PSEB 7th Class Social Science Solutions Chapter 14 कबीले, खानाबदोश तथा स्थिर भाईचारे

Punjab State Board PSEB 7th Class Social Science Book Solutions History Chapter 14 कबीले, खानाबदोश तथा स्थिर भाईचारे Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 7 Social Science History Chapter 14 कबीले, खानाबदोश तथा स्थिर भाईचारे

SST Guide for Class 7 PSEB कबीले, खानाबदोश तथा स्थिर भाईचारे Textbook Questions and Answers

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के संक्षिप्त उत्तर लिखें

प्रश्न 1.
कबीलों के लोगों का प्रमुख कार्य कौन-सा था ?
उत्तर-
कबीलों के लोगों का प्रमुख कार्य कृषि करना होता था। परन्तु कुछ कबीलों के लोग शिकार करना, संग्राहक या पशु-पालन का कार्य करना भी पसन्द करते थे।

प्रश्न 2.
खानाबदोश से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
कुछ कबीलों के लोग अपना जीवन-निर्वाह करने के लिए एक स्थान से दूसरे स्थान पर घूमते-फिरते रहते थे। इन्हें खानाबदोश कहा जाता है।

प्रश्न 3.
कबीले समाज के लोग कहां रहते थे ?
उत्तर-
कबीले समाज के लोग मुख्य रूप से जंगलों, पहाड़ों तथा रेतीले प्रदेशों में रहते थे।

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प्रश्न 4.
मध्यकालीन युग में पंजाब में कौन-कौन से कबीले रहते थे ?
उत्तर-
मध्यकालीन युग में पंजाब में खोखर, गखड़, लंगाह, अरघुन तथा बलूच आदि कबीले रहते थे।

प्रश्न 5.
सुफ़ाका कौन था ?
उत्तर-
सुफाका अहोम वंश का पहला शासक था। उसने 1228 ई० से 1268 ई० तक शासन किया। उसने कई स्थानीय शासकों को पराजित करके ब्रह्मपुत्र घाटी तक अपने राज्य का विस्तार कर लिया। गड़गाऊ उसकी राजधानी थी।

प्रश्न 6.
किस क्षेत्र को गौंडवाना कहा जाता है ?
उत्तर-
पश्चिमी उड़ीसा, पूर्वी महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ तथा मध्य प्रदेश आदि क्षेत्रों को सामूहिक रूप से गौंडवाना कहा जाता है। इस क्षेत्र को गौंड लोगों की अधिक संख्या के कारण यह नाम दिया जाता है।

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(ख) निम्नलिखित रिक्त स्थानों की पूर्ति करें

  1. ……………. तथा ……………… दो कबीले थे।
  2. अहोम कबीले ने अपना शासन वर्तमानकालीन …………… के क्षेत्रों में स्थापित किया था।
  3. 15वीं सदी से 18वीं सदी तक ………………. में खुशहाल (राज्य) शासन था।
  4. अहोम कबीले के लोग चीन के …………… वर्ग से सम्बन्ध रखते थे।
  5. रानी दुर्गावती एक प्रसिद्ध ………….. शासक थी।

उत्तर-

  1. अहोम, नागा,
  2. आसाम,
  3. गौंडवाना,
  4. ताई-मंगोलिड,
  5. गौंड।

PSEB 7th Class Social Science Guide कबीले, खानाबदोश तथा स्थिर भाईचारे Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
मध्यकालीन युग में उत्तरी भारत का समाज किस प्रकार का था?
उत्तर-
मध्यकालीन युग में उत्तर भारत का समाज ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र नामक चार प्रमुख वर्गों में बंटा हुआ था। इनकी आगे भी कई जातियां और उपजातियां थीं।

समाज में कुलीन वर्ग के अतिरिक्त ब्राह्मणों, कारीगरों और व्यापारियों का भी बहुत संत्कार था। महिलाओं को उच्च शिक्षा दी जाती थी। उन्हें अपने पति का चुनाव करने का अधिकार था।

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प्रश्न 2.
दिल्ली सल्तनत काल की सामाजिक स्थिति के बारे में जानकारी दीजिए।
उत्तर-
दिल्ली सल्तनत काल में भारतीय समाज हिन्दू और मुस्लिम दो प्रमुख वर्गों में विभक्त था –
I. मुस्लिम वर्ग-

1. शासक वर्ग-मुस्लिम वर्ग मुख्य रूप से शासक वर्ग था। अब शासक वर्ग में तुर्क और अफगानों के साथ राजपूत भी शामिल हो गए थे। समय बीतने पर अरब, ईरानी और मंगोल जातियों के लोग भी कुलीन वर्ग में शामिल हो गए। ये लोग बहुत विलासी जीवन व्यतीत करते थे।

2. दास-उस समय समाज में दासों की संख्या बहुत अधिक थी। उदाहरण के लिए कुतुबुद्दीन ऐबक, इल्तुतमिश और बलबन सुल्तान बनने से पहले दास ही थे।

3. महिलाओं की दशा-मुस्लिम समाज में महिलाओं की दशा अच्छी नहीं थी। अधिकतर महिलाएं अशिक्षित थीं। वे पर्दा करती थीं।

4. वेश-भूषा, भोजन तथा मनोरंजन-मुसलमान लोग सूती, ऊनी और रेशमी कपड़े पहनते थे। महिलाएं और पुरुष दोनों ही आभूषणों के शौकीन थे। मुस्लिम लोग मुख्य रूप से चावल, गेहूं, सब्जियां, घी, अण्डे आदि खाते थे। वे शिकार, चौगान और कुश्ती आदि से अपना मनोरंजन करते थे।

II. हिन्दू समाज-देश में हिन्दुओं की संख्या बहुत अधिक थी, परन्तु उनका सत्कार नहीं किया जाता था। उन्हें इस्लाम धर्म स्वीकार करने के लिए विवश किया जाता था।

1. जाति प्रथा बहुत कठोर थी। हिन्दू समाज भी बहुत-सी जातियों और उप-जातियों में बंटा हुआ था। समाज में ब्राह्मणों को उच्च स्थान प्राप्त था। वैश्य आय विभाग में बहुत से पदों पर नियुक्त थे। समाज में क्षत्रियों की दशा बहुत ही दयनीय थी क्योंकि वे मुसलमानों से हार गये थे। उच्च जाति के लोग शूद्रों से घृणा करते थे।

2. हिन्दू समाज में नारियों की दशा बहुत ही खराब थी। वे अधिकतर अशिक्षित थीं। स्त्रियां पति की मृत्यु पर पति की चिता पर जलकर मर जाती थीं। वे जौहर भी निभाती थीं। मुस्लिम स्त्रियों की तरह वे भी पर्दा करती थीं।

3. हिन्दू लोग सूती, ऊनी और रेशमी वस्त्र पहनते थे। स्त्री तथा पुरुष दोनों ही आभूषणों के शौकीन थे। उनका मुख्य भोजन गेहूं, चावल, सब्जियां, घी और दूध आदि था। उन्हें नाच-गाने का बड़ा चाव था।

प्रश्न 3.
अहोम लोगों के बारे में जानकारी दीजिए।
उत्तर-
अहोम कबीले के लोगों ने 13वीं शताब्दी से लेकर 19वीं शताब्दी तक वर्तमान असम पर राज्य किया। उनका सम्बन्ध चीन के ताई-मंगोल कबीले से था। वे 13वीं सदी में चीन से असम आये थे। सुफाका असम का पहला अहोम शासक था। उसने 1228 ई० से 1268 ई० तक शासन किया। अहोमों ने अपने क्षेत्र के अनेक स्थानीय शासकों को पराजित किया। इनमें कचारी, मीरन और नाग आदि स्थानीय राजवंश शामिल थे। इस प्रकार अहोमों ने ब्रह्मपुत्र घाटी तक अपने राज्य का विस्तार कर लिया। अहोमों की राजधानी गड़गाऊ थी।

अहोमों ने मुग़लों और बंगाल आदि के विरुद्ध भी संघर्ष किया। मुग़लों ने असम पर अधिकार करने का प्रयास किया परन्तु असफल रहे। अन्त में औरंगजेब ने अहोमों की राजधानी गड़गाऊ पर विजय प्राप्त कर ली, परन्तु वह इसे मुग़ल शासन के अधीन न रख सका। 18वीं सदी में अहोम शासन का पतन होने लगा। लगभग 1818 ई० में बर्मा (म्यांमार) के लोगों ने असम पर आक्रमण कर दिया। उन्होंने अहोम राजा को असम छोड़ने के लिए विवश कर दिया। 1826 ई० में अंग्रेज़ असम में पहुंचे। उन्होंने बर्मा के लोगों को हरा कर उनके साथ यंदाबू की सन्धि की। इस प्रकार असम पर अंग्रेज़ों का अधिकार हो गया।

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प्रश्न 4.
गौण्ड लोगों के इतिहास के बारे में लिखिए।
उत्तर-
गौण्ड कबीले का सम्बन्ध मध्य भारत से है। ये पश्चिमी उड़ीसा, पूर्वी महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश आदि प्रान्तों में रहते हैं। इन प्रान्तों में गौण्ड लोगों की पर्याप्त संख्या होने के कारण इस क्षेत्र को गोंडवाना कहते हैं।

15वीं सदी से लेकर 18वीं सदी तक गोंडवाना क्षेत्र में कई राज्य स्थापित हुए। रानी दुर्गावती एक प्रसिद्ध गौण्ड शासिका थी। उसका राज्य यहां के स्वतन्त्र राज्यों में से एक था। जबलपुर उसकी राजधानी थी। मुग़ल शासक अकबर ने उसे अपनी अधीनता स्वीकार करने के लिए कहा परन्तु रानी दुर्गावती ने अकबर के सामने झुकने से इन्कार कर दिया। अतः मुग़लों और रानी दुर्गावती के बीच एक भीषण युद्ध हुआ। इस युद्ध में रानी दुर्गावती मुग़लों के हाथों मारी गई।

गौण्ड लोगों की मूल आवश्यकताएं बहुत कम होती हैं। उनके घर भी साधारण बनावट (रचना) के हैं। एक निरीक्षण के अनुसार गौण्ड लोग गोण्डवाना क्षेत्र के अन्य लोगों की अपेक्षा कम पढ़े-लिखे हैं।

प्रश्न 5.
800 से 1200 ई० तक दक्षिण भारत की जाति-प्रथा की मुख्य विशेषताएं बताओ।
उत्तर-
मध्यकाल में दक्षिण भारत में जाति-प्रथा बहुत कठोर हो गई थी। इस समय समाज चार वर्गों-ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र में विभक्त था। समाज में ब्राह्मणों का स्थान बहुत ऊंचा था, क्योंकि वे धार्मिक रीतियों को पूरा करने का काम करते थे। वैश्य व्यापार करते थे। समाज में शूद्रों के साथ बुरा व्यवहार किया जाता था।

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प्रश्न 6.
आरम्भिक मध्यकाल (800-1200 ई०) में दक्षिण भारत में महिलाओं की दशा कैसी थी?
उत्तर-
आरम्भिक मध्यकाल में दक्षिण भारत के समाज में महिलाओं का सत्कार किया जाता था। उन्हें शिक्षा भी दी जाती थी। वे सामाजिक तथा धार्मिक रीतियों को पूरा करने में समान रूप से भाग लेती थीं। उन्हें अपने वर को स्वयं चुनने का अधिकार था। उनका आचरण बहुत उच्च था। वे जौहर की प्रथा निभाती थीं जो उनके शौर्य और शान का प्रतीक था।

प्रश्न 7.
800 से 1200 ई० तक दक्षिण भारत के लोगों के सामाजिक जीवन की कोई तीन विशेषताएं बताओ।
उत्तर-

  1. इस काल में लोग, विशेषतया राजपूत बड़े वीर और साहसी थे।
  2. साधारणतया लोग संगीत, नृत्य और शतरंज खेलकर अपना मनोरंजन करते थे।
  3. वे सादा भोजन खाते थे और सादे कपड़े पहनते थे।

प्रश्न 8.
भारत के आदिवासी कबीलों, खानाबदोशों तथा घुमक्कड़ समूहों के जीवन का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर-
मणिपुर, मेघालय, मध्य-प्रदेश, नागालैण्ड, दादरा और नगर हवेली आदि राज्यों में आदि कबीले, खानाबदोश और घुमक्कड़ वर्ग के लोग बहुत संख्या में रहते हैं। इन वर्गों में भील, गोंड, अहोम, कूई, कोलीम, कुक्की आदि लोग शामिल हैं। ये साधारणतया जंगलों में रहते हैं। खानाबदोश लोग अपने पशुओं के झुण्डों के साथ एक स्थान से दूसरे स्थान पर घूमते-फिरते रहते हैं।
सरकार ने इन लोगों की सहायता के लिए इन्हें बहुत-सी सुविधाएं प्रदान की हैं। उदाहरण के लिए –

  1. कबाइली क्षेत्रों में व्यवसाय प्रशिक्षण संस्थाएं आरम्भ की गई हैं।
  2. इन्हें अपनी आर्थिक दशा सुधारने के लिए कम ब्याज-दर पर बैंकों से ऋण दिये जाते हैं।
  3. इन लोगों के लिए लगभग 7-% नौकरियां सुरक्षित रखी जाती हैं।
  4. शिक्षण संस्थानों में भी इनके लिए कुछ सीटें सुरक्षित हैं। यहां तक कि लोक सभा और विधान सभाओं के विशेष चुनाव-क्षेत्र अनुसूचित जातियों के उम्मीदवारों के लिए आरक्षित हैं।

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प्रश्न 9.
मुग़ल काल में मुस्लिम समाज की मुख्य विशेषताएं बताओ।
उत्तर-

  1. मुग़ल काल में मुस्लिम समाज तीन श्रेणियों में विभक्त था-उच्च श्रेणी, मध्य श्रेणी तथा निम्न श्रेणी।
  2. समाज में नारी की दशा अच्छी नहीं थी। वे अशिक्षित होती थीं। वे पर्दा करती थीं।
  3. मुस्लिम लोग मांस, हलवा, पूरी, मक्खन, फल और सब्जियां खाते थे। वे शराब भी पीते थे।
  4. पुरुष कुर्ता और पाजामा पहनते थे और सिर पर पगड़ी बांधते थे। महिलाएं लम्बा बुर्का पहनती थीं। महिलाएं और पुरुष दोनों ही आभूषणों के शौकीन थे।

प्रश्न 10.
मुग़ल काल के हिन्दू समाज की विशेषताएं बताएं।
उत्तर-

  1. मुग़ल काल में हिन्दू समाज अनेक जातियों और उप-जातियों में विभक्त था। ब्राह्मणों को उच्च स्थान प्राप्त था। जाति प्रथा बहुत कठोर थी।
  2. समाज में महिलाओं की दशा बहुत ही शोचनीय थी। लोग अपनी कन्याओं को शिक्षित नहीं करते थे। महिलाएं पर्दा करती थीं।
  3. उस समय लोग साधारणतया सादा भोजन करते थे। वे सूती, ऊनी और रेशमी वस्त्र पहनते थे।

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(क) सही कथनों पर (✓) तथा ग़लत कथनों पर (✗) का चिन्ह लगाएं :

  1. कबायली समाज श्रेणियों या वर्गों में बंटा हुआ नहीं था।
  2. कबीलों के लोगों का मुख्य कार्य व्यापार करना था।
  3. सुफ़ाका अहोम वंश का अन्तिम शासक था।
  4. बंजारा लोग प्रसिद्ध व्यापारी खानाबदोश थे।

उत्तर-

  1. (✓)
  2. (✗)
  3. (✗)
  4. (✓)

(ख) सही जोड़े बनाइए :

  1. गड़गाऊ – कौली
  2. जबलपुर – अहोम
  3. पंजाब – गौंड
  4. गुजरात – खोखर

उत्तर-

  1. गड़गाऊ – अहोम
  2. जबलपुर – गौंड
  3. पंजाब – खोखर
  4. गुजरात – कौली

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(ग) सही उत्तर चुनिए :

प्रश्न 1.
खानाबदोश (मध्यकालीन) कबीले कुलों में बंटे हुए थे? ये कुल क्या थे?
(i) एक ही पूर्वज की संतान
(ii) कई परिवारों का समूह
(iii) ये दोनों।
उत्तर-
(iii) ये दोनों।

प्रश्न 2.
मुण्डा तथा संथाल कबीलों का सम्बन्ध वर्तमान के किस स्थान से है?
(i) बिहार तथा झारखण्ड
(ii) जम्मू-कश्मीर
(iii) हिमाचल प्रदेश।
उत्तर-
(i) बिहार तथा झारखण्ड।

प्रश्न 3.
अहोम लोग 13वीं शताब्दी में बाहर से आसाम में आये थे। उनका सम्बन्ध किस देश से था?
(i) जापान
(ii) चीन
(iii) मलाया।
उत्तर-
(ii) चीन।

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कबीले, खानाबदोश तथा स्थिर भाईचारे PSEB 7th Class Social Science Notes

  • मध्यकालीन युग में जाति प्रथा – मध्यकाल तक भारत में जाति प्रथा काफ़ी कठोर हो गई थी। हिन्दू समाज मुख्य रूप से चार जातियों में बंटा हुआ था-ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा शूद्र।
  • ब्राह्मणों को कई विशेष अधिकार प्राप्त थे। समाज तथा राज्य पर उनका पूरा प्रभाव था।
  • समाज में कई नई जातियां तथा उपजातियां उत्पन्न हो गईं। इन्होंने पशुपालन, खेती, शिल्प, व्यापार आदि कई नए कार्यों को अपनाया।
  • क्षत्रिय जाति के लोग शासन सम्बन्धी कार्य करते थे। वे अपने स्वाभिमान के लिए जाने जाते थे।
  • राजपूतों को भी क्षत्रिय जाति का अंग माना जाता था। वे वीर योद्धा थे।
  • वैश्य जाति के लोग खेती, पशुपालन तथा व्यापार सम्बन्धी कार्य करते थे।
  • शूद्रों को कोई अधिकार प्राप्त नहीं था।
  • मध्यकालीन समाज में स्त्रियों की दशा – दक्षिण भारत के समाज में स्त्रियों की दशा अच्छी थी। परन्तु उत्तर भारत के समाज में स्त्रियों की दशा अच्छी नहीं थी। साधारण परिवार की स्त्रियां शिक्षा प्राप्त नहीं कर सकती थीं। हिन्दू तथा मुस्लिम दोनों वर्गों की स्त्रियां पर्दा करती थीं। राजपूत स्त्रियां जौहर की प्रथा निभाती थीं।
  • भोजन तथा वस्त्र – मुस्लिम समाज शासक वर्ग होने के कारण इस वर्ग के लोग ऐश्वर्य का जीवन व्यतीत करते थे और कई तरह के पकवान खाते थे। परन्तु हिन्दू लोगों का खान-पान बहुत सादा था। दोनों वर्गों के लोग ऊनी, सूती तथा रेशमी वस्त्र पहनते थे।
  • अहोम – अहोमों ने असम पर शासन किया। वे चीन से भारत आये थे। उनका पहला शासक सुफ़ाका था। उन्होंने कई स्थानीय कबीलों को हराया।
  • गौंड – गौंड मध्य भारत का एक कबीला है। वे पश्चिमी उड़ीसा, पूर्वी महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश आदि प्रान्तों में बसे हुए हैं। 15वीं शताब्दी से लेकर 18वीं शताब्दी तक उन्होंने अनेक राज्य स्थापित किए। रानी दुर्गावती एक प्रसिद्ध गौंड शासिका थी।

PSEB 7th Class Agriculture Solutions Chapter 3 फसलों के लिए आवश्यक पोषक तत्त्व

Punjab State Board PSEB 7th Class Agriculture Book Solutions Chapter 3 फसलों के लिए आवश्यक पोषक तत्त्व Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 7 Agriculture Chapter 3 फसलों के लिए आवश्यक पोषक तत्त्व

PSEB 7th Class Agriculture Guide फसलों के लिए आवश्यक पोषक तत्त्व Textbook Questions and Answers

(क) एक-दो शब्दों में उत्तर दें :

प्रश्न 1.
फसल के लिए आवश्यक कोई दो प्रमुख पोषक तत्त्वों के नाम लिखो।
उत्तर-
फास्फोरस, नाइट्रोजन, कार्बन, ऑक्सीजन, हाइड्रोजन आदि।

प्रश्न 2.
फसलों के लिए आवश्यक कोई दो लघु तत्त्वों के नाम लिखो।
उत्तर-
जिंक, मैंगनीज़।

प्रश्न 3.
नाइट्रोजन की कमी वाले पौधों के पत्तों का रंग कैसा हो जाता है ?
उत्तर-
पीला।

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प्रश्न 4.
पौधे को बीमारियों से लड़ने में सहायक किसी एक पोषक तत्त्व का नाम लिखो।
उत्तर-
फास्फोरस तत्त्व, पोटाशियम तत्त्व।

प्रश्न 5.
पोटाशियम तत्त्व की कमी से प्रभावित होने वाले पौधों का रंग कैसा हो जाता है ?
उत्तर-
पौधे के पत्ते पहले पीले तथा कुछ समय बाद भूरे हो जाते हैं।

प्रश्न 6.
पौधों के अंदर सैल बनाने में सहायक पोषक तत्त्व का नाम लिखो।
उत्तर-
फास्फोरस तत्त्व पौधे के अंदर नई कोशिकाएं बनाने में सहायक है।

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प्रश्न 7.
नाइट्रोजन की कमी की पूर्ति के लिए प्रयोग में आने वाली कोई दो रासायनिक खादों के नाम लिखो।
उत्तर-
यूरिया, कैन, अमोनियम क्लोराइड।

प्रश्न 8.
फॉस्फोरस तत्त्व की कमी की पूर्ति के लिए पौधों को कैसी खाद डाली जा सकती है ?
उत्तर-
डाईअमोनीयम फास्फेट (डाया) या सुपर फास्फेट

प्रश्न 9.
रेतली भूमि में मैंगनीज़ की कमी से कौन-सी फसल अधिक प्रभावित होती है?
उत्तर-
गेहूँ की फ़सल।

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प्रश्न 10.
गंधक की कमी आने पर कौन-सी खाद का प्रयोग किया जाता है ?
उत्तर-
जिप्सम, सुपर फास्फेट में फास्फोरस के साथ गंधक तत्त्व भी मिल जाता है।

(ख) एक-दो वाक्यों में उत्तर दें:

प्रश्न 1.
फसलों के लिए आवश्यक मुख्य तत्त्व और लघु तत्त्व कौन-कौन से हैं ?
उत्तर-
मुख्य तत्त्व-कार्बन, हाइड्रोजन, नाइट्रोजन, गंधक, ऑक्सीजन, फास्फोरस, पोटाश, कैल्शियम, मैगनीशियम।
लघु तत्त्व-लोहा, जिंक, मैंगनीज़, बोरोन, क्लोरीन, माल्बडीनम, कोबाल्ट, तांबा।

प्रश्न 2.
पौधे में जिंक कौन-से प्रमुख कार्य करता है ?
उत्तर-
जिंक एन्जाइमों का अभिन्न अंग है यह पौधे की वृद्धि में सहायक है, अधिक हार्मोनज़ तथा स्टार्च बनने में सहायता करते हैं।

