PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 7 पवनें

Punjab State Board PSEB 11th Class Geography Book Solutions Chapter 7 पवनें Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Geography Chapter 7 पवनें

PSEB 11th Class Geography Guide पवनें Textbook Questions and Answers

1. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक या दो शब्दों में दो :

प्रश्न (क)
ITCZ का पूरा नाम क्या है ?
उत्तर-
Inter Tropical Convergence Zone.

प्रश्न (ख)
नक्षत्रीय पवनों को अंग्रेजी में क्या कहते हैं ?
उत्तर-
Planetary winds.

प्रश्न (ग)
मानसून कौन-सी भाषा का शब्द है ?
उत्तर-
अरबी भाषा।

प्रश्न (घ)
साइबेरिया की कौन-सी झील मानसून सिद्धांत से संबंधित है ?
उत्तर-
बैकाल झील।

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प्रश्न (ङ)
मानसून फटने की क्रिया कब घटित होती है ?
उत्तर-
28 से 30 मई के मध्य केरल के तट पर।

प्रश्न (च)
पंजाब के दक्षिणी भागों में गर्मियों में बहती हवाओं को क्या कहते हैं ?
उत्तर-
लू (loo)।

प्रश्न (छ)
ऑस्ट्रेलिया में चक्रवातों को किस नाम से जाना जाता है ?
उत्तर-
विल्ली-विल्ली।।

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प्रश्न (ज)
Tornado का पंजाबी में क्या नाम है ?
उत्तर-
वावरोला।

प्रश्न (झ)
विपरीत चक्रवात का सिद्धांत किसने दिया ?
उत्तर-
फ्रांसिस गैलटन ने।

प्रश्न (ब)
यूरोप में फोहेन (Fohen) नाम से जानी जाने वाली पवनों को उत्तरी अमेरिका में कौन-सा नाम दिया जाता है ?
उत्तर-
चिनूक पवनें।

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2. प्रश्नों के उत्तर दो-चार वाक्यों में दो :

प्रश्न (क)
पश्चिमी पवनों को मलाहां की ओर से 40′, 50° और 60° अक्षांश पर क्या-क्या नाम दिए जाते हैं ?
उत्तर-
40° अक्षांश . – गर्जते चालीस
50° अक्षांश – गुस्सैल पचास
60° अक्षांश – कूकते (चीखते) साठ।

प्रश्न (ख)
स्थायी पवनों के उदाहरणों के नाम लिखें।
उत्तर-

  1. व्यापारिक पवनें
  2. पश्चिमी पवनें
  3. ध्रुवीय पवनें।

प्रश्न (ग)
फैरल के नियमानुसार उत्तरी गोलार्द्ध में क्या प्रभाव पड़ते हैं ?
उत्तर-
उत्तरी गोलार्द्ध में पवनें अपने दायीं ओर मुड़ जाती हैं।

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प्रश्न (घ)
एलनीनो का पता किसने लगाया था ?
उत्तर-
लगभग 100 साल पहले मौसम विभाग के डायरैक्टर जनरल गिलबर्ट वाल्कर (Gilbert Walker) ने एलनीनो का पता लगाया था।

प्रश्न (ङ)
सांता एना क्या है ?
उत्तर-
कैलीफोर्निया राज्य के दक्षिणी भागों में पहाड़ी क्षेत्रों से नीचे उतरती पवनों को सांता एना कहते हैं।

प्रश्न (च)
बलिजार्ड (Balizard) क्या है ?
उत्तर-
ध्रुवीय क्षेत्रों में चलने वाली ठंडी, शुष्क और बर्फीली पवनों को बलिजार्ड कहते हैं।

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प्रश्न (छ)
हरीकेन और बाईगुइस में क्या अंतर है ?
उत्तर-
खाड़ी मैक्सिको में चलने वाले चक्रवातों को हरीकेन कहते हैं जबकि फिलीपाइन के निकट चलने वाले चक्रवातों को बाईगुइस कहते हैं।

प्रश्न (ज)
हुद-हुद, नीलोफर और नानुक का आपस में क्या संबंध है ?
उत्तर-
सन् 2014 में, भारत के तट पर चलने वाले चक्रवातों को हुद-हुद, नीलोफर और नानुक नाम दिए गए थे।

3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 60 और 80 शब्दों में दें-

प्रश्न (क)
विपरीत चक्रवातों के रहते गर्मियों और सर्दियों के मौसम कैसे होते हैं ?
उत्तर-
विपरीत चक्रवातों का अर्थ है-उच्च हवा के दबाव के क्षेत्र। गर्मियों में विपरीत चक्रवातों के समय मौसम साफ-साफ, नीला आसमान, बादल रहित और शुष्क होता है। सर्दियों के मौसम में कोहरा और धुंध हो सकती है।

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प्रश्न (ख)
एल-नीनो क्या है ? व्याख्या करें।
उत्तर-
एल-नीनो गर्म जल की धारा है, जो दक्षिणी प्रशांत महासागर में पेरु-चिल्ली के तट के साथ-साथ छह से सात वर्षों के अंतराल से बहती है। हम्बोलाट की ठंडी धारा के विपरीत गर्म जल की धारा एल-नीनो बहती है, इसलिए मानसून की वर्षा कम हो जाती है।

प्रश्न (ग)
तिब्बत के पठार का मानसून पवनों संबंधी क्या योगदान है ?
उत्तर-
तिब्बत का पठार एक विशाल पठार है, जिसका क्षेत्रफल 2000-600000 वर्ग किलोमीटर है। यह पवनों के लिए प्राकृतिक रोक लगाता है और यहाँ गर्मियों के मौसम में तापमान बहुत अधिक हो जाता है, इसलिए पश्चिमी जेट धारा तिब्बत के उत्तर की ओर खिसक जाती है।

प्रश्न (घ)
‘आमों की बौछार’ स्पष्ट करें।
उत्तर-
जून के महीने में मानसून पवनें केरल के तट से शुरू होती हैं। इन्हें मानसून का फटना कहते हैं। यह वर्षा केरल, कर्नाटक और तमिलनाडु में आमों की उपज के लिए बहुत लाभदायक होती है। इसलिए इसे ‘आम्रवृष्टि’ (Mango Showers) भी कहा जाता है।

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प्रश्न (ङ)
पवन-पेटियों के फिसलने की क्रिया स्पष्ट करें।
उत्तर-
धरती की परिक्रमा के कारण, धरती के ऊपर सूर्य की स्थिति सारा साल लगातार बदलती रहती है। सूर्य की किरणें कभी भूमध्य रेखा पर, कभी कर्क रेखा पर और कभी मकर रेखा पर लंब रूप में पड़ती हैं। जब सूर्य की किरणें कर्क रेखा पर लंब रूप में पड़ती हैं, तो पवन-पेटियाँ उत्तर की ओर खिसक जाती हैं। इसके विपरीत जब सूर्य की किरणें मकर रेखा पर लंब रूप में पड़ती हैं, तो पवन-पेटियाँ दक्षिण की ओर खिसक जाती हैं।

प्रश्न (च)
कोरिओलिस (Coriolis) प्रभाव क्या है ? पृथ्वी पर इसका क्या प्रभाव है ? संक्षेप में लिखें।
उत्तर-
कोरिओलिस प्रभाव (Coriolis effect)-धरातल पर पवनें कभी भी उत्तर से दक्षिण की ओर सीधी नहीं बहतीं। सभी पवनें उत्तरी गोलार्द्ध में अपने दाएँ ओर तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में बाएँ ओर मुड़ जाती हैं। इसे फैरल का नियम कहते हैं। (“All moving bodies are deflected to the right in the Northern Hemisphere and to the left in the Southern Hemisphere.”)

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हवा की दिशा में परिवर्तन का कारण धरती की दैनिक गति है। जब हवाएँ कम चाल वाले भागों से अधिक चाल वाले भागों की ओर आती हैं, तो पीछे रह जाती हैं। जैसे-उत्तरी गोलार्द्ध में उत्तरी-पूर्वी व्यापारिक पवनें अपने दाएँ ओर मुड़ जाती हैं तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में बाएँ ओर मुड़ जाती हैं। इसे कोरिओलिस प्रभाव कहते हैं।

प्रश्न (छ)
शृंकां से क्या भाव है ? इस पर एक स्पष्ट नोट लिखें।
उत्तर-
उत्तरी अमेरिका में बसंत ऋतु में पर्वतों के नीचे उत्तर के मैदानों की ओर बहती गर्म शुष्क पवनों को चिनूक पवनें कहते हैं। कनाडा में पंजाबी में इसे ‘शंकां’ भी कहते हैं।

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4. प्रश्नों के उत्तर 150 से 250 शब्दों में लिखो-

प्रश्न (क)
स्थानीय पवनों के तापमान के आधार पर विभाजन और व्याख्या करें।
उत्तर-
स्थानीय पवनें (Local winds)-कुछ पवनें भू-तल के किसी छोटे-से सीमित भाग में चलती हैं, जिन्हें स्थानीय पवनें कहते हैं।

1. थल और जल समीर (Land and Sea Breezes)–थल पर स्थायी पवनों का एक सिलसिला है, पर जल और थल के तापमान की भिन्नता के कारण कुछ स्थानीय पवनें पैदा होती हैं। जल समीर और थल समीर अस्थायी पवनें हैं, जो समुद्र तल के निकट के क्षेत्रों में महसूस की जाती हैं। ये जल और थल की बहुत कम गर्मी के कारण पैदा होती हैं, इसलिए इन्हें छोटे पैमाने की मानसून पवनें (Monsoon on a Small Scale) भी कहते हैं।

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(i) जल समीर (Sea Breeze)—ये वे पवनें हैं, जो दिन के समय समुद्र से थल की ओर चलती हैं। उत्पत्ति का कारण (Origin)—दिन के समय सूर्य की तीखी गर्मी के कारण थल भाग समुद्र की अपेक्षा अधिक और जल्दी गर्म हो जाता है। थल पर हवा गर्म होकर ऊपर उठती है और वायु दबाव कम हो जाता है, परंतु समुद्र पर थल की तुलना में अधिक वायु दबाव रहता है। इस प्रकार थल पर कम दबाव का स्थान लेने के लिए समुद्र की ओर से ठंडी हवाएं चलती हैं। थल की गर्म हवा ऊपर उठकर समुद्र की ओर चली जाती है। इस प्रकार हवा के बहने का एक चक्र बन जाता है।

प्रभाव (Effects)-

  • जल समीर ठंडी और सुहावनी (Cool and fresh) होती है।
  • यह गर्मियों में तटीय क्षेत्रों में तापमान को कम करती है, परंतु सर्दियों में तटीय तापमान को ऊँचा करती है। इस प्रकार मौसम सुहावना और समान हो जाता है।
  • इसके प्रभाव समुद्र तट से 20 मील की दूरी तक सीमित रहते हैं।

(ii) थल समीर (Land Breeze)-ये वे पवनें हैं, जो रात के समय थल से समुद्र की ओर चलती हैं।
उत्पत्ति के कारण (Origin)—रात के समय स्थिति दिन से विपरीत होती है। थल भाग समुद्र की अपेक्षा अधिक और जल्दी ठंडे हो जाते हैं। समुद्र पर वायु दबाव कम हो जाता है, परंतु थल पर वायु दबाव अधिक होता है। इस प्रकार थल की ओर से समुद्र की ओर पवनें चलती हैं। समुद्र की गर्म हवा ऊपर उठकर थल पर उतरती है, जिससे हवा चलने का चक्र बन जाता है।

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प्रभाव (Effects)–

  • इसका थल भागों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
  • इन पवनों का फायदा उठाकर मछुआरे प्रातः थल समीर (Land Breeze) की सहायता से समुद्र की ओर बढ़ जाते हैं और शाम को जल समीर (Sea Breeze) के साथ-साथ तट की ओर वापस आ जाते हैं।
  • इसका प्रभाव तभी अनुभव होता है, जबकि आकाश साफ हो, दैनिक तापमान अधिक हो और तेज़ पवनें न बहती हों।

2. पर्वतीय और घाटी की पवनें (Mountain and Valley Winds)—यह आमतौर पर दैनिक पवनें होती हैं, जो दैनिक तापांतर के फलस्वरूप वायु-दबाव की भिन्नता के कारण चलती हैं।

(i) पर्वतीय पवनें (Mountain Winds)—पर्वतीय प्रदेशों में रात के समय पर्वत के शिखर से घाटी की ओर ठंडी और भारी हवाएँ चलती हैं, जिन्हें पर्वतीय पवनें (Mountain winds) कहा जाता है।।

उत्पत्ति (Origin)-रात के समय तेज विकिरण (Rapid Radiation) के कारण हवा ठंडी और भारी हो जाती है। यह हवा गुरुत्वाकर्षण शक्ति (Gravity) के कारण ढलानों से होकर नीचे उतरती है। इसे वायु प्रवाह (Air Drainage) भी कहते हैं।

प्रभाव (Effects)-इन पवनों के कारण घाटियाँ (Valleys) ठंडी हवा से भर जाती हैं, जिससे घाटी के निचले भागों पर पाला पड़ता है, इसीलिए कैलीफोर्निया (California) में फलों के बाग और ब्राजील में कॉफी (कहवा) के बाग ढलानों पर लगाए जाते हैं।

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(ii) घाटी की पवनें (Valley Winds)-दिन के समय घाटी की गर्म हवा ढलान के ऊपर से होकर चोटी की ओर ऊपर चढ़ती है। इसे घाटी की पवनें कहा जाता है।

उत्पत्ति (Origin)-दिन के समय पर्वत के शिखर पर तेज़ गर्मी और विकिरण के कारण हवा गर्म होकर ऊपर उठती है और कम वायु दबाव हो जाता है। उसका स्थान लेने के लिए घाटी से हवाएँ ऊपर चढ़ती हैं। जैसे-जैसे ये पवनें ऊपर चढ़ती हैं, वे ठंडी होती जाती हैं।

प्रभाव (Effects)-

  • ऊपर चढ़ने के कारण ये पवनें ठंडी होकर भारी वर्षा करती हैं।
  • ये ठंडी पवनें गहरी घाटियों में गर्मी की तेज़ी को कम करती हैं।

3. चिनक और फौहन पवनें (Chinook and Foehn Winds)-

(i) चिनूक पवनें (Chinnok Winds)-अमेरिका में रॉकी (Rocky) पर्वतों को पार करके प्रेरीज़ के मैदान में चलने वाली पवनों को चिनूक (Chinook) पवनें कहते हैं। चिनूक का अर्थ है-बर्फ खाने वाला। चूँकि ये पवनें अधिक तापमान के कारण बर्फ को पिघला देती हैं और कई बार 24 घंटों के समय में 50° F (10° C) तापमान बढ़ जाता है।

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(ii) फोहन पवनें (Foehn Winds)-यूरोप में अल्पस पर्वतों को पार करके स्विट्ज़रलैंड में उतरने वाली पवनों को फोहन (Foehn) पवनें कहते हैं।

प्रभाव (Effects)-

  • ये पवनें तापमान बढ़ा देती हैं और बर्फ पिघल जाती है, जिससे फसलों को पकने में सहायता मिलती है।
  • ये पवनों की कठोरता को कम करती हैं।
  • बर्फ के पिघल जाने से पहाड़ी चरागाह वर्ष-भर खुले रहते हैं और पशु-पालन में आसानी रहती है।

4. बोरा और मिस्ट्रल (Bora and Mistral)—ये दोनों एक ही प्रकार की शीतल और शुष्क पवनें हैं, जिन्हें यूगोस्लाविया के एडरिआटिक सागर (Adriatic Sea) और इटली के तट पर बोरा तथा फ्रांस की रोम घाटी (Rome Valley) में मिस्ट्रल कहते हैं। शीतकाल में मध्य यूरोप अत्यंत ठंड के कारण उच्च वायु दाब के अंतर्गत होता है। इसकी तुलना में भूमध्य सागर में निम्न वायु दाब होता है। परिणामस्वरूप मध्य यूरोप में भूमध्य सागर की ओर से ठंडी और शुष्क पवनें चलने लगती हैं। आम तौर पर ये शक्तिशाली पवनें होती हैं, जिनकी गति तेज़ होती है। रोहन नदी की तंग घाटी में ये पवनें बड़ा भयानक रूप धारण कर लेती हैं और कई बार इनकी तेज़ गति के कारण मकानों की छतें भी उड़ जाती हैं।

5. बवंडर (Tornado)—संयुक्त राज्य अमेरिका के मध्यवर्ती मैदानों में, गर्मी की ऋतु आरंभ होने के साथ ही तेज़ अंधेरियाँ चलनी शुरू हो जाती हैं, जिन्हें ‘बवंडर’ के नाम से पुकारा जाता है। इन मैदानों में, गर्मी की ऋतु आरंभ होते ही गर्मी में तेजी से वृद्धि होनी आरंभ हो जाती है। फलस्वरूप वहाँ निम्न वायु दाब उत्पन्न हो जाता है। निकटवर्ती बर्फ से ढके रॉकी पर्वतों के उच्च वायु दाब से अत्यंत ठंडी शुष्क पवनें तेज़ गति से यहाँ पहुँचती हैं और मैक्सिको की खाड़ी से आती हुई गर्म और नम पवनों के साथ संबंध स्थापित कर लेती हैं। शीतल और शुष्क तथा उष्ण और नम पवनों के मेल से प्रचंड बवंडर की उत्पत्ति होती है। ये बवंडर बहुत विनाशकारी होते हैं।

6. लू (Loo)-भारत के उत्तरी विशाल मैदानों और पाकिस्तान के सिंध और इसकी सहायक नदियों के मैदानों में मई-जून के महीनों में बहुत गर्म पवनें चलती हैं। ये अक्सर शुष्क होती हैं, जो पश्चिमी दिशा की ओर बहती हैं। इन्हें ‘लू’ कहते हैं। इनका तापमान 45°-50° सैल्सियस के बीच होता है। ये बहुत असहनीय होती हैं।

7. हर्मटन (Harmattan)—पश्चिमी अफ्रीका में सहारा मरुस्थल से शुष्क, गर्म और धूल भरी पवनें चलती हैं। पश्चिमी अफ्रीका के पश्चिमी तटों के गर्म व शुष्क वातावरण की नमी शरीर के पसीने को सुखा देती है। इस प्रकार ये पवनें स्वास्थ्य के लिए ठीक समझी जाती हैं। परिणामस्वरूप इन्हें डॉक्टर (Doctor) कह कर पुकारा जाता है।

8. सिरोको (Sirroco)—सहारा मरुस्थल से ही गर्म, शुष्क और धूल भरी पवनें भूमध्य सागर की ओर चलती हैं। इटली में इन्हें सिरोको और सहारा में ‘सिमूम’ कहा जाता है। भूमध्य सागर को पार करते समय ये नमी ग्रहण कर लेती हैं। इटली में ये मौसम को अत्यंत गर्म और चिपचिपा कर देती हैं। इस प्रकार ये दुखदायी होती हैं।

9. बलिजार्ड (Blizard) बर्फ से ढके ध्रुवीय क्षेत्रों में चलने वाली ठंडी, शुष्क और बर्फीली पवनों को बलिजार्ड कहते हैं। इनकी गति 70 से 100 किलोमीटर घंटा होती है। इनमें मुसाफिर मार्ग में भटक जाते हैं, इसे बर्फ का अंधापन (Snow blindness) कहा जाता है।

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प्रश्न (ख)
स्थायी पवनें क्या हैं ? प्रकार सहित इनकी व्याख्या करें।
उत्तर-
पवनें (Winds)-वायु हमेशा उच्च दबाव वाले क्षेत्रों से निम्न दबाव वाले क्षेत्रों की ओर चलती है। इस चलती हुई वायु को पवन (Wind) कहते हैं। वायु-दबाव में अंतर आ जाने के कारण ही भू-तल पर चलने वाली पवनें उत्पन्न होती हैं। पवनों की दिशा (Direction of the wind) वह होती है, जिस दिशा से वे आती हैं।

1. भू-मंडलीय या स्थायी पवनें (Planetary or Permanent Winds)-
धरातल पर उच्च वायु दाब और निम्न वायु दाब की अलग-अलग पेटियाँ (Belts) होती हैं। उच्च वायु दाब और निम्न वायु दाब की ओर से लगातार पवनें चलती हैं। इन्हें स्थायी पवनें कहते हैं। ये सदा एक ही दिशा की ओर चलती हैं। स्थायी पवनें तीन प्रकार की होती हैं-

  1. व्यापारिक पवनें (Trade winds)
  2. पश्चिमी पवनें (Westerlies)
  3. ध्रुवीय पवनें (Polar winds)

1. व्यापारिक पवनें (Trade Winds) विस्तार (Extent) व्यापारिक पवनें वे स्थायी पवनें हैं, जो गर्म कटिबंध (Tropics) के मध्य भूमध्य रेखा की ओर चलती हैं। ये पवनें घोड़ा अक्षांशों (Horse Latitudes) या उपोष्ण कटिबंध के उच्च दबाव (Sub Tropical High Pressure) के क्षेत्र से डोलड्रमज़ (Dol Drums) या भूमध्य रेखा की निम्न वायु दबाव वाली पेटी की ओर चलती हैं। इनका विस्तार आम तौर पर 5°-35° उत्तर और दक्षिण तक चला जाता है।

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दिशा (Direction)-ये दोनों गोलार्डों में पूर्व से आती दिखाई देती हैं, इसलिए इन्हें पूर्वी पवनें (Easterlies) भी कहते हैं। उत्तरी गोलार्द्ध में इनकी दिशा उत्तर-पूर्वी (North-East) और दक्षिणी गोलार्द्ध में दक्षिणी-पूर्वी (South-East) होती है। नाम का कारण (Why so Called ?)—इन पवनों को व्यापारिक पवनें (Trade winds) कहने के दो कारण हैं-

1. प्राचीन काल में यूरोप और अमेरिका के बीच समुद्री जहाजों को इन पवनों से बहुत सहायता मिलती थी। ये पवनें Backing winds के रूप में जहाज़ों की गति बढ़ा देती हैं, इसलिए व्यापार में सहायक होने के कारण इन्हें व्यापारिक पवनें कहा जाता है।

2. अंग्रेज़ी के मुहावरे, To blow trade का अर्थ है-लगातार बहना। ये पवनें लगातार एक ही दिशा की ओर बहती हैं। इसलिए इन्हें Trade winds कहते हैं।

उत्पत्ति का कारण (Why caused ?) भूमध्य रेखा पर बहुत गर्मी के कारण निम्न वायु दाब पेटी मिलती है। भूमध्य रेखा से ऊपर उठने वाली गर्म और हल्की हवा 30° उत्तर और दक्षिण के पास ठंडी और भारी होकर नीचे उतरती रहती है। ध्रुवों से खिसक कर आने वाली हवा भी इन अक्षांशों में नीचे उतरती है। इन नीचे उतरती हुई पवनों के कारण मकर रेखा के निकट उच्च वायु दाब पेटी बन जाती है। इसलिए भूमध्य रेखा के निम्न वायु दाब (Low Pressure) का स्थान ग्रहण करने के लिए 30° उत्तर और दक्षिण के उच्च वायु दाब से भूमध्य रेखा की ओर व्यापारिक पवनें चलती हैं।

दिशा परिवर्तन (Change in Direction)—यदि धरती स्थिर होती तो ये पवनें उत्तर-दक्षिण दिशा में चलतीं, परंतु धरती की दैनिक गति के कारण ये पवनें इस लंबवत् दिशा से हटकर एक तरफ झुक जाती हैं और Deflect हो जाती हैं। फैरल के नियम और कोरोलिस बल के कारण, ये पवनें उत्तरी गोलार्द्ध में दायीं ओर तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में बायीं ओर मुड़ जाती हैं।

प्रभाव (Effects)-

  • गर्म प्रदेशों में चलने के कारण ये पवनें आम तौर पर शुष्क होती हैं।
  • ये पवनें महाद्वीपों के पूर्वी भागों में वर्षा करती हैं और पश्चिमी भागों तक पहुँचते-पहुँचते शुष्क हो जाती हैं। यही कारण है कि पश्चिमी भागों में 20°-30° में गर्म मरुस्थल (Hot Deserts) मिलते हैं।
  • ये पवनें उत्तरी भाग में उच्च दाब (High Pressure) के निकट होने के कारण ठंडी (Cool) और शुष्क (Dry) होती हैं, पर भूमध्य रेखा के निकट दक्षिणी भागों में गर्म (Hot) और नम (Wet) होती हैं।
  • ये पवनें समुद्रों से लगातार और धीमी चाल में चलती हैं, पर महाद्वीपों में इनकी दिशा और गति में अंतर आ जाता है।

व्यापारिक पवनों के देश (Areas)-उत्तरी गोलार्द्ध में पूर्वी अमेरिका और मैक्सिको, दक्षिणी गोलार्द्ध में उत्तर-पूर्वी ऑस्ट्रेलिया, पूर्वी अफ्रीका और पूर्वी ब्राज़ील।

2. पश्चिमी पवनें (Westerlies) विस्तार (Extent)-ये पवनें ऐसी स्थायी पवनें हैं जो शीतोष्ण (Temperate) खंड में 30° उच्च वायु दाब से 60° के उप-ध्रुवीय निम्न वायु दाब (Sub-Polar Low Pressure) की ओर चलती हैं। इनका विस्तार आम तौर पर 30° से 65° तक पहुँच जाता है। इन पवनों की उत्तरी सीमा ध्रुवीय सीमांत (Polar Fronts) और चक्रवातों (Cyclones) के कारण सदा बदलती रहती है।

दिशा (Direction)-उत्तरी गोलार्द्ध में इन पवनों की दिशा दक्षिण-पश्चिमी (South-west) होती है। दक्षिणी गोलार्द्ध में इन पवनों की दिशा उत्तर-पश्चिमी (North-west) होती है।

नाम का कारण (Why so Called ?)दोनों गोलार्डों में ये पवनें पश्चिम से आती हुई महसूस होती हैं, इसलिए इन्हें पश्चिमी पवनें कहते हैं। इनकी दिशा व्यापारिक पवनों के विपरीत होती है, इसलिए इन्हें प्रतिकूल व्यापारिक पवनें (Anti-Trade winds) भी कहते हैं।

उत्पत्ति का कारण (Why Caused ?)-कर्क रेखा और मकर रेखा के निकट नीचे उतरती पवनों (Descending winds) के कारण उच्च वायु दाब हो जाता है। भूमध्य रेखा से गर्म और हल्की हवा इन अक्षांशों में नीचे उतरती है। इसी प्रकार ध्रुवों से खिसक कर आने वाली हवा भी नीचे उतरती है, परंतु 60°C अक्षांशों के निकट Antarctic Circle पर धरती की दैनिक गति के कारण निम्न वायु दाब हो जाता है। इसलिए 30° के उच्च वायु दाब की ओर से 60° के निम्न वायु दाब की ओर पश्चिमी पवनें चलती हैं।

दिशा परिवर्तन (Change in Direction)-आम तौर पर पवनों की दिशा उत्तर-दक्षिणी होनी चाहिए, परंतु धरती की दैनिक गति के कारण यह पवनें लंबवत् दिशा से हटकर एक ओर झुक जाती हैं। फैरल के नियम (Ferral’s Law) के अनुसार और कोरोलिस बल के कारण ये पवनें उत्तरी गोलार्द्ध में दायीं ओर तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में बायीं ओर मुड़ जाती हैं।

प्रभाव (Effects)-

  • समुद्रों की नमी से भरी होने के कारण यह पवनें अधिक वर्षा करती हैं।
  • यह पवनें पश्चिमी प्रदेशों में बहुत वर्षा करती हैं, परंतु पूर्वी भाग सूखे रह जाते हैं।
  • यह पवनें बहुत अस्थिर होती हैं। इनकी दिशा और शक्ति बदलती रहती है। चक्रवात (Cyclones) और प्रति-चक्रवात (Anti-cyclones) इनके मार्ग में अनिश्चित मौसम ले आते हैं। वर्षा, बादल, कोहरा, बर्फ और तेज़ आँधियों के कारण मौसम लगातार बदलता रहता है।
  • यह दक्षिणी गोलार्द्ध में समुद्रों पर लगातार और तेज़ चाल से चलती हैं। 40°-50° दक्षिण के अक्षांशों में इन्हें गर्जते चालीस (Roaring Forty) कहा जाता है। 50°-60° दक्षिण में इन्हें क्रमशः गुस्सैल पचास (Furious Fifties) और कूकते (चीखते) साठ (Shrieking Sixty) कहते हैं। इन प्रदेशों में ये इतनी तेज़ी से चलती हैं कि दक्षिणी अमेरिका के Cape-Horn पर समुद्री आवाजाही रुक जाती है।
  • व्यापारिक पवनों की तुलना में इनका प्रवाह-क्षेत्र बड़ा होता है।

पश्चिमी पवनों के क्षेत्र (Areas)-इन पवनों के कारण पश्चिमी यूरोप के सभी देशों में आदर्श जलवायु (Ideal Climate) होती है। इसके अतिरिक्त पश्चिमी अमेरिका, पश्चिमी कनाडा, दक्षिणी-पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड तथा दक्षिणी-पश्चिमी अफ्रीका के प्रदेश इन पवनों के प्रभाव में आ जाते हैं।

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प्रश्न (ग)
निम्नलिखित पर नोट लिखें-
(i) कोरियोलिस प्रभाव
(ii) ऐलनीनो प्रभाव।
उत्तर-
(i) कोरियोलिस प्रभाव (Coriolis Effect)
पवनों की दिशा पर पृथ्वी के घूमने का प्रभाव (Effect of Earth’s Rotation on Wind’s Direction)पवनें उच्च दाब से निम्न दाब की दिशा की ओर चलती हैं। आम तौर पर ये सीधी चलती हैं, परंतु पृथ्वी की दैनिक गति ऐसा नहीं होने देती। इस गति के कारण पवनों की दिशा में विचलन (Deflection) हो जाता है। इस मोड़ने वाली या विचलन वाली शक्ति को विचलन शक्ति (Deflection Force) कहते हैं। इस बल की खोज एक फ्रांसीसी गणित शास्त्री कोरियोलिस (G.G. de Coriolis, 1792-1843) ने की थी। उसके नाम पर ही इस बल को कोरियोलिस बल या प्रभाव (Coriolis Force or Effect) का नाम दिया गया है।

इस प्रभाव के फलस्वरूप भू-तल पर चलने वाली सारी पवनें उत्तरी गोलार्द्ध में अपने दाएँ हाथ और दक्षिणी गोलार्द्ध में अपने बाएँ हाथ मुड़ जाती हैं। इस प्रकार इस तथ्य की पुष्टि एक अन्य वैज्ञानिक फैरल (Ferral) ने एक प्रयोग द्वारा की थी। इसे फैरल का नियम (Ferral’s Law) भी कहते हैं।

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(ii) ऐलनीनो प्रभाव (Al-Nino Effect)-
ऐलनीनो गर्म पानी की एक धारा है, जो दक्षिणी महासागर में पेरु तथा चिली के तट के साथ-साथ बहती है। यह 6-7 वर्षों बाद चलती है। इस तट के साथ हंबोलट की ठंडी धारा बहती है, पर ऐलनीनो में स्थिति विपरीत हो जाती है और गर्म पानी की धारा बहती है। इसी कारण पेरु आदि देशों में भारी वर्षा होती है, पर मानसूनी वर्षा कम हो जाती है। भारत आदि देशों में सूखे के हालात बन जाते हैं।

प्रश्न (घ)
मानसून की उत्पत्ति संबंधी भिन्न-भिन्न सिद्धांतों का वर्णन करें।
उत्तर-
मानसून पवनें (Monsoon Winds)-परिभाषा (Definition)-मानसून वास्तव में अरबी भाषा के शब्द ‘मौसम’ से बना है। सबसे पहले इनका प्रयोग अरब सागर पर चलने वाली हवाओं के लिए किया गया था। मानसून पवनें वे मौसमी पवनें हैं, जिनकी दिशा मौसम के अनुसार बिल्कुल विपरीत होती है। ये पवनें गर्मी की ऋतु में छह महीने समुद्र से थल की ओर तथा सर्दी की ऋतु में छह महीने थल से समुद्र की ओर चलती हैं।

कारण (Causes)-मानसून पवनें वास्तव में एक बड़े पैमाने पर थल समीर (Land Breeze) और जल समीर (Sea Breeze) हैं। इनकी उत्पत्ति का कारण जल और थल के गर्म और ठंडा होने में भिन्नता (Difference in the cooling and Heating of land and water) है। जल और थल असमान रूप से गर्म और ठंडे होते हैं। इस प्रकार मौसम के अनुसार वायु दाब में भी अंतर हो जाता है, जिनसे हवाओं की दिशा विपरीत हो जाती है।

थल भाग समुद्र की अपेक्षा जल्दी गर्म और जल्दी ठंडा हो जाता है। दिन के समय समुद्र के निकट थल पर निम्न दाब (Low Pressure) और समुद्र पर उच्च दाब (High Pressure) होता है। परिणामस्वरूप समुद्र से थल की ओर जल समीर (Sea Breeze) चलती है, पर रात को दिशा विपरीत हो जाती है और थल से समुद्र की ओर थल समीर (Land Breeze) चलती है। इस प्रकार हर दिन वायु की दिशा बदलती रहती है परंतु मानसून पवनों की दिशा मौसम के अनुसार बदलती है। ये पवनें तट के निकट के प्रदेशों में ही नहीं, बल्कि एक पूरे महाद्वीप में चलती हैं। इसलिए मानसून पवनों को थल समीर (Land Breeze) और जल समीर (Sea Breeze) का एक बड़े पैमाने पर दूसरा रूप कह सकते हैं।

मानसून की उत्पत्ति के लिए जरूरी दशाएँ (Necessary Conditions)—मानसून पवनों की उत्पत्ति के लिए इन दशाओं की आवश्यकता होती है-

  • एक विशाल महाद्वीप का होना।
  • एक विशाल महासागर का होना।
  • थल और जल भागों के तापमान में काफी अंतर का होना।
  • एक लंबी तट रेखा का होना।

मानसूनी प्रदेश (Areas)-ये मानसून पवनें सदा उष्ण-कटिबंध में चलती हैं, परंतु एशिया में ये पवनें 60° उत्तरी अक्षांश तक चलती हैं। इसलिए मानसून खंड दो भागों में विभाजित होते हैं। हिमालय पर्वत इन्हें अलग करता है।

(i) पूर्वी एशियाई मानसून (East-Asia Monsoon)-हिंद-चीन (Indo-China), चीन और जापान क्षेत्र।
(ii) भारतीय मानसून (Indian Monsoon)-भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश, बर्मा क्षेत्र।

गर्मी ऋतु की मानसून पवनें (Summer Monsoons)—मानसून पवनों के उत्पन्न होने और इनके प्रभाव के बारे में स्पष्ट करने के लिए एक ही वाक्य कहा जा सकता है-(“The chain of events is from temperature through pressure and winds to rainfall.”)

अथवा

Temp. → Pressure → Winds → Rainfall.
इन मानसून पवनों की तीन विशेषताएँ हैं-

(i) मौसम के साथ दिशा परिवर्तन।
(ii) मौसम के साथ वायु दाब केंद्रों का विपरीत हो जाना।
(iii) गर्मी ऋतु में वर्षा।

तापमान की भिन्नता के कारण वायु भार में अंतर पड़ता है और अधिक वायु भार से कम वायु भार की ओर ही पवनें चलती हैं। समुद्र से आने वाली पवनें वर्षा करती हैं। गर्मी की ऋतु में सूर्य की किरणें कर्क रेखा पर सीधी पड़ती हैं, इसलिए भारत, चीन और मध्य एशिया के मैदान गर्म हो जाते हैं। इन थल भागों में कम वायु दाब केंद्र (Low Pressure Centres) स्थापित हो जाते हैं और हिंद महासागर तथा शांत महासागर से भारत और चीन की तरफ समुद्र से थल की ओर पवनें (Sea to Land Winds) चलती हैं। भारत में इन्हें दक्षिण-पश्चिमी गर्मी की ऋतु का मानसून (South-west Summer Monsoon) कहते हैं। चीन में इनकी दिशा दक्षिण-पूर्वी होती है। भारत में ये पवनें भारी वर्षा करती हैं, जिसे मानसून का फटना (Burst of Monsoon) भी कहते हैं। भारत में यह वर्षा बहुत महत्त्वपूर्ण है क्योंकि भारतीय कृषि इसी वर्षा पर निर्भर करती है। इसीलिए “भारतीय बजट को मानसून का जुआ” (“Indian Budget is a gamble of Monsoon.”) कहा जाता है।

सर्दी की मानसून पवनें (Winter Monsoon)-सर्दी की ऋतु में मानसून पवनों की उत्पत्ति थल भागों पर होती है। सूर्य की किरणें मकर रेखा पर सीधी चमकती हैं, इसलिए उत्तरी गोलार्द्ध के थल भाग आस-पास के सागरों की तुलना. में ठंडे हो जाते हैं। मध्य एशिया में गोबी मरुस्थल (Gobi Desert) और भारत में राजस्थान प्रदेश में उच्च वायु दाब हो जाता है, इसीलिए इन भागों से समुद्र की ओर पवनें (Land to sea winds) चलती हैं। ये पवनें शुष्क और ठंडी होती हैं। भारत में इन्हें उत्तर-पूर्वी सर्दी ऋतु का मानसून (North-East winter Monsoon) कहते हैं। ये पवनें खाड़ी बंगाल को पार करने के बाद तमिलनाडु प्रदेश में वर्षा करती हैं। भू-मध्य रेखा पार करने के बाद ऑस्ट्रेलिया के तटीय भागों में भी इन पवनों से ही वर्षा होती है।

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मानसून पवनों की उत्पत्ति (Origin of Monsoons)-मानसून पवनों की उत्पत्ति के बारे में नीचे लिखी विचारधाराएँ प्रचलित हैं

1. तापीय विचारधारा (Thermal Concept)-इनकी उत्पत्ति का कारण जल और थल के गर्म और ठंडा होने में भिन्नता (Difference in the cooling and Heating of Land and Water) है। जल और थल असमान रूस से गर्म और ठंडे होते हैं। इस प्रकार मौसम के अनुसार वायु दाब में भी अंतर हो जाता है जिससे हवाओं की दिशा विपरीत हो जाती है। गर्मी की ऋतु में ये पवनें समुद्र से थल की ओर चलती हैं और शीत ऋतु में ये पवनें थल से समुद्र की ओर चलती हैं।

2. स्पेट की विचारधारा (Spate’s Concept) स्पेट नाम के विद्वान् के अनुसार मानसून पवनें चक्रवातों और प्रति-चक्रवातों के कारण पैदा होती हैं। इनके मिलने के कारण सीमांत बनते हैं, जिसमें चक्रवातीय हवा को मानसून कहते हैं।

3. फ्लॉन की विचारधारा (Flohn’s Concept)—मानसून पवनों की उत्पत्ति के बारे में सिद्धांतों में कमियों को देखते हुए फ्लॉन (Flohn) नामक विद्वान् ने एक नई विचारधारा को जन्म दिया। इसके अनुसार व्यापारिक पवनों और भूमध्य रेखीय निम्न वायु दाब क्षेत्र के आपसी मिलन स्थल (Inter-tropical convergence Zone-ITCZ) से पैदा हुए चक्रवातों के कारण मानसून पवनों की उत्पत्ति होती है और भारी वर्षा होती है, जिसे मानसून का फटना (Burst of Monsoon) कहते हैं। फ्लॉन के शब्दों में मानसून पवनें भू-मंडलीय पवन-तंत्र का ही रूपांतर हैं। (“The tropical Monsoon is simply a modification of Planetary wind system”.)

4. जेट प्रवाह विचारधारा (Jet Stream Theory)-वायुमंडल में ऊपरी सतहों में तेज़ गति से चलने वाली हवा को जेट प्रवाह कहते हैं। इस प्रवाह की गति 500 कि०मी० प्रति घंटा होती है। यह एक विशाल क्षेत्र को घेरे हुए 20°N-40°N के मध्य मिलती है। हिमालय पर्वत की रुकावट के कारण इसकी दो शाखाएँ हो जाती हैं-उत्तरी जेट प्रवाह और दक्षिणी जेट प्रवाह। दक्षिणी जेट प्रवाह भारत की जलवायु पर प्रभाव डालता है।
इस जेट प्रवाह के कारण दक्षिणी-पश्चिमी मानसून पवनें भारत की ओर चलती हैं।

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प्रश्न (ङ)
चक्रवात क्या होते हैं ? उष्ण विभाजीय (कटिबंधीय) और शीतोष्ण विभाजीय (कटिबंधीय) चक्रवातों का वर्णन करें।
उत्तर-
चक्रवात निम्न वायुदाब का क्षेत्र होता है। चक्रवात में पवनें उत्तरी गोलार्द्ध (Northern Hemisphere) में घड़ी की दिशा के विपरीत तथा दक्षिणी गोलार्द्ध (Southern Hemisphere) में घड़ी की दिशा के साथ चलती हैं। इस प्रकार पवनों के उच्च वायु दाब से निम्न वायु दाब की ओर सुइयों के प्रतिकूल और अनुकूल चलने के कारण पवनों का एक चक्र उत्पन्न हो जाता है, जिसे चक्रवात कहते हैं। चक्रवात को उनकी स्थिति के अनुसार दो भागों में बांटा जाता है-

(1) शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात (Temperate Cyclones)
(2) उष्ण कटिबंधीय चक्रवात (Tropical Cyclones)

1. शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात (Temperate Cyclones) – ये चक्रवात शीतोष्ण कटिबंध में मुख्य रूप से 30° से 60° अक्षांशों के मध्य पश्चिमी पवनों की पेटी में उत्पन्न होते हैं, जो आकृति में प्रायः वृत्त-आकार या अंडाकार होते हैं। इन्हें वायुगर्त (Depression) या निम्न (Low) या ट्रफ (Trough) भी कहते हैं।

1. आकृति और विस्तार (Shape and Size)-ये चक्रवात प्राय: वृत्त-आकार या अंडाकार होते हैं। इनका व्यास 1000 से 2000 किलोमीटर तक होता है। कभी-कभी इनका व्यास 3000 किलोमीटर से भी बढ़ जाता है। इनकी दाब-ढलान (Pressure Gradient) कम होती है।

2. उत्पत्ति (Formation)-शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवातों की उत्पत्ति उष्ण और शीतल वायु-पिंडों (Air Masses) के मिलने से होती है। गर्म प्रदेशों से आने वाली गर्म पश्चिमी पवनें जब ध्रुवों से आने वाली पवनों से शीतोष्ण कटिबंध में मिलती हैं, तो शीतल पवनें गर्म पवनों को चारों ओर से घेर लेती हैं, जिसके फलस्वरूप केंद्र में गर्म पवनों से निम्न वायु दाब और बाहर गर्म पवनों से उच्च दाब बन जाता है। इस प्रकार चक्रवातों की उत्पत्ति होती है। इसे ध्रुवीय सीमांत सिद्धांत (Polar Front Theory) भी कहते हैं।
चक्रवातों के जीवन के इतिहास में अवस्थाओं का एक क्रम देखा जा सकता है-

1. पहली अवस्था-इस अवस्था के अनुसार दो वायु-राशियाँ एक-दूसरे के निकट आती हैं और सीमांत (Front) की रचना होती है। ध्रुवों की वायु-राशि और भूमध्य रेखा से आने वाली गर्म वायु विपरीत दिशाओं से आती है।

2. दूसरी अवस्था-इस अवस्था में उष्ण वायु-राशि में एक उभार उत्पन्न हो जाता है और फ्रंट एक तरंग का
रूप धारण कर लेता है। फ्रंट (Front) के दो भाग हो जाते हैं-उष्ण फ्रंट और शीत फ्रंट। गर्म वायु-राशि उष्ण फ्रंट (Warm Front) के निकट शीत वायु से टकराती है।

3. तीसरी अवस्था-इस अवस्था में शीत फ्रंट तेज़ी से आगे बढ़ता है। तरंगों की ऊँचाई और वेग में वृद्धि होती है। गर्म वायु-राशि का भाग छोटा हो जाता है।

4. चौथी अवस्था-इस अवस्था में तरंगों की ऊँचाई अधिकतम होती है। दोनों वायु राशियों में धाराएँ चक्राकार गति प्राप्त कर लेती हैं और चक्रवात का विकास होता है।

5. पाँचवी अवस्था-इस अवस्था में शीत फ्रंट उष्ण फ्रंट को पकड़ लेता है। शीतल वायु उष्ण वायु को धरातल पर दबा देती है।

6. अंतिम अवस्था-इस अवस्था में उष्ण वायु अपने स्रोत से हटकर ऊपर उठ जाती है। धरातल पर शीतल वायु की एक भँवर (Whirl) चक्रवात का निर्माण होता है।

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3. प्रवाह की दिशा (Direction of Movement)-चक्रवात सदा प्रवाहित होते रहते हैं। प्रायः ये प्रचलित पवनों द्वारा प्रवाहित होते हैं। पश्चिमी पवनों के कटिबंध में ये पूर्व दिशा की ओर चलते हैं। इनका क्षेत्र उत्तरी प्रशांत महासागर, उत्तरी संयुक्त राज्य अमेरिका और दक्षिणी कनाडा, उत्तरी अंधमहासागर और उत्तर-पश्चिमी यूरोप है।

4. वेग (Velocity)-इन चक्रवातों का वेग (गति) ऋतु और स्थिति पर निर्भर करता है। गर्म ऋतु की तुलना में शीतकाल में इनका वेग तीव्र होता है। संयुक्त राज्य अमेरिका में ये गर्मी की ऋतु में 60 कि०मी० प्रति घंटा और सर्दियों की ऋतु में 48 कि०मी० प्रति घंटे की गति से आगे बढ़ते हैं।

5. मौसम की स्थिति (Weather Conditions)—इनमें तापमान ऋतु परिवर्तन के साथ बदलता रहता है। शीतकाल में इसका अगला भाग कुछ उष्ण रहता है और पिछला भाग शीतल। गर्मी की ऋतु में पिछला भाग शीतकाल की तुलना में निम्न रहता है। आम तौर पर चक्रवात का अगला भाग पूरा वर्ष लगभग उष्ण-नम (Muggy) होता है। इन चक्रवातों के आने पर आकाश पर खंभ-आकारी बादल छा जाते हैं। सूर्य और चंद्रमा के आस-पास एक प्रकाश-वृत्त (Halo) बन जाता है। फिर धीरे-धीरे फुहार शुरू हो जाती है, जो जल्दी ही तेज़ वर्षा का रूप धारण कर लेती है। परंतु शीघ्र ही आकाश साफ और सुहावना हो जाता है। यह इस बात का प्रतीक है कि चक्रवात का केंद्र पहुँच गया है। जब यह केंद्र आगे बढ़ जाता है, तो मौसम फिर ठंडा हो जाता है। ठंड बहुत तेजी से बढ़ने लगती है। आकाश में घने बादल छा जाते हैं और वर्षा की झड़ी लग जाती है। वर्षा के साथ ओले भी पड़ने लगते हैं। बहुत तेज़ हवाएँ चलती हैं जिसके परिणामस्वरूप तापमान और भी कम हो जाता है। बादल गर्जते हैं और बिजली चमकती है। चक्रवात के शीत पिंड पर पहुँचने पर वर्षा बंद हो जाती है और इस प्रकार चक्रवात का अंत हो जाता है और आकाश साफ हो जाता है।

2. उष्ण कटिबंधीय चक्रवात (Tropical Cyclones)-

उष्ण कटिबंध 2372° उत्तर से 2372° दक्षिणी अक्षांशों के बीच उत्पन्न होने वाले चक्रवातों को उष्ण कटिबंधीय चक्रवात कहते हैं। ये चक्रवात अपनी आकृति, वेग और मौसमी स्थिति संबंधी विशेषताओं में अलग हैं।

1. आकृति और विस्तार (Shape and size)-ये चक्रवात प्रायः वृत्ताकार और शीतोष्ण चक्रवातों की तुलना में छोटे व्यास के होते हैं। इनका व्यास 80 से 3000 कि०मी० तक होता है; पर कभी-कभी ये 50 कि०मी० से भी कम व्यास के होते हैं।

2. उत्पत्ति (Formation)-इनकी उत्पत्ति गर्मी के कारण उत्पन्न संवहन धाराओं (Convection Currents) के द्वारा होती है। मुख्य रूप में चक्रवात भूमध्य रेखीय निम्न वायु दाब पेटी में उत्पन्न संवहन धाराओं का प्रतिफल है, विशेष रूप से जब यह पेटी सूर्य के साथ उत्तर की ओर खिसक जाती है। इसकी उत्पत्ति गर्मी की ऋतु के अंतिम भाग में होती है।

3. प्रवाह की दिशा (Direction of Movement)-इन चक्रवातों का मार्ग विभिन्न क्षेत्रों में भिन्न-भिन्न होता है। प्राय: यह व्यापारिक पवनों के साथ पूर्व से पश्चिम दिशा में प्रवाह करते हैं। जब ये महासागर से स्थल में प्रवेश करते हैं, तो उनकी शक्ति कम हो जाती है और वे जल्दी ही समाप्त हो जाते हैं।

4. वेग (Velocity)–इन चक्रवातों के वेग में भिन्नता पाई जाती है। प्रायः ये 32 कि०मी० प्रति घंटा के वेग से चलते हैं, परंतु इनमें से कुछ अधिक शक्तिशाली, जैसे-हरीकेन (Harricane) और टाईफून (Typhoon) 120 कि०मी० प्रति घंटा से भी अधिक गति से चलते हैं। सागरों में इनकी गति तेज़ हो जाती है, परंतु स्थल पर विभिन्न भू-आकृतियों द्वारा रुकावट होने पर ये कमज़ोर पड़ जाते हैं। ये सदा गतिशील नहीं रहते। कभी-कभी ये एक स्थान पर ही कई दिन तक रुककर भारी वर्षा करते हैं।

5. मौसमी स्थिति (Weather Conditions)-उष्ण कटिबंधीय चक्रवात के केंद्र को ‘चक्रवात की आँख’ (Eye of the Cyclone) कहा जाता है। इस क्षेत्र में आकाश साफ होता है। केंद्र में पवनें गर्म होकर ऊपर उठती हैं, जिसके परिणामस्वरूप घने बादल बन जाते हैं और तेज़ वर्षा करते हैं। चक्रवात के अगले भाग (Front) में पिछले भाग (Rear) की तुलना में गर्मी अधिक होती है। चक्रवात के दाएँ और अगले भाग में अधिक वर्षा होती है। ये अपनी प्रचंड गति वाली पवनों के कारण अत्यंत विनाशकारी होते हैं। इनमें अलगअलग पिंड (Front) न होने के कारण शीतोष्ण चक्रवातों के समान तापमान की भिन्नता नहीं होती। इन चक्रवातों के आने से पहले पतले सिरस बादल (Cirrus Clouds) की उत्पत्ति होती है। मौसम शांत और गर्म होता है। धीरे-धीरे कपासी (Cumulus) और पतली परत (Stratus) वाले बादल आ जाते हैं। जल्दी ही आकाश बादलों से ढक जाता है। अंधेरी आ जाती है और बादल गर्जते हैं। इसके बाद बड़ी-बड़ी बूंदों वाली वर्षा प्रारंभ हो जाती है। चक्रवात के पिछले भाग में ओले पड़ते हैं और कुछ समय बाद मौसम सुहावना हो जाता है।

