बोलचाल के स्थान पर लिखित प्रयोग किया जाने लगा तो उसके साथ व्यक्तियों में निजीपन पाया गया और भिन्न-भिन्न समूहों के लोग एक-दूसरे को समझने लग गये। इसके साथ हमारी ज़िन्दगी के दैनिक समय में बहुत तेजी आई। हम दूर बैठे विदेशों में भी व्यक्तियों के साथ सम्बन्ध स्थापित करने में सफल हुए। आजकल के समय में व्यक्ति अपने कार्य को योग्यता के अनुसार फैला रहा है जिससे उसकी प्रगति भी हई है, और रहन-सहन के स्तर में भी वृद्धि हई।

3. कृषि में नयी तकनीकें (New Techniques of Argiculture)-ऐसे युग में कृषि व्यवसाय के क्षेत्र में नयी तकनीकों का प्रयोग होने लग पड़ा। जैसे कृषि से सम्बन्धित औज़ार में, रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग, नयी मशीनें आदि के प्रयोग के साथ ग्रामीण क्षेत्रों के रहने वालों के स्तर में भी वृद्धि हुई। रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग के साथ कृषि के उत्पादन में भी वृद्धि हुई। नये प्रकार के बीजों का उत्पादन भी आरम्भ हो गया। प्राचीन काल में सम्पूर्ण परिवार ही कृषि के व्यवसाय में लगा रहता था। मशीनों के प्रयोग के साथ कम व्यक्ति भी अधिक कार्य करने लग पड़े। इस कारण सम्पूर्ण भारत की प्रगति हुई।

4. यातायात के साधनों का विकास (Development of means of transportation)-विकास के साथ-साथ यातायात के साधनों का भी विकास हआ। यह विकास व्यक्तियों के एक-दूसरे के सम्पर्क में आने की वजह से सम्भव हुआ। हवाई जहाज़, बसें, कारें, सड़कें, रेलगाड़ियां, समुद्री जहाज़ इत्यादि की खोज के साथ एक देश से दूसरे देश तक जाना आसान हो गया। व्यक्ति अपने घर से दूर जाकर भी कार्य करने के लिए जाने लग पड़ा क्योंकि एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने के लिए हर प्रकार की सुविधा प्राप्त है। इस कारण व्यक्ति की गतिशीलता में वृद्धि भी हुई।

भारत में पुरातन काल से चला आ रहा अस्पृश्यता का भेदभाव भी यातायात के साधनों के विकास के साथ कम हो गया। बस व रेलगाड़ियों में भिन्न-भिन्न जाति के लोग मिलकर सफर करने लग गये। इसके साथ विभिन्न जातियों के लोगों में भी समानता के सम्बन्ध पैदा हो गए।

यातायात के साधनों में वृद्धि से व्यापार के क्षेत्र में भी काफ़ी विकास हुआ। विभिन्न जातियों एवं विभिन्न देशों के लोगों में आपस में नफरत व ईर्ष्या, दुःख को छोड़कर, प्यार, हमदर्दी एवं सहयोग वाले सम्बन्ध स्थापित किये। व्यक्तियों को अपनी ज़िन्दगी बढ़िया ढंग से जीने का अवसर प्राप्त हुआ। यातायात के साधनों के विकास के कारण हज़ारों मील की यात्रा कुछ घण्टों में ही सम्भव हो गई।

5. तकनीकी कारणों का परिवार की संस्था पर पड़ा प्रभाव (Change in Family) सबसे पहले हम यह देखते हैं कि तकनीकी कारणों के प्रभाव के कारण परिवार की संस्था को बिल्कुल बदल दिया है।

आधुनिक परिवार का तो नक्शा ही बदल गया है। परिवार के सदस्यों को रोजी रोटी कमाने हेतु घर से बाहर जाना पड़ता है। इस कारण वह कार्य (पुराने समय में) जो परिवार के सदस्य स्वयं करते थे, वह दूसरी संस्थाओं के पास चला गया है। बच्चों की देख भाल घर से बाहर करैचों में चली गई है। स्वास्थ्य के कार्य अस्पतालों में चले गये हैं। व्यक्ति अपना मनोरंजन भी घर से बाहर या. देखने एवं सुनने वाले साधनों की सहायता के साथ करता है। उसका नज़रिया (दृष्टिकोण) भी व्यक्तिगत हो गया है। पारिवारिक संगठन का स्वरूप ही बदल गया है। बड़े परिवारों के स्थान पर छोटे एवं सीमित परिवार विकसित हो गये हैं। परिवार को प्राचीन समय में प्राइमरी समूह के फलस्वरूप जो मान्यता प्राप्त थी, वह अब नहीं रही है।

6. तकनीकी कारणों का विवाह की संस्था के ऊपर पड़ा प्रभाव (Effect on institution of marriage)प्राचीन समाज में विवाह को एक धार्मिक बन्धन का नाम दिया जाता था। व्यक्ति का विवाह उसके पूर्वजों की सहमति के साथ होता था। इस संस्था के बीच प्रवेश करके व्यक्ति गृहस्थ आश्रम में प्रवेश कर जाता था, लेकिन तकनीकी कारणों के प्रभाव के साथ विवाह की संस्था के प्रति लोगों का दृष्टिकोण भी बदल गया है।

सबसे पहली बात यह है कि आजकल के समय में विवाह की संस्था एक धार्मिक बन्धन न रह कर एक सामाजिक समझौता बनकर रह गई है। विवाह की नींव समझौते के ऊपर आधारित है और समझौता न होने की अवस्था में यह टूट भी जाती है।

विवाह की संस्था का नक्शा ही बदल गया है। विवाह के चुनाव का क्षेत्र बढ़ गया है। व्यक्ति अपनी इच्छा से किसी भी जाति में विवाह करवा सकता है। यदि पति-पत्नी के विचार नहीं मिलते तो वह एक-दूसरे से अलग हो सकते हैं। औरतों ने जब से उत्पादन के क्षेत्र में हिस्सा लेना शुरू किया है तब से ही वह अपने आपको आदमियों से कम नहीं समझती है। आर्थिक पक्ष से वह आदमी पर अब निर्भर नहीं है। इस कारण उसकी स्थिति आदमी के बराबर समझी जाने लग गई है।

7. सामाजिक जीवन पर प्रभाव (Impact on Social Life) आधुनिक संचार के साधनों, यातायात के साधनों, नये-नये उद्योगों, काम धन्धों के सामने आने से हमारे समाज के ऊपर काफ़ी गहरा प्रभाव पड़ा है। शहरों में बड़े-बड़े उद्योग स्थापित हो गये हैं, जिस कारण गांवों का कुटीर एवं लघु उद्योग लगभग समाप्त हो गया है। गांवों के लोग कार्यों को करने के लिए शहरों की तरफ जाने लग गए। इस कारण गांवों के संयुक्त परिवार टूट रहे हैं और उनकी जगह केन्द्रीय परिवार ले रहे हैं। लोग गांवों से शहरों की तरफ बढ़ रहे हैं जिस कारण उनके रहनेसहने के स्तर, खाने-पीने, विचार, व्यवहार एवं तौर-तरीकों में काफ़ी परिवर्तन आ रहा है।

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वस्तुनिष्ठ प्रश्न

I. बहुविकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions):

प्रश्न 1.
शब्द Progress लातीनी भाषा के किस शब्द से लिया गया है ?
(A) Progressor
(B) Progred
(C) Progredior
(D) Pregrodoir.
उत्तर-
(C) Progredior.

प्रश्न 2.
क्रान्ति की कोई विशेषता बताएं।
(A) अप्रत्याशित परिणाम
(B) शक्ति का प्रतीक
(C) तेज़ परिवर्तन
(D) उपर्युक्त सभी।
उत्तर-
(D) उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 3.
सांस्कृतिक विडम्बना का सिद्धान्त किसने दिया था ?
(A) मैकाइवर
(B) जिन्सबर्ग
(C) ऑगबन
(D) वैबर।
उत्तर-
(C) ऑगबर्न।

प्रश्न 4.
रेखीय परिवर्तन को रेखीय परिवर्तन क्यों कहते हैं ?
(A) क्योंकि यह परिवर्तन चक्र में होता है
(B) क्योंकि यह परिवर्तन घूम कर होता है
(C) क्योंकि यह एक रेखा की तरह सीधी रेखा में होता है
(D) क्योंकि यह कुछ समय के लिए चक्र की तरह घूमता है तथा कुछ समय रेखा की तरह चलता है।
उत्तर-
(C) क्योंकि यह एक रेखा की तरह सीधी रेखा में होता है।

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प्रश्न 5.
जब परिवर्तन एक निश्चित दिशा में हो तथा तथ्य में गुणों तथा रचना में भी परिवर्तन हो तो उसे क्या कहते हैं ?
(A) उद्विकास
(B) क्रान्ति
(C) विकास
(D) प्रगति।
उत्तर-
(A) उद्विकास।

प्रश्न 6.
उस परिवर्तन को क्या कहते हैं जो हमारी इच्छाओं तथा लक्ष्यों के अनुरूप हो तथा हमेशा जो लाभदायक स्थिति उत्पन्न करे।
(A) उद्विकास
(B) प्रगति
(C) क्रान्ति
(D) विकास।
उत्तर-
(B) प्रगति।

प्रश्न 7.
उस परिवर्तन को क्या कहते हैं जो सामाजिक व्यवस्था को बदलने के लिए एकदम तथा अचनचेत हो जाए।
(A) प्रगति
(B) विकास
(C) क्रान्ति
(D) उद्विकास।
उत्तर-
(C) क्रान्ति।

प्रश्न 8.
सोरोकिन के अनुसार किस चीज़ में होने वाला परिवर्तन सामाजिक होता है ?
(A) सांस्कृतिक विशेषताओं
(B) समाज
(C) समुदाय
(D) सामाजिक सम्बन्धों।
उत्तर-
(A) सांस्कृतिक विशेषताओं।

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प्रश्न 9.
किसी समाज विशेष की संस्कृति में होने वाले परिवर्तन को क्या कहते हैं ?
(A) सामाजिक परिवर्तन
(B) सामूहिक परिवर्तन
(C) सांस्कृतिक परिवर्तन
(D) कोई नहीं।
उत्तर-
(C) सांस्कृतिक परिवर्तन।

प्रश्न 10.
सामाजिक परिवर्तन की प्रकृति किस प्रकार की होती है ?
(A) व्यक्तिगत
(B) सामूहिक
(C) सामाजिक
(D) सांस्कृतिक।
उत्तर-
(C) सामाजिक।

II. रिक्त स्थान भरें (Fill in the blanks) :

1. …………. प्रकृति का नियम है।
2. ………….. का अर्थ है आंतरिक तौर पर क्रमवार परिवर्तन।
3. ………. से समाज में अचानक तथा तेज़ परिवर्तन आते हैं।
4. …………. , …………. तथा ………….. सामाजिक परिवर्तन के प्राथमिक स्रोत हैं।
5. ………… वह प्रक्रिया है जिससे सांस्कृतिक तत्त्व एक संस्कृति से दूसरी संस्कृति में फैल जाते हैं।
6. जब हम अपने ऐच्छिक उद्देश्य की प्राप्ति के रास्ते की तरफ बढ़ते हैं तो इसे ……….. कहते हैं।
उत्तर-

  1. परिवर्तन,
  2. उद्विकास,
  3. क्रान्ति,
  4. Innovation, discovery, diffusion,
  5. प्रसार,
  6. प्रगति।

III. सही/गलत (True/False) :

1. क्रान्ति तेज़ परिवर्तन लाती है।
2. प्रसार से सांस्कृतिक तत्त्व नहीं फैलते।
4. जनसंख्या के बढ़ने या कम होने से सामाजिक परिवर्तन आता है।
5. क्रान्ति सामाजिक परिवर्तन का प्रकार नहीं है।
6. क्रान्ति से संपूर्ण सामाजिक संरचना बदल जाती है।
उत्तर-

  1. सही,
  2. गलत,
  3. गलत,
  4. सही,
  5. गलत,
  6. सही।

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IV. एक शब्द/पंक्ति वाले प्रश्न उत्तर (One Wordline Question Answers) :

प्रश्न 1.
सामाजिक परिवर्तन क्या होता है ?
उत्तर-
सामाजिक संबंधों में होने वाला परिवर्तन सामाजिक परिवर्तन होता है।

प्रश्न 2.
सामाजिक परिवर्तन का कोई कारण बताएं।
उत्तर-
भौगोलिक कारक जैसे कि भूकम्प, बाढ़ इत्यादि से सामाजिक परिवर्तन हो जाता है।

प्रश्न 3.
क्या सामाजिक परिवर्तन के बारे में पहले बताया जा सकता है ?
उत्तर-
जी नहीं, समाजिक परिवर्तन के बारे में पहले नहीं बताया जा सकता।

प्रश्न 4.
सामाजिक परिवर्तन के कारकों को कितने भागों में बांटा जा सकता है ?
उत्तर-
सामाजिक परिवर्तन के कारकों को दो भागों-प्राकृतिक कारक तथा मानवीय कारक में बाँटा जा सकता

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प्रश्न 5.
सामाजिक परिवर्तन की प्रकृति किस प्रकार की होती है ?
उत्तर-
सामाजिक परिवर्तन की प्रकृति सामाजिक होती है।

प्रश्न 6.
सांस्कृतिक परिवर्तन क्या होता है ?
उत्तर-
किसी विशेष समाज की संस्कृति में होने वाले परिवर्तन को सांस्कृतिक परिवर्तन कहते हैं।

प्रश्न 7.
उद्विकास किसे कहते हैं ?
उत्तर-
जब परिवर्तन एक निश्चित दिशा में हो तथा तथ्य के गुणों व रचना में भी परिवर्तन आए तो उसे उद्विकास कहते हैं।

प्रश्न 8.
प्रगति क्या है ?
उत्तर-
ऐसे परिवर्तन जो हमारी इच्छाओं तथा लक्षणों के अनुसार हों तथा हमेशा लाभदायक स्थिति उत्पन्न करें उसे प्रगति कहते हैं।

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प्रश्न 9.
क्रान्ति क्या है ?
उत्तर-
जब सामाजिक व्यवस्था को बदलने के लिए अचानक परिवर्तन हो जाए तो इसे क्रान्ति कहते हैं।

प्रश्न 10.
मार्क्स के अनुसार सामाजिक परिवर्तन का क्या कारण है ?
उत्तर-
मार्क्स के अनुसार सामाजिक परिवर्तन का कारण आर्थिक होता है।

प्रश्न 11.
क्रान्ति की एक विशेषता बताएं।
उत्तर-
क्रान्ति से तेज़ परिवर्तन आता है जिसके अचानक परिणाम निकलते हैं।

प्रश्न 12.
सामाजिक परिवर्तन के कौन-से कारक होते हैं ?
उत्तर-
भौगोलिक कारक, जनसंख्यात्मक कारक, जैविक कारक, तकनीकी कारक इत्यादि।

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अति लघु उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
सामाजिक परिवर्तन की परिभाषा दें।
उत्तर-
जोंस (Jones) के अनुसार, “सामाजिक परिवर्तन वह शब्द है जिसे हम सामाजिक प्रक्रियाओं, सामाजिक ढंगों, सामाजिक अन्तक्रियाओं अथवा सामाजिक संगठन इत्यादि में पाए गए परिवर्तनों के वर्णन करने के लिए है।”

प्रश्न 2.
सामाजिक परिवर्तन की दो विशेषताएं बताएं।
उत्तर-

  1. सामाजिक परिवर्तन सर्वव्यापक होता है क्योंकि कोई भी समाज पूर्णतया स्थिर नहीं होता तथा परिवर्तन प्रकृति का नियम है।
  2. सामाजिक परिवर्तन में किसी प्रकार की निश्चित भविष्यवाणी नहीं हो सकती क्योंकि सामाजिक संबंधों में कोई भी निश्चितता नहीं होती।

प्रश्न 3.
सामाजिक परिवर्तन तुलनात्मक कैसे है ?
उत्तर-
जब हम किसी परिवर्तन की बात करते हैं तो हम वर्तमान स्थिति की तुलना प्राचीन स्थिति से करते हैं कि प्राचीन स्थिति व वर्तमान स्थिति में क्या अंतर है। यह अंतर केवल दो स्थितियों की तुलना करके ही पता किया जा सकता है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि सामाजिक परिवर्तन तुलनात्मक होता है।

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प्रश्न 4.
उद्विकास को समझने का सूत्र बताएं।।
उत्तर-
उद्विकास को हम निम्नलिखित सूत्र की सहायता से समझ सकते हैंउविकास = गुणात्मक परिवर्तन + रचना में परिवर्तन + निरन्तरता + दिशा।

प्रश्न 5.
सामाजिक परिवर्तन के कौन-से कारक होते हैं ?
उत्तर-

  • भौगोलिक कारकों के कारण सामाजिक परिवर्तन आता है।
  • जैविक कारक भी सामाजिक परिवर्तन लाते हैं।
  • जनसंख्यात्मक कारकों की वजह से भी सामाजिक परिवर्तन आता है।
  • सांस्कृतिक तथा तकनीकी कारक भी सामाजिक परिवर्तन का कारण बनते हैं।

लघु उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
सामाजिक परिवर्तन।
उत्तर-
सामाजिक सम्बन्धों, सामाजिक संगठन, सामाजिक संरचना, सामाजिक अन्तक्रिया में होने वाले किसी भी प्रकार के परिवर्तन को सामाजिक परिवर्तन का नाम दिया जाता है। समाज में होने वाला हरेक प्रकार का परिवर्तन सामाजिक परिवर्तन नहीं होता। केवल सामाजिक सम्बन्धों, सामाजिक क्रियाओं इत्यादि में पाया जाना वाला परिवर्तन ही सामाजिक परिवर्तन होता है। संक्षेप में हम कह सकते हैं कि लोगों के जीवन जीने के ढंगों में पाया जाने वाला परिवर्तन ही सामाजिक परिवर्तन होता है। यह हमेशा सामूहिक तथा सांस्कृतिक होता है। जब भी मनुष्यों के व्यवहार में परिवर्तन आता है तो हम कह सकते हैं कि सामाजिक परिवर्तन हो रहा है।

प्रश्न 2.
सामाजिक परिवर्तन की विशेषताएं।
उत्तर-
1. सामाजिक परिवर्तन एक सर्वव्यापक प्रक्रिया है क्योंकि समाज के किसी न किसी हिस्से में परिवर्तन आता ही रहता है। कोई भी समाज ऐसा नहीं है जिसमें परिवर्तन न आया हो, क्योंकि परिवर्तन प्रकृति का नियम है।

2. सामाजिक परिवर्तन के बारे में निश्चित तौर पर भविष्यवाणी नहीं कर सकते कि यह कब तथा कैसे होगा क्योंकि व्यक्तियों के बीच मिलने वाले सामाजिक सम्बन्ध निश्चित नहीं होते तथा सम्बन्धों में हमेशा परिवर्तन आते रहते हैं।

3. सामाजिक परिवर्तन की गति असमान होती है क्योंकि यह किसी समाज में तो काफ़ी तेज़ी से आता है तथा किसी समाज में यह काफ़ी धीमी गति से आता है। परन्तु समाज में होता ज़रूर है।

4. सामाजिक परिवर्तन कई कारकों के आकर्षण का परिणाम होती है। इसके पीछे केवल एक ही कारक.नहीं होता क्योंकि हमारा समाज जटिल प्रवृत्ति का है।

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प्रश्न 3.
सामाजिक परिवर्तन में भविष्यवाणी नहीं कर सकते।
उत्तर-
हम किसी भी प्रकार के सामाजिक परिवर्तन के बारे में निश्चित तौर पर भविष्यवाणी नहीं कर सकते कि यह कब तथा कैसे होगा। क्योंकि व्यक्तियों के बीच मिलने वाले सामाजिक सम्बन्ध निश्चित नहीं होते। सम्बन्धों में हमेशा परिवर्तन आते रहते हैं जिस कारण हम इनके बारे में निश्चित रूप से कुछ कह नहीं सकते। हम किसी भी व्यक्ति के व्यवहार के बारे में निश्चित अनुमान नहीं लगा सकते कि यह किसी विशेष स्थिति में किस प्रकार का व्यवहार करेगा। इसलिए हम इसके बारे में निश्चित रूप से भविष्यवाणी नहीं कर सकते।

प्रश्न 4.
सामाजिक परिवर्तन के मुख्य कारक।
उत्तर-
सामाजिक परिवर्तन के मुख्य कारक निम्नलिखित हैं-

  • सांस्कृतिक कारक (Cultural factor)
  • जनसंख्यात्मक कारक (Demographical factor)
  • शैक्षिक कारक (Educational factor)
  • आर्थिक कारक (Economic factor)
  • तकनीकी कारक (Technological factor)
  • जैविक कारक (Biological factor)
  • मनोवैज्ञानिक कारक (Psychological factor).

प्रश्न 5.
सामाजिक उदविकास।
उत्तर-
सामाजिक उदविकास सामाजिक परिवर्तन के प्रकारों में से एक है। शब्द उदविकास अंग्रेजी भाषा के शब्द Evolution से निकला है जोकि लातिनी भाषा के शब्द Evolvere से निकला है जिसका अर्थ है बाहर की तरफ फैलना। क्रम विकासीय परिवर्तन से न सिर्फ बढ़ौत्तरी होती है बल्कि उस परिवर्तन से संरचनात्मक बढौत्तरी का ज्ञान होता है। इस तरह क्रम विकासीय परिवर्तन ऐसा परिवर्तन होता है जिसमें निरन्तर क्रम परिवर्तन निश्चित दिशा की तरफ होता है। यह साधारण से जटिल की तरफ जाने की प्रक्रिया है।

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प्रश्न 6.
उद्विकास की तीन विशेषताएं। (Three Characteristics of Evolution.)
उत्तर-

  1. सामाजिक उद्विकास निरन्तर पाया जाने वाला परिवर्तन होता है तथा यह परिवर्तन लगातार होता रहता है।
  2. निरन्तरता के साथ सामाजिक उद्विकासीय परिवर्तन में निश्चित दिशा भी पायी जाती है क्योंकि यह सिर्फ आकार में नहीं बल्कि संरचना में भी पायी जाती है।
  3. सामाजिक उद्विकास के ऊपर किसी प्रकार का कोई बाहरी दबाव नहीं होता बल्कि इसमें भीतरी गुण बाहर निकलते हैं।
  4. उद्विकासीय परिवर्तन हमेशा साधारण से जटिलता की तरफ पाया जाता है तथा निश्चित दिशा में पाया जाता है।

प्रश्न 7.
क्रान्ति।
उत्तर-
क्रान्ति भी सामाजिक परिवर्तन का एक प्रकार है। इसके द्वारा समाज में इस तरह का परिवर्तन होता है कि जिसका प्रभाव वर्तमान समय पर तो पड़ता ही है परन्तु भविष्य तक भी इसका असर रहता है। वास्तव में समाज में कई बार ऐसे हालात पैदा हो जाते हैं जिसके द्वारा समाज विघटन के रास्ते पर चल पड़ता है। ऐसे हालातों को खत्म करने के लिए समाज में क्रान्तिकारी परिवर्तन पैदा हो जाते हैं। यह क्रान्तिक परिवर्तन एकदम तथा अचानक होता है। इस पर बाहरी शक्तियों का भी प्रभाव पड़ता है। क्रान्ति से एकदम परिवर्तन आता है जिससे समाज का ढांचा ही बदल जाता है।

प्रश्न 8.
क्रान्ति की तीन विशेषताएं।
उत्तर-

  1. क्रान्ति में सामाजिक व्यवस्था में एकदम परिवर्तन आ जाता है जिस कारण अचानक परिणाम निकलते हैं।
  2. क्रान्ति से संस्कृति के दोनों भाग, चाहे वह भौतिक हो या अभौतिक, में तेजी से परिवर्तन आता है जिससे समाज पूरी तरह बदल जाता है।
  3. क्रान्ति एक चेतन प्रक्रिया है अचेतन नहीं जिसमें चेतन रूप से काफ़ी समय से प्रयास चलते हैं तथा राज्य सत्ता को बदला जाता है।
  4. क्रान्ति में हिंसक तथा अहिंसक तरीके से पुरानी व्यवस्था को उखाड़ फेंका जाता है तथा नई व्यवस्था को कायम किया जाता है।

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प्रश्न 9.
क्रान्ति शक्ति की प्रतीक कैसे होती है ?
उत्तर-
क्रान्ति में शक्ति का प्रयोग ज़रूरी होता है। राजनीतिक क्रान्ति तो खून-खराबे तथा कत्ले-आम पर आधारित होती है जैसे 1789 की फ्रांस की क्रान्ति तथा 1917 की रूसी क्रान्ति। राज्य की सत्ता को पलटने के लिए हिंसा को साधन बनाया जाता है जिस कारण लूट-मार, कत्ले-आम तो होता ही है। क्रान्ति के सफल या असफल होने में भी शक्ति का ही हाथ होता है। यदि क्रान्ति करने वालों की शक्ति अधिक है तो वह राज्य सत्ता को पलट देते हैं नहीं तो राज्य उनकी क्रान्ति को असफल कर देता है। इस तरह क्रान्ति शक्ति का प्रतीक है क्योंकि यह तो होती ही शक्ति से है।

प्रश्न 10.
क्रान्ति का सामाजिक कारण।
उत्तर-
बहुत-से सामाजिक कारण क्रान्ति के लिए जिम्मेदार होते हैं। समाजशास्त्रियों के अनुसार यदि समाज में प्रचलित रीति-रिवाज, परम्पराएं ठीक नहीं हैं तो वह क्रान्ति का कारण बन सकते हैं। प्रत्येक समाज में कुछ प्रथाएं, परम्पराएं होती हैं जो समाज की एकता तथा अखण्डता के विरुद्ध होती हैं। क्रान्ति कई बार इन परम्पराओं को खत्म करने के लिए भी की जाती है। कई बार इन परम्पराओं के कारण समाज में विघटन पैदा हो जाता है जिस कारण इस विघटन को खत्म करने के लिए क्रान्ति करनी पड़ती है। जैसे 20वीं सदी में भारत में कई बुराइयों के कारण सामाजिक विघटन पैदा होता था।

प्रश्न 11.
क्रान्ति का राजनीतिक कारण।
उत्तर-
यदि हम इतिहास पर दृष्टि डालें तो हमें पता चलता है कि साधारणतः सभी ही क्रान्तियों के कारण राजनीतिक रहे हैं तथा यह कारण वर्तमान राज्य की सत्ता के विरुद्ध होते हैं। बहुत बार राज्य की सत्ता इतनी अधिक निरंकुश हो जाती है कि अपनी मनमर्जी करने लग जाती है। उसको लोगों की इच्छाओं का ध्यान भी नहीं रहता। आम जनता की इच्छाओं को दबा दिया जाता है। इच्छाओं के दबने के कारण जनता में असन्तोष फैल जाता है। धीरे-धीरे यह असन्तोष सम्पूर्ण समाज में फैल जाता है तथा यह असन्तोष समय आने पर क्रान्ति बन जाता है।

प्रश्न 12.
विकास।
उत्तर-
सामाजिक विकास एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें कई चीजें अपने बड़े तथा विस्तृत आकार की तरफ बढ़ती हैं। इसका अर्थ है कि विकास ऐसा परिवर्तन है जिसमें विशेषीकरण तथा विभेदीकरण में बढ़ोत्तरी होती है तथा वह चीज़, जिसका हम मूल्यांकन कर रहे हैं, हमेशा उन्नति की तरफ बढ़ती है।

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प्रश्न 13.
विकास की विशेषताएं।
उत्तर-

  • विकास एक सर्वव्यापक प्रक्रिया है।
  • विकास में एक चीज़ एक स्थिति से दूसरी स्थिति में परिर्वतन हो जाती है।
  • विकास सरलता से जटिलता की तरफ बढ़ने की प्रक्रिया है।
  • विकास जीवन के सभी पक्षों में होता है।
  • विकास करने की कोशिशें हमेशा चलती रहती हैं।

प्रश्न 14.
सामाजिक विकास के तीन मापदण्ड।
उत्तर-

  • जब कानून की दृष्टि में समानता बढ़ जाती है तो यह विकास का प्रतीक होता है।
  • जब देश के सभी बालिगों को वोट देने का अधिकार प्राप्त हो जाए तथा देश में लोकतन्त्र स्थापित हो जाए तो यह राजनीतिक विकास का सूचक है।
  • जब स्त्रियों तथा सभी लोगों को समाज में समान अधिकार प्राप्त हो जाएं तो यह सामाजिक विकास का सूचक है।
  • जब समाज में पैसे या पूँजी का समान विभाजन हो तो यह आर्थिक प्रगति का सूचक माना जाता है।

प्रश्न 15.
विकास की दो परिभाषाएं।
उत्तर-
हाबहाऊस (Hobhouse) के अनुसार, “समुदाय का विकास उस समय माना जाता है जब किसी वस्तु की मात्रा, कार्य सामर्थ्य तथा सेवा की नज़दीकी में बढ़ोत्तरी होती है।”
Oxford Dictionary के अनुसार, “आम प्रयोग में विकास का अर्थ है भूमिका प्रकटन, किसी वस्तु का अधिक-से-अधिक ज्ञान तथा जीवन का विकास।”

प्रश्न 16.
तकनीकी कारक की वजह से आए दो परिवर्तन।
उत्तर-
1. शहरीकरण-उद्योगों के विकास होने के साथ दूर-दूर स्थानों पर रहने वाले लोग रोज़गार को प्राप्त करने के लिए औद्योगिक स्थानों पर इकट्ठे होते हैं। बाद में वह वहीं जाकर रहना शुरू कर देते हैं। इस तरह शहरों का विकास होता जाता है।

2. कृषि के नए तरीकों का विकास-नए आविष्कारों की वजह से कृषि में नए तरीकों का निर्माण हुआ तथा इससे कृषि के उत्पादन में भी बढ़ोत्तरी हुई। लोगों के जीवन में भी सुधार हुआ।

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प्रश्न 17.
तकनीक तथा शहरीकरण।
उत्तर-
तकनीक की वजह से बड़े-बड़े उद्योग शुरू हो गए तथा देश का औद्योगीकरण हो गया है। औद्योगीकरण के कारण बड़े-बड़े शहर उन उद्योगों के आसपास बस गए। शुरू में गांवों से कारखानों में काम करने के लिए आने वाले मजदूरों के लिए उद्योगों के आसपास बस्तियां बस गईं। फिर उन बस्तियों में जीवन जीने के लिए चीजें देने के लिए दुकानें तथा बाज़ार खुल गए। फिर लोगों के लिए होटल, स्कूल, व्यापारिक कम्पनियां खुल गईं तथा दफ़्तर बन गए। इस तरह धीरे-धीरे इनकी वजह से शहरों का विकास हुआ तथा शहरीकरण बढ़ गया। इस तरह शहरीकरण को बढ़ाने में तकनीक का सबसे बड़ा हाथ है।

प्रश्न 18.
तकनीक का औरतों की दशा में परिवर्तन पर प्रभाव।
उत्तर-
तकनीक ने औरतों की दशा सुधारने में काफ़ी बड़ा योगदान डाला है। तकनीक के बढ़ने के कारण विद्या का प्रसार हुआ तथा औरतों ने शिक्षा लेनी शुरू कर दी। शिक्षा लेकर वह आर्थिक क्षेत्र में मर्दो से कंधे से कंधा मिलाकर काम कर रही है। वह दफ्तरों, फैक्टरियों में जाकर काम कर रही है तथा पैसे कमा रही है। मशीनों के बढ़ने की वजह से औरतों के ऊपर परिवार के कार्य करने का बोझ काफ़ी कम हो गया है। आजकल प्रत्येक कार्य के लिए मशीनों का प्रयोग हो रहा है जैसे कपड़े धोने, सफ़ाई करने, बर्तन धोने इत्यादि। इससे औरतों का कार्य काफ़ी कम हो गया है। यह सब तकनीक की वजह से मुमकिन हुआ है।

प्रश्न 19.
तकनीक का विवाह पर प्रभाव।
उत्तर-
पुराने समय में विवाह एक धार्मिक संस्कार होता था परन्तु तकनीक के बढ़ने की वजह से आधुनिक समाज आगे आए जहां विवाह एक धार्मिक संस्कार रहकर एक सामाजिक समझौता माना जाने लग गया। विवाह का आधार समझौता होता है तथा समझौता न होने की सूरत में विवाह टूट भी जाता है। अब विवाह के चुनाव का क्षेत्र काफ़ी बढ़ गया है। व्यक्ति अपनी इच्छा से किसी भी जाति में विवाह करवा सकता है। यदि पति पत्नी के विचार नहीं मिलते तो वह अलग भी हो सकते हैं। औरतें आर्थिक क्षेत्र में भी आगे आ गई हैं तथा अपने आपको मर्दो से कम नहीं समझती हैं। वह अब मर्दो पर बिल्कुल भी निर्भर नहीं है तथा यह सब कुछ तकनीक की वजह से हुआ है।

प्रश्न 20.
जनसंख्यात्मक कारक के दो प्रभाव।
उत्तर-
(i) आर्थिक हालातों पर प्रभाव (Effect on EconomicLife)-जनसंख्यात्मक कारक का उत्पादन के तरीकों, जायदाद की मलकीयत, आर्थिक प्रगति के ऊपर भी प्रभाव पड़ता है। जैसे जनसंख्या के बढ़ने के कारण कृषि के उत्पादन को बढ़ाना ज़रूरी हो जाता है।

(ii) सामाजिक जीवन पर प्रभाव (Effect on Social Life)-बढ़ रही जनसंख्या, बेरोज़गारी, भूखमरी की स्थिति पैदा करती है जिससे समाज में अशान्ति, भ्रष्टाचार बढ़ता है।

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प्रश्न 21.
शिक्षात्मक कारक।
उत्तर-शिक्षा के द्वारा व्यक्ति का समाजीकरण भी होता है तथा उसके विचारों, आदर्शों, कीमतों इत्यादि के ऊपर भी प्रभाव पड़ता है। मनुष्य की प्रगति भी शिक्षा के ऊपर ही आधारित होती है। यह व्यक्ति को वहमों, भ्रमों, अज्ञानता से छुटकारा दिलाता है। व्यक्ति के प्रत्येक पक्ष में परिवर्तन लाने में शिक्षात्मक कारक महत्त्वपूर्ण है।

प्रश्न 22.
शिक्षात्मक कारक के दो प्रभाव।
उत्तर-
1. जाति प्रथा पर प्रभाव-अनपढ़ता व्यक्ति को गतिहीन बना देती है तथा व्यक्ति भ्रमों, परम्पराओं में फंसे रहते हैं। आधुनिक शिक्षा के द्वारा जाति प्रथा को काफ़ी कमजोर कर दिया गया है। यह शिक्षा धर्म निरपेक्ष होती है। इसके द्वारा आज़ादी, समानता, भाईचारा इत्यादि जैसी कीमतों पर जोर दिया जाता है।

2. औरतों की स्थिति पर प्रभाव-शिक्षात्मक कारकों के द्वारा औरतों की दशा में काफी सुधार हुआ है। वह घर की चार दीवारी से बाहर निकल कर अपने अधिकारों तथा फों के प्रति जागरूक हुई है। आर्थिक रूप से वह स्वैः निर्भर हो गई है।

प्रश्न 23.
शिक्षा का शाब्दिक अर्थ।
उत्तर-
शिक्षा अंग्रेज़ी के शब्द Education का हिन्दी रूपान्तर है। Education लातिनी भाषा के शब्द Educere से निकला है जिसका अर्थ होता है to bring up : शिक्षा का अर्थ व्यक्ति को सिर्फ किताबी ज्ञान देने से ही सम्बन्धित नहीं बल्कि व्यक्ति में अच्छी आदतों का निर्माण करके उस को भविष्य के लिए तैयार करना भी होता है। ऐंडरसन के अनुसार, “शिक्षा एक सामाजिक प्रक्रिया है जिस के द्वारा व्यक्ति उन चीज़ों की सिखलाई प्राप्त करता है जो उसको ज़िन्दगी जीने के लिए तैयार करती है।”

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प्रश्न 24.
शिक्षा का परिवार पर प्रभाव।
उत्तर-
शैक्षिक कारक का परिवार पर गहरा प्रभाव पड़ा है। शिक्षा में प्रगति से लोगों में जागृति आयी है तथा उन्होंने नई कीमतों के अनुसार रहना शुरू कर दिया। अब वह अपनी इच्छा तथा योग्यता के अनुसार अलग-अलग कार्य करने लग गए जिससे संयुक्त परिवारों की जगह केन्द्रीय परिवार अस्तित्व में आए। अब व्यक्ति गांवों से निकल कर शहरों में नौकरी करने के लिए जाने लग गए। लोग अब व्यक्तिवादी तथा पदार्थवादी हो गए हैं। बच्चों ने रस्मी शिक्षा लेनी शुरू कर दी जिस वजह से उन्होंने स्कूल, कॉलेज इत्यादि में जाना शुरू कर दिया। अब शिक्षा की वजह से ही छोटे परिवार को ठीक माना जाने लग गया है। अब बच्चे के समाजीकरण में शिक्षा का काफ़ी प्रभाव है क्योंकि बच्चा अपने जीवन का आरम्भिक समय शैक्षिक संस्थाओं में बिताता है। …

प्रश्न 25.
शैक्षिक कारकों का जाति प्रथा पर प्रभाव।
उत्तर-
पुराने समय में शिक्षा सिर्फ उच्च जाति के लोगों तक ही सीमित थी परन्तु अंग्रेज़ी शिक्षा के आने से अब प्रत्येक जाति का व्यक्ति शिक्षा ले सकता है। पश्चिमी शिक्षा को महत्त्व दिया गया है जिस वजह से शिक्षा धर्म निरपेक्ष हो गई है। आधुनिक शिक्षा प्रणाली ने समानता, स्वतन्त्रता तथा भाईचारे वाली कीमतों पर जोर दिया है। शिक्षा की वजह से ही सभी व्यक्ति स्कूल में पढ़ने लग गए जिससे अस्पृश्यता का भेदभाव खत्म हो गया है। अब व्यक्ति अपनी शिक्षा तथा योग्यता के अनुसार कोई भी कार्य कर करता है। शिक्षा प्राप्त करके व्यक्ति अपने परिश्रम से समाज में कोई भी स्थिति प्राप्त कर सकता है। अन्तः जाति विवाह भी शिक्षा की वजह से बढ़ गए हैं। हमारे समाज में से जाति प्रथा को खत्म करने में शैक्षिक कार्य महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।

प्रश्न 26.
शिक्षा का सामाजिक स्तरीकरण पर प्रभाव।
उत्तर-
शिक्षा सामाजिक स्तरीकरण का एक प्रमुख आधार है। इसने समाज को दो भागों पढ़े-लिखे तथा अनपढ़ में बांट देता है। व्यक्ति समाज में ऊंची स्थिति प्राप्त करने के लिए उच्च शिक्षा प्राप्त करता है। जिस तरह की शैक्षिक योग्यता व्यक्ति के पास होती है, वह उसी तरह की समाज में पदवी प्राप्त करता है। इस तरह समाज की जनसंख्या को शिक्षा के आधार पर स्तरीकृत किया जाता है। पढ़े-लिखे व्यक्ति को समाज में आदर प्राप्त होता है। वर्तमान समाज में व्यक्ति अपनी इच्छा के अनुसार अपनी मेहनत तथा योग्यता से ऊंचा पद प्राप्त कर सकता है।

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बड़े उतारों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
सामाजिक उद्विकास के बारे में आप क्या जानते हैं ? विस्तार से लिखें।
उत्तर-
सामाजिक उद्विकास सामाजिक परिवर्तन के प्रकारों में से एक है। उदविकास अंग्रेजी भाषा में शब्द EVOLUTION का हिन्दी रूपांतर है जो कि लातिनी भाषा के शब्द Evolvere में से निकला है। उदविकासीय परिवर्तन में न सिर्फ बढ़ोत्तरी होती है बल्कि उस परिवर्तन से संरचनात्मक ज्ञान की भी बढ़ोत्तरी होती है। इस तरह उद्विकास एक ऐसा परिवर्तन होता है जिस में निरन्तर परिवर्तन निश्चित दिशा की तरह पाया जाता है। मैकाइवर तथा पेज (MacIver and Page) का कहना है कि “परिवर्तन में गतिशीलता नहीं होती बल्कि परिवर्तन की एक दिशा होती है तो ऐसे परिवर्तन को विकास में बढ़ोत्तरी कहते हैं।”

मैकाइवर (MacIver) ने एक और स्थान पर लिखा है कि, “जैसे-जैसे व्यक्ति की ज़रूरतें बढती हैं उसी तरह सामाजिक संरचना भी उस के अनुसार बदलती रहती है जिस से इन ज़रूरतों की पूर्ति होती है तथा यह ही उद्विकास का अर्थ होता है।”

हरबर्ट स्पैंसर (Herbert Spencer) के अनुसार, “विकास में बढ़ोत्तरी तत्त्वों का एकीकरण तथा उस से सम्बन्धित वह गति जिस के दौरान कोई तत्त्व एक अनिश्चित तथा असम्बन्धित समानता से निश्चित सम्बन्धित भिन्नता में बदल जाती है।”

इस तरह इन परिभाषाओं से यह स्पष्ट हो जाता है कि सामाजिक उविकास बाहरी दबाव के कारण नहीं बल्कि आन्तरिक शक्तियों के कारण होने वाले परिवर्तन हैं। अगस्ते काम्ते के अनुसार प्रत्येक समाज उद्विकास के तीन स्तरों में से होकर गुजरता है तथा वह हैं-

  1. धार्मिक स्तर (Theological Stage)
  2. अर्द्धभौतिक स्तर (Metaphysical Stage)
  3. वैज्ञानिक स्तर (Scientific Stage)

मार्गन का कहना था कि, “सभ्यता तथा समाज का विकास एक क्रम में हुआ है। सामाजिक उद्विकास को समझने के लिए हमें सामाजिक संस्थाओं, संगठनों के विभिन्न विकास में बढ़ोत्तरी के स्तरों को जानना ज़रूरी होता