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प्रश्न 3.
पौधे में मैंगनीज़ के क्या कार्य होते हैं ?
उत्तर-
यह अधिक क्लोरोफिल बनाने में सहायता करता है। यह कई एन्जाइमों का अभिन्न अंग भी है।

प्रश्न 4.
फास्फारेस तत्त्व की कमी के लक्षण बताएं।
उत्तर-
कमी के कारण पत्ते पहले गहरे हरे रंग के तथा कुछ समय बाद पुराने पत्तों का रंग बैंगनी हो जाता है।

प्रश्न 5.
धान की फसल में जिंक की कमी आने पर किस प्रकार के लक्षण दिखाई देते हैं ?
उत्तर-
पुराने पत्तों में पीलापन आ जाता है तथा कहीं-कहीं पीले से भूरे धब्बे दिखाई देते हैं। यह धब्बे मिल कर बड़े हो जाते हैं। इनका रंग गहरा भूरा, जैसे लोहे को जंग लगा हो, हो जाता है। पत्ते छोटे रह जाते हैं तथा सूख कर झड़ जाते हैं। फसल देर से पकती है तथा उत्पादन कम हो जाता है।

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प्रश्न 6.
लोहे की कमी आने के क्या कारण हैं ?
उत्तर-
यदि भूमि का पी०एच०मान 6 से 6.5 के बीच न हो तो पौधे लोहा तत्त्व को प्राप्त नहीं कर सकते। क्षारीय भूमियों में पी०एच० 6.5 से अधिक होने पर यह समस्या होती है। सेम वाली भूमियों में लोहे की कमी हो जाती है। यदि अन्य तत्त्व वाली खादों का प्रयोग अधिक मात्रा में किया जाए तो भी लोहा तत्त्व पौधों को प्राप्त नहीं होता।

प्रश्न 7.
गेहूँ में मैंगनीज़ तत्त्व की पूर्ति कैसे की जाती है ?
उत्तर-
सप्ताह-सप्ताह के अन्तर से दो-तीन बार मैंगनीज़ सल्फेट के घोल का छिड़काव करना चाहिए। गेहूँ में एक स्प्रे पहली सिंचाई से दो-तीन दिन पहले करें तथा दो-तीन छिड़काव उसके बाद सप्ताह-सप्ताह के अंतर पर करें।

प्रश्न 8.
गेहूँ में मैंगनीज़ की कमी आने से कैसे लक्षण दिखाई देते हैं ?
उत्तर-
पत्ते के नीचे वाले भाग की नाड़ियों के बीच वाले भाग पर पीलापन दिखाई देता है जो ऊपरी सिरे की तरफ बढ़ता है। यह कमी पहले तो पत्ते के निचले 2/3 भाग तक सीमित रहती है। पत्तों पर बारीक स्लेटी भूरे रंग के दानेदार धब्बे पड़ जाते हैं जो अधिक कमी होने पर बढ़ जाते हैं तथा नाड़ियों के बीच लाल मटमैली धारियां बन जाती हैं। नाड़ियां हरी रहती हैं। बल्लियाँ बहुत कम निकलती हैं तथा दाती जैसे मुड़ी दिखाई देती हैं।

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प्रश्न 9.
पोटाशियम तत्त्व की कमी से प्रभावित होने वाली प्रमुख फसलों के नाम लिखो।
उत्तर-
गेहूँ, धान, आलू, टमाटर, सेब, गोभी आदि।

प्रश्न 10.
लोहे की कमी की पूर्ति कैसे की जा सकती है ?
उत्तर-
एक किलो फेरस सल्फेट को 100 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ के हिसाब से पत्तों के ऊपर छिड़काव करना चाहिए। इस प्रकार 2-3 बार छिड़काव करना चाहिए। पौधे द्वारा भूमि से लोहा प्राप्ति प्रभावकारी नहीं है।

(ग) पाँच-छ: वाक्यों में उत्तर दें :

प्रश्न 1.
पौधों में नाइट्रोजन तत्त्व के मुख्य कार्य बताएं।
उत्तर-
पौधों में नाइट्रोजन तत्त्व के मुख्य कार्य इस प्रकार हैं—

  1. नाइट्रोजन पौधों में क्लोरोफिल तथा प्रोटीन का अभिन्न अंग है।
  2. नाइट्रोजन की ठीक मात्रा होने पर पौधों की वृद्धि तेज़ी से होती है।
  3. कार्बोहाइड्रेट्स (Carbohydrates) का प्रयोग उचित प्रकार से करने में सहायक है।
  4. फास्फोरस, पोटाशियम तथा अन्य पोषक तत्त्वों के उचित प्रयोग में सहायक है।

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प्रश्न 2.
फसलों में नाइट्रोजन तत्त्व की कमी के लक्षण बताएं।
उत्तर-
नाइट्रोजन तत्त्व की कमी सब से पहले पुराने नीचे वाले पत्तों में दिखाई देती है। पुराने पत्ते नोक से नीचे की ओर पीले पड़ने शुरू हो जाते हैं। कमी बनी रही तो पीलापन ऊपरी पत्तों की ओर बढ़ जाता है। शाखाएं कम निकलती हैं तथा पौधे का फैलाव कम होता है। पोरियाँ (गाँठ) छोटी रह जाती हैं । बल्लियाँ छोटी रह जाती हैं। इस कारण उत्पादन कम हो जाता है।

प्रश्न 3.
फास्फोरस तत्त्व की कमी की पूर्ति कैसे की जा सकती है ?
उत्तर-
फास्फोरस तत्त्व की कमी पूरी करने के लिए डाईमोनियम फास्फेट (डाया) या सुपर फास्फेट खाद की आवश्यकता अनुसार सिफ़ारिश की गई मात्रा को बीज बोते समय ही ड्रिल कर दिया जाता है। यह तत्त्व भूमि में एक स्थान से दूसरे स्थान पर चलने के समर्थ नहीं है। इस तत्त्व की पूर्ति के लिए मिश्रित खादों जैसे सुपरफास्फेट, एन०पी०के०, डी०ए०पी० आदि का भी प्रयोग किया जाता है। रबी की फसलों पर इस तत्त्व वाली खाद का अधिक प्रभाव होता है।

प्रश्न 4.
फसलों में जिंक की कमी आने के मुख्य कारण और इसकी पूर्ति के संबंध में लिखें।
उत्तर-
कमी के कारण-जिन भूमियों में फास्फोरस तत्त्व तथा कार्बोनेट की मात्रा अधिक होती है, उन भूमियों में जिंक की कमी प्रायः देखी जाती है।
जिंक की पूर्ति-भूमि में जिंक की कमी को पूरा करने के लिए जिंक सल्फेट का प्रयोग करना चाहिए। यदि जिंक की कमी अधिक हो तो जिंक सल्फेट के घोल का छिड़काव किया जा सकता है।

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प्रश्न 5.
फसलों में लोहे की कमी के लक्षण और इसकी पूर्ति कैसे की जा सकती है ?
उत्तर-
लोहे की कमी के लक्षण-

  1. लोहे की कमी के लक्षण पहले नए पत्तों पर दिखाई देते हैं।
  2. पहले नाड़ियों के बीच वाले भाग पर पीलापन नज़र आता है तथा बाद में नाडियां भी पीली हो जाती हैं।
  3. यदि अधिक कमी हो तो पत्तों का रंग उड़ जाता है तथा यह सफेद हो जाते हैं।

कमी की पूर्ति-लोहे की कमी की पूर्ति निम्नलिखित अनुसार करें—
जब पीलेपन की निशानियां नज़र आएं तो फसल को जल्दी-जल्दी खुला पानी दें। एक सप्ताह के अंतर पर एक प्रतिशत एक किलोग्राम फैरस सल्फेट को 100 लीटर पानी में मिला कर छिड़काव करना चाहिए। ऐसा इसलिए किया जाता है क्योंकि लोहे की पूर्ति भूमि द्वारा प्रभावकारक नहीं है।

Agriculture Guide for Class 7 PSEB फसलों के लिए आवश्यक पोषक तत्त्व Important Questions and Answers

बहुत छोटे उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
पौधे के आवश्यक खाद्य तत्त्वों की संख्या कितनी है ?
उत्तर-
पौधे के आवश्यक खाद्य तत्त्वों की संख्या 17 है।

PSEB 7th Class Agriculture Solutions Chapter 3 फसलों के लिए आवश्यक पोषक तत्त्व

प्रश्न 2.
पौधों का रंग किस तत्त्व के कारण गहरा होता है ?
उत्तर-
नाइट्रोजन क्लोरोफिल का आवश्यक अंग है, इससे पौधों का रंग गहरा हो जाता है।

प्रश्न 3.
कुछ तत्त्वों के नाम बताओ जो आवश्यक तो नहीं हैं पर फसलों की पैदावार में बढ़ौतरी करने के लिए इनका होना अनिवार्य है ?
उत्तर-
ऐसे तत्त्व हैं-सोडियम, सिलिकॉन, फ्लोरीन, आयोडीन, स्ट्रांशियम तथा बेरियम।
फसलों के लिए आवश्यक पोषक तत्त्व जब पौधे के पांच अथवा छ: पत्ते हों, तो पत्तों पर पीले रंग के धब्बे बन जाते हैं। इसकी कमी से पत्तों की नाड़ियों का रंग लाल अथवा जामुनी हो जाता है तथा कमी के चिन्ह पत्ते के मध्य से तने की तरफ के भाग पर होते हैं। अधिक कमी होने पर पौधे बोने रह जाते हैं।

प्रश्न 4.
पौधों में पोटाशियम की कमी के लक्षण बताएं।
उत्तर-
पोटाशियम की कमी से पत्तों का झुलसना तथा धब्बे पड़ना नीचे वाले पत्तों से शुरू होता है। पहले नोक पीली होती है तथा फिर मूल की तरफ बढ़ता है। अधिक कमी होने पर सारा पत्ता सूख जाता है। पौधे की वृद्धि धीमी हो जाती है तथा कद छोटा रह जाता है। दाने बारीक तथा फसल का उत्पादन कम होता है।

PSEB 7th Class Agriculture Solutions Chapter 3 फसलों के लिए आवश्यक पोषक तत्त्व

प्रश्न 5.
पौधों में नाइट्रोजन की कमी के क्या चिन्ह हैं ?
उत्तर-
नाइट्रोजन की कमी से पत्तों का रंग पीला पड़ जाता है। पीलापन निम्न पत्तों से आरंभ होता है। पहले नोक पीली होती है तथा फिर पीलापन पत्ते के अंतिम भाग की ओर बढ़ता है। अधिक कमी होने की सूरत में सारा पत्ता सूख जाता है। पौधों की वृद्धि धीमी हो जाती है तथा कद छोटा रह जाता है। दाने बारीक होते हैं तथा फसल की पैदावार कम हो जाती है।

प्रश्न 6.
फास्फोरस के पौधों को क्या लाभ हैं ?
उत्तर-
पौधों के लिए फास्फोरस के निम्नलिखित लाभ हैं—

  1. नए सैल (डी०एन०ए०, आर०एन०ए०) अधिक बनते हैं।
  2. फूल, फल तथा बीज बनने में सहायता करती है।
  3. जड़ों में वृद्धि बहुत तेजी से होती है।
  4. तने को मजबूत करता है तथा इस तरह फसल को गिरने से बचाती है।
  5. फलीदार फसलों की हवा से नाइट्रोजन इकट्ठा करने की शक्ति में वृद्धि होती है।
  6. बीमारियां लगने की संभावना को घटाती है।

प्रश्न 7.
आवश्यकता से अधिक नाइट्रोजन के पौधों को क्या नुकसान हैं ?
उत्तर-
आवश्यकता से अधिक नाइट्रोजन के पौधों को नुकसान—

  1. फसल पकने में देरी लगती है।
  2. तना कमज़ोर हो जाता है तथा पौधे गिर जाते हैं।
  3. कीड़े तथा बीमारियां अधिक लगती हैं।

PSEB 7th Class Agriculture Solutions Chapter 3 फसलों के लिए आवश्यक पोषक तत्त्व

प्रश्न 8.
गेहूं पर जिंक की कमी. का क्या प्रभाव होता है ?
उत्तर-
गेहं पर जिंक की कमी का प्रभाव-जिंक की कमी से पौधों की वद्धि धीरे होती है। पौधे छोटे तथा झाड़ी की तरह दिखाई देते हैं। कमी के चिन्ह पहले पानी देते समय तथा फिर जब पौधा पैदा होता है तो कुछ समय पहले दिखाई देते हैं। कमी के पहचान चिन्ह ऊपर से तीसरे अथवा चौथे पत्ते से आरम्भ होते हैं। पत्ते के मध्य में पीले अथवा भूरे रंग के धब्बे बन जाते हैं। इसके पश्चात् पत्तों की नाड़ियों के बीच पीली-सफ़ेद धारियां पड़ जाती हैं तथा पत्ते बीच में से मुड़ जाते हैं।

प्रश्न 9.
बरसीम पर मैंगनीज़ की कमी का क्या प्रभाव होता है ?
उत्तर-
बरसीम पर मैंगनीज़ की कमी के पहचान-चिन्ह पौधे के बीच के पत्तों से आरंभ होते हैं। किनारे पर डंडी वाली दिशा को छोड़कर पत्ते के बाकी हिस्से पर पीले रंग तथा भूरे रंग के धब्बे बन जाते हैं तथा बाद में यह धब्बे सारे पत्ते पर फैल जाते हैं। यदि मैंगनीज़ की कमी अधिक हो तो पत्ते सूख जाते हैं।

प्रश्न 10.
खाद्य तत्त्व से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
पौधों के फलने-फूलने के लिए इन्हें भोजन की आवश्यकता होती है। भोजन में शामिल सभी तत्त्वों को खाद्य तत्त्व कहते हैं। यह खाद्य तत्त्व दो तरह के होते हैं। मुख्य तथा सूक्ष्म तत्त्व; जैसे-कार्बन, हाइड्रोजन, फास्फोरस, नाइट्रोजन, जिंक, तांबा, बोरोन, कोबाल्ट आदि। पौधे ये तत्त्व हवा, पानी तथा भूमि से प्राप्त करते हैं।

PSEB 7th Class Agriculture Solutions Chapter 3 फसलों के लिए आवश्यक पोषक तत्त्व

प्रश्न 11.
खाद्य तत्त्वों का पौधों के लिए क्या महत्त्व है ?
उत्तर-
पौधों के लिए खाद्य तत्त्वों का महत्त्व—

  1. आवश्यक खाद्य तत्त्वों के बिना पौधे अपना जीवन चक्र पूरा नहीं कर सकते।
  2. आवश्यक खाद्य तत्त्वों की कमी के चिन्ह उसी खाद्य तत्त्व को डालने से ठीक किए जा सकते हैं, किसी अन्य तत्त्व के डालने से नहीं।
  3. आवश्यक खाद्य तत्त्व पौधे के आंतरिक रासायनिक परिवर्तनों में सीधा योगदान देते हैं।

प्रश्न 12.
पौधों के लिए कौन-कौन से खाद्य तत्त्वों की ज़रूरत है ? इन खाद्य तत्त्वों की कसौटी क्या है ?
उत्तर-
पौधों के लिए खाद्य तत्त्व; जैसे-कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन, नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाशियम, कैल्शियम, मैग्नीशियम, गंधक, मैंगनीज़, जिंक, तांबा, बोरोन, क्लोरीन, माल्बडीन तथा कोबाल्ट आदि तत्त्वों की ज़रूरत है। इन खाद्य तत्त्वों को पौधे हवा, पानी तथा भूमि से प्राप्त करते हैं।

कई खाद्य तत्त्व पौधों को अधिक मात्रा तथा कई कम मात्रा में अनिवार्य होते हैं। पौधों में पाए जाते लगभग 90 तत्त्वों में से 17 खाद्य तत्त्व पौधों के लिए अधिक अनिवार्य हैं।

कुछ अन्य तत्त्व जो ज़रूरी तो नहीं, पर उनका अस्तित्व खासकर फसलों की पैदावार में बढ़ौतरी कर सकता है, यह तत्त्व सोडियम, सिलिकॉन, फ्लोरीन, आयोडीन, स्ट्रांशियम तथा बेरियम हैं।

प्रश्न 13.
धान को जिंक की कमी कैसे प्रभावित करती है ?
उत्तर-
धान में जिंक की कमी-धान के पौधों में जिंक की कमी के चिन्ह पौधे लगाने से 2-3 सप्ताह बाद दिखाई देते हैं। कमी के चिन्ह पुराने पत्तों से आरंभ होते हैं।
फसलों के लिए आवश्यक पोषक तत्त्व नाड़ियों के बीच से पत्तों का रंग पीला अथवा सफ़ेद हो जाता है। पत्ते जंग लगे से नज़र आते हैं। पौधे छोटे तथा बल्लियां देरी से निकलती हैं। फसल की पैदावार कम होती है।

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प्रश्न 14.
पौधों के लिए गंधक के क्या लाभ हैं ?
उत्तर-

  1. यह क्लोरोफिल बनने में सहायक है।
  2. गंधक प्रोटीन तथा एंजाइमों का आवश्यक अंग है।
  3. यह बीज बनने में सहायक होती है।
  4. फलीदार फसलों की जड़ों में हवा की नाइट्रोजन पकड़ने वाली गांठें अधिक बनती

प्रश्न 15.
पौधों में कैल्शियम की कमी की निशानियों के बारे में बताओ।
उत्तर-
नए पत्ते, कोंपलें तथा डोडियों पर झुर्रियां पड़ जाती हैं। पत्तों की नोकें तथा किनारे सूख जाते हैं। कई बार पत्ते मुड़े ही रहते हैं, पूरी तरह खुलते नहीं। जड़ें छोटी तथा गुच्छेदार बन जाती हैं। इसकी कमी के कारण आलू में होलो हार्ट रोग हो जाते हैं तथा आलू अंदर से नर्म रह जाते हैं।

PSEB 7th Class Agriculture Solutions Chapter 3 फसलों के लिए आवश्यक पोषक तत्त्व

बड़े उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
पौधों के लिए अनिवार्य खाद्य तत्त्वों तथा उनके स्त्रोतों का वर्णन करो।
उत्तर-

       अधिक मात्रा में अनिवार्य खाद्य तत्त्व                                            कम मात्रा में अनिवार्य खाद्य तत्त्व
अधिक हवा तथा पानी से भूमि गैसों से भूमि ठोसों से
कार्बन नाइट्रोजन लोहा
हाइड्रोजन फास्फोरस मैंगनीज़
ऑक्सीजन पोटाशियम जिंक
मैग्नीशियम तांबा
गंधक बोरोन
कैल्शियम माल्बडीनम
कोबाल्ट

 

प्रश्न 2.
नाइट्रोजन, फास्फोरस तथा पोटाशियम के क्या लाभ हैं ?
उत्तर-
I. नाइट्रोजन के लाभ—

  1. पौधे के पत्तों का हरा रंग इस तत्त्व के कारण ही होता है।
  2. पत्तों का रंग गहरा हो जाता है तथा पत्ते चौड़े, लंबे तथा रसदार बन जाते हैं।
  3. पौधों का फैलाव अधिक तथा तेज़ होता है।
  4. पौधे अधिक चमकीले तथा कोमल हो जाते हैं।
  5. ‘पौधों की टहनियां पतली तथा नर्म हो जाती हैं।
  6. प्रोटीन की मात्रा बढ़ जाती है।

II. फास्फोरस के लाभ-

  1. फसल जल्दी पकती है।
  2. दाने मोटे तथा भारी होते हैं।
  3. अनाज की मात्रा तूड़ी से अधिक हो जाती है।
  4. पौधों की जड़ें काफ़ी फल-फूल सकती हैं।
  5. पौधों के तने मज़बूत तथा पक्के बन जाते हैं तथा फसल गिरती नहीं।
  6. रोग का मुकाबला करने की शक्ति बढ़ती है।
  7. फलों का स्वाद मीठा होता है तथा फल बड़े हो जाते हैं।
  8. फसलों की पैदावार बहुत बढ़ जाती है।

III. पोटाशियम के लाभ—

  1. पोटाशियम से अच्छी प्रकार का फल तैयार होता है।
  2. यह तत्त्व तने को मजबूत करता है।
  3. पौधों में निशास्ता तथा चीनी की मात्रा बढ़ जाती है।
  4. फसलों में रोगों तथा कीड़ों का मुकाबला करने की शक्ति बढ़ जाती है।
  5. नाइट्रोजन के प्रभाव को धीमा करती है।
  6. पौधे काफ़ी लंबे समय के लिए हरे-भरे रहते हैं।
  7. इसकी मौजूदगी में पौधे दूसरे तत्त्वों को अच्छी तरह ग्रहण कर सकते हैं।
  8. पोटाशियम कार्बन-चूषण क्रिया के लिए आवश्यक है।

PSEB 7th Class Agriculture Solutions Chapter 3 फसलों के लिए आवश्यक पोषक तत्त्व

प्रश्न 3.
फास्फोरस की कमी की निशानियां बताओ।
उत्तर-

  1. फास्फोरस की कमी से फसल की वृद्धि धीमी, कद छोटा तथा फसल देरी से पकती है।
  2. फास्फोरस की कमी के चिन्ह निचले पत्तों से आरंभ होते हैं। पत्तों का रंग गहरा हरा, बैंगनी हो जाता है, खासकर नाड़ियों के बीच के हिस्से का। कई बार पत्तियों की डंडियों तथा टहनियों का रंग भी बैंगनी हो जाता है।
  3. फसल छोटी रह जाती है। गेहूं में निचले पत्तों का रंग पीला भूरा हो जाता है।

प्रश्न 4.
पौधों में लोहे के लाभ तथा कमी के चिन्हों पर रोशनी डालें।
उत्तर-
लोहे के लाभ—

  1. लोहा अधिक क्लोरोफिल बनने में सहायता करता है।
  2. यह एंजाइमों का आवश्यक अंग है, जो पौधे में ऑक्सीजन तथा लघुकरण क्रियाएं लाते हैं।
  3. लोहा प्रोटीन बनने के लिए आवश्यक है।

लोहे की कमी के चिन्ह-लोहे की कमी के चिन्ह नए पत्ते तथा टहनियों से आरंभ होते हैं। पत्तों की नाड़ियों के बीच के हिस्से का रंग पीला हो जाता है तथा पुराने पत्ते हरे रहते हैं। पौधे का कद छोटा तथा तना पतला हो जाता है। अधिक कमी की सूरत में तो सारा पत्ता नाड़ियों समेत पीला हो जाता है, नए पत्ते बहुत पीले अथवा सफ़ेद हो जाते हैं। कई बार पत्तों पर लाल भूरे रंग की लकीरें पड़ जाती हैं तथा पत्ते सूख भी जाते हैं।

PSEB 7th Class Agriculture Solutions Chapter 3 फसलों के लिए आवश्यक पोषक तत्त्व

प्रश्न 5.
गेहूं में मैंगनीज़ के लाभ तथा इसकी कमी के चिन्ह के बारे में बताओ।
उत्तर-
मैंगनीज़ के लाभ—

  1. यह क्लोरोफिल बनने में मदद करता है।
  2. यह एंजाइमों का आवश्यक अंग है, जो ऑक्सीजन तथा लघुकरण की क्रियाओं में तेजी लाते हैं। यह पौधे के सांस लेने तथा अधिक प्रोटीन बनने में मदद करते हैं।