प्रभावित प्रदेश (Affected Regions)-विश्व में इनसे प्रभावित होने वाले प्रमुख देश नीचे लिखे हैं-

  • पश्चिमी द्वीप समूह (West Indies)-इन प्रदेशों में इन चक्रवातों को हरीकेन (Hurricane) कहते हैं।
  • संयुक्त राज्य अमेरिका मैक्सिको (Mexico)—यहाँ इन्हें टोरनैडो (Tornado) कहते हैं।
  • बंगाल की खाड़ी और अरब सागर-यहाँ इन्हें साइक्लोन (Cyclone) या चक्रवात कहते हैं।
  • फिलीपाइन द्वीप समूह (Philippine Island)–चीन और जापान में इन्हें टाईफून (Typhoon) कहते हैं। .
  • पश्चिमी अफ्रीका का गिनी प्रदेश–यहाँ इन चक्रवातों को टोरनैडो (Tornado) कहते हैं।
  • ऑस्ट्रेलिया के उत्तर-पश्चिमी प्रदेश–यहाँ इन्हें विल्ली-विल्ली (Willy-Willy) का नाम दिया जाता है।

उष्ण कटिबंधीय चक्रवातों का विनाशकारी प्रभाव-उष्ण कटिबंधीय चक्रवात निम्न दाब के केंद्र होते हैं। बाहर से तीव्र हवाएँ अंदर आती हैं। इनकी गति 200 कि०मी० प्रति घंटा होती है। ये चक्रवात महासागर के ऊपर बिना रोकटोक के चलते हैं। समुद्र में ऊँची-ऊँची लहरें उठती हैं, जिनसे समुद्री जहाजों को नुकसान होता है। समुद्री तटों के ऊपर छोटे-छोटे द्वीपों के ऊपर भयानक लहरें जान और माल का नुकसान करती हैं। हजारों लोग समुद्र में डूब जाते हैं। समुद्री यातायात ठप्प हो जाता है। सन् 1970 में बांग्लादेश में इसी प्रकार के चक्रवात आए थे, जिन्होंने जान और माल का बहुत अधिक नुकसान किया था।

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प्रश्न (च)
निम्नलिखित पर नोट लिखें(i) टोरनैडो (ii) विपरीत चक्रवात।
उत्तर-
(i) टोरनैडो या बवंडर (Tornado)-संयुक्त राज्य अमेरिका के मध्यवर्ती मैदान में गर्मी की ऋतु के प्रारंभ होने के साथ तेज़ आंधियाँ चलनी आरंभ हो जाती हैं, जिन्हें बवंडर के नाम से पुकारा जाता है। इन मैदानों में गर्मी की ऋतु आरंभ होते ही गर्मी में तेजी से वृद्धि होनी आरंभ हो जाती है। फलस्वरूप वहाँ निम्न वायु दाब उत्पन्न हो जाता है। निकटवर्ती बर्फ से ढके रॉकी पर्वत के उच्च वायु दाब से अत्यंत ठंडी और शुष्क पवनें तेज़ गति से यहाँ पहुँचती हैं और मैक्सिको की खाड़ी से आती हुई गर्म और नम पवनों के साथ संबंध स्थापित कर लेती हैं। शीतल और शुष्क तथा उष्ण और नम पवनों के मेल से प्रचंड बवंडर की उत्पत्ति होती है। ये बवंडर बहुत विनाशकारी होते हैं।

(ii) विपरीत चक्रवात (Anti-Cyclones)-विपरीत चक्रवात में वायु दाब की व्यवस्था चक्रवात से बिल्कुल विपरीत होती है। जब मध्य में उच्च वायु दाब और चारों ओर निम्न वायु दाब होता है, तो वायु दाब की इस स्थिति को प्रति चक्रवात कहते हैं। इसमें पवनें केंद्र से बाहर की ओर चलती हैं। फैरल के नियम के अनुसार, उत्तरी गोलार्द्ध में यह घड़ी की सुइयों के समान (Clockwise) और दक्षिणी गोलार्द्ध में घड़ी की सुइयों के विपरीत (Anti-Clock wise) चलती हैं। केंद्र से बाहर की ओर वायु दाब निम्न होता जाता है जिससे प्रति चक्रवात में समदाब रेखाएँ (Isobars) लगभग गोलात्मक होती हैं।

(क) आकृति और विस्तार (Shape and Size)-प्रति चक्रवात प्रायः वृत्त आकार के होते हैं, परंतु कभी-कभी दो चक्रवातों के बीच स्थित होने के कारण ये फलीदार (Wedge-Shaped) होते हैं। ये – बहुत बड़े होते हैं, जिनका व्यास 3000 कि०मी० से भी अधिक होता है। कभी-कभी तो इनका व्यास 9000 कि०मी० तक भी होता है। समूचे यूरोप और साइबेरिया जैसे विशाल भू-खंड को कभी-कभी एक ही प्रतिकूल चक्रवात घेर लेता है।

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(ख) मार्ग और वेग (Track and Velocity)-प्रतिकूल चक्रवात का अपना कोई निश्चित मार्ग नहीं होता क्योंकि ये प्रायः शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवातों में रहते हैं और उनका मार्ग ही अपनाते हैं। कभी-कभी ये एक ही स्थान पर निरंतर कई दिनों तक रहते हैं। जब ये चलते हैं, तो इनका वेग 30 से 50 कि०मी० प्रति घंटा होता है। इनकी दिशा और मार्ग अनिश्चित होते हैं। ये अचानक प्रवाह दिशा में परिवर्तन भी कर लेते हैं।

Geography Guide for Class 11 PSEB वपवनें Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न तु (Objective Type Questions)

नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर 2-4 शब्दों में दें-

प्रश्न 1.
पूर्वी पवनें किन्हें कहते हैं ?
उत्तर-
व्यापारिक पवनों को।

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प्रश्न 2.
व्यापारिक पवनों की उत्तरी गोलार्द्ध में दिशा बताएँ।
उत्तर-
उत्तरी-पूर्वी।

प्रश्न 3.
व्यापारिक पवनों के मरुस्थल कहाँ मिलते हैं ?
उत्तर-
पश्चिमी भागों में।

प्रश्न 4.
पश्चिमी पवनों की उत्तरी गोलार्द्ध में दिशा बताएँ।
उत्तर-
दक्षिणी-पश्चिमी।।

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प्रश्न 5.
उस प्राकृतिक खंड का नाम बताएँ, जहाँ पश्चिमी पवनों के कारण सर्दियों में वर्षा होती है।
उत्तर-
भू-मध्य सागरीय खंड।

प्रश्न 6.
शीतोष्ण चक्रवात किन पवनों के साथ-साथ चलते हैं ?
उत्तर-
पश्चिमी पवनों।

प्रश्न 7.
40°- 50° दक्षिणी अक्षांशों में पश्चिमी पवनों को क्या कहते हैं ?
उत्तर-
गर्जता चालीस।

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प्रश्न 8.
रॉकी पर्वत से नीचे उतर कर प्रेरीज़ में चलने वाली पवनों का नाम बताएँ।
उत्तर-
चिनूक पवनें।

प्रश्न 9.
अल्पस पर्वत से नीच उतर कर चलने वाली पवनों का नाम बताएँ।
उत्तर-
फोहन पवनें।

प्रश्न 10.
दिन के समय तटीय क्षेत्रों में चलने वाली पवनों का नाम बताएँ।
उत्तर-
जल-समीर।

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प्रश्न 11.
रात के समय तटीय क्षेत्रों में चलने वाली पवनों का नाम बताएँ।
उत्तर-
थल-समीर।

प्रश्न 12.
दिन के समय पहाड़ी ढलानों के ऊपर उठने वाली पवनों का नाम बताएँ।
उत्तर-
घाटी पवनें।

प्रश्न 13.
रात के समय घाटी ढलानों से नीचे उतरने वाली पवनों का नाम बताएँ।
उत्तर-
पर्वतीय पवनें।

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प्रश्न 14.
आरोही पवनों को क्या कहते हैं ?
उत्तर-
घाटी पवनें।

प्रश्न 15.
अवरोही पवनों को क्या कहते हैं ?
उत्तर-
पर्वतीय पवनें।

प्रश्न 16.
बर्फ को खाने वाली पवनों का नाम बताएँ।
उत्तर-
चिनूक पवनें।

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बहुविकल्पीय प्रश्न

नोट-सही उत्तर चुनकर लिखें-

प्रश्न 1.
उत्तरी गोलार्द्ध में व्यापारिक पवनों की दिशा है
(क) उत्तर-पूर्वी
(ख) दक्षिण-पूर्वी
(ग) पश्चिमी
(घ) दक्षिणी।
उत्तर-
उत्तर-पूर्वी।

प्रश्न 2.
वायु दाब मापने की इकाई है-
(क) बार
(ख) मिलीबार
(ग) कैलोरी
(घ) मीटर।
उत्तर-
मिलीबार।

अति लघु उत्तरात्मक प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर 2-3 वाक्यों में दें-

प्रश्न 1.
नक्षत्रीय पवनों या स्थायी पवनों से क्या अभिप्राय है ? इनके उदाहरण बताएँ।
उत्तर-
भू-तल पर सदा एक ही दिशा में लगातार चलने वाली पवनों को स्थायी या नक्षत्रीय पवनें कहते हैं, जैसेव्यापारिक पवनें, पश्चिमी पवनें और ध्रुवीय पवनें।

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प्रश्न 2.
व्यापारिक पवनों की दिशा बताएँ।
उत्तर-
उत्तरीय गोलार्द्ध में व्यापारिक पवनें उत्तर-पूर्व दिशा में और दक्षिणी गोलार्द्ध में दक्षिण-पूर्व दिशा में चलती हैं।

प्रश्न 3.
पश्चिमी पवनों की दिशा बताएँ।
उत्तर-
पश्चिमी पवनें उत्तरी-गोलार्द्ध में दक्षिण-पश्चिम दिशा में और दक्षिणी गोलार्द्ध में उत्तर-पश्चिम दिशा में चलती हैं।

प्रश्न 4.
व्यापारिक पवनों के क्षेत्र में पश्चिमी भागों में मरुस्थल क्यों मिलते हैं ?
उत्तर-
व्यापारिक पवनें पूर्वी भागों में वर्षा करती हैं और पश्चिमी भाग शुष्क रह जाते हैं। यहाँ सहारा, थार, पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया, कालाहारी, ऐटेकामा मरुस्थल मिलते हैं।

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प्रश्न 5.
दक्षिणी गोलार्द्ध में पश्चिमी पवनों के कोई चार उपनाम बताएँ।
उत्तर-
दक्षिणी गोलार्द्ध में थल की कमी के कारण पश्चिमी पवनों के मार्ग में कोई रुकावट नहीं होती। तेज़ गति से चलने के कारण इन्हें वीर पश्चिमी पवनें (Brave Westerlies) कहते हैं। 40°-50° अक्षाशों में गर्जता चालीस (Roaring forties), 50°-60° अक्षाशों में गुस्सैल पचास (Ferocious fifties) और 60° से आगे इन्हें कूकते या चीखते साठ (Shrieking Sixties) कहते हैं।

प्रश्न 6.
तटवर्ती भागों में चलने वाली दो स्थानीय पवनों के नाम बताएँ।
उत्तर-
थल समीर और जल समीर।

प्रश्न 7.
पर्वतीय भागों की दो स्थानीय पवनों के नाम बताएँ।
उत्तर-
पर्वतीय समीर और घाटी समीर।

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प्रश्न 8.
पर्वतीय ढलानों से नीचे उतरती दो स्थानीय पवनों के नाम बताएँ।
उत्तर-
चिनूक पवनें (उत्तरी अमेरिका) और फोहन पवनें (अल्पस पर्वत)।

प्रश्न 9.
थल समीर और जल समीर में क्या अंतर है ?
उत्तर-
तटवर्ती भागों में दिन के समय समुद्र से थल की ओर जल समीर चलती है, परंतु रात के समय थल से समुद्र की ओर थल समीर चलती है।

प्रश्न 10.
चिनूक पवनों और फोहन पवनों के बारे में बताएँ।
उत्तर-
चिनूक पवनें रॉकी पर्वतीय ढलानों से उतर कर अमेरिका और कनाडा के मैदानी भागों में चलती हैं। ये गर्म पवनें बर्फ को पिघला देती हैं। अल्पस पर्वत को पार करके फोहन पवनें स्विट्ज़रलैंड में चलती हैं।

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प्रश्न 11.
कुछ स्थानीय पवनों के नाम बताएँ, जो यूरोप और अफ्रीका की ओर चलती हैं।
उत्तर-

  1. बौरा पवनें-इटली
  2. मिस्ट्रल-फ्रांस के तट पर
  3. लू-उत्तरी भारत
  4. हर्मटन-पश्चिमी अफ्रीका
  5. सिरोको-इटली।

प्रश्न 12.
पवन पेटियों के खिसकने का क्या कारण है ?
उत्तर-
पृथ्वी की वार्षिक गति में 21 जून को सूर्य की किरणें कर्क रेखा पर और 22 दिसंबर को मकर रेखा पर लंब पड़ती है। परिणामस्वरूप उच्च तापमान के क्षेत्र भी अपना स्थान बदल लेते हैं, इसलिए गर्मियों में सभी पवनों की पेटियाँ कुछ उत्तर की ओर तथा सर्दी की ऋतु में दक्षिण की ओर खिसक जाती हैं।

प्रश्न 13.
पवन-पेटियों के खिसकने का रोम सागरीय खंड पर क्या प्रभाव होता है ?
उत्तर-
पवन-पेटियों के खिसकने के कारण रोम सागरीय खंड (30°-45°) में गर्मी की ऋतु में उच्च वायु दाब पेटी बन जाती है और शुष्क ऋतु होती है, परंतु सर्दी की ऋतु में यहाँ पश्चिमी पवनें चलती हैं और वर्षा करती हैं। रोम सागरीय खंड को शीतकाल की वर्षा का खंड कहते हैं।

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प्रश्न 14.
कोरियोलिस बल से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
पवनें उत्तर-दक्षिण दिशा की ओर चलती है, परंतु पृथ्वी की घूमने की गति के कारण उनमें विक्षेप बल पैदा होता है, जिसके कारण पवनें अपने दायीं या बायीं ओर मुड़ जाती हैं, इस बल को कोरियोलिस बल कहते हैं।

प्रश्न 15.
फैरल का सिद्धांत क्या है ?
उत्तर-
पृथ्वी के घूमने के प्रभाव के अंतर्गत भू-तल पर चलने वाली पवनें उत्तरी-गोलार्द्ध में अपने दाएँ हाथ और.. दक्षिणी गोलार्द्ध में अपने बाएँ हाथ की ओर मुड़ जाती हैं, इसे फैरल (Ferral) का सिद्धांत कहते हैं।

प्रश्न 16.
Buys Ballot का नियम क्या है ?
उत्तर-
Buys Ballot नामक वैज्ञानिक के अनुसार उत्तरी गोलार्द्ध में निम्न वायु दाब का क्षेत्र पवन प्रवाह की दिशा के दायीं ओर तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में प्रवाह की दिशा के बायीं ओर होता है। इसे Buys Ballot का नियम कहते हैं।

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लघु उत्तरात्मक प्रश्न (Short Answer Type Questions)

नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर 60-80 शब्दों में दें-

प्रश्न 1.
भूमध्य रेखा का शांत खंड कैसे बनता है ?
उत्तर-
स्थिति (Location)-यह शांत खंड भूमध्य रेखा के दोनों तरफ 5°N और 5°S के मध्य स्थित है। इसे भूमध्य रेखा का शांत खंड (Equatorial Calms) भी कहते हैं। धरातल पर चलने वाली वायु की मौजूदगी नहीं होती या बहुत ही शांत वायु चलती है। यह शांत खंड भूमध्य रेखा के चारों ओर फैला हुआ है। इस खंड में सूर्य की किरणें पूरा वर्ष सीधी पड़ती हैं और औसत तापमान अधिक रहता है। हवा गर्म और हल्की होकर लगातार संवाहक धाराओं (Convection Currents) के रूप में ऊपर उठती रहती है और धरालत पर वायु दाब कम हो जाता है।

प्रश्न 2.
फैरल के नियम का वर्णन करें।
उत्तर-
फैरल का नियम (Ferral’s Law)-धरालत पर पवनें कभी भी उत्तर से दक्षिण की ओर सीधी नहीं चलतीं। सभी पवनें उत्तरी गोलार्द्ध में अपनी दायीं ओर तथा दक्षिण गोलार्द्ध में अपनी बायीं ओर मुड़ जाती हैं। इसे फैरल का नियम कहते हैं । (“All moving bodies are deflected to the right in the Northern Hemisphere and to the left in the Southern Hemisphere.”)

हवा की दिशा में परिवर्तन का कारण धरती की दैनिक गति है। जब हवाएँ धीमी चाल वाले भागों से तेज़ चाल वाले भागों की ओर आती हैं, तो पीछे रह जाती हैं, जैसे-उत्तरी गोलार्द्ध में उत्तर-पूर्वी व्यापारिक पवनें अपनी दायीं ओर मुड़ जाती हैं। पश्चिमी पवनें भी मुड़कर उत्तर-पश्चिमी दिशा में चलती हैं। इसी प्रकार दक्षिणी गोलार्द्ध में दक्षिण-पूर्वी व्यापारिक पवनें अपनी बायीं ओर मुड़ जाती हैं। पश्चिमी पवनें भी मुड़कर दक्षिण-पश्चिमी दिशा में चलती हैं। इस विक्षेप शक्ति को कोरोलिस बल (Corolis Force) भी कहते हैं।

प्रश्न 3.
जल समीर और थल समीर में अंतर बताएँ।
उत्तर-
1. जल समीर (Sea Breeze)—ये वे पवनें हैं, जो दिन के समय समुद्र से थल की ओर चलती हैं। दिन के समय सूर्य की तीखी गर्मी से थल भाग समुद्र की अपेक्षा अधिक और जल्दी गर्म हो जाता है। थल पर हवा गर्म होकर ऊपर उठती है और निम्न वायु दाब बन जाता है, परंतु समुद्र पर थल की तुलना में अधिक वायु दाब रहता है। इस प्रकार थल पर निम्न दबाव का स्थान लेने के लिए समुद्र की ओर से ठंडी हवाएँ चलती हैं। थल की गर्म हवा ऊपर उठकर समुद्र की ओर चली जाती है, इस प्रकार हवा के बहने का एक चक्र बन जाता है। जल समीर ठंडी और सुहावनी (Cool and Fresh) होती है।

2. थल समीर (Land Breeze)-ये वे पवनें हैं, जो दिन के समय थल से समुद्र की ओर चलती हैं। रात को स्थिति दिन के विपरीत होती है। थल भाग समुद्र की अपेक्षा अधिक और जल्दी ठंडे हो जाते हैं। समुद्र पर वायु दाब कम हो जाता है, परंतु थल पर अधिक वायु दाब होता है। इस प्रकार थल से समुद्र की ओर पवनें चलती हैं। समुद्र की गर्म हवा ऊपर उठकर थल पर उतरती है, जिससे हवा के बहने का एक चक्र बन जाता है।

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प्रश्न 4.
पर्वतीय और घाटी की पवनों में अंतर बताएँ।
उत्तर-
1. पर्वतीय पवनें (Mountain Winds)-पर्वतीय प्रदेशों में रात के समय पर्वत के शिखर से घाटी की ओर ठंडी और भारी हवाएं चलती हैं, जिन्हें पर्वतीय पवनें (Mountain Winds) कहते हैं। रात के समय तेज़ विकिरण (Rapid Radiation) के कारण हवा ठंडी और भारी हो जाती है। यह हवा गुरुत्वाकर्षण शक्ति (Gravity) के कारण ढलानों से होकर नीचे उतरती है। इसे वायु प्रवाह (Air Drainage) भी कहते हैं। इन पवनों के कारण घाटियाँ (Valleys) ठंडी हवाओं से भर जाती हैं, जिसके फलस्वरूप घाटी के निचले भागों
में पाला पड़ता है।

2. घाटी की पवनें (Valley Winds)-दिन के समय घाटी की गर्म हवाएँ ढलान पर से होकर चोटी की ओर ऊपर चढ़ती हैं, इन्हें घाटी की पवनें (Valley Winds) कहते हैं। दिन के समय पर्वत के शिखर पर तेज़ गर्मी और वायु दाब पेटियों के उत्तर दिशा में खिसकने के फलस्वरूप यह प्रदेश घोड़ा अक्षांशों की उच्च वायु दाब पेटी के प्रभाव में आ जाता है, जिसके कारण पवनें इस प्रदेश की ओर नहीं चलतीं। इसलिए यहाँ गर्मियों में वर्षा नहीं होती। इसके विपरीत सर्दियों में वायु दाब पेटियों के दक्षिणी दिशा में खिसकने के फलस्वरूप यह खंड पश्चिमी पवनों के प्रभाव में आ जाता है और ये पवनें इस खंड में वर्षा करती हैं। इस प्रकार भूमध्य सागरीय प्रदेश में शीतकाल में वर्षा होती है, जबकि गर्मी की ऋतु में यह शुष्क रहता है।

प्रश्न 5.
चक्रवात से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
चक्रवात (Cyclones)—वायु दाब में अंतर होने के कारण वायुमंडल गतिशील होता है। जिस क्षेत्र में वायु दाब निम्न होता है, उसके निकटवर्ती चारों ओर के क्षेत्रों में उच्च वायु दाब होता है, जिसके परिणामस्वरूप उच्च वायु दाब क्षेत्र से निम्न वायु क्षेत्र की ओर पवनें चलती हैं। फैरल के नियम अनुसार पृथ्वी की दैनिक गति के कारण पवनें उत्तरी गोलार्द्ध में अपनी दायीं ओर तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में बायीं ओर मुड़ जाती हैं। परिणामस्वरूप इन पवनों की गति उत्तरी गोलार्द्ध में घड़ी की सुइयों के विपरीत (anti-clock wise) और दक्षिणी गोलार्द्ध में घड़ी की सुइयों की समान (clock wise) दिशा में होती है। इस प्रकार पवनों के उच्च वायु दाब से निम्न वायु दाब की ओर सुइयों के विपरीत और अनुकूल चलने के कारण पवनों का एक चक्र उत्पन्न हो जाता है, जिसे चक्रवात कहते हैं।

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प्रश्न 6.
शीतोष्ण चक्रवात की प्रमुख विशेषताएँ बताएँ।
उत्तर-
शीतोष्ण चक्रवात (Temperate Cyclones)-

  • ये चक्रवात पश्चिमी पवनों के क्षेत्र में 35° से 65° के अक्षांशों के बीच पश्चिमी-पूर्वी दिशा में चलते हैं।
  • शीतोष्ण चक्रवात की शक्ल गोलाकार या V आकार जैसी होती है।
  • इस प्रकार के चक्रवातों की मोटाई 9 से 11 किलोमीटर और व्यास 100 किलोमीटर चौड़ा होता है।
  • चक्रवात की अभिसारी पवनें केंद्र की वायु को ऊपर उठा देती हैं, जिसके परिणामस्वरूप बादलों का निर्माण और वर्षा होती है।
  • साधारण रूप में इनकी गति 50 किलोमीटर प्रति घंटा होती है। गर्मी की ऋतु की तुलना में शीतकाल में इनकी गति अधिक होती है।

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प्रश्न 7.
उष्ण कटिबंधीय चक्रवातों के प्रमुख गुणों का वर्णन करें।
उत्तर-
उष्ण कटिबंधीय चक्रवात (Tropical Cyclones)-

  • ये चक्रवात 50 से 30° अक्षांशों के बीच व्यापारिक पवनों के साथ-साथ पूर्व से पश्चिम दिशा में चलते हैं।
  • इनके केंद्र में निम्न दाब होता है और समदाब रेखाएँ गोलाकार होती हैं।
  • साधारण रूप में इनका आकार और विस्तार छोटा होता है। इनका व्यास 150 से 500 मीटर तक होता है।
  • चक्रवात के केंद्रीय भाग को ‘तूफान की आँख’ (Eye of the Storm) कहते हैं। ये प्रदेश शांत और वर्षाहीन होते हैं। ये गर्म वायु की धाराओं के रूप में ऊपर से उठने पर बनता है और इसकी ऊर्जा का स्रोत संघनन की गुप्त ऊष्मा है।
  • शीत ऋतु की तुलना में गर्मी की ऋतु में इनका अधिक विकास होता है।
  • इन चक्रवातों में हरीकेन और तूफान बहुत विनाशकारी होते हैं।
  • इन चक्रवातों द्वारा भारी वर्षा होती है।

निबंधात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर 150-250 शब्दों में दें-

प्रश्न 1.
वायु पेटियों के खिसकने के कारण और प्रभाव बताएँ।
उत्तर-
पृथ्वी की वार्षिक गति और इसका अपनी धुरी पर झुके रहने के कारण पूरा वर्ष सूर्य की किरणें एक समान नहीं पड़तीं। सूर्य की किरणें 21 जून को कर्क रेखा पर लंब पड़ती हैं, तब वायु पेटियाँ उत्तर की ओर खिसक जाती हैं। 22 दिसंबर को सूर्य की किरणें मकर रेखा पर लंब पड़ती हैं, तब वायु पेटियाँ दक्षिण की ओर खिसक जाती हैं।

इस क्रिया को वायु दाब पेटियों का सरकना (Swing of the Pressure Belts) कहते हैं। पवनें वायु दाब की भिन्नता के कारण उत्पन्न होती हैं, इसलिए वायु दाब पेटियों के साथ-साथ पवन पेटियाँ भी सरक जाती हैं।

कारण (Causes)—पृथ्वी की धुरी पर तिरछा स्थित होने के कारण परिक्रमा के समय सूर्य 237°N त 237°S तक (47° क्षेत्र) में अपनी स्थिति बदलता रहता है। इस स्थिति बदलने की क्रिया के कारण उच्च तापमान की पेटियाँ भी उत्तर या दक्षिण की ओर खिसक जाती हैं। इसके परिणामस्वरूप वायु पेटियाँ भी सरकती हैं।

21 जून की दशा (Summer Solstice)—सूर्य की किरणें कर्क रेखा पर लंब पड़ती हैं। इस क्षेत्र के उच्च वायु दाब का स्थान निम्न वायु दाब पेटी ले लेती है। उच्च वायु दाब पेटी उत्तर की ओर सरक जाती है।

22 दिसंबर की दशा (Winter Solstice)—सूर्य की किरणें मकर रेखा पर लंब पड़ती हैं। उच्च वायु दाब पेटी कुछ दक्षिण की ओर खिसक जाती है और इसका स्थान निम्न वायु दाब पेटी ले लेती है।

वायु दाब और पवनों के खिसकने से नीचे लिखे प्रभाव पड़ते हैं-

प्रभाव (Effects)-

1. गर्मी की ऋतु में मानसून पवनों की उत्पत्ति (Formation of Summer Monsoons)-गर्म संक्रांति या 21 जून को सूर्य की किरणें कर्क रेखा पर लंब पड़ती हैं, जिसके फलस्वरूप भूमध्य रेखा पर निम्न वायु दाब पेटी कर्क रेखा की ओर खिसक जाती है। घोड़ा अक्षांशों के दक्षिणी उपोष्ण उच्च वायु दाब पेटी से आने वाली पवनें भूमध्य रेखा को पार करके फैरल के नियम के अनुसार, दक्षिण-पश्चिमी हो जाती हैं, उन्हें गर्मी की ऋतु की मानसून पवनें कहते हैं। इस प्रकार मानसूनी पवनें भूमंडलीय पवन-तंत्र (Planetary Wind System) का ही रूपांतर होती हैं।

2. सर्दी की ऋतु में मानसून पवनों की उत्पत्ति (Formation of Winter Monsoons)-शीत संक्रांति या 22 दिसंबर को सूर्य की लंब किरणें मकर रेखा पर पड़ती हैं, जिसके फलस्वरूप भूमध्य रेखीय निम्न दाब पेटी मकर रेखा की ओर खिसक जाती है। घोड़ा अक्षांशों की उत्तरी उपोष्ण उच्च वायु दाब पेटी की पवनें भूमध्य रेखा को पार करते ही, फैरल के नियम के अनुसार दक्षिणी गोलार्द्ध में अपनी बायीं ओर मुड़ जाती हैं। फलस्वरूप दक्षिणी गोलार्द्ध में इनकी दिशा उत्तर-पश्चिमी हो जाती है। उत्तरी गोलार्द्ध में इन पवनों को शीत काल की मानसूनी पवनों का नाम दिया जाता है।

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3. सुडान जैसे प्राकृतिक प्रदेशों पर प्रभाव (Effect on Sudan type of Natural Region)-सुडान जैसे प्राकृतिक प्रदेश 5° से 20° अक्षांश पर महाद्वीप के मध्यवर्ती क्षेत्रों में विस्तृत हैं। शीतकाल में वायु दाब पेटियों के दक्षिण दिशा में सरकने के फलस्वरूप यह खंड घोड़ा अक्षांशों की उच्च वायु दाब पेटी के प्रभाव के अंतर्गत आ जाता है, जिसके परिणामस्वरूप पवनें इस प्रदेश की ओर नहीं चलतीं, इसलिए यह क्षेत्र शीतकाल की वर्षा से रहित रहता है। इसके विपरीत गर्मियों में वायु दाब पेटियों के उत्तर दिशा में खिसकने के फलस्वरूप यह प्रदेश भूमध्य रेखीय निम्न वायु दाब पेटी के प्रभाव में आ जाता है, फलस्वरूप पवनें इस प्रदेश की ओर चलती हैं और वर्षा करती हैं। इस प्रकार सुडान प्रदेश में गर्मियों में वर्षा होती है।

4. रोम सागरीय प्राकृतिक प्रदेश पर प्रभाव (Effect on Mediterranean Type of Natural Region) रोम सागरीय प्राकृतिक प्रदेश 30°-45° अक्षांशों के बीच महाद्वीप के पश्चिमी भागों में विस्तृत है। गर्मियों में वायु दाब पेटियों के उत्तर दिशा में खिसकने के फलस्वरूप यह प्रदेश घोड़ा अक्षांशों की उच्च पेटी के प्रभाव में आ जाता है, जिसके परिणामस्वरूप पवनें इस प्रदेश की ओर नहीं चलतीं। इसलिए यह गर्मी की वर्षा से रहित रह जाता है। इसके विपरीत सर्दियों में वायु दाब पेटियों के दक्षिण दिशा में खिसकने के फलस्वरूप यह खंड पश्चिमी पवनों के प्रभाव में आ जाता है और ये पवनें इस खंड में वर्षा करती हैं। इस प्रकार रोम सागरीय प्रदेश में शीतकाल में वर्षा होती है, जबकि गर्मी की ऋतु शुष्क रहती है।

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प्रश्न 2.
उष्ण कटिबंधीय चक्रवातों और शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवातों की तुलना करें।
उत्तर-
उष्ण कटिबंधीय चक्रवात (Tropical Cyclones)-

  1. स्थिति-ये चक्रवात उष्ण कटिबंध में 50°- 30° अक्षांशों तक चलते हैं।
  2. दिशा-ये व्यापारिक पवनों के साथ पूर्व से पश्चिम की ओर चलते हैं।
  3. विस्तार-इनका व्यास 150 से 500 किलोमीटर तक होता है।
  4. आकार-ये गोल आकार के होते हैं।
  5. उत्पत्ति-ये संवाहक धाराओं के कारण जन्म लेते हैं।
  6. गति-इनमें हवा की गति 100 से 200 किलोमीटर प्रति घंटा होती है।
  7. रचना-यह अधिक गर्मी की ऋतु में अस्तित्व में आते हैं। इनके केंद्रीय भाग को ‘तूफान की आँख’ कहा जाता है।
  8. मौसम-इसमें थोड़े समय के लिए तेज़ हवाएँ चलती हैं और भारी वर्षा होती है।

शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात (Temperate Cyclones)-

  1. ये चक्रवात शीतोष्ण कटिबंध में 35°-65° अक्षांश तक चलते हैं।
  2. ये पश्चिमी पवनों के साथ-साथ पश्चिम से पूर्व की ओर चलते हैं।
  3. इनका व्यास 1000 किलोमीटर से अधिक होता है।
  4. ये ‘V’ आकार के होते हैं।
  5. ये गर्म और ठंडी हवाओं के मिलने से जन्म लेते हैं।
  6. इनमें हवा की गति 30 से 40 किलोमीटर प्रति घंटा होती है।
  7. यह अधिक सर्दी की ऋतु में बनते हैं। इसके दो भाग-उष्ण सीमांत और शीत सीमांत होते हैं।
  8. इसमें शीत लहर चलती है और कई दिनों तक रुक-रुककर वर्षा होती है।

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Punjab State Board PSEB 6th Class Home Science Book Solutions Chapter 4 घर Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 6 Home Science Chapter 4 घर

PSEB 6th Class Home Science Guide घर Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
बड़े शहरों में घर की सफ़ाई के लिए बिजली से चलने वाले किस उपकरण का प्रयोग किया जा सकता है ?
उत्तर-
वैक्यूम क्लीनर, कार्पेट स्वीपर।

प्रश्न 2.
दरी साफ़ करने के लिए किस उपकरण का प्रयोग किया जा सकता
उत्तर-
ब्रुश का।

प्रश्न 3.
प्रतिदिन प्रयोग में आने वाली कौन-कौन सी सुविधाएं घर के पास होनी चाहिए ?
उत्तर-
कार्य का स्थान, स्कूल, अस्पताल, बैंक, बाजार आदि।

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प्रश्न 4.
घर कैसी जगहों के पास नहीं होना चाहिए ?
उत्तर-
स्टेशन, श्मशान घाट आदि के पास नहीं होना चाहिए।

लघूत्तर प्रश्न

प्रश्न 1.
घर का क्या अर्थ है ?
उत्तर-
मनुष्य जहाँ अपने परिवार के साथ रहने की व्यवस्था करता है वही उसका घर कहलाता है।

प्रश्न 2.
घर के आस-पास कैसे लोग होने चाहिएँ ?
उत्तर-
घर के आस-पास के लोग गम्भीर, मिलनसार तथा सुख-दुःख के साथी होने चाहिएँ।

प्रश्न 3.
यदि फैक्टरी, स्टेशन घर के समीप हों तो क्या हानि है ?
उत्तर-
यदि फैक्टरी, स्टेशन घर के समीप हों तो हमें निम्न हानियाँ हैं-फैक्टरी का धुआँ स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है तथा रेलें शांति को समाप्त करती हैं।

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प्रश्न 4.
मकान बनाते समय कौन-सी सुविधाओं को ध्यान में रखना चाहिए ?
उत्तर-
मकान बनाते समय निम्नलिखित सुविधाओं को ध्यान में रखना चाहिए –

  1. मकान बनाते समय यह ध्यान अवश्य रखना चाहिए कि दैनिक प्रयोग में आने वाली वस्तुएँ शीघ्र तथा सुगमता से प्राप्त हो सकती हों।
  2. नौकरी वाले लोगों के लिए नौकरी का स्थान तथा दुकानदार के लिए दुकान समीप होना चाहिए।
  3. अस्पताल तथा बाज़ार भी घर से बहुत दूर नहीं होने चाहिए।
  4. डाकघर तथा बैंक भी समीप होना चाहिए।
  5. रिक्शा, टाँगा और लोकल बस सुगमता से प्राप्त होनी चाहिए।

प्रश्न 5.
घर को साफ़ रखना क्यों जरूरी है ?
उत्तर-
गंदा घर कीड़े-मकौड़े पैदा करके बीमारियाँ पैदा करता है। इसलिए घर को साफ़ रखना ज़रूरी है।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
घर को साफ़ करने के ढंगों के नाम लिखो।
उत्तर-
घर साफ़ करने के लिए निम्नलिखित ढंग इस प्रकार हैं –

  1. झाड़ लगाना,
  2. झाड़ना,
  3. पोचा लगाना।

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प्रश्न 2.
चीज़ों को झाड़ लगाने के बाद क्यों झाड़ना चाहिए ?
उत्तर-
वस्तुएँ झाड़ने का काम झाडू लगाने के बाद तथा पोचा लगाने से पहले करना चाहिए ताकि झाड़ लगाने से जो मिट्टी वस्तुओं पर उड़कर पड़ती है, वह झाड़न से साफ़ हो जाए।

प्रश्न 3.
पोचा लगाने तथा ब्रश फेरने में क्या अन्तर है ?
उत्तर-
पोचा लगाने तथा ब्रुश फेरने में अन्तर –

पोचा ब्रुश
1. पक्के फर्श पर प्रतिदिन झाड़ लगाने के बाद मोटे कपड़े को गीला करके पोचा लगाना चाहिए। 1. सप्ताह में एक बार दीवारों तथा छत को झाड़ लगाने से पहले ब्रुश से साफ़ कर लेना चाहिए।
2. पोचा लगाने वाला कपड़ा मोटा और ऐसा होना चाहिए कि पानी तथा मिट्टी को सोख सके। 2. ब्रुश ऐसा होना चाहिए जिससे मकड़ी तथा कीड़े-मकौड़े से छुटकारा मिल  जाए।
3. पोचा मोटा सूती कपड़ा फलालेन या बाज़ार से मिलने वाला पोचा प्रयोग करना चाहिए। 3. ब्रश एक बलिश्त लम्बा तथा छोटी सी हत्थी वाला प्रयोग करना चाहिए।

प्रश्न 4.
ब्रुश या झाड़ की किस्मों के बारे में तुम जो जानते हो, विस्तार से लिखो।
उत्तर-
ब्रुश की किस्में –
1. दरी या कालीन साफ़ करने वाला ब्रुश-यह सख्त बुर का एक बलिश्त लम्बा छोटी-सी हत्थी वाला ब्रुश होता है। इससे दरी तथा कालीन साफ़ किए जाते हैं।

2. पालिश करने वाला बुश-खिड़कियों, अलमारियों, जालीदार डोली तथा कमरों के दरवाज़े पालिश करने के लिए छोटी-सी डंडी वाला ब्रुश होता है।

3. फर्श धोने के लिए ब्रुश-ईंटों का फर्श धोने के लिए लोहे की तार का सुदृढ़ ब्रुश होता है। इससे ईंटों से मिट्टी तथा चिकनाई सुगमता से दूर की जाती है।।

4. सफेदी (कली) करने वाला ब्रुश-घर की दीवारों पर सफेदी करने के लिए बाज़ार से घास-फूस का बना ब्रुश मिलता है। उसे कूची कहा जाता है।
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5. दीवारें तथा छतें साफ़ करने के लिए ब्रुश-यह गोलाकार होता है। दीवारों तथा छत तक पहुँचाने के लिए इसके साथ लम्बी छड़ी लगी होती है। इससे जाले तथा मिट्टी बड़ी सुगमता से साफ़ हो जाते हैं।

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Home Science Guide for Class 6 PSEB घर Important Questions and Answers

अति छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
आदिकाल में मनुष्य कहाँ रहते थे ?
उत्तर-
गुफाओं में ।

प्रश्न 2.
घर किन चीज़ों से बनता है ?
उत्तर-
मकान तथा परिवार से।

प्रश्न 3.
प्राणी में जन्मजात चेतना क्या होती है ?
उत्तर-
प्राणी अपने विकास के लिए ऐसे ठौर का निर्माण करना चाहता है जहाँ उसे सुख-शाँति प्राप्त हो सके। यही जन्मजात चेतना होती है।

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प्रश्न 4.
समय, श्रम व धन की बचत के लिए मकान कहाँ होना चाहिए ?
उत्तर-
समय, श्रम व धन की बचत के लिए मकान, स्कूल, कॉलेज, अस्पताल, दफ्तर, बाज़ार आदि के निकट होना चाहिए।

छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
घर में व्यक्ति को कौन-कौन सी सुविधाएँ मिलती हैं ?
उत्तर-
घर में व्यक्ति को निम्न सुविधाएँ मिलती हैं –

  1. सुरक्षात्मक सुविधाएँ
  2. कार्य करने की सुविधा
  3. शारीरिक सुख
  4. मानसिक शान्ति
  5. विकास एवं वृद्धि की सुविधा।

प्रश्न 2.
हमारा घर कैसा होना चाहिए ?
उत्तर-
हमारा घर ऐसा होना चाहिए जहां –

  1. परिवार के सभी सदस्यों के पूर्ण विकास व वृद्धि का ध्यान रखा जाए।
  2. सदा प्रत्येक सदस्य की कार्य क्षमता को प्रोत्साहन दिया जाए।
  3. एक-दूसरे के प्रति सद्भावना व प्रेम से व्यवहार किया जाए।
  4. परिवार की आर्थिक स्थिति में पूर्ण योगदान दिया जाए।

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प्रश्न 3.
घर की आवश्यकता क्यों होती है ?
उत्तर-

  1. वर्षा, धूप, ठण्ड, आँधी, तूफ़ान आदि से बचने के लिए।
  2. जीव-जन्तुओं, चोरों तथा आकस्मिक घटनाओं से अपने-आप को सुरक्षित रखने के लिए।
  3. शान्तिपूर्वक, मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्यप्रद जीवन व्यतीत करने के लिए।
  4. अपना तथा बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिए।

प्रश्न 4.
घर का हमारे स्वास्थ्य से क्या सम्बन्ध है ? समझाकर लिखें।
उत्तर-
हमारे स्वास्थ्य का घर से बहुत गहरा सम्बन्ध है। बहुत हद तक हमारा स्वास्थ्य घरों के स्वास्थ्यकर होने पर ही निर्भर करता है हम कितना ही पुष्टिकर भोजन क्यों न करें, हमारी आदतें कितनी भी अच्छी क्यों न हों, लेकिन यदि हमारा निवास स्वास्थ्यकर नहीं होगा तो हम कभी भी स्वस्थ जीवन व्यतीत नहीं कर सकते। अस्वस्थ वातावरण, अपर्याप्त शुद्ध वायु और सूर्य-प्रकाश के अभाव में लोग दुर्बल हो जाते हैं। उनकी कार्य-क्षमता घट जाती है। तंग और गन्दे घरों में रहने से लोगों का सिर-दर्द, कमजोरी, रक्तहीनता, अनिद्रा, जुकाम, क्षय तथा अन्यान्य सांस और छूत के रोग हो जाते हैं। अतः स्पष्ट है कि हमारा स्वास्थ्य घर के स्वास्थ्यकर होने पर ही निर्भर करता है।

प्रश्न 5.
सफ़ाई में काम आने वाले पदार्थों के नाम लिखो।
उत्तर-
सफ़ाई में काम आने वाले विभिन्न पदार्थ जैसे नींबू, सिरका, स्प्रिट, तारपीन का तेल, बैंजीन, क्लोरीन, हाइड्रोक्लोरिक एसिड आदि का प्रयोग, दाग-धब्बे दूर करने हेतु किया जाता है। डी० टी० टी०, फिनाइल, मिट्टी का तेल आदि का प्रयोग जीव-जन्तुओं का नाश करने हेतु किया जाता है। ब्रासो क्रीम, फर्नीचर क्रीम आदि को धातु, शीशे तथा फर्नीचर की सफ़ाई में प्रयोग किया जाता है।

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प्रश्न 6.
सामान्य रूप से सफ़ाई की क्या विधियाँ हैं ?
उत्तर-
सामान्य रूप से सफ़ाई की निम्नलिखित विधियाँ हैं –

  1. झाड़ लगाना
  2. गीले-पोचे से फर्श आदि की धूल-मिट्टी साफ़ करना
  3. वस्तुओं को कपड़े से पोंछना
  4. पानी से धुलाई करना (फ़र्श की धुलाई)
  5. वैक्यूम क्लीनर का प्रयोग
  6. फ़र्श स्वीपर (कार्पेट-स्वीपर) का प्रयोग।

बड़े उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
घर की सफाई के लिए आवश्यक सामग्री को चित्रों द्वारा समझाइये।
उत्तर-
घर की सफ़ाई के लिए केवल झाड़ ही पर्याप्त नहीं होती। अच्छी सफ़ाई के लिए सफ़ाई के अनुरूप सामग्री की आवश्यकता होती है। सफ़ाई के लिए निम्नलिखित सामग्री की आवश्यकता होती है –
PSEB 6th Class Home Science Solutions Chapter 4 घर 2

  1. झाड़, ब्रुश, झाड़न या कपड़े व चिथड़े, स्पंज।
  2. डस्ट पैन, डोल, बाल्टी, जग या मग।
  3.  सफ़ाई करने के यंत्र-वैक्यूम क्लीनर, कार्पेट स्वीपर आदि।
  4. सफ़ाई में प्रयुक्त होने वाले पदार्थ-डी० टी० टी०, फिनायल, मिट्टी का तेल, स्प्रिट, तारपीन का तेल, बैंजीन, क्लोरीन, नींबू, सिरका, हाइड्रोक्लोरिक एसिड आदि । ब्रासो क्रीम, फर्नीचर क्रीम, विम, राख, साबुन का पानी या सर्फ आदि।

PSEB 6th Class Home Science Solutions Chapter 4 घर

एक शब्द में उत्तर दें …………………………………………………………..