हरबर्ट स्पैंसर (Spencer) के अनुसार, “सामाजिक जनसमूह की आम बढ़ोत्तरी तथा उसको मिलाने तथा दोबारा मिलाने की मदद से एकीकरण को प्रदर्शित करता है। समाज जाति का गैर जातियों में परिवर्तन, आम जनजातियों से लेकर पढ़े-लिखे राष्ट्रों जिन में सभी अंगों में काफ़ी प्रक्रियात्मक विभिन्नता है, को कई उदाहरणों से स्पष्ट किया जा सकता है। जैसे-जैसे विभेदीकरण तथा एकीकरण बढ़ते जाते हैं उसी तरह सामाजिक इकट्ठ अस्पष्ट होता है। उद्विकास निश्चित व्यवस्था को जन्म देता है जो धीरे-धीरे स्पष्ट होता है। प्रथाओं की जगह कानून ले लेते हैं जो स्थिरता प्राप्ति के कार्यों तथा संस्थाओं में लागू किए जाने पर ज्यादा विशिष्ट हो जाते हैं। सामाजिक इकट्ठ धीरेधीरे अपने विभिन्न अंगों की संरचना को एक-दूसरे से ज्यादा स्पष्ट रूप में अलग कर लेते हैं। बड़ा विशाल आकार निश्चितता की तरफ तरक्की होती है।”

स्पैंसर ने उद्विकास के चार निम्नलिखित नियम बताए हैं-

  • सामाजिक उद्विकास ब्रह्माण्ड (Universe) के विकास के नियम का एक सांस्कृतिक तथा मानवीय रूप होता है।
  • सामाजिक उद्विकास उसी तरह ही घटित होता है जैसे संसार की ओर बढोत्तरियां। (3) सामाजिक उद्विकास की प्रक्रिया बहुत ही धीमी होती है। (4) सामाजिक उद्विकास उन्नति वाला होता है।

मैकाइवर का कहना है कि, “जहां कहीं भी समाज के इतिहास में समाज के अंगों में बढ़ते हुए विशेषीकरण को देखते हैं उसे हम सामाजिक उद्विकास कहते हैं।”
(“Where ever in the history of society, we can see increasing specialization in different parts of society, we call it social evolution.”) ।
संक्षेप में हम कह सकते हैं कि आन्तरिक छुपी हुई वस्तुओं के द्वारा पाया गया परिवर्तन उद्विकास होता है।

विशेषताएं (Characteristics) –
1. उद्विकास का सम्बन्ध जीवित वस्तु या मनुष्यों में होने वाले परिवर्तन से होता है। स्पैंसर ने इसे जैविक उद्विकास कहा है। यह विकास सभी समाजों में समान रूप से विकसित रहता है। उदाहरणतः अमीबा (Amoeba) एक जीव है जिस के शरीर के सभी कार्य केवल सैल (cell) द्वारा पूरे किए जाते हैं। मनुष्य का शरीर जीव का ज्यादा विकसित रूप होता है जिसके विभिन्न कार्य विभिन्न अंगों द्वारा पूर्ण किए जाते हैं। जैविक विकास में जैसे जैसे बढ़ोत्तरी होती है, उसी तरह उस की प्रकृति भी जटिल होती जाती है।

2. सामाजिक उद्विकास निरंतर पाया जाने वाला परिवर्तन होता है। यह परिवर्तन लगातार चलता रहता है।

3. निरन्तरता के साथ सामाजिक उद्विकासीय परिवर्तन में निश्चित दिशा भी पायी जाती है क्योंकि यह केवल आकार में ही नहीं बल्कि संरचना में भी पाया जाता है। यह विकास निश्चित दिशा की तरफ इशारा करता है।

4. सामाजिक उद्विकास के ऊपर किसी प्रकार का बाहरी दबाव नहीं होता है बल्कि इस के अन्दरूनी गुण बाहर निकल आते हैं। परिवर्तन वस्तु में कई तत्त्व मौजूद होते हैं। इसलिए परिवर्तन इन के परिणामस्वरूप पाया जाता

5. अन्दर मौजूद तत्त्वों के द्वारा होने वाला परिवर्तन हमेशा बहुत ही धीमी गति से होता है। इस का कारण यह है कि अन्दर छूपे हुए तत्त्वों का हमें आसानी से पता नहीं लग सकता। प्रत्येक परिवर्तनशील वस्तु में आन्तरिक गुण मौजूद होते हैं।

6. उदविकासीय परिवर्तन साधारणत: से जटिलता की तरफ पाया जाता है। जैसे शुरू में मनुष्यों का समाज सरल था, धीरे-धीरे श्रम विभाजन तथा विशेषीकरण विकसित हुआ जिस ने मनुष्यों के समाज को जटिल अवस्था की तरफ परिवर्तित कर दिया।

इस तरह हम कह सकते हैं कि सामाजिक उद्विकास अस्पष्टता से स्पष्टता की तरफ परिवर्तन होता है। जैसे मनुष्यों के अंगों में परिवर्तन कुछ समय बाद स्पष्ट रूप से दिखाई देने लग जाता है। परिवर्तन की इस प्रकार की दिशा निश्चित होती है। यह वस्तु में पाए जाने वाले आन्तरिक तत्त्वों के कारण होती है।

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प्रश्न 2.
क्रान्ति की परिभाषाएं दें। इसकी विशेषताओं का वर्णन करें।
उत्तर-
क्रान्ति भी सामाजिक परिवर्तन की ही एक प्रकार है। इसके द्वारा समाज में इस तरह परिवर्तन होता है कि जिसका प्रभाव वर्तमान समय पर तो पड़ता है परन्तु भविष्य तक भी इसका प्रभाव रहता है। वास्तव में समाज में कई बार ऐसे हालात पैदा हो जाते हैं जिसके द्वारा समाज विघटन के रास्ते पर चल पड़ता है। ऐसे हालातों को खत्म करने के लिए समाज में क्रान्तिकारी परिवर्तन पैदा हो जाते हैं। यह क्रान्तिकारी परिवर्तन अचानक तथा एकदम होता है। इसके ऊपर बाहरी शक्तियों का भी प्रभाव पड़ता है।

क्रान्ति के द्वारा अचानक ही परिवर्तन हो जाता है जिससे समाज की संरचना ही बदल जाती है। प्रसिद्ध समाजशास्त्री कार्ल मार्क्स के अनुसार समाज अलग-अलग अवस्थाओं में से क्रान्तिकारी परिवर्तन की प्रक्रिया के परिणामों में से होकर गुजरता है। इस कारण एक सामाजिक अवस्था की जगह दूसरी सामाजिक अवस्था पैदा हो जाती है।

परिभाषाएं (Definitions)-

  • आगबर्न तथा निमकॉफ (Ogburn and Nimkoff) के अनुसार, “क्रान्ति संस्कृति में महत्त्वपूर्ण तथा तेज़ परिवर्तन को कहते हैं।”
  • गाए रोशर (Guy Rochar) के अनुसार, “क्रान्ति एक खतरनाक तथा ज़बरदस्त लोगों की बगावत होती है जिसका उद्देश्य सत्ता या शासन को उखाड़ देना तथा स्थिति विशेष में परिवर्तन करना होता है।”
  • किम्बल यंग (Kimball Young) के अनुसार, “राज्य शक्ति का राष्ट्रीय राज्य के अधीन नए ढंगों से सत्ता हथिया लेना ही क्रान्ति है।”

इस तरह इन परिभाषाओं को देखकर हम कह सकते हैं कि क्रान्ति सामाजिक संरचना में होने वाली अचनचेत प्रक्रिया तथा तेजी से होने वाला परिवर्तन है। इसमें वर्तमान सत्ता को उखाड़ कर फेंक दिया जाता है तथा नई सत्ता को बिठाया जाता है। क्रान्ति खून-खराबे वाली भी हो सकती है तथा इसमें हिंसा का प्रयोग ज़रूरी है। जो शक्ति हिंसा से प्राप्त की जाती है वह कई बार हिंसा से खत्म भी हो जाती है।

क्रान्ति की विशेषताएं (Characteristics of Revolution) –
1. अचानक परिणाम (Contingency Results)-क्रान्ति एक ऐसा साधन हैं जिसमें हिंसा का प्रयोग किया जाता है। यह किसी भी स्वरूप चाहे वह धार्मिक आर्थिक या राजनीतिक को धारण कर सकती है। इस क्रान्ति का परिणाम यह निकलता है कि सामाजिक व्यवस्था तथा संरचना में एकदम परिवर्तन आ जाता है। इस कारण सामाजिक क्रान्ति सामाजिक कद्रों-कीमतों में परिवर्तन करने का प्रमुख साधन है।

2. तेज़ परिवर्तन (Rapid Change)-क्रान्ति की एक विशेषता यह होती है कि इसके परिणामस्वरूप संस्कृति में दोनों हिस्सों, चाहे वह भौतिक हो या अभौतिक में परिवर्तन आ जाता है तथा क्रान्ति के कारण जो भी परिवर्तन होते हैं वह बहुत ही तेज़ गति से होते हैं। इस कारण समाज पूरी तरह बदल जाता है।

3. आविष्कार का साधन (Means of invention)-क्रान्ति एक ऐसा साधन है जिससे सामाजिक व्यवस्था को तोड़ दिया जाता है। इस सामाजिक व्यवस्था के टूटने के कारण बहुत-से नए वर्ग अस्तित्व में आ जाते हैं। इन नए वर्गों के अस्तित्व को कायम रखने के लिए बहुत-से नए नियम बनाए जाते हैं। इस तरह क्रान्ति के कारण बहुत-से नए वर्ग तथा नियम अस्तित्व में आ जाते हैं।

4. शक्ति का प्रतीक (Symbol of power)-क्रान्ति में शक्ति का प्रयोग ज़रूरी तौर पर होता है। राजनीतिक क्रान्ति तो खून-खराबे तथा कत्लेआम पर आधारित होती है जैसे कि 1789 की फ्रांस की क्रान्ति तथा 1917 की रूसी क्रान्ति। राज्य की सत्ता को पलटने के लिए हिंसा को साधन बनाया जाता है जिस कारण लूट-मार, कत्लेआम इत्यादि होते हैं। क्रान्ति के सफल या असफल होने में शक्ति का सबसे बड़ा हाथ होता है। यदि क्रान्ति करने वालों की शक्ति ज़्यादा होगी तो वह राज्य की सत्ता को पलट देंगे नहीं तो राज्य उनकी क्रान्ति को असफल कर देगा।

5. क्रान्ति एक चेतन प्रक्रिया है (Revolution is a conscious process)-क्रान्ति एक अचेतन नहीं बल्कि चेतन प्रक्रिया है। इसमें चेतन तौर पर प्रयास होते हैं तथा राज्य की सत्ता को पलटा जाता है। क्रान्ति के प्रयास काफ़ी समय से शुरू हो जाते हैं तथा वह पूरे वेग से क्रान्ति कर देते हैं। क्रान्तिकारियों को इस बात का पता होता है कि उनकी क्रान्ति के क्या परिणाम होंगे।

6. क्रान्ति सामाजिक असन्तोष के कारण होती है (Revolution is because of Social dissatisfaction)-क्रान्ति सामाजिक असन्तोष का परिणाम होती है। जब समाज में असन्तोष शुरू होता है तो शुरू में यह धीरे-धीरे उबलता है। समय के साथ-साथ यह तेज़ हो जाता है तथा जब यह असन्तोष बेकाबू हो जाता है तो यह क्रान्ति का रूप धारण कर लेता है। समाज का बड़ा हिस्सा वर्तमान सत्ता के विरुद्ध हो जाता है तथा यह असन्तोष क्रान्ति का रूप धारण करके सत्ता को उखाड़ देता है।

7. नई व्यवस्था की स्थापना (Establishment of new system) क्रान्ति में हिंसक या अहिंसक तरीके से पुरानी व्यवस्था को उखाड़ कर फेंक दिया जाता है तथा नई व्यवस्था को कायम किया जाता है। इसकी हम कई उदाहरणे देख सकते हैं जैसे कि 1799 की फ्रांस की क्रान्ति में लुई 16वें की सत्ता को उखाड़ कर नेशनल असैम्बली की सरकार बनाई गई थी तथा 1917 की रूसो क्रान्ति में ज़ार की सत्ता को उखाड़ कर बोल्शेविक पार्टी की सत्ता स्थापित की गई थी। इस तरह क्रान्ति से पुरानी व्यवस्था खत्म हो जाती है तथा नई व्यवस्था बन जाती है।

8. क्रान्ति की दिशा निश्चित नहीं होती (No definite direction of revolution) क्रान्ति की दिशा निश्चित नहीं होती। उदविकास में परिवर्तन की दिशा निश्चित होती है परन्तु क्रान्ति में परिवर्तन की दिशा निश्चित नहीं होती। यह परिवर्तन उन्नति की जगह पतन की तरफ भी जा सकता है तथा समाज की प्रगति उलट दिशा में भी जा सकती है।

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प्रश्न 3.
क्रान्ति के कारणों का वर्णन करो।
अथवा
क्रान्ति कौन-से कारणों की वजह से आती है ? .
उत्तर-
1. सामाजिक कारण (Social Causes)-बहुत-से सामाजिक कारण क्रान्ति के लिए ज़िम्मेदार होते हैं। समाजशास्त्रियों के अनुसार यदि समाज में प्रचलित रीति-रिवाज, परम्पराएं इत्यादि ठीक नहीं है तो वह क्रान्ति का कारण बन सकती है। प्रत्येक समाज में कुछ ऐसी प्रथाएं, परम्पराएं प्रचिलत होती हैं जो समाज की एकता तथा अखण्डता के विरुद्ध होती हैं जैसे भारत में 19वीं शताब्दी में सती प्रथा, बाल विवाह, विधवा विवाह न होना तथा 20वीं शताब्दी में दहेज प्रथा इत्यादि। कई बार क्रान्ति का उद्देश्य ही समाज में से इन प्रथाओं को खत्म करना होता है। इस तरह समाज में फैली कुछ प्रथाएं विघटन को उत्पन्न करती हैं। वेश्यावृत्ति जुआ, शराब इत्यादि के कारण व्यक्ति की नैतिकता खत्म हो जाती है। उसको इनके बीच समाज की मान्यताओं, कद्रों-कीमतों, नैतिकता इत्यादि का ध्यान ही नहीं रहता। इस तरह इनसे धीरे-धीरे समाज में विघटन फैल जाता है। जब यह विघटन अपनी सीमाएं पार कर जाता है तो समाज में क्रान्ति आ जाती है। इस तरह बहुत-से सामाजिक कारण होते हैं जिनके कारण समाज में क्रान्ति आ जाती है।

2. मनोवैज्ञानिक कारण (Psychological causes)-कई बार मनोवैज्ञानिक कारण भी क्रान्ति का मुख्य कारण बनते हैं। कई बार व्यक्ति या व्यक्तियों की मौलिक इच्छाओं की पूर्ति नहीं होती। वह इन इच्छाओं को अपने अन्दर ही खत्म कर लेते हैं परन्तु इच्छा की एक विशेषता होती है कि यह कभी भी ख़त्म नहीं होती। यह व्यक्ति के मन में सुलगती हुई चिंगारी के जैसी सुलगती रहती है। कुछ समय बाद किसी के इस चिंगारी को हवा देने से यह आग की तरह जल पड़ती है तथा आग का रूप धारण कर लेती है। इस तरह यह दबी हुई इच्छाएं क्रान्ति को उत्पन्न करती हैं। । कुछ समाजशास्त्रियों का कहना है कि व्यक्तियों में आवेग इकट्ठे होते रहे हैं अर्थात् व्यक्ति की सभी इच्छाएं कभी भी सम्पूर्ण नहीं होती हैं। वे व्यक्ति के मन में इकट्ठी होती रहती हैं। समय के साथ ये आवेग बन जाती हैं। अंत में ये आवेग इकट्ठे हो कर क्रान्ति का कारण बनते हैं।

इनके अतिरिक्त व्यक्तियों के अन्दर कुछ दोष, कुछ समस्याएं अचेतन रूप में पैदा हो जाती हैं तथा समय आने पर यह दोष अपना प्रभाव दिखाते हैं। प्रत्येक व्यक्ति में हिंसा की प्रवृत्ति होती है जो अचेतन रूप में ही व्यक्ति के मन के अन्दर पनपती रहती है। जब समय आता है तो यह हिंसा धमाके के साथ व्यक्ति में से निकलती है। जब क्रान्ति होती है तो लोग हिंसा पर उतर आते हैं। इस तरह व्यक्ति के अचेतन मन में भी क्रान्ति के कारण पैदा हो सकते हैं।

3. राजनीतिक कारण (Political Causes)-यदि हम इतिहास पर दृष्टि डालें तो हमें पता चलेगा कि साधारणतः सभी ही क्रान्तियों के कारण राजनीतिक रहे हैं तथा विशेषकर यह कारण वर्तमान राज्य की सत्ता के विरुद्ध होते हैं। बहुत बार राज्य की सत्ता इतनी ज्यादा निरंकुश हो जाती है कि अपनी मनमर्जी करने लग जाती है। वह लोगों की इच्छाओं का ध्यान भी नहीं रखती। आम जनता की इच्छाओं को दबा दिया जाता है। इच्छाओं के दबने के कारण जनता में असन्तोष फैल जाता है। धीरे-धीरे यह असन्तोष सम्पूर्ण समाज में फैल जाता है तथा यही असन्तोष समय आने से क्रान्ति बन जाता है।

इस तरह बहुत बार ऐसा होता है कि सरकारी अधिकारियों में भ्रष्टाचार फैल जाता है। वह अपने पद का फायदा अपनी जेबों को भरने में लगाते हैं तथा आम जनता की तकलीफों की तरफ कोई ध्यान नहीं देते हैं। आम जनता में उन सरकारी अधिकारियों के विरुद्ध असन्तोष फैल जाता है तथा वह इन अधिकारियों को उनके पदों से उतारने की कोशिश करते हैं तथा यह प्रयास क्रान्ति का रूप धारण कर लेते हैं।

कई देशों में सरकार किसी विशेष धर्म पर आधारित होती है तथा उस धर्म के लोगों को विशेषाधिकार देती है। कई बार इस कारण और धर्मों के लोगों में असन्तोष पैदा हो जाता है जिस कारण लोग ऐसी सरकार से मुक्ति प्राप्त करने के बारे में सोचने लग जाते हैं। उन का यह सोचना ही क्रान्ति का रूप धारण कर लेता है। इसके साथ ही यदि सरकार आम जनता के रीति-रिवाजों, परम्पराओं में दखल देने लग जाए तो लोग अपनी परम्पराओं को बचाने की खातिर सरकार के विरुद्ध विद्रोह कर देते हैं। 1857 का विद्रोह इन्हीं कुछ कारणों पर आधारित था।

आजकल के समाज में लोकतन्त्र का युग है। लोकतन्त्र में एक दल सत्ता में होता है तथा दूसरा सत्ता से बाहर। जो दल सत्ता से बाहर होता है वह आम जनता को सत्ताधारी दल के विरुद्ध भड़काता है तथा कई बार यह भड़काना ही क्रान्ति का रूप धारण कर लेता है।

4. आर्थिक कारण (Economic Causes)-कई बार आर्थिक कारण भी क्रान्ति के लिए ज़िम्मेदार होते हैं। मार्क्सवादी विचारधारा के अनुसार मनुष्यों के समाज का इतिहास वर्ग संघर्ष का इतिहास रहा है। मार्क्स के अनुसार हरेक समाज में दो वर्ग रहे हैं-पूँजीवादी वर्ग अर्थात् शोषक वर्ग तथा मजदूर वर्ग अर्थात् शोषित वर्ग। पूँजीपति वर्ग अपने पैसे तथा राजनीतिक सत्ता के बल पर हमेशा मजदूर वर्ग का शोषण करता आया है। इस शोषण के कारण मज़दूर वर्ग को दो समय का खाना भी मुश्किल से मिल पाता है। मज़दूरों तथा पूंजीपतियों में बहुत ज़्यादा आर्थिक अन्तर आ जाता है। शोषक अर्थात् पूँजीपति वर्ग ऐशो ईशरत का जीवन व्यतीत करता है तथा मजदूर वर्ग को मुश्किल से रोटी ही मिल पाती है। वह इस जीवन से छुटकारा पाना चाहता है। इस कारण धीरे-धीरे मज़दूर वर्ग में असन्तोष फैल जाता है जिस कारण वह क्रान्ति कर देते हैं तथा पूँजीपति वर्ग को उखाड़ देते हैं। इस तरह आर्थिक कारण भी लोगों को क्रान्ति के लिए मजबूर करते हैं।

इस तरह हम देखते हैं कि क्रान्ति एकदम होने वाली प्रक्रिया है जिससे समाज की संरचना तथा व्यवस्था एकदम ही बदल जाते हैं। क्रान्ति सिर्फ एक कारण के कारण नहीं होती बल्कि बहत-से कारणों की वजह से होती है। साधारणतः राजनीतिक कारण ही क्रान्ति के लिए ज़िम्मेदार होते हैं परन्तु और कारणों का भी इसमें महत्त्वपूर्ण हिस्सा होता है।

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प्रश्न 4.
सामाजिक विकास क्या होता है ? विस्तार सहित लिखो।
उत्तर-
सामाजिक परिवर्तन के अनेक रूप होते हैं। जैसे क्रम-विकास, प्रगति, क्रान्ति, विकास आदि। इस प्रकार विकास भी परिवर्तन के अनेकों रूपों में से एक है। ये सभी प्रक्रियाएं आपस में इतनी जुड़ी होती हैं कि इन्हें अलग करना बहुत कठिन है।

आजकल के समय में विकास शब्द को आर्थिक विकास के लिए उपयोग किया जाता है। व्यक्ति की आमदनी में बढ़ोत्तरी, पूंजी में बढ़ोत्तरी, प्राकृतिक साधनों का उपयोग, उत्पादन में बढ़ोत्तरी, उद्योग में बढ़ोत्तरी आदि कुछ ऐसे संकल्प हैं, जिनके बढ़ने को पूरे विकास के लिए उपयोग किया जाता है। परन्तु केवल इन संकल्पों में अधिकता को ही हम विकास नहीं कह सकते। समाज में परम्पराएं, संस्थाएं, धर्म, संस्कृति इत्यादि भी होते हैं। इनमें भी विकास होता है। यदि सामाजिक सम्बन्धों में विस्तार होता है पुरानी सामाजिक संरचना, आदतें, कद्रों-कीमतों विचारों में भी परिवर्तन आदि में भी विकास होता है। व्यक्ति की स्वतन्त्रता, समूह की आमदनी, नैतिकता, सहयोग इत्यादि में भी अधिकता होती है। इस तरह आर्थिक विकास को ही सामाजिक विकास माना जाता है व इस आधार पर अलग-अलग आधारों को देखना आसान होता है।

बोटोमोर (Botomore) के अनुसार, “आधुनिक युग में विकास शब्द का उपयोग दो प्रकार के समाजों में अन्तर दर्शाने की नज़र से किया जाता है। एक ओर तो ऐसे औद्योगिक समाज हैं, व दूसरी ओर वह समाज हैं जो पूरी तरह ग्रामीण हैं व जिनकी आय काफ़ी कम है।”

हॉबहाऊस (Hobhouse) के अनुसार, “समुदाय का विकास उस समय माना जाता है, जब किसी वस्तु की । मात्रा, कार्य सामर्थ्य व सेवा की नज़दीकी में अधिकता होती है।”

चाहे इन परिभाषाओं में विकास शब्द के अस्पष्ट अर्थ दिए हैं, परन्तु समाज शास्त्र में विकास ऐसी स्थिति को दर्शाता है जिसमें मनुष्य अपने लगातार बढ़ते ज्ञान तथा तकनीकी कुशलता से प्राकृतिक वातावरण के ऊपर नियन्त्रण करता जाता है तथा सामाजिक जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में आगे बढ़ता जाता है। विकास की

विशेषताएं (Characteristics of Development)-
1. विकास एक सर्वव्यापक प्रक्रिया है, जो कि प्रत्येक समाज में व्याप्त है। विकास नाम की प्रक्रिया आधुनिक समाजों में भी चल रही है। आज का आधुनिक समाज, पुरातन काल में होने वाले विकास का ही परिणाम है। पुरातन समाज के विकास के परिणामस्वरूप ही आधुनिक समाज हमारे सामने है। ज़मींदारी समाज से औद्योगिक समाज में आना विकास के कारण ही सम्भव हुआ।

2. विकास में एक वस्तु एक स्थिति से दूसरी स्थिति में परिवर्तित हो जाती है। यह परिवर्तन सही या गलत भी हो सकता है। इसलिए कहते हैं कि मानवीय विकास का सम्बन्ध दिन-प्रतिदिन परिवर्तन करने से एक स्थिति से दूसरी स्थिति की तरफ़ बढ़ना है।

3. विकास में केवल अच्छाई नहीं होती है बल्कि बुराई भी हो सकती है। इस तरह विकास में बुराई एवं अच्छाई दोनों का अस्तित्व होता है।

4. विकास सरलता से जटिलता की तरफ़ बढ़ने की प्रक्रिया है। यदि किसी भी वस्तु का विकास होगा तो वह सरलता से जटिलता की तरफ़ बढ़ेगी। इस प्रकार विकास एक जटिल प्रक्रिया है।

5. विकास में एक बदली हुई रूपरेखा को बनाना पड़ता है। इसमें उन सभी साधनों का ध्यान रखना पड़ता है, जो विकास की प्रक्रिया में सहायता करते हैं। इसलिए रूप-रेखा के निर्माण के लिए विकास के कार्यक्रम को निर्धारित करना पड़ता है। यदि हम कार्यक्रम को निर्धारित नहीं करेंगे तो विकास उल्टी दिशा की तरफ़ जा सकता है।

6. विकास केवल आर्थिक विकास ही नहीं होता, बल्कि वह प्रत्येक पक्ष चाहे वह सामाजिक, राजनैतिक, नैतिक पक्ष हो, सभी में होता है।

7. विकास की प्रक्रिया ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें सामाजिक एवं लैंगिक परिवर्तनों की पूरी जानकारी होना आवश्यक है।

8. विकास करने की कोशिशें हमेशा चलती रहती हैं। परन्तु कई बार ऐसा भी होता है, इस प्रक्रिया के कारण समाज के विकास के साथ-साथ व्यक्तियों का अपना विकास यानि आत्मविकास भी हो जाता है।

सामाजिक विकास के मापदण्ड (Measurement of Development) – कई समाज शास्त्रियों ने सामाजिक विकास के कई मापदण्ड दिये हैं, इनका मिला-जुला रूप इस प्रकार का होगा-

  • जब कानून की नज़रों में लोगों की समानता या बराबरी हो तो यह विकास का प्रतीक होता है।
  • जब लोगों को पढ़ाने-लिखाने या अनपढ़ता दूर करने के लिए कोई आन्दोलन चलाया जाये, तो यह सांस्कृतिक विकास का मापदण्ड है।
  • जब देश के सभी बालिगों को वोट देने का अधिकार प्राप्त हो जाये और देश में लोकतन्त्र की स्थापना हो जाये तो यह विकास का सूचक है।
  • यदि स्त्रियों को समान अधिकार दिये जाएं, और सभी लोगों को समान समझा जाये तो यह सामाजिक विकास का ही सूचक है।
  • जब समाज में धन या पूंजी का समान बंटवारा हो, तो यह आर्थिक विकास का सूचक माना जाता है।
  • जब समूह या समुदाय के प्रत्येक सदस्य को अपने विचार प्रकट करने, और कोई भी कार्य करने का अधिकार प्राप्त हो तो यह सामाजिक स्वतन्त्रता का सूचक है।
  • जब लोगों में सेवा की भावना या सहयोग की भावना बढ़े, तो यह सामाजिक नैतिकता का सूचक है।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 11 सामाजिक परिवर्तन

प्रश्न 5.
प्रगति के बारे में आप क्या जानते हैं ? इसकी विशेषताओं का वर्णन करो।
उत्तर-
प्रगति एक तरफ तो भौतिक विकास से सम्बन्धित है तथा दूसरी तरफ ज्ञान के नए विचारों से सम्बन्धित हैं। प्रगति अंग्रेजी भाषा के शब्द Progress का हिन्दी रूपान्तर है जोकि लातिनी भाषा के शब्द Progredior से लिया गया है। इस का अर्थ है आगे बढ़ना। प्रगति शब्द का अर्थ तुलनात्मक अर्थों में प्रयोग किया जाता है। जब हम यह कहते हैं कि परिवार आगे बढ़ रहा है तो इस बात का अर्थ हमें उस समय पता चलेगा जब हमें यह पता चलेगा कि वह किस दिशा में आगे बढ़ रहा है। यदि वह गरीबी से अमीरी की तरफ बढ़ रहा है तो इस की दिशा से हमें पता चलेगा कि यह परिवार प्रगति कर रहा है। यहां एक बात ध्यान देने योग्य है कि यदि हम किसी कि गिरावट देखें तो यह प्रगति नहीं होगी। उदाहरणत: जब एक अमीर व्यक्ति व्यापार में हानि हो जाने से गरीब हो जाता है तो उसे हम प्रगति नहीं कहेंगे। इसका कारण यह है कि प्रगति हमेशा किसी उद्देश्य की प्राप्ति से सम्बन्धित होती है। जब हम अपने लक्ष्य को प्राप्त कर लेते हैं तो हम कहते हैं कि हमने प्रगति की है। इस प्रकार इच्छुक उद्देश्यों को ही प्राप्ति को प्रगति का नाम दिया जाता है जैसे शिक्षा के क्षेत्र में प्रगति, आर्थिक क्षेत्र में प्रगति इत्यादि।

इस तरह हम कह सकते हैं कि प्रगति परिवर्तन तो ज़रूर होता है परन्तु यह किसी भी दिशा की तरफ नहीं हो सकता। इस का अर्थ यह है कि इसके द्वारा परिवर्तन सिर्फ इच्छुक दिशा की तरफ पाया जाता है। अलग-अलग समाजशास्त्रियों ने प्रगति की परिभाषाएं दी हैं जिनका वर्णन इस प्रकार है-

(1) ग्रूवज़ तथा मूर (Groves and Moore) के अनुसार, “प्रगति स्वीकृत कीमतों के आधार पर इच्छुक दिशा की तरफ गतिशील होने को कहते हैं।”

(2) आगबर्न तथा निमकॉफ (Ogburm and Nimkoff) के अनुसार, “उन्नति का अर्थ भलाई के लिए होने वाला परिवर्तन है, जिसमें मूल निर्धारण का आवश्यक तत्त्व है।”

(3) पार्क तथा बर्जस (Park and Burges) के अनुसार, “वर्तमान वातावरण में कोई परिवर्तन या अनुकूलन जो किसी व्यक्ति, समूह, संस्था या जीवन के किसी और संगठित स्वरूप के लिए जीवित रहना ज्यादा आसान कर दे, प्रगति का प्रतिनिधित्व करता है।” ___ इस तरह इन विशेषताओं के आधार पर हम कह सकते हैं कि प्रगति इच्छुक या स्वीकृत दिशा में पाया जाने वाला परिवर्तन होता है। इस परिवर्तन के बारे में हम पहले से ही अनुमान लगा सकते हैं।

प्रगति की विशेषताएं (Characteristics of Progress) –

1. प्रगति ऐच्छिक परिवर्तन होता है (Progress is desired change)-प्रगति ऐच्छिक परिवर्तन होता है क्योंकि हम जब चाहते हैं तो ही परिवर्तन लाया जा सकता है। इस परिवर्तन से समाज की भी प्रगति होती है। प्रगति में हमारा ऐच्छिक उद्देश्य कुछ भी हो सकता है तथा प्रगति द्वारा पाया गया परिवर्तन हमेशा लाभदायक होता है। वास्तव में हम कभी भी अपनी हानि करना नहीं चाहेंगे। इसलिए यह परिवर्तन समाज कल्याण के लिए होता है।

2. प्रगति तुलनात्मक होती है (Progress is comparative)—प्रत्येक समाज में प्रगति का अर्थ विभिन्नता वाला होता है। यदि एक समाज में हुई प्रगति से समाज का लाभ होता है तो यह आवश्यक नहीं है कि किसी दूसरे समाज को भी उसी तरह का ही लाभ प्राप्त होगा। वास्तव में प्रत्येक समाज के ऐच्छिक उद्देश्य अलग-अलग होते हैं क्योंकि प्रत्येक समाज की आवश्यकताएं अलग-अलग होती हैं। पहाड़ी इलाके के लोगों की आवश्यकताएं मैदानी इलाके की ज़रूरतों से अलग होती हैं। इस कारण इन के उद्देश्यों में भी भिन्नता पाई जाती है। इस तरह प्रगति का अर्थ तुलनात्मक अर्थों में प्रयोग किया जाता है। विभिन्न ऐतिहासिक कालों, स्थानों तथा इसको विभिन्न अर्थों में परिभाषित किया जाता है।

3. प्रगति परिवर्तनशील होती है (Progress is changeable)-प्रगति हमेशा अलग-अलग देशों तथा कालों से सम्बन्धित होती है परन्तु इस की धारणा हमेशा एक-सी ही नहीं रहती। इसका कारण यह है कि जिसको हम आजकल प्रगति का संकेत समझते हैं उसको दूसरे देशों में गिरावट का संकेत समझते हैं। इसका अर्थ यह है कि प्रगति हमेशा एक-सी ही नहीं रहती। यह समय, काल, देश, हालात इत्यादि के अनुसार बदलती रहती है। हो सकता है कि जो चीज़ पर प्राचीन समय में प्रगति का संकेत समझी जाती हो उसका आजकल कोई महत्त्व ही न हो। इस तरह प्रगति हमेशा परिवर्तनशील होती है तथा बदलती रहती है।

4. प्रगति सामूहिक होती है (Progress is concerned with group)-प्रगति कभी भी व्यक्तिगत नहीं होती। यदि समाज में कुछ व्यक्ति ऐच्छिक लक्ष्यों की प्राप्ति करते हैं तो ऐसी प्रक्रिया को प्रगति नहीं कहते। असल में प्रगति ऐसी धारणा है जिसमें बहुसंख्या में व्यक्ति के जीवन में पाया जाने वाला परिवर्तन प्रगति नहीं होता। इस तरह समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से जब सम्पूर्ण समूह किसी भी ऐच्छिक दिशा की तरफ आगे बढ़ता है तो उसे प्रगति कहते हैं।

5. प्रगति में लाभ की प्राप्ति ज्यादा होती है (More advantages are there in progress)-प्रगति में चाहे हम फायदा या हानि दोनों को ही देख सकते हैं परन्तु इसमें ज्यादातर लाभ की प्राप्ति होती है। यदि नुकसान की मात्रा अधिक हो तो उस को हम प्रगति नहीं कहते। उदाहरणत: जब हम सती प्रथा की बुराई को समाज में से खत्म करना चाहते थे तो हमें नुकसान उठाना पड़ा क्योंकि लोग इस प्रथा को खत्म नहीं करना चाहते थे। परन्तु सरकार ने ज़ोर लगाकर लोगों के आन्दोलन का मुकाबला करके इस बुराई को खत्म करने की पूरी कोशिश की। सरकार ने यह मुकाबला सामाजिक प्रगति को प्राप्त करने के लिए ही किया।

6. प्रगति में चेतन प्रयास होते हैं (Conscious efforts are there in progress)-प्रगति अपने आप नहीं पायी जाती बल्कि व्यक्ति प्रगति प्राप्त करने के लिए चेतन अवस्था में प्रयास करता है। इस कारण वह निर्धारित उद्देश्यों की पूर्ति कर लेता है। जैसे भारत में जनसंख्या की दर को कम करने के प्रयास किए जा रहे हैं ताकि देश प्रगति कर सके। यह सभी प्रयास चेतन अवस्था में ही किए जा रहे हैं। इनमें निर्धारित लक्ष्य होता है। उनको प्राप्त करने के लिए हम प्रत्येक तरह से प्रयास करते हैं। प्रगति की सफलता परिश्रम के ऊपर निर्भर करती है। इसमें कोई आन्तरिक गुण नहीं होते। जब हम परिश्रम करके सफलता प्राप्त कर लेते हैं तो हम कह सकते हैं कि प्रगति हुई है।

प्रगति में सहायक दशाएं (Conditions Conducive to Social Progress) –

बोगार्डस ने प्रगति के निम्नलिखित आधार बताए हैं-

  1. स्वस्थ वातावरण का बढ़ना।
  2. ज्यादा से ज्यादा लोगों का मानसिक तथा शारीरिक अरोग्य होना।
  3. सामूहिक कल्याण के लिए प्राकृतिक साधनों का ज्यादा प्रयोग।
  4. मनोरंजन तथा सेहत के साधनों में बढ़ोत्तरी।
  5. पारिवारिक इकट्ठ की मात्रा में बढ़ोत्तरी।
  6. रचनात्मक कार्यों में लगे व्यक्तियों को ज्यादा सुविधाएं।
  7. व्यापार तथा उद्योग में बढोत्तरी।
  8. सरकारी जीवन में बढ़ोत्तरी।
  9. ज्यादातर व्यक्तियों के जीवन स्तर में उन्नति।
  10. विभिन्न कलाओं का प्रसार।
  11. पेशेवर शिक्षा का प्रसार।
  12. जीवन के आध्यात्मिक पक्ष का विकास।

प्रत्येक परिवर्तन को हम प्रगति नहीं कह सकते। केवल विशेष दिशा में होने वाला परिवर्तन ही प्रगति होता है। वास्तव में प्रगति में सहायक दशाओं में भी परिवर्तन आते रहते हैं क्योंकि प्रत्येक समाज की समस्याएं समय के साथ-साथ बदलती रहती हैं। जैसे जब एक आदमी तथा औरत का विवाह होता है तो उनकी इच्छाएं सीमित होती हैं तथा वह उनको प्राप्त करने में व्यस्त हो जाते हैं। जब बच्चे पैदा हो जाते हैं तो वह नई समस्याओं का सामना करने को जुट जाते हैं। इस तरह प्रगति की सहायक दशाएं निश्चित नहीं होतीं। कुछ एक सहायक दशाओं का वर्णन निम्नलिखित है-

1. प्रगति के लिए समाज के सभी सदस्यों को समान मौके प्राप्त होने चाहिएं। यदि हम समाज के सदस्यों के साथ किसी भी आधार पर भेदभाव करेंगे तो प्रगति की जगह समाज में संघर्ष की स्थिति पैदा हो सकती है।

2. प्रगति के लिए जनसंख्या भी सीमित होनी चाहिए क्योंकि ज्यादा जनसंख्या के साथ जितनी मर्जी कोशिश की जाए तो भी हम उद्देश्यों को प्राप्त करने में सफलता हासिल नहीं कर सकते।

3. सामाजिक प्रगति के लिए शिक्षा का प्रसार भी सहायक होता है क्योंकि यदि समाज में साक्षर लोगों की संख्या ज्यादा होगी तो वह प्रगति को जल्दी अपनाएंगे। इसलिए शिक्षा के प्रसार को बढ़ाना ज़रूरी होता है।

4. स्वस्थ व्यक्तियों का होना भी प्रगति के लिए सहायक होता है क्योंकि अगर व्यक्ति शारीरिक तथा मानसिक पक्ष से स्वस्थ होंगे तो चेतन प्रयत्नों के साथ वह समाज के उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए पूरा जोर लगाएंगे। स्वस्थ व्यक्तियों के लिए उनकी ज़रूरतों का पूरा होना भी ज़रूरी होता है क्योंकि गरीबी, बेरोज़गारी इत्यादि के समय प्रगति करना मुश्किल होता है।

समाज में यदि शान्तमयी वातावरण होगा तो समाज ज्यादा प्रगति करेगा क्योंकि प्रगति के रास्ते में कोई रुकावट नहीं आएगी। तकनीकी तथा औद्योगिक उन्नति का होना भी प्रगति के लिए जरूरी होता है। व्यक्तियों में आत्म विश्वास भी प्रगति के लिए ज़रूरी होता है। हाबहाऊस ने जनसंख्या, कार्य कुशलता, स्वतन्त्रता तथा आपसी सेवा की भावना को सामाजिक प्रगति का आधार बताया है।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 11 सामाजिक परिवर्तन

सामाजिक परिवर्तन PSEB 11th Class Sociology Notes

  • परिवर्तन प्रकृति का नियम है। इस संसार में कोई भी ऐसी वस्तु नहीं है जिसमें परिवर्तन न आया हो। प्रकृति भी स्वयं में समय-समय पर परिवर्तन लाती रहती है।
  • जब समाज के अलग-अलग भागों में परिवर्तन आए तथा वह परिवर्तन अगर सभी नहीं तो समाज के अधिकतर लोगों के जीवन को प्रभावित करे तो उसे सामाजिक परिवर्तन कहा जाता है। इसका अर्थ है कि समाज के लोगों के जीवन जीने के तरीकों में संरचनात्मक परिवर्तन आ जाता है।
  • सामाजिक परिवर्तन की बहुत सी विशेषताएं होती हैं जैसे कि यह सर्वव्यापक प्रक्रिया है, अलग-अलग समाजों में परिवर्तन की गति अलग होती है, यह समुदायक परिवर्तन है, इसके बारे में निश्चित भविष्यवाणी नहीं की जा सकती, यह बहुत सी अन्तक्रियाओं का परिणाम होता है, यह नियोजित भी हो सकता है तथा अनियोजित भी इत्यादि।
  • सामाजिक परिवर्तन में बहुत से प्रकार होते हैं जैसे कि उद्विकास, विकास, प्रगति तथा क्रान्ति। बहुत बार इन शब्दों को एक-दूसरे के लिए प्रयोग कर लिया जाता है परन्तु समाजशास्त्र में यह सभी एक-दूसरे के बहुत ही अलग होते हैं।
  • उद्विकास का अर्थ है आन्तरिक तौर पर क्रमवार परिवर्तन। इस प्रकार का परिवर्तन काफ़ी धीरे-धीरे होता है जिससे सामाजिक संस्थाएं साधारण से जटिल हो जाती हैं।
  • विकास भी सामाजिक परिवर्तन का ही एक पक्ष है। जब किसी वस्तु में परिवर्तन आए तथा वह परिवर्तन ऐच्छिक दिशा में हो तो इसे विकास कहते हैं। अलग-अलग समाजशास्त्रियों ने विकास के अलग-अलग आधार दिए हैं।
  • प्रगति सामाजिक परिवर्तन का एक अन्य प्रकार है। इसका अर्थ है अपने उद्देश्य की प्राप्ति की तरफ बढ़ना।
    प्रगति अपने उद्देश्यों की प्राप्ति करने वाले यत्नों को कहते हैं। जो निश्चित है तथा जिसे सामाजिक कीमतों की तरफ से भी सहयोग मिलता है।
  • क्रान्ति सामाजिक परिवर्तन का एक अन्य महत्त्वपूर्ण प्रकार है। क्रान्ति से समाज में अचानक तथा तेज़ गति से परिवर्तन आते हैं जिससे समाज की प्राचीन संरचना खत्म हो जाती है तथा नई संरचना सामने आती है। कई बार मौजूदा संरचना के विरुद्ध जनता में इतना असंतोष बढ़ जाता है कि वह व्यवस्था के विरुद्ध अचानक खड़े हो जाते हैं। इसे क्रान्ति कहते हैं। सन् 1789 में फ्रांस में ऐसा ही परिवर्तन आया था।
  • सामाजिक परिवर्तन की दिशा तथा गति को बहुत से कारक प्रभावित करते हैं जैसे कि प्राकृतिक कारक, विश्वास तथा मूल्य, समाज सुधारक, जनसंख्यात्मक कारक, तकनीकी कारक, शैक्षिक कारक इत्यादि।
  • प्रसार (Diffusion)-वह प्रक्रिया जिससे सांस्कृतिक तत्व एक संस्कृति से दूसरी संस्कृति तक फैल जाते हैं।
  • आविष्कार (Innovation)-नए विचारों, तकनीक का सामने आना तथा मौजूदा विचारों तथा तकनीकों का बेहतर इस्तेमाल।
  • सामाजिक परिवर्तन (Social Change)—सामाजिक संरचना तथा सामाजिक व्यवस्था के कार्यों में आए परिवर्तन।
  • प्रगति (Progress)—वह परिवर्तन जिससे हम अपने उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए ऐच्छिक दिशा की तरफ बढ़ते हैं।

हैंडबाल (Hand Ball) Game Rules – PSEB 11th Class Physical Education

Punjab State Board PSEB 11th Class Physical Education Book Solutions हैंडबाल (Hand Ball) Game Rules.

