PSEB 11th Class History Solutions Chapter 8 दिल्ली सल्तनत

Punjab State Board PSEB 11th Class History Book Solutions Chapter 8 दिल्ली सल्तनत Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 History Chapter 8 दिल्ली सल्तनत

अध्याय का विस्तृत अध्ययन

(विषय-सामग्री की पूर्ण जानकारी के लिए)

प्रश्न 1.
दिल्ली सल्तनत की स्थापना, आरम्भिक संगठन तथा विस्तार में इल्तुतमिश, बलबन तथा अलाऊद्दीन खिलजी के योगदान की चर्चा करें।
उत्तर-
1206 ई० से 1290 ई० के काल को दिल्ली सल्तनत की स्थापना तथा आरम्भिक संगठन का काल समझा जाता है। यह शिशु सल्तनत बड़ी अस्थिर तथा असंगठित थी। राज्य को आंतरिक तथा बाहरी शत्रुओं का सामना करना पड़ रहा था। इस कठिन स्थिति को पहले इल्तुतमिश ने और बाद में बलबन ने सम्भाला। फिर अलाऊद्दीन खिलजी ने दिल्ली सल्तनत का खूब विस्तार किया। इन सब के योगदान का वर्णन इस प्रकार है :

I. आरम्भिक संगठन इल्तुतमिश (1211-1236)-

(i) कुतुबुद्दीन ऐबक के पश्चात् 1211 ई० में इल्तुतमिश दिल्ली का सुल्तान बना। इल्तुतमिश ने 25 वर्ष तक राज्य किया। उसने ऐबक के अधूरे छोड़े हुए कार्य को पूरा किया तथा दिल्ली सल्तनत के प्रशासक की रूपरेखा तैयार की।

(ii) इल्तुतमिश ने गज़नी के पुराने तथा नये शासकों के आक्रमणों से अपने राज्य की रक्षा की। उसने अपने प्रतिद्वंद्वियों अर्थात् ताजुद्दीन यल्दौज़ तथा नासिरुद्दीन कुबाचा का सफाया किया और राजपूत शासकों के विरुद्ध लम्बा संघर्ष किया। उसने फिर से बंगाल पर दिल्ली का आधिपत्य स्थापित किया। उसने मंगोल विजेता चंगेज़ खां के विनाशकारी आक्रमण को अपनी सूझबूझ से टाला। इल्तुतमिश के यत्नों के फलस्वरूप दिल्ली सल्तनत का शासन पंजाब, सिंध, गंगा-यमुना दोआब तथा बंगाल में पहले से अधिक सुदृढ़ हो गया।

(iii) (क) इल्तुतमिश ने सल्तनत के लिए केन्द्रीय, प्रान्तीय तथा न्याय प्रबन्ध की व्यवस्था की। यही व्यवस्था भविष्य में शासन की आधारशिला बनी।

(ख) उसने केन्द्र में स्थायी सेना की व्यवस्था की तथा तुर्क अमीरों पर नियन्त्रण स्थापित किया। इल्तुतमिश द्वारा संगठित किये गये तुर्क अमीरों को बाद में ‘चालीसा’ का नाम दिया गया।

(ग) उसने ‘टका’ तथा ‘जीतल’ नाम के चाँदी और तांबे के सिक्के चलाये।
(घ) इल्तुतमिश ने दिल्ली शहर की भव्यता और सुल्तान की मान-मर्यादा को बढ़ाया।

(ङ) उसने बगदाद के खलीफा से सम्मान के वस्त्र तथा राज्याभिषेक का पत्र प्राप्त किया। खलीफ़ा को इस्लामी जगत् का नेता समझा जाता था। इससे इल्तुतमिश खलीफा की सत्ता को मानने वाले सभी लोगों की दृष्टि में दिल्ली का वास्तविक शासक होने के साथ-साथ कानूनी शासक भी बन गया।

ग्यासुद्दीन बलबन (1266-1287 ई०)-
1236 ई० से 1266 ई० तक इल्तुतमिश के उत्तराधिकारियों ने शासन किया। परन्तु 1240 के बाद वास्तविक सत्ता बलबन नामक सरदार के हाथ में आ गई। वह 1266 ई० में स्वयं सुल्तान बन गया। इल्तुतमिश के उत्तराधिकारियों के समय अमीरों ने सुल्तान को एक कठपुतली अथवा खिलौना मात्र बना लिया था। इससे सुल्तान की प्रतिष्ठा को भी बहुत आघात पहुंचा था और प्रान्तीय तथा राजपूत राजाओं को भी सिर-उठाने का अवसर मिल गया था। इधर 20 वर्षों में उत्तर-पश्चिम की ओर से मंगोलों का दबाव भी बढ़ रहा था। इन परिस्थितियों को देखते हुए बलबन ने किसी नई विजय का विचार त्याग दिया तथा दिल्ली सल्तनत को सुदृढ करने के लिए ‘लौह तथा रक्त’ नीत अपनाई-

(क) सबसे पहले बलबन ने तुर्क अमीरों को सुल्तान की सर्वोच्चता मानने के लिए बाध्य किया। उसने सुल्तान के दैवी अधिकार के सिद्धान्त का प्रतिपादन किया। इससे अभिप्राय यह था कि सुल्तान को राज्य करने का अधिकार ईश्वर से मिला है। गुप्तचरों द्वारा अमीरों पर हर समय कड़ी नज़र रखी जाती थी।

(ख) बलबन ने बंगाल के तुर्क गवर्नर तुगरिल खां के विद्रोह को बड़ी क्रूरता से दबाया। उसने दिल्ली के निकट मेवातियों तथा गंगा-यमुना दोआब, अवध एवं कटेहर के प्रदेशों में राजपूतों के विद्रोह को भी सख्ती से कुचला।

(ग) बलबन ने अपनी सेना तथा प्रशासन को संगठित किया। उसने मंगोल आक्रमणों को रोकने के लिए विशेष सेना संगठित की और उसे मुल्तान, सुनाम और समाना आदि सीमावर्ती क्षेत्रों में रखा। इस तरह बलबन ने शिशु दिल्ली सल्तनत को आंतरिक तथा बाहरी सीमावर्ती शत्रुओं से बचाया।

II. दिल्ली सल्तनत का विस्तार अलाऊद्दीन खिलजी–

बलबन की संगठन नीति ने दिल्ली सल्तनत के विस्तार का मार्ग खोल दिया था। अगले 40 वर्षों में खिलजी तथा तुग़लक वंश के सुल्तानों के अधीन दिल्ली का राज्य लगभग पूरे भारत में फैल गया। खिलजी वंश के दूसरे शासक अलाऊद्दीन (12961316 ई०)
उत्तरी तथा दक्षिणी भारत में अपनी विजयों के लिए विख्यात हैं :- उत्तरी भारत की विजयें-

(क) अलाऊद्दीन सिकन्दर की तरह बहुत बड़ा विजेता बनना चाहता था। उसने अपनी सेना का संगठन किया तथा सैनिक अभियानों के लिये योग्य और विश्वासपात्र सेनापतियों का चुनाव किया। इनमें से अल्प खाँ, नुसरत खाँ, ज़फर खाँ तथा उलुग खाँ प्रसिद्ध सेनापति थे।

(ख) अलाऊद्दीन ने 1296-97 ई० में मुल्तान तथा सिन्ध के प्रदेश विजित किया। ये प्रदेश जलालुद्दीन के पुत्रों के अधिकार में चले गये थे।

(ग) अलाऊद्दीन ने 1299 ई० में गुजरात के उपजाऊ तथा धनी प्रदेश की ओर अपनी सेनाएं भेजीं। गुजरात अपने समुद्री व्यापार के लिए प्रसिद्ध था। गुजरात का शासक राय करण भाग गया।

(घ) दिल्ली तथा गुजरात के बीच राजस्थान की मरुभूमि थी। इसमें कई शक्तिशाली दुर्ग थे। इनको जीते बिना गुजरात का मार्ग नहीं खुल सकता था। अलाऊद्दीन ने पहले 1300-01 में रणथम्भौर के किले को घेर लिया। काफ़ी प्रयत्नों के बाद इसे जीत लिया।

(ड) मेवाड़ में चितौड़ का शक्तिशाली किला भी दिल्ली से गुजरात के रास्ते पर था। एक लम्बे घेरे के बाद उसने 1303 ई० में चितौड़ को भी विजय कर लिया।

(च) अब सुल्तान ने मध्य भारत में मालवा तथा अन्य प्रदेशों के विरुद्ध सेना भेजी। 1305-06 ई० तक उसने माण्डू, धार, उज्जैन तथा चन्देरी पर अधिकार कर लिया।

(छ) 1308 ई० से 1311 ई० के बीच अलाऊद्दीन ने राजस्थान में सिवाना तथा जालौर के किलों को भी जीत लिया।

दक्षिण में विजयें-दक्षिण में अलाऊद्दीन की नीति उसकी उत्तरी भारत में विजय की नीति के विपरीत थी। वह दिल्ली से दक्षिण के राजाओं पर नियन्त्रण रखने की कठिनाइयों को समझता था। इस कारण वह दक्षिण में केवल दिल्ली की प्रभुसत्ता स्थापित करना चाहता था और वहां से धन प्राप्त करना चाहता था। परन्तु वह उत्तर-पश्चिम की ओर से होने वाले मंगोलों के निरन्तर आक्रमणों के कारण दक्षिण की ओर ध्यान न दे सका। 1297 ई० से लेकर 1306 ई० तक मंगोलों ने इस देश पर छ: बार बड़े भयंकर आक्रमण किये। वे दो बार दिल्ली तक भी पहुंच गए थे। अलाऊद्दीन ने उनका सामना करने के लिए एक विशाल सेना तैयार की थी। 1306 ई० में मध्य एशिया के मंगोल शासक की मृत्यु के बाद यह आक्रमण रुक गए। अब अलाऊद्दीन ने इस सेना का प्रयोग दक्षिण की विजयों के लिए किया। उसने अपने योग्य दास तथा सेनानायक मलिक काफूर को दक्षिण की ओर भेजा। इसे गुजरात की विजय के समय एक हज़ार दीनार अर्थात् सोने के सिक्के देकर खरीदा गया था।
विन्ध्य पर्वत के दक्षिण में इस समय चार राज्य थे-सबसे निकट देवगिरि तथा उसके पूर्व में वारंगल, दक्षिण में द्वारसमुद्र तथा सुदूर दक्षिण में मदुरै का राज्य था।

  • सबसे पहले 1307-08 में देवगिरि के राजा रामचन्द्र देव पर आक्रमण किया गया। उसने अलाऊद्दीन की अधीनता स्वीकार कर ली। सुल्तान ने देवगिरि के प्रदेश को अपनी शेष विजयों के लिए आधार के रूप में प्रयोग किया।
  • अगले दो वर्षों में मलिक काफूर ने वारंगल तथा द्वारसमुद्र के राजाओं को नज़राना देने के लिए बाध्य किया तथा माबर अथवा मदुरै के प्रदेश को लूटा।

इस प्रकार दिल्ली सल्तनत इल्तुतमिश तथा बलबन के काल में संगठित हुई और अलाऊद्दीन के काल में विकसित हुई। अलाऊद्दीन ने शासक के रूप को निखारा और सल्तनत को सशक्त बनाने का प्रयास किया।

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 8 दिल्ली सल्तनत

प्रश्न 2.
तुग़लक सुल्तानों की नीतियों के सन्दर्भ में दिल्ली सल्तनत के पतन के कारणों एवं विघटन की चर्चा करें।
उत्तर-
दिल्ली में खिलजी वंश के पश्चात् तुगलक वंश के राज्य की स्थापना हुई। तुर्क अमीर गाज़ी मलिक ने 1320 ई० में बलबन के उत्तराधिकारियों का वध किया और सल्तनत का स्वामी बन गया। वह ग्यासुद्दीन तुग़लक (1320-1324 ई०) के नाम से गद्दी पर बैठा। उसके वंशज 1412 ई० तक शासन करते रहे। इस वंश का सबसे महत्त्वपूर्ण शासक मुहम्मद-बिन-तुग़लक था।

  • ग्यासुद्दीन तुगलक ने पूर्वी भारत में बंगाल को फिर से विजय करके दिल्ली सल्तनत में सम्मिलित किया। उसने तिरहुत अथवा उत्तरी बिहार को भी विजय किया।
  • 1323 ई० में उसके पुत्र मुहम्मद तुगलक ने वारंगल के राज्य को जीत कर दिल्ली सल्तनत में मिला लिया।
  • उसने माबर भी जीत लिया था। उसके राज्यकाल में द्वारसमुद्र का राज्य भी दिल्ली सल्तनत में मिला लिया गया।
  • इस प्रकार मुहम्मद-बिन-तुगलक के अधीन दिल्ली सल्तनत उत्तर में पंजाब से लेकर सुदूर दक्षिण में माबर तक तथा पश्चिम में गुजरात से लेकर पूर्व में बंगाल तक फैल गई।

पतन के कारण

मुहम्मद-बिन-तुग़लक के राज्यकाल में ही दिल्ली सल्तनत के विस्तार का दौर रुक गया था। यही नहीं बल्कि साम्राज्य का विघटन भी आरम्भ हो गया था। दिल्ली सल्तनत का पतन अकस्मात् नहीं हुआ। पतन की यह प्रक्रिया लम्बे समय तक चलती रही। इसमें विभिन्न सुल्तानों विशेषकर तुग़लक सुल्तानों की नीतियों तथा प्रशासनिक प्रयोगों ने योगदान दिया था, जिसका वर्णन इस प्रकार है।

(i) मुहम्मद तुगलक की दक्षिण नीति-दिल्ली सल्तनत के पतन का आधारभूत कारण इसका दक्षिण में सीधा प्रशासन स्थापित करना था। ग्यासुद्दीन तुगलक के समय में उनका साम्राज्य देवगिरि से लेकर माबर तक फैल जाने के कारण बहुत बड़ा हो गया था। इस विशाल साम्राज्य को दिल्ली से नियन्त्रित करना लगभग असम्भव ही था।

(ii) मुहम्मद-बिन-तुगलक के प्रशासनिक प्रयोग-

(क) साम्राज्य की विशालता के कारण पैदा होने वाली समस्याओं से निपटने के लिए मुहम्मद-बिन-तुग़लक ने 1328-29 ई० में दक्षिण में देवगिरि को सल्तनत की दूसरी राजधानी बना दिया। इसका नाम दौलताबाद रखा गया। यह पहले से ही उत्तर तथा दक्षिण में एक पुल का काम दे रहा था। नवीन राजधानी दूर थी। इससे सुल्तान का उत्तरी भाग पर नियन्त्रण ढीला हो गया। उधर सुल्तान ने कई अमीरों तथा धार्मिक व्यक्तियों को दिल्ली छोड़कर दौलताबाद जाने के लिए बाध्य किया था। उन सब में बड़ा असन्तोष फैल गया था। बाद में सुल्तान ने जब इनको दिल्ली लौट जाने के लिए कहा तो ये और भी अधिक नाराज हो गए।

(ख) मुहम्मद तुग़लक ने योग्यता के आधार पर बड़ी संख्या में विदेशियों, गैर-तुर्कों तथा गैर-मुसलमानों को शासक वर्ग एवं सेना में उच्च पदों पर नियुक्त किया था। उसके पुराने तुर्क परिवारों का उच्च पदों पर से एकाधिकार समाप्त हो गया। यह बात उनके लिए असहनीय थी।

(ग) उलेमा लोग (अर्थात् इस्लाम धर्म के विद्वान्) सुल्तान के उद्धार धार्मिक विचारों के विरुद्ध थे। वे अन्य धर्मों विशेषकर शैव तथा जैन मत को दिए गए राजकीय संरक्षण के कारण सुल्तानों से रुष्ट थे।

(घ) सुल्तान द्वारा चलाई गई सांकेतिक मुद्रा ने भी उसके विरुद्ध बढ़ते असन्तोष में वृद्धि की। सांकेतिक मुद्रा के कारण कांसे के सिक्के पर चांदी के टके का मूल्य अंकित था। सुनारों तथा साधारण कारीगरों ने बड़ी संख्या में जाली सिक्के बनाने आरम्भ कर दिए। अन्त में सुल्तान ने शाही टकसालों से जारी किए गये सिक्के वापस लेकर बदले में चांदी तथा सोने के सिक्के दे दिये। इससे सरकार को हानि हुई और सुल्तान की प्रतिष्ठा को भी धक्का लगा।

(ङ) मुहम्मद-बिन-तुगलक के विरुद्ध कई अन्य बातों के कारण भी असन्तोष बढ़ा। उसने गंगा-यमुना दोआब में लगान बढ़ाया तथा खुरासान की विजय के लिए तैयार की गई सेना को भंग कर दिया तथा कराचिल अथवा कुल्लू की पहाड़ियों में भेजी गई सेना को भारी क्षति पहुंची।

(च) सुल्तान ने अमीरों तथा उलेमा लोगों को सज़ाएं देकर तथा बल प्रयोग से दबाने का प्रयत्न किया। परिणामस्वरूप साम्राज्य में कई स्थानों पर विद्रोह होने लगे। यह विद्रोह दूर दक्षिण में माबर तथा कम्पिली से लेकर लाहौर और सिन्ध तथा गुजरात से लेकर बंगाल तक फैल गये। सुल्तान के राज्यकाल के अन्त तक इनकी संख्या 22 हो गई थी।

(छ) दक्षिण में विद्रोहियों को दबाने के लिए सुल्तान ने सेना भेजी। इस सेना में महामारी फैल गई। सेना को भारी हानि पहुंची। इस प्रकार दक्षिण के प्रान्तों को स्वतन्त्र होने का अवसर मिल गया।

फिरोज़ तुग़लक की नीतियां-

  • मुहम्मद तुग़लक के उत्तराधिकारी फिरोज़शाह (1351-1357 ई०) के राज्यकाल में सल्तनत का शासन उत्तरी भारत तक ही सीमित हो गया।
  • फिरोज़ ने विद्रोहों के भय से अमीरों तथा उलेमा लोगों के प्रति नरम नीति अपनाई। उनके वेतन और जागीरों में वृद्धि की तथा इनको वंशानुगत बना दिया गया।
  • मुहम्मद-बिन-तुग़लक के समय की सख्त सज़ाएं देने की प्रथा बन्द कर दी गई।
  • सैनिकों की नौकरी भी वंशानुगत बना दी गई। उनको नकद वेतन के स्थान पर भूमि के किसी एक भाग का लगान दिया जाने लगा।

फ़िरोज़ तुग़लक की इन नीतियों के कारण भ्रष्टाचार बढ़ गया तथा सेना कमज़ोर हो गई। दिल्ली सल्तनत अन्दर से खोखली पड़ गई। कुछ इतिहासकार फिरोज़ तुग़लक की धार्मिक कट्टरता को भी सल्तनत के पतन के लिए उत्तरदायी मानते हैं। उसने उलेमा लोगों को प्रसन्न करने के लिए अपने राज्यकाल के अन्तिम वर्षों में गैर सुन्नी मुसलमानों तथा कुछ ब्राह्मणों के साथ सख्ती का व्यवहार किया था। अतः इन सब बातों के कारण दिल्ली सल्तनत के पतन की प्रक्रिया आरम्भ हो गई। यह प्रक्रिया उसके उत्तराधिकारियों के काल में तीव्र हो गई।

फिरोज तुग़लक के उत्तराधिकारी-फिरोज़ तुग़लक की मृत्यु के बाद तुग़लक वंश के छः सुल्तान गद्दी पर बैठे। उनमें प्रायः गृह-युद्ध होते थे। इनमें शासक वर्ग तथा फिरोज़ तुग़लक के दास बड़े सक्रिय थे। इससे प्रशासन और भी कमज़ोर पड़ गया। इससे प्रान्तीय गवर्नरों को स्वतन्त्र होने का अवसर मिल गया। इन परिस्थितियों में 1398-99 ई० में मध्य एशिया से मंगोल विजेता चंगेज़ खां के वंशज तैमूर के आक्रमण ने तुग़लक वंश की प्रतिष्ठा को भारी क्षति पहुँचाई। अन्तिम तुग़लक सुल्तान महमूद का छोटा-सा राज्य भी 1412 ई० में समाप्त हो गया।

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प्रश्न 3.
केन्द्रीय, प्रान्तीय तथा स्थानीय स्तर पर दिल्ली सल्तनत के शासन प्रबन्ध की चर्चा करते हुए यह भी बताएं कि सुल्तानों ने किस प्रकार के भवन बनवाए।
उत्तर-
1206 ई० से 1526 ई० तक का युग भारतीय इतिहास में ‘सल्तनत युग’ के नाम से प्रसिद्ध है। इस युग में पांच प्रमुख राजवंशों ने राज्य किया। इन सभी राजवंशों की सामूहिक शासन-व्यवस्था का वर्णन इस प्रकार है–

I. केन्द्रीय शासन

1. खलीफा तथा सुल्तान-नैतिक दृष्टिकोण से समस्त मुस्लिम जगत् का धार्मिक नेता खलीफा माना जाता था। वह बगदाद में निवास करता था। परन्तु सुल्तान खलीफा का नाममात्र का प्रभुत्व स्वीकार करते थे। यद्यपि कुछ सुल्तान खलीफा के नाम से खुतबा पढ़वाते थे और सिक्कों पर भी उसका नाम अंकित करवाते थे, परन्तु यह प्रभुत्व केवल दिखावा मात्र था।

वास्तविक सत्ता सुल्तान के हाथ में ही थी। वह केवल अपने पद को सुदृढ़ बनाने के लिए खलीफा से स्वीकृति प्राप्त कर लेते थे। सुल्तान की शक्तियां असीम थीं। उसकी इच्छा ही कानून थी। वह सेना का प्रधान और न्याय का मुखिया होता था। वास्तव में वह पृथ्वी पर भगवान् का प्रतिनिधि समझा जाता था।

2. मन्त्रिपरिषद् तथा वजीर-सुल्तान का सबसे महत्त्वपूर्ण मन्त्री वित्तीय व्यवस्था तथा लगान का मंत्री था जिसे वज़ीर कहा जाता था। उसकी सहायता के लिए एक महालेखाकार (मुशरिफ) तथा एक महालेखापरीक्षक (मुस्तौफी) होते थे। सैनिक संगठन के मन्त्री को ‘आरिज़-ए-मुमालिक’ कहा जाता था। शाही पत्र-व्यवहार के मन्त्री को ‘दरबार-ए-खास’ तथा गुप्तचर विभाग के मन्त्री को बरीद-ए-खास’ कहा जाता था। अन्य सभी मामलों के मन्त्री ‘वजीर’ से कम महत्त्वपूर्ण तथा शक्तिशाली थे। यहां तक कि धार्मिक मामलों तथा न्याय के मन्त्री ‘शेख-अल-इस्लाम’ का पद भी वज़ीर जितना महत्त्वपूर्ण नहीं था। इन मंत्रियों के अतिरिक्त सुल्तान के महलों तथा उसके दरबार की देख-रेख करने के लिए भी अधिकारी होते थे। इनमें ‘वकील-ए-दर’ (महलों तथा शाही कारखानों के लिए) तथा ‘अमीर-ए-हाजिब’ (दरबार के लिए) मुख्य थे। सुल्तान अपनी इच्छा से किसी भी मन्त्री को हटा सकता था। कभी-कभी सुल्तान शासन-कार्यों में मुल्लाओं से भी सलाह लिया करता था।

3. केन्द्रीय विभाग-
(i) राजस्व विभाग-इस विभाग का मुखिया दीवान-ए-हजरत होता था। यह विभाग अधिकतर प्रधानमन्त्री अथवा वज़ीर को सौंपा जाता था। कर वसूल करने वाले समस्त अधिकारी इसी विभाग में रहते थे। कृषि कर निर्धारण का भार भी इसी विभाग पर था।

(ii) सैन्य विभाग-इसका मुखिया दीवान-ए-अर्ज़ अथवा आरिज-ए-मुमालिक होता था। राज्य की सेना पर आधारित होने के कारण यह विभाग भी अत्यन्त महत्त्वपूर्ण था।

(iii) दीवान-ए-इन्शाप्रान्तीय सूबेदारों तथा दूर स्थित प्रदेशों के अन्य उच्च पदाधिकारियों के साथ सुल्तान का पत्र-व्यवहार करने का भार दीवानए-इन्शा पर होता था।

(iv) दीवान-ए-अमीर-ए-कोही-यह विभाग बाज़ार पर नियन्त्रण रखता था और कृषि की सुव्यवस्था के लिए कार्य सम्भालता था। इसका प्रधान दीवान-ए-अमीर-ए-कोही होता था।

(v) काजी-उल-कुजात-न्याय विभाग का मुखिया काजी-उल कुजात होता था। वह केन्द्र में रहते हुए प्रान्तों के काज़ियों पर नियन्त्रण रखता था। इन विभागों के अतिरिक्व शाही परिवार की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए पृथक् विभाग होता था, जिसका प्रधान वकील-ए-दर कहलाता था।

4. सैनिक व्यवस्था-सुल्तान ने विशाल स्थायी सेना का संगठन किया। इसका प्रधान दीवान-ए-अर्ज़ होता था। केन्द्रीय सेना के अतिरिक्त प्रान्तीय सूबेदार भी अपने पास सेना रखते थे। वे समय पड़ने पर सुल्तान की सहायता करते थे। केन्द्र की सेना अस्त्रों-शस्त्रों से सुसज्जित होती थी। सेना के चार प्रमुख अंग थे, जिनमें सबसे प्रमुख घुड़सवार सेना थी। युद्ध में हाथियों का भी प्रयोग होता था जो सेना का दूसरा अंग था। तीसरा अंग पैदल सेना थी। अस्त्रों-शस्त्रों में तलवार, बी, भाले तथा धनुष-बाणों का प्रयोग किया जाता था। सुल्तान का सैनिक संगठन दाशमिक प्रणाली पर आधारित था। 10 घुड़सवारों पर सरेखैल नामक अधिकारी होता था और 10 सरेखैल पर एक सिपहसालार होता था। इसी प्रकार 10 सिपहसालारों पर एक अमीर होता था। 10 अमीरों पर एक मलिक और दस मलिकों पर एक खान होता था। सेना का आकार समय-समय पर परिवर्तित होता रहता था। अलाऊद्दीन के पास 4 लाख 75 हजार घुड़सवार थे, जबकि फिरोज़ तुग़लक के पास केवल 90 हज़ार घुड़सवार थे।

II. प्रान्तीय प्रशासन : सुल्तानों का साम्राज्य प्रान्तों में बंटा हुआ था। प्रान्तीय गवर्नर का कार्य अपने प्रान्त में शान्ति बनाए रखना था। परन्तु उसका मुख्य दायित्व लगान तथा अन्य कर इकट्ठा करके उनको राजकोष में भेजना था। वह प्रान्तों के अधीन सामन्तों पर भी नियन्त्रण रखता था। परन्तु सामन्तों का स्थानीय प्रशासन में कोई हाथ नहीं था। वह एक ओर तो केन्द्र एवं सामन्तों के बीच कड़ी का काम करता था तथा दूसरी ओर केन्द्रीय प्रशासन एवं स्थानीय प्रबन्ध को जोड़ता था। गवर्नर को ‘मुक्ती’, ‘सूबेदार’ अथवा ‘वली’ कहा जाता था। प्रत्येक प्रान्त में कई परगने थे। कुछ प्रान्तों में परगने से ऊपर एक अन्य प्रशासनिक इकाई भी थी जिसे ‘शिक’ कहा जाता था।

III. स्थानीय शासन स्थानीय शासन परगने से आरम्भ होता था। कई गांवों के समूह को परगना कहते थे। प्रत्येक परगने का मुख्य अधिकारी ‘आमिल’ था। वह भूमि की उपज से सरकारी आय (लगान) एकत्रित करता था और उसका हिसाब-किताब रखता था। लगान इकट्ठा करने में फोतदार अर्थात् खजान्ची और कुछ अन्य कर्मचारी उसकी सहायता करते थे। कानूनगो परगने की ज़मीन तथा लगान से सम्बन्धित सारा रिकार्ड रखता था। एक ही गोत्र से सम्बन्धित कई गांवों में फैले हुए किसान प्रायः किसी एक प्रभावशाली व्यक्ति को सब का साझा प्रधान मान लेते थे। इसको ‘चौधरी’ कहा जाता था। परगने के अधिकारी किसानों अथवा उनके मुखिया के साथ ‘चौधरी’ के माध्यम से निपट सकते थे। प्राचीनकाल की तरह दिल्ली सल्तनत के समय में भी गांव सबसे छोटी प्रशासनिक इकाई बना रहा। परन्तु अब गांव के मुखिया को मुकद्दम कहा जाता था। गांव की कृषि अधीन भूमि तथा लगान से सम्बन्धित सारे मामलों का रिकार्ड पटवारी रखता था। पटवारी, मुकद्दम, चौधरी तथा कानूनगो के पद वंशानुगत होते थे। इन्हें राज्य की सेवा के बदले लगान का एक भाग दिया जाता था।

सुल्तानों द्वारा बनवाये गए भवन-

दास वंशीय सुल्तानों द्वारा निर्मित भवन-कुतुबुद्दीन ऐबक ने दिल्ली के समीप रायपिथोरा का किला बनवाया। इसके समीप ही ‘कुव्वत-उल-इस्लाम’ नाम की मस्जिद बनवाई गई। कुतुबमीनार दास वंश का सबसे उत्तम उपहार है। इसकी नींव कुतुबुद्दीन ने ही रखी थी, परन्तु इस भवन के पूरा होने से पूर्व ही वह चल बसा था। इसे उसके उत्तराधिकारी इल्तुतमिश ने पूरा करवाया। एक इतिहासकार के अनुसार “इससे अधिक भव्य कोई अन्य मीनार विश्व में नहीं है।” ऐबक ने अजमेर में एक मस्जिद का निर्माण करवाया था। इसे ‘अढ़ाई दिन का झोंपड़ा’ कहते हैं। इल्तुतमिश ने अपने बड़े लड़के नासिरुद्दीन महमूद का एक मकबरा बनवाया था। यह भवन कुतुबमीनार से लगभग 5 किलोमीटर की दूरी पर बनवाया गया था। भारत के पुराने मकबरों में इसे विशेष स्थान प्राप्त है। इल्तुतमिश ने दिल्ली में एक ‘ईदगाह’ तथा जामा मस्जिद का भी निर्माण करवाया था।

खिलजी सुल्तानों द्वारा निर्मित भवन-इल्तुतमिश की मृत्यु से लेकर अलाऊद्दीन के आगमन तक भवन निर्माण कला का विकास रुका रहा। अलाऊद्दीन के आगमन से भवन निर्माण कला में नए दौर का आरम्भ हुआ। उसने कुतुबुद्दीन ऐबक के समय की मस्जिद का बहुत सुन्दर तथा प्रभावशाली द्वार बनवाया, जिसे ‘अलाई दरवाज़ा’ के नाम से पुकारा जाता है। यह लाल पत्थर का बना है, परन्तु कहीं-कहीं इसमें संगमरमर का भी प्रयोग किया गया है। अलाऊद्दीन ने कुतुबमीनार से तीन मील की दूरी पर ‘सिरी’ नामक दुर्ग बनवाया था। उसने ‘हज़ार सूतन’ नामक एक अन्य भवन का निर्माण भी करवाया।

तुगलक वंश के सुल्तानों द्वारा निर्मित भवन-तुगलक वंश के शासन काल में अनेक भवनों का निर्माण हुआ। इनमें खिलजी काल के भवनों की सी सजावट का अभाव है। ये सादगी तथा विशालता लिए हुए हैं । ग्यासुद्दीन तुग़लक ने कुतुबमीनार के पूर्व में ‘तुग़लकाबाद’ नामक दुर्ग बनवाया था। इस दुर्ग में अनेक भवन भी बनवाए गए थे। संगमरमर का बना ग्यासुद्दीन का ‘मकबरा’ इन भवनों की स्मृति मात्र रह गया है। मुहम्मद तुग़लक ने आदिलाबाद नामक दुर्ग का निर्माण करवाया जो तुग़लकाबाद के पास स्थित है। फिरोज़ तुग़लक को भवन बनवाने का बड़ा चाव था। उसके शासनकाल में अनेक शहरों में से फतेहाबाद, हिसार फिरोजा, जौनपुर आदि प्रसिद्ध थे। फरिश्ता के अनुसार, “सुलतान ने 200 नगर, 20 महल, 30 पाठशालाएं, 40 मस्जिदें, 100 अस्पताल, 100 स्नानगृह, 5 मकबरे और 150 पुल बनवाए।”

सैय्यद तथा लोधी वंश के शासकों द्वारा निर्मित भवन-तैमूर के आक्रमण के कारण दिल्ली सल्तनत की आर्थिक दशा काफी शोचनीय हो गई। परिणामस्वरूप सैय्यद तथा लोधी वंश के शासकों ने भवन निर्माण कला में अधिक रुचि न दिखाई। सैय्यद वंश में प्रथम दो शासकों ने खिज़राबाद और मुबारिकाबाद नाम के दो नगर बसाए। दुर्भाग्यवश इन दोनों नगरों के अवशेष उपलब्ध नहीं हैं। इस काल में मुबारिक शाह सैय्यद, मुहम्मद शाह सैय्यद और सिकन्दर लोधी से सम्बन्धित मस्जिदें तथा मकबरे ही उपलब्ध हैं। लोधी काल में कुछ मस्जिदों का निर्माण हुआ। इसमें सिकन्दर लोधी के प्रधानमन्त्री द्वारा निर्मित ‘मोट की मस्जिद’ उल्लेखनीय है।

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महत्त्वपूर्ण परीक्षा-शैली प्रश्न

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न

1. उत्तर एक शब्द से एक वाक्य तक

प्रश्न 1.
दिल्ली के प्रथम तथा अंतिम सल्तान कौन-कौन थे?
उत्तर-
दिल्ली का प्रथम सुल्तान कुतुबुद्दीन ऐबक तथा अंतिम सुल्तान इब्राहिम लोदी था।

प्रश्न 2.
पठान सुल्तानों ने दिल्ली पर कब से कब तक राज्य किया?
उत्तर-
पठान सुल्तानों ने दिल्ली पर 1206 ई० से 1526 ई० तक शासन किया।

प्रश्न 3.
तैमूर ने भारत पर कब आक्रमण किया?
उत्तर-
तैमूर ने 1398 ई० में भारत पर आक्रमण किया।

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प्रश्न 4.
सूफ़ी मत के एक सन्त का नाम बताओ।
उत्तर-
बाबा फरीद।

प्रश्न 5.
सिक्ख धर्म के संस्थापक कौन थे?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी सिक्ख धर्म के संस्थापक थे।

प्रश्न 6.
सैयद वंश की नींव किसने डाली थी?
उत्तर-
सैयद वंश की नींव तैमूर के प्रतिनिधि खिजर खाँ ने डाली थी।

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प्रश्न 7.
खिजर खाँ ने गुजरात पर अधिकार कब किया?
उत्तर-
खिजर खाँ ने 1412 ई० में गुजरात पर अधिकार किया।

प्रश्न 8.
खिजर खाँ की मृत्यु के पश्चात् दिल्ली की गद्दी पर कौन बैठा?
उत्तर-
खिजर खाँ की मृत्यु के पश्चात् मुबारक शाह दिल्ली की गद्दी पर बैठा।

प्रश्न 9.
लोदी वंश की स्थापना कब हुई?
उत्तर-
लोदी वंश की स्थापना 1451 ई० में हुई।

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प्रश्न 10.
लोदी वंश के उस शासक का नाम बताओ जो सर्वप्रथम दिल्ली की गद्दी पर बैठा।
उत्तर-
बहलोल लोदी।

प्रश्न 11.
लोदी वंश का अंतिम सुल्तान कौन था ?
उत्तर-
इब्राहिम लोदी ।

प्रश्न 12.
“तबकाते नासरी” नामक पुस्तक का लेखक कौन था?
उत्तर-
मिनहाज सिराज “तबकाते नासरी” नामक पुस्तक का लेखक था।

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प्रश्न 13.
“अलाई दरवाजा” दिल्ली के किस सुल्तान ने बनवाया ?
उत्तर-
अलाऊद्दीन खिलजी ने।

2. रिक्त स्थानों की पूर्ति-

(i) कुतुबुद्दीन ऐबक…………..ई० में दिल्ली का सुल्तान बना।
(ii) ………..दिल्ली की पहली मुस्लिम शासिका थी।
(iii) …………अपनी ‘रक्त और लौह’ नीति के लिए विख्यात है।
(iv) मलिक काफूर………………का दास सेनानायक था।
(v) ………………को इतिहास में पढ़ा-लिखा मूर्ख सुल्तान’ कहते हैं।
उत्तर-
(i) 1206
(ii) रजिया
(iii) बलबन
(iv) अलाऊद्दीन खिलजी
(v) मुहम्मद तुग़लक ।

3. सही / ग़लत कथन

(i) बलबन एक शक्तिशाली और पक्के इरादे वाला शासक था। — (√)
(ii) गुलाम (दास) वंश के शासकों के बाद सन् 1290 ई० में दिल्ली में तुग़लक वंश का नया राज्य स्थापित हुआ। — (×)
(iii) खिलजी वंश का अन्तिम शासक मार डाला गया और दिल्ली पर सैय्यद वंश का शासन शुरू हुआ। — (×)
(iv) मुहम्मद-बिन-तुग़लक ने पीतल और ताँबे के सांकेतिक सिक्के चलाए जिन्हें राजकोष से चाँदी-सोने के सिक्कों से बदला जा सकता था। — (√)
(v) अलाऊद्दीन के एक अधिकारी हसन गंगू ने बहमनी राज्य की नींव डाली — (√)

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4. बहु-विकल्पीय प्रश्न

प्रश्न (i)
दिल्ली सल्तनत के शुरू के शासक थे-
(A) तुर्क
(B) अफ़गान
(C) मंगोल
(D) इनमें से कोई नहीं ।
उत्तर-
(B) अफ़गान

प्रश्न (ii)
अलाऊद्दीन खिलजी के लिए दक्षिणी प्रदेश जीते
(A) बलबन ने
(B) ताजुद्दीन यल्दौज ने
(C) नालिरुद्दीन कुबाचा ने
(D) कुतुबुद्दीन ऐबक ने
उत्तर-
(C) नालिरुद्दीन कुबाचा ने

प्रश्न (iii)
निम्न सुल्तान अपने आर्थिक सुधारों (बाज़ार नीति) के लिए विख्यात है-
(A) बलबन
(B) अलाऊद्दीन खिलजी
(C) फिरोज़ तुगलक
(D) इल्तुतमिश।
उत्तर-
(A) बलबन

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प्रश्न (iv)
निम्न सुल्तान ने कृषि की उन्नति के लिए सिंचाई की विशेष व्यवस्था की-
(A) इल्तुतमिश
(B) मुहम्मद तुगलक
(C) फिरोज़ तुग़लक
(D) कुतुबुदीन ऐबक।
उत्तर-
(D) कुतुबुदीन ऐबक।

प्रश्न (v)
‘जकात’ नामक कर किससे प्राप्त किया जाता था?
(A) अमीर मुसलमानों से
(B) अमीर हिंदुओं से
(C) सभी हिंदुओं से
(D) गैर-मुसलमानों से
उत्तर-
(B) अमीर हिंदुओं से

II. अति छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
दिल्ली सल्तनत की जानकारी के लिए स्रोतों के चार प्रमुख प्रकार बताएं।
उत्तर-
दिल्ली सल्तनत की जानकारी के लिए स्रोतों के चार प्रमुख प्रकार हैं-समकालीन दरबारी इतिहासकारों के वृत्तान्त, कवियों की रचनाएं, विदेशी यात्रियों के वृत्तान्त तथा सिक्के।

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प्रश्न 2.
अमीर खुसरो की रचनाएं किन तीन सुल्तानों के राज्यकाल पर प्रकाश डालती हैं ?
उत्तर-
अमीर खुसरो की रचनाएं बलबन, अलाऊद्दीन खिलजी तथा ग्यासुद्दीन तुग़लक के राज्यकाल पर प्रकाश डालती हैं।

प्रश्न 3.
मुहम्मद गौरी ने मुल्तान, लाहौर तथा दिल्ली की विजयें किन वर्षों में प्राप्त की ?
उत्तर-
मुहम्मद गौरी ने 1175 ई० में मुल्तान, 1186 ई० में लाहौर तथा 1192 ई० में दिल्ली पर विजय प्राप्त की।

प्रश्न 4.
मुहम्मद गौरी के साम्राज्य में उत्तरी भारत के कौन से चार प्रमुख राज्य सम्मिलित थे ?
उत्तर-
मुहम्मद गौरी के साम्राज्य में उत्तरी भारत का पंजाब का भूतपूर्व गज़नी राज्य, दिल्ली, अजमेर का चौहान राज्य, कन्नौज का गहड़वाल और राठौर राज्य तथा बंगाल का सेन राज्य सम्मिलित था।

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प्रश्न 5.
तराइन का दूसरा युद्ध कब हुआ और इसमें पृथ्वीराज के अधीन लड़ने वाले सामन्तों की संख्या क्या थी ?
उत्तर-
तराइन का दूसरा युद्ध 1192 ई० में हुआ। इस में पृथ्वीराज के अधीन लड़ने वाले सामन्तों की संख्या 150 थी।

प्रश्न 6.
मुहम्मद गौरी के चार दास सेनानियों के नाम बताएं।
उत्तर-
ताजुद्दीन यल्दौज, नासिरुद्दीन कुबाचा, कुतुबुद्दीन ऐबक तथा बख्यितार खिलजी मुहम्मद गौरी के चार दास सेनानी

प्रश्न 7.
यल्दौज़ कहाँ का शासक था और उसे रोकने के लिए ऐबक ने दिल्ली के स्थान पर कौन से नगर को अपनी राजधानी बनाया ?
उत्तर-
यल्दौज गज़नी का शासक था। उसे रोकने के लिए ऐबक ने दिल्ली के स्थान पर लाहौर को अपनी राजधानी बनाया।

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प्रश्न 8.
ऐबक की मृत्यु कब और कैसे हुई ?
उत्तर-
ऐबक की मृत्यु 1210 ई० में घोड़े से गिर जाने के कारण हुई।

प्रश्न 9.
इल्तुतमिश ने किस मंगोल विजेता के आक्रमण को टाला तथा उसके किस शत्रु को दिल्ली में शरण देने से इन्कार किया था ?
उत्तर-
इल्तुतमिश ने मंगोल विजेता चंगेज़ खां के आक्रमण को बड़ी सूझ-बूझ से टाला। उसने चंगेज़ खां के शत्रु ख्वारिज्म के शहज़ादे को दिल्ली में शरण देने से इन्कार कर दिया।

प्रश्न 10.
इल्तुतमिश के तुर्क अमीरों के लिए बाद में किस नाम का प्रयोग किया जाने लगा ?
उत्तर-
इल्तुतमिश के तुर्क अमीरों के लिए बाद में ‘चहलगनी’ नाम का प्रयोग किया जाने लगा।

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प्रश्न 11.
इल्तुतमिश ने कौन से दो सिक्के चलाए ?
उत्तर-
इल्तुतमिश ने ‘जीतल’ तथा ‘टका’ नाम के दो सिक्के चलाए।

प्रश्न 12.
इस्लामी जगत् के नेता को क्या कहा जाता था और इल्तुतमिश ने उससे क्या प्राप्त किया ?
उत्तर-
इस्लामी जगत् के नेता को ‘खलीफा’ कहा जाता था। इल्तुतमिश ने उससे सम्मान के वस्त्र तथा राज्याभिषेक का पत्र प्राप्त किया।

प्रश्न 13.
इल्तुतमिश के किन्हीं दो उत्तराधिकारियों के नाम बताएं।
उत्तर-
रज़िया तथा नासिरुद्दीन महमूद इतुतमिश के दो उत्तराधिकारी थे।

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प्रश्न 14.
सुल्तान के दैवी-अधिकार से क्या भाव था ?
उत्तर-
सुल्तान के दैवी-अधिकार से भाव यह था कि सुल्तान को राज्य करने का अधिकार ईश्वर से मिला है।

प्रश्न 15.
बलबन ने कौन से चार प्रदेशों में विद्रोहों को दबाया ?
उत्तर-
बलबन ने बंगाल, दिल्ली, गंगा-यमुना दोआब, अवध एवं कटेहर के प्रदेशों में विद्रोहों को दबाया।

प्रश्न 16.
बलबन ने मंगोलों के आक्रमण रोकने के लिए विशेष सेनाएं किन तीन स्थानों पर तैनात की ?
उत्तर-
बलबन ने मंगोलों के आक्रमण को रोकने के लिए विशेष सेनाओं को ‘मुल्तान’, ‘सुनाम’ और ‘समाना’ के स्थानों पर तैनात किया।

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प्रश्न 17.
खिलजी वंश की स्थापना किसने और कब की ?
उत्तर-
खिलजी वंश की स्थापना 1290 में जलालुद्दीन खिलजी ने की।

प्रश्न 18.
दिल्ली सल्तनत के विस्तार के लिए कौन से सुल्तान का काल सबसे महत्त्वपूर्ण है ? इसने कब से कब तक राज्य किया ?
उत्तर-
दिल्ली सल्तनत के विस्तार के लिए अलाऊद्दीन खिलजी का काल सबसे महत्त्वपूर्ण है। उसने 1296-1316 ई० तक राज्य 1 किया।

प्रश्न 19.
अलाऊद्दीन खिलजी के चार सेनापतियों के नाम बताएं।
उत्तर-
अलाऊद्दीन खिलजी के चार सेनापतियों के नाम थे-अल्प खाँ, नुसरत खाँ, जफर खाँ तथा उलुग खाँ।

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प्रश्न 20.
अलाऊद्दीन द्वारा विजित उत्तर भारत के चार प्रदेशों के नाम बताएं।
उत्तर-
अलाऊद्दीन द्वारा विजित उत्तर भारत के चार प्रदेश रणथम्भौर, मेवाड़, मालवा तथा गुजरात थे।

प्रश्न 21.
अलाऊद्दीन ने राजस्थान में कौन से चार किले जीते थे ?
उत्तर-
अलाऊद्दीन ने राजस्थान में रणथम्भौर, चित्तौड़, शिवाना तथा जालौर के किलों पर विजय प्राप्त की थी।

प्रश्न 22.
अलाऊद्दीन के समय में मालवा के कौन से चार नगर जीते गए ?
उत्तर-
अलाऊद्दीन के समय में मालवा के माण्डू, धार, उज्जैन तथा चन्देरी नगर जीते गए।

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प्रश्न 23.
अलाऊद्दीन की चित्तौड़ विजय के साथ कौन-सी लोक-गाथा सम्बन्धित है ?
उत्तर-
अलाऊद्दीन की चित्तौड़ विजय से सम्बन्धित लोक-गाथा यह है कि अलाऊद्दीन चित्तौड़ के राणा की सुन्दर पत्नी पद्मिनी को प्राप्त करना चाहता था।

प्रश्न 24.
अलाऊद्दीन की दक्षिण विजय के दो उद्देश्य क्या थे ?
उत्तर-
अलाऊद्दीन की दक्षिण विजय के दो. उद्देश्य थे-दिल्ली की प्रभुसत्ता स्थापित करना तथा वहाँ से धन प्राप्त करना।

प्रश्न 25.
अलाऊद्दीन के समय में मंगोल आक्रमण कब आरम्भ तथा समाप्त हुए तथा इनकी संख्या क्या थी ?
उत्तर-
अलाऊद्दीन के समय में मंगोल आक्रमण 1297 ई० से 1306 ई० तक हुए। इन आक्रमणों की संख्या छः थी।

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प्रश्न 26.
अलाऊद्दीन ने दक्षिण के किन राज्यों पर अपनी प्रभुत्ता स्थापित की ?
उत्तर-
अलाऊद्दीन ने दक्षिण भारत के देवगिरी, वारंगल, द्वारसमुद्र तथा मदुरा राज्यों पर विजय प्राप्त की।

प्रश्न 27.
अलाऊद्दीन की दक्षिण की विजयें किस सेनापति के अधीन की गईं ? इसे कहाँ और कितना धन देकर खरीदा गया था ?
उत्तर-
अलाऊद्दीन ने दक्षिण की विजयें अपने सेनापति मलिक काफूर के अधीन की। उसे गुजरात से एक हज़ार दीनार दे कर खरीदा गया था ?

प्रश्न 28.
तुगलक वंश के पहले दो शासकों के नाम तथा राज्यकाल बताएं।
उत्तर-
तुग़लक वंश के पहले दो शासक ग्यासुद्दीन तुग़लक तथा मुहम्मद-बिन-तुगलक थे। इन का शासन काल 1320 ई० से 1351 ई० तक था।

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प्रश्न 29.
ग्यासुद्दीन तुगलक के समय में जीते गए चार प्रदेशों के नाम बताएँ।
उत्तर-
ग्यासुद्दीन तुग़लक के समय में जीते गए चार प्रदेशों के नाम हैं –तिरहुत, वारंगल, माबर, द्वारसमुद्र।

प्रश्न 30.
मुहम्मद-बिन-तुग़लक के समय दिल्ली सल्तनत उत्तर, दक्षिण, पूर्व तथा पश्चिम में किन प्रदेशों तक फैल गई थी ?
उत्तर-
मुहम्मद-बिन-तुग़लक के समय में दिल्ली सल्तनत उत्तर में पंजाब से लेकर सुदूर दक्षिण में मिबर तक तथा पश्चिम में गुजरात से लेकर पूर्व में बंगाल तक फैल गई थी।

प्रश्न 31.
दिल्ली सल्तनत के पतन का आधारभूत कारण क्या था ?
उत्तर-
दिल्ली सल्तनत के पतन का आधारभूत कारण दक्षिण में सीधा प्रशासन स्थापित करना था।

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प्रश्न 32.
मुहम्मद-बिन-तुगलक ने दक्षिण में कौन से नगर को अपनी दूसरी राजधानी बनाया और इसका क्या नाम रखा ?
उत्तर-
मुहम्मद-बिन-तुग़लक ने ‘देवगिरि’ को अपनी दूसरी राजधानी बनाया। उसने इसका नाम ‘दौलताबाद’ रखा।

प्रश्न 33.
शासक वर्ग में किस प्रकार के लोगों के शामिल होने के कारण तुर्क अमीर मुहम्मद-बिन-तुगलक से नाराज़ थे ?
उत्तर-
मुहम्मद-बिन-तुग़लक ने बड़ी संख्या में विदेशियों, गैर-तुर्कों और गैर-मुसलमानों को शासक वर्ग में उच्च पद दे दिये थे। इससे तुर्क अमीर उससे नाराज़ हो गये।

प्रश्न 34.
उलेमा लोग सुल्तान से क्यों नाराज थे ?
उत्तर-
उलेमा लोग सुल्तान के उदार धार्मिक विचारों के कारण उस से नाराज़ थे।

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प्रश्न 35.
मुहम्मद-बिन-तुगलक ने कौन से सिक्के के स्थान पर सांकेतिक मुद्रा चलाई और यह किस धातु में थी ?
उत्तर-
मुहम्मद-बिन-तुग़लक ने चाँदी के सिक्कों के स्थान पर सांकेतिक मुद्रा चलाई। यह कांसे की थी।

प्रश्न 36.
मुहम्मद-बिन-तुगलक के राज्यकाल में हुए विद्रोहों की संख्या क्या थी तथा इनसे प्रभावित किन्हीं चार प्रदेशों के नाम बताएं।
उत्तर-
मुहम्मद-बिन-तुग़लक के राज्यकाल में हुए विद्रोहों की संख्या 22 थी। इनसे प्रभावित चार प्रदेशों के नाम हैंबिआबर, सिन्ध, गुजरात तथा बंगाल।

प्रश्न 37.
फिरोज़ तुगलक ने अमीरों को प्रसन्न करने के लिए क्या किया ?
उत्तर-
फिरोज़ तुलगक ने अमीरों को प्रसन्न करने के लिए उनके वेतन और जागीरें बढ़ा दीं।

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प्रश्न 38.
फिरोज़ तुगलक के समय में सैनिकों को वेतन किस रूप में दिया जाता था ?
उत्तर-
फिरोज तुग़लक के समय में सैनिकों को वेतन नकद देने के स्थान पर भूमि के एक भाग का लगान दिया जाने लगा।

प्रश्न 39.
तुगलक काल के अन्त में आने वाले विदेशी आक्रमणकारी का नाम तथा उसके आक्रमण का वर्ष बताएं।
उत्तर-
तुगलक काल के अन्त में आने वाले विदेशी आक्रमणकारी का नाम तैमूर था। उस के आक्रमण का वर्ष 139899 ई० था।

प्रश्न 40.
अन्तिम तुगलक सुल्तान का क्या नाम था तथा इसका राज्य कब समाप्त हुआ ?
उत्तर-
अन्तिम तुग़लक सुल्तान का नाम नासिरुद्दीन महमूद शाह था। उस का राज्य 1412 ई० में समाप्त हो गया।

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प्रश्न 41.
फिरोज़ तुग़लक की मृत्यु के बाद कौन-से चार नये राज्य स्थापित हुए ?
उत्तर-
फिरोज़ तुग़लक की मृत्यु के पश्चात् जौनपुर, मालवा, गुजरात तथा खानदेश नये राज्य स्थापित हुए।

प्रश्न 42.
दिल्ली सल्तनत के वित्त तथा लगान सम्बन्धी मन्त्री को क्या कहा जाता था तथा उसकी सहायता के लिए कौन से दो अधिकारी थे ?
उत्तर-
दिल्ली सल्तनत के वित्त तथा लगान सम्बन्धी मन्त्री को ‘वजीर’ कहा जाता था। उसकी सहायता के लिए ‘महालेखाकार’ तथा ‘महालेखा परीक्षक’ नामक अधिकारी होते थे।

प्रश्न 43.
दिल्ली सल्तनत के अधीन सेना, शाही पत्र-व्यवहार, गुप्तचर विभाग, धार्मिक मामलों तथा न्याय के मन्त्री को क्या कहा जाता था ?
उत्तर-
दिल्ली सल्तनत के अधीन सैनिक संगठन के मन्त्री को आरिज-ए-मुमालिक, पत्र व्यवहार के मन्त्री को दरबारए-खास, गुप्तचर विभाग के मन्त्री को बरीद-ए-खास, धार्मिक मामलों तथा न्याय के मन्त्री को शेख-अल-इस्लाम कहते थे।

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प्रश्न 44.
सुल्तानों के महलों तथा दरबार की देख-रेख करने वाले दो अधिकारियों के नाम बताएं।
उत्तर-
सुल्तानों के महलों तथा दरबार की देख-रेख करने वाले दो अधिकारियों के नाम थे-‘वकील-ए-दर’ तथा ‘अमीर-ए-हाजिब’।

प्रश्न 45.
न्याय प्रबन्ध के अन्तर्गत कौन से मामलों में प्रत्येक व्यक्ति राज्य के कानून के सामने बराबर था और कौन से अधिकारी की अदालत में जा सकता था ?
उत्तर-
सम्पत्ति से सम्बन्धित सब बातों में किसी भी धर्म का व्यक्ति इस्लामी कानून के सम्मुख बराबर था। ऐसे मामलों में वह काज़ी की अदालत में जा सकता था।

प्रश्न 46.
सल्तनत की ओर से दिए जाने वाले संरक्षण का अधिकांश भाग किन चार प्रकार की संस्थाओं और व्यक्तियों को मिलता था ?
उत्तर-
सल्तनत की ओर से दिये जाने वाले संरक्षण का अधिकांश भाग प्रायः मस्जिदों, मदरसों, खानकाहों और ऐसे मुसलमानों को जाता था, जिनकी धर्म-परायणता विख्यात थी।

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प्रश्न 47.
अलाऊद्दीन खिलजी की सेना की संख्या कितनी मानी जाती है और एक घुड़सवार को कितना वेतन मिलता था ?
उत्तर-
अलाऊद्दीन खिलजी की सेना की संख्या 4,75,000 मानी जाती है। एक घुड़सवार को 234 टके वेतन मिलता था। ।

प्रश्न 48.
सल्तनत की सेना में कौन से तीन अंग थे तथा इनमें से सबसे महत्त्वपूर्ण कौन सा था ?
उत्तर-
सल्तनत की सेना में घुड़सवार, हाथी तथा पैदल शामिल थे। घुड़सवार सेना का सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण भाग थे।

प्रश्न 49.
बाज़ार नियन्त्रण किस सुल्तान ने किया तथा किन्हीं चार वस्तुओं के नाम बताएं जिनके मूल्य॑ इसके वर्गत नियत किए गए।
उत्तर-
बाजार नियन्त्रण अलाऊद्दीन खिलजी ने किया था। इसके अन्तर्गत अनाज, घी, तेल, कपड़ा आदि वस्तुओं के मूल्य 1यत किये गए।

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प्रश्न 50.
दिल्ली सल्तनत के अधीन प्रान्तीय गवर्नरों के लिए कौन से तीन नामों का प्रयोग किया जाता था ?
उत्तर-
दिल्ली सल्तनत के अधीन गवर्नरों को ‘मुक्ती’, ‘सूबेदार’ अथवा ‘वली’ कहा जाता था।

प्रश्न 51.
परगने का मुख्य अधिकारी कौन था ? उसका क्या कार्य था ?
उत्तर-
परगने का मुख्य अधिकारी ‘आमिल’ होता था। उसका मुख्य कार्य लगान उगाहना तथा हिसाब-किताब रखना था।

प्रश्न 52.
कानूनगो किस स्तर पर और क्या काम करता था ?
उत्तर-
कानूननो परगने की ज़मीन तथा लगान से सम्बन्धित सारा रिकार्ड रखता था।

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प्रश्न 53.
चौधरी किस व्यक्ति को माना जाता था ?
उत्तर-
एक प्रभावशाली व्यक्ति को चौधरी माना जाता था।

प्रश्न 54.
स्थानीय स्तर पर चार अधिकारियों के नाम बतायें जिनके पद वंशानुगत होते थे।
उत्तर–
पटवारी, मुकद्दम, चौधरी तथा कानूनगो के पद वंशानुगत होते थे।

प्रश्न 55.
सल्तनत की आय का मुख्य स्रोत क्या था तथा एवं इसको निर्धारित करने की तीन प्रमुख विधियां कौन सी थीं ?
उत्तर-
सल्तनत की आय का प्रमुख स्रोत भूमि से प्राप्त लगान था। लगान निर्धारित करने की तीन विधियां थीं-बटाई, कनकूत तथा भूमि की पैमाइश।

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प्रश्न 56.
बटाई से क्या भाव था ?
उत्तर-
बटाई से भाव कटी हुई फसल को सरकार तथा किसान के बीच बाँटना था।

प्रश्न 57.
कनकूत से क्या भाव था ?
उत्तर-
कनकूत में लगभग तैयार फसल के आधार पर लगान का अनुमान लगाया जाता था।

प्रश्न 58.
कौन से सुल्तान के समय में लगान की दर सबसे अधिक और कितनी थी ?
उत्तर-
अलाऊद्दीन खिलजी के समय में लगान की दर सबसे अधिक थी। लगान की दर उपज का 1/2 भाग थी।

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प्रश्न 59.
लगान की वसूली किन दो रूपों में की जाती थी ?
उत्तर-
लगान की वसूली गल्ले तथा नकदी में की जाती थी।

प्रश्न 60.
इक्ता से क्या भाव था ?
उत्तर-
सरकार के अधिकतर कर्मचारियों को नकद वेतन देने के स्थान पर लगान इकट्ठा करने का अधिकार दे दिया जाता था। इस प्रकार इकट्ठा किये जाने वाले लगान को इक्ता कहा जाता था।

प्रश्न 61.
दिल्ली सल्तनत के शासक वर्ग में सम्मिलित लोग कौन से चार विभिन्न जातीय मलों के थे ?
उत्तर-
दिल्ली सल्तनत के शासक वर्ग में सम्मिलित लोग तुर्क, ईरानी, अरब तथा पठान जाति से थे।

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प्रश्न 62.
सुल्तानों द्वारा बनवाए गए चार भवनों के चार प्रकार बताओ।
उत्तर-
सुल्तानों द्वारा बनवाए गए चार प्रकार के भवन थे-मस्जिदें, मकबरे, किले, महल तथा मीनार।

प्रश्न 63.
सल्तनत काल में बनी किन्हीं चार मस्जिदों के नाम बताएं।
उत्तर-
जौनपुर की अटाला और जामा मस्जिद, दिल्ली की कुव्वत-अल-इस्लाम मस्जिद तथा अजमेर की अढ़ाई-दिनका झोपड़ा मस्जिद दिल्ली सल्तनत काल में बनाई गई थीं।

प्रश्न 64.
सल्तनत काल में कौन-सी चार प्रादेशिक सल्तनतों के भवनों के प्रभावशाली नमूने मिले हैं ?
उत्तर-
प्रादेशिक सल्तनतों के भवनों में प्रभावशाली नमूने बंगाल, जौनपुर, मालवा और गुजरात में मिले हैं।

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प्रश्न 65.
कुव्वत-अल-इस्लाम मस्जिद का निर्माण किसने आरम्भ किया और इसे क्यों महत्त्व दिया जाता है ?
उत्तर-
कुव्वत-अल-इस्लाम मस्जिद का निर्माण ऐबक ने कराया था। इसके आंगन में कुतुबमीनार होने से इसे महत्त्व दिया, जाता है।

प्रश्न 66.
कुतुबमीनार कहाँ है तथा इसकी कितनी मंज़िलें हैं ?
उत्तर-
कुतुबमीनार दिल्ली के समीप महरौली के स्थान पर स्थित है। इसकी पाँच मंजिलें हैं।

प्रश्न 67.
दिल्ली में किन चार वंशों के सुल्तानों के मकबरे मिलते हैं?
उत्तर-
दिल्ली में खिलजी, तुग़लक, सैय्यद तथा लोधी वंश के सुल्तानों के मकबरे मिलते हैं।

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प्रश्न 68.
सल्तनत काल में बनवाए गए किन्हीं दो नगरों के नाम तथा उनको बनवाने वाले सुल्तानों के नाम बताएं।
उत्तर-
सल्तनत काल में अलाऊद्दीन खिलजी ने सीरी नगर तथा फिरोजशाह कोटला नगर बसाये।

प्रश्न 69.
सल्तनत काल के बड़े दरवाजों के दो सबसे बढ़िया नमूने कौन से हैं और ये कहाँ मिलते हैं ? .
उत्तर-
सल्तनत काल के बड़े दरवाजों के दो सबसे बढ़िया नमूने गौड़ का दाखली दरवाज़ा तथा कुतुबमीनार के निकट अलाई दरवाज़ा है।

प्रश्न 70.
राजपूतों की विधार्मिक भवन निर्माण कला के दो प्रभावशाली उदाहरण कौन से हैं ?
उत्तर-
राजपूतों की विधार्मिक भवन निर्माण कला के दो प्रभावशाली उदाहरण हैं-ग्वालियर में राजा मानसिंह का महल और चित्तौड़ में राणा कुम्भा का विजय स्तम्भ।

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III. छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
कुतुबुद्दीन ऐबक ने दिल्ली सल्तनत की स्थापना में क्या भूमिका निभाई ?
उत्तर-
कुतुबुद्दीन ऐबक मुहम्मद गौरी का एक दास था। उसकी योग्यता से प्रभावित होकर 1192 ई० में मुहम्मद गौरी ने उसे भारत में अपना प्रतिनिधि नियुक्त किया था। उसने मुहम्मद गौरी के प्रतिनिधि के रूप में 1206 ई० तक अनेक प्रदेश जीते। उसने अजमेर तथा मेरठ के विद्रोहों का दमन किया और दिल्ली पर अपना अधिकार कर लिया। उसने अजमेर के मेढ़ों तथा बुन्देलखण्ड के चन्देलों को भी हराया। शीघ्र ही उसने कालपी और बदायूं पर विजय प्राप्त की। 1206 ई० में मुहम्मद गौरी की मृत्यु के बाद वह दिल्ली का स्वतन्त्र शासक बन गया। स्वतन्त्र शासक के रूप में उसने हिन्दू सरदारों का दमन किया और दासता से मुक्ति प्राप्त करके दिल्ली सल्तनत की नींव को सुदृढ़ किया। 1210 ई० में उसकी मृत्यु हो गई।

प्रश्न 2.
इल्तुतमिश ने दिल्ली सल्तन को किस प्रकार संगठित किया ?
उत्तर-
इल्तुतमिश 1211 ई० में दिल्ली का सुल्तान बना। सिंहासनारोहण के समय उसकी अनेक कठिनाइयां थीं जिन पर उसने बड़ी सूझ-बूझ से नियन्त्रण पाया। सर्वप्रथम उसने पहले कुतुबी सरदारों को हराया। इन सरदारों ने उसे सुल्तान मानने से इन्कार कर दिया था। उसके मार्ग में ताजुद्दीन यल्दौज़ भी बाधा बना हुआ था। इल्तुतमिश ने उसे तराईन (तरावड़ी) के मैदान में करारी हार दी। मुल्तान में नासिरुद्दीन कुबाचा और बंगाल, बिहार में अलीमर्दान ने भी अपने आपको स्वतन्त्र शासक घोषित कर दिया था। इल्तुतमिश ने इन दोनों के विद्रोह का सफलतापूर्वक दमन कर दिया। उसकी सफलताओं से प्रसन्न होकर बगदाद के खलीफा ने उसे सम्मान प्रदान किया, जिससे उसकी स्थिति काफ़ी दृढ़ हो गई। अब उसने गुजरात, मालवा और भीलसा के राजपूतों की शक्ति को कुचला और भारत में सल्तनत राज्य की नींव को पक्का किया।

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प्रश्न 3.
सल्तनत काल में भारत की शिक्षा प्रणाली का वर्णन करो।
उत्तर-
सल्तनतकालीन भारत शिक्षा के क्षेत्र में अपना प्राचीन वैभव खो चुका था। इस युग में नालन्दा, तक्षशिला जैसे उच्चकोटि के विश्वविद्यालय नहीं थे। सुल्तान सदा संघर्षों में उलझे रहे। अतः उनके काल में फिरोज़ तुग़लक को छोड़कर किसी ने शिक्षा के प्रसार की ओर कोई ध्यान नहीं दिया। प्रायः मस्जिदें तथा मन्दिर ही शिक्षा के केन्द्र होते थे। मुसलमानों के बच्चे उर्दू, फारसी तथा कुरान की शिक्षा ग्रहण करते थे। फिरोज़ तुगलक ने मुसलमानों की शिक्षा के लिए अलग स्कूल भी खुलवाए। जौनपुर उन दिनों शिक्षा का एक बहुत बड़ा केन्द्र माना जाता था। फिरोज़ तुग़लक के पश्चात् यदि किसी मुस्लिम शासक ने शिक्षा के क्षेत्र में उत्साह दिखाया, तो वह था अकबर। उसने अनेक मदरसे खुलवाए तथा प्रतिभाशाली विद्यार्थियों को इनाम तथा वज़ीफे देने की व्यवस्था की।

प्रश्न 4.
दिल्ली सल्तनत के केन्द्रीय शासन का वर्णन करो।
उत्तर-
केन्द्रीय शासन का मुखिया सुल्तान स्वयं था। इसकी सहायता के लिए कई मन्त्री थे। सबसे महत्त्वपूर्ण मन्त्री वित्तीय व्यवस्था तथा लगान का मन्त्री था। इस को ‘वजीर’ कहा जाता था। उसकी सहायता के लिए एक महालेखाकार (मुशरिफ) तथा एक महालेखापरीक्षक (मुस्तौफी) थे। सैनिक संगठन के मन्त्री को ‘आरिज़-ए-मुमालिक’ कहते थे। शाही पत्र-व्यवहार के मन्त्री को ‘दबीर-ए-खास’ तथा गुप्तचर विभाग के मन्त्री को ‘बरीद-ए-खास’ कहा जाता था। अन्य विषयों के मन्त्री ‘वजीर’ से कम महत्त्वपूर्ण तथा कम शक्तिशाली थे। यहां तक कि धार्मिक मामलों तथा न्याय का मन्त्री भी (जिसको ‘शेखअल-इस्लाम’ कहते थे) ‘वजीर’ जितना महत्त्वपूर्ण नहीं था। इनके अतिरिक्त, सुल्तान के महलों तथा उसके दरबारों की देखरेख करने के लिए भी अधिकारी थे। इनमें महलों तथा शाही कारखानों के लिए ‘वकील-ए-दर’ तथा दरबार के लिए ‘अमीरए-हाजिब’ मुख्य थे।

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प्रश्न 5.
दिल्ली सल्तनत के सैनिक प्रबन्ध के विषय में लिखो।
उत्तर-
सुल्तानों ने विशाल स्थायी सेना का संगठन किया। इसका प्रधान दीवान-ए-अर्ज होता था। केन्द्रीय सेना के अतिरिक्त प्रान्तीय सूबेदार भी अपने पास सेना रखते थे। वे समय पड़ने पर सुल्तान की सहायता करते थे। सेना के चार प्रमुख अंग थे जिनमें सबसे प्रमुख घुड़सवार सेना थी। युद्ध में हाथियों का भी प्रयोग होता था जो सेना का दूसरा अंग था। तीसरा अंग पैदल सेना थी। अस्त्रों-शस्त्रों में तलवार, बर्छा, भाले तथा धनुष बाणों का प्रयोग किया जाता था। सुल्तानों का सैनिक संगठन दाशमिक प्रणाली पर आधारित था। 10 घुड़सवारों पर सरेखैल नामक अधिकारी होता था और 10 सरेखैल पर एक सिपाहसालार होता था। इसी प्रकार 10 सिपाहसालारों पर एक अमीर होता था, 10 अमीरों पर एक मालिक और 10 मालिकों पर एक खान होता था। सेना का आकार समय-समय पर परिवर्तित होता रहता था।

प्रश्न 6.
रजिया सुल्तान में एक शासक के सभी गुण विद्यमान् थे, परन्तु फिर भी वह असफल रही। उसकी असफलता के क्या कारण थे ?
उत्तर-
इसमें कोई सन्देह नहीं कि रज़िया एक सर्वगुण सम्पन्न शासिका थी। वह मरदाने कपड़े पहनकर खुले दरबार में बैठती थी। वह अच्छा न्याय करती थी और प्रजा की उन्नति का ध्यान रखती थी। फिर भी अन्त में उसके शत्रुओं की विजय हुई। इसके कई कारण थे : –

1. रज़िया की सबसे बड़ी दुर्बलता यह थी कि वह एक स्त्री थी। एल्फन्स्टोन लिखता है, “रज़िया स्त्री थी। उसकी इस दुर्बलता ने उसके और सभी गुणों को ढांप लिया था।”

2. रज़िया ने अपने प्रेम-सम्बन्धों द्वारा अपना पक्ष कमज़ोर कर लिया। जलालुद्दीन याकूब नामक हब्शी दास पर उसकी विशेष कृपा थी। इसलिए अनेक सरदार तथा अमीर रज़िया के विरुद्ध हो गए और षड्यन्त्र रचने लगे।

3. सरदार तथा अमीर किसी स्त्री के अधीन रहना पसन्द नहीं करते थे। इसलिए उन्होंने रज़िया से छुटकारा पाने के लिए अनेक योजनाएं बनाई और अन्त में उसका वध कर दिया।

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प्रश्न 7.
दक्षिण में अलाऊद्दीन खिलजी की सफलता के क्या कारण थे ?
उत्तर-
दक्षिण में अलाऊद्दीन खिलजी की सफलता के मुख्य कारण ये थे

1. अलाऊद्दीन खिलजी की दक्षिण के विषय में व्यक्तिगत जानकारी-सुल्तान बनने से पूर्व ही अलाऊद्दीन दक्षिण में देवगिरि पर आक्रमण कर चुका था। अपने व्यक्तित्व अनुभव के आधार पर उसने काफूर को उचित आदेश दिए जिसके कारण वह विजयी रहा।

2. मलिक काफूर की सैनिक योग्यता-काफूर योग्य सेनानायक सिद्ध हुआ। वह एक प्रदेश विजय करने के पश्चात् दूसरा प्रदेश विजय करने के लिए आगे बढ़ता गया। उसके सैनिक कारनामों की सूचनाएं दक्षिण के राजाओं को पहले से ही मिल जाती थीं और वे उससे लड़ने का साहस खो बैठते थे।

3. दक्षिण के राजाओं में फूट-दक्षिण के राजा अलाऊद्दीन की सेनाओं से मिलकर न लड़े। परिणामस्वरूप मलिक काफूर के लिए उन्हें अलग-अलग पराजित करना सरल हो गया।

4. धार्मिक जोश-मुसलमानों में धार्मिक जोश था। मलिक काफूर और उसके सैनिक इस्लाम के नाम पर लड़े। उन्होंने कई लोगों को मुसलमान बनाया और दक्षिण में मस्जिदें बनाईं।