प्रश्न 1.
मनुष्य जिस स्थान पर अपने परिवार के साथ रहता है उसे क्या कहते हैं ?
उत्तर-
घर।

प्रश्न 2.
स्वस्थ रहने के लिए ………………. आवश्यक है।
उत्तर-
सफ़ाई।

प्रश्न 3.
घर के पास …………………. तथा गन्दगी के ढेर नहीं होने चाहिए।
उत्तर-
डेयरी फ़ार्म।

PSEB 6th Class Home Science Solutions Chapter 4 घर

प्रश्न 4.
बैंक घर के …………………… होना चाहिए।
उत्तर-
पास।

प्रश्न 5.
दीवारों तथा छतों की सफ़ाई वाला ब्रुश कैसा होता है ?
उत्तर-
गोलाकार।

PSEB 6th Class Home Science Solutions Chapter 4 घर

घर PSEB 6th Class Home Science Notes

  • घर एक निजी स्वर्ग का नाम है।
  • मनुष्य अपने जीवन का बहुत-सा समय घर में ही बिताता है।
  • मनुष्य एक बुद्धि प्रधान जीव है।
  • घर के चारों ओर का वातावरण शांत होगा तो आपका जीवन सुगम तथा शांतमय होगा।
  • घर के समीप डेयरी फार्म तथा गन्दगी का ढेर भी नहीं होना चाहिए।
  • ऊँचे वृक्ष घर से दूर होने चाहिएँ।
  • मकान बनाते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि दैनिक प्रयोग में आने वाली वस्तुएँ शीघ्र तथा सुगमता से प्राप्त हो सकती हों।
  • अस्पताल तथा बाज़ार भी घर से बहुत दूर नहीं होने चाहिए।
  • स्वस्थ रहने के लिए सफ़ाई रखना आवश्यक है।
  • कच्चे फर्श पर थोड़ा-सा पानी छिड़ककर ही उसे साफ करना चाहिए ताकि मिट्टी अधिक न उड़े।
  • वस्तुएँ झाड़ने का काम झाड़ लगाने के बाद तथा पोचा लगाने से पहले करना चाहिए ताकि झाडू लगाने से जो मिट्टी वस्तुओं पर उड़कर पड़ती है, वह झाड़न से साफ हो जाए।
  • पोचा लगाते समय पानी में कोई कृमिनाशक औषधि डाल लेनी चाहिए ताकि मक्खी एवं मच्छर से छुटकारा मिल सके।
  • सप्ताह में एक बार दीवारों तथा छत को झाड़ लगाने से पहले ब्रुश से साफ कर लेना चाहिए।
  • झाड़ की किस्में-1. नारियल का झाड़, 2. खजूरे का झाड़, 3. फूल झाड़।।
  • ब्रुश की किस्में-1. दरी या कालीन साफ़ करने के लिए, 2. पालिश करने वाले ब्रुश, 3. फ़र्श धोने के लिए, 4. सफेदी करने वाला ब्रुश, 5. दीवारों तथा छतें साफ़ करने के लिए ब्रुश।

PSEB 7th Class Physical Education Solutions Chapter 7 स्काऊटिंग और गाइडिंग

Punjab State Board PSEB 7th Class Physical Education Book Solutions Chapter 7 स्काऊटिंग और गाइडिंग Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 7 Physical Education Chapter 7 स्काऊटिंग और गाइडिंग

PSEB 7th Class Physical Education Guide स्काऊटिंग और गाइडिंग Textbook Questions and Answers

PSEB 7th Class Physical Education Solutions Chapter 7 स्काऊटिंग और गाइडिंग 1

अभ्यास के प्रश्नों के उत्तर

प्रश्न 1.
स्काऊटिंग और गाइडिंग के क्या लाभ हैं ? विस्तार से लिखो।
उत्तर-
स्काऊटिंग और गाइडिंग के निम्नलिखित लाभ हैं—

  1. स्काऊटिंग और गाइडिंग बच्चों को प्रसन्न, शक्तिशाली, निष्ठावान, देश-भक्त और जन-सहायक बनाती हैं।
  2. स्काऊटिंग और गाइडिंग बच्चों के मन से घृणा, ऊंच-नीच, जाति-पाति और ईर्ष्या की भावना दूर करती है।
  3. स्काऊटिंग और गाइडिंग से बच्चों को ‘न कोई वैरी, न ही बेगाना’ की शिक्षा मिलती है।
  4. स्काऊटिंग और गाइडिंग रैलियों से बच्चों को दूसरे प्रान्त और दूसरे देश के लोगों से प्यार करने की प्रेरणा मिलती है।
  5. भूकम्प, बाढ़, तूफान, बीमारी अथवा किसी अन्य कठिनाई के समय स्काऊट दुःखियों की सहायता करके उनका दुःख कम करते हैं।
  6. स्काऊटिंग और गाइडिंग से बच्चों को नियमों के अनुसार रहना, बड़ों-छोटों का सम्मान करना और सेवा-भाव की शिक्षा मिलती है।
  7. स्काऊटिंग और गाइडिंग से बच्चों को बहुत अच्छे नागरिक बनाया जाता है।
  8. स्काऊटिंग और गाइडिंग से बच्चे हर कठिनाई का साहस से सामना करना और हर स्थिति में प्रसन्न रहना सीखते हैं।

प्रश्न 2.
स्काऊटिंग और गाइडिंग के प्रण हमें क्या शिक्षा देते हैं ? संक्षेप में वर्णन करो।
उत्तर-
किसी भी धर्म या संस्था में प्रवेश करने के पश्चात् एक विशेष प्रकार का प्रण करना पड़ता है। यह प्रण पुलिस और सेना के जवानों को भी करना पड़ता है। स्काऊटिंग
और गाइडिंग में निम्नलिखित प्रण लिया जाता है—
मैं परमात्मा को प्रत्यक्ष मान कर प्रण करता हूं कि मैं

  1. परमात्मा और देश सम्बन्धी अपने कर्त्तव्य को निभाने
  2. दूसरों की सहायता करने और स्काऊटिंग नियमों का पालन करने में अधिक-से-अधिक ज़ोर लगाऊंगा।

उपर्युक्त प्रण हमें परमात्मा में विश्वास करना सिखलाता है। इस प्रकार का प्रण करने वाला मनुष्य नास्तिक नहीं होगा। यह प्रण मनुष्य में देश-भक्ति की भावना पैदा करता है। इसके साथ ही यह प्रण मनुष्य को कर्तव्य पालन की शिक्षा भी देता है।
PSEB 7th Class Physical Education Solutions Chapter 7 स्काऊटिंग और गाइडिंग 2
इस प्रण से मनुष्य में सेवा-भाव पैदा होता है। मनुष्य प्रत्येक ज़रूरतमन्द मनुष्य की सहायता करने में प्रसन्नता का अनुभव करता है।
इस प्रण से बचपन से ही मनुष्य नियमानसुार | जीवन जीना सीख जाता है। मनुष्य को यह भी समझ आ जाता है कि प्रत्येक संस्था के कुछ नियम हैं। नियमों का पालन करना प्रत्येक मनुष्य का कर्तव्य है। अनियमित जीवन नीरस होता है। जो नियम के अनुसार जीवन व्यतीत करते हैं वे जीवन में सुखी रहते हैं।

यह प्रण मनुष्य को आदर्शवादी बनने और उन्नति करने की प्रेरणा देता है। ये प्रण स्काऊट को ऊंचा और सच्चे बनने में सहायक होते हैं। ऐसे प्रणों पर चलने वाले नागरिक अच्छे नागरिक बनते हैं। ऐसे मनुष्यों से विश्व-शान्ति की आशा रखी जा सकती है।

PSEB 7th Class Physical Education Solutions Chapter 7 स्काऊटिंग और गाइडिंग

प्रश्न 3.
स्काऊट नियमों की विस्तारपूर्वक व्याख्या करो।
उत्तर-
नियमों के बिना कोई संस्था या संगठन नहीं चल सकता। यह विश्व भी नियमों पर ही निर्भर है। स्काऊटिंग के भी अपने ही नियम हैं। ये निम्नलिखित प्रकार हैं—

1. स्काऊटिंग की आन विश्वसनीय होती है-स्काऊट सदैव सत्य बोलता है। वह अच्छे काम करके विश्वास पैदा करता है और सम्मान भी प्राप्त करता है।

2. स्काऊट निष्ठावान् होता है-स्काऊट अपने मित्रों, नेतागणों और देश से कभी विश्वासघात नहीं करता।

3. स्काऊट आस्तिक, देश-भक्त और जन सेवक होता है-स्काऊट परमात्मा को किसी-न-किसी रूप में मानता है। इससे उसका मन शुद्ध रहता है। वह अपने देश के प्रति निष्ठावान् होता है। वह संविधान का पूरा पालन करता है और देश की शान के विरुद्ध एक भी शब्द नहीं सुनता। वह ज़रूरतमन्दों की दिल से सहायता करता है। वह दिन में एक अच्छा काम अवश्य करता है। इसे पूरा करने के लिए वह अपने गले में डाले हुए रूमाल को सवेरे एक गांठ दे देता है।
PSEB 7th Class Physical Education Solutions Chapter 7 स्काऊटिंग और गाइडिंग 3

4. स्काऊट सबका मित्र, भाई और ऊंचनीच से ऊंचा होता है-स्काऊट में जाति-पाति, ऊंच-नीच, धर्म और नस्ल सम्बन्धी कोई भेदभाव नहीं होता है। हर धर्म, देश, जाति-पाति और नस्ल के स्काऊट आपस में मिलकर बैठते व काम करते हैं, मिलकर भोजन पकाते और खाते हैं। स्काऊट दूसरे स्काऊटों को भाई समझता है।

5. स्काऊट मीठा बोलने वाला होता हैस्काऊट हर मनुष्य से बड़े प्यार से बोलता है। वह मीठा बोल कर दूसरों का दिल जीत लेता है।

6. स्काऊट जीव-जन्तुओं का मित्र होता | है-स्काऊट किसी भी पक्षी या पशु को कभी हानि नहीं पहुंचाता। वह पशु-पक्षियों से प्यार करता है।

7. स्काऊट अनुशासित और आज्ञाकारी होता है-स्काऊट सदा ही नियमों का पालन करता है। वह मनमानी नहीं कर सकता। वह बड़ों का आदेश प्रसन्नता से स्वीकार करता है।

8. स्काऊट बहादुर और कठिनाई का सामना करने वाला होता है-स्काऊट दुःख के समय में कभी घबराता नहीं। वह हर कठिनाई का सामना साहस से करता है।

9. स्काऊट संयमी होता है-स्काऊट सदा ही संयमी होता है। वह अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए संयम का प्रयोग करता है।

10. स्काऊट मन, वचन और कर्म से शुद्ध होता है-स्काऊट का मन पवित्र, वचन का पक्का और कर्म का शुद्ध होता है। वह किसी को भला-बुरा नहीं कहता। किसी की निन्दा नहीं करता। वह दु:ख के समय पूर्ण शक्ति लगा कर मानवता की सहायता करता है।

प्रश्न 4.
स्काऊटिंग में स्काऊट की क्या महत्ता है ? वर्णन करो।
उत्तर-
स्काऊटिंग लोगों की लहर होने के कारण बच्चों को देश-भक्त, आज्ञाकारी तथा स्वस्थ बनाती है। उनमें से ऊँच-नीच, जाति-पाति तथा ईर्ष्या को निकाल कर उनको अच्छे नागरिक बनाती है। उनको ‘न कोई वैरी न ही बिगाना’ का उद्देश्य देती है।

स्काऊटिंग से बच्चे एक-दूसरे के मित्र बनते हैं जिससे अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध अच्छे बनते हैं। संसार में शान्ति बनी रहती है। इस लहर से बच्चे सेवक, परोपकारी तथा दानी बन जाते हैं। बच्चे (स्काऊट) मेलों में सेवा करते हैं। कष्ट के समय बाढ़ों, भूकम्पों तथा बीमारियों से तबाह हुए गरीबों तथा अनाथों की हर प्रकार से मदद करते हैं। लड़ाई में घायलों की सेवा करने के लिए तैयार रहते हैं। स्काऊटिंग से देश के प्रति सम्मान बढ़ जाता है तथा अपने हाथों से कार्य करने के गुण पैदा होते हैं। स्कूलों में पढ़ते समय स्काऊट हाथों से कार्य करके पैसे भी कमा लेते हैं, जिसे वह अपनी फीसों, पुस्तकों तथा ज़रूरतमंद वस्तुओं पर खर्च करते हैं।

स्काऊटिंग बच्चों का सर्वपक्षीय विकास करती है तथा एक मार्ग-दर्शक का कार्य करती है तथा बचपन से ही उनको अच्छे रास्तों पर चलना सिखाती है। इस शिक्षा से अनुशासन स्वयं ही आता है।

PSEB 7th Class Physical Education Solutions Chapter 7 स्काऊटिंग और गाइडिंग

प्रश्न 5.
“स्काऊटिंग शिक्षा से बच्चे का चौमुखी विकास होता है।” अपने विचार दीजिए।
उत्तर-
स्काऊटिंग बच्चों को प्रसन्न, शक्तिशाली, देश-भक्त और आज्ञाकारी तथा जनसहायक बनाती है। उनमें से घृणा, जाति-पाति, ऊंच-नीच आदि की भावना दूर करती है। इससे बच्चों को ‘न कोई वैरी न ही बेगाना’ की शिक्षा मिलती है।

स्काऊट रैलियों से अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध अच्छे और दृढ़ होते हैं। विश्व में अशान्ति नहीं रहती। इस आन्दोलन से बच्चे परोपकारी, सेवक, सहायक और दानी बन जाते हैं। बच्चे मेलों और कठिनाइयों के समय लोगों की सेवा करते हैं।

स्काऊटिंग से बच्चे अपने स्काऊट मास्टर, अफसरों और माता-पिता का आदेश हँसते हुए मानते हैं। उनमें से अपने बड़ों के लिए ही नहीं अपितु छोटों के लिए भी निष्ठा भर जाती है।

स्काऊटिंग से देश के प्रति प्यार और सम्मान बढ़ जाता है। हाथ से काम करने का गुण पैदा होता है। बच्चे हाथ से परिश्रम करके पुस्तकें, कापियां और अन्य आवश्यक वस्तुएं खरीदते हैं।

स्काऊटिंग शिक्षा से बच्चों को कठिनाइयों में से सफल होकर निकलने का ढंग समझ आ जाता है। बच्चों में से हीन भावना निकल जाती है।

स्काऊटिंग बच्चों को अच्छे मार्ग पर डालती है। इस शिक्षा से अनुशासन अपने आप आ जाता है। उनमें आत्म-निर्भरता की भावना और अच्छे नागरिक के गुण पैदा होते हैं। इन बातों से पता चलता है कि स्काऊटिंग बच्चों का चहुंमुखी विकास करती है जिससे बच्चे का शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक, सामाजिक और आध्यात्मिक विकास होता है।

प्रश्न 6.
स्काउट का आदर्श है ‘तैयार’। स्पष्ट करो।
उत्तर-
स्काऊट्स (बच्चे) परोपकारी, सेवक और सहायक होते हैं। कठिनाई, भूकम्प, तूफान, बाढ़, आंधी और बीमारी के समय स्काऊट्स दुःखियों की सेवा करते हैं। वे हर ज़रूरतमन्द की सेवा करने के लिए तैयार रहते हैं। वे बड़ों की आज्ञा मानने के लिए तत्पर रहते हैं। वे हाथ से काम करने से जी नहीं चुराते, अपितु अपना काम अपने हाथ से करने के लिए तैयार रहते हैं। वे मार्ग भूले, माता-पिता से बिछुड़े बच्चों और ज़रूरतमन्दों की सेवा कराने के लिए हर समय तैयार रहते हैं। वे हर कार्य तत्परता से करते हैं।

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प्रश्न 7.
“स्काऊट एक अच्छा नागरिक होता है।” व्याख्या करो।
उत्तर-
जो गुण एक अच्छे नागरिक में होने आवश्यक हैं वे एक स्काऊट को बचपन से ही सिखलाए जाते हैं। अच्छे नागरिक ही किसी देश का नाम रोशन करते हैं। स्काऊट्स को परमात्मा में विश्वास करने का प्रण लेना पड़ता है। इस प्रकार उसका धार्मिक विकास होता है। वह देश सेवा करने के लिए भी प्रण लेता है। उसे बड़ों का सम्मान करना और उनके आदेशों का प्रसन्नता से पालन करना भी सिखाया जाता है। उसे साथियों से प्यार करने की शिक्षा मिलती है। स्काऊट कैम्पों में विभिन्न प्रान्तों के बच्चों को आपस में मिलजुलकर बैठने का अवसर मिलता है। इस प्रकार उनमें राष्ट्रीय एकता की भावना आ जाती है। स्काऊट सम्मेलनों से बच्चों में विश्व-बन्धुत्व की भावना पैदा होती है।

स्काऊट्स को हर कठिनाई का सामना साहस से करने की शिक्षा दी जाती है। उन्हें हाथ से काम करना सिखलाया जाता है। वे अपना कार्य स्वयं करने के योग्य हो जाते हैं।

कठिनाई, बाढ़, तूफान या बीमारी के समय उन्हें मानवता की सेवा करनी सिखलायी जाती है। भूले भटकों को रास्ता दिखाना, बूढ़ों और बच्चों की यथा-योग्य सेवा करना उनका पहला कर्तव्य है।

उपर्युक्त गुणों वाले अच्छे नागरिक ही होते हैं। अत: यह कहना ठीक है कि स्काऊट एक अच्छा नागरिक होता है। स्काऊट में सहानुभूति, देश-प्रेम, साहस, अनुशासन, नम्रता, आत्म-निर्भरता आदि सभी गुण होते हैं। वह एक अच्छा ही नहीं अपितु आदर्श नागरिक होता है।

प्रश्न 8.
स्काऊट लहर को आरम्भ करने के लिए लॉर्ड बेडन की क्या देन है ?
उत्तर-
स्काऊट लहर के जन्मदाता लॉर्ड बेडन थे। उन्होंने फौज के उच्च पद को त्याग कर अपना सारा ध्यान इस ओर लगा दिया।
PSEB 7th Class Physical Education Solutions Chapter 7 स्काऊटिंग और गाइडिंग 4
उन्होंने पहला अमली प्रयोग बर्तानिया के एक टापू ब्राऊन-सी में 1907 ई० में लड़कों की एक छोटी टोली पर किया। लड़कों ने इस स्काऊटिंग शिक्षा कैम्प में पूरी दिलचस्पी दिखाई। 1908 ई० में बेडन पावल ने स्काऊटिंग फॉर बुआएज़ (Scouting for Boys) नामक पुस्तक प्रकाशित की और उसके साथ ही ‘दी स्काऊट’ (The Scout) नाम का एक साप्ताहिक समाचार-पत्र छापना भी शुरू किया। इस तरह पुस्तक और समाचार-पत्र द्वारा स्काऊटिंग का काफ़ी प्रचार हो गया। 1909 ई० में ‘क्रिस्टिल पैलेस’ (Crystal Palace) लन्दन में स्काऊटों की एक बड़ी रैली हुई। इस रैली । में हज़ारों की संख्या में दूर-दूर से आए स्काऊटों ने भाग लिया जिसमें स्काऊटों के हुनर , और कर्तव्यों की दर्शकों ने बहुत प्रशंसा की और उन्होंने अपने बच्चों को स्काऊट लहर में भाग लेने के लिए भेजना शुरू कर दिया। इस तरह यह लहर बहुत लोकप्रिय हो गई और धीरे-धीरे सारे संसार में फैल गई। बड़ी उम्र के बच्चों को स्काऊटिंग करते देख कर छोटे बच्चों में भी इस लहर में शामिल होने की इच्छा जागने लगी। इसके बाद बेडन पावल ने 7 से 12 साल की आयु वाले बच्चों के लिए कबिंग प्रारम्भ की और इस पर एक पुस्तक जिसका नाम ‘दी वुल्फ कब हैंड बुक’ (The Wolf Cub Hand Book) है, छापी और इस तरह बाद में बड़ी आयु वालों अर्थात् रोवर्ज़ के लिए रोवरिंग (Rovering) की संस्था शुरू की और उनके नेतृत्व के लिए एक पुस्तक ‘रोवरिंग टू सक्सैस’ (Rovering to Success) भी लिखी। बेडन पावल ने 1918 ई० में लड़कियों के लिए गाइडिंग शुरू की और इस लहर में चीफ गाइड उन्होंने अपनी पत्नी लेडी बेडन पावल को बनाया। उनकी मेहनत और अच्छे मार्ग दर्शन से ही यह लहर संसार में अत्यधिक सफल हुई।

PSEB 7th Class Physical Education Solutions Chapter 7 स्काऊटिंग और गाइडिंग

Physical Education Guide for Class 7 PSEB स्काऊटिंग और गाइडिंग Important Questions and Answers

बहुत छोटे उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
स्काऊटिंग आन्दोलन का जन्म-दाता कौन था ?
उत्तर-
लॉर्ड बेडन पावल।

प्रश्न 2.
स्काऊटिंग आन्दोलन सबसे पहले कहां शुरू हुआ ?
उत्तर-
बर्तानिया में।

प्रश्न 3.
सर्वप्रथम स्काऊटिंग शिक्षा कैम्प कहां लगा ?
उत्तर-
ब्राऊन सी टापू (बर्तानिया) में।

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प्रश्न 4.
सबसे पहले लड़कियों की स्काऊटिंग का इन्चार्ज़ कौन था ?
उत्तर-
लेडी बेडन पावल।

प्रश्न 5.
भारत के स्काऊटों की रैली दिल्ली में कब हई ?
उत्तर-
1937 में।

प्रश्न 6.
स्काऊटों को विशेषतया क्या सिखाया जाता है ?
उत्तर-
अच्छे गुण।

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प्रश्न 7.
एक स्काऊट दूसरे स्काऊट को मिलते समय क्या करता है ?
उत्तर-
तीन अंगुलियों से सैल्यूट देता है।

प्रश्न 8.
एक स्काऊट के लिए कौन-सी बातों का पालन करना आवश्यक है ?
उत्तर-
स्काऊट नियमों का।

छोटे उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
स्काऊटिंग आन्दोलन का प्रवर्तक कौन था ? सर्वप्रथम स्काऊटिंग आन्दोलन कहां आरम्भ हुआ ?
उत्तर-
स्काऊटिंग आन्दोलन के प्रवर्तक लॉर्ड बेडन पावल थे। उन्होंने बर्तानिया में स्काऊटिंग आन्दोलन आरम्भ किया। उन्होंने सर्वप्रथम स्काऊटिंग कैम्प 1907 में बर्तानिया के टापू ब्राऊन-सी में लगाया।

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प्रश्न 2.
बेडन पावल ने कौन-सी पुस्तकें लिखीं ?
उत्तर-
बेडन पावल ने ‘स्काऊटिंग फार बुआएज़’, ‘दी वुल्फ कब हैंड बुक’ और ‘रोवरिंग टू सक्सैस’ नामक तीन पुस्तकें लिखीं।

प्रश्न 3.
स्काऊटिंग रैलियों के क्या लाभ हैं ?
उत्तर-
स्काऊटिंग रैलियों से एक प्रान्त के बच्चों को दूसरे प्रान्त के बच्चों से मिलने और प्यार करने का अवसर मिलता है। एक देश के बच्चों को दूसरे देश के बच्चों से मिलने का अवसर मिलता है। इस प्रकार बच्चों में से ईर्ष्या भाव, रंग और नस्ल के भेदभाव दूर होते हैं। स्काऊटिंग रैलियां विश्व शान्ति की ओर एक प्रशंसनीय पग हैं।

PSEB 6th Class Agriculture Solutions Chapter 9 मुख्य फूल और पौधे

Punjab State Board PSEB 6th Class Agriculture Book Solutions Chapter 9 मुख्य फूल और पौधे Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 6 Agriculture Chapter 9 मुख्य फूल और पौधे

PSEB 6th Class Agriculture Guide मुख्य फूल और पौधे Textbook Questions and Answers

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-दो शब्दों में दो-

प्रश्न 1.
वर्षा ऋतु के फूल किस महीने में लगाए जाते हैं ?
उत्तर-
जुलाई में।

प्रश्न 2.
पतझड़ में लगाए जाने वाले पौधे का नाम लिखो।
उत्तर-
गुलदौदी।

प्रश्न 3.
कोई दो लाल रंग वाले फूलों के नाम लिखो।
उत्तर-
गुलमोहर, बोतल ब्रश।

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प्रश्न 4.
गुलाब के पौधे किस मौसम में लगाए जाते हैं ?
उत्तर-
नवंबर से मार्च तक।

प्रश्न 5.
किस फूल को पतझड़ की रानी कहा जाता है ?
उत्तर-
गुलदौदी को।

प्रश्न 6.
गुलदौदी के फूल किस महीने में निकलते हैं ?
उत्तर-
नवंबर-दिसंबर में।

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प्रश्न 7.
देसी गुलाब के फूलों की पत्तियों से क्या तैयार किया जाता है ?
उत्तर-
गुलकंद।

प्रश्न 8.
पेड़ किस विधि (तकनीक)द्वारा हवा में नमी की मात्रा बढ़ाकर वातावरण को ठंडा करते हैं ?
उत्तर-
वाष्पीकरण द्वारा।

प्रश्न 9.
वर्षा ऋतु के फलों के नाम लिखो।
उत्तर-
कुक्कड़ कलगा तथा बालसम।

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प्रश्न 10.
पौधे हवा में कौन-सी गैस छोड़ते हैं ?
उत्तर-
ऑक्सीजन।

(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-दो वाक्यों में दो-

प्रश्न 1.
लताओं के कौन-से भाग उनको दीवारों पर चढ़ने में मदद करते हैं ? उदाहरण दीजिए।
उत्तर-
लताओं पर लगे कांटे, रसदार पदार्थ, टैंडरिल आदि इन की दीवारों पर चढ़ने में सहायता करते हैं, जैसे-वोगनविलिया में कांटे, छिपकली लता में रसदार पदार्थ, गोल्डन शावर में टैंडरिल।

प्रश्न 2.
सर्दी में लगाए जाने वाले फूलों के नाम लिखो तथा इन्हें किस महीने में लगाया जाता है ?
उत्तर-
कुत्ता फूल, फ्लाक्स, वरबीना, गेंदा, गेंदी, स्वीट पीज आदि सर्दी के फूल हैं। इन को अक्तूबर-नवंबर में पनीरी तैयार करके लगाया जाता है।

PSEB 6th Class Agriculture Solutions Chapter 9 मुख्य फूल और पौधे

प्रश्न 3.
पतझड़ वाले पौधे किस महीने में लगाए जाते हैं तथा किन्हीं दो पतझड़ में लगाए जाने वाले पौधों के नाम लिखो।
उत्तर-
पतझड़ वाले पौधे हैं-क्वीन फ्लावर, सावनी, शहतूत। इनको अर्घ दिसम्बरजनवरी में लगाया जाता है।

प्रश्न 4.
सुंदर पत्तों वाली झाड़ियों के नाम लिखो तथा इनका चयन किस आधार पर किया जाता है ?
उत्तर-
गोल्डन शावर, लस्सन लता, पर्दा लता आदि सुंदर पत्तों वाली झाड़ियां हैं। इनको इनके कद के अनुसार लगाया जाता है।

प्रश्न 5.
फैलाव के आधार पर पेड़ों को कितनी श्रेणियों में बाँटा जा सकता है ?
उत्तर-
पेड़ों को गोल छाता (मोलसरी), फैलाव आकार (गुलमोहर), सीधे जाने वाली (सिल्वर ओक), झुकी शाखा वाले (बोतल ब्रश) आदि।

PSEB 6th Class Agriculture Solutions Chapter 9 मुख्य फूल और पौधे

(ग) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर पाँच-छः वाक्यों में दो-

प्रश्न 1.
“फूल हमारे जीवन में अहम भूमिका निभाते हैं।” तथ्य की पुष्टि करो।
उत्तर-
फूलों का प्रयोग मनुष्य अपने जीवन में प्रत्येक सोपान पर करता है। जन्मदिन, विवाह, पाठ-पूजा, मन्दिर, मृत्यु आदि सारे अवसरों पर फूलों का प्रयोग किया जाता है। फूलों से हमें प्यार तथा संतोष का संदेश भी प्राप्त होता है। फूलों के रंग तथा सुगंध से हमारे मन को शांति मिलती है। फूलों के गुलदस्ते प्रदान करके शुभकामनाएं दी जाती हैं तथा स्वागत किया जाता है। फूलों को घरों की सजावट में प्रयोग किया जाता है। फूलों का तेल निकाल कर सुगंध वाली वस्तुएं भी तैयार की जाती हैं। गुलाब के फूल की पत्तियों से गुलकंद बनाया जाता है। इस प्रकार कई अन्य फूलों का प्रयोग हर्बल दवाइयों में भी होता है। इस तरह फूल हमारी ज़िन्दगी का अहम भाग हैं।

प्रश्न 2.
वातावरण को स्वच्छ रखने में पौधों का क्या योगदान है ?
उत्तर-
पौधे आस-पास को सुंदर बनाने का काम करते हैं तथा साथ ही वे वातावरण में से कार्बन डाइआक्साइड को सोखते हैं तथा ऑक्सीजन छोड़ते हैं। इस तरह वातावरण शुद्ध होता है। ये हवा में से मिट्टी के कणों, हानिकारक गैसों तथा पदार्थों को अपने में समा लेते हैं। पौधे हवा में से नमी की मात्रा भी बढ़ाते हैं तथा वातावरण को ठण्डा रखते हैं। पौधे ध्वनि प्रदूषण को भी रोकते हैं। इस तरह पौधे वातावरण को साफ रखने में योगदान देते हैं।

प्रश्न 3.
आकार के आधार पर पेड़ों को कितनी श्रेणियों में बाँटा जा सकता है ? उदाहरण दीजिए।
उत्तर-
पेड़ों को कद तथा छतरी के आधार पर बड़े, मध्यम तथा छोटे वृक्षों में बाँटा जा सकता है। कम फैलाव वाला पेड़ है अशोका। पेड़ों को आकार के आधार पर भी बांटा जा सकता है। जैसे मोलसरी की गोल छतरी, गुलमोहर का फैलाव आकार है, सिल्वर ओक सीधे जाने वाला पेड़ है, बोतल ब्रश की शाखाएं झुकी होती हैं।

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प्रश्न 4.
पेड़ों तथा झाड़ियों को लगाने का ढंग विस्तृत रूप में लिखिए।
उत्तर-
पेड़ तथा झाड़ियां लगाने के लिए एक से तीन फुट गहरा गड्ढा खोदा जाता है। इसमें दो भाग मिट्टी तथा एक भाग गली-सड़ी रूड़ी खाद मिला दी जाती है। इनमें समय के अनुसार पेड़, झाड़ियां आदि को लगाना चाहिए। पेड़ तथा झाड़ियों की हमारे जीवन में बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका है। ये वातावरण को शुद्ध करने का कार्य भी करते हैं। इन्हें काफ़ी संख्या में लगाना चाहिए तथा लगे हुए पेड़ों की अच्छी संभाल करनी चाहिए।

प्रश्न 5.
गुलदौदी के फूलों के बारे में आप क्या जानते हैं ? विस्तृत रूप में लिखिए।
उत्तर-
गुलदौदी को पतझड़ की रानी भी कहा जाता है। इस की जड़ों वाले टुसे जुलाई-अगस्त में लगाए जाते हैं। इस को फूल नवंबर-दिसंबर में लगते हैं तथा जनवरी तक खिलते रहते हैं। ये फूल देखने में बहुत सुंदर तथा मनमोहक होते हैं। इनको क्यारियों में लगाया जाता है।

प्रश्न 6.
कौन-से फूलों का तेल निकाल कर उसे खुशबू की वस्तुओं में प्रयोग किया जाता है ?
उत्तर-
गुलाब, जैसमीन, रजनीगंधा, मोतिया आदि का तेल निकाल कर उसे खुशबू वाली वस्तुओं में प्रयोग किया जाता है।

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प्रश्न 7.
व्यापारिक पक्ष से सजावटी फूल कैसे लाभदायक हो सकते हैं ?
उत्तर-
फूलों का व्यापार करके अच्छी कमाई की जा सकती है। पंजाब में गेंदा, गेंदी तथा ग्लैडिऑल्स आदि की कृषि व्यापारिक स्तर पर की जाती है। जरवरा तथा गुलाब की उच्च स्तर पर पैदावार की जाती है। इनको प्लास्टिक के ग्रीन हाऊस बना कर उगाया जाता है। इस तरह मौसमी फूलों के बीज तैयार करके अमेरिका, कनाडा, जर्मनी आदि भेजे जाते हैं।

प्रश्न 8.
पेड़ झाड़ियाँ, लताएं आदि लगाने का उचित समय कौन-सा होता
उत्तर-
पेड़, झाड़ियां, लताएं आदि लगाने का उचित समय बरसात का मौसम जुलाई-अगस्त तथा वसंत ऋतु के फरवरी-मार्च के महीने हैं।

Agriculture Guide for Class 6 PSEB पमुख्य फूल और पौधे Important Questions and Answers

बहुत छोटे उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
फूल हमें क्या संदेश देते हैं ?
उत्तर-
प्यार तथा संतोष का।

PSEB 6th Class Agriculture Solutions Chapter 9 मुख्य फूल और पौधे

प्रश्न 2.
कौन से फूलों का तेल निकाल कर सुगंधित वस्तुएं बनाई जाती हैं ?
उत्तर-
गुलाब, जैसमीन, रजनीगंधा, मोतिया।

प्रश्न 3.
पौधे हवा में से कौन-सी गैस खींचते हैं ?
उत्तर-
कार्बन डाइऑक्साइड।

प्रश्न 4.
फ्लाक्स, वरबीना, गेंदा आदि को कब लगाया जाता है ?
उत्तर-
अक्तूबर-नवंबर में पनीरी तैयार करके।

PSEB 6th Class Agriculture Solutions Chapter 9 मुख्य फूल और पौधे

प्रश्न 5.
बालसम तथा कुक्कड़ कलगा कौन से मौसम के फूल हैं ?
उत्तर-
बरसात के मौसम के।

प्रश्न 6.
पंजाब में कौन-से फूलों की काश्त व्यापारिक स्तर पर होती है ?
उत्तर-
गेंदा, गेंदी, ग्लैडिऑल्स।

प्रश्न 7.
फूलों की पनीरी कब लगाई जाती है ?
उत्तर-
साधारणतः शाम को।

PSEB 6th Class Agriculture Solutions Chapter 9 मुख्य फूल और पौधे

प्रश्न 8.
अशोका को घरों में क्यों लगाया जाता है ?
उत्तर-
इसका फैलाव कम होने के कारण।

प्रश्न 9.
पतझड़ी पौधों के उदाहरण दें।
उत्तर-
क्वीन फ्लावर, सावनी, शहतूत।

प्रश्न 10.
पीले फूलों वाले पौधे बताएं।
उत्तर-
अमलतास।

PSEB 6th Class Agriculture Solutions Chapter 9 मुख्य फूल और पौधे

प्रश्न 11.
जामुनी फूलों वाले पौधे बताएं।
उत्तर-
नीली मोहर, क्वीन फ्लावर।

प्रश्न 12.
गुलाबी फूल वाले पौधे बताएं।
उत्तर-
गुलाबी मोहर।

प्रश्न 13.
गमले में सजावट के लिए लगाए जाने वाले पौधों के नाम बताएं।
उत्तर-
पालम, मनी प्लांट, रबड़ प्लांट आदि।

PSEB 6th Class Agriculture Solutions Chapter 9 मुख्य फूल और पौधे

छोटे उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
फूलों की पनीरी लगाने के बारे में तथा गुडाई के बारे में बताएं।
उत्तर-
फूलों की पनीरी शाम के समय लगाई जाती है तथा पानी लगा दिया जाता है। इस तरह ये पौधे मुरझाते नहीं। क्यारियों में समय-समय पर गुडाई करते रहना चाहिए इससे रोग तथा कीड़ों की रोकथाम हो जाती है।

प्रश्न 2.
व्यापारिक स्तर पर फूलों की काश्त के बारे में बताएं।
उत्तर-
फूलों का व्यापार करके अच्छा लाभ लिया जा सकता है। पंजाब में गेंदा, गेंदी तथा ग्लैडिऑल्स आदि की काश्त व्यापारिक स्तर पर होती है। जरवरा तथा गुलाब की उच्च स्तर पर पैदावार होती है। इनको प्लास्टिक के ग्रीन हाऊस बना कर उगाया जाता है। इसी तरह मौसमी फूलों के बीज तैयार करके अमेरिका, कनाडा, जर्मनी आदि में भेजे जाते हैं।

बड़े उत्तर वाला प्रश्न

प्रश्न-
पेड़ों तथा झाड़ियों को लगाने का ढंग लिखें तथा फूलों के नाम लिखें, जिन का तेल निकाल कर खुशबू की वस्तुओं में प्रयोग किया जाता है ?
उत्तर-
स्वयं करें।

PSEB 6th Class Agriculture Solutions Chapter 9 मुख्य फूल और पौधे

मुख्य फूल और पौधे PSEB 6th Class Agriculture Notes

  1. फूल हमारी ज़िन्दगी का ज़रूरी भाग हैं। ये प्यार तथा संतोष का संदेश देते हैं।
  2. फूल कई रंगों के तथा सुगंध वाले होते हैं।
  3. मौसमी फूलों को क्यारियों में लगाया जाता है; जैसे-गुलाब, गेंदा, ग्लैडीऑल्स आदि।
  4. कुछ फूलों का तेल सुगंध की वस्तुओं में प्रयोग किया जाता है; जैसे-जैसमीन, रजनीगंधा आदि।
  5. पेड़, झाड़ियां, लताएं आदि वातावरण को शुद्ध रखने का काम करती हैं।
  6. गुलाब के फूल दिसंबर से अप्रैल तक लगते हैं।
  7. गुलदौदी को पतझड़ की रानी कहा जाता है।
  8. सर्दियों के फूल हैं-कुत्ता फूल, फ्लाक्स, वरबीना, गेंदा, स्वीट पीज़ आदि।
  9. गर्मी के फूल हैं-जीनीया, सूर्यमुखी (सजावटी), गमफरीना आदि।
  10. बरसात के फूल हैं-कुक्कड़ कलगा, वालसम।
  11. पंजाब में गेंदा, गेंदी, ग्लैडीऑल्स आदि की काश्त व्यापारिक स्तर पर की जाती है।
  12. पतझड़ी पौधे हैं-क्वीन फ्लावर, शहतूत, सावनी।
  13. पेड़ों को आकार के आधार पर बाँट सकते हैं-गोल छतरी (मोलसरी), फैलाव आकार (गुलमोहर), सीधे जाने वाले (सिल्वर ओक), झुकी हुई शाखाएँ (बोतल ब्रश) आदि।
  14. फूलों के रंग के आधार पर पीला (अमलतास), जामुनी (नीली मोहर, क्वीन फ्लावर), गुलाबी (गुलाबी मोहर), लाल (गुलमोहर, बोतल ब्रश) आदि।
  15. कुछ झाड़ियां हैं-चाँदनी, मोतिया, पीली कनेर, जटरोफा, सावनी आदि।
  16. कुछ लताएं हैं-गोल्डन शावर, लस्सन लता, पर्दा लता आदि।।
  17. कुछ लताएं; जैसे वोगनविलिया, छिपकली लता आदि पर लगे कांटे इन को दीवारों पर चढ़ने में सहायता करते हैं।
  18. वृक्ष, झाड़ियां तथा लताएं लगाने के लिए एक से तीन फुट गहरा गड्ढा खोदा जाता है।

 

PSEB 11th Class Physical Education Solutions Chapter 6 खेल मनोविज्ञान

Punjab State Board PSEB 11th Class Physical Education Book Solutions Chapter 6 खेल मनोविज्ञान Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Physical Education Chapter 6 खेल मनोविज्ञान

PSEB 11th Class Physical Education Guide खेल मनोविज्ञान Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
खेल मनोविज्ञान शब्द कौन-से तीन शब्दों के मेल से बना है? (What are the three words combines Sports Psychology ?)
उत्तर-
‘खेल मनोविज्ञान’ शब्द तीन शब्दों का मेल है, खेल + मन + विज्ञान। खेल’ से भाव है ‘खेल और खिलाड़ी’ मन से ‘भाव है व्यवहार या मानसिक प्रक्रिया और ‘विज्ञान’ से भाव है अध्ययन करना अर्थात् खेल और खिलाड़ियों की हरकतों के व्यवहारों का प्रत्यक्ष रूप में अध्ययन करना, खेल मनोविज्ञान कहलाता है।

प्रश्न 2.
खेल मनोविज्ञान की परिभाषा लिखें। (Write definition of Sports Psychology.)
उत्तर-
ब्राउन और मैहोनी के अनुसार, “खेलों और शारीरिक सरगर्मियों में हर स्तर पर निपुणता बढ़ाने के लिए मनोवैज्ञानिक सिद्धान्तों का प्रयोग करना ही खेल मनोविज्ञान है।”
(According to Brown and Mahoney “The sports psychology is the application of psychological principles sports and physical activity, at all levels’.)
खेल मनोविज्ञान का यूरोपियन संघ के अनुसार, “खेल मनोविज्ञान खेलों के मानसिक आधार, कार्य और प्रभाव का अध्ययन है।”
(According to European Union of Sports psychology “Sports psychology is the study of the psychological oasis processed and effect of sports.)
आर० एन० सिंगर के अनुसार, “खेल मनोविज्ञान शिक्षा और प्रयोगी क्रियाओं द्वारा, एथलैटिक, शारीरिक शिक्षा मनोरंजन और व्यायाम से सम्बन्धित लोगों के व्यवहार में परिवर्तन लाती है।” – (According to R.N. Singer, “Sports Psychology is encompossing scholarly education and practical activities associated with the understanding and influencing of related behaviour of people in Athletics, Physical Educations vigorous recreational activities and exercise.”)

मि० के० एम० बर्नस के अनुसार, “खेल मनोविज्ञान शारीरिक शिक्षा के लिए मनोविज्ञान की वह शाखा है जो व्यक्ति शारीरिक योग्यता को बढ़ावा देती है खेल-कूद में भाग लेने से।”
(According to Mr. K.M. Burns, “Sports psychology for physical education is that branch of psychology which deals with Physical Fitness of an individual through his participation in games and sports.”)
खेल मनोविज्ञान का अर्थ (Meaning of Sports Psychology)-मनोविज्ञान एक विशाल विषय है। यह मनुष्य के ज्ञान की सभी शाखाओं पर लागू होता है। हमारी प्रत्येक क्रिया मनोविज्ञान द्वारा निर्धारित होती है। यह मनुष्य के शरीर को स्वस्थ रखने में सहायता करता है, परन्तु खेल मनोविज्ञान शारीरिक शिक्षा में मनुष्य की शारीरिक योग्यता पर प्रकाश डालता है। खेल मनोविज्ञान इस बात पर जोर डालता है कि शारीरिक और मानसिक योग्यता खेल-कूद के द्वारा हासिल की जा सकती है। इसलिए खेल मनोविज्ञान की शारीरिक शिक्षा में बहुत बड़ा रोल है जिससे व्यक्ति का बहुमुखी विकास हो सके इसलिए हमें खेल मनोविज्ञान को अवश्य जानना चाहिए।

मनोविज्ञान मनुष्य के व्यवहार का ज्ञान है औ केल मनोविज्ञान खिलाड़ियों के व्यवहार जब वह खेल प्रतियोगिताओं में भाग लेते हैं। उस समय के व्यवहार के अध्ययन को खेल मनोविज्ञान कहते हैं। खेल मनोविज्ञान मनोविज्ञान की वह शाखा है जो खेल के मैदान में खिलाड़ियों के व्यवहार से सम्बन्धित है।
खेल मनोविज्ञान का खेल-कूद में बड़ा योगदान है। इसके द्वारा हम खिलाड़ियों का भिन्न-भिन्न स्थानों पर उनके मानसिक व्यवहार को देख सकते हैं।
करैटी के अनुसार-खेल मनोविज्ञान तीन भागों में बांटा जा सकता है—

  1. प्रयोगी खेल मनोविज्ञान (Experiment Sports Psychology)
  2. शिक्षक खेल मनोविज्ञान (Educational Sports Psychology)
  3. क्लीनिकल खेल मनोविज्ञान (Clinical Sports Psychology)।

प्रयोगी खेल मनोविज्ञान के खिलाड़ियों के खेल स्तर को उन्नत करने के लिए खोज की जाती है। शिक्षक मनोविज्ञान में आपसी सम्बन्ध और तालमेल के बारे में जाना जाता है जिससे टीम के प्रदर्शन को बढ़ावा मिल सके क्लीनिकल खेल मनोविज्ञान में खिलाड़ियों की उन कठिनाइयों का हल ढूँढा जाता है जो उनके प्रदर्शन में रुकावट डालती है।

PSEB 11th Class Physical Education Solutions Chapter 6 खेल मनोविज्ञान

प्रश्न 3.
खेल मनोविज्ञान का आधुनिक युग में क्या महत्त्व है ? (What is the importance of Sports Psychology in today’s scenario ?)
उत्तर-
खेल मनोविज्ञान का आधुनिक युग में महत्त्व—
1. सरल से कठिन की ओर का सिद्धान्त (Principles of progression)—खिलाड़ी के खेल में भाग लेने से पहले उसको अपने शरीर को इस ढंग से गर्म करना चाहिए कि उसके लिए गर्म होने से पहले व्यायाम सरल होने चाहिए, क्योंकि पहले व्यायाम उसको शुरू में ही इतने मुश्किल दें तो मांसपेशियों में कई तरह के नुक्सान पैदा हो जाएंगे। इसलिए गर्म होने के लिए सरल से कठिन वाले सिद्धान्त हम हमेशा अपने सामने रखते हैं। इसी विषयानुसार खिलाड़ी को गर्म होने के समय उस द्वारा उठाए जाने वाले भार हम धीरे-धीरे बढ़ाते हैं।

2. स्वास्थ्य (Health)—एथलीट या खिलाड़ी को गर्म होने से पहले अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखना चाहिए। उसके स्वास्थ्य के अनुसार ही हमें उसको व्यायाम देने चाहिए। यदि किसी कमज़ोर स्वास्थ्य वाले खिलाड़ी के शरीर को अच्छी तरह गर्म करने के लिए कोई कठिन व्यायाम दे दें तो शरीर के अच्छी तरह गर्म होने के स्थान पर उसके शरीर की अलग-अलग प्रणालियों में नुक्स पड़ जाएगा। इनसे बचने के लिए हमें खिलाड़ी के शरीर को उसके स्वास्थ्य के अनुकूल गर्म करना चाहिए।

3. व्यक्ति की क्षमता या प्रशिक्षण अवस्था (Capacity or training of individual)—किसी भी खिलाड़ी या एथलीट को गर्म होने से पहले यह देखना चाहिए कि आका प्रशिक्षण किस अवस्था में चल रहा है या वह कितने सालों से प्रशिक्षण ले रहा है। किस खेल का प्रशिक्षण है और उसका उद्देश्य क्या है ? उसकी व्यक्तिगत अवस्था किस तरह की है, इसके प्रशिक्षण का जो कार्यक्रम चल रहा है, इन सारी बातों को सामने रखकर उसको गर्म करने वाले व्यायाम देने चाहिए।

4. क्रमवार (Systematic)—किसी भी खिलाड़ी या ऐथलीट को गर्म करने वाले व्यायाम इस तरह के देने चाहिएं कि उस ऐथलीट या खिलाड़ी के शरीर के सभी अंगों का तापमान और रक्त संचार ठीक ढंग से कार्य करें। उसके शरीर का कौन-सा भाग अधिक गर्म चाहिए। इसलिए उसको गर्म होने वाले व्यायाम क्रमवार देने चाहिएं।

5. जलवायु सम्बन्धी अवस्थाएं (Climate conditions)—किसी भी खिलाड़ी या ऐथलीट को गर्म करने वाले व्यायाम देने से पहले यह देखना चाहिए कि जिस स्थान पर खिलाड़ी को गर्म करने वाले व्यायाम दे रहे हैं। वहां का वातावरण कैसा है, वहां अधिक गर्मी है या अधिक सर्दी तो नहीं। खेल खुले मैदान के अन्दर हो रही है या जिम्नेजियम के अन्दर, दिन का समय है या रात का। सूर्य की धूप है या बरसात का मौसम। इन सभी बातों को सामने रखकर ही खिलाड़ियों को गर्म करने वाले व्यायाम देने चाहिएं।

6. भिन्नता (Variety)-खिलाड़ी को गर्म करने से पहले यह देखना चाहिए कि उसने किस खेल में कितनी देर भाग लेना है और खेल में उसका ज़ोर कितना लगता है। इन तरह खिलाड़ी को गर्म होने वाले व्यायाम उसकी खेल के अनुरूप ही देने चाहिएं।

7. भार, ऊंचाई, उम्र, शरीर की किस्म (Weight, height, age, body type)—खिलाड़ी को गर्म होने से पहले उसका भार, उसकी ऊंचाई, उसके शरीर की बनावट किस तह की है, यह देख लेना चाहिए। एक पांच साल के खिलाड़ी को यह व्यायाम नहीं दिया जा सकता, जो कि पच्चीस साल के खिलाड़ी को दिए हैं। एक लड़की को यह व्यायाम नहीं दिया जा सकता जो कि एक लड़के दो दिया जाता है क्योंकि लड़की और लड़के की बनावट में बहुत अन्तर है।

8. मुकाबला और काम करने की तीव्रता (According to competition and intensity of work)—खेल के मुकाबले को प्रमुख रखते हुए ही हमें खिलाड़ी को गर्म करने वाले व्यायाम देने चाहिए। मुकाबले को देखते हुए यह भी देखना पड़ता है कि कितनी देर पहले गर्म होना चाहिए, जिस से खिलाड़ी अपने खेल का अच्छा प्रदर्शन कर सके। एक सौ मीटर दौड़ में भाग लेने वाले ऐथलीट को गर्म होने वाले वे व्यायाम नहीं दिए जा सकते जो कि गोला फेंकने वाले या दस हज़ार मीटर दौड़ दौड़ने वाले या एक फुटबॉल का मैच खेलने वाले खिलाड़ी को दिया जाता है। इसलिए खिलाड़ी को मुकाबले के अनुसार ही गर्म होना चाहिए।

9. सभी शारीरिक अंगों से सम्बन्धित व्यायाम (Exercises pertaining to all parts of body)—गर्म होने वाले व्यायामों को इस ढंग से करना चाहिए कि खिलाड़ी के शरीर के सभी अंग गर्म हो जाएं। पैरों की अंगुलियों से लेकर सिर तक सभी अंग अच्छी तरह व्यायाम में लगे हुए हों, चार सौ मीटर की दौड़ दौड़ने के लिए भुजाओं को गर्म करने वाले व्यायाम उतने ही ज़रूरी हैं जितने व्यायाम टांगों के होने चाहिएं। इस तरह किसी भी खेल में भाग लेने से पहले शरीर के सभी अंगों को गर्म करना चाहिए।

10. क्रियाशीलता के लिए विशेष अभ्यास (Special exercises for activities)—अलग-अलग क्रियाशीलता के लिए विशेष गर्म होने के व्यायाम करवाने चाहिएं।

PSEB 11th Class Physical Education Solutions Chapter 6 खेल मनोविज्ञान

प्रश्न 4.
प्रेरणा क्या है ? प्रेरणा के स्त्रोतों की व्याख्या कीजिए। (What is Motivation ? Explain its sources in detail.)
उत्तर-
प्रेरणा का अर्थ (Meaning of Motivation)—प्रेरणा का अर्थ विद्यार्थियों की सीखने की क्रियाओं में चि पैदा करना और उनको उत्साह देना है। प्रेरणा से विद्यार्थी अपनी पढ़ाई में रूचि लेता है। खिलाड़ी खेलने में रुचि लेता है। मज़दूर फैक्टरी में अपने काम में रुचि लेता है और किसान अपने खेतों के कार्यों में रुचि लेता है। सच तो यह है कि प्रेरणा में इस तरह की चल शक्ति (Motive Force) है। यह एक ऐसी शक्ति है जो मनुष्य को काम करने के लिए उत्साहित करती है। इस शक्ति के द्वारा मनुष्य अपनी मौलिक आवश्यकताओं को पूरा करने का लगातार प्रयास करता है और अन्त में उसकी पूर्ति करने में सफलता प्राप्त करता है।

प्रेरणा की परिभाषाएं (Definitions of Motivation) मारगन और किंग के अनुसार, “प्रेरणा मनुष्य अथवा जानवर की उस स्थिति को दर्शाती है, जो उसके व्यवहार द्वारा अंतिम लक्ष्य की ओर बढ़ता है।”
(According to Margan and King “Motivation refers to take within a person or animal that derives behaviour towards some goal.”)
करूक और स्टेन के अनुसार, “प्रेरणा को इस प्रकार परिभाषित किया जा सकता है। जिन हालतों द्वारा हमें कार्य करने के लिए दिशा और शक्ति मिलती है। उसे प्रेरणा कहते हैं।”
(According to Crooks and Stain, Motivation defined as, “Any condition that might energize . and direct our action.”)