हैंडबाल (Hand Ball) Game Rules – PSEB 11th Class Physical Education

याद रखने योग्य बातें (TIPS TO REMEMBER)

  1. टीम के लिए खिलाड़ियों की गिनती = 12 (4 = 16) (7 + 5)
  2. टीम में खिलाड़ियों की संख्या (कोर्ट में) = 10
  3. गोल रक्षकों की संख्या = 2
  4. एक समय खेल में खिलाड़ी खेलते हैं = 7
  5. गेंद की परिधि = 58 सैं०मी०-60 सैं०मी० पुरुषों के लिए 54 सैं०मी०-56 सैं०मी० महिलाओं के लिए
  6. गेंद का भार पुरुषों के लिए = 425 से 475 ग्राम
  7. गेंद का भार महिलाओं के लिए = 325 से 375 ग्राम
  8. हैंडबाल खेल का समय पुरुषों के लिए = 30-10-30
  9. हैंडबाल खेल का समय महिलाओं = 25-10-25 के लिए
  10. हैंडबाल खेल में अधिकारी = 2 रैफ़री, 1 स्कोरर, 1 टाइम कीपर
  11. गोल पोस्ट के बीच गोल लाइन की चौड़ाई = 8 सैं०मी०
  12. 8 से 14 वर्ष के लड़के और लड़कियों के लिए = 290 से 330 ग्राम बाल का वज़न
  13. 8 से 14 वर्ष के बच्चों के लिए बल की परिधि = 50 से 52 सैं०मी०
  14. खेल के मैदान की ल. चौ. = 40 मी., 20 मी.
  15. गोल क्षेत्र = 6 मी.
  16. फ्री थ्रो क्षेत्र = 9 मी.
  17. पैनल्टी क्षेत्र = 7 मी.
  18. गोल कीपर बाधा लाइन = 4 मी.
  19. खिलाड़ियों का वैकल्पिक स्थान = केन्द्रीय रेखा से दोनों और 4.5 मी.
  20. मार्किग लाइन की चौ. = 5 सेटीमीटर व गोल लाइन 8 सैंटीमीटर।
  21. गोल पोस्ट की ल. × चौ. = 3 मी. × 2 मी.
  22. अतिरिक्ति समय = 5-1.5 मिंट
  23. बॉल को अधिक से अधिक पकड़ कर रखने का समय = 3 सेंकड
  24. बॉल पकड़ने के उपरांत अधिक्तम कदमों की संख्या = 3 कदम
  25. टाइम आऊट की गिनती = कुल तीन

हैंडबाल (Hand Ball) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education

हैंडबाल की संक्षेप रूप-रेख (Brief outline of the Handball)

  1. हैंडबाल का खेल दो टीमों के मध्य खेला जाता है।
  2. हैंडबाल का खेल सैंटर लाइन से दूसरे को पास देकर शुरू होता है।
  3. हैंडबाल का समय पुरुषों के लिए 30-10-30 मिनट का होता है तथा स्त्रियों के लिए 25-10-25 मिनट का होता
  4. एक टीम के कुल खिलाड़ी 12 होते हैं जिनमें से 7 खिलाड़ी खेलते हैं तथा शेष 5 खिलाड़ी बदलवे (Substitutes) होते हैं।
  5. खिलाड़ी को खेल के मध्य किसी समय भी बदला जा सकता है।
  6. हैंडबाल के खेल में दो-दो टाइम आऊट हो सकते हैं। टाइम आऊट का समय एक मिनट का होता है।
  7. यदि किसी खिलाड़ी को चोट लग जाए तो रैफरी की आज्ञानुसार खेल को रोका जा सकता है तथा आवश्यकतानुसार बदलवां (Substitutes) खिलाड़ी मैदान में आ जाता है।
  8. हैंडबाल के बाल को लेकर दौड़ना फाऊल होता है।
  9. बाल का भार पुरुषों के लिए 475 ग्राम तथा स्त्रियों के लिए 425 ग्राम होता है।
  10. बाल का घेरा 58 से 60 सैंटी मीटर तक होता है।
  11. खेल के समय बाल बाहर चला जाये तो विरोधी टीम को उसी स्थान से थ्रो मिल जाती है।
  12. खेल में धक्का देना फाऊल होता है।
  13. हैंडबाल के खेल में फस्ट रैफ़री तथा सैकिण्ड रैफ़री होता है।
  14. खेल के मैदान की लम्बाई 40 मीटर तथा चौड़ाई 20 मीटर होती है।
  15. गोल कीपर बाहर वाली D से बाहर नहीं जा सकता।
  16. हैंडबाल के खेल में दो D होते हैं।
  17. यदि कोई खिलाड़ी बाल लेकर D की ओर जा रहा हो तो विरोधी खिलाड़ी उसकी बाजू पकड ले तो रैफरी पैनल्टी दे देता है।
  18. प्रत्येक खिलाड़ी गोल कीपर बन सकता है।
  19. जो टीम अधिक गोल कर लेती है उसे विजेता घोषित किया जाता है।
  20. रैफ़री खिलाड़ी को दो वार्निंग देकर खेल में से दो मिनट के लिए बाहर निकाल सकता है।
  21. गोल क्षेत्र में गोलकीपर के अतिरिक्त कोई प्रवेश नहीं कर सकता।
  22. D में से किया गोल बे-नियम होता है।

HAND BALL GROUND
हैंडबाल (Hand Ball) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education 1
3 Goal (Dimension is in cms)
हैंडबाल (Hand Ball) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education 2

हैंडबाल (Hand Ball) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education

PSEB 11th Class Physical Education Guide हैंडबाल (Hand Ball) Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
हैंडबाल खेल के मैदान की लम्बाई तथा चौड़ाई लिखें।
उत्तर-
हैंडबाल खेल के मैदान की लम्बाई 40 मीटर तथा चौड़ाई 20 मीटर होती है।

प्रश्न 2.
हैंडबाल का गोल क्षेत्र लिखें।
उत्तर-
हैंडबाल का गोल क्षेत्र 6 मी. होता है।

प्रश्न 3.
हैंडबाल का पैनल्टी क्षेत्र लिखें।
उत्तर-
7 मी.

हैंडबाल (Hand Ball) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education

प्रश्न 4.
हैंडबाल के मैच में पुरुषों के लिए बाल का भार कितना होता है ?
उत्तर-
425 से 475 ग्राम।

प्रश्न 5.
हैंडबाल के मैच में टाइम आऊट की संख्या लिखें।
उत्तर-
कुल तीन।

प्रश्न 6.
हैंडबाल के मैच में कुल कितने अधिकारी होते हैं ?
उत्तर-
रैफरी = 2, स्कोरर = 1, टाइम कीपर =1

हैंडबाल (Hand Ball) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education

Physical Education Guide for Class 11 PSEB हैंडबाल (Hand Ball) Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
हैंडबाल खेल क्या है ? खेल में कितने खिलाड़ी होते हैं ?
उत्तर-
हैंडबाल टीम खेल खेल परिचय (Introduction of the Game) हैंडबाल एक टीम खेल है। इसमें एक-दूसरे के विरुद्ध दो टीमें खेलती हैं। एक टीम में 12 खिलाड़ी होते हैं जिनमें 10 कोर्ट खिलाड़ी (Court Players) और दो गोल रक्षक (Goal keepers) होते हैं, परन्तु एक समय में सात से अधिक खिलाड़ी मैदान में नहीं उतरते। इसमें से 6 कोर्ट खिलाड़ी होते हैं और एक गोल रक्षक होता है। शेष 5 खिलाड़ी स्थानापन्न Substitutes होते हैं। एक खिलाड़ी चाहे तो खेल में सम्मिलित हो जाए या किसी समय उसका स्थान स्थानापन्न खिलाड़ियों में से दिया जा सकता है। गोल क्षेत्र में गोल रक्षक के सिवाए कोई भी प्रविष्ट नहीं हो सकता।
रैफ़री के थ्रो ओन (Throw on) के लिए सीटी बजाने के साथ ही खेल कोर्ट के मध्य में से आरम्भ की जाएगी।

प्रत्येक टीम विरोधी टीम के गोल में पैर डालने का प्रयास करती है और अपने गोल को विरोधियों के आक्रमणों से सुरक्षित रखने की कोशिश करती है।
गेंद को हाथों से खेला जाता है, परन्तु इसे घुटनों या इनसे ऊपर शरीर के किसी भाग से स्पर्श किया जा सकता है तथा खेला जा सकता है। केवल गोल रक्षक की सुरक्षा के लिए अपने गोल क्षेत्र में गेंद को शरीर के सभी भागों से स्पर्श कर सकता है।

खिलाड़ी भागते, चलते या खड़े होते हुए एक हाथ से बार-बार गेंद को ठप्पा मार कर उछाल सकते हैं। गेंद को उछालने के बाद पुनः पकड़ कर खिलाड़ी इसे अपने हाथों में लिए आगे तो बढ़ सकता है, परन्तु तीन कदम से अधिक नहीं। गेंद को अधिकतम 3 सैंकिंड तक पकड़ कर रखा जा सकता है।

गोल होने के पश्चात् गेम कोर्ट के मध्य में से थ्रो-इन के साथ पुनः आरम्भ होगी। थ्रो-आन उस टीम का खिलाड़ी करेगा जिसके विरुद्ध गोल अंकित हुआ है। मध्य रेखा के ऊपर पांव रख कर पास देने पर खेल प्रारम्भ होगा। इस अवसर पर विरोधी खिलाड़ी इच्छानुसार कहीं पर भी खड़े रह सकते हैं।

अर्द्ध-अवकाश (Half time) के पश्चात् गोल और थ्रो-आन में परिवर्तन किया जाएगा। उस टीम को जो अधिक संख्या में गोल कर लेती है विजयी घोषित किया जाता है। यदि बाल मैदान के साइड से बाहर जाती है तो रेखा को काट कर थ्रो की जाती है। यदि दोनों टीमों द्वारा किए गए गोलों की संख्या समान हो अथवा कोई भी गोल न हो सके तो खेल अनिणीत (Drawn) होगी। बराबर रहने की स्थिति में मैच का फैसला पैनल्टी थ्रो द्वारा किया जाता है।

प्रत्येक खेल का आयोजन दो रैफरियों के द्वारा किया जाता है जिसको एक स्कोरर और एक टाइम कीपर सहायता प्रदान करते हैं। रैफ़री खेल के नियमों को लागू करते हैं। रैफ़री खेल के क्षेत्र में प्रविष्ट होने के क्षण से लेकर खेल के अन्त तक खेल के संचालक होते हैं।

हैंडबाल (Hand Ball) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education

प्रश्न 2.
हैंडबाल खेल का क्षेत्र, गोल, गेंद, खिलाड़ी, गोल क्षेत्र, गोल थ्रो, पैनल्टी थो के बारे में लिखें।
उत्तर-
खेल का क्षेत्र (The Playing Area)-खेल का क्षेत्र दो गोल-क्षेत्रों में विभाजित होता है तथा खेल का कोर्ट आयताकार होता है जिसकी लम्बाई 40 मीटर और चौड़ाई 20 मीटर होती है। विशेष परिस्थितियों में खेल का क्षेत्र 38-44 मीटर लम्बा तथा 18-22 मीटर चौड़ा हो सकता है।

गोल (Goal)—प्रत्येक गोल रेखा के मध्य में गोल होंगे। एक गोल में 2 ऊंचे खड़े स्तम्भ होंगे जो क्षेत्र के कोनों से समान दूरी पर होंगे। स्तम्भ एक-दूसरे से 3 मीटर की दूरी पर होंगे तथा इनकी ऊंचाई 2 मीटर होगी। ये मज़बूती से भूमि में जकड़े होंगे तथा उन्हें एक क्षैतिज क्रॉस बार (Horizontal Cross Bar) द्वारा परस्पर अच्छी तरह मिलाया जाएगा। गोल रेखा का बाहरी सिरा तथा गोल पोस्ट का पिछला सिरा एक पंक्ति में होगा। स्तम्भ तथा क्रास बार वर्गाकार होंगे जिनका आकार 8 सैंटीमीटर × 8 सैंटीमीटर होगा। ये लकड़ी, हल्की धातु या संशलिष्ट पदार्थ के बने होंगे जिनकी सभी साइडों पर 2 रंग किए होंगे जो पृष्ठभूमि में प्रभावशाली ढंग से रखे हों।

प्रत्येक गोल क्षेत्र से 6 मीटर दूर तथा गोल रेखा के समानान्तर 3 मीटर लम्बी रेखा अंकित करके बनाया जाता है। इस रेखा के सिरे चौथाई-वृत्तों द्वारा गोल रेखा से मिले होंगे। इन वृत्तों का अर्द्ध-व्यास गोल स्तम्भों के आन्तरिक कोने के पीछे से मापने पर 6 मीटर होगा। यह रेखा गोल क्षेत्र रेखा (Goal area line) कहलाती है।

गेंद (The Ball)—गेंद गोलाकार (Spherical) होनी चाहिए जिसमें एक रबड़ का ब्लैडर हो और इसका बाहरी खोल एक रंग के चमड़े या किसी एक रंग के संश्लिष्ट पदार्थ (Synthetic meterial) का बना हो। बाहरी खोल चमकदार या फिसलने वाला न हो, गेंद में बहुत ज्यादा हवा नहीं भरी होनी चाहिए। पुरुषों तथा नवयुवकों के लिए गेंद का भार 475 ग्राम से अधिक और 425 ग्राम से कम नहीं होना चाहिए। उसकी परिधि 58 सैंटीमीटर से 60 सैंटीमीटर होनी चाहिए। सभी नवयुवक तथा जूनियर लड़कों के लिए इसका भार 400 ग्राम से अधिक तथा 325 ग्राम से कम नहीं होना चाहिए। इसकी परिधि 54 से 56 सैं० मी० तक होनी चाहिए।

खिलाड़ी (The Players)—प्रत्येक टीम में 12 खिलाड़ी होते हैं जिनमें से 10 कोर्ट खिलाड़ी और 2 गोलकीपर होते हैं। इनमें से एक समय पर अधिकतम 7 खिलाड़ी मैदान में उतर सकते हैं जिनमें से 6 कोर्ट खिलाड़ी और एक गोलकीपर होंगे।

खेल की अवधि (The Duration of the Game)—पुरुषों के लिए 30-30 मिनट की दो समान अवधि में खेला जाएगा जिनके बीच 10 मिनट का मध्यान्तर होता है।
नोट-टूर्नामैंटों में खेल बिना मध्यान्तर के 15-15 मिनट की दो समान अवधि में खेला जाएगा।

स्त्रियों और जूनियर लड़कों के लिए खेल 25-25 मिनट की दो समान अवधि में खेला जाएगा जिनके बीच 10 मिनट का मध्यान्तर होता है।
गोल (Goal)-प्रत्यक्ष रूप से थ्रो ऑन करके विपक्षियों के विरुद्ध गोल नहीं किया जा सकता।
गेंद का खेलना (Playing the Ball) निम्नलिखित की अनुमति होगी
गेंद को रोकना, पकड़ना, फेंकना, उछालना या किसी भी ढंग से या किसी भी दिशा में हाथ (हथेलियां या खुले हाथ), भुजाओं, सिर, शरीर या घुटनों आदि का प्रयोग करते हुए गेंद पर प्रहार करना।

जब गेंद ज़मीन पर पडी हो तो इसे अधिकतम 3 सैकिण्ड तक पकड़े रखना, गेंद को पकड़ कर अधिकतम 3 कदम लेना।
गोल क्षेत्र (The Goal Area)-केवल गोल रक्षक को ही गोल क्षेत्र में प्रविष्ट होने या रहने की अनुमति होती है। गोलकीपर को इनमें प्रविष्ट हुआ माना जाएगा, यदि कोई खिलाड़ी इसे किसी भी प्रकार से स्पर्श कर लेता है। गोल क्षेत्र में गोल रेखा (Goal area line) सम्मिलित होती है।
गोल क्षेत्र में प्रविष्ट होने के निम्नलिखित दण्ड (Penalties) हैं—

  1. फ्री-थ्रो जब कोर्ट खिलाड़ी के अधिकार में गेंद हो।
  2. फ्री-थ्रो जब कोर्ट खिलाड़ी के अधिकार में गेंद न हो। परन्तु उसने गोल-क्षेत्र में प्रविष्ट हो कर साफ लाभ प्राप्त किया होता है।
  3. पैनल्टी-थ्रो यदि रक्षात्मक टीम का कोई खिलाड़ी जान-बूझ कर और स्पष्ट रूप से सुरक्षा के लिए गोल क्षेत्र में प्रविष्ट हो जाता है।

गोल रक्षक (The Goal Keeper)—गोल रक्षक को अनुमति होगी—

  1. रक्षात्मक कार्य में अपने गोल क्षेत्र में गेंद को अपने शरीर के सभी भागों में स्पर्श करने की।
  2. गोल क्षेत्र के बिना किन्हीं प्रतिबन्धों के गेंद के साथ इधर-उधर चलने की।
    हैंडबाल (Hand Ball) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education 3
  3. बिना गेंद के गोल क्षेत्र में दौड़ने को, कोर्ट में वह कोर्ट खिलाड़ियों के नियमों का अनुसरण करेगा।

स्कोर (Scoring)—गोल उस समय स्कोर हुआ माना जाता है जब गेंद विरोधियों की गोल रेखा से गोल पोस्टों तथा क्रॉस बार के नीचे गुज़र जाता है। बशर्ते कि गोल करने के लिए स्कोर करने वाले खिलाड़ी या उसकी टीम के खिलाड़ियों द्वारा नियमों का उल्लंघन न किया गया हो।
थ्रो-इन (Throw-in) यदि सारी गेंद भूमि पर या वायु में CATCHING THE BALL साइड लाइन से बाहर चली जाती है तो खेल थ्रो-इन द्वारा पुनः आरम्भ की जाएगी।

थ्रो-इन उस टीम के विरोधी खिलाड़ियों द्वारा ली जाएगी जिसने अन्तिम बार गेंद को स्पर्श किया हो।
थ्रो-इन उसी बिन्दु से ली जाएगी जहां से गेंद ने साइड रेखा को पार किया हो।
हैंडबाल (Hand Ball) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education 4
कार्नर थो (Corner Throw)—यदि भूमि पर या वायु में सारी गेंद रक्षात्मक टीम के खिलाड़ी द्वारा अन्तिम बार स्पर्श किए जाने से गोल के बाहर गोल रेखा के ऊपर से गुज़र जाती है तो आक्रामक टीम को एक कार्नर थ्रो दी जाएगी। यह नियम गोल रक्षक पर अपने ही गोल क्षेत्र में लागू नहीं होता।

कोर्ट रैफ़री द्वारा सीटी बजाने के तीन सैकेंड के अन्दर-अन्दर कार्नर थ्रो गोल को उस साइड के इस बिन्दु से ली जाएगी जहां गोल रेखा तथा स्पर्श रेखा (Touch line) मिलती है, और जहां से गेंद बाहर निकली थी।
रक्षक टीम के खिलाड़ी गोल क्षेत्र रेखा के साथ ग्रहण कर सकते हैं।
हैंडबाल (Hand Ball) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education 5
गोल-थ्रो (Goal throw)—गोल-थ्रो निम्नलिखित अवस्थाओं में दी जाएगी—

  1. यदि सारी गेंद गोल से बाहर भूमि पर वायु में गोल रेखा के ऊपर से गुज़र जाती है जिसे अन्तिम बार आक्रामक टीम के खिलाड़ियों या गोल क्षेत्र के रक्षक टीम के गोलकीपर ने स्पर्श किया हो।
    हैंडबाल (Hand Ball) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education 6
  2. यदि थ्रो-ऑन द्वारा गेंद सीधी विरोधी टीम में चली जाती है।

फ्री-थो (Free Throw)-निम्नलिखित अवस्थाओं में फ्री-थ्रो दी जाती है—

  1. खेल के क्षेत्र में ग़लत ढंग से प्रविष्ट होने पर या छोड़ने पर।
  2. ग़लत थ्रो ऑन करने पर।
  3. नियमों का उल्लंघन करने पर।
  4. जानबूझ कर गेंद को साइड-लाइन से बाहर रोकने पर।

पैनल्टी थ्रो (Penalty Throw)—पैनल्टी थ्रो दी जाएगी—

  1. अपने ही अर्द्धक में नियमों के गम्भीर उल्लंघन करने पर।
  2. यदि कोई खिलाड़ी रक्षा के उद्देश्य से जान-बूझ कर अपने गोल क्षेत्र में प्रविष्ट होता है।
  3. यदि कोई खिलाड़ी जान-बूझ कर गेंद को अपने गोल क्षेत्र में धकेल देता है और गेंद गोल का स्पर्श कर लेती है।
  4. यदि गोल रक्षक गेंद को उठा कर अपने गोल क्षेत्र में जाता है।
  5. यदि कोर्ट के विरोधी अर्द्धक में गोल करने की स्पष्ट सम्भावना गोल रक्षक द्वारा नष्ट कर दी जाती है।
  6. गोल रक्षक के ग़लत प्रतिस्थापन्न (Substitution) पर।

पैनल्टी थ्रो के अवसर पर रैफ़री टाइम आऊट लेकर पैनल्टी थ्रो लगवाने के लिए सीटी बजाएगा जिसके साथ खेल के समय की शुरुआत हो जाएगी।
हैंडबाल (Hand Ball) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education 7
Goal Keeper’s Position for Preventing Scoring

अधिकारी (Officials) हैंडबाल की खेल में निम्नलिखित अधिकारी नियुक्त किए जाते हैं—

  1. रैफ़री = 1
  2. सैकिंड रैफरी = 1
  3. टाइम कीपर। = 1

निर्णय (Decisions)—जो टीम अधिक गोल कर देती है उसे विजयी घोषित किया जाता है।

PSEB 11th Class History Solutions उद्धरण संबंधी प्रश्न

Punjab State Board PSEB 11th Class History Book Solutions उद्धरण संबंधी प्रश्न.

PSEB 11th Class History Solutions उद्धरण संबंधी प्रश्न

Unit 1

(1)

नीचे दिए गए उद्धरणों को ध्यानपूर्वक पढ़िये और अंत में दिए गए प्रश्नों के उत्तर सावधानीपूर्वक लिखिए।
सिन्धु घाटी की सभ्यता से हमारा अभिप्राय उस प्राचीन सभ्यता से है जो सिन्धु नदी की घाटी में फली-फूली। इस सभ्यता के लोगों ने नगर योजना, तकनीकी विज्ञान, कृषि तथा व्यापार के क्षेत्र में पर्याप्त प्रतिभा का परिचय दिया।
श्री के० एम० पानिक्कर के शब्दों में “सैंधव लोगों ने उच्चकोटि की सभ्यता का विकास कर लिया था।” (“A very high state of civilization had been reached by the people of the Indus.”)
यदि गहनता से सिन्धु घाटी की सभ्यता का अध्ययन किया जाए तो इतिहास की अनेक गुत्थियां सुलझाई जा सकती हैं। सिन्धु घाटी का धर्म आज के हिन्दू धर्म से मेल खाता है। उनकी कला-कृतियां उत्कृष्टता लिए हुए थीं। उनकी लिपि अभी तक पढ़ी नहीं गई। इसे पढ़े जाने पर सिन्धु घाटी का चित्र अधिक स्पष्ट हो जाएगा।

1. केवल मोहनजोदड़ो से प्राप्त मोहरों की संख्या बताएं। इन मोहरों का प्रयोग किस लिए किया जाता था ?
2. भारतीय सभ्यता को हड़प्पा संस्कृति की क्या देन है ?
उत्तर-
1. मोहनजोदड़ो से 1200 से अधिक मोहरें प्राप्त हुई हैं। इनका प्रयोग सामान के गट्ठरों या भरे बर्तनों की सुरक्षा अथवा उन पर ‘सील’ लगाने के लिए किया जाता था।
2. सिन्धु घाटी की सभ्यता के निम्नलिखित चार तत्त्व आज भी भारतीय जीवन में देखे जा सकते हैं :

  • नगर योजना-सिन्धु घाटी के नगर एक योजना के अनुसार बसाए गए थे। नगर में चौड़ी-चौड़ी सड़कें और गलियां थीं। यह विशेषता आज के नगरों में देखी जा सकती है।
  • निवास स्थान-सिन्धु घाटी के मकानों में आज की भान्ति खिड़कियां और दरवाज़े थे। हर घर में एक आंगन, स्नान गृह तथा छत पर जाने के लिए सीढ़ियां थीं।।
  • आभूषण एवं श्रृंगार-आज की स्त्रियों की भान्ति सिन्धु घाटी की स्त्रियां भी श्रृंगार का चाव रखती थीं। वे सुर्थी तथा पाऊडर का प्रयोग करती थीं और विभिन्न प्रकार के आभूषण पहनती थीं। उन्हें बालियां, कड़े तथा । गले का हार पहनने का बहुत शौक था।
  • धार्मिक समानता-सिन्धु घाटी के लोगों का धर्म आज के हिन्दू धर्म से बहुत हद तक मेल खाता है। वे शिव, मातृ देवी तथा अन्य देवी-देवताओं की पूजा करते थे। आज भी हिन्दू लोगों में उनकी पूजा प्रचलित है।

(2)

मोहरें प्राचीन शिल्पकला को सिन्धु घाटी की विशिष्ट देन समझी जाती है। केवल मोहनजोदड़ो से ही 1200 से अधिक मोहरें प्राप्त हुई हैं। ये कृतियां भले ही छोटी हैं फिर भी इन की कला इतनी श्रेष्ठ है कि इनके चित्रों में शक्ति और ओज झलकता है। इनका प्रयोग सामान के गट्ठरों या भरे बर्तनों की सुरक्षा के लिए किया जाता था। ऐसा भी विश्वास किया जाता है कि मोहरों का प्रयोग एक प्रकार का प्रतिरोधक (taboo) लगाने के लिए होता था। इन मोहरों से ऐसा भी प्रतीत होता है कि सिन्धु घाटी के समाज में विभिन्न पदवियों और उपाधियों की व्यवस्था प्रचलित थी। इन मोहरों पर पशुओं तथा मनुष्यों की आकृतियां बनी हुई हैं। पशुओं से सम्बन्धित आकृतियां बड़ी कलात्मक हैं। परन्तु मोहरों पर बनी मानवीय आकृतियां उतनी कलात्मकता से नहीं बनी हुई हैं। मोहरों के अधिकांश नमूने उनकी किसी धार्मिक महत्ता के सूचक हैं। एक आकृति के दाईं तरफ हाथी और चीता हैं, बाईं ओर गैंडा और भैंसा हैं। उनके नीचे दो बारहसिंगे या बकरियां हैं। इन ‘पशुओं के स्वामी’ को शिव का पशुपति रूप समझा जाता है। मोहरों पर पीपल के वृक्ष के बहुत चित्र मिले हैं।

1. सिन्धु घाटी की सभ्यता के धर्म की विशेषताएं क्या थी ?
2. सिन्धु घाटी सभ्यता की लिपि के बारे में अब तक क्या पता चल सका है ?
उत्तर-1. खुदाई में एक मोहर मिली है जिस पर एक देवता की मूर्ति बनी हुई है। देवता के चारों ओर कुछ पशु दिखाए गए हैं। इनमें से एक बैल भी है। सर जॉन मार्शल का कहना है कि यह पशुपति महादेव की मूर्ति है और लोग इसकी पूजा करते थे। खुदाई में मिली एक अन्य मोहर पर एक नारी की मूर्ति बनी हुई है। इसने विशेष प्रकार के वस्त्र पहने हुए हैं। विद्वानों का मत है कि यह धरती माता (मातृ देवी) की मूर्ति है और हड़प्पा संस्कृति के लोगों में इसकी पूजा प्रचलित थी। लोग पशु-पक्षियों, वृक्षों तथा लिंग की पूजा में भी विश्वास रखते थे। वे जिन पशुओं की पूजा करते थे, उनमें से कूबड़ वाला बैल, सांप तथा बकरा प्रमुख थे। उनका मुख्य पूजनीय वृक्ष पीपल था। खुदाई में कुछ तावीज़ इस बात का प्रमाण हैं कि सिन्धु घाटी के लोग अन्धविश्वासी थे और जादू-टोनों में विश्वास रखते थे।

2. सिन्धु घाटी के लोगों ने एक विशेष प्रकार की लिपि का आविष्कार किया जो चित्रमय थी। यह लिपि खुदाई में मिली मोहरों पर अंकित है। यह लिपि बर्तनों तथा दीवारों पर लिखी हुई भी पाई गई है। इनमें 270 के लगभग वर्ण हैं। इसे बाईं से दाईं ओर लिखा जाता है। यह लिपि आजकल की तथा अन्य ज्ञात लिपियों से काफ़ी भिन्न है, इसलिए इसे पढ़ना बहुत ही कठिन है। भले ही विद्वानों ने इसे पढ़ने के लिए अथक प्रयत्न किए हैं तो भी वे अब तक इसे पूरी तरह पढ़ नहीं पाए हैं। आज भी इसे पढ़ने के प्रयत्न जारी हैं। अतः जैसे ही इस लिपि को पढ़ लिया जाएगा, सिन्धु घाटी की सभ्यता के अनेक नए तत्त्व प्रकाश में आएंगे।

(3)

भारतीय आर्य सम्भवतः मध्य एशिया से भारत में आये थे। आरम्भ में ये सप्त सिन्धु प्रदेश में आकर बसे और लगभग 500 वर्षों तक यहीं टिके रहे। ये मूलतः पशु-पालक थे और विशाल चरागाहों को अधिक महत्त्व देते थे। परन्तु धीरे-धीरे वे कृषि के महत्त्व को समझने लगे। अधिक कृषि उत्पादन की खपत के लिए नगरों का विकास भी होने लगा। फलस्वरूप आर्य लोग एक विशाल क्षेत्र में फैलते गए। इस प्रकार कृषि तथा नगरों के विकास ने आर्यों के प्रसार में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। कुछ अन्य तत्त्वों ने भी उनके प्रसार में सहायता पहुंचाई।

1. भारतीय आर्यों की आदिभूमि के बारे में कौन-से क्षेत्र बताए जाते हैं ?
2. आर्य लोग यमुना नदी की पूर्वी दिशा में कब बढ़े ? उनके इस दिशा में विस्तार के क्या कारण थे ?
उत्तर-
1. भारतीय आर्यों की आदिभूमि के बारे में मुख्य रूप से मध्य एशिया अथवा सप्त सिन्धु प्रदेश, उत्तरी ध्रुव तथा मध्य एशिया के क्षेत्र बताए जाते हैं। मध्य प्रदेश तथा सप्त सिन्धु प्रदेश का सम्बन्ध प्राचीन भारत से है।
2. आर्य लोग लगभग 500 वर्ष तक सप्त सिन्धु प्रदेश में रहने के पश्चात् यमुना नदी के पूर्व की ओर बढ़े। इस दिशा में उनके विस्तार के मुख्य कारण ये थे। इस समय तक आर्यों ने सप्त सिन्धु के अनेक लोगों को दास बना रखा था। इन दासों से वे जंगलों को साफ करने के लिए भेजते थे। जहां कहीं जंगल साफ हो जाते वहां वे खेती करने लगते थे। उस समय आर्य लोहे के प्रयोग से भी परिचित हो गए। लोहे से बने औजार तांबे अथवा कांसे के औज़ारों की अपेक्षा अधिक मज़बूत और तेज थे। इन औज़ारों की सहायता से वनों को बड़ी संख्या में साफ किया जाता था। आर्यों के तीव्र विस्तार का एक अन्य कारण यह था कि सिन्धु घाटी का सभ्यता की सीमाओं के पार कोई शक्तिशाली राज्य अथवा कबीला नहीं था। परिणाम स्वरूप आर्यों को किसी विरोधी का सामना न करना पड़ा और वे बिना किसी बाधा विस्तार करते गए।

(4)

आर्यों के धर्म में यज्ञों को बड़ा महत्त्व प्राप्त था। सबसे छोटा यज्ञ घर में ही किया जाता था। समय-समय पर बड़े-बड़े यज्ञ भी होते थे जिनमें सारा गांव या कबीला भाग लेता था। बड़े यज्ञों के रीति-संस्कार अत्यन्त जटिल थे और इनके लिए काफ़ी समय पहले से तैयारी करनी पड़ती थी। इन यज्ञों में अनेक पुरोहित भाग लेते थे। इनमें अनेक जानवरों की बलि दी जाती थी। यह बलि देवताओं को प्रसन्न करने के उद्देश्य से दी जाती थी। आर्यों का विश्वास था कि यदि इन्द्र देवता प्रसन्न हो जाएं तो वे युद्ध में विजय दिलाते हैं, आयु बढ़ाते हैं और सन्तान तथा धन में वृद्धि करते हैं। बाद में एक और उद्देश्य से भी यज्ञ किए जाने लगे। वह यह था कि प्रत्येक यज्ञ से संसार पुनः एक नया रूप धारण करेगा, क्योंकि संसार की उत्पत्ति यज्ञ द्वारा हुई मानी गई थी।

1. राजसूय यज्ञ का क्या महत्त्व था ?
2. आर्यों के मुख्य देवताओं के बारे में बताएं।
उत्तर-
1. राजसूय यज्ञ राज्य में दैवी शक्ति का संचार करने के लिए किया जाता था। इससे स्पष्ट है कि राजपद को दैवी देन माना जाने लगा था।
2. ऋग्वेद के अध्ययन से पता चलता है आर्य लोग प्रकृति के पुजारी थे। अपनी समृद्धि के लिए वे सूर्य, वर्षा, पृथ्वी आदि की पूजा करते थे। वे अग्नि, आंधी, तूफान आदि की भी स्तुति करते थे ताकि वे उनके प्रकोपों से बचे रहें। कालान्तर में आर्य लोग प्रकृति की विभिन्न शक्तियों को देवता मान कर पूजने लगे। वरुण उनका प्रमुख देवता था। उसे आकाश का देवता माना जाता था। आर्यों के अनुसार वरुण समस्त जगत् का पथ-प्रदर्शन करता है। आर्य सैनिकों के लिए इन्द्र देवता अधिक महत्त्वपूर्ण था। उसे युद्ध तथा ऋतुओं का देवता माना जाता था। युद्ध में विजय के लिए इन्द्र की ही उपासना की जाती थी। इन्द्र के अतिरिक्त वे रुद्र, अग्नि, पृथ्वी, वायु, सोम आदि देवताओं की उपासना भी करते थे।

(5)

जैन धर्म और बौद्ध धर्म का उदय छठी शताब्दी ई० पू० में हुआ। इस समय तक देश के राजनीतिक, सामाजिक तथा धार्मिक क्षेत्रों में नए विचार उभर रहे थे। देश में कुछ बड़े-बड़े राज्य स्थापित हो चुके थे। इनमें शासक नवीन विचारों के पनपने का कोई विरोध नहीं कर रहे थे। इसी प्रकार सामाजिक एवं धार्मिक वातावरण भी नवीन धार्मिक आन्दोलनों के उदय के अनुकूल था। वैदिक धर्म में अनेक कुरीतियां आ गई थीं। व्यर्थ के रीति-रिवाजों, महंगे यज्ञों और ब्राह्मणों के झूठे प्रचार के कारण यह धर्म अपनी लोकप्रियता खो चुका था। इन सब कुरीतियों का अन्त करने के लिए देश में लगभग 63 नये धार्मिक आन्दोलन चले जिनका नेतृत्व विद्वान् हिन्दू कर रहे थे। परन्तु ये सभी धर्म लोकप्रिय न हो सके। केवल दो धर्मों को छोड़कर शेष सभी समाप्त हो गये। ये दो धर्म थे-जैन धर्म तथा बौद्ध धर्म।

1. महात्मा बुद्ध के जन्म और मृत्यु से सम्बन्धित स्थानों के नाम बताएं।
2. महात्मा बुद्ध अथवा बौद्ध धर्म की शिक्षाओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
1. महात्मा बुद्ध का जन्म कपिलवस्तु के निकट लुम्बिनी वाटिका में हुआ। उनकी मृत्यु कुशीनगर के स्थान पर हुई।
2. महात्मा बुद्ध ने लोगों को जीवन का सरल मार्ग सिखाया। उन्होंने लोगों को बताया कि संसार दुःखों का घर है। दुःखों का कारण तृष्णा है। निर्वाण प्राप्त करके ही मनुष्य जन्म-मरण के चक्कर से छूट सकता है। निर्वाण-प्राप्ति के लिए महात्मा बुद्ध ने लोगों को अष्ट मार्ग पर चलने का उपदेश दिया। उन्होंने लोगों को अहिंसा, नेक काम तथा सदाचार पर चलने के लिए कहा। सच तो यह है कि बौद्ध धर्म ने व्यर्थ के रीति-रिवाजों यज्ञों तथा कर्मकाण्डों को त्यागने पर बल दिया।

(6)

जैनियों ने अपने तीर्थंकरों की याद में विशाल मंदिर तथा मठ बनवाए। ये मंदिर अपने प्रवेश द्वारों तथा सुन्दर मूर्तियों के कारण प्रसिद्ध थे। दिलवाड़ा का जैन मन्दिर ताजमहल को लजाता है। कहते हैं कि मैसूर में बनी जैन धर्म की सुन्दर मूर्तियां दर्शकों को आश्चर्य में डाल देती हैं। इसी प्रकार आबू पर्वत का जैन-मन्दिर, एलोरा की गुफाएं तथा खुजराहो के जैन मन्दिर कला के उत्कृष्ट नमूने हैं। जैन धर्म में इस महान् योगदान की अपेक्षा नहीं की जा सकती। जैन धर्म के अनुयायियों ने लोक भाषाओं का प्रचार किया। उनका अधिकांश साहित्य संस्कृत की बजाय स्थानीय भाषाओं में लिखा गया। यही कारण है कि कन्नड़ साहित्य आज भी अपने उत्कृष्ट साहित्य के लिए जैन धर्म का आभारी है। इसके अतिरिक्त उन्होंने हिन्दी, गुजराती, मराठी आदि भाषाओं के साहित्य में खूब योगदान दिया।

1. सबसे अधिक प्रभावशाली जैन मन्दिर कौन-से दो स्थानों पर हैं ?
2. महावीर की शिक्षाओं का साधारण मनुष्य के जीवन के लिए क्या महत्त्व था ?
उत्तर-
1. सबसे अधिक प्रभावशाली जैन मन्दिर राजस्थान में आबू पर्वत पर तथा मैसूर में श्रावणवेलगोला में हैं।
2. महावीर की शिक्षाओं का साधारण मनुष्य के जीवन में बड़ा महत्त्व था। इसका वर्णन इस प्रकार है-

  • उन्होंने जाति-प्रथा का घोर विरोध किया। इससे भारतीय समाज में लोगों का आपसी मेल-जोल बढ़ने लगा। भेदभाव का स्थान सहकारिता ने ले लिया। ऊंच-नीच की भावना समाप्त होने लगी और समाज प्यार और भाईचारे की भावनाओं से ओत-प्रोत हो गया।
  • महावीर ने लोगों को समाज-सेवा का उपदेश दिया। अतः लोगों की भलाई के लिए जैनियों ने अनेक संस्थाएं स्थापित की। इससे न केवल जनता का ही भला हुआ बल्कि दूसरे धर्मों के अनुयायियों को भी समाज सेवा के कार्य करने का प्रोत्साहन मिला।
  • जैन धर्म की बढ़ती हुई लोकप्रियता को देखकर ब्राह्मणों ने भी पशु-बलि, कर्म-काण्ड तथा अन्य कुरीतियों का त्याग करना शुरू कर दिया। इस प्रकार वैदिक धर्म भी काफ़ी सरल बन गया।
  • इसके अतिरिक्त महावीर ने अहिंसा पर बल दिया। अहिंसा के सिद्धान्त को अपना कर लोग मांसाहारी से शाकाहारी बन गए। उनका जीवन सरल तथा संयमी बना।

(7)

जय देवानांपिय पिपदरसी ने अपने शासन के आठ वर्ष पूरे किए तो उन्होंने कलिंग (आधुनिक तटवर्ती ओडिशा) पर विजय प्राप्त की। डेढ़ लाख पुरुषों को निष्काषित किया गया। एक लाख मारे गए और इससे भी ज्यादा की मृत्यु हुई। कलिंग पर शासन स्थापित करने के बाद देवानांपिय धम्म के गहन अध्ययन, धम्म के स्नेह और धम्म के उपदेश में डूब गए हैं। यही देवानांपिय के लिए कलिंग की विजय का पश्चात्ताप है। देवानांपिय के लिए यह बहुत वेदनादायी और निदनीय है कि जब कोई किसी राज्य पर विजय प्राप्त करता है तो पराजित राज्य का हनन होता है, वहां लोग मारे जाते हैं, निष्कासित किए जाते हैं।

1. ‘देवानांपिप पियदरसी’ किसे पुकारते थे ? उनका संक्षेप में वर्णन कीजिए।
2. अशोक पर कलिंग युद्ध के पड़े प्रभावों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
1. ‘देवानांपिय पियदरसी’ सम्राट असोक (अशोक) को पुकारते हैं। उन्होनें कलिंग (आधुनिक तटवर्ती ओडिशा) पर विजय प्राप्त की थी।
2. कलिंग युद्ध के अशोक पर निम्नलिखित प्रभाव पड़े

  • उन्होंने युद्धों का सदा के लिए त्याग कर दिया।
  • वह धम्म के अध्ययन, धम्म के स्नेह तथा धम्म के उपदेश में डूब गए।
  • वह प्रजा-हितकारी शासक बन गए।

