PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 3 राजनीतिक संस्कृति

Punjab State Board PSEB 12th Class Political Science Book Solutions Chapter 3 राजनीतिक संस्कृति Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Political Science Chapter 3 राजनीतिक संस्कृति

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
राजनीतिक संस्कृति की परिभाषा कीजिए। राजनीतिक संस्कृति की विशेषताओं और तत्त्वों का वर्णन करें।
(Define Political Culture. Discuss the characteristics and components of Political Culture.)
उत्तर-
राजनीतिक संस्कृति आधुनिक राजनीति विज्ञान का एक नवीन महत्त्वपूर्ण दृष्टिकोण है। राजनीतिक संस्कृति का दृष्टिकोण मनोविज्ञान और समाज शास्त्र को एकीकृत करने का प्रयास है ताकि आधुनिक मनोविज्ञान की क्रान्तिकारी खोजों तथा समाजशास्त्रों में आधुनिक प्रगति दोनों को गतिशील राजनीतिक विश्लेषण के लिए प्रयुक्त किया जा सके जिससे जन-समाजों के दृष्टिकोण को अपनाने में समग्रता हो। वास्तव में, राजनीतिक संस्कृति एक आधुनिक शब्दावली है जो इन अवधारणाओं और राष्ट्रीय राजनीति मनोविज्ञान तथा लोगों के आधारभूत मूल्यों से सम्बन्धित ज्ञान को अधिक व्यवस्थित रूप में रखने का प्रयास करती है। किसी समाज की राजनीतिक संस्कृति को परिभाषित करने में लोगों के सभी राजनीतिक भावों को लिया जाना आवश्यक नहीं है। राजनीतिक संस्कृति में केवल समीक्षात्मक किन्तु व्यापक रूप से प्रचलित विश्वासों और भावों को ही लिया जाता है जो अनुस्थापन के उन विशिष्ट रूपों का निर्माण कर सकें जो कि राजनीतिक प्रक्रिया को व्यवस्था और स्वरूप प्रदान करते हैं।

वास्तव में राजनीतिक संस्कृति समकालीन राजनीतिक विश्लेषण में एक महत्त्वपूर्ण विकास की द्योतक है क्योंकि यह उन प्रयत्नों को प्रस्तुत करती है जिनके द्वारा हम व्यक्तिगत मनोविज्ञान के लोगों को खोए बिना सम्पूर्ण राजनीतिक संस्कृति की अवधारणा सामाजिक और आर्थिक कारकों तथा राजनीतिक कार्यकलापों के बीच की कड़ियों की जांच करने का एक उपयुक्त आधार प्रस्तुत करती है। आलमण्ड और पावेल (Almond and Powell) ने राजनीतिक पद्धतियों की विविधतापूर्ण तुलना के लिए समाजशास्त्र और मानवशास्त्र के क्षेत्रों से ली गई धारणाओं को अनुकूल बनाया है। अतीत में राजनीतिक पद्धतियों की तुलना के लिए किए गए प्रयत्न कानूनी संस्थागत पहलुओं तक ही सीमित थे जिसको उसने तुलना के लिए लाभदायक नहीं माना। इसलिए आलमण्ड (Almond) राजनीतिक पद्धतियों का वर्गीकरण उनकी संरचनाओं और संस्कृति के आधार पर करता है।

राजनीतिक संस्कृति (Political Culture) शब्द का सबसे पहले प्रयोग गेबरील आलमण्ड (Gabriel Almond) ने 1956 में अपने एक लेख-Comparative Political System में किया था। यह लेख ‘जनरल ऑफ पोलिटिकल साईंस’ में छपा था। इस लेख में आलमण्ड ने लिखा-प्रत्येक राजनीतिक व्यवस्था में राजनीतिक क्रियाओं की एक विशिष्ट शैली अन्तर्निहित है। मैंने इसे ‘राजनीतिक संस्कृति’ नाम देना ही उपयुक्त समझा। आलमण्ड के पश्चात् पाई (Pye), सैम्युल बीयर (Samuel Beer), सिडनी वर्बा (Sidney Verba), डैनिश कावनाग (Dennis Kavanagh) इत्यादि अन्य अमेरिकन विद्वानों ने भी इस धारणा की विस्तृत व्याख्या की है।

राजनीतिक संस्कृति का अर्थ (Meaning of Political Culture)-राजनीतिक संस्कृति का अर्थ जानने से पहले संस्कृति’ शब्द का अर्थ जानना अति आवश्यक है। किसी देश के साहित्य और संगीत की, परम्पराओं और आस्थाओं की, कला और कौशल की मिली-जुली निरन्तर बहने वाली धारा को उस देश की संस्कृति कहते हैं। टेलर (Tayler) के अनुसार, “संस्कृति में, समाज के एक सदस्य होने के नाते, मनुष्य द्वारा अर्जित ज्ञान, विश्वास, कला, आचार, कानून, प्रथाएं तथा दूसरी क्षमताएं शामिल होती हैं।” ग्राहम वालास (Graham Wallas) के मतानुसार, ‘संस्कृति विचारों, मूल्यों और उद्देश्यों का समूह है। यह सामाजिक उत्तराधिकार है जो प्रशिक्षण द्वारा हमें पिछली पीढ़ियों से प्राप्त हुआ है। यह जीव सम्बन्धी उत्तराधिकार से पृथक् है जो कीटाणुओं द्वारा स्वयं हमारे पास आया है।”

जिस प्रकार प्रत्येक देश की एक संस्कृति होती है, उसी प्रकार प्रत्येक देश की एक राजनीतिक संस्कृति भी होती है। किसी देश के राजनीतिक चरित्र और आदतों की, राजनीतिक सूझ-बूझ और व्यवहार की, राजनीतिक संस्थाओं और उनकी कार्य पद्धति की मिली-जुली धारा को उस समाज की राजनीतिक संस्कृति कहते हैं। राजनीतिक संस्कृति की अवधारणा के जन्मदाता गैब्रील आलमण्ड ने राजनीतिक संस्कृति की व्याख्या इस प्रकार की है-“राजनीतिक संस्कृति का विचार इस ओर संकेत करता है कि किसी भी समाज की परम्पराएं, सार्वजनिक संस्थाओं की भावनाएं, नागरिकों के सामूहिक तर्क शक्ति और भावावेश तथा उसके नेताओं की कार्य शैली केवल ऐतिहासिक अनुभव की बेतरतीव उपज मात्र नहीं है बल्कि वे सब आपस में एक बड़ी सार्थक इकाई के रूप में सुगठित की जा सकती हैं और उनके द्वारा सम्बन्धों का ताना बना बुना जा सकता है जो सार्थक रूप से समझा जा सके। राजनीतिक संस्कृति व्यक्ति को उसके राजनीतिक आचरण का नियन्त्रणकारी आदेश देती है तथा उसकी सामूहिकता को इस प्रकार के मूल्यों एवं तर्कों की एक ऐसी व्यवस्थित संरचना प्रदान करती है जो संस्थाओं और संगठनों के कार्य निष्पादन में तालमेल स्थापित करती है।”

राजनीतिक संस्कृति की परिभाषाएं (Definitions of Political Culture)-राजनीतिक संस्कृति की अवधारणा की परिभाषा कई लेखकों के द्वारा दी गई
1. एलन आर० बाल (Allan R. Bal) के शब्दों में, “राजनीतिक संस्कृति उन अभिवृत्तियों और विश्वासों और भावनाओं और समाज के मूल्यों से मिलकर बनती है जिनका सम्बन्ध राजनीतिक पद्धति और राजनीतिक प्रश्नों से होता है।” (“A Political Culture is composed of attitudes, beliefs, emotions and values of society and that relates to political system and to political issues.”)

2. आलमण्ड और पावेल (Almond and Powell) ने अपनी पुस्तक “Comparative Politics : A Development Approach” में राजनीतिक संस्कृति की परिभाषा करते हुए लिखा है, “राजनीतिक संस्कृति किसी भी राजनीतिक प्रणाली के सदस्यों में राजनीति के प्रति पाए जाने वाले अभिमुखन और अभिवृत्तियों का स्वरूप है।” (“Political Culture is a pattern of individual attitudes and orientations towards politics among members of a political system.”)

3. राय मैक्रीडिस (Roy Mcridis) का विचार है कि, “सामान्य लक्ष्य तथा सामान्य स्वीकृत नियम ही राजनीतिक संस्कृति का अर्थ है।” (“Political Culture means commonly shared goals and commonly accepted rules.”)

4. फाइनर (Finer) का कथन है, “राष्ट्र की राजनीतिक संस्कृति मुख्यतः शासकों, राजनीतिक संस्थाओं तथा प्रक्रियाओं की वैधता से सम्बन्धित है।” (“Nation’s Political Culture seems to concentrate largely on the legitimacy of rules and political institution and procedures.”).

5. ऐरिक रो (Eric Rowe) के शब्दों में, “राजनीतिक संस्कृति व्यक्तिगत मूल्यों, विश्वासों तथा भावनात्मक व्यवहारों की आकृति है।” (“A Political Culture is a pattern of individual values, beliefs and emotional attitudes.”)

6. टालकॉब पारसन (Talcob Parsons) के अनुसार, “राजनीतिक संस्कृति का सम्बन्ध राजनीतिक उद्देश्यों के प्रति अनुकूलन है।” (“Political Culture is connected with orientations towards political object.”)

लूसियन पाई ने भी राजनीतिक संस्कृति की व्याख्या और परिभाषा अपनी पुस्तक, “Political Culture and Political Development” में प्रस्तुत की है। उसने लिखा है कि यह हाल ही में उत्पन्न हुआ शब्द है जो इन पुरानी धारणाओं, राजनीतिक विचारधाराओं, राष्ट्रीय नैतिकता और भावना, राष्ट्रीय राजनीति मनोविज्ञान और किसी जन-समूह के आधारभूत मूल्य से सम्बन्धित समझदारी को अधिक स्पष्ट और क्रमबद्ध बनाने का प्रयत्न करता है। इसका अर्थ यह है कि राजनीतिक संस्कृति व्यक्ति के लिए प्रभावशाली राजनीतिक व्यवहार की ओर मार्ग-निर्देशन करती है और समाज के लिए उन मूल्यों तथा विवेकपूर्ण विचारों की व्यवस्था करती है जोकि संस्थाओं और संगठनों के कार्यकलापों में तालमेल पैदा करता है।

इन सभी परिभाषाओं के आधार पर यह कहा जा सकता है कि राजनीतिक संस्कृति लोगों, राजनीतिक विश्वासों, वृत्तियों मनोवृत्तियों, परम्पराओं आदि का समूह है जो उनकी राजनीतिक गतिविधियों को प्रभावित करती है। राजनीतिक संस्कृति से किसी देश की राजनीतिक व्यवस्था के बारे में बहुत कुछ पता चल जाता है।

राजनीतिक संस्कृति की विशेषताएं
(CHARACTERISTICS OF POLITICAL CULTURE)
अथवा
राजनीतिक संस्कृति की प्रकृति (NATURE OF POLITICAL CULTURE)
अथवा
राजनीतिक संस्कृति के महत्त्वपूर्ण पहलू (SOME IMPORTANT ASPECTS OF POLITICAL CULTURE)

1. राजनीतिक संस्कृति एक व्यापक धारणा है (The Political Culture is comprehensive Concept)राजनीतिक संस्कृति एक व्यापक धारणा है जो लोगों की राजनीतिक प्रणाली के प्रति अभिवृत्तियों, विश्वासों, मूल्यों, मनोभावनाओं आदि से बनती है। जिस प्रकार किसी देश के साहित्य और संगीत की परम्पराओं और आस्थाओं की, कला और कौशल की मिली-जुली निरन्तर बहने वाली धारा उस देश की संस्कृति है, उसी तरह, किसी देश के राजनीतिक चरित्र और आदतों की, राजनीतिक सूझबूझ और व्यवहार की, राजनीतिक संस्थाओं और उनकी कार्य पद्धति की मिलीजुली धारा को उस समाज की राजनीतिक संस्कृति कहते हैं।

2. राजनीतिक संस्कृति सामान्य संस्कृति का भाग है (Political Culture is a part of General Culture)प्रत्येक राजनीतिक व्यवस्था की राजनीतिक संस्कृति मूल रूप से उस समाज की संस्कृति से ही प्रभावित होती है। प्रत्येक व्यवस्था की राजनीतिक संस्कृति अपने मुख्य तत्त्व, अपने आदर्श, अपने मूल्य उस व्यवस्था की सामान्य संस्कृति से ही ग्रहण करती है। डेनिश कावनाग के अनुसार राजनीतिक संस्कृति समाज की विशाल संस्कृति का ही एक भाग है। डॉ० हरिश्चन्द्र शर्मा के शब्दों में, “राजनीतिक संस्कृति अधिक सामान्य संस्कृति का एक अभिन्न पहलू है। एक संस्कृति के आधारभूत विश्वास, मूल्य और आदर्श सामान्यतया राजनीतिक संस्कृति के निर्माण में मुख्य भूमिका निभाते हैं। एक व्यक्ति के राजनीतिक विश्वास उसके अन्य विश्वासों का ही एक अंग है। सामान्य संस्कृति के मूल्यों और विश्वासों से राजनीतिक संस्कृति अप्रभावित नहीं रह सकती।”

3. विभिन्न राजनीतिक प्रणालियों की विभिन्न राजनीतिक संस्कृति (Different Political System have different Political Cultures)–राजनीतिक संस्कृति के विद्वानों का यह मत है कि विभिन्न राजनीतिक प्रणालियों की राजनीतिक संस्कृति भी विभिन्न होती है। एंग्लो-अमेरिका राजनीतिक प्रणालियों (इंग्लैण्ड और अमेरिका) की राजनीतिक संस्कृति एक जैसी है। महाद्वीपीय यूरोपीय राजनीतिक प्रणालियों (फ्रांस, इटली, नार्वे आदि) की राजनीतिक संस्कृति दूसरी प्रकार की है और औद्योगीकरण से पूर्व की या आंशिक रूप से औद्योगीकृत राजनीतिक प्रणालियां (पाकिस्तान, सीरिया, म्यांमार आदि) की तीसरी प्रकार की हैं जबकि सर्वाधिकारवादी राजनीतिक प्रणालियां (उत्तरी कोरिया, चीन आदि) की चौथी प्रकार की हैं। राजनीतिक संस्कृतियों के अलग-अलग होने के कारण ही एक ही प्रकार की राजनीतिक प्रणाली विभिन्न राज्यों में विभिन्न प्रकार से कार्य करती है। संसदीय शासन प्रणाली इंग्लैण्ड में बहुत सफल है जबकि तीसरी दुनिया (Third World) के देशों में सफल नहीं रही। भारत में लोकतन्त्र प्रणाली सफल है जबकि पाकिस्तान में बिल्कुल असफल रही है।

4. राजनीतिक संस्कृति का आधार (Basis of Political Culture)–लुसियन पाई का मत है कि राजनीतिक संस्कृति दो बातों पर आधारित होती है-

  • राजनीतिक व्यवस्था के सामूहिक इतिहास की उपज।
  • उन व्यक्तियों के जीवन इतिहासों की उपज जोकि उस व्यवस्था को जन्म देते हैं। इस प्रकार राजनीतिक संस्कृति की जड़ें सामाजिक जीवन की घटनाओं और व्यक्तिगत अनुभवों में समान रूप से निहित होती हैं।

5. राजनीतिक संस्कृति एक अमूर्त नैतिक धारणा (Political Culture is an abstract moral Concept)राजनीतिक संस्कृति निराकार अथवा अमूर्त है। इसका कोई रूप नहीं है। राजनीतिक संस्कृति को केवल अनुभव किया व समझा जा सकता है पर देखा नहीं जा सकता। राजनीतिक संस्कृति का मूल आधार व्यक्ति और समाज के राजनीतिक मूल्य, विश्वास व मनोवृत्तियां होती हैं। ये मूल्य और विश्वास सामान्य नैतिक धारणाओं के अंग होते हैं। अतः राजनीतिक संस्कृति एक अमूर्त नैतिक धारणा है।

6. राजनीतिक संस्कृति में गतिशीलता (Dynamics in Political Culture)-राजनीतिक संस्कृति स्थिर न होकर गतिशील होती है। यदि राजनीतिक संस्कृति ऐतिहासिक विरासत तथा भौगोलिक परिस्थितियों से प्रभावित होती है तो दूसरी ओर सामाजिक व आर्थिक तत्त्वों से भी प्रभावित होती है। सामाजिक व आर्थिक तत्त्व बदलते रहते हैं, जिस कारण राजनीतिक संस्कृति में भी परिवर्तन होते रहते हैं। राजनीतिक संस्कृति में परिवर्तन धीरे-धीरे और तीव्र भी हो सकते हैं।

7. राजनीतिक विकास और राजनीतिक संस्कृति की परस्पर घनिष्ठता (Close Relation between Political Development and Political Culture) राजनीतिक संस्कृति और राजनीतिक विकास में घनिष्ठ सम्बन्ध पाया जाता है। राजनीतिक संस्कृति राजनीतिक विकास की प्रक्रिया को अत्यधिक प्रभावित करती है। राजनीतिक संस्कृति के अध्ययन के उन तत्त्वों और शक्तियों को समझने में सहायता मिलती है जो विकास और आधुनिकीकरण को प्रेरित एवं बाधित करते हैं।

8. राजनीतिक संस्कृतियों की संरचना और रूप-रेखा (Structure and Configurations of Political Culture) लूसियन पाई का विचार है कि किसी भी समाज में एक-सी राजनीतिक संस्कृति नहीं पाई जाती। इनकी संरचना और रूप-रेखा भिन्न होती है-

  • सभी राजतन्त्रों में शासकों अथवा सत्ताधारियों की संस्कृति और आम जनता की संस्कृति में एक मूल अन्तर पाया जाता है। जिन लोगों के हाथ में शक्ति होती है, राजनीति पर उनके दृष्टिकोण उन लोगों के दृष्टिकोण से भिन्न होते हैं जिनके हाथों में सत्ता नहीं होती।
  • राजनीतिक विकास की प्रक्रिया के आधार पर राजनीतिक संस्कृतियों का एक और विभाजन आधुनिक रूप और परम्परागत रूप के बीच किया जाता है। यह विभाजन आधुनिक तकनीकों के प्रति अभिरूप रखने वाले लोगों को परम्परागत आदर्शों में विश्वास रखने वाले लोगों से अलग करते हैं। जैसे-जैसे इस क्षेत्र में विकास होता जाता है, वैसेवैसे शहरी और देहाती क्षेत्रों की विचारधारा में अन्तर बढ़ जाता है।

9. राजनीतिक संस्कृति में परम्पराओं की भूमिका (Role of traditions in Political Culture) राजनीतिक संस्कृति चाहे विकसित हो, चाहे अविकसित राजनीतिक परम्पराओं, आदतों तथा प्रथाओं से अवश्य प्रभावित होती है। वास्तव में, परम्पराएं ही राजनीतिक संस्कृतियों को विशिष्टता और सार्थकता प्रदान करती हैं। रिचार्ड रोज़ (Richard Rose) ने इंग्लैंड का उदाहरण देते हुए कहा है कि परम्परा और आधुनिकता के मिश्रण से इंग्लैण्ड के विकास को सन्तुलन एवं स्थायित्व प्राप्त हुआ।

10. राजनीतिक संस्कृति के निर्माणकारी तत्त्व (Foundations of Political Culture)-राजनीतिक संस्कृति के निर्माणकारी तत्त्व और चिह्न अनेक हैं। इसके निर्माणकारी तत्त्वों में ऐतिहासिक विकास, देश का भूगोल, सामाजिक तथा आर्थिक संरचना महत्त्वपूर्ण है और इसके चिह्नों में राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्रीय गान महत्त्वपूर्ण है। कुछ राज्यों में धार्मिक चिह्नों को अधिक महत्त्व दिया जाता है। कुछ राज्यों में ये राष्ट्रीय एकता के प्रतीक माने जाते हैं और कुछ राज्यों की राजनीतिक संस्कृति में पौराणिक अथवा काल्पनिक कथाओं का महत्त्व भी होता है। राजनीतिक संस्कृति स्थिर नहीं होती। उसका विकास होता रहता है।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 3 राजनीतिक संस्कृति

लघु उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
राजनीतिक सभ्याचार से आप क्या समझते हैं ?
अथवा
राजनीतिक संस्कृति का अर्थ लिखिए।
उत्तर-
किसी देश के राजनीतिक चरित्र और आदतों की, राजनीतिक सूझ-बूझ और व्यवहार की, राजनीतिक संस्थाओं और उनकी कार्य पद्धति की मिली-जुली धारा को उस समाज की राजनीतिक संस्कृति (सभ्याचार) कहते हैं। राजनीतिक संस्कृति की अवधारणा के जन्मदाता गैब्रील आल्मण्ड ने राजनीतिक संस्कृति की व्याख्या इस प्रकार की है”राजनीतिक संस्कृति का विचार इस ओर संकेत करता है कि किसी भी समाज की परम्पराएं, सार्वजनिक संस्थाओं की भावनाएं, नागरिकों के सामूहिक तर्क शक्ति और भावावेश तथा उसके नेताओं की कार्य शैली केवल ऐतिहासिक अनुभव की बेतरतीब उपज मात्र नहीं है बल्कि वे सब आपस में एक बड़ी सार्थक इकाई के रूप में संगठित की जा सकती हैं और उनके द्वारा सम्बन्धों का तानाबाना बुना जा सकता है जो सार्थक रूप में समझा जा सके। राजनीतिक संस्कृति व्यक्ति को उसके राजनीतिक आचरण का नियन्त्रणकारी आदेश देती है तथा उसकी सामूहिकता को इस प्रकार के मूल्यों एवं तर्कों की एक ऐसी व्यवस्थित संरचना प्रदान करती है जो संस्थाओं और संगठनों के कार्य निष्पादन में तालमेल स्थापित करती है।”

प्रश्न 2.
राजनीतिक संस्कृति को परिभाषित कीजिए।
उत्तर-

  • ऐलन आर० बाल के शब्दों में, “राजनीतिक संस्कृति उन अभिवृत्तियों और विश्वासों तथा भावनाओं और समाज के मूल्यों से मिलकर बनती है जिनका सम्बन्ध राजनीतिक पद्धति और राजनीतिक प्रश्नों से होता है।”
  • आल्मण्ड और पॉवेल के अनुसार, “संस्कृति किसी भी राजनीतिक प्रणाली के सदस्यों में राजनीति के प्रति पाए जाने वाले अभिमुखन और अभिवृत्तियों का स्वरूप है।”
  • सैम्यूल बीयर का कहना है, “लोगों के मूल्य, विश्वास व भावात्मक वृत्तियों की सरकार को किस प्रकास के संचालित होना चाहिए और उसे क्या करना चाहिए, ही राजनीतिक संस्कृति के तत्त्व हैं।” ।
  • राय मैक्रीडिस के अनुसार, “सामान्य लक्ष्य तथा सामान्य स्वीकृत नियम ही राजनीतिक संस्कृति का अर्थ है।”

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 3 राजनीतिक संस्कृति

प्रश्न 3.
राजनीतिक संस्कृति सभ्याचार की चार विशेषताओं का वर्णन करें।
अथवा
राजनीतिक संस्कृति-सभ्याचार की कोई चार विशेषताएं लिखो।
उत्तर-
राजनीतिक संस्कृति की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं

  • राजनीतिक संस्कृति एक व्यापक धारणा है-राजनीतिक संस्कृति एक व्यापक धारणा है जो लोगों की राजनीतिक प्रणाली के प्रति अभिवृत्तियों, विश्वासों, मूल्यों, मनोभावनाओं आदि से बनती है। किसी देश के राजनीतिक चरित्र और आदतों की राजनीतिक सूझ-बूझ और व्यवहार की राजनीतिक संस्थाओं और उनकी कार्य पद्धति की मिलीजुली धारा को उस समाज की राजनीतिक संस्कृति कहते हैं।
  • राजनीतिक संस्कृति सामान्य संस्कृति का भाग है-प्रत्येक राजनीतिक व्यवस्था की राजनीतिक संस्कृति मूल रूप से उस समाज की संस्कृति से ही प्रभावित होती है। प्रत्येक व्यवस्था की राजनीतिक संस्कृति अपने मुख्य तत्त्व, अपने आदर्श, अपने मूल्य उस व्यवस्था की सामान्य संस्कृति से ही ग्रहण करते हैं।
  • विभिन्न राजनीतिक प्रणालियों की विभिन्न राजनीतिक संस्कृति-राजनीतिक संस्कृति के विद्वानों का यह मत है कि विभिन्न राजनीतिक प्रणालियों की राजनीतिक संस्कृति भी विभिन्न होती है। ऐंग्लो-अमेरिकन राजनीतिक प्रणालियों (इंग्लैण्ड और अमेरिका) की राजनीतिक संस्कृति एक-जैसी है। महाद्वीपीय यूरोपीय राजनीतिक प्रणालियों (फ्रांस, इटली, नार्वे आदि) की राजनीतिक संस्कृति दूसरी प्रकार की है।
  • गतिशीलता-राजनीतिक संस्कृति स्थिर न होकर गतिशील होती है।

प्रश्न 4.
राजनीतिक संस्कृति के धर्म-निरपेक्षीकरण से आपका क्या अभिप्राय है ?
अथवा
निरपेक्ष राजनीतिक सभ्याचार किसे कहते हैं ?
उत्तर-
राजनीतिक संस्कृति समय और परिस्थितियों के अनुसार बदलती रहती है। किसी देश की राजनीतिक संस्कृति स्थायी नहीं होती। राजनीतिक संस्कृति में जब परिवर्तन के फलस्वरूप लोग अपने राजनीतिक दृष्टिकोण में विवेकपूर्ण (Rational), विश्लेषणात्मक (Analytical) और व्यावहारिक बनते चले जाते हैं तो इसको राजनीतिक संस्कृति का धर्म-निरपेक्षीकरण कहा जाता है। राजनीतिक संस्कृति के धर्म-निरपेक्षीकरण में लोगों के राजनीतिक विश्वास, दृष्टिकोण तथा विचार संकुचित न होकर अत्यधिक व्यापक होते हैं। लोगों को राजनीतिक सहभागी (Political Participation) तथा राजनीतिक भर्ती (Political Recruitment) के बारे में काफ़ी जानकारी प्राप्त होती है और वे राजनीतिक प्रणाली की वैधता (Legitimacy) के सम्बन्ध में विवेकपूर्ण निर्णय करने की स्थिति में होते हैं। धर्मनिरपेक्षीकरण राजनीतिक संस्कृति में लोगों में जागृति और राजनीतिक बुद्धिमत्ता बहुत अधिक होती है। लोगों में राजनीतिक प्रणाली को समझने की शक्ति होती है और वे किसी भी राजनीतिक समस्या पर निष्पक्ष होकर अपनी राय देने की स्थिति में होते हैं।

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प्रश्न 5.
राजनैतिक सभ्याचार को प्रभावित करने वाले कोई चार तत्त्व लिखिए।
उत्तर-
राजनीतिक संस्कृति के निर्धारक तत्त्व इस प्रकार हैं

  • ऐतिहासिक आधार- इतिहास और इतिहास की घटनाएं राजनीतिक संस्कृति को सबसे अधिक प्रभावित करती हैं। कोई भी राजनीतिक व्यवस्था इतिहास के अनुभवों और शिक्षाओं को भुला नहीं सकती।
  •  भौगोलिक आधार- भूगोल एक स्थायी तत्त्व है, इसलिए राजनीतिक संस्कृति को प्रभावित करने वाला यह दूसरा प्रमुख आधार है।
  • सामाजिक बहुलता-राजनीतिक संस्कृति के निर्माणकारी तत्त्वों में सामाजिक बहुलता का भी अपना विशेष महत्त्व है। सामाजिक बहुलता तथा विविधता वाले समाज में अनेक उप-संस्कृतियों का निर्माण होता है।
  • शिक्षा का प्रचार एवं प्रसार भी राजनीतिक संस्कृति का एक निर्धारित तथ्य है।

प्रश्न 6.
राजनीतिक संस्कृति में टेलीविज़न की क्या भूमिका है ?
उत्तर-
राजनीतिक संस्कृति में टेलीविज़न की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। वर्तमान समय में टेलीविज़न प्रचार का एक महत्त्वपूर्ण साधन है। इसमें समय-समय पर सामाजिक विषयों पर चर्चा प्रसारित की जाती है तथा विभिन्न देशों की अलग-अलग संस्कृतियों के विषय में बताया जाता है। टेलीविज़न में विभिन्न राजनीतिक गतिविधियों एवं घटनाओं से सम्बन्धित समाचार प्रसारित किए जाते हैं। इन सब का दर्शकों के दिमाग पर प्रभाव पड़ना स्वाभाविक है, क्योंकि दर्शक जिस प्रकार के कार्यक्रम टेलीविज़न में देखते हैं, उसी प्रकार से उनके विचार और मूल्य बनते हैं।

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अति लघु उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
राजनीतिक संस्कृति से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर–
किसी देश के राजनीतिक चरित्र और आदतों की, राजनीतिक सूझ-बूझ और व्यवहार की, राजनीतिक संस्थाओं और उनकी कार्य पद्धति की मिली-जुली धारा को उस समाज की राजनीतिक संस्कृति कहते हैं।

प्रश्न 2.
राजनीतिक संस्कृति की परिभाषाएं बताएं।
उत्तर-

  • ऐलन आर० बाल के शब्दों में, “राजनीतिक संस्कृति उन अभिवृत्तियों और विश्वासों तथा भावनाओं और समाज के मूल्यों से मिलकर बनती है जिनका सम्बन्ध राजनीतिक पद्धति और राजनीतिक प्रश्नों से होता है।”
  • आल्मण्ड और पॉवेल के अनुसार, “संस्कृति किसी भी राजनीतिक प्रणाली के सदस्यों में राजनीति के प्रति पाए जाने वाले अभिमुखन और अभिवृत्तियों का स्वरूप है।”

प्रश्न 3.
राजनीतिक संस्कृति के तीन अंगों के नाम लिखें।
उत्तर-

  1. (1) ज्ञानात्मक दिशामान (Congnitive Orientation)
  2. प्रभावात्मक दिशामान (Affective Orientation)
  3. मूल्यांकिक दिशामान (Evaluation Orientation)।

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प्रश्न 4.
राजनीतिक संस्कृति की कोई दो विशेषताओं का वर्णन कीजिए। (P.B. 2017)
उत्तर-

  • राजनीतिक संस्कृति एक व्यापक धारणा है-राजनीतिक संस्कृति एक व्यापक धारणा है जो लोगों की राजनीतिक प्रणाली के प्रति अभिवृत्तियों, विश्वासों, मूल्यों, मनोभावनाओं आदि से बनती है। किसी देश के राजनीतिक चरित्र और आदतों की राजनीतिक सूझ-बूझ और व्यवहार की राजनीतिक संस्थाओं और उनकी कार्य पद्धति की मिली-जुली धारा को उस समाज की राजनीतिक संस्कृति कहते हैं।
  • राजनीतिक संस्कृति सामान्य संस्कृति का भाग है-प्रत्येक राजनीतिक व्यवस्था की राजनीतिक संस्कृति मूल रूप से उस समाज की संस्कृति से ही प्रभावित होती है। प्रत्येक व्यवस्था की राजनीतिक संस्कृति अपने मुख्य तत्त्व, अपने आदर्श, अपने मूल्य उस व्यवस्था की सामान्य संस्कृति से ही ग्रहण करते हैं।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न-

प्रश्न I. एक शब्द/वाक्य वाले प्रश्न-उत्तर-

प्रश्न 1.
राजनीतिक संस्कृति का कोई एक अंग या भाग लिखें।
उत्तर-
ज्ञानात्मक आचरण।

प्रश्न 2.
राजनीतिक संस्कृति के ज्ञानात्मक आचरण का अर्थ लिखें।
उत्तर-
ज्ञानात्मक आचरण का मूल अभिप्राय यह होता है कि किसी देश के व्यक्तियों का अपनी राजनीतिक प्रणाली के विषय में कितना ज्ञान है।

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प्रश्न 3.
राजनीतिक संस्कृति के मूल्यांकनकारी आचरण का क्या अर्थ है ?
उत्तर-
मूल्यांकनकारी आचरण से अभिप्राय यह है कि किसी देश के लोग अपनी राजनीतिक प्रणाली की कार्यविधि का कितना निष्पक्ष मूल्यांकन करते हैं।

प्रश्न 4.
राजनीतिक संस्कृति का कोई एक तथ्य लिखें।
उत्तर-
राजनीतिक मूल्य (Political Values)

प्रश्न 5.
किस प्रकार के तथ्य राजनीतिक संस्कृति के मूल आधार माने जाते हैं ?
उत्तर-
ऐतिहासिक तथ्य, भौगोलिक तथ्य तथा सामाजिक-आर्थिक तथ्य राजनीतिक संस्कृति के मूल आधार माने जाते हैं।

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प्रश्न 6.
आलमण्ड के अनुसार राजनीतिक संस्कृति का कोई एक रूप लिखें।
उत्तर-
संकीर्ण या सीमित संस्कृति (Parochial Political Culture)।

प्रश्न 7.
राजनीतिक संस्कृति किसका भाग है ?
उत्तर-
राजनीतिक संस्कृति सामान्य संस्कृति का भाग है।

प्रश्न 8.
किस विद्वान् ने राजनीतिक संस्कृति की विस्तृत व्याख्या की है ?
उत्तर-
लुसियन पाई ने राजनीतिक संस्कृति की विस्तृत व्याख्या की है।

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प्रश्न 9.
राजनीतिक संस्कृति की अवधारणा का सर्वप्रथम प्रयोग किस विद्वान ने किया ?
उत्तर-
राजनीतिक संस्कृति की अवधारणा का सर्वप्रथम प्रयोग आल्मण्ड ने किया था।

प्रश्न 10.
राजनीतिक संस्कृति के दो तत्त्व लिखो।
अथवा
राजनीतिक संस्कृति के दो मुख्य अंग लिखिए।
उत्तर-
(1) राजनीतिक संस्कृति एक व्यापक धारणा है।
(2) राजनीतिक संस्कृति सामान्य संस्कृति का भाग है।

प्रश्न II. खाली स्थान भरें-

1. राजनीति संस्कृति शब्द का सबसे पहले प्रयोग ………… ने किया।
2. राजनीति संस्कृति का सबसे पहले प्रयोग सन् ……….. में किया गया।
3. आल्मण्ड ने राजनीति संस्कृति का प्रयोग अपने एक लेख ……….. में किया।
4. आल्मण्ड द्वारा लिखा गया लेख ……….. में छपा।
5. ……… के अनुसार सामान्य लक्ष्य तथा सामान्य स्वीकृत नियम ही राजनीति संस्कृति का अर्थ है।
उत्तर-

  1. गेबरील आल्मण्ड
  2. 1956
  3. Comparative Political System
  4. जनरल ऑफ पोलिटिकल साईंस
  5. राय मैक्रीडिस।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 3 राजनीतिक संस्कृति

प्रश्न III. निम्नलिखित वाक्यों में से सही एवं ग़लत का चुनाव करें-

1. राजनीतिक संस्कृति एक परम्परागत धारणा है।
2. राजनीतिक संस्कृति का प्रयोग सर्वप्रथम प्लेटो ने किया।
3. राजनीति संस्कृति की धारणा का मुख्य समर्थक आल्मण्ड है।
4. फाइनर के अनुसार राष्ट्र की राजनीति मुख्यत: शासकों, राजनीतिक संस्थाओं तथा प्रक्रियाओं की वैधता से सम्बन्धित है।
5. राजनीतिक संस्कृति एक संकुचित धारणा है।
उत्तर-

  1. ग़लत
  2. ग़लत
  3. सही
  4. सही
  5. ग़लत।

प्रश्न IV. बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
राजनीतिक संस्कृति में क्या सम्मिलित नहीं है ?
(क) राजनीतिक मूल्य
(ख) राजनीतिक विश्वास
(ग) राजनीतिक दृष्टिकोण
(घ) हित समूह।
उत्तर-
(घ) हित समूह।

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प्रश्न 2.
‘Political Culture and Political Development’ का लेखक कौन है ?
(क) सिडनी वर्बा
(ख) लूसियन पाई
(ग) रोज और डोगन
(घ) एलन आर० बाल।
उत्तर-
(ख) लूसियन पाई

प्रश्न 3.
आल्मण्ड के अनुसार राजनीतिक संस्कृति के घटक हैं
(क) प्रभावात्मक अनुकूलन
(ख) ज्ञानात्मक अनुकूलन
(ग) मूल्यांकन अनुकूलन
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 4.
राजनीतिक संस्कृति के महत्त्व है –
(क) राजनीतिक शिक्षा
(ख) कानून एवं व्यवस्था
(ग) राजनीतिक स्थिरता
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 3 राजनीतिक संस्कृति

प्रश्न 5.
राजनीतिक संस्कृति की धारणा का प्रयोग सर्वप्रथम किस वर्ष किया गया ?
(क) 1856
(ख) 1956
(ग) 1789
(घ) 1950.
उत्तर-
(ख) 1956

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 5 गुरु अंगद देव जी, गुरु अमरदास जी और गुरु रामदास जी के अधीन सिख धर्म का विकास

Punjab State Board PSEB 12th Class History Book Solutions Chapter 5 गुरु अंगद देव जी, गुरु अमरदास जी और गुरु रामदास जी के अधीन सिख धर्म का विकास Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 History Chapter 5 गुरु अंगद देव जी, गुरु अमरदास जी और गुरु रामदास जी के अधीन सिख धर्म का विकास

निबंधात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

गरु अंगद देव जी का प्रारंभिक जीवन (Early Career of Guru Angad Dev Ji)

प्रश्न 1.
गुरु अंगद देव जी के प्रारंभिक जीवन के बारे में आप क्या जानते हैं ? संक्षिप्त वर्णन करें। (What do you know about the early career of Guru Angad Dev Ji ? Explain briefly.)
उत्तर-
गुरु अंगद देव जी अथवा भाई लहणा जी सिखों के दूसरे गुरु थे। उनका गुरु काल 1539 ई० से 1552 ई० तक रहा। गुरु अंगद देव जी के प्रारंभिक जीवन का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है—

1.जन्म और माता-पिता (Birth and Parentage)-गुरु अंगद देव जी का पहला नाम भाई लहणा जी था। उनका जन्म 31 मार्च, 1504 ई० को मत्ते की सराय नामक गाँव में हुआ। आपके पिता जी का नाम फेरूमल था तथा वह क्षत्रिय परिवार से संबंध रखते थे। लहणा जी की माता जी का नाम सभराई देवी था। वह बहुत धार्मिक विचारों वाली स्त्री थी। भाई लहणा जी पर उनके धार्मिक विचारों का गहरा प्रभाव पड़ा।

2. बचपन और विवाह (Childhood and Marriage)-भाई लहणा जी जब युवा हुए तो वह अपने पिता जी के कार्य में हाथ बंटाने लगें। 15 वर्ष के होने पर उनका विवाह उसी गाँव के निवासी श्री देवी चंद की सुपुत्री बीबी खीवी जी के साथ कर दिया गया। आपके घर दो पुत्रों दातू और दासू तथा दो पुत्रियों बीबी अमरो और बीबी अनोखी ने जन्म लिया। 1526 ई० में बाबर के पंजाब आक्रमण के समय फेरूमल जी अपने परिवार को लेकर खडूर साहिब नामक गाँव में आ गए। शीघ्र ही फेरूमल जी का देहांत हो गया, जिस कारण परिवार का समूचा उत्तरदायित्व भाई लहणा जी के कंधों पर आ पड़ा।

3. लहणा जी गुरु नानक देव जी के अनुयायी बने (Lehna Ji becomes the disciple of Guru Nanak Dev Ji)-भाई लहणा जी गुरु नानक देव जी से भेंट करने से पूर्व दुर्गा माता के भक्त थे। वह प्रतिवर्ष ज्वालामुखी (जिला काँगड़ा) देवी के दर्शन के लिए जाते थे। एक दिन खडूर साहिब में भाई जोधा जी के मुख से ‘आसा दी वार’ का पाठ सुना। यह पाठ सुनकर भाई लहणा जी इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने गुरु नानक देव जी के दर्शन करने का दृढ़ निश्चय कर लिया। आगामी वर्ष जब भाई लहणा जी ज्वालामुखी की यात्रा के लिए निकले तो वह मार्ग में करतारपुर में गुरु नानक देव जी के दर्शनों के लिए रुके। वह गुरु साहिब के महान् व्यक्तित्व और मधुर वाणी को सुनकर अत्यधिक प्रभावित हुए, इसलिए भाई लहणा जी गुरु नानक देव जी के अनुयायी बन गए और गुरु-चरणों में ही अपना जीवन व्यतीत करने का निर्णय किया।

4. गुरुगद्दी की प्राप्ति (Assumption of Guruship)-भाई लहणा जी ने पूर्ण श्रद्धा के साथ गुरु नानक साहिब की अथक सेवा की। भाई लहणा की सच्ची भक्ति और अपार प्रेम को देखकर गुरु नानक देव जी ने गुरुगद्दी उनके सुपुर्द करने का निर्णय किया। गुरु नानक साहिब ने एक नारियल और पाँच पैसे भाई लहणा जी के सम्मुख रखकर उन्हें अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया। भाई लहणा को अंगद का नाम दिया गया। यह घटना 7 सितंबर, 1539 ई० की है। गुरु नानक साहिब द्वारा गुरु अंगद देव जी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त करना सिख-इतिहास की एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण घटना मानी जाती है। यदि गुरु नानक साहिब अपने ज्योति-जोत समाने से पूर्व ऐसा न करते तो निस्संदेह सिख धर्म का अस्तित्व लुप्त हो जाना था। इसका कारण यह था कि सिख धर्म अभी अच्छी प्रकार से संगठित नहीं था। गुरु नानक देव जी के उपदेशों से जो लोग प्रभावित हुए थे उनकी संख्या दूसरे लोगों की अपेक्षा नगण्य थी। गुरु अंगद देव जी की नियुक्ति से सिख धर्म को एक निश्चित दिशा प्राप्त हुई तथा इसका आधार मज़बूत हुआ। जी० सी० नारंग का यह कहना पूर्णत: सही है,

“यदि गुरु नानक जी उत्तराधिकारी की नियुक्ति के बिना ही ज्योति जोत समा जाते तो आज सिख धर्म नहीं होना था।”1

गुरु अंगद देव जी के अधीन सिरव धर्म का विकास (Development of Sikhism Under Guru Angad Dev Ji)

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 5 गुरु अंगद देव जी, गुरु अमरदास जी और गुरु रामदास जी के अधीन सिख धर्म का विकास

प्रश्न 2.
सिख-धर्म के विकास में गुरु अंगद देव जी का क्या योगदान है ? वर्णन कीजिए ।
(What is the contribution of Guru Angad Dev Ji to the development of Sikhism ? Explain.)
अथवा
सिख धर्म के आरंभिक विकास में गुरु अंगद देव जी का क्या योगदान था ?
(What was the contribution of Guru Angad Dev Ji to the early development of Sikhism ?)
उत्तर-
गुरु अंगद देव जी 1539 ई० में सिखों के दूसरे गुरु बने। वह 1552 ई० तक गुरुगद्दी पर आसीन रहे। जिस समय गुरु अंगद देव जी गुरुगद्दी पर बैठे थे, उस समय सिख पंथ के सामने कई संकट विद्यमान थे। पहला सिख धर्म का हिंदू धर्म में विलीन हो जाने का खतरा था। दूसरा बड़ा ख़तरा उदासियों से था। सिख अनुयायियों की कम संख्या होने के कारण बहुत से सिख उदासी मत में शामिल होते जा रहे थे। गुरु अंगद साहिब ने अपने यत्नों से सिख पंथ के सम्मुख विद्यमान इन खतरों को दूर किया। गुरु अंगद साहिब ने सिख पंथ के विकास में जो महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई उसका वर्णन निम्नलिखित अनुसार है—

1. गुरमुखी को लोकप्रिय बनाना (Popularisation of Gurmukhi)-गुरुं अंगद देव जी ने गुरमुखी लिपि को लोकप्रिय बनाने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने इसके रूप में एक नया निखार लाया। अब इस लिपि को समझना सामान्य लोगों के लिए सरल हो गया। सिखों के सभी धार्मिक ग्रंथों की रचना इस लिपि में हुई। इस लिपि का नाम गुरमुखी [गुरुओं के मुख से निकली हुई] होने के कारण यह सिखों को गुरु के प्रति अपने कर्तव्य का स्मरण दिलाती रही। इस प्रकार यह लिपि सिखों की अपनी अलग पहचान बनाए रखने में सहायक सिद्ध हुई। इस लिपि के प्रसार के कारण सिखों में तीव्रता से विद्या का प्रसार भी होने लगा। एच० एस० भाटिया एवं एस० आर० बख्शी के अनुसार,
“गुरु अंगद देव जी ने सिखों को हिंदुओं एवं मुसलमानों से एक अलग भाषा दी तथा उन्हें यह अनुभव करवाया कि वे अलग लोग हैं।”2.

2. वाणी का संग्रह (Collection of Hymns)-गुरु अंगद देव जी का दूसरा महान् कार्य गुरु नानक देव जी की वाणी को एकत्रित करना था। यह वाणी एक स्थान पर न होकर अलग-अलग स्थानों पर बिखरी हुई थी। गुरु अंगद साहिब ने इस समूची वाणी को एकत्रित किया। सिख परंपराओं के अनुसार गुरु अंगद देव जी ने एक श्रद्धालु सिख भाई बाला जी को बुलाकर गुरु नानक साहिब के जीवन के संबंध में भाई पैड़ा मौखा जी से एक जन्म साखी लिखवाई। इस साखी को भाई बाला जी की जन्म साखी के नाम से जाना जाता है। कुछ विद्वान् इस तथ्य से सहमत नहीं हैं कि भाई बाला जी की जन्म साखी को गुरु अंगद देव जी के समय लिखा गया था। गुरु अंगद साहिब ने स्वयं ‘नानक’ के नाम से वाणी की रचना की। इस प्रकार गुरु अंगद देव जी ने वाणी के वास्तविक रूप को बिगड़ने से बचाया। दूसरा, इसने आदि ग्रंथ साहिब जी की तैयारी के लिए महत्त्वपूर्ण आधार तैयार किया।

3. लंगर प्रथा का विस्तार (Expansion of Langar System)-लंगर प्रथा के विकास का श्रेय गुरु अंगद देव जी को जाता है। लंगर का समूचा प्रबंध उनकी धर्म पत्नी बीबी खीवी जी करते थे। लंगर में सभी व्यक्ति बिना किसी ऊँच-नीच, जाति के भेदभाव के इकट्ठे मिलकर छकते थे। इस लंगर के लिए सारी माया गुरु जी के सिख देते थे। इस प्रथा के कारण सिखों में परस्पर सहयोग की भावना बढ़ी। इसने हिंदू समाज में फैली जाति-प्रथा पर कड़ा प्रहार किया। इस प्रकार इस संस्था ने सामाजिक एवं आर्थिक असमानता को दूर करने में प्रशंसनीय योगदान दिया। इसके कारण सिख धर्म की ख्याति दूर-दूर तक फैल गई। प्रसिद्ध इतिहासकार प्रोफैसर हरबंस सिंह का यह कहना पूर्णतः सही है, “सामाजिक क्रांति लाने में यह (लंगर) संस्था महत्त्वपूर्ण साधन सिद्ध हुई।”3

4. संगत का संगठन (Organisation of Sangat)-गुरु अंगद देव जी ने गुरु नानक देव जी द्वारा स्थापित संगत संस्था को भी संगठित किया। संगत से अभिप्राय था-एकत्रित होकर बैठना। संगत में सभी धर्मों के लोगस्त्री और पुरुष भाग ले सकते थे। यह संगत सुबह-शाम गुरु जी के उपदेशों को सुनने के लिए एकत्रित होती थी। इस संस्था ने सामाजिक असमानता को दूर करने तथा सिखों को संगठित करने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।

5. उदासी मत का खंडन (Denunciation of the Udasi Sect)-उदासी मत की स्थापना गुरु नानक देव जी के बड़े सुपुत्र बाबा श्रीचंद जी ने की थी। यह मत संन्यास अथवा त्याग के जीवन पर बल देता था। बहुत से सिख उदासी मत को मान्यता देने लग पड़े थे। ऐसी परिस्थितियों में यह संकट उत्पन्न हो गया था कि कहीं सिख गुरु नानक देव जी उपदेशों को भूल कर उदासी मत न अपना लें। अतः गुरु अंगद देव जी ने उदासी मत का कड़ा विरोध किया तथा स्पष्ट किया कि उदासी मत के सिद्धांत सिख धर्म के सिद्धांतों से.सर्वथा विपरीत हैं एवं जो सिख उदासी मत में विश्वास रखता है, वह सच्चा सिख नहीं हो सकता। इस प्रकार गुरु अंगद देव जी ने सिख मत के अस्तित्व को बनाए रखा।

6. शारीरिक शिक्षा (Physical Training)-गुरु अंगद देव जी यह मानते थे कि जिस प्रकार आत्मा की उन्नति के लिए नाम का जाप करना आवश्यक है, ठीक उसी प्रकार शारीरिक स्वस्थता के लिए व्यायाम करना भी आवश्यक है। इस उद्देश्य के साथ गुरु जी ने खडूर साहिब में एक अखाड़ा बनवाया। यहाँ सिख प्रतिदिन प्रातःकाल मल्ल युद्ध तथा अन्य व्यायाम करते थे।

7. गोइंदवाल साहिब की स्थापना (Foundation of Goindwal Sahib)-गुरु अंगद देव जी ने खडूर साहिब के समीप गोइंदवाल साहिब नामक एक नए नगर की स्थापना की। इस नगर का निर्माण कार्य एक श्रद्धालु सेवक अमरदास की देख-रेख में 1546 ई० में आरंभ हुआ। यह नगर शीघ्र ही सिखों का एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थान बन गया।

8. हुमायूँ से भेंट (Meeting with Humayun)-1540 ई० में मुग़ल बादशाह हुमायूँ शेरशाह सूरी के हाथों पराजय के पश्चात् पंजाब पहुँचा। वह खडूर साहिब गुरु अंगद देव जी से आशीर्वाद लेने के लिए पहुँचा। उस समय गुरु जी समाधि में लीन थे। हुमायूँ ने इसे अपना अपमान समझकर तलवार निकाल ली। उस समय गुरु जी ने अपनी आँखें खोली और हुमायूँ से कहा कि, “यह तलवार जिसका तुम मुझ पर प्रयोग करने लगे हो, वह तलवार शेरशाह सूरी के विरुद्ध लड़ाई करते समय कहाँ थी ?” ये शब्द सुनकर हुमायूँ अत्यंत लज्जित हुआ और उसने गुरु जी से क्षमा माँगी। गुरु जी ने हुमायूँ को आशीर्वाद देते हुए कहा कि तुम्हें कुछ समय प्रतीक्षा करने के पश्चात् राज्य सिंहासन प्राप्त होगा। गुरु जी की यह भविष्यवाणी सत्य निकली। इस भेंट के कारण सिखों तथा मुग़लों के मध्य मैत्रीपूर्ण संबंध स्थापित हुए।

9. उत्तराधिकारी की नियुक्ति (Nomination of the Successor)-गुरु अंगद देव जी का सिख पंथ के विकास के लिए सबसे महान् कार्य अमरदास जी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त करना था। गुरु अंगद देव जी ने काफ़ी सोच-समझकर इस उच्च पद के लिए अमरदास जी का चुनाव किया। गुरु जी ने अमरदास जी के सम्मुख एक नारियल और पाँच पैसे रखकर अपना शीश झुकाया। इस प्रकार अमरदास जी को सिखों का तीसरा गुरु नियुक्त किया गया। गुरु अंगद देव जी 29 मार्च, 1552 ई० को ज्योति जोत समा गए।

10. गुरु अंगद देव जी की सफलताओं का मूल्याँकन (Estimate of Guru Angad Dev Ji’s Achievements)-इस प्रकार हम देखते हैं कि गुरु अंगद देव जी ने अपनी गुरुगद्दी के काल में सिख पंथ के विकास में बहुत प्रशंसनीय योगदान दिया। गुरु जी ने गुरमुखी लिपि का प्रचार करके, गुरु नानक साहिब की वाणी को एकत्रित करके, संगत और पंगत संस्थाओं का विस्तार करके, सिख पंथ को उदासी मत से अलग करके, गोइंदवाल साहिब की स्थापना करके और अपना उत्तराधिकारी नियुक्त करके सिख पंथ की नींव को और सुदृढ़ किया। गुरु अंगद देव जी की सफलताओं का मूल्यांकन करते हुए प्रसिद्ध इतिहासकार के० एस० दुग्गल का कहना है,

“यह आश्चर्य वाली बात है कि गुरु अंगद साहिब ने अपने अल्प समय के दौरान कितनी अधिक सफलता प्राप्त कर ली थी।”4
एक अन्य प्रसिद्ध इतिहासकार एस० एस० जौहर के अनुसार,
“गुरु अंगद देव जी का गुरु काल सिख पंथ के इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण मोड़ था।”5

1. “Had Nanak died without a successor, there would have been no Sikhism today.” G.C. Narang, Transformation of Sikhism (New Delhi : 1989) p. 29.
2. “Guru Angad Dev Ji gave the Sikhs a written language different from the language of the Hindus and Muslims and thus made them realise that they were separate people.” H.S. Bhatia and S.R. Bakshi, Encyclopaedic History of the Sikhs and Sikhism (New Delhi : 1999) Vol. 1, p. 12.
3. “This served as an instrument of a far-reaching social revolution.” Prof. Harbans Singh, The Heritage of the Sikhs (Delhi : 1994) p. 31.
4. “It is amazing how much Guru Angad could achieve in the short time at his disposal.” K.S. Duggal, The Sikh Gurus : Their Lives and Teachings (New Delhi : 1993) p. 71.
5. “The pontificate of Guru Angad Dev is indeed a turning point in the history of Sikh faith.” S.S. Johar, Handbook on Sikhism (Delhi : 1979) p. 26.

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 5 गुरु अंगद देव जी, गुरु अमरदास जी और गुरु रामदास जी के अधीन सिख धर्म का विकास

प्रश्न 3.
गुरु अंगद देव जी के जीवन तथा सिख पंथ के विकास में उनके योगदान की चर्चा करें।
(Discuss the life and contribution of Guru Angad Dev Ji to the development of Sikhism.)
अथवा
गुरु अंगद देव जी के जीवन एवं सफलता का संक्षिप्त वर्णन करें। (Describe in brief, the life and achievements of Guru Angad Dev Ji.)
उत्तर-
गुरु अंगद देव जी 1539 ई० में सिखों के दूसरे गुरु बने। वह 1552 ई० तक गुरुगद्दी पर आसीन रहे। जिस समय गुरु अंगद देव जी गुरुगद्दी पर बैठे थे, उस समय सिख पंथ के सामने कई संकट विद्यमान थे। पहला सिख धर्म का हिंदू धर्म में विलीन हो जाने का खतरा था। दूसरा बड़ा ख़तरा उदासियों से था। सिख अनुयायियों की कम संख्या होने के कारण बहुत से सिख उदासी मत में शामिल होते जा रहे थे। गुरु अंगद साहिब ने अपने यत्नों से सिख पंथ के सम्मुख विद्यमान इन खतरों को दूर किया। गुरु अंगद साहिब ने सिख पंथ के विकास में जो महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई उसका वर्णन निम्नलिखित अनुसार है—

1. गुरमुखी को लोकप्रिय बनाना (Popularisation of Gurmukhi)-गुरुं अंगद देव जी ने गुरमुखी लिपि को लोकप्रिय बनाने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने इसके रूप में एक नया निखार लाया। अब इस लिपि को समझना सामान्य लोगों के लिए सरल हो गया। सिखों के सभी धार्मिक ग्रंथों की रचना इस लिपि में हुई। इस लिपि का नाम गुरमुखी [गुरुओं के मुख से निकली हुई] होने के कारण यह सिखों को गुरु के प्रति अपने कर्तव्य का स्मरण दिलाती रही। इस प्रकार यह लिपि सिखों की अपनी अलग पहचान बनाए रखने में सहायक सिद्ध हुई। इस लिपि के प्रसार के कारण सिखों में तीव्रता से विद्या का प्रसार भी होने लगा। एच० एस० भाटिया एवं एस० आर० बख्शी के अनुसार,
“गुरु अंगद देव जी ने सिखों को हिंदुओं एवं मुसलमानों से एक अलग भाषा दी तथा उन्हें यह अनुभव करवाया कि वे अलग लोग हैं।”2.

2. वाणी का संग्रह (Collection of Hymns)-गुरु अंगद देव जी का दूसरा महान् कार्य गुरु नानक देव जी की वाणी को एकत्रित करना था। यह वाणी एक स्थान पर न होकर अलग-अलग स्थानों पर बिखरी हुई थी। गुरु अंगद साहिब ने इस समूची वाणी को एकत्रित किया। सिख परंपराओं के अनुसार गुरु अंगद देव जी ने एक श्रद्धालु सिख भाई बाला जी को बुलाकर गुरु नानक साहिब के जीवन के संबंध में भाई पैड़ा मौखा जी से एक जन्म साखी लिखवाई। इस साखी को भाई बाला जी की जन्म साखी के नाम से जाना जाता है। कुछ विद्वान् इस तथ्य से सहमत नहीं हैं कि भाई बाला जी की जन्म साखी को गुरु अंगद देव जी के समय लिखा गया था। गुरु अंगद साहिब ने स्वयं ‘नानक’ के नाम से वाणी की रचना की। इस प्रकार गुरु अंगद देव जी ने वाणी के वास्तविक रूप को बिगड़ने से बचाया। दूसरा, इसने आदि ग्रंथ साहिब जी की तैयारी के लिए महत्त्वपूर्ण आधार तैयार किया।

3. लंगर प्रथा का विस्तार (Expansion of Langar System)-लंगर प्रथा के विकास का श्रेय गुरु अंगद देव जी को जाता है। लंगर का समूचा प्रबंध उनकी धर्म पत्नी बीबी खीवी जी करते थे। लंगर में सभी व्यक्ति बिना किसी ऊँच-नीच, जाति के भेदभाव के इकट्ठे मिलकर छकते थे। इस लंगर के लिए सारी माया गुरु जी के सिख देते थे। इस प्रथा के कारण सिखों में परस्पर सहयोग की भावना बढ़ी। इसने हिंदू समाज में फैली जाति-प्रथा पर कड़ा प्रहार किया। इस प्रकार इस संस्था ने सामाजिक एवं आर्थिक असमानता को दूर करने में प्रशंसनीय योगदान दिया। इसके कारण सिख धर्म की ख्याति दूर-दूर तक फैल गई। प्रसिद्ध इतिहासकार प्रोफैसर हरबंस सिंह का यह कहना पूर्णतः सही है, “सामाजिक क्रांति लाने में यह (लंगर) संस्था महत्त्वपूर्ण साधन सिद्ध हुई।”3

4. संगत का संगठन (Organisation of Sangat)-गुरु अंगद देव जी ने गुरु नानक देव जी द्वारा स्थापित संगत संस्था को भी संगठित किया। संगत से अभिप्राय था-एकत्रित होकर बैठना। संगत में सभी धर्मों के लोगस्त्री और पुरुष भाग ले सकते थे। यह संगत सुबह-शाम गुरु जी के उपदेशों को सुनने के लिए एकत्रित होती थी। इस संस्था ने सामाजिक असमानता को दूर करने तथा सिखों को संगठित करने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।

5. उदासी मत का खंडन (Denunciation of the Udasi Sect)-उदासी मत की स्थापना गुरु नानक देव जी के बड़े सुपुत्र बाबा श्रीचंद जी ने की थी। यह मत संन्यास अथवा त्याग के जीवन पर बल देता था। बहुत से सिख उदासी मत को मान्यता देने लग पड़े थे। ऐसी परिस्थितियों में यह संकट उत्पन्न हो गया था कि कहीं सिख गुरु नानक देव जी उपदेशों को भूल कर उदासी मत न अपना लें। अतः गुरु अंगद देव जी ने उदासी मत का कड़ा विरोध किया तथा स्पष्ट किया कि उदासी मत के सिद्धांत सिख धर्म के सिद्धांतों से.सर्वथा विपरीत हैं एवं जो सिख उदासी मत में विश्वास रखता है, वह सच्चा सिख नहीं हो सकता। इस प्रकार गुरु अंगद देव जी ने सिख मत के अस्तित्व को बनाए रखा।

6. शारीरिक शिक्षा (Physical Training)-गुरु अंगद देव जी यह मानते थे कि जिस प्रकार आत्मा की उन्नति के लिए नाम का जाप करना आवश्यक है, ठीक उसी प्रकार शारीरिक स्वस्थता के लिए व्यायाम करना भी आवश्यक है। इस उद्देश्य के साथ गुरु जी ने खडूर साहिब में एक अखाड़ा बनवाया। यहाँ सिख प्रतिदिन प्रातःकाल मल्ल युद्ध तथा अन्य व्यायाम करते थे।

7. गोइंदवाल साहिब की स्थापना (Foundation of Goindwal Sahib)-गुरु अंगद देव जी ने खडूर साहिब के समीप गोइंदवाल साहिब नामक एक नए नगर की स्थापना की। इस नगर का निर्माण कार्य एक श्रद्धालु सेवक अमरदास की देख-रेख में 1546 ई० में आरंभ हुआ। यह नगर शीघ्र ही सिखों का एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थान बन गया।

8. हुमायूँ से भेंट (Meeting with Humayun)-1540 ई० में मुग़ल बादशाह हुमायूँ शेरशाह सूरी के हाथों पराजय के पश्चात् पंजाब पहुँचा। वह खडूर साहिब गुरु अंगद देव जी से आशीर्वाद लेने के लिए पहुँचा। उस समय गुरु जी समाधि में लीन थे। हुमायूँ ने इसे अपना अपमान समझकर तलवार निकाल ली। उस समय गुरु जी ने अपनी आँखें खोली और हुमायूँ से कहा कि, “यह तलवार जिसका तुम मुझ पर प्रयोग करने लगे हो, वह तलवार शेरशाह सूरी के विरुद्ध लड़ाई करते समय कहाँ थी ?” ये शब्द सुनकर हुमायूँ अत्यंत लज्जित हुआ और उसने गुरु जी से क्षमा माँगी। गुरु जी ने हुमायूँ को आशीर्वाद देते हुए कहा कि तुम्हें कुछ समय प्रतीक्षा करने के पश्चात् राज्य सिंहासन प्राप्त होगा। गुरु जी की यह भविष्यवाणी सत्य निकली। इस भेंट के कारण सिखों तथा मुग़लों के मध्य मैत्रीपूर्ण संबंध स्थापित हुए।

9. उत्तराधिकारी की नियुक्ति (Nomination of the Successor)-गुरु अंगद देव जी का सिख पंथ के विकास के लिए सबसे महान् कार्य अमरदास जी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त करना था। गुरु अंगद देव जी ने काफ़ी सोच-समझकर इस उच्च पद के लिए अमरदास जी का चुनाव किया। गुरु जी ने अमरदास जी के सम्मुख एक नारियल और पाँच पैसे रखकर अपना शीश झुकाया। इस प्रकार अमरदास जी को सिखों का तीसरा गुरु नियुक्त किया गया। गुरु अंगद देव जी 29 मार्च, 1552 ई० को ज्योति जोत समा गए।

10. गुरु अंगद देव जी की सफलताओं का मूल्याँकन (Estimate of Guru Angad Dev Ji’s Achievements)-इस प्रकार हम देखते हैं कि गुरु अंगद देव जी ने अपनी गुरुगद्दी के काल में सिख पंथ के विकास में बहुत प्रशंसनीय योगदान दिया। गुरु जी ने गुरमुखी लिपि का प्रचार करके, गुरु नानक साहिब की वाणी को एकत्रित करके, संगत और पंगत संस्थाओं का विस्तार करके, सिख पंथ को उदासी मत से अलग करके, गोइंदवाल साहिब की स्थापना करके और अपना उत्तराधिकारी नियुक्त करके सिख पंथ की नींव को और सुदृढ़ किया। गुरु अंगद देव जी की सफलताओं का मूल्यांकन करते हुए प्रसिद्ध इतिहासकार के० एस० दुग्गल का कहना है,

“यह आश्चर्य वाली बात है कि गुरु अंगद साहिब ने अपने अल्प समय के दौरान कितनी अधिक सफलता प्राप्त कर ली थी।”4
एक अन्य प्रसिद्ध इतिहासकार एस० एस० जौहर के अनुसार,
“गुरु अंगद देव जी का गुरु काल सिख पंथ के इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण मोड़ था।”5

1. “Had Nanak died without a successor, there would have been no Sikhism today.” G.C. Narang, Transformation of Sikhism (New Delhi : 1989) p. 29.
2. “Guru Angad Dev Ji gave the Sikhs a written language different from the language of the Hindus and Muslims and thus made them realise that they were separate people.” H.S. Bhatia and S.R. Bakshi, Encyclopaedic History of the Sikhs and Sikhism (New Delhi : 1999) Vol. 1, p. 12.
3. “This served as an instrument of a far-reaching social revolution.” Prof. Harbans Singh, The Heritage of the Sikhs (Delhi : 1994) p. 31.
4. “It is amazing how much Guru Angad could achieve in the short time at his disposal.” K.S. Duggal, The Sikh Gurus : Their Lives and Teachings (New Delhi : 1993) p. 71.
5. “The pontificate of Guru Angad Dev is indeed a turning point in the history of Sikh faith.” S.S. Johar, Handbook on Sikhism (Delhi : 1979) p. 26.

गुरु अमरदास जी का आरंभिक जीवन एवं कठिनाइयाँ (Early Career and Difficulties of Guru Amar Das Ji)

प्रश्न 4.
गुरु अमरदास जी के आरंभिक जीवन एवं कठिनाइयों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए। (Give a brief account of the early career and difficulties of Guru Amar Das Ji.)
उत्तर-
सिखों के तीसरे गुरु अमरदास जी के आरंभिक जीवन एवं कठिनाइयों का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है—

1. जन्म और माता-पिता (Birth and Parentage)-गुरु अमरदास जी का जन्म 5 मई, 1479 ई० को जिला अमृतसर के बासरके गाँव में हुआ। आपके पिता जी का नाम तेज भान था। वे भल्ला जाति के क्षत्रिय परिवार से संबंध रखते थे। गुरु जी के पिता जी काफ़ी धनवान थे। गुरु अमरदास जी की माता जी के नाम के संबंध में इतिहासकारों को कोई निश्चित जानकारी प्राप्त नहीं है।

2. बचपन और विवाह (Childhood and Marriage)-गुरु अमरदास जी बचपन से ही धार्मिक प्रवृत्ति के थे। अमरदास जी ने बड़े होकर अपने पिता जी का काम संभाल लिया। क्योंकि आपके माता-पिता विष्णु के पुजारी थे, इसलिए आप भी वैष्णव मत के अनुयायी बन गए। 24 वर्ष की आयु में आपका विवाह देवी चंद की सुपुत्री, मनसा देवी से कर दिया गया। आपके घर दो पुत्रों-बाबा मोहन और बाबा मोहरी और दो पुत्रियों-बीबी दानी और बीबी भानी ने जन्म लिया।

3. गुरु अंगद देव जी का सिख बनना (To become Guru Angad Dev Ji Disciple)-एक बार जब अमरदास जी हरिद्वार यात्रा से लौट रहे थे तो वे मार्ग में एक साधु से मिले। उन दोनों ने इकट्टे भोजन किया। भोजन के पश्चात् उस साधु ने अमरदास जी से पूछा कि उनका गुरु कौन है ? अमरदास जी ने उत्तर दिया कि उनका गुरु कोई नहीं है। उस साधु ने कहा, “मैंने एक गुरु विहीन व्यक्ति के हाथों भोजन खाकर पाप किया है और अपना जन्म भ्रष्ट कर लिया है। मुझे प्रायश्चित्त के लिए पुनः गंगा में स्नान करना पड़ेगा।” इसका आपके मन पर गहरा प्रभाव पड़ा तथा आपने गुरु धारण करने का दृढ़ निश्चय किया।

एक दिन अमरदास जी ने बीबी अमरो के मुख से गुरु नानक देव जी की वाणी सुनी तो बहुत प्रभावित हुए। इसलिए अमरदास जी ने गुरु अंगद देव जी के, दर्शन करने का निर्णय किया। वे गुरु जी के दर्शनों के लिए खडूर साहिब गए तथा उनके अनुयायी बन गए। उस समय गुरु जी की आयु 62 वर्ष की थी।

4. गुरुगद्दी की प्राप्ति (Assumption of Guruship)—अमरदास जी ने खडूर साहिब में रह कर 11 वर्षों तक गुरु अंगद देव जी की अथक सेवा की। वे प्रतिदिन गुरु साहिब जी के स्नान के लिए ब्यास नदी से, जो वहाँ से तीन मील की दूरी पर स्थित थी, पानी से भरा घड़ा अपने सिर पर उठाकर लाते तथा गुरु-घर में आई संगतों की तन-मन से सेवा करते। 1552 ई० की बात है कि अमरदास जी सदा की भाँति ब्यास से पानी लेकर लौट रहे थे। अंधेरा होने के कारण अमरदास जी को ठोकर लगी और वह गिर पड़े। साथ ही एक जुलाहे का घर था। आवाज़ सुनकर जुलाहा उठा और उसने पूछा कि कौन है। जुलाहिन ने कहा कि यह अवश्य अमरु निथावाँ (जिसके पास कोई स्थान न हो) होगा। धीरे-धीरे यह बात गुरु अंगद देव जी तक पहुँची। उन्होंने कहा कि आज से अमरदास ‘निथावाँ’ नहीं होगा, बल्कि निथावों को सहारा देगा। मार्च, 1552 ई० में गुरु अंगद साहिब ने अमरदास जी के सम्मुख एक नारियल और पाँच पैसे रखकर अपना शीश झुकाया और उन्हें अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया। इस प्रकार अमरदास जी 73 वर्ष की आयु में सिखों के तीसरे गुरु बने।

गुरु अमरदास जी की प्रारंभिक कठिनाइयाँ
(Guru Amar Das Ji’s Early Difficulties)
गुरुगद्दी प्राप्त करने के पश्चात् गुरु अमरदास जी, गुरु अंगद साहिब जी के आदेश पर खडूर साहिब से गोइंदवाल आ गए। यहाँ गुरु जी को आरंभ में कुछ कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। इनका संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित है—

1. दासू और दातू का विरोध (Opposition of Dasu and Datu)—गुरु अमरदास जी को अपने गुरुकाल के आरंभ में, गुरु अंगद देव जी के पुत्रों दासू और दातू के विरोध का सामना करना पड़ा। उन्होंने गुरु जी को गुरु मानने से इंकार कर दिया तथा स्वयं को असली उत्तराधिकारी घोषित किया। उनका कहना था कि कल तक हमारे घर का पानी भरने वाला आज गुरु कैसे बन सकता है। एक दिन दातू ने क्रोधित होकर गोइंदवाल साहिब जाकर भरे दरबार में गुरु जी को ठोकर मारी जिसके कारण वह गद्दी से नीचे गिर पड़े। इस पर भी गुरु साहिब ने बहुत ही नम्रता से दातू से क्षमा माँगी। इसके पश्चात् गुरु जी गोइंदवाल साहिब को छोड़कर अपने गाँव बासरके चले गए। सिख संगतों ने दातू को अपना गुरु मानने से इंकार कर दिया। अंततः निराश होकर वह खडूर साहिब लौट गया। बाबा बुड्डा जी तथा अन्य सिख संगतों के कहने पर गुरु अमरदास जी पुनः गोइंदवाल साहिब आ गए।

2. बाबा श्रीचंद का विरोध (Opposition of Baba Sri Chand)-बाबा श्रीचंद जी गुरु नानक जी के ज्येष्ठ पुत्र होने के कारण गुरुगद्दी पर अपना अधिकार समझते थे। उन्होंने गुरु अंगद देव जी का विरोध इसलिए न किया क्योंकि उन्हें गुरुगद्दी गुरु नानक साहिब ने स्वयं सौंपी थी। परंतु गुरु अंगद देव जी के पश्चात् उन्होंने अपने पिता की गद्दी प्राप्त करने का प्रयत्न किया। बाबा श्रीचंद जी के अनेक समर्थक थे। गुरु अमरदास जी ने ऐसे समय में दृढ़ता से काम लेते हुए सिखों को स्पष्ट किया कि उदासी संप्रदाय के सिद्धांत गुरु नानक देव जी के उपदेशों के विपरीत हैं। उनके तर्कों से प्रभावित होकर सिखों ने बाबा श्रीचंद जी का साथ छोड़ दिया। इस प्रकार गुरु अमरदास जी ने सिखों को उदासी संप्रदाय से सदैव के लिए पृथक् कर दिया।

3. गोइंदवाल साहिब के मुसलमानों का विरोध (Opposition by the Muslims of Goindwal Sahib)–गोइंदवाल साहिब में गुरु अमरदास जी की बढ़ती हुई ख्याति देखकर वहाँ के मुसलमानों ने सिखों को तंग करना आरंभ कर दिया। वे सिखों का सामान चोरी कर लेते। वे सतलुज नदी से जल भर कर लाने वाले सिखों के घड़े पत्थर मार कर तोड़ देते थे। सिख इस संबंध में गुरु जी से शिकायत करते। अमरदास जी ने सिखों को शांत रहने का उपदेश दिया। एक बार गाँव में कुछ सशस्त्र व्यक्ति आ गए। इन मुसलमानों का उनसे किसी बात पर झगड़ा हो गया। उन्होंने बहुत से मुसलमानों को यमलोक पहुँचा दिया। लोग सोचने लगे कि मुसलमानों को परमात्मा की ओर से यह दंड मिला है। इस प्रकार उनका सिख धर्म में विश्वास और दृढ़ हो गया।

4. हिंदुओं द्वारा विरोध (Opposition by the Hindus)-इसका कारण यह था कि गुरु अमरदास जी के सामाजिक सुधारों से प्रभावित होकर बहुत से लोग सिख धर्म में शामिल होते जा रहे थे। सिख धर्म में ऊँच-नीच का भेदभाव नहीं किया जाता था। लंगर में सब एक साथ भोजन करते थे। इसके अतिरिक्त बाऊली का निर्माण होने से सिखों को एक अलग तीर्थ स्थान भी मिल गया था। गोइंदवाल साहिब के उच्च जातियों के हिंदू यह बात सहन न कर सके। उन्होंने अपने बादशाह अकबर के पास यह झूठी शिकायत की कि गुरु जी हिंदू धर्म के विरुद्ध प्रचार कर रहे हैं। इस आरोप की जाँच के लिए अकबर ने गुरु साहिब को अपने दरबार में बुलाया। गुरु अमरदास जी ने अपने श्रद्धालु भाई जेठा जी को भेजा। भाई जेठा जी से मिलने के पश्चात् अकबर ने गुरु जी को निर्दोष घोषित किया। इससे सिख लहर को और उत्साह मिला।

गुरु अमरदास जी का आरंभिक जीवन एवं कठिनाइयाँ
(Early Career and Difficulties of Guru Amar Das Ji)

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 5 गुरु अंगद देव जी, गुरु अमरदास जी और गुरु रामदास जी के अधीन सिख धर्म का विकास

प्रश्न 4.
गुरु अमरदास जी के आरंभिक जीवन एवं कठिनाइयों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए। (Give a brief account of the early career and difficulties of Guru Amar Das Ji.)
उत्तर-
सिखों के तीसरे गुरु अमरदास जी के आरंभिक जीवन एवं कठिनाइयों का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है—

1. जन्म और माता-पिता (Birth and Parentage)-गुरु अमरदास जी का जन्म 5 मई, 1479 ई० को जिला अमृतसर के बासरके गाँव में हुआ। आपके पिता जी का नाम तेज भान था। वे भल्ला जाति के क्षत्रिय परिवार से संबंध रखते थे। गुरु जी के पिता जी काफ़ी धनवान थे। गुरु अमरदास जी की माता जी के नाम के संबंध में इतिहासकारों को कोई निश्चित जानकारी प्राप्त नहीं है।

2. बचपन और विवाह (Childhood and Marriage)-गुरु अमरदास जी बचपन से ही धार्मिक प्रवृत्ति के थे। अमरदास जी ने बड़े होकर अपने पिता जी का काम संभाल लिया। क्योंकि आपके माता-पिता विष्णु के पुजारी थे, इसलिए आप भी वैष्णव मत के अनुयायी बन गए। 24 वर्ष की आयु में आपका विवाह देवी चंद की सुपुत्री, मनसा देवी से कर दिया गया। आपके घर दो पुत्रों-बाबा मोहन और बाबा मोहरी और दो पुत्रियों-बीबी दानी और बीबी भानी ने जन्म लिया।

3. गुरु अंगद देव जी का सिख बनना (To become Guru Angad Dev Ji Disciple)-एक बार जब अमरदास जी हरिद्वार यात्रा से लौट रहे थे तो वे मार्ग में एक साधु से मिले। उन दोनों ने इकट्ठे भोजन किया। भोजन के पश्चात् उस साधु ने अमरदास जी से पूछा कि उनका गुरु कौन है २ अमरदास जी ने उत्तर दिया कि उनका गुरु कोई नहीं है। उस साधु ने कहा, “मैंने एक गुरु विहीन व्यक्ति के हाथों भोजन खाकर पाप किया है और अपना जन्म भ्रष्ट कर लिया है। मुझे प्रायश्चित्त के लिए पुनः गंगा में स्नान करना पड़ेगा।” इसका आपके मन पर गहरा प्रभाव पड़ा तथा आपने गुरु धारण करने का दृढ़ निश्चय किया।

एक दिन अमरदास जी ने बीबी अमरो के मुख से गुरु नानक देव जी की वाणी सुनी तो बहुत प्रभावित हुए। इसलिए अमरदास जी ने गुरु अंगद देव जी के, दर्शन करने का निर्णय किया। वे गुरु जी के दर्शनों के लिए खडूर साहिब गए तथा उनके अनुयायी बन गए। उस समय गुरु जी की आयु 62 वर्ष की थी।

4. गुरुगद्दी की प्राप्ति (Assumption of Guruship)-अमरदास जी ने खडूर साहिब में रह कर 11 वर्षों तक गुरु अंगद देव जी की अथक सेवा की। वे प्रतिदिन गुरु साहिब जी के स्नान के लिए ब्यास नदी से, जो वहाँ से तीन मील की दूरी पर स्थित थी, पानी से भरा घड़ा अपने सिर पर उठाकर लाते तथा गुरु-घर में आई संगतों की तन-मन से सेवा करते। 1552 ई० की बात है कि अमरदास जी सदा की भाँति ब्यास से पानी लेकर लौट रहे थे। अंधेरा होने के कारण अमरदास जी को ठोकर लगी और वह गिर पड़े। साथ ही एक जुलाहे का घर था। आवाज़ सुनकर जुलाहा उठा और उसने पूछा कि कौन है। जुलाहिन ने कहा कि यह अवश्य अमरु निथावाँ (जिसके पास कोई स्थान न हो) होगा। धीरे-धीरे यह बात गुरु अंगद देव जी तक पहुँची। उन्होंने कहा कि आज से अमरदास ‘निथावाँ’ नहीं होगा, बल्कि निथावों को सहारा देगा। मार्च, 1552 ई० में गुरु अंगद साहिब ने अमरदास जी के सम्मुख एक नारियल और पाँच पैसे रखकर अपना शीश झुकाया और उन्हें अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया। इस प्रकार अमरदास जी 73 वर्ष की आयु में सिखों के तीसरे गुरु बने।

गुरु अमरदास जी की प्रारंभिक कठिनाइयाँ (Guru Amar Das Ji’s Early Difficulties)
गुरुगद्दी प्राप्त करने के पश्चात् गुरु अमरदास जी, गुरु अंगद साहिब जी के आदेश पर खडूर साहिब से गोइंदवाल आ गए। यहाँ गुरु जी को आरंभ में कुछ कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। इनका संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित है—

1. दासू और दातू का विरोध (Opposition of Dasu and Datu)-गुरु अमरदास जी को अपने गुरुकाल के आरंभ में, गुरु अंगद देव जी के पुत्रों दासू और दातू के विरोध का सामना करना पड़ा। उन्होंने गुरु जी को गुरु मानने से इंकार कर दिया तथा स्वयं को असली उत्तराधिकारी घोषित किया। उनका कहना था कि कल तक हमारे घर का पानी भरने वाला आज गुरु कैसे बन सकता है। एक दिन दातू ने क्रोधित होकर गोइंदवाल साहिब जाकर भरे दरबार में गुरु जी को ठोकर मारी जिसके कारण वह गद्दी से नीचे गिर पड़े। इस पर भी गुरु साहिब ने बहुत ही नम्रता से दातू से क्षमा माँगी। इसके पश्चात् गुरु जी गोइंदवाल साहिब को छोड़कर अपने गाँव बासरके चले गए। सिख संगतों ने दातू को अपना गुरु मानने से इंकार कर दिया। अंततः निराश होकर वह खडूर साहिब लौट गया। बाबा बुड्डा जी तथा अन्य सिख संगतों के कहने पर गुरु अमरदास जी पुनः गोइंदवाल साहिब आ गए।

2. बाबा श्रीचंद का विरोध (Opposition of Baba Sri Chand)-बाबा श्रीचंद जी गुरु नानक जी के ज्येष्ठ पुत्र होने के कारण गुरुगद्दी पर अपना अधिकार समझते थे। उन्होंने गुरु अंगद देव जी का विरोध इसलिए न किया क्योंकि उन्हें गुरुगद्दी गुरु नानक साहिब ने स्वयं सौंपी थी। परंतु गुरु अंगद देव जी के पश्चात् उन्होंने अपने पिता की गद्दी प्राप्त करने का प्रयत्न किया। बाबा श्रीचंद जी के अनेक समर्थक थे। गुरु अमरदास जी ने ऐसे समय में दृढ़ता से काम लेते हुए सिखों को स्पष्ट किया कि उदासी संप्रदाय के सिद्धांत गुरु नानक देव जी के उपदेशों के विपरीत हैं। उनके तर्कों से प्रभावित होकर सिखों ने बाबा श्रीचंद जी का साथ छोड़ दिया। इस प्रकार गुरु अमरदास जी ने सिखों को उदासी संप्रदाय से सदैव के लिए पृथक् कर दिया।

3. गोइंदवाल साहिब के मुसलमानों का विरोध (Opposition by the Muslims of Goindwal Sahib)-गोइंदवाल साहिब में गुरु अमरदास जी की बढ़ती हुई ख्याति देखकर वहाँ के मुसलमानों ने सिखों को तंग करना आरंभ कर दिया। वे सिखों का सामान चोरी कर लेते। वे सतलुज नदी से जल भर कर लाने वाले सिखों के घड़े पत्थर मार कर तोड़ देते थे। सिख इस संबंध में गुरु जी से शिकायत करते। अमरदास जी ने सिखों को शांत रहने का उपदेश दिया। एक बार गाँव में कुछ सशस्त्र व्यक्ति आ गए। इन मुसलमानों का उनसे किसी बात पर झगड़ा हो गया। उन्होंने बहुत से मुसलमानों को यमलोक पहुँचा दिया। लोग सोचने लगे कि मुसलमानों को परमात्मा की ओर से यह दंड मिला है। इस प्रकार उनका सिख धर्म में विश्वास और दृढ़ हो गया।

4. हिंदुओं द्वारा विरोध (Opposition by the Hindus)—इसका कारण यह था कि गुरु अमरदास जी के सामाजिक सुधारों से प्रभावित होकर बहुत से लोग सिख धर्म में शामिल होते जा रहे थे। सिख धर्म में ऊँच-नीच का भेदभाव नहीं किया जाता था। लंगर में सब एक साथ भोजन करते थे। इसके अतिरिक्त बाऊली का निर्माण होने से सिखों को एक अलग तीर्थ स्थान भी मिल गया था। गोइंदवाल साहिब के उच्च जातियों के हिंदू यह बात सहन न कर सके। उन्होंने अपने बादशाह अकबर के पास यह झूठी शिकायत की कि गुरु जी हिंदू धर्म के विरुद्ध प्रचार कर रहे हैं। इस आरोप की जाँच के लिए अकबर ने गुरु साहिब को अपने दरबार में बुलाया। गुरु अमरदास जी ने अपने श्रद्धालु भाई जेठा जी को भेजा। भाई जेठा जी से मिलने के पश्चात् अकबर ने गुरु जी को निर्दोष घोषित किया। इससे सिख लहर को और उत्साह मिला।

गुरु अमरदास जी के समय सिख धर्म का विकास (Development of Sikhism Under Guru Amar Das Ji)

प्रश्न 5.
सिख पंथ के विकास में गुरु अमरदास जी के योगदान का वर्णन करें।
(Describe the contribution of Guru Amar Das Ji in the development of Sikhism.)
अथवा
सिख धर्म के विकास में गुरु अमरदास जी ने क्या योगदान दिया? (What were the contribution of Guru Amar Das Ji in the development of Sikhism ?)
अथवा
गुरु अमरदास जी की सिख धर्म के विकास में की गई सेवाओं का वर्णन करो।
(Describe the services rendered by Guru Amar Das Ji for the development of Sikh Religion.) .
अथवा
गुरु अमरदास जी के सिख पंथ के संगठन तथा प्रसार के लिए किए गए कार्यों का संक्षिप्त वर्णन करें।
(Describe in brief the organisational development and spread of Sikhism by Guru Amar Das Ji.)
अथवा
सिख धर्म के संगठन एवं विकास के लिए गुरु अमरदास जी ने क्या-क्या कार्य किए ? .
(What were the measures taken by Guru Amar Das Ji for the consolidation and expansion of Sikhism ?)
उत्तर-
सिखों के तीसरे गुरु, गुरु अमरदास जी 1552 ई० से 1574 ई० तक गुरुगद्दी पर रहे। क्योंकि सिख धर्म अभी पूर्णतः संगठित नहीं हुआ था अतः गुरु जी ने इस दिशा में अनेक पग उठाए। गुरु अमरदास जी ने गुरु अंगद देव जी द्वारा आरंभ किए कार्यों को जारी रखा और बहुत-सी नई प्रथाओं तथा संस्थाओं की स्थापना की।—

1. गोइंदवाल साहिब में बाऊली का निर्माण (Construction of the Baoli at Goindwal Sahib)गुरु अमरदास जी का सिख पंथ के विकास की ओर पहला पग गोइंदवाल साहिब में एक बाऊली का निर्माण करना था। इस बाऊली का निर्माण कार्य 1552 ई० से 1559 ई० तक चला। इस बाऊली तक पहुँचने के लिए 84 सीढ़ियाँ बनाई गई थीं। गुरु जी ने यह घोषणा की कि जो यात्री प्रत्येक सीढ़ी पर शुद्ध हृदय से जपुजी साहिब का पाठ करेगा तथा पाठ के पश्चात् बाऊली में स्नान करेगा वह 84 लाख योनियों से मुक्त हो जाएगा। बाऊली के निर्माण से सिख पंथ को एक पवित्र तीर्थ स्थान मिल गया। अब उन्हें हिंदुओं के तीर्थ स्थानों पर जाने की आवश्यकता न रही। इसके साथ ही वहाँ लोगों की पानी की समस्या भी हल हो गई। लोग बड़ी संख्या में गोइंदवाल साहिब आने लगे। इससे सिख धर्म के प्रसार को बल मिला। एच० एस० भाटिया तथा एस० आर० बक्शी के शब्दों में, “गुरु अमरदास जी का गुरुगद्दी काल, सिख आंदोलन के इतिहास में एक नया मोड़ प्रमाणित हुआ।”6
PSEB 12th Class History Solutions Chapter 5 गुरु अंगद देव जी, गुरु अमरदास जी और गुरु रामदास जी के अधीन सिख धर्म का विकास 2
BAOLI SAHIB : GOINDWAL SAHIB

2. लंगर संस्था का विस्तार (Expansion of Langar Institution)—गुरु अमरदास जी ने, गुरु नानक देव जी द्वारा स्थापित लंगर संस्था का और विस्तार किया। गुरु जी ने यह घोषणा की कि कोई भी यात्री लंगर छके बिनां उनके दर्शन नहीं कर सकता। “पहले पंगत फिर संगत’ का नारा दिया गया। यहाँ तक कि मुग़ल बादशाह अकबर तथा हरिपुर के राजा ने भी गुरु जी से भेंट से पूर्व पंगत में बैठकर लंगर खाया था। इस लंगर में विभिन्न धर्मों और जातियों के लोग सम्मिलित होते थे। यह लंगर देर रात तक चलता रहता था। लंगर संस्था सिख धर्म के प्रचार में बड़ी सहायक प्रमाणित हुई । इससे जाति-प्रथा को गहरा आघात पहुँचा। इसने निम्न जातियों को समाज में एक नया सम्मान दिया। इससे सिखों में परस्पर भ्रातृत्व की भावना का विकास हुआ। डॉक्टर फौजा सिंह के अनुसार,
“इस (लंगर) संस्था ने जाति प्रथा को गहरी चोट पहुँचाई तथा सामाजिक एकता के लिए मार्ग साफ किया।”7

3. वाणी का संग्रह (Collection of Hymns)—गुरु अमरदास जी का दूसरा महत्त्वपूर्ण कार्य गुरु नानक देव जी तथा गुरु अंगद देव जी की वाणी का संग्रह करना था। गुरु साहिब ने स्वयं 907 शब्दों की रचना की। ऐसा करने से आदि ग्रंथ साहिब जी के संकलन के लिए आधार तैयार हो गया।

4. मंजी प्रथा (Manji System)-मंजी प्रथा की स्थापना गुरु अमरदास जी के सबसे महत्त्वपूर्ण कार्यों में से एक थी। सिखों की संख्या में वृद्धि के कारण गुरु साहिब के लिए प्रत्येक सिख तक पहुँच पाना संभव नहीं था। उन्होंने अपने उपदेश दूर-दूर के क्षेत्रों में रहने वाले सिखों तक पहुँचाने के लिए 22 मंजियों की स्थापना की। इन मंजियों की स्थापना एक ही समय पर नहीं बल्कि अलग-अलग समय पर की गई। प्रत्येक मंजी के मुखिया को मंजीदार कहते थे। ये मंजीदार अधिक-से-अधिक लोगों को सिख धर्म में सम्मिलित होने के लिए प्रेरित करते थे। क्योंकि मंजीदार मंजी (चारपाई) पर बैठकर प्रचार करते थे, इसलिए यह प्रथा इतिहास में मंजी प्रथा के नाम से विख्यात हुई। मंजी प्रथा की स्थापना के परिणामस्वरूप सिख धर्म की प्रसिद्धि दूर-दूर तक फैल गई। डॉक्टर डी० एस० ढिल्लों के अनुसार,
“मंजी प्रथा की स्थापना ने सिख पंथ की प्रसार गतिविधियों में उल्लेखनीय योगदान दिया।”8

5. उदासी संप्रदाय का खंडन (Denunciation of the Udasi Sect)-गुरु अमरदास जी के समय में उदासी संप्रदाय सिख संप्रदाय के अस्तित्व के लिए खतरा बना हुआ था। बहुत से सिख बाबा श्रीचंद जी से प्रभावित होकर उदासी संप्रदाय में सम्मिलित होने लगे थे। ऐसे समय गुरु अमरदास जी ने बड़े साहस से काम लिया। उन्होंने सिखों को समझाया कि सिख धर्म उदासी मत से बिल्कुल अलग है। उनका कहना था कि सिख धर्म गृहस्थ मार्ग अपनाने तथा संसार में रह कर श्रम करने की शिक्षा देता है। दूसरी ओर उदासी मत मुक्ति की खोज में वनों में मारेमारे फिरने की शिक्षा देता है। गुरु साहिब के आदेश पर सिखों ने उदासी मत से सदैव के लिए अपने संबंध तोड़ लिए। इस प्रकार गुरु अमरदास जी ने सिख धर्म को हिंदू धर्म में विलीन होने से बचा लिया।

6. सामाजिक सुधार (Social Reforms)-गुरु अमरदास जी एक महान् समाज सुधारक थे। समाज में जाति बंधन कठोर रूप धारण कर चुका था। उस समय निम्न जाति के लोगों पर बहुत अत्याचार होते थे। गुरु अमरदास जी ने जाति प्रथा का ज़ोरदार शब्दों में खंडन किया। उन्होंने जाति का अहंकार करने वाले को मूर्ख तथा गंवार बताया। गुरु अमरदास जी ने समाज में प्रचलित सती-प्रथा का डट कर विरोध किया। गुरु जी का कथन था—
सतीआ एहि न आखीअनि जो मड़ियाँ लग जलनि॥
सतीआ सेई नानका जो विरहा चोट मरनि॥
अर्थात् उस स्त्री को सती नहीं कहा जा सकता जो पति की चिता में जल कर मर जाती है। वास्तव में सती वही है जो पति के बिछोह को सहन न करती हुई विरह के आघात से मर जाए। गुरु अमरदास जी ने बाल-विवाह तथा पर्दा प्रथा का विरोध किया। उन्होंने विधवा विवाह तथा अंतर्जातीय विवाह का समर्थन किया। उन्होंने मादक द्रव्यों के सेवन पर प्रतिबंध लगा दिया। इसके अतिरिक्त गुरु अमरदास जी ने सिखों के जन्म, विवाह तथा मृत्यु के अवसरों के लिए विशेष रस्में प्रचलित की। ये रस्में बिल्कुल सरल थीं। संक्षेप में गुरु अमरदास जी ने एक आदर्श-समाज का निर्माण किया।

7. अकबर का गोइंदवाल साहिब आगमन (Akbar’s visit to Goindwal Sahib)-मुग़ल सम्राट अकबर 1568 ई० में गुरु साहिब के दर्शनों के लिए गोइंदवाल साहिब आया। उसने गुरु अमरदास जी को मिलने से पूर्व संगत में बैठ कर लंगर खाया। वह गुरु जी के व्यक्तित्व और लंगर व्यवस्था से बहुत प्रभावित हुआ। उसने कुछ गाँवों की जागीर देने की गुरु जी को पेशकश की। परंतु गुरु जी ने यह जागीर लेने से इंकार कर दिया। अकबर की इस यात्रा का लोगों के दिल पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा। वे भारी संख्या में सिख धर्म में सम्मिलित होने लगे। इस कारण सिख धर्म और भी लोकप्रिय हो गया।

8. उत्तराधिकारी की नियुक्ति (Nomination of the Successor)-गुरु अमरदास जी ने 1574 ई० में अपने दामाद भाई जेठा जी की नम्रता तथा सेवा भाव से प्रभावित होकर उन्हें अपना उत्तराधिकारी नियुक्त करने का निर्णय किया। गुरु जी ने न केवल भाई जेठा जी को अपना उत्तराधिकारी ही बनाया अपितु गुरुगद्दी उनके वंश में रहने का आशीर्वाद भी दिया। गुरु अमरदास जी 1 सितंबर, 1574 ई० को गोइंदवाल साहिब में ज्योति-जोत समा गए।

9. गुरु अमरदास जी की सफलताओं का मूल्याँकन (Estimate of Guru Amar Das Ji’s Achievements)-गुरु अमरदास जी के नेतृत्व में सिख पंथ ने महत्त्वपूर्ण विकास किया। गुरु जी ने गोइंदवाल साहिब में बाऊली का निर्माण करके, लंगर प्रथा का विस्तार करके, पूर्व गुरुओं की वाणी को एकत्र करके, सामाजिक कुरीतियों का विरोध करके, उदासी संप्रदाय का खंडन करके सिख पंथ के इतिहास में एक मील पत्थर का काम किया। प्रसिद्ध इतिहासकार संगत सिंह के अनुसार,

“गुरु अमरदास जी के अधीन सिख पंथ का तीव्र विकास हुआ।”9
एक अन्य प्रसिद्ध इतिहासकार डॉक्टर डी० एस० ढिल्लों के अनुसार,
“सिख पंथ के विकास में गुरु अमरदास जी ने प्रशंसनीय योगदान दिया।”10

6. “The pontificate of Guru Amar Das Ji is thus a turning point in the history of the Sikh movement.” H. S. Bhatia and S.R. Bakshi, Encyclopaedic History of the Sikhs and Sikhism (New Delhi : 1999) Vol. 1, p. 15.
7. “This institution gave a shattering blow to the rigidity of the caste system and paved the way for social equality.” Dr. Fauja Singh, Perspectives on Guru Amar Das (Patiala : 1982) p. 25.
8. “The establishment of Manji System gave a big thrust to the missionary activities of the Sikhs.” Dr. D.S. Dhillon, Sikhism : Origin and Development (New Delhi : 1988) p. 207.
9. “Under Guru Amar Das, Sikhism made rapid strides.” Sangat Singh, The Sikhs in History (New Delhi : 1996) p. 29. 10. “Guru Amar Das’s contribution to the growth of the Sikh Panth was great.” Dr. D.S. Dhillon, Sikhism : Origin and Development (New Delhi : 1988) p. 94.

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गुरु अमरदास जी के सामाजिक सुधार (Social Reforms of Guru Amar Das Ji)

प्रश्न 6.
गुरु अमरदास जी के सामाजिक सुधारों का मूल्यांकन करें। (Examine the social reforms of Guru Amar Das Ji.)
अथवा
“गुरु अमरदास जी एक महान् समाज सुधारक थे।” बताएँ।
(“Guru Amar Das Ji was a great social reformer.” Discuss.)
उत्तर-
गुरु अमरदास जी का नाम सिख इतिहास में एक महान् समाज सुधारक के रूप में भी प्रसिद्ध है। वह सिखों की सामाजिक संरचना को एक नया रूप देना चाहते थे। वह सिखों को तात्कालीन समाज के जटिल नियमों से मुक्त करना चाहते थे ताकि उनमें आपसी भ्रातृत्व स्थापित हो। गुरु अमरदास जी के सामाजिक सुधार का संक्षिप्त वर्णन निम्न अनुसार है—

1. जातीय भेद-भाव तथा छुआ-छूत का खंडन (Denunciation of Caste Distinctions and Untouchability)—गुरु अमरदास जी ने जातीय एवं छुआ-छूत की प्रथाओं का जोरदार शब्दों में खंडन किया। उनका कथन था कि जाति पर अभिमान करने वाले मूर्ख तथा गंवार हैं। उन्होंने संगतों को यह हुक्म दिया कि जो कोई उनके दर्शन करना चाहता है उसे पहले पंगत में लंगर छकना पड़ेगा। इसके अतिरिक्त गुरु जी ने कुछ कुएँ खुदवाए। इन कुओं से प्रत्येक जाति के लोगों को पानी लेने का अधिकार था। इस प्रकार गुरु अमरदास जी ने आपसी भ्रातृत्व का प्रचार किया।

2. लड़कियों की हत्या का खंडन (Denunciation of Female Infanticide)-उस समय लड़कियों के जन्म को अशुभ माना जाता था। समाज में लड़कियों के जन्म लेते ही उन्हें मार दिया जाता था। गुरु अमरदास जी ने इस कुप्रथा का जोरदार शब्दों में खंडन किया। उनका कथन था कि जो व्यक्ति ऐसा करता है वह घोर पाप का सहभागी बनता है । उन्होंने सिखों को इस अपराध से दूर रहने का उपदेश दिया।

3. बाल विवाह का खंडन (Denunciation of Child Marriage)-उस समय समाज में प्रचलित परंपराओं के अनुसार लड़कियों का विवाह छोटी आयु में ही कर दिया जाता था। इस कारण समाज में स्त्रियों की दशा बहुत दयनीय हो गई थी। गुरु अमरदास जी ने बाल विवाह के विरुद्ध प्रचार किया।

4. सती प्रथा का खंडन (Denunciation of Sati System) उस समय समाज में प्रचलित कुप्रथाओं में से सबसे घृणा योग्य कुप्रथा सती प्रथा की थी। इस अमानवीय प्रथा के अनुसार यदि किसी दुर्भाग्यशाली स्त्री के पति की मृत्यु हो जाती थी तो उसे जबरन पति की चिता के साथ जीवित जला दिया जाता था। गुरु अमरदास जी ने शताब्दियों से चली आ रही इस कुप्रथा के विरुद्ध एक ज़ोरदार अभियान चलाया। गुरु साहिब का कथन था
सतीआ एहि न आखीअनि जो मड़ियाँ लग जलनि॥
सतीआ सेई नानका जो विरहा चोटि मरनि॥
भाव उस स्त्री को सती नहीं कहा जा सकता जो पति की चिता में जल कर मर जाती है। वास्तव में सती तो वह है जो अपने पति के वियोग की पीड़ा में प्राण त्याग दे।

5. पर्दा प्रथा का खंडन (Denunciation of Purdah System)-उसं समय समाज में पर्दा प्रथा का प्रचलन भी काफ़ी बढ़ गया था। यह प्रथा स्त्रियों के शारीरिक तथा मानसिक विकास में एक बड़ी बाधा थी। इसलिए गुरु अमरदास जी ने इस प्रथा की जोरदार शब्दों में आलोचना की। उन्होंने यह आदेश दिया कि संगत अथवा लंगर में सेवा करते समय कोई भी स्त्री पर्दा न करे।

6. नशीली वस्तुओं का विरोध (Prohibition of Intoxicants)-उस समय समाज में शराब तथा अन्य नशीले पदार्थों का प्रयोग बहुत बढ़ गया था। इस कारण समाज का दिन-प्रतिदिन नैतिक पतन होता जा रहा था। इसलिए गुरु अमरदास जी ने इन नशों के विरुद्ध जोरदार प्रचार किया। उनका कथन था कि जो मनुष्य शराब पीता है उसकी बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है। वह अपने-पराए का भेद भूल जाता है। मनुष्य को ऐसी झूठी शराब नहीं पीनी चाहिए, जिस कारण वह परमात्मा को भूल जाए।

7. विधवा विवाह के पक्ष में (Favoured Widow Marriage)—जो स्त्रियाँ सती होने से बच जाती थीं, उन्हें सदैव विधवा का जीवन व्यतीत करना पड़ता था। समाज की ओर से विधवा विवाह पर प्रतिबंध लगा हुआ थां। विधवा का जीवन नरक के समान था। गुरु अमरदास जी ने इस प्रथा को खेदजनक बताया। उनका कथन था कि हमें विधवा का पूरा सम्मान करना चाहिए। गुरु जी ने बाल विधवा के पुनर्विवाह के पक्ष में प्रचार किया।

8. जन्म, विवाह तथा मृत्यु के समय के नवीन नियम (New Ceremonies related to Birth, Marriage and Death)-उस समय समाज में जन्म, विवाह तथा मृत्यु से संबंधित जो रीति-रिवाज प्रचलित थे, वे बहुत जटिल थे। गुरु साहिब ने सिखों के लिए इन अवसरों पर विशेष नियम बनाए। ये नियम पूर्णतः सरल थे। गुरु साहिब ने जन्म, विवाह तथा अन्य अवसरों पर गाने के लिए अनंदु साहिब की रचना की। इसमें 40 पौड़ियाँ हैं। इसके अतिरिक्त विवाह समय लावाँ की नई प्रथा आरंभ की गई।।

9. त्योहार मनाने का नवीन ढंग (New Mode of Celebrating Festivals)—गुरु अमरदास जी ने सिखों को वैसाखी, माघी तथा दीवाली के त्योहारों को नवीन ढंग से मनाने के लिए कहा। इन तीनों त्योहारों के अवसरों पर बड़ी संख्या में सिख गोइंदवाल साहिब पहुँचते थे। गुरु साहिब का यह पग सिख पंथ के प्रचार में बड़ा सहायक सिद्ध हुआ। प्रसिद्ध इतिहासकार डॉक्टर बी० एस० निझर के अनुसार,
“गुरु अमरदास जी द्वारा आरंभ किए गए इन सामाजिक सुधारों को सिख पंथ के इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण मोड़ लाने वाले समझे जाने चाहिएँ।”11

प्रश्न 7.
गुरु अमरदास जी के जीवन एवं सफलताओं का वर्णन कीजिए। (Describe the life and achievements of Guru Amar Das Ji.)
अथवा
गुरु अमरदास जी को गुरुगद्दी पर विराजमान होते समय किन-किन मुश्किलों का सामना करना पड़ा ? सिख मत के संगठन और विस्तार के लिए उनके द्वारा उठाए गए कदमों की चर्चा कीजिए ।
(What were the difficulties faced by Guru Amar Das Ji at the time of his accession ? Discuss the steps taken by him to consolidate and expand Sikhism.)
उत्तर-
इस प्रश्न के उत्तर के लिए विद्यार्थी कृपया प्रश्न 5 एवं 6 का उत्तर संयुक्त रूप से लिखें।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 5 गुरु अंगद देव जी, गुरु अमरदास जी और गुरु रामदास जी के अधीन सिख धर्म का विकास

प्रश्न 8.
1539 ई० से 1574 ई० तक सिख पंथ के विकास की चर्चा करें। (Examine the development of Sikhism from 1539 to 1574 A.D.)
अथवा
सिख धर्म के विकास में गुरु अंगद देव जी तथा गुरु अमरदास जी के योगदान का वर्णन करें।
(Describe the contribution of Guru Angad Dev Ji and Guru Amar Das Ji in the development of Sikhism.)
उत्तर-
सिखों के तीसरे गुरु, गुरु अमरदास जी 1552 ई० से 1574 ई० तक गुरुगद्दी पर रहे। क्योंकि सिख धर्म अभी पूर्णतः संगठित नहीं हुआ था अतः गुरु जी ने इस दिशा में अनेक पग उठाए। गुरु अमरदास जी ने गुरु अंगद देव जी द्वारा आरंभ किए कार्यों को जारी रखा और बहुत-सी नई प्रथाओं तथा संस्थाओं की स्थापना की।—

1. गोइंदवाल साहिब में बाऊली का निर्माण (Construction of the Baoli at Goindwal Sahib)गुरु अमरदास जी का सिख पंथ के विकास की ओर पहला पग गोइंदवाल साहिब में एक बाऊली का निर्माण करना था। इस बाऊली का निर्माण कार्य 1552 ई० से 1559 ई० तक चला। इस बाऊली तक पहुँचने के लिए 84 सीढ़ियाँ बनाई गई थीं। गुरु जी ने यह घोषणा की कि जो यात्री प्रत्येक सीढ़ी पर शुद्ध हृदय से जपुजी साहिब का पाठ करेगा तथा पाठ के पश्चात् बाऊली में स्नान करेगा वह 84 लाख योनियों से मुक्त हो जाएगा। बाऊली के निर्माण से सिख पंथ को एक पवित्र तीर्थ स्थान मिल गया। अब उन्हें हिंदुओं के तीर्थ स्थानों पर जाने की आवश्यकता न रही। इसके साथ ही वहाँ लोगों की पानी की समस्या भी हल हो गई। लोग बड़ी संख्या में गोइंदवाल साहिब आने लगे। इससे सिख धर्म के प्रसार को बल मिला। एच० एस० भाटिया तथा एस० आर० बक्शी के शब्दों में, “गुरु अमरदास जी का गुरुगद्दी काल, सिख आंदोलन के इतिहास में एक नया मोड़ प्रमाणित हुआ।”6
PSEB 12th Class History Solutions Chapter 5 गुरु अंगद देव जी, गुरु अमरदास जी और गुरु रामदास जी के अधीन सिख धर्म का विकास 2
BAOLI SAHIB : GOINDWAL SAHIB

2. लंगर संस्था का विस्तार (Expansion of Langar Institution)—गुरु अमरदास जी ने, गुरु नानक देव जी द्वारा स्थापित लंगर संस्था का और विस्तार किया। गुरु जी ने यह घोषणा की कि कोई भी यात्री लंगर छके बिनां उनके दर्शन नहीं कर सकता। “पहले पंगत फिर संगत’ का नारा दिया गया। यहाँ तक कि मुग़ल बादशाह अकबर तथा हरिपुर के राजा ने भी गुरु जी से भेंट से पूर्व पंगत में बैठकर लंगर खाया था। इस लंगर में विभिन्न धर्मों और जातियों के लोग सम्मिलित होते थे। यह लंगर देर रात तक चलता रहता था। लंगर संस्था सिख धर्म के प्रचार में बड़ी सहायक प्रमाणित हुई । इससे जाति-प्रथा को गहरा आघात पहुँचा। इसने निम्न जातियों को समाज में एक नया सम्मान दिया। इससे सिखों में परस्पर भ्रातृत्व की भावना का विकास हुआ। डॉक्टर फौजा सिंह के अनुसार,
“इस (लंगर) संस्था ने जाति प्रथा को गहरी चोट पहुँचाई तथा सामाजिक एकता के लिए मार्ग साफ किया।”7

3. वाणी का संग्रह (Collection of Hymns)—गुरु अमरदास जी का दूसरा महत्त्वपूर्ण कार्य गुरु नानक देव जी तथा गुरु अंगद देव जी की वाणी का संग्रह करना था। गुरु साहिब ने स्वयं 907 शब्दों की रचना की। ऐसा करने से आदि ग्रंथ साहिब जी के संकलन के लिए आधार तैयार हो गया।

4. मंजी प्रथा (Manji System)-मंजी प्रथा की स्थापना गुरु अमरदास जी के सबसे महत्त्वपूर्ण कार्यों में से एक थी। सिखों की संख्या में वृद्धि के कारण गुरु साहिब के लिए प्रत्येक सिख तक पहुँच पाना संभव नहीं था। उन्होंने अपने उपदेश दूर-दूर के क्षेत्रों में रहने वाले सिखों तक पहुँचाने के लिए 22 मंजियों की स्थापना की। इन मंजियों की स्थापना एक ही समय पर नहीं बल्कि अलग-अलग समय पर की गई। प्रत्येक मंजी के मुखिया को मंजीदार कहते थे। ये मंजीदार अधिक-से-अधिक लोगों को सिख धर्म में सम्मिलित होने के लिए प्रेरित करते थे। क्योंकि मंजीदार मंजी (चारपाई) पर बैठकर प्रचार करते थे, इसलिए यह प्रथा इतिहास में मंजी प्रथा के नाम से विख्यात हुई। मंजी प्रथा की स्थापना के परिणामस्वरूप सिख धर्म की प्रसिद्धि दूर-दूर तक फैल गई। डॉक्टर डी० एस० ढिल्लों के अनुसार,
“मंजी प्रथा की स्थापना ने सिख पंथ की प्रसार गतिविधियों में उल्लेखनीय योगदान दिया।”8

5. उदासी संप्रदाय का खंडन (Denunciation of the Udasi Sect)-गुरु अमरदास जी के समय में उदासी संप्रदाय सिख संप्रदाय के अस्तित्व के लिए खतरा बना हुआ था। बहुत से सिख बाबा श्रीचंद जी से प्रभावित होकर उदासी संप्रदाय में सम्मिलित होने लगे थे। ऐसे समय गुरु अमरदास जी ने बड़े साहस से काम लिया। उन्होंने सिखों को समझाया कि सिख धर्म उदासी मत से बिल्कुल अलग है। उनका कहना था कि सिख धर्म गृहस्थ मार्ग अपनाने तथा संसार में रह कर श्रम करने की शिक्षा देता है। दूसरी ओर उदासी मत मुक्ति की खोज में वनों में मारेमारे फिरने की शिक्षा देता है। गुरु साहिब के आदेश पर सिखों ने उदासी मत से सदैव के लिए अपने संबंध तोड़ लिए। इस प्रकार गुरु अमरदास जी ने सिख धर्म को हिंदू धर्म में विलीन होने से बचा लिया।

6. सामाजिक सुधार (Social Reforms)-गुरु अमरदास जी एक महान् समाज सुधारक थे। समाज में जाति बंधन कठोर रूप धारण कर चुका था। उस समय निम्न जाति के लोगों पर बहुत अत्याचार होते थे। गुरु अमरदास जी ने जाति प्रथा का ज़ोरदार शब्दों में खंडन किया। उन्होंने जाति का अहंकार करने वाले को मूर्ख तथा गंवार बताया। गुरु अमरदास जी ने समाज में प्रचलित सती-प्रथा का डट कर विरोध किया। गुरु जी का कथन था—
सतीआ एहि न आखीअनि जो मड़ियाँ लग जलनि॥
सतीआ सेई नानका जो विरहा चोट मरनि॥
अर्थात् उस स्त्री को सती नहीं कहा जा सकता जो पति की चिता में जल कर मर जाती है। वास्तव में सती वही है जो पति के बिछोह को सहन न करती हुई विरह के आघात से मर जाए। गुरु अमरदास जी ने बाल-विवाह तथा पर्दा प्रथा का विरोध किया। उन्होंने विधवा विवाह तथा अंतर्जातीय विवाह का समर्थन किया। उन्होंने मादक द्रव्यों के सेवन पर प्रतिबंध लगा दिया। इसके अतिरिक्त गुरु अमरदास जी ने सिखों के जन्म, विवाह तथा मृत्यु के अवसरों के लिए विशेष रस्में प्रचलित की। ये रस्में बिल्कुल सरल थीं। संक्षेप में गुरु अमरदास जी ने एक आदर्श-समाज का निर्माण किया।

7. अकबर का गोइंदवाल साहिब आगमन (Akbar’s visit to Goindwal Sahib)-मुग़ल सम्राट अकबर 1568 ई० में गुरु साहिब के दर्शनों के लिए गोइंदवाल साहिब आया। उसने गुरु अमरदास जी को मिलने से पूर्व संगत में बैठ कर लंगर खाया। वह गुरु जी के व्यक्तित्व और लंगर व्यवस्था से बहुत प्रभावित हुआ। उसने कुछ गाँवों की जागीर देने की गुरु जी को पेशकश की। परंतु गुरु जी ने यह जागीर लेने से इंकार कर दिया। अकबर की इस यात्रा का लोगों के दिल पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा। वे भारी संख्या में सिख धर्म में सम्मिलित होने लगे। इस कारण सिख धर्म और भी लोकप्रिय हो गया।

8. उत्तराधिकारी की नियुक्ति (Nomination of the Successor)-गुरु अमरदास जी ने 1574 ई० में अपने दामाद भाई जेठा जी की नम्रता तथा सेवा भाव से प्रभावित होकर उन्हें अपना उत्तराधिकारी नियुक्त करने का निर्णय किया। गुरु जी ने न केवल भाई जेठा जी को अपना उत्तराधिकारी ही बनाया अपितु गुरुगद्दी उनके वंश में रहने का आशीर्वाद भी दिया। गुरु अमरदास जी 1 सितंबर, 1574 ई० को गोइंदवाल साहिब में ज्योति-जोत समा गए।

9. गुरु अमरदास जी की सफलताओं का मूल्याँकन (Estimate of Guru Amar Das Ji’s Achievements)-गुरु अमरदास जी के नेतृत्व में सिख पंथ ने महत्त्वपूर्ण विकास किया। गुरु जी ने गोइंदवाल साहिब में बाऊली का निर्माण करके, लंगर प्रथा का विस्तार करके, पूर्व गुरुओं की वाणी को एकत्र करके, सामाजिक कुरीतियों का विरोध करके, उदासी संप्रदाय का खंडन करके सिख पंथ के इतिहास में एक मील पत्थर का काम किया। प्रसिद्ध इतिहासकार संगत सिंह के अनुसार,

“गुरु अमरदास जी के अधीन सिख पंथ का तीव्र विकास हुआ।”9
एक अन्य प्रसिद्ध इतिहासकार डॉक्टर डी० एस० ढिल्लों के अनुसार,
“सिख पंथ के विकास में गुरु अमरदास जी ने प्रशंसनीय योगदान दिया।”10

6. “The pontificate of Guru Amar Das Ji is thus a turning point in the history of the Sikh movement.” H. S. Bhatia and S.R. Bakshi, Encyclopaedic History of the Sikhs and Sikhism (New Delhi : 1999) Vol. 1, p. 15.
7. “This institution gave a shattering blow to the rigidity of the caste system and paved the way for social equality.” Dr. Fauja Singh, Perspectives on Guru Amar Das (Patiala : 1982) p. 25.
8. “The establishment of Manji System gave a big thrust to the missionary activities of the Sikhs.” Dr. D.S. Dhillon, Sikhism : Origin and Development (New Delhi : 1988) p. 207.
9. “Under Guru Amar Das, Sikhism made rapid strides.” Sangat Singh, The Sikhs in History (New Delhi : 1996) p. 29. 10. “Guru Amar Das’s contribution to the growth of the Sikh Panth was great.” Dr. D.S. Dhillon, Sikhism : Origin and Development (New Delhi : 1988) p. 94.
11. “These social reforms introduced by Guru Amar Das must be regarded as a turning point in the history of Sikhism.” Dr. B.S. Nijjar, op. cit., p. 83.

“गुरु रामदास जी का जीवन तथा सफलताएँ । (Life and Achievements of Guru Ram Das JI)

प्रश्न 9.
चौथे गुरु रामदास जी के जीवन तथा उनके सिख धर्म तथा सिख पंथ के संगठन में दिए गए योगदान पर एक विस्तृत नोट लिखें।
(Write an informative note on the life history of the fourth Guru Ram Das Ji and his contribution to the Sikh faith and the organisation of the Sikh Panth.)
अथवा
गुरु रामदास जी के अधीन सिख पंथ के विकास का वर्णन करें। (Write a detailed note on the development of Sikhism under Guru Ram Das Ji.)
अथवा
गुरु रामदास जी के जीवन व सफलताओं का वर्णन करो। (Describe the life and achievements of Guru Ram Das Ji.)
अथवा
सिख पंथ में गुरु रामदास जी का क्या योगदान है ?
(Describe the contribution of Guru Ram Das Ji in the development of Sikhism.)
अथवा
सिख इतिहास में गुरु रामदास जी का क्या योगदान है ? (What was the contribution of Guru Ram Das Ji to the development of Sikh History ?)
उत्तर-
गुरु रामदास जी सिखों के चौथे गुरु थे। वह 1574 ई० से लेकर 1581 ई० तक गुरुगद्दी पर आसीन रहे। उनके गुरुकाल में सिख पंथं के संगठन और विकास में महत्त्वपूर्ण प्रगति हुई । गुरु रामदास जी के आरंभिक जीवन और उनके अधीन सिख पंथ के विकास का संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित अनुसार है—

I. गुरु रामदास जी का प्रारंभिक जीवन
(Early Career of Guru Ram Das Ji)

1. जन्म और माता-पिता (Birth and Parentage)-गुरु रामदास जी का जन्म 24 सितंबर, 1534 ई० को चूना मंडी, लाहौर में हुआ था। आपको पहले भाई जेठा जी के नाम से जाना जाता था। आपके पिता जी का नाम हरिदास तथा माता जी का नाम दया कौर था। वे सोढी जाति के क्षत्रिय परिवार से संबंध रखते थे। जेठा जी के माता-पिता बहुत निर्धन थे।

2. बचपन और विवाह (Childhood and Marriage)—भाई जेठा जी बचपन से ही धार्मिक विचारों वाले थे। एक बार आपके माता जी ने आपको उबले हुए चने बेच कर कुछ कमाने को कहा। बाहर जाते समय उन्हें कुछ भूखे साधु मिल गए। आपने सारे चने इन भूखे साधुओं को खिला दिए और स्वयं खाली हाथ लौट आए। आप लोगों की सेवा करने के लिए सदैव तैयार रहते थे। एक बार आपको एक सिख जत्थे के साथ गोइंदवाल साहिब जाने का अवसर मिला। आप वहाँ पर गुरु अमरदास जी के व्यक्तित्व से इतने प्रभावित हुए कि उनके शिष्य बन गए। गुरु अमरदास जी भाई जेठा जी की भक्ति और गुणों को देखकर बहुत प्रभावित हुए। इसलिए गुरु साहिब ने 1553 ई० में अपनी छोटी लड़की बीबी भानी जी का विवाह उनके साथ कर दिया। भाई जेठा जी के घर तीन लड़कों का जन्म हुआ। उनके नाम पृथी चंद (पृथिया), महादेव और अर्जन थे।

3. गुरुगद्दी की प्राप्ति (Assumption of Guruship)—विवाह के पश्चात् भी भाई जेठा जी गोइंदवाल साहिब में ही रहे तथा पहले की तरह गुरु जी की सेवा करते रहे। भाई जेठा जी की निष्काम सेवा, नम्रता और मधुर स्वभाव ने गुरु अमरदास जी का मन मोह लिया था। इसलिए 1 सितंबर, 1574 ई० में गुरु अमरदास जी ने अपने ज्योति-जोत समाने से पूर्व भाई जेठा जी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया। उस समय से भाई जेठा जी को रामदास जी कहा जाने लगा। इस प्रकार गुरु रामदास जी सिखों के चौथे गुरु बने।

II. गुरु रामदास जी के समय सिख पंथ का विकास (Development of Sikhism under Guru Ram Das Ji)
गुरु रामदास जी का गुरुकाल 1574 ई० से 1581 ई० तक था। उनका गुरुकाल का समय बहुत ही कम था। फिर भी उन्होंने सिख पंथ के विकास तथा संगठन में प्रशंसनीय योगदान दिया।—

1. रामदासपुरा की स्थापना (Foundation of Ramdaspura)-गुरु रामदास जी की सिख पंथ को सबसे महत्त्वपूर्ण देन रामदासपुरा अथवा अमृतसर की स्थापना करना था। रामदासपुरा की स्थापना 1577 ई० में हुई। इस शहर को बसाने के लिए गुरु साहिब ने यहाँ भिन्न-भिन्न व्यवसायों से संबंध रखने वाले 52 व्यापारियों को बसाया। इन व्यापारियों ने जो बाजार बसाया वह ‘गुरु का बाज़ार’ नाम से प्रसिद्ध हुआ। गुरु साहिब ने रामदासपुरा में दो सरोवरों अमृतसर एवं संतोखसर की खुदवाई का विचार बनाया। अमृतसर सरोवर के निर्माण का कार्य बाबा बुड्डा जी की देखरेख में हुआ। शीघ्र ही अमृत सरोवर के नाम पर ही रामदासपुरा का नाम अमृतसर पड़ गया। अमृतसर की स्थापना से सिखों को उनका मक्का मिल गया। यह शीघ्र ही सिखों का सर्वाधिक प्रसिद्ध धर्म-प्रचार केंद्र बन गया।

2. मसंद प्रथा का आरंभ (Introduction of Masand System)—गुरु रामदास जी को रामदासपुरा में अमृतसर एवं संतोखसर नामक दो सरोवरों की खुदवाई के लिए धन की आवश्यकता पड़ी। इसलिए गुरु साहिब ने अपने प्रतिनिधियों को अलग-अलग स्थानों पर भेजा ताकि वे सिख मत का प्रचार कर सकें और संगतों से धन एकत्रित कर सकें। यह संस्था मसंद प्रथा के नाम से प्रसिद्ध हुई। मसंद प्रथा के कारण ही सिख मत का दूर-दूर तक प्रचार हुआ। एस० एस० गाँधी के अनुसार,
“मसंद प्रथा ने सिख पंथ को संगठित करने में बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।”12

3. उदासियों से समझौता (Reconciliation With Udasis)-गुरु रामदास जी के समय की एक महत्त्वपूर्ण घटना उदासी तथा सिख संप्रदाय के मध्य समझौता था। एक बार उदासी मत के संस्थापक बाबा श्रीचंद जी गुरु रामदास जी के दर्शनों के लिए अमृतसर आए। वह गुरु साहिब की नम्रता से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने उस दिन के पश्चात् सिख मत का विरोध नहीं किया। यह समझौता सिख पंथ के विकास के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण प्रमाणित हुआ।

4. कुछ अन्य महत्त्वपूर्ण कार्य (Some other important Works)-गुरु जी के अन्य महत्त्वपूर्ण कार्यों में वाणी की रचना (679 शब्द) करना था। उन्होंने चार लावों द्वारा विवाह प्रथा को प्रोत्साहित किया। गुरु साहिब ने पहले से चली आ रही संगत, पंगत और मंजी नामक संस्थाओं को जारी रखा। गुरु साहिब ने समाज में प्रचलित कुरीतियों जैसे-जाति प्रथा, सती प्रथा, बाल विवाह आदि का भी ज़ोरदार शब्दों में खंडन किया।

5. अकबर के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध (Friendly Relations with Akbar)-गुरु रामदास जी के समय में भी सिखों के मुग़ल बादशाह अकबर से मैत्रीपूर्ण संबंध स्थापित रहे। अकबर ने गुरु रामदास जी से लाहौर में मुलाकात की थी। गुरु जी के विचारों से प्रभावित होकर उसने गुरु साहिब के कहने पर पंजाब के कृषकों का एक वर्ष के लिए लगान माफ कर दिया। फलस्वरूप गुरु साहिब की ख्याति में और वृद्धि हुई।

6. उत्तराधिकारी की नियुक्ति (Nomination of the Successor)-1581 ई० में गुरु रामदास जी ने अपने ज्योति-जोत समाने से पूर्व अपने सबसे छोटे पुत्र अर्जन देव जी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया। इसका कारण यह था कि गुरु साहिब के सबसे बड़े पुत्र पृथिया ने अपने षड्यंत्रों के कारण उन्हें नाराज़ कर लिया था। दूसरे पुत्र महादेव को सांसारिक कार्यों में कोई रुचि नहीं थी। अर्जन साहिब प्रत्येक पक्ष से गुरुगद्दी के योग्य थे। गुरु रामदास जी 1 सितंबर, 1581 ई० को ज्योति-जोत समा गए।

7. गुरु रामदास जी की सफलताओं का मूल्याँकन (Estimate of the Achievements of Guru Ram Das Ji)-गुरु रामदास जी अपने गुरुगद्दी काल में सिख पंथ को एक नया स्वरूप देने में सफल हुए। गुरु जी ने रामदासपुरा एवं मसंद प्रथा की स्थापना से, उदासियों के साथ समझौता करके, अपनी वाणी की रचना करके, समाज में प्रचलित कुरीतियों का खंडन करके, संगत, पंगत एवं मंजी संस्थाओं को जारी रख कर तथा अकबर के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध स्थापित करके सिख धर्म की नींव को और सुदृढ़ किया। अंत में हम प्रसिद्ध इतिहासकार डॉक्टर डी० एस० ढिल्लों के इन शब्दों से सहमत हैं,
“गुरु रामदास जी ने अपने लगभग 7 वर्षों के गुरुकाल में सिख पंथ को दृढ़ ढाँचा एवं दिशा प्रदान की।”13

12. “Masand System played a big role in consolidating Sikhism.” S. S. Gandhi, History of the Sikhs (Delhi : 1978) p. 209.
13. “During the short period of his guruship of about seven years, Guru Ram Das provided a well-knit community with a form and content.” Dr. D. S. Dhillon, Sikhism : Origin and Development (New Delhi : 1988) p. 100.