प्रश्न 8.
अलाऊद्दीन खिलजी की बाज़ार-नियन्त्रण नीति की विवेचना कीजिए।
अथवा
अलाऊद्दीन खिलजी के आधुनिक सुधारों का वर्णन करो।
उत्तर-
अलाऊद्दीन खिलजी एक सफल राजनीतिज्ञ और महान् अर्थशास्त्री था। अतः उसने बाजारों पर नियन्त्रण स्थापित करने का प्रयास किया। इस उद्देश्य से उसने तीन प्रकार के बाजारों की स्थापना की-एक खाद्यान्न के लिए, दूसरा घोड़ों, दासों तथा गाय-बैलों के लिए, तीसरा आयात की गई मूल्यवान् वस्तुओं के लिए। उसने इन सभी वस्तुओं के बाजार मूल्य निश्चित कर दिये। सभी दुकानदारों के लिए यह भी आवश्यक था कि वे दुकानों पर मूल्य सूची लगायें। अलाऊद्दीन खिलजी ने वस्तुओं के एकत्रीकरण और वितरण की भी उचित व्यवस्था की। वस्तुओं को एकत्रित करने के लिए मुल्तानी सौदागर तथा बंजारे नियुक्त किए गए। वस्तुओं के उचित वितरण के लिए राशम-प्रणाली आरम्भ की गई। राशन व्यवस्था तथा मण्डियों के उचित प्रबन्ध के लिए अलग विभाग की स्थापना की गई जिसे ‘दीवान-ए-रियासत’ कहते थे।

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प्रश्न 9.
अलाऊद्दीन खिलजी की कृषि-नीति का वर्णन करो।
उत्तर-
अलाऊद्दीन खिलजी को मंगोलों के आक्रमणों का सफलतापूर्वक सामना करने तथा साम्राज्य को सुदृढ़ बनाने के लिए बहुत से धन की आवश्यकता थी। अत: उसने कृषि की ओर विशेष ध्यान दिया ताकि राज्य को अधिक-से-अधिक लगान प्राप्त हो। उसने लगान-प्रणाली में भी कई सुधार किये। राज्य की सारी भूमि की पैमाइश करवाई कई तथा उपज का आधा भाग भूमि कर के रूप में निश्चित किया गया। अपनी भूमि-कर प्रणाली को सफल बनाने के लिए उसने ये पग उठाये थे(1) राजस्व अधिकारियों को रिश्वतखोरी तथा भ्रष्टाचार से बचाने के लिए उनके वेतन बढ़ा दिए गए। (2) किसानों से बचा हुआ भूमिकर उगाहने के लिए अलाऊद्दीन ने मस्तराज नामक अधिकारी की नियुक्ति की। (3) किसान भूमि-कर नकदी अथवा उपज के रूप में दे सकते थे। सुल्तान तो चाहता था किसान नकदी के स्थान पर उपज का ही कुछ भाग कर के रूप में दिया करें।

प्रश्न 10.
अपने शासन को सुदृढ़ करने के लिए अलाऊद्दीन खिलजी ने क्या कार्य किए ?
उत्तर-
अलाऊद्दीन खिलजी ने अपने शासन को सुदृढ़ बनाने के लिए मुख्य रूप से ये चार कार्य किए-

  • उसने बाहरी आक्रमणों से सुरक्षा के लिए एक विशाल तथा शक्तिशाली सेना का संगठन किया।
  • अलाऊद्दीन खिलजी के समय मंगोल दिल्ली सल्तनत के लिए बहुत बड़ा खतरा बने हुए थे। अलाऊद्दीन ने इन्हें इतनी बुरी तरह पराजित किया कि वे एक लम्बे समय तक दिल्ली राज्य पर आक्रमण करने का साहस न कर सके।
  • अलाऊद्दीन ने सेना तथा गुप्तचरों की सहायता से आन्तरिक विद्रोही तत्त्वों को बुरी तरह कुचला। उसने बाज़ार-नियमों को भी लागू किया ताकि लोगों को सस्ता तथा उचित भोजन मिल सके।
  • अलाऊद्दीन खिलजी ने शासन पर मुल्लाओं के प्रभाव को समाप्त कर दिया। फलस्वरूप सुल्तान की शक्ति एवं प्रतिष्ठा में वृद्धि हुई और वह स्वतन्त्र रूप से शासन चलाने लगा।

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प्रश्न 11.
मुहम्मद तुगलक की योजनाओं (प्रयोगों) की असफलता के क्या कारण थे ?
उत्तर-
मुहम्मद तुग़लक की योजनाओं की असफलता के मुख्य कारण ये थे-
1. मुहम्मद तुग़लक किसी योजना पर अडिग नहीं रहता था। उसने दिल्ली के स्थान पर देवगिरि को राजधानी बनाया और फिर दिल्ली को ही राजधानी बना लिया। उसने सांकेतिक मुद्रा चलाई और फिर उसे वापिस लेने का निश्चय कर लिया। इस अस्थिर स्वभाव के कारण उसकी योजनाएं असफल रहीं।

2. मुहम्मद तुग़लक तथा उसके अधिकारी बड़ी सख्ती का व्यवहार करते थे। दिल्ली की जनता को विवश करके देवगिरि ले जाया गया। किसानों से अकाल की स्थिति में भी कर उगाहने का प्रयत्न किया गया। अतः उसकी योजनाओं को असफल होना स्वाभाविक ही था।

3. मुहम्मद तुग़लक जी खोलकर दान दिया करता था। इसके अतिरिक्त उसकी योजनाओं पर बहुत अधिक व्यय हुआ। इन सब के कारण राजकोष खाली हो गया।

4. मुहम्मद तुग़लक के दरबारी स्वामिभक्त नहीं थे। उनमें आपसी तालमेल का अभाव था। इस तथ्य ने भी उसकी असफलता के बीज बोये।

प्रश्न 12.
फिरोज़ तुगलक के प्रशासनिक कार्यों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
फिरोज़ तुग़लक ने सभी अनुचित करों को समाप्त कर दिया। उसने केवल वही चार कर रहने दिए जिनकी कुरान अनुमति देता था। उसने कृषि को उन्नति के लिए स्थान-स्थान पर नहरें तथा कुएं खुदवाए। अतिरिक्त भूमि को हल के नीचे लाया गया। फिरोज़ तुग़लक ने अपराधियों को दिए जाने वाले अमानवीय दण्ड कम कर दिए। उसने राज्य में कई नए सिक्के चलाए। निर्धन व्यक्तियों के लिए छोटे सिक्के बनाए गए। उसने प्रजा की भलाई के लिए ‘दीवान-ए-खैरात’ नामक एक अलग विभाग की स्थापना की। परन्तु उसने कुछ दोषपूर्ण कार्य भी किए। उसने जागीरदारी की प्रथा फिर से आरम्भ कर दी। यह प्रथा शासन के लिए बहुत हानिकारक सिद्ध हुई। उसे दास रखने का बड़ा चाव था। उसके पास एक लाख अस्सी हज़ार दास थे। इन दासों पर धन पानी की तरह बहाया जाता था। इससे राजकोष पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ा। सबसे बढ़कर उसने हिन्दू जाति पर बहुत अत्याचार किए।

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प्रश्न 13.
15वीं शताब्दी में उदय होने वाले राज्यों का वर्णन करो।
उत्तर-
15वीं शताब्दी में उभरने वाले प्रमुख प्रान्तीय राज्य ये थे-

  1. शर्की वंश का राज्य-इस राज्य की स्थापना 1394 ई० में हुई थी। यह राज्य पूर्वी भारत में था। इस वंश के शासकों के अन्तर्गत जौनपुर कला और साहित्य का प्रसिद्ध केन्द्र बना। इसे पूर्व का ‘शीराज़’ कहा जाने लगा।
  2. बंगाल-दूसरा प्रमुख राज्य बंगाल का था। यूं तो बंगाल पर दिल्ली के सुल्तान कभी पूर्ण रूप से अधिकार न कर पाए परन्तु इस काल में बंगाल पूरी तरह स्वतन्त्र हो गया। यहां के शासकों के अधीन बंगला साहित्य और भाषा की बड़ी उन्नति
  3. मालवा-तीसरा स्वतन्त्र राज्य मालवा था। वहां के शासकों ने संगीत को काफ़ी प्रोत्साहन दिया।
  4. गुजरात -चौथा स्वतन्त्र राज्य गुजरात का था। इस राज्य का प्रमुख शासक अहमदशाह (1411-1442 ई०) था। उसने अहमदाबाद नामक नगर की स्थापना की और उसे अपने राज्य की राजधानी बनाया।

प्रश्न 14.
बलबन ने दिल्ली सल्तनत को किस प्रकार संगठित किया ?
अथवा
बलबन को दास वंश का महान् शासक क्यों कहा जाता है ?
उत्तर-
बलबन ने दिल्ली सल्तनत को सुदृढ़ बनाने के लिए अनेक कार्य किए। सबसे पहले उसने ‘लौह और रक्त नीति’ द्वारा आन्तरिक विद्रोहों का दमन किया और राज्य में शान्ति स्थापित की। बलबन ने दोआब क्षेत्र के सभी लुटेरों और डाकुओं का वध करवा दिया। उसने मंगोलों से राज्य की सुरक्षा के लिए महत्त्वपूर्ण सैनिक सुधार किये। पुराने सिपाहियों के स्थान पर नये योग्य सिपाहियों को भर्ती किया गया। सीमावर्ती किलों को भी सुदृढ़ बनाया गया। उसने बंगाल के विद्रोही सरदार तुगरिल खां को भी बुरी तरह पराजित किया। बलबन ने राज दरबार में कड़ा अनुशासन स्थापित किया। उसने सभी शक्तिशाली सरदारों से शक्ति छीन ली ताकि वे कोई विद्रोह न कर सकें। उसने अपने राज्य में गुप्तचरों का जाल-सा बिछा दिया। इस प्रकार के कार्यों से उसने दिल्ली सल्तनत को आन्तरिक विद्रोहों और बाहरी आक्रमणों से पूरी तरह सुरक्षित बनाया। इसी कारण ही बलबन को दास वंश का महान् शासक कहा जाता है।

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प्रश्न 15.
13वीं शताब्दी के दिल्ली सल्तनत के काल के लिए सबसे उपयुक्त नाम क्या है और क्यों ? .
उत्तर-
13वी शताब्दी में दिल्ली सल्तनत के लिये उपयुक्त नाम दास वंश या गुलाम वंश है। इसका कारण यह है कि इस शताब्दी के सभी सुल्तान या तो स्वयं दास थे या दासों की सन्तान थे। कुतुबुद्दीन ऐबक गौरी का दास था, इल्तुतमिश कुतुबुद्दीन ऐबक का दास था और बलबन इल्तुतमिश का दास था। निस्सन्देह ये सभी दास शासक शक्तिशाली सुल्तान थे। इतिहासकार दास वंश की जगह इन दास शासकों को इलबरी तुर्क भी कहते हैं। परन्तु ये दास शासक एक परिवार से सम्बन्धित नहीं हैं। इलबरी तुर्कों को एक राजवंश का सदस्य नहीं कहा जा सकता। अतः उन्हें दास वंश का नाम देना अधिक उपयुक्त

प्रश्न 16.
दक्षिण भारत की विजयों के लिए अलाऊद्दीन ने किस प्रकार की नीति अपनाई ? (M. Imp.)
उत्तर-
अलाऊद्दीन खिलजी प्रथम मुस्लिम सुल्तान था, जिसने दक्षिणी भारत के प्रदेशों को भी विजय करने की योजना बनाई और इसका कार्यभार उसने अपने सेनापति मलिक काफूर को सौंपा। दक्षिण में उसने कुल मिलाकर चार राज्य जीते। इनके नाम थे-देवगिरि, वारंगल, द्वारसमुद्र तथा मदुरै। उसने दक्षिण में विजित इन राज्यों के प्रति एक विशेष नीति अपनाई। उसने इन राज्यों के शासकों से केवल अपनी अधीनता स्वीकार करवाई और उनसे धन प्राप्त किया। उसने दक्षिण के इन प्रदेशों को अपने साम्राज्य में न मिलाया। वह इस बात को भली-भांति जानता था कि दक्षिण के सुदूर प्रदेशों पर नियन्त्रण रखना उसके लिए बहुत कठिन होगा। वास्तव में उसके अधिक से अधिक धन प्राप्त करने के लिए ही दक्षिण को अपना निशाना बनाया था। अपने इस उद्देश्य में उसे पूरी तरह सफलता मिली।

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प्रश्न 17.
मुहम्मद-बिन-तुगलक के किन प्रशासनिक प्रयोगों के कारण लोगों में असन्तोष फैला ?
उत्तर-
मुहम्मद-बिन-तुग़लक के निम्नलिखित प्रशासनिक प्रयोगों के कारण लोगों में असन्तोष फैल गया(1) उसने धन-प्राप्ति के लिए दोआब के उपजाऊ प्रदेश में किसानों पर भारी कर लगा दिए। अकाल के कारण किसान इन करों को देने में असमर्थ थे, इसलिए वे अपनी जमीनें छोड़कर भाग गए। (2) 1328-29 ई० में मुहम्मद तुग़लक ने अपनी राजधानी दिल्ली की बजाए दौलताबाद में बनाई। दिल्ली की जनता को भी दौलताबाद जाने के लिए विवश किया गया परन्तु थोड़े ही समय में उसने फिर उन लोगों को दिल्ली चलने का आदेश दिया। (3) इसी बीच तारमशीरी खां के नेतृत्व में मंगोलों ने भारत पर आक्रमण कर दिया। मुहम्मद तुग़लक उनका सामना करने के स्थान पर उन्हें धन देकर वापस भेजने लगा। (4) मुहम्मद तुग़लक ने सोने-चांदी के सिक्कों के स्थान पर तांबे के सिक्के भी चलाए। परन्तु लोगों ने अपने घरों में ही ये सिक्के बनाने आरम्भ कर दिए। अतः यह योजना भी असफल रही।

प्रश्न 18.
फिरोज़ तुगलक की कौन-सी नीतियों ने सल्तनत के पतन में योगदान दिया ?
उत्तर-
फिरोज़ तगलक एक कट्टर मुसलमान था। उसने हिन्दुओं पर अनेक अत्याचार किए। उनके मन्दिरों और पवित्र मूर्तियों को बड़ी निर्दयता से तोड़ा गया। हिन्दुओं को उच्च पदों से वंचित कर दिया गया। उन पर जजिया भी लगा दिया गया। इससे हिन्दू उसके विरुद्ध हो गए। इसके अतिरिक्त उसकी सैनिक अयोग्यता के कारण साम्राज्य कमजोर हो गया। देश षड्यंत्रों, और विद्रोहियों का गढ़ बन गया। उसने दण्ड विधान को नर्म बना दिया। इससे भी विद्रोहियों और अपराधियों को बहुत सहारा मिला। दासों के प्रति अत्यधिक प्रेम, उन पर राजकोष का अपव्यय, दानशीलता और सामन्त प्रथा ने साम्राज्य को खोखला कर दिया। फिरोज़ तुग़लक की इन्हीं नीतियों ने सल्तनत के पतन में योगदान दिया।

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प्रश्न 19.
क्या दिल्ली सल्तनत को एक धर्म-तन्त्र कहना उपयुक्त होगा ?
उत्तर-
धर्म-तन्त्र से हमारा अभिप्राय पूर्ण रूप से धर्म द्वारा संचालित राज्य से है। दिल्ली सल्तनत के कई सुल्तान खलीफा के नाम पर राज्य करते थे और कुछ ने तो अपने समय के खलीफा से मान्यता-पत्र भी लिया था। परन्तु वास्तव में खलीफा की मान्यता का सुल्तान की शक्ति का कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ता था। सुल्तान से शरीअत (इस्लामी कानून) के अनुसार कार्य करने की अपेक्षा की जाती थी। परन्तु उसकी नीति एवं कार्य प्रायः उस समय की परिस्थितियों पर निर्भर करते थे। कभीकभी शरीअत के कारण कुछ जटिल समस्याएं भी उत्पन्न हो जाती थीं। ऐसे समय सुल्तान जानबूझ कर अनदेखी कर देते थे। वास्तव में जब कोई सुल्तान शरीअत की दुहाई देता था तो यह साधारणत: उसकी शासक के रूप में कमजोरी का चिन्ह माना जाता था। इसलिए दिल्ली सल्तनत को एक धर्म-तन्त्र समझना उचित नहीं होगा।

प्रश्न 20.
दिल्ली सल्तनत के अधीन ‘इक्ता’ व्यवस्था के बारे में बताएं।
उत्तर-
दिल्ली सल्तनत के अधीन अधिकांश कर्मचारियों को नकद वेतन देने की बजाए भूमि से लगान इकट्ठा करने का
गांवों या परगनों का लगान दिया जाता था। इस प्रकार एकत्रित किए गए लगान को ‘इक्ता’ कहा जाता था। इसका अर्थ थाभूमि से उपज का एक हिस्सा। इसका कुछ भाग उच्च अधिकारी अपने अधीन कर्मचारियों तथा सैनिकों को वेतन के रूप में दे सकते थे। इस व्यवस्था के अन्तर्गत एक साधारण घुडसवार सैनिक को भी वेतन भूमि के लगान के रूप में दिया जा सकता था। यह व्यवस्था फिरोज तुग़लक तथा बाद में लोधी सुल्तानों के काल में अधिक प्रचलित हो गई। समय बीतने पर इक्ता प्रणाली को ‘जागीरदारी प्रबन्ध’ कहा जाने लगा। अब लगान एकत्रित करने के लिए दी गई भूमि को जागीर तथा जागीरदार की उपमा दी गई।

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प्रश्न 21.
दिल्ली के सुल्तानों के शासक वर्ग के साथ किस प्रकार के सम्बन्ध थे ?
उत्तर-
सल्तनत काल में शासक वर्ग में मुख्यत: बड़े-बड़े अमीरों तथा सरदारों की गणना होती थी। सुल्तान और अमीरों के आपसी सम्बन्ध प्रशासनिक दृष्टिकोण से बड़े महत्त्वपूर्ण थे। इन सम्बन्धों में कभी-कभी तनाव भी रहता था। इल्तुतमिश के समय में यह सम्बन्ध अच्छे थे। परन्तु उसके उत्तराधिकारियों के समय में अमीर बहुत शक्तिशाली हो गए थे। बलबन ने सुल्तान की शक्ति बढ़ाने के लिए अमीरों की शक्ति का दमन कर दिया था। अलाऊद्दीन खिलजी के समय में तो सुल्तान का दबदबा चरम सीमा तक पहुंच गया। अन्तिम सुल्तान इब्राहिम लोधी ने पठान अमीरों को दबाने का असफल प्रयत्न किया, जिसके परिणामस्वरूप सल्तनत भीतर ही भीतर कमजोर हो गई। यहां तक कि पंजाब के लोधी सूबेदार दौलत खां ने बाबर को भारत पर आक्रमण करने का सुझाव देने से भी संकोच न किया।

प्रश्न 22.
सल्तनत काल की भवन निर्माण कला की मुख्य विशेषताएं क्या थीं।
उत्तर-
सल्तनत काल की भवन निर्माण कला की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित थीं-
1. सल्तनत काल के सबसे प्रभावशाली स्मारक मस्जिदें हैं। उदाहरण के लिए गौड़ की अदीना और तांतीपाड़ा मस्जिद, जौनपुर की अटाला और जामा मस्जिद तथा अहमदाबाद और चम्पानेर की मस्जिदें बड़ी प्रभावशाली हैं। दिल्ली की कुव्वतअल-इस्लाम मस्जिद अन्यों की अपेक्षा अधिक प्रसिद्ध है। अजमेर की अढ़ाई दिन का झोंपड़ा मस्जिद भी बड़ी प्रभावशाली है।

2. कुतुबमीनार इस काल का विशेष उल्लेखनीय भवन है। इसका निर्माण कार्य भी ऐबक ने आरम्भ किया था तथा इल्तुतमिश ने इसे पूरा किया था।

3. इस काल की वास्तुकला में मस्जिदों के पश्चात् सुल्तानों के मकबरों का महत्त्व है। इनमें विशेष उल्लेखनीय मकबरे दिल्ली, अहमदाबाद और माण्डू में स्थित हैं।

4. उत्तरी भारत में केवल राजस्थान ही ऐसा प्रदेश था जहां प्रभावशाली मन्दिरों का निर्माण होता रहा। चित्तौड़ में राणा कुम्भा का बनवाया चौमुखा मन्दिर, ग्वालियर में राजा मानसिंह का महल और चित्तौड़ में राणा कुम्भा का विजय स्तम्भ मन्दिर कला के उत्कृष्ट उदाहरण हैं।

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प्रश्न 23.
मंगोलों को आगे बढ़ने के लिए दिल्ली के सुल्तानों में क्या पग उठाए ?
उत्तर-
मंगोलों को आगे बढ़ने से रोकने के लिए दिल्ली के सुल्तानों ने अनेक पग उठाए। इस सम्बन्ध में बलबन तथा अलाऊद्दीन खिलजी की भूमिका विशेष महत्त्वपूर्ण रही जिसका वर्णन इस प्रकार है

1. उन्होंने सीमावर्ती प्रदेशों में नए दुर्ग बनवाए और पुराने दुर्गों की मुरम्मत करवाई। इन सभी दुर्गों में योग्य सैनिक अधिकारी नियुक्त किए गए।

2. उन्होंने मंगोलों का सामना करने के लिए अपने सेना का पुनर्गठन किया। वृद्ध तथा अयोग्य सैनिकों के स्थान पर युवा सैनिकों की भर्ती की गई। सैनिकों की संख्या में भी वृद्धि की गई।

3. सुल्तानों ने द्वितीय रक्षा-पंक्ति की भी व्यवस्था की। इसके अनुसार मुल्तान, दीपालपुर आदि प्रान्तों में विशेष सैनिक टुकड़ियां रखी गईं और विश्वासपात्र अधिकारी नियुक्त किए। अतः यदि मंगोल सीमा से आगे बढ़ भी आते तो यहां उन्हें कड़े विरोध का सामना करना पड़ता।

4. सुल्तानों ने मंगोलों को पराजित करने के पश्चात् कड़े दण्ड दिए। इसका उद्देश्य उन्हें सुल्तान की शक्ति के आंतकित करके आगे बढ़ने से रोकना ही था।

प्रश्न 24.
दिल्ली सल्तनत के पतन के कोई चार कारण बताओ।
उत्तर-
दिल्ली सल्तनत के पतन के अनेक कारण थे। इनमें से चार कारणों का वर्णन इस प्रकार है-
1. धार्मिक पक्षपात-दिल्ली के सुल्तानों ने धार्मिक पक्षपात की नीति अपनायी। उन्होंने हिन्दुओं पर अनेक अत्याचार किए। परिणामस्वरूप हिन्दू दिल्ली सल्तनत के विरुद्ध हो गए। वह बात दिल्ली सल्तनत के पतन का मुख्य कारण बनी।

2. उत्तराधिकार के नियम का अभाव-दिल्ली के सुल्तानों में उत्तराधिकार का कोई उचित नियम नहीं था। फलस्वरूप
अधिकतर सुल्तानों ने अपने से पहले सुल्तान का वध करके राजगद्दी प्राप्त की। इन षड्यन्त्रों और हत्याओं के कारण दिल्ली सल्तनत की शक्ति दिन-प्रतिदिन कम हो गई।

3. निरंकुश शासन-दिल्ली के सुल्तानों का शासन निरंकुश था। शासन की सारी शक्तियां सुल्तान में ही केन्द्रित थीं। अत: शासन केवल तभी स्थिर रह सकता था जब केन्द्र में कोई शक्तिशाली शासक हो, परन्तु फिरोज तुग़लक की मृत्यु के पश्चात् दिल्ली के सभी सुल्तान निर्बल सिद्ध हुए। परिणामस्वरूप केन्द्रीय शक्ति शिथिल पड़ गई।

4. तैमूर का आक्रमण-1398 ई० में तैमूर ने भारत पर आक्रमण किया। उस के आक्रमण से दिल्ली सल्तनत को जनधन की भारी हानि उठानी पड़ी। इसके अतिरिक्त उसने सल्तनत राज्य की राजनीतिक शक्ति को छिन्न-भिन्न कर दिया।

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IV. निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
मुहम्मद गौरी के भारतीय सैनिक अभियानों का वर्णन कीजिए। इनके क्या प्रभाव पड़े।
अथिवा
तराइन की पहली तथा दूसरी लड़ाई का वर्णन करते हुए मुहम्मद गौरी के किन्हीं पांच भारतीय सैनिक अभियानों की विवेचना कीजिए।
उत्तर-
मुहम्मद गौरी एक महान् योद्धा तथा कुशल सेनानायक था। वह 1173 ई० में गजनी का शासक बना। 1175 ई० से 1206 ई० तक उसने भारत पर अनेक आक्रमण किये और इस देश में मुस्लिम राज्य की स्थापना की। उसके मुख्य आक्रमणों का वर्णन इस प्रकार है-

1. मुल्तान तथा उच्च की विजय-मुहम्मद गौरी ने भारत का पहला आक्रमण 1175-76 ई० में किया। उसने मुल्तान के कारमाथी कबीले को परास्त किया और मुल्तान पर अधिकार कर लिया। मुल्तान विजय के पश्चात् उसने उच्च के दुर्ग पर भी अधिकार कर लिया।

2. अनहिलवाड़ा पर आक्रमण-अनहिलवाड़ा में उन दिनों भीमदेव द्वितीय का शासन था। उसने गौरी को करारी पराजय दी और उसे अपमानित होकर स्वदेश लौटना पड़ा।

3. लाहौर पर आक्रमण-अब मुहम्मद गौरी ने अपना ध्यान पंजाब की ओर लगाया। पंजाब में महमूद गज़नवी के प्रतिनिधि मलिक खुसरो का शासन था। 1179 ई० में गौरी ने पंजाब पर आक्रमण करके यहाँ के बहुत-से प्रदेशों पर अधिकार कर लिया। 1186 ई० में उसने एक बार फिर खुसरो पर आक्रमण किया। इस युद्ध में गौरी ने धोखे से खुसरो को बन्दी बना लिया और उसकी हत्या करवा दी।

4. तराइन का पहला युद्ध-पंजाब विजय के बाद मुहम्मद गौरी दिल्ली की ओर बढ़ा। उसने 1191 ई० में वहाँ के शासक पृथ्वीराज चौहान पर आक्रमण कर दिया। परन्तु तराइन के स्थान पर पृथ्वीराज ने मुहम्मद गौरी को बुरी तरह हराया।

5. तराइन का दूसरा युद्ध-अपनी पराजय का बदला लेने के लिए गौरी ने अगले वर्ष (1192 ई० में) पुनः दिल्ली के राज्य पर आक्रमण किया। इस बार कन्नौज के राजा जयचन्द ने भी उसका साथ दिया। तराइन के स्थान पर गौरी और पृथ्वीराज की सेनाओं में एक बार फिर युद्ध हुआ। इस बार मुहम्मद गौरी विजय रहा। पृथ्वीराज को बन्दी बनाकर उसका वध कर दिया गया।

6. कन्नौज पर आक्रमण-1194 ई० में मुहम्मद गौरी ने कन्नौज पर आक्रमण किया। छिंदवाड़ा के स्थान पर उसकी तथा जयचन्द की सेनाओं में भयंकर युद्ध हुआ। राजपूत असाधारण वीरता से लड़े, पर भाग्य ने गौरी का साथ दिया। इस युद्ध में जयचन्द की पराजय हुई और गौरी को अपार धन प्राप्त हुआ।

7. अजमेर, अनहिलवाड़ा, हाँसी तथा कालिंजर पर अधिकार-कन्नौज विजय के बाद गौरी पुनः गज़नी लौट गया। उसकी अनुपस्थिति में उसके प्रतिनिधि कुतुबुद्दीन ऐबक ने अपने अभियान जारी रखे। उसने अजमेर, अनहिलवाड़ा, हाँसी और कालिंजर पर अधिकार कर लिया।

8. बिहार और बंगाल की विजय-कुतुबुद्दीन के सेना नायक बख्तियार खिलजी ने बिहार पर आक्रमण करके वहाँ के राजा इन्द्रदमन को परास्त किया। उसने यहाँ बहुत लूटमार की और अनेक बौद्ध भिक्षुओं को मौत के घाट उतार दिया। इसके पश्चात् बख्तियार खिलजी ने बंगाल के राजा लक्ष्मण सेन को हराकर वहाँ भी अपना अधिकार जमा लिया।

9. खोखरों का दमन-जेहलम और चिनाब के बीच के क्षेत्र के खोखरों ने गौरी के विरुद्ध विद्रोह कर दिया। परन्तु गौरी ने धैर्य न छोड़ा और अपने स्वामिभक्त दास ऐबक के सहयोग से खोखरों को बुरी तरह कुचल डाला।

मुहम्मद गौरी के आक्रमणों के प्रभाव-

  • मुहम्मद गौरी के आक्रमणों के परिणामस्वरूप भारत में मुस्लिम राज्य की स्थापना हुई।
  • मुहम्मद गौरी ने भारत में दिल्ली, अजमेर, रणथम्भौर तथा कुछ अन्य राजपूत राजाओं को पराजित किया। फलस्वरूप राजपूत शक्ति को भारी क्षति पहुंची।
  • उसके आक्रमणों का भारत के आर्थिक जीवन पर भी बहुत बुरा प्रभाव पड़ा।
  • मुहम्मद गौरी ने भारत में अनेक मन्दिरों, विहारों तथा पुस्तकालयों को नष्ट कर दिया। इसके अतिरिक्त मुसलमान सैनिकों ने अनके धार्मिक तथा ऐतिहासिक ग्रन्थों को जला दिया। फलस्वरूप भारतीय संस्कृति के अनेक स्मारक नष्ट हो गए।

प्रश्न 2.
कुतुबुद्दीन ऐबक के जीवन तथा सफलताओं का वर्णन करो।
अथवा
(क) मुहम्मद गौरी के प्रतिनिधि के रूप में तथा स्वतंत्र शासक के रूप में कुतुबुद्दीन ऐबक की सफलताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
कुतुबुद्दीन ऐबक का जन्म एक तुर्क परिवार में हुआ। बचपन में ही वह अपने माता-पिता से अलग हो गया और उसे निशानपुर के काजी ने खरीद लिया। काजी की कृपा-दृष्टि से ऐबक ने उसके पुत्रों के साथ लिखना-पढ़ना, तीर चलाना तथा घुड़सवारी सीख ली। काजी की मृत्यु पर उसके पुत्रों ने ऐबक को एक व्यापारी के पास बेच दिया। यह व्यापारी उसे गज़नी ले गया जहां उसे गौरी ने खरीद लिया। इससे उसके जीवन में एक नया अध्याय आरम्भ हुआ और वह अन्त में दिल्ली का शासक बना।

कुतुबुद्दीन ऐबक की सफलताएं-कुतुबुद्दीन ऐबक की सफलताओं को दो भागों में बांटा जा सकता है-

I. मुहम्मद गौरी के प्रतिनिधि के रूप में-1192 ई० से लेकर 1206 ई० तक ऐबक भारत में गौरी के प्रतिनिधि के रूप में शासन करता रहा। इन 14 वर्षों में कुतुबुद्दीन ऐबक ने निम्नलिखित सफलताएं प्राप्त की-

1. अजमेर, मेरठ तथा कोइल के विद्रोहों का दमन-1192 ई० में ऐबक ने अपने स्वामी मुहम्मद गौरी की अनुपस्थिति में अजमेर और मेरठ के विद्रोहों का दमन किया। उसने दिल्ली, कन्नौज और कोइल (अलीगढ़) पर भी अधिकार कर लिया।

2. अजमेर के विद्रोह का पुनः दमन-कोइल विजय के पश्चात् ऐबक पुनः अजमेर पहुंचा, जहां चौहानों ने फिर विद्रोह कर दिया। ऐबक ने इस विद्रोह को दबा दिया। उसने रणथम्भौर के दुर्ग पर अधिकार कर लिया।

3. अजमेर में मेढ़ों का दमन तथा अनहिलवाड़ा की लूट-1195 ई० में अजमेर प्रान्त के मेढ़ों ने तुर्की साम्राज्य के विरुद्ध विद्रोह कर दिया। ऐबक ने मेढ़ों को सफलतापूर्वक दबा दिया। इसी वर्ष उसने गुजरात के शासक भीमदेव को भी हराया और अनहिलवाड़ा में भारी लूटमार की।

4. कालिंजर दुर्ग पर अधिकार-1202 ई० में कुतुबुद्दीन ऐबक ने बुन्देलखण्ड के चन्देल शासक को पराजित करके वहां के प्रसिद्ध दुर्ग कालिंजर पर अधिकार कर लिया।

5. अन्य विजयें-मुहम्मद गौरी के प्रतिनिधि के रूप में विजय प्राप्त करते हुए ऐबक ने कालपी और बदायूं को भी अपने अधिकार में ले लिया।

II. स्वतन्त्र शासक के रूप में-1206 ई० में दमयक के स्थान पर मुहम्मद गौरी का वध कर दिया गया। उसकी मृत्यु के बाद ऐबक ने शासन की बागडोर अपने हाथ में ले ली। इस तरह वह एक स्वतन्त्र शासक बन गया। स्वतन्त्र शासक के रूप में उसकी सफलताओं का वर्णन इस प्रकार है-

1. ताजुद्दीन यलदौज़ से टक्कर-यल्दौज़ गौरी का सेनानायक था और उसने गौरी की मृत्यु के पश्चात् गज़नी की राजगद्दी पर बलपूर्वक अधिकार कर लिया था। ऐबक ने नासिरुद्दीन कुबाचा को साथ मिलकर उसे मार भगाया, परन्तु जल्दी ही वह दिल्ली लौट आया। उसके वापस आते ही यल्दौज़ ने गज़नी पर अधिकार कर लिया, किन्तु इसके पश्चात् उसने कभी भी कुबाचा अथवा ऐबक को परेशान नहीं किया।

2. दास्ता से मुक्ति-कुतुबुद्दीन ने गज़नी में रह कर गौरी के उत्तराधिकारियों से मुक्ति-पत्र प्राप्त कर लिया। इस प्रकार उसने अपनी दासता के कलंक को धो दिया।

3. बंगाल की अधीनता-कुतुबुद्दीन ने बंगाल को पूरी तरह से अपने अधीन करने का प्रयास किया। वहां अली मर्दान नामक सरदार ने कब्जा कर लिया था। खिलजी सरदारों ने उसे पकड़ कर जेल में डाल दिया। परन्तु वह किसी तरह बच निकला और ऐबक की शरण में आ पहुंचा। ऐबक ने खिलजी सरदारों से बातचीत की। उन्होंने ऐबक की अधीनता स्वीकार कर ली जिससे बंगाल ऐबक के अधीन हो गया।

4. मध्य एशिया की राजनीति से पृथक्कता-कुतुबुद्दीन ऐबक की एक बड़ी सफलता यह थी कि उसने स्वयं को मध्य . एशिया की राजनीति से पृथक् रखा।

5. हिन्दू सरदारों का दमन-कुतुबुद्दीन ने भारत में हिन्दू सरदारों से भी बड़ी सूझ-बूझ से मुक्ति पाई। उसने ऐसे सभी हिन्दू सरदारों की शक्ति को कुचल डाला जो उसकी सत्ता को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं थे।

6. प्रशासनिक सफलताएं-कुतुबुद्दीन ऐबक का शासन शुद्ध सैनिक शासन था। उसने राजधानी में एक विशाल सेना रखी हुई थी। वह बड़ा न्यायप्रिय शासक था। उसकी न्यायप्रियता की प्रशंसा करते हुए मिनहास सिराज लिखता है, “उसके राज्य में शेर और बकरी एक घाट पर पानी पीते थे।”1 कुतुबुद्दीन ऐबक को कला से भी प्रेम था। कुतुबमीनार का निर्माण कार्य उसी ने आरम्भ करवाया था।

मृत्यु-कुतुबुद्दीन ऐबक चार वर्ष ही शासन कर पाया। वह 1210 ई० में चौगान खेलते समय घोड़े से गिर पड़ा और वहीं उसकी मृत्यु हो गई।

सच तो यह है कि कुतुबुद्दीन ऐबक एक महान् सेनानायक तथा कुशल शासन प्रबन्धक था। उसके कार्यों को देखते हुए डॉ० ए० एल० श्रीवास्तव लिखते हैं, “कुतुबुद्दीन ऐबक भारत में तुर्क साम्राज्य का वास्तविक संस्थापक था।”2

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प्रश्न 3.
अल्तमश (इल्तुतमिश) के आरम्भिक जीवन और कठिनाइयों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए। उसने इन कठिनाइयों पर किस प्रकार काबू पाया ?
अथवा
अल्तमश के आरम्भिक जीवन और सफलताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
I. आरम्भिक जीवन –
अल्तमश (इल्तुतमिश) अलबारी कबीले के एक तुर्क परिवार से सम्बन्ध रखता था। उसका पूरा नाम शम्स-उद्दीनइल्तुतमिश था। वह कई व्यक्तियों के पास दास के रूप में रहा और अन्त में ऐबक ने उसे खरीद लिया। ऐबक के अधीन रहकर अल्तमश ने अपनी योग्यता का परिचय दिया। उसकी योग्यता से प्रसन्न होकर ऐबक ने उसे दासता से मुक्त कर दिया और अपनी पुत्री का विवाह भी उसी के साथ कर दिया। 1196 ई० में ऐबक ने उसे ग्वालियर का गवर्नर बना दिया। कुछ समय बाद बर्न और बदायूं का शासन-प्रबन्ध भी उसके हाथों में आ गया। इस प्रकार अल्तमश थोड़े से ही वर्षों में राज्य का महत्त्वपूर्ण अधिकारी बन गया।

कुतुबुद्दीन की मृत्यु के पश्चात् उसका पुत्र आरामशाह सिंहासन पर बैठा। वह एक अयोग्य शासक था। अत: दिल्ली के सरदारों ने अल्तमश को राज्य सम्भालने का निमन्त्रण भेजा। उसने शीघ्र ही दिल्ली की ओर प्रस्थान किया। आते ही उसने आरामशाह को कैद कर लिया और स्वयं सुल्तान बन बैठा।

II. कठिनाइयां तथा सफलताएं
1. कुतुबी सरदारों का दमन-कुछ कुतुबी सरदारों ने अल्तमश को ऐबक का उत्तराधिकारी मानने से इन्कार कर दिया। उसने ‘जड़’ के रणक्षेत्र में इन सरदारों को बुरी तरह हराया।

2. ताजुद्दीन यल्दौज़ का दमन-गज़नी के शासक ताजुद्दीन यल्दौज़ ने अल्तमश को भारत का सुल्तान स्वीकार करने से इन्कार कर दिया। अल्तमश ने तराइन के युद्ध में यल्दौज़ को बुरी तरह हराया और अपने मार्ग की एक और बाधा दूर की।

3. नासिरुद्दीन कुबाचा का दमन-ऐबक की मृत्यु के पश्चात् सिन्ध और मुल्तान से नासिरुद्दीन कुबाचा ने अपने आप को स्वतन्त्र शासक घोषित कर दिया। अल्तमश ने उसके विरुद्ध कई बार सेनाएं भेजी और उसकी शक्ति का अन्त किया

4. अली मर्दान का दमन-बंगाल और बिहार के प्रदेश ऐबक के अधीन थे, परन्तु उसकी मृत्यु के पश्चात् वहां के शासअली मर्दान ने अपनी स्वतन्त्रता की घोषणा कर दी। अल्तमश ने 1226 ई० तक अली मर्दान के विरुद्ध तीन बार सेनाएं भेज अन्त में वह उसका दमन करने में सफल हुआ।

III. अन्य सफलताएं –
1. खलीफा द्वारा सम्मान-अल्तमश की सफलताओं से प्रभावित होकर बगदाद के खलीफा ने 1228 ई० में अल्तम के सम्मान के लिए ‘खिल्लत’ तथा एक नियोजन पत्र भेजा। खलीफा द्वारा सम्मान पा लेने के कारण उसके सभी विरोधी शान्त हो गए।

2. राजपूतों से युद्ध-अल्तमश ने 1232 ई० में राजपूतों का दमन करने का निश्चय किया। उसने शीघ्र ही गुजरात, मालवा तथा भील्सा के राजपूतों पर विजय प्राप्त कर ली।

3. मंगोलों के आक्रमण से बचाव-अल्तमश ने खारिज्म के शासक जलालुद्दीन को शरण देने से इन्कार कर दिया था। जलालुद्दीन ने अल्तमश से शरण मांगी परन्तु उसने जलालुद्दीन को शरण न देकर अपने राज्य को मंगोलों के आक्रमण से बचा लिया।

4. कला तथा विद्या को प्रोत्साहन-अल्तमश एक कला प्रेम सुल्तान था। उसने अपने गुरु ख्वाजा कुतुबुद्दीन बख्तियार की यादगार में कुतुबमीनार बनवाई। शिक्षा के प्रसार के लिए उसने कई मस्जिदें बनवाईं।

5. सच तो यह है कि अल्तमश एक योग्य तथा बुद्धिमान् शासक था। एक दास होकर सम्राट् पद प्राप्त करना अल्तमश की योग्यता का ही परिणाम था। डॉ० दत्ता ने ठीक कहा है, “अल्तमश दिल्ली सल्तनत के आरम्भिक सुल्तानों में सबसे महान् था।”

प्रश्न 4.
बलबन ने दिल्ली सल्तनत को सुदृढ़ करने के लिए कौन-कौन से कार्य किए ?
अथवा
दिल्ली सल्तनत को सुदृढ़ बनाने में बलबन के योगदान की किन्हीं पांच बिंदुओं के आधार पर चर्चा कीजिए।
उत्तर-
प्रधानमन्त्री और शासक के रूप में बलवन ने दिल्ली सल्तनत को सुदृढ़ करने के लिए अनेक कार्य किए जिनका वर्णन इस प्रकार है
1. खोखर जाति का दमन-खोखर जाति झेलम और चिनाब के बीच के क्षेत्र में रहती थी। ये लोग बड़े उपद्रवी थे। बलबन ने एक विशाल सेना लेकर उनको कुचल डाला। उसने हज़ारों खोखरों को मौत के घाट उतार दिया।

2. दोआबा के हिन्दू राजाओं के विद्रोहों का दमन-दोआब के हिन्दू राजाओं तथा सामन्तों ने अपनी खोई हुई राजसत्ता को पुनः प्राप्त करने के लिए विद्रोह कर दिया था। बलबन एक शक्तिशाली सेना के साथ उनके विरुद्ध बढ़ा और उनका बुरी तरह से दमन किया।

3. राजपूतों के विरुद्ध अभियान-बलबन ने ग्वालियर, चन्देरी, कालिंजर तथा मालवा के विद्रोही राजपूत शासकों को पराजित करके उनके प्रदेश दिल्ली राज्य में मिला लिए।

4. मेवातियों के विद्रोहों का दमन-दिल्ली के आस-पास के प्रदेश में मेवाती सरदारों तथा डाकुओं ने आतंक फैला रखा था। 1248 ई० में बलबन ने मेवातियों के प्रदेश पर आक्रमण करके उन्हें जान और माल की भारी हानि पहुंचाई। 1259 ई० में उसने मेवात पर पुनः एक ज़ोरदार आक्रमण किया और उसने लगभग 12,000 मेवातियों को मौत के घाट उतार दिया।

5. कुतलुग खां के विद्रोह का दमन-अवध के गवर्नर कुतलुग खां ने जो बलबन का कट्टर विरोधी था, 1255 ई० में रिहान से मिलकर दिल्ली पर आक्रमण करने की योजना बनाई परन्तु वह बलबन द्वारा पराजित हुआ।

6. किश्लू खां का विद्रोह-बलबन का भाई किश्लू खां मुल्तान तथा उच्च का गवर्नर था। वह बलबन के विरुद्ध मंगोल नेता हलाकू खां से जा मिला। उसने मंगोलों से सैनिक सहायता लेकर 1257 ई० में पंजाब पर आक्रमण कर दिया। लेकिन बलबन ने उसे बुरी तरह पराजित किया।

7. मेवातियों का पुनः विद्रोह और उनका दमन-मेवात के विद्रोही एक बार फिर उत्पात मचाने लगे थे। बलबन ने एक बार फिर उन पर आक्रमण किया और उनके रक्त की नदियां बहा दीं।

8. कटेहर के हिन्दू सरदारों का दमन-मेवातियों के विद्रोह से प्रेरित होकर कटेहर (रुहेलखण्ड) के हिन्दू सरदारों ने भी विद्रोह कर दिया। परन्तु बलबन ने इन विद्रोहियों को कुचल डाला।

9. मंगोलों के आक्रमणों से देश का बचाव-उसने दिल्ली राज्य की मंगोलों के आक्रमणों से रक्षा करने के लिए उत्तरीपश्चिमी सीमा को सुदृढ़ बनाया। उसने सीमावर्ती प्रान्तों में दुर्गों और चौकियों की मुरम्मत करवाई तथा वहाँ नए किलों का निर्माण करवाया। 1279 ई० में उसने मंगोलों को इतनी बुरी तरह से परास्त किया कि वे भविष्य में बहुत समय तक भारत पर आक्रमण करने का सहस न कर सके।

10. बंगाल के विद्रोह का दमन-इसी बीच बंगाल के शासक तुगरिल खाँ ने अपने आप को स्वतन्त्र घोषित कर दिया। बलबन ने एक भारी सेना लेकर उस पर आक्रमण किया तो तुगरिल खाँ भाग निकला। परन्तु बलबन के सिपाहियों ने किसी तरह ढूँढ निकाला और उसका वध कर दिया।

प्रशासनिक सुधार-बलबन ने सल्तनत को सुदृढ़ करने के लिए अनेक सुधार भी किए-

  • पैदल तथा घुड़सवार सेना का नए ढंग से संगठन किया गया।
  • सेना का उचित संचालन करने के लिए अनुभवी तथा स्वामीभक्त सरदारों को नियुक्त किया गया।
  • बलबन ने राजपद की प्रतिष्ठा स्थापित करने के लिए अनेक कठोर नियम बनाए। अब राजा की आज्ञा के बिना दरबार में कोई भी व्यक्ति किसी प्रकार की बात नहीं कर सकता था। उसने शराब पीना तथा रंगरलियां मनाना बन्द कर दिया। दरबार का अनुशासन भंग करने वाले दरबारी को कठोर दण्ड दिया जाता था। सच तो यह है कि, “उसने शासन व्यवस्था में नया जीवन डाल दिया और राज्य की शक्ति को नष्ट होने से बचा लिया।”

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प्रश्न 5.
अलाऊद्दीन खिलजी के प्रशासनिक, सैनिक, सामाजिक तथा आर्थिक सुधारों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर-
अलाऊद्दीन खिजली सफल विजेता होने के साथ-साथ कुशल शासन प्रबन्धक भी था। उसके प्रमुख सुधारों का वर्णन इस प्रकार है-

I. प्रशासनिक सुधार-

1. सरदारों की शक्ति कुचलना-अलाऊद्दीन ने सरदारों की शक्ति को कुचलने के लिए निम्नलिखित पग उठाए :

  • उसने अमीरों तथा सरदारों की शक्ति कम करने के लिए सबकी जागीरें छीन लीं।
  • सुल्तान ने अनेक योग्य गुप्तचरों की नियुक्ति की। वे सरकारी अधिकारियों के कार्यों पर कड़ी निगरानी रखते थे।
  • अलाऊद्दीन ने सरदारों के आपसी मेलजोल पर भी रोक लगा दी। उसने यह आदेश जारी किया कि सुल्तान की आज्ञा के बिना सरदार किसी दावत में एकत्रित नहीं हो सकते।

2. भूमि सुधार-अलाऊद्दीन खिलजी ने सारी भूमि की पैमाइश करवायी तथा उपज का आधा भाग भूमि-कर के रूप में निश्चित किया। उसने भूमि-कर प्रणाली को सफल बनाने के लिए निम्नलिखित पग उठाए :

  • राजस्व अधिकारियों को रिश्वतखोरी तथा भ्रष्टाचार से बचाने के लिए उनके वेतन बढ़ा दिए गए।
  • किसानों से बचा हुआ भूमि-कर उगाहने के लिए ‘मस्तकराज’ नामक अधिकारी की नियुक्ति की गई।
  • किसान भूमि-कर नकदी अथवा उपज के रूप में दे सकते थे।

3. उचित न्याय प्रणाली-अलाऊद्दीन एक न्यायप्रिय शासक था। न्याय का मुख्य स्रोत सुल्तान स्वयं था। सभी बड़े-बड़े अभियोगों का निर्णय वह स्वयं करता था। दण्ड बहुत कठोर थे। धनी से धनी व्यक्ति भी अपराधी सिद्ध होने पर कानून के पंजे से नहीं बच सकता था।

II. सैनिक सुधार-

  • अच्छा सैनिक संगठन-अलाऊद्दीन ने एक विशाल तथा सुदृढ़ सेना का संगठन किया। उसकी सेना में 4,75,000 घुड़सवार थे। उसके अतिरिक्त उसकी सेना में पैदल सैनिक तथा हाथी भी थे।
  • दाग तथा हुलिया प्रथा-अलाऊद्दीन ने सेना में ‘दाग’ तथा ‘हुलिया’ के नियम आरम्भ किये। दाग के अनुसार प्रत्येक सरकारी घोड़े को दागा जाता था। ‘हुलिया’ के अनुसार प्रत्येक सैनिक का हुलिया दर्ज कर लिया जाता था।
  • दुर्गों का निर्माण-अलाऊद्दीन ने उत्तर-पश्चिमी सीमान्त प्रदेशों में नवीन दुर्गों का निर्माण करवाया तथा सभी पुराने किलों की मुरम्मत करवाई।
  • नौजवान सैनिकों की नियुक्ति-अलाऊद्दीन खिलजी ने सभी निर्बल सैनिकों को हटाकर उनके स्थान पर नवयुवक सैनिकों की भर्ती की।

III. सामाजिक सुधार-

  • शराब पीने पर रोक-अलाऊद्दीन ने शाही आदेश के द्वारा शराब पर रोक लगा दी। शराब बेचने वाले तथा शराब पीने वाले को गन्दे कुओं में फेंकने का दण्ड निश्चित किया गया। उसने स्वयं भी शराब पीनी बन्द कर दी।
  • वेश्यावृत्ति पर रोक-अलाऊद्दीन ने वेश्यावृत्ति पर रोक लगा दी। अनुचित सम्बन्ध रखने वाले स्त्री-पुरुष के लिए कठोर दण्ड निश्चित कर दिये गये।
  • जुआ खेलने पर रोक-अलाऊद्दीन ने जुआ खेलने पर रोक लगा दी। यदि कोई जुआ खेलते पकड़ा जाता था तो उसे कुएँ में फेंक दिया जाता था।

IV. आर्थिक सुधार-

  • आवश्यक वस्तुओं के मूल्य निर्धारित करना-सुल्तान ने सभी आवश्यक वस्तुओं के मूल्य निश्चित कर दिए। वस्तुओं के मूल्यों की सूचियाँ तैयार की गईं तथा दुकानदारों को यह आदेश दिया गया कि वे निर्धारित भावों से अधिक मूल्य पर कोई भी वस्तु न बेचें।
  • वस्तुएँ एकत्रित करना-वस्तुओं को एकत्रित करने के लिए मुल्तानी सौदागर तथा बंजारे नियुक्त किए गए। ये सभी कर्मचारी अपने चारों ओर सौ-सौ कोस की दूरी तक रहने वाले कृषकों से अनाज एकत्रित करते थे।
  • राशनिंग व्यवस्था-अलाऊद्दीन ने अपने राज्य में राशन-प्रणाली चलाई। अकाल के समय राशन-प्रणाली शुरू कर दी जाती थी।
  • अलग विभाग की स्थापना-राशन तथा मण्डियों की उचित व्यवस्था के लिए एक अलग विभाग की स्थापना की गई जिसे ‘दिवान-ए-रियासत’ कहते थे।

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प्रश्न 6.
मुहम्मद तुगलक की हवाई योजनाओं का वर्णन करो।
उत्तर-
मुहम्मद तुग़लक का वास्तविक नाम जूना खाँ था। उसके राजनैतिक उद्देश्य बहुत ऊँचे थे। उसने कई नई योजनाएँ बनाईं, परन्तु सभी असफल रहीं। उसकी प्रमुख योजनाओं का वर्णन इस प्रकार है-

1. राजधानी बदलना-1327 ई० में मुहम्मद तुग़लक ने दिल्ली के स्थान पर दक्षिण में देवगिरि को अपनी राजधानी बनाया। देवगिरि उसके राज्य के केन्द्र में स्थित थी। उसने इस नयी राजधानी का नाम दौलताबाद रखा और अपने सभी कर्मचारियों को वहाँ जाने की आज्ञा दी। उसने दिल्ली के लोगों को भी देवगिरि जाने के लिए कहा। अनेक लोग लम्बी यात्रा के कारण मर गए। उत्तरी भारत में शासन की व्यवस्था बिगड़ गई। विवश होकर मुहम्मद तुग़लक ने फिर से दिल्ली को राजधानी बना लिया। लोगों को फिर दिल्ली जाने की आज्ञा दी गई। इस प्रकार जान-माल की बहुत हानि हुई।

2. दोआब में कर बढ़ाना-मुहम्मद तुग़लक को अपनी सेना के लिए धन की आवश्यकता थी। इसीलिए उसने 1330 ई० में दोआब में कर बढ़ा दिया, परन्तु उस साल वर्षा न हुई और दोआब में अकाल पड़ गया। किसानों की दशा बहुत बिगड़ गई। उनके पास लगान देने के लिए धन न रहा, परन्तु लगान इकट्ठा करने वाले कर्मचारी उनसे कठोर व्यवहार करने लगे। तंग आकर कई किसान जंगलों में भाग गए। बाद में सुल्तान को अपनी गलती का अनुभव हुआ तो उसने उन किसानों की सहायता की।

3. ताँबे के सिक्के चलाना-कुछ समय बाद मुहम्मद तुग़लक ने सोने तथा चाँदी के सिक्कों के स्थान पर ताँबे के सिक्के आरम्भ कर दिए। अतः लोगों के घरों में जाली सिक्के बनाने आरम्भ कर दिए और भूमि का लगान तथा अन्य कर इन्हीं सिक्कों में चुकाए, जिससे सरकार को बहुत हानि हुई।

विदेशी व्यापारियों ने भी ताँबे के सिक्के लेना अस्वीकार कर दिया। इसलिए सुल्तान ने ताँबे के सिक्के बन्द कर दिये। लोगों को इन सिक्कों के बदले चाँदी के सिक्के दिए गए। कई लोगों ने जाली सिक्के बनाकर सरकार से चाँदी के असली सिक्के लिए। इस प्रकार राज्य के कोष को बहुत हानि हुई।

4. मंगोलों को धन देना-सुल्तान जब अपनी नई राजधानी दौलताबाद ले गया तो उत्तर-पश्चिमी सीमा की ओर उसका ध्यान कम हो गया। मंगोलों ने इसका लाभ उठाया तथा उन्होंने मुल्तान तथा लाहौर में लूट-मार की। सुल्तान ने उनके आक्रमणों को रोकने के लिए मंगोल सरदार को बहुत सारा धन दिया, परन्तु मंगोलों ने धन के लालच में आ कर और अधिक आक्रमण करने आरम्भ कर दिए।

5. खुरासान पर आक्रमण की योजना-मुहम्मद तुग़लक ने खुरासान को जीतने के लिए भी एक योजना बनाई। इसलिए उसने एक विशाल सेना तैयार की। एक वर्ष तक इस सेना को वेतन भी मिलता रहा। अन्त में सुल्तान ने खुरासान पर आक्रमण करने का विचार त्याग दिया। इस योजना के कारण राज-कोष पर बहुत बोझ पड़ा।

प्रश्न 7.
फिरोज तुगलक के प्रशासन का वर्णन करो। दिल्ली सल्तनत के पतन के लिए वह कहां तक उत्तरदायी है ?
अथवा
फिरोज़ तुगलक के त्रुटिपूर्ण/दोषपूर्ण कार्यों की चर्चा करते हुए यह बताइए कि उन कार्यों ने दिल्ली सल्तनत के पतन की भूमिका किस प्रकार तैयार की ?
उत्तर-
फिरोज़ तुग़लक एक योग्य शासक था। उसने अनेक प्रशासनिक सुधार किए। परन्तु उसने कुछ बुरे कार्य भी किए। इन सब कार्यों का वर्णन इस प्रकार है :

अच्छे कार्य-
1. अनुचित करों का अन्त-फिरोज़ तुग़लक ने सभी अनुचित करों का अन्त कर दिया। व्यापारी वर्ग पर लगे अनुचित करों का अन्त कर दिया गया। इस प्रकार कृषि तथा वाणिज्य की उन्नति हुई।

2. कृषि को प्रोत्साहन-फिरोज़ तुग़लक ने कृषि को प्रोत्साहन देने के लिए अनेक नहरें तथा कुएं खुदवाए। अतिरिक्त भूमि को हल तले लाया गया। इस प्रकार प्राप्त भूमि-कर से सरकार की आय में वृद्धि हुई।

3. प्रजा हितार्थ कार्य-फिरोज़ तुग़लक ने अपनी प्रजा की भलाई के लिए भी बहुत से कार्य किए। उसने ‘दीवान-एखैरात’ नामक एक अलग विभाग की स्थापना की। इसके दो भाग थे-(1) रोजगार विभाग (2) विवाह विभाग। कोतवाल हर नगर के बेरोज़गार लोगों के नाम दर्ज कर लेता था। सुल्तान इतना दयालु था कि वह बेरोज़गार तथा ज़रूरतमन्द लोगों के लिए नई-नई नौकरियों पैदा कर देता था। विवाह विभाग का काम उन व्यक्तियों की सूची तैयार करना था जिन्हें अपनी पुत्रियों के विवाह के लिए शाही सहायता की आवश्यकता होती थी।

4. दण्ड विधान में सुधार-फिरोज़ तुगलक ने अपराधियों को दी जाने वाली यातनाओं-जैसे अंगों का काटना और मृत्यु-दण्ड पर रोक लगा दी। परन्तु दण्ड विधान सम्बन्धी सुधारों का लाभ केवल मुसलमान प्रजा को ही हुआ।

5. मुद्रा सुधार-सुल्तान ने मुद्रा प्रणाली में भी कई सुधार किये। उसने कई नवीन सिक्कों को प्रचलित किया। ये सिक्के तांबे तथा चांदी को मिला कर बनाए जाते थे ताकि लोग नकली सिक्के बना कर लाभ न उठा सकें।

दोषपूर्ण कार्य-
1. जागीरदारी प्रथा का पुनः आरम्भ-सुल्तान ने जागीरदारी प्रथा पुनः प्रचलित की। उसने सैनिक अधिकारियों तथा अन्य अधिकारियों को वेतन के स्थान पर जागीरें देना आरम्भ कर दिया। यह प्रथा शासन के लिए घातक सिद्ध हुई।

2. त्रुटिपूर्ण सैन्य संगठन-फिरोज़ तुग़लक का सैन्य संगठन भी काफ़ी त्रुटिपूर्ण था। इन त्रुटियों के कारण उसका साम्राज्य विद्रोहों का अड्डा बन कर रहा गया।

3. धार्मिक असहनशीलता-फिरोज़ तुग़लक एक कट्टर मुसलमान था। उसने हिन्दुओं पर अनेक अत्याचार किए। उनके मन्दिरों और पवित्र मूर्तियों को बड़ी निर्दयता से तोड़ा गया। हिन्दुओं को उच्च पदों से वंचित कर दिया गया। उन पर जज़िया भी लगा दिया गया।

4. दासों पर धन का अपव्यय-सुल्तान को अधिक-से-अधिक दास रखने का चाव था। कहते हैं कि सुल्तान के पास लगभग एक लाख अस्सी हज़ार दास थे। इन दासों के लिए धन पानी की तरह बहाया जाता था।

सल्तनत के पतन में फिरोज़ तुगलक का दायित्व-फिरोज़ तुग़लक एक कट्टर मुसलमान था। उसने हिन्दुओं पर बहुत अत्याचार किये। इससे हिन्दू उसके विरुद्ध हो गए। इसके अतिरिक्त उसकी सैनिक अयोग्यता के कारण साम्राज्य कमज़ोर हो गया। देश षड्यन्त्रों और विद्रोहियों का गढ़ बन गया। उसने दण्ड विधान नर्म बना दिया। इससे भी विद्रोहियों और अपराधियों को बहुत सहारा मिला। दासों के प्रति अत्यधिक प्रेम, उन पर राजकोष का अपव्यय, दानशीलता और सामन्ती प्रथा ने साम्राज्य को खोखला कर दिया। परिणामस्वरूप सल्तनत का पतन आरम्भ हो गया।

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 8 दिल्ली सल्तनत

प्रश्न 8.
दिल्ली सल्तनत के पतन के कारणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
दिल्ली सल्तनत के पतन के मुख्य कारण निम्नलिखित थे-
1. धार्मिक पक्षपात-दिल्ली के सुल्तानों ने धार्मिक पक्षपात की नीति अपनाई। उन्होंने हिन्दुओं पर अनेक अत्याचार किए। परिणामस्वरूप हिन्दू दिल्ली सल्तनत के विरुद्ध हो गए। यह बात दिल्ली साम्राज्य के पतन का मुख्य कारण बनी।

2. विस्तृत साम्राज्य-मुहम्मद तुग़लक ने अपनी राजनीतिक अयोग्यता का प्रमाण दिया। उसने दक्षिण के विभिन्न राज्यों को सीधे सल्तनत में मिला लिया। उसकी इस नीति से सल्तनत साम्राज्य का विस्तार इतना बढ़ गया कि उस पर नियन्त्रण रखना कठिन हो गया। फलस्वरूप चारों ओर विद्रोह होने लगे और अनेक सरदारों ने अपनी सत्ता स्थापित कर ली।

3. निरंकुश शासन-दिल्ली के सुल्तानों का शासन निरंकुश था। शासन की सारी शक्तियाँ सुल्तान में ही केन्द्रित थीं। अतः शासन केवल तभी स्थिर रह सकता था जब केन्द्र में कोई शक्तिशाली शासक होता। परन्तु फिरोज़ तुग़लक की मृत्यु के पश्चात् दिल्ली के सभी सुल्तान निर्बल सिद्ध हुए। परिणामस्वरूप केन्द्रीय शक्ति शिथिल पड़ गई।

4. फिरोज़ तुग़लक के अयोग्य उत्तराधिकारी-फिरोज़ तुग़लक के उत्तराधिकारी दुर्बल और अयोग्य सिद्ध हुए। उन्होंने अपना अधिकांश समय विलासिता और आपसी झगड़ों में व्यतीत किया। इसका दिल्ली सल्तनत पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ा।

5. सैनिक दुर्बलता-दिल्ली सल्तनत की राजसत्ता का आधार सैनिक शक्ति था। परन्तु फिरोज़ तुग़लक ने सामन्त प्रथा ६.. फिर से आरम्भ कर दिया। इस प्रथा के कारण सामन्तों की शक्ति बढ़ने लगी और उन्होंने विद्रोह करने आरम्भ कर दिए। परिणामस्वरूप साम्राज्य सुरक्षित न रह सका।

6. मुसलमानों का नैतिक पतन-मुस्लिम सैनिक, अमीर तथा अधिकारी आलसी तथा विलासप्रिय हो गए थे। इस कारण उनका शारीरिक बल शिथिल पड़ गया।

7. आर्थिक दुर्बलता-तुग़लक सुल्तानों के विवेकहीन कार्यों से शाही खज़ाना खाली हो गया। धन के बिना सल्तनत साम्राज्य का स्थिर रहना असम्भव था।

8. तैमूर का आक्रमण-तैमूर ने 1398 ई० में भारत पर आक्रमण कर दिया। उसके आक्रमण से दिल्ली साम्राज्य को जनधन की भारी हानि उठानी पड़ी। इसके अतिरिक्त उसने सल्तनत राज्य की राजनीतिक शक्ति को छिन्न-भिन्न कर दिया।

सच तो यह है कि कई बातों के कारण दिल्ली सल्तनत का पतन हुआ। अन्ततः पानीपत की पहली लड़ाई के कारण तो इसका अस्तित्व ही मिट गया। किसी ने ठीक ही कहा है, “पानीपत का युद्ध दिल्ली के अफ़गानों के लिए कब्र बन गया।”

प्रश्न 9.
दिल्ली के सुल्तानों के अधीन मध्यकालीन भारत में लोगों की (क) सामाजिक तथा (ख) आर्थिक अवस्था का वर्णन करो।
उत्तर-
1206 ई० से 1526 ई० तक भारत सुल्तानों के अधीन रहा। यह काल इतिहास में सल्तनत काल के नाम से भी प्रसिद्ध है। इस समय के भारत की सामाजिक तथा आर्थिक दशा का वर्णन इस प्रकार किया जा सकता है :

(क) सामाजिक दशा-
सल्तनत काल में भारतीय समाज मुख्य रूप से दो भागों में बंटा हुआ था-मुस्लिम समाज और हिन्दू समाज।
(क) मुस्लिम समाज-यह समाज शासक वर्ग से सम्बन्धित था। अतः मुसलमानों को अनेक विशेषाधिकार प्राप्त थे। शासन के सभी उच्च पदों पर मुसलमानों को ही नियुक्त किया जाता था, परन्तु केवल जन्मजात मुसलमान ही उच्च पद के योग्य समझे जाते थे। मुस्लिम समाज में स्त्रियों की शिक्षा तथा सम्मान का ध्यान रखा जाता था। परन्तु पर्दा प्रथा उनके विकास के मार्ग में बाधा बनी हुई थी। बहु-पत्नी प्रथा भी प्रचलित थी। तलाक की प्रथा आम थी। स्त्रियां राजनैतिक कार्यों में भाग नहीं लेती थीं। केवल रजिया सुल्तान ही इसका अपवाद है। मुसलमानों में दास प्रथा काफ़ी ज़ोरों पर थी। सरदारों तथा शासकों को दास रखने का बड़ा चाव था। फिरोज़ तुगलक के पास एक लाख अस्सी हज़ार दास थे। दास-प्रथा के कारण उद्योगों की उन्नति हुई जिसके फलस्वरूप कुतुबुद्दीन ऐबक, इल्तुतमिश तथा बलबन जैसे सुल्तान इतिहास में उभरे।

(ख) हिन्दू समाज-हिन्दू समाज मुसलमानों से पराजित हो चुका था। उसकी बड़ी शोचनीय थी। प्रत्येक हिन्दू को शंका की दृष्टि से देखा जाता था। उन्हें उच्च सरकारी पद नहीं मिलते थे, उन्हें काफिर समझा जाता था। हिन्दू कृषकों से अधिक कर लिया जाता था। इस युग में हिन्दू नारी की दशा दयनीय हो चुकी थी। राजपूत शासक भी स्त्री को विलास की सामग्री मानने लगे थे। समाज में कई कुप्रथाएँ थीं। जैसे-सती प्रथा, बाल विवाह, बहु-विवाह तथा पर्दा प्रथा। इसके कारण सम्पूर्ण हिन्दू समाज की दशा शोचनीय हो चुकी थी।

(ख) आर्थिक दशा-

सल्तनत काल में मुस्लिम जनता समृद्ध थी। उन्हें नाम मात्र के कर देने पड़ते थे। इसके विरपीत हिन्दू जनता की आर्थिक दशा बड़ी दयनीय थी। संक्षेप में, सल्तनत युग में लोगों की आर्थिक दशा का विवरण इस प्रकार है-

  • कृषि-उन दिनों लोगों का मुख्य व्यवसाय कृषि था। सिंचाई कुओं तथा नहरों द्वारा की जाती थी। हिन्दू किसानों का जीवन सुखी नहीं था।
  • उद्योग-उद्योग विकसित थे। उन दिनों के उद्योगों में कपड़ा, चीनी, धातु की वस्तुएँ तैयार करना तथा कागज़ बनाना प्रम्ख थे।
  • व्यापार-उन दिनों में विदेशी व्यापार जोरों पर था। भारत का मलाया, चीन, मध्य एशिया, अफ़गानिस्तान तथा ईरान के साथ व्यापारिक सम्बन्ध स्थापित था।
  • रहन-सहन का स्तर-धनी और निर्धन व्यक्तियों के रहन-सहन के स्तर में बड़ा अन्तर था। धनी और अधिकारी लोग बड़े ठाट-बाठ का जीवन व्यतीत करते थे। वे करों से भी मुक्त थे। इसके विपरीत निर्धन वर्ग की दशा बड़ी शोचनीय थी।
    सच तो यह है कि सल्तनत काल में मुसलमानों की दशा अच्छी और हिन्दुओं की दशा शोचनीय थी। दोनों के जीवन में वही अन्तर था जो शासक तथा शासित वर्ग में होता है।

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 8 दिल्ली सल्तनत

प्रश्न 10.
सुल्तान काल में कला एवं साहित्य की प्रगति का वर्णन करो।
उत्तर-
कला-दिल्ली के सुल्तानों के समय भारत में ललित कलाओं का बहुत विकास हुआ। सूफी सन्तों, भक्तों और राजदरबारियों के कारण संगीत में उन्नति हुई। कहा जाता है कि सुल्तान सिकन्दर लोधी के समय में अनेक प्रसिद्ध गायक हुए। इस काल में चित्र कला अधिक उन्नत नहीं थी। फिर भी ग्वालियर के मान मन्दिर तथा एलौरा के मन्दिरों की दीवारों पर चित्रकला के कुछ नमूने दिखाई देते हैं।

इस काल में अनेक इमारतें बनीं। इसमें मन्दिर-मस्जिद तथा दुर्ग उल्लेखनीय हैं। कुछ स्थानों पर ‘विजय स्तम्भ’ भी बनाए गए। इस काल में हिन्दू मन्दिरों की तीन प्रमुख शैलियाँ प्रचलित थीं। उत्तर भारत में बने मन्दिरों में शिखर एक बड़े स्तम्भ के रूप में बनाया जाता था और वह वह ऊपर की ओर तंग होता जाता था। इस शैली के मन्दिर भुवनेश्वर, खजुराहो, ग्वालियर तथा गुजरात में देखे जा सकते हैं। दक्षिण भारत के मन्दिरों में शिखर का निर्माण अनेक सीढ़ियों के रूप में किया जाता था। द्राविड़ शैली के मन्दिर तंजौर, मदुरा और श्रीरंगम् आदि स्थानों पर विद्यमान हैं।

इस काल में बने प्रमुख दुर्ग ग्वालियर, रणथम्भौर, कालिंजर, चित्तौड़, देवगिरि तथा वारंगल में हैं। ये दुर्ग काफ़ी मज़बूत हैं। इस काल में अनेक मस्जिदें भी बनीं। इस समय की इमारतों में कुतुबमीनार प्रमुख हैं। इसे कुतुबुद्दीन ने बनवाना आरम्भ किया था। परन्तु इसको इल्तुतमिश ने पूरा किया। अलाऊद्दीन खिलजी भी एक महान् भवन निर्माता था। उसने ‘अलाई दरवाज़ा’ बनवाया जो बहुत ही सुन्दर तथा आकर्षक है।

ग्यासुद्दीन तुग़लक ने दिल्ली में तुगलकाबाद की नींव रखी। इस नगर के खण्डहर आज भी देखे जा सकते हैं। फिरोज़ तुग़लक भवन बनवाने में रुचि रखता था। उसने अनेक नगरों, मस्जिदों, मकबरों आदि का निर्माण करवाया। फतेहाबाद, हिसार फिरोजा और जौनपुर नगर उसी के काल में बनाए गए।

साहित्य-सल्तनत युग में साहित्य पर भी इस्लाम का काफ़ी प्रभाव पड़ा। बहुत-से हिन्दुओं ने फारसी में ग्रन्थ लिखे और काफ़ी मुसलमानों ने हिन्दी साहित्य में अपना योगदान दिया। इस काल की साहित्यिक कृतियों का वर्णन इस प्रकार है-

  • अलबेरूनी द्वारा रचित ‘तहकीके हिन्द’ इस काल की कृति है। इसमें ग्यारहवीं शताब्दी के भारत का चित्र प्रस्तुत किया गया है।
  • गुलाम वंश का इतिहास हमें सिराज के ‘तबकाते नासरी’ से पता चलता है।
  • बर्नी की तारीख-ए-फिरोजशाही इस काल की शोभा है। ‘फरिश्ता’ भी इसी युग का प्रसिद्ध इतिहासकार था।
  • अमीर खुसरो ने फारसी के अतिरिक्त हिन्दी साहित्य में भी योगदान दिया। उसने विभिन्न विषयों पर फारसी में पुस्तकें लिखीं।
  • सिकन्दर लोधी ने आयुर्वेद का फारसी में अनुवाद करवाया।
  • इसके अतिरिक्त कल्हण की ‘राजतरंगिणी’, जयदेव का ‘गीत गोविन्द’, कबीर की ‘साखी’ तथा मीरा के ‘गीत’ इस काल की उत्तम साहित्यिक रचनाएँ हैं।
    सच तो यह है कि कला तथा साहित्य की दृष्टि से सल्तनत युग बड़ा ही भाग्यशाली था।

PSEB 11th Class Agriculture Solutions Chapter 10 मछली पालन

Punjab State Board PSEB 11th Class Agriculture Book Solutions Chapter 10 मछली पालन Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Agriculture Chapter 10 मछली पालन

PSEB 11th Class Agriculture Guide मछली पालन Textbook Questions and Answers

(क) एक-दो शब्दों में उत्तर दो-

प्रश्न 1.
दो विदेशी किस्म की मछलियों के नाम बताओ।
उत्तर-
कॉमन क्रॉप, सिल्वर क्रॉप विदेशी जातियां हैं।

प्रश्न 2.
मछलियां पालने वाला जौहड़ कितना गहरा होना चाहिए ?
उत्तर-
इसकी गहराई 6-7 फुट होनी चाहिए।

प्रश्न 3.
मछली पालन के उपयोग किए जाने वाले पानी की पी०एच० कितनी होनी चाहिए ?
उत्तर-
इसकी पी०एच० अंक 7-9 के मध्य होना चाहिए।