(8)

यह प्रयाग प्रशस्ति का एक अंश है :
धरती पर उनका कोई प्रतिद्वंद्वी नहीं था। अनेक गुणों और शुभकार्यों में संपन्न उन्होनें पैर के तलबे से अन्य राजाओं के यश को मिटा दिया है। वे परमात्मा पुरुष हैं, साधु (भले) की समृद्धि और असाधु (बुरे) के विनाश के कारण हैं। वे अज्ञेय हैं। उनके कोमल हृदय को भक्ति और विनय से ही वश में किया जा सकता है। वे करुणा से भरे हुए हैं। वे अनेक सहस्त्र गांवों के दाता है। उनके मस्तिष्क की दीक्षा दीन-दुखियों, विरहणियों और पीड़ितों के उद्धार के लिए की गई है। वे मानवता के लिए दिव्यमान उदारता की प्रतिमूर्ति है। वे देवताओं के कुबेर (धन-देव), वरुण (समुद्र-देव), इंद्र (वर्षा के देवता) और यम (मृत्यु-देव) के तुल्य हैं।

1. समुद्रगुप्त कौन था ? उनकी तुलना किन देवताओं से की गई है ?
2. लेखक ने समुद्रगुप्त के किन गुणों अथवा सफलताओं का उल्लेख किया है ? कोई चार बताइए।
उत्तर-
1. समुद्र गुप्त संभवतः सबसे शक्तिशाली गुप्त सम्राट था। उसकी तुलना धन-देव कुबेर, समुद्र-देव वरुण, वर्षा के देवता
इंद्र तथा मृत्यु-देव यम से की गई है।
2. हरिषेण के अनुसार-

  • धरती पर समुद्रगुप्त का कोई प्रतिद्वंद्वी नहीं था। उन्होंने अपने पैर के तलबे से अन्य राजाओं के यश को मिटा दिया था।
  • वह परमात्मा पुरुष थे-साधु (भले) की समृद्धि तथा असाधु (बुरे) के विनाश कारण।
  • वह अजेय थे।
  • उनके कोमल मन को भक्ति और विनय से ही वश में किया जा सकता था।

(9)

गुप्त काल में गणित, ज्योतिष तथा चिकित्सा विज्ञान में काफ़ी प्रगति हुई-
आर्यभट्ट गुप्त युग का महान् गणितज्ञ तथा ज्योतिषी था। उसने ‘आर्यभट्टीय’ नामक ग्रन्थ की रचना की। यह अंकगणित, रेखागणित तथा बीजगणित के विषयों पर प्रकाश डालता है। उसने गणित को स्वतन्त्र विषय के रूप में स्वीकार करवाया। संसार को ‘बिन्दु’ का सिद्धान्त भी उसी ने दिया। आर्यभट्ट पहला व्यक्ति था जिसने यह घोषणा की कि पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमती है। उसने सूर्यग्रहण तथा चन्द्रग्रहण के वास्तविक कारणों पर भी प्रकाश डाला।

गुप्त युग का दूसरा महान् ज्योतिषी अथवा नक्षत्र-वैज्ञानिक वराहमिहिर था। उसने ‘पंच सिद्धान्तिका’, ‘बृहत् संहिता’ तथा ‘योग-यात्रा’ आदि ग्रन्थों की रचना की। ब्रह्मगुप्त एक महान् ज्योतिषी तथा गणितज्ञ था। उसने न्यूटन से भी बहुत पहले गुरुत्वाकर्षण के सिद्धान्त को स्पष्ट किया। वाग्यभट्ट इस युग का महान् चिकित्सक था। उसका ‘अष्टांग संग्रह’ नामक ग्रन्थ चिकित्सा जगत् के लिए अमूल्य निधि है। इसमें चरक तथा सुश्रुत नामक महान् चिकित्सकों की संहिताओं का सार दिया गया है। इस काल में पाल-काव्य ने ‘हस्त्यायुर्वेद’ की रचना की। इस ग्रन्थ का सम्बन्ध पशु चिकित्सा से है। लोगों को उस समय रसायनशास्त्र तथा धातु विज्ञान का भी ज्ञान था।

1. चिकित्सा के क्षेत्र में दो प्रसिद्ध गुप्तकालीन विद्वानों के नाम बताओ।
2. आर्यभट्ट का खगोल विज्ञान में क्या योगदान था ?
उत्तर-
1. चिकित्सा के क्षेत्र में दो प्रसिद्ध गुप्तकालीन विद्वान् थे-चरक और सुश्रुत।
2. आर्यभट्ट गुप्त काल का एक महान् वैज्ञानिक एवं खगोलशास्त्री था। उसने अपनी नवीन खोजों द्वारा खगोलशास्त्र को काफ़ी समृद्ध बनाया। ‘आर्य भट्टीय’ उसका प्रसिद्ध ग्रन्थ है। उसने यह सिद्ध किया कि सूर्यग्रहण तथा चन्द्रग्रहण, राहू और केतू नामक राक्षसों के कारण नहीं लगते बल्कि जब चन्द्रमा कार्य और पृथ्वी के बीच में आ जाता है तो चन्द्रग्रहण होता है। आर्यभट्ट ने स्पष्ट रूप में यह लिख दिया था कि सूर्य नहीं घूमता बल्कि पृथ्वी ही अपनी धुरी के चारों ओर घूमती है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि खगोल विज्ञान में आर्यभट्ट ने महान् योगदान दिया।

(10)

गप्त साम्राज्य के पतन के बाद भारत की राजनीतिक एकता छिन्न-भिन्न हो गई थी। देश में अनेक छोटे-छोटे स्वतन्त्र राज्य उभर आये थे। इनमें से एक थानेश्वर का वर्धन राज्य भी था। प्रभाकर वर्धन के समय में यह काफ़ी शक्तिशाली था। उसकी मृत्यु के बाद 606 ई० में हर्षवर्धन राजगद्दी पर बैठा। राजगद्दी पर बैठते समय वह चारों ओर से शत्रुओं से घिरा हुआ था। शत्रुओं से छुटकारा पाने के लिए उसे अनेक युद्ध करने पड़े। वैसे भी हर्ष अपने राज्य की सीमाओं में वृद्धि करना चाहता था। इस उद्देश्य से उसने अनेक सैनिक अभियान किए। कुछ ही वर्षों में लगभग सारे उत्तरी भारत पर उसका अधिकार हो गया। इस प्रकार उसने देश में राजनीतिक एकता की स्थापना की और देश को अच्छा शासन प्रदान किया।

1. हर्षवर्धन के राज्यकाल में आने वाले चीनी यात्री का नाम बताओ और यह कब से कब तक भारत में रहा ?
2. हर्षवर्धन के चरित्र की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन करो।
उत्तर-
1. हर्षवर्धन के राज्यकाल में आने वाला चीनी यात्री ह्यनसांग था। वह 629 से 645 ई० तक भारत में रहा।
2. हर्षवर्धन एक महान् चरित्र का स्वामी था। उसे अपने परिवार से बड़ा प्रेम था। अपनी बहन राज्यश्री को मुक्त करवाने और उसे ढूंढने के लिए वह जंगलों की खाक छानता फिरा। वह एक सफल विजेता तथा कुशल प्रशासक था। उसने थानेश्वर के छोटे से राज्य को उत्तरी भारत के विशाल राज्य का रूप दिया। वह प्रजाहितैषी और कर्तव्यपरायण शासक था। यूनसांग ने उसके शासन प्रबन्ध की बड़ी प्रशंसा की है। उसके अधीन प्रजा सुखी और समृद्ध थी। हर्ष धर्मपरायण और सहनशील भी था। उसने बौद्ध धर्म को अपनाया और सच्चे मन से इसकी सेवा की। उसने अन्य धर्मों का समान आदर किया। दानशीलता उसका एक अन्य बड़ा गुण था। वह इतना दानी था कि प्रयाग की एक सभा में उसने अपने वस्त्र भी दान में दे दिए थे और अपना तन ढांपने के लिए अपनी बहन से एक वस्त्र लिया था। हर्ष स्वयं एक उच्चकोटि का विद्वान् था और उसने कला और विद्या को संरक्षण प्रदान किया।

Unit 2

नीचे दिए गए उद्धरणों को ध्यानपूर्वक पढ़िये और अंत में दिए गए प्रश्नों के उत्तर सावधानीपूर्वक लिखिए

(1)

आठवीं और नौवीं शताब्दी में उत्तरी भारत में होने वाला संघर्ष त्रिदलीय संघर्ष के नाम से प्रसिद्ध है। यह संघर्ष राष्ट्रकूटों, प्रतिहारों तथा पालों के बीच कन्नौज को प्राप्त करने के लिए ही हुआ। कन्नौज उत्तरी भारत का प्रसिद्ध नगर था। यह नगर हर्षवर्धन की राजधानी था। उत्तरी भारत में इस नगर की स्थिति बहुत अच्छी थी। क्योंकि इस नगर पर अधिकार करने वाला शासक गंगा के मैदान पर अधिकार कर सकता था, इसलिए इस पर अधिकार करने के लिए कई लड़ाइयां लड़ी गईं। इस संघर्ष में राष्ट्रकूट, प्रतिहार तथा पाल नामक तीन प्रमुख राजवंश भाग ले रहे थे। इन राजवंशों ने बारी-बारी कन्नौज पर अधिकार किया। राष्ट्रकूट, प्रतिहार तथा पाल तीनों राज्यों के लिए संघर्ष के घातक परिणाम निकले। वे काफी समय तक युद्धों में उलझे रहे। धीरे-धीरे उनकी सैन्य शक्ति कम हो गई और राजनीतिक ढांचा अस्त-व्यस्त हो गया। फलस्वरूप सौ वर्षों के अन्दर तीनों राज्यों का पतन हो गया। राष्ट्रकूटों पर उत्तरकालीन चालुक्यों ने अधिकार कर लिया। प्रतिहार राज्य छोटे-छोटे राज्यों में बंट गया और पाल वंश की शक्ति को चोलों ने समाप्त कर दिया।

1. कन्नौज के लिए संघर्ष करने वाले तीन प्रमुख राजवंशों के नाम बताएं।
2. राजपूतों के शासन काल में भारतीय समाज में क्या कमियां थीं ?
उत्तर-
1. कन्नौज के लिए संघर्ष करने वाले तीन प्रमुख राजवंशों के नाम थे-पालवंश, प्रतिहार वंश तथा राष्ट्रकूट वंश।
2. राजपूतों के शासन काल में भारतीय समाज में ये कमियां थी-

  • राजपूतों में आपसी ईष्या और द्वेष बहुत अधिक था। इसी कारण वे सदा आपस में लड़ते रहे। विदेशी आक्रमणकारियों का सामना करते हुए उन्होंने कभी एकता का प्रदर्शन नहीं किया।
  • राजपूतों को सुरा, सुन्दरी तथा संगीत का बड़ा चाव था। किसी भी युद्ध के पश्चात् राजपूत रास-रंग में डूब जाते थे।
  • राजपूत समय में संकीर्णता का बोल-बाला था। उनमें सती-प्रथा, बाल-विवाह तथा पर्दा प्रथा प्रचलित थी। वे तन्त्रवाद में विश्वास रखते थे जिनके कारण वे अन्ध-विश्वासी हो गये थे।
  • राजपूत समाज एक सामन्ती समाज था। सामन्त लोग अपने-अपने प्रदेश के शासक थे। अत: लोग अपने सामन्त या सरदार के लिए लड़ते थे; देश के लिए नहीं।

(2)

नैतिक दृष्टिकोण से समस्त मुस्लिम जगत का धार्मिक नेता खलीफा माना जाता था। वह बगदाद में निवास करता था। परन्तु सुल्तान खलीफा का नाममात्र का प्रभुत्व स्वीकार करते थे। यद्यपि कुछ सुल्तान खलीफा के नाम से खुतबा पढ़वाते थे और सिक्कों पर भी उसका नाम अंकित करवाते थे, परन्तु यह प्रभुत्व केवल दिखावा मात्र था। वास्तविक सत्ता सुल्तान के हाथ में ही थी। वह केवल अपने पद को सुदृढ़ बनाने के लिए खलीफा से स्वीकृति प्राप्त कर लेते थे। सुल्तान की शक्तियां असीम थीं। उसकी इच्छा ही कानून थी। वह सेना का प्रधान और न्याय का मुखिया होता था। वास्तव में वह पृथ्वी पर भगवान् का प्रतिनिधि समझा जाता था।

1. दिल्ली सल्तनत की जानकारी के लिए स्रोतों के चार प्रमुख प्रकार बताएं।
2. क्या दिल्ली सल्तनत को एक धर्म-तन्त्र कहना उपयुक्त होगा ?
उत्तर-
1. दिल्ली सल्तनत की जानकारी के लिए स्रोतों के चार प्रमुख प्रकार हैं-समकालीन दरबारी इतिहासकारों के वृत्तान्त, कवियों की रचनाएं, विदेशी यात्रियों के वृत्तान्त तथा सिक्के।
2. धर्म-तन्त्र से हमारा अभिप्राय पूर्ण रूप से धर्म द्वारा संचालित राज्य से है। दिल्ली सल्तनत के कई सुल्तान खलीफा के नाम पर राज्य करते थे और कुछ ने तो अपने समय के खलीफा से मान्यता-पत्र भी लिया था। परन्तु वास्तव में खलीफा की मान्यता का सुल्तान की शक्ति का कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ता था। सुल्तान से शरीअत (इस्लामी कानून) के अनुसार कार्य करने की अपेक्षा की जाती थी। परन्तु उसकी नीति एवं कार्य प्रायः उस समय की परिस्थितियों पर निर्भर करते थे। कभी-कभी शरीअत के कारण कुछ जटिल समस्याएं भी उत्पन्न हो जाती थीं। ऐसे समय सुल्तान जानबूझ कर अनदेखी कर देते थे। वास्तव में जब कोई सुल्तान शरीअत की दुहाई देता था तो यह साधारणतः उसकी शासक के रूप में कमजोरी का चिन्ह माना जाता था। इसलिए दिल्ली सल्तनत को एक धर्म-तन्त्र समझना उचित नहीं होगा।

(3)

बलबन ने दिल्ली सल्तनत को सुदृढ़ बनाने के लिए अनेक कार्य किए। सबसे पहले उसने ‘लौह और रक्त नीति’ द्वारा आन्तरिक विद्रोहों का दमन किया और राज्य में शान्ति स्थापित की। बलबन ने दोआब क्षेत्र के सभी लुटेरों और डाकुओं का वध करवा दिया। उसने मंगोलों से राज्य की सुरक्षा के लिए महत्त्वपूर्ण सैनिक सुधार किये। पुराने सिपाहियों के स्थान पर नये योग्य सिपाहियों को भर्ती किया गया। सीमावर्ती किलों को भी सुदृढ़ बनाया गया। उसने बंगाल के विद्रोही सरदार तुगरिल खां को भी बुरी तरह पराजित किया। बलबन ने राज दरबार में कड़ा अनुशासन स्थापित किया। उसने सभी शक्तिशाली सरदारों से शक्ति छीन ली ताकि वे कोई विद्रोह न कर सकें। उसने अपने राज्य में गुप्तचरों का जाल-सा बिछा दिया। इस प्रकार के कार्यों से उसने दिल्ली सल्तनत को आन्तरिक विद्रोहों और बाहरी आक्रमणों से पूरी तरह सुरक्षित बनाया। इसी कारण ही बलबन को दास वंश का महान् शासक कहा जाता है।

1. बलबन ने कौन-से चार प्रदेशों में विद्रोहों को दबाया ?
2. मंगोलों को आगे बढ़ने से रोकने के लिए दिल्ली के सुल्तानों ने क्या पग उठाए ?
उत्तर-
1. बलबन ने बंगाल, दिल्ली, गंगा-यमुना दोआब, अवध एवं कोहर के प्रदेशों में विद्रोहों को दबाया।
2. मंगोलों को आगे बढ़ने से रोकने के लिए दिल्ली के सुल्तानों ने अनेक पग उठाए। इस सम्बन्ध में बलबन तथा अलाऊद्दीन खिलजी की भूमिका विशेष महत्त्वपूर्ण रही जिसका वर्णन इस प्रकार है-

  • उन्होंने सीमावर्ती प्रदेशों में नए दुर्ग बनवाए और पुराने दुर्गों की मुरम्मत करवाई। इन सभी दुर्गों में योग्य सैनिक अधिकारी नियुक्त किए गए।
  • उन्होंने मंगोलों का सामना करने के लिए अपने सेना का पुनर्गठन किया। वृद्ध तथा अयोग्य सैनिकों के स्थान पर युवा सैनिकों की भर्ती की गई। सैनिकों की संख्या में भी वृद्धि की गई।
  • सुल्तानों ने द्वितीय रक्षा-पंक्ति की भी व्यवस्था की। इसके अनुसार मुल्तान, दीपालपुर आदि प्रान्तों में विशेष सैनिक टुकड़ियां रखी गईं और विश्वासपात्र अधिकारी नियुक्त किए। अत: यदि मंगोल सीमा से आगे बढ़ भी आते तो यहां उन्हें कड़े विरोध का सामना करना पड़ता।
  • सुल्तानों ने मंगोलों को पराजित करने के पश्चात् कड़े दण्ड दिए। इसका उद्देश्य उन्हें सुल्तान की शक्ति के आतंकित करके आगे बढ़ने से रोकना ही था।

(4)
विजयनगर के सबसे प्रसिद्ध शासक कृष्णदेव राय (शासनकाल 1509-29) ने शासनकाल के विषय में अमुक्तमल्यद नामक तेलुगु भाषा में एक कृति लिखी। व्यापारियों के विषय में उसने लिखा :

एक राजा को अपने बंदरगाहों की सुधारना चाहिए और वाणिज्य को इस प्रकार प्रोत्साहित करना चाहिए कि घोड़ों, हाथियों, रत्नों, चंदन मोती तथा अन्य वस्तुओं का खुले तौर पर आयात किया जा सके……..उसे प्रबंध करना चाहिए कि उन विदेशी नाविकों जिन्हें तूफानों, बीमारी या थकान के कारण उनके देश में उतरना पड़ता है, की भली-भांति देखभाल की जा सके…..सुदूर देशों के व्यापारियों, जो हाथियों और अच्छे घोड़ों का आयात करते है, को रोज़ बैठक में बुलाकर, तोहफ़े देकर तथा उचित मुनाफे की स्वीकृति देकर अपने साथ संबद्ध करना चाहिए ऐसा करने पर ये वस्तुएं कभी भी तुम्हारे दुश्मनों तक नहीं पहुंचेगी।

1. विजयनगर का सबसे प्रसिद्ध शासक कौन था ? उसकी कृति का नाम तथा भाषा बताओ।
2. वह व्यापार एवं वाणिज्य की वृद्धि के लिए क्या-क्या पग उठाना चाहता था ? कोई तीन बिंदु लिखिए। इसका क्या उद्देश्य था ?
उत्तर-
1. विजयनगर का सबसे प्रसिद्ध शासक कृष्णदेव राय था। उसकी कृति का नाम ‘अमुक्तमल्यद’ है जो तेलुगु भाषा में है।
2. व्यापार एवं वाणिज्य की वृद्धि के लिए वह

  • बंदरगाहों को सुधारना चाहता था।
  • घोड़ों, हाथियों, रत्नों, चंदन, मोती आदि वस्तुओं के आयात को प्रोत्साहन देना चाहता था।
  • राज्य में आने वाले विदेशी नाविकों की उचित देखभाल करना चाहता था। इन सबका उद्देश्य यह था कि वे वस्तुएं शत्रु के हाथ में पहुंच पाएं।

(5)
सन्त लहर के प्रचारक अवतारवाद में बिल्कुल विश्वास नहीं रखते थे। वे मूर्ति-पूजा के भी विरुद्ध थे। उनका विश्वास था कि ईश्वर एक है और वह मनुष्य के मन में निवास करता है। अतः परमात्मा को पाने के लिए मनुष्य को अपनी अन्तरात्मा की गहराइयों में डूब जाना चाहिए। अन्तरात्मा से परमात्मा को खोज निकालने का नाम ही मुक्ति है। इस अनुभव से मनुष्य की आत्मा पूर्ण रूप से परमात्मा में विलीन हो जाती है। सन्तों के अनुसार सच्चा गुरु परमात्मा तुल्य है। जिस किसी को भी सच्चा गुरु मिल जाता है, उसके लिए परमात्मा को पा लेना कठिन नहीं है। संत जाति-प्रथा के भेदभाव के विरुद्ध थे। कुछ प्रमुख सन्तों के नाम इस प्रकार हैं-कबीर, नामदेव, सधना, रविदास, धन्ना तथा सैन जी। श्री गुरु नानक देव जी भी अपने समय के महान् सन्त हुए हैं।

1. गुरु ग्रन्थ साहिब में जिन भक्तों तथा सन्तों की रचनाएं सम्मिलित की गई हैं, उनमें से किन्हीं चार का नाम बताएं।
2. सन्त कौन थे ?
उत्तर-
1. गुरु ग्रन्थ साहिब में जिन भक्तों तथा सन्तों की रचनाएं सम्मिलित की गई हैं, उनमें से चार के नाम हैं-भक्त कबीर, नामदेव जी, रामानन्द जी तथा घनानन्द जी।
2. सन्त भक्ति-लहर के प्रचारक थे। उन्होंने 14वीं शताब्दी से 17वीं शताब्दी के मध्य भारत के भिन्न-भिन्न भागों में भक्ति लहर का प्रचार किया। लगभग सभी भक्ति प्रचारकों के सिद्धान्त काफ़ी सीमा तक एक समान थे। परन्तु कुछ एक प्रचारकों ने विष्णु अथवा शिव के अवतारों की पूजा को स्वीकार न किया। उन्होंने मूर्ति पूजा का भी खण्डन किया। उन्होंने वेद, कुरान, मुल्ला, पण्डित, तीर्थ स्थान आदि में से किसी को भी महत्त्व न दिया। वे निर्गुण ईश्वर में विश्वास रखते थे। उनका मानना था कि परमात्मा निराकार है। ऐसे सभी प्रचारकों को ही प्रायः सन्त कहा जाता है। वे प्रायः जनसाधारण की भाषा में अपने विचारों का प्रचार करते थे।

(6)
यह रचना कबीर की मानी जाती है :
हे भाई यह बताओ, किस तरह हो सकता है
कि संसार में एक नहीं दो स्वामी हों ?
किसने तुम्हें भनित किया है ?
ईश्वर को अनेक नामों से पुकारा जाता है : जैसे-अल्लाह, राम, करीम, केशव, हरि तथा हज़रत ।
विभिन्नताएं तो केवल शब्दों में हैं जिनका आविष्कार हम स्वयं करते हैं।
कबीर कहते हैं दोनों ही भुलावे में है।
इनमें से कोई एक नाम को प्राप्त नहीं कर सकता
एक बकरे को मारता है और दूसरा गाय को।
वे पूरा जीवन विवादों में ही गंवा देते हैं।

1. कबीर जी के अनुसार संसार में कितने स्वामी (ईश्वर) हैं ? लोग ईश्वर को कौन-कौन से नामों से पुकारते हैं ? ये नाम कहां से लिए गए ?
2. कबीर जी के अनुसार हिंदू तथा मूसलमान दोनों ही ईश्वर को नहीं पा सकते ? क्यों ?
उत्तर-
1. कबीर जी के अनुसार संसार का स्वामी एक ही है। लोग उसे अल्लाह, राम, करीम, केशव, हरि, हज़रत आदि नामों से पुकारते हैं। ये सभी नाम मनुष्य के अपने ही बनाए हुए हैं।
2. कबीर जी के अनुसार हिंदू और मुसलमान दोनों ही ईश्वर को नहीं पा सकते क्योंकि वे विवादों में घिरे हुए है। दोनों ही पापी है। वे निर्दोष पशुओं का वध करते हैं।

(7)
श्री गुरु नानक देव जी सिक्ख धर्म के प्रवर्तक थे। इतिहास में उन्हें महान् स्थान प्राप्त है। उन्होंने अपने जीवन में भटके लोगों को सत्य का मार्ग दिखाया और धर्मान्धता से पीड़ित समाज को राहत दिलाई। जिस समय श्री गुरु नानक देव जी का जन्म हुआ, उस समय पंजाब का सामाजिक तथा धार्मिक वातावरण अन्धकार में लिप्त था। लोग अनेक देवी-देवताओं की पूजा करते थे। हिन्दू और मुसलमानों में बड़ा भेदभाव था। श्री गुरु नानक देव जी ने इन सभी बुराइयों को दूर करने का प्रयास किया। उन्होंने ‘सत्यनाम’ का उपदेश दिया और लोगों को धर्म का सच्चा मार्ग दिखाया।

1. गुरु नानक देव जी का जन्म कब और कहाँ हुआ ?
2. गुरु नानक देव जी के सन्देश के सामाजिक अर्थ क्या थे ?
उत्तर-
1. गुरु नानक देव जी का जन्म 1469 ई० में तलवण्डी नामक स्थान पर हुआ।
2. गुरु नानक देव जी के सन्देश के सामाजिक अर्थ बड़े महत्त्वपूर्ण थे। उनका सन्देश सभी के लिए था। प्रत्येक स्त्री पुरुष उनके बताये मार्ग को अपना सकता था। इसमें जाति-पाति या धर्म का कोई भेदभाव न था। उन्होंने सभी के लिए मुक्ति का मार्ग खोलकर सभी नर-नारियों के मन में एकता का भाव दृढ़ किया। इस प्रकार वर्ण-व्यवस्था के जटिल बन्धन टूटने लगे और लोगों में समानता की भावना का संचार हुआ। उनके अनुयायियों में समानता के विचार को वास्तविक रूप संगत और लंगर की संस्थाओं में मिला। इसलिए यह समझना कठिन नहीं है कि गुरु नानक साहिब ने जात-पात पर आधारित भेदभावों का बड़े स्पष्ट शब्दों में खण्डन क्यों किया। उन्होंने अपने आपको जनसाधारण के साथ सम्बन्धित किया। इस स्थिति में उन्होंने अपने समय के शासकों में प्रचलित अन्याय, दमन और भ्रष्टाचार का बड़ा ज़ोरदार खण्डन किया। फलस्वरूप समाज अनेक कुरीतियों से मुक्त हो गया।

(8)
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी से महत्त्वपूर्ण प्रतिक्रिया हुई : (1) गुरु अर्जन देव जी ने अपनी शहीदी से पहले अपने पुत्र हरगोबिन्द के नाम यह सन्देश छोड़ा, “वह समय बड़ी तेजी से आ रहा है, जब भलाई और बुराई की शक्तियों की टक्कर होगी। अतः मेरे पुत्र तैयार हो जा, आप शस्त्र पहन और अपने अनुयायियों को शस्त्र पहना। अत्याचारी का सामना तब तक करो जब तक कि वह अपने आपको सुधार न ले।” गुरु जी के इन अन्तिम शब्दों ने सिक्खों में सैनिक भावना को जागृत कर दिया। (2) गुरु जी की शहीदी ने सिक्खों की धार्मिक भावनाओं को भड़का दिया और उनके मन में मुस्लिम राज्य के प्रति घृणा उत्पन्न हो गई। (3) इस शहीदी से सिक्ख धर्म को लोकप्रियता मिली। सिक्ख अब अपने धर्म के लिए अपना सर्वस्व बलिदान करने के लिए तैयार हो गए। निःसन्देह गुरु अर्जन देव जी की शहीदी सिक्ख इतिहास में एक नया मोड़ सिद्ध हुई।

1. आदि ग्रन्थ साहिब का संकलन किन्होंने और कब सम्पूर्ण किया ?
2. गुरु अर्जन देव जी की शहीदी ने सिक्ख पंथ के इतिहास पर क्या प्रभाव डाला ?
उत्तर-
1. आदि ग्रन्थ साहिब का संकलन गुरु अर्जन देव जी ने 1604 ई० में सम्पूर्ण किया।
2. गुरु अर्जन देव जी की शहीदी सिक्ख पंथ के इतिहास में एक नया मोड़ सिद्ध हुई।

  • गुरु अर्जन देव जी ने अपनी शहीदी से पहले अपने पुत्र हरगोबिन्द के नाम यह सन्देश छोड़ा, “वह समय बड़ी तेजी से आ रहा है जब भलाई और बुराई की शक्तियों की टक्कर होगी। अत: मेरे पुत्र तैयार हो जा, आप शस्त्र पहन और अपने अनुयायियों को शस्त्र पहना। अत्याचारी का सामना तब तक करो जब तक कि वह अपने आपको सुधार न ले।” गुरु जी की शहीदी ने इन अन्तिम शब्दों ने सिक्खों में सैनिक भावना को जागृत कर दिया।
  • शहीदी ने सिक्खों के मन में मुग़ल राज्य के प्रति घृणा उत्पन्न कर दी।
  • इस शहीदी से सिक्ख धर्म को लोकप्रियता मिली। सिक्ख अब अपने धर्म के लिए अपना सर्वस्व बलिदान करने के लिए तैयार हो गए।

(9)
गुरु जी ने पांच प्यारों का चुनाव करने के पश्चात् पांच प्यारों को अमृतपान करवाया जिसे ‘खण्डे का पाहुल’ कहा जाता है। गुरु जी ने इन्हें आपस में मिलते समय ‘श्री वाहिगुरु जी का खालसा, श्री वाहिगुरु जी की फतेह’ कहने का आदेश दिया। इसी समय गुरु जी ने बारी-बारी पांचों प्यारों की आंखों तथा केशों पर अमृत के छींटे डाले और उन्हें (प्रत्येक प्यारे को) ‘खालसा’ का नाम दिया। सभी प्यारों के नाम के पीछे ‘सिंह’ शब्द जोड़ दिया गया। फिर गुरु जी ने पांच प्यारों के हाथ से स्वयं अमृत ग्रहण किया। इस प्रकार ‘खालसा’ का जन्म हुआ। गुरु जी का कथन था कि उन्होंने यह सब ईश्वर के आदेश से किया है। खालसा की स्थापना के अवसर पर गुरु जी ने ये शब्द कहे-“खालसा गुरु है और गुरु खालसा है। तुम्हारे और मेरे बीच अब कोई अन्तर नहीं है।”

1. गुरु गोबिन्द सिंह जी ने कौन-से वर्ष, किस दिन और कहां पर खालसा की साजना की ?
2. गुरु गोबिन्द सिंह जी ने सिक्ख पंथ में साम्प्रदायिक विभाजन तथा बाहरी खतरे की समस्या को कैसे हल किया ?
उत्तर-
1. गुरु गोबिन्द सिंह जी ने 1699 ई० में वैसाखी के दिन आनन्दपुर साहिब में खालसा की साजना की।
2. गुरु गोबिन्द सिंह जी ने सिक्ख धर्म में विद्यमान् अनेक सम्प्रदायों की तथा बाहरी खतरों की समस्या को भी बड़ी
कुशलता से निपटाया। सर्वप्रथम गुरु जी ने पहाड़ी राजाओं से अनेक युद्ध किए और उन्हें पराजित किया। उन्होंने अत्याचारी मुग़लों का भी सफल विरोध किया। 1699 ई० में गुरु गोबिन्द सिंह जी ने खालसा की स्थापना करके अपनी समस्याओं को सुलझाने के लिए एक और महत्त्वपूर्ण पग उठाया। खालसा की स्थापना के परिणामस्वरूप सिक्खों ने शस्त्रधारी का रूप धारण कर लिया। खालसा की स्थापना से गुरु जी को सिक्ख धर्म में विद्यमान् विभिन्न सम्प्रदायों से निपटने का अवसर भी मिला। गुरु जी ने घोषणा की कि सभी सिक्ख ‘खालसा’ का रूप हैं और उनके साथ जुड़े हुए हैं। इस प्रकार मसन्दों का महत्त्व समाप्त हो गया और सिक्ख धर्म के विभिन्न सम्प्रदाय खालसा में विलीन हो गए।

Unit 3

नीचे दिए गए उद्धरणों को ध्यानपूर्वक पढ़िये और अंत में दिए गए प्रश्नों के उत्तर सावधानीपूर्वक लिखिए।

(1)
औरंगज़ेब एक महत्त्वाकांक्षी सम्राट् था और वह सारे भारत पर मुग़ल पताका फहराना चाहता था। इसके अतिरिक्त उसे दक्षिण में शिया रियासतों का अस्तित्व भी पसन्द नहीं था। दक्षिण के मराठे भी काफ़ी शक्तिशाली होते जा रहे थे। वह उनकी शक्ति को कुचल देना चाहता था। इस उद्देश्य से उसने दक्षिण को विजय करने का निश्चय किया। उसने बीजापुर राज्य पर कई आक्रमण किए। कुछ असफल अभियानों के बाद 1686 ई० में वह इस पर विजय प्राप्त करने में सफल रहा। अगले ही वर्ष उसने रिश्वत और धोखेबाजी से बीजापुर राज्य को भी अपने अधीन कर लिया। परन्तु इन दो राज्यों की विजय उसकी निर्णायक सफलता नहीं थी बल्कि उसकी कठिनाइयों का आरम्भ थी। अब उसे शक्तिशाली मराठों से सीधी टक्कर लेनी पड़ी। इससे पूर्व उसने वीर मराठा सरदार शिवाजी को दबाने के अनेक प्रयत्न किए थे, परन्तु उसे कोई विशेष सफलता नहीं मिली थी। अब मराठों का नेतृत्व शिवाजी के पुत्र शंभू जी के हाथ में था। 1689 ई० में औरंगजेब ने उसे पकड़ लिया और उसका वध कर दिया। औरंगज़ेब की यह सफलता भी एक भ्रम मात्र थी। मराठे शीघ्र ही पुनः स्वतन्त्र हो गए। इसके विपरीत औरंगजेब का बहुत-सा धन और समय दक्षिण के अभियानों में व्यर्थ नष्ट हो गया। यहां तक कि 1707 ई० में दक्षिण में अहमदनगर के स्थान पर उसकी मृत्यु हो गई। इस प्रकार ‘दक्षिण’ औरंगज़ेब और मुग़ल साम्राज्य दोनों के लिए कब्र सिद्ध हुआ।

1. औरंगजेब दक्कन में किस वर्ष से किस वर्ष तक रहा ?
2. औरंगजेब की दक्षिण नीति की विवेचना कीजिए।
उत्तर-
1. औरंगज़ेब दक्कन में 1682 ई० से 1707 ई० तक रहा।
2. औरंगज़ेब को दक्षिण की शिया रिसायतों का अस्तित्व पसन्द नहीं था। वह मराठों की शक्ति को भी कुचल देना चाहता था। इस उद्देश्य से उसने दक्षिण को विजय करने का निश्चय किया। उसने गोलकुण्डा राज्य पर कई आक्रमण किए। कुछ असफल अभियानों के बाद 1687 ई० में वह इस राज्य पर विजय प्राप्त करने में सफल रहा। अगले ही वर्ष उसने रिश्वत और धोखेबाजी से बीजापुर राज्य को अपने अधीन कर लिया। दक्षिण में मराठों का नेतृत्व शिवाजी के पुत्र शम्भा जी के हाथ में था। 1689 ई० में औरंगजेब ने उसे पकड़ लिया और उसका वध कर दिया। औरंगजेब की यह सफलता एक भ्रम मात्र थी। मराठे शीघ्र ही पुनः स्वतन्त्र हो गए। 1707 ई० में दक्षिण में अहमदनगर के स्थान पर उसकी मृत्यु हो गई। इस प्रकार ‘दक्षिण’ औरंगजेब और मुग़ल साम्राज्य दोनों के लिए कब्र सिद्ध हुआ।

(2)
आइने में वर्गीकरण मापदंड की निम्नलिखित सूची दी गई है :
अकबर बादशाह ने अपनी गहरी दूरदर्शिता के साथ ज़मीनों का वर्गीकरण किया और हरेक (वर्ग की ज़मीन) के लिए अलग-अलग राजस्व निर्धारित किया। पोलज़ वह जमीन है जिसमें एक के बाद एक हर फसल की सालाना खेती होती है और जिसे कभी खाली नहीं छोड़ा जाता है। परोती वह ज़मीन है जिस पर कुछ दिनों के लिए खेती रोक दी जाती है ताकि वह अपनी खोई ताकत वापस पा सके। छछर वह ज़मीन है जो तीन या चार वर्षों तक खाली रहती है। बंजर वह ज़मीन है जिस पर पांच या उससे ज्यादा वर्षों से खेती नहीं की गई है। पहले दो प्रकार की ज़मीन की तीन किस्में है। अच्छी मध्यम और खराब वे हर किस्म की ज़मीन के उत्पाद को जोड़ देते है और इसका तीसरा हिस्सा मध्यम उत्पाद माना जाता है। जिसका एक तिहाई हिस्साशाही शुल्क माना जाता है।

1. भूमि के वर्गीकरण की यह सूची किस ग्रंथ से ली गई है ? इसका लेखक कौन था ?
2. किन्हीं तीन प्रकार की ज़मीनों की संक्षिप्त जानकारी दीजिए
उत्तर-
1. भूमि के वर्गीकरण की यह सूची आईन से ली गई है। इसका लेखक अबुल फजल था।
2. (i) पोलज़-यह वह जमीन थी जिसमें एक के बाद एक हर फसल की खेती होती थी। इसे खाली नहीं छोड़ा जाती था।
(ii) परोती-इस ज़मीन को कुछ समय के लिए खाली छोड़ दिया जाता था ताकि वह अपनी खोई हुई उपजाऊ शक्ति फिर से प्राप्त कर ले।
(iii) छछर-इस भूमि को तीन-चार वर्षों तक खाली रखा जाता था।

(3)
जोवान्नी कारेरी के लेख (वर्नियर के लेख पर आधारित) के निम्नलिखित अंश से हमें पता चलता है कि मुग़ल साम्राज्य में कितनी भारी मात्रा में बाहर से धन आ रहा था-
(मुग़ल) साम्राज्य की धन-संपत्ति का अंदाजा लगाने के लिए पाठक इस बात पर गौर करें कि दुनिया भर में विचरने वाला सारा सोना-चांदी आखिकार यहीं पहुंच जाता है। ये सब जानते हैं कि इसका बहुत बड़ा हिस्सा अमेरिका से आता है, और यूरोप में कई राज्यों से होते हुए (इसका) थोड़ा-सा हिस्सा कई तरह की वस्तुओं के लिए तुर्की में जाता है, और थोड़ा-सा हिस्सा रेशम के लिए स्मिरना होते हुए फारस पहुंचता है। अब चूंकि तुर्की लोग कॉफी से अलग नहीं रह सकते, जो कि ओमान और अरबिया से आती है…..(और) न ही फारस, अरबिया और तुर्की (के लोग) भारत की वस्तुओं के बिना रह सकते हैं। (वे) मुद्रा की विशाल मात्रा लाल सागर पर केवल महेल के पास स्थित मोचा भेजते हैं। (इसी तरह वे ये मुद्राएं) फारस की खाड़ी पर स्थित पराग भेजते हैं…..बाद में ये (सारी सपत्ति) जहाजों में इंदोस्तान (हिंदुस्तान) भेज दी जाती है। भारतीय जहाजों के अलावा जो डच, अंग्रेज़ी और पुर्तगाली जहाज़ पर साल इंदोस्तान की वस्तुएं लेकर पेंगू, तानस्सेरी (म्यांमार के हिस्से) स्याम (थाइलैंड), सीलोन (श्रीलंका)….मालद्वीप के टापू, मोज़बीक और अन्य जगहों पर ले जाते हैं। (इन्हीं जहाज़ों को) निश्चित तौर पर बहुत सारा सोना-चांदी इन देशों से लेकर वहां (हिंदूस्तान) पहुंचाना पड़ता है। वो सब कुछ तो डच लोग जापान की खानों से हासिल करते है, देर-सवेर इंदोस्तान (को) चला जाता है, और यहां से यूरोप को जाने वाली सारी वस्तुएं, चाहे वो फ्रांस जाएं या इंग्लैंड या पुर्तगाल, सभी नकद में खरीदी जाती हैं, जो (नकद) वहीं (हिंदुस्तान) रह जाता है।

1. वर्नियर कौन था ?
2. मुग़ल-काल में विश्व भर में विचरने वाला सारा सोना-चांदी अंततः कहां और कैसे पहुंचता था ?
उत्तर-
1. वर्नियर एक विदेशी यात्री था जो फ्रांस में आया था।
2. मुग़लकाल में विश्व भर में विचरने वाला सारा सोना-चांदी अंततः भारत में पहुंचता था। इसका एक बहुत बड़ा भाग अमेरिका में जाता था। इसका एक थोड़ा-सा हिस्सा यूरोप के राज्यों से होते हुए तुर्की तथा एक और हिस्सा स्मिरना के रास्ते फारस पहुंचता था। परंतु तुर्की तथा फारस भारत की वस्तुओं के बिना नहीं रह सकते थे। अतः वहां पहुंचने वाला सोना-चांदी भी इन वस्तुओं के बदले भारत आ जाता था।

(4)
शिवाजी ने उच्चकोटि के शासन-प्रबन्ध द्वारा भी मराठों को एकता के सूत्र में बांधा। केन्द्रीय शासन का मुखिया छत्रपति (शिवाजी) स्वयं था। राज्य की सभी शक्तियां उसके हाथ में थीं। छत्रपति को शासन कार्यों में सलाह देने के लिए आठ मन्त्रियों का एक मन्त्रिमण्डल था। इसे अष्ट-प्रधान कहते थे। प्रत्येक मन्त्री के पास एक अलग विभाग था। शिवाजी ने अपने राज्य को तीन प्रान्तों में बांटा हुआ था। प्रत्येक प्रान्त एक सूबेदार के अधीन था। प्रान्त आगे चलकर परगनों अथवा तर्कों में बंटे हुए थे। शासन की सबसे छोटी इकाई गांव थी।

शिवाजी की न्याय-प्रणाली बड़ी साधारण थी। परन्तु यह लोगों की आवश्यकता के अनुरूप थी। मुकद्दमों का निर्णय प्रायः हिन्दू धर्म की प्राचीन परम्पराओं के अनुसार ही किया जाता था। राज्य की आय के मुख्य साधन भूमि-कर, चौथ तथा सरदेशमुखी थे। शिवाजी ने एक शक्तिशाली सेना का संगठन किया। उनकी सेना में घुड़सवार तथा पैदल सैनिक शामिल थे। उनके पास एक शक्तिशाली समुद्री बेड़ा, हाथी तथा तोपें भी थीं। सैनिकों को नकद वेतन दिया जाता था। उनकी सेना की सबसे बड़ी विशेषता अनुशासन थी। शिवाजी एक उच्च चरित्र के स्वामी थे। वह एक आदर्श पुरुष, वीर योद्धा, सफल विजेता तथा उच्च कोटि के शासन प्रबन्धक थे। धार्मिक सहनशीलता तथा देश-प्रेम उनके चरित्र के विशेष गुण थे। देश-प्रेम से प्रेरित होकर उन्होंने मराठा जाति को संगठित किया और एक स्वतन्त्र हिन्दू राज्य की स्थापना की।