गेहूं में मैंगनीज़ की कमी के चिन्ह-इस फसल पर मैंगनीज़ की कमी के चिन्ह बीच के पत्तों पर लगभग पहला पानी लगाने के समय दिखाई देते हैं। कमी पहले पत्ते से नीचे दो-तिहाई हिस्से पर सीमित रहती है। पत्तों पर बारीक सलेटी भूरे रंग के दानेदार दाग पड़ जाते हैं। अधिक कमी हो तो यह दानेदार दाग लाल भूरी धारियां बन जाती हैं। पत्ते सूख भी जाते हैं। पौधों के कद तथा जड़े छोटी रह जाती हैं।

फसलों के लिए आवश्यक पोषक तत्त्व PSEB 7th Class Agriculture Notes

  • पौधे के फलने-फूलने के लिए 17 पोषक तत्त्व आवश्यक हैं।
  • पौधे में रासायनिक परिवर्तन में पोषक तत्त्वों की सीधी भूमिका है।
  • मुख्य पोषक तत्त्व हैं-कार्बन, हाइड्रोजन, नाइट्रोजन, पोटाशियम, फास्फोरस, ऑक्सीजन, कैल्शियम, मैग्नीशियम, गंधक (सल्फर)।
  • लघु तत्त्व हैं-लोहा, जिंक, तांबा, बोरोन, क्लोरीन, माल्बडीनम, कोबाल्ट, मैंगनीज़।
  • पौधे हवा में से ऑक्सीजन तथा कार्बन प्राप्त करते हैं तथा हाइड्रोजन तत्त्व को पानी से।
  • कई फलीदार फसलें हवा में से नाइट्रोजन को अपनी वृद्धि के लिए प्रयोग कर सकती हैं।
  • नाइट्रोजन पौधे में क्लोरोफिल तथा प्रोटीन का आवश्यक अंग है।
  • नाइट्रोजन तत्त्व की आवश्यकता फास्फोरस, पोटाशियम तथा अन्य पोषक तत्त्वों के उचित प्रयोग के लिए होती है।
  • नाइट्रोजन तत्त्व वाली खादें हैं-यूरिया, कैन, अमोनियम क्लोराइड आदि।
  • फास्फोरस तत्त्व पौधे में नई कोशिकाओं को बनाने, फूल, फल तथा बीज बनाने में सहायक है।
  • फास्फोरस तत्त्व वाली खादें हैं-डाया, सुपर फास्फेट, डी०ए०पी०, एन०पी०के०
  • आषाढ़ी की फसलों पर फास्फोरस तत्त्व का अधिक प्रभाव पड़ता है।
  • पोटाशियम रोगों से लड़ने की शक्ति को बढ़ाता है।
  • पोटाशियम की पूर्ति के लिए म्यूरेट ऑफ पोटाश खाद का प्रयोग होता है।
  • गंधक, प्रोटीन तथा एन्जाइमों का अभिन्न अंग है।
  • गंधक, पत्तों में क्लोरोफिल बनाने में सहायक है।
  • गंधक की कमी होने से जिप्सम का प्रयोग किया जाता है।
  • यदि गंधक की कमी हो तो सुपरफास्फेट का प्रयोग करना चाहिए इसमें फास्फोरस के साथ-साथ गंधक भी होती है।
  • बहुत-से एन्जाइमों में जिंक होता है।
  • अधिक मात्रा में फास्फोरस तथा कार्बोनेट वाली भूमियों में जिंक की कमी देखी जाती है।
  • जिंक की कमी होने से धान की फसल देर से पकती है तथा उत्पादन बहुत कम हो जाता है।
  • गेहूँ में जिंक की कमी के कारण बल्लियाँ देर से निकलती हैं तथा देर से पकती
  • जिंक की कमी दूर करने के लिए जिंक सल्फेट का प्रयोग करना चाहिए।
  • लोहा क्लोरोफिल तथा प्रोटीन बनाने के लिए आवश्यक है।
  • लोहे की कमी होने पर फैरस सल्फेट का प्रयोग किया जाता है।
  • रेतीली भूमि में बोई गेहूँ में मैंगनीज़ की कमी हो जाती है।
  • मैंगनीज़ की कमी को दूर करने के लिए मैंगनीज़ सल्फेट का प्रयोग किया जाता है।

PSEB 7th Class Social Science Solutions Chapter 13 नगर, व्यापारी तथा कारीगर

Punjab State Board PSEB 7th Class Social Science Book Solutions History Chapter 13 नगर, व्यापारी तथा कारीगर Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 7 Social Science History Chapter 13 नगर, व्यापारी तथा कारीगर

SST Guide for Class 7 PSEB नगर, व्यापारी तथा कारीगर Textbook Questions and Answers

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखें

प्रश्न 1.
किन्हीं चार तीर्थ स्थानों के नाम लिखिए।
उत्तर-
ननकाना साहिब (आधुनिक पाकिस्तान में), अमृतसर, कुरुक्षेत्र, जगन्नाथ पुरी आदि मुख्य तीर्थ स्थान हैं।

प्रश्न 2.
मुग़ल साम्राज्य के कोई दो राजधानी नगरों के नाम लिखें।
उत्तर-
मुग़ल काल के दो प्रमुख राजधानी नगर दिल्ली तथा आगरा थे।

प्रश्न 3.
अमृतसर नगर की नींव किस गुरु साहिबान ने तथा कब रखी थी ?
उत्तर-
अमृतसर सिखों का प्रसिद्ध तीर्थ स्थान है। इसकी नींव चौथे सिख गुरु श्री गुरु रामदास जी ने 1577 ई० में रखी थी। आरम्भ में अमृतसर का नाम चक्क गुरु रामदासपुरा था। श्री गुरु रामदास जी ने रामदासपुरा में अमृतसर और सन्तोखसर नामक दो सरोवरों की खुदाई का काम आरम्भ किया था। परन्तु उनके ज्योति-जोत समा जाने के बाद पांचवें गुरु श्री गुरु अर्जन देव जी ने इस कार्य को सम्पूर्ण करवाया।

महत्त्व-1604 ई० में अमृतसर के श्री हरमन्दर साहिब में श्री गुरु ग्रन्थ साहिब का प्रकाश किया गया। 1609 ई० में यहां छठे गुरु श्री गुरु हरगोबिन्द जी ने श्री हरमन्दर साहिब के पास श्री अकाल तख्त का निर्माण करवाया। गुरु जी यहां बैठकर गुर-सिखों से घोड़ों और हथियारों की भेंट स्वीकार करते थे। यहां बैठकर राजनीतिक मामलों पर भी विचार-विमर्श किया जाता था। आज भी सिख धर्म से संबंधित धार्मिक निर्णयों की घोषणा यहां पर ही की जाती है। 1805 ई० में महाराजा रणजीत सिंह ने श्री हरमन्दर साहिब के गुम्बदों पर सोने का पत्र लगवाया। तब से इसका नाम स्वर्ण मन्दर पड़ गया।

PSEB 7th Class Social Science Solutions Chapter 13 नगर, व्यापारी तथा कारीगर

प्रश्न 4.
सूरत कहां पर स्थित है ?
उत्तर-
सूरत एक प्रसिद्ध बन्दरगाह और व्यापारिक नगर है। यह गुजरात राज्य में स्थित है। यह बड़े उद्योगों तथा व्यापार का केन्द्र है। शिवाजी मराठा ने इसे दो बार लूटा था और उसके हाथ बहुत-सी धन-दौलत लगी थी। 1512 ई० में इस पर पुर्तगालियों का अधिकार हो गया। 1573 ई० में सूरत अकबर के अधिकार में आ गया। अकबर के अधीन सूरत भारत का प्रमुख व्यापारिक नगर बन गया। 1612 ई० में अंग्रेज़ों ने सम्राट जहांगीर से यहां व्यापार करने की रियायतें प्राप्त कर लीं। यहां पुर्तगालियों, डचों और फ्रांसीसियों ने अपने-अपने व्यापारिक केन्द्र स्थापित कर लिये। 1759 ई० में अंग्रेजों ने सूरत के किले पर अधिकार कर लिया परन्तु पूरी तरह सूरत पर उनका अधिकार 1842 ई० में हुआ। यहां स्थित ख्वाजा साहिब की मस्जिद तथा नौ सैय्यदों की मस्जिद प्रसिद्ध है। यहां का स्वामी नारायण का मन्दिर और जैनियों के पुराने मन्दिर बहुत ही महत्त्वपूर्ण हैं।

II. निम्नलिखित रिक्त स्थानों की पूर्ति करें

  1. अमृतसर की नींव …………….. द्वारा रखी गई।
  2. लाहौर …………….. तक तुर्क साम्राज्य की राजधानी थी।
  3. सूरत एक ……………. है।
  4. ननकाना साहिब …………… में स्थित है।
  5. भारत में बहुत सारे बन्दरगाह ……………. हैं।

उत्तर-

  1. श्री गुरु रामदास जी
  2. इल्तुतमिश
  3. प्रसिद्ध बन्दरगाह तथा व्यापारिक नगर
  4. पाकिस्तान
  5. नगर।

III. निम्नलिखित प्रत्येक कथन के आगे ठीक (✓) अथवा गलत (✗) का चिहन लगाएं

  1. मोहनजोदड़ो सिन्धु घाटी के लोगों का राजधानी नगर था।
  2. 1629 ई० में शाहजहां ने दिल्ली को अपनी राजधानी बनाया।
  3. सूरत एक महत्त्वपूर्ण तीर्थ-स्थान था।
  4. फतेहपुर सीकरी मुग़लों का एक राजधानी नगर था।
  5. लाहौर मध्यकालीन युग में एक व्यापारिक नगर था।

उत्तर-

  1. (✓)
  2. (✗)
  3. (✗)
  4. (✓)
  5. (✓)

PSEB 7th Class Social Science Solutions Chapter 13 नगर, व्यापारी तथा कारीगर

PSEB 7th Class Social Science Guide नगर, व्यापारी तथा कारीगर Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
उन स्रोतों का वर्णन करो जो मुग़ल काल के नगरों की जानकारी देते हैं।
उत्तर-
1. भारत की यात्रा करने वाले एक पुर्तगाली यात्री दुर्त बारबोसा तथा एक अंग्रेज़ यात्री गल्फ़ फिज्ज के वृत्तान्तों से हमें उस काल के नगरों की जानकारी मिलती है।

2. होनडिऊ (Hondiu) द्वारा तैयार किये गए ‘मुग़ल साम्राज्य 1629 ई० में’ के नक्शे में थट्टा, लाहौर, सूरत और मुलतान आदि स्थान दिखाये गए हैं।

3. मुग़लों के भूमि-लगान के सरकारी दस्तावेज़ों और भूमि ग्रांटों से भी हमें नये तथा पुराने नगरों के बारे पता चलता है।

प्रश्न 2.
मध्यकाल से सम्बन्धित निम्नलिखित की सूची बनाइये ( प्रत्येक के चार-चार)
(क) राजधानी नगर
(ख) बन्दरगाह नगर
(ग) व्यापारिक नगर।
उत्तर-
(क) राजधानी नगर-लाहौर, फतेहपुर सीकरी, दिल्ली तथा आगरा।
(ख) बन्दरगाह नगर-कोचीन, सूरत, भड़ौच तथा सोपारा।
(ग) व्यापारिक नगर-दिल्ली, आगरा, सूरत तथा अहमदनगर।

प्रश्न 3.
मुगलकाल के शासन-प्रबन्ध की जानकारी के दो स्रोत बताओ।
उत्तर-

  1. विदेशी यात्री बर्नियर का वृत्तान्त
  2. विलियम हाकिन्ज़ तथा सर टॉमस रो द्वारा तैयार किए गए नक्शे।

PSEB 7th Class Social Science Solutions Chapter 13 नगर, व्यापारी तथा कारीगर

प्रश्न 4.
नगरों का विकास किस प्रकार हुआ?
उत्तर-
कृषि की खोज के बाद आदि मानव अपने खेतों के समीप ही रहने लगा। समय बीतने पर जब काफ़ी संख्या में लोग गांवों में रहने लगे, तो इनमें से बहुत से गांव उन्नति करके नगर बन गये। इनमें से कुछ नगर धार्मिक व्यक्तियों, व्यापारियों, कारीगरों और शासक वर्ग की गतिविधियों के कारण विकसित हुए थे। कुछ का दरबारी (राजधानी) नगरों, तीर्थ स्थानों, बन्दरगाह नगरों और कुछ का व्यापारिक नगरों के रूप में विकास हुआ।

प्रश्न 5.
प्राचीन काल से लेकर मुग़ल काल तक राजधानी अथवा दरबारी नगरों की जानकारी दीजिए।
उत्तर-
प्राचीन काल-

  1. हड़प्पा और मोहनजोदड़ो सिन्धु घाटी के लोगों के राजधानी नगर थे।
  2. वैदिक काल में अयोध्या और इन्द्रप्रस्थ राजधानी नगर थे।
  3. 600 ई० पूर्व में 16 महाजनपदों के अपने-अपने राजधानी नगर थे। इनमें से कौशाम्बी, पाटलिपुत्र और वैशाली प्रमुख थे।

राजपूत काल-
(1) राजपूत शासकों के अधीन (800-1200 ई०) तक अजमेर, कन्नौज, त्रिपुरी, दिल्ली, आगरा, फतेहपुर सीकरी आदि का राजधानी नगरों के रूप में विकास हुआ।
(2) दक्षिण भारत में कांची, बदामी, कल्याणी, वैंगी, देवगिरि, मानखेत, तंजौर और मदुरै आदि राजधानी नगर थे।

दिल्ली सल्तनत तथा मुग़ल काल-
(1) दिल्ली सल्तनत के समय लाहौर और दिल्ली का राजधानी नगरों के रूप में विकास हुआ।
(2) मुग़ल काल में दिल्ली, आगरा, फतेहपुर सीकरी आदि राजधानी नगर थे।

प्रश्न 6.
भारत में बहुत से बन्दरगाह नगरों का विकास हुआ; क्यों?
उत्तर-
भारत के तीन ओर समुद्र लगते हैं। इसी कारण भारत में बहुत से व्यापारिक नगरों का विकास हुआ।

PSEB 7th Class Social Science Solutions Chapter 13 नगर, व्यापारी तथा कारीगर

प्रश्न 7.
मध्यकालीन युग में भारत की पूर्वी तट की दो प्रमुख बन्दरगाहों के नाम बताओ।
उत्तर-
विशाखापट्टनम (आधुनिक आन्ध्र प्रदेश में) तथा ताम्रलिप्ती।

प्रश्न 8.
भारत के आर्थिक विकास में व्यापारियों तथा कारीगरों के योगदान की चर्चा कीजिए।
उत्तर-
भारत में आर्थिक विकास में भारतीय व्यापारियों और कारीगरों ने महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। भारतीय कारीगर कई प्रकार का बढ़िया माल तैयार करने में निपुण थे। वे कपड़ा-उद्योग में भी बहुत कुशल थे। उनके द्वारा तैयार किया गया ऊनी, सूती और रेशमी कपड़ा संसार भर में विख्यात था। उनके द्वारा बनाया गया चमड़े का सामान भी बहुत लोकप्रिय था।

मध्यकाल में व्यापारियों तथा कारीगरों का योगदान-मध्यकालीन युग में धातुएं बनाने की कला का बहुत अधिक विकास हुआ। लोहार और सुनियार उत्तम कोटि का माल तैयार करते थे। इस माल को भारत के व्यापारियों ने दूसरे देशों में भेजा। इस प्रकार भारतीय कारीगरों और व्यापारियों ने भारत को धनी एवं समृद्ध बनाने में सहायता की।

भारत के व्यापारियों और कारीगरों ने अपने-अपने गिल्ड (संघ) स्थापित कर लिये। इन संघों ने अलग-अलग प्रकार का उच्च कोटि का माल तैयार करने में कारीगरों और व्यापारियों की सहायता की। विदेशी माल इस माल का मुकाबला नहीं कर पाते थे।

प्रश्न 9.
लाहौर नगर के ऐतिहासिक महत्त्व बारे लिखो।
उत्तर-
लाहौर पाकिस्तान का एक प्रसिद्ध शहर है। मध्यकाल में यह भारत का एक महत्त्वपूर्ण नगर था। भारत पर तुर्कों के आक्रमण के समय लाहौर हिन्दूशाही वंश के शासकों की राजधानी थी। इसके बाद लाहौर कुतुबुद्दीन ऐबक और इल्तुतमिश की राजधानी रहा। इल्तुतमिश ने बाद में दिल्ली को अपनी राजधानी बना लिया।

भारत पर बाबर के आक्रमण के समय दौलत खां लोधी पंजाब का राज्यपाल था। मुग़लों के राज्यकाल में लाहौर पंजाब प्रान्त की राजधानी था। 1761 ई० में लाहौर पर सिखों ने नियन्त्रण कर लिया। 1799 ई० में महाराजा रणजीत सिंह ने लाहौर पर अधिकार कर लिया और इसे अपनी राजधानी बना लिया। 1849 ई० में लाहौर पर अंग्रेज़ों का अधिकार हो गया। 1849 ई० से 1947 ई० तक लाहौर पंजाब राज्य की राजधानी रहा। भारत-विभाजन के बाद लाहौर पाकिस्तान का भाग बन गया।

PSEB 7th Class Social Science Solutions Chapter 13 नगर, व्यापारी तथा कारीगर

(क) सही जोड़े बनाइट :

  1. सूरत, कोचीन – राजधानी नगर
  2. हड़प्पा, मोहनजोदड़ो – तीर्थ स्थान
  3. अमृतसर, कुरुक्षेत्र – व्यापारिक नगर
  4. अहमदाबाद अहमदनगर – बंदरगाह नगर।

उत्तर-

  1. सूरत, कोचीन – बंदरगाह नगर
  2. हड़प्पा, मोहनजोदड़ो – राजधानी नगर
  3. अमृतसर, कुरुक्षेत्र – तीर्थ स्थान
  4. अहमदाबाद , अहमद नगर – व्यापारिक नगर।

(ख) सही उत्तर चुनिए ।

प्रश्न 1.
मध्यकाल में कौन-सा नगर बंदरगाह नगर नहीं था ?
(i) कोचीन
(ii) लाहौर
(iii) सूरत।
उत्तर-
(ii) लाहौर।

PSEB 7th Class Social Science Solutions Chapter 13 नगर, व्यापारी तथा कारीगर

प्रश्न 2.
मध्यकाल में व्यापारियों तथा कारीगरों के संघ बने हुए थे। बताइए ये क्या कहलाते थे ?
(i) गिल्ड
(ii) गाइड
(iii) गोपुरम् ।
उत्तर-
(i) गिल्ड।

प्रश्न 3.
चित्र में दिखाया गया भवन सिखों का प्रसिद्ध तीर्थ-स्थान है। क्या आप बता सकते हैं कि यह कहां स्थित है ?
PSEB 7th Class Social Science Solutions Chapter 13 नगर, व्यापारी तथा कारीगर 1
(i) कुरुक्षेत्र
(ii) अमृतसर
(iii) जगन्नाथपुरी।
उत्तर-
(ii) अमृतसर।

PSEB 7th Class Social Science Solutions Chapter 13 नगर, व्यापारी तथा कारीगर

नगर, व्यापारी तथा कारीगर PSEB 7th Class Social Science Notes

  • नगरों का विकास – कृषि की खोज के बाद गांव अस्तित्व में आए। गांवों का विस्तार होने पर नगरों का विकास हुआ।
  • विभिन्न प्रकार के नगर – नगर विभिन्न प्रकार के थे; जैसे-राजधानी नगर, तीर्थ स्थान, बन्दरगाह नगर, व्यापारिक नगर आदि।
  • व्यापारी तथा कारीगर – मध्यकाल में भारतीय कारीगर उच्चकोटि का माल बनाते थे। भारतीय व्यापारियों ने इस माल को विदेशों में भेजा और प्राप्त धन से देश को धनी तथा समृद्ध बनाया।
  • सूरत – सूरत मध्यकाल में एक महत्त्वपूर्ण औद्योगिक तथा व्यापारिक नगर था।
  • लाहौर – लाहौर आधुनिक पाकिस्तान में स्थित है। यह लम्बे समय तक पंजाब की राजधानी रहा।
  • अमृतसर – यह सिखों का सबसे बड़ा तीर्थ स्थान है। मध्यकाल में यह एक महत्त्वपूर्ण व्यापारिक नगर था। यहां स्थित हरमन्दर साहिब विश्व भर में प्रसिद्ध है।

PSEB 7th Class Agriculture Solutions Chapter 2 कृषि हेतु मिट्टी एवं जल-परीक्षण

Punjab State Board PSEB 7th Class Agriculture Book Solutions Chapter 2 कृषि हेतु मिट्टी एवं जल-परीक्षण Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 7 Agriculture Chapter 2 कृषि हेतु मिट्टी एवं जल-परीक्षण

PSEB 7th Class Agriculture Guide कृषि हेतु मिट्टी एवं जल-परीक्षण Textbook Questions and Answers

(क) एक-दो शब्दों में उत्तर दें:

प्रश्न 1.
फसलों में खाद की आवश्यकता संबंधी मिट्टी-परीक्षण करवाने का नमूना कितनी गहराई तक लेना चाहिए ?
उत्तर-
6 इंच की गहराई तक।

प्रश्न 2.
मिट्टी-परीक्षण करवाने हेतु लिए जाने वाले नमूने की मात्रा बताएं।
उत्तर-
आधा किलोग्राम।

प्रश्न 3.
कल्लर जमीन से मिट्टी का नमूना लेने के लिए कितना गहरा गड्ढा खोदना चाहिए ?
उत्तर-
3 फुट गहरा।

PSEB 7th Class Agriculture Solutions Chapter 2 कृषि हेतु मिट्टी एवं जल-परीक्षण

प्रश्न 4.
बाग लगाने के लिए मिट्टी-परीक्षण हेतु नमूना लेने के लिए कितना गहरा गड्डा खोदना चाहिए ?
उत्तर-
6 फुट गहरा।

प्रश्न 5.
सिंचाई के लिए जल-परीक्षण करवाने हेतु नमूना लेने के लिए कितना समय ट्यूबवैल चलाना चाहिए ?
उत्तर-
आधा घंटा।

प्रश्न 6.
मिट्टी और जल-परीक्षण कितने समय बाद करवा लेना चाहिए ?
उत्तर-
प्रत्येक तीन वर्ष बाद।

PSEB 7th Class Agriculture Solutions Chapter 2 कृषि हेतु मिट्टी एवं जल-परीक्षण

प्रश्न 7.
मिट्टी-परीक्षण से पता लगने वाले कोई दो लघु तत्त्वों के नाम बताएं।
उत्तर-
जिंक, लोहा, मैंगनीज़।

प्रश्न 8.
मिट्टी-परीक्षण से पता लगने वाले कोई दो मुख्य तत्त्वों के नाम बताएं।
उत्तर-
नाइट्रोजन, फास्फोरस

प्रश्न 9.
क्या पानी का नमूना लेने के लिए प्रयोग में ली जाने वाली बोतल को साबुन से धोना चाहिए ?
उत्तर-
नहीं धोना चाहिए।

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प्रश्न 10.
जल-परीक्षण से मिलने वाले किसी एक परिणाम का नाम लिखो।
उत्तर-
पानी का खारापन, चालकता का पानी।

(ख) एक-दो वाक्यों में उत्तर दें:

प्रश्न 1.
मिट्टी का नमूना लेने का सही समय क्या होता है ?
उत्तर-
मिट्टी के नमूने लेने का सही समय फसल काटने के बाद का है।

प्रश्न 2.
खड़ी फसल में से नमूना लेने का सही तरीका बताएं।
उत्तर-
खड़ी फसल में से नमूना लेना हो तो फसल की कतारों में से नमूना लेना चाहिए।

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प्रश्न 3.
मिट्टी और जल-परीक्षण के लिए सही तरीके से नमूना लेना क्यों आवश्यक
उत्तर-
गलत तरीके से मिट्टी तथा पानी का नमूना लेकर तथा परीक्षण करवाने से सही जानकारी नहीं मिलती है। इसलिए नमूना सही ढंग से लेना चाहिए।

प्रश्न 4.
पंजाब के दक्षिण-पश्चिमी जिलों के बहुत सारे ज़मीनी क्षेत्रों में भूमिगत पानी की क्या समस्या है ?
उत्तर-
पंजाब के दक्षिण-पश्चिमी जिलों में बहुत सारे क्षेत्र में भूमिगत जल नमकीन अथवा खारा है।

प्रश्न 5.
मिट्टी के नमूने की थैली पर क्या जानकारी लिखनी चाहिए ?
उत्तर-
मिट्टी के नमूने की थैली पर निम्नलिखित जानकारी लिखनी चाहिए

  1. खेत का नंबर
  2. किसान का नाम तथा पता
  3. नमूना लेने का तरीका।

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प्रश्न 6.
बाग लगाने के लिए मिट्टी का नमूना लेते समय कंकड़ों की परत मिलने पर क्या करना चाहिए ?
उत्तर-
यदि कंकड़ों की परत मिल जाए तो इसका नमूना अलग से भरना चाहिए तथा इसकी गहराई तथा मोटाई की जानकारी भी नोट करनी चाहिए।

प्रश्न 7.
मिट्टी का परीक्षण किन तीन उद्देश्यों के लिए करवाया जाता है ?
उत्तर-

  1. फसलों के लिए उर्वरकों की आवश्यकता तथा उनकी मात्रा पता करने के लिए
  2. कल्लराठी भूमि के सुधार के लिए
  3. बाग लगाने के लिए भूमि की योग्यता पता करना।

प्रश्न 8.
प्रतिकूल पानी से लगातार सिंचाई करने से ज़मीन पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर–
प्रतिकूल पानी से लगातार सिंचाई करने से भूमि कल्लराठी हो जाती है।

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प्रश्न 9.
बाग लगाने के लिए मिट्टी-परीक्षण करवाते समय एक जगह से कितने नमूने लिए जाते हैं ?
उत्तर-
बाग लगाने के लिए मिट्टी परीक्षण करवाते समय एक स्थान से लगभग 6-7 नमूने लिए जाते हैं।

प्रश्न 10.
कल्लर जमीन से मिट्टी का नमूना कितनी-कितनी गहराई से लिया जाता है ?
उत्तर-
मिट्टी का नमूना लेने के लिए 3 फुट गहरा गड्डा खोदा जाता है। जिसमें 0-6, 6-12, 12-24 तथा 24-36 इंच गहराई से नमूने लिए जाते हैं।

(ग) पाँच-छ: वाक्यों में उत्तर दें :

प्रश्न 1.
मिट्टी-परीक्षण की महत्ता के बारे में लिखो।
उत्तर-
अधिक उपज तथा गुणवत्ता वाली फसल प्राप्त करने के लिए खेत की मिट्टी का परीक्षण करवाना चाहिए। मिट्टी का परीक्षण करने से मिट्टी में कौन-से आवश्यक तत्त्वों की कमी है तथा कितनी है, इसकी जानकारी मिलती है। इस तरह खादों का उचित प्रयोग हो सकता है। खाद का आवश्यकता से अधिक प्रयोग भूमि के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डालता है।

मिट्टी की जांच करवाने से हमें भूमि की उपजाऊ शक्ति, जैविक मादा, खारी अंग, आवश्यक तत्त्वों की मात्रा का पता लगता है। इस प्रकार मिट्टी की परख का बहुत ही महत्त्व है ताकि इससे सफल फसल प्राप्त की जा सके।

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प्रश्न 2.
बाग लगाने के लिए मिट्टी-परीक्षण कराने हेतु नमूना लेने का ढंग बताएं।
उत्तर-
भूमि की ऊपरी सतह से छः फुट की गहराई तक नमूना लिया जाता है। यह एक तरफ से सीधा तथा दूसरी तरफ से तिरछा होना चाहिए। यह चित्र में दिखाए अनुसार लेना चाहिए।

पहला नमूना 6 इंच तक फिर 6 इंच से 1 फुट तक, 1 फुट से 2 फुट तक, 2 फुट से 3 फुट तक, 3 से 4 फुट तक, 4 से 5 फुट तक, 5 से 6 फुट तक अर्थात् प्रत्येक फुट के निशान तक नमूना लिया जाता है। (1 फुट = 12 इंच)
PSEB 7th Class Agriculture Solutions Chapter 2 कृषि हेतु मिट्टी एवं जल-परीक्षण 1
नमूना गड्ढे के सीधी तरफ से खुरपे की सहायता से लिया जाता है। एक इंच मोटी सतह एक जैसे निकाली जाती है।
नमूना लेने के लिए निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखना चाहिए—

  1. यदि भूमि की सतह सख़्त अथवा कंकड़ों वाली हो तो इसका नमूना अलग भरना चाहिए और इसकी गहराई और मोटाई नोट कर लेनी चाहिए।
  2. प्रत्येक तह के लिए विभिन्न नमूने लेने चाहिएं। प्रत्येक नमूना आधा किलो का होना चाहिए।
  3. हर थैली के अंदर और बाहर लेबल लगा देने चाहिएं उस पर नमूने का विवरण हो।

प्रश्न 3.
ट्यूबवैल के पानी का सही नमूना लेने का तरीका लिखो।
उत्तर-
ट्यूबवैल का बोर करते समय पानी की प्रत्येक सतह से प्राप्त नमूने का परीक्षण करवाना चाहिए। पानी का नमूना लेने के लिए कुएँ या ट्यूबवैल को आधा घंटा तक चलाना चाहिए। पानी का नमूना साफ़ बोतल में लेना चाहिए। बोतल पर अग्रलिखित सूचना का पर्चा चिपका देना चाहिए—

  1. नाम,
  2. गाँव और डाकखाना,
  3. ब्लाक,
  4. तहसील,
  5. ज़िला,
  6. पानी की सतह,
  7. मिट्टी की किस्म जिसे पानी लगता है।

बोतल को साफ़ कार्क लगाकर, अच्छी तरह बंद कर दें और प्रयोगशाला में भेज दें। बोतल को साबुन अथवा कपड़े धोने वाले सोडे से साफ नहीं करना चाहिए।

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प्रश्न 4.
मिट्टी और जल-परीक्षण कहाँ से करवाया जाता है ?
उत्तर-
मिट्टी और जल-परीक्षण किसी नज़दीक की मिट्टी जांच प्रयोगशाला से करवाया जा सकता है। मिट्टी तथा पानी की जांच पंजाब कृषि विश्वविद्यालय, लुधियाना में भी करवाई जा सकती है। पी० ए० यू० के क्षेत्रीय खोज केंद्र गुरदासपुर तथा बठिंडा से भी यह परख करवाई जा सकती है। कृषि विभाग पंजाब तथा कुछ अन्य संस्थाओं द्वारा भी मिट्टी तथा पानी परीक्षण प्रयोगशालाएं स्थापित की गई हैं। इनसे भी किसान मिट्टी तथा पानी की जांच करवा सकता है।

प्रश्न 5.
मिट्टी और जल-परीक्षण में मिलने वाले परिणामों से क्या जानकारी मिलती है ?
उत्तर-
मिट्टी का परीक्षण करवाने से निम्नलिखित जानकारी मिलती है—
मिट्टी की किस्म, इसके क्षारीय अंग, नमकीन पदार्थ (चालकता), जैविक कार्बन, पोटाश, नाइट्रोजन, फास्फोरस जैसे मुख्य तत्त्वों तथा लघु तत्त्वों; जैसे-लोहा, जिंक, मैंगनीज़ आदि की जानकारी प्राप्त होती है।
इसी प्रकार पानी की जांच से पानी का खारापन, चालकता, क्लोरीन तथा पानी में सोडे की किस्म तथा मात्रा की जानकारी प्राप्त होती है।
मिट्टी तथा पानी की जांच प्रत्येक तीन वर्ष बाद करवाते रहना चाहिए।

Agriculture Guide for Class 7 PSEB कृषि हेतु मिट्टी एवं जल-परीक्षण Important Questions and Answers

बहुत छोटे उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
मिट्टी परीक्षण से हमें भूमि के बारे में मिलने वाली जानकारी का एक पक्ष बताओ।
उत्तर-
भूमि की उपजाऊ शक्ति का पता चलता है।

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प्रश्न 2.
खादों की आवश्यकता संबंधी मिट्टी परीक्षण करवाने के लिए किस आकार का गड्ढा खोदा जाता है ?
उत्तर-
अंग्रेजी के अक्षर ‘V’ आकार का।

प्रश्न 3.
खादों की आवश्यकता संबंधी मिट्टी की जांच करवाने के लिए नमूना कितने स्थानों से लेना चाहिए ?
उत्तर-
7-8 स्थानों से।

प्रश्न 4.
मिट्टी के नमूने अलग-अलग कब भरने चाहिएं ?
उत्तर-
जब मिट्टी की किस्म तथा उपजाऊ शक्ति भिन्न-भिन्न हो।

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प्रश्न 5.
कल्लर वाली भूमि से मिट्टी की जांच करवाने के लिए गड्ढा किस आकार का होता है ?
उत्तर-
यह एक तरफ से सीधा तथा दूसरी तरफ से तिरछा होता है।

प्रश्न 6.
खारे पानी से लगातार सिंचाई करते रहने से भूमि की उपजाऊ शक्ति पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर-
उपजाऊ शक्ति कम हो जाती है। प्रश्न 7. पी० ए० यू० के कौन-से क्षेत्रीय खोज केंद्र में मिट्टी, पानी का परीक्षण करवाया जा सकता है ? उत्तर-गुरदासपुर तथा बठिंडा।

छोटे उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
मिट्टी परीक्षण करवाने का क्या मंतव्य है ?
उत्तर-
फसलों के लिए खादों की आवश्यकता का पता लगाना, कल्लराठी भूमि का सुधार करना तथा बाग़ लगाने के लिए भूमि की योग्यता पता करना।

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प्रश्न 2.
कल्लरी भूमि और साधारण भूमि में से मिट्टी का नमूना लेने में क्या अंतर है ?
उत्तर-
कल्लरी भूमि में एक गड्डा 3 फीट तक खोदा जाता है जबकि साधारण भूमि में विभिन्न गड्डे 6 इंच तक खोदे जाते हैं।
कल्लरी भूमि में एक गड्ढे में से 6 इंच, 1 फुट, 2 फुट, 3 फुट इत्यादि गहराइयों से नमूने लेने के लिए विभिन्न थैलियां बनाई जाती हैं जबकि साधारण भूमि में विभिन्न स्थानों की मिट्टी मिलाकर एक ही थैली में डाली जाती है।

प्रश्न 3.
किस मिट्टी में खाली स्थान अधिक होता है ?
उत्तर-
जिस मिट्टी की बनावट कणों वाली हो और जिसमें जैविक पदार्थ हों। उसमें खाली स्थान अधिक होता है।

प्रश्न 4.
कल्लरी भूमि कितनी किस्म की होती है ?
उत्तर-
यह तीन किस्म की है-लवणी, क्षारीय और लवणी-क्षारीय।

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प्रश्न 5.
लवणी भूमि का क्षारीय अंश और लवणों की मात्रा कितनी होती है ?
उत्तर-
लवणों की मात्रा 0.8 मिली प्रति सेमी० से अधिक और क्षारीय अंश 8.7 से कम होता है।

प्रश्न 6.
क्षारीय भूमि लवणी भूमि से कैसे अलग है ?
उत्तर-
क्षारीय भूमि में सोडियम के लवणों की मात्रा अधिक होती है। लवण युक्त भूमि में इसकी मात्रा बहुत कम या नाममात्र होती है।

प्रश्न 7.
लवणी-क्षारीय भूमियां क्या होती हैं ?
उत्तर-
इन भूमियों में खारापन और नमक दोनों ही अधिक मात्रा में होते हैं।

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प्रश्न 8.
तेजाबी भूमि के सुधार के लिए क्या किया जाता है ?
उत्तर-
इसके लिए चूने का प्रयोग किया जाता है। इसके अतिरिक्त गन्ना मिल की गंदगी और लकड़ी की राख प्रयोग में लाई जा सकती है।

प्रश्न 9.
जिप्सम की प्राप्ति कहां से की जा सकती है ?
उत्तर-
यह 50 किलो के बंद बोरों में मार्केटिंग फैडरेशन अथवा भूमि-विकास और बीज कॉर्पोरेशन से तहसील और ब्लॉक स्तर पर मिल जाता है।

प्रश्न 10.
बाग के लिए कैसी भूमि ठीक रहती है ?
उत्तर-
उपजाऊ, मल्हड़ और अच्छे निकास वाली।

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प्रश्न 11.
बाग कैसी भूमि पर नहीं लगाना चाहिए ?
उत्तर-
सेम युक्त, क्षारीय या कल्लर वाली भूमि।

प्रश्न 12.
कैसा पानी सिंचाई के लिए कभी नहीं प्रयोग करना चाहिए ?
उत्तर-
जिस पानी में नमक की मात्रा अधिक हो उसे कभी प्रयोग में नहीं लाना चाहिए।

प्रश्न 13.
मिट्टी का परीक्षण करवाने की क्या आवश्यकता है ?
उत्तर-
मिट्टी के भौतिक तथा रासायनिक गुणों के बारे में जानकारी लेने तथा मिट्टी में मौजूद खुराकी (आहारीय) तत्त्वों की उपलब्धता के बारे में जानकारी लेने के लिए मिट्टी का परीक्षण करवाया जाता है।

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बड़े उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
किसी खेत में से मिट्टी का नमूना लेने की विधि बताएं।
उत्तर-
मिट्टी का नमूना लेने के लिए किसान के पास कुदाल, खुरपा और तसला होना चाहिए। यदि रासायनिक खादों के प्रयोग की सिफ़ारिश के लिए नमूना लेना हो तो निम्नलिखित ढंगों का प्रयोग करें—

सबसे पहले खेत का कोरे कागज़ पर नक्शा तैयार करें। इस नक्शे का खसरे के साथ कोई संबंध नहीं है। इस नक्शे पर अपने हिसाब से कोई भी नंबर लगाओ। नक्शे से हर वक्त पता चलता रहेगा कि नमूना किस खेत में से लिया है। चित्र देखें।
PSEB 7th Class Agriculture Solutions Chapter 2 कृषि हेतु मिट्टी एवं जल-परीक्षण 2
खेत में से नमूना भरने के लिए 10-15 स्थानों से मिट्टी लें। खेत के किसी निशान पर खड़े हो जाएं। यहां कुदाल से गहरा गड्ढा बनाओ। यह अंग्रेजी के अक्षर ‘V’ के आकार का बनेगा।

इसे खुरपे से सीधा करें। इस सीधी की गई दिशा की ओर 6″ गहराई पर निशान लगाएं और धरती से एक अंगुली की मोटाई पर एक पपड़ी 6″ के निशान तक काटकर तसले में डाल दें। इस तरह सारे खेत में से 10 से 15 यहां-वहां ठिकानों से मिट्टी इकट्ठा करें। तसले में सारी मिट्टी को अच्छी तरह मिलाएं और छाया में सुखाकर एक कपड़े की थैली में भर लें।

प्रश्न 2.
परख के लिए भेजने के लिए मिट्टी के साथ कौन-सी सूचना भेजी जाती है?
उत्तर-
परख के लिए भेजने के लिए मिट्टी के नमूने के साथ निम्नलिखित सूचना भेजनी चाहिए—

  1. खेत का नंबर और नाम
  2. नमूना कब लिया।
  3. किसान का नाम पता।
  4. नमूने की गहराई।
  5. फसल चक्कर।
  6. सिंचाई के साधन।
  7. खेत में प्रयोग की गई खादों का विवरण।

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प्रश्न 3.
मिट्टी का नमूना लेने सम्बन्धी कौन-सी हिदायतें हैं ?
उत्तर-

  1. भूमि की ऊपरी सतह से घास-फूस हटा दें, पर मिट्टी न खुरचें।
  2. अगर मिट्टी में कोई ढेला हो तो उसे तोड़कर मिला दें।
  3. जहां पुरानी बाड़ या खाद के ढेर या खाद बिखरी हो उस स्थान से मिट्टी का नमूना नहीं लेना चाहिए।
  4. मिट्टी का नमूना साल में कभी भी लिया जा सकता है, पर गेहूँ की कटाई के बाद श्रावण की फसल की बिजाई से पहले नमूना लेना लाभदायक है।
  5. अगर पत्थर या कंकड़ हों, तो इन्हें ऐसे ही रहने दें, इन्हें तोड़ने की आवश्यकता नहीं।
  6. गीली मिट्टी को छाया में सुखा लेना चाहिए। मिट्टी को धूप या आग पर नहीं सुखाना चाहिए।
  7. यदि एक खेत में मिट्टी का कुछ हिस्सा अलग प्रकार का हो तो उसका नमूना अलग तौर से लें। अन्य खेत की मिट्टी में इस स्थान का नमूना नहीं मिलाना चाहिए।
  8. 3-4 वर्ष के बाद खेत की मिट्टी का परीक्षण ज़रूर करवाएं। कोशिश करें कि एक पूरे फसली चक्कर के बाद मिट्टी का परीक्षण हो।

प्रश्न 4.
कल्लरी भूमि में से नमूने लेने का ढंग बताएं।
उत्तर-
कल्लरी भूमि में क्षार और लवणों की मात्रा पानी के उतार-चढ़ाव से बढ़तीघटती रहती है। इस मिट्टी के नमूने गहराई से लेने चाहिएं।
कल्लरी मिट्टी के नमूने लेने के लिए कल्लर वाले खेत में चित्र अनुसार 3 फुट गहरा गड्ढा खोदें। गड्डे का नमूना चित्र में दिया गया है। नमूना लेते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखें—
1. गड्डे के ऊपरी तरफ भूमि के स्तर से नीचे की ओर 6 इंच, एक फुट, दो फुट और तीन फुट के फासले पर निशान लगाएं।

2. 6 इंच के निशान पर तसला रखकर भूमि की सतह से नीचे 6 इंच के निशान तक एक-जैसा टुकड़ा निकालें, यह आधा किलो के लगभग होना चाहिए।

3. इस तरह मिट्टी के एक-जैसे टुकड़े (लगभग आधा किलो मिट्टी) भूमि की निचली सतहों में से जैसे कि 6 इंच से एक फुट, एक फुट से दो फुट, दो फुट से तीन फुट आदि के निशान के बीच में से नमूने लें।
PSEB 7th Class Agriculture Solutions Chapter 2 कृषि हेतु मिट्टी एवं जल-परीक्षण 3

4. यदि भूमि की सतह सख्त अथवा रोड़ी वाली हो तो इसकी गहराई और मोटाई को माप कर इसका नमूना अलग लें।

5. इनके नमूनों को अलग तौर पर साफ़ कपड़े की थैलियों में डालें। सही नमूने पर ध्यान से लेबल लगाएं। एक थैली के अंदर और दूसरा थैली के बाहर। यह सूचना भी साफ़ लिखें जिससे मिट्टी की गहराई का पता चल सके।

PSEB 7th Class Agriculture Solutions Chapter 2 कृषि हेतु मिट्टी एवं जल-परीक्षण

कृषि हेतु मिट्टी एवं जल-परीक्षण PSEB 7th Class Agriculture Notes

  • खाद के उचित प्रयोग के लिए मिट्टी परीक्षण आवश्यक है।
  • हमें भूमि की उपजाऊ शक्ति, उसके क्षारीय अंग, जैविक कार्बन तथा आवश्यक तत्त्वों की मात्रा की जानकारी मिट्टी परीक्षण से मिलती है।
  • फसलों में खाद की आवश्यकता संबंधी मिट्टी परीक्षण करना हो तो ‘V’ आकार का छः इंच गहरा गड्ढा खोदा जाता है।
  • कल्लर वाली भूमियों से मिट्टी का नमूना लेने के लिए 3 फुट गहरा गड्ढा खोदा जाता है।
  • बाग लगाने के लिए मिट्टी परीक्षण करवाने के लिए खेत में 6 फुट गहरा गड्ढा बनाया जाता है।
  • दक्षिण-पश्चिमी जिलों में बहुत-से क्षेत्रफल का भूमिगत जल नमकीन है।
  • ट्यूबवैल से पानी का नमूना लेने के लिए ट्यूबवैल को कम-से-कम आधा घंटा चलता रहने देना चाहिए।
  • मिट्टी तथा पानी का परीक्षण पी० ए० यू०. लुधियाना में किया जाता है तथा कुछ अन्य संस्थाएं भी यह निरीक्षण करती हैं।
  • किसानों को प्रत्येक तीसरे वर्ष मिट्टी की जांच करवा लेनी चाहिए।

PSEB 7th Class Physical Education Solutions Chapter 6 खेलों का महत्त्व

Punjab State Board PSEB 7th Class Physical Education Book Solutions Chapter 6 खेलों का महत्त्व Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 7 Physical Education Chapter 6 खेलों का महत्त्व

PSEB 7th Class Physical Education Guide खेलों का महत्त्व Textbook Questions and Answers

अभ्यास के प्रश्नों के उत्तर

प्रश्न 1.
कोई दस बड़ी और छोटी खेलों के नाम लिखो।
उत्तर-
बड़ी खेलें-

  1. फुटबाल
  2. हॉकी
  3. क्रिकेट
  4. टेबिल टेनिस
  5. खो-खो
  6. वालीबाल
  7. बास्कटबाल
  8. बैडमिन्टन
  9. कुश्ती
  10. कबड्डी।

छोटी खेलें-

  1. रूमाल उठाना
  2. कोटला छपाकी
  3. गुल्ली डण्डा
  4. लीडर ढूंढना
  5. बिल्ली -चूहा
  6. तीन-तीन या चार-चार
  7. जंग पलंगा
  8. राजे रानियां
  9. मथौला घोड़ी
  10. चक्कर वाली खो-खो।

प्रश्न 2.
मनुष्य की मूल कुशलताएं कौन-सी हैं ? इन मूल कुशलताओं से आजकल की खेलें कैसे प्रकाश में आईं ?
उत्तर-
चलना, भागना, कूदना, वृक्षों पर चढ़ना आदि मनुष्य की मूल कुशलताएं हैं। जैसे-जैसे मनुष्य के काम-धन्धों में उन्नति हुई, उसके साथ-साथ ही इन कुशलताओं के समन्वय में भी उन्नति हुई। मनुष्य ने इन क्रियाओं को जोड़कर खेलों में बदल दिया। धीरे-धीरे खेलों के वे रूप सम्पूर्ण विश्व में फैल गए।