PSEB 11th Class Agriculture Solutions Chapter 10 मछली पालन

प्रश्न 4.
मछली पालन के लिए तैयार जौहड़ में कौन-कौन सी रासायनिक खादों का उपयोग किया जाता है ?
उत्तर-
जौहड़ के लिए यूरिया खाद तथा सुपरफास्फेट का प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न 5.
प्रति एकड़ में कितने बच्च तालाब में छोड़े जाते हैं ?
उत्तर-
प्रति एकड़ में बच्च की संख्या 4000 होनी चाहिए।

प्रश्न 6.
मछलियों का बच्च कहां से प्राप्त होता है ?
उत्तर-
मछलियों का बच्च गुरु अंगद देव वैटरनरी तथा एनीमल साइंसज विश्वविद्यालय, लुधियाना के मछली कॉलेज या पंजाब सरकार के मछली बच्च फार्म से प्राप्त किए जा सकते हैं।

PSEB 11th Class Agriculture Solutions Chapter 10 मछली पालन

प्रश्न 7.
दो भारतीय मछलियों के नाम लिखो।
उत्तर-
कतला, रोहू।

प्रश्न 8.
मछलियों के छप्पड़ वाली जमा की मिट्टी किस तरह की होनी चाहिए ?
उत्तर-
चिकनी या चिकनी मैरा।

प्रश्न 9.
व्यापारिक स्तर या मछली पालन के लिए छप्पड़ का क्या आकार होना चाहिए ?
उत्तर-
क्षेत्रफल 1 से 5 एकड़ तथा गहराई 6-7 फुट होनी चाहिए।

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प्रश्न 10.
किसी भी मांसाहारी मछली का नाम लिखो।
उत्तर-
सिंघाड़ा, मल्ली।

(ख) एक-दो वाक्यों में उत्तर दो-

प्रश्न 1.
मछली पालन के लिए पाली जाने वाली भारतीय और विदेशी मछलियों के नाम बताओ।
उत्तर-
भारतीय मछलियां-कतला, रोहू तथा मरीगल। विदेशी मछलियां-कॉमन क्रॉप, सिल्वर क्रॉप, ग्लास क्रॉप।।

प्रश्न 2.
मछली पालन के लिए तैयार किए जाने वाले जौहड़ के डिज़ाइन के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर-
जौहड़ का डिज़ाइन तथा खुदाई-व्यापारिक स्तर पर मछलियां पालने के लिए जौहड़ का क्षेत्रफल 1 से 5 एकड़ तथा गहराई 6-7 फुट होनी चाहिए। जौहड़ का तल समतल तथा किनारे ढलानदार होने चाहिएं। पानी डालने तथा निकालने का पूरा प्रबन्ध होना चाहिए। इसके लिए पाइपों पर वाल्व लगे होने चाहिएं। खुदाई फरवरी के मास में करनी चाहिए ताकि मार्च-अप्रैल में मछलियों के बच्चे तालाब में छोड़े जा सकें। एक एकड़ के तालाब में बच्चे रखने के लिए एक कनाल (500 वर्ग मीटर) का नर्सरी तालाब अवश्य बनाओ जिसमें बच्चे रखे जा सकें। कम भूमि पर भी छोटे तालाब आदि बनाए जा सकते हैं जहां मछलियां पाली जा सकती हैं।

PSEB 11th Class Agriculture Solutions Chapter 10 मछली पालन

प्रश्न 3.
मछली पालन के लिए उपयोग किए जाने वाले पानी के स्तर के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर-
पानी में घुली हुई ऑक्सीजन तथा इसका तेजाबीपन जोकि पी०एच० अंक से पता चलता है बहुत महत्त्वपूर्ण है। मछलियों के जीवित रहने तथा वृद्धि विकास के लिए ये बातें बहुत प्रभाव डालती हैं। पी०एच० अंक 7-9 के मध्य होना चाहिए। 7 से कम पी०एच० अंक बढ़ाने के लिए बारीक पिसा हुआ चूना (80-100 किलो प्रति एकड़) पानी में घोल कर ठण्डा करने के पश्चात् तालाब में छिटक देना चाहिए।

प्रश्न 4.
मछली पालन के व्यवसाय के लिए भिन्न-भिन्न किस्म की मछलियों के बच्च में क्या अनुपात होता है ?
उत्तर-
विभिन्न प्रकार की मछलियों के बच्चों का अनुपात निम्नलिखित अनुसार है(i) कतला 20%, रोहू 30%, ग्रास क्रॉप 10%, सिल्वर क्रॉप 10%, मरीगल 10%, कॉमन क्रॉप 20%। (ii) कतला 25%, कॉमन क्रॉप 20%, मरीगल 20%, रोहू 35%।

प्रश्न 5.
मछली तालाब में खरपतवार की समाप्ति के तरीके बताओ।
उत्तर-
पुराने तालाबों में खरपतवार न उग सकें। इसके लिए पानी का स्तर 5-6 फुट होना चाहिए। खरपतवार को समाप्त करने के लिए निम्नलिखित ढंग हैं-

  • भौतिक साधन-तालाब का पानी निकाल कर इसे खाली करके खरपतवार को कंटीली तार से निकाला जा सकता है।
  • जैविक साधन-ग्रास कार्प मछलियां कई खरपतवारों (स्पाईरोडैला, हाईड्रिला, वुल्फीया, वेलीसनेरिया, लेमना) को खा जाती हैं। सिल्वर कार्प मछलियां, काई, पुष्पपुंज (एल्गल ब्लूमज़) को कंट्रोल करने में सहायक हैं।

PSEB 11th Class Agriculture Solutions Chapter 10 मछली पालन

प्रश्न 6.
जौहड़ में नहरी पानी के उपयोग के समय कौन-सी सावधानी ध्यान रखनी चाहिए ?
उत्तर-
नहरी पानी का प्रयोग करते समय खाल के मुंह पर लोहे की बारीक जाली लगानी चाहिए। ऐसा मांसाहारी तथा नदीन मछली को तालाब में जाने से रोकने के लिए करना आवश्यक है।

प्रश्न 7.
जौहड़ में मछली के दुश्मनों के बारे में बताओ।
उत्तर-
मांसाहारी मछलियां (मल्ली, सिंगाड़ा), नदीन मछलियां (शीशा, पुट्ठी कंघी), मेंढक, सांप आदि मछली के दुश्मन हैं।

प्रश्न 8.
मछलियों को खुराक कैसे दी जाती है ?
उत्तर-
मछलियों को 25% प्रोटीन वाली खुराक देनी चाहिए। बारीक पिसी हुई खुराक को 3-4 घण्टे तक भिगो कर रखना चाहिए। फिर इस भोजन के पेड़े बनाकर पानी के तल से 2-3 फुट नीचे रखी ट्रे अथवा टोकरियों अथवा छेदों वाले प्लास्टिक के थैलों में डालकर मछलियों को खाने के लिए देना चाहिए।

PSEB 11th Class Agriculture Solutions Chapter 10 मछली पालन

प्रश्न 9.
मछलियों को रोगों से बचाने के उपाय बताओ।
उत्तर-
मछलियों को बीमारियों से बचाने के लिए पूंग को लाल दवाई के घोल (100 ग्राम प्रति लीटर) में डुबो देने के पश्चात् तालाब में छोड़ो। लगभग प्रत्येक 15 दिन के अन्तर के पश्चात् मछलियों के स्वास्थ्य की जांच करनी चाहिए। बीमार मछलियों के उपचार के लिए सिफ़ारिश किये गये ढंगों का प्रयोग करो अथवा विशेषज्ञों के साथ सम्पर्क करो।

प्रश्न 10.
मछली पालन बारे प्रशिक्षण कहां से लिया जा सकता है ?
उत्तर-
मछली पालन बारे में प्रशिक्षण जिला मछली पालन अफ़सर, कृषि विज्ञान केन्द्र या फिर गुरु अंगद देव वैटनरी तथा एनीमल साईंसज विश्वविद्यालय लुधियाना से प्राप्त किया जा सकता है।

PSEB 11th Class Agriculture Solutions Chapter 10 मछली पालन

(ग) पांच-छः वाक्यों में उत्तर दें-

प्रश्न 1.
मछली पालन के लिए जौहड़ बनाने के लिए जगह का चुनाव और उनके डिजाइन व खुदाई के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर-
जौहड़ बनाने के लिए स्थान का चुनाव-चिकनी अथवा चिकनी मैरा मिट्टी वाली भूमि जौहड़ बनाने के लिए ठीक रहती है क्योंकि इसमें पानी सम्भालने की शक्ति अधिक होती है। पानी खड़ा करने के लिए हल्की (रेतीली)भूमि में कद्दू किया जा सकता है। पानी का साधन अथवा स्रोत भी निकट ही होना चाहिए ताकि जौहड़ को सरलता से भरा जा सके तथा समय-समय पर सूखे के कारण जौहड़ में पानी की कमी को पूरा किया जा सके। इसके लिए नहरी पानी का प्रयोग भी किया जा सकता है। इसके लिए नाली के मुंह पर लोहे की बारीक जाली लगा देनी चाहिए ताकि मांसाहारी तथा खरपतवार आदि मछलियां नहरी पानी द्वारा जौहड़ में न मिल जाएं।

जौहड़ का डिजाइन तथा खुदाई-व्यापारिक स्तर पर मछलियां पालने के लिए जौहड़ का क्षेत्रफल 1 से 5 एकड़ तथा गहराई 6-7 फुट होनी चाहिए। जौहड़ का तल समतल तथा किनारे ढलानदार होने चाहिएं। पानी डालने तथा निकालने का पूरा प्रबन्ध होना चाहिए। इसके लिए पाइपों पर वाल्व लगे होने चाहिएं। खुदाई फरवरी के महीने में करनी चाहिए ताकि मार्च-अप्रैल में मछलियों का पूंग तालाब में छोड़ा जा सके। एक एकड़ के जौहड़ में पूंग रखने के लिए एक कनाल (500 वर्ग मीटर) का नर्सरी जौहड़ अवश्य बनवाओ जिसमें पूंग रखा जा सके।

प्रश्न 2.
पुराने जौहड़ों को मछली पालन के योग्य कैसे बनाया जाए ?
उत्तर-
पुराने जौहड़ में नदीन न पनप सके इसके लिए पानी का स्तर 5-6 फुट होना चाहिए। नदीनों को समाप्त करने के लिए निम्नलिखित ढंग हैं –

  • भौतिक विधि-जौहड़ का पानी निकाल कर इसे खाली करके नदीनों को कंटीली तार से निकाला जा सकता है।
  • जैविक विधि-ग्रास कार्प मछलियां कई खरपतवारों (स्पाइरो डैला, हाइड्रिला, वुल्फीया, वेलिसनेरिया, लैमना) को खा जाती हैं। सिल्वर कार्प मछलियां काई, पुष्पपुंज (एल्गल ब्लूमज) को कंट्रोल करने में सहायक हैं।

पुराने जौहड़ों में से मछली के शत्रुओं की समाप्ति-पुराने तालाबों में पाई जाने वाली मांसाहारी मछलियां डौला, सिंगाड़ा, मल्ली तथा नदीन मछलियां। शीशा, पुट्ठी कंघी, मेंढक तथा सांपों को बार-बार जाल लगाकर तालाब में से निकालते रहना चाहिए। सांपों को बड़ी सावधानी से मार दो।

PSEB 11th Class Agriculture Solutions Chapter 10 मछली पालन

प्रश्न 3.
पुराने जौहड़ों में से खरपतवार की समाप्ति कैसे करेंगे ?
उत्तर-
स्वयं उत्तर दो।

प्रश्न 4.
मछली पालन के समय जौहड़ों में कौन-सी खादें डाली जाती हैं ?
उत्तर-
नये खोदे गये तालाब में मछली का प्राकृतिक भोजन (प्लैंकटन) की लगातार उपज होती रहे। इसके लिए खादों का प्रयोग किया जा सकता है। तालाब में पूंग छोड़ने से 15 दिन पहले खाद डालनी चाहिए। पुराने तालाब में खाद डालने की दर उसके पानी की क्वालिटी तथा प्लैंकटन की उपज पर निर्भर करती है।

दूसरी किश्त पहली किश्त के 15 दिन पश्चात् तथा रासायनिक खाद की दूसरी किश्त एक मास के पश्चात् डालो।
प्लैंकटन की लगातार पैदावार के लिए गोबर की खाद, मुर्गियों की खाद, बायोगैस सल्लरी, यूरिया, सुपरफॉस्फेट आदि खादों का प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न 5.
मछली पालन व्यवसाय के विकास में मछली पालन विभाग और वेटरनरी यूनिवर्सिटी की क्या भूमिका है ?
उत्तर-
मछली पालन का व्यवसाय प्रारम्भ करने से पहले मछली पालन विभाग, पंजाब से प्रशिक्षण प्राप्त कर लेना चाहिए। इस विभाग की ओर से प्रत्येक जिले में प्रति मास पांच दिन की ट्रेनिंग दी जाती है।

प्रशिक्षण प्राप्त करने के पश्चात् यह विभाग मछली पालन के व्यवसाय के लिए तालाब के निर्माण तथा पुराने तालाब को ठीक करने अथवा सुधार के लिए सहायता भी देता है।
मछली पालन का प्रशिक्षण वेटरनरी यूनिवर्सिटी से प्राप्त किया जा सकता है।

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Agriculture Guide for Class 11 PSEB मछली पालन Important Questions and Answers

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
मछली कितने ग्राम की होने पर बेचने योग्य हो जाती है ?
उत्तर-
500 ग्राम।

प्रश्न 2.
एक खरपतवार मछली का नाम बताओ।
उत्तर-
पुट्ठी कंघी।

प्रश्न 3.
मछली का प्राकृतिक भोजन क्या है ?
उत्तर-
प्लैंकटन।

PSEB 11th Class Agriculture Solutions Chapter 10 मछली पालन

प्रश्न 4.
मछलियां पालने वाला छप्पड़ कितना गहरा होना चाहिए ?
उत्तर-
6-7 फुट।

प्रश्न 5.
डौला——–किस्म की मछली है।
उत्तर-
मांसाहारी।

प्रश्न 6.
जौहड़ बनाने के लिए कैसी मिट्टी वाली भूमि का चुनाव करना चाहिए ?
उत्तर-
उसके लिए चिकनी अथवा चिकनी मैरा मिट्टी वाली भूमि चुनो।

PSEB 11th Class Agriculture Solutions Chapter 10 मछली पालन

प्रश्न 7.
चिकनी अथवा चिकनी मैरा मिट्टी वाली भूमि ही क्यों जौहड़ के लिए चुनी जाती है ?
उत्तर-
क्योंकि ऐसी मिट्टी में पानी सम्भालने की शक्ति अधिक होती है।

प्रश्न 8.
जौहड़ की खुदाई किस मास में करनी चाहिए ?
उत्तर-
जौहड़ की खुदाई फरवरी मास में करनी चाहिए।

प्रश्न 9.
खरपतवार को कौन-सी मछलियां खा लेती हैं ?
उत्तर-
ग्रास क्रॉप तथा सिल्वर क्रॉप।

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प्रश्न 10.
खरपतवार मछलियों के नाम बताओ।
उत्तर-
शीशा तथा पुट्ठी कंघी।

प्रश्न 11.
मांसाहारी मछलियों के नाम बताओ।
उत्तर-
सिंघाड़ा, मल्ली, डौला।।

प्रश्न 12.
यदि पानी का पी० एच० अंक 7 से कम हो जाए तो क्या करना चाहिए ?
उत्तर-
बारीक पिसा हुआ चूना पानी में घोल कर ठण्डा करके तालाब में 80-100 किलो प्रति एकड़ की दर से छिड़क दो।

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लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न-
मछलियां पकड़ने तथा पूंग छोड़ने के बारे में जानकारी दो।
उत्तर-
जब मछलियां 500 ग्राम की हो जाएं तो वह बेचने योग्य हो जाती हैं। मछलियां जिस प्रकार की निकाली जाएं उतना ही उस प्रकार का मछलियों का पूंग नर्सरी तालाब में से निकाल कर तालाब में छोड़ देना चाहिए।

मछली पालन PSEB 11th Class Agriculture Notes

  • वैज्ञानिक विधि से मछलियां पालने से वर्ष में लाभ कृषि से भी अधिक हो जाता
  • मछलियों की भारतीय किस्में हैं-कतला, रोहू तथा मरीगल ।
  • मछलियों की विदेशी किस्में हैं-कॉमन क्रॉप, सिल्वर क्रॉप तथा ग्रास क्रॉप।
  • जौहड़ (छप्पड़) बनाने के लिए चिकनी अथवा चिकनी मैरा मिट्टी वाली भूमि का प्रयोग करना चाहिए।
  • जौहड़ (छप्पड़) 1-5 एकड़ क्षेत्रफल के तथा 6-7 फुट गहरा होना चाहिए।
  • पानी की गहराई 5-6 फुट होनी चाहिए।
  • पानी का पी०एच० अंक 7-9 के मध्य होना चाहिए। यदि 7 से कम हो तो चूने के प्रयोग से बढ़ाया जा सकता है।
  • जौहड़ में 1-2 इंच आकार के 4000 प्रति एकड़ के हिसाब से डालो।
  • बच्चे का अनुपात इस प्रकार हो सकता है
    (i) कतला 20%, कॉमन क्रॉप 20%, मरीगल 10%, ग्रास क्रॉप 10%, रोहू 30%, सिल्वर क्रॉप 10% ।
    (ii) कतला 25%, मरीगल 20%, रोहू 35%, कॉमन क्रॉप 20% ।
  • मछलियों को 25% प्रोटीन वाला सहायक भोजन दो।
  • 500 ग्राम की मछली को बेचा जा सकता है।
  • विभिन्न संस्थाओं से मछली पालन के व्यवसाय के लिए प्रशिक्षण लेना चाहिए।

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 22 स्वतन्त्रता के लिए संघर्ष

Punjab State Board PSEB 11th Class History Book Solutions Chapter 22 स्वतन्त्रता के लिए संघर्ष Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 History Chapter 22 स्वतन्त्रता के लिए संघर्ष

अध्याय का विस्तृत अध्ययन

(विषय-सामग्री की पूर्ण जानकारी के लिए)

प्रश्न 1.
1924 से 1934 तक के स्वतन्त्रता संघर्ष की मुख्य घटनाओं की चर्चा कीजिए।
उत्तर-
1922 में कांग्रेस का अधिवेशन हुआ। श्री चितरंजन दास ने अधिवेशन में यह योजना रखी कि कांग्रेस को परिषदों के चुनावों में भाग लेना चाहिए और सरकार का विरोध करना चाहिए। लेकिन गांधी जी और उनके साथियों के विरोध के कारण यह योजना रद्द कर दी गई। परिणामस्वरूप श्री चितरंजन दास ने कांग्रेस से त्याग-पत्र दे दिया। उन्होंने परिषदों के चुनावों में भाग लेने के लिए एक पृथक् दल की स्थापना की। उस दल का नाम था-स्वराज्य पार्टी। पं० मोती लाल नेहरू ने भी इस . पार्टी के निर्माण में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।

1. स्वराज्य पार्टी की गतिविधियां-1919 ई० के एक्ट के अन्तर्गत 1923 ई० में दूसरे चुनाव हुए। स्वराज्य दल ने भी इसमें भाग लिया। उन्होंने विधानसभा की 145 में से 45 सीटें प्राप्त की। इस प्रकार विधानसभा में उनका स्पष्ट बहुमत स्थापित हो गया। चुनावों के पश्चात् स्वराज्य दल ने परिषदों में प्रवेश किया। उन्होंने दोहरी शासन प्रणाली के अन्तर्गत प्रशासन करना असम्भव बना दिया। 21 फरवरी, 1924 ई० को श्री चितरंजन दास ने यह घोषणा की कि वह जब तक बंगाल में अपना मन्त्रिमण्डल नहीं बनायेंगे तब तक संविधान में परिवर्तन नहीं किया जाएगा। इसी प्रकार दूसरे प्रान्तों में भी स्वराज्य दल ने अपनी मांगें जारी रखीं। अन्त में फरवरी, 1924 ई० में एक कमेटी (मुद्दीमेन कमेटी) स्थापित की गई। इस कमेटी का उद्देश्य दोहरे शासन में आई कमियों को दूर करना था।

स्वराज्य पार्टी ने 1924-25 ई० में केन्द्रीय विधानसभा में वित्तीय बिल अस्वीकार कर दिया। इसमें गवर्नर-जनरल को अपनी विशेष शक्तियों का प्रयोग करना पड़ा। इसके पश्चात् 1925-26 ई० में उन्होंने कुछ राजनीतिक कैदियों की रिहाई की मांग की परन्तु सरकार ने उनकी मांगों की ओर कोई ध्यान न दिया। 1925 ई० के पश्चात् स्वराज्य पार्टी अवनति की ओर जाने लगी। 1926 ई० के चुनावों में स्वराज्यवादियों को अधिक सीटें न मिल सकीं। परिणामस्वरूप स्वराज्य दल का महत्त्व कम होने लगा। अन्ततः स्वराज्य दल और कांग्रेस के अन्य नेता एक बार फिर एक हो गए।

2. साइमन कमीशन-माण्टेग्यू फोर्ड सुधारों (1919) की एक धारा यह भी थी कि 10 वर्ष के पश्चात् यह जांच की जाएगी कि इस अधिनियम के अनुसार शासन ने कितनी प्रगति की है। यह कार्य 1929 में होना था, परन्तु भारतीय जनता तथा नेताओं की बढ़ती हुई बेचैनी को दूर करने के लिए ब्रिटिश सरकार ने, 1928 में ही एक कमीशन की नियुक्ति कर दी जो अगले वर्ष भारत आया। इस कमशीन को ‘साइमन कमीशन’ कहा जाता है। इस कमीशन में सात सदस्य थे, परन्तु उनमें कोई भी भारतीय सदस्य नहीं था। इस लिये गान्धी जी तथा कांग्रेस के अन्य नेताओं ने इसका बॉयकाट किया। हर नगर में कमीशन के विरुद्ध जलूस निकाले गये। स्थान-स्थान पर इसे काले झण्डे दिखाए गए और ‘साइमन वापस जाओ’ के नारे लगाए गए। लाहौर में जलूस का नेतृत्व लाला लाजपत राय कर रहे थे। पुलिस ने इस पर खूब लाठियां बरसाईं। उन्हें काफी चोटें आईं जिसके कारण कुछ ही दिनों पश्चात् उनकी मृत्यु हो गई। क्रान्तिकारी नवयुवकों ने मि० सांडर्स को गोली से उड़ाकर उनकी मृत्यु का बदला लिया। इन क्रान्तिकारियों में भगत सिंह, राजगुरु आदि प्रमुख थे।

3. पूर्ण स्वराज्य की मांग-साइमन कमीशन का प्रत्येक स्थान पर भारी विरोध किया गया था। परन्तु कमीशन ने विरोध के बावजूद अपनी रिपोर्ट प्रकाशित कर दी। साइमन कमीशन की रिपोर्ट को भारत के किसी भी राजनीतिक दल ने स्वीकार नहीं किया। अत: अंग्रेज़ी सरकार ने भारतीयों को सर्वसम्मति से अपना संविधान तैयार करने की चुनौती दी। इस विषय में भारतीयों ने अगस्त, 1928 ई० में नेहरू रिपोर्ट प्रस्तुत की, परन्तु अंग्रेजी सरकार ने इस रिपोर्ट को अस्वीकार कर दिया। परिणामस्वरूप भारतीयों की निराशा और अधिक बढ़ गई।

1929 ई० में कांग्रेस का वार्षिक अधिवेशन लाहौर में हुआ। यह अधिवेशन भारत के स्वतन्त्रता संग्राम के इतिहास में विशेष महत्त्व रखता है। पण्डित जवाहर लाल नेहरू इस अधिवेशन के अध्यक्ष चुने गये। गांधी जी ने ‘पूर्ण स्वराज्य’ का प्रस्ताव पेश किया जो पास कर दिया गया। 31 दिसम्बर की आधी रात को नेहरू जी ने रावी नदी के किनारे स्वतन्त्रता का तिरंगा झण्डा फहराया। यह भी निश्चित हुआ कि हर वर्ष 26 जनवरी को स्वतन्त्रता दिवस मनाया जाये। 26 जनवरी, 1930 को यह दिन सारे भारत में बड़े जोश के साथ मनाया गया और लोगों ने स्वतन्त्रता प्राप्त करने की प्रतिज्ञा की। अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए उन्होंने सरकारी कानूनों तथा संस्थाओं का बहिष्कार करने की नीति अपनाई।

4. सविनय अवज्ञा आन्दोलन-सविनय अवज्ञा आन्दोलन 1930 में चलाया गया। इस आन्दोलन का उद्देश्य सरकारी कानूनों को भंग करके सरकार के विरुद्ध रोष प्रकट करना था। आन्दोलन का आरम्भ गान्धी जी ने डांडी यात्रा से किया। 12 मार्च, 1930 ई० को उन्होंने साबरमती आश्रम से अपनी यात्रा आरम्भ की। मार्ग में अनेक लोग साथ मिल गये। 24 दिन की कठिन यात्रा के बाद वे समुद्र तट पर पहुंचे और उन्होंने समुद्र से नमक लाकर नमक कानून भंग किया। इसके बाद सारे देश में लोगों ने सरकारी कानूनों को भंग करना आरम्भ कर दिया। इस आन्दोलन को दबाने के लिए सरकार ने बड़ी कठोरता से काम लिया। हजारों देशभक्तों को जेल में डाल दिया गया। गान्धी जी को भी बन्दी बना लिया गया। यह आन्दोलन फिर भी काफी समय तक चलता रहा। गांधी इरविन समझौते (1931) के बाद गान्धी जी ने दूसरी गोलमेज़ कांफ्रेंस में भाग लिया। परन्तु वापसी पर उन्हें बन्दी बना लिया गया। इस तरह देश में 1934 तक सविनय अवज्ञा आन्दोलन जारी रहा।

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 22 स्वतन्त्रता के लिए संघर्ष

प्रश्न 2.
1935 से 1947 तक के स्वतन्त्रता संघर्ष की मुख्य घटनाओं की चर्चा करें।
उत्तर-
1935 के एक्ट के पश्चात् देश की राजनीति ने नया मोड़ लिया। 1937 में प्रान्तों में चुनाव हुए। कांग्रेस ने 11 में से 8 प्रान्तों में सरकारें स्थापित की। परन्तु द्वितीय महायुद्ध के आरम्भ ने सारी स्थिति ही बदल डाली।

दूसरे महायुद्ध का प्रभाव-1939 में दूसरा महायुद्ध आरम्भ हो गया। अंग्रेजी सरकार ने भारतीय नेताओं से पूछे बिना ही जर्मनी के विरुद्ध भारत के युद्ध में भाग लेने की घोषणा कर दी। इसके विरोध में सभी कांग्रेसी मन्त्रिमण्डलों ने त्याग-पत्र दे दिए और गांधी जी ने ‘सत्याग्रह’ आरम्भ कर दिया। उन्होंने जनता से कहा-“न दो भाई, न दो पाई।” गांधी जी के इन शब्दों का अर्थ है कि कोई भी भारतीय इस युद्ध में अंग्रेज़ी साम्राज्य की सहायता नहीं करेगा। कांग्रेसी मन्त्रिमण्डलों के त्यागपत्र देने से मुस्लिम लीग के नेता मिस्टर जिन्नाह बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने 22 दिसम्बर, 1939 का दिन ‘मुक्ति दिवस’ के रूप में मनाया। 1940 में उन्होंने पाकिस्तान की मांग की। दूसरे महायुद्ध में अंग्रेजों की दशा शोचनीय होती चली जा रही थी।

जापान बर्मा तक बढ़ आया था। भारतीयों का सहयोग प्राप्त करने के लिए सर स्टैफर्ड क्रिप्स को भारत भेजा गया। उन्होंने भारतीय नेताओं से बातचीत की और भारत को ‘डोमीनियन स्टेट्स’ देने की सिफारिश की। यह बात कांग्रेस तथा मुस्लिम लीग दोनों को स्वीकार नहीं थी। कांग्रेस देश की स्वतन्त्रता तुरन्त चाहती थी, परन्तु क्रिप्स के सुझाव में अधिराज्य की व्यवस्था (Dominion Status) थी और वह भी युद्ध के बाद दिया जाना था। अतः गान्धी जी ने इस सुझाव की तुलना एक ऐसे चैक से की जिस पर बाद की तिथि पड़ी हुई है और ऐसे बैंक के नाम पर है जो फेल होने वाला है।

भारत छोड़ो आन्दोलन-जापान के आक्रमण का भय दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा था। वह हिन्द-चीन को जीत चुका था। उसका अगला निशाना भारत ही था। जापानी लोग अंग्रेजों के कारण ही भारत पर आक्रमण करना चाहते थे। अतः महात्मा गान्धी ने अंग्रेज़ों को भारत छोड़ने का सुझाव दिया और कहा कि हम जापान से अपनी रक्षा स्वयं कर लेंगे। 8 अगस्त, 1942 को बम्बई (मुम्बई) में कांग्रेस ने ‘अंग्रेज़ो ! भारत छोड़ो’ का प्रस्ताव पास कर दिया। प्रस्ताव की व्याख्या करते हुए गांधी जी ने जनता को ‘करो या मरो’ की बात कही। अगले दिन सरकार ने गांधी जी तथा अन्य नेताओं को बन्दी बना लिया। देश भर में आन्दोलन बड़ी तेज़ी से चला। दुकानदारों, किसानों, मज़दूरों, छात्रों सभी ने जलूस निकाले । सरकारी इमारतों पर तिरंगे झण्ड़े लहरा दिए गए। ‘अंग्रेज़ो, भारत छोड़ो’, ‘गान्धी जी की जय’, ‘टोडी बच्चा हाय हाय’ के नारे से भारत का नगर-नगर गूंज उठा। तोड़-फोड़ भी हुई। आन्दोलन को कुचलने के लिए सरकार ने पूरा जोर लगाया। लाखों लोगों को जेलों में ढूंस दिया गया। सैंकड़ों को गोली से भून दिया गया। लोगों को मार्ग दिखाने वाला कोई भी नेता बाहर नहीं था। फलस्वरूप आन्दोलन शिथिल पड़ गया।

आज़ाद हिन्द फ़ौज-इसी बीच नेता जी सुभाषचन्द्र बोस अंग्रेज़ी सरकार की नज़रों से बचकर भारत से भाग निकले। वे जर्मनी गये और वहां से जापान पहुंचे। वहां उन्होंने जापान द्वारा कैद किए गए भारतीय कैदियों को संगठित किया और आज़ाद हिन्द फ़ौज की कमान सम्भाली। नेता जी इस सेना के बल पर भारत को स्वतन्त्र कराना चाहते थे। उन्होंने भारत पर आक्रमण किया और इम्फाल का प्रदेश जीत लिया, लेकिन इसी बीच जापान की हार हुई जिससे आज़ाद हिन्द फ़ौज की शक्ति भी कम हो गई। कुछ ही समय बाद नेता जी का एक हवाई दुर्घटना में देहान्त हो गया। ब्रिटिश सरकार ने दस हज़ार आज़ाद हिन्द सैनिकों को रंगून में बन्दी बनाया।

सेना के तीन उच्चाधिकारियों शाह नवाज़ खां, प्रेम कुमार सहगल तथा गुरबख्श सिंह ढिल्लों पर राजद्रोह का आरोप लगा कर लाल किले में मुकद्दमा चलाया गया। पण्डित जवाहर लाल नेहरू, भोला शंकर देसाई तथा तेज बहादुर सप्रू ने इनकी वकालत की। 1857 ई० में बहादुरशाह के बाद राजद्रोह के आरोप में चलाया गया यह भारतीय इतिहास का दूसरा सबसे महत्त्वपूर्ण मुकद्दमा था। सैनिक अदालत ने अभियुक्तों को आजन्म कारावास की सजा सुनाई। निर्णय सुनते ही जनता में रोष फैल गया और सरकार के विरुद्ध भारी प्रदर्शन हुए। उन दिनों बच्चे-बच्चे की जुबान पर ये शब्द थे’लाल किले से आई आवाज़-सहगल, ढिल्लों शाहनवाज़।” भारतीय सेना में भी विद्रोह की भावना फैल गई। फलस्वरूप ब्रिटिश सरकार को झुकना पड़ा और तीनों अभियुक्त छोड़ दिए गए।

कैबिनेट मिशन-दूसरे विश्वयुद्ध के कारण इंग्लैण्ड की आर्थिक दशा काफी खराब हो गई। साथ ही इंग्लैण्ड की सत्ता ‘लेबर पार्टी’ के हाथ में आ गई। नये प्रधानमन्त्री एटली की भारत से काफी सहानुभूति थी। उसने सितम्बर, 1945 में एक ऐतिहासिक घोषणा की जिसमें भारत के स्वाधीनता के अधिकार को स्वीकार किया गया। भारतीयों को सन्तुष्ट करने के लिए ब्रिटिश मन्त्रिमण्डल के तीन सदस्यों का एक दल भारत आया। इसे ‘कैबिनेट मिशन’ कहा जाता है। इसने भारत को स्वतन्त्रता के लिए योजना पेश की जिसमें यह कहा गया कि भारत एक संघ राज्य रहेगा और सारा देश एक केन्द्र के अधीन तीन खण्डों में बांटा जायेगा। केन्द्र में 14 मन्त्री होंगे जिसमें 6 कांग्रेसी, 5 मुस्लिम लीग के और 3 अन्य होंगे। सभी दलों ने इसे मान लिया। इसी योजना के अनुसार देश भर में संविधान सभा के चुनाव हुए जिसमें 296 सीटों में से मुस्लिम लीग को केवल 73 स्थान प्राप्त हुए। इस चुनाव को देख कर मि० जिन्नाह ने कैबिनेट मिशन योजना अस्वीकार कर दी।

मुस्लिम लीग की सीधी कार्यवाही तथा भारत की स्वतन्त्रता-मुस्लिम लीग ने अपनी पाकिस्तान की मांग दोहराई और सीधी कार्यवाही करने की धमकी दी। 16 अगस्त, 1946 को देश भर में सीधी कार्यवाही दिवस मनाया गया। स्थान-स्थान पर जलूस निकाले गए जिन में यह नारा लगाया गया-मारेंगे, मर जाएंगे पाकिस्तान बनाएंगे। कलकत्ता (कोलकाता) में हज़ारों हिन्दू कत्ल कर दिए गए। हिन्दुओं ने बिहार में मुसलमानों की हत्याएं कीं। यह देश का दुर्भाग्य था कि हिन्दू-मुसलमान इकट्ठे मिलकर न रह सके और सारे देश में साम्प्रदायिक दंगे फैल गए। इन परिस्थितियों में देश के विभाजन का वातावरण तैयार हो गया। ब्रिटिश सरकार ने यह समझ लिया कि कांग्रेस तथा मुस्लिम लीग में समझौता नहीं हो सकता।

नये वायसराय लॉर्ड माऊंटबेटन ने गांधी जी, नेहरू,पटेल और मौलाना आज़ाद से बातचीत की और उन्हें यह समझाया कि साम्प्रदायिक झगड़ों को रोकने के लिए भारत का विभाजन आवश्यक है। नेताओं ने भी देश के वातावरण को देख कर भारत का बंटवारा मान लिया। आखिर 3 जून, 1947 को लॉर्ड माऊंटबेटन ने पाकिस्तान बनाये जाने की घोषणा कर दी। जुलाई, 1947 को ब्रिटिश संसद् ने भारत स्वतन्त्रता कानून पास कर दिया। इसके अनुसार 14 अगस्त को पाकिस्तान बन गया और 15 अगस्त, 1947 ई० को भारत स्वतन्त्र हो गया।

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 22 स्वतन्त्रता के लिए संघर्ष

महत्त्वपूर्ण परीक्षा-शैली प्रश्न

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न

नोट : ये प्रश्न अध्याय 21 में ही दे दिए गए हैं।

II. अति छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
1921 में पंजाब में कौन-से राजनीतिक दल ने चनाव जीता तथा इसके दो नेताओं के नाम बताएं।
उत्तर-
1921 में पंजाब में सर फज़ल-ए-हुसैन तथा सर छोटू राम के नेतृत्व में यूनियनिस्ट पार्टी ने चुनाव जीता।

प्रश्न 2.
स्वराज्य पार्टी का मुख्य उद्देश्य क्या था ?
उत्तर-
स्वराज्य पार्टी का मुख्य उद्देश्य था-चुनाव में भाग लेना तथा कौंसिलों में रहकर स्वतन्त्रता के लिए संघर्ष करना।

प्रश्न 3.
स्वराज्य पार्टी के दो नेताओं के नाम बताएं।
उत्तर-
पण्डित मोती लाल नेहरू और देशबन्धु चितरंजन दास स्वराज्य पार्टी के नेता थे।

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प्रश्न 4.
स्वराज्य पार्टी के प्रभाव अधीन कौन-से दो एक्ट स्थगित हो गए ?
उत्तर-
स्वराज्य पार्टी के प्रभाव अधीन रौलेट एक्ट और प्रेस एक्ट स्थगित हो गए।

प्रश्न 5.
1920 में गुरुद्वारा सुधार के लिए कौन-से दो संगठन अस्तित्व में आए ?
उत्तर-
1920 में गुरुद्वारा सुधार के लिए शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी और शिरोमणि अकाली दल अस्तित्व में आए।

प्रश्न 6.
गुरुद्वारा सुधार के लिए दो महत्त्वपूर्ण मोर्चों के नाम तथा वर्ष बताइए।
उत्तर-
इनमें गुरु का बाग (1921) तथा जैतो (1923) के मोर्चे प्रसिद्ध हैं।

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प्रश्न 7.
गुरुद्वारा सुधार आन्दोलन में लगभग कितने लोग मारे गए तथा कितने घायल हुए ?
उत्तर-
इस दौरान लगभग 400 लोग मारे गए तथा 2,000 लोग घायल हुए।

प्रश्न 8.
‘गुरुद्वारा एक्ट’ कब पास हुआ तथा इसके द्वारा गुरुद्वारे कौन-सी संस्था के नियन्त्रण में आ गए थे ?
उत्तर-
गुरुद्वारा एक्ट 1925 में पास हुआ तथा इसके द्वारा सब गुरुद्वारे शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी के नियन्त्रण में आ गए।

प्रश्न 9.
1922 में चल रहे कौन-से दो आन्दोलन अहिंसा पर आधारित थे ?
उत्तर-
असहयोग आन्दोलन और खिलाफत आन्दोलन अहिंसा पर आधारित थे।

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प्रश्न 10.
‘बब्बर अकाली’ किस प्रकार के संघर्ष में विश्वास रखते थे तथा इनका उद्देश्य क्या था ?
उत्तर-
बब्बर अकाली हिंसात्मक संघर्ष में विश्वास रखते थे तथा इनका उद्देश्य स्वराज्य प्राप्त करना था।।

प्रश्न 11.
किन वर्षों में तथा कौन-सा इलाका बब्बर अकालियों की सरगर्मियों का गढ़ रहा ?
उत्तर-
1922 से 1924 तक जालन्धर दोआब इनका गढ़ रहा।

प्रश्न 12.
‘नौजवान भारत सभा’ की नींव कब और कौन-से प्रान्त में रखी गई ?
उत्तर-
नौजवान भारत सभा की नींव 1926 में लाहौर प्रान्त में रखी गई।

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प्रश्न 13.
जिन दो क्रान्तिकारी संगठनों की स्थापना में भगत सिंह ने योगदान दिया था, उनके नाम बताएं।
उत्तर-
हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन और हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन में भगत सिंह ने योगदान दिया था।

प्रश्न 14.
‘हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन’ के साथ सम्बन्धित दो क्रान्तिकारियों के नाम बताएं।
उत्तर-
चन्द्रशेखर आजाद और भगत सिंह हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के साथ सम्बन्धित थे।

प्रश्न 15.
1929 में केन्द्रीय असैम्बली में बम फेंकने वाले दो क्रान्तिकारी कौन थे तथा इनका क्या मन्तव्य था ?
उत्तर-
1929 में केन्द्रीय असैम्बली में बम फेंकने वाले भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त थे तथा उनका मन्तव्य किसी को मारना नहीं बल्कि अंग्रेज़ सरकार के प्रति भारतीयों का रोष प्रकट करना था।

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प्रश्न 16.
भगत सिंह को किस पुलिस अफसर को मारने के अपराध में तथा कब फांसी दी गई ?
उत्तर-
भगत सिंह को सान्डर्स को मारने के अपराध में 23 मार्च, 1931 को फांसी दी गई।

प्रश्न 17.
भगत सिंह के साथ किन दो अन्य क्रान्तिकारियों को फांसी हुई ?
उत्तर-
सुखदेव और राजगुरु को भगत सिंह के साथ फांसी हुई।

प्रश्न 18.
चन्द्रशेखर आजाद ने कौन-से क्रान्तिकारी संगठन की स्थापना करने में योगदान दिया तथा वह कब मारा गया ?
उत्तर-
चन्द्रशेखर आजाद ने हिन्दुस्तान सोशलिस्ट-रिपब्लिकन एसोसिएशन के संगठन की स्थापना करने में योगदान दिया और वे 1931 में मारे गए।

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प्रश्न 19.
ऊधम सिंह ने कब, कहां और किस अंग्रेज़ को गोली मारी थी ?
उत्तर-
ऊधम सिंह ने 1940 में लन्दन में माइकल ओडवायर को गोली मारी थी।

प्रश्न 20.
साइमन कमीशन कब तथा किस उद्देश्य से नियुक्त किया गया ?
उत्तर-
1927 में साइमन कमीशन नियुक्त किया गया था जिस का उद्देश्य था कि यह मांटेग्यू चैम्सफोर्ड विधान की कारवाई की रिपोर्ट दे और भविष्य में किए जाने वाले परिवर्तनों के बारे में सुझाव दे।

प्रश्न 21.
भारतीयों ने ‘साइमन कमीशन’ का विरोध क्यों किया तथा पंजाब के कौन-से नेता इस विरोध में घायल हुए तथा उनका देहान्त कब हुआ ?
उत्तर-
भारतीयों ने साइमन कमीशन का विरोध इसलिए किया क्योंकि कोई भी भारतीय इस कमीशन का सदस्य नहीं था। लाला लाजपतराय इस विरोध में घायल हुए और 1928 में उनकी मृत्यु हो गई।

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 22 स्वतन्त्रता के लिए संघर्ष

प्रश्न 22.
1929 में कांग्रेस का अधिवेशन कहां हुआ ? इसका सबसे महत्त्वपूर्ण प्रस्ताव क्या था तथा इसको किसने प्रस्तुत किया ?
उत्तर-
1929 में कांग्रेस का अधिवेशन लाहौर में हुआ। इसका महत्त्वपूर्ण प्रस्ताव पूर्ण स्वतन्त्रता का प्रस्ताव था जिसे जवाहर लाल ने पेश किया था।

प्रश्न 23.
1929 के कांग्रेस के अधिवेशन में कौन-सा झण्डा लहराया गया तथा कौन-सा दिन स्वतन्त्रता दिवस निश्चित हुआ ?
उत्तर-
1929 के कांग्रेस के अधिवेशन में तिरंगा झण्डा लहराया गया तथा 26 जनवरी, 1930 को स्वतन्त्रता दिवस निश्चित हुआ।

प्रश्न 24.
महात्मा गान्धी ने सविनय अवज्ञा आन्दोलन का आरम्भ किस स्थान से, कब तथा किस तरह किया ?
उत्तर-
महात्मा गान्धी ने सविनय अवज्ञा आन्दोलन का आरम्भ 6 अप्रैल, 1930 ई० को समुद्र तट पर नमक बना कर किया।

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प्रश्न 25.
खान अब्दुल गफ्फार खां किस नाम से प्रसिद्ध हुए तथा उन्होंने कौन-सी संस्था का संगठन किया ?
उत्तर-
खान अब्दुल गफ्फार खाँ सीमान्त गांधी के नाम से प्रसिद्ध हुए। उन्होंने खुदाई खिदमतगारों की संस्था का संगठन किया।

प्रश्न 26.
पहली गोलमेज़ कांफ्रैंस कब, कहां तथा किस लिए बुलाई गई ?
उत्तर-
पहली गोलमेज़ कांफ्रैंस 1930 ई० में लन्दन में बुलाई गई। यह कांफ्रैंस साइमन कमीशन की रिपोर्ट पर विचार करने के लिए बुलाई गई।

प्रश्न 27.
महात्मा गान्धी ने कब और कौन-सी गोलमेज़ कांफ्रेंस में हिस्सा लिया ?
उत्तर-
महात्मा गान्धी ने 1931 में दूसरी गोलमेज़ कांफ्रेंस में हिस्सा लिया।

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प्रश्न 28.
सविनय अवज्ञा आन्दोलन कब आरम्भ हुआ तथा इसमें कितने सत्याग्रही गिरफ्तार हुए ?
उत्तर-
सविनय अवज्ञा आन्दोलन 1930 ई० में आरम्भ हुआ। इसमें महात्मा गान्धी सहित 90 हज़ार सत्याग्रही गिरफ्तार हुए।

प्रश्न 29.
पंजाब के चार नगरों के नाम बताएं जिनमें सविनय अवज्ञा आन्दोलन के दौरान नमक का कानून तोड़ा गया ?
उत्तर-
पंजाब में लाहौर, अमृतसर, लायलपुर तथा लुधियाना में सविनय अवज्ञा आन्दोलन के दौरान नमक कानून तोड़ा गया।

प्रश्न 30.
तीसरी गोलमेज़ कांफ्रैंस कब बुलाई गई तथा इसमें किस अधिनियम का ढांचा तैयार किया गया ?
उत्तर-
नवम्बर, 1932 में तीसरी गोलमेज़ कांफ्रैंस बुलाई गई तथा इसमें 1935 के अधिनियम का ढांचा तैयार किया गया।

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प्रश्न 31.
1935 के एक्ट में केन्द्र में कौन-सी चार संस्थाएं स्थापित करने का फैसला किया गया ?
उत्तर-
1935 के एक्ट में केन्द्र में विधानसभा और परिषद् के अतिरिक्त एक संघीय अथवा फैडरल तथा फैडरल पब्लिक सर्विस कमीशन कोर्ट स्थापित करने का फैसला किया गया।

प्रश्न 32.
1935 के एक्ट के अधीन प्रान्तों में चुनाव कब हुए तथा कितने प्रान्तों में कांग्रेस के मन्त्रिमण्डल बने ?
उत्तर-
1935 के एक्ट के अधीन प्रान्तों के चुनाव 1937 में हुए और सात प्रान्तों में कांग्रेस के मन्त्रिमण्डल बने।

प्रश्न 33.
1937 में किन दो प्रान्तों में कांग्रेस की सरकार नहीं बनी थी ?
उत्तर-
सिंध एवं पंजाब में कांग्रेस की सरकार नहीं बनी थी।

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प्रश्न 34.
स्वतन्त्रता से पूर्व भारत की दो साम्प्रदायिक राजनीतिक पार्टियों के नाम बताएं।
उत्तर-
भारत की दो साम्प्रदायिक राजनीतिक पार्टियों के नाम थे : मुस्लिम लीग तथा हिन्दू महासभा।

प्रश्न 35.
पाकिस्तान की मांग कब की गई तथा यह किस सिद्धान्त पर आधारित थी ?
उत्तर-
पाकिस्तान की मांग 1940 में की गई। यह मांग ‘दो राष्ट्रों के सिद्धान्त’ पर आधारित थी।

प्रश्न 36.
‘आल इण्डिया स्टेट्ज़ पीपुल्स कांफ्रैंस’ की स्थापना कब हुई तथा जवाहर लाल नेहरू इसके अध्यक्ष कब चुने गए ?
उत्तर-
आल इण्डिया स्टेज़ पीपुल्स कांफ्रैंस की स्थापना 1927 में हुई। 1939 में जवाहर लाल नेहरू इसके अध्यक्ष चुने गए।

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प्रश्न 37.
दूसरा विश्व युद्ध कब हुआ और कांग्रेसी मन्त्रिमण्डलों ने त्याग-पत्र कब दिए ?
उत्तर-
दूसरा विश्व युद्ध सितम्बर, 1939 में शुरू हुआ था। 1940 में कांग्रेस के सभी मन्त्रिमण्डलों ने त्याग-पत्र दे दिए।

प्रश्न 38.
1942 में जापानियों की कौन-सी विजय के पश्चात् अंग्रेज़ सरकार ने किस मन्त्री को भारत भेजा ?
उत्तर-
1942 में जापानियों ने रंगून पर अधिकार कर लिया तो अंग्रेज़ सरकार ने सर स्टैफर्ड क्रिप्स को भारत भेजा।

प्रश्न 39.
भारत छोड़ो प्रस्ताव कब पास हुआ तथा इस आन्दोलन में कितने लोग मारे गए ? ।
उत्तर-
भारत छोड़ो प्रस्ताव 8 अगस्त, 1942 को बम्बई (मुम्बई) में पास हुआ तथा इस आंदोलन में 10,000 से अधिक लोग मारे गये।

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प्रश्न 40.
पंजाब में कौन-से चार नगरों में ‘भारत-छोड़ो’ आन्दोलन के समय लोगों ने विरोध प्रकट किया ?
उत्तर-
पंजाब में लाहौर, अमृतसर, लुधियाना तथा लायलपुर में लोगों ने विरोध प्रकट किया।

प्रश्न 41.
सुभाषचन्द्र बोस ने कौन-से दो संगठन बनाये थे ?
उत्तर-
सुभाषचन्द्र बोस ने आजाद हिन्द फ़ौज और फारवर्ड ब्लाक नाम के दो संगठन बनाए थे।

प्रश्न 42.
दूसरे विश्व-युद्ध के समाप्त होने पर ‘आज़ाद हिन्द फ़ौज’ के किन तीन अफसरों पर मुकदमा चलाया गया तथा इसकी पैरवी किसने की ? ।
उत्तर-
दूसरे विश्व युद्ध के समाप्त होने पर आज़ाद हिन्द फ़ौज के जनरल शाहनवाज, जनरल गुरदियाल सिंह ढिल्लों और जनरल प्रेम सहगल पर मुकद्दमा चलाया गया। उनके मुकद्दमे की पैरवी पंडित जवाहर लाल ने की।

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प्रश्न 43.
दूसरे विश्व-युद्ध के बाद कौन-सा राजनीतिक दल ब्रिटेन में सत्ता में आया तथा विश्व के कौन-से दो बड़े देश भारत की स्वतन्त्रता के समर्थक थे ?
उत्तर-
दूसरे विश्व युद्ध के बाद लेबर पार्टी सत्ता में आ गई। अमेरिका और रूस भारत की स्वतन्त्रता के समर्थक थे।

प्रश्न 44.
1946 के चुनावों में कौन-से दो मुख्य राजनीतिक दलों ने हिस्सा लिया ?
उत्तर-
1946 के चुनावों में राष्ट्रीय कांग्रेस और मुस्लिम लीग ने हिस्सा लिया।

प्रश्न 45.
ब्रिटिश सरकार ने ‘कैबिनेट मिशन’ को कब भारत भेजा तथा उसको क्या आदेश था ?
उत्तर-
ब्रिटिश सरकार ने ‘कैबिनेट मिशन’ को 1946 में भारत भेजा। इसको आदेश था कि एक ऐसा विधान तैयार किया जाए जिसमें भारत की एकता को बनाये रखते हुए स्थानीय स्वायत्तता को भी स्थान दिया जाए।

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प्रश्न 46.
‘इंटेरियम कैबिनेट’ कब बनाई गई तथा इसके प्रधानमन्त्री कौन थे ? ।
उत्तर-
इंटेरियम कैबिनेट सितम्बर, 1946 में बनाई गई तथा इसके प्रधानमन्त्री पंडित जवाहर लाल नेहरू थे।।

प्रश्न 47.
1946-47 में भारत में कौन-से चार प्रान्तों में साम्प्रदायिक दंगे-फसाद हुए ?
उत्तर-
1946-47 में भारत में बंगाल, बिहार, महाराष्ट्र तथा उत्तर प्रदेश (वर्तमान) में साम्प्रदायिक दंगे-फसाद हुए।

प्रश्न 48.
किस गवर्नर-जनरल ने तथा कब देश के विभाजन की रूपरेखा की घोषणा की ?
उत्तर-
3 जून, 1947 को गवर्नर-जनरल माऊंटबेटन ने देश के विभाजन की रूपरेखा की घोषणा की।

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प्रश्न 49.
विभाजन का प्रभाव भारत के किन चार प्रान्तों पर पड़ा ?
उत्तर-
विभाजन का प्रभाव भारत के बंगाल, पंजाब, सिंध तथा उत्तर-पश्चिमी सीमान्त प्रान्तों पर पड़ा।

प्रश्न 50.
बांटे जाने वाले क्षेत्रों (भारत विभाजन सम्बन्धी) को निश्चित करने के लिए कौन-सा ‘कमीशन’ बनाया गया तथा पंजाब में इसकी अध्यक्षता किसने की ?
उत्तर-
बांटे जाने वाले क्षेत्रों को निश्चित करने के लिए सीमा कमीशन बनाया गया तथा इसकी अध्यक्षता रैडक्लिफ ने की।

प्रश्न 51.
कितनी देशी रियासतों ने तथा किसके प्रयत्नों से भारत में मिलने का निर्णय किया ?
उत्तर-
500 से अधिक रियासतों ने भारत में सम्मिलित होने का निर्णय किया। यह निर्णय सरदार वल्लभभाई पटेल के यत्नों से हुआ।

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प्रश्न 52.
भारत में शामिल होने वाली उत्तर तथा दक्षिण की दो प्रमुख देशी रियासतों के नाम बताएं।
उत्तर-
भारत में शामिल होने वाली उत्तर की प्रमुख देशी रियासत जम्मू-कश्मीर तथा दक्षिण की प्रमुख रियासत हैदराबाद थीं।

प्रश्न 53.
स्वतन्त्र भारत तथा पाकिस्तान के पहले गवर्नर-जनरलों के नाम बताएं।
उत्तर-
स्वतन्त्र भारत के पहले गवर्नर-जनरल लॉर्ड माऊंटबेटन थे। पाकिस्तान के पहले गवर्नर-जनरल का नाम मुहम्मद अली जिन्नाह था।

III. छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
माण्टेग्यू चैम्सफोर्ड विधान की क्या कार्यवाही थी? महात्मा गांधी ने इसका बहिष्कार क्यों किया ?
उत्तर-
माण्टेग्यू चैम्सफोर्ड विधान अशुभ परिस्थितियों में लागू हुआ। इस विधान के अन्तर्गत हुए चुनावों का कांग्रेस ने बहिष्कार किया। परन्तु कुछ भारतीय नेताओं ने स्वराज्य पार्टी की स्थापना की और चुनावों में भाग लिया। उनका विश्वास था कि वे कौंसिलों में रहकर भारतीय हितों की अच्छी प्रकार रक्षा कर सकते हैं। वे अपने उद्देश्य में काफी सीमा तक सफल रहे। उनके प्रयत्नों से 1910 ई का प्रेस एक्ट और 1919 ई० का रौलेट एक्ट रद्द कर दिए गए। सेना में अधिक संख्या में भारतीय अधिकारियों को लेने का निश्चय किया गया। यह भी निर्णय हुआ कि सिविल सर्विस के उच्च पदों पर कम-से-कम आधे अधिकारी भारतीय होने चाहिएं। शिक्षा के क्षेत्र में भी कुछ महत्त्वपूर्ण सुधार हुए।

महात्मा गांधी ने माण्टेग्यू चैम्सफोर्ड विधान का विरोध इसलिए किया क्योंकि इसकी चुनाव व्यवस्था साम्प्रदायिकता पर आधारित थी। दूसरे, भारतीय नेता ‘स्वराज्य’ चाहते थे। परन्तु यह विधान उससे कोसों दूर था।

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प्रश्न 2.
भारत के स्वतन्त्रता आन्दोलन में क्रान्तिकारियों की भूमिका का विवेचन करो।
उत्तर-
स्वतन्त्रता आन्दोलन में क्रान्तिकारियों ने बहुत बड़ी भूमिका निभाई। इनका उदय 20वीं शताब्दी के पहले दशक में हुआ था। इनके मुख्य कार्य-क्षेत्र बंगाल, महाराष्ट्र और पंजाब थे। उन्होंने गुप्त रूप से अपना आपसी सम्पर्क स्थापित किया हुआ था। जब ब्रिटिश सरकार ने अनेक राष्ट्रीय नेताओं को कारावास में डाल दिया तो इन क्रान्तिकारियों ने अपनी गतिविधियों को तेज़ कर दिया । क्रान्तिकारियों ने बदनाम पुलिस अधिकारियों, मैजिस्ट्रेटों तथा सरकारी गवाहों की हत्या की। धन और शस्त्र एकत्र करने के लिए उन्होंने विभिन्न स्थानों पर डाके डाले। इसके अतिरिक्त उन्होंने दो वायसरायों मिन्टो और हार्डिंग की हत्या करने का भी प्रयत्न किया। यद्यपि क्रान्तिकारी भारत से ब्रिटिश साम्राज्य को उखाड़ फेंकने में सफल न हुए, तो भी उनकी वीरता और आत्म-बलिदान से अनेक भारतीयों को प्रेरणा मिली। केवल इतना ही नहीं, क्रान्तिकारियों के कारण जनसाधारण में राष्ट्रीय भावना का विकास हुआ। देश के स्वतन्त्रता आन्दोलन में क्रान्तिकारियों ने जो भूमिका निभाई, उसे कभी भी नहीं भुलाया जा सकता।

प्रश्न 3.
साइमन कमीशन की नियुक्ति किस उद्देश्य से की गई थी ? इसके प्रति महात्मा गांधी का क्या दृष्टिकोण था और इसका क्या परिणाम निकला ?
अथवा
साइमन कमीशन के बारे में विस्तार से लिखो।
उत्तर-
ब्रिटिश सरकार ने 1927 ई० में भारत में साइमन कमीशन भेजने का निश्चय किया। साइमन कमीश्न इस उद्देश्य से नियुक्त किया था कि यह माण्टेग्यू-चैम्सफोर्ड विधान की कारवाई की जांच-पड़ताल के आधार पर रिपोर्ट दे। साथ में भविष्य के लिये किये जाने वाले परिवर्तनों के बारे में भी सुझाव दे। इस कमीशन का कोई भारतीय सदस्य नहीं बनाया गया था। इसलिये भारतीय नेताओं ने इस कमीशन का विरोध किया। देश भर में जुलूस निकाले गये और हड़तालें हुईं। कमीशन को काली झंडियां दिखाई गईं। प्रत्येक स्थान पर ‘साइमन गो बैक’ के नारे लगाये गये। सरकार ने प्रदर्शनकारियों पर सख्ती की। लाहौर में ऐसे ही प्रदर्शन में लाला लाजपतराय भी पुलिस की लाठियों से घायल हुए और उनका देहान्त हो गया। ऐसे विरोध के बावजूद भी कमीशन ने भारत का भ्रमण किया और इंग्लैण्ड की सरकार को अपनी रिपोर्ट पेश कर दी।

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प्रश्न 4.
पूर्ण स्वराज्य की मांग किन परिस्थितियों में की गई और इसके लिए संघर्ष के ढंग में क्या परिवर्तन आया ?
उत्तर-
1928 ई० में साइमन कमीशन भारत आया था । इस कमीशन में कोई भी भारतीय सदस्य नहीं था, इसलिए भारत में प्रत्येक स्थान पर इसका भारी विरोध किया गया। परन्तु कमीशन की रिपोर्ट को भारत के किसी भी राजनीतिक दल ने स्वीकार नहीं किया था। अत: अंग्रेज़ी सरकार ने भारतीयों को सर्वसम्मति से अपना संविधान तैयार करने की चुनौती दी। इस विषय में भारतीयों ने अगस्त, 1928 ई० में नेहरू रिपोर्ट प्रस्तुत की, परन्तु अंग्रेज़ी सरकार ने इस रिपोर्ट को अस्वीकार कर दिया। परिणाम यह हुआ कि भारतीयों की निराशा और अधिक बढ़ गई।

1929 ई० में कांग्रेस का वार्षिक अधिवेशन लाहौर में हुआ। यह अधिवेशन भारत के स्वतन्त्रता संग्राम के इतिहास में विशेष महत्त्व रखता है। पण्डित जवाहर लाल नेहरू इस अधिवेशन के अध्यक्ष चुने गये। गान्धी जी ने ‘पूर्ण स्वराज्य’ का प्रस्ताव पेश किया जो पास कर दिया गया। 31 दिसम्बर की आधी रात को नेहरू जी ने रावी नदी के किनारे स्वतन्त्रता का तिरंगा झण्डा फहराया। यह भी निश्चित हुआ कि हर वर्ष 26 जनवरी को स्वतन्त्रता दिवस मनाया जाये। 26 जनवरी, 1930 ई० को यह दिन सारे भारत में बड़े जोश के साथ मनाया गया और लोगों ने स्वतन्त्रता प्राप्त करने की प्रतिज्ञा की। अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए उन्होंने सरकारी कानूनों तथा संस्थाओं का बहिष्कार करने की नीति अपनाई।

प्रश्न 5.
सविनय अवज्ञा आन्दोलन का वर्णन कीजिए। इसका हमारे स्वतन्त्रता संग्राम पर क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर-
सविनय अवज्ञा आन्दोलन 1930 ई० में चलाया गया। इस आन्दोलन का उद्देश्य सरकारी कानूनों को भंग करके सरकार के विरुद्ध रोष प्रकट करना था। आन्दोलन का आरम्भ गान्धी जी ने अपनी डांडी यात्रा से किया। 12 मार्च,1930 ई० को उन्होंने साबरमती आश्रम से अपनी यात्रा आरम्भ की। मार्ग में अनेक लोग उनके साथ मिल गये। 24 दिन की कठिन यात्रा के बाद वे समुद्र तट पर पहुंचे और उन्होंने समुद्र के पानी से नमक बनाकर नमक कानून भंग किया। इसके बाद देश में लोगों ने सरकारी कानून को भंग करना आरम्भ कर दिया। इस आन्दोलन को दबाने के लिए सरकार ने बड़ी कठोरता से काम लिया। हज़ारों देशभक्तों को जेल में डाल दिया गया। गान्धी जी को भी बन्दी बना लिया गया। यह आन्दोलन फिर भी काफी समय तक चलता रहा। इस प्रकार इस आन्दोलन का हमारे स्वतन्त्रता संग्राम पर गहरा प्रभाव पड़ा। अब देश की जनता इसमें बढ़-चढ़ कर भाग लेने लगी।

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प्रश्न 6.
दूसरे विश्व-युद्ध का भारतीय आन्दोलन पर प्रभाव लिखो।
उत्तर-
दूसरे विश्व युद्ध से पूर्व ‘1935 के एक्ट’ के अनुसार देश में चुनाव हुए थे। कांग्रेस 11 प्रान्तों में से 8 प्रान्तों में अपनी सरकार बनाने मे सफल हुई थी। 1939 में दूसरा महायुद्ध आरम्भ हो गया। अंग्रेज़ी सरकार ने भारतीय नेताओं से पूछे बिना ही जर्मनी के विरुद्ध भारत के युद्ध में शामिल होने की घोषणा कर दी। इसके विरोध में सभी कांग्रेसी मन्त्रिमण्डलों ने त्याग-पत्र दे दिए और गान्धी जी ने ‘सत्याग्रह’ आरम्भ कर दिया। उन्होंने जनता से कहा कि युद्ध के लिए सरकार को सहयोग न दिया जाये। उन्होंने यह नारा लगाया ‘न दो भाई, न दो पाई’। इस सत्याग्रह में लगभग 25 हज़ार लोग जेलों में गए। इतिहास में इसे ‘व्यक्तिगत सत्याग्रह’ कहा जाता है। कांग्रेसी मन्त्रिमण्डलों के त्याग-पत्र देने से मुस्लिम लीग के नेता मिस्टर जिन्नाह बहुत प्रसन्न हुए, क्योंकि उनका विचार था कि कांग्रेसी राज्य में मुसलमानों के साथ न्याय नहीं हुआ है। उन्होंने 22 दिसम्बर,1939 का दिन ‘मुक्ति दिवस’ के रूप में मनाया। मि० जिन्नाह के इस कार्य से कांग्रेस और मुस्लिम लीग में कटुता आ गई। 1940 ई० में मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान की मांग की। इस प्रकार देश के बंटवारे की स्थिति उत्पन्न हो गई।

प्रश्न 7.
क्रिप्स मिशन भारत क्यों आया ? इसका क्या परिणाम हुआ ?
उत्तर-
दूसरे महायुद्ध में इंग्लैण्ड की स्थिति बड़ी खराब हो गई थी । इसलिए उसे भारतीयों के सहयोग की आवश्यकता थी। परन्तु अंग्रेजों की ग़लत नीतियों के कारण भारतीय उनसे नाराज़ थे और उन्हें किसी प्रकार का कोई सहयोग देने को तैयार नहीं थे। इस समस्या को सुलझाने के लिए ही ब्रिटिश सरकार ने सर स्टेफोर्ड क्रिप्स को 1942 ई० में भारत भेजा। उसने भारतीय नेताओं के सामने अपनी योजना रखी। इसमें कहा गया था कि भारतीय दूसरे महायुद्ध में अंग्रेज़ों का साथ दें तो उन्हें युद्ध के बाद ‘अधिराज्य’ दिया जायेगा। गान्धी जी ने इस योजना की तुलना एक ऐसे चैक से की जिस पर बाद की तिथि पड़ी हुई हो और जो ऐसे बैंक के नाम हो जो फेल होने वाला हो। इस प्रकार सभी भारतीय नेताओं ने क्रिप्स की योजना को स्वीकार न किया । क्रिप्स महोदय को निराश होकर वापस लौटना पड़ा।

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प्रश्न 8.
भारत छोड़ो आन्दोलन का वर्णन करो।
उत्तर-
भारत छोड़ो आन्दोलन 1942 ई० में चलाया गया। इस आन्दोलन का नेतृत्व गान्धी जी ने किया। कांग्रेस ने 9 अगस्त, 1942 ई० को आन्दोलन चलाने का प्रस्ताव पास किया और अंग्रेजों को भारत छोड़ देने के लिए ललकारा। सारा देश ‘भारत छोड़ो’ के नारों से गूंज उठा। अंग्रेजों ने इस आन्दोलन को दबाने के लिए बड़ी कठोरता से काम लिया । प्रस्ताव पास होने के दूसरे ही दिन सारे नेता बन्दी बना लिए गए। परिणामस्वरूप जनता भड़क उठी। लोगों ने सरकारी दफ्तरों, रेलवे स्टेशनों तथा डाकघरों को लूटना और जलाना आरम्भ कर दिया। सरकार ने अपनी नीति को और भी कठोर कर दिया और असंख्य लोगों को जेलों में डाल दिया गया। सारा देश एक जेलखाने के समान दिखाई देने लगा। इतने बड़े आन्दोलन के कारण ब्रिटिश सरकार की नींव हिल गई।

प्रश्न 9.
आज़ाद हिन्द फ़ौज (सेना) की स्थापना तथा कार्यों का वर्णन करो।
उत्तर-
आज़ाद हिन्द फ़ौज की स्थापना श्री सुभाषचन्द्र ने की थी। उन्होंने इस फ़ौज की स्थापना जापान और जर्मनी की सहायता से की थी। इस फ़ौज का उद्देश्य भारत को स्वतन्त्र कराना था। सुभाष चन्द्र बोस ने अपने सैनिकों में राष्ट्रीयता की भावनाएं कूट-कूट कर भर दीं। फलस्वरूप इस सेना ने कई स्थानों पर विजय भी प्राप्त की। जर्मनी और जापान की दूसरे महायुद्ध में पराजय होने के कारण यह सेना बिखर गई। अंग्रेजों ने इस सेना के कुछ बड़े-बड़े अफसरों को पकड़ लिया और उन पर राजद्रोह का मुकद्दमा चलाया। परन्तु बाद में जनता के दबाव के कारण अंग्रेज़ी सरकार ने इन अफसरों को छोड़ दिया।

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प्रश्न 10.
देशी रियासतों में राजनीतक जागृति लाने के बारे में क्या प्रयास किये गये ?
उत्तर-
1935 के अधिनियम में एक व्यवस्था यह भी थी कि भारतीय संघ में देशी रियासतें शामिल की जायें । इसलिए भारतीय रियासतों में भी राजनीतिक जागृति लाने का प्रयास आवश्यक हो गया । इस सम्बन्ध में कांग्रेस नेता विशेष रूप से जवाहर लाल नेहरू ने, काफी प्रयत्न किये। दूसरे असहयोग आन्दोलन और सविनय अवज्ञा आन्दोलन का प्रभाव भी देशी रियासतों की जनता पर पड़ा। उनको तो साम्राज्य के सीधे प्रशासित क्षेत्रों में मिलने वाली सुविधायें एवं अधिकार भी प्राप्त नहीं हुए थे। तीसरे 1927 में ‘ऑल इण्डिया स्टेट्ज़ पीपुल्ज़ कान्स’ की स्थापना हो चुकी थी। चौथे कांग्रेस के 1938 के अधिवेशन में की जाने वाली पूर्ण स्वतन्त्रता की व्याख्या में देशी रियासतों को भी शामिल कर लिया था। 1939 में जवाहर लाल नेहरू ‘ऑल इण्डिया स्टेट्ज़ पीपुल्ज़ कान्फ्रेंस’ के अध्यक्ष चुने गए। यद्यपि 1935 का नियम रियासतों पर लागू नहीं हुआ था, तो भी वहां की जनता जागरूक हुई और उन्होंने स्वतन्त्रता के लिए प्रयास तीव्र कर दिए।

प्रश्न 11.
कामागाटामारू की घटना का वर्णन करें।
उत्तर-
कामागाटामारू एक जहाज़ का नाम था। इस जहाज़ को एक पंजाबी वीर नायक बाबा गुरदित्त सिंह ने किराये पर ले लिया। बाबा गुरदित्त सिंह के साथ कुछ और भारतीय भी इस जहाज़ में बैठकर कनाडा पहुंचे। परन्तु उन्हें न तो वहां उतरने दिया गया और न ही वापसी पर किसी नगर हांगकांग, शंघाई, सिंगापुर आदि में उतरने दिया। कलकत्ता(कोलकाता) पहुंचने पर यात्रियों ने जुलूस निकाला। जुलूस के लोगों पर पुलिस ने गोली चला दी जिससे 18 व्यक्ति शहीद हो गए और 25 घायल हो गए। इस घटना से विद्रोहियों को विश्वास हो गया कि राजनीतिक क्रान्ति ला कर ही देश का उद्धार हो सकता है। इसीलिए उन्होंने गदर नाम की पार्टी बनाई और क्रान्तिकारी आन्दोलन आरम्भ किया।

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प्रश्न 12.
गुरुद्वारों से सम्बन्धित सिक्खों तथा अंग्रेजों में बढ़ते रोष पर नोट लिखो।
उत्तर-
अंग्रेज़ गुरुद्वारों के महन्तों को प्रोत्साहन देते थे। यह बात सिक्खों को प्रिय नहीं थी। महंत सेवादार के रूप में गुरुद्वारों में प्रविष्ट हुए थे। परन्तु अंग्रेजी राज्य में वे यहां के स्थायी अधिकारी बन गए। वे गुरुद्वारों की आय को व्यक्तिगत सम्पत्ति समझने लगे। महन्तों को अंग्रेजों का आशीर्वाद प्राप्त था। इसलिए उन्हें विश्वास था कि उनकी गद्दी सुरक्षित है। अतः वे ऐश्वर्यपूर्ण जीवन व्यतीत करने लगे थे। सिक्ख इस बात को सहन नहीं कर सकते थे।

प्रश्न 13.
गुरु के बाग के मोर्चे की घटना का वर्णन करो।
उत्तर-
गुरुद्वारा ‘गुरु का बाग’ अमृतसर से लगभग 13 मील दूर अजनाला तहसील में स्थित है। यह गुरुद्वारा महन्त सुन्दरदास के पास था जो एक चरित्रहीन व्यक्ति था। शिरोमणि कमेटी ने इस गुरुद्वारे को अपने हाथों में लेने के लिए 23 अगस्त, 1921 ई० में दान सिंह के नेतृत्व में एक जत्था भेजा। अंग्रेजों ने इस जत्थे के सदस्यों को बन्दी बना लिया। इस घटना से सिक्ख भड़क उठे। सिक्खों ने कई और जत्थे भेजे जिन के साथ अंग्रेजों ने बहुत बुरा व्यवहार किया। सारे देश के राजनीतिक दलों ने सरकार की इस कार्यवाही की कड़ी निन्दा की।

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प्रश्न 14.
‘जैतों के मोर्चे की घटना पर प्रकाश डालिये।
उत्तर-
जुलाई, 1923 में अंग्रेजों ने नाभा के महाराजा रिपुदमन सिंह को बिना किसी दोष के गद्दी से हटा दिया। शिरोमणि कमेटी तथा अन्य सभी देश-भक्त सिक्खों ने सरकार के इस कार्य की निन्दा की और 21 फरवरी, 1924 को पांच सौ अकालियों का एक जत्था गुरुद्वारा गंगसर (जैतों) के लिए चल पड़ा। नाभा की रियासत में पहुंचने पर उनका सामना अंग्रेज़ी सेना से हुआ। इस संघर्ष में अनेक सिक्ख मारे गए तथा घायल हुए। अन्त में सिक्खों ने सरकार को अपनी मांग स्वीकार करने के लिए विवश कर दिया।