1. चौथ तथा सरदेशमुखी लगान के कौन-से भाग थे ?
2. शिवाजी के राज्य प्रबन्ध की मुख्य विशेषताएं बताएं।
उत्तर-
1. चौथ लगान का चौथा भाग तथा सरदेशमुखी लगान का दसवां भाग होता था।
2. शिवाजी का राज्य प्रबन्ध प्राचीन हिन्दू नियमों पर आधारित था। शासन के मुखिया वह स्वयं थे। उनकी सहायता तथा परामर्श के लिए 8 मन्त्रियों की राजसभा थी, जिसे अष्ट-प्रधान कहते थे। इसका मुखिया ‘पेशवा’ कहलाता था। प्रत्येक मन्त्री के अधीन अलग-अलग विभाग थे। प्रशासन की सुविधा के लिए राज्य को चार प्रान्तों में बांटा गया था। प्रत्येक प्रान्त एक सूबेदार के अधीन था। प्रान्त परगनों में बंटे हुए थे। शासन की सबसे छोटी इकाई गांव थी। इसका प्रबन्ध ‘पाटिल’ करते थे। शिवाजी के राज्य की आय का सबसे बड़ा साधन भूमिकर था। भूमि-कर के अतिरिक्तः चौथ, सरदेशमुखी तथा कुछ अन्य कर भी राज्य की आय के मुख्य साधन थे। न्याय के लिए पंचायातों की व्यवस्था थी। शिवाजी ने एक शक्तिशाली सेना का संगठन भी किया। उन्होंने घुड़सवार सेना भी तैयार की। घुड़सवार सिपाही पहाड़ी प्रदेशों में लड़ने में फुर्तीले होते थे। शिवाजी के पास एक समुद्री बेड़ा भी था।

(5)
1716 ई० में बन्दा बहादुर की शहीदी के पश्चात् सिक्खों के लिए अन्धकार युग आ गया। इस युग में मुग़लों ने सिक्खों का अस्तित्व मिटा देने का प्रयत्न किया। परन्तु सिक्ख अपनी वीरता और साहस के बल पर अपना अस्तित्व बनाए रखने में सफल रहे। 1716 से 1752 तक लाहौर के पांच मुग़ल सूबेदारों ने सिक्खों को दबाने के प्रयत्न किए। इनमें से पहले गवर्नर । अब्दुल समद को लाहौर से मुल्तान भेज दिया गया और उसके पुत्र जकरिया खां को लाहौर का सूबेदार बनाया गया। उसे हर प्रकार से सिक्खों को दबाने के आदेश दिए गए। उसने कुछ वर्षों तक तो अपने सैनिक बल द्वारा सिक्खों को दबाने के प्रयत्न किए। परन्तु जब उसे भी कोई सफलता मिलती दिखाई न दी तो उसने अमृतसर के निकट सिक्खों को एक बहुत बड़ी जागीर देकर उन्हें शान्त करने का प्रयत्न किया। उसने मुग़ल सम्राट् से स्वीकृति भी ले ली थी कि सिक्ख नेता को नवाब की उपाधि दी जाए। यह उपाधि कपूर सिंह को मिली और वह नवाब कपूर सिंह के नाम से प्रसिद्ध हुआ। फलस्वरूप कुछ समय तक सिक्ख शान्त रहे और उन्होंने अपने-अपने जत्थों को शक्तिशाली बनाया। इसी बीच कुछ जत्थेदारों ने फिर से मुग़लों का विरोध करना और सरकारी खजानों को लूटना आरम्भ कर दिया। इस प्रकार धीरे-धीरे मुग़लों और सिक्खों में फिर जोरदार संघर्ष छिड़ गया।

1. 1716 से 1752 तक लाहौर के किन्हीं चार मुगल सूबेदारों के नाम बताएं।
2. सिक्खों की शक्ति को कुचलने में मीर मन्नू की असफलता के कोई चार कारण बताओ ।
उत्तर-
1. 1716 से 1752 तक लाहौर के चार सूबेदार थे-अब्दुल समद खां, जकरिया खां, याहिया खां तथा मीर मन्नू।
2. सिक्खों की शक्ति को कुचलने में मीर मन्नू की असफलता के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे

  • दल खालसा की स्थापना-मीर मन्नू के अत्याचारों के समय तक सिक्खों ने अपनी शक्ति को दल खालसा के रूप में संगठित कर लिया । इसके सदस्यों ने देश, जाति तथा पन्थ के हितों की रक्षा के लिए प्राणों तक की बलि देने का प्रण कर रखा था।
  • दीवान कौड़ामल की सिक्खों से सहानूभूति-मीर मन्नू के दीवान कौड़ामल को सिक्खों से विशेष सहानुभूति थी। अतः जब कभी भी मीर मन्नू सिक्खों के विरुद्ध कठोर कदम उठाता, कौड़ामल उसकी कठोरता को कम कर देता था।
  • अदीना बेग की दोहरी नीति-जालन्धर-दोआब के फ़ौजदार अदीना बेग ने दोहरी नीति अपनाई हुई थी।
    उसने सिक्खों से गुप्त सन्धि कर रखी थी तथा दिखावे के लिए एक-दो अभियानों के बाद वह ढीला पड़ जाता था।
  • सिक्खों की गुरिल्ला युद्ध नीति-सिक्खों ने अपने सीमित साधनों को दृष्टि में रखते हुए गुरिल्ला युद्ध की नीति को अपनाया। अवसर पाते ही वे शाही सेनाओं पर टूट पड़ते और लूट-मार करके फिर जंगलों की ओर भाग जाते।

(6)
महाराजा रणजीत सिंह को शक्तिशाली सेना के महत्त्व का पूरा ज्ञान था। वह जानता था कि सेना को शक्तिशाली बनाए बिना राज्य को सुदृढ़ बनाना असम्भव है। इसलिए महाराजा ने अपनी सेना की ओर विशेष ध्यान दिया। उसने अंग्रेज़ कम्पनी से भागे हुए सैनिकों को अपनी सेना में भर्ती कर लिया। सैनिकों को यूरोपियन ढंग से संगठित करने के लिए सेना में यूरोपीय अफसरों को भी नौकरी दी गई। उनकी सहायता से पैदल तथा घुड़सवार सेना और तोपखाने को मजबूत बनाया गया। पैदल सेना में बटालियन, घुड़सवारों में रेजीमैंट और तोपखाने में बैटरी नामक इकाइयां बनाईं गईं। इसके अतिक्ति महाराजा प्रतिदिन अपनी सेना का स्वयं निरीक्षण करता था। उसने सेना में हुलिया और दाग की प्रथा भी अपनाई ताकि सैनिक अधिकारियों तथा जागीरदारों के अधीन निश्चित संख्या में सैनिक तथा घोड़े प्रशिक्षण पाते रहें। सेना को अच्छे शस्त्र जुटाने के लिए कुछ कारखाने स्थापित किए गए जिनमें तोपें, बन्दूकें तथा अन्य हथियार बनाए जाते थे। महाराजा की इस सुदृढ़ सेना से साम्राज्य भी सुदृढ़ हुआ।

1. यूरोपीय अफसरों की सहायता से महाराजा रणजीत सिंह ने अपनी सेना के कौन-से तीन अंगों को सशक्त बनाया ?
2. महाराजा रणजीत सिंह को ‘शेरे पंजाब’ क्यों कहा जाता है ?
उत्तर-
1. उसने यूरोपीय अफसरों की सहायता से सेना के पैदल, घुड़सवार तथा तोपखाना नामक अंगों को सशक्त बनाया।
2. महाराजा रणजीत सिंह एक सफल विजेता व कुशल शासक था। उसने पंजाब को एक दृढ़ शासन प्रदान किया। उसने सिक्खों को एक सूत्र में पिरो दिया। उसके राज्य में प्रजा सुखी तथा समृद्ध थी। महाराजा रणजीत सिंह कट्टर धर्मी नहीं था। उसके दरबार में सिक्ख, मुसलमान आदि सभी धर्मों के लोग थे। सरकारी नौकरियां योग्यता के आधार पर दी जाती थीं। वह बड़ा दूरदर्शी था। उसने जीवन भर अंग्रेजों से मित्रता बनाए रखी। इस तरह उसने राज्य को शक्तिशाली अंग्रेजों से सुरक्षित रखा। इन्हीं गुणों के कारण महाराजा रणजीत सिंह की गणना इतिहास के महान् शासकों में की जाती है और उसे ‘शेरे पंजाब’ के नाम से याद किया जाता है।

(7)
पुर्तगालियों, डचों तथा अंग्रेजों को भारत के साथ व्यापार करता देखकर फ्रांसीसियों के मन में भी इस व्यापार से लाभ उठाने की लालसा जागी। अतः उन्होंने भी 1664 ई० में अपनी व्यापारिक कम्पनी स्थापित कर ली। इस कम्पनी ने सूरत और मसौलीपट्टम में अपनी व्यापारिक बस्तियां बसा लीं। उन्होंने भारत के पूर्वी तट पर पांडीचेरी नगर बसाया और उसे अपनी राजधानी बना लिया। उन्होंने बंगाल में चन्द्रनगर की नींव रखी। 1721 ई० में मारीशस तथा माही पर उनका अधिकार हो गया। इस प्रकार फ्रांसीसियों ने पश्चिमी तट, पूर्वी तट तथा बंगाल में अपने पांव अच्छी तरह जमा लिए और वे अंग्रेजों के प्रतिद्वन्द्वी बन गए।

1741 ई० में डुप्ले भारत में फ्रांसीसी क्षेत्रों का गवर्नर जनरल बनकर आया। वह बड़ा कुशल व्यक्ति था और भारत में फ्रांसीसी राज्य स्थापित करना चाहता था। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए अंग्रेजों तथा फ्रांसीसियों के बीच संघर्ष होना आवश्यक था। अत: 1744 ई० से 1764 ई० तक के बीस वर्षों में भारत में फ्रांसीसियों और अंग्रेज़ों के बीच युद्ध छिड़ गया। यह संघर्ष कर्नाटक के युद्धों के नाम से प्रसिद्ध है। इन युद्धों में अन्तिम विजय अंग्रेजों की हुई। फ्रांसीसियों के पास केवल पांच बस्तियां-पांडिचेरी, चन्द्रनगर, माही, थनाओ तथा मारीशस ही रह गईं। इन बस्तियों में वे अब केवल व्यापार ही कर सकते थे।

1. फ्रांसीसियों की मुख्य दो फैक्टरियां कौन-सी थीं तथा ये कब स्थापित की गईं ?
2. फ्रांसीसी कम्पनी के विरुद्ध अंग्रेजी कम्पनी की सफलता के क्या कारण थे ?
उत्तर-
1. फ्रांसीसियों ने अपनी दो मुख्य फैक्टरियां 1674 में पांडिचेरी में तथा 1690 में चन्द्रनगर में स्थापित की।
2. फ्रांसीसी कम्पनी के विरूद्ध अंग्रेज़ी कम्पनी की सफलता के मुख्य कारण ये थे
(i) अंग्रेजों के पास फ्रांसीसियों से अधिक शक्तिशाली जहाज़ी बेड़ा था।
(ii) इंग्लैण्ड की सरकार अंग्रेजी कम्पनी की धन से सहायता करती थी। परन्तु फ्रांसीसी सरकार फ्रांसीसियों की सहायता नहीं करती थी।
(iii) अंग्रेजी कम्पनी की आर्थिक दशा फ्रांसीसी कम्पनी से काफ़ी अच्छी थी। अंग्रेज़ कर्मचारी बड़े मेहनती थे और
आपस में मिल-जुल कर काम करते थे। राजनीति में भाग लेते हुए भी अंग्रेजों ने व्यापार का पतन न होने दिया। इसके विपरीत फ्रांसीसी एक-दूसरे के साथ द्वेष रखते थे तथा राजनीति में ही अपना समय नष्ट कर देते थे।
(iv) प्लासी की लड़ाई (1756 ई०) के बाद बंगाल का धनी प्रदेश अंग्रेजों के प्रभाव में आ गया था। यहां के अपार धन से अंग्रेज़ अपनी सेना को खूब शक्तिशाली बना सकते थे।

UNIT-4

नीचे दिए गए उद्धरणों को ध्यानपूर्वक पढ़िये और अंत में दिए गए प्रश्नों के उत्तर सावधानीपूर्वक लिखिए।

(1)
1839 ई० में महाराजा रणजीत सिंह की मृत्यु हो गई। इसके पश्चात् सिक्खों का नेतृत्व करने वाला कोई योग्य नेता न रहा। शासन की सारी शक्ति सेना के हाथ में आ गई। अंग्रेजों ने इस अवसर का लाभ उठाया और सिक्ख सेना के प्रमुख अधिकारियों को लालच देकर अपने साथ मिला लिया। इसके साथ-साथ उन्होंने पंजाब के आस-पास के इलाकों में अपनी सेनाओं की संख्या बढ़ानी आरम्भ कर दी और सिक्खों के विरुद्ध युद्ध की तैयारी करने लगे। उन्होंने सिक्खों से युद्ध किये, दोनों युद्धों में सिक्ख सैनिक बड़ी वीरता से लड़े। परन्तु अपने अधिकारियों की गद्दारी के कारण वे पराजित हुए। प्रथम युद्ध के बाद अंग्रेज़ों ने पंजाब का केवल कुछ भाग अंग्रेज़ी राज्य में मिलाया और वहाँ सिक्ख सेना के स्थान पर अंग्रेज सैनिक रख दिये गये। परन्तु 1849 ई० में दूसरे सिक्ख दूसरे युद्ध की समाप्ति पर लॉर्ड डल्हौजी ने पूरे पंजाब को अंग्रेजी राज्य में मिला लिया।

1. ‘लैप्स के सिद्धान्त’ से क्या अभिप्राय था ?
2. भारत में अंग्रेजी राज्य के विस्तार में सहायक सन्धि का क्या योगदान रहा ?
उत्तर-
1. लैप्स के सिद्धान्त से अभिप्राय डल्हौज़ी के उस सिद्धान्त से था जिस के अन्तर्गत सन्तानहीन शासकों के राज्य अंग्रेजी राज्य में मिला लिए जाते थे। वे पुत्र गोद लेकर अंग्रेजों की अनुमति के बिना उसे अपना उत्तराधिकारी नियुक्त नहीं कर सकते थे।
2. भारत में अंग्रेजी राज्य के विस्तार में सहायक सन्धि का बड़ा सक्रिय योगदान रहा। इस नीति का मुख्य आधार अंग्रेज़ी शक्ति के प्रभाव को भारतीय राज्यों में बढ़ावा देना था। सबल भारतीय शक्तियां निर्बल राज्यों को हड़पने में लगी हुई थीं। इन कमज़ोर राज्यों को संरक्षण की आवश्यकता थी। वे मिटने की बजाए अर्द्ध-स्वतन्त्रता स्वीकार करने के लिए तैयार थे। सहायक सन्धि उनके उद्देश्यों को पूरा कर सकती थी। उनकी बाहरी आक्रमण और भीतरी गड़बड़ से सुरक्षा के लिए अंग्रेजी सरकार वचनबद्ध होती थी। अत: इस नीति को अनेक भारतीय राजाओं ने स्वीकार कर लिया जिनमें हैदराबाद, अवध, मैसूर, अनेक राजपूत राजा तथा मराठा प्रमुख थे। परन्तु इसके अनुसार सन्धि स्वीकार करने वाले राजा को अपने व्यय पर एक अंग्रेजी सेना रखनी पड़ती थी। परिणामस्वरूप उनकी विदेश नीति अंग्रेजों के अधीन आ जाती थी। परिणामस्वरूप भारत में अंग्रेजी राज्य का खूब विस्तार हुआ।

(2)
अंग्रेजी राज्य स्थापित होने से पूर्व भारतीय सूती कपड़ा उद्योग उन्नति की चरम सीमा पर पंहुचा हुआ था। भारत में बने सूती कपड़े की इंग्लैंड में बड़ी मांग थी। इंग्लैंड की स्त्रियां भारत के बेल-बूटेदार वस्त्रों को बहुत पसन्द करती थीं। कम्पनी ने आरम्भिक अवस्था में कपड़े का निर्यात करके खूब पैसा कमाया। परन्तु 1760 तक इंग्लैंड ने ऐसे कानून पास कर दिए जिनके अनुसार रंगे कपड़े पहनने की मनाही कर दी गई। इंग्लैंड की एक महिला को केवल इसलिए 200 पौंड जुर्माना किया गया था क्योंकि उसके पास विदेशी रूमाल पाया गया था। इंग्लैंड का व्यापारी तथा औद्योगिक वर्ग कम्पनी की व्यापारिक नीति की निन्दा करने लगा। विवश होकर कम्पनी को वे विशेषज्ञ इंग्लैंड वापस भेजने पड़े जो भारतीय जुलाहों को अंग्रेजों की मांगों तथा रुचियों से परिचित करवाते थे। इंग्लैंड की सरकार ने भारतीय कपड़े पर आयात कर बढ़ा दिया और कम्पनी की कपड़ा सम्बन्धी आयात नीति पर अनेक प्रतिबन्ध लगा दिए। इन सब बातों के परिणामस्वरूप भारत के सूती वस्त्र उद्योग को भारी क्षति पहुंची।

1. भारत में पहली कपड़ा मिल कब, किसने और कहां लगवाई ?
2. भारत में धन की निकासी किन तरीकों से होती थी ?
उत्तर-
1. कपड़े की पहली मिल मुम्बई में कावासजी नानाबाई ने 1853 में स्थापित की।
2. अंग्रेजों की आर्थिक नीति के कारण भारत को बहुत हानि हुई। देश का धन देश के काम आने के स्थान पर विदेशियों के काम आने लगा। 1757 के पश्चात् ईस्ट इण्डिया कम्पनी तथा इसके कर्मचारियों ने भारत से प्राप्त धन को इंग्लैण्ड भेजना आरम्भ कर दिया। कहते हैं कि 1756 ई० से 1765 तक लगभग 60 लाख पौंड की राशि भारत से बाहर गई।
और तो और लगान आदि से प्राप्त राशि भी भारतीय माल खरीदने में व्यय की गई। अतिरिक्त सिविल सर्विस और सेना के उच्च अफसरों के वेतन का पैसा भी देश से बाहर जाता था। औद्योगिक विकास का भी अधिक लाभ विदेशियों को ही हुआ। विदेशी पूंजीपति इस देश पर धन लगाते थे और लाभ की रकम इंग्लैण्ड में ले जाते थे। इस तरह भारत का धन कई प्रकार से विदेशों में जाने लगा।

(3)
धार्मिक और सामाजिक आन्दोलनों ने मुख्य रूप से दो महत्त्वपूर्ण सामाजिक समस्याओं पर बल दिया : स्त्रियों की भलाई तथा जाति भेद को समाप्त करना। इन कार्यक्रमों का आधार मानवीय समानता की विचारधारा थी। परन्तु समानता की यह विचारधारा केवल धर्म के क्षेत्र तक ही सीमित नहीं थी। इसका राजनीतिक महत्त्व भी था। अंग्रेजों के राज्य में कानूनी रूप से तो सभी भारतीय समान थे, परन्तु सामाजिक या राजनीतिक रूप से नहीं थे। . भारत में स्त्रियों की संख्या देश की जनसंख्या से लगभग आधी थी। विश्व के अन्य समाजों की भान्ति भारत में भी स्त्री पुरुष के अधीन थी। धर्म और कानून की व्यवस्था भी उसके पक्ष में नहीं थी। पर्दा प्रथा, सती प्रथा, बाल विवाह आदि कुप्रथाएं इसी असमानता का परिणाम थीं। धार्मिक और सामाजिक आन्दोलनों ने स्त्रियों की भलाई पर बल दिया। उनके प्रयासों का परिणाम भी अच्छा निकला। धीरे-धीरे स्त्रियों ने राजनीतिक, आर्थिक, धार्मिक और सामाजिक आन्दोलनों में स्वयं भाग लेना आरम्भ कर दिया। उन्होंने समानता की मांग की। देश के प्रमुख नेताओं ने इसका जोरदार समर्थन किया। परिणामस्वरूप स्त्रीपुरुष की समानता का आदर्श स्वीकार कर लिया गया।

1. ‘रिवाइवलिज़म’ से क्या अभिप्राय है ?
2. भारतीय नारी की दशा सुधारने के लिए आधुनिक सुधारकों द्वारा किए गए कोई चार कार्य लिखिए।
उत्तर-
1. धर्म के नाम पर तथा बीते समय का हवाला देते हुए लोगों में जागृति लाने के प्रयास को रिवाइवलिज़म का नाम दिया जाता है।
2. (i) सती-प्रथा के कारण स्त्री को अपने पति की मृत्यु पर उसके साथ जीवित ही चिता में जल जाना पड़ता था। आधुनिक समाज-सुधारकों के प्रयत्नों से इस अमानवीय प्रथा का अन्त हो गया।
(ii) विधवाओं को पुनः विवाह करने की आज्ञा नहीं थी। समाज-सुधारकों के प्रयत्नों से उन्हें दोबारा विवाह करने की आज्ञा मिल गई।
(iii) आधुनिक सुधारकों का विश्वास था कि पर्दे में बन्द रहकर नारी कभी उन्नति नहीं कर सकती, इसलिए उन्होंने स्त्रियों को पर्दा न करने के लिए प्रेरित किया।
(iv) स्त्रियों को ऊंचा उठाने के लिए समाज-सुधारकों ने स्त्री शिक्षा पर विशेष बल दिया।

(4)
प्रथम महायुद्ध के समाप्त होने पर भारतीयों को प्रसन्न करने के लिए माण्टेग्यू चेम्सफोर्ड रिपोर्ट प्रकाशित की गई। भारतीयों .. ने युद्ध में अंग्रेजों की सहायता की थी। उन्हें विश्वास था कि युद्ध में विजयी होने के पश्चात् सरकार उन्हें पर्याप्त अधिकार देगी। परन्तु इस रिपोर्ट से भारतीय निराश हो गए। सरकार भी भयभीत हो गई कि अवश्य कोई नया आन्दोलन आरम्भ होने वाला है। अत: स्थिति पर नियन्त्रण पाने के लिए सरकार ने रौलेट एक्ट पास कर दिया। इस एक्ट के अनुसार वह किसी भी व्यक्ति को बिना वकील, बिना दलील, बिना अपील बन्दी बना सकती थी। इस काले कानून का विरोध करने के लिए महात्मा गांधी आगे बढ़े। उन्होंने जस्ता को शान्तिमय ढंग से इसका विरोध करने के लिए कहा। इस शान्तिमय विरोध को उन्होंने सत्याग्रह का नाम दिया ! स्थान-स्थान पर सभाएं बुलाई गईं और जलूस निकाले गए। कांग्रेस का आन्दोलन जनता का आन्दोलन बन गया। पहली बार भारत की जनता ने संगठित होकर अंग्रेज़ों का विरोध किया। 6 अगस्त, 1919 ई० को सारे भारत में हड़ताल की गई। महात्मा गांधी ने लोगों को शान्तिमय विरोध करने के लिए कहा था। फिर भी कहीं-कहीं अप्रिय घटनाएं हुईं। 13 अप्रैल, 1919 ई० को जलियांवाला बाग की दुःखद घटना से भारतीय राजनीति में एक नया मोड़ आया। पंजाब के लोकप्रिय नेता डॉ० सत्यपाल तथा डॉ० किचलू को सरकार ने बन्दी बना लिया था। अमृतसर की जनता विरोध प्रकट करने के लिए बैसाखी के दिन जलियांवाला बाग में एकत्रित हुई। नगर में मार्शल-ला लगा हुआ था। जनरल डायर ने लोगों को चेतावनी दिए बिना ही एकत्रित लोगों पर गोली चलाने का आदेश दिया। हजारों निर्दोष स्त्री-पुरुष मारे गए। इससे सारे भारत में रोष की लहर दौड़ गई।

1. जलियांवाला बाग कांड कब और कहां हुआ तथा इसके लिए उत्तरदायी अंग्रेज़ अफसर का नाम बताएं।
2. स्वतन्त्रता आन्दोलन के इतिहास में ‘रौलेट एक्ट’ तथा ‘जलियांवाला बाग’ का क्या महत्त्व है ?
उत्तर-
1. जलियांवाला बाग का कांड 13 अप्रैल, 1919 को अमृतसर में हुआ। इसके लिए जनरल डायर उत्तरदायी था।
2. स्वतन्त्रता आन्दोलन के इतिहास में रौलेट एक्ट तथा जलियांवाला बाग का विशेष महत्त्व है। रौलेट एक्ट के अनुसार किसी भी मुकद्दमे का फैसला बिना ‘ज्यूरी’ के किया जा सकता था तथा किसी भी व्यक्ति को मुकद्दमा चलाये बिना नज़रबन्द रखा जा सकता था। इस एक्ट के कारण भारतीय लोग भड़क उठे। उन्होंने इसका कड़ा विरोध किया और स्वतन्त्रता आन्दोलन में बढ़-चढ़ कर भाग लिया। गांधी जी ने इस एक्ट के विरुद्ध अहिंसात्मक हड़ताल की घोषणा कर दी। स्थान-स्थान पर दंगे-फसाद हुए। जलियांवाला बाग में शहर के लोगों ने एक सभा का प्रबन्ध किया। स्वतन्त्रता आन्दोलन को दबाने के लिए जनरल डायर ने सभा में एकत्रित लोगों पर गोली चला दी जिसके कारण बहुत-से लोग मारे गए अथवा घायल हो गए। इस घटना से भारत के लोग और भी अधिक भड़क उठे। उन्होंने अंग्रेज़ों से स्वतन्त्रता प्राप्त करने का दृढ़ निश्चय कर लिया। इस घटना से अंग्रेज़ शासकों तथा भारतीय नेताओं के बीच एक अमिट दरार पड़ गई।

(5)
साइमन कमीशन का प्रत्येक स्थान पर भारी विरोध किया गया था। परन्तु कमीशन ने विरोध के बावजूद अपनी रिपोर्ट प्रकाशित कर दी। साइमन कमीशन की रिपोर्ट को भारत के किसी भी राजनीतिक दल ने स्वीकार नहीं किया। अतः अंग्रेजी सरकार ने भारतीयों को सर्वसम्मति से अपना संविधान तैयार करने की चुनौती दी। इस विषय में भारतीयों ने अगस्त, 1928 ई० में नेहरू रिपोर्ट प्रस्तुत की, परन्तु अंग्रेज़ी सरकार ने इस रिपोर्ट को अस्वीकार कर दिया। परिणामस्वरूप भारतीयों की निराशा और अधिक बढ़ गई।

1929 ई० में कांग्रेस का वार्षिक अधिवेशन लाहौर में हुआ। यह अधिवेशन भारत के स्वतन्त्रता संग्राम के इतिहास में विशेष महत्त्व रखता है। पण्डित जवाहर लाल नेहरू इस अधिवेशन के अध्यक्ष चुने गये। गांधी जी ने ‘पूर्ण स्वराज्य’ का प्रस्ताव पेश किया जो पास कर दिया गया। 31 दिसम्बर की आधी रात को नेहरू जी ने रावी नदी के किनारे स्वतन्त्रता का तिरंगा झण्डा फहराया। यह भी निश्चित हुआ कि हर वर्ष 26 जनवरी को स्वतन्त्रता दिवस मनाया जाये। 26 जनवरी, 1930 को यह दिन’ सारे भारत में बड़े जोश के साथ मनाया गया और लोगों ने स्वतन्त्रता प्राप्त करने की प्रतिज्ञा की। अपने उद्देश्य की पर्ति के लिए उन्होंने सरकारी कानूनों तथा संस्थाओं का बहिष्कार करने की नीति अपनाई।

1. भारतीयों ने ‘साइमन कमीशन’ का विरोध क्यों किया तथा पंजाब के कौन-से नेता इस विरोध में घायल हुए तथा उनका देहान्त कब हुआ ?
2. सविनय अवज्ञा आन्दोलन का वर्णन कीजिए। इसका हमारे स्वतन्त्रता संग्राम पर क्या प्रभाव पड़ा ।
उत्तर-
1. भारतीयों ने साइमन कमीशन का विरोध इसलिए किया क्योंकि कोई भी भारतीय इस कमीशन का सदस्य नहीं था।
लाला लाजपतराय इस विरोध में घायल हुए और 1928 में उनकी मृत्यु हो गई।
2. सविनय अवज्ञा आन्दोलन 1930 ई० में चलाया गया। इस आन्दोलन का उद्देश्य सरकारी कानूनों को भंग करके सरकार के विरुद्ध रोष प्रकट करना था। आन्दोलन का आरम्भ गान्धी जी ने अपनी डांडी यात्रा से किया। 12 मार्च,1930 ई० को उन्होंने साबरमती आश्रम से अपनी यात्रा आरम्भ की। मार्ग में अनेक लोग उनके साथ मिल गये। 24 दिन की कठिन यात्रा के बाद वे समुद्र तट पर पहुंचे और उन्होंने समुद्र के पानी से नमक बनाकर नमक कानून भंग किया। इसके बाद देश में लोगों ने सरकारी कानून को भंग करना आरम्भ कर दिया। इस आन्दोलन को दबाने के लिए सरकार ने बड़ी कठोरता से काम लिया। हज़ारों देशभक्तों को जेल में डाल दिया गया। गान्धी जी को भी बन्दी बना लिया गया। यह आन्दोलन फिर भी काफी समय तक चलता रहा। इस प्रकार इस आन्दोलन का हमारे स्वतन्त्रता संग्राम पर गहरा प्रभाव पड़ा। अब देश की जनता इसमें बढ़-चढ़ कर भाग लेने लगी।

(6)
विद्रोही सिपाहियों की एक अर्जी जो बच गई-
एक सदी पहले अंग्रेज़ हिंदुस्तान आए और धीरे-धीरे फ़ौजी टुकड़ियां बनाने लगे। इसके बाद वे हर राज्य के मालिक बन बैठे। हमारे पुरुखों ने सदा उनकी सेवा की है और हम भी उनकी नौकरी में आए। ईश्वर की कृपा से हमारी सहायता में अंग्रेजो ने जो चाहा वो इलाका जांच लिया। उनके लिए हमारे जैसे हजारों हिंदुस्तानी जवानों को अपनी कुर्बानी देनी पड़ी लेकिन न हमने कभी पैर खींचे और न कोई बहाना बनाया और न ही कभी बग़ावत के रास्ते पर चले।

लेकिन सन् 1857 में अग्रेजों ने ये हुक्म जारी कर दिया कि अब सिपाहियों को इंगलैंड से नए कारतूस और बंदूकें दी जाएंगी। इन कारतूसों में गाय और सूअर की चर्बी मिली हुई है और गेहूं के आटे में हड्डियों का चूरा मिलाया जा रहा है। ये चीजें पैदल-सेना, घुड़सवारों और गोलअंदाज फ़ौज को हर रेजीमेंट में पहुंचा दी गई हैं।

उन्होंने ये कारतूस थर्ड लाइट केवेलरी के सवारों (घुड़सवार सैनिक) को दिए और उन्हें दांतों से खींचने के लिए कहा। सिपाहियों ने इस हुक्म का विरोध किया और कहा कि वे ऐसा कभी नहीं करेंगे क्योंकि अगर उन्होंने ऐसा किया तो उनका धर्म भ्रष्ट हो जाएगा। इस पर अंग्रेज़ अफ़सरों ने तीन रेजीमेंटों के जवानों को परेड करवा दी। 1400 अंग्रेज़ सिपाही, यूरोपीय सैनिकों की दूसरी बटालियनें और घुड़सवार गोलअंदाज फौज को तैयार कर भारतीय सैनिकों को घेर लिया गया। हर पैदल रैजीमेंट के सामने छरों से भरी छह-छह तोपें तैनात कर दी गईं और 84 नए सिपाहियों को गिरफ्तार करके, बेड़ियां डालकर, जेल में बंद कर दिया गया। छावनी के सवारों को इसलिए जेल में डाला गया ताकि हम डर कर नए कारतूसों को दांतों से खींचने लगें। इसी कारण हम और हमारे सारे सहोदर इकट्ठा होकर अपनी आस्था की रक्षा के लिए अंग्रेज़ों से लड़े…. । हमें दो साल तक युद्ध जारी रखने पर मजबूर किया गया। धर्म व आस्था के सवाल पर हमारे साथ खड़े राजा और मुखिया अभी भी हमारे साथ हैं और उन्होंने भी सारी मुसीबतें झेली हैं। हम दो साल तक इसलिए लड़े ताकि हमारा अकायद (आस्था) और मज़हब दूषित न हों। अगर एक हिंदू या मुसलमान का धर्म ही नष्ट हो गया तो दुनिया में बचेगा क्या ?

1. इन सिपाहियों का संबंध किस विद्रोह से है ?
2. भारतीय जवानों ने अंग्रेजों की सहायता किस प्रकार की ?
3. 1857 में भारतीय सैनिकों में अंग्रेजों के किस आदेश से रोष फैला ?
4. सिपाहियों द्वारा नए कारतूसों का प्रयोग करने से इनकार करने पर उनके साथ कैसा व्यवहार किया गया ?
उत्तर-
1. इन सिपाहियों क संबंध 1857 के विद्रोह से है।
2. भारतीय जवानों ने अंग्रेजों के लिए अनेक प्रदेश जीते। इसके लिए अनेक कुर्बानियों देनी पड़ीं। परंतु वे कभी पीछे नहीं हटे।
3. 1857 में अंग्रेजों ने ये आदेश जारी किया कि अब सिपाहियों को इंग्लैंड से नए कारतूस और बंदूकें दी जाएंगी।
सिपाहियों का कहना था कि वे कारतूसों में गाय और सूअर की चर्बी मिली हुई है और गेहूं के आटे में हड्डियों का चूरा मिलाकर खिलाया जा रहा है। ये चीजें पैदल-सेना, घुड़सवारों और गोलअंदाज फ़ौज की हर रेजीमेंट में पहुंचा दी गई हैं। इस बात से उनमें रोष फैला।
4. सिपाहियों द्वारा नए कारतूसों का प्रयोग करने से इनकार करने पर उनके साथ कठोर व्यवहार किया गया। उन्हें ब्रिटिश जवानों द्वारा घेर लिया गया। प्रत्येक पैदल रेजीमेंट के सामने छरों से भरी छह-छह तोपें तैनात कर दी गईं। 84 नए सिपाहियों को गिरफ्तार करके, बेड़ियां डाल दी गईं और उन्हें जेल में बंद कर दिया गया।

(7)
5 अप्रैल, 1930 को महात्मा गांधी ने दांडी में कहा था-
जब मैं अपने साथियों के साथ दांडी के इस समुद्रतटीय टोले की तरफ चला था तो मुझे यकीन नहीं था कि हमें यहां तक आने दिया जाएगा। जब मैं साबरमती में था तब भी यह अफवाह थी कि मुझे गिरफ़तार किया जा सकता है। तब मैंने सोचा था कि सरकार मेरे साथियों को तो दांडी तक आने देगी लेकिन मुझे निश्चित ही यह छूट नहीं मिलेगी। यदि कोई यह कहता है कि इससे मेरे हृदय में अपूर्ण आस्था का संकेत मिलता है तो मैं इस आरोप को नकारने वाला नहीं हूं। मैं यहां तक पहुंचा हूं, इसमें शांति और अहिंसा का कम हाथ नहीं है। इस सत्ता को सब महसूस करते हैं। अगर सरकार चाहे तो वह अपने इस आचरण के लिए अपनी पीठ थपथपा सकती है क्योंकि सरकार चाहती वो हम में से प्रत्येक को गिरफ्तार कर सकती थी। जब सरकार यह कहती है कि उसके पास शांति की सेना को गिरफ्तार करने का साहस नहीं था तो हम उसकी प्रशंसा करते है। सरकार को ऐसी सेना की गिरफ्तारी में शर्म महसूस होती है। अगर कोई व्यक्ति ऐसा काम करने में शर्म महसूस करता है जो . उसके पड़ोसियों को भी रास नहीं आ सकता, तो वह एक शिष्ट-सभ्य व्यक्ति है। सरकार को हमें ऐसा करने के लिए बधाई दी जानी चाहिए भले ही उसने विश्व जनमत का ख्याल करके ही यह फैसला क्यों न लिया हो।
कल हम नमक-कर कानून तोडेंगे। सरकार उसको बर्दाश्त करती है कि नहीं यह सवाल अलग है। हो सकता है सरकार हमें ऐसा करने दे लेकिन उसने हमारे जत्थे के बारे मुख्य धैर्य और सहिष्णुता दिखायी है उसके लिए वह अभिनंदन की पात्र है …..।

यदि मुझे और गुजरात व देश भर के सारे मुख्य नेताओं को गिरफ्तार कर लिया जाता है तो क्या होगा ? यह आंदोलन इस विश्वास पर आधारित है कि जब एक पूरा राष्ट्र उठ खड़ा होता है और आगे बढ़ने लगता है तो उसे नेता की ज़रूरत नहीं रह जाती।

1. गांधीजी ने दांडी मार्च की शरूआत क्यों की ?
2. नमक यात्रा उल्लेखनीय क्यों थी ?
3. शांति और अहिंसा को सब महसूस करते हैं ? गांधी जी ने ऐसा क्यों कहा ?
उत्तर-
1. नमक कानून के अनुसार नमक के उत्पादन और विक्रय पर राज्य का एकाधिकार था। प्रत्येक भारतीय घर में नमक का प्रयोग होता था, परन्तु उन्हें घरेलू प्रयोग के लिए भी नमक बनाने से रोका गया था। इस प्रकार उन्हें दुकानों से ऊंचे दाम पर नमक खरीदने के लिए बाध्य किया गया। अत: नमक कानून के विरुद्ध जनता में काफी असंतोष था। गांधी जी भी नमक कानून को सबसे घृणित कानून मानते थे। स्वतन्त्रता संघर्ष का एक महत्त्वपूर्ण मुद्दा बन गया। गांधी जी इस कानून को तोड़कर जनता में व्याप्त असंतोष को अंग्रेज़ी शासन के विरुद्ध एकजुट करना चाहते थे। इसी नमक कानून को तोड़ने के उद्देश्य से ही गांधी जी ने दांडी मार्च शुरू किया।

2. नमक यात्रा कम-से-कम निम्नलिखित तीन कारणों से उल्लेखनीय थी।-

  • इसके चलते महात्मा गांधी दुनिया की नज़र में आए। इस यात्रा को यूरोप और अमेरिकी प्रेस ने व्यापक रूप से जाना।
  • यह पहली राष्ट्रवादी गतिविधि थी जिसमें औरतों ने भी बढ़-चढ़कर भाग लिया। समाजवादी कार्यकारी
    कमलादेवी चट्टोपाध्याय ने गांधी को समझाया था कि वे अपने आंदोलन को पुरुषों तक ही सीमित न रखें। कमलादेवी स्वयं उन असंख्य औरतों में से एक थी जिन्होंने नमक या शराब कानूनों का उल्लंघन करते हुए सामूहिक गिरफ्तारी दी थी।
  • सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह थी कि नमक यात्रा के कारण ही अंग्रेजों को यह अभास हुआ था कि अब उनका
    राज बहुत दिन नहीं टिक सकेगा और उन्हें भारतीयों को भी सत्ता में भागीदार बनाना पड़ेगा।

3. गांधी जी शांति के पुजारी थे और सत्य एवं अहिंसा में बहुत अधिक विश्वास रखते थे। उनका मानना था कि अहिंसा पर आधारित शांतिपूर्ण आंदोलन को बड़ी-से-बड़ी शक्ति भी नहीं दबा सकती। इसलिए उन्होंने यह कहा कि शांति और अहिंसा (की ताकत) को सभी महसूस करते है।

(8)
महात्मा गांधी जानते थे कि उनकी स्थिति “बीहड़ में एक आवाज़” जैसी है लेकिन फिर भी वे विभाजन की सोच का विरोध करते रहे-
किंतु आज हम कैसे दुखद परिवर्तन देख रहे हैं। मैं फिर वह दिन देखना चाहता हूं जब हिंदू और मुसलमान आपसी सलाह के बिना कोई काम नहीं करेंगे। मैं दिन-रात इसी आग में जला जा रहा हूं कि उस दिन को जल्दी-जल्दी साकार करने के लिए क्या करू। लोगों से मेरी गुजारिश है कि वे किसी भी भारतीय को अपना शत्रु न मानें….। हिंदू और मुसलमान दोनों एक ही मिट्टी से उपजे हैं। उनका खून एक है, वे एक जैसा भोजन करते हैं, एक ही पानी पीते हैं, और एक ही जबान बोलते हैं।
प्रार्थना सभा में भाषण, 7 सितंबर, 1946, कलेक्टेड वर्क्स ऑफ़ महात्मा गांधी, खंड 92, पृ० 139.