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प्रश्न 3.
एक व्यक्ति के लिए खेलों से क्या लाभ हैं ?
उत्तर-
एक व्यक्ति के लिए खेलों से निम्नलिखित लाभ हैं—
1. शरीर की वृद्धि और विकास (Development and growth of Body खेलें व्यक्ति के शरीर को सुदृढ़ बनाती हैं। वे उसके शरीर में चुस्ती एवं फुर्ती लाती हैं। खेलों से मनुष्य का शारीरिक विकास होता है।

2. खाली समय का उचित प्रयोग (Proper use of leisure time) खेलों के द्वारा व्यक्ति अपने खाली समय का उचित प्रयोग कर सकता है। खेलों के कारण व्यक्ति बहुत-से बुरे कामों से बच जाता है। खेलें मन को शैतान का घर नहीं बनने देती।

3. भावनाओं पर नियन्त्रण (Full control over Emotion)-खेलों से व्यक्ति भय, क्रोध, चिन्ता, उदासी आदि भावनाओं पर नियन्त्रण करना सीखता है।

4. आज्ञा का पालन (Obedience) खेलों से व्यक्ति में आज्ञा पालन का गुण विकसित होता है।
5. सहयोग की भावना (Spirit of co-operation)-खेलों से खिलाड़ियों में आपसी सहयोग की भावना आती है।
6. समय का पालन (Punctuality)-खेलें व्यक्ति को समय का पालन करना सिखाती हैं।
7. सहनशीलता (Tolerance) खेलें सहनशीलता के गुण का विकास करती हैं।
8. आत्म-विश्वास (Self Confidence)-खेलों से व्यक्ति में आत्म-विश्वास पैदा होता है।
9. दृढ़ निश्चय (Firm Determination) खेलें व्यक्ति में दृढ़ निश्चय का विकास करती हैं।
9. प्रतियोगिता की भावना (Spirit of Competition) खेलों से खिलाड़ियों में प्रतियोगिता की भावना विकसित होती है।
10. ज़िम्मेदारी की भावना (Spirit of Responsibility) खेलों द्वारा व्यक्ति में ज़िम्मेदारी की भावना विकसित होती है।

PSEB 7th Class Physical Education Solutions Chapter 6 खेलों का महत्त्व

प्रश्न 4.
खेलों के खेलने से एक व्यक्ति में कौन-कौन से गुण विकसित होते हैं ?
उत्तर-
खेलों के गुण (Quality of Sports)-खेलें मनुष्य में निम्नलिखित गुण विकसित करती हैं—
1. अच्छा स्वास्थ्य (Gopd Health) खेलें स्वास्थ्य प्रदान करती हैं। खिलाड़ियों के भागने, कूदने और उछलने से शरीर के सभी अंग ठीक प्रकार से काम करना आरम्भ कर देते हैं। दिल, फेफड़े और पाचन आदि सभी अंग ठीक प्रकार से काम करना आरम्भ कर देते हैं। मांसपेशियों में शक्ति और लचक बढ़ जाती है। जोड़ लचकदार हो जाते हैं और शरीर में चुस्ती आ जाती है। इस प्रकार खेलों से स्वास्थ्य में सुधार होता है।

2. सुडौल शरीर (Conditioned Body) खेलों में खिलाड़ी को भागना पड़ता है, जिससे उसका शरीर सुडौल हो जाता है। इससे उसके व्यक्तित्व में निखार आ जाता है।

3. संवेगों का सन्तुलन (Full Control over Emotion) संवेगों का सन्तुलन सफल जीवन के लिए आवश्यक है। यदि इस पर नियन्त्रण न रखा जाए तो क्रोध, उदासी, अहंकार मनुष्य को चक्कर में डाल कर उसके व्यक्तित्व को नष्ट करते हैं। खेलें मनुष्य का मन जीवन की उलझनों से दूर हटाती हैं, उसका मन प्रसन्न करती हैं और उसे संवेगों पर नियन्त्रण करने में सफल बनाती हैं।

4. तीव्र बुद्धि का विकास (Development of Intelligence) खेलते समय खिलाडी को हर क्षण किसी-न-किसी समस्या का सामना करना पड़ता है। अड़चन या समस्या को उसी समय अपनी शक्ति के अनुसार हल करना पड़ता है। समाधान ढूंढने में तनिक भी विलम्ब हो जाने से सारे खेल का पासा पलट सकता है। इस प्रकार के वातावरण में प्रत्येक खिलाड़ी हर समय किसी-न-किसी समस्या के हल में लगा रहता है। उसे अपनी समस्याओं का स्वयं समाधान करने का अवसर मिलता है। अतः खेलों द्वारा मनुष्य में तीव्र बुद्धि का विकास होता है।

5. चरित्र का विकास (Development of Character) खेल के समय विजयपराजय के लिए खिलाड़ियों को कई प्रकार के प्रलोभन दिए जाते हैं। अच्छे खिलाड़ी भूल कर भी इस जाल में नहीं फंसते और अपने विरोधी पक्ष के हाथों नहीं बिकते। अच्छा खिलाड़ी किसी भी छल-कपट का आश्रय नहीं लेता। इस प्रकार खेलें मनुष्य में कई चारित्रिक गुणों का विकास करती हैं।

6. इच्छा शक्ति प्रबल करती हैं (Development of Will Power) खेलों में खिलाड़ी एकाग्रचित होकर खेलता है। वह उद्देश्य की प्राप्ति के लिए अपनी सारी शक्ति लगा देता है और साधारणतः सफल भी हो जाता है। यही आदत उसके जीवन के उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए बन जाती है। इस प्रकार खेलें इच्छा शक्ति को प्रबल करती हैं।

7. भ्रातृ-भाव की भावना का विकास (Spirit of Brotherhood) खेलों के द्वारा भ्रातृ-भाव की भावना का विकास होता है। इसका कारण यह है कि खिलाड़ी सदा ग्रुपों में खेलता है और ग्रुप के नियमानुसार व्यवहार करता है। इससे वे एक-दूसरे के प्रति प्रेमपूर्ण और भाइयों जैसा व्यवहार करने लगते हैं। इस प्रकार उनका जीवन भ्रातृ प्रेम के आदर्श के अनुसार ढल जाता है।

8. नेतृत्व (Leadership)-खेलों से मनुष्य में नेतृत्व के गुणों का विकास होता है। खेलों के मैदान से ही हमें अनुशासन, आत्म संयम, आत्म त्याग और मिल-जुल कर देश के लिए सर्वस्व बलिदान करने वाले सैनिक अधिकारी प्राप्त होते हैं। इसलिए तो ड्यूक ऑफ वेलिंग्टन ने नेपोलियन को वाटरलू (Waterloo) के युद्ध में पराजित करने के पश्चात् कहा था, “वाटरलू का युद्ध हैरो के खेलों के मैदान में जीता गया।”

9. अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग की भावना (International Co-operation) खेलें जातीय भेद-भाव को समाप्त करती हैं। प्रत्येक टीम में विभिन्न जातियों के खिलाड़ी होते हैं। उनके इकट्ठे मिलने-जुलने और टीम के लिए एक जुट होकर संघर्ष करने की भावना के कारण जाति-पाति की दीवारें ढह जाती हैं और सादा जीवन में विशाल दृष्टिकोण हो जाता है। अन्तर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता में एक देश के खिलाड़ी दूसरे देश के खिलाड़ियों से खेलते हैं और उनसे मिलते-जुलते हैं। इस प्रकार उनमें मित्रता की भावना बढ़ जाती है। अत: खेलें अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग की भावना का विकास करती हैं।

10. प्रतियोगिता और सहयोग (Competition and Co-operation)-प्रतियोगिता ही उन्नति का आधार है और सहयोग महान् प्राप्तियों का साधन। विजय प्राप्त करने के लिए टीमें एड़ी-चोटी का जोर लगा देती हैं, परन्तु मैच जीतने के लिए सभी खिलाड़ियों के सहयोग की आवश्यकता होती है। किसी भी एक खिलाड़ी के प्रयत्नों से मैच नहीं जीता जा सकता। अतः प्रतियोगिता और सहयोग की भावनाओं का विकास करने के लिए खेलें बहुत उपयोगी हैं।

इनके अतिरिक्त खेलों से मनुष्य में आत्म-विश्वास एवं उत्तरदायित्व निभाने के गुणों का भी विकास होता है।

PSEB 7th Class Physical Education Solutions Chapter 6 खेलों का महत्त्व

प्रश्न 5.
एक राष्ट्र को खेलों से क्या लाभ होते हैं ?
उत्तर-
एक राष्ट्र को खेलों से निम्नलिखित लाभ होते हैं—
1. राष्ट्रीय एकता (National Unity) खेलों द्वारा राष्ट्रीय एकता का विकास होता है। एक राज्य के खिलाड़ी दूसरे राज्यों के खिलाड़ियों से खेलने के लिए आते-जाते रहते हैं। उनके परस्पर समन्वय से राष्ट्रीय भावना उत्पन्न होती है।

2. सीमाओं की रक्षा (Full Protection of the Border of the Country)खेलों में भाग लेने से प्रत्येक व्यक्ति स्वस्थ रहता है। इस प्रकार स्वस्थ जाति का निर्माण होता है। एक स्वस्थ जाति ही अपनी सीमाओं की अच्छी तरह रक्षा कर सकती है।

3. अच्छे और अनुभवी नेता (Good and Experienced Leader) खेलों के द्वारा अच्छे नेता पैदा होते हैं क्योंकि खेल के मैदान में बालकों को नेतृत्व के बहुत-से अवसर मिलते हैं। खेलों के ये नेता बाद में अच्छी तरह से अपने देश की बागडोर सम्भालते हैं।

4. अच्छे नागरिक (Good Citizen)-खेलें बालकों में आज्ञा पालन, नियम पालन, ज़िम्मेदारी निभाना, आत्म-विश्वास, सहयोग आदि के गुणों का विकास करती हैं। इन गुणों से युक्त व्यक्ति श्रेष्ठ नागरिक बन जाता है। श्रेष्ठ और अच्छे नागरिक ही देश की बहुमूल्य सम्पत्ति होते हैं।

5. अन्तर्राष्ट्रीय भावना (International Brotherhood)-एक देश की टीमें दूसरे देशों में मैच खेलने जाती हैं। इससे दोनों देशों के खिलाड़ियों में मित्रता और सूझबूझ बढ़ती है जिससे परस्पर भेद-भाव मिट जाते हैं। इस प्रकार उनमें अन्तर्राष्ट्रीय भावना विकसित होती है। अन्तर्राष्ट्रीय भावना के विकास से शान्ति स्थापित होती है।

Physical Education Guide for Class 7 PSEB खेलों का महत्त्व Important Questions and Answers

बहुत छोटे उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
पहले-पहल मनुष्य किस प्रकार का जीवन व्यतीत करता था ?
उत्तर-
जंगली जीवन।

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प्रश्न 2.
खेलों को कितने भागों में बांटा जा सकता है ?
उत्तर-
दो।

प्रश्न 3.
भारतीय (या देशीय) खेलें कौन-सी हैं ?
उत्तर-
कुश्ती, कबड्डी तथा खो-खो।

प्रश्न 4.
बच्चे की प्राकृतिक और मन-पसंद क्रिया क्या है ?
उत्तर-
खेल।

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प्रश्न 5.
हम में जिम्मेवारी की भावना, सहनशीलता, दृढ़ निश्चय, आत्म-विश्वास और प्रतियोगिता की भावना कैसे पैदा हो सकती है ?
उत्तर-
खेलों के द्वारा।

छोटे उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
शारीरिक क्रियाओं का मनुष्य के जीवन में क्या महत्त्व है ?
उत्तर-
प्रत्येक मनुष्य बचपन से ही कोई-न-कोई शारीरिक क्रिया शुरू कर लेता है। शारीरिक क्रिया मनुष्य की एक प्राथमिक आवश्यकता है। जैसे-जैसे वह बड़ा होता जाता है वैसे-वैसे उस की शारीरिक क्रियाओं की संख्या भी बढ़ती जाती है। शारीरिक क्रियाओं को दो मुख्य भागों में बांटा जाता है-प्राकृतिक क्रियाएं और औपचारिक क्रियाएं।
खेलें औपचारिक क्रियाओं में आती हैं। खेलों से मनुष्य शारीरिक तथा मानसिक पक्ष से स्वस्थ रहता है।

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प्रश्न 2.
खेलों की अन्तर्राष्ट्रीय विशेषता क्या है ?
उत्तर-
एक राष्ट्र की टीम दूसरे राष्ट्र में खेलने के लिए जाती है। इस प्रकार देशों में मित्रता बढ़ती है और अन्तर्राष्ट्रीय भावना उत्पन्न होती है। इस अन्तर्राष्ट्रीय भावना के द्वारा देशों के परस्पर वैर-विरोध मिट कर विश्व में शान्ति स्थापित होती जा रही है। इस प्रकार खेलें एक मनुष्य को दूसरे मनुष्य से, एक प्रान्त को दूसरे प्रान्त से और एक देश को दूसरे देश से मिलाती हैं।

प्रश्न 3.
खेलों की राष्ट्रीय विशेषता का वर्णन करो।
उत्तर-
खेलों में भाग लेने से बच्चों में समय का पालन करने, नियमपूर्वक काम करने, अपनी ज़िम्मेदारी निभाने, दूसरों की सहायता करने और स्वयं की रक्षा करने आदि अच्छे कामों की सिखलाई मिलती है। इससे बच्चे स्वस्थ और हृष्ट-पुष्ट और प्रसन्न चित्त रहेंगे। इससे. समूचे राष्ट्र को बल मिलेगा। कोई भी राष्ट्र निजी व्यक्तियों के समूह से ही बनता है। बच्चे राष्ट्र के भावी नागरिक होते हैं। खेलें किसी देश को स्वस्थ एवं अच्छे नागरिक प्रदान करती हैं। अत: यदि किसी राष्ट्र का प्रत्येक नागरिक अच्छा हो, तो, राष्ट्र अपने आप ही अच्छा बन जाएगा। इस प्रकार खेलों का किसी राष्ट्र के लिए विशेष महत्त्व है। खेलों से राष्ट्रीय एकता की भावना मज़बूत होती है।

PSEB 7th Class Physical Education Solutions Chapter 5 योग

Punjab State Board PSEB 7th Class Physical Education Book Solutions Chapter 5 योग Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 7 Physical Education Chapter 5 योग

PSEB 7th Class Physical Education Guide योग Textbook Questions and Answers

अभ्यास के प्रश्नों के उत्तर

प्रश्न 1.
‘योग’ शब्द से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
योग शब्द संस्कृत के ‘युज’ शब्द से बना है जिसका अर्थ है मिलाना। साधारण शब्दों में योग का अर्थ मनुष्य को परमात्मा से मिलाना है अर्थात् वह विज्ञान जो हमें परमात्मा से मिलने का मार्ग दिखाता है उसे योग कहते हैं।

प्रश्न 2.
ऋषि पतंजली के अनुसार योग क्या है ?
उत्तर-
योग का उद्देश्य एकता, मिलाप और प्रेम है। मनुष्य का मन चंचल होने के कारण हर समय भटकता रहता है जो कभी रुक नहीं सकता। योग की मदद से मन को नियंत्रित कर सकते हैं। महर्षि पतंजली के अनुसार मन की वृत्तियों को रोकना ही योग है।
विभिन्न विद्वानों ने ‘योग’ को इस प्रकार परिभाषित किया है—
डॉ० राधाकृष्ण के अनुसार, “योग वह मार्ग है जो व्यक्ति को अन्धकार से प्रकाश की ओर ले जाता है।”
श्री रामचरण के अनुसार, “योग व्यक्ति के तन को स्वास्थ्य, मन को शान्ति व आत्मा को चैन प्रदान करता है।”

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प्रश्न 3.
योग की कोई एक परिभाषा लिखिए।
उत्तर-
डॉ० राधाकृष्ण के अनुसार, “योग वह मार्ग है जो व्यक्ति को अन्धकार से प्रकाश की ओर ले जाता है।”

प्रश्न 4.
‘आसन’ शब्द से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
आसन प्राचीन यौगिक अभ्यास है जिससे प्राणायाम, ध्यान और समाधि का आधार तैयार होता है। आसन’ शब्द संस्कृत भाषा के शब्द ‘अस’ से लिया गया है जिसका मतलब है बैठने की कला। ऋषि पतंजली द्वारा “योग सूत्र में आसन का अर्थ व्यक्ति की उस स्थिति से है जिसमें वह अधिक-से-अधिक समय आसानी से बैठ सके।”

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प्रश्न 5.
आसन कितने प्रकार के होते हैं। विस्तारपूर्वक लिखिए।
उत्तर-

  1. उपचार के लिए आसन-इन आसनों में मांसपेशियों में खिंचाव उत्पन्न होता है और अनेक कुरूपताओं का उपचार किया जा सकता है।
  2. साधना के लिए आसन-इन आसनों में शरीर को एक स्थिति में रख कर लम्बे समय तक बैठकर ध्यान केन्द्रित किया जाता है।
  3. आराम के लिए आसन-इन आसनों का मुख्य उद्देश्य शरीर को आराम देना होता है और लेटकर किए जाते हैं। इन आसनों से शारीरिक व मानसिक थकावट दूर होती है।

प्रश्न 6.
योग सिर्फ एक ईलाज की विधि है-इस धारणा के बारे में अपने विचार लिखिए।
उत्तर-
1. क्या योग एक विशेष धर्म से सम्बन्धित है-भारत में योग प्राचीन समय में ऋषि-मुनियों द्वारा आरम्भ किया गया है। इसलिए आम लोग इसे हिन्दू धर्म सम्बन्धित मानते हैं और योग केवल हिन्दुओं के लिए है। यह धारणा बिल्कुल गलत है। योग को किसी भी धर्म को मानने वाला अपना सकता है क्योंकि योग तो एक किस्म का शारीरिक व्यायाम है जिसका किसी धर्म से लेना-देना नहीं।

2. क्या योग केवल पुरुषों के लिए है-कुछ लोग मानते हैं कि योग करने वाले व्यक्ति को कठिन नियमों का पालन करना पड़ता है और योग केवल पुरुष ही कर सकते हैं। योग स्त्रियों के लिए नहीं है। सच्चाई यह है कि योग के लिए कोई कठोर नियम नहीं है और योग स्त्रियों के लिए भी उतना लाभदायक है जितना पुरुषों के लिए लाभदायक है।

3. क्या योग केवल रोगियों के लिए है-योग से कई प्रकार के रोग ठीक हो जाते हैं। इसलिए कई लोग यह सोचते हैं कि योग केवल इलाज के लिए है और रोगियों के लिए है। यह धारणा गलत है क्योंकि कोई भी स्वस्थ मनुष्य योग कर सकता है और शरीर को बीमारियों से बचा सकता है।

4. क्या योग सिर्फ संन्यासियों के लिए है-ऋषि मुनि प्राचीन काल में योग का अभ्यास जंगलों में रह कर किया करते थे। आज भी कुछ लोग सोचते हैं योग करने के लिए मनुष्य को घर छोड़ना पड़ता है। एक गृहस्थी के लिए योग करना ठीक नहीं जोकि बिल्कुल गलत है। सच्चाई तो यह है कि योग घर में रहकर भी कर सकते हैं।

PSEB 7th Class Physical Education Solutions Chapter 5 योग

Physical Education Guide for Class 7 PSEB योग Important Questions and Answers

बहुत छोटे उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
योग के बारे में अपने शब्दों में लिखें ।
उत्तर-
योग शब्द संस्कृत के ‘युज’ शब्द से बना है जिसका अर्थ है मिलाना, मिलाप और प्रेम। योग के द्वारा व्यक्ति का परमात्मा से मेल।

प्रश्न 2.
महर्षि पतंजली के अनुसार योग के बारे में लिखें।
उत्तर-
महर्षि पतंजली के अनुसार मन की वृत्तियों को रोकना अथवा उनको नियंत्रित करना ही योग है।

प्रश्न 3.
योग सम्बन्धी कोई एक भ्रामक धारणा लिखें।
उत्तर-
योग किसी विशेष धर्म से सम्बन्धित नहीं है।

PSEB 7th Class Physical Education Solutions Chapter 5 योग

प्रश्न 4.
आसन क्या है ?
उत्तर-
ऋषि पतंजली के अनुसार आसन का अर्थ व्यक्ति की उस स्थिति से है जिसमें वह अधिक-से-अधिक समय आसानी से बैठ सके।

छोटे उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न-
आसनों के कोई तीन सिद्धान्त लिखें।
उत्तर-

  1. आसन करने के लिए आयु व लिंग का ध्यान रखना ज़रूरी है। बच्चों को अधिक कठोर आसन नहीं करने चाहिए, जिनसे उनकी शारीरिक वृद्धि प्रभावित हो।
  2. आसन करते समय अधिक ज़ोर नहीं लगाना चाहिए। आसन करते समय शरीर सहज, स्थिर व आरामदायक स्थिति में रहना चाहिए।
  3. आसन का अभ्यास करते समय शरीर को धीरे-धीरे मोड़ना चाहिए। आसन करते समय एक दम झटका नहीं देना चाहिए।

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बड़े उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न-
आसन के सिद्धान्त विस्तार से लिखें।
उत्तर-
आसन करने वाले व्यक्ति को कुछ सिद्धान्तों का पालन करना पड़ता है। इन सिद्धान्तों का पालन करने से हम आसनों से पूरा लाभ ले सकते हैं। ये सिद्धान्त इस प्रकार हैं

  1. आसन करते समय मांसपेशियों में तनाव पैदा होना ज़रूरी है। तनाव से लचक पैदा होती है।
  2. आसन करते समय आयु और लिंग का ध्यान रखना आवश्यक है। बच्चों को कठोर आसन नहीं करने चाहिए जिससे उनके शरीर की वृद्धि में रुकावट न आ जाए। लड़कियों को मयूरासन अधिक नहीं करना चाहिए।
  3. आसन करते समय अधिक ज़ोर नहीं लगाना चाहिए। आसन करते समय शरीर सहज, स्थिर व आरामदायक स्थिति में रहना चाहिए।
  4. आसन का अभ्यास करते समय शरीर को धीरे-धीरे मोड़ना चाहिए। आसन करते समय जरक अथवा झटका नहीं लगाना चाहिए।
  5. आसन हमेशा प्रगति के सिद्धान्त के अनुसार करने चाहिए। पहले आसान आसन करने चाहिए। उसके पश्चात् कठिन आसनों का अभ्यास करना चाहिए।
  6. गर्भवती महिलाओं को और हृदय रोगों से पीड़ित व्यक्तियों को कठिन आसन नहीं करने चाहिए।
  7. आसन करने वाला स्थान साफ और शांत होना चाहिए। सुबह का समय आसन करने के लिए सबसे उच्च माना जाता है।
  8. आसन खाना खाने के चार घण्टे बाद या निराहार रह कर करने चाहिए।

प्रश्न 4.
आसन क्या है ?
उत्तर-
ऋषि पतंजली के अनुसार आसन का अर्थ व्यक्ति की उस स्थिति से है जिसमें वह अधिक-से-अधिक समय आसानी से बैठ सके।

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छोटे उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न-
आसनों के कोई तीन सिद्धान्त लिखें।
उत्तर-