क्रो और क्रो के अनुसार, “प्रेरणा सीखने में रुचि पैदा करने के साथ सम्बन्धित है और यह सीखने के लिए ज़रूरी है।”
According to Crow and Crow, “Motivation means inculcating in students the interest in activities of learning and motivating them in this regard. It is essential for learning.”
कैली के अनुसार, “सीखने की प्रक्रिया की प्रभावशाली व्यवस्था में प्रेरणा एक केन्द्रीय तत्व है। हर प्रकार सीखने में कोई-न-कोई प्रेरणा अवश्य होती है।”
(According to Kelly. Motivation is the central factor in the effective management of the process of learning, some type of motivation must be present in learning.”)
मुरैए के अनुसार “प्रेरणा एक आन्तरिक तत्व है जो कि व्यक्ति के व्यवहार को उकसाती है, दिशा देती है और एकसुर बनाती है।”
एलिजाबेथ और डेफी के अनुसार, “प्रेरणा व्यवहार की दिशा और तीव्रता को कहा जाता है।” (According to Rlizabeth and Duffy, “Motivation is direction and intensity of behaviour.”)
प्रेरणा की किस्में (Types of Motivation) प्रेरणा मुख्य तौर पर निम्नलिखित दो प्रकार की होती है –
(क) आंतरिक प्रेरणा (Intrinsic Motivation)
(ख) बाहरी प्रेरणा (Extrinsic Motivation) इनका संक्षिप्त वर्णन इस तरह है

(क) आंतरिक प्रेरणा (Intrinsic Motivation)—यह प्रेरणा व्यक्ति की प्राकृतिक इच्छा, आवश्यकता और प्रवृत्तियों के साथ सम्बन्धित होती है। इसलिए इसको प्राकृतिक प्रेरणा (Natural Motivation) कहते हैं। एक प्रेरित व्यक्ति किसी काम को इसलिए करता है क्योंकि काम करने से उसे खुशी अनुभव होती है। जब कोई विद्यार्थी किसी रोचक उपन्यास या किसी अच्छी कविता को पढ़ कर खुशी प्राप्त करता है तो वह आंतरिक रूप में प्रेरित (Motivated) होता है। ऐसी अवस्था में खुशी का स्रोत उसकी क्रियाओं में छिपा रहता है। (The source of happiness implied in actions) शिक्षा के स्रोत में आंतरिक प्रेरणा विशेष महत्त्व रखती है क्योंकि इसमें स्वाभाविक रुचि पैदा होती है और अंत तक भी रहती है।

(ख) बाहरी प्रेरणा (Extrinsic Motivation)-बाहरी प्रेरणा में खुशी का स्रोत क्रियाओं में नहीं होता। इसमें व्यक्ति जो भी काम करता है उसका उद्देश्य किसी मनोरथ को प्राप्त करना या पुरस्कार प्राप्त करना होता है। खुशी प्राप्त करने के लिए काम नहीं करता। अपनी आजीविका प्राप्त करने के लिए काम सीखना, प्रशंसा प्राप्ति के लिए काम करना, पदोन्नति के लिए काम करना आदि सभी इस प्रेरणा की श्रेणी में आते हैं। बाहरी प्रेरणा के स्थान पर आंतरिक प्रेरणा उत्साह एवं उत्तेजना का साधन है। इसलिए जहां तक सम्भव हो सके आंतरिक प्रेरणा का प्रयोग होना चाहिए।

1. प्राकृतिक अथवा आंतरिक प्रेरणा (Natural or Instrinsic Motivation)—प्राकृतिक प्रेरणा इस तरह की प्रेरणा होती है जोकि खिलाड़ी के भीतर पैदा होने के समय भी मौजूद होती है। कुछ प्राकृतिक प्रेरणाएं निम्नलिखित हो सकती हैं—

  • शारीरिक प्रेरणा (Physical Motivation) भूख, प्यास, काम आदि।
  • आंतरिक प्रेरणा (Internal Motivation) शौक, इच्छा आदि।
  • भावनात्मक प्रेरणा (Emotional Motivation) प्यार, सफलता, सुरक्षा व अपनापन।
  • सामाजिक प्रेरणा (Social Motivation) सामाजिक प्रगति व सामाजिक आवश्यकताएं इत्यादि।
  • प्राकृतिक प्रेरणा (Natural Motivation) आत्म-सम्मान, नेतृत्व व विश्वास इत्यादि।
  • नकल करने की प्रेरणा (Imitative Motivation) अच्छे खिलाड़ियों की नकल करना इत्यादि।

2. अप्राकृतिक अथवा कृत्रिम अथवा बाहरी प्रेरणा (Unnatural or Artificial or External Motivation) कृत्रिम प्रकार की प्रेरणा का भी खेलों की निपुणता में बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान है। शारीरिक शिक्षा के अध्यापक व कोच इत्यादि कृत्रिम प्रेरणा के द्वारा ही खिलाड़ियों में खेल निपुणता लाने के लिए अक्सर बहुत सफल हो सकते हैं और खिलाड़ी प्रेरणा के द्वारा खेल मन लगा कर करते हैं। कृत्रिम प्रेरणा कुछ इस तरह की होती है—

  • पुरस्कार (Reward)-आर्थिक वस्तुओं (Material Reward) जैसे, बाल पैन, बैग, अटैची, तौलिए इत्यादि।
  • सामाजिक पुरस्कार (Social Reward)–तरक्की, नौकरी, कप, प्रमाण-पत्र इत्यादि।
  • सज़ा (Punishment)-इस तरह की प्रेरणा को नकारात्मक प्रेरणा कहा जाता है जैसे भय, जुर्माना, शारीरिक सज़ा इत्यादि। जहां तक हो सके इस तरह की प्रेरणा का कम-से कम प्रयोग होना चाहिए।
  • मुकाबले (Competition)-टूर्नामेंट, इंटराम्यूरल व एकस्ट्रा म्यूरल इत्यादि।
  • परीक्षाएं (Examination)-खेलों का मूल्यांकन नम्बर विजेता का स्थान देकर करना।
  • श्रवण-दृश्य सहायक सामग्री (Audio-Visual Aids)-जैसे फिल्में, तस्वीरें, आंखें, देख-भाल इत्यादि।
  • कोच व खिलाड़ी रिश्ता (Coach and Player Relationship)-अच्छा व्यवहार खिलाड़ी के भावों और उसकी ज़रूरतों का अहसास।
  • सहयोग (Cooperation)—आपसी सहयोग, अधिकारियों के साथ सहयोग इत्यादि।
  • लक्ष्य (Goal)-जीत, पुरस्कार, पदोन्नति, प्रशंसा इत्यादि।

PSEB 11th Class Physical Education Solutions Chapter 6 खेल मनोविज्ञान

प्रश्न 5.
खेल मनोविज्ञान की शाखाओं के नाम लिखिए। (Explain the various branches of Sports Psychology.)
उत्तर-
खेल मनोविज्ञान की शाखाएँ—

  1. खेल संगठन मनोविज्ञान (Sports Organization Psychology)
  2. शिक्षा मनोविज्ञान (Educational Psychology)
  3. स्वास्थ्य मनोविज्ञान (Health Psychology)
  4. चिकित्सा और क्लीनिक मनोविज्ञान (Medical and Clinical Psychology)
  5. विकसित मनोविज्ञान (Development Psychology)
  6. व्यायाम मनोविज्ञान (Exercise Psychology)
  7. समाज और ग्रुप मनोविज्ञान (Social and Group Psychology)

प्रश्न 6.
खेल प्रदर्शन को प्रभावित करने वाले मनोवेज्ञानिक तत्वों की विस्तारपूर्वक जानकारी दीजिए। (Explain in detail the factors that affects the Sports Performance.)
उत्तर-
खेल कुशलता को प्रभावित करने वाले मनोवैज्ञानिक तत्व (Psychological factors affecting the performance in game and sports)—प्रत्येक खिलाड़ी की अपने खेल को आगे बढ़ाने की इच्छा होती है। वह इसको बढ़ाने के लिए पूरी कोशिश करता है और खेल का ध्यान के साथ अभ्यास करता है ताकि वह उस खेल में अपना नाम बाकी खिलाड़ियों की तरह चांद की तरह चमका सके और अपने खेल जगत को सही लक्ष्य पर पहुंचाने में सफलता प्राप्त कर सके और अपना, अपने माता-पिता, स्कूल-कॉलेज, अपने जिले, राज्य और देश का नाम रौशन कर सके और अन्तर्राष्ट्रीय खेल मुकाबलों में अपने देश के झंडे को ऊंचा कर सके।

1. दिशा (Direction)-दिशाहीन व्यक्ति अपनी मंजिल पर नहीं पहुँच सकता है। किसी कार्य की पूर्ति के लिए उसकी दिशा, उद्देश्य या निशाने का अवश्य पता होना चाहिए। शिक्षा के क्षेत्र में यदि विद्यार्थी और खिलाडियों को दिशा का पता नहीं है तो उनका प्रशिक्षण अर्थहीन है। यदि मनुष्य को प्रशिक्षण लेना हो तो उसको अपना उद्देश्य और मंजिल मालूम होनी चाहिए। समुद्र में आए तूफ़ान में किश्ती किनारे की तरफ तब ही जा सकती है जब नाविक को किनारे की दिशा का ज्ञान हो। इसलिए यदि प्रशिक्षण लेने वाले को प्रशिक्षण की दिशा का ज्ञान हो तो सिखलाई में बहुत आसानी हो जाती है।

2. सीखने का समय (Learning Time)-कहावत के अनुसार समय पर आरम्भ किया हुआ काम अवश्य मंज़िल हासिल कर लेता है। इस कहावत में बुद्धिमान लोगों की बुद्धिमत्ता स्पष्ट नज़र आती है। इसके अनुसार ही मनुष्य अपनी शिक्षा के लिए उचित समय का निर्णय करता है। यदि समय अनुकूल हो और सीखने के कार्य में रुचि हो तो काम आसान हो जाता है। देखने में आता है कि बच्चे शीघ्र सो जाते हैं। यदि उसके मातापिता चाहें कि उनके बच्चे रात को ही अपनी पढ़ाई करें तो यह बच्चों के अनुकूल न होकर रास्ते में रुकावट डालने का काम होगा। इसी प्रकार शारीरिक शिक्षा के विद्यार्थियों को सायंकाल के समय खेल के मैदान में रोका जाए और ग़लत समय पर उनको शारीरिक शिक्षा की क्रियाएं करने को कहा जाए तो उन विद्यार्थियों द्वारा अच्छे नतीजे प्राप्त नहीं किए जा सकेंगे क्योंकि प्रत्येक कार्य अपने उचित समय पर ही शोभा देता है और शिक्षा में सहायक होता है।

3. शारीरिक योग्यता (Physical Fitness) शारीरिक शिक्षा के क्षेत्र में शारीरिक क्रियाओं के प्रशिक्षण में शारीरिक योग्यता बहुत महत्त्वपूर्ण तत्त्व है। यदि व्यक्ति रोगी, सुस्त अथवा आलसी और और उसमें शारीरिक योग्यता की कमी हो तो हृदय, दिमाग़ और शारीरिक अंग किसी भी क्रिया को सीखने के लिए कठिनाई अनुभव करेंगे। इससे अधिक यदि मनुष्य किसी क्रिया को सीखने के लिए शारीरिक तौर पर ही स्वस्थ नहीं हो उसको अधिक कार्य करना पड़ेगा जिसके वह योग्य नहीं है। इस प्रकार वह प्रशिक्षण पूरा नहीं कर सकेगा। इसलिए शारीरिक योग्यता बहुत ही आवश्यक और महत्त्वपूर्ण है। उस मनुष्य के लिए भी और महत्त्वपूर्ण है जो व्यक्ति शारीरिक शिक्षा के क्षेत्र में प्रशिक्षण लेना चाहता है।

4. अभ्यास और दोहराना (Practice and Revision)-केवल मौखिक ज्ञान से प्रशिक्षण पूरा नही होता। इसलिए अभ्यास अति आवश्यक है। शारीरिक शिक्षा में अभ्यास का बहुत महत्त्व है। शारीरिक शिक्षा का अध्यापक अपने विद्यार्थियों को भिन्न-भिन्न तत्त्वों का ज्ञान देता है और नई-नई तकनीकें सिखाता है वहां उसे अभ्यास करने के लिए भी प्रेरणा देता है क्योंकि वह जानता है कि अभ्यास और दोहराई के बिना प्रशिक्षण का कार्य पूरा नहीं हो सकता है। अभ्यास और दोहराई द्वारा ही मनुष्य में आत्मविश्वास और कुशलता आती है, जो प्रशिक्षण में सहायक है।

5. व्यक्तिगत भिन्नताएं (Individual difference)—मनुष्यों, पक्षियों और सभी जीवधारी प्राणियों में सोचने, समझने और महसूस करने की भिन्नता होती है। इस प्रकार एक व्यक्ति दूसरे से भिन्न है। इसलिए एक व्यक्ति कम बुद्धिमान है तो दूसरा बुद्धि वाला है। इन भिन्नताओं का ही प्रशिक्षण पर बड़ा प्रभाव पड़ता है। एक विद्यार्थी किसी चीज़ को शीघ्र सीख लेता है, जब कि दूसरा उस क्रिया को अधिक समय में भी सीख नहीं पाता है। इसका आधारभूत कारण विद्यार्थियों की व्यक्तिगत भिन्नता है। शारीरिक शिक्षा में यह भिन्नता बहुत महत्त्वपूर्ण होती है। एक शारीरिक शिक्षा के अध्यापक को इन भिन्नताओं का विशेष ज्ञान होना अति आवश्यक है क्योंकि इन भिन्नताओं के ज्ञान के बिना विद्यार्थियों को कुछ भी सिखाना मुमकिन नहीं है।

6. उचित समय पर सुधार (Correction at Proper Time)-प्रशिक्षण का कार्य उस समय तक अधूरा रहता है जब तक सीखने वाले व्यक्ति को अपनी ग़लती का एहसास न हो जो वह किसी वस्तु को सीखने के लिए कर रहा है उस ग़लती को उचित समय पर सुधारा न जा सके क्योंकि बार-बार ग़लती करने पर उसको आदत पड़ जाती है और उसे सुधारा नहीं जा सकता है। इसलिए यह आवश्यक है कि किसी वस्तु को सीखने के लिए उसकी ग़लती और कमियों को उचित समय पर सुधार लेना चाहिए जिससे प्रशिक्षण में कोई कमी महसूस न हो।

7. आवश्यक ज्ञान (Adequate Knowledge) किसी वस्तु को सीखने के लिए जब तक उसके बारे में पूर्ण रूप से ज्ञान प्राप्त नहीं होता उस समय तक सीखने की क्रिया में पूर्णता प्राप्त नहीं होती। इस कमी से उससे बार-बार ग़लती होती है। इससे मनुष्य में हीन भावना आ जाती है। इसलिए सीखने वाले को उन वस्तुओं का पूर्ण ज्ञान प्राप्त कर लेना बहुत आवश्यक है जिसके बिना प्रशिक्षण अधूरा रह जाता है।

8. शिक्षा के लिए सुविधाएं (Facilities for learning)-प्रशिक्षण के कार्य में सुविधाओं की बड़ी भूमिका होती है। विशेष तौर पर शारीरिक शिक्षा के क्षेत्र में विद्यार्थियों की शारीरिक शिक्षा की क्रियाओं को सीखने में सहायता मिलती है। आज कल हॉकी के अन्तर्राष्ट्रीय मैच ऎसरोटर्क अथवा पोलीग्रास के मैदानों पर खेले जाने लगे हैं और भारतीय टीम को इन मैदानों की कमी के कारण कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। इसलिए भारत में भी इस प्रकार की सुविधाएं प्रदान की जाने लगी हैं जिससे भारतीय खिलाड़ियों का प्रशिक्षण ठीक ढंग से हो सकें।

9. संतोष (Satisfaction) व्यक्ति कोई भी चीज़ तब ही सीखना चाहता है ताकि सीखने से उसे प्रसन्नता प्राप्त हो और उसे संतोष की भावना मिले जो वस्तु मनुष्य के भीतर इस प्रकार की भावना जागृत करने के काबिल होती है उनको कोई भी सीखने वाला आसानी से सीख सकता है और प्रसन्नता प्राप्त करता है। शारीरिक शिक्षा के क्षेत्र में जिस प्रकार एक जिमनास्टिक के खिलाड़ी को अपने शरीर को लचकीला बनाकर उस तकनीक का प्रदर्शन लोगों के सामने करके अति प्रसन्नता होती है जो उसको अधिक सीखने के लिए प्रेरित करती है।

10. देखने-सुनने की सुविधाएँ (Audi-Visual Aids)-आज शिक्षा प्रणाली में देखने-सुनने की सुविधाओं को बहुत महत्त्व दिया जाने लगा है क्योंकि इन सुविधाओं द्वारा विद्यार्थियों के दिमाग पर अति शीघ्र प्रभाव पड़ता है उनको कठिन-कठिन क्रिया भी आसानी से सिखाई जा सकती है। शिक्षा के क्षेत्र में फिल्में, टैलीविज़न, रेडियो, चार्ट, नक्शे, मॉडल आदि आते हैं। जिनकी सहायता से प्रशिक्षण का काम और आसान हो गया है। शारीरिक शिक्षा की क्रियाओं के लिए देखने-सुनने की सुविधाओं का अपनाया जाना अति आवश्यक है। इनकी सहायता द्वारा संसार की बड़ी-से-बड़ी हस्ती को भी अंदाज में दिखाया जा सकता है जो आम लोगों के लिए उनको देख पाना अति कठिन होता है। इन सुविधाओं द्वारा शिक्षा के क्षेत्र में बहुत लाभ पहुंचा है।

11. पूर्ण विधि का महत्त्व (Importance of Whole Method) कोई भी कार्य सीखने के लिए पूर्ण विधि का प्रयोग आवश्यक है जिससे सिखाने वाले को कोई परेशानी नहीं आती है। यदि शारीरिक शिक्षा की किसी क्रिया को पूरी तरह प्रदर्शन करके दिखा दिया जाए तो विद्यार्थियों के सामने उनकी पूरी तस्वीर खिंच जाती है। इस प्रकार इस पूर्ण विधि से सीखना अधूरी विधि से सीखने से अधिक लाभकारी होता है। जब तक हाथी को पूर्ण रूप से नहीं दिखाया जाता है उसके भिन्न-भिन्न भागों को दिखाकर उसकी स्थिति को नहीं समझाया जा सकता है क्योंकि (Whole is somthing more than the parts.)

12. नेतृत्व की भावना (Sense of Leadership) यदि व्यक्ति के भीतर नेतृत्व की भावना हो उसकी यह विशेषता प्रशिक्षण में अधिक सहायक है क्योंकि उसके अन्दर लोगों को आकर्षित करने की भावना होती है। जिससे प्रत्येक वस्तु को शीघ्र सीख कर लोगों के सामने मिसाल बन कर नेतृत्व करना चाहता है। इस गुण के द्वारा ही लोगों से सहयोग और परस्पर प्रेम प्राप्त करके शिक्षा की आवश्यकता को पूरा कर सकता है।

13. आन्तरिक निरीक्षण (Introspection) आन्तरिक निरीक्षण द्वारा ही प्रशिक्षण में बहुत-सी कमियों का ज्ञान हो जाता है और इन कमियों को सुधारने के लिए प्रेरणा मिलती है और शिक्षा प्राप्त कर उसे संतोष प्राप्त होता है जिससे प्रशिक्षण अधिक रोचक और आसान क्रिया बन जाती है. क्योंकि प्रत्येक क्रिया के अच्छे और बुरे पहलू को आन्तरिक निरीक्षण द्वारा जांचा जाता है।

14. अधिक भार (Over Load)-व्यक्ति की समर्था और योग्यता के मुताबिक उस पर अधिक भार डालकर प्रशिक्षण के काम को तेज़ किया जा सकता है। यदि खिलाड़ी किसी तकनीक को विशेष तरीके से प्रदर्शन करने में सफल नहीं हो पा रहा तो उसके प्रशिक्षण के ढंग को बदल दिया जाता है जिससे उस पर अधिक बोझ पड़ जाता है। उसका शरीर अधिक भार सहने की आदत प्राप्त कर लेता है और इस प्रकार प्रशिक्षण आसान होकर उसकी मंज़िल तक पहुँचने में सहायता करता है। उपरोक्त दिए हुए तत्त्व शिक्षा के कार्य में बहुत ही सहायक होते हैं जिनके द्वारा ही मनुष्य की शिक्षा का प्रोग्राम पूरा होता है। यह तत्त्व प्रशिक्षण में बहुत सहायता प्रदान करते हैं।

PSEB 11th Class Physical Education Solutions Chapter 6 खेल मनोविज्ञान

Physical Education Guide for Class 11 PSEB खेल मनोविज्ञान Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

प्रश्न 1.
(1) सहयोग
(2) वजीफे
(3) प्रशांशा
(4) अच्छा वातावरण और खेल सहुलता। यह किस प्रेरणा के भाग हैं ?
उत्तर-
बाहरी प्रेरणा।

प्रश्न 2.
(1) शारीरिक प्रेरणा
(2) सामाजिक प्रेरणा
(3) भावनात्मक प्रेरणा
(4) कुदरती प्रेरणा, यह किस प्रेरणा का भाग हैं ?
उत्तर-
अन्दरूनी प्रेरणा।

प्रश्न 3.
खेल मनोविज्ञान कितने शब्दों का बना है ?
(a) तीन
(b) चार
(c) पांच
(d) आठ।
उत्तर-
(a) तीन।

PSEB 11th Class Physical Education Solutions Chapter 6 खेल मनोविज्ञान

प्रश्न 4.
प्रेरणा कितने प्रकार की होती है ?
(a) दो
(b) तीन
(c) चार
(d) छः।
उत्तर-
(a) दो।

प्रश्न 5.
खेल मनोविज्ञान की शाखाएं हैं ?
(a) सात
(b) छः
(c) पांच
(d) चार।
उत्तर-
(a) सात।

प्रश्न 6.
“खेलों और शारीरिक सरगर्मियों में हर स्तर पर निपुणता बढ़ाने के लिए मनोविज्ञान सिद्धान्तों का प्रयोग करना ही खेल मनोविज्ञान है।” यह किसका कथन है?
उत्तर-
ब्राउन और मैहोनी।

PSEB 11th Class Physical Education Solutions Chapter 6 खेल मनोविज्ञान

प्रश्न 7.
“मनोविज्ञान व्यक्ति के वातावरण के साथ जुड़ा उसकी क्रियाओं का अध्ययन करता है।” किसका कथन है ?
उत्तर-
बडबर्ड।

प्रश्न 8.
“मनोविज्ञान व्यक्ति के व्यवहार और मनुष्य सम्बन्धों का अध्ययन है”-किसका कथन है।”
उत्तर-
क्रो और क्रो।

प्रश्न 9.
“खेल मनोविज्ञान शारीरिक शिक्षा के लिए मनोविज्ञान की वह शाखा है जो मनुष्य की शारीरिक योग्यता को खेलकूद में भाग लेना बढ़ाती है।” किसका कथन है ?
उत्तर-
के० एस० बन०।

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प्रश्न 10.
मनोविज्ञान का अर्थ लिखो।
उत्तर-
व्यक्ति के व्यवहार, उसकी प्रतिक्रियां, तरीके और सीखने के तरीकों के अध्ययन को मनोविज्ञान कहते हैं।

प्रश्न 11.
क्रो एंड क्रो की मनोविज्ञान की परिभाषा लिखो।
उत्तर-
“मनोविज्ञान व्यक्ति के व्यवहार और मानव सम्बन्ध का अध्ययन है।”

प्रश्न 12.
बडबर्ड की परिभाषा लिखो ?
उत्तर-
“मनोविज्ञान व्यक्ति के वातावरण के साथ जुड़ी उस क्रिया का अध्ययन है।”

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प्रश्न 13.
“खेलों और शारीरिक सरगर्मियों में हर स्तर पर निपुणता बढ़ाने के लिए मनोविज्ञान सिद्धान्तों का प्रयोग करना ही खेल मनोविज्ञान है।”, यह किसका कथन है।
उत्तर-
ब्राउन और मैहोनी।

प्रश्न 14.
“खेल मनोविज्ञान खेलों के मानसिक आधार, कार्य और प्रभाव का अध्ययन है।” यह किसका कथन है ?
उत्तर-
खेल मनोविज्ञान का यूरोपियन संघ।

अति छोटे उत्तरों वाले प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
खेल मनोविज्ञान क्या है ?
उत्तर-
खेल मनोविज्ञान शिक्षा और प्रयोगी क्रिया एथलेटिकस शारीरिक शिक्षा, मनोरंजन और कसरत के साथ सम्बन्धित लोगों के व्यवहार में परिवर्तन ले आती है।।

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प्रश्न 2.
मनोविज्ञान का अर्थ लिखो।
उत्तर-
व्यक्ति का व्यवहार उसकी प्रतिक्रियाएं तरीके और सीखने के तरीके के अध्ययन को मनोविज्ञान कहते हैं।

प्रश्न 3.
मि० के० एम० बर्नस की परिभाषा लिखो।
उत्तर-
“खेल मनोविज्ञान शारीरिक शिक्षा के लिए मनोविज्ञान की वह शाखा है, जो व्यक्ति शारीरिक योग्यता को बढ़ावा देती है खेल-कूद में भाग लेने से।”

प्रश्न 4.
प्रेरणा कितने प्रकार की होती है ?
उत्तर-
प्रेरणा दो तरह की होती है :

  1. अन्दरूनी प्रेरणा
  2. बाहरी प्रेरणा।

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प्रश्न 5.
करूक और स्टेन के अनुसार प्रेरणा की परिभाषा लिखें।
उत्तर-
“प्रेरणा को इस प्रकार परिभाषित किया जा सकता है-जिन हालतों द्वारा हमें कार्य करने के लिए दिशा और शक्ति मिलती है। उसे प्रेरणा कहते हैं।”

प्रश्न 6.
मनोविज्ञान की कोई चार शाखाओं के नाम लिखो।
उत्तर-

  1. खेल संगठन मनोविज्ञान
  2. विकसित मनोविज्ञान
  3. स्वास्थ्य मनोविज्ञान
  4. शिक्षा मनोविज्ञान।

छोटे उत्तरों वाले प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
खेल मनोविज्ञान का अर्थ लिखो।
उत्तर-
‘खेल मनोविज्ञान’ शब्द तीन शब्दों का मेल है। “खेल+मनो+विज्ञान खेल से भाव है।” खेल और खिलाड़ी, मनो तो भाव ‘व्यवहार’ मानसिक प्रक्रिया और विज्ञान से भाव ‘अध्ययन करना’ भाव खेल और खिलाड़ियों के व्यवहार का अध्ययन करना है।

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प्रश्न 2.
आर० एन० सिंगर के अनुसार, “मनोविज्ञान की परिभाषा लिखो।”
उत्तर-
“खेल मनोविज्ञान शिक्षा और प्रयोगी क्रियाओं द्वारा एथलैटिक शारीरिक शिक्षा, मनोरंजन और व्यायाम से सम्बन्धित लोगों के व्यवहार में परिवर्तन लाती है।”

प्रश्न 3.
मनोविज्ञान के कोई दो महत्त्व लिखें।
उत्तर-
खेल मनोविज्ञान रीढ़ की हड्डी की तरह खिलाड़ी की प्रफोरमैंस को सफल बनाने के लिए दिशा निर्देश देता है। खेल मनोविज्ञान का सम्बन्ध बाइउमैकनिकस, किनज़ियालोजी, स्पोर्टस, फिज़िआलोजी स्पोटर्स मैडिसन विषयों के साथ है, जिसके साथ खिलाड़ियों के खेल कौशल और खेल व्यवहार में शोध करके खिलाड़ी की शारीरिक और मानसिक तन्दरुस्ती को बढ़ाया जाता है।

प्रश्न 4.
प्रेरणा की किस्में लिखो।
उत्तर-
(1) अन्दरूनी प्रेरणा या कुदरती प्रेरणा
(2) बाहरी या बनावटी प्रेरणा

1. अन्दरूनी या कुदरती प्रेरणा—

  • शारीरिक प्रेरणा
  • सामाजिक प्रेरणा
  • भावनात्मक प्रेरणा
  • कुदरती प्रेरणा।

2. बाहरी या बनावटी प्रेरणा।

  • ईनाम
  • सज़ा
  • मुकाबले
  • इम्तिहान

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बड़े उत्तर वाला प्रश्न (Long Answer Type Question)

प्रश्न-
प्रेरणा का अर्थ, परिभाषा तथा महत्त्व का वर्णन करें।
उत्तर-
प्रेरणा का अर्थ (Meaning of Motivation)-प्रेरणा का अर्थ विद्यार्थियों की सीखने की क्रियाओं में रुचि पैदा करना और उनको उत्साह देना है। प्रेरणा से विद्यार्थी अपनी पढ़ाई में रूचि लेता है। खिलाड़ी खेलने में रुचि लेता है। मज़दूर फ़ैक्टरी में अपने काम में रुचि लेता है और किसान अपने खेतों के कार्यों में रुचि लेता है। सच तो यह है कि प्रेरणा में इस तरह की चल शक्ति (Motive Force) है। यह एक ऐसी शक्ति है जो मनुष्य को काम करने के लिए उत्साहित करती है। इस शक्ति के द्वारा मनुष्य अपनी मौलिक आवश्यकताओं को पूरा करने का लगातार प्रयास करता है और अन्त में उसकी पूर्ति करने में सफलता प्राप्त करता है।

परिभाषा (Definition)—
करूक और स्टेन के अनुसार, “प्रेरणा को इस प्रकार परिभाषित किया जा सकता है। जिन हालतों द्वारा हमें कार्य करने के लिए दिशा और शक्ति मिलती है। उसे प्रेरणा कहते हैं।”
क्रो और क्रो के अनुसार, “प्रेरणा सीखने में रुचि पैदा करने के साथ सम्बन्धित है और यह सीखने के लिए ज़रूरी है।”

कैली के अनुसार, “सीखने की प्रक्रिया की प्रभावशाली व्यवस्था में प्रेरणा एक केन्द्रीय तत्व है। हर प्रकार सीखने में कोई-न-कोई प्रेरणा अवश्य होती है।”
महत्त्व (Importance)-खेल निपुणता में प्रेरणा का बहुत ही आवश्यक तथा महत्त्वपूर्ण स्थान माना जा सकता है। खिलाड़ी जितनी देर तक प्रेरित नहीं होता तब तक वह कुछ सीखने के योग्य नहीं हो सकता तथा न ही उसमें कुछ सीखने के लिए रुचि ही पैदा होती है। खेलों के प्रति बच्चों में प्रेम पैदा करने के लिए प्रेरणा बहुत मूल्य योगदान देती है। यह खिलाड़ियों के अन्दर कई प्रकार की भावनाओं को जाग्रित करती है। इन मंजिलों अथवा आदर्शों की प्राप्ति के .. लिये खिलाड़ी तरह-तरह की मुश्किलों तथा कठिनाईयों को बर्दाशत करता है।

हाँसला, बहादुरी, निडरता तथा स्वयं कुर्बान होना आदि के गुण व्यक्ति अथवा खिलाड़ी के अन्दर किसी न किसी विशेष प्रेरणा द्वारा ही आते हैं तथा उनके अन्दर छोटे-बड़े, ऊँच-नीच, अमीर-गरीब आदि किसी किस्म का भेदभाव पैदा नहीं होता। मन की शान्ति तथा उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए खिलाड़ी प्रेरणा के इन स्त्रोतों का भरपूर उपयोग करता है। इस तरह हम कह सकते हैं कि खेल निपुणता के लिए प्रेरणा की भूमिका बहुत महत्त्वपूर्ण, आवश्यक तथा लाभदायक है।

बॉस्केट बाल (Basket Ball) Game Rules – PSEB 11th Class Physical Education

Punjab State Board PSEB 11th Class Physical Education Book Solutions बॉस्केट बाल (Basket Ball) Game Rules.

बॉस्केट बाल (Basket Ball) Game Rules – PSEB 11th Class Physical Education

याद रखने योग्य बातें (TIPS TO REMEMBER)

  1. बॉस्केट बाल कोर्ट की लम्बाई और चौड़ाई = 28 × 15 मीटर
  2. बॉस्केट बाल टीम के खिलाड़ी = 12 खिलाड़ी खेलते हैं, सात बदलवें खिलाड़ी
  3. कोर्ट के केन्द्रीय चक्र का अर्धव्यास = 1.80 मीटर
  4. रेखाओं की चौड़ाई = 5 मीटर
  5. बोर्ड की मोटाई = 3 सैं० मी०
  6. बोर्ड की ज़मीन से निचले भाग की ऊंचाई = 2.90 मीटर
  7. बोर्ड का आकार = 180 × 120 मीटर
  8. बाल का घेरा = 75 से 78 सै० मी०
  9. बाल का भार = 600 से 650 ग्राम
  10. बोर्ड के आयात का साइज़ = 49 × 45 ग्राम
  11. पोलों की दूरी = 2 मीटर
  12. खेल का समय = 40 मिनट के चार क्वाटर 10-2-10 (10) 10-2-10
  13. बास्केट बाल के अधिकारी = 1 रेफरी, 2 अम्पायर, 1-स्कोरर, 1-सहायक स्कोरर, 1 समय कीपर, 1 सोर्ट क्लॉक ऑपरेटर
  14. मैच खेलने वाले खिलाड़ियों की संख्या = 05 खिलाड़ी
  15. वैकल्पिक खिलाडी = 07 खिलाड़ी
  16. बॉल की परिधि (पुरुषों के लिए) (महिलाओं के लिए) = 74.9 सेंटीमीटर से 78 सेंटीमीटर 72.4 सेंटीमीटर से 37.7 सेंटीमीटर
  17. बाल का वजन (पुरुषों के लिए) (महिलाओं के लिए) = 567 ग्राम से 650 ग्राम 510 ग्राम से 567 ग्राम
  18. टाइम आऊट (30 सैकिण्ड) = पहले हाफ में 2 टाइम आऊट, दूसरे हाफ में 3 टाइम आऊट, अतिरिक्ति समय में 1 टाईम आऊट

बॉस्केट बाल (Basket Ball) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education

बास्केट बाल खेल की संक्षेप रूप-रेखा (Brief outline of the Basket-Ball)

  1. बॉस्केट बाल का मैच दो टीमों के मध्य होता है। प्रत्येक टीम में पाँच-पाँच खिलाड़ी होते हैं। इसके अतिरिक्त सात अतिरिक्त खिलाड़ी होते हैं जिन्हें हम बदलवें खिलाड़ी (Substitutes) कहते हैं।
  2. प्रत्येक टीम चाहती है कि वह विरोधी टीम की बॉस्केट में गेंद डाल दे तथा विरोधी टीम को न ही गेंद मिले और न ही प्वाईंट।
  3. बॉस्केट बाल खेल का मैदान आयताकार होता है। मैदान की लम्बाई 28 मीटर तथा चौड़ाई 15 मीटर होती है।
  4. टीम के प्रत्येक खिलाड़ी की बनियान के सामने और पीछे नम्बर लगे होते हैं। एक टीम के दो खिलाड़ी एक ही नम्बर नहीं डाल सकते।
  5. जब तक मध्यान्तर (Interval) न हो या अधिकारी आज्ञा न दे कोई भी खिलाड़ी मैदान से बाहर नहीं जा सकता।
  6. खेल 10 – 2 – 10, 10, 10 – 2- 10 की चार अवधियों की होती है तथा दो अवधियों के पश्चात् 10 मिनट का विश्राम होता है।
  7. बॉस्केट बाल के खेल में खिलाड़ियों को जितनी बार चाहे बदला जा सकता है।
  8. जब कोई टीम 4 फ़ाऊल कर जाती है तो विरोधी टीम को 2 या 3 फ्री-थ्रोज़ हालात अनुसार दी जाती हैं।
  9. किसी टीम का एक खिलाड़ी यदि 5 फ़ाऊल कर दे तो उसे मैच में से बाहर निकाल दिया जाता है।
  10. खेल के मध्य किसी समय भी कोई खिलाड़ी बदला जा सकता है परन्तु शर्त यह है कि थ्रो उस टीम की हो।

बॉस्केट बाल (Basket Ball) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education

PSEB 11th Class Physical Education Guide बॉस्केट बाल (Basket Ball) Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
बॉस्कट बाल कोर्ट की लम्बाई लिखें।
उत्तर-
28 मीटर।

प्रश्न 2.
बॉस्कट बाल कोर्ट की चौड़ाई लिखें।
उत्तर-
15 मीटर।

प्रश्न 3.
इस मैच में बदले जाने वाले खिलाड़ियों की संख्या लिखें।
उत्तर-
7 खिलाड़ी।

बॉस्केट बाल (Basket Ball) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education

प्रश्न 4.
बॉस्कटबाल का घेरा पुरुषों के लिये कितना होता है ?
उत्तर-
74.9 सैं.मी. से 78 सें. मी.।

प्रश्न 5.
बॉस्कटबाल के मैच में कितने अधिकारी होते हैं ?
उत्तर-
रैफरी = 1, अम्पायर = 2, स्कोरर = 1, सहायक स्कोरर = 1, टाइम कीपर = 1, सोर्ट ब्लॉक आपरेटर -1.

प्रश्न 6.
बॉस्कट बाल खेल का समय लिखें।
उत्तर-
40 मिनट के चार क्वाटर 10-2-10 (10) 10-2-10.

बॉस्केट बाल (Basket Ball) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education

प्रश्न 7.
बॉस्कट बाल खेल के कोई तीन फाऊल लिखें।
उत्तर-

  1. अधिकारी को अपमानजनक ढंग से सम्बोधित करना या मिलना।
  2. असभ्य व्यवहार करना।
  3. विरोधी खिलाड़ी को तंग करना या उसकी आंखों के आगे हाथ करके उसे देखने में रुकावट डालना।

Physical Education Guide for Class 11 PSEB बॉस्केट बाल (Basket Ball) Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
बॉस्केट बाल का संक्षिप्त परिचय दीजिए। रैस्ट्रिक्टेड एरिया से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
खेल-बॉस्केट बाल खेल दो टीमों के बीच खेला जाता है। प्रत्येक टीम में पाँच-पाँच खिलाड़ी होते हैं। प्रत्येक टीम का यह लक्ष्य होता है कि वह विरोधी टीम की बॉस्केट में गेंद फेंक दे, न विरोधी टीम के हाथ गेंद लगने दे और न ही अंक प्राप्त करने दे।

कोर्ट-बॉस्केट बाल कोर्ट 28 मीटर लम्बा और 15 मीटर चौड़ा होगा। यह आयताकार और ठोस धरातल वाला होगा। यदि खेल हाल कमरे में हो तो हाल की छत की ऊंचाई कम-से-कम 7 मीटर होनी चाहिए। सम्बन्धित अधिकारी दो मीटर की लम्बाई और दो मीटर चौड़ाई की सीमा के अन्दर परिवर्तन (यह परिवर्तन एक-दूसरे पर निर्भर होते हैं) की आज्ञा दे सकता है। फिर भी फीबा (FIBA-International Amateur Basketball Federation) की बड़ी सरकारी प्रतियोगिताओं के लिए निर्णित लम्बाई-चौड़ाई के अनुसार नई कोर्ट (Court) बनाई जाएगी। कोर्ट में पर्याप्त मात्रा में एक-सा प्रकाश रहना चाहिए। – सीमा-रेखाएं-कोर्ट की परिधि स्पष्ट रेखाओं द्वारा अंकित की जाएगी जो प्रत्येक स्थान से बाधाओं से कम-से- . कम 2 मीटर की दूरी पर होगी। इन रेखाओं और दर्शकों के बीच दूरी कम-से-कम 3 मीटर की होगी।

केन्द्रीय वृत्त-कोर्ट के मध्य में एक वृत्त अंकित किया जाएगा। उसका अर्द्धव्यास 1.80 मीटर होगा। इसे केन्द्रीय वृत्त कहा जाता है।
केन्द्रीय रेखा-अन्त रेखाओं के समानान्तर केन्द्रीय रेखा खींची जाएगी जो कोर्ट को आगे वाली कोर्ट और पीछे वाली कोर्ट में विभक्त करेगी। यह रेखा 15 सम बाहर दोनों तरफ होगी।
बॉस्केट बाल (Basket Ball) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education 1
तीन अंक मैदानी गोल-क्षेत्र-एक नई मार्किंग “तीन अंक मैदानी गोल क्षेत्र” की जाती है। यह दो सीमित चा होती हैं जिनमें से प्रत्येक का बाहरी किनारों से अर्द्धव्यास 6.25 मीटर होता है। केन्द्र फर्श पर बिन्दु होता है, टोकरी के केन्द्र के ठीक लम्ब रूप होता है और किनारे वाली लकीरों पर समाप्त होती हुई पार्श्व रेखाओं के समानान्तर रहती है। केन्द्र अन्तिम लकीर के केन्द्रीय बिन्दु से 1.20 मीटर 0.225 मीटर + 0.10 मीटर + 1.525 मीटर होता है।
नोट-यह चाप केवल अर्द्ध वृत्त तक ही है और इसके पश्चात् पार्श्व रेखा के समानान्तर है (देखो चित्र)

फ्री-थो रेखाएं-प्रत्येक अन्त-रेखा के समानान्तर एक फ्री-थ्रो रेखा खींची जाएगी जो अन्त-रेखा के भीतर किनारे से 5.80 मीटर दूर होगी। इसकी लम्बाई 3.60 मीटर होगी तथा केन्द्र बिन्दु दोनों अन्त-रेखाओं के मध्य बिन्दुओं को जोड़ने वाली रेखा पर होगा।

प्रतिबद्ध क्षेत्र (रिस्ट्रिकटेड एरिया) तथा फ्री-थो रेखाएं-ये स्थान जिन पर परिधि अन्त-रेखाओं, फ्री-थ्रो रेखाओं से निकलने वाली रेखाओं से निर्धारित होती है, उन्हें प्रतिबद्ध क्षेत्र कहते हैं। सिरों की ओर फ्री-थ्रो रेखाएं इसके अर्द्धव्यास को अंकित करती हैं। इन रेखाओं का बाहरी किनारा अन्त-रेखाओं के मध्य बिन्दु से 3 मीटर होगा और फ्रीथ्रो रेखाओं के सिरों पर आकर समाप्त हो जाएगा।
बॉस्केट बाल (Basket Ball) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education 2
फ्री-थ्रो रेखाएं वे प्रतिबद्ध स्थान हैं जो कोर्ट में 1.80 मीटर के अर्द्धव्यास वाले अर्द्ध-वृत्त में फैले होते हैं। . पहली रेखा सिरे वाली रेखा के भीतरी किनारे में 1.75 मीटर है। पहली गली के स्थान से आगे एक उदासीन क्षेत्र (Neutral Zone) होगा जिसकी चौड़ाई 30 सैंटीमीटर होगी। दूसरी गली का स्थान 85 सैंटीमीटर चौड़ा होगा और उदासीन क्षेत्र के साथ लगता होगा। तीसरी गली का स्थान दूसरी गली के साथ लगता है और इसकी चौड़ाई 85 सेंटीमीटर होगी। जहां तक टूटे हुए अर्द्ध वृत्त का सम्बन्ध है, प्रत्येक अंकित क्षेत्र की लम्बाई 35 सैंटीमीटर होगी और दोनों भागों के बीच की दूरी 40 सम होगी।

पिछले बोर्ड का आकार, पदार्थ और स्थिति (Back Board-Size, Material and Position)-पीछे वाले बोर्ड कठोर लकड़ी के बनाए जाएंगे या फाइबर ग्लास के भी हो सकते हैं जिनकी मोटाई 3 सम होगी। ये टेढ़े रुख 1.80 मीटर तथा खड़े रुख में 1.20 मीटर होंगे। यहां रिंग लगता है, उसके पीछे बोर्ड पर 59 सैंटीमीटर × 45 सेंटीमीटर की आयत बनाई जाती है। किनारा रिंग की सतह के बराबर होगा। बोर्ड की सीमाएं 5 सैंटीमीटर चौड़ी रेखाओं द्वारा अंकित की जाएंगी।

यह बोर्ड के रंग के उलट वाले रंग की होगी। बोर्ड का निचला किनारा ज़मीन से 2.75 मीटर ऊंचा होगा। पीछे बोर्ड के आधार स्तम्भ सीमा के बाहरी क्षेत्र में अन्त-रेखाओं के बाह्य किनारे से कम-से-कम 1.00 मीटर दूर गाड़े जाएंगे।

बॉस्केट-बॉस्केट छल्लों और जाली की बनी होती है। बॉस्केट नारंगी रंग वाले अन्दर से 45 सैंटीमीटर व्यास के लोहे के घेरे होते हैं। घेरे की धातु 20 मिलीमीटर मोटी होगी। जाल सफ़ेद रस्सी का बना होता है जोकि छल्लों से लटकता है। यह छल्ले इस प्रकार के बने होते हैं कि जब गेंद इनसे गुज़रती है, वह इसे थोड़ी देर के लिए रोक लेते हैं।
बॉस्केट बाल (Basket Ball) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education 3
गेंद-गेंद गोलाकार होगी। यह चमड़े की बनी होगी और इसके अन्दर का ब्लैडर रबड़ का होगा। इसकी परिधि 75 सम से 78 सम होगी। इसका भार 600 ग्राम से 650 ग्राम होगा।

अब नियम यह आज्ञा देता है कि प्रयुक्त गेंद भी प्रयोग की जा सकती है। फिर भी गेंद के विषय में रैफरी ने सहमति प्रकट की हो। रैफरी प्रयुक्त गेंद चुन सकता है। जब गेंद एक बार चुन ली गई हो तो कोई भी टीम खेल की गेंद का प्रयोग नहीं करती। यदि उचित पुरानी गेंद न मिल सकती हो तो नई गेंद प्रयुक्त की जा सकती है।

बॉस्केट बॉल का इतिहास
(History of Basket Ball)
बॉस्केट बॉल एक उत्तेजना पूर्ण खेल है तथा इसका मूल स्थान अमेरिका है। इसका आविष्कार “अन्तर्राष्ट्रीय YMCA” के शिक्षक डॉ. स्मिथ (Dr. Smith) ने सन् 1891 में स्प्रिंगफील्ड मैसाशसटस (Springfiled Massa Chussets U.S.A.) में किया था। इसके नियम बाद में संशोधित (Revised) किए गए, जिनके अन्तर्गत ‘गोल’ (Goals) को कोर्ट (Court) के ठीक बाहर रखा गया, शारीरिक सम्पर्क (Body Contact) को स्वीकृति नहीं दी गई तथा गेंद के साथ-साथ दौड़ने को ‘फाऊल’ (Foul) घोषित कर दिया गया। अनुभवहीन खिलाड़ियों को खेल में शामिल करने के प्रयोजन से खेल को अधिक सरल बनाया गया। डॉ. स्मिथ ने खेल क्षेत्र के दोनों ओर दो बाक्स (Reach Baskets) दोनों ओर एक-एक, एक निश्चित ऊंचाई पर टांग दिए तथा खिलाड़ियों को स्कोर के लिए गेंद उन बाक्सों में फेंकनी पड़ती थी।
बॉस्केट बाल (Basket Ball) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education 4
अब गेंद के बाक्स से वापस आने की समस्या थी इसलिए ‘बाक्स’ के स्थान पर आज की तरह के ‘गोल’ प्रयोग किए गए। इस प्रकार यह खेल अमेरिका में शुरू हुआ तथा इसके नियमों को सन् 1934 में मानक (Standardised) रूप दिया गया।

बॉस्केट बाल (Basket Ball) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education

प्रश्न 2.
बॉस्केट बाल खेल में तकनीकी उपकरण (सामान) क्या-क्या होते हैं ?
उत्तर-
तकनीकी उपकरण (सामान)
(क)

  1. खेल की घड़ी (गेम-वाच)
  2. टाइम-आऊट के लिए घड़ी (टाइम-आऊट वाच)-एक
  3. स्टाप घड़ियां (स्टाप वाचिज़)-(क) टाइम कीपर के पास कम-से-कम दो घड़ियां होनी चाहिएं और खेल घड़ी मेज़ पर रखी जाएगी।

बॉस्केट बाल (Basket Ball) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education 5
(ख) स्कोर-शीट
(ग) कम-से-कम 20 सम × 10 सम आकार के एक से पांच तक अंक-एक से चार तक के काले रंग के अंक तथा पांच के लिए लाल रंग के अंक। .
(घ) 24 सैकिंड नियम के प्रबन्ध के लिए एक योग्य यन्त्र जिसको खिलाड़ी और दर्शक देख सकें।
(ङ) सब को दिखाई देने वाला एक खेल अंक बोर्ड स्कोर बोर्ड होगा जिस पर दोनों टीमों के खेल अंक लिखे जाएंगे।
(च) स्कोरर के पास दो लाल झण्डे दोनों टीमों के फाऊल मार्कर के हाथ में होंगे। इसे आठ फाऊल एक अवधि में होने की अवस्था में इस टीम की तरफ लिया जाएगा तथा खिलाड़ियों, कोच साहिब और खेल अधिकारियों को दिखाई दे सकेगा।
टीमें-प्रत्येक टीम में दस खिलाड़ी होंगे और सात खिलाड़ी प्रतिस्थापन के लिए होते हैं। प्रत्येक खिलाड़ी की कमीज़ के सामने और पिछली ओर कमीज़ के रंग से अलग नम्बर लगे होते हैं। यह नम्बर 4 से 15 तक होते हैं।

एक टीम के सभी खिलाड़ी ऐसी कमीजें पहनेंगे जिनका रंग आगे और पीछे की ओर एक जैसा होगा।
खिलाड़ी द्वारा कोर्ट छोड़ना-जब तक मध्यान्तर (Interval) न हो जाए अथवा नियम स्वीकृति न दे कोई भी खिलाड़ी बिना अधिकारियों की आज्ञा के कोर्ट छोड़ कर बाहर नहीं जा सकता।

कप्तान-इसके अधिकार और कर्तव्य-केवल कप्तान की सूचना लेने के लिए या किसी तरह की व्याख्या के लिए अधिकारी से बातचीत कर सकता है। खिलाड़ी बदलने का अधिकार कोच या कोच के स्थान पर काम कर रहे अधिकारी का होता है।

खेल की अवधि-खेल 10-2-10-10-2-10 मिनट की चार अवधियों में खेला जाएगा। इन दोनों अवधियों में 10 मिनट का अवकाश होगा।
खेल का आरम्भ-खेल का आरम्भ रैफरी द्वारा किया जाएगा। वह दोनों विरोधियों के बीच केन्द्र में गेंद को ऊपर उछालेगा। खेल उस समय तक आरम्भ नहीं होगा जब तक एक टीम पांच खिलाड़ियों सहित मैदान में खेलने के लिए प्रस्तुत न हो जाए। यदि खेल आरम्भ होने के समय तक कोई अनुपस्थित टीम मैदान में नहीं पहुंचती तो उसकी विरोधी टीम को वॉक ओवर मिल जाता है, अर्थात् उसे बिना खेल के ही विजयी घोषित कर दिया जाता है।

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प्रश्न 3.
जम्प बाल और जम्प बाल के समय फाऊल बताएं।
उत्तर-
जम्प बाल-जम्प बाल के समय दो कूदने वाले अर्द्ध-वृत्त के अन्दर पांव रख कर अपनी-अपनी बॉस्केट के समीप खड़े होंगे तथा उनका एक पांव बीच में पड़ी रेखा के केन्द्र के पास होगा। उस समय कोई अधिकारी गेंद को इतनी ऊंचाई से ऊपर फैंकेगा कि उनमें से कोई खिलाड़ी उछल कर गेंद न पकड़ सके और गेंद उन दोनों के मध्य में गिरे। कोई खिलाड़ी गेंद को उस समय तक थपथपाने का यत्न नहीं करेगा जब तक उसने अधिकतम ऊंचाई प्राप्त न कर ली हो। कूदने वाला खिलाड़ी केवल दो बार ही गेंद को थपथपा सकता है।
जिस समय जम्प बाल (Jump Ball) में नियम तोड़ा जाता है इसके दण्ड-स्वरूप पार्श्व रेखा (Side line) पर से थ्रो-इन (Throw-in) दी जाती है। यह अपने विरोधियों के लिए केन्द्र बिन्दु होता है।

कोच (Coach) खेल के आरम्भ होने के निश्चित समय से लगभग 20 मिनट पहले कोच (Coach) फलांकन कर्ता (Scorer) को उन खिलाड़ियों के नाम और गिनती जिन्होंने खेल में खेलना है, के अतिरिक्त कप्तान, कोच और सहायक कोच के नाम देगा।

खेल के आरम्भ होने से स्कोर शीट (Score-Sheet) पर यह हस्ताक्षर करके खिलाड़ियों के नाम और गिनती से अपनी सहमति प्रकट करेंगे और उसी समय पांच खिलाड़ियों के नाम बताएंगे जिन्होंने खेल आरम्भ करना है।
ए (A) टीम का कोच यह जानकारी पहले देगा।

नोट-ऐसा न करने पर और जिससे खेल आरम्भ होने में देरी हो, कोच पर तकनीकी फाऊल (Technical Foul) का दोष लग सकता है और खेल दो फ्री-थ्रो (Free Throws) करने के पश्चात् आरम्भ होगा।

गोल-जब गेंद बास्केट में ऊपर से जाकर रुक जाए या निकल जाए तब गोल बन जाता है। रेखा के क्षेत्र से किए गए गोल के दो अंक तथा फ्री-थ्रो द्वारा किए गए गोल का एक अंक होता है। बिन्दु रेखा से परे फील्ड गोल लगाने के लिए प्रयत्न करने के तीन अंक दिए जाएंगे।

आक्रमण के समय बाधा उत्पन्न करना-जिस समय गेंद बॉस्केट के समतल के ऊपर से नीचे की ओर आती है तो कोई खिलाड़ी अपने सीमित क्षेत्र में न तो गेंद को छू सकता है और न ही वह इसे पकड़ सकता है चाहे वह गोल बनाने की कोशिश में हो।