लेकिन मुझे पूरा विश्वास है कि मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान की जो मांग उठायी है वह पूरी तरह गैर-इस्लामिक है और मुझे इसको पापपूर्ण कृत्य करने से कोई संकोच नहीं है। इस्लाम मानवता की एकता और भाईचारे का समर्थक है न कि मानव परिवार की एकजुटता को तोड़ने का। जो तत्त्व भारत को एक-दूसरे के खून के प्यासे टुकड़ों में बांट देना चाहते हैं वे भारत और इस्लाम, दोनों के शत्रु हैं। भले ही वे मेरी देह के टुकड़े-टुकड़े कर दें, परंतु मुझसे ऐसी बात नहीं मनवा सकते जिसे मैं ग़लत मानता हूँ।

1. महात्मा गांधी पुनः क्या देखना चाहते थे ? व्याख्या कीजिए।
2. पाकिस्तान की मांग किस प्रकार गैर-इस्लामिक थी ? स्पष्ट कीजिए।
3. महात्मा गांधी ने ऐसा क्यों कहा कि उनकी आवाज़ बीहड़ में एक आवाज़ थी ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
1. महात्मा गांधी हिंदुओं तथा मुसलमानों को फिर से एक होता देखना चाहते थे। वे चाहते थे हिंदू तथा मुसलमान आपसी . सलाह के बिना कोई काम न करें। वास्तव में वह विभाजन की स्थिति को रोकना चाहते थे।
2. महात्मा गांधी का कहना था कि-

  • मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान की जो मांग उठायी है वह पूरी तरह गैर-इस्लामिक है। इस्लाम मानवता की एकता और भाईचारे का समर्थक है न कि मानव परिवार को तोड़ने का।
  • जो तत्त्व भारत को एक-दूसरे के खून के प्यासे टुकड़ों में बांट देना चाहते हैं और वे भारत और इस्लाम दोनों का शत्रु हैं।

3. विभाजन की बढ़ती हुई सोच के कारण देश का वातावरण विषैला हो चुका था ऐसा लगता था पूरा देश दूर-दूर तक एक वीरान जंगल की तरह फैला है जिसमें किसी की आवाज़ सुनाई नहीं दे सकती। इसलिए वह यह महसूस कर रहे थे-उनकी आवाज़ बीहड़ में एक आवाज़ के समान है।

PSEB 7th Class Social Science Solutions Chapter 6 मानवीय पर्यावरण-बस्तियाँ, यातायात तथा संचार

Punjab State Board PSEB 7th Class Social Science Book Solutions Geography Chapter 6 मानवीय पर्यावरण-बस्तियाँ, यातायात तथा संचार Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 7 Social Science Geography Chapter 6 मानवीय पर्यावरण-बस्तियाँ, यातायात तथा संचार

SST Guide for Class 7 PSEB मानवीय पर्यावरण-बस्तियाँ, यातायात तथा संचार Textbook Questions and Answers

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 1-15 शब्दों में दो

प्रश्न 1.
कृषि मानवीय बस्तियों को कैसे प्रभावित करती है ?
उत्तर-
कृषि के लिए मनुष्य को एक स्थान पर टिककर रहना पड़ता है, ताकि खेतों की उचित देखभाल की जा सके। इससे खेतों के आस-पास मानव बस्तियां विकसित हो जाती हैं।

प्रश्न 2.
पहले पहल मनुष्य ने कहां रहना आरम्भ किया ?
उत्तर-
पहले पहल मनुष्य वहां रहना पसन्द करता था, जहां पानी आसानी से प्राप्त होता था। पानी मनुष्य की कई घरेलू तथा खेती की ज़रूरतों को पूरा करता था। इसलिए मनुष्य नदी घाटियों में रहने लगा।

प्रश्न 3.
किसी स्थान का धरातल मानव बस्तियों के विकास को कैसे प्रभावित करता है ?
उत्तर-
समतल धरातल पर मानव बस्तियां बनाना आसान होता है। यहां खेती तथा रेलें-सड़कों की सुविधा होती है। इसी कारण अधिकतर नगर भारत के उत्तरी मैदान में बसे हैं। परन्तु पर्वतों पर ऊबड़-खाबड़ धरातल के कारण मानव बस्तियां कम मिलती हैं।

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प्रश्न 4.
सड़क मार्गों का क्या महत्त्व है ?
उत्तर-
सड़कें तुलनात्मक पक्ष से बनानी आसान तथा सस्ती हैं। ये एक घर से दूसरे घर तक (Door to Door) सामान पहुंचाती हैं। सड़कें ऊबड़-खाबड़ प्रदेशों में भी बनाई जा सकती हैं।

(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 50-60 शब्दों में दो

प्रश्न 1.
संसार के रेलमार्गों के बारे जानकारी देते हुए इनका महत्त्व बताओ।
उत्तर-
रेल मार्ग आवागमन का महत्त्वपूर्ण साधन है। इनके द्वारा बड़ी संख्या में मुसाफिरों तथा बहुत ज्यादा मात्रा में सामान पहुंचाया जाता है। सबसे पहले कोयले से चलने वाले रेल इंजन होते थे। अब बिजली तथा डीज़ल से चलने वाले इंजन अस्तित्व में आ गए हैं।

मैट्रो रेलें-अत्यधिक जनसंख्या के कारण स्थल पर वाहनों की भीड़ लगी रहती है। इससे छुटकारा पाने के लिए भूमिगत रेलमार्ग बिछाए गए हैं। इनको मैट्रो रेल सेवाएं कहते हैं। जैसे कि दिल्ली में ये काफी प्रचलित हो गई हैं।

संसार के प्रमुख रेलमार्ग-संसार में यूरोप तथा उत्तरी अमेरिका में रेलमार्गों का जाल बिछा हुआ है। अब सभी महाद्वीपों के तटों के साथ रेलमार्ग बनाए गए हैं। रूस (C.I.S.) के रेल मार्ग सेंट पीटर्सबर्ग को ब्लाडी वास्टक से जोड़ते हैं। इस रेलवे लाइन को ट्रांस साइबेरियन रेलवे कहते हैं। यह संसार का सबसे बड़ा रेलमार्ग है। जापान में रेलों का बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान है। जापानी रेलों में रोज़ाना बड़ी संख्या में सफर करते हैं। चीन, जापान तथा फ्रांस में बहुत तेज़ गति से चलने वाली रेलगाड़ियां बनाई गई हैं।
जापान में बुलट रेलगाड़ी 350 कि०मी० प्रति घण्टा से भी अधिक की रफ्तार से चलती है।

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प्रश्न 2.
संसार के प्रमुख जलमार्गों के नाम बताओ।
उत्तर-
जल मार्ग आवागमन का सबसे सस्ता साधन है। इन मार्गों पर समुद्री जहाज, स्टीमर, नाव चलाई जाती हैं। संसार के प्रमुख समुद्रीय मार्ग निम्नलिखित हैं –

  1. उत्तरी अन्ध महासागरीय मार्ग
  2. शान्त महासागरीय मार्ग
  3. केप मार्ग
  4. स्वेज नहर मार्ग
  5. पनामा नहर मार्ग।

प्रश्न 3.
संसार के आन्तरिक जलमार्गों के नाम बताओ।
उत्तर-
नदी (दरिया) तथा झील आन्तरिक जल-मार्ग हैं –

  1. भारत में गंगा तथा ब्रह्मपुत्र नदियां तथा केरल में स्थित झीलें जलमार्ग का काम करती हैं।
  2. यूरोप का डैनुब दरिया मध्य तथा दक्षिण यूरोप को काला सागर से मिलाता है।
  3. चीन की यंगसटी क्यिांग नदी, दक्षिणी अमेरिका की अमेज़न नदी।
  4. उत्तरी अमेरिका की पांच ऐसी झीलें हैं जो जल परिवहन द्वारा कैनेडा को यू०एस०ए० से जोड़ती हैं।

प्रश्न 4.
वायुमार्ग द्वारा संसार एक विश्वीय गांव (Global Village) बन गया। इस तथ्य को उदाहरण देकर समझाओ।
उत्तर-
वायुमार्ग सबसे तेज़ गति वाला आवागमन का साधन है। परंतु यह महंगा भी बहुत है। आज लगभग सारे देश वायु-मार्गों के द्वारा एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। इनके कारण संसार एक ग्लोबल गांव बन गया है। वास्तव में हवाई जहाज़ द्वारा यात्रा करने से समय की बहुत बचत होती है। इसलिए हवाई यात्रा बहुत लोकप्रिय हो गयी है। संसार के कई देशों में बड़े-बड़े हवाई अड्डे हैं। इन हवाई अड्डों में दिल्ली, लन्दन, पेरिस, मास्को, टोकियो, दुबई आदि के नाम लिये जा सकते हैं। इन अड्डों द्वारा लगभग पूरा संसार आपस में जुड़ा हुआ है।

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प्रश्न 5.
संसार तथा भारत की मुख्य बन्दरगाहों के नाम बताओ।
उत्तर-
संसार की प्रमुख बंदरगाहें, शंघाई (चीन), लॉस एंजल्स (यू०एस०ए०), ऑकलैंड (न्यूजीलैंड) आदि हैं। भारत की प्रमुख बन्दरगाहें कोलकाता, चेन्नई (मद्रास), कोचीन, गोआ, कांडला, मुंबई तथा विशाखापट्टनम हैं। यह भारत को बाकी संसार से जोड़ती हैं।

प्रश्न 6.
संचार के साधन कौन-कौन से हैं ? इनकी उन्नति से हमें क्या लाभ हैं ?
उत्तर-
संदेशों का आदान-प्रदान करने वाले साधन संचार के साधन कहलाते हैं। इनमें इंटरनेट, मोबाइल, टेलीफोन, रेडियो, टी.वी., समाचार-पत्र, पत्रिकाएं तथा पत्र आदि शामिल हैं।
लाभ-संचार के संसाधनों का बहुत अधिक महत्त्व है –

  1. यह शिक्षा के प्रसार तथा मनोरंजन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
  2. इनके कारण राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार को बढ़ावा मिलता है।
  3. इनसे सांस्कृतिक आदान-प्रदान में सहायता मिलती है।
    सच तो यह है कि संचार के साधन विश्व के विभिन्न देशों को आपस में जोड़ते हैं। परिणामस्वरूप विश्व एक इकाई बन गया है।

प्रश्न 7.
स्वेज नहर के विषय में विस्तृत जानकारी दें।
उत्तर-
स्वेज नहर एक महत्त्वपूर्ण अन्तर्राष्ट्रीय जलमार्ग है। यह नहर भूमध्य सागर (रोमसागर) तथा लाल सागर को मिलाती है। यह मार्ग यूरोप के देशों को दक्षिणी एशिया, ऑस्ट्रेलिया तथा पूर्वी अफ्रीका के देशों से मिलाता है।

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(ग) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 125-130 शब्दों में दो

प्रश्न 1.
बस्तियों के विकास में कौन-से कारक प्रभाव डालते हैं ? .
उत्तर-
एक ही स्थान पर बने घरों के समूह को बस्ती कहते हैं। निम्नलिखित कुछ कारण हैं जो लोगों को बस्तियां बनाने के लिए प्रेरित करते हैं।

  1. जनसंख्या का बढ़ना ।
  2. व्यवसाय का विकास
  3. नदी घाटियों में कृषि
  4. औद्योगिक विकास।

बस्तियों के विकास पर प्रभाव डालने वाले कारक

1. पानी की उपलब्धता-लोग अधिकतर उन स्थानों पर रहना पसन्द करते हैं जहां पानी आसानी से प्राप्त हो जाता है। इसी कारण ही बहुत-सी सभ्यताओं को नदी घाटियों ने जन्म दिया। उदाहरण के लिए सिन्धु घाटी सभ्यता का विकास सिन्धु नदी की घाटी में हुआ।

2. धरातल-बस्तियां बनाना/लोगों के बसने के लिए धरातल का विशेष महत्त्व है। ऊबड़-खाबड़ धरातल में मानवीय बस्तियां कम होती हैं –
(i) क्योंकि आवागमन में रुकावट आती है।
(ii) कृषि करनी भी कठिन होती है।
(iii) घर बनाने भी बड़े मुश्किल होते हैं।
इसके मुकाबले समतल धरातल वाले क्षेत्रों में सुविधाएं हैं –
(i) यातायात के लिए सड़कें तथा रेल लाइनें बनाना आसान है।
(ii) कृषि करना आसान होता है।
(iii) कृषि की उपजों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाना भी आसान है।
इसी कारण बड़े-बड़े नगर तथा महानगर समतल धरातल पर ही विकसित हुए हैं। उदाहरण-उत्तरी भारत के मैदान में बहुत उन्नत नगर विकसित हुए हैं।

3. प्राकृतिक सुन्दरता-कई नगर प्राकृतिक सुन्दरता के कारण विकसित हुए हैं। इनका विकास सैर-सपाटे के लिए हुआ है। क्योंकि सैर-सपाटा (पर्यटन) वर्तमान समय में एक प्रमुख उद्योग बन गया है इसलिए इस उद्योग ने भी बहुत सारे लोगों को रोजगार दिया है। सारे संसार से लोग इन स्थानों की प्राकृतिक सुन्दरता का आनन्द लेने के लिए आते हैं। उदाहरण-कश्मीर और गोआ अपनी प्राकृतिक सुन्दरता के कारण ही विकसित हुए हैं।

4. आवागमन तथा संचार के साधन आवागमन तथा संचार के साधन भी किसी स्थान को विकसित करने में बहुत बड़ी भूमिका निभाते हैं। आवागमन की अच्छी सुविधाओं के कारण लोगों तथा वस्तुओं को लाने तथा ले जाने में आसानी हो जाती है, जिससे आर्थिक तथा सामाजिक दृष्टि से उन्नति होती है।

प्रश्न 2.
जलमार्गों के बारे में विस्तृत जानकारी दें।
उत्तर-
1. उत्तरी अन्ध महासागर मार्ग-यह मार्ग सबसे अधिक प्रयोग में आता है। यह पश्चिमी यूरोप, संयुक्त राज्य अमेरिका तथा कैनेडा को मिलाता है। इस मार्ग के द्वारा संसार का सबसे अधिक व्यापार होता है।

2. शान्त महासागर मार्ग-यह मार्ग उत्तरी तथा दक्षिणी अमेरिका को एशिया तथा आस्ट्रेलिया से मिलाता है।

3. केप मार्ग-इस मार्ग की खोज वास्कोडिगामा ने सन् 1498 ई०. में की.। यह मार्ग पश्चिमी यूरोपीय देशों तथा अमेरिका को दक्षिणी एशिया, आस्ट्रेलिया तथा न्यूज़ीलैंड से मिलाता है। स्वेज नहर बनने से इस मार्ग का महत्त्व कम हो गया है।

4. स्वेज नहर मार्ग-स्वेज नहर भू-मध्य सागर (रूम सागर) तथा लाल सागर को मिलाती है। यह मार्ग यूरोप के देशों को दक्षिणी एशिया, आस्ट्रेलिया तथा पूर्वी अफ्रीका के देशों से जोड़ता है।

5. पनामा नहर-यह नहर पनामा गणराज्य में से बनाई गई है। यह नहर अन्ध महासागर तथा शान्त मासागर को मिलाती है। यह नहर पश्चिमी यूरोप तथा पूर्वी संयुक्त राज्य अमेरिका (यू० एस० ए०) को पश्चिमी संयुक्त राज्य अमेरिका तथा पश्चिमी एशिया से मिलाती है।

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प्रश्न 3.
मानवीय बस्तियों के विकास में यातायात के साधनों ने क्या योगदान डाला है ?
उत्तर-
आवागमन में भी बहुत आधुनिकीकरण आया है। पहले लोग आवागमन तथा सामान लाने तथा ले जाने में पालतू जानवरों का प्रयोग करते थे। तकनीकी विकास के कारण आवाजाही तथा सामान लाने तथा ले जाने की तकनीक में भी बहुत ज्यादा विकास हुआ है। कई बार देखा गया है कि किसी जगह की उसके बिल्कुल पड़ोसी की अपेक्षा दूर जगह पर ज्यादा महत्ता होती है। यदि वहां आवागमन के साधन अच्छे होंगे तो उस जगह पर उत्पन्न की या बनाई वस्तु दूर स्थान पर जहां इसकी ज्यादा आवश्यकता है, पहुंचाने से ज्यादा आर्थिक लाभ हो सकता है। इस प्रकार ऐसे स्थान जल्दी ही सांस्कृतिक तथा व्यापारिक संस्थाओं का रूप धारण कर लेते हैं। इसके अतिरिक्त जो शहर मुख्य सड़कों, रेल लाइनों तथा बन्दरगाहों के किनारे पर स्थित होते हैं, वे सांस्कृतिक तथा व्यापारिक संस्थाओं के रूप में प्रसिद्ध हो जाते हैं।

PSEB 7th Class Social Science Guide मानवीय पर्यावरण-बस्तियाँ, यातायात तथा संचार Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
पर्यावरण से क्या भाव है ?
उत्तर-
मनुष्य के आस-पास को पर्यावरण कहते हैं।

प्रश्न 2.
प्रारम्भिक मनुष्य के जीवन में कैसे क्रान्ति आई ?
उत्तर-
मनुष्य ने आग जलाना सीखा, कपड़े पहनना सीखा तथा रहने के लिए बस्ती बनाई।

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प्रश्न 3.
नदी घाटियों में कृषि का विकास क्यों हुआ ?
उत्तर-
उपजाऊ दरियाई मिट्टी के कारण।

प्रश्न 4.
Sky Scrapers से क्या भाव है ?
उत्तर-
बहु-मंजिली गगनचुम्बी इमारतें।

प्रश्न 5.
विश्व गांव से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
विश्व विशाल होते हुए भी तेज़ आवागमन के साधनों के कारण सिकुड़कर एक गांव रह गया है।

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प्रश्न 6.
एक नगर बताएं जहां मैट्रो रेल है।
उत्तर-
दिल्ली।

प्रश्न 7.
रूस के एक अन्तमर्हाद्वीपीय रेल मार्ग का नाम बताएं।
उत्तर-
ट्रांस साइबेरियन रेलमार्ग।

प्रश्न 8.
ट्रांस साइबेरियन रेलमार्ग कौन-से नगरों को जोड़ता है ?
उत्तर-
पश्चिम में सेंट पीटर्सबर्ग को पूर्व में व्लाडीवास्तक के साथ।

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प्रश्न 9.
संचार के दो नवीन साधन बताएं।
उत्तर-
इंटरनेट तथा मोबाइल।

प्रश्न 10.
जलमार्ग कहां-कहां मिलते हैं ?
उत्तर-
महासागर, सागर, नदियों, नहरों तथा झीलों में।

प्रश्न 11.
संसार का सबसे बड़ा रेलमार्ग बताएं।
उत्तर-
ट्रांस साइबेरियन रेलमार्ग।

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प्रश्न 12.
यूरोप का एक आन्तरिक जलमार्ग बताएं।
उत्तर-
डैन्यूब दरिया।

प्रश्न 13.
उत्तरी अमेरिका का आन्तरिक जलमार्ग बताएं।
उत्तर-
पांच महान् झीलें।

प्रश्न 14.
भारत के दो आन्तरिक जलमार्ग बताएं।
उत्तर-
गंगा तथा ब्रह्मपुत्र।

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प्रश्न 15.
पाइप लाइनों द्वारा किन दो पदार्थों का परिवहन होता है ?
उत्तर-
गैस तथा तेल।

प्रश्न 16.
बिजली दूर-दूर तक कैसे पहुंचाई जाती है ?
उत्तर-
इलैक्ट्रिक ग्रिड के द्वारा।

प्रश्न 17.
हवाई जहाज़ की खोज किसने की ?
उत्तर-
अमेरिका के राइट ब्रदर्ज ने।

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प्रश्न 18.
भारत के पूर्वी तट पर दो बन्दरगाहें बताएं।
उत्तर-
कोलकाता तथा चेन्नई।

प्रश्न 19.
स्वेज़ नहर कौन-से दो सागरों को जोड़ती है ?
उत्तर-
लाल सागर तथा भूमध्य सागर।

प्रश्न 20.
प्राचीन सभ्यताओं का विकास नदी घाटियों में क्यों हुआ ? उदाहरण दीजिए।
उत्तर-
नदी घाटियों पर आसानी से पानी की प्राप्ति होती थी। वहाँ उपजाऊ मिट्टी में खेती का विकास सम्भव था। रहने के लिए समतल भूमि प्राप्त थी। इसलिए आरम्भ में सिन्धु घाटी सभ्यता तथा नील घाटी सभ्यता का विकास हुआ।

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प्रश्न 21.
मानवीय बस्तियों में किस प्रकार के बदलाव आए हैं ?
उत्तर-
घरों के समूह को बस्ती कहते हैं। बस्ती मनुष्य का निवास स्थान है। आरम्भ में मनुष्य खानाबदोश जीवन व्यतीत करता था। फिर उसने कच्ची मिट्टी की झोंपड़ियां, पक्की झोंपड़ियां तथा घर बनाए। अब मनुष्य कई बहु-मंज़िली इमारतें तथा गगनचुम्बी भवन (Sky Scrapers) बना रहा है।

प्रश्न 22.
आवागमन के साधनों वाले महत्त्वपूर्ण नगर क्यों व्यापारिक केन्द्र बन जाते हैं ?
उत्तर-

  1. वस्तुओं के आवागमन में आसानी।
  2. वस्तुओं के आवागमन से आर्थिक लाभ।
  3. सांस्कृतिक तथा व्यापारिक संस्थाओं का बन जाना।
  4. रेलों, सड़कों तथा बन्दरगाहों का विकास होना।

प्रश्न 23.
मैट्रो रेलों की क्यों आवश्यकता है ?
उत्तर-

  1. धरती की ऊपरी सतह पर भूमि की कमी के कारण भूमि के नीचे मैट्रो रेलें बनाई गई हैं।
  2. बढ़ती जनसंख्या के कारण यात्रियों की अधिक संख्या को सवारी देने के लिए।
  3. आवागमन की भीड़ से बचाने के लिए।

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प्रश्न 24.
ट्रांस साइबेरियन रेलमार्ग की महत्ता बताएं।
उत्तर-
ट्रांस साइबेरियन रेलमार्ग संसार का सबसे बड़ा रेलमार्ग है। यह एक अन्तर्महाद्वीपीय मार्ग है। यह सेंट पीटर्सबर्ग तथा व्लाडीवास्तक (रूस) के नगरों को जोड़ता है। यह इस लम्बे मार्ग पर कोयले, लोहे, लकड़ी, अनाज के आवागमन के लिए महत्त्वपूर्ण है।

प्रश्न 25.
जल मार्गों के लाभ बताएं। यह सबसे सस्ता साधन क्यों है ?
उत्तर-

  1. यह समुद्री यात्राओं के लिए अच्छा साधन है।
  2. इससे अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार होता है।
  3. यह सबसे सस्ता आवागमन का साधन है।
  4. जलमार्ग बनाने पर कोई खर्च नहीं आता।
  5. इससे बड़े पैमाने पर भारी सामानं कम लागत पर भेजा जाता है।

(क) रिक्त स्थान भरी:

  1. मनुष्य ने सबसे पहले ………….. में रहना शुरू किया।
  2. सबसे पहले रेलवे इंजन …………….. से चलते थे।
  3. ………………… रेलवे संसार का सबसे बड़ा रेलमार्ग है।
  4. केप मार्ग (जलमार्ग) की खोज …………. ई० में वास्कोडिगामा ने की।

उत्तर-

  1. नदी घाटियों,
  2. कोयले,
  3. ट्रांस-साइबेरियन,
  4. 1498

PSEB 7th Class Social Science Solutions Chapter 6 मानवीय पर्यावरण-बस्तियाँ, यातायात तथा संचार

(ख) सही कथनों पर (✓) तथा ग़लत कथनों पर (✗) का चिन्ह लगाएं :

  1. बड़े-बड़े शहर समतल धरातल पर बसे हुए हैं।
  2. स्वेज नहर भूमध्य सागर (रूमसागर) तथा लाल सागर को मिलाती है।
  3. पनामा नहर अंध महासागर तथा हिन्द महासागर को आपस में मिलाती है।
  4. पंजाब में स्थित झीलें जलमार्ग का काम करती हैं।

उत्तर-

  1. (✓)
  2. (✓)
  3. (✗)
  4. (✗)

(ग) सही उत्तर चुनिए

प्रश्न 1.
बस्तियां बसाने में सहायक कारण नहीं है –
(i) समतल धरातल
(ii) पानी की सुविधा
(iii) सघन वनस्पति की समीपता।
उत्तर-
(iii) सघन वनस्पति की समीपता।

प्रश्न 2.
अन्धमहासागर तथा शान्त महासागर को एक नहर आपस में मिलाती है। उसका नाम बताइए।
(i) पानामा
(ii) स्वेज़
(iii) एस०बाई०एल०।
उत्तर-
(i) पानामा।

PSEB 7th Class Social Science Solutions Chapter 6 मानवीय पर्यावरण-बस्तियाँ, यातायात तथा संचार

प्रश्न 3.
आज हम आकाश में हवाई जहाज़ उड़ते देखते हैं। क्या आप बता सकते हैं कि सबसे पहले उड़न मशीन किसने बनाई थी?
(i) राँग ब्रदर्ज़
(ii) रॉइट ब्रदर्ज
(iii) रॉइटर ब्रदर्ज।
उत्तर-
(ii) रॉइट ब्रदर्ज।

मानवीय पर्यावरण-बस्तियाँ, यातायात तथा संचार PSEB 7th Class Social Science Notes

  • मनुष्य और पर्यावरण – मनुष्य पर्यावरण का एक क्रियाशील अंग है।
  • कृषि तथा औद्योगिक क्रान्ति – कृषि तथा औद्योगिक क्रान्ति ने मनुष्य को एक स्थायी जीवन प्रदान किया।
  • नदी घाटियां – उपजाऊ नदी घाटियां प्राचीन सभ्यताओं के केन्द्र थे, जैसे-सिन्धु घाटी, नील नदी घाटी।
  • बस्तियों का विकास – बस्तियों का विकास पानी की उपलब्धता, धरातल, प्राकृतिक सुन्दरता, यातायात (आवागमन) तथा संचार के साधनों पर निर्भर है।
  • विश्व गांव – दूरियां कम समय में तय हो जाने के कारण विश्व एक विश्व गांव (Global Village) बन गया है।
  • आवागमन के साधन – सड़कें, रेलें, जलमार्ग, वायुमार्ग तथा पाइप लाइनें प्रमुख साधन हैं।
  • प्रमुख महासागरीय मार्ग – स्वेज नहर, पनामा नहर, केप सागर, उत्तरी अन्ध महासागरीय मार्ग, शान्त महासागरीय मार्ग, प्रमुख महासागरीय मार्ग हैं।
  • संचार के साधन – डाक सेवा, टेलीफोन, मोबाइल फोन, रेडियो, मैगज़ीन, समाचार-पत्र तथा साइबर इंटरनेट प्रमुख संचार के साधन हैं।

मार्चिंग (Marching) Game Rules – PSEB 10th Class Physical Education

Punjab State Board PSEB 10th Class Physical Education Book Solutions मार्चिंग (Marching) Game Rules.

मार्चिंग (Marching) Game Rules – PSEB 10th Class Physical Education

प्रश्न
माचिंग का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
उत्तर-
सावधान
(Attention)
यह बहुत महत्त्वपूर्ण स्थिति है। पैरों की एड़ियां एक पंक्ति में परस्पर जुड़ी होती हैं तथा 30° का कोण बनाती हैं। घुटने सीधे, शरीर सीधा तथा छाती ऊपर को खींची होती है। बाजुएं शरीर के साथ लगें तथा मुट्ठियां थोड़ी सी बंद होनी चाहिए।
मार्चिंग (Marching) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education 1
गर्दन सीधी तथा अपने सामने की ओर नज़र करके तथा स्वाभाविक शरीर का भार दोनों पैरों पर बराबर, श्वास क्रिया स्वाभाविक ढंग से लेते हैं।

विश्राम
(Stand at Ease)
विश्राम में अपना बायां पैर बाईं ओर 12 इंच की दूरी तक ले जाते हैं, जिससे शरीर का सारा भार दोनों पैरों पर भी रहे तथा दोनों बाजुओं को पीछे ले जाएं जिससे दायां हाथ बाएं हाथ को पकड़े हुए होगा तथा दाएं हाथ का अंगूठा बाएं हाथ पर आराम से होगा।
मार्चिंग (Marching) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education 2
दोनों बाजुओं को सीधा रखते हुए उंगलियों को पूरी तरह से सीधा रखना है।

मार्चिंग (Marching) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education

दाएं सज
(Right Dress)
दाएं सज का निर्देश मिलने पर सभी विद्यार्थी बाएं पैर से आगे बढ़ते हुए 15 इंच के फासले पर स्थान ग्रहण करेंगे परन्तु इसमें दाईं ओर खड़ा विद्यार्थी वहां ही खड़ा होगा। पहली पंक्ति में खड़े सभी विद्यार्थी दायां हाथ अपने कन्धे के बराबर आगे को बढ़ाएंगे तथा हाथ की ऊंगलियां बंद होंगी। दूसरे विद्यार्थी उसके दाईं ओर हाथ द्वारा छूते हुए खड़े होंगे तथा बाकी उनके पीछे-पीछे खड़े होंगे। इनका परस्पर 30 इंच का फासला होगा।
मार्चिंग (Marching) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education 3

बाएं सज
(Left Dress)
बाएं सज का आदेश मिलने पर उपरोक्त सभी क्रियाएं बाएं हाथ को जाएंगी।

बाएं मुड़
(Left Turn)
मार्चिंग (Marching) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education 4
इस क्रिया में सावधान खड़े हो दो की गिनती करेंगे। एक की गिनती पर विद्यार्थी बाईं ओर 90° का कोण बनाते हुए एड़ी तथा दाएं पंजे को ऊपर उठाएंगे। इस क्रिया के बाद दो की गिनती पर 6 इंच ऊपर उठाकर अपने पैर के साथ मिलाएंगे।

दाएं मुड़
(Right Turn)
मार्चिंग (Marching) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education 5
यह क्रिया दो की गिनती में जिस प्रकार बाएं मुड़ की जाती है, उसी प्रकार दाईं एड़ी तथा बाएं पंजे को ऊपर करेंगे।

पीछे मुड़
(About Turn)
पीछे मुड़ का निर्देश मिलने पर विद्यार्थी दाईं ओर 180° का कोण बनाते हुए बाएं पैर की एड़ी तथा दाएं पैर के पंजे पर घुमेगा। इसमें शरीर का भार बराबर रखना होता है। दो गिनने पर विद्यार्थी बाएं पैर को ज़मीन से 6 इंच उठाते हुए दाएं पैर के बराबर लाएंगे तथा सावधान अवस्था में होंगे। सभी का क्रिया करते समय शरीर का भार दाएं पैर पर होगा।
मार्चिंग (Marching) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education 6
तेज़ चल
(Quick March)
इस निर्देश पर विद्यार्थी अपना बायां पैर आगे लायेगा। वह पैर ज़मीन के सामने आगे लाएगा। वह पैर ज़मीन के सामने घुटने को सीधा रखते हुए आगे लेकर जाएंगे तथा उसके साथ अपने दाएं हाथ को ऊपर घुमाते हुए कदम के स्तर तक ले जाएंगे। हाथ की उंगलियां बन्द होंगी। यह क्रिया दायां पैर आगे करते हुए दोहराएंगे तथा हाथ की स्थिति इससे विपरीत होगी। यह क्रिया एक दो गिनती पर निरन्तर चलती रहेगी।

मार्चिंग (Marching) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education

थम्म
(Halt)
थम्म का निर्देश जब दायां पैर बाएं पैर को पार करता है, तब दिया जाता है। इसके निर्देश मिलने पर विद्यार्थी, जैसे-बायां पैर जमीन को छू लेगा, दायां पैर बाएं पैर के बराबर आयेगा तथा विद्यार्थी वहीं खड़ा हो जायेगा तथा उनके दोनों हाथ बराबर होंगे तथा विद्यार्थी सावधान स्थिति में होंगे।

PSEB 11th Class Physical Education Solutions Chapter 2 शारीरिक शिक्षा और इसका महत्त्व

Punjab State Board PSEB 11th Class Physical Education Book Solutions Chapter 2 शारीरिक शिक्षा और इसका महत्त्व Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Physical Education Chapter 2 शारीरिक शिक्षा और इसका महत्त्व

PSEB 11th Class Physical Education Guide शारीरिक शिक्षा और इसका महत्त्व Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
जिन्दगी द्वारा पैदा हुई चुनौतियों से किस तरह निपटा जा सकता है ?
(How to handle the challenges generated by the life ?)
उत्तर-
आधुनिक युग में मनुष्य भौतिक पदार्थों को एकत्र करने में इतना उलझा हुआ है कि उसके पास अपने लिए ही समय नहीं है। यह युग मानव के लिए तनाव, दबाव तथा चिंता का युग बन कर रह गया है। इसीलिए अत्याधिक व्यक्ति खुशी से भरपूर और लाभदायक जीवन नहीं गुजार रहे हैं। ऐसे व्यस्तता भरे जीवन कारण प्रत्येक विषय की धारणाओं में परिवर्तन हो रहे हैं जिस कारण शारीरिक शिक्षा के क्षेत्र में भी विस्तार हुआ है। आज शारीरिक शिक्षा का सम्बन्ध शारीरिक व्यायाम के साथ-साथ मानव के जीवन के हर पक्ष के साथ है। शारीरिक शिक्षा मनुष्य को अपने व्यस्तता भरे जीवन को ठीक ढंग के साथ व्यतीत करने के लिए उसकी मदद करती है। इसके साथ मनुष्य शारीरिक कौशल, शरीर की जानकारी, जीवन-मूल्य और स्वास्थ्यपूर्ण जीवन व्यतीत करने के गुण प्राप्त करता है। इन गुणों के साथ व्यक्ति में साहस पैदा होता है और वह जीवन की मुश्किलों का सुदृढ़ता से सामना कर पाता है। आधुनिक मशीनी युग और क्रिया रहित जिंदगी में उत्पन्न हुई चुनौतियों का सामना शारीरिक शिक्षा तथा शारीरिक व्यायाम द्वारा ही किया जा सकता है।

प्रश्न 2.
शारीरिक शिक्षा की परिभाषा लिखें।
(Write the definition of Physical Education.)
उत्तर-
शारीरिक शिक्षा एक ऐसा ज्ञान है जो शरीर से सम्बन्ध रखता है। शरीर को बनावट, विकास और स्वास्थ्य देता है और इसका साधन शारीरिक क्रियाएं ही हैं। इस विषय के बारे में भिन्न-भिन्न परिभाषायें हैं जिनमें से कुछ इस तरह हैं
डैल्बर्ट उबर्टीउफर के अनुसार, “शारीरिक शिक्षा उन सभी तुजुर्षों का जोड़ है जो किसी व्यक्ति को शारीरिक हरकत द्वारा प्राप्त होते हैं।”
(“Physical Education is the sum of those experiences which come to the individual through movement.”
—Delbert Oberteuffer)
आर० कैसिडी के शब्दों में “शारीरिक शिक्षा उन सभी तबदीलियों का जोड़ है जो व्यक्ति में हरकत के द्वारा आती
(“Physical Education is the sum of change in the individual caused by experiences, which bring in motor Activity.”
—R. Cassedy)
जे०बी०नैश लिखते हैं, “शारीरिक शिक्षा समूची विद्या का वह भाग है जिसका सम्बन्ध मांसपेशियों की क्रियाओं तथा उनसे सम्बन्धित क्रियाओं के साथ है।”
(“Physical Education is that part of whole field of education that deals with big muscle activities and their related responses.”
—J.B. Nash)
चार्ल्स ए० बियोकर के अनुसार, “शारीरिक शिक्षा सम्पूर्णता का अभिन्न अंग है जिसका उद्देश्य शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक और सामाजिक तौर पर ठीक शहरी पैदा करना है, इस तक पहुंचने के लिए शारीरिक क्रियाओं का स्थान चुना गया है ताकि इसको प्राप्त कर सकें।”
(“Physical education is an integral part of total education process and has its aim the development of physical, mentally, educationally and socially fit citizens through the Medium of physical activities, selected with a view to realising these outcomes.”
—Charles A. Bucher)
जे०एफ०विलियम के अनुसार, “शारीरिक शिक्षा व्यक्ति की कुल शारीरिक क्रियाओं का जोड़ है जो कि अपनी भिन्नता के अनुसार चुनी जाती हैं तथा अपने उद्देश्य के अनुसार प्रयोग की जाती हैं।”
(“Physical Education is the sum of man’s physical activities selected and conducted as to their out comes.”
—J.F. Williams)

PSEB 11th Class Physical Education Solutions Chapter 2 शारीरिक शिक्षा और इसका महत्त्व

प्रश्न 3.
शारीरिक शिक्षा का क्या लक्ष्य है ?
(What is the aim of Physical Education ?)
उत्तर-
‘लक्ष्य’ व ‘उद्देश्य’ शब्दों में अन्तर
(Difference in the terms aim and objective)
शारीरिक शिक्षा के लक्ष्य व उद्देश्य जानने से पहले हम यह आवश्यक समझते हैं कि लक्ष्य व उद्देश्य शब्द में अंतर स्पष्ट किया जाए।
आम तौर पर लक्ष्य व उद्देश्य एक-दूसरे के लिए प्रयोग किए जाते हैं। लेकिन वास्तव में ये दोनों ही शब्द समानार्थक नहीं हैं। इन दोनों शब्दों में अंतर की एक स्पष्ट रेखा अंकित है जो इनके अर्थों में भिन्नता लाती है।

“लक्ष्य तो अंतिम निशाना होता है। जब कि उद्देश्य एक विशेष नपा-तुला व नज़र आने वाला पड़ाव है। अगर हमारा लक्ष्य सर्व उच्च मंजिल है तो उद्देश्य इस मंजिल तक पहुंचने के छोटे-छोटे पड़ाव हैं जो कि मंज़िल के रास्ते में स्थित हैं जिन से गुजर कर हम मंज़िल पर पहुंच सकते हैं।”
इस तरह हम कह सकते हैं कि मंज़िल रूपी सीढ़ी पर चढ़ने के लिए उद्देश्य सहारे का काम करते हैं।

जब शारीरिक शिक्षा का लक्ष्य उच्चकोटि के नागरिकों का निर्माण करना है तो उस व्यक्ति को शारीरिक दृष्टि के साथ हृदय-पुष्ट रखना इसका उद्देश्य है। इससे अच्छी आदत विकसित करना व उसको चरित्र वाले गुणों से जोड़ना इसके दूसरे उद्देश्य हैं। एक व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास के लक्ष्य की प्राप्ति के लिए उसका शारीरिक, मानसिक व बौद्धिक विकास करना ज़रूरी उद्देश्य है।

शारीरिक शिक्षा का लक्ष्य (Aim of Physical Education) शारीरिक शिक्षा के लक्ष्य सम्बन्धी अलग-अलग विद्वानों ने अपने-अपने तरीके के साथ विचार प्रकट किए हैं। इनमें प्रमुख विद्वानों के विचार इस तरह हैं

“शारीरिक शिक्षा का लक्ष्य एक कुशल नेतृत्व, उचित सुविधाएं व काफ़ी समय दिलाना है जिससे व्यक्ति या संगठनों को इस तरह की स्थितियों में भाग लेने का अवसर मिल सके ताकि वह शारीरिक रूप के साथ आनंददायक, मानसिक रूप के साथ संतोषजनक व सामाजिक रुख से तंदुरुस्त है।”
(“Physical Education should aim to provide the skilled leadership, adequate facilities and ample time for affording full opportunity for individuals and groups to participate in situation that are physically wholesome, mentally stimulating and satisfying and socially sound.”)

जे०आर० शरमन के विचार (Views of J.R. Sharman)_”शारीरिक शिक्षा का उद्देश्य लोगों के अनुभवों को इस सीमा तक प्रभावित करना है कि हर व्यक्ति अपनी क्षमता के अनुसार समाज में ठीक तरह रह सके, अपनी ज़रूरतों को बढ़ा सके व सुधार कर सके तथा लोगों को संतुष्ट करने की अपनी योग्यता विकसित कर सके।”
(“The aim of Physical Education is to influence the experiences of person to the extent that each individual within the limits of his capacity may be helped to adjust successfully in society, to increase and improve his wants and to develop the ability to satisfy his wants.”)

शारीरिक शिक्षा के केन्द्रीय सलाहकार बोर्ड के विचार (Views of Central Advisory Board of Physical Education)-“शारीरिक शिक्षा का उद्देश्य प्रत्येक बच्चे को शारीरिक, मानसिक व भावात्मक तौर पर योग्य बनाना है व उसमें इस तरह के निजी व सामाजिक गुण विकसित करना है जिससे वह समाज के अन्य सदस्यों के साथ स्वतन्त्रतापूर्वक रह सके व अच्छा नागरिक बन सके।”
(“’The aim of physical education is to make every child physically, mentally fit and also to develop in him such personality and social qualities as will help him live happily with others and build him as a good citizen.”)

शारीरिक शिक्षा कॉलेजों के प्रिंसीपलों के सम्मेलन में प्रकट किए गए विचार (Views expressed in conference of principles of physical training colleges)-“शारीरिक शिक्षा का उद्देश्य भारतीय बच्चों व जवानों को इस तरह के अवसर प्रदान करना है जिससे वह शारीरिक, मानसिक व भावात्मक रूप से स्वस्थ बनें तो उनमें इस तरह कुशलता व दृष्टिकोण का विकास हो जिस द्वारा वह परिवर्तनशील, समाज में अधिक समय तक एक सूत्र पैदा करते रह सकें।”
(“Physical education should aim to provide opportunities that will make the children and youth of India, Physically, mentally and constitutionally fit and develop in them the skills and attitudes conducive to long happy and creative living in the fluid changing society.”)

निष्कर्ष (Conclusion)—उपरोक्त परिभाषाओं के अध्ययन से हम इस परिणाम पर पहुंचते हैं कि शारीरिक शिक्षा का लक्ष्य मनुष्य का पूर्ण विकास करना है। लगभग सभी विद्वान् इस विचार से सहमत हैं कि शारीरिक शिक्षा के माध्यम से मनुष्य में इस तरह के गुण विकसित किए जाएं जिनसे उनका शारीरिक, मानसिक व भावात्मक विकास हो सके।

PSEB 11th Class Physical Education Solutions Chapter 2 शारीरिक शिक्षा और इसका महत्त्व

प्रश्न 4.
शारीरिक शिक्षा के किन्हीं तीन उद्देश्यों की विस्तारपूर्वक जानकारी दीजिए।
(Explain any three objectives of Physical Education in detail.)
उत्तर-
शारीरिक शिक्षा के उद्देश्य (Objectives of Physical Education)—जैसा कि पहले बताया जा चुका है कि लक्ष्य अंतिम निशाना होता है जिसकी प्राप्ति के लिए कुछ उद्देश्य होते हैं। आम तौर पर लक्ष्य एक ही होता है लेकिन उसको एकत्र करने के लिए उद्देश्य अनेक हो सकते हैं। इसी तरह शारीरिक शिक्षा का लक्ष्य तो एक ही होता है व वह है व्यक्ति का पूर्ण विकास, लेकिन इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए कई उद्देश्य हैं। शारीरिक शिक्षा के उद्देश्य सम्बन्धी अलग-अलग विद्वानों ने अपने-अपने विचार पेश किए हैं। प्रमुख विद्वानों के विचार इस तरह हैं—

  1. लॉस्की (Laski) के अनुसार शारीरिक शिक्षा के नीचे लिखे पांच उद्देश्य हैं—
    • शारीरिक पक्ष वाला विकास (Physical aspect of development)
    • भावात्मक पक्ष वाला विकास (Emotional aspect of development)
    • सामाजिक पक्ष वाला विकास (Social aspect of development)
    • बौद्धिक पक्ष वाला विकास (Intellectual aspect of development)
    • न्यूरो मांसपेशी पक्ष वाला विकास (Neuro-muscular aspect of development)
  2. जे०बी०नैश (J.B. Nash) ने शिक्षा के नीचे लिखे चार उद्देश्यों का वर्णन किया है—
    • न्यूरो मांसपेशी विकास (Neuro muscular development)
    • भावात्मक विकास (Emotional development)
    • उचित बात समझने की योग्यता का विकास (Interpretative development)
    • शारीरिक अंगों का विकास (Organic development)
  3. एक अन्य विद्वान बक बाल्टर ने शारीरिक शिक्षा के उद्देश्यों को तीन वर्गों में बांटा है। ये इस तरह “जए।
    • स्वास्थ्य (Health)
    • नैतिक आचरण (Moral character)
    • व्यर्थ समय का उचित प्रयोग (Worthy use or leisure)
  4. प्रसिद्ध विद्वान् एच० सी० बक ने शारीरिक शिक्षा के उद्देश्यों का वर्गीकरण इस तरह किया है—
    • शारीरिक अंगों का विकास (Organic development)
    • न्यूरो मांस पेशियों में तालमेल का विकास (Development of neuro muscular co-ordination)
    • खेल व शारीरिक क्रियाओं के प्रति उचित दृष्टिकोण का विकास (Development of right attitude towards play and physical activites).