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 5 गुरु अंगद देव जी, गुरु अमरदास जी और गुरु रामदास जी के अधीन सिख धर्म का विकास

प्रश्न 10.
1539 ई० से 1581 ई० तक सिख पंथ के विकास का संक्षिप्त वर्णन करें।
(Describe briefly the development of Sikhism from 1539 to 1581 A.D.)
उत्तर-
गुरु अंगद देव जी 1539 ई० में सिखों के दूसरे गुरु बने। वह 1552 ई० तक गुरुगद्दी पर आसीन रहे। जिस समय गुरु अंगद देव जी गुरुगद्दी पर बैठे थे, उस समय सिख पंथ के सामने कई संकट विद्यमान थे। पहला सिख धर्म का हिंदू धर्म में विलीन हो जाने का खतरा था। दूसरा बड़ा ख़तरा उदासियों से था। सिख अनुयायियों की कम संख्या होने के कारण बहुत से सिख उदासी मत में शामिल होते जा रहे थे। गुरु अंगद साहिब ने अपने यत्नों से सिख पंथ के सम्मुख विद्यमान इन खतरों को दूर किया। गुरु अंगद साहिब ने सिख पंथ के विकास में जो महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई उसका वर्णन निम्नलिखित अनुसार है—

1. गुरमुखी को लोकप्रिय बनाना (Popularisation of Gurmukhi)-गुरुं अंगद देव जी ने गुरमुखी लिपि को लोकप्रिय बनाने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने इसके रूप में एक नया निखार लाया। अब इस लिपि को समझना सामान्य लोगों के लिए सरल हो गया। सिखों के सभी धार्मिक ग्रंथों की रचना इस लिपि में हुई। इस लिपि का नाम गुरमुखी [गुरुओं के मुख से निकली हुई] होने के कारण यह सिखों को गुरु के प्रति अपने कर्तव्य का स्मरण दिलाती रही। इस प्रकार यह लिपि सिखों की अपनी अलग पहचान बनाए रखने में सहायक सिद्ध हुई। इस लिपि के प्रसार के कारण सिखों में तीव्रता से विद्या का प्रसार भी होने लगा। एच० एस० भाटिया एवं एस० आर० बख्शी के अनुसार,
“गुरु अंगद देव जी ने सिखों को हिंदुओं एवं मुसलमानों से एक अलग भाषा दी तथा उन्हें यह अनुभव करवाया कि वे अलग लोग हैं।”2.

2. वाणी का संग्रह (Collection of Hymns)-गुरु अंगद देव जी का दूसरा महान् कार्य गुरु नानक देव जी की वाणी को एकत्रित करना था। यह वाणी एक स्थान पर न होकर अलग-अलग स्थानों पर बिखरी हुई थी। गुरु अंगद साहिब ने इस समूची वाणी को एकत्रित किया। सिख परंपराओं के अनुसार गुरु अंगद देव जी ने एक श्रद्धालु सिख भाई बाला जी को बुलाकर गुरु नानक साहिब के जीवन के संबंध में भाई पैड़ा मौखा जी से एक जन्म साखी लिखवाई। इस साखी को भाई बाला जी की जन्म साखी के नाम से जाना जाता है। कुछ विद्वान् इस तथ्य से सहमत नहीं हैं कि भाई बाला जी की जन्म साखी को गुरु अंगद देव जी के समय लिखा गया था। गुरु अंगद साहिब ने स्वयं ‘नानक’ के नाम से वाणी की रचना की। इस प्रकार गुरु अंगद देव जी ने वाणी के वास्तविक रूप को बिगड़ने से बचाया। दूसरा, इसने आदि ग्रंथ साहिब जी की तैयारी के लिए महत्त्वपूर्ण आधार तैयार किया।

3. लंगर प्रथा का विस्तार (Expansion of Langar System)-लंगर प्रथा के विकास का श्रेय गुरु अंगद देव जी को जाता है। लंगर का समूचा प्रबंध उनकी धर्म पत्नी बीबी खीवी जी करते थे। लंगर में सभी व्यक्ति बिना किसी ऊँच-नीच, जाति के भेदभाव के इकट्ठे मिलकर छकते थे। इस लंगर के लिए सारी माया गुरु जी के सिख देते थे। इस प्रथा के कारण सिखों में परस्पर सहयोग की भावना बढ़ी। इसने हिंदू समाज में फैली जाति-प्रथा पर कड़ा प्रहार किया। इस प्रकार इस संस्था ने सामाजिक एवं आर्थिक असमानता को दूर करने में प्रशंसनीय योगदान दिया। इसके कारण सिख धर्म की ख्याति दूर-दूर तक फैल गई। प्रसिद्ध इतिहासकार प्रोफैसर हरबंस सिंह का यह कहना पूर्णतः सही है, “सामाजिक क्रांति लाने में यह (लंगर) संस्था महत्त्वपूर्ण साधन सिद्ध हुई।”3

4. संगत का संगठन (Organisation of Sangat)-गुरु अंगद देव जी ने गुरु नानक देव जी द्वारा स्थापित संगत संस्था को भी संगठित किया। संगत से अभिप्राय था-एकत्रित होकर बैठना। संगत में सभी धर्मों के लोगस्त्री और पुरुष भाग ले सकते थे। यह संगत सुबह-शाम गुरु जी के उपदेशों को सुनने के लिए एकत्रित होती थी। इस संस्था ने सामाजिक असमानता को दूर करने तथा सिखों को संगठित करने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।

5. उदासी मत का खंडन (Denunciation of the Udasi Sect)-उदासी मत की स्थापना गुरु नानक देव जी के बड़े सुपुत्र बाबा श्रीचंद जी ने की थी। यह मत संन्यास अथवा त्याग के जीवन पर बल देता था। बहुत से सिख उदासी मत को मान्यता देने लग पड़े थे। ऐसी परिस्थितियों में यह संकट उत्पन्न हो गया था कि कहीं सिख गुरु नानक देव जी उपदेशों को भूल कर उदासी मत न अपना लें। अतः गुरु अंगद देव जी ने उदासी मत का कड़ा विरोध किया तथा स्पष्ट किया कि उदासी मत के सिद्धांत सिख धर्म के सिद्धांतों से.सर्वथा विपरीत हैं एवं जो सिख उदासी मत में विश्वास रखता है, वह सच्चा सिख नहीं हो सकता। इस प्रकार गुरु अंगद देव जी ने सिख मत के अस्तित्व को बनाए रखा।

6. शारीरिक शिक्षा (Physical Training)-गुरु अंगद देव जी यह मानते थे कि जिस प्रकार आत्मा की उन्नति के लिए नाम का जाप करना आवश्यक है, ठीक उसी प्रकार शारीरिक स्वस्थता के लिए व्यायाम करना भी आवश्यक है। इस उद्देश्य के साथ गुरु जी ने खडूर साहिब में एक अखाड़ा बनवाया। यहाँ सिख प्रतिदिन प्रातःकाल मल्ल युद्ध तथा अन्य व्यायाम करते थे।

7. गोइंदवाल साहिब की स्थापना (Foundation of Goindwal Sahib)-गुरु अंगद देव जी ने खडूर साहिब के समीप गोइंदवाल साहिब नामक एक नए नगर की स्थापना की। इस नगर का निर्माण कार्य एक श्रद्धालु सेवक अमरदास की देख-रेख में 1546 ई० में आरंभ हुआ। यह नगर शीघ्र ही सिखों का एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थान बन गया।

8. हुमायूँ से भेंट (Meeting with Humayun)-1540 ई० में मुग़ल बादशाह हुमायूँ शेरशाह सूरी के हाथों पराजय के पश्चात् पंजाब पहुँचा। वह खडूर साहिब गुरु अंगद देव जी से आशीर्वाद लेने के लिए पहुँचा। उस समय गुरु जी समाधि में लीन थे। हुमायूँ ने इसे अपना अपमान समझकर तलवार निकाल ली। उस समय गुरु जी ने अपनी आँखें खोली और हुमायूँ से कहा कि, “यह तलवार जिसका तुम मुझ पर प्रयोग करने लगे हो, वह तलवार शेरशाह सूरी के विरुद्ध लड़ाई करते समय कहाँ थी ?” ये शब्द सुनकर हुमायूँ अत्यंत लज्जित हुआ और उसने गुरु जी से क्षमा माँगी। गुरु जी ने हुमायूँ को आशीर्वाद देते हुए कहा कि तुम्हें कुछ समय प्रतीक्षा करने के पश्चात् राज्य सिंहासन प्राप्त होगा। गुरु जी की यह भविष्यवाणी सत्य निकली। इस भेंट के कारण सिखों तथा मुग़लों के मध्य मैत्रीपूर्ण संबंध स्थापित हुए।

9. उत्तराधिकारी की नियुक्ति (Nomination of the Successor)-गुरु अंगद देव जी का सिख पंथ के विकास के लिए सबसे महान् कार्य अमरदास जी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त करना था। गुरु अंगद देव जी ने काफ़ी सोच-समझकर इस उच्च पद के लिए अमरदास जी का चुनाव किया। गुरु जी ने अमरदास जी के सम्मुख एक नारियल और पाँच पैसे रखकर अपना शीश झुकाया। इस प्रकार अमरदास जी को सिखों का तीसरा गुरु नियुक्त किया गया। गुरु अंगद देव जी 29 मार्च, 1552 ई० को ज्योति जोत समा गए।

10. गुरु अंगद देव जी की सफलताओं का मूल्याँकन (Estimate of Guru Angad Dev Ji’s Achievements)-इस प्रकार हम देखते हैं कि गुरु अंगद देव जी ने अपनी गुरुगद्दी के काल में सिख पंथ के विकास में बहुत प्रशंसनीय योगदान दिया। गुरु जी ने गुरमुखी लिपि का प्रचार करके, गुरु नानक साहिब की वाणी को एकत्रित करके, संगत और पंगत संस्थाओं का विस्तार करके, सिख पंथ को उदासी मत से अलग करके, गोइंदवाल साहिब की स्थापना करके और अपना उत्तराधिकारी नियुक्त करके सिख पंथ की नींव को और सुदृढ़ किया। गुरु अंगद देव जी की सफलताओं का मूल्यांकन करते हुए प्रसिद्ध इतिहासकार के० एस० दुग्गल का कहना है,

“यह आश्चर्य वाली बात है कि गुरु अंगद साहिब ने अपने अल्प समय के दौरान कितनी अधिक सफलता प्राप्त कर ली थी।”4
एक अन्य प्रसिद्ध इतिहासकार एस० एस० जौहर के अनुसार,
“गुरु अंगद देव जी का गुरु काल सिख पंथ के इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण मोड़ था।”5

1. “Had Nanak died without a successor, there would have been no Sikhism today.” G.C. Narang, Transformation of Sikhism (New Delhi : 1989) p. 29.
2. “Guru Angad Dev Ji gave the Sikhs a written language different from the language of the Hindus and Muslims and thus made them realise that they were separate people.” H.S. Bhatia and S.R. Bakshi, Encyclopaedic History of the Sikhs and Sikhism (New Delhi : 1999) Vol. 1, p. 12.
3. “This served as an instrument of a far-reaching social revolution.” Prof. Harbans Singh, The Heritage of the Sikhs (Delhi : 1994) p. 31.
4. “It is amazing how much Guru Angad could achieve in the short time at his disposal.” K.S. Duggal, The Sikh Gurus : Their Lives and Teachings (New Delhi : 1993) p. 71.
5. “The pontificate of Guru Angad Dev is indeed a turning point in the history of Sikh faith.” S.S. Johar, Handbook on Sikhism (Delhi : 1979) p. 26.

संक्षिप्त उत्तरों वाले प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
गुरु अंगद देव जी का सिख पंथ के विकास में योगदान बताएँ। (Explain the contribution of Guru Angad Dev Ji to the development of Sikhism.)
अथवा
सिख पंथ के विकास में गुरु अंगद देव जी ने क्या-क्या कार्य किए ?
(What did Guru Angad Dev Ji do for the development of Sikh Panth ?)
अथवा
गुरु अंगद देव जी की किन्हीं तीन ऐसी सफलताओं का वर्णन करें जिनके कारण सिख धर्म का विकास हुआ।
(Write any three achievemnents of Guru Angad Dev Ji for the development of Sikhism.)
अथवा
सिख पंथ के विकास में गुरु अंगद देवो के कोई तीन कार्य बताएँ।
(Mention any three achievements of Guru Angad Dev Ji for the development of Sikhism.)
अथवा
गुरु अंगद देव जी पर एक संक्षिप्त नोट लिखें। (Write a short note on Guru Angad Dev Ji.)
उत्तर-

  1. गुरु अंगद देव जी ने खडूर साहिब को अपने प्रचार का मुख्य केंद्र बनाया।
  2. उन्होंने गुरमुखी लिपि को एक नया रूप प्रदान किया।
  3. गुरु अंगद देव जी ने संगत और पंगत संस्थाओं को अधिक विकसित किया।
  4. उन्होंने अपने अनुयायियों में कठोर अनुशासन लागू किया।
  5. उन्होंने सिख पंथ को उदासी मत से पृथक् करने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।
  6. उन्होंने गोइंदवाल साहिब नामक एक नए नगर की स्थापना की।

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प्रश्न 2.
गुरु अंगद देव जी ने गुरमुखी लिपि को लोकप्रिय बनाने के लिए क्या योगदान दिया ?
(What contribution was made by Guru Angad Dev Ji to improve Gurmukhi script ?)
अथवा
गुरमुखी लिपि को प्रचलित करने के लिए गुरु अंगद देव जी ने क्या योगदान दिया ?
(What contribution was made by Guru Angad Dev Ji to popularise Gurmukhi script ?)
उत्तर-
गुरु अंगद देव जी ने गुरमुखी लिपि को संशोधित कर नया रूप प्रदान किया। परिणामस्वरूप, इस लिपि को समझना लोगों के लिए सरल हो गया। इस लिपि में सिखों के सभी धार्मिक ग्रंथों की रचना हुई। इस लिपि के कारण ब्राह्मण वर्ग को कड़ा आघात पहुँचा क्योंकि वे संस्कृत को ही धर्म की भाषा मानते थे। इस लिपि के लोकप्रिय होने के कारण सिख मत के प्रचार में बड़ी सहायता मिली। यह लिपि विद्या के प्रसार में भी सहायक सिद्ध हुई।

प्रश्न 3.
गुरु अंगद देव जी ने उदासी मत का खंडन किस प्रकार किया ? (How did Guru Angad Dev Ji denounce the Udasi sect ?)
उत्तर-
गुरु अंगद देव जी का सिख मत के विकास की ओर एक अन्य प्रशंसनीय कार्य उदासी मत का खंडन करना था। इस मत की स्थापना गुरु नानक देव जी के बड़े सुपुत्र बाबा श्रीचंद जी ने की थी। यह मत संयास अथवा त्याग के जीवन पर बल देता था, जबकि गुरु नानक देव जी गृहस्थ जीवन के पक्ष में थे। उदासी मत के शेष सिद्धांत गुरु नानक देव जी के सिद्धांतों से मिलते थे। इस कारण बहुत-से सिख उदासी मत को मान्यता देने लग पड़े थे। ऐसी परिस्थितियों में गुरु अंगद साहिब ने उदासी मत का कड़ा विरोध किया। उन्होंने स्पष्ट किया कि जो सिख उदासी मत में विश्वास रखता है, वह सच्चा सिख नहीं हो सकता।

प्रश्न 4.
गुरु अंगद देव जी तथा हुमायूँ में हुई भेंट की संक्षेप जानकारी दें।
(Give a brief account of the meeting between Guru Angad Dev Ji and Humayun.)
उत्तर-
1540 ई० में मुग़ल बादशाह हुमायूँ को शेरशाह सूरी के हाथों कन्नौज के स्थान पर कड़ी पराजय हुई थी। पराजय के पश्चात् हुमायूँ खडूर साहिब गुरु अंगद देव जी से आशीर्वाद लेने के लिए पहुँचा। उस समय गुरु जी समाधि में इतने लीन थे कि उन्होंने आँखें खोलकर नं देखा। हुमायूँ ने क्रोधित होकर अपनी तलवार म्यान से निकाल ली। उसी समय गुरु जी ने अपनी आँखें खोली और हुमायूँ से कहा कि, “यह तलवार शेरशाह सूरी के विरुद्ध लड़ाई करते समय कहाँ थी ?” ये शब्द सुनकर हुमायूँ अत्यंत लज्जित हुआ और उसने गुरु जी से क्षमा माँग ली।

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प्रश्न 5.
संगत के बारे में आप क्या जानते हैं ? (What do you know about Sangat ?)
उत्तर-
संगत संस्था की स्थापना गुरु नानक देव जी ने की थी। संगत संस्था से अभिप्राय एकत्रित रूप में मिलकर बैठने से था। यह संगत सुबह-शाम गुरु जी के उपदेशों तथा सतनाम का जाप करने के लिए एकत्रित होते थी। गुरु अंगद देव जी ने इस संस्था को अधिक संगठित किया। संगत में बिना किसी जाति-पाति अथवा धर्म के भेद-भाव के कोई भी आ सकता था। संगत को ईश्वर का रूप समझा जाता था।

प्रश्न 6.
पंगत अथवा लंगर से आपका क्या भाव है ? (What do you mean by Pangat or Langar ?)
अथवा
लंगर प्रथा के बारे में आप क्या जानते हैं ?
(What do you know about Langar system ?)
अथवा
पंगत अथवा लंगर व्यवस्था पर एक नोट लिखें।
(Write a note on Pangat or Langar.)
उत्तर-
पंगत (लंगर) संस्था की स्थापना भी गुरु नानक देव जी ने की थी। इसके अंतर्गत धर्मों तथा वर्गों के लोग बिना किसी भेदभाव के एक जगह बैठकर खाते थे। गुरु अंगद देव जी ने इसे जारी रखा और गुरु अमरदास जी ने इस संस्था को अधिक विकसित किया। इस संस्था ने समाज में जाति-प्रथा और असमानता की भावनाओं को समाप्त करने में बड़ी सहायता की।

प्रश्न 7.
संगत एवं पंगत के महत्त्व पर एक संक्षिप्त नोट लिखो।
(Write a short note on importance of Sangat and Pangat.)
अथवा
संगत तथा पंगत से आपका क्या अभिप्राय है ?
(What do you mean by Sangat and Pangat ?)
उत्तर-
1540 ई० में मुग़ल बादशाह हुमायूँ को शेरशाह सूरी के हाथों कन्नौज के स्थान पर कड़ी पराजय हुई थी। पराजय के पश्चात् हुमायूँ खडूर साहिब गुरु अंगद देव जी से आशीर्वाद लेने के लिए पहुँचा। उस समय गुरु जी समाधि में इतने लीन थे कि उन्होंने आँखें खोलकर नं देखा। हुमायूँ ने क्रोधित होकर अपनी तलवार म्यान से निकाल ली। उसी समय गुरु जी ने अपनी आँखें खोली और हुमायूँ से कहा कि, “यह तलवार शेरशाह सूरी के विरुद्ध लड़ाई करते समय कहाँ थी ?” ये शब्द सुनकर हुमायूँ अत्यंत लज्जित हुआ और उसने गुरु जी से क्षमा माँग ली।

पंगत (लंगर) संस्था की स्थापना भी गुरु नानक देव जी ने की थी। इसके अंतर्गत धर्मों तथा वर्गों के लोग बिना किसी भेदभाव के एक जगह बैठकर खाते थे। गुरु अंगद देव जी ने इसे जारी रखा और गुरु अमरदास जी ने इस संस्था को अधिक विकसित किया। इस संस्था ने समाज में जाति-प्रथा और असमानता की भावनाओं को समाप्त करने में बड़ी सहायता की।

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प्रश्न 8.
गुरुगद्दी प्राप्त करने के पश्चात् गुरु अमरदास जी को जिंन आरंभिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा उनका संक्षेप वर्णन कीजिए।
(What problems did Guru Amar Das Ji face in the early years of his pontificate ?)
उत्तर-

  1. गुरुगद्दी पर विराजमान होने के पश्चात् गुरु अमरदास जी को सबसे पहले गुरु अंगद देव जी के पुत्रों दासू तथा दातू के विरोध का सामना करना पड़ा। उन्होंने गुरु पुत्र होने के नाते गुरुगद्दी पर अपना अधिकार जताया।
  2. गुरु नानक देव जी के बड़े पुत्र बाबा श्रीचंद भी गुरुगद्दी पर अपना अधिकार समझते थे। उन्होंने भी गुरु अमरदास जी का विरोध करना आरंभ कर दिया।
  3.  गुरु अमरदास जी की बढ़ती हुई ख्याति देख कर गोइंदवाल साहिब के मुसलमान सिखों से ईर्ष्या करने लगे। उन्होंने सिखों के लिए अनेक समस्याएँ उत्पन्न कर दी।

प्रश्न 9.
सिख धर्म के विकास में गुरु अमरदास जी के योगदान के बारे में बताओ।
(Give the contribution of Guru Amar Das Ji for the development of Sikh religion.)
अथवा
सिख धर्म के विकास में गुरु अमरदास जी द्वारा की गई तीन मुख्य सेवाओं का वर्णन करो।
(Write down the three services done by Guru Amar Das Ji for the development of Sikh religion.)
अथवा
गुरु अमरदास जी के कार्यों का मूल्यांकन कीजिए। (From an estimate of the works of Guru Amar Das Ji.)
अथवा
सिख धर्म के विकास में गुरु अमरदास जी के तीन कार्य बताएँ। (Write any three works of Guru Amar Das Ji for the spread of Sikhism.)
अथवा
सिख पंथ के विकास में गुरु अमरदास जी के योगदान का अध्ययन करें। (Study the contribution of Guru Amar Das Ji to the growth of Sikhism.)
उत्तर-

  1. गुरु अमरदास जी ने सर्वप्रथम गोइंदवाल साहिब में बाऊली का निर्माण किया। शीघ्र ही यह सिखों का एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थान बन गया।
  2. उन्होंने लंगर संस्था का अधिक विस्तार किया।
  3. उन्होंने सिख पंथ के प्रचार के लिए मंजी प्रथा की स्थापना की।
  4. गुरु साहिब ने सिख मत को उदासी मत से अलग रखकर लुप्त होने से बचा लिया।
  5. गुरु अमरदास जी ने समाज में प्रचलित कुरीतियों का जोरदार शब्दों में खंडन किया।

प्रश्न 10.
सिख इतिहास में गोइंदवाल साहिब की बाऊली के निर्माण का क्या महत्त्व है ?
(What is importante of the construction of the Baoli of Goindwal Sahib in Sikh History ?)
अथवा
गोइंदवाल साहिब को सिख धर्म का केंद्र क्यों कहा जाता है ? (Why is Goindwal Sahib called the centre of Sikhism-?)
उत्तर-
गुरु अमरदास जी का सिख पंथ के विकास की ओर पहला कदम गोइंदवाल साहिब में एक बाऊली का निर्माण करवाना था। इस पवित्र बाऊली का निर्माण कार्य 1552 ई० से 1559 ई० तक चला। इस बाऊली के निर्माण के पीछे गुरु साहिब के दो उद्देश्य थे। पहला, सिखों को हिंदुओं से अलग तीर्थ स्थान देना चाहते थे। दूसरा, वह वहाँ के लोगों की पानी की कठिनाई को दूर करना चाहते थे। बाऊली के निर्माण से सिखों को एक पवित्र तीर्थ स्थान मिल गया।

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प्रश्न 11.
गुरु अमरदास जी के द्वारा किए गए सामाजिक सुधारों का संक्षेप में वर्णन करें। (Describe briefly the social reforms of Guru Amar Das Ji.)
अथवा
गुरु अमरदास जी के कोई तीन सामाजिक सुधारों का वर्णन करें।
(Describe any three social reforms of Guru Amar Das Ji.)
अथवा
गुरु अमरदास जी को समाज सुधारक क्यों कहा जाता है ?
(Why is.Guru Amar Das called a social reformer ?)
अथवा
गुरु अमरदास जी को समाज सुधारक किन कारणों के लिए कहा जाता है ? (Why is Guru Amar Das Ji called a social reformer ?)
उत्तर-

  1. गुरु अमरदास जी ने सती प्रथा का डटकर विरोध किया।
  2. गुरु साहिब ने बाल विवाह और पर्दा प्रथा का भी विरोध किया।
  3. उन्होंने समाज में प्रचलित जाति प्रथा की बड़े जोरदार शब्दों में आलोचना की।
  4. गुरु अमरदास जी नशीले पदार्थों के सेवन के विरुद्ध थे।
  5. उन्होंने सिखों के जन्म, विवाह और मृत्यु के अवसरों के लिए विशेष रस्में बनाईं।

प्रश्न 12.
गुरु अमरदास जी ने स्त्री जाति के कल्याण के लिए कौन-से सुधार किए ?
(What reforms were made by Guru Amar Das Ji for the welfare of women ?)
उत्तर-

  1. गुरु अमरदास जी ने नवजन्मी कन्याओं को मारने का विरोध किया।
  2. गुरु जी ने बाल विवाह का जोरदार शब्दों में खंडन किया।
  3. उन्होंने पर्दा प्रथा की भी निंदा की।

प्रश्न 13.
मंजी प्रथा क्या थी ? सिख धर्म के विकास में इसने क्या योगदान दिया ?
(What was Manji system ? How did it contribute to the development of Sikhism ?)
अथवा
मंजी प्रथा के बारे में आप क्या जानते हैं ? (What do you know about Manji system ?) .
अथवा
मंजी प्रथा पर एक नोट लिखें। (Write a note on Manji system.)
उत्तर-
गुरु अमरदास जी का एक और महान् कार्य मंजी प्रथा की स्थापना था। उनके समय में सिखों की संख्या इतनी बढ़ गई थी कि गुरु जी के लिए प्रत्येक व्यक्ति तक पहुँचना असंभव था। अतः गुरु साहिब ने अपने उपदेशों को दूर के प्रदेशों तक पहुँचाने के लिए 22 मंजियों की स्थापना की। प्रत्येक मंजी के मुखिया को मंजीदार कहते थे। मंजीदार अधिक-से-अधिक लोगों को सिख धर्म में सम्मिलित होने के लिए प्रेरित करते थे। इसके अतिरिक्त वे सिखों से धन एकत्रित करके गुरु साहिब तक पहुँचाते थे।

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प्रश्न 14.
मंजीदार के प्रमुख कार्य क्या थे ? (What were the main functions of the Manjidar ?)
उत्तर-

  1. वे सिख धर्म के प्रचार के लिए अथक प्रयास करते थे ?
  2. वे गुरु साहिब के आदेशों को सिख संगतों तक पहुँचाते थे।
  3. वे लोगों को धार्मिक शिक्षा देते थे तथा गुरमुखी भाषा का अध्ययन करवाते थे।

प्रश्न 15.
गुरु अमरदास जी के मुग़लों के साथ कैसे संबंध थे ? (What type of relations did Guru Amar Das Ji have with the Mughals ?)
अथवा
मुगल बादशाह अकबर तथा गुरु अमरदास जी के मध्य संबंधों का उल्लेख कीजिए।
(Describe the relations between Mughal emperor Akbar and Guru Amar Das Ji.)
अथवा
मुगल सम्राट अकबर तथा गुरु अमरदास जी के बीच संबंधों का उल्लेख करें। (Explain the relations between the Mughal emperor Akbar and Guru Amar Das Ji.).
उत्तर-
गुरु अमरदास जी के मुग़लों के साथ संबंध मैत्रीपूर्ण थे। 1568 ई० में अकबर गोइंदवाल साहिब आया। उसने गुरु साहिब के दर्शन करने से पूर्व मर्यादानुसार लंगर खाया। वह गुरु साहिब के व्यक्तित्व और लंगर प्रबंध से बहुत प्रभावित हुआ। उसने लंगर प्रबंध को चलाने के लिए कुछ गाँवों की जागीर गुरु जी की सुपुत्री बीबी भानी जी के नाम लगा दी। अकबर की इस यात्रा के कारण गुरु अमरदास जी की प्रसिद्धि बहुत दूर-दूर तक फैल गई। इससे सिख धर्म का प्रसार और प्रचार बढ़ा।

प्रश्न 16.
गुरु रामदास जी का सिख धर्म को क्या योगदान था ?
(What was the contribution of Guru Ram Das Ji to Sikh religion ?)
अथवा
सिख मत के विकास में गुरु रामदास जी द्वारा दिये गए योगदान का वर्णन करो।
(Explain the contribution of Guru Ram Das Ji to the growth of Sikhism.)
उत्तर-
गुरु रामदास जी का गुरु काल 1574 ई० से 1581 ई० तक रहा। गुरु साहिब ने सर्वप्रथम रामदासपुरा (अमृतसर) की स्थापना की। इसके अतिरिक्त गुरु साहिब ने यहाँ पर दो सरोवरों अमृतसर और संतोखसर की खुदाई का कार्य भी आरंभ किया। गुरु साहिब ने सिख धर्म के प्रचार तथा उसके विकास के लिए धन एकत्रित करने के लिए मसंद प्रथा की स्थापना की। गुरु रामदास जी ने सिखों और उदासियों के मध्य लंबे समय से चले आ रहे मतभेदों को समाप्त किया। गुरु साहिब ने संगत और पंगत संस्थाओं को जारी रखा।

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प्रश्न 17.
रामदासपुरा (अमृतसर) की स्थापना का सिख इतिहास में क्या महत्त्व है ?
[What is the importance of foundation of Ramdaspura (Amritsar) in Sikh History ?]
उत्तर-
गुरु रामदास जी की सिख पंथ को सबसे महत्त्वपूर्ण देन 1577 ई० में रामदासपुरा अथवा अमृतसर की स्थापना करना था। गुरुगद्दी प्राप्त करने के पश्चात् गुरु साहिब स्वयं यहाँ आ गए थे। इस शहर को बसाने के लिए गुरु साहिब ने यहाँ भिन्न-भिन्न व्यवसायों से संबंधित 52 अन्य व्यापारियों को बसाया। अमृतसर की स्थापना सिख पंथ के इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है। इससे सिखों को एक अलग तीर्थ स्थान मिल गया।

प्रश्न 18.
उदासी मत पर एक संक्षिप्त नोट लिखें। (Write a short note on Udasi sect.)
अथवा
उदासी प्रथा के बारे में आप क्या जानते हैं ? (What do you know about Udasi system ?)
अथवा
बाबा श्रीचंद जी पर एक संक्षिप्त नोट लिखें। (Write a brief note on Baba Sri Chand Ji.) .
उत्तर-
उदासी मत की स्थापना गुरु नानक देव जी के बड़े पुत्र बाबा श्रीचंद जी ने की थी। यह मत त्याग और वैराग्य पर बल देता था। यह मत योग तथा प्रकृति उपासना में भी विश्वास रखता था। बहुत-से सिख बाबा श्रीचंद जी के जीवन से प्रभावित होकर उदासी मत में सम्मिलित होने लग पड़े थे। इसलिए गुरु अंगद देव जी और गुरु अमरदास जी ने जोरदार शब्दों में उदासी मत का खंडन किया। उनका कहना था कि कोई भी सच्चा सिख उदासी नहीं हो सकता था। गुरु अमरदास जी के काल में उदासियों एवं सिखों के बीच समझौता हो गया।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

(i) एक शब्द से एक पंक्ति तक के उत्तर (Answer in One Word to One Sentence)

प्रश्न 1.
सिखों के दूसरे गुरु कौन थे ?
उत्तर-
गुरु अंगद देव जी।

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प्रश्न 2.
गुरु अंगद देव जी का जन्म कब हुआ?
उत्तर-
1504 ई०।

प्रश्न 3.
गुरु अंगद देव जी का जन्म कहाँ हुआ?
उत्तर-
मत्ते की सराए (श्री मुक्तसर साहिब)।

प्रश्न 4.
गुरु अंगद देव जी की माता जी का नाम क्या था?
उत्तर-
सभराई देवी जी।।

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प्रश्न 5.
गुरु अंगद देव जी के पिता जी का क्या नाम था ?
उत्तर-
फेरूमल जी।

प्रश्न 6.
गुरु अंगद देव जी का आरंभिक नाम क्या था?
उत्तर-
भाई लहणा जी।

प्रश्न 7.
गुरु अंगद देव जी ने गुरुगद्दी कब प्राप्त की?
उत्तर-
1539 ई०।

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प्रश्न 8.
भाई लहणा जी को गुरु अंगद देव जी का नाम किसने दिया?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी।

प्रश्न 9.
गुरु अंगद देव जी का विवाह किससे हुआ?
उत्तर-
बीबी खीवी जी।

प्रश्न 10.
गुरु अंगद देव जी के पुत्रों के नाम लिखो।
उत्तर-
दातू और दास।

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प्रश्न 11.
गुरु अंगद देव जी की पुत्रियों के नाम लिखो।
उत्तर-
बीबी अमरो तथा बीबी अनोखी।

प्रश्न 12.
गुरु अंगद देव जी की धार्मिक गतिविधियों का केंद्र कौन-सा था?
उत्तर-
खडूर साहिब।

प्रश्न 13.
गुरुमुखी लिपि को किस गुरु साहिब ने लोकप्रिय बनाया?
उत्तर-
गुरु अंगद देव जी।

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प्रश्न 14.
गोइंदवाल साहिब की नींव किस गुरु साहिब ने रखी?
अथवा
गोइंदवाल साहिब की स्थापना किस गुरु जी ने की थी?
अथवा
दूसरे गुरु साहिब ने किस नगर की स्थापना की थी?
उत्तर-
गुरु अंगद साहिब जी।

प्रश्न 15.
गोइंदवाल साहिब की नींव कब रखी गई थी?
उत्तर-
1546 ई०।

प्रश्न 16.
सिख पंथ के विकास में गुरु अंगद देव जी का कोई एक महत्त्वपूर्ण योगदान बताएँ।
अथवा
गुरु अंगद देव जी ने सिख धर्म के प्रसार के लिए क्या किया?
उत्तर-
उन्होंने गुरुमुखी लिपि को लोकप्रिय बनाया।

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प्रश्न 17.
उदासी मत का संस्थापक कौन था?
उत्तर-
बाबा श्रीचंद जी।

प्रश्न 18.
उदासी मत से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
इस मत में संन्यासी जीवन पर बल दिया जाता था।

प्रश्न 19.
कौन-से मुग़ल बादशाह ने गुरु अंगद साहिब जी से खडूर साहिब में मुलाकात की?
अथवा
किस मुगल बादशाह ने गुरु अंगद देव जी के साथ मुलाकात की?
उत्तर-
हुमायूँ।

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प्रश्न 20.
मुगल बादशाह हुमायूँ ने किस गुरु साहिब जी से आशीर्वाद लिया था ?
उत्तर-
गुरु अंगद देव जी।

प्रश्न 21.
सिखों के तीसरे गुरु कौन थे ?
उत्तर-
गुरु अमरदास जी।

प्रश्न 22.
गुरु अमरदास जी का जन्म कब हुआ ?
उत्तर-
1479 ई० में।

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प्रश्न 23.
गुरु अमरदास जी का जन्म कहाँ हुआ ?
उत्तर-
बासरके गाँव में।

प्रश्न 24.
गुरु अमरदास जी की माता जी का नाम बताएँ।
उत्तर-
सुलक्खनी जी।

प्रश्न 25.
गुरु अमरदास जी के पिता जी का क्या नाम था ?
उत्तर-
तेजभान जी।

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प्रश्न 26.
गुरु अमरदास जी किस जाति से संबंधित थे ?
उत्तर-
भल्ला

प्रश्न 27.
बीबी भानी कौन थी ?
अथवा
बीबी दानी कौन थी ?
उत्तर-
गुरु अमरदास जी की सुपुत्री।

प्रश्न 28.
बाबा मोहरी जी किस गुरु साहिब के सुपुत्र थे ?
उत्तर-
बाबा मोहरी जी गुरु अमरदास जी के सुपुत्र थे।

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प्रश्न 29.
गुरु अमरदास जी जिस समय गुरुगद्दी पर बैठे तो उस समय उनकी आयु क्या थी ?
उत्तर-
73 वर्ष।

प्रश्न 30.
गुरु अमरदास जी गुरुगद्दी पर कब विराजमान हुए ?
उत्तर-
1552 ई० में।

प्रश्न 31.
गुरु अमरदास जी का गुरुकाल बताएँ ।
उत्तर-
1552 ई० से 1574 ई०।

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प्रश्न 32.
गोइंदवाल साहिब में बाऊली का निर्माण किसने करवाया ?
उत्तर-
गुरु अमरदास जी।

प्रश्न 33.
गोइंदवाल साहिब में पवित्र बाऊली का निर्माण कब किया गया ?
उत्तर-
1552 ई० में।

प्रश्न 34.
गोइंदवाल साहिब की बाऊली में कितनी सीढ़ियाँ बनाई गई थीं ?
उत्तर-
84.

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प्रश्न 35.
गुरु अमरदास जी की कोई एक सफलता लिखें।
उत्तर-
गोइंदवाल साहिब में बाऊली का निर्माण।

प्रश्न 36.
मंजी प्रथा की स्थापना किस गुरु साहिब ने की ?
उत्तर-
गुरु अमरदास जी।

प्रश्न 37.
गुरु अमरदास जी ने कितनी मंजियों की स्थापना की ?
उत्तर-
22 मंजियों की।

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प्रश्न 38.
मंजी प्रथा का उद्देश्य क्या था ?
उत्तर-
सिख मत का प्रचार करना।

प्रश्न 39.
मंजी प्रथा ने सिख धर्म के विकास में क्या योगदान दिया ?
उत्तर-
मंजी प्रथा ने सिख धर्म को लोकप्रिय बनाया।

प्रश्न 40.
गुरु अमरदास जी ने कितने शब्दों की रचना की ?
उत्तर-
907 शब्दों की।

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प्रश्न 41.
आनंदु साहिब वाणी की रचना किस गुरु साहिब ने की थी ?
उत्तर-
गुरु अमरदास जी।

प्रश्न 42.
गुरु अमरदास जी का कोई एक महत्त्वपूर्ण सामाजिक सुधार बताएँ।
उत्तर-
गुरु अमरदास जी ने सती प्रथा का खंडन किया।

प्रश्न 43.
गुरु अमरदास जी से भेंट करने कौन-सा मुग़ल बादशाह गोइंदवाल साहिब आया था ?
उत्तर-
अकबर।

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प्रश्न 44.
मुग़ल बादशाह अकबर गोइंदवाल साहिब कब आया था ?
उत्तर-
1568 ई०।

प्रश्न 45.
गुरु अमरदास जी ने अपना उत्तराधिकारी किसे नियुक्त किया ?
उत्तर-
गुरु रामदास जी।

प्रश्न 46.
गुरु अमरदास जी कब ज्योति-जोत समाए ?
उत्तर-
1574 ई०।

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प्रश्न 47.
सिखों के चौथे गुरु कौन थे ?
उत्तर-
गुरु रामदास जी।

प्रश्न 48.
गुरु रामदास जी का गुरु काल कौन-सा था ?
उत्तर-
1574 ई० से 1581 ई०

प्रश्न 49.
गुरु रामदास जी का जन्म कब हुआ?
उत्तर-
1534 ई०।

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प्रश्न 50.
गुरु रामदास जी का आरंभिक नाम क्या था?
अथवा
गुरु रामदास जी का पहला नाम क्या था ?
उत्तर-
भाई जेठा जी।

प्रश्न 51.
गुरु रामदास जी की माता जी का क्या नाम था?
उत्तर-
दया कौर।

प्रश्न 52.
गुरु रामदास जी के पिता जी का क्या नाम था?
उत्तर-
हरिदास।

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प्रश्न 53.
गुरु रामदास जी का संबंध किस जाति से था ?
उत्तर-
सोढी।

प्रश्न 54.
सोढी सुल्तान किस गुरु साहिब को कहा जाता है ?
उत्तर-
गुरु रामदास जी को।

प्रश्न 55.
गुरु रामदास जी का विवाह किससे हुआ था ?
अथवा
गुरु रामदास जी की पत्नी का नाम लिखो।
उत्तर-
बीबी भानी जी से।

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प्रश्न 56.
बीबी भानी कौन थी?
उत्तर-
गुरु रामदास जी की पत्नी।

प्रश्न 57.
गुरु रामदास जी के पुत्रों के क्या नाम थे ?
उत्तर-
पृथी चंद, महादेव तथा अर्जन देव जी।

प्रश्न 58.
पृथी चंद कौन था ?
उत्तर-
गुरु रामदास जी का ज्येष्ठ पुत्र।

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प्रश्न 59.
गुरु रामदास जी कब गुरुगद्दी पर बैठे ?
उत्तर-
1574 ई०।

प्रश्न 60.
सिख पंथ के विकास के लिए रामदास जी द्वारा किए गए कोई एक कार्य का वर्णन कीजिए।
अथवा
गुरु रामदास जी की कोई एक महत्त्वपूर्ण सफलता का उल्लेख करें।
उत्तर-
रामदासपुरा शहर की स्थापना।

प्रश्न 61.
रामदासपुरा की स्थापना कब की गई थी ?
उत्तर-
1577 ई०।

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प्रश्न 62.
रामदासपुरा किस नाम से प्रसिद्ध हुआ ?
उत्तर-
अमृतसर।

प्रश्न 63.
अमृतसर का पहला नाम क्या था ?
उत्तर-
रामदासपुरा।

प्रश्न 64.
अमृतसर नगर की नींव कब रखी गई थी ?
उत्तर-
1577 ई०।

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प्रश्न 65.
अमृसतर की स्थापना किस गुरु साहिब जी ने की ?
उत्तर-
गुरु रामदास जी।

प्रश्न 66.
सिखों और उदासियों के बीच समझौता किस गुरु के समय में हुआ ?
उत्तर-
गुरु रामदास जी।

प्रश्न 67.
मसंद प्रथा किसने चलाई थी ?
अथवा
मसंद प्रथा किस गरु ने शुरू की ?
उत्तर-
गुरु रामदास जी।

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प्रश्न 68.
मसंद प्रथा का कोई एक उद्देश्य बताओ।
उत्तर-
सिख धर्म का प्रचार करना।

प्रश्न 69.
‘चार लावां’ का उच्चारण किस गुरु साहिब ने किया ?
अथवा
विवाह के समय लावां की प्रथा किस गुरु साहिब ने आरंभ की थी?
उत्तर-
गुरु रामदास जी ने।

प्रश्न 70.
गुरु रामदास जी ने कितने शब्दों की रचना की ?
उत्तर-
679 शब्दों की।

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प्रश्न 71.
चार लावों की रचना किस गुरु साहिब ने की थी ?
उत्तर-
गुरु रामदास जी ने।

प्रश्न 72.
गुरु रामदास जी कब ज्योति-ज्योत समाए थे ?
उत्तर-
1581 ई० में।

प्रश्न 73.
गुरु रामदास जी के उत्तराधिकारी कौन थे ?
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी।

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(ii) रिक्त स्थान भरें (Fill in the Blanks)

प्रश्न 1.
सिखों के दूसरे गुरु ……………. थे।
उत्तर-
(अंगद देव जी)

प्रश्न 2.
गुरु अंगद देव जी का आरंभिक नाम ……………… था।
उत्तर-
(भाई लहणा जी)

प्रश्न 3.
गुरु अंगद देव जी का जन्म ………………. को हुआ।
उत्तर-
(1504 ई०)

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प्रश्न 4.
गुरु अंगद देव जी के पिता जी का नाम ……… था।
उत्तर-
(फेरूमल)

प्रश्न 5.
गुरु अंगद देव जी …………… में गुरुगद्दी पर बैठे थे।
उत्तर-
(1539 ई०)

प्रश्न 6.
गुरमुखी लिपि को ………….. ने लोकप्रिय बनाया।
उत्तर-
(गुरु अंगद देव जी)

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प्रश्न 7.
……………… उदासी मत के संस्थापक थे।
उत्तर-
(बाबा श्री चंद जी)

प्रश्न 8.
गुरु अंगद देव जी ने गोइंदवाल साहिब की स्थापना ……………… में की।
उत्तर-
(1546 ई०)

प्रश्न 9.
गुरु अंगद देव जी …………. में ज्योति-ज्योत समाए।
उत्तर-
(1552 ई०)

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प्रश्न 10.
सिखों के तीसरे गुरु ……………….. थे।
उत्तर-
(गुरु अमरदास जी)

प्रश्न 11.
गुरु अमरदास जी का जन्म ………………. में हुआ।
उत्तर-
(1479 ई०)

प्रश्न 12.
गुरु अमरदास जी ………… जाति के साथ संबंधित थे।
उत्तर-
(भल्ला )

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प्रश्न 13.
गुरु अमरदास जी …………….. में गुरुगद्दी पर बैठे।
उत्तर-
(1552 ई०)

प्रश्न 14.
गुरु अमरदास जी …………….. की आयु में सिखों के तीसरे गुरु बने।
उत्तर-
(73 वर्ष)

प्रश्न 15.
गुरु अमरदास जी ने …………. में बाऊली का निर्माण करवाया।
उत्तर-
(गोइंदवाल साहिब)

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प्रश्न 16.
गुरु अमरदास जी ने गोइंदवाल साहिब में बाऊली का निर्माण …………. में आरंभ करवाया।
उत्तर-
(1552 ई०)

प्रश्न 17.
मंजी प्रथा की स्थापना ……………… ने की थी।
उत्तर-
(गुरु अमरदास जी)

प्रश्न 18.
मुग़ल बादशाह ……………. गोइंदवाल साहिब में गुरु अमरदास जी से मिलने आया था।
उत्तर-
(अकबर)

प्रश्न 19.
गुरु अमरदास जी और मुग़ल बादशाह …………. के मध्य मुलाकात हुई।
उत्तर-
(अकबर)

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प्रश्न 20.
गुरु अमरदास जी …………….. में ज्योति-ज्योत समाए।
उत्तर-
(1574 ई०)

प्रश्न 21.
…………….. सिखों के चौथे गुरु थे।
उत्तर-
(गुरु रामदास जी)

प्रश्न 22.
गुरु रामदास जी का आरंभिक नाम ……………. था।
उत्तर-
(भाई जेठा जी)

प्रश्न 23.
गुरु रामदास जी …………… जाति से संबंधित थे। ।
उत्तर-
(सोढी)

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प्रश्न 24.
गुरु रामदास जी का विवाह …………….. के साथ हुआ था।
उत्तर-
(बीबी भानी)

प्रश्न 25.
गुरु रामदास जी …………………… में गुरुगद्दी पर बैठे। .
उत्तर-
(1574 ई०)

प्रश्न 26.
गुरु रामदास जी ने …………….. में रामदासपुरा की स्थापना की।
उत्तर-
(1577 ई०)

प्रश्न 27.
………………. ने मसंद प्रथा की स्थापना की।
उत्तर-
(गुरु रामदास जी)

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(ii) ठीक अथवा गलत (True or False)

नोट-निम्नलिखित में से ठीक अथवा गलत चुनें-

प्रश्न 1.
गुरु अंगद देव जी सिखों के तीसरे गुरु थे।
उत्तर-
गलत

प्रश्न 2.
गुरु अंगद देव जी का आरंभिक नाम भाई लहणा जी था।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 3.
गुरु अंगद देव जी के पिता जी का नाम तेज भान था।
उत्तर-
गलत

प्रश्न 4.
गुरु अंगद देव जी की माता जी का नाम सभराई देवी था।
उत्तर-
ठीक

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प्रश्न 5.
गुरु अंगद देव जी का विवाह बीबी खीवी के साथ हुआ था।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 6.
गुरु अंगद देव जी 1539 ई० में सिखों के दूसरे गुरु बने।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 7.
गुरु अंगद देव जी ने फ़ारसी को लोकप्रिय बनाने के लिए महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।
उत्तर-
गलत

प्रश्न 8.
उदासी मत की स्थापना बाबा श्रीचंद जी ने की थी।
उत्तर-
ठीक

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प्रश्न 9.
गुरु अंगद देव जी की मुग़ल बादशाह अकबर के साथ भेंट हुई थी।
उत्तर-
गलत

प्रश्न 10.
गुरु अंगद देव जी 1539 ई० में ज्योति-ज्योत समाए थे।
उत्तर-
गलत

प्रश्न 11.
गुरु अमरदास जी सिखों के तीसरे गुरु थे।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 12.
गुरु अमरदास जी का जन्म 1479 ई० को हुआ था।
उत्तर-
ठीक

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प्रश्न 13.
गुरु अमरदास जी के पिता जी का नाम तेज़ भान था।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 14.
बीबी भानी गुरु अमरदास जी की पुत्री का नाम था।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 15.
गुरु अमरदास जी 1552 ई० में गुरुगद्दी पर विराजमान हुए।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 16.
गुरु अमरदास जी ने गोइंदवाल साहिब में बाऊली का निर्माण करवाया।
उत्तर-
ठीक

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प्रश्न 17.
गुरु रामदास जी ने मंजी प्रथा की स्थापना की थी।
उत्तर-
गलत

प्रश्न 18.
गुरु अमरदास जी ने सती प्रथा का जोरदार शब्दों में खंडन किया।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 19.
गुरु रामदास जी सिखों के चौथे गुरु थे।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 20.
गुरु रामदास जी का आरंभिक नाम भाई जेठा जी था।
उत्तर-
ठीक

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प्रश्न 21.
गुरु रामदास जी सोढी जाति से संबंधित थे।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 22.
गुरु रामदास जी की पत्नी का नाम बीबी भानी था।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 23.
गुरु रामदास जी 1574 ई० को गुरुगद्दी पर बिराजमान हुए।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 24.
रामदासपुरा की स्थापना 1577 ई० में की गई।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 25.
गुरु अमरदास जी ने मसंद प्रथा को आरंभ किया था।
उत्तर-
गलत

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प्रश्न 26.
गुरु रामदास जी के समय सिखों और उदासियों के मध्य समझौता हो गया था।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 27. गुरु रामदास जी ने सिखों में चार लावाँ द्वारा विवाह करने की मर्यादा आरंभ की।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 28.
गुरु रामदास जी 1581 ई० में ज्योति-ज्योत समाए थे।
उत्तर-
ठीक

(iv) बहु-विकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions)

नोट-निम्नलिखित में से ठीक उत्तर का चयन कीजिए

प्रश्न 1.
सिखों के दूसरे गुरु कौन थे ?
(i) गुरु अमरदास जी
(ii) गुरु रामदास जी
(ii) गुरु अंगद देव जी
(iv) गुरु अर्जन देव जी।
उत्तर-
(iii)

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प्रश्न 2.
गुरु अंगद देव जी का जन्म कब हुआ?
(i) 1469 ई० में
(ii) 1479 ई० में
(iii) 1501 ई० में
(iv) 1504 ई० में।
उत्तर-
(iv)

प्रश्न 3.
गुरु अंगद देव जी का जन्म कहाँ हुआ ?
(i) मत्ते की सराय
(ii) कीरतपुर साहिब
(iii) गोइंदवाल साहिब
(iv) हरीके।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 4.
गुरु अंगद देव जी का आरंभिक नाम क्या था ?
(i) भाई जेठा जी
(ii) भाई लहणा जी
(iii) भाई गुरदित्ता जी
(iv) भाई दासू जी।
उत्तर-
(ii)

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प्रश्न 5.
गुरु अंगद देव जी के पिता जी कौन थे ?
(i) त्याग मल जी
(ii) फेरूमल जी
(iii) तेजभान जी
(iv) मेहरबान जी।
उत्तर-
(ii)

प्रश्न 6.
गुरु अंगद देव जी की माता जी का क्या नाम था ?
(i) लक्ष्मी देवी जी
(ii) सभराई देवी जी
(iii) मनसा देवी जी
(iv) सुभाग देवी जी।
उत्तर-
(ii)

प्रश्न 7.
गुरु अंगद देव जी की पत्नी कौन थी ?
(i) बीबी खीवी जी
(ii) बीबी नानकी जी
(iii) बीबी अमरो जी
(iv) बीबी भानी जी।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 8.
गुरु अंगद देव जी कब गुरुगद्दी पर बैठे ?
(i) 1529 ई० में
(ii) 1538 ई० में
(iii) 1539 ई० में ।
(iv) 1552 ई० में।
उत्तर-
(ii)

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प्रश्न 9.
गुरु अंगद देव जी की धार्मिक गतिविधियों का केंद्र कौन-सा था ?
(i) गोइंदवाल साहिब
(ii) अमृतसर
(iii) खडूर साहिब
(iv) सुल्तानपुर लोधी।
उत्तर-
(iii)

प्रश्न 10.
किस गुरु साहिब ने गुरुमुखी लिपि को लोकप्रिय बनाया ?
(i) गुरु नानक देव जी ने
(ii) गुरु अंगद देव जी ने
(iii) गुरु अमरदास जी ने
(iv). गुरु गोबिंद सिंह जी ने।
उत्तर-
(ii)

प्रश्न 11.
उदासी मत का संस्थापक कौन था ?
(i) बाबा श्री चंद जी
(ii) बाबा लख्मी दास जी
(iii) बाबा मोहन जी
(iv) बाबा मोहरी जी।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 12.
गुरु अंगद साहिब ने किस नगर की स्थापना की थी ?
(i) करतारपुर
(ii) तरनतारन
(iii) कीरतपुर साहिब
(iv) गोइंदवाल साहिब।
उत्तर-
(iv)

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प्रश्न 13.
कौन-सा मुग़ल बादशाह गुरु अंगद साहिब को मिलने के लिए खडूर साहिब आया था ?
(i) बाबर
(ii) हुमायूँ
(iii) अकबर
(iv) जहाँगीर।
उत्तर-
(ii)

प्रश्न 14.
गुरु अंगद साहिब जी कब ज्योति-जोत समाए ?
(i) 1550 ई० में
(ii) 1551 ई० में
(iii) 1552 ई० में
(iv) 1554 ई० में।
उत्तर-
(iii)

प्रश्न 15.
सिखों के तीसरे गुरु कौन थे ?
(i) गुरु अंगद देव जी
(ii) गुरु रामदास जी
(iii) गुरु अमरदास जी
(iv) गुरु अर्जन देव जी।
उत्तर-
(iii)

प्रश्न 16.
गुरु अमरदास जी का जन्म कब हुआ ?
(i) 1458 ई० में
(ii) 1465 ई० में
(iii) 1469 ई० में
(iv) 1479 ई० में।
उत्तर-
(iv)

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प्रश्न 17.
गुरु अमरदास जी का जन्म कहाँ हुआ ?
(i) खडूर साहिब
(ii) हरीके
(iii) बासरके
(iv) गोइंदवाल साहिब।
उत्तर-
(iii)

प्रश्न 18.
गुरु अमरदास जी के पिता जी का क्या नाम था ?
(i) तेजभान भल्ला
(ii) मेहरबान
(iii) मोहन दास
(iv) फेरूमल।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 19.
बीबी भानी जी कौन थी ?
(i) गुरु अंगद देव जी की पुत्री
(ii) गुरु अमरदास जी की पत्नी
(iii) गुरु अमरदास जी की पुत्री
(iv) गुरु रामदास जी की पुत्री।
उत्तर-
(iii)

प्रश्न 20.
आनंदु साहिब की रचना किस गुरु साहिबान ने की थी ?
(i) गुरु नानक देव जी ने
(ii) गुरु अंगद देव जी ने
(iii) गुरु अमरदास जी ने
(iv) गुरु रामदास जी ने।
उत्तर-
(iii) गुरु अमरदास जी ने

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प्रश्न 21.
किस गुरु साहिबान ने मंजी प्रथा की स्थापना की थी ?
(i) गुरु अंगद देव जी ने
(ii) गुरु अमरदास जी ने
(iii) गुरु रामदास जी ने
(iv) गुरु अर्जन देव जी ने।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 22.
मंजी प्रथा की स्थापना का मुख्य उद्देश्य क्या था ?
(i) सिख धर्म का प्रचार करना
(ii) लंगर के लिए अनाज इकट्ठा करना
(iii) गुरुद्वारे का निर्माण करना ।
(iv) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 23.
गुरु अमरदास जी ने कुल कितनी मंजियों की स्थापना की ? (
(i) 20
(ii) 24
(iii) 26
(iv) 22
उत्तर-
(iv)

प्रश्न 24.
गुरु अमरदास जी ने निम्नलिखित में से किस बुराई का खंडन किया ?
(i) बाल विवाह.
(ii) सती प्रथा
(iii) पर्दा प्रथा
(iv) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(iv)

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प्रश्न 25.
गुरु अमरदास जी की धार्मिक गतिविधियों का केंद्र कौन-सा था ?
(i) अमृतसर
(ii) गोइंदवाल साहिब
(iii) खडूर साहिब
(iv) लाहौर।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 26.
गुरु अमरदास जी कब ज्योति-जोत समाए थे ?
(i) 1552 ई० में
(ii) 1564 ई० में
(iii) 1568 ई० में
(iv) 1574 ई० में।
उत्तर-
(iv)

प्रश्न 27.
सिखों के चौथे गुरु कौन थे ?
(i) गुरु रामदास जी
(ii) गुरु अमरदास जी
(iii) गुरु अर्जन देव जी
(iv) गुरु हरकृष्ण जी।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 28.
गुरु रामदास जी का जन्म कब हुआ ?
(i) 1479 ई० में
(ii) 1524 ई० में
(iii) 1534 ई० में
(iv) 1539 ई० में।
उत्तर-
(iii)

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प्रश्न 29.
गुरु रामदास जी का आरंभिक नाम क्या था ?
(i) भाई बाला जी
(ii) भाई जेठा जी
(iii) भाई लहणा जी
(iv) भाई मरदाना जी।
उत्तर-
(ii)

प्रश्न 30.
गुरु रामदास जी के पिता जी का क्या नाम था ?
(i) हरीदास जी
(i) अमरदास जी
(iii) तेजभान जी
(iv) फेरूमल जी।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 31.
गुरु रामदास जी की माता जी का क्या नाम था ?
(i) दया कौर जी
(ii) रूप कौर जी
(iii) सुलक्खनी जी
(iv) लक्ष्मी जी।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 32.
गुरु रामदास जी कौन-सी जाति से संबंधित थे ?
(i) बेदी
(ii) भल्ला
(iii) सोढी
(iv) सेठी।
उत्तर-
(iii)

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प्रश्न 33.
गुरु रामदास जी का विवाह किसके साथ हुआ था ?
(i) बीबी दानी जी
(i) बीबी भानी जी
(iii) बीबी अमरो जी
(iv) बीबी अनोखी जी।
उत्तर-
(ii)

प्रश्न 34.
पृथी चंद कौन था ?
(i) गुरु रामदास का बड़ा भाई
(ii) गुरु अर्जन देव जी का बड़ा भाई
(iii) गुरु अर्जन देव जी का पुत्र
(iv) गुरु हरगोबिंद जी का पुत्र।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 35.
गुरु रामदास जी गुरुगद्दी पर कब बैठे ?
(i) 1534 ई० में
(ii) 1552 ई० में
(iii) 1554 ई० में
(iv) 1574 ई० में।
उत्तर-
(iv)

प्रश्न 36.
रामदासपुरा अथवा अमृतसर की स्थापना किस गुरु साहिबान ने की थी ?
(i) गुरु अमरदास जी ने ।
(ii) गुरु रामदास जी ने
(iii) गुरु अर्जन देव जी ने
(iv) गुरु हरगोबिंद जी ने।
उत्तर-
(ii)

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प्रश्न 37.
गुरु जी ने रामदासपुरा की नींव कब रखी थी ?
(i) 1574 ई० में
(ii) 1575 ई० में
(iii) 1576 ई० में
(iv) 1577 ई० में।
उत्तर-
(iv)

प्रश्न 38.
मसंद प्रथा का आरंभ किस गुरु ने किया था ?
(i) गुरु रामदास जी
(ii) गुरु अर्जन देव जी
(iii) गुरु अमरदास जी
(iv) गुरु तेग़ बहादुर जी।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 39.
किस गुरु साहिबान के समय उदासियों और सिखों के बीच समझौता हुआ था ? ।
(i) गुरु अंगद देव जी
(ii) गुरु अमरदास जी
(iii) गुरु रामदास जी
(iv) गुरु अर्जन देव जी।
उत्तर-
(iii)

प्रश्न 40.
चार लावां की प्रथा किस गुरु साहिबान ने आरंभ की ?
(i) गुरु अमरदास जी ने
(ii) गुरु रामदास जी ने
(iii) गुरु अर्जन देव जी ने
(iv) गुरु हरगोबिंद जी ने।
उत्तर-
(ii)

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प्रश्न 41.
कौन-सा मुगल बादशाह गुरु रामदास जी को मिलने आया था ?
(i) बाबर
(i) हुमायूँ
(iii) अकबर
(iv) औरंगज़ेब।
उत्तर-
(iii)

प्रश्न 42.
गुरु रामदास जी कब ज्योति-जोत समाए.?
(i) 1565 ई० में
(ii) 1571 ई० में
(iii) 1575 ई० में
(iv) 1581 ई० में।
उत्तर-
(iv)

Long Answer Type Question

प्रश्न 1.
सिख धर्म के विकास में गुरु अंगद देव जी द्वारा दिए गए योगदान पर चर्चा करें।
(Give description about Guru Angad Dev Ji’s contribution to the development of Sikhism.)
अथवा
सिख पंथ के विकास में गुरु अंगद देव जी ने क्या-क्या कार्य किए ? (What did Guru Angad Dev Ji do for the development of Sikh Panth ?)
अथवा
गुरु अंगद देव जी की किन्हीं छः ऐसी सफलताओं का वर्णन करें जिनके कारण सिख धर्म का विकास हुआ। (Write six achievements of Guru Angad Dev Ji for the development of Sikhism.)
अथवा
सिख पंथ के विकास में गुरु अंगद देव जी के कार्यों का मूल्यांकन कीजिए। (Form an estimate of the works of Guru Angad Dev Ji for the spread of Sikhism.)
अथवा
गुरु अंगद देव जी पर एक संक्षिप्त नोट लिखें। (Write a short note on Guru Angad Dev Ji.) .
उत्तर-
गुरु अंगद देव जी 1539 ई० में सिखों के दूसरे गुरु बने। वह 1552 ई० तक गुरुगद्दी पर आसीन रहे। इस समय के दौरान गुरु अंगद देव जी ने सिख धर्म के विकास के लिए निम्नलिखित मुख्य काम किए—
1. गुरमुखी को लोकप्रिय बनाना—गुरु अंगद देव जी ने गुरमुखी लिपि को लोकप्रिय बनाने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने इसके रूप में एक नया निखार लाया। अब इस लिपि को समझना सामान्य लोगों के लिए सरल हो गया। इस लिपि के प्रसार के कारण सिखों में तीव्रता से विद्या का प्रसार भी होने लगा।

2. लंगर प्रथा का विस्तार-लंगर प्रथा के विकास का श्रेय गुरु अंगद देव जी को जाता है। लंगर का समूचा प्रबंध उनकी धर्म पत्नी माता खीवी जी करते थे। लंगर में सभी व्यक्ति बिना किसी ऊँच-नीच, जाति के भेदभाव के इकट्ठे मिलकर छकते थे। इस लंगर के लिए सारी माया गुरु जी के सिख देते थे। इस प्रथा के कारण सिखों में परस्पर सहयोग की भावना बढ़ी।

3. संगत का संगठन-गुरु अंगद देव जी ने गुरु नानक देव जी द्वारा स्थापित संगत संस्था को भी संगठित किया। संगत से अभिप्राय था-एकत्रित होकर बैठना। संगत में सभी धर्मों के लोग-स्त्री और पुरुष भाग ले सकते थे। यह संगत सुबह-शाम गुरु जी के उपदेशों को सुनने के लिए एकत्रित होती थी। इस संस्था ने सामाजिक असमानता को दूर करने तथा सिखों को संगठित करने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।

4. उदासी मत का खंडन-उदासी मत की स्थापना गुरु नानक देव जी के बड़े सुपुत्र बाबा श्रीचंद जी ने की थी। यह मत संन्यास अथवा त्याग के जीवन पर बल देता था। बहुत-से सिख उदासी मत को मान्यता देने लग पड़े थे। ऐसी परिस्थितियों में यह संकट उत्पन्न हो गया था कि कहीं सिख गुरु नानक देव जी के उपदेशों को भूल कर उदासी मत न अपना लें। अत: गुरु अंगद देव जी ने उदासी मत का कड़ा विरोध करके सिख मत के अस्तित्व को बनाए रखा।

5. गोइंदवाल साहिब की स्थापना—गुरु अंगद देव जी ने खर साहिब के समीप गोइंदवाल साहिब नामक एक नए नगर की स्थापना की। इस नगर का निर्माण कार्य एक श्रद्धालु सेवक अमरदास की देख-रेख में 1546 ई० में आरंभ हुआ। यह नगर शीघ्र ही सिखों का एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थान बन गया।

6. उत्तराधिकारी की नियुक्ति-गुरु अंगद देव जी का सिख पंथ के विकास में सबसे महान् कार्य अपना उत्तराधिकारी नियुक्त करना था। इसलिए उन्होंने अपने श्रद्धालु अमरदास जी का चुनाव किया।

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प्रश्न 2.
गुरु अंगद देव जी ने गुरुमुखी लिपि को हरमन प्यारा बनाने के लिए क्या योगदान दिया ?
(What contribution was made by Guru Angad Dev Ji to improve Gurumukhi script ?)
अथवा
सिख धर्म के विकास में गुरु अंगद देव जी द्वारा गुरुमुखी को लोकप्रिय बनाने का क्या प्रभाव पड़ा ?
(What impact did the popularisation of Gurumukhi by Guru Angad Dev Ji leave on the growth of Sikhism ?)
उत्तर-
गुरु अंगद देव जी ने गुरुमखी लिपि को लोकप्रिय बनाकर सिख पंथ के विकास की ओर प्रथम महत्त्वपूर्ण पग उठाया। गुरुमुखी लिपि का आविष्कार किसने किया इस संबंध में इतिहासकारों में मतभेद हैं। डॉक्टर आई० बी० बैनर्जी का कथन है कि गुरु ग्रंथ साहिब में गुरु नानक देव जी द्वारा रचित राग आसा अंकित है। इसमें 35 अक्षरों पर आधारित एक पट्टी की रचना की गई है जिसमें गुरुमुखी के सभी 35 अक्षरों का प्रयोग किया गया है। इससे सिद्ध होता है कि गुरुमुखी लिपि का प्रचलन गुरु अंगद देव जी के समय से पूर्व हो चुका था।

यह ठीक है कि गुरुमुखी लिपि गुरु अंगद देव जी से पूर्व अस्तित्व में आ चुकी थी। इसे उस समय लंडा लिपि कहा जाता था। इसे पढ़कर कोई भी व्यक्ति बहुत सरलता से भ्रम में पड़ सकता था। इसलिए गुरु अंगद देव जी ने इसके रूप में एक नया निखार लाया। अब इस लिपि को समझना सामान्य लोगों के लिए भी बहुत सरल हो गया था। सिखों के सभी धार्मिक ग्रंथों की रचना इस लिपि में हुई। इस लिपि का नाम गुरुमुखी अर्थात् गुरुओं के मुख से निकली हुई होने के कारण यह सिखों को गुरु के प्रति अपने कर्तव्य का स्मरण दिलाती रही। इस प्रकार यह लिपि सिखों को अपनी अलग पहचान बनाए रखने में सहायक सिद्ध हुई। इस लिपि के प्रसार के कारण सिखों में तीव्रता से विद्या का प्रसार होने लगा। इसके अतिरिक्त इस लिपि के प्रचलित होने से ब्राह्मण वर्ग को कड़ा आघात पहुँचा क्योंकि वे संस्कृत को ही. धर्म की भाषा मानते थे। नि:संदेह गुरुमुखी लिपि का प्रचार सिख पंथ के विकास के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण सिद्ध हुआ।

प्रश्न 3.
संगत एवं पंगत के महत्त्व पर एक संक्षिप्त नोट लिखें। (Write a short note on the importance of Sangat and Pangat.)
अथवा
संगत एवं पंगत के बारे में आप क्या जानते हैं ? (What do you know about Sangat and Pangat ?)
उत्तर-
1. संगत-संगत संस्था से अभिप्राय एकत्रित रूप में मिलकर बैठने से था। यह संगत सुबह-शाम गुरु जी के उपदेशों को सुनने के लिए एकत्रित होती थी। इस संस्था की स्थापना गुरु नानक देव जी ने की थी। गुरु अंगद देव जी ने इस संस्था को अधिक संगठित किया। संगत में कोई भी स्त्री अथवा पुरुष बिना किसी जाति-पाति अथवा धर्म के भेद-भाव के सम्मिलित हो सकता था। संगत को ईश्वर का रूप समझा जाता था। संगत में जाने वाले व्यक्ति का काया कल्प हो जाता था। उसकी सभी मनोकामनाएँ पूर्ण होती थीं। वह भवसागर से पार हो जाता था। निस्संदेह यह संस्था सिख पंथ के विकास के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण सिद्ध हुई।

2. पंगत-पंगत (लंगर) संस्था की स्थापना गुरु नानक देव जी ने की थी। गुरु अंगद देव जी ने इसे जारी रखा और गुरु अमरदास जी ने इस संस्था को अधिक विकसित किया। मुगल सम्राट अकबर और हरिपुर के राजा ने भी गुरु अमरदास जी के दर्शन करने से पूर्व लंगर खाया था। लंगर प्रत्येक धर्म और जाति के लोगों के लिए खुला था। सिख धर्म के प्रसार में लंगर संस्था का योगदान बहुत महत्त्वपूर्ण था। इस संस्था ने समाज में जाति प्रथा और छुआछूत की भावनाओं को समाप्त करने में भी बड़ी सहायता की। इस संस्था के कारण सिखों में परस्पर भ्रातृत्व की भावना का विकास हुआ।

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प्रश्न 4.
गुरुगद्दी प्राप्त करने के पश्चात् गुरु अमरदास जी को जिन आरंभिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा उनका संक्षेप वर्णन कीजिए।
(What problems had Guru Amar Das Ji to face in the early years of his pontificate ?)
उत्तर-
गुरुगद्दी प्राप्त करने के पश्चात् गुरु अमरदास जी को जिन आरंभिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा उनका संक्षेप वर्णन निम्नलिखित है—

1. दासू और दातू का विरोध-गुरु अमरदास जी को अपने गुरुकाल के आरंभ में, गुरु अंगद देव जी के पुत्रों दासू और दातू के विरोध का सामना करना पड़ा। उन्होंने गुरु जी को गुरु मानने से इंकार कर दिया तथा स्वयं को असली उत्तराधिकारी घोषित किया। सिखों ने उन्हें अपना गुरु मानने.से इंकार कर दिया। इस समय दातू ने भी माता खीवी जी के कहने पर अपना विरोध छोड़ दिया था।

2. बाबा श्रीचंद जी का विरोध-बाबा श्रीचंद जी गुरु नानक देव जी के ज्येष्ठ पुत्र होने के कारण गुरुगद्दी पर अपना अधिकार समझते थे। बाबा श्रीचंद जी के अनेक समर्थक थे। गुरु अमरदास जी ने ऐसे समय में दृढ़ता से काम लेते हुए सिखों को स्पष्ट किया कि उदासी संप्रदाय के सिद्धांत गुरु नानक देव जी के उपदेशों के विपरीत हैं। उनके तर्कों से प्रभावित होकर सिखों ने बाबा श्रीचंद जी का साथ छोड़ दिया।

3. गोइंदवाल साहिब के मुसलमानों का विरोध-गोइंदवाल साहिब में गुरु अमरदास जी की बढ़ती हुई ख्याति देखकर वहाँ के मुसलमानों ने सिखों को परेशान करना आरंभ कर दिया। वे सिखों का सामान चोरी कर लेते। वे सतलुज नदी से जल भर कर लाने वाले सिखों के घड़े पत्थर मार कर तोड़ देते थे। सिख इस संबंध में गुरु जी से शिकायत करते। अमरदास जी ने सिखों को शाँत रहने का उपदेश दिया।

4. हिंदुओं द्वारा विरोध-इसका कारण यह था कि गुरु अमरदास जी के सामाजिक सुधारों से प्रभावित होकर बहुत-से लोग सिख धर्म में शामिल होते जा रहे थे। सिख धर्म में ऊँच-नीच का भेदभाव नहीं किया जाता था। बाऊली का निर्माण होने से सिखों को एक अलग तीर्थ स्थान भी मिल गया था। गोइंदवाल साहिब के उच्च जातियों के हिंदू यह बात सहन न कर सके। उन्होंने मुग़ल बादशाह अकबर के पास यह झूठी शिकायत की कि गुरु जी हिंदू धर्म के विरुद्ध प्रचार कर रहे हैं। अकबर ने गुरु जी को निर्दोष घोषित किया।

प्रश्न 5.
गुरु अमरदास जी के समय होने वाले सिख धर्म के विकास का विवरण दीजिए।
(Give an account of the development of Sikhism Under Guru Amar Das Ji.)
अथवा
सिख धर्म के विकास में गुरु अमरदास जी द्वारा किये गये छः महत्त्वपूर्ण कार्यों का वर्णन करें।
(Give six contributions of Guru Amar Das Ji for the development of Sikhism.)
अथवा
गुरु अमरदास जी के कार्यों का मूल्याँकन कीजिए। (Form an estimate of the works of Guru Amar Das Ji.)
अथवा
सिख पंथ के विकास में गुरु अमरदास जी के कार्यों के बारे में आप क्या जानते हैं ? (What do you know about the works of Guru Amat Das Ji for the spread of Sikhism ?)
अथवा
सिख पंथ के विकास में गुरु अमरदास जी के योगदान का अध्ययन करें। (Study the contribution of Guru Amar Das Ji to the growth of Sikhism.)
उत्तर-
गुरु अमरदास जी 1552 ई० से 1574 ई० तक गुरुगद्दी पर रहे। इस समय के दौरान गुरु अमरदास जी ने सिख पंथ के संगठन के लिए निम्नलिखित प्रशंसनीय काम किए—

1. गोइंदवाल साहिब में बाऊली का निर्माण—गुरु अमरदास जी का सिख पंथ के विकास की ओर प्रथम पग गोइंदवाल साहिब में एक बाऊली का निर्माण करना था। इस बाऊली का निर्माण कार्य 1552 ई० से 1559 ई० तक चला। इस बाऊली तक पहुँचने के लिए 84 सीढ़ियाँ बनाई गई थीं। बाऊली के निर्माण से सिख पंथ को एक पवित्र तीर्थ स्थान मिल गया।

2. लंगर संस्था का विस्तार-गुरु अमरदास जी ने, गुरु नानक देव जी द्वारा स्थापित लंगर संस्था का और विस्तार किया। गुरु जी ने यह घोषणा की कि कोई भी यात्री लंगर छके बिना उनके दर्शन नहीं कर सकता। इस लंगर में विभिन्न धर्मों और जातियों के लोग सम्मिलित होते थे। यह संस्था सिख धर्म के प्रचार में बड़ी सहायक प्रमाणित हुई । इससे जाति-प्रथा को गहरा आघात पहुँचा।

3. मंजी प्रथा-मंजी प्रथा की स्थापना गुरु अमरदास जी के सबसे महत्त्वपूर्ण कार्यों में से एक थी। सिखों की संख्या में वृद्धि के कारण गुरु साहिब के लिए प्रत्येक सिख तक पहुँच पाना संभव नहीं था। उन्होंने अपने उपदेश दूर-दूर के क्षेत्रों में रहने वाले सिखों तक पहुँचाने के लिए 22 मंजियों की स्थापना की । मंजी प्रथा की स्थापना के परिणामस्वरूप सिख धर्म की प्रसिद्धि दूर-दूर तक फैल गई।

4. उदासी संप्रदाय का खंडन—गुरु अमरदास जी के समय में उदासी संप्रदाय सिख संप्रदाय के अस्तित्व के लिए ख़तरा बना हुआ था। बहुत-से सिख बाबा श्रीचंद जी से प्रभावित होकर उदासी संप्रदाय में सम्मिलित होने लगे थे। ऐसे समय गुरु अमरदास जी ने सिखों को समझाया कि सिख धर्म उदासी मत से बिल्कुल अलग है। इस प्रकार गुरु अमरदास जी ने सिख धर्म को हिंदू धर्म में विलीन होने से बचा लिया।

5. सामाजिक सुधार-गुरु अमरदास जी एक महान् समाज सुधारक थे। उन्होंने जाति प्रथा, सती प्रथा, बालविवाह तथा पर्दा प्रथा का जोरदार शब्दों में खंडन किया। उन्होंने विधवा विवाह का समर्थन किया। इसके अतिरिक्त गुरु अमरदास जी ने सिखों के जन्म, विवाह तथा मृत्यु के अवसरों के लिए विशेष रस्में प्रचलित की। संक्षेप में गुरु अमरदास जी ने एक आदर्श समाज का निर्माण किया।

6. वाणी का संग्रह-गुरु अमरदास जी का अगला महत्त्वपूर्ण कार्य गुरु नानक देव जी तथा गुरु अंगद देव जी की वाणी का संग्रह करना था। गुरु साहिब ने स्वयं 907 शब्दों की रचना की। इस से आदि ग्रंथ साहिब के संकलन के लिए सामग्री एकत्र हो गई।

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प्रश्न 6.
सिख इतिहास में गोइंदवाल साहिब की बाऊली के निर्माण का क्या महत्त्व है ?
(What is the importance of the construction of the Baoli of Goindwal Sahib in Sikh History ?)
उत्तर-
गुरु अमरदास जी का सिख पंथ के विकास की ओर पहला पग गोइंदवाल में एक बाऊली का निर्माण करना था। इस बाऊली का निर्माण-कार्य 1552 ई० में आरंभ किया गया था और यह 1559 ई० में संपूर्ण हुआ था। गोइंदवाल साहिब में बाऊली के निर्माण के पीछे गुरु अमरदास जी के दो उद्देश्य थे। पहला, वह सिखों को एक अलग तीर्थ स्थान देना चाहते थे ताकि उन्हें हिंदू धर्म से अलग किया जा सके। दूसरे, वह वहाँ के लोगों की पानी के संबंध में कठिनाई को दूर करना चाहते थे। इस बाऊली तक पहुँचने के लिए 84 सीढ़ियाँ बनाई गई थीं। बाऊली का निर्माण कार्य पूर्ण होने पर गुरु जी ने यह घोषणा की कि जो यात्री प्रत्येक सीढ़ी पर शुद्ध हृदय से जपुजी साहिब का पाठ करेगा तथा पाठ के पश्चात् बाऊली में स्नान करेगा वह 84 लाख योनियों से मुक्त हो जाएगा। बाऊली का निर्माण सिख पंथ के विकास के लिए एक बहुत महत्त्वपूर्ण कार्य प्रमाणित हुआ। इससे सिखों को एक पवित्र तीर्थ स्थान मिल गया। सिखों को हिंदुओं के तीर्थ स्थानों पर जाने की आवश्यकता नहीं थी। दूसरा बाऊली के निर्माण के कारण सिखों की साफ पीने के पानी की समस्या दूर हो गई। इससे पहले लोग ब्यास नदी से पानी लाते थे जोकि बरसात के दिनों में गंदा हो जाता था। बड़ी संख्या में सिखों के गोइंदवाल साहिब में पहुँचने पर गुरु अमरदास जी की ख्याति दूर-दूर तक फैल गई। इसके अतिरिक्त विभिन्न जातियों के लोगों के द्वारा बाऊली में स्नान करने से जाति प्रथा को एक गहरा धक्का लगा।

प्रश्न 7.
गुरु अमरदास जी के द्वारा किए गए सामाजिक सुधारों का संक्षेप में वर्णन करें। (Describe briefly the social reforms of Guru Amar Das Ji.)
अथवा
गुरु अमरदास जी के छः सामाजिक सुधारों का वर्णन करें।
(Describe six social reforms of Guru Amar Das Ji.)
अथवा
गुरु अमरदास जी को समाज सुधारक क्यों कहा जाता है ? (Why is Guru Amar Das called a social reformer ?)
अथवा
समाज सुधारक के रूप में गुरु अमरदास जी पर एक संक्षिप्त नोट लिखें। (Write a short note on Guru Amar Das Ji as a social reformer.)
उत्तर-
1. जातीय भेद-भाव तथा छुआ-छूत का खंडन-गुरु अमरदास जी ने जातीय एवं छुआ-छूत की प्रथाओं का जोरदार शब्दों में खंडन किया। उन्होंने संगतों को यह हुक्म दिया कि जो कोई उनके दर्शन करना चाहता है उसे पहले पंगत में लंगर छकना पड़ेगा। इस प्रकार गुरु अमरदास जी ने आपसी भ्रातृत्व का प्रचार किया।

2. लड़कियों की हत्या का खंडन-उस समय लड़कियों के जन्म को अच्छा नहीं माना जाता था। अतः कुछ लोग लड़कियों के जन्म लेते ही उन्हें मार देते थे। गुरु अमरदास जी ने इस कुप्रथा का जोरदार शब्दों में खंडन किया। उनका कथन था कि जो व्यक्ति ऐसा करता है वह घोर पाप का सहभागी बनता है । उन्होंने सिखों को इस अपराध से दूर रहने का उपदेश दिया।

3. बाल विवाह का खंडन-उस समय समाज में प्रचलित परंपराओं के अनुसार लड़कियों का विवाह छोटी आयु में ही कर दिया जाता था। इस कारण समाज में स्त्रियों की दशा बहुत दयनीय हो गई थी। गुरु अमरदास जी ने बाल विवाह के विरुद्ध प्रचार किया।

4. सती प्रथा का खंडन-उस समय समाज में प्रचलित कुप्रथाओं में से सबसे घृणा योग्य कुप्रथा सती प्रथा की थी। इस अमानवीय प्रथा के अनुसार यदि किसी स्त्री के पति की मृत्यु हो जाती थी तो उसे जबरन पति की चिता के साथ जीवित जला दिया जाता था। गुरु अमरदास जी ने शताब्दियों से चली आ रही इस कुप्रथा के विरुद्ध एक ज़ोरदार अभियान चलाया।

5. पर्दा प्रथा का खंडन-उस समय समाज में पर्दा प्रथा का प्रचलन भी काफ़ी बढ़ गया था। यह प्रथा स्त्रियों के शारीरिक तथा मानसिक विकास में एक बड़ी बाधा थी। इसलिए गुरु अमरदास जी ने इस प्रथा की जोरदार शब्दों में आलोचना की। उन्होंने यह आदेश दिया कि संगत अथवा लंगर में सेवा करते समय कोई भी स्त्री पर्दा न करे।

6. नशीली वस्तुओं का खंडन-उस समय कुछ लोग नशीली वस्तुओं का प्रयोग करने लग पड़े थे। गुरु अमरदास जी ने इन वस्तुओं के सेवन की जोरदार शब्दों में आलोचना की।

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प्रश्न 8.
मंजी प्रथा क्या थी ? सिख धर्म के विकास में इसने क्या योगदान दिया? (What was the Manji System ? How did it contribute to the development of Sikhism ?)
अथवा
मंजी प्रथा के बारे में आप क्या जानते हैं ?
(What do you know about Manji System ?)
अथवा
मंजी प्रथा पर एक नोट लिखें। (Write a note on Manji System.)
उत्तर-
सिख धर्म के विकास में मंजी प्रथा ने प्रशंसनीय भूमिका निभाई। इस महत्त्वपूर्ण संस्था के संस्थापक गुरु अमरदास जी थे। मंजी प्रथा के आरंभ एवं विकास का संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित अनुसार है—
1. आवश्यकता-गुरु अमरदास जी के अथक प्रयासों तथा उनके जादुई व्यक्तित्व के कारण बड़ी संख्या में लोग सिख धर्म में सम्मिलित हो गए थे। क्योंकि सिखों की संख्या बहुत बढ़ गई थी तथा वे पंजाब के बाहर के प्रदेशों में फैले हुए थे इसलिए गुरु साहिब के लिए निजी रूप से इन तक पहुँचना कठिन हो गया। दूसरा, इस समय गुरु अमरदास जी बहुत वृद्ध हो चुके थे। अतः गुरु अमरदास जी ने मंजी प्रथा को आरंभ करने की आवश्यकता अनुभव की।

2. मंजी प्रथा से अभिप्राय-गुरु अमरदास जी अपने सिखों को उपदेश देते समय एक विशाल चारपाई पर बैठते थे। इसे मंजा कहा जाता था। अन्य सिख ज़मीन अथवा दरी पर बैठकर उनके उपदेश सुनते थे। गुरु जी ने अपने जीवन काल में 22 मंजियों की स्थापना की थी। इनके मुखी मंजीदार कहलाते थे। ये मंजीदार गुरु जी के प्रति अपना सम्मान प्रकट करने के लिए एक छोटी चारपाई का प्रयोग करते थे। इस कारण यह संस्था मंजी प्रथा कहलाने लगी।

3. मंजीदार के कार्य-मंजीदार अपने अधीन प्रदेश में गुरु साहिबान का प्रतिनिधित्व करता था। वह अनेक प्रकार के कार्यों के लिए उत्तरदायी था।

  • वह सिख धर्म के प्रचार के लिए अथक प्रयास करता था।
  • वह गुरु साहिब के हुक्मों को सिख संगत तक पहुँचाता था।
  • वह लोगों को धार्मिक शिक्षा देता था।
  • वह लोगों को गुरुमुखी भाषा पढ़ाता था।
  • वह अपने प्रदेश की संगतों के साथ वर्ष में कम-से-कम एक बार गुरु जी के दर्शनों के लिए गोइंदवाल साहिब आते थे।

4. मंजी प्रथा का महत्त्व-सिख धर्म के विकास एवं संगठन में मंजी प्रथा ने बहुमूल्य योगदान दिया। मंजीदारों के प्रभाव से बड़ी संख्या में लोग सिख धर्म में सम्मिलित होने लगे। इसके दूरगामी प्रभाव पड़े। मंजीदार धर्म प्रचार के अतिरिक्त संगत से लंगर एवं अन्य कार्यों के लिए धन भी एकत्र करते थे। गुरु अमरदास जी ने इस धन को सिख धर्म के विकास कार्यों पर खर्च किया। इससे सिख धर्म की लोकप्रियता में काफ़ी वृद्धि हुई।

प्रश्न 9.
गुरु अमरदास जी के मुगलों के साथ कैसे संबंध थे ? (What type of relations did Guru Amar Das Ji have with the Mughals ?)
अथवा
मुगल बादशाह अकबर तथा गुरु अमरदास जी के मध्य संबंधों का उल्लेख कीजिए । (Describe the relations between Mughal emperor Akbar and Guru Amar Das Ji.)
अथवा
मुगल सम्राट अकबर तथा गुरु अमरदास जी के बीच संबंधों का उल्लेख करें। (Explain the relations between the Mughal emperor Akbar and Guru Amar Das Ji.)
उत्तर-
गुरु अमरदास जी के मुग़लों के साथ संबंध बहुत अच्छे थे। उस समय भारत में मुग़ल बादशाह अकबर का शासन था। गुरु अमरदास जी की ‘अरदास’ के फलस्वरूप अकबर को चित्तौड़ के अभियान में सफलता प्राप्त हुई थी। इसलिए गुरु साहिब का आभार. प्रकट करने के लिए अकबर 1568 ई० में गोइंदवाल साहिब आया था। उसने गुरु साहिब के दर्शन करने से पूर्व मर्यादानुसार अन्य संगत के साथ मिलकर लंगर खाया। वह गुरु साहिब के व्यक्तित्व और लंगर प्रबंध से बहुत प्रभावित हुआ। उसने लंगर प्रबंध को चलाने के लिए कुछ गाँवों की जागीर की पेशकश की। गुरु जी ने इस जागीर को स्वीकार करने से इसलिए इंकार कर दिया कि उनके सिख लंगर के लिए बहुत दान देते हैं। अकबर की इस यात्रा के कारण गुरु अमरदास जी की प्रसिद्धि बहुत दूर-दूर तक फैल गई तथा बहुत-से लोग सिख धर्म में सम्मिलित हो गए।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 5 गुरु अंगद देव जी, गुरु अमरदास जी और गुरु रामदास जी के अधीन सिख धर्म का विकास

प्रश्न 10.
गुरु रामदास जी द्वारा सिख धर्म के विकास के लिए किए गए छः महत्त्वपूर्ण योगदानों की चर्चा करें।
(Give the six important contributions of Guru Ram Das Ji for the development of Sikhism.
अथवा
गुरु रामदास जी का सिख धर्म को क्या योगदान था ? (What was the contribution of Guru Ram Das Ji to Sikh religion ?)
अथवा
सिख मत के विकास में गुरु रामदास जी द्वारा दिये गए योगदान का वर्णन करो। (Explain the contribution of Guru Ram Das Ji to the growth of Sikhism.)
उत्तर-
1. रामदासपुरा की स्थापना-गुरु रामदास जी की सिख पंथ को सबसे महत्त्वपूर्ण देन रामदासपुरा अथवा अमृतसर की स्थापना करना था। रामदासपुरा की स्थापना 1577 ई० में हुई। इस शहर को बसाने के लिए गुरु साहिब ने यहाँ भिन्न-भिन्न व्यवसायों से संबंध रखने वाले 52 व्यापारियों को बसाया। इन व्यापारियों ने जो बाज़ार बसाय वह ‘गुरु का बाज़ार’ नाम से प्रसिद्ध हुआ। अमृतसर की स्थापना से सिखों को उनका मक्का मिल गया। यह शीघ्र ही सिखों का सर्वाधिक प्रसिद्ध धर्म-प्रचार केंद्र बन गया।

2. मसंद प्रथा का आरंभ-गुरु रामदास जी को रामदासपुरा में अमृतसर एवं संतोखसर नामक दो सरोवरों की खुदवाई के लिए धन की आवश्यकता पड़ी। इसलिए गुरु साहिब ने अपने प्रतिनिधियों को अलग-अलग स्थानों पर भेजा ताकि वे सिख मत का प्रचार कर सकें और संगतों से धन एकत्रित कर सकें। यह संस्था मसंद प्रथा के नाम से प्रसिद्ध हुई। मसंद प्रथा के कारण ही सिख मत का दूर-दूर तक प्रचार हुआ।

3. उदासियों से समझौता-गुरु रामदास जी के समय की एक महत्त्वपूर्ण घटना उदासी तथा सिख संप्रदाय के मध्य समझौता था। एक बार उदासी मत के संस्थापक बाबा श्रीचंद जी गुरु रामदास जी के दर्शनों के लिए अमृतसर आए। वह गुरु साहिब की नम्रता से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने उस दिन के पश्चात् सिख मत का विरोध नहीं किया। यह समझौता सिख पंथ के विकास के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण प्रमाणित हुआ।

4. कुछ अन्य महत्त्वपूर्ण कार्य-गुरु जी के अन्य महत्त्वपूर्ण कार्यों में वाणी की रचना (679 शब्द) करना था। उन्होंने चार लावों द्वारा विवाह प्रथा को प्रोत्साहित किया। गुरु साहिब ने पहले से चली आ रही संगत, पंगत और मंजी नामक संस्थाओं को जारी रखा। गुरु साहिब ने समाज में प्रचलित कुरीतियों जैसे-जाति प्रथा, सती प्रथा, बाल विवाह आदि का भी ज़ोरदार शब्दों में खंडन किया।

5. अकबर के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध-गुरु रामदास जी के समय में भी सिखों के मुग़ल बादशाह अकबर से मैत्रीपूर्ण संबंध स्थापित रहे। अकबर ने गुरु रामदास जी से लाहौर में मुलाकात की थी। उसने गुरु साहिब के कहने पर पंजाब के कृषकों का एक वर्ष के लिए लगान माफ कर दिया। फलस्वरूप गुरु साहिब की ख्याति में और वृद्धि हुई।

6. उत्तराधिकारी की नियुक्ति-गुरु रामदास जी ने 1581 ई० मे गुरु अर्जन देव जी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया। इस कारण सिख पंथ के विकास का कार्य जारी रहा।

प्रश्न 11.
रामदासपुरा (अमृतसर) की स्थापना का सिख इतिहास में क्या महत्त्व है ?
(What is the importance of the foundation of Ramdaspura (Amritsar) in Sikh History ?)
उत्तर-
गुरु रामदास जी की सिख पंथ को सबसे महत्त्वपूर्ण देन 1577 ई० में रामदासपुरा अथवा अमृतसर की स्थापना करना था। गुरुगद्दी प्राप्त करने के पश्चात् गुरु साहिब स्वयं यहाँ आ गए थे। इस शहर को बसाने के लिए गुरु साहिब ने यहाँ भिन्न-भिन्न व्यवसायों से संबंधित 52 अन्य व्यापारियों को बसाया। इन व्यापारियों ने जो बाज़ार बसाया वह ‘गुरु का बाजार’ नाम से प्रसिद्ध हुआ। शीघ्र ही यह एक प्रसिद्ध व्यापारिक केंद्र बन गया। गुरु साहिब ने रामदासपुरा में दो सरोवरों अमृतसर एवं संतोखसर की खुदवाई का विचार बनाया। पहले अमृतसर सरोवर की खुदवाई का कार्य आरंभ किया गया। अमृतसर की स्थापना सिख पंथ के इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है। इससे सिखों को एक अलग तीर्थ स्थान मिल गया जो शीघ्र ही उनका सर्वाधिक प्रसिद्ध धर्म-प्रचार केंद्र बन गया। इसे सिखों का मक्का कहा जाने लगा। इस के अतिरिक्त यह सिखों की एकता एवं स्वतंत्रता का प्रतीक भी बन गया।

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प्रश्न 12.
उदासी मत पर एक संक्षिप्त नोट लिखें। , (Write a short note on Udasi Sect.)
अथवा
उदासी प्रथा के बारे में आप क्या जानते हैं ? (What do you know about Udasi System ?)
अथवा
बाबा श्रीचंद जी पर एक संक्षिप्त नोट लिखें। (Write a brief note on Baba Sri Chand Ji.)
उत्तर-
1. बाबा श्रीचंद जी-उदासी मत की स्थापना गुरु नानक देव जी के बड़े सुपुत्र बाबा श्रीचंद जी ने की थी। यह मत संन्यास अथवा त्याग के जीवन पर बल देता था जबकि गुरु नानक देव जी गृहस्थ जीवन के पक्ष में थे। उदासी मत के शेष सभी सिद्धांत गुरु नानक देव जी के सिद्धांतों से मिलते थे। इस कारण बहुत-से सिख उदासी मत को मान्यता देने लग पड़े थे। ऐसी परिस्थितियों में यह संकट उत्पन्न हो गया था कि कहीं सिख गुरु नानक देव जी के उपदेशों को भूलकर उदासी मत न अपना लें। इस संबंध में एक ठोस और शीघ्र निर्णय लिए जाने की आवश्यकता थी।

2. गुरु अंगद देव जी-गुरु अंगद देव जी ने उदासी मत का कड़ा विरोध किया। उन्होंने स्पष्ट किया कि उदासी मत के सिद्धांत सिख धर्म के सिद्धांतों से सर्वथा विपरीत हैं एवं जो सिख उदासी मत में विश्वास रखता है, वह सच्चा सिख नहीं हो सकता।

3. गुरु अमरदास जी-गुरु अमरदास जी ने सिखों को समझाया कि सिख धर्म उदासी मत से बिल्कुल अलग है। उनका कहना था कि जहाँ सिख धर्म गृहस्थ मार्ग अपनाने तथा अपनी आजीविका के लिए सच्चा श्रम करने की शिक्षा देता है, वहाँ उदासी मत अपने सामाजिक उत्तरदायित्वों से भाग जाने तथा संसार को त्याग कर मुक्ति की खोज में वनों में मारे-मारे फिरने की शिक्षा देता है। गुरु साहिब के अथक प्रयत्नों से सिखों ने उदासी मत से सदैव के लिए अपने संबंध तोड़ लिए।’

4. गुरु रामदास जी-गुरु रामदास जी के समय उदासियों एवं सिखों के मध्य समझौता हुआ। एक बार उदासी मत के संस्थापक बाबा श्रीचंद जी गुरु अमरदास जी के दर्शनों के लिए अमृतसर आए। श्रीचंद जी गुरु साहिब की नम्रता से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने उस दिन के पश्चात् सिख मत का विरोध करना बंद कर दिया। सिखों का उदासियों से यह समझौता सिख पंथ के लिए बहुत लाभप्रद प्रमाणित हुआ। इससे एक तो सिखों और उदासियों के बीच चला आ रहा परस्पर तनाव दूर हो गया। दूसरा, उदासियों ने सिख मत का प्रचार करने में प्रशंसनीय योगदान दिया।। इससे सिख धर्म की लोकप्रियता में वृद्धि हुई।

Source Based Questions

नोट-निम्नलिखित अनुच्छेदों को ध्यानपूर्वक पढ़िए और उनके अंत में पूछे गए प्रश्नों का उत्तर दीजिए।

1
भाई लहणा जी गुरु नानक देव जी से भेंट करने से पूर्व दुर्गा माता के भक्त थे। वे प्रतिवर्ष अपने साथ भक्तों का एक जत्था लेकर ज्वालामुखी (ज़िला काँगड़ा) देवी के दर्शन के लिए जाते थे, किंतु जिस सत्य की उन्हें तलाश थी, उसकी प्राप्ति न हो सकी। एक दिन खडूर साहिब में भाई जोधा जी जो गुरु नानक देव जी के एक श्रद्धालु सिख थे, के मुख से आसा दी वार’ का पाठ सुना। यह पाठ सुनकर भाई लहणा जी इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने गुरु नानक देव जी के दर्शन करने का दृढ़ निश्चय किया। आगामी वर्ष जब भाई लहणा जी अपने जत्थे को साथ लेकर ज्वालामुखी की यात्रा के लिए निकले तो वे मार्ग में करतारपुर में गुरु नानक देव जी के दर्शन के लिए रुके। वे गुरु साहिब के महान् व्यक्तित्व
और मधुर वाणी को सुनकर इतने अधिक प्रभावित हुए कि उन्होंने अनुभव किया कि जिस मंज़िल की उन्हें वर्षों से तलाश थी, आज वह मंज़िल उनके सामने है।

  1. भाई लहणा जी गुरु नानक देव जी को मिलने से पहले किस देवी के भक्त थे ?
  2. भाई लहणा जी ने खडूर साहिब में किस के मुख से आसा दी वार’ का पाठ सुना था ?
  3. ‘आसा दी वार’ का पाठ सुनकर भाई लहणा जी ने क्या फैसला किया ?
  4. भाई लहणा जी गुरु नानक देव जी के शिष्य क्यों बन गए ?
  5. भाई लहणा जी गुरु नानक देव जी को कहाँ मिले थे ?
    • करतारपुर में
    • ज्वालामुखी में
    • कीरतपुर में
    • अमृतसर में।

उत्तर-

  1. भाई लहणा जी गुरु नानक देव जी को मिलने से पहले देवी दुर्गा के भक्त थे।
  2. भाई लहणा जी ने खडूर साहिब में भाई जोधा जी के मुख से ‘आसा दी वार’ का पाठ सुना था।
  3. ‘आसा दी वार’ का पाठ सुनकर भाई लहणा जी ने गुरु नानक देव जी के दर्शन करने का फैसला किया।
  4. वह गुरु नानक देव जी के व्यक्तित्व से तथा वाणी से बहुत प्रभावित हुए।
  5. करतारपुर में।

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2
गुरु अंगद साहिब ने गुरमुखी लिपि को लोकप्रिय बनाकर सिख पंथ के विकास की ओर प्रथम महत्त्वपूर्ण पग उठाया। यह सही है कि यह लिपि गुरु अंगद देव जी से पूर्व अस्तित्व में आ चुकी थी, परंतु इसे पढ़कर कोई भी व्यक्ति बहुत सरलता से भ्रम में पड़ सकता था। इसलिए गुरु अंगद देव जी इसके रूप में एक नया निखार लाए। अब इस लिपि को समझना सामान्य लोगों के लिए भी बहुत सरल हो गया था। सिखों के सभी धार्मिक ग्रंथों की रचना इस लिपि में हुई। इस लिपि का नाम गुरमुखी [अर्थात् गुरुओं के मुख से निकली हुई] होने के कारण यह सिखों को गुरु के प्रति अपने कर्तव्य का स्मरण दिलाती रही। इस प्रकार यह लिपि सिखों की अपनी अलग पहचान बनाए रखने में सहायक सिद्ध हुई। इस लिपि के प्रसार के कारण सिखों में तीव्रता से विद्या का प्रसार होने लगा। इसके अतिरिक्त इस लिपि के प्रचलित होने से ब्राह्मण वर्ग को कड़ा आघात पहुँचा क्योंकि वे संस्कृत को ही धर्म की भाषा समझते थे।

  1. किस गुरु साहिबान ने गुरमुखी लिपि का प्रचलन किया ?
  2. गुरमुखी लिपि से पहले कौन-सी लिपि का प्रचलन था ?
  3. गुरमुखी से क्या भाव है ?
  4. गुरमुखी लिपि का क्या महत्त्व था ?
  5. सिखों के सभी धार्मिक ग्रंथों की रचना ……….. लिपि में हुई। ……….

उत्तर-

  1. गुरु अंगद देव जी ने गुरमुखी लिपि का प्रचलन किया था।
  2. गुरमुखी लिपि से पहले लंडे महाजनी लिपि का प्रचलन था।
  3. गुरमुखी लिपि से भाव है गुरुओं के मुख से निकली हुई।
  4. इसके प्रचार के कारण ब्राह्मण वर्ग को करारी चोट पहुँची क्योंकि वे केवल संस्कृत को ही पवित्र भाषा मानते
  5. गुरमुखी।

3
गुरु अमरदास जी का सिख पंथ के विकास की ओर पहला पग गोइंदवाल साहिब में एक बाऊली का निर्माण करना था। इस बाऊली का निर्माण कार्य 1552 ई० में आरंभ किया गया था और यह 1559 ई० में संपूर्ण हुआ था। इस बाऊली के निर्माण के पीछे गुरु साहिब के दो उद्देश्य थे। पहला, वह सिखों को एक अलग तीर्थ स्थान देना चाहते थे ताकि उन्हें हिंदू धर्म से अलग किया जा सके। दूसरा, वह वहाँ के लोगों की पानी के संबंध में कठिनाई को दूर करना चाहते थे। इस बाऊली तक पहुँचने के लिए 84 सीढ़ियाँ बनाई गई थीं। बाऊली का निर्माण कार्य पूर्ण होने पर गुरु जी ने यह घोषणा की कि जो यात्री प्रत्येक सीढ़ी पर शुद्ध हृदय से जपुजी साहिब का पाठ करेगा तथा पाठ के पश्चात् बाऊली में स्नान करेगा वह 84 लाख योनियों से मुक्त हो जाएगा। बाऊली का निर्माण सिख पंथ के विकास के लिए एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण कार्य प्रमाणित हुआ।

  1. गोइंदवाल साहिब में बाऊली का निर्माण किस गुरु साहिब ने करवाया था ?
  2. गोइंदवाल साहिब में बाऊली का निर्माण कार्य कब आरंभ हुआ ?
    • 1552 ई०
    • 1559 ई०
    • 1562 ई०
    • 1569 ई०
  3. गोइंदवाल साहिब में बाऊली के निर्माण कार्य को कुल कितना समय लगा ?
  4. गोइंदवाल साहिब की बाऊली तक पहुँचने के लिए कुल कितनी सीढ़ियों का निर्माण किया गया ?
  5. बाऊली का निर्माण सिख पंथ के लिए कैसे महत्त्वपूर्ण सिद्ध हुआ ?

उत्तर-

  1. गोइंदवाल साहिब में बाऊली का निर्माण गुरु अमरदास जी ने करवाया था।
  2. 1552 ई०।
  3. गोइंदवाल साहिब में बाऊली के निर्माण को कुल 7 वर्ष लगे।
  4. गोइंदवाल साहिब की बाऊली तक पहुँचने के लिए कुल 84 सीढ़ियाँ बनवाई गईं।
  5. इस कारण सिख धर्म को एक नया उत्साह मिला।

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4
मंजी प्रथा की स्थापना गुरु अमरदास जी के सबसे महत्त्वपूर्ण कार्यों में से एक थी। गुरु अमरदास जी के समय सिखों की संख्या में भारी वृद्धि हुई थी। इसलिए गुरु साहिब के लिए प्रत्येक सिख तक पहुँच पाना संभव नहीं था। उन्होंने अपने उपदेश दूर-दूर के क्षेत्रों में रहने वाले सिखों तक पहुँचाने के लिए 22 मंजियों की स्थापना की। यहाँ यह बात स्मरणीय है कि गुरु जी ने इन मंजियों की स्थापना एक ही समय पर नहीं की थी अपितु यह क्रम उनके समस्त गुरुकाल के दौरान चलता रहा। प्रत्येक मंजी के मुखिया को मंजीदार कहते थे। मंजीदार का पद केवल बहुत ही पवित्र सिख को दिया जाता था। मंजीदार का प्रचार क्षेत्र किसी विशेष प्रदेश तक सीमित नहीं था। वह अपनी इच्छानुसार अपने प्रचार हेतु किसी भी स्थान पर जा सकते थे। ये मंजीदार अधिक-से-अधिक लोगों को सिखं धर्म में सम्मिलित होने के लिए प्रेरित करते थे तथा सिखों से धन एकत्र करके गुरु साहिब तक पहुँचाते थे।

  1. मंजी प्रथा की स्थापना किस गुरु साहिब ने की थी ?
  2. कुल कितनी मंजियों की स्थापना की गई थी ?
  3. मंजी का मुखिया कौन होता था ?
  4. मंजीदार का कोई एक मुख्य कार्य लिखें।
  5. मंजीदार का प्रचार क्षेत्र किसी विशेष ………. तक सीमित नहीं था।

उत्तर-

  1. मंजी प्रथा की स्थापना गुरु अमरदास जी ने की थी।
  2. कुल 22 मंजियों की स्थापना की गई थी।
  3. मंजी का मुखिया मंजीदार होता था।
  4. वे सिख धर्म का प्रचार करते थे।
  5. प्रदेश।

5
गुरु रामदास जी की सिख पंथ को सबसे महत्त्वपूर्ण देन रामदासपुरा अथवा अमृतसर की स्थापना करना था। गुरुगद्दी प्राप्त करने के पश्चात् गुरु साहिब स्वयं यहाँ आ गए थे। उन्होंने 1577 ई० में रामदासपुरा की स्थापना की। इस शहर को बसाने के लिए गुरु साहिब ने यहाँ भिन्न-भिन्न व्यवसायों से संबंधित 52 अन्य व्यापारियों को बसाया। इन व्यापारियों ने जो बाज़ार बसाया वह ‘गुरु का बाज़ार’ नाम से प्रसिद्ध हुआ। शीघ्र ही यह एक प्रसिद्ध व्यापारिक केंद्र बन गया। गुरु साहिब ने रामदासपुरा में दो सरोवरों अमृतसर एवं संतोखसर की खुदवाई का विचार बनाया। पहले अमृतसर सरोवर की खुदाई का कार्य आरंभ किया गया। इस कार्य की देखभाल के लिए बाबा बुड्डा जी को नियुक्त किया गया। बाद में अमृत सरोवर के नाम पर रामदासपुरा का नाम अमृतसर पड़ गया। अमृतसर की स्थापना सिख पंथ के इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है। इससे सिखों को एक अलग तीर्थ स्थान मिल गया जो शीघ्र ही उनका सर्वाधिक प्रसिद्ध धर्म-प्रचार केंद्र बन गया।

  1. रामदासपुरा की स्थापना किस गुरु साहिब ने की थी ?
  2. रामदासपुरा के पश्चात् इसे किस नाम से जाना जाने लगा ?
  3. रामदासपुरा में व्यापारियों के लिए बनाए गए बाज़ार का नाम क्या था ?
  4. रामदासपुरा की स्थापना का क्या महत्त्व था ?
  5. रामदासपुरा की स्थापना कब की गयी थी ?
    • 1571 ई०
    • 1573 ई०
    • 1575 ई०
    • 1577 ई०।

उत्तर-

  1. रामदासपुरा की स्थापना गुरु रामदास जी ने की थी।
  2. रामदासपुरा के पश्चात् इसे अमृतसर के नाम से जाना जाने लगा।
  3. रामदासपुरा में व्यापारियों के लिए बनाए गए बाज़ार का नाम ‘गुरु का बाज़ार’ था।
  4. इसके कारण सिखों को उनका सबसे पवित्र तीर्थ स्थान मिला।
  5. 1577 ई०।

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गुरु अंगद देव जी, गुरु अमरदास जी और गुरु रामदास जी के अधीन सिख धर्म का विकास PSEB 12th Class History Notes

  • गुरु अंगद देव जी का प्रारंभिक जीवन (Early Career of Guru Angad Dev Ji)-गुरु अंगद देव जी का जन्म 31 मार्च, 1504 ई० को मत्ते की सराय नामक गाँव में हुआ-उनका आरंभिक नाम भाई लहणा जी था-आपके पिता जी का नाम फेरूमल तथा माता जी का नाम सभराई देवी थाआपका विवाह आपके ही गाँव के श्री देवी चंद की सुपुत्री बीबी खीवी जी से हुआ-एक बार आप ज्वाला जी की यात्रा पर गए तो आपने करतारपुर में गुरु नानक देव जी के दर्शन किए-गुरु नानक देव जी के व्यक्तित्व से प्रभावित होकर आप उनके अनुयायी बन गए-आपकी अथक सेवा से प्रसन्न होकर गुरु नानक देव जी ने 7 सितंबर, 1539 ई० को आपको गुरु गद्दी सौंप दी।
  • गुरु अंगद देव जी के अधीन सिख धर्म का विकास (Development of Sikhism Under Guru Angad Dev Ji)-गुरु अंगद देव जी ने गुरमुखी लिपि को लोकप्रिय बनाया-गुरु जी ने गुरु नानक साहिब की वाणी को एकत्रित किया-उन्होंने स्वयं 62 शब्दों की रचना की-उन्होंने भाई बाला जी से गुरु नानक देव जी के जीवन के संबंध में एक जन्म साखी लिखवाई-गुरु जी ने लंगर प्रथा का विकास किया-संगत संस्था को और अधिक संगठित किया-उदासी मत का खंडन करके गुरु जी ने सिखमत के अलग अस्तित्व को बनाए रखने में सफलता प्राप्त की-आपने खडूर साहिब के समीप 1546 ई० में गोइंदवाल साहिब नामक नए नगर की स्थापना की-आपने मुग़ल बादशाह हुमायूँ को
    आशीर्वाद देकर सिखों तथा मुग़लों के मध्य मैत्रीपूर्ण संबंध स्थापित किए।
  • ज्योति जोत समाना (Immersed in Eternal Light)-अपना अंत समय निकट देखकर गुरु अंगद देव जी ने अमरदास जी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया-29 मार्च, 1552 ई० को गुरु अंगद देव जी ज्योति जोत समा गए।
  • गुरु अमरदास जी का आरंभिक जीवन और कठिनाइयाँ (Early Career and Difficulties of Guru Amar Das ji)—गुरु अमरदास जी का जन्म 5 मई, 1479 ई० को जिला अमृतसर के गाँव बासरके में हुआ–आपके पिता जी का नाम तेजभान भल्ला था-आपका विवाह देवी चंद जी की सुपुत्री मनसा देवी जी से हुआ-आप 62 वर्ष की आयु में गुरु अंगद देव जी के अनुयायी बने-आप मार्च, 1552 ई० में सिखों के तीसरे गुरु नियुक्त हुए-उस समय आपकी आयु 73 वर्ष थी-आपको गुरुगद्दी सौंपे जाने का गुरु अंगद देव जी के पुत्रों दासू और दातू ने कड़ा विरोध किया-आपको गुरु नानक देव जी के बड़े सुपुत्र बाबा श्री चंद जी का भी विरोध सहना पड़ा-गुरु अमरदास जी को कट्टर मुसलमानों तथा ब्राह्मण वर्ग के भी कड़े विरोध का सामना करना पड़ा।
  • गुरु अमरदास जी के समय सिख धर्म का विकास (Development of Sikhism Under Guru Amar Das Ji)—गुरु अमरदास जी 1552 ई० से 1574 ई० तक गुरगद्दी पर आसीन रहे। गुरु अमरदास जी की गतिविधियों का केंद्र गोइंदवाल साहिब था-गुरु अमरदास जी ने गोइंदवाल साहिब में 84 सीढ़ियों वाली एक बाऊली का निर्माण करवाया-उन्होंने लंगर संस्था का विकास किया-गुरु जी ने गुरु नानक देव जी और गुरु अंगद देव जी की बाणी का संग्रह किया-गुरु अमरदास जी ने स्वयं 907 शब्दों की रचना की-गुरु जी ने दूर-दूर के क्षेत्रों में सिख धर्म के प्रचार के लिए 22 मंजियों की स्थापना की-गुरु जी ने उदासी संप्रदाय का खंडन किया-गुरु अमरदास जी ने समाज में प्रचलित कुप्रथाओं का डट कर विरोध किया-गुरु जी ने सिखों के जन्म, विवाह तथा मृत्यु के अवसरों के लिए विशेष रस्में प्रचलित की-1568 ई० में अकबर के गोइंदवाल साहिब आगमन से सिखों और मुग़लों में मैत्रीपूर्ण संबंध स्थापित हुए।
  • ज्योति जोत समाना (Immersed in Eternal Light)-1574 ई० में गुरु अमरदास जी ने अपने दामाद भाई जेठा जी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया-1 सितंबर, 1574 ई० को गुरु जी ज्योति जोत समा गए।
  • गुरु रामदास जी का प्रारंभिक जीवन (Early Career of Guru Ram Das Ji)-गुरु रामदास जी का जन्म 24 सितंबर, 1534 ई० को चूना मंडी, लाहौर में हआ था-आपका आरंभिक नाम भाई जेठा जी था-आपके पिता जी का नाम हरिदास और माता जी का नाम दया कौर था-आप गुरु अमरदास जी के व्यक्तित्व से प्रभावित होकर उनके अनुयायी बन गए-1553 ई० में आपका विवाह गुरु अमरदास जी की छोटी लड़की बीबी भानी जी के साथ हुआ-1574 ई० में आप गुरु गद्दी पर विराजमान हुए-आप सिखों के चौथे गुरु थे।
  • गुरु रामदास जी के समय सिख मत का विकास (Development of Sikhism under Guru Ram Das Ji)-1577 ई० में गुरु रामदास जी ने रामदासपुरा अथवा अमृतसर की स्थापना की-रामदासपुरा में अमृतसर और संतोखसर नामक दो सरोवरों की खुदवाई का कार्य आरंभ किया गया-सिख मत्त के प्रचार तथा संगतों से धन को एकत्रित करने के लिए मसंद प्रथा आरंभ की गईउदासी संप्रदाय तथा सिखमत में समझौता सिख पंथ के विकास में एक मील पत्थर सिद्ध हुआसंगत, पंगत और मंजी संस्थाओं को जारी रखा गया-मुग़ल बादशाह अकबर के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध और दृढ़ हुए।
  • ज्योति जोत समाना (Immersed in Eternal Light)—ज्योति जोत समाने से पूर्व, गुरु रामदास जी ने अपने छोटे पुत्र अर्जन देव जी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया-1 सितंबर, 1581 ई० को गुरु जी ज्योति जोत समा गए।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 2 तुलनात्मक राजनीति

Punjab State Board PSEB 12th Class Political Science Book Solutions Chapter 2 तुलनात्मक राजनीति Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Political Science Chapter 2 तुलनात्मक राजनीति

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
तुलनात्मक राजनीति से आप क्या समझते हैं ? (What do you understand by Comparative Politics ?)
उत्तर-
तुलनात्मक राजनीति आधुनिक राजनीति विज्ञान की महत्त्वपूर्ण देन है। तुलनात्मक राजनीति वर्तमान में विश्वव्यापी स्तर पर राजनीति-शास्त्रियों व विचारकों के अध्ययन की प्रमुख विषय-वस्तु बन चुकी है। तुलनात्मक राजनीति का अध्ययन यद्यपि ऐतिहासिक काल से चला आ रहा है तथापि इसका महत्त्व आधुनिक युग में ही बढ़ा है। इसका कारण यह है कि प्रत्येक विषय के वैज्ञानिक अध्ययन के लिए तुलनात्मक अध्ययन अनिवार्य है और बिना तुलनात्मक अध्ययन के किसी भी विषय की वैज्ञानिक व्याख्या सम्भव नहीं है। यही बात राजनीति विज्ञान पर लागू होती है।

तुलनात्मक राजनीति का अध्ययन आधुनिक राजनीति शास्त्र की इस बदलती हुई प्रवृत्ति का परिचायक है। यद्यपि तुलनात्मक राजनीति का सामान्य अर्थ विदेशी सरकारों का संवैधानिक अध्ययन (Constitutional study of foreign government) है किन्तु आधुनिक राजनीति शास्त्र सम्पूर्ण विश्व की राजनीतिक पद्धति की कल्पना करता है।

तुलनात्मक राजनीति का अर्थ तथा परिभाषाएँ (Meaning and Definitions of Comparative Politics)तुलनात्मक राजनीति का अर्थ किन्हीं दो देशों अथवा दो सरकारों की राजनीति की तुलना करना अथवा कुछ देशों के संविधानों की तुलना नहीं है। तुलनात्मक राजनीति से हमारा अभिप्राय राजनीतिक संस्थाओं के तुलनात्मक अध्ययन से है। राजनीतिक संस्थाएं सरकार अथवा शासन के विभिन्न अंगों को कहा जाता है। शासन राज्य की एक मुख्य संस्था है जिसके मुख्य तीन अंग होते हैं-कार्यपालिका, विधानपालिका तथा न्यायपालिका। स्तरों की दृष्टि से शासन में केन्द्रीय सरकार, प्रादेशिक सरकार तथा स्थानीय सरकारें होती हैं, शासकीय प्रशासन, वित्तीय प्रशासन, असैनिक सरकार तथा अन्य सामाजिक मूल्य भी शासन के महत्त्वपूर्ण अंग होते हैं। यह सभी अंग तथा अन्य शासकीय अंग राजनीतिक संस्थाएं कहलाती हैं। तुलनात्मक राजनीति का उद्देश्य विभिन्न राजनीतिक व्यवस्थाओं (Political Systems) अथवा शासन की राजनीतिक संस्थाओं (Political Institutions) का तुलनात्मक अध्ययन करना है। तुलनात्मक राजनीति के विद्वानों ने भिन्न-भिन्न परिभाषाएं दी हैं, जिनमें मुख्य परिभाषाएं निम्नलिखित हैं-

1. एडवर्ड ए० फ्रीमैन (Edward A. Freeman) के अनुसार, “तुलनात्मक राजनीति संस्थाओं तथा सरकारों के विविध प्रकारों का एक तुलनात्मक विवेचन तथा विश्लेषण है।”

2. जीन ब्लोण्डेल (Jean Blondel) के अनुसार, “तुलनात्मक राजनीति वर्तमान विश्व में राष्ट्रीय सरकारों के प्रतिमानों का अध्ययन है।”

3. राल्फ बराइबन्ती (Ralf Braibanti) के अनुसार, “तुलनात्मक राजनीति सम्पूर्ण सामाजिक व्यवस्था के उन तत्त्वों
की पहचान और व्याख्या है जो राजनीतिक कार्यों तथा उनके संस्थागत प्रकाशन को प्रभावित करते हैं।”

4. आर० सी० मैक्रीडीस (R. C. Macridis) के शब्दों में, “हैरोडोटस तथा अरस्तु के समय से ही राजनीतिक मूल्यों, विश्वासों, संस्थाओं, सरकारों और राजनीतिक व्यवस्थाओं में विविधताएं जीवन्त रही हैं और इन विविधताओं में समान तत्त्वों की छानबीन करने का जो पद्धतीय प्रयास है उसे तुलनात्मक राजनीति का विश्लेषण कहा जाना चाहिए।”

उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि तुलनात्मक राजनीति के अन्तर्गत केवल सरकारों का ही तुलनात्मक अध्ययन नहीं होता बल्कि इससे राजनीतिक व गैर-राजनीतिक, कानूनी व गैर-कानूनी, संवैधानिक व संविधानातिरिक्त, कबीलों की राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक आदि तथ्यों का भी अध्ययन किया जाता है। इसमें सम्पूर्ण समाज के उन तथ्यों का अध्ययन जो किसी भी रूप में राजनीतिक प्रणाली को प्रभावित करते हैं तुलनात्मक राजनीति का अध्ययन संस्थागत अथवा सैद्धान्तिक न होकर व्यावहारिक है।

प्रश्न 2.
तुलनात्मक राजनीति की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन करो। (Describe the main characteristics of Comparative Politics.)
उत्तर-
तुलनात्मक राजनीति की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
1. मूल्य मुक्त धारणा (Value-free theory) तुलनात्मक सरकार के विद्वान् अपना अध्ययन कुछ मूल्यों को ध्यान में रखकर ही करते थे। इसलिए उन्होंने कुछ ही विषयों पर बार-बार लिखा। परन्तु तुलनात्मक राजनीति के विद्वान् मूल्य निरपेक्ष अध्ययन पर बल देते हैं।

2. अन्तः अनुशासनात्मक दृष्टिकोण (Inter-Disciplinary Approach)-तुलनात्मक राजनीति एक अन्तः अनुशासनात्मक दृष्टिकोण अथवा धारणा है। इसके विद्वान् अधिक-से-अधिक उन उपकरणों व शास्त्रीय अवधारणाओं का प्रयोग करते हैं जो वे समाजशास्त्र, मनोविज्ञान, मानवशास्त्र, अर्थशास्त्र, जीव विज्ञान इत्यादि से ग्रहण करते हैं।

3. विश्लेषणात्मक व व्याख्यात्मक अध्ययन (Analytical and Explanatory Study)—आधुनिक दृष्टिकोण में परिकल्पनाएं की जाती हैं, परीक्षण किए जाते हैं तथा आंकड़ों को एकत्रित किया जाता है। विश्लेषणात्मक पद्धति से परिकल्पनाओं की जांच की जाती है और जांच के आधार पर उन परिकल्पनाओं का धारण, संशोधन अथवा खण्डन किया जाता है। तुलनात्मक राजनीति में विश्लेषणात्मक पद्धति का महत्त्व दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है।

4. विकासशील देशों का अध्ययन (Study of Developing Countries) आधुनिक तुलनात्मक राजनीति में केवल पश्चिमी देशों का ही अध्ययन नहीं किया जाता है वरन एशिया, लैटिन अमेरिका तथा अफ्रीका के विकासशील देशों के अध्ययन की ओर भी ध्यान दिया जाता है।

5. वैज्ञानिक तथा व्यवस्थित अध्ययन (Scientific and Systematic Study) तुलनात्मक राजनीति में वैज्ञानिक तथा व्यवस्थित अध्ययन को अपनाया जाता है क्योंकि इसमें कार्य-करण और क्रिया-प्रतिक्रिया का सम्बन्ध स्थापित करने की कोशिश की जाती है।

6. व्यवस्थामूलक दृष्टिकोण (Systematic Approach)-तुलनात्मक राजनीति में संविधान के अध्ययन की अपेक्षा राजनीतिक व्यवस्था के अध्ययन को अधिक महत्त्वपूर्ण माना जाता है और उसी के आधार पर राजनीतिक प्रतिक्रियाओं तथा संस्थाओं का तुलनात्मक अध्ययन किया जाता है।

7. व्यवहारवादी अध्ययन सम्बन्धी दृष्टिकोण (Behavioural Approach of Study)—तुलनात्मक राजनीति के आधुनिक उपागम ‘व्यवहारवादी दृष्टिकोण’ पर आधारित हैं, जिसके अन्तर्गत राजनीतिक संस्थाओं के अध्ययन के साथ-साथ मानव स्वभाव, सामाजिक व राजनीतिक पर्यावरण का भी अध्ययन किया जाता है।।

8. संरचनात्मक व कार्यात्मक दृष्टिकोण (Structural and functional Approach)-आधुनिक दृष्टिकोण की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता यह है कि यह संरचना तथा कार्य मूलक दृष्टिकोण है। आधुनिक युग में सभी विद्वान् इस बात पर सहमत हैं कि राजनीतिक व्यवस्थाओं तथा संस्थाओं की संरचना और कार्यों में बहुत ही घनिष्ठ सम्बन्ध होता है। दोनों एक-दूसरे को प्रभावित ही नहीं करते, अपितु एक-दूसरे के नियामक भी होते हैं।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 2 तुलनात्मक राजनीति

लघु उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
तुलनात्मक राजनीति से क्या भाव है ?
अथवा
तुलनात्मक राजनीति का क्या अर्थ है ?
उत्तर-
तुलनात्मक राजनीति का अर्थ किन्हीं दो देशों अथवा दो सरकारों की राजनीति की तुलना करना अथवा कुछ देशों के संविधानों की तुलना करना नहीं है। तुलनात्मक राजनीति से हमारा अभिप्राय राजनीतिक संस्थाओं के तुलनात्मक अध्ययन से है। अब यह प्रश्न उठता है कि राजनीतिक संस्थाएं क्या हैं। राजनीतिक संस्थाएं सरकार अथवा शासन के विभिन्न अंगों को कहा जाता है। शासन राज्य की एक मुख्य संस्था है, जिसके मुख्य तीन अंग होते हैं-कार्यपालिका, विधानपालिका तथा न्यायपालिका। स्तरों की दृष्टि से शासन में केन्द्रीय सरकार, प्रादेशिक सरकार तथा स्थानीय सरकारें होती हैं। शासकीय प्रशासन, वित्तीय व्यवस्था, असैनिक सरकार तथा अन्य सामाजिक मूल्य भी शासन के महत्त्वपूर्ण अंग होते हैं। ये सभी अंग तथा अनेक अन्य शासकीय अंग राजनीतिक संस्थाएं कहलाते हैं। तुलनात्मक राजनीति का उद्देश्य विभिन्न राजनीतिक व्यवस्थाओं (Political System) अथवा शासन की राजनीतिक संस्थाओं (Political Institutions) का तुलनात्मक अध्ययन करना है।

प्रश्न 2.
तुलनात्मक राजनीति की कोई तीन परिभाषाएं लिखें।
अथवा
तुलनात्मक राजनीति की कोई चार परिभाषाएं लिखें।
उत्तर-
तुलनात्मक राजनीति की तीन परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं-