प्रतिरक्षा के समय गेंद में बाधा-जब विरोधी खिलाड़ी गोल करने के लिए गेंद फेंकता है तथा सारी गेंद बॉस्केट के घेरे की सतह के ऊपर हो, उस समय जैसे ही गेंद नीचे आना शुरू करे, प्रतिरक्षा खिलाड़ी उसको छूने की बिल्कुल कोशिश नहीं करेगा। उल्लंघन होने पर गेंद मृत (Dead) हो जाती है। यदि फ्री-थ्रो के समय उल्लंघन हो तो फेंकने वाले के पक्ष में एक अंक यदि गोल की चेष्टा के समय हो तो फेंकने वाले के पक्ष में जोड़ दिए जाते हैं।

गोल के पश्चात् गेंद खेल में-गोल बनाने के 5 सैकिंड बाद विरोधी टीम का कोई खिलाड़ी, कोर्ट के अन्त में, परिधि से बाहर किसी भी बिन्दु से, जहां गोल बना था, गेंद खेल में डालेगा।

पिवटिंग
(Pivoting)
जब गेंद पकड़े हुए कोई खिलाड़ी एक ही पैर से एक बार या अधिक बार किसी दिशा में बढ़ता (घूमता) है तो इसे “पिवटिंग” (Pivoting) कहते हैं। खिलाड़ी के दूसरे पैर को जो जमीन के साथ सम्पर्क में रहता है—’पिवट’ कहा जाता है।
बॉस्केट बॉल में पिवटिंग निम्नलिखित तीन प्रकार की होती है—
1. स्थित पिवट (Stationary Pivot)—इस पिवट में—

  • एक खिलाड़ी दोनों पैरों को ज़मीन पर टिकाए हुए गेंद प्राप्त करता है।
  • यह रिबाउण्ड (Rebound) लेता है।
  • हवा में पास (Pass) देता है तथा दोनों पैरों को एक साथ ही भूमि पर टिकाते हुए वापस आता है। चाहे पैर एक-दूसरे के समान्तर हैं अथवा एक पैर दूसरे के सामने है। खिलाड़ी किसी भी पैर का प्रयोग करते हुए पिवट (रिवर्स अथवा रेयर पिवट) ले सकता है। यदि कोई खिलाड़ी ड्रिबलिंग (Dribbling) कर रहा है अर्थात् वह गतिशील है तो वह गेंद प्राप्त करके एक पैर को दूसरे पैर के सामने रखते हुए तथा सामने वाले पैर को किसी भी दिशा में गतिशील करते हुए स्ट्राइड स्टॉप (Stride Stop) में आ जाता है। इस पिवट का प्रयोग विपक्ष के खिलाड़ी से दूर जाने तथा अपने ही किसी साथी को खेल में लाने के लिए किया जाता है।

सामने या भीतरी पिवट
(Front or Inside Pivot)
इसकी तकनीक वही है जो रेयर पिवट (Rare Pivot) की है किन्तु इसमें अपने सामने के विपक्षी खिलाड़ी की तरफ टर्न (Turn) लिया जाता है अर्थात् गेंद पकड़े हुए खिलाड़ी एक पैर को आगे रख कर खड़ा होता है तथा दूरवर्ती पैर को विपक्षी खिलाड़ी के लगभग निकट रखते हुए अपने सामने के पैर पर पिवट लेता है।

अधिकारिक संकेत
(Official Signals)

  1. जब स्वतन्त्र थ्रो की संख्या का संकेत देता हो तो उंगलियों को अपने चेहरे की ऊंचाई पर रख कर कलाई से नीचे की ओर बार-बार गति दी जाती है।
  2. टाइम चार्ज (Charged Time Out) के लिए अधिकारी अपनी हथेली पर उंगलियों से T का चिह्न बनाता
  3. जम्प बॉल (Jump Ball) के संकेत के लिए अधिकारी अपने दोनों अंगूठे ऊपर करते हैं।
  4. त्रुटिपूर्ण ड्रिबल (Illegal dribble) के लिए वह Patting motion देता है।
  5. तीन सैकेण्ड के नियम (Three second rule) का उल्लंघन होने पर अधिकारी अपनी तीन उंगलियों (अंगूठा सहित) को साइड की तरफ करके संकेत करता है।
  6. किसी क्षेपण को निरस्त (Cancellation of a throw) करने के लिए अधिकारी अपने बाजुओं को अपने शरीर पर स्थानान्तरित करता है।
  7. स्टैपिंग (Stepping or travelling) के संकेत के लिए अधिकारी अपनी मुट्ठी घुमाता है।
  8. व्यक्तिगत फाऊल के लिए रैफरी बन्द मुट्ठी (Close fist) द्वारा संकेत करता है।
  9. व्यक्तिगत फाऊल की स्थिति में. यदि कोई स्वतन्त्र क्षेपण न देता हो तो अधिकारी अपनी उंगली को साइड रेखा की तरफ कर देता है।
  10. किसी तकनीकी फाऊल का संकेत देने के लिए अधिकारी खुली हथेली से ‘T’ बनाता है तथा उसे दूसरी हथेली पर दिखाता है।
  11. दोहरे फाऊल के संकेत के लिए वह अपनी बन्द मुट्टियों को अपने सिर के ऊपर हिलाता है।
  12. जानबूझ कर किए गए फाऊल के लिए रैफरी अपनी मुट्ठियों को बन्द रखते हुए अपनी कलाई को पकड़ कर संकेत करता है।
  13. धकेलने तथा चार्जिंग के संकेत के लिए रैफरी धकेलने जैसी नकल करता है।
  14. सीमाओं के उल्लंघन के लिए रैफरी हाथ हिला कर सीमा के बाहर संकेत करता है तत्पश्चात् उस टीम की बॉस्केट की तरफ संकेत करता है-जिसे “आऊट ऑफ़ बाऊण्ड-बॉल” दी गई है।
  15. टाइम आऊट के लिए अधिकारी सिर के ऊपर खुली हथेली से संकेत करता है।

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प्रश्न 4.
बॉस्केट बाल खेल के विभिन्न पासों के विषय में लिखें ।
उत्तर-
पास के प्रकार
(Types of Passes)
पासिंग (Passing)-बॉस्केट बॉल के खिलाड़ी को उन सभी प्रकार के पास (Passes) देने में निपुण होना चाहिए जिनका प्रयोग गेंद को अपने साथी को देने के लिए विपक्षी खिलाड़ी के ऊपर से, नीचे से अथवा उसके पास से फेंका जाता है।

पास देने के लिए आवश्यक बातें
(Some Essentials of Passing)
पास देने के लिए कुछ आवश्यक बातें निम्नलिखित हैं—

  1. पास देने से पहले सामने देखने की आदत बनाओ।
  2. पास प्राप्त करने वाले साथी की दूरी का अनुमान लगाना तथा साथ ही यह अनुमान भी लगाना कि कितने समय में गेंद उसके पास पहुंचेगी।
  3. पास करने से पहले विपक्षी खिलाड़ी की स्थिति का अनुमान लगाना।
  4. “पास” सही तथा शीघ्र होना चाहिए।

दो हाथ का छाती वाला या पश पास
(Two Handed Chest Pass or Push Pass)
बॉस्केट बॉल में यह सबसे अधिक प्रयुक्त होने वाला पास है। कम या मध्यम दूरियों के लिए इस पास का प्रयोग होता है तथा इसमें कलाई द्वारा अतिरिक्त शक्ति लगाई जाती है। गेंद को छाती की ऊंचाई पर लाना चाहिए ताकि इसे सरलता से प्राप्त (Catch) किया जा सके। पास देने के लिए गेंद को छाती के सामने दोनों हाथों में पकड़ा जाता है, कोहनियां काफ़ी दूर होती हैं ताकि गति में अवरोध न हो। इस स्थिति में खिलाड़ी गेंद को पास, शूट या स्टार्ट (Pass, Shoot or Start) कर सकता है। भुजाओं को फैला कर तथा हथेली को पास की दिशा में घुमाकर गेंद को शक्ति के साथ आगे की ओर धकेलना चाहिए।

दो हाथ का बाउन्स पास (Two Handed Bounce Pass)—यह पास भी लगभग “Chest Pass” की तरह ही है। इसमें गेंद को ठीक पहले की तरह ही फेंका जाता है किन्तु इसे ज़मीन की तरफ प्राप्तकर्ता खिलाड़ी के यथासम्भव निकट फेंकते हैं ताकि वह गेंद को घुटनों तथा कमर के बीच किसी ऊंचाई पर प्राप्त करके ले। “बाउन्स पास” का प्रयोग साधारणतया छोटी दूरियों के लिए किया जाता है। बाउन्स पास देने के लिए गेंद को अपनी छाती या कमर की ऊंचाई पर दोनों हाथों में पकड़े कोहनियों को सीधा करें तथा हथेली से शक्ति के साथ गेंद को ज़मीन की तरफ इस प्रकार फेंको कि विपक्षी के पास से होकर जैसे ही गेंद ज़मीन को छुए, वह उछल कर प्राप्तकर्ता के हाथ में गिरे।

दो हाथों का अण्डर हैण्ड पास
(Two Handed Under Hand Pass)
इसे शौवल पास (Shoval Pass) भी कहते हैं। यह तब प्रयोग किया जाता है जब खिलाड़ी (Passer) अपने साथी खिलाड़ी के निकट ही हो। गेंद शीघ्र देने के लिए यह एक छोटा पास है। यह पास देने के लिए कोहनियों को बाहर की तरफ़ मोड़ते हुए दाएं या बाएं तरफ से दोनों हाथों का प्रयोग करो। दाईं साइड के पास के लिए बायां तथा बाईं साइड के पास के लिए तुम्हें दायां पैर आगे धकेलना चाहिए।

बेस बॉल पास
(Base Ball Pass) यह पास बहुत प्रभावशाली है। इसका प्रयोग गेंद को पिवट खिलाड़ी (Pivot Player) को देने अथवा लम्बा पास देने के लिए होता है। सुविधा के अनुसार दायां या बायां हाथ प्रयोग किया जा सकता है। पास को अधिक प्रभावशाली बनाने के लिए गेंद को अपने कन्धों के ऊपर तथा दाएं कान के निकट रखो। अब गेंद को पूरी शक्ति के साथ आगे फेंको। इस पूरी क्रिया में तुम्हारा दायां हाथ पीछे रहना चाहिए। इस पास में देखने की महत्त्वपूर्ण बात यह है कि गेंद को कलाई (न कि बाजुओं) की मदद से कितनी शक्ति से धकेला जाता है।

दो हाथों वाला साइड पास
(Two Handed Side Pass)
सिवाय हाथों की स्थिति के, यह पास “बेस बॉल पास” की तरह ही है। इसमें हाथों को गेंद के दोनों तरफ फैलाना चाहिए। इसे हुक के दाएं या बाएं किसी तरफ से भी खेला जा सकता है।

बैक पास
(Back Pass) अपने असुरक्षित साथी (Unguarded) को गेंद देने के लिए यह सर्वोत्तम पास है। इसमें गेंद को पीछे से, कलाई से तथा उंगलियों की मदद से पास किया जाता है। क्रिया को सुविधाजनक बनाने के लिए कूल्हों (Hips) को थोड़ा हिलाया जा सकता है। किसी भी हाथ से यह पास प्रभावशाली ढंग से दिया जा सकता है।

एक हाथ का बाऊन्स पास
(One Handed Bounce Pass)
यह दाएं या बाएं हाथ से दिया जाता है। इसका प्रयोग दो स्थितियों में किया जाता है।

  1. जब “गार्ड” खिलाड़ी (Guard Player) पासर खिलाड़ी (Passer Player) को बहुत निकट से गार्ड कर रहा
  2. जब गतिशील प्राप्तकर्ता खिलाड़ी बहुत निकट से गार्ड किया जा रहा हो।

इस ‘पास’ की तकनीक स्थिति के साथ बदलती रहती है। पहली स्थिति में पास को प्रभावशाली बनाने के लिए इसे शीघ्रता से तथा अकस्मात् (Suddenness and Surprise) किया जाता है। इसकी साधारण विधि में इसे शुरू करके आवश्यकतानुसार किसी भी साइड में शीघ्रता से हट जाना होता है। ठीक उसी समय गार्ड खिलाड़ी से बचने के लिए बाजू को कदम की दिशा में बढ़ा कर गेंद प्राप्तकर्ता की तरफ आवश्यकतानुसार स्विग (Swing) के साथ उछाल दिया जाता है। दूसरे प्रकार का ‘एक हाथ वाला पास’ तब आवश्यक होता है जब दौड़ता हुआ प्राप्तकर्ता (Receiver) खिलाड़ी बहुत निकट से गार्ड हो रहा हो। इस स्थिति में ‘गार्ड’ द्वारा इसी प्रकार का सीधा पुश पास प्रयोग करना सम्भावित है। इस पास (Pass) को फेंकने के लिए गेंद को थोड़ा-सा कन्धों के ऊपर कानों के पास रखा जाता है। इसके बाद बाजू को आगे तथा नीचे की तरफ इस तरह फैलाया जाता है कि गेंद को सामने स्विग किया जा सके परन्तु गेंद ‘गार्ड’ (जो प्राप्तकर्ता को कवर किए हैं) की पहुंच के बाहर होनी चाहिए।

फ्लिप पास
(Flip Pass)
‘फ्लिप पास’ का प्रयोग गेंद को निकट से ‘पास’ के लिए किया जाता है। यह आवश्यकतानुसार दोनों हाथों से या एक हाथ से किया जा सकता है। थोड़ी दूरी पर खड़े खिलाड़ी को गेंद फ्लिप करने के लिए झुकी हुई कलाई (Flexed Wrist) का प्रयोग किया जाता है। क्योंकि यह एक छोटा ‘पास’ है गेंद को केवल कलाई द्वारा ही ‘फ्लिप’ किया जाता है ताकि गेंद को केवल इतना बल ही मिले कि प्राप्तकर्ता इसे सरलता से तथा निश्चित रूप से दबोच सके। क्योंकि दूरी कम होती है इसलिए प्रतिपक्षी खिलाड़ी इसे रोक नहीं सकता तथा प्राप्तकर्ता इसे सरलता से पकड़ लेता है।

एक हाथ का साइड पास
(One Handed Side Pass)
जब अधिक शुद्धता (Accuracy) तथा गति (Speed) की आवश्यकता न हो तो उस स्थिति में यह ‘पास’ प्रयोग किया जाता है। इस पास की तकनीक इस प्रकार है—
गेंद को अपने हाथों में पकड़ो, हाथों की उंगलियां अच्छी तरह फैली हुई हों ताकि पूरे गेंद को ढक सकें। अपने शरीर को थोड़ा-सा घुमाते हुए गेंद को दाएं कान के पास ले जाओ। कोहनियों को खोलते हुए तथा उसी समय बाएं पैर को आगे बढ़ाओ। कोहनी को नीचे की तरफ खोलते हुए दाएं हाथ से गेंद को आगे की ओर फेंको। विश्राम सहित (Relaxed) शरीर तथा कलाई द्वारा इसका पीछा करो। पास देते समय बाईं भुजा, दाईं भुजा की मदद करती है। परन्तु बाईं कोहनी छाती की ऊंचाई पर मुड़ी रहती है।

टिप अर्थात् वॉली पास
(Tip or Volley Pass)
किसी दिशा में भी एक कदम लेकर फ्रन्ट लाइन की स्थिति से यह पास दिया जा सकता है। गेंद पकड़ते समय एक हाथ गेंद के नीचे तथा दूसरा उसकी मदद करते हुए होता है। गेंद को उंगलियों के सिरों से या कलाई द्वारा फ्लिप करके थोड़ी दूर पर खड़े अपने साथी खिलाड़ी को लुढ़का दिया जाता है।

पासिंग क्रिया की आवश्यक बातें
(Some Hints on Passing Strategy)

  1. ‘पासर’ खिलाड़ी को प्राप्तकर्ता खिलाड़ी की स्थिति तथा उसके द्वारा की जाने वाली सम्भावित कार्यवाही का . पूर्व अनुमान लगा लेना चाहिए।
  2. पास देते समय शीघ्रता नहीं करनी चाहिए विशेषकर जब उसका साथी विपक्षी खिलाड़ियों से घिरा हआ हो।
  3. टीम का आफैन्स (Offence) मुख्य रूप से छोटे पासों (Short Passes) पर निर्भर होता है।

बॉस्केटबाल में प्रयुक्त शब्दावली
पिछला कोर्ट-कोर्ट का आधा भाग जहां से आक्रामक टीम आती है। अन्य शब्दों में, वह अर्द्ध भाग है जिसमें कि बॉस्केट होती है जिसको उन्होंने बचाना होता है।
ब्लाईंड पास-एक दिशा में देखते हुए बाल को पृथक् दिशा का प्रयोग करते हुए दूसरी दिशा में पास देना।
स्पष्ट शॉट-यह शॉट जो बोर्डों या रिंग को बिना छुए सीधा बॉस्केट में जाता है।

क्षेत्र से क्षेत्र की प्रतिरक्षा (Zone to Zone defence)—यह एक प्रकार की प्रतिरक्षा प्रणाली है जिसमें खिलाड़ी किसी क्षेत्र की केवल प्रतिरक्षा के ज़िम्मेदार होते हैं। इनका ध्यान केवल गेंद की तरफ होता है, प्रतिपक्षी खिलाड़ी की तरफ नहीं।

खिलाड़ी से खिलाड़ी की प्रतिरक्षा (Man to Man defence)—यह वह प्रतिरक्षा प्रणाली है जिसमें प्रत्येक खिलाड़ी की ज़िम्मेदारी किसी विशेष शत्रु खिलाड़ी से प्रतिरक्षा की होती है।
मिश्रित प्रतिरक्षा (Combined defence)—यह प्रतिरक्षा प्रणाली दोनों प्रणालियों ‘क्षेत्र से क्षेत्र’ तथा ‘खिलाड़ी से खिलाड़ी’ का मिश्रण है।

कट इन (Cut in)-किसी खिलाड़ी का दो या अधिक शत्रु खिलाड़ियों के मध्य से होकर गेंद प्राप्त करने के लिए किसी बॉस्केट की ओर तेज़ी से भागना ‘कट इन’ कहलाता है।

चार्जिंग (Charging)-किसी खिलाड़ी के साथ अनावश्यक शारीरिक सम्पर्क। किसी खिलाड़ी के बीच से निकलना तथा उससे बचने की कोशिश करना।

फाऊल आऊट (Fouled Out)-पांच फाऊलों के बाद खिलाड़ी को क्षेत्र से बाहर कर दिया जाता है। इसे फाऊल आऊट कहते हैं।
फ्रीज या हैल्ड गेंद (Freeze or Held bal)—गेंद को बजाय खेलने की कोशिश करने के उसे अपने पास ही रख लेना।

ओवर लोडिंग (Over Loading)—’क्षेत्र से क्षेत्र प्रतिरक्षा’ के विरुद्ध विरोधी खिलाड़ियों की आक्रामक प्रणाली। इस हेतु एक ही तरफ अधिक आक्रामक खिलाड़ियों को खड़े करने की प्रणाली को ओवरलोडिंग कहा जाता है।
पोस्ट खिलाड़ी (Post Player)—स्वतन्त्र थ्रो के क्षेत्र में खड़े आक्रामक खिलाड़ी को पोस्ट खिलाड़ी कहते हैं।
स्क्रीन (Screen)-जब कोई खिलाड़ी अपने साथी की रक्षा के लिए उसके गार्ड के मार्ग में स्वयं को खड़ा कर लेता है।

खेल का निर्णय-खेल में अधिक अंक प्राप्त करने वाली टीम को विजयी घोषित किया जाएगा।
खेल का अधिकार छिन जाना—मध्यान्तर या टाइम-आऊट के पश्चात् यदि कोई टीम रैफरी के बुलाने के बाद एक मिनट के अन्दर खेल के लिए मैदान में नहीं उतरती तो गेंद खेल में लाई जाएगी और अनुपस्थित टीम खेल अधिकार खो देगी। यदि खेल के दौरान किसी टीम के खिलाड़ियों की संख्या दो से कम रह जाए तो खेल समाप्त हो जाएगा और टीम भी खेल अधिकार खो देगी।

स्कोर तथा अतिरिक्त समय–यदि दूसरे खेल अर्द्धक की समाप्ति तक दोनों टीमों के अंक बराबर हों तो पांच मिनटों की अधिक अवधि दी जाएगी और ऐसी अवधि जब तक खेल का फैसला न हो, दी जाएगी। अतिरिक्त समय में बॉस्केट के चुनाव के लिए टॉस होगा और उसके बाद प्रत्येक अतिरिक्त समय के लिए बॉस्केट बदल लिया जाएंगे।

टाइम-आऊट-मध्यान्तर तक प्रत्येक टीम को दो टाइम-आऊट मिल सकते हैं तथा अतिरिक्त समय में एक टाइमआऊट मिल सकता है। किसी खिलाड़ी को चोट लगने की दशा में एक मिनट का टाइम-आऊट मिलता है। यदि इस बीच घायल खिलाड़ी ठीक नहीं होता तो उसकी जगह नया खिलाड़ी ले लिया जाता है।

खेल की समाप्ति-टाइम कीपर द्वारा खेल की समाप्ति की सूचना दिए जाने पर खेल समाप्त कर दिया जाएगा।
खिलाड़ी का बदलना-स्थानापन्न खिलाड़ी (Substitute Player) मैदान में उतरने से पहले स्कोरर के पास रिपोर्ट करेगा और तुरन्त खेलने के लिए प्रस्तुत रहेगा। अधिकारी का संकेत पाते ही मैदान में तुरन्त उतरेगा। स्थानापन्न को मैदान में उतरने के लिए 20 सैकिंड से अधिक समय नहीं लगना चाहिए। यदि उसे अधिक समय लगता है तो टाइम-आऊट माना जाएगा और विरोधी दल के विरुद्ध अंकित कर दिया जाएगा।

मृत गेंद (Dead Ball)—गेंद उस समय भी मृत होती है जब गेंद जो पहले ही गोल के लिए शॉट (Shot) के लिए उड़ान में होती है और खिलाड़ी के द्वारा उस समय के पश्चात् छुई जाती है जब बाधा या फाऊल समय पूरा हो चुका होता है या जब फाऊल बुलाया जा चुका होता है। (ऊपर की ओर उड़ान में जब गेंद को छुआ जाता है, बॉस्केट यदि असफल हो, नहीं गिनी जाती।)

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प्रश्न 5.
बास्केट बाल खेल में तीन सैकिण्ड, पांच सैकिण्ड, आठ सैकिण्ड और चौबीस सैकिण्ड नियम क्या
उत्तर-
तीन सैकिण्ड नियम-जब गेंद किसी टीम के अधिकार में हो तो उस टीम का कोई भी खिलाडी विरोधी टीम के प्रतिबद्ध क्षेत्र में तीन सैकिण्ड से अधिक नहीं रहेगा।
पांच सैकिण्ड नियम -जब पास का कोई रक्षक खिलाड़ी गेंद को खेलने से रोकता है और वह पांच सैकिण्ड के अन्दर गेंद को खेल में डालने की कोई सामान्य कोशिश नहीं करता तो वह ब्लॉकिंग कहलाता है।

आठ सैकिण्ड नियम -जब किसी टीम को मैदान के पिछले भाग में गेंद प्राप्त हो जाता है तो उसे आठ सैकिण्ड के अन्दर गेंद को अगले भाग में डालना पड़ता है।
चौबीस सैकिण्ड नियम-नये नियम के अनुसार पार्श्व रेखा (Side line) पर आऊट ऑफ बाऊंड्ज़ (Out of bounds) से थ्रो-इन के पश्चात् एक नई चौबीस (26) सैकिण्ड की अवधि तब तक आरम्भ नहीं होती जब तक—

  • गेंद आऊट ऑफ बाऊंड्ज़ (Out of bounds) नहीं जाती है और उसी टीम के खिलाड़ी के द्वारा थ्रो-इन नहीं ली जाती।
  • अधिकारी (Officials) ने किसी आहत को बचाने के लिए खेल को रोक (Suspend) कर दिया हो और आहत खिलाड़ी वाली टीम के खिलाड़ी ने थ्रो-इन (Throw-in) ली हो।

24 सैकिण्ड आप्रेटर (Operator) उस समय से घड़ी को रोके हुए समय से चलाये जब तक वह टीम थ्रो-इन (Throw-in) किये जाने के पश्चात् पुनः काबू पा लेती है।
फाऊल के बाद गेंद खेल में-जब गेंद किसी फाऊल के साथ खेल से बाहर हो जाए तो इस स्थिर गेंद को—

  1. बाहर से थ्रो करके, या
  2. किसी एक वृत्त में जम्प बाल द्वारा, या
  3. एक या अधिक फ्री-थ्रो द्वारा फिर खेल में लाया जाएगा।

थ्रो-इन-जब किसी नियम का उल्लंघन हो जाए तो गेंद स्थिर समझी जाती है और विरोधी टीम को साइड-लाइन के समीपवर्ती बिन्दु से थ्रो-इन के लिए दी जाती है।

अब नियम उस खिलाड़ी को आज्ञा देता है जिसने थ्रो-इन (Throw-in) करना है कि वह समाप्ति रेखा (End line) को छुए और यह नियम का उल्लंघन नहीं है।

फ्री-थ्रो-जिस खिलाड़ी पर फाऊल किया गया हो वह फ्री-थ्रो लेता है परन्तु किसी तकनीकी फाऊल होने की दशा में कोई भी खिलाड़ी फ्री-थ्रो ले सकता है। जब फ्री-थ्री ली जाती है, तो खिलाड़ियों की स्थिति इस प्रकार होती है—

  1. विरोधी टीम के दो खिलाड़ी बॉस्केट के समीप खड़े होंगे।
  2. अन्य खिलाड़ी भिन्न-भिन्न पोजीशन लेंगे।
  3. बाकी के खिलाड़ी कोई भी और पोजीशन ले सकते हैं परन्तु वे फ्री-थ्रो के समय बाधक नहीं बनने चाहिएं।

फ्री-थ्रो के उल्लंघन-फ्री-थ्रो करने वाले सैकिण्ड खिलाड़ी के अधिकार में गेंद देने के पश्चात्

  • इन पांच सैकिण्ड के अन्दर गेंद को इस तरह फेंकेगा कि खिलाड़ी द्वारा छुए जाने से पहले गेंद बॉस्केट में चली जाए या घेरे का स्पर्श कर ले।
  • गेंद के बॉस्केट की ओर जाते समय या अन्दर पहुंचने पर न तो वह और न ही कोई दूसरा खिलाड़ी गेंद या बॉस्केट को छुएगा।
  • वह फ्री-थ्रो लाइन या उसके परे भूमि को छुएगा और न ही किसी टीम का कोई दूसरा खिलाड़ी फ्री-थ्रो लाइन को छुएगा या फ्री-थ्रो करने वाले खिलाड़ी को बाधा पहुंचाएगा।

खेल को प्रतिबन्धित करना (Game to be Forefeited)-नये नियम के अनुसार रैफरी को अब यह आवश्यक नहीं है कि वह गेंद को उस विधि से खेल में रखे जैसे कि दोनों टीमें फर्श पर खेलने के लिए और खेल को प्रतिबन्धित करने के लिए तैयार हों। अब रैफरी के खेल में बुलाने के पश्चात् यदि एक टीम खेलने से इन्कार कर देती है तो खेल प्रतिबन्धित हो जाता है।

गेंद का पिछली कोर्ट को वापिस जाना (Ball Return to Back Court) नये नियम के अनुसार गेंद को टीम ए (A) को पिछली कोर्ट की ओर भेजा जाता है, शर्त यह है कि इसको टीम ए (A) का एक खिलाड़ी छूता है जबकि टीम ‘A’ सामने की कोर्ट में गेंद को नियन्त्रित रखती है। इसके अनुसार A, खिलाड़ी को छूना जबकि गेंद टीम ए के सामने की कोर्ट में टीम बी (B) के नियन्त्रण में है। यदि गेंद टीम ए (A) के सामने की कोर्ट में जाता है उसको ऐसा नहीं समझा जाता है कि पिछली कोर्ट में जाने दिया जाए।

इसके आगे केन्द्र (Mid-Point) से थ्रो-इन (Throw-in) के बीच अधिकारी (Official) यह निश्चित बताएगा कि खिलाड़ी बढ़ाई गई पार्श्व रेखा (Side-line) के दोनों ओर एक पैर रख कर पोजीशन स्थापित करता है।

आऊट आफ बाऊंड खेल पर नियम का उल्लंघन (Violation on Out of bounds play) यह नियम को तोड़ना नहीं है जबकि थ्रो-इन (Throw-in) दी गई है, खिलाड़ी गेंद को छोड़ते समय लकीर पर पांव रखता है।
दण्ड—
1. फ्री-थ्रो करने वाले खिलाड़ी द्वारा उल्लंघन होने पर कोई अंक रिकार्ड न होगा। फ्री-थ्रो करने वाले खिलाड़ी के विपक्षी की गेंद फ्री-थ्रो लाइन के सामने दे दी जाएगी।

2. फ्री-थ्रो करने वाले खिलाड़ी को टीम के अन्य खिलाड़ी द्वारा नियम का उल्लंघन होने पर भी अंक रिकार्ड होगा। यदि नियम (ख) का उल्लंघन दोनों टीमों द्वारा होता है तो कोई अंक दर्ज नहीं होगा और फ्री-थ्रो लाइन पर जम्प बाल द्वारा खेल जारी किया जाएगा।

3. यदि नियम (ग) का उल्लंघन फ्री-थ्रो करने वाले खिलाड़ी के साथी द्वारा होता है तथा फ्री-थ्रो सफल हो जाती है तो उल्लंघन की उपेक्षा करके गोल गिन लिया जाएगा और उसका दण्ड दिया जाएगा।

4. यदि (ग) नियम का उल्लंघन फ्री-थ्रो करने वाले खिलाड़ी के विरोधियों से होता है तो फ्री-थ्रो सफल होने पर उल्लंघन की उपेक्षा करके गोल गिना जाएगा।

5. यदि नियम (ग) का उल्लंघन दोनों टीमों द्वारा होता है और फ्री-थ्रो सफल हो जाती है तो उल्लंघन की उपेक्षा करके गोल गिना जाएगा। फ्री-थ्रो सफल न होने की दशा में फ्री-थ्रो लाइन पर जम्प बाल के साथ खेल पुनः जारी किया जाएगा।

बॉस्केट बाल (Basket Ball) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education

प्रश्न 6.
बॉस्केट बाल खेल में खिलाड़ी के तकनीकी फाऊल लिखें।
उत्तर-
खिलाड़ी द्वारा तकनीकी फाऊल-कोई भी खिलाड़ी अधिकारियों द्वारा दी गई चेतावनी की अवहेलना नहीं करेगा और न ही ऐसा व्यवहार करेगा जो एक खिलाड़ी को शोभा न दे, जैसे—

  1. अधिकारी को अपमानजनक ढंग से सम्बोधित करना या मिलना।
  2. असभ्य व्यवहार करना।
  3. विरोधी खिलाड़ी को तंग करना या उसकी आंखों के आगे हाथ करके उसे देखने में रुकावट डालना।
  4. खेल को अनुसूचित ढंग से विलम्बित करना।
  5. फाऊल का संकेत मिलने पर ठीक ढंग से बाजू न उठाना।
  6. स्कोरर या रैफरी को बिना सूचित किए अपना नम्बर बदलना।।
  7. स्कोरर को सूचित किए बिना स्थानापन्न (Substitute) की तरह कोर्ट में प्रवेश करना।

दण्ड-प्रत्येक अपराध को एक फाऊल माना जाएगा और प्रत्येक फाऊल के लिए विरोधी को दो फ्री-थ्रो दी जाएंगी। इस नियम का बार-बार उल्लंघन किए जाने पर खिलाड़ी को अयोग्य घोषित करके खेल से निकाल दिया जाएगा।

कोच का स्थानापन्न (Substitute) द्वारा तकनीकी फाऊल-कोई कोच या स्थानापन्न बिना अधिकारी की आज्ञा के कोर्ट में दाखिल नहीं हो सकता, न ही कोर्ट के कार्यों को जानने के लिए अपना स्थान छोड़ सकता है और न ही किसी अधिकारी या विरोधी को अपमानजक ढंग से बुला सकता है।

दण्ड-कोच द्वारा इस नियम का उल्लंघन करने पर उसके नाम फाऊल दर्ज किया जाएगा। प्रत्येक अपराध के लिए एक फ्री-थ्रो दी जाएगी और बाल उसी टीम को केन्द्रीय रेखा पर थ्रो-इन करने के लिए मिलेगा। इस नियम के बारबार उल्लंघन किए जाने पर कोच को क्षेत्र की सीमाओं से बाहर निकाला जा सकता है।

निजी फाऊल-निजी फाऊल उस खिलाड़ी का होता है तो विरोधी खिलाड़ी को ब्लॉक करता है, पकड़ता है, धक्का देता है तथा उस पर आक्रमण करता है।
दण्ड-यदि शूटिंग करते समय खिलाड़ी पर फाऊल देता है तो—

  1. यदि गोल हो जाता है तो उसकी गिनती की जाएगी और एक फ्री-थ्रो दी जाएगी।
  2. यदि गोल (2 अंक) असफल हो, दो फ्री-थ्रो (Free Throw) दिए जाएंगे।
  3. यदि गोल (Goal) के लिए शाट (Shot) असफल होता है तो तीन फ्री-थ्रो (Free Throws) दिये जाएंगे।

जानबूझ कर (साभिप्राय ) फाऊल-यह वह शारीरिक फाऊल है जो किसी खिलाड़ी द्वारा जानबूझ कर दिया जाता है। जो खिलाड़ी बार-बार साभिप्राय फाऊल करता है उसे अयोग्य करार देकर खेल से निकाला जा सकता है।

दण्ड-अपराधी पर शारीरिक फाऊल का दोष लगाया जाएगा और दो फ्री-थ्रो दिए जाएंगे। यदि यह फाऊल ऐसे खिलाड़ी पर होता है तो गोल बनाता है तो यह गोल माना जाएगा और एक अतिरिक्त फ्री-थ्रो दी जाएगी।

डबल फाऊल-डबल फाऊल उस स्थिति में होता है जब दो खिलाड़ी एक-दूसरे के प्रति लगभग एक ही समय फाऊल करते हैं। डबल फाऊल होने पर निकटतम वृत्त से जम्प बाल द्वारा खेल पुनः शुरू करवा दी जाएगी।

बहुपक्षीय (Multiple) फाऊल-बहुपक्षीय फाऊल उस समय होता है जब एक टीम के दो या तीन खिलाड़ी एक ही विरोधी खिलाड़ी पर निजी फाऊल कर देते हैं।

इस स्थिति में प्रत्येक अपराधी खिलाड़ी पर एक फाऊल लगेगा और जिस खिलाड़ी के प्रति अपराध हुआ है उसे दो फ्री-थ्रो दी जाएगी। यदि फेंकने की प्रक्रिया में किसी खिलाड़ी के प्रति फाऊल हुआ है तो गोल बनने पर किया जाएगा और एक फ्री-थ्रो दी जाएगी।
पांच फाऊल-यदि कोई खिलाड़ी पांच फाऊल (निजी या तकनीकी) करता है तो उसे नियमानुसार बाहर निकाल देना चाहिए।

तीन और दो नियम (Three for two Rule)-जब खिलाड़ी गोल करने लगा हो तो उस पर विरोधी टीम का खिलाड़ी फाऊल कर दे और यदि गोल बन जाए तो एक और फ्री-थ्रो मिलेगा। गोल न होने की अवस्था में दोनों फ्रीथ्रो में से एक भी न होने पर अतिरिक्त फ्री-थ्रो मिलेगा।

चयन का अधिकार (Right of Option) केन्द्र बिन्दु (Mid Point) से थ्रो-इन के लिए चयन का अधिकार एक, दो और तीन थ्रो की दशा में लागू होता है। चयन करने से पहले कप्तान को कोच के साथ संक्षिप्त परामर्श करने की आज्ञा होती है।

टीम के द्वारा चार फाऊल (Four fouls by the Team)-जब टीम किसी अवधि में चार खिलाड़ियों का फ़ाऊल (निजी और तकनीकी) कर चुकती है, इस अवधि समय में सभी बाद के खिलाड़ियों को फाऊल होने पर दो फ्री-थ्रो मिलती है।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 19 भारत तथा संयुक्त राष्ट्र संघ

Punjab State Board PSEB 12th Class Political Science Book Solutions Chapter 19 भारत तथा संयुक्त राष्ट्र संघ Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Political Science Chapter 19 भारत तथा संयुक्त राष्ट्र संघ

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
संयुक्त राष्ट्र पर एक नोट लिखें। (Write a note on U.N.)
उत्तर-
द्वितीय महायुद्ध की तबाही को देखकर संसार के सभी भागों में यह इच्छा होने लगी थी कि अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति और सुरक्षा की स्थापना के लिए कोई शक्तिशाली अन्तर्राष्ट्रीय मशीनरी बनाई जाए। अत: 24 अक्तूबर, 1945 को संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना की गई। आरम्भ में इसके 51 देश सदस्य थे जबकि आजकल 193 देश इसके सदस्य हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ विश्व का सबसे बड़ा अन्तर्राष्ट्रीय संगठन है। इसका मुख्यालय न्यूयार्क (अमेरिका) में है।

संयुक्त राष्ट्र के उद्देश्य (Aims of the United Nations)-संयुक्त राष्ट्र की प्रस्तावना में ही इस संगठन के उद्देश्यों का वर्णन किया गया है। प्रस्तावना में कहा गया है, कि “हम संयुक्त राष्ट्र के लोग…..लक्ष्यों की पूर्ति के लिए हमेशा सहयोग करेंगे।”
सानफ्रांसिस्को में आयोजित सम्मेलन में इस संगठन के चार उद्देश्य बताए गए(1) अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति एवं सुरक्षा कायम रखना और अन्तर्राष्ट्रीय खतरों का सामूहिक मुकाबला करना।

(2) विभिन्न राष्ट्रों के मध्य समान अधिकार, स्वाभिमान तथा जनता में आत्म-निर्णय के अधिकार के आधार पर सम्बन्धों की स्थापना और विश्व शान्ति को सुदृढ़ करने के उपाय करना। ।

(3) अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक तथा मानवीय समस्याओं के समाधान के लिए अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग प्राप्त करना।
(4) उपरोक्त उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए विभिन्न राज्यों के मध्य सहयोग करने के लिए एक केन्द्र की भूमिका निभाना।

संयुक्त राष्ट्र के अंग (PRINCIPAL ORGANS OF THE UNITED NATIONS)

संयुक्त राष्ट्र के चार्टर के अनुसार छह प्रमुख अंग हैं जिनके द्वारा यह अपने बहुमुखी कार्य करता है। इन छह अंगों का वर्णन इस प्रकार है

I. महासभा (The General Assembly)-महासभा को संयुक्त राष्ट्र की संसद् भी कहा जाता है। संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य देश महासभा के भी सदस्य होते हैं। संयुक्त राष्ट्र का प्रत्येक सदस्य देश महासभा में 5 प्रतिनिधि भेज सकता है। महासभा का अधिवेशन प्रतिवर्ष सितम्बर मास के तीसरे मंगलवार को होता है। महासभा हर वर्ष अपना एक अध्यक्ष चुनती है। महासभा में प्रत्येक सदस्य देश को एक मत देने का अधिकार प्राप्त है। महासभा की शक्तियां अथवा कार्य इस प्रकार हैं-

(1) सुरक्षा परिषद् के 10 अस्थायी सदस्यों का 2/3 बहुमत से चुनाव करना।
(2) अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय के 15 न्यायाधीशों का चुनाव करना।
(3) चार्टर के अधीन सारे विषयों पर विचार करना।
(4) संयुक्त राष्ट्र के अन्य अंगों व एजेन्सियों पर नियन्त्रण करना।
(5) संयुक्त राष्ट्र का बजट तैयार करना।
(6) संयुक्त राष्ट्र के चार्टर में संशोधन करना।
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II. सुरक्षा परिषद् (The Security Council)-सुरक्षा परिषद् संयुक्त राष्ट्र की कार्यपालिका के समान है। सुरक्षा परिषद् एक छोटा लेकिन अत्यन्त महत्त्वपूर्ण अंग है। इसके कुल 15 सदस्य हैं। इनमें से पाँच स्थायी हैं
ब्रिटेन, फ्रांस, अमेरिका, रूस और चीन। इसके अलावा दस अस्थायी सदस्य 2 वर्षों के लिए महासभा द्वारा चुने जाते हैं। स्थायी सदस्यों को निषेधाधिकार (veto) प्राप्त है। सुरक्षा परिषद् के मुख्य कार्य तथा शक्तियाँ इस प्रकार हैं
(1) ऐसे मामले पर विचार करना जिससे अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति व सुरक्षा भंग होने का भय हो।
(2) महासभा अपने अनेक चुनाव सम्बन्धी कार्य सुरक्षा परिषद् की सिफ़ारिश पर ही करती है।
(3) चार्टर में संशोधन सुरक्षा परिषद् की सहमति से ही हो सकता है।

III. आर्थिक तथा सामाजिक परिषद् (The Economic and Social Council)-विश्व की सामाजिक, आर्थिक व मानवीय समस्याओं के हल के लिए संयुक्त राष्ट्र की आर्थिक व सामाजिक परिषद् की स्थापना की गई। प्रारम्भ में इस परिषद् के 18 सदस्य थे, लेकिन आजकल इसकी सदस्य संख्या 54 है। ये सदस्य महासभा द्वारा 2/3 बहुमत से तीन वर्ष के लिए चुने जाते हैं और 1/3 सदस्य प्रति वर्ष रिटायर हो जाते हैं। आर्थिक और सामाजिक परिषद् की एक वर्ष में कम-से-कम तीन बैठकें होती हैं। इस परिषद् के मुख्य कार्य इस प्रकार हैं
(1) सामाजिक व आर्थिक दृष्टि से पिछड़े लोगों के जीवन स्तर को ऊपर उठाना।
(2) अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक व स्वास्थ्य से सम्बन्धित समस्याओं का हल निकालना।
(3) बिना किसी भेदभाव के मानवाधिकारों को लागू करवाना।
(4) अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, शैक्षणिक, स्वास्थ्य सम्बन्धी मामलों का अध्ययन करना और रिपोर्ट तैयार करना।
(5) संयुक्त राष्ट्र की अन्य विशिष्ट एजेन्सियों से रिपोर्ट प्राप्त करना।

IV. ट्रस्टीशिप कौंसिल (The Trusteeship Council)-ट्रस्टीशिप कौंसिल का उद्देश्य पिछड़े हुए देशों को विकसित देशों के नेतृत्व में उन्नति दिलाना है ताकि वे शीघ्रता से स्वशासन के योग्य हो जाएं। ट्रस्टीशिप कौंसिल में सुरक्षा परिषद् के सारे स्थायी सदस्य होते हैं। इनके अलावा सुरक्षित प्रदेशों का प्रबन्ध चलाने वाले देश भी इसके सदस्य होते हैं। इस परिषद् की साल में दो बैठकें होती हैं और इसके निर्णय बहुमत से लिए जाते हैं। ट्रस्टीशिप कौंसिल के मुख्य कार्य इस प्रकार हैं-

(1) प्रबन्धक राज्यों से हर वर्ष वहां की जनता के सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक विषयों के बारे में रिपोर्ट लेना।
(2) सुरक्षित प्रदेशों की जनता से अपीलें सुनना।
(3) निरीक्षक मण्डलों को न्यास प्रदेशों का दौरा करने के लिए भेजना।

V. अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय (International Court of Justice)-अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय के 15 न्यायाधीश होते हैं जिन्हें महासभा तथा सुरक्षा परिषद् अलग-अलग स्वतन्त्र तौर पर चुनती है। न्यायाधीश 9 वर्ष के लिए चुने जाते हैं। 1/3 न्यायाधीश प्रत्येक पाँच वर्ष पश्चात् रिटायर हो जाते हैं और उनकी जगह नए न्यायाधीश नियुक्त किए जाते हैं। अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय हेग में स्थित है। इस न्यायालय का क्षेत्राधिकार इस प्रकार है

1. अनिवार्य क्षेत्राधिकार-सन्धियों की व्याख्या करना अन्तर्राष्ट्रीय कानून से सम्बन्धित विवाद, अन्तर्राष्ट्रीय दायित्व को भंग करने वाले तथ्यों की स्थिति तथा किसी अन्तर्राष्ट्रीय दायित्व के उल्लंघन किए जाने पर दी जाने वाली क्षतिपूर्ति की मात्रा और स्वरूप।
2. ऐच्छिक क्षेत्राधिकार- अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय उन विवादों को भी सुनता है तथा निर्णय देता है जो राज्य स्वयं इसके सम्मुख लाते हैं।
3. सलाहकारी कार्य-चार्टर की धारा 96 के अनुसार महासभा और सुरक्षा परिषद् अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय से कानून प्रश्नों पर सलाह ले सकती है।

VI. सचिवालय (The Secretariate)-संयुक्त राष्ट्र का प्रबन्धक काम चलाने के लिए चार्टर के अनुसार सचिवालय स्थापित किया गया है, जिसमें संगठन की ज़रूरत के अनुसार कर्मचारी होते हैं। महासचिव सचिवालय का मुखिया होता है। महासचिव की नियुक्ति सुरक्षा परिषद् की सिफ़ारिश पर महासभा 5 वर्ष के लिए करती है। सचिवालय संयुक्त राष्ट्र के सारे अंगों की कार्यवाही लिखता है तथा अन्तर्राष्ट्रीय सन्धियों को प्रकाशित करता है।
निष्कर्ष (Conclusion)-संयुक्त राष्ट्र ने आगामी पीढ़ियों को अन्तर्राष्ट्रीय युद्ध की विभीषिका से बचाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। भले ही राजनीतिक क्षेत्र में संयुक्त राष्ट्र की उपलब्धियां कम रही हों, परन्तु सामाजिक व आर्थिक विकास के क्षेत्र में इसने अद्वितीय भूमिका निभाई है। आज बढ़ते हुए आतंकवाद, निर्धनता और आर्थिक समस्याओं के कारण संयुक्त राष्ट्र की गैर-राजनीतिक भूमिका पहले से भी अधिक बढ़ गई है।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 19 भारत तथा संयुक्त राष्ट्र संघ

प्रश्न 2.
संयुक्त राष्ट्र में भारत की भूमिका का वर्णन करें। (Describe India’s role in United Nations.)
अथवा
भारत ने विश्व शांति की स्थापना में सयुक्त राष्ट्र संघ में क्या भूमिका निभाई है ? (What is India’s role in the United Nations in the maintaining World Peace ?)
अथवा
भारत ने विश्व शान्ति की स्थापना में क्या भूमिका निभाई है? (What role India has played in the establishment of world peace ?)
उत्तर-
द्वितीय महायुद्ध की भयानक तबाही देखकर संसार के सभी भागों में प्रत्येक मनुष्य सोचने लग गया कि यदि एक ऐसा युद्ध और हुआ तो विश्व का तथा मानव जाति का सर्वनाश हो जाएगा। अतः हमारी यह लालसा बढ़ती गई कि अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर शान्ति स्थापित करने के लिए कोई अन्तर्राष्ट्रीय मशीनरी स्थापित की जाए। आने वाली पीढ़ियों को युद्ध से बचाने के लिए 24 अक्तूबर, 1945 को संयुक्त राष्ट्र की स्थापना की गई। संयुक्त राष्ट्र संघ का उद्देश्य अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति एवं सुरक्षा स्थापित करना, राष्ट्रों के बीच जन-समुदाय के लिए समान अधिकारों तथा आत्मनिर्णय के सिद्धान्त पर आश्रित मैत्रीपूर्ण सम्बन्धों का विकास करना, आर्थिक, सामाजिक अथवा मानवतावादी स्वरूप सम्बन्धी समस्याओं को सुलझाने में अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग प्राप्त करना तथा इस सामान्य उद्देश्य की पूर्ति के लिए राष्ट्रों के कार्यों को समन्वय करने के लिए निमित्त एक केन्द्र का कार्य करना है। संयुक्त राष्ट्र संघ के आरम्भ में 51 सदस्य थे और वर्तमान सदस्य संख्या 193 है। भारत संयुक्त राष्ट्र का प्रारम्भिक सदस्य है और इसे विश्व शान्ति के लिए एक महत्त्वपूर्ण संस्था मानता है। 1946 में ही पं० जवाहर लाल नेहरू ने संयुक्त राष्ट्र के साथ सहयोग करने और इसके चार्टर में पूरी तरह आस्था व्यक्त की। जब भारत स्वतन्त्र हुआ तो भारत को स्वतन्त्र विदेश नीति का निर्माण करने का अवसर मिला। भारत की विदेश नीति के कर्णधार पं० जवाहर लाल नेहरू ने गुट-निरपेक्षता, उपनिवेशवाद और साम्राज्यवाद के विरुद्ध स्वतन्त्रता की प्राप्ति तथा रक्षा के लिए लड़ने वाले देशों को नैतिक सहायता देने और विश्व-शान्ति स्थापित करने की नीति को अपनाया। संयुक्त राष्ट्र के उद्देश्यों की पूर्ति के लिए भारत के योगदान का वर्णन इस प्रकार से किया जा सकता है

1. भारत और संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना-भारत ने संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना के लिए सानफ्रांसिस्को सम्मेलन में भाग लिया और चार्टर पर हस्ताक्षर करके वह संयुक्त राष्ट्र संघ का प्रारम्भिक सदस्य बना। सानफ्रांसिस्को सम्मेलन में भारतीय प्रतिनिधि श्री ए. रामास्वामी मुदालियर ने इस बात पर जोर दिया कि युद्ध को रोकने के लिए आर्थिक और सामाजिक न्याय का महत्त्व सर्वाधिक होना चाहिए। भारत की सिफ़ारिश पर चार्टर में मानव अधिकारों और मौलिक स्वतन्त्रताओं के बिना किसी भेदभाव के प्रोत्साहित करने का उद्देश्य जोड़ा गया।

2. संयुक्त राष्ट्र में पूर्ण विश्वास (Full Faith in United Nations)-भारत संयुक्त राष्ट्र के सिद्धान्तों व उद्देश्यों में पूर्ण विश्वास रखता है। संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा के प्रथम अधिवेशन में भारत के प्रतिनिधि ने स्पष्ट रूप से कह दिया कि भारत की संयुक्त राष्ट्र के सिद्धान्तों और उद्देश्यों में पूर्ण आस्था है तथा भारत संयुक्त राष्ट्र को पूरा सहयोग देता रहेगा। 3 नवम्बर, 1945 को पं० जवाहर लाल नेहरू ने महासभा को सम्बोधित करते हुए स्पष्ट कहा था,

“इस महासभा को मैं अपने देश के लोगों और अपमी सरकार की ओर से कहूँगा कि हम संयुक्त राष्ट्र संघ के सिद्धान्तों और उद्देश्यों का पूर्णतः पालन करते हैं और उनकी पूर्ति के लिए तथा अपनी योग्यता सहित प्रयत्न करेंगे।