  1. आसन करने के लिए आयु व लिंग का ध्यान रखना ज़रूरी है। बच्चों को अधिक कठोर आसन नहीं करने चाहिए, जिनसे उनकी शारीरिक वृद्धि प्रभावित हो।
  2. आसन करते समय अधिक ज़ोर नहीं लगाना चाहिए। आसन करते समय शरीर सहज, स्थिर व आरामदायक स्थिति में रहना चाहिए।
  3. आसन का अभ्यास करते समय शरीर को धीरे-धीरे मोड़ना चाहिए। आसन करते समय एक दम झटका नहीं देना चाहिए।

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बड़े उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न-
आसन के सिद्धान्त विस्तार से लिखें।
उत्तर-
आसन करने वाले व्यक्ति को कुछ सिद्धान्तों का पालन करना पड़ता है। इन सिद्धान्तों का पालन करने से हम आसनों से पूरा लाभ ले सकते हैं। ये सिद्धान्त इस प्रकार

  1. आसन करते समय मांसपेशियों में तनाव पैदा होना ज़रूरी है। तनाव से लचक पैदा होती है।
  2. आसन करते समय आयु और लिंग का ध्यान रखना आवश्यक है। बच्चों को कठोर आसन नहीं करने चाहिए जिससे उनके शरीर की वृद्धि में रुकावट न आ जाए। लड़कियों को मयूरासन अधिक नहीं करना चाहिए।
  3. आसन करते समय अधिक ज़ोर नहीं लगाना चाहिए। आसन करते समय शरीर सहज, स्थिर व आरामदायक स्थिति में रहना चाहिए।
  4. आसन का अभ्यास करते समय शरीर को धीरे-धीरे मोड़ना चाहिए। आसन करते समय जरक अथवा झटका नहीं लगाना चाहिए।
  5. आसन हमेशा प्रगति के सिद्धान्त के अनुसार करने चाहिए। पहले आसान आसन करने चाहिए। उसके पश्चात् कठिन आसनों का अभ्यास करना चाहिए।
  6. गर्भवती महिलाओं को और हृदय रोगों से पीड़ित व्यक्तियों को कठिन आसन नहीं करने चाहिए।
  7. आसन करने वाला स्थान साफ और शांत होना चाहिए। सुबह का समय आसन करने के लिए सबसे उच्च माना जाता है।
  8. आसन खाना खाने के चार घण्टे बाद या निराहार रह कर करने चाहिए।

PSEB 7th Class Physical Education Solutions Chapter 4 खेल में लगने वाली चोटें व उनका इलाज

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PSEB 7th Class Physical Education Guide खेल में लगने वाली चोटें व उनका इलाज Textbook Questions and Answers

अभ्यास के प्रश्नों के उत्तर

प्रश्न 1.
खेलों में लगने वाली चोटों से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
ब्राजील में सन 2014 में विश्व कप फुटबाल में ब्राजील विश्व कप जीतने का मुख्य दावेदार था। ब्राजील की टीम पूरे जोश के साथ सभी विरोधी टीमों को पराजित करती हुई विश्व चैम्पियनशिप जीतने की ओर बढ़ रही थी कि अचानक एक मैच में ब्राजील के होनहार खिलाड़ी ‘नेमार’ की रीढ़ की हड्डी में चोट लग गई जिसके कारण नेमार अगले मैचों में खेल नहीं सका और आने वाले दोनों मैच ब्रा हार गया। इस प्रकार ब्राजील विश्व कप विजेता होने से चूक गया।

कोई भी कार्य करते समय मनुष्य के जीवन में चोट लगने का भय बना रहता है। थोड़ी-सी असावधानी से चोट लग सकती है। इस तरह खिलाड़ियों को भी खेल के मैदान में चोटें लगती रहती हैं। खिलाड़ी जितनी मर्जी सावधानी का प्रयोग करे पर उस को चोट लग ही जाती है। खेल के मैदान में लगने वाली चोटें, कामकाज में लगने वाली चोटों से भिन्न होती हैं। यदि खिलाड़ी तैयारी और सावधानी से खेल के मैदान में उतरता है तो उसे दूसरे खिलाड़ियों की उपेक्षा कम चोटें लगती हैं। प्रत्येक खिलाड़ी के खेल जीवन में कोई-नकोई चोट अवश्य लगती है। साधारण चोट लगने पर एक-दो दिन में ठीक हो जाता है परन्तु गम्भीर चोट लगने पर खिलाड़ी कई दिन मैदान से दूर रहता है और खेल पाने में अमसर्थ होता है। कई चोटों के कारण खेलने योग्य भी नहीं रहता। खेल के मैदान में खिलाड़ियों को लगने वाली चोटें खेल चोटें (Sports Injuries) कहलाती हैं।

प्रश्न 2.
प्रत्यक्ष चोटें क्या होती हैं?
उत्तर-
प्रत्यक्ष चोटें (Exposed Injuries)-इस प्रकार की चोटें खिलाड़ियों को आम लगती रहती हैं। इस प्रकार की चोटें शरीर के किसी बाहर के भाग पर लगती हैं और इन्हें देखा जा सकता है। खेलते समय गिरने या किसी बाहर की वस्तु से टकराने के कारण चोट लगती है। इन चोटों को कई भागों में बांटा जा सकता है।

1. रगड़ (Abrasion)-इस प्रकार की चोट में त्वचा का ऊपरी अथवा भीतरी भाग छिल जाता है। खेल मैदान में खिलाड़ी के गिरने के कारण लगती है। इस प्रकार की चोट से त्वचा का बाहरी भाग छिल जाता है और रक्त बहने लगता है। रगड़ लगने वाले स्थान पर मिट्टी आदि पड़ने के कारण संक्रमण हो सकता है। इस प्रकार की चोट के घाव को अच्छी तरह साफ करके उस पर मरहम पट्टी कर देनी चाहिए।

2. त्वचा का फटना (Incision)-कई बार खेल में खिलाड़ी अपने विरोधी से टकरा जाते हैं। खिलाड़ी को कुहनी, घुटना या कोई तीखा भाग टकराने से खिलाड़ी की त्वचा फट जाती है। खिलाड़ी को इस प्रकार की चोट किसी कठोर वस्तु के टकराने से लगती है। खिलाड़ी की त्वचा कट जाती है और उससे रक्त बहने लगता है। कट गहरा होने के कारण रक्त तेज़ी से बहता है। इसके उपचार के लिए घाव को साफ करके पट्टी करनी चाहिए।

3. गहरा घाव (Punctured Wound)-खेल में यह चोट गंभीर होती है। यह चोट खेल के समय किसी नोकीली वस्तु के लगने के कारण होती है जैसे जैवेलिन या कीलों वाले स्पाइक्स की कीलें लगने के कारण होती है। इस चोट में खिलाड़ी को गहरा घाव लगता है और रक्त अधिक मात्रा में निकलने लगता है। इस प्रकार की चोट लगने के कारण शीघ्र खिलाड़ी को डाक्टर के पास ले जाना चाहिए।

PSEB 7th Class Physical Education Solutions Chapter 4 खेल में लगने वाली चोटें व उनका इलाज

प्रश्न 3.
अप्रत्यक्ष चोटें किन्हें कहते हैं ?
उत्तर-
अप्रत्यक्ष (परोक्ष) चोटें (Unexposed Injuries) इस प्रकार की चोटें शरीर के बाहरी भाग में दिखाई नहीं देतीं। इन्हें भीतरी चोटें भी कहा जा सकता है। इस प्रकार की चोटें मांसपेशियों अथवा जोड़ों पर लगती हैं। इनका मुख्य कारण मांसपेशियों व जोड़ों पर अधिक दबाव या तनाव होता है। इस प्रकार की चोट में खिलाड़ी को तीव्र दर्द होता है और ठीक होने में समय लग जाता है।

प्रश्न 4.
जोड़ का उत्तरना तथा हड्डी के टूटने में क्या अन्तर है?
उत्तर-
इस चोट में जोड़ के ऊपर अधिक दबाव पड़ने के कारण अथवा झटका लगने के कारण हड्डी जोड़ से बाहर आ जाती है जिससे जोड़ गति करना बंद कर देता है और खिलाड़ी खेलने में असमर्थ हो जाता है। किसी पोल, मेज से टकराने अथवा गिरते समय जोड़ के अधिक मुड़ जाने के कारण यह चोट लग सकती है।

जब चोट लगने के कारण हड्डी के दो टुकड़े हो जाते हैं, उसे हड्डी का टूटना कहते हैं। हड्डी का टूटना गम्भीर चोट है। इसमें खिलाड़ी को बहुत दर्द होता है और ठीक होने में भी काफी समय लगता है। हड्डी टूटने के बहुत प्रकार हैं-इनमें कुछ साधारण व कुछ गम्भीर प्रकार की टूटन है। खेल के मैदान में सुरक्षा उपकरणों का इस्तेमाल न करने के कारण ये चोटें लग सकती हैं।

जोड़ का उत्तरना हड्डी का टूटना
(1) जोड़ का आकार बदल जाता है। (1) हड्डी का आकार बदल जाता है।
(2) अंग की गतिशीलता बंद हो जाती है। (2) हड्डी टूटने वाले स्थान पर तेज़ दर्द होने लगता है।
(3) चोट वाले स्थान पर तीव्र दर्द लगती है। (3) हड्डी के हिलाने पर आवाज़ आने होता है।
(4) जोड़ पर सूजन आ जाती है। (4) हड्डी टूटने वाला अंग कार्य करना बन्द कर देता है।

 

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प्रश्न 5.
मोच क्या है ? इसके कारण, लक्षण तथा ईलाज के बारे में लिखिए।
उत्तर-
मोच जोड़ों की चोट है। इस चोट में जोड़ों को बांधने वाले तन्तु टूट जाते हैं या फट जाते हैं। खेल के मैदान में दौड़ते समय खिलाड़ी का संतुलन बिगड़ने के कारण अथवा जोड़ों के अधिक मुड़ने के कारण खिलाड़ी के जोड़ों पर दबाव पड़ जाता है और जोड़ के तन्तुओं में खिंचाव आ जाता है। इसे मोच कहते हैं।
लक्षण-

  1. चोट वाले स्थान पर तीव्र दर्द होता है।
  2. चोट वाले जोड़ पर सूजन आ जाती है।
  3. चोट वाले स्थान का रंग लाल हो जाता है।
  4. चोट वाले जोड़ को हिलाने से खिलाड़ी को तीव्र दर्द होता है।

उपचार-चोट लगने के स्थान पर शीघ्र बर्फ लगनी चाहिए। इससे जोड़ में बह रहा रक्त बंद हो जाता है। बर्फ मलने से चोट वाले स्थान पर सूजन कम हो जाती है। चोट लगने के पश्चात् 24 घण्टे बर्फ की टकोर करनी चाहिए और चोट पर मालिश नहीं करनी चाहिए। न ही गर्म सेक देना चाहिए। जोड़ को सहारा देने के लिए पट्टी बांध लेनी चाहिए। चोट ठीक होने के पश्चात् जोड़ को हल्का व्यायाम करना चाहिए। इससे चोट ठीक होने में काफी समय लग सकता है।

प्रश्न 6.
खेलों में लगने वाली चोटों के मुख्य कारण कौन से हैं ?
उत्तर-

  1. अपर्याप्त जानकारी
  2. उचित प्रशिक्षण का अभाव
  3. असावधानी
  4. ठीक तरह से शरीर न गर्माने के कारण
  5. खेल मैदान का सही न होना।।

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Physical Education Guide for Class 7 PSEB खेल में लगने वाली चोटें व उनका इलाज Important Questions and Answers

बहुत छोटे उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
खेल के मैदान में क्या नहीं होना चाहिए ?
उत्तर-
कंकर, कांच के टुकड़े और पत्थर आदि।

प्रश्न 2.
मैदान की सीमा रेखा के निकट क्या नहीं होना चाहिए ?
उत्तर-
तार अथवा दीवार।

प्रश्न 3.
खेलों का सामान कैसा होना चाहिए ?
उत्तर-
अन्तर्राष्ट्रीय स्टैण्डर्ड का बहुत बढ़िया।

PSEB 7th Class Physical Education Solutions Chapter 4 खेल में लगने वाली चोटें व उनका इलाज

प्रश्न 4.
कौन-सी भावना से खेल नहीं खेलना चाहिए ?
उत्तर-
बदले की।

प्रश्न 5.
खेल का मैदान कैसा होना चाहिए ?
उत्तर-
समतल।

प्रश्न 6.
खेलों में चोट लगने के दो कारण लिखें।
उत्तर-

  1. अपर्याप्त जानकारी
  2. उचित प्रशिक्षण का अभाव।

PSEB 7th Class Physical Education Solutions Chapter 4 खेल में लगने वाली चोटें व उनका इलाज

प्रश्न 7.
खेल चोटें कितने प्रकार की होती हैं ?
उत्तर-
खेल चोटें दो प्रकार की होती हैं—

  1. प्रत्यक्ष चोटें
  2. अप्रत्यक्ष चोटें।

प्रश्न 8.
मोच क्या है ?
उत्तर-
मोच में जोड़ों को बांधने वाले तन्तु टूट जाते हैं।

प्रश्न 9.
खिंचाव क्या है ?
उत्तर-
यह चोट शरीर की भारी मांसपेशियों पर लगती है और मांसपेशियों में खिंचाव आ जाता है।

PSEB 7th Class Physical Education Solutions Chapter 4 खेल में लगने वाली चोटें व उनका इलाज

प्रश्न 10.
हड्डी का उतरना क्या है ?
उत्तर-
जोड़ के ऊपर अधिक दबाव पड़ने के कारण हड्डी जोड़ से बाहर आ जाती है।

प्रश्न 11.
हड्डी का टूटना क्या है ?
उत्तर-
चोट लगने के कारण हड्डी के दो टुकड़े हो जाने को हड्डी का टूटना कहा जाता

छोटे उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
हड्डी के उतरने के लक्षण लिखें।
उत्तर-

  1. जोड़ का आकार बदल जाता है।
  2. अंग की गतिशीलता बंद हो जाती है।
  3. चोट वाले स्थान पर तीव्र दर्द होता है।
  4. जोड़ पर सूजन आ जाती है।

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प्रश्न 2.
हड्डी के टूटने के लक्षण लिखें।
उत्तर-

  1. हड्डी का आकार बदल जाता है।
  2. हड्डी टूटने वाले स्थान पर तेज़ दर्द होने लगता है।
  3. हड्डी के हिलाने पर आवाज़ आने लगती है।
  4. हड्डी टूटने वाला अंग कार्य करना बन्द कर देता है।

बड़े उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
खेल में लगने वाली चोटों के भिन्न-भिन्न कारण लिखो।
उत्तर-
खेलों में खिलाड़ियों के चोट लगने के कई कारण हो सकते हैं जो इस प्रकार—
1. अपर्याप्त जानकारी-खेलों के नियम, खेल सामग्री के बारे में खिलाड़ी को पूरी जानकारी होनी चाहिए। कई बार खिलाड़ी को खेल सामग्री की जानकारी नहीं होती जिससे उसे चोट लग सकती है।

2. उचित प्रशिक्षण का अभाव-खेलों में बढ़िया प्रदर्शन के लिए अच्छा प्रशिक्षण ज़रूरी है। यदि प्रशिक्षण के बिना खिलाड़ी खेलता है तो उसके शरीर में शक्ति, गति व लचक की कमी के कारण चोट लग सकती है।

3. असावधानी-“सावधानी हटी और दुर्घटना घटी” खेल के मैदान में थोडी-सी लापरवाही से चोट लग सकती है। यदि खिलाड़ी खेल नियमों का पालन नहीं करता तो भी चोटें लग सकती हैं।

4. ठीक तरह से शरीर न गर्माने के कारण-खेल के अनुसार गर्माना ज़रूरी है जिससे खिलाड़ी की मांसपेशियां खेल के दबाव को सहन कर सकें। यदि खिलाड़ी शरीर को पूर्ण रूप से गर्माता नहीं तो उसकी मांसपेशियों में खिंचाव आ सकता है।

5. खेल के मैदान का सही न होना-खेलते समय मैदान समतल होना आवश्यक है। मैदान में गड्ढे, तीखी चीजें, कांच, कील बिखरे होने के कारण खिलाड़ी को चोट लग सकती है। अतः खेलने से पहले खेल मैदान की जांच कर लेनी चाहिए।

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प्रश्न 2.
खिंचाव क्या होता है ? उसके लक्षण और उपचार लिखो।
उत्तर-
यह मांसपेशियों की चोट है और शरीर की भारी मांसपेशियों पर लगती है। इसमें खिलाड़ियों की मांसपेशियों में खिंचाव आ जाता है जिससे वहां तेज दर्द होने लगता है। खिलाड़ी चलने, फिरने, दौड़ने में अमसर्थ हो जाता है। इस चोट के कई कारण हो सकते हैं। थकावट, शरीर को अच्छी तरह से गर्माना, मांसपेशियों पर अधिक तनाव।
लक्षण-

  1. चोट वाले स्थान पर तीव्र पीड़ा होती है।
  2. खिलाड़ी को दौड़ने, चलने में कठिनाई होती है।
  3. चोट वाले स्थान पर सूजन आ जाती है।
  4. खिलाड़ी की मुद्रा (Posture) में बदलाव आ जाता है।

उपचार-चोट के पश्चात् खिलाड़ी को अति शीघ्र मैदान से बाहर कर देना चाहिए और आराम से लिटा देना चाहिए। चोट वाले स्थान पर बर्फ लगानी चाहिए और 48 घण्टे तक बर्फ लगाते रहना चाहिए। तीसरे दिन गुनगुने पानी की टकोर करनी चाहिए। उसके पश्चात् ठण्डे पानी की टकोर करनी चाहिए। चौथे और पांचवें दिन तक इस प्रक्रिया को दोहराते रहना चाहिए। जब तक चोट पूर्ण रूप से ठीक न हो खेलना नहीं चाहिए।

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प्रश्न 3.
हड्डी का टूटना (Fracture) क्या होता है ? उसके लक्षण और उपचार बताएं।
उत्तर-
जब चोट लगने के कारण हड्डी के दो टुकड़े हो जाते हैं, उसे हड्डी का टूटना कहते हैं।
हड्डी का टूटना गम्भीर चोट है। इसमें खिलाड़ी को बहुत दर्द होता है और ठीक होने में भी काफी समय लगता है। हड्डी टूटने के बहुत प्रकार हैं-इनमें कुछ साधारण व कुछ गम्भीर प्रकार की टूटन है। खेल के मैदान में सुरक्षा उपकरणों का इस्तेमाल न करने के कारण ये चोटें लग सकती हैं।
लक्षण-

  1. जहां हड्डी टूटी हो उसका आकार बदल जाता है।
  2. टूटी हड्डी के स्थान पर तीव्र दर्द होता है।
  3. हड्डी के हिलाने पर ‘चर-चर’ की आवाज़ आती है।
  4. चोटिल अंग कार्य नहीं कर सकता।

उपचार–हड्डी टूटी होने पर खिलाड़ी को चोट वाले स्थान पर हड्डी को लकड़ी अथवा लोहे की पट्टियों द्वारा सहारा देना चाहिए। जहां चोट लगी हो उसे हिलाना नहीं चाहिए। रक्त बहने पर रक्त रोकना चाहिए। खिलाड़ी को शीघ्र डाक्टरी सहायता दिलानी चाहिए। जिसे एक्सरे करके चोट द्वारा टूटी हड्डी का पता लगाया जा सके। डाक्टरी परामर्श के अनुसार इलाज करना चाहिए और पूरी तरह ठीक होने तक खिलाड़ी पूर्ण रूप से आराम करते रहना चाहिए।

PSEB 7th Class Physical Education Solutions Chapter 3 शारीरिक ढांचा और इसकी कुरूपताएं

Punjab State Board PSEB 7th Class Physical Education Book Solutions Chapter 3 शारीरिक ढांचा और इसकी कुरूपताएं Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 7 Physical Education Chapter 3 शारीरिक ढांचा और इसकी कुरूपताएं

PSEB 7th Class Physical Education Guide शारीरिक ढांचा और इसकी कुरूपताएं Textbook Questions and Answers

अभ्यास के प्रश्नों के उत्तर

प्रश्न 1.
शारीरिक ढांचे से क्या अभिप्राय है ? हमारा शरीर दोनों टांगों पर कैसे सीधा खड़ा रहता है ?
उत्तर-
शारीरिक ढांचे (Posture) शरीर के भिन्न-भिन्न अंगों की एक-दूसरे से सम्बद्ध स्थिति को बढ़िया सन्तुलित शारीरिक ढांचा कहा जा सकता है। अच्छे शारीरिक ढांचे वाले व्यक्ति के खड़े होने, बैठने, चलने और पढ़ने में स्वाभाविकता और सुन्दरता झलकती है। जब शरीर के ऊपरी अंगों का भार समान रूप से निचले अंगों पर ठीक सीधे पड़ रहा हो तो हमारा पोस्चर ठीक होगा। इससे अभिप्राय हमारे शरीर की बनावट है। यदि शरीर की बनावट देखने में सुन्दर, सीधी और स्वाभाविक लगे और इसका भार ऊपर वाले अंगों से निचले अंगों पर ठीक तरह आ जाए तो शारीरिक ढांचा ठीक होता है। परन्तु यदि उठने-बैठने, चलने और पढ़ने के समय शरीर टेढ़ा-मेढ़ा और दुखदायी प्रतीत हो तो शारीरिक ढांचा खराब होता है।
PSEB 7th Class Physical Education Solutions Chapter 3 शारीरिक ढांचा और इसकी कुरूपताएं 1
हमारे शरीर के आगे-पीछे आवश्यकतानुसार मांसपेशियां होती हैं। ये हड्डियों को उचित स्थान पर स्थिर रखती हैं। पांवों की मांसपेशियां पांवों की शक्ल को ठीक रखती हैं और शरीर को सीधा खड़ा रखने में उचित आधार प्रदान करती हैं। टांग के अगले और पिछले भाग की मांसपेशियां टांगों को पांवों पर सीधा खड़ा रखने में सहायता करती हैं। इसी प्रकार कमर के आस-पास की मांसपेशियां शरीर के ऊपरी भाग को पीछे की ओर खींचकर रखती हैं। पेट और छाती की मांसपेशियां धड़ और सिर को अधिक पीछे नहीं जाने देतीं। इसलिए हमारा शारीरिक ढांचा मांसपेशियों की सहायता से ठीक ढंग से सीधा और स्वाभाविक रूप में रहता है।

प्रश्न 2.
बढिया शारीरिक ढांचा किसे कहते हैं ?
उत्तर-
शरीर के अंगों की एक-दूसरे के सम्बन्ध में उचित स्थिति को बढ़िया शारीरिक ढांचा कहा जाता है। जब शरीर के ऊपरी अंगों का भार समान रूप में निचले अंगों पर ठीक सीधे पड़ रहा हो तो उसे हम संतुलित पोस्चर कह सकते हैं। ऊपर चित्र में बढ़िया शारीरिक ढांचा दिखाया गया है। ऐसे ढांचे में शरीर के ऊपरी अंगों का भार ठीक तरह से नीचे वाले अंगों पर पड़ रहा है। ऐसा ढांचा बैठने-उठने, सोने में सुविधाजनक और चुस्त रहता है।

प्रश्न 3.
अच्छे शारीरिक ढांचे के हमें क्या लाभ हैं ?
उत्तर-
अच्छा शारीरिक ढांचा (Balanced Posture)-संतुलित शारीरिक ढांचे के मुख्य लाभ इस प्रकार हैं—