PSEB 11th Class Physical Education Solutions Chapter 2 शारीरिक शिक्षा और इसका महत्त्व

प्रश्न 5.
शारीरिक शिक्षा का क्या महत्त्व है ? इसकी विस्तारपूर्वक जानकारी दीजिए।
(What is the importance of Physical Education ? Explain in detail.)
उत्तर-
शारीरिक शिक्षा का महत्त्व (Importance of Physical Education)
1. शारीरिक शिक्षा का पाठ्यक्रम (Curriculum of Physical Education)—शारीरिक शिक्षा साधारण शिक्षा का ही एक अंग है। इसके द्वारा बहुत-से गुणों को विकसित किया जा सकता है जो कि राष्ट्रीय एकता के लिए आवश्यक है। शारीरिक शिक्षा के पाठ्यक्रम द्वारा मनुष्य में सहनशीलता, सामाजिकता, नागरिकता और दूसरों के लिए प्रतिष्ठा की भावना सिखाई जा सकती है। शारीरिक शिक्षा के कार्यक्रमों में किसी प्रकार का भेदभाव नहीं होता। इसलिए यह राष्ट्रीय एकता को बनाए रखने में अपना पूरा योगदान डालती है।

2. शारीरिक शिक्षा में साम्प्रदायिकता के लिए कोई स्थान नहीं (No Place for Communalism in Physical Education)-शारीरिक शिक्षा किसी तरह भी साम्प्रदायिकता को अपने निकट नहीं आने देती। शारीरिक शिक्षा रंग-रूप, जातिवाद, धर्म, वर्ग, समुदाय के भेदभाव को स्वीकार नहीं करती। इसलिए सारी मनुष्य जाति की भलाई का ही विशेष महत्त्व है। घटिया विचारों को यह स्वीकार नहीं करती जिनके द्वारा जातिवाद के झगड़े उत्पन्न हों। साम्प्रदायिकता हमारे देश के लिए बहुत घातक है। शारीरिक शिक्षा इस खतरे को कम करते हुए राष्ट्रीय एकता में वृद्धि करती है।

3. समानता और शारीरिक शिक्षा (Equality and Physical Education) शारीरिक शिक्षा असमानता को स्वीकार नहीं करती। इसके लिए छोटा-बड़ा, अमीर-ग़रीब सभी एक-जैसे हैं। आज के युग में असमानता एक गम्भीर समस्या है। शारीरिक शिक्षा इस समस्या को समाप्त कर राष्ट्रीय एकता की भावना लोगों को प्रदान करती है।

4. प्रान्तीयवाद और शारीरिक शिक्षा (Provincialism and Physical Education) शारीरिक शिक्षा में प्रान्तीयवाद का कोई स्थान नहीं है। जब कोई खिलाड़ी शारीरिक क्रियाएं करता है उस समय उसमें प्रान्तीयवाद की कोई भावना नहीं होती है कि वह अमुक प्रान्त का निवासी है। उसको केवल मानव भलाई का लक्ष्य ही दिखाई पड़ता है। खिलाड़ी खेलते समय आपस में सहयोग रखते हुए एक-दूसरे की भावनाओं का सत्कार करते हैं, जिससे उनमें एकता में वृद्धि होती है। देश शक्तिशाली बनता है और राष्ट्रीय एकता समृद्ध होती है।

5. भाषावाद और शारीरिक शिक्षा (Linguism and Physical Education)-भारतवर्ष में अनेक भाषाएं बोली जाती हैं। कई प्रान्तों में भाषा के लिए झगड़े हो रहे हैं। कहीं पर पंजाबी, कहीं तमिल भाषा का झगड़ा, कहीं बंगला एवं उड़िया भाषाओं के नाम पर झगड़ा उत्पन्न हुआ है। एक स्थान की भाषा दूसरे स्थान पर समझने में कठिनाई आती है, परन्तु शारीरिक शिक्षा किसी भी भाषा के झगड़े में न पड़ते हुए इसे स्वीकार ही नहीं करती। अच्छा खिलाड़ी चाहे वह बंगला बोलता हो या पंजाबी, सभी को अपना भाई मानते हैं। सभी खिलाड़ी एक टीम के रूप में मैदान में आते हैं। आपसी सहयोग से अपने देश की मान-मर्यादा को बढ़ाने का प्रयास करते हैं। इस तरह शारीरिक शिक्षा भाषाओं के झगड़े को समाप्त करके राष्ट्रीय एकता में वृद्धि करने का यत्न करती है।

6. फुर्सत का समय और शारीरिक शिक्षा (Leisure Time and Physical Education)-फुर्सत का समय वह समय है जब मनुष्य के पास कोई काम करने के लिए नहीं होता। बहुत-से लोग फुर्सत का समय उपयोगी ढंग से व्यतीत नहीं करते, व्यर्थ में लड़ते-झगड़ते रहते हैं और अपना और दूसरों का नुकसान करते. रहते हैं। ये झगड़े कई बार इतने बढ़ जाते हैं जिससे देश में बहुत-सी समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं और देश की एकता एवं अखण्डता को खतरा पैदा हो जाता है। फुर्सत के समय को उपयोगी ढंग से व्यतीत करने के लिए शारीरिक शिक्षा के कार्यक्रम में बहुत-सी क्रियाएं हैं। सभी बच्चों और नवयुवकों के फुर्सत के समय के उपयोगी प्रयोग के लिए क्रियाएं होती हैं ताकि नवयुवकों की शक्ति अच्छे मार्ग पर लगाई जाए जिससे राष्ट्रीय एकता की समस्या का समाधान हो सकता है।

7. देश भक्ति , अनुशासन और सहनशीलता (Patriotism, Discipline and Tolerance)-शारीरिक शिक्षा द्वारा देश भक्ति की भावना उत्पन्न होती है। शारीरिक शिक्षा नवयुवकों में देश भक्ति की भावना पैदा करके उसके व्यक्तित्व को विकसित करती है। एन०सी०सी०, ए०सी०सी०, गर्ज़ गाइड और एन०एस०एस० द्वारा शारीरिक शिक्षा देकर उनके स्वास्थ्य में वृद्धि की जाती है। इसके साथ-साथ देश भक्ति और देश प्रेम की भावना भी पैदा की जाती है। खेलों का उद्देश्य खिलाड़ियों में इस भावना को उत्पन्न करना है और सहनशीलता की भावना में वृद्धि करना है। खेलों द्वारा खिलाड़ियों में सहनशीलता, देश भक्ति और अनुशासन आदि गुणों को विकसित करके उनको राष्ट्रीय एकता में वृद्धि करने को प्रेरित करती है।

8. राष्ट्रीय चरित्र और शारीरिक शिक्षा (National Character and Physical Education)-खेलों में सामाजिक गुणों के महत्त्व को ध्यान में रखा गया है। इनके द्वारा राष्ट्रीय एकता की भावना पैदा करना, उनमें राष्ट्रीय चरित्र का विकास करना तथा सामाजिक ज्ञान को बढ़ाना है। यदि लोगों में राष्ट्रीय चरित्र की कमी हो तो देश या कौम उन्नति नहीं कर सकते। शारीरिक शिक्षा के कार्यक्रम इस प्रकार बनाए जाते हैं जिससे नवयुवकों में देश-प्रेम तथा आदर की भावना पैदा हो जिससे राष्ट्रीय चरित्र एवं राष्ट्रीय एकता मजबूत हो। इन सभी गुणों के बिना राष्ट्रीय एकता बनी नहीं रह सकती। शारीरिक शिक्षा राष्ट्रीय चरित्र द्वारा राष्ट्रीय एकता को हमेशा बनाए रखती है।

Physical Education Guide for Class 11 PSEB शारीरिक शिक्षा और इसका महत्त्व Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

प्रश्न 1.
क्या शारीरिक शिक्षा और स्वास्थ्य शिक्षा एक ही है ?
उत्तर-
नहीं, शारीरिक शिक्षा और स्वास्थ्य शिक्षा एक नहीं है।

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प्रश्न 2.
“शारीरिक स्वास्थ्य में वृद्धि, सामाजिक गुण में वृद्धि, संस्कृति।” किसका कथन है ?
(a) एच. कलर्क
(b) हैथरिंगटन
(c) बक वाल्टर
(d) जे० बी० नैश।
उत्तर-
(a) एच. कलर्क।

प्रश्न 3.
“शारीरिक विकास के उद्देश्य , मानसिक विकास के उद्देश्य, हरकत व कार्य शक्ति के विकास, सामाजिक विकास के उद्देश्य।” यह किसका कथन है ?
(a) जे० बी० नैश
(b) हैथरिंगटन
(c) जे०आर०शरमन
(d) लॉस्की।
उत्तर-
(b) हैथरिंगटन।

प्रश्न 4.
“शारीरिक अंगों का विकास, न्यूरो मांसपेशियों में तालमेल का विकास, खेल व शारीरिक क्रियाओं के प्रति उचित दृष्टिकोण का विकास” यह उद्देश्य किस के अनुसार है ?
(a) जे० बी० नैश
(b) एच. कलर्क
(c) एच. सी. बक
(d) हैथरिंगटन।
उत्तर-
(c) एच. सी. बक।

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प्रश्न 5.
न्यूरो मांसपेशी विकास, भावात्मक विकास, उचित बात समझने की योग्यता का विकास, शारीरिक अंगों का विकास। यह उद्देश्य किसके अनुसार है ?
(a) जे० बी० नैश
(b) बक वाल्टर
(c) एच. सी. बक
(d) लॉस्की
उत्तर-
(a) जे० बी० नैश।

प्रश्न 6.
“शारीरिक शिक्षा उन सभी तुजुओं का जोड़ है जो किसी व्यक्ति को शारीरिक हरकत द्वारा प्राप्त होते हैं।” यह किसका कथन है ?
(a) डैल्बर्ट उबर्टीउफर
(b) आर कैसिडी
(c) जे०बी०नैश
(a) चार्ल्स ए०बियोकर।
उत्तर-
(a) डैल्बर्ट उबर्टीउफर।

प्रश्न 7.
शारीरिक शिक्षा क्या है ?
उत्तर-
शारीरिक शिक्षा एक ऐसा ज्ञान है जो शरीर से सम्बन्ध रखता है।

PSEB 11th Class Physical Education Solutions Chapter 2 शारीरिक शिक्षा और इसका महत्त्व

प्रश्न 8.
“शारीरिक शिक्षा व्यक्ति की कुल शारीरिक क्रियाओं का जोड़ है जो कि अपनी भिन्नता के अनुसार धुनी जाती हैं तथा अपने उद्देश्य के अनुसार प्रयोग की जाती हैं।” यह किस का कथन है ?
उत्तर-
जे० एफ० विलियम।

प्रश्न 9.
“शारीरिक शिक्षा समूची विद्या का वह भाग है जिसका सम्बन्ध मांसपेशियों की क्रियाओं तथा उनसे सम्बन्धित क्रियाओं के साथ है।” यह किसका कथन है ?
उत्तर-
जे०बी०नैश।

प्रश्न 10 .
शारीरिक शिक्षा सम्पूर्णता का अभिन्न अंग है जिसका उद्देश्य शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक और सामाजिक तौर पर ठीक शहरी पैदा करना है, इस तक पहुंचने के लिए शारीरिक क्रियाओं का स्थान चुना गया है ताकि इसको प्राप्त कर सकें।”
उत्तर-
चार्ल्स ए. बूचर।

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अति छोटे उत्तरों वाले प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
शारीरिक शिक्षा के कोई तीन उद्देश्य लिखें।
उत्तर-

  1. शारीरिक विकास,
  2. मानसिक विकास,
  3. भावनात्मक विकास।

प्रश्न 2.
शारीरिक शिक्षा का क्षेत्र लिखो।
उत्तर-
विद्यार्थियों का बहुमुखी विकास जैसे शारीरिक, मानसिक, सामाजिक और नैतिक विकास करने की अनगिनत शारीरिक क्रिया द्वारा कोशिश की जाती है।

प्रश्न 3.
शारीरिक शिक्षा के कोई तीन महत्त्व लिखें।
उत्तर-

  1. शारीरिक शिक्षा का पाठ्यक्रम
  2. शारीरिक शिक्षा में साम्प्रदायिकता के लिए कोई स्थान नहीं।
  3. देशभक्ति, अनुशासन तथा सहनशीलता।

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छोटे उत्तरों वाले प्रश्न | (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
जे० एफ० विलियम के अनुसार शारीरिक शिक्षा का लक्ष्य क्या है ?
उत्तर-
शारीरिक शिक्षा का लक्ष्य कुशल मार्गदर्शन करना है जिससे मनुष्य या संगठन को इस तरह की स्थिति में भाग लेने का अवसर मिलता है ताकि वह आनन्ददायक मानसिक रूप और प्रेरक रूप से स्वस्थ रहे।

प्रश्न 2.
शारीरिक शिक्षा सलाहकार बोर्ड के अनुसार शारीरिक शिक्षा की परिभाषा लिखो।
उत्तर-
“शारीरिक शिक्षा का उद्देश्य प्रत्येक बच्चे को शारीरिक, मानसिक व भावात्मक तौर पर योग्य बनाना है व उसमें इस तरह के निजी व सामाजिक गुण विकसित करना है जिससे वह समाज के अन्य सदस्यों के साथ स्वतन्त्रतापूर्वक रह सके व अच्छा नागरिक बन सके।”

PSEB 11th Class Physical Education Solutions Chapter 2 शारीरिक शिक्षा और इसका महत्त्व

प्रश्न 3.
शारीरिक शिक्षा के केन्द्रीय सलाहकार बोर्ड के अनुसार शारीरिक शिक्षा की परिभाषा लिखें।
उत्तर-
“शारीरिक शिक्षा का उद्देश्य प्रत्येक बच्चे को शारीरिक, मानसिक व भावात्मक तौर पर योग्य बनाना है। उसमें इस तरह के निजी व सामाजिक गुण विकसित करना है जिससे वह समाज के अन्य सदस्यों के साथ स्वतापूर्वक रह सके व अच्छ नागरिक बन सके।”

PSEB 11th Class Physical Education Solutions Chapter 2 शारीरिक शिक्षा और इसका महत्त्व

बड़े उत्तर वाला प्रश्न (Long Answer Type Question)

प्रश्न-
शारीरिक शिक्षा का क्षेत्र बताओ।
उत्तर-
आज शारीरिक शिक्षा का क्षेत्र इतना विशाल है कि खेलों से लेकर मनोरंजन और भौतिक चिकित्सा (Physiotheraphy) तक शारीरिक शिक्षा के क्षेत्र में शामिल हैं! आज शारीरिक शिक्षा विद्यार्थियों के शारीरिक मानसिक, सामाजिक, भावनात्मक और नैतिक विकास में योगदान दे रही है। शारीरिक शिक्षा का क्षेत्र निम्नलिखित क्रियाओं का सुमेल है-

1. संशोधक व्यायाम (Corrective Exercises)-इन व्यायामों द्वारा किसी खिलाड़ी या व्यक्ति की शारीरिक समस्याओं को दूर किया जा सकता है। कई बार मांसपेशियों की कमज़ोरी, हड्डियों की बनावट या चोट लगने के कारण शारीरिक त्रुटि पैदा हो जाती है। भौतिक चिकित्सा (Physiotheraphy) की मदद से हलके व्यायामों के द्वारा इन त्रुटियों का इलाज किया जा सकता है।

2. आत्म-रक्षक व्यायाम (Self Defence Activities) – इसमें वे सभी क्रियाएं शामिल होती हैं जिनकी सहायता से व्यक्ति आत्म-रक्षा कर सकता है। इन क्रियाओं के द्वारा व्यक्ति को आत्म-रक्षा करने के भिन्न भिन्न कौशल सिखाए जाते हैं। गतका, मुक्केबाजी, कराटे, कुश्ती, जूडो आदि खेल इस क्षेत्र में शामिल होती हैं।

3. ताल नाच (Rhythmics)-संगीत या ताल के साथ की जाने वाली क्रियाएं इसमें शामिल होती हैं। जैसे, डम्बल, लेज़ियम (रिदमिक जिमनास्टिक) लोक-नृत्य क्रियाएं आदि।

4. मनोरंजन क्रियाएं (Recreational Activities)-दैनिक जीवन की भाग-दौड़ के उपरांत जब मानव ऊब जाता है तो मनोरंजन उसके जीवन में दोबारा ताज़गी भरने की शक्ति रखता है। मनोरंजन के लिए मानव कई प्रकार की क्रियाएं कर सकता है, जैसे कैंप लाना, पिकनिक, पहाड़ों की सैर, मछली पकड़ना आदि। मनोरंजन की ये सभी क्रियाएं भी शारीरिक शिक्षा के क्षेत्र में ही शामिल हैं।

5. यौगिक क्रियाएं (Yogic Activites)-योग भारत की एक पुरातन विधि है जो आज पूरे संसार में प्रचलित हो रही है। योग में अलग-अलग आसन, प्राणायाम और अन्य क्रियाएं शामिल होती हैं जिनका प्रयोग व्यायाम, इलाज, ध्यान लगाने आदि के लिए किया जाता है।

6. शैक्षिक क्षेत्र (Educational Scope)-शारीरिक शिक्षा में हम अलग-अलग विषयों के बारे में जानकारी प्राप्त करते हैं, जैसे-जीव विज्ञान, शारीरिक बनावट, मनोविज्ञान, भौतिक चिकित्सा आदि। विद्यार्थी भविष्य में इन विषयों को अपने पेशे के रूप में अपना सकते हैं।

7. व्यावसायिक क्षेत्र (Vocational Scope)—शारीरिक शिक्षा सिर्फ एक खिलाड़ी ही नहीं बनाता बल्कि शारीरिक शिक्षा अध्याय, प्रशिक्षक, खेल पत्रकार, कमैंटेटर आदि प्रमुख व्यवसायों में भी जाने का अवसर प्रदान करता है।

PSEB 7th Class Social Science Solutions Chapter 7 भारत तथा विश्व (कब, कहाँ तथा कैसे)

Punjab State Board PSEB 7th Class Social Science Book Solutions History Chapter 7 भारत तथा विश्व (कब, कहाँ तथा कैसे) Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 7 Social Science History Chapter 7 भारत तथा विश्व (कब, कहाँ तथा कैसे)

SST Guide for Class 7 PSEB भारत तथा विश्व (कब, कहाँ तथा कैसे) Textbook Questions and Answers

(क) निम्नलिखित प्रश्नों का उत्तर लिखें

प्रश्न 1.
इतिहास में भारतीय उपमहाद्वीप के कौन-कौन से नाम रखे गए ?
उत्तर-
भारतीय महाद्वीप के दो नाम रखे गए–हिन्दुस्तान तथा भारतवर्ष।

प्रश्न 2.
इतिहासकारों ने भारतीय इतिहास को कितने युगों में बाँटा है ?
उत्तर-
प्राचीन युग, मध्यकालीन युग तथा आधुनिक युग।

PSEB 7th Class Social Science Solutions Chapter 7 भारत तथा विश्व (कब, कहाँ तथा कैसे)

प्रश्न 3.
भारतीय इतिहास के स्त्रोत कितनी प्रकार के हैं ?
उत्तर-
मध्यकालीन भारतीय इतिहास की जानकारी के लिए दो प्रकार के ऐतिहासिक स्रोत मिलते हैं –
I. पुरातत्त्व स्रोत
II. साहित्यिक स्रोत
I. पुरातत्त्व स्रोत- पुरातत्त्व स्रोतों में प्राचीन स्मारक, मन्दिर, शिलालेख, सिक्के, बर्तन, हथियार, आभूषण तथा चित्र शामिल हैं।

1. प्राचीन स्मारक अथवा इमारतें-इन इमारतों में मन्दिर, मस्जिद तथा किले शामिल हैं। मन्दिरों में खजुराहो, भुवनेश्वर, कोणार्क आदि का नाम लिया जा सकता है। मस्जिदों में जामा मस्जिद तथा मोती मस्जिद और किलों में जैसलमेर, जयपुर आदि मुख्य है।
PSEB 7th Class Social Science Solutions Chapter 7 भारत तथा विश्व (कब, कहाँ तथा कैसे) 1
2. शिलालेख-शिलालेख हमें आरम्भिक (पूर्व) मध्यकाल के भिन्न-भिन्न पहलुओं की जानकारी देते हैं। इनसे हमें मध्ययुग की महत्त्वपूर्ण घटनाओं, शासकों तथा उनके शासनकाल एवं गुणों, कला के नमूनों, प्रशासनिक गतिविधियों आदि का पता चलता है।
PSEB 7th Class Social Science Solutions Chapter 7 भारत तथा विश्व (कब, कहाँ तथा कैसे) 2
3. सिक्के-हमें मध्ययुग के बहुत अधिक सिक्के प्राप्त हुए हैं। ये इस युग की महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक घटनाओं तथा प्रसिद्ध व्यक्तियों की जानकारी देते हैं। कुछ सिक्के उस समय की आर्थिक दशा पर भी प्रकाश डालते हैं।

4. चित्रकारी-चित्रकारी से हमें मध्ययुग की साधारण जानकारी के साथ-साथ उस समय की कला के विकास का भी पता चलता है।

II. साहित्यिक स्रोत-साहित्यिक स्रोतों में आत्मकथाएं, जीवन कथाएं, राजा तथा राजवंशों के वृत्तांत, दस्तावेज़ आदि शामिल हैं। बाबर, जहांगीर की आत्मकथाएं हमें विभिन्न शासकों की महत्त्वपूर्ण जानकारी देती हैं। दस्तावेज़ भिन्न-भिन्न शासकों के बीच हुई सन्धियों पर प्रकाश डालते हैं।

प्रश्न 4.
विदेशी यात्रियों के लेख किस प्रकार ऐतिहासिक स्रोत हैं ?
उत्तर-
विदेशी यात्रियों के लेख मध्यकालीन इतिहास के महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक स्रोत हैं। मध्ययुग में कई मुस्लिम तथा यूरोपीय यात्रियों ने भारत की यात्रा की। उन्होंने भारत के बारे में अपने-अपने लेख लिखे। ये लेख मध्ययुग से सम्बन्धित कई बातों की जानकारी देते हैं।

  1. इन-बतूता के किताब ‘उल-रिहला’ लेख से मुहम्मद-बिन-तुगलक के शासन की जानकारी मिलती है।
  2. अलबेरूनी का भारत सम्बन्धी लेख भी काफ़ी महत्त्वपूर्ण है।
  3. अब्दुल राजाक ने विजय नगर राज्य की यात्रा की। उसने उस समय के विजय नगर राज्य की स्थिति के बारे में लिखा।
  4. यूरोपीयन यात्रियों ने अपनी भारत यात्रा के बारे में कई लेख लिखे जो उस समय की भारतीय दशा पर प्रकाश डालते हैं।

(ख) निम्नलिखित रिक्त स्थानों की पूर्ति करें

  1. भारतीय उपमहाद्वीप को पूर्व काल में ……………… कहा जाता था।
  2. भारत में ………………. को परिवर्तन की शताब्दी माना जाता है।
  3. चीन निवासियों ने भारत को ……………… का नाम दिया।
  4. स्मारक, शिलालेख तथा सिक्के आदि भारतीय इतिहास के …………… स्रोत हैं, जबकि आत्मकथा तथा जीवनगाथा ………………… स्रोत हैं।
  5. इब्नबतूता एक ………………… यात्री था।

उत्तर-

  1. हिन्दुस्तान,
  2. आठवीं शताब्दी,
  3. ताइन चूँ,
  4. पुरातत्व, पुरातत्व साहित्य,
  5. विदेशी।

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(ग) निम्नलिखित प्रत्येक वाक्य के सामने ठीक (✓) अथवा गलत (✗) का चिह्न लगाएं

  1. मध्यकालीन युग प्रारम्भिक मध्यकालीन युग एवं उत्तर-मध्यकालीन युगों में बँटा हुआ था।
  2. मध्यकालीन युग दौरान बहुत-से सामाजिक रीति-रिवाज और धार्मिक विश्वास अस्तित्व में नहीं आए थे।
  3. मध्यकालीन युग में व्यापार एवं वाणिज्य के विकास के लिए विशेष सुधार किए गए।
  4. मध्यकालीन युग दौरान हिन्दुओं तथा मुसलमानों में आपसी सम्बन्ध स्थापित नहीं थे।

उत्तर-

  1. (✓)
  2. (✗)
  3. (✓)
  4. (✗)

PSEB 7th Class Social Science Guide भारत तथा विश्व (कब, कहाँ तथा कैसे) Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
मध्यकालीन युग से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
इतिहास के प्राचीन युग तथा आधुनिक युग के बीच के समय को मध्यकालीन युग कहते हैं।

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प्रश्न 2.
भारत में किस काल को मध्यकालीन युग कहा जाता है ?
उत्तर-
भारत में 8वीं शताब्दी से लेकर 18वीं शताब्दी के बीच के समय को मध्यकालीन युग कहा जाता है।

प्रश्न 3.
भारत में 8वीं शताब्दी को परिवर्तन की शताब्दी क्यों माना जाता है ?
उत्तर-
भारत में 8वीं शताब्दी में समाज, राजनीति, अर्थव्यवस्था, सभ्याचार तथा धर्म में बहुत-से परिवर्तन आए। इसी कारण भारत में 8वीं शताब्दी को परिवर्तन की शताब्दी माना जाता है।

प्रश्न 4.
भारत को किस काल में ‘आर्यवर्त’ का नाम दिया गया है ? इसका शाब्दिक अर्थ क्या है ?
उत्तर-
भारत को वैदिक काल में आर्यवर्त का नाम दिया गया है। इसका शाब्दिक अर्थ है-आर्यों का देश।

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प्रश्न 5.
भारत में मध्यकालीन युग को कौन-कौन से दो भागों में बांटा जा सकता है ?
उत्तर-
भारत में मध्यकालीन युग को निम्नलिखित दो भागों में बांटा जाता है –

  1. 8वीं शताब्दी से लेकर 13वीं शताब्दी के आरम्भ तक के समय को आरम्भिक अथवा पूर्व मध्यकालीन युग कहा जाता है।
  2. 13वीं शताब्दी से 18वीं शताब्दी तक का समय उत्तर मध्यकालीन युग कहलाता है।

प्रश्न 6.
अकबर के प्रसिद्ध संगीतकार का नाम बताओ।
उत्तर-
अकबर के दरबार का प्रसिद्ध संगीतकार तानसेन था।

प्रश्न 7.
इतिहास ने भिन्न-भिन्न युगों में भारत को भिन्न-भिन्न नाम दिए। व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
निम्नलिखित तथ्यों से पता चलता है कि इतिहास ने भिन्न युगों में भारत को भिन्न नाम दिए –

  1. वैदिक काल में भारत को आर्यवर्त कहा जाता था।
  2. महाभारत तथा पुराणों के समय में राजा भरत के नाम पर हमारे देश को भारतवर्ष कहा जाने लगा।
  3. ईरानियों ने इसे ‘हिन्दू’ तथा यूनानियों ने इसे इण्डस का नाम दिया।
  4. बाइबल में भारत को होडू कहा गया है।
  5. जब चीन में बौद्ध धर्म का प्रसार हुआ तो चीनियों ने भारत को ताइन-चूं का नाम दिया।
  6. ह्यूनसांग की भारत यात्रा के बाद भारत को इंटू कहा जाने लगा।

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प्रश्न 8.
भारत में मध्यकालीन युग का अंत कब माना जाता है ?
उत्तर-
भारत में मध्यकालीन युग का अन्त मुग़ल साम्राज्य के पतन तथा अंग्रेजों द्वारा शक्ति पकड़ने के साथ माना जाता है। ऐसा 18वीं शताब्दी के मध्य में हुआ।

प्रश्न 9.
संगीत ऐतिहासिक जानकारी प्राप्त करने का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत है। वर्णन कीजिए।
उत्तर-
इसमें कोई संदेह नहीं कि संगीत भी ऐतिहासिक जानकारी प्राप्त करने का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत है। उदाहरण के लिए हम मुग़ल काल को लेते हैं। मुग़ल शासक संगीत प्रेमी थे। इसलिए उनके शासन काल में संगीत का बहुत अधिक विकास हुआ। अकबर ने तो अपने दरबार में अनेक संगीतकारों को संरक्षण दिया हुआ था। तानसेन उसके समय का प्रसिद्ध संगीतकार था। मुग़लकाल में संगीत के माध्यम से ही हिन्दू तथा मुस्लिम संस्कृति का मेल हुआ।

प्रश्न 10.
मध्यकालीन युग में भारतीय उपमहाद्वीप में कौन-कौन से देश शामिल थे?
उत्तर-
मध्यकालीन युग में भारतीय उपमहाद्वीप में आज के छ: देश शामिल थे। ये देश थे-पाकिस्तान, अफ़गानिस्तान, नेपाल, भूटान, बांग्लादेश तथा भारत।

PSEB 7th Class Social Science Solutions Chapter 7 भारत तथा विश्व (कब, कहाँ तथा कैसे)

प्रश्न 11.
मध्यकालीन युग के दौरान प्रमुख ऐतिहासिक प्रवृत्तियों का वर्णन करो।
उत्तर-
मध्यकालीन युग की ऐतिहासिक प्रवृत्तियां इस युग को प्राचीन युग से अलग करती हैं। इनमें से प्रमुख प्रवृत्तियाँ निम्नलिखित हैं –

  1. मध्यकाल में भारत में मुसलमान आए और उनका हिन्दुओं से मेलजोल बढ़ा। परिणामस्वरूप मिश्रित सभ्यता
    जन्म हुआ।
  2. मध्यकाल में बहुत-सी भाषाओं का विकास हुआ जो हम आज भी बोलते हैं। इनमें से हिन्दी तथा उर्दू प्रमुख थीं।
  3. इस युग में हमारे बहुत से सामाजिक रीति-रिवाजों, रस्मों तथा धार्मिक विश्वासों की उत्पत्ति हुई।
  4. इस काल में भारत के बाहरी संसार के साथ गहरे आपसी सम्बन्ध स्थापित हुए। व्यापार के कारण संसार के भिन्न-भिन्न भागों में रहने वाले लोग एक-दूसरे के निकट आए। उन्होंने एक-दूसरे के रीति-रिवाज अपनाए। भारत ने भी अन्य देशों से अनेक रीति-रिवाज ग्रहण किये।
  5. भारत में भक्ति मत तथा सूफी मत का प्रचार हुआ। इससे हिन्दुओं तथा मुसलमानों को एक-दूसरे के धर्मों के सिद्धान्तों को समझने में सहायता मिली।
  6. मध्ययुग में व्यापार तथा वाणिज्य के विकास के लिए महत्त्वपूर्ण सुधार किये गये।

(क) सही कथनों पर (✓) तथा ग़लत कथनों पर (✗) का चिन्ह लगाएं :

  1. शिलालेख साहित्यिक स्त्रोत हैं।
  2. मुग़ल शासक संगीत प्रेमी थे।
  3. इब्न-बतूता के लेख से हमें अकबर के शासनकाल की जानकारी मिलती है।

उत्तर-

  1. (✗)
  2. (✓)
  3. (✗)

(ख) सही जोड़े बनाएं:

  1. अब्दुल रज्जाक – अकबर
  2. तानसेन – विजयनगर राज्य
  3. इण्डस – यूनसांग
  4. इंटू – ग्रीक

उत्तर-

  1. अब्दुल रज्जाक – विजयनगर राज्य
  2. तानसेन – अकबर
  3. इण्डस – ग्रीक
  4. इंटू – यूनसांग

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(ग) सही उत्तर चुनिए :

प्रश्न 1.
‘किताब-उल-रिहला’ भारत में आने वाले एक विदेशी का लेख है। बताइए वह कौन था?
(i) अल्बेरुनी
(ii) इब्न-बतूता
(iii) अब्दुल रज्जाक।
उत्तर-
(ii) इब्न-बतूता।

प्रश्न 2.
चित्र में दिखाया गया व्यक्ति अकबर के समय का प्रसिद्ध संगीतकार था।
PSEB 7th Class Social Science Solutions Chapter 7 भारत तथा विश्व (कब, कहाँ तथा कैसे) 3
(i) तानसेन
(ii) अब्दुल रज्जाक
(iii) अलबेरुनी।
उत्तर-
(i) तानसेन।

प्रश्न 3.
चित्र में दिखाया गया स्रोत साहित्यिक स्रोतों में शामिल है? यह क्या है?
PSEB 7th Class Social Science Solutions Chapter 7 भारत तथा विश्व (कब, कहाँ तथा कैसे) 4
(i) आत्मकथा
(ii) अकबर का सिक्का
(iii) चित्रकारी।
उत्तर-
(ii) अकबर का सिक्का ।

PSEB 7th Class Social Science Solutions Chapter 7 भारत तथा विश्व (कब, कहाँ तथा कैसे)

भारत तथा विश्व (कब, कहाँ तथा कैसे) PSEB 7th Class Social Science Notes

  • इतिहास के काल – किसी देश के इतिहास को प्रायः तीन कालों अथवा युगों में बांटा जाता है-प्राचीन युग, मध्यकालीन युग तथा आधुनिक युग।
  • मध्यकालीन युग – इतिहास के प्राचीन युग तथा आधुनिक युग के बीच के समय को मध्यकालीन युग कहते हैं। भारत में 8वीं शताब्दी से लेकर 18वीं शताब्दी के बीच के समय को मध्यकालीन युग कहा जाता है।
  • 8वीं शताब्दी का महत्त्व – भारत में 8वीं शताब्दी को परिवर्तन शताब्दी माना जाता है क्योंकि इस शताब्दी में भारत में समाज, राजनीति, अर्थव्यवस्था, सभ्याचार तथा धर्म में बहुत-से परिवर्तन आए।
  • मध्ययुग में भारत के नाम – मध्ययुग में भारतीय उपमहाद्वीप को हिन्दुस्तान अथवा भारतवर्ष के नाम से पुकारा जाता था।
  • मध्यकालीन युग में भारतीय उपमहाद्वीप में शामिल देश – मध्यकालीन युग में भारतीय उपमहाद्वीप में आज के छ: देश शामिल थे। ये देश थे-पाकिस्तान, अफ़गानिस्तान, नेपाल, भूटान, बांग्लादेश तथा भारत।
  • मध्यकालीन भारतीय इतिहास के स्रोत – मध्यकालीन भारतीय इतिहास की जानकारी के लिए दो प्रकार के ऐतिहासिक स्रोत मिलते हैं। पुरातत्त्व स्रोत तथा साहित्यिक स्रोत।
  • पुरातत्त्व स्रोत – पुरातत्त्व स्रोतों में प्राचीन स्मारक, मंदिर, शिलालेख, सिक्के, बर्तन, हथियार, आभूषण तथा चित्र शामिल हैं।
  • साहित्यिक स्रोत – साहित्यिक स्रोतों में आत्मकथाएं, जीवन कथाएं, राजा तथा राजवंशों के वृत्तांत, दस्तावेज़ आदि शामिल हैं।
  • विदेशी यात्रियों के लेख – मध्ययुग में कई मुस्लिम तथा यूरोपीय यात्रियों ने भारत की यात्रा की। उन्होंने भारत के बारे में अपने-अपने लेख लिखे। ये लेख मध्ययुग से संबंधित कई बातों की जानकारी देते हैं।

PSEB 10th Class SST Solutions History उद्धरण संबंधी प्रश्न

Punjab State Board PSEB 10th Class Social Science Book Solutions History उद्धरण संबंधी प्रश्न.