प्रश्न 15.
स्वराज्य पार्टी के उद्देश्य तथा योगदान के बारे में बताएं ।
उत्तर-
असहयोग आन्दोलन के समाप्त होने के पश्चात् पंडित मोती लाल नेहरू और देश-बन्धु चितरंजन दास ने स्वराज्य पार्टी नामक एक नई राजनीतिक पार्टी स्थापित की। इस पार्टी का मुख्य उद्देश्य था-चुनाव में भाग लेना तथा कौंसिलों में रहकर स्वतन्त्रता के लिए संघर्ष करना। इस पार्टी को 1924 के चुनावों में भारी सफलता मिली। इसका इतना प्रभाव हुआ कि केन्द्रीय विधान सभा तथा प्रान्तीय परिषदों के सदस्य कोई ऐसा काम नहीं होने देते थे जो देश के हितों के विपरीत हो। परिणामस्वरूप कई अच्छे काम भी हुए जैसे रौलेट एक्ट और 1910 के प्रेस एक्ट का स्थगित होना। सेना में भी अधिक भारतीय अफसरों को लेने का निर्णय किया गया। सरकार द्वारा नियुक्त ‘ली कमीश्न’ ने सिफारिश की कि सिविल सर्विस के उच्च पदों के लिए कम-से-कम आधे भारतीय अफसरों को नियुक्त किया जाये। कुछ ऐसे कानून भी बनाये गये जिनसे खानों और कारखानों में काम करने वाले मजदूरों को भी काफी लाभ हुआ।

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प्रश्न 16.
गुरुद्वारा सुधार आन्दोलन के बारे में बताएं।
उत्तर-
गुरुद्वारा सुधार लहर 20वीं शताब्दी में अकालियों ने चलाई। इस समय तक गुरुद्वारों का वातावरण बड़ा दूषित हो चुका था। इनमें रहने वाले महन्त बड़े ठाठ-बाठ से रहते थे। उन्होंने गुरुद्वारों को भोग-विलास, शराब तथा जुएबाजी का अड्डा बना रखा था। अंग्रेज़ इन महंतों को संरक्षण देते थे क्योंकि वे सिक्खों और महन्तों में लड़ाई करवा कर अपना उल्लू सीधा करना चाहते थे। सिक्खों के विरोध करने पर भी महंतों के चरित्र में कोई सुधार न आया। वे अपनी इच्छा से अपने ही किसी सम्बन्धी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त कर देते थे। सिक्ख इस बात को सहन न कर सके और उन्होंने गुरुद्वारों का प्रबन्ध अपने हाथों में लेने का निश्चय कर लिया। अन्त में उनके बलिदान रंग लाये और गुरुद्वारों का प्रबन्ध उनके अपने हाथ में आ गया।

प्रश्न 17.
भगत सिंह आदि क्रान्तिकारियों की गतिविधियां बंगाल तथा महाराष्ट्र के आतंकवादियों से किस प्रकार भिन्न थीं ?
उत्तर-
भगत सिंह आदि क्रान्तिकारियों की गतिविधियां बंगाल तथा महाराष्ट्र के आतंकवादियों से काफी भिन्न थीं। भगत सिंह आदि क्रान्तिकारी धर्म के नाम का अथवा धार्मिक प्रतीकों का प्रयोग नहीं करते थे। वे अंग्रेज़ अफसरों की हत्या करने में भी अधिक विश्वास नहीं रखते थे। भगत सिंह और उसके साथी भारत के लोगों में जागृति उत्पन्न करना अति आवश्यक समझते थे। भविष्य के विषय में इनकी विचारधारा तथा रूपरेखा बिल्कुल स्पष्ट थी। वे ब्रिटिश सरकार को स्पष्ट रूप से बता देना चाहते थे कि भारत के नौजवान किसी प्रकार भी विदेशी साम्राज्य को सहन नहीं करेंगे।

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प्रश्न 18.
सविनय अवज्ञा आन्दोलन का कार्यक्रम क्या था ?
उत्तर-
लाहौर के अधिवेशन में निर्णय किया गया कि सरकार से अपनी मांगों को मनवाने के लिए सविनय अवज्ञा आन्दोलन चलाया जाए। इस कार्य का दायित्व महात्मा गान्धी को सौंपा गया। महात्मा गान्धी ने इस आन्दोलन को चलाने का एक अत्यन्त कारगर उपाय ढूंढा। उन्होंने निर्णय लिया कि वह अपने साबरमती आश्रम से पैदल चल कर समुद्र तट पर स्थित डांडी नामक गांव में जाएंगे और स्वयं नमक बनायेंगे। उस समय नमक तैयार करना सरकारी कानून के विरुद्ध था। गान्धी जी का अनुसरण करते हुए शीघ्र ही देश के प्रत्येक भाग में लोगों ने नमक तैयार करना आरम्भ कर दिया। इस आन्दोलन का प्रभाव देश के कोने-कोने में अर्थात् मालाबार के मोपनों तक, असम के नागाओं तक और सीमान्त सूबे के पठानों तक भी पहुंच गया। पठानों में खान अब्दुल गफ्फार खां ने ‘खुदाई खिदमतगारों’ का संगठन किया और वह सीमान्त गान्धी के नाम से प्रसिद्ध हुए।

प्रश्न 19.
किन परिस्थितियों में ब्रिटेन की सरकार ने भारत को स्वतन्त्रता देने का फैसला कर लिया ?
उत्तर-
ब्रिटेन की लेबर पार्टी ने भारत में संवैधानिक असैम्बली बनाने के लिए चुनाव करवाए और 1946 ई० में कैबिनेट मिशन को भारत भेजा। भारत में जवाहर लाल नेहरू की अध्यक्षता में इन्टेरिम कैबिनेट बनाई गई। मुस्लिम लीग ने इस कैबिनेट में शामिल होना तो स्वीकार कर लिया परन्तु संवैधानिक असैम्बली का बहिष्कार किया। मुस्लिम लीग ने डायरेक्ट एक्शन करने का निर्णय किया । इसके परिणामस्वरुप बंगाल तथा बिहार में दंगे हुए जिन में बहुत से हिन्दू तथा मुसलमान मारे गए। इन दंगों के कारण कांग्रेस के नेताओं ने दो राज्य स्थापित करने की बात मान ली। 3 जून, 1947 ई० को गवर्नर-जनरल माऊंटबेटन ने घोषणा की कि अगस्त में भारत और पाकिस्तान दो स्वतन्त्र देश बना दिए जाएंगे।

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प्रश्न 20.
देश का विभाजन किन परिस्थितियों में हुआ तथा इसका पंजाब पर क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर-
मुस्लिम लीग मुसलमानों के लिए एक अलग राष्ट्र चाहती थी। अतः उस ने सीधी कार्यवाही अथवा ‘डायरेक्ट एक्शन’ करने का निर्णय किया। इस के कारण बंगाल तथा बिहार में दंगे फसाद हुए। इन दंगों में बहुत से हिन्दू तथा मुसलमान मारे गए। अब सभी यह चाहते थे कि देश में इस प्रकार के दंगे न हों। अतः कांग्रेस के नेताओं ने देश को दो भागों में बांटने की बात मान ली। अतः सरकार ने 3 जून,1947 ई० को यह घोषणा कर दी कि अगस्त में भारत तथा पाकिस्तान नामक स्वतन्त्र राज्य बना दिए जाएंगे। इस प्रकार देश का विभाजन कर दिया गया। इस विभाजन का सब से बुरा प्रभाव पंजाब पर पड़ा। पंजाब दो भागों में बंट गया। पंजाब का जो भाग पाकिस्तान में गया, वहां हिन्दुओं की हत्या की जाने लगी। इसके परिणामस्वरूप लाखों लोग शरणार्थी के रूप में भारत आए। इन सभी लोगों को बड़ी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा।

IV. निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
1935 ई० के बाद साम्प्रदायिक गतिविधियों में वृद्धि कैसे हुई ?
उत्तर-
1935 ई० के अधिनियम में साम्प्रदायिक विचारधारा को मान्यता दी गई थी। इसके कारण साम्प्रदायिक राजनीति और भी बल पकड़ गई। चुनाव में असफलता से मुस्लिम लीग का आक्रोश बढ़ गया। मुहम्मद अली जिन्नाह के नेतृत्व में मुस्लिम लीग ने यह प्रचार करना आरम्भ कर दिया कि कांग्रेस एक हिन्दू समुदाय है। धीरे-धीरे यह भी कहा जाने लगा कि भारत में वास्तव में दो राष्ट्र हैं, एक हिन्दू और दूसरा मुसलमान और इन दोनों में कोई सांझ नहीं हो सकती। हिन्दुओं की बहुसंख्या होने के कारण साधारण मुसलमानों को भी इस विचार ने आकर्षित किया। इसका एक कारण यह भी था कि हिन्दू महासभा जैसी कुछ राजनीतिक पार्टियां भी स्थापित हो चुकी थीं जोकि भारतीय राष्ट्र के स्थान पर हिन्दू राष्ट्र का नारा लगाती थीं। परिणाम यह निकला कि 1940 ई० में मुस्लिम लीग ने यह प्रस्ताव पास कर दिया कि भारत में एक नहीं दो स्वतन्त्र राज्य स्थापित होन चाहिएं। इस प्रकार मुसलमानों के राज्य के तौर पर पाकिस्तान की मांग अस्तित्व में आई।

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प्रश्न 2.
पंजाब में गुरुद्वारा सुधार के लिए अकालियों द्वारा किए गए संघर्ष पर एक निबन्ध लिखिए।
अथवा
अकाली आन्दोलन किन कारणों से आरम्भ हुआ ? इसके किन्हीं तीन बड़े-बड़े मोर्चों का संक्षेप में वर्णन करो।
अथवा
अकाली आन्दोलन से जुड़े किन्हीं पांच मोर्चों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
गदर आन्दोलन के बाद पंजाब में अकाली आन्दोलन चला। यह 1921 ई० में आरम्भ हुआ और 1925 ई० तक चलता रहा। इसके प्रमुख कारण निम्नलिखित थे-

  • गुरुद्वारों का प्रबन्ध महन्तों के हाथ में था। वे गुरुद्वारों की आय को ऐश्वर्य में उड़ा रहे थे। इस कारण सिक्खों में रोष था।
  • महन्तों को अंग्रेज़ों का आश्रय प्राप्त था। इसके अतिरिक्त अंग्रेजों ने गदर सदस्यों पर बड़े अत्याचार ढाए थे। इनमें से 99% सिक्ख थे। इसलिए सिक्ख अंग्रेजी सरकार के भी विरुद्ध थे।
  • 1919 ई० के कानून से भी सिक्ख असन्तुष्ट थे। इसमें जो कुछ उन्हें दिया गया वह उनकी आशा से बहुत कम था।

प्रमुख घटनाएं अथवा मोर्चे

1. ननकाना साहिब की घटना-ननकाना साहिब का महंत नारायण दास बड़ा ही चरित्रहीन व्यक्ति था। उसे गुरुद्वारे से निकालने के लिए 20 फरवरी, 1921 ई० के दिन एक शान्तिमय जत्था ननकाना साहिब पहुंचा। महंत ने जत्थे के साथ बड़ा बुरा व्यवहार किया। उसके पाले हुए गुण्डों ने जत्थे पर आक्रमण कर दिया। जत्थे के नेता भाई लक्ष्मणदास तथा उसके साथियों को जीवित जला दिया गया।

2. हरिमंदर साहिब के कोष की चाबियों की समस्या-हरिमंदर साहिब के कोष की चाबियां अंग्रेजों के पास थीं। शिरोमणि कमेटी ने उनसे गुरुद्वारे की चाबियां माँगी, परन्तु उन्होंने चाबियां देने से इन्कार कर दिया। अंग्रेजों के इस कार्य के विरुद्ध सिक्खों ने बहुत-से प्रदर्शन किए। अंग्रेजों ने अनेक सिखों को बन्दी बना लिया। कांग्रेस तथा खिलाफत कमेटी ने भी सिक्खों का समर्थन किया। विवश होकर अंग्रेजों ने कोष की चाबियां शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी को सौंप दीं।

3. ‘गुरु का बाग’ का मोर्चा-गुरुद्वारा ‘गुरु का बाग’ अमृतसर से लगभग 13 मील दूर अजनाला तहसील में स्थित है। यह गुरुद्वारा महंत सुन्दरदास के पास था जो एक चरित्रहीन व्यक्ति था। शिरोमणि कमेटी ने इस गुरुद्वारे को अपने हाथों में लेने के लिए 23 अगस्त, 1921 ई० को दान सिंह के नेतृत्व में एक जत्था भेजा। अंग्रेजों ने इस जत्थे के सदस्यों को बन्दी बना लिया। इस घटना से सिक्ख और भी भड़क उठे। उन्होंने और अधिक संख्या में जत्थे भेजने आरम्भ कर दिए। इन जत्थों के साथ बुरा व्यवहार किया गया। अंत में सिक्खों ने यह मोर्चा शान्तिपूर्ण ढंग से जीत लिया।

4. पंजा साहिब की घटना-‘गुरु का बाग’ गुरुद्वारा आन्दोलन में भाग लेने वाले एक जत्थे को अंग्रेज़ों ने रेलगाड़ी द्वारा अटक जेल में भेजने का निर्णय किया। पंजा साहिब के सिक्खों ने सरकार से प्रार्थना की कि रेलगाड़ी को पंजा साहिब में रोका जाए ताकि वे जत्थे के सदस्यों को भोजन दे सकें। परन्तु सरकार ने जब सिक्खों की इस प्रार्थना को स्वीकार न किया तो भाई कर्म सिंह तथा भाई प्रताप सिंह नामक दो सिक्ख रेलगाड़ी के आगे लेट गए और शहीदी को प्राप्त हुए। यह घटना 30 अक्तूबर, 1922 ई० की है।

5. जैतों का मोर्चा-जुलाई 1923 ई० में अंग्रेजों ने नाभा के महाराज रिपुदमन सिंह को बिना किसी दोष के गद्दी से हटा दिया। शिरोमणि अकाली कमेटी तथा अन्य सभी देश-भक्त सिक्खों ने सरकार के विरुद्ध गुरुद्वारा गंगसर (जैतों) में बड़ा भारी जलसा करने का निर्णय किया। 21 फरवरी, 1924 ई० को पाँच सौ अकालियों का एक जत्था गुरुद्वारा गंगसर के लिए चल पड़ा। नाभा की रियासत में पहुंचने पर उसका सामना अंग्रेजी सेना से हुआ। सिक्ख निहत्थे थे। फलस्वरूप 100 से भी अधिक सिक्ख शहीदी को प्राप्त हुए और 200 के लगभग सिक्ख घायल हुए।

6. सिक्ख गुरुद्वारा अधिनियम-1925 ई० में पंजाब सरकार ने सिक्ख गुरुद्वारा कानून पास कर दिया। इसके अनुसार गुरुद्वारों का प्रबन्ध और उनकी देखभाल सिक्खों के हाथ में आ गई। धीरे-धीरे बन्दी सिक्खों को मुक्त कर दिया गया।

इस प्रकार अकाली आन्दोलन के अन्तर्गत सिक्खों ने महान् बलिदान दिए। एक ओर तो उन्होंने गुरुद्वारे जैसे पवित्र स्थानों से अंग्रेजों के पिट्ठ महंतों को बाहर निकाला और दूसरी ओर सरकार के विरुद्ध एक ऐसी अग्नि भड़काई जो स्वतन्त्रता प्राप्ति तक जलती रही।

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प्रश्न 2.
सविनय अवज्ञा आन्दोलन के विषय में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर-
सविनय अवज्ञा आन्दोलन का विस्तृत वर्णन इस प्रकार है
कारण-

  • 1928 ई० में ‘साइमन कमीशन’ भारत आया। इस कमीशन ने भारतीयों के विरोध के बावजूद भी अपनी रिपोर्ट प्रकाशित कर दी। इससे भारतीयों में असन्तोष फैल गया।
  • सरकार ने नेहरू रिपोर्ट की शर्तों को स्वीकार न किया।
  • बारदौली के किसान आन्दोलन की सफलता ने गाँधी जी को सरकार के विरुद्ध आन्दोलन चलाने के लिए प्रेरित किया।
  • गाँधी जी ने सरकार के सामने कुछ शर्ते रखीं। परन्तु वायसराय ने इन शर्तों को स्वीकार न किया। इन परिस्थितियों में गाँधी जी ने सरकार के विरुद्ध सविनय अवज्ञा आन्दोलन आरम्भ कर दिया।

आन्दोलन की प्रगति (1930-1931 ई०)-सविनय अवज्ञा आन्दोलन गाँधी जी की डाँडी यात्रा से आरम्भ हुआ। उन्होंने साबरमती आश्रम से पैदल यात्रा आरम्भ की और वह डाँडी के निकट समुद्र के तट पर पहुँचे। 6 अप्रैल, 1930 को वहाँ उन्होंने समुद्र के पानी से नमक बनाया और नमक कानून भंग किया। वहीं से यह आन्दोलन सारे देश में फैल गया। अनेक स्थानों पर लोगों ने सरकारी कानूनों का उल्लंघन किया। सरकार ने इस आन्दोलन को दबाने के लिए दमन-चक्र आरम्भ कर दिया। गांधी जी सहित अनेक आन्दोलनकारियों को जेलों में बन्द कर दिया गया। परन्तु आन्दोलन की गति में कोई अन्तर न आया। इसी बीच गांधी जी और तत्कालीन वायसराय में एक समझौता हुआ। समझौते के अनुसार गाँधी जी ने दूसरी गोलमेज़ परिषद् में भाग लेना तथा आन्दोलन बन्द करना स्वीकार कर लिया। इस तरह 1931 ई० में सविनय अवज्ञा आन्दोलन कुछ समय के लिए रुक गया।

आन्दोलन की प्रगति ( 1930-33) तथा अन्त-1931 ई० में लन्दन में दूसरी गोलमेज परिषद् बुलाई गई। इसमें कांग्रेस की ओर से गाँधी जी ने भाग लिया, परन्तु इस परिषद् में भी भारतीय प्रशासन के लिए कोई उचित हल न निकल सका। गाँधी जी निराश होकर लौट आये और उन्होंने अपना आन्दोलन फिर से आरम्भ कर दिया। सरकार ने आन्दोलन का दमन करने के लिए आन्दोलनकारियों पर फिर से अत्याचार करने आरम्भ कर दिये। सरकार के इन अत्याचारों से आन्दोलन की गति कुछ धीमी पड़ गई। अन्त में कांग्रेस ने 1933 ई० में इस आन्दोलन को बन्द कर दिया।

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प्रश्न 3.
भारत छोड़ो आन्दोलन का विवरण दीजिए।
अथवा
सविनय अवज्ञा आन्दोलन के आरम्भ होने के कारणों तथा महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
आन्दोलन प्रारम्भ होने का कारण-भारत छोड़ो आन्दोलन 9 अगस्त, 1942 ई० को आरम्भ हुआ। इसके आरम्भ होने का कारण यह था कि दूसरे महायुद्ध में जापान ने बर्मा पर अधिकार कर लिया था। इससे यह भय उत्पन्न होने लगा कि जापान अंग्रेजों को हानि पहुँचाने के लिये भारत पर भी आक्रमण करेगा। इस समय कांग्रेस ने गाँधी जी के नेतृत्व में भारत छोड़ो’ प्रस्ताव पास किया। यह प्रस्ताव इसलिए पास किया गया क्योंकि महात्मा गाँधी तथा अन्य नेताओं का यह विचार था कि यदि अंग्रेज़ भारत छोड़ जायें तो जापान भारत पर आक्रमण नहीं करेगा। प्रस्ताव पास करने के अतिरिक्त कांग्रेस की बैठक में यह निश्चय किया गया कि भारतीय पूर्ण स्वतन्त्रता से कम कोई चीज़ स्वीकार नहीं करेंगे।

आन्दोलन का आरम्भ तथा प्रगति-9 अगस्त, 1942 ई० को यह आन्दोलन आरम्भ हो गया जिसका नेतृत्व गाँधी जी ने किया। उन्होंने अंग्रेजों को भारत छोड़ देने के लिए ललकारा। सारा देश भारत छोड़ो’ के नारों से गूंज उठा। अंग्रेजों ने इस आन्दोलन को दबाने के लिए बड़ी कठोरता से काम लिया। प्रस्ताव पास होने के दूसरे ही दिन सारे नेता बन्दी बना लिये गये। परिणामस्वरूप जनता भी भड़क उठी। लोगों ने सरकारी दफ्तरों, रेलवे स्टेशनों तथा डाकघरों को लूटना और जलाना आरम्भ कर दिया। सरकार ने अपनी नीति को और भी कठोर कर दिया और असंख्य लोगों को जेलों में डाल दिया गया।.सारा देश एक जेलखाने के समान दिखाई देने लगा।

फरवरी 1943 ई० तक ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ बड़ी सफलता से चलता रहा। परन्तु कुछ समय पश्चात् सरकार की दमन नीति के कारण यह आन्दोलन शिथिल पड़ गया और धीरे-धीरे यह बिल्कुल समाप्त हो गया।

आन्दोलन का महत्त्व-‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ के कारण ब्रिटिश सरकार यह बात भली-भान्ति जान गई कि जनता में असन्तोष कितना व्यापक है। सरकार समझ गई कि भारतीय जनता अंग्रेज़ी शासन से मुक्ति चाहती है और वह इसे प्राप्त करके ही रहेगी। सरकार ने निःसन्देह आन्दोलन को कुचल दिया, परन्तु वह स्वतन्त्रता की भावनाओं को न कुचल सकी। परिणामस्वरूप आन्दोलन की समाप्ति के तीन वर्षों बाद ही उन्हें भारत को स्वतन्त्र कर देना पड़ा।

प्रश्न 4.
स्वतन्त्रता आन्दोलन में गाँधी के योगदान की विवेचना कीजिए।
अथवा
महात्मा गाँधी के आरम्भिक जीवन तथा कार्यों का वर्णन करो।
अथवा
गांधी जी द्वारा चलाए गए तीन प्रमुख जन-आन्दोलनों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर-
आधुनिक आरम्भिक भारत के इतिहास में महात्मा गाँधी को सबसे ऊँचा स्थान प्राप्त है। भारत को स्वतन्त्र कराने में सबसे अधिक योगदान उन्हीं का रहा। उनके आगमन से ही राष्ट्रीय आन्दोलन को ऐसा मार्ग मिला जो सीधा स्वतन्त्रता की मंज़िल पर ले गया। उन्होंने अहिंसा और सत्याग्रह के द्वारा शक्तिशाली अंग्रेजी साम्राज्य से टक्कर ली और अंग्रेजों को भारत छोड़ने के लिए विवश कर दिया। भारत के इस महान् स्वतन्त्रता सेनानी के जीवन तथा कार्यों का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है जन्म तथा शिक्षा-महात्मा गाँधी जी का बचपन का नाम मोहनदास था। उनका जन्म 2 अक्तूबर, 1869 ई० को काठियावाड़ में पोरबन्दर नामक स्थान पर हुआ। इनके पिता का नाम कर्मचन्द गांधी था जो पोरबन्दर के दीवान थे। गाँधी जी ने अपनी आरम्भिक शिक्षा भारत में ही प्राप्त की। उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए उन्हें इंग्लैण्ड भेजा गया। वहाँ से उन्होंने वकालत पास की और फिर लौट आये।

राजनीतिक जीवन-गाँधी जी के राजनीतिक जीवन का आरम्भ दक्षिणी अफ्रीका से हुआ। उन्होंने इंग्लैण्ड से आने के बाद कुछ समय तक भारत में वकील के रूप में कार्य किया। परन्तु फिर वह दक्षिण अफ्रीका चले गए।

गाँधी जी दक्षिण अफ्रीका में-गाँधी जी जिस समय दक्षिणी अफ्रीका पहुँचे, उस समय वहाँ भारतीयों की दशा बड़ी बुरी थी। वहाँ की गोरी सरकार भारतीयों के साथ बहुत बुरा व्यवहार करती थी। गाँधी जी इस बात को सहन न कर सके। उन्होंने वहाँ की सरकार के विरुद्ध सत्याग्रह आन्दोलन चलाया और भारतीयों को उनके अधिकार दिलवाये।

गाँधी जी भारत में-1914 ई० गाँधी जी दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटे। उस समय प्रथम विश्व-युद्ध छिड़ा हुआ था। अंग्रेजी सरकार इस युद्ध में उलझी हुई थी। उसे धन और जन की काफी आवश्यकता थी। अत: गाँधी जी ने भारतीयों से अपील की कि वे अंग्रेज़ों को सहयोग दें। वह अंग्रेजी सरकार की सहायता करके उसका मन जीत लेना चाहते थे। उनका विश्वास था कि अंग्रेजी सरकार युद्ध जीतने के बाद भारत को स्वतन्त्र कर देगी, परन्तु अंग्रेज़ी सरकार ने युद्ध में विजय पाने के बाद भारत को कुछ न दिया। इसके विपरीत उन्होंने भारत में रौलेट एक्ट लागू कर दिया। इस काले कानून के कारण गाँधी जी को बड़ी ठेस पहुंची और उन्होंने अंग्रेज़ी सरकार के विरुद्ध असहयोग आन्दोलन चलाने का निश्चय कर लिया।

असहयोग आन्दोलन-1920 ई० में गाँधी जी ने असहयोग आन्दोलन आरम्भ कर दिया। जनता ने गाँधी जी का पूरापूरा साथ दिया। सरकार को गाँधी जी के इस आन्दोलन के सामने झुकना पड़ा। परन्तु कुछ हिंसक घटनाएँ हो जाने के कारण गाँधी जी को अपना आन्दोलन वापस लेना पड़ा।

सविनय अवज्ञा आन्दोलन-1930 ई० में गाँधी जी ने सविनय अवज्ञा आन्दोलन आरम्भ कर दिया। उन्होंने डांडी यात्रा की और नमक के कानून को भंग कर दिया। सरकार घबरा गई। उसने भारतवासियों को नमक बनाने का अधिकार दे दिया। 1935 ई० में सरकार ने एक महत्त्वपूर्ण एक्ट भी पास किया।

भारत छोड़ो आन्दोलन-गाँधी जी का सबसे बड़ा उद्देश्य भारत को स्वतन्त्र कराना था। इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए उन्होंने 1942 ई० में भारत छोड़ो आन्दोलन चलाया। भारत के लाखों नर-नारी गाँधी जी के साथ हो गये। इतने विशाल जनआन्दोलन से अंग्रेजी सरकार घबरा गई और उसने भारत छोड़ने का निश्चय कर लिया। आखिर 15 अगस्त, 1947 ई० को भारत स्वतन्त्र हुआ। इस स्वतन्त्रता का वास्तविक श्रेय गाँधी जी को ही जाता है।

अन्य कार्य-गाँधी जी ने भारतवासियों के स्तर को ऊँचा उठाने के लिए अनेक काम किये। भारत से गरीबी दूर करने के लिए उन्होंने लोगों को खादी पहनने का सन्देश दिया। अछूतों के उद्धार के लिए गाँधी जी ने उन्हें ‘हरिजन’ का नाम दिया। देश में साम्प्रदायिक दंगों को समाप्त करने के लिए गाँधी जी ने गाँव-गाँव में घूमकर लोगों को भाईचारे का सन्देश दिया।

देहान्त-30 जनवरी, 1948 ई० की संध्या को गाँधी जी को एक युवक ने गोली का निशाना बना दिया। उन्होंने तीन बार ‘हे राम’ कहा और अपने प्राण त्याग दिए। उनकी मृत्यु पर सारे देश में शोक छा गया। भारतवासी गाँधी जी की सेवाओं को नहीं भुला सकते। आज भी उन्हें ‘राष्ट्रपिता’ के नाम से याद किया जाता है।

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प्रश्न 5.
1935 के भारत सरकार के अधिनियम की क्या मुख्य विशेषताएं थीं ? इसके किन प्रावधानों को नहीं लागू किया गया और क्यों ?
अथवा
1935 के भारत सरकार अधिनियम द्वारा किए गए केंद्रीय अथवा प्रांतीय परिवर्तनों की जानकारी दीजिए।
उत्तर-
1935 के भारत सरकार अधिनियम की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित थीं। केन्द्रीय सरकार में परिवर्तन-

1. केन्द्र में एक संघात्मक सरकार की स्थापना की गई। इस संघ में प्रान्तों का सम्मिलित होना आवश्यक था, जबकि रियासतों का सम्मिलित होना उनकी इच्छा पर निर्भर था।

2. संघीय विधान मण्डल के ‘राज्य परिषद्’ और ‘संघीय सभा’ दो सदन बनाये गये। राज्य परिषद् में प्रान्तों के सदस्यों की संख्या 156 और रियासतों की संख्या 140 निश्चित की गई। संघीय सभा में प्रान्तों के सदस्यों की संख्या 250 और रियासतों की संख्या 125 निश्चित की गई।

3. यह भी निश्चित किया गया कि प्रान्तों के प्रतिनिधि जनता द्वारा चुने जायें और रियासतों के प्रतिनिधि राजाओं के द्वारा मनोनीत हों।

4. केन्द्र के विषयों को रक्षित (Reserved) और प्रदत्त (Transferred) दो भागों में बाँटकर दोहरा शासन स्थापित किया गया। रक्षित विषय गवर्नर-जनरल के अधीन थे, जबकि प्रदत्त विषय मन्त्रियों को सौंपे गये। मन्त्रियों को विधान मण्डल के सामने उत्तरदायी ठहराया गया।

5. विधान मण्डल को बजट के 20 प्रतिशत भाग पर मत देने का अधिकार दिया गया।

6. गवर्नर-जनरल को कुछ विशेषाधिकार दिये गये।

7. जब तक भारतीय संघात्मक सरकार की स्थापना नहीं हो जाती तब तक केन्द्र का शासन 1919 ई० के एक्ट में किये गये संशोधन के अनुसार चलाया जायेगा।

प्रान्तीय सरकारों में परिवर्तन-

  • बर्मा को भारत से अलग कर दिया गया। इसके अतिरिक्त उड़ीसा और सिन्ध के दो नये प्रान्त बनाये गये।
  • बंगाल, बिहार, असम, बम्बई (मुम्बई), मद्रास (चेन्नई) और उत्तर प्रदेश में विधानमण्डल में दो सदनों की व्यवस्था की गई और शेष प्रान्तों में एक ही सदन बनाया गया। उच्च सदन का नाम विधान परिषद् और निम्न सदन का विधान सभा रखा गया।
  • विधान परिषद् के कुछ सदस्य गवर्नर द्वारा मनोनीत किये जाते थे और विधान सभा के सदस्यों का चुनाव जनता द्वारा किया जाता था।
  • प्रान्तों में मत देने का अधिकार स्त्रियों, परिगणित जातियों और मजदूरों को भी दे दिया गया।
  • प्रान्तों से दोहरे शासन को सदा के लिए समाप्त कर दिया और उनके स्थान पर स्वायत्त शासन (Autonomy) की स्थापना की गई। सभी प्रान्तीय विषय एक मन्त्रिमण्डल को सौंप दिये गये। मन्त्रियों का चुनाव बहुमत प्राप्त राजनीतिक दल में से किया जाता था। प्रधानमन्त्री शासन विभाग का कार्य मन्त्रियों में बाँट देता था। मन्त्रिमण्डल विधानमण्डल के सामने उत्तरदायी था।
  • प्रान्तों के गवर्नरों को विशेष अधिकार दिये गये।
  • प्रान्त में विशेष परिस्थिति उत्पन्न होने पर गवर्नर विधान सभा को भंग करके प्रान्त का शासन अपने हाथ में ले सकता था।
  • गवर्नरों को अध्यादेश तथा गवर्नरी एक्ट जारी करने का भी अधिकार था।

इण्डिया कौंसिल में परिवर्तन-इण्डिया कौंसिल भंग कर दी गई। भारतमन्त्री को कम-से-कम तीन और अधिक-सेअधिक 6 सलाहकारों को नियुक्त करने का अधिकार दिया गया।

अन्य परिवर्तन-

  • उच्च न्यायालयों के विरुद्ध अपील सुनने के लिए दिल्ली में फैडरल कोर्ट (Federal Court) की स्थापना की गई।
  • शासन के विषयों को केन्द्रीय और प्रान्तीय विषयों में बाँट दिया गया और कुछ विषयों की एक साँझी सूची तैयार की गई। वे प्रावधान जिन्हें लागू नहीं किया गया-1935 के अधिनियम के संघीय पक्ष को कभी लागू नहीं किया गया। परन्तु प्रान्तीय पक्ष को शीघ्र लागू कर दिया गया। प्रान्तों में हुए चुनावों ने यह सिद्ध कर दिया कि देश की अधिकांश जनता कांग्रेस के साथ है। क्योंकि कांग्रेस ने 1935 के अधिनियम का कड़ा विरोध किया था, इसलिए सरकार इस अधिनियम के संघीय पक्ष को लागू करने का साहस न कर सकी।

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प्रश्न 6.
भारत को दो भागों में क्यों बांटा गया ? इसके लिए उत्तरदायी किन्हीं पांच कारणों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
भारत 15 अगस्त, 1947 ई० को स्वतन्त्र हुआ। स्वतन्त्रता के समय भारत को दो भागों में बांट दिया गया-भारत तथा पाकिस्तान। यह विभाजन निम्नलिखित कारणों से हुआ-

1. ‘फूट डालो और राज्य करो’ की नीति-1857 ई० के विद्रोह के पश्चात् अंग्रेजों ने भारत में ‘फूट डालो और राज्य करो’ की नीति अपना ली। उन्होंने भारत के विभिन्न वर्गों को एक-दूसरे के प्रति खूब लड़ाया। उन्होंने हिन्दुओं और मुसलमानों दोनों को एक-दूसरे के विरुद्ध भड़काया। इसका परिणाम यह हुआ कि वे एक-दूसरे से घृणा करने लगे।

2. मुस्लिम लीग के प्रयत्न-1906 ई० में मुसलमानों ने मुस्लिम लीग नामक संस्था की स्थापना भी कर ली। फलस्वरूप हिन्दू-मुस्लिम भेदभाव बढ़ने लगा। मुस्लिम लीग ने मुस्लिम समाज में साम्प्रदायिकता फैलानी आरम्भ कर दी। 1940 ई० तक हिन्दू-मुस्लिम भेदभाव इतने बढ़ गए कि मुसलमानों ने अपने लाहौर प्रस्ताव में पाकिस्तान की मांग की।

3. कांग्रेस की कमजोर नीति-मुस्लिम लीग की मांगें दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही थीं और कांग्रेस इन्हें स्वीकार करती रही। 1916 ई० के लखनऊ समझौते के अनुसार कांग्रेस ने साम्प्रदायिक चुनाव प्रणाली को स्वीकार कर लिया। कांग्रेस की इस . कमज़ोर नीति का लाभ उठाते हुए मुसलमानों ने देश के विभाजन की मांग करनी आरम्भ कर दी।

4. साम्प्रदायिक दंगे-पाकिस्तान की मांग मनवाने के लिए मुस्लिम लीग ने ‘सीधी कार्यवाही’ आरम्भ कर दी और सारे देश में साम्प्रदायिक दंगे होने लगे। इन घटनाओं को केवल भारत विभाजन द्वारा ही रोका जा सकता था।

5. अन्तरिम सरकार की असफलता-1946 में बनी अन्तरिम सरकार में कांग्रेस और मुस्लिम लीग को साथ-साथ कार्य करने का अवसर मिला, परन्तु लीग कांग्रेस के प्रत्येक कार्य में कोई-न-कोई रोड़ा अटका देती थी। परिणामस्वरूप अन्तरिम सरकार असफल रही। इससे यह स्पष्ट हो गया कि हिन्दू और मुसलमान एक होकर शासन नहीं चला सकते।

6. इंग्लैण्ड द्वारा भारत छोड़ने की घोषणा-20 फरवरी, 1947 को इंग्लैण्ड के प्रधानमन्त्री एटली ने जून, 1948 ई० तक भारत को छोड़ देने की घोषणा की। घोषणा में यह भी कहा गया कि अंग्रेज़ केवल उसी दशा में भारत छोड़ेंगे जब मुस्लिम लीग और कांग्रेस में समझौता हो जाएगा, परन्तु मुस्लिम लीग पाकिस्तान प्राप्त किए बिना किसी समझौते पर तैयार न हुई। फलस्वरूप ब्रिटिश सरकार ने भारत विभाजन की योजना बनानी आरम्भ कर दी।

7. भारत का विभाजन-भारत विभाजन के उद्देश्य से लॉर्ड माऊंटबेटन को भारत का वायसराय बनाकर भारत भेजा गया। उन्होंने अपनी सूझ-बूझ से एक ही मास में नेहरू और पटेल को विभाजन के लिए तैयार कर लिया। आखिर 1947 में भारत को दो भागों में बांट दिया गया।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 9 सामाजिक संरचना

Punjab State Board PSEB 11th Class Sociology Book Solutions Chapter 9 सामाजिक संरचना Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Sociology Chapter 9 सामाजिक संरचना

पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न (Textual Questions)

I. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 1-15 शब्दों में दीजिए :

प्रश्न 1.
सामाजिक संरचना की अवधारणा का क्या अर्थ है ?
उत्तर-
समाज के अलग-अलग अन्तर्सम्बन्धित भागों के व्यवस्थित रूप को सामाजिक संरचना कहा जाता है।

प्रश्न 2.
वह कौन-सा पहला समाजशास्त्री है जिसने सबसे पहले सामाजिक संरचना शब्द का प्रयोग किया ?
उत्तर-
हरबर्ट स्पैंसर (Herbert Spencer) ने सबसे पहले शब्द सामाजिक संरचना का प्रयोग किया।

प्रश्न 3.
शब्द संरचना कहाँ से लिया गया है ?
उत्तर-
संरचना (Structure) शब्द लातिनी भाषा के शब्द ‘Staruer’ से निकला है जिसका अर्थ है ‘इमारत’।

प्रश्न 4.
सामाजिक संरचना के सामाजिक तत्त्वों के नाम लिखो।
उत्तर-
प्रस्थिति तथा भूमिका सामाजिक संरचना के महत्त्वपूर्ण तत्त्व हैं।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 9 सामाजिक संरचना

प्रश्न 5.
‘समाजशास्त्र के सिद्धान्त’ पुस्तक किसने लिखी है ?
उत्तर-
पुस्तक ‘The Principal of Sociology’ हरबर्ट स्पैंसर ने लिखी थी।

प्रश्न 6.
प्रस्थिति क्या है ?
उत्तर-
प्रस्थिति वह रूतबा है जो व्यक्ति को समाज में रहते हुए मिलता है।

प्रश्न 7.
सामाजिक प्रस्थिति के दो प्रकारों के नाम बताओ।
उत्तर-
प्रदत्त प्रस्थिति तथा अर्जित प्रस्थिति दो प्रकार की सामाजिक परिस्थितियां हैं।

प्रश्न 8.
आरोपित तथा अर्जित प्रस्थिति की अवधारणा किसने दी है ?
उत्तर-
यह शब्द राल्फ लिंटन (Ralph Linton) ने दिए थे।

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प्रश्न 9.
आरोपित प्रस्थिति के कुछ उदाहरण लिखो।
उत्तर-
पिता की परिस्थिति तथा ब्राह्मण की परिस्थिति प्रदत्त परिस्थिति की दो उदाहरण हैं।

प्रश्न 10.
अर्जित प्रस्थिति के कुछ उदाहरण लिखो।
उत्तर-
डिप्टी कमिश्नर तथा प्रधानमन्त्री की परिस्थिति अर्जित परिस्थिति है।

प्रश्न 11.
भूमिका को परिभाषित करो।।
उत्तर-
लुण्डबर्ग के अनुसार, भूमिका व्यक्ति का किसी समूह या अवस्था में आशा किया गया व्यावहारिक तरीका है।

प्रश्न 12.
भूमिका की कोई दो विशेषताओं को बताइए।
उत्तर-

  1. भूमिका प्रस्थिति अथवा पद का कार्यात्मक पक्ष होती है।
  2. भूमिका को सामाजिक मान्यता प्राप्त होती है।

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II. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 30-35 शब्दों में दीजिए :

प्रश्न 1.
सामाजिक संरचना को परिभाषित कीजिए।
उत्तर-
टालक्ट पारसन्ज़ (Talcott Parsons) के अनुसार, सामाजिक संरचना शब्द को परस्पर सम्बन्धित संस्थाओं, एजेन्सियों तथा सामाजिक प्रतिमानों व साथ ही समूह में प्रत्येक सदस्य द्वारा ग्रहण किए गए पदों तथा परिस्थितियों की विशेष क्रमबद्धता के लिए प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न 2.
प्रस्थिति तथा भूमिकाओं के मध्य दो समानताओं को लिखिए।
उत्तर-

  1. प्रस्थिति तथा भूमिका एक ही सिक्के के दो पहलू हैं जिन्हें कभी भी अलग नहीं किया जा सकता।
  2. प्रस्थिति समाज में व्यक्ति की स्थिति होती है तथा भूमिका प्रस्थिति का व्यावहारिक पक्ष है।
  3.  दोनों प्रस्थिति तथा भूमिका परिवर्तनशील है तथा बदलती रहती हैं।

प्रश्न 3.
परिवार की संरचना का चित्रणात्मक वर्णन करो।
उत्तर-
PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 9 सामाजिक संरचना 1

प्रश्न 4.
आरोपित तथा अर्जित प्रस्थिति के मध्य अंतर बताइए।
उत्तर-

  • आरोपित प्रस्थिति व्यक्तियों को जन्म के अनुसार प्राप्त होती है जबकि अर्जित प्रस्थिति हमेशा व्यक्ति अपने परिश्रम से प्राप्त करता है।
  • आरोपित प्रस्थितियों के कई आधार होते हैं जबकि अर्जित प्रस्थिति का आधार केवल व्यक्ति का परिश्रम होता है।

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प्रश्न 5.
किस प्रकार भूमिका एक सीखा हुआ व्यवहार है ?
उत्तर-
यह सब सत्य है कि भूमिकाएं सीखा हुआ व्यवहार है क्योंकि भूमिकाएं व्यवहारों का वह गुच्छा है जिन्हें या तो समाजीकरण या फिर निरीक्षण से सीखा जाता है। इसके साथ व्यक्ति सीखे हुए व्यवहार को जो अर्थ देता है, वह ही सामाजिक भूमिका है।

प्रश्न 6.
प्रस्थिति तथा भूमिका को संक्षिप्त रूप में लिखो।
उत्तर-
देखें पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न I (6, 11)

प्रश्न 7.
प्रस्थिति क्या है ?
उत्तर-
व्यक्ति की समूह में पाई गई स्थिति को सामाजिक प्रस्थिति का नाम दिया जाता है। यह स्थिति वह है जो व्यक्ति को अपने लिंग, अंतर, आयु, जन्म, कार्य इत्यादि की पहचान विशेषाधिकारों के संकेतों तथा कार्य के प्रतिमानों द्वारा प्राप्त होती है।

प्रश्न 8.
भूमिका प्रतिमान (Role Set) क्या है ?
उत्तर-
एक व्यक्ति को समाज में रहते हुए कई पद या प्रस्थितियां प्राप्त होती हैं। इन सभी पदों से सम्बन्धित भूमिकाओं के एकत्र को भूमिका सैट कहा जाता है। उदाहरण के लिए किसी समूह के 11वीं कक्षा के विद्यार्थी को बहुत से व्यक्तियों से मिलना पड़ता है तथा वह प्रत्येक से अलग ढंग से बात करता है। प्रत्येक से सम्बन्धित अलगअलग भूमिकाओं के एकत्र को भूमिका सैट कहते हैं।

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प्रश्न 9.
भूमिका संघर्ष से आप क्या समझते हैं ? उदाहरण सहित बताओ।
उत्तर-
प्रत्येक व्यक्ति के पास बहुत से पद होते हैं तथा प्रत्येक पद के साथ अलग-अलग भूमिका जुड़ी होती है। व्यक्ति को इन भूमिकाओं को निभाना पड़ता है। जब वह इन सभी भूमिकाओं से तालमेल नहीं बिठा पाता तथा सभी को ठीक ढंग से नहीं निभा सकता तो इसे भूमिका संघर्ष कहा जाता है।

III. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 75-85 शब्दों में दीजिए :

प्रश्न 1.
सामाजिक संरचना की तीन विशेषताएं बताओ।
उत्तर-
1. प्रत्येक समाज की संरचना अलग-अलग होती है क्योंकि समाज में पाए जाने वाले अंगों का सामाजिक जीवन में अलग-अलग ढंग होता है। प्रत्येक समाज के संस्थागत नियम अलग-अलग होते हैं जिस कारण संरचना अलग होती है।

2. सामाजिक संरचना अमूर्त होती है क्योंकि इसका निर्माण जिन इकाइयों से होता है वह सब अमूर्त होती है। इनका कोई ठोस रूप नहीं होता। हम इन्हें केवल महसूस कर सकते हैं जिस कारण यह अमूर्त होती है।

3. सामाजिक संरचना में संस्थाओं, सभाओं, परिमापों को एक विशेष व्यवस्था से बताने की कोई योजना नहीं बनाई जाती बल्कि इसका विकास सामाजिक अन्तक्रियाओं के परिणामस्वरूप होता है।

प्रश्न 2.
आरोपित प्रस्थिति क्या है ? इसके कुछ उदाहरण लिखो।
उत्तर-
प्रदत्त पद वह पद होता है जिसे व्यक्ति बिना परिश्रम किए प्राप्त कर लेता है। वह जिस परिवार या समाज में पैदा होता है, उसे उसके अनुसार ही पद प्राप्त हो जाता है। जैसे प्राचीन हिन्दू समाज में जाति प्रथा में ब्राह्मणों को उच्च स्थान प्राप्त था। जो व्यक्ति जाति में पैदा होता था उसका समाज में उच्च स्थान होता था। लिंग, जाति, जन्म, आयु, रिश्तेदारी (Sex, Caste, Birth, Age, Kinship etc.) इत्यादि के आधार पर प्रदत्त पद बिना किसी प्रयत्न से प्राप्त किए जाते हैं। इस प्रकार का पद बिना किसी परिश्रम के प्राप्त हो जाता है तथा इस पद को कोई भी छीन नहीं सकता।

प्रश्न 3.
‘भूमिका सामाजिक संरचना का एक तत्त्व है।’ संक्षिप्त रूप में लिखिए।
उत्तर–
सामाजिक संरचना की इकाइयों के उप-समूह होते हैं तथा इन समूहों में सदस्यों की निश्चित नियमों के अनुसार भूमिकाएं दी जाती हैं। व्यक्तियों के बीच अन्तक्रियाएं होती हैं तथा अन्तक्रियाओं को स्पष्ट करने के लिए व्यक्तियों को भूमिकाएं दी जाती हैं। भूमिका व्यक्ति का विशेष स्थिति में व्यवहार होता है जो उसके पद से सम्बन्धित होता है। अगर सामाजिक संरचना में कोई परिवर्तन आता है तो व्यक्तियों के पदों तथा भूमिकाओं में भी परिवर्तन आ जाता है। इन भूमिकाओं के कारण ही लोगों के बीच सम्बन्ध स्थापित रहते हैं तथा सामाजिक संरचना

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प्रश्न 4.
‘प्रस्थिति सामाजिक संरचना का एक तत्त्व है।’ संक्षिप्त रूप में चर्चा कीजिए।
उत्तर-
इसमें कोई संदेह नहीं है कि प्रस्थिति सामाजिक संरचना का एक तत्व है। उप-समूह सामाजिक संरचना की इकाइयां होते हैं तथा इन समूहों में प्रत्येक व्यक्ति को कई स्थितियाँ प्राप्त होती हैं। लोगों के बीच अन्तक्रियाएं होती रहती हैं तथा इन अन्तक्रियाओं को स्पष्ट करने के लिए व्यक्तियों को कई स्थितियाँ दे दी जाती हैं। जब व्यक्ति को स्थिति प्राप्त होती है तो उसे अलग-अलग स्थितियों के अनुसार व्यवहार करना पड़ता है। अगर सामाजिक संरचना में कोई परिवर्तन आता है तो निश्चित तौर पर लोगों की स्थितियों के बीच भी परिवर्तन आ जाता है। इन स्थितियों के कारण ही लोगों के बीच संबंध स्थापित होते हैं तथा सामाजिक संरचना कायम रहती है।

प्रश्न 5.
प्रस्थिति तथा भूमिका किस प्रकार अन्तर्सम्बन्धित हैं ? व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
यह सत्य है कि पद तथा भूमिका अंतर्संबंधित है। वास्तव में दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। अगर दोनों में से एक चीज़ दी जाएगी तथा दूसरी नहीं तो इन दोनों का कोई मूल्य नहीं रह जाएगा। दूसरा तो यह अर्थ है कि अधिकार दे दिए परन्तु ज़िम्मेदारी नहीं दी अथवा ज़िम्मेदारी दे दी परन्तु अधिकार नहीं। एक के न होने की स्थिति में दूसरा ठीक ढंग से कार्य नहीं कर सकता। अगर किसी के पास अधिकारी का पद है परन्तु ज़िम्मेदारी नहीं दी गई तो उस अधिकारी का समाज को कोई फायदा नहीं है। इस प्रकार अगर किसी को कोई भूमिका या जिम्मेदारी दे दी जाती है परन्तु कोई अधिकार या पद नहीं दिया जाता तो भी वह भूमिका ठीक ढंग से नहीं निभा सकेगा। इस प्रकार यह दोनों ही एक-दूसरे के साथ गहरे रूप से अन्तर्सम्बन्धित है।

IV. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 250-300 शब्दों में दें :

प्रश्न 1.
सामाजिक संरचना को परिभाषित कीजिए। इसकी विशेषताओं पर विचार-विमर्श कीजिए।
उत्तर-
समाज कोई अखण्ड व्यवस्था नहीं है जो टूट न सके। समाज कई भागों से मिलकर बनता है। समाज को बनाने वाले अलग-अलग भाग या इकाइयां अपने निर्धारित कार्य करते हुए आपस में अन्तर्सम्बन्धित रहती हैं तथा एक प्रकार का सन्तुलन पैदा करते हैं। समाज शास्त्र की भाषा में इस सन्तुलन को सामाजिक व्यवस्था कहते हैं। इसके विपरीत जब समाज के यह अलग-अलग अन्तर्सम्बन्धित भाग जब एक-दूसरे से मिल कर ढांचे का निर्माण करते हैं तो इस ढांचे को सामाजिक संरचना कहा जाता है। संक्षेप में, संरचना का अर्थ उन इकाइयों के जोड़ से हैं जो आपस में अन्तर्सम्बन्धित है।

हैरी एम० जानसन (Harry M. Johnson) के अनुसार, “सामाजिक ढांचे का निर्माण अलग-अलग अंगों के परस्पर सम्बन्धों से होता है। चाहे सामाजिक संरचना में इन हिस्सों में परिवर्तन होता रहता है परन्तु फिर भी इसमें स्थिरता बनी रहती है। जानसन के अनुसार, “किसी भी चीज़ की संरचना उसके अंगों में पाए जाने वाले सापेक्ष तौर पर स्थायी अन्तर्सम्बन्धों को कहते हैं। साथ ही अंग शब्द में कुछ न कुछ स्थिरता की मात्रा लुप्त रहती है क्योंकि सामाजिक व्यवस्था लोगों की संरचना को इन क्रियाओं में पाई जाने वाली नियमितता की मात्रा या दोबारा आवर्तन में ढूंढा जाना चाहिए।”

मैकाइवर के विचार (Views of MacIver)-मैकाइवर ने भी सामाजिक संरचना को अमूर्त कहा है जिसमें कई समूह जैसे कि परिवार, श्रेणी, समुदाय, जाति इत्यादि आ जाते हैं।
इस समाजशास्त्री ने सामाजिक संरचना की स्थिरता तथा परिवर्तनशील प्रवृत्ति को स्वीकार किया है। मैकाइवर तथा पेज के अनुसार, “सामाजिक संरचना अपने आप में अस्थित तथा परिवर्तनशील है। इसका हरेक अवस्था में निश्चित स्थान होता है तथा इसके कई मुख्य तत्त्व ऐसे होते हैं जिनमें ज़्यादा परिवर्तन पाया जाता है।”

सामाजिक संरचना की विशेषताएं (Characteristics of Social Structure) –

1. अलग-अलग समाजों में अलग-अलग संरचना होती है (Different Societies have different Social Structures)-प्रत्येक समाज के अपने अलग नियम होते हैं क्योंकि समाज के अलग-अलग अंगों में पाए जाने वाले सम्बन्धों का सामाजिक जीवन के बीच अलग ही स्थान होता है। इसके अतिरिक्त अलग-अलग समय में भी सामाजिक संरचना अलग होती है। यह अन्तर इसलिए होता है क्योंकि समाज की इकाइयों में जो व्यवस्थित क्रम या सम्बन्ध पाए जाते हैं, वह अलग-अलग समाजों में अलग-अलग होते हैं।

2. समाज के बाहरी रूप को दिखाना (It shows the external aspect of society) सामाजिक संरचना का सम्बन्ध समाज की अन्दरूनी व्यवस्था से नहीं बल्कि बाहरी रूप को दिखाने से है। उदाहरण के लिए जैसे मनुष्य के शरीर के अलग-अलग अंग मिलकर इसका निर्माण करते हैं तथा शरीर का बाहरी ढांचा बनाते हैं, उसी तरह समाज के अलग-अलग हिस्से जुड़ कर समाज के बाहरी ढांचे का निर्माण करते हैं। जैसे मनुष्य के शरीर की बनावट के बारे में हम हाथों, टांगों, बांहों, पेट, सिर, गर्दन इत्यादि को लेकर बताते हैं। परन्तु यहां इनके कार्यों के बारे में नहीं बताते। सिर्फ शारीरिक ढांचे के बाहरी हिस्से को बताते हैं।

3. सामाजिक संरचना अमूर्त होती है (Social Structure is abstract)-सामाजिक संरचना समाज की अलग-अलग इकाइयों के अन्तर्सम्बन्धों की क्रमबद्धता को कहते हैं। सामाजिक ढांचे की इस क्रमबद्धता का कोई मूर्त रूप या आकार नहीं होता। इनको न तो पकड़ा जा सकता है न ही देखा जा सकता है। इसको केवल महसूस किया जा सकता है या इसके बारे में सोचा जा सकता है। उदाहरण के तौर पर, जैसे सूर्य की तेज़ रोशनी के रंग, आकार का वर्णन नहीं किया जा सकता तथा न ही पकड़ा जा सकता है। इसको केवल हम महसूस कर सकते हैं कि धूप कम है या ज्यादा। इस तरह हम सम्बन्धों को सिर्फ महसूस कर सकते हैं तथा यह कह सकते हैं कि हमारी सामाजिक संरचना अमूर्त होती है।

4. संरचना के अन्दर उप-संरचनाओं का पाया जाना (Hierarchy of Sub-structure ina Structure)हमारे शारीरिक ढांचे का निर्माण कई छोटे-छोटे ढांचों से मिलकर बनता है। जैसे रीढ़ की हड्डी का ढांचा, गर्दन का ढांचा, हाथ, पैर इत्यादि का ढांचा। इस तरह किसी शैक्षिक संस्था का ढांचा ले लो तो स्टाफ, प्रिंसीपल, दफ़्तर इत्यादि के उप ढांचे मिलकर सम्पूर्ण शैक्षिक संस्था के ढांचे का निर्माण करते हैं। इन उप-ढांचों में कई और उपढांचे होते हैं। उसी तरह समाज एक स्तर में नहीं बल्कि अलग-अलग स्तरों में विभाजित होता है तथा इन सभी से मिलकर ही सामाजिक संरचना बनती है।

5. सामाजिक संरचना परिवर्तनशील होती है (Social Structure is Changeable)-रैडक्लिफ ब्राऊन के अनुसार, सामाजिक संरचना में गतिशील निरन्तरता रहती है। यह स्थिर नहीं होती। जैसे मनुष्य के ढांचे में परिवर्तन आते रहते हैं। उसी तरह समाज की संरचना में भी परिवर्तन आते रहते हैं। परन्तु परिवर्तन का यह अर्थ नहीं कि सामाजिक संरचना के मुख्य तत्त्व बदल जाते हैं। जैसे शारीरिक परिवर्तन से मुख्य तत्त्वों में परिवर्तन नहीं आता उसी तरह सामाजिक संरचना का निर्माण करने वाले अंग बदलते रहते हैं परन्तु इसके मुख्य तत्त्वों में कोई अन्तर नहीं आता है।

6. सामाजिक संरचना की हरेक इकाई का निश्चित स्थान होता है (Every unit of social structure has a definite position)-हमारी सामाजिक संरचना जिन अलग-अलग इकाइयों से मिल कर बनती है उन सब की स्थिति निश्चित तथा सीमित होती है। कोई भी इकाई दूसरी इकाई का स्थान नहीं ले सकती तथा न ही अपनी सीमा से बाहर जाती है।

7. सामाजिक संरचना के कुछ तत्त्व सर्वव्यापक होते हैं (Some elements of Social Structure are universal)—प्रत्येक समाज में सामाजिक संरचना के कुछ तत्त्व ऐसे होते हैं जो सर्वव्यापक होते हैं। उदाहरण के तौर पर सामाजिक सम्बन्धों को ले लो। कोई भी समाज सामाजिक सम्बन्धों के बिना विकसित नहीं हो सकता। इस वजह से यह हरेक समाज में कायम होते हैं। कहने का अर्थ यह है कि सामाजिक संरचना में कुछ तत्त्व तो हरेक समाज में मौजूद होते हैं तथा कुछ तत्त्व ऐसे होते हैं जो प्रत्येक समाज में अलग-अलग होते हैं तथा इनके आधार पर ही हम एक समाज की सामाजिक संरचना को दूसरे समाज की सामाजिक संरचना से अलग कर सकते हैं।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 9 सामाजिक संरचना

प्रश्न 2.
सामाजिक संरचनाओं को बनाए रखने के लिए कौन सी व्यवस्था सहायक है ?
उत्तर-
सामाजिक संरचना में लगभग सभी मनुष्यों ने स्वयं को अलग-अलग सभाओं में संगठित किया होता . है ताकि कुछ समाज उद्देश्यों की प्राप्ति की जा सके। परन्तु इन उद्देश्यों की पूर्ति तब ही की जा सकती है जब सामाजिक संरचना कुछ प्रचालन व्यवस्थाओं (Operational systems) पर निर्भर हो तथा जो इसे बनाए रखने में सहायता कर सकें। इसका अर्थ है कि कुछ प्रचालन व्यवस्थाएं ऐसी होनी चाहिए जिनकी सहायता से सामाजिक संरचना को बना कर रखा जा सके। कुछेक व्यवस्थाओं का वर्णन इस प्रकार है

1. मानक व्यवस्थाएं (Normative Systems)-मानक व्यवस्थाएं समाज के सदस्यों के सामने कुछ आदर्श तथा कीमतें रखती हैं। समाज के सदस्य सामाजिक कीमतों तथा आदर्शों के साथ भावात्मक महत्त्व (Emotional importance) जोड़ देते हैं। अलग-अलग समूह, सभाएं, संस्थाएं, समुदाय इत्यादि इन नियमों परिभाषों के अनुसार एक-दूसरे के साथ अन्तर्सम्बन्धित होते हैं। समाज के अलग-अलग सदस्य इन नियमों परिमापों के अनुसार अपनी भूमिकाएं निभाते रहते हैं।

2. स्थिति व्यवस्था (Position System)-स्थिति व्यवस्था का अर्थ उन परिस्थितियों तथा भूमिकाओं से है जो अलग-अलग व्यक्तियों को दिए जाते हैं। प्रत्येक व्यक्ति की इच्छाएं तथा आशाएँ अलग-अलग तथा असीमित होती हैं। प्रत्येक समाज में प्रत्येक व्यक्ति के पास अलग-अलग तथा बहुत-सी स्थितियाँ या पद होते हैं। उदाहरण के लिए एक परिवार में ही व्यक्ति एक समय पर पुत्र, पिता, भाई, जेठ, देवर, जीजा, साला इत्यादि सब कुछ है। जब वह अपनी पत्नी के साथ बात कर रहा होता है तो वह पति की भूमिका निभा रहा होता है। इस समय वह पिता या पुत्र की भूमिका के बारे में सोच रहा होता है। दूसरे शब्दों में सामाजिक संरचना के ठीक ढंग से कार्य करने के लिए यह आवश्यक है कि स्थितियाँ तथा भूमिकाओं का भी ठीक ढंग से विभाजन किया जाए।

3. स्वीकृत व्यवस्था (Sanction System)-नियमों को ठीक ढंग से लागू करने के लिए समाज एक स्वीकृत व्यवस्था प्रदान करता है। अलग-अलग भागों के बीच तालमेल बिठाने के लिए यह आवश्यक है कि नियमों, परिमापों को ठीक ढंग से लागू किया जाए। स्वीकृत सकारात्मक भी हो सकती तथा नकारात्मक भी। जो लोग सामाजिक नियमों, परिमापों को मानते हैं उन्हें समाज की तरफ से इनाम मिलता है। जो लोग समाज के नियमों को नहीं मानते हैं, उन्हें समाज की तरफ से सज़ा मिलती है। सामाजिक संरचना की स्थिरता स्वीकृत व्यवस्था की प्रभावशीलता पर निर्भर करती है।

4. पूर्वानुमानित प्रक्रियाओं की व्यवस्था (System of Ahticipated Responses)-पूर्वानुमानित प्रक्रियाओं की व्यवस्था व्यक्तियों से आशा करती है कि वह सामाजिक व्यवस्था में भाग ले। समाज के सदस्यों के भाग लेने से ही सामाजिक संरचना चलती रहती है। सामाजिक संरचना के सफलतापूर्वक कार्य करने के लिए यह आवश्यक है कि व्यक्तियों को अपने उत्तरदायित्वों के बारे में पता हो। समाज के सदस्य प्रमाणित व्यवहार को समाजीकरण की प्रक्रिया की सहायता से ग्रहण करते हैं जिससे वह अन्य व्यक्तियों के व्यवहार का पूर्वानुमान लगा लेते हैं तथा उस प्रकार व्यवहार करते हैं। इस प्रकार पूर्व अनुमानित प्रक्रियाओं की व्यवस्था भी सामाजिक संरचना की स्थिरता का कारण बनती है।

5. कार्यात्मक व्यवस्था (Action System)-टालग्र पारसन्ज ने सामाजिक कार्य (Social Action) के संकल्प पर काफी बल दिया है। उसके अनुसार सामाजिक सम्बन्धों का जाल (समाज) व्यक्तियों के बीच होने वाली क्रियाओं तथा अन्तक्रियाओं में से निकला है। इस प्रकार कार्य व्यवस्था एक प्रमुख तत्त्व बन जाता है। जिससे समाज क्रियात्मक (Active) रहता है तथा सामाजिक संरचना चलती रहती है।

प्रश्न 3.
सामाजिक संरचना क्या है ? सामाजिक संरचना के तत्त्व क्या हैं ?
उत्तर-
हमारा समाज सामाजिक सम्बन्धों का जाल है। इस की अलग-अलग इकाइयां हैं जो एक-दूसरे से जुड़ी होने के साथ-साथ एक-दूसरे से सम्बन्धित भी हैं। कोई भी कार्य वह एक-दूसरे की मदद के बगैर नहीं कर सकती हैं अर्थात् उनमें एक सहयोग पाया जाता है। इसकी इकाइयां-समूह, संस्थाएं, सभाएं, संगठन इत्यादि हैं। इन इकाइयों का अकेले कोई अस्तित्व नहीं है बल्कि जब यह इकाइयां एक-दूसरे से सम्बन्धित हो जाती हैं तो एक ढांचे का रूप लेती हैं। इनकी सम्बन्धता में व्यवस्था तथा क्रम पाया जाता है तो ही हमारा समाज ठीक तरीके से कार्य करता है। क्रम तथा व्यवस्था को हम एक उदाहरण से सरल बना सकते हैं। जैसे डैस्क, बैंच, टीचर, प्रिंसीपल, चौकीदार, विद्यार्थी, इमारत इत्यादि एक जगह रखने से स्कूल का निर्माण नहीं होता। स्कूल का निर्माण उस समय होगा जब अलग-अलग इकाइयों एक व्यवस्थित तरीके से अपने-अपने निश्चित स्थान पर कार्य कर रही हों तो हम उसे स्कूल का नाम दे सकते हैं। प्रत्येक समाज की सामाजिक संरचना अलग-अलग होती है क्योंकि उसकी निर्माण करने वाली इकाइयों का क्रम अलग-अलग होता है।

हमारा समाज भी परिवर्तनशील है। समय-समय पर इस में प्राकृतिक शक्तियों या व्यक्तियों के आविष्कारों से परिवर्तन आता रहता है। इस वजह से सामाजिक ढांचा भी बदलता रहता है। इसकी इकाइयां भी मूर्त नहीं होती हैं क्योंकि हम इन्हें पकड़ नहीं सकते हैं। चाहे सामाजिक ढांचे के हिस्से जैसे परिवार, धर्म, संस्था, सभा, आर्थिकता इत्यादि एक जैसे होते हैं परन्तु इन के प्रकारों में अन्तर होता है। जैसे किसी समाज में पिता प्रधान परिवार हैं तथा किसी समाज में माता प्रधान परिवार अर्थात् हिस्सों में चाहे समानता होती है परन्तु इनके विशेष प्रकार अलग-अलग होते हैं। संक्षेप में, हम कह सकते हैं कि सामाजिक ढांचा वह व्यवस्थित प्रबन्ध है जिसके द्वारा सामाजिक सम्बन्धों को एक धागे में बांधा जा सकता है।

सामाजिक संरचना के तत्त्व (Elements of Social Structure)-

हैरी एम० जानसन तथा पारसन्ज़ के अनुसार सामाजिक संरचना में चार निम्नलिखित तत्त्व हैं-

  1. उप समूह (Sub groups)
  2. भूमिकाएं (Roles)
  3. सामाजिक परिमाप (Social Norms)
  4. सामाजिक कीमतें (Social Values)

1. उप समूह (Sub Groups)-जानसन तथा पारसन्ज़ के अनुसार सामाजिक संरचना को बनाने वाली इकाइयां या उप समूह होते हैं। हरेक बड़ा समूह उप-समूहों से मिलकर बनता है। उदाहरण के तौर पर, शैक्षिक समूह के अन्तर्गत स्कूल, कॉलेज, विश्वविद्यालय, परिवार, धर्म इत्यादि वह सभी उप-समूह शामिल किए जाते हैं जो शैक्षिक समूह से किसी न किसी रूप में जुड़े होते हैं। व्यक्तियों को इन समूहों तथा उप-समूहों से भूमिकाएं तथा पद प्राप्त होते हैं। पद तथा भूमिका का स्थान समाज में निश्चित होता है। समाज में व्यक्ति जन्म लेते तथा मरते हैं परन्तु यह पद तथा भूमिका उसी तरह निश्चित रहते हैं। जन्म लेने वाला व्यक्ति इन्हें ग्रहण कर लेता है तथा एक व्यक्ति के मरने के बाद दूसरा व्यक्ति उसी पद तथा भूमिका को ग्रहण कर लेता है। उदाहरण के लिए अगर देश का प्रधानमन्त्री मर जाए तो दूसरा व्यक्ति प्रधानमन्त्री बन कर पद तथा भूमिका को उसी तरह सुचारु कर देता है। कहने का अर्थ यह है कि उप-समूह संक्षेप तथा स्थाई होते हैं। यह कभी भी ख़त्म नहीं होते। इनके सदस्य चाहे बदलते रहते हैं। उदाहरण के लिए परिवार, स्कूल, कॉलेज उसी तरह अपने स्थान पर कायम रहते हैं जैसे कि पुराने समय में थे। अंतर केवल यह होता है कि इन में कार्य करने वाले व्यक्ति बदलते रहते हैं।।

2. भूमिकाएं (Roles)—सामाजिक संरचना के उप-समूह में व्यक्ति को निश्चित प्रतिमान के द्वारा भूमिका से सम्बन्धित किया जाता है। समाज सामाजिक सम्बन्धों का जाल है। इन सम्बन्धों के विकास के लिए व्यक्तियों तथा समूहों के बीच अन्तक्रियाएं होती हैं। इन अन्तक्रियाओं में क्रियाशीलता को स्पष्ट करने के लिए भूमिका तथा पद को परिभाषित किया जाता है। भूमिका व्यक्ति के उस व्यवहार से सम्बन्धित होती है जो व्यक्ति किसी विशेष स्थिति में करता है तथा विशेष पद से सम्बन्धित जो कार्य व्यक्ति ने करने होते हैं उनको सामाजिक मान्यता द्वारा निर्धारित किया जाता है। सामाजिक संरचना में परिवर्तन होने से समाज में सदस्यों के पदों तथा भूमिकाओं में परिवर्तन होता है। इन भूमिकाओं के ही निश्चित तथा स्थायी सम्बन्धों से सामाजिक संरचना जुड़ी होती है तथा काम करती रहती है।

3. सामाजिक परिमाप (Social Norms) भूमिकाएं तथा उप-समूह सामाजिक परिमापों से सम्बन्धित होते हैं क्योंकि इन परिमापों के द्वारा व्यक्ति के कार्यों का मूल्यांकन किया जाता है। इसी वजह से भूमिकाएं तथा उपसमूह स्थिर होते हैं।

सामाजिक परिमापों में कई नियम तथा उपनियम होते हैं। यह व्यक्तिगत व्यवहार में वह मान्यता प्राप्त तरीके होते हैं जिनके साथ सामाजिक संरचना का निर्माण होता है। सामाजिक आदर्श उन परिमापों से जुड़े होते हैं। अगर यह परिमाप न हो तो व्यक्ति अपनी ज़िम्मेदारी नहीं जान सकता तथा न ही हमारी सामाजिक संरचना कायम रह सकती है। उदाहरण के तौर पर पिता-पुत्र, मां-बेटी, भाई-बहन, अध्यापक-विद्यार्थी इत्यादि की भूमिकाओं को प्राप्त करने वाले व्यक्तियों की आपसी ज़िम्मेदारियों को सामाजिक परिमापों के द्वारा ही बनाया जाता है। सामाजिक संरचना के लिए यह बहुत महत्त्वपूर्ण होते हैं।

सामाजिक परिमाप के द्वारा विशेष स्थितियों में व्यक्ति के व्यवहार को संचालित तथा निर्देशित किया जाता है जिससे भूमिकाएं तथा उप समूह कायम रहते हैं। यह सामाजिक संरचना का तीसरा मुख्य तत्त्व है।

4. सामाजिक कीमतें (Social Values)-जानसन के अनुसार कीमतें मापदण्ड होती हैं क्योंकि इनके द्वारा सामाजिक परिमापों का मूल्यांकन किया जाता है। यह समाज के सदस्यों की भावनाओं को प्रभावित करती है। व्यक्ति जब किसी चीज़ के बारे में बात करता है या फ़ैसला लेता है तो उसके ऊपर भावनाओं का प्रभाव ज़रूर रहता है।

परिमाप शब्द का प्रयोग विशेष व्यावहारिक प्रतिमान के लिए किया जाता है जबकि कीमतें साधारण मापदण्ड होती हैं। इनको हम उच्च स्तर के परिमाप भी कह सकते हैं। सामाजिक विघटन को रोकने के लिए तथा सामाजिक व्यवस्था के लिए सामाजिक कीमतों का अपना महत्त्व होता है। समूह की भावनाएं भी इन कीमतों से ही सम्बन्धित होती हैं। इनमें कार्यात्मक सम्बन्ध भी पाया जाता है जिससे सामाजिक सम्बन्धों का जाल नहीं टूटता तथा इन सम्बन्धों में तालमेल बना रहता है। व्यक्ति तथा समूह में भावनाओं का तालमेल स्थापित हो जाता है जिससे व्यवहारों का चुनाव तथा मूल्यांकन करने के लिए कीमतों का प्रयोग मापदण्ड के रूप में किया जाता है। सामाजिक कीमतों के द्वारा व्यक्तियों या समूहों की क्रियाओं की जांच करके उनको अच्छे या बुरे, उच्च या निम्न वर्ग में भी बांटा जा सकता है।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 9 सामाजिक संरचना

प्रश्न 4.
प्रस्थिति को परिभाषित कीजिए। इनकी विशेषताओं को विस्तृत रूप में लिखिए।
उत्तर-
पद या प्रस्थिति का अर्थ (Meaning of Status)-समाज में स्थिति सामाजिक कीमतों से सम्बन्धित होती है। उदाहरण के लिए भारतीय समाज में पुरुषों की स्थिति औरतों से उच्च होती है। स्थिति से अर्थ व्यक्ति का समूह में पाया गया स्थान होता है। यह स्थान व्यक्ति को विशेष प्रकार के अधिकारों द्वारा प्राप्त होता है जिन्हें समाज द्वारा मान्यता प्राप्त होती है। आमतौर पर एक व्यक्ति समाज में रहते हुए कई प्रकार के पदों को अदा कर रहा होता है अर्थात् व्यक्ति जितने भी समूहों या संस्थाओं का सदस्य होता है उतने ही उस के पद होते हैं। इस पद के द्वारा ही व्यक्ति समाज में उच्च या निम्न नज़र से देखा जाता है।

पद वह सामाजिक स्थिति होती है जिसको व्यक्ति समाज में रह कर समाज के सदस्यों द्वारा स्वीकार करने पर प्राप्त करता है। समाज में हरेक व्यक्ति का कोई न कोई पद होता है। यह समाज में किसी व्यक्ति की सम्पूर्ण सामाजिक स्थिति का एक हिस्सा होता है। इसी वजह से इसको सामाजिक व्यवस्था का आधार माना जाता है। पद का बाहरी चित्र व्यक्ति अपने कार्यों से प्रकट करता है तथा इस का महत्त्व हमें दूसरे के पद से तुलना करके ही पता चला सकता है। इससे एक तरह समाज के लोगों के अलग-अलग श्रेणियों में विभाजित किया जाता है जिससे व्यक्ति की समाज में रहते हुए एक पहचान स्थापित हो जाती है।

प्रस्थिति या पद की परिभाषाएं (Definitions of Status)-
1. सेकार्ड तथा बरकमैन (Secard and Berkman) के अनुसार, “पद समूह तथा व्यक्तियों के वर्ग द्वारा अनुमानित किसी व्यक्ति का मूल्य होता है।”

2. किंगस्ले डेविस (Kingsley Davis) के अनुसार, “पद आम सामाजिक व्यवस्था में समाज द्वारा मान्यता प्राप्त तथा प्रदान की गई स्थितियां हैं जो विचारपूर्वक नियमित न होकर अपने आप विकसित होती हैं तथा लोगों के विचारों तथा लोगों की रीतियों पर आधारित होती है।”

3. लिंटन (Linton) के अनुसार, “किसी व्यवस्था विशेष में किसी समय विशेष में एक व्यक्ति को जो स्थान प्राप्त होता है, वह ही उस की व्यवस्था के बीच उस व्यक्ति का पद या स्थिति होती है। अपनी स्थिति को वैध सिद्ध करने के लिए व्यक्ति को जो कुछ करना पड़ता है, उस को पद कहते हैं।”

4. मैकाइवर तथा पेज (MacIver and Page) के अनुसार, “पद वह सामाजिक स्थान है जो उस को ग्रहण करने वाले के लिए उस से व्यक्तिगत गुणों तथा सामाजिक सेवा के अतिरिक्त आदर, प्रतिष्ठा तथा प्रभाव की मात्रा निश्चित करता है।”

इस तरह इन परिभाषाओं के आधार पर हम कह सकते हैं कि समूह के बीच एक निश्चित समय में व्यक्ति को जो दर्जा या स्थान प्राप्त होता है वह उस का सामाजिक पद होता है। पद समूह में होता है इसलिए वह जितने समूहों का सदस्य होता है उस को उतने पद प्राप्त होते हैं।

सामाजिक प्रस्थिति अथवा पद की विशेषताएं (Features of Social Status)-

1. व्यक्ति का पद समाज की संस्कृति द्वारा निश्चित होता है (Status of a man is determined by the culture of society)-व्यक्ति का पद समाज की सांस्कृतिक कीमतों द्वारा निर्धारित होता है। कौन-सा व्यक्ति किस पद पर बैठेगा, उस पद के कौन-से अधिकार तथा कर्त्तव्य हैं ? इस का फैसला समाज के लोग करेंगे। जो स्थिति व्यक्ति समाज में रह कर प्राप्त करता है उससे सम्बन्धित उस के कार्य भी होते हैं। उदाहरण के लिए मातृ प्रधान परिवार के बीच माता का पद ऊँचा होता है तथा माता ही घर के फैसले लेती है तथा घर के सदस्यों की ज़िम्मेदारी उठाती है। पिता प्रधान परिवार के बीच पिता का पद ज्यादा महत्त्वपूर्ण होता है तथा जायदाद भी पिता के नाम ही होती है, घर के सदस्यों की ज़िम्मेदारी भी पिता की ही होती है।

2. समाज में व्यक्ति के पद को समझने के लिए दूसरे व्यक्ति के पद से तुलना करके ही समझा जा सकता है (Status of a person is determined by comparing it with status of other person) हम किसी व्यक्ति के पद को दूसरे व्यक्ति के पद के साथ तुलना करके ही समझ सकते हैं। उदाहरण के लिए मुख्याध्यापक के पद के बिना अध्यापक की स्थिति को समझना असम्भव होता है। कहने का अर्थ यह है कि पद तुलनात्मक शब्द होता है। इसके अर्थ को दूसरे सदस्य के सन्दर्भ में ही समझा जा सकता है। .