  1. अच्छा पोस्चर होने से हमें कोई शारीरिक काम करते समय कम-से-कम शक्ति लगानी पड़ती है।
  2. अच्छा पोस्चर होने से शरीर में हिलजुल आसान हो जाती है।
  3. अच्छे पोस्चर वाला व्यक्ति दूसरों को बहुत प्रभावित करता है।
  4. अच्छे पोस्चर व्यक्ति में आत्म-विश्वास पैदा करता है।
  5. अच्छा पोस्चर वाला व्यक्ति प्रत्येक काम में चुस्त और फुर्तीला होता है।

अच्छा शारीरिक ढांचा देखने में सुन्दर लगता है। हमें बैठने-उठने, दौड़ने और पढ़ने आदि में सुविधा और चुस्ती महसूस होती है। बढ़िया ढांचे में स्वास्थ्य ठीक रहता है। बढ़िया शारीरिक ढांचे में दिल, फेफड़ों और गुर्दो आदि के काम में कोई रुकावट नहीं पड़ती। अच्छे शारीरिक ढांचे की मांसपेशियों को कम ज़ोर लगाना पड़ता है।

PSEB 7th Class Physical Education Solutions Chapter 3 शारीरिक ढांचा और इसकी कुरूपताएं

प्रश्न 4.
शारीरिक ढांचा कैसे कुरूप हो जाता है ? इसकी मुख्य कुरूपताओं (Deformities) के नाम लिखो।
उत्तर-
जब मांसपेशियों में परस्पर तालमेल और सन्तुलन ठीक न रहे तो हमारा शरीर आगे या पीछे की ओर झुक जाता है। मांसपेशियों की कमजोरी के कारण तथा हड्डियों के टेढ़ा-मेढ़ा होने के कारण शारीरिक ढांचे में कई तरह के दोष उत्पन्न हो जाते हैं। यदि बच्चों की आदतों की ओर विशेष ध्यान न दिया जाए तो भी शारीरिक ढांचा कुरूप हो जाता है। बड़ी आयु में किसी विशेष आदत के कारण शारीरिक ढांचा कुरूप हो सकता है। बच्चों की खुराक की ओर यदि ध्यान न दिया जाए तो भी शारीरिक ढांचा कुरूप हो जाता है। शारीरिक ढांचे की मुख्य कुरूपताएं निम्नलिखित हैं—

  1. कूबड़ का निकलना (Kyphosis)
  2. कूल्हों का आगे की ओर निकलना (Lordosis)
  3. रीढ़ की हड्डी का टेढ़ा हो जाना (Spinal Curvature)
  4. कूबड़ सहित कूल्हों का आगे निकलना (Sclerosis)
  5. घुटनों का भिड़ना (Knee Locking)
  6. पांवों का चपटे होना (Flat Foot)
  7. दबी हुई छाती (Depressed Chest)
  8. कबूतर की तरह छाती अथवा चपटी छाती (Flat Chest)
  9. टेढ़ी गर्दन (Sliding Neck)

शरीर की इन कुरूपताओं को दूर करने के लिए भिन्न-भिन्न व्यायाम करने पड़ते हैं।

प्रश्न 5.
हमारी रीढ़ की हड्डी में कुब (Kyphosis) कैसे पड़ जाता है ? इसको ठीक करने के लिए कौन-कौन से व्यायाम करने चाहिएं ?
उत्तर-
जब गर्दन और पीठ की मांसपेशियां ढीली होकर लम्बी हो जाती हैं और छाती की मांसपेशियां सिकुड़ कर छोटी हो जाती हैं तो रीढ़ की हड्डी में कूबड़ आ जाता है। इस दशा में गर्दन आगे की ओर निकल जाती है तथा सिर आगे की ओर झुका हुआ दिखाई देता है। रीढ़ की हड्डी पीछे की ओर निकल जाती है तथा कूल्हे आगे को घूम जाते हैं।
PSEB 7th Class Physical Education Solutions Chapter 3 शारीरिक ढांचा और इसकी कुरूपताएं 2
कूबड़पन निम्नलिखित कारणों से उत्पन्न होता है (Causes of Kyphosis)—

  1. नज़र का कमज़ोर होना या ऊंचा सुनाई देना।
  2. कम रोशनी में आगे झुक कर पढ़ना।
  3. बैठने के लिए खराब किस्म का एवं निकम्मा फर्नीचर होना।
  4. कसरत न करने से मांसपेशियों का कमजोर हो जाना।
  5. तंग और गलत ढंग के कपड़े पहनना।
  6. शरीर का तेजी से बढ़ना।
  7. लड़कियों का जवान होने पर शरमा कर आगे को झुक कर चलना।
  8. आवश्यकता से अधिक झुक कर काम करने की आदत।
  9. कई धन्धों जैसे बढ़ई का आरा खींचना, माली का क्यारियों की गुड़ाई करना, दफ्तरों में फाइलों पर आंखें टिकाये रखना और दर्जी का कपड़े सीना आदि।
  10. बीमारी या दुर्घटना आदि के कारण।

कूबड़पन दूर करने की विधियां (Methods of Rectify Deformities)—
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  1. उठते-बैठते और चलते समय ठोडी थोड़ी-सी ऊपर की ओर, छाती और सिर को सीधा रखो।
  2. कुर्सी पर बैठकर पीठ बैक के साथ लगाकर तथा सिर पीछे की ओर रखकर ऊपर देखना। हाथों को पीछे पकड़ लेना चाहिए।
  3. पीठ के नीचे तकिया रखकर लेटना।
  4. दीवार से लगी सीढ़ी से लटकना, इस समय पीठ सीढ़ी की ओर होनी चाहिए।
  5. पेट के बल लेटना, हाथों पर भार डाल कर सिर और धड़ के अगले भाग को ऊपर की ओर उठाना।
  6. प्रतिदिन सांस खींचने वाली कसरतों को करना या लम्बे सांस लेना।
  7. डंड निकालना, तैरना तथा छाती के लिए अन्य कसरतें करना।
  8. एक कोने में खड़े होकर दोनों दीवारों पर एक-एक हाथ लगा कर शरीर के भार से बारी-बारी एक बाजू को कोहनी से झुकाना और सीधा करना।

इन कसरतों के अतिरिक्त शारीरिक ढांचे को ठीक रखने वाली स्वस्थ बातों को भी ध्यान में रखना चाहिए।

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प्रश्न 6.
हमारी कमर के अधिक आगे निकल जाने के कारण बताओ। इस कुरूपता को दूर करने के लिए कुछ कसरतें लिखो।
उत्तर-
कई बार कूल्हों की मांसपेशियां छोटी हो जाती हैं और पेट की मांसपेशियां ढीली पड़कर लम्बी हो जाती हैं। रीढ़ की हड्डी का नीचे वाला मोड़ अधिक आगे हो जाने के कारण पेट आगे निकल जाता है। इससे सांस लेने की क्रिया में काफी बदलाव आ जाता है। इसके निम्नलिखित कारण होते हैं—

  1. छोटे बच्चों में पेट आगे निकल कर चलने की आदत
  2. छोटी उम्र में बच्चों को सन्तुलित भोजन का न मिलना।
  3. कसरत न करना।
  4. ज़रूरत से ज्यादा भोजन करना।
  5. स्त्रियों का ज्यादा बच्चे पैदा करना।

पीछे लिखे कारणों के कारण कमर आगे निकल जाती है। इस कुरूपता को दूर करने के लिए आगे लिखी कसरतें करनी चाहिएं—
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  1. सीधे खड़े होकर शरीर का ऊपरी भाग आगे झुकाना और सीधा करना चाहिए।
  2. पीठ के बल लेट कर उठना और फिर लेटना।
  3. पीठ के बल लेटकर शरीर के सिर वाले और टांगों वाले भागों को बारी-बारी ऊपर उठाना।।
  4. पीठ के बल लेटकर टांगों को धीरे-धीरे 45° तक ऊपर को उठाना तथा फिर नीचे लाना।
  5. सावधान अवस्था में खड़े होकर बार-बार पैरों को स्पर्श करना।
  6. सांस की कसरतों का अभ्यास करना।
  7. हल आसन का अभ्यास करना।

यदि ऊपर लिखी कसरतों को लगातार किया जाए तो बाहर निकली कमर ठीक हो जाती है।

प्रश्न 7.
हमारे पांव चपटे कैसे हो जाते हैं ? चपटे पांव की परख बताते हुए इसको दूर करने की कसरतें भी लिखो।
उत्तर-
चपटे पांव (Flat Foot)—जब पांवों की मांसपेशियां ढीली हो जाती हैं तो डाटें सीधी हो जाती हैं और पांव चपटा हो जाता है। इसके अतिरिक्त यदि शरीर ज्यादा भारी हो, कसरत न की जाए, गलत बनावट के जूते पहने जाएं तो भी पांव चपटे हो जाते हैं। अगर हर रोज़ लगातार काफ़ी समय तक खड़े होना पड़े या शारीरिक ढांचे सम्बन्धी ग़लत आदतें हों तो भी पांव चपटे हो जाते हैं।
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(क) ठीक पांव
(ख) चपटा पांव

चपटे पांवों की परख-थोड़ी-सी नर्म और गीली मिट्टी लो। इसे धरती पर समतल बिछा दो। इस पर पांव रखते हुए आगे की ओर चलो। यदि पांव ठीक हो तो इसके तल का निशान चित्र नं०

  1. में दिखाए गए चित्र के अनुरूप होगा परन्तु यदि पांव चपटा हो तो इसका निशान चित्र नं०
  2. के अनुरूप होगा।

व्यायाम-चपटे पांव को ठीक करने के लिए निम्नलिखित कसरतें करनी चाहिएं—
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  1. एड़ियों के भार चलना और धीरे-धीरे दौड़ना।
  2. पंजों के बल चलना और दौड़ना।।
  3. पंजों के बल साइकिल चलाना।
  4. डंडेदार सीढ़ियों पर चढ़ना-उतरना।
  5. पांव को इकट्ठा करके एड़ी और उंगलियों के सहारे चलना।
  6. नाचना।
  7. लकड़ी के तिकोने फट्टे की ढलान पर पांव रखकर चलना।

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प्रश्न 8.
छाती की हड्डियों में कौन-कौन सी कुरूपताएं आ जाती हैं ? इनको कैसे ठीक किया जा सकता है ?
उत्तर-
छाती की हड्डियों में तीन प्रकार की कुरूपताएं आ जाती हैं। इनका वर्णन इस प्रकार है—

  1. दबी हुई छाती (Depressed Chest)—इस प्रकार की छाती अन्दर की ओर दबी हुई होती है।
  2. कबूतर जैसी छाती (Pigeon type Chest)-इस प्रकार की छाती की हड्डी ऊपर की ओर उभरी हुई होती है।
  3. चपटी छाती (Flat Chest)-इस प्रकार की छाती में पसलियां अधिक इधर-उधर उभरने की बजाय छाती की हड्डी के लगभग समतल होती हैं।

छाती की हड्डियों में कुरूपता के कारण—

  1. कसरत की कमी।
  2. भोजन में कैल्शियम, फॉस्फोरस और विटामिन ‘डी’ की कमी।
  3. भयानक बीमारियां।
  4. अत्यधिक आगे को झुक कर बैठना, खड़े होना या चलना आदि।

व्यायाम—

  1. डंड निकालना।
  2. प्रतिदिन सांस की कसरतों का अभ्यास करना।
  3. भुजाओं और धड़ की कसरतों का अभ्यास करना।
  4. चारा काटने वाली मशीन को हाथ से चलाकर चारा काटना।
  5. किसी चीज़ से लटक कर डंड निकालना।

प्रश्न 9.
निम्नलिखित कुरूपताओं के कारण बताते हुए इनको ठीक करने वाली कसरतें भी लिखो—
(क) टेढ़ी गर्दन,
(ख) घुटनों का भिड़ना,
(ग) चपटी छाती।
उत्तर-
(क) टेढ़ी-गर्दन (Sliding Neck)-कई बार गर्दन के एक तरफ की मांसपेशियां ढीली होकर लम्बी हो जाती हैं। दूसरी ओर की मांसपेशियां सिकुड़ जाने के कारण छोटी हो जाती हैं। गर्दन एक ओर झुकी रहती है। इससे गर्दन टेढ़ी हो जाती है।
कारण (Causes) गर्दन टेढ़ी होने के निम्नलिखित मुख्य कारण होते हैं—

  1. बच्चों को छोटी उम्र में एक ओर ही लेटे रहने देना।
  2. बच्चों को प्रतिदिन एक ओर ही उठाना और कन्धे से लगाए रखना।
  3. पढ़ने का गलत ढंग अपनाना।
  4. एक ओर गर्दन झुकाकर देखने की आदत।
  5. एक आंख की नज़र का कमज़ोर होना।

दोष ठीक करने के उपाय (Remedies)—

  1. सीधी गर्दन रखकर चलने और पढ़ने की आदत डालनी चाहिए।
  2. प्रतिदिन गर्दन की कसरत करनी चाहिए।

(ख) घुटनों का भिड़ना (Knee Loebing)-छोटे बच्चों के भोजन में कैल्शियम, फॉस्फोरस और विटामिन ‘डी’ की कमी के कारण उनकी हड्डियां कमज़ोर होकर टेढ़ी हो जाती हैं। उनकी टांगें शरीर का भार न सहन कर सकने के कारण घुटनों से अन्दर की ओर टेढ़ी हो जाती हैं। इस कारण बच्चों के घुटने भिड़ने लग जाते हैं। बच्चा सावधान अवस्था में खड़ा नहीं हो सकता। ऐसा बच्चा भली-भान्ति दौड़ नहीं सकता।

दोष ठीक करने के उपाय (Remedies)-इस दोष को दूर करने के लिए बच्चे को निम्नलिखित कसरतें करवानी चाहिएं—

  1. बच्चे से साइकिल चलवाना चाहिए।
  2. बच्चे को प्रतिदिन सैर करवानी चाहिए।
  3. बच्चे को सीमेण्ट या लकड़ी के घोड़े पर प्रतिदिन बिठाया जाए।

(ग) चपटी छाती (Flat Chest) चपटी छाती में पसलियां अधिक उभरने की बजाय समतल फैल जाती हैं। इस दोष के कारण श्वास-क्रिया में रुकावट आती है।
कारण (Causes)-चपटी छाती होने के निम्नलिखित कारण हैं—

  1. भोजन में कैल्शियम, फॉस्फोरस और विटामिन ‘डी’ की कमी।
  2. कसरत न करना।
  3. शारीरिक ढांचे की गन्दी आदतें, जैसे-अधिक आगे की ओर झुक कर बैठना, खड़े होना या चलना।
  4. भयानक बीमारियां।

ठीक करने के उपाय (Remedies)–यदि चपटी छाती हो तो निम्नलिखित कसरतें करनी चाहिएं—

  1. प्रतिदिन सांस की कसरतों का अभ्यास करना।
  2. डंड पेलना।
  3. चारा काटने वाली मशीन चलाना।
  4. किसी चीज़ से लटक कर डंड निकालना।
  5. भुजाओं और धड़ की कसरतों का अभ्यास आदि करना।

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प्रश्न 10.
शारीरिक ढांचे को अच्छा बनाने के लिए कुछ सेहतमन्द आदतों का वर्णन करो।
उत्तर-
शारीरिक ढांचे को अच्छा बनाने के लिए निम्नलिखित आदतें अपनानी चाहिएं—

  1. भोजन में बच्चों को आवश्यकतानुसार कैल्शियम, फॉस्फोरस और विटामिन ‘डी’ देना चाहिए।
  2. सप्ताह में एक दो बार बच्चों को नंगे शरीर धूप में बिठाकर मालिश करनी चाहिए।
  3. पढ़ते समय अच्छी रोशनी और अच्छे फर्नीचर का प्रयोग करना चाहिए।
  4. कभी-कभी बच्चों की नज़र टैस्ट करवा लेनी चाहिए।
  5. बच्चों को बैठने, उठने, चलने और पढ़ने के लिए अच्छे ढंग सिखलाने चाहिएं।
  6. पांवों के बल अधिक देर तक खड़ा नहीं होना चाहिए।
  7. प्रतिदिन सांस की कसरत का अभ्यास करना चाहिए।
  8. तंग जूते और तंग कपड़े नहीं पहनने चाहिएं।
  9. प्रतिदिन कसरत करनी चाहिए।
  10. बैठने के लिए अच्छे फर्नीचर का प्रयोग करना चाहिए।

पीछे की ओर कूबड़ को ठीक करने के व्यायाम (Exercises Related to Kyphosis)—
1. चित्त अवस्था अर्थात् पीठ के बल लेट जाएं, घुटनों को ऊपर की ओर उठाएं, ताकि पैरों के तलवे ज़मीन पर स्पर्श कर सकें। फिर दोनों हाथों को कंधों के बराबर खोलें। हथेलियां ऊपर की ओर होनी चाहिए। अपने हाथों को सिर की ओर ले जायें और हथेलियां एक-दूसरे की ओर हों। कुछ देर इस स्थिति में रहें। उसके बाद अपने हाथों को कंधों के बराबर ले आएं। इस क्रिया को आठ या दस बार दोहराएं।

2. छाती के बल लेट जायें। अपने हाथों को अपनी पीठ पर रखें। फिर अपने धड़ को ज़मीन से कुछ ऊपर उठायें। इस क्रिया को करते समय आपकी ठोड़ी अंदर की ओर हो। इस अवस्था में रुक कर इस क्रिया को आठ या दस बार करें।

3. एक छड़ी को लेकर सिर के ऊपर दोनों हाथों को काफी खुला रखते हुए हॉरीजोन्टल पोजीशन में बैठ जायें। उसके बाद छड़ी सहित दोनों, सिर व कंधों को पीछे की ओर करते हुए धीरे से नीचे की ओर ले जायें और फिर ऊपर करें। इस क्रिया को करते हुए सिर या धड़ को सीधा रखें और इस क्रिया को आठ या दस बार करें।

आगे की ओर रीढ़ की अस्थि को ठीक करने के व्यायाम (Exercises Related to Lordosis)—
1. छाती के बल लेट जायें। दोनों हाथ पीठ पर रखें। फिर कूल्हों तथा कंधों की ओर रखें। पेट पर हाथों से ऊपर की ओर जोर डालें। पीठ के नीचे के भाग को ऊपर उठाने का प्रयास करें।

2. घुटनों को आगे की ओर मोड़ें ताकि कूल्हे पीछे मुड़ सकें। इस अवस्था में कमर सीधी रखें। घुटने पैरों की दशा में ही रहने चाहिए। फिर नीचे की ओर जायें जब तक पट (Thies) ठीक समानान्तर न हो जायें। फिर सीधे खड़े हो जायें, तब इस प्रक्रिया को दोहराएं।

3. आगे की ओर लम्बा डग (style) करें। पिछले पैर का घुटना ज़मीन पर लगायें। अगला पैर घुटने के आगे रहना चाहिए। दोनों हाथ अगले वाले घुटनों पर रखें। पिछली टांग के कूल्हे आगे की ओर ले जाकर कूल्हे को सीधा रखें। इस स्थिति में कुछ समय रुकें। यह क्रिया टांग बदलकर भी करें।

4. कर्सी पर पैर चौडे करके बैठ जायें और आगे की ओर झुकें। कंधे दोनों घुटनों के बीच तक ले जायें। हाथों को नीचे से कुर्सी की पीठ के नीचे तक ले जायें। कुछ देर इस स्थिति में रहें।

5. फर्श पर पीठ के बल लेट जायें। अपने कंधों की चौड़ाई के अनुसार अपने दोनों हाथों की हथेलियां फर्श पर रखें और फिर पैलविस को फर्श पर रखते हुए धड़ को ऊपर की ओर ले जायें। कुछ समय तक इस स्थिति में रहें।

6. घुटने फैलाकर बैठ जायें। दोनों पैर आपस में मिले होने चाहिए। उसके बाद आगे की ओर झुककर उंगलियों से पैरों के अंगूठों को पकड़ें। इसी अवस्था में कुछ देर फिर वापस आकर इसी प्रक्रिया को दोहराएं।

रीढ़ की अस्थि के एक ओर झुकाव को ठीक करने के व्यायाम (Exercises Related to Scoliosis)
1. छाती के बल लेट जायें। दायें बाजू को ऊपर करें फिर बायें बाजू को ऊपर करें। उसके बाद दायें बाजू को सिर के ऊपर बायीं ओर ले जायें। बायें हाथ से उसे दबाएं। बायें कूल्हे को थोड़ा-सा ऊपर की ओर ले जायें।

2. पैरों की आपसी दूरी के बराबर खड़े हो जायें। उसके पश्चात् बायीं एड़ी और कूल्हों को ऊपर उठायें। दायें बाजू को चाप के रूप में सिर के ऊपर फिर बायीं ओर ले जायें। बायें हाथ से दायें ओर वाली पसली को दबाएँ।

3. पैरों के बीच कुछ इंच की दूरी रखते हुए सीधे खड़े हो जायें। बायें हाथ की उंगलियों के पोरों को बायें कंधे पर रखें तथा शरीर के ऊपर के भाग को दायीं ओर झुकायें।
शारीरिक ढांचा और इसकी कुरूपताएं यदि रीढ़ की हड्डी का कर्व (Curve) ‘C’ के विपरीत हो। यदि ‘C’ की स्थिति के बीच न हो। यदि वक्र ‘C’ की स्थिति में हो तो दायें हाथ की उंगलियों के पोरों को दायें कंधे पर रखकर शरीर के ऊपरी भाग को दाईं ओर झुकाएं। ‘C’ वक्र की स्थिति के अनुसार इस क्रिया को कुछ समय दोहराएं।

PSEB 7th Class Physical Education Solutions Chapter 3 शारीरिक ढांचा और इसकी कुरूपताएं

Physical Education Guide for Class 7 PSEB शारीरिक ढांचा और इसकी कुरूपताएं Important Questions and Answers

बहुत छोटे उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
मनुष्य ने दो टांगों पर खड़े होने का ढांचा कितने समय में अपनाया ?
उत्तर-
लाखों सालों में।

प्रश्न 2.
हड्डियों के आगे-पीछे आवश्यकतानुसार क्या लगा होता है ?
उत्तर-
मांसपेशियां।

प्रश्न 3.
यदि मांसपेशि का परस्पर तालमेल और सन्तुलन ठीक न रहे तो क्या होता है ?
उत्तर-
शरीर झुक जाता है।

PSEB 7th Class Physical Education Solutions Chapter 3 शारीरिक ढांचा और इसकी कुरूपताएं

प्रश्न 4.
सीधा शरीर देखने में कैसे लगता है ?
उत्तर-सुन्दर।

प्रश्न 5. शारीरिक ढांचा कितनी आयु तक अच्छा या खराब हो सकता है ?
उत्तर-
20 वर्ष तक।

प्रश्न 6.
शरीर को ठीक रखने के लिए क्या करना चाहिए ?
उत्तर-
कसरत।

PSEB 7th Class Physical Education Solutions Chapter 3 शारीरिक ढांचा और इसकी कुरूपताएं

प्रश्न 7.
कैसे पांव शरीर के भार को अच्छी प्रकार नहीं सम्भाल सकते ?
उत्तर-
चपटे पांव।