  • एडवर्ड ए० फ्रीमैन के अनुसार, “तुलनात्मक राजनीतिक संस्थाओं तथा सरकारों के विविध प्रकारों का एक तुलनात्मक विवेचन तथा विश्लेषण है।”
  • जीन ब्लोण्डेल के अनुसार, “तुलनात्मक राजनीति वर्तमान विश्व में राष्ट्रीय सरकारों के प्रतिमानों का अध्ययन है।”
  • एम० कर्टिस के अनुसार, “तुलनात्मक राजनीति राजनीतिक संस्थाओं की कार्यप्रणाली और राजनीतिक व्यवहार में पाई जाने वाली महत्त्वपूर्ण नियमितताओं, समानताओं और अन्तरों से सम्बन्धित है।”
  • राल्फ बराइबत्ती के अनुसार, “तुलनात्मक राजनीति सम्पूर्ण सामाजिक व्यवस्था के उन तत्त्वों की पहचान और व्याख्या है जो राजनीतिक कार्यों तथा उनके संस्थागत प्रकाशन को प्रभावित करती है।”

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प्रश्न 3.
तुलनात्मक राजनीति की कोई तीन विशेषताएं लिखें।
अथवा
तुलनात्मक राजनीति की कोई चार विशेषताएं लिखिए।
उत्तर-

  • मूल्य मुक्त धारणा–तुलनात्मक सरकार के विद्वान् अपना अध्ययन कुछ मूल्यों को ध्यान में रखकर ही करते थे। इसलिए उन्होंने कुछ ही विषयों पर बार-बार लिखा। परन्तु तुलनात्मक राजनीति के विद्वान् मूल्य निरपेक्ष अध्ययन पर बल देते हैं।
  • अन्तः अनुशासनात्मक दृष्टिकोण—तुलनात्मक राजनीति एक अन्तः अनुशासनात्मक दृष्टिकोण अथवा धारणा है। इसके विद्वान् अधिक-से-अधिक उन उपकरणों व शास्त्रीय अवधारणाओं का प्रयोग करते हैं जो वे समाजशास्त्र, मनोविज्ञान, मानवशास्त्र, अर्थशास्त्र जीव विज्ञान इत्यादि से ग्रहण करते हैं।
  • विश्लेषणात्मक व व्याख्यात्मक अध्ययन–आधुनिक दृष्टिकोण में परिकल्पनाएं की जाती हैं, परीक्षण किए जाते हैं तथा आंकड़ों को एकत्रित किया जाता है। विश्लेषणात्मक पद्धति से परिकल्पनाओं की जांच की जाती है और जांच के आधार पर उन परिकल्पनाओं का धारण, संशोधन अथवा खण्डन किया जाता है। तुलनात्मक राजनीति में विश्लेषणात्मक पद्धति का महत्त्व दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है।
  • वैज्ञानिक तथा व्यवस्थित अध्ययन-तुलनात्मक राजनीति में वैज्ञानिक तथा व्यवस्थित अध्ययन अपनाया जाता है।

प्रश्न 4.
तुलनात्मक राजनीति के अध्ययन की क्या महत्ता है ?
उत्तर-

  • तुलनात्मक राजनीति के अध्ययन से राजनीतिक व्यवहार को समझने में सहायता मिलती है।
  • तुलनात्मक राजनीति के अध्ययन से भिन्न-भिन्न राजनीतिक व्यवस्थाओं की समानताओं तथा असमानताओं को समझा जा सकता है।
  • तुलनात्मक राजनीति के अध्ययन से विकासशील देशों की राजनीतिक व्यवस्थाओं को समझने में सहायता मिलती है।
  • तुलनात्मक राजनीति का अध्ययन राजनीति को एक वैज्ञानिक अध्ययन बनाता है।

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प्रश्न 5.
तुलनात्मक राजनीति और तुलनात्मक सरकार में अंतर लिखिए ?
उत्तर-

  • विषय क्षेत्र सम्बन्धी अन्तर-तुलनात्मक सरकार का विषय क्षेत्र तुलनात्क राजनीति के क्षेत्र से सीमित
  • जन्म सम्बन्धी अन्तर-तुलनात्मक सरकार का विषय लगभग उतना ही पुराना है जितना कि स्वयं राजनीति शास्त्र पुराना है। राजनीति शास्त्र के पितामह अरस्तु ने अपने समय की 158 सरकारों की तुलनात्मक अधययन करके तुलनात्मक विश्लेषण सम्बन्धी अपने विचार दिये थे। परन्तु तुलनात्मक सरकार की अपेक्षा राजनीति एक नया विषय है।
  • उद्देश्य सम्बन्धी अन्तर-तुलनात्मक सरकार व तुलनात्मक राजनीति में मुख्य अन्तर उद्देश्य सम्बन्धी है। प्रत्येक विषय के अध्ययन का कोई-न-कोई उद्देश्य अवश्य होता है। तुलनात्मक सरकार के अध्ययन के बावजूद इसका उद्देश्य स्पष्ट नहीं होता जबकि तुलनात्मक राजनीति के अध्ययन से इसका उद्देश्य सिद्धान्त निर्माण (Theory Building) स्पष्ट हो जाता है।
  • तुलनात्मक शासन सैद्धान्तिक और संस्थागत अध्ययन है, जबकि तुलनात्मक राजनीति व्यावहारिक और वैज्ञानिक अध्ययन है।

प्रश्न 6.
तुलनात्मक राजनीति के रास्ते में आने वाली किन्हीं चार रुकावटों के बारे में लिखिए।
उत्तर-

  • क्षेत्र सम्बन्धी रुकावट-तुलनात्मक राजनीति के रास्ते में पहली रुकावट यह आती है कि इसके क्षेत्र में क्या-क्या शामिल किया जाए ?
  • दृष्टिकोण सम्बन्धी रुकावट-तुलनात्मक राजनीति के रास्ते में दूसरी रुकावट यह है कि इसके अध्ययन के लिए किन-किन दृष्टिकोणों का प्रयोग किया जाए ?
  • विकासशील देशों की परिस्थितियां-तुलनात्मक राजनीति के रास्ते में विकासशील देशों की खराब आर्थिक एवं सामाजिक परिस्थितियां रुकावट पैदा करती हैं।
  • कठिन शब्दावली-तुलनात्मक राजनीति की शब्दावली कठिन है।

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अति लघु उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
तुलनात्मक राजनीति का क्या अर्थ है ?
उत्तर-
तुलनात्मक राजनीति से हमारा अभिप्राय राजनीतिक संस्थाओं के तुलनात्मक अध्ययन से है। अब यह प्रश्न उठता है कि राजनीतिक संस्थाएं क्या हैं। राजनीतिक संस्थाएं सरकार अथवा शासन के विभिन्न अंगों को कहा जाता है। तुलनात्मक राजनीति का उद्देश्य विभिन्न राजनीतिक व्यवस्थाओं (Political System) अथवा शासन की राजनीतिक संस्थाओं (Political Institutions) का तुलनात्मक अध्ययन करना है।

प्रश्न 2.
तुलनात्मक राजनीति की दो परिभाषाएं लिखें।
उत्तर-

  • एडवर्ड ए० फ्रीमैन के अनुसार, “तुलनात्मक राजनीतिक संस्थाओं तथा सरकारों के विविध प्रकारों का एक तुलनात्मक विवेचन तथा विश्लेषण है।”
  • जीन ब्लोण्डेल के अनुसार, “तुलनात्मक राजनीति वर्तमान विश्व में राष्ट्रीय सरकारों के प्रतिमानों का अध्ययन है।”

प्रश्न 3.
तुलनात्मक राजनीति के अधीन कौन-से दो विषयों की तुलना की जा सकती है ?
उत्तर-
तुलनात्मक राजनीति के अधीन शासन एवं राजनीति की तुलना की जाती है अर्थात् इनके अधीन किन्हीं दो देशों के शासन एवं उनकी राजनीति की तुलना की जाती है।

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प्रश्न 4.
तुलनात्मक राजनीति की दो विशेषताएं लिखिए।
उत्तर-

  • मूल्य मुक्त धारणा–तुलनात्मक राजनीति के विद्वान् मूल्य निरपेक्ष अध्ययन पर बल देते हैं।
  • अन्त: अनुशासनात्मक दृष्टिकोण—तुलनात्मक राजनीति एक अन्तः अनुशासनात्मक दृष्टिकोण अथवा धारणा चारणा है

प्रश्न 5.
तुलनात्मक राजनीति के विषय क्षेत्र के कोई दो मुख्य विषय लिखिए।
उत्तर-

  • तुलनात्मक राजनीति में विभिन्न राज्यों की सरकारी संरचनाओं का व्यापक विवरण मिलता है।
  • तुलनात्मक राजनीति में राजनीतिक दलों के संगठन, कार्यक्रम तथा कार्यों का अध्ययन करता है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न-

प्रश्न I. एक शब्द/वाक्य वाले प्रश्न-उत्तर

प्रश्न 1.
राजनीतिक शास्त्र में तुलनात्मक अध्ययन का प्रतिपादक किसे माना जाता है ?
उत्तर-
राजनीतिक शास्त्र में तुलनात्मक अध्ययन का प्रतिपादक अरस्तू को माना जाता है।

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प्रश्न 2.
अरस्तू ने कितने संविधानों का तुलनात्मक अध्ययन किया था ?
उत्तर-
रस्तू ने लगभग 158 संविधानों का तुलनात्मक अध्ययन किया था।

प्रश्न 3.
तुलनात्मक राजनीति से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
तुलनात्मक राजनीति से हमारा अभिप्राय राजनीति संस्थाओं के तुलनात्मक अध्ययन से है।

प्रश्न 4.
तुलनात्मक राजनीति की कोई एक परिभाषा लिखिए।
उत्तर-
एडवर्ड ए० फ्रीमैन के अनुसार, “तुलनात्मक राजनीति संस्थाओं तथा सरकारों के विविध प्रकारों का एक तुलनात्मक विवेचन तथा विश्लेषण है।”

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प्रश्न 5.
तुलनात्मक राजनीति और तुलनात्मक सरकार में अन्तर बताएं।
उत्तर-
तुलनात्मक सरकार सैद्धान्तिक और संस्थागत अध्ययन है, जबकि तुलनात्मक राजनीति व्यावहारिक और वैज्ञानिक अध्ययन है।

प्रश्न 6.
तुलनात्मक राजनीति के विषय क्षेत्र का कोई एक मुख्य विषय लिखें।
उत्तर-
विभिन्न देशों की सरकारी संरचनाओं का अध्ययन।

प्रश्न 7.
तुलनात्मक राजनीति की कोई दो विशेषताएं लिखें।
अथवा
तुलनात्मक राजनीति की कोई एक विशेषता लिखिए।
उत्तर-
(1) मूल्य मुक्त धारणा।
(2) अन्तः अनुशासनात्मक दृष्टिकोण।

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प्रश्न 8.
तुलनात्मक शासन एवं राजनीति में किस पर अधिक बल दिया गया है ?
उत्तर-
अंत: अनुशासन अध्ययन पर अधिक बल दिया गया है।

प्रश्न 9.
तुलनात्मक राजनीति की कोई एक समस्या लिखिए।
उत्तर-
संयुक्त शब्दावली का अभाव।

प्रश्न 10.
किन विद्वानों ने परम्परावादी दृष्टिकोण का निर्जीव राजनीति विज्ञान कहकर खण्डन किया है?
उत्तर-
आधुनिक विद्वानों ने।

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प्रश्न II. खाली स्थान भरें-

1. तुलनात्मक राजनीति से अभिप्राय राजनीतिक संस्थाओं के ………….. अध्ययन से है।
2. शासन राज्य की एक मुख्य संस्था है, जिसके मुख्य तीन अंग होते हैं :- कार्यपालिका, ……………. एवं न्यायपालिका।
3. …………… के अनुसार तुलनात्मक राजनीति संस्थाओं तथा सरकारों के विविध प्रकारों का एक तुलनात्मक विवेचन एवं विश्लेषण है।
4. ……………. के अनुसार, तुलनात्मक राजनीति वर्तमान विश्व में राष्ट्रीय सरकारों के प्रतिमानों का अध्ययन है।
उत्तर-

  1. तुलनात्मक
  2. विधानपालिका
  3. एडवर्ड ए० फ्रीमैन
  4. जीन ब्लोण्डेल।

प्रश्न III. निम्नलिखित वाक्यों में से सही एवं ग़लत का चुनाव करें-

1. तुलनात्मक राजनीति परम्परागत राजनीति विज्ञान की देन है।
2. तुलनात्मक राजनीति से अभिप्राय राजनीतिक संस्थाओं के तुलनात्मक अध्ययन से है।
3. तुलनात्मक राजनीति की एक विशेषता मूल्य मुक्त अध्ययन है।
4. तुलनात्मक राजनीति में अन्तः अनुशासनात्मक दृष्टिकोण पर बल नहीं दिया जाता।
5. मैक्रीडीस एवं वार्ड के अनुसार तुलनात्मक राजनीति एक ऐसा गाइड है, जो घर बैठे-बिठाए हमें देश-विदेश की सैर करा देता है।
उत्तर-

  1. ग़लत
  2. सही
  3. सही
  4. ग़लत
  5. सही।

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प्रश्न IV. बहुविकल्पीय प्रश्न –

प्रश्न 1.
“राजनीति में मानव स्वभाव” नामक पुस्तक किसने लिखी?
(क) राबर्ट डहल
(ख) लुसियन पाई
(ग) डेविड एप्टर
(घ) ग्राम वालेस।
उत्तर-
(घ) ग्राम वालेस।

प्रश्न 2.
तुलनात्मक राजनीति का आरम्भ कब से माना जाता है?
(क) 19वीं शताब्दी से
(ख) 20वीं शताब्दी के प्रारंभ से
(ग) 18वीं शताब्दी से
(घ) 17वीं शताब्दी से।
उत्तर-
(ख) 20वीं शताब्दी के प्रारंभ से

प्रश्न 3.
तुलनात्मक सरकार एवं तुलनात्मक राजनीति में –
(क) कोई अन्तर नहीं
(ख) अन्तर है
(ग) उपरोक्त दोनों
(घ) उपरोक्त में से कोई नहीं।
उत्तर-
(ख) अन्तर है

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प्रश्न 4.
“तुलनात्मक राजनीति का अर्थ समकालीन विश्व में राष्ट्रीय सरकारों के ढांचे का अध्ययन है।” यह कथन किसका है ?
(क) एडवर्ड फ्रीमैन
(ख) अरस्तू
(ग) जीन ब्लोण्डेल
(घ) ज्यूफ्री के० राबर्टस।
उत्तर-
(ग) जीन ब्लोण्डेल

प्रश्न 5.
तुलनात्मक शासन एवं राजनीति में ज़ोर दिया जाता है-
(क) ऐतिहासिक अध्ययन पर
(ख) केवल संवैधानिक ढांचे पर
(ग) अन्तःअनुशासन अध्ययन पर
(घ) उपरोक्त में से कोई नहीं।
उत्तर-
(ग) अन्तःअनुशासन अध्ययन पर

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 1 राजनीतिक व्यवस्था

Punjab State Board PSEB 12th Class Political Science Book Solutions Chapter 1 राजनीतिक व्यवस्था Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Political Science Chapter 1 राजनीतिक व्यवस्था

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
राजनीतिक व प्रणाली शब्द का अलग-अलग अर्थ स्पष्ट करते हुए राजनीतिक प्रणाली की कोई र विशेषताएं बताएं।
(Describe the word Political and System separately and also write any three features of Political System.)
अथवा राजनैतिक प्रणाली की परिभाषा लिखो। इसकी मुख्य विशेषताओं का विस्तार सहित वर्णन करो। (Define Political System. Write main characteristics of Political System.)
उत्तर-
आलमण्ड (Almond) तथा पॉवेल (Powell) के अनुसार, तुलनात्मक राजनीति से सम्बन्धित प्रकाशित पुस्तकों में राजनीतिक व्यवस्था (Political System) शब्दावली का अधिक-से-अधिक प्रयोग किया जा रहा है। पुरानी पाठ्य-पुस्तकें आमतौर पर राजनीतिक व्यवस्था के लिए ‘सरकार’, ‘राष्ट्र’ या ‘राज्य’ जैसे शब्दों का प्रयोग करती थीं। यह नवीन शब्दावली उस नए दृष्टिकोण का प्रतिबिम्ब है जो राजनीतिक व्यवस्था को एक नए ढंग से देखते हैं। आलमण्ड तथा पॉवेल आदि लेखकों का विचार है कि प्राचीन युग में प्रयोग होने वाले ये शब्द वैधानिक और संस्थात्मक अर्थों (Legal and Institutional Meanings) द्वारा सीमित है। आलमण्ड तथा पॉवेल का कहना है कि यदि वास्तव में राजनीति विज्ञान को प्रभावशाली बनाना है तो हमें विश्लेषण के अधिक व्यापक ढांचे की आवश्यकता है और वह ढांचा व्यवस्था विश्लेषण (System Analysis) का है। आलमण्ड तथा पॉवेल ने लिखा है, “राजनीतिक व्यवस्था की अवधारणा अधिक लोकप्रिय होती जा रही है क्योंकि यह किसी भी समाज के राजनीतिक क्रियाओं के सम्पूर्ण क्षेत्र की ओर हमारा ध्यान आकर्षित करती है।”

राजनीतिक व्यवस्था का अर्थ (Meaning of the Political System)-राजनीतिक व्यवस्था शब्द के दो भाग हैं-राजनीति तथा व्यवस्था। इन दोनों के अर्थ को समझने के बाद ही राजनीतिक व्यवस्था अथवा प्रणाली का अर्थ समझा जा सकता है। – 1. राजनीतिक (Political)-राजनीतिक शब्द सत्ता अथवा शक्ति का सूचक है। किसी भी समुदाय या संघ को राजनीतिक उस समय कहा ज सकता है जबकि उसकी आज्ञा का पालन प्रशासकीय कर्मचारी वर्ग द्वारा शारीरिक बल प्रयोग के भय से करवाया जात है । अरस्तु ने राजनीतिक समुदाय को अत्यधिक प्रभुत्व-समन्न तथा अन्तर्भावी र गठन’ (The most sovereign and inclusive association) परिभाषित किया है।” अरस्तु के मतानुसार, “राजनीतिक समुदाय के पास सर्वोच्च शक्ति होती है जो इसको अन्य समुदायों अथवा संघों से अलग करती है। अरस्तु के बाद अनेक विद्वानों ने इस बात को स्वीकार किया है कि राजनीतिक सम्बन्धों में सत्ता, शासन और शक्ति किसी-न-किसी प्रकार । निहित है।

आलमण्ड तथा पॉवेल (Almond and Powell) ने राजनीतिक समुदाय की इस शक्ति को कानूनी शारीरिक बलात् शक्ति (Legitimate Physical Coercive Powers) का नाम दिया है।
मैक्स वैबर (Max Webber) के अनुसार, “किसी भी समुदाय को उस समय राजनीतक माना जा सकतज उसके आदेशों को एक निश्चित भू-क्षेत्र में लगातार शक्ति के प्रयोग अथवा शक्ति-प्रयोग की धमकी द्वारा मनवाया । सकता हो।”

डेविड ईस्टन (David Easton) ने राजनीतिक जीवन को इस प्रकार परिभाषित किया है- “यह अन्तक्रियाओं का समूह अथवा प्रणाली है जो इस तथ्य से अलंकृत है कि यह एक समाज के लिए सत्तात्मक मूल्य निर्धारण से कम या अधिक सम्बन्धित है।” (“A set or system of interactions defined by the fact that they are more or less directly related to the authoritative allocation of values for a society.”) लॉसवैल तथा कॉप्लान (Lasswell and Kaplan) ने ‘घोर-हानि’ (Severe Deprivation) की बात की है। राबर्ट ए० डाहल (Robert A. Dahl) ने ‘शक्ति , शासन तथा सत्ता’ (Power, Rule and Authority) का वर्णन किया है।

विभिन्न विद्वानों के विचारों के आधार पर हम कह सकते हैं कि राजनीति का सम्बन्ध ‘शक्ति’, ‘शासन’ तथा ‘सत्ता’ से होता है और जिस समुदाय के पास ये गुण होते हैं उसे राजनीतिक समुदाय कहा जाता है।

2. व्यवस्था या प्रणाली (System)—व्यवस्था (System) शब्द का प्रयोग अन्तक्रियाओं (Interaction) के समूह ) का संकेत करने के लिए किया जाता है।

ऑक्सफोर्ड शब्दकोष (Concise Oxford Dictionary) के अनुसार, “प्रणाली एक पूर्ण समाप्ति है, सम्बद्ध वस्तुओं अथवा अंशों का समूह है, भौतिक या अभौतिक वस्तुओं का संगठित समूह है।” (A system is a complex whole, a set of connected things or parts, organised body of material or immaterial things.”)

वान बर्टलैंफी (Von Bertalanffy) के अनुसार, “प्रणाली (System) पारस्परिक अन्तक्रिया (Interaction) में बन्धे हुए तत्त्वों का समूह है।” (“System is a set of elements standing in interaction.”)

ए० हाल एवं आर० फैगन (A. Hall and R. Fagen) के अनुसार, “प्रणाली” पात्रों (Objects), पात्रों में पारस्परिक सम्बन्धों तथा पात्रों के लक्षणों के पारस्परिक सम्बन्धों का समूह है।” (“System is a set of objects together with relations between the objects and between their attitudes.”)

कालिन चैरे (Colin Cheray) के अनुसार, “प्रणाली” कई अंशों से मिलकर बनी एक समष्टि (Whole) कई लक्षणों का समूह है।” (“System is a whole which is compounded of many parts-an ensemble of attitudes.”)

आलमण्ड तथा पॉवेल (Almond and Powell) के अनुसार, “एक व्यवस्था से अभिप्राय भागों (Parts) की परस्पर निर्भरता और उसके तथा उसके वातावरण के बीच किसी प्रकार की सीमा से है।” (A system implies interdependence of parts of boundary of some kind between it and its environment.”)

विभिन्न विद्वानों की परिभाषाओं की विवेचना से स्पष्ट है कि व्यवस्था (System) एक पूर्ण इकाई होती है, जिसके कई भाग होते हैं और ये भाग एक-दूसरे पर निर्भर करते हैं और एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं। उदाहरणस्वरूप मानव शरीर एक व्यवस्था है। मानव शरीर के अनेक अंग हैं और ये सभी अंग अथवा भाग एक-दूसरे पर निर्भर करते हैं तथा एक-दूसरे को और सम्पूर्ण मानव शरीर को भी प्रभावित करते हैं। ___ एक व्यवस्था के अन्दर कुछ आधारभूत विशेषताएं होती हैं जैसे कि एकता, नियमितता, सम्पूर्णता, संगठन, सम्बद्धता (Coherence), संयुक्तता (Connection) तथा अंशों अथवा भागों का अन्योन्याश्रय (Interdependence of parts)।

इस प्रकार राजनीतिक व्यवस्था उन अन्योन्याश्रित सम्बन्धों के समूह को कहा जा सकता है जिसके संचालन में सत्ता या शक्ति का भी हाथ है।

व्यवस्था में निम्नलिखित विशेषताएं पाई जाती हैं-

  • व्यवस्था भिन्न-भिन्न अंगों या हिस्सों के जोड़ों से बनती है।
  • व्यवस्था के भिन्न-भिन्न अंगों में परस्पर निर्भरता होती है।
  • व्यवस्था के अंगों में एक-दूसरे को प्रभावित करने की समर्थता होती है।
  • व्यवस्था की अपनी सीमाएं होती हैं।
  • व्यवस्था में उप-व्यवस्थाएं (Sub-System) भी पाई जाती हैं।
  • प्रत्येक व्यवस्था में सम्पूर्णता का गुण होता है।
  • प्रत्येक व्यवस्था में एक इकाई के रूप में कार्य करने की योग्यता होती है।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 1 राजनीतिक व्यवस्था

प्रश्न 2.
राजनीतिक प्रणाली की मुख्य विशेषताओं का वर्णन करें। (Describe the main characteristics of Political System.)
अथवा
आलमण्ड के अनुसार राजनीतिक प्रणाली की विशेषताओं का वर्णन कीजिए। (Describe the characteristics of Political System according to Almond.)
अथवा
राजनीतिक प्रणाली की मुख्य विशेषताओं की व्याख्या करें। (Explain main characteristics of Political System.)
उत्तर-
राजनीतिक व्यवस्था की विभिन्न परिभाषाओं से राजनीतिक व्यवस्था की विशेषताओं का पता चलता है। आलमण्ड के अनुसार राजनीतिक व्यवस्था की मुख्य विशेषताएं अग्रलिखित हैं-

1. मानवीय सम्बन्ध (Human Relations)–जिस प्रकार राज्य के लिए जनसंख्या का होना अनिवार्य है, उसी प्रकार राजनीतिक व्यवस्था के लिए मनुष्यों के परस्पर स्थायी सम्बन्धों का होना आवश्यक है। बिना मानवीय सम्बन्धों के राजनीतिक व्यवस्था नहीं हो सकती। परन्तु सभी प्रकार के मानवीय सम्बन्धों को राजनीतिक व्यवस्था का अंग नहीं माना जा सकता। केवल उन्हीं मानवीय सम्बन्धों को राजनीतिक व्यवस्था का अंग माना जाता है जो राजनीतिक व्यवस्था की कार्यशीलता को किसी-न-किसी तरह प्रभावित करते हों।

2. औचित्यपूर्ण शक्ति का प्रयोग (Use of Legitimate Force)-राजनीतिक व्यवस्था का सबसे महत्त्वपूर्ण गुण शारीरिक दण्ड देने की शक्ति के प्रयोग करने के अधिकार के अस्तित्व को स्वीकार किया जाना है। इस गुण के आधार पर ही राजनीतिक व्यवस्था को अन्य व्यवस्थाओं से अलग किया जाता है। जिस प्रकार प्रभुसत्ता राज्य का अनिवार्य तत्त्व है और प्रभुसत्ता के बिना राज्य की कल्पना नहीं की जा सकती, उसी तरह औचित्यपूर्ण शारीरिक दबाव शक्ति (Legitimate Physical Coercive Power) के बिना राजनीतिक व्यवस्था का अस्तित्व सम्भव नहीं है। प्रत्येक समाज में शान्ति और व्यवस्था को बनाए रखने के लिए तथा अपराधियों को दण्ड देने के लिए शक्ति का प्रयोग किया जाता है, परन्तु शक्ति का प्रयोग औचित्यपूर्ण होना चाहिए। औचित्यपूर्ण शक्ति के द्वारा ही राजनीतिक व्यवस्था के सभी कार्य चलते हैं।

3. व्यापकता (Comprehensiveness)-आलमण्ड के विचारानुसार, व्यापकता का अर्थ है कि राजनीतिक व्यवस्था में निवेश तथा निर्गत (Inputs and Outputs) की वे सभी प्रक्रियाएं सम्मिलित हैं जो शक्ति के प्रयोग या शक्ति प्रयोग की धमकी को किसी भी रूप में प्रभावित करती हैं। अन्य शब्दों में आलमण्ड के मतानुसार राजनीतिक व्यवस्था में केवल संवैधानिक अथवा कानूनी ढांचों जैसे कि-विधानमण्डल, न्यायपालिका, नौकरशाही आदि को ही सम्मिलित नहीं किया जाता बल्कि इसमें अनौपचारिक (Informal) संस्थाओं जैसे कि राजनीतिक दल, दबाव समूह, निर्वाचक मण्डल आदि के साथ-साथ सभी प्रकार के राजनीतिक ढांचों के राजनीतिक पहलुओं को भी शामिल किया जाता है।

4. उप-व्यवस्थाओं का अस्तित्व (Existence of Sub-System)-राजनीतिक व्यवस्था में कई उप-व्यवस्थाएं भी पाई जाती हैं, जिनके सामूहिक रूप को राजनीतिक व्यवस्था कहा जाता है। इन उप-व्यवस्थाओं में परस्पर निर्भरता होती है तथा वे एक-दूसरे की कार्यविधि को प्रभावित करती हैं। जैसे-विधानपालिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका, राजनीतिक दल, प्रशासनिक विभाग तथा दबाव समूह इत्यादि राजनीतिक व्यवस्था की उप-व्यवस्थाएं हैं। इन उप-व्यवस्थाओं की कार्यशीलता से राजनीतिक व्यवस्था की कार्यशीलता प्रभावित होती है।

5. अन्तक्रिया (Interaction)-राजनीतिक व्यवस्था के सदस्यों अथवा इकाइयों में अन्तक्रिया हमेशा चलती रहती है। राजनीतिक व्यवस्था के सदस्यों में व्यक्तिगत अथवा विभिन्न समूहों के रूप में सम्पर्क बना रहता है तथा वे एक-दूसरे को प्रभावित करने की कोशिश करते हैं। इकाइयों में अन्तक्रिया न केवल निरन्तर होती है बल्कि बहुपक्षीय होती है।

6. अन्तर्निर्भरता (Interdependence) अन्तर्निर्भरता राजनीतिक व्यवस्था का महत्त्वपूर्ण गुण है। आलमण्ड (Almond) के मतानुसार राजनीतिक व्यवस्था में अनेक उप-व्यवस्थाओं (Sub-systems) के राजनीतिक पहलू भी सम्मिलित हैं। उसके विचारानुसार राजनीतिक व्यवस्था की जब एक उप-व्यवस्था में परिवर्तन आता है तो इसका प्रभाव अन्य व्यवस्थाओं पर भी पड़ता है। उदाहरणस्वरूप आधुनिक युग में संचार के साधनों का बहुत विकास हुआ है। संचार के साधनों के विकास के साथ चुनाव विधि, चुनाव व्यवहार, राजनीतिक दलों की विशेषताओं, विधानमण्डल तथा कार्यपालिका की रचना तथा कार्यों पर काफ़ी प्रभाव पड़ा है। इसी प्रकार श्रमिक वर्ग को मताधिकार देने में राजनीतिक दलों, दबाव समूहों, सरकारों के वैधानिक तथा कार्यपालिका अंगों पर प्रभाव पड़ना स्वाभाविक है।

7. सीमाओं की विद्यमानता (Existence of Boundaries)-सीमाओं की विद्यमानता राजनीतिक व्यवस्था का महत्त्वपूर्ण गुण है। सीमाओं की विद्यमानता का अर्थ है कि प्रत्येक व्यवस्था किसी एक स्थान से शुरू होती है और किसी दूसरे स्थान पर समाप्त होती है। प्रत्येक राजनीतिक व्यवस्था की कुछ सीमाएं होती हैं जो उसको अन्य व्यवस्थाओं से अलग करती हैं। राजनीतिक व्यवस्था की सीमाएं राज्य की तरह क्षेत्रीय सीमाएं नहीं होतीं। ये मानवीय सम्बन्धों तथा क्रियाओं की सीमाएं होती हैं। सभी राजनीतिक व्यवस्थाओं की सीमाएं सदैव एक-जैसी अथवा निश्चित नहीं होतीं। प्राचीन तथा परम्परागत समाज में राजनीतिक व्यवस्था की सीमाएं इतनी स्पष्ट नहीं होती जितनी कि आधुनिक समाज में। जैसे-जैसे किसी व्यवस्था का आधुनिकीकरण तथा विकास होता है वैसे ही कार्यों के विशेषीकरण के कारण ये सीमाएं स्पष्ट होती जाती हैं। राजनीतिक व्यवस्था की सीमाओं में समयानुसार परिवर्तन आते रहते हैं। कई बार राजनीतिक व्यवस्था की सीमाएं किसी घटना के कारण बढ़ भी सकती हैं और कम भी हो सकती हैं।

8. खुली व्यवस्था (Open System)-राजनीतिक व्यवस्था एक खुली व्यवस्था होती है, “जिस कारण समय, वातावरण और परिस्थितियों के अनुसार उसमें परिवर्तन होता रहता है। यदि राजनीतिक व्यवस्था बन्द व्यवस्था हो तो उस पर परिस्थितियों का प्रभाव ही न पड़े और ऐसी व्यवस्था में राजनीतिक व्यवस्था टूट सकती है।”

9. अनुकूलता (Adaptability)-राजनीतिक व्यवस्था की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता अनुकूलता है। राजनीतिक व्यवस्था समय और परिस्थितियों के अनुसार अपने आपको परिवर्तित करने की विशेषता रखती है। उदाहरणस्वरूप भारत की राजनीतिक व्यवस्था का स्वरूप शान्ति के समय कुछ और होता है और संकटकाल में उसका स्वरूप बदल जाता है और संकटकाल समाप्त होने के बाद फिर परिवर्तित हो जाता है। वही राजनीतिक व्यवस्था स्थायी रह पाती है जो समय और परिस्थितियों के अनुसार बदल जाती है।

10. वातावरण (Environment) किसी भी व्यवस्था पर उसके वातावरण का प्रभाव पड़ना स्वाभाविक तथा आवश्यक है। वातावरण से तात्पर्य है वे परिस्थितियां जो उसे चारों ओर से घेरे हुए हों। समाज के वातावरण या परिस्थितियों का राजनीतिक प्रणाली पर प्रभाव पड़ता है और उसे हम सामान्य रूप से राजनीतिक प्रणाली का वातावरण भी कह सकते हैं । व्यक्ति अपने समाज की आर्थिक, धार्मिक तथा सांस्कृतिक प्रवृत्तियों से बचे रहते हैं और इस प्रकार उनका राजनीतिक प्रणाली पर प्रभाव पड़ता है। समाज में स्थित सभी समुदाय या संस्थाएं कभी-न-कभी, किसी-न-किसी रूप में राजनीतिक प्रणाली के वातावरण में रहती हैं और कभी-कभी यह उसका अंग भी बन जाती हैं। जैसे कि कोई मजदूर संघ वैसे तो राजनीतिक प्रणाली का वातावरण है, परन्तु जब वे सरकार के विरुद्ध प्रदर्शन करते हैं या सरकार पर कोई कानून बनाने के लिए जोर देते हैं तो वे राजनीतिक प्रणाली का अंग भी बन जाते हैं।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 1 राजनीतिक व्यवस्था

प्रश्न 3.
राजनीतिक प्रणाली के निकास कार्य लिखें। (Describe the output functions of Political System.)
अथवा
राजनीतिक प्रणाली के निवेश और निकास कार्यों का वर्णन करो।
(Write input and output functions of Political System.)
अथवा
राजनीतिक प्रणाली का अर्थ बताते हुए इसके निवेश कार्यों की व्याख्या करें।
(Describe the meaning of ‘Political System’ and also explain its ‘Input Functions’.)
उत्तर-
राजनीतिक प्रणाली की परिभाषा-इसके लिए प्रश्न नं० 1 देखें।
राजनीतिक प्रणाली के कार्य-आलमण्ड ने राजनीतिक व्यवस्था के दो प्रकार के कार्यों का वर्णन किया हैनिवेश कार्य (Input Functions) तथा निर्गत कार्य (Output Functions)।

(क) निवेश कार्य (Input Functions)-निवेश कार्य गैर-सरकारी उप-प्रणालियों, समाज तथा सामान्य वातावरण द्वारा पूरे किए जाते हैं। जैसे-दल, दबाव समूह, समाचार-पत्र आदि।
आलमण्ड ने राजनीतिक व्यवस्था के चार निवेश कार्य बतलाए हैं – (1) राजनीतिक समाजीकरण तथा भर्ती, (2) हित स्पष्टीकरण, (3) हित समूहीकरण, (4) राजनीतिक संचारण।

1. राजनीतिक समाजीकरण तथा भर्ती (Political Socialisation and Recruitment) आरम्भ में बच्चे राजनीति से अनभिज्ञ होते हैं और उसमें रुचि भी नहीं लेते परन्तु जैसे-जैसे वे बड़े होते जाते हैं उनके मन में भी धीरे-धीरे राजनीतिक वृत्तियां बैठती जाती हैं। वे राजनीति में भाग लेना आरम्भ करते हैं और अपनी भूमिका निभानी आरम्भ करते हैं। इसे ही राजनीतिक समाजीकरण कहते हैं।

आलमण्ड व पॉवेल के अनुसार, राजनीतिक समाजीकरण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा राजनीतिक संस्कृतियां (Political Cultures) स्थिर रखी जाती हैं अथवा उनको परिवर्तित किया जाता है। इस प्रकार के सम्पादन के माध्यम से पृथक्-पृथक् व्यक्तियों को राजनीतिक संस्कृति में प्रशिक्षित किया जाता है तथा राजनीतिक उद्देश्य की ओर उनके उन्मुखीकरण (Orientations) निर्धारित किए जाते हैं। राजनीति संस्कृति के ढांचे में परिवर्तन भी राजनीतिक समाजीकरण के माध्यम से आते हैं। अतः राजनीतिक समाजीकरण की प्रक्रिया का उपयोग, परिवर्तन लाने अथवा यथास्थिति बनाए रखने, दोनों ही के लिए हो सकता है। यह प्रक्रिया निरन्तर चलती रहती है। कभी बन्द नहीं होती। राजनीतिक दल, हितसमूह व दबाव-समूह आदि राजनीतिक समाजीकरण की प्रक्रिया द्वारा अधिक-से-अधिक लोगों को अपनी मान्यताओं के प्रति जागरूक कर, लोगों को इनकी ओर आकर्षित करते हैं। लोकतन्त्रात्मक व्यवस्थाओं में राजनीतिक समाजीकरण का महत्त्व और भी अधिक होता है क्योंकि राजनीतिक दलों का सफल होना अथवा न होना इसी पर निर्भर करता है।

राजनीतिक व्यवस्था में समाजीकरण के साथ-साथ भर्ती का काम भी चलता रहता है। पुरानी भूमिकाएं बदलती रहती हैं और उनका स्थान नई भूमिकाएं लेती रहती हैं। पदाधिकारी बदल दिए जाते हैं, मर जाते हैं और उनका स्थान स्वाभाविक रूप से नए व्यक्ति ले लेते हैं। आलमण्ड व पॉवेल के अनुसार, “राजनीतिक भर्ती से अभिप्राय उस कार्य से है जिसके माध्यम से राजनीतिक व्यवस्था की भूमिकाओं की पूर्ति की जाती है।” (“We use the term political recruitment to refer to the function by means of which the rolls of political system are filled.”) राजनीतिक भर्ती सामान्य आधार पर भी हो सकती है और विशिष्ट आधार पर भी। पदाधिकारियों का चुनाव जब योग्यता के आधार पर किया जाता है तो उसे सामान्य आधार पर ही हुई भर्ती कहा जाता है। जब कोई भर्ती किसी विशेष वर्ग या कबीले या दल से की जाती है तो विशिष्ट आधार पर हुई भर्ती कही जाती है।

2. हित स्पष्टीकरण (Interest Articulation) अपने-अपने हितों की रक्षा करने के लिए प्रत्येक राजनीतिक प्रणाली के सदस्य अपनी प्रणाली की कुछ मांगें पेश किया करते हैं। जिस तरीके से इन मांगों को सही रूप प्रदान किया जाता है तथा जिस प्रकार से ये मांगें प्रणाली के निर्णयकर्ताओं को प्रस्तुत की जाती हैं उसे हित स्पष्टीकरण की प्रक्रिया कहा जाता है। आलमण्ड व पॉवेल के अनुसार, पृथक्-पृथक् व्यक्तियों तथा समूहों द्वारा राजनीतिक निर्णयकर्ताओं से मांग करने की प्रक्रिया को हम हित स्पष्टीकरण कहते हैं।” (“The process by which individuals and groups make demands upon the political decision makers we call interest articulation.”) राजनीतिक व्यवस्था में जिन अधिकारियों के पास नीति निर्माण व निर्णय लेने का अधिकार होता है, उनके सामने विभिन्न व्यक्ति तथा समूह अपनी मांगें पेश करते हैं अर्थात् अपने हित का स्पष्टीकरण करते हैं। राजनीतिक व्यवस्था में हित स्पष्टीकरण एक महत्त्वपूर्ण प्रक्रिया होती है क्योंकि समाज के अन्तर्गत जब तक समूह या संघ अपने हित को स्पष्ट नहीं कर पाते, तब तक उनके हित की पूर्ति के लिए कानून या नीति निर्माण करना सम्भव नहीं। यदि समूह या संघ को अपने हित का स्पष्टीकरण करने का अवसर नहीं दिया जाता तो उसका परिणाम हिंसात्मक कार्यविधियां होता है। हित स्पष्टीकरण के कई साधन हैं। लिखित आवेदन-पत्रों, सुझावों, वक्तव्यों और कई बार प्रदर्शनियों द्वारा यह कार्य होता है। मजदूर संघ या छात्र संघ आदि हड़ताल भी करते हैं और कई बार हिंसात्मक तरीके भी अपनाते हैं। हित स्पष्टीकरण के समुचित एवं स्वस्थ साधन वर्तमान विशेषतः प्रजातान्त्रिक व्यवस्थाओं की विशेषता होती है।

3. हित समूहीकरण (Interest Aggregration)-विभिन्न संघों के हितों की पूर्ति के लिए अलग-अलग कानून या नीति का निर्माण नहीं किया जा सकता। विभिन्न संघों या समूहों के हितों को इकट्ठा करके उनकी पूर्ति के लिए एक सामान्य नीति निर्धारित की जाती है। विभिन्न हितों को इकट्ठा करने की क्रिया को ही हित समूहीकरण कहा जाता है। आलमण्ड व पॉवेल के शब्दों में, “मांगों को सामान्य नीति स्थानापन्न (विकल्प) में परिवर्तित करने के प्रकार्य को हित समूहीकरण कहा जाता है।” (“The function of converting demands into general policy alternatives is called interest aggregation.”) यह प्रकार्य दो प्रकार से सम्पादित हो सकता है। प्रथम, विभिन्न हितों को संयुक्त और समायोजित करके तथा द्वितीय, एक देश नीति के प्रतिमान में निष्ठा रखने वाले व्यक्तियों की राजनीतिक भर्ती द्वारा। यह प्रकार्य राजनीतिक व्यवस्था में नहीं बल्कि सभी कार्यों में पाया जाता है। मानव अपने विभिन्न हितों को इकट्ठा करके एक बात कहता है। हित-समूह अपने विभिन्न उपसमूहों या मांगों का समूहीकरण करके अपनी मांग रखते हैं। राजनीतिक दल विभिन्न समुदायों या संघों की मांगों को ध्यान में रखकर अपना कार्यक्रम निर्धारित करते हैं। इस प्रकार हित समूहीकरण राजनीतिक व्यवस्था में निरन्तर होता रहता है।

4. राजनीतिक संचार (Political Communication) राजनीतिक व्यवस्था में राजनीतिक संचार का बहुत महत्त्व है, क्योंकि इसके द्वारा ही अन्य सभी कार्य सम्पादित होते हैं। सभी व्यक्ति चाहे वे नागरिक हों या अधिकारी वर्ग से सम्बन्धित हों, सूचना पर ही निर्भर रहते हैं और उनके अनुसार ही उनकी गतिविधियों का संचालन होता है। इसलिए प्रजातन्त्र में प्रेस तथा भाषण की स्वतन्त्रता पर जोर दिया जाता है जबकि साम्यवादी राज्यों एवं तानाशाही राज्यों में उन पर प्रतिबन्ध लगाने की बात की जाती है। संचार के साधन निश्चय ही राजनीतिक व्यवस्था को प्रभावित करते हैं। संचार के बिना हित स्पष्टीकरण का काम हो ही नहीं सकता। आधुनिक प्रगतिशील समाज में संचार-व्यवस्था को जहां तक हो सका है, तटस्थ बनाने की कोशिश की गई है और इसकी स्वतन्त्रता एवं स्वायत्तता को स्वीकार कर लिया गया है।

लोकतन्त्रात्मक व्यवस्था में संचार-व्यवस्था बहुमुखी, शक्तिशाली, समाज एवं शासक वर्ग में तटस्थ, लोचशील और प्रसारात्मक होती है। आलमण्ड एवं पॉवेल (Almond and Powell) के शब्दों में, “विभिन्न राजनीतिक व्यवस्थाओं का परीक्षण करने के लिए, राजनीतिक संचार के निष्पादन (Performance) का विश्लेषण एवं तुलना अत्यन्त रुचिपूर्ण एवं उपयोगी माध्यम है।” (“The analysis and comparison of the performance of political communication is one of the most interesting and useful means of examining different political systems.”) तुलनात्मक अध्ययनों में राजनीतिक संचार पर चार दृष्टियों से विचार किया जाता है-सूचनाओं में समरसता (Homogeneity), गतिशीलता (Mobility), मात्रा (Volume) तथा दिशा (Direction)

(ख) निर्गत कार्य (Output Functions)–राजनीतिक व्यवस्था के निर्गत कार्य शासकीय क्रिया-कलापों में काफ़ी समानता रखते हैं। यद्यपि आलमण्ड ने स्वयं स्वीकार किया है कि निर्गत कार्य परम्परागत सक्ति पृथक्करण सिद्धान्त में वर्णित सरकारी अंगों के कार्यों से काफ़ी मिलते-जुलते हैं। फिर भी उसने इनको सरकारी कार्य-कलापों के स्थान पर निर्गत कार्य ही कहना अधिक उपयुक्त समझा है। डेविस व लीविस (Davis and Lewis) के शब्दों में, “इसका उद्देश्य संस्थाओं के विवरण पर अधिक बल देने के विचार को परिवर्तित करता है क्योंकि विभिन्न देशों में एक ही प्रकार की संस्थाओं के अलग-अलग प्रकार्य हो सकते हैं। इसके अतिरिक्त इसके पीछे इन संस्थाओं द्वारा सम्पादित किए जाने वाले कार्य-कलापों की व्याख्या करने के लिए प्रकार्यात्मक अवधारणाओं का एक सैट प्रस्तुत करने की भावना भी उपस्थित है।”

जिस प्रकार सरकार के मुख्य कार्य तीन हैं-कानून-निर्माण, कानूनों को लागू करना और विवादों को निपटाना है, उसी प्रकार निर्गत कार्य तीन हैं
(1) नियम बनाना। (2) नियम लागू करना। (3) नियम निर्णयन कार्य।

1. नियम बनाना (Rule Making)-समाज में व्यक्तियों के रहने के लिए आवश्यक है कि उनके पारस्परिक सम्बन्धों को नियमित करने के लिए नियम होने चाहिएं। राजनीतिक व्यवस्था में नियम बनाने का कार्य मुख्यतः व्यवस्थापिकाओं तथा उप-व्यवस्थापन अभिकरणों द्वारा किया जाता है। प्रत्येक राजनीतिक व्यवस्था में इस कार्य को किया जाता है। आलमण्ड के विचारानुसार, ‘विधायन’ (Legislation) शब्द के स्थान पर ‘नियम निर्माण’ शब्द का प्रयोग उचित है क्योंकि ‘विधायन’ शब्द से कुछ विशेष संरचना तथा निश्चित प्रक्रिया का बोध होता है जबकि अनेक राजनीतिक व्यवस्थाओं में नियम निर्माण कार्य एक उलझी हुई (Diffuse) प्रक्रिया है जिसे सुलझाना तथा उसका विवरण देना कठिन होता है।

विधायन का काम औपचारिक तौर पर स्थापित संरचनाएं ही किया करती हैं जिन्हें संसद् अथवा कांग्रेस अथवा विधानपालिका कहा जाता है और जो सुनिश्चित एवं औपचारिक प्रक्रियाओं द्वारा ही काम करती हैं। परन्तु कुछ ऐसी राजनीतिक व्यवस्थाएं भी होती हैं जिनमें ऐसी औपचारिक संरचनाएं अथवा ऐसी औपचारिक प्रक्रियाएं होती ही नहीं। इस प्रकार की राजनीतिक व्यवस्था में नियम निर्धारण का कार्य एक अलग ढंग से किया जाता है। आधुनिक लोकतान्त्रिक राजनीतिक व्यवस्थाओं में नियम निर्धारण का कार्य प्रायः कई जगहों पर कई पात्रों द्वारा किया जाता है। एल० ए० हठ ने नियमों के ऐसे प्रकारों का वर्णन किया है-प्राथमिक तथा अनुपूरक। प्रारम्भिक समाज में कुछ ऐसे प्राथमिक नियम थे जो व्यक्तियों के यौन सम्बन्धों, बल प्रयोग, आज्ञा पालन आदि के कामों को नियमित करते थे। ये नियम अटल थे और इनको बदला नहीं जा सकता था।

ऐसे नियमों को लागू करने के लिए तथा उनके उल्लंघन किए जाने पर दण्ड के नियम बनाए गए जिन्हें अनुपूरक नियम कहते हैं। यदि इस दृष्टिकोण से देखा जाए तो संविधान भी अनुपूरक नियमों का समूह है, प्राथमिक नियमों का नहीं। आलमण्ड एवं पॉवेल के मतानुसार, संविधानवाद की यह मान्यता है, “नियमों का निर्माण निश्चित प्रकार की सीमाओं के अन्तर्गत विशिष्ट संस्थाओं द्वारा निश्चित विधियों से होना चाहिए।” (“Rule must be made in certain ways and by specific institutions and within certain kinds of limitations.”)

2. नियम लागू करना (Rule Application)-राजनीतिक व्यवस्था का कार्य केवल नियम बनाना ही नहीं है, बल्कि उन नियमों को लागू करना भी है। नियमों को यदि सही ढंग से लागू नहीं किया जाता तो नियम बनाने का लक्ष्य ही समाप्त हो जाता है और उचित परिणामों की उम्मीद नहीं की जा सकती। राजनीतिक व्यवस्था में नियमों को लागू करने की ज़िम्मेदारी पूर्णतः सरकारी कर्मचारियों या नौकरशाही की होती है। यहां तक कि न्यायालयों के निर्णय भी कर्मचारी वर्ग द्वारा लागू किए जाते हैं। कभी-कभी नियम निर्माण करने वाली संरचनाओं द्वारा भी यह कार्य किया जाता है, परन्तु विकसित राजनीतिक व्यवस्थाओं के नियम प्रयुक्त संरचनाएं नियम निर्माण करने वाली संरचनाओं से पृथक् होती हैं।

3. नियम निर्णयन कार्य (Rule Adjudication)—समाज में जब कोई नियम बनाया जाता है, उसके उल्लंघन की भी सम्भावना सदैव बनी रहती है। अत: यह आवश्यक हैं-जो व्यक्ति नियमों का उल्लंघन करता है उसे दण्ड अवश्य मिलना चाहिए। इसलिए नियमों में ही उसकी अवहेलना करने पर दण्ड देने का प्रावधान रहता है, परन्तु यह निर्णय करना पड़ता है कि नियमों को वास्तव में ही भंग किया गया है अथवा नहीं और अगर नियम भंग हुआ है तो किस सीमा तक तथा उसे कितना दण्ड दिया जाना चाहिए ? इसके अतिरिक्त कई बार नियमों के अर्थ पर विवाद उत्पन्न हो जाता है। ऐसी स्थिति में नियमों के अर्थ को भी स्पष्ट करना पड़ता है। प्रायः सभी आधुनिक लोकतन्त्रात्मक राज्यों में यह कार्य न्यायालयों द्वारा किए जाते हैं, परन्तु सर्वसत्तावादी (Totalitarian) प्रणालियों में गुप्त पुलिस केवल लोगों पर निगरानी रखने एवं उन पर दोषारोपण करने का ही काम नहीं करती बल्कि वह तो उन पर चलाया गया मुकद्दमा भी सुनती हैं और उन्हें सज़ा सुना कर स्वयं सजा को लागू भी करती है। व्यवस्था (System) को बनाए रखने के लिए नियम निर्णयन का कार्य बहुत महत्त्वपूर्ण है। अतः एक अच्छी राजनीतिक व्यवस्था में न्यायालयों को पूर्ण रूप से स्वतन्त्र रखा जाता है ताकि न्यायाधीशों का निष्पक्षता को कायम रखा जा सके और नागरिकों का विश्वास बना रहे।

निष्कर्ष (Conclusion) उपर्युक्त कार्य प्रत्येक राजनीतिक व्यवस्था को अवश्य करने पड़ते हैं। इन कार्यों के अतिरिक्त प्रत्येक देश की राजनीतिक व्यवस्था को विशेष परिस्थितियों में अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए विशेष कार्य करने पड़ते हैं। सभी राजनीतिक व्यवस्थाओं के कार्य समान नहीं होते क्योंकि देश की राजनीतिक व्यवस्था को अपने देश की परिस्थितियों और वातावरण के अनुसार नीतियों का निर्माण करना पड़ता है और उनके अनुसार कार्य करने पड़ते हैं।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 1 राजनीतिक व्यवस्था

प्रश्न 4.
निवेश-निकास प्रक्रिया के रूप में डेविड ईस्टन के राजनीतिक प्रणाली के मॉडल (रूप) की व्याख्या कीजिए।
(Explain David Easton’s model of Political system as input and output Process.)
अथवा
डेविड ईस्टन के विचारानुसार राजनीतिक प्रणाली के कार्यों की व्याख्या करो।
(Discuss the functions of Political System according to David Easton.)
अथवा
डेविड ईस्टन के अनुसार राजनीतिक प्रणाली के कार्यों का वर्णन कीजिए। (Discuss the functions of Political System with reference to the views of David Easton.)
उत्तर-
डेविड ईस्टन ने 1953 में ‘राजनीतिक प्रणाली’ (Political System) नामक पुस्तक प्रकाशित करवाई थी। उस पुस्तक में डेविड ईस्टन ने राजनीतिक प्रणाली की धारणा की विवेचना की थी। डेविड ईस्टन ने राजनीतिक प्रणाली को निवेशों (Inputs) को निकासों (Outputs) में बदलने की प्रक्रिया बताया है।

निवेश क्या हैं? (What are Inputs ?)-डेविड ईस्टन ने एक विशेष रूप में विचार अभिव्यक्त किया है। उसके मतानुसार, “निवेश उस कच्चे माल के समान है जो राजनीतिक प्रणाली नामक मशीन में पाये जाते हैं।” जिस तरह किसी मशीन में कच्चे माल के बिना कोई तैयार माल अथवा वस्तु प्राप्त नहीं हो सकती है, उसी तरह निवेश रूपी कच्चा माल राजनीतिक प्रणाली रूपी मशीन में डालने के बिना राजनीतिक प्रणाली कोई सत्ताधारी निर्णय नहीं ले सकती है। ऐसे सत्ताधारी निर्णयों को डेविड ईस्टन ने निकास (Outputs) का नाम दिया है। निवेशों के दो रूप (Two Types of Inputs)-डेविड ईस्टन के अनुसार, निवेश दो प्रकार के होते हैं

(क) मांगों के रूप में निवेश (Inputs in the form of demands)-जब लोग राजनीतिक प्रणाली से कुछ मांगों की पूर्ति की मांग करते हैं तो मांगों के रूप में निवेश होते हैं। डेविड ईस्टन ने मांगों के रूप में निवेशों को चार प्रकार का माना है

1. वस्तुओं तथा सेवाओं के विभाजन के लिये मांगें (Demands for the allocation of goods and services)-व्यक्ति सरकार से उचित वेतन, कार्य करने के लिये निश्चित समय, शिक्षा प्राप्त करने की सुविधाएं, यातायात के साधन, स्वास्थ्य सम्बन्धी सुविधाएं इत्यादि की मांग करते हैं। इनको डेविड ईस्टन ने वस्तुओं तथा सेवाओं को व्यवस्था की मांगें कहा है।

2. व्यवहार को नियमित करने के लिए मांगें (Demands for regulation of behaviour)—व्यक्ति राजनीतिक प्रणाली से सार्वजनिक सुरक्षा, सामाजिक व्यवहार सम्बन्धी नियमों के निर्माण आदि की मांगें करते हैं। कुशल और नियमित सामाजिक जीवन के लिये ऐसी मांगें प्रायः की जाती हैं।

3. राजीतिक प्रणाली में भाग लेने सम्बन्धी मांगें (Demands regarding participation in the political System)-लोग मांग करते हैं कि उनको मताधिकार, चुनाव लड़ने का अधिकार, सार्वजनिक पद प्राप्त करने का अधिकार, राजनीतिक संगठन बनाने का अधिकार इत्यादि दिये जाएं। ये ऐसी मांगें हैं जिनके फलस्वरूप लोग राजनीतिक प्रणाली के कार्यों में भाग ले सकते हैं।

4. संचार तथा सूचना प्राप्त करने सम्बन्धी मांगें (Demands for Communication and Information)लोग राजनीतिक प्रणाली का संचार करने वाले विशिष्ट वर्ग से नीति निर्माण सम्बन्धी सूचनाएं प्राप्त करने, सिद्धान्त अथवा नियम निश्चित करने, संकट अथवा औपचारिक अवसरों पर राजनीतिक प्रणाली द्वारा शक्ति के दिखावे इत्यादि के लिये मांगें करते हैं। इन मांगों को डेविड ईस्टन ने संचार तथा सूचना प्राप्त करने सम्बन्धी मांगों का नाम दिया है।

(ख) समर्थन के रूप में निवेश (Inputs in the form of Support)-उपर्युक्त चार प्रकार के निवेश मांगों के रूप में हैं। ये ऐसे कच्चे माल के समान हैं जो राजनीतिक प्रणाली रूपी मशीन में पाया जाता है। कोई भी मशीन उस समय तक कार्य नहीं कर सकती जब तक उसको विद्युत् अथवा तेल अथवा किसी अन्य साधन द्वारा शक्ति न दी जाए। इसी तरह डेविड ईस्टन ने निवेशों के दूसरे रूप को समर्थन निवेश (Support Inputs) का नाम दिया है। ऐसे समर्थन
निवेशों के बिना राजनीतिक प्रणाली कार्य नहीं कर सकती है क्योंकि ये समर्थन निवेश ही राजनीतिक प्रणाली को ऐसी शक्ति देते हैं जिसके बल से राजनीतिक प्रणाली निवेश मांगों (Demand Inputs) सम्बन्धी योग्य कार्यवाही कर सकती है।

निकास क्या होते हैं? (What are Outputs ?) डेविड ईस्टन ने निकासों (Outputs) का बड़ा सरल अर्थ बताया है। लोगों द्वारा निवेशों के रूप में सरकार के पास कुछ मांगें पेश की जाती हैं। राजनीतिक प्रणाली अपने साधन तथा सामर्थ्य के अनुसार उन मांगों सम्बन्धी निर्णय लेती है। इन निर्णयों को डेविड ईस्टन ने निकास (Outputs) बताया है। निकास अनेक प्रकार के हो सकते हैं। जब सरकार मानवीय व्यवहार को नियमित करने के लिये कोई कानूनी निर्णय लेती है उनको भी निकास कहा जाता है। जब सरकार सार्वजनिक सेवाएं अथवा पदों की व्यवस्था करती है उसके ऐसे निर्णय भी निकास कहलाते हैं। संक्षेप में, राजनीतिक प्रणाली के सत्ताधारी निर्णयों को निकास (Outputs) का नाम दिया जाता है।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 1 राजनीतिक व्यवस्था

प्रश्न 5.
राज्य और राजनीतिक प्रणाली में मुख्य अन्तरों का वर्णन करो।
(Write main differences between State and Political System.)
अथवा
राज्य तथा राजनीतिक प्रणाली में अंतर बताओ।
(Make a distinction between State and Political System.)
उत्तर-
प्राचीनकाल में राज्य को राजनीतिशास्त्र का मुख्य विषय माना जाता था। गार्नर की भान्ति ब्लंटशली (Bluntschli), गैटेल (Gettell), गैरिस (Garies), गिलक्राइस्ट (Gilchrist), लॉर्ड एक्टन (Lord Acton) इत्यादि विद्वानों ने राज्य को ही राजनीतिशास्त्र का केन्द्र-बिन्दु माना। परन्तु आधुनिक विद्वान् इस परम्परागत विचार से सहमत नहीं होते। वे राज्य की अपेक्षा राजनीतिक व्यवस्था को आधुनिक राजनीति अथवा राजनीति शास्त्र का मुख्य विषय मानते हैं। आधुनिक विद्वानों का विचार है कि राजनीति शास्त्र के क्षेत्र को राज्य तक ही सीमित करना उसकी व्यावहारिकता को बिल्कुल नष्ट करने वाली बात है। इन विद्वानों में आलमण्ड तथा पॉवेल, चार्ल्स मेरियम (Charles Meriam), हैरल्ड लॉसवैल (Harold Lasswell), डेविड ईस्टन (David Easton), स्टीफन एल० वास्बी (Stephen L. Wasbi) इत्यादि के नाम मुख्य हैं। राज्य और राजनीतिक व्यवस्था में अन्तर पाए जाते हैं, परन्तु दोनों में अन्तर करने से पहले राज्य और राजनीतिक व्यवस्था का अर्थ स्पष्ट करना अति आवश्यक है।

राज्य का अर्थ (Meaning of State)-प्रो० गिलक्राइस्ट (Gilchrist) के अनुसार, “राज्य उसे कहते हैं जहां कुछ लोग एक निश्चित प्रदेश में एक सरकार के अधीन संगठित होते हैं। यह सरकार आन्तरिक मामलों में अपनी जनता की प्रभुसत्ता को प्रकट करती है और बाहरी मामलों में अन्य सरकारों से स्वतन्त्र होती है।” इस परिभाषा से स्पष्ट होता है कि जनसंख्या, निश्चित भूमि, सरकार तथा प्रभुसत्ता राज्य के चार मूल तत्त्व हैं जिनके बिना राज्य की स्थापना नहीं हो सकती। यदि इन चार तत्त्वों में से कोई भी तत्त्व विद्यमान नहीं है तो राज्य की स्थापना नहीं हो सकती।

राजनीतिक व्यवस्था का अर्थ (Meaning of Political System)-राजनीतिक व्यवस्था में सरकार की संस्थाओं के अतिरिक्त वे सभी औपचारिक अथवा अनौपचारिक संस्थाएं अथवा समूह अथवां संगठन सम्मिलित हैं जो किसीन-किसी तरह राजनीतिक जीवन को प्रभावित करते हैं। राजनीतिक व्यवस्था का सम्बन्ध केवल कानून बनाने और लागू करने से ही नहीं बल्कि वास्तविक रूप में बल प्रयोग द्वारा उनका पालन करवाने से भी है।

राज्य और राजनीतिक व्यवस्था में अन्तर (Difference between State and Political System)-राज्य और राजनीतिक व्यवस्था में मुख्य अन्तर निम्नलिखित हैं-

1. राज्य के चार अनिवार्य तत्त्व हैं जबकि राजनीतिक व्यवस्था के अनेक तत्त्व हैं (State has four essential elements whereas political system has many elements)-राज्य तथा राजनीतिक व्यवस्था में मुख्य अन्तर यह है कि राज्य के अनिवार्य तत्त्व चार हैं जबकि राजनीतिक व्यवस्था के तत्त्व अनेक हैं। जनसंख्या, निश्चित भूमि, सरकार तथा प्रभुसत्ता-राज्य के चार अनिवार्य तत्त्व हैं। इनमें से यदि एक तत्त्व भी न हो तो राज्य की कल्पना भी नहीं की जा सकती। परन्तु राजनीतिक व्यवस्था के निश्चित तत्त्व होते हैं जैसे कि इसमें राजनीतिक प्रभावों की खोज, वैधता की प्राप्ति, परिवर्तनशीलता, अन्य विषयों तथा अन्य राजनीतिक व्यवस्थाओं का प्रभाव तथा प्रतिक्रियाओं का अध्ययन इत्यादि सम्मिलित होता है।

2. राज्य कानूनी तथा संस्थात्मक ढांचे से सम्बन्धित होता है जबकि राजनीतिक व्यवस्था प्रक्रियाओं से सम्बन्धित होती है (State deals with legal and Institutional structure but political system deals with the processes)-राज्य का सम्बन्ध कानूनी तथा संस्थात्मक ढांचे से होता है जबकि राजनीतिक व्यवस्था का सम्बन्ध प्रक्रियाओं (Processes) से होता है। कई लेखकों ने प्रक्रियाओं से सम्बन्धित मॉडल (Models) पेश किए जिनका सम्बन्ध राजनीतिक व्यवस्था से है।

3. राजनीतिक व्यवस्था का क्षेत्र राज्य के क्षेत्र से अधिक व्यापक है (Scope of Political System is broader than the Scope of State)-राजनीतिक व्यवस्था का क्षेत्र राज्य के क्षेत्र से कहीं अधिक विशाल है। राज्य का मुख्य सम्बन्ध औपचारिक संस्थाओं से होता है जबकि राजनीति व्यवस्था में समाज में होने वाली प्रत्येक राजनीतिक प्रक्रिया, औपचारिक और अनौपचारिक भी शामिल की जाती हैं। राजनीतिक व्यवस्था की सीमाएं व्यावहारिक (Practical) तथा नीति (Policy) विज्ञान पर आधारित होने के कारण बड़ी विस्तृत होती हैं।

4. राज्य की मुख्य विशेषता प्रभुसत्ता है जबकि राजनीतिक व्यवस्था का मुख्य गुण वैध शारीरिक शक्ति है (Sovereignty is the main feature of State while legitimate Physical coercive force is the main feature of Political System)-आन्तरिक तथा बाहरी प्रभुसत्ता राज्य का सबसे महत्त्वपूर्ण तत्त्व है अर्थात् राज्य सर्वशक्तिमान् होता है और सभी नागरिकों तथा संस्थाओं को राज्य के आदेशों का पालन करना पड़ता है। परन्तु राजनीतिक व्यवस्था में प्रभुसत्ता की धारणा को कोई महत्त्व नहीं दिया जाता। आधुनिक राजनीतिक विद्वान् इस बात को नहीं मानते कि कोई भी राजनीतिक व्यवस्था आन्तरिक और बाहरी प्रभावों से बिल्कुल स्वतन्त्र होती है। आधुनिक वैज्ञानिक इस बात को स्वीकार करते हैं कि राजनीतिक व्यवस्था आन्तरिक-समाज (Intra-Societal) और बाह्य-समाज (Extra-Societal) के वातावरण से अवश्य प्रभावित होती है। इसके साथ ही आधुनिक अन्तर्राष्ट्रीय युग में बाहरी प्रभुसत्ता का महत्त्व बहुत कम रह गया है। प्रत्येक देश की राजनीतिक व्यवस्था पर दूसरे देशों की राजनीतिक व्यवस्थाओं का थोड़ा बहुत प्रभाव पड़ता है। आधुनिक राजनीतिक वैज्ञानिक आन्तरिक प्रभुसत्ता की धारणा के स्थान पर वैध शारीरिक दण्ड देने की शक्ति (Legitimate Physical Coercive Force) शब्द का प्रयोग करते हैं अर्थात् उनके कथनानुसार राजनीतिक व्यवस्था के पास वैध शारीरिक दण्ड देने की शक्ति है।

5. राज्य एक परम्परागत धारणा है जबकि राजनीतिक व्यवस्था एक आधुनिक धारणा है (State is a traditional concept while Political System is a modern one)-राज्य एक परम्परागत धारणा है और परम्परागत राजनीति में प्रायः राज्य, राष्ट्र, सरकार, संविधान, कानून, प्रभुसत्ता और धारणाओं का इस्तेमाल होता रहा है। परन्तु आजकल राज्य शब्द तथा इसके साथ सम्बन्धित धारणाओं का प्रयोग बहुत घट गया है। आधुनिक युग में यदि कोई विद्वान् राजनीतिक व्यवस्था के स्थान पर राज्य शब्द का प्रयोग करता है तो उसे परम्परावादी कहा जाता है।

6. राजनीतिक व्यवस्था में आत्म-निर्भर अंगों का अस्तित्व होता है जबकि राज्य की धारणा में ऐसी कोई विशेषता नहीं है (Political system implies the existence of interdependent parts while the concept of State is devoid of such Character)-सरकार की संस्थाएं अर्थात् विधानमण्डल, न्यायपालिका, कार्यपालिका, राजनीतिक दल, हित समूह, संचार के साधन इत्यादि राजनीतिक व्यवस्था के भाग माने जाते हैं। जब किसी एक भाग में किसी कारण से महत्त्वपूर्ण परिवर्तन होता है तो उसका प्रभाव राजनीतिक व्यवस्था के अन्य भागों पर भी पड़ता है तथा सम्पूर्ण व्यवस्था पर भी प्रभाव पड़ता है। परन्तु राज्य की धारणा में ऐसी कोई विशेषता नहीं पाई जाती।।

7. राज्य की क्षेत्रीय सीमाएं निश्चित होती हैं जबकि राजनीतिक व्यवस्था को क्षेत्रीय सीमाओं में नहीं बांधा GT HOAT (Boundaries of State are fixed whereas it is not possible to restrict the boundaries of Political System)-राज्य की क्षेत्रीय सीमाएं होती है। किसी भी राज्य के बारे में यह पता लगाया जा सकता है कि उसकी सीमाएं कहां से शुरू होती हैं और कहां समाप्त होती हैं। परन्तु राजनीतिक व्यवस्थाओं को क्षेत्रीय सीमाओं में नहीं बांधा जा सकता है। राजनीतिक व्यवस्था की सीमाएं उसकी क्रियाओं की सीमाएं होती हैं। ये सीमाएं बदलती रहती हैं।

8. राज्य एक से होते हैं, राजनीतिक व्यवस्थाओं का स्वरूप विभिन्न प्रकार का होता है (States are the same everywhere, but political systems are Different)-सभी राज्य एक से होते हैं। वे छोटे हों या बड़े, उनमें चार तत्त्वों का होना अनिवार्य है-जनसंख्या, निश्चित भूमि, सरकार तथा प्रभुसत्ता। भारत, इंग्लैण्ड, जापान, चीन, श्रीलंका, बर्मा (म्यनमार), रूस आदि सभी राज्यों में ये चार तत्त्व पाए जाते हैं। परन्तु राजनीतिक व्यवस्थाओं का स्वरूप विभिन्न राज्यों में विभिन्न होता है।

9. राज्य स्थायी है, राजनीतिक व्यवस्था परिवर्तनशील (State is permanent while Political System is Dynamic)-राज्य स्थायी है जबकि राजनीतिक व्यवस्था परिवर्तनशील है। राज्य का अन्त तब होता है जब उससे प्रभुसत्ता छीन ली जाती है। फिर प्रभुसत्ता मिलने पर दोबारा राज्य की स्थापना हो जाती है, परन्तु राजनीतिक व्यवस्था परिवर्तनशील होती है। समय तथा परिस्थितियों के अनुसार राजनीतिक व्यवस्था बदलती रहती है।

10. राजनीतिक व्यवस्था में निवेशों को निर्गतों में परिवर्तित करने की क्रिया का विशिष्ट स्थान है, परन्तु राज्य की धारणा कुछ विशेष कार्यों से सम्बन्धित है (The concept of political system involves the process of conversion of inputs into outputs, while the concept of state deals with some specific functions)—निवेशों (Inputs) को निर्गतों (Output) में परिवर्तन करने की क्रिया राजनीतिक व्यवस्था की एक . महत्त्वपूर्ण विशेषता है। निवेशों और निर्गतों में परिवर्तन की प्रक्रिया राजनीतिक व्यवस्था में निरन्तर चलती रहती है। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए राजनीतिक व्यवस्था को नियम बनाने का कार्य (Rule Making Functions), नियम लागू करने (Rule application) तथा नियमों के अनुसार निर्णय करने से सम्बन्धित कार्य (Rule adjudication functions) भी करने पड़ते हैं। परन्तु राज्य को कुछ विशेष प्रकार के कार्य ही करने पड़ते हैं। राजनीतिक विद्वानों ने राज्य के कार्यों को अनिवार्य कार्य (Compulsory functions) और ऐच्छिक कार्यों (Optional functional) में बांटा है। इसके अतिरिक्त सांस्कृतिक, धार्मिक, नैतिक क्षेत्र और सामाजिक जीवन के कुछ पक्ष राज्य के अधिकार क्षेत्र से पृथक् माने जाते हैं। परन्तु जीवन के किसी पहलू को राजनीतिक व्यवस्था से अलग नहीं माना जा सकता यदि किसी भी रूप में उसका कोई पक्ष या कार्य राजनीति से सम्बन्धित हो।

11. राजनीतिक व्यवस्था राज्य की अपेक्षा अधिक विश्लेषणात्मक धारणा है (Concept of Political System is more analytical than State)-राज्य के वर्णनात्मक विचार हैं। इसकी व्याख्या की जा सकती है, परन्तु इसका विश्लेषण नहीं किया जा सकता। परन्तु राज्य के विपरीत राजनीतिक व्यवस्था एक विश्लेषणात्मक धारणा है। इसका अस्तित्व व्यक्तियों के मन में होता है। यह वास्तविक जीवन में प्राप्त होने वाली चीज़ नहीं है।

12. राजनीतिक व्यवस्था राज्य की अपेक्षा अधिक एकता तथा सामंजस्य लाने का साधन है (Political system is a better means of bringing integration and adoption than the State)-राज्य और राजनीतिक व्यवस्था में एक अन्य अन्तर यह है कि राजनीतिक व्यवस्था राज्य की अपेक्षा अधिक सामंजस्य उत्पन्न करती है। आलमण्ड तथा पॉवेल (Almond and Powell) के अनुसार, “राजनीतिक व्यवस्था स्वतन्त्र राज्यों में एकीकरण
और सामंजस्य उत्पन्न करने के लिए एक साधन है।”

13. राजनीतिक व्यवस्था में राजनीतिक समाजीकरण तथा राजनीतिक संस्कृति का विशेष महत्त्व है, राज्य के लिए नहीं (Political Socialisation and Political culture have special importance in Political System, not for the State)राजनीतिक व्यवस्था की धारणा में राजनीतिक समाजीकरण और राजनीतिक संस्कृति की धारणाओं को विशेष महत्त्व दिया जाता है क्योंकि राजनीतिक समाजीकरण और राजनीतिक संस्कृति की क्रियाएं राजनीतिक व्यवस्था को निरन्तर प्रभावित करती रहती हैं और इसलिए राजनीतिक व्यवस्था में परिवर्तन होते रहते हैं। परन्तु राज्य की धारणा में राजनीतिक समाजीकरण और राजनीतिक संस्कृति को कोई विशेष महत्त्व नहीं दिया जाता।
निष्कर्ष (Conclusion)-अन्त में हम यह कह सकते हैं कि राज्य एक परम्परागत धारणो है जबकि राजनीतिक व्यवस्था आधुनिक धारणा है और राजनीतिक व्यवस्था का क्षेत्र राज्य के क्षेत्र से बहुत अधिक व्यापक है।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 1 राजनीतिक व्यवस्था

लघु उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
राजनीतिक तथा प्रणाली शब्दों के अर्थों की व्याख्या करें।
अथवा
राजनीतिक (पोलिटिकल) शब्द का क्या अर्थ है ?
उत्तर-
राजनीतिक प्रणाली शब्द के दो भाग हैं-राजनीतिक तथा प्रणाली।
राजनीतिक शब्द का अर्थ-राजनीतिक शब्द सत्ता अथवा शक्ति का सूचक है। किसी भी समुदाय या संघ को राजनीतिक उस समय कहा जा सकता है जबकि उसकी आज्ञा का पालन प्रशासकीय कर्मचारी वर्ग द्वारा शारीरिक बल प्रयोग के भय से करवाया जाता है। अरस्तु ने राजनीतिक समुदाय को ‘अत्यधिक प्रभुत्व-सम्पन्न तथा अन्तर्भावी संगठन’ (The most sovereign and inclusive association) परिभाषित किया है। अरस्तु के मतानुसार राजनीतिक समुदाय के पास सर्वोच्च शक्ति होती है जो इसको अन्य समुदायों से अलग करती है। आल्मण्ड तथा पॉवेल ने राजनीतिक समुदाय की इस शक्ति को कानूनी शारीरिक बलात् शक्ति (Legitimate Physical Coercive Power) का नाम दिया है।

व्यवस्था या प्रणाली-प्रणाली शब्द का प्रयोग अन्तक्रियाओं के समूह का संकेत करने के लिए किया जाता है। ऑक्सफोर्ड शब्दकोश के अनुसार, “प्रणाली एक पूर्ण समाप्ति है, सम्बद्ध वस्तुओं अथवा अंशों का समूह है, भौतिक या अभौतिक वस्तुओं का संगठित समूह है। आल्मण्ड तथा पॉवेल के अनुसार, “एक ब्यवस्था से अभिप्राय भागों की परस्पर निर्भरता और उसके तथा उसके वातावरण के बीच किसी प्रकार की सीमा से है।” एक प्रणाली के अन्दर कुछ आधारभूत विशेषताएं होती हैं जैसे कि एकता, नियमितता, सम्पूर्णता, संगठन, सम्बद्धता (Coherence), संयुक्तता (Connection) तथा अंशों अथवा भागों की पारस्परिक निर्भरता।

प्रश्न 2.
राजनीतिक प्रणाली का अर्थ लिखिए।
अथवा
राजनीतिक प्रणाली से आपका क्या भाव है ?
उत्तर-
राजनीतिक प्रणाली में सरकारी संस्थाओं जैसे विधानमण्डल, न्यायालय, प्रशासकीय एजेन्सियां ही सम्मिलित नहीं होती बल्कि इनके अतिरिक्त सभी पारस्परिक ढांचे जैसे रक्त सम्बन्ध,जातीय समूह, अव्यवस्थित घटनाएं जैसे प्रदर्शन, लड़ाई-झगड़े, हत्याएं, डकैतियां, औपचारिक राजनीतिक संगठन आदि राजनीतिक पहलुओं सहित सभी सम्मिलित हैं। इस प्रकार राजनीतिक प्रणाली का सम्बन्ध उन सब बातों, क्रियाओं, संस्थाओं से है जो किसी-न-किसी प्रकार से राजनीतिक जीवन को प्रभावित करती हैं। राजनीतिक प्रणाली का सम्बन्ध केवल कानून बनाने और लागू करने से ही नहीं बल्कि वास्तविक रूप से बल प्रयोग द्वारा उनका पालन करवाने से भी है।

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प्रश्न 3.
राजनीतिक प्रणाली की परिभाषाएं दीजिए।
उत्तर-
राजनीतिक व्यवस्था की परिभाषाएं अलग-अलग राजनीति-शास्त्रियों ने अलग-अलग ढंग से दी हैं, फिर भी एक बात पर इन विद्वानों का एक मत है कि राजनीतिक व्यवस्था का सम्बन्ध न्यायसंगत शारीरिक दमन के प्रयोगों के साथ जुड़ा हुआ है। राजनीतिक व्यवस्था की इन सभी परिभाषाओं में न्यायपूर्ण प्रतिबन्धों, दण्ड देने की अधिकारपूर्ण शक्ति लागू करने की शक्ति और बाध्य करने की शक्ति आदि शामिल है।

  • डेविड ईस्टन का कहना है, “राजनीतिक व्यवस्था अन्तक्रियाओं का समूह है जिसे सामाजिक व्यवहार की समग्रता में से निकाला गया है तथा जिसके द्वारा समाज के लिए सत्तात्मक मूल्य निर्धारित किए जाते हैं।”
  • आल्मण्ड तथा पॉवेल का कथन है, “जब हम राजनीतिक व्यवस्था की बात कहते हैं तो हम इसमें उन समस्त अन्तक्रियाओं को शामिल कर लेते हैं, जो वैध बल प्रयोग को प्रभावित करती हैं।”
  • रॉबर्ट डाहल के अनुसार, “राजनीतिक व्यवस्था मानवीय सम्बन्धों का वह दृढ़ मान है जिसमें पर्याप्त मात्रा में शक्ति, शासन या सत्ता सम्मिलित हो।”
  • लॉसवेल और कॉप्लान के अनुसार, “राजनीतिक व्यवस्था गम्भीर वंचना है जो राजनीतिक व्यवस्था को अन्य व्यवस्थाओं से अलग करती है।”

प्रश्न 4.
राजनीतिक प्रणाली की कोई चार विशेषताओं का उल्लेख करें।
उत्तर-
राजनीतिक व्यवस्था की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं-

  • मानवीय सम्बन्ध-राजनीतिक व्यवस्था के लिए मनुष्य के परस्पर सम्बन्ध का होना आवश्यक है, परन्तु सभी प्रकार के मानवीय सम्बन्धों को राजनीतिक व्यवस्था का अंग नहीं माना जा सकता। केवल उन्हीं मानवीय सम्बन्धों को राजनीतिक व्यवस्था का अंग माना जाता हैं जो राजनीतिक व्यवस्था की कार्यशीलता को किसी-न-किसी तरह प्रभावित करते हों।
  • औचित्यपूर्ण शक्ति का प्रयोग-औचित्यपूर्ण शारीरिक दबाव शक्ति के बिना राजनीतिक व्यवस्था का अस्तित्व सम्भव नहीं है। औचित्यपूर्ण शक्ति के द्वारा ही राजनीतिक व्यवस्था के सभी कार्य चलते हैं।
  • अन्तक्रिया-राजनीतिक व्यवस्था के सदस्यों अथवा इकाइयों में अन्तक्रिया हमेशा चलती रहती है। राजनीतिक व्यवस्था के सदस्यों में व्यक्तिगत अथवा विभिन्न समूहों के रूप में सम्पर्क बना रहता है तथा वे एक-दूसरे को प्रभावित करने की कोशिश करते हैं। इकाइयों में अन्तक्रिया न केवल निरन्तर होती है, बल्कि बहपक्षीय होती है।
  • सर्व-व्यापकता-सर्व-व्यापकता का भाव यह है कि विश्व में कोई ऐसा समाज नहीं होगा जहां राजनीतिक प्रणाली का अस्तित्व न हो। सांस्कृतिक एवं असांस्कृतिक समाजों में भी राजनीतिक प्रणाली का अस्तित्व अवश्य होता है। यह ठीक है कि हर समाज में राजनीतिक प्रणाली का स्वरूप एक समान नहीं होता, परन्तु राजनीतिक प्रणाली का स्वरूप प्रत्येक समाज में अवश्य होता है।

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प्रश्न 5.
राज्य और राजनीतिक प्रणाली में चार मुख्य अन्तर लिखो। .
अथवा
राज्य व राजनैतिक प्रणाली में कोई चार अंतर बताइए।
उत्तर-
राज्य और राजनीतिक व्यवस्था में मुख्य अन्तर निम्नलिखित हैं-

  • राज्य के चार अनिवार्य तत्त्व हैं जबकि राजनीतिक व्यवस्था के अनेक तत्त्व हैं। जनसंख्या, निश्चित भूमि, सरकार तथा प्रभुसत्ता राज्य के चार अनिवार्य तत्त्व हैं। इनमें से यदि एक तत्त्व भी न हो, तो राज्य की स्थापना नहीं की जा सकती है, परन्तु राजनीतिक व्यवस्था के निश्चित तत्त्व न होकर अनेक तत्त्व होते हैं।
  • राज्य की मुख्य विशेषता प्रभुसत्ता है जबकि राजनीतिक व्यवस्था का मुख्य गुण वैध शारीरिक शक्ति है। आन्तरिक तथा बाहरी प्रभुसत्ता राज्य का सबसे महत्त्वपूर्ण तत्त्व है, परन्तु राजनीतिक व्यवस्था में प्रभुसत्ता की धारणा को कोई महत्त्व नहीं दिया जाता है। आधुनिक राजनीतिक विद्वान् आन्तरिक प्रभुसत्ता की धारणा के स्थान पर ‘वैध शारीरिक दण्ड देने की शक्ति’ शब्दों का प्रयोग करते हैं।
  • राज्य स्थायी है जबकि राजनीतिक व्यवस्था परिवर्तनशील है। राज्य स्थायी है और इसका अन्त तब होता है जब उससे प्रभुसत्ता छीन ली जाती है। प्रभुसत्ता मिलने पर राज्य की स्थापना दुबारा हो जाती है, परन्तु राजनीतिक व्यवस्था परिवर्तनशील होती है। समय तथा परिस्थितियों के अनुसार राजनीतिक व्यवस्था बदलती रहती है।
  • राजनीतिक व्यवस्था का क्षेत्र राज्य के क्षेत्र से अधिक व्यापक है-राजनीतिक व्यवस्था का क्षेत्र राज्य के क्षेत्र से कहीं अधिक विशाल है।

प्रश्न 6.
फीडबैक लूप व्यवस्था किसे कहा जाता है ?
अथवा
डेविड ईस्टन की कच्चा माल फिर देने (Feed back loop) की प्रक्रिया का वर्णन करें।
अथवा
फीडबैक लूप (Feedback Loop) व्यवस्था से आपका क्या अभिप्राय है ।
उत्तर-
डेविड ईस्टन के अनुसार, निवेशों और निर्गतों में घनिष्ठ सम्बन्ध है। इन दोनों में निरन्तर सम्पर्क रहता है। फीड बैक का अर्थ है-निर्गतों के प्रभावों और परिणामों को पुनः व्यवस्था में निवेश के रूप में ले जाना। ईस्टन के अनुसार निर्गतों के परिणामों को निवेशों के साथ जोड़ने तथा इस प्रकार निवेश तथा निर्गतों के बीच निरन्तर सम्बन्ध बनाने के कार्य को फीड बैक लूप कहते हैं। यदि राजनीतिक व्यवस्था के व्यावहारिक रूप को देखा जाए तो आधुनिक युग में राजनीतिक संस्थाएं और राजनीतिक दल फीड बैक लूप व्यवस्था का कार्य करते हैं। इस प्रकार राजनीतिक व्यवस्था में वह क्रिया तब तक चलती रहती है जब तक एक राजनीतिक व्यवस्था इस पर डाले गए दबावों और मांगों को सहन करती है, परन्तु जब यह खतरनाक सीमा को पार कर जाती है तो राजनीतिक व्यवस्था में दबाव और मांगों को सहन करने की शक्ति नहीं रहती और इससे राजनीतिक व्यवस्था का पतन हो जाता है।

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प्रश्न 7.
राजनीतिक प्रणाली के निकास कार्यों के बारे में लिखिए।
अथवा
राजनैतिक प्रणाली के किन्हीं तीन निकास कार्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
1. नियम बनाना-समाज में व्यक्तियों के रहने के लिए आवश्यक है कि उनके पारस्परिक सम्बन्धों को नियमित करने के लिए नियम होने चाहिए। राजनीतिक व्यवस्था में नियम बनाना मुख्यतः विधानपालिकाओं तथा उपव्यवस्थापन अभिकरणों द्वारा किया जाता है। प्रत्येक राजनीतिक व्यवस्था में इस कार्य को किया जाता है।

2. नियम लागू करना-राजनीतिक व्यवस्था का कार्य केवल नियम बनाना ही नहीं है, बल्कि उन्हें लागू करना है। नियमों को यदि सही ढंग से लागू नहीं किया जाता तो नियम बनाने का उद्देश्य ही समाप्त हो जाता है और उचित परिणामों की आशा नहीं की जा सकती। राजनीतिक व्यवस्था में नियमों को लागू करने की जिम्मेवारी पूर्णतया सरकारी कर्मचारियों या नौकरशाही की होती है।

3. नियम निर्णयन कार्य-समाज में जब भी कोई नियम बनाया जाता है, उसके उल्लंघन की भी सम्भावना सदैव बनी रहती है। अत: यह आवश्यक है कि जो व्यक्ति नियमों का उल्लंघन करता है, उसे दण्ड मिलना चाहिए। प्रायः सभी आधुनिक लोकतन्त्रात्मक अच्छी राजनीतिक व्यवस्था में न्यायालयों को पूर्ण रूप से स्वतन्त्र रखा जाता है ताकि न्यायाधीशों की निष्पक्षता को कायम रखा जा सके जिससे नागरिकों का विश्वास बना रहे।

प्रश्न 8.
राजनैतिक प्रणाली के निवेश कार्यों का वर्णन करो।
अथवा
राजनैतिक प्रणाली के कोई तीन निवेश कार्य लिखिए।
उत्तर-
निवेश कार्य-निवेश कार्य गैर-सरकारी उप-प्रणालियों, समाज तथा सामान्य वातावरण द्वारा पूरे किए जाते हैं, जैसे-दल, दबाव समूह, समाचार-पत्र आदि। आल्मण्ड ने राजनीतिक व्यवस्था के चार निवेश कार्य बतलाए हैं-

1. राजनीतिक समाजीकरण तथा भर्ती-आरम्भ में बच्चे राजनीति से अनभिज्ञ होते हैं और उसमें रुचि भी नहीं लेते, परन्तु जैसे-जैसे वे बड़े होते जाते हैं उनके मन में धीरे-धीरे राजनीतिक वृत्तियां बैठती जाती हैं। वे राजनीति में भाग लेना आरम्भ करते हैं और अपनी भूमिका निभानी आरम्भ करते हैं। इसे ही राजनीतिक समाजीकरण कहते हैं। राजनीतिक व्यवस्था में समाजीकरण के साथ-साथ भर्ती का काम भी चलता रहता है। राजनीतिक भर्ती से अभिप्राय उस कार्य से है जिसके माध्यम से राजनीतिक व्यवस्था की भूमिकाओं की पूर्ति की जाती है।

2. हित स्पष्टीकरण-अपने-अपने हितों की रक्षा करने के लिए प्रत्येक राजनीतिक प्रणाली के सदस्य अपनी प्रणाली में कुछ मांगें पेश किया करते हैं। जिस तरीके से इन मांगों को सही रूप प्रदान किया जाता है तथा जिस प्रकार से ये मांगें प्रणाली के निर्णयकर्ताओं को प्रस्तुत की जाती हैं, उसे हित स्पष्टीकरण की प्रक्रिया कहा जाता है।

3. हित समूहीकरण-विभिन्न हितों को इकट्ठा करने की क्रिया को ही हित समूहीकरण कहा जाता है। यह प्रकार्य दो प्रकार से सम्पादित हो सकता है। प्रथम, विभिन्न हितों को संयुक्त और समायोजित करके तथा द्वितीय, एक देशी नीति के प्रतिमान में निष्ठा रखने वाले व्यक्तियों की राजनीतिक भर्ती द्वारा।

4. राजनीतिक संचार-राजनीतिक व्यवस्था में राजनीतिक संचार का बहुत महत्त्व है, क्योंकि उसके द्वारा ही अन्य सभी कार्य सम्पादित होते हैं। संचार के साधन निश्चित ही राजनीतिक व्यवस्था को प्रभावित करते हैं। संचार के बिना हित स्पष्टीकरण का काम हो ही नहीं सकता।

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प्रश्न 9.
“राजनीतिक प्रणाली” की सीमाएं क्या हैं ?
उत्तर-
प्रत्येक राज्य का वातावरण अन्य राज्यों से अलग होता है। इसी वातावरण में रहकर किसी राज्य की राजनीतिक व्यवस्था अपनी भूमिका निभाती है। वास्तव में राजनीतिक व्यवस्था निर्बाध रूप से कार्य नहीं कर सकती। उस पर आन्तरिक व बाहरी वातावरण का प्रभाव अवश्य पड़ता है। यही वातावरण राजनीतिक व्यवस्था की भूमिका या कार्यों को सीमित कर देता है। आल्पण्ड और पॉवेल के अनुसार प्रत्येक राजनीतिक व्यवस्था की अपनी सीमाएं होती हैं जो इसको अन्य प्रणालियों से अलग करती हैं। राजनीतिक प्रणाली की सीमाएं क्षेत्रीय नहीं बल्कि कार्यात्मक होती हैं और यह सीमाएं समय-समय पर बदलती रहती हैं। उदाहरणतया युद्ध के समय राजनीतिक प्रणाली की सीमाओं में विस्तार हो जाता है, लेकिन युद्ध समाप्त होते ही ये सीमाएं संकुचित हो जाती हैं।

प्रश्न 10.
कानून की दबावकारी शक्ति क्या होती है ?
अथवा
कानून की दबावकारी शक्ति से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
प्रत्येक राज्य व्यवस्था के सुचारु रूप से संचालन के लिए कानूनों का निर्माण किया जाता है। कानूनों के पीछे राज्य की शक्ति होती है। प्रत्येक नागरिक बिना किसी भेदभाव के कानून के अधीन होता है। सभी व्यक्तियों के साथ एक-जैसी परिस्थितियों में समान व्यवहार किया जाता है। देश के प्रत्येक नागरिक के लिए राज्य द्वारा बनाए गए कानूनों का पालन करना अनिवार्य होता है। यदि कोई व्यक्ति कानून का उल्लंघन करता है अथवा कानून का पालन नहीं करता तो उसे राज्य शक्ति द्वारा दण्डित किया जा सकता है। कानून नागरिकों को किसी कार्य को करने अथवा न करने पर बाध्य कर सकता है। ऐसा न करने पर दण्ड दिया जा सकता है। इसे कानून की बाध्यकारी शक्ति कहा जाता है।

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प्रश्न 11.
राजनीतिक प्रणाली का हित स्पष्टीकरण कार्य क्या है ?
अथवा
राजनैतिक प्रणाली के हित स्पष्टीकरण के कार्य की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
हित स्वरूपीकरण या स्पष्टीकरण राजनीतिक प्रणाली का एक महत्त्वपूर्ण कार्य है। समाज में रहते सभी लोगों अथवा सभी वर्गों की मांगें तथा हित एक समान नहीं हो सकते। इसलिए यह अनिवार्य होता है कि विभिन्न वर्गों के लोग अपने हितों अथवा अपनी मांगों का स्पष्टीकरण करें ताकि सरकार उस सम्बन्धी योग्य निर्णय ले सके। जब राजनीतिक दल अथवा अन्य संगठन लोगों की मांगें सरकार तक पहुंचाते हैं तो वह हितों का स्पष्टीकरण कर रहे होते हैं। राजनीतिक दल तथा ऐसे अन्य संगठन राजनीतिक प्रणाली के अंग है। इसलिए उनके द्वारा किए कार्य राजनीतिक प्रणाली के कार्य माने जाते हैं। हित स्पष्टीकरण कार्य व्यापारिक संघों (Trade Unions) तथा अन्य दबाव समूहों (Pressure Groups) द्वारा भी किया जाता है।

प्रश्न 12.
राजनीतिक प्रणाली का राजनीतिक संचार कार्य लिखो।
उत्तर-
राजनीतिक संचार का भाव है सूचनाओं का आदान-प्रदान करना। राजनीतिक व्यवस्था में राजनीतिक संचार का बहुत महत्त्व है, क्योंकि इसके द्वारा ही अन्य सभी कार्य सम्पादित होते हैं। सभी व्यक्ति चाहे वे नागरिक हों या अधिकारी वर्ग से सम्बन्धित हों, सूचना पर ही निर्भर रहते हैं और उनके अनुसार ही उनकी गतिविधियों का संचालन होता है। इसलिए प्रजातन्त्र में प्रेस तथा भाषण की स्वतन्त्रता पर जोर दिया जाता है जबकि साम्यवादी राज्यों एवं तानाशाही राज्यों में उन पर प्रतिबन्ध लगाने की बात की जाती है। संचार के साधन निश्चय ही राजनीतिक व्यवस्था को प्रभावित करते हैं। संचार के बिना हित स्पष्टीकरण का काम हो ही नहीं सकता। आधुनिक प्रगतिशील समाज में संचारव्यवस्था को जहां तक हो सका है, तटस्थ बनाने की कोशिश की गई है और इसकी स्वतन्त्रता एवं स्वायत्तता को स्वीकार कर लिया गया है।

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प्रश्न 13.
राजनीतिक प्रणाली का हित समूहीकरण कार्य क्या है?
अथवा
हित समूहीकरण से क्या भाव है ? यह कार्य कौन करता है ?
उत्तर-
विभिन्न संघों के हितों की पूर्ति के लिए अलग-अलग कानून या नीति का निर्माण नहीं किया जा सकता। विभिन्न संघों या समूहों के हितों को इकट्ठा करके उनकी पूर्ति के लिए एक सामान्य नीति निर्धारित की जाती है। विभिन्न हितों को इकट्ठा करने की क्रिया को ही हित समूहीकरण कहा जाता है। आलमण्ड व पॉवेल के शब्दों में, “मांगों को सामान्य नीति स्थानापन्न (विकल्प) में परिवर्तित करने के प्रकार्य को हित समूहीकरण कहा जाता है।” (“The function of converting demands into general policy alternatives is called interest aggregation.”) यह प्रकार्य दो प्रकार से सम्पादित हो सकता है। प्रथम, विभिन्न हितों को संयुक्त और समायोजित करके तथा द्वितीय, एक देश नीति के प्रतिमान में निष्ठा रखने वाले व्यक्तियों की राजनीतिक भर्ती द्वारा । यह प्रकार्य राजनीतिक व्यवस्था में नहीं बल्कि सभी कार्यों में पाया जाता है। मानव अपने विभिन्न हितों को इकट्ठा करके एक बात कहता है। हित-समूह अपने विभिन्न उपसमूहों या मांगों का समूहीकरण करके अपनी मांग रखते हैं। राजनीतिक दल विभिन्न समुदायों या संघों की मांगों को ध्यान में रखकर अपना कार्यक्रम निर्धारित करते हैं। इस प्रकार हित समूहीकरण राजनीतिक व्यवस्था में निरन्तर होता रहता है।

प्रश्न 14.
निवेशों से आपका क्या भाव है ?
अथवा
निवेश समर्थन से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
प्रत्येक राजनीतिक व्यवस्था का अपना राजनीतिक ढांचा होता है। राजनीतिक ढांचा तभी कार्य कर सकता है यदि इसके लिए उसे आवश्यक सामग्री प्राप्त हो। राजनीतिक व्यवस्था निवेशों के बिना नहीं चल सकती। डेविड ईस्टन ने निवेशों को दो भागों में बांटा है

1.निवेश मांगें- प्रत्येक व्यक्ति अथवा व्यक्तियों के समूह अथवा संगठन राजनीतिक प्रणाली से कुछ मांगों की पूर्ति की आशा रखते हैं और इसीलिए वे राजनीतिक व्यवस्था के सामने कुछ मांगें प्रस्तुत करते हैं। डेविड ईस्टन के अनुसार ये मांगें चार प्रकार की हो सकती हैं-(1) राजनीतिक व्यवस्था में भाग लेने की मांग (2) वस्तुओं और सेवाओं के वितरण की मांग (3) व्यवहार को नियमित करने के सम्बन्ध में मांग (4) संचारण और सूचना प्राप्त करने के सम्बन्ध में मांग।

2. निवेश समर्थन-डेविड ईस्टन के अनुसार समर्थन उन क्रियाओं को कहा जाता है जो राजनीतिक व्यवस्था की मांगों का मुकाबला करने की क्षमता प्रदान करती है। यदि किसी राजनीतिक व्यवस्था के पास किसी मांग के लिए समर्थन प्राप्त नहीं है अर्थात् उसके पास उसे पूरा करने की क्षमता नहीं है तो वह उसे पूरा नहीं कर सकती। समर्थन निम्नलिखित प्रकार के होते हैं-(1) भौतिक समर्थन (2) वैधानिक समर्थन (3) सहभागी समर्थन (4) सम्मान समर्थन।

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प्रश्न 15.
निकासों के अर्थों की व्याख्या कीजिए।
अथवा
निकासों से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
राजनीतिक व्यवस्था में मांगों तथा समर्थनों द्वारा आरम्भ की गई गतिविधियों के परिणामों को ही निर्गत या निकास कहा जाता है। यह आवश्यक नहीं है कि मांगों की पूर्ति के ही निकास होते हैं। निकास मांगों के अनुकूल भी हो सकते हैं और उनके विरुद्ध भी। निकास अग्रलिखित प्रकार के हो सकते हैं

  • निकालना-यह लगान, कर, जुर्माना, लूट का माल और व्यक्तिगत सेवाओं के रूप में हो सकती है।
  • व्यवहार का नियमन-व्यवहार का नियम जो मनुष्यों के सम्पूर्ण व्यवहारों तथा सम्बन्धों को प्रभावित करता है।
  • वस्तुओं या सेवाओं का वितरण-निर्गत का एक अन्य रूप वस्तुओं, सेवाओं के अवसर और पदवियों का वितरण आदि है।
  • सांकेतिक निर्गत-इसमें मूल्यों तथा आदर्शों का पुष्टिकरण, राजनीतिक चिह्नों का प्रदर्शन, नीतियों की घोषणा आदि को शामिल किया जाता है।

प्रश्न 16.
राजनीतिक प्रणाली के छः कार्य लिखें।
उत्तर-
इसके लिए प्रश्न नं० 7 एवं 8 देखें।

1. नियम बनाना-समाज में व्यक्तियों के रहने के लिए आवश्यक है कि उनके पारस्परिक सम्बन्धों को नियमित करने के लिए नियम होने चाहिए। राजनीतिक व्यवस्था में नियम बनाना मुख्यतः विधानपालिकाओं तथा उपव्यवस्थापन अभिकरणों द्वारा किया जाता है। प्रत्येक राजनीतिक व्यवस्था में इस कार्य को किया जाता है।

2. नियम लागू करना-राजनीतिक व्यवस्था का कार्य केवल नियम बनाना ही नहीं है, बल्कि उन्हें लागू करना है। नियमों को यदि सही ढंग से लागू नहीं किया जाता तो नियम बनाने का उद्देश्य ही समाप्त हो जाता है और उचित परिणामों की आशा नहीं की जा सकती। राजनीतिक व्यवस्था में नियमों को लागू करने की जिम्मेवारी पूर्णतया सरकारी कर्मचारियों या नौकरशाही की होती है।

3. नियम निर्णयन कार्य-समाज में जब भी कोई नियम बनाया जाता है, उसके उल्लंघन की भी सम्भावना सदैव बनी रहती है। अत: यह आवश्यक है कि जो व्यक्ति नियमों का उल्लंघन करता है, उसे दण्ड मिलना चाहिए। प्रायः सभी आधुनिक लोकतन्त्रात्मक अच्छी राजनीतिक व्यवस्था में न्यायालयों को पूर्ण रूप से स्वतन्त्र रखा जाता है ताकि न्यायाधीशों की निष्पक्षता को कायम रखा जा सके जिससे नागरिकों का विश्वास बना रहे।

निवेश कार्य-निवेश कार्य गैर-सरकारी उप-प्रणालियों, समाज तथा सामान्य वातावरण द्वारा पूरे किए जाते हैं, जैसे-दल, दबाव समूह, समाचार-पत्र आदि। आल्मण्ड ने राजनीतिक व्यवस्था के चार निवेश कार्य बतलाए हैं-

1. राजनीतिक समाजीकरण तथा भर्ती-आरम्भ में बच्चे राजनीति से अनभिज्ञ होते हैं और उसमें रुचि भी नहीं लेते, परन्तु जैसे-जैसे वे बड़े होते जाते हैं उनके मन में धीरे-धीरे राजनीतिक वृत्तियां बैठती जाती हैं। वे राजनीति में भाग लेना आरम्भ करते हैं और अपनी भूमिका निभानी आरम्भ करते हैं। इसे ही राजनीतिक समाजीकरण कहते हैं। राजनीतिक व्यवस्था में समाजीकरण के साथ-साथ भर्ती का काम भी चलता रहता है। राजनीतिक भर्ती से अभिप्राय उस कार्य से है जिसके माध्यम से राजनीतिक व्यवस्था की भूमिकाओं की पूर्ति की जाती है।

2. हित स्पष्टीकरण-अपने-अपने हितों की रक्षा करने के लिए प्रत्येक राजनीतिक प्रणाली के सदस्य अपनी प्रणाली में कुछ मांगें पेश किया करते हैं। जिस तरीके से इन मांगों को सही रूप प्रदान किया जाता है तथा जिस प्रकार से ये मांगें प्रणाली के निर्णयकर्ताओं को प्रस्तुत की जाती हैं, उसे हित स्पष्टीकरण की प्रक्रिया कहा जाता है।

3. हित समूहीकरण-विभिन्न हितों को इकट्ठा करने की क्रिया को ही हित समूहीकरण कहा जाता है। यह प्रकार्य दो प्रकार से सम्पादित हो सकता है। प्रथम, विभिन्न हितों को संयुक्त और समायोजित करके तथा द्वितीय, एक देशी नीति के प्रतिमान में निष्ठा रखने वाले व्यक्तियों की राजनीतिक भर्ती द्वारा।

4. राजनीतिक संचार-राजनीतिक व्यवस्था में राजनीतिक संचार का बहुत महत्त्व है, क्योंकि उसके द्वारा ही अन्य सभी कार्य सम्पादित होते हैं। संचार के साधन निश्चित ही राजनीतिक व्यवस्था को प्रभावित करते हैं। संचार के बिना हित स्पष्टीकरण का काम हो ही नहीं सकता।

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अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
राजनीतिक प्रणाली से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
राजनीतिक प्रणाली का सम्बन्ध उन सब बातों, क्रियाओं तथा संस्थाओं से है जो किसी-न-किसी प्रकार से राजनीतिक जीवन को प्रभावित करती हैं। राजनीतिक व्यवस्था का सम्बन्ध केवल कानून बनाने और लागू करने से ही नहीं बल्कि वास्तविक रूप से बल प्रयोग द्वारा उनका पालन करवाने से भी है।

प्रश्न 2.
राजनीतिक व्यवस्था की दो परिभाषाएं लिखो।
उत्तर-

  • डेविड ईस्टन का कहना है, “राजनीतिक व्यवस्था अन्तक्रियाओं का समूह है जिसे सामाजिक व्यवहार की समग्रता में से निकाला गया है तथा जिसके द्वारा समाज के लिए सत्तात्मक मूल्य निर्धारित किए जाते
  • आल्मण्ड तथा पॉवेल का कथन है, “जब हम राजनीतिक व्यवस्था की बात कहते हैं तो हम इसमें उन समस्त अन्तक्रियाओं को शामिल कर लेते हैं जो वैध बल प्रयोग को प्रभावित करती है।”

प्रश्न 3.
प्रणाली की दो मुख्य विशेषताएं बताइए।
उत्तर-

  1. प्रणाली भिन्न-भिन्न अंगों या हिस्सों के जोड़ों से बनती है।
  2. प्रणाली के भिन्न-भिन्न अंगों में परस्पर निर्भरता होती है।

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प्रश्न 4.
राज्य और राजनीतिक प्रणाली में दो मुख्य अन्तर लिखो।
उत्तर-

  1. राज्य के चार अनिवार्य तत्त्व हैं जबकि राजनीतिक व्यवस्था के अनेक तत्त्व हैं। जनसंख्या, निश्चित भूमि, सरकार तथा प्रभुसत्ता राज्य के चार अनिवार्य तत्त्व हैं। परन्तु राजनीतिक व्यवस्था के निश्चित तत्त्व न होकर अनेक तत्त्व होते हैं।
  2. राज्य की मुख्य विशेषता प्रभुसत्ता है जबकि राजनीतिक व्यवस्था का मुख्य गुण वैध शारीरिक शक्ति है। आन्तरिक तथा बाहरी प्रभुसत्ता राज्य का सबसे महत्त्वपूर्ण तत्त्व है, परन्तु राजनीतिक व्यवस्था में प्रभुसत्ता की धारणा को कोई महत्त्व नहीं दिया जाता है। आधुनिक राजनीतिक विद्वान् आन्तरिक प्रभुसत्ता की धारणा के स्थान पर ‘वैध शारीरिक दण्ड देने की शक्ति’ शब्दों का प्रयोग करते हैं।

प्रश्न 5.
राजनीतिक प्रणाली में फीडबैक लूप व्यवस्था किसे कहा जाता है ?
उत्तर-
डेविड ईस्टन के अनुसार, निवेशों और निर्गतों में घनिष्ठ सम्बन्ध है। इन दोनों में निरन्तर सम्पर्क रहता है। फीड बैक का अर्थ है-निर्गतों के प्रभावों और परिणामों को पुनः व्यवस्था में निवेश के रूप में ले जाना। ईस्टन के अनुसार निर्गतों के परिणामों को निवेशों के साथ जोड़ने तथा इस प्रकार निवेश तथा निर्गतों के बीच निरन्तर सम्बन्ध बनाने के कार्य को फीड बैक लूप कहते हैं। यदि राजनीतिक व्यवस्था के व्यावहारिक रूप को देखा जाए तो आधुनिक युग में राजनीतिक संस्थाएं और राजनीतिक दल फीड बैक लूप व्यवस्था का कार्य करते हैं।

प्रश्न 6.
‘शासन की प्रक्रिया’ (The Process of Government) नामक पुस्तक किसने व कब लिखी ?
उत्तर-
‘शासन की प्रक्रिया’ नामक पुस्तक आर्थर बेंटले ने लिखी।

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प्रश्न 7.
‘राजनीतिक प्रणाली’ (The Political System) नाम की पुस्तक किसने व कब लिखी ?
उत्तर-
राजनीतिक प्रणाली (The Political System) नाम की पुस्तक डेविड ईस्टन ने सन् 1953 में लिखी।

प्रश्न 8.
राजनीतिक प्रणाली के दो निकास (Output) कार्यों के बारे में लिखिए।
उत्तर-

  1. नियम बनाना-समाज में व्यक्तियों के रहने के लिए आवश्यक है कि उनके पारस्परिक सम्बन्धों को नियमित करने के लिए नियम होने चाहिएं। राजनीतिक व्यवस्था में नियम बनाना मुख्यतः विधानपालिकाओं तथा उप-व्यवस्थापन अभिकरणों द्वारा किया जाता है। प्रत्येक राजनीतिक व्यवस्था में इस कार्य को किया जाता है।
  2. नियम लागू करना-राजनीतिक व्यवस्था का कार्य केवल नियम बनाना ही नहीं है, बल्कि उन्हें लागू करना है। राजनीतिक व्यवस्था में नियमों को लागू करने की ज़िम्मेवारी पूर्णतया सरकारी कर्मचारियों या नौकरशाही की होती है।

प्रश्न 9.
राजनीतिक प्रणाली के दो निवेश कार्यों का वर्णन करो।
उत्तर-

  1. राजनीतिक समाजीकरण तथा भर्ती-जब लोग राजनीति में भाग लेना आरम्भ करते हैं और अपनी भूमिका निभानी आरम्भ करते हैं। इसे ही राजनीतिक समाजीकरण कहते हैं। राजनीतिक व्यवस्था में समाजीकरण के साथ-साथ भर्ती का काम भी चलता रहता है। राजनीतिक भर्ती से अभिप्राय उस कार्य से है जिसके माध्यम से राजनीतिक व्यवस्था की भूमिकाओं की पूर्ति की जाती है।
  2. हित स्पष्टीकरण-अपने-अपने हितों की रक्षा करने के लिए प्रत्येक राजनीतिक प्रणाली के सदस्य अपनी प्रणाली में कुछ मांगें पेश किया करते हैं। जिस तरीके से इन मांगों को सही रूप प्रदान किया जाता है तथा जिस प्रकार से ये मांगें प्रणाली के निर्णयकर्ताओं को प्रस्तुत की जाती हैं उसे हित स्पष्टीकरण की प्रक्रिया कहा जाता है।

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प्रश्न 10.
राजनीतिक संचार से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
राजनीतिक संचार का भाव है सूचनाओं का आदान-प्रदान करना। राजनीतिक व्यवस्था में राजनीतिक संचार का बहुत महत्त्व है, क्योंकि इसके द्वारा ही अन्य सभी कार्य सम्पादित होते हैं। सभी व्यक्ति चाहे वे नागरिक हों या अधिकारी वर्ग से सम्बन्धित हों, सूचना पर ही निर्भर रहते हैं और उनके अनुसार ही उनकी गतिविधियों का संचालन होता है। इसलिए प्रजातन्त्र में प्रेस तथा भाषण की स्वतन्त्रता पर जोर दिया जाता है जबकि साम्यवादी राज्यों एवं तानाशाही राज्यों में उन पर प्रतिबन्ध लगाने की बात की जाती है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न I. एक शब्द/वाक्य वाले प्रश्न-उत्तर

प्रश्न 1.
राजनीतिक व्यवस्था की अवधारणा का जन्म कब हुआ?
उत्तर-
राजनीतिक व्यवस्था की अवधारणा का जन्म 20वीं शताब्दी में हुआ।

प्रश्न 2.
राजनीतिक प्रणाली शब्द का प्रयोग सबसे पहले किस राजनीतिक विज्ञानी ने किया ?
उत्तर-
डेविड ईस्टन ने।

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प्रश्न 3.
राजनीतिक प्रणाली के अधीन ‘राजनीतिक’ शब्द का अर्थ बताएं।
उत्तर-
किसी भी समुदाय या संघ को राजनीतिक उसी समय कहा जा सकता है जबकि उसकी आज्ञा का पालन प्रशासकीय कर्मचारी वर्ग द्वारा शारीरिक बल प्रयोग के भय से करवाया जाता है।

प्रश्न 4.
व्यवस्था शब्द का अर्थ लिखिए।
अथवा
प्रणाली शब्द का क्या अर्थ है ?
उत्तर-
व्यवस्था (प्रणाली) शब्द का प्रयोग अन्तक्रियाओं (interactions) के समूह का संकेत करने के लिए किया जाता है।

प्रश्न 5.
राजनीतिक प्रणाली का अर्थ लिखें।
उत्तर-
राजनीतिक प्रणाली का अर्थ उन अन्योन्याश्रित सम्बन्धों के समूह से लिया जाता है, जिसके संचालन में सत्ता या शक्ति का हाथ होता है।

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प्रश्न 6.
राजनीतिक प्रणाली की कोई एक परिभाषा दें।
उत्तर-
डेविड ईस्टन का कहना है, “राजनीतिक व्यवस्था अन्तक्रियाओं का समूह है जिसे सामाजिक व्यवहार की समग्रता में निकाला गया है तथा जिसके द्वारा समाज के लिए सत्तात्मक मूल्य निर्धारित किए जाते हैं।”

प्रश्न 7.
राजनीतिक प्रणाली की कोई एक विशेषता लिखें।
उत्तर-
राजनीतिक व्यवस्था प्रत्येक समाज में पाई जाती है।

प्रश्न 8.
राजनीतिक प्रणाली का एक निवेश कार्य लिखें।
उत्तर-
राजनीतिक समाजीकरण और प्रवेश या भर्ती।

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प्रश्न 9.
राजनीतिक प्रणाली का एक निकास कार्य लिखें।
उत्तर-
नियम निर्माण कार्य।

प्रश्न 10.
राजनीतिक प्रणाली एवं राज्य में कोई एक अन्तर लिखो।
उत्तर-
राजनीतिक व्यवस्था में आत्मनिर्भर अंगों का अस्तित्व होता है जबकि राज्य की धारणा में ऐसी कोई विशेषता नहीं है।

प्रश्न 11.
फीड बैक लूप व्यवस्था का अर्थ लिखें।
उत्तर-
फीड बैक लूप व्यवस्था का अर्थ है-निर्गतों के प्रभावों के परिणामों को पुन: व्यवस्था में निवेश के रूप में ले जाना।

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प्रश्न 12.
राजनीतिक प्रणाली की धारण को लोकप्रिय बनाने वाले किसी एक आधुनिक लेखक का नाम लिखें।
उत्तर-
डेविड ईस्टन।

प्रश्न 13.
राजनीतिक व्यवस्था का वातावरण किसे कहते हैं ?
उत्तर-
समाज के वातावरण या परिस्थितियों का राजनीतिक प्रणाली पर जो प्रभाव पड़ता है, उसे हम सामान्य रूप से राजनीतिक प्रणाली का वातावरण कहते हैं।

प्रश्न 14.
‘नियम निर्माण कार्य’ से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
परम्परावादी दृष्टिकोण के अनुसार विधानमण्डल को सरकार का एक महत्त्वपूर्ण अंग माना जाता है। इस अंग का मुख्य कार्य कानून बनाना है। इसी कार्य को ही आल्मण्ड ने राजनीतिक प्रणाली के नियम निर्माण के कार्य का स्वरूप बताया है।

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प्रश्न 15.
‘नियम निर्णय कार्य’ क्या होता है ?
उत्तर-
समाज में जब भी कोई नियम बनाया जाता है, उसके उल्लंघन की भी सम्भावना सदैव बनी रहती है। अतः यह आवश्यक है कि जो व्यक्ति नियमों का उल्लंघन करता है, उसे दण्ड मिलना चाहिए। प्रायः सभी आधुनिक लोकतन्त्रात्मक राज्यों में यह कार्य न्यायालयों द्वारा किए जाते हैं।

प्रश्न 16.
‘नियम लागू करने का कार्य’ किसे कहते हैं ?
उत्तर-
राजनीतिक व्यवस्था का कार्य केवल नियम बनाना ही नहीं है, बल्कि उन नियमों को लागू करना भी है। राजनीतिक व्यवस्था में नियमों को लागू करने की ज़िम्मेदारी पूर्णतः सरकारी कर्मचारियों या नौकरशाही की होती है। यहां तक कि न्यायालयों के निर्णय भी कर्मचारी वर्ग द्वारा लागू किए जाते हैं।

प्रश्न 17.
आल्मण्ड के अनुसार राजनीतिक व्यवस्था की कोई एक विशेषता लिखिए।
उत्तर-
राजनीतिक व्यवस्था की सार्वभौमिकता।

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प्रश्न 18.
राजनीतिक प्रणाली के कौन-से निकास कार्य हैं ?
उत्तर-
(1) नियम बनाना
(2) नियम लागू करना
(3) नियम निर्णयन कार्य।

प्रश्न 19.
राजनीतिक प्रणाली की सीमाएं क्या हैं ?
उत्तर-
राजनीतिक प्रणाली पर आन्तरिक व बाहरी वातावरण का प्रभाव अवश्य पड़ता है, जोकि राजनीतिक प्रणाली की भूमिका को सीमित कर देता है। इसकी सीमाएं क्षेत्रीय नहीं, बल्कि कार्यात्मक होती हैं।

प्रश्न 20.
राजनीतिक प्रणाली के किसी एक अनौपचारिक ढांचे का नाम लिखें।
उत्तर-
राजनीतिक दल।

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प्रश्न 21.
राजनीतिक प्रणाली के किसी एक औपचारिक ढांचे का नाम लिखें। ।
उत्तर-
विधानपालिका।

प्रश्न 22.
राजनीतिक प्रणाली के दो कार्यों के नाम लिखो।
उत्तर-
(1) राजनीतिक समाजीकरण तथा भर्ती
(2) हित स्पष्टीकरण।

प्रश्न 23.
डेविड ईस्टन के अनुसार राजनैतिक समुदाय का क्या अर्थ है ?
उत्तर-
जो समूह सामूहिक क्रियाओं और प्रयत्नों द्वारा अपनी समस्याओं को हल करने का प्रयास करते हैं, उन्हें राजनीतिक समुदाय कहा जाता है।

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प्रश्न 24.
हित स्पष्टीकरण क्या होता है ?
उत्तर-
आल्मण्ड व पावेल के अनुसार अलग-अलग व्यक्तियों तथा समूहों द्वारा राजनीतिक निर्णयकर्ताओं से मांग करने की प्रक्रिया को हित स्पष्टीकरण कहते हैं।

प्रश्न 25.
राजनीतिक संचार से क्या अभिप्राय है ? .
उत्तर-
राजनीतिक संचार का भाव है, सूचनाओं का आदान-प्रदान करना।

प्रश्न 26.
हित समूहीकरण क्या होता है ?
उत्तर-
विभिन्न हितों को एकत्र करने की क्रिया को हित समूहीकरण कहते हैं।

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प्रश्न 27.
राजनीतिक भर्ती से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
राजनीतिक भर्ती से अभिप्राय उस कार्य से है, जिसके माध्यम से राजनीतिक व्यवस्था की भूमिकाओं की पूर्ति की जाती है।

प्रश्न II. खाली स्थान भरें –

1. राजनीतिक व्यवस्था के दो भाग-राजनीतिक एवं ………………
2. राजनीतिक शब्द ……………….. का सूचक है।
3. व्यवस्था शब्द का प्रयोग …………….. के समूह का संकेत करने के लिए किया जाता है।
4. राजनीतिक समाजीकरण एक …………….. कार्य है।
5. नियम निर्माण एक ……………….. कार्य है।
उत्तर-

  1. व्यवस्था
  2. सत्ता
  3. अन्तक्रियाओं
  4. निवेश
  5. निर्गत ।

प्रश्न III. निम्नलिखित वाक्यों में से सही एवं ग़लत का चुनाव करें-

1. व्यवस्था भिन्न अंगों या हिस्सों से बनती है।
2. प्रत्येक व्यवस्था में एक इकाई के रूप कार्य करने की योग्यता होती है।
3. आल्मण्ड पावेल ने राजनीतिक समुदाय की शक्ति को कानूनी शारीरिक बलात् शक्ति का नाम दिया है।
4. मूल्यों के सत्तात्मक आबंटन की धारणा आल्मण्ड पावेल से सम्बन्धित है।
उत्तर-

  1. सही
  2. सही
  3. सही
  4. ग़लत।

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प्रश्न IV. बहुविकल्पीय प्रश्न –

प्रश्न 1.
राजनीतिक व्यवस्था का मुख्य गुण है –
(क) शक्ति या सत्ता
(ख) संगठन
(ग) मानव व्यवहार
(घ) राबर्ट ई० रिग्स।
उत्तर-
(क) शक्ति या सत्ता

प्रश्न 2.
राजनीतिक व्यवस्था शब्द के दो भाग कौन-कौन से हैं ?
(क) राज्य एवं सरकार
(ख) अधिकार एवं कर्त्तव्य
(ग) राजनीतिक एवं व्यवस्था
(घ) स्वतन्त्रता एवं समानता।
उत्तर-
(ग) राजनीतिक एवं व्यवस्था

प्रश्न 3.
“राजनीतिक व्यवस्था अन्तक्रियाओं का समूह है, जिसे सामाजिक व्यवहार की समग्रता में से निकाला गया है, तथा जिसके द्वारा समाज के लिए सत्तात्मक मूल्य निर्धारित किए जाते हैं।” यह कथन किसका है।
(क) आल्मण्ड पावेल
(ख) डेविड ईस्टन
(घ) राबर्ट डहल।
(ग) लासवैल
उत्तर-
(ख) डेविड ईस्टन

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 1 राजनीतिक व्यवस्था

प्रश्न 4.
राजनीतिक व्यवस्था की विशेषता है
(क) मानवीय सम्बन्ध
(ख) औचित्यपूर्ण शक्ति का प्रयोग
(ग) व्यापकता
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 5.
राजनीतिक व्यवस्था का निवेश कार्य है
(क) हित स्पष्टीकरण
(ख) हित समूहीकरण
(ग) राजनीतिक संचारण
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 15 अहमद शाह अब्दाली के आक्रमण एवं मुग़ल शासन का विखँडन

Punjab State Board PSEB 12th Class History Book Solutions Chapter 15 अहमद शाह अब्दाली के आक्रमण एवं मुग़ल शासन का विखँडन Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 History Chapter 15 अहमद शाह अब्दाली के आक्रमण एवं मुग़ल शासन का विखँडन

निबंधात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

अब्दाली के आक्रमणों के कारण (Causes of Abdali’s Invasions)

प्रश्न 1.
अहमद शाह अब्दाली के आक्रमणों के कारण बताएँ।
(Explain the causes of the invasions of Ahmad Shah ‘Abdali.)
अथवा
अहमद शाह अब्दाली द्वारा पंजाब पर किए गए हमलों के क्या कारण थे ?
(What were the causes of the invasions of Ahmad Shah Abdali on Punjab ?)
अथवा
अहमद शाह अब्दाली के आक्रमणों के कारण बताएँ।
(Explain the causes of the invasions of Ahmad Shah Abdali.)
उत्तर-
अहमद शाह अब्दाली अफ़गानिस्तान का शासक था। उसने 1747 ई० से 1767 ई० के समय के दौरान पंजाब पर आठ बार आक्रमण किये। इन आक्रमणों के लिए निम्नलिखित कारण उत्तरदायी थे—
1. अब्दाली की महत्त्वाकाँक्षा (Ambition of Abdali)-अहमद शाह अब्दाली बहुत महत्त्वाकाँक्षी शासक था। वह अफ़गानिस्तान के साम्राज्य का विस्तार करना चाहता था। अत: वह पंजाब तथा भारत के अन्य प्रदेशों पर विजय प्राप्त कर अपने साम्राज्य का विस्तार करना चाहता था। अपनी इस साम्राज्यवादी महत्त्वाकाँक्षा की पूर्ति के लिए अब्दाली ने सर्वप्रथम पंजाब पर आक्रमण करने का निर्णय किया।

2. भारत की अपार धन-दौलत (Enormous Wealth of India)-अहमद शाह अब्दाली के लिए एक शक्तिशाली साम्राज्य की स्थापना के लिए धन की बहुत आवश्यकता थी। यह धन उसे अपने साम्राज्य अफ़गानिस्तान से प्राप्त नहीं हो सकता था, क्योंकि यह प्रदेश आर्थिक दृष्टि से बहुत पिछड़ा हुआ था। दूसरी ओर उसे यह धन भारत-जो अपनी अपार धन-दौलत के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध था-से मिल सकता था। 1739 ई० में जब वह नादिरशाह के साथ भारत आया था तो वह भारत की अपार धन-दौलत को देख कर चकित रह गया था। नादिरशाह भारत से लौटते समय अपने साथ असीम हीरे-जवाहरात, सोना-चाँदी इत्यादि ले गया था। अब्दाली पुनः भारत पर आक्रमण कर यहाँ की अपार धन-दौलत को लूटना चाहता था।

3. अफ़गानिस्तान में अपनी स्थिति को सुदृढ़ करना (To consolidate his position in Afghanistan)अहमद शाह अब्दाली एक साधारण परिवार से संबंध रखता था। इसलिए 1747 ई० में नादिरशाह की हत्या के पश्चात् जब वह अफ़गानिस्तान का शासक बना तो वहाँ के अनेक सरदारों ने इस कारण उसका विरोध किया। अतः अहमद शाह अब्दाली अफ़गानिस्तान में अपनी स्थिति सुदृढ़ करने के उद्देश्य से विदेशी युद्ध करना चाहता था। इन युद्धों द्वारा वह अपनी प्रतिष्ठा में वृद्धि कर सकता था तथा अफ़गानों को अपने प्रति वफ़ादार बना सकता था।

4. भारत की अनुकूल राजनीतिक दशा (Favourable Political Condition of India)-1707 ई० में औरंगजेब की मृत्यु के पश्चात् महान् मुग़ल साम्राज्य तीव्रता से पतन की ओर अग्रसर हो रहा था। 1719 ई० में मुहम्मद शाह के सिंहासन पर बैठने से स्थिति अधिक शोचनीय हो गयी। वह अपना अधिकतर समय सुरा-सुंदरी के संग व्यतीत करने लगा। अत: वह रंगीला के नाम से विख्यात हुआ। उसके शासन काल (1719-48 ई०) में शासन की वास्तविक बागडोर उसके मंत्रियों के हाथ में थी जो एक-दूसरे के विरुद्ध षड्यंत्र करते रहते थे। अतः साम्राज्य में चारों ओर अराजकता फैल गई। पंजाब में सिखों ने मुग़ल सूबेदारों की नाक में दम कर रखा था। इस स्थिति का लाभ उठा कर अहमद शाह अब्दाली ने पंजाब पर आक्रमण करने का निश्चय किया।

5. अब्दाली का भारत में पूर्व अनुभव (Past experience of Abdali in India)—अहमद शाह अब्दाली 1739 ई० में नादिरशाह के आक्रमण के समय उसके सेनापति के रूप में भारत आया था। उसने पंजाब तथा दिल्ली की राजनीतिक स्थिति तथा यहाँ की सेना की लड़ने की क्षमता आदि का गहन अध्ययन किया था। उसने यह जान लिया था कि मुग़ल साम्राज्य एक रेत के महल की तरह है जो एक तेज़ आँधी के सामने नहीं ठहर सकता। अतः स्वतंत्र शासक बनने के पश्चात् अब्दाली ने इस स्थिति का लाभ उठाने का निर्णय किया।

6. शाहनवाज़ खाँ द्वारा निमंत्रण (Invitation of Shahnawaz Khan)-1745 ई० में जकरिया खाँ की मृत्यु के बाद उसका बड़ा पुत्र याहिया खाँ लाहौर का नया सूबेदार बना। इस बात को उसका छोटा भाई शाहनवाज़ खाँ सहन न कर सका। वह काफ़ी समय से लाहौर की सूबेदारी प्राप्त करने का स्वप्न ले रहा था। उसने 1746 ई० के अंत में याहिया खाँ के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी। दोनों भाइयों में यह युद्ध चार मास तक चलता रहा। इसमें शाहनवाज़ खाँ की जीत हुई। उसने याहिया खाँ को बंदी बना लिया और स्वयं लाहौर का सूबेदार बन बैठा। दिल्ली का वज़ीर कमरुद्दीन जोकि याहिया खाँ का ससुर था, यह सहन न कर सका। उसके उकसाने से मुहम्मद शाह रंगीला ने शाहनवाज़ खाँ को लाहौर का सूबेदार मानने से इंकार कर दिया। ऐसी स्थिति में शाहनवाज़ खाँ ने अहमद शाह अब्दाली को भारत पर आक्रमण करने का निमंत्रण भेजा। अब्दाली ऐसे ही स्वर्ण अवसर की तलाश में था। अतः उसने भारत पर आक्रमण करने का निर्णय लिया।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 15 अहमद शाह अब्दाली के आक्रमण एवं मुग़ल शासन का विखँडन

अब्दाली के आक्रमण (Abdali’s Invasions)

प्रश्न 2.
अहमद शाह अब्दाली के पंजाब पर आक्रमण का संक्षिप्त वर्णन कीजिए। (Give a brief account of Ahmad Shah Abdali’ invasions over Punjab.)
उत्तर-
अहमद शाह अब्दाली अफ़गानिस्तान का शासक था। उसने 1747 ई० से 1767 ई० के समय के दौरान पंजाब पर आठ आक्रमण किये। इन आक्रमणों का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित अनुसार है—
1. अब्दाली का पहला आक्रमण 1747-48 ई० (First Invasion of Abdali 1747-48 A.D.)—पंजाब के सूबेदार शाहनवाज़ खाँ के आमंत्रण पर अहमद शाह अब्दाली दिसंबर, 1747 ई० में भारत की ओर चल पड़ा। उसके लाहौर पहुँचने से पूर्व ही शाहनवाज खाँ ने दिल्ली के वज़ीर कमरुद्दीन के साथ समझौता कर लिया। इस बात पर अब्दाली को बहुत गुस्सा आया। उसने शाहनवाज को पराजित करके 10 जनवरी, 1748 ई० को लाहौर पर अधिकार कर लिया। इसके बाद वह दिल्ली की ओर बढ़ा। सरहिंद के निकट हुई लड़ाई में कमरुद्दीन मारा गया। मन्नुपुर में 11 मार्च, 1748 ई० को एक घमासान युद्ध में कमरुद्दीन के लड़के मुईन-उल-मुल्क ने अब्दाली को करारी हार दी। दूसरी ओर पंजाब में सिखों ने अहमद शाह अब्दाली की वापसी के समय उसका काफ़ी सामान लूट लिया।
PSEB 12th Class History Solutions Chapter 15 अहमद शाह अब्दाली के आक्रमण एवं मुग़ल शासन का विखँडन 1
BABA DEEP SINGH JI

2. अब्दाली का दूसरा आक्रमण 1748-49 ई० (Second Invasion of Abdali 1748-49 A.D.)अहमद शाह अब्दाली अपने पहले आक्रमण के दौरान हुई अपनी पराजय का बदला लेना चाहता था। इस कारण अहमद शाह अब्दाली ने 1748 ई० के अंत में पंजाब पर दूसरी बार आक्रमण किया। दिल्ली से कोई सहायता न मिलने के कारण मीर मन्नू ने अब्दाली के साथ संधि कर ली। इस संधि के अनुसार मीर मन्नू ने पंजाब के चार महलों (जिलों) स्यालकोट, पसरूर, गुजरात और औरंगाबाद का 14 लाख रुपए वार्षिक लगान अब्दाली को देना मान लिया।

3. अब्दाली का तीसरा आक्रमण 1751-52 ई० (Third Invasion of Abdali 1751-52 A.D.)—मीर मन्नू द्वारा वार्षिक लगान देने में किए गए विलंब के कारण अब्दाली ने नवंबर, 1751 ई० में पंजाब पर तीसरी बार आक्रमण किया। वह अपनी सेना सहित बड़ी तेजी के साथ लाहौर की ओर बढ़ा। लाहौर पहुँच कर अब्दाली ने 3 महीनों तक भारी लूटमार मचाई। 6 मार्च, 1752 ई० को लाहौर के निकट अहमद शाह अब्दाली और मीर मन्नू की सेनाओं के बीच बड़ी भयंकर लड़ाई हुई। इस लड़ाई में दीवान कौड़ा मल मारा गया और मीर मन्नू बंदी बना लिया गया। मीर मन्नू की वीरता देखकर अब्दाली ने न केवल मीर मन्नू को क्षमा कर दिया बल्कि अपनी तरफ से उसे पंजाब का सूबेदार नियुक्त कर दिया। इस प्रकार अब्दाली ने 1752 ई० में पंजाब को अपने साम्राज्य में सम्मिलित कर लिया।

4. अब्दाली का चौथा आक्रमण 1756-57 ई० (Fourth Invasion of Abdali 1756-57 A.D.)1753 ई० में मीर मन्नू की मृत्यु के पश्चात् उसकी विधवा मुगलानी बेगम पंजाब की सूबेदारनी बनी। वह चरित्रहीन स्त्री थी। मुग़ल बादशाह आलमगीर द्वितीय के आदेश पर मुगलानी बेगम को जेल में डाल दिया गया। अदीना बेग पंजाब का नया सूबेदार बनाया गया। अब्दाली पंजाब पर किसी मुग़ल सूबेदार की नियुक्ति को कदाचित सहन नहीं कर सका। इसी कारण अब्दाली ने नवंबर, 1756 ई० में पंजाब पर चौथा आक्रमण किया। इस मध्य पंजाब में सिखों की शक्ति काफ़ी बढ़ चुकी थी। अब्दाली ने दिल्ली से वापसी समय सिखों से निपटने का फैसला किया।

अहमद शाह अब्दाली जनवरी, 1757 ई० में दिल्ली पहुँचा और भारी लूटमार की। उसने मथुरा और वृंदावन को भी लूटा। पंजाब पहुंचने पर उसने अपने पुत्र तैमूर शाह को पंजाब का सूबेदार नियुक्त किया। अमृतसर के निकट सिखों और अफ़गानों में घमासान युद्ध हुआ। इस युद्ध में बाबा दीप सिंह जी का शीश कट गया था पर वह अपने शीश को हथेली पर रखकर शत्रुओं का मुकाबला करते रहे। बाबा दीप सिंह जी 11 नवंबर, 1757 ई० को शहीद हुए। बाबा दीप सिंह जी की शहीदी ने सिखों में एक नया जोश भरा। गुरबख्श सिंह के शब्दों में,
“बाबा दीप सिंह एवं उसके साथियों की शहीदी ने समस्त सिख कौम को झकझोर दिया। उन्होंने इसका बदला लेने का प्रण लिया।”1

5. अब्दाली का पाँचवां आक्रमण 1759-61 ई० (Fifth Invasion of Abdali 1759-61 A.D.)1758 ई० में सिखों ने मराठों से मिलकर पंजाब से तैमूर शाह को भगा दिया। इस कारण अहमद शाह अब्दाली ने 1759 ई० में पंजाब पर पाँचवां आक्रमण कर दिया। उसने अंबाला के निकट तरावड़ी में मराठों के एक प्रसिद्ध नेता दत्ता जी को हराया। शीघ्र ही अब्दाली ने दिल्ली पर अधिकार कर लिया। जब मराठों की पराजय का समाचार मराठों के पेशवा बाला जी बाजीराव तक पहुँचा तो उसने सदा शिवराव भाऊ के नेतृत्व में एक विशाल सेना अहमद शाह अब्दाली का मुकाबला करने हेतु भेजी। 14 जनवरी, 1761 ई० में पानीपत की तीसरी लड़ाई में अब्दाली ने मराठों की सेना में बड़ी तबाही मचाई। परंतु अहमद शाह अब्दाली सिखों का कुछ न बिगाड़ सका। सिख रात्रि के समय जब अब्दाली के सैनिक आराम कर रहे होते थे तो अचानक आक्रमण करके उनके खजाने को लूट लेते थे। जस्सा सिंह आहलूवालिया ने तो अचानक आक्रमण करके अब्दाली की कैद में से बहुत-सी औरतों को छुड़वा लिया। इस प्रकार जस्सा सिंह ने अपनी वीरता का प्रमाण दिया।

6. अब्दाली का छठा आक्रमण 1762 ई० (Sixth Invasion of Abdali 1762 A.D.)-सिखों के बढ़ते हुए प्रभाव को रोकने के लिए अब्दाली ने 1762 ई० में आक्रमण किया। उसके सैनिकों ने मालेरकोटला के समीप गाँव कुप में अकस्मात् आक्रमण करके 25 से 30 हज़ार सिखों को शहीद तथा 10 हज़ार सिखों को घायल कर दिया। इनमें स्त्रियाँ तथा बच्चे भी थे। यह घटना सिख इतिहास में ‘बड़ा घल्लूघारा’ के नाम से प्रख्यात है। यह घल्लूघारा 5 फरवरी, 1762 ई० को हुआ। बड़ा घल्लूघारा में सिखों की यद्यपि बहुत क्षति हुई परंतु उन्होंने अपना साहस नहीं छोड़ा। सिखों ने सरहिंद पर 14 जनवरी, 1764 ई० को विजय प्राप्त की। इसके फ़ौजदार जैन खाँ की हत्या कर दी गई। सिखों ने लाहौर के सूबेदार काबली मल से व्यापक मुआवज़ा वसूल किया। इससे सिखों की बढ़ती हुई शक्ति की स्पष्ट झलक मिलती है।

7. अब्दाली के अन्य आक्रमण 1764-67 ई० (Other Invasions of Abdali 1764-67 A.D.)अब्दाली ने पंजाब पर 1764-65 ई० तथा 1766-67 ई० में आक्रमण किए। उसके ये आक्रमण अधिक प्रख्यात नहीं हैं। वह सिखों की शक्ति को कुचलने में असफल रहा। सिखों ने इस समय के दौरान 1765 ई० में लाहौर पर अधिकार कर लिया। सिखों ने नये सिक्के चलाकर अपनी स्वतंत्रता की घोषणा कर दी।

1. “The martyrdom of Baba Deep Singh and his associates shocked the whole Sikh nation. They determined to retaliate with vengeance.” Gurbakhsh Singh, The Sikh Faith : A Universal Message (Amritsar : 1997) p. 95.