3. हरेक प्रस्थिति का समाज में एक स्थान होता है (Every status has a place in society)-प्रत्येक पद समाज के आदर तथा विशेषाधिकारों के संकेतों तथा कार्यों के परिमापों द्वारा ही पहचाना जाता है। उदाहरण के लिए दफ़्तर में एक बड़े अफसर तथा क्लर्क का पद अलग-अलग होता है। इनको सामूहिकता के आधार पर ही बताया जाता है।

4. भूमिका निश्चित होना (Determination of Roles)—पद तथा उससे सम्बन्धित भूमिका भी निश्चित हो जाती है। यह भूमिका भी सामाजिक कीमतों के आधार पर निर्धारित की जाती है। व्यक्ति पद द्वारा प्राप्त की गई भूमिका को निभाता है। समाज में कुछ भूमिकाएं विशेष होती हैं क्योंकि वह समाज के महत्त्वपूर्ण तथा ज़रूरी कार्यों से सम्बन्धित होती हैं।

5. एक व्यक्ति कई पदों पर हो सकता है (One person can be on many Status)-व्यक्ति केवल एक ही पद प्राप्त नहीं करता है बल्कि अलग-अलग सामाजिक हालातों में वह अलग-अलग पदों पर बैठता है। एक ही व्यक्ति किसी क्लब का प्रधान, स्कूल में टीचर, परिवार में पिता, पुत्र, चाचा, मामा इत्यादि कई पद प्राप्त कर सकता है। इस तरह व्यक्ति अपनी शिक्षा, योग्यता के अनुसार सारे पदों के बीच सम्बन्ध तथा सन्तुलन बनाए रखता है या रखने की कोशिश करता है।

6. पद के आधार पर समाज में स्तरीकरण हो जाता है (Stratification in Society based on Statuses)-इस का अर्थ है कि समाज में व्यक्तियों को अलग-अलग श्रेणियों में वर्गीकृत किया जाता है। इससे सामाजिक गतिशीलता भी बढ़ती है। अलग-अलग वर्गों में बाँटे जाने के कारण समाज में अलग-अलग स्तर बन जाते हैं जिससे समाज अपने आप ही स्तरीकृत हो जाता है।

7. पद का मनोवैज्ञानिक आधार भी होता है (Status has psychological base)-क्योंकि समाज में रहते हुए व्यक्ति लगातार उच्च पद की प्राप्ति के लिए प्रयत्न करता रहता है इसलिए व्यक्ति में भावनाओं का निर्माण हो जाता है। क्योंकि इसके साथ इज्ज़त तथा बेइज्जती भी जुड़ी होती है इसी लिए यह व्यक्ति के मानसिक क्षेत्र से सम्बन्धित होते हैं। व्यक्ति को जब उसकी योग्यता के अनुसार पद पर लगाया जाता है तो वह मानसिक तौर पर सन्तुष्ट हो जाता है।

प्रश्न 5.
भूमिका को परिभाषित कीजिए। इसकी विशेषताओं को विस्तृत रूप में लिखिए।
उत्तर-
हरेक स्थिति के साथ कुछ मांगें (Demands) जुड़ी होती हैं जो यह बताती हैं कि किस समय व्यक्ति से किस प्रकार के कार्य की उम्मीद की जाती है। यह भूमिका का क्रियात्मक पक्ष है । इस में व्यक्ति अपनी योग्यता, लिंग, पेशे, पैसे इत्यादि के आधार पर कोई पद प्राप्त करता है तथा उस को उस पद के सन्दर्भ में परम्परा, कानून या नियम के अनुसार जो भी भूमिका निभानी पड़ती है वह उसका कार्य है। इस तरह यह स्पष्ट है कि कार्य की धारणा में दो तत्त्व हैं-उम्मीद तथा क्रियाएं। उम्मीद से अर्थ है कि वह किसी विशेष समय में विशेष प्रकार का व्यवहार करे तथा क्रिया या भूमिका उस विशेष स्थिति का कार्य होगा। इस तरह उसकी भूमिका बंधी हई होगी।

समाज की सामाजिक व्यवस्था को कायम रखने के लिए सामाजिक पद का महत्त्व उस समय तक नहीं हो सकता जब तक व्यक्ति को उस से सम्बन्धित रोल प्राप्त न हो। पद तथा भूमिका एक ही सिक्के के दो पहलू हैं जो एक-दूसरे से जुड़े होते हैं। समाज में व्यक्तियों को उनके कार्यों के आधार पर भी अलग किया जाता है। कुछ व्यक्ति डॉक्टर, वकील, इंजीनियर, क्लर्क, अफसर इत्यादि होते हैं जो अपने कार्यों के आधार पर एक-दूसरे से जुड़े हुए होते हैं क्योंकि एक व्यक्ति सभी कार्यों में माहिर नहीं हो सकता।

इस तरह हम कह सकते हैं कि हरेक पद के साथ सम्बन्धित कार्यों का सैट होता है। इन कार्यों के सैट को रोल या भूमिका कहा जाता है। इस तरह व्यक्ति किसी-न-किसी पद के ऊपर होता है तथा उस पद से सम्बन्धित उस को कोई न कोई कार्य करने पड़ते हैं। इन कार्यों के सैट को भूमिका कहा जाता है। इस तरह स्पष्ट है कि अलगअलग पदों के लिए अलग-अलग भूमिकाएं होती हैं। भूमिका उस व्यवहार का प्रतिनिधित्व करती है जो किसी पद को प्राप्त करने वाले व्यक्ति से करने की आशा की जाती है। भूमिका तथा पद एक-दूसरे से अलग नहीं हो सकते। भूमिका पूर्ण रूप से पद के ऊपर निर्भर करती है। इस वजह से अलग-अलग पदों पर व्यक्ति अलग-अलग कार्य करता है

परिभाषाएं (Definitions)-
1. लिंटन (Linton) के अनुसार, “भूमिका का अर्थ सांस्कृतिक प्रतिमानों के योग से है जो किसी विशेष पद से सम्बन्धित होता है। इस प्रकार इस में वह सभी कीमतें तथा व्यवहार शामिल हैं जो समाज किसी पद को ग्रहण करने वाले व्यक्ति या व्यक्तियों को प्रदान करता है।”

2. सार्जेंट (Sargent) के अनुसार, “किसी भी व्यक्ति की भूमिका उसके सामाजिक व्यवहार का एक प्रतिमान या प्रकार है जो उस समूह की ज़रूरतों, उम्मीदों तथा हालातों के अनुसार उचित प्रतीत होता है।”

3. लुण्डबर्ग (Lundberg) के अनुसार, “भूमिका व्यक्ति का किसी समूह या अवस्था में उम्मीद किया हुआ व्यावहारिक तरीका होता है।”
इस तरह इन परिभाषाओं के आधार पर हम कह सकते हैं कि भूमिका का अर्थ व्यक्ति के पूर्ण व्यवहार से नहीं बल्कि उस विशेष व्यवहार से है जो वह किसी विशेष हालात में करता है। भूमिका वह तरीका है जिसमें व्यक्ति अपनी स्थिति से सम्बन्धित कर्तव्यों को पूरा करता है।

भूमिका की विशेषताएं (Characteristics of Social Role) –

1. भूमिका कार्यात्मक होती है (Role is functional)—पारसन्ज़ के अनुसार कर्ता अन्य कर्ताओं के साथ सम्बन्धित होते हुए भी कार्य करता है। व्यक्ति को अपनी स्थिति के अनुसार कार्य करने पड़ते हैं क्योंकि उससे अपनी स्थिति के अनुरूप कार्य करने की अपेक्षा की जाती है। इसलिए हम कह सकते हैं कि भूमिका कार्यात्मक होती है।

2. भूमिका संस्कृति द्वारा नियमित होती है (Role is determined by culture)-हरेक व्यक्ति को सामाजिक परम्पराओं, नियमों या संस्कृति के अनुसार कोई न कोई स्थिति प्राप्त होती है। यह स्थिति संस्कृति द्वारा दी जाती है। हरेक स्थिति से सम्बन्धित भूमिका भी होती है तथा उस स्थिति पर बैठे व्यक्ति से अपेक्षा की जाती है कि वह अपना कार्य तथा भूमिका को निभाए। उसको अपनी भूमिका सामाजिक नियमों तथा संस्कृति के अनुसार ही निभानी पड़ती है। इसलिए यह संस्कृति द्वारा नियमित होती है।

3. एक व्यक्ति कई भूमिकाओं से सम्बन्धित होता है (One individual is related with many roles)—एक ही व्यक्ति कई कार्य करने के योग्य होता है जिस वजह से उसको कई स्थितियां तथा उनसे सम्बन्धित भूमिकाएं भी प्राप्त हो जाती हैं। उदाहरण के तौर पर एक व्यक्ति बच्चे का पिता, स्कूल का अध्यापक, क्लब का सदस्य, धार्मिक सभा का नेता इत्यादि भूमिकाएं निभाता है। उस तरह अकेला व्यक्ति कई प्रकार की भूमिकाएं निभाने के योग्य होता है।

4. एक भूमिका को दूसरी भूमिका के सन्दर्भ में समझा जा सकता है (One Role can be understandable only within the context of other roles)-अगर हमें किसी भूमिका के महत्त्व को समझना है तो उसे हम किसी और सम्बन्धित भूमिका के सन्दर्भ में रख कर ही समझ सकते हैं। उदाहरण के लिए एक परिवार में पति, पत्नियां तथा बच्चों की भूमिका को अगर समझना है तो इन को एक-दूसरे के सन्दर्भ में ही समझ सकते हैं। पत्नी तथा बच्चों के बिना पति की भूमिका अर्थहीन हो जाएगी।

5. भूमिका का निर्धारण सामाजिक मान्यता द्वारा होता है (Role are determined by social sanctious)—दो व्यक्तियों का स्वभाव एक जैसा नहीं होता है। अगर समाज के सदस्यों को उन की इच्छा के अनुसार भूमिका न दी जाए तो कोई भी कार्य ठीक तरह से नहीं हो सकेगा तथा कुछ व्यक्ति सामाजिक कीमतें के विरुद्ध कार्य करने लगेंगे। इसलिए समाज में सिर्फ उन भूमिकाओं को स्वीकार किया जाता है जिन को समाज की मान्यता प्राप्त होती है। यह हमारी सामाजिक संस्कृति ही निर्धारित करती है कि कौन सी भूमिकाएं, किन व्यक्तियों के द्वारा तथा कैसे निभायी जाएंगी।

6. व्यक्ति की योग्यता का महत्त्व (Importance of individuals ability)- जब एक व्यक्ति कई प्रकार की भूमिकाएं निभा रहा होता है तो यह ज़रूरी नहीं कि वह इन सब भूमिकाओं को निभाने के योग्य हो क्योंकि कई बार व्यक्ति किसी विशेष भूमिका को निभाने में सफल होता है तो दूसरी भूमिका निभाने में असफल भी हो जाता है। कहने का अर्थ यह है कि व्यक्ति अपनी योग्यता के अनुसार हर भूमिका को अच्छे, ज्यादा अच्छे या गलत तरीके से भी निभा. सकता है।

7. अलग-अलग भूमिकाओं का अलग-अलग महत्त्व (Different importance of different roles)इस का अर्थ है कि समाज में कुछ भूमिकाएं महत्त्वपूर्ण हिस्सों से सम्बन्धित होती हैं, उन का महत्त्व ज्यादा होता है क्योंकि इस प्रकार की भूमिकाओं को अदा करने के लिए व्यक्ति को ज्यादा परिश्रम तथा प्रशिक्षण प्राप्त करना पड़ता है। इस तरह की भूमिकाओं को महत्त्वपूर्ण भूमिकाएं कहा जाता हैं। उदाहरण के तौर पर I.A.S. से सम्बन्धित भूमिकाएं समाज के लिए महत्त्वपूर्ण होती हैं क्योंकि यह समाज की सुरक्षा के लिए होती है।

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वस्तुनिष्ठ प्रश्न

I. बहुविकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions):

प्रश्न 1.
इनमें से कौन-सी सामाजिक संरचना की विशेषता है ?
(A) संरचना किसी चीज़ के बाहरी ढांचे का बोध करवाती है
(B) सामाजिक संरचना के कई तत्त्व होते हैं।
(C) भिन्न-भिन्न समाजों की भिन्न-भिन्न संरचना होती है।
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(D) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 2.
सामाजिक संरचना एक…….
(A) स्थायी धारणा है
(B) अस्थायी धारणा है
(C) टूटने वाली धारणा है।
(D) बदलने वाली धारणा है।
उत्तर-
(A) स्थायी धारणा है।

प्रश्न 3.
सबसे पहले सामाजिक संरचना शब्द का प्रयोग किस समाज शास्त्रीय ने किया था ?
(A) नैडल
(B) हरबर्ट स्पैंसर
(C) टालक्ट पारसन्ज
(D) मैलिनोवस्की।
उत्तर-
(B) हरबर्ट स्पैंसर।

प्रश्न 4.
सामाजिक संरचना का निर्माण कौन करता है ?
(A) समुदाय
(B) धर्म
(C) मूल्य
(D) उपर्युक्त सभी।
उत्तर-
(D) उपर्युक्त सभी।

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प्रश्न 5.
अलग-अलग इकाइयों के क्रमबद्ध रूप को क्या कहते हैं ?
(A) अन्तक्रिया
(B) व्यवस्था
(C) संरचना
(D) कोई नहीं।
उत्तर-
(C) संरचना।

प्रश्न 6.
आधुनिक समाजों की संरचना किस प्रकार की होती है ?
(A) साधारण
(B) जटिल
(C) व्यवस्थित
(D) आधुनिक।
उत्तर-
(B) जटिल।

प्रश्न 7.
भूमिका किसके द्वारा नियमित होती है ?
(A) समाज
(B) समूह
(C) संस्कृति
(D) देश।
उत्तर-
(C) संस्कृति।

प्रश्न 8.
भूमिका की कोई विशेषता बताएं।
(A) एक व्यक्ति की कई भूमिकाएं होती हैं।
(B) भूमिका हमारी संस्कृति द्वारा नियमित होती है।
(C) भूमिका कार्यात्मक होती है।
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(D) उपरोक्त सभी।

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प्रश्न 9.
किसके कारण समाज अलग-अलग वर्गों में बांटा जाता है ?
(A) भूमिका
(B) प्रस्थिति
(C) प्रतिष्ठा
(D) रोल।
उत्तर-
(B) प्रस्थिति।

प्रश्न 10.
सामाजिक पद की विशेषता बताएं।
(A) प्रत्येक पद का समाज में स्थान होता है।
(B) पद के कारण भूमिका निश्चित होती है।
(C) पद समाज की संस्कृति द्वारा निर्धारित होता है।
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(D) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 11.
व्यक्ति को समाज में रहकर मिली प्रस्थिति को क्या कहते हैं ?
(A) पद
(B) रोल
(C) भूमिका
(D) जिम्मेदारी।
उत्तर-
(A) पद।

प्रश्न 12.
जो पद व्यक्ति को जन्म के आधार पर प्राप्त होता है उसे क्या कहते हैं ?
(A) अर्जित पद
(B) प्राप्त पद
(C) प्रदत्त पद
(D) भूमिका पद।
उत्तर-
(C) प्रदत्त पद।

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प्रश्न 13.
जो पद व्यक्ति अपनी योग्यता के आधार पर प्राप्त करता है उसे क्या कहते हैं ?
(A) प्राप्त पद
(B) भूमिका पद
(C) प्रदत्त पद
(D) अर्जित पद।
उत्तर-
(D) अर्जित पद।

प्रश्न 14.
प्रदत्त पद का आधार क्या होता है ?
(A) जन्म
(B) आयु
(C) लिंग
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(D) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 15.
अर्जित पद का आधार क्या होता है ?
(A) शिक्षा
(B) पैसा
(C) व्यक्तिगत योग्यता
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(D) उपरोक्त सभी।

II. रिक्त स्थान भरें (Fill in the blanks) :

1. समाज के अलग अलग अन्तर्सम्बन्धित भागों के व्यवस्थित रूप को …………….. कहते हैं।
2. जब एक व्यक्ति को बहुत सी भूमिकाएं प्राप्त हो जाएं तो इसे …………… कहते हैं।
3. ……….. वह स्थिति है जो व्यक्ति को मिलती है तथा निभानी पड़ती है।
4. ………….. प्रस्थिति जन्म के आधार पर प्राप्त होती है।
5. ………….. प्रस्थिति व्यक्ति अपने परिश्रम से प्राप्त करता है।
6. तथा …………….. एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।
उत्तर-

  1. सामाजिक संरचना,
  2. भूमिका प्रतिमान,
  3. प्रस्थिति,
  4. प्रदत्त,
  5. अर्जित,
  6. प्रस्थिति व भूमिका।

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III. सही/गलत (True/False) :

1. सर्वप्रथम शब्द सामाजिक संरचना का प्रयोग हरबर्ट स्पैंसर ने दिया था।
2. समाज के सभी भाग अन्तर्सम्बन्धित होते हैं।
3. स्पैंसर ने पुस्तक The Principle of Sociology लिखी थी।
4. प्रस्थिति तीन प्रकार की होती है।।
5. प्रदत्त प्रस्थिति व्यक्ति परिश्रम से प्राप्त करता है।
6. अर्जित प्रस्थिति व्यक्ति को जन्म से ही प्राप्त हो जाती है।
उत्तर-

  1. सही,
  2. सही,
  3. सही,
  4. गलत,
  5. गलत,
  6. गलत।

IV. एक शब्द/पंक्ति वाले प्रश्न उत्तर (One Wordline Question Answers) :

प्रश्न 1.
सामाजिक संरचना समाज के किस भाग के बारे में बताती है ?
उत्तर-
सामाजिक संरचना समाज के बाहरी भाग के बारे में बताती है।

प्रश्न 2.
सामाजिक संरचना का निर्माण कौन-सी इकाइयां करती हैं ?
उत्तर-
समाज की महत्त्वपूर्ण इकाइयां जैसे कि संस्थाएं, समूह, व्यक्ति इत्यादि सामाजिक संरचना का निर्माण करती है।

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प्रश्न 3.
संरचना की इकाइयों से हमें क्या मिलता है ?
उत्तर-
संरचना की इकाईयों से हमें क्रमबद्धता मिलती है।

प्रश्न 4.
सामाजिक संरचना किस प्रकार की धारणा है ?
उत्तर-
सामाजिक संरचना एक स्थायी धारणा है जो हमेशा मौजूद रहती है।

प्रश्न 5.
सामाजिक संरचना का मूल आधार क्या है ?
उत्तर-
सामाजिक संरचना का मूल आधार आदर्श व्यवस्था है।

प्रश्न 6.
टालक्ट पारसन्ज़ ने कितने प्रकार की सामजिक संरचनाओं के बारे में बताया है ?
उत्तर-
पारसन्ज़ ने चार प्रकार की सामाजिक संरचनाओं के बारे में बताया है।

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प्रश्न 7.
किन समाजशास्त्री ने सामाजिक संरचना को मानवीय शरीर के आधार पर समझाया है ?
उत्तर-
हरबर्ट स्पैंसर ने सामाजिक संरचना को मानवीय शरीर के आधार पर समझाया है।

प्रश्न 8.
क्या सभी समाजों की संरचना एक जैसी होती है ?
उत्तर-
जी नहीं, अलग-अलग समाजों की संरचना अलग-अलग होती है।

प्रश्न 9.
सामाजिक संरचना के कौन-से दो तत्त्व होते हैं ?
उत्तर–
सामाजिक संरचना के दो प्रमुख तत्त्व आदर्शात्मक व्यवस्था तथा पद व्यवस्था होते हैं।

प्रश्न 10.
आधुनिक समाजों की संरचना किस प्रकार की होती है ?
उत्तर-
आधुनिक समाजों की संरचना जटिल होती है।

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प्रश्न 11.
प्राचीन समाजों की संरचना किस प्रकार की होती है ?
उत्तर-
प्राचीन समाजों की संरचना साधारण तथा सरल थी।

अति लघु उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
संरचना क्या होती है ?
उत्तर-
अलग-अलग इकाइयों के क्रमबद्ध रूप को संरचना कहा जाता है। इसका अर्थ है कि अगर अलगअलग इकाइयों को एक क्रम में लगा दिया जाए तो एक व्यवस्थित रूप हमारे सामने आता है जिसे हम संरचना कहते हैं।

प्रश्न 2.
सामाजिक संरचना का निर्माण कौन करता है ?
उत्तर-
सामाजिक संरचना का निर्माण परिवार, धर्म, समुदाय, संगठन, समूह मूल्य, पद इत्यादि जैसी सामाजिक इकाइयां तथा प्रतिमान करते हैं। इनके अतिरिक्त आदर्श व्यवस्था, कार्यात्मक व्यवस्था, स्वीकृति व्यवस्था भी इसमें महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं।

प्रश्न 3.
क्या सामाजिक संरचना अमूर्त होती है ?
उत्तर-
जी हाँ, सामाजिक संरचना अमूर्त होती है क्योंकि सामाजिक संरचना का निर्माण करने वाली संस्थाएँ, प्रतिमान, आदर्श इत्यादि अमूर्त होते हैं तथा हम इन्हें देख नहीं सकते। इस कारण सामाजिक संरचना भी अमूर्त होती

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प्रश्न 4.
टालक्ट पारसन्ज़ ने सामाजिक संरचना के कौन-से प्रकार दिए हैं ?
उत्तर-
पारसन्ज़ ने सामाजिक संरचना के चार प्रकार दिए हैं तथा वे हैं

  1. सर्वव्यापक अर्जित प्रतिमान
  2. सर्वव्यापक प्रदत्त प्रतिमान
  3. विशेष अर्जित प्रतिमान
  4. विशेष प्रदत्त प्रतिमान।

लघु उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
सामाजिक संरचना।
उत्तर-
हमारा समाज कई इकाइयों के सहयोग की वजह से पाया जाता है। ये इकाइयां संस्थाएं, सभाएं, समूह, पद, भूमिका इत्यादि होते हैं। इन इकाइयों के मिश्रण से ही ‘समाज’ का निर्माण नहीं होता बल्कि इन इकाइयों में पाई गई तरतीब के व्यवस्थित होने से होता है। उदाहरण के तौर पर लकड़ी, फैवीकोल, कीलें, पालिश इत्यादि को एक जगह पर रख दिया जाए तो हम उसे मेज़ नहीं कह सकते। बल्कि जब इन सभी को एक विशेष तरतीब में रख दिया जाए तथा उन को तरतीब में जोड़ दिया जाए तो हम मेज का ढांचा तैयार कर सकते हैं। इस तरह हमारे समाज की इकाइयों का निश्चित तरीके से व्यवस्था में पाया जाना सामाजिक संरचना कहलाता है।

प्रश्न 2.
सामाजिक संरचना के चार मुख्य तत्त्व।
उत्तर-
टालक्ट पारसंज़ तथा हैरी० एम० जानसन के अनुसार सामाजिक संरचना के चार मुख्य तत्त्व निम्नलिखित हैं-

  • उप समूह (Sub groups)
  • भूमिकाएं (Roles)
  • सामाजिक परिमाप (Social Norms)
  • सामाजिक कीमतें (Social Values)।

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प्रश्न 3.
टालक्ट पारसंज़ द्वारा दी सामाजिक संरचना की परिभाषा।
उत्तर-
टालक्ट पारसंज़ के अनुसार, “सामाजिक संरचना शब्द को अन्तः सम्बन्धित एजेंसियों तथा सामाजिक प्रतिमानों तथा साथ ही समूह में प्रत्येक सदस्य द्वारा ग्रहण किए पदों तथा भूमिकाओं की विशेष क्रमबद्धता के लिए प्रयोग किया जाता है।”

प्रश्न 4.
सामाजिक संरचना की दो विशेषताएं।
उत्तर-
1. प्रत्येक समाज की संरचना अलग होती है-प्रत्येक समाज की संरचना अलग-अलग होती है क्योंकि समाज में पाए जाने वाले अंगों का सामाजिक जीवन अलग-अलग होता है। प्रत्येक समाज के संस्थागत नियम अलग-अलग होते हैं। इसलिए दो समाजों की संरचना एक सी नहीं होती।

2. सामाजिक संरचना अमूर्त होती है-सामाजिक संरचना अमूर्त होती है क्योंकि इसका निर्माण जिन इकाइयों से होता है जैसे संस्था, सभा, परिमाप इत्यादि सभी अमूर्त होती हैं। इनका कोई ठोस रूप नहीं होता हम केवल इन्हें महसूस कर सकते हैं। इसलिए यह अमूर्त होती हैं।

प्रश्न 5.
सामाजिक संरचना अंतः क्रियाओं की उपज है।
उत्तर-
सामाजिक संरचना में संस्थाओं, सभाओं, परिमापों इत्यादि को एक विशेष तरीके से बताने के लिए कोई योजना नहीं बनाई जाती बल्कि इसका विकास अंतः क्रियाओं के नतीजे के फलस्वरूप पाया जाता है। इसलिए इस सम्बन्ध में चेतन रूप में प्रयत्न करने की आवश्यकता नहीं होती।

प्रश्न 6.
सामाजिक पद या प्रस्थिति।
उत्तर-
व्यक्ति की समूह में पाई गई स्थिति को सामाजिक पद का नाम दिया जाता है। यह स्थिति वह है जिस को व्यक्ति लिंग, भेद, उम्र, जन्म, कार्य इत्यादि की पहचान के विशेष अधिकारों द्वारा प्राप्त करता है तथा अधिकारों के संकेत तथा काम में प्रतिमान द्वारा प्रकट किया जाता है। जैसे कोई बड़ा अफसर आता है तो सभी खड़े हो जाते हैं, यह इज्जत उसके सम्बन्धित पद की वजह से प्राप्त होती है। उसके कामों के साथ सम्बन्धित विशेष प्रतिमानों को ही सामाजिक पद का नाम दिया जाता है।

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प्रश्न 7.
प्रदत्त पद।
उत्तर-
प्रदत्त पद वह पद होता है जिसको व्यक्ति बिना परिश्रम किए प्राप्त करता है। जैसे प्राचीन हिन्दू समाज में जाति प्रथा में ब्राह्मणों को ऊँचा स्थान प्राप्त था। व्यक्ति जिस जाति में पैदा होता था उसका स्थान उस जाति के सामाजिक स्थान के अनुसार होता था। लिंग, जाति, उम्र, रिश्तेदारी इत्यादि प्रदत्त पद के आधार हैं जो बिना किसी प्रयत्न के प्राप्त होते हैं।

प्रश्न 8.
सामाजिक भूमिका।
उत्तर-
हरेक सामाजिक पद के साथ सम्बन्धित कार्य निश्चित होते हैं। इसमें व्यक्ति अपनी स्थिति से सम्बन्धित कार्यों को पूरा करता है तथा अपने अधिकारों का प्रयोग करता है। डेविस के अनुसार व्यक्ति अपने पद की ज़रूरतों को पूरा करने के तरीके अपनाता है। इसको भूमिका कहा जाता है। इस तरह भूमिका से अर्थ व्यक्ति का सम्पूर्ण व्यवहार नहीं बल्कि विशेष स्थिति में करने वाले व्यवहार तक ही सीमित है।

प्रश्न 9.
भूमिका की दो विशेषताएं लिखो।
उत्तर-
1. यह सामाजिक मान्यता द्वारा निर्धारित होते हैं क्योंकि यह संस्कृति का आधार है। सामाजिक कीमतों के विरुद्ध किए जाने वाली भूमिका को स्वीकार नहीं किया जाता।

2. समाज के बीच परिमाप तथा कीमतें परिवर्तनशील होती हैं जिसके फलस्वरूप भूमिका बदल जाती है। अलग-अलग स्कूलों में अलग-अलग भूमिका की महत्ता होती है।

प्रश्न 10.
सामाजिक पद की विशेषताएं।
उत्तर-

  1. हरेक पद का समाज में स्थान होता है।
  2. पद समाज की संस्कृति द्वारा निर्धारित होता है।
  3. पद हमेशा तुलनात्मक होता है।
  4. पद का मनोवैज्ञानिक आधार होता है।
  5. पद के कारण भूमिका निश्चित होती है।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 9 सामाजिक संरचना

प्रश्न 11.
भूमिका की विशेषताएं।
उत्तर-

  1. एक व्यक्ति की कई भूमिकाएं होती हैं।
  2. भूमिका हमारी संस्कृति द्वारा नियमित होती है।
  3. भूमिका कार्यात्मक होती है।
  4. भूमिका परिवर्तनशील होती है।
  5. अलग-अलग भूमिकाओं की अलग-अलग महत्ता होती है।

प्रश्न 12.
भूमिका का महत्त्व।
उत्तर-

  1. भूमिका सामाजिक व्यवस्था तथा संतुलन बनाए रखती है।
  2. भूमिका व्यक्ति की क्रियाओं को संचालित करती है।
  3. भूमिका समाज में कार्यों को बांटती है।
  4. भूमिका अंतः क्रियाओं को नियमित करती है।
  5. भूमिका व्यक्ति को क्रियाशील बनाकर उसके व्यवहार को प्रभावित करती है।

बड़े उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
सामाजिक संरचना के बारे में अलग-अलग समाजशास्त्रियों द्वारा दिए विचारों का विस्तार से वर्णन करें।
उत्तर-
अलग-अलग समाज शास्त्रियों तथा मानव वैज्ञानिकों ने सामाजिक संरचना की परिभाषाएं दी हैं जिनका वर्णन इस प्रकार है-

1. हरबर्ट स्पैंसर के विचार (Views of Herbert Spencer) हरबर्ट स्पैंसर पहला समाजशास्त्री था जिसने समाज की संरचना पर प्रकाश डाला, परन्तु वह स्पष्ट परिभाषा देने में असमर्थ रहा। उसने अपनी किताब Principles of Socioldgy में सामाजिक संरचना के अर्थ को जैविक आधार द्वारा बताया। स्पैंसर ने शारीरिक ढांचे (Organic structure) के आधार पर सामाजिक ढांचे के अर्थों को स्पष्ट करना चाहा।

स्पैंसर के अनुसार शरीर के ढांचे में कई भाग होते हैं जैसे टांगे, बाहें, नाक, कान, मुंह, हाथ इत्यादि। इन सभी भागों में एक संगठित तरीका पाया जाता है जिसके आधार पर यह सारे हिस्से मिल कर शरीर के लिए कार्य करते हैं अर्थात् हमारा शरीर इन अलग-अलग हिस्सों की अन्तर्निर्भरता तथा अन्तर्सम्बन्धता की वजह से ही कार्य करने योग्य होता है। चाहे शारीरिक ढांचे के सभी हिस्से हरेक मनुष्य के ढांचे में एक जैसे होते हैं परन्तु इनकी प्रकार अलग-अलग होती है। इसी वजह से कुछ व्यक्ति लम्बे, छोटे, मोटे, पतले होते हैं। यही हाल सामाजिक ढांचे का है। चाहे इसके सभी हिस्से सभी समाजों में एक जैसे होते हैं परन्तु इनके प्रकार में परिवर्तन होता है। इसी वजह से एक समाज का ढांचा दूसरे समाज से अलग होता है। इस तरह स्पैंसर ने सिर्फ अलग-अलग अंगों के कार्य करने के आधार पर इसको सम्बन्धित रखा परन्तु कार्य के साथ इनकी आपसी सम्बन्धता भी ज़रूरी होती है। स्पैंसर ने बहुत ही सरल अर्थों में सामाजिक संरचना के बारे में अपने विचार दिए जिस वजह से सामाजिक संरचना का.अर्थ काफ़ी अस्पष्ट रह गया है।

2. एस० एफ० नैडल के विचार (Views of S. F. Nadal) नैडल के अनुसार, “मूर्त जनसंख्या हमारे समाज के सदस्यों के बीच एक-दूसरे के प्रति अपने रोल निभाते हुए सम्बन्धों के जो व्यावहारिक प्रतिबन्धित तरीके या व्यवस्था अस्तित्व में आती है उसे समाज की संरचना कहते हैं।”

नैडल के अनुसार संरचना अलग-अलग हिस्सों का व्यवस्थित प्रबन्ध है। यह समाज के सिर्फ बाहरी हिस्से से सम्बन्धित है तथा समाज के कार्यात्मक हिस्से से बिल्कुल ही अलग है। नैडल के संरचना के संकल्प को समझने के लिए उसके एक समाज के संकल्प की व्याख्या को समझना ज़रूरी है। नैडल के अनुसार एक समाज का अर्थ व्यक्तियों के उस समूह से है जिसमें अलग-अलग व्यक्ति संस्थागत सामाजिक आधार पर एक-दूसरे से इस तरह सम्बन्धित रहते हैं कि सामाजिक नियम लोगों के व्यवहारों को निर्देशित तथा नियन्त्रित करते हैं। इस तरह नैडल के एक समाज के अनुसार इसमें तीन तत्त्व हैं तथा वे तत्त्व हैं व्यक्ति, उनमें होने वाली अन्तक्रियाएं तथा अन्तक्रियाओं के कारण उत्पन्न होने वाले सामाजिक सम्बन्ध।

नैडल के अनुसार व्यवस्थित व्यवस्था का सम्बन्ध किसी भी वस्तु की रचना से होता है न कि उसके कार्यात्मक पक्ष से। उदाहरण के तौर पर सितार के कार्यात्मक पक्ष का ध्यान किए बगैर भी अर्थात् इसके सुरों की तरतीब को समझे बगैर भी हम उसकी संरचना या ढांचे का पता कर सकते हैं। इस तरह कई और समाज जिनके कार्यात्मक पक्ष के बारे में हमें बिल्कुल ज्ञान नहीं होता पर फिर भी हम उसकी बाहरी रचना को समझ सकते हैं। इस तरह नैडल के अनुसार समाज का अर्थ व्यक्तियों का वह समूह होता है जिसमें व्यक्ति संस्थात्मक सामाजिक नियम, उनके व्यवहारों को निर्देशित तथा नियमित करते हैं। संक्षेप में हम कह सकते हैं कि समाज के अलग-अलग अंगों में पाए जाने वाले अंगों की आपसी सम्बन्धता की व्यवस्थित या नियमित क्रमबद्धता को ही सामाजिक संरचना कहते हैं।

3. रैडक्लिफ़ ब्राऊन के विचार (Views of Redcliff Brown)-ब्राऊन समाज शास्त्र के संरचनात्मक कार्यात्मक स्कूल से सम्बन्ध रखता था। उसके अनुसार, “सामाजिक संरचना के तत्त्व मनुष्य हैं, संरचना अपने आप में व्यक्तियों में संस्थात्मक, परिभाषित तथा नियमित सम्बन्धों के प्रबन्धों की व्यवस्था है।” ब्राऊन के अनुसार सामाजिक संरचना स्थिर नहीं होती बल्कि एक गतिशील निरन्तरता है। सामाजिक संरचना में भी परिवर्तन आते रहते हैं परन्तु मौलिक तत्त्व नहीं बदलते। संरचना तो बनी रहती है परन्तु कई बार आम संरचना के स्वरूप में परिवर्तन आ जाते हैं।

4. टालक्ट पारसन्ज़ के विचार (Views of Talcott Parsons)-पारसन्ज़ ने भी सामाजिक संरचना को अमूर्त बताया है। पारसन्ज़ के अनुसार, “सामाजिक संरचना शब्द को परस्पर सम्बन्धित संस्थाओं, ऐजंसियों तथा सामाजिक प्रतिमानों तथा साथ ही समूह में हरके सदस्य द्वारा ग्रहण किए गए पदों तथा भूमिकाओं की विशेष तरतीब ‘या क्रमबद्धता के लिए प्रयोग किया जाता है।”

इस समाजशास्त्री के अनुसार जैसे शरीर के अलग-अलग अंगों में परस्पर सम्बन्ध होता है उसी तरह सामाजिक संरचना की अलग-अलग इकाइयों में भी आपसी सम्बन्ध होता है जिस के साथ एक विशेष व्यवस्था कायम होती है तथा इस व्यवस्था के अधीन ही हरेक व्यक्ति समाज में अपनी भूमिका तथा पद को अदा करता है। इन पदों से ही अलग-अलग संस्थाओं का जन्म होता है। जब यह सभी एक विशेष व्यवस्था के साथ संगठित तथा परस्पर ‘सम्बन्धित हो जाते हैं तो ही सामाजिक ढांचा कायम होता है।

इन समाजशास्त्रियों ने सामाजिक संरचना के लिए संस्थाओं, सभाओं, समूहों तथा कार्यात्मक व्यवस्थाओं इत्यादि के अध्ययन को भी शामिल किया है।

उपरोक्त लिखी सामाजिक संरचना की परिभाषाओं के आधार पर हम इसके अर्थों को संक्षेप रूप में इस तरह बता सकते हैं-

  1. सामाजिक संरचना एक अमूर्त संकल्प है।
  2. समाज के व्यक्ति समाज की अलग-अलग इकाइयों जैसे संस्थाएं, सभाएं, समूहों इत्यादि से सम्बन्धित होते हैं। इस वजह से ये संस्थाएं, सभाएं इत्यादि सामाजिक संरचना की इकाइयां हैं।
  3. ये संस्थाएं, समूह इत्यादि एक विशेष तरतीब से एक-दूसरे से सम्बन्धित होते हैं जिससे सामाजिक संरचना में क्रम पैदा होता है।
  4. यह समाज के बाहरी हिस्से से सम्बन्धित होते हैं।
  5. सामाजिक संरचना समय तथा परिवर्तनों से बनती है।
  6. इसमें निरन्तरता तथा गतिशीलता पाई जाती है।

इस तरह हम देखते हैं कि समाज में परिवर्तन आने से इसके अंगों में भी परिवर्तन आ जाता है तथा यह अलगअलग समाजों में अलग-अलग होते हैं। संक्षेप में हम कह सकते हैं कि समाज के अलग-अलग अंग होते हैं। जब यह एक निश्चित तरीके से व्यवस्थित होते हैं तो समाज का एक स्वरूप पैदा होता है जिसे सामाजिक संरचना कहा जाता है।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 9 सामाजिक संरचना

प्रश्न 2.
सामाजिक पद या परिस्थिति के प्रकारों का वर्णन करें।
उत्तर-
पदों के वर्गीकरण के बारे में राल्फ लिंटन ने अपने विचार प्रकट किए हैं तथा उसने पदों को दो भागों में बाँटा है जो कि इस प्रकार हैं

  1. प्रदत्त पद (Ascribd Status)
  2. अर्जित पद (Achieved Status)

प्रत्येक समाज में इन दोनों प्रकारों का प्रयोग किया जाता है जिससे समाज सन्तुलित रहता है। प्रदत्त पद वह होते हैं जो व्यक्ति को जन्म से ही प्राप्त हो जाते हैं तथा व्यक्ति को इनको प्राप्त करने के लिए कोई परिश्रम नहीं करना पड़ता। उदाहरण के लिए किसी अमीर व्यक्ति के घर पैदा हुए बच्चे को जन्म से ही अमीर का पद प्राप्त हो जाता है जिसके लिए उसने कोई परिश्रम नहीं किया होता है।

अर्जित पद वह होता है जो व्यक्ति अपने सख्त परिश्रम से प्राप्त करता है। इसमें व्यक्ति का जन्म नहीं बल्कि इसकी योग्यता तथा परिश्रम प्रमुख होते हैं। अतः समाज में व्यक्ति अपने गुणों के आधार पर स्थिति प्राप्त करता है। उदाहरण के लिए एक I.A.S. अफ़सर जो सख्त परिश्रम करके इस स्थिति तक पहुँचा है। इसे हम अर्जित पद कह सकते हैं।

प्रदत्त पद (Ascribed Status)-व्यक्ति को जो पद बिना किसी निजी परिश्रम के प्राप्त होता है उसे प्रदत्त पद का नाम दिया जाता है। यह पद हमें हमारे समाज की परम्पराओं, प्रथाओं इत्यादि से अपने आप ही प्राप्त हो जाता है। प्राचीन समाज में व्यक्ति प्रदत्त पद तक ही सीमित रहता था। जन्म के बाद ही व्यक्ति को इस पद की प्राप्ति हो जाती थी। सबसे पहले वह उस परिवार से सम्बन्धित हो जाता है जहाँ वह पैदा हुआ है। उसके बाद उस का लिंग उसको पद प्रदान करता है। फिर रिश्तेदारी उससे सम्बन्धित हो जाती है। यह स्थिति व्यक्ति को उस समय प्राप्त होती है जब समाज को उसके गुणों का पता नहीं होता। समाजीकरण की प्रक्रिया के द्वारा उसको समाज में पद प्राप्त होते हैं। समाज व्यक्ति को कुछ नियमों के आधार पर बिना उसके परिश्रम किए कुछ पद प्रदान करता है तथा वह आधार निम्नलिखित हैं-

1. लिंग (Sex)-समाज में व्यक्ति को लिंग के आधार पर अलग किया जाता है जिसके लिए लड़का-लड़की, औरत-आदमी जैसे शब्दों का प्रयोग किया जाता है। जैविक पक्ष से भी इन दोनों लिंगों में कुछ भिन्नताएं पायी जाती हैं। अगर हम प्राचीन समय को देखें तो पता चलता है कि उन समाजों में कार्यों को लिंग के आधार पर बाँटा जाता था। इसलिए स्त्रियों का कार्य घर की देखभाल करना होता था तथा पुरुषो का कार्य घर से बाहर जाकर शिकार करना, कन्दमूल इकट्ठे करना था। शारीरिक तौर पर इन दोनों लिंगों में भिन्नताएं होती थीं। कुछ कार्य तो जैविक तौर पर ही सीमित रहते थे।

चाहे आजकल के समाजों में स्त्रियों तथा पुरुषों की योग्यताओं में काफ़ी समानता होती है परन्तु लिंग के आधार पर पायी गयी स्थिति अभी भी पूरी तरह खत्म नहीं हुई है। इस वजह से कई समाजों में तो आज भी औरत तथा मर्द के पद में काफ़ी भिन्नता पायी जाती है। उसका दर्जा आदमी से काफ़ी निम्न था। भारतीय जाति प्रथा में औरतें शिक्षा नहीं ले सकती थीं। जन्म के बाद वह सीधे ही ब्रह्मचार्य आश्रम की बजाय गृहस्थ आश्रम में प्रवेश करती थीं। यहां तक कि कई क्षेत्रों में लड़की को पैदा होने के साथ ही मार दिया जाता था। हिन्दू धार्मिक ग्रन्थों के अनुसार घर में पुत्र होना ज़रूरी है वरना मुक्ति प्राप्त नहीं हो सकती।

2. आयु के आधार पर स्थिति (Status on the basis of age) आयु भी अलग-अलग समाजों में पद बताने का महत्त्वपूर्ण आधार रही है। यह एक जैविक आधार है जिसको व्यक्ति बिना परिश्रम के प्राप्त करता है। हैरी एम० जानसन ने भी आयु के आधार पर व्यक्ति की अलग-अलग अवस्थाओं को बताया है-

आयु के आधार पर पायी गई अलग-अलग अवस्थाओं में व्यक्ति के पद क्रम में भी परिवर्तन आ जाता है। इन अवस्थाओं के साथ ही समाज की संस्कृतियां भी जुड़ी होती हैं। प्राचीन समाज में सबसे बड़ी आयु के व्यक्ति द्वारा समाज पर नियन्त्रण होता था। भारत में भी विवाह के लिए उम्र सीमा, वोट देने के लिए भी आयु एक कारक है। आयु के अनुसार व्यक्ति को समाज में स्थिति भी अलग-अलग तरीके से प्राप्त होती है। परिवार की उदाहरण ही ले लो। आयु के मुताबिक ही परिवार में बच्चे को उच्च या निम्न समझा जाता है। छोटी आयु वाले की हरेक बात को मज़ाक में लिया जाता है। जब वह जवान हो जाता है तो पहले उस की आदतों का ध्यान रखा जाता है तथा उससे अच्छे कार्य करने की उम्मीद की जाती है। आमतौर पर यह शब्द प्रयोग किए जाते हैं कि, “अब तू बड़ा हो गया है, तेरी आयु कम नहीं है, ध्यान से बोला कर” इत्यादि। आयु के मुताबिक ही समाज में भी व्यक्ति को सज़ा अलग-अलग तरीकों से दी जाती है। आधुनिक समाज में आयु के आधार पर पाए गए पद क्रम में भी परिवर्तन आ गया है क्योंकि कई बच्चे, जो अपनी उम्र से ज्यादा प्रतिभाशाली होते हैं, उनका समाज में ज्यादा सम्मान होता

3. रिश्तेदारी (Kinship)—प्राचीन समाज में भी रिश्तेदारी इतनी महत्त्वपूर्ण होती थी कि व्यक्ति को उसी आधार पर उच्च या निम्न जाना जाता था। एक राजा का बेटा राजकुमार कहलाता था। उसकी समाज में इज्जत राजा के बराबर ही होती थी। बच्चे की पहचान ही परिवार या रिश्तेदारी के आधार पर होती थी। बच्चे तथा परिवार का विशेष सम्बन्ध होता था। जाति प्रथा में तो बच्चे को जन्म से ही जाति प्राप्त होती थी जिससे सम्बन्धित उसकी रिश्तेदारी थी। इसका अर्थ है कि जाति प्रथा में उसको पारिवारिक स्थिति ही प्राप्त होती थी। परिवार के द्वारा ही समाज में व्यक्ति की पहचान होती थी। राजा अपने बच्चे को शुरू से ही घुड़सवारी, हथियारों का प्रयोग करने की शिक्षा दिलाते थे क्योंकि उनको अपने बच्चों को इस प्रकार की योग्यताएं देनी होती थीं। बड़ा होकर हरेक बच्चे को अपने परिवार का कार्य आगे बढ़ाना होता था। बच्चा, यहां तक कि आज भी, अपनी पारिवारिक योग्यता लेकर आगे बढ़ता है। टाटा, बिड़ला के बच्चों की स्थिति निश्चित तौर पर आम आदमी के बच्चों से उच्च होगी।

4. सामाजिक कारक (Social Factors)-कई समाजों में व्यक्तियों को अलग-अलग समूहों में वर्गीकृत किया होता था तथा इन समूहों के बीच पदक्रम की व्यवस्था होती थी अर्थात् इनको उच्च या निम्न समझा जाता था। इन समूहों का वर्गीकरण अलग-अलग कार्यों के आधार पर या योग्यता इत्यादि के आधार पर किया होता था। जैसे कि अध्यापक, अफसर इत्यादि। इस में अपने समूह से सम्बन्धित लोगों में मेल जोल होता था।

अर्जित पद (Achieved Status)—समाज में बच्चे के समाजीकरण की प्रक्रिया के लिए प्रदत्त पद की अपनी ही महत्ता होती है। परन्तु समाज आधुनिक समय में इतने ज्यादा जटिल हो गए हैं कि केवल प्रदत्त पद के आधार पर व्यक्ति के पदक्रम को हम सीमित नहीं कर सकते क्योंकि अगर समाज के व्यक्तियों को खुलकर योग्यता प्रकट करने न दें तो कभी भी समाज प्रगति नहीं कर सकता। हरेक व्यक्ति अलग क्षेत्र में प्रगतिशील होता है क्योंकि कोई भी दो व्यक्तियों की योग्यता एक जैसी नहीं होती है। व्यक्तियों की योग्यताओं की पहचान के लिए हम उनको आगे बढ़ने का मौका देते हैं तथा इसके आधार पर उसको समाज में स्थिति प्रदान करते हैं।

प्राचीन समाजों में सिर्फ प्रदत्त पद ही महत्त्वपूर्ण होता था क्योंकि वह समाज साधारण होते थे तथा श्रेणी रहित होते थे। उनका कार्य सिर्फ जीवित रहने तक ही सीमित होता था। परन्तु जैसे-जैसे समाज जटिल होते गए उसी तरह व्यक्ति की योग्यता पर ज्यादा जोर दिया जाने लग गया। अर्जित पद के आधार पर व्यक्ति को समाज में स्थान प्राप्त हुआ। आधुनिक समाज ने तो व्यक्ति को पूर्ण मौके भी प्रदान किए हुए हैं ताकि उसकी योग्यता उसको परिणाम भी दे।

अर्जित पद में व्यक्ति की योग्यताओं की परख सामाजिक कीमतों के आधार पर होती है। आधुनिक समाज में जैसे-जैसे समाज में परिवर्तन आ रहे हैं उसी तरह अर्जित पद में भी परिवर्तन आ रहे हैं। समाज की ज़रूरतों के मुताबिक इन को सीमित किया होता है। जैसे किसी देश में राष्ट्रपति के पद के लिए समय निश्चित किया होता है। उस समय के बाद कोई भी व्यक्ति उस पद को प्राप्त कर सकता है। श्रम विभाजन तथा विशेषीकरण व्यक्ति को स्थिति परिवर्तन के कई मौके प्रदान करते हैं। आधुनिक पूँजीवादी समाज में धन की महत्ता ज्यादा होती है क्योंकि इसके आधार पर व्यक्ति को उच्च या निम्न जाना जाता है। औद्योगीकरण के कारण कई पेशे तकनीकी प्रकृति के हैं, जिनको प्रदत्त पद के आधार पर नहीं बाँटा जा सकता।

अर्जित पद व्यक्ति के अपने यत्नों या परिश्रम से प्राप्त होता है जिसको शिक्षा, धन, कुशलता, पेशे इत्यादि के आधार के साथ सम्बन्धित रखा जाता है। इस पद के द्वारा व्यक्ति अपने व्यक्तित्व का पूर्ण विकास कर सकता है। इसमें व्यक्तिवादी प्रवृत्ति को पूर्ण प्रोत्साहन मिलता है।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 9 सामाजिक संरचना

सामाजिक संरचना PSEB 11th Class Sociology Notes

  • समाजशास्त्र के बहुत से मूल संकल्प हैं तथा सामाजिक संरचना उनमें से एक है। सबसे पहले इस शब्द का प्रयोग प्रसिद्ध समाजशास्त्री हरबर्ट स्पैंसर ने किया था। उनके बाद बहुत से समाजशास्त्रियों जैसे कि टालक्ट पारसन्ज, रैडक्लिफ ब्राऊन, मैकाइवर इत्यादि ने भी इसके बारे में काफ़ी कुछ लिखा।
  • हमारे समाज के बहुत से अंग होते हैं जो एक-दूसरे के साथ किसी न किसी रूप से जुड़े होते हैं। यह सभी अंग अन्तर्सम्बन्धित होते हैं। इस सभी भागों के व्यवस्थित रूप को सामाजिक संरचना का नाम दिया जाता है। यह चाहे अमूर्त होते हैं परन्तु हमारे जीवन को निर्देशित करते रहते हैं।
  • सामाजिक संरचना की बहुत सी विशेषताएँ होती हैं जैसे कि यह अमूर्त होती है, इसके बहुत से अत : सम्बन्धित अंग होते हैं, इन सभी अंगों में एक व्यवस्था पाई जाती है, यह सभी व्यवहार को निर्देशित करते हैं, यह सर्वव्यापक होते हैं, यह समाज के बाहरी रूप को दर्शाते हैं।
  • हरबर्ट स्पैंसर ने एक पुस्तक लिखी ‘The Principal of Sociology’ जिसमें उन्होंने सामाजिक संरचना शब्द का जिक्र किया तथा उसकी तुलना जीवित शरीर से की। उसने कहा जैसे शरीर के अलग-अलग अंग शरीर को ठीक ढंग से चलाने के लिए आवश्यक होते हैं, उस प्रकार से सामाजिक संरचना के अलग-अलग अंग भी संरचना को चलाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं।
  • सामाजिक संरचना के बहुत से तत्त्व होते हैं जिनमें प्रस्थिति तथा भूमिका काफ़ी महत्त्वपूर्ण है। प्रस्थिति का अर्थ वह रूतबा या स्थिति है जो व्यक्ति को समाज में रहते हुए दी जाती है। एक व्यक्ति की बहुत सी प्रस्थितियां होती हैं जैसे कि अफसर, पिता, पुत्र, क्लब का प्रधान इत्यादि।
  • प्रस्थितियां दो प्रकार की होती हैं-प्रदत्त तथा अर्जित। प्रदत्त प्रस्थिति वह होती है जो व्यक्ति को बिना किसी परिश्रम में स्वयं ही प्राप्त हो जाती है। अर्जित प्रस्थिति व्यक्ति को स्वयं ही प्राप्त नहीं होती बल्कि वह अपने परिश्रम से इन्हें प्राप्त करता है।
  • भूमिका उम्मीदों का वह गुच्छा है जिसकी व्यक्ति से पूर्ण करने की आशा की जाती है। प्रत्येक प्रस्थिति के साथ कुछ भूमिकाएं भी लगा दी जाती हैं। भूमिका से ही पता चलता है कि हम किस प्रकार एक प्रस्थिा पर रहते हुए किसी विशेष समय व्यवहार करेंगे।
  • भूमिका की कई विशेषताएं होती हैं जैसे कि भूमिका सीखी जाती है, भूमिका प्रस्थिति का कार्यात्मक पक्ष है, भूमिका के मनोवैज्ञानिक आधार हैं इत्यादि।
  • प्रस्थिति तथा भूमिका के बीच गहरा संबंध है क्योंकि यह दोनों एक सिक्के के दो पहलू हैं। अगर किसी व्यक्ति को कोई प्रस्थिति प्राप्त होगी तो उससे सम्बन्धित भूमिकाएं भी स्वयं ही मिल जाएंगी। बिना भूमिका के प्रस्थिति का कोई लाभ नहीं है तथा बिना प्रस्थिति के भूमिका नहीं निभाई जा सकती।
  • सामाजिक संरचना (Social Structure)-अलग-अलग व्यवस्था के क्रमवार रूप को व्यवस्थित करना।
  • भूमिका सैट (Role Set)-जब एक व्यक्ति को बहुत-सी भूमिकाएं प्राप्त हो जाएं।
  • भूमिका संघर्ष (Role Conflict)—जब एक व्यक्ति को बहुत-सी भूमिकाएं प्राप्त हों तथा उन भूमिकाओं में संघर्ष उत्पन्न हो जाए।
  • भूमिका (Role) विशेष परिस्थिति को संभालने वाले व्यक्ति से विशेष प्रकार की आशा करना।
  • प्रस्थिति (Status)—वह स्थिति जो व्यक्ति को मिलती है तथा निभानी पड़ती है।
  • प्रदत्त प्रस्थिति (Ascribed Status)—वह स्थिति किसी व्यक्ति को जन्म या किसी अन्य आधार पर दी जाए।
  • अर्जित प्रस्थिति (Achieved Status)—वह स्थिति जो व्यक्ति अपने परिश्रम से प्राप्त करता है।

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 9 दक्षिण के राज्य

Punjab State Board PSEB 11th Class History Book Solutions Chapter 9 दक्षिण के राज्य Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 History Chapter 9 दक्षिण के राज्य

अध्याय का विस्तृत अध्ययन

(विषय-सामग्री की पूर्ण जानकारी के लिए)

प्रश्न 1.
शासक वर्ग के सन्दर्भ में बाहमनी राज्य की स्थापना, विकास तथा विघटन के बारे में बताएं।
उत्तर-
बाहमनी राज्य दक्षिण भारत का एक महत्त्वपूर्ण राज्य था जिसका संस्थापक हसन गंगू था। इस राज्य की स्थापना 11347 ई० में तुग़लक वंश की कमजोरी का परिणाम था। तत्पश्चात् 1526 ई० तक यह राज्य दक्षिण भारत के राजनीतिक भानचित्र का अभिन्न अंग बना रहा। इस सारी अवधि में इस राज्य पर अठारह शासकों ने राज्य किया। 1422 ई० तक इस राज्य की राजधानी गुलबर्गा रही, परन्तु इसके पश्चात् बीदर को बाहमनी राज्य की राजधानी बनने का श्रेय प्राप्त हुआ।

I. स्थापना एवं विकास-

बहमनी राज्य की स्थापना एवं विकास का अध्ययन निम्नलिखित तीन चरणों में किया जा सकता है
पहला चरण-मुहम्मद तुग़लक के शासन काल में दिल्ली सल्तनत का विघटन आरम्भ हो गया था। प्रान्तीय गवर्नर अपने आप को स्वतन्त्र घोषित करने लगे थे। इसी समय दक्षिण में दौलताबाद के दरबारियों ने ‘इस्माइल मख’ को राजगद्दी पर बिठाया। चूंकि इस्माइल खां अब वृद्ध हो चला था, इसलिए उसने 1347 ई० में हसन गंगू नामक एक नवयुवक तथा शक्तिशाली दरबारी को अपना राज्य सौंप दिया। हसन ने “अलाऊद्दीन बहमन शाह” की उपाधि धारण की और बाहमनी राज्य की नींव रखी। उसने अनेक छोटे-छोटे अभियान किए तथा कोटगीर, मोरण, मोहिन्दर तथा कल्याणी के नगर व दुर्ग अपने अधिकार में लिए। इस प्रकार उत्तर-पूर्व में माहूर तक तथा दक्षिण में तेलंगाना तक का सारा प्रदेश उसके राज्य का अंग बन गया।

तत्पश्चात् उसने वारंगल के एक हिन्दू शासक को पराजित करके कौलास के दुर्ग पर अधिकार कर लिया। अपने राज्यकाल के अन्तिम वर्षों में उसने कोल्हापुर, गोआ, माण्डू, मालवा आदि प्रदेशों पर विजय प्राप्त की। हसन की मृत्यु के बाद उसने पुत्र मुहम्मद शाह प्रथम ने भी अपने पिता के विजय कार्य को जारी रखा। उसने वारंगल और विजयनगर के हिन्दू शासकों को परास्त किया तथा गोलकुण्डा के प्रदेशों को अपने राज्य का अंग बना लिया। उसके शासन काल में बाहमनी राज्य का विजयनगर राज्य के साथ एक लम्बा संघर्ष आरम्भ हो गया।

विस्तार का दूसरा चरण-मुहम्मद शाह प्रथम की मृत्यु के बाद लगभग 20 वर्षों तक बाहमनी राज्य की सीमाओं में कोई विस्तार न हो सका। तत्पश्चात् 1397 ई० में फिर फिरोजशाह बाहमनी साम्राज्य का शासक बना। उसने एक बार फिर से वारंगल तथा विजयनगर के राज्यों पर आक्रमण किया तथा अपने राज्य का राजामुन्द्री तक विस्तार कर लिया। परन्तु 1420 ई० में यह विजयनगर के शासक देवराय द्वितीय से पराजित हुआ और बाहमनी राज्य के पूर्वी तथा दक्षिणी ज़िले विजयनगर राज्य के अंग बन गए। फिरोजशाह की मृत्यु के बाद अहमदशाह बाहमनी ने गुलबर्गा के स्थान पर बीदर को अपनी राजधानी बनाया। उसने वारंगल के राजा पर आक्रमण करके 1425 ई० में उसके राज्य को अपने साम्राज्य में मिला लिया। उसने विजयनगर के बुक्का तृतीय से भी नज़राना प्राप्त किया।

तीसरा चरण तथा सबसे बड़ी सीमाएं-अहमदशाह के पश्चात् अलाऊद्दीन द्वितीय बाहमनी राज्य का शासक बना। उसकी गुजरात तथा मालवा के शासकों से टक्कर हुई। उसने विजयनगर राज्य से मिलने वाला वार्षिक कर भी वसूल किया। उसकी एक अन्य सफलता कोंकण प्रदेश की विजय थी। भले ही उसने कोंकण प्रदेश के कुछ ही भागों को विजय किया था, परन्तु उसके एक उत्तराधिकारी मुहम्मदशाह तृतीय ने यह सारे का सारा प्रदेश बाहमनी राज्य में मिला लिया। मुहम्मदशाह तृतीय ने अपने योग्य प्रधानमन्त्री महमूद गवां की सहायता से वारंगल के पूर्व में स्थित राजामुन्द्री के प्रदेश पर भी विजय प्राप्त की। इस प्रकार 15वीं शताब्दी के अन्त तक बाहमनी राज्य की सीमाएं समुद्र के एक किनारे से दूसरे किनारे तक ताप्ती नदी के ऊपरी प्रदेश से लेकर तुंगभद्रा नदी तक फैल गईं। यही इस राज्य की सबसे बड़ी सीमाएं थीं।

II. बाहमनी राज्य का विघटन

बाहमनी राज्य का पतन महमूदशाह के समय में आरम्भ हुआ। वह बड़ा ही ऐश्वर्य प्रिय राजा था तथा सदा सुरा तथा सुन्दरी के चक्कर में पड़ा रहता था। शासन-कार्यों में उसकी कोई रुचि न थी। अतः शासन की वास्तविक शक्ति उसके मन्त्री बरीद के हाथों में रही। सुल्तान अपने 36 वर्ष (1482 ई० से 1518 ई०) के लम्बे शासन काल में विद्रोहों में उलझे रहने के अतिरिक्त कुछ न कर सका। सारे साम्राज्य में अव्यवस्था फैल गई। प्रान्तीय गवर्नरों ने अपने आप को बाहमनी राज्य से स्वतन्त्र घोषित कर दिया। इनमें से सबसे पहले 1490 ई० में अहमदनगर का शासक मलिक अहमद स्वतन्त्र हुआ। उसका अनुसरण करते हुए बीजापुर के तर्फदार यूसुफ़ आदिल खां तथा बरार के तर्फदार फतेह उल्लाह इमादुलमुल्क ने अपनी स्वतन्त्रता की घोषणा कर दी। तत्पश्चात् गोलकुण्डा का राज्य स्वतन्त्र हुआ। बीदर में बरीद के पुत्र ने अपने आप को स्वतन्त्र घोषित करके बरीदुलमुल्क की उपाधि धारण कर ली। इस प्रकार 16वीं शताब्दी के आरम्भ तक बाहमनी राज्य पांच स्वतन्त्र मुस्लिम रियासतों में बंट गया।

पतन के कारण (शासन-प्रबन्ध तथा शासक वर्ग की भूमिका)-बाहमनी राज्य की पतन की प्रक्रिया में यों तो अनेक कारणों का हाथ रहा, परन्तु शासन-प्रबन्ध के गलत संगठन तथा शासक वर्ग के विवेकहीन कार्यों से इस राज्य का पतन बड़ी तीव्रता से होने लगे। बाहमनी शासक अपनी विवेकपूर्ण नीति के कारण शासन को संगठित एवं स्थायी रूप प्रदान करने में असफल रहे। फलस्वरूप अमीरों के आपसी मतभेद काफ़ी बढ़ गए। दूसरे, सुल्तानों ने हिन्दुओं के प्रति असहनशीलता की नीति अपनाई जिससे राज्य की बहुसंख्यक हिन्दू जनता आरम्भ से ही बाहमनी शासकों के विरुद्ध हो गई। बाहमनी शासकों ने देशी अमीरों की अपेक्षा विदेशी अमीरों पर अधिक विश्वास किया। अतः उन्होंने यहां अनेक विदेशी अमीरों को भर्ती कर लिया। फलस्वरूप एक तो देशी और विदेशी अमीरों में आपसी शत्रुता पैदा हो गई। दूसरे, महमूद गवां को छोड़कर अन्य किसी भी अमीर ने राजभक्ति न दिखाई। अतः बाहमनी सुल्तानों को न तो देशी अमीरों का ही साथ मिल सका और न ही विदेशी अमीरों का। यह बात भी बाहमनी शासकों की असफलता का कारण बनी और बाहमनी राज्य का पतन तीव्रता से होने लगा।

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 9 दक्षिण के राज्य

प्रश्न 2.
राज्य प्रबन्ध के सन्दर्भ में विजयनगर साम्राज्य की स्थापना, विकास तथा पतन की चर्चा करें।
उत्तर-
विजयनगर का राज्य कृष्णा और कावेरी नदियों के मध्य स्थित था। इस राज्य की नींव संगम वंश के दो भाइयों हरिहर तथा बक्का राय ने रखी। इस राज्य की स्थापना के विषय में दो किंवदन्तियां प्रचलित हैं। पहली किंवदन्ती के अनुसार मुहम्मद तुग़लक ने 1323 ई० में जब वारंगल पर आक्रमण किया तो वह वहाँ से हरिहर तथा बुक्का राय नामक दो भाइयों को बन्दी बना कर अपने साथ दिल्ली ले गया।

ये दोनों भाई वारंगल के शासक प्रताप रुद्रदेव तृतीय के यहां नौकरी करते थे। मुहम्मद तुग़लक ने दक्षिण के विद्रोही राज्यों में कई गर्वनर भेजे। यह बात वहां के हिन्दुओं से सहन न हुई। उन्होंने मुस्लिम साम्राज्य के विरुद्ध विद्रोह कर दिया। स्थिति पर नियन्त्रण पाने के लिए मुहम्मद तुग़लक ने हरिहर तथा बुक्का को दक्षिण में भेजा। उन्होंने रायचूर दोआब में फैली अराजकता का दमन करके शान्ति की स्थापना की। इस कार्य में उनकी सहायता उस समय के प्रकाण्ड पण्डित विद्यारण्य (Vidyaranya) ने की। अपने इसी गुरु के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने के लिए उन्होंने तुंगभद्रा नदी के दक्षिणी किनारे पर एक नगर की स्थापना की तथा उसका नाम विद्यानगर अथवा ‘विजयनगर’ रखा। मुहम्मद तुग़लक के शासन के उत्तरार्द्ध (later half) में दिल्ली सल्तनत का पतन आरम्भ हो गया। दक्षिण राज्यों के मुसलमान गवर्नरों ने दिल्ली के सुल्तान के विरुद्ध विद्रोह शुरू कर दिया। अवसर का लाभ उठा कर इन दोनों भाइयों ने भी अपने आपको स्वतन्त्र घोषित कर दिया। __ इनके द्वारा स्थापित विद्यानगर आगे चलकर एक विशाल साम्राज्य की राजधानी बनी जो विजयनगर के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

विजयनगर साम्राज्य तीन शताब्दियों से भी अधिक समय तक स्थापित रहा। इस समय में इस साम्राज्य पर चार राजवंशों ने शासन किया-

  1. संगम वंश, 1336-1485 ई०
  2. सल्लुव वंश, 1485-1505 ई०
  3. तल्लुव वंश, 1505-1570 ई० तक
  4. अरवीदु वंश, 1570-1674 ई०।

साम्राज्य का विकास एवं विघटन-

संगम वंश का प्रथम शासक हरिहर (1336-1357 ई०) था। उसने अपनी शक्ति दृढ़ करने के लिए विजयनगर में एक विशाल दुर्ग का निर्माण करवाया तथा सभी महत्त्वपूर्ण सैनिक स्थानों की किलेबन्दी की। हरिहर की मृत्यु के पश्चात् उसका भाई बुक्का (1357-1377 ई०) विजयनगर का शासक बना। उसने पड़ोसी राज्यों से युद्ध करके अपने राज्य की सीमाओं का विस्तार किया। उसका अधिकांश समय बाहमनी सुल्तान से युद्ध करने में ही व्यतीत हुआ। बुक्का की मृत्यु के पश्चात् उसका पुत्र हरिहर द्वितीय (1377-1404 ई०) विजयनगर राज्य का प्रथम स्वतन्त्र शासक बना जिसने महाराजाधिराज की उपाधि धारण की। अपने शासन काल में उसने केरल, त्रिचनापल्ली तथा कांची हिन्दू राज्यों पर विजय पाकर विजयनगर राज्य का विस्तार किया। इस राजवंश का एक अन्य प्रसिद्ध शासक देवराज प्रथम (1406-1422 ई०) था। 1420 ई० में उसने बाहमनी शासक फिरोज़ को पराजित किया। देवराज द्वितीय संगम वंश का एक महान् शासक था। उसने रायचूर दोआब पर विजय प्राप्त की और राजामुन्द्री के सामन्तों को पराजित किया। इस प्रकार विजयनगर साम्राज्य कन्याकुमारी से लेकर कृष्णा नदी तक तथा दक्षिणी उड़ीसा से मलाबार तट तक फैल गया। देवराय द्वितीय के उत्तराधिकारियों के समय में विजयनगर साम्राज्य के बाहमनी शासकों ने बड़ी क्षति पहुंचाई।

विजयनगर साम्राज्य का दूसरा राजवंश सल्लुव वंश था। इसकी नींव नरसिंह वर्धन ने रखी थी। उसने संगम वंश के अन्तिम शासक वीरुपक्ष को गद्दी से उतार कर स्वयं को विजयनगर का शासक घोषित किया तथा विजयनगर में सल्लुव वंश की स्थापना की। नरसिंह वर्धन ने केवल छः वर्ष तक शासन किया। वह बड़ा वीर तथा योग्य शासक था। उसने उड़ीसा के कुछ भाग पर अधिकार करके अपने राज्य की सीमा का विस्तार किया। नरसिंह वर्धन की मृत्यु के पश्चात् उसका अयोग्य पुत्र शासन की बागडोर अधिक देर तक न सम्भाल सका।

शेष भाग पर 1570 ई० में रामराय के भाई तिरुमल ने अपना अधिकार करके वहां अरवीदु वंश की नींव रखी। यह वंश लगभग 1674 ई० तक सत्तारूढ़ रहा। इस वंश के लगभग सभी शासक अयोग्य तथा दुर्बल सिद्ध हुए। वे अपने राज्य की सीमाओं की रक्षा करने में असफल रहे। उनकी दुर्बलता का लाभ उठाकर धीरे-धीरे सभी प्रान्तीय गवर्नर स्वतन्त्र होते गए। कुछ प्रदेश बीजापुर और गोलकुण्डा के राज्यों ने अपने अधिकार में ले लिए। अरवीदु वंश का अन्तिम शासक इंग तृतीय तो बिल्कुल ही निर्बल सिद्ध हुआ। उसके शासनकाल में राज्य का उत्तरी भाग मुसलमानों ने हथिया लिया और दक्षिणी भाग के बचे-खुचे प्रदेशों में नायकों ने अपने स्वतन्त्र राज्य स्थापित कर लिए। इस प्रकार 1674 ई० तक विजयनगर राज्य का अस्तित्व ही मिट गया।