3. संयुक्त राष्ट्र के उद्देश्य तथा भारत की विदेश नीति के आधारभूत सिद्धान्त एक समान (Objectives of the U.N. at the basic Principle of Indian Foreign Policy are Indentical)—संयुक्त राष्ट्र के उद्देश्य और भारत की विदेश नीति के आधारभूत सिद्धान्त एक समान हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ का मुख्य उद्देश्य अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति एवं सुरक्षा को बनाये रखना, राष्ट्रों के बीच सहयोग को बढ़ाना, अन्तर्राष्ट्रीय महत्त्व की आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक तथा मानवीय समस्याओं के समाधान के लिए अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग की प्राप्ति करना तथा मानव अधिकारों के लिए सम्मान विकसित करना आदि है। संयुक्त राष्ट्र के उद्देश्यों से मेल खाते हुए सिद्धान्तों का वर्णन भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51 में नीति-निर्देशक सिद्धान्तों के अन्तर्गत विदेश नीति से सम्बन्धित सिद्धान्तों में किया गया है, जो इस प्रकार

(1) अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति व सुरक्षा को बढ़ावा देना।
(2) दूसरे राज्यों के साथ न्यायपूर्ण सम्बन्ध स्थापित करना तथा
(3) अन्तर्राष्ट्रीय विवादों को शान्ति से हल करना इत्यादि।

4. संयुक्त राष्ट्र की सदस्यता बढ़ाने में भारत की भूमिका-भारत की सदा ही यह नीति रही है कि विश्व शान्ति को बनाए रखने के लिए संसार के सभी देशों को, जो संयुक्त राष्ट्र संघ के सिद्धान्तों एवं उद्देश्यों में विश्वास रखते हैं, सदस्य बनना चाहिए। इसलिए 1950 से लेकर अगले 20 वर्षों तक लगातार जब भी संयुक्त राष्ट्र संघ में साम्यवादी चीन को सदस्य बनाने का प्रश्न आया, भारत ने सदैव इसका समर्थन किया। परन्तु अमेरिका सुरक्षा परिषद् में चीन की सदस्यता के प्रस्ताव पर वीटो का प्रयोग करता रहा। 1972 में अमेरिका का चीन के प्रति दृष्टिकोण बदलने पर ही चीन सयुंक्त राष्ट्र संघ का सदस्य बना। बंगला देश को संयुक्त राष्ट्र संघ का सदस्य बनवाने में भारत ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।

5. संयुक्त राष्ट्र संघ के मुख्य अंगों में भारत का स्थान-संयुक्त राष्ट्र संघ के मुख्य अंगों और विशेष एजेन्सियों में भारत को महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त रहा है। 1954 में भारत की श्रीमती विजय लक्ष्मी पण्डित महासभा (General Assembly) की अध्यक्षा निर्वाचित हुई। 1956 में डॉ० राधाकृष्णन यूनेस्को के प्रधान चुने गए। भारत सात बार सुरक्षा परिषद् का सदस्य रह चुका है। सामाजिक और आर्थिक परिषद् का भारत लंगभग निरन्तर सदस्य चला आ रहा है। भारत के डॉ० नगेन्द्र सिंह को 1973 और 1982 में पुनः अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय का न्यायाधीश चुना गया। फरवरी 1985 में उन्हें अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश चुना गया। 1989 में न्यायमूर्ति आर० एस० पाठक को अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय का न्यायाधीश बनने का गौरव प्राप्त हुआ। फरवरी, 2003 में भारत की प्रथम महिला पुलिस अधिकारी किरण बेदी को संयुक्त राष्ट्र नागरिक पुलिस सलाहकार नियुक्त किया गया। वे इस प्रतिष्ठत पद पर नियुक्त होने वाली न केवल प्रथम भारतीय अपितु विश्व की प्रथम महिला अधिकारी हैं।

6. भारत और संयुक्त राष्ट्र की विशिष्ट एजेन्सियां (India and Specialized Agencies of U.N.)-भारत संयुक्त राष्ट्र की सभी विशिष्ट एजेन्सियों का सदस्य है तथा इसने इन एजेन्सियों के कार्यों व गतिविधियों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। भारत कृषि प्रधान देश है। अत: भारत खाद्य व कृषि संगठन (FAO) का सदस्य है और भारत ने इसके सम्मेलनों में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है तथा खाद्य पदार्थों के उत्पादन की वृद्धि और कृषि के विकास के लिए तकनीकी विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। भारत यूनेस्को का महत्त्वपूर्ण सदस्य है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की सहायता से भारत के गांवों में स्वास्थ्य, गांवों की सफ़ाई, पीने के पानी की व्यवस्था, परिवार और बाल कल्याण के अनेक कल्याणकारी कार्य चल रहे हैं। अन्तर्राष्ट्रीय पुनर्निर्माण और विकास बैंक ने भारत के विकास के लिए अनेक योजनाओं के लिए व्यापक ऋण दिए हैं।

7. अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति व सुरक्षा की दृष्टि से भारत का योगदान-संयुक्त राष्ट्र संघ का मुख्य उद्देश्य विश्व में शान्ति एवं सुरक्षा बनाए रखना है। भारत ने विश्व शान्ति सुरक्षा को बनाये रखने में संयुक्त राष्ट्र संघ में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसका वर्णन हम इस प्रकार कर सकते हैं-

(i) कोरिया की समस्या-1950 में उत्तरी कोरिया ने दक्षिणी कोरिया पर आक्रमण कर दिया। संयुक्त राष्ट्र संघ ने युद्ध को रोकने के लिए 16 राष्ट्रों की सेनाएं उत्तरी कोरिया के प्रतिरोध के लिए भेजीं। भारत के सैनिकों ने भी इस कार्यवाही में भाग लिया। भारत ने इस युद्ध को समाप्त कराने तथा युद्ध बन्दियों के आदान-प्रदान में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। भारत को तटस्थ राष्ट्र आयोग का अध्यक्ष बनाया गया।

(ii) स्वेज़ नहर की समस्या-जुलाई, 1956 में मिस्र के राष्ट्रपति ने स्वेज़ नहर का राष्ट्रीयकरण कर दिया। इस पर इंग्लैण्ड, फ्रांस और इज़राइल ने मिलकर मिस्र पर आक्रमण कर दिया। भारत ने इन देशों की निन्दा की और महासभा द्वारा पारित उस प्रस्ताव का समर्थन किया जिसमें यह कहा गया कि युद्ध को तुरन्त बन्द कर दिया जाए। स्वेज़ नहर समस्या को हल करने में भारत ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।

(ii) कांगो समस्या-स्वतन्त्रता प्राप्त करने पर कांगो में राजनीतिक अस्थिरता पैदा हो गई। इस परिस्थिति का लाभ उठाते हुए बेल्जियम ने कांगो में हस्तक्षेप करना शुरू कर दिया। लुम्बा ने संयुक्त राष्ट्र से सैनिक सहायता की अपील की। संयुक्त राष्ट्र संघ की अपील पर भारत ने अपनी सेना कांगो भेजी। वास्तव में संयुक्त राष्ट्र सेना में सबसे बड़ी एक टुकड़ी भारतीय बटालियन की थी।

(iv) अरब-इजराइल विवाद-1967 में अरब-इज़राइल युद्ध में इज़राइल ने अरब क्षेत्र पर कब्जा कर लिया। भारत की नीति यह रही है कि इज़राइल को अरब क्षेत्र खाली करने चाहिएं और संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा पारित सभी प्रस्तावों को मानना चाहिए।

(v) सोमालिया के लिए भारतीय सहायता- भारत ने सोमालिया में शान्ति स्थापित करने के उद्देश्य से संयुक्त राष्ट्र की अपील पर 2500 सैनिक भेजे। भारत के विदेश राज्य मन्त्री एडुआर्दो फैलोरियो ने स्वयं सोमालिया जाकर स्थिति का जायजा लिया और भारत की ओर से संयुक्त राष्ट्र के महासचिव को सोमालिया के लिए नियुक्त विशेष प्रतिनिधि को 2.50 लाख डालर का अंशदान दिया।

(vi) युगांडा में शान्ति अभियान-रुआंडा और युगांडा के राष्ट्रपतियों की एक हवाई दुर्घटना में मृत्यु होने के बाद वहां अराजकता फैल गई। वहां के स्थानीय कबीलों में सत्ता प्राप्ति के लिए खूनी संघर्ष आरम्भ हो गया जिसमें लाखों नागरिक मारे गए। संयुक्त राष्ट्र संघ ने युगांडा में शान्ति स्थापना के लिए और खूनी संघर्ष को रोकने के लिए एक शान्ति योजना बनाई जिसके अन्तर्गत भारत को अपने सैनिक युगांडा में भेजने का आग्रह किया गया। भारत ने अक्तूबर, 1994 को अपने 2000 सैनिक युगांडा भेजे।
उपर्युक्त समस्याओं के अतिरिक्त भारत ने अन्य समस्याओं को सुलझाने में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।

8. उपनिवेशवाद का विरोधी-भारत उपनिवेशवाद का सदा ही विरोधी रहा है और भारत ने संयुक्त राष्ट्र संघ उपनिवेशवाद के विरुद्ध आवाज़ बुलन्द की। बंगला देश को स्वतन्त्र करवाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। संयुक्त राष्ट्र संघ ने जिन उपनिवेशों को स्वतन्त्रता दिलाने का प्रयत्न किया है, भारत ने उसका समर्थन किया है। भारत ने उपनिवेशवाद के खिलाफ नवीन शक्ति सहित प्रबल संघर्ष छेड़े जाने का आह्वान किया है। सितम्बर, 1986 में भारत के विदेश मन्त्री शिवशंकर ने नामीबिया के संयुक्त राष्ट्र महासभा के विशेष अधिवेशन में नामीबिया को दक्षिणी अफ्रीका से मुक्त करवाने के लिए दस सूत्रीय कार्यवाही योजना का प्रस्ताव रखा। इस अवसर पर श्री शिवशंकर ने प्रधानमन्त्री राजीव गांधी के इस संकल्प को दोहराया कि नामीबिया नागरिकों को आजादी दिलाने की हर सम्भव कोशिश की जाएगी।

9. रंग-भेद के विरुद्ध संघर्ष- भारत ने रंग-भेद की नीति को विश्व शान्ति के लिए खतरा माना है। रंग-भेद पक्षपात की सबसे व्यापक, अभ्यस्त तथा भ्रष्टाचार प्रदर्शित उदाहरण एशिया तथा अफ्रीका के काले वर्गों के प्रति गोरों की धारणा थी। रंग-भेद की नीति में दक्षिणी अफ्रीकी सरकार सबसे आगे है। भारत ने संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा में कई बार रंग-भेद की नीति के विरुद्ध आवाज़ उठाई और विश्व जनमत तैयार किया जिसके फलस्वरूप संयुक्त राष्ट्र संघ ने अनेक प्रस्ताव पारित किए। प्रधानमन्त्री राजीव गांधी ने रंगभेद की नीति को मानवता के नाम पर कलंक बताते हुए कहा है कि दक्षिणी अफ्रीका में रंगभेद की नीति को समाप्त करने के लिए विश्व समुदाय तत्काल व्यापक व समयबद्ध कार्यक्रम प्रारम्भ करे। प्रधानमन्त्री राजीव गांधी के मतानुसार रंग भेद को समाप्त करने का सबसे प्रभावी तरीका दक्षिण अफ्रीका की रंगभेदी सरकार के खिलाफ़ व्यापक और अनिवार्य आर्थिक प्रतिबन्ध लगाना है। श्री राजीव गांधी ने विश्व समुदाय को आह्वान किया कि प्रिटोरिया शासन का समर्थन करने वाली मात्र आधा दर्जन सरकारों को पीछे धकेल कर दक्षिण अफ्रीका के विरुद्ध कठोर कदम उठाए और उसे मजबूर करे कि वह अश्वेतों से बातचीत करें और रंगभेद की नीति समाप्त करे। भारत के निरन्तर प्रयासों के कारण 27 अप्रैल, 1994 को दक्षिण अफ्रीका में पहली बार बहु-जातीय चुनाव हुए जिसके कारण दक्षिण अफ्रीका से रंगभेद, जातीय भेदभाव आदि को समाप्त कर दिया गया है।

10. निःशस्त्रीकरण के प्रयासों में भारत का सहयोग-संयुक्त राष्ट्र संघ के चार्टर में महासभा और सुरक्षा परिषद् दोनों के ऊपर यह ज़िम्मेदारी डाली गई है कि वे निःशस्त्रीकरण के लिए कार्य करें। भारत की नीति यही रही है कि निःशस्त्रीकरण के द्वारा ही विश्व शान्ति को बनाए रखा जा सकता है और अणु शक्ति का प्रयोग केवल मानव कल्याण के लिए होना चाहिए। प्रधानमन्त्री राजीव गांधी ने कई बार स्पष्ट शब्दों में कहा है कि नि:शस्त्रीकरण समय की सबसे बड़ी आवश्यकता है। वे सामूहिक विध्वंस करने वाले परमाणु हथियारों पर पाबन्दी लगाने के पक्ष में है। अक्तूबर, 1987 में भारत ने संयुक्त राष्ट्र में यह प्रस्ताव रखा कि संयुक्त राष्ट्र महासभा परमाणु हथियार वाले सभी देशों को इन हथियारों का प्रसार रोकने के लिए सहमत कराए और साथ ही इन हथियारों का उत्पादन पूरी तरह रोकना चाहिए तथा हथियारों को बनाने के लिए काम आने वाले विस्फोटक पदार्थ के उत्पादन में भी पूरी तरह कटौती करनी चाहिए। जून, 1988 में स्वर्गीय प्रधानमन्त्री राजीव गांधी ने नि:शस्त्रीकरण पर संयुक्त राष्ट्र के तीसरे विशेष सम्मेलन को सम्बोधित करते हुए आगामी 22 वर्ष के भीतर विश्व के सभी तरह के परमाणु हथियार हटाने के लिए तीन चरणों में समयवद्ध कार्य योजना का सुझाव दिया तथा संयुक्त राष्ट्र से इस योजना को तत्काल एक कार्यक्रम के रूप में आरम्भ करने का आग्रह किया है। 11वें गुट-निरपेक्ष देशों के सम्मेलन (अक्तूबर, 1995) में भारत ने विश्व से पूर्ण परमाणु नि:शस्त्रीकरण के पक्ष में सहयोग देने की बात कही। भारत पूर्ण नि:शस्त्रीकरण के पक्ष में है।

11. मानव अधिकारों की रक्षा-भारत मानव अधिकारों का महान् समर्थक है और भारत ने सदा यह कोशिश की है कि संयुक्त राष्ट्र संघ मानव अधिकारों की रक्षा के लिए उचित कार्यवाही करे।

12. गुट-निरपेक्ष आन्दोलन-भारत गुट-निरपेक्ष आन्दोलन का संस्थापक है और इस आन्दोलन ने शीत युद्ध को कम किया है और संयुक्त राष्ट्र संघ को पूरी तरह से गुटों में विभक्त होने से बचाया है।

13. आर्थिक और सामाजिक समस्याओं को हल करने में भारत की भूमिका- भारत का सदा से ही यह विचार रहा है कि विश्व-शान्ति की स्थायी स्थापना तभी हो सकती है यदि आर्थिक और सामाजिक अन्याय को समाप्त किया जाए। भारत ने इस दिशा में महत्त्वपूर्ण कार्य किया है। भारत ने आर्थिक व पिछड़े देशों के विकास पर विशेष बल दिया है और विकसित देशों को अविकसित देशों की अधिक-से-अधिक सहायता करने के लिए कहा है। राष्ट्र संघ औद्योगिक विकास संगठन (UNIDO) का तीसरा अधिवेशन जनवरी, 1980 में नई दिल्ली में हुआ। 24 अक्तूबर, 1985 को महासभा को सम्बोधित करते हुए स्वर्गीय प्रधानमन्त्री राजीव गांधी ने संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों का आह्वान किया कि वे शान्ति के प्रति अपने को समर्पित कर दुनिया से भुखमरी दूर करने के लिए संघर्ष करें।

14. भारत संयुक्त राष्ट्र की अन्तरिक्ष समिति में (India on Space Committee of U.N.)–भारत संयुक्त राष्ट्र की अन्तरिक्ष समिति का सदस्य है। भारत ने सदा इस बात पर जोर दिया है कि अन्तरिक्ष का प्रयोग शान्तिपूर्ण उद्देश्यों के लिए किया जाना चाहिए।

निष्कर्ष-भारत विश्व-शान्ति व सुरक्षा को बनाए रखने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ के साथ सहयोग देता रहा है और भारत का अटल विश्वास है कि संयुक्त राष्ट्र संघ विश्व-शान्ति को बनाये रखने का महत्त्वपूर्ण यन्त्र है। पं० जवाहर लाल नेहरू ने एक बार कहा था, “हम संयुक्त राष्ट्र संघ के बिना विश्व की कल्पना भी नहीं कर सकते हैं।” भारत संयुक्त राष्ट्र संघ को विश्व-शान्ति की स्थापना का माध्यम मानता है। भारत को आशा है कि जैसे राष्ट्र व्यक्तियों के लिए है, राष्ट्रों के लिए संयुक्त राष्ट्र भी वैसा ही बन जाएगा।

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लघु उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
संयुक्त राष्ट्र संघ का क्या अर्थ है ?
अथवा
संयुक्त राष्ट्र संघ क्या है?
उत्तर-
संयुक्त राष्ट्र संघ एक अन्तर्राष्ट्रीय संगठन है, जिसकी स्थापना 24 अक्तूबर, 1945 को की गई थी। संयुक्त राष्ट्र संघ का अपना संविधान है जिसे चार्टर (Charter) कहा जाता है और यह चार्टर सान फ्रांसिस्को सम्मेलन में तैयार किया गया था। संयुक्त राष्ट्र का मुख्य कार्यालय अमेरिका के प्रसिद्ध नगर न्यूयार्क में स्थित है। आरम्भ में संयुक्त राष्ट्र के 51 सदस्य थे, परन्तु आजकल इसकी सदस्य संख्या 193 है। भारत इसके आरम्भिक सदस्यों में से है। संयुक्त राष्ट्र संघ के उद्देश्य अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति एवं सुरक्षा स्थापित करना, राष्ट्रों के बीच जन समुदाय के लिए समान अधिकारों तथा आत्म निर्णय के सिद्धान्त पर आश्रित मैत्रीपूर्ण सम्बन्धों का विकास करना और इन सामान्य उद्देश्यों की पूर्ति के लिए राष्ट्रों के कार्यों को चलाने के लिए एक केन्द्र का कार्य करना है।

प्रश्न 2.
संयुक्त राष्ट्र के मुख्य उद्देश्य लिखो।
(उत्तर-

  • संयुक्त राष्ट्र का मुख्य उद्देश्य शान्ति एवं सुरक्षा कायम रखना है तथा युद्धों को रोकना और अन्तर्राष्ट्रीय विवादों को शान्तिपूर्ण साधनों द्वारा हल करना है।
  • भिन्न-भिन्न राज्यों के बीच समान अधिकारों के आधार पर मैत्रीपूर्ण सम्बन्धों की स्थापना करना है।
  • अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और मानवीय समस्याओं के लिए अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग की प्राप्ति करना।
  •  उपरोक्त उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए विभिन्न राज्यों के मध्य सहयोग करने के लिए एक केन्द्र की भूमिका निभाना।

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प्रश्न 3.
संयुक्त राष्ट्र के पांच देशों के नाम लिखो, जिन्हें वीटो शक्ति प्राप्त है ?
अथवा
संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद् में वीटो शक्ति मानने वाले 5 महान् देशों के नाम लिखो।
उत्तर-
सुरक्षा परिषद् संयुक्त राष्ट्र की कार्यपालिका है। सुरक्षा परिषद् की कुल संख्या 15 है। इनमें 10 अस्थायी सदस्य तथा 5 स्थायी सदस्य हैं। 5 स्थायी सदस्यों को सुरक्षा परिषद् में वीटो का अधिकार दिया गया है। ये देश हैंअमेरिका, इंग्लैंड, फ्रांस, रूस तथा साम्यवादी चीन।

प्रश्न 4.
संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना कब हुई इसके अंगों के नाम लिखो।
अथवा
संयुक्त राष्ट्र के चार अंगों के नाम लिखो।।
उत्तर-
संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना 24 अक्तूबर, 1945 को की गई थीं। संयुक्त राष्ट्र संघ के चार्टर के अनुसार इसके 6 मुख्य अंग हैं जिनके द्वारा यह अपने बहुमुखी कर्त्तव्यों को पूरा करता है-

  • महासभा-महासभा संयुक्त राष्ट्र का सबसे बड़ा अंग है। इसके 193 सदस्य हैं। इसका मुख्य कार्य चार्टर के क्षेत्र में हर विषय पर विचार-विमर्श करना है।
  • सुरक्षा परिषद्-चार्टर के अनुसार अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति तथा सुरक्षा करने की जिम्मेवारी सुरक्षा परिषद् की है। इसके कुल 15 सदस्य हैं जिनमें पांच राष्ट्र अमेरिका, रूस, फ्रांस, ब्रिटेन और साम्यवादी चीन स्थायी सदस्य हैं और 10 राष्ट्र अस्थायी सदस्य हैं।
  • आर्थिक तथा सामाजिक परिषद्-संयुक्त राष्ट्र के चार्टर के अनुसार इसका मुख्य मनोरथ आर्थिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक समस्याओं को सुलझाना तथा अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग लाना है।
  • ट्रस्टीशिप कौंसिल-इसका उद्देश्य पिछड़े हुए देशों को विकसित देशों के नेतृत्व में उन्नति दिलाना है ताकि वे शीघ्रता से स्वशासन के लिए तैयार हो सकें। ट्रस्टीशिप कौंसिल में सुरक्षा परिषद् से सारे स्थायी सदस्य होते हैं।
  • अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय-विभिन्न राष्ट्रों के मध्य विभिन्न विवादों को हल करने के लिए अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय की व्यवस्था की गई है। इसके 15 जज होते हैं जिन्हें महासभा तथा सुरक्षा परिषद् अलग-अलग स्वतन्त्र तौर पर चुनती है।
  • सचिवालय-संयुक्त राष्ट्र का प्रबन्ध कार्य चलाने के लिए चार्टर के अनुसार सचिवालय स्थापित किया गया है। सचिवालय का मुखिया महासचिव होता है जिसकी नियुक्ति महासभा सुरक्षा परिषद् की सिफ़ारिश पर करती है। सचिवालय में दुनिया के अनेक देशों के नागरिक काम करते हैं।

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प्रश्न 5.
भारत का संयुक्त राष्ट्र के चार क्षेत्रों में दिए गए योगदान का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर-
भारत अनेक बार संयुक्त राष्ट्र संघ के भिन्न-भिन्न अंगों का सदस्य रह चुका है, जैसे कि

  • भारत सुरक्षा परिषद् का सात बार अस्थायी सदस्य रह चुका है। भारत ने सुरक्षा परिषद् के सदस्य के रूप में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
  • भारत सामाजिक तथा आर्थिक परिषद् का सदस्य अनेक बार रह चुका है और अब पिछले कुछ वर्षों से भारत इस परिषद् का निरन्तर सदस्य चला आ रहा है।
  • 1956 में भारत की श्रीमती विजयलक्ष्मी पण्डित महासभा की अध्यक्षा चुनी गई।
  • भारत ने सदा ही यह कोशिश की है, कि संयुक्त राष्ट्र संघ मानवधिकारों की रक्षा के लिए उचित कार्यवाही करे।

प्रश्न 6.
संयुक्त राष्ट्र में वीटो शक्ति क्या है ? यह शक्ति किन देशों के पास है ? नाम लिखो।
उत्तर-
निषेधाधिकार या वीटो सुरक्षा परिषद् के स्थायी सदस्यों की महत्त्वपूर्ण शक्ति है। निषेधाधिकार का अर्थ है स्थायी सदस्यों द्वारा संयुक्त राष्ट्र में किसी प्रस्ताव को पास होने से रोकना। इसका अभिप्राय यह है कि यदि पांच स्थायी सदस्यों में से कोई भी एक सदस्य संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् में रखे गए प्रस्ताव के विरोध में वोट डाल दे तो वह प्रस्ताव पास नहीं होगा। उल्लेखनीय है कि सुरक्षा परिषद् में यदि कोई सदस्य अनुपस्थित रहता है तो उसको निषेधाधिकार का प्रयोग नहीं माना जाएगा। वीटो शक्ति अमेरिका, चीन, इंग्लैण्ड, रूस तथा फ्रांस के पास है।

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प्रश्न 7.
भारत संयुक्त राष्ट्र संघ का सदस्य कब बना ?
अथवा
यह क्यों कहा जाता है कि भारत संयुक्त राष्ट्र का मौलिक मेम्बर है ?
उत्तर-
यद्यपि 1945 में भारत एक स्वतन्त्र देश नहीं था, परन्तु फिर भी उसने 26 जून, 1945 में हुए सान फ्रांसिस्को सम्मेलन में भाग लिया और संयुक्त राष्ट्र संघ के चार्टर पर हस्ताक्षर किए। इस सम्मेलन में भारत का प्रतिनिधित्व ए० आर० मुदालियार, फिरोजखान नून और कृष्माचारी ने किया। इस प्रकार भारत संयुक्त राष्ट्र संघ का प्रारम्भिक/मौलिक सदस्य बन गया।

प्रश्न 8.
विश्व शान्ति की स्थापना में भारत की संयुक्त राष्ट्र में क्या भूमिका है ?
अथवा
विश्व शान्ति की स्थापना में भारत ने संयुक्त राष्ट्र में क्या भूमिका निभाई है?
उत्तर-
भारत ने विश्व-शान्ति तथा सुरक्षा को बनाए रखने में संयुक्त राष्ट्र संघ में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जिसका वर्णन इस प्रकार किया जा सकता है

  • कोरिया समस्या-1950 में उत्तरी कोरिया ने दक्षिणी कोरिया पर आक्रमण कर दिया। संयुक्त राष्ट्र संघ ने युद्ध को रोकने के लिए 16 राष्ट्रों की सेनाएं उत्तरी कोरिया के विरुद्ध भेजीं। भारत के सैनिकों ने भी इस कार्यवाही में भाग लिया।
  • स्वेज़ नहर की समस्या-जुलाई, 1956 में मिस्र के राष्ट्रपति ने स्वेज़ नहर का राष्ट्रीयकरण कर दिया। इस पर इंग्लैण्ड, फ्रांस तथा इज़राइल ने मिलकर मिस्र पर आक्रमण कर दिया। भारत ने इन देशों की निन्दा की और महासभा द्वारा पारित उस प्रस्ताव का समर्थन किया जिसमें कहा गया कि युद्ध को तुरन्त बन्द कर दिया जाए।
  • कांगो समस्या-स्वतन्त्रता प्राप्त करने पर कांगो में राजनीतिक अस्थिरता पैदा हो गई। लुमुम्बा ने संयुक्त राष्ट्र से सैनिक सहायता की अपील की। संयुक्त राष्ट्र संघ की अपील पर भारत ने अपनी सेना कांगो में भेजी।
  • भारत ने सोमालिया में शान्ति स्थापित करने के उद्देश्यों से संयुक्त राष्ट्र की अपील पर 2500 सैनिक भेजे थे।

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प्रश्न 9.
संयुक्त राष्ट्र की महत्त्वपूर्ण विशिष्ट एजेन्सियों के नाम लिखो।
अथवा
संयुक्त राष्ट्र की चार विशिष्ट एजेन्सियों के नाम लिखो।
उत्तर-

  • अन्तर्राष्ट्रीय मजदूर संघ (I.L.O.)
  • संयुक्त राष्ट्र शैक्षणिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (UNESCO)
  • विश्व स्वास्थ्य संघ (W.H.O.)
  • अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (I.M.F.)
  • अन्तर्राष्ट्रीय पुनर्निर्माण और विकास बैंक (I.B.R.D.)
  • खाद्य और खेतीबाड़ी संघ (F.A.O.)।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
संयुक्त राष्ट्र संघ क्या है ?
उत्तर-
संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना 24 अक्तूबर, 1945 को की गई थी। आजकल इसकी सदस्य संख्या 193 है। भारत इसके आरम्भिक सदस्यों में से है। संयुक्त राष्ट्र संघ के उद्देश्य अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति एवं सुरक्षा स्थापित करना, राष्ट्रों के बीच जन-समुदाय के लिए समान अधिकारों तथा आत्म-निर्णय के सिद्धान्त पर आश्रित मैत्रीपूर्ण सम्बन्धों का विकास करना और इन सामान्य उद्देश्यों की पूर्ति के लिए राष्ट्रों के कार्यों को चलाने के लिए एक केन्द्र का कार्य करना है।

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प्रश्न 2.
संयुक्त राष्ट्र के पांच देशों के नाम लिखो, जिन्हें वीटो शक्ति प्राप्त है ?
उत्तर-
सुरक्षा परिषद् संयुक्त राष्ट्र की कार्यपालिका है। सुरक्षा परिषद् की कुल सदस्य संख्या 15 है। इनमें 10 अस्थायी सदस्य तथा 5 स्थायी सदस्य हैं। 5 स्थायी सदस्यों को सुरक्षा परिषद् में वीटो का अधिकार दिया गया है। ये देश हैं-अमेरिका, इंग्लैण्ड, फ्रांस, रूस तथा साम्यवादी चीन।

प्रश्न 3.
संयुक्त राष्ट्र के प्रमुख अंगों के नाम लिखो।
उत्तर-
संयुक्त राष्ट्र के 6 अंग हैं-(1) महासभा, (2) सुरक्षा परिषद्, (3) आर्थिक एवं सामाजिक परिषद्, (4) न्यास परिषद्, (5) अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय तथा (6) सचिवालय।

प्रश्न 4.
संयुक्त राष्ट्र की चार विशिष्ट एजेन्सियों के नाम लिखें।
उत्तर-

  • अन्तर्राष्ट्रीय मजदूर संघ (I.L.O.)
  • संयुक्त राष्ट्र शैक्षणिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (UNESCO)
  • विश्व स्वास्थ्य संघ (W.H.O.)
  • अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (I.M.F.)

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प्रश्न 5.
यह क्यों कहा जाता है कि भारत संयुक्त राष्ट्र का मौलिक मेम्बर है?
अथवा
संयुक्त राष्ट्र की स्थापना कब हुई तथा इसके कुल कितने मौलिक सदस्य थे ? (P.B. 2017)
उत्तर-
संयुक्त राष्ट्र संघ एक अन्तर्राष्ट्रीय संगठन है जिसकी स्थापना 24 अक्तूबर, 1945 को सान फ्रांसिस्को सम्मेलन के परिणामस्वरूप हुई थी। इस सम्मेलन में 51 देशों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। इनमें से 50 देशों ने संयुक्त राष्ट्र के चार्टर पर हस्ताक्षर किए। इन सभी देशों को संयुक्त राष्ट्र का मौलिक सदस्य कहा जाता है। भारत भी इन देशों में से एक था जिसने संयुक्त राष्ट्र के चार्टर पर हस्ताक्षर किए थे। इस प्रकार भारत को संयुक्त राष्ट्र का मौलिक सदस्य कहा जाता है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न-

प्रश्न I. एक शब्द वाक्य वाले प्रश्न-उत्तर

प्रश्न 1.
संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना का उद्देश्य बताएं।
उत्तर-
संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना विश्व में युद्धों को रोकने तथा अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति एवं सुरक्षा के उद्देश्य से की गई थी।

प्रश्न 2.
संयुक्त राष्ट्र का कोई एक मूलभूत सिद्धान्त बताएं।
उत्तर-
संयुक्त राष्ट्र का एक मूलभूत सिद्धान्त यह है कि संयुक्त राष्ट्र की स्थापना सदस्य राष्ट्रों की समानता के आधार पर की गई है।

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प्रश्न 3.
संयुक्त राष्ट्र संघ की दो एजेन्सियों के पूरे नाम लिखें।
उत्तर-

  1. विश्व स्वास्थ्य संगठन (W.H.O.)
  2. अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (I.L.O.)

प्रश्न 4.
संयुक्त राष्ट्र की स्थापना कब की गई थी ?
अथवा
संयुक्त राष्ट्र की स्थापना कब हुई थी ?
उत्तर-
संयुक्त राष्ट्र की स्थापना 24 अक्तूबर, 1945 को की गई।

प्रश्न 5.
संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद् में ‘वीटो’ शक्ति का प्रयोग करने वाले देशों के नाम बताइये।
उत्तर-
5 स्थायी सदस्यों को सुरक्षा परिषद् में वीटो अधिकार प्राप्त है। ये देश हैं-अमेरिका, इंग्लैण्ड, फ्रांस, रूस तथा चीन।

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प्रश्न 6.
संयुक्त राष्ट्र के महासचिव की नियुक्ति कैसे की जाती है ?
उत्तर-
संयुक्त राष्ट्र के महासचिव की नियुक्ति सुरक्षा परिषद् की सिफ़ारिश पर महासभा करती है।

प्रश्न 7.
भारत संयुक्त राष्ट्र का मैम्बर कब बना था ?
उत्तर-
भारत सन् 1945 में ही संयुक्त राष्ट्र का सदस्य बन गया था।

प्रश्न 8.
संयुक्त राष्ट्र में कार्य कर चुके किसी एक भारतीय का नाम लिखो।
उत्तर-
श्रीमती विजय लक्ष्मी पण्डित संयुक्त राष्ट्र महासभा की अध्यक्षा रह चुकी है।

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प्रश्न 9.
संयुक्त राष्ट्र के दो मुख्य अंगों के नाम लिखो।
उत्तर-

  1. महासभा
  2. सुरक्षा परिषद् ।

प्रश्न 10.
संयुक्त राष्ट्र के महासचिव का क्या नाम है ?
अथवा
संयुक्त राष्ट्र का वर्तमान सेक्रेटरी जनरल कौन है ?
उत्तर-
संयुक्त राष्ट्र के महासचिव का नाम श्री एन्टोनियो गुटेरेश है।

प्रश्न 11.
संयुक्त राष्ट्र की एक महत्त्वपूर्ण विशिष्ट एजेन्सी का नाम लिखो।
उत्तर-
अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (I.L.O.)।

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प्रश्न II. खाली स्थान भरें-

1. एन्टोनियो गुटेरेश संयुक्त राष्ट्र का नौवां ……… है। वह …….. का नागरिक है।
2. संयुक्त राष्ट्र संघ में ………. मूल संस्थापक सदस्य हैं।
3. संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना ……….. 1945 को हुई।
4. भारत संयुक्त राष्ट्र संघ का …….. देश है। 5. संयुक्त राष्ट्र संघ के ………. अंग हैं।
उत्तर-

  1. महासचिव, पुर्तगाल
  2. 51
  3. 24 अक्तूबर
  4. संस्थापक
  5. 6।

प्रश्न III. निम्नलिखित वाक्यों में से सही या ग़लत का चुनाव करें

1. संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना द्वितीय विश्व युद्ध के बाद हुई।
2. संयुक्त राष्ट्र संघ के सभी सदस्य प्रभुसत्ता सम्पन्न हैं।
3. वर्तमान समय में संयुक्त राष्ट्र की सदस्य संख्या 190 है।
4. संयुक्त राष्ट्र संघ के कुल 7 अंग हैं।
5. संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य महासभा के सदस्य हैं।
उत्तर-

  1. सही
  2. सही
  3. ग़लत
  4. ग़लत
  5. सही।

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प्रश्न IV. बहुविकल्पीय

प्रश्न 1.
संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना कब हुई ?
(क) 24 अक्तूबर, 1945
(ख) 24 अक्तूबर, 1940
(ग) 24 अक्तूबर, 1943
(घ) 24 अक्तूबर, 1944.
उत्तर-
(क) 24 अक्तूबर, 1945

प्रश्न 2.
संयुक्त राष्ट्र संघ के चार्टर में कितने अनुच्छेद हैं ?
(क) 110
(ख) 111
(ग) 120
(घ) 151
उत्तर-
(ख) 111

प्रश्न 3.
निम्न में से कौन-सा देश संयुक्त राष्ट्र संघ का प्रारंभिक सदस्य है ?
(क) पाकिस्तान
(ख) बंगला देश
(ग) भारत
(घ) नेपाल।
उत्तर-
(ग) भारत

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प्रश्न 4.
संयुक्त राष्ट्र संघ का मुख्यालय स्थित है ?
(क) न्यूयार्क में ।
(ख) लंदन में
(ग) नई दिल्ली में
(घ) पैरिस में।
उत्तर-
(क) न्यूयार्क में ।

प्रश्न 5.
प्रारंभ में संयुक्त राष्ट्र संघ के कितने सदस्य थे ?
(क) 45
(ख) 48
(ग) 51
(घ) 55.
उत्तर-
(ग) 51

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 2 भारतीय आर्य

Punjab State Board PSEB 11th Class History Book Solutions Chapter 2 भारतीय आर्य Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 History Chapter 2 भारतीय आर्य

अध्याय का विस्तृत अध्ययन ।

(विषय-सामग्री की पूर्ण जानकारी के लिए)

प्रश्न 1.
कृषि तथा नगरों के विकास के सन्दर्भ में भारत में आर्यों के प्रसार की चर्चा करें।
उत्तर-
भारतीय आर्य सम्भवतः मध्य एशिया से भारत में आये थे। आरम्भ में ये सप्त सिन्धु प्रदेश में आकर बसे और लगभग 500 वर्षों तक यहीं टिके रहे। ये मूलतः पशु-पालक थे और विशाल चरागाहों को अधिक महत्त्व देते थे। परन्तु धीरेधीरे वे कृषि के महत्त्व को समझने लगे। अधिक कृषि उत्पादन की खपत के लिए नगरों का विकास भी होने लगा। फलस्वरूप आर्य लोग एक विशाल क्षेत्र में फैलते गए। इस प्रकार कृषि तथा नगरों के विकास ने आर्यों के प्रसार में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। कुछ अन्य तत्त्वों ने भी उनके प्रसार में सहायता पहुंचाई। इन सब बातों का विस्तृत वर्णन इस प्रकार है :-

आर्यों के प्रसार की तीव्र गति के कारण- भारत में आर्यों का अधिकतर विस्तार 9वीं सदी ई० पू० से हुआ। इसके कई कारण थे-

(1) अब तक सिन्धु घाटी के अनेक लोग दास बना लिए गए थे। इनसे कृषि के लिए जंगल साफ करने का काम लिया जा सकता था।

(2) आर्यों ने लोहे का प्रयोग भी सीख लिया। लोहे से बने औजार पत्थर, तांबे या कांसे की कुल्हाड़ी से कहीं अधिक बेहतर थे। लोहे के प्रयोग द्वारा ही आर्य गंगा के मैदान के घने जंगलों को काटने में सफल हुए।

(3) सिन्धु घाटी सभ्यता की सीमा से बाहर बड़े पैमाने पर कोई अन्य संगठित समाज नहीं था। इसीलिए आर्यों को किसी लम्बे या शक्तिशाली विरोध का सामना नहीं करना पड़ा। 600 ई० पू० से पहले ही आधुनिक उत्तर प्रदेश का क्षेत्र आर्य सभ्यता का केन्द्र बन चुका था। बिहार और पश्चिम बंगाल में भी इन्होंने बस्तियां स्थापित कर ली थीं। ब्राहाण ग्रन्थों में दो समुद्रों का उल्लेख मिलता है। इसके अतिरिक्त विंध्य पर्वत तथा हिमालय का भी उल्लेख हुआ है। इससे स्पष्ट है कि आर्य लोग 600 ई० पू० तक सारे उत्तर भारत से परिचित हो गए थे। अतः यह कहा जा सकता है कि 900 ई० पू० से 600 ई० पू० तक की तीन सदियों में आर्य बस्तियों का विस्तार बड़े पैमाने पर हुआ।

कृषि का विकास तथा आर्यों का प्रसार-आर्यों का उत्तरी भारत में प्रसार वास्तव में एक महत्त्वपूर्ण घटना थी। इसके । फलस्वरूप एक नई सभ्यता अस्तित्व में आई। आरम्भ में आर्यों ने अपने पशुओं के लिए खुले चरागाह पाने के लिए उन बांधों को नष्ट किया जो सिन्धु घाटी के लोगों ने बाढ़ द्वारा सिंचाई करने के उद्देश्य से बनाए थे। ऋग्वेद में इन्द्र की स्तुति इसीलिए की गई है कि उसने उन नदियों को स्वतन्त्र किया जो ‘कृत्रिम’ रुकावटों द्वारा ‘स्थिर’ कर दी गई थीं। नदियों के स्वतन्त्र हो जाने पर पंजाब की धरती पर विशाल चरागाह बन गई जिसमें नगरों के स्थान पर गांव थे। परन्तु समय पाकर आर्य लोग कृषि के उपयोग तथा महत्त्व को समझने लगे। कृषि के विस्तार के लिए ऋग्वेद में एक प्रार्थना भी मिलती है। इसमें कहा गया है कि गेहूं, जौ, चावल, तिल, मोठ, मसूर, बाजरे आदि की फसलें बढ़ें और कृषि का विस्तार एवं विकास हो। गंगा के मैदान में वे शीघ्र ही लोहे का हल तथा सिंचाई और खाद के प्रयोग से परिचित हो गए। इसके फलस्वरूप पहले से कहीं अधिक विस्तृत प्रदेश कृषि के अधीन हो गया।

नगरों का विकास तथा आर्यों का प्रसार-कृषि से प्राप्त अधिक अन्न की खपत के लिए नगरों के विकास की सम्भावना उत्पन्न हुई। मोहनजोदड़ो और हड़प्पा के पतन के पश्चात् एक बार फिर भारत में हस्तिनापुर, इन्द्रप्रस्थ, कौशाम्भी और काशी जैसे नगर अस्तित्व में आए। समय पाकर नगरों की संख्या बढ़ती गई। उनकी संख्या में वृद्धि के साथ-साथ व्यापार की सम्भावनाएं भी बढ़ीं। ऋग्वैदिक आर्यों के समाज में रथ बनाने वाले से लेकर साधारण बढ़ई तथा धातु और चमड़े के कारीगर भी थे। आरम्भ में वे जिन धातुओं का प्रयोग करते थे, उनमें सोना, तांबा और कांसा मुख्य थे। परन्तु ऋग्वेद के बाद के काल में रांगे (कली), सीसे और लोहे का प्रयोग भी किया जाने लगा।

ऋग्वेद के बाद की रचनाओं में व्यापार के साथ-साथ कहीं अधिक संख्या में दूसरे धन्धों का उल्लेख मिलता है, जैसेशिकारी, मछुआरे, पशु-सेवक, जेवर बनाने वाले, लोहा पिघलाने वाले, टोकरियां बुनने वाले, धोबी, रंगरेज़, रथ बनाने वाले, जुलाहे, कसाई, सुनार, रसोइये, कमान बनाने वाले, सूखी मछलियां बेचने वाले, लकड़ियां इकट्ठी करने वाले, द्वारपाल, प्यादे, सन्देशवाहक, मांस को काटने और मसालेदार भोजन बनाने वाले, कुम्हार, धातु का काम करने वाले, रस्से बनाने वाले, नाविक, बाजीगर, ढोल और बांसुरी वादक आदि। इनके अतिरिक्त व्यापारी तथा ब्याज लेने वाले साहूकार भी थे। नगरों के उदय तथा उद्योग-धन्धों में वृद्धि के कारण आर्यों के प्रसार की गति और भी तीव्र हो गई।

राज्यों (जनपद) की स्थापना-उत्तरी भारत में पूर्ण रूप से फैल जाने के पश्चात् आर्यों ने कुछ बड़े-बड़े राज्य स्थापित किए। लगभग 600 ई० पू० तक उत्तरी भारत में कई राज्य स्थापित हो चुके थे। इनकी संख्या सोलह बताई जाती है। कम्बोज और गान्धार राज्य उत्तर-पश्चिम में स्थित थे। सतलुज और यमुना के मध्य कुरू का राज्य विस्तृत था। यमुना और चम्बल के मध्य शूरसेन राज्य था। शूरसेन के नीचे मत्स्य और मध्य भारत में चेदि राज्य था। नर्मदा नदी के ऊपरी भाग में अवन्ति और महाराष्ट्र में गोदावरी के ऊपरी घेरे में अशमक था। इसी प्रकार गंगा में मैदान में भी कई राज्य थे जिनमें पांचाल, कोशल, मल्ल, वत्स, काशी, वज्जि, मगध और अंग का नाम लिया जा सकता है। इस प्रकार आधे से अधिक मुख्य राज्य गंगा के मैदान में ही स्थित थे। 800 ई० पू० के पश्चात् आर्यों के प्रभाव अधीन क्षेत्र का तेजी से विस्तार हुआ। परन्तु पुराने प्रदेशों की तुलना में नए प्रदेशों में आर्यों की जनसंख्या बहुत कम थी।

ऊपर दिए गये विवरण से स्पष्ट है कि आर्यों ने कुछ ही समय में पूरे उत्तरी भारत में अपना विस्तार कर लिया। कृषि नगरों तथा विभिन्न उद्योग-धन्धों के विस्तार ने उनके प्रसार की गति को तीव्र किया और उनकी शक्ति में वृद्धि की। यह उनके प्रसार का ही परिणाम था कि वे भारत में 16 बड़े-बड़े राज्य (जनपद) स्थापित करने में सफल रहे। उनके द्वारा स्थापित यही जनपद आगे चल कर विशाल साम्राज्य की स्थापना का आधार बने।

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प्रश्न 2.
आर्यों की सामाजिक संस्थाओं तथा धर्म पर लेख लिखें।
उत्तर-
आर्यों ने भारतीय समाज एवं धर्म को नया रूप प्रदान किया। उन्होंने परिवार, जाति, वर्ण आदि सामाजिक संस्थाओं का गठन किया और उन्हें स्थायी रूप प्रदान किया। धर्म के क्षेत्र में भी वे अत्यन्त विकसित विचारधारा लिए हुए थे। प्राकृतिक शक्तियों की उपासना के साथ-साथ उन्होंने धर्म में आवागमन तथा कर्म-सिद्धान्त जैसे अत्यन्त गहन विचारों का समावेश किया। उनकी आदर्श सामाजिक संस्थाओं तथा धर्म के विभिन्न पक्षों का वर्णन इस प्रकार है :

I. सामाजिक संस्थाएं

1. वर्ण-व्यवस्था-वर्ण व्यवस्था आर्यों की महत्त्वपूर्ण संस्था थी। आर्यों का पूरा समाज इससे प्रभावित था। इस संस्था का विकास बहुत धीरे-धीरे हुआ। आरम्भ में आर्यों का समाज तीन वर्गों में बंटा हुआ था। युद्ध लड़ने वाले योद्धा ‘क्षत्रिय’ कहलाते थे तथा कबीले के साधारण लोगों को ‘वैश्य’ कहा जाता था। उस समय पुरोहित भी थे, परन्तु अभी पुरोहित वर्ग अस्तित्व में नहीं आया था। आरम्भ में इस सामाजिक विभाजन का उद्देश्य केवल सामाजिक तथा आर्थिक संगठन को सुदृढ़ बनाना था। यहां एक बात और भी ध्यान देने योग्य है कि समाज के इन वर्गों को अभी तक कोई ठोस रूप नहीं दिया गया था।

समय बीतने पर आर्य लोगों ने कुछ दासों (युद्ध बन्दियों) को अपने अधीन कर लिया। फलस्वरूप उन्हें समाज में कोई स्थान देने की समस्या उत्पन्न हो गई। यह समस्या उन्हें समाज में सबसे निम्न स्थान देकर सुलझाई गई। इसके अतिरिक्त वैदिक संस्कारों का महत्त्व भी बढ़ने लगा। इन संस्कारों को सम्पन्न करने का कार्य पुरोहितों ने सम्भाल लिया। धीरे-धीरे उन्होंने एक पृथक् वर्ग का रूप धारण कर लिया। धीरे-धीरे आर्यों का समाज चार वर्गों में बंट गया। इन चार वर्गों में योद्धा वर्ग ‘क्षत्रिय’ तथा पुरोहित वर्ग ‘ब्राह्मण’ कहलाया। समृद्ध ज़मींदार तथा व्यापारी वैश्य तथा साधारण किसान ‘शूद्र’ कहलाने लगे। इस प्रकार वर्ण-व्यवस्था ने स्पष्ट रूप धारण कर लिया।

समय के साथ-साथ वर्ण-व्यवस्था जटिल होने लगी। यदि एक वर्ग के लोग अपना व्यवसाय बदल भी लेते थे, तो उन्हें नए वर्ग का अंग नहीं माना जाता था। दूसरे वर्ण-व्यवस्था में मुख्य रूप से आर्य लोग ही शामिल थे। शूद्रों को जोकि प्रायः आर्य नहीं थे, वैदिक संस्कार करने की आज्ञा नहीं थी। वे अपने ही देवी-देवताओं की पूजा करते थे और उनके धार्मिक संस्कार आर्यों से अलग थे। बाद में ब्राह्मणों ने वर्ण-व्यवस्था को धार्मिक ढांचे में ढाल दिया। वर्ण-व्यवस्था के इस नए संगठन में ब्राह्मणों को पहला, क्षत्रियों को दूसरा, वैश्यों को तीसरा और शूद्रों को चौथा स्थान प्राप्त था। यह बात ऋग्वेद के मन्त्र ‘पुरुष सूक्त’ से स्पष्ट हो जाती है। उसमें कहा गया है कि एक बलि-संस्कार में पुरुष के मुंह से ब्राह्मण, बाजुओं से क्षत्रिय, जंघाओं से वैश्य और पैरों से शद्रों की उत्पत्ति हई थी। वर्ण-व्यवस्था काफ़ी समय तक अपने इस रूप में संगठित रही।

2. जाति-1000 ई० पू० के पश्चात् कस्बों तथा उद्योग-धन्धों की संख्या बढ़ जाने के कारण वर्ण-व्यवस्था में विविधता आने लगी और इसके स्थान पर ‘जाति’ व्यवस्था का महत्त्व बढ़ने लगा। ‘जाति’ एक ही व्यवसाय से सम्बन्धित लोगों के समूह को कहा जाता था। धीरे-धीरे चार वर्णों की तरह नवीन जातियों का स्थान भी समाज में निश्चित कर दिया गया। सभी जातियों के लोग अपना पैतृक व्यवसाय अपनाते थे। उनके विवाह-सम्बन्धी नियम भी बड़े जटिल थे। एक जाति के लोगों को दूसरी जाति के लोगों के साथ मिलकर खाने-पीने की मनाही थी। एक जाति के लोग अपना व्यवसाय बदल कर समाज में ऊंचा दर्जा प्राप्त कर सकते थे। परन्तु जब केवल एक ही व्यक्ति अपना व्यवसाय बदलता था, उसे समाज में तब तक ऊंचा स्थान नहीं मिलता था जब तक कि वह किसी ऐसे धार्मिक समूह का अंग न बन जाता जिसका वर्ण-व्यवस्था में कोई विश्वास न हो।