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 15 अहमद शाह अब्दाली के आक्रमण एवं मुग़ल शासन का विखँडन

पानीपत की तीसरी लड़ाई 1761 ई० (The Third Battle of Panipat 1761 A.D.):

प्रश्न 3.
पानीपात की तीसरी लड़ाई के कारणों, घटनाओं और परिणामों का वर्णन करें।
(Discuss the causes, events and results of the Third Battle of Panipat.)
अथवा
पानीपत की तीसरी लड़ाई के क्या कारण थे ? इस लड़ाई के क्या परिणाम निकले ? संक्षेप में वर्णन कीजिए।
(What were the causes of the Third Battle of Panipat ? Briefly describe the consequences of this battle.)
अथवा
पानीपत के तीसरे युद्ध के कारणों तथा परिणामों का वर्णन करें। (Describe the causes and consequences of the Third Battle of Panipat.)
अथवा
पानीपत की तीसरी लड़ाई के कारण एवं घटनाओं की चर्चा करें। (Discuss the causes and events of the Third Battle of Panipat.)
उत्तर-
14 जनवरी, 1761 ई० को मराठों एवं अहमद शाह अब्दाली के मध्य पानीपत की तीसरी लड़ाई हुई। इस लड़ाई में मराठों को कड़ी पराजय का सामना करना पड़ा। इस लड़ाई के परिणामस्वरूप पंजाब में सिखों की शक्ति का तीव्र गति से उत्थान होने लगा। इस लड़ाई के कारणों और परिणामों का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है
(क) कारण (Causes)-पानीपत की तीसरी लड़ाई के लिए निम्नलिखित मुख्य कारण उत्तरदायी थे—
1. मराठों द्वारा रुहेलखंड की लूटमार (Plunder of Ruhelkhand by the Marathas)-रुहेलखंड पर रुहेलों का राज्य था। मराठों ने उन्हें पराजित कर दिया। रुहेले अफ़गान होने के नाते अहमद शाह अब्दाली के सजातीय थे। अतः उन्होंने अब्दाली को इस अपमान का बदला लेने के लिए निमंत्रण दिया।

2. मराठों की हिंदू राज्य स्थापित करने की नीति (Policy of establishing Hindu Kingdom by the Marathas)-मराठे निरंतर अपनी शक्ति में वृद्धि करते चले आ रहे थे। इससे प्रोत्साहित होकर पेशवाओं ने भारत में हिंदू साम्राज्य स्थापित करने की घोषणा की। इससे मुस्लिम राज्यों के लिए एक गंभीर खतरा उत्पन्न हो गया। अतः इन राज्यों ने अपनी सुरक्षा के लिए अब्दाली को मराठों का दमन करने के लिए प्रेरित किया।

3. हिंदुओं में एकता का अभाव (Lack of Unity among the Hindus)-मराठों की बढ़ती हुई शक्ति के कारण भारत में जाट एवं राजपूत मराठों से ईर्ष्या करने लगे। इसका प्रमुख कारण यह था कि वे स्वयं भारत में अपना राज्य स्थापित करना चाहते थे। हिंदुओं की इस आपसी फूट को अब्दाली ने भारत पर आक्रमण करने का एक स्वर्ण अवसर समझा।

4. मराठों का दिल्ली एवं पंजाब पर अधिकार (Occupation of Delhi and Punjab by Marathas)अहमद शाह अब्दाली ने 1752 ई० में पंजाब तथा 1756 ई० में दिल्ली पर आधिपत्य कर लिया था। उसने पंजाब में अपने बेटे तैमूर शाह तथा दिल्ली के रुहेला नेता नजीब-उद-दौला को अपना प्रतिनिधि नियुक्त किया। मराठों ने 1757 ई० में दिल्ली तथा 1758 ई० में पंजाब पर अधिकार कर लिया। मराठों की ये दोनों विजयें अहमद शाह अब्दाली की शक्ति को एक चुनौती थीं। इसलिए उसने मराठों तथा सिखों को सबक सिखाने का निर्णय किया।

(ख) घटनाएँ (Events)-1759 ई० के अंत में अहमद शाह अब्दाली ने सर्वप्रथम पंजाब पर आक्रमण किया। इस आक्रमण का समाचार सुन कर पंजाब का मराठा सूबेदार शम्भा जी लाहौर छोड़ कर भाग गया। इसके पश्चात् वह दिल्ली की ओर बढ़ा। रास्ते में उसे मराठों ने रोकने का प्रयत्न किया परंतु उन्हें सफलता प्राप्त न हुई। जब बालाजी बाजीराव को इन घटनाओं संबंधी सूचना मिली तो उसने अब्दाली का सामना करने के लिए एक विशाल सेना उत्तरी भारत की तरफ भेजी। इस सेना की वास्तविक कमान सदाशिव राव भाऊ के हाथों में थी। उसकी सहायता के लिए पेशवा ने अपने पुत्र विश्वास राव को भी भेजा। मराठों द्वारा अपनाई गई अनुचित नीतियों के फलस्वरूप राजपूत तथा पंजाब के सिख पहले से उनसे नाराज़ थे। इसलिए इस संकट के समय में उन्होंने मराठों को अपना सहयोग प्रदान नहीं किया। जाट नेता सूरजमल ने सदाशिव राव भाऊ को अब्दाली के विरुद्ध छापामार ढंग की लड़ाई अपनाने का परामर्श दिया परंतु अहंकार के कारण उसने इस योग्य परामर्श को न माना। इस कारण उसने अपने दस हज़ार सैनिकों सहित मराठों का साथ छोड़ दिया। इस प्रकार मराठों के पास अब शेष 45,000 सैनिक रह गये। दूसरी तरफ अहमद शाह अब्दाली के अधीन 60,000 सैनिक थे। इनमें लगभग आधे सैनिक अवध के नवाब शुजाऊद्दौला तथा रुहेला सरदार नज़ीबउद्दौला द्वारा अब्दाली की सहायतार्थ भेजे गये थे। ये दोनों सेनाएँ पानीपत के क्षेत्र में नवंबर, 1760 ई० में पहँच गईं। लगभग अढाई महीनों तक उनमें से किसी ने भी एक-दूसरे पर आक्रमण करने का साहस न किया।

14 जनवरी, 1761 ई० को मराठों ने अब्दाली की सेना पर आक्रमण कर दिया। यह बहुत घमासान युद्ध था। इस युद्ध के आरंभ में मराठों का पलड़ा भारी रहा। परंतु अनायास जब विश्वास राव की गोली लगने से मृत्यु हो गई तो युद्ध की स्थिति ही पलट गयी। सदाशिव राव भाऊ शोक मनाने के लिए हाथी से नीचे उतरा। जब मराठा सैनिकों ने उसके हाथी की पालकी खाली देखी तो उन्होंने समझा कि वह भी युद्ध में मारा गया है। परिणामस्वरूप मराठा सैनिकों में भगदड़ फैल गई। इस तरह पानीपत की तीसरी लड़ाई में अब्दाली को शानदार विजय प्राप्त हुई।
(ग) परिणाम (Consequences)—पानीपत की तीसरी लड़ाई भारतीय इतिहास की निर्णायक लड़ाइयों में से एक थी। इस लड़ाई के दूरगामी परिणामों का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित अनुसार है—

1. मराठों का घोर विनाश (Great Tragedy for the Marathas)-पानीपत की तीसरी लड़ाई मराठों के लिए घोर विनाशकारी सिद्ध हुई। इस लड़ाई में 28,000 मराठा सैनिक मारे गए तथा बड़ी संख्या में जख्मी हुए। कहा जाता है कि महाराष्ट्र के प्रत्येक परिवार का कोई-न-कोई सदस्य इस लड़ाई में मरा था।

2. मराठों की शक्ति एवं सम्मान को गहरा धक्का (Severe blow to Maratha Power and Prestige)—इस लड़ाई में पराजय से मराठों की शक्ति एवं सम्मान को गहरा धक्का लगा। परिणामस्वरूप भारत में हिंदू साम्राज्य स्थापित करने का मराठों का स्वप्न धराशायी हो गया।

3. मराठों की एकता का समाप्त होना (End of Maratha Unity)-पानीपत की तीसरी लड़ाई में मराठों की प्रतिष्ठा को भारी आघात पहुँचने से मराठा संघ की एकता समाप्त हो गई। वे आपसी मतभेदों एवं झगड़ों में उलझ गए। परिणामस्वरूप रघोबा जैसे स्वार्थी मराठा नेता को राजनीति में आने का अवसर प्राप्त हुआ।

4. पंजाब में सिखों की शक्ति का उत्थान (Rise of the Sikh Power in Punjab)—पानीपत की तीसरी लड़ाई से पंजाब मराठों के हाथों से सदा के लिए जाता रहा। अब पंजाब में प्रभुत्व स्थापित करने के लिए केवल दो ही शक्तियाँ-अफ़गान एवं सिख रह गईं। इस प्रकार सिखों के उत्थान का कार्य काफी सुगम हो गया। उन्होंने अफ़गानों को पराजित करके पंजाब में अपना शासन स्थापित कर लिया।

5. भारत में अंग्रेजों की शक्ति का उत्थान (Rise of British Power in India)-भारत में अंग्रेजों को अपने साम्राज्य विस्तार के मार्ग में सबसे अधिक चुनौती मराठों की थी। मराठों की ज़बरदस्त पराजय ने अंग्रेज़ों को अपनी सत्ता स्थापित करने का मार्ग प्रशस्त कर दिया। प्रसिद्ध इतिहासकारों पी० एन० चोपड़ा, टी० के० रविंद्रन तथा एन० सुब्रहमनीयन का कथन है कि,
“पानीपत की तीसरी लड़ाई मराठों के लिए बहुत विनाशकारी सिद्ध हुई।”2

2. “The third battle of Panipat proved disastrous to the Marathas.” P.N. Chopra, T.K. Ravindran and N. Subrahmanian, History of South India (Delhi : 1979) Vol. 2, p. 170.

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मराठों की असफलता के कारण (Causes of the Maratha’s Defeat)

प्रश्न 4.
पानीपत की तीसरी लड़ाई में मराठों की असफलता के क्या कारण थे ?
(What were the reasons of failure of the Marathas in the Third Battle of Panipat ?)
उत्तर-
पानीपत की तीसरी लड़ाई में मराठों को घोर पराजय का सामना करना पड़ा। इस लड़ाई में मराठों की पराजय के लिए अनेक कारण उत्तरदायी थे। इन कारणों का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित अनुसार है—
1. अफ़गानों की शक्तिशाली सेना (Powerful army of the Afghans)—पानीपत की तीसरी लड़ाई में मराठों की पराजय का एक मुख्य कारण अफ़गानों की शक्तिशाली सेना थी। यह सेना मराठा सेना की तुलना में कहीं अधिक प्रशिक्षित, अनुशासित एवं संगठित थी। इसके अतिरिक्त उनका तोपखाना भी बहुत शक्तिशाली था। अत: मराठा सेना उनका सामना न कर सकी।

2. अहमदशाह अब्दाली का योग्य नेतृत्व (Able Leadership of Ahmad Shah Abdali)-अहमद शाह अब्दाली एक बहुत ही अनुभवी सेनापति था। उसकी गणना एशिया के प्रसिद्ध सेनापतियों में की जाती थी। दूसरी ओर मराठा सेनापतियों सदाशिव राव भाऊ तथा विश्वास राव को युद्ध संचालन का कोई अनुभव न था। ऐसी सेना की पराजय निश्चित थी।

3. मराठों की लूटमार की नीति (Policy of Plunder of the Marathas)-मराठों की पराजय का एक अन्य महत्त्वपूर्ण कारण यह था कि वे विजित किए क्षेत्रों में भयंकर लूटमार करते थे। उनकी इस नीति के कारण राजपूताना, हैदराबाद, अवध, रुहेलखंड तथा मैसूर की रियासतें मराठों के विरुद्ध हो गईं। अतः उन्होंने मराठों को इस संकट के समय कोई सहायता न दी। परिणामस्वरूप मराठों की पराजय को टाला नहीं जा सकता था।

4. छापामार युद्ध प्रणाली का परित्याग (Renounced the Guerilla Method of Warfare)-मराठों का मूल प्रदेश पहाड़ी एवं जंगली था। इस प्रदेश की भौगोलिक स्थिति के कारण मराठे छापामार युद्ध प्रणाली में निपुण थे। इस कारण उन्होंने अनेक आश्चर्यजनक सफलताएँ प्राप्त की थीं। परंतु पानीपत की तीसरी लड़ाई में उन्होंने छापामार युद्ध प्रणाली को त्याग कर सीधे मैदानी लड़ाई में अब्दाली के साथ मुकाबला करने की भयंकर भूल की। परिणामस्वरूप मराठों की पराजय हुई।

5. मुस्लिम रियासतों द्वारा अब्दाली को सहयोग (Cooperation of Muslim States to Abdali)पानीपत की तीसरी लड़ाई में अहमद शाह अब्दाली की विजय का प्रमुख कारण यह था कि उसे भारत की अनेक मुस्लिम रियासतों का सहयोग प्राप्त हुआ। इससे अब्दाली का प्रोत्साहन बढ़ गया। परिणामस्वरूप वह मराठों को पराजित कर सका।

6. मराठों की आर्थिक कठिनाइयाँ (Economic difficulties of the Marathas)-मराठों की पराजय का एक अन्य महत्त्वपूर्ण कारण उनकी आर्थिक कठिनाइयाँ थीं। धन के अभाव के कारण मराठे न तो अपने सैनिकों के लिए युद्ध सामग्री ही जुटा सके तथा न ही आवश्यक भोजन। ऐसी सेना की पराजय को कौन रोक सकता था ?

7. सदाशिव राव भाऊ की भयंकर भूल (Blunder of Sada Shiv Rao Bhau)-जिस समय पानीपत की तीसरी लड़ाई चल रही थी तो उस समय पेशवा का बेटा विश्वास राव मारा गया था। जब यह सूचना सदाशिव राव भाऊ को मिली तो वह श्रद्धांजलि अर्पित करने के उद्देश्य से अपने हाथी से नीचे उतर गया। उसके हाथी का हौदा खाली देख मराठा सैनिकों ने समझा कि सदाशिव राव भाऊ भी युद्ध क्षेत्र में मारा गया है। अतः उनमें भगदड़ मच गई तथा देखते-ही-देखते मैदान साफ़ हो गया।

प्रश्न 5.
पानीपत की तीसरी लड़ाई के कारणों, इसके परिणामों तथा इसमें मराठों की हार के कारणों का वर्णन कीजिए।
(Describe the causes, results and causes of failure of Marathas in the Third Battle of Panipat.)
उत्तर–
कारण (Causes)-पानीपत की तीसरी लड़ाई के लिए निम्नलिखित मुख्य कारण उत्तरदायी थे—
1. मराठों द्वारा रुहेलखंड की लूटमार (Plunder of Ruhelkhand by the Marathas)-रुहेलखंड पर रुहेलों का राज्य था। मराठों ने उन्हें पराजित कर दिया। रुहेले अफ़गान होने के नाते अहमद शाह अब्दाली के सजातीय थे। अतः उन्होंने अब्दाली को इस अपमान का बदला लेने के लिए निमंत्रण दिया।

2. मराठों की हिंदू राज्य स्थापित करने की नीति (Policy of establishing Hindu Kingdom by the Marathas)-मराठे निरंतर अपनी शक्ति में वृद्धि करते चले आ रहे थे। इससे प्रोत्साहित होकर पेशवाओं ने भारत में हिंदू साम्राज्य स्थापित करने की घोषणा की। इससे मुस्लिम राज्यों के लिए एक गंभीर खतरा उत्पन्न हो गया। अतः इन राज्यों ने अपनी सुरक्षा के लिए अब्दाली को मराठों का दमन करने के लिए प्रेरित किया।

3. हिंदुओं में एकता का अभाव (Lack of Unity among the Hindus)-मराठों की बढ़ती हुई शक्ति के कारण भारत में जाट एवं राजपूत मराठों से ईर्ष्या करने लगे। इसका प्रमुख कारण यह था कि वे स्वयं भारत में अपना राज्य स्थापित करना चाहते थे। हिंदुओं की इस आपसी फूट को अब्दाली ने भारत पर आक्रमण करने का एक स्वर्ण अवसर समझा।

4. मराठों का दिल्ली एवं पंजाब पर अधिकार (Occupation of Delhi and Punjab by Marathas)अहमद शाह अब्दाली ने 1752 ई० में पंजाब तथा 1756 ई० में दिल्ली पर आधिपत्य कर लिया था। उसने पंजाब में अपने बेटे तैमूर शाह तथा दिल्ली के रुहेला नेता नजीब-उद-दौला को अपना प्रतिनिधि नियुक्त किया। मराठों ने 1757 ई० में दिल्ली तथा 1758 ई० में पंजाब पर अधिकार कर लिया। मराठों की ये दोनों विजयें अहमद शाह अब्दाली की शक्ति को एक चुनौती थीं। इसलिए उसने मराठों तथा सिखों को सबक सिखाने का निर्णय किया।

पानीपत की तीसरी लड़ाई में मराठों को घोर पराजय का सामना करना पड़ा। इस लड़ाई में मराठों की पराजय के लिए अनेक कारण उत्तरदायी थे। इन कारणों का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित अनुसार है—

1. अफ़गानों की शक्तिशाली सेना (Powerful army of the Afghans)—पानीपत की तीसरी लड़ाई में मराठों की पराजय का एक मुख्य कारण अफ़गानों की शक्तिशाली सेना थी। यह सेना मराठा सेना की तुलना में कहीं अधिक प्रशिक्षित, अनुशासित एवं संगठित थी। इसके अतिरिक्त उनका तोपखाना भी बहुत शक्तिशाली था। अत: मराठा सेना उनका सामना न कर सकी।

2. अहमदशाह अब्दाली का योग्य नेतृत्व (Able Leadership of Ahmad Shah Abdali)-अहमद शाह अब्दाली एक बहुत ही अनुभवी सेनापति था। उसकी गणना एशिया के प्रसिद्ध सेनापतियों में की जाती थी। दूसरी ओर मराठा सेनापतियों सदाशिव राव भाऊ तथा विश्वास राव को युद्ध संचालन का कोई अनुभव न था। ऐसी सेना की पराजय निश्चित थी।

3. मराठों की लूटमार की नीति (Policy of Plunder of the Marathas)-मराठों की पराजय का एक अन्य महत्त्वपूर्ण कारण यह था कि वे विजित किए क्षेत्रों में भयंकर लूटमार करते थे। उनकी इस नीति के कारण राजपूताना, हैदराबाद, अवध, रुहेलखंड तथा मैसूर की रियासतें मराठों के विरुद्ध हो गईं। अतः उन्होंने मराठों को इस संकट के समय कोई सहायता न दी। परिणामस्वरूप मराठों की पराजय को टाला नहीं जा सकता था।

4. छापामार युद्ध प्रणाली का परित्याग (Renounced the Guerilla Method of Warfare)-मराठों का मूल प्रदेश पहाड़ी एवं जंगली था। इस प्रदेश की भौगोलिक स्थिति के कारण मराठे छापामार युद्ध प्रणाली में निपुण थे। इस कारण उन्होंने अनेक आश्चर्यजनक सफलताएँ प्राप्त की थीं। परंतु पानीपत की तीसरी लड़ाई में उन्होंने छापामार युद्ध प्रणाली को त्याग कर सीधे मैदानी लड़ाई में अब्दाली के साथ मुकाबला करने की भयंकर भूल की। परिणामस्वरूप मराठों की पराजय हुई।

5. मुस्लिम रियासतों द्वारा अब्दाली को सहयोग (Cooperation of Muslim States to Abdali)पानीपत की तीसरी लड़ाई में अहमद शाह अब्दाली की विजय का प्रमुख कारण यह था कि उसे भारत की अनेक मुस्लिम रियासतों का सहयोग प्राप्त हुआ। इससे अब्दाली का प्रोत्साहन बढ़ गया। परिणामस्वरूप वह मराठों को पराजित कर सका।

6. मराठों की आर्थिक कठिनाइयाँ (Economic difficulties of the Marathas)-मराठों की पराजय का एक अन्य महत्त्वपूर्ण कारण उनकी आर्थिक कठिनाइयाँ थीं। धन के अभाव के कारण मराठे न तो अपने सैनिकों के लिए युद्ध सामग्री ही जुटा सके तथा न ही आवश्यक भोजन। ऐसी सेना की पराजय को कौन रोक सकता था ?

7. सदाशिव राव भाऊ की भयंकर भूल (Blunder of Sada Shiv Rao Bhau)-जिस समय पानीपत की तीसरी लड़ाई चल रही थी तो उस समय पेशवा का बेटा विश्वास राव मारा गया था। जब यह सूचना सदाशिव राव भाऊ को मिली तो वह श्रद्धांजलि अर्पित करने के उद्देश्य से अपने हाथी से नीचे उतर गया। उसके हाथी का हौदा खाली देख मराठा सैनिकों ने समझा कि सदाशिव राव भाऊ भी युद्ध क्षेत्र में मारा गया है। अतः उनमें भगदड़ मच गई तथा देखते-ही-देखते मैदान साफ़ हो गया।

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अहमद शाह अब्दाली की असफलता के कारण (Causes of the Failure of Ahmad Shah Abdali)

प्रश्न 6.
सिखों के विरुद्ध संघर्ष में अहमद शाह अब्दाली की असफलता के क्या कारण थे ?
(What were the causes of failure of Ahmad Shah Abdali in his struggle against the Sikhs ?)
अथवा
अहमद शाह अब्दाली की सिखों के विरुद्ध असफलता के क्या कारण थे ?
(What were the reasons of failure of Ahmad Shah Abdali against the Sikhs ?)
अथवा
उन कारणों की ध्यानपूर्वक चर्चा कीजिए जिस कारण अहमद शाह अब्दाली अंतिम रूप में सिखों की शक्ति को कुचलने में असफल रहा।
(Examine carefully the causes of Ahmad Shah Abdali’s ultimate failure to suppress the Sikh power.)
अथवा
अहमद शाह अब्दाली के विरुद्ध सिखों की सफलता के महत्त्वपूर्ण कारणों की व्याख्या करें।
(Explain the important causes of the success of the Sikhs against Ahmad Shah Abdali.)
उत्तर-
अहमद शाह अब्दाली एक महान् योद्धा और वीर सेनापति था। उसने बहुत से क्षेत्रों पर अधिकार करके उसे अपने साम्राज्य में सम्मिलित किया। उसने भारत की दो महान् शक्तियों मुग़लों तथा मराठों को कड़ी पराजय दी थी। इसके बावजूद अब्दाली सिखों की शक्ति को कुचलने में असफल रहा। उसकी असफलता या सिखों की जीत के निम्नलिखित कारण हैं—

1. सिखों का दृढ़ निश्चय (Tenacity of the Sikhs) अहमद शाह अब्दाली की असफलता का एक मुख्य कारण सिखों का दृढ़ निश्चय था। अब्दाली ने उन पर भारी अत्याचार किए, परंतु उनका हौसला बुलंद रहा। वे चट्टान की तरह अडिग रहे। बड़े घल्लूघारे में 25,000 से 30,000 सिख मारे गए परंतु सिखों के हौंसले बुलंद रहे। ऐसी कौम को हराना कोई आसान कार्य न था।

2. गुरिल्ला युद्ध नीति (Guerilla tactics of War)-सिखों द्वारा अपनाई गई गुरिल्ला युद्ध नीति अहमद शाह अब्दाली की असफलता का एक मुख्य कारण बनी। जब भी अब्दाली सिखों के विरुद्ध कूच करता, सिख तुरंत जंगलों व पहाड़ों में जा शरण लेते। वे अवसर देखकर अब्दाली की सेनाओं पर आक्रमण करते और लुटमार करके फिर वापस जंगलों में चले जाते । इन छापामार युद्धों ने अब्दाली की नींद हराम कर दी थी। प्रसिद्ध लेखक खुशवंत सिंह के अनुसार,
“सिखों के साथ लड़ना इस तरह व्यर्थ था जिस तरह हवा को बाँधने का यत्न करना।”3

3. अब्दाली द्वारा कम सैनिकों की तैनाती (Abdali left insufficient Soldiers)-अहमद शाह अब्दाली की असफलता का एक मुख्य कारण यह था कि वह सिखों की शक्ति को कुचलने के लिए अधिक सैनिकों की तैनाती न कर सका। परिणामस्वरूप वह सिखों की शक्ति न कुचल सका।

4. अब्दाली के अयोग्य प्रतिनिधि (Incapable representatives of Abdali)-अहमद शाह अब्दाली की हार का महत्त्वपूर्ण कारण यह था कि पंजाब में उस द्वारा नियुक्त किए गए प्रतिनिधि अयोग्य थे। उसका पुत्र तैमूरशाह एक बहुत ही निकम्मा शासक सिद्ध हुआ। इसी प्रकार लाहौर का सूबेदार ख्वाजा उबैद खाँ भी अपने पद के लिए अयोग्य था। अतः पंजाब में सिख शक्तिशाली होने लगे।

5. पंजाब के लोगों का असहयोग (Non-Cooperation of the People of the Punjab)-अहमद शाह अब्दाली की पराजय का एक प्रमुख कारण यह था कि उसको पंजाब के नागरिकों का सहयोग प्राप्त न हो सका। उसने अपने बार-बार आक्रमणों के दौरान न केवल लोगों की धन-संपत्ति को ही लूटा, अपितु हज़ारों निर्दोष लोगों का कत्ल भी किया। परिणामस्वरूप पंजाब के लोगों की उसके साथ किसी प्रकार की कोई सहानुभूति नहीं थी। ऐसी स्थिति में अहमद शाह अब्दाली द्वारा पंजाब पर विजय प्राप्त करना एक स्वप्न समान था।

6. ज़मींदारों का सहयोग (Zamindars’ Cooperation)-सिख-अफ़गान संघर्ष में पंजाब के ज़मींदारों ने सिखों को हर प्रकार का सहयोग दिया। वे जानते थे कि अब्दाली ने पुनः अफ़गानिस्तान चले जाना है और सिखों के साथ उनका संबंध सदैव रहना है। वे सिखों के विरुद्ध कोई कार्यवाई करके उन्हें अपना शत्रु नहीं बनाना चाहते थे। ज़मींदारों का सहयोग सिख शक्ति के विकास के लिए अत्यंत लाभकारी सिद्ध हुआ।

7. सिखों का चरित्र (Character of the Sikhs)-सिखों का चरित्र अहमद शाह अब्दाली की असफलता का एक अन्य कारण बना। सिख प्रत्येक स्थिति में प्रसन्न रहते थे। वे युद्ध के मैदान में किसी भी निहत्थे पर वार नहीं करते थे। वे स्त्रियों एवं बच्चों का पूर्ण सम्मान करते थे चाहे उनका संबंध शत्रु के साथ क्यों न हो। इन गुणों के परिणामस्वरूप सिख पंजाबियों में अत्यंत लोकप्रिय हो गए थे। इसलिए अब्दाली के विरुद्ध उनका सफल होना कोई आश्चर्य वाली बात नहीं है।

8. सिखों के योग्य नेता (Capable Leaders of the Sikhs)-अहमद शाह अब्दाली के विरुद्ध सिखों की जीत का एक और महत्त्वपूर्ण कारण उनके योग्य नेता थे। इन नेताओं ने बड़ी योग्यता और समझदारी से सिखों को नेतृत्व प्रदान किया। इन नेताओं में प्रमुख नवाब कपूर सिंह, जस्सा सिंह आहलूवालिया, जस्सा सिंह रामगढ़िया तथा आला सिंह थे।

9. अमृतसर का योगदान (Contribution of Amritsar) सिख अमृतसर को अपना मक्का समझते थे। 18वीं सदी में सिख अपने शत्रुओं पर आक्रमण करने से पूर्व हरिमंदिर साहिब में एकत्रित होते और पवित्र सरोवर में स्नान करते। वे अकाल तख्त साहिब में अपने गुरमत्ते पास करते जिसका पालन करना प्रत्येक सिख अपना धार्मिक कर्त्तव्य समझता था। अमृतसर सिखों की एकता और स्वतंत्रता का प्रतीकं बन गया था। अहमद शाह अब्दाली ने हरिमंदिर साहिब पर आक्रमण करके सिखों की शक्ति का अंत करने का प्रयास किया, परंतु उसे सफलता प्राप्त न हुई।

10. अफ़गानिस्तान में विद्रोह (Revolts in Afghanistan)-अहमद शाह अब्दाली का साम्राज्य काफ़ी विशाल था। जब कभी भी अब्दाली ने पंजाब पर आक्रमण किया तो अफ़गानिस्तान में किसी-न-किसी ने विद्रोह का झंडा खड़ा कर दिया। इन विद्रोहों के कारण अब्दाली पंजाब की ओर पूरा ध्यान न दे सका। सिखों ने इस स्थिति का पूर्ण लाभ उठाया और वे अब्दाली द्वारा जीते हुए प्रदेशों पर पुनः अपना अधिकार जमा लेते। परिणामस्वरूप अब्दाली सिखों की शक्ति को कुचलने में असफल रहा।

3. “Fighting the Sikhs was like trying to catch the wind in a net.” Khushwant Singh, History of the Sikhs (New Delhi : 1981) p. 276.

अब्दाली के आक्रमणों के पंजाब पर प्रभाव (Effects of Abdali’s Invasions on the Punjab)

प्रश्न 7.
अहमद शाह अब्दाली द्वारा पंजाब पर किए गए हमलों के प्रभाव लिखिए।
(Narrate the effects of the invasions of Ahmad Shah Abdali on the Punjab.)
अथवा
अहमद शाह अब्दाली के आक्रमणों के पंजाब पर राजनीतिक, सामाजिक तथा आर्थिक प्रभावों का वर्णन करें।
(Study the political, social and economic effects of Ahmad Shah Abdali’s invasions on the Punjab.)
अथवा
अहमद शाह अब्दाली के आक्रमणों के विभिन्न परिणामों का सर्वेक्षण करें। (Examine the various effects of the invasions of Ahmad Shah Abdali.)
अथवा
पंजाब के इतिहास पर अहमद शाह अब्दाली के आक्रमणों के क्या प्रभाव पड़े ?
(What were the effects of Ahmad Shah Abdali’s invasions on the Punjab History ?)
अथवा
अहमद शाह अब्दाली के हमलों के पंजाब के ऊपर क्या प्रभाव पड़े ? विस्तार के साथ बताएँ।
(What were the effects of Ahmad Shah Abdali on Punjab ? Discuss in detail.)
उत्तर-
अहमद शाह अब्दाली ने 1747 ई० से लेकर 1767 ई० तक पंजाब पर आठ बार आक्रमण किए। उसके इन आक्रमणों ने पंजाब के विभिन्न क्षेत्रों को प्रभावित किया। इन प्रभावों का संक्षेप में वर्णन निम्नलिखित प्रकार है—

(क) राजनीतिक प्रभाव
(Political Effects)
1. पंजाब में मुग़ल काल का अंत (End of the Mughal Rule in the Punjab)-अहमद शाह अब्दाली के आक्रमणों का पंजाब के इतिहास पर पहला महत्त्वपूर्ण प्रभाव यह पड़ा कि पंजाब में मुग़ल शासन का अंत हो गया। मीर मन्नू पंजाब में मुग़लों का अंतिम सूबेदार था। अब्दाली ने मीर मन्नू को ही अपनी तरफ से पंजाब का सूबेदार नियुक्त कर दिया। मुग़लों ने पुनः पंजाब पर अधिकार करने का प्रयत्न किया पर अब्दाली ने इन प्रयत्नों को सफल न होने दिया। अतः पंजाब में मुग़लों के शासन का अंत हो गया।

2. पंजाब में मराठा शक्ति का अंत (End of Maratha Power in the Punjab)-अदीना बेग के निमंत्रण पर 1758 ई० में मराठों ने तैमूर शाह को हराकर पंजाब पर अपना अधिकार कर लिया। उन्होंने अदीना बेग को पंजाब का सूबेदार नियुक्त कर दिया, परंतु उसकी शीघ्र ही मृत्यु हो गई। उसके बाद मराठों ने सांभा जी को पंजाब का सूबेदार नियुक्त किया। अब्दाली ने 14 जनवरी, 1761 ई० को पानीपत की तीसरी लड़ाई में मराठों को कड़ी पराजय दी। इस पराजय के फलस्वरूप पंजाब से मराठों की शक्ति का सदा के लिए अंत हो गया।

3. सिख शक्ति का उदय (Rise of the Sikh Power)-अहमद शाह अब्दाली के आक्रमणों के परिणामस्वरूप पंजाब से मुग़ल और मराठा शक्ति का अंत हो गया। पंजाब पर कब्जा करने के लिए अब यह संघर्ष केवल दो शक्तियों अफ़गान और सिखों के मध्य ही रह गया था। सिखों ने अपने छापामार युद्धों के द्वारा अब्दाली की रातों की नींद हराम कर दी। अब्दाली ने 1762 ई० में बड़े घल्लूघारे में कई हज़ारों सिखों को शहीद किया, परंतु उनके हौंसले बुलंद रहे। उन्होंने 1764 ई० में सरहिंद और 1765 ई० में लाहौर पर कब्जा कर लिया था। सिखों ने अपने सिक्के चला कर अपनी स्वतंत्रता की घोषणा कर दी।

4. पंजाब में अराजकता (Anarchy in the Punjab)-1747 ई० से 1767 ई० के दौरान अहमद शाह अब्दाली के हमलों के परिणामस्वरूप पंजाब में अशांति तथा अराजकता फैल गई। सरकारी कर्मचारियों ने लोगों को लूटना शुरू कर दिया। न्याय नाम की कोई चीज़ नहीं रही थी। ऐसी स्थिति में पंजाब के लोगों के कष्टों में बहत बढ़ौतरी हुई।

(ख) सामाजिक प्रभाव
(Social Effects)
1. सामाजिक बुराइयों में बढ़ौतरी (Increase in the Social Evils)-अहमद शाह अब्दाली के आक्रमणों के कारण पंजाब में सामाजिक बुराइयों में बहुत बढ़ौतरी हुई। लोग बहुत स्वार्थी और चरित्रहीन हो गए थे। चोरी, डाके, कत्ल, लूटमार, धोखेबाज़ी और रिश्वतखोरी का समाज में बोलबाला था। इन बुराइयों के कारण लोगों का नैतिक स्तर बहुत गिर गया था।

2. पंजाब के लोगों का बहादुर होना (People of Punjab became Brave)-अहमद शाह अब्दाली के आक्रमणों ने पंजाबी लोगों को बहुत बहादुर और निडर बना दिया था। इसका कारण यह था कि अब्दाली के आक्रमणों से रक्षा के लिए यहाँ के लोगों को शस्त्र उठाने पड़े। उन्होंने अफ़गानों के साथ हुए युद्धों में बहादुरी की शानदार मिसालें कायम की। 7. पंजाबियों का खर्चीला स्वभाव (Punjabis became Spendthrift)-अहमद शाह अब्दाली के हमलों के कारण पंजाब के लोगों में एक महत्त्वपूर्ण परिवर्तन आया। अब वे अधिक धन व्यय करने लगे। वे खानेपीने तथा मौज उड़ाने में विश्वास करने लगे। उस समय यह कहावत प्रसिद्ध हो गई थी “खादा पीता लाहे दा रहंदा अहमद शाहे दा।”

3. सिखों और मुसलमानों की शत्रुता में वृद्धि (Enmity between the Sikhs and Muslims Increased)-अहमद शाह अब्दाली के आक्रमणों के कारण सिखों और मुसलमानों में आपसी शत्रुता और बढ़ गई। इसका कारण यह था कि अफ़गानों ने इस्लाम के नाम पर सिखों पर बहुत अत्याचार किए। दूसरा, अब्दाली ने सिखों के सबसे पवित्र धार्मिक स्थान हरिमंदिर साहिब को ध्वस्त करके सिखों को अपना कट्टर शत्रु बना लिया। अतः सिखों और अफ़गानों के बीच शत्रुता दिनों-दिन बढ़ती चली गई।

(ग) आर्थिक तथा साँस्कृतिक प्रभाव .
(Economic and Cultural Effects)
1. पंजाब की आर्थिक हानि (Economic Loss of the Punjab)-अहमद शाह अब्दाली अपने प्रत्येक आक्रमण में पंजाब से भारी मात्रा में लूट का माल साथ ले जाता था। अफ़गानी सेनाएँ कूच करते समय खेतों का विनाश कर देती थीं। पंजाब में नियुक्त भ्रष्ट कर्मचारी भी लोगों को प्रत्येक पक्ष से लूटने में कोई प्रयास शेष न छोड़ते थे। परिणामस्वरूप अराजकता और लूटमार के इस वातावरण में पंजाब के व्यापार को बहुत भारी हानि हुई। इस कारण पंजाब की समृद्धि पंख लगा कर उड़ गई।

2. कला और साहित्य को भारी धक्का (Great Blow to Art and Literature)-अहमद शाह अब्दाली के आक्रमणों के दौरान बहुत-से सुंदर भवनों, गुरुद्वारों और मंदिरों इत्यादि को ध्वस्त कर दिया गया। कई वर्षों तक पंजाब युद्धों का अखाड़ा बना रहा। अशांति और अराजकता का यह वातावरण नई कला कृतियों और साहित्य रचनाओं के लिए भी अनुकूल नहीं था। अत: अहमद शाह अब्दाली के आक्रमणों ने पंजाब में कला और साहित्य के विकास को गहरा धक्का लगाया। अंत में हम प्रसिद्ध इतिहासकार एस० एस० गाँधी के इन शब्दों से सहमत हैं,
“अहमद शाह अब्दाली के आक्रमणों ने जीवन के प्रत्येक पक्ष पर बहुमुखी प्रभाव डाले।”4

4. “The invasions of Ahmad Shah Abdali exercised manyfold effects, covering almost all aspects of life.” S.S. Gandhi, op. cit., p. 257.

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 15 अहमद शाह अब्दाली के आक्रमण एवं मुग़ल शासन का विखँडन

संक्षिप्त उत्तरों वाले प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
अहमद शाह अब्दाली कौन था ? उसके पंजाब पर आक्रमणों के क्या कारण थे ?
(Who was Ahmad Shah Abdali ? What were the reasons of his Punjab invasions ?)
अथवा
पंजाब पर अहमद शाह अब्दाली के आक्रमणों के मुख्य कारण लिखिए। (Write the causes of the attacks of Ahmad Shah Abdali on the Punjab.)
अथवा
अहमद शाह अब्दाली के आक्रमण के कोई तीन कारण बताएँ। (Write any three causes of the invasions of Ahmad Shah Abdali on Punjab.).
उत्तर-
अहमद शाह अब्दाली अफ़गानिस्तान का शासक था। उसके पंजाब पर आक्रमणों के कई कारण थे। पहला, अहमद शाह अब्दाली अपने साम्राज्य का विस्तार करना चाहता था। दूसरे, वह पंजाब से धन प्राप्त करके अपनी स्थिति सुदृढ़ करना चाहता था। तीसरा, वह पंजाब पर अधिकार कर अपनी प्रतिष्ठा में वृद्धि करना चाहता था। चौथा, उस समय मुग़ल बादशाह मुहम्मद शाह रंगीला की नीतियों के कारण भारत में अस्थिरता फैली हुई थी। अहमद शाह अब्दाली इस अवसर का लाभ उठाना चाहता था।

प्रश्न 2.
अहमद शाह अब्दाली के प्रथम आक्रमण के संबंध में आप क्या जानते हैं ? (What do you know about the first invasion of Ahmad Shah Abdali ?)
अथवा
पंजाब पर अब्दाली के प्रथम आक्रमण पर एक संक्षिप्त नोट लिखें। (Write a short note on the Abdali’s first invasion on Punjab.)
उत्तर-
अहमद शाह अब्दाली अफ़गानिस्तान का बादशाह था। उसने पंजाब के सूबेदार शाहनवाज़ खाँ के निमंत्रण पर भारत पर आक्रमण करने का निर्णय किया। उसने शाहनवाज़ खाँ को पराजित करके 10 जनवरी, 1748 ई० को लाहौर पर अधिकार कर लिया। इसके बाद वह दिल्ली की ओर बढ़ा। मन्नूपुर में 11 मार्च, 1748 ई० को एक घमासान युद्ध में मुइन-उल-मुल्क ने अब्दाली को करारी हार दी। मुइन-उल-मुल्क की इस वीरता से प्रभावित होकर मुहम्मद शाह ने उसे लाहौर का सूबेदार नियुक्त कर दिया। वह मीर मन्नू के नाम से प्रसिद्ध हुआ। इस प्रकार अब्दाली का प्रथम आक्रमण असफल रहा।

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प्रश्न 3.
अहमद शाह अब्दाली के पंजाब पर दूसरे आक्रमण का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
(Briefly explain the second invasion of Ahmad Shah Abdali on Punjab.)
अथवा
अहमद शाह अब्दाली के दूसरे आक्रमण का संक्षेप में वर्णन करें। (Give a brief account of the second invasion of Ahmad Shah Abdali.)
उत्तर-
अहमद शाह अब्दाली को अपने पहले आक्रमण के दौरान पराजय का सामना करना पड़ा। वह इसका बदला लेना चाहता था। दूसरा, वह जानता था कि दिल्ली का नया वज़ीर सफदर जंग मीर मन्नू के साथ ईर्ष्या करता है। इस कारण मीर मन्नू की स्थिति डावाँडोल थी। परिणामस्वरूप अहमद शाह अब्दाली ने 1748 ई० के अंत में पंजाब पर दूसरी बार आक्रमण किया। दिल्ली से कोई सहायता न मिलने के कारण मीर मन्नू ने अब्दाली के साथ संधि कर ली। इस संधि के अनुसार मीर मन्न ने पंजाब के चार महलों (जिलों) स्यालकोट, पसरूर, गुजरात और औरंगाबाद का वार्षिक लगान अब्दाली को देना मान लिया।

प्रश्न 4.
अहमद शाह अब्दाली के पंजाब के तीसरे आक्रमण पर प्रकाश डालें (Throw light on the third invasion of Ahmad Shah Abdali on Punjab.)
उत्तर-
अब्दाली ने नवंबर, 1751 ई० में पंजाब पर तीसरी बार आक्रमण किया। लाहौर पहुँच कर अब्दाली ने 3 महीनों तक भयंकर लूटमार मचाई। 6 मार्च, 1752 ई० को लाहौर के निकट अहमद शाह अब्दाली और मीर मन्नू की सेनाओं के बीच भीषण लड़ाई हुई। इस लड़ाई में मीर मन्नू पराजित हुआ तथा उसे बंदी बना लिया गया। अब्दाली मीर मन्नू की निर्भीकता एवं साहस से इतना प्रभावित हुआ कि उसने उसे अपनी ओर से पंजाब का सूबेदार नियुक्त कर दिया।

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प्रश्न 5.
अहमद शाह अब्दाली के पंजाब के चौथे आक्रमण का वर्णन करें। (Explain the fourth invasion of Ahmad Shah Abdali on Punjab.)
उत्तर-
अहमद शाह अब्दाली ने नवंबर, 1756 ई० में पंजाब पर चौथी बार आक्रमण किया । इस आक्रमण का समाचार सुन कर पंजाब का सूबेदार अदीना बेग़ बिना मुकाबला किए दिल्ली भाग गया। अब्दाली ने अपने पुत्र तैमूर शाह को पंजाब का सूबेदार नियुक्त किया। अमृतसर के निकट सिखों एवं अफ़गानों में हुए एक घमासान युद्ध में बाबा दीप सिंह जी ने 11 नवंबर, 1757 ई० को शहीदी प्राप्त की। सिखों ने इस शहीदी का बदला लेने का निश्चय किया।

प्रश्न 6.
तैमूर शाह कौन था ?
(Who was Timur Shah ?)
उत्तर-
तैमूर शाह अफ़गानिस्तान के बादशाह अहमद शाह अब्दाली का पुत्र एवं उसका उत्तराधिकारी था। अहमद शाह अब्दाली ने उसे 1757 ई० में पंजाब का सूबेदार नियुक्त किया। अपने पिता की तरह तैमूर शाह सिखों का कट्टर दुश्मन था। उसने सिखों के प्रसिद्ध दुर्ग रामरौणी को नष्ट कर दिया था। इसके अतिरिक्त उसने हरिमंदिर साहिब, अमृतसर के पवित्र सरोवर को भी गंदगी से भरवा दिया था। परिणामस्वरूप 1758 ई० में सिखों ने मराठों एवं अदीना बेग के साथ मिलकर तैमूर शाह को पंजाब से भागने पर बाध्य कर दिया।

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प्रश्न 7.
पानीपत की तीसरी लड़ाई के तीन कारण बताएँ। (Write the main three causes of the Third Battle of Panipat.)
अथवा
पानीपत की तीसरी लड़ाई के कोई तीन कारण बताएँ।
(Write any three causes of the Third Battle of Panipat.)
उत्तर-

  1. मराठों द्वारा रुहेलखंड में की गई लूटमार के कारण रुहेल मराठों के विरुद्ध हो गए।
  2. मराठे भारत में हिंदू शासन को स्थापित करना चाहते थे। इसलिए मुस्लमान उनके विरुद्ध हो गए।
  3. मराठों ने दिल्ली और पंजाब पर अधिकार कर लिया था। इसे अब्दाली सहन नहीं कर सकता था।
  4. भारत में मराठों की बढ़ती हुई शक्ति के कारण जाट और राजपूत उनसे ईर्ष्या करने लग गए थे।

प्रश्न 8.
पानीपत की तीसरी लड़ाई पर संक्षिप्त नोट लिखें। (Write a brief note on Third Battle of Panipat.)
उत्तर–
पानीपत की तीसरी लड़ाई का पंजाब तथा भारत के इतिहास में विशेष स्थान है। यह लड़ाई 14 जनवरी, 1761 ई० को मराठों और अहमद शाह अब्दाली के मध्य हुई। पानीपत के मैदान में अब्दाली तथा मराठों के मध्य एक घमासान युद्ध हुआ। इस युद्ध में मराठा सेना का नेतृत्व सदाशिव राव भाऊ कर रहा था। इस लड़ाई में मराठों को ज़बरदस्त पराजय का सामना करना पड़ा। उनके बड़ी संख्या में सैनिक मारे गए। परिणामस्वरूप मराठों की शक्ति को एक गहरा धक्का पहुँचा। पानीपत की तीसरी लड़ाई का वास्तविक लाभ सिखों को मिला तथा उनकी शक्ति में पर्याप्त वृद्धि हो गई।

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प्रश्न 9.
पानीपत की तीसरी लड़ाई के क्या परिणाम निकले ? (What were the results of the Third Battle of Panipat ?)
अथवा
पानीपत की तीसरी लड़ाई के कोई तीन नतीजे लिखिए।
(Write down any three results of the Third Battle of Panipat.)
उत्तर-
पानीपत की तीसरी लडाई के दूरगामी परिणाम निकले। इस लड़ाई में मराठों की भारी जान और माल की क्षति हुई। पेशवा बालाजी बाजी राव इस अपमानजनक पराजय का शोक सहन न कर सका एवं वह शीघ्र ही इस दुनिया को अलविदा कह गया। इस लड़ाई में उनकी पराजय से मराठों की शक्ति एवं सम्मान को गहरा धक्का लगा। परिणामस्वरूप भारत में हिंदू साम्राज्य स्थापित करने का मराठों का स्वप्न धराशायी हो गया। इस लड़ाई में पराजय के कारण मराठे आपसी झगड़ों में उलझ गए। इस कारण उनकी आपस में एकता समाप्त हो गई।

प्रश्न 10.
बड़ा घल्लूघारा (दूसरा खूनी हत्याकांड) पर संक्षिप्त नोट लिखिए।
[Write a short note on Wadda Ghallughara (Second Bloody Carnage).]
अथवा
दूसरे बड़े घल्लूघारे पर संक्षेप नोट लिखें। (Write a short note on Second Big Ghallughara.)
अथवा
बड़ा घल्लूघारा (अहमद शाह अब्दाली का छठा हमला) पर एक संक्षिप्त नोट लिखो।
[Write a brief note on Wadda Ghallughara (Sixth invasion of Ahmad Shah Abdali.)]
अथवा
दूसरे अथवा बड़े घल्लूघारे पर संक्षेप नोट लिखो। .
(Write a short note on Second or Wadda Ghallughara.)
उत्तर-
अहमद शाह अब्दाली सिखों के इस बढ़ते हुए प्रभाव को कुचलना चाहता था। उसने 5 फरवरी, 1762 ई० को सिखों को मालेरकोटला के निकट गाँव कुप में घेर लिया। इस घेराव में 25 से 30 हज़ार सिखों की हत्या कर दी गई। सिख इतिहास में यह घटना बड़ा घल्लूघारा के नाम से जानी जाती है। इस घल्लूघारे में सिखों की भारी प्राण हानि से अब्दाली को विश्वास था कि इससे सिखों की शक्ति को गहरा आघात लगेगा जो गलत प्रमाणित हुआ।

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प्रश्न 11.
अफ़गानों के विरुद्ध लड़ाई में सिखों ने अपनी शक्ति किस प्रकार संगठित की? (How did the Sikhs organise their power in their struggle against the Afghans ?).
उत्तर-

  1. अफग़ानों के विरुद्ध लड़ाई में सिखों ने अपने आपको जत्थों में संगठित कर लिया।
  2. श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी की उपस्थिति में सरबत खालसा द्वारा प्रस्ताव पास किए जाते थे। गुरमता का सभी सिख पालन करते थे।
  3. अहमद शाह अब्दाली कई वर्षों तक अफ़गानिस्तान में होने वाले विद्रोहों के कारण सिखों की ओर ध्यान नहीं दे सका था।
  4. पंजाब के लोगों एवं ज़मींदारों ने भी सिख-अफ़गान संघर्ष में सिखों को पूर्ण सहयोग दिया।

प्रश्न 12.
सिखों की शक्ति को कुचलने में अहमद शाह अब्दाली असफल क्यों रहा ?
What were the causes of failure of Ahmad Shah Abdali against the Sikhs ?)
अथवा
अहमद शाह अब्दाली की सिखों के विरुद्ध असफलता के क्या कारण थे ?
(What were the causes of failure of Ahmad Shah Abdali against the Sikhs ?)
अथवा
अहमद शाह अब्दाली के सिखों के विरुद्ध असफलता के कारण लिखें। (Write causes of the failure of Ahmad Shah Abdali against the Sikhs.)
उत्तर-

  1. सिखों की जीत का सबसे बड़ा कारण उनका दृढ़ निश्चय और आत्म-विश्वास था। उन्होंने अब्दाली के घोर अत्याचारों के बावजूद भी उत्साह न छोड़ा।
  2. सिखों ने छापामार युद्ध नीति अपनाई। परिणामस्वरूप वे अब्दाली को मात देने में सफल रहे।
  3. अफ़गानिस्तान में बार-बार विद्रोह हो जाने के कारण अब्दाली के सैनिक परेशान हो चुके थे।
  4. सिखों के नेता भी बड़े योग्य थे। वे शत्रुओं के विरुद्ध एकजुट होकर लड़े।

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प्रश्न 13.
अहमद शाह अब्दाली के आक्रमणों ने पंजाब पर क्या राजनीतिक प्रभाव डाला ?
(What were the political effects of Ahmad Shah Abdali’s invasions over Punjab ?)
उत्तर-

  1. अहमद शाह अब्दाली ने 1752 ई० में पंजाब को अफ़गानिस्तान में शामिल कर लिया।
  2. अब्दाली ने 1761 ई० में पानीपत की तीसरी लड़ाई के परिणामस्वरूप पंजाब में मराठों की शक्ति का अंत कर दिया।
  3. अहमद शाह अब्दाली के लगातार आक्रमणों के कारण पंजाब में अराजकता फैल गई।
  4. पंजाब में सिखों को अपनी शक्ति बढ़ाने का अवसर मिला।

प्रश्न 14.
अहमद शाह अब्दाली के आक्रमणों के कारण पंजाब पर पड़े महत्त्वपूर्ण प्रभावों का वर्णन करो।
(Describe important effects of Ahmad Shah Abdali’s invasions over Punjab.)
उत्तर-

  1. पंजाब को 1752 ई० में अफ़गानिस्तान में सम्मिलित कर लिया गया। परिणामस्वरूप पंजाब से सदैव के लिए मुग़ल शक्ति का अंत हो गया।
  2. अब्दाली के आक्रमणों के कारण पंजाब को भारी आर्थिक हानि का सामना करना पड़ा।
  3. अब्दाली ने आक्रमणों के दौरान अनेक ऐतिहासिक इमारतों और साहित्य को नष्ट कर दिया था।
  4. अब्दाली के इन आक्रमणों के कारण पंजाबियों ने धन को जोड़ने की अपेक्षा उसे खुला खर्च करना आरंभ कर दिया।
  5. इन हमलों के कारण पंजाबी निडर और बहादुर बन गए।

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प्रश्न 15.
अहमद शाह अब्दाली के आक्रमणों के क्या सामाजिक प्रभाव पड़े ?
(What were the social effects of the invasions of Ahmad Shah Abdali ?)
उत्तर-

  1. पंजाबियों के चरित्र में एक महत्त्वपूर्ण परिवर्तन आया। अब वे अधिक धन व्यय करने लगे।
  2. अहमद शाह अब्दाली के आक्रमणों के कारण पंजाब में अनाचार को बढ़ावा मिला।
  3. लोग बहुत स्वार्थी हो गए थे। वे कोई पाप करने से नहीं डरते थे।
  4. अहमद शाह अब्दाली के आक्रमणों के परिणामस्वरूप पंजाब के लोग बहादुर और निडर बन गए।
  5. अब्दाली के आक्रमणों के दौरान लूटमार के कारण सिखों एवं मुसलमानों में आपसी शत्रुता बढ़ गई।

प्रश्न 16.
अहमद शाह अब्दाली के आक्रमणों के क्या आर्थिक परिणाम निकले ?
(What were the economic consequences of the invasions of Ahmad Shah Abdali ?)
उत्तर-

  1. अहमद शाह अब्दाली अपने प्रत्येक आक्रमण के समय भारी संपत्ति लूट कर अपने साथ ले जाता था। इसने पंजाब को कंगाल बना दिया।
  2. अफ़गान सेनाएँ कूच करते समय रास्ते में आने वाले खेतों को उजाड़ देती थीं। इस कारण कृषि का काफी नुकसान हो जाता था।
  3. पंजाब में नियुक्त भ्रष्ट कर्मचारियों ने भी लोगों को प्रत्येक पक्ष से लूटने के लिए कोई प्रयास शेष न छोड़ा।
  4. अराजकता के वातावरण में पंजाब के व्यापार को गहरा आघात लगा।

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वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

(i) एक शब्द से एक पंक्ति तक के उत्तर (Answer in One Word to One Sentence)

प्रश्न 1.
अहमद शाह अब्दाली कौन था ?
उत्तर-
अफ़गानिस्तान का शासक।

प्रश्न 2.
अहमद शाह अब्दाली कहाँ का शासक था?
उत्तर-
अफ़गानिस्तान।

प्रश्न 3.
अहमद शाह अब्दाली ने भारत पर कितनी बार आक्रमण किए ?
उत्तर-
8.

प्रश्न 4.
अहमद शाह अब्दाली के पंजाब पर आक्रमणों का एक कारण बताएँ। .
अथवा
अहमद शाह अब्दाली के भारत पर बार-बार आक्रमण करने का कोई एक कारण बताएँ।
उत्तर-
अहमद शाह अब्दाली अपने साम्राज्य का विस्तार करना चाहता था।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 15 अहमद शाह अब्दाली के आक्रमण एवं मुग़ल शासन का विखँडन

प्रश्न 5.
अहमद शाह अब्दाली ने किस समय के दौरान पंजाब पर आक्रमण किए ?
उत्तर-
1747 ई० से 1767 ई० के

प्रश्न 6.
अहमद शाह अब्दाली ने पंजाब पर प्रथम आक्रमण कब किया ?
उत्तर-
1747-48 ई०।

प्रश्न 7.
अहमद शाह अब्दाली ने पंजाब के ऊपर दूसरा आक्रमण कब किया ?
उत्तर-
1748-1749 ई०।

प्रश्न 8.
मीर मन्नू लाहौर का सूबेदार कब बना ?
उत्तर-
1748 ई०।

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प्रश्न 9.
अहमद शाह अब्दाली ने पंजाब पर कब अधिकार कर लिया था ?
अथवा
पंजाब में मुग़ल राज का अंत कब हुआ ?
उत्तर-
1752 ई०।

प्रश्न 10.
अहमद शाह अब्दाली ने पंजाब का पहला सूबेदार किसे नियुक्त किया था ?
उत्तर-
मीर मन्नू को।

प्रश्न 11.
अहमद शाह अब्दाली ने मीर मन्नू को किस उपाधि से सम्मानित किया था ?
उत्तर-
फरजंद खाँ बहादुर रुस्तम-ए-हिंद।

प्रश्न 12.
अहमद शाह अब्दाली ने अपने चौथे आक्रमण के दौरान किसे पंजाब का सूबेदार नियुक्त किया था ?
उत्तर-
तैमूर शाह।

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प्रश्न 13.
तैमूर शाह कौन था ?
उत्तर-
अहमद शाह अब्दाली का पुत्र।

प्रश्न 14.
बाबा दीप सिंह जी कौन थे ?
उत्तर-
शहीद मिसल के प्रसिद्ध नेता।

प्रश्न 15.
बाबा दीप सिंह ने कब तथा कहाँ लड़ते हुए शहीदी प्राप्त की थी ?
उत्तर-
11 नवंबर, 1757 ई० को अमृतसर में।

प्रश्न 16.
मराठों ने पंजाब पर कब अधिकार कर लिया था ?
उत्तर-
1758 ई०।

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प्रश्न 17.
मराठों ने किसे पंजाब का प्रथम सूबेदार नियुक्त किया था ?
उत्तर-
अदीना बेग़ को।

प्रश्न 18.
पानीपत की तीसरी लड़ाई कब हुई ?
उत्तर-
14 जनवरी, 1761 ई०

प्रश्न 19.
पानीपत की तीसरी लड़ाई किनके मध्य हुई?
उत्तर-
मराठों एवं अहमद शाह अब्दाली।

प्रश्न 20.
‘बड़ा घल्लूघारा’ कब हुआ ?
अथवा
दूसरा बड़ा घल्लूघारा कब हुआ ?
उत्तर-
5 फरवरी, 1762 ई०। ।

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प्रश्न 21.
दूसरा घल्लूघारा अथवा बड़ा घल्लूघारा कहाँ हुआ ?
उत्तर-
कुप में।

प्रश्न 22.
बड़ा घल्लूघारा कब और कहाँ हुआ ?
उत्तर-
1762 ई० कुप में।

प्रश्न 23.
बड़े घल्लूघारे के लिए कौन जिम्मेवार था ?
उत्तर-
अहमद शाह अब्दाली।

प्रश्न 24.
सिखों ने सरहिंद पर कब अधिकार किया था ?
उत्तर-
14 जनवरी, 1764 ई०।

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प्रश्न 25.
जैन खाँ कौन था?
उत्तर-
1764 ई० में सरहिंद का सूबेदार।

प्रश्न 26.
सिखों ने लाहौर पर कब कब्जा किया ?
उत्तर-
1765 ई०।

प्रश्न 27.
अब्दाली के विरुद्ध सिखों की सफलता का कोई एक मुख्य कारण बताएँ।
उत्तर-
सिखों द्वारा अपनाई गई गुरिल्ला-युद्ध नीति।

प्रश्न 28.
अहमद शाह अब्दाली के हमलों का कोई एक प्रभाव लिखें।
उत्तर-
अब्दाली ने 1752 ई० में पंजाब पर अधिकार कर लिया था।

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प्रश्न 29.
अहमद शाह अब्दाली के पंजाब पर आक्रमणों का कोई एक मुख्य आर्थिक प्रभाव बताएँ।
उत्तर-
पंजाब को भारी आर्थिक विनाश का सामना करना पड़ा।

(ii) रिक्त स्थान भरें (Fill in the Blanks)

प्रश्न 1.
अहमद शाह अब्दाली…………….का शासक था।
उत्तर-
(अफ़गानिस्तान)

प्रश्न 2.
अहमद शाह अब्दाली 1747 ई० में………..का शासक बना।
उत्तर-
(अफ़गानिस्तान)

प्रश्न 3.
नादर शाह की हत्या के बाद अफ़गानिस्तान का बादशाह ………… बना।
उत्तर-
(अहमद शाह अब्दाली)

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प्रश्न 4.
अहमद शाह अब्दाली ने पंजाब के ऊपर कुल ……………. हमले किये।
उत्तर-
(आठ)

प्रश्न 5.
अहमद शाह अब्दाली ने भारत पर प्रथम बार…………में आक्रमण किया।
उत्तर-
(1747-48 ई०)

प्रश्न 6.
अहमद शाह अब्दाली ने…………में पंजाब पर कब्जा कर लिया।
उत्तर-
(1752 ई०)

प्रश्न 7.
1752 ई० में अहमद शाह अब्दाली ने………….को पंजाब का सूबेदार नियुक्त किया।
उत्तर-
(मीर मन्नू)

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प्रश्न 8.
अहमद शाह अब्दाली ने 1757 ई० में…………….को पंजाब का सूबेदार नियुक्त किया।
उत्तर-
(तैमूर शाह)

प्रश्न 9.
बाबा दीप सिंह जी ने………………को शहीदी प्राप्त की।
उत्तर-
(11 नवंबर, 1757 ई०)

प्रश्न 10.
पानीपत की तीसरी लड़ाई……………………में हुई।
उत्तर-
(14 जनवरी, 1761 ई०)

प्रश्न 11.
पानीपत की तीसरी लड़ाई के समय मराठों का पेशवा………………था।
उत्तर-
(बालाजी बाजीराव)

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प्रश्न 12.
पानीपत की तीसरी लड़ाई के समय मराठा सेना का नेतृत्व…………………ने किया था।
उत्तर-
(सदाशिव राव भाऊ)

प्रश्न 13.
पानीपत की तीसरी लड़ाई में…………………की हार हुई।।
उत्तर-
(मराठों)

प्रश्न 14.
बड़ा घल्लूघारा या दूसरा घल्लूघारा………………..में हुआ।
उत्तर-
(1762 ई०)

प्रश्न 15.
बड़ा घल्लूघारा………………….में हुआ।
उत्तर-
(कुप)

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प्रश्न 16.
1764 ई० में बाबा आला सिंह ने सरहिंद के सूबेदार…………….को कड़ी पराजय दी।
उत्तर-
(जैन खाँ)

प्रश्न 17.
अहमद शाह अब्दाली ने पंजाब पर कुल………………..आक्रमण किए।
उत्तर-
(आठ)

प्रश्न 18.
अहमद शाह अब्दाली के आक्रमणों के परिणामस्वरूप पंजाब में……………… राज का अंत हुआ।
उत्तर-
(मुग़ल)

प्रश्न 19.
अहमद शाह अब्दाली की सिखों के हाथों हुई पराजय का एक मुख्य कारण सिखों की………………युद्ध नीति थी।
उत्तर-
(गुरिल्ला)

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(iii) ठीक अथवा गलत (True or False)

नोट-निम्नलिखित में से ठीक अथवा गलत चुनें—

प्रश्न 1.
अहमद शाह अब्दाली अफ़गानिस्तान का शासक था।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 2.
अहमद शाह अब्दाली 1747. ई० में अफ़गानिस्तान का शासक बना।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 3.
अहमद शाह अब्दाली ने पंजाब पर प्रथम बार 1749 ई० में आक्रमण किया।
उत्तर-
गलत

प्रश्न 4.
अहमद शाह अब्दाली के भारत आक्रमण का प्रमुख उद्देश्य यहाँ से धन प्राप्त करना था।
उत्तर-
ठीक

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प्रश्न 5.
अहमद शाह अब्दाली ने भारत पर कुल छः आक्रमण किए।
उत्तर-
गलत

प्रश्न 6.
मीर मन्नू ने 1748 ई० में मन्नूपुर की लड़ाई में अहमद शाह अब्दाली को एक कड़ी पराजय दी।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 7.
अहमद शाह अब्दाली ने 1751 ई० में पंजाब पर कब्जा कर लिया था।
उत्तर-
गलत

प्रश्न 8.
तैमूर शाह बाबर का पुत्र था।
उत्तर-
गलत

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प्रश्न 9.
बाबा दीप सिंह जी ने 10 नवंबर, 1757 ई० को शहीदी प्राप्त की थी।
उत्तर-
गलत

प्रश्न 10.
अहमद शाह अब्दाली और मराठों के मध्य पानीपत की तीसरी लड़ाई 14 जनवरी, 1761 ई० को हुई।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 11.
बालाजी बाजीराव के पुत्र का नाम विश्वास राव था।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 12.
सिखों ने 1761 ई० में लाहौर पर कब्जा कर लिया था।
उत्तर-
ठीक

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प्रश्न 13.
1761 ई० में लाहौर पर अधिकार करने के कारण जस्सा सिंह आहलूवालिया को सुल्तान-उल-कौम की उपाधि से सम्मानित किया गया।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 14.
अहमद शाह अब्दाली के छठे आक्रमण के समय बड़ा घल्लूघारा हुआ।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 15.
बड़ा घल्लूघारा 1762 ई० में हुआ।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 16.
बड़ा घल्लूघारा काहनूवान के स्थान पर हुआ था।
उत्तर-
गलत

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प्रश्न 17.
सिखों ने सरहिंद पर 1764 ई० में आक्रमण किया।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 18.
सिखों ने 1765 ई० में लाहौर पर कब्जा करके अपनी स्वतंत्रता की घोषणा की थी।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 19.
अहमद शाह अब्दाली की मृत्यु के बाद नादिर शाह अफ़ग़ानिस्तान का शासक बना था।
उत्तर-
गलत

(iv) बहु-विकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions)

नोट-निम्नलिखित में से ठीक उत्तर का चयन कीजिए—

प्रश्न 1.
अहमद शाह अब्दाली कौन था ?
(i) अफ़गानिस्तान का शासक
(ii) ईरान का शासक
(iii) चीन का शासक
(iv) भारत का शासक।
उत्तर-
(i)

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प्रश्न 2.
अहमद शाह अब्दाली ने पंजाब पर कितने आक्रमण किये ?
(i) सात
(ii) पाँच
(iii) सत्रह
(iv) आठ।
उत्तर-
(iv)

प्रश्न 3.
अहमद शाह अब्दाली ने पंजाब पर प्रथम आक्रमण कब किया ?
(i) 1745 ई० में
(ii) 1746 ई० में
(iii) 1747 ई० में
(iv) 1752 ई० में।
उत्तर-
(iii)

प्रश्न 4.
अहमद शाह अब्दाली ने अपने कौन-से आक्रमण के बाद पंजाब पर कब्जा कर लिया था ?
(i) पहले
(ii) दूसरे
(iii) तीसरे
(iv) चौथे।
उत्तर-
(iii)

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प्रश्न 5.
अहमद शाह अब्दाली ने पंजाब पर कब्जा कब किया ?
अथवा
पंजाब पर मुगल साम्राज्य का अंत कब हुआ ?
(i) 1748 ई० में
(ii) 1751 ई० में
(iii) 1752 ई० में
(iv) 1761 ई० में।
उत्तर-
(iii)

प्रश्न 6.
तैमूर शाह पंजाब का सूबेदार कब बना ?
(i) 1751 ई० में
(ii) 1752 ई० में
(iii) 1757 ई० में
(iv) 1759 ई० में।
उत्तर-
(iii)

प्रश्न 7.
बाबा दीप सिंह जी ने कब शहीदी प्राप्त की ?
(i) 1752 ई० में
(ii) 1755 ई० में
(iii) 1756 ई० में
(iv) 1757 ई० में।
उत्तर-
(iv)

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प्रश्न 8.
पानीपत की तीसरी लड़ाई कब हुई ?
(i) 1758 ई० में
(ii) 1759 ई० में
(iii) 1760 ई० में
(iv) 1761 ई० में।
उत्तर-
(iv)

प्रश्न 9.
पानीपत की तीसरी लड़ाई में मराठों को किसने पराजित किया था ?
(i) जस्सा सिंह आहलूवालिया ने
(ii) जस्सा सिंह रामगढ़िया ने
(iii) अहमद शाह अब्दाली ने
(iv) मीर मन्नू ने।
उत्तर-
(iii)

प्रश्न 10.
बड़ा घल्लूघारा कब हुआ ?
(i) 1746 ई० में
(ii) 1748 ई० में
(iii) 1761 ई० में
(iv) 1762 ई० में।
उत्तर-
(iv)

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प्रश्न 11.
बड़ा घल्लूघारा कहाँ हुआ ?
(i) काहनूवान में
(ii) कुप में
(iii) करतारपुर में
(iv) जालंधर में।
उत्तर-
(ii)

प्रश्न 12.
सिखों ने सरहिंद पर कब अधिकार कर लिया ?
(i) 1761 ई० में
(ii) 1762 ई० में
(iii) 1763 ई० में
(iv) 1764 ई० में।
उत्तर-
(iv)

प्रश्न 13.
सिखों ने लाहौर पर कब अधिकार किया ?
अथवा
सिखों ने अपना पहला सिक्का कब जारी किया ?
(i) 1761 ई० में
(ii) 1762 ई० में
(iii) 1764 ई० में
(iv) 1765 ई० में।
उत्तर-
(iv)

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Long Answer Type Question

प्रश्न 1.
अहमद शाह अब्दाली कौन था ? उसके पंजाब पर आक्रमणों के क्या कारण थे ? (Who was Ahmad Shah Abdali ? What were the reasons of his Punjab invasions ?)
अथवा
अहमद शाह अब्दाली के पंजाब पर आक्रमणों के क्या कारण थे ? (What were the causes of the attacks of Ahmad Shah Abdali on Punjab ?)
अथवा
अहमद शाह अब्दाली के आक्रमणों के कारणों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए। (Give a brief account of the causes of Ahmad Shah Abdali’s invasions.)
उत्तर-
1. अहमद शाह अब्दाली कौन था ?-अहमद शाह अब्दाली अफगानिस्तान का शासक था। उसने 1747 ई० से 1772 ई० तक शासन किया।

2. अब्दाली के आक्रमणों के मुख्य कारण-अहमद शाह अब्दाली के पंजाब पर आक्रमणों के मुख्य कारण निम्नलिखित थे

i) अब्दाली की महत्त्वाकाँक्षा-अहमद शाह अब्दाली बहुत महत्त्वाकाँक्षी शासक था। वह अफ़गानिस्तान के अपने छोटे-से साम्राज्य से संतुष्ट नहीं था। अत: वह पंजाब तथा भारत के अन्य प्रदेशों पर विजय प्राप्त कर अपने साम्राज्य का विस्तार करना चाहता था।

ii) भारत की अपार धन-दौलत-अहमद शाह, अब्दाली के लिए एक शक्तिशाली साम्राज्य की स्थापना के लिए धन की बहुत आवश्यकता थी। यह धन उसे अपने साम्राज्य अफ़गानिस्तान से प्राप्त नहीं हो सकता था, क्योंकि यह प्रदेश आर्थिक दृष्टि से बहुत पिछड़ा हुआ था। दूसरी ओर उसे यह धन भारत-जो अपनी अपार धन-दौलत के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध था-से मिल सकता था।

iii) अफ़गानिस्तान में अपनी स्थिति को सुदृढ़ करना-अहमद शाह अब्दाली एक साधारण परिवार से संबंध रखता था। इसलिए 1747 ई० में नादिरशाह की हत्या के पश्चात् जब वह अफ़गानिस्तान का शासक बना तो वहाँ के अनेक सरदारों ने इस कारण उसका विरोध किया। अतः अहमद शाह अब्दाली अफ़गानिस्तान में अपनी स्थिति सुदृढ़ करने के उद्देश्य से विदेशी युद्ध करना चाहता था।

iv) भारत की अनुकूल राजनीतिक दशा-1707 ई० में औरंगज़ेब की मृत्यु के पश्चात् महान् मुग़ल साम्राज्य तीव्रता से पतन की ओर अग्रसर हो रहा था। औरंगज़ेब के उत्तराधिकारी अयोग्य निकले। वे अपना अधिकाँश समय सुरा एवं सुंदरी संग व्यतीत करते थे। अतः साम्राज्य में चारों ओर अराजकता फैल गई। इस स्थिति का लाभ उठा कर अहमद शाह अब्दाली ने पंजाब पर आक्रमण करने का निश्चय किया।

v) शाहनवाज़ खाँ द्वारा निमंत्रण-1745 ई० में जकरिया खाँ की मृत्यु के बाद उसका बड़ा पुत्र याहिया खाँ लाहौर का नया सूबेदार बना। इस बात को उसका छोटा भाई शाहनवाज़ खाँ सहन न कर सका। वह काफ़ी समय से लाहौर की सूबेदारी प्राप्त करने का स्वप्न ले रहा था। ऐसी स्थिति में शाहनवाज़ खाँ ने अहमद शाह अब्दाली को भारत पर आक्रमण करने का निमंत्रण भेजा। अब्दाली ऐसे ही स्वर्ण अवसर की तलाश में था। अतः उसने भारत पर आक्रमण करने का निर्णय लिया।

प्रश्न 2.
अहमद शाह अब्दाली ने पंजाब पर कब और कितने आक्रमण किए ? उसके मुख्य आक्रमणों की संक्षिप्त जानकारी दें।
(When and how many times did Ahmad Shah Abdali invade Punjab ? Give a brief account of his main invasions.) .
उत्तर-
अहमद शाह अब्दाली ने पंजाब पर 1747 ई० से 1767 ई० के मध्य 8 बार आक्रमण किए। लाहौर के सूबेदार शाहनवाज़ खाँ के निमंत्रण पर अहमद शाह अब्दाली ने दिसंबर, 1747 ई० में भारत पर पहली बार आक्रमण किया। जब वह पंजाब पहुँचा तो शाहनवाज़ खाँ ने अब्दाली को सहयोग देने से इंकार कर दिया। अब्दाली ने शाहनवाज़ खाँ को हरा दिया और वह दिल्ली की ओर भाग गया। मन्नूपुर में हुई लड़ाई में मुईन-उल-मुल्क (मीर मन्नू) ने अब्दाली को कड़ी पराजय दी। इससे प्रसन्न होकर मुग़ल बादशाह ने मीर मन्नू को लाहौर का सूबेदार नियुक्त कर दिया। अब्दाली ने अपनी पराजय का बदला लेने के लिए 1748 ई० के अंत में पंजाब पर दूसरी बार आक्रमण किया। इस आक्रमण में दिल्ली से पूरी सहायता न मिलने के कारण मीर मन्नू की पराजय हुई और उसने अब्दाली के साथ संधि कर ली। इस संधि के अनुसार मीर मन्नू अब्दाली को समय पर लगान नहीं भेज़ सका था। इसलिए अब्दाली ने 1751-52 ई० में पंजाब पर तीसरी बार आक्रमण किया। इस आक्रमण के दौरान अब्दाली ने पंजाब पर अधिकार कर लिया। अब्दाली ने 1759-61 ई० के मध्य पंजाब पर अपना पाँचवां आक्रमण किया। इस आक्रमण के दौरान 14 जनवरी, 1761 ई० को पानीपत की तीसरी लड़ाई हुई। इस लड़ाई में अब्दाली ने मराठों को कड़ी पराजय दी। 1761-62 ई० में अब्दाली द्वारा पंजाब पर किया गया छठा आक्रमण सबसे प्रसिद्ध है। इस आक्रमण के दौरान 5 फरवरी, 1762 ई० को अब्दाली ने मालेरकोटला के निकट गाँव कुप में 25,000 से 30,000 सिखों का कत्ल कर दिया था। यह घटना इतिहास में बड़ा घल्लूघारा के नाम से भी जानी जाती है।

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प्रश्न 3.
अहमद शाह अब्दाली के प्रथम आक्रमण के संबंध में आप क्या जानते हैं ? (What do you know about the first invasion of Ahmad Shah Abdali ?)
अथवा
पंजाब पर अब्दाली के प्रथम आक्रमण पर एक संक्षिप्त नोट लिखें। (Write a short note on the Abdali’s first invasion over Punjab.)
उत्तर-
अहमद शाह अब्दाली अफ़गानिस्तान का बादशाह था। उसने पंजाब के सूबेदार शाहनवाज़ खाँ के निमंत्रण पर 1747 ई० में भारत पर आक्रमण करने का निर्णय किया। वह बिना किसी विरोध के जनवरी, 1748 ई० को लाहौर के निकट शाहदरा पहुँच गया। इसी मध्य कमरुद्दीन ने शाहनवाज़ खाँ के साथ समझौता कर लिया। परिणामस्वरूप शाहनवाज़ खाँ ने अब्दाली का साथ देने से इन्कार कर दिया। इस बात पर अब्दाली को बहुत गुस्सा आया। उसने शाहनवाज़ खाँ को पराजित करके 10 जनवरी, 1748 ई० को लाहौर पर अधिकार कर लिया। शाहनवाज़ खाँ दिल्ली की तरफ भाग गया। लाहौर पर अधिकार करने के बाद अब्दाली ने वहाँ भारी लूटपाट की। इसके बाद वह दिल्ली की ओर बढ़ा। वज़ीर कमरुद्दीन उसका मुकाबला करने के लिए अपनी सेना समेत आगे बढ़ा। सरहिंद के निकट हुई लड़ाई में कमरुद्दीन मारा गया। मन्नूपुर में 11 मार्च, 1748 ई० को एक घमासान युद्ध में कमरुद्दीन के लड़के मुइन-उल-मुल्क ने अब्दाली को करारी हार दी। मुइन-उल-मुल्क की इस वीरता से प्रभावित होकर मुहम्मद शाह ने उसे लाहौर का सूबेदार नियुक्त कर दिया। वह मीर मन्नू के नाम से प्रसिद्ध हुआ। इस प्रकार अब्दाली का प्रथम आक्रमण असफल रहा।

प्रश्न 4.
अहमद शाह अब्दाली के पंजाब पर दूसरे आक्रमण का संक्षिप्त विवरण दीजिए। (Briefly explain the second invasion of Ahmad Shah Abdali on Punjab.)
अथवा
अहमद शाह अब्दाली के दूसरे आक्रमण का संक्षेप में वर्णन करें। (Give a brief account of the second invasion of Ahmad Shah Abdali.)
उत्तर-
अहमद शाह अब्दाली अपने पहले आक्रमण के दौरान हुई अपनी पराजय का बदला लेना चाहता था। दूसरे, वह इस बात को जानता था कि दिल्ली का नया वज़ीर सफदर जंग मीर मन्नू के साथ बड़ी ईर्ष्या करता है। इस कारण मीर मन्नू की स्थिति बड़ी डावाँडोल थी। इन्हीं कारणों से अहमद शाह अब्दाली ने 1748 ई० के अंत में पंजाब पर दूसरी बार आक्रमण किया। मीर मन्नू भी अब्दाली का सामना करने के लिए आगे बढ़ा। दिल्ली से कोई सहायता न मिलने के कारण मीर मन्नू को अपनी पराजय निश्चित दिखाई दे रही थी। इसलिए उसने अब्दाली के साथ संधि कर ली। इस संधि के अनुसार मीर मन्नू ने पंजाब के चार महलों (जिलों) स्यालकोट, पसरूर, गुजरात और औरंगाबाद का वार्षिक लगान अब्दाली को देना मान लिया। इनका वार्षिक लगान 14 लाख रुपए बनता था। जब मीर मन्नू अहमद शाह अब्दाली के साथ उलझा हुआ था तब सिखों ने जस्सा सिंह आहलूवालिया के नेतृत्व में लाहौर में लूटमार की।

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प्रश्न 5.
अहमद शाह अब्दाली के पंजाब के तीसरे आक्रमण पर प्रकाश डालें। (Throw light on the third invasion of Ahmad Shah Abdali on Punjab.)
उत्तर-
पंजाब में सिखों की लूटमार और मीर मन्नू के विरुद्ध नासिर खाँ के विद्रोह के कारण अराजकता फैल गई थी। परिणामस्वरूप मीर मन्नू अहमद शाह अब्दाली को दिए जाने वाले 14 लाख रुपए न भेज सका। इस कारण अब्दाली ने नवंबर, 1751 ई० में पंजाब पर तीसरी बार आक्रमण किया। वह अपनी सेना सहित बड़ी तेजी के साथ लाहौर की ओर बढ़ रहा था। जब इस आक्रमण का समाचार लाहौर के लोगों को मिला तो उनमें से बहुत अब्दाली की भयंकर लूटमार की आशंका से घबरा कर लाहौर छोड़ कर भाग गए। लाहौर पहुँच कर अब्दाली ने 3 महीनों तक भारी लूटमार मचाई। मीर मन्नू इस मध्य दिल्ली से कोई सहायता मिलने की प्रतीक्षा करता रहा। 6 मार्च, 1752 ई० को लाहौर के निकट अहमद शाह अब्दाली और मीर मन्नू की सेनाओं के बीच भयंकर लड़ाई हुई। इस लड़ाई में मीर मन्नू पराजित हुआ तथा उसे बंदी बना लिया गया। अब्दाली मीर मन्नू की निर्भीकता एवं साहस से इतना प्रभावित हुआ कि उसने उसे अपनी ओर से पंजाब का सूबेदार नियुक्त कर दिया।

प्रश्न 6.
अहमद शाह अब्दाली के पंजाब के चौथे आक्रमण का वर्णन करें। (Explain the fourth invasion of Ahmad Shah Abdali on Punjab.)
उत्तर-
1753 ई० में मीर मन्नू की मृत्यु के पश्चात् उसकी विधवा मुगलानी बेग़म पंजाब की सूबेदार बनी। वह एक चरित्रहीन स्त्री थी। इस कारण सारे पंजाब में अराजकता फैल गई। नए मुग़ल बादशाह आलमगीर दूसरे के आदेश पर मुगलानी बेग़म को जेल में डाल दिया गया। अदीना बेग़ को पंजाब का नया सूबेदार बनाया गया। जेल से मुगलानी बेग़म ने पत्रों द्वारा बहुत-से महत्त्वपूर्ण रहस्य अहमद शाह अब्दाली को बताए। इसके अतिरिक्त अब्दाली पंजाब पर किसी मुग़ल सूबेदार की नियुक्ति को कदाचित सहन नहीं करता था। इन्हीं कारणों से अब्दाली ने नवंबर, 1756 ई० में पंजाब पर चौथी बार आक्रमण किया। इस आक्रमण का समाचार सुन कर अदीना बेग़ बिना मुकाबला किए दिल्ली भाग गया। अब्दाली ने अपने पुत्र तैमूर शाह को पंजाब का सूबेदार नियुक्त किया। अमृतसर के निकट सिखों एवं अफ़गानों में हुए एक घमासान युद्ध में बाबा दीप सिंह जी ने शहीदी प्राप्त की। सिखों ने इस शहीदी का बदला लेने के उद्देश्य से लाहौर में भयंकर लूटमार की।

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प्रश्न 7.
पानीपत की तीसरी लड़ाई पर एक नोट लिखें।
उत्तर–
पानीपत की तीसरी लड़ाई 14 जनवरी, 1761 ई० को मराठों एवं अहमदशाह अब्दाली के मध्य हुई। इस लड़ाई का मुख्य कारण यह था कि दोनों शक्तियाँ उत्तरी भारत में अपनी-अपनी शक्ति की स्थापना करना चाहती थीं। 1758 ई० में मराठों ने तैमूर शाह जो कि अहमदशाह अब्दाली का पुत्र तथा पंजाब का सूबेदार था, को पराजित करके पंजाब पर अधिकार कर लिया था। यह अहमदशाह अब्दाली की शक्ति के लिए एक चुनौती थी। अतः उसने 1759 ई० में पंजाब पर आक्रमण करके उस पर कब्जा कर लिया। इसके बाद उसने दिल्ली की ओर कदम बढ़ाए। पानीपत के मैदान में अब्दाली,तथा मराठों के मध्य एक घमासान युद्ध हुआ। इस युद्ध में मराठा सेना का नेतृत्व सदाशिव राव भाऊ कर रहा था। इस लड़ाई में मराठों को ज़बरदस्त पराजय का सामना करना पड़ा।

पानीपत की तीसरी लड़ाई के दूरगामी परिणाम निकले। इस लड़ाई में मराठों की भारी जान-माल की हानि हुई। पेशवा बालाजी बाजी राव इस विनाशकारी पराजय को सहन न कर सका तथा शीघ्र ही चल बसा। इस लड़ाई से पूर्व मराठों की गणना भारत की प्रमुख शक्तियों में की जाती थी। इस लड़ाई में पराजय के कारण उनकी शक्ति तथा गौरव को गहरी चोट पहुँची। परिणामस्वरूप भारत में हिंदू साम्राज्य को स्थापित करने का मराठों का स्वप्न मिट्टी में मिल गया। इस लड़ाई में पराजय के कारण मराठे परस्पर झगड़ों में उलझ गए। इस कारण उनकी आपसी एकता समाप्त हो गई। इस लड़ाई के पश्चात् पंजाब में सिखों को अपनी शक्ति संगठित करने का अवसर मिला। इस लड़ाई के पश्चात् भारत में अंग्रेजों को अपनी शक्ति स्थापित करने का मार्ग प्रशस्त हो गया।

प्रश्न 8.
पानीपत की तीसरी लड़ाई के क्या परिणाम निकले ? (What were the results of the third battle of Panipat ?)
उत्तर–
पानीपत की तीसरी लड़ाई भारतीय इतिहास की निर्णायक लड़ाइयों में से एक थी। इस लड़ाई के दूरगामी परिणामों का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित अनुसार है—
1. मराठों का घोर विनाश-पानीपत की तीसरी लड़ाई मराठों के लिए घोर विनाशकारी सिद्ध हुई। इस लड़ाई में 28,000 मराठा सैनिक मारे गए तथा बड़ी संख्या में जख्मी हुए। कहा जाता है कि महाराष्ट्र के प्रत्येक परिवार का कोई-न-कोई सदस्य इस लड़ाई में मरा था।

2. मराठों की शक्ति एवं सम्मान को गहरा धक्का —इस लड़ाई में पराजय से मराठों की शक्ति एवं सम्मान को गहरा धक्का लगा। परिणामस्वरूप भारत में हिंदू साम्राज्य स्थापित करने का मराठों का स्वप्न धराशायी हो गया।

3. मराठों की एकता का समाप्त होना–पानीपत की तीसरी लड़ाई में मराठों की प्रतिष्ठा को भारी आघात पहँचने से मराठा संघ की एकता समाप्त हो गई। वे आपसी मतभेदों एवं झगड़ों में उलझ गए। परिणामस्वरूप रघोबा जैसे स्वार्थी मराठा नेता को राजनीति में आने का अवसर प्राप्त हुआ।

4. पंजाब में सिखों की शक्ति का उत्थान-पानीपत की तीसरी लड़ाई से पंजाब मराठों के हाथों से सदा के लिए जाता रहा। अब पंजाब में प्रभुत्व स्थापित करने के लिए केवल दो ही शक्तियाँ —अफ़गान एवं सिख रह गईं। इस प्रकार सिखों के उत्थान का कार्य काफी सुगम हो गया। उन्होंने अफ़गानों को पराजित करके पंजाब में अपना शासन स्थापित कर लिया।

5. भारत में अंग्रेजों की शक्ति का उत्थान भारत में अंग्रेजों को अपने साम्राज्य विस्तार के मार्ग में सबसे अधिक चुनौती मराठों की थी। मराठों की जबरदस्त पराजय ने अंग्रेजों को अपनी सत्ता स्थापित करने का मार्ग प्रशस्त कर दिया।

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प्रश्न 9.
बड़ा घल्लूघारा (दूसरा खूनी हत्याकाँड) पर संक्षिप्त नोट लिखिए। [Write a short note on Wada Ghallughara (Second Bloody Carnage).]
अथवा
अहमद शाह अब्दाली के छठे हमले का वर्णन कीजिए।
(Explain the sixth invasion of Ahmad Shah Abdali.)
उत्तर-
बड़ा घल्लूघारा सिख इतिहास की एक बहुत दुःखदायी घटना थी। सिखों ने 1761 ई० में पंजाब के अनेक क्षेत्रों को अपनी अधीन कर लिया और उन्होंने बहुत सारे अन्य क्षेत्रों में भारी लूटपाट मचाई। सिखों ने अहमद शाह अब्दाली द्वारा नियुक्त पंजाब के सूबेदार ख्वाजा उबेद खाँ को भी पराजित कर दिया। अहमद शाह अब्दाली सिखों के इस बढ़ते हुए प्रभाव को कभी सहन नहीं कर सकता था। इसलिए अब्दाली ने सन् 1761 ई० के अंत में पंजाब पर छठी बार आक्रमण किया। उसने लाहौर पर बड़ी आसानी से अधिकार कर लिया। इसके पश्चात् अहमद शाह अब्दाली ने 5 फरवरी, 1762 ई० को अचानक सिखों को मालेरकोटला के निकट गाँव कुप में घेर लिया। इस अचानक आक्रमण के कारण 25 से 30 हजार तक सिख मारे गए। सिख इतिहास में यह घटना बड़ा घल्लूघारा के नाम से जानी जाती है। बड़े घल्लूघारे में सिखों की भारी प्राण हानि से अब्दाली अति प्रसन्न हुआ। उसका विश्वास था कि इससे सिखों की शक्ति को गहरा आघात लगा होगा पर उसका यह अनुमान गलत निकला। सिखों ने इस घटना से नया उत्साह प्राप्त किया। उन्होंने पूर्ण उत्साह से अब्दाली की सेना पर आक्रमण प्रारंभ कर दिए। सिखों ने 1764 ई० में सरहिंद और 1765 ई० में लाहौर पर अधिकार करके अपनी स्वतंत्रता की घोषणा कर दी।

प्रश्न 10.
अफ़गानों के विरुद्ध लड़ाई में सिखों ने अपनी शक्ति किस प्रकार संगठित की ? (How did the Sikhs organise their power in their struggle against the Afghans ?)
उत्तर-
अफ़गानों के विरुद्ध लड़ाई में सिखों ने अपने आपको जत्थों में संगठित कर लिया। गुरु ग्रंथ साहिब और सिख पंथ पर विश्वास के कारण उनमें एकता हुई। गुरु ग्रंथ साहिब जी की उपस्थिति में सरबत खालसा द्वारा प्रस्ताव पास किए जाते थे। इस गुरमता का सभी सिख पालन करते थे। गुरमता के द्वारा सारे जत्थों का एक कमांडर नियत किया जाता था और सभी सिख उसके अधीन एकत्रित होकर शत्रु का मुकाबला करते थे। ‘राज करेगा खालसा’ अब प्रत्येक सिख का विश्वास बन चुका था। अहमद शाह अब्दाली कई वर्षों तक अफ़गानिस्तान में होने वाले विद्रोहों के कारण सिखों की ओर ध्यान नहीं दे सका था। उसके द्वारा पंजाब में नियुक्त किए गवर्नर भी सिखों पर नियंत्रण न पा सके। पंजाब के लोगों एवं ज़मींदारों ने भी सिख-अफ़गान संघर्ष में सिखों को पूर्ण सहयोग दिया। सिखों के नेताओं ने भी अफ़गानों के विरुद्ध सिखों को संगठित करने एवं उनमें एक नई स्फूर्ति उत्पन्न करने में प्रशंसनीय योगदान दिया। इस प्रकार सिखों ने अफ़गानों के विरुद्ध अपनी शक्ति को संगठित किया।

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प्रश्न 11.
अहमद शाह अब्दाली सिखों के विरुद्ध असफल क्यों रहा ? कोई छः कारण बताएँ।
(What were the causes of failure of Ahmad Shah Abdali against the Sikhs ? Write any six reasons.)
अथवा
सिखों की शक्ति को कुचलने में अहमद शाह अब्दाली असफल क्यों रहा ? (What were the causes of failure of Ahmad Shah Abdali against the Sikhs ?)
अथवा
अहमद शाह अब्दाली की सिखों के विरुद्ध असफलता के छः क्या कारण थे ?
(What were the six causes of failure of Ahmad Shah Abdali against the Sikhs ?)
उत्तर-
अहमद शाह अब्दाली की असफलता या सिखों की जीत के निम्नलिखित कारण हैं—
1. सिखों का दृढ़ निश्चय-अहमद शाह अब्दाली की असफलता का एक मुख्य कारण सिखों का दृढ़ निश्चय था। अब्दाली ने उन पर भारी अत्याचार किए, परंतु उनका हौसला बुलंद रहा। वे चट्टान की तरह अडिग रहे। बड़े घल्लूघारे में 25,000 से 30,000 सिख मारे गए परंतु सिखों के हौसले बुलंद रहे। ऐसी कौम को हराना कोई आसान कार्य न था।

2. गुरिल्ला युद्ध नीति-सिखों द्वारा अपनाई गई गुरिल्ला युद्ध नीति अहमद शाह अब्दाली की असफलता का एक मुख्य कारण बनी। जब भी अब्दाली सिखों के विरुद्ध कूच करता, सिख तुरंत जंगलों व पहाड़ों में जा शरण लेते। वे अवसर देखकर अब्दाली की सेनाओं पर आक्रमण करते और लूटमार करके फिर वापस जंगलों में चले जाते। इन छापामार युद्धों ने अब्दाली की नींद हराम कर दी थी।

3. पंजाब के लोगों का असहयोग-अहमद शाह अब्दाली की पराजय का एक प्रमुख कारण यह था कि उसको पंजाब के नागरिकों का सहयोग प्राप्त न हो सका। उसने अपने बार-बार आक्रमणों के दौरान न केवल लोगों की धन-संपत्ति को ही लटा, अपित हज़ारों निर्दोष लोगों का कत्ल भी किया। परिणामस्वरूप पंजाब के लोगों की उसके साथ किसी प्रकार की कोई सहानुभूति नहीं थी। ऐसी स्थिति में अहमद शाह अब्दाली द्वारा पंजाब पर विजय प्राप्त करना एक स्वप्न समान था।

4. सिखों का चरित्र ‘सिखों का चरित्र अहमद शाह अब्दाली की असफलता का एक अन्य कारण बना। सिख प्रत्येक स्थिति में प्रसन्न रहते थे। वे युद्ध के मैदान में किसी भी निहत्थे पर वार नहीं करते थे। वे स्त्रियों एवं बच्चों का पूर्ण सम्मान करते थे चाहे उनका संबंध शत्रु के साथ क्यों न हो। इन गुणों के परिणामस्वरूप सिख पंजाबियों में अत्यंत लोकप्रिय हो गए थे।

5. सिखों के योग्य नेता-अहमद शाह अब्दाली के विरुद्ध सिखों की जीत का एक और महत्त्वपूर्ण कारण उनके योग्य नेता थे। इन नेताओं ने बड़ी योग्यता और समझदारी से सिखों को नेतृत्व प्रदान किया। इन नेताओं में प्रमुख नवाब कपूर सिंह, जस्सा सिंह आहलूवालिया, जस्सा सिंह रामगढ़िया तथा आला सिंह थे। ‘

6. अब्दाली के अयोग्य प्रतिनिधि-अहमद शाह अब्दाली की असफलता का प्रमुख कारण पंजाब में उसके अयोग्य प्रतिनिधि थे। उनमें प्रशासनिक योग्यता की कमी थी। इस कारण पंजाब के लोग उनके विरुद्ध होते चले गए।

प्रश्न 12.
अहमद शाह अब्दाली के आक्रमणों के कारण पंजाब पर पड़े किन्हीं छः महत्त्वपूर्ण प्रभावों का वर्णन करो। (Describe any six important effects of Ahmad Shah Abdali’s invasions over Punjab.)
अथवा
अहमद शाह अब्दाली के पंजाब पर आक्रमणों के क्या प्रभाव पड़े ? (What were the effects of Ahmad Shah Abdali’s invasions over Punjab ?)
उत्तर-
अहमदशाह अब्दाली ने 1747 ई० से लेकर 1767 ई० तक पंजाब पर आठ बार आक्रमण किए। उसके इन आक्रमणों ने पंजाब के विभिन्न क्षेत्रों को प्रभावित किया। इन प्रभावों का संक्षेप में वर्णन निम्नलिखित प्रकार है—
1. पंजाब में मुग़ल शासन का अंत-अहमद शाह अब्दाली के आक्रमणों का पंजाब के इतिहास पर पहला महत्त्वपूर्ण प्रभाव यह पड़ा कि पंजाब में मुग़ल शासन का अंत हो गया। मीर मन्नू पंजाब में मुग़लों का अंतिम सूबेदार था। अब्दाली ने मीर मन्नू को ही अपनी तरफ से पंजाब का सूबेदार नियुक्त कर दिया। मुग़लों ने पुनः पंजाब पर अधिकार करने का प्रयत्न कियां पर अब्दाली ने इन प्रयत्नों को सफल न होने दिया।

2. सिख शक्ति का उदय-अहमदशाह अब्दाली के आक्रमणों के परिणामस्वरूप पंजाब से मुग़ल और मराठा शक्ति का अंत हो गया। पंजाब पर कब्जा करने के लिए अब यह संघर्ष केवल दो शक्तियों-अफ़गान और सिखों के मध्य ही रह गया था। अब्दाली ने 1762 ई० में बड़ा घल्लूघारा में कई हज़ारों सिखों को शहीद किया, परंतु उनके हौंसले बुलंद रहे। उन्होंने 1764 ई० में सरहिंद और 1765 ई० में लाहौर पर कब्जा कर लिया था। सिखों ने अपने सिक्के चला कर अपनी स्वतंत्रता की घोषणा कर दी।

3. पंजाब के लोगों का बहादुर होना-अहमदशाह अब्दाली के आक्रमणों ने पंजाबी लोगों को बहुत बहादुर और निडर बना दिया था। इसका कारण यह था कि अब्दाली के आक्रमणों से रक्षा के लिए यहां के लोगों को शस्त्र उठाने पड़े। उन्होंने अफ़गानों के साथ हुए युद्धों में बहादुरी की शानदार मिसालें कायम की।

4. सिखों और मुसलमानों की शत्रुता में वृद्धि-अहमदशाह अब्दाली के आक्रमणों के कारण सिखों और मुसलमानों में आपसी शत्रुता और बढ़ गई। इसका कारण यह था कि अफ़गानों ने इस्लाम के नाम पर सिखों पर बहुत अत्याचार किए। दूसरा, अब्दाली ने सिखों के सबसे पवित्र धार्मिक स्थान हरिमंदिर सहिब को ध्वस्त करके सिखों को अपना कट्टर शत्रु बना लिया। अतः सिखों और अफ़गानों के बीच शत्रुता दिनों-दिन बढ़ती चली गई।

5. पंजाब की आर्थिक हानि-अहमदशाह अब्दाली अपने प्रत्येक आक्रमण में पंजाब से भारी मात्रा में लूट का माल साथ ले जाता था। अफ़गानी सेनाएँ कूच करते समय खेतों का विनाश कर देती थीं। पंजाब में नियुक्तं भ्रष्ट कर्मचारी भी लोगों को प्रत्येक पक्ष से लूटने में कोई प्रयास शेष न छोड़ते थे। परिणामस्वरूप अराजकता और लूटमार के इस वातावरण से पंजाब के व्यापार को बहुत भारी हानि हुई।

6. पंजाबियों का खर्चीला स्वभाव-अहमद शाह अब्दाली के हमलों के परिणामस्वरूप उनके चरित्र में एक महत्त्वपूर्ण परिवर्तन आया। क्योंकि अब्दाली अपने आक्रमणों के दौरान लोगों से धन लूटकर अफ़गानिस्तान ले जाता था। इसलिए लोगों ने धन एकत्रित करने की अपेक्षा उसे खाने-पीने तथा मौज उड़ाने पर व्यय करना आरंभ कर दिया था।

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प्रश्न 13.
अहमद शाह अब्दाली के आक्रमणों ने पंजाब पर क्या राजनीतिक प्रभाव डाला ? (What were the political effects of Ahmad Shah Abdali’s invasions over Punjab ?)
उत्तर-
अहमद शाह अब्दाली के आक्रमणों के कारण पंजाब पर बड़े गहरे राजनीतिक प्रभाव पड़े। सबसे पहले पंजाब से मुग़ल शासन का अंत हो गया। अब्दाली ने 1752 ई० में पंजाब को अफ़गानिस्तान में शामिल कर लिया। दूसरे, अब्दाली ने 1761 ई० में पानीपत की तीसरी लड़ाई में मराठों को बड़ी करारी पराजय दी जिसके परिणामस्वरूप पंजाब में मराठों की शक्ति का सदैव के लिए अंत हो गया। तीसरे, अहमद शाह अब्दाली के लगातार आक्रमणों के कारण पंजाब में अराजकता फैल गई। लोगों की जान माल सुरक्षित न रहे। सरकारी कर्मचारियों ने लोगों को लूटना शुरू कर दिया था। न्याय नाम की कोई चीज़ नहीं रही। चौथे, पंजाब में मुग़लों और मराठों की शक्ति का अंत होने के कारण सिखों को अपनी शक्ति बढ़ाने का अवसर मिला। उन्होंने अपने छापामार युद्धों से अब्दाली की सेना को कई स्थानों पर हराया। 1765 ई० में सिखों ने लाहौर पर अधिकार करके अपनी स्वतंत्रता की घोषणा कर दी।

प्रश्न 14.
अहमद शाह अब्दाली के आक्रमणों के क्या सामाजिक प्रभाव पड़े ?
(What were the social effects of the invasions of Ahmad Shah Abdali ?)
उत्तर-
अहमद शाह अब्दाली के आक्रमणों के परिणामस्वरूप लोगों के चरित्र में एक महत्त्वपूर्ण परिवर्तन आया। अब वे अधिक धन व्यय करने लगे। इसका कारण यह है कि अब्दाली अपने आक्रमणों के दौरान लोगों से धन लूट कर अफ़गानिस्तान ले जाता था। इसलिए लोगों ने धन एकत्रित करने की अपेक्षा उसे खाने-पीने तथा मौज उड़ाने पर व्यय करना आरंभ कर दिया था। अहमद शाह अब्दाली के आक्रमणों के कारण पंजाब में अनेक बुराइयों को उत्साह मिला। लोग बहुत स्वार्थी और आचरणहीन हो गए थे। वे कोई पाप या अपराध करने से नहीं डरते थे। चोरी, डाके, कत्ल, लूटमार, धोखेबाज़ी और रिश्वतखोरी का समाज में बोलबाला था। इन बुराइयों ने पंजाब के समाज को दीमक की तरह खाकर खोखला कर दिया था। अहमद शाह अब्दाली के आक्रमणों के परिणामस्वरूप पंजाब के लोग बहादुर और निडर बन गए। इसका कारण यह था कि अब्दाली के आक्रमणों और उसके द्वारा की जा रही लूटमार से रक्षा के लिए यहाँ के लोगों को शस्त्र उठाने पड़े। उन्होंने अफ़गानों के साथ चलने वाले लंबे संघर्ष में बहादुरी की शानदार मिसालें कायम की। इस संघर्ष के अंत में सिख विजेता रहे।

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प्रश्न 15.
अहमद शाह अब्दाली के आक्रमणों के क्या आर्थिक परिणाम निकले ? (What were the economic consequences of the invasions of Ahmad Shah Abdali ?)
उत्तर-
अहमद शाह अब्दाली के आक्रमणों के विनाशकारी आर्थिक परिणाम निकले। वह अपने प्रत्येक आक्रमण के समय भारी संपत्ति लूट कर अपने साथ ले जाता था। इसने पंजाब को कंगाल बना दिया। दूसरा, अफ़गान सेनाएं कूच करते समय रास्ते में आने वाले खेतों को उजाड़ देती थीं। इस कारण कृषि का काफ़ी नुक्सान हो जाता था। तीसरा, पंजाब में नियुक्त भ्रष्ट कर्मचारियों ने भी लोगों को प्रत्येक पक्ष से लूटने के लिए कोई प्रयास शेष न छोड़ा। चौथा, पंजाब में सिख भी सरकार की नींद हराम करने के उद्देश्य से अक्सर लूटमार करते थे। इन कारणों से पंजाब में अव्यवस्था फैली। ऐसे वातावरण में पंजाब के व्यापार को गहरा आघात लगा। परिणामस्वरूप पंजाब को घोर आर्थिक संकट का सामना करना पड़ा। ऐसा लगता था जैसे पंजाब की समृद्धि ने सदैव के लिए अपना मुख मोड़ लिया हो। निस्संदेह यह अत्यंत दुःखद संकेत था।

Source Based Questions

नोट-निम्नलिखित अनुच्छेदों को ध्यानपूर्वक पढ़िए और उनके अंत में पूछे गए प्रश्नों का उत्तर दीजिए।
1
अहमद शाह अब्दाली अफ़गानिस्तान का शासक था। उसने 1747 ई० से 1772 ई० तक शासन किया। उसने 1747 ई० से 1767 ई० के मध्य पंजाब पर आठ आक्रमण किए। उसने 1752 ई० में मुग़ल सूबेदार मीर मन्न को हराकर पंजाब को अफ़गानिस्तान साम्राज्य में सम्मिलित कर लिया था। अहमद शाह अब्दाली और उसके द्वारा पंजाब में नियुक्त किए गए सूबेदारों ने सिखों पर अनगिनत अत्याचार किए। सन् 1762 ई० में बड़े घल्लूघारे में अब्दाली ने बड़ी संख्या में सिखों को शहीद कर दिया था। इतना सब कुछ होने पर भी सिख चट्टान की भाँति अडिग रहे। उन्होंने अपने छापामार युद्धों से अब्दाली की नींद हराम कर रखी थी। सिखों ने 1765 ई० में लाहौर पर अधिकार करके अपनी स्वतंत्रता की घोषणा कर दी थी। अब्दाली अपने सारे प्रयासों के बावजूद सिखों की शक्ति को न कुचल सका। वास्तव में उसकी असफलता के कई एक कारण थे। अहमद शाह अब्दाली के इन आक्रमणों से पंजाब के इतिहास पर बड़े गहरे राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक प्रभाव पड़े।

  1. अहमद शाह अब्दाली कौन था ?
  2. अहमद शाह अब्दाली अफ़गानिस्तान का शासक कब बना था ?
    • 1747 ई०
    • 1748 ई
    • 1752 ई०
    • 1767 ई०
  3. अहमद शाह अब्दाली ने पंजाब पर कितनी बार आक्रमण किए ?
  4. बड़ा घल्लूघारा कब हुआ ?
  5. अहमद शाह अब्दाली सिखों के विरुद्ध क्यों असफल रहा ? कोई एक कारण लिखें।

उत्तर-

  1. अहमद शाह अब्दाली अफ़गानिस्तान का शासक था।
  2. 1747 ई०।
  3. अहमद शाह अब्दाली ने पंजाब पर 8 बार आक्रमण किए।
  4. बड़ा घल्लूघारा 1762 ई० में हुआ।
  5. सिखों के इरादे बहुत मज़बूत थे।

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2
अहमद शाह अब्दाली जनवरी, 1757 ई० में दिल्ली पहुँचा। दिल्ली पहुंचने पर अब्दाली का किसी ने भी विरोध न किया। दिल्ली में अब्दाली ने भारी लूटमार की। इसके पश्चात् उसने मथुरा और वृंदावन को भी लूटा। इसके पश्चात् वह आगरा की ओर बढ़ा पर सेना में हैज़े की बीमारी फैलने के कारण उसने वापस काबुल जाने का निर्णय ले लिया। पंजाब पहुँचने पर उसने अपने पुत्र तैमूर शाह को पंजाब का सूबेदार नियुक्त किया। अब्दाली ने तैमूर शाह को यह आदेश भी दिया कि सिखों को उनकी कार्यवाइयों के लिए अच्छा सबक सिखाए। तैमूर शाह ने सिखों की शक्ति को कुचलने के लिए जहान खाँ के नेतृत्व में कुछ सेना अमृतसर की ओर भेजी। अमृतसर के निकट सिखों और अफ़गानों में घमासान युद्ध हुआ। इस युद्ध में सिखों के नेता बाबा दीप सिंह जी का शीश कट गया था पर वह अपने शीश को हथेली पर रखकर शत्रुओं का मुकाबला करते रहे। उन्होंने हरिमंदिर साहिब पहुँच कर अपने प्राणों की आहुति दी। इस प्रकार बाबा दीप सिंह जी 11 नवंबर, 1757 ई० को शहीद हुए। बाबा दीप सिंह जी की इस शहीदी ने सिखों में एक नया जोश भरा।

  1. अहमद शाह अब्दाली ने 1757 ई० में भारत के कौन-से शहरों में लूटमार की ?
  2. अहमद शाह अब्दाली आगरे से वापस क्यों मुड़ गया था ?
  3. तैमूर शाह कौन था ?
  4. बाबा दीप सिंह जी कब तथा कहाँ शहीद हुए ?
  5. बाबा दीप सिंह जी की इस शहीदी ने सिखों में एक नया …………….. भरा।

उत्तर-

  1. अहमद शाह अब्दाली ने 1757 ई० में भारत के दिल्ली, मथुरा, वृंदावन तथा पंजाब के शहरों में लूटमार की।
  2. अहमद शाह अब्दाला आगरे से वापिस इसलिए पीछे मुड़ गया था क्योंकि उस समय वहाँ हैजा फैला हुआ था।
  3. तैमूर शाह अहमद शाह अब्दाली का पुत्र था।
  4. बाबा दीप सिंह जी की शहीदी 1757 ई० में अमृतसर में हुई थी।
  5. जोश।

3
14 जनवरी, 1761 ई० को मराठों ने अब्दाली की सेना पर आक्रमण कर दिया। यह बहुत घमासान युद्ध था। इस युद्ध के आरंभ में मराठों का पलड़ा भारी रहा। परंतु अनायास जब विश्वास राव की गोली लगने से मृत्यु हो गई तो युद्ध की स्थिति ही पलट गयी। सदाशिव राव भाऊ शोक मनाने के लिए हाथी से नीचे उतरा। जब मराठा सैनिकों ने उसके हाथी की पालकी खाली देखी तो उन्होंने समझा कि वह भी युद्ध में मारा गया है। परिणामस्वरूप मराठा सैनिकों में भगदड़ फैल गई। अब्दाली के सैनिकों ने यह स्वर्ण अवसर देख कर उनका पीछा किया और भारी तबाही मचाई। इस युद्ध में लगभग समस्त प्रसिद्ध मराठा नेता और 28,000 मराठा सैनिक मृत्यु को प्राप्त हुए। कई हज़ार मराठा सैनिक युद्ध में जख्मी हो गये और अन्य कई हज़ार को गिरफ्तार कर लिया गया।

  1. पानीपत की तीसरी लड़ाई कब हुई ?
  2. पानीपत की तीसरी लड़ाई किनके मध्य हुई ?
    • सिखों तथा मराठों
    • मराठों तथा अब्दाली
    • सिखों तथा अब्दाली |
    • उपरोक्त में से कोई नहीं।
  3. विश्वास राव कौन था ?
  4. सदाशिव राव भाऊ कौन था ?
  5. पानीपत की तीसरी लड़ाई का कोई एक परिणाम लिखें।

उत्तर-

  1. पानीपत की तीसरी लड़ाई 14 जनवरी, 1761 ई० को हुई।
  2. मराठों तथा अब्दाली।
  3. विश्वास राव पेशवा बालाजी बाजी राव का पुत्र था।
  4. सदाशिव राव भाऊ पानीपत की तीसरी लड़ाई के समय मराठों का सेनापति था।
  5. इस लड़ाई में मराठों का भारी जान-माल का नुकसान हुआ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 15 अहमद शाह अब्दाली के आक्रमण एवं मुग़ल शासन का विखँडन

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अहमद शाह अब्दाली ने बिना किसी रुकावट के लाहौर पर अधिकार कर लिया। इसके पश्चात् वह जंडियाला की ओर बढ़ा। वहाँ पहुँचकर उसे समाचार मिला कि सिख वहाँ से जा चुके हैं और इस समय वे मलेरकोटला के निकट स्थित गाँव कूप में एकत्रित हैं। इसलिए वह बड़ी तेजी से मलेरकोटला की तरफ बढ़ा। उसने सरहिंद के सूबेदार जैन खाँ को अपनी फ़ौजों सहित वहाँ पहुँचने का आदेश दिया। इस संयुक्त फ़ौज ने 5 फरवरी, 1762 ई० को गाँव कूप में अचानक सिखों पर आक्रमण कर दिया। सिख उस समय अपने परिवारों को सुरक्षित स्थानों पर ले जा रहे थे। उस समय उनके शस्त्र तथा भोजन सामग्री गरमा गाँव जो वहाँ से 6 किलोमीटर दूर था, वहाँ पड़ी हुई थी। सिखों ने अपनी स्त्रियों और बच्चों को चारों ओर से सुरक्षा घेरे में लेकर अब्दाली के सैनिकों से मुकाबला करना शुरू किया, परंतु सिखों के पास शस्त्रों की कमी होने के कारण वे अधिक समय तक उसका मुकाबला न कर सके । इस युद्ध में सिखों की भारी जन हानि हुई। इस युद्ध में 25,000 से 30,000 सिख शहीद हो गए जिसमें स्त्रियाँ, बच्चे और वृद्ध शामिल थे।

  1. बड़ा घल्लूघारा कब तथा कहाँ घटित हुआ ?
  2. बड़े घल्लूघारा के लिए कौन जिम्मेवार था ?
  3. बड़े घल्लूघारा के समय सरहिंद का सूबेदार कौन था ?
  4. बड़े घल्लूघारा में सिखों के अत्यधिक नुकसान का क्या कारण था ?
  5. बड़े घल्लूघारे में सिखों की भारी ……….. हानि हुई।

उत्तर-

  1. बड़ा घल्लूघारा 5 फरवरी, 1762 ई० को कूप गाँव में घटित हुआ।
  2. बड़े घल्लूघारा के लिए अहमद शाह अब्दाली जिम्मेवार था।
  3. बड़े घल्लूघारा के समय सरहिंद का सूबेदार जैन खाँ था।
  4. सिखों के पास शस्त्रों की बहुत कमी थी।
  5. जन।

अहमद शाह अब्दाली के आक्रमण एवं मुग़ल शासन का विखँडन PSEB 12th Class History Notes