PSEB 10th Class Social Science Solutions History उद्धरण संबंधी प्रश्न

(1)

‘पंजाब’ फ़ारसी के दो शब्दों-‘पंज’ तथा ‘आब’ के मेल से बना है। इसका अर्थ है-पाँच पानियों अर्थात् पांच दरियाओं की धरती। ये पांच दरिया हैं-सतलुज, ब्यास, रावी, चिनाब व जेहलम। पंजाब भारत की उत्तर-पश्चिमी सीमा पर स्थित है। 1947 ई० में भारत का बंटवारा होने पर पंजाब दो भागों में बांटा गया। इसका पश्चिमी भाग पाकिस्तान बना दिया गया। पंजाब का पूर्वी भाग वर्तमान भारतीय गणराज्य का उत्तरी-पश्चिमी सीमा-प्रान्त बन गया है। पाकिस्तानी पंजाब जिसे पश्चिमी पंजाब कहा जाता है, में आजकल तीन दरिया-रावी, चिनाब व जेहलम बहते हैं। भारतीय पंजाब जिसे कि ‘पूर्वी पंजाब’ कहा जाता है, में दो दरिया ब्यास व सतलुज ही रह गए हैं। वैसे यह नाम ‘पंजाब’ इतना सर्वप्रिय है कि दोनों पंजाब के लोग आज भी अपने-अपने हिस्से में आए पंजाब को ‘पश्चिमी’ या ‘पूर्वी’ कहने की बजाए ‘पंजाब’ ही कहते हैं। हम इस पुस्तक में जमुना तथा सिंध के मध्य पुरातन पंजाब के बारे में पढ़ेंगे।
(a) पंजाब किस भाषा के शब्द-जोड़ से मिलकर बना है? इसका अर्थ भी बताएं।
उत्तर-
‘पंजाब’ फ़ारसी के दो शब्दों-‘पंज’ तथा ‘आब’ के मेल से बना है। जिसका अर्थ है-पांच पानियों अर्थात् पांच दरियाओं (नदियों) की धरती।।
(b) भारत के बंटवारे के बाद ‘पंजाब’ शब्द उचित क्यों नहीं रह गया ?
उत्तर-
बंटवारे से पहले पंजाब पांच दरियाओं की धरती था, परन्तु बंटवारे के कारण इसके तीन दरिया पाकिस्तान में चले गए और वर्तमान पंजाब में केवल दो दरिया (ब्यास तथा सतलुज) ही शेष रह गए।
(c) किन्हीं तीन दोआबों का संक्षिप्त वर्णन करो।
उत्तर-

  1. दोआबा सिन्ध सागर-इस दोआबे में दरिया सिन्ध तथा दरिया जेहलम के मध्य का प्रदेश आता है। यह भाग अधिक उपजाऊ नहीं है।
  2. दोआबा चज-चिनाब तथा जेहलम नदियों के मध्य क्षेत्र को चज दोआबा के नाम से पुकारते हैं। इस दोआब के प्रसिद्ध नगर गुजरात, भेरा तथा शाहपुर हैं।
  3. दोआबा रचना-इस भाग में रावी तथा चिनाब नदियों के बीच का प्रदेश सम्मिलित है जो काफ़ी उपजाऊ है। गुजरांवाला तथा शेखुपुरा इस दोआब के प्रसिद्ध नगर हैं।

(2)

इब्राहिम लोधी के बुरे व्यवहार के कारण अफगान सरदार उससे नाराज थे। अपनी नाराजगी जाहिर करने के लिए उन्होंने आलम खाँ को दिल्ली का शासक बनाने की योजना बनाई। उन्होंने इस उद्देश्य के लिए बाबर की सहायता लेने का फैसला किया। परन्तु 1524 ई० में अपने जीते हुए इलाकों का प्रबन्ध करके बाबर काबुल गया ही था कि दौलत खाँ लोधी ने अपनी सेनाएँ इकट्ठी करके अब्दुल अज़ीज से लाहौर छीन लिया। उसके उपरान्त उसने सुलतानपुर में से दिलावर खाँ को निकाल कर दीपालपुर में आलम खाँ को भी हरा दिया। आलम खाँ काबुल में बाबर की शरण में चला गया। फिर दौलत खाँ लोधी ने सियालकोट पर हमला किया पर वह असफल रहा। दौलत खाँ की बढ़ रही शक्ति को समाप्त करने के लिए तथा बाबर की सेना को पंजाब में से निकालने के लिए इब्राहिम लोधी ने फिर अपनी सेना भेजी। दौलत खाँ लोधी ने उस सेना को करारी हार दी। परिणाम स्वरूप केन्द्रीय पंजाब में दौलत खाँ लोधी का स्वतन्त्र राज्य स्थापित हो गया।
(a) इब्राहिम लोधी के किन्हीं दो अवगुणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-

  1. इब्राहिम लोधी पठानों के स्वभाव तथा आचरण को नहीं समझ सका।
  2. उसने पठानों में अनुशासन स्थापित करने का असफल प्रयास किया।

(b) दिलावर खां लोधी दिल्ली क्यों गया ? इब्राहिम लोधी ने उसके साथ क्या बर्ताव किया?
उत्तर-
दिलावर खां लोधी अपने पिता की ओर से आरोपों की सफाई देने के लिए दिल्ली गया। इब्राहिम लोधी ने दिलावर खां को खूब डराया धमकाया। उसने उसे यह भी बताने का प्रयास किया कि विद्रोही को क्या दण्ड दिया जा सकता है। उसने उसे उन यातनाओं के दृश्य दिखाए जो विद्रोही लोगों को दी जाती थीं और फिर उसे बन्दी बना लिया। परन्तु वह किसी-न-किसी तरह जेल से भाग निकला। लाहौर पहुंचने पर उसने अपने पिता को दिल्ली में हुई सारी बातें सुनाईं। दौलत खां समझ गया कि इब्राहिम लोधी उससे दो-दो हाथ अवश्य करेगा।

PSEB 10th Class SST Solutions History उद्धरण संबंधी प्रश्न

(3)

गुरु नानक देव जी से पहले पंजाब में मुसलमान शासकों की सरकार थी। इसलिए मुसलमान सरकार में ऊँची से ऊँची पदवी प्राप्त कर सकते थे। उनके साथ सम्मान जनक व्यवहार किया जाता था। सरकारी न्याय उनके पक्ष में ही होता था। उस समय का मुस्लिम समाज चार श्रेणियों में बंटा हुआ था-अमीर तथा सरदार, उलेमा व सैय्यद, मध्य श्रेणी व गुलाम।
मुस्लिम समाज में महिलाओं को कोई सम्मानयोग्य स्थान प्राप्त नहीं था। अमीरों तथा सरदारों की हवेलियों में स्त्रियों के ‘हरम’ होते थे। इन स्त्रियों की सेवा के लिए दासियाँ तथा रखैलें रखी जाती थीं। उस समय पर्दे का रिवाज आम था। साधारण मुसलमान घरों में स्त्रियों के रहने के लिए पर्देदार अलग स्थान बना होता था। उस स्थान को ‘जनान खाना’ कहा जाता था। इन घरों की स्त्रियाँ बुर्का पहन कर बाहर निकलती थी। ग्रामीण मुसलमानों में सख्त पर्दे की प्रथा नहीं थी।
(a) मुस्लिम समाज कौन-कौन सी श्रेणियों में बंटा हुआ था?
उत्तर-
15वीं शताब्दी के अन्त में मुस्लिम समाज चार श्रेणियों में बंटा हुआ था-

  1. अमीर तथा सरदार,
  2. उलेमा तथा सैय्यद,
  3. मध्य श्रेणी तथा
  4. गुलाम अथवा दास।

(b) मुस्लिम समाज में महिलाओं की दशा का वर्णन करो।
उत्तर-
मुस्लिम समाज में महिलाओं की दशा का वर्णन इस प्रकार है

  1. महिलाओं को समाज में कोई सम्मान जनक स्थान प्राप्त नहीं था।
  2. अमीरों तथा सरदारों की हवेलियों में स्त्रियों को हरम में रखा जाता था। इनकी सेवा के लिए दासियां तथा रखैलें रखी जाती थीं।
  3. समाज में पर्दे की प्रथा प्रचलित थी। परन्तु ग्रामीण मुसलमानों में पर्दे की प्रथा सख्त नहीं थी।
  4. साधारण परिवारों में स्त्रियों के रहने के लिए अलग स्थान बना होता था। उसे ‘जनान खाना’ कहा जाता था। यहां से स्त्रियां बुर्का पहन कर ही बाहर निकल सकती थीं।

(4)

ज्ञान-प्राप्ति के बाद जब गुरु नानक देव जी सुलतानपुर लोधी वापस पहुंचे तो वे चुप थे। जब उन्हें बोलने के लिए मजबूर किया गया तो उन्होंने केवल यह कहा-‘न कोई हिन्द्र न मुसलमान।’ जब दौलत खाँ, ब्राह्मणों तथा काज़ियों ने इस वाक्य का अर्थ पूछा तो गुरु साहिब ने कहा कि हिन्दू व मुसलमान दोनों ही अपने-अपने धर्मों के सिद्धान्तों को भूल चुके हैं। इन शब्दों का अर्थ यह भी था कि हिन्दू व मुसलमानों में कोई फर्क नहीं तथा वे एक समान हैं। उन्होंने इन महत्त्वपूर्ण शब्दों से अपने संदेश को शुरू किया। उन्होंने अपना अगला जीवन ज्ञान-प्रचार में व्यतीत कर दिया। उन्होंने अपनी नौकरी से इस्तीफा देकर लम्बी उदासियां (यात्राएँ) शुरू कर दी।
(a) गुरु नानक देव जी ने ज्ञान प्राप्ति के बाद क्या शब्द कहे तथा उनका क्या भाव था?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी ने ज्ञान प्राप्ति के बाद ये शब्द कहे-‘न कोई हिन्दू न कोई मुसलमान।’ इसका भाव था कि हिन्दू तथा मुसलमान दोनों ही अपने धर्म के मार्ग से भटक चुके हैं।
(b) गुरु नानक देव जी के परमात्मा सम्बन्धी विचारों का संक्षेप में वर्णन करो।
उत्तर-
गुरु नानक देव जी के परमात्मा सम्बन्धी विचारों का वर्णन इस प्रकार है

  1. परमात्मा एक है-गुरु नानक देव जी ने लोगों को बताया कि परमात्मा एक है। उसे बांटा नहीं जा सकता। उन्होंने एक ओंकार का सन्देश दिया।
  2. परमात्मा निराकार तथा स्वयंभू है-गुरु नानक देव जी ने परमात्मा को निराकार बताया और कहा कि परमात्मा का कोई आकार व रंग-रूप नहीं है। फिर भी उसके अनेक गुण हैं जिनका वर्णन शब्दों में नहीं किया जा सकता। उनके अनुसार परमात्मा स्वयंभू तथा अकालमूर्त है। अतः उसकी मूर्ति बना कर पूजा नहीं की जा सकती।
  3. परमात्मा सर्वव्यापी तथा सर्वशक्तिमान् है-गुरु नानक देव जी ने परमात्मा को सर्वशक्तिमान् तथा सर्वव्यापी बताया। उनके अनुसार वह सृष्टि के प्रत्येक कण में विद्यमान है। उसे मन्दिर अथवा मस्जिद की चारदीवारी में बन्द नहीं रखा जा सकता।
  4. परमात्मा सर्वश्रेष्ठ है -गुरु नानक देव जी के अनुसार परमात्मा सर्वश्रेष्ठ है। वह अद्वितीय है। उसकी महिमा तथा महानता का पार नहीं पाया जा सकता।
  5. परमात्मा दयालु है-गुरु नानक देव जी के अनुसार परमात्मा दयालु है। वह आवश्यकता पड़ने पर अपने भक्तों की सहायता करता है।

PSEB 10th Class SST Solutions History उद्धरण संबंधी प्रश्न

(5)

गुरु नानक देव जी के सांसारिक व्यवहार के प्रति उपेक्षा देख कर कालू जी उदास रहने लगे। आखिरकार गुरु जी की रुचियों में बदलाव लाने के लिए मेहता कालू जी ने उन्हें घर की भैंसें चराने का काम सौंप दिया। गुरु जी पशुओं को खेतों की तरफ ले तो जाते पर उनका ध्यान न रखते। वह अपना ध्यान ईश्वर में लगा लेते। भैंसें खेतों को उजाड़ देती। मेहता कालू जी को इस बारे में कई उलाहने मिलते। उन उलाहनों से तंग आकर मेहता जी ने गुरु जी को खेती का काम संभाल दिया। गुरु जी ने उस काम में भी कोई दिलचस्पी न दिखाई। हार कर मेहता कालू जी ने गुरु जी को व्यापार में लगाना चाहा। मेहता जी ने उनको 20 रुपए दिए तथा किसी मंडी में सच्चा तथा लाभ वाला सौदा करने को कहा। उनकी छोटी उम्र होने के कारण उनके साथ भाई बाला को भेजा गया। उन्हें रास्ते में फ़कीरों का एक टोला मिला जो कि भूखा था। गुरु नानक देव जी ने सारी रकम की रसद लाकर उन फ़कीरों को रोटी खिला दी। जब वे खाली हाथ घर लौटे तो मेहता जी बड़े दुखी हुए। जब उन्होंने 20 रुपयों का हिसाब मांगा तो गुरु जी ने सच बता दिया। इस घटना को ‘सच्चा सौदा’ कहा जाता है।
(a) ‘सच्चा सौदा’ से क्या भाव है?
उत्तर-
सच्चा सौदा से भाव है-पवित्र व्यापार जो गुरु नानक साहिब ने अपने 20 रु० से फ़कीरों को रोटी खिला कर किया था।
(b) गुरु नानक देव जी ने अपने प्रारम्भिक जीवन में क्या-क्या व्यवसाय अपनाए?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी पढ़ाई तथा अन्य सांसारिक विषयों की उपेक्षा करने लगे थे। उनके व्यवहार में परिवर्तन लाने के लिए. उनके पिता जी ने उन्हें पशु चराने के लिए भेजा। वहां भी गुरु नानक देव जी प्रभु चिन्तन में मग्न रहते और पशु दूसरे किसानों के खेतों में चरते रहते थे। किसानों की शिकायतों से तंग आकर मेहता कालू जी ने गुरु नानक देव जी को व्यापार में लगाने का प्रयास किया। उन्होंने गुरु नानक देव जी को 20 रुपए देकर व्यापार करने भेजा, परन्तु गुरु जी ने ये रुपये संतों को भोजन कराने में व्यय कर दिये। यह घटना सिक्ख इतिहास में ‘सच्चा सौदा’ के नाम से प्रसिद्ध है।

(6)

लंगर संस्था, जिसे गुरु नानक देव जी ने आरम्भ किया था, गुरु अंगद देव जी ने उसे जारी रखा। गुरु अमरदास जी के समय में भी यह संस्था विस्तृत रूप से जारी रही। उनके लंगर में ब्राह्मण, क्षत्रीय, वैश्य तथा शूद्रों को बिना किसी भेद-भाव के एक ही पंगत में बैठ कर इकट्ठे लंगर छकना पड़ता था। गुरु जी की आज्ञानुसार लंगर किए बगैर कोई भी उन्हें नहीं मिल सकता था। मुगल सम्राट अकबर तथा हरीपुर के राजा को भी गुरु साहिब को मिलने से पहले लंगर में से भोजन छकना पड़ा था। इस तरह से यह संस्था सिक्ख धर्म के प्रचार का एक शक्तिशाली साधन सिद्ध हुई।
(a) लंगर प्रथा से क्या भाव है?
उत्तर-
लंगर प्रथा अथवा पंगत से भाव उस प्रथा से है जिसके अनुसार सभी जातियों के लोग बिना किसी भेदभाव के एक ही पंगत में इकट्ठे बैठकर खाना खाते थे।
(b) मंजी-प्रथा से क्या भाव है तथा इसका क्या उद्देश्य था?
उत्तर-
मंजी प्रथा की स्थापना गुरु अमरदास जी ने की थी। उनके समय में सिक्खों की संख्या काफ़ी बढ़ चुकी थी। परन्तु गुरु जी की आयु अधिक होने के कारण उनके लिए एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाकर अपनी शिक्षाओं का प्रचार करना कठिन हो गया था। अत: उन्होंने अपने सारे आध्यात्मिक प्रदेशों को 22 भागों में बांट दिया। इनमें से प्रत्येक भाग को ‘मंजी’ कहा जाता था। प्रत्येक मंजी छोटे-छोटे स्थानीय केन्द्रों में बंटी हुई थी जिन्हें पीड़ियां (Piris) कहते थे। मंजी प्रणाली का सिक्ख धर्म के इतिहास में विशेष महत्त्व है। डॉ० गोकुल चन्द नारंग के शब्दों में, “गुरु जी के इस कार्य ने सिक्ख धर्म की नींव सुदृढ़ करने तथा देश के सभी भागों में प्रचार कार्य को बढ़ाने में विशेष योगदान दिया।”

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(7)

गुरु अर्जुन देव जी ने अमृतसर सरोवर के बीच 1588 ई० में ‘हरिमंदिर साहिब’ का निर्माण कार्य करवाया। ऐसा माना जाता है कि हरिमंदिर साहिब की नींव का पत्थर 1589 ई० में सूफी फकीर, मीयां मीर ने रखा। हरिमंदिर साहिब के दरवाजे चारों तरफ रखे गए, भाव यह कि यह मन्दिर चारों जातियों तथा चारों दिशाओं से आने वाले लोगों के लिए खुला था। हरिमंदिर साहिब का निर्माण भाई बुड्डा सिंह जी तथा भाई गुरदास जी की देख-रेख में हुआ जो 1601 ई० में पूरा हुआ। सितम्बर 1604 ई० में हरिमंदिर साहिब में आदि ग्रन्थ की स्थापना कर दी गई। भाई बुड्डा सिंह जी को वहाँ का पहला ग्रन्थी बनाया गया था। __ अमृतसर में हरिमंदिर साहिब का निर्माण सिक्ख धर्म की दृढ़ता- पूर्वक स्थापना के लिए अत्यधिक महत्त्वपूर्ण कार्य था। इससे सिक्खों को हिन्दू तीर्थ-स्थानों की यात्रा करने की ज़रूरत न रही। अमृतसर सिक्खों का ‘मक्का’ तथा ‘गंगाबनारस’ बन गया।
(a) हरिमंदिर साहिब की नींव कब तथा किसने रखी?
उत्तर-
हरिमंदिर साहिब की नींव 1589 ई० में उस समय के प्रसिद्ध सूफ़ी सन्त मियां मीर ने रखी।
(b) हरिमंदिर साहिब के बारे में जानकारी दीजिए।
उत्तर-
गुरु रामदास जी के ज्योति जोत समाने के पश्चात् गुरु अर्जन देव जी ने ‘अमृतसर’ सरोवर के बीच हरिमंदिर साहिब का निर्माण करवाया। इसका नींव पत्थर 1589 ई० में सूफ़ी फ़कीर मियां मीर जी ने रखा। गुरु जी ने इसके चारों ओर एक-एक द्वार रखवाया। ये द्वार इस बात के प्रतीक हैं कि यह मंदिर सभी जातियों तथा धर्मों के लोगों के लिए समान रूप से खुला है। हरिमंदिर साहिब का निर्माण कार्य भाई बुड्डा जी की देख-रेख में 1601 ई० में पूरा हुआ। 1604 ई० में हरिमंदिर साहिब में आदि ग्रन्थ साहिब की स्थापना की गई और भाई बुड्डा जी वहां के पहले ग्रन्थी बने।
हरिमंदिर साहिब शीघ्र ही सिक्खों के लिए ‘मक्का’ तथा ‘गंगा-बनारस’ अर्थात् एक बहुत बड़ा तीर्थ-स्थल बन गया।

(8)

दो मुग़ल बादशाह-अकबर तथा जहांगीर गुरु अर्जुन देव जी के समकालीन थे। चूंकि गुरुओं के उपदेशों का उद्देश्य जाति-पाति, ऊँच-नीच, अंध-विश्वास तथा धार्मिक कट्टरता से रहित समाज की स्थापना करना था, इसलिए अकबर गुरुओं को पसंद करता था। पर जहाँगीर गुरु अर्जुन देव जी की बढ़ती हुई ख्याति को पसंद नहीं करता था। उसे इस बात का गुस्सा भी था कि हिन्दुओं के साथ-साथ कई मुसलमान भी गुरु जी से प्रभावित हो रहे थे। कुछ समय पश्चात् शहज़ादा खुसरो ने अपने पिता जहांगीर के विरुद्ध विद्रोह कर दिया। जब शाही सेनाओं ने खुसरो का पीछा किया तो वह भाग कर पंजाब आ गया तथा गुरु जी से मिला। इस पर जहांगीर ने जो पहले ही गुरु अर्जुन देव जी के विरुद्ध कार्यवाही करने का बहाना ढूंढ रहा था विद्रोही खुसरो की सहायता करने के अपराध में गुरु जी पर दो लाख रुपयों का जुर्माना कर दिया। गुरु जी ने इस जुर्माने को अनुचित मानते हुए इसे अदा करने से इन्कार कर दिया। इस पर उनको शारीरिक यातनाएँ देकर 1606 ई० में शहीद कर दिया गया।
(a) जहांगीर गुरु अर्जुन देव जी को क्यों शहीद करना चाहता था?
उत्तर-
जहांगीर को गुरु अर्जन देव जी की बढ़ती हुई ख्याति से ईर्ष्या थी। जहांगीर को इस बात का दुःख था कि हिन्दुओं के साथ-साथ कई मुसलमान भी गुरु साहिब से प्रभावित हो रहे हैं।
(b) गुरु अर्जुन देव जी की शहादत पर एक नोट लिखिए।
उत्तर-
मुग़ल सम्राट अकबर के पंचम पातशाह (सिक्ख गुरु) गुरु अर्जन देव जी के साथ बहुत अच्छे सम्बन्ध थे। परन्तु अकबर की मृत्यु के पश्चात् जहांगीर ने सहनशीलता की नीति छोड़ दी। वह उस अवसर की खोज में रहने लगा। जब वह सिक्ख धर्म पर करारी चोट कर सके। इसी बीच जहांगीर के पुत्र खुसरो ने उसके विरुद्ध विद्रोह कर दिया। खुसरो पराजित होकर गुरु अर्जन देव जी के पास आया। गुरु जी ने उसे आशीर्वाद दिया। इस आरोप में जहांगीर ने गुरु अर्जन देव जी पर दो लाख रुपये का जुर्माना लगा दिया। परन्तु गुरु अर्जन देव जी ने जुर्माना देने से इन्कार कर दिया। इसलिए उन्हें बन्दी बना लिया गया और अनेक यातनाएं देकर शहीद कर दिया गया। गुरु अर्जन देव जी की शहीदी से सिक्ख भड़क उठे। वे समझ गए कि उन्हें अब अपने धर्म की रक्षा के लिए शस्त्र धारण करने पड़ेंगे।

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(9)

गुरु गोबिन्द सिंह जी सिक्खों के दसवें तथा आखिरी गुरु हुए हैं। गुरु नानक देव जी ने सिक्ख धर्म की स्थापना का कार्य किया था। उनके आठ उत्तराधिकारों ने धीरे-धीरे सिक्ख धर्म का प्रचार व प्रसार किया। पर उस कार्य को संपूर्ण करने वाले गुरु गोबिन्द सिंह जी ही थे। उन्होंने 1699 ई० में खालसा की स्थापना कर के सिक्ख मत को अन्तिम रूप दिया। उन्होंने सिक्खों में विशेष दिलेरी, बहादुरी तथा एकता की भावना उत्पन्न कर दी। सीमित साधनों तथा बहुत थोड़े सिक्ख-सैनिकों की सहायता से उन्होंने मुगल साम्राज्य के अत्याचारों का विरोध किया। अपने देहान्त से पहले उन्होंने गुरु-परम्परा का अंत करते हुए गुरु की शक्ति गुरु ग्रन्थ साहिब तथा खालसा में बांटी। इसीलिए उनमें एक ही समय में आध्यात्मिक नेता, उच्च कोटि का संगठन-कर्ता, जन्म-सिद्ध सेनानायक, प्रतिभाशाली विद्वान तथा उत्तम सुधारक के गुण विद्यमान थे।
(a) गुरु गोबिन्द राय जी का जन्म कब और कहां हुआ? उनके माता-पिता का नाम भी बताओ।
उत्तर-
22 दिसम्बर, 1666 ई० को पटना में उनकी माता का नाम गुजरी जी और पिता का नाम श्री गुरु तेग बहादुर जी था।
(b) गुरु गोबिन्द सिंह जी के सेनानायक के रूप में व्यक्तित्व का वर्णन करो।
उत्तर-
गुरु गोबिन्द सिंह जी एक कुशल सेनापति तथा वीर सैनिक थे। पहाड़ी राजाओं तथा मुगलों के विरुद्ध लड़े गए प्रत्येक युद्ध में उन्होंने अपने वीर सैनिक होने का परिचय दिया। तीर चलाने, तलवार चलाने तथा घुड़सवारी करने में तो वे विशेष रूप से निपुण थे। गुरु जी में एक उच्च कोटि के सेनानायक के भी सभी गुण विद्यमान थे। उन्होंने कम सैनिक तथा कम युद्ध सामग्री के होते हुए भी पहाड़ी राजाओं तथा मुग़लों के नाक में दम कर दिया। चमकौर की लड़ाई में तो उनके साथ केवल चालीस सिक्ख थे, परन्तु गुरु जी के नेतृत्व में उन्होंने वे हाथ दिखाए कि एक बार तो हजारों की मुग़ल सेना घबरा उठी।

(10)

1699 ई० को वैशाखी के दिन गुरु गोबिन्द राय जी ने आनन्दपुर साहिब में सभा बुलाई। उस सभा की संख्या लगभग अस्सी हज़ार थी। जब सभी लोग अपने-अपने स्थान पर बैठ गए तो गुरु जी ने म्यान में से तलवार निकाल कर जोरदार शब्दों में कहा-तुममें से कोई ऐसा व्यक्ति है जो धर्म के लिए अपना सिर दे सके ? गुरु जी ने ये शब्द तीन बार दोहराए। तीसरी बार पर लाहौर-निवासी दया राम (क्षत्रिय) ने उठ कर गुरु जी के सामने अपना शीश झका दिया। गुरु जी उसे पास के एक तम्बू में ले गए। फिर वे तम्बू से बाहर आए और उन्होंने पहले की तरह ही एक और व्यक्ति का शीश मांगा। इस बार दिल्ली का धर्म दास (जाट) अपना सिर. भेंट करने के लिए आगे आया। गुरु साहिब उसे भी साथ के तम्बू में ले गए। इस प्रकार गुरु जी ने पांच बार शीश की मांग की और पांच व्यक्तियों भाई दयाराम तथा भाई धर्मदास के अतिरिक्त भाई मोहकम चंद (द्वारका का धोबी) भाई साहिब चंद (बीदर का नाई) तथा भाई हिम्मत राय (जगन्नाथ पुरी का कहार) ने गुरु जी को अपने सिर भेंट किए। कुछ समय पश्चात् गुरु जी उन पाँचों व्यक्तियों को केसरिया रंग के सुन्दर वस्त्र पहना कर लोगों के बीच में ले आए। उस समय स्वयं भी गुरु जी ने वैसे ही वस्त्र पहने हुए थे। लोग. उन पाँचों को देख कर आश्चर्यचकित हुए। गुरु साहिब ने उन्हें ‘पाँच-प्यारे’ की सामूहिक उपाधि दी।
(a) खालसा का सृजन कब और कहां किया गया ?
उत्तर-
1699 ई० में आनन्दपुर साहिब में।
(b) खालसा के नियमों का वर्णन करो।
उत्तर-
खालसा की स्थापना 1699 ई० में गुरु गोबिन्द सिंह जी ने की। खालसा के नियम निम्नलिखित थे

  1. प्रत्येक खालसा अपने नाम के साथ ‘सिंह’ शब्द लगाएगा। खालसा स्त्री अपने नाम के साथ ‘कौर’ शब्द लगाएगी।
  2. खालसा में प्रवेश से पूर्व प्रत्येक व्यक्ति को ‘खण्डे के पाहुल’ का सेवन करना पड़ेगा। तभी वह स्वयं को खालसा कहलवाएगा।
  3. प्रत्येक ‘सिंह’ आवश्यक रूप से पांच ‘ककार’ धारण करेगा-केश, कड़ा, कंघा, किरपान तथा कछहरा।
  4. सभी सिक्ख प्रतिदिन प्रातःकाल स्नान करके उन पांच बाणियों का पाठ करेंगे जिनका उच्चारण ‘खण्डे का पाहुल’ तैयार करते समय किया गया था।

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(11)

बंदा सिंह बहादुर का असली निशाना सरहिन्द था। यहाँ के सबेदार वजीर खां ने सारी उम्र गरु गोबिन्द सिंह जी को तंग किया था। उसने आनन्दपुर साहिब तथा चमकौर साहिब के युद्धों में गुरु जी के खिलाफ फौज भेजी थी। यहीं पर उनके छोटे साहिबजादों को दीवार में चिनवा दिया गया था। वजीर खां ने हज़ारों निर्दोष सिक्खों तथा हिन्दुओं के खून से अपने हाथ रंगे थे। इसलिए बंदा बहादुर तथा सिक्खों को वजीर खां पर बहुत गुस्सा था। जैसे ही पंजाब में बंदा बहादुर के सरहिन्द की तरफ बढ़ने की खबरें पहुँची तो हजारों लोग बंदा सिंह बहादुर के झंडे के तले एकत्रित हो गए। सरहिन्द के कर्मचारी, सुच्चा नंद का भतीजा भी 1,000 सैनिकों के साथ बंदे की सेना में जा मिला। दूसरी तरफ वजीर खाँ की फौज की गिनती लगभग 20,000 थी। उसकी सेना में घुड़सवारों के अतिरिक्त बंदूकची तथा तोपची व हाथी सवार भी थे।
(a) हुक्मनामे में गुरु (गोबिन्द सिंह) जी ने पंजाब के सिक्खों को क्या आदेश दिए?
उत्तर-
बंदा सिंह बहादुर उनका राजनीतिक नेता होगा तथा वे मुग़लों के विरुद्ध धर्मयुद्ध में बंदे का साथ दें।
(b) चप्पड़-चिड़ी तथा सरहिन्द की लड़ाई का वर्णन करो।
उत्तर-
सरहिन्द के सूबेदार वज़ीर खान ने गुरु गोबिन्द सिंह जी को जीवन भर तंग किया था। इसके अतिरिक्त उसने गुरु साहिब के दो साहिबजादों को सरहिन्द में ही दीवार में चिनवा दिया था। इसलिए बंदा सिंह बहादुर इसका बदला लेना चाहता था। जैसे ही वह सरहिन्द की ओर बढ़ा, हजारों लोग उसके झण्डे तले एकत्रित हो गए। सरहिन्द के कर्मचारी, सुच्चा नंद का भतीजा भी 1,000 सैनिकों के साथ बंदा की सेना में जा मिला। परन्तु बाद में उसने धोखा दिया। दूसरी ओर वज़ीर खान के पास लगभग 20,000 सैनिक थे। सरहिन्द से लगभग 16 किलोमीटर पूर्व में चप्पड़चिड़ी के स्थान पर 22 मई, 1710 ई० को दोनों सेनाओं में घमासान युद्ध हुआ। वज़ीर खान को मौत के घाट उतार दिया गया। शत्रु के सैनिक बड़ी संख्या में सिक्खों की तलवारों के शिकार हुए। वज़ीर खान की लाश को एक पेड़ पर टांग दिया गया। सुच्चा नंद जिसने सिक्खों पर अत्याचार करवाये थे, की नाक में नकेल डाल कर नगर में उसका जुलूस निकाला गया।

(12)

1837 ई० में भारत का गवर्नर-जनरल लार्ड ऑक्लैड-अफगानिस्तान में रूस के बढ़ते हुए प्रभाव से भयभीत हो गया। वह यह भी महसूस करता था कि दोस्त मुहम्मद अंग्रेजों के शत्रु रूस से मित्रतापूर्ण सम्बन्ध कायम कर रहा था। इन हालातों में लार्ड ऑकलैंड ने दोस्त मुहम्मद की जगह शाह शुजाह को (अफगानिस्तान का भूतपूर्वकशासक जो अंग्रेजों की पैन्शन पर पलता था) अफगानिस्तान का शासक बनाना चाहा। इस उद्देश्य से 26 जून, 1838 ई० को अंग्रेज सरकार की आज्ञा से अंग्रेजों, रणजीत सिंह तथा शाह शुजाह के दरम्यान, एक संधि हुई जिसे ‘त्रिपक्षीय संधि’ कहा जाता है। इसके अनुसार अफगानिस्तान के होने वाले शासक शाह शुजाह ने अपनी तरफ से महाराजा के अफगानों से जीते गए सारे प्रदेश (कश्मीर, मुलतान, पेशावर, अटक, डेराजात आदि) पर उसका अधिकार स्वीकार कर लिया। महाराजा ने उस संधि की एक शर्त कि अफगान-युद्ध के समय वह अंग्रेजों को अपने इलाके में से होकर आगे जाने देगा, न मानी। इस पर अंग्रेजों तथा महाराजा के सम्बन्धों में बड़ी दरार पैदा हो गई। जून, 1839 ई० को महाराजा का देहान्त हो गया।
(a) रणजीत सिंह का जन्म कब हुआ तथा उसके पिता का क्या नाम था?
उत्तर-
रणजीत सिंह का जन्म 13 नवम्बर, 1780 को हुआ। उसके पिता का नाम सरदार महा सिंह था।
(b) त्रिपक्षीय सन्धि क्या थी?
उत्तर-
त्रिपक्षीय सन्धि 26 जून, 1838 ई० में महाराजा रणजीत सिंह, अंग्रेज़ों तथा शाह शुजाह के बीच हुई। इसकी शर्ते निम्नलिखित थीं

  1. महाराजा रणजीत सिंह द्वारा विजित प्रदेश शाह शुजाह के राज्य में नहीं मिलाए जाएंगे।
  2. तीनों में से कोई भी किसी विदेशी की सहायता नहीं करेगा।
  3. महाराजा रणजीत सिंह सिन्ध के उस भाग पर भी नियन्त्रण कर सकेगा जिस पर उसका अभी-अभी अधिकार हुआ था।
  4. एक का दुश्मन अन्य दोनों का दुश्मन समझा जाएगा।
  5. सिन्ध के मामले में अंग्रेज़ तथा महाराजा रणजीत सिंह मिल कर जो भी निर्णय करेंगे, वह शाह शुजाह को मान्य होगा।
  6. शाह शुजाह महाराजा रणजीत सिंह तथा अंग्रेजों की अनुमति के बिना किसी भी देश से अपना सम्बन्ध स्थापित नहीं करेगा।

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(13)

यद्यपि लार्ड हार्डिग ने सिक्खों को हराकर पंजाब को ब्रिटिश साम्राज्य में सम्मिलित नहीं किया, पर लाहौर सरकार
को कमजोर अवश्य कर दिया। अंग्रेजों ने लाहौर राज्य के सतलुज के दक्षिण स्थित क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया। उन्होंने दोआबा बिस्त जालन्धर के उपजाऊ क्षेत्रों पर अधिकार जमा लिया। कश्मीर, कांगड़ा और हजारा के पहाड़ी राज्य लाहौर राज्य से स्वतंत्र कर दिए गए। लाहौर राज्य की सेना कम कर दी गई। लाहौर राज्य से बहुत बड़ी धनराशि वसूल की गई। पंजाब को आर्थिक और सैनिक दृष्टि से इतना कमज़ोर कर दिया गया कि अंग्रेज़ जब भी चाहें उस पर कब्जा कर सकते थे।
(a) महाराजा रणजीत सिंह के बाद कौन उसका उत्तराधिकारी बना?
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह के बाद खड़क सिंह उसका उत्तराधिकारी बना।
(b) लाहौर की दूसरी सन्धि की धाराएं क्या थी?
उत्तर-
लाहौर की दूसरी सन्धि 11 मार्च, 1846 ई० को अंग्रेज़ों तथा सिक्खों के बीच हुई। इसकी मुख्य धाराएं निम्नलिखित थीं

  1. ब्रिटिश सरकार महाराजा दलीप सिंह और नगरवासियों की रक्षा के लिए लाहौर में बड़ी संख्या में सेना रखेगी। यह सेना 1846 ई० तक वहां रहेगी।
  2. लाहौर का किला और नगर अंग्रेज़ी सेना के अधिकार में रहेंगे।
  3. लाहौर-सरकार 9 मार्च, 1846 ई० को सन्धि द्वारा अंग्रेज़ों को दिए गए क्षेत्रों के जागीरदारों तथा अधिकारियों का सम्मान करेगी।
  4. लाहौर-सरकार को अंग्रेजों को दिए प्रदेशों के किलों में से तोपों के अतिरिक्त खज़ाना या सम्पत्ति लेने का कोई अधिकार नहीं होगा।

(14)

जनवरी 1848 ई० में लार्ड हार्डिग के स्थान पर लार्ड डलहौजी भारत का गवर्नर जनरल बना। वह भारत में ब्रिटिश साम्राज्य का विस्तार करने में विश्वास रखता था। सबसे पहले उसने पंजाब को ब्रिटिश साम्राज्य में मिलाने का फैसला किया। मुलतान के मूलराज और हज़ारा के चतर सिंह और उसके पुत्र शेर सिंह द्वारा विद्रोह कर देने पर उन्हें सिक्खों के साथ युद्ध करने का बहाना मिल गया। दूसरे आंग्ल-सिक्ख युद्ध में सिक्खों की हार के बाद पहले ही निश्चित नीति को वास्तविक रूप देने का काम विदेश सचिव हैनरी इलियट (Henry Elliot) को सौंपा गया। इलियट ने कौंसिल आफ रीजेंसी के सदस्यों को एक सन्धि-पत्र पर हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर कर दिया। उस सन्धि के अनुसार महाराजा दलीप सिंह को राजगद्धी से उतार दिया गया। पंजाब की सारी सम्पत्ति पर अंग्रेज़ों का अधिकार हो गया। कोहेनूर हीरा इंगलैंड की महारानी (विक्टोरिया) के पास भेज दिया गया। महाराजा दलीप सिंह की 4 लाख और 5 लाख के बीच पेंशन निश्चित कर दी गई। उसी दिन हैनरी इलियट ने लाहौर दरबार में लार्ड डलहौजी की ओर से घोषणा-पत्र पढ़कर सुनाया गया। इस घोषणा-पत्र में पंजाब को अंग्रेजी साम्राज्य में मिलाने को उचित ठहराया गया।
(a) पंजाब को अंग्रेजी साम्राज्य में कब शामिल किया गया ? उस समय भारत का गवर्नर जनरल कौन था?
उत्तर-
पंजाब को अंग्रेजी साम्राज्य में 1849 ई० में सम्मिलित किया गया। उस समय भारत का गवर्नर जनरल लॉर्ड डलहौज़ी था।
(b) महाराजा दलीप सिंह के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर-
महाराजा दलीप सिंह पंजाब (लाहौर राज्य) का अंतिम सिक्ख शासक था। प्रथम ऐंग्लो-सिक्ख युद्ध के समय वह नाबालिग था। अत: 1846 ई० की भैरोंवाल की सन्धि के अनुसार लाहौर-राज्य के शासन प्रबन्ध के लिए एक कौंसिल ऑफ़ रीजैंसी की स्थापना की गई। इसे महाराज के बालिग होने तक कार्य करना था। परन्तु दूसरे ऐंग्लोसिक्ख युद्ध में सिक्ख पुनः पराजित हुए। परिणामस्वरूप महाराजा दलीप सिंह को राजगद्धी से उतार दिया गया और उसकी 4-5 लाख रु० के बीच वार्षिक पेंशन निश्चित कर दी गई। पंजाब अंग्रेजी साम्राज्य का अंग बन गया।

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(15)

अमृतसर और रायकोट के बूचड़खाने पर आक्रमण करके कई बूचड़ों को मार दिया। कूकों को सबके सामने फांसी की सजा दी जाती परन्तु वे अपने मनोरथ से पीछे न हटते। जनवरी 1872 में 150 कूकों का जत्था बूचड़ों को सज़ा देने के लिए मलेरकोटला पहुँचा। 15 जनवरी, 1872 को कूकों और मलेरकोटला की सेना के मध्य घमासान युद्ध हुआ। दोनों पक्षों के अनेक व्यक्ति मारे गये। अंग्रेज़ सरकार ने कूकों के विरुद्ध कार्यवाही करने के लिए अपनी सेना मलेरकोटला भेजी। 65 कूकों ने स्वयं को गिरफ्तार करवा दिया। उनमें से 49 कूकों को 17 जनवरी 1872 ई० में तोपों से उड़ा दिया गया। सरकारी मुकद्दमें के पश्चात् 16 कूकों को भी 18 जनवरी 1872 ई० में तोपों से उड़ा दिया। श्री सतगुरु रामसिंह जी को देश निकाला देकर रंगून भेज दिया गया। कई नामधारी सूबों को काले पानी भेज दिया। कइयों को समुद्र के पानी में डुबोकर मार दिया गया और कई कूकों की जायदाद जब्त कर ली गई। इस प्रकार अंग्रेज़ सरकार ने हर प्रकार से जुल्म ढाये परन्तु लहर तब तक चलती रही जब तक 15 अगस्त, 1947 ई० को देश आजाद नहीं हो गया।
(a) श्री सतगुरु राम सिंह जी ने अंग्रेज़ सरकार से असहयोग क्यों किया?
उत्तर-
क्योंकि श्री सतगुरु राम सिंह जी विदेशी सरकार, विदेशी संस्थाओं तथा विदेशी माल के कट्टर विरोधी थे।
(b) नामधारियों और अंग्रेजों के मध्य मलेरकोटला में हुई दुर्घटना का वर्णन करो।
उत्तर-
नामधारी लोगों ने गौ-रक्षा का कार्य आरम्भ कर दिया था। गौ-रक्षा के लिए वे कसाइयों को मार डालते थे। जनवरी, 1872 को 150 कूकों (नामधारियों) का एक जत्था कसाइयों को दण्ड देने मलेरकोटला पहुंचा। 15 जनवरी, 1872 ई० को कूकों और मालेरकोटला की सेना के बीच घमासान लड़ाई हुई। दोनों पक्षों के अनेक व्यक्ति मारे गए। अंग्रेजों ने कूकों के विरुद्ध कार्यवाही करने के लिए अपनी विशेष सेना मालेरकोटला भेजी। 65 कूकों ने स्वयं अपनी गिरफ्तारी दी। उनमें से 49 कूकों को 17 जनवरी, 1872 ई० को तोपों से उड़ा दिया गया। सरकारी मुकद्दमों के पश्चात् 16 कूकों को भी 18 जनवरी 1872 ई० में तोपों से उड़ा दिया।

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अशांति और क्रोध के इस वातावरण में अमृतसर और गाँवों के लगभग 25,000 लोग 13 अप्रैल, 1919 ई० को वैशाखी वाले दिन जलियाँवाला बाग में जलसा करने के लिए इकट्ठे हुए। जनरल डायर ने उसी दिन साढ़े नौ बजे ऐसे जलसों को गैर कानूनी करार दे दिया, परन्तु लोगों को उस घोषणा का पता नहीं था। इसी कारण जलियांवाला बाग़ में जलसा हो रहा था। जनरल डायर को अंग्रेजों के कत्ल का बदला लेने का मौका मिल गया। वह अपने 150 सैनिकों समेत जलियाँवाला बाग के दरवाजे के आगे पहुंच गया। बाग में आने-जाने के लिए एक ही तंग रास्ता था। जनरल डायर ने उसी रास्ते के आगे खड़े होकर लोगों को तीन मिनट के अन्दर-अन्दर तितर-बितर हो जाने का आदेश दिया परन्तु ऐसा करना असम्भव था। तीन मिनट के बाद जनरल डायर ने गोली चलाने का आदेश दे दिया। लगभग 1000 लोग मारे गए और 3000 से भी अधिक जख्मी हो गए। जलियाँवाला बाग की घटना के बाद देश की स्वतंत्रता की लहर को एक नया रूप मिला। इस घटना का बदला सरदार ऊधम सिंह ने 21 वर्ष पश्चात् इंग्लैंड में सर माइकल ओ डायर (जो घटना के समय पंजाब का लेफ्टिनेंट गवर्नर था) को गोली मारकर उसकी हत्या करके लिया।
(a) जलियाँवाला बाग़ की दुर्घटना का बदला किसने और कैसे लिया?
उत्तर-
जलियाँवाला बाग़ की दुर्घटना का बदला शहीद ऊधमसिंह ने 21 वर्ष बाद इंग्लैंड में सर माइकल ओ’डायर की गोली मारकर हत्या करके लिया।
(b) जलियाँवाला बाग़ की दुर्घटना के क्या कारण थे?
उत्तर-
जलियाँवाला बाग़ की दुर्घटना निम्नलिखित कारणों से हुई

  1. रौलेट बिल-1919 में अंग्रेजी सरकार से ‘रौलेट बिल’ पास किया। इसके अनुसार पुलिस को जनता के दमन के लिए विशेष शक्तियां दी गईं। अतः लोगों ने इनका विरोध किया।
  2. डॉ० सत्यपाल तथा डॉ० किचलू की गिरफ्तारी-रौलेट बिल के विरोध में पंजाब तथा अन्य स्थानों पर हड़ताल हुई। कुछ नगरों में दंगे भी हुए। अतः सरकार ने पंजाब के दो लोकप्रिय नेताओं डॉ० सत्यपाल तथा डॉ० किचलू को गिरफ्तार कर लिया। इससे जनता और भी भड़क उठी।
  3. अंग्रेजों की हत्या-भड़के हुए लोगों पर अमृतसर में गोली चलाई गई। जवाब में लोगों ने पांच अंग्रेजों को मार डाला। अतः नगर का प्रबन्ध जनरल डायर को सौंप दिया गया। इन सब घटनाओं के विरोध में अमृतसर के जलियांवाला बाग़ में एक आम सभा हुई जहां भीषण हत्याकांड हुआ।

PSEB 10th Class SST Solutions History उद्धरण संबंधी प्रश्न

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अकाली जत्थों ने चरित्रहीन महन्तों के अधिकार से गुरुद्वारों को खाली करवाने का काम आरम्भ किया। उन्होंने हसन अब्दाल स्थित गुरुद्वारा, पंजा साहिब, जिला शेखूपुरा का गुरुद्वारा सच्चा सौदा तथा अमृतसर जिले का गुरुद्वारा चोला साहिब महन्तों से खाली करवा लिए। तरनतारन में अकालियों की महन्तों से मुठभेड़ हो गई। स्यालकोट स्थित गुरुद्वारा बाबा की बेर और लायलपुर (फैसलाबाद) जिला के गुरुद्वारे गोजरां में भी ऐसे ही हुआ।.अकाली दल फिर भी गुरुद्वारों को स्वतंत्र करवाने में जुटा रहा। 20 फरवरी, 1921 ई० को ननकाना साहिब गुरुद्वारा में एक बड़ी दुर्घटना घटी। जब अकाली जत्था शांतिपूर्वक ढंग से गुरुद्वारा पहुंचा तो वहाँ के महन्त नारायण दास ने 130 अकालियों का कत्ल करवा दिया। अंग्रेज़ सरकार ने अकालियों के प्रति कोई भी सहानुभूति प्रदर्शित न की। पर सारे प्रांत के मुसलमानों और हिन्दुओं ने अकालियों के प्रति सहानुभूति दिखाई।
(a) चाबियाँ वाला मोर्चा क्यों लगाया गया?
उत्तर-
अंग्रेजी सरकार ने दरबार साहिब अमृतसर की गोलक की चाबियां अपने पास दबा रखी थीं जिन्हें प्राप्त करने के लिए सिक्खों ने चाबियों वाला मोर्चा लगाया।
(b) गुरु का बाग़ घटना ( मोर्चे) का वर्णन करो।
उत्तर-
गुरुद्वारा ‘गुरु का बाग़’ अमृतसर से लगभग 13 मील दूर अजनाला तहसील में स्थित है। यह गुरुद्वारा महंत सुन्दरदास के पास था जो एक चरित्रहीन व्यक्ति था। शिरोमणि कमेटी ने इस गुरुद्वारे को अपने हाथों में लेने के लिए 23 अगस्त, 1921 ई० को दान सिंह के नेतृत्व में एक जत्था भेजा। अंग्रेजों ने इस जत्थे के सदस्यों को बन्दी बना लिया।
इस घटना से सिक्ख भड़क उठे। सिक्खों ने कई और जत्थे भेजे जिन के साथ अंग्रेजों ने बहुत बुरा व्यवहार किया। सारे देश के राजनीतिक दलों ने सरकार की इस कार्यवाही की कड़ी निन्दा की। अंत में अकालियों ने ‘गुरु का बाग़’ मोर्चा शांतिपूर्ण ढंग से जीत लिया।