छोटे उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
शारीरिक ढांचे की परिभाषा लिखो।
उत्तर-
शारीरिक ढांचे की परिभाषा के बारे में सभी विद्वानों की एक राय नहीं है। यदि शरीर का पिंजर देखने में सुन्दर लगे और इसके ऊपर के अंगों का भार निचले अंगों पर ठीक सीधे पड़ता हो तो उसे सन्तुलित अथवा अच्छा पोस्चर कहते हैं। इस तरह के शारीरिक ढांचे की अच्छी या गन्दी स्थिति को उसके काम द्वारा ही बनाया जा सकता है।

PSEB 7th Class Physical Education Solutions Chapter 3 शारीरिक ढांचा और इसकी कुरूपताएं

प्रश्न 2.
छाती की हड्डियों में कौन-कौन सी कुरूपताएं आ जाती हैं ?
उत्तर-

  1. दबी हुई छाती (Depressed Chest)
  2. कबूतर जैसी छाती (Pigeon Type Chest)
  3. चपटी छाती (Flat Chest)

PSEB 7th Class Agriculture Solutions Chapter 1 हरित क्रांति

Punjab State Board PSEB 7th Class Agriculture Book Solutions Chapter 1 हरित क्रांति Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 7 Agriculture Chapter 1 हरित क्रांति

PSEB 7th Class Agriculture Guide हरित क्रांति Textbook Questions and Answers

(क) एक-दो शब्दों में उत्तर दें:

प्रश्न 1.
हरित क्रांति किस दशक में आई ?
उत्तर-
1960 के दशक दौरान।

प्रश्न 2.
हरित क्रांति के समय गेहूँ की फसल के कद में क्या परिवर्तन आया ?
उत्तर-
कद बौना हो गया।

प्रश्न 3.
किसानों को उन्नत बीज प्रदान करने के लिए स्थापित की गई संस्थाओं के नाम बताओ।
उत्तर-
पंजाब राज बीज निगम, राष्ट्रीय बीज निगम।।

PSEB 7th Class Agriculture Solutions Chapter 1 हरित क्रांति

प्रश्न 4.
हरित क्रांति के दौरान किस प्रकार के उर्वरकों का प्रयोग होने लगा ?
उत्तर-
रासायनिक उर्वरकों का।

प्रश्न 5.
हरित क्रांति के दौरान कौन-कौन सी फसलों की पैदावार में वृद्धि हुई ?
उत्तर-
गेहूँ तथा धान की पैदावार में।

प्रश्न 6.
हरित क्रांति में किस कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने प्रमुख योगदान दिया ?
उत्तर-
पंजाब कृषि विश्वविद्यालय।

PSEB 7th Class Agriculture Solutions Chapter 1 हरित क्रांति

प्रश्न 7.
क्या धान पंजाब की परंपरागत फसल है ?
उत्तर-
जी नहीं।

प्रश्न 8.
हरित क्रांति कौन-कौन सी फसलों तक मुख्य रूप से सीमित रही ?
उत्तर-
गेहूँ, धान।

प्रश्न 9.
हरित क्रांति के प्रभावस्वरूप खेती विविधता घटी है या बढ़ी है ?
उत्तर-
कम हुई है।

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प्रश्न 10.
केंद्रीय अन्न भंडार में कौन-सा राज्य सबसे अधिक योगदान देता है ?
उत्तर-
पंजाब।

(ख) एक-दो वाक्यों में उत्तर दें:

प्रश्न 1.
हरित क्रांति किन कारणों से संभव हो सकी ?’
उत्तर-
समुचित मंडीकरण, उन्नत किस्मों के बीज, सिंचाई सुविधाएं, रासायनिक उर्वरक, मेहनती किसान तथा अनुसंधान एवं प्रशिक्षण सुविधाओं में हुई वृद्धि के कारण हरित क्रांति संभव हो सकी।

प्रश्न 2.
हरित क्रांति के दौरान वैज्ञानिकों ने किस तरह के बीज विकसित किए ?
उत्तर-
वैज्ञानिकों ने विश्व स्तरीय शोधकर्ताओं के साथ मिलकर नए उन्नत बीज विकसित किए।

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प्रश्न 3.
हरित क्रांति के समय पंजाब की खेती के लिए सिंचाई सुविधाओं में क्या परिवर्तन आए ?
उत्तर-
हरित क्रांति के समय पंजाब में नहरी एवं ट्यूबवैल सिंचाई की सुविधाओं में वृद्धि हुई।

प्रश्न 4.
सरकार द्वारा अनाज के मंडीकरण के लिए क्या उपाय किए गए ?
उत्तर-
सरकार द्वारा बिक्री केंद्र तथा नियमित मंडियों का प्रबंध किया गया। केंद्रीय तथा राज्य गोदाम निगमों की स्थापना तथा अनाज के कम-से-कम समर्थन मूल्य की व्यवस्था की गई है।

प्रश्न 5.
किसान को कैसे ऋण अदा करने मुश्किल होते हैं ?
उत्तर-
कृषि लागत बढ़ने के कारण, किसान कई बार गैर-सरकारी स्रोतों से महंगे ब्याज पर ऋण को वापिस अदा नहीं कर पाते हैं। इसलिए ऐसे ऋण किसानों को अदा करने मुश्किल लगते हैं।

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प्रश्न 6.
छोटे किसानों द्वारा कम पूंजी से शरू होने वाले व्यवसाय कौन-से हैं ?
उत्तर-
कम पूंजी से शुरू होने वाले व्यवसाय हैं-मशरूम की कृषि, मधुमक्खी पालन, बीज उत्पादन, फलों, सब्जियों की कृषि आदि।

प्रश्न 7.
वर्तमान समय में किसानों को कौन-कौन सी फसलों के लिए खेती अधीन क्षेत्र बढ़ाने की आवश्यकता है ?
उत्तर-
किसानों को गैर-अनाजी फसलों; जैसे-कपास, मक्की, दालें, तेल बीज, फल, सब्जियों आदि के अधीन क्षेत्रफल बढ़ाने की आवश्यकता है।

प्रश्न 8.
पंजाब के अनाज की केंद्रीय भंडार में निरंतर जरूरत क्यों कम हो रही
उत्तर-
अनाज की अधिक पैदावार के कारण केंद्रीय अनाज भंडार में पहले ही बहुत अनाज के भंडार लगे हुए हैं। इसलिए और अनाज की आवश्यकता कम हो रही है।

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प्रश्न 9.
गेहूँ और धान के मंडीकरण के लिए कौन-सी नीतियाँ बनाई गईं ?
उत्तर-
इसके लिए बिक्री केंद्र तथा नियमित मंडियां बनाई गई हैं। केंद्रीय तथा राज्य गोदाम निगम बनाए गए तथा-फसलों के कम-से-कम समर्थन मूल्य की व्यवस्था की गई है। गेहूं तथा धान के मंडीकरण को यकीनी बनाया गया।

प्रश्न 10.
पंजाब में खेती की मानसून पर निर्भरता कैसे कम हुई ?
उत्तर-
हरित क्रांति के समय पंजाब में नहरी तथा ट्यूबवैल सिंचाई की सुविधाओं में वृद्धि हुई जिससे खेती की मानसून पर निर्भरता कम हो गई।

(ग) पाँच-छ: वाक्यों में उत्तर दें:

प्रश्न 1.
हरित क्रांति से आप क्या समझते हो ?
उत्तर-
देश आज़ाद होने के बाद लगभग 1960 के दशक तक देश में अनाज की कमी रहती थी तथा अनाज को अन्य देशों से आयात करना पड़ता था परंतु 1960 के दशक में गेहूँ तथा धान की पैदावार इतनी बढ़ गई कि अनाज को संभालना मुश्किल हो गया। खेती अनाज उत्पादन में हुई वृद्धि को हरित क्रांति का नाम दिया गया। हरित क्रांति के समय पंजाब देश का अग्रणी राज्य रहा। हरित क्रांति का पंजाब की खुशहाली में बहुत योगदान रहा।

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प्रश्न 2.
हरित क्रांति के दौरान हुए नए बीजे की खोज के बारे में बताएं।
उत्तर-
हरित क्रांति के दौरान पंजाब कृषि विश्वविद्यालय लुधियाना के वैज्ञानिकों ने विश्वस्तरीय शोधकर्ताओं से मिल कर नई प्रकार के उन्नत बीज विकसित किए। इन बीजों में गेहूँ, मक्की, बाजरा, धान आदि मुख्य हैं। इन उन्नत किस्मों के कारण प्रति एकड़ पैदावार में वृद्धि हुई। गेहूँ की नई उन्नत किस्मों का कद बौना तथा उत्पादन बढ़ गया। धान पंजाब की पारंपरिक फसल नहीं थी परंतु इसकी उन्नत किस्में होने के कारण इसकी कृषि अधिक क्षेत्रफल पर होने लगी।

प्रश्न 3.
हरित क्रांति के कारण पंजाब में किस प्रकार के परिवर्तन आए ?
उत्तर-
हरित क्रांति के कारण पंजाब में अनाज उत्पादन एकाएक बढ़ गया जिससे पंजाब में आर्थिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक स्तर पर परिवर्तन आए। ये परिवर्तन अच्छे तथा बुरे दोनों प्रकार के थे।

  1. किसानों में आर्थिक पक्ष से खुशहाली आई तथा उनका जीवन स्तर भी ऊंचा हुआ।
  2. अधिक भूमि वाले किसानों को छोटे किसानों से अधिक आर्थिक लाभ हुआ जिस कारण सामाजिक तथा आर्थिक भेद बढ़ गए।
  3. कृषि आधारित उद्योगों में उन्नति हुई तथा कृषि मज़दूरों पर बुरा प्रभाव पड़ा।
  4. पश्चिमी सभ्याचार के अच्छे-बुरे प्रभाव पंजाब में महसूस किए जाने लगे।
  5. कृषि विभिन्नता में कमी आई।
  6. कृषि पैदावार में कमी हुई है तथा लागत बढ़ी है। इससे किसानों की शुद्ध आय में कमी हुई है।

प्रश्न 4.
कृषि आधारित व्यवसाय क्या होते हैं तथा यह किसानों के लिए अपनाने क्यों आवश्यक हैं ?
उत्तर-
आज के समय में कृषि पैदावार की दर में कमी आ गई है तथा कृषि लागत बढ़ गई है जिससे किसानों की शुद्ध आय में कमी आई है। कई बार किसान गैर-सरकारी स्रोतों से ऋण ले लेते हैं जोकि महंगे ब्याज पर होते हैं तथा ऐसे ऋण किसान को अदा करने मुश्किल लगते हैं।

छोटे तथा मध्यम किसान की कम हो रही आय को रोकने के लिए कृषि आधारित व्यवसाय अपनाने चाहिएं। ये व्यवसाय कम पूंजी से शुरू किए जा सकते हैं; जैसे-मशरूम की कृषि, मधुमक्खी पालन, बीज उत्पादन, सब्जियों की काश्त आदि को आसानी से अपनाया जा सकता है परंतु इन व्यवसायों से अच्छी आय हो जाती है।

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प्रश्न 5.
पंजाब में सदाबहार क्रांति लाने के लिए क्या कुछ करना चाहिए ? .
उत्तर-
पंजाब ने हरित क्रांति के दौरान देश में अनाज भंडार में भरपूर योगदान डाला। किसानों ने गेहूँ तथा धान के फ़सली चक्र में पड़ कर अनाज उत्पादन तो बहुत बढ़ा दिया परंतु इससे पंजाब की भूमि का स्वास्थ्य खराब होता जा रहा है तथा भूमिगत जल का स्तर भी और नीचे चला गया है। अब समय की मांग है कि गैर-अनाजी फसलों की काश्त की तरफ ध्यान दिया जाए। जैसे कि दालें, तेल बीज, मक्की, कपास, फल, सब्जियां आदि फसलों की कृषि के अधीन क्षेत्रफल बढ़ाना चाहिए। कई अन्य कृषि आधारित व्यवसाय अपनाने की भी आवश्यकता है। इसलिए राज्य को खुशहाल करने के लिए सदाबहार क्रांति लाने की आवश्यकता है। कृषि विभिन्नता लाने की आवश्यकता है। कम पूंजी वाले कृषि आधारित व्यवसाय अपनाने की भी आवश्यकता है।

Agriculture Guide for Class 7 PSEB हरित क्रांति Important Questions and Answers

बहुत छोटे उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
1960 दशक के दौरान कृषि क्षेत्र में अन्न उत्पादन में हुई वृद्धि को क्या नाम दिया गया ?
उत्तर-
हरित क्रांति।

प्रश्न 2.
वर्ष 1965-66 में पंजाब का कृषि उत्पादन कितना था ?
उत्तर-
34 लाख टन।

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प्रश्न 3.
वर्ष 1971-72 में पंजाब का कृषि उत्पादन कितना हो गया ?
उत्तर-
119 लाख टन।।

प्रश्न 4.
पंजाब में अनाज उत्पादन बढ़ने का क्या कारण था ?
उत्तर-
गेहूँ, धान के उत्पादन में वृद्धि।

प्रश्न 5.
पंजाब में हरित क्रांति के कोई दो कारण बताओ।
उत्तर-
उपयुक्त मंडीकरण, सुधरी किस्मों के बीज।

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प्रश्न 6.
वर्ष 1967-68 में रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग कितना था ?
उत्तर-
10 लाख टन।

प्रश्न 7.
पंजाब कृषि विश्वविद्यालय लुधियाना की स्थापना कब हुई ?
उत्तर-
वर्ष 1962 में।

प्रश्न 8.
गैर-अनाजी फसलों का उदाहरण दें।
उत्तर-
कपास, दालें, तेल बीज फसलें आदि।

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छोटे उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
हरित क्रांति के दौरान अनाज उत्पादन कितना बढ़ गया ?
उत्तर-
वर्ष 1965-66 में 34 लाख टन से 1971-72 में 119 लाख टन हो गया जो कि पांच वर्षों में तीन गुणा बढ़ गया।

प्रश्न 2.
वर्ष 1967-68 में रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग कितना था तथा बढ़ कर कितना हो गया ?
उत्तर-
वर्ष 1967-68 में रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग 10 लाख टन था जोकि 20वीं शताब्दी के अंत तक 13 गुणा बढ़ गया।

प्रश्न 3.
हरित क्रांति के कारण सामाजिक तथा आर्थिक भेद क्यों बढ़ गया ?
उत्तर-
बड़े किसानों को हरित क्रांति के कारण अधिक लाभ हुआ तथा छोटे तथा मध्यम किसानों को कम लाभ हुआ जिससे सामाजिक तथा आर्थिक भेद बढ़ गया।

PSEB 7th Class Agriculture Solutions Chapter 1 हरित क्रांति

बड़े उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
हरित क्रांति के संबंध में सिंचाई सुविधाओं तथा उर्वरकों के बारे में बताओ।
उत्तर-
सिंचाई सुविधाएं-हरित क्रांति के दौरान कृषि पैदावार में सिंचाई की एक मुख्य भूमिका रही। इस समय पंजाब में नहरों तथा ट्यूबवैल सिंचाई की सुविधा में वृद्धि हुई। इस तरह कृषि की मानसून पर निर्भरता कम हो गई तथा कृषि के अधीन क्षेत्रफल में वृद्धि हुई।

उर्वरक-सिंचाई सुविधाओं में वृद्धि के कारण, कृषि के अधीन क्षेत्रफल बढ़ गया तथा अधिक पैदावार वाले बीज विकसित होने के कारण रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग बढ़ गया। जहां 1967-68 में रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग 10 लाख टन था वो 20वीं शताब्दी के अन्त तक 13 गुणा हो गया। रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग से भूमि में नाइट्रोजन तथा फास्फोरस की कमी को पूरा किया गया। इस प्रकार गेहूँ तथा अन्य फसलों की पैदावार में वृद्धि हुई।

प्रश्न 2.
हरित क्रांति के कारणों की चित्र द्वारा दर्शाएँ ।
उत्तर-
PSEB 7th Class Agriculture Solutions Chapter 1 हरित क्रांति 1

PSEB 7th Class Agriculture Solutions Chapter 1 हरित क्रांति

हरित क्रांति PSEB 7th Class Agriculture Notes

  • पंजाब की आर्थिक समृद्धि में हरित क्रांति का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा।
  • हरित क्रांति के समय पंजाब में नहरों द्वारा तथा ट्यूबवैल द्वारा सिंचाई की सुविधा में वृद्धि हुई।
  • 1960 के दशक में कृषि क्षेत्र में अनाज उत्पादन की वृद्धि को हरित क्रांति का नाम दिया गया है।
  • पंजाब में वर्ष 1965-66 में अनाज उत्पादन 34 लाख टन था जो बढ़कर वर्ष 1971-72 में 119 लाख टन हो गया।
  • उत्पादन बढ़ने का मुख्य कारण गेहूं तथा धान के उत्पादन का अधिक होना था।
  • पंजाब कृषि विश्वविद्यालय, लुधियाना के वैज्ञानिकों ने विश्व स्तरीय शोधकर्ताओं के साथ मिल कर कई उन्नत किस्म के बीज विकसित किए हैं।
  • उन्नत बीजों के कारण प्रति हेक्टेयर उत्पादन में वृद्धि हुई है।
  • धान की उन्नत किस्मों के कारण धान की कृषि के अधीन क्षेत्रफल बढ़ा है।
  • कृषि पैदावार में सिंचाई का महत्त्वपूर्ण योगदान है।
  • वर्ष 1967-68 में रासायनिक खादों का प्रयोग 10 लाख टन था जोकि बढ़ कर बीसवीं शताब्दी के अन्त तक 13 गुणा हो गया था।
  • रासायनिक उर्वरकों (खादों) ने पंजाब की भूमि में नाइट्रोजन तथा फास्फोरस की कमी को पूरा करने में बहुत योगदान दिया।
  • हरित क्रांति में पंजाब के किसानों का तथा वैज्ञानिकों का भरपूर योगदान रहा।
  • फसलों को कीटों तथा खरपतवार से बचाव के लिए रासायनिक विधियों को विकसित किया गया।
  • पंजाब में आवश्यकता से अधिक अनाज पैदा होने के कारण, केन्द्रीय तथा राज्य गोदाम निगम स्थापित किए गए।
  • सरकार द्वारा गेहूँ तथा धान की उपज के मण्डीकरण को यकीनी बनाया गया।
  • पंजाब कृषि विश्वविद्यालय तथा कृषि विभाग द्वारा किसानों को कृषि की विकसित तकनीकों का प्रशिक्षण देने का प्रबंध किया जाता है।
  • पंजाब राज बीज निगम, राष्ट्रीय बीज निगम तथा अन्य बीज संस्थानों की स्थापना की गई ताकि किसानों को उन्नत बीज उपलब्ध करवाया जा सके।
  • पंजाब में धान तथा गेहूँ की अधिक कृषि के कारण भूमि का स्वास्थ्य तथा भूमि के नीचे पानी का स्तर नीचे जा रहा है।
  • पंजाब में गैर-अनाजी फसलों; जैसे-दालें, तेल बीज, फल, सब्जियां, कपास आदि की कृषि को बढ़ाने के प्रयत्न किए जा रहे हैं।
  • नई तकनीकों, जैसे- बायोटैक्नॉलोजी, नैनोटेक्नॉलोजी, टिशु कल्चर आदि की नई किस्में विकसित करने के लिए प्रयोग किया जा रहा है।
  • कम पूंजी से कृषि आधारित व्यवसाय, जैसे-मशरूम की कृषि, बीज-उत्पादन, ” सब्जियों की खेती आदि को आसानी से शुरू किया जा सकता है।

PSEB 7th Class Home Science Practical बच्चों के बूट

Punjab State Board PSEB 7th Class Home Science Book Solutions Practical बच्चों के बूट Notes.

PSEB 7th Class Home Science Practical बच्चों के बूट

बूट बनाना
एक 10 नम्बर की सलाई पर 40 कुंडे डालते हैं। एक कुंडा सीधा तथा एक उल्टा डालकर सारी सलाई बनाते हैं। इसी तरह 3 या 5 सलाइयाँ और बुन लेते हैं। आखिरी सलाई में एक कुंडा बढ़ा लेते हैं। (41)
बुनाई-

  • 3 सीधे, 2 उल्टे,
  • 2 सीधे, 2 उल्टे,
  • से लेकर अन्त तक इसी तरह बुनते हैं।

इस तरह 25 सलाइयां और बुनते हैं।
छिद्रों वाली पंक्ति-1 सीधा, धागा आगे, 1 सीधा जोड़ा, इसी तरह पूरी सलाई बुनते हैं, आखिरी 2 कुंडे सीधे बुनते हैं।
PSEB 7th Class Home Science Practical बच्चों के बूट 1
चित्र 7.II.1. बूट
बुनाई की 3 और सलाइयां चढ़ाते हैं। ऊन तोड़ देते हैं। पैर के ऊपर का भाग बनाने के लिए कुंडों को इस तरह बाँटते हैं- पहले तथा आखिरी 14 कुंडे सलाई से उतार कर बक्सूए या फालतू सलाइयों पर चढ़ा लेते हैं। सीधा किनारा सामने रखकर ऊन को बीच के कुंडों से जोड़ते हैं तथा इन 13 कुंडों पर 28 सलाइयाँ बुनाई की डालते हैं। ऊन तोड़ देते हैं। सीधा किनारा सामने रखते हैं। पहली फालतू सलाई के 14 कुंडे बुनते हैं, फिर पैर के ऊपर के भाग की ओर 14 कुंडे उठाते हैं। पैर के ऊपर वाले भाग में 13 कुंडे बुनते हैं, दूसरी ओर से फिर 14 कुंडे उठाते हैं तथा फिर दूसरी सलाई के 14 कुंडे बुनते हैं । (कुल—69)

PSEB 7th Class Home Science Practical बच्चों के बूट

11 सलाइयाँ सीधी बुनते हैं।
एडी तथा पंजा की गोलार्ड बनाना
पहली सलाई-1 सीधा, 1 जोड़ा, 26 सीधे, 1 जोड़ा, 5 सीधे, 1 जोड़ा, 26 सीधे, 1 जोड़ा, 2 सीधे।
दूसरी सिलाई-1 सीधा, 1 जोड़ा, 26 सीधे, (अगली 12 सलाइयों में हर सलाई पर इस जगह पर 2 कुंडे घटाते जाते हैं) जैसे 25 फिर (23-21) 1 जोड़ा, 5 सीधे, 1 जोड़ा, 23 सीधे (यहाँ भी हर सलाई पर 2-2 कुंडे घटाते जाते हैं। 1 जोड़ा, 1 सीधा।) अन्तिम 2 सलाइयों को 6 बार और बुनते हैं, प्रत्येक बार ऊपर बनाए स्थान पर 2-2 कुंडे घटाते जाते हैं ताकि अन्त में कुल 37 कुंडे रह जाएं। सभी कुंडे बंद कर देते हैं।
दूसरा बूट भी इसी तरह बनाते हैं।

पूरा करना-किसी मेज़ पर एक कंबल तथा उसके ऊपर चादर बिछाकर बूटों को उल्टा करके रखते हैं तथा ऊपर हल्की गर्म प्रैस करते हैं। टाँग और पैर के नीचे वाले भाग की सलाई करते हैं। तखने के पास जो छिद्र बनाए थे उनमें रिबन डाल देते हैं।