  • अहमद शाह अब्दाली के आक्रमणों के कारण (Causes of Ahmad Shah Abdali’s Invasions)-अहमद शाह अब्दाली अफ़गानिस्तान का शासक था-वह पंजाब तथा भारत के अन्य प्रदेशों पर विजय प्राप्त कर अपने साम्राज्य का विस्तार करना चाहता था-वह भारत की अपार धनदौलत को लूटना चाहता था- भारत की डावाँडोल राजनीतिक स्थिति भी उसे निमंत्रण दे रही थी—पंजाब के सूबेदार शाहनवाज़ खाँ ने अब्दाली को भारत आक्रमण का निमंत्रण भेजा था।
  • अब्दाली के आक्रमण (Invasions of Abdali) अब्दाली का पहला आक्रमण 1747-48 ई० में हुआ-इसमें मुईन-उल-मुल्क अथवा मीर मन्नू के हाथों उसे हार का सामना करना पड़ा-174849 ई० में अपने दूसरे आक्रमणों के दौरान अब्दाली ने मुईन-उल-मुल्क को पराजित किया-1752 ई० में अपने तीसरे आक्रमण के दौरान उसने समस्त पंजाब को अपने साम्राज्य में सम्मिलित कर लियाअब्दाली ने 1756 ई० में चौथे आक्रमण के दौरान पंजाब में सिखों के विरुद्ध कड़ी कारवाई की-1757 ई० में अफ़गानों से लड़ते हुए बाबा दीप सिंह जी शहीद हो गए-अपने पाँचवें आक्रमण के दौरान अब्दाली ने मराठों को पानीपत की तीसरी लड़ाई में कड़ी पराजय दी-यह लड़ाई 14 जनवरी, 1761 ई० को हुई-अब्दाली के छठे आक्रमण के दौरान 5 फरवरी, 1762 ई० को बड़ा घल्लूघारा की घटना घटीइसमें 25,000 से 30,000 सिख मारे गए-सिखों की शक्ति को कुचलने के लिए अब्दाली ने दो और आक्रमण किए परंतु असफल रहा।
  • अब्दाली की असफलता के कारण (Causes of the Failure of Abdali)-सिखों का निश्चय बड़ा दृढ़ था—सिख गुरिल्ला युद्ध नीति से लड़ते थे-अब्दाली द्वारा पंजाब में नियुक्त किए प्रतिनिधि अयोग्य थे-पंजाब में लोगों ने सिखों को हर प्रकार का सहयोग दिया-सिखों का नेतृत्व करने वाले नेता बड़े योग्य थे–अब्दाली को पंजाब में अधिक रुचि न थी-अफ़गानिस्तान में बार-बार होने वाले विद्रोह भी उसकी असफलता का कारण बने।
  • अब्दाली के आक्रमणों के पंजाब पर प्रभाव (Effects of Abdali’s Invasions on the Punjab)—पंजाब में मुग़ल शासन का अंत हो गया…पानीपत की लड़ाई में हुई पराजय से पंजाब में मराठा शक्ति का अंत हो गया—सिख शक्ति का उदय होना आरंभ हो गया—पंजाब में चारों ओर अराजकता और अशांति फैल गई—पंजाब के लोगों के चरित्र में परिवर्तन आ गया तथा वे अधिक निडर और खर्चीले स्वभाव के हो गए—पंजाब के व्यापार को भारी हानि हुई पंजाबी कला और साहित्य के विकास को गहरा धक्का लगा।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 22 भारत के अमेरिका एवं रूस से सम्बन्ध

Punjab State Board PSEB 12th Class Political Science Book Solutions Chapter 22 भारत के अमेरिका एवं रूस से सम्बन्ध Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Political Science Chapter 22 भारत के अमेरिका एवं रूस से सम्बन्ध

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
भारत और अमेरिका के परस्पर सम्बन्धों की चर्चा करो।
(Discuss the features of Parliamentary Government in India.)
अथवा
संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ भारत के सम्बन्धों का विश्लेषण कीजिए। (Analyse India’s relations with U.S.A.)
अथवा
भारत व अमेरिका (U.S.A.) के सम्बन्धों का वर्णन करें। (Discuss the relation between India and America.)
उत्तर-
भारत तथा अमेरिका के सम्बन्ध शुरू से मित्रता वाले नहीं थे। अमेरिका आरम्भ से ही भारत पर अपना प्रभुत्व जमाना चाहता था। इसलिए अमेरिका ने ‘दबाव तथा सहायता’ की नीति का अनुसरण किया।

यद्यपि भारत और अमेरिका के सम्बन्ध मैत्रीपूर्ण नहीं थे तथापि दोनों देशों में सहयोग का क्षेत्र भी बढ़ा है। अमेरिका ने भारत को अपने पक्ष में करने के लिए दबाव नीति के साथ-साश्च आर्थिक सहायता तथा अनाज की कूटनीति का सहारा लिया। अमेरिका ने भारत को पर्याप्त आर्थिक सहायता दी और मुख्यत: अमेरिकन प्रेरणा से ही विश्व विकास ऋण कोष, तकनीकी सहयोग आदि की संस्थाओं ने भी ऋण तथा उपहार के रूप में भारत को काफ़ी आर्थिक तथा तकनीकी सहायता दी।

1957 में नेहरू ने अमेरिका की यात्रा की जिससे दोनों देशों के सम्बन्धों में सुधार हुआ। दिसम्बर, 1959 में अमेरिकन राष्ट्रपति आइजनहॉवर भारत आए जिससे दोनों देशों में और अच्छे सम्बन्ध स्थापित हुए। अमेरिका के राजनीतिक क्षेत्रों में कहा जाने लगा कि भारत का आर्थिक विकास अमेरिकन विदेश नीति का मुख्य लक्ष्य है। राष्ट्रपति आइजनहॉवर ने भारत को विशेष सम्मान देते हुए 4 मई, 1960 को वाशिंगटन में भारत के खाद्य मन्त्री एस० के० पाटिल के साथ स्वयं एक समझौते पर हस्ताक्षर किए। इस समझौते के अनुसार अमेरिका ने भारत को आगामी 4 वर्षों में चावल तथा गेहूं से भरे हुए 15000 जलयान भेजने का निश्चय किया। मई, 1960 का यह समझौता पी० एल० 480 के नाम से प्रसिद्ध है। 4 वर्ष की अवधि के समाप्त होने पर इस अवधि को पुनः बढ़ा दिया गया।

अक्तूबर, 1962 में चीन ने भारत पर आक्रमण कर दिया। भारत के अनुरोध पर राष्ट्रपति कैनेडी ने शीघ्र ही भारत को सैनिक सहायता दी। अमेरिका ने सैनिक सहायता देने के लिए कोई शर्त नहीं रखी। विदेश मन्त्री डीन रस्क ने भारत की गुट-निरपेक्षता की नीति की प्रशंसा की। 7 दिसम्बर, 1963 को भारत और अमेरिका के बीच नई दिल्ली में एक समझौता हुआ जिसके अनुसार अमेरिका ने भारत को आठ करोड़ डॉलर तारापुर में आण्विक शक्ति संयन्त्र करने के लिए देने का वचन किया।

शास्त्री काल में भारत-अमेरिका सम्बन्ध (1964-1965)-1965 में भारत-पाक युद्ध हुआ और इस युद्ध में भारत तथा अमेरिका के सम्बन्ध पूरी तरह खराब हो गए, क्योंकि अमेरिका की सैनिक सामग्री का पाकिस्तान ने भारत के विरुद्ध प्रयोग किया और अमेरिका ने पाकिस्तान को इसके लिए रोकने का बिल्कुल प्रयास नहीं किया।

इंदिरा काल में भारत-अमेरिका सम्बन्ध (1966 से मार्च, 1977 तक)-28 मार्च, 1966 को श्रीमती गांधी ने अमेरिका की यात्रा की परन्तु इस यात्रा का कोई विशेष परिणाम नहीं निकला।
1969-70 का वर्ष भारत-अमेरिका के सम्बन्धों में एक प्रकार से शीत-युद्ध का वर्ष था।

1971 का वर्ष भारत और अमेरिका के सम्बन्धों के लिए बंगला देश के मामले पर बहुत ही खराब रहा। 9 अगस्त, 1971 को भारत और रूस में मैत्री सन्धि हुई जिससे अमेरिका की विदेश नीति को बड़ा धक्का लंगा। दिसम्बर, 1971 में भारत-पाक युद्ध के दौरान सुरक्षा परिषद् में अमेरिका ने भारत विरोधी प्रस्ताव पेश किया, जिस पर सोवियत संघ ने . वीटो पावर का प्रयोग किया। अमेरिका ने बंगाल की खाड़ी में सातवें बेड़े को भेजा ताकि भारत पर दबाव डाला जा सके, परन्तु रूस के नौ-सैनिक बेड़े ने अमेरिका को सचेत कर दिया कि यदि अमेरिका ने भारत के विरुद्ध नौ-सैनिक कार्यवाही की तो रूस चुपचाप नहीं बैठा रहेगा। बंगला देश के युद्ध में भारत की विजय हुई और पाकिस्तान का विभाजन हो गया। इस विजय के बाद भारत दक्षिणी एशिया में एक बड़ी शक्ति के रूप में माना जाने लगा तो अमेरिका ने भारत की आर्थिक सहायता रोक दी।

जनता सरकार और भारत-अमेरिका सम्बन्ध-मार्च, 1977 में भारत के आम चुनाव हुए जिसमें जनता पार्टी को सफलता मिली और श्री मोरारजी देसाई के नेतृत्व में सरकार बनी। अमेरिका के राष्ट्रपति जिमी कार्टर ने प्रधानमन्त्री मोरारजी देसाई को बधाई संदेश भेजा और भारत को महान् लोकतान्त्रिक देश बताया। 1 जनवरी, 1978 में अमेरिका के राष्ट्रपति जिमी कार्टर भारत आए और भारतीय नेताओं से उन्होंने बातचीत की। जिमी कार्टर की यात्रा को भारत सरकार ने बहुत महत्त्व दिया।

जून, 1978 में प्रधानमन्त्री श्री मोरारजी देसाई तथा विदेश मन्त्री अटल बिहारी वाजपेयी अमेरिका की यात्रा पर गए और राष्ट्रपति कार्टर से बातचीत करने के बाद राष्ट्रपति कार्टर से यह विश्वास प्राप्त करने में सफल हो गए कि भारत को अमेरिकन Uranium दिया जाएगा।

श्रीमती गांधी की सरकार और भारत-अमेरिका सम्बन्ध (GOVERNMENT OF SMT. GANDHI AND INDO-AMERICA RELATIONS):

जनवरी, 1980 में श्रीमती इंदिरा गांधी के पुनः प्रधानमन्त्री बनने पर अमेरिकन प्रशासन ने इच्छा व्यक्त की कि भारत और अमेरिका में अच्छे सम्बन्ध स्थापित होंगे। अफ़गानिस्तान में रूसी हस्तक्षेप से गम्भीर स्थिति उत्पन्न हो गई। प्रधानमन्त्री इंदिरा गांधी के इस कथन का कि किसी भी देश को दूसरे देश में हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है, अमेरिका ने स्वागत किया। जून, 1981 में अमेरिका ने भारत की भावनाओं की खुली उपेक्षा करते हुए पाकिस्तान को व्यापक स्तर पर अमेरिकी हथियार दिए। जुलाई, 1982 में प्रधानमन्त्री श्रीमती इंदिरा गांधी संयुक्त राज्य अमेरिका की यात्रा पर गईं। भारत और अमेरिका प्रशासन के बीच हुई सहमति के अन्तर्गत तारापुर के समझौते की व्यवस्थाओं के अनुसार स्वयं तो ईंधन की सप्लाई नहीं करेगा, लेकिन उसे भारत द्वारा फ्रांस से आवश्यक ईंधन खरीदने पर कोई आपत्ति नहीं होगी।

जून, 1985 में प्रधानमन्त्री राजीव गांधी अमेरिका की यात्रा पर गए और उनका राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन ने ह्वाइट हाऊस में भव्य स्वागत किया। भारत और अमेरिका द्वारा जारी संयुक्त वक्तव्य से अमेरिका ने भारत में आतंकवादी हिंसा के प्रयासों और उसे अन्तर्राष्ट्रीय स्वरूप मिलने के विरुद्ध भारत सरकार को पूरा सहयोग देने का संकल्प व्यक्त किया।

चंद्रशेखर की सरकार और अमेरिका के साथ सम्बन्ध-जनवरी, 1991 में चंद्रशेखर की सरकार ने अमेरिका के साथ सम्बन्ध सुधारने के चक्कर में तटस्थता की नीति से दूर होते हुए अमेरिकी युद्ध विमानों को मुम्बई के सहारा अन्तर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे से ईंधन भरने की सुविधा प्रदान की। चंद्रशेखर की सरकार की नीति की सभी दलों तथा विपक्ष के नेता राजीव गांधी ने कड़ी आलोचना की।

नरसिम्हा राव की सरकार और अमेरिका के साथ सम्बन्ध-प्रधानमन्त्री श्री नरसिम्हा राव अमेरिका के राष्ट्रपति बुश को 31 जनवरी, 1992 को न्यूयार्क में मिले। दोनों नेताओं ने भारत-अमेरिका के बीच सहयोग के बढ़ते दायरे पर संतोष व्यक्त किया, परन्तु परमाणु अप्रसार सन्धि पर भारत और अमेरिका के बीच मतभेद बने रहे। जनवरी, 1993 में डेमोक्रेटिक पार्टी के बिल क्लिटन अमेरिका के राष्ट्रपति बने। जी०-7 देशों के टोकियो सम्मेलन में अमेरिका ने भारत को क्रायोजेनिक इंजन प्रणाली न बेचने के लिए भारत पर दबाव डाला। मई, 1994 में भारत के प्रधानमन्त्री नरसिम्हा राव अमेरिका की यात्रा पर गए। संयुक्त विज्ञप्ति में यह कहा जाना कि दोनों देश परमाणु आयुधों को संसार से खत्म करने या मिटाने के लिए काम करेंगे, वास्तव में भारतीय दृष्टिकोण है।
भारत के परमाणु परीक्षण तथा भारत-अमेरिका सम्बन्ध-भारत ने 11 मई, 1998 को तीन और 13 मई को दो परमाणु परीक्षण किए। 13 मई, 1998 को अमेरिका ने

भारत के परमाणु परीक्षणों की निंदा की और भारत के विरुद्ध आर्थिक प्रतिबन्धों की घोषणा की। अमेरिकन राष्ट्रपति बिल क्लिटन ने भारत की वाजपेयी सरकार को व्यापक परीक्षण प्रतिबन्ध सन्धि (सी० टी० बी० टी०) पर तुरन्त और बिना शर्त हस्ताक्षर करने को कहा। उन्होंने कहा कि भारत के परमाणु परीक्षण अनुचित हैं और इससे एशिया में हथियारों की खतरनाक होड़ शुरू होने का खतरा है। 13 जून, 1998 को प्रधानमन्त्री वाजपेयी के विशेष दूत जसवंत सिंह ने वाशिंगटन में अमेरिकी विदेश उपमन्त्री स्ट्रोब टालबोट के साथ वार्ता करने के बाद कहा कि परीक्षणों को लेकर अमेरिकी समझ बेहतर हुई है।

भारत-अमेरिका की आतंकवाद विरोधी संयुक्त कार्यकारी समूह (Joint Working Group on Counterterrorism)-19 जनवरी, 1999 को भारतीय विदेश मन्त्री जसवंत सिंह और अमेरिकी विदेश उप-सचिव स्ट्रोब टालबोट की लंदन में मुलाकात हुई। दोनों पदाधिकारियों ने आतंकवादी हिंसा को रोकने के लिए इस बात पर सहमति जताई कि दोनों देशों को आतंकवाद विरोधी कार्यकारी समूह स्थापित करना चाहिए। इन मुलाकातों से निश्चित रूप से भारत और अमेरिकी सम्बन्धों में सहयोग की आशा की जा सकती है।

अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिटन की भारत यात्रा-21 मार्च, 2000 को अमेरिकन राष्ट्रपति बिल क्लिटन पांच दिन के लिए भारत की सरकारी यात्रा पर आए। इस यात्रा के दौरान अमेरिका एवं भारत ने आर्थिक क्षेत्र पर अनेक समझौतों पर हस्ताक्षर किए। इसके अतिरिक्त भारत अमेरिकी सम्बन्धों की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिए विज़न-2000 नामक दस्तावेज़ पर भी हस्ताक्षर किये गए। अमेरिकी राष्ट्रपति की इस यात्रा से भारत-अमेरिकी सम्बन्धों में एक नए युग का सूत्रपात हुआ है।

भारतीय प्रधानमन्त्री अटल बिहारी वाजपेयी की अमेरिका यात्रा-8 सितम्बर, 2000 को भारतीय प्रधानमन्त्री अटल बिहारी वाजपेयी अमेरिका की यात्रा पर गए। अपने लम्बे व्यस्त कार्यक्रम में प्रधानमन्त्री वाजपेयी ने अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिटन सहित अनेक प्रमुख नेताओं और व्यापारिक संस्थाओं से बातचीत की। इस दौरान आपसी हित के विभिन्न विषयों पर व्यापक बातचीत हुई।

भारत के प्रधानमन्त्री की अमेरिका यात्रा-नवम्बर, 2001 में भारत के प्रधानमन्त्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अमेरिका की यात्रा की। वाजपेयी ने अमेरिका के राष्ट्रपति जार्ज बुश के साथ शिखर वार्ता के दौरान आतंकवाद के खिलाफ लडने, नई रणनीतिक योजना बनाने, परमाणु क्षेत्र में शान्तिपूर्ण उद्देश्यों के लिए संयुक्त रूप से कार्य करने, सुरक्षा सहयोग को बढ़ाने एवं अफ़गानिस्तान के अच्छे भविष्य के लिए मिलकर काम करने की बात की।

भारतीय प्रधानमन्त्री की अमेरिका यात्रा-सितम्बर, 2004 में संयुक्त राष्ट्र के वार्षिक अधिवेशन में भाग लेने के लिए भारतीय प्रधानमन्त्री डॉ० मनमोहन सिंह अमेरिकी यात्रा पर गए। यात्रा के दौरान डॉ. मनमोहन सिंह ने अमेरिकन राष्ट्रपति जार्ज बुश से भेंट करके द्विपक्षीय मुद्दों के अतिरिक्त आतंकवाद के विरुद्ध अंतर्राष्ट्रीय संघर्ष, व्यापक जनसंहार के हथियारों के प्रसार पर अंकुश व भारत-पाकिस्तान सम्बन्धों पर विचार-विमर्श किया।

प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह की अमेरिका यात्रा-भारत के प्रधानमन्त्री डॉ० मनमोहन सिंह 17 जुलाई, 2005 को अमेरिका की यात्रा पर गए, जो भारत-अमेरिका के सम्बन्धों में मील का पत्थर सिद्ध हुई। भारत और अमेरिका के बीच सबसे महत्त्वपूर्ण समझौता परमाणु शक्ति से सम्बन्धित है। अमेरिका ने यह स्वीकार कर लिया है, कि “भारत अत्याधुनिक परमाणु शक्ति सम्पन्न ज़िम्मेदार देश है।” अमेरिका परमाणु शक्ति के असैनिक उपयोग के क्षेत्र में भारत के साथ सहयोग करेगा तथा उस पर लगे प्रतिबन्धों को हटा लेगा।

अमेरिकन राष्ट्रपति की भारत यात्रा-मार्च, 2006 में अमेरिका के राष्ट्रपति जार्ज बुश भारत की ऐतिहासिक यात्रा पर आए। इस यात्रा के अवसर पर दोनों देशों के बीच असैनिक परमाणु समझौते के अतिरिक्त कृषि, विज्ञान एवं आर्थिक क्षेत्रों में भी समझौता हुआ। अमेरिकन राष्ट्रपति ने भारत के साथ और अधिक अच्छे सम्बन्धों की वकालत की।

भारतीय प्रधानमन्त्री की अमेरिका यात्रा-सितम्बर, 2008 में भारतीय प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह ने संयुक्त राष्ट्र के वार्षिक सम्मेलन में भाग लेने के लिए अमेरिका की यात्रा की। इस यात्रा के दौरान डॉ. मनमोहन सिंह ने अमेरिका के राष्ट्रपति जार्ज बुश से भी मुलाकात की। इस यात्रा के दौरान दोनों देशों के नेताओं ने द्विपक्षीय व्यापार, विश्व आतंकवाद तथा असैन्य परमाणु समझौते पर विचार-विमर्श किया।
भारतीय विदेश मन्त्री की अमेरिका यात्रा-अक्तूबर, 2008 में भारतीय विदेश मन्त्री प्रणव मुखर्जी ने असैन्य परमाणु समझौते (Civil Nuclear Deal) पर बातचीत करने के लिए अमेरिका की यात्रा की।

भारत-अमेरिका के बीच असैन्य परमाणु समझौता-नई दिल्ली में 11 अक्तूबर, 2008 को प्रणव मुखर्जी एवं अमेरिका की विदेश मन्त्री कोंडालीजा राइस ने असैन्य परमाणु समझौते पर हस्ताक्षर किए।

भारतीय प्रधानमन्त्री की अमेरिका यात्रा-नवम्बर, 2009 में भारतीय प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह ने अमेरिका की यात्रा की तथा अमेरिकन राष्ट्रपति बराक ओबामा से द्विपक्षीय बातचीत की। दोनों देशों ने सांझा बयान जारी करते हुए अफगानिस्तान एवं पाकिस्तान में से आतंकी ठिकानों को समाप्त करने की घोषणा की ।

अमेरिकी राष्ट्रपति की भारत यात्रा-अमेरिका के राष्ट्रपति बराक हुसैन ओबामा ने 6-8 अक्तूबर, 2010 तक भारत की यात्रा की। इस यात्रा के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता के दावे का समर्थन किया। इसी यात्रा के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति ने भारतीय और अमेरिकी कम्पनियों के बीच 10 अरब डालर के व्यापारिक करार की घोषणा भी की।

सितम्बर, 2013 में संयुक्त राष्ट्र संघ के वार्षिक सम्मेलन में भाग लेने के लिए भारतीय प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह ने अमेरिका की यात्रा की। इस यात्रा के दौरान उन्होंने अमेरिकन राष्ट्रपति बराक ओबामा के साथ द्विपक्षीय बैठक में भाग लिया, जिसमें दोनों नेताओं ने एच-I वी वीज़ा, नागरिक परमाणु समझौते एवं सामरिक सहयोग पर बाचचीत की।

भारतीय प्रधानमंत्री की अमेरिकी यात्रा-सितम्बर 2014 में भारतीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने अमेरिका की यात्रा की। इस यात्रा के दौरान उन्होंने संयुक्त राष्ट्र महासभा को सम्बोधित करने के साथ ही अमेरिकन राष्ट्रपति ओबामा से भी महत्त्वपूर्ण मुलाकात की। इस मुलाकात के दौरान दोनों ने कहा कि आतंकवाद के महफूज ठिकानों को नष्ट करने के साथ ही दाऊद को भारत लाने की कोशिश की जायेगी।

सितम्बर 2015 में भारतीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने अमेरिका की यात्रा की। इन दौरान दोनों देशों ने सामारिक सांझेदारी को और बेहतर बनाने का निर्णय किया और सुरक्षा, आतंकवाद एवं कट्टरवाद से निपटने, रक्षा, आर्थिक सांझेदारी तथा जलवायु परिवर्तन पर सहयोग को और गति देने पर सहमति व्यक्त की।

अमेरिकन राष्ट्रपति की भारत यात्रा-जनवरी, 2015 में अमेरिकन राष्ट्रपति बराक ओबामा भारत की तीन दिन की यात्रा पर आए। ओबामा ऐसे पहले राष्ट्रपति थे जो 26 जनवरी की गणतंत्र परेड में मुख्य अतिथि बने। इस यात्रा के दौरान दोनों देशों ने नागरिक परमाणु समझौते पर पूर्ण रूप से हस्ताक्षर किये। इसके अतिरिक्त रक्षा, स्वच्छ तथा अक्षय उर्जा एवं चार अर्न्तराष्ट्रीय निर्यात नियन्त्रण व्यवस्थाओं में भारत को सदस्यता दिलाने सम्बन्धी समझौता हुआ। अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद् में भारत की स्थायी सदस्यता के दावे का भी समर्थन किया।

जून 2016 तथा 2017 में भारतीय प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी ने अमेरिका की यात्रा की। इस यात्रा के दौरान दोनों देशों ने व्यापार, आतंकवाद, क्षेत्रीय सुरक्षा, स्वच्छ ऊर्जा तथा जलवायु परिवर्तन जैसे मुद्दों पर बातचीत की।

निष्कर्ष-भारत एवं अमेरिका पिछले कुछ वर्षों में बहुत अधिक निकट आए हैं। दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक सम्बन्ध हैं, आर्थिक क्षेत्र एवं रक्षा क्षेत्र में भी सहयोग बढ़ा है। भारत और अमेरिका के सम्बन्धों में काफ़ी नज़दीकी आई है। भारत के प्रति अमेरिकी सोच में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हो रहा है।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 22 भारत के अमेरिका एवं रूस से सम्बन्ध

प्रश्न 2.
भारत-रूस सम्बन्धों का विस्तार सहित वर्णन करो। (Describe in detail Indo-Russia Relations.)
अथवा
भारत-रूस सम्बन्ध के स्वरूप की विवेचना कीजिए। (Discuss the nature of relationship between India and Russia.)
उत्तर-
सन् 1991 में भूतपूर्व सोवियत संघ का विघटन हो गया और उसके 15 गणराज्यों ने स्वयं को स्वतन्त्र राज्य घोषित कर दिया। रूस भी इन्हीं में से एक है। फरवरी, 1992 में भारतीय प्रधानमन्त्री नरसिम्हा राव ने रूस के राष्ट्रपति बोरिस येल्तसिन को विश्वास दिलाया कि भारत के साथ रूस के सम्बन्ध में कोई गिरावट नहीं आएगी और वे पहले की ही तरह मित्रवत् और सहयोग पूर्ण बने रहेंगे। आज भारत और रूस में घनिष्ठ सम्बन्ध हैं। रूस के राष्ट्रपति बोरिस येल्तसिन तीन दिन की ऐतिहासिक यात्रा पर 27 जनवरी, 1993 को दिल्ली पहुंचे। राष्ट्रपति येल्तसिन और प्रधानमन्त्री नरसिम्हा राव वार्ता में मुख्यत: आर्थिक एवं व्यापारिक विवादों के समाधान और द्विपक्षीय सहयोग के लिए एजंडे पर विशेष जोर दिया गया। दोनों देशों के बीच 10 समझौते हुए जिनमें रुपया-रूबल विनिमय दर तथा कर्जे की मात्रा व भुगतान सम्बन्धी जटिल समस्याओं पर हुआ समझौता विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। दोनों देशों में 20 वर्ष के लिए मैत्री एवं सहयोग की सन्धि हुई। यह सन्धि 1971 की सन्धि से उस रूप से भिन्न है कि इसमें सामरिक सुरक्षा सम्बन्धी उपबन्ध शामिल नहीं हैं। लेकिन 14 उपबन्धों वाली इस नई सन्धि में यह प्रावधान अवश्य रखा गया है कि दोनों देश ऐसा कोई काम नहीं करेंगे जिससे एक-दूसरे के हितों पर आंच आती है। वाणिज्य तथा आर्थिक सम्बन्धों के संवर्धन के लिए चार समझौते सम्पन्न हुए। इन समझौतों से व्यापार में भारी वृद्धि की आशा की गई है। भारत रूस समझौतों से रूस को निर्यात करने वाले भारतीय व्यापारियों की परेशानी भी दूर हो गई है। भारतीय सेनाओं के लिए रक्षा कलपुर्जी की नियमित सप्लाई सुनिश्चित करने के लिए रूसी राष्ट्रपति द्वारा प्रस्तुत त्रिसूत्रीय फार्मला दोनों देशों ने स्वीकार कर लिया। इस सहमति से भारत को रूस की रक्षा उपकरणों और प्रौद्योगिकी प्राप्त होगी और संयुक्त उद्यमों में भी उसकी भागीदारी होगी। राजनीतिक स्तर पर राष्ट्रपति येल्तसिन तथा प्रधानमन्त्री नरसिम्हा राव की सहमति भारत की सबसे बड़ी राजनीतिक सफलता है। रूसी राष्ट्रपति ने कश्मीर के मामले पर भारत की नीति का पूर्ण समर्थन किया और यह वचन दिया कि रूस पाकिस्तान को किसी भी तरह की तकनीकी तथा सामरिक सहायता नहीं देगा। रूस संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् में भी कश्मीर के मुद्दे पर भारत को समर्थन प्रदान करेगा। सुरक्षा परिषद् की स्थायी सदस्य के लिए भी रूस भारत के दावे का समर्थन करेगा।

भारत के प्रधानमन्त्री की रूस यात्रा-29 जून, 1994 को भारत के प्रधानमन्त्री श्री पी० वी० नरसिम्हा राव रूस की यात्रा पर गए। भारत और रूस के मध्य वहां आपसी सहयोग व सैनिक सहयोग के क्षेत्र में 11 समझौते हुए। प्रधानमन्त्री राव की इस यात्रा से भारत और रूस के मध्य नवीनतम तकनीक के आदान-प्रदान के क्षेत्र पर बल दिया गया।

रूस के प्रधानमन्त्री की भारत यात्रा-दिसम्बर, 1994 में रूस के प्रधानमन्त्री विक्टर चेरनोमिर्दिन भारत की यात्रा पर आए। भारत और रूस के बीच आठ समझौते हुए, इन समझौतों में सैनिक और तकनीकी सहयोग भी शामिल हैं। इन समझौतों का भविष्य की दृष्टि से अत्यधिक महत्त्व है।

प्रधानमन्त्री एच० डी० देवगौड़ा की रूस यात्रा-मार्च, 1997 में भारत के प्रधानमन्त्री एच० डी० देवगौड़ा रूस गए। उन्होंने रूस के राष्ट्रपति येल्तसिन और प्रधानमन्त्री चेरनोमिर्दिन से बातचीत कर परम्परागत मित्रता बढ़ाने के लिए कई उपायों पर द्विपक्षीय सहमति हासिल की। रूस ने भारत को परमाणु रिएक्टर देने के पुराने निर्णय को पुष्ट किया।

परमाणु परीक्षण-11 मई, 1998 को भारत ने तीन और 13 मई को दो परमाणु परीक्षण किए। अमेरिका ने भारत के विरुद्ध आर्थिक प्रतिबन्ध लगाए जिसकी रूस ने कटु आलोचना की। 21 जून, 1998 को रूस के परमाणु ऊर्जा मन्त्री देवगेनी अदामोव और भारत के परमाणु ऊर्जा आयोग के अध्यक्ष डॉ० आर० चिदम्बरम ने नई दिल्ली में तमिलनाडु के कुरनकुलम में अढ़ाई अरब डालर की लागत में बनने वाले परमाणु ऊर्जा संयन्त्र के सम्बन्ध में समझौता किया।
रूस के प्रधानमन्त्री की भारत यात्रा-दिसम्बर, 1998 में रूस के प्रधानमन्त्री प्रिमाकोव भारत की यात्रा पर आए। 21 दिसम्बर, 1998 को दोनों देशों ने आपसी सहयोग के सात समझौतों पर हस्ताक्षर किए। दोनों देशों के रक्षा सहयोग की अवधि सन् 2000 से 2010 तक बढ़ाने का निर्णय किया।

रूस के राष्ट्रपति की भारत यात्रा-अक्तूबर, 2000 में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन भारत की यात्रा पर आए। दोनों देशों ने अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद, विघटनवाद, संगठित मज़हबी अपराध और मादक पदार्थों की तस्करी के खिलाफ़ सहयोग करने पर भी सहमति जताई। दोनों देशों ने आपसी हित के 17 विभिन्न विषयों पर समझौते किए। इनमें सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण समझौता सामरिक भागीदारी का घोषणा-पत्र रहा।

भारत के प्रधानमन्त्री की रूस यात्रा-नवम्बर, 2001 में भारत के प्रधानमन्त्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी रूस यात्रा पर गए। वाजपेयी एवं रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने शिखर वार्ता करके ‘मास्को घोषणा पत्र’ जारी किया जिसमें आतंकवाद के खिलाफ लड़ने की बात कही गई। रूस ने सुरक्षा परिषद् में भारत की स्थायी सदस्यता के दावे का भरपूर समर्थन किया। इसके अतिरिक्त अन्य कई क्षेत्रों में भी दोनों देशों के बीच समझौते हुए।

रूस के उप-प्रधानमन्त्री की भारत यात्रा-फरवरी, 2002 के रूस के उप-प्रधानमन्त्री भारत यात्रा पर आए। इस यात्रा के दौरान दोनों देशों ने द्विपक्षीय व्यापार को नई गति देने के लिए एक प्रोटोकोल पर हस्ताक्षर किये। इसके साथ ही भारत ने रूस से स्मर्क मल्टी-बैरन रॉकेट लांचर खरीदने और रूस निर्मित 877 ई के० एम० पारस्परिक पनडुबियों को उन्नत बनाने के समझौते किए।

20 जनवरी, 2004 को नई दिल्ली में रूस एवं भारत के रक्षा मन्त्रियों ने बहु-प्रतीक्षित विमान वाहक पोत गोर्खकोव समझौते पर हस्ताक्षर किए।
रूस के राष्ट्रपति की भारत यात्रा-दिसम्बर, 2004 में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन भारत यात्रा पर आए। व्लादिमीर पुतिन ने संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद् में वीटो सहित भारत की स्थायी सदस्यता का समर्थन किया।

भारत के प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह की रूस यात्रा- भारत के प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह दिसम्बर, 2005 में रूस की यात्रा पर गए। दोनों देशों के बीच तीन महत्त्वपूर्ण समझौते हुए

  1. रक्षा के क्षेत्र में हुए बौद्धिक सम्पदा अधिकार समझौते के तहत संयुक्त रक्षा कार्यों की निगरानी करना।
  2. दूसरा समझौता सौर भौतिकी के क्षेत्र में हुआ है।
  3. तीसरा समझौता ग्लोबल नेविगेशन सिस्टम के सन्दर्भ में तकनीकी सुरक्षा से सम्बन्धित हुआ। ये समझौता अमेरिका के ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम के विकल्प के तौर पर काम करेगा।

नवम्बर, 2007 में भारत के प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह तीन दिन की रूस यात्रा पर गए। प्रधानमन्त्री ने रूसी राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन के साथ वार्षिक बैठक में भाग लिया। दोनों देशों ने रक्षा सहयोग को और अधिक बढ़ाने के अतिरिक्त द्विपक्षीय व्यापार को 2010 तक 10 बिलियन डालर तक ले जाने की सहमति प्रकट की।

रूसी प्रधानमन्त्री की भारत यात्रा-फरवरी, 2008 में रूसी प्रधानमन्त्री विक्टर ए० जुबकोव (Victor A. Zubkov) दो दिवसीय भारत यात्रा पर आए। इस यात्रा के दौरान दोनों देशों ने समझौतों पर हस्ताक्षर किए।

रूसी राष्ट्रपति की भारत यात्रा-दिसम्बर, 2008 में रूसी राष्ट्रपति दिमित्री मेदवेदेव भारत यात्रा पर आए। मेदवेदेव ने 26 नवम्बर, 2008 को मुम्बई में हुए आतंकवादी हमले की कड़ी निन्दा की। इस यात्रा के दौरन दोनों देशों ने महत्त्वपूर्ण समझौतों पर हस्ताक्षर किए।

भारतीय प्रधानमन्त्री की रूस यात्रा-दिसम्बर, 2009 में भारत के प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह रूस यात्रा पर गए तथा रूसी राष्ट्रपति दिमित्री मेदवेदेव के साथ वार्षिक बैठक में भाग लिया । इस यात्रा के दौरान दोनों देशों ने रक्षा, आर्थिक एवं सांस्कृतिक सहोयग बढ़ाने पर जोर दिया ।

रूसी प्रधामन्त्री की भारत-यात्रा-मार्च, 2010 में रूसी प्रधानमन्त्री श्री ब्लादिमीर पुतिन भारत यात्रा पर आए। इस यात्रा के दौरान दोनों देशों ने सुरक्षा एवं सहयोग के पांच समझौतों पर हस्ताक्षर किये।

रूसी राष्ट्रपति की भारत यात्रा-दिसम्बर, 2010 में रूसी राष्ट्रपति श्री दिमित्री मेदवेदेव भारत-रूस वार्षिक शिखर बैठक में भाग लेने के लिए भारत आए। इस यात्रा के दौरान दोनों देशों ने 30 समझौतों पर हस्ताक्षर किए।

भारतीय प्रधानमन्त्री की रूस यात्रा-दिसम्बर, 2011 में भारतीय प्रधानमन्त्री डॉ० मनमोहन सिंह भारत-रूस वार्षिक शिखर बैठक में भाग लेने के लिए रूस गए। इस यात्रा के दौरान दोनों देशों ने पारस्परिक सहयोग के चार समझौतों पर हस्ताक्षर किए।

रूसी राष्ट्रपति की भारत यात्रा-दिसम्बर, 2012 में रूसी राष्ट्रपति श्री ब्लादिमीर पुतिन भारत-रूस वार्षिक शिखर बैठक में भाग लेने भारत आए। इस यात्रा के दौरान दोनों देशों ने सहयोग एवं रक्षा के 10 समझौतों पर हस्ताक्षर किये।

भारतीय प्रधानमन्त्री की रूस यात्रा- अक्तूबर, 2013 में भारतीय प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह ने भारत-रूस वार्षिक शिखर बैठक में भाग लेने के लिए रूस की यात्रा की। इस यात्रा के दौरान दोनो देशों ने रॉकेट, मिसाइल, नौसेना, प्रौद्योगिकी और हथियार प्रणाली के क्षेत्र में सहयोग को और बढ़ाने पर सहमति व्यक्त की।

रूसी राष्ट्रपति की भारत यात्रा-दिसम्बर 2014 में रूसी राष्ट्रपति श्री बलादिमीर पुतिन भारत-रूस वार्षिक शिखर बैठक में भाग लेने के लिए भारत आए। इस यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच सुरक्षा, आर्थिक एवं सांस्कृतिक क्षेत्र से सम्बन्धित महत्त्वपूर्ण समझौते हुए।
भारतीय प्रधानमंत्री की रूस यात्रा-दिसम्बर, 2015 में भारतीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने रूस की यात्रा की। इस यात्रा के दौरान दोनों देशों ने रक्षा एवं सहयोग के 16 समझौतों पर हस्ताक्षर किये। अक्तूबर 2016 में रूस के राष्ट्रपति श्री ब्लादिमीर पुतिन ‘ब्रिक्स’ (BRICS) सम्मेलन में भाग लेने के लिए भारत यात्रा पर आए। इस दौरान दोनों ने 16 समझौतों पर हस्ताक्षर किये।

जून 2017 में भारतीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी रूस यात्रा पर गए। इस दौरान दोनों देशों ने 5 समझौतों पर हस्ताक्षर किए।

अक्तूबर, 2018 में रूसी राष्ट्रपति श्री व्लादिमीर पुतिन वार्षिक शिखर वार्ता के लिए भारत यात्रा पर आए। इस यात्रा के दौरान दोनों देशों ने आठ महत्त्वपूर्ण समझौतों पर हस्ताक्षर किए।
नि:संदेह भारत और रूस में मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध स्थापित हो चुके हैं। कुंडकुलम परमाणु ऊर्जा परियोजना इस के सहयोग का ही परिणाम है। असैनिक परमाणु परियोजनाओं में रूस की भागीदारी के वायदे और बहुउद्देशीय परिवहन विमान और पांचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमान के निर्माण में उसकी मदद की घोषणा को जोड़ ले तो भारत और रूस मित्रता की धारणा की ही पुष्टि होती है। रूस पुरानी मित्रता को निरन्तर निभा रहा है और यह निर्विवाद है कि भारत और रूस के बीच विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग बढ़ने से दोनों देशों की ताकत बढ़ेगी।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 22 भारत के अमेरिका एवं रूस से सम्बन्ध

लघु उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
भारत-अमेरिका सम्बन्धों में आए सकारात्मक मोड़ के लिए जिम्मेवार चार कारण लिखिए।
उत्तर-
भारत-अमेरिका सम्बन्धों में आए सकारात्मक मोड़ के लिए ज़िम्मेदार तीन कारण अग्रलिखित हैं-

  1. शीत युद्ध की समाप्ति-भारत-अमेरिका सम्बन्धों में आए सकारात्मक मोड़ के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण कारण शीत युद्ध की समाप्ति है।
  2. आतंकवाद की समस्या-दोनों ही देश आतंकवाद से ग्रसित है, अतः इस समस्या के समाधान के लिए भी दोनों देश नज़दीक आए हैं।
  3. जार्ज बुश की भारत के प्रति विशेष रुचि-भारत-अमेरिका सम्बन्धों में आए सकारात्मक मोड़ के लिए अमेरिका के भूतपूर्व राष्ट्रपति जार्ज बुश की भारत के प्रति विशेष रुचि रही है। उनके प्रयासों से ही भारत-अमेरिका के बीच असैनिक परमाणु समझौता हो सका।
  4. अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर आए परिवर्तनों के कारण भी भारत-अमेरिका के सम्बन्धों में सकारात्मक परिवर्तन आया है।

प्रश्न 2.
भारत-अमेरिका परमाणु सन्धि पर नोट लिखिए।
अथवा
भारत-अमेरिका परमाणु सन्धि क्या है ?
अथवा
भारत-अमेरिका परमाणु समझौता क्या है ?
उत्तर-
भारत-अमेरिका परमाणु सन्धि 2005 में हुई। इस सन्धि पर भारत के प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह तथा अमेरिका के राष्ट्रपति जार्ज बुश ने हस्ताक्षर किए। इस सन्धि का मुख्य उद्देश्य भारत द्वारा अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं की पूर्ति करना था। इस सन्धि के अन्तर्गत 2020 तक कम-से-कम 20000 मेगावाट अतिरिक्त बिजली उत्पादन का लक्ष्य रखा गया है। भारत ने इस सन्धि के अन्तर्गत अपने 14 परमाणु रिएक्टर अन्तर्राष्ट्रीय निगरानी के लिए खोल दिए हैं। 6 सितम्बर, 2008 को इस सन्धि को परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (N.S.G.) की भी स्वीकृति मिल जाने के बाद 11 अक्तूबर, 2008 को भारत के विदेश मन्त्री प्रणव मुखर्जी तथा अमेरिका की विदेश मन्त्री कोंडालीजा राइस ने इस पर हस्ताक्षर करके इसे लागू कर दिया। जनवरी, 2015 में अमेरिकन राष्ट्रपति बराक ओबामा की भारत यात्रा के समय इस समझौते को पूर्ण रूप से व्यावहारिक रूप दे दिया गया।

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प्रश्न 3.
1971 की भारत सोवियत संघ की सन्धि की मुख्य व्यवस्थाएं क्या थी ?
उत्तर-
1971 की भारत सोवियत संघ की मुख्य व्यवस्थाएं इस प्रकार थीं-

  1. एक-दूसरे की प्रभुसत्ता तथा अखण्डता का सम्मान करना।
  2. पूर्ण नि:शस्त्रीकरण के बारे में प्रयास करना।
  3. उपनिवेशवाद तथा प्रजातीय भेदभाव की समाप्ति के लिए प्रयास करना।
  4. एक दोनों के विरुद्ध सैनिक सन्धि में शामिल न होना।
  5. यदि दोनों देशों में किसी एक देश के विरुद्ध अन्य देश युद्ध की घोषणा करता है तो दूसरा देश आक्रमणकारी देश की कोई मदद नहीं करेगा। यदि दोनों देशों में से किसी एक पर आक्रमण हो जाता है तो उस आक्रमण को टालने के लिए दोनों देश आपस में विचार-विमर्श करेंगे।

प्रश्न 4.
रूस-भारत मित्रता के लिए जिम्मेवार मुख्य कारण लिखिए।
उत्तर-
रूस-भारत मित्रता के लिए निम्नलिखित कारण ज़िम्मेदार हैं

  • रूस-भारत मित्रता के लिए दोनों देशों में पाए गए परस्पर रक्षा सम्बन्ध हैं।
  • रूस एवं भारत में मित्रता के लिए आर्थिक एवं व्यापार क्षेत्र में सहयोग प्रमुख कारण है।
  • रूस एवं भारत आतंकवाद के मुद्दे पर एक हैं।
  • अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर होने वाले परिवर्तन भी रूस-भारत की मित्रता के लिए जिम्मेदार है।

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अति लघु उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
भारत-अमेरिका सम्बन्धों में सुधार के लिए जिम्मेवार दो कारण लिखिए।
उत्तर-

  1. शीत युद्ध की समाप्ति-भारत-अमेरिका सम्बन्धों में आए सकारात्मक मोड़ के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण कारण शीत युद्ध की समाप्ति है।
  2. आतंकवाद की समस्या-दोनों ही देश आतंकवाद से ग्रसित हैं, अतः इस समस्या के समाधान के लिए भी दोनों देश नज़दीक आए हैं।

प्रश्न 2.
भारत-अमेरिका परमाणु सन्धि पर नोट लिखिए।
उत्तर-
भारत-अमेरिका परमाणु सन्धि मार्च, 2006 में हुई। इस सन्धि पर भारत के प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह तथा अमेरिका के राष्ट्रपति जार्ज बुश ने हस्ताक्षर किए। इस सन्धि का मुख्य उद्देश्य भारत द्वारा अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं की पूर्ति करना था। 6 सितम्बर, 2008 को इस सन्धि को परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (N.S.G.) की भी स्वीकृति मिल जाने के बाद 11 अक्तूबर, 2008 को भारतीय विदेश मन्त्री प्रणव मुखर्जी तथा अमेरिका की विदेश मन्त्री कोंडालीजा राइस ने इस पर हस्ताक्षर किये। अन्ततः जनवरी, 2015 में अमेरिकन राष्ट्रपति की भारत यात्रा के दौरान इस समझौते में आने वाली बाधाओं को दूर किया गया।

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प्रश्न 3.
1971 की भारत सोवियत संघ समझौते की दो मुख्य व्यवस्थाएं क्या थीं?
उत्तर-

  1. एक-दूसरे की प्रभुसत्ता तथा अखण्डता का सम्मान करना।
  2. पूर्ण नि:शस्त्रीकरण के बारे में प्रयास करना।।

प्रश्न 4.
रूस-भारत मित्रता के लिए जिम्मेवार मुख्य कारण लिखिए।
उत्तर-

  1. रूस-भारत मित्रता के लिए दोनों देशों में पाए गए परस्पर रक्षा सम्बन्ध हैं।
  2. रूस एवं भारत में मित्रता के लिए आर्थिक एवं व्यापार क्षेत्र में सहयोग प्रमुख कारण है।

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वस्तुनिष्ठ प्रश्न-

प्रश्न I. एक शब्द वाक्य वाले प्रश्न-उत्तर

प्रश्न 1.
सोवियत संघ के विघटन के समय सोवियत संघ का राष्ट्रपति कौन था ?
उत्तर-
सोवियत संघ के विघटन के समय सोवियत संघ का राष्ट्रपति श्री मिखाइल गोर्बाच्योव थे।

प्रश्न 2.
भारत-अमेरिका के बीच सम्बन्धों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
भारत-अमेरिका के बीच सम्बन्ध वर्तमान समय में मित्रतापूर्ण हैं।

प्रश्न 3.
1, 2, 3 परमाणु संधि कौन-से दो देशों की बीच हुई ?
उत्तर-
1, 2, 3 परमाणु संधि भारत एवं संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच हुई।

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प्रश्न 4.
1971 के भारत-पाक युद्ध में अमेरिका का क्या दृष्टिकोण था ?
उत्तर-
1971 के भारत-पाक युद्ध में अमेरिका ने खुल कर पाकिस्तान का साथ दिया था तथा भारत पर हर प्रकार का दबाव डाला था।

प्रश्न 5.
अमेरिका का गुटनिरपेक्षता की नीति के प्रति क्या दृष्टिकोण था ?
उत्तर-
अमेरिका ने गुट निरपेक्षता की नीति को कभी भी पसन्द नहीं किया। अमेरिका चाहता था कि भारत सदैव उसकी नीतियों का समर्थन करे, जोकि भारत को पसन्द नहीं था।

प्रश्न 6.
1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में अमेरिका का क्या दृष्टिकोण था ?
उत्तर-
1965 के भारत पाकिस्तान युद्ध में प्रत्यक्ष रूप से किसी का समर्थन नहीं किया, परन्तु अप्रत्यक्ष रूप से वह पाकिस्तान के साथ था, क्योंकि पाकिस्तान ने अमेरिका से प्राप्त हथियारों से ही युद्ध लड़ा था।

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प्रश्न 7.
भारत-अमेरिका परमाणु सन्धि कब हुई ?
अथवा
भारत-अमेरिका परमाणु समझौता कब लागू किया गया ?
उत्तर-
भारत-अमेरिका परमाणु सन्धि 11 अक्तूबर, 2008 को हुई।

प्रश्न 8.
भारत और अमेरिका के बीच हुए परमाणु समझौते का क्या अर्थ है ?
उत्तर-
भारत और अमेरिका के बीच हुए परमाणु समझौते के कारण दोनों देश परमाणु क्षेत्र में परस्पर सहयोग कर सकते हैं।

प्रश्न 9.
भारत और रूस सम्बन्धों में तनाव का कारण लिखिए।
उत्तर-
भारत और रूस सम्बन्धों में तनाव का महत्त्वपूर्ण कारण भारत और अमेरिका के मजबूत होते सम्बन्ध हैं।

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प्रश्न II. खाली स्थान भरें-

1. सोवियत संघ के विघटन के समय ………… राष्ट्रपति थे।
2. भारत को हथियारों की सबसे अधिक आपूर्ति ……….. करता है।
3. भारत एवं ……….. के बीच 28 जून, 2005 को दस वर्षीय समझौता हुआ।
4. 2015 में अमेरिका के राष्ट्रपति श्री ………. भारत यात्रा पर आए।
5. रूस के वर्तमान राष्ट्रपति श्री …………….. हैं।
उत्तर-

  1. मिखाइल गोर्बाचेव
  2. रूस
  3. अमेरिका
  4. बराक हुसैन ओबामा
  5. व्लादिमीर पुतिन।

प्रश्न III. निम्नलिखित वाक्यों में से सही एवं ग़लत का चुनाव करें-

1. भारत के रूस से सदैव ही अच्छे सम्बन्ध रहे हैं।
2. भारत के अमेरिका से हमेशा मित्रतापूर्ण सम्बन्ध रहे हैं।
3. वर्तमान समय में भारत-अमेरिका सम्बन्ध सुधर रहे हैं।
4. मार्च, 2006 में भारत-अमेरिका के बीच असैनिक परमाणु समझौता हुआ।
उत्तर-

  1. सही
  2. ग़लत
  3. सही
  4. सही।

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प्रश्न IV. बहुविकल्पीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
भारत के किस प्रधानमन्त्री ने सर्वप्रथम अमेरिका की यात्रा की ?
(क) डॉ० राजेन्द्र प्रसाद
(ख) श्रीमती इंदिरा गांधी
(ग) श्री लाल बहादुर शास्त्री
(घ) पं० जवाहर लाल नेहरू।
उत्तर-
(घ) पं० जवाहर लाल नेहरू।

प्रश्न 2.
निम्न में किस अमेरिकन राष्ट्रपति ने सर्वप्रथम भारत की यात्रा की
(क) बिल क्लिंटन
(ख) कैनेडी.
(ग) आइजनहावर
(घ) जिमी कार्टर।
उत्तर-
(ग) आइजनहावर

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प्रश्न 3.
अक्तूबर 1962 में जब चीन ने भारत पर आक्रमण किया तब निम्न में से किस देश ने भारत को सहायता दी
(क) अमेरिका
(ख) पाकिस्तान
(ग) श्रीलंका
(घ) उपरोक्त में से कोई नहीं।
उत्तर-
(क) अमेरिका

प्रश्न 4.
अमेरिकन राष्ट्रपति जिमी कार्टर कब भारत यात्रा पर आए?
(क) 1 जनवरी, 1980
(ख) 15 अगस्त, 1978
(ग) 1 जनवरी, 1978
(घ) 26 जनवरी, 19801
उत्तर-
(ग) 1 जनवरी, 1978

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प्रश्न 5.
भारत-पाक के बीच ताशकंद समझौता करवाने में किसने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई ?
(क) अमेरिकन राष्ट्रपति कैनेडी
(ख) सोवियत नेता
(ग) फ्रांस के राष्ट्रपति
(घ) ब्रिटिश नेता।
उत्तर-
(ख) सोवियत नेता

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 21 भारत एवं उसके पड़ोसी देश : नेपाल, श्रीलंका, चीन, बंगलादेश एवं पाकिस्तान

Punjab State Board PSEB 12th Class Political Science Book Solutions Chapter 21 भारत एवं उसके पड़ोसी देश : नेपाल, श्रीलंका, चीन, बंगलादेश एवं पाकिस्तान Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Political Science Chapter 21 भारत एवं उसके पड़ोसी देश : नेपाल, श्रीलंका, चीन, बंगलादेश एवं पाकिस्तान

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
भारत तथा पाकिस्तान के सम्बन्धों का सर्वेक्षण करो। (Make a survey of Indo-Pak relations.)
अथवा
भारत-पाकिस्तान के सम्बन्धों का वर्णन कीजिए। (Explain the relationship between India and Pakistan.)
उत्तर-
15 अगस्त, 1947 को भारत स्वतन्त्र हुआ, परन्तु साथ ही भारत का विभाजन भी हुआ और पाकिस्तान का जन्म हुआ। पाकिस्तान का जन्म ब्रिटिश शासकों की ‘फूट डालो और शासन करो’ की नीति का परिणाम था। पाकिस्तान भारत का पड़ोसी देश है, जिसके कारण भारत-पाक सम्बन्धों का महत्त्व है।
विस्थापित, संपत्ति, देशी रियासतों की संवैधानिक स्थिति, नहरी पानी, सीमा-निर्धारण, वित्तीय और व्यापारिक समायोजन, जूनागढ़, हैदराबाद तथा

कश्मीर और कच्छ के विवादों के लिए भारत और पाकिस्तान में युद्ध होते रहे हैं और तनावपूर्ण स्थिति बनी रही है।
कश्मीर विवाद (Kashmir Controversy)-स्वतन्त्रता से पूर्व कश्मीर भारत के उत्तर-पश्चिमी कोने में स्थित एक देशी रियासत थी।
पाकिस्तान ने पश्चिमी सीमा प्रान्त के कबाइली लोगों (Tribesmen) को प्रेरणा और सहायता देकर कश्मीर पर आक्रमण करवा दिया। इस पर जम्मू-कश्मीर के राजा हरी सिंह ने 22 अक्तूबर, 1947 को कश्मीर को भारत में शामिल करने की प्रार्थना की। 27 अक्तूबर को भारत सरकार ने इस प्रार्थना को स्वीकार कर लिया।

भारत ने पाकिस्तान से कबाइलियों को मार्ग न देने के लिए कहा परन्तु पाकिस्तान पूरी सहायता देता रहा। इस पर लॉर्ड माऊंटबेटन के परामर्श पर भारत सरकार ने 1 जनवरी, 1948 को संयुक्त राष्ट्र चार्टर की 34वीं और 38वीं धारा के अनुसार सुरक्षा परिषद् से पाकिस्तान के विरुद्ध शिकायत की और अनुरोध किया कि वह पाकिस्तान को आक्रमणकारियों की सहायता बंद करने को कहें।। – कश्मीर और संयुक्त राष्ट्र-परन्तु सुरक्षा परिषद् कश्मीर विवाद का कोई समाधान करने में असफल रही। 21 अप्रैल, 1948 को सुरक्षा परिषद् ने 5 सदस्यों को भारत और पाकिस्तान के लिए संयुक्त आयोग (U.N.C.I.P.) की नियुक्ति की और 1 जनवरी, 1949 को कश्मीर में युद्ध विराम हो गया। कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है तथा पाकिस्तान ने पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पी०ओ०के०) पर नाजायज कब्जा कर रखा है।

सन् 1965 का पाक आक्रमण-सन् 1965 में भारत को दो बार पाकिस्तान के आक्रमण का शिकार होना पड़ापहली बार अप्रैल में कच्छ के रणक्षेत्र में और दूसरी बार सितम्बर में कश्मीर में।
सितम्बर, 1965 में पाकिस्तानी सेनाओं ने अन्तर्राष्ट्रीय सीमा का उल्लंघन करके छंब क्षेत्र पर आक्रमण कर दिया। अन्त में सुरक्षा परिषद् के 20 सितम्बर के प्रस्ताव का पालन करते हुए दोनों पक्षों ने 22-23 सितम्बर की सुबह 3-30 बजे युद्ध बंद कर दिया। इस समय तक भारतीय सेनाएँ लाहौर के दरवाज़े तक पहुंच चुकी थीं।

ताशकंद समझौता-10 जनवरी, 1966 को सोवियत संघ के प्रधानमन्त्री श्री कोसिगन के प्रयत्न से दोनों देशों में ताशकंद समझौता हो गया जिसके द्वारा भारत के प्रधानमन्त्री तथा पाकिस्तान के राष्ट्रपति इस बात पर सहमत हो गए कि दोनों देशों के सभी सशस्त्र सैनिक 25 फरवरी, 1966 से पूर्व उस स्थान पर वापस बुला लिए जाएंगे जहां वे 5 अगस्त, 1965 से पूर्व थे तथा दोनों पक्ष युद्ध विराम रेखा पर युद्ध-विराम शर्तों का पालन करेंगे।

1969 में अयूब खां के हाथ से सत्ता निकल कर जनरल याहिया खां के हाथों में आ गई। याहिया खां ने भारत के साथ अमैत्रीपूर्ण नीति का अनुसरण किया।

1971 का युद्ध-1971 में पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान बंगला देश) में जनता ने याहिया खां की तानाशाही के विरुद्ध स्वतन्त्रता का आन्दोलन आरम्भ कर दिया। याहिया खां ने आन्दोलन को कुचलने के लिए सैनिक शक्ति का प्रयोग किया। भारत ने बंगला देश के मुक्ति संघर्ष में उसका साथ दिया। मुक्ति संघर्ष के समय लगभग एक करोड़ शरणार्थियों को भारत में आना पड़ा। इससे भारत की आर्थिक व्यवस्था पर बड़ा बोझ पड़ा।

पाकिस्तान ने 3 दिसम्बर, 1971 को भारत पर आक्रमण कर दिया। भारत ने पाकिस्तान को सबक सिखाने का निश्चय किया और पाकिस्तान के आक्रमण का डटकर मुकाबला किया। 5 दिसम्बर को श्रीमती इन्दिरा गान्धी ने भारतीय संसद् में बंगला देश गणराज्य के उदय की सूचना दी। 16 दिसम्बर, 1971 में ढाका में जनरल नियाज़ी ने आत्म-समर्पण के दस्तावेजों पर हस्ताक्षर कर दिए और लगभग 1 लाख सैनिकों ने आत्म-समर्पण कर दिया।

1972 में हुआ शिमला समझौता हुआ था। इस समझौते के बाद से भारत-पाक के मध्य सामाजिक एवं आर्थिक समबन्ध सुधरने लगे थे परन्तु 1981 से पुनः आपसी सम्बन्धों में कटुता आनी प्रारम्भ हो गई। 1987 में पाकिस्तान में सियाचीन ग्लेशियर की पहाड़ी तराइयों पर, भारतीय चौंकियों पर कब्जा जमाने की असफल कोशिश की। 1988 में भारत एवं पाकिस्तान के मध्य तीनं समझौते हुए जिनमें एक-दूसरे के परमाणु संयन्त्रों पर आक्रमण न करने का समझौता सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है। हाल के कुछ वर्षों में भारत-पाक सम्बन्धों में आए उतार-चढ़ाव निम्नलिखित हैं

6 अप्रैल, 1991 को भारत एवं पाक के मध्य सीमा पर तनाव कम करने के उद्देश्य से दो समझौते हुए। ये समझौते एक-दूसरे की वायु सीमा के उल्लंघन पर रोक एवं युद्धाभ्यास की अग्रिम सूचना देने से सम्बन्धित हैं।

1998 में दोनों देशों द्वारा किए गए परमाणु परीक्षणों द्वारा इनके आपसी सम्बन्धों में भारी तनाव पैदा हो गया। .
आपसी सम्बन्धों को सुधारने के लिए भारत-पाक के मध्य बस सेवा शुरू करने के लिए 17 फरवरी, 1999 को एक समझौता किया।
भारत-पाक सम्बन्धों में नया मोड़ लाने के लिए 20 फरवरी, 1999 को भारत के प्रधानमन्त्री अटल बिहारी वाजपेयी स्वयं बस द्वारा लाहौर गए। ___

मई, 1999 में पाकिस्तान द्वारा कारगिल क्षेत्र में भारी घुसपैठ की गई। अनन्त धैर्य के पश्चात् 26 मई, 1999 को भारत ने कारगिल एवं द्रास क्षेत्र में आक्रमण का समुचित जवाब दिया। युद्ध मोर्चों पर भारी पराजय और अन्तर्राष्ट्रीय दबाव के चलते पाकिस्तान को नियन्त्रण रेखा के पीछे हटना पड़ा।

24 दिसम्बर, 1999 को सशस्त्र उग्रवादियों द्वारा भारतीय विमान का अपहरण कर लिया गया। विमान अपहरण में एक अफ़गानी और चार पाकिस्तानी उग्रवादियों का हाथ था।

भारत ने पाकिस्तान से सम्बन्ध सुधारने हेतु वहां के शासक परवेज मुशर्रफ को बातचीत के लिए निमन्त्रण दिया और वे जुलाई, 2001 में भारत आए परन्तु मुशर्रफ के अड़ियल रवैये के कारण यह वार्ता असफल रही।

10 दिसम्बर 2001 को पाकिस्तान समर्थित आतंकवादियों ने भारतीय संसद् पर हमला किया। जिसके बाद भारत ने पाकिस्तान जाने वाली एवं वहां से आने वाली बसों, रेलों एवं हवाई सेवाओं पर रोक लगा दी।
सितम्बर, 2002 में पुनः पाक समर्थित उग्रवादी संगठन ने गुजरात के नारायण स्वामी मंदिर अक्षरधाम पर हमला किया जिसमें कई लोग मारे गए।
25 नवम्बर, 2002 में पुनः पाक प्रशिक्षित आतंकवादियों ने जम्मू के प्रसिद्ध रघुनाथ मन्दिर पर हमला कर कई बेगुनाह लोगों की जान ली।

लगातार आतंकवादी हमलों के चलते भारत-पाक सम्बन्धों में कड़वाहट आई है जिसके कारण भारत ने जनवरी, 2003 में पाकिस्तान में होने वाले सार्क शिखर सम्मेलन में भाग लेने से इन्कार कर दिया।

वर्ष 2004 में भारत-पाक सम्बन्धों में सुधार की उम्मीद जगाई । 2004 के सार्क सम्मेलन के दौरान भारत-पाक ने विवादित मुद्दों को बातचीत द्वारा हल करने के लिए सहमति व्यक्त की। दोनों देशों के मध्य बंद हुई रेल सेवा, बससेवा एवं विमान सेवा पुनः आरम्भ कर दी गई।

सितम्बर, 2004 में भारत के प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह एवं पाकिस्तान के राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ की न्यूयार्क में शिखर वार्ता हुई। इस बैठक में मुनाबावो-खोखरापार रेल सेवा तथा श्रीनगर-मुजफ्फराबाद बस सेवा शुरू करने पर बातचीत शुरू करने की सहमति बनी। जम्मू-कश्मीर के मामले में सांझा ब्यान में कहा गया कि दोनों नेताओं ने इस पर सहमति व्यक्त की कि बातचीत के द्वारा इस मुद्दे के शान्तिपूर्ण समाधान के सभी विकल्प ईमानदारी व उद्देश्यपूर्ण ढंग से तलाशे जायेंगे।

नवम्बर, 2004 में पाकिस्तान के प्रधानमन्त्री शौकत अजीज भारत यात्रा पर आए। इस यात्रा के दौरान शौकत अजीज ने भारतीय प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह से जम्मू-कश्मीर,श्रीनगर-मुजफ्फराबाद बस सेवा शुरू करने तथा बैंकिग क्षेत्र में पारस्परिक सहयोग बढ़ाने पर चर्चा की।

16 फरवरी, 2005 को दोनों देशों ने श्रीनगर-मुजफ्फराबाद के बीच 7 अप्रैल, 2005 से बस चलाने का ऐलान किया। इस बस में पासपोर्ट के बजाए एंट्री परमिट के ज़रिए दोनों देशों के नागरिक सफर कर सकेंगे। इसी तरह अमृतसर और लाहौर तथा ननकाना साहिब तक बस चलाने पर भी दोनों देश सहमत हो गए।

जनरल मुशर्रफ की भारत यात्रा-17 अप्रैल, 2005 को पाकिस्तान के राष्ट्रपति जनरल मुशर्रफ नई दिल्ली आये। जनरल मुशर्रफ की इस यात्रा से भारत और पाकिस्तान के रिश्ते को नया आयाम मिला। दोनों देशों ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि वे शांति प्रक्रिया से पीछे नहीं हटेंगे। दोनों नेताओं ने अन्तिम समाधान मिलने तक जम्मू-कश्मीर पर सार्थक और दूरगामी बातचीत रखने पर सहमति जताई।

कश्मीर में भूकम्प से तबाही-8-9 अक्तूबर, 2005 को भूकम्प से कश्मीर विशेषकर पाक अधिकृत कश्मीर में तबाही हुई। भारत द्वारा भेजी गई राहत सामग्री यद्यपि पाकिस्तान ने स्वीकार कर ली, परन्तु भारत के साथ संयुक्त राहत कार्यों की पेशकश को पाकिस्तान ने ठुकरा दिया।

पाकिस्तानी प्रधानमन्त्री की भारत यात्रा-3-4 अप्रैल, 2007 को पाकिस्तान के प्रधानमन्त्री शौकत अजीज भारत यात्रा पर आए तथा भारतीय प्रधानमन्त्री के साथ कई द्विपक्षीय मुद्दों पर चर्चा की। .

मुम्बई पर आतंकवादी हमला-26 नवम्बर, 2008 को आतंकवादियों ने मुम्बई के दो प्रसिद्ध होटलों पर हमला करके कई व्यक्तियों को मार दिया। इस आतंकवादी हमले के कारण भारत-पाकिस्तान सम्बन्ध बहुत बिगड़ गए। क्योंकि सभी आतंकवादी पाकिस्तानी नागरिक थे, तथा यह हमला पाकिस्तान की मदद से ही हुआ था। अतः भारत ने पाकिस्तान से सभी वांछित अपराधियों की मांग के साथ-साथ पाकिस्तानी सीमा में चल रहे आतंकवादी प्रशिक्षण स्थलों को बन्द करने की मांग की। परन्तु पाकिस्तान ने इन सभी मांगों को ठुकराते हुए युद्ध की तैयारी शुरू कर दी जिससे दोनों देशों के सम्बन्ध और खराब हुए।

जुलाई, 2009 में भारतीय प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह एवं पाकिस्तानी प्रधानमंत्री यूसूफ रजा गिलानी मिस्र में 15वें गुट निरपेक्ष आन्दोलन के दौरान मिले । संयुक्त घोषणा-पत्र जारी करते हुए दोनों देशों में आतंकवाद से मिलकर जूझने की घोषणा की।

25 फरवरी, 2010 को भारत-पाकिस्तान के बीच विदेश सचिव स्तरीय बातचीत हुई। इस वार्ता के दौरान भारत ने पाकिस्तान से वांछित आतंकवादियों को भारत को सौंपने को कहा।
नवम्बर 2011 में भारत-पाकिस्तान के प्रधानमंत्री सार्क सम्मेलन के दौरान मालद्वीव मिले। इस मुलाकात के दौरान दोनों देशों ने विवादित मुद्दों पर बातचीत जारी रखने पर सहमति प्रकट की।

8 अप्रैल, 2011 को पाकिस्तान के राष्ट्रपति श्री आसिफ अली जरदारी भारत यात्रा पर आए। इस यात्रा के दौरान दोनों देशों ने सभी विवादित मुद्दों पर शांतिपूर्ण ढंग से हल करने की बात की। दिसम्बर 2012 में पाकिस्तान के आन्तरिक मंत्री श्री रहमान मलिक भारत यात्रा पर आए। इस अवसर पर दोनों देशों ने वीजा नियमों को और सरल बनाने का समझौता किया।

सितम्बर, 2013 में संयुक्त राष्ट्र संघ के वार्षिक सम्मेलन में भारतीय प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह एवं पाकिस्तान के प्रधानमन्त्री नवाज़ शरीफ ने न्यूयार्क में मुलाकात की। इस दौरान दोनों देशों ने सभी विवादित विषयों को बातचीत द्वारा हल करने पर सहमति व्यक्त की।
पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नबाज शरीफ मई 2014 में प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में भाग लेने के लिए भारत आए। इस यात्रा के दौरान दोनों देशों ने द्विपक्षीय मुद्दों पर बातचीत की।

नबम्बर 2014 में नेपाल में हुए सार्क सम्मेलन में दोनों देशों के बीच तनाव होने के कारण कोई द्विपक्षीय बातचीत नहीं हो पाई।
दिसम्बर 2015 में भारतीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने पाकिस्तान की यात्रा करके दोनों देशों के सम्बन्धों को सुधारने का प्रयास किया। वर्तमान समय में भारत-पाकिस्तान के सम्बन्ध खराब बने हुए हैं।

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प्रश्न 2.
भारत-पाकिस्तान के बीच में तनाव के छः कारणों का वर्णन करें। (Describe in detail Six reasons of Tension between India and Pakistan.)
उत्तर-
भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव के निम्नलिखित कारण हैं
1. कश्मीर समस्या-स्वतन्त्रता से पूर्व कश्मीर भारत के उत्तर-पश्चिमी कोने में स्थित एक देशी रियासत थी। 15 अगस्त, 1947 को भारत स्वतन्त्र हुआ और पाकिस्तान की भी स्थापना हुई। पाकिस्तान ने पश्चिमी सीमा प्रान्त के कबाइली लोगों को प्रेरणा और सहायता देकर 22 अक्तूबर, 1947 को कश्मीर पर आक्रमण कर दिया। कश्मीर के महाराजा हरि सिंह ने भारत से सहायता मांगी और कश्मीर को भारत में शामिल करने की प्रार्थना की। भारत में कश्मीर का विधिवत् विलय हो गया, परन्तु पाकिस्तान का आक्रमण जारी रहा और पाकिस्तान ने कुछ क्षेत्र पर कब्जा कर लिया और अब भी उस क्षेत्र पर जिसे ‘आज़ाद कश्मीर’ कहा जाता है, पाकिस्तान का कब्जा है। भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सेना को खदेड़ दिया। भारत सरकार ने कश्मीर का मामला संयुक्त राष्ट्र को सौंप दिया और 1 जनवरी, 1949 को कश्मीर का युद्ध विराम हो गया। संयुक्त राष्ट्र संघ ने कश्मीर की समस्या को हल करने का प्रयास किया पर यह समस्या अब भी है। इसका कारण यह है कि भारत सरकार कश्मीर को भारत का अंग मानती है जबकि पाकिस्तान कश्मीर में जनमत संग्रह करवा कर यह निर्णय करना चाहता है कि कश्मीर भारत में मिलना चाहता है या पाकिस्तान के साथ। परन्तु पाकिस्तान की मांग गलत और अन्यायपूर्ण है, इसलिए इसे माना नहीं जा सकता।

2. सिन्धु नदी जल बंटवारा-सिन्धु नदी जल बंटवारा भी दोनों देशों के बीच तनाव का कारण बना हुआ है। भारत का मानना है, कि सिन्धु नदी जल समझौता तार्किक नहीं है। अर्थात् पाकिस्तान को आवश्यकता से अधिक पानी दिया जाता है। इसीलिए भारत सरकार सिन्धु नदी जल बंटवारे समझौते पर पुनर्समीक्षा कर रही है।

3. कारगिल युद्ध-कारगिल युद्ध भी दोनों देशों के बीच तनाव का कारण बना है। पाकिस्तान ने धोखे से भारतीय क्षेत्र में स्थित कारगिल पहाड़ियों पर कब्जा कर लिया। भारत ने साहस का परिचय देते हुए पाकिस्तानी सैनिकों को मार गिराया था।

4. भारतीय संसद् पर हमला-13 दिसम्बर, 2001 को पाकिस्तान समर्थित आतंकवादी संगठनों लश्कर-ए-तोइबा एवं जैश-ए-मोहम्मद ने भारतीय संसद् पर हमला किया जिससे दोनों देशों के सम्बन्ध बहुत खराब हो गये तथा दोनों देशों ने सीमा पर फ़ौजें तैनात कर दीं, परन्तु विश्व समुदाय के हस्तक्षेप एवं पाकिस्तान द्वारा लश्कर-ए-तोइबा एवं जैशए-मोहम्मद पर पाबन्दी लगाए जाने से दोनों देशों में तनाव कुछ कम हुआ।

5. मुम्बई पर आतंकवादी हमला-26 नवम्बर, 2008 को पाकिस्तानी समर्थित आतंकवादियों ने मुम्बई के होटलों पर कब्जा करके कई व्यक्तियों को मार दिया। भारत ने पाकिस्तान में चल रहे आतंकवादी शिविरों को बंद करने की मांग की, जिसे पाकिस्तान ने नहीं माना, इससे दोनों देशों के सम्बन्ध और अधिक खराब हो गए।

6. परमाणु हथियार-भारत एवं पाकिस्तान दोनों के पास परमाणु हथियार हैं। जहां तक भारत के परमाणु हथियारों का सम्बन्ध है तो वे सुरक्षित हाथों में हैं। परंतु पाकिस्तान परमाणु हथियारों के आतंकवादियों के पास जाने की संभावना बनी रहती है। जिससे दोनों देशों में तनाव बना रहता है।

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प्रश्न 3.
भारत तथा बंगला देश के बीच मधुर एवं तनावपूर्ण सम्बन्धों की व्याख्या कीजिए। (Explain the phases of cordial and strainded relations between India and Bangladesh.)
अथवा
भारत और बंगला देश के सम्बन्धों की विस्तार से व्याख्या कीजिए। (Explain in detail the relationship between India and Bangladesh.)
उत्तर-
बंगला देश के अस्तित्व और उसकी स्वतन्त्रता का श्रेय भारत को है। 1971 में बंगला देश स्वतन्त्र देश बना। इससे पूर्व बंगला देश पाकिस्तान का हिस्सा तथा पूर्वी पाकिस्तान कहलाता था। बंगला देश की स्वतन्त्रता के लिए भारत के जवानों ने अपने प्राणों की आहुति दी। 6 दिसम्बर, 1971 को भारत ने बंगला देश को मान्यता दे दी।

1971 की मैत्री सन्धि-शेख मुजीबुर्रहमान 12 जनवरी, 1972 को बंगला देश के प्रधानमन्त्री बने। फरवरी, 1972 में जब वे भारत आए तो उन्होंने कहा था, “भारत और बंगला देश की मित्रता चिरस्थायी है, उसे दुनिया की कोई ताकत तोड़ नहीं सकती।” 19 मार्च, 1972 को भारत और बंगला देश में 25 वर्ष की अवधि के लिए मित्रता और सहयोग की सन्धि हुई। इस सन्धि की महत्त्वपूर्ण बातें इस प्रकार थीं

(1) आर्थिक, तकनीकी, वैज्ञानिक तथा सांस्कृतिक क्षेत्रों में दोनों देश एक-दूसरे के साथ सहयोग करेंगे। (2) दोनों देश एक-दूसरे की अखण्डता व सीमाओं का सम्मान करेंगे। (3) दोनों देश एक-दूसरे के आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करेंगे। (4) दोनों देश किसी तीसरे देश को कोई ऐसी सहायता नहीं देंगे जो दोनों में किसी देश के हित के विरुद्ध हो। (5) दोनों देश उपनिवेशवाद का विरोध करेंगे।

बंगला देश को संयुक्त राष्ट्र का सदस्य बनने में भारत की सहायता-बंगला देशं ने 9 अगस्त, 1972 को संयुक्त राष्ट्र का सदस्य बनने के लिए प्रार्थना-पत्र भेजा, जिसका पाकिस्तान और चीन ने विरोध किया। चीन ने सुरक्षा परिषद् में वीटो का भी प्रयोग किया, परन्तु भारत के प्रयास के फलस्वरूप और रूस के सहयोग से अन्त में बंगला देश संयुक्त राष्ट्र का सदस्य बन गया।

शेख मुजीबुर्रहमान की भारत यात्रा-1974 में शेख मुजीबुर्रहमान ने भारत यात्रा की तथा 1975 में गंगा जल के बंटवारे से सम्बन्धित विवाद को बातचीत द्वारा समाप्त करने की कोशिश की।

सम्बन्धों में परिवर्तन-15 अगस्त, 1975 को बंगला देश के संस्थापक शेख मुजीबुर्रहमान की परिवार सहित हत्या कर दी गई। शेख की हत्या के बाद भारत-बंगला देश के सम्बन्धों में तेजी से परिवर्तन आ गया। नवम्बर, 1975 में जनरल ज़ियाउर्रहमान राष्ट्रपति बने। तब से बंगला देश में भारत-विरोधी प्रचार तेज़ हो गया।

जनता सरकार और भारत-बंगला देश सम्बन्ध-मार्च, 1977 में भारत में जनता पार्टी की सरकार बनी और दोनों देशों के सम्बन्धों में सुधार की किरण दिखाई दी। अक्तूबर, 1977 में फरक्का समझौता हुआ। अप्रैल, 1979 में प्रधानमन्त्री मोरार जी देसाई बंगला देश गए और दोनों देशों के सम्बन्धों में कुछ सुधार हुआ।

श्रीमती इंदिरा गांधी की सरकार और भारत-बंगला देश सम्बन्ध-नवम्बर, 1979 से भारत-बंगला देश सम्बन्ध तनावपूर्ण हो गए। भारत के साथ विवाद का मुद्दा फरक्का बांध और नवमूर द्वीप है। मई, 1981 ई० में बंगला देश की सरकार ने सरकारी और गैर-सरकारी माध्यमों से नवमूर द्वीप पर कथित भारतीय कब्जे. और अन्य गैर-कानूनी कार्यवाहियों का आरोप लगाना शुरू कर दिया और 12 मई को 3 सशस्त्र नावें नवमूर द्वीप के इर्द-गिर्द आपत्तिजनक रूप में चक्कर काटने लगीं। भारत सरकार ने नवमूर द्वीप की रक्षा के लिए तुरन्त उचित उपाय किए। नवमूर द्वीप वास्तव में

अक्तूबर, 1983 में बंगला देश के मुख्य मार्शल-ला प्रशासक जनरल इरशाद की दो दिवसीय भारतीय यात्रा से दोनों देशों के बीच आपसी सहयोग के एक नए अध्याय का सूत्रपात हुआ, क्योंकि दोनों पक्ष फरक्का बांध पर गंगा जल के बंटवारे तथा तीन बीघा गलियारे के उपयोग के बारे में काफी समय से चली आ रही अड़चनों को निपटाने में काफ़ी सीमा तक सफल हो गए। नवम्बर, 1985 में भारत तथा बंगला देश ने फरक्का के पानी के बंटवारे के सम्बन्ध में अगले तीन वर्षों के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए। यह 1982 के समझौते पर आधारित था।

जुलाई, 1986 में बंगला देश के राष्ट्रपति इरशाद भारत आए और उन्होंने दोनों देशों के बीच चले आ रहे विवादों को हल करने के लिए भारतीय नेताओं से बातचीत की। अप्रैल, 1987 में भारत के विदेश सचिव बंगला देश गए और उन्होंने बंगला देश के विदेश सचिव से विभिन्न विवादों को हल करने के लिए बातचीत की।

चकमा शरणार्थियों की समस्या-बंगला देश से अप्रैल, 1990 में लगभग 60 हज़ार चकमा शरणार्थी भारत आ चुके थे। चकमा शरणार्थियों की वापसी के लिए कई बार बातचीत हुई परन्तु कोई समझौता नहीं हुआ। इसका कारण यह रहा कि बंगला देश की सरकार चकमा शरणार्थियों की सुरक्षा की विश्वसनीय गारंटी नहीं देती थी।
सितम्बर, 1991 में बंगला देश ने भारत को आश्वासन दिया कि पूर्वोत्तर क्षेत्र में आतंकवादी और उग्रवादी गतिविधियों को किसी तरह की सहायता नहीं देगा।

तीन बीघा गलियारे का हस्तान्तरण-तीन बीघा गलियारा पट्टा भारत और बंगला देश के बीच तनाव का कारण रहा है। 26 मई, 1992 को बैंगला देश की प्रधानमन्त्री बेग़म खालिदा जिया भारत आईं। दोनों देशों में तीन बीघा पर एक समझौता हुआ जिसके अन्तर्गत 26 जून, 1992 को भारत ने तीन बीघा गलियारा बंगला देश को पट्टे पर सौंप दिया, परन्तु इस गलियारे पर प्रशासनिक अधिसत्ता भारत की ही रहेगी।

बंगला देश की प्रधानमन्त्री खालिदा बेग़म और भारत के प्रधानमन्त्री नरसिम्हा राव ने अनेक महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर बातचीत की और दोनों देशों में पानी के बंटवारे पर सहमति हो गई। चकमा शरणार्थियों को वापसी पर भी आम सहमति हो गई।

बंगला देश की संसद् के प्रस्ताव पर भारत की आपत्ति-बंगला देश की संसद् ने 20 जनवरी, 1993 को एक प्रस्ताव पारित कर अयोध्या में 6 सितम्बर को विवादित ढांचा गिराए जाने की कड़ी आलोचना की और बाबरी मस्जिद को दोबारा बनाने की मांग की। भारत ने बंगला देश संसद् द्वारा पारित इस प्रस्ताव पर कड़ी आपत्ति व्यक्त करते हुए कहा कि यह हमारे आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप है।

गंगा जल पर भारत व बंगला देश के बीच समझौता-बंगला देश की प्रधानमन्त्री शेख हसीना वाजिद 11 दिसम्बर, 1996 को भारत की यात्रा पर आईं। 12 दिसम्बर, 1996 को भारत और बंगला देश में फरक्का गंगा जल बंटवारे पर एक ऐतिहासिक समझौता हुआ जिससे पिछले दो दशकों से चले आ रहे विवाद का अन्त हो गया।

प्रधानमन्त्री शेख हसीना वाजिद की भारत यात्रा-जून, 1998 में बंगला देश की प्रधानमन्त्री शेख हसीना वाजिद भारत आईं और उन्होंने प्रधानमन्त्री वाजपेयी से बातचीत की। दोनों देशों के प्रधानमन्त्रियों ने इस बात पर जोर दिया कि द्विपक्षीय समस्याओं का हल द्विपक्षीय वार्ता द्वारा होना चाहिए।

19 जून, 1999 को भारत व बंगला देश के सम्बन्धों में सुधार लाने के लिए दोनों देशों के बीच बस सेवा प्रारम्भ की गई। स्वयं भारतीय प्रधानमन्त्री अटल बिहारी वाजपेयी कलकत्ता (कोलकाता) से चली इस बस की अगुवाई के लिए ढाका पहुंचे। अपनी बंगला देश की यात्रा के दौरान भारतीय प्रधानमन्त्री ने बंगला देश को 200 करोड़ रुपये का कर्ज देने का समझौता किया। इसके अतिरिक्त भारत ने बंगला देश से ‘प्रशुल्क रहित आयात’ के लिए भी सैद्धान्तिक रूप से स्वीकृति प्रदान की।

भारत और बंगला देश ने 9 अप्रैल, 2000 को अगरतला और ढाका के बीच एक नई बस सेवा चलाने का निर्णय किया। सन् 2000 में दोनों देशों के बीच आर्थिक सम्बन्ध और मज़बूत हुए। भारत ने कुछ चुनिंदा बंगलादेशी वस्तुओं को बिना किसी तटकर के देश में प्रवेश की इजाज़त दी।
फरवरी, 2003 में बंगला देश द्वारा भारत में घुसपैठिये भेजने से दोनों देशों के बीच असहजता की स्थिति बन गई थी। परन्तु भारत के कड़ा विरोध करने पर बंगला देश ने अपने घुसपैठियों को वापस बुला लिया।
भारत बंगलादेश सीमा पर तार (बाड़) लगाने के पक्ष में है ताकि कोई बंगलादेश का नागरिक गैर-कानूनी ढंग से भारत की सीमा के अन्दर न आ जाए। परन्तु बंगला देश इसके पक्ष में नहीं है।

भारतीय प्रधानमन्त्री की बंगला देश यात्रा-भारतीय प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह 14 नवम्बर, 2005 को सार्क सम्मेलन में भाग लेने के लिए बंगला देश की यात्रा पर गए। इस यात्रा के दौरान दोनों देशों के प्रधानमन्त्रियों ने द्विपक्षीय सम्बन्धों पर भी विचार विमर्श किया।

बंगलादेशी प्रधानमन्त्री की भारत यात्रा-बंगलादेश की प्रधानमन्त्री खालिदा ज़िया 19 मार्च, 2006 को भारत यात्रा पर आईं। इस यात्रा के दौरान दोनों देशों ने व्यापार एवं आर्थिक हितों से सम्बन्धित दो समझौतों पर हस्ताक्षर किए।
भारतीय विदेश मन्त्री की बंगला देश यात्रा-भारतीय विदेश मन्त्री प्रणव मुखर्जी 10 फरवरी, 2009 को बंगला देश की यात्रा पर गए तथा बंगला देश की प्रधानमन्त्री शेख हसीना वाजिद से द्विपक्षीय सम्बन्धों पर बातचीत की।

बंगलादेशी प्रधानमन्त्री की भारत यात्रा-जनवरी, 2010 में बंगलादेश की प्रधानमन्त्री शेख हसीना भारत यात्रा पर आई। इस यात्रा के दौरान भारत ने बंगलादेश को 250 मेगावट बिजली देने की घोषणा की तथा बंगला देश के 300 छात्रों को प्रतिवर्ष छात्रवृति देने की घोषणा की। दूसरी ओर बंगला देश की प्रधानमंत्री ने घोषणा की कि वह अपने क्षेत्र का प्रयोग भारत विरोधी गति विधियों के लिए नहीं होने देंगी।

भारतीय प्रधानमन्त्री की बंगला देश की यात्रा-भारतीय प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह 6-7 सितम्बर, 2011 को बंगला देश की यात्रा पर गए। इस यात्रा के दौरान दोनों देशों ने पारस्परिक सहयोग के चार समझौतों पर हस्ताक्षर किए।

नवम्बर 2014 में नेपाल में हुए 18वें सार्क सम्मेलन के दौरान भारतीय प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी एवं बंगला देश की प्रधानमन्त्री शेख हसीना ने बैठक की। इस दौरान दोनों नेताओं ने परस्पर द्विपक्षीय मुद्दों पर बाचचीत की।

जून 2015 में भारतीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने बंगला देश की यात्रा की। इस यात्रा के दौरान दोनों देशों ने भूमि सीमा समझौते सहित 22 समझौतों पर हस्ताक्षर किये।
अक्तूबर 2016 में बंगला देश की प्रधानमन्त्री शेख हसीना ‘बिम्सटेक’ (BIMSTEC) सम्मेलन में भाग लेने के लिए भारत यात्रा पर आई। इस यात्रा के दौरान दोनों देशों ने द्विपक्षीय मुद्दों पर भी बातचीत की।

अप्रैल 2017 में बंगला देशी प्रधानमंत्री भारत यात्रा पर आईं। इस दौरान दोनों देशों ने 22 समझौतों पर हस्ताक्षर किये।
मई 2018 में बंगलादेशी प्रधानमंत्री भारत यात्रा पर आईं। इस दौरान दोनों देशों ने रोहिंग्या मुद्दे सहित द्विपक्षीय मुद्दों पर बातचीत की ।
संक्षेप में, भारत ने बंगला देश को हर परिस्थिति व समय पर सहायता दी है, लेकिन भारत को बंगला देश से वैसा सहयोग प्राप्त नहीं हुआ जिसकी भारत आशा रखता है।

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प्रश्न 4.
भारत-श्रीलंका सम्बन्धों का मूल्यांकन करो। (Evaluate Indo Sri Lanka relations.)
अथवा
भारत और श्रीलंका के पारस्परिक सम्बन्धों का वर्णन कीजिए। (Give brief account of India’s relations with Sri Lanka.)
उत्तर-
भारत और श्रीलंका के सम्बन्ध लगभग दो हज़ार वर्षों से अधिक पुराने हैं। भारत पर ब्रिटिश शासन स्थापित होने पर श्रीलंका भी इंग्लैंड के अधीन आ गया। दोनों में ब्रिटिश शासन के विरुद्ध राष्ट्रीय आन्दोलन चले। 1947 में भारत के स्वतन्त्र होने पर अंग्रेज़ अधिक समय तक श्रीलंका पर शासन न कर सके और 1948 में श्रीलंका स्वतन्त्र हुआ। दोनों देशों में लोकतन्त्र की स्थापना की गई और 1948 में गुट-निरपेक्षता की नीति का अनुसरण किया, परन्तु 1962 में जब चीन ने भारत पर आक्रमण किया तब श्रीलंका ने भारत का समर्थन नहीं किया, जिससे भारतीयों की भावना को ठेस लगी।

श्रीलंका में भारतीय वंशजों की समस्या- भारत और श्रीलंका में तनाव का कारण श्रीलंका में बसे लाखों भारतीयों की समस्या रही है। श्रीलंका की स्वतन्त्रता के समय लगभग दस लाख भारतीय मूल के लोग वहां रह रहे थे। श्रीलंका ने 1949 में नागरिकता अधिनियम पास कर दिया। लगभग सभी भारतीय मूल के निवासियों (लगभग 8.2 लाख) ने इस अधिनियम के अन्तर्गत नागरिकता के लिए प्रार्थना की परन्तु अक्तूबर, 1964 तक केवल 1 लाख 34 हज़ार व्यक्तियों को ही नागरिकता प्राप्त हुई। श्रीलंका सरकार ने जिन भारतीयों को नागरिकता प्रदान नहीं की थी उन्हें तुरन्त भारत चले जाने के लिए कहा। परन्तु भारत सरकार का कहना था कि जो व्यक्ति कई पीढ़ियों से वहां रह रहे हैं उनको निकालना गलत है और वे वहीं के नागरिक हैं न कि भारत के। अब भी यह समस्या पूरी तरह हल नहीं हुई है। । कच्चा टीबू द्वीप-कच्चा टीबू द्वीप विवाद को हल करने के लिए जून, 1974 में दोनों देशों के बीच एक समझौता हुआ जिसके अनुसार कच्चा टीबू द्वीप श्रीलंका को दे दिया गया।

जनवरी, 1978 में श्रीलंका को भारत ने 10 करोड़ रु० का ऋण आसान शर्तों पर दिया। फरवरी, 1979 में प्रधानमन्त्री मोरारजी देसाई ने श्रीलंका की यात्रा की और दोनों देशों में मैत्रीपूर्ण सम्बन्धों में वृद्धि हुई।

तमिल समस्या–भारत और श्रीलंका के सम्बन्धों में तनाव का महत्त्वपूर्ण कारण तमिल समस्या है। 1984 में तमिल समस्या इतनी गम्भीर हो गई कि दोनों देशों के सम्बन्धों में काफ़ी तनाव रहा। प्रधानमन्त्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने बारबार घोषणा की कि भारत सरकार श्रीलंका के आन्तरिक मामले में हस्तक्षेप नहीं करेगी और यदि श्रीलंका की सरकार चाहेगी तो भारत सरकार तमिल समस्या हल करने के लिए श्रीलंका की सरकार को पूरा सहयोग देगी।

दिसम्बर, 1984 में प्रधानमन्त्री राजीव गांधी ने तमिल जाति के निर्दोष लोगों की अन्धाधुन्ध हत्याओं की कड़ी निंदा की और तमिल समस्या का राजनीतिक हल निकालने की अपील की। नवम्बर, 1986 में प्रधानमन्त्री श्री राजीव गांधी और श्रीलंका के राष्ट्रपति जयवर्धने ने जातीय समस्या के हल के लिए बातचीत की, परन्तु कोई हल नहीं निकला।

तमिल समस्या के हल के लिए दोनों देशों में समझौता-काफ़ी प्रयासों के फलस्वरूप तमिल समस्या को हल करने के लिए प्रधानमन्त्री राजीव गांधी और श्रीलंका के राष्ट्रपति जे० आर० जयवर्धने ने 29 जुलाई, 1987 को शान्ति समझौते पर हस्ताक्षर किए। इस समझौते के अनुसार तमिल बहुल उत्तरी एवं पूर्वी प्रांतों का विलय होगा जिसमें एक ही प्रशासनिक इकाई होगी। दोनों प्रांतों के लिए एक ही प्रान्तीय परिषद्, एक मुख्यमन्त्री तथा एक मन्त्रिमण्डल होगा। समझौते को लागू करने की गारंटी भारत की है।

इस समझौते का बहुत विरोध किया गया। लिबरेशन टाइगर्स ऑफ़ तमिल ईलम (लिट्टे) की हठधर्मी के कारण हिंसा और तनाव का वातावरण बन गया। भारत ने श्रीलंका में शान्ति-व्यवस्था बनाए रखने के लिए भारतीय शान्ति सेना भेजी। अक्तूबर, 1987 में भारत सरकार ने स्थिति की गम्भीरता को देखते हुए सेनाध्यक्ष सुन्दरजी और रक्षा मन्त्री के० सी० पन्त को श्रीलंका भेजा। श्रीलंका की संसद् ने 12 नवम्बर, 1987 को प्रान्तीय विधेयक परिषद् पास कर दिया। भारतीय शान्ति सेना ने श्रीलंका में शान्ति स्थापना में बहुत ही सराहनीय कार्य किया।

शान्ति सेना की वापसी-जनवरी, 1989 में भारतीय शान्ति सेना की वापसी आरम्भ हुई। 23 जून, 1989 को श्रीलंका के राष्ट्रपति प्रेमदास ने घोषणा की कि 29 जुलाई, 1989 तक भारतीय शान्ति सेना वापस चली जानी चाहिए। राष्ट्रीय मोर्चा की सरकार बनने के पश्चात् दोनों देशों की सरकारों में यह सहमति हुई कि शान्ति सेना की 31 मार्च, 1990 से पहले पूरी तरह वापसी होगी। राष्ट्रीय मोर्चा की सरकार ने अपना वायदा पूरा किया और शान्ति सेना की आखिरी टुकड़ी ने 25 मार्च को श्रीलंका को छोड़ दिया।

तमिल शरणार्थी-मार्च, 1990 को श्रीलंका से कई हज़ार तमिल शरणार्थी भारत आए हैं। आवश्यकता इस बात की है कि तमिल शरणार्थी समस्या को बढ़ने से पहले ही हल कर लिया जाए।
संयुक्त आयोग की स्थापना-दोनों देशों के विदेश मन्त्रियों ने जुलाई, 1991 में संयुक्त आयोग के गठन के समझौते पर हस्ताक्षर किए। 7 जनवरी, 1992 को संयुक्त आयोग की दो दिवसीय बैठक के बाद भारत और श्रीलंका ने व्यापार, आर्थिक और प्रौद्योगिक के क्षेत्र में आपसी सहयोग का दायरा बढ़ाने का फ़ैसला किया।
श्रीलंका के प्रधानमन्त्री की भारत यात्रा-1992 में श्रीलंका के प्रधानमन्त्री भारत की यात्रा पर आए और दोनों देशों के सम्बन्धों में और सुधार हुआ।
मई, 1993 में श्रीलंका के नव-निर्वाचित प्रधानमन्त्री तिलकरत्ने भारत की यात्रा पर आए।

श्रीलंका के राष्ट्रपति की भारत यात्रा-श्रीलंका की राष्ट्रपति चन्द्रिका कुमारतुंगा अप्रैल, 1995 में भारत की यात्रा पर आईं ओर दोनों देशों के सम्बन्धों में सुधार हुआ।
परमाणु परीक्षण-मई, 1998 में भारत ने पांच परमाणु परीक्षण किए, जिस पर अमेरिका तथा कई अन्य देशों ने भारत पर अनेक प्रतिबन्ध लगाए, जिनकी श्रीलंका ने कड़ी आलोचना की। 27 दिसम्बर, 1998 को श्रीलंका की राष्ट्रपति श्रीमती चन्द्रिका भंडारनायके कुमारतुंगा तीन दिन की यात्रा पर भारत आईं। भारत और श्रीलंका ने मुक्त व्यापार समझौता किया। राष्ट्रपति कुमारतुंगा ने इस समझौते को ऐतिहासिक बताया। दोनों देशों के बीच हुए मुक्त व्यापार समझौते के बाद आपसी सम्बन्धों का एक नया अध्याय शुरू हुआ है।

भारतीय विदेश मन्त्री की श्रीलंका यात्रा-जून, 2000 में भारतीय विदेश मन्त्री जसवन्त सिंह श्रीलंका की यात्रा पर गए। इस यात्रा के दौरान भारतीय विदेश मन्त्री ने श्रीलंका को 100 मिलियन डॉलर तत्काल मानवीय सहायता के लिए ऋण के रूप में देने की घोषणा की।

श्रीलंका के राष्ट्रपति की भारत यात्रा-फरवरी, 2001 में श्रीलंका की राष्ट्रपति चंद्रिका कुमारतुंगा भारत यात्रा पर आईं। उन्होंने भारतीय प्रधानमन्त्री को नार्वे एवं लिट्टे के बीच चल रही बातचीत की जानकारी दी। भारत ने श्रीलंका को इस समस्या पर हर सम्भव सहायता देने की बात कही।

श्रीलंका के प्रधानमन्त्री की भारत यात्रा-दिसम्बर, 2001 में श्रीलंकी के प्रधानमन्त्री श्री रानिल विक्रमसिंघे भारत यात्रा पर आए। दोनों देशों के बीच बातचीत के बाद भारत ने 18 साल से चली आ रही लिट्टे समस्या पर हर सम्भव सहायता देने की बात कही। इसके अतिरिक्त भारत ने श्रीलंका को 3 लाख टन गेहूं देने की घोषणा की। दोनों देश कृषि, बिजली एवं सूचना तकनीकी उद्योग पर एक-दूसरे को सहयोग देने पर राजी हुए।

श्रीलंका की राष्ट्रपति की भारत यात्रा-नवम्बर, 2004 में श्रीलंका की राष्ट्रपति चंद्रिका कुमारतुंगा भारत यात्रा पर आईं। कुमारतुंगा की भारतीय प्रधानमन्त्री के साथ हुई बातचीत के पश्चात् जारी सांझे बयान में कहा गया, कि भारत श्रीलंका में ऐसे शान्ति समझौते का समर्थन करेगा, जो सभी सम्बन्धित पक्षों को स्वीकार्य हो। भारत की प्रस्तावित सेतुसमुद्रम परियोजना के विषय पर दोनों देशों में बातचीत हुई।

श्रीलंका के राष्ट्रपति की भारत यात्रा-श्रीलंका के राष्ट्रपति महिंदा राजपाक्से (Mahinda Rajapakse) 28 दिसम्बर, 2005 को भारत की यात्रा पर आए। राष्ट्रपति महिंदा राजपाक्से ने भारत को श्रीलंका में शांति स्थापना की प्रक्रिया में सक्रिय भूमिका निभाने को कहा।

श्रीलंका के राष्ट्रपति की भारत यात्रा-श्रीलंका के राष्ट्रपति महिन्दा राजपाक्से 3 अप्रैल, 2007 को 14वें सॉर्क सम्मेलन में भाग लेने के लिए भारत यात्रा पर आए। इस यात्रा के दौरान देशों ने द्विपक्षीय सम्बन्धों पर भी विचार-विमर्श किया।
भारतीय प्रधानमन्त्री की श्रीलंका यात्रा- भारतीय प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह 2-3 अगस्त, 2008 को सॉर्क सम्मेलन में भाग लेने के लिए श्रीलंका की यात्रा पर गए तथा इस यात्रा के दौरान श्रीलंका के राष्ट्रपति महिन्दा राजपाक्से से भी बातचीत की।
भारतीय विदेश मन्त्री की श्रीलंका यात्रा- भारतीय विदेश मन्त्री प्रणव मुखर्जी ने फरवरी, 2009 में श्रीलंका की यात्रा की। इस यात्रा का मुख्य उद्देश्य श्रीलंका एवं लिट्टे के बीच जारी घमासान लड़ाई थी। अपनी यात्रा के दौरान प्रणव

मुखर्जी ने इस विषय में श्रीलंका के राष्ट्रपति महिन्दा राजपाक्से से बातचीत की तथा लिट्टे के विरुद्ध लड़ाई में श्रीलंका का समर्थन किया, साथ ही उन्होंने श्रीलंका सरकार से यह भी अनुरोध किया कि श्रीलंका में तमिल नागरिकों के हितों की रक्षा की जाए।

श्रीलंका के राष्ट्रपति की भारत यात्रा-श्रीलंका के राष्ट्रपति महिन्दा राजपाक्से ने 8-11 जून 2010 को भारत की यात्रा की। इस यात्रा के दौरान दोनों देशों ने विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग के सात समझौतों पर हसताक्षर किए। इस अवसर पर भारतीय प्रधान मन्त्री ने श्रीलंका में लिट्टे के सफाए के बाद 70 हजार तमिल विस्थापितों के पुनर्वास की प्रक्रिया को तेज़ करने की आवश्यकता जताई।

जून, 2011 में श्रीलंका के राष्ट्रपति महिन्दा राजपाक्से भारत यात्रा पर आए तथा दोनों देशों ने सुरक्षा एवं विकास से सम्बन्धित सात समझौतों पर हस्ताक्षर किये।

नवम्बर 2014 में नेपाल में हुए 18वें सार्क सम्मेलन में भारतीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी तथा श्रीलंका के राष्ट्रपति राजपक्षे ने अलग से मुलाकात करके द्विपक्षीय सम्बन्धों पर बातचीत की।

मार्च, 2015 में भारतीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने श्रीलंका की यात्रा की। इस यात्रा के दौरान उन्होंने श्रीलंका के लोगों को वीजा ऑन अराइवल देने की घोषणा की।
अक्तूबर 2016 में श्री लंका के राष्ट्रपति श्रीसेना ‘बिम्गटेक’ (BIMSTEC) सम्मेलन में भाग लेने के लिए भारत यात्रा पर आए। इस दौरान दोनों देशों ने द्विपक्षीय मुद्दों पर भी बातचीत की।

मई 2017 में भारतीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने श्रीलंका की यात्रा की। इन दौगन दोनों देशों ने द्विपक्षीय मुद्दों पर बातचीत की।
अक्तूबर 2018 में श्रीलंका के प्रधानमंत्री ने भारत की यात्रा की। इस यात्रा के दौरान दोनों देशों ने बुनियादी स्तर के चलाए जाने वाले कार्यक्रमों को गति प्रदान करने पर सहमति प्रकट की । READERSARASTRIERREELATES

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 21 भारत एवं उसके पड़ोसी देश : नेपाल, श्रीलंका, चीन, बंगलादेश एवं पाकिस्तान

प्रश्न 5.
भारत-चीन सम्बन्धों का विस्तार से वर्णन करो। (Explain in detail the Indo-China relations.)
उत्तर-
भारत और चीन में पहले गहरी मित्रता थी परन्तु सन् 1962 में चीन ने भारत पर अचानक आक्रमण करके इसको शत्रुता में परिवर्तित कर दिया। आज भी चीन ने भारत की कुछ भूमि पर अपना अधिकार जमाया हुआ है। भारत चीन से सम्बन्ध सुधारने के लिए प्रयत्नशील है परन्तु चीन अभी भी शत्रुतापूर्ण रुख अपनाए हुए है।

नेहरू युग में भारत-चीन सम्बन्ध (1947-मई, 1964) (INDO-CHINA RELATIONS IN NEHRU ERA):
चीन के प्रति मैत्रीपूर्ण नीति-आरम्भ से ही भारत ने साम्यवादी चीन के प्रति मैत्रीपूर्ण और तुष्टिकरण की नीति अपनाई। पहले उसने चीन को मान्यता दी और फिर संयुक्त राष्ट्र में उसके प्रवेश का समर्थन किया।

29 अप्रैल, 1954 को चीन के साथ एक व्यापारिक समझौता करके भारत ने तिब्बत में प्राप्त बहिर्देशीय अधिकारों (Extra-territorial Rights) को चीन को दे दिया और स्वयं कुछ भी प्राप्त नहीं किया। समझौते के समय दोनों देशों ने पंचशील के सिद्धान्तों के प्रति विश्वास दिलाया। सन् 1955 में बांडुंग सम्मेलन में इन्हीं सिद्धान्तों का विस्तार किया गया। चीन के प्रधानमन्त्री चाऊ-एन-लाई, 1954 में भारत की यात्रा पर आए और पं० नेहरू ने चीन का दौरा किया। इसके पश्चात् भारत और चीन के सम्बन्धों में तनाव आना शुरू हो गया।

1962 का चीनी आक्रमण-चीन ने 20 अक्तूबर, 1962 को भारत पर बड़े पैमाने पर आक्रमण किया। भारत को इस युद्ध में अपमानजनक पराजय का मुंह देखना पड़ा और चीन ने भारत की हजारों वर्ग मील भूमि पर कब्जा कर लिया। इससे पं० नेहरू की शान्तिपूर्ण नीतियों को गहरी चोट पहुंची।

शास्त्री काल में भारत-चीन के सम्बन्ध ( मई, 1964 से जनवरी, 1966)-श्री लाल बहादुर शास्त्री, श्री नेहरू के बाद 10 जनवरी, 1966 तक भारत के प्रधानमन्त्री रहे। इस काल में भी भारत और चीन के सम्बन्धों में कोई सुधार नहीं हुआ। चीन ने 1965 में भारत-पाक युद्ध में भी अपना शत्रुतापूर्ण रवैया दिखाया। चीन ने पाकिस्तान को पूरा समर्थन दिया और भारत को आक्रमणकारी घोषित किया।

मैकमोहन रेखा विवाद-भारत और चीन में सीमा विवाद का मुख्य कारण दोनों देशों की सीमा का मैकमोहन रेखा द्वारा निर्धारण और दोनों पक्षों द्वारा उसकी व्याख्या है। सर हैनरी मैकमोहन 1914 में भारत के विदेश सचिव थे। उन्होंने तिब्बती प्रतिनिधि मण्डल के साथ विचार-विमर्श करके इस सीमा का निर्धारण किया। चीन इस सीमा निर्धारण के पक्ष में नहीं था, लेकिन सीमा निर्धारण के बाद उसे इसकी सूचना दे दी गई है। चीन की सरकार ने मैकमोहन रेखा को कभी मान्यता नहीं दी और आज भी नहीं दे रही है। इसलिए दोनों देशों में सीमा विवाद चला आ रहा है।

इंदिरा काल में भारत और चीन के सम्बन्ध (जनवरी, 1966 से फरवरी, 1977 तक)-लाल बहादुर शास्त्री के बाद 1966 में श्रीमती इंदिरा गांधी भारत की प्रधानमन्त्री बनीं। उन्होंने चीन के साथ सम्बन्ध-विवाद सुलझाने के लिए कूटनीतिक प्रयत्न किए, परन्तु 1971 में भारत-पाक युद्ध के समय इन दोनों देशों के सम्बन्ध तनावपूर्ण हो गए। चूंकि भारत-पाक युद्ध के बीच हुई सुरक्षा परिषद् की बैठकों में चीन ने पाकिस्तान का समर्थन किया। अप्रैल, 1976 तक भारत-चीन सम्बन्ध लगभग तनावपूर्ण ही रहे।

जनता सरकार और भारत-चीन सम्बन्ध (JANATA GOVERNMENT AND INDO-CHINA RELATIONS):
मार्च, 1977 में जब भारत में जनता पार्टी की सरकार बनी और श्री मोरारजी देसाई प्रधानमन्त्री बने तो चीन की सरकार ने इस सरकार का स्वागत किया। जनता सरकार ने चीन से सम्बन्ध सुधारने का प्रयास किया।

भारतीय विदेश मन्त्री अटल बिहारी वाजपेयी 12 फरवरी, 1979 को पीकिंग पहुंचे। वहां उन्होंने अपनी बातचीत के दौरान इस बात पर जोर दिया कि जब तक सीमा विवाद को नहीं सुलझाया जाता, तब तक दोनों देशों के सम्बन्ध मैत्रीपूर्ण नहीं हो सकते।

कांग्रेस (इ) की सरकार और भारत-चीन सम्बन्ध . (GOVERNMENT OF CONGRESS (I) AND INDO CHINA RELATIONS)

भारत में सहयोग करने की चीनी नेताओं की इच्छा तथा सम्बन्ध सुधारने के लिए प्रयास-जनवरी, 1980 में श्रीमती गांधी के प्रधानमन्त्री बनने के बाद चीनी नेता कई बार भारत से सम्बन्ध सुधारने की इच्छा व्यक्त कर चुके हैं। चीन के प्रधानमन्त्री झाओ जियांग ने अपनी पाकिस्तान यात्रा के दौरान 3 जून, 1981 को कहा कि एशिया के दो बड़े देश, चीन और भारत को शान्तिपूर्वक रहना चाहिए। यह क्षेत्रीय और विश्व के स्थायित्व दोनों के हित में है। 15 अगस्त, 1984 को भारत और चीन में व्यापारिक समझौता हुआ जो कि निश्चय ही महत्त्वपूर्ण घटना है।

राजीव गांधी की सरकार और भारत-चीन सम्बन्ध-19 दिसम्बर, 1988 को प्रधानमन्त्री राजीव गांधी पांच दिन की यात्रा पर चीन पहुंचे। पिछले 34 वर्षों के दौरान किसी भी भारतीय प्रधानमन्त्री की यह पहली चीन यात्रा थी। राजीव गांधी की चीन यात्रा से दोनों देशों के आपसी सम्बन्धों में एक नया अध्याय शुरू हुआ।

राष्ट्रीय मोर्चा सरकार और भारत-चीन सम्बन्ध-दिसम्बर, 1989 में श्री वी० पी० सिंह के नेतृत्व में राष्ट्रीय मोर्चा की सरकार बनी और दोनों देशों के नेताओं ने स्थाई सम्बन्ध स्थापित करने की घोषणा की।

11 दिसम्बर, 1991 के चीन के प्रधानमन्त्री ली फंग भारत की यात्रा पर आने वाले पिछले 31 वर्षों में पहले प्रधानमन्त्री हैं। दोनों देशों के प्रधानमन्त्रियों ने पंचशील के सिद्धान्त में आस्था दोहराते हुए इस बात पर बल दिया कि किसी देश को दूसरे देश के आन्तरिक मामलों में दखल देने का अधिकार नहीं दिया जा सकता। दोनों नेताओं ने यह विश्वास व्यक्त किया है कि दोनों देशों के सीमा विवाद का ‘उचित’ और ‘सम्मानजनक’ हल निकलेगा और तीन दशक पुराना यह मुद्दा द्विपक्षीय सम्बन्ध मज़बूत बनाने में आड़े नहीं आएगा।

प्रधानमन्त्री पी० वी० नरसिम्हा राव की चीन यात्रा-6 सितम्बर, 1993 को भारत के प्रधानमन्त्री नरसिम्हा राव चार दिन की सरकारी यात्रा पर चीन गए। वहां पर चार ऐतिहासिक समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए, जिसके कारण भारत व चीन के मध्य सम्बन्धों में सुधारों का एक और अध्याय जुड़ गया।

चीन के राष्ट्रपति ज्यांग ज़ेमिन की भारत की यात्रा-28 नवम्बर, 1996 को चीन के राष्ट्रपति ज्यांग ज़ेमिन भारत की यात्रा पर आए जिससे दोनों देशों के बीच सम्बन्धों का एक नया युग शुरू हुआ है। चीन के राष्ट्रपति ज्यांग ज़ेमिन की पहली भारत यात्रा के दौरान परस्पर विश्वास भावना और सीमा पर शांति कायम रखने के उपायों पर विस्तृत विचारविमर्श के पश्चात् दोनों देशों ने चार महत्त्वपूर्ण समझौतों पर हस्ताक्षर किए।

परमाणु परीक्षण तथा भारत-चीन सम्बन्ध-11 मई व 13 मई, 1998 को भारत ने पांच परमाणु परीक्षण किये। चीन ने परमाणु परीक्षणों को लेकर भारत की कड़ी निंदा ही नहीं की बल्कि चीन ने अपने सरकारी न्यूज़ के ज़रिए फिर से अरुणाचल प्रदेश पर अपना दावा ठोंक कर पुराने विचार को जन्म दे दिया। चीन ने यहां तक कहा कि भारत से उसके पड़ोसियों को ही नहीं बल्कि चीन को भी खतरा पैदा हो गया है।

दलाईलामा की प्रधानमन्त्री वाजपेयी से मुलाकात-अक्तूबर, 1998 में तिब्बत के धार्मिक नेता दलाईलामा ने भारत के प्रधानमन्त्री वाजपेयी से बातचीत की जिस पर चीन ने कड़ी आपत्ति उठाई।

भारतीय राष्ट्रपति की चीन यात्रा-मई, 2000 में भारतीय राष्ट्रपति के० आर० नारायणन चीन की यात्रा पर गए। इस यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच आपसी सहयोग के अनेक विषयों पर बातचीत हुई।

चीनी नेता ली फंग की भारत यात्रा-जनवरी, 2001 में चीन के वरिष्ठ नेता ली फंग भारत आए। उन्होंने भारत के प्रधानमन्त्री वाजपेयी से मुलाकात कर क्षेत्रीय, अन्तर्राष्ट्रीय और द्विपक्षीय महत्त्व के मुद्दों पर विचार-विमर्श किया। चीनी नेता ने भारत की धरती में किसी भी रूप में और किसी भी स्थान में उठने वाले आतंकवाद की निंदा की।

चीन के प्रधानमन्त्री की भारत यात्रा-चीन के प्रधानमन्त्री झू रोंग्ली (Zhu Rongli) ने जनवरी, 2002 में भारत यात्रा की। रूस यात्रा के दौरान दोनों देशों ने आतंकवाद का मिलकर सामना करने की बात कही। इसके अतिरिक्त दोनों देशों के बीच अन्तरिक्ष, विज्ञान और प्रौद्योगिकी और ब्रह्मपुत्र नदी पर पानी सम्बन्धी सूचनाओं के आदान-प्रदान से सम्बन्धित छः समझौते किये गये।

भारतीय प्रधानमन्त्री वाजपेयी की चीन यात्रा-जून, 2003 में भारतीय प्रधानमन्त्री वाजपेयी की चीन यात्रा से दोनों देशों के सम्बन्धों में और सुधार हुआ। जहां भारत ने तिब्बत को चीन का हिस्सा माना, वहीं पर चीन ने भी सिक्किम को भारत का हिस्सा माना। चीन ने भारत में 50 करोड़ डालर निवेश करने के लिए एक कोष बनाने की घोषणा की। मई, 2004 में चीन ने सिक्किम को अपने नक्शे में एक अलग राष्ट्र दिखाना बंद करके इसे भारत का अभिन्न अंग मान लिया।

नवम्बर, 2004 में ‘आसियान’ की बैठक में भाग लेने के लिए भारतीय प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह लाओस गए। वहां पर डॉ० मनमोहन सिंह ने चीनी प्रधानमन्त्री बेन जियाबाओ से मुलाकात की। दोनों देशों के प्रधानमन्त्रियों ने सीमा विवाद सुलझाने पर चर्चा के अतिरिक्त द्विपक्षीय व्यापार, सांस्कृतिक आदान-प्रदान व लोगों की एक-दूसरे के यहां यातायात बढ़ाने की आवश्यकता पर बल दिया।

प्रथम रणनीतिक संवाद-भारत एवं चीन के मध्य पहला रणनीतिक संवाद 24 जनवरी, 2005 को नई दिल्ली में हुआ। दोनों पक्षों ने सीमा विवाद सहित सभी द्विपक्षीय मुद्दों पर विचार-विमर्श किया।

चीन के प्रधानमन्त्री की भारत यात्रा (2005)-चीन के प्रधानमन्त्री बेन जियाबाओ अप्रैल, 2005 में भारत यात्रा पर आए और दोनों देशों के बीच सीमा विवाद हल की प्रक्रिया के सम्बन्ध में एक समझौते के अतिरिक्त 11 अन्य समझौतों पर हस्ताक्षर हुए। दोनों देश 2008 तक द्विपक्षीय व्यापार 13 अरब से बढ़ाकर 20 अरब डालर करेंगे। दोनों देश वास्तविक नियन्त्रण रेखा पर सैन्य अभ्यास नहीं करेंगे। दोनों देशों ने वर्ष 2006 को भारत-चीन मित्रता के रूप में मनाने का ऐलान किया है।

भारतीय प्रधानमन्त्री की चीन यात्रा (2008)-भारतीय प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह 13 जनवरी, 2008 को चीन यात्रा पर गए। दोनों देशों ने सीमा विवाद को शान्तिपूर्ण साधनों द्वारा हल करने पर सहमति प्रकट की तथा द्विपक्षीय व्यापार को 2010 तक 40 अरब डालर से बढ़ाकर 60 अरब डालर करने की घोषणा की। भारतीय प्रधानमन्त्री डॉ० मनमोहन सिंह 25 अक्तूबर, 2008 को पुनः चीन यात्रा पर गए तथा चीनी राष्ट्रपति ह० जिन्ताओ से द्विपक्षीय सम्बन्धों पर बातचीत की।

अक्तूबर, 2009 में भारत-चीन सम्बन्धों में उस समय तनाव आ गया जब चीन ने भारतीय प्रधानमंत्री एवं तिब्बतियों के धर्मगुरु दलाई लामा की अरुणाचल प्रदेश यात्रा पर आपत्ति उठाई, परंतु भारत ने इन आपत्तियों को नकारते हुए अरुणाचल प्रदेश को भारत का अभिन्न अंग बताया। इसी संदर्भ में भारत एवं चीन के प्रधानमन्त्री 15वें आसियान सम्मेलन के दौरान थाइलैण्ड में मिले तथा सभी विवादित मुद्दों को बातचीत द्वारा हल करने पर जोर दिया।

चीनी प्रधान मन्त्री की भारत यात्रा-दिसम्बर, 2010 में भारत-चीन सम्बन्धों को सुधारने के लिए चीनी प्रधानमन्त्री बेन जियाबाओ ने भारत की यात्रा की। इस यात्रा के दौरान दोनों देशों ने 6 समझौतों पर हस्ताक्षर किए तथा सन् 2015 तक आपसी व्यापार को 100 बिलियन तक ले जाने पर सहमति प्रकट की।

भारतीय प्रधानमन्त्री की चीन यात्रा- अक्तूबर, 2013 में भारतीय प्रधानमन्त्री डॉ० मनमोहन सिंह ने चीन की यात्रा की। इस यात्रा के दौरान दोनों देशों ने परस्पर सहयोग के नौ समझौतों पर हस्ताक्षर किए।

चीनी राष्ट्रपति की भारत यात्रा-सितम्बर 2014 में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग भारत यात्रा पर आए। इस यात्रा के दौरान दोनों देशों ने 12 समझौतों पर हस्ताक्षर किये।

मई, 2015 में भारतीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने चीन की यात्रा की। इस यात्रा के दौरान दोनों देशों ने रेलवे तथा खनन
जैसे क्षेत्रों सहित 24 समझौतों पर हस्ताक्षर किए।

अक्तूबर, 2016 में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ब्रिक्स (BRICS) सम्मेलन में भाग लेने के लिए भारत यात्रा पर आए। इस यात्रा के दौरान दोनों देशों ने द्विपक्षीय मुलाकात में व्यापार एवं स्वच्छ ऊर्जा जैसे मुद्दों पर बातचीत की।

सितम्बर 2017 एवं जून 2018 में भारतीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी चीन यात्रा पर गए। इस दौरान दोनों देशों ने द्विपक्षीय मुद्दों पर बातचीत की।
संक्षेप में, चीन इस बात को मानता है, कि अन्तर्राष्ट्रीय विषयों में भारत की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। सिक्किम भारत का भाग है, और अब सिक्किम कोई मुद्दा नहीं रहा। भारत ने भी तिब्बत को चीन का हिस्सा माना है और तिब्बतियों को भारत की धरती से चीन विरोधी गतिविधियां चलाने की अनुमति नहीं दी जायेगी।

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प्रश्न 6.
भारत और नेपाल के पारस्परिक सम्बन्धों का मूल्यांकन कीजिए। (Assess relationship between India and Nepal.)
अथवा
भारत और नेपाल के आपसी सम्बन्धों में विवाद और सहयोग के मुख्य मुद्दों का विवेचन कीजिए।
(Discuss the main issues of conflicts and Co-operation in the relationship between India and Nepal.)
उत्तर-
नेपाल, भारत और चीन के बीच तिब्बत क्षेत्र में स्थित है और चारों ओर से पहाड़ों से घिरा हुआ है। भारत और नेपाल धर्म, संस्कृति और भौगोलिक दृष्टि से एक-दूसरे के जितने निकट हैं, उतने विश्व के शायद ही कोई अन्य देश हों। नेपाल की अर्थव्यवस्था बहुत हद तक भारत पर निर्भर करती है। दोनों देशों के बीच खुली सीमा है। आवागमन पर कोई रोक नहीं है। सन् 1950 से 1960 तक दोनों देशों के सम्बन्ध बहुत मित्रतापूर्ण रहे। कश्मीर के प्रश्न पर नेपाल ने भारत का समर्थन किया तथा उसे भारत का अभिन्न अंग बताया। भारत ने आर्थिक क्षेत्र से नेपाल की बहुत सहायता की। 1952 में प्रारम्भ किया गया भारतीय सहायता कार्यक्रम धीरे-धीरे आकार तथा क्षेत्र में फैलता गया। नेपाली वित्त मन्त्रालय के एक वक्तव्य के अनुसार सन् 1951 से जुलाई, 1964 के बीच नेपाल द्वारा प्राप्त की गई विदेशी सहायता में संयुक्त राज्य अमेरिका तथा सोवियत संघ के बाद भारत का तीसरा स्थान है।

दोनों देशों में तनावपूर्ण काल-1960 में नेपाल के महाराजा ने संसद् को भंग कर नेताओं को जेल में डाल दिया। इस पर भारत के प्रधानमन्त्री जवाहरलाल नेहरू ने नेपाल के महाराजा की आलोचना करते हुए कहा कि, “नेपाल से लोकतन्त्र समाप्त हो गया।” इससे दोनों देशों के सम्बन्ध मैत्रीपूर्ण नहीं रहे। नेपाल ने चीन और पाकिस्तान से व्यापारिक समझौते करने शुरू कर दिए। प्रधानमन्त्री श्री लाल बहादुर शास्त्री ने नेपाल की यात्रा की जिससे दोनों देशों के सम्बन्ध में थोड़ा सुधार हुआ।

सहयोग का काल-1975 में नेपाल नरेश भारत आए जिससे दोनों देशों में पुनः अच्छे सम्बन्ध स्थापित हो सके। दिसम्बर, 1977 में प्रधानमन्त्री मोरारजी देसाई ने नेपाल की यात्रा की और दोनों देशों में मित्रता बढ़ी। जनवरी, 1980 में श्रीमती इंदिरा गांधी के पुनः सत्ता में आने पर भारत-नेपाल सम्बन्धों में सुधार हुआ। 3 फरवरी, 1983 को नेपाल के प्रधानमन्त्री भारत आए और दोनों देशों में मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध स्थापित हुए। भारत और नेपाल के बीच करनाली बहु-उद्देशीय सिंचाई परियोजना पर विस्तार से विचार-विमर्श हुआ। इसके साथ ही पंचेश्वर परियोजना तथा कुछ अन्य नदी परियोजनाओं पर भारत और नेपाल के बीच सहयोग की सम्भावनाओं पर विचार-विमर्श चल रहा है। भारत और नेपाल के बीच सहयोग बढ़ाने की दृष्टि से दोनों देशों के विदेश मन्त्रियों के स्तर पर संयुक्त आर्थिक आयोग की स्थापना करने का निर्णय किया गया है। दोनों देशों में दो व्यापार समझौते हुए। एक है भारत और नेपाल में व्यापार को बढ़ाने के सम्बन्ध में और दूसरा है, सीमा पर तस्करी रोकने के बारे में। 21 जुलाई, 1986 को राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह नेपाल की पांच दिवसीय राजकीय यात्रा पर गए। राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ने कहा कि भारत आर्थिक बुनियादी ढांचे को मज़बूत बनाने और आत्म-निर्भरता के रास्ते पर आगे बढ़ाने में नेपाल की पूरी मदद देगा। 1987 में दोनों देशों ने संयुक्त आयोग के गठन पर समझौता किया। नेपाल द्वारा उदासीन रुख दिखाने और वांछित शर्ते पूरी करने में आनाकानी करने के कारण भारत-नेपाल व्यापार एवं माल आवागमन सन्धि 23 मार्च, 1989 को समाप्त हो गई।

तनावपूर्ण सम्बन्ध-भारत-नेपाल व्यापार तथा पारगमन सन्धि नवीकरण न होने से दोनों देशों के सम्बन्धों में कटुता आ गई। भारत एक समन्वित सन्धि के पक्ष में था जबकि नेपाल मार्च, 1989 तक जारी व्यवस्था के तहत दो अलग सन्धियां करने के लिए ज़ोर देता रहा। फरवरी, 1990 में दोनों देशों के विदेश सचिवों की नई दिल्ली में तीन दिन बातचीत हुई। भारत और नेपाल के बीच उन सभी मसलों को निपटाने के बारे में व्यापक सहमति हो गई, जिसके कारण दोनों देशों के सम्बन्धों में एक वर्ष से ज़बरदस्त दरार पड़ी हुई थी।