पतन के कारण-

  1. इस राज्य की सारी शक्ति राजा के हाथ में थी। शासन में प्रजा का कोई योगदान नहीं था। इसलिए संकट के समय प्रजा ने अपने राजा का साथ न दिया।
  2. इस राज्य में सिंहासन प्राप्ति के लिए प्रायः गृह युद्ध चलते रहते थे। इन युद्धों ने राज्य की शक्ति नष्ट कर दी।
  3. कृष्णदेव राय के पश्चात् इस राज्य के सभी शासक निर्बल थे।
  4. विजयनगर के शासकों को बाहमनी राजवंश के साथ युद्ध करने पड़े। इन युद्धों में विजयनगर राज्य की शक्ति को बड़ी क्षति पहुंची।
  5. तालीकोटा की लड़ाई में विजयनगर का शासक मारा गया। इस लड़ाई के तुरन्त पश्चात् इस राज्य का पूरी तरह पतन हो गया।

शासन (राज्य) प्रबन्ध-

विजयनगर के केन्द्रीय शासन का मुखिया सम्राट् था। उसके पास असीम शक्तियां तथा अधिकार थे। अपनी सहायता के लिए उसने एक मन्त्रिपरिषद् की व्यवस्था की हुई थी। इसमें मन्त्री, पुरोहित, सेनापति आदि सम्मिलित थे। इनकी नियुक्ति सम्राट् स्वयं करता था। उसका सारा राज्य लगभग 200 प्रान्तों में बंटा हुआ था। प्रत्येक प्रान्त का शासन प्रबन्ध एक प्रान्तपति के हाथ में होता था। ये प्रान्तपति या तो राज घराने से सम्बन्धित होते थे या फिर कोई शक्तिशाली अमीर होते थे। प्रत्येक प्रान्त को जिलों में बांटा गया था। इन्हें नाडू तथा कोट्टम कहा जाता था। जिले परगनों में तथा परगने गांवों में बंटे होते थे। गांव का शासन प्रबन्ध ग्राम पंचायतों को सौंपा हुआ था। इन सभी संस्थाओं के प्रमुख अधिकारी को आयगर कहा जाता था। गांवों में आयगर तथा प्रान्तों में प्रान्तपति अथवा सूबेदार न्याय कार्य करते थे। परन्तु न्याय का मुख्य अधिकारी स्वयं सम्राट् था। दण्ड बड़े कठोर थे। घोर अपराधों के लिए अंग-भंग का दण्ड दिया जाता था, परन्तु साधारण अपराधों पर जुर्माना किया जाता था। राज्य की आय का मुख्य साधन भूमि कर था। किसानों की उपज का 1/6 से 1/4 भाग भूमि कर के रूप में भूमिपति को देना पड़ता था। विजयनगर राज्य के शासकों के पास एक शक्तिशाली सेना भी थी।

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प्रश्न 3.
विजयनगर तथा बाहमनी साम्राज्यों के प्रशासन काल तथा भवन निर्माण पर लेख लिखें।
उत्तर-
विजयनगर तथा बाहमनी दोनों ही साम्राज्य 14वीं शताब्दी से लेकर 16वीं शताब्दी तक दक्षिण भारत के महत्त्वपूर्ण राज्य थे। विजयनगर एक हिन्दू राज्य था परन्तु बाहमनी एक मुस्लिम राज्य था। इन साम्राज्यों के प्रशासन, कला तथा भवन निर्माण का अलग-अलग वर्णन इस प्रकार है

I. विजयनगर साम्राज्य-

1. प्रशासन-विजयनगर के केन्द्रीय शासन का मुखिया सम्राट होता था। शासन की सभी शक्तियां उसके हाथ में होती थीं। राजा की सहायता के लिए मन्त्रिपरिषद् की व्यवस्था भी की हुई थी। विजयनगर राज्य 200 से भी अधिक प्रान्तों में बंटा हुआ था। प्रान्त के मुखिया को प्रान्तपति अथवा नायक कहा जाता था। ये प्रान्तपति या तो राज घराने से सम्बन्ध रखते थे या फिर कोई शक्तिशाली अमीर होते थे। शासन की सुविधा के लिए प्रत्येक प्रान्त को जिलों में बांटा गया था। जिले आगे परगनों में तथा परगने गांवों में बंटे होते थे। राज्य की सुरक्षा के लिए एक शक्तिशाली सेना की व्यवस्था थी। सेना में हाथी, घोड़े तथा पैदल सैनिक होते थे। राज्य का मुख्य न्यायाधीश स्वयं राजा होता था। प्रान्तों में प्रान्तपति अथवा सूबेदार न्याय करते थे। दण्ड बहुत कठोर थे। भूमिकर राज्य की आय का मुख्य साधन था।

2. कला तथा भवन-निर्माण-विजयनगर के शासक बड़े ही कला-प्रेमी थे। उन्होंने मूर्तिकला और भवन निर्माण को विशेष रूप से संरक्षण प्रदान किया। चोल राज्य की भान्ति विजयनगर के मूर्तिकाल भी कांसे की मूर्तियां ढालने में बड़े निपुग थे। राजा कृष्णदेव राय का कांसे का बुत विजयनगर राज्य की मूर्तिकला का सबसे सुन्दर नमूना था। विजयनगर राज्य की भवन निर्माण की झलक हमें उनके बनवाए गए दुर्गों, भव्य महलों और सुन्दर मन्दिरों में दिखाई देती है। यहां के शासकों ने अनेक प्राचीन मन्दिरों को विशाल रूप दिया और कई नए मन्दिरों का निर्माण करवाया। उनके द्वारा बनवाए गए मन्दिर केवल विजयनगर तक ही सीमित नहीं हैं। ये तुंगभद्रा नदी के दक्षिण के सारे प्रदेशों में बने हुए हैं। इन मन्दिरों के उत्कृष्ट नमूने वैलोर, कांचीपुरम तथा श्रीरंगपट्टम में देखे जा सकते हैं। कृष्णदेव राय ने विजयनगर के निकट एक बहुत बड़ा तालाब भी खुदवाया जो सिंचाई के काम आता था।

II. बाहमनी साम्राज्य-

1. प्रशासन-बाहमनी शासकों ने जहां अपने राज्य का विस्तार किया वहां अपने राज्य में एक कुशल शासन प्रणाली स्थापित करने का भी प्रयास किया। इस क्षेत्र में गुलबर्गा से शासन करने वाले बाहमनी शासकों ने विशेष प्रयत्न किए। दूसरी ओर बीदर से शासन करने वाले बाहमनी शासकों ने केवल महमूद गवां की सहायता से ही कुछ आवश्यक सुधार किए। बाहमनी शासकों की सामूहिक शासन-व्यवस्था की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन इस प्रकार है-

(i) सुल्तान-बाहमनी वंश के प्रथम शासक अलाऊद्दीन बाहमनशाह ने गुलबर्गा को अपनी राजधानी बनाते समय केन्द्रीय सरकार की स्थापना की। केन्द्रीय सरकार का मुखिया सुल्तान था। वह राज्य की सारी शक्तियों को स्रोत था। उसके अधिकार काफ़ी विस्तृत थे। वह राज्य का मुख्य न्यायाधीश था और सेना का मुख्य सेनापति भी था। वास्तव में सुल्तान पूर्ण रूप से निरंकुश था और स्वयं को पृथ्वी पर ईश्वर की छाया मानता था।

(ii) मन्त्री-सुल्तान को शासन कार्यों में परामर्श तथा सहयोग देने के लिए कुछ मन्त्री होते थे। इन मन्त्रियों की संख्या आठ थी। प्रधानमन्त्री को ‘वकील-उल-सत्तनत’ कहते थे। राज्य के सभी आदेश वही जारी करता था। प्रत्येक सरकारी पत्र पर भी उसकी मोहर होनी आवश्यक थी। न्याय विभाग का मन्त्री ‘सदर-ए-जहां’ कहलाता था। वह धर्मार्थ विभाग का भी अध्यक्ष था। मन्त्री अपने सभी कार्य सुल्तान की आज्ञा से करते थे और अपने कार्यों के लिए उसी के प्रति उत्तरदायी होते थे। इन आठ मन्त्रियों के अतिरिक्त कुछ निम्न स्तर के मन्त्री भी थे जिनमें कोतवाल तथा नाज़िर प्रमुख थे।

(iii) प्रान्तीय शासन-बाहमनी सुल्तानों के शासन को सुचारु रूप से चलाने के लिए राज्य को भागों तथा उपभागों में विभक्त किया हुआ था। शासन की प्रमुख इकाई प्रान्त अथवा ‘तरफ’ थी। ‘तरफ’ को आगे चलकर सरकारों तथा परगनों में बांटा गया था । प्रत्येक परगने में कुछ गांव सम्मिलित होते थे। प्रारम्भ में बाहमनी राज्य चार तरफों में विभक्त था-गुलबर्गा, दौलताबाद, बरार तथा बीदर। कालान्तर में राज्य विस्तार हो जाने के कारण प्रान्तों की संख्या आठ हो गई। तरफ का मुखिया तरफदार कहलाता था। वह अनेक कार्य करता था। प्रान्त में राजस्व कर एकत्रित करवाना, सैनिक भर्ती करना, सेना का नेतृत्व करना आदि उसके प्रमुख कार्य थे। वह पूर्ण रूप से सुल्तान के अधीन था और सभी कार्य उसी की आज्ञा से करता था। उसके कार्यों का निरीक्षण करने के लिए सुल्तान स्वयं भी समय-समय पर तरफों का दौरा किया करता था। परगनों का शासन प्रबन्ध चलाने के लिए भी कई कर्मचारी नियुक्त थे। वे भी अपने सभी कार्य सुल्तान के आदेश द्वारा करते थे।

2. कला तथा भवन-निर्माण-बाहमनी शासकों ने चित्रकला तथा भवन निर्माण कला के विकास में बड़ी ही योगदान दिया। इस समय की चित्रकारी के सर्वोत्तम नमूने अलाऊद्दीन द्वितीय द्वारा बनवाए गए अहमदशाह के मकबरे की छत और दीवारों पर मिलते हैं। यह चित्रकारी फूलदार है और बड़ी सजीव तथा आकर्षक लगती है। बाहमनी राज्य की भवन निर्माण कला के मुख्य केन्द्र गुलबर्गा तथा बीदर हैं। इन स्थानों पर अनेक आकर्षक मस्जिदें, मकबरे, मदरसे तथा महल मिलते हैं। इनमें से कुछ भवनों को निर्माण में पुरानी शैली का अनुसरण किया गया है। परन्तु कुछ इमारतें फारसी शैली में बनाई गई हैं। गुलबर्गा में फिरोजशाह का मकबरा बाहमनी राज्य की भवन निर्माण कला का एक सुन्दर नमूना है।

महत्त्वपूर्ण परीक्षा-शैली प्रश्न

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न

1. उत्तर एक शब्द से एक वाक्य में

प्रश्न 1.
बाहमनी शासकों में सबसे महान् शासक किसे माना जाता है?
उत्तर-
फिरोजशाह को।

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प्रश्न 2.
विजयनगर राज्य की स्थापना करने वाले दो भाइयों के नाम बताओ।
उत्तर-
हरिहर तथा बुक्का।

प्रश्न 3.
विजयनगर राज्य की स्थापना कब हुई?
उत्तर-
विजयनगर राज्य की स्थापना 1336 ई० में हुई।

प्रश्न 4.
विजयनगर के दो प्रतापी राजाओं के नाम बताओ।
उत्तर-
कृष्णदेव राय तथा हरिहार द्वितीय।

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प्रश्न 5.
किस युद्ध के परिणामस्वरूप विजयनगर सामाज्य का विघटन हुआ?
उत्तर-
तालिकोट का युद्ध।

प्रश्न 6.
बाहमनी साम्राज्य राज्य की स्थापना किसने तथा कब की?
उत्तर-
बाहमनी साम्राज्य की स्थापना हसन गंगू ने 1347 ई० में की।

प्रश्न 7.
बाहमनी साम्राज्य के दो शासकों के नाम बताओ।
उत्तर-
मुहम्मद शाह द्वितीय (1387 से 1397 ई०) अहमद शाह (1422 से 1435 ई०)।

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प्रश्न 8.
बाहमनी साम्राज्य का सबसे योग्य प्रधानमन्त्री कौन था?
उत्तर-
बाहमनी साम्राज्य का सबसे योग्य प्रधान मन्त्री महमूद गावाँ था।

2. रिक्त स्थानों की पूर्ति-

(i) महमूद गावाँ………..देश से आया था।
(ii) बाहमनी राज्य की दो राजधानियां गुलबर्गा तथा…………..
(iii) तालिकोट का युद्ध………..ई० में हुआ था।
(iv) अरविंदु वंश का सम्बन्ध……….राज्य से था।
(v) दक्षिण में सामंतों को…………..कहते थे।
उत्तर-
(i) ईरान
(ii) बीदर
(iii) 1565
(iv) विजय नगर
(v) नायक।

3. सही/ग़लत कथन

(i) कृष्णदेव राय बाहमनी वंश का सबसे शक्तिशाली शासक था।(✗)
(ii) विजयनगर के शासक बड़े कला प्रेमी थे। ( ✓ )
(iii) गुलबर्गा में फ़िरोज़शाह का मकमरा बाहमनी वंश की देन है। ( ✓ )
(iv) गोलकुण्डा के कुतुबशाही शासकों द्वारा बनाई गई प्रसिद्ध इमारत हैदराबाद स्थित चार मीनार है।( ✓ )
(v) महमूद गावाँ विजयनगर के शासक देवराय का प्रधानमन्त्री था। (✗)

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4. बहु-विकल्पीय प्रश्न-

प्रश्न (i)
गोल गुम्बज स्थित है-
(A) हैदराबाद में
(B) बीजापुर में
(C) बीकानेर में
(D) जयपुर में।
उत्तर-
(B) बीजापुर में

प्रश्न (ii)
विजयनगर राज्य में प्रचलित कुप्रथा थी
(A) सती प्रथा
(B) वेश्यावृत्ति
(C) पशु बलि
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(D) उपरोक्त सभी।

प्रश्न (iii)
विजयनगर राज्य का राजवंश नहीं था
(A) संगम
(B) सल्लु व
(C) पल्लव
(D) तल्लु व।
उत्तर-
(C) पल्लव

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प्रश्न (iv)
‘गोल गुम्बज’ मकबरा है
(A) आदिलशाह का
(B) शेरशाह सूरी का
(C) कुतुबशाह का
(D) हुसैन बेग का।
उत्तर-
(A) आदिलशाह का

प्रश्न (v)
विजयनगर राज्य में सिक्के प्रचलित थे
(A) ताँबे के
(B) सोने-चाँदी के
(C) पीतल के
(D) इस्पात के।
उत्तर-
(B) सोने-चाँदी के

II. अति छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
13वीं सदी में दक्षिण के चार प्रमुख राजवंशों के नाम बताएं।
उत्तर-
13वीं सदी में दक्षिण के चार प्रमुख राजवंश थे-देवगिरि के यादव, वारंगल के काकतीय, द्वारसमुद्र के होयसाल ल तथा मदुरई के पाण्डेय।

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प्रश्न 2.
देवगिरि के राजवंश के दो शासकों के नाम बताएं।
उत्तर-
देवगिरि पर यादव वंश का राज्य था। इस वंश के दो शासक थे-रामदेव तथा हरपाल देव।

प्रश्न 3.
ग्यासुद्दीन तुग़लक के समय वारंगल तथा द्वारसमुद्र के शासकों के नाम बताएं।
उत्तर-
ग्यासुद्दीन तुग़लक के समय वारंगल का शासक प्रताप रुद्र द्वितीय तथा द्वारसमुद्र का शासक बल्लाल तृतीय था।

प्रश्न 4.
कम्पिली की स्थापना किसने और किस नदी के इर्द-गिर्द के क्षेत्र में की थी ?
उत्तर-
कम्पिली की स्थापना कम्पिल देव ने की थी। इसकी स्थापना तुंगभद्रा नदी के इर्द-गिर्द के क्षेत्र में की गई थी।

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प्रश्न 5.
मुहम्मद-बिन-तुग़लक के समय में दक्षिण में स्वतन्त्र होने वाले दो राज्यों तथा उनके संस्थापकों के नाम बताएं।
उत्तर-
मुहम्मद-बिन-तुग़लक के समय में दक्षिण में स्वतन्त्र होने वाले दो राज्य थे- विजयनगर तथा बाहमनी राज्य। विजयनगर राज्य के संस्थापक हरिहर तथा बुक्का और बाहमनी राज्य का संस्थापक हसन गंगू था।

प्रश्न 6.
दौलताबाद के अधिकारियों के गिरोह को क्या कहा जाता था और उन्होंने किस वर्ष में एक स्वतन्त्र राज्य की स्थापना की ?
उत्तर-
दौलताबाद के अधिकारियों के गिरोह का नाम ‘अमीरान-ए-सदाह’ था। उन्होंने 1347 ई० में स्वतन्त्र राज्य स्थापित किया।

प्रश्न 7.
बाहमनी साम्राज्य की दो राजधानियों के नाम बताएं।
उत्तर-
बाहमनी साम्राज्य की दो राजधानियों के नाम क्रमश: गुलबर्गा तथा बीदर थे।

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प्रश्न 8.
लम्बे समय तक राज्य करने वाले किन्हीं चार बाहमनी सुल्तानों के नाम बताएं। …
उत्तर-
लम्बे समय तक राज्य करने वाले चार बाहमनी सुल्तान मुहम्मद प्रथम (1358-77 ई०), मुहम्मद द्वितीय (137897 ई०), फिरोज़शाह (1397-1422 ई) तथा अहमदशाह (1422-35 ई०) थे।

प्रश्न 9.
बाहमनी सल्तनत के सबसे योग्य मन्त्री का नाम क्या था और वह किस देश से आया था ?
उत्तर-
बाहमनी सल्तनत का सबसे योग्य मन्त्री ‘महमूद गवाँ’ था। वह ईरान से आया था।

प्रश्न 10.
बाहमनी सल्तनत के प्रशासनिक भागों तथा उसके प्रशासकों को क्या कहा जाता था ?
उत्तर-
बाहमनी सल्तनत के प्रशासनिक भागों को ‘तरफ’ तथा इसके प्रशासकों के ‘तरफदार’ कहा जाता था।

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प्रश्न 11.
बाहमनी सल्तनत में शासक वर्ग कौन-से दो गुटों में बंट गए थे ?
उत्तर-
बाहमनी सल्तनत में शासक वर्ग ‘विदेशी अमीर’ तथा ‘दक्कनी अमीर’ नामक दो गुटों में बंट गए थे।

प्रश्न 12.
महमूद शाह के शासन काल में बाहमनी साम्राज्य जिन पांच राज्यों में बंट गया, उनके नाम बताएं।
उत्तर-
महमूद शाह के शासनकाल में बाहमनी साम्राज्य बीजापुर, गोलकुण्डा, अहमदनगर, बरार तथा बीदर नामक राज्यों में बंट गया।

प्रश्न 13.
बाहमनी साम्राज्य के उत्तराधिकारी सल्तनतों के संस्थापकों के नाम बताएं।
उत्तर-
बाहमनी साम्राज्य के उत्तराधिकारी सल्तनतों के संस्थापक थे-मलिक अहमद (अहमद नगर), आदिल खां (बीजापुर), फतहउल्ला इमाद-उल-मुल्क (बरार), कुतुब-उल-मुल्क (गोलकुण्डा) तथा कासिम बरीद (बीदर)।

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प्रश्न 14.
दक्कन की पांच सल्तनतों में से दो सबसे शक्तिशाली तथा दो सबसे छोटे राज्यों के नाम बताएं।
उत्तर-
दक्कन की पाँच सल्तनतों में से दो सबसे शक्तिशाली सल्तनतें ‘बीजापुर’ तथा ‘गोलकुण्डा’ थीं। इनमें से दो सबसे छोटे राज्य ‘बरार’ और ‘बीदर’ थे।

प्रश्न 15.
बरार तथा बीदर को किन वर्षों में दक्कन की कौन-सी अन्य दो सल्तनतों ने हड़प लिया ?
उत्तर-
1574 ई० में अहमद नगर के सुल्तान ने बरार को अपने अधिकार में ले लिया तथा 1619 ई० में बीजापुर के सुल्तान ने बीदर को हड़प लिया।

प्रश्न 16.
औरंगजेब ने किन वर्षों में दक्कन की कौन-सी दो सल्तनतों को मुग़ल साम्राज्य में मिला लिया ?
उत्तर-
औरंगज़ेब ने 1686-87 में दक्षिण की बीजापुर और गोलकुण्डा रियासतों को मुग़ल साम्राज्य में मिला लिया।

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प्रश्न 17.
दक्षिण में ‘सामन्तों’ तथा ‘चौधरियों’ के स्थान पर किन नामों का प्रयोग किया जाता था ?
उत्तर-
दक्षिण में सामन्तों को ‘नायक’ तथा चौधरियों को ‘देशमुख’ और ‘देसाई’ कहा जाता था।

प्रश्न 18.
कौन-से दो नगर बाहमनी भवन निर्माण कला के केन्द्र थे ?
उत्तर-
गुलबर्गा और बीदर बाहमनी भवन निर्माण कला के केन्द्र थे ।

प्रश्न 19.
बाहमनी सल्तनत के भवनों में किन चार प्रकार के नमूने मिलते हैं ?
उत्तर-
बाहमनी सल्तनत के भवनों में पुरानी मस्जिदों, मकबरों, मदरसों और महलों के नमूने मिलते हैं।

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प्रश्न 20.
गोल गुम्बज कहां हैं और यह कौन-से सुल्तान का मकबरा है तथा यह कितने क्षेत्र में फैला हुआ है ?
उत्तर-
गोल गुम्बज बीजापुर में है। यह आदिलशाह का मकबरा है जो 2000 वर्ग गज़ के क्षेत्र में फैला हुआ है।

प्रश्न 21.
कुतुबशाही सुल्तानों ने कौन-से चार प्रकार के भवन बनवाए तथा उनके द्वारा बनवाई गई हैदराबाद की सबसे शानदार इमारत कौन-सी है ?
उत्तर-
कुतुबशाही सुल्तानों ने किले, महल, पुस्तकालय और मस्जिदें बनवाई। उनके द्वारा बनवाई गई हैदराबाद की शानदार इमारत ‘चारमीनार’ है।।

प्रश्न 22.
विजयनगर साम्राज्य के चार राजवंशों के नाम बताएं।
उत्तर-
विजयनगर साम्राज्य के चार राजवंश थे-‘संगम’, ‘सल्लुव’, ‘तल्लुव’ तथा ‘अरविंदु’।

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प्रश्न 23.
विजयनगर शहर किस नदी के किनारे बसाया गया तथा उसका संस्थापक कौन था ?
उत्तर-
विजयनगर शहर तुंगभद्रा नदी के किनारे बसाया गया। इसके संस्थापक हरिहर और बुक्का नामक दो भाई थे।

प्रश्न 24.
विजयनगर साम्राज्य के विस्तार तथा उन्नति से सम्बन्धित दो राजवंशों के नाम बताएं।
उत्तर-
विजयनगर साम्राज्य के विस्तार तथा उन्नति से सम्बन्धित दो राजवंश हैं-‘संगम वंश’ तथा ‘सल्लव वंश’ ।

प्रश्न 25.
विजयनगर के पहले राजवंश के चार सबसे योग्य शासकों के नाम बताएं।
उत्तर-
पहले राजवंश (संगम वंश) के चार योग्य शासक बुक्का (1357-77 ई०), हरिहर द्वितीय (1377-1404 ई०), देवराय (1406-22 ई०) तथा देवराय द्वितीय (1422-46 ई०) थे।

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प्रश्न 26.
विजयनगर तथा बाहमनी राज्य में झगड़ा मुख्यतः किस प्रदेश के कारण था और यह कौन-सी नदियों के बीच स्थित है ?
उत्तर-
विजयनगर तथा बाहमनी राज्यों में झगड़ा मुख्यत: उसके सीमावर्ती रायचूर दोआब पर अधिकार के कारण था। यह प्रदेश कृष्णा तथा तुंगभद्रा नदियों के बीच स्थित है।

प्रश्न 27.
विजयनगर साम्राज्य का पुनर्निर्माण तथा पतन किन दो राजवंशों से सम्बन्धित है ?
उत्तर-
विजयनगर साम्राज्य का पुनर्निर्माण तथा पतन तल्लुव वंश तथा अरविंदु वंश से सम्बन्धित है।

प्रश्न 28.
विजयनगर राज्य का सबसे प्रसिद्ध शासक कौन था और वह कौन-से वंश से था ?
उत्तर-
विजयनगर का सबसे प्रसिद्ध शासक कृष्ण देवराय था। वह तल्लुव राजवंश से सम्बन्धित था।

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प्रश्न 29.
कृष्णदेव राय का राजकाल क्या था और उसने बाहमनी सल्तनत के किन दो नगरों पर अधिकार कर लिया था ?
उत्तर-
कृष्णदेव राय का शासनकाल 1509 से 1529 ई० तक था। उसने गुलबर्गा और बीदर पर अपना अधिकार कर लिया था।

प्रश्न 30.
तालीकोटा का युद्ध कब और किन के बीच हुआ ? इसमें हारने वाले राज्य का नाम बताएं।
उत्तर-
तालीकोटा का युद्ध 1565 ई० में दक्षिण के सुल्तानों के संगठन तथा विजयनगर के शासक सदाशिव राय के बीच हुआ। इसमें विजयनगर की हार हुई।

प्रश्न 31.
अरविंदु वंश के राजकाल में कौन-से तीन प्रदेशों के नायक स्वतन्त्र हो गए थे ?
उत्तर-
अरविंदु वंश के राजकाल में मदुरई, तंजौर तथा जिंजी प्रदेशों के नायक स्वतन्त्र हो गए थे।

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प्रश्न 32.
विजयनगर के प्रशासन में सबसे महत्त्वपूर्ण तीन विभाग कौन-से थे ?
उत्तर-
विजयनगर के प्रशासन में सबसे महत्त्वपूर्ण तीन विभाग सेना, राजस्व और धर्मार्थ विभाग थे।

प्रश्न 33.
विजयनगर साम्राज्य में नायकों की संख्या क्या थी और वे सम्राट् को अधीनता के प्रतीक के रूप में क्या देते थे ?
उत्तर-
विजयनगर साम्राज्य में नायकों की संख्या 200 से भी अधिक थी। वे सम्राट् को अधीनता के प्रतीक के रूप में नज़राना तथा युद्ध के समय सैनिक सहायता देते थे।

प्रश्न 34.
विजयनगर साम्राज्य में अधिकारियों को वेतन किस रूप में दिया जाता था ?
उत्तर-
विजयनगर साम्राज्य में अधिकारियों को वेतन ‘जागीर’ के रूप में दिया जाता था।

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प्रश्न 35.
विजयनगर साम्राज्य में भूमि से इकट्ठा किए जाने वाले लगान की अधिकतम तथा न्यूनतम में क्या थीं ?
उत्तर-
विजयनगर साम्राज्य में भूमि से कर इकट्ठा किए जाने वाले लगान की न्यूनतम दर उपज का छठा भाग तथा अधिकतम दर उपज का आधा भाग थी।

प्रश्न 36.
विजयनगर साम्राज्य से सम्बन्धित मन्दिर किन चार नगरों में देखे जा सकते हैं ?
उत्तर-
विजयनगर साम्राज्य से सम्बन्धित मन्दिर वैलोर, विजयनगर शहर, काँचीपुरम तथा श्रीरंगपट्टम में देखे जा सकते

प्रश्न 37.
मराठी, कन्नड़, तमिल तथा मलयालम किन चार राज्यों तथा प्रदेशों की मुख्य भाषाएं थीं ? ये प्रदेश वर्तमान के कौन-से चार राज्यों में हैं ?
उत्तर-
अहमद नगर में मराठी, बीजापुर में कन्नड़, विजयनगर में तमिल तथा सुदूर दक्षिण में मलयालम भाषाएं बोली जाती थीं। ये प्रदेश वर्तमान भारत में क्रमश: महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु तथा केरल राज्यों में हैं।

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III. छोटे उत्तर वाले प्रश्न-

प्रश्न 1.
बाहमनी साम्राज्य के विघटन में प्रशासनिक व्यवस्था तथा शासक वर्ग का क्या हाथ था ?
उत्तर-
बाहमनी राज्य के पतन की प्रक्रिया में यों तो अनेक कारणों का हाथ रहा, परन्तु प्रशासनिक व्यवस्था के गलत संगठन तथा शासक वर्ग के विवेकहीन कार्यों से इस राज्य का पतन बड़ी तीव्रता से होने लगा। बाहमनी शासक अपनी अविवेकपूर्ण नीति के कारण शासन को संगठित एवं स्थायी रूप प्रदान करने में असफल रहे। फलस्वरूप अमीरों के आपसी मतभेद काफ़ी बढ़ गए। दूसरे, सुल्तानों ने हिन्दुओं के प्रति असहनशीलता की नीति अपनाई जिससे राज्य की बहुसंख्यक हिन्दू जनता आरम्भ से ही बाहमनी शासकों के विरुद्ध हो गई। बाहमनी शासकों ने देशी अमीरों की अपेक्षा विदेशी अमीरों पर अधिक विश्वास किया। अतः उनके अपने यहां अनेक अमीरों में आपसी शत्रुता पैदा हो गई। दूसरे, महमूद गवां को छोड़कर अन्य किसी भी अमीर ने राजभक्ति न दिखाई। अतः बाहमनी सुल्तानों को न तो देशी अमीरों का ही साथ मिल सका और न ही विदेशी अमीरों का। यह बात भी बाहमनी शासकों की असफलता का कारण बनी और बाहमनी राज्य का पतन तीव्रता से होने लगा।

प्रश्न 2.
बाहमनी सल्तनत तथा उत्तराधिकारी राज्यों के अधीन कला तथा भवन निर्माण कला की मुख्य विशेषताएं क्या थीं?
उत्तर-
बाहमनी शासकों ने चित्रकला तथा भवन निर्माण कला के विकास में बड़ा योगदान दिया। इस समय की चित्रकारी के सर्वोत्तम नमूने अलाऊद्दीन द्वितीय द्वारा बनवाए गए अहमदशाह के मकबरे की छत और दीवारों पर मिलते हैं। बाहमनी राज्य की भवन निर्माण कला के मुख्य केन्द्र गुलबर्गा तथा बीदर हैं। इन स्थानों पर अनेक आकर्षक मस्जिदें, मकबरे, मदरसे तथा महल मिलते हैं। ये इमारतें पुरानी शैली तथा फारसी शैली में बनाई गई हैं। गुलबर्गा में फिरोजशाह का मकबरा बाहमनी राज्य की भवन निर्माण कला का एक सुन्दर नमूना है। बीजापुर के आदिलशाही शासकों के समय में बीजापुर अपनी सुन्दर इमारतों के लिए सारे भारत में प्रसिद्ध हो गया। यहां का गोल गुम्बज और इब्राहीम रोजा भवन निर्माण कला के सबसे सुन्दर नमूने हैं। गोलकुण्डा के कुतुबशाही शासकों ने भी भवन निर्माण कला के विकास में अपना विशेष योगदान दिया। उनकी सबसे प्रसिद्ध इमारत हैदराबाद में स्थित चारमीनार है।

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प्रश्न 3.
विजयनगर साम्राज्य की उन्नति में कृष्णदेव राय का क्या योगदान था ?
उत्तर-
कृष्णदेव राय तुल्लुव वंश का सबसे प्रसिद्ध राजा था। उसने 1509 ई० से 1529 ई० तक शासन किया। वह एक महान् योद्धा था। उसने मैसूर (कर्नाटक) के कुछ भाग को विजित किया तथा उड़ीसा के राजा को हरा कर काफ़ी लूट का माल प्राप्त किया। उसने बीजापुर के आदिलशाह से युद्ध करके रायचूर दोआब छीन लिया। उसके द्वारा बीजापुर की विजय से दक्षिण के मुस्लिम राज्यों के शासक इतने भयभीत हो उठे कि उन्हें उसके जीवन काल में फिर विजयनगर पर आक्रमण करने का कभी साहस न हुआ। कृष्णदेव राय एक महान् शासक प्रबन्धक भी था। उसने धार्मिक सहनशीलता की नीति अपनाई तथा देश की अर्थव्यवस्था में सुधार किया। इस प्रकार विजयनगर एक समृद्ध राज्य बन गया।

प्रश्न 4.
विजयनगर के राज्य प्रबन्ध की मुख्य विशेषताएं क्या थी ?
उत्तर-
विजयनगर के केन्द्रीय शासन का मुखिया सम्राट् था। उसके पास असीम शक्तियां तथा अधिकार थे। अपनी सहायता के लिए उसने एक मन्त्रिपरिषद् की व्यवस्था की हुई थी। इसमें मन्त्री, पुरोहित, सेनापति आदि सम्मिलित थे। इनकी नियुक्ति सम्राट् स्वयं करता था। उसका सारा राज्य लगभग 200 प्रान्तों में बंटा हुआ था। प्रत्येक प्रान्त का शासन प्रबन्ध एक प्रान्तपति के हाथ में होता था। ये प्रान्तपति या तो राज घराने से सम्बन्धित होते थे या फिर कोई शक्तिशाली अमीर होते थे। प्रत्येक प्रान्त को जिलों में बांटा गया था। इन्हें नाडू तथा कोट्टम कहा जाता था। जिले परगनों में तथा परगने गांवों में बंटे होते थे। गांव का शासन प्रबन्ध ग्राम पंचायतों को सौंपा हुआ था। इन सभी संस्थाओं के प्रमुख अधिकारी को आयगर कहा जाता था। न्याय का मुख्य अधिकारी स्वयं सम्राट् था। दण्ड बड़े कठोर थे। राज्य की आय का मुख्य साधन भूमि कर था। विजयनगर राज्य के शासकों के पास एक शक्तिशाली सेना भी थी।

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प्रश्न 5.
बाहमनी राज्य के पतन के कारण बताओ।
उत्तर-
बाहमनी राज्य के पतन में अनेक तत्त्वों का हाथ था। प्रथम, बाहमनी शासक असहनशील थे। उन्होंने हिन्दुओं के साथ बहुत बुरा व्यवहार किया। दूसरे, बाहमनी शासक सदा अपने पड़ोसी राज्यों के साथ लड़ते-झगड़ते रहते थे। इन युद्धों से बाहमनी वंश की शक्ति कम हो गई। तीसरे, अधिकतर बाहमनी शासक विलासी थे। वे राज कार्यों की ओर कोई ध्यान नहीं देते थे। चौथे, बाहमनी राज्य का अन्तिम शासक महमूदशाह बड़ा ही अयोग्य था। उसकी अयोग्यता का लाभ उठाकर प्रान्तीय गवर्नरों ने अपनी स्वतन्त्रता की घोषणा कर दी। पांचवें, महमूद गावां को फांसी दिए जाने से बाहमनी राज्य को सबसे अधिक क्षति पहुंची और इस राज्य का पतन हो गया।

प्रश्न 6.
विजयनगर राज्य के पतन के कारण बताओ।
उत्तर-

  1. इस राज्य की सारी शक्ति राजा के हाथ में थी। शासन में प्रजा का कोई योगदान नहीं था। इसलिए संकट के समय प्रजा ने अपने राजा का साथ न दिया।
  2. इस राज्य में सिंहासन प्राप्ति के लिए प्रायः गृह-युद्ध चलते रहते थे। इन युद्धों ने राजा की शक्ति नष्ट कर दी।
  3. कृष्णदेव राय के पश्चात् ३५ गज्य के सभी शासक निर्बल थे।
  4. विजयनगर राज्य को बाहमनी राज्य के शासकों के साथ युद्ध करने पड़े। इन युद्धों में विजयनगर राज्य की शक्ति को बड़ी क्षति पहुंची।
  5. तालीकोट की लड़ाई में विजयनगर का शासक मारा गया। इस लड़ाई के तुरन्त पश्चात् इस का पूरी तरह पतन हो गया।

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प्रश्न 7.
आप विजयनगर राज्य की कला और भवन निर्माण कला के विषय में क्या जानते हैं ?
उत्तर-
विजयनगर के शासक बड़े ही कला-प्रेमी थे। उन्होंने मूर्ति कला और भवन निर्माण कला को विशेष रूप से संरक्षण प्रदान किया। चोल राज्य की भान्ति विजयनगर के मूर्तिकार भी कांसे की मूर्तियां ढालने में बड़े निपुण थे। राजा कृष्णदेव राय का कांसे का बुत विजयनगर राज्य की मूर्ति कला का सबसे सुन्दर नमूना है। विजयनगर कला भवन निर्माण की झलक हमें उनके द्वारा बनवाये गए दुर्गों, भव्य महलों और सुन्दर मन्दिरों में दिखाई देती है। यहां के शासकों ने अनेक प्राचीन मन्दिरों को विशाल रूप दिया और कई नए मन्दिरों का निर्माण करवाया। उनके द्वारा बनवाए गए मन्दिर केवल विजयनगर तक ही सीमित नहीं हैं। ये तुंगभद्रा नदी के दक्षिण के सारे प्रदेश में बने हुए हैं। इन मन्दिरों के उत्कृष्ट नमूने वैलोर, कांचीपुरम तथा श्रीरंगापट्टम में देखे जा सकते हैं। कृष्णदेव राय ने विजयनगर के निकट एक बहुत बड़ा तालाब भी खुदवाया जो सिंचाई के काम आता था।

प्रश्न 8.
14वीं शताब्दी के अन्त से लेकर 17वीं शताब्दी के आरम्भ तक दक्षिण में कौन-सी नई भाषाओं और साहित्य का विकास हुआ ?
उत्तर-
14वीं शताब्दी के अन्त से 17वीं शताब्दी के आरम्भ तक दक्षिण में अनेक प्रादेशिक भाषाओं तथा साहित्य का विकास हुआ। गोलकुण्डा के सुल्तानों ने तेलगू भाषा और तेलगू साहित्य को संरक्षण प्रदान किया। उनके राज्य की सीमाएं लगभग वहीं थीं जो तेलगू-भाषी क्षेत्र की थीं। इसके विपरीत अन्य राज्यों की सीमाएं भले ही उन राज्यों में विकसित भाषाओं से सम्बन्धित क्षेत्र से मेल नहीं खाती थीं तो भी यहां के शासकों ने अलग-अलग भाषाओं के विकास में सहायता पहुंचाई। अहमदनगर में मराठी, बीजापुर में कन्नड़, विजयनगर में तमिल तथा सुदूर दक्षिण में मलयालम भाषा ने खूब उन्नति की। इन प्रादेशिक भाषाओं के साथ-साथ प्रादेशिक साहित्य का विकास भी हुआ। इस साहित्य के विकास में शासकों की अपेक्षा भक्ति लहर के अनुयायियों की भूमिका महत्त्वपूर्ण रही। इसका कारण यह था कि भक्ति लहर के प्रचारकों ने अपने सन्देश के प्रचार के लिए जन-साधारण की भाषाओं को ही अपनाया।

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प्रश्न 9.
महमूद गावां पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखो।
उत्तर-
महमूद गावां बाहमनी शासक मुहम्मद शाह तृतीय का प्रधानमन्त्री था। उसने बाहमनी राज्य को बहुत ही शक्तिशाली बनाया। उसने प्रजा की भलाई के लिए अनेक कार्य किये। उसने कोंकण, संगमेश्वर, उड़ीसा और विजयनगर के शासकों को हराया। उसने सेना को फिर से संगठित किया और किसानों की कई प्रकार से सहायता की। वह विद्वानों तथा कलाकारों का आदर करता था। वह स्वयं भी बड़ा विद्वान् और योग्य व्यक्ति था। इतना कुछ करने पर भी महमूद गावां का अन्त बड़ा दुःखद था। बाहमनी शासक मुहम्मद शाह तृतीय ने उसके शत्रुओं के बहकावे में आकर उसे मृत्यु दण्ड दे दिया।

IV. निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
विजयनगर राज्य के शासन प्रबन्ध की मुख्य विशेषताओं का वर्णन करो।
उत्तर-
विजयनगर राज्य के शासन प्रबन्ध की प्रमुख विशेषताओं का विवरण इस प्रकार है
1. सम्राट्-विजयनगर के केन्द्रीय शासन का मुखिया सम्राट होता था। उसके पास असीम शक्तियाँ तथा अधिकार होते थे। अपनी सहायता के लिए उसने एक मन्त्रिपरिषद् की व्यवस्था की हुई थी। परन्तु उसका कार्य केवल सम्राट को परामर्श देना होता था।

2. मन्त्रिपरिषद्-अपनी सहायता तथा परामर्श के लिए सम्राट ने मन्त्रिपरिषद् की व्यवस्था की हुई थी। इसमें मन्त्री, पुरोहित, सेनापति आदि सम्मिलित होते थे। इन सभी सदस्यों की नियुक्ति सम्राट् स्वयं करता था।

3. प्रान्तीय शासन-विजयनगर राज्य लगभग 200 प्रान्तों में बंटा हुआ था। प्रत्येक प्रान्त का प्रबन्ध एक प्रान्तपति के हाथ में होता था। ये प्रान्तपति या तो राज घराने से सम्बन्धित होते थे या फिर कोई शक्तिशाली अमीर (Nobles) होते थे। इनकी नियुक्ति भी सम्राट् स्वयं करता था।

4. स्थानीय शासन-शासन की सुविधा को ध्यान में रखते हुए पान्द को जिलों में बांटा गया था। ज़िले आगे परगनों में तथा परगने गाँवों में बँटे होते थे। गाँव का शासन प्रबन्ध ग्राम पंचायतों को सौंपा हुआ था। इन सभी संस्थाओं के प्रमुख अधिकारी को आयंगर कहा जाता था।

5. सैनिक संगठन-विजयनगर का बाहमनी सुल्तानों के साथ निरन्तर संघर्ष चलता रहता था। अतः यहाँ के शासकों को अपने सैनिक संगठन की ओर विशेष ध्यान देना पड़ा।
विजयनगर राज्य की सेना दो प्रकार की थी। प्रान्तीय सेना तथा केन्द्रीय सेना। सेना में हाथी, घोड़े तथा पैदल सैनिक होते थे। अश्वारोही सेना का प्रमुख अंग थे।

6. न्याय-प्रणाली-विजयनगर राज्य में सम्राट् मुख्य न्यायाधीश का कार्य करता था। गाँवों में आयंगर तथा प्रान्तों में प्रान्तपति अथवा सूबेदार न्याय कार्य करते थे। दण्ड बड़े कठोर थे और गम्भीर अपराधों के लिए अंग-भंग का दण्ड दिया जाता था, परन्तु साधारण अपराधों पर जुर्माना किया जाता था।

7. भूमि कर प्रणाली-विजयनगर राज्य की समस्त भूमि का स्वामी सम्राट होता था। वह इसे आगे भूमिपतियों में तथा भूमिपति इसे किसानों में बाँट देते थे। किसानों की उपज का 1/6 से 1/4 भाग कर के रूप में भूमिपति को देना पड़ता था। किसानों की आर्थिक अवस्था बड़ी अच्छी थी। उन्हें जीवन का प्रत्येक सुख प्राप्त था।

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प्रश्न 2.
विजयनगर राज्य की सामाजिक, आर्थिक तथा सांस्कृतिक दशा का वर्णन करो।
उत्तर-
विजयनगर की सामाजिक, आर्थिक तथा सांस्कृतिक दशा का वर्णन निम्नलिखित है

I. सामाजिक अवस्था-
1. ब्राह्मणों का मान-विजयनगर राज्य में ब्राह्मणों को बड़ा सम्मान प्राप्त था। उन्हें राज्य में उच्च पद प्राप्त थे। अपराधी होने पर भी उन्हें मृत्यु दण्ड नहीं दिया जा सकता था। उनका जीवन बड़ा पवित्र होता था। वे शाकाहारी होते थे तथा माँस, मदिरा आदि को छूते तक न थे। इस प्रकार ब्राह्मण लोग अन्य वर्गों के लोगों के लिए एक आदर्श थे।

2. नारी का स्थान-विजयनगर में नारी का भी बड़ा सम्मान था। योग्यता होने पर वे उच्च शिक्षा भी ग्रहण कर सकती थीं। उनमें पर्दे का रिवाज नहीं था। स्त्रियों को युद्ध-कला और ललित-कलाओं भी भी शिक्षा दी जाती थी।

3. कुप्रथाएँ-विजयनगर का समाज कुप्रथाओं से वंचित नहीं था। उस समय देवी-देवताओं को प्रसन्न करने के लिए पशु बलि दी जाती थी। समाज में सती प्रथा भी जोरों पर थी। यहाँ तक कि तेलगू स्त्रियों को अपने पति की मृत्यु पर धरती में जीवित गाड़ दिया जाता था। इसके अतिरिक्त राज्य में वेश्याओं की भी कमी नहीं थी। देवराज द्वितीय की 12 हज़ार रानियाँ थीं। इनमें से तीन हजार के साथ तो उसने केवल इस शर्त पर विवाह किया था कि वे उसकी मृत्यु के बाद उसके साथ सती होंगी।

II. आर्थिक दशा-

विजयनगर की आर्थिक अवस्था बड़ी उन्नत थी। यहाँ की धरती उपजाऊ थी। परिणामस्वरूप आन्तरिक तथा विदेशी व्यापार खूब विकसित थे। उनके पुर्तगालियों से अच्छे व्यापारिक सम्बन्ध थे। अरबी घोड़ों का भी व्यापार खूब होता था। विजयनगर के समुद्री तटों पर अच्छी-अच्छी बन्दरगाहें थीं। कालीकट यहाँ की प्रमुख बन्दरगाह थी। यहाँ से बर्मा, चीन, ईरान, अरब, पुर्तगाल तथा दक्षिणी अफ्रीका के साथ देश का व्यापार चलता था। इस बन्दरगाह से कपड़ा, चावल, चीनी, लोहा, गर्म मसाले तथा शोरा विदेशों में भेजा जाता था और वहां से घोड़े, हाथी, ताँबा, जवाहरात तथा रेशम आदि का आयात किया जाता था। व्यापारियों ने अपने संघ स्थापित किए हुए थे। लेन-देन की सुविधा के लिए अनेक सोने-चांदी के सिक्के प्रचलित थे। व्यापार के साथ-साथ देश में कृषि तथा अन्य उद्योग-धन्धे भी काफ़ी उन्नत थे। कपड़ा बुनना, खानों से खनिज निकालना, धातुओं की वस्तुएँ बनाना तथा इत्र निकालना उस समय के लोगों के प्रमुख उद्योग थे।

II. सांस्कृतिक जीवन विजयनगर के हिन्दू शासकों ने हिन्दू संस्कृति तथा कला के विकास की ओर भी विशेष ध्यान दिया। कई विद्वानों तथा साहित्यकारों को इन राजाओं ने आश्रय प्रदान कर रखा था। संस्कृत तथा तेलगू के कई विद्वान् इन शासकों के दरबार की शोभा बढ़ाते थे। इन विद्वानों में से सयन का नाम लिया जा सकता था जिसने ऋग्वेद संहिता, ऐतरेय ब्राह्मण तथा आरण्यक आदि ग्रन्थों की टीकाएँ लिखीं। इसके अतिरिक्त तेलगू भाषा का अलसनी कवि भी विजयनगर के राजदरबार की शोभा था।

साहित्य के साथ-साथ विजयनगर के शासकों को कला से भी विशेष प्रेम था। भवन निर्माण कला के प्रति उनके प्रेम के दर्शन हमें विजयनगर की राजधानी में बने भव्य भवनों को देखकर होते हैं जिसके अब अवशेष ही रह गए हैं।

सच तो यह है कि विजयनगर साम्राज्य की शासन व्यवस्था उच्चकोटि की थी। लोगों का जीवन समृद्ध था, समाज उच्च आदर्शों में ढला हुआ था तथा कलाएँ उन्नति की चरम सीमा पर थीं।

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प्रश्न 3.
बाहमनी राज्य की शासन-व्यवस्था का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
बाहमनी शासकों ने अपने राज्य में कुशल शासन प्रणाली स्थापित करने का भी प्रयास किया। उनकी शासनव्यवस्था की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन इस प्रकार है

I. केन्द्रीय सरकार-

सुल्तान-बाहमनी वंश के प्रथम शासक अलाउद्दीन बहमनशाह ने गुलबर्गा को अपनी राजधानी बनाते समय केन्द्रीय सरकार की स्थापना की। केन्द्रीय सरकार का मुखिया सुल्तान था। वह राज्य की सारी शक्ति का स्रोत था। उसके अधिकार काफ़ी विस्तृत थे। वह राज्य का मुख्य न्यायाधीश और सेना का मुख्य सेनापति था। वास्तव में, सुल्तान पूर्ण रूप से निरंकुश था और स्वयं को पृथ्वी पर ईश्वर की छाया मानता था।

मन्त्री-सुल्तान को शासन कार्यों में परामर्श तथा सहयोग देने के लिए कुछ मन्त्री होते थे। इन मन्त्रियों की संख्या आठ थी। प्रधानमन्त्री को ‘वकील उल-सुल्तान’ कहते थे। राज्य के सभी आदेश वही जारी करता था। प्रत्येक सरकारी पत्र पर उसकी मोहर का होना आवश्यक था। न्याय विभाग का मन्त्री सदर-ए-जहां’ कहलाता था। वह धर्मार्थ विभाग का भी अध्यक्ष था। मन्त्री अपने सभी कार्य सुल्तान की आज्ञा से करते थे और अपने कार्यों के लिए उसी के प्रति उत्तरदायी होते थे। इन आठ मन्त्रियों के अतिरिक्त कुछ निम्न स्तरों के मन्त्री भी थे जिनमें कोतवाल तथा नाजिर प्रमुख थे।

II. प्रान्तीय शासन-

बाहमनी सुल्तानों ने शासन को सुचारु रूप से चलाने के लिए राज्य को कई भागों तथा उपभागों में विभक्त किया हुआ था। शासन की प्रमुख इकाई प्रान्त अथवा तर्फ थी। ‘तर्फ’ को आगे चल कर सरकारों तथा परगनों में बांटा गया था। प्रत्येक परगने में कुछ गांव सम्मिलित होते थे।

प्रारम्भ में बाहमनी राज्य चार तर्कों में विभक्त था-गुलबर्गा, दौलताबाद, बरार तथा बीदर। बाद में इनकी संख्या आठ हो गई। तर्क का मुखिया तर्कदार कहलाता था। वह अनेक कार्य करता था। प्रान्त में राजस्व कर एकत्रित करवाना, सैनिक भर्ती करना, सेना का नेतृत्व करना आदि उसके प्रमुख कार्य थे। वह पूर्णरूप से सुल्तान के अधीन था और सभी कार्य उसी की आज्ञा से करता था। उसके कार्यों का निरीक्षण करने के लिए सुल्तान स्वयं भी समय-समय पर तर्कों का दौरा किया करता था।
परगनों का शासन प्रबन्ध चलाने के लिए कई कर्मचारी नियुक्त थे। वे भी अपने सभी कार्य सुल्तान के आदेश द्वारा करते थे।

PSEB 11th Class Agriculture Solutions Chapter 11 कुछ नए कृषि विषय

Punjab State Board PSEB 11th Class Agriculture Book Solutions Chapter 11 कुछ नए कृषि विषय Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Agriculture Chapter 11 कुछ नए कृषि विषय

PSEB 11th Class Agriculture Guide कुछ नए कृषि विषय Textbook Questions and Answers

(क) एक-दो शब्दों में उत्तर दो-

प्रश्न 1.
जी० एम० का पूरा नाम लिखो।
उत्तर-
जनैटिकली मोडीफाइड फसलें।

प्रश्न 2.
बी०टी० का पूरा नाम लिखो।
उत्तर-
बैसिलस थुरिजैनिसस।

प्रश्न 3.
बी० टी० कपास में कौन-सा कीटनाशक पदार्थ पैदा होता है ?
उत्तर-
रवेदार प्रोटीन पैदा होता है जिसको खाकर सूंडी मर जाती है।

प्रश्न 4.
पी० पी० वी० और एफ० आर० का पूरा नाम लिखो।
उत्तर-
पौध किस्म और किसान अधिकार सुरक्षा एक्ट (Protection of Plant Variety and Farmers Rights)।

प्रश्न 5.
पौध प्रकार एवं किसान अधिकार सुरक्षा अधिनियम किस वर्ष पास किया गया ?
उत्तर-
वर्ष 2001 में।

प्रश्न 6.
खेत को समतल करने वाली नवीनतम मशीनों का नाम लिखें।
उत्तर-
लेजर कराहा।

प्रश्न 7.
धान में पानी की बचत करने वाले यंत्र का नाम लिखें।
उत्तर-
टैंशीओमीटर।

प्रश्न 8.
गत एक शताब्दी में धरती की सतह के तापमान में कितनी वृद्धि हो चुकी है ?
उत्तर-
0.5 डिग्री सैंटीग्रेड।

प्रश्न 9.
प्रमुख ग्रीन हाऊस गैसों के नाम लिखो।
उत्तर-
कार्बन डाइऑक्साइड, नाइट्रस ऑक्साइड, क्लोरोफ्लोरो कार्बन, मीथेन आदि।

प्रश्न 10.
सी० एफ० सी० का पूरा नाम लिखें।
उत्तर-
क्लोरो-फ्लोरो कार्बन (Chlorofloro Carbon)।

(ख) एक-दो वाक्यों में उत्तर दो-

प्रश्न 1.
जी० एम० फसल की परिभाषा लिखें।
उत्तर-
जी० एम० फसल का अर्थ है ऐसी फ़सलें जिनमें किसी ओर फ़सल या जीवजंतु का जीन डाल कर सुधार किया गया हो। जी० जैम० का पूरा नाम है जनेटिकली मोडीफाइड फ़सलें।

प्रश्न 2.
बी०टी०-1 और बी० टी०-2 प्रकार में क्या अंतर है ?
उत्तर-
बी० टी०-1 और बी० टी०-2 से अर्थ है बालगार्ड-1 और बालगार्ड-2 किस्में, ये कपास की किस्में हैं। बी० टी०-1 में सिर्फ एक बी० टी० जीन डाला गया है जबकि बी० टी०-2 में दो बी० टी० जीन डाले गए हैं। बी० टी०-1 सिर्फ़ अमरीकन सूंडी का मुकाबला कर सकती थी जबकि बी० टी०-2 अमरीकन सूंडी के अलावा अन्य इंडियों का भी मुकाबला कर सकती है।

प्रश्न 3.
बी० टी० कपास की टिंडे की सुंडियां हानि क्यों नहीं पहुंचाती ?
उत्तर-
बी० टी० कपास में वैसिलस थरिजैनिसस नाम के बैक्टीरिया के जीन डाले जाते हैं। यह जीन कपास के पौधे में रवेदार प्रोटीन पैदा करता है। यह प्रोटीन टिंडे की सुंडियों के लिए विषैला होता है, इसे खाकर सुंडियां मर जाती हैं तथा कपास को हानि नहीं पहुंचातीं।

प्रश्न 4.
बारीकी की कृषि से क्या अभिप्राय है? इसके क्या लाभ हैं ?
उत्तर-
बारीकी की कृषि से भाव है प्राकृतिक स्रोतों का उचित प्रयोग करना तथा कृषि में प्रयोग होने वाली वस्तुओं जैसे कीटनाशक, खादें, नदीननाशक आदि का भी उचित प्रयोग करना। खेत को एक जैसा न समझ कर उपरोक्त वस्तुओं की कुछ स्थानों पर अधिक तथा कुछ स्थानों पर कम प्रयोग की आवश्यकता होती है। इस प्रकार एक ही खेत में भिन्नभिन्न स्थानों पर आवश्यकता अनुसार कीड़े-मकौड़े तथा रोगों से प्रभावित भाग में स्प्रे, खादों का प्रयोग करके वातावरण भी दूषित नहीं होता तथा पैदावार भी बढ़ती है तथा दवाइयां, खादों पर अनावश्यक खर्चा भी नहीं होता।

प्रश्न 5.
पानी की बचत करने के लिए क्या पद्धति अपनाओगे ?
उत्तर-
लेज़र कराहे का प्रयोग करके खेत को समतल किया जाए तो पानी की काफ़ी बचत की जा सकती है। इस प्रकार धान की फसल में टैंशीयोमीटर का प्रयोग करके भी पानी की बचत की जा सकती है।

प्रश्न 6.
मौसमी (ऋतु) परिवर्तन का गेहूँ की कृषि पर क्या प्रभाव हो सकता है ?
उत्तर-
मौसमी (ऋतु) परिवर्तन के कारण फरवरी-मार्च में तापमान में वृद्धि होने के कारण पैदावार पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ सकता है।

प्रश्न 7.
ग्रीन हाऊस के भीतर तापमान में क्यों वृद्धि होती है ?
उत्तर-
शीशे या प्लास्टिक के बने घरों में जिनके अन्दर पौधे उगाए जाते हैं ; इनको हरे घर कहा जाता है। शीशे या प्लास्टिक में सूर्य की किरणें अन्दर प्रवेश कर सकती हैं परन्तु अन्दर से इनफ्रारेड किरणें बाहर नहीं निकल सकी। इस प्रकार शीशे या प्लास्टिक के घर के अन्दर गर्मी बढ़ जाती है तथा तापमान बढ़ जाता है।

प्रश्न 8.
ग्रीन हाऊस गैसों के नाम लिखो।
उत्तर-
स्वयं उत्तर दें।

प्रश्न 9.
बी० टी० किस्मों ने पंजाब में कपास उत्पादन को किस प्रकार प्रभावित किया है ?
उत्तर-
बी० टी० किस्मों को पंजाब में वर्ष 2006 से बोना शुरू किया गया। इस फ़सल से पहले पंजाब में नरमे की फसल लगभग तबाह हो गई थी। अमरीकन सूंडी के हमले के कारण नरमे की पैदावार सिर्फ 2-3 क्विटल रुई प्रति एकड़ रह गई थी परन्तु बी० टी० नरमा बोने के बाद पैदावार 5 क्विटल रुई प्रति एकड़ से भी बढ़ गया है। कीटनाशक दवाइयों का प्रयोग भी कम हो गया है जिस कारण वातावरण भी प्रदूषित नहीं होता तथा किसानों का अधिक खर्चा भी नहीं होता है।

प्रश्न 10.
सूक्ष्म कृषि में कौन सी उच्च तकनीकें प्रयोग में लाई जाती हैं ?
उत्तर-
सूक्ष्म कृषि में कई उच्च तकनीकों का प्रयोग किया जाता है ; जैसे-सैंसर्स, जी० पी० एस० अन्तरिक्ष तकनीक आदि।

(ग) पांच-छ: वाक्यों में उत्तर दो-

प्रश्न 1.
पंजाब में कौन-सी जी० एम० फसल बोई जाती है और इसके क्या लाभ
उत्तर-
पंजाब में जी० एम० फसलों में नरमे की फसल बोई जाती है। इस को बी० टी० नरमा कहा जाता है। अब कई अन्य जी० एम० फसल ; जैसे बैंगन, मक्की, सोयाबीन तथा धान आदि भी तैयार कर लिया जाता है। बी० टी० फसलों में बैसीलस थुरैजीनिसेंस नामक बैक्टीरिया का जीन डाला जाता है। इस कारण फसल में रवेदार प्रोटीन पैदा होता है जो कि सूंडियों के लिए ज़हर का काम करता है तथा सूंडिया इसको खा कर 3-4 दिन में मर जाती हैं। बी० टी० किस्में अमेरिकन सूंडी, गुलाबी सूंडी और तंबाकू की सूंडी का मुकाबला कर सकती है। पर कोई ओर सूंडी का नहीं। इसलिए बालगार्ड-1 किस्म जिसमें एक बी० टी० जीन था। इसकी जगह पर बालगार्ड-2 किस्म तैयार की गई है जिसमें बी० टी० जीन की दो किस्में हैं। ये किस्म अमेरिकन सूंडी और अन्य अन्य सूंडियों का मुकाबला कर सकती हैं। . बी० टी० नरमे को कृषि पंजाब में 2006 में शुरू की गई है। इस की कृषि से पहले नरमे की पैदावार 2-3 क्विटल रुई प्रति एकड़ रह गई थी। बी० टी० किस्म का प्रयोग करने के कारण कीटनाशक की ज़रूरत कम हो गई है जिसके साथ वातावरण शुद्ध रहता है।

प्रश्न 2.
जी० एम० फसलों से होने वाली संभावित संकट कौन-से हैं ?
उत्तर-
जी० एम० फसलों की जब से खोज हुई तब से ही बहुत सारी संस्थाओं ने इसका विरोध करना शुरू कर दिया था। ये संस्थाएं वातावरण भलाई, सामाजिक, मनुष्य के स्वास्थ्य के साथ संबंधित संस्थाएं और कई वैज्ञानिक भी इसके विरोध में हैं। उनके अनुसार जी० एम० मनुष्य की स्वास्थ्य, वातावरण, फ़सलों की प्रजातियाँ और अन्य पौधों के लिए हानिकारक हैं और उन पर बुरा असर पड़ता है। कई देशों में इन फ़सलों की पैदावार पर रोक लगाई गई है। पर इनके बुरे असर का कोई ठोस सबूत नहीं मिला है।

प्रश्न 3.
पौध प्रकार एवं किसान अधिकार सुरक्षा अधिनियम के मुख्य उद्देश्य क्या
उत्तर-
पौध प्रकार एवं किसान अधिकार सुरक्षा अधिनयम के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित-

  • प्लांट ब्रीडर द्वारा पैदा की गई नई पौध किस्म के ऊपर अधिकार स्थापित करना।
  • किसान का कई सालों से संभाली और सुधारी पौध किस्म पर उसका अधिकार स्थापित करना।
  • किसान को सुधरी किस्मों का अच्छा बीज और पौध सामग्री की प्राप्ति करवाना।

प्रश्न 4.
ग्रीन हाऊस गैसों का वातावरण पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर-
ग्रीन हाऊस गैसों का वातावरण पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। ग्रीन हाऊस गैसों के बढ़ने के कारण धरती की सतह का तापमान बढ़ रहा है, पिछले 100 सालों में इसके तापमान में 0.5°C की बढ़ोत्तरी हुई है और साल 2050 तक इसमें 3.2°C की बढ़ोत्तरी होने की संभावना है। इस तरह तापमान में वृद्धि के कारण आगे लिखे बुरे प्रभाव पड़ सकते हैं। बाढ़, अकाल पढ़ना, ग्लेशियर पिघलना, जिसके साथ समुद्री पानी के स्तर का बढ़ना, मानसून वर्षा में उतार-चढ़ाव तथा अनिश्चितता का बढ़ना, समुद्री तूफ़ान और चक्रवात आदि में वृद्धि होना।

प्रश्न 5.
मौसमी (ऋतु) परिवर्तन के कृषि पर क्या प्रभाव पड़ सकते हैं ?
उत्तर-
मौसमी बदलाव के कारण खेतीबाड़ी में कई तरह के बुरे प्रभाव पड़ सकते हैं। ग्लोबल वार्मिंग के कारण धरती की सतह का तापमान बढ़ रहा है जिस कारण कई तरह के प्रभाव पड़ सकते हैं।

  • तापमान में वृद्धि के कारण फसलों का जीवन काल, फसली चक्कर और फ़सलों की कृषि के समय पर प्रभाव पड़ सकता है।
  • तापमान और हवा में नमी के बढ़ने के कारण कई तरह की नई बीमारियाँ और नए कीड़े-मकौड़े फसलों की हानि कर सकते हैं।
  • गेहूँ की पैदावार को फरवरी-मार्च में तापमान में हुई वृद्धि कम कर सकती है।
  • मानसून की अनिश्चितता के कारण खेती पैदावार कम हो सकती है।
  • रात के तापमान में वृद्धि के कारण खेती पैदावार कम हो सकता है।
  • कई देशों में तापमान में वृद्धि के कारण फसल की पैदावार पर अच्छे-प्रभाव भी हो सकते हैं।

Agriculture Guide for Class 11 PSEB कुछ नए कृषि विषय Important Questions and Answers

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
जी० एम० फसलों को ओर क्या कहा जाता है ?
उत्तर-
ट्रांसजेनिक फसलें।

प्रश्न 2.
फसलों में अन्य किसी फसल या जीव के जीन को किस तकनीक के द्वारा डाला जाता है ?
उत्तर-
जैनेटिक इंजीनियरिंग तकनीक द्वारा।

प्रश्न 3.
बी० टी० का पूरा नाम बताओ।
उत्तर-
बैसिलस थुरिजैनिसस।

प्रश्न 4.
बी० टी० क्या है ?
उत्तर-
ज़मीन में मिलने वाला एक बैक्टीरिया।

प्रश्न 5.
बी० टी० नरमे (कपास) के अलावा और कौन-सी फसलें तैयार की गई हैं ?
उत्तर-
बैंगन, मक्की, सोयाबीन, धान आदि।

प्रश्न 6.
किस तकनीक का प्रयोग करने के बाद कौन-सी किस्म को रजिस्टर नहीं कर सकते ? …
उत्तर-
टर्मीनेटर,तकनीक वाली फसल को।

प्रश्न 7.
फसली किसम की रजिस्ट्रेशन कितने समय के लिए करवाई जा सकती है ?
उत्तर-
6 साल के लिए जिसको 15 साल तक बढ़ाया जा सकता है।

प्रश्न 8.
फसल की किस्म को रजिस्टर कराने के लिए जानकारी प्राप्त करने के लिए वैबसाइट बताओ।
उत्तर-
www. plantauthority. gov.in

प्रश्न 9.
सूक्ष्म कृषि का सिद्धान्त कौन-से किसानों के लिए लागू होता है ?
उत्तर-
छोटे और बड़े किसानों दोनों के लिए।

प्रश्न 10.
विकसित देशों में कौन-से यंत्र की सहायता से सही मात्रा में खाद डाली जाती है ?
उत्तर-
नाइट्रोजन सैंसर यंत्र।

प्रश्न 11.
विकसित देशों में किस तकनीक की सहायता से खेतों को मापा जाता
उत्तर-
जी० पी० एस० तकनीक के साथ।

प्रश्न 12.
धान के खेत में लंबे समय तक पानी खड़ा रहने से कौन-सी गैस पैदा होती है ?
उत्तर-
मीथेन गैस।

प्रश्न 13.
नाइट्रोजन की खाद के अधिक प्रयोग के कारण कौन-सी ग्रीन हाऊस गैस पैदा होती है ?
उत्तर-
नाइट्रोजन ऑक्साइड।

प्रश्न 14.
रात के तापमान में वृद्धि के कारण फ़सलों की पैदावार पर क्या असर पड़ता है ?
उत्तर-
पैदावार कम हो सकती है।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
बालगार्ड-2 की कौन-सी किस्में हैं ?
उत्तर-
एम० आर० सी० 7017, एम० आर० सी०-7031, आर० सी० एच०-650, एन० सी० एस०-855 आदि बालगार्ड-2 की किस्में हैं।

प्रश्न 2.
PPV तथा FR एक्ट के अनुसार कौन-सी फसलों को रजिस्टार करवाया जा सकता है ?
उत्तर-
इस एक्ट के अनुसार ज्वार, मक्की , बाजरा, गेहूं, धान, गन्ना, कपास, मटर, अरहर, मसर, हल्दी, चने आदि फ़सलों को रजिस्टर करवाया जा सकता है।

प्रश्न 3.
PPV तथा FR एक्ट के अनुसार कौन-सी फसलों की रजिस्ट्रेशन नहीं हो सकती ?
उत्तर-
ऐसी कोई भी किस्म जो मनुष्य के स्वास्थ्य, वातावरण या पौधों के लिए हानिकारक हो। टर्मीनेटर तकनीक वाली किस्मों को भी रजिस्टर नहीं किया जा सकता।

प्रश्न 4.
टर्मीनेटर तकनीक किस्मों द्वारा पैदा की गई किस्मों को रजिस्टर क्यों नहीं करवाया जा सकता ?
उत्तर-
टर्मीनेटर तकनीक के साथ तैयार की गई बीजों की फसल के बीज में उगने की शक्ति नहीं होती है।

प्रश्न 5.
PPV तथा FR एक्ट के उल्लंघन की सजा के बारे में बताओ।
उत्तर-
गलत जानकारी देना जैसे रजिस्ट्रर्ड किस्म का गलत नाम, देश का गलत नाम या प्रजनन करता का गलत नाम और पता देने से एक्ट का उल्लंघन होता है। इसकी सजा के तौर पर जेल, जुर्माना या दोनों हो सकते हैं।

प्रश्न 6.
सूक्ष्म कृषि का स्पष्ट संदेश क्या है ?
उत्तर-
सूक्ष्म कृषि का स्पष्ट संदेश यह है कि खेत के किसी भाग में क्या कमी है, इसको जाने बगैर केवल अधिक खादों का प्रयोग करके इन कमियों को पूरा नहीं किया जा सकता।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न-
ग्रीन हाऊस गैसों और ग्रीन हाऊस के सिद्धांत के बारे में बताओ। धरती के लिए इसका संबंध बताओ।
उत्तर-
ग्रीन हाऊस गैसें हैं-कार्बन डाइऑक्साइड, नाइट्रस डाइऑक्साइड, क्लोरोफ्लोरो कार्बन, मीथेन आदि।
शीशे या प्लास्टिक के बने घरों को जिनके अंदर पौधे उगाए जाते हैं, इनको हरे घर कहा जाता है। शीशे या प्लास्टिक में सूरज की किरणें अंदर तो आ जाती हैं पर अंदर से इनफ्रारेड किरणे बाहर नहीं निकल सकतीं, इस तरह शीशे या प्लास्टिक के घर में गर्मी बढ़ जाती है और तापमान अधिक हो जाता है।
ग्रीन हाऊस गैसों ने शीशे की तरह धरती को सभी तरफ से घेरा हुआ है और सूरज की गर्मी को धरती पर आने देती हैं पर धरती से बाहर नहीं जाने देती जिससे धरती का तापमान बढ़ जाता है जिसको ग्लोबल वार्मिंग कहते हैं। धरती का तापमान बढ़ने के कारण कई तरह की समस्याएं पैदा होती हैं, जैसे-बाढ़ों में वृद्धि, सूखा पड़ना, मानसून के समय में अंतर आना आदि।

कुछ नए कृषि विषय PSEB 11th Class Agriculture Notes

  • आदिकाल से ही मनुष्य कृषि का व्यवसाय करता आ रहा है।
  • नई तकनीकों का प्रयोग करके किसी ओर फ़सल या जीव जंतु का जीन किसी फ़सल में डाल कर इसको संशोधित जाता है।
  • जीन डाल कर संशोधित फ़सल को जी० एम० या ट्रांसजीनक फ़सलें कहा जाता है।
  • बी० टी० का अर्थ बैसिलस थुरिजैनिसस नाम के बैक्टीरिया से है।
  • बी० टी० नरमे (कपास) में एक रवेदार प्रोटीन पैदा होता है जिसको खाकर – सुंडियां मर जाती हैं।
  • बी० टी० नरमे (कपास) की बोलगार्ड-1 किस्म में सिर्फ एक बी० टी० जीन डाला गया था पर बोलगार्ड-2 में दो बी० टी० जीन डाले गए हैं।
  • बी० टी० नरमे की किस्म से पैदावार पाँच क्विंटल कपास प्रति एकड़ से भी ज्यादा मिलता है।
  • बी० टी० किस्मों के प्रयोग के कारण कीटनाशकों के प्रयोग पर भी रोक लगी
  • बैंगन, सोयाबीन, मक्की, चावल आदि की भी जी० एम० फ़सलें तैयार की जा चुकी हैं।
  • कई संस्थाएं जी० एम० फसलों को मनुष्यों के स्वास्थ्य, वातावरण, फ़सलों की । प्रजातियाँ तथा अन्य पौधों के लिए हानिकारक मानते है और इसका विरोध करते हैं।
  • किसानों के अधिकार और पौधे किस्मों के संबंध में 2001 में भारत सरकार ने पौध किस्म और किसान अधिकार सुरक्षा एक्ट पास किया।
  • फ़सली किस्मों की रजिस्ट्रेशन की सीमा शुरू में 6 वर्ष और बाद में अर्जी दे कर सीमा ज्यादा-से-ज्यादा 15 साल तक बढ़ायी जा सकती है।
  • वृक्ष और बेलदार वाली फ़सलों का समय पहले 9 साल तथा बढ़ा कर 18 साल तक हो सकता है।
  • रजिस्ट्रेशन की जानकारी वैबसाइट www. plantauthority. gov.in से प्राप्त हो सकती है।
  • विकसित देशों में सूक्ष्म कृषि के लिए सैंसरज, जी० पी० एस०, अंतरिक्ष ) तकनीकों आदि का प्रयोग किया जाता है।
  • विकसित देशों में नाइट्रोजन सैंसर यंत्रों के प्रयोग से खाद की सही मात्रा का प्रयोग किया जाता है।
  • लेज़र कराहा और टैंशीयोमीटर के प्रयोग से हम पानी की बचत कर सकते हैं।
  • कई विकसित देशों में जी० पी० एस० तकनीक के प्रयोग से खेतों को नापा जाता है।
  • जलवायु परिवर्तन के कारण पिछले सौ सालों में ग्लोबल वार्मिंग हुई है और धरती की सतह पर तापमान 0.5°C बढ़ गया है।
  • ग्रीन हाऊस गैसें हैं-कार्बन डाइऑक्साइड, नाइट्रसऑक्साइड, क्लोरोफ्लोरो कार्बन, मिथेन आदि।

ऐथलैटिक्स (Athletics) Game Rules – PSEB 11th Class Physical Education

Punjab State Board PSEB 11th Class Physical Education Book Solutions ऐथलैटिक्स (Athletics) Game Rules.

ऐथलैटिक्स (Athletics) Game Rules – PSEB 11th Class Physical Education

खेल सम्बन्धी महत्त्वपूर्ण जानकारी: (Important Information Related Athletics)

  1. ऐथलैटिक्स प्रतियोगिताओं में कोई भी खिलाड़ी नशीली चीज़ों या दवाइयों का प्रयोग करके भाग नहीं ले सकता।
  2. जो खिलाड़ी अन्य खिलाड़ियों के लिए किसी प्रकार की बाधा प्रस्तुत करे, उसे अयोग्य घोषित किया जाता है। जो खिलाड़ी दौड़ते हुए अपनी इच्छा से ट्रैक को छोड़ता है, वह पुन: दौड़ जारी नहीं कर सकता।
  3. फील्ड इवेंट्स में दो तरह के इवेंट्स आते हैं-जम्पिंग इवेंट्स और थ्रो इवैंट्स। ट्रैक इवेंट्स में वह दौड़ आती हैं जो ट्रैक में दौड़ी जाती हैं।
  4. 200 मीटर ट्रैक की लम्बाई 40 मीटर तथा चौड़ाई 38.18 मीटर होती है, 400 मीटर ट्रैक की लम्बाई 77 मीटर तथा चौड़ाई 67 मीटर होती है।
  5. जैवलिन थ्रो का भार 805 से 825 ग्राम होता है और लड़कियों के लिए चौड़ाई 605 से 620 ग्राम तक होता है। डिसक्स का भार लड़कों के लिए 2 कि० ग्राम होता है। गोला, हैमर या डिसक्स थ्रो के समय यह आवश्यक है कि 40° के सैक्टर में लैंड करे। गोला फेंकने का भार 7 किलोग्राम निश्चित किया गया है।

PSEB 11th Class Physical Education Guide ऐथलैटिक्स (Athletics) Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
ऐथलैटिक्स इवेंटस को कितने भागों में बांटा गया है ?
उत्तर-
ऐथलैटिक्स इवेंटस को दो भागों में बांटा जाता है-ट्रेक इवेंटस और फील्ड इवैंटस।

ऐथलैटिक्स (Athletics) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education

प्रश्न 2.
ऐथलैटिक्स में ट्रैक इवेंटस कौन-कौन से होते हैं ?
उत्तर-

  1. छोटी दूरी वाली दौड़ें,
  2. बीच की दूरी वाली दौड़ें,
  3. लम्बी दूरी वाली दौड़ें।

प्रश्न 3.
ऐथलैटिक्स में पुरुषों के लिये जैवलिन का भार कितना होता है ?
उत्तर-
800 ग्राम।

प्रश्न 4.
ऐथलैटिक्स में पुरुषों के लिए डिसकस का घेरा लिखें।
उत्तर-
219 से 221 मिलीमीटर।

ऐथलैटिक्स (Athletics) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education

प्रश्न 5.
ऐथलैटिक्स में हैमर थ्रो के कोई पांच नियम लिखें।
उत्तर-

  1. हैमर थ्रो में एथलीट को थ्रो के लिये तीन अवसर दिए जाते हैं।
  2. सबसे अधिक दूरी पर फैंकने वाले को विजयी घोषित किया जाता है।
  3. हैमर थ्रो में हैमर थ्रो पूरा करने के लिए 1.30 मिनट का समय दिया जाता है।
  4. हैमर मार्क सेक्टर में ही गिरना चाहिए अन्यथा थ्रो अयोग्य मानी जाएगी।
  5. हैमर को फेंकते हुए हैमर को चक्कर के अन्दर ही रखा जा सकता है।

प्रश्न 6.
ऐथलैटिक्स में थ्रोइंग इवेंटस कौन-कौन सी हैं ?
उत्तर-

  1. गोला फेंकना,
  2. हैमर थ्रो,
  3. जैवलिन थ्रो,
  4. डिस्कस थ्रो।

ऐथलैटिक्स (Athletics) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education

Physical Education Guide for Class 11 PSEB ऐथलैटिक्स (Athletics) Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
ऐथलैटिक्स प्रतियोगिता करवाने के लिए कौन-कौन से अधिकारियों की आवश्यकता होती है ?
उत्तर-
ऐथलैटिक्स प्रतियोगिता करवाने के लिए आगे लिखे अधिकारियों की आवश्यकता होती है—
ऐथलैटिक्स के लिए अधिकारी
(Officials for the meet)

  1. रैफ़री ट्रैक के लिए (Referee for Track Events)
  2. रैफ़री फील्ड इवेंट्स के लिए (Referee for Field Events)
  3. रैफ़री वाकिंग इवेंट्स (Referee for Walking Events)
  4. जज ट्रैक इवेंट्स (Judge for Track Events)
  5. जज फील्ड इवैंट्स (Judge for Field Events)
  6. जज वाकिंग इवेंट्स (Judge for Events)
  7. अम्पायर (Umpire)
  8. टाइम कीपर (Time Keeper)
  9. स्टार्टर (Starter)
  10. सहायक र्टाटर (Asst. Starter)
  11. मार्क मैन (Markman)
  12. लैप स्कोरर (Lap Scorer)
  13. रिकॉर्डर (Recorder)
  14. मार्शल (Marshall)

दूसरे अधिकारी
(Additional Officials)

  1. अनाउंसर (Announcer)
  2. आफिशल सर्वेयर (Official Surveyer)
  3. डॉक्टर (Doctor)
  4. सटुअरडज़ (Stewards)

ट्रैक इवेंट्स पुरुषों के लिए

  • 100 — मीटर रेस
  • 200 — मीटर रेस
  • 400 — मीटर रेस
  • 800 — मीटर रेस
  • 1500 — मीटर रेस
  • 3,000 — मीटर दौड़
  • 5,000 — मीटर दौड़
  • 10,000 — मीटर दौड़
  • 42,195 — मीटर या 26 मील दौड
  • 3,000 — मीटर स्टीपल चेज़
  • 20,000 — मीटर वाकिंग
  • 30,000 — मीटर वाकिंग
  • 50,000 — मीटर वाकिंग

महिलाओं के लिए ट्रैक इवेंट्स

  • 100 — मीटर रेस
  • 200 — मीटर रेस
  • 400 — मीटर रेस
  • 800 — मीटर रेस
  • 1500 — मीटर रेस

हर्डल दौड़ें पुरुषों के लिए

  • 110 — मीटर हर्डल दौड़
  • 200 — मीटर हर्डल दौड़
  • 400 — मीटर हर्डल दौड़

महिलाओं के लिए हर्डल दौड़

  • 100 — मीटर हर्डल दौड़
  • 200 — मीटर हर्डल दौड़

रीले दौड़ें पुरुषों के लिए

  • 4 × 100 — मीटर
  • 4 × 200 — मीटर
  • 4 × 400 — मीटर
  • 4 × 800 — मीटर
  • 4 × 1500 — मीटर

महिलाओं के लिए रिले दौड़

  • 4 × 100 — मीटर
  • 4 × 200 — मीटर
  • 4 × 400 मीटर

मैडल रिले रेस

  • 800 × 200 × 200 × 400

6. 110 मीटर हर्डल्ज लड़कों के लिए हर्डलों की ऊंचाई 1.06 मीटर होती है। जूनियर लड़कियों के लिए 1.00 मीटर हर्डल्ज़ की ऊंचाई, 0.76 मीटर और सीनियर लड़कियों के लिए 0.89 मीटर होती है।

ऐथलैटिक्स (Athletics) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education

प्रश्न 2.
ट्रैक इवेंट्स के लिए एथलीटों के लिए निर्धारित नियमों के बारे लिखें।
उत्तर-
ट्रैक इवेंटस के लिये एथलीटों के लिए निर्धारित नियम इस प्रकार हैं—

  1. एथलीट ऐसे वस्त्र पहने जो किसी किस्म के आपत्तिजनक न हों और वह साफ-सुथरे भी हों।
  2. कोई भी एथलीट नंगे पांव नहीं दौड़ सकता।
  3. यदि कोई खिलाड़ी दूसरे खिलाड़ी के लिये किसी तरह की रुकावट पैदा करता है तो उसे अयोग्य घोषित किया जा सकता है।
  4. प्रत्येक खिलाड़ी को अपने आगे तथा पीछे स्पष्ट रूप में नम्बर लगाने चाहिए।
  5. लाइनों (Lines) में दौड़ी जाने वाली दौड़ों में खिलाड़ी को शुरू से अंत तक अपनी लाइन में ही रहना होगा।
  6. यदि कोई खिलाड़ी जान-बूझ कर अपनी लेन में से बाहर दौड़ता है तो उसे अयोग्य घोषित किया जाता है।
  7. यदि खिलाड़ी अपनी मर्जी से ट्रैक को छोड़ता है तो उसको दोबारा दौड़ जारी रखने का अधिकार नहीं।
  8. खिलाड़ी को नशीली वस्तुओं तथा दवाइयों का प्रयोग करने की आज्ञा नहीं होगी और न ही खेलते समय इसको अपने पास रख सकता है।
  9. यदि ट्रैक तथा फील्ड दोनों इटस एक ही साथ शुरू हो चुके हों तो जज इसको अलग-अलग ढंगों से भाग लेने की आज्ञा दे सकता है।
  10. 800 मीटर दौड़ का स्टार्टर अपनी भाषा में कहेगा “On your marks” पिस्तौल चला दिया जाता है तथा खिलाड़ी दौड़ पड़ते हैं। 800 मीटर से अधिक दौड़ों में केवल “On your marks’शब्द कहे जाएंगे तथा फिर तैयार होने पर पिस्तौल चला दिया जाएगा।
  11. खिलाड़ी को “On your marks” की स्थिति में अपने सामने वाली ग्राऊंड पर आरम्भ रेखा (Start Line) को हाथों अथवा पैरों द्वारा छूना नहीं चाहिए।
  12. यदि कोई एथलीट दो बार फाऊल स्टार्ट लेता है तो उसको दौड़ से बाहर निकाल दिया जाता है।

ऐथलैटिक्स (Athletics) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education

प्रश्न 3.
ट्रैक इवेंट्स में कितने इवेंट्स होते हैं ?
उत्तर-
ऐथलैटिक्स दो प्रकार की होती है-Track Events और Field Events । भाव कुछ एथलीट Track Events में भाग लेते हैं और कुछ Field Events में।
ट्रैक इवेंट्स में छोटी दौड़ें (Sprint or Short Distance Races), मध्य दूरी वाली दौड़ें (Middle Distance Races) और लम्बी दौड़ें (Long Distance Races) आती हैं। फील्ड इवेंट्स में कूदने वाली इवेंट्स जैसे लम्बी छलांग (Long Jump), ऊंची छलांग (High Jump), पोल वाल्ट जम्प (Pole Vault Jump) और ट्रिपल्ल जम्प (Triple Jump) और फेंकने वाले इवेंट्स जैसे गोला फेंकना (Short put or Putting the Shot), पाथी फेंकना (Discuss : Throw), भाला फेंकना (Javelin Throw) और हैमर फैंकना (Hammer Throw) आदि सम्मिलित हैं।

ट्रैक
(TRACK)
ट्रैक दो प्रकार के होते हैं-एक 400 मीटर वाला ट्रैक और दूसरा 200 मीटर का ट्रैक। Standard ट्रैक का नाम 400 मीटर वाले ट्रैक को ही दिया जा सकता है। इस ट्रैक में कम-से-कम 6 लेन (Lanes) और अधिक-से-अधिक 8 लेन (Lanes) होती हैं।
Track Events Races : Short Middle and Long
SPRINTING
ऐथलैटिक्स (Athletics) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education 1
स्प्रिंटिंग (Sprinting) स्प्रिंट वह रेस होती है जो प्रायः पूरी शक्ति और पूरी गति से दौड़ी जाती है। इसमें 100 मीटर और 200 मीटर की दौड़ें आती हैं। आजकल तो 400 मीटर रेस को भी इसमें गिना जाने लगा है। इस प्रकार की दौड़ों में प्रतिक्रिया (Reaction), टाइम और गति (Speed) का बहुत महत्त्व है।
(1) स्टार्ट्स (Starts) कम दूरी की दौड़ों में प्राय: निम्नलिखित प्रकार के तीन स्टार्ट लिये जाते हैं—

  1. बंच स्टार्ट (Bunch Start)
  2. मीडियम स्टार्ट (Medium Start)
  3. इलोंगेटेड स्टार्ट (Elongated Start)

बंच स्टार्ट (Bunch Start)-इस प्रकार के स्टार्ट के लिए ब्लाकों के बीच दूरी 8 इंच से 10 इंच के बीच होनी चाहिए और आगे वाला स्टार्ट स्टार्टिंग लाइन से लगभग 19 इंच के करीब होना चाहिए। एथलीट इस प्रकार ब्लाक में आगे को झुकता है कि पिछले पांव की टो और अगले पांव की एड़ी एक-दूसरे के समान स्थित हों। हाथ स्टार्टिंग लाइन पर ब्रिज बनाए हुए हों और स्टार्टिंग लाइन से पीछे हों। इस प्रकार के स्टार्ट में जब Set Position का आदेश होता है, Hips को ऊंचा ले जाया जाता है। यह स्टार्ट सबसे अधिक अस्थिर होता है।

मीडियम स्टार्ट (Medium Start) इस प्रकार के स्टार्ट में ब्लाकों के बीच की दूरी 10 से 13 इंच के बीच होती है और स्टार्टिंग लाइन से पहले ब्लाक की दूरी लगभग 15 इंच के बीच होती है। प्रायः एथलीट इस प्रकार के स्टार्ट का प्रयोग करते हैं। इसमें पिछले पांव का घुटना और अगले पांव का बीच वाला भाग एक सीध में होते हैं और Set Position पर Hips तथा कंधे लगभग एक-सी ऊंचाई पर ही होते हैं।

इलोंगेटेड स्टार्ट (Elongated Start)-इस प्रकार का स्टार्ट बहुत कम लोग लेते हैं। इसमें ब्लाकों (Starting Block) के बीच की दूरी 25 से 28 इंच के बीच होती है। पिछले पांव का घुटना लगभग अगले पांव की एड़ी के सामने होता है।
स्टार्ट लेना (Start)—जब किसी भी रेस के लिए स्टार्ट लिया जाता है तो तीन प्रकार के आदेशों पर कार्य करना पड़ता है।

  1. आन यूअर मार्क (On Your Mark)
  2. सैट पोजीशन (Set Position)
  3. पिस्तौल की आवाज़ पर जाना (Go)

दौड़ का अन्त (Finish of the Race)-दौड़ का अन्त बहुत ही महत्त्वपूर्ण होता है। आमतौर पर खिलाड़ी तीन प्रकार से दौड़ को समाप्त करते हैं। ये इस प्रकार हैं—

  1. दौड़ कर सीधा आगे निकल जाना (Run Through)
  2. आगे को झुकना (Lunge)
  3. कन्धा आगे करना (The shoulders String)

मध्यम दूरी की दौड़ें (Middle Distance Races)—ट्रैक इवेंटों में कुछ दौड़ें मध्यम दूरी की होती हैं। आमतौर पर उन दौड़ों को, जो 400 गज़ के ऊपर और 1000 गज़ से नीचे की होती हैं, इस श्रेणी में गिना जाता है। ये दौडें 400 मीटर और 800 मीटर की होती हैं। इन दौड़ों में गति और सहनशीलता दोनों की आवश्यकता होती है, और वही एथलीट इसमें सफल होता है जिसके पास ये दोनों चीजें हों। इस प्रकार की दौड़ों में आमतौर पर एक-जैसी गति बनाए रखी जाती है और अन्त में पूरा जोर लगा कर दौड़ को जीता जाता है। 400 मीटर का स्टार्ट तो स्प्रिंग की तरह ही लिया जाता है जबकि 800 मीटर का स्टार्ट केवल खड़े होकर ही लिया जा सकता है। जहां तक हो सके इस दौड़ में कदम (Strides) बड़े होने चाहिएं।

लम्बी दूरी की दौड़ें (Long Distance Races)-लम्बी दूरी की दौड़ों जैसे कि नाम से ही मालूम होता है, दूरी बहुत अधिक होती है और प्रायः ये दौड़ें एक मील से ऊपर की होती हैं। 1500 मीटर, 3000 मीटर और 5000 मीटर दूरी वाली दौड़ें लम्बी दूरी वाली रेसें हैं। इनमें एथलीट की सहनशीलता (Endurance) का अधिक योगदान है। लम्बी दूरी की दौड़ों में एथलीट को अपनी शक्ति और सामर्थ्य का प्रयोग एक योजनाबद्ध ढंग से करना होता है और जो एथलीट इस कला को प्राप्त कर जाते हैं वे लम्बी दूरी की दौड़ों में सफल हो जाते हैं।

इस प्रकार की दौड़ों में दौड़ के आरम्भ को छोड़ कर सारी दौड़ में एथलीट का शरीर सीधा और आगे की और कुछ झुका रहता है तथा सिर सीधा रखते हुए ध्यान ट्रैक की ओर रखा जाता है। बाजू ढीली सी आगे की ओर लटकी होती है जबकि कोहनियों के पास से बाजू मुड़े होते हैं और हाथ बिना किसी तनाव के थोड़े से बन्द होते हैं। बाजू और टांगों के एक्शन जहां तक हो सके बिना किसी अधिक शक्ति व प्रयत्न के होने चाहिएं। दौड़ते समय पांव का आगे वाला भाग धरती पर आना चाहिए और एड़ी भी मैदान को छूती है, परन्तु अधिक पुश (Push) टो से ही ली जाती है। इस प्रकार की दौड़ों में कदम (Strides) छोटे और अपने आप बिना अधिक बढ़ाए होने चाहिएं। सारी दौड़ में शरीर बहुत Relaxed होना चाहिए।
इस प्रकार की दौड़ को समाप्त करते समय शरीर में इतना बल (Stamina) और गति होनी चाहिए कि एथलीट अपनी रेस को लगभग फिनिश लाइन से पांच-सात गज़ आगे तक समाप्त करने का इरादा रखे तो ही अच्छे परिणामों की आशा की जा सकती है।
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ट्रैक इवेंट्स में 100, 200, 400 तथा 800 मीटर तक की दौड़ आती है।

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प्रश्न 4.
200 मीटर और 400 मीटर के ट्रैक की चित्र के साथ बनावट लिखें।
उत्तर-
200 मीटर के ट्रैक की बनावट
(Track for 200 Metre)
200 मीटर के ट्रैक की लम्बाई 94 मीटर तथा चौड़ाई 53 मीटर होती है। इसकी बनावट का विवरण नीचे दिया गया है—
ट्रैक की कुल दूरी = 200 मीटर
दिशाओं की लम्बाई = 40 मीटर दिशाओं
द्वारा रोकी गई दूरी = 40 × 2 = 80 मीटर
कोनों में रोकी जाने वाली दूरी = 120 मीटर
व्यास 120 मीटर ÷ 2r = 19.09 मीटर
दौड़ने वाली दूरी का व्यास = 19.09 मीटर
प्रतिफल मार्किंग व्यास = 18.79 मीटर
1.22 मीटर (4 फुट) चौड़ी लाइनों के लिए स्टैगर्ज
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लेन मीटर
पहली 0.00
दूसरी 3.52
तीसरी 7.35
चौथी 11.19
पांचवीं 15.02
छठी 18.86
सातवीं 26.52
आठवीं 26.52

400 मीटर ट्रैक की बनावट

कम-से-कम माप = 170.40 × 90.40 मीटर
ट्रैक की कुल दूरी = 600 मीटर
सीधी लम्बाई = 80 मीटर
दोनों दिशाओं की दूरी = 80 × 2 = 160 मीटर
वक्रों (Curves) की दूरी = 240 मीटर
व्यास 240 मीटर : 2r = 38.18 मीटर
छोड़ने वाली दूरी का अर्द्धव्यास = 38.18 मीटर
मार्किंग अर्द्धव्यास = 37.88 मीटर
(i) 400 मीटर लेन [चौड़ाई 1.22 (4 फुट)] के लिए स्टैगर्ज

लेन मीटर
पहली 0.00
दूसरी 7.04
तीसरी 14.71
चौथी 22.38
पांचवीं 30.05
छठी 37.72
सातवीं 45.39
आठवीं 53.06

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प्रश्न 5.
हर्डल दौड़ों के विषय में आप संक्षेप में लिखें।
उत्तर-
100 मीटर बाधा महिला दौड़
(100 Metre Women Hurdle)
100 मी० बाधा दौड 1968 से प्रारम्भ की गई है। सामान्यतः महिला धाविका 13 मीटर दूर स्थित प्रथम बाधा तक की दूरी 8 डगों में पूरी कर लेती है। उछाल 1.95 मीटर से लेकर बाधा को पार कर 11 मीटर की दूरी पर उनके ये डग पूरे होते हैं। बाधा के बीच तीन डग पूरे करने पर पुनः उछाल 200 मी० की दूरी से लिया जाता है। इस प्रकार वे 8.50 मी० की दूरी तय करती है।

बाधा पार करते समय महिला धाविकाओं को अपने शरीर के ऊपरी भाग को आगे की ओर अधिक नहीं झुकाना चाहिए और न ही उछाल के समय अपने घुटने को अधिक ऊंचा उठाना चाहिए। बाधा को पार करने की विधि वही अपनानी चाहिए जो 400 मी० हर्डल में अपनायी जाती है।
भिन्न-भिन्न प्रतियोगिता के लिए हर्डल की गिनती, ऊंचाई और दूरी निम्नलिखित हैं—
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110 मीटर बाधा दौड़
(110 Metre Hurdle Race)
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सामान्यत: बाधा दौड़ के धावक (Runner) पहली बाधा तक पहुंचने में 8 कदम लेते हैं। प्रारम्भ स्थल (Starting Block) पर बैठते समय अधिक शक्ति वाले पैर (Take off Foot) को आगे रखा जाता है। धावक यदि लम्बा है और अधिक तेज़ दौड़ सकने की क्षमता रखता है तो उस स्थिति में यह दूरी उसके लिए कम पड़ सकती है। उस दशा में थोड़ा अन्तर होने पर प्रारम्भ स्थल की दूरी के बीच की दूरी कम करके तालमेल बैठाने का प्रयास होना चाहिए, किन्तु ऐसा करने पर | यदि धावक असुविधा अनुभव करता है तो बाधा को मात्र कदमों में ही पार कर लेना चाहिए। ऐसी स्थिति में शक्तिशाली पैर पीछे के स्थल (Block) पर रख कर धावक दौड़ेगा। अत: शक्तिशाली पैर बाधा से लगभग 2 मीटर पीछे आयेगा। आरम्भ में धावक को उसे 5 कदम तक अपनी दृष्टि नीचे रखनी चाहिए और बाद में हर्डल पर ही दृष्टि केन्द्रित होनी चाहिए। आरम्भ से अन्त तक कदमों के बीच का अन्तर निरन्तर बढ़ता ही जायेगा। किन्तु अन्तिम कदम उछाल कदम से लगभग 6 इंच (10 सैं० मी०) छोटा ही रहेगा। सामान्य दौड़ों की तुलना में बाधा दौड़ में दौड़ते समय धावक के घुटने अपेक्षाकृत अधिक ऊपर आयेंगे और जमीन पर पूरा पैर न रख कर केवल पैर के अगले भाग (पंजों) को ही रखना चाहिए।
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बाधा को पार करते समय उछाल पैर को सीधा रखना चाहिए तथा आगे के पैर को घुटने से ऊपर उठाना चाहिए। पैर का पंजा जमीन की ओर नीचे की ओर झुका हुआ रखना चाहिए, आगे के पैर को एक साथ सीधा करते हुए बाधा के ऊपर से लाना चाहिए, और शरीर का ऊपर का भाग आगे की ओर झुका हुआ रखना चाहिए। हर्डिल को पार करते ही अगले पैर की जांघ को नीचे दबाते रहना चाहिए कि जिस से बाधा पार हो जाने के बाद पंजा बाधा से अधिक दूरी पर न पड़ कर उसके पास ही ज़मीन पर पड़े। इसके साथ ही पीछे के पैर को घुटने से झुका कर बाधा के ऊपर से ज़मीन के समानान्तर रख कर घुटने को सीने के पास से आगे लाना चाहिए। इस प्रकार पैर आगे आते ही धावक तेज़ दौड़ने के लिए तत्पर रहेगा।

बाधा पार करने के उपरान्त पहला डग (कदम) 1.55 से 1.60 मीटर की दूरी पर, दूसरा 2.10 मीटर का तथा तीसरा . लगभग 2.20 मीटर के अन्तर पर पड़ना चाहिए। (13.72 मी०, 9.14 मी०, 14.20 मी०)
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400 मीटर बाधा (परुष तथा महिला)
(400 Metres Hurdles Men and Women)
सामान्यतः धावक को इस दौड़ में सर्वाधिक असुविधा अपने डगों के बीच तालमेल बैठाने में होती है। प्रारम्भ में प्रथम बाधा के बीच की दूरी को लोग सामान्यतः 21 से 23 डगों में पूरा कर लेते हैं और बाधा के बीच में 13-15 अथवा 17 डग रखते हैं। कुछ धावक प्रारम्भ में 14 और बाद में 16 कदमों में इस दूरी को पूरा कर लेते हैं। दाहिने पैर से उछाल लेने से लाभ होने की अधिक सम्भावना होती है। सामान्यतः उछाल 2.00 मीटर से लिया जाता है और पहला डग बाधा को पार कर जो ज़मीन पर पड़ता है, वह 1.20 मीटर का होता है। इसकी तकनीक 110 व 100 मीटर बाधाओं की ही भान्ति होती है। 400 मीटर दौड़ के समय से (सैकण्ड) 2-5 से 3-5 से 400 मीटर बाधा का समय अधिक आता है। 200 मीटर तथा प्रथम (220-2-5 से) = 25-5 से हर्डिल का समय।
200 मीटर दूसरा भाग (24-5-3-0 से) – 27-5 से = 52-00 में 400 मीटर हिडिल का समय।
अभ्यास के समय प्रत्येक हर्डिल पर समय लेकर पूरी दौड़ का समय निकालने की विधि।

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प्रश्न 6.
फील्ड इवेंट्स में कौन-कौन से इवेंट्स होते हैं ? संक्षेप में लिखें।
उत्तर-
लम्बी कूद
(Long Jump)

  1. रनवे की लम्बाई = 40 मीटर से 45 मीटर
  2. रनवे की चौड़ाई = 1.22 मीटर
  3. पिट की लम्बाई = 10 मीटर
  4. पिट की चौड़ाई = 2.75 से 3 मीटर
  5. टेक ऑफ बोर्ड की लम्बाई = 1.22 मीटर
  6. टेक ऑफ बोर्ड की चौड़ाई = 20 सैंटी मीटर
  7. टेक ऑफ बोर्ड की गहराई = 10 सैंटी मीटर।

लम्बी कूद की विधि
(Method of Long Jump)
1. कूदने वाले पैर को मालूम करने के लिए लम्बी कूद में उसी प्रकार से करेंगे जैसे ऊंची कूद में किया गया था।
सर्वप्रथम कूदने वाले पैर को आगे सीधा रखेंगे और स्वतन्त्र पैर को इसके पीछे। यदि आप का कूदने वाला पैर बायां है तो बाएं पैर को आगे और दायें पैर को पीछे रख कर दायें घुटने से झुका कर ऊपर की ओर ले जायेंगे। और इसके साथ ही दायें हाथ को कुहनी से झुका कर रखेंगे। विधि उसी प्रकार से होगी जैसे कि तेज दौड़ने वाले करते हैं।
इस क्रिया को पहले खड़े होकर और बाद में चार-पांच कदम चल कर करेंगे। जब यह क्रिया ठीक प्रकार से होने लगे तब थोड़ा दौड़ते हुए यही क्रिया करनी चाहिए। इस समय ऊपर जाते समय ज़मीन को छोड़ देना चाहिए।
Long Jump
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2. छः या सात कदम दौड़ कर आगे आयेंगे और ऊपर जा कर कूदने वाले पैर पर ही नीचे ज़मीन पर आयेंगे। इसमें शरीर का भाग सीधा रहेगा जैसे कि ऊंची कूद में रहता है।
अगले स्वतन्त्र पैर जमीन पर आयेंगे। इस क्रिया को कई बार दुहराने के बाद ज़मीन पर आते समय कूदने वाले पैर को भी स्वतन्त्र पैर के साथ ही ज़मीन पर ले आएंगे।

3. ऊपर की क्रिया को कई बार करने के पश्चात् एक रूमाल लकड़ी में बांध कर कूदने वाले स्थान से थोड़ी ऊंचाई पर लगाएंगे और कूदने वाले बालकों को रूमाल को छूने को कहेंगे। ऐसा करने से एथलीट (Athlete) ऊपर जाना तथा शरीर के ऊपरी भाग को सीधा रखना सीख जाएगा।

अखाड़े में गिरने की विधि (लैंडिंग)
(Method of Landing)
1. दोनों पैरों को एक साथ करके एथलीट पिट (Pit) के किनारे पर खड़े हो जाएंगे। भुजाओं को आगे-पीछे की ओर हिलाएंगे और (Swing) करेंगे। साथ में घुटने भी झुकाएंगे और भुजाओं को एक साथ पीछे ले जाएंगे।

इसके पश्चात् घुटने को थोड़ा अधिक झुका कर भुजाओं को तेजी के साथ आगे और ऊपर की ओर ले जाएंगे और दोनों पैरों के साथ अखाड़े (Pit) में जम्प करेंगे। इस समय इस बात का ध्यान रहे कि पैर गिरते समय जहां तक सम्भव हो, सीधे रखने चाहिएं और इसके साथ ही पुट्ठों को आगे धकेलना चाहिए जिससे कि शरीर में पीछे झुकाव (Arc) बन सके जो कि हैंग स्टाइल (Hang Style) के लिए बहुत ही आवश्यक है।

2. एथलीट्स (Athletes) को सात कदम कूदने को कहेंगे। कूदते समय स्वतन्त्र पैर के घुटने को हिप (Hip) के बराबर लाएंगे। जैसे ही एथलीट (Athlete) हवा में थोड़ी ऊंचाई लेगा, स्वतन्त्र पैर को पीछे की ओर तथा नीचे की ओर लाएंगे जिससे वह कूदने वाले पैर के साथ मिल सके। कूदने वाला पैर घुटने से जुड़ा होगा और शरीर का ऊपरी भाग सीधा होगा। दोनों भुजाओं को पीछे की और तथा ऊपर की ओर गोलाई में ले जाएंगे। जब खिलाड़ी हवा में ऊंचाई लेता है, उस समय उसके दोनों घुटनों से झुके हुए पैर जांघ की सीध में होंगे। दोनों भुजाएं सिर की बगल में ओर ऊपर की ओर होंगी। शरीर पीछे की ओर गिरती हुई दशा में होगा तथा जैसे ही एथलीट्स (Athletes) अखाड़े (Pit) में गिरने को होंगे, वे स्वतन्त्र पैर घुटने से झुका कर आगे को तथा ऊपर को ले जाएंगे, पेट के नीचे की ओर लाएंगे तथा पैरों को,सीधा करके ऊपर की दशा में हवा में रोकने का प्रयास करेंगे।
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हिच किक की विधि
(Method of Hitch Kick)
1. जम्प करने के पश्चात् Split हवा में, पैरों को आगे-पीछे करके, स्वतन्त्र पैर पर लैंडिंग (Landing) करना, परन्तु ऊपरी भाग तथा सिर सीधा रहेगा, पीछे की ओर नहीं आएगा।

2. इस बार हवा में स्वतन्त्र पैर को रखेंगे और कूदने वाले पैर को आगे ले जाकर लैंडिंग (Landing) करेंगे।

3. अन्य सभी विधियां उसी प्रकार से होंगी जैसे कि ऊपर बताया गया है। केवल स्वतन्त्र पैर को लैंडिंग (Landing) करते समय टेक ऑफ पैर के साथ ले जाएंगे और दोनों पैरों पर एक साथ ज़मीन पर आएंगे। अन्य सभी शेष विधियां उसी प्रकार से होंगी जैसे कि हैंग (Hang) में दर्शाया गया है। एथलीट्स (Athletes) को दौड़ने का पथ (Approach run) धीरे-धीरे बढ़ाते रहना चाहिए।

4. ऊपर की क्रिया को कई बार करने के पश्चात् इस क्रिया को स्प्रिंग बोर्ड (Spring Board) की सहायता से करना चाहिए जैसा कि जिमनास्टिक (Gymnastic) वाले करते हैं। स्प्रिंग बोर्ड (Spring-Board) के अभाव में इस क्रिया को किसी अन्य ऊंचे स्थान से भी किया जा सकता है जिससे एथलीट्स को हवा में सही क्रिया विधि करने का अभ्यास हो जाए।

ट्रिपल जम्प
(Triple Jump)
अप्रोच रन (Approach Run) लम्बी कूद की भान्ति इसमें भी अप्रोच रन लिया जाएगा, परन्तु स्पीड (Speed) न अधिक तेज़ और न अधिक धीमी होगी।
अप्रोच रन की लम्बाई (Length of Approach Run) ट्रिपल जम्प में 18 से 22 कदम या 40 से 45 मीटर के लगभग अप्रोच रन लिया जाता है। यह कूदने वाले पर निर्भर करता है कि उसके दौड़ने की गति कैसी है। धीमी गति वाला लम्बा अप्रोच लेगा जबकि अधिक गति वाला छोटा अप्रोच लेगा। दोनों पैरों को एक साथ रखकर दौड़ना प्रारम्भ करेंगे तथा दौड़ने की गति को सामान्य रखेंगे। शरीर का ऊपरी भाग सीधा रहेगा।

  1. रनवे की लम्बाई = 40 मी० से 45 मीटर
  2. रनवे की चौड़ाई = 1.22 मीटर
  3. पिट की लम्बाई = टेक आफ बोर्ड से पिट समेत 21 मीटर
  4. पिट की चौड़ाई = 2.75 मीटर से 3 मीटर
  5. टेक ऑफ बोर्ड से पिट तक लम्बाई = 11 मीटर से 13 मीटर
  6. टेक ऑफ बोर्ड की लम्बाई = 1.22 मीटर
  7. टेक ऑफ बोर्ड की चौड़ाई = 20 सैंटी मीटर
  8. टेक ऑफ बोर्ड की गहराई = 10 सैंटी मीटर।

TRIPLE JUMP
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टेक ऑफ (Take off) लेते समय घुटना लम्बी कूद की अपेक्षा इसमें कम झुका होगा। शरीर का भार टेक ऑफ एवं होप स्टेप (Hop, Step) लेते समय पीछे रहेगा तथा दोनों बाजू भी पीछे रहेंगे। दूसरी टांग तेज़ी से हवा में आकर सप्लिट पोजीशन (Split Position) बनाएगी।
ट्रिपल जम्प में मुख्यतया तीन प्रकार की तकनीक (Technique) प्रचलित है—

  1. फ्लैट तकनीक
  2. स्टीप तकनीक
  3. मिक्सड तकनीक

ऊंची कूद
(High Jump)

  1. रनवे की लम्बाई = 15 मी० से 25 मी०
  2. तिकोनी क्रॉस बार की प्रत्येक भुजा = 30 मि०मी०
  3. क्रॉस बार की लम्बाई = 3.98 मी० से 4.02 मी०
  4. क्रॉस बार का वज़न = 2 कि० ग्राम०
  5. पिट की लम्बाई = 5 मी०
  6. पिट की चौड़ाई = 4 मी०
  7. पिट की ऊंचाई = 60 सैं०मी०

(1) समस्त प्रतियोगियों को पहले दोनों पैरों पर एक साथ अपने स्थान पर ही कूदने को कहेंगे। कुछ समय उपरान्त एक पैर पर कूदने के आदेश देंगे। ऊपर उछलते समय यह ध्यान रहे कि शरीर का ऊपरी भाग सीधा रहे एवं दस बार ही कूदा जाए। इस तरह जिस पैर पर कूदने पर आसानी प्रतीत हो उसी को उछाल (उठना) पैर (Take off foot) मान कर प्रशिक्षक को निम्नलिखित दो भागों में बांट देना चाहिए

  • बायें पैर पर कूदने वाले तथा
  • दायें पैर पर कूदने वाले।

(2) दो रेखाओं में प्रतियोगी अपने उछाल पैर (Take off Foot) को आगे रख कर दूसरे पैर को पीछे रखेंगे। दोनों भुजाओं को एक साथ पीछे से आगे, कुहनियों से मोड़ करके आगे, ऊपर की ओर तेजी से जाएंगे। इसके साथ ही पीछे रखे पैर को भी ऊपर किक (Kick) करेंगे, और ज़मीन से उछाल कर पुनः अपने स्थान पर वापस उसी पैर पर आएंगे। इस समय उछाल पैर (Take off Foot) वाले पैर का घुटना भी ऊपर उठते समय थोड़ा मुड़ा होगा। परन्तु शरीर का ऊपरी भाग सीधा रहेगा, एवं आगे न जा कर ऊपर उठेगा तथा उसी स्थान पर वापस आयेगा। ऊपर जाते समय कमर । तथा आगे का पैर सीधा रखने का प्रयास किया जाए।

(3) प्रतियोगियों को 45° पर बायें पैर वाले बाएं और दायें पैर से कूदने वाले दायीं ओर खड़े होकर क्रॉस छड़ (Cross bar) को लगभग दो फुट (60 सम) की ऊंचाई पर रख कर आगे चलते हुए ऊपर की भान्ति ही उछाल कर क्रॉस छड़ (Cross bar) को पार करेंगे और ऊपर जाकर नीचे आते समय उसी उछाल पैर (Take off Foot) पर वापिस आएंगे। केवल भिन्नता इतनी होगी कि अपने स्थान पर वापस न आकर आगे क्रॉस छड़ को पार करके गिरेंगे तथा दूसरा पैर पहले पैर के आने के उपरान्त आगे 10 या 12 इंच (25 सम) पर आएगा तथा आगे चलते जाएंगे, परन्तु यह ध्यान रखा जाए कि किक करते समय घुटना झुका हो। शरीर का ऊपरी भाग सीधा रखने का प्रयास किया जाए तथा दोनों भुजाओं को तेजी से ऊपर ले जाएंगे, परन्तु जब दोनों हाथ कंधों की सीध में पहुंचेंगे तो उसी स्थान पर वापिस गिरना होगा।
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HIGH JUMP
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(4) क्रॉस बार (Cross Bar) की ऊंचाई को बढ़ाएंगे तथा प्रशिक्षकों को टेक ऑफ़ (take off) पर आते समय टेक ऑफ़ फुट (Take off Foot) को लम्बा करने को कहेंगे, परन्तु यह ध्यान में रखेंगे कि इस समय एड़ी पहले ज़मीन पर आये। दोनों भुजाएं कुहनियों से मुड़ी हुई हों।
कूदते समय ध्यान क्रॉस बार (Cross Bar) पर होगा। सिर शरीर से कुछ पीछे की ओर झुका होगा तथा पीछे के पैर को ऊपर करते समय पैर का पंजा ऊपर की ओर कर सीधा होगा।

इस समय क्रॉस बार (Cross Bar) को प्रशिक्षक के सिर से दो फुट (60 से०मी०) ऊंचा रखेंगे तथा प्रत्येक को ऊपर बताई गई क्रिया के अनुसार क्रॉस बार को अपनी फ्री लैग (Free Leg) से किक (Kick) करने को कहेंगे।
इसमें निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखेंगे—

  • दोनों भुजाओं को एक साथ तेज़ी से ऊपर ले जाएगा।
  • टेक ऑफ़ फुट (Take off Foot) उस समय ज़मीन छोड़ेगा जबकि फ्री लैग अपनी पूर्ण ऊंचाई तक पहुंच जाएगी।
  • ऊपर बताई गई प्रक्रिया को जोगिंग (Jogging) के साथ भी किया जाएगा।

(5) क्रॉस बार (Cross bar) को दो फुट (60 सेमी०) के ऊपर रख कर खिलाड़ी को नं० 3 की भान्ति क्रॉस छड (Cross bar) पार करने को कहेंगे। केवल इतना अन्तर होगा कि क्रॉस बार पार करने के उपरान्त अखाड़े में आते समय हवा में 90 डिग्री पर घूमेंगे। बायें पैर से टेक ऑफ़ (Take off) लेने वाले बायीं तरफ घूमेंगे तथा दायें पैर पर टेक ऑफ़ (Take off) लेने वाले दायीं तरफ घूमेंगे।
इसमें निम्नलिखित दो बातों का विशेष ध्यान रखा जाएगा—

  1. खिलाड़ी उछाल (Take Off) लेते समय ही न घूमें तथा
  2. पूर्ण ऊंचाई प्राप्त करने से पहले घूमें।

स्टैडल रोल
(Straddle Roll)
(6) टेक ऑफ़ फुट (Take off Foot) को आगे रख कर खड़े होंगे, पर यह ध्यान रहे कि शरीर का भार एड़ी पर होना चाहिए तथा फ्री लैग को पीछे रखेंगे। दोनों हाथों को एक साथ तेज़ी से आगे लायेंगे और फ्री लैग (Free Leg) को ऊपर की ओर किक (Kick) करेंगे जिससे शरीर का समस्त भाग ज़मीन से ऊपर उठ जाये।

(7) ज़मीन पर चूने की समानान्तर रेखा डालेंगे। एथलीट इस चूने की रेखा के दाहिनी ओर खड़े होकर उपर्युक्त प्रक्रिया को करेंगे। ऊपर हवा में पहुंचते ही बायीं ओर टेक ऑफ़ (Take off) को घुमायेंगे, चेहरा नीचे करेंगे तथा पिछले पैर को किक (Kick) पर उठायेंगे।

इसमें मुख्यत: यह ध्यान रखा जाए कि फ्री लैग (Free Leg) को सीधी किक (kick) किया जाए। टेक ऑफ़ लैग (Take off Leg) को सीधा किक करके घुटना मोड़ (Bend) पर ऊपर ले जायेंगे। खिलाड़ी क्रॉस बार (Cross bar) पार करने के उपरान्त अखाड़े में रोज़ अभ्यास कर सकते हैं क्योंकि टेक ऑफ़ किक (Take off Kick) तेज़ होने के कारण सन्तुलन भी बिगड़ सकता है।

(8) तीन कदम आगे आ कर जम्प करना (Jumping from Three Steps) क्रॉस बार के समानान्तर डेढ़ फुट से 2 फुट (45 सम से 60 सम) की दूरी पर रेखा खींचेंगे। इस रेखा से 30° पर दोनों पैर रख कर खड़े होंगे तथा टेक ऑफ़ फुट (Take off Foot) को आगे निकालते हुए मध्यम गति से आगे को भागेंगे। जहां पर तीसरा पैर आये वहां निशान लगा दें और अब उस स्थान पर दोनों पैर रख कर क्रॉस बार (Cross bar) की ओर चलेंगे और ऊपर बताई गई प्रक्रिया को दोहरायेंगे। क्रॉस बार की ऊंचाई एथलीट की सुविधा के अनुसार बढ़ाते जायेंगे।

बांस कूद
(Pole Vault)

  1. रनवे की लम्बाई = 40 से 45 मीटर
  2. रनवे की चौड़ाई = 1.22 मीटर
  3. लैडिंग ऐरिया = 5 × 5 मी०
  4. तिकोनी क्रास बार की लम्बाई = 4.48 मीटर से 4.52 मीटर
  5. तिकोनी क्रास बार प्रत्येक भुजा = 3.14 मीटर
  6. क्रास बार का वजन = 2.25 किलो ग्राम
  7. लैडिंग एरिया की ऊचाई = 6 सैं०मी० से 9 सैं०मी०
  8. बाक्स की लम्बाई = 1.08 मी०
  9. बाक्स की चौड़ाई रनवे की तरफ से = 60 सैं०मी०

ऐथलैटिक्स में बांस कूद (Pole Vault) बहुत ही उलझा हुआ इवेंट है। किसी भी इवेंट में टेक ऑफ़ (Take off) से अखाड़े में आते समय तक इतनी क्रियाओं की आवश्यकता नहीं होती, जितनी कि पोल वाल्ट में। इसलिए इस इवेंट को पढ़ाने तथा सिखाने दोनों में ही परेशानी होती है।

बांस कूद के लिए एथलीट का चयन
(Selection of Athlete for Pole Vault)
अच्छा बांस कूदक एक सर्वांग (आल राऊण्डर) खिलाड़ी ही हो सकता है। क्योंकि यह ऐसी स्पर्धा (Event) है जोकि सभी प्रकार से शरीर की क्षमता को बनाये रखती है, जैसे कि गति (Speed), शक्ति (Strength), सहनशीलता (Endurance) तथा तालमेल (Coordination) । अच्छे बांस कूदक का एक अच्छा जिमनास्ट भी होना आवश्यक है। जिससे वह सभी क्रियाओं को एक साथ कर सके।

पोल की पकड़ तथा लेकर चलना
(Holding.and Carrying the Pole)
बहुधा बायें हाथ से शरीर के सामने हथेली को ज़मीन की ओर रखते हुए पोल को पकड़ते हैं। दायां हाथ शरीर के पीछे पुढे (Hip) के पास दायीं ओर बांस (pole) के अन्तिम सिरे की ओर होता है।

बांस को पकड़ते समय बायां बाजू कुहनी से 100 अंश का कोण बनाता है तथा शरीर से दूर कलाई को सीधा रखते हुए बांस को पकड़ते हैं। दायां हाथ, जो कि बांस के अन्तिम सिरे की ओर होता है, बांस को अंगूठे के अन्दरूनी भाग और तर्जनी अंगुली के बीच में ऊपर से नीचे को दबाते हुए पकड़ते हैं। दोनों कुहनियां 100 अंश के कोण बनाए हुई होती हैं। हाथों के बीच की दूरी 24 इंच (60 सैं० मी०) से 36 इंच (80 सैं० मी०) तक होती है। यह बांस कूदक के शरीर की बनावट पर और पोल को लेकर दौड़ते समय जिसमें उसको आराम अनुभव हो, उस पर निर्भर करता है।

पोल के साथ दौड़ने की विधियां
(Running with the Pole)
1. बांस को सिर के ऊपर रख कर चलना (Walking with Pole keeping over head)-इसमें बांस को बाक्स के पास लाते समय अधिक समय लगता है। इसलिए यह विधि अधिक उपयुक्त नहीं है।

2. बांस को सिर के बराबर रख कर चलना (Walking with pole keeping at the level of head)विश्व के अधिकतर बांस कूदक इसी विधि को अपनाते हैं। इसमें चलते समय बांस का सिरा सिर के बराबर और बायें कंधे की सीध में होता है।
दायें से बायें-इसमें कंधे तथा बाजू साधारण अवस्था में रहते हैं।

3. बांस को सिर से नीचे लेकर चलना (Walking with pole keeping below the head)—इस अवस्था में बाजुओं पर अधिक ताकत पड़ती है, जिसके कारण बाक्स तक आते समय शरीर थक जाता है। बहुत ही कम संख्या में लोग इसको काम में लाते हैं। अप्रोच रन (Approach run) एथलीट को अपने ऊपर विश्वास तब होता है जबकि उस का अप्रोच रन सही आना शुरू होता है। आगे की क्रिया पर इसके बाद ही विचार किया जा सकता है। इसके लिए सबसे अच्छी विधि (The best method) यह है कि एक चूने की लाइन लगा कर एथलीट को पोल के साथ लगभग 150 फुट (50 मी०) तक भागने को कहना। इस क्रिया को कई दिन तक करने से एथलीट का पैर एक स्थान पर ठीक आने लगेगा। उस समय आप उस दूरी को फीते से नाप लें, फिर बांस कूद के रन-वे (Run-way) पर काम करें। पैरों को तेजी के साथ अप्रोच रन को भी घटाना बढ़ाना पड़ता है।

बांस कूद के अप्रोच रन में केवल एक ही चिह्न होना चाहिए। अधिक चिह्न होने से कूदने वाला अपने स्टाइल (Style) को न सोच कर चेक मार्क (Check Mark) को सोचता रहता है। अप्रोच रन (Approach Run) की लम्बाई 40 से 45 मी० के लगभग होनी चाहिए और अन्तिम 4 या 6 कदम में अधिक तेजी होनी चाहिए।

पोल प्लाण्ट
(Pole Plant)
यह सम्भव नहीं कि आप पूरी तेजी के साथ पोल (Pole) को प्लांट (Plant) कर सकें उसके लिए गति को सीमित करना पड़ता है। स्टील पोल (Steel Pole) में प्लांट जल्दी होना चाहिए तथा फाइबर ग्लास (Fibre Glass) में देरी से।’ स्टील पोल में प्लांट करते समय एथलीट को “एक और दो” गिनना चाहिए। एक के कहने पर बायां पैर आगे टेक ऑफ़ के लिए आयेगा और दायें पैर का घुटना ऊपर की ओर जायेगा। दो कहने पर शरीर की स्विग (Swing) शुरू हो जाती है। इस समय वाल्टर (Vaulter) को अपनी दायीं टांग को स्वतन्त्र छोड़ देना चाहिए जिससे कि वह बायीं टांग के साथ मिल सके। इस विधि से अच्छी स्विग लेने में सुविधा होती है।

टेक ऑफ़
(Take Off)
टेक ऑफ़ के समय दायां घुटना आगे आना चाहिए। इससे शरीर को ऊपर पोल की ओर ले जाते हैं तथा सीने को । . पोल की ओर खींचते हैं। पोल को सीने के सामने रखते हैं। स्विंग (Swing) के समय दायीं टांग शरीर के आगे ऊपर की ओर उठेगी।

नोट-पोल करते समय एथलीट अपने हिप को ऊंचा ले जाते हैं, जबकि टांगों को ऊपर आना चाहिए व हिप को नीचे रखना चाहिए। पोल वाल्टरों को यह ध्यान रखना चाहिए कि जब तक पोल सीधा नहीं होता, उनको पोल के साथ ही रहना चाहिए। पोल छोड़ते समय नीचे का हाथ पहले छोड़ना चाहिए। यह देखा गया है कि बहुत ही नये पोल वाल्टर . अपनी पीठ को क्रास बार के ऊपर से ले जाते हैं। यह केवल ऊपर के हाथ को पहले छोड़ने से होता है।
POLE VAULT
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ऐथलैटिक्स (Athletics) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education

प्रश्न 7.
श्री इवेंट्स कौन-कौन से होते हैं ? इनकी तकनीक और नियमों के बारे में लिखें।
उत्तर-

  1. गोले का भार = 7.260 कि०ग्राम + 5 ग्राम पुरुषों के लिए 4 कि० + 5 ग्राम स्त्रियों के लिए
  2. थरोईंग सैक्टर का कोना = 34.92°
  3. सर्कल का व्यास = 2.135 मी० + 5 मि०मी०
  4. स्टॉप बोर्ड की लम्बाई = 1.21 मी० से 1.23 मी०
  5. स्टॉप बोर्ड की चौड़ाई = 112 मि०मी० से 200 मि०मी०
  6. स्टॉप बोर्ड की ऊँचाई = 98 मि०मी० से 102 मि०मी०
  7. गोले का व्यास = 110 मि०मी० से 130 मि०मी०
  8. गोले का व्यास स्त्रियों के लिए = 95 मि०मी० से 110 मि०मी०।

शाट पुट-पैरी ओवरेइन विधि
(Shot Put-Peri Oberrain Method)
1. प्रारम्भिक स्थिति (Initial Position)-थ्रोअर गोला फेंकने की दशा में अपनी पीठ करके खड़ा होगा। शरीर
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का भार दायें पैर पर होगा। शरीर के ऊपरी भाग को नीचे लाते समय दायें पैर की एड़ी ऊपर उठेगी तथा बाएं पैर को घुटने से मुड़ी दशा में पीछे ऊपर जाकर तुरन्त पैर के पास पुनः लायेंगे। दोनों पैर मुड़े होंगे तथा ऊपरी भाग आगे को झुका होगा।

2. ग्लाइड (Glide)-दायां पैर सीधा करेंगे तथा दायें पैर के पंजे बाईं एड़ी से पीछे आयेंगे। बायां पैर स्टॉप बोर्ड (Stop Board) की ओर तेजी से किक करेंगे। बैठी हुई अवस्था में पुट्ठों को पीछे व नीचे की ओर गिरायेंगे। दायां पैर जमीन से ऊपर उठेगा तथा शरीर के नीचे ला कर बायीं ओर को पंजा मोड़ कर रखेंगे। बायां पैर इसी के लगभग साथ ही स्टॉप बोर्ड (Stop Board) पर थोड़ा दायीं ओर ज़मीन पर लगेगा। दोनों पैरों के पंजों को ज़मीन पर गोली दोनों कन्धे पीछे की ओर झुके होंगे। शरीर का समस्त भार दायें पैर पर होगा।

3. अन्तिम चरण (Final Phase)-दायें पैर के पंजे एवं घुटने को एक साथ बायीं ओर घुमायेंगे तथा दोनों पैरों को सीधा करेंगे। पुट्ठों को भी आगे बढ़ायेंगे। शरीर का भार दोनों पैरों पर होगा। बायां कन्धा सामने को खुलेगा। दायां कन्धा दायीं तरफ को ऊपर उठेगा तथा घूमेगा। पेट की स्थिति धनुष के आकार की तरह पीछे को झुकी हुई होगी।
SHOT PUT
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4. गोला फेंकना/थो करना (Putting throwing the Shot)-दायां कन्धा एवं दायीं भुजा को गोले के आगे की ओर ले जायेंगे। बायां कन्धा आगे को बढ़ता रहेगा। शरीर का समस्त भार बायें पैर पर होगा जोकि पूर्ण रूप से सीधा होगा। जैसे ही दाहिने हाथ द्वारा गोले को आगे फेंका जायेगा, दोनों पैरों की स्थिति भी बदलेगी। बायां पैर पीछे आयेगा तथा दायां पैर आगे आयेगा। शरीर का भार दायें पैर पर होगा। ऊपरी भाग एवं दायां पैर दोनों आगे को झुके होंगे।
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घूम कर गोला फेंकना या चक्के की भान्ति फेंकना
(Throwing the Shot by rotating or like a Discus)
1. प्रारम्भिक स्थिति (Initial Position)—प्रारम्भ करने के लिए गोले के दूसरे भाग पर गोला फेंकने की दशा में पीठ करके खड़े होंगे। बायां पैर मध्य रेखा पर तथा दायां भाग दायीं ओर होगा। दायां पैर लोहे की रिम (Rim) से 5 से 8 से०मी० पीछे रखेंगे जिससे कि वे घूमते समय फाउल (Foul) न हो। गोला गर्दन के नीचे भाग में होगा, कोहनी ऊपर उठी होगी। प्रारम्भ करने से पहले कन्धा, पेट, बायां बाजू, गोला सभी पहले बायीं तरफ को घूमेंगे तथा बाद में दायीं तरफ जायेगा। ऐसा करते समय दोनों घुटने झुके होंगे।

2. घूमना (Rotation)—दोनों पैरों पर शरीर का भार होगा तथा ऊपर की स्थिति से केवल एक स्विंग लेने के उपरान्त घूमना प्रारम्भ हो जायेगा। कन्धा एवं धड़ दायें को पूर्ण रूप से घूमते शरीर का भाग भी दायें पैर पर चला जायेगा। इस स्थिति में बायीं तरफ भुजा को ज़मीन के समानान्तर रखते हुए बायें पैर के पंजे पर शरीर का भार लाते हुए दोनों घुटने घूमेंगे। दायें पैर के पंजे पर भी 90 अंश तक घूमेंगे। दायें पैर को घुटने से झुकी हुई अवस्था में बायें पैर के टखने के ऊपर से गोले के बीच में पहुंचने पर लायेंगे।
बायें पैर पर घूमते समय चक्र समाप्त होने पर हवा में दोनों पैर होंगे तथा कमर को घुमाएंगे। दायां पैर केन्द्र में दाएं पैर के पंजे पर आएगा। दाएं पैर के पंजे की स्थिति उसी प्रकार से होगी जैसी कि घड़ी में 2 बजे की दशा में सुई होती है। बहादुर सिंह का पैर 10 बजे की स्थिति में आता है। वह हवा में ही कमर को मोड़ लेता है। 2 बजे की स्थिति में बायां पैर टो बोर्ड पर कुछ विलम्ब से आयेगा। परन्तु ऊपरी भाग को केन्द्र में रखा जा सकता है। 10 बजे की स्थिति में बायां पैर ज़मीन पर तेजी से आयेगा तथा अधिकतर यह सम्भावना रहती है कि शरीर का ऊपरी भाग शीघ्र ऊपर आ जाता है।
निम्नलिखित बातों का ध्यान रखेंगे—

  • प्रारम्भ में सन्तुलन ठीक बनाकर चलेंगे, बायां पैर नीचे रखेंगे।
  • दाएं पैर से पूरी ग्लाइड (Glide) लेंगे, जम्प नहीं करेंगे। शरीर के ऊपरी भाग को ऊपर नहीं उठायेंगे।
  • दायां पैर केन्द्र में आते समय अन्दर को घूम जाएगा।
  • बायें कन्धे एवं पुढे को जल्दी ऊपर नहीं लाना है।
  • बायीं भुजा को शरीर के पास रखेंगे।
  • बायां पैर ज़मीन पर न शीघ्र लगेगा और न अधिक विलम्ब से।

सामान्य नियम
(General Rules)
1. पुरुष वर्ग में 7.26 किग्रा०, महिला में 4.00 कि०ग्रा० । गोले के व्यास पुरुष वर्ग में 110 से 130 व महिलाओं में 95 से 110 सैंटीमीटर।

2. गोला व तारगोला को 2.135 मीटर के चक्र से फेंका जाता है। अन्दर का भाग पक्का होगा, बाहरी मैदान से 25 मिलीमीटर नीचा होगा। स्टॉप बोर्ड (Stop Board) 1.22 मीटर लम्बा, 114 मिलीमीटर चौड़ा और 100 मिलीमीटर ऊंचा होगा।
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3. सैक्टर 40 अंश का गोला, तार गोला एवं चक्का होगा। केन्द्र से एक रेखा सीधी 20 मीटर की खींचेंगे। इस रेखा के 18.84 पर एक बिन्दु लगाएंगे, इस बिन्दु से दोनों ओर 6.84 की दूरी पर दो बिन्दु डाल देंगे तथा इन्हीं दो बिन्दुओं से सीधी रेखायें खींचने पर 40 अंश का कोण बनेगा।

4. गोला फेंकते समय शरीर का सन्तुलन होना चाहिए, गोला फेंक कर गोला ज़मीन पर गिरने के उपरान्त 75 सैंटीमीटर की दोनों रेखायें जो कि गोला फेंकने के क्षेत्र को दो भागों में विभाजित करती हैं, उसके पीछे के भाग से बाहर आयेंगे। गोला एक हाथ से फेंक दिया जाएगा। गोला कन्धे के पीछे नहीं आयेगा, केवल गर्दन के पास रहेगा। सही पुट उसी को मानेंगे जो कि सैक्टर के अन्दर हो। सैक्टर की रेखाओं को काटने पर फाऊल (Foul) माना जायेगा। यदि आठ प्रतियोगी (Competitors) हैं, तब सभी को 6 अवसर देंगे अन्यथा टाई पड़ने पर 9 भी हो सकते हैं।

चक्का फेंकने का प्रारम्भ
(Initial Stance of Discus Throw)

  1. चक्के का वजन = 2 कि० ग्राम पुरुषों के लिए 1 कि० ग्राम स्त्रियों के लिए
  2. सर्कल का व्यास _ = 2.5 मी० ± 5 मि०मी०
  3. थ्रोईंग सैक्टर का कोण = 34.92° चक्के का ऊपर का व्यास = 219 मि०मी० से 2.21 मि० मी० पुरुषों के लिए 180 से 182 स्त्रियों के लिए

चक्का फेंकने की दिशा के विरुद्ध पीठ करके छल्ले (Ring) के पास चक्र में खड़े होंगे। दायीं भुजा को घुमाते हुए एक या दो स्विग (Swing) भुजा तथा धड़ को भी साथ में घुमाते हुए लेंगे। ऐसा करते समय शरीर का भार भी एक पैर से दूसरे पैर पर जायेगा जिस से पैरों की एड़ियां मैदान के ऊपर उठेंगी। जब चक्का दाईं ओर होगा तथा शरीर का ऊपरी भाग भी दाईं ओर मुड़ा होगा यहां से चक्र का प्रारम्भ होगा। चक्र का प्रारम्भ शरीर के नीचे के भाग से होगा, बायें पैर को बायीं ओर झुकाएंगे। शरीर का भार इसी के ऊपर आयेगा। दायां घुटना भी साथ ही घूमेगा, दायां पैर भी घूमेगा, साथ ही कमर, पेट भी घूमेगा जाकि दायीं बाजू एवं चक्के को भी साथ में लायेगा।

इस स्थिति में गोले को पार करने की क्रिया प्रारम्भ होगी। सबसे पहले बायां पैर ज़मीन को छोड़ेगा। इसके उपरान्त बायां पैर चक्का फेंकने की दशा में आगे बढ़ेगा। दायां पैर घुटने से मुड़ा हुआ अर्ध चक्र की दशा में बायीं से दायीं ओर आगे को चलेगा। घूमते समय दोनों पुढे कन्धों से आगे होंगे जिससे शरीर के ऊपरी भाग तथा नीचे के भाग में मोड़ उत्पन्न होगा। दायीं भुजा जिसमें चक्का होगा, सिर कोहनी से सीधा होगा, बायीं भुजा कोहनी से मुड़ी हुई सीने के सम्मुख होगी। सिर सीधा रहेगा। दायें पैर के पंजे पर ज़मीन से थोड़ा ऊपर रख कर गोले को पार करेंगे तथा दायें पैर के पंजे ज़मीन पर आयेंगे। यह पैर लगभग केन्द्र में आयेगा। पंजा बाईं ओर को मुड़ा होगा।
विधियां
(Methods)
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इसमें मुख्यतः निम्नलिखित तीन प्रकार की विधियां हैं—

  1. प्रारम्भ करते समय भी जो नये फेंकने वाले होते हैं वे अपना दायां पैर केन्द्र की रेखा पर एवं बायां पैर 10 से०मी० छल्ले (Ring) के पीछे रखते हैं।
  2. दूसरी विधि जिसमें सामान्य फेंकने वाले केन्द्रीय रेखा को दोनों पैरों के मध्य रखते हैं।
  3. तीसरे वे फेंकने वाले हैं जो बायें पैर को केन्द्रीय रेखा पर रखते हैं।

इसी प्रकार गोले के मध्य में आते समय तीन प्रकार से पैर को रखते हैं। पहले 3 बजे की स्थिति में, दूसरे 10 बजे की स्थिति में, तीसरे 12 बजे की स्थिति में, जिसमें 12 बजे की स्थिति सर्वोत्तम मानी गयी है क्योंकि इसमें दायें पैर पर कम घूमना पड़ता है तथा बायें कन्धे को खुलने से रोका जा सकता है।
दायां पैर ज़मीन पर आने के उपरान्त भी निरन्तर घूमता रहेगा और बायां पैर गोले के केन्द्र की रेखा से थोड़ा बायीं ओर पंजे एवं अन्दर के भाग को ज़मीन पर लगा देगा।
ऐथलैटिक्स (Athletics) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education 22
अन्तिम चरण (Last Step)
इस समय पैर ज़मीन पर होंगे, कमर घूमती हुई दिशा में पीछे को झुकी होगी, बायां पैर सीधा होगा, दायां पैर घुटने से मुड़ा हुआ, दायां घुटना एवं पुढे बायीं ओर घूमते हुए होंगे.। बायीं भुजा ऊपर की ओर खुलेगी, दायीं भुजा को शरीर से दूर रखते हुए आगे एवं ऊपर की दशा में लायेंगे।

फेंकना (Throwing)
दोनों पैर जो कि घूम कर आगे आ रहे थे, इस समय घुटने से सीधे होंगे। पुढे आगे को बढ़ेंगे, कन्धे तथा धड़ अपना घूमना आगे की दशा में समाप्त कर चुके होंगे। बायीं भुजा तथा कन्धा आगे घूमना बन्द करके एक स्थान पर रुक जायेंगे। दायीं भुजा एवं कन्धा आगे तथा ऊपर बढ़ेगा। दोनों पैरों के पंजों पर शरीर का भार होगा तथा दोनों पैर सीधे होंगे। अन्त में बायां पैर पीछे आयेगा तथा दायां पैर आगे जा कर घुटने से मुड़ेगा। शरीर का ऊपरी भाग भी आगे को झुका होगा। ऐसा शरीर का सन्तुलन बनाये रखने के लिए किया जाता है।
साधारण नियम (General Rules)
चक्के (Discus) का भार पुरुष वर्ग हेतु 2 किग्रा०, महिला वर्ग हेतु 1 कि०ग्रा० होता है। वृत्त का व्यास 2.50 होता
ऐथलैटिक्स (Athletics) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education 23
LAY OUT OF DISCUS CIRCLE
है। वर्तमान समय के चक्के के गोले के बाहर लोहे की केज (Cage) बनाई जाती है ताकि चक्के से किसी को चोट न पहुंचे। सम्मुख 6 मीटर, अन्य 7 मीटर अंग्रेज़ी के ‘E’ के आकार की होती है। इसकी ऊंचाई 3.35 मीटर होती है।
सैक्टर-40° का इसी प्रकार बनायेंगे जैसे गोले के लिए, अन्य समस्त नियम गोले की भान्ति ही इसमें काम आयेंगे।

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प्रश्न 8.
जैवलिन थ्रो और उसके नियम लिखें।
उत्तर-

  1. जैवलिन का भार = 800 ग्राम पुरुषों के लिए 600 ग्राम स्त्रियों के लिए
  2. रनवे की लम्बाई = 30 मी० 36.5 मी०
  3. रनवे की चौड़ाई = 4 मीटर
    जैवलिन की लम्बाई = 260 सें.मी० से 270 सें०मी० पुरुषों के लिए 220 सें०मी० के 230 सें०मी० स्त्रियों के लिए
  4. जैवलिन के थ्रोईंग सैक्टर का कोण = 28.950

भाला फेंकना (Javelin Throw) भाले की सिर के बराबर ऊंचाई पर कान के पास, भुजा को कोहनी से झकी हुई, कोहनी एवं जैवलिन दोनों का
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मुख सामने की ओर होगा। हाथ की हथेली का रुख ऊपर की ओर होगा-ज़मीन के समानान्तर। सम्पूर्ण लम्बाई 30 से 35 मी० होगी। 3/4 दौड़ पथ में सीधे दौड़ेंगे। 1/3 अन्तिम के पांच कदम के लगभग क्रॉस स्टैप (Cross Step) लेंगे। अन्तिम चरण में जब बायां पैर जांच चिह्न (Check Mark) पर आएगा दायां कन्धा धीमी गति से दायीं ओर मुड़ना प्रारम्भ करेगा तथा दायीं भुजा भी पीछे आना प्रारम्भ करेगी। कदमों के बीच की दूरी बढ़ने लगेगी। दायां हाथ एवं कन्धा बराबर पीछे को आयेंगे एवं दाईं तरफ खुलते जायेंगे। कमर एवं शरीर का ऊपरी भाग पीछे को झुकता जायेगा। ऊपरी एवं नीचे
JAVELIN THROW
ऐथलैटिक्स (Athletics) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education 25
के भाग में मोड़ उत्पन्न होगा, क्योंकि ऊपरी भाग दायीं ओर खुलेगा तथा नीचे का भाग सीधा आगे को चलेगा। आंखें आगे की ओर देखती हुई होंगी।

अन्त में दायां पैर घुटने से झुकी दशा में जमीन पर क्रॉस स्टैप (Cross Step) के अन्त में आयेगा। जैसे ही घुटना आगे बढ़ेगा, दायें पैर की एड़ी जमीन से ऊपर उठना प्रारम्भ हो जायेगी। इस प्रकार यह बायें पैर को अधिक दूरी पर जाने में सहायता करती है, जिससे कि दोनों पैरों के बीच अधिक-से-अधिक दूरी हो सके। बायां पैर थोड़ा बायीं ओर ज़मीन पर आएगा। कन्धे दायीं ओर को होंगे। भाला कन्धे की सीध में होगा। मुट्ठी बन्द तथा हथेली ऊपर की ओर, कलाई सीधी, कलाई नीचे की ओर होने से भाले का अन्तिम सिरा ज़मीन पर लगेगा। इस स्थिति के समय बाईं भुजा मुड़ी हुई सीने के ऊपर होगी।

अन्तिम फेस (Last Phase)-थ्रो करने की स्थिति में जब बायां पैर ज़मीन पर आयेगा, कूल्हा (Hip) आगे बढ़ना प्रारम्भ कर देगा। दायां पैर एवं घुटना अन्दर को घूमेगा तथा सीधा होकर टांग को सीधा करेगा। बायां कन्धा भी साथ में खुलेगा, दायीं कुहनी बाहर की ओर घूमेगी एवं ऊपर को भाला कन्धा एवं भुजा के ऊपर सीध में होगा। बायें पैर का रुकना, दायें पैर को अन्दर घुमाना तथा सीधा करना इन सबसे शरीर का ऊपरी भाग धनुष की भान्ति पीछे को झुकेगा तथा सीना एवं पेट की मांसपेशियों में तनाव उत्पन्न होगा।

फेंकने के बाद फाऊल (Foul) बचाने के लिए तथा शरीर के भार को नियन्त्रण में रखने के लिए कदमों में परिवर्तन लायेंगे। दायां पैर आगे आकर घुटने से मुड़ेगा तथा पंजा बायीं ओर को झुकेगा। शरीर का ऊपरी भाग दायें पैर पर आगे को झुक कर सन्तुलन बनाएगा। दायां पैर अपने स्थान से उठ कर कुछ आगे भी जा सकता है।

साधारण नियम
(General Rules)
1. पुरुष भाले की लम्बाई 2.60 मी० से 2.70 मी०, महिला 2.20 मी० से2.30 मी०

2. भाला फेंकने के लिए कम-से-कम 30 मी०, अधिकतम 36.50 मी० लम्बा एवं 4 मी० चौड़ा मार्ग चाहिए। सामने 70 मि०मी० की चाप वक्राकार सफेद लोहे की पट्टी होगी जो कि दोनों ओर 75 सें०मी० निकली होगी। इसको सफेद लेन से भी बनाया जा सकता है। यह रेखा 8 मी० सेण्टर से खींची जा सकती है।

3. भाले का सैक्टर 29° का होता है जहां वक्राकार रेखा मिलती है वहीं निशान लगा देते हैं। पूर्ण रूप से सही कोण के लिए 40 मी० की दूरी पर दोनों भुजाओं के बीच की दूरी 20 मीटर होगी, 60 मी० की दूरी पर 30 मी० होगी।
JAVELIN RUNWAY THROWING
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4. भाला केवल बीच में पकड़ने के स्थान (Grip) से ही पकड़ कर फेंकेंगे। भाले का अगला भाग ज़मीन पर पहले लगना चाहिए। शरीर के किसी भी भाग से 50 सें०मी० चौड़ी दोनों ओर की रेखाओं को या आगे 70 सें.मी. चौड़ी रेखा को स्पर्श करने को फाऊल थ्रो (Foul Throw) मानेंगे।

5. प्रारम्भ करने से अन्त तक भाला फेंकने की दशा में रहेगा। भाले को चक्र काट कर नहीं फेंकेंगे, केवल कन्धे के ऊपर से फेंक सकते हैं।

6. 3 + 3 गोला एवं चक्के की भान्ति अवसर मिलेंगे।

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प्रश्न 9.
रिले दौड़ों के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर-
रिले दौड़ें (Relay Races)

पुरुष (Men) महिला (Women)
4 x 100 मीटर 4 x 100 मीटर
4 x 200 मीटर 4 x 400 मीटर
4 x 400 मीटर
4 x 800 मीटर

मेडले रिले दौड़ (Medley Relay Race)—
800 × 200 × 200 × 400 मीटर
बैटन (Baton)-सभी वृत्ताकार रिले दौड़ों में बैटन को ले जाना होता है। बैटन एक खोखली नली का होना चाहिए और इसकी लम्बाई 30 सें०मी० से अधिक नहीं होनी चाहिए। इसकी परिधि 12 सेंटीमीटर होनी चाहिए और भार 40 ग्राम होना चाहिए।
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रिले धावन पथ (Relay Race Track) रिले धावन पथ परे चक्र के लिए, गलियारों में विभाजित या अंकित होना चाहिए। यदि ऐसा सम्भव नहीं है, तो कम-से-कम बैटन विनिमय क्षेत्र गलियारों में होना चाहिए।

रिले दौड़ का प्रारम्भ (Start of Relay Race)-दौड़ के प्रारम्भ में बैटन का कोई भी भाग रेखा से आगे निकल सकता है, किन्तु बैटन रेखा या आगे की ज़मीन को स्पर्श नहीं करना चाहिए।

बैटन लेना (Taking the Baton) बैटन लेने के लिए भी क्षेत्र निर्धारित होता है। यह क्षेत्र दौड की निर्धारित दूरी रेखा के दोनों ओर 10 मीटर लम्बी प्रतिबन्ध रेखा खींच कर चिह्नित किया जाता है। 4 x 200 मीटर तक की रिले दौड़ों में पहले धावक के अतिरिक्त टीम के अन्य सदस्य बैटन लेने के लिए निर्धारित क्षेत्र के बाहर, किन्तु 10 मीटर से कम दूरी से दौड़ना आरम्भ करते हैं।
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बैटन विनिमय (Exchange of Baton)-बैटन विनिमय निर्धारित क्षेत्र के अन्दर ही होना चाहिए। धकेलने या किसी प्रकार से सहायता करने की अनुमति नहीं है। धावक एक-दूसरे को बैटन नहीं फेंक सकते यदि बैटन गिर जाता है, तो गिराने वाला धावक ही उठाएगा।
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PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 29 पंजाब सरकार की आर्थिक स्थिति

Punjab State Board PSEB 11th Class Economics Book Solutions Chapter 29 पंजाब सरकार की आर्थिक स्थिति Textbook Exercise Questions, and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Economics Chapter 29 पंजाब सरकार की आर्थिक स्थिति

PSEB 11th Class Economics पंजाब सरकार की आर्थिक स्थिति Textbook Questions and Answers

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

प्रश्न 1.
पंजाब सरकार की आय के मुख्य कर साधन कौन-कौन से हैं ?
उत्तर-
पंजाब सरकार की आय के मुख्य साधनों को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है कर साधन-इन साधनों में बिक्री कर, उत्पादन कर, भूमि लगान, स्टैम्प ड्यूटी तथा रजिस्ट्री, मोटर गाड़ियों पर कर, विद्युत् कर, यात्रा कर इत्यादि शामिल किए जाते हैं।

प्रश्न 2.
पंजाब सरकार के विकासवादी व्यय की दो मुख्य मदों का वर्णन करें।
उत्तर-
कृषि (Agriculture)-कृषि, सहकारिता तथा पशुपालन की उन्नति के लिए सरकार व्यय करती है। वर्ष 2020-21 में इस मद पर ₹ 13267 करोड़ व्यय होने का अनुमान लगाया गया।

प्रश्न 3.
पंजाब सरकार के गैर-विकासवादी व्यय की मदों का वर्णन करें।
उत्तर-
राज्य प्रबन्ध (Administration)-पंजाब सरकार को राज्य प्रबन्ध, पुलिस तथा शान्ति स्थापित करने के लिए व्यय करना पड़ता है। वर्ष 2020-21 में इस मद पर व्यय करने के लिए ₹ 6954 करोड़ रखे गए।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 29 पंजाब सरकार की आर्थिक स्थिति

प्रश्न 4. पंजाब में सरकार की आय के मुख्य साधन बिक्री कर, उत्पादन कर, भूमि लगान, स्टैम्प ड्यूटी आदि
उत्तर-
सही।

प्रश्न 5.
पंजाब सरकार की आय व्यय से अधिक है।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 6. पंजाब सरकार द्वारा विकासवादी व्यय ………. हैं।
(a) शिक्षा
(b) कृषि
(c) स्वास्थ्य
(d) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(d) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 7.
वर्ष 2020-21 में पंजाब सरकार की कुल आय ……………. करोड़ रुपए होने का अनुमान था।
(a) 151048
(b) 152048
(c) 153048
(d) 164048
उत्तर-
(c) 153048

प्रश्न 8.
सन् 2020-21 में पंजाब सरकार का कुल व्यय ₹ ………….. करोड़ होने का अनुमान था।
(a) 152805
(b) 162805
(c) 172805
(d) 1828808
उत्तर-
(a) 152805

प्रश्न 9.
पंजाब सरकार की आर्थिक स्थिति सन्तोषजनक है।
उत्तर-
ग़लत।

प्रश्न 10.
पंजाब सरकार को सामाजिक कल्याण की योजनाओं पर कम व्यय करना चाहिए।
उत्तर-
सही।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 29 पंजाब सरकार की आर्थिक स्थिति

प्रश्न 11.
पंजाब सरकार की आर्थिक स्थिति में सुधार के लिए सुझाव दें।
उत्तर-
पंजाब को विकासवादी व्यय अधिक करना चाहिए और ग्रांटें देनी बन्द करनी चाहिए।

प्रश्न 12.
पंजाब सरकार पर 2020-21 का कुल ऋण ₹ 20 लाख करोड़ था।
उत्तर-
सही।

II. अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
पंजाब सरकार की आय के दो कर साधनों का वर्णन करें।
उत्तर-
पंजाब सरकार को करों द्वारा तथा गैर-कर साधनों द्वारा आय प्राप्त होती है। वर्ष 2020-21 में लगभग ₹ 153048 करोड़ की कुल आय प्राप्त होने का अनुमान था। पंजाब सरकार के कर साधन निम्नलिखित हैं-

  1. बिक्री कर (Sale Tax)- बिक्री कर पंजाब सरकार की आय का मुख्य साधन है। यह कर वस्तुओं तथा सेवाओं की बिक्री के समय लगाया जाता है। वर्ष 2020-21 में बिक्री द्वारा ₹ 5575 करोड़ की आय होने की सम्भावना थी।
  2. राज्य उत्पादन कर (State Excise Duty)-यह कर नशीले पदार्थों पर लगाया जाता है और 2020-21 में इस कर से ₹ 6550 करोड़ प्राप्त होने की संभावना थी।

प्रश्न 2.
पंजाब सरकार की आय के दो गैर-कर साधनों की व्याख्या करें।
उत्तर-
पंजाब सरकार को गैर-कर साधनों द्वारा भी आय प्राप्त होती है। इसके मुख्य साधन निम्नलिखित हैं-

  1. साधारण सेवाएं (General Services)-पंजाब द्वारा साधारण सेवाओं जैसे कि पुलिस, जेल, लोक सेवा से प्राप्त होती है। इस प्रकार ₹ 6754 करोड़ की आय पंजाब सरकार को प्राप्त होने की सम्भावना थी।
  2. आर्थिक विकास (Economics Services) आर्थिक सेवाओं का अर्थ सिंचाई, भूमि सुधार, पशु पालन, मछली पालन, यातायात इत्यादि सेवाओं से प्राप्त होने वाली आय से होता है। वर्ष 2020-21 में पंजाब सरकार को आर्थिक सेवाओं द्वारा ₹ 898 करोड़ की आय प्राप्त होने का अनुमान था।

प्रश्न 3.
पंजाब सरकार के दो विकास व्यय बताएं।
उत्तर-
विकास व्यय (Development Expenditure)-विकास व्यय में मुख्यतः शिक्षा, स्वास्थ्य उद्योग, सड़कें, विद्युत् इत्यादि पर व्यय को शामिल किया जाता है।

  1. शिक्षा (Education)-पंजाब सरकार द्वारा स्कूलों, कॉलेजों तथा तकनीकी संस्थाओं के संचालन पर व्यय किया जाता है। 2020-21 में पंजाब सरकार द्वारा ₹ 13037 करोड़ व्यय किए जाने का अनुमान था।
  2. स्वास्थ्य सुविधाएं (Medical Facilities)-पंजाब सरकार द्वारा स्वास्थ्य सुविधाएं प्रदान की जाती हैं। इसके लिए गांवों में प्राइमरी स्वास्थ्य केन्द्र, शहरों तथा कस्बों में अस्पताल स्थापित किए गए हैं। 2020-21 में स्वास्थ्य सुविधाओं पर व्यय करने के लिए ₹ 4532 करोड़ रखे गए थे।

प्रश्न 4.
पंजाब सरकार के दो गैर विकास व्यय बताएं।
उत्तर-
गैर-विकास व्यय (Non-Development Expenditure)- पंजाब सरकार को गैर-विकास व्यय जैसे कि राज्य प्रशासन, पुलिस, कर्मचारियों को वेतन तथा पेंशन देने पर काफ़ी धन व्यय करना पड़ता है। इसको गैर-विकास व्यय कहा जाता है।

  1. राज्य प्रशासन (Civil Administration)-पंजाब सरकार प्रशासन पर व्यय करती है जैसे कि पुलिस, सरकारी कर्मचारी तथा मन्त्रियों के लिए रखे गए कर्मचारियों पर काफ़ी व्यय करना पड़ता है। 2020-21 में राज्य प्रशासन पर पंजाब सरकार ने ₹ 27629 करोड़ व्यय किए।
  2. ऋण सेवाएं (Debts Services)-पंजाब सरकार द्वारा प्राप्त किए गए ऋण पर ब्याज दिया जाता है। यह ऋण केन्द्र सरकार अथवा केन्द्रीय बैंक से प्राप्त किया जाता है। 2020-21 में पंजाब सरकार द्वारा ब्याज के रूप में ₹ 19075 करोड़ व्यय करने का अनुमान था।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 29 पंजाब सरकार की आर्थिक स्थिति

III. लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
पंजाब सरकार की आय के कर साधनों का वर्णन करें।
उत्तर-
पंजाब सरकार को करों द्वारा तथा गैर-कर साधनों द्वारा आय प्राप्त होती है। वर्ष 2017-18 में लगभग ₹ 60080 करोड़ की कुल आय प्राप्त होने का अनुमान था। पंजाब सरकार के कर साधन निम्नलिखित हैं-
1. जी० एस० टी० (G.S.T.)-बिक्री कर पंजाब सरकार की आय का मुख्य साधन है। यह कर वस्तुओं तथा सेवाओं की बिक्री के समय लगाया जाता है। वर्ष 2020-21 में बिक्री द्वारा ₹ 5578 करोड़ की आय होने की सम्भावना थी जोकि कुल आय का 39.56% भाग थी।

2. राज्य उत्पादन कर (Excise Duty)-इस कर को आबकारी कर भी कहा जाता है। यह कर नशीली वस्तुओं जैसे कि अफीम, शराब, भांग इत्यादि पर लगाया जाता है। आबकारी कर द्वारा 2020-21 में ₹ 6250 करोड़ की आय होने की सम्भावना थी जोकि कुल आय का 9.17% भाग थी।

3. केन्द्रीय करों में भाग (Share from Central Taxes)-कुछ कर केन्द्र सरकार द्वारा लगाए जाते हैं जैसे कि आय कर, उत्पादन कर, मृत्यु कर इत्यादि। इन करों में से राज्य सरकार को भाग दिया जाता है। 2020-21 में पंजाब सरकार को केन्द्रीय करों से ₹ 14021 करोड़ की आय प्राप्त होने का अनुमान था।

4. भूमि लगान (Land Revenue)-भूमि के मालिए द्वारा भी सरकार को आय प्राप्त होती है। वर्ष 2020-21 में पंजाब सरकार को इस कर द्वारा ₹ 78 करोड़ की आय होने का अनुमान था।

प्रश्न 2.
पंजाब सरकार के विकासवादी व्यय की संक्षेप व्याख्या करो।
उत्तर-
पंजाब सरकार द्वारा किए जाने वाले व्यय को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है –
(A) विकासवादी व्यय
(B) गैर-विकासवादी व्यय।
विकासवादी व्यय की मुख्य मदें इस प्रकार हैं-
1. शिक्षा (Education)-पंजाब सरकार को शिक्षा अर्थात् स्कूल, कॉलेज तथा तकनीकी शिक्षा प्रदान करने के लिए व्यय करना पड़ता है। प्राइवेट स्कूलों तथा कॉलेजों को आर्थिक सहायता दी जाती है। वर्ष 2020-21 में शिक्षा पर ₹ 13037 करोड़ व्यय होने का अनुमान था।

2. स्वास्थ्य सुविधाएं (Medical Facilities)-लोगों को स्वास्थ्य सुविधाएं देने के लिए पंजाब सरकार को व्यय करना पड़ता है। गांवों तथा शहरों में बीमार लोगों को इलाज की सुविधाएं प्रदान करने के लिए अस्पताल स्थापित किए गए हैं। वर्ष 2020-21 में स्वास्थ्य सुविधाओं पर पंजाब सरकार ने ₹ 4532 करोड़ व्यय करने के लिए रखे थे।

3. कृषि, सहकारिता तथा पशु-पालन (Agriculture, co-operation and Animal Husbandary)पंजाब सरकार द्वारा कृषि के विकास के लिए बहुत व्यय किया जाता है। किसानों को आधुनिक औज़ार, बढ़िया बीज तथा रासायनिक उर्वरक प्रदान की जाती है। वर्ष 2020-21 में पंजाब सरकार ने ₹ 13067 करोड़ कृषि के विकास पर व्यय करने के लिए रखे थे।

4. सिंचाई तथा बहुमुखी योजनाएं (Irrigation and Multipurpose Projects)-पंजाब में सिंचाई की तरफ अधिक ध्यान दिया जाता है। इसलिए पंजाब सरकार सिंचाई तथा बहुमुखी योजनाओं पर बहुत व्यय करती है। इसलिए नहरें, ट्यूबवैल, विद्युत् घरों के विकास पर काफ़ी व्यय किया जाता है। वर्ष 2020-21 में पंजाब सरकार ने ₹ 2510 करोड़ व्यय करने के लिए रखे थे।

प्रश्न 3.
पंजाब सरकार की आय के गैर-कर साधनों की व्याख्या करें।
उत्तर-
पंजाब सरकार को गैर-कर साधनों द्वारा भी आय प्राप्त होती है। इसके मुख्य साधन निम्नलिखित हैं-
1. साधारण सेवाएं (General Services)-पंजाब द्वारा साधारण सेवाओं जैसे कि पुलिस, जेल, लोक सेवा कमीशन इत्यादि से प्राप्त होती है। वर्ष 2020-21 में कुल आय का ₹ 6754 करोड़ साधारण सेवाओं से प्राप्त होने का अनुमान था।

2. आर्थिक विकास (Economics Services)-आर्थिक सेवाओं का अर्थ सिंचाई, भूमि सुधार, पशु पालन, मछली पालन, यातायात इत्यादि सेवाओं से प्राप्त होने वाली आय से होता है। वर्ष 2020-21 में पंजाब सरकार को आर्थिक सेवाओं द्वारा ₹ 898 करोड़ की आय प्राप्त होने का अनुमान था।

3. ऋण सेवाएं, लाभांश तथा लाभ (Debt Services, Dividends and Profits)-पंजाब सरकार को ऋण देने के बदले में ब्याज प्राप्त होता है। यह ऋण नगर पालिकाओं अथवा व्यक्तियों को दिया जाता है। इससे सरकार को ब्याज प्राप्त होता है। पंजाब सरकार को 2020-21 में इस मद द्वारा ₹ 5.2 करोड़ की आय प्राप्त होने की सम्भावना थी।

4. केन्द्रीय सरकार से प्राप्त सहायता (Aid from central Government) राज्य सरकार को केन्द्रीय सरकार से सहायता प्राप्त होती है जोकि योजनाओं को लागू करने पर व्यय की जाती है। पंजाब सरकार को वर्ष 2020-21 में केन्द्र सरकार से ₹ 30113 करोड़ की आय प्राप्त होने का अनुमान था।

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IV. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
पंजाब सरकार की आय के मुख्य साधन तथा व्यय की मदों का वर्णन करें।
(Explain the main sources of Revenue and Heads of Expenditure of the Punjab Government.)
उत्तर-
पंजाब सरकार की आय के मुख्य साधन तथा व्यय की मदों का विवरण इस प्रकार है-
आय के मुख्य साधन (Main Sources of Revenue) – पंजाब सरकार ने बजट 2020-21 के अनुसार पंजाब की कुल आय ₹ 153048 करोड़ होने का अनुमान था तथा कुल व्यय का अनुमान ₹ 154805 करोड़ था। पंजाब सरकार की आय के ढांचे (Pattern) को हम अग्रलिखित अनुसार स्पष्ट कर सकते हैं-
1. शिक्षा (Education)-पंजाब सरकार द्वारा स्कूलों, कॉलेजों तथा तकनीकी संस्थाओं के संचालन पर व्यय किया जाता है। 2020-21 में पंजाब सरकार द्वारा ₹ 13267 करोड़ व्यय किए जाने का अनुमान था।

2. स्वास्थ्य सुविधाएं (Medical Facilities)-पंजाब सरकार द्वारा स्वास्थ्य सुविधाएं प्रदान की जाती हैं। इसके लिए गांवों में प्राइमरी स्वास्थ्य केन्द्र, शहरों तथा कस्बों में अस्पताल स्थापित किए गए हैं। 2020-21 में स्वास्थ्य सुविधाओं पर व्यय करने के लिए ₹ 4532 करोड़ रखे गए थे।

3. कृषि तथा ग्रामीण विकास (Agriculture & Rural Development)-पंजाब का मुख्य व्यवसाय कृषि है। सरकार द्वारा कृषि के विकास के लिए व्यय किया जाता है। किसानों को आधुनिक औजार, बीज तथा रासायनिक उर्वरक प्रदान किए जाते हैं। इसके लिए 2020-21 में ₹ 6547 करोड़ व्यय का अनुमान लगाया गया तथा ग्रामीण विकास पर ₹ 678 करोड़ व्यय होने का अनुमान था।

4. सामाजिक सुरक्षा तथा कल्याण (Social Security and Welfare)-पंजाब सरकार सामाजिक सुरक्षा तथा लोगों के कल्याण के लिए भी व्यय करती है। अनुसूचित जातियों, पिछड़े वर्गों तथा निर्धन लोगों को बुढ़ापा पेंशन दी जाती है। 2020-21 में पंजाब सरकार द्वारा सामाजिक सुरक्षा तथा कल्याण पर व्यय करने के लिए ₹ 4728 करोड़ रखे गए थे।

5. उद्योग तथा खनिज (Industries and Minerals) पंजाब सरकार छोटे तथा बड़े पैमाने के उद्योगों को सुविधाएं प्रदान करती है। इन उद्योगों को कम कीमत पर प्लाट, मशीनें, कच्चा माल तथा विद्युत् आपूर्ति की जाती है। सरकार उद्योगों के माल की बिक्री का प्रबन्ध भी करती है। 2020-21 में उद्योगों तथा खनिज पर ₹ 2473 करोड़ व्यय करने का अनुमान था।

B. गैर-विकास व्यय (Non-Development Expenditure)-पंजाब सरकार को गैर-विकास व्यय जैसे कि राज्य प्रशासन, पुलिस, कर्मचारियों को वेतन तथा पेंशन देने पर काफ़ी धन व्यय करना पड़ता है। इसको गैर-विकास व्यय कहा जाता है।
1. राज्य प्रशासन (Civil Administration) पंजाब सरकार प्रशासन पर व्यय करती है जैसे कि पुलिस, सरकारी कर्मचारी तथा मन्त्रियों के लिए रखे गए कर्मचारियों पर काफ़ी व्यय करना पड़ता है। 2020-21 में राज्य प्रशासन पर पंजाब सरकार ने ₹ 24639 करोड़ व्यय किए गए।

2. ऋण सेवाएं (Debts Services)-पंजाब सरकार द्वारा प्राप्त किए गए ऋण पर ब्याज दिया जाता है। यह ऋण केन्द्र सरकार अथवा केन्द्रीय बैंक से प्राप्त किया जाता है। 2020-21 में पंजाब सरकार द्वारा ब्याज के रूप ₹ 19075 करोड़ व्यय करने का अनुमान था।

3. कर वसूली पर व्यय (Direct Demand on Revenue)-पंजाब सरकार द्वारा बहुत से कर लगाए जाते हैं जैसे कि बिक्री कर, राज्य उत्पादन कर, मनोरंजन कर इत्यादि। इन करों को एकत्रित करने के लिए सरकार को व्यय करना पड़ता है। 2020-21 में करों को एकत्रित करने के लिए ₹ 1800 करोड़ व्यय होने का अनुमान था।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 29 पंजाब सरकार की आर्थिक स्थिति

4. पेंशन तथा अन्य सेवाएं (Pension and other services)-पंजाब सरकार द्वारा पेंशन तथा अन्य सेवाएं प्रदान करने पर व्यय किया जाता है। 2020-21 में ₹ 122067 करोड़ पेंशन तथा अन्य सेवाओं पर व्यय होने का अनुमान था।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 28 1966 से पंजाब में औद्योगिक विकास

Punjab State Board PSEB 11th Class Economics Book Solutions Chapter 28 1966 से पंजाब में औद्योगिक विकास Textbook Exercise Questions, and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Economics Chapter 28 1966 से पंजाब में औद्योगिक विकास

PSEB 11th Class Economics 1966 से पंजाब में औद्योगिक विकास Textbook Questions and Answers

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

प्रश्न 1.
पंजाब में औद्योगिक ढांचे के विकास का वर्णन करें।
उत्तर-
पंजाब में अधिक उद्योग घरेलू तथा छोटे पैमाने के उद्योग हैं। मध्यम तथा बड़े पैमाने के उद्योगों की कमी पाई जाती है।

प्रश्न 2.
पंजाब में छोटे पैमाने के उद्योगों की क्या स्थिति है ?
उत्तर-
पंजाब में छोटे पैमाने के उद्योग अधिक विकसित हुए हैं। 2018-19 में छोटे पैमाने के उद्योगों की कार्यशील इकाइयां 1:98 लाख थीं।

प्रश्न 3.
छोटे पैमाने के उद्योगों से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
छोटे उद्योग तथा सहायक उद्योग वे उद्योग हैं, जिनमें एक करोड़ रुपए की अचल पूंजी का निवेश होता है।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 28 1966 से पंजाब में औद्योगिक विकास

प्रश्न 4.
जिन उद्योगों में एक करोड़ रुपए तक की पूंजी लगी होती है उनको …………. उद्योग कहा जाता है।
(a) कुटीर
(b) छोटे पैमाने के
(c) मध्यम आकार के
(d) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(b) छोटे पैमाने के।

प्रश्न 5.
पंजाब में औद्योगिक प्रगति सन्तोषजनक है।
उत्तर-
ग़लत।

प्रश्न 6.
पंजाब में अधिक मात्रा में …………. उद्योग लगे हुए हैं।
(a) छोटे पैमाने के
(b) मध्यम आकार के
(c) बड़े पैमाने के
(d) उपरोक्त सभी प्रकार के।
उत्तर-
(a) छोटे पैमाने के।

प्रश्न 7.
पंजाब में औद्योगिक विकास की प्रगति ……… है।
उत्तर-
धीमी।

प्रश्न 8.
पंजाब में बड़े पैमाने के उद्योगों की कमी का कारण ………………… है।
(a) खनिज पदार्थों की कमी
(b) बिजली की कमी
(c) सीमावर्ती राज्य
(d) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(d) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 9.
पंजाब में वित्त की कमी के कारण औद्योगिक विकास नहीं हुआ।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 10.
पंजाब में अल्प उद्योगों का कम विकास हुआ है।
उत्तर-
ग़लत।

प्रश्न 11. पंजाब में औद्योगिक विकास की ज़रूरत नहीं।
उत्तर-
ग़लत।

II. अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
पंजाब में औद्योगीकरण की आवश्यकता पर टिप्पणी लिखें।
अथवा
पंजाब में औद्योगीकरण के महत्त्व को स्पष्ट करें।
उत्तर-
पंजाब में औद्योगीकरण की आवश्यकता निम्नलिखित तत्त्वों से स्पष्ट हो जाती है-

  1. संतुलित विकास (Balanced Growth)-पंजाब की अर्थ-व्यवस्था का संतुलित विकास नहीं हुआ क्योंकि पंजाब के अधिकतम लोग कृषि में लगे हुए हैं। इसलिए उद्योगों का विकास आवश्यक है तो जो पंजाब का संतुलित विकास हो सके।
  2. रोज़गार में वृद्धि (Increase in Employment)-पंजाब में शहरों तथा गांवों में बेरोज़गारी पाई जाती है। उद्योगों के विकास से पंजाब में शहरी बेरोज़गारी तथा गांवों में छुपी बेरोज़गारी कम होगी। उद्योगों के विकास से पूर्ण रोज़गार की स्थिति प्राप्त की जा सकती है।

प्रश्न 2.
पंजाब में छोटे पैमाने के उद्योगों के विकास का विवरण दें।
उत्तर-
पंजाब में छोटे पैमाने के उद्योगों का विकास-
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 28 1966 से पंजाब में औद्योगिक विकास 1

प्रश्न 3.
पंजाब के कोई दो छोटे पैमाने के उद्योगों पर टिप्पणी लिखें।
उत्तर-
पंजाब के मुख्य छोटे पैमाने के उद्योग अग्रलिखित हैं

  1. हौज़री उद्योग (Hosiery Industry)-पंजाब का हौज़री उद्योग लुधियाना में केन्द्रित है। यह उद्योग न केवल भारत में बल्कि विदेशों में भी मशहूर है। 2015-16 इस उद्योग द्वारा ₹ 3711 करोड़ वार्षिक मूल्य का माल उत्पादित किया जाता है। इसमें 78 हज़ार लोगों को रोजगार प्राप्त होता है।
  2. साइकिल उद्योग (Cycle Industry)-पंजाब में साइकिल उद्योग छोटे स्तर तथा बड़े स्तर दोनों पर ही कार्य कर रहा है। साइकिल तथा साइकिल के पुर्जे बनाने का उद्योग लुधियाना, जालन्धर, राजपुरा तथा मालेरकोटला में स्थित है। 2015-16 में ₹ 12966 करोड़ मूल्य के साइकिल तथा साइकिल के पुों का उत्पादन किया गया। इसमें 78.4 हज़ार लोगों को रोजगार प्राप्त होता है।

प्रश्न 4.
पंजाब में मध्यम तथा बड़े पैमाने के उद्योगों की मंद प्रगति के दो कारण लिखें।
उत्तर-
पंजाब में मध्यम तथा बड़े पैमाने के उद्योगों की मंद प्रगति के कारण (Causes of Slow Progress of Medium & Large Scale Industries in Punjab)

  • खनिज पदार्थों की कमी (Lack of Mineral Resources)-पंजाब में खनिज पदार्थ बिलकुल नहीं मिलते। मध्यम तथा बड़े पैमाने के उद्योगों को काफ़ी मात्रा में कच्चे माल की आवश्यकता होती है। पंजाब में खनिज पदार्थों की कमी के कारण इनको अन्य राज्यों से मंगवाना पड़ता है। इस कारण बड़े तथा मध्यम पैमाने के उद्योगों का विकास नहीं हुआ।
  • सीमावर्ती राज्य (Border State)-पंजाब में मध्यम तथा बड़े आकार के उद्योगों की मंद प्रगति का सबसे बड़ा कारण पंजाब का सीमावर्ती राज्य होना है। पंजाब की सीमाएं पाकिस्तान से मिलती हैं। पाकिस्तान का भारत से हमेशा झगड़ा रहता है। अब तक दो युद्ध हो चुके हैं। ऐसी स्थिति में उद्यमी इस क्षेत्र में उद्योग स्थापित नहीं करना चाहते।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 28 1966 से पंजाब में औद्योगिक विकास

प्रश्न 5.
पंजाब सरकार द्वारा उद्योगों के विकास के लिए उठाए गए कोई दो कदम बताएं।
उत्तर-
1. करों में छूट (Exemption From Taxes)-नई औद्योगिक नीति में औद्योगिक विकास को प्रोत्साहित करने के लिए करों में छूट देने का कार्यक्रम बनाया गया है। वर्ग A के क्षेत्रों में जो नए उद्योग स्थापित किए जाते हैं उनको बिक्री कर (Sales Tax) से 10 वर्ष के लिए तथा वर्ग B के क्षेत्रों में नए स्थापित उद्योगों के लिए बिक्री कर से 7 वर्ष के लिए छूट दी जाएगी।

2. भूमि के लिए आर्थिक सहायता (Land Subsidy)-नई औद्योगिक नीति में भूमि के लिए आर्थिक सहायता की घोषणा की गई है। कोई भी उद्यमी किसी फोकल प्वाइंट पर भूमि की खरीद उद्योग स्थापित करने के लिए करता है तो भूमि की कीमत का 33% भाग आर्थिक सहायता के रूप में दिया जाएगा। जालन्धर के स्पोर्टस काम्पलैक्स में भूमि के लिए आर्थिक सहायता 25% दी जाएगी।

III. लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
पंजाब में औद्योगीकरण की आवश्यकता पर टिप्पणी लिखें।
अथवा
पंजाब में औद्योगीकरण के महत्त्व को स्पष्ट करें।
उत्तर-
पंजाब में औद्योगीकरण की आवश्यकता निम्नलिखित तत्त्वों से स्पष्ट हो जाती है-

  1. संतुलित विकास (Balanced Growth)- पंजाब की अर्थ-व्यवस्था का संतुलित विकास नहीं हुआ क्योंकि पंजाब के अधिकतम लोग कृषि में लगे हुए हैं। इसलिए उद्योगों का विकास आवश्यक है तो जो पंजाब का संतुलित विकास हो सके।
  2. रोज़गार में वृद्धि (Increase in Employment)-पंजाब में शहरों तथा गांवों में बेरोज़गारी पाई जाती है। उद्योगों के विकास से पंजाब में शहरी बेरोज़गारी तथा गांवों में छुपी बेरोज़गारी कम होगी।
  3. उद्योगों के विकास से पूर्ण रोज़गार की स्थिति प्राप्त की जा सकती है। उद्योगों का विकास होगा। सरकार को करों द्वारा अधिक आय प्राप्त होगी इसको लोगों के कल्याण पर व्यय किया जा सकता है।
  4. कृषि पर जनसंख्या के दबाव में कमी (Less Pressure of Population on Agriculture) पंजाब में 759% जनसंख्या कृषि पर निर्भर करती है। इसलिए प्रति व्यक्ति भूमि निरंतर कम हो रही है। उद्योगों के विकास से कृषि
  5. श्रमिकों के जीवन स्तर में वृद्धि (Increase in Standard of Living of Labourers)-पंजाब में औद्योगिक विकास से श्रमिकों की मांग बढ़ेगी परिणामस्वरूप श्रमिकों के व्यय में वृद्धि होगी। इससे श्रमिक ऊँचा जीवन स्तर व्यतीत कर सकेंगे।

प्रश्न 2.
पंजाब में छोटे पैमाने के उद्योगों के विकास के कारण तथा महत्त्व का वर्णन करें।
उत्तर-
पंजाब में छोटे पैमाने के उद्योगों के विकास के कारण तथा महत्त्व को निम्नलिखित प्रकार से स्पष्ट किया जा सकता है-

  1. खनिज पदार्थों की कमी (Lack of Minerals)-पंजाब में खनिज पदार्थ नहीं पाए जाते परिणामस्वरूप बड़े पैमाने के उद्योग विकसित नहीं हो सके। इसलिए छोटे पैमाने के उद्योगों को विकसित किया गया है।
  2. बड़े उद्योगों की कमी (Lack of Large Scale Industries)-पंजाब में बड़े पैमाने के उद्योग बहुत कम हैं। उद्यमी पंजाब में उद्योग स्थापित नहीं करना चाहते क्योंकि यह सीमावर्ती राज्य है। इसलिए बड़े उद्योगों की कमी को छोटे उद्योगों द्वारा पूर्ण किया गया है।
  3. परिश्रमी लोग (Hardworking People)-पंजाब के श्रमिक मेहनती तथा कुशल हैं। इन्होंने छोटे-छोटे उद्योग स्थापित किए हैं जिससे श्रमिकों का जीवन स्तर ऊँचा हो रहा है।
  4. वित्त की कमी (Lack of Finance)-पंजाब में व्यापारिक बैंक तथा वित्तीय संस्थाओं द्वारा वित्त की सहूलतें कम प्रदान की गई हैं जबकि अन्य राज्यों में अधिक सहूलतें प्रदान की जाती हैं। वित्त की कमी के कारण बड़े पैमाने के उद्योग विकसित नहीं हो सके। इसलिए छोटे उद्योगों का महत्त्व बढ़ गया है।
  5. पंजाब सरकार की नीति (Policy of the Punjab Government)-पंजाब सरकार की औद्योगिक नीति में छोटे पैमाने के उद्योगों की तरफ विशेष ध्यान दिया गया है। इसलिए पंजाब में छोटे पैमाने के उद्योग अधिक विकसित हो गए हैं।

प्रश्न 3.
पंजाब के छोटे उद्योगों की समस्याओं का वर्णन करें।
अथवा
पंजाब में छोटे उद्योगों के मंद विकास के क्या कारण हैं ?
उत्तर-
पंजाब में छोटे उद्योगों की मुख्य समस्याएं निम्नलिखित हैं-
1. वित्त की समस्या (Problem of Finance)-पंजाब में छोटे पैमाने के उद्योगों को उचित मात्रा में वित्त प्राप्त नहीं होता। वित्त की कमी के कारण छोटे उद्योगों की विकास की गति मंद है।

2. उत्पादन के पुराने ढंग (Old Methods of Production)-पंजाब के उद्योगों में पुराने ढंग से उत्पादन किया जाता है। इसलिए उत्पादन कम होता है तथा लागत अधिक आती है।

3. कच्चे माल की समस्या (Problem of Raw Material)-पंजाब में उद्योगों के लिए कच्चा माल अन्य प्रान्तों से मंगवाना पड़ता है। इससे उत्पादन लागत बढ़ जाती है तथा उत्पादन कम होता है।

4. समस्या का सामना करना पड़ता है। इन उद्योगों को बड़े उद्योगों द्वारा तैयार माल से मुकाबला करना पड़ता है क्योंकि बड़े पैमाने पर तैयार माल सस्ता तथा बढ़िया होता है। इसलिए छोटे उद्योगों की बिक्री के समय कठिनाई होती है।

5. शक्ति की समस्या (Problem of Power)-पंजाब सरकार उद्योगों से कृषि को प्राथमिकता देती है। इसलिए समय-समय पर बिजली बंद (Power cut) का सामना करना पड़ता है।

प्रश्न 4.
पंजाब में प्रमुख छोटे पैमाने के उद्योगों का वर्णन करें।
उत्तर-
पंजाब के प्रमुख छोटे पैमाने के उद्योग निम्नलिखित हैं-

  1. हौज़री उद्योग (Hosiery Industry)-पंजाब का हौज़री उद्योग लुधियाना में केन्द्रित है। यह उद्योग न केवल भारत में बल्कि विदेशों में भी मशहूर है। 2015-16 में इस उद्योग में 78 हज़ार लोग कार्य करते थे तथा ₹ 3711 करोड़ का माल बनाया जाता था।
  2. साइकिल उद्योग (Cycle Industry)-पंजाब में साइकिल उद्योग छोटे तथा बड़े दोनों स्तरों पर कार्य करता है। इस उद्योग में साइकिल तथा इसके पुर्जे बनाए जाते हैं। यह उद्योग लुधियाना, जालन्धर तथा मलेरकोटला में स्थित है। वर्ष 2015-16 में, इसमें 78.4 हज़ार लोगों को रोज़गार प्राप्त है। वार्षिक ₹ 12966 करोड़ का माल तैयार किया जाता है।
  3. सिलाई मशीन उद्योग (Sewing Machine Industry)-सिलाई मशीन उद्योग पंजाब में लुधियाना, सरहिन्द, बटाला तथा जालन्धर में है। 2015-16 में सिलाई मशीनों के लगभग 57 कारखाने थे। जिनमें 13464 मजदूरों को रोज़गार प्राप्त होता था। इस उद्योग में ₹ 1254 करोड़ का वार्षिक माल तैयार होता था।
  4. खेलों का सामान बनाने का उद्योग (Sports Goods Industries) पंजाब में खेलों का सामान बनाने का उद्योग जालन्धर में है। पंजाब में बनाया गया खेलों का सामान न केवल भारत में बल्कि विदेशों में भी भेजा जाता है। इस उद्योग में 4561 श्रमिकों को रोजगार प्राप्त है। इसमें वार्षिक ₹ 267.57 लाख करोड़ का सामान बनाया जाता है।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 28 1966 से पंजाब में औद्योगिक विकास

प्रश्न 5.
पंजाब में बड़े तथा मध्यम उद्योगों की मंद गति के क्या कारण हैं ?
उत्तर-
पंजाब में बड़े तथा मध्यम उद्योगों की धीमी गति के कारण निम्नलिखित हैं-
1. खनिज पदार्थों की कमी (Lack of Mineral Resources)-पंजाब में खनिज पदार्थ बिलकुल नहीं मिलते इसलिए मध्यम तथा बड़े पैमाने के उद्योगों ने काफ़ी मात्रा में कच्चे माल की आवश्यकता पड़ती है। पंजाब में खनिज पदार्थ न होने के कारण इनको अन्य राज्यों से मंगवाना पड़ता है। इस कारण बड़े तथा मध्यम पैमाने के उद्योगों का विकास नहीं हुआ।

2. सीमावर्ती राज्य (Border State)-पंजाब में मध्यम तथा बड़े पैमाने की मंद प्रगति का सबसे बड़ा कारण पंजाब का सीमावर्ती राज्य होना है। पंजाब की सीमाएं पाकिस्तान से मिलती हैं। पाकिस्तान से भारत का हमेशा झगड़ा रहता है। अब तक दो युद्ध हो चुके हैं। ऐसी स्थिति में उद्यमी इस क्षेत्र में उद्योग स्थापित नहीं करना चाहते।

3. विद्युत् की कमी (Lack of Power) विद्युत् औद्योगिक विकास के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण है। पंजाब में विद्युत् का प्रयोग कृषि में अधिक होता है। किन्तु बड़े उद्योगों के लिए काफ़ी मात्रा में विद्युत् की आवश्यकता होती है। विद्युत् की कमी के कारण बड़े तथा मध्यम उद्योगों की गति मंद है।

4. केन्द्र सरकार का कम योगदान (Less Investment by Central Government)-पंजाब में केन्द्रीय सरकार द्वारा बहुत कम निवेश किया गया है। पंजाब में केन्द्र सरकार का कुल निवेश 2.5% है। परन्तु केन्द्र सरकार ने 75% बिहार में, 12% कर्नाटक में निवेश किया है। इस कारण भी उद्योगों का विकास नहीं हो सका।

IV. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
पंजाब के छोटे, मध्य तथा बड़े स्तर के उद्योगों की प्रकृति तथा ढांचे का वर्णन करें। (Explain the nature and structure and small, medium and large scale industries of Punjab.)
अथवा
पंजाब के प्रमुख छोटे आकार के उद्योगों की व्याख्या करें। (Explain the main Small Scale Industries of Punjab.)
उत्तर-
पंजाब का औद्योगिक ढांचा (Structure of Industries in Punjab)
पंजाब में औद्योगिक ढांचे को दो भागों में विभाजित करके स्पष्ट किया जा सकता है –
A. छोटे पैमाने के उद्योग (Small Scale Industries)
B. मध्य तथा बड़े पैमाने के उद्योग (Medium & Large Scale Industries)

A. छोटे पैमाने के उद्योग (Small Scale Industries)-वर्ष 1997 के पश्चात् छोटे पैमाने के उद्योगों में उन उद्योगों को शामिल किया जाता है जिनमें ₹ 3 करोड़ तक का निवेश किया होता है। इससे पूर्व स्थिर पूंजी के निवेश की सीमा केवल ₹ 60 लाख थी।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 28 1966 से पंजाब में औद्योगिक विकास 2
सूची पत्र से ज्ञात होता है कि 1978-79 में छोटे पैमाने के उद्योगों की संख्या 0.42 लाख थी जिनमें ₹ 271 करोड़ की अचल पूंजी लगी हुई थी। इन उद्योगों ₹ 751 करोड़ का उत्पादन किया जाता था तथा लगभग 2.50 लाख श्रमिक काम पर लगे हुए थे। वर्ष 2018-19 में छोटे पैमाने के उद्योगों की इकाइयों की संख्या बढ़कर 1.72 लाख हो गई है। इन उद्योगों में ₹ 86324 करोड़ की अचल पूंजी लगी हुई है जिनमें ₹ 201590 करोड़ का उत्पादन किया जाता है। यह उद्योग 16.21 लाख श्रमिकों को रोजगार प्रदान करते हैं।

पंजाब के मुख्य छोटे उद्योग (Main Small Scale Industries of Punjab) –
पंजाब के मुख्य छोटे पैमाने के उद्योग निम्नलिखित हैं
1. हौज़री उद्योग (Hosiery Industry)-पंजाब का हौजरी उद्योग लुधियाना में केन्द्रित है। यह उद्योग न केवल भारत में बल्कि विदेशों में भी मशहूर है। 2018-19 इस उद्योग द्वारा ₹ 3711 करोड़ वार्षिक मूल्य का माल उत्पादित किया जाता है। इसमें 82 हज़ार लोगों को रोजगार प्राप्त होता है।

2. साइकिल उद्योग (Cycle Industry)-पंजाब में साइकिल उद्योग छोटे स्तर तथा बड़े स्तर दोनों पर ही कार्य कर रहा है। साइकिल तथा साइकिल के पुर्जे बनाने का उद्योग लुधियाना, जालन्धर, राजपुरा तथा मलेरकोटला में स्थित है। 2018-19 में ₹ 13 हजार करोड़ मूल्य के साइकिल तथा साइकिल के पुर्जी का उत्पादन किया गया। इसमें 88.5 हज़ार लोगों को रोज़गार प्राप्त होता है।

3. सिलाई मशीन उद्योग (Sewing Machine Industry)-सिलाई मशीन बनाने का उद्योग लुधियाना, सरहिन्द, बटाला तथा जालन्धर में स्थित है। 2015-16 पंजाब में सिलाई मशीनों के लगभग 57 कारखाने हैं। इस उद्योग में ₹ 1356 करोड़ का माल हर वर्ष तैयार होता है तथा लगभग 13464 मजदूरों को रोज़गार प्राप्त होता है।

4. खेलों का सामान बनाने का उद्योग (Sports Goods Industry) खेलों का सामान बनाने का उद्योग जालन्धर में केन्द्रित है। पंजाब में तैयार किया खेलों का सामान न केवल भारत बल्कि विदेशों में भी भेजा जाता है। 2018-19 में इस उद्योग की 529 इकाइयां लगी हुई हैं जिनमें 9561 मज़दूरों को रोजगार प्राप्त है। वार्षिक ₹ 276.57 करोड़ का माल तैयार किया जाता है।

5. मोटर गाड़ियों के पुर्जे बनाने का उद्योग (Automobile Industry)-पंजाब में यह उद्योग लुधियाना, जालन्धर, पटियाला तथा कपूरथला में स्थित है। इस उद्योग में मोटर गाड़ियों के पुर्जे तैयार किए जाते हैं। 2019-20 इस उद्योग में ₹ 5022 लाख का माल प्रत्येक वर्ष तैयार किया जाता है। इसमें 52857 श्रमिक कार्य करते हैं।

पंजाब में मध्यम तथा बड़े स्तर के उद्योग (Medium & Large Scale Industries of Punjab) –
जिन उद्योगों में ₹ 10 करोड़ से कम पूँजी लगी होती है उसको मध्य आकार का उद्योग कहा जाता है और जिसमें ₹ 10 करोड़ से अधिक अचल पूंजी लगी होती है, उनको बड़े पैमाने के उद्योग कहा जाता है। पंजाब में मध्यम तथा बड़े पैमाने के उद्योग अधिक विकसित नहीं हो सके। इन उद्योगों की स्थिति का विवरण इस प्रकार है-
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सूची-पत्र से स्पष्ट होता है कि 1978-79 में पंजाब में मध्यम तथा बड़े आकार के उद्योगों की 188 इकाइयां थीं जिनमें ₹ 379 करोड़ स्की अचल पूंजी लगी हुई थी। उस वर्ष ₹ 711 करोड़ का उत्पादन किया गया था तथा 91 हज़ार लोग रोज़गार पर लगे हुए थे। वर्ष 2017-18 में इन उद्योगों की संख्या बढ़ कर 898 हो गई है जिनमें ₹ 69591 करोड़ की अचल पूंजी लगी हुई है। इन उद्योगों में ₹ 104973 करोड़ का उत्पादन किया गया। इनमें 2.84 लाख श्रमिक कार्य पर लगे हुए थे।

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पंजाब के मुख्य मध्यम आकार तथा बड़े पैमाने के उद्योग
(Medium & Large Scale Industries of Punjab) पंजाब के मुख्य मध्यम तथा बड़े पैमाने के उद्योग निम्नलिखित हैं
1. चीनी के कारखाने (Sugar Industry)-पंजाब में चीनी के 17 बड़े कारखाने हैं। यह उद्योग जालन्धर, कपूरथला, संगरूर, फरीदकोट, गुरदासपुर तथा रोपड़ ज़िलों में स्थित हैं। इस उद्योग में 2018-19 में ₹ 19823 करोड़ चीनी का उत्पादन हुआ। इसमें 5487 व्यक्तियों को रोजगार प्राप्त था।

2. सूती कपड़े के कारखाने (Cotton Textile Industry)-पंजाब में 2018-19 धागा बनाने के 140 कारखाने हैं। एक कारखाने में धागे से कपड़ा भी बनाया जाता है। यह कारखाने फगवाड़ा, अमृतसर, बरनाला, मलेरकोटला तथा अबोहर में स्थित हैं। इस उद्योग में 16849 श्रमिक कार्य करते हैं। 166.27 मिलियन मीटर कपड़ा वार्षिक तैयार किया जाता है।

3. स्वराज व्हीकलज लिमिटेड (Swaraj Vehicles Limited)-यह कारखाना जनतक क्षेत्र में वर्ष 1985 में ₹ 60 करोड़ की लागत से स्थापित किया गया था। इसमें माल की ढुलाई के लिए टैंपू बनाए जाते हैं। यह कारखाना 9 हज़ार मज़दूरों को रोज़गार प्रदान करता है। इसकी स्थापना मोहाली में की गई है।

4. गर्म कपड़े के कारखाने (Wollen Cloth Industry) पंजाब में गर्म कपड़ा बनाने के कारखाने धारीवाल, और छहरटा अमृतसर में हैं। इस उद्योग में 1 लाख 8 हज़ार श्रमिकों को रोजगार प्राप्त है। इसमें वार्षिक ₹ 354 करोड़ का माल तैयार किया जाता है।

प्रश्न 2.
पंजाब में मध्यम तथा बड़े पैमाने के उद्योगों के विकास को स्पष्ट करें। पंजाब में मध्यम तथा बड़े पैमाने के उद्योगों की मंद प्रगति के क्या कारण हैं ?
(Explain the development medium and Large Scale Industries in Punjab. What are the causes of slow progress of medium and Large Scale Industries ?)
उत्तर-
पंजाब में मध्यम तथा बड़े आकार के उद्योग अधिक विकसित नहीं हो सके। इन उद्योगों के विकास का अनुमान निम्नलिखित सूची-पत्र द्वारा लगाया जा सकता है-
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सूची-पत्र से ज्ञात होता है कि वर्ष 2018-19 में मध्यम तथा बड़े पैमाने के उद्योगों की संख्या 469 है। इन उद्योगों में ₹ 69591 करोड़ की अचल पूंजी लगी हुई है। इनमें उत्पादन ₹ 104973 लाख का किया गया। यह उद्योग 2.84 लाख लोगों को रोजगार प्रदान करता है परन्तु अन्य औद्योगिक राज्यों जैसे कि महाराष्ट्र, कर्नाटक इत्यादि की तरह पंजाब में इन उद्योगों की प्रगति बहुत कम रही है। मध्यम तथा बड़े उद्योगों की कम प्रगति के मुख्य कारण निम्नलिखित अनुसार हैं-
पंजाब में मध्यम तथा बड़े पैमाने के उद्योगों की मंद प्रगति के कारण (Causes of Slow Progress of Medium & Large Scale Industries in Punjab)
1. खनिज पदार्थों की कमी (Lack of Mineral Resources)-पंजाब में खनिज पदार्थ बिलकुल नहीं मिलते। मध्यम तथा बड़े पैमाने के उद्योगों को काफ़ी मात्रा में कच्चे माल की आवश्यकता होती है। पंजाब में खनिज पदार्थों की कमी के कारण इनको अन्य राज्यों से मंगवाना पड़ता है। इस कारण बड़े तथा मध्यम पैमाने के उद्योगों का विकास नहीं हुआ।

2. सीमावर्ती राज्य (Border State)-पंजाब में मध्यम तथा बड़े आकार के उद्योगों की मंद प्रगति का सबसे बड़ा कारण पंजाब का सीमावर्ती राज्य होना है। पंजाब की सीमाएं पाकिस्तान से मिलती हैं। पाकिस्तान का भारत से हमेशा झगड़ा रहता है। अब तक दो युद्ध हो चुके हैं। ऐसी स्थिति में उद्यमी इस क्षेत्र में उद्योग स्थापित नहीं करना चाहते।

3. विद्युत् की कमी (Lack of Power) विद्युत् औद्योगिक विकास के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है। पंजाब में विद्युत् का प्रयोग कृषि क्षेत्र में अधिक होता है। बड़े उद्योगों के लिए अधिक मात्रा में विद्युत् की आवश्यकता होती है किन्तु विद्युत् की कमी के कारण मध्यम तथा बड़े स्तर के उद्योगों की प्रगति धीमी है।

4. केन्द्रीय सरकार का कम योगदान (Less Investment by Central Government)-पंजाब में केन्द्रीय सरकार द्वारा बहुत कम निवेश किया गया है। पंजाब में केन्द्र सरकार का कुल निवेश 2.5% है। परन्तु केन्द्र सरकार ने 15% निवेश बिहार में, 12% निवेश कर्नाटक में लगाया है। इस कारण भी पंजाब में उद्योगों का विकास नहीं हो सका।

5. कृषि प्रधान अर्थ-व्यवस्था (Agricultural Economy)-पंजाब कृषि प्रधान राज्य है। राज्य सरकार ने भी पंचवर्षीय योजनाओं में कृषि के विकास की तरफ विशेष ध्यान दिया है। उद्योगों के विकास को आंखों से ओझल किया गया है। कृषि का महत्त्व अधिक होने के कारण लघु पैमाने के उद्योगों को प्राथमिकता दी गई ताकि रोज़गार के अधिक अवसर उपलब्ध हो सकें।

6. पूंजी की कमी (Lack of Capital)-बड़े पैमाने के उद्योगों के लिए अधिक पूंजी की आवश्यकता होती है। पंजाब में पूंजी की कमी है क्योंकि सरकार की आंतरिक सुरक्षा पर बहुत व्यय करना पड़ता है। इसलिए निवेश करने के लिए पूंजी की कमी है। निजी क्षेत्र के उद्योग विकसित नहीं हुए क्योंकि ब्याज की दर बहुत अधिक है। इसलिए मध्यम तथा बड़े पैमाने के उद्योगों में निवेश कम हुआ है।

7. औद्योगिक लड़ाई-झगड़े (Industrial Disputes)-पंजाब में अगर स्वतन्त्रता के पश्चात् औद्योगिक विकास में वृद्धि हुई है तो इससे औद्योगिक लड़ाई-झगड़े भी बढ़ गए हैं। तालाबंदी, हड़ताल आम नज़र आती है। इस कारण उत्पादन लागत बढ़ जाती है।

प्रश्न 3.
पंजाब सरकार की आधुनिक उद्योग नीति का वर्णन करें। (Explain the new Industrial Policy of Government of Punjab.)
उत्तर-
पंजाब सरकार की नई औद्योगिक नीति
(New Industrial Policy of Government of Punjab) . पंजाब में औद्योगिक विकास के लिए औद्योगिक नीति की घोषणा 16 फरवरी, 1972 को की गई। इसके पश्चात् सरकार ने 1979, 1987, 1989, 1991 में औद्योगिक नीति में परिवर्तन किए। पंजाब सरकार की नई औद्योगिक नीति की घोषणा 14 मार्च, 1996 में की गई। नई औद्योगिक नीति की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं-
1. मुख्य उद्देश्य (Main Objectives)

  • औद्योगिक विकास की दर में वृद्धि करके 12% की जाएगी।
  • राज्य के घरेलू उत्पादन में उद्योगों का भाग बढ़ाकर 25% किया जाएगा।
  • उद्योगों के विकास के लिए आवश्यक ढांचा अर्थात् सड़कें, विद्युत्, वित्त, श्रमिक, कच्चे माल की पूर्ति के लिए सहूलतें दी जाएंगी।
  • ग्रामीण बेरोज़गारों को उद्योगों तथा सम्बन्धित उद्यमों में रोज़गार की सहूलतें दी जाएंगी।
  • पंजाब में पर्यटन को उद्योग का दर्जा दिया जाएगा।
  • पंजाब के छोटे, मध्यम तथा बड़े स्तर के उद्योगों के लिए फोकल प्वाइंट्स स्थापित किए जाएंगे।
  • निर्यात को उत्साहित करने के लिए नई मण्डियाँ ढूंढ़ी जाएंगी।
  • आर्थिक तौर पर पिछड़े वर्ग के लोगों की आर्थिक स्थिति में सुधार किया जाएगा।
  • नए उद्योग स्थापित किए जाएंगे तथा पुराने स्थापित उद्योगों का नवीनीकरण तथा आधुनिकीकरण किया जाएगा।
  • छोटे स्तर के उद्योगों को विकसित करके रोजगार के अधिक अवसर प्रदान किए जाएंगे।

2. विकास क्षेत्र (Growth Areas)-पंजाब के भिन्न-भिन्न जिलों को औद्योगिक विकास के पक्ष से चार वर्गों में विभाजित किया गया

  • वर्ग A (Category A)-इस वर्ग में शामिल किए गए क्षेत्रों को सबसे अधिक रियायतें देने की घोषणा की गई। इसमें अमृतसर, गुरदासपुर, फिरोज़पुर, फरीदकोट तथा मानसा के ज़िले शामिल किए गए हैं।
  • वर्ग B (Category B)-इस वर्ग में जिन क्षेत्रों में शामिल किया गया है उनको वर्ग A के क्षेत्रों से कम रियायतें दी जाएंगी। इस वर्ग में राज्य के अन्य जिलों को शामिल किया गया है।
  • वर्ग C (Category C)-इस वर्ग में लुधियाना तथा जालन्धर के फोकल प्वाइंट्स छोड़ कर पंजाब के सब फोकल प्वाइंट्स को शामिल किया गया है। फोकल प्वाइंट्स पर अधिक-से-अधिक उद्योग स्थापित करने के प्रयत्न किए जाएंगे।
  • वर्ग D (Category D)-इस वर्ग में शामिल उद्योगों को कोई प्रोत्साहन तथा अनुदान नहीं दिया जाएगा। इस वर्ग में जालन्धर तथा लुधियाना की निगम सीमाओं के फोकल प्वाइंट्स तथा उनके ब्लाकों को शामिल किया गया है। वर्ग A तथा वर्ग B के क्षेत्रों को बहुत-सी रियायतों की घोषणा की गई है ताकि पिछड़े क्षेत्रों में उद्योगों का विकास हो सके।

3. कृषि आधारित उद्योगों का विकास (Incentives to Agro Based Industries)-पंजाब कृषि प्रधान राज्य है। इसलिए कृषि विकास को बनाए रखने के लिए उन उद्योगों को विकसित किया जाएगा जिनके लिए कच्चा माल कम कीमत पर राज्य में से ही प्राप्त किया जा सकता है। ऐसे उद्योगों को 10 वर्ष के लिए बिक्री कर से मुक्त किया गया है। ऋण पर ब्याज का 5% भाग सरकार द्वारा दिया जाएगा तथा स्थायी पूंजी का 30% भाग आर्थिक सहायता के रूप में दिया जाएगा जो कि अधिकतम 50 लाख रुपए तक हो सकती है।

4. करों में छूट (Exemption From Taxes)-नई औद्योगिक नीति में औद्योगिक विकास को प्रोत्साहित करने के लिए करों में छूट देने का कार्यक्रम बनाया गया है। वर्ग A के क्षेत्रों में जो नए उद्योग स्थापित किए जाते हैं उनको बिक्री कर (Sales Tax) से 10 वर्ष के लिए तथा वर्ग B के क्षेत्रों में नए स्थापित उद्योगों के लिए बिक्री कर से 7 वर्ष के लिए छूट दी जाएगी।

5. भूमि के लिए आर्थिक सहायता (Land Subsidy)-नई औद्योगिक नीति में भूमि के लिए आर्थिक सहायता की घोषणा की गई है। कोई भी उद्यमी किसी फोकल प्वाइंट पर भूमि की खरीद उद्योग स्थापित करने के लिए करता है तो भूमि की कीमत का 33% भाग आर्थिक सहायता के रूप में दिया जाएगा। जालन्धर के स्पोर्टस काम्पलैक्स में भूमि के लिए आर्थिक सहायता 25% दी जाएगी।

6. छोटे उद्योगों का आधुनिकीकरण (Modernisation of Small Scale Industries) पंजाब में छोटे पैमाने के उद्योगों को विकसित करने के लिए एक विशेष फंड की स्थापना की गई है। जो उद्यमी पुराने स्थापित किए यूनिटों का आधुनिकीकरण करना चाहते हैं उनको विशेष आर्थिक सहायता दी जाएगी।

7. मध्यम तथा बड़े उद्योगों को प्रोत्साहन (Incentives to medium & Large Scale Industries)-नई औद्योगिक नीति में यह घोषणा भी की गई कि वर्ग A के क्षेत्रों में जो उद्यमी निवेश करते हैं उनके द्वारा किए गए बड़े स्तर के उद्योगों पर अचल पूंजी पर आर्थिक सहायता दी जाएगी जहां तक A तथा B वर्ग में स्थापित उद्योगों का सम्बन्ध है अगर वहां पुराने उद्योगों का विस्तार करना चाहते हैं तो मध्यम तथा बड़े उद्योगों के विस्तार पर आर्थिक सहायता दी जाएगी।

8. पर्यटन उद्योग को प्रोत्साहन (Incentive to Tourism)-नई औद्योगिक नीति के अनुसार पंजाब में पर्यटन उद्योग को प्रोत्साहित करने के लिए उद्योग का दर्जा दिया गया है। पर्यटन उद्योग को वह सब सहूलतें दी जाएंगी जो अन्य साधारण उद्योगों को दी जाती हैं।

9. इलेक्ट्रोनिक वस्तुओं की इकाइयों को विशेष छूट (Special Incentive to Electronics Units)-पंजाब में जो इलेक्ट्रोनिक वस्तुओं का उत्पादन करने वाली इकाइयों को लगाया जाएगा उन उद्योगों को पूंजी निवेश के सम्बन्ध में आर्थिक सहायता तथा बिक्री कर की छूट दी जाएगी। इन उद्योगों को चुंगी करों में भी 6 वर्ष के लिए छूट देने के लिए कहा गया है।

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10. ऊर्जा सुविधाएं (Power Facilities) – पंजाब में जो ओद्योगिक इकाइयां लगाई जाएंगी उनको बिजली कनेक्शन में प्राथमिकता दी जाएगी। ऐसी इकाइयों को पांच साल के लिए बिजली कर से मुक्त रखा जाएगा तथा जेनरेटिंग सैंट लगाने पर 25% की आर्थिक सहायता दी जाएगी।

11. भूमि के लिए आर्थिक सहायता (Land Subsidy)-पंजाब में जो नई औद्योगिक इकाइयां लगाई जाएंगी उनको भूमि की खरीद में आर्थिक सहायता दी जाएगी। यदि यह इकाइयां फोकल प्वाइंट्स पर लगाई जाती हैं तो भूमि की खरीद में 33 प्रतिशत आर्थिक सहायता दी जाएगी।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 27 1966 से पंजाब में कृषि का विकास

Punjab State Board PSEB 11th Class Economics Book Solutions Chapter 27 1966 से पंजाब में कृषि का विकास Textbook Exercise Questions, and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Economics Chapter 27 1966 से पंजाब में कृषि का विकास

PSEB 11th Class Economics 1966 से पंजाब में कृषि का विकास Textbook Questions and Answers

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

प्रश्न 1.
पंजाब की किसी एक व्यापारिक फसल का वर्णन करें।
उत्तर-
गन्ना (Sugarcane)-पंजाब में गन्ना फरवरी-अप्रैल में बोआ जाता है। गन्ने की फसल जनवरी-अप्रैल में काटी जाती है। पंजाब में गन्ना सभी जिलों में पैदा किया जाता है।

प्रश्न 2.
पंजाब में हरित क्रान्ति का कोई एक कारण बताएं।
उत्तर-
पंजाब में हरित क्रान्ति के कारण इस प्रकार हैं-
नई कृषि नीति-पंजाब में नई कृषि नीति में उन्नत बीज, रासायनिक उर्वरक, आधुनिक मशीनों तथा सिंचाई की सहूलतों में वृद्धि की गई है।

प्रश्न 3.
पंजाब को भारत का अनाज भण्डार क्यों कहा जाता है ?
उत्तर-
2018-19 में पंजाब द्वारा केन्द्रीय भण्डार में गेहूं का योगदान 35% तथा चावले का योगदान 25% रहा।

प्रश्न 4.
पंजाब कृषि में पिछड़ा प्रान्त है।
उत्तर-
ग़लत।

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प्रश्न 5.
पंजाब में 2019-20 में कुल उपज 315 लाख मीट्रिक टन हुई।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 6.
पंजाब में कृषि विकास का कारण …………….. है।
(a) सिंचाई के साधन
(b) मेहनती लोग
(c) हरित क्रान्ति
(d) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(d) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 7.
हरित क्रान्ति का कोई दोष नहीं।
उत्तर-
ग़लत।

प्रश्न 8.
पंजाब को भारत के अनाज का ……………….. कहा जाता है।
उत्तर-
अन्न भण्डार।

प्रश्न 9.
पंजाब की दो खाद्य फसलों के नाम बताओ।
उत्तर-
(i) गेहूँ,
(ii) चावल।

प्रश्न 10.
पंजाब की दो व्यापारिक फसलों के नाम बताओ।
उत्तर-

  1. कपास,
  2. गन्ना।

प्रश्न 11.
पंजाब में अधिक कृषि उत्पादन के कोई दो कारण बताएं।
उत्तर-

  • सिंचाई का विस्तार,
  • आधुनिक खाद्य तथा बीजों का प्रयोग।

प्रश्न 12.
हरित क्रान्ति से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
हरित क्रान्ति का अर्थ है कृषि पैदावार में होने वाली भारी वृद्धि जो कि नई कृषि नीति के अपनाने से प्राप्त हुई है।

प्रश्न 13.
पंजाब में हरित क्रान्ति का कोई एक कारण बताएं।
उत्तर-
पंजाब में नई कृषि नीति के कारण उचित बीजों और रासायनिक खादों का प्रयोग करने के कारण हरित क्रान्ति प्राप्त होती है।

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प्रश्न 14.
पंजाब में सिंचाई के मुख्य तीन साधन बताएं।
उत्तर-

  1. नहरें,
  2. ट्यूबवैल,
  3. कुएँ।

प्रश्न 15.
हरित क्रान्ति के मुख्य दोष बताएँ।
उत्तर-
हरित क्रान्ति के परिणामस्वरूप हवा और पानी के प्रदूषण के कारण, कैंसर का रोग फैल गया है।

II. अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
पंजाब में सिंचाई की स्थिति तथा महत्त्व स्पष्ट करें।
उत्तर-
कृषि के विकास के लिए सिंचाई का महत्त्व बहुत अधिक है। पंजाब में वर्ष 1966 के पश्चात् सिंचाई सुविधाओं में काफ़ी वृद्धि हुई है। 1965-66 में 26.46 लाख हेक्टेयर भूमि पर सिंचाई की सहूलतें प्राप्त थी जो कि कुल क्षेत्र का 56% भाग था। वर्ष 2015-16 में सिंचाई के अधीन क्षेत्र बढ़कर 41.37 लाख हेक्टेयर हो गया है जोकि कुल कृषि के अधीन क्षेत्र का 97.4% भाग है। पंजाब में लुधियाना, जालन्धर, पटियाला, भटिंडा, अमृतसर, फिरोज़पुर तथा फरीदकोट जिलों में सिंचाई की अधिक सुविधाएं हैं। किन्तु रोपड़ तथा नवांशहर में सिंचाई की सुविधाओं की कमी है। बारहवीं योजना में सिंचाई सुविधाओं पर 1052 करोड़ रुपये व्यय किए गए।

प्रश्न 2.
पंजाब में कृषि विकास की चर्चा करें।
उत्तर-
पंजाब में कृषि विकास की प्रकृति निम्नलिखित तत्त्वों द्वारा स्पष्ट हो जाती है-
1. कृषि उत्पादन में वृद्धि-पंजाब में कृषि उत्पादन में तीव्रता से वृद्धि हुई है। कुल अनाज का उत्पादन 1965-66 में 33 लाख टन था। 2019-20 में अनाज का उत्पादन बढ़कर 315 लाख मीट्रिक टन हो गया है। अनाज के उत्पादन में तीव्रता से वृद्धि को हरित क्रान्ति (Green Revolution) कहा जाता है।

2. उन्नत कृषि-पंजाब की कृषि बहुत उन्नत तथा अधिक प्रगतिशील है। पंजाब को प्रति हेक्टेयर उत्पादकता भारत की औसत प्रति हेक्टेयर उत्पादकता से अधिक है। पंजाब में वर्ष 1965-66 में गेहूँ की उत्पादकता 1236 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर तथा चावल की उत्पादकता 100 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर थी। 2019-20 में गेहूँ की उत्पादकता बढ़कर 5188 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर तथा चावल की 4132 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर हो गई है।

प्रश्न 3.
पंजाब में हरित क्रान्ति के मुख्य दोष बताएं।
अथवा
पंजाब में हरित क्रान्ति के दष्प्रभावों का वर्णन करें।
उत्तर-
पंजाब में हरित क्रान्ति के केवल अच्छे प्रभाव ही नहीं पड़े बल्कि इसके कुछ दुष्प्रभाव भी पड़े हैं जोकि इस प्रकार हैं –
1. असंतुलित विकास की समस्या–हरित क्रान्ति का मुख्य दोष यह है कि समूचे राज्य में एक समान संतुलित विकास नहीं हुआ। कुछ ज़िले उत्पादन क्षेत्र में आगे बढ़ गए हैं जबकि कुछ जिलों में कृषि का विकास कम हुआ है। जैसे कि फरीदकोट, भटिंडा, फिरोज़पुर में कृषि विकास अधिक हुआ है।

2. बेरोज़गारी की समस्या हरित क्रान्ति से बेरोज़गारी की समस्या उत्पन्न हुई है। गांवों में भूमिहीन श्रमिकों में बेरोज़गारी बढ़ गई है इसलिए रोज़गार की तलाश में प्रतिदिन शहरों में आते हैं।

प्रश्न 4.
पंजाब में हरित क्रान्ति का अर्थ बताएं।
उत्तर-
हरित क्रान्ति का अर्थ (Meaning of Green Revolution)-प्रो० एफ० आर० फ्रैक्ल के अनुसार, “हरित क्रान्ति एक सुन्दर नारा है जिसके द्वारा यह सिद्ध किया जा चुका है कि विज्ञान तथा तकनीकी विकास द्वारा कृषि के क्षेत्र में शान्तिपूर्वक रूपान्तर किया जा सकता है अथवा क्रान्ति लाई जा सकती है।” हरित क्रान्ति से अभिप्राय कृषि उत्पादन में होने वाली वृद्धि से है जो कृषि में नई नीति के अपनाने के कारण हुआ है। इसलिए हम कह सकते हैं कि कृषि के क्षेत्र में जो थोड़े समय में असाधारण विकास तथा वृद्धि हुई है, उसको हरित क्रान्ति कहा जाता है। पंजाब में 1965-66 में 33 लाख टन कृषि उत्पादन किया गया जो कि 2019-20 में बढ़कर 315 लाख मीट्रिक टन हो गया है।

III. लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
पंजाब में सिंचाई के भिन्न-भिन्न साधन कौन-से हैं ? पंजाब में सिंचाई क्षेत्र के विस्तार के कारण बताएं।
उत्तर-
कृषि के विकास के लिए सिंचाई का महत्त्व बहुत अधिक है। पंजाब में वर्ष 1966 के पश्चात् सिंचाई सुविधाओं में काफ़ी वृद्धि हुई है। वर्ष 2019-20 में सिंचाई के अधीन क्षेत्र बढ़कर 29% हो गया है जोकि कुल कृषि के अधीन क्षेत्र का 97.96% भाग है। पंजाब में लुधियाना, जालन्धर, पटियाला, भटिंडा, अमृतसर, फिरोजपुर तथा फरीदकोट जिलों में सिंचाई की अधिक सुविधाएं हैं। किन्तु रोपड़ तथा नवांशहर में सिंचाई की सुविधाओं की कमी है।

बारहवीं योजना में सिंचाई सुविधाओं पर ₹ 493564 करोड़ व्यय किए गए। सिंचाई के साधन (Means of Irrigation)-पंजाब में सिंचाई के साधन निम्नलिखित हैं-
1. नहरें (Canals)-पंजाब में कुल सिंचाई क्षेत्र के 43% भाग में नहरों द्वारा सिंचाई की जाती है। यह सिंचाई का मुख्य साधन है। पंजाब की मुख्य नहरें

  • भाखड़ा-नंगल नहर
  • अपर बारी दोआब नहर
  • सरहिन्द नहर
  • बिस्त दोआब नहर
  • बीकानेर नहर
  • शाह नहर इत्यादि हैं।

इन नहरों के अतिरिक्त पंजाब में सतलुज यमुना लिंक, थीन डैम, कंडी नहर, शाह नहर, फीडर, मेलवाहा डैम तथा राष्ट्रीय परियोजना पर कार्य चल रहा है।

2. ट्यूबवैल (Tubewell)-पंजाब में 50% क्षेत्र पर ट्यूबवैलों द्वारा सिंचाई की जाती है। इस समय 2019-20 में लगभग 14.76 लाख ट्यूबवैल हैं जिनमें से 13.36 लाख ट्यूबवैल विद्युत् से तथा शेष डीज़ल से चलते हैं।

3. कुएँ (Wells)-पंजाब में पहले कुओं का महत्त्व अधिक था। परन्तु अब कुओं का स्थान ट्यूबवैलों ने ले लिया है किन्तु कुछ क्षेत्रों में आज भी कुओं द्वारा सिंचाई की जाती है। इसके अतिरिक्त तालाब इत्यादि साधनों द्वारा भी सिंचाई की जाती है। फरीदकोट जिले में सिंचाई का मुख्य साधन नहरें हैं। इसके अतिरिक्त फिरोज़पुर, अमृतसर तथा लुधियाना जिलों में भी नहरों द्वारा सिंचाई की जाती है। ट्यूबवैल लगभग सभी जिलों में सिंचाई के साधन हैं किन्तु संगरूर ज़िले में ट्यूबवैल सबसे अधिक हैं।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 27 1966 से पंजाब में कृषि का विकास

प्रश्न 2.
पंजाब में कृषि विकास की चर्चा करें।
उत्तर-
पंजाब में कृषि विकास की प्रकृति निम्नलिखित तत्त्वों द्वारा स्पष्ट हो जाती है –
1. कृषि उत्पादन में वृद्धि-पंजाब में कृषि उत्पादन में तीव्रता से वृद्धि हुई है। कुल अनाज का उत्पादन 1965-66 में 33 लाख टन था। 2019-20 में अनाज का उत्पादन बढ़कर 315 लाख मीट्रिक टन हो गया है। अनाज के उत्पादन में तीव्रता से वृद्धि को हरित क्रान्ति (Green Revolution) कहा जाता है।

2. उन्नत कृषि-पंजाब की कृषि बहुत उन्नत तथा अधिक प्रगतिशील है। पंजाब को प्रति हेक्टेयर उत्पादकता भारत की औसत प्रति हेक्टेयर उत्पादकता से अधिक है। पंजाब में वर्ष 1965-66 में गेहूँ की उत्पादकता 1236 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर तथा चावल की उत्पादकता 100 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर थी। 2019-20 में गेहूँ की उत्पादकता बढ़कर 5188 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर तथा चावल की 4132 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर हो गई है।

3. कृषि की उन्नत विधि-पंजाब में कृषि करने की उन्नत विधियों का प्रयोग किया गया है। पंजाब में 2019-20 में गेहूँ तथा चावल के अधीन 100% क्षेत्रफल नए बीजों के प्रयोग से बोआ गया है। मक्की अधीन 90% तथा बाजरे अधीन 60% क्षेत्रफल नए बीजों के प्रयोग द्वारा बोआ गया था।

4. व्यापारिक कृषि-पंजाब में कृषि जीवन निर्वाह के लिए नहीं की जाती बल्कि उत्पादन को मण्डियों में बेचकर अधिक लाभ प्राप्त करने का यत्न किया जाता है। इसलिए कृषि विकास के परिणामस्वरूप व्यापारिक कृषि का प्रचलन हो गया है।

प्रश्न 3.
पंजाब में हरित क्रान्ति के मुख्य दोष बताएं।
अथवा
पंजाब में हरित क्रान्ति के दुष्प्रभावों का वर्णन करें।
उत्तर-
पंजाब में हरित क्रान्ति के केवल अच्छे प्रभाव ही नहीं पड़े बल्कि इसके कुछ दुष्प्रभाव भी पड़े हैं जोकि इस प्रकार हैं-

  1. असंतुलित विकास की समस्या–हरित क्रान्ति का मुख्य दोष यह है कि समूचे राज्य में एक समान संतुलित विकास नहीं हुआ। कुछ ज़िले उत्पादन क्षेत्र में आगे बढ़ गए हैं जबकि कुछ जिलों में कृषि का विकास कम हुआ है। जैसे कि फरीदकोट, भटिंडा, फिरोज़पुर में कृषि विकास अधिक हुआ है।
  2. बेरोज़गारी की समस्या-हरित क्रान्ति से बेरोजगारी की समस्या उत्पन्न हुई है। गांवों में भूमिहीन श्रमिकों में बेरोज़गारी बढ़