3. परिवार-परिवार भी आर्यों के सामाजिक जीवन की एक महत्त्वपूर्ण संस्था थी। परिवार पितृ प्रधान होते थे। पिता अर्थात् परिवार में सबसे अधिक आयु का व्यक्ति परिवार का मुखिया होता था। पिता अपनी सन्तान से दया तथा प्रेम का व्यवहार करता था। पिता के अधिकार काफ़ी अधिक थे और वह परिवार में अनुशासन को बड़ा महत्त्व देता था। पुत्र तथा पुत्री के विवाह में पिता का पूरा हाथ होता था। पिता परिवार की सम्पत्ति का भी स्वामी होता था। उसकी मृत्यु के पश्चात् उसका पुत्र उस सम्पत्ति का स्वामी होता था। उन दिनों पुत्र गोद लेने की प्रथा भी प्रचलित थी। परिवार में स्त्री का सम्मान होता था। परन्तु सम्पत्ति में उसे हिस्सा नहीं दिया जाता था।

II. धर्म

ऋग्वैदिक आर्यों के देवी-देवता-ऋग्वेद के अध्ययन से पता चलता है कि आर्य लोग प्रकृति के पुजारी थे। वे उन सभी प्राकृतिक शक्तियों की उपासना करते थे जो उनके लिए वरदान अथवा अभिशाप थीं। अपनी समृद्धि के लिए वे सूर्य, वर्षा, पृथ्वी आदि की पूजा करते थे। वे अग्नि, आंधी और तूफान आदि की भी स्तुति करते थे ताकि वे उनके प्रकोपों से बचे रहें। कालान्तर में आर्य प्रकृति की विभिन्न शक्तियों को देवता मान कर पूजने लगे। वरुण उनका प्रमुख देवता था। उसे आकाश का देवता माना जाता था। आर्यों के अनुसार वरुण समस्त जगत् का पथ-प्रदर्शन करता है।

आर्य सैनिकों के लिए इन्द्र देवता अधिक महत्त्वपूर्ण था। उसे युद्ध तथा ऋतुओं का देवता माना जाता था। ऋग्वेद में इन्द्र का वर्णन यूं किया गया है-“हे पुरुषो ! इन्द्र वह है जिसको आकाश और पृथ्वी नमस्कार करते हैं, जिसकी श्वास से पर्वत भयभीत हो जाते हैं।” युद्ध में विजय के लिए इन्द्र की उपासना की जाती थी। आर्यों का एक अन्य देवता रुद्र था। उसकी पूजा प्रायः विपत्तियों के निवारण के लिए की जाती थी। आर्यों में अग्नि देवता की भी पूजा प्रचलित थी। उसे मनुष्य तथा देवताओं के बीच दूत माना जाता था। इन देवताओं के साथ-साथ आर्य लोग पृथ्वी, वायु, सोम आदि अनेक देवी-देवताओं की उपासना भी करते थे।

यज्ञों का उद्देश्य और महत्त्व-आर्यों के धर्म में यज्ञों को बड़ा महत्त्व प्राप्त था। सबसे छोटा यज्ञ घर में ही किया जाता था। समय-समय पर बड़े-बड़े यज्ञ भी होते थे जिनमें सारा गांव या कबीला भाग लेता था। बड़े यज्ञों के रीति-संस्कार अत्यन्त जटिल थे और इनके लिए काफ़ी समय पहले से तैयारी करनी पड़ती थी। इन यज्ञों में अनेक पुरोहित भाग लेते थे। इनमें अनेक जानवरों की बलि दी जाती थी। यह बलि देवताओं को प्रसन्न करने के उद्देश्य से दी जाती थी। आर्यों का विश्वास था कि यदि इन्द्र देवता प्रसन्न हो जाएं तो वे युद्ध में विजय दिलाते हैं, आयु बढ़ाते हैं और सन्तान तथा धन में वृद्धि करते हैं। बाद में एक और उद्देश्य से भी यज्ञ किए जाने लगे। वह यह था कि प्रत्येक यज्ञ से संसार पुनः एक नया रूप धारण करेगा, क्योंकि संसार की उत्पत्ति यज्ञ द्वारा हुई मानी गई थी।

उत्तर वैदिक धर्म-ऋग्वेद के बाद भारतीय आर्यों (उत्तर वैदिक आर्यों) के धर्म का रूप निखरने लगा। अब रुद्र और विष्णु जैसे नए देवता आर्यों में अधिक प्रिय हो गए। ऋग्वैदिक काल में विष्णु को सूर्य का एक रूप समझा जाता था। परन्तु अब उसकी पूजा एक स्वतन्त्र देवता के रूप में की जाने लगी। अब अनेक प्रकार के यज्ञ होने लगे। सूत्र यज्ञ’ कई-कई वर्षों तक चलते रहते थे। ब्राह्मण ग्रन्थों में पूरी शताब्दी तक चलने वाले यज्ञों का उल्लेख भी मिलता है। इन यज्ञों को लोग स्वयं नहीं कर सकते थे अपितु उन्हें ब्राह्मणों को बुलाना पड़ता था। फलस्वरूप ब्राह्मण वर्ग समाज पर पूरी तरह छा गया था। अब लोग कर्म सिद्धान्त में विश्वास रखने लगे थे। उनके अनुसार जो मनुष्य अपने जीवन काल में ईश्वर को प्राप्त कर लेता था वह मोक्ष प्राप्त करता था। मोक्ष से आत्मा मरती नहीं अपितु अमर हो जाती है। जो व्यक्ति नेक कार्य तो करता है, परन्तु ईश्वर को प्राप्त नहीं कर पाता, वह सीधा चन्द्र लोक में जाता है। कुछ समय पश्चात् वह मनुष्य के रूप में पुनः जन्म लेता है। प्रत्येक मनुष्य का भाग्य अपने पूर्व जन्म के कर्मों के अनुसार निश्चित होता है।

सच तो यह है कि ऋग्वैदिक समाज बड़ा उच्च तथा सभ्य समाज था। सफल पारिवारिक जीवन, नारी का गौरवमय स्थान, अध्यात्मवाद का प्रचार आदि सभी बातें एक उन्नत समाज का संकेत देती हैं। हमें एक ऐसे विकसित समाज के दर्शन होते हैं जहां पाप-पुण्य में भेद समझा जाता था और जहां लोगों को बुरे-भले की पहचान थी।

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महत्त्वपूर्ण परीक्षा-शैली प्रश्न

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न

1. उत्तर एक शब्द से एक वाक्य तक

प्रश्न 1.
आर्यों का मुख्य व्यवसाय क्या था ?
उत्तर-
आर्यों का मुख्य व्यवसाय पशु-पालन तथा कृषि करना था।

प्रश्न 2.
आर्य भारत में कब आकर बसे ?
उत्तर-
आर्य भारत में लगभग 1500 ई० पूर्व में आकर बसे।

प्रश्न 3.
भारतीय आर्यों ने किस प्रदेश को सबसे पहले अपना निवास-स्थान बनाया ?
उत्तर-
उत्तर-पश्चिमी प्रदेश सप्त सिन्धु को।

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प्रश्न 4.
आर्यों के किन्हीं चार देवी-देवताओं के नाम बताओ।
उत्तर-
सूर्य, इन्द्र, वायु और ऊषा आर्यों के मुख्य देवी-देवता थे।

प्रश्न 5.
सांख्य दर्शन की रचना किसने की थी ?
उत्तर-
सांख्य दर्शन की रचना कपिल ने की थी।

प्रश्न 6.
योग दर्शन का लेखक कौन था ?
उत्तर-
योग दर्शन का लेखक पातंजलि था।

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प्रश्न 7.
ऋग्वैदिक काल की दो विदुषियों के नाम बताओ।
उत्तर-
गार्गी और विश्वारा।

प्रश्न 8.
आर्य लोग किस पशु को पवित्र मानते थे ?
उत्तर-
आर्य लोग गाय को पवित्र मानते थे।

प्रश्न 9.
ऋग्वैदिक काल के राजा की शक्तियों पर रोक लगाने वाली दो संस्थाओं के नाम बताओ।
उत्तर-
‘सभा और समिति’।

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प्रश्न 10.
श्रीकृष्ण ने किस स्थान पर अर्जुन को गीता का उपदेश दिया ?
उत्तर-
श्रीकृष्ण ने कुरुक्षेत्र में अर्जुन को गीता का उपदेश दिया।

प्रश्न 11.
“भगवद्गीता” का शाब्दिक अर्थ क्या है ?
उत्तर-
“भगवद्गीता” का शाब्दिक अर्थ भगवान का गीत है।

2. रिक्त स्थानों की पूर्ति-

(i) वैदिक आर्यों की मूल भाषा ……… थी।
(ii) आर्यों के मूल स्थान के विषय में सर्वमान्य सिद्धान्त ……… का सिद्धान्त है।
(iii) आर्यों का सबसे प्राचीन ग्रंथ ……… है।
(iv) ऋग्वैदिक काल में पंजाब को ………… प्रदेश कहा जाता था।
(v) वैदिक काल में ………… शासन प्रणाली थी। .
उत्तर-
(i) संस्कृत
(ii) मध्य एशिया
(iii) ऋग्वेद
(iv) सप्तसिंधु
(v) राजतंत्रीय।

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3. सही/ग़लत कथन-

(i) इन्द्र आर्यों का वर्षा का देवता था।– (√)
(ii) वैदिक समाज में स्त्री को निम्न स्थान प्राप्त था।– (×)
(iii) मुख्य वेद संख्या में 6 हैं।– (×)
(iv) वरुण आर्यों का एक देवता था।– (√)
(v) आयुर्वेद एक चिकित्सा शास्त्र है।– (√)

4. बहु-विकल्पीय प्रश्न

प्रश्न (i)
वैदिक समाज कितने वर्षों में बंटा हुआ था ?
(A) दो
(B) तीन
(C) चार
(D) छः।
उत्तर-
(C) चार

प्रश्न (ii)
दस्यु कौन थे ?
(A) आर्यों से पहले समाज में रहने वाले लोग
(B) आर्यों को हराने वाले लोग।
(C) आर्यों के समाज में सबसे उच्च स्थान रखने वाले लोग
(D) व्यापारी तथा दस्तकार के रूप में काम करने वाले लोग।
उत्तर-
(A) आर्यों से पहले समाज में रहने वाले लोग

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प्रश्न (iii)
आर्यों के समाज में सर्वोच्च स्थान पर थे-
(A) क्षत्रिय
(B) ब्राह्मण
(C) वैश्य
(D) शूद्र।
उत्तर-
(D) उपनिषदों में।

प्रश्न (iv)
आर्य विचारकों के दार्शनिक विचार मिलते हैं-
(A) वेदांगों में
(B) उपवेदों में
(C) श्रुतियों में
(D) उपनिषदों में।
उत्तर-
(D) उपनिषदों में।

प्रश्न (v)
निम्न में से कौन-सा आर्यों का देवता नहीं था ?
(A) मातंग
(B) सूर्य.
(C) वायु
(D) वरूण।
उत्तर-
(A) मातंग

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II. अति छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
भारतीय आर्यों की आदिभूमि के बारे में कौन-से क्षेत्र बताए जाते हैं ?
उत्तर-
भारतीय आर्यों की आदिभूमि के बारे में मुख्य रूप से मध्य एशिया अथवा सप्त सिन्धु प्रदेश, उत्तरी ध्रुव तथा मध्य एशिया के क्षेत्र बताए जाते हैं। मध्य प्रदेश तथा सप्त सिन्धु प्रदेश का सम्बन्ध प्राचीन भारत से है।

प्रश्न 2.
आर्यों की मूल भाषा में से कौन-सी दो यूरोपीय भाषायें निकली ?
उत्तर-
आर्यों की मूल भाषा में से निकलने वाली दो यूरोपीय भाषाएं थीं-यूनानी तथा लातीनी।

प्रश्न 3.
आरम्भ में आर्यों का मुख्य धन्धा तथा उनकी सम्पत्ति का माप क्या था ?
उत्तर-
आरम्भ में आर्यों का मुख्य धन्धा पशु चराना था। पशु ही उनकी सम्पत्ति का माप थे।

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प्रश्न 4.
आर्यों का मुख्य वाहन कौन-सा पशु था और यह किस प्रकार के रथों में जोता जाता था ?
उत्तर-
आर्यों का मुख्य वाहन पशु घोड़ा था। इसे हल्के रथों में जोता जाता था।

प्रश्न 5.
चार वेदों के क्या नाम हैं ?
उत्तर-
चार वेदों के नाम हैं : ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद तथा अथर्ववेद।

प्रश्न 6.
600 ई० पू० के लगभग कौन-से दो धार्मिक ग्रन्थों की रचना हुई थी ?
उत्तर-
600 ई० पू० के लगभग ब्राह्मण ग्रन्थों तथा उपनिषदों की रचना हुई।

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प्रश्न 7.
1000 से 700 ई० पू० की घटनाएं कौन-से दो महाकाव्यों में बताई गई हैं ?
उत्तर-
1000 से 700 ई० पू० तक की घटनाएं महाभारत तथा रामायण नामक दो महाकाव्यों में बताई गई हैं।

प्रश्न 8.
ऋग्वेद में दी गई किन्हीं चार नदियों के नाम बताओ।
उत्तर-
ऋग्वेद में दी गई चार नदियों के नाम हैं-काबुल, स्वात, कुर्रम और गोमल।

प्रश्न 9.
‘पणि’ शब्द से क्या भाव था ?
उत्तर-
‘पणि’ शब्द से भाव सम्भवतः सिन्धु घाटी के व्यापारी वर्ग से था। ऋग्वेद में इन लोगों को पशु चोर बताया गया है और आर्य लोग इन्हें अपना शत्रु समझते थे।

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प्रश्न 10.
ऋग्वेद में दिए गए दस राजाओं के युद्ध का सामाजिक महत्त्व क्या है ?
उत्तर-
दस राजाओं का युद्ध इस बात का प्रतीक है कि ऋग्वैदिक काल में सामाजिक एकीकरण की प्रक्रिया आरम्भ हो चुकी थी।

प्रश्न 11.
राजा सुदास कौन-से कबीले से था और इसकी चर्चा किस सन्दर्भ में आती है ?
उत्तर-
राजा सुदास का सम्बन्ध ‘भरत’ कबीले से था। उसकी चर्चा दस राजाओं के संघ को हराने के सन्दर्भ में आती है।

प्रश्न 12.
राजसूय यज्ञ का क्या महत्त्व था ?
उत्तर-
राजसूय यज्ञ राज्य में दैवी शक्ति का संचार करने के लिए किया जाता था। इससे स्पष्ट है कि राजपद को दैवी देन माना जाने लगा था।

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प्रश्न 13.
ब्राह्मण ग्रन्थों में किन दो पर्वतों का उल्लेख मिलता है ?
उत्तर-
ब्राह्मण ग्रन्थों में विन्ध्य पर्वत तथा हिमालय का उल्लेख मिलता है।

प्रश्न 14.
सबसे अधिक गौरव का स्थान किस यज्ञ को प्राप्त था और इसमें किस पशु की बलि दी जाती थी ?
उत्तर-
सबसे अधिक गौरव अश्वमेध यज्ञ को प्राप्त था। इस यज्ञ में घोड़े (अश्व) की बलि दी जाती थी।

प्रश्न 15.
600 ई० पू० के लगभग उत्तर-पश्चिम में तथा सतलुज एवं यमुना नदियों के मध्य में कौन-से तीन राज्य थे ?
उत्तर-
इस काल में देश के उत्तर-पश्चिम में कम्बोज तथा गान्धार राज्य स्थित थे। सतलुज और यमुना नदियों के मध्य कुरू राज्य था।

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प्रश्न 16.
700 ई० पू० के लगभग कोई चार गणराज्यों के नाम बतायें।
उत्तर-
700 ई० पू० के लगभग चार गणराज्य थे-शाक्य, मल्ल, वज्जि तथा यादव।

प्रश्न 17.
भारत में विकसित होने वाले चार आरम्भिक नगरों के नाम बताएं।
उत्तर-
भारत में विकसित होने वाले चार आरम्भिक नगरों के नाम थे-हस्तिनापुर, इन्द्रप्रस्थ, कौशाम्भी और काशी।

प्रश्न 18.
‘वर्ण’ का शाब्दिक अर्थ बताएं। इस शब्द का आरम्भ में व्यवहार किस परिस्थिति में हुआ ?
उत्तर-
वर्ण का शाब्दिक अर्थ है-रंग। आरम्भ में इस शब्द का व्यवहार उस समय हुआ जब आर्य स्वयं को पराजित दासों से भिन्न रखने के लिए रंग भेद को महत्त्व देने लगे थे।

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प्रश्न 19.
वर्ण-व्यवस्था के अन्तर्गत चार वर्णों के नाम बताएं।
उत्तर-
वर्ण-व्यवस्था के अनुसार चार वर्णों के नाम थे-क्षत्रिय (योद्धा वर्ग), ब्राह्मण (पुरोहित लोग), वैश्य (धनी व्यापारी एवं ज़मींदार) और शूद्र (साधारण किसान आदि)।

प्रश्न 20.
आर्यों के समय परिवार का प्रधान कौन-सा सदस्य होता था ? तब सम्बन्धित परिवारों के समूह को क्या कहा जाता था ?
उत्तर-
परिवार का प्रधान परिवार में सबसे बड़ी आयु वाला सदस्य होता था। सम्बन्धित परिवारों के समूह को ‘ग्राम’ कहा जाता था।

प्रश्न 21.
ऋग्वेद में कौन-सी चार देवियों का उल्लेख आता है ? .
उत्तर-
ऋग्वेद में प्रात:काल की देवी उषा, रात की देवी रात्रि, वन की देवी अरण्यी तथा धरती की देवी पृथ्वी का उल्लेख आता है।

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प्रश्न 22.
आर्यों के समय किन दो संस्कारों में अग्नि देवता का सम्बन्ध था ?
उत्तर-
अग्नि देवता का सम्बन्ध मुख्यतः ‘विवाह संस्कार’ तथा ‘दाह संस्कार’ के साथ था।

प्रश्न 23.
आर्यों में इन्द्र किन चीज़ों का देवता होता था ?
उत्तर-
आर्यों में इन्द्र युद्ध तथा वर्षा का देवता होता था।

प्रश्न 24.
साधारण जीवन के चार आश्रम कौन-से थे ?
उत्तर-
साधारण जीवन के चार आश्रम थे-ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ तथा संन्यास।

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प्रश्न 25.
‘द्विज’ से क्या भाव था और कौन-से तीन वर्गों को यह स्थान प्राप्त था ?
उत्तर-
‘द्विज’ से भाव था-‘दूसरा जन्म’। यह स्थान क्षत्रियों, ब्राह्मणों तथा वैश्यों को प्राप्त था।

II. छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
आर्य लोग भारत में कब और कैसे आये ?
उत्तर-
आर्यों का भारत-आगमन एक उलझा हुआ प्रश्न है। इस विषय में प्रत्येक विद्वान् अपना पृथक् दृष्टिकोण रखता है। तिलक और जैकोबी ने आर्यों के भारत में आने का समय 6000 ई० पू० से 4000 ई० पू० बताया है। प्रो० मैक्समूलर के विचार में आर्य लोगों ने 1200 से 1000 ई० पू० के मध्य में भारत में प्रवेश किया। डॉ० आर० के० मुखर्जी के अनुसार आर्य लोग सबसे पहले 2500 ई० पू० में भारत में आए तथा लगभग 1900 ई० पू० तक वे लगातार आते रहे। आज यह बात स्पष्ट हो चुकी है कि आर्य लोग भारत में एक साथ नहीं आए। वे धीरे-धीरे यहां आते रहे और बसते रहे। अतः डॉ० आर० के० मुखर्जी का मत अधिक मान्य जान पड़ता है।

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प्रश्न 2.
ऋग्वैदिक काल में आर्य लोगों की बस्तियां मुख्य रूप से कहां केन्द्रित थी ?
उत्तर-
ऋग्वैदिक काल से अभिप्राय उस काल से है जिस काल में आर्य लोगों ने ऋग्वेद की रचना की। ये लोग अफगानिस्तान के मार्ग से भारत आए थे और यहां आकर बस गए थे। आरम्भ में ये 500 वर्षों तक उसी क्षेत्र में बसे जिसमें सिन्धु घाटी की सभ्यता के लोग रहते थे। इस प्रदेश में मुख्यत: सिन्धु नदी तथा प्राचीन पंजाब की पांच नदियों (सिन्धु नदी की सहायक नदियों) का प्रदेश सम्मिलित था। बाद में वे पूर्व दिशा में आगे की ओर बढ़े। धीरे-धीरे उन्होंने सतलुज तथा यमुना नदियों के बीच के प्रदेश और दिल्ली के आस-पास के प्रदेशों में अपनी बस्तियां बसा लीं। आर्यों के ये सभी क्षेत्र सामूहिक रूप से सप्त सिन्धु प्रदेश के नाम से प्रसिद्ध हैं। अतः हम यूं भी कह सकते हैं कि ऋग्वैदिक काल में आर्यों की बस्तियां मुख्य रूप से सप्त सिन्धु प्रदेश में ही केन्द्रित थीं।

प्रश्न 3.
आर्य लोग यमुना नदी की पूर्वी दिशा में कब बढ़े ? उनके इस दिशा में विस्तार के क्या कारण थे ?
उत्तर-
आर्य लोग लगभग 500 वर्ष तक सप्त सिन्धु प्रदेश में रहने के पश्चात् यमुना नदी के पूर्व की ओर बढ़े। इस दिशा में उनके विस्तार के मुख्य कारण ये थे :-

1. इस समय तक आर्यों ने सप्त सिन्धु के अनेक लोगों को दास बना लिया था। इन दासों से वे जंगलों को साफ करने का काम लेते थे। जहां कहीं जंगल साफ हो जाते, वहां वे खेती करने लगते थे।

2. इसी समय आर्य लोहे के प्रयोग से भी परिचित हो गए। लोहे से बने औज़ार तांबे अथवा कांसे के औज़ारों की अपेक्षा अधिक मजबूत और तेज़ थे। इन औजारों की सहायता से वनों को बड़ी तेजी से साफ किया जाता था।

3. आर्यों के तीव्र विस्तार का एक अन्य कारण यह था कि सिन्धु घाटी की सभ्यता की सीमाओं के पार कोई शक्तिशाली संगठन अथवा कबीला नहीं था। परिणामस्वरूप आर्यों को किसी विरोधी का सामना न करना पड़ा और वे बिना किसी बाधा के आगे बढ़ते गए।

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 2 भारतीय आर्य

प्रश्न 4.
जाति-प्रथा के क्या लाभ हुए ?
उत्तर-

  • जाति-प्रथा के कारण भारतीयों ने विदेशियों से अधिक मेल-जोल न बढ़ाया। परिणामस्वरूप भारतीय संस्कृति विदेशी प्रभाव से सुरक्षित रही।
  • जाति-प्रथा के कारण लोग केवल अपनी ही जाति में विवाह करते थे। इस प्रकार रक्त की पवित्रता बनी रही।
  • जाति-प्रथा के कारण लोग बचपन से ही अपने पिता के व्यवसाय में जुट जाते थे। फलस्वरूप बड़े होकर वे निपुण कारीगर सिद्ध होते थे।
  • जाति-प्रथा के कारण प्रत्येक जाति के लोगों को अपनी जाति का व्यवसाय अपनाना पड़ता था। अतः लोगों को रोज़ी का कोई अन्य साधन ढूंढ़ने की चिन्ता नहीं रहती थी।
  • जाति-प्रथा के अनुसार ब्राह्मणों का कार्य शिक्षा देना था। वे निःशुल्क शिक्षा प्रदान करते थे।
  • शुद्धि द्वारा अन्य जातियों के लोग हिन्दू बन सकते थे। अतः शक, हूण, यूनानी आदि भारत पर आक्रमण करने वाली अनेक जातियां हिन्दू समाज का अंग बन गईं।

प्रश्न 5.
जाति-प्रथा से भारतीय समाज को क्या हानि पहुंची ?
उत्तर-

  • जाति-प्रथा के कारण राष्ट्रीयता की भावना को गहरा आघात पहुंचा। लोग राष्ट्रीय हितों को भूलकर केवल अपनी जाति के बारे में सोचने लगे।
  • जाति-प्रथा के कारण केवल क्षत्रिय ही सैनिक शिक्षा प्राप्त करते थे। फलस्वरूप देश में सैनिक शिक्षा सीमित रही।
  • जाति-प्रथा के कारण लोगों के लिए पैतृक धन्धा बदलना बड़ा कठिन होता था। फलस्वरूप लोगों का व्यक्तिगत विकास रुक गया।
  • ब्राह्मण, क्षत्रिय तथा वैश्य जाति के लोग शूद्रों को अपने से नीचा समझते थे और उनसे घृणा करते थे। परिणामस्वरूप समाज में छुआछूत की भावना बढ़ी।
  • ब्राह्मणों ने अपने स्वार्थ के लिए अनेक प्रथाएं प्रचलित की जिनसे उन्हें अधिक-से-अधिक लाभ पहुंचे। इस प्रकार अनेक सामाजिक कुरीतियां प्रचलित हुईं।

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प्रश्न 6.
ऋग्वेद से दासों की स्थिति के बारे में क्या पता चलता है ?
उत्तर-
ऋग्वेद में ‘आर्यों के दासों’ के साथ हुए सशस्त्र संघर्षों का बार-बार उल्लेख मिलता है। दास काले वर्ण के, मोटे होठों एवं चपटी नाक वाले थे। वास्तव में यहां ‘दास’ से भाव सिन्धु घाटी के कृषक समाज से है। ये लोग भूमि पर अच्छी तरह बसे हुए थे जबकि आर्य लोग अभी भी अधिकांशत: पशु-पालन अवस्था में थे। अन्ततः आर्यों ने दासों को अपने अधीन कर लिया। इस तथ्य की जानकारी संस्कृत के ‘दास’ शब्द से होती है। यह शब्द जो अब अधीनस्थ अथवा ‘गुलाम’ का अर्थ देने लगा था। ‘गुलाम स्त्रियों’ के लिए संस्कृत शब्द ‘दासी’ प्रचलित हो गया। कुछ दासों की स्थिति बड़ी उन्नत थी। ऋग्वेद में एक दास मुखिया का उल्लेख मिलता है। सच तो यह है कि दास वर्ग धीरे-धीरे आर्यों के साथ मिलकर रहने लगा था।

प्रश्न 7.
आर्यों के समय में कृषि व्यवस्था की विशेषताएं क्या थी ?
उत्तर-
आर्य लोग मूल रूप से पशु-पालक थे। परन्तु समय पाकर वे कृषि के उपयोग तथा महत्त्व को समझने लगे। उन्होंने जंगलों को साफ किया और कृषि आरम्भ कर दी। लोहे के औज़ारों के कारण जहां उनके लिए जंगल साफ करने सरल हो गए थे, वहां कृषि की दशा भी उन्नत हो गई। लोहे के हल के अतिरिक्त उन्होंने सिंचाई व्यवस्था को भी उत्तम बनाया। वे खाद का प्रयोग भी करने लगे। वे मुख्य रूप से गेहूं, जौ, चावल, तिल, मोठ, मसूर, बाजरा आदि की कृषि करते थे।

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प्रश्न 8.
प्रमुख गणराज्य कौन-से थे तथा उनकी राज्य व्यवस्था किस प्रकार की थी ?
उत्तर-
आर्यों द्वारा स्थापित सभी जनपदों में राजतन्त्रीय प्रशासन नहीं था। इनमें से कुछ गणराज्य भी थे जो विशेषकर पंजाब में और गंगा नदी तथा हिमालय के बीच के क्षेत्र में विस्तृत थे। कुछ गणराज्य अकेले कबीलों ने स्थापित किए, जैसे-शाक्य, कौशल और मल्ल। अन्य गणराज्य एक से अधिक कबीलों के संघ थे। वज्जि और यादव इसी प्रकार के गणराज्य थे। इन गणराज्यों में कबीलों की परम्परा के कई अंशों के अनुसार शासन होता था। शासन का कार्यभार एक समिति के पास था। इस समिति की अध्यक्षता सरदारों में से एक प्रतिनिधि करता था। वह राजा कहलाता था। अतः स्पष्ट है कि राजा का पद निर्वाचित होता था। यह पद वंशागत नहीं था। समिति में राज्य के सभी महत्त्वपूर्ण मामलों पर विचार-विमर्श होता था। सदस्यों को अपना मत देने का अधिकार था। प्रशासन में राजा की सहायता सेनानी और कोषाध्यक्ष करते थे।

प्रश्न 9.
आर्यों की परिवार की संस्था की विशेषताएं क्या थीं ?
उत्तर-
‘परिवार’ आर्यों की एक महत्त्वपूर्ण सामाजिक संस्था थी। परिवार पितृ-प्रधान था अर्थात् परिवार का मुखिया पिता (या सबसे बड़ी आयु का व्यक्ति) होता था। पिता की मृत्यु के पश्चात् परिवार का सबसे बड़ी आयु का पुरुष उसका स्थान लेता था। परिवार का गठन प्रायः तीन पीढ़ियों पर आधारित था। परिवार में सम्पत्ति के अधिकारी केवल पुरुष सदस्य ही होते थे। इसलिए पुत्र का पैदा होना शुभ माना जाता था। कई धार्मिक अनुष्ठान भी ऐसे थे जिन्हें पुत्र ही कर सकता था। कई रीतियों में भी उसकी उपस्थिति आवश्यक समझी जाती थी। भले ही आर्य बहु-विवाह की प्रथा से परिचति थे फिर भी मान्यता केवल एक विवाह पद्धति को ही प्राप्त थी। बाद की कुछ रचनाओं में बहुपति प्रथा का भी उल्लेख मिलता है। उदाहरण के लिए, महाभारत की द्रौपदी पांच पाण्डवों की पत्नी थी। विधवा स्त्री का विवाह प्रायः उसके मृत पति के भाई से कर दिया जाता था। सती-प्रथा प्रचलित नहीं थी। स्त्रियों के साथ प्रायः अच्छा व्यवहार होता था।

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प्रश्न 10.
आर्यों के मुख्य देवताओं के बारे में बताएं।
उत्तर-
ऋग्वेद के अध्ययन से पता चलता है आर्य लोग प्रकृति के पुजारी थे। अपनी समृद्धि के लिए वे सूर्य, वर्षा, पृथ्वी आदि की पूजा करते थे। वे अग्नि, आंधी, तूफान आदि की भी स्तुति करते थे ताकि वे उनके प्रकोपों से बचे रहें। कालान्तर में आर्य लोग प्रकृति की विभिन्न शक्तियों को देवता मान कर पूजने लगे। वरुण उनका प्रमुख देवता था। उसे आकाश का देवता माना जाता था। आर्यों के अनुसार वरुण समस्त जगत् का पथ-प्रदर्शन करता है। आर्य सैनिकों के लिए इन्द्र देवता अधिक महत्त्वपूर्ण था। उसे युद्ध तथा ऋतुओं का देवता माना जाता था। युद्ध में विजय के लिए इन्द्र की ही उपासना की जाती थी। इन्द्र के अतिरिक्त वे रुद्र, अग्नि, पृथ्वी, वायु, सोम आदि देवताओं की उपासना भी करते थे।

प्रश्न 11.
आवागमन तथा कर्म-सिद्धान्त से क्या भाव है ?
उत्तर-
आवागमन तथा कर्म-सिद्धान्त एक-दूसरे के पूरक हैं। आवागमन के अनुसार आत्मा एक जन्म से दूसरे जन्म में निरन्तर चक्कर लगाती रहती है। यह चक्कर अनन्तकाल तक जारी रहता है और कभी समाप्त नहीं होता। कर्म-सिद्धान्त से भाव मनुष्य के अच्छे-बुरे कर्मों के अनुसार उनके जन्म के निर्धारण से है। ऋग्वेद में कहा गया है कि मरने के पश्चात् मनुष्य का परलोक में स्थान निश्चित हो जाता है। बुरे कर्म करने वाले व्यक्ति को दण्ड के रूप में ‘मिट्टी के घर’ में रहना पड़ता है जबकि अच्छे कर्मों वाले मनुष्य को पुरस्कार के रूप में ‘पुरखों की दुनिया में स्थान दिया जाता है। परन्तु उपनिषदों में ऐसा कुछ नहीं कहा गया जिसका अर्थ यह है कि मानव आत्मायें अपने पूर्वजन्म के अच्छे-बुरे कर्मों के अनुरूप सुख या दुःख भोगने के लिए पुनर्जन्म लेती हैं। इस प्रकार पुनर्जन्म व कर्म-सिद्धान्त एक-दूसरे के पूरक हैं।

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प्रश्न 12.
आर्यों की सामाजिक-धार्मिक व्यवस्था में यज्ञ का क्या महत्त्व था ?
उत्तर-
आर्यों की सामाजिक-धार्मिक व्यवस्था में यज्ञों को बड़ा महत्त्व प्राप्त था। सबसे छोटा यज्ञ घर में ही किया जाता था। समय-समय पर बड़े-बड़े यज्ञ होते थे जिनमें सारा गांव या सारा कबीला भाग लेता था। बड़े यज्ञों की रीति-संस्कार अत्यन्त जटिल थे और इनके लिए काफ़ी समय पहले से तैयारी करनी पड़ती थी। इन यज्ञों में अनेक पुरोहित भाग लेते थे और इनमें अनेक जानवरों की बलि दी जाती थी। यह बलि देवताओं को प्रसन्न करने के उद्देश्य से दी जाती थी। आर्यों का विश्वास था कि यदि देवता प्रसन्न हो जाएं तो वे युद्ध में विजय दिलाते हैं, आयु बढ़ाते हैं और सन्तान प्रथा धन में वृद्धि करते हैं। बाद में एक और उद्देश्य से भी यज्ञ किए जाने लगे। वह यह था कि प्रत्येक यज्ञ से संसार पुनः एक नया रूप धारण करेगा, क्योंकि संसार की उत्पत्ति यज्ञ द्वारा ही मानी गई थी।

प्रश्न 13.
आर्यों की भारतीय सभ्यता को क्या देन थी ?
उत्तर-
आर्यों ने भारतीय सभ्यता को काफ़ी समृद्ध बनाया। उन्होंने वैदिक साहित्य की रचना की और संस्कृत भाषा का प्रचलन किया। उनका सबसे महत्त्वपूर्ण योगदान सामाजिक संस्थाओं एवं धर्म के क्षेत्र में था। भारत में जाति भेद पर आधारित समाज की परम्परा दो हजार वर्षों से अधिक समय तक चलती रही है। आर्यों द्वारा रचित उपनिषदों का आध्यात्मिक चिन्तन बाद में कई दर्शनों का आधार बना। आर्य लोगों ने जंगलों को साफ करके देश के विशाल क्षेत्र को कृषि अधीन किया। यह भी कोई कम प्रभावशाली कार्य नहीं था। कृषि पर आधारित अर्थव्यवस्था की प्रगति के कारण ही उत्तरी भारत में शक्तिशाली राज्य विकसित हुए जो कई शताब्दियों तक बने रहे। वर्ण-व्यवस्था एवं बलि संस्कारों के विरुद्ध प्रतिक्रिया स्वरूप जैन तथा बौद्ध धर्म सहित कुछ शक्तिशाली धार्मिक आन्दोलन उभरे। इन्हें भी भारतीय आर्यों की एक महत्त्वपूर्ण देन कहा जा सकता

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प्रश्न 14.
वैदिक तथा सिन्धु घाटी की सभ्यता की चार असमानताएं बताओ।
उत्तर-
सिन्धु घाटी की सभ्यता-

  • यह सभ्यता आज से लगभग 5,000 वर्ष पुरानी है।
  • इस सभ्यता की जानकारी हमें हड़प्पा और मोहनजोदड़ो|  आदि की खुदाई से मिली है।
  • यह एक नागरिक सभ्यता थी। यहां के अधिकतर निवासी नगरों में रहते थे।
  • सिन्धु घाटी के लोग मूर्ति-पूजा में विश्वास रखते थे। वे लिंग, योनि तथा पीपल की पूजा करते थे।

वैदिक सभ्यता-

  • यह सभ्यता लगभग 3,000 वर्ष पुरानी है।
  • इस सभ्यता की जानकारी हमें वेदों से मिली है।
  • यह सभ्यता एक ग्रामीण सभ्यता थी। यहां के अधिकतर निवासी गाँवों में रहते थे।
  • आर्य लोग मूर्ति-पूजा में विश्वास नहीं रखते थे। वे अपने देवी देवताओं को प्रसन्न करने के लिए यज्ञ करते थे।

प्रश्न 15.
वैदिक तथा सिन्धु घाटी की सभ्यता की चार समानताएं बताओ।
उत्तर-
वैदिक तथा सिन्धु घाटी सभ्यता की चार मुख्य समानताओं का वर्णन इस प्रकार है :

  • भोजन में समानता-दोनों सभ्यताओं के लोगों का भोजन पौष्टिक था। गेहूं, दूध, चावल, फल आदि उनके भोजन के मुख्य अंग थे।
  • व्यवसायों में समानता-दोनों सभ्यताओं के लोगों का मुख्य व्यवसाय कृषि करना था। वैदिक काल में तो स्वयं राजा लोग भी हल चलाया करते थे। इन दोनों सभ्यताओं के लोग पशुओं के महत्त्व को समझते थे। इसलिए वे पशु पालते थे। गाय, बैल, भेड़-बकरी आदि उनके मुख्य पालतू पशु थे।
  • मनोरंजन के साधनों में समानता-दोनों सभ्यताओं के लोगों के मनोरंजन के कुछ साधन समान थे। वे प्रायः नाचगानों द्वारा तथा शिकार खेल कर अपना मन बहलाते थे।
  • धार्मिक समानता-दोनों सभ्यताओं के लोग धार्मिक प्रवृत्ति के थे। आर्यों का धर्म भले ही सिन्धु घाटी के लोगों के धर्म से अधिक विकसित था, तो भी अग्नि की पूजा दोनों ही सभ्यताओं में प्रचलित थी।

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प्रश्न 16.
उत्तर वैदिक काल में आर्यों के धर्म का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
उत्तर वैदिक काल में आर्यों के धार्मिक रीति-रिवाजों तथा धार्मिक विचारों में काफ़ी परिवर्तन आया। ऋग्वैदिक काल के कई देवताओं की पूजा अब भी की जाती थी, परन्तु उनका महत्त्व पहले से काफ़ी कम हो गया। इस काल में इन्द्र, वरुण तथा सूर्य की बजाय शिव-विष्णु की पूजा पर अधिक बल दिया जाने लगा। आत्मा-परमात्मा तथा जन्म-मृत्यु के विषय में अनेक नए सिद्धान्त धर्म में शामिल हो गए। यज्ञ तो अब भी होते थे, परन्तु अब उनमें काफ़ी धन खर्च करना पड़ता था। यज्ञों के लिए ब्राह्मणों की आवश्यकता होती थी। कर्म, मोक्ष तथा माया सम्बन्धी सिद्धान्तों ने धर्म को और भी अधिक जटिल बना दिया। इस काल में लोग अनेक प्रकार के जादू-टोनों में भी विश्वास रखने लगे थे।

प्रश्न 17.
ऋग्वैदिक काल तधा उतर वैदिक काल में अन्तर स्पष्ट करने तथ्यों का वर्णन करो
उत्तर-

  • ऋग्वैदिक काल में राजा की शक्तियां सीमित थीं। उसे प्रचलित प्रथाओं के नियम के अनुसार शासन चलाना पड़ता था, परन्तु उत्तर वैदिक काल में राजा की शक्तियां बहुत बढ़ गईं।
  • ऋग्वैदिक काल में कबीले न तो अधिक विशाल थे और न ही अधिक शक्तिशाली, परन्तु उत्तर वैदिक काल में बड़े बड़े शक्तिशाली साम्राज्यों का उदय हुआ।
  • ऋग्वैदिक काल में नारी का बड़ा आदर था। वह प्रत्येक धार्मिक कार्यों में भाग लेती थी। उसे शासन कार्यों में भी भाग लेने का अधिकार था। इसके विपरीत उत्तर वैदिक काल में नारी का सम्मान कम हो गया।
  • ऋग्वैदिक काल में धर्म बड़ा सरल था। यज्ञों पर अधिक व्यय नहीं होता था, परन्तु उत्तर वैदिक काल में धर्म जटिल हो गया। धर्म में अनेक व्यर्थ के कर्म-काण्ड शामिल हो गए। यज्ञ इतने महंगे हो गए कि साधारण लोगों के लिए यज्ञ करना असम्भव हो गया।

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प्रश्न 18.
सभा और समिति का अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
पूर्व वैदिक युग में सभा तथा समिति ने लोक संस्थाओं का रूप धारण कर लिया था। सभा का आकार समिति से छोटा होता था। यह केवल वृद्धों की संस्था थी। इसका मुख्य कार्य न्याय करना था। सभा और समिति शासन के सभी महत्त्वपूर्ण कार्यों पर अपने विचार प्रकट करती थी जिसे राजा को मानना पड़ता था। कुछ समय के पश्चात् सभा गुरु सभा में बदल गई तथा समिति ने राज्य की केन्द्रीय संस्था का रूप ले लिया जिसका अध्यक्ष राजा होता था। इसका कार्य क्षेत्र नीति का निर्णय तथा कानून का निर्माण करना था।

IV. निबन्धात्मक प्रश्न-

प्रश्न 1.
ऋग्वैदिक काल के आर्यों की सभ्यता की मुख्य विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
अथवा
ऋग्वैदिक काल की राजनीतिक तथा आर्थिक दशा की जानकारी दीजिए।
अथवा
ऋग्वेद में वर्णित आर्यों की सामाजिक एवं धार्मिक अवस्था पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
ऋग्वैदिक काल की सभ्यता के विषय में जानकारी का एकमात्र स्रोत ऋग्वेद है। यह आर्यों का सबसे प्राचीन ग्रन्थ है। ऋग्वेद के अध्ययन से आर्यों की राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक तथा धार्मिक दशा के बारे में हमें निम्नलिखित बातों का पता चलता है :

1. राजनीतिक अवस्था-आर्यों ने एक आदर्श शासन प्रणाली की नींव रखी। शासन की सबसे छोटी इकाई परिवार थी। कुछ परिवारों के मेल से एक गांव बनता था। कुछ गाँवों के समूह को ‘विश’ कहते थे। विशों का समूह ‘जन’ कहलाता था। प्रत्येक ‘जन’ एक राजा के अधीन था। राजा का मुख्य कार्य जन के लोगों की भलाई करना तथा युद्ध के समय उनका नेतृत्व करना था। राजा की शक्तियों पर रोक लगाने के लिए सभा समिति नामक दो संस्थाएं थीं। राजा की सहायता के लिए पुरोहित, सेनानी, दूत आदि अनेक अधिकारी होते थे।

2. आर्थिक अवस्था अथवा भौतिक जीवन-ऋग्वैदिक काल में लोगों की आर्थिक दशा काफ़ी अच्छी थी। वे मुख्य रूप से पशु-पालक थे। पालतू पशुओं में गाय, बैल, भेड़, बकरी आदि प्रमुख थे। वे लकड़ी के फालों के साथ खेती करते थे। उन्हें खेती सम्बन्धी कई बातों, जैसे-कटाई, बुआई आदि की काफ़ी जानकारी थी। कुछ अन्य लोग छोटे-छोटे उद्योगधन्धों में भी लगे हुए थे। इनमें से बढ़ई, कुम्हार, लुहार, बुनकर, चर्मकार आदि मुख्य थे।

3. सामाजिक अवस्था-ऋग्वैदिक काल के सामाजिक जीवन का आधार परिवार था जो पितृ-प्रधान था। परिवार में सबसे बड़ी आयु का व्यक्ति परिवार का मुखिया होता था। अन्य सभी सदस्यों को उनकी आज्ञा का पालन करना पड़ता था। इस काल में समाज चार वर्गों-योद्धा, पुरोहित, जनसाधारण तथा शूद्रों में बंटा हुआ था। शूद्र वे लोग थे जिन्हें युद्ध में पराजित करके दास बनाया जाता था। काम के आधार पर भी समाज का बंटवारा शुरू हो गया था, परन्तु यह बंटवारा अभी पूर्ण रूप से स्पष्ट नहीं था। समाज में नारी का बड़ा आदर था। उसे पुरुष की अर्धांगिनी समझा जाता था। वह पुरुष के साथ यज्ञों में भाग लेती थी। उसे शासन कार्यों में भाग लेने का भी अधिकार था। लोगों का मुख्य गेहूं, जौ, घी और दूध था। विशेष अवसरों पर लोग सोमरस भी पीते थे। लोगों के मनोरंजन के मुख्य साधन रथ-दौड़, शिकार करना तथा जुआ खेलना थे।

4. धार्मिक अवस्था-ऋग्वैदिक आर्य सन्तान, पशु, अन्न, धन, स्वास्थ्य आदि की प्राप्ति के लिए अनेक देवी-देवताओं की पूजा करते थे। उनके देवताओं में सोम, अग्नि, वायु, इन्द्र, द्यौस, ऊषा, वरुण तथा सूर्य प्रमुख थे। इन्द्र उनका सबसे बड़ा देवता था। युद्ध से पहले विजय पाने के लिए प्रायः इन्द्र की पूजा की जाती थी। उनकी मुख्य देवी उषा थी। आर्य लोगों के धर्म की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि वे अनेक देवी-देवताओं की पूजा करते हुए भी एक ईश्वर की सत्ता में विश्वास रखते थे।

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प्रश्न 2.
उत्तर वैदिक कालीन आर्यों की राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक तथा धार्मिक अवस्था के विषय में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर-
1000 ई० पू० में ऋग्वैदिक काल की समाप्ति हो गई। इस समय से लेकर लगभग 600 ई० पू० के काल को इतिहासकार उत्तर वैदिक काल का नाम देते हैं। इन दिनों आर्य लोग गंगा की घाटी में आ बसे थे। यहां उन्होंने सामवेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद तथा ब्राह्मण ग्रन्थों की रचना की। इन्हीं ग्रन्थों के अध्ययन से ही हमें उत्तर वैदिक आर्यों की सभ्यता का पता चलता है। इस सभ्यता की मुख्य विशेषताओं का वर्णन इस प्रकार है :-

1. राजनीतिक जीवन-उत्तर वैदिक काल में बड़े-बड़े साम्राज्य स्थापित हो गए। राजा की शक्तियां बढ़ गईं। शासन कार्यों में राजा की सहायता के लिए सेनानी, पुरोहित, संगृहित्री आदि अनेक अधिकारी थे। परन्तु राजा के लिए उनके निर्णय को मानना आवश्यक नहीं था शासन कार्यों के व्यय के लिए वह प्रजा से कर और दक्षिणा लेता था।

2. सामाजिक जीवन-उत्तर वैदिक काल में समाज चार जातियों में बंटा हुआ था। वे जातियां थीं-ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य .. तथा शूद्र। ब्राह्मणों को समाज में उच्च स्थान प्राप्त था। इस काल की एक अन्य महत्त्वपूर्ण विशेषता आश्रम व्यवस्था थी। जीवन को 100 वर्ष मान कर इसे चार आश्रमों-ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ तथा संन्यास में बांट दिया गया।

3. आर्थिक अथवा भौतिक जीवन-इस काल के आर्यों का मुख्य व्यवसाय कृषि करना था, परन्तु अब वे लोग बड़ेबड़े हलों का प्रयोग करने लगे थे। राजा और राजकुमार स्वयं भी हल चलाते थे। इस काल में कौशाम्बी, विदेह, काशी आदि बड़े-बड़े नगरों का उदय हुआ। ये नगर व्यापार और उद्योग-धन्धों के प्रमुख केन्द्र बने। उस समय विदेशी व्यापार भी होता था।

4. धार्मिक अवस्था-उत्तर वैदिक काल में आर्यों के धार्मिक रीति-रिवाज तथा धार्मिक विचारों में काफ़ी परिवर्तन आया। इस काल में इन्द्र, वरुण तथा सूर्य की बजाय शिव-विष्णु की पूजा पर अधिक बल दिया जाने लगा। आत्मा, परमात्मा तथा जन्म-मृत्यु के विषय में अनेक नये सिद्धान्त धर्म में शामिल हो गए। कर्म, मोक्ष तथा माया सम्बन्धी सिद्धान्तों ने धर्म को और भी अधिक जटिल बना दिया। इस काल में लोग अनेक प्रकार के जादू-टोनों में भी विश्वास रखने लगे थे।
सच तो यह है कि उत्तर वैदिक काल में आर्यों के राजनीतिक, आर्थिक तथा धार्मिक जीवन में अनेक परिवर्तन आए।

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प्रश्न 3.
जाति-प्रथा के विषय में आप क्या जानते हैं ? इसके (क) लाभ तथा (ख) हानियों का वर्णन करो।
उत्तर-
जाति-प्रथा से अभिप्राय उन श्रेणियों से हैं जिनमें हमारा प्राचीन समाज बंटा हुआ था। हर जाति की अपनी अलग प्रथाएँ थीं। जाति के प्रत्येक सदस्य को उनका पालन करना पड़ता था। आरम्भ में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा शूद्र नामक चार जातियां थीं, परन्तु धीरे-धीरे इनकी संख्या बढ़ती गई। आजकल भारत में लगभग तीन हज़ार जातियां हैं।

(क) जाति-प्रथा के लाभ-

  • जाति-प्रथा के कारण भारतीय संस्कृति विदेशी प्रभाव से सुरक्षित रही।
  • जाति-प्रथा के कारण रक्त की पवित्रता बनी रही।
  • जाति-प्रथा के कारण लोग बचपन से ही अपने पिता के व्यवसाय में जुट जाते थे। फलस्वरूप बड़े होकर वे निपुण कारीगर सिद्ध होते थे।
  • जाति-प्रथा के अनुसार बुरा काम करने वाले लोगों को जाति से निकाल दिया जाता था। इस भय से लोग कोई बुरा काम नहीं करते थे।
  • प्रत्येक जाति के लोग अपनी जाति के निर्धन तथा रोगी व्यक्तियों की सेवा तथा सहायता करते थे। इस प्रकार लोगों के मन में समाज-सेवा और त्याग की भावना बढी।
  • जाति-प्रथा के कारण प्रत्येक जाति के लोगों को अपनी जाति का व्यवसाय अपनाना पड़ता था। अतः लोगों को रोज़ी का कोई अन्य साधन ढूंढ़ने की चिन्ता नहीं रहती थी।
  • जाति-प्रथा के अनुसार ब्राह्मणों का कार्य शिक्षा देना था। वह निःशुल्क शिक्षा प्रदान करते थे।
  • शुद्धि तथा अन्य जातियों के लोग हिन्दू बन जाते थे। अतः शक, हूण, यूनानी आदि भारत पर आक्रमण करने वाली अनेक जातियां हिन्दू समाज का अंग बन गईं। .

(ख) जाति-प्रथा की हानियां –

  • जाति-प्रथा के कारण राष्ट्रीयता की भावना को गहरा आघात पहुंचा।
  • जाति-प्रथा के कारण देश में सैनिक शिक्षा सीमित रही।
  • जाति-प्रथा के कारण लोगों के लिए पैतृक धन्धा बदलना बड़ा कठिन होता था। फलस्वरूप लोगों का व्यक्तिगत विकास रुक गया।
  • इस प्रथा के कारण समाज में छुआछूत की भावना बढ़ी।
  • ब्राह्मण तथा क्षत्रिय स्वयं को सभी जातियों से श्रेष्ठ समझते थे। इस प्रकार जातियों में आपसी द्वेष उत्पन्न हो गया।
  • ब्राह्मणों ने अपने स्वार्थ के लिए अनेक ऐसी कुप्रथाएं चलाईं जिससे उन्हें अधिक से अधिक लाभ पहुंचे। इस प्रकार अनेक सामाजिक कुरीतियां प्रचलित हुईं। सच तो यह है कि जाति-प्रथा से भारत को आरम्भ में अवश्य कुछ लाभ पहुंचे, परन्तु धीरे-धीरे यह प्रथा भारत के लिए अभिशाप बन गई। वास्तव में यह एक कुप्रथा है जो हिन्दू समाज को अन्दर से खोखला करती रही है।

PSEB 6th Class Home Science Solutions Chapter 3 भोजन पकाने के कारण

Punjab State Board PSEB 6th Class Home Science Book Solutions Chapter 3 भोजन पकाने के कारण Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 6 Home Science Chapter 3 भोजन पकाने के कारण

PSEB 6th Class Home Science Guide भोजन पकाने के कारण Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
भोजन पकाने की सबसे सरल विधि कौन-सी है ?
उत्तर-
उबालना।

प्रश्न 2.
कौन-सा विटामिन पकाने से नष्ट हो जाता है ?
उत्तर-
विटामिन सी।

प्रश्न 3.
कौन-सा विटामिन भोजन पकाने पर नष्ट नहीं होता ?
उत्तर-
विटामिन ‘ए’, क्योंकि यह जल में घुलनशील नहीं होता।

PSEB 6th Class Home Science Solutions Chapter 3 भोजन पकाने के कारण

प्रश्न 4.
भोजन पकाने का प्रमुख कारण क्या है ?
उत्तर-
भोजन को सरलता से पचने योग्य बनाना।

प्रश्न 5.
शुष्क सेंक से भोजन पकाने की दो विधियों के नाम लिखो।
उत्तर-
भूनना, बेक करना।

प्रश्न 6.
घी से पकाने की किसी एक विधि का नाम लिखो।
उत्तर-
तलना।

PSEB 6th Class Home Science Solutions Chapter 3 भोजन पकाने के कारण

प्रश्न 7.
शक्करकन्दी आमतौर पर किस विधि से पका कर खाई जाती है ?
उत्तर-
भून कर।

प्रश्न 8.
पकाने से भोजन हानिरहित कैसे हो जाता है ?
उत्तर-
इसमें मौजूद बैक्टीरिया, सूक्ष्मजीव समाप्त हो जाते हैं।

प्रश्न 9.
गीले सेंक से पकाने के किसी एक तरीके का नाम लिखो।
उत्तर-
भाप से पकाना।

PSEB 6th Class Home Science Solutions Chapter 3 भोजन पकाने के कारण

प्रश्न 10.
बेकिंग से पकने वाले दो खाद्य पदार्थों के नाम लिखो।
उत्तर-
केक, रस, बिस्कुट।

लघूत्तर प्रश्न

प्रश्न 1.
खाना क्यों पकाया जाता है ?
उत्तर-
खाना स्वादिष्ट और सुपाच्य बनाने के लिए पकाया जाता है।

प्रश्न 2.
पके हुए तथा कच्चे भोजन में क्या अन्तर है ?
उत्तर-
पके हुए तथा कच्चे भोजन में निम्नलिखित अन्तर हैं –

पका भोजन कच्चा भोजन
1. पका हुआ भोजन नर्म हो जाता है तथा चबाने और पचाने में सुगम होता है। 1. कच्चा भोजन सख्त होता है। अतः इसे चबाना एवं पचाना कठिन होता है।
2. पके हुए भोजन का रंग, रूप, स्वाद तथा सुगन्ध अच्छे हो जाते हैं। 2. बिना पकाए भोजन देखने अथवा खाने और सुगन्ध में अच्छे नहीं होते हैं।
3. पकाने से अधिक तापमान के कारण कई हानिकारक कीटाणु मर जाते हैं। 3. कच्चे भोजन में कई हानिकारक कीटाणु होते हैं जो कि स्वास्थ्य को हानि पहुँचाते हैं।
4. पकाने से एक ही वस्तु को अलग-अलग तरीकों से बनाया जा सकता है। 4. यदि भोजन को पकाया न जाए और उसे एक रूप में खाया जाए तो उससे जल्दी ही मन भर जाता है।
5. पकाने से भोजन को ज़्यादा देर तक सुरक्षित रखा जा सकता है। 5. कच्चा भोजन जल्दी खराब हो जाता  है। उसमें जीवाणु उत्पन्न हो जाते हैं।

PSEB 6th Class Home Science Solutions Chapter 3 भोजन पकाने के कारण

प्रश्न 3.
उबालने तथा तलने के दोष लिखो।
उत्तर-
उबालने तथा तलने के निम्नलिखित दोष हैं –
उबालने के दोष –
1. ज़्यादा तेज़ी से पानी उबालने से पानी शीघ्र सूख जाता है तथा अधिक ईंधन का खर्च . होता है।
2. इस विधि से वस्तु शीघ्र नहीं पकती है।
तलने के दोष –
1. अधिक तलने-भूनने से कुछ पौष्टिक तत्त्व नष्ट हो जाते हैं।
2. भोजन गरिष्ठ हो जाता है।
3. भोजन सुपाच्य न होने से कभी-कभी पाचन बिगड़ जाता है।

प्रश्न 4.
बेक करने तथा भूनने में क्या अन्तर हैं ?
उत्तर-
बेक करने तथा भूनने में निम्नलिखित अन्तर हैं –

बेक भूनना
1. इसमें पदार्थ को बन्द गर्म भट्ठी में रखकर ऊष्मा से पकाया जाता है। 1. इसमें पदार्थ को थोड़ी-सी चिकनाई लगाकर सेंका जाता है।
2. भोजन वाले बर्तन को पहले ज़्यादा तथा फिर कम आँच पर रखा जाता पर पकाया जाता है। 2. इसमें भोज्य पदार्थ को सीधे आँच पर पकाया जाता है।
3. इसमें भट्ठी का तापक्रम बराबर रहना चाहिए। 3. इसमें भट्ठी का तापक्रम सदैव धीमे चाहिए।
4. इसमें पानी के बिना भोजन के सारे तत्त्व सुरक्षित रहते हैं। 4. इसमें भोजन के तत्त्व भी आग में गिर जाते हैं।
5. इसमें कच्चे केले तथा अन्य फलों को भी मसाला लगाकर पकाया जाता है। 5. इसमें दाने भट्ठी पर कड़ाही में रखकर रेत में भूने जाते हैं।

प्रश्न 5.
कौन-कौन से भोज्य-पदार्थों को भूना जा सकता है ?
उत्तर-
निम्नलिखित भोज्य-पदार्थों को भूना जा सकता है –

1. आलू,
2. बैंगन,
3. मांस के टुकड़े,
4. मुर्गा,
5. मक्का के भुट्टे,
6. चपाती,
7. मछली,
8. दाने।

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निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भोजन पकाते समय किन-किन बातों को ध्यान में रखना चाहिए ?
उत्तर-
भोजन पकाते समय निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखना चाहिए –

  1. भोजन पकाते समय पानी का तापक्रम एक जैसा रहना चाहिए।
  2. भोजन वाले बर्तन से पानी वाला बर्तन न बहुत बड़ा और न ही पूरा फिट होना चाहिए।
  3. भोजन वाला बर्तन यदि बन्द करके रखना हो तो उसके मुँह पर चिकना कागज़ लगाकर बन्द करना चाहिए।
  4. पानी के बर्तन को कसकर बंद करना चाहिए, ताकि भाप व्यर्थ न जाए।

प्रश्न 2.
जिस पानी में भोजन पकाया जाए उसे फेंकना क्यों नहीं चाहिए? भाप द्वारा प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष पकाने में अन्तर स्पष्ट करें।
उत्तर-
जिस पानी में भोजन पकाया जाए उसे इसलिए नहीं फेंकना चाहिए कि उसमें खनिज लवण घुल जाते हैं और पानी फेंकने पर ये पौष्टिक तत्त्व नष्ट हो जाते हैं।

भाप द्वारा भोजन पकाना-इस विधि में भोजन को उबलते हुए जल से निकली भाप से पकाया जाता है। खाद्य पदार्थ का पकना प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष दोनों प्रकार से होता है –

1. प्रत्यक्ष विधि-
(i) जलरहित पकाना-जिन सब्जियों में स्वाभाविक जलांश रहता है उनमें यही जलांश उन्हें पकाने का काम करता है। इस विधि में भोजन धीमी आँच पर पकाया जाता है।

(ii) बफाना-इस विधि में डेगची या भगौने में पानी उबाला जाता है और उसके मुँह पर कपड़ा बाँध कर भोज्य वस्तु को उस पर रखकर और उसे ढक कर बफाते हैं।

(iii) इसमें एक विशेष प्रकार का पात्र उपयोग में लाते हैं जिसमें ढक्कनदार बर्तन होता है तथा ढक्कन में जालीदार थाली-सी लगी रहती है। इस पर रखकर सब्जी, गोश्त, इडली भाप द्वारा पकाते हैं।

2. अप्रत्यक्ष विधि-इस विधि में बन्द बर्तन में थोड़े पानी में खाद्य सामग्री को पकाया जाता है। ढक्कन इतना कसकर लगाया जाता है कि अन्दर की भाप बाहर नहीं निकले। खाद्य पदार्थ उसी भाप के दबाव से पक जाता है। इस विधि से पकाने के लिए प्रेशर कुकर का भी इस्तेमाल किया जाता है। प्रेशर कुकर में भोजन पकाने से ईंधन और समय की बचत तो होती ही है, साथ में भोज्य तत्त्व भी नष्ट नहीं होते हैं।

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प्रश्न 3.
किन भोजन पदार्थों को बिना पकाये खाया नहीं जा सकता ? सूची बनाइये।
उत्तर-
कई ऐसे भोजन पदार्थ हैं जिनको कच्चा खाया ही नहीं जा सकता। इसके कई कारण हो सकते हैं। भोज्य पदार्थ कठोर हो सकता है, इनमें से अच्छी सुगन्ध नहीं आती, ये देखने में अच्छे नहीं लगते आदि। इनको कच्चा खाने का मन नहीं करता। इसलिए इन्हें बिना पकाए नहीं खा सकते। निम्नलिखित भोजन पदार्थों को बिना पकाये नहीं खाया जा सकता, जैसे-अनाज, दालें, मांस, मछली, कई प्रकार की सब्जियां आदि।

प्रश्न 4.
तलने से क्या भाव है ?
उत्तर-
तलना-इस विधि द्वारा खूब गर्म घी अथवा तेल में भोज्य पदार्थ को तलकर पकाया जाता है। तलने के लिए आग तेज़ होनी चाहिए। भोज्य पदार्थ दो प्रकार से तला जाता है

1. अधिक चिकनाई में तलना या गहरा तलना-जिस बर्तन में खाद्य पदार्थ तलना है वह गहरा होना चाहिए, साथ ही पर्याप्त मात्रा में घी या तेल होना चाहिए। इस विधि में तेज़ आग पर खाद्य पदार्थ घी या तेल की गर्मी से पकता है। जब घी या तेल में से धुआँ उठने लगता है तब खाद्य सामग्री उसमें पकाने के लिये डाली जाती है।

2. उथला तलना-इस विधि में भोजन किसी भी चपटे बर्तन में बनाते हैं। तेल या घी कम मात्रा में इस्तेमाल करते हैं ताकि वस्तु बर्तन की सतह से चिपके नहीं। इसके लिए आग मध्यम रखते हैं। इस विधि से आलू की टिकिया, पूड़े, आमलेट, परांठे आदि बनाये जाते हैं।

तलने से भोजन स्वादिष्ट होता है, देखने में भी सुन्दर व आकर्षक लगता है। तली हुई चीजें शीघ्रता से नहीं पचती हैं। अधिक ताप पर खाद्य पदार्थ के विटामिन नष्ट हो जाते हैं।

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Home Science Guide for Class 6 PSEB भोजन पकाने के कारण Important Questions and Answers

अति छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
भोजन पकाने की सर्वोत्तम विधि कौन-सी है ?
उत्तर-
भाप द्वारा पकाना।

प्रश्न 2.
भाप द्वारा भोजन पकाने की विधि सर्वोत्तम विधि क्यों मानी जाती है ?
उत्तर-
क्योंकि इस विधि में भोजन के पोषक तत्त्व नष्ट नहीं होते। भोजन हल्का व शीघ्रता से पचने वाला होता है।

प्रश्न 3.
विटामिन ‘सी’ भोजन पकाने पर नष्ट क्यों हो जाता है ?
उत्तर-
क्योंकि यह जल में घुलनशील होता है तथा ताप के प्रभाव से भी नष्ट हो जाता है।

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प्रश्न 4.
मक्खन को गर्म क्यों नहीं करना चाहिए ?
उत्तर-
मक्खन को गर्म करने से उसका विटामिन ‘ए’ नष्ट हो जाता है।

प्रश्न 5.
भारतीय शैली में भोजन के अन्त में क्या परोसा जाता है ?
उत्तर-
मीठी चीजें (स्वीट डिश)।

प्रश्न 6.
भोजन परोसने की तीन विधियाँ कौन-कौन सी हैं ?
उत्तर-

  1. भारतीय शैली,
  2. विदेशी शैली,
  3. बुफे भोज।

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प्रश्न 7.
यथासम्भव एक ही धातु के पात्रों में भोजन क्यों परोसना चाहिए ?
उत्तर-
एकरूपता होने के कारण आकर्षण बढ़ता है।

प्रश्न 8.
बुफे विधि प्रायः कहाँ प्रयोग में लाई जाती है ?
उत्तर-
शादी, पार्टियों, सामूहिक भोज आदि अवसरों पर।

प्रश्न 9.
सेकने की विधि द्वारा भोजन पकाने के लाभ तथा हानि क्या हैं ?
उत्तर-
लाभ- भोज्य पदार्थ स्वादिष्ट तथा पोषक तत्त्वयुक्त रहता है। हानि-यह महँगी विधि है और इसमें अधिक सावधानी की आवश्यकता होती है।

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प्रश्न 10.
चावल पकाते समय चावलों में कितना पानी डालना चाहिए ?
उत्तर-
जितना पानी चावल सोख लें।

छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
उबालना और धीमे ताप पर पकाने में क्या अन्तर है ?
उत्तर-
उबालने और धीमे ताप पर पकाने में अन्तर –

उबालना धीमे ताप पर पकाना
1. भोजन जल्दी पकता है। 1. भोजन देर से पकता है।
2. ईंधन कम खर्च होता है। 2. ईंधन अधिक खर्च होता है।
3. इसमें भोजन अधिक ताप पर (100°C या 212°F) पर पकाया जाता है। 3. इसमें भोजन कम ताप (90°C या 100°F) पर पकाया जाता है।
4. इसमें पानी की मात्रा अधिक रखी जाती है। 4. इस विधि में पानी की मात्रा कम  रखी जाती है। पानी छोड़ने वाले पदार्थ में पानी बिल्कुल नहीं डाला जाता।
5. भोज्य पदार्थ में उपस्थित पोषक तत्त्व, रंग, गंध आदि जल में घुल-मिल जाता है। 5. इसमें पोषक तत्त्व, स्वाद व सुगन्ध सुरक्षित रहते हैं।

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प्रश्न 2.
गहरा तलना से क्या भाव है ?
उत्तर-
जिस बर्तन में खाद्य पदार्थ तलना है वह गहरा होना चाहिए, साथ ही पर्याप्त मात्रा में घी या तेल होना चाहिए। इस विधि में तेज़ आग पर खाद्य पदार्थ घी या तेल की गर्मी से पकता है। जब घी या तेल में से धुआँ उठने लगता है तब खाद्य सामग्री उसमें पकाने के लिये डाली जाती है।

प्रश्न 3.
अप्रत्यक्ष भूनना के बारे में लिखें।
उत्तर-
अप्रत्यक्ष भूनना- इस विधि में किसी माध्यम को गर्म करके उसकी ऊष्मा द्वारा भोज्य पदार्थ को भूनते हैं। चना, मटर, मूंगफली, मक्का, गेहूँ को गर्म बालू में भूना जाता है। टोस्टर में डबल रोटी के टुकड़े भी इसी विधि द्वारा भूने जाते हैं।

प्रश्न 4.
बफाना से क्या भाव है ?
उत्तर-
बफाना-इस विधि में डेगची या भगौने में पानी उबाला जाता है और उसके मुँह पर कपड़ा बाँध कर भोज्य वस्तु को उस पर रखकर और उसे ढक कर बफाते हैं।

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प्रश्न 5.
तलने से क्या भाव है ?
उत्तर-
तलना-इस विधि द्वारा खूब गर्म घी अथवा तेल में भोज्य पदार्थ को तलकर पकाया जाता है। तलने के लिए आग तेज़ हानी चाहिए।

प्रश्न 6.
उबालने के लाभ लिखें।
उत्तर-
उबालने के लाभ –

  1. उबाला हुआ भोजन आसानी से पचने योग्य होता है।
  2. इस विधि में भोजन के पौष्टिक तत्त्व कम नष्ट होते हैं।
  3. यह विधि सरल तथा कम खर्चीली है।
  4. प्रेशर कुकर में खाद्य पदार्थ उबालने से समय और ईंधन की भी बचत होती है।

प्रश्न 7.
तलने के लाभ लिखें।
उत्तर-
तलने के लाभ –

  1. तला हुआ भोजन अधिक स्वादिष्ट हो जाता है।
  2. भोज्य पदार्थ का वसा से संयोग होने के कारण कैलोरी भार अधिक बढ़ जाता है।
  3. तले पदार्थ शीघ्र खराब नहीं होते।

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बड़े उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
भोजन पकाने की विभिन्न विधियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
भोजन पकाने की प्रमुख विधियाँ निम्नलिखित हैं –
1. उबालना
2. तलना
3. भूनना
4. भाप से पकाना
5. सेकना
6. धीमी आँच पर भोजन पकाना (स्ट्यू करना)।
1. उबालना-उबाल कर भोजन पकाने की विधि सबसे प्राचीन, सरल व साधारण है। इसमें पानी की गर्मी से ही खाद्य पदार्थ पकता है। पानी के उबलने (100°C या 212°F) के बाद आँच धीमी कर देनी चाहिए ताकि तापक्रम पूरे समय तक एक-सा नियन्त्रित रहे। दाल, चावल, मांस, तरकारी आदि इसी विधि से उबाले जाते हैं। उबालने की क्रिया में भोज्य पदार्थ में उपस्थित पोषक तत्त्व, रंग, गंध आदि जल में घुल-मिल जाते हैं तथा उसको स्वादिष्ट बना देते हैं। दाल व चावल को उबालने के लिए उतना ही पानी डालना चाहिए कि पक जाने पर उसे फेंकना न पड़े।

2. तलना-इस विधि द्वारा खूब गर्म घी अथवा तेल में भोज्य पदार्थ को तलकर जाता है –
(1) अधिक चिकनाई में तलना या गहरा तलना-जिस बर्तन में खाद्य पदार्थ तलना है वह गहरा होना चाहिए, साथ ही पर्याप्त मात्रा में घी या तेल होना चाहिए। इस विधि में तेज़ आग पर खाद्य पदार्थ घी या तेल की गर्मी से पकता है। जब घी या तेल में से धुआँ उठने लगता है तब खाद्य सामग्री उसमें पकाने के लिये डाली जाती है।

(2) उथला तलना-इस विधि में भोजन किसी भी चपटे बर्तन में बनाते हैं। तेल या घी कम मात्रा में इस्तेमाल करते हैं ताकि वस्तु बर्तन की सतह से चिपके नहीं। इसके लिए आग मध्यम रखते हैं। इस विधि से आलू की टिकिया, पूड़े, आमलेट, परांठे आदि बनाये जाते हैं।
तलने से भोजन स्वादिष्ट होता है, देखने में भी सुन्दर व आकर्षक लगता है। तली हुई चीजें शीघ्रता से नहीं पचती हैं। अधिक ताप पर खाद्य पदार्थ के विटामिन नष्ट हो जाते हैं।

3. भूनना-पकाने की इस विधि में खाद्य पदार्थ को अग्नि के सीधे सम्पर्क में लाया जाता है। भूनना निम्नलिखित प्रकार का होता है –
(1) प्रत्यक्ष भूनना-इस विधि में भोज्य वस्तु सीधे आग के सम्पर्क में आती है। पदार्थ को चारों ओर घुमाकर भूनते हैं, जैसे आलू, बैंगन, मांस के टुकड़े, मुर्गा, मक्का के भुट्टे, चपाती आदि।

(2) अप्रत्यक्ष भूनना-इस विधि में किसी माध्यम को गर्म करके उसकी ऊष्मा द्वारा भोज्य पदार्थ को भूनते हैं। चना, मटर, मूंगफली, मक्का, गेहूँ को गर्म बालू में भूना जाता है। टोस्टर में डबल रोटी के टुकड़े भी इसी विधि द्वारा भूने जाते हैं।
(3) पात्र में भूनना-इस विधि में भोज्य पदार्थ को किसी बर्तन में डालकर बर्तन आग पर रखकर भूना जाता है लेकिन भूनने में चिकनाई का प्रयोग किया जाता है।

4. भाप द्वारा भोजन पकाना-इस विधि में भोजन को उबलते हुए जल से निकली भाप से पकाया जाता है। खाद्य पदार्थ का पकना प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष दोनों प्रकार से होता –
(1) प्रत्यक्ष विधि-
(i) जलरहित पकाना-जिन सब्जियों में स्वाभाविक जलांश रहता है उनमें यही जलांश उन्हें पकाने का काम करता है। इस विधि में भोजन धीमी आँच पर पकाया जाता है।

(ii) बफाना-इस विधि में डेगची या भगौने में पानी उबाला जाता है और उसके मुँह पर कपड़ा बाँध कर भोज्य वस्तु को उस पर रखकर और उसे ढक कर बफाते हैं।

(iii) इसमें एक विशेष प्रकार का पात्र उपयोग में लाते हैं जिसमें ढक्कनदार बर्तन होता है तथा ढक्कन में जालीदार थाली-सी लगी रहती है। इस पर रखकर सब्जी, गोश्त, इडली भाप द्वारा पकाते हैं।

(2) अप्रत्यक्ष विधि-इस विधि में बन्द बर्तन में थोड़े पानी में खाद्य सामग्री को पकाया जाता है। ढक्कन इतना कसकर लगाया जाता है कि अन्दर की भाप बाहर नहीं निकले। खाद्य पदार्थ उसी भाप के दबाव से पक जाता है। इस विधि से पकाने के लिए प्रेशर कुकर का भी इस्तेमाल किया जाता है। प्रेशर कुकर में भोजन पकाने से ईंधन और समय की बचत तो होती ही है, साथ में भोज्य तत्त्व भी नष्ट नहीं होते हैं।

5. सेकना-इस विधि में भोज्य पदार्थों को किसी भी तरह से पूरी तपी हुई भट्टी या तन्दूर (Oven) में पकाया जाता है। शुष्क उष्णता ही पकाने का माध्यम रहती है। सेकने की दो विधियाँ हैं
(1) सीधे ताप पर रखकर सेकना-इस प्रकार सेके जाने वाले आहारीय पदार्थों में रोटी तथा पापड़ आते हैं। इन्हें सदैव धीमे ताप पर सेकना चाहिए।

(2) बेकिंग-इस विधि में गर्म हवा का एक स्थान से दूसरे स्थान पर संवाहन होता रहता है। विभिन्न प्रकार के व्यंजनों को बेक करने के लिए भिन्न-भिन्न तापक्रम रखना पड़ता है। इस विधि से अधिकतर तन्दूरी रोटी, पावरोटी, पेस्ट्री, केक, बिस्कुट आदि बनाए जाते हैं। सेकने के लिए बर्तनों का विभिन्न आकार होता है। इस विधि में भट्टी का तापक्रम एक-सा होना चाहिए जिससे पेस्ट्री या केक के चारों ओर से ऊष्मा मिल सके। भट्टी गर्म होने के बाद ही भोज्य पदार्थ उसमें रखना चाहिए। तन्दूर (oven) का तापक्रम आवश्यकता से अधिक नहीं होना चाहिए। सेकने के बर्तन में वसा अवश्य लगा लेनी चाहिए जिससे भोज्य पदार्थ पक जाने के बाद आसानी से निकल सके।

6. धीमी आँच पर भोजन पकाना (स्ट्य करना)-इस विधि में भोज्य पदार्थों को बन्द बर्तन में रखकर, धीमी आँच पर धीरे-धीरे पकाया जाता है। इसमें पानी की मात्रा कम रखी जाती है। पानी छोड़ने वाले पदार्थ में पानी बिल्कुल ही नहीं डाला जाता है। इस विधि में पानी का तापक्रम 180°F या 90°C तक रहता है। पकाते समय ढक्कन विधिवत् बन्द कर देना चाहिए, ताकि वाष्प बाहर न निकलने पाये। इस विधि में भोजन पकाने पर उसका स्वाद, सुगन्ध, पोषक तत्त्व सुरक्षित रहते हैं। मांस, साग, सब्जी तथा फल का स्ट्यू इसी विधि से तैयार किया जाता है। मन्द ताप से कठोर हुए बिना प्रोटीन का स्कन्दन हो जाता है।

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एक शब्द में उत्तर दें

प्रश्न 1.
पकाया हुआ भोजन ……… पच जाता है।
उत्तर-
आसानी से।

प्रश्न 2.
भोजन को कितने ढंगों द्वारा पकाया जाता है ?
उत्तर-
तीन।

प्रश्न 3.
भोजन पकाने का सस्ता तथा सरल ढंग बताएं।
उत्तर-
स्ट्यू करना।

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प्रश्न 4.
बेक करके क्या पकाया जाता है, एक का नाम बताएं।
उत्तर-
केक।

प्रश्न 5.
उथला तलना विधि द्वारा पकाए जाने वाले एक पदार्थ का नाम लिखें।
उत्तर-
आलू की टिक्की।

प्रश्न 6.
भोजन तलने का एक दोष बताएं।
उत्तर-
भोजन पचने में मुश्किल होती है।

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प्रश्न 7.
भोजन को अधिक घी में पकाने के तरीके को क्या कहते हैं ?
उत्तर-
तलना।

प्रश्न 8.
टोस्टर में डबलरोटी को भूनना, भूनने की कैसी विधि है ?
उत्तर-
अप्रत्यक्ष भूनना।

प्रश्न 9.
स्ट्यू करते समय पानी का तापमान कितना होता है ?
उत्तर-
90° C.

PSEB 6th Class Home Science Solutions Chapter 3 भोजन पकाने के कारण

भोजन पकाने के कारण PSEB 6th Class Home Science Notes

  • पका हुआ भोजन सुगमता से पच जाता है।
  • पकाने से खाने वाली चीज़ का रंग, रूप, स्वाद तथा सुगंध को अच्छा बनाया जा सकता है।
  • पकाने से कई तरह के हानिकारक बैक्टीरिया तथा अन्य सूक्ष्म जीवाणु मर जाते हैं तथा भोजन हानिरहित हो जाता है।
  • पकाने से भोजन को अधिक समय तक सुरक्षित रखा जा सकता है।
  • भोजन को तीन ढंगों से पकाया जा सकता है –
    1. सूखे सेंक से पकाना, 2. गीले सेंक से पकाना, 3. घी में पकाना।
  • जब किसी चीज़ को अधिक पानी में पकाया जाए तो उसे उबालना कहते हैं।
  • पदार्थ को थोड़ी-सी चिकनाई लगाकर सेंकने को भूनना कहते हैं।
  • पका भोजन शीघ्र पचने वाला तथा मीठी सुगन्ध वाला होता है।
  • भोजन को घी में पकाने को तलना कहते हैं।
  • दाने भट्ठी पर कड़ाही में रखकर रेत से भूने जाते हैं।
  • तला हुआ भोजन निःसंदेह स्वादिष्ट होता है, परन्तु सख्त तथा भारी होता है।

PSEB 11th Class Agriculture Solutions Chapter 4 कृषि उत्पादों का मंडीकरण

Punjab State Board PSEB 11th Class Agriculture Book Solutions Chapter 4 कृषि उत्पादों का मंडीकरण Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Agriculture Chapter 4 कृषि उत्पादों का मंडीकरण

PSEB 11th Class Agriculture Guide कृषि उत्पादों का मंडीकरण Textbook Questions and Answers

(क) एक-दो शब्दों में उत्तर दो-

प्रश्न 1.
उपयुक्त मंडीकरण फसल की कटाई से पूर्व आरम्भ होता है या बाद में ?
उत्तर-
पहले।

प्रश्न 2.
यदि किसान महसूस करें कि उन्हें मंडी में उत्पाद का उचित मूल्य नहीं दिया जा रहा, तो उन्हें किसके साथ सम्पर्क करना चहिए?
उत्तर-
मार्केटिंग इंस्पैक्टर तथा मार्केटिंग कमेटी वालों से।.

प्रश्न 3.
यदि बोरी के वजन से अधिक उत्पाद तोला गया हो तो इसकी शिकायत किस को करनी चाहिए?
उत्तर-
मंडीकरण के उच्च अधिकारी से।

PSEB 11th Class Agriculture Solutions Chapter 4 कृषि उत्पादों का मंडीकरण

प्रश्न 4.
उत्पाद को मंडी में ले जाने से पूर्व कौन सी दो बातों की ओर ध्यान देना जरूरी है?
उत्तर-

  1. दानों में नमी की मात्रा निर्धारित माप दण्ड के अनुसार ठीक होनी चाहिए।
  2. उत्पाद की सफाई।

प्रश्न 5.
मंडी गोबिंदगढ़, मोगा और जगराओं में गेहूं संभालने के लिए ब्लॉक हैंडलिंग इकाइयां किसने स्थापित की हैं ?
उत्तर-
भारतीय खाद्य निगम।

प्रश्न 6.
किसानों को फसल की तोलाई के बाद आढ़ती से कौन सा फार्म लेना जरूरी है?
उत्तर-
जे (J) फार्म।

PSEB 11th Class Agriculture Solutions Chapter 4 कृषि उत्पादों का मंडीकरण

प्रश्न 7.
अलग-अलग मंडियों में उत्पादों के मूल्यों (कीमतों) की जानकारी किन साधनों द्वारा प्राप्त की जा सकती है?
उत्तर-
टी०वी०, रेडियो, समाचार-पत्र आदि द्वारा।

प्रश्न 8.
सरकारी खरीद एजेंसियां उत्पाद का मूल्य किस आधार पर लगाती हैं ?
उत्तर-
नमी की मात्रा देख कर।

प्रश्न 9.
संदेह के आधार पर मंडीकरण एक्ट के अनुसार कितने प्रतिशत तक उत्पाद की तोलाई बिना पैसे दिए करवाई जा सकती है?
उत्तर-
10% उत्पाद की।

PSEB 11th Class Agriculture Solutions Chapter 4 कृषि उत्पादों का मंडीकरण

प्रश्न 10.
कौन सा एक्ट किसानों को तुलाई पड़ताल का अधिकार देता है?
उत्तर-
मंडीकरण एक्ट 1961।

(ख) एक-दो वाक्यों में उत्तर दो-

प्रश्न 1.
कृषि सम्बन्धी कौन-कौन से काम करते समय विशेषज्ञों की राय लेनी चाहिए?
उत्तर-
गुडाई, दवाइयों का प्रयोग, पानी, खाद, कटाई, गहाई इत्यादि कार्य करते समय विशेषज्ञों की राय लेनी चाहिए।

प्रश्न 2.
खेती के लिए फसलों का चुनाव करते समय किस बात का ध्यान रखना चाहिए?
उत्तर-
कृषि के लिए उस फसल का चुनाव करें जिससे अधिक लाभ मिल सकता है और इस फसल की बढ़िया किस्म की ही बुआई करें।

PSEB 11th Class Agriculture Solutions Chapter 4 कृषि उत्पादों का मंडीकरण

प्रश्न 3.
उत्पाद बिक्री के लिए मंडी में ले जाने से पूर्व किस बात की पड़ताल कर लेनी चाहिए?
उत्तर-
मंडी ले जाने से पहले दानों के बीच नमी की मात्रा निर्धारित मापदण्डों के अनुसार है या नहीं इसकी जांच कर लेनी चाहिए और फसल को तोल कर और वर्गीकरण करके मण्डी में ले जाने पर अधिक लाभ मिलता है।

प्रश्न 4.
मंडी में उत्पाद की बिक्री के समय किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
उत्तर-
सफ़ाई, तोल और बोली के समय किसान अपनी ढेरों के पास ही खड़ा रहे और देखे कि उसके उत्पाद का मूल्य ठीक लग रहा है या नहीं। यदि मूल्य ठीक न लगे तो मार्केटिंग इन्स्पैक्टर की सहायता ली जा सकती है। तोलाई वाले बाटों पर सरकारी मोहर लगी होनी चाहिए।

प्रश्न 5.
ब्लॉक हैंडलिंग इकाइयों में सीधे उत्पाद बिक्री से क्या लाभ होते हैं ?
उत्तर-
बल्क हैंडलिंग इकाइयों में सीधा उत्पाद बिक्री से कई लाभ होते हैं, जैसे-पैसे का भुगतान उसी दिन हो जाता है, मंडी का खर्चा नहीं देना पड़ता, मज़दूरों का खर्चा बचता है, प्राकृतिक आपदाओं, जैसे-वर्षा, आंधी आदि के कारण उत्पाद नुकसान से बच जाता है।

PSEB 11th Class Agriculture Solutions Chapter 4 कृषि उत्पादों का मंडीकरण

प्रश्न 6.
मंडी में उत्पाद की निगरानी क्यों जरूरी है?
उत्तर-
कई बार मंडी में मज़दूर जानबूझ कर उत्पाद को किसी अन्य ढेरी में मिला देते हैं या कई बार उत्पाद को बचे हुए ‘छान’ में मिला देते हैं जिससे किसान को बहुत नुकसान हो जाता है। इसलिए उत्पाद का ध्यान रखना ज़रूरी है।

प्रश्न 7.
अलग-अलग मंडियों में उत्पादों के मूल्यों की जानकारी के क्या लाभ हैं?
उत्तर-
फसल की मंडी में आमद अधिक हो जाने या कम हो जाने पर कीमतें घटती तथा बढ़ती रहती हैं। इसलिए मंडियों के मूल्यों की लगातार जानकारी लेते रहना चाहिए ताकि अधिक मूल्य पर उत्पाद बेचा जा सके।

प्रश्न 8.
मार्किट कमेटी के दो मुख्य काम क्या हैं ?
उत्तर-
मार्किट कमेटी का मुख्य काम मण्डी में किसानों के अधिकारों की रक्षा करना है। यह उत्पाद की बोली करवाने में पूरा-पूरा तालमेल बना कर रखती है। इसके अलावा उत्पाद की तुलाई भी ठीक ढंग से होती है यह भी ध्यान रखती है।

PSEB 11th Class Agriculture Solutions Chapter 4 कृषि उत्पादों का मंडीकरण

प्रश्न 9.
श्रेणीबद्ध से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
फसल को उसकी गुणवत्ता के अनुसार भिन्न-भिन्न भागों में बांटने को वर्गीकरण (श्रेणीबद्ध) करना कहा जाता है।

प्रश्न 10.
जे (J) फार्म लेने के क्या-क्या लाभ हैं ?
उत्तर-
जे (J) फार्म में बिक चुके उत्पाद के बारे में सारी जानकारी होती है, जैसेउत्पाद की मात्रा, बिक्री कीमत तथा प्राप्त किए खर्चे । यह फार्म लेने के अन्य लाभ हैं कि बाद में यदि कोई बोनस मिलता है तो वह भी प्राप्त किया जा सकता है तथा मण्डी फीस की चोरी को भी रोका जा सकता है।

(ग) पांच-छ: वाक्यों में उत्तर दो-

प्रश्न 1.
मंडीकरण में सरकारी दखल पर नोट लिखो।
उत्तर-
एक समय था जब कृषक अपनी उपज के लिए व्यापारियों पर निर्भर था। व्यापारी अकसर कृषक को अधिक उत्पाद लेकर कम दाम ही देते थे। अब सरकार द्वारा कई नियम कानून बना दिए गए हैं तथा मार्किट कमेटियां, सहकारी संस्थाएं आदि बन गई हैं। नियमों कानूनों के अनुसार किसान को उचित दाम तो मिलता ही है क्योंकि सरकार द्वारा कमसे-कम निर्धारित मूल्य तय कर दिया जाता है। किसान को यदि किसी तरह का शक हो तो वह अपने उत्पाद की तुलाई करवा सकता है तथा पैसे नहीं लगते। सरकार द्वारा मैकेनिकल हैंडलिंग इकाइयां भी स्थापित की गई हैं। किसान अपने उत्पाद को बेच कर आढ़ती से फार्म-J ले सकता है जिसके बाद में बोनस मिलने पर किसान को सुविधा रहती है। इस प्रकार सरकार के दखल से किसान के अधिकार अधिक सुरक्षित हो गए हैं।

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प्रश्न 2.
सहकारी मंडीकरण का संक्षेप में विवरण दो।
उत्तर-
सहकारी मंडीकरण द्वारा किसानों को अपनी उपज बेच कर अच्छा दाम मिल जाता है। ये सभाएं आम करके कमीशन ऐजंसियों का काम करती हैं। ये सभाएं किसानों द्वारा ही बनाई जाती हैं। इसलिए यह किसानों को अधिक दाम प्राप्त करवाने के लिए सहायक होती हैं। इनके द्वारा किसानों को आढ़ती से जल्दी भुगतान हो जाता है। इन सभाओं द्वारा किसानों को अन्य सुविधाएं भी मिलती हैं; जैसे-फसलों के लिए ऋण तथा सस्ते दाम पर खादें, कीटनाशक दवाइयां मिलना आदि।

प्रश्न 3.
कृषि उत्पादों को श्रेणीबद्ध करने के क्या लाभ हैं ?
उत्तर-
वर्गीकरण (श्रेणीबद्ध) की हुई फसल का मूल्य अच्छा मिलता है। अच्छी उपज एक ओर करके अलग दों में मंडी में लेकर जाओ। घटिया उपज को दूसरे दर्जे में रखो। इस प्रकार अधिक लाभ कमाया जा सकता है। यदि वर्गीकरण (श्रेणीबद्ध) किए बिना घटिया वस्तु नीचे और ऊपर अच्छी वस्तु रख कर बेची जाएगी तो कुछ दिन तो अच्छे पैसे कमा लोगे परन्तु जल्दी ही लोगों को इस बात का पता चल जाएगा और किसान ग्राहकों में अपना विश्वास खो बैठेगा और दोबारा लोग ऐसे किसानों से चीज़ खरीदने में परहेज करेंगे। परन्तु यदि किसान मंडी में ईमानदारी के साथ अपना माल बेचेगा तो लोग भी उसका माल खरीदने के लिए उत्सुक होंगे और किसान अब लम्बे समय तक लाभ कमाता रहेगा। ऐसा तब ही हो सकता है जब कृषक अपनी उपज की दर्जाबन्दी करें।

प्रश्न 4.
मकैनिकल हैंडलिंग इकाइयों पर संक्षेप में नोट लिखो।
उत्तर-
पंजाब राज्य मंडी बोर्ड द्वारा पंजाब में कुछ मंडियों में मकैनिकल हैंडलिंग इकाइयां स्थापित की गई हैं। इन इकाइयों की सहायता से किसान के उत्पाद की सफाई, भराई तथा तुलाई मशीनों द्वारा मिनटों में हो जाती है। यदि इसी कार्य को मजदूरों ने करना हो तो कई घण्टे लग जाएंगे। इन इकाइयों का प्रयोग किया जाए तो किसानों को कम खर्चा करना पड़ता है तथा उत्पाद की कीमत भी अधिक मिल जाती है। रकम का भुगतान भी उसी समय हो जाता है। भारतीय खाद्य निगम द्वारा मोगा, मंडी गोबिंदगढ़ तथा जगराओं में गेहूँ को संभालने के लिए इसी तरह की बड़े स्तर पर इकाइयों की स्थापना की गई हैं । यहां किसान सीधा गेहूँ बेच सकता है। उसको उसी दिन भुगतान हो जाता है। मंडी का खर्चा नहीं पड़ता, प्राकृतिक आपदाओं से भी उत्पाद का बचाव हो जाता है। किसान को इन इकाइयों का पूरा लाभ लेना चाहिए।

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प्रश्न 5.
कृषि उत्पादों के उपयुक्त मंडीकरण के क्या लाभ हैं?
उत्तर-
फसल उगाने के लिए बड़ी मेहनत लगती है और इसका उचित मूल्य भी मिलना चाहिए। इसके लिए मंडीकरण का काफ़ी महत्त्व हो जाता है। मण्डीकरण की तरफ बुवाई के समय से ही ध्यान देना चाहिए। ऐसी फसल की कृषि करें जिससे अधिक लाभ मिल सके। अधिक फसल की उन्नत किस्म की बुवाई करें। फसल की सम्भाल ठीक ढंग से करें। खादें, कृषि जहर, निराई, सिंचाई आदि के लिए कृषि विशेषज्ञों की राय लें। फसल को धूल मिट्टी से बचाएं। इसे नाप तोल कर और इसका वर्गीकरण करके ही मण्डी में लेकर जाएं। मण्डी में जल्दी पहुंचे और कोशिश करें कि उसी दिन फसल बिक जाए।

Agriculture Guide for Class 11 PSEB कृषि उत्पादों का मंडीकरण Important Questions and Answers

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
हम अपनी उपज का उपयुक्त मूल्य कैसे प्राप्त कर सकते हैं ?
उत्तर-
उपज के मण्डीकरण की ओर विशेष ध्यान देकर।

प्रश्न 2.
उपयुक्त मण्डीकरण कब आरम्भ होता है?
उत्तर-
बुवाई के समय से ही।

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प्रश्न 3.
उपज का पूर्ण मूल्य लेने के लिए उसमें कितनी नमी होनी चाहिए?
उत्तर-
नमी की मात्रा निर्धारित मापदंडों के अनुसार होनी चाहिए।

प्रश्न 4.
सफाई, तोलाई और बोली के समय किसान को कहां होना चाहिए?
उत्तर-
अपने उत्पाद के समीप।

प्रश्न 5.
किस प्रकार की फसल की कृषि के बारे में किसान को सोचना चाहिए?
उत्तर-
जिससे अधिक मुनाफा कमाया जा सके।

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प्रश्न 6.
आकार के अनुसार सब्जियों और फलों के वर्गीकरण (श्रेणीबद्ध करने) को क्या कहा जाता है ?
उत्तर-
वर्गीकरण या श्रेणीबद्ध या दर्जाबंदी।

प्रश्न 7.
क्या अपने उत्पाद को बिक्री के लिए मण्डी ले जाने से पहले मण्डी की परिस्थिति के बारे में जानकारी प्राप्त करनी चाहिए अथवा नहीं ?
उत्तर-
मण्डी की स्थिति के बारे में जानकारी प्राप्त करनी चाहिए।

प्रश्न 8.
उपयुक्त मण्डीकरण की ओर ध्यान देने की आवश्यकता है या नहीं ?
उत्तर-
अच्छे मण्डीकरण की ओर ध्यान देने की बहुत आवश्यकता है।

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प्रश्न 9.
फसल निकालने के बाद इसे तोलना क्यों चाहिए?
उत्तर-
ऐसा करने से मण्डी में बेची जाने वाली फसल का अन्दाज़ा रहता है।

प्रश्न 10.
आढ़ती से फार्म पर रसीद लेने का क्या महत्त्व है?
उत्तर-
इस तरह क्या कमाया, कितना खर्च किया इसकी पड़ताल की जा सकती है।

प्रश्न 11.
यदि किसान को उसके उत्पाद का उचित मूल्य न मिल रहा हो तो उसे क्या करना चाहिए?
उत्तर-
यदि उत्पाद का उचित मूल्य न मिले तो मार्केटिंग इन्सपैक्टर की सहायता लेनी चाहिए।

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प्रश्न 12.
सब्जियों और फलों का वर्गीकरण (श्रेणीबद्ध) करने से क्या लाभ होता है ?
उत्तर-
वर्गीकरण (श्रेणीबद्ध) किए हुए फलों और सब्जियों को बेचने पर अधिक मूल्य प्राप्त होता है।

प्रश्न 13.
लोगों का विश्वास जीतने के लिए किसान को क्या करना चाहिए?
उत्तर-
किसान को वर्गीकरण करके अपनी फसल ईमानदारी से बेचनी चाहिए ताकि ग्राहकों का विश्वास बनाया जा सके।

प्रश्न 14.
खेती उत्पादों के मण्डीकरण से क्या भाव है?
उत्तर-
फसलों की मण्डी में अच्छी बिक्री।

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प्रश्न 15.
उत्तम क्वालटी के उत्पाद तैयार करने के लिए किसानों को किसकी आवश्यकता है?
उत्तर-
शोधित प्रमाणित बीज तथा अच्छी योजनाबंदी।

प्रश्न 16.
वर्गीकरण ( श्रेणीबद्ध) करके उत्पाद भेजने से कितनी अधिक कीमत मिल जाती है?
उत्तर-
10 से 20%

प्रश्न 17.
मण्डी में उत्पाद कब लेकर जाना चाहिए?
उत्तर-
सुबह ही।

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प्रश्न 18.
फसल की कटाई पूरी तरह पकने से पहले करने से क्या होता है?
उत्तर-
दाने सिकुड़ जाते हैं।

प्रश्न 19.
देर से कटाई करने की क्या हानि है?
उत्तर-
दाने झड़ने का डर रहता है।

प्रश्न 20.
दर्जाबंदी सहायक कहां होता है ?
उत्तर-
दाना मण्डी में नियुक्त होता है।

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लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
फसल की संभाल उपयुक्त विधि से करने का क्या भाव है?
उत्तर-
फसल की संभाल उपयुक्त विधि से करने का भाव है कि गुड़ाई, दवाइयों का प्रयोग, खाद, पानी, कटाई तथा गहाई के काम विशेषज्ञों के मतानुसार करना चाहिए।

प्रश्न 2.
किसान को फसल का अच्छा मूल्य लेने के लिए क्या करना चाहिए?
उत्तर-

  1. किसान को अपनी फसल तोल, माप कर मण्डी में ले जानी चाहिए।
  2. किसान को उत्पाद की दर्जाबंदी (श्रेणीबद्ध) करके मण्डी में लेकर जाना चाहिए।
  3. उत्पाद में नमी की मात्रा निर्धारित माप-दंडों के अनुसार होनी चाहिए।

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दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
कृषि उत्पादों की बिक्री के लिए किसान को किन बातों को ध्यान में रखना चाहिए?
उत्तर-

  1. सफाई, तोलाई तथा बोली के समय किसान को अपने उत्पाद के समीप रहना चाहिए।
  2. यदि उत्पाद की कम कीमत मिले तो किसान को मार्केटिंग इंस्पैक्टर तथा मार्कीट कमेटी के अमले की सहायता लेनी चाहिए।
  3. तोलाई के समय तुला तथा वाटों के ऊपर सरकारी मोहर देख लेनी चाहिए।
  4. उत्पाद बेचने की आढ़ती से फार्म पर रसीद लेनी चाहिए।

प्रश्न 2.
कृषि उत्पादों की बिक्री के समय कौन-सी बातों का ध्यान रखना चाहिए?
उत्तर-

  1. सफ़ाई, तोलाई और बोली के समय किसान अपनी ढेरी के पास ही खड़ा हो।
  2. तोलाई के समय तराजू और बाटों की जांच करो। बांटों पर सरकारी मोहर लगी होनी चाहिए।
  3. यदि लगे कि फसल का उचित मूल्य नहीं मिल रहा है तो मार्केटिंग इन्स्पैक्टर और मार्केटिंग स्टाफ की सहायता लो।
  4. फसल बेचकर आढ़ती से फार्म के ऊपर रसीद ले लो। इस तरह लाभ और खर्चों की जांच की जा सकती है।

प्रश्न 3.
अधिक लाभ कमाने के लिए किसान को किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
उत्तर-

  1. ऐसी फसल बोएं जिससे अच्छी आमदन हो जाए।
  2. अच्छी किस्म का पता करने के बाद बोना चाहिए।
  3. फसल की संभाल अच्छी प्रकार करनी चाहिए।
  4. गुड़ाई, दवाइयों का प्रयोग, खाद, सिंचाई, कटाई, गहाई विशेषज्ञों की राय के अनुसार करें।

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कृषि उत्पादों का मंडीकरण PSEB 11th Class Agriculture Notes

  • कृषि उपज का मंडीकरण बढ़िया ढंग से किया जाए तो अधिक मुनाफ़ा कमाया जा सकता है।
  • अच्छे मंडीकरण के लिए बुवाई के समय से ही ध्यान रखना पड़ता है।
  • अधिक पैसा दिलाने वाली फसल की उत्तम किस्म की बुवाई करें।
  • निराई, दवाइयों का प्रयोग, पानी, खाद, कटाई आदि विशेषज्ञों की सलाह से करें।
  • उत्पाद निकालने के बाद इसे तोल लेना चाहिए। यह बेहद जरूरी है।
  • उत्पादों का वर्गीकरण करके उसे मंडी में ले जाएं।
  • उत्पाद बेचने के दौरान आढ़ती से फार्म व रसीद ले लें ताकि मुनाफे और खर्चे की पड़ताल की जा सके।
  • किसानों को अपनी उपज का मंडीकरण सांझी तथा सहकारी संस्थाओं द्वारा करना चाहिए।
  • पंजाब राज्य मण्डी बोर्ड द्वारा कुछ मंडियों में मकैनिकल हैंडलिंग इकाइयाँ स्थापित की गई हैं।
  • भारतीय खाद्य निगम द्वारा मंडी गोबिन्दगढ़, मोगा तथा जगराओं में गेहँ को संभालने के लिए बड़े स्तर पर प्रबंध इकाइयों की स्थापना की गई है।
  • कृषकों को अपने आस-पास की मंडियों के भाव की जानकारी लेते रहना चाहिए।
  • भिन्न-भिन्न मंडियों के मूल्य रेडियो, टी०वी० तथा समाचार-पत्रों आदि से भी पता लगते रहते हैं।
  • कृषक को उत्पाद बेचने के लिए कोई समस्या आए तो वह मार्किट कमेटी के उच्च अधिकारियों से सम्पर्क कर सकता है।