5 दिसम्बर, 1991 को नेपाल के प्रधानमन्त्री गिरिजा प्रसाद कोइराला भारत की दो दिन की यात्रा पर आए। यात्रा की समाप्ति पर 6 दिसम्बर, 1991 को दोनों देशों के बीच पांच सन्धियों पर हस्ताक्षर किए गए। दोनों देशों ने बीच व्यापार तथा पारगमन सुविधा के लिए दो अलग-अलग सन्धियां कीं। दोनों देशों ने जल-संसाधनों के बंटवारे और विकास से सम्बन्धित विवाद पर सन्धि की। चौथा समझौता कृषि क्षेत्र के सहयोग के लिए है। पांचवां समझौता स्वर्गीय विश्वेश्वर प्रसाद कोइराला की स्मृति में एक फाउंडेशन गठित करने के लिए भारत और नेपाल में शिक्षा, संस्कृति और विज्ञान तथा टैक्नालॉजी के क्षेत्र में सम्बन्ध बढ़ाने की व्यवस्था की गई। नेपाल ने आतंकवाद को समाप्त करने के लिए भारत के साथ सहयोग पर सहमत होने के साथ ही यह साफ़ कर दिया कि भविष्य में वह अपनी रक्षा ज़रूरतों के लिए चीन से हथियार नहीं लेगा और उस पर निर्भर नहीं करेगा।

प्रधानमन्त्री नरसिम्हा राव की नेपाल यात्रा-19 अक्तूबर, 1992 को भारत के प्रधानमन्त्री नरसिम्हा राव तीन दिन की यात्रा पर नेपाल गए। भारत और नेपाल के विभिन्न क्षेत्रों में आपसी सहयोग बढ़ाने, भारत को नेपाल के उदार शर्तों पर निर्यात वृद्धि करने और विपुल जल संसाधनों का दोनों देशों के साझे हित में प्रयोग करने पर सहमति व्यक्त की।

नेपाल के प्रधानमन्त्री की भारत यात्रा-अप्रैल, 1995 में नेपाल के प्रधानमन्त्री मनमोहन अधिकारी भारत की यात्रा पर आए और उनकी इस यात्रा से दोनों देशों के सम्बन्धों में सुधार हुआ। भारत सरकार ने नेपाल की ज़रूरतों के अनुसार उसे दो अन्य बंदरगाहें बम्बई (मुम्बई) और कांधला से माल भेजने और मंगाने की सुविधा उपलब्ध करा दी है।

नेपाल के प्रधानमन्त्री की भारत यात्रा-फरवरी, 1996 में नेपाल के प्रधानमन्त्री श्री शेर बहादुर देऊबा भारत की यात्रा पर आए और उनकी इस यात्रा से दोनों देशों के सम्बन्धों में सुधार की दिशा में एक नया अध्याय जुड़ गया। नेपाल और भारत के मध्य आपसी सहयोग में कई समझौते हुए। नेपाल के प्रधानमन्त्री श्री देऊबा ने कहा कि उनका देश शीघ्र ही नेपाल भारत के मध्य सम्पन्न 1950 की सन्धि की समीक्षा के लिए एक आयोग गठित करेगा।

महाकाली सन्धि-29 फरवरी, 1996 को भारत और नेपाल ने सिंचाई और बिजली उत्पादन के लिए महाकाली नदी के पानी का उपयोग करने के लिए एक सन्धि पर हस्ताक्षर किए। महाकाली समन्वित विकास सन्धि को नेपाल की संसद् ने 20 सितम्बर, 1996 को स्वीकृति दे दी। महाकाली सन्धि भारत और नेपाल दोनों देशों के सम्बन्धों को मजबूत करेगी तथा दोनों देशों के विकास में सहायक सिद्ध होगी।

भारतीय विदेश मन्त्री की नेपाल यात्रा-सितम्बर, 1999 को भारतीय विदेश मन्त्री जसवंत सिंह ने चार दिन के लिए नेपाल की यात्रा की। यहां भारतीय विदेश मंत्री ने नेपाल के प्रधानमन्त्री कृष्ण प्रसाद भट्टाराई से बातचीत की। दोनों देशों ने यह संकल्प व्यक्त किया कि वे आतंकवादी गतिविधियों का मिलकर मुकाबला करेंगे। दोनों देशों ने इस बात पर भी सहमति जताई कि एक दूसरे की सुरक्षा के लिए घातक कोई गतिविधि अपने क्षेत्रों में नहीं होने दी जाएगी। भारतीय विदेश मन्त्री ने इस यात्रा के सन्दर्भ में कहा कि भारत-नेपाल सम्बन्धों में एक नई बुनियाद डालने का निर्णय लिया है। अपनी यात्रा के अन्त में विदेश मन्त्री जसवंत सिंह ने कहा कि यह यात्रा अत्यधिक सफल और सार्थक रही।

नेपाल के प्रधानमन्त्री की भारत यात्रा-दिसम्बर, 1999 में नेपाल की राजधानी काठमांडू से भारतीय विमान सेवा के एक विमान IC-814 का आतंकवादियों ने अपचालन (Hijacking) कर लिया और इसे अफ़गानिस्तान में कंधार नामक स्थान पर ले गए। इस घटना से भारत को यह आशंका हुई कि नेपाल में आतंकवादियों की बढ़ रही गतिविधियां भारत के लिए खतरा पैदा कर रही हैं। इसके परिणामस्वरूप भारत और नेपाल के बीच तनाव उत्पन्न हो गया। दोनों देशों के बीच इसी तनाव को कम करने तथा अन्य विषयों पर बातचीत करने के उद्देश्य से अगस्त, 1999 में नेपाल के प्रधानमन्त्री गिरिजा प्रसाद कोइराला भारत की यात्रा पर आए। भारत की सुरक्षा चिंता को देखते हुए नेपाली प्रधानमन्त्री ने भारत को यह आश्वासन दिया कि वह अपनी भूमि से भारत के विरुद्ध कोई भी आतंकवादी गतिविधि नहीं चलने देगा और आतंकवाद के विरुद्ध संघर्ष में भारत का साथ देगा। इस यात्रा के दौरान दोनों देश सप्तकोसी बांध परियोजना के निर्माण कार्य को इसी दशक में पूरा करने में सहमत हुए। इस परियोजना पर पिछले 50 वर्ष से बातचीत चल रही थी जिसका कोई निष्कर्ष नहीं निकल रहा था। यह परियोजना जहां भारत के लिए लाभदायक होगी वहीं इससे नेपाल का राष्ट्रीय उत्पादन भी दुगुना हो जाएगा।

नेपाल में आपात्काल एवं भारतीय प्रधानमन्त्री द्वारा मदद का आश्वासन-24 नवम्बर, 2001 को नेपाल में माओवादियों ने 50 सुरक्षा कर्मियों की हत्या कर दी, जिस कारण नेपाल में आपात्काल लागू कर दिया गया। 30 नवम्बर, 2001 को भारतीय प्रधानमन्त्री वाजपेयी ने नेपाल को हर सम्भव सहायता देने की बात की।

नेपाली प्रधानमन्त्री की भारत यात्रा-सितम्बर, 2004 में नेपाल के प्रधानमन्त्री शेर बहादुर देउबा भारत यात्रा पर आए। भारतीय प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह से बातचीत के दौरान नेपाली प्रधानमन्त्री ने नेपाल में जारी माओवादी हिंसा से निपटने के लिए भारत से सहायता मांगी। भारत ने हर सम्भव सहायता देने का वचन दिया।

नेपाल में आपात्काल और देऊबा सरकार बर्खास्त-1 फरवरी, 2005 को नेपाल के राजा ज्ञानेंद्र ने शेर बहादुर देउबा सरकार बर्खास्त कर के सभी कार्यकारी शक्तियां अपने हाथ में ले लीं और नेपाल में आपात्काल की घोषणा कर दी। भारत ने बदले हालात को चिंताजनक बताते हुए इसे लोकतन्त्र के लिए झटका बताया है। भारत ने नेपाल को लोकतन्त्र को पुनः स्थापित करने के लिए भारत नेपाल को स्थिर, शान्तिपूर्ण और खुशहाल देश के रूप में देखना चाहता है।

आपात्काल को हटाया गया-30 अप्रैल, 2005 को नेपाल नरेश ने भारत व अन्य देशों के दबाव पर आकर आपात्काल को हटा दिया।

नेपाल में लोकतान्त्रिक आन्दोलन एवं भारत की भूमिका-नेपाल में 2006 तथा 2007 में चलाए गए लोकतान्त्रिक आन्दोलन को भारत ने पूर्ण समर्थन प्रदान किया। पिछले 240 वर्षों से चले आ रहे राजतन्त्र को मई 2008 में सदा के लिए समाप्त करवा कर लोकतान्त्रिक सरकार बनाने में भारत ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।

नेपाली प्रधानमन्त्री की भारत यात्रा-नेपाल के प्रधानमन्त्री गिरिजा प्रसाद कोइराला 3 अप्रैल, 2007 को सार्क सम्मेलन में भाग लेने के लिए भारत यात्रा पर आए तथा भारतीय प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह के साथ कई मुद्दों पर बातचीत की।

नेपाली प्रधानमन्त्री की भारत यात्रा-नेपाल के प्रधानमन्त्री पुष्प कुमार दहल ‘प्रचण्ड’ 14 सितम्बर, 2008 को भारत यात्रा पर आए। इस यात्रा के दौरान दोनों देश 50 वर्षीय मैत्री सन्धि की समीक्षा के लिए सहमत हुए थे। दोनों प्रधानमन्त्री कोसी नदी पर बांध बनाने और बाढ़ सम्बन्धी सूचना देने के लिए भी तैयार हुए।

नेपाली राष्ट्रपति को भारत यात्रा-फरवरी 2010 में नेपाल के राष्ट्रपति श्री राम बरन यादव भारत यात्रा पर आए। इस यात्रा के दौरान दोनों देशों ने विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग के चार समझौतों पर हस्ताक्षर किये।
नेपाली प्रधानमन्त्री की भारत यात्रा-नेपाल के प्रधानमन्त्री श्री बाबू राम भटाराई अक्तूबर, 2011 में भारत यात्रा पर आए। इस यात्रा के दौरान दोनों देशों ने पारस्परिक सहयोग के तीन समझौतों पर हस्ताक्षर किये। नेपाल के लिये 250 अरब डालर की ‘लाइन ऑफ क्रेडिट’ उपलब्ध कराने के लिए भी एक समझौता हुआ।

भारतीय प्रधानमंत्री की नेपाल यात्रा-अगस्त 2014 में भारतीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने नेपाल की यात्रा की। इस यात्रा के दौरान भारत ने नेपाल को 61 अरब रुपये की मदद देने की घोषणा की।
भारतीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने नवम्बर 2014 में 18वें सार्क सम्मेलन के दौरान नेपाल की यात्रा की। इस यात्रा के दौरान उन्होंने नेपाली प्रधानमंत्री से भी अलग बैठक करके द्विपक्षीय मुद्दों पर बातचीत की।

अक्तूबर 2016 में नेपाल के प्रधानमन्त्री पुष्प कमल दहल ‘प्रचण्ड’,’ बिम्सटेक’ (BIMSTEC) सम्मेलन में भाग लेने के लिए भारत यात्रा पर आए। इस दौरान दोनों देशों ने द्विपक्षीय मुद्दों पर भी बातचीत की।
अगस्त 2017 में नेपाल के प्रधानमंत्री भारत यात्रा पर आए। इस दौरान दोनों देशों ने 8 समझौतों पर हस्ताक्षर किये।
अगस्त 2018 में भारतीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने बिम्सटेक सम्मेलन में भाग लेने के लिए नेपाल की यात्रा की। इन दौरान दोनों देशों ने द्विपक्षीय मुद्दों पर भी बातचीत की।

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लघु उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
कश्मीर समस्या क्या है ? वर्णन कीजिए।
अथवा
कश्मीर समस्या क्या है ?
उत्तर-
स्वतन्त्रता से पूर्व कश्मीर भारत के उत्तर-पश्चिमी कोने में स्थित एक देशी रियासत थी। 15 अगस्त, 1947 को भारत स्वतन्त्र हुआ और पाकिस्तान की भी स्थापना हुई। पाकिस्तान ने पश्चिमी सीमा प्रान्त के कबाइली लोगों को प्रेरणा और सहायता देकर 22 अक्तूबर, 1947 को कश्मीर पर आक्रमण कर दिया। कश्मीर के महाराजा हरि सिंह ने भारत से सहायता मांगी और कश्मीर को भारत में शामिल करने की प्रार्थना की। भारत में कश्मीर का विधिवत् विलय हो गया, परन्तु पाकिस्तान का आक्रमण जारी रहा और पाकिस्तान ने कुछ क्षेत्र पर कब्जा कर लिया और अब भी उस क्षेत्र पर जिसे ‘आज़ाद कश्मीर’ कहा जाता है, पाकिस्तान का कब्जा है। भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सेना को खदेड़ दिया। भारत सरकार ने कश्मीर का मामला संयुक्त राष्ट्र को सौंप दिया और 1 जनवरी, 1949 को कश्मीर का युद्ध विराम हो गया। संयुक्त राष्ट्र संघ ने कश्मीर की समस्या को हल करने का प्रयास किया पर यह समस्या अब भी है। इसका कारण यह है कि भारत सरकार कश्मीर को भारत का अंग मानती है जबकि पाकिस्तान कश्मीर में जनमत संग्रह करवा कर यह निर्णय करना चाहता है कि कश्मीर भारत में मिलना चाहता है या पाकिस्तान के साथ। परन्तु पाकिस्तान की मांग गलत और अन्यायपूर्ण है, इसलिए इसे माना नहीं जा सकता।

प्रश्न 2.
शिमला समझौते की मुख्य व्यवस्थाएं लिखिए।
उत्तर-
दिसम्बर, 1971 में भारत ने पाकिस्तान को युद्ध में ऐतिहासिक मात दी। इस युद्ध में पाकिस्तान के लगभग एक लाख सैनिकों ने आत्मसमर्पण किया। भारत ने पाकिस्तान की इस हार का कोई अनुचित लाभ न उठाया। तत्कालीन प्रधानमन्त्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने दोनों देशों की समस्याओं पर विचार करने के लिए 1972 में एक सम्मेलन बुलाया। इस सम्मेलन में पाकिस्तान के तत्कालीन शासक प्रधानमन्त्री जुल्फिकार अली भुट्टो ने भाग लिया। सम्मेलन में दोनों देशों ने एक समझौता किया जिसे शिमला समझौता कहा जाता है। इस समझौते की प्रमुख शर्ते इस प्रकार हैं

  1. दोनों राष्ट्र अपने पारस्परिक झगड़ों को द्विपक्षीय बातचीत और मान्य शान्तिपूर्ण ढंगों से हल करने के लिए दृढ़-संकल्प हैं।
  2. दोनों राष्ट्र एक-दूसरे की राष्ट्रीय एकता, क्षेत्रीय अखण्डता, राजनीतिक स्वतन्त्रता और सार्वभौम समानता का सम्मान करेंगे।
  3. दोनों राष्ट्र एक-दूसरे की क्षेत्रीय अखण्डता और राजनीतिक स्वतन्त्रता के विरुद्ध बल प्रयोग या धमकी का प्रयोग नहीं करेंगे।
  4. दोनों देशों द्वारा परस्पर विरोधी प्रचार नहीं किया जाएगा। (5) दोनों देश परस्पर सामान्य सम्बन्ध स्थापित करने के लिए प्रयत्न करेंगे।

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प्रश्न 3.
भारत-पाकिस्तान सम्बन्धों का भविष्य क्या है ?
अथवा
भारत-पाकिस्तान सम्बन्धों का भविष्य लिखें।
उत्तर-
भारत-पाक सम्बन्ध सदैव अस्थिर रहे हैं और अधिकांश समय से दोनों देशों के सम्बन्ध मधुर नहीं रहे हैं। यदि भविष्य में भारत-पाक अपने सम्बन्धों को सामान्य बनाना चाहते हैं, तो इन्हें द्विपक्षीय स्तर पर कई महत्त्वपूर्ण कदम उठाने होंगे। विशेषकर पाकिस्तान को भारत से मधुर सम्बन्ध बनाने के लिई कई बड़े कदम उठाने होंगे जैसे आतंकवाद को समर्थन देना बन्द करके भारत के आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप न करने तथा कश्मीर समस्या को सुलझाने में और अधिक उदारता दिखाकर इत्यादि। यदि इस प्रकार के कदम उठाये जाएं तो भारत-पाक सम्बन्ध भविष्य में बेहतर बन सकते हैं।

प्रश्न 4.
भारत-चीन सम्बन्धों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
भारत और चीन एशिया के दो महत्त्वपूर्ण देश हैं। 1954 में दोनों देशों ने आपस में व्यापारिक समझौता किया तथा पंचशील के सिद्धान्तों के प्रति विश्वास दिलाया। 1962 में चीन ने भारत पर आक्रमण किया। 1965 तथा 1971 के पाकिस्तान के साथ युद्धों में चीन ने पाकिस्तान का साथ दिया। इसके बावजूद भी भारत ने चीन से सम्बन्ध सुधारने के प्रयास जारी रखे। 1971 में चीन भारत ने चीन की संयुक्त राष्ट्र की सदस्यता का समर्थन किया। 1979 में भारतीय विदेश मन्त्री वाजपेयी की चीन यात्रा से दोनों देशों के सम्बन्धों में सुधार आया। दिसम्बर, 1988 में भारतीय प्रधानमन्त्री राजीव गांधी की चीन यात्रा के दौरान भारत-चीन सीमा विवाद को हल करने के लिए एक संयुक्त दल का गठन किया। दिसम्बर, 1991 में चीन के प्रधानमन्त्री ली फंग भारत यात्रा पर आए। मई, 2004 में चीन ने सिक्किम को अपने नक्शे में एक अलग राष्ट्र दिखाना बन्द करके, उसे भारत का अभिन्न अंग माना। जनवरी 2008 में भारतीय प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह ने चीन की यात्रा की। सितम्बर 2014 में चीनी राष्ट्रपति श्री जिनपिंग ने भारत की यात्रा की। इस यात्रा के दौरान दोनों देशों ने 12 समझौतों पर हस्ताक्षर किए। सन् 2017 में डोकलाम विवाद ने दोनों देशों के सम्बन्धों में असहजता पैदा कर दी।

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प्रश्न 5.
भारत और बांग्लादेश के सम्बन्धों का वर्णन कीजिए।
अथवा
भारत के बंगला देश के साथ सम्बन्धों का वर्णन करें।
उत्तर-
भारत और बांग्लादेश के सम्बन्ध अधिकांशतः अच्छे रहे हैं। सन् 1971 में बांग्लादेश के एक नए राज्य के रूप में अस्तित्व में आने में भारत ने सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। 19 मार्च, 1972 को भारत और बांग्ला देश के बीच 25 वर्षीय मित्रता व सहयोग की संधि हुई। चकमा शरणार्थियों तथा तीन बीघे गलियारे के कारण दोनों देशों में मतभेद रहे हैं। 26 जून, 1992 को भारत ने तीन बीघे गलियारे को बांग्लादेश को पट्टे पर दे दिया। 12 दिसम्बर, 1996 को भारत-बांग्लादेश में फरक्का गंगा जल बंटवारे पर समझौता हुआ। जनवरी, 2010 में बांग्लादेश की प्रधानमंत्री श्री शेख हसीना भारत आईं। भारत ने बांग्लादेश को 250 मेगावाट बिजली तथा 300 बांग्लादेशी छात्रों को प्रतिवर्ष छात्रवृत्ति देने की घोषणा की, जबकि बांग्लादेशी प्रधानमंत्री ने घोषणा की कि वह अपने क्षेत्र से भारत विरोधी गतिविधियां नहीं होने देगी। नवम्बर 2014 में नेपाल में हुए 18वें सार्क सम्मेलन में बंग्ला देश की प्रधानमन्त्री श्रीमती शेख हसीना एवं भारतीय प्रधानमन्त्री श्री नेरन्द्र मोदी ने द्विपक्षीय बातचीत में समान मुद्दों पर बातचीत की। अप्रैल 2017 में बांग्ला देशी प्रधानमंत्री भारत यात्रा पर आई तथा भारत के साथ 22 समझौतों पर हस्ताक्षर किये थे।

प्रश्न 6.
भारत और पाकिस्तान के सम्बन्धों का वर्णन कीजिए।
अथवा
भारत के पाकिस्तान के साथ सम्बन्धों का वर्णन करें।
उत्तर-
भारत और पाकिस्तान के सम्बन्ध आरम्भ से ही अच्छे नहीं रहे हैं। पाकिस्तान ने भारत पर 1947, 1965 एवं 1971 में आक्रमण किया, जिसमें उसको हार का सामना करना पड़ा। सन् 1966 में ताशकंद समझौते एवं 1972 में शिमला समझौते द्वारा दोनों देशों ने शान्ति स्थापित करने का प्रयास किया, परन्तु पाकिस्तान के अड़ियल व्यवहार के कारण सम्बन्ध सामान्य नहीं हो पाए। फरवरी, 1999 में भारतीय प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी पाकिस्तान यात्रा पर गए तथा लाहौर घोषणा-पत्र पर हस्ताक्षर किए, परन्तु पाकिस्तान ने मई, 1999 में कारगिल में घुसपैठ करा कर यह साबित कर दिया कि वह भारत से अच्छे सम्बन्ध नहीं चाहता, नवम्बर 2014 में नेपाल में हुए में 18वें सार्क सम्मेलन में भी पाकिस्तान का रवैया मित्रतापूर्ण नहीं रहा। वर्तमान समय में भी दोनों देशों के सम्बन्ध अच्छे नहीं हैं।

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अति लघु उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
शिमला समझौते की कोई दो मुख्य व्यवस्थाएं लिखिए।
उत्तर-

  1. दोनों राष्ट्र अपने पारस्परिक झगड़ों को द्विपक्षीय बातचीत और मान्य शान्तिपूर्ण ढंगों से हल करने के लिए दृढ़-संकल्प हैं।
  2. दोनों राष्ट्र एक-दूसरे की राष्ट्रीय एकता, क्षेत्रीय अखण्डता, राजनीतिक स्वतन्त्रता और सार्वभौम समानता का सम्मान करेंगे।

प्रश्न 2.
भारत-चीन सम्बन्धों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
भारत और चीन एशिया के दो महत्त्वपूर्ण देश हैं। दोनों देशों ने पंचशील के सिद्धान्तों के प्रति विश्वास दिलाया। 1962 में चीन ने भारत पर आक्रमण किया। दिसम्बर, 1988 में भारतीय प्रधानमन्त्री राजीव गांधी की चीन यात्रा के दौरान भारत-चीन सीमा विवाद को हल करने के लिए एक संयुक्त दल का गठन किया। मई, 2004 में चीन ने सिक्किम को अपने नक्शे में एक अलग राष्ट्र दिखाना बन्द करके, उसे भारत का अभिन्न अंग माना। वर्तमान समय में दोनों देशों के सम्बन्ध सुधार की ओर बढ़ रहे हैं।

प्रश्न 3.
दो देशों के नाम बताएं, जिन्होंने भारत पर आक्रमण किया था ?
उत्तर-

  1. पाकिस्तान,
  2. चीन।

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प्रश्न 4.
“शिमला समझौता” (सन्धि) कब और कौन-से दो देशों के बीच हुई ?
उत्तर-
शिमला समझौता सन् 1972 में भारत और पाकिस्तान के बीच हुआ था।

प्रश्न 5.
1999 के कारगिल युद्ध के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर-
पाकिस्तानी सैनिकों ने शिमला समझौते एवं लाहौर समझौते का उल्लंघन करते हुए 1999 में भारतीय क्षेत्र की कारगिल पहाड़ियों में घुसपैठ करके अपना कब्जा कर लिया था। भारत के विरोध के बावजूद उन्होंने कब्जे वाले स्थान को खाली करने से मना कर दिया। अतः भारतीय सेना ने बल प्रयोग करके सभी पाकिस्तानी सैनिकों को मार गिराया। इस घटना से पाकिस्तानी सरकार का दोहरा मापदण्ड एक बार फिर सामने आ गया।

प्रश्न 6.
भारत-पाकिस्तान सम्बन्धों का भविष्य लिखें।।
उत्तर-
भारत-पाक सम्बन्ध सदैव अस्थिर रहे हैं और अधिकांश समय से दोनों देशों के सम्बन्ध मधुर नहीं रहे हैं। पाकिस्तान को भारत से मधुर सम्बन्ध बनाने के लिए कई बड़े कदम उठाने होंगे जैसे आतंकवाद को समर्थन देना बन्द करके भारत के आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप न करने तथा कश्मीर समस्या को सुलझाने में और अधिक उदारता दिखाकर इत्यादि। यदि इस प्रकार के कदम उठाये जाएं तो भारत-पाक सम्बन्ध भविष्य में बेहतर बन सकते हैं।

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प्रश्न 7.
बांग्लादेशी घुसपैठियों की समस्या के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर-
भारत व बांग्लादेश की सीमा लगभग 3200 किलोमीटर लम्बी है। स्थिति यह है कि दोनों देशों के बीच कोई प्राकृतिक सीमा न होने के कारण प्राय: बांग्लादेश के लोग शरणार्थियों के रूप में भारत की सीमा में आते रहते हैं। इसके कारण भारत में विविध प्रकार की आर्थिक, सामाजिक तथा राजनीतिक समस्याएं उत्पन्न होती हैं। असम व त्रिपुरा जैसे छोटे राज्यों में यह समस्या विशेष रूप से गम्भीर बनी हुई है, जहां चकमा जाति के अनगिनत शरणार्थी वहां के जनजीवन को प्रभावित करते हुए भारत के लिए बड़ी कठिनाई पैदा करते हैं।

प्रश्न 8.
भारत की पड़ोसी देशों के प्रति क्या नीति है ?
उत्तर-
भारत सैदव ही पड़ोसी देशों से मित्रतापूर्ण सम्बन्ध चाहता है। भारत का मानना है कि बिना मित्रतापूर्ण सम्बन्ध के कोई भी देश सामाजिक, राजनीतिक एवं आर्थिक विकास नहीं कर सकता। इसलिए भारत ने पाकिस्तान, चीन, बांग्लादेश, श्रीलंका, नेपाल एवं भूटान आदि पड़ोसी देशों से सम्बन्ध मधुर बनाये रखने के लिए समय-समय पर कई कदम उठाये हैं। उन्हीं महत्त्वपूर्ण कदमों में एक कदम सार्क की स्थापना है।

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वस्तुनिष्ठ प्रश्न-

प्रश्न I. एक शब्द/वाक्य वाले प्रश्न-उत्तर

प्रश्न 1.
शिमला समझौता कब हुआ ?
उत्तर-
शिमला समझौता सन् 1972 में हुआ।

प्रश्न 2.
शिमला समझौता किन दो देशों के बीच हुआ ?
उत्तर-
शिमला समझौता भारत-पाकिस्तान के बीच हुआ था।

प्रश्न 3.
लाहौर घोषणा कब हुई ?
उत्तर-
लाहौर घोषणा सन् 1999 में हुई।

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प्रश्न 4.
चीन ने भारत पर कब आक्रमण किया ?
उत्तर-
चीन ने भारत पर सन् 1962 में आक्रमण किया।

प्रश्न 5.
मैक-मोहन रेखा क्या है ?
उत्तर-
मैक-मोहन रेखा भारत एवं चीन की सीमा रेखा को निर्धारित करती है। मैक-मोहन रेखा सन् 1914 में निश्चित की गई थी।

प्रश्न 6.
भारत-चीन सम्बन्धों का एक उदाहरण लिखें।
उत्तर-
श्री राजीव गांधी ने सन् 1988 में चीन की यात्रा की।

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प्रश्न 7.
भारत-पाकिस्तान सम्बन्धों का क्या भविष्य है ? उदाहरण लिखें।
अथवा
भारत-पाकिस्तान सम्बन्धों का भविष्य क्या है ?
उत्तर-
भारत-पाकिस्तान सम्बन्धों का भविष्य उज्ज्वल नहीं है क्योंकि पाकिस्तान लगातार भारत में आतंकवादी गतिविधियाँ करवाता रहता है।

प्रश्न 8.
शिमला समझौते पर हस्ताक्षर किन दो नेताओं द्वारा किए गए थे? ।
उत्तर-
शिमला समझौते पर भारतीय प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी एवं पाकिस्तान के प्रधानमंत्री श्री जुल्फिकार अली भुट्टो द्वारा हस्ताक्षर किये गए थे।

प्रश्न 9.
पंचशील के विषय में चीन की क्या भूमिका है ?
उत्तर-
चीन ने भारत के साथ मिलकर पंचशील सिद्धान्तों का निर्माण किया।

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प्रश्न 10.
भारत और चीन के बीच पंचशील समझौता (संधि) कब हुआ ?
उत्तर-
भारत और चीन के बीच पंचशील समझौता सन् 1954 में हुआ था।

प्रश्न 11.
भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव का एक कारण लिखो।
उत्तर-
भारत-पाक सम्बन्धों में तनाव का एक महत्त्वपूर्ण कारण कश्मीर का मामला है।

प्रश्न 12.
बांग्लादेश की स्थापना कब हुई ?
उत्तर-
बांग्लादेश की स्थापना सन् 1971 में हुई।

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प्रश्न 13.
ताशकन्द समझौता क्या है ?
अथवा
ताशकंद समझौता कौन-से दो देशों के बीच हुआ ?
उत्तर-
10 जनवरी, 1966 को भारत-पाकिस्तान के बीच ताशकन्द में हुए समझौते को ताशकन्द समझौता कहा जाता है। यह समझौता दोनों देशों के बीच सन् 1965 के युद्ध के बाद किया गया था।

प्रश्न 14.
लिट्टे से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
लिट्टे (L.T.T.E.) का अर्थ लिबरेशन टाइगर ऑफ तमिल ईलम (Liberation Tigers of Tamil Ealm) है।

प्रश्न II. खाली स्थान भरें-

1. ……….. दक्षिण एशिया का सर्वाधिक जनसंख्या वाला देश है।
2. भारत एवं पाकिस्तान से ब्रिटिश राज की समाप्ति सन् …….. में हुई।
3. पाकिस्तान सीटो तथा सैन्टो जैसे ……….. गठबन्धन में शामिल हुआ।
4. बंगलादेश …….. से लेकर ……….. तक पाकिस्तान का अंग रहा है।
5. बंगलादेश के नेताओं द्वारा मार्च, ……… में स्वतन्त्रता की घोषणा की गई।
उत्तर-

  1. भारत
  2. 1947
  3. सैनिक
  4. 1947, 1971
  5. 1971.

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प्रश्न III. निम्नलिखित वाक्यों में से सही एवं ग़लत का चुनाव करें-

1. दक्षिण एशिया, एशिया में स्थित है, जिसमें भारत, पाकिस्तान एवं श्रीलंका जैसे महत्त्वपूर्ण देश शामिल हैं।
2. 1947 में भारत से अलग होकर बंगलादेश एक नये राज्य के रूप में सामने आया।
3. पाकिस्तान शीत युद्धकालीन सैनिक गठबन्धनों जैसे सीटो और सैन्टो में शामिल हुआ।
4. 1960 में भारत एवं पाकिस्तान ने सिन्धु नदी जल समझौते पर हस्ताक्षर किये।
5. भारत के प्रयासों से 1971 में जापान नामक देश अस्तित्व में आया।
उत्तर-

  1. सही
  2. ग़लत
  3. सही
  4. सही
  5. ग़लत।

प्रश्न IV. बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
मैकमोहन रेखा कौन-से दो देशों की सीमा क्षेत्र को निश्चित करती है :
(क) भारत-पाकिस्तान
(ख) भारत-चीन
(ग) भारत-अमेरिका
(घ) पाकिस्तान-चीन।
उत्तर-
(ख) भारत-चीन

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प्रश्न 2.
निम्न में से किसने पंचशील के सिद्धान्तों का निर्धारण किया ?
(क) सरदार पटेल
(ख) डॉ० राजेन्द्र प्रसाद
(ग) पं० नेहरू
(घ) महात्मा गांधी।
उत्तर-
(ग) पं० नेहरू

प्रश्न 3.
1965 में किन दो देशों के बीच युद्ध हुआ?
(क) भारत-पाकिस्तान
(ख) भारत-चीन
(ग) भारत-श्रीलंका
(घ). पाकिस्तान-नेपाल।
उत्तर-
(क) भारत-पाकिस्तान

प्रश्न 4.
ताशकन्द समझौता किन दो देशों के बीच हुआ?
(क) भारत-चीन
(ख) भारत-पाकिस्तान
(ग) भारत-नेपाल
(घ) भारत-श्रीलंका।
उत्तर-
(ख) भारत-पाकिस्तान

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प्रश्न 5.
महाकाली सन्धि किन दो देशों के बीच हुई ?
(क) भारत-पाकिस्तान
(ख) भारत-नेपाल
(ग) भारत-चीन
(घ) भारत-जापान।
उत्तर-
(ख) भारत-नेपाल

प्रश्न 6.
नेपाल में नया संविधान कब लागू किया गया ?
(क) 20 सितम्बर, 2015
(ख) 2 फरवरी, 2007
(ग) 4 मार्च, 2008
(घ) 9 जुलाई, 2009।
उत्तर-
(क) 20 सितम्बर, 2015

PSEB 12th Class Geography Solutions Chapter 6 आर्थिक भूगोल निर्माण उद्योग (सहायक सेवा तथा ज्ञान/विशेष क्षेत्रों की क्रियाएं)

Punjab State Board PSEB 12th Class Geography Book Solutions Chapter 6 आर्थिक भूगोल निर्माण उद्योग (सहायक सेवा तथा ज्ञान/विशेष क्षेत्रों की क्रियाएं) Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Geography Chapter 6 आर्थिक भूगोल निर्माण उद्योग (सहायक सेवा तथा ज्ञान/विशेष क्षेत्रों की क्रियाएं)

PSEB 12th Class Geography Guide आर्थिक भूगोल निर्माण उद्योग (सहायक सेवा तथा ज्ञान/विशेष क्षेत्रों की क्रियाएं) Textbook Questions and Answers

प्रश्न I. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक वाक्यों में दें:

प्रश्न 1.
निर्माण उद्योग आर्थिकता के कौन-से क्षेत्र की क्रिया है ?
उत्तर-
निर्माण उद्योग आर्थिकता के द्वितीयक क्षेत्र की क्रिया है।

प्रश्न 2.
गन्ने की कृषि पर निर्माण क्षेत्र का कौन-सा उद्योग आधारित है ?
उत्तर-
गन्ने की कृषि पर चीनी उद्योग आधारित है।

प्रश्न 3.
कागज़ बनाने का उद्योग कौन-सी मौलिक क्रिया पर आधारित है ?
उत्तर-
लकड़ी की लुगदी से कागज़ बनाने की क्रिया पर।।

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प्रश्न 4.
किसी उद्योग के स्थानीयकरण पर कैसे दो कारक प्रभाव डालते हैं ?
उत्तर-
1. कच्चा माल, मज़दूर, यातायात के साधन (भौगोलिक कारक),
2. पूंजी, सरकारी नीति, (गैर भौगोलिक कारक)।

प्रश्न 5.
TISCO का पूरा नाम क्या था ?
उत्तर-
टाटा आयरन एंड स्टील कंपनी लिमिटेड।

प्रश्न 6.
ढाका में बनता कौन-सी किस्म का कपड़ा बहुत प्रसिद्ध है ?
उत्तर-
ढाके की मलमल का कपड़ा बहुत प्रसिद्ध रहा है।

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प्रश्न 7.
गन्ने से चीनी के अलावा क्या-क्या बनाया जा सकता है ?
उत्तर-
गन्ने से कई पदार्थ, जैसे-चीनी, शीरा, मोम, खाद, कागज़ इत्यादि भी तैयार किए जाते हैं।

प्रश्न 8.
बठिंडा स्थित तेल शोधक कारखाने का पूरा नाम क्या है ?
उत्तर-
गुरु गोबिंद सिंह रिफायनरी, तेल शोधक कारखाने का पूरा नाम है।

प्रश्न 9.
आर्थिकता के चौथे स्तर पर किस किस्म के उद्योग आते हैं ?
उत्तर-
इसमें विद्वान्, चिंतक तथा बुद्धिजीवी उद्योग आते हैं।

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प्रश्न 10.
मीडिया सेवाएं, आर्थिकता के कौन-से स्तर की क्रियाएं हैं ?
उत्तर-
मीडिया सेवाएं आर्थिकता के पांचवें स्तर की क्रियाएं हैं।

प्रश्न 11.
CAGR का पूरा नाम क्या है ?
उत्तर-
Compound Annual Growth Rate/Compound Advance Growth Rate.

प्रश्न 12.
हरा कालर श्रमिक कौन से क्षेत्रों के क्रियाशील व्यक्तियों को कहते हैं ?
उत्तर-
पर्यावरण वैज्ञानिक, सलाहकार, सौर ऊर्जा क्षेत्रों के साथ जुड़े क्रियाशील व्यक्तियों को हरा कालर श्रमिक कहते हैं।

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प्रश्न 13.
कामकाजी औरतों की रोजगार क्रियाएं कौन-से रंग के कालर से संबंधित होती हैं ?
उत्तर-
गुलाबी कालर श्रमिक से संबंधित होती हैं।

प्रश्न 14.
कृषि निर्यात जोन के अधीन पंजाब से क्या कुछ निर्यात किया जा सकेगा?
उत्तर-
कृषि निर्यात जोन अधीन सब्जियां, आलू, चावल, शहद, पंजाब से निर्यात किया जाएगा।

प्रश्न 15.
भारत का मानचैस्टर कौन-से शहर को कहते हैं ?
उत्तर-
अहमदाबाद को भारत का मानचैस्टर कहते हैं।

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प्रश्न II. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर तीन-चार पंक्तियों में दें:

प्रश्न 1.
मज़दूरों की संख्या के आधार पर उद्योगों का विभाजन करो तथा विशेषताएं बताओ।
उत्तर-
मजदूरों की संख्या के आधार पर उद्योगों को निम्नलिखित तीन किस्मों में विभाजित किया जाता है-

  1. बड़े पैमाने के उद्योग-जहाँ मज़दूरों की संख्या बहुत अधिक हो।
  2. मध्यम पैमाने के उद्योग-जहाँ मज़दूरों की संख्या न अधिक होती हैं न कम; जैसे-साइकिल उद्योग, बिजली ‘ उपकरण उद्योग इत्यादि।
  3. छोटे पैमाने के उद्योग-जहाँ निजी स्तर से या बहुत कम मज़दूरों की आवश्यकता हों।

प्रश्न 2.
ग्रामीण उद्योग तथा कुटीर उद्योगों की विशेषताएं बताओ।
उत्तर-
ग्रामीण उद्योग-यह गाँव में स्थित होते हैं तथा गाँव की आवश्यकता को पूरा करते हैं; जैसे-गेहूं, चक्की इत्यादि।
घरेलू/कुटीर उद्योग-जहाँ शिल्पकार अपने घर में ही लकड़ी, बांस, पत्थरों इत्यादि को तराश कर सामान बनाते . हैं; जैसे-खादी, चमड़े के उद्योग इत्यादि।

प्रश्न 3.
पूंजी प्रधान तथा मज़दूर प्रधान उद्योगों में अंतर स्पष्ट करो।
उत्तर-
पूंजी प्रधान- जिन उद्योगों में पैसे के निवेश की आवश्यकता होती है; जैसे-लौहा तथा इस्पात, सीमेंट इत्यादि पूंजी प्रधान उद्योग कहलाते हैं।
मज़दूर प्रधान – जिन उद्योगों में ज्यादा मजदूरों की आवश्यकता होती है; जैसे-जूते, बीड़ी उद्योग इत्यादि मजदूर प्रधान उद्योग कहलाते हैं।

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प्रश्न 4.
यातायात उद्योगों के स्थानीयकरण के कारक के तौर पर कैसे प्रभाव डालते हैं ?
उत्तर-
कच्चे माल को उद्योगों तक पहुँचाने तथा फिर निर्माण उद्योग से उपयोग योग्य तैयार सामान को बाजार तक पहुँचाने के लिए अच्छी सड़कें, रेल मार्ग, जल मार्ग तथा समुद्री मार्ग की आवश्यकता होती है। बंदरगाहों के कारण कोलकाता, मुंबई, चेन्नई शहरों के आस-पास काफी उद्योग विकसित हो सके हैं। यहाँ तक पंजाब में लुधियाना के पास लगते रेलवे स्टेशन ढंडारी कलां को तो शुष्क बंदरगाह तक का नाम दे दिया गया है।

प्रश्न 5.
भद्रावती के लोहा इस्पात उद्योग से जान-पहचान करवाओ।
उत्तर-
18 जनवरी, 1923 को मैसूर आयरन वर्क्स के नाम के अंतर्गत भद्रावती (कर्नाटक) में शुरू हुए थे। इस प्लांट का नाम भारत के मशहूर इंजीनियर भारत रत्न श्री एम० विश्वेश्वरैया के नाम पर विश्वेश्वरैया आयरन एंड स्टील लिमिटेड रख दिया गया। यह उत्पादन केंद्र भी स्टील अथारिटी ऑफ इंडिया के अंतर्गत ही आता है।

प्रश्न 6.
भारत में सूती वस्त्र के उत्पादन संबंधी इतिहास के बारे में कुछ बताओ।
उत्तर-
भारतीय सूती वस्त्र तथा इसके सूत का इतिहास सिंधु घाटी सभ्यता से शुरू हुआ समझा जाता है। 1500 ईसा पूर्व से 1500 ई० तक लगभग 3000 साल तक भारत के सूती वस्त्र का उत्पादन विश्व में काफी प्रसिद्ध है। ढाका शहर के मलमल का कपड़ा, मसूलीपटनम का छींट, कालीकट की कल्लीकैंज से कैम्बे में बने बफता वस्त्र पूरे विश्व में प्रसिद्ध थे। भारत में पहली सूती कपड़े की मिल 1818 में फोर्ट ग्लोस्टर कोलकाता में लगाई गई थी परंतु यह मिल अधिक कामयाब नहीं हुई। फिर एक कामयाब मिल 1854 में मुंबई में लगाई गई तथा देश के विभाजन के समय 1941, में लंबे रेशे वाली कपास वाले क्षेत्र पाकिस्तान की तरफ चले गए परंतु कपड़े के उद्योग गुजरात तथा महाराष्ट्र में रह गए।

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प्रश्न 7.
सूती वस्त्र मिलों को कौन-से वर्गों में विभाजित किया जा सकता है ?
उत्तर-
सूती वस्त्र मिलों को तीन वर्गों में विभाजित किया जा सकता है-

  • कताई मिलें (Spinning Mills)
  • बुनाई मिलें (Weaving Mills)
  • धागे तथा कपड़ा मिलें (Thread and Cotton both produced)

कताई मिलों को आगे अन्य भागों में विभाजित किया जाता है।

  • हथकरघा (Handloom)
  • बिजली के साथ चलने वाली कताई मशीनें (Powerloom)।

प्रश्न 8.
मन्जूर माल भाड़ा गलियारा से जान पहचान करवाएं।
उत्तर-
यह गलियारा पश्चिमी गलियारे दादरी से जवाहर लाल नेहरू बंदरगाह, मुंबई तक लगभग 1468 कि०मी० का क्षेत्र शामिल है। इसके अलावा पूर्वी गलियारा-लुधियाना (पंजाब) से पश्चिमी बंगाल तक लगभग 1760 कि०मी० का क्षेत्र शामिल है।

प्रश्न 9.
दिल्ली-मुंबई औद्योगिक गलियारों से पहचान करवाओ।
उत्तर-
यह गलियारा देश के कुछ सात राज्यों में फैला हुआ है। यह योजनाबद्ध औद्योगिक गलियारा देश की राजधानी दिल्ली से लेकर आर्थिक राजधानी मुंबई तक 1500 किलोमीटर तक लंबा है। इसमें 24 औद्योगिक क्षेत्र, 8 स्मार्ट शहर तथा दो हवाई अड्डे, 5 बिजली उत्पादन केंद्र तथा बेहतर यातायात प्रबंध शामिल हैं।

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प्रश्न 3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 10-12 पंक्तियों में दें: :

प्रश्न 1.
किसी उद्योग के स्थानीयकरण के लिए कौन-कौन से गैर भौगोलिक कारक कार्यशील होते हैं ?
उत्तर-
किसी उद्योग के स्थानीयकरण के लिए गैर भौगोलिक कारक निम्नलिखित हैं-

  • पूंजी-पूंजी की उद्योगों को लगाने तथा चलाने के लिए खास आवश्यकता होती हैं।
  • सरकारी नीतियां-किसी देश की अच्छी सरकारी नीतियां उस देश के औद्योगिक विकास में योगदान डालती हैं
  • औद्योगिक सुविधाएं-जब कोई उद्योग अपनी उत्पत्ति वाले स्थान पर स्थापित होकर पूरा विकास करे; जैसे-उत्तर प्रदेश में अलीगढ़ में तालों का उद्योग तथा लुधियाना में हौजरी उद्योग इत्यादि।
  • कुशल संगठन-कुशल प्रबंध का होना भी अति आवश्यक है। अयोग्य प्रबंधन कारण कई बार कामयाब उद्योग भी बर्वाद हो जाते हैं।
  • बैंक की सुविधा-उद्योग लगाने तथा इसके प्रबंधन के लिए काफी धन राशि की आवश्यकता होती है। इसलिए इस उद्योग के लिए बैंक की सुविधाएं ज़रूरी होनी चाहिए।
  • बीमा-किसी भी अनहोनी दुर्घटना जो मनुष्य या मशीनरी इत्यादि के साथ भी हो, की सूरत में बीमे की सुविधा का होना ज़रूरी है।

प्रश्न 2.
भारत में लोहा तथा इस्पात उद्योग की शुरुआत तथा स्थापना के लिए जरूरी कारकों से पहचान करवाओ।
उत्तर-
भारत में लोहा-इस्पात की शुरुआत 1874 ई० में हुई। जब बंगाल आयरन वर्क्स ने पश्चिमी बंगाल में आसनसोल के नज़दीक ‘कुलटी’ नामक स्थान पर स्टील प्लांट लगाया गया था परंतु यह अधिक सफल न हो सका। यह प्लांट 1907 ई० में कामयाब हुआ जब जमशेद जी टाटा द्वारा झारखंड में ‘साकची’ नामक स्थान पर सम्पूर्ण भारतीय कंपनी टाटा आयरन एंड स्टील कंपनी का प्लांट लगाया गया तथा 1,20,000 टन कच्चे लोहे का निर्माण किया। सन् 1947 ई० के समय जहाँ 10 लाख टन कच्चे लोहे का निर्माण हुआ। 2014-15 तक भारत संसार में लोहे का तीसरा बड़ा उत्पादक देश बन गया।

कच्चा लोहा, इस्पात उद्योग की स्थापना के लिए आवश्यक कारक-इन उद्योगों के लिए पानी की बड़ी मात्रा की आवश्यकता होती है। यह उद्योग विशेषतया उन क्षेत्रों में लगाये जाते हैं जहाँ नदियां, नहरें, झीलें हों क्योंकि इन क्षेत्रों में पानी की उपलब्धि के साथ-साथ यातायात भी आसान हो जाती है। इसके साथ-साथ पूंजी, मजदूर, रेल तथा सड़क यातायात तथा उचित बाजार की आवश्यकता है।

प्रश्न 3.
भारत में सूती वस्त्र उद्योग की मुसीबतों तथा उनके समाधान बताओ।
उत्तर-
भारत में सूती वस्त्र उद्योग में आने वाली मुख्य कठिनाइयां (मुसीबतें) निम्नलिखित हैं-

  • देश में लम्बे रेशे वाली कपास का उत्पादन कम है।
  • कारखाने काफी पुराने हैं जिस कारण उत्पादकता पर असर पड़ता है। मशीनरी पुरानी है जिसको बदलना बहुत ज़रूरी है तथा औद्योगिक पक्ष से देश पीछे है तथा मशीनरी महंगी है।
  • भारतीय सूती वस्त्र को कृत्रिम रेशे के साथ मुकाबला करना पड़ रहा है।
  • भारत को अंतर्राष्ट्रीय बाजार में बंगलादेश, चीन, जापान तथा इंग्लैंड से मुकाबला करना पड़ रहा है जिनका कच्चा माल भारत के कच्चे माल में ज्यादा अच्छा है।
  • पूंजी की कमी भी सूती वस्त्र उद्योग के लिए समस्या का एक कारण है।

समाधान-नई तकनीक वाली मशीनरी को लाना चाहिए तथा उद्योग को आधुनिक बनाने के लिए सस्ते ब्याज पर ऋण उपलब्ध करवाने चाहिए। तैयार माल की कीमतों को कम रखने के लिए औद्योगिक उत्पादन को बढ़ाया जाना चाहिए। कच्चे माल, बिजली तथा मजदूरों की निरन्तर पूर्ति होनी चाहिए।

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प्रश्न 4.
भारत में चीनी उद्योग में पंजाब का क्या योगदान है तथा समूचे तौर पर उद्योग को क्या-क्या कठिनाइयां आ रही हैं ?
उत्तर-
भारत में चीनी उद्योग में पंजाब का योगदान-पंजाब राज्य में कुल 17 चीनी मिलें हैं जिनमें 10 मिलें चालू हालात में हैं जो कि अजनाला, बटाला, भोगपुर, बुंदेबाल, फाजिल्का, फगवाड़ा, गुरदासपुर, नवांशहर, नकोदर, मोरिंडा में स्थित हैं। परंतु यहां की 17 चीनी मिलों में 7 मिलें बंद हो गई हैं जोकि धूरी, फरीदकोट, रखड़ा, तरनतारन, जीरा, बुढ़लाडा, जगराओं में हैं।

कठिनाइयां –

  • गन्ने की लागत पर ज्यादा खर्चा होता है परंतु मूल्य में गिरावट होती है।
  • गन्ना कटाई के बाद तेजी से सूख जाता है तथा लंबे समय के लिए इसको बचा के न रख सकना भी बड़ी समस्या है।
  • चीनी मिलों के मालिकों द्वारा किसानों को समय पर अदायगी न करने से भी गन्ना उत्पादक किसान निराश होता है।
  • कोहरे के कारण भारत की फसल खराब हो जाती है।
  • यातायात की लागत बढ़ने के साथ भी गन्ने की फसल में कठिनाइयां आती हैं।
  • चीनी मिलें छोटी हैं तथा सहकारी क्षेत्र की मिलों में सिर्फ मुनाफा कमाने की नीति कारण रुकावट आ चुकी

प्रश्न 5.
भारत के औद्योगिक गलियारे से पहचान करवाओ तथा किसी एक गलियारे पर नोट लिखो।
उत्तर-
उद्योगों में कच्चा माल पहुंचाने तथा तैयार हुए माल को बाजार तक पहुंचाने के लिए रेल मंत्रालय के अंतर्गत माल गाड़ियां चलाने के लिए अलग-अलग रेल लाइनें बिछाने की योजना तैयार की गई। इसके लिए निरोल माल भाड़ा गलियारा निगम की स्थापना की गई। ऐसे गलियारे की योजना, विकास, निर्माण, कामकाज तथा देख-रेख इत्यादि का सारा प्रबंध 11वीं पंचवर्षीय योजना के समय किया गया तथा इस योजना के अधीन पूर्वी निरोल माल-भाड़ा गलियारा पंजाब में लुधियाना से पश्चिमी बंगाल तक के पश्चिमी निरोल माल-भाड़ा गलियारा जवाहर लाल नेहरू बंदरगाह मुंबई से उत्तर प्रदेश में दादरी तक होगा। इस गलियारा को बनाने का मुख्य उद्देश्य है कि समर्थ, भरोसे योग्य, सुरक्षित तथा सस्ती गाड़िया चलाना तथा पर्यावरण की संभाल रखते हुए रेलवे में लोगों के भरोसे को बढ़ाना। इस तरह से गलियारों के साथ-साथ आवश्यकता का सामान भी उपलब्ध करवाना है ताकि योजना से अधिक से अधिक लाभ उठाया जा सके।

सुनहला चतुर्भुज माल-भाड़ा गलियारा-यह गलियारा केंद्रों, सड़कों, यातायात तथा राजमार्ग मंत्रालय की योजना है जिसके द्वारा मुख्य रूप में 4 महानगरों, दिल्ली, मुंबई, चेन्नई तथा कोलकाता को जोड़कर एक चतुर्भुज बनाई जाती है तथा उत्तर-दक्षिण तथा पूर्व-पश्चिम की तरफ दो लंब रूप मालभाड़ा गलियारा बनाया गया। इस द्वारा सड़क मार्गों की लंबाई 10,122 कि०मी० होगी तथा भारतीय रेल की तरफ जाए तो मालभाड़े के 55% हिस्से से भी अधिक कमाई की जाए।

प्रश्न 6.
भारत की आर्थिकता में तृतीयक क्षेत्र की क्रियाओं पर विस्तार से एक नोट लिखो।
उत्तर-
तृतीयक क्षेत्र या सेवा क्षेत्र आर्थिकता की पहली तथा दूसरी श्रेणी के बाद तीसरा महत्त्वपूर्ण क्षेत्र है। इसमें उत्पादकता के प्रदर्शन के ज्ञान में जानकारी का प्रयोग करके वृद्धि की जाती है। इस क्षेत्र में खासकर सेवाओं का प्रयोग किया जाता है। इस क्षेत्र में आने वाली मुख्य सेवाएं हैं मनोरंजन, सरकारी सेवाएं, टैलीकॉम, दूरसंचार, पर्यटन, मीडिया, शिक्षा, बीमा, बैकिंग सुविधाएं, निवेश, लेखा सेवाएं, वकीलों के सुझाव, चिकित्सा सेवाएं, यातायात के साधन इत्यादि को शामिल किया जाता है। भारत में सेवा क्षेत्र, राष्ट्रीय तथा राज्यों की आमदनी तथा आर्थिकता का बड़ा हिस्सा है जो कि व्यापार, सीधी विदेशी पूंजीकारी तथा नौकरी में वृद्धि संबंधी देश की काफी सहायता करता है। यह आर्थिक वृद्धि की पूंजी है। यह क्षेत्र की कुल कीमत की वृद्धि में 66.1% हिस्सा भारत में डालता है तथा विदेशी निवेश की तरफ खींच पैदा करता है। केन्द्रीय आंकड़ा दफ्तर के अनुमान मुताबिक साल 2016-17 में सेवा क्षेत्र 8.8% की दर से बढ़ेगा।

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प्रश्न 7.
भारत सरकार के ‘मेक इन इंडिया’ प्रोग्राम से पहचान करवाओ।
उत्तर-
भारत के निर्माण उद्योग को ताकतवर बनाने के लिए खोज तथा स्थापना के क्षेत्रों में देश को विश्व स्तर पर लाने के लिए भारत सरकार ने ‘मेक इन इंडिया’ योजना की शुरुआत की। इस योजना के मुख्य रूप में चार स्तंभ हैं पहला यह एक नयी प्रक्रिया, दूसरा नयी बुनियादी संरचना, तीसरा नया विकास क्षेत्र तथा चौथा नई सोच। बुनियादी संरचना तथा सेवा के क्षेत्र को भी इस योजना में लाया गया। सरकार ने इस योजना के तहत लैब पैट्रोल की योजना संबंधी जागरुकता तथा जानकारी हित शुरू किया है। इसमें राष्ट्रीय बुनियादी तथा दिल्ली, मुंबई औद्योगिक गलियारे शामिल हैं। इन 25 क्षेत्रों में स्वचालित कार, खनन, सेहत, पर्यटन, वस्त्र, ताप, ऊर्जा, चमड़ा, सूचना तकनोलॉजी, निर्माण रसायन, उड्डयन, बिजली मशीनरी इत्यादि शामिल हैं।

प्रश्न 8.
भारत के पैट्रोकैमिकल उद्योग पर नोट लिखो।
उत्तर-
भारत का पैट्रोकैमिकल उद्योग देश के सब उद्योगों से तेजी के साथ बढ़ रहा है क्योंकि यह उद्योग वस्त्र, कृषि, निर्माण तथा दवाइयों के उद्योगों को मूल सहायता करवाता है। देश में इस औद्योगिक विकास के कारण आर्थिकता को काफी उभार मिलता हैं। भारत में मुख्य रूप में चार बड़ी कंपनियां हैं जो पैट्रोकैमिकल कंपनी की पूरी मार्किट पर कंट्रोल करती हैं। इनमें रिलायंस इंडस्ट्रीज़ लिमिटेड, इंडियन पैट्रोकैमिकल की जोड़ी तथा गैस अथारिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड तथा हल्दियां पैट्रोकैमिकल की जोड़ी शामिल हैं। भारत में हर रोज प्रयोग किए जाने वाले खनिज तेल का 70 प्रतिशत भाग बाहर से आयात किया जाता हैं। हम अपनी ज़रूरत का सिर्फ 30% हिस्सा ही अपने साधनों से पैदा करते हैं। बाकी का तेल ईरान, साऊदी अरब तथा खाड़ी के देशों से लाया जाता है। पैट्रोकैमिकल उद्योगों को मुख्य रूप में दो स्तर होते हैं-

1. पृथ्वी से कच्चा तेल निकालना
2. तेल शोधन करना।

प्रश्न 4. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 20 पंक्तियों में दो :

प्रश्न 1.
भारत के लोहा-इस्पात उद्योगों के साथ संबंधित प्लांटों से पहचान करवाओ।
उत्तर-
लोहा-इस्पात उद्योग आधुनिक समाज का नींव पत्थर है। लोहा कठोरता, प्रबल तथा सस्ता होने के कारण दूसरी धातुओं की तुलना में अधिक उपयोगी है। इसके साथ कई तरह की मशीनों, यातायात के साधन, कृषि, उपकरण, ऊंचे-ऊंचे पुल, सैनिक हथियार, टैंक, रॉकेट तथा दैनिक प्रयोग की गई वस्तुएं तैयार की जाती हैं। लोहा-इस्पात का उत्पादन ही किसी देश के आर्थिक विकास का मापदंड है। आधुनिक सभ्यता लोह-इस्पात पर निर्भर करती है। इसलिए वर्तमान युग को ‘इस्पात युग’ कहते हैं। लोहा निर्माण का काम आज से 3000 साल पहले, मिस्र, रोम इत्यादि देशों में किया जाता था। इस युग को लोह युग कहा जाता है। पृथ्वी की खानों में लोहा अशुद्ध रूप में मिलता है। लोहे को भट्टी में गला कर साफ करके इस्पात बनाया जाता है। इस कार्य के लिए कई वर्ग प्रयोग किए जाते हैं। खुली भट्टी, कोक भट्टी तथा बिजली की पावर भट्टियों का भी ज्यादातर प्रयोग किया जाता है।

भारत के कुछ महत्त्वपूर्ण स्टील प्लांट-
1. टाटा स्टील लिमिटेड-इसका पहले नाम टाटा आयरन एंड स्टील कंपनी (TISCO) था। यह भारत की बहुराष्ट्रीय स्टील कंपनी है। इसका मुख्यालय मुंबई में है। इसकी कुल क्षमता 2 करोड़ 53 लाख टन उत्पादन की थी, यह 2015 में विश्व की 10वीं बड़ी स्टील उत्पादन कंपनी है। इसका सबसे बड़ा प्लांट जमशेदपुर में 1907 में जमशेद जी टाटा ने लगाया था।

2. इंडियन आयरन एंड स्टील कंपनी (IISCO)—यह स्टील प्लांट आसनसोल (ज़िला बर्धमान) के नज़दीक बर्नपुर में है जो कि स्टील अथारिटी ऑफ इंडिया के अधीन इस्पात का उत्पादन करता है।

3. विश्वेश्वरैया आयरन एंड स्टील लिमिटेड-भद्रावती (कर्नाटक) में 18 जनवरी, 1923 को मैसूर आयरन वर्क्स के नाम पर शुरू हुए इस प्लांट का नाम प्रसिद्ध भारतीय श्री एम० विश्वेश्वरैया के नाम पर विश्वेश्वरैया आयरन एंड स्टील प्लांट पड़ गया।

4. भिलाई स्टील प्लांट (BSP) भिलाई स्टील प्लांट छत्तीसगढ़ राज्य में स्थित सबसे बड़ा उत्पादन प्लांट है। यहाँ इस्पात की चौड़ी पलेटें बनती हैं। जहाँ इस्पात के निर्माण का काम 1955 में शुरू हुआ।

5. दुर्गापुर स्टील प्लांट (DSP)—यह उद्योग पश्चिमी बंगाल के दुर्गापुर शहर में स्टील अथारिटी ऑफ इंडिया का एक सामूहिक स्टील प्लांट है। इसको 1955 में बर्तानिया की सहायता के साथ स्थापित किया गया था।

6. बोकारो स्टील प्लांट-यह प्लांट स्टील अथारिटी ऑफ इंडिया के अंतर्गत, झारखण्ड राज्य के बोकारो शहर में है। इसको 1864 में रूस की सहायता से लगाया गया तथा बाद में स्टील अथारिटी जो कि भारतीय सरकार की कंपनी है के कंट्रोल में आ गया।

7. राऊरकेला स्टील प्लांट-राऊरकेला स्टील प्लांट भी स्टील अथारिटी आफ इंडिया अंतर्गत उत्पादन वाला . सरकारी क्षेत्र का प्लांट है। यह उड़ीसा में है। इसकी स्थापना 1960 में हुई। तब से पश्चिमी जर्मनी ने इसकी सहायता की है।

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प्रश्न 2.
भारतीय सूती वस्त्र उद्योग के विभाजन में पश्चिमी तथा पूर्वी क्षेत्रों की तुलना करो।
उत्तर-
वस्त्र मनुष्य की मूल आवश्यकता है। सूती वस्त्र उद्योग बहुत प्राचीन है। आज से लगभग 5000 साल पहले सूती वस्त्र उद्योग भारत में घरेलू उद्योग के रूप में उन्नत थे। ढाके की मलमल विश्व भर में प्रसिद्ध थी। सूती वस्त्र मिल उद्योग की शुरुआत 18वीं सदी में ग्रेट, ब्रिटेन में हुई। औद्योगिक क्रांति के कारण आरकराईट, क्रामपटन तथा कार्टराइट नामी कारीगरों ने पावरलूम इत्यादि कई मशीनों की खोज की। सूती वस्त्र बनाने की मशीनों के कारण इंग्लैंड का लेका शहर सूती वस्त्र के उद्योग कारण प्रसिद्ध हो गया।

भारतीय सूती वस्त्र उद्योग के विभाजन में पश्चिमी पूर्वी क्षेत्र की तुलना-

1. पश्चिमी क्षेत्र–भारत के पश्चिमी क्षेत्र में महाराष्ट्र, गुजरात, मुंबई इत्यादि सूती वस्त्र उद्योग के मुख्य केंद्र हैं।
अहमदाबाद को भारत का मानचेस्टर कहते हैं। अहमदाबाद सूती वस्त्र उद्योग का बड़ा केन्द्र है। यहाँ 75 मिलें हैं। इसके अतिरिक्त महाराष्ट्र में सूरत, भावनगर, राजकोट इत्यादि बहुत प्रसिद्ध सूती वस्त्र के उत्पादक केन्द्र हैं। महाराष्ट्र राज्य सूती कपड़ा उद्योग में सबसे आगे है। यहां 100 मिलें हैं। मुंबई शुरू से ही सूती वस्त्र उद्योग का मुख्य केन्द्र रहा है। इसलिए इसको सूती वस्त्रों की राजधानी कहते हैं। गुजरात की सूती कपड़े के उत्पादन में दूसरी जगह है। देश के पश्चिमी क्षेत्र में सूती वस्त्र उद्योग भी विकसित हुआ। इसके कारण हैं

  • महाराष्ट्र तथा गुजरात की उपजाऊ काली मिट्टी जो कपास की कृषि के लिए बहुत उपयुक्त है। इस प्रकार कच्चा माल, कपास आसानी के साथ मिल जाती है।
  • पश्चिमी घाट से पनबिजली आसानी से मिल जाती है।
  • मुंबई तथा कांडला की बंदरगाहों के कारण माल को एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुंचाना आसान हो जाता है तथा व्यापार विकसित होता है।
  • नमी वाली जलवायु होने के कारण धागा बुनना आसान है।
  • पारसी तथा भाटिया व्यापारी पूंजी के निवेश में योगदान डालते हैं।
  • कोंकण, सतारा तथा शोलापुर और इलाकों में स्थानीय कुशल तथा सस्ते मज़दूर मिल जाते हैं।
  • यातायात के बढ़िया साधनों के कारण भी यहां व्यापार अच्छा है।

2. पूर्वी क्षेत्र-इस क्षेत्र में पश्चिमी बंगाल, बिहार, उड़ीसा तथा असम राज्य शामिल हैं। अधिकतर मिलें कोलकाता, बेलगाड़ियां, श्याम नगर, गुमुरी, सालकिया, श्रीरामपुर, मुरीग्राम इत्यादि स्थानों पर हैं। इस क्षेत्र में कोलकाता बंदरगाह व्यापार को काफी फायदा देती हैं। क्षेत्र में उद्योगों के विकास के कारण –

  • कोलकाता की बंदरगाहें व्यापार के लिए काफी उपयोगी हैं।
  • यातायात के साधन अच्छे हैं।
  • जलवायु में नमी की मात्रा मौजूद है तथा सूती वस्त्र की मांग बहुत ज्यादा है।

प्रश्न 3.
पंजाब की खाद्य प्रसंस्करण उद्योग के बारे विस्तार से नोट लिखो।
उत्तर-
पंजाब की कृषि में भिन्नता लाने के लिए तथा खाद्यान्न से जुड़े हुए उद्योगों के विकास के लिए पूंजी लगाने को प्रोत्साहित करने के लिए भारतीय सरकार ने खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय ने देश में खासकर पंजाब में इस उद्योग को बढ़ावा दिया।

1. पंजाब में 2762 करोड़ रुपये की लागत से मैगा कृषि प्रसंस्करण यूनिट मंजूर किये गए हैं। इसके साथ 2680 ‘करोड़ के साथ 20 मैगा प्रकल्प (Project) जिसमें एशनोन निर्माण, सेहत के लिए खाने, चीनी, बच्चों के लिए खाना इत्यादि के 20 मैगा प्रकल्पों को शामिल किया गया। इनके साथ 23145 यूनिट बहुत छोटे क्षेत्र में 1258 करोड़ की लागत से लगाए गए। इनमें अनाज, दालें, सब्जी, डेयरी, मुर्गीपालन आजि पर आधारित उद्योग शामिल हैं।

2. कृषि उत्पाद निर्यात जोन-2002 में भारत सरकार ने कृषि निर्यात जोन सब्जियों; जैसे कि आलू, चावल, शहद इत्यादि निर्यात करने के लिए बनाए। इनमें फतेहगढ़ साहिब, संगरूर, रोपड़ तथा लुधियाना तथा पटियाला के जिले शामिल हैं।

3. कृषि फूड पार्क-छोटे तथा मध्यम यूनिटों का विकास करने के लिए खोज, कोल्ड स्टोर बनाने पर भंडारीकरण तथा पैकिंग सुविधाएँ बढ़ाने के लिए पंजाब एग्रो ऑक्सपोर्ट जोन बनाया गया जो कि पटियाला, फतेहगढ़ साहिब, संगरूर, रोपड़ तथा लुधियाना में बने।

4. मैगा खाद्य पार्क-फूड प्रसंस्करण मंत्रालय ने 8 मैगा खादृा पूरे भारत में लाने का फैसला लिया जिसके बीच सिर्फ पंजाब में तीन मैगा खाद्य पार्क लगाए जाने थे। अब इ२, पंजाब में फाजिल्का में मैगा खाद्य पार्क लगाने का फैसला लिया गया। पंजाब में लगने वाले यह मैगा खाद्य पार्क पंजाब की कृषि के लिए बहुत उपयोगी है। यह केन्द्र मुख्य तौर पर समराला, नाभा, होशियारपुर, लालगढ़ तथा गुरदासपुर में बनाए गए।

खाद्य मंत्रालय ने कपूरथला जिले के गाँव रेहाणा जट्टां में मक्की पर आधारित मैगा खाद्य पार्क का नींव पत्थर रखा। यह पार्क सुरजीत मैगा खाद्य पार्क एंड एनफरा कंपनी लगाने वाली है। इसमें सालाना 250 करोड़ रुपये की लागत के साथ 30 यूनिट लगाये जाने का सुझाव है जिसका सालाना कारोबार 500 करोड़ रुपये होने का अंदाजा है तथा इसके साथ 2500 किसानों को फायदा होगा तथा 5000 लोगों को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर
रोज़गार मिलेगा।

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प्रश्न 4.
भारत में दवाइयां बनाने के उद्योग के बारे में विस्तार से नोट लिखो।
उत्तर-
भारत संसार की 10 प्रतिशत तक की दवाइयां बनाकर, संख्या तथा उद्योग के आधार पर तीसरा स्थान हासिल कर रहा है परंतु दवाइयों की कीमत तथा खर्च के अंदाजे के अनुसार भारत का तीसरा स्थान नहीं यह 13वां स्थान बनता है। भारत के रसायन तथा खाद्य मंत्रालय अंतर्गत आते फर्मासुटिकल विभाग के अनुसार साल 2008 से सितंबर 2009 तक देश ने 21 अरब 4 करोड़ अमेरिकी डॉलर का कुल कारोबार किया। भारत दुनिया में कई देशों को दवाइयां निर्यात करता है तथा यूरोप, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया तथा जापान के साथ कई देश भारतीय दवाइयों के खरीददार हैं। भारत जैनरिक दवाइयों का सबसे बड़ा उत्पादक देश है, जो कि संसार की 20 फीसदी जैनरिक दवाइयों को बना रहा है। दवाइयों की सामूहिक सालाना विकास दर के हिसाब से 2005-2016 तक दवाइयों के उत्पादन में 17.46% की दर से वृद्धि हुई तथा 2005 में उत्पादन मूल्य 6 अरब अमेरिकी डॉलर से बढ़ कर 2016 के साल दौरान 36 अरब 70 करोड़ अमेरिका डॉलर तक पहुंच गया। एक अंदाजे के अनुसार 2020 तक यह कारोबार 15.92 फीसदी की दर से बढ़ कर 55 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुंच जाने की उम्मीद है। भारतीय दवाइयों के अच्छे उत्पादन के कारण इस क्षेत्र में भारत का झंडा बुलंद है। भारत में पांच दवाइयां बनाने के बड़े केन्द्र हैं, सरकारी क्षेत्र में पांच क्षेत्र हैं, जैसे कि-
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1. इंडियन ड्रग एंड फार्मासुटिकल लिमिटेड (IDPL)—यह भारत सरकार के अंतर्गत सबसे बड़ी कंपनी है जो दवाइयां बनाती है। इसके बड़े कारखाने हैदराबाद, ऋषिकेश, गुड़गाँव तथा छोटे कारखाने चेन्नई तथा मुजफ्फरनगर में हैं। चेन्नई वाला कारखाना नंदमबक्म में स्थित है।

2. हिन्दुस्तान एंटीबायोटिक लिमिटेड, पिंपरी-पुणे (HAL)—यह दवाइयां बनाने का सरकारी क्षेत्र में एक बड़ा उद्योग है। यह 10 मार्च, 1954 को स्थापित किया गया तथा साल 1955-56 में इसने अपना काम शुरू किया। यह भारत का सबसे पुराना उद्योग है। इस कारखाने में एंटीबायोटिक तथा कृषि-वैध दवाइयां बनती हैं।

3. बंगाल कैमिकल एंड फार्मासुटिकल वर्क्स लिमिटेड-12 अप्रैल, 1901 में ब्रिटिश राज्य के दौरान यह कारखाना स्थापित हुआ था। सबसे पहला 1905 में यह कारखाना माणिकताल जो कि कोलकाता में है लगाया गया। इसके बिना पणीग्पट्टी, उत्तरी 24 परगना ज़िला, पश्चिमी बंगाल में 1920 के समय 1938 में मुंबई में तथा कानपुर में 1949 में इस तरह तीन कारखाने लगाये हैं।

प्रश्न 5.
भारतीय उद्योगों के कोई तीन आधारों पर वर्गीकरण करो तथा विशेषताओं से पहचान करवाओ।
उत्तर-
भारतीय उद्योगों के आधार, उनका वर्गीकरण तथा विशेषताएं निम्नलिखित अनुसार हैं-
मज़दूरों की संख्या के आधार पर वर्गीकरण-इस प्रकार के उद्योगों को तीन वर्गों में विभाजित किया जाता है।

  • बड़े पैमाने के उद्योग-इस प्रकार के उद्योगों में मजदूरों की संख्या अधिक होती है तथा अधिकतर काम मज़दूर अपने हाथों द्वारा करते हैं। जैसे कि सूती वस्त्र तथा पटसन उद्योग।
  • मध्यम पैमाने के उद्योग-इस प्रकार के उद्योगों में मजदूरों की संख्या बहुत अधिक भी नहीं होती है तथा अधिक कम भी नहीं होती ; जैसे कि साइकल उद्योग, टेलीविज़न उद्योग इत्यादि।
  • छोटे पैमाने के उद्योग-इस प्रकार के उद्योगों में मजदूरों की संख्या काफी कम होती है तथा यह उद्योग निजी स्तर पर ही स्थापित होते हैं।

II. कच्चे तथा तैयार माल पर आधार तथा वर्गीकरण-कच्चे माल की उपलब्धि के आधार पर भी उद्योगों को दो वर्गों में विभाजित किया जाता है-

  • भारे उद्योग-जिन उद्योगों में भारी कच्चा माल अधिक उपयोग किया जाता हैं उन्हें भारे उद्योग कहते हैं ; जैसे कि लौहा तथा इस्पात उद्योग।
  • हल्के उद्योग-जिन उद्योगों में हल्का कच्चा माल उपयोग किया जाता है, उन्हें हल्के उद्योग कहते हैं; जैसे कि पंखे, सिलाई मशीनें इत्यादि।

III. स्वामित्व के आधार तथा वर्गीकरण-स्वामित्व के आधार पर उद्योगों को आगे चार वर्गों में विभाजित किया जाता है-

  • निजी उद्योग-जो उद्योग किसी खास व्यक्ति या कंपनी के द्वारा चलाया जाए, निजी उद्योग कहलाता हैं; जैसे-रिलायंस, बजाज; अडानी, टाटा आयरन एंड स्टील इत्यादि।
  • सरकारी क्षेत्र के उद्योग-जो उद्योग सरकार के अधीन चलते हैं सरकारी क्षेत्र के उद्योग कहलाते हैं। जैसे कि हैवी इलैक्ट्रीकल उद्योग, भिलाई स्टील प्लांट, दुर्गापुर स्टील प्लांट इत्यादि।
  • सामूहिक क्षेत्र के उद्योग-यह उद्योग जो सरकार तथा निजी, गैर सरकारी दोनों द्वारा चलाये जाए सामूहिक उद्योग कहलाते हैं। जैसे-ऑल इंडिया तथा ग्रीन गैस लिमिटेड इत्यादि।
  • सहकारी क्षेत्र-जो उद्योग लोगों द्वारा मिलजुल कर चलाये जाए, सहकारी क्षेत्र के उद्योग कहलाते हैं। जैसे कि अमूल, मदर डेयरी इत्यादि।

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I. वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर (Objective Type Question Answers)-

A. बहु-विकल्पी प्रश्न :

प्रश्न 1.
निम्नलिखित में से कौन-सा औद्योगिक स्थापना का कारक नहीं है ?
(A) बाजार
(B) पूंजी
(C) ऊर्जा
(D) आबादी का घनत्व।
उत्तर-
(D) आबादी का घनत्व।

प्रश्न 2.
पहली सूती वस्त्र मिल मुंबई में क्यों लगाई गई?
(A) मुंबई एक बंदरगाह है
(B) यह कपास पैदा करने वाले क्षेत्रों के नज़दीक है
(C) मुंबई में पूंजी है
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(D) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 3.
मुंबई में पहली सूती वस्त्र मिल कब लगाई गई ?
(A) 1834
(B) 1844
(C) 1864
(D) 1854.
उत्तर-
(D) 1854.

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प्रश्न 4.
निम्नलिखित में से कौन-से उद्योग फुटकल उद्योग कहलाते हैं ?
(A) ग्रामीण उद्योग
(B) जंगलों पर आधारित उद्योग
(C) सहकारी उद्योग
(D) बड़े उद्योग।
उत्तर-
(A) ग्रामीण उद्योग

प्रश्न 5.
उद्योगों के स्थानीयकरण पर प्रभाव डालने वाले निम्नलिखित कौन-सा भौगोलिक कारक नहीं है ?
(A) कच्चा माल
(B) मज़दूर
(C) बाज़ार
(D) बैंक की सुविधा।
उत्तर-
(D) बैंक की सुविधा।

प्रश्न 6.
जमशेद जी टाटा ने साकची नामक स्थान पर टाटा आयरन एंड स्टील कंपनी का प्लांट कब लगाया?
(A) 1907
(B) 1905
(C) 1906
(D) 1909.
उत्तर-
(A) 1907

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प्रश्न 7.
ढाके में किस प्रकार का वस्त्र मशहूर है ?
(A) मलमल
(B) छींट
(C) सूती
(D) सिल्क।
उत्तर-
(A) मलमल

प्रश्न 8.
निम्नलिखित में कौन-सा सूती वस्त्र उद्योग का क्षेत्र पश्चिम की तरफ स्थित है ?
(A) कर्नाटक
(B) महाराष्ट्र
(C) हरियाणा
(D) कोलकाता।
उत्तर-
(A) कर्नाटक

प्रश्न 9.
भारत में सबसे अधिक गन्ने का उत्पादन किस राज्य में होता है ?
(A) उत्तर प्रदेश
(B) हरियाणा
(C) पंजाब
(D) दिल्ली।
उत्तर-
(A) उत्तर प्रदेश

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प्रश्न 10.
संसार में सबसे अधिक गन्ने का उत्पादक देश कौन-सा है ?
(A) ब्राजील
(B) ऑस्ट्रेलिया
(C) अफ्रीका
(D) रूस।
उत्तर-
(A) ब्राजील

प्रश्न 11.
कोंची शोधनशाला किस राज्य में स्थित है ?
(A) केरल
(B) तमिलनाडु
(C) पश्चिमी बंगाल
(D) उत्तर प्रदेश।
उत्तर-
(A) केरल

प्रश्न 12.
वेतन भोगी दफ़्तरी श्रमिक किस कॉलर के मज़दूर हैं ?
(A) सफेद कॉलर
(B) नीला कॉलर
(C) गुलाबी कॉलर
(D) सुनहरी कॉलर।
उत्तर-
(A) सफेद कॉलर

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प्रश्न 13.
किस नगर को भारत की इलैक्ट्रॉनिक राजधानी कहते हैं ?
(A) मुंबई
(B) कोलकाता
(C) बंगलौर
(D) पूना।
उत्तर-
(C) बंगलौर

प्रश्न 14.
निर्माण किस वर्ग की क्रिया है ?
(A) प्राथमिक
(B) द्वितीयक
(C) तृतीयक
(D) चतुर्थक।
उत्तर-
(B) द्वितीयक

प्रश्न 15.
निम्नलिखित में से किस उद्योग को खनिजों पर आधारित उद्योग कहते हैं ?
(A) वस्त्र उद्योग
(B) तांबा उद्योग
(C) डेयरी उद्योग
(D) कृषि उद्योग।
उत्तर-
(B) तांबा उद्योग

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B. ‘खाली स्थान भरें :

1. उद्योगों को चलाने के लिए ………. की ज़रूरत होती है।
2. भारत में आधुनिक लौह तथा इस्पात उद्योग ………. में शुरू हुआ।
3. पश्चिमी बंगाल के …………… शहर में स्टील अथारिटी ऑफ इंडिया के सामूहिक यत्नों का बड़ा स्टील प्लांट है।
4. अहमदाबाद को ………. भी कहा जाता है।
5. भारत में ………….. करोड़ टन गन्ना उगाने वाले किसान हैं।
उत्तर-

  1. ऊर्जा,
  2. 1874,
  3. दुर्गापुर,
  4. मानचेस्टर आफ इंडिया,
  5. 2.5.

C. निम्नलिखित कथन सही (√) हैं या गलत (×):

1. बंगाल कैमिकल एंड फार्मासुटिकल वर्क्स लिमिटेड की स्थापना ब्रिटिश राज्य के समय 1901 में हुई।
2. कैदी लोग संतरी कॉलर वाले मज़दूर हैं। 3. भिलाई स्टील प्लांट पश्चिमी बंगाल के दुर्गापुर शहर में स्थित है।
4. सूती वस्त्र उद्योग गुजरात में उन्नत है क्योंकि जहाँ सस्ते मज़दूरों की उपलब्धि है।
5. दवाइयां बनाने के उद्योग में, संसार की दवाइयां बनाकर, संख्या के पक्ष में भारत का पहला स्थान है।
उत्तर-

  1. सही
  2. सही
  3. गलत
  4. सही
  5. गलत।

Geography Guide for Class 12 PSEB आर्थिक भूगोल निर्माण उद्योग (सहायक सेवा तथा ज्ञान/विशेष क्षेत्रों की क्रियाएं) Important Questions and Answers

II. एक शब्द/एक पंक्ति वाले प्रश्नोत्तर (One Word/Line Question Answers) :

प्रश्न 1.
निर्माण उद्योग क्या है ?
उत्तर-
कच्चे माल से तैयार वस्तुएं बनाना।

प्रश्न 2.
टूशरी व्यवसाय क्या हैं ?
उत्तर-
जो सेवाएं प्रदान करते हैं।

प्रश्न 3.
द्वितीयक उद्योग क्या हैं ?
उत्तर-
निर्माण उद्योग इस उद्योग के अंतर्गत आते हैं।

प्रश्न 4.
कोयले पर आधारित दो औद्योगिक प्रदेश बताओ।
उत्तर-
रूहर घाटी, दामोदर घाटी।

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प्रश्न 5.
भारत में पहला लौह-इस्पात कारखाना कहां और कब लगाया गया ?
उत्तर-
1907 में जमशेदपुर झारखण्ड में।

प्रश्न 6.
संयुक्त राज्य में लौह-इस्पात उद्योग के दो केन्द्र बताओ।
उत्तर-
पिट्सबर्ग तथा यंगस्टाऊन।

प्रश्न 7.
भारत में इस्पात उद्योग में सरकारी क्षेत्र में तीन केन्द्र बताओ।
उत्तर-
भिलाई, राऊरकेला, दुर्गापुर।

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प्रश्न 8.
भारत में सूती वस्त्र उद्योग के लिए किस नगर को मानचेस्टर कहा जाता है ?
उत्तर-
अहमदाबाद।

प्रश्न 9.
संसार में चीनी का कटोरा किस देश को कहते हैं ?
उत्तर-
क्यूबा।

प्रश्न 10.
पृथ्वी का तापमान बढ़ने के दो कारण बताओ।
उत्तर-
पथराट बालन का अधिक प्रयोग तथा औद्योगिक विकास।

प्रश्न 11.
सूती वस्त्र मिलों को कौन-से तीन वर्गों में वर्गीकृत किया जाता है ?
उत्तर-
कताई मिलें, बुनाई मिलें तथा धागा तथा वस्त्र मिलें।

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प्रश्न 12.
भारतीय सूती वस्त्र उद्योग कौन-से चार प्रमुख इलाकों में विभाजित किया जाता है ?
उत्तर-
पश्चिमी क्षेत्र, दक्षिणी क्षेत्र, उत्तरी क्षेत्र तथा पूर्वी क्षेत्र।

प्रश्न 13.
भारतीय सूती वस्त्र उद्योग को आने वाली कोई एक कठिनाई बताओ।
उत्तर-
भारत में लम्बे रेशे वाली कपास कम उगाई जाती है।

प्रश्न 14.
पैट्रोकैमिकल उद्योग के प्रमुख स्तर कौन से हैं ?
उत्तर-
धरती के नीचे से तेल निकालना तथा तेल का शोधन करना पैट्रोकैमिकल उद्योग का ही मुख्य स्तर है।

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प्रश्न 15.
बरौनी शोधनशाला भारत के किस राज्य में है ?
उत्तर-
बिहार में।

प्रश्न 16.
सूती वस्त्र उद्योग के स्थानीयकरण पर प्रभाव डालने वाले कारक बताओ।
उत्तर-
कच्चा माल, ऊर्जा, रासायनिक पदार्थ, मशीनरी, मज़दूर, यातायात के साधन तथा बाजार।

प्रश्न 17.
भारत में किस राज्य में सबसे अधिक सूती मिलें हैं ?
उत्तर-
तमिलनाडु 439 मिलें।

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प्रश्न 18.
पहली सूती वस्त्र मिल भारत में कब और कहां लगी ?
उत्तर-
1854 में मुंबई में।

प्रश्न 19.
कच्चेमाल के स्रोत के आधार पर उद्योगों को कौन-से मुख्य वर्गों में विभाजित किया जाता है ?
उत्तर-
कृषि पर आधारित उद्योग, खनिजों पर आधारित, पशुओं पर आधारित तथा जंगलों पर आधारित उद्योग।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
आप ऐसा क्या सोचते हो कि लौह-इस्पात उद्योग भारत के औद्योगिक विकास की मूल इकाई है?
उत्तर-
आज के औद्योगिक विकास के लिए लौह तथा इस्पात उद्योग एक मूल इकाई है। यह बड़े उद्योगों के लिए कच्चे माल को संभालता है। इस द्वारा नयी मशीनों का निर्माण किया जाता है। इसलिए यह एक मूल तथा बुनियादी उद्योग है।

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प्रश्न 2.
कच्चे माल के नज़दीक कौन-से उद्योग लगाए जाते हैं ? उदाहरण दो।
उत्तर-
कच्चा माल निर्माण उद्योग का आधार है। जिन उद्योगों का निर्माण के बाद भार कम हो जाता है। वह उद्योग कच्चे माल के नज़दीक लगाये जाते हैं। जैसे गन्ने से चीनी बनाना। जिन उद्योगों में भारी कच्चे माल का प्रयोग किया जाता है। वह उद्योग कच्चे माल के नज़दीक लगाए जाते हैं; जैसे-लौह-इस्पात उद्योग।

प्रश्न 3.
उद्योगों की स्थापना के लिए किस प्रकार का श्रम ज़रूरी है? कुशल श्रमिक के आधार पर कहाँकहाँ उद्योग स्थित हैं ?
उत्तर-
उद्योगों की स्थापना के लिए सस्ते, कुशल तथा अधिक मात्रा में मजदूरों की आवश्यकता होती है। भारत में जगाधरी तथा मुरादाबाद में बर्तन उद्योग, फिरोजाबाद में कांच उद्योग तथा जापान में खिलौनों का उद्योग कुशल श्रमिक के कारण ही विकसित हुआ है।

प्रश्न 4.
यातायात के साधनों का उद्योग की स्थिति पर क्या प्रभाव पड़ा है ?
उत्तर-
सस्ते यातायात के साधन उद्योगों की स्थिति में सहायक होते हैं। कच्चा माल कारखानों तक ले जाने तथा बनाये माल को बाजार तक लाने में कम लागत लगती है। महान् झीलें तथा तट्टी तथा हुगली नदी घाटी में जापान के पत्तनों तथा राईन नदी घाटी में उद्योगों का संकेंद्रण सस्ते जल मार्गों के कारण ही है।

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प्रश्न 5.
विकासशील देशों में निर्माण उद्योगों की कमी क्यों है ?
उत्तर-
निर्माण उद्योगों के लिए अधिक पूंजी आवश्यक होती है। इन उद्योगों के लिए मांग क्षेत्र तथा बाजार का होना भी आवश्यक है, पर विकासशील देशों में पूंजी की कमी है तथा लोगों की खरीद शक्ति कम है। इसलिए मांग भी कम है। इसलिए विकासशील देशों में भारी उद्योग की कमी है।

प्रश्न 6.
भारत के कोई पाँच लौह-इस्पात केंद्र वाले नगरों के नाम लिखो।
उत्तर-
लौह-इस्पात नगर— भारत में निम्नलिखित नगरों में आधुनिक इस्पात कारखाने स्थित हैं। इन्हें लौहा इस्पात नगर भी कहा जाता है।

  • जमशेदपुर (झारखंड)
  • बोकारो (झारखंड)
  • भिलाई (छत्तीसगढ़)
  • राऊरकेला (उड़ीसा)
  • भद्रावती (कर्नाटक)

प्रश्न 7.
भारे उद्योग किसे कहते हैं ?
उत्तर-
खनिज पदार्थों का प्रयोग करने वाले आधारभूत उद्योगों को भारे उद्योग कहते हैं। इन उद्योगों में भारी पदार्थों का आधुनिक मिलों में निर्माण किया गया है। यह उद्योग किसी देश के औद्योगिक विकास की आधारशिला हैं। लौहइस्पात उद्योग, मशीनरी, औज़ार तथा इंजीनियरिंग सामान बनाने के उद्योग भारी उद्योग के वर्ग में गिने जाते हैं।

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प्रश्न 8.
निर्माण उद्योग से आपका क्या भाव है ?
उत्तर-
जब कच्चे माल की मशीनों की सहायता के रूप बदल कर अधिक उपयोगी तैयार माल प्राप्त करने की क्रिया को निर्माण उद्योग कहते हैं। यह मनुष्य का एक सहायक या गौण व्यवसाय है इसलिए निर्माण उद्योग में जिस वस्तु का रूप बदल जाता है, वह वस्तु अधिक उपयोगी हो जाती है तथा निर्माण द्वारा उस पदार्थ की मूल्य-वृद्धि हो जाती है जैसे लकड़ी से लुगदी तथा कागज़ बनाया जाता है।

प्रश्न 9.
लौह तथा इस्पात उद्योग के महत्त्वपूर्ण प्लांट (उत्पादन केंद्र) कौन से हैं ?
उत्तर-
लौह तथा इस्पात उद्योग के महत्त्वपूर्ण प्लांट निम्नलिखित हैं –

  • टाटा आयरन लिमिटेड
  • इंडियन आयरन एंड स्टील कंपनी
  • विश्वेश्वरैया आयरन एंड स्टील कंपनी
  • भिलाई स्टील प्लांट
  • दुर्गापुर स्टील प्लांट
  • राऊरकेला स्टील प्लांट
  • बोकारो स्टील प्लांट ।

प्रश्न 10.
गन्ने की कृषि का महत्त्व बताओ।
उत्तर-
सारे संसार में चीनी लोगों के भोजन का एक आवश्यक अंग है। गन्ना तथा चुकंदर चीनी के दो मुख्य साधन हैं। संसार की 65% चीनी गन्ने से तथा बाकी चुकंदर से तैयार की जाती है। गन्ना एक व्यापारिक तथा औद्योगिक फ़सल है। गन्ने से कई पदार्थ-कागज़, शीरा, खाद, मोम, चीनी इत्यादि भी तैयार किए जाते हैं। भारत को गन्ने का जन्म स्थान माना जाता है। यहाँ से गन्ने का विस्तार पश्चिमी देशों में हुआ है।

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प्रश्न 11.
चीनी उद्योग में आने वाली कोई दो कठिनाइयों के बारे में बताओ।
उत्तर-

  1. गन्ने की उत्पादन लागत से बिक्री मूल्य का कम होना चीनी उद्योग के लिए बड़ी कठिनाई है ।
  2. गन्ने के रस को निकालने के बाद यह जल्दी ही सूख जाता है तथा लम्बे समय के लिए इसको बचा कर रखना बड़ी समस्या है।

प्रश्न 12.
पेट्रो रसायन उद्योग का महत्त्व क्या है ?
उत्तर-
पेट्रो रसायन उद्योग की महत्ता इस प्रकार है –

  • यह उद्योग कपड़ा, कृषि, पैकिंग, निर्माण तथा दवाइयों के उद्योगों को मूल सहायता प्रदान करता है।
  • इन उद्योगों के विकास के साथ देश की आर्थिकता के स्तर में भी वृद्धि हुई है।

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प्रश्न 13.
हिन्दुस्तान एंटीबायोटिक लिमिटेड पर नोट लिखें।
उत्तर-
हिन्दुस्तान एंटीबायोटिक लिमिटेड, पिंपरी-पुणे-दवाइयां बनाने का सरकारी क्षेत्र का एक बड़ा उद्योग है। यह 10 मार्च, 1954 को स्थापित हुआ तथा 1955-56 में इसने अपना काम शुरू किया। इस तरह यह भारत का पुराना उद्योग हैं। इस उद्योग में एंटीबायोटिक तथा ऐग्रो तथा वैट दवाइयां बनती हैं।

प्रश्न 14.
ज्ञान आधारित उद्योग कौन-से हैं ?
उत्तर-
ज्ञान पर आधारित उद्योग आर्थिकता की रीढ़ की हड्डी का काम करते हैं। 1970 से सबसे अधिक रोज़गार के साधनों में विकास ज्ञान पर आधारित क्षेत्रों में हुआ। इसमें दवाइयां सेहत से संबंधित, दूरसंचार, साफ्टवेयर, डाक्टरी उपकरण, हवाई जहाज, इत्यादि उद्योग शामिल हैं। इन उद्योगों का कच्चा माल प्रकृति से हमें नहीं मिलता, बल्कि मनुष्य यह खुद अपनी समझ के साथ बनाता है।

प्रश्न 15.
औद्योगिक गलियारों से आपका क्या भाव है ?
उत्तर-
यह एक भौगोलिक क्षेत्र है यहाँ उद्योगों के विकास के लिए हर संभव स्वरूप अपनाया जाता है तथा औद्योगिक विकास को काफी प्रोत्साहन मिलता है तथा प्रारभिक ज़रूरतें एक जगह पर ही प्राप्त हो जाती हैं। औद्योगिक गलियारा कहलाता है। जैसे कि बंदरगाह, राष्ट्रीय राजमार्ग इत्यादि।

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प्रश्न 16.
निरोल मालभाड़ा गलियारा निगम की स्थापना कब तथा क्यों हुई ?
उत्तर-
निरोल मालभाड़ा गलियारा निगम की स्थापना कंपनी एक्ट 1956 के तहत 30 अक्तूबर, 2006 में हुई। उद्योगों के विकास के कारण कच्चा माल तथा तैयार माल एक स्थान से दूसरी जगह पर पहुंचाने के लिए भारतीय रेलवे मंत्रालय ने मालगाड़ियों को चलाने के लिए अलग रेल लाइनें बनाने की योजना बनाई थी। ताकि आसानी से इस माल की सप्लाई की जा सके। इसलिए इस गलियारा निगम की स्थापना की गयी।

प्रश्न 17.
पूंजी प्रधान उद्योग कौन-से हैं ?
उत्तर-
जिन उद्योगों के लिए कच्चा माल खरीदने तथा तैयार माल बनाने के लिए काफी मात्रा में पैसे के निवेश की ज़रूरत होती है, पूंजी पर आधारित उद्योग कहलाते हैं; जैसे लौहा तथा इस्पात उद्योग, सीमेंट उद्योग तथा एल्यूमीनियम उद्योग इत्यादि।

प्रश्न 18.
किसी उद्योग के स्थानीयकरण पर प्रभाव डालने वाले कोई दो गैर भौगोलिक कारकों की जानकारी दो।
उत्तर-

  1. पूंजी-उद्योगों को स्थापित करने, कच्चा माल खरीदने तथा माल को तैयार करने के लिए काफी पूंजी की आवश्यकता होती है। मुंबई, कोलकाता जैसे नगरों में उद्योगों के विकास होने के कारण जहाँ पूंजीपतियों की अधिकता का होना आवश्यक है।
  2. बैंक की सुविधा-जैसे कि एक उद्योग को चलाने के लिए काफी पूंजी का निवेश होता है। इसलिए उद्योग लगाने के लिए बैंक की सुविधा का होना अति आवश्यक है।

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प्रश्न 19.
लौह-इस्पात का महत्त्व बताओ।
उत्तर-
लौह-इस्पात उद्योग आधुनिक उद्योग का नींव पत्थर है। लोहा कठोर, प्रबल तथा सस्ता होने के कारण दूसरी धातुओं की तुलना में अधिक महत्त्वपूर्ण है। इसके साथ कई तरह की मशीनों, यातायात के साधन, कृषि उपकरण, ऊंचे ऊंचे सैनिक हथियार, टैंक, राकेट तथा दैनिक प्रयोग की कई वस्तुएं तैयार की जाती हैं। लौह-इस्पात का उत्पादन ही किसी देश के आर्थिक विकास का मापदंड है। आधुनिक सभ्यता लौह-इस्पात पर निर्भर करती है। इसलिए वर्तमान युग को इस्पात युग भी कहते हैं।

प्रश्न 20.
कौन-सा कच्चा माल पैट्रो रसायन उद्योग के लिए आवश्यक है ? इस उद्योग की स्थापना के लिए ज़रूरी कारक कौन-से हैं ?
उत्तर-
कच्चे माल के रूप में पैट्रो रसायन उद्योग के लिए काफी उपयोगी है। पैट्रोरसायन उद्योग खासकर तेल शोधनशालाओं के पास भी लगाये जाते हैं। उद्योग की स्थापना के लिए आवश्यक कारक है-

  • धरती के नीचे से तेल निकालना।
  • यह कच्चे माल के नजदीकी स्थान पर लगेंगे।
  • मंडी तथा बाजार पास होना।
  • या किसी बंदरगाह के पास।

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लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
उद्योगों का वर्गीकरण किस विभिन्न प्रकार द्वारा किया जा सकता है?
उत्तर-
उद्योगों का वर्गीकरण निम्नलिखित आधार पर किया जाता है –
1. उद्योगों के आकार पर आधारित वर्गीकरण-

  • बड़े पैमाने के उद्योग
  • मध्यम पैमाने के उद्योग
  • छोटे पैमाने के उद्योग।

2. कच्चे माल के आधार पर वर्गीकरण

  • कृषि पर आधारित उद्योग
  • खनिजों पर आधारित उद्योग
  • भारे उद्योग
  • हल्के उद्योग।

3. विकास पर आधारित उद्योग-

  • ग्रामीण उद्योग
  • कुटीर उद्योग
  • सहायक उद्योग
  • उपभोक्ता वस्तुओं के उद्योग
  • पूंजी प्रधान उद्योग
  • मजदूर प्रधान उद्योग।

4. स्वामित्व पर आधारित वर्गीकरण-

  • सार्वजनिक उद्योग
  • निजी उद्योग
  • सहकारी क्षेत्र के उद्योग

5. कच्चे माल पर आधारित वर्गीकरण

  • पशुओं पर आधारित उद्योग।
  • जंगलों पर आधारित उद्योग।

प्रश्न 2.
स्वामित्व के आधार पर उद्योगों का वर्गीकरण करो ।
उत्तर-
स्वामित्व के आधार पर उद्योगों का वर्गीकरण निम्नलिखित है-

  • सरकारी क्षेत्र के उद्योग-यह राज्य द्वारा चलाये जाते हैं। यह खासकर भारे उद्योग होते हैं तथा पूरी तरह सरकारी हाथों में होते हैं; जैसे कि भिलाई स्टील प्लांट।
  • निजी क्षेत्र के उद्योग-यह उद्योग किसी निजी हाथों या गैर सरकारी कंपनियों के द्वारा चलाये जाते हैं; जैसे TISCO.
  • सामूहिक क्षेत्र के उद्योग-जो उद्योग सरकार तथा प्राइवेट सामूहिक क्षेत्र में आते हैं, वह सामूहिक क्षेत्र के उद्योग हैं; जैसे-ऑल इंडिया, ग्रीन गैस लिमिटेड।
  • सहकारी क्षेत्र के उद्योग-जो उद्योग सहकारी क्षेत्र में या लोगों के द्वारा मिल कर चलाया जाए; जैसे कि अमूल, मदर डेयरी इत्यादि।

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प्रश्न 3.
भारी उद्योग तथा कृषि उद्योगों में अन्तर स्पष्ट करो।
उत्तर-
कृषि उद्योग (Agro Industries):

  1. यह प्रायः प्राथमिक उद्योग होते हैं।
  2. यह उद्योग कृषि पदार्थों पर आधारित होते हैं।
  3. इसको कृषि पदार्थों का रूप बदल कर अधिक उपयोगी पदार्थ जैसे कपास से कपड़ा बनाया जाता है।
  4. यह श्रम-प्रधान उद्योग होते हैं।
  5. इसमें प्राय: छोटे तथा मध्यम वर्ग के उद्योग लगाए जाते हैं।
  6. यह विकासशील देशों में अधिकतर पाए जाते हैं।

भारी उद्योग (Heavy Industries):

  1. यह प्रायः गौण उद्योग होते हैं।
  2. इन उद्योगों में शक्तिचालित मशीनों का अधिक प्रयोग होता है।
  3. इन उद्योगों में बड़े पैमाने पर विषम यन्त्र तथा मशीनें बनाई जाती हैं।
  4. यह पूंजी प्रधान उद्योग होते हैं।
  5. इनमें प्राय: बड़े पैमाने के उद्योग लगाए जाते हैं।
  6. ये उद्योग विकसित देशों में स्थापित हैं।

प्रश्न 4.
इस्पात निर्माण ढंग पर नोट लिखो।
उत्तर-
लौहा निर्माण का काम आज से 3000 साल पहले, भारत, मिस्र तथा रोम इत्यादि देशों में किया जाता था। इस युग को लौह युग कहा जाता है। लौहे को भट्टी में गला कर साफ करके इस्पात बनाया जाता है। इस कार्य के लिए कई ढंग प्रयोग में लाये जाते हैं। खुली भट्टी, कोक भट्टी तथा बिजली की पावर भट्टी का अधिक प्रयोग किया जाता है

  • लौहे को पिघला कर शुद्ध करके कच्चा लौहा तैयार किया जाता है।
  • कच्चे लौहे में मैंगनीज को मिलाकर इस्पात बनाया जाता हैं जिसके साथ गार्डर, रेल, पटरियां, चादरे तथा पाइप इत्यादि बनाये जाते हैं।
  • क्रोमियम तथा निक्कल मिलाने के साथ जंग न लगने वाला स्टेनलेस स्टील बनाया जाता है।
  • कोबाल्ट मिलाने के साथ तेज गति के साथ धातु काटने वाले उपकरण बनाये जाते हैं।

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प्रश्न 5.
लौह-इस्पात उद्योग के स्थानीयकरण के कारक बताओ।
उत्तर-
लौह-इस्पात उद्योग के स्थानीयकरण के कारक-लौह-इस्पात उद्योग का स्थानीयकरण निम्नलिखित कारणों पर निर्भर करता है।

  • कच्चा माल (Raw material)-यह उद्योग लोहे तथा कोयले की खानों के नजदीक लगाया जाता हैं इसके अलावा मैंगनीज, चूने के पत्थर, पानी तथा रद्दी, लोहा इत्यादि कच्चे माल भी नजदीक हो।
  • कोक कोयला (Coking Coal)-लौह-इस्पात उद्योग की भट्टियों में लौहा साफ करने के लिए कोक प्राप्त हो। कई बार लकड़ी का कोयला भी प्रयोग किया जाता है।
  • सस्ती भूमि (Cheap Land)—इस उद्योग के साथ कोक भट्टिया, गोदामों, इमारतों इत्यादि के बनाने के लिए सस्ती तथा काफी धरती की आवश्यकता है, ताकि कारखानों का विस्तार भी किया जा सके।
  • मंडी से नजदीकी (Nearness to the Market)-इस उद्योग से बनी मशीनों तथा उपकरण भारे होते हैं। इसलिए यह उद्योग मांग क्षेत्रों के नजदीक लगाये जाते हैं।
  • पूंजी (Capital) इस उद्योग को आधुनिक स्तर पर लगाने में काफी पूंजी की जरूरत होती है। इसलिए उन्नत देशों की सहायता के साथ विकासशील देशों में इस्पात कारखाने लगाये जाते हैं। भारत में रूस की सहायता के साथ बोकारो तथा भिलाई के इस्पात कारखाने लगाए गये हैं।

प्रश्न 6.
भारत में लोहा तथा इस्पात उद्योग को पेश आने वाली मुश्किलों तथा उनके समाधान के बारे में बताएं।
उत्तर-
भारत में लोहा तथा इस्पात उद्योग को पेश आने वाली मुश्किलें निम्नलिखित हैं-

  • सस्ती आयात-चीन, कोरिया, तथा रूस इत्यादि से आ रहे सस्ते आयात के कारण देश के लोहे के उत्पादन पर गलत प्रभाव पड़ता है।
  • कच्चे माल की समस्या-विश्व मंडी में इस्पात की कीमत कम होने के कारण भारत में कच्चे माल की मांग की प्राप्ति के बाद इस्पात के उत्पादन के मूल्य में काफी वृद्धि आ जाती है।
  • लचकदार सरकारी नीतियां-सरकारें साधारणतया कच्चे लोहे की खानों की आबंटन में देरी तथा नीतियां बदलती रहती हैं जिस कारण उत्पादन पर बुरा असर पड़ता है।
  • निम्न स्तर उत्पादन-भारतीय उद्योग लोहे के मूल्यों का मुकाबला करने के लिए 50% स्क्रैप लोहे का उपयोग कर जो घटिया प्रकार का होता है उद्योग चलाते हैं।
  • ऊर्जा की कमी-भारत में बढ़िया किस्म का कोयला तथा उसकी निर्यात होने के कारण तथा भारतीय कोयला उत्पादक, कोल इंडिया लिमिटेड की तरफ घटिया किस्म का कोयला ही उपलब्ध करवाया जाए तथा उसकी भी ज़रूरत के अनुसार पूर्ति न करके इस्पात उत्पादक केंद्रों की ऊर्जा की आवश्यकता कभी भी पूरी नहीं होती।
  • पूंजी-पूंजी की कमी भी लोहा तथा इस्पात उद्योग के लिए समस्या का एक कारण है।

समाधान-कच्चे माल की समस्या का समाधान करना चाहिए : सरकार को बार-बार नीतियों में परिवर्तन नहीं करनी चाहिए तथा साफ-स्पष्ट नीतियां बनानी चाहिए। स्क्रैप लोहे के उपयोग पर पाबंदी लगानी चाहिए तथा बैंक की सुविधा प्रदान करनी चाहिए और उचित ऊर्जा की सुविधाएं उपलब्ध करवानी चाहिए।

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प्रश्न 7.
चीनी उद्योग के स्थानीयकरण के तत्व बताओ।
उत्तर-
चीनी उद्योग के स्थानीयकरण के तत्व-

  • कच्चा माल-चीनी मिलें गन्ना पैदा करने वाले क्षेत्रों में लगाई जाती हैं। इसलिए उष्ण कटिबन्ध के देशों में चीनी बनाने के बहुत कारखाने मिलते हैं।
  • सस्ते यातायात-गन्ने की यातायात के लिए सस्ते साधन आवश्यक होते हैं।
  • सस्ते मज़दूर-गन्ने की कटाई इत्यादि तथा मिलों में काम करने के लिए सस्ते तथा अधिक मजदूरों की जरूरत पड़ती है।
  • खपत का ज्यादा होना-चीनी उद्योगों से बचे हुए पदार्थों जैसे कि शीर, एल्कोहल, खाद्य, मोम, कागज इत्यादि उद्योग चलाये जाते हैं इसलिए यह उद्योग कागज तथा गन्ना मिलों के नज़दीक होने चाहिए।

प्रश्न 8.
भारत के चीनी उद्योग के विकास का वर्णन करो।
उत्तर–
चीनी उद्योग भारत का प्राचीन उद्योग है। सन् 1932 में सरकार ने विदेशों से आने वाली चीनी पर टैक्स लगा दिया। इस तरह बाहर से आने वाली चीनी महंगी हो गई है तथा देशों में चीनी उद्योगों का विकास हो गया। अब देश में 500 चीनी मिलें हैं तथा चीनी का उत्पादन लगभग 140 लाख टन है। भारत संसार में सबसे अधिक चीनी पैदा करता है। देश की अर्थव्यवस्था में चीनी उद्योग का महत्त्वपूर्ण स्थान है। प्रति साल 10 लाख टन चीनी निर्यात की जाती है।

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प्रश्न 9.
भारतीय चीनी उद्योग को आने वाली मुख्य कठिनाइयों कौन-सी हैं ?
उत्तर-
भारतीय चीनी उद्योग को आने वाली मुख्य कठिनाइयां हैं-

  • गन्ने के उत्पादन के लिए लगी हुई पूंजी से बिक्री मूल्यों में भारी गिरावट एक मुख्य समस्या है!
  • गन्ने के रस को निकालने के बाद इसको अधिक समय के लिए बचाया नहीं जा सकता. यह सूख जाता है।
  • चीनी मिलों के मालिकों द्वारा भुगतान किसानों को समय पर नहीं दिया जाता।
  • कोहरा पड़ने के कारण फसल खराब हो जाती है।
  • यातायात पर लागत अधिक आती है।
  • चीनी मिलें छोटी होती हैं।
  • गन्ना प्राप्त न होने के कारण मिलें वर्ष में कुछ महीने बन्द रहती हैं।

प्रश्न 10.
तीसरे क्षेत्र के क्षेत्र या सेवा क्षेत्र बारे में आप क्या समझते हो ?
उत्तर-
आर्थिकता के पहले स्तर तथा दूसरे क्षेत्र से प्राप्त वस्तुओं के बाद तीसरा स्तर आता है जिसको सेवाक्षेत्र कहते हैं। इसमें उत्पादकता के स्तर में सुधार होता है क्योंकि इस क्षेत्र में ज्ञान का आदान प्रदान होता है। इस क्षेत्र में कई सेवाएं, जैसे-मनोरंजन, सरकारी सेवाएं, टेलीकॉम, दूरसंचार. अतिथि उद्योग, मीडिया, सेहत संभाल, सूचना तकनोलॉजी, कूड़ा संभाल, परचून, बिक्री सलाह. अचल जायदाद, शिक्षा, बीमा बैंकिंग सेवाएं, वकीलों के सुझाव इत्यादि को इसके अंतर्गत शामिल किया जाता है।

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प्रश्न 11.
पंजाब के खाद्य संसाधन उद्योग पर एक नोट लिखो।
उत्तर-
पंजाब की कृषि को प्रोत्साहित करने के लिए कृषि पर आधारित उद्योगों में पूंजी लगाने के लिए पूंजीपतियों को प्रोत्साहित करने के लिए भारत सरकार ने खाद्य संसाधन उद्योग मंत्रालय देश भर में लगाये हैं तथा इस उद्योग को प्रोत्साहित किया है।

पंजाब में 2762 करोड़ रुपये खर्च करके 33 मैगा कृषि संसाधन यूनिट स्थापित किया गया है। इसके अलावा 20 मैगा प्रोजैक्ट जो कि 2680 करोड़ रुपये की लागत के हैं। स्वास्थ्य प्रगति, खाना बनाने, चीनी, बच्चों के भोजन इत्यादि के लिए शामिल किये गए हैं। कपूरथला के जिला रेहाना जट्टां में मक्की पर आधारित मैगा खाद्य पार्क का नींव पत्थर भी केंद्र सरकार के खाद्य संसाधन मंत्रालय द्वारा रखा गया।

निबंधात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

प्रश्न 1.
निर्माण उद्योग क्या हैं ? इन उद्योगों का वर्गीकरण करो।
उत्तर-
वस्तुओं का रूप बदल के माल तैयार करने की क्रिया को निर्माण उद्योग कहते हैं। यह मनुष्य का एक सहायक धंधा (रोजगार) है। प्राचीन काल से निर्माण उद्योग छोटे पैमाने पर शिल्प उद्योग के रूप में था। आधुनिक युग में यह उद्योग मिल के रूप में बड़े पैमाने पर स्थापित हो गए हैं।
उद्योगों का वर्गीकरण निम्नलिखितानुसार किया जा सकता है-

1. मजदूरों की संख्या के आधार पर वर्गीकरण (On the basis of Labour)—मज़दूरों की संख्या के आधार पर उद्योगों को दो भागों में वर्गीकृत किया जाता है।

  • बड़े पैमाने के उद्योग (Large Scale Industries) इन क्षेत्रों में जनसंख्या की वृद्धि के कारण मजदूर आसानी के साथ मिल जाते हैं तथा मजदूरों की संख्या अधिक होती है। बड़े पैमाने के उद्योग है; जैसे कि सूती कपड़ा तथा पटसन उद्योग।
  • छोटे पैमाने के उद्योग (Small Scale Industries)-जो छोटे उद्योग होते हैं खासकर निजी स्तर पर खोले जाते हैं तथा कम मजदूरों की आवश्यकता होती है, छोटे पैमाने के उद्योग हैं।

2. कच्चे माल पर आधारित उद्योग (On the basis of Product or Raw Material) कच्चे माल पर आधारित उद्योगों को आगे दो भागों में विभाजित किया जाता है-

  • भारे उद्योग (Heavy Industries) जिन उद्योगों में भारे कच्चे माल का प्रयोग किया जाता है, भारे उद्योग कहलाते हैं; जैसे-लौहा तथा इस्पात उद्योग।
  • हल्के उद्योग (Light Industries)-हल्के कच्चे माल का प्रयोग करने वाले उद्योगों को हल्के उद्योग कहते हैं; जैसे कि सिलाई मशीनों के उद्योग।

3. स्वामित्व के आधार पर वर्गीकरण (On the Basis of Ownership)-स्वामित्व के आधार पर उद्योगों को चार मुख्य भागों में वर्गीकृत किया जाता है।

  • निजी उद्योग (Private Industries)—जो उद्योग कुछेक व्यक्तियों द्वारा चलाये जाते हैं तथा सरकार के कंट्रोल के बाहर हों, पूरी तरह से निजी हाथों में हों, निजी उद्योग कहलाते हैं। जैसे-बजाज, रिलायंस इत्यादि।
    PSEB 12th Class Geography Solutions Chapter 6 आर्थिक भूगोल निर्माण उद्योग 2
  • सरकारी उद्योग (Public Industries)–जो उद्योग सरकारी कंट्रोल के अंतर्गत आते हों तथा सरकार
    द्वारा चलाये जाएं, सरकारी उद्योग कहलाते हैं; जैसे कि भारी विद्युत्, दुर्गापुर स्टील प्लांट इत्यादि।
  • सामूहिक क्षेत्र के उद्योग (Joint Sector Industries)—जो उद्योग सरकार तथा प्राइवेट दोनों के अंतर्गत हों, सहायक क्षेत्र का उद्योग कहलाते हैं; जैसे कि आयल इंडिया इत्यादि।
  • सहकारी क्षेत्र (Cooperative Industries) जब कुछ व्यक्ति या लोग मिलकर किसी उद्योग को चलाएं सहकारी क्षेत्र का उद्योग कहलाता हैं; जैसे कि अमूल, मदर डेयरी इत्यादि।

4. कच्चे माल पर आधारित उद्योग (On the basis of Raw Material) कच्चे माल पर आधारित उद्योगों को निम्नलिखित चार भागों में विभाजित किया जाता है-

  • कृषि पर आधारित उद्योग (Agro Based Industries)—जो उद्योग अपने लिए कच्चा माल कृषि से हासिल करते हैं कृषि पर आधारित उद्योग कहलाते हैं; जैसे कि चीनी उद्योग, सूती वस्त्र उद्योग इत्यादि।
  • खनिजों पर आधारित उद्योग (Mineral Based Industries)-जो उद्योग अपने लिए कच्चा माल खानों में से खनिज के रूप में लेते हैं, खनिजों पर आधारित उद्योग कहलाते हैं; जैसे कि तांबा उद्योग, इस्पात उद्योग इत्यादि।
  • पशुओं पर आधारित उद्योग (Animals Based Industries)-जब किसी उद्योग को चलाने के लिए कच्चा माल पशुओं से लिया जाता है, पशुओं पर आधारित उद्योग कहलाता है। जैसे कि जूते, डेयरी उत्पाद इत्यादि।
  • जंगलों पर आधारित उद्योग (Forest Based Industries)-जब किसी उद्योग के लिए कच्चा माल जंगलों से लिया जाता है, जगलों पर आधारित उद्योग कहलाते हैं, जैसे कि कागज़, टोकरी, इत्यादि के उद्योग।

5. फुटकल उद्योग (Miscellaneous Industries)-इन उद्योगों को मुख्य रूप में सात भागों में विभाजित किया जाता हैं-

  • ग्रामीण उद्योग (Rural Industries)—जो उद्योग गाँव में लगाये जाते हैं तथा वह गाँव की ज़रूरतों को पूरा करते हैं। ग्रामीण उद्योग कहलाते हैं; जैसे-आटा चक्कियां इत्यादि।
  • कुटीर उद्योग (Cottage Industries)—जब कोई शिल्पकार अपने घर में ही कोई सामान बनाये, जैसे कि बांस, पीतल इत्यादि को तराश के, वह कुटीर उद्योग कहलाते हैं; जैसे चमड़े के सामान बनाने का उद्योग।
  • उपभोक्ता वस्तुओं के उद्योग (Consumer Products Industries)-जिनमें कच्चे माल को तैयार करके उपभोक्ता तक पहुँचाया जाता है उपभोक्ता वस्तुओं के उद्योग कहते हैं-जैसे वस्त्र, चीनी इत्यादि।
  • सहायक उद्योग (Co-operative Industries)-जब किसी स्थान पर छोटे पुर्जे इत्यादि बना कर बड़े उद्योगों को भेजे जाते हैं, तब छोटे पुर्जे बनाने वाले उद्योग सहायक उद्योग कहलाते हैं जैसे-ट्रक, बस, रेल इंजन इत्यादि।
  • बुनियादी उद्योग (Basic Industries)-जो उद्योग निर्माण की प्रक्रिया के लिए दूसरे उद्योगों पर निर्भर करते हैं, बुनियादी उद्योग कहलाते हैं, जैसे बिजली बनाना।
  • पूंजी प्रधान उद्योग (Money Based Industries)-जिन उद्योगों में पैसे का प्रयोग अधिक होता है, पूंजी प्रधान उद्योग कहलाते हैं; जैसे सीमेंट, एल्यूमीनियम उद्योग।
  • मजदूर प्रधान उद्योग (Labour Based Industries)-जिन उद्योगों में मजदूरों की अधिक से अधिक आवश्यकता होती है, वह मज़दूर प्रधान उद्योग कहलाते हैं; जैसे कि बीड़ी उद्योग इत्यादि।

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प्रश्न 2.
उद्योगों का स्थानीयकरण कौन से तत्वों पर निर्भर करता है ? उदाहरण सहित व्याख्या करो।
उत्तर-
उद्योगों का स्थानीयकरण भौतिक तथा मानवीय दो तरह के मुख्य तत्वों पर निर्भर करता है। उदाहरणों सहित व्याख्या इस प्रकार है-
PSEB 12th Class Geography Solutions Chapter 6 आर्थिक भूगोल निर्माण उद्योग 3
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I. भौगोलिक कारक (Geographical Factors)-

1. कच्चे माल की निकटता (Nearness of Raw Material) उद्योग कच्चे माल के स्रोत के निकट ही स्थापित किए जाते हैं। कच्चा माल उद्योगों की आत्मा है। उद्योग वहीं पर स्थापित किए जाते हैं, जहां कच्चा माल अधिक मात्रा में कम लागत पर, आसानी से उपलब्ध हो सके। इसलिए लौहे और चीनी के कारखाने कच्चे माल की प्राप्ति-स्थान के निकट लगाए जाते हैं। शीघ्र खराब होने वाली वस्तुएं जैसे डेयरी उद्योग भी उत्पादक केन्द्रों के निकट लगाए जाते हैं। भारी कच्चे माल के उद्योग उन वस्तुओं के मिलने के स्थान के निकट ही लगाए जाते हैं। इस्पात उद्योग कोयला तथा लौहा खानों के निकट स्थित है। कागज़ की लुगदी के कारखाने तथा आरा मिले कोणधारी वन प्रदेशों में स्थित है। उदाहरण-कच्चे माल की प्राप्ति के कारण ही चीनी उद्योग उत्तर प्रदेश में, पटसन उद्योग पश्चिमी बंगाल में, सूती वस्त्र उद्योग महाराष्ट्र में तथा लौह इस्पात उद्योग बिहार, उड़ीसा में लगे हुए हैं।

2. शक्ति के साधन (Power Resources) कोयला, पेट्रोलियम तथा जल-विद्युत् शक्ति के प्रमुख साधन हैं।
भारी उद्योगों में शक्ति के साधनों का अधिक मात्रा में प्रयोग किया जाता है। इसलिए अधिकतर उद्योग उन स्थानों पर लगाए जाते हैं जहां कोयले की खाने समीप हों या पेट्रोलियम अथवा जल-विद्युत् उपलब्ध हो। भारत में दामोदर घाटी, कोयले के कारण ही प्रमुख औद्योगिक केन्द्र हैं। खाद व रासायनिक उद्योग, एल्यूमीनियम उद्योग, कागज़ उद्योग, जल-विद्युत् शक्ति केन्द्रों के निकट लगाए जाते हैं, क्योंकि इनमें अधिक मात्रा में सस्ती बिजली की आवश्यकता होती है।

उदाहरण-भारत में इस्पात उद्योग झरिया तथा रानीगंज की कोयला खानों के समीप स्थित है। पंजाब में भाखड़ा योजना से जल-विद्युत् प्राप्ति के कारण खाद का कारखाना नंगल में स्थित है। एल्यूमीनियम उद्योग एक ऊर्जा-गहन (Energy intensive) उद्योग है जो रेनूकूट में (उत्तर प्रदेश) विद्युत शक्ति उपलब्धता के कारण स्थापित है।

3. यातायात के साधन (Means of Transport)-उन स्थानों पर उद्योग लगाए जाते हैं, जहां सस्तो, उत्तम
कुशल और शीघ्रगामी यातायात के साधन उपलब्ध हो। कच्चा माल, श्रमिक तथा मशीनों को कारखानों तक पहुंचाने के लिए सस्ते साधन चाहिए। तैयार किए हुए माल को कम खर्च पर बाज़ार तक पहुंचाने के लिए उत्तम परिवहन साधन बहुत सहायक होते हैं।

उदाहरण-जल यातायात सबसे सस्ता साधन है। इसलिए अधिक उद्योग कोलकाता, चेन्नई आदि बंदरगाहों
के स्थान पर हैं जो अपनी पश्चभूमियों (Hinterland) से रेल मार्ग तथा सड़क मार्गों द्वारा जुड़ी हुई हैं।

4. कुशल श्रमिक (Skilled Labour)-कुशल श्रमिक अधिक और अच्छा काम कर सकते हैं जिससे उत्तम तथा सस्ता माल बनता है। किसी स्थान पर लम्बे समय से एक ही उद्योग में काम करने वाले श्रमिकों के कारण औद्योगिक केन्द्र बन जाते हैं। आधुनिक मिल उद्योग में अधिक कार्य मशीनों द्वारा होता है, इसलिए कम श्रमिकों .. की आवश्यकता होती है। कुछ उद्योगों में अत्यन्त कुशल तथा कुछ उद्योगों में अर्द्ध-कुशल श्रमिकों की आवश्यकता होती है। श्रम प्रधान उद्योग (Labour Intensive) उद्योग कुशल तथा सस्ते श्रम क्षेत्रों की ओर आकर्षित होते हैं। उदाहरण-मेरठ और जालन्धर में खेलने का सामान बनाने, लुधियाना में हौजरी उद्योग तथा वाराणसी में जरी उद्योग, मुरादाबाद में पीतल के बर्तन बनाने तथा फिरोजाबाद में चूड़ियां बनाने का उद्योग कुशल श्रमिकों के कारण ही है।

5. जल की पूर्ति (Water Supply) कई उद्योगों में प्रयोग किए जल की विशाल राशि की आवश्यकता होती है जैसे-लौह-इस्पात उद्योग, खाद्य संसाधन. कागज़ उद्योग, रसायन तथा पटसन उद्योग, इसलिए ये उद्योग झीलों, नदियों तथा तालाबों के निकट लगाए जाते हैं।
उदाहरण-जमशेदपुर में लौह-इस्पात उद्योग खोरकाई तथा स्वर्ण रेखा नदियों के संगम पर स्थित है।

6. जलवायु (Climate) कुछ उद्योगों में जलवायु का मुख्य स्थान होता है। उत्तम जलवायु मनुष्य की कार्य कुशलता पर भी प्रभाव डालती है। सूती कपड़े के उद्योग के लिए आर्द्र जलवायु अनुकूल होती है। इस जलवायु में धागा बार-बार नहीं टूटता। वायुयान उद्योग के लिए शुष्क जलवायु की आवश्यकता होती है। उदाहरण-मुंबई में सूती कपड़ा उद्योग आर्द्र जलवायु के कारण तथा बंगलौर में वायुयान उद्योग (Aircraft) शुष्क जलवायु के कारण स्थित है।

7. बाजार से निकटता (Nearness to Market) मांग क्षेत्रों का उद्योग के निकट होना आवश्यक है। इससे कम खर्च पर तैयार माल बाजारों में भेजा जाता है। माल की खपत जल्दी हो जाती है तथा लाभ प्राप्त होता है। शीघ्र खराब होने वाली वस्तुओं के उद्योग जैसे डेयरी उद्योग, खाद्य उद्योग बड़े नगरों के निकट लगाए जाते हैं। यहां अधिक जनसंख्या के कारण लोगों की माल खरीदने की शक्ति अधिक होती है। एशिया के देशों में अधिक जनसंख्या है, परन्तु निर्धन लोगों के कारण ऊंचे मूल्य वस्तुओं की मांग कम है। यही कारण है कि विकासशील देशों में निर्माण उद्योगों की कमी है। छोटे-छोटे पुर्ने तैयार करने वाले उद्योग बड़े कारखानों के निकट लगाए जाते हैं जहां इन पों का प्रयोग होता है।

8. सस्ती व समतल भूमि (Cheap and Level Land)-भारी उद्योगों के लिए समतल मैदानी भूमि की बहुत आवश्यकता होती है। इसी कारण से जमशेदपुर का इस्पात उद्योग दामोदर नदी घाटी के मैदानी क्षेत्र में स्थित है।

9. स्थान (Site) किसी भी उद्योग के लिए अच्छे धरातल अर्थ सही समतल ज़मीन की जरूरत होती है ताकि यातायात के साधन अच्छे हों। खासकर खुली जगह पर ऐसे उद्योग स्थापित किये जाते हैं।

II. मानवीय कारक-कच्चे माल के भाव में, मौजूदा विज्ञान तथा तकनीकी विकास के अनुसार कई चीजों को
शामिल किया गया है। उपरोक्त लिखे कई भौगोलिक कारकों के बिना कई गैर भौगोलिक कारक भी हैं जो किसी उद्योग के स्थानीयकरण के लिए ज़रूरी हैं जैसे कि-

1. पूंजी की सुविधा (Capital) -उद्योग उन स्थानों पर लगाए जाते हैं जहां पूंजी पर्याप्त मात्रा में ठीक समय पर तथा उचित दर पर मिल सके। निर्माण उद्योग को बड़े पैमाने पर चलाने के लिए अधिक पूंजी की आवश्यकता होती है। विकसित देशों द्वारा विकासशील देशों में पूंजी लगाने के कारण उद्योगों का विकास हुआ है। राजनीतिक स्थिरता और बिना डर के पूंजी विनियोग उद्योगों के विकास में सहायक है। उदाहरण-दिल्ली, मुंबई, कोलकाता आदि नगरों में बड़े-बड़े पूंजीपतियों और बैंकों की सुविधा के कारण ही औद्योगिक विकास हुआ है।

2. पूर्व आरम्भ (Early Start) जिस स्थान पर कोई उद्योग पहले से ही स्थापित हों, उसी स्थान पर उस उद्योग के अनेक कारखाने स्थापित हो जाते हैं। मुम्बई में सूती कपड़े के उद्योग तथा कोलकाता में जूट उद्योगों इसी कारण से केन्द्रित हैं। किसी स्थान पर अचानक किसी ऐतिहासिक घटना के कारण सफल उद्योग स्थापित हो जाते हैं। अलीगढ़ में ताला उद्योग इसका उदाहरण है।

3. सरकारी नीति (Government Policy)—सरकार के संरक्षण में कई उद्योग विकास कर जाते हैं, जैसे देश में चीनी उद्योग सन् 1932 के पश्चात् सरकारी संरक्षण से ही उन्नत हुआ है। सरकारी सहायता से कई उद्योगों को बहुत-सी सुविधाएं प्राप्त हो जाती हैं। सरकार द्वारा लगाए टैक्सों से भी उद्योग पर प्रभाव पड़ता है। मथुरा में तेल शोधनशाला, कपूरथला में कोच फैक्टरी तथा जगदीशपुर में उर्वरक कारखाना सरकारी नीति के अधीन लगाए गए हैं।

4. बैंकों की सुविधाएं (Facilities of Banks)-उद्योग में खरीद तथा बेच के रुपये का लेन-देन बहुत होता है। इसलिए बैंक की सहूलियतें बड़े शहरों में उद्योगों के लिए आकर्षित करते हैं।

5. सुरक्षा (Defence)-देश में सैनिक सामान तैयार करने वाले कारखाने सुरक्षा के दृष्टिकोण के साथ देश के अंदरूनी भागों में लाये जाते हैं। बंगलौर में हवाई जहाजों का उद्योग इसलिए ही स्थापित है।

6. ऐतिहासिक कारक (Historical Factors) अचानक ही किसी स्थान से कभी कोई उद्योग का रूप धारण कर लेता है; जैसे अलीगढ़ में ताला उद्योग इसलिए ही प्रसिद्ध है।
7. बीमा (Insurance) किसी भी अनहोनी जो मनुष्य या मशीनरी इत्यादि किसी के साथ भी हो ऐसी सूरत में बीमा की सुविधा होनी ज़रूरी है।

8. औद्योगिक जड़त्व (Industrial Inertia)-जिस स्थान पर कोई उद्योग शुरू हुआ होता है कई बार वहाँ ही पूरी तरह से विकसित हो जाता है। यह जड़त्व भौगोलिक तथा औद्योगिक किसी भी प्रकार का हो सकता है; जैसे उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में तालों का उद्योग इत्यादि।

9. अन्य तत्व (Other Factors)-कई और तत्व भी औद्योगिक विकास पर प्रभाव डालते हैं। जल की पूर्ति के लिए कई उद्योग नदियों या झीलों के तट पर लगाये जाते हैं। तकनीकी ज्ञान प्रबंध, संगठन तथा राजनीतिक ‘ कारण भी उद्योग की स्थापना पर प्रभाव डालते हैं।

PSEB 12th Class Geography Solutions Chapter 6 आर्थिक भूगोल निर्माण उद्योग (सहायक सेवा तथा ज्ञान/विशेष क्षेत्रों की क्रियाएं)

प्रश्न 3.
भारत में लौह तथा इस्पात उद्योग के स्थानीयकरण तथा उद्योग का विवरण दो। भारत में लगाये गये कारखानों का वर्णन करो।
उत्तर-
लौह-इस्पात उद्योग आधुनिक औद्योगिक युवा की आधारशिला है। लोहा कठोरता, प्रबलता तथा सस्ता होने के कारण अन्य धातुओं की तुलना में अधिक महत्त्वपूर्ण है। इससे अनेक प्रकार की मशीनें, परिवहन के साधन, कृषि यन्त्र, ऊंचे-ऊंचे भवन, सैनिक अस्त्र-शस्त्र, राकेट तथा दैनिक प्रयोग की अनेक वस्तुएं तैयार की जाती हैं। लौह इस्पात का उत्पादन ही किसी देश के आर्थिक विकास का मापदंड है। आधुनिक सभ्यता लौह-इस्पात पर निर्भर करती है, इसलिए वर्तमान युग को ‘इस्पात युग’ कहते हैं।

इस्पात निर्माण ढंग-लोहा निर्माण का काम आज से 3000 साल पहले, भारत, मिस्र तथा रोम इत्यादि देशों में किया जाता था। इस युग को लौहयुग कहा जाता है। पृथ्वी की खानों में लोहा अशुद्ध रूप में मिलता है। लोहे को भट्टी में गला कर साफ करके इस्पात बनाया जाता हैं। इस कार्य के लिए ढंग प्रयोग में लाये जाते हैं। खुली भट्टी, कोक भट्टी तथा बिजली की पावर भट्टियों का प्रयोग किया जाता है।

  1. लोहे को पिघला कर शुद्ध करके कच्चा लौहा तैयार किया जाता है।
  2. कच्चे लोहे में मैंगनीज़ मिलाकर इस्पात बनाया जाता है जिसके साथ गार्डर, रेल पटरियां, चादरें तथा पाइप इत्यादि बनाये जाते हैं।
  3. क्रोमियम तथा निक्कल मिलाकर रखने से जंगाल न लगने वाला स्टेनलेस स्टील बनाया जाता है।
  4. कोबाल्ट मिलाने से तेज गति के साथ धातु काटने वाले उपकरण बनाये जाते हैं।

लौह-इस्पात उद्योग के स्थानीयकरण के तत्व (Locational Factors)-लौह-इस्पात उद्योग निम्नलिखित दशाओं पर निर्भर करता है।

  • कच्चा कोयला (Raw Material)—यह उद्योग लोहे तथा कोयले की खानों के निकट लगाया जाता है। इसके अतिरिक्त मैंगनीज़, चूने के पत्थर, पानी तथा रद्दी लौहा (Scrap Iron) इत्यादि कच्चे माल भी निकट ही प्राप्त हों।
  • सस्ती भूमि (Cheap Land)—इस उद्योग से बाकी भट्टियों, गोदामों, इमारतों इत्यादि के बनाने के लिए सस्ती तथा पर्याप्त भूमि चाहिए ताकि कारखानों का विस्तार भी किया जा सके।
  • कोक कोयला (Coking Coal)-लौह-इस्पात उद्योग की भट्टियों में लोहा साफ करने के लिए ईंधन के रूप में कोक कोयला प्राप्त हों। कई बार लकड़ी का कोयला भी प्रयोग किया जाता है।
  • बाज़ार की निकटता (Nearness to the Market)-इस उद्योग से बनी मशीनों तथा यन्त्र भारी होते हैं इसलिए यह उद्योग मांग क्षेत्रों के निकट लगाये जाते हैं।
  • पूंजी (Capital)-इस उद्योग को आधुनिक स्तर पर लगाने के लिए पर्याप्त पूंजी की आवश्यकता होती है। इसलिए उन्नत देशों की सहायता से विकासशील देशों में इस्पात कारखाने लगाए जाते हैं।
  • इस उद्योग के लिए परिवहन के सस्ते साधन, कुशल, श्रमिक, सुरक्षित स्थानों तथा तकनीकी ज्ञान की सुविधाएं प्राप्त होनी चाहिएं। भारत में आधुनिक ढंग का पहला कारखाना सन् 1907 में साकची जमशेदपुर बिहार में जमशेद जी टाटा ने लगाया था जो अब झारखण्ड राज्य में है।

निजी क्षेत्र के प्रमुख इस्पात केंद्र-

1. जमशेदपुर में टाटा आयरन एंड स्टील कंपनी (TISCO)

  • कच्चा लौहा-सिंहभूमि जिले में कच्चा लोहा निकट ही से प्राप्त हो जाता है। उड़ीसा की मयूरभंज खानों से 75 कि०मी० दूरी से कच्चा लोहा मिलता है।
  • कोयला-कोक कोयले के क्षेत्र झरिया तथा रानीगंज के निकट ही हैं।
  • अन्य खनिज पदार्थ-चूने के पत्थर गंगपुर में, मैंगनीज़ बिहार से तथा क्वार्टज मिट्टी कालीमती स्थान से आसानी से प्राप्त हो जाती है।
  • नदियों की सुविधा-रेत तथा जल कई नदियों से जैसे दामोदर स्वर्ण रेखा, खोरकाई से प्राप्त हो जाते हैं।
  • सस्ते व कुशल श्रमिक-बिहार, बंगाल राज्य के घनी जनसंख्या वाले प्रदेशों में सस्ते व कुशल श्रमिक आसानी से मिलते हैं।
  • बंदरगाहों की सुविधा-कोलकाता बंदरगाह निकट है तथा आयात व निर्यात की आसानी है।
  • यातायात के साधन-रेल, सड़क व जलमार्गों के यातायात के सुगम व सस्ते साधन प्राप्त हैं।
  • समतल भूमि-नदी घाटियों में समतल व सस्ती भूमि प्राप्त है, जहां कारखाने लगाए जा सकते हैं।

2. बेर्नपुर में इंडियन आयरन एंड स्टील कंपनी (IISCO)—पश्चिमी बंगाल में यह निजी क्षेत्र में इस्पात कारखाना स्थित है। यह कारखाना सन् 1972 ई० से केन्द्र द्वारा नियंत्रित है। यहां निम्नलिखित सुविधाएं प्राप्त हैं।

  • रानीगंज तथा झरिया से 137 कि०मी० की दूरी पर कोयला प्राप्त होता है।
  • लौहा झारखंड में सिंहभूमि क्षेत्र में।
  • चूने का पत्थर उड़ीसा से, गंगपुर क्षेत्र से।
  • जल दामोदर नदी से प्राप्त हो जाता है।
  • कोलकाता बंदरगाह से आयात-निर्यात तथा व्यापार की सुविधाएं प्राप्त हैं।

3. विश्वेश्वरैया आयरन एंड स्टील लिमिटेड (VISL) यह कारखाना कर्नाटक राज्य में भद्रा नदी के पश्चिमी किनारे पर स्थित भद्रावती स्थान पर सन् 1923 में लगाया गया।

सुविधाएं (Factors)-

  • हैमेटाइट लोहा बाबा बूदन पहाड़ियों से।
  • लकड़ी का कोयला कादूर के वनों से।
  • जल बिजली जोग जल प्रपात तथा शिवसमुद्रम प्रपात से
  • चूने का पत्थर भंडी गुड्डा से प्राप्त होता है।
  • शिमोगा से मैंगनीज़ प्राप्त होता है।

सार्वजनिक क्षेत्र से लौह-इस्पात केंद्र-देश में इस्पात उद्योग में वृद्धि करने के लिए सार्वजनिक क्षेत्र में हिंदस्तान स्टील लिमिटेड (HSL) कंपनी की स्थापना की गई। इसके अधीन विदेशी सहायता से चार इस्पात कारखाने लगाए गए हैं।

I. भिलाई-यह कारखाना छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले में भिलाई स्थान पर रूस की सहायता से लगाया गया है।

  • यहां लौहा 97 कि०मी० दूरी से धाली-राजहारा पहाड़ी से प्राप्त होता है।
  • कोयला कोरबा तथा झरिया खानों से मिलता है।
  • मैंगनीज़ बालाघाट क्षेत्र से तथा चूने का पत्थर नंदिनी खानों से प्राप्त होता है।
  • तांदुला तालाब से जल प्राप्त होता है।
  • यह नगर कोलकाता, नागपुर रेलमार्ग पर स्थित है। इस कारखाने की उत्पादन क्षमता को 25 लाख टन से बढ़ाकर 40 लाख टन किया जा रहा है।

II. दुर्गापुर-यह इस्पात कारखाना पश्चिमी बंगाल में इंग्लैंड की सहायता से लगाया गया है।

  • यहां लोहा सिंहभूम क्षेत्र से प्राप्त होता है।
  • कोयला रानीगंज क्षेत्र से प्राप्त होता है।
  • गंगपुर क्षेत्र में डोलोमाइट व चूने का पत्थर मिलता है।
  • दामोदर नदी से जल तथा विद्युत प्राप्त होती है। इस कारखाने की उत्पादन क्षमता को 16 लाख टन से बढ़ाकर 24 लाख टन किया जा रहा है।

III. राऊरकेला-यह कारखाना उड़ीसा में जर्मनी की फर्म क्रुप एण्ड डीमग की सहायता से लगाया गया है।

  • यहां लोहा उड़ीसा के बोनाई क्षेत्र से प्राप्त होता है।
  • कोयला झरिया तथा रानीगंज से प्राप्त होता है।
  • चूने का पत्थर पुरनापानी तथा मैंगनीज़ ब्राजमदा क्षेत्र से प्राप्त होता है।
  • हीराकुंड बांध से जल तथा जल विद्युत् मिल जाती है। इस कारखाने की उत्पादन क्षमता को 18 लाख टन से बढ़ा कर 28 लाख टन करने की योजना है।

IV. बोकारो-यह कारखाना झारखंड में बोकारो नामक स्थान पर रूस की सहायता से लगाया गया है।

  • इस केन्द्र की स्थिति कच्चे माल के स्रोतों के मध्य में है। यहां बोकारो, झरिया से कोयला, उडीसा के क्योंझर क्षेत्र से लोहा प्राप्त होता है।
  • जल विद्युत हीराकुंड तथा दामोदर योजना से।
  • जल बोकारो तथा दामोदर नदियों से। इस कारखाने की उत्पादन क्षमता को 25 लाख टन से बढ़ाकर 40 लाख टन किया जा रहा है।

सातवीं पंचवर्षीय योजना के नए कारखाने-सातवीं पंचवर्षीय योजना में तीन नए कारखाने लगाए जाने की योजना बनाई गई है।

  1. आंध्र में विशाखापट्टनम
  2. तमिलनाडु में सेलम
  3. कर्नाटक में होस्पेट के निकट विजय नगर।

उत्पादन-देश में उत्पादन बढ़ जाने के कारण कुछ ही वर्षों में भारत संसार के प्रमुख इस्पात देशों में स्थान प्राप्त कर लेगा। 2009 में देश में तैयार इस्पात का उत्पादन 597 लाख टन था। यंत्रों इत्यादि के लिए स्पैशल इस्पात का उत्पादन
PSEB 12th Class Geography Solutions Chapter 6 आर्थिक भूगोल निर्माण उद्योग 5
5 लाख टन था। भारत में इस्पात की प्रति व्यक्ति खपत केवल 32 किलोग्राम है जबकि अमेरिका में 500 किलोग्राम है। भारत में प्रतिवर्ष 20 लाख टन लोहा तथा इस्पात विदेशों को निर्यात किया जाता हैं। जिसका मूल्य ₹ 2000 करोड़ है।

भविष्य-24 जनवरी, 1973 को स्टील अथारिटी ऑफ इंडिया (SAIL) की स्थापना की गई है। यह संगठन लौह इस्पात, उत्पादन व निर्यात का कार्य संभालेगा। विभिन्न कारखानों की क्षमता को बढ़ाकर उत्पादन 1000 लाख टन तक ले जाने का लक्ष्य है। देश में इस्पात बनाने के लिए छोटे-छोटे कारखाने लगाकर उत्पादन बढ़ाया जाएगा।

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प्रश्न 4.
भारत में सूती कपड़ा उद्योग के स्थानीयकरण तथा सूती कपड़ा उद्योग का विवरण दो। यह उद्योग किन कारणों से मुंबई तथा अहमदाबाद में केंद्रित है?
उत्तर-
इतिहास (History)—वस्त्र मनुष्य की मूल आवश्यकता है। सूती कपड़ा उद्योग बहुत प्राचीन है। आज से लगभग बहुत समय पहले सूती वस्त्र उद्योग भारत में घरेलू उद्योग के रूप में उन्नत था। ढाके की मलमल संसार में प्रसिद्ध थी। सूती मिल उद्योग का आरम्भ 18वीं शताब्दी में ग्रेट ब्रिटेन में हुआ। औद्योगिक क्रान्ति के कारण आर्कराइट, क्रोम्पटन तथा कार्टहाईट नामक कारीगरों ने पावरलूम इत्यादि कई मशीनों का आविष्कार किया। सूती कपड़ा बनाने की इन मशीनों के कारण इंग्लैंड का लंकाशायर प्रदेश संसार भर में सूतीवस्त्र उद्योग के लिए प्रसिद्ध हो गया है। इसके पश्चात् सूती वस्त्र का मिल उद्योग संसार में कई क्षेत्रों में यू०एस०ए०, रूस, यूरोप, भारत तथा जापान इत्यादि में फैल गया।

सूती वस्त्र उद्योग के स्थानीयकरण के तत्व (Factors of Location)सूती वस्त्र उद्योग संसार के बहुत सारे देशों में फैल गया है। लगभग 40 देशों में यह उद्योग उन्नत है। कपास की प्राप्ति तथा हर एक देश की मांग होने के कारण इस उद्योग का विस्तार होता जा रहा है। यह उद्योग अग्रलिखित तत्वों पर निर्भर करता है।

  • कच्चे माल की नजदीकी-सूती वस्त्र उद्योग कपास पैदा करने वाले क्षेत्रों में लगाना उपयोगी होता है जैसे भारत में अहमदाबाद क्षेत्र तथा यू०एस०ए० की कपास की पेटी में सूती वस्त्र उद्योग है। जापान तथा इंग्लैंड विदेशों से कपास निर्यात करते हैं।
  • जलवायु-सूती कपड़ा उद्योग के लिए सिल्ल तथा समुद्री जलवायु अनुकूल होती है। इस जलवायु में धागा बार-बार नहीं टूटता। इसीलिए मुंबई, लंकाशायर तथा जापान तट पर यह उद्योग स्थापित है। कई खुश्क भागों में बनावटी नमी पैदा करने वाली मशीनों का प्रयोग किया जाता है; जैसे कानपुर में, परन्तु इस तरह से उत्पादन करने पर खर्च ज्यादा होता है।
  • सस्ती यातायात-जापान तथा इंग्लैंड सस्ती यातायात द्वारा कपास मंगवा कर अपने देश में उद्योग चलाते हैं।
  • सस्ते तथा कुशल श्रमिक-इस उद्योग के लिए कुशल मजदूर अधिक मात्रा में होने चाहिए।
  • बाजार से निकटता- यह उद्योग बाज़ार मुखी उद्योग है। यह उद्योग स्थानिक खपत केन्द्रों तथा विदेशी मंडियों के नज़दीक लगाये जाते हैं। भारत, चीन, जापान में इस उद्योग की एशिया की घनी जनसंख्या के कारण एक विशाल मंडी है।
  • शक्ति के साधन-इस उद्योग के लिए जल बिजली की सुविधा हो या कोयला निकट हो जैसे कोलकाता में रानीगंज कोयला क्षेत्र नजदीक है।
  • अन्य तत्व-इसके बिना सूती वस्त्र उद्योग के लिए मशीनरी, साफ जल, ज्यादा पूंजी, तकनीकी ज्ञान, सरकारी सहायता, रासायनिक पदार्थों इत्यादि की ज़रूरत भी होती है। सूती कपड़ा उद्योग भारत का प्राचीन उद्योग है। ढाका की मलमल दूर-दूर के देशों में प्रसिद्ध है। यह उद्योग घरेलू उद्योग के रूप में उन्नत है, परन्तु अंग्रेजी सरकार ने इस उद्योग को समाप्त करके भारत को इंग्लैंड में बने कपड़े की एक मंडी बना दिया। भारत में पहली आधुनिक मिल सन् 1818 में कोलकत्ता (कोलकाता) में स्थापित की गई।

महत्त्व (Importance)-

  • यह उद्योग भारत का सबसे बड़ा तथा प्राचीन उद्योग है।
  • इसमें 10 लाख मज़दूर काम करते हैं।
  • सब उद्योगों में से अधिक पूंजी इसमें लगी हुई है।
  • इस उद्योग के माल के निर्यात से 2000 करोड़ की विदेशी मुद्रा प्राप्त होती है।
  • इस उद्योग पर रंगाई, धुलाई, रासायनिक उद्योग निर्भर करते हैं। इस उद्योग में 50 लाख रुपए के रासायनिक पदार्थ प्रयोग होते हैं।

सूती कपड़ा उद्योग का स्थानीयकरण (Location)-भारत में इस उद्योग की स्थापना के लिए निम्नलिखित अनुकूल सुविधाएं हैं-

1. अधिक मात्रा में कपास। 2. उचित मशीनें । 3. मांग का अधिक होना।

उत्पादन (Production)-देश में 1300 कपड़ा मिलें थीं। इन कारखानों में 200 लाख तकले तथा 2 लाख करघे हैं। इन मिलों में लगभग 150 करोड़ किलोग्राम सूत तथा 2000 करोड़ मीटर कपड़ा तैयार किया जाता है।
वितरण (Distribution)-सूती कपड़े के कारखाने सभी प्रान्तों में हैं। लगभग 80 नगरों में सूती मिलें बिखरी हुई हैं। इन प्रदेशों में सूती कपड़ा उद्योग की उन्नति निम्नलिखित कारणों से हैं-

1. महाराष्ट्र-यह राज्य सूती कपड़ा उद्योग मे सबसे आगे है। यहां 100 मिलें हैं। मुंबई आरम्भ से ही सूती वस्त्र उद्योग का प्रमुख केंद्र है। इसलिए इसे सूती वस्त्रों की राजधानी (Cotton-Polis of India) कहते हैं। मुंबई के अतिरिक्त नागपुर, पुणे, शोलापुर, अमरावती प्रसिद्ध केन्द्र हैं । मुंबई नगर में सूती कपड़ा उद्योग की उन्नति के निम्नलिखित कारण हैं-

    • पूर्व आरम्भ-भारत की सबसे पहली आधुनिक मिल मुंबई में खोली गई।
    • पूंजी-मुंबई के व्यापारियों ने कपड़ा मिलें खोलने में बहुत धन लगाया।
    • कपास-आस-पास के खानदेश तथा बरार प्रदेश की काली मिट्टी के क्षेत्र में उत्तम कपास मिल जाती है।

PSEB 12th Class Geography Solutions Chapter 6 आर्थिक भूगोल निर्माण उद्योग 6

  • उत्तम बन्दरगाह-मुंबई एक उत्तम बन्दरगाह है, जहां मशीनरी तथा कपास आयात करने तथा कपड़ा निर्यात करने की सुविधा है।
  • सम जलवायु-सागर से निकटता तथा नम जलवायु इस उद्योग के लिए आदर्श है।
  • सस्ते श्रमिक-घनी जनसंख्या के कारण सस्ते श्रमिक प्राप्त हो जाते हैं।
  • जल विद्युत्-कारखानों के लिए सस्ती बिजली टाटा विद्युत् केन्द्र से प्राप्त होती है।
  • यातायात-मुंबई रेलों व सड़कों द्वारा देश के भीतरी भागों से मिला है।
  • जल प्राप्ति-कपड़े की धुलाई, रंगाई द्वारा देश के लिए पर्याप्त जल मिल जाता है।

2. गुजरात-गुजरात राज्य का इस उद्योग में दूसरा स्थान हैं। अहमदाबाद प्रमुख केंद्र है। जहां 75 मिलें हैं। अहमदाबाद को भारत का मानचेस्टर कहते हैं। इसके अतिरिक्त सूरत, बड़ौदा, राजकोट प्रसिद्ध केन्द्र हैं। यहां सस्ती भूमि व उत्तम कपास के कारण उद्योग का विकास हुआ है।

3. तमिलनाडु-इस राज्य में पनबिजली के विकास तथा लम्बे रेशे की कपास की प्राप्ति के कारण यह उद्योग बहुत उन्नत है मुख्य केन्द्र मदुराई, कोयम्बटूर, सेलम, चेन्नई हैं।

4. पश्चिमी बंगाल- इस राज्य में अधिकतर मिलें हुगली क्षेत्र में हैं। यहां रानीगंज से कोयला, समुद्री आर्द्र जलवायु, सस्ते मज़दूर व अधिक मांग के कारण यह उद्योग स्थित हैं।

5. उत्तर प्रदेश-यहां अधिकतर (14) मिलें कानपुर में स्थित हैं। कानपुर को उत्तरी भारत का मानचेस्टर कहते हैं। यह कपास उन्नत करने वाला राज्य है। यहां घनी जनसंख्या के कारण सस्ते मजदूर हैं व सस्ते कपड़े की मांग अधिक है। इसके अतिरिक्त आगरा, मोदीनगर, बरेली, वाराणसी, सहारनपुर प्रमुख केन्द्र हैं।

6. मध्य प्रदेश में इंदौर, ग्वालियर, उज्जैन, भोपाल।
7. आन्ध्र प्रदेश में हैदराबाद तथा वारंगल ।
8. कर्नाटक में मैसूर तथा बंगलौर।।
9. पंजाब में अमृतसर, फगवाड़ा, अबोहर, लुधियाना।
10. हरियाणा में भिवानी।
11. अन्य नगर दिल्ली, पटना, कोटा, जयपुर, कोचीन।

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प्रश्न 5.
भारत में चीनी उद्योग के स्थानीयकरण, विकास तथा उद्योग का विवरण दो। भारतीय चीनी उद्योग कौन-कौन सी मुख्य कठिनाइयों का सामना कर रहा है ?
उत्तर-
भारत में चीनी पैदा करने का मुख्य स्रोत (कच्चा माल) गन्ना है। सूती कपड़े के उद्योग के बाद गन्ना उद्योग भारत का दूसरा बड़ा उद्योग है जिसमें 1 अरब से अधिक पूंजी लगी हुई है। देश को 500 मिलों में 2.5 लाख मजदूर काम करते हैं। इस उद्योग में देश के 2 करोड़ कृषकों को लाभ होता है। संसार में ब्राजील के बाद भारत सबसे बड़ा गन्ना उत्पादक राज्य है। भारत विश्व की 10% चीनी उत्पन्न करता है। यहाँ 500 से भी ज्यादा चीनी बनाने की मिलें हैं। इस उद्योग के बचे-खुचे पदार्थों पर एल्कोहल, खाद, मोम, कागज़ उद्योग पर निर्भर करते हैं।

चीनी उद्योग के स्थानीयकरण के लिए महत्वपूर्ण कारक-भारतीय चीनी उद्योग पूरी तरह से गन्ने पर आधारित हैं जो कि भारी तथा जल्दी से सूखने वाली फसल है। इसको काटने के शीघ्र बाद ही इसका रस निकालना जरूरी होता हैं, नहीं तो इसका रस सूख जाता है! औद्योगीकरण के लिए महत्वपूर्ण कारक हैं-
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  • कच्चे माल की निकटता-गन्ना एक भारी पदार्थ है तथा जल्दी ही कटाई के बाद सूख जाता है। इसलिए कच्चा माल उद्योग के नजदीक ही उपलब्ध होना चाहिए, ताकि कटाई के जल्द बाद इसका रस निकाल लिया जाए।
  • बाजार की निकटता-बाज़ार की निकटता भी इस उद्योग के लिए उपयोगी है।
  • सस्ते तथा कुशल मज़दूर-इस उद्योग के लिए कुशल तथा सस्ते मजदूर अधिक मात्रा में चाहिए।
  • अनुकूल जलवायु-इस फसल के लिए तापमान 21°C से 27° C तक चाहिए तथा कम से कम 75 cm से 100 cm तक वार्षिक वर्षा की ज़रूरत है। जिन स्थानों पर वर्षा कम होती है, सिंचाई सुविधा से कृषि की जाती है।

भारतीय चीनी उद्योग में राज्यों की देन इस प्रकार है-

1. उत्तर प्रदेश-भारत में उत्तर प्रदेश चीनी का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है। गन्ना उत्पादन में भी यह प्रदेश प्रथम
स्थान पर है। यहां चीनी मिलें भी दो क्षेत्रों में पाई जाती हैं।
(क) तराई क्षेत्र-गोरखपुर, बस्ती, सीतापुर, फैजाबाद।
(ख) दोआब क्षेत्र-सहारनपुर, मेरठ, मुजफ्फरनगर।

उत्तरी भारत में सुविधाएं-भारत का 50% गन्ना उत्तर प्रदेश में उत्पन्न होता है। अधिक जनसंख्या के कारण खपत अधिक है तथा सस्ते श्रमिक प्राप्त हैं। सस्ती जल बिजली तथा बिहार से कोयला मिल जाता है। यातायात के साधन उत्तम हैं।

2. महाराष्ट्र-महाराष्ट्र में चीनी उद्योग का विकास तेजी से हुआ है। यहाँ ज्यादातर मिलें पश्चिमी हिस्से में हैं यहाँ के पठारी इलाके में नदी घाटियां स्थित हैं यहां अहमदाबाद सब से बड़ा चीनी का उत्पादक राज्य है। कोल्हापुर, पुणे, शोलापुर, सितारा तथा नासिक चीनी के लिए काफी प्रसिद्ध हैं।
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3. तमिलनाडु-पिछले कुछ सालों से तमिलनाडु के चीनी उद्योग का विकास हो रहा है। यहाँ कुल 32 चीनी मिलें हैं जो कि कोयम्बटूर, तिरुचिरापल्ली, रामानाथपुरम, अरकोट इत्यादि स्थानों पर स्थित हैं।

4. कर्नाटक-कर्नाटक में तकरीबन 30 चीनी मिलें हैं जो देश की. 14.7 फीसदी चीनी का उत्पादन करती हैं। राज्य में सबसे ज्यादा चीनी बेलगांव, रामपुर, पाण्डुपुर से आती है।

5. आन्ध्र प्रदेश-यहाँ 35 से भी अधिक चीनी मिलें हैं। ज्यादातर मिलें पूर्वी तथा पश्चिमी गोदावरी जिलों तथा कृष्णा नदी घाटियों में मौजूद हैं। मुख्य चीनी मिलें हैदराबाद, विशाखापट्टनम, विजयवाड़ा, हास्पेट, पीठापुरम में हैं।

6. गुजरात-गुजरात के सूरत, भावनगर, अमरेली, राजकोट, अहमदनगर इत्यादि स्थानों पर भीनी मिलें हैं।

7. हरियाणा-हरियाणा में रोहतक, पलवल, पानीपत, यमुनानगर, जींद, कैथल, सोनीपत, फरीदाबाद इत्यादि .. जिलों में चीनी मिलें मौजूद हैं।
8. पंजाब-पंजाब में 17 मुख्य चीनी मिलें हैं जिनमें 10 ही चलती हैं। सात चीनी मिलें बंद पड़ी हैं। जो कि धूरी, .बुढ़लाड़ा, फरीदकोट, जगराओं, रखड़ा, तरनतारन तथा जीरा में हैं। अजनाला, बटाला, भोगपुर, बुद्देवाल, फाजिल्का, फगवाड़ा, गुरदासपुर, नकोदर, मोरिंडा, नवांशहर इत्यादि चीनी मिलें काफी प्रसिद्ध हैं।

चीनी उद्योग को आने वाली मुख्य कठिनाइयां-

  • भारत में गन्ने की प्रति हेक्टेयर उपज कम है।
  • गन्ने पर पैसा उत्पादन के समय ज्यादा लगता है तथा बिक्री मूल्य में दिन प्रति दिन गिरावट आ रही है।
  • गन्ने की कटाई के बाद इसका रस जल्दी सूख जाता है। इसको लम्बे समय तक बचाकर नहीं रखा जा सकता।
  • चीनी मिलों के मालिक किसानों को पैसे का भुगतान समय पर नहीं करते।
  • गन्ना एक भारी पदार्थ है। एक जगह से दूसरी जगह लेकर जाना मुश्किल है। यातायात पर लागत ज्यादा आती
  • गन्ना प्राप्त न होने के कारण मिलें वर्ष में कुछ महीने बन्द रहती हैं।
  • चीनी उद्योग के बचे खुचे पदार्थों का ठीक उपयोग नहीं होता।

भविष्य-पिछले कुछ वर्षों में चीनी उद्योग दक्षिणी भारत की ओर स्थानान्तरित कर रहा है। कोयम्बटर में गन्ना खोज केन्द्र भी स्थापित किया गया है। दक्षिणी भारत में गन्ना अधिक मोटा होता है तथा इसमें रस की मात्रा अधिक होती है। दक्षिणी भारत में गन्ने की पिराई का समय भी अधिक होता है। गन्ने की प्रति हेक्टेयर उपज भी अधिक है। यहां आधुनिक चीनी मिलें सहकारी क्षेत्र में लगाई गई हैं।

PSEB 12th Class Geography Solutions Chapter 6 आर्थिक भूगोल निर्माण उद्योग (सहायक सेवा तथा ज्ञान/विशेष क्षेत्रों की क्रियाएं)

प्रश्न 6.
औद्योगिक गलियारे से आपका क्या भाव है ? भारतीय औद्योगिक गलियारों के निर्माण के अलगअलंग स्तरों का वर्णन करो।
उत्तर-
जिस क्षेत्र में उद्योगों के विकास के लिए हर संभव कोशिश की जाती है तथा एक गलियारा ढांचा तैयार करवाया जाता है, ताकि उद्योग को प्रोत्साहन मिल सके तथा प्रारंभिक ज़रूरतों को एक स्थान से ही पूरा किया जा सके।
औद्योगिक गलियारा कहलाता है। उदाहरण-बंदरगाह, राष्ट्रीय मार्ग तथा रेल प्रबंध इत्यादि को विकसित करना। औद्योगिक गलियारों के निर्माण स्तर-इस समय भारत में लगभग सात औद्योगिक गलियारे तैयार किये गये हैं तथा इनका निर्माण अलग अलग स्तरों पर होता है। जिसका वर्णन इस प्रकार है.

1. दिल्ली-मुंबई औद्योगिक गलियारा (Delhi-Mumbai Industrial corridors) यह गलियारा देश के सात राज्यों में फैला हुआ है। यह गलियारा दिल्ली से आर्थिक राजधानी मुंबई तक फैला है। जिसकी लंबाई – 1500 किलोमीटर हैं। जिसमें 24 औद्योगिक क्षेत्रों के साथ-साथ 8 स्मार्ट शहर, दो हवाई अड्डे भी शामिल हैं। यहां यातायात के साधन भी विकसित हैं।

2. मंबई-बेंगलरू आर्थिक गलियारा (Mumbai-Bangaluru Industrial Corridors) यह गलियारा देश की आर्थिक राजधानी मुंबई से लेकर बेंगलुरू (कर्नाटक की राजधानी) तक फैला हुआ हैं। इसमें महाराष्ट्र तथा कर्नाटक राज्यों में चितदुर्ग, हुबली, बेलागांव, शोलापुर इत्यादि शहर शामिल हैं।

3. चेन्नई-बेंगलुरू औद्योगिक गलियारा (CBIC) यह गलियारा भारत सरकार का एक विशाल तथा बुनियादी ढांचा प्रदान करने वाला प्रोजैक्ट है, जिसका निर्माण अभी तक चल रहा है। इसके अधीन चेन्नई, श्री पोरंबदर, राणीपेट, चिंतुर, पालामानौर इत्यादि शामिल हैं।

4. विशाखापट्टनम-चेन्नई औद्योगिक गलियारा (VCIC)—इस गलियारे को विजाग चेन्नई औद्योगिक गलियारा भी कहते हैं। यह पूर्वी तटी आर्थिक गलियारे का एक हिस्सा है। यह सुनहरो चतुर्भुज के साथ जुड़ा हुआ है तथा भारत के पूर्व के तरफ ध्यान दें तथा मेक इन इंडिया जैसे प्रोग्राम हैं जो इसकी वृद्धि में काफी सहायक हैं।

5. अमृतसर, कोलकाता औद्योगिक गलियारा (AKIC)—यह औद्योगिक गलियारा अमृतसर, दिल्ली, कोलकाता इत्यादि महत्त्वपूर्ण शहरों से जुड़ा हुआ है। यह गलियारा भी भारत के सात रज्यों में निकलता है। इस प्रोजैक्ट के अधीन सड़कें, बंदरगाहें, हवाई मार्ग इत्यादि का विकास किया जा रहा है।

6. वडारेवू तथा निजामापट्टनम (VANPIC)-यह गलियारा आन्ध्र प्रदेश के गंटूर के प्रकासम जिलों से जुड़ा हुआ है।

7. उधना पालमाणा औद्योगिक गलियारा (OPIC)-यह गलियारा गुजरात तथा पालमाणा राजस्थान के बीच फैला हुआ है जिसमें धातुओं से जुड़े उद्योग, सूती कपड़ा, दवाइयां, प्लास्टिक तथा रासायन इत्यादि उद्योग शामिल हैं।

PSEB 12th Class Geography Solutions Chapter 6 आर्थिक भूगोल निर्माण उद्योग (सहायक सेवा तथा ज्ञान/विशेष क्षेत्रों की क्रियाएं)

आर्थिक भूगोल निर्माण उद्योग (सहायक सेवा तथा ज्ञान/विशेष क्षेत्रों की क्रियाएं) PSEB 12th Class Geography Notes

  • आर्थिक भूगोल मुख्य रूप में प्रारंभिक, द्वितीयक, तृतीयक तीन क्षेत्रों में विभाजित होती है तथा निर्माण । उद्योग द्वितीयक सैक्टर के अंतर्गत आता है। इसमें प्रारंभिक क्षेत्र से लेकर आये कच्चे माल का उपयोग योग्य सामान उद्योगों में तैयार किया जाता है।
  • उद्योगों को आगे उनमें मजदूरों की संख्या के आधार पर, कच्चे माल पर आधारित उद्योग, मालिकी के आधार पर, कच्चे माल के स्रोतों के आधार पर फुटकल उद्योगों के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है।
  • उद्योगों की स्थापना पर कई भौगोलिक कारक (जैसे कच्चा माल, मजदूर, यातायात इत्यादि), गैर भौगोलिक कारक (पूंजी, सरकारी नीतियां, बैंक की सुविधा इत्यादि) प्रभाव डालते हैं।
  • लौहा तथा इस्पात का उद्योग प्रारंभिक उद्योग है। इसका उपयोग यातायात के साधनों, मशीनरी, भवन निर्माण, समुद्री जहाज़ बनाने इत्यादि में किया जाता है।
  • भारत में मौजूदा लौह तथा इस्पात उद्योग की शुरुआत सन् 1854 ई० में हुई।
  • भारत में TISCO, VISL, BSP, DSP तथा बोकारो स्टील प्लांट, राऊरकेला प्रमुख स्टील प्लांट हैं।
  • भारतीय लौहा तथा इस्पात उद्योग को मुख्य रूप में सस्ती दरामद, कच्चे माल की समस्या, लचकदार सरकारी नीति, ऊर्जा तथा पूंजी की कमी इत्यादि मुश्किलों का सामना करना पड़ता है।
  • आने वाले समय में 2025 तक भारत में लौह-इस्पात के उत्पादन की क्षमता 30 करोड़ तक पहुंचा देने का उद्देश्य रखा गया है।
    भारतीय सूती कपड़े की मिल 1818 में फोर्ट ग्लॉस्टर कोलकाता में लगाई गई थी जो कि नाकाम रही। पहली सफल कपड़ा मिल 1854 में मुंबई में लगाई गई।
  • भारतीय सूती कपड़ा उद्योग देश के कुल 14 प्रतिशत उत्पादन का हिस्सा डालता हैं। भारत में ढाके की । मलमल, मसूलीपटनम छींट, कालीकट की कल्लीकेंज से कैम्बे में बने बफता वस्त्र पूरे विश्व में प्रसिद्ध है।।
  • चीनी का उत्पादन गन्ने तथा चुकन्दर से होता है। ब्राजील के बाद भारत का गन्ना उत्पादन में दूसरा स्थान है। देश में 35 करोड़ टन गन्ना तथा 2 करोड़ टन चीनी का वार्षिक उत्पादन होता है। भारत में मुख्य गन्ना उत्पादक राज्य हैं-उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, आन्ध्र प्रदेश, कर्नाटक, गुजरात, हरियाणा इत्यादि।
  • भारत का पैट्रोकैमिकल उद्योग देश के सबसे अधिक तेजी से बढ़ने वाले उद्योगों में सबसे आगे हैं। यह उद्योग वस्त्र, पैकिंग, कृषि, निर्माण तथा दवाइयों के उद्योगों को मुख्य सुविधा उपलब्ध करवाता है।।
  • पैट्रो रसायन उद्योग के दो उद्योग पृथ्वी के नीचे से कच्चा तेल निकालना तथा तेलशोधन करना, इत्यादि प्रमुख हैं।
  • औषधि बनाने के उद्योग में भारत विश्व की 10 फीसदी औषधियां बनाता है तथा विश्व में तीसरा स्थान प्राप्त करता है।
  • विश्व की नई आर्थिकता की रीढ़ की हड्डी ज्ञान पर आधारित उद्योग है। 1970 के बाद संसार में इन उद्योगों का विकास अधिक हुआ।
  • उद्योग तथा गलियारे वह भौगोलिक क्षेत्र होते हैं जिसमें उद्योगों के विकास के लिए हर एक संभव बुनियादी स्वरूप उपलब्ध करवाया जाता है। इसमें भारत में सात बड़े उद्योग गलियारे हैं जो कि DMIC, CBIC, BMEC, VCIC, AKIC, VANPIC इत्यादि हैं।
  • निर्माण उद्योग-यह एक सहायक क्रिया है जिसमें कच्चे माल को मशीनों की सहायता से रूप बदल कर अधिक उपयोगी बनाया जाता है।
  • उद्योगों की किस्में (1) बड़े पैमाने तथा छोटे पैमाने के उद्योग (2) भारी तथा हल्के उद्योग (3) निजी, सरकारी तथा सार्वजनिक उद्योग (4) कृषि आधारित तथा खनिज आधारित उद्योग (5) कुटीर उद्योग तथा मिल उद्योग।
  • उद्योगों के स्थानीयकरण को प्रभावित करने वाले भौगोलिक कारक (1) कच्चा माल, (2) ऊर्जा, (3) यातायात, (4) मजदूर, (5) बाज़ार, (6) पानी, (7) जलवायु इत्यादि।
  • इस्पात उद्योग-भारत में पहला इस्पात उद्योग जमशेदपुर में 1907 में लगाया गया।
  • सहकारी क्षेत्र-वह उद्योग जो सहकारी क्षेत्र या फिर लोगों द्वारा मिलकर चलाये जाते हैं सहकारी क्षेत्र के उद्योग होते हैं-जैसे-डेयरी, अमूल इत्यादि।
  • विश्वेश्वरैया आयरन एंड स्टील लिमिटेड (VISL)- यह 18 जनवरी, 1923 को मैसूर आयरन वर्क्स के नाम से शुरू हुआ था। बाद में इसका नाम मशहूर इंजीनियर भारत रत्न श्री एम० विश्वेश्वरैया के नाम पर VISL पड़ गया।
  • सूती वस्त्र मिल का वर्गीकरण-मुख्य रूप में सूती कपड़ा मिल को तीन वर्गों में वर्गीकृत किया जाता है।
    1.कताई मिलें, 2. बुनाई मिलें, 3. धागे से कपड़ा मिलें।
  • विश्व में ब्राजील, भारत, यूरोपीय संघ, चीन तथा थाइलैंड पांच बड़े चीनी के उत्पादक राज्य हैं।
  • नीला कॉलर श्रमिक-नीला कॉलर श्रमिक हाथ से काम करने वाले मजदूर हैं जो कि कुछ घंटों या किये गये काम के मुताबिक वेतन लेते हैं।
  • बड़े पैमाने के उद्योग-वह उद्योग जिनमें मजदूरों की संख्या ज्यादा हो जैसे-सूती कपड़ा उद्योग।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 14 मुगलों के अधीन पंजाब की सामाजिक और आर्थिक स्थिति

Punjab State Board PSEB 12th Class History Book Solutions Chapter 14 मुगलों के अधीन पंजाब की सामाजिक और आर्थिक स्थिति Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 History Chapter 14 मुगलों के अधीन पंजाब की सामाजिक और आर्थिक स्थिति

निबंधात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

सामाजिक स्थिति (Social Condition)

प्रश्न 1.
मुगलों के अधीन पंजाब के लोगों की सामाजिक अवस्था का अध्ययन कीजिए।
(Study the social condition of the people of the Punjab under the Mughals.)
अथवा
मुग़लों के अधीन पंजाब के लोगों की सामाजिक जीवन की मुख्य विशेषताएँ क्या थी ?
(What were the main features of social life of the people of Punjab under the Mughals ?)
अथवा
मुग़लों के समय पंजाब.के लोगों की सामाजिक दशा का वर्णन करो ? (Give a brief account of the social condition of the Punjab Under the Mughals.)
उत्तर-
मुगलों ने पंजाब में 1526 ई० से 1752 ई० तक शासन किया। मुग़लकालीन पंजाब की सामाजिक दशा कोई विशेष अच्छी न थी। मुग़लकालीन पंजाब का समाज मुख्य रूप से दो वर्गों-मुसलमान तथा हिंदुओं में बँटा हुआ था। सिखों को उस समय हिंदू समाज का ही अंग माना जाता था। मुग़लकालीन पंजाब के लोगों के सामाजिक जीवन का विवरण निम्नलिखित है—
1. मुसलमानों की तीन श्रेणियाँ (Three Classes of the Muslims)-पंजाब का मुस्लिम समाज तीन श्रेणियों में बँटा हुआ था

i) उच्च श्रेणी (The Upper Class)-मुसलमानों की उच्च श्रेणी में बड़े-बड़े मनसबदार, सूबेदार, जागीरदार और रईस लोग सम्मिलित थे। इस श्रेणी के लोग बड़े भव्य महलों में रहते थे। वे बहुमूल्य वस्त्र पहनते थे। उनकी सेवा के लिए बहुसंख्या में नौकर होते थे।

ii) मध्यम श्रेणी (The Middle Class)—इस श्रेणी में व्यापारी, किसान, सैनिक और छोटे दर्जे के सरकारी कर्मचारी शामिल थे। उच्च श्रेणी की अपेक्षा इनका जीवन स्तर कुछ निम्न तो था, परंतु खुशहाल था।

iii) निम्न श्रेणी (The Lower Class)—इस श्रेणी की संख्या सबसे अधिक थी। इस श्रेणी में लोहार, जुलाहे, दस्तकार, बढ़ई, छोटे-छोटे दुकानदार, घरेलू नौकर, मज़दूर और दास आदि आते थे। उनकी दशा किसी प्रकार भी अच्छी नहीं थी। निर्धन होने के कारण वे गंदी झोपड़ियों में रहते थे। वे फटे-पुराने वस्त्र पहनते थे। गुलामों की संख्या बहुत अधिक थी। बी० एन० लुनिया के अनुसार,
“दासी अपने स्वामी के हाथों में एक खिलौने की तरह थी।”1

2. हिंदुओं की जाति प्रथा (Caste system of the Hindus)—पंजाब की अधिकतर जनसंख्या हिंदू थी। हिंदू समाज कई जातियों तथा उपजातियों में बँटा हुआ था। एक जाति के लोग दूसरी जाति के लोगों से घृणा करते थे। निम्न जाति के लोगों को उच्च जाति के लोगों के साथ मेलजोल करने, वेद पढ़ने, मंदिरों में जाने तथा कुओं और तालाबों में जल भरने की आज्ञा नहीं थी। जाति नियमों का उल्लंघन करने वाले व्यक्ति को बिरादरी से निकाल दिया जाता था।

3. स्त्रियों की स्थिति (Condition of Women). मुग़लकालीन पंजाब के समाज में स्त्रियों की स्थिति अच्छी नहीं थी। उस समय स्त्री समाज में प्रचलित बुराइयों जैसे लड़कियों की हत्या, बाल विवाह, सती प्रथा, विधवा विवाह पर प्रतिबंध, बहु-विवाह तथा पर्दा प्रथा आदि ने समाज में उनकी स्थिति अत्यंत शोचनीय बना दी थी।

4. खान-पान (Diet)-उच्च श्रेणी के लोग माँस, पूरी और हलवा खाने के अत्यंत शौकीन थे। वे मक्खन, मलाई, ताज़े फलों और शुष्क मेवों का भी बहुत प्रयोग करते थे। हिंदू अधिकतर शाकाहारी होते थे। उस समय लस्सी पीने का बहुत रिवाज था। गर्मियों में ठंडे शरबतों का बहुत प्रयोग किया जाता था।

5. वेशभूषा तथा गहने (Dress and Ornaments)-मुग़लकालीन पंजाब के लोग सूती और रेशमी वस्त्र पहनते थे। उच्च वर्ग में पुरुषों की वेशभूषा खुला कुर्ता, तंग पाजामा या सलवार तथा पगड़ी होती थी। स्त्रियों में कमीज़ और सलवार का रिवाज आम था। हिंदू स्त्रियाँ साड़ियाँ पहनती थीं तथा अपने सिर को चादर या दुपट्टे से ढाँपती थीं। उस समय स्त्रियाँ और पुरुष दोनों गहने पहनने के बहुत शौकीन थे। स्त्रियाँ तो शरीर के प्रत्येक अंग में गहने पहनती थीं जैसे कानों में काँटे, नाक में नथनी, बाँहों में चूड़ियाँ और गले में हार इत्यादि।

6. मनोरंजन के साधन (Means of Entertainment)-मुग़लकालीन पंजाब में लोग कई ढंगों से अपना मनोरंजन करते थे। लोग अपना मनोरंजन शिकार करके, रथों की दौड़ में भाग लेकर, कबूतरबाज़ी करके, मुर्गों की लड़ाई देखकर, शतरंज और चौपड़ खेलकर, संगीत, कुश्तियाँ और ताश खेलकर करते थे। इसके अतिरिक्त लोग त्योहारों और मेलों में बढ़-चढ़ कर भाग लेते थे।

7. शिक्षा (Education)—उस समय लोगों को शिक्षा देना सरकार की जिम्मेवारी नहीं थी। हिंदू अपनी प्राथमिक शिक्षा मंदिरों में तथा मुसलमान मस्जिदों में प्राप्त करते थे। मुसलमानों के मुकाबले हिंदू शिक्षा में अधिक रुचि लेते थे। विद्यार्थियों से कोई फीस नहीं ली जाती थी। उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए पंजाब में लाहौर, मुलतान, जालंधर, सुल्तानपुर, अंबाला, सरहिंद आदि स्थानों पर मदरसे बने हुए थे। इस काल में स्त्रियों की शिक्षा पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता था।

1. “A female slave was toy of her master.” B.N. Luniya, Life and Culture in Medieval India (Indore : 1978) p. 190.

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 14 मुगलों के अधीन पंजाब की सामाजिक और आर्थिक स्थिति

आर्थिक स्थिति (Economic Condition)

प्रश्न 2.
मुगलों के अधीन पंजाब की आर्थिक दशा का वर्णन कीजिए। (P.S.E.B. Mar. 2008) (Describe the economic condition of the Punjab under the Mughals.)
उत्तर-
मुग़लकालीन पंजाब के लोग आर्थिक रूप से समृद्ध थे। वस्तुओं की कीमतें सस्ती थीं अतैव ग़रीब लोगों का गुज़ारा भी अच्छा हो जाता था। कृषि, उद्योग तथा व्यापार उन्नत अवस्था में था। लाहौर तथा मुलतान व्यापारिक पक्ष से सबसे प्रसिद्ध नगर थे। उस काल के पंजाब के लोगों की आर्थिक दशा का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है—
1. खेती बाड़ी (Agriculture)—पंजाब के लगभग 80 प्रतिशत लोग खेती बाड़ी का व्यवसाय करते थे। इसका मुख्य कारण यह था कि यहाँ की भूमि बहुत उपजाऊ थी और सिंचाई साधनों की कोई कमी नहीं थी। पंजाब में जब्ती प्रणाली लागू थी। अत: भूमि को उसकी उपजाऊ शक्ति के आधार पर चार वर्गों—पोलज, परोती, छछर और बंजर भूमि में बाँटा हुआ था। सरकार अपना लगान भूमि की उपजाऊ शक्ति को ध्यान में रखकर निर्धारित करती थी। यह कुल फसल का 1/3 हिस्सा हुआ करता था। सरकार किसानों की सुविधानुसार अपना लगान अनाज अथवा नकदी के रूप में एकत्रित करती थी। अकाल पड़ने या कम फसल होने की स्थिति में लगान कम या माफ कर दिया जाता था। सरकारी कर्मचारियों को यह कड़े आदेश थे कि वे किसी प्रकार से किसानों से अधिक वसूली न करें। इन सभी प्रयत्नों के परिणामस्वरूप पंजाब में फसलों की भरपूर पैदावार होती थी। पंजाब की प्रमुख फसलें गेहूँ, चावल, गन्ना, कपास, मक्की , चने और जौ थीं।

2. उद्योग (Industries)-पंजाब के लोगों का दूसरा मुख्य धंधा उद्योगों से संबंधित था। उस समय के प्रमुख उद्योगों का वर्णन निम्नलिखित है—

i) सूती वस्त्र उद्योग (Cotton Industry)-मुग़लकाल में सूती वस्त्र उद्योग पंजाब का सबसे महत्त्वपूर्ण उद्योग था। लाहौर, मुलतान, गुजरात, बजवाड़ा और अमृतसर इस उद्योग के प्रसिद्ध केंद्र थे। लाहौर में कई प्रकार का सूती कपड़ा तैयार किया जाता था। मुलतान बढ़िया दरियाँ, चादरें और गलीचे बनाने के लिए प्रसिद्ध था। समाना में बहुत ही उत्तम प्रकार का कपड़ा तैयार किया जाता था।

ii) रेशमी वस्त्र उद्योग (Silk Industry)-मुगलकाल में रेशम उद्योग पंजाब का दूसरा प्रमुख उद्योग था। इस उद्योग के प्रमुख केंद्र मुलतान, कश्मीर तथा अमृतसर थे। मुलतान के रेशमी वस्त्रों की बहुत माँग थी। लाहौर में गुलबदन और दरियाई नाम के रेशमी वस्त्र तैयार किए जाते थे।

iii) ऊनी वस्त्र उद्योग (Woollen Industry)-पंजाब में ऊनी वस्त्र उद्योग के दो प्रसिद्ध केंद्र कश्मीर और अमृतसर थे। कश्मीर शालों के उद्योग के लिए संसार-भर में प्रसिद्ध था। अमृतसर में कंबल और लोइयाँ बहुत उच्चकोटि की तैयार की जाती थीं।

iv) चमड़ा उद्योग (Leather Industry)-मुगलकाल के पंजाब के चमड़ा उद्योग की गणना प्रसिद्ध उद्योगों में की जाती थी। चमड़े से बहुत-सी वस्तुएँ जैसे घोड़ों की काठियाँ, चप्पलें, दस्ताने और पानी लाने और ले जाने वाली मशके आदि तैयार की जाती थीं। इस उद्योग के प्रसिद्ध केंद्र होशियारपुर, पेशावर और मुलतान थे।

3. पशु-पालन (Animal Rearing)—पंजाब में पशु-पालन भी एक प्रमुख व्यवसाय था। बैल, भैंसे और ऊँट खेती बाड़ी के लिए प्रयोग किए जाते थे। घोड़े और ऊँट सवारी के काम आते थे। गाय, भैंसें, भेड़ें, बकरियाँ दूध प्राप्त करने के लिए पाली जाती थीं। भेड़ों से ऊन भी प्राप्त की जाती थी। इन पशुओं के व्यापार के लिए अनेक स्थानों पर मंडियाँ लगाई जाती थीं।

4. खनिज पदार्थ (Minerals)-मुग़लकालीन पंजाब में खनिज पदार्थों की मात्रा काफ़ी कम थी। मंडी के पहाड़ी प्रदेशों में ताँबा मिलता था। जम्मू में जिस्त की खानें थीं। खिऊड़ा, नूरपुर और कालाबाग में नमक की खानें थीं। पंजाब की नदियों की रेत छान कर कुछ सोना भी प्राप्त किया जाता था।

5. व्यापार (Trade)—मुग़लकालीन पंजाब का आंतरिक और विदेशी व्यापार बहुत उन्नत था। व्यापार का काम खत्री, बनिए, महाजनों, बोहरों और खोजों के हाथ में था। पंजाब का विदेशी व्यापार—अरब देशों, अफ़गानिस्तान, ईरान, तिब्बत, भूटान, सीरिया, चीन और यूरोपीय देशों से चलता था। पंजाब इन देशों को सूती और रेशमी वस्त्र, शालें, कंबल, अनाज, नील और नमक आदि का निर्यात करता था। दूसरी ओर इन देशों से बढ़िया नस्ल के घोड़े, सूखे मेवे, ऐश्वर्य की वस्तुएँ, कालीन, रेशम, बहुमूल्य पत्थरों आदि का आयात किया जाता था। यह व्यापार स्थल और जल दोनों मार्गों से होता था।

6. प्रसिद्ध व्यापारिक नगर (Famous Commercial Towns)—पंजाब के सबसे प्रसिद्ध व्यापारिक नगर लाहौर और मुलतान थे। इनके अतिरिक्त अमृतसर, जालंधर, बजवाड़ा, बटाला, पानीपत, सुल्तानपुर, करतारपुर आदि नगर भी बहुत प्रसिद्ध थे।

7. कीमतें (Prices)—मुग़लों के समय पंजाब में वस्तुएँ काफ़ी सस्ती थीं। अकबर के समय एक मन गेहूँ का मूल्य 12 दाम, एक मन चावल का मूल्य 20 दाम, एक मन चने का मूल्य 16 दाम, एक मन दूध का मूल्य 25 दाम और एक मन चीनी का मूल्य 6 दाम था। अकबर के बाद भी वस्तुओं का मूल्य लगभग यही रहा। अतः कम कीमतों के कारण ग़रीब लोग भी अपना निर्वाह अच्छी तरह से कर लेते थे।

प्रश्न 3.
मुग़लों के अधीन पंजाब के लोगों की आर्थिक व सामाजिक जीवन की क्या विशेषताएँ थीं ?
(What were the main features of the social and economic life of the people of the – Punjab under the Mughals ?)
अथवा
मुग़लों के अधीन पंजाब की सामाजिक और आर्थिक स्थिति का संक्षिप्त वर्णन करें।
(Give a brief account of the social and economic conditions of the Punjab under the Mughals.)
उत्तर-
मुगलों ने पंजाब में 1526 ई० से 1752 ई० तक शासन किया। मुग़लकालीन पंजाब की सामाजिक दशा कोई विशेष अच्छी न थी। मुग़लकालीन पंजाब का समाज मुख्य रूप से दो वर्गों-मुसलमान तथा हिंदुओं में बँटा हुआ था। सिखों को उस समय हिंदू समाज का ही अंग माना जाता था। मुग़लकालीन पंजाब के लोगों के सामाजिक जीवन का विवरण निम्नलिखित है—
1. मुसलमानों की तीन श्रेणियाँ (Three Classes of the Muslims)-पंजाब का मुस्लिम समाज तीन श्रेणियों में बँटा हुआ था

i) उच्च श्रेणी (The Upper Class)-मुसलमानों की उच्च श्रेणी में बड़े-बड़े मनसबदार, सूबेदार, जागीरदार और रईस लोग सम्मिलित थे। इस श्रेणी के लोग बड़े भव्य महलों में रहते थे। वे बहुमूल्य वस्त्र पहनते थे। उनकी सेवा के लिए बहुसंख्या में नौकर होते थे।

ii) मध्यम श्रेणी (The Middle Class)—इस श्रेणी में व्यापारी, किसान, सैनिक और छोटे दर्जे के सरकारी कर्मचारी शामिल थे। उच्च श्रेणी की अपेक्षा इनका जीवन स्तर कुछ निम्न तो था, परंतु खुशहाल था।

iii) निम्न श्रेणी (The Lower Class)—इस श्रेणी की संख्या सबसे अधिक थी। इस श्रेणी में लोहार, जुलाहे, दस्तकार, बढ़ई, छोटे-छोटे दुकानदार, घरेलू नौकर, मज़दूर और दास आदि आते थे। उनकी दशा किसी प्रकार भी अच्छी नहीं थी। निर्धन होने के कारण वे गंदी झोपड़ियों में रहते थे। वे फटे-पुराने वस्त्र पहनते थे। गुलामों की संख्या बहुत अधिक थी। बी० एन० लुनिया के अनुसार,
“दासी अपने स्वामी के हाथों में एक खिलौने की तरह थी।”1

2. हिंदुओं की जाति प्रथा (Caste system of the Hindus)—पंजाब की अधिकतर जनसंख्या हिंदू थी। हिंदू समाज कई जातियों तथा उपजातियों में बँटा हुआ था। एक जाति के लोग दूसरी जाति के लोगों से घृणा करते थे। निम्न जाति के लोगों को उच्च जाति के लोगों के साथ मेलजोल करने, वेद पढ़ने, मंदिरों में जाने तथा कुओं और तालाबों में जल भरने की आज्ञा नहीं थी। जाति नियमों का उल्लंघन करने वाले व्यक्ति को बिरादरी से निकाल दिया जाता था।

3. स्त्रियों की स्थिति (Condition of Women). मुग़लकालीन पंजाब के समाज में स्त्रियों की स्थिति अच्छी नहीं थी। उस समय स्त्री समाज में प्रचलित बुराइयों जैसे लड़कियों की हत्या, बाल विवाह, सती प्रथा, विधवा विवाह पर प्रतिबंध, बहु-विवाह तथा पर्दा प्रथा आदि ने समाज में उनकी स्थिति अत्यंत शोचनीय बना दी थी।

4. खान-पान (Diet)-उच्च श्रेणी के लोग माँस, पूरी और हलवा खाने के अत्यंत शौकीन थे। वे मक्खन, मलाई, ताज़े फलों और शुष्क मेवों का भी बहुत प्रयोग करते थे। हिंदू अधिकतर शाकाहारी होते थे। उस समय लस्सी पीने का बहुत रिवाज था। गर्मियों में ठंडे शरबतों का बहुत प्रयोग किया जाता था।

5. वेशभूषा तथा गहने (Dress and Ornaments)-मुग़लकालीन पंजाब के लोग सूती और रेशमी वस्त्र पहनते थे। उच्च वर्ग में पुरुषों की वेशभूषा खुला कुर्ता, तंग पाजामा या सलवार तथा पगड़ी होती थी। स्त्रियों में कमीज़ और सलवार का रिवाज आम था। हिंदू स्त्रियाँ साड़ियाँ पहनती थीं तथा अपने सिर को चादर या दुपट्टे से ढाँपती थीं। उस समय स्त्रियाँ और पुरुष दोनों गहने पहनने के बहुत शौकीन थे। स्त्रियाँ तो शरीर के प्रत्येक अंग में गहने पहनती थीं जैसे कानों में काँटे, नाक में नथनी, बाँहों में चूड़ियाँ और गले में हार इत्यादि।

6. मनोरंजन के साधन (Means of Entertainment)-मुग़लकालीन पंजाब में लोग कई ढंगों से अपना मनोरंजन करते थे। लोग अपना मनोरंजन शिकार करके, रथों की दौड़ में भाग लेकर, कबूतरबाज़ी करके, मुर्गों की लड़ाई देखकर, शतरंज और चौपड़ खेलकर, संगीत, कुश्तियाँ और ताश खेलकर करते थे। इसके अतिरिक्त लोग त्योहारों और मेलों में बढ़-चढ़ कर भाग लेते थे।

7. शिक्षा (Education)—उस समय लोगों को शिक्षा देना सरकार की जिम्मेवारी नहीं थी। हिंदू अपनी प्राथमिक शिक्षा मंदिरों में तथा मुसलमान मस्जिदों में प्राप्त करते थे। मुसलमानों के मुकाबले हिंदू शिक्षा में अधिक रुचि लेते थे। विद्यार्थियों से कोई फीस नहीं ली जाती थी। उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए पंजाब में लाहौर, मुलतान, जालंधर, सुल्तानपुर, अंबाला, सरहिंद आदि स्थानों पर मदरसे बने हुए थे। इस काल में स्त्रियों की शिक्षा पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता था।

1. “A female slave was toy of her master.” B.N. Luniya, Life and Culture in Medieval India (Indore : 1978) p. 190.

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धार्मिक स्थिति (Religious Condition)

प्रश्न 4.
मुग़ल काल में पंजाब के लोगों की धार्मिक अवस्था पर आलोचनात्मक नोट लिखें।
(Write a critical note on the religious condition of the people of Punjab during the Mughal period.)
अथवा
मुग़ल काल में लोगों की धार्मिक अवस्था के बारे में आप क्या जानते हैं ? वर्णन करें।
(What do you know about the religious condition of the people of Punjab under the Mughals ? Explain.)
उत्तर-
मुग़लकालीन पंजाब में हिंदू मत तथा इस्लाम के साथ-साथ सिख मत भी प्रचलित हो चुका था। उस समय पंजाब में बौद्ध मत लगभग लुप्त हो चुका था तथा जैन मत केवल नगरों के व्यापारी वर्ग तक ही सीमित था। इस काल में पंजाब में ईसाई मत का प्रचार भी आरंभ हो चुका था। इस काल के लोग अंध-विश्वासों तथा धर्म के बाह्याडंबरों पर अधिक बल देते थे। अधिकतर लोग धर्म की वास्तविकता को भूल चुके थे। पंजाब में सिख गुरुओं ने लोगों को धर्म का वास्तविक मार्ग दिखाने का महान् कार्य किया।—

1. हिंदू धर्म (Hinduism)-हिंदू धर्म की गणना भारत के सबसे प्राचीन धर्मों में की जाती है। इस धर्म के अनुयायी राम, विष्णु, कृष्ण, शिव, हनुमान, दुर्गा, काली तथा लक्ष्मी आदि देवी-देवताओं की पूजा करते थे। इन देवी-देवताओं की स्मृति में अति संदर मंदिरों का निर्माण किया जाता था। इनमें आकर्षक मर्तियाँ रखी जाती थीं। हिंदू धर्म के सभी रीति-रिवाजों में ब्राह्मणों का शामिल होना अनिवार्य समझा जाता था। हिंदुओं के धार्मिक ग्रंथों में वेदों, रामायण तथा गीता को मुख्य स्थान प्राप्त था। हिंदू ब्राह्मण तथा गाय का विशेष सत्कार करते थे। मुग़ल सम्राट अकबर ने अपनी धार्मिक सहनशीलता की नीति के कारण धार्मिक क्षेत्र में एक नए युग का सूत्रपात किया था। उसने हिंदुओं को धार्मिक स्वतंत्रता प्रदान की तथा उन पर लगे तीर्थ यात्रा कर तथा जजिया कर को हटा दिया था। औरंगज़ेब एक कट्टर सुन्नी सम्राट् था। उसने हिंदुओं को बलपूर्वक मुसलमान बनाया। उनके मंदिरों तथा मूर्तियों को तोड़ दिया गया। उन पर बहुत-से प्रतिबंध लगा दिए गए। परिणामस्वरूप, हिंदू मुग़ल राज्य के कट्टर शत्रु बन गए।

2. इस्लाम (Islam) भारत में इस्लाम का सबसे अधिक प्रसार पंजाब में हुआ था। इसका मुख्य कारण यह था कि मुस्लिम आक्रमणकारी भारत में सबसे पहले पंजाब में स्थायी रूप में बसे थे। इस धर्म के अनुयायी एक अल्लाह में विश्वास रखते थे। वे हज़रत मुहम्मद साहिब को अल्लाह का पैगंबर समझते थे। वे दिन में पाँच बार नमाज़ पढ़ते थे। वे रमजान के महीने में रोज़े रखते थे। वे हज यात्रा करना अनिवार्य समझते थे। वे जकात (दान) देते थे। वे मूर्ति पूजा के विरुद्ध थे। दिल्ली के सुल्तान तथा मुग़ल बादशाह मुसलमान थे इसलिए उनके शासनकाल में इस्लाम का तीव्र गति से प्रसार होने लगा। मुसलमानों को सरकार की ओर से विशेष सुविधाएँ दी जाती थीं इसलिए पंजाब की निम्न जातियों के बहुत-से लोग इस्लाम में शामिल हो गए। मुगल बादशाह औरंगजेब ने तलवार की नोक पर बहुत-से लोगों को बलपूर्वक इस्लाम में शामिल किया।

3. सूफ़ी मत (Sufism)—सूफी मत इस्लाम का ही एक संप्रदाय था। इस धर्म के लोग धार्मिक सहनशीलता की नीति में विश्वास रखते थे। उनका मुख्य संदेश परस्पर भ्रातृत्व तथा लोगों की सेवा करना था। वे संगीत में बुराइयों के विरुद्ध आवाज़ उठाई। मुग़लकाल में पंजाब में चिश्ती, सुहरावर्दी, कादरी तथा नक्शबंदी नामक सूफ़ी सिलसिले प्रसिद्ध थे। सूफ़ी सभी जातियों के लोगों के साथ स्नेह करते थे इसलिए बहुत-से लोग सूफ़ी मत में शामिल हुए। सूफ़ी सिलसिलों में केवल नक्शबंदी सिलसिला कट्टर विचारों का था। नक्शबंदियों ने गुरु अर्जन देव जी तथा गुरु तेग़ बहादुर जी को शहीद करवाने के लिए मुग़ल बादशाहों को भड़काया था।

4. सिख धर्म (Sikhism)—मुग़लकाल में पंजाब में सिख धर्म का जन्म हुआ। इस धर्म की स्थापना गुरु नानक देव जी ने 15वीं शताब्दी में की थी। गुरु नानक साहिब जी ने उस समय समाज में प्रचलित सामाजिक तथा धार्मिक बुराइयों का खंडन किया। उन्होंने एक ईश्वर की पूजा तथा आपसी भ्रातृत्व का संदेश दिया। उन्होंने संगत तथा पंगत संस्थाओं की नींव रखी। उनके धर्म के द्वार प्रत्येक जाति तथा वर्ग के लोगों के लिए खुले थे। उन्होंने अंधकार में भटक रही मानवता को ज्ञान का नया मार्ग दिखाया। गुरु जी के संदेश को उनके नौ उत्तराधिकारियों ने जारी रखा। मुग़ल सम्राट अकबर की धार्मिक सहनशीलता की नीति के कारण पंजाब में सिख धर्म को प्रफुल्लित होने का स्वर्ण अवसर मिला। सम्राट् जहाँगीर के सिंहासन पर बैठते ही मुग़ल-सिख संबंधों में तनाव आ गया। 1606 ई० में गुरु अर्जन साहिब जी की शहीदी तथा 1675 ई० में गुरु तेग़ बहादुर जी की शहीदी के कारण सिख भड़क उठे। मुग़ल अत्याचारों को कड़ा उत्तर देने के लिए 1699 ई० में गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा पंथ का सृजन किया। खालसा की सृजना पंजाब के इतिहास में एक नया पड़ाव प्रमाणित हुई।

5. अन्य धर्म (Other Religions)-ऊपरलिखित धर्मों के अतिरिक्त मुगलकालीन पंजाब में बौद्ध मत तथा जैन मत भी प्रचलित थे। इन धर्मों के अनुयायियों की संख्या बहुत कम थी। मुग़ल सम्राट अकबर के शासनकाल में पंजाब में ईसाई मत का प्रचार भी होने लग पड़ा था। अकबर ने ईसाइयों को लाहौर में अपना गिरजाघर बनाने की आज्ञा दी थी। इस धर्म को पंजाब में कोई खास प्रोत्साहन न मिला।

संक्षिप्त उत्तरों वाले प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
मुगलकालीन पंजाब में मुस्लिम समाज की स्थिति कैसी थी ?
(What was the condition of Muslims under the Mughals ?)
अथवा
मुग़लकालीन पंजाब में मुसलमानों की स्थिति कैसी थी ?
(What was the condition of Muslim society under the Mughal period in Punjab ?)
अथवा
मुग़लकालीन पंजाब के मुस्लिम समाज पर एक नोट लिखें।
(Write a note on the Muslim society of the Punjab during the Mughal times.)
उत्तर-
मुग़लकालीन पंजाब में मुसलमानों की स्थिति बहुत अच्छी थी। शासक वर्ग से संबंधित होने के कारण उनको समाज में कुछ विशेष सुविधाएँ प्राप्त थीं। मुसलमान तीन श्रेणियों में विभाजित थे। उच्च श्रेणी के लोग वे शानो-शौकत का जीवन व्यतीत करते थे। सुरा एवं सुंदरी उनके मनोरंजन के मुख्य साधन थे। मध्य वर्ग के लोगों का जीवन स्तर उच्च श्रेणी के मुकाबले में कुछ कम था परंतु खुशहाल था। निम्न श्रेणी के लोगों की स्थिति बड़ी शोचनीय थी। उनका जीवन-निर्वाह करना अत्यंत कठिन होता था।

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प्रश्न 2.
मुगलकालीन पंजाब के समाज में हिंदुओं की स्थिति कैसी थी ? (What was the condition of Hindus in the society of Punjab under the Mughals ?)
अथवा
मुग़लों के अधीन पंजाब के हिंदुओं की स्थिति का संक्षेप में अध्ययन करें। (Study in brief the condition of Hindu society in the Punjab under the Mughals.)
उत्तर-
मुग़लकालीन पंजाब के समाज में हिंदुओं की स्थिति बहुत खराब थी। यद्यपि हिंदू बहु-संख्या में थे फिर भी उन्हें उच्च पदों से वंचित रखा जाता था। उनको काफिर कहकर संबोधित किया जाता था। उनको इस्लाम स्वीकार करने के लिए विवश किया जाता था। हिंदू समाज कई जातियों. तथा उपजातियों में बँटा हुआ था। जाति संबंधी नियम बहुत अधिक कठोर थे। उच्च जाति के लोग निम्न जाति के लोगों पर घोर अत्याचार करते थे। इसके अतिरिक्त उन पर अनेक पाबंदियाँ लगाई गई थीं।

प्रश्न 3.
मुग़लों के अधीन पंजाब में स्त्रियों की स्थिति कैसी थी ?
(What was the position of women in Punjab under the Mughals ?) .
अथवा
मुग़लकालीन पंजाब में स्त्रियों में प्रचलित किन्हीं तीन बुराइयों का संक्षिप्त विवरण दें। (Describe any three evils prevalent among women in the Punjab under the Mughals.)
उत्तर-
मुग़लकालीन समाज में स्त्रियों की स्थिति अच्छी नहीं थी। उस समय लड़कियों का विवाह अल्पायु में ही कर दिया जाता था। लड़कियों की शिक्षा की ओर कोई ध्यान नहीं दिया जाता था। समाज में सती प्रथा भी प्रचलित थी। विधवा का जीवन बहुत दयनीय था। मुस्लिम और हिंदू स्त्रियों में पर्दे की प्रथा प्रचलित थी।

प्रश्न 4.
मुगलकालीन पंजाब के लोगों के मनोरंजन के क्या साधन थे ?
(What were the main sources of entertainment of the people of Pnjab under the Mughals ?)
उत्तर-
मुग़लकालीन पंजाब के लोगों के मनोरंजन के कई साधन थे। उच्च श्रेणी के लोग अपना मनोरंजन शिकार, चौगान खेलकर, कबूतरबाजी करके, मुर्गों की लड़ाई देखकर, शतरंज और चौपड़ खेलकर और महफ़िलों में भाग लेकर करते थे! आम लोग अपना मनोरंजन संगीत, नाच, कुश्तियाँ करके, दौड़ों में भाग लेकर, मदारियों के खेल द्वारा करते थे। लोग त्योहारों तथा मेलों में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते थे। हिंदुओं के प्रमुख त्योहार दीवाली, दशहरा, लोहड़ी, होली, शिवरात्रि और राम नवमी आदि थे। मुसलमानों के मुख्य त्योहार ईद, शबे-बारात और नौरोज थे।

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प्रश्न 5.
मुग़लों के अधीन पंजाब में शिक्षा के प्रबंध पर एक नोट लिखें।
(Write a note about prevalent education in Punjab under the Mughals.)
उत्तर-
मुग़ल काल में लोगों को शिक्षा देना सरकार की जिम्मेवारी नहीं थी। हिंदु अपनी प्रारंभिक शिक्षा मंदिरों में और मुसलमान अपनी शिक्षा मस्जिदों में प्राप्त करते थे। ये संस्थान लोगों द्वारा दिए गए दान पर चलते थे। मुसलमानों की अपेक्षा हिंदु शिक्षा में अधिक रुचि लेते थे। विद्यार्थी अपनी पढ़ाई पूरी करने के पश्चात् गुरु को कुछ दक्षिणा दिया करते थे। उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए पंजाब में लाहौर, मुलतान, स्यालकोट, जालंधर, सुल्तानपुर, बटाला, अंबाला, सरहिंद आदि स्थानों पर मदरसे बने हुए थे। इस काल में स्त्रियों की शिक्षा की ओर कोई ध्यान नहीं दिया जाता था।

प्रश्न 6.
मुग़लकालीन पंजाब के लोगों की सामाजिक स्थिति की मुख्य विशेषताएँ बताएँ। (
(Mention the main salient features of social condition of people of the Punjab under the Mughals.)
उत्तर-
मुग़लकालीन पंजाब में मुसलमानों की स्थिति बहुत अच्छी थी। उनको समाज में कुछ विशेष अधिकार प्राप्त थे। मुस्लिम समाज तीन श्रेणियों-उच्च, मध्य एवं निम्न श्रेणी में बँटा हुआ था। उच्च श्रेणी के लोग बड़े ऐश्वर्य और शानो-शौकत का जीवन व्यतीत करते थे। निम्न श्रेणी के लोगों की स्थिति बहुत ही दयनीय थी। हिंदुओं की जो कि पंजाब की बहसंख्यक श्रेणी से संबंधित थे, स्थिति अच्छी नहीं थी। उनको बहुत-से अधिकारों से वंचित रखा जाता था। मुसलमान उनसे बहुत घृणा करते थे। हिंदू समाज कई जातियों और उपजातियों में बँटा हुआ था। समाज में स्त्रियों की स्थिति अत्यंत दयनीय थी।

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प्रश्न 7.
मुगलकालीन पंजाब में खेती की क्या दशा थी ?
(What was the condition of agriculture in Punjab under the Mughals ?)
अथवा
मुगलकालीन पंजाबियों का मुख्य व्यवसाय क्या था ? (What was the main occupation of Punjabis under the Mughals ?)
उत्तर-
पंजाब की भूमि अत्यधिक उपजाऊ थी। मुग़लकालीन पंजाब में लोगों का मुख्य व्यवसाय खेतीबाड़ी था। पंजाब के 80% लोग इस व्यवसाय से जुड़े हुए थे। इसलिए मुग़ल सरकार ने खेतीबाड़ी को उत्साहित करने के लिए विशेष ध्यान दिया। नई भूमि को खेती के अधीन लाने वाले किसानों को विशेष सुविधाएँ दी जाती थीं। लगान, भूमि की उपजाऊ शक्ति और सिंचाई की सुविधाओं के अनुसार निश्चित किया गया था। उस समय पंजाब की प्रमुख फसलें गेहूँ, चने, चावल, मक्की , गन्ना, कपास और जौ थीं।

प्रश्न 8.
मुगलकालीन पंजाब में प्रचलित कपड़ा उद्योग संबंधी जानकारी दें। (Write a brief note on textile industry of Punjab under the Mughals.)
उत्तर-
मुग़लकालीन पंजाब में प्रचलित उद्योगों में कपड़ा उद्योग सबसे अधिक महत्तवपूर्ण था। अमृतसर, लाहौर, मुलतान और गुजरात में बढ़िया प्रकार का कपड़ा तैयार किया जाता था। मुलतान बढ़िया दरियों, मेजपोशों तथा चादरों के लिए प्रसिद्ध था। पेशावर में सुंदर लुंगियाँ तैयार की जाती थीं। मुलतान, लाहौर और अमृतसर में पायजामे और सलवारें तैयार की जाती थीं। गुजरात में शिफोन का कपड़ा तैयार किया जाता था। मुलतान, कश्मीर और अमृतसर रेशमी कपड़ा उद्योग के प्रसिद्ध केंद्र थे।

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प्रश्न 9.
मुग़लकालीन पंजाब के व्यापार के संबंध में आप क्या जानते हैं ? (What do you know about trade in Punjab under the Mughals ?)
उत्तर-
मुग़लकालीन पंजाब का आंतरिक और विदेशी व्यापार बहुत उन्नत था। पंजाब का विदेशी व्यापार अरब देशों, अफ़गानिस्तान, ईरान, तिब्बत, भूटान, सीरिया, चीन और यूरोपीय देशों के साथ चलता था। पंजाब इन देशों को सूती और रेशमी कपड़े, शालें, कंबल, अनाज, चीनी, नील और नमक आदि का निर्यात करता था। इनके बदले पंजाब इन देशों से बढ़िया नस्ल के घोड़े, खुश्क मेवे, ऐश्वर्य की चीजें, रेशम, बहुमूल्य पत्थरों इत्यादि का आयात करता था।

प्रश्न 10.
मुग़लों के अधीन पंजाब की आर्थिक दशा का संक्षेप में वर्णन करो।
(Write a short note on the economic condition of Punjab during the Mughal rule.)
अथवा
मुगलकालीन पंजाबियों की आर्थिक अवस्था पर एक नोट लिखें। .
(Write a note on economic condition of Punjabis during the Mughal rule.)
उत्तर-
मुग़लकालीन पंजाब के लोगों की आर्थिक स्थिति उच्च दर्जे की थी। उस समय कृषि 80% लोगों का मुख्य व्यवसाय था। भूमि के उपजाऊ तथा सरकार द्वारा पूर्ण सहायता प्रदान किए जाने के कारण कृषि काफ़ी उन्नत थी। मुग़लकालीन पंजाब के लोगों का दूसरा मुख्य व्यवसाय उद्योग था। कपड़ा उद्योग उस समय पंजाब का सबसे प्रसिद्ध उद्योग था। पंजाब के कुछ लोग पशु-पालन का कार्य करते थे। कुछ लोग खानों में कार्य करते थे। उस समय पंजाब का आंतरिक और विदेशी व्यापार भी उन्नत था।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

(i) एक शब्द से एक पंक्ति तक के उत्तर (Answer in One Word to One Sentence)

प्रश्न 1.
मुग़लकाल में पंजाबी समाज किन दो वर्गों में बँटा हुआ था ?
उत्तर-
मुसलमान तथा हिंदू।

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प्रश्न 2.
पंजाब में मुस्लिम समाज को कितने वर्गों में बँटा हुआ था ?
अथवा
मुग़ल काल में मुसलमानों की तीन श्रेणियों के नाम बताओ।
अथवा
मुगलकालीन समाज में मुसलमानों की तीन श्रेणियाँ कौन-सी थीं ?
उत्तर-
उच्च वर्ग, मध्य वर्ग तथा निम्न वर्ग।

प्रश्न 3.
मुगलकालीन पंजाब में मुसलमानों के समाज की कितनी श्रेणियाँ थीं ?
उत्तर-
तीन।

प्रश्न 4.
मुग़लकालीन पंजाब के मुस्लिम समाज की उच्च श्रेणी के लोग कैसा जीवन व्यतीत करते थे ?
उत्तर-
बहुत ऐश्वर्यपूर्ण।

प्रश्न 5.
मुगलकालीन पंजाब के मुस्लिम समाज की निम्न श्रेणी में सम्मिलित कोई एक वर्ग बताएँ।
उत्तर-
दास।

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प्रश्न 6.
मुग़लकालीन पंजाब के मुस्लिम समाज के निम्न वर्ग के लोगों की दशा कैसी थी ?
उत्तर-
बहुत दयनीय।

प्रश्न 7.
मुगलकालीन पंजाब के हिंदू समाज में कितनी जातियाँ प्रचलित थीं ?
उत्तर-
चार।

प्रश्न 8.
मुग़लकालीन पंजाब के समाज में स्त्रियों की दशा कैसी थी ?
उत्तर-
बहुत दयनीय।

प्रश्न 9.
मुगलकालीन पंजाब के स्त्री समाज की कोई एक बुराई कौन-सी थी ?
उत्तर-
सती प्रथा।

प्रश्न 10.
क्या मुग़लकालीन पंजाब में दास प्रथा प्रचलित थी ?
उत्तर-
हां।

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प्रश्न 11.
मुग़लकालीन में पंजाब में उच्च शिक्षा के लिए प्रसिद्ध कोई एक केंद्र बताएँ।
उत्तर-
लाहौर।

प्रश्न 12.
मुगलकालीन पंजाब के लोगों की आर्थिक दशा कैसी थी ?
उत्तर-
बहुत अच्छी

प्रश्न 13.
मुग़लकालीन पंजाब के लोगों का मुख्य व्यवसाय क्या था ?
उत्तर-
कृषि।

प्रश्न 14.
मुग़लकालीन पंजाब का सबसे महत्त्वपूर्ण उद्योग कौन-सा था ?
उत्तर-
सूती कपड़ा उद्योग।

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प्रश्न 15.
मुगलकालीन पंजाब में रेशम उद्योग के किसी एक विख्यात केंद्र का नाम लिखें।
उत्तर-
कश्मीर।

प्रश्न 16.
मुगलकालीन पंजाब में व्यापार की दशा कैसी थी ?
उत्तर-
बहुत उन्नत।

प्रश्न 17.
मुगलकालीन पंजाब के दो सर्वाधिक विख्यात व्यापारिक नगर कौन-से थे ?
उत्तर-
लाहौर तथा मुलतान।

प्रश्न 18.
मुगलकालीन पंजाब के किसी एक प्रसिद्ध नगर का नाम लिखिए।
उत्तर-
लाहौर।

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प्रश्न 19.
मुगलकालीन पंजाब में कौन-सा सिक्का सर्वाधिक प्रचलित था ?
उत्तर-
दाम।

प्रश्न 20.
मुग़लकाल में प्रचलति सिक्का दाम किस धातु का बना हुआ था ?
उत्तर-
ताँबे का।

(ii) रिक्त स्थान भरें (Fill in the Blanks)

प्रश्न 1.
मुग़लों के अधीन पंजाब का मुस्लिम समाज…….श्रेणियों में बँटा हुआ था।
उत्तर-
(तीन)

प्रश्न 2.
मुसलमानों की निम्न श्रेणी में सबसे अधिक संख्या…….की थी।
उत्तर-
(गुलामों)

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प्रश्न 3.
मुग़लकालीन पंजाब के हिंदू समाज में…….को सर्वोच्च स्थान प्राप्त था।
उत्तर-
(ब्राह्मणों)

प्रश्न 4.
मुग़लकालीन पंजाब के समाज में स्त्रियों की स्थिति बहुत…..थी।
उत्तर-
(शोचनीय)

प्रश्न 5.
मुग़लकालीन पंजाब में……….और……..उच्च शिक्षा के सबसे प्रसिद्ध केंद्र थे।
उत्तर-
(लाहौर, मुलतान)

प्रश्न 6.
मुग़लकालीन पंजाब के लोगों का मुख्य व्यवसाय…….था।
उत्तर-
(कृषि)

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प्रश्न 7.
मुग़लकालीन पंजाब का सबसे प्रसिद्ध उद्योग……..था।
उत्तर-
(सूती कपड़ा उद्योग)

प्रश्न 8.
मुग़ल काल में ……….शालों के उद्योग के लिए संसार में प्रसिद्ध था।
उत्तर-
(कश्मीर)

प्रश्न 9.
मुग़ल काल में सूती कपड़ा उद्योग के लिए……और…..प्रसिद्ध केंद्र थे।
उत्तर-
(लाहौर, मुलतान)

प्रश्न 10.
मुग़ल काल में पंजाब के…….और……नगर व्यापारिक पक्ष से सब से महत्त्वपूर्ण हैं।
उत्तर-
(लाहौर, मुलतान)

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प्रश्न 11.
अकबर ने हिंदुओं पर लगे तीर्थ यात्रा कर को……..में हटा दिया था।
उत्तर-
(1563 ई०)

प्रश्न 12.
अकबर ने 1564 ई० में हिंदुओं पर लगे……..को हटा दिया था।
उत्तर-
(जज़िया कर)

प्रश्न 13.
औरंगजेब ने……….में हिंदुओं पर पुन: जजिया कर को लगा दिया था।
उत्तर-
(1679 ई०)

प्रश्न 14.
मुग़ल काल में भारत में सबसे अधिक इस्लाम का प्रसार…..में हुआ था।
उत्तर-
(पंजाब)

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प्रश्न 15.
मुग़ल काल में पंजाब में……..धर्म का जन्म हुआ।
उत्तर-
(सिख)

प्रश्न 16.
मध्यकालीन पंजाब के लोगों का मुख्य धर्म …………. था।
उत्तर-
(हिंदू)

(iii) ठीक अथवा गलत (True or False)

नोट-निम्नलिखित में से ठीक अथवा गलत चुनें—

प्रश्न 1.
मुग़ल काल में पंजाब का मुस्लिम समाज दो श्रेणियों में बँटा हुआ था।
उत्तर-
गलत

प्रश्न 2.
मुसलमानों की उच्च श्रेणी में मनसबदार और सूबेदार शामिल थे।
उत्तर-
ठीक

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प्रश्न 3.
मुसलमानों की मध्य श्रेणी में दास शामिल थे।
उत्तर-
गलत

प्रश्न 4.
मुसलमानों की निम्न श्रेणी की संख्या सबसे अधिक थी।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 5.
मुग़ल काल में पंजाब का हिंदू समाज कई जातियों और उपजातियों में बँटा हुआ था।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 6.
मुग़ल काल के हिंदू समाज में लोग शूद्रों से घृणा करते थे।
उत्तर-
गलत

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प्रश्न 7.
मुग़लकालीन पंजाब के हिंदू समाज में स्त्रियों की दशा बहुत शोचनीय थी।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 8.
मुग़ल काल में अधिकतर हिंदू शाकाहारी थे।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 9.
मुग़ल काल में हिंदू स्त्रियाँ साड़ियाँ पहनती थीं।।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 10.
मुग़ल काल में लाहौर और मुलतान उच्च शिक्षा के दो प्रसिद्ध केंद्र थे।
उत्तर-
ठीक

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प्रश्न 11.
मुग़लकालीन पंजाब में शिक्षा का प्रसिद्ध केंद्र लाहौर था।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 12.
मुग़ल काल में स्त्रियों को शिक्षा के लिए प्रोत्साहित किया जाता था।
उत्तर-
गलत

प्रश्न 13.
मुग़ल काल में पंजाब के लोगों का मुख्य व्यवसाय कृषि था।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 14.
पंजाब में जब्ती प्रणाली 1581 ई० में शुरू की गई थी।
उत्तर-
ठीक

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प्रश्न 15.
जब्ती प्रणाली के अधीन ज़मीन को पाँच वर्गों में बांटा हुआ था।
उत्तर-
गलत

प्रश्न 16.
मुग़ल काल में चमड़ा उद्योग पंजाब का सबसे प्रसिद्ध उद्योग था।
उत्तर-
गलत

प्रश्न 17.
मुग़ल काल में लाहौर और अमृतसर सूती कपड़ा उद्योग के दो प्रसिद्ध केंद्र थे।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 18.
मुग़ल काल में कश्मीर और लाहौर रेशमी उद्योग के दो प्रसिद्ध केंद्र थे।
उत्तर-
गलत

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प्रश्न 19.
मुग़ल काल में कश्मीर शालों के उद्योग के लिए सबसे अधिक प्रसिद्ध था।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 20.
दाम ताँबे की धातु का बना होता था।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 21.
मुग़लकालीन पंजाब में सिख धर्म का जन्म हुआ।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 22.
मुग़ल काल में चिश्ती सिलसिला बहुत प्रसिद्ध था।
उत्तर-
ठीक

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(iv) बहु-विकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions)

नोट-निम्नलिखित में से ठीक उत्तर का चयन कीजिए—

प्रश्न 1.
मुग़लकाल में पंजाब का समाज कितने मुख्य वर्गों में बँटा हुआ था ?
(i) दो
(ii) तीन
(iii) चार
(iv) पाँच।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 2.
मुगलकाल में पंजाब का मुस्लिम समाज कितने वर्गों में बँटा हुआ था ?
(i) तीन
(ii) चार
(iii) पाँच
(iv) सात।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 3.
मुगलकालीन पंजाब के मुस्लिम समाज की उच्च श्रेणी में कौन शामिल नहीं थे ?
(i) जागीरदार
(ii) मनसबदार
(iii) व्यापारी
(iv) सूबेदार।
उत्तर-
(iii)

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प्रश्न 4.
मुगलकालीन पंजाब के मुस्लिम समाज की मध्य श्रेणी में कौन शामिल नहीं थे ?
(i) व्यापारी
(ii) किसान
(iii) सैनिक
(iv) मज़दूर।
उत्तर-
(iv)

प्रश्न 5.
मुगलकालीन पंजाब के मुस्लिम समाज की निम्न श्रेणी में कौन शामिल था ?
(i) दास
(ii) मजदूर
(iii) नौकर
(iv) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(iv)

प्रश्न 6.
मुग़लकालीन स्त्री समाज में किस बुराई का प्रचलन था ?
(i) कन्या वध
(ii) बाल विवाह
(iii) सती प्रथा
(iv) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(iv)

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प्रश्न 7.
मुगलकालीन पंजाब के लोगों का मनोरंजन का मुख्य साधन क्या था ?
(i) शिकार
(ii) शतरंज
(iii) नृत्य-संगीत
(iv) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(iv)

प्रश्न 8.
मुगलकालीन में पंजाब में उच्च शिक्षा का प्रमुख केंद्र कौन-सा था ?
(i) लाहौर
(ii) मुलतान
(iii) सरहिंद
(iv) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(iv)

प्रश्न 9.
मुगलकालीन पंजाब के लोगों का मुख्य व्यवसाय क्या था ?
(i) कृषि
(ii) व्यापार
(iii) उद्योग
(iv) पशु-पालन।
उत्तर-
(i)

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प्रश्न 10.
मुगलकालीन पंजाब की प्रमुख फ़सल कौन-सी थी ?
(i) गेहूँ
(ii) गन्ना
(iii) कपास
(iv) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(iv)

प्रश्न 11.
मुगलकालीन पंजाब का सबसे प्रसिद्ध उद्योग कौन-सा था ?
(i) सूती कपड़ा उद्योग
(ii) चमड़ा उद्योग
(iii) खंड उद्योग
(iv) लकड़ी उद्योग।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 12.
मुगलकालीन पंजाब में निम्नलिखित में से कौन-सा केंद्र ऊनी वस्त्र के उद्योग के लिए सबसे प्रसिद्ध था ?
(i) कश्मीर
(ii) गुजरात
(iii) लाहौर
(iv) स्यालकोट।
उत्तर-
(i)

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प्रश्न 13.
मुगलकालीन पंजाब के लोग किस वस्तु का निर्यात नहीं करते थे ?
(i) घोडे
(ii) कपड़ा
(iii) चीनी
(iv) कंबल।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 14.
मुगलकालीन पंजाब का कौन-सा नगर व्यापार के लिए सबसे प्रसिद्ध था ?
(i) अमृतसर
(ii) कश्मीर
(iii) लाहौर
(iv) पानीपत।
उत्तर-
(iii)

प्रश्न 15.
मुगलकाल में सर्वाधिक प्रचलित दाम नाम का सिक्का किस धातु का बना था ?
(i) सोना
(ii) चाँदी
(iii) लोहा
(iv) ताँबा।
उत्तर-
(iv)

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प्रश्न 16.
मुगलकालीन पंजाब में चाँदी के सिक्के को क्या कहा जाता था ?
(i) दाम
(ii) सिक्का
(iii) रुपया
(iv) मुद्रा।
उत्तर-
(iii)

प्रश्न 17.
मुगलकाल में किस धर्म का जन्म हुआ ?
(i) इस्लाम
(ii) हिंदू धर्म
(iii) सिख धर्म
(iv) ईसाई धर्म।
उत्तर-
(iii)

Long Answer Type Question

प्रश्न 1.
मुगलकालीन पंजाब में मुस्लिम समाज की स्थिति कैसी थी ? (What was the condition of Muslims under the Mughals ?)
अथवा
मुगलकालीन पंजाब के मुस्लिम समाज पर एक नोट लिखें। (Write a note on the Muslim society of the Punjab during the Mughal times.)
उत्तर-
मुग़लकालीन पंजाब में मुसलमानों की स्थिति बहुत अच्छी थी। शासक वर्ग से संबंधित होने के कारण उनको समाज में कुछ विशेष सुविधाएँ प्राप्त थीं। राज्य के उच्च पदों पर मुसलमानों को नियुक्त किया जाता था। उस समय मुसलमान तीन श्रेणियों में विभाजित थे। उच्च श्रेणी जिसमें बड़े-बड़े मनसबदार, सूबेदार, जागीरदार आदि शामिल थे; वे बड़ा आरामदायक एवं शानो-शौकत का जीवन व्यतीत करते थे। सुरा एवं सुंदरी उनके मनोरंजन के मुख्य साधन थे। उनकी सेवा के लिए बड़ी संख्या में नौकर होते थे। मध्य वर्ग में किसान, दुकानदार और छोटे दर्जे के सरकारी कर्मचारी शामिल थे। उच्च श्रेणी के मुकाबले में उनका जीवन स्तर चाहे कुछ नीचा था पर फिर भी उनका जीवन खुशहाल था। निम्न श्रेणी में घरेलू नौकर, श्रमिक, दास, छोटे दुकानदार आदि शामिल थे। उनकी स्थिति बड़ी शोचनीय थी। निर्धन होने के कारण उनका जीवन-निर्वाह करना अत्यंत कठिन होता था।

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प्रश्न 2.
मुगलकालीन पंजाब के समाज में हिंदुओं की स्थिति कैसी थी ? (What was the condition of Hindus in the society of Punjab under the Mughals ?)
अथवा
मुगलों के अधीन पंजाब के हिंदुओं की स्थिति का संक्षेप में अध्ययन करें। (Study in brief the condition of Hindu society in the Punjab under the Mughals.)
उत्तर-
मुग़लकालीन पंजाब के समाज में हिंदुओं की स्थिति अच्छी नहीं थी। समाज में चाहे हिंदुओं की संख्या अधिक थी, परंतु उन्हें उच्च पदों से वंचित रखा जाता था। मुसलमान उनको काफिर कहते थे। उनका बहुत अपमान किया जाता था। उनको इस्लाम धर्म स्वीकार करने के लिए विवश किया जाता था। उस समय हिंदू समाज कई जातियों तथा उपजातियों में बंटा हुआ था। जाति संबंधी नियम पहले से अधिक कठोर हो गए थे। उच्च जाति के लोग निम्न जाति के लोगों से घृणा करते थे। उन पर घोर अत्याचार किए जाते थे। इसके अतिरिक्त उन पर अनेक पाबंदियाँ लगाई गई थीं। समाज में प्रत्येक व्यक्ति अपनी जाति के अनुसार कार्य करता था। जाति संबंधी नियमों का उल्लंघन करने वाले व्यक्ति का सामाजिक बहिष्कार किया जाता था। हिंदुओं की यह जाति प्रथा उनके लिए बड़ी हानिकारक सिद्ध हुई।

प्रश्न 3.
मग़लों के अधीन पंजाब में स्त्रियों की हालत कैसी थी ? (What was the position of women in Punjab under the Mughals ?)
अथवा
मुग़लकालीन पंजाब में स्त्रियों में प्रचलित किन्हीं छः बुराइयों का संक्षिप्त विवरण दें। (Describe any six evils prevalent among women in the Punjab under the Mughals.)
उत्तर-
मुग़लकालीन समाज में स्त्रियों की स्थिति अच्छी नहीं थी।

  1. उस समय लड़कियों का विवाह अल्पायु में ही कर दिया जाता था।
  2. लड़कियों की शिक्षा की ओर कोई ध्यान नहीं दिया जाता था।
  3. पति की मृत्यु हो जाने पर पत्नी को पति के साथ जीवित जला दिया जाता था। इस प्रथा को सती प्रथा कहा जाता था।
  4. जो स्त्रियाँ सती नहीं होती थीं उनको विधवा का जीवन व्यतीत करना पड़ता था। विधवा को पुनर्विवाह की आज्ञा नहीं थी।
  5. मुस्लिम और हिंदू स्त्रियों में पर्दे की प्रथा प्रचलित थी।
  6. समाज में स्त्रियों का स्थान पुरुषों के बराबर नहीं समझा जाता था।

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प्रश्न 4.
मुग़लकालीन पंजाब के लोगों के मनोरंजन के क्या मुख्य साधन थे ?
(What were the main sources of entertainment of the people of Punjab under the Mughals ?)
उत्तर-
मुग़लकालीन पंजाब के लोग कई ढंगों से अपना मनोरंजन करते थे। उच्च श्रेणी के लोग अपना मनोरंजन शिकार, रथों की दौड़ में भाग लेकर, चौगान खेलकर, कबूतरबाज़ी करके, मुर्गों की लड़ाई देखकर, तैराकी करके, शतरंज और चौपड़ खेल कर और महिफ़लों में भाग लेकर करते थे। आम लोग अपना मनोरंजन संगीत, नाच-भंगड़े, कुश्तियाँ करके, दौड़ों में भाग लेकर, जादूगरों तथा मदारियों के खेल देख कर तथा ताश खेल कर करते थे। इनके अतिरिक्त लोग त्योहारों तथा मेलों में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते थे। हिंदुओं के प्रमुख त्योहार दीवाली, दशहरा, वैशाखी, लोहड़ी, होली, शिवरात्रि और राम नवमी आदि थे। मुसलमानों के मुख्य त्योहार. ईद, शबे-बारात और नौरोज थे। इनके अतिरिक्त सूफ़ी-संतों की मजारों पर भी भारी मेले लगते थे। सिख वैशाखी तथा दीवाली के अवसरों पर हरिमंदिर साहिब अमृतसर में बहुत उत्साह के साथ इकट्ठे होते थे।

प्रश्न 5.
मुग़लों के अधीन पंजाब में शिक्षा का क्या प्रबंध था ? (Write a note about prevalent education in Punjab under the Mughals.)
उत्तर-
मुग़ल काल में लोगों को शिक्षा देना सरकार की जिम्मेवारी नहीं थी। हिंदू अपनी प्रारंभिक शिक्षा मंदिरों में और मुसलमान अपनी शिक्षा मस्जिदों में प्राप्त करते थे। ये लोगों द्वारा दिए गए दान पर चलते थे। यहाँ विद्यार्थियों को अपने-अपने धर्मों के बारे में भी शिक्षा दी जाती थी। मुसलमानों की अपेक्षा हिंदू शिक्षा में अधिक रुचि लेते थे। विद्यार्थियों से कोई फीस नहीं ली जाती थी। वे अपनी पढ़ाई पूरी करने के पश्चात् गुरु को कुछ दक्षिणा दिया करते थे। उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए पंजाब में लाहौर, मुलतान, स्यालकोट, जालंधर, सुल्तानपुर, बटाला, अंबाला, सरहिंद आदि स्थानों पर मदरसे बने हुए थे। सरकार इनको आर्थिक सहायता देती थी। इस काल में स्त्रियों की शिक्षा की ओर कोई ध्यान नहीं दिया जाता था। केवल उच्च घराने की कुछ स्त्रियाँ शिक्षा प्राप्त करती थीं। इनकी शिक्षा का प्रबंध घरों में ही निजी तौर पर किया जाता था।

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प्रश्न 6.
मुगलकालीन पंजाब के लोगों की सामाजिक स्थिति की मुख्य विशेषताएँ बताएँ।
(Mention the main salient features of social condition of people of the Punjab under the Mughals.)
उत्तर-
मुग़लकालीन पंजाब में मुसलमानों की स्थिति बहुत अच्छी थी। उनको समाज में कुछ विशेष अधिकार प्राप्त थे। मुस्लिम समाज तीन श्रेणियों-उच्च, मध्य एवं निम्न श्रेणी में बंटा हुआ था। उच्च श्रेणी के लोग बड़े ऐश्वर्य और शानो-शौकत का जीवन व्यतीत करते थे। निम्न श्रेणी के लोगों की स्थिति बहुत ही दयनीय थी। हिंदुओं की जो कि पंजाब की बहुसंख्यक श्रेणी से संबंधित थे, स्थिति अच्छी नहीं थी। उनको बहुत-से अधिकारों से वंचित रखा जाता था। मुसलमान उनसे बहुत घृणा करते थे। हिंदू समाज कई जातियों और उपजातियों में बंटा हुआ था। जाति संबंधी नियम पहले से बहुत कठोर हो चुके थे। समाज में स्त्रियों की स्थिति अच्छी नहीं थी। उस समय लोग सूती और रेशमी कपड़े पहनते थे। उच्च वर्ग के लोगों की पोशाकें बहुत कीमती हुआ करती थीं जबकि आम लोगों की पोशाक बिल्कुल सादा होती थी। उस समय स्त्रियाँ और पुरुष दोनों गहने पहनने के बड़े शौकीन थे।

प्रश्न 7.
मग़लकालीन पंजाब की खेती-बाड़ी संबंधी स्थिति पर संक्षिप्त प्रकाश डालें। (Give an account of agriculture of Punjab under the Mughals.)
अथवा
मुगलकालीन पंजाब में सरकार ने खेती-बाडी संबंधी कौन-सी नीति अपनाई ?
(What policy did the government adopt regarding agriculture in Punjab under the Mughals ?)
अथवा
मुगलकालीन पंजाबियों का मुख्य व्यवसाय क्या था ? (What was the main occupation of Punjabis under the Mughals ?)
उत्तर-
मुगलकालीन पंजाब में लोगों का मुख्य व्यवसाय खेती-बाड़ी था। पंजाब के 80% लोग इस व्यवसाय से जुड़े हुए थे। इसलिए मुग़ल सरकार ने खेती-बाड़ी को उत्साहित करने के लिए विशेष ध्यान दिया। नई भूमि को खेती के अधीन लाने वाले किसानों को विशेष सुविधाएँ दी जाती थीं। सिंचाई साधनों को उन्नत करने के लिए सरकार किसानों को तकावी ऋण बाँटती थी। लगान, भूमि की उपजाऊ शक्ति और सिंचाई की सुविधाओं के अनुसार भिन्न-भिन्न स्थानों पर अलग-अलग निश्चित किया गया था। अकाल के दिनों में भूमि का लगान माफ कर दिया जाता था। लगान एकत्रित करने वाले कर्मचारियों को राज्य की ओर से कड़े निर्देश थे कि वे किसी प्रकार भी कृषकों का शोषण न करें। खादों के प्रयोग को उत्साहित किया जाता था। इन सभी प्रयत्नों के परिणामस्वरूप मुग़लों के समय फसलों की भरपूर पैदावार प्राप्त की जाती थी। उस समय पंजाब की प्रमुख फसलें गेहूँ, चने, चावल, मक्की , गन्ना, कपास और जौ थीं। इनके अतिरिक्त उस समय तिलहन, अफ़ीम और कई प्रकार के फलों की भी खेती की जाती थी।

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प्रश्न 8.
मुगलकालीन पंजाब में प्रचलित कपड़ा उद्योग संबंधी जानकारी दें। (Write a brief note on textile industry of Punjab under the Mughals.)
उत्तर-
मुगलकालीन पंजाब में प्रचलित उद्योगों में सूती कपड़ा उद्योग सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण था। अमृतसर, लाहौर, मुलतान और गुजरात में बढ़िया प्रकार का कपड़ा तैयार किया जाता था। मुलतान बढ़िया दरियों, मेज़पोशों तथा चादरों के लिए प्रसिद्ध था। पेशावर में सुंदर लुंगियाँ तैयार की जाती थीं। मुलतान, लाहौर और अमृतसर में पायजामे और सलवारें तैयार की जाती थीं। गुजरात में शिफोन का कपड़ा तैयार किया जाता था। मुलतान, कश्मीर और अमृतसर रेशमी कपड़ा उद्योग के प्रसिद्ध केंद्र थे। उस समय पंजाब में गुलबदन, दरियाई और धूप-छाँव नाम के रेशमी वस्त्र तैयार किये जाते थे। उस समय रेशमी कपड़े की लाहौर राज्य के उच्च घरानों में बड़ी माँग, थी। ऊनी कपड़ा उद्योग के लिए कश्मीर और अमृतसर के केंद्र प्रसिद्ध थे। कश्मीर शालों के उद्योग के लिए संसार भर में प्रसिद्ध था। शालें तैयार करने के लिए विदेशों से भी ऊन मंगवाई जाती थी। अमृतसर में शालें, कंबल और लोइयाँ बनाई जाती थीं। यहाँ के कंबल और लोइयाँ बहुत प्रसिद्ध थीं।

प्रश्न 9.
मुगलकालीन पंजाब के व्यापार के संबंध में आप क्या जानते हैं ? (What do you know about trade in Punjab under the Mughals ?)
उत्तर-
मुग़लकालीन पंजाब का आंतरिक और विदेशी व्यापार बहुत उन्नत था। इसके कई कारण थे। पहला, पंजाब की भौगोलिक स्थिति व्यापारिक पक्ष से बहुत महत्त्वपूर्ण थी। दूसरे, यहाँ के यातायात के साधन उन्नत थे। तीसरे, यहाँ फसलों की भरपूर पैदावार होती थी और उद्योग-धंधे भी उन्नत थे। व्यापार का कार्य क्षत्रियों, बनियों, महाजनों, अरोड़ों, बोहरों और खोजों के हाथ में था। पंजाब का विदेशी व्यापार अरब देशों, अफ़गानिस्तान, ईरान, तिब्बत, भूटान, सीरिया, चीन और यूरोपीय देशों के साथ चलता था। पंजाब इन देशों को सूती और रेशमी कपड़े, शालें, कंबल, अनाज, चीनी, नील और नमक आदि का निर्यात करता था। इनके बदले पंजाब इन देशों से बढ़िया नस्ल के घोड़े, खुश्क मेवे, ऐश्वर्य की चीजें, रेशम, बहुमूल्य पत्थरों इत्यादि का आयात करता था। सामान को ढोने के लिए बैल-गाड़ियों, ऊँटों, खच्चरों, घोड़ों और बैलों का प्रयोग किया जाता था। इसके अतिरिक्त जल मार्ग से सामान ले जाने के लिए नावों का प्रयोग भी किया जाता था।

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प्रश्न 10.
मुग़लों के अधीन पंजाब की आर्थिक दशा का संक्षेप में वर्णन करो। (Write a short note on the economic condition of Punjab during the Mughal rule.)
अथवा
मुगलकालीन पंजाबियों की आर्थिक अवस्था पर एक नोट लिखें। (Write a note on the economic condition of Punjabis during the Mughal rule.)
अथवा
मुगलकालीन पंजाब की आर्थिक हालत के ऊपर प्रकाश डालें। (Throw light on the economic condition of Punjab under the Mughal rule.)
उत्तर-
मुग़लकालीन पंजाब के लोगों की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी थी। कृषि उस समय के लोगों का मुख्य व्यवसाय था। भूमि के उपजाऊ होने के कारण, उत्तम सिंचाई साधनों तथा सरकार द्वारा विशेष सुविधाएँ दिए जाने के कारण इस धंधे को बहुत प्रोत्साहन मिला। परिणामस्वरूप उस समय फसलों की भरपूर पैदावार प्राप्त की जाती थी। पंजाब की मुख्य फसलें गेहूँ, चावल, गन्ना, कपास, मक्की, चना और जौ थीं। पंजाब के लोगों का दूसरा मुख्य व्यवसाय उद्योग थे। कपड़ा उद्योग उस समय पंजाब का सबसे प्रसिद्ध उद्योग था। इसके अतिरिक्त चमड़ा उद्योग, चीनी उद्योग, शस्त्र उद्योग और लकड़ी उद्योग भी प्रसिद्ध थे। उस समय पंजाब का आंतरिक और विदेशी व्यापार भी उन्नत था। पंजाब का विदेशी व्यापार अरब देशों, अफ़गानिस्तान, ईरान, तिब्बत और यूरोपीय देशों के साथ चलता था। पंजाब से इन देशों को सूती और रेशमी कपड़े, शालें, कंबल, अनाज, चीनी, नील इत्यादि का निर्यात किया जाता था। इनके बदले पंजाब विदेशों से बहुमूल्य पत्थर, रेशम, खुश्क मेवे तथा बढ़िया नस्ल के घोड़ों आदि का निर्यात करता था। मुग़लकालीन पंजाब में वस्तुओं की कीमतें बहुत कम थीं। परिणामस्वरूप निर्धन लोगों का निर्वाह भी अच्छे ढंग से हो जाता था।

Source Based Questions

नोट-निम्नलिखित अनुच्छेदों को ध्यानपूर्वक पढ़िए और उनके अंत में पूछे गए प्रश्नों का उत्तर दीजिए।

1
मुग़ल काल में लोगों को शिक्षा देना सरकार की जिम्मेवारी नहीं थी। हिंदू अपनी प्राथमिक शिक्षा मंदिरों में तथा मुसलमान मस्जिदों में प्राप्त करते थे। ये लोगों द्वारा दिए गए दान पर चलते थे। यहाँ विद्यार्थियों को अपने-अपने धर्मों के बारे में शिक्षा दी जाती थी। मुसलमानों के मुकाबले हिंदू शिक्षा में अधिक रुचि लेते थे। विद्यार्थियों से कोई फीस नहीं ली जाती थी। वे अपनी पढ़ाई पूरी करके गुरुं को कुछ दक्षिणा दे देते थे। उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए पंजाब में लाहौर, मुलतान, स्यालकोट, जालंधर, सुल्तानपुर, बटाला, अंबाला, सरहिंद आदि स्थानों पर मदरसे बने हुए थे। सरकार इन मदरसों को आर्थिक सहायता देती थी। इस काल में स्त्रियों की शिक्षा पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता था। केवल उच्च घराने की कुछ स्त्रियाँ शिक्षा प्राप्त करती थीं। इनकी शिक्षा का प्रबंध घरों में प्राइवेट तौर पर किया जाता था।

  1. मुग़ल काल में शिक्षा विकसित क्यों नहीं थी ?
  2. मुग़ल काल में मुसलमान अपनी आरंभिक शिक्षा कहाँ से प्राप्त करते थे ?
  3. मुग़ल काल में प्रचलित शिक्षा की कोई एक विशेषता लिखें।
  4. मुग़ल काल में स्त्रियों की शिक्षा कैसी थी ?
  5. मुग़ल काल में विद्यार्थी अपनी पढ़ाई पूरी करके गुरु को कुछ ……….. देते थे।

उत्तर-

  1. क्योंकि मुग़ल काल में शिक्षा देने की जिम्मेवारी सरकार की नहीं थी।
  2. मुग़ल काल में मुसलमान अपनी आरंभिक शिक्षा मस्जिदों से प्राप्त करते थे।
  3. उस समय विद्यार्थियों से कोई फीस नहीं ली जाती थी।
  4. मुग़ल काल में स्त्रियों की शिक्षा की ओर कोई विशेष ध्यान नहीं दिया जाता था।
  5. दक्षिणा।

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2
मुग़ल काल में पंजाब के लोगों का मुख्य व्यवसाय खेती-बाड़ी था। पंजाब की कुल जनसंख्या के 80 प्रतिशत लोग इस व्यवसाय से जुड़े हुए थे। इसका मुख्य कारण यह था कि यहाँ की भूमि बहुत उपजाऊ थी और सिंचाई साधनों की कोई कमी नहीं थी। मुग़ल बादशाह इस बात से भली-भाँति परिचित थे कि साम्राज्य की खुशहाली किसानों की आर्थिक स्थिति पर निर्भर करती है। इसलिए उन्होंने खेती-बाड़ी को प्रोत्साहित करने के लिए विशेष ध्यान दिया। 1581 ई० में पंजाब में ज़ब्ती प्रणाली लागू की गई थी। इस व्यवस्था के अंतर्गत पंजाब में खेती योग्य सारी भूमि की पैमाइश की गई। इस भूमि को उसकी उपजाऊ शक्ति के आधार पर चार वर्गों पोलज, परोती, छछर और बंजर भूमि में बाँटा गया। सरकार अपना लगान भूमि की उपजाऊ शक्ति, सिंचाई की सुविधाओं तथा पिछले दस वर्ष की औसत उपज को ध्यान में रखकर निर्धारित करती थी। यह कुल फसल का 1/3 हिस्सा हुआ करता था। सरकार किसानों की सुविधानुसार अपना लगान अनाज अथवा नकदी के रूप में एकत्रित करती थी। ”

  1. मुगल काल में लोगों का मुख्य व्यवसाय क्या था ?
  2. मुग़ल काल में कितने प्रतिशत लोग कृषि के व्यवसाय से जुड़े हुए थे ? ।
    • 50%
    • 60%
    • 70%
    • 80%.
  3. जब्ती प्रणाली से क्या भाव है ?
  4. मुग़ल काल में खेतीबाड़ी की कोई एक विशेषता लिखें।
  5. मुग़ल काल में सरकार किसानों से किस रूप में अपना लगान इकट्ठा करते थे ?

उत्तर-

  1. मुग़ल काल में लोगों का मुख्य व्यवसाय कृषि था।
  2. 80%
  3. ज़ब्ती प्रणाली से भाव कृषि योग्य भूमि की पैमाइश से है।
  4. सरकार अपना लगान भूमि की उपजाऊ शक्ति, सिंचाई की सुविधाओं तथा पिछले दस सालों की औसत उपज को ध्यान में रखकर निश्चित करती थी।
  5. मुग़ल काल में सरकार किसानों से अनाज एवं नकदी के रूप में लगान एकत्रित करती थी।

3
मुग़ल काल में पंजाब में सिख धर्म का जन्म हुआ। इस धर्म की स्थापना गुरु नानक देव जी ने 15वीं शताब्दी में की थी। गुरु नानक देव जी ने उस समय समाज में प्रचलित सामाजिक तथा धार्मिक बुराइयों का खंडन किया। उन्होंने एक ईश्वर की पूजा तथा आपसी भ्रातृत्व का संदेश दिया। उन्होंने संगत तथा पंगत संस्थाओं की नींव रखी। उनके धर्म के द्वार प्रत्येक जाति तथा वर्ग के लोगों के लिए खुले थे। उन्होंने अंधकार में भटक रही मानवता को ज्ञान का नया मार्ग दिखाया। गुरु जी के संदेश को उनके नौ उत्तराधिकारियों ने जारी रखा। मुग़ल सम्राट अकबर की धार्मिक सहनशीलता की नीति के कारण पंजाब में सिख धर्म को प्रफुल्लित होने का स्वर्ण अवसर मिला। सम्राट् जहाँगीर के सिंहासन पर बैठते ही मुग़ल सिख संबंधों में तनाव आ गया। 1606 ई० में गुरु अर्जन साहिब की शहीदी तथा 1675 ई० में गुरु तेग़ बहादुर जी की शहीदी के कारण सिख भड़क उठे। मुग़ल अत्याचारों का कड़ा उत्तर देने के लिए 1699 ई० में गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा पंथ का सृजन किया। खालसा की स्थापना कारण पंजाब के इतिहास में एक नए युग का आरंभ हुआ।

  1. सिख धर्म का जन्म किस काल में हुआ ?
  2. सिख धर्म के संस्थापक कौन थे ?
  3. संगत व पंगत से क्या भाव है ?
  4. गुरु तेग़ बहादुर जी को कब शहीद किया गया था ?
    • 1605 ई०
    • 1606 ई०
    • 1665 ई०
    • 1675 ई०
  5. खालसा पंथ की स्थापना किसने की थी ?

उत्तर-

  1. सिख धर्म का जन्म मुग़ल काल में हुआ।
  2. सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव जी थे।
    • संगत से भाव उस समूह से है जो इकट्ठे मिलकर गुरु जी के उपदेश सुनते थे।
    • पंगत से भाव कतारों में बैठकर लंगर छकने से है।
  3. 1675 ई०।
  4. खालसा पंथ की स्थापना गुरु गोबिंद सिंह जी ने की थी।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 14 मुगलों के अधीन पंजाब की सामाजिक और आर्थिक स्थिति

मुगलों के अधीन पंजाब की सामाजिक और आर्थिक स्थिति PSEB 12th Class History Notes

  • सामाजिक स्थिति (Social Condition)-पंजाब का समाज मुख्य रूप से दो वर्गों-मुसलमान और हिंदुओं में बँटा हुआ था—मुस्लिम समाज तीन श्रेणियों उच्च, मध्यम तथा निम्न में बँटा हुआ था-उच्च वर्ग में बड़े-बड़े मनसबदार तथा रईस लोग आते थे—मध्यम श्रेणी में किसान और सरकारी कर्मचारी तथा निम्न वर्ग में नौकर और मज़दूर आदि आते थे—हिंदू समाज कई जातियों तथा उपजातियों में बँटा हुआ था—स्त्रियों की दशा अच्छी नहीं थी—उच्च वर्ग का खान पान बहुत ही अच्छा था जबकि निम्न वर्ग के लोग मात्र गुजारा करते थे—हिंदू अधिकतर शाकाहारी थे—उच्च वर्ग के लोग काफ़ी मूल्यवान वस्त्र पहनते थे—स्त्रियाँ और पुरुष दोनों गहने पहनने के बड़े शौकीन थे—शिकार, रथदौड़, चौगान, कबूतरबाजी और शतरंज आदि लोगों के मनोरंजन के मुख्य साधन थे—शिक्षा देना सरकार की ज़िम्मेदारी न थी—यह मंदिरों और मस्जिदों द्वारा प्रदान की जाती थी।
  • आर्थिक स्थिति (Economic Condition)-पंजाब के लोगों का मुख्य व्यवसाय खेती बाड़ी था—कुल जनसंख्या के 80% लोग कृषि से जुड़े थे—पंजाब में फसलों की भरपूर पैदावार होती थीपंजाब के लोगों का दूसरा मुख्य धंधा उद्योग था—सूती वस्त्र उद्योग पंजाब का सबसे महत्त्वपूर्ण उद्योग. था—अन्य उद्योगों में रेशमी वस्त्र उद्योग, चमड़ा उद्योग, बर्तन उद्योग, चीनी उद्योग तथा शस्त्र उद्योग महत्त्वपूर्ण थे—कई लोग पशु पालन का काम करते थे—आंतरिक और विदेशी व्यापार बहुत उन्नत थाविदेशी व्यापार अरब देशों, अफ़गानिस्तान, ईरान, तिब्बत, भूटान, चीन और यूरोपीय देशों के साथ होता था—लाहौर और मुलतान व्यापारिक पक्ष से सबसे महत्त्वपूर्ण नगर थे—कीमतें कम होने के कारण ग़रीब लोगों का गुजारा भी अच्छा हो जाता था।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 4 गुरु नानक देव जी का जीवन और उनकी शिक्षाएँ

Punjab State Board PSEB 12th Class History Book Solutions Chapter 4 गुरु नानक देव जी का जीवन और उनकी शिक्षाएँ Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 History Chapter 4 गुरु नानक देव जी का जीवन और उनकी शिक्षाएँ

निबंधात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

गुरु नानक देव जी का जीवन (Life of Guru Nanak Dev Ji)

प्रश्न 1.
गुरु नानक देव जी के जीवन का संक्षिप्त वर्णन करें । (Give a brief account of the life of Guru Nanak Dev Ji.)
उत्तर-
सिख पंथ के संस्थापक गुरु नानक देव जी की गणना विश्व के महापुरुषों में की जाती है। गुरु नानक साहिब ने अज्ञानता के अंधकार में भटक रही मानवता को ज्ञान का मार्ग दिखाया। उन्होंने लोगों को सत्यनाम और भ्रातृत्व का संदेश दिया। गुरु नानक देव जी के महान् जीवन का संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित अनुसार है—

1. जन्म और माता-पिता (Birth and Parentage)-गुरु नानक देव जी का जन्म 15 अप्रैल, 1469 ई० को पूर्णिमा के दिन राय भोय की तलवंडी में हुआ। यह स्थान अब पाकिस्तान के शेखूपुरा जिला में स्थित है। इस पवित्र स्थान को आजकल ननकाणा साहिब कहा जाता है। गुरु नानक देव जी के पिता जी का नाम मेहता काल
और माता जी का नाम तृप्ता जी था। उनकी एक बहन थी जिसका नाम बेबे नानकी था। सिख परंपराओं के अनुसार गुरु साहिब के जन्म के समय अनेक चमत्कार हुए। भाई गुरदास जी लिखते हैं-
सतगुरु नानक प्रगटिया मिटी धुंध जग चानण होया।
जिओ कर सूरज निकलिया तारे छपे अंधेर पलोया॥

2. बचपन और शिक्षा (Childhood and Education)-गुरु नानक देव जी बचपन से ही बहुत गंभीर और विचारशील स्वभाव के थे। उनका झुकाव खेलों की ओर कम और प्रभु-भक्ति की ओर अधिक था। गुरु साहिब जब सात वर्ष के हुए तो उन्हें पंडित गोपाल की पाठशाला में आरंभिक शिक्षा प्राप्त करने के लिए भेजा गया। इसके पश्चात् गुरु साहिब ने पंडित बृजनाथ से संस्कृत तथा मौलवी कुतुबुद्दीन से फ़ारसी और अरबी का ज्ञान प्राप्त किया। जब गुरु नानक देव जी 9 वर्ष के हुए तो पुरोहित हरिदयाल को उन्हें जनेऊ पहनाने के लिए बुलाया गया। परंतु उन्होंने स्पष्ट रूप से इंकार कर दिया। उनका कहना था कि वे केवल दया, संतोष, जत और सत से निर्मित जनेऊ पहनेंगे जो न टूटे, न जले और न ही मलिन हो पाये।

3. भिन्न-भिन्न व्यवसायों में (In Various occupations)-गुरु नानक देव जी को अपने विचारों में मगन देखकर उनके पिता जी ने उन्हें किसी कार्य में लगाने का यत्न किया। सर्वप्रथम गुरु नानक देव जी को भैंसें चराने का कार्य सौंपा गया परंतु गुरु नानक देव जी ने कोई रुचि न दिखाई। फलस्वरूप अब गुरु साहिब को व्यापार में लगाने का निर्णय किया गया। गुरु जी को 20 रुपये दिए गए और मंडी भेजा गया। मार्ग में गुरु साहिब को भूखे साधुओं की टोली मिली। गुरु नानक देव जी ने अपने सारे रुपये इन साधुओं को भोजन खिलाने में व्यय कर दिए और खाली हाथ लौट आए। यह घटना इतिहास में ‘सच्चा सौदा’ के नाम से जानी जाती है।

4. विवाह (Marriage)-गुरु नानक देव जी का विवाह बटाला निवासी मूल चंद की सुपुत्री सुलक्खनी जी से कर दिया गया। उस समय आपकी आयु 14 वर्ष थी। समय के साथ आपके घर दो पुत्रों श्री चंद और लखमी दास ने जन्म लिया।

5. सुल्तानपुर लोधी में नौकरी (Service at Sultanpur Lodhi)—जब गुरु नानक देव जी 20 वर्ष के हुए तो मेहता कालू जी ने आपको सुल्तानपुर लोधी में अपने जंवाई जयराम के पास भेज दिया। उनकी सिफ़ारिश पर नानक जी को मोदीखाना अन्न भंडार में नौकरी मिल गई। गुरु साहिब ने यह कार्य बड़ी योग्यता से किया।

6. ज्ञान प्राप्ति (Enlightenment)-गुरु नानक देव जी सुल्तानपुर लोधी में रहते हुए प्रतिदिन सुबह बेईं नदी में स्नान करने के लिए जाते थे। एक दिन वे स्नान करने गए और तीन दिनों तक लुप्त रहे। इस समय उन्हें सत्य ज्ञान की प्राप्ति हुई । उस समय गुरु नानक देव जी की आयु 30 वर्ष थी। ज्ञान-प्राप्ति के पश्चात् गुरु साहिब ने सर्वप्रथम “न को हिंदू, न को मुसलमान” शब्द कहे।

7. उदासियाँ (Travels)-1499 ई० में ज्ञान-प्राप्ति के पश्चात् गुरु जी ने देश तथा विदेश की यात्राएँ कीं। इन यात्राओं को उदासियाँ भी कहा जाता है। इन यात्राओं का उद्देश्य लोगों में फैली अज्ञानता एवं अंध-विश्वास को दूर करना था तथा परस्पर भ्रातृभाव व एक ईश्वर का प्रचार करना था। भारत में गुरु नानक देव जी ने उत्तर में कैलाश पर्वत से लेकर दक्षिण में रामेश्वरम तक तथा पश्चिम में पाकपटन से लेकर पूर्व में आसाम तक की यात्रा की। गुरु साहिब भारत से बाहर मक्का, मदीना, बगदाद तथा लंका भी गए। गुरु साहिब की यात्राओं के बारे में हमें उनकी बाणी से महत्त्वपूर्ण संकेत मिलते हैं। गुरु नानक साहिब ने अपने जीवन के लगभग 21 वर्ष इन यात्राओं में बिताए। इन यात्राओं के दौरान गुरु नानक देव जी लोगों में फैले अंध-विश्वास को काफी सीमा तक दूर करने में सफल हुए तथा उन्होंने नाम के चक्र को चारों दिशाओं में फैलाया।

8. करतारपुर में निवास (Settled at Kartarpur)-गुरु नानक देव जी ने 1521 ई० में रावी नदी के तट पर करतारपुर नामक नगर की स्थापना की। यहाँ गुरु साहिब ने अपने परिवार के साथ जीवन के अंतिम 18 वर्ष व्यतीत किए। इस समय के मध्य गुरु साहिब ने ‘संगत’ और ‘पंगत’ नामक संस्थाओं की स्थापना की। इनके अतिरिक्त गुरु जी ने 976 शब्दों की रचना की। गुरु साहिब का यह कार्य सिख पंथ के विकास के लिए एक मील पत्थर सिद्ध हुआ। गुरु नानक देव जी की प्रमुख वाणियों के नाम जपुजी साहिब, वार माझ, आसा दी वार, सिद्ध गोष्टि, वार मल्हार, बारह माह और पट्टी इत्यादि हैं।

9. उत्तराधिकारी की नियुक्ति (Nomination of the Successor)-1539 ई० में ज्योति-जोत समाने से पूर्व गुरु नानक देव जी ने भाई लहणा जी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया। गुरु नानक देव जी ने एक नारियल और पाँच पैसे भाई लहणा जी के सम्मुख रखकर अपना शीश झुकाया। इस प्रकार भाई लहणा जी गुरु अंगद देव जी बने। इस प्रकार गुरु नानक साहिब ने एक ऐसा पौधा लगाया जो गुरु गोबिंद सिंह जी के समय एक घने वृक्ष का रूप धारण कर गया। डॉक्टर हरी राम गुप्ता के अनुसार,
“गुरु अंगद देव जी की नियुक्ति एक बहुत ही दूरदर्शिता वाला कार्य था।”1

10. ज्योति-जोत समाना (Immersed in Eternal Light)-गुरु नानक देव जी 22 सितंबर, 1539 ई० को ज्योति-जोत समा गए।

1. “The appointment of Angad was a step of far-reaching significance.” Dr. H.R. Gupta, History of Sikh Gururs (New Delhi : 1973) p. 81.

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 4 गुरु नानक देव जी का जीवन और उनकी शिक्षाएँ 1
GURDWARA NANKANA SAHIB : PAKISTAN

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 4 गुरु नानक देव जी का जीवन और उनकी शिक्षाएँ

गुरु नानक देव जी की उदासियाँ (Udasis of Guru Nanak Dev Ji)

प्रश्न 2.
गुरु नानक देव जी की उदासियों का वर्णन करें। इनका क्या उद्देश्य था ?
(Write a note on the Udasis of Guru Nanak Dev Ji. What was the aim of these Udasis ?) ·
अथवा
उदासियों से क्या भाव है ? गुरु नानक देव जी की उदासियों का संक्षिप्त वर्णन करें। (What is meant by Udasis ? Give a brief account of the Udasis of Guru Nanak Dev Ji.)
अथवा
संक्षेप में गुरु नानक देव जी की उदासियों का वर्णन करें। उनका क्या उद्देश्य था ?
(Briefly discuss the travels (Udasis) of Guru Nanak Dev Ji. What was their aim ?)
अथवा
गुरु नानक देव जी की उदासियों का वर्णन करें। (Give an account of the Udasis (travels) of Guru Nanak Dev Ji.)
अथवा
‘ गुरु नानक देव जी की उदासियों का संक्षिप्त वर्णन करें। इन उदासियों का समाज पर क्या प्रभाव पड़ा ?
(Describe briefly the Udasis of Guru Nanak Dev Ji. What was their impact on society ?)
उत्तर-
1499 ई० में ज्ञान-प्राप्ति के पश्चात् गुरु नानक देव जी देश और विदेशों की लंबी यात्रा के लिए निकल पड़े। गुरु नानक देव जी ने लगभग 21 वर्ष इन यात्राओं में व्यतीत किए। गुरु नानक साहिब की इन यात्राओं को उदासियाँ भी कहा जाता है क्योंकि गुरु साहिब इस समय के दौरान घर-द्वार त्याग कर एक उदासी की भाँति भ्रमण करते रहे। गुरु नानक देव जी ने कुल कितनी उदासियाँ की, इस संबंध में इतिहासकारों में मतभेद हैं। आधुनिक खोजों ने यह सिद्ध कर दिया है कि गुरु नानक देव जी की उदासियों की संख्या तीन थी।

उदासियों का उद्देश्य (Objects of the Udasis)
गुरु नानक देव जी की उदासियों का प्रमुख उद्देश्य लोगों में फैली अज्ञानता और अंध-विश्वासों को दूर करना था। उस समय हिंदू और मुसलमान दोनों ही धर्म के मार्ग से भटक चुके थे। हिंदू ब्राह्मण और योगी जिनका प्रमुख कार्य भटके हुए लोगों को सही मार्ग दिखाना था, वे स्वयं ही भ्रष्ट और आचरणहीन हो चुके थे। लोगों ने असंख्य देवी-देवताओं, कब्रों, वृक्षों, सर्पो और पत्थरों इत्यादि की आराधना आरंभ कर दी थी। मुसलमानों के धार्मिक नेता भी चरित्रहीन हो चुके थे। उस समय अधिकाँश मुसलमान भोग-विलास का जीवन व्यतीत करते थे। समाज कई जातियों और उपजातियों में विभाजित था। एक जाति के लोग दूसरी जाति के लोगों से घृणा करते थे। समाज में स्त्रियों की दशा बहुत ही दयनीय थी। गुरु नानक देव जी ने अज्ञानता में भटक रहे इन लोगों को प्रकाश का एक नया मार्ग बताने के लिए यात्राएँ कीं।
प्रसिद्ध इतिहासकार डॉ० एस० एस० कोहली के अनुसार,
“इस महापुरुष ने अपने मिशन को इस देश तक सीमित नहीं रखा। उसने सारी मानवता की जागृति के लिए दूर-दूर के देशों की यात्राएँ कीं।”2

प्रथम उदासी
(First Udasi)
गुरु नानक देव जी ने 1499 ई० के अंत में अपनी पहली यात्रा आरंभ की। इन यात्राओं के समय भाई मरदाना उनके साथ रहा। इस यात्रा को गुरु नानक देव जी ने 12 वर्ष में संपूर्ण किया और वह पूर्व से दक्षिण की ओर गए। इस यात्रा के दौरान गुरु जी ने निम्नलिखित प्रमुख स्थानों की यात्रा की—

1. सैदपुर (Saidpur)-गुरु नानक देव जी अपनी प्रथम उदासी के दौरान सर्वप्रथम सैदपुर (ऐमनाबाद) पहुँचे। . यहाँ पहुँचने पर मलिक भागो ने गुरु साहिब को एक ब्रह्मभोज पर निमंत्रण दिया, परंतु गुरु साहिब एक निर्धन बढ़ई भाई लालो के घर ठहरे। जब इस संबंध में मलिक भागो ने गुरु नानक साहिब से पूछा तो उन्होंने एक हाथ में मलिक भागो के भोज और दूसरे हाथ में भाई लालो की सूखी रोटी लेकर ज़ोर से दबाया। मलिक भागो के भोज से खून और भाई लालो की रोटी में से दूध निकला। इस प्रकार गुरु साहिब ने उसे बताया कि हमें श्रम तथा ईमानदारी की कमाई करनी चाहिए।

2. तालुंबा (Talumba) गुरु नानक देव जी की तालुंबा में भेंट सज्जन ठग से हुई। उसने यात्रियों के लिए अपनी हवेली में एक मंदिर और मस्जिद बनाई हुई थी। वह दिन के समय तो यात्रियों की खूब सेवा करता किंतु रात के समय उन्हें लूटकर कुएँ में फैंक देता था। वह गुरु नानक देव जी और मरदाना के साथ भी कुछ ऐसा ही करने की योजनाएँ बना रहा था। रात्रि के समय जब गुरु नानक देव जी ने वाणी पढ़ी तो सज्जन ठग गुरु साहिब के चरणों में गिर पड़ा। गुरु नानक देव जी ने उसे क्षमा कर दिया। इस घटना के पश्चात् सज्जन ने अपना शेष जीवन सिख धर्म का प्रचार करने में व्यतीत किया। के० एस० दुग्गल के अनुसार, “सज्जन की सराय जो कि एक वधस्थल था, एक धर्मशाला में परिवर्तित हो गया।”3

3. कुरुक्षेत्र (Kurukshetra)-गुरु नानक देव जी सूर्य ग्रहण के अवसर पर कुरुक्षेत्र पहुँचे। इस अवसर पर हज़ारों ब्राह्मण और साधु एकत्रित हुए थे। गुरु नानक देव जी ने ब्राह्मणों को समझाया कि हमें सादा तथा पवित्र जीवन व्यतीत करना चाहिए। गुरु जी के विचारों से प्रभावित होकर अनेक लोग उनके अनुयायी बन गए।

4. दिल्ली (Delhi) दिल्ली में गुरु नानक देव जी मजनूं का टिल्ला में रुके। गुरु नानक देव जी के उपदेशों का वहाँ की संगत पर गहरा प्रभाव पड़ा।

5. हरिद्वार (Haridwar)-गुरु नानक देव जी जब हरिद्वार पहुँचे तो वहाँ बड़ी संख्या में हिंदू स्नान करते हुए पूर्व की ओर मुँह करके सूर्य और पितरों को पानी दे रहे थे। ऐसा देखकर गुरु साहिब ने पश्चिम की ओर मुँह करके पानी देना आरंभ कर दिया। यह देखकर लोग गुरु जी से पूछने लगे कि वे क्या कर रहे हैं। गुरु जी ने कहा कि वे करतारपुर में अपने खेतों को पानी दे रहे हैं। यह उत्तर सुनकर लोग हंस पड़े और कहने लगे कि यह पानी यहाँ से 300 मील दूर उनके खेतों में कैसे पहुंच सकता है ? गुरु जी ने उत्तर दिया कि यदि तुम्हारा पानी लाखों मील दूर स्थित सूर्य तक पहुँच सकता है तो मेरा पानी इतने निकट स्थित खेतों तक क्यों नहीं पहुँच सकता ? गुरु जी के इस उत्तर से लोग बहुत प्रभावित हुए तथा उनके अनुयायी बन गए।

6. गोरखमता (Gorakhmata)—गुरु नानक देव जी हरिद्वार के पश्चात् गोरखमता पहुँचे। गुरु नानक देव जी ने यहाँ के सिद्ध योगियों को बताया कि कानों में कुंडल पहनने, शरीर पर विभूति रमाने, शृंख बजाने से अथवा सिर मुंडवा देने से मुक्ति प्राप्त नहीं होती। मुक्ति तो आत्मा की शुद्धि से प्राप्त होती है। ये योगी गुरु साहिब के उपदेशों से अत्यधिक प्रभावित हुए। उस समय से ही गोरखमता का नाम नानकमता पड़ गया।

7. बनारस (Banaras)-बनारस भी हिंदुओं का एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थान था। यहाँ गुरु नानक देव जी का पंडित चतर दास से मूर्ति-पूजा के संबंध में एक दीर्घ वार्तालाप हुआ। गुरु जी के उपदेशों से प्रभावित होकर चतर दास गुरु जी का सिख बन गया।

8. कामरूप (Kamrup)-धुबरी से गुरु नानक देव जी कामरूप (असम) पहुँचे। यहाँ की प्रसिद्ध जादूगरनी नूरशाही ने अपनी सुंदरता के बल पर गुरु जी को भटकाने का असफल प्रयास किया। गुरु जी ने उसे जीवन का सही मनोरथ बताया।

9. जगन्नाथ पुरी (Jagannath Puri)-असम की यात्रा के पश्चात् गुरु नानक देव जी उड़ीसा में जगन्नाथ पुरी पहुँचे। पंडितों ने गुरु साहिब को जगन्नाथ देवता की आरती करने के लिए कहा। गुरु नानक साहिब ने उन्हें बताया कि उस परम पिता परमात्मा की आरती प्रकृति सदैव करती रहती है।

10. लंका (Ceylon)-गुरु नानक जी दक्षिण भारत के प्रदेशों से होते हुए लंका पहुँचे। गुरु साहिब के व्यक्तित्व से बहुत प्रभावित होकर लंका का राजा शिवनाथ गुरु जी का अनुयायी बन गया।

11. पाकपटन (Pakpattan)—लंका से पंजाब वापसी के समय गुरु नानक देव जी पाकपटन में ठहरे। यहाँ वे शेख फरीद जी की गद्दी पर बैठे शेख़ ब्रह्म को मिले। यह मुलाकात दोनों के लिए एक प्रसन्नता का स्रोत सिद्ध हुई।

2. “The Great Master did not confine his mission to this country; he travelled far and wide to far off lands and countries in order to enlighten humanity as a whole.” Dr. S.S. Kohli, Travels of Guru Nanak (Chandigarh : 1978) p. IX.
3. “Sajjan’s den of an assassin was transformed into a dharmsala.” K.S. Duggal, Sikh Gurus : Their Lives and Teachings (New Delhi : 1993) p. 17.

द्वितीय उदासी
(Second Udasi)
गुरु नानक देव जी ने 1513 ई० के अंत में अपनी द्वितीय उदासी उत्तर की ओर आरंभ की। इस उदासी में उन्हें तीन वर्ष लगे। इस उदासी के दौरान गुरु नानक देव जी निम्नलिखित प्रमुख स्थानों पर गए—

1. पहाड़ी रियासतें (Hilly States)—गुरु नानक देव जी ने मंडी, रवालसर, ज्वालामुखी, काँगड़ा, बैजनाथ और कुल्लू इत्यादि पहाड़ी रियासतों की यात्रा की। गुरु नानक देव जी के उपदेशों से प्रभावित होकर इन पहाड़ी रियासतों के बहुत-से लोग उनके अनुयायी बन गए।

2. कैलाश पर्वत (Kailash Parvat)-गुरु नानक देव जी तिब्बत से होते हुए कैलाश पर्वत पहुँचे। गुरु साहिब के यहाँ पहुँचने पर सिद्ध बहुत हैरान हुए। गुरु नानक देव जी ने उन्हें बताया कि संसार से सत्य लुप्त हो गया है और चारों ओर भ्रष्टाचार और झूठ का बोलबाला है। इसलिए गुरु साहिब ने उन्हें मानवता का पथ-प्रदर्शन करने का संदेश दिया।

3. लद्दाख (Ladakh)—कैलाश पर्वत के पश्चात् गुरु नानक देव जी लद्दाख पहुँचे। यहाँ के बहुत-से लोग गुरु साहिब के अनुयायी बन गए।

4. कश्मीर (Kashmir)-कश्मीर में स्थित मटन में गुरु नानक देव जी का पंडित ब्रह्मदास से काफ़ी लंबा धार्मिक शास्त्रार्थ हुआ। गुरु नानक देव जी ने उसे समझाया कि मुक्ति केवल वेदों और रामायण इत्यादि को पढ़ने से नहीं अपितु उनमें दी गई बातों पर अमल करके प्राप्त की जा सकती है।।

5. हसन अब्दाल (Hasan Abdal)-गुरु नानक देव जी पंजाब की वापसी यात्रा के समय हसन अब्दाल ठहरे। यहाँ एक अहँकारी फकीर वली कंधारी ने गुरु नानक देव जी को कुचलने के उद्देश्य से एक बहुत बड़ा पत्थर पहाड़ी से नीचे की ओर लुढ़का दिया। गुरु साहिब ने इसे अपने पंजे से रोक दिया। इस स्थान को आजकल पंजा साहिब कहा जाता है।

6. स्यालकोट (Sialkot) स्यालकोट में गुरु नानक देव जी की मुलाकात एक मुसलमान सन्त हमजा गौस से हुई। उसने किसी बात पर नाराज़ होकर अपनी शक्ति द्वारा सारे शहर को नष्ट करने का निर्णय कर लिया था। परंतु जब वह गुरु साहिब से मिला तो वह उनके व्यक्तित्व से इतना प्रभावित हुआ कि उसने अपना निर्णय बदल दिया। इस घटना का लोगों के मन पर गहरा प्रभाव पड़ा।

तृतीय उदासी
(Third Udasi)
गुरु नानक देव जी ने 1517 ई० के अंत में अपनी तृतीय उदासी आरंभ की। इस उदासी के दौरान गुरु साहिब पश्चिमी एशिया के देशों की ओर गए। इस उदासी के दौरान गुरु नानक साहिब ने निम्नलिखित प्रमुख स्थानों की यात्रा की—

1. मुलतान (Multan)—मुलतान में बहुत-से सूफ़ी संत निवास करते थे। मुलतान में गुरु साहिब की भेंट प्रसिद्ध सूफी संत शेख बहाउद्दीन से हुई। शेख बहाउद्दीन उनके विचारों से अत्यधिक प्रभावित हुए।

2. मक्का (Mecca)-मक्का हज़रत मुहम्मद साहिब का जन्म स्थान है । सिख परम्परा के अनुसार गुरु नानक देव जी जब मक्का पहुँचे तो काअबे की ओर पाँव करके सो गए। जब काज़ी रुकनुद्दीन ने यह देखा तो वह क्रोधित हो गया। कहा जाता है कि जब काजी ने गुरु साहिब के पाँव पकड़कर दूसरी ओर घुमाने आरंभ किए तो मेहराब भी उसी ओर घूमने लग पड़ा। यह देखकर मुसलमान बहुत प्रभावित हुए। गुरु साहिब ने उन्हें समझाया कि अल्लाह सर्वव्यापक है।

3. मदीना (Madina) मक्का के पश्चात् गुरु नानक देव जी मदीना पहुँचे। गुरु साहिब ने अपने उपदेशों का प्रचार किया। यहाँ गुरु साहिब का इमाम आज़िम के साथ शास्त्रार्थ भी, हुआ।

4. बगदाद (Baghdad) बगदाद में गुरु नानक देव जी की भेंट शेख बहलोल से हुई। वह गुरु साहिब की वाणी से प्रभावित होकर उनका श्रद्धालु बन गया।

5. सैदपुर (Saidpur)—गुरु नानक देव जी जब 1520 ई० के अंत में सैदपुर पहुंचे तो उस समय बाबर ने पंजाब पर विजय प्राप्त करने के उद्देश्य से वहाँ पर आक्रमण किया। इस आक्रमण के समय हज़ारों की संख्या में लोगों को बंदी बना लिया गया। इन बंदी बनाए गए लोगों में गुरु नानक साहिब भी थे। जब बाद में बाबर को यह ज्ञात हुआ कि गुरु साहिब एक महान् संत हैं तो उसने न केवल गुरु नानक देव जी को बल्कि बहुत से अन्य बंदियों को भी रिहा कर दिया।

इसके पश्चात् गुरु नानक देव जी तलवंडी आ गए। इस प्रकार गुरु नानक देव जी की इन यात्राओं की श्रृंखला 1521 ई० में समाप्त हुई।
उदासियों का प्रभाव
(Impact of the Udasis)
गुरु नानक देव जी की यात्राओं के बहुत महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़े। वे लोगों में फैले अंधविश्वासों को दूर करने और उनमें एक नई जागृति लाने में काफ़ी सीमा तक सफल हुए। गुरु नानक देव जी के व्यक्तित्व से प्रभावित होकर हज़ारों की संख्या में लोग उनके परम श्रद्धालु बन गए। इस प्रकार गुरु नानक देव जी के जीवन काल में ही सिख पंथ अस्तित्व में आ गया। अंत में हम डॉक्टर एस० एस० कोहली के इन शब्दों से सहमत हैं,
“वे (गुरु नानक देव जी) एक पवित्र उद्देश्य को पूर्ण करना चाहते थे और इसमें उन्हें चमत्कारी सफलता प्राप्त हुई।”4
4. “He had a holy mission to perform and his performance was no less than a miracle.” Dr. S.S. Kohli, op, cit., p. XV..

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 4 गुरु नानक देव जी का जीवन और उनकी शिक्षाएँ

गुरु नानक देव जी की शिक्षाएँ
(Teachings of Guru Nanak Dev Ji)

प्रश्न 3.
गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं का विस्तारपूर्वक वर्णन करें।
(Describe in detail the teachings of Guru Nanak Dev Ji.)
अथवा
गुरु नानक देव जी की मुख्य शिक्षाएँ क्या थी ? उनका सामाजिक महत्त्व क्या था ?
(What were the main teachings of Guru Nanak Dev Ji ? What was their social importance ?)
अथवा
गुरु नानक देव जी की मुख्य शिक्षाओं का अध्ययन कीजिए। उनका सामाजिक महत्त्व क्या था ?
(Study the main teachings of Guru Nanak Dev Ji. What was their social significance ?)
अथवा
गुरु नानक देव जी की मुख्य शिक्षाओं का वर्णन करें। (Study the main teachings of Guru Nanak Dev Ji.).
अथवा
गुरु नानक देव जी की मुख्य शिक्षाओं का संक्षिप्त वर्णन करो। (Give a brief account of the main teachings of Guru Nanak Dev Ji.)
अथवा
गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं का वर्णन करो। (Describe the teachings of Guru Nanak Dev Ji.)
उत्तर-
गुरु नानक देव जी की शिक्षाएँ बड़ी सरल किंतु प्रभावशाली थीं। उनकी शिक्षाएँ किसी एक वर्ग, जाति अथवा प्रांत के लिए नहीं थीं। इनका संबंध तो सारी मानव जाति से था। गुरु नानक देव जी की मुख्य शिक्षाओं का वर्णन इस प्रकार है—

1. ईश्वर का स्वरूप (The Nature of God)-गुरु नानक देव जी एक ईश्वर में विश्वास रखते थे। उन्होंने अपनी वाणी में बार-बार ईश्वर की एकता पर बल दिया है। गुरु नानक देव जी के अनुसार ईश्वर ही संसार की रचना करता है, उसका पालन-पोषण करता है और उसका विनाश करता है। देवी-देवते सैंकड़ों और हजारों हैं, परंतु ईश्वर एक है। उसे कई नामों से जाना जाता है जैसे-हरि, गोपाल, वाहेगुरु, साहिब, अल्लाह, खुदा और राम इत्यादि। ईश्वर के दो रूप हैं। वह निर्गुण भी है और सगुण भी। गुरु नानक देव जी के अनुसार ईश्वर सर्वशक्तिमान् है। वह जो चाहता है, वही होता है। उसकी इच्छा के विपरीत कुछ नहीं हो सकता। गुरु जी के अनुसार ईश्वर निराकार है। उसका कोई आकार अथवा रंग-रूप नहीं है। उसका शब्दों में वर्णन नहीं किया जा सकता।

2. माया (Maya)-गुरु नानक देव जी के अनुसार माया मनुष्य के लिए मुक्ति के मार्ग में आने वाली सबसे बड़ी बाधा है। मनमुख व्यक्ति सदैव सांसारिक वस्तुएँ जैसे धन-दौलत, उच्च पद, ऐश्वर्य, सुंदर नारी, पुत्र इत्यादि के चक्र में फंसा रहता है। इसी को माया कहते हैं। माया के कारण वह ईश्वर से दूर हो जाता है और आवागमन के चक्र में फंसा रहता है।

3. हऊमै (Haumai)-मनमुख व्यक्ति में हऊमै (अहं) की भावना बड़ी प्रबल होती है। हऊमै के कारण वह संसार की बुराइयों में फंसा रहता है। फलस्वरूप वह मुक्ति प्राप्त करने की अपेक्षा आवागमन के चक्र में और फंस जाता है।

4. जाति प्रथा का खंडन (Condemnation of the Caste System) उस समय का हिंदू समाज न केवल चार मुख्य जातियों बल्कि अनेक अन्य उपजातियों में विभाजित था। उच्च जाति के लोग निम्न जाति से बहुत घृणा करते थे और उन पर बहुत अत्याचार करते थे। समाज में छुआछूत की भावना बहुत फैल गई थी। गुरु नानक देव जी ने जाति प्रथा का जोरदार शब्दों में खंडन किया। गुरु साहिब ने लोगों को परस्पर भ्रातृभाव का संदेश दिया।

5. मूर्ति-पूजा का खंडन (Condemnation of Idol Worship)-गुरु नानक देव जी ने मूर्ति-पूजा के विरुद्ध प्रचार किया। गुरु साहिब का कहना था कि पत्थर की मूर्तियाँ निर्जीव हैं। यदि उन्हें पानी में फेंक दिया जाए तो वे डूब जाएँगी। जो मूर्तियाँ स्वयं की रक्षा नहीं कर पातीं, वे मनुष्य को कैसे इस भवसागर से पार उतार सकती हैं ? अतः इन मूर्तियों की पूजा करना व्यर्थ है।

6. खोखले रीति-रिवाजों का खंडन (Condemmation of Empty Rituals)-गुरु नानक देव जी ने समाज में प्रचलित खोखले रीति-रिवाजों एवं अंधविश्वासों का जोरदार शब्दों में खंडन किया। उन्होंने लोगों को बताया कि माथे पर तिलक लगाने, शरीर पर राख मलने, उपवास रखने, वन में जाकर तपस्या करने, भगवे वस्त्र पहनने से मनुष्य को मुक्ति प्राप्त नहीं होती। उनके अनुसार उस व्यक्ति का धर्म सच्चा है जिसका अंतःकरण सच्चा है।

7. स्त्रियों के साथ निम्न बर्ताव का खंडन (Denounced IItreatment with Women)-गुरु नानक देव जी के समय समाज में स्त्रियों की दशा बहुत दयनीय थी। उनमें असंख्य कुरीतियाँ प्रचलित थीं। गुरु नानक देव जी ने स्त्रियों में प्रचलित कुरीतियों का जोरदार शब्दों में खंडन किया। उन्होंने समानता के अधिकारों के लिए आवाज़ उठाई। गुरु नानक साहिब फरमाते हैं,
सो क्यों मंदा आखिए जित जम्मे राजान ॥

8. नाम का जाप (Recitation of Nam)-गुरु नानक देव जी नाम जपने और शब्द की आराधना को ईश्वर की भक्ति का सर्वोच्च रूप समझते थे। इन पर चलकर मनुष्य इस रोगग्रस्त अथवा कष्टमयी संसार से मुक्ति प्राप्त कर सकता है। नाम के बिना मनुष्य आवागमन के चक्र में फंसा रहता है। ईश्वर के नाम का जाप पावन मन और सच्ची श्रद्धा से करना चाहिए। डॉक्टर दीवान सिंह लिखते हैं,

9. गुरु का महत्त्व (Importance of the Guru)—गुरु नानक देव जी ईश्वर तक पहुँचने के लिए गुरु को बहुत महत्त्वपूर्ण समझते हैं। उनके अनुसार गुरु मुक्ति तक ले जाने वाली वास्तविक सीढ़ी है। गुरु ही मनुष्य को अंधकार (अज्ञानता) से प्रकाश (ज्ञान) की ओर लाता है। सच्चे गुरु का मिलना कोई सरल कार्य नहीं है। ईश्वर की कृपा के बिना मनुष्य को गुरु की प्राप्ति नहीं हो सकती।

10. हुक्म (Hukam)-गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं में परमात्मा के हुक्म को विशेष महत्त्व प्राप्त है। हुक्म के कारण ही मनुष्य को सुख-दुःख प्राप्त होते हैं। गुरवाणी में अनेक स्थानों पर उस वाहिगुरु के हुक्म को मीठा करके मानने का आदेश दिया गया है। जो मनुष्य ऐसा करता है उसे मुक्ति प्राप्त होती है। जो मनुष्य परमात्मा के आदेश को नहीं मानता वह दर-दर की ठोकरें खाता है।

11. सच्च-खंड (Sach Khand)-गुरु नानक देव जी के अनुसार मानव जीवन का उच्चतम उद्देश्य सच्च-खंड को प्राप्त करना है। सच्च-खंड तक पहुँचने के लिए मनुष्य को धर्म-खंड, ज्ञान-खंड, शर्म-खंड तथा कर्म-खंड में से गुज़रना होता है। सच्च-खंड आखिरी अवस्था है। सच्च-खंड में आत्मा पूर्णतया परमात्मा में लीन हो जाती है।

“पापों एवं बुराइयों से ग्रसित मानवता की मुक्ति के लिए केवल नाम ही सबसे प्रभावकारी स्रोत एवं . शक्ति है।”5
5. Nam is the only and most efficacious source and agent for the redemption and salvation of the sinful and self-engrossed mankind.” Dr. Dewan Singh, Mysticism of Guru Nanak (Amritsar : 1995)2. 57.

शिक्षाओं का महत्त्व
(Importance of Teachings)
गुरु नानक देव जी के उपदेशों ने समाज के विभिन्न क्षेत्रों को पर्याप्त सीमा तक प्रभावित किया। परिणामस्वरूप लोगों को एक नई दिशा मिली। वे व्यर्थ के रस्म-रिवाज छोड़कर एक परमात्मा की पूजा करने लगे। गुरु नानक देव जी ने जाति प्रथा का खंडन करके, परस्पर भ्रातृ-भाव का प्रचार करके, स्त्रियों को पुरुषों के समान दर्जा देकर, संगत तथा पंगत नामक संस्थाओं की स्थापना करके एक नए समाज की आधारशिला रखी। गुरु जी ने अपने उपदेशों द्वारा उस समय के अत्याचारी शासकों तथा उनके भ्रष्ट अधिकारियों को भी झकझोर डाला। प्रसिद्ध इतिहासकार . आई० बी० बैनर्जी के अनुसार,
“गुरु नानक का समय अज्ञानता तथा संघर्ष का समय था तथा हम यह बिना झिझक कह सकते हैं कि गुरु नानक का सन्देश सत्य तथा शाँति का संदेश था।”6

6. “The age of Guru Nanak was an age of ignorance and an age of strife, and we may say at . once the message of Nanak was a message of truth and a message of peace.” Dr. I.B. Banerjee Evolution of the Khalsa (Calcutta : 1979) Vol. I, p. 95.

संक्षिप्त उत्तरों वाले प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
गुरु नानक देव जी की सिख पंथ को देन के संबंध में संक्षिप्त जानकारी दें। (Give a brief account of the contribution of Guru Nanak Dev Ji to Sikhism.)
उत्तर-
15वीं शताब्दी में, जब गुरु नानक देव जी का जन्म हुआ तो उस समय लोग अज्ञानता के अँधकार में भटक रहा था। समाज में महिलाओं की दशा बहुत खराब थी। गुरु नानक देव जी ने लोगों में नई जागृति उत्पन्न करने के उद्देश्य से देश तथा विदेश की यात्राएँ की। गुरु जी ने संगत तथा पंगत नामक संस्थाओं की नींव डाली। गुरु नानक देव जी ने 1539 ई० में ज्योति-जोत समाने से पूर्व अंगद देव जी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया। गुरु अंगद देव जी की नियुक्ति सिख पंथ के विकास के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण प्रमाणित हुई।

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प्रश्न 2.
उदासियों से क्या भाव है ? गुरु नानक देव जी की उदासियों के क्या उद्देश्य थे ?
(What do you mean by Udasis ? What were the aims of Guru Nanak Dev Ji’s Udasis ?)
अथवा
गुरु नानक देव जी की उदासियों के क्या उद्देश्य थे ? (What were the aims of the Udasis of Guru Nanak Dev Ji ?)
उत्तर-
गुरु नानक देव जी द्वारा विभिन्न दिशाओं में की गई यात्राओं को उनकी उदासियाँ कहा जाता है। इन उदासियों का उद्देश्य लोगों में फैली अज्ञानता तथा अंधविश्वास को दूर करना था। वह एक ईश्वर की पूजा तथा भाईचारे का संदेश जन-साधारण तक पहुंचाना चाहते थे। गुरु नानक साहिब ने लोगों को अपने विचारों से अवगत कराया। उन्होंने समाज में प्रचलित झठे रीति-रिवाजों, कर्मकांडों तथा कुप्रथाओं का खंडन किया। उनकी यात्रा का प्रमुख उद्देश्य धर्म के वास्तविक रूप को लोगों के समक्ष लाना था।

प्रश्न 3.
गुरु नानक देव जी की उदासियों का संक्षिप्त विवरण दीजिए। (Give a brief account of the Udasis of Guru Nanak Dev Ji.)
अथवा
गुरु नानक देव जी की किन्हीं तीन महत्त्वपूर्ण उदासियों का संक्षिप्त वर्णन करें। (Give a brief account of any three important Udasis of Guru Nanak Dev Ji.)
उत्तर-

  1. गुरु नानक देव जी ने अपनी प्रथम उदासी सैदपुर से शुरू की। मलिक भागों द्वारा पूछने पर गुरु जी ने बताया कि हमें मेहनत की कमाई से गुजारा करना चाहिए न कि बेईमानी के पैसों से।।
  2. हरिद्वार में गुरु नानक देव जी ने लोगों को यह बात समझाई कि गंगा स्नान करने से या पितरों को पानी देने से कुछ प्राप्त नहीं होता।
  3. मक्का में गुरु जी ने यह प्रमाणित किया कि अल्लाह किसी विशेष स्थान पर नहीं अपितु प्रत्येक स्थान पर विद्यमान है।

प्रश्न 4.
गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं का सार लिखिए।
(Write an essence of the teachings of Guru Nanak Dev Ji.)
अथवा
गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं के बारे में आप क्या जानते हैं ? (What do you know about the teachings of Guru Nanak Dev Ji ?)
अथवा
गुरु नानक देव जी की किन्हीं तीन शिक्षाओं का वर्णन कीजिए। (Describe any three teachings of Guru Nanak Dev Ji.)
उत्तर-

  1. गुरु नानक देव जी के अनुसार ईश्वर एक है। वह निराकार तथा सर्वव्यापक है।
  2. गुरु जी माया को मुक्ति के मार्ग की सबसे बड़ी बाधा मानते थे।
  3. गुरु जी काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार को मनुष्य के पाँच शत्रु बताते हैं। इनके कारण मनुष्य आवागमन के चक्र में फंसा रहता है।
  4. गुरु नानक देव जी ने मूर्ति पूजा का खंडन किया।
  5. गुरु नानक देव जी के अनुसार मनमुख व्यक्ति में अहंकार की भावना बहुत प्रबल होती है।

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प्रश्न 5.
गुरु नानक देव जी के ईश्वर संबंधी क्या विचार थे ? (What was Guru Nank Dev Ji’s concept of God ?)
अथवा
गुरु नानक देव जी के ईश्वर संबंधी क्या विचार थे ? (What were the views of Guru Nanak Dev Ji about God ?)
उत्तर-

  1. गुरु नानक देव जी एक ईश्वर में विश्वास रखते थे। उन्होंने ईश्वर की एकता पर बल दिया।
  2. केवल ईश्वर ही संसार को रचने वाला, पालने वाला तथा नाश करने वाला है।
  3. ईश्वर के दो रूप हैं। वह निर्गुण भी है और सगुण भी।
  4. ईश्वर सर्वशक्तिमान् है। उसकी इच्छा के विपरीत कुछ नहीं हो सकता।
  5. वह आवागमन के चक्र से मुक्त है।

प्रश्न 6.
गुरु नानक देव जी ने किन प्रचलित धार्मिक विश्वासों तथा प्रथाओं का खंडन किया ?
(Which prevalent religious beliefs and conventions were condemned by Guru Nanak Dev Ji ?)
अथवा
गुरु नानक देव जी ने कौन-से प्रचलित धार्मिक विश्वासों तथा व्यवहारों का खंडन किया ? (What type of religious beliefs and rituals were condemned by Guru Nanak Dev Ji ?)
उत्तर-
गुरु नानक देव जी ने समाज में प्रचलित समस्त अंधविश्वासों तथा व्यवहारों का ज़ोरदार शब्दों में खंडन किया। उन्होंने वेद, शास्त्र, मूर्ति पूजा, तीर्थ यात्रा, तथा जीवन के विभिन्न महत्त्वपूर्ण अवसरों से संबंधित संस्कारों का विरोध किया। ब्राह्मण इन रस्मों के मुख्य समर्थक थे। उन्होंने जोगियों की पद्धति को भी दो कारणों से स्वीकार न किया। प्रथम, जोगियों में ईश्वर के प्रति श्रद्धा का अभाव था। दूसरा, वे अपने सामाजिक दायित्व से दूर भागते थे। गुरु नानक देव जी अवतारवाद में भी विश्वास नहीं रखते थे।

प्रश्न 7.
गुरु नानक देव जी का माया का संकल्प क्या है ? संक्षिप्त उत्तर दीजिए।
(What was Guru Nanak Dev Ji’s concept of Maya ? Explain in brief.)
अथवा
गुरु नानक देव जी के माया के संकल्प का वर्णन कीजिए।
(Describe Guru Nanak Dev Ji’s concept of Maya.)
उत्तर-
गुरु नानक देव जी मानते थे कि माया मनुष्य के लिए मुक्ति के मार्ग में आने वाली सबसे बड़ी बाधा है। मनमुख व्यक्ति सदैव सांसारिक वस्तुओं जैसे धन-दौलत, उच्च पद, सुंदर नारी, पुत्र आदि के चक्रों में फंसा रहता है। इसे ही माया कहते हैं। माया जिससे वह इतना प्रेम करता है, उसका मौत के बाद साथ नहीं देती। माया के कारण वह आवागमन के चक्र में फंसा रहता है।

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प्रश्न 8.
गुरु नानक देव जी के उपदेशों में गुरु का क्या महत्त्व है ? (What is the importance of ‘Guru’ in Guru Nanak Dev Ji’s teachings ?)
अथवा
गुरु नानक देव जी के गुरु संबंधी क्या विचार थे ? (What was Guru Nanak Dev Ji’s concept of ‘Guru’ ?)
उत्तर-
गुरु नानक देव जी ईश्वर तक पहुँचने के लिए गुरु को एक वास्तविक सीढ़ी मानते हैं। वह ही मनुष्य को मोह और अहं के रोग से दूर करता है। वही नाम और शब्द की आराधना करने का ढंग बताता है। गुरु के बिना भक्ति भाव और ज्ञान संभव है। गुरु के बिना मनुष्य को चारों और अँधकार दिखाई देता है। गुरु ही मनुष्य को अँधकार से प्रकाश की ओर लाता है। सच्चा गुरु ईश्वर स्वयं है, जो शब्द द्वारा शिक्षा देता है।

प्रश्न 9.
गुरु नानक देव जी के उपदेशों में ‘नाम’ का क्या महत्त्व है ? (What is the importance of ‘Nam’ in Guru Nanak.Dev Ji’s teachings ?)
उत्तर-
गुरु नानक देव जी नाम की आराधना को ईश्वर की भक्ति का सर्वोच्च रूप समझते थे। नाम आराधना के कारण मनुष्य इस रोगग्रस्त अथवा कष्टमयी संसार से मुक्ति प्राप्त कर सकता है। नाम की आराधना करने वाले मनुष्य के सभी भ्रम दूर हो जाते हैं तथा उसके सभी दुःखों का नाश हो जाता है। उसकी आत्मा सदैव एक कमल के फूल की तरह खिली रहती है। ईश्वर के नाम के बिना मनुष्य का इस संसार में आना व्यर्थ है। नाम के बिना मनुष्य सभी प्रकार के पापों और आवागमन के चक्र में फंसा रहता है। ईश्वर उसे नरक से नहीं बचा सकता।

प्रश्न 10.
गुरु नानक देव जी के उपदेशों में हुक्म का क्या महत्त्व है ? (What is the importance of ‘Hukam’ in Guru Nanak Dev Ji’s teachings ?)
उत्तर-
गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं में परमात्मा के हुक्म अथवा भाणे को विशेष महत्त्व प्राप्त है। सारा संसार उस परमात्मा के हुक्म के अनुसार चलता है। उसके हुक्म के अनुसार ही जीव इस संसार में जन्म लेता है या उसकी मृत्यु होती है। उसे प्रशंसा प्राप्त होती है अथवा वह नीच बन जाता है। हुक्म के कारण ही उसे सुख-दुःख प्राप्त होते हैं। जो मनुष्य परमात्मा के हुकम को नहीं मानता वह दर-दर की ठोकरे खाता है।

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प्रश्न 11.
गुरु नानक देव जी के स्त्री जाति संबंधी क्या विचार थे ? (What were the views of Guru-Nanak Dev Ji about women ?)
उत्तर-
गुरु नानक देव जी के समय समाज में स्त्रियों की दशा बहुत दयनीय थी। समाज में स्त्रियों का स्थान पुरुषों के समान नहीं समझा जाता था। गुरु नानक देव जी बाल-विवाह, बहु-विवाह तथा सती प्रथा के कट्टर विरोधी थे। उन्होंने स्त्रियों को पुरुषों के बराबर अधिकार दिए जाने का समर्थन किया। इस संबंध में उन्होंने स्त्रियों को संगत एवं पंगत में सम्मिलित होने की आज्ञा दी।

प्रश्न 12.
गुरु नानक देव जी के संदेश का सामाजिक अर्थ क्या था ? (What was the social meaning of Guru Nanak Dev Ji’s message ?)
अथवा
गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं का पंजाब पर क्या प्रभाव पड़ा ? (What was the impact of teachings of Guru Nanak Dev Ji on Punjab ?)
उत्तर-
गुरु नानक देव जी के संदेश के सामाजिक अर्थ बहुत महत्त्वपूर्ण थे। उनका संदेश प्रत्येक के लिए था। कोई भी स्त्री-पुरुष गुरु जी द्वारा दर्शाए गए मार्ग को अपना सकता था। मुक्ति का मार्ग सबके लिए खुला था। गुरु जी ने सामाजिक समानता का प्रचार किया। उन्होंने जाति प्रथा का जोरदार शब्दों में खंडन किया। सामाजिक समानता के संदेश को व्यावहारिक रूप देने के लिए गुरु जी ने संगत तथा पंगत (लंगर) नामक दो संस्थाएँ चलाईं। लंगर तैयार करते समय जाति-पाति का कोई भेद-भाव नहीं किया जाता था।

प्रश्न 13.
जाति प्रथा पर गुरु नानक देव जी के क्या विचार थे? (What were the views of Guru Nanak Dev Ji on caste system ?)
उत्तर-
गुरु नानक देव जी ने जाति प्रथा का जोरदार शब्दों में खंडन किया। उनका प्रमुख उद्देश्य सामाजिक असमानता को दूर करना था। गुरु नानक देव जी का कथन था कि कोई भी व्यक्ति अपनी जाति के कारण अमीर अथवा ग़रीब नहीं होता। परमात्मा के दरबार में जाति नहीं अपितु कर्मों के अनुसार फल मिलता है। गुरु नानक देव जी ने निम्न जातियों एवं निम्न वर्गों के लोगों को अपने साथ जोड़ा।

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प्रश्न 14.
गुरु नानक देव जी की शिक्षाएँ भक्ति प्रचारकों से किस प्रकार भिन्न थीं ?
(How far were the teachings of Guru Nanak Dev Ji different from the Bhakti reformers ?)
उत्तर-
गुरु नानक देव जी के अनुसार परमात्मा निराकार है। वह कभी भी मानवीय रूप को घारण नहीं करता। भक्ति प्रचारकों ने कृष्ण तथा राम को परमात्मा का अवतार माना। गुरु नानक देव जी मूर्ति पूजा के कट्टर विरोधी थे। जबकि भक्ति प्रचारकों का इसमें पूर्ण विश्वास था। गुरु नानक देव जी गृहस्थ जीवन में विश्वास रखते थे। भक्ति प्रचारक गृहस्थ जीवन को मुक्ति की राह में आने वाली एक बड़ी रुकावट मानते थे। गुरु नानक देव जी ने संगत तथा पंगत नामक दो संस्थाएँ स्थापित की। भक्ति प्रचारकों ने ऐसी कोई संस्था स्थापित नहीं की।

प्रश्न 15.
गुरु नानक देव जी एक महान् कवि और संगीतकार थे। इसकी व्याख्या करें।
(Guru Nanak Dev Ji was a great poet and musician. Explain.)
उत्तर-
गुरु नानक देव जी एक धार्मिक महापुरुष होने के साथ-साथ एक महान् संगीतकार तथा कवि भी थे। आपकी कविताओं के मुकाबले की कविताएँ विश्व साहित्य में भी बहुत कम हैं। गुरु ग्रंथ साहिब में अंकित आप जी के 976 शब्द आपके महान् कवि होने का प्रत्यक्ष प्रमाण हैं। गुरु नानक देव जी ने इन कविताओं में परमात्मा तथा मानवता का गुणगान किया है। इनमें उच्चकोटि के अलंकरणों तथा उपमाओं का प्रयोग किया गया है। गुरु नानक देव जी कई प्रकार के रागों की जानकारी रखते थे। उनके कीर्तन का जनमानस पर गहरा प्रभाव पड़ता था।

प्रश्न 16.
गुरु नानक देव जी ने अपने जीवन के अंतिम 18 वर्ष कहाँ तथा कैसे व्यतीत किए ? (How and where did Guru Nanak Dev Ji spend last 18 years of his life ?)
उत्तर-
गुरु नानक देव जी ने करतारपुर (अर्थात् ईश्वर का नगर) मामक नगर की स्थापना की। इसी स्थान पर गुरु साहिब ने अपने परिवार के साथ जीवन के अंतिम 18 वर्ष व्यतीत किए। इस समय के मध्य गुरु साहिब ने ‘संगत’ और ‘पंगत’ नामक संस्थाओं की स्थापना की । ‘संगत’ से अभिप्राय उस सभा से था जो प्रतिदिन गुरु जी के उपदेशों को सुनने के लिए होती थी। ‘पंगत’ से अभिप्राय था- एक पंक्ति में बैठकर लंगर छकना। इनके अतिरिक्त गुरु जी ने 976 शब्दों की रचना की। गुरु साहिब का यह कार्य सिख पंथ के विकास के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण सिद्ध हुआ।

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वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

(i) एक शब्द से एक पंक्ति तक के उत्तर (Answer in One Word to One Sentence)

प्रश्न 1.
सिख धर्म के संस्थापक कौन थे ?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी।

प्रश्न 2.
गुरु नानक देव जी का जन्म कब हुआ ?
उत्तर-
1469 ई०।

प्रश्न 3.
गुरु नानक देव जी का जन्म कहाँ हुआ था ?
उत्तर-
तलवंडी (पाकिस्तान)।

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प्रश्न 4.
गुरु नानक देव जी के जन्म स्थान को आजकल क्या कहा जाता है ?
उत्तर-
ननकाणा साहिब।

प्रश्न 5.
“सतगुरु नानक प्रगटिआ मिटी धुंधु जागु चानणु होआ” किसने कहा था?
उत्तर-
भाई गुरदास जी।

प्रश्न 6.
गुरु नानक देव जी के पिता का क्या नाम था ?
उत्तर-
मेहता कालू जी।

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प्रश्न 7.
गुरु नानक देव जी के पिता जी किस जाति से संबंधित थे?
उत्तर-
बेदी।

प्रश्न 8.
मेहता कालू जी कौन थे?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी के पिता।

प्रश्न 9.
गुरु नानक देव जी की माता जी का क्या नाम था ?
उत्तर-
तृप्ता जी।

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प्रश्न 10.
तृप्ता जी कौन थी?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी की माता जी।

प्रश्न 11.
गुरु नानक देव जी की बहन का क्या नाम था ?
उत्तर-बेबे नानकी जी।

प्रश्न 12.
गुरु नानक देव जी की पत्नी का क्या नाम था ?
अथवा
गुरु नानक देव जी का विवाह किसके साथ हुआ था?
उत्तर-
बीबी सुलक्खनी जी से।

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प्रश्न 13.
गुरु नानक देव जी ने सच्चा सौदा कितने रुपयों के साथ किया?
उत्तर-
20 रुपयों के साथ।

प्रश्न 14.
गुरु नानक देव जी को सुल्तानपुर लोधी क्यों भेजा गया?
उत्तर-
नौकरी करने के लिए।

प्रश्न 15.
गुरु नानक देव जी को ज्ञान की प्राप्ति कब हुई ?
उत्तर-
1499 ई०

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प्रश्न 16.
गुरु नानक देव जी ने ज्ञान-प्राप्ति के पश्चात् सर्वप्रथम कौन-से शब्द कहे?
अथवा
गुरु नानक साहिब ने किस स्थान से तथा किन शब्दों से सर्वप्रथम प्रचार आरंभ किया?
उत्तर-
“न को हिंदू न को मुसलमान”

प्रश्न 17.
गुरु नानक देव जी की उदासियों से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी की उदासियों से अभिप्राय उनकी यात्राओं से है।

प्रश्न 18.
गुरु नानक देव जी की उदासियों का क्या उद्देश्य था?
उत्तर-
लोगों में फैली अज्ञानता और अंधविश्वासों को दूर करना।

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प्रश्न 19.
गुरु नानक देव जी ने अपनी प्रथम उदासी कब आरंभ की?
उत्तर-
1499 ई०।

प्रश्न 20.
गुरु नानक देव जी ने अपनी उदासी कहाँ से आरंभ की?
उत्तर-
सैदपुर।

प्रश्न 21.
गुरु नानक देव जी ने अपनी प्रथम उदासी के दौरान जिन स्थानों पर चरण रखे, उनमें से किसी एक महत्त्वपूर्ण स्थान का नाम बताएँ।
उत्तर-
कुरुक्षेत्र।

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प्रश्न 22.
उदासियों के समय गुरु नानक देव जी का साथी कौन था ?
उत्तर-
भाई मरदाना जी।

प्रश्न 23.
भाई मरदाना कीर्तन के समय कौन-सा साज़ बजाता था ?
उत्तर-
रबाब।

प्रश्न 24.
श्री गुरु नानक देव जी सैदपुर में किसके घर ठहरे थे ?
अथवा
गुरु नानक देव जी का प्रथम शिष्य कौन था ?
उत्तर-
भाई लालो।

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प्रश्न 25.
गुरु नानक देव जी ने सैदपुर (ऐमनाबाद) में मलिक भागो का भोजन खाने से क्यों इंकार कर दिया था?
उत्तर-
क्योंकि उसकी कमाई ईमानदारी की नहीं थी।

प्रश्न 26.
गुरु नानक देव जी सज्जन ठग को कहाँ मिले ?
अथवा
श्री गुरु नानक देव जी की सज्जन के साथ मुलाकात कहाँ हुई थी ?
उत्तर-
तालुंबा में।

प्रश्न 27.
गुरु नानक देव जी ने किस स्थान पर पूर्व की अपेक्षा पश्चिम दिशा में अपने खेतों को पानी दिया?
उत्तर-
हरिद्वार।

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प्रश्न 28.
गुरु नानक देव जी पानीपत में किस सूफ़ी से मिले ?
उत्तर-
शेख ताहिर से।

प्रश्न 29.
गुरु नानक देव जी की उदासी के बाद गोरखमता का क्या नाम पड़ा?
उत्तर-
नानकमता।

प्रश्न 30.
नूरशाही कौन थी?
उत्तर-
कामरूप की प्रसिद्ध जादूगरनी।

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प्रश्न 31.
उड़ीसा के किस मंदिर में गुरु साहिब ने लोगों को आरती का सही अर्थ बताया?
उत्तर-
जगन्नाथ पुरी।

प्रश्न 32.
गुरु नानक साहिब ने कैलाश पर्वत के सिद्धों को क्या उपदेश दिया?
उत्तर-
वह मानवता की सेवा करें।

प्रश्न 33.
गुरु नानक देव जी लंका के किस शासक को मिले थे ?
उत्तर-
शिवनाथ।

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प्रश्न 34.
गुरु नानक देव जी ने अपनी उदासियों के दौरान किस स्थान पर काबे को घुमाया?
उत्तर-
मक्का

प्रश्न 35.
मक्का में गुरु नानक देव जी का किस काजी के साथ वाद-विवाद हुआ?
उत्तर-
रुकनुद्दीन।

प्रश्न 36.
हसन अब्दाल को अब किस नाम से जाना जाता है?
उत्तर-
पंजा साहिब।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 4 गुरु नानक देव जी का जीवन और उनकी शिक्षाएँ

प्रश्न 37.
श्री गुरु नानक देव जी बगदाद में किस शेख को मिले ?
उत्तर-
शेख बहलोल।

प्रश्न 38.
गुरु नानक देव जी को बाबर ने कब गिरफ्तार किया था?
उत्तर-
1520 ई०।

प्रश्न 39.
गुरु नानक देव जी का समकालीन मुग़ल बादशाह कौन था?
उत्तर-
बाबर।

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प्रश्न 40.
गुरु नानक देव जी ने सैदपुर आक्रमण की तुलना किसके साथ की है?
उत्तर-
पाप की बारात।

प्रश्न 41.
गुरु नानक देव जी की कोई एक मुख्य शिक्षा बताएँ।
उत्तर-
ईश्वर एक है।

प्रश्न 42.
गुरु नानक देव जी का माया का संकल्प क्या था?
उत्तर-
संसार एक माया है।

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प्रश्न 43.
गुरु नानक देव जी के अनुसार मनुष्य के पाँच दुश्मन कौन-से हैं ?
उत्तर-
काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार।

प्रश्न 44.
गुरु नानक देव जी की शिक्षा में गुरु का क्या महत्त्व है?
अथवा
सिख धर्म में गुरु को क्या महत्त्व दिया गया है?
उत्तर-
गुरु मुक्ति तक ले जाने वाली वास्तविक सीढ़ी है।

प्रश्न 45.
गुरु नानक देव जी के अनुसार नाम जपने का क्या महत्त्व है?
उत्तर-
नाम के बिना मनुष्य का इस संसार में आना व्यर्थ है।

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प्रश्न 46.
मनमुख व्यक्ति की कोई एक विशेषता बताएँ।
उत्तर-
मनमुख व्यक्ति इंद्रिय-जन्य भूख से घिरा रहता है।

प्रश्न 47.
आत्म-समर्पण से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
अहं का त्याग।

प्रश्न 48.
‘नदिर’ शब्द से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
ईश्वर की दया।

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प्रश्न 49.
हुक्म शब्द से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
ईश्वर की इच्छा।

प्रश्न 50.
‘किरत’ से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
मेहनत तथा इमानदारी का श्रम।

प्रश्न 51.
अंजन माहि निरंजन’ से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
संसार की बुराइयों में रहते हुए सादा तथा पवित्र जीवन व्यतीत करना।

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प्रश्न 52.
गुरु नानक देव जी ने अपने अनुयायियों को कौन-सी तीन बातों पर चलने को कहा?
अथवा
गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं का सार तीन शब्दों में बताएँ।
उत्तर-
श्रम करो, नाम जपो तथा बाँट कर खाओ।

प्रश्न 53.
कीर्तन की प्रथा किस गुरु जी ने आरंभ की?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी।

प्रश्न 54.
रावी के किनारे गुरु नानक देव जी ने कौन-सा नगर बसाया?
उत्तर-
करतारपुर।

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प्रश्न 55.
करतारपुर से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
‘ईश्वर का नगर’। प्रश्न 56. करतारपुर में गुरु नानक देव जी ने कौन-सी दो संस्थाएँ स्थापित की? उत्तर-‘संगत और पंगत’।

प्रश्न 57.
संगत से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
संगत से अभिप्राय उस समूह से है जो एकत्रित होकर गुरु जी के उपदेश सुनते हैं।

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प्रश्न 58.
पंगत से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
पंक्तियों में बैठकर लंगर खाना।

प्रश्न 59.
लंगर प्रथा का आरंभ किस गुरु साहिब ने किया?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी।

प्रश्न 60.
गुरु नानक देव जी तथा भक्तों की शिक्षाओं में कोई एक अंतर बताएँ।
उत्तर-
गुरु नानक देव जी मूर्ति पूजा के विरुद्ध थे जबकि भक्त नहीं।

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प्रश्न 61.
गुरु नानक देव जी ने अपने जीवन का अंतिम समय कहाँ व्यतीत किया?
अथवा
गुरु नानक देव जी ने अपने जीवन के अंतिम वर्ष कहाँ व्यतीत किए ?
उत्तर-
करतारपुर।

प्रश्न 62.
गुरु नानक देव जी कब ज्योति-जोत समाए थे?”
उत्तर-
1539 ई० में।

प्रश्न 63.
गुरु नानक देव जी कहाँ ज्योति-जोत समाए ?
उत्तर-
करतारपुर (पाकिस्तान)।

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प्रश्न 64.
गुरु नानक देव जी ने किसे अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया?
उत्तर-
गुरु अंगद देव जी।

प्रश्न 65.
गुरु नानक देव जी ने भाई लहणा जी को अंगद देव का नाम क्यों दिया?
उत्तर-
क्योंकि वह भाई लहणा जी को अपने शरीर का एक अंग समझते थे।

(ii) रिक्त स्थान भरें (Fill in the Blanks)

प्रश्न 1.
……………. में गुरु नानक देव जी का जन्म हुआ।
उत्तर-
(1469 ई०)

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प्रश्न 2.
गुरु नानक देव जी के पिता जी का नाम ………….. जी था।
उत्तर-
(मेहता कालू)

प्रश्न 3.
गुरु नानक देव जी की बहन का नाम ……………… जी था।
उत्तर-
(बेबे नानकी)

प्रश्न 4.
गुरु नानक देव जी की माता जी का नाम ………………. जी था।
उत्तर-
(तृप्ता )

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प्रश्न 5.
गुरु नानक देव जी ने सच्चा सौदा …………. रुपयों से किया।
उत्तर-
(20)

प्रश्न 6.
गुरु नानक देव जी ने ……………….. के मोदीखाने में नौकरी की।
उत्तर-
(सुल्तानपुर लोधी)

प्रश्न 7.
गुरु नानक देव जी के ज्ञान-प्राप्ति के समय उनकी आयु ………… थी।
उत्तर-
(30 वर्ष)

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प्रश्न 8.
गुरु नानक देव जी ने ज्ञान-प्राप्ति के पश्चात् सर्वप्रथम …………….. शब्द कहे।
उत्तर-
(न को हिंदू, न.को मुसलमान)

प्रश्न 9.
गुरु नानक देव जी की उदासियों से भाव है …………..।
उत्तर-
(यात्राएँ)

प्रश्न 10.
गुरु नानक देव जी ने पहली उदासी ………….. ई० में शुरू की।
उत्तर-
(1499)

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प्रश्न 11.
गुरु नानक देव जी ने यात्राओं के समय …………….. सदैव उनके साथ रहता था।
उत्तर-
(भाई मरदाना)

प्रश्न 12.
गुरु नानक देव जी के अपनी पहली यात्रा के दौरान सबसे पहले …………….. नामक स्थान पर गए।
उत्तर-
(सैदपुर)

प्रश्न 13.
गुरु नानक देव जी की सज्जन ठग के साथ मुलाकात जन ठग के साथ मुलाकात …………….. में हुई।
उत्तर-
(तालुंबा)

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प्रश्न 14.
गुरु नानक देव जी ने …………… में अपने खेतों को पानी दिया।
उत्तर-
(हरिद्वार)

प्रश्न 15.
गुरु नानक देव जी ने ……………. में परमात्मा की वास्तविक आरती के महत्त्व के बारे में बताया।
उत्तर-
(जगन्नाथ पुरी)

प्रश्न 16.
गुरु नानक देव जी की सिद्धों के साथ मुलाकात …………… में हुई थी।
उत्तर-
(कैलाश पर्वत)

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प्रश्न 17.
गुरु नानक देव जी मक्का यात्रा के समय वहाँ के काजी का नाम ……………… था।
उत्तर-
(रुकनुद्दीन)

प्रश्न 18.
गुरु नानक देव जी ने अपने जीवन के अंतिम वर्ष …………… में व्यतीत किए।
उत्तर-
(करतारपुर)

प्रश्न 19.
गुरु नानक देव जी ने …………….. और …………… नामक दो संस्थाओं की स्थापना की।
उत्तर-
(संगत, पंगत)

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प्रश्न 20.
गुरु नानक देव जी ………….. परमात्मा में विश्वास रखते थे।
उत्तर-
(एक)

प्रश्न 21.
गुरु नानक देव जी ने जाति प्रथा और मूर्ति पूजा का ……………… किया।
उत्तर-
(खंडन)

प्रश्न 22.
गुरु नानक देव जी के अनुसार मनुष्य के ……………. शत्रु हैं।
उत्तर-
(पाँच)

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प्रश्न 23.
गुरु नानक देव जी के अनुसार मानव जीवन का उच्चतम उद्देश्य ……………… को प्राप्त करना है।
उत्तर-
(सच्च-खंड)

प्रश्न 24.
गुरु नानक देव जी ……………….. में ज्योति-ज्योत समाए।
उत्तर-
(1539 ई०)

प्रश्न 25.
गुरु नानक देव जी ने ……………… को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया।
उत्तर-
(भाई लहणा जी)

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(ii) ठीक अथवा गलत (True or False)

नोट-निम्नलिखित में से ठीक अथवा गलत चुनें

प्रश्न 1.
गुरु नानक देव जी का जन्म 1469 ई० में हुआ।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 2.
गुरु नानक देव जी के जन्म स्थान को आजकल पंजा साहिब कहा जाता है।
उत्तर-
गलत

प्रश्न 3.
गुरु नानक देव जी के पिता जी का नाम मेहता काल जी था।
उत्तर-
ठीक

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प्रश्न 4.
गुरु नानक देव जी की माता का नाम सभराई देवी जी था।
उत्तर-
गलत

प्रश्न 5.
गुरु नानक देव जी की बहन का नाम बेबे नानकी जी था।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 6.
गुरु नानक देव जी बेदी जाति के साथ संबंधित थे।
उत्तर-
ठीक

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प्रश्न 7.
गुरु नानक देव जी ने 40 रुपयों से सच्चा सौदा किया।
उत्तर-
गलत

प्रश्न 8.
गुरु नानक देव जी का विवाह अमृतसर निवासी बीबी सुलक्खनी जी के साथ किया गया था।
उत्तर-
गलत

प्रश्न 9.
गुरु नानक देव जी के दो पुत्रों के नाम श्रीचंद और लख्मी दास थे।
उत्तर-
ठीक

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प्रश्न 10.
गुरु नानक देव जी ने गोइंदवाल साहिब के मोदीखाने में नौकरी की थी।
उत्तर-
गलत

प्रश्न 11.
गुरु नानक देव जी ने ज्ञान प्राप्ति के बाद ‘म को हिंदू, न को मुसलमान’ नामक शब्द कहे।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 12.
ज्ञान प्राप्ति के समय गुरु नानक देव जी की आयु 35 वर्ष थी।
उत्तर-
गलत

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प्रश्न 13.
गुरु नानक देव जी की उदासियों से भाव उनकी यात्राओं से हैं।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 14.
गुरु नानक देव जी ने अपनी पहली उदासी सैदपुर से आरंभ की।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 15.
गुरु नानक देव जी सैदपुर में मलिक भागो के घर ठहरे थे।
उत्तर-
गलत

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प्रश्न 16.
गुरु नानक देव जी कुरुक्षेत्र में सज्जन ठग से मिले।
उत्तर-
गलत

प्रश्न 17.
गुरु नानक देव जी ने हरिद्वार से अपने खेतों को पानी दिया था। .
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 18.
गुरु नानक देव जी ने जगन्नाथ पुरी में पंडितों को वास्तविक आरती की जानकारी दी।
उत्तर-
ठीक

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प्रश्न 19.
मक्का में गुरु नानक देव जी काबे की ओर पैर करके सो गए थे।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 20.
गुरु नानक देव जी ने संगत और पंगत नामक दो संस्थाओं की स्थापना की थी।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 21.
गुरु नानक देव जी एक परमात्मा में विश्वास रखते थे।
उत्तर-
ठीक

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प्रश्न 22.
गुरु नानक देव जी जाति प्रथा और मूर्ति पूजा में विश्वास रखते थे।
उत्तर-
गलत

प्रश्न 23.
गुरु नानक देव जी स्त्रियों को पुरुषों के समान अधिकार देने के पक्ष में थे।
उत्तर-ठीक

प्रश्न 24.
गुरु नानक देव जी 1539 ई० में ज्योति-ज्योत समाए।
उत्तर-
ठीक

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प्रश्न 25.
गुरु नानक देव जी ने भाई लहणा जी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया।
उत्तर-
ठीक

(iv) बहु-विकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions)

नोट-निम्नलिखित में से ठीक उत्तर का चयन कीजिए

प्रश्न 1.
सिख धर्म के संस्थापक कौन थे ?
(i) गुरु नानक देव जी
(ii) गुरु अंगद देव जी
(iii) गुरु हरगोबिंद जी
(iv) गुरु गोबिंद सिंह जी।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 2.
गुरु नानक देव जी का जन्म कब हुआ ?
(i) 1459 ई० में
(ii) 1469 ई० में
(iii) 1479 ई० में
(iv) 1489 ई० में।
उत्तर-
(ii)

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प्रश्न 3.
गुरु नानक देव जी का जन्म स्थान कौन-सा था ? ।
(i) कीरतपुर साहिब
(ii) करतारपुर
(iii) तलवंडी
(iv) लाहौर।
उत्तर-
(iii)

प्रश्न 4.
गुरु नानक देव जी के पिता जी का क्या नाम था ?
(i) मेहता कालू जी
(ii) जैराम जी
(iii) श्री चंद जी
(iv) फेरुमल जी।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 5.
गुरु नानक देव जी की माता जी का क्या नाम था ?
(i) खीवी जी
(ii) तृप्ता जी
(iii) नानकी जी
(iv) गुजरी जी।
उत्तर-
(ii)

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प्रश्न 6.
निम्नलिखित में से कौन गुरु नानक देव जी की बहन थी ?
(i) बेबे नानकी जी
(ii) भानी जी
(iii) दानी जी
(iv) खीवी जी।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 7.
गुरु नानक देव जी ने सच्चा सौदा कितने रुपयों में किया था ?
(i) 10
(ii) 20
(iii) 30
(iv) 50
उत्तर-
(i)

प्रश्न 8.
गुरु नानक देव जी की पत्नी का क्या नाम था ?
(i) गंगा देवी जी
(ii) सुलक्खनी जी
(iii) बीबी वीरो जी
(iv) बीबी भानी जी।
उत्तर-
(ii)

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प्रश्न 9.
मेहता कालू ने गुरु नानक देव जी को कहाँ नौकरी करने के लिए भेजा था ?
(i) मुलतान
(ii) सीतापुर
(iii) सुल्तानपुर लोधी
(iv) कीरतपुर साहिब।
उत्तर-
(ii)

प्रश्न 10.
ज्ञान प्राप्ति के समय गुरु नानक देव जी की आयु कितनी थी ?
(i) 20 साल
(ii) 22 साल
(iii) 26 साल
(iv) 30 साल।
उत्तर-
(iv)

प्रश्न 11.
गुरु नानक देव जी की उदासियों का उद्देश्य क्या था ?
(i) लोगों में फैले अन्धविश्वास को दूर करना
(ii) नाम का प्रचार करना
(iii) आपसी भाईचारे का प्रचार करना
(iv) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(iv)

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प्रश्न 12.
गुरु नानक देव जी ने अपनी पहली उदासी कहाँ से आरंभ की ?
(i) गोरखमता
(ii) हरिद्वार
(iii) सैदपुर
(iv) कुरुक्षेत्र।
उत्तर-
(iii)

प्रश्न 13.
गुरु नानक देव जी की मुलाकात सजन ठग से कहाँ हुई थी ?
(i) तालुंबा में
(ii) सैदपुर में।
(iii) दिल्ली में
(iv) धुबरी में।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 14.
गुरु नानक देव जी जादूगरनी नूरशाही को कहाँ मिले थे ?
(i) गया
(ii) कामरूप
(iii) धुबरी में
(iv) बनारस।
उत्तर-
(ii)

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प्रश्न 15.
किस स्थान पर गुरु नानक साहिब ने बताया परमात्मा की आरती प्रकृति सदैव करती रहती है ?
(i) हरिद्वार
(ii) कुरुक्षेत्र
(iii) बनारस
(iv) जगन्नाथ पुरी।
उत्तर-
(iv)

प्रश्न 16.
गुरु नानक देव जी श्री लंका में किस शासक से मिले थे ?
(i) कृष्णदेव राय
(ii) भोलेनाथ
(ii) शिवनाथ
(iv) शंकर देव।
उत्तर-
(iii)

प्रश्न 17.
निम्नलिखित में से किस स्थान को आजकल पंजा साहिब के नाम से जाना जाता है ?
(i) पाकपटन
(ii) स्यालकोट
(iii) हसन अब्दाल
(iv) गोरखमता।
उत्तर-
(iii)

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प्रश्न 18.
मक्का में कौन-से काज़ी ने गुरु नानक देव जी को काबे की तरफ पाँव करके सोने से रोका था?
(i) बहाउदीन
(ii) कुतुबुदीन
(iii) रुकनुदीन
(iv) शमसुदीन।
उत्तर-
(ii)

प्रश्न 19.
गुरु नानक देव जी की बगदाद में किसके साथ मुलाकाल हुई ?
(i) सज्जन ठग
(ii) शेख बहलोल
(iii) बाबर
(iv) चैतन्य महाप्रभु।
उत्तर-
(ii)

प्रश्न 20.
गुरु नानक देव जी ने करतारपुर में कब निवास किया ?
(i) 1519 ई० में
(ii) 1520 ई० में
(iii) 1521 ई० में
(iv) 1522 ई० में।
उत्तर-
(iii)

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प्रश्न 21.
गुरु नानक देव जी के अनुसार परमात्मा का क्या स्वरूप है ?
(i) वह सर्वशक्तिमान है
(ii) वह सदैव रहने वाला है
(iii) वह निर्गुण और सगुण है
(iv) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(iv)

प्रश्न 22.
निम्नलिखित में से कौन-सी विशेषता मनमुख व्यक्ति की नहीं है ?
(i) वह माया के चक्कर में फंसा रहता है।
(ii) वह सदैव नाम का जाप करता है
(iii) उसमें हऊमै की भावना रहती है
(iv) वह सदैव इंद्रियजन्य भूख से घिरा रहता है।
उत्तर-
(ii)

प्रश्न 23.
गुरु नानक देव जी ने निम्नलिखित में से किसका खंडन नहीं किया ?
(i) पुरोहित वर्ग का
(i) जाति प्रथा का
(iii) मूर्ति पूजा का
(iv) स्त्री पुरुष की बराबरी का।
उत्तर-
(iv)

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प्रश्न 24.
गुरु नानक देव जी के अनुसार परमात्मा तक पहुँचने का कौन-सा साधन अपनाना चाहिए ?
(i) नाम का जाप करना
(ii) सच्चे गुरु को मिलना
(iii) परमात्मा का हुक्म मानना
(iv) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(iv)

प्रश्न 25.
गुरु नानक देव जी ने मनुष्य के कितने शत्रु बताएँ हैं ?
(i) दो
(ii) तीन
(iii) चार
(iv) पाँच।
उत्तर-
(iv)

प्रश्न 26.
गुरु नानक देव जी ने निम्नलिखित में से कौन-से सिद्धांत पर चलने के लिए प्रत्येक मनुष्य के लिए ज़रूरी बताया ?
(i) किरत करना
(ii) नाम जपना
(iii) बाँट छकना
(iv) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(iv)

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प्रश्न 27.
कीर्तन की प्रथा किस गुरु ने आरंभ की ?
(i) गुरु नानक देव जी ने
(ii) गुरु अमरदास जी ने
(iii) गुरु अर्जन देव जी ने
(iv) गुरु गोबिंद सिंह जी ने।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 28.
निम्नलिखित में से कौन-सा तथ्य प्रमाणित करता है कि गुरु नानक देव जी एक क्रांतिकारी थे ?
(i) नई संस्थाओं की स्थापना
(i) जाति प्रथा का विरोध
(iii) मूर्ति पूजा का खंडन
(iv) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(iv)

प्रश्न 29.
गुरु नानक देव जी ने अपना उत्तराधिकारी किसे नियुक्त किया ?
(i) भाई जेठा जी
(ii) भाई दुर्गा जी
(iii) भाई लहणा जी
(iv) श्री चंद जी।
उत्तर-
(iii)

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प्रश्न 30.
गुरु नानक देव जी कब ज्योति-जोत समाए थे ?
(i) 1519 ई० में
(ii) 1529 ई० में
(iii) 1539 ई० में
(iv) 1549 ई० में।
उत्तर-
(iii)

Long Answer Type Question

प्रश्न 1.
गुरु नानक देव जी की सिख पंथ को देन के संबंध में संक्षिप्त जानकारी दें। (Give a brief account of the contribution of Guru Nanak Dev Ji to Sikhism.)
उत्तर-
15वीं शताब्दी में, जब गुरु नानक देव जी का जन्म हुआ तो उस समय भारत की राजनीतिक, सामाजिक तथा धार्मिक दशा बहुत शोचनीय थी। मुसलमान शासक वर्ग से संबंधित थे। वे हिंदुओं से बहुत घृणा करते थे और उन पर भारी अत्याचार करते थे। धर्म केवल एक दिखावा बन कर रह गया था। लोग अज्ञानता के अंधकार में भटक रहे थे। समाज में महिलाओं की दशा बहुत खराब थी। गुरु नानक देव जी ने लोगों में प्रचलित अंधविश्वासों को दूर करने के लिए तथा उनमें नई जागृति उत्पन्न करने के उद्देश्य से देश तथा विदेश की यात्राएँ कीं। इन यात्राओं के दौरान गुरु जी ने लोगों से एक ईश्वर की पूजा करने, आपसी भ्रातृत्व, महिलाओं को पुरुषों के समान अधिकार देने, शुद्ध व पवित्र जीवन व्यतीत करने तथा अंध-विश्वासों को त्यागने का.प्रचार किया। गुरु जी जहाँ भी गए उन्होंने अपने उपदेशों द्वारा लोगों पर गहरा प्रभाव डाला। गुरु जी ने शासक वर्ग तथा उसके कर्मचारियों द्वारा किए जा रहे अन्याय के विरुद्ध आवाज़ उठाई। उन्होंने संगत तथा पंगत नामक संस्थाओं की नींव रखी। गुरु जी के जीवन काल में ही एक नया भाईचारा अस्तित्व में आ चुका था। गुरु नानक देव जी ने 1539 ई० में ज्योति-जोत समाने से पूर्व अंगद देव जी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया। गुरु अंगद देव जी की नियुक्ति सिख पंथ के विकास के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण प्रमाणित हुई।

प्रश्न 2.
उदासियों से क्या भाव है ? गुरु नानक देव जी की उदासियों के क्या उद्देश्य थे ? (What do you mean by Udasis ? What were the aims of Guru Nanak Dev Ji’s Udasis ?)
अथवा
गुरु नानक देव जी की उदासियों के क्या उद्देश्य थे ?
(What were the aims of the Udasis of Guru Nanak Dev Ji ?)
उत्तर-
गुरु नानक देव जी की उदासियों से अभिप्राय उनकी यात्राओं से था। गुरु नानक देव जी की उदासियों का मुख्य उद्देश्य लोगों में फैली अज्ञानता तथा अंध-विश्वासों को दूर करना था। वह एक ईश्वर की पूजा तथा आपसी भ्रातृत्व का संदेश जन-साधारण तक पहुँचाना चाहते थे। उस समय हिंदू तथा मुसलमान दोनों ही धर्म के वास्तविक सिद्धांतों को भूल कर अपने मार्ग से भटक चुके थे। पुरोहित वर्ग जिसका मुख्य कार्य भटके हुए लोगों का उचित दिशा निर्देशन करना था, वह स्वयं ही भ्रष्ट हो चुका था। जब धर्म के ठेकेदार स्वयं ही अंधकार में भटक रहे हों तो जन-साधारण की दशा का सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है। लोगों ने अनगिनत देवी-देवताओं, कब्रों, वृक्षों, साँपों तथा पत्थरों आदि की पूजा आरंभ कर दी थी। इस प्रकार धर्म की सच्ची भावना समाप्त हो चुकी थी। समाज जातियों तथा उपजातियों में विभाजित था। एक जाति के लोग दूसरी जाति के लोगों से घृणा करते थे। समाज में महिलाओं की दशा दयनीय थी। उन्हें पुरुषों के समान नहीं समझा जाता था। गुरु नानक देव जी ने अज्ञानता के अंधेरे में भटक रहे इन लोगों को प्रकाश का एक नया मार्ग दिखाने के लिए यात्राएँ कीं।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 4 गुरु नानक देव जी का जीवन और उनकी शिक्षाएँ

प्रश्न 3.
गुरु नानक देव जी की प्रमुख उदासियों का संक्षिप्त विवरण दीजिए। (Give a brief account of the main Udasis of Guru Nanak Dev Ji.)
अथवा
गुरु नानक देव जी की किन्हीं छः महत्त्वपूर्ण उदासियों का संक्षिप्त वर्णन करें।
(Give a brief account of any six important Udasis of Guru Nanak Dev Ji.)
उत्तर-
1. सैदपुर-गुरु नानक देव जी अपनी प्रथम उदासी के दौरान सर्वप्रथम सैदपुर पहुंचे। यहाँ पहुँचने पर मलिक भागो ने गुरु साहिब को एक ब्रह्मभोज पर निमंत्रण दिया, परंतु गुरु साहिब एक निर्धन बढ़ई भाई लालो के घर ठहरे। जब इस संबंध में मलिक भागो ने गुरु नानक देव जी से पूछा तो उन्होंने एक हाथ में मलिक भागो के भोज और दूसरे हाथ में भाई लालो की सूखी रोटी लेकर ज़ोर से दबाया। मलिक भागो के भोज से खून और भाई लालो की रोटी में से दूध निकला। इस प्रकार गुरु साहिब ने उसे बताया कि हमें श्रम तथा ईमानदारी की कमाई करनी चाहिए।

2. तालुंबा-तालुंबा में गुरु नानक देव जी की भेंट सज्जन ठग से हुई। उसने यात्रियों के लिए अपनी हवेली में एक मंदिर और मस्जिद बनाई हुई थी। वह दिन के समय तो यात्रियों की खूब सेवा करता, किंतु रात के समय उन्हें लूटकर कुएँ में फेंक देता था। वह गुरु नानक देव जी और मरदाना के साथ भी कुछ ऐसा ही करने की योजनाएँ बना रहा था। रात्रि के समय जब गुरु नानक देव जी ने वाणी पढ़ी तो सज्जन ठग गुरु साहिब के चरणों में गिर पड़ा। गुरु नानक देव जी ने उसे क्षमा कर दिया। इस घटना के पश्चात् सज्जन ने अपना शेष जीवन सिख धर्म का प्रचार करने में व्यतीत किया। .

3. गोरखमता-हरिद्वार के पश्चात् गुरु नानक देव जी गोरखमता पहुँचे। गुरु नानक देव जी ने यहाँ के सिद्ध योगियों को बताया कि कानों में कुंडल पहनने, शरीर पर विभूति रमाने, बँख बजाने से अथवा सिर मुंडवा देने से मुक्ति प्राप्त नहीं होती। मुक्ति तो आत्मा की शुद्धि से प्राप्त होती है। ये योगी गुरु नानक देव जी के उपदेशों से अत्यधिक प्रभावित हुए। उस समय से ही गोरखमता का नाम नानकमता- पड़ गया।

4. हसन अब्दाल-गुरु नानक देव जी पंजाब की वापसी यात्रा के समय हसन अब्दाल ठहरे। यहाँ एक अहँकारी फकीर वली कंधारी ने गुरु नानक देव जी को कुचलने के उद्देश्य से एक बहुत बड़ा पत्थर पहाड़ी से नीचे की ओर लुढ़का दिया। गुरु साहिब ने इसे अपने पंजे से रोक दिया। इस स्थान को आजकल पंजा साहिब कहा जाता है।

5. मक्का -मक्का हज़रत मुहम्मद साहिब का जन्म स्थान है। सिख परंपरा के अनुसार गुरु नानक देव जी जब मक्का पहुँचे तो वह काअबे की ओर पाँव करके सो गए। जब काज़ी रुकनुद्दीन ने यह देखा तो वह क्रोधित हो गया। गुरु साहिब ने उसे समझाया कि अल्लाह सर्वव्यापक है।

6. जगन्नाथ पुरी-असम की यात्रा के पश्चात् गुरु नानक देव जी उड़ीसा में जगन्नाथ पुरी पहुँचे। पंडितों ने गुरु साहिब को जगन्नाथ देवता की आरती करने के लिए कहा। गुरु नानक साहिब ने उन्हें बताया कि उस परम पिता परमात्मा की आरती प्रकृति सदैव करती रहती है।

प्रश्न 4.
गुरु नानक देव जी की प्रथम उदासी का वर्णन करो।
(Give a brief account of the first Udasi of Guru Nanak Dev Ji.)
उत्तर-
गुरु नानक देव जी ने 1499 ई० के अंत में अपनी पहली यात्रा आरंभ की। इन यात्राओं के समय भाई मरदाना उनके साथ रहा। इस यात्रा को गुरु नानक देव जी ने 12 वर्ष में संपूर्ण किया और वह पूर्व से दक्षिण की ओर गए। इस यात्रा के दौरान गुरु जी ने निम्नलिखित प्रमुख स्थानों की यात्रा की—

1. सैदपुर-गुरु नानक देव जी अपनी प्रथम उदासी के दौरान सर्वप्रथम सैदपुर पहुँचे। यहाँ पहुँचने पर मलिक भागो ने गुरु साहिब को एक ब्रह्मभोज पर निमंत्रण दिया, परंतु गुरु साहिब एक निर्धन बढ़ई भाई लालो के घर ठहरे। जब इस संबंध में मलिक भागो ने गुरु नानक देव जी से पूछा तो उन्होंने एक हाथ में मलिक भागो के भोज और दूसरे हाथ में भाई लालो की सूखी रोटी लेकर ज़ोर से दबाया। मलिक भागो के भोज से खून और भाई लालो की रोटी में से दूध निकला। इस प्रकार गुरु साहिब ने उसे बताया कि हमें श्रम तथा ईमानदारी की कमाई करनी चाहिए।

2. कुरुक्षेत्र-गुरु नानक देव जी सूर्य ग्रहण के अवसर पर कुरुक्षेत्र पहुँचे। इस अवसर पर हज़ारों ब्राह्मण और साधु एकत्रित हुए थे। गुरु साहिब ने ब्राह्मणों को समझाया कि हमें सादा एवं पवित्र जीवन व्यतीत करना चाहिए। गुरु जी के विचारों से प्रभावित होकर अनेक लोग उनके अनुयायी बन गए।

3. गोरखमता-हरिद्वार के पश्चात् गुरु नानक देव जी गोरखमता पहुँचे। गुरु नानक साहिब ने यहाँ के सिद्ध योगियों को बताया कि कानों में कुंडल पहनने, शरीर पर विभूति रमाने, शैख बजाने से अथवा सिर मुंडवा देने से मुक्ति प्राप्त नहीं होती। मुक्ति तो आत्मा की शुद्धि से प्राप्त होती है। ये योगी गुरु साहिब के उपदेशों से अत्यधिक प्रभावित हुए। उस समय से ही गोरखमता का नाम नानकमता पड़ गया।

4. कामरूप-धुबरी से गुरु नानक देव जी कामरूप (असम) पहुँचे। यहाँ की प्रसिद्ध जादूगरनी नूरशाही ने. अपनी सुंदरता के बल पर गुरु जी को भटकाने का असफल प्रयास किया। गुरु जी ने उसे जीवन का सही मनोरथ बताया।

5. जगन्नाथ पुरी-असम की यात्रा के पश्चात् गुरु नानक देव जी उड़ीसा में जगन्नाथ पुरी पहुँचे। पंडितों ने गुरु साहिब को जगन्नाथ देवता की आरती करने के लिए कहा। गुरु नानक साहिब ने उन्हें बताया कि उस परम पिता परमात्मा की आरती प्रकृति सदैव करती रहती है।

6. लंका-गुरु नानक देव जी ने लंका की भी यात्रा की। लंका का शासक शिवनाथ गुरु नानक देव जी के व्यक्तित्व से बहुत प्रभावित हुआ तथा उनका श्रद्धालु बन गया।

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प्रश्न 5.
गुरु नानक देव जी की दूसरी उदासी के बारे में आप क्या जानते हैं ? (What do you know about the Second Udasi of Guru Nanak Dev Ji ?)
उत्तर-गुरु नानक देव जी ने 1513 ई० में अपनी द्वितीय उदासी उत्तर की ओर आरंभ की। इस उदासी में उन्हें तीन वर्ष लगे। इस उदासी के दौरान गुरु नानक देव जी निम्नलिखित प्रमुख स्थानों पर गए—

1. पहाड़ी रियासतें-गुरु नानक देव जी ने अपनी दूसरी उदासी दौरन मंडी, रवालसर, ज्वालामुखी काँगड़ा, बैजनाथ और कुल्लू इत्यादि पहाड़ी रियासतों की यात्रा की। गुरु नानक देव जी के उपदेशों से प्रभावित होकर इन पहाडी रियासतों के बहुत-से लोग उनके अनुयायी बन गए।

2. कैलाश पर्वत-गुरु नानक देव जी तिब्बत से होते हुए कैलाश पर्वत पहुँचे। गुरु साहिब के यहाँ पहुँचने पर सिद्ध बहुत हैरान हुए। गुरु नानक देव जी ने उन्हें बताया कि संसार से सत्य लुप्त हो गया है और चारों ओर भ्रष्टाचार और झूठ का बोलबाला है। इसलिए गुरु साहिब ने उन्हें मानवता का पथ-प्रदर्शन करने का संदेश दिया।

3. लद्दाख–कैलाश पर्वत के पश्चात् गुरु नानक देव जी लद्दाख पहुँचे। यहाँ के बहुत-से लोग गुरु साहिब के अनुयायी बन गए।

4. कश्मीर-कश्मीर में स्थित मटन में गुरु नानक देव जी का पंडित ब्रह्मदास से काफ़ी लंबा धार्मिक शास्त्रार्थ हुआ। गुरु नानक देव जी ने उसे समझाया कि मुक्ति केवल वेदों और रामायण इत्यादि को पढ़ने से नहीं अपितु उनमें दी गई बातों पर अमल करके प्राप्त की जा सकती है।

5. हसन अब्दाल—गुरु नानक देव जी पंजाब की वापसी यात्रा के समय हसन अब्दाल ठहरे। यहाँ एक अहँकारी फकीर वली कंधारी ने गुरु नानक देव जी को कुचलने के उद्देश्य से एक बहुत बड़ा पत्थर पहाड़ी से नीचे की ओर लुढ़का दिया। गुरु साहिब ने इसे अपने पंजे से रोक दिया। इस स्थान को आजकल पंजा साहिब कहा जाता है।

6. स्यालकोट स्यालकोट में गुरु नानक देव जी की मुलाकात एक मुसलमान संत हमजा गौस से हुई। उसने किसी बात पर नाराज़ होकर अपनी शक्ति द्वारा सारे शहर को नष्ट करने का निर्णय कर लिया था। परंतु जब वह गुरु साहिब से मिला तो वह उनके व्यक्तित्व से इतना प्रभावित हुआ कि उसने अपना निर्णय बदल दिया। इस घटना का लोगों के मन पर गहरा प्रभाव पड़ा।

प्रश्न 6.
गुरु नानक देव जी की तीसरी उदासी के बारे में आप क्या जानते हैं ? (What do you know about Third Udasi of Guru Nanak Dev Ji ?)
उत्तर-
गुरु नानक देव जी ने 1517 ई० के अंत में अपनी तृतीय उदासी आरंभ की। इस उदासी के दौरान गुरु साहिब पश्चिमी एशिया के देशों की ओर गए। इस उदासी के दौरान गुरु नानक देव जी ने निम्नलिखित प्रमुख स्थानों की यात्रा की—

1. मुलतान-मुलतान में बहुत-से सूफी संत निवास करते थे। मुलतान में गुरु नानक देव जी की भेंट प्रसिद्ध सूफी संत शेख बहाउद्दीन से हुई। शेख बहाउद्दीन उनके विचारों से अत्यधिक प्रभावित हुए।

2. मक्का-मक्का हज़रत मुहम्मद साहिब का जन्म स्थान है। सिख परंपरा के अनुसार गुरु नानक देव जी जब मक्का पहुँचे तो काअबे की ओर पाँव करके सो गए। जब काज़ी रुकनुद्दीन ने यह देखा तो वह क्रोधित हो गया। कहा जाता है कि जब काजी ने गुरु साहिब के पाँव पकड़कर दूसरी ओर घुमाने आरंभ किए तो मेहराब भी उसी ओर घूमने लग पड़ा। यह देखकर मुसलमान बहुत प्रभावित हुए। गुरु साहिब ने उन्हें समझाया कि अल्लाह सर्वव्यापक है।

3. मदीना-मक्का के पश्चात् गुरु नानक देव जी मदीना पहुँचे और वहाँ अपने उपदेशों का प्रचार किया। यहाँ गुरु साहिब का इमाम आज़िम के साथ शास्त्रार्थ भी हुआ।

4. बगदाद-बगदाद में गुरु नानक देव जी की भेंट शेख बहलोल से हुई। वह गुरु साहिब की वाणी से प्रभावित होकर उनका श्रद्धालु बन गया।

5. सैदपुर-गुरु नानक देव जी जब 1520 ई० के अंत में सैदपुर पहुँचे तो उस समय बाबर ने पंजाब पर बिजय प्राप्त करने के उद्देश्य से वहाँ पर आक्रमण किया। इस आक्रमण के समय हज़ारों की संख्या में लोगों को बंदी बना लिया गया। इन बंदी बनाए गए लोगों में गुरु नानक देव जी भी थे। जब बाद में बाबर को यह ज्ञात हुआ कि गुरु साहिब एक महान् संत हैं तो उसने न केवल गुरु नानक देव जी को बल्कि बहुत-से अन्य बंदियों को भी रिहा कर दिया।

6. पेशावर-गुरु नानक देव जी अपनी तीसरी उदासी के दौरान पेशावर भी गये। यहाँ वे योगियों से मिले तथा उन्हें धर्म का वास्तविक मार्ग बताया।

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प्रश्न 7.
गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं का संक्षिप्त वर्णन करें। (Briefly describe of the teachings of Guru Nanak Dev Ji.).
अथवा
गुरु नानक देव जी की किन्हीं छः शिक्षाओं के बारे में आप क्या जानते हैं ? (What do you know about any six teachings of Guru Nanak Dev Ji ?)
उत्तर-
गुरु नानक देव जी की शिक्षाएँ बड़ी सरल किंतु प्रभावशाली थीं। उनकी शिक्षाएँ किसी एक वर्ग, जाति अथवा प्रांत के लिए नहीं थीं। इनका बंध तो सारी मानव जाति से था। गुरु नानक देव जी की मुख्य शिक्षाओं का वर्णन इस प्रकार है—

1. ईश्वर का स्वरूप-गुरु नानक देव जी एक ईश्वर में विश्वास रखते थे। उन्होंने अपनी वाणी में बार-बार ईश्वर की एकता पर बल दिया है। गुरु नानक देव जी के अनुसार ईश्वर ही संसार की रचना करता है, उसका पालन-पोषण करता है और उसका विनाश करता है। गुरु नानक देव जी के अनुसार ईश्वर सर्वशक्तिमान् है।

2. माया-गुरु नानक देव जी के अनुसार माया मनुष्य के लिए मुक्ति के मार्ग में आने वाली सबसे बड़ी बाधा है। मनमुख व्यक्ति सदैव सांसारिक वस्तुएँ जैसे धन-दौलत, उच्च पद, ऐश्वर्य, सुंदर नारी, पुत्र इत्यादि के चक्र में फंसा रहता है। इसी को माया कहते हैं। माया के कारण वह ईश्वर से दूर हो जाता है और आवागमन के चक्र में फंसा रहता है।

3. जाति प्रथा का खंडन-उस समय का हिंदू समाज न केवल चार मुख्य जातियों बल्कि अनेक अन्य उपजातियों में विभाजित था। उच्च जाति के लोग निम्न जाति से बहुत घृणा करते थे और उन पर बहुत अत्याचार करते थे। समाज में छुआछूत की भावना बहुत फैल गई थी। गुरु नानक देव जी ने जाति प्रथा का जोरदार शब्दों में खंडन किया। गुरु साहिब ने लोगों को परस्पर भ्रातृभाव का संदेश दिया।

4. स्त्रियों के साथ निम्न बर्ताव का खंडन—गुरु नानक देव जी के समय समाज में स्त्रियों की दशा बहुत दयनीय थी। उनमें असंख्य कुरीतियाँ प्रचलित थीं। गुरु नानक देव जी ने स्त्रियों में प्रचलित कुरीतियों का जोरदार शब्दों में खंडन किया। उन्होंने समानता के अधिकारों के लिए आवाज़ उठाई।

5. गुरु का महत्त्व-गुरु नानक देव जी ईश्वर तक पहुँचने के लिए गुरु को बहुत महत्त्वपूर्ण समझते हैं। उनके अनुसार गुरु मुक्ति तक ले जाने वाली वास्तविक सीढ़ी है। गुरु ही मनुष्य को अंधकार (अज्ञानता) से प्रकाश (ज्ञान) की ओर लाता है। सच्चे गुरु का मिलना कोई सरल कार्य नहीं है। ईश्वर की कृपा के बिना मनुष्य को गुरु की प्राप्ति नहीं हो सकती।

6. हक्म-गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं में परमात्मा के हुक्म (आदेश) अथवा इच्छा को विशेष महत्त्व प्राप्त है। हुक्म के कारण ही मनुष्य को सुख-दुःख प्राप्त होते हैं। जो मनुष्य परमात्मा के आदेश को नहीं मानता वह दरदर की ठोकरें खाता है।

प्रश्न 8.
गुरु नानक देव जी के ईश्वर संबंधी क्या विचार थे ? (What was Guru Nanak’s concept of God ?)
उत्तर-
गुरु नानक देव जी के अनुसार ईश्वर के स्वरूप संबंधी विशेषताएँ निम्नलिखित अनुसार हैं—

1. परमात्मा एक है—गुरु नानक देव जी अपनी बाणी में बार-बार परमात्मा के एक होने पर बल देते हैं। उनके अनुसार परमात्मा ही संसार की रचना, उसका पालन-पोषण तथा उसका संहार करने वाला है। उसके द्वारा किए गए ये काम दूसरे देवी-देवताओं के महत्त्व को कम करते हैं। देवी-देवते सैंकड़ों तथा हज़ारों हैं, परंतु परमात्मा एक है। उस परमात्मा को हरि, गोपाल, अल्लाह, खुदा, राम तथा साहिब आदि नाम से पुकारा जाता है।

2. निर्गुण और सगुण-परमात्मा के दो रूप हैं। वह निर्गुण भी है और सगुण भी। पहले जब परमात्मा ने पृथ्वी तथा आकाश की रचना नहीं की थी तो वह अपने आप में ही रहता था। यह परमात्मा का निर्गुण स्वरूप था। फिर परमात्मा ने सृष्टि की रचना की। इस रचना द्वारा परमात्मा ने स्वयं को रूपमान किया। यह परमात्मा का सगुण स्वरूप

3. रचयिता, पालनकर्ता और नाशवानकर्ता-ईश्वर ही इस संसार का रचयिता, पालनकर्ता और इसका विनाश करने वाला है। ईश्वर के मन में जब आया तब उसने इस संसार की रचना की। वह ही इस संसार का पालन करता है। ईश्वर जब चाहे तब इस संसार का विनाश कर सकता है।

4. सर्वशक्तिमान-गुरु नानक देव जी के अनुसार परमात्मा सर्वशक्तिमान है। वह जो चाहता है, वही होता है। उसकी इच्छा के विरुद्ध कुछ नहीं हो सकता। यदि परमात्मा की इच्छा हो तो वह भिखारी को भी सिंहासन पर बैठा सकता है और राजा को रंक (भिखारी) बना सकता है। .

5. अजर-अमर-परमात्मा द्वारा रची हुई सृष्टि नश्वर है। यह अस्थिर है। परमात्मा सदैव रहने वाला है। वह आवागमन तथा जन्म-मरण के चक्कर से मुक्त है।

6. परमात्मा की महानता—गुरु नानक देव जी के अनुसार परमात्मा महान् है। उसकी महानता का वर्णन करना असंभव है। वह क्या देखता है और क्या सुनता है, उसका ज्ञान कितना है और वह कितना दयालु है और उसके दिए गए उपहारों का परिचय नहीं दिया जा सकता। परमात्मा स्वयं ही जानता है कि वह कितना महान् है। परमात्मा को छोड़कर किसी अन्य देवी-देवता की पूजा करना व्यर्थ है। ये परमात्मा के सम्मुख उसी प्रकार हैं जिस प्रकार सूर्य के सम्मुख एक छोटा सा तारा।

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प्रश्न 9.
गुरु नानक देव जी का माया का संकल्प क्या है ? (What was Guru Nanak Dev Ji’s concept of Maya ?)
उत्तर-
गुरु नानक देव जी के अनुसार माया मनुष्य के लिए मुक्ति मार्ग में सबसे बड़ी बाधा है। मनमुख व्यक्ति सदैव सांसारिक वस्तुओं जैसे धन-दौलत, उच्च पद, ऐश्वर्य, सुंदर नारी, पुत्र आदि के चक्रों में फंसा रहता है। इसे ही माया कहते हैं। मनमुख रचयिता और उसकी रचना के अंतर को नहीं समझ सकता। गुरु नानक देव जी ने माया को सर्पणी, माया ममता मोहणी, माया मोह, त्रिकुटी तथा सूहा रंग इत्यादि के नामों से पुकारा है। माया जिससे वह इतना प्रेम करता है, उसकी मृत्यु के पश्चात् उसके साथ नहीं जाती। माया के कारण वह ईश्वर से दूर हो जाता है और आवागमन के चक्र में फंसा रहता है। गुरु जी कहते हैं कि मनुष्य सोना-चाँदी आदि एकत्रित करके सोचता है कि वह संसार का बहुत बड़ा व्यक्ति बन गया है परंतु वास्तव में वह व्यक्ति अपने जीवन के लिए विष एकत्रित कर रहा होता है। इसी प्रकार वह दुविधा में फंस कर अपने जीवन का नाश कर लेता है। संक्षेप में माया मनुष्य की खुशियों का स्रोत नहीं अपितु उसके दुःखों का भंडार है। जो व्यक्ति माया का शिकार होता है उसे ईश्वर के दरबार में कोई स्थान नहीं मिलता।

प्रश्न 10.
गुरु नानक देव जी के उपदेशों में ‘गुरु’ का क्या महत्त्व है ? (What is the importance of ‘Guru’ in Guru Nanak Dev’s Ji teachings ?)
अथवा
गुरु नानक देव जी के ‘गुरु’ संबंधी विचार क्या थे ? (What was Guru Nanak Dev Ji’s concept of ‘Guru’ ?)
उत्तर-
गुरु नानक देव जी ईश्वर तक पहुँचने के लिए गुरु का बहुत महत्त्व मानते हैं। उनके अनुसार गुरु मुक्ति तक ले जाने वाली एक वास्तविक सीढ़ी है। गुरु ही मनुष्य को मोह और अहं के रोग से दूर करता है। वही नाम और शब्द की आराधना द्वारा भक्ति के मार्ग का अनुसरण करने का ढंग बताता है। गुरु के बिना भक्ति भाव और ज्ञान संभव नहीं होता। गुरु के बिना मनुष्य को चारों ओर अँधकार दिखाई देता है। गुरु ही मनुष्य को अँधकार (अज्ञानता) से प्रकाश की ओर ले जाता है। वह प्रत्येक असंभव कार्य को.संभव बना सकता है। अतः उसके साथ मिलने से ही मनुष्य की जीवनधारा बदल जाती है। वह सदा निरवैर रहता है। दोस्त तथा दुश्मन उसके लिए एक हैं। यदि कोई दुश्मन भी उसकी शरण में आ जाए तो वह उसे माफ कर देता है। सच्चे गुरु का मिलना कोई सरल कार्य नहीं है। परमात्मा की दया के बिना मनुष्य को गुरु की प्राप्ति नहीं हो सकती। यह बात यहाँ विशेष उल्लेखनीय है कि गुरु नानक देव जी जब गुरु की बात करते हैं तो उनका अभिप्राय किसी मानवीय गुरु से नहीं है। सच्चा गुरु तो ईश्वर स्वयं है, जो शब्द द्वारा शिक्षा देता है।

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प्रश्न 11.
नाम जपना, किरत करनी व बाँटकर छकना, सिख धर्म के बुनियादी नियम हैं। व्याख्या करें।
(Name, Do the Honest Labour Remembering Divine and Sharing with the Needy are the basis of the Sikh Way of Life. Discuss.)
उत्तर-

1. नाम जपना-सिख धर्म में नाम की आराधना अथवा सिमरन को ईश्वर की भक्ति का सर्वोच्च रूप समझा गया है। गुरु नानक देव जी का कथन था कि नाम की आराधना से जहाँ मन के पाप दूर हो जाते हैं वहीं वह निर्मल हो जाता है। इस कारण मनुष्य के सभी कष्ट खत्म हो जाते हैं। नाम की आराधना से मनुष्य के सभी कार्य सहजता से होते चले जाते हैं क्योंकि ईश्वर स्वयं उसके सभी कार्यों में सहायता करता है। नाम के बिना मनुष्य का इस संसार में आना व्यर्थ है।

2. किरत करनी-किरत से भाव है मेहनत एवं ईमानदारी की कमाई करना। किरत करना अत्यंत आवश्यक है। यह परमात्मा का हुक्म (आदेश) है। हम प्रतिदिन देखते हैं कि विश्व का प्रत्येक जीव-जंतु किरत करके अपना पेट पाल रहा है। मानव के लिए किरत करने की आवश्यकता सबसे अधिक है क्योंकि वह सभी जीवों का सरदार है। जो व्यक्ति किरत नहीं करता वह अपने शरीर को हृष्ट-पुष्ट नहीं रख सकता। ऐसा व्यक्ति वास्तव में उस परमात्मा के विरुद्ध गुनाहं करता है।

3. बाँट छकना-सिख धर्म में बाँट छकने के सिद्धांत को काफी महत्त्व दिया गया है। बाँट छकने से भाव ज़रूरतमंद लोगों के साथ बाँटो। सिख धर्म खा कर पीछे बाँटने की नहीं अपितु पहले बाँटकर बाद में खाने की शिक्षा देता है। इसमें दूसरों को भी अपना भाई-बहन समझने तथा उन्हें पहले बाँटने की प्रेरणा दी गई है। गुरु नानक देव जी फरमाते हैं—
घालि खाए कुछ हथों देइ॥
नानक राह पछाणे सेइ॥
दान देने अथवा बाँट के खाने के लिए केवल वही व्यक्ति सफल है जो श्रम की कमाई करके दान देता है। सिख धर्म में दशाँश देने का हुक्म है। इससे भाव यह है कि आप कमाई (आय) का दसवां हिस्सा लोक कल्याण कार्यों के लिए खर्च करें।

प्रश्न 12.
गुरु नानक देव जी के स्त्री जाति संबंधी क्या विचार थे? (What were the views of Guru Nanak Dev Ji about women ?)
उत्तर-
गुरु नानक देव जी के समय समाज में स्त्रियों की दशा बहुत दयनीय थी। समाज में उनका स्तर पुरुषों के समान नहीं था। उनमें अनेक कुरीतियाँ जैसे बाल-विवाह, बहु-विवाह, पर्दा प्रथा, सती प्रथा तथा तलाक प्रथा इत्यादि प्रचलित थीं। गुरु नानक देव जी ने स्त्रियों में प्रचलित कुरीतियों का जोरदार शब्दों में खंडन किया। उन्होंने समाज में स्त्रियों का सम्मान बढ़ाने हेतु एक ज़ोरदार अभियान चलाया। वह बाल-विवाह, बहु-विवाह, पर्दा प्रथा तथा सती प्रथा इत्यादि कुरीतियों के कट्टर विरोधी थे। उन्होंने स्त्रियों को पुरुषों के बराबर अधिकार दिए जाने का समर्थन किया। इस संबंध में उन्होंने स्त्रियों को संगत एवं पंगत में सम्मिलित होने की आज्ञा दी। गुरु जी का विचार था कि हमें स्त्रियों से जो कि महान् सम्राटों को जन्म देती हैं, के साथ कभी भी बुरा बर्ताव नहीं करना चाहिए। वह स्त्रियों को शिक्षा दिए जाने के पक्ष में थे।

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प्रश्न 13.
गुरु नानक देव जी के संदेश का सामाजिक अर्थ क्या था ? (What was the social meaning of Guru Nanak Dev Ji’s message ?)
उत्तर-
गुरु नानक देव जी के संदेश के सामाजिक अर्थ बहुत महत्त्वपूर्ण थे। उनका संदेश प्रत्येक के लिए था। कोई भी स्त्री-पुरुष गुरु जी द्वारा दर्शाए गए मार्ग को अपना सकता था। मुक्ति का मार्ग सबके लिए खुला था। गुरु जी ने सामाजिक समानता का प्रचार किया। उन्होंने जाति प्रथा का जोरदार शब्दों में खंडन किया। सामाजिक समानता के संदेश को व्यावहारिक रूप देने के लिए गुरु जी ने संगत तथा पंगत (लंगर) नामक दो संस्थाएँ चलाईं। लंगर तैयार करते समय जाति-पाति का कोई भेद-भाव नहीं किया जाता था। गुरु नानक देव जी ने अपने समय के शासकों में प्रचलित अन्याय की नीति और व्याप्त भ्रष्टाचार की जोरदार शब्दों में निंदा की। शासक वर्ग के साथ-साथ गुरु जी ने अत्याचारी सरकारी कर्मचारियों की भी आलोचना की। इस प्रकार गुरु नानक देव जी ने पंजाब के समाज को एक नया स्वरूप देने का उपाय किया।

प्रश्न 14.
गुरु नानक देव जी की शिक्षाएँ भक्ति प्रचारकों से किस प्रकार भिन्न थीं ? (How far were the teachings of Guru Nanak different from the Bhakti reformers ?)
उत्तर-
गुरु नानक देव जी की शिक्षाएँ भक्ति प्रचारकों से कई पक्षों से भिन्न थीं। गुरु नानक देव जी के अनुसार परमात्मा निराकार है। वह कभी भी मानवीय रूप को धारण नहीं करता। भक्ति प्रचारकों ने कृष्ण तथा राम को परमात्मा का अवतार माना। गुरु नानक देव जी मूर्ति पूजा के कट्टर विरोधी थे जबकि भक्ति प्रचारकों का इसमें पूर्ण विश्वास था। गुरु नानक देव जी ने सिख धर्म का प्रसार करने के लिए गुरु अंगद देव जी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त करके गुरुगद्दी को जारी रखा। दूसरी ओर बहुत कम भक्ति प्रचारकों ने गुरुगद्दी की परंपरा को जारी रखा। परिणामस्वरूप धीरे-धीरे उनका अस्तित्व खत्म हो गया। गुरु नानक देव जी गृहस्थ जीवन में विश्वास रखते थे। भक्ति प्रचारक गृहस्थ जीवन को मुक्ति की राह में आने वाली एक बड़ी रुकावट मानते थे। गुरु नानक देव जी ने संगत तथा पंगत नामक दो संस्थाएँ स्थापित की। इनमें प्रत्येक स्त्री, पुरुष अथवा बच्चे बिना किसी भेद-भाव के सम्मिलित हो सकते थे। भक्ति प्रचारकों ने ऐसी कोई संस्था स्थापित नहीं की। गुरु नानक देव जी संस्कृत को पवित्र भाषा नहीं मानते थे। उन्होंने अपनी शिक्षाओं का प्रचार लोगों की आम भाषा पंजाबी में किया। अधिकतर भक्ति प्रचारक संस्कृत को पवित्र भाषा समझते थे।

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प्रश्न 15.
गुरु नानक देव जी एक महान् कवि और संगीतकार थे । इसकी व्याख्या करें। (Guru Nanak Dev Ji was a great poet and musician. Explain.)
उत्तर-
गुरु नानक देव जी न केवल एक धार्मिक महापुरुष थे अपितु एक महान् कवि एवं संगीतकार भी थे। आपकी कविताएँ इतनी उच्चकोटि की थीं कि इनके मुकाबले की कविताएँ विश्व साहित्य में भी बहुत कम हैं। गुरु ग्रंथ साहिब में अंकित आप जी के 976 शब्द आपके महान् कवि होने का प्रत्यक्ष प्रमाण हैं। गुरु नानक देव जी ने इन कविताओं में परमात्मा तथा मानवता का अत्यंत सुंदर ढंग से वर्णन किया है। इनमें उच्चकोटि के अलंकरणों तथा उपमाओं का प्रयोग किया गया है। गुरु नानक साहिब बहुत संक्षिप्त शब्दों में काफ़ी गहराई की बातें कह जाते हैं। गरु साहिब की ये कविताएँ पंजाबी साहित्य को एक अमूल्य देन हैं। गुरु नानक देव जी प्रथम ऐसे सुधारक थे जिन्होंने अपने उपदेशों को लोगों तक पहुँचाने के लिए संगीत का प्रयोग किया। वह कई प्रकार के रागों की जानकारी रखते थे। उनके कीर्तन को सुन कर बड़े-बड़े पापी भी उनके चरणों पर गिर जाते थे।

प्रश्न 16.
गुरु नानक देव जी ने अपने जीवन के अंतिम 18 वर्ष कहाँ तथा कैसे व्यतीत किए ? (How and where did Guru Nanak Dev Ji spend last 18 years of his life ?)
उत्तर-
गुरु नानक देव जी ने 1521 ई० में रावी नदी के तट पर करतारपुर (अर्थात् ईश्वर का नगर) नामक नगर की स्थापना की। इसी स्थान पर गुरु साहिब ने अपने परिवार के साथ जीवन के अंतिम 18 वर्ष व्यतीत किए। इस समय के मध्य गुरु साहिब ने ‘संगत’ और ‘पंगत’ नामक संस्थाओं की स्थापना की। ‘संगत’ से अभिप्राय उस सभा से था जो प्रतिदिन गुरु जी के उपदेशों को सुनने के लिए होती थी। इस संगत में बिना किसी भेदभाव के प्रत्येक स्त्री-पुरुष को शामिल होने का अधिकार था। इसमें केवल एक परमात्मा के नाम का जाप होता था। ‘पंगत’ से अभिप्राय था-पंक्ति में बैठकर लंगर छकना। लंगर में जाति अथवा धर्म इत्यादि का कोई भेद-भाव नहीं किया जाता था। ये दोनों संस्थाएँ गुरु साहिब के उपदेशों का प्रसार करने में सहायक सिद्ध हुईं। इनके अतिरिक्त गुरु जी ने 976 शबदों की रचना की। गुरु साहिब का यह कार्य सिख पंथ के विकास के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण सिद्ध हुआ। गुरु साहिब की प्रमुख वाणियों के नाम जपुजी साहिब, वार माझ, आसा दीवार, सिद्ध गोष्टि, वार मल्हार, बारह माह और पट्टी इत्यादि हैं।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 4 गुरु नानक देव जी का जीवन और उनकी शिक्षाएँ

Source Based Questions

नोट-निम्नलिखित अनुच्छेदों को ध्यानपूर्वक पढ़िए और उनके अंत में पूछे गए प्रश्नों का उत्तर दीजिए।

1
गुरु नानक देव जी की गणना विश्व के महापुरुषों में की जाती है। वह सिख पंथ के संस्थापक थे। 15वीं शताब्दी में जब उनका जन्म हुआ तो भूमि पर चारों ओर हाहाकार मचा हुआ था। लोगों में अंध-विश्वास बहुत बढ़ गए थे। वे अज्ञानता के अंधकार में भटक रहे थे। चारों ओर अधर्म, झूठ और भ्रष्टाचार का बोलबाला था। लोग धर्म की वास्तविकता को भूल चुके थे। यह केवल आडंबरों और कर्मकांडों का एक दिखावा-सा बनकर रह गया था। शासक
और उनके कर्मचारी प्रजा का कल्याण करने की अपेक्षा उन पर अत्याचार करते थे। वे अपना अधिकतर समय रंगरलियों में व्यतीत करते थे। गुरु नानक साहिब ने अज्ञानता के अंधकार में भटक रही मानवता को ज्ञान का मार्ग दिखाया।

  1. सिख धर्म के संस्थापक कौन थे ?
  2. गुरु नानक देव जी के जन्म के समय समाज की स्थिति कैसी थी ?
  3. गुरु नानक देव जी के जन्म के समय शासक व कर्मचारी वर्ग का प्रजा के प्रति व्यवहार कैसा था ?
  4. गुरु नानक देव जी ने मानवता को कौन-सा मार्ग दिखाया ?
  5. गुरु नानक देव जी के समय लोग धर्म की वास्तविकता को ………… चुके थे।

उत्तर-

  1. सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव जी थे।।
  2. उस समय लोगों में अंध-विश्वास बहुत बढ़ गया था।
  3. गुरु नानक देव जी के जन्म समय शासक तथा कर्मचारी वर्ग प्रजा पर बहुत अत्याचार करते थे।
  4. गुरु नानक देव जी ने मानवता को सत्य तथा ज्ञान का मार्ग दिखाया।
  5. भूल।

2
1499 ई० में ज्ञान-प्राप्ति के पश्चात् गुरु नानक देव जी अधिकाँश समय सुल्तानपुर लोधी में न ठहरे और वे देश और विदेशों की लंबी यात्रा के लिए निकल पड़े। गुरु नानक साहिब ने लगभग 21 वर्ष इन यात्राओं में व्यतीत किए। गुरु नानक साहिब की इन यात्राओं को उदासियाँ भी कहा जाता है क्योंकि गुरु साहिब इस समय के दौरान घर-द्वार त्याग कर एक उदासी की भाँति भ्रमण करते रहे। गुरु साहिब की इन उदासियों के संबंध में जानकारी प्राप्त करने के लिए हमें अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। पहला, गुरु जी ने अपनी उदासियों के संबंध में कुछ नहीं लिखा। दूसरा, इन उदासियों से संबंधित हमें कोई तत्कालीन स्रोत प्राप्त नहीं है।

  1. गुरु नानक देव जी को ज्ञान की प्राप्ति कहाँ हुई ?
  2. उदासियों से क्या भाव है?
  3. गुरु नानक देव जी की उदासियों से संबंधित आने वाली कोई एक कठिनाई के बारे में बताएँ।
  4. गुरु नानक देव जी ने अपनी उदासियों का आरंभ कहाँ से किया ?
  5. गुरु नानक देव जी को ज्ञान की प्राप्ति कब हुई थी ?
    • 1469 ई०
    • 1479 ई०
    • 1489 ई०
    • 1499 ई०।

उत्तर-

  1. गुरु नानक देव जी को ज्ञान की प्राप्ति सुल्तानपुर लोधी में हुई।
  2. उदासियों से भाव गुरु नानक देव जी की यात्राओं से है।
  3. इन उदासियों से संबंधित हमें कोई समकालीन स्रोत नहीं मिला है।
  4. गुरु नानक देव जी ने अपनी उदासियों का आरंभ सैदपुर से किया।
  5. 1499 ई०।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 4 गुरु नानक देव जी का जीवन और उनकी शिक्षाएँ

3
गुरु नानक देव जी जब 1520 ई० के अंत में सैदपुर पहुंचे तो उस समय बाबर ने पंजाब पर विजय प्राप्त करने के उद्देश्य से वहाँ पर आक्रमण किया। इस आक्रमण के समय मुग़ल सेनाओं ने बड़ी संख्या में निर्दोष लोगों की हत्या कर दी। सैदपुर में भारी लूटपाट की गई और घरों में आग लगा दी गई। स्त्रियों को अपमानित किया गया। हज़ारों की संख्या में पुरुषों, स्त्रियों और बच्चों को बंदी बना लिया गया। इन बंदी बनाए गए लोगों में गुरु नानक साहिब भी थे। जब बाद में बाबर को यह ज्ञात हुआ कि गुरु साहिब एक महान् संत है तो वह गुरु जी के दर्शन के लिए स्वयं आया वह गुरु साहिब के व्यक्तित्व से इतना अधिक प्रभावित हुआ कि उसने न केवल गुरु साहिब को बल्कि बहुत-से अन्य बंदियों को भी रिहा कर दिया।

  1. बाबर ने सैदपुर पर आक्रमण कब किया था ?
  2. बाबर की सेना ने सैदपुर में क्या किया ?
  3. क्या बाबर ने गुरु नानक देव जी को सैदपुर में कैद किया था.?
  4. बाबर ने जब गुरु नानक देव जी के दर्शन किए उसने क्या किया ?
  5. बाबर की सेना ने सैदपुर में स्त्रियों के साथ कैसा व्यवहार किया ? .
    • उनको अपमानित किया गया।
    • उनका सम्मान किया गया
    • उनको गिरफ्तार कर लिया गया
    • उपरोक्त में से कोई नहीं।

उत्तर-

  1. बाबर ने सैदपुर पर 1520 ई० में आक्रमण किया था।
  2. बाबर की सेना ने सैदपुर में बड़ी संख्या में लूटमार की थी।
  3. जी, हाँ, बाबर ने सैदपुर में गुरु नानक देव जी को कैद किया था।
  4. बाबर ने जब गुरु नानक देव जी के दर्शन किए तब उसने गुरु साहिब व अन्य कई कैदियों को भी रिहा कर दिया।
  5. उनको अपमानित किया गया।

4
गुरु नानक देव जी ने रावी नदी के तट पर 1521 ई० में करतारपुर (अर्थात् ईश्वर का नगर) नामक नगर की स्थापना की। इसी स्थान पर गुरु साहिब ने अपने परिवार के साथ जीवन के अंतिम 18 वर्ष व्यतीत किए। इस समय के मध्य गुरु साहिब ने ‘संगत’ और ‘पंगत’ नामक संस्थाओं की स्थापना की। संगत’ से अभिप्राय उस सभा से था जो प्रतिदिन गुरु जी के उपदेशों को सुनने के लिए होती थी। इस संगत में बिना किसी भेदभाव के प्रत्येक स्त्री-पुरुष को शामिल होने का अधिकार था। इसमें केवल एक परमात्मा के नाम का जाप होता था। ‘पंगत’ से अभिप्राय था-पंक्ति में बैठकर लंगर छकना। लंगर में जाति अथवा धर्म इत्यादि का कोई भेदभाव नहीं किया जाता था। ये दोनों संस्थाएँ गुरु साहिब के उपदेशों का प्रसार करने में सहायक सिद्ध हुईं। इनके अतिरिक्त गुरु जी ने 976 शब्दों की रचना की। गुरु साहिब का यह कार्य सिख पंथ के विकास के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण सिद्ध हुआ।

  1. करतारपुर से क्या भाव है ?
  2. गुरु नानक देव जी ने करतारपुर में कौन-सी दो संस्थाओं की स्थापना की ?
  3. गुरु नानक देव जी ने कितने शब्दों की रचना की ?
  4. गुरु नानक देव जी की किन्हीं दो प्रमुख वाणियों के नाम लिखें।
  5. गुरु नानक देव जी ने करतारपुर की स्थापना कब की थी ?
    • 1501 ई० में
    • 1511 ई० में
    • 1521 ई० में
    • 1531 ई० में।

उत्तर-

  1. करतारपुर से भाव है ईश्वर का नगर।
  2. गुरु नानक देव जी ने करतारपुर में संगत व पंगत नाम की दो संस्थाओं की स्थापना की।
  3. गुरु नानक देव जी ने 976 शब्दों की रचना की।
  4. गुरु नानक देव जी की दो प्रमुख वाणियों के नाम जपुजी साहिब तथा आसा दी वार हैं।
  5. 1521 ई० में।

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गुरु नानक देव जी का जीवन और उनकी शिक्षाएँ PSEB 12th Class History Notes

  1. गुरु नानक देव जी का प्रारंभिक जीवन (Early Career of Guru Nanak Dev Ji)-गुरु नानक देव जी का जन्म 15 अप्रैल, 1469 ई० को राय भोय की तलवंडी में हआ-आपके पिता जी का नाम मेहता कालू तथा माता जी का नाम तृप्ता जी था-आपकी बहन का नाम बेबे नानकी था। गुरु नानक देव जी बचपन से ही बहुत गंभीर और विचारशील स्वभाव के थे-गुरु साहिब के आध्यात्मिक ज्ञान से उनके अध्यापक चकित रह गए-गुरु नानक देव जी के पिता जी ने उन्हें कई व्यवसायों में लगाने का प्रयत्न किया परंतु गुरु जी ने कोई रुचि न दिखाई-14 वर्ष की आयु में आपका विवाह बटाला निवासी मूल चंद की सुपुत्री सुलक्खनी जी से कर दिया गया-20 वर्ष की आयु में आप सुल्तानपुर लोधी के मोदीखाना अन्न भंडार में नौकरी करने लगे-सुल्तानपुर लोधी में आपको बेईं नदी में स्नान के दौरान सत्य ज्ञान की प्राप्ति हुई-उस समय आपकी आयु 30 वर्ष की थी।
  2. गुरु नानक देव जी की उदासियाँ (Udasis of Guru Nanak Dev Ji)-1499 ई० में ज्ञान प्राप्ति के पश्चात् गुरु नानक देव जी देश और विदेशों की लंबी यात्रा पर निकल पड़े-गुरु साहिब ने कुल 21 वर्ष इन उदासियों अथवा यात्राओं में व्यतीत किए-इन उदासियों का उद्देश्य लोगों में फैली अज्ञानता को दूर करना और एक ईश्वर की आराधना का प्रचार करना था-गुरु नानक देव जी ने 1499 ई० के अंत में भाई मरदाना के साथ अपनी पहली उदासी आरंभ की-इस उदासी में गुरु जी ने सैदपुर, तालुंबा, कुरुक्षेत्र, पानीपत, दिल्ली, हरिद्वार, गोरखमता, बनारस, कामरूप, गया, जगन्नाथपुरी, लंका और पाकपटन के प्रदेश की यात्रा की-गुरु नानक देव जी ने 1513-14 ई० में अपनी दूसरी उदासी आरंभ की-इस उदासी में गुरु जी ने पहाड़ी रियासतों, कैलाश पर्वत, लद्दाख, कश्मीर, हसन अब्दाल और स्यालकोट की यात्रा की-1517 ई० में आरंभ की गई अपनी तृतीय उदासी के दौरान गुरु नानक देव जी ने मुलतान, मक्का, मदीना, बगदाद, काबुल, पेशावर और सैदपुर के प्रदेशों की यात्रा कीइन उदासियों के दौरान गुरु नानक देव जी के व्यक्तित्व से प्रभावित होकर हज़ारों लोग उनके अनुयायी बन गए।
  3. गुरु नानक देव जी की शिक्षाएँ (Teachings of Guru Nanak Dev Ji)-गुरु नानक देव जी की शिक्षाएँ बड़ी सरल और प्रभावशाली थीं-गुरु जी के अनुसार ईश्वर एक है-वह इस संसार का रचयिता, पालनकर्ता और नाशवान्कर्ता हैं-वह निराकार और सर्वव्यापक है-उनके अनुसार माया मनुष्य के मार्ग में आने वाली सबसे बड़ी बाधा है-हऊमै (अहं) मनुष्य के सभी दुःखों का मूल कारण है-गुरु जी ने जाति प्रथा तथा खोखले रीति रिवाजों का जोरदार शब्दों में खंडन किया-गुरु जी ने स्त्रियों को समाज में सम्मानजनक स्थान देने के लिए आवाज़ उठाई-गुरु जी द्वारा नाम जपने पर विशेष बल दिया गया-उन्होंने गुरु को मुक्ति तक ले जाने वाली वास्तविक सीढ़ी माना है।
  4. ज्योति-जोत समाना (Immersed in Eternal Light)-22 सितंबर, 1539 ई० को गुरु नानक देव जी ज्योति-जोत समा गए। ज्योति-जोत समाने से पूर्व गुरु नानक देव जी ने भाई लहणा जी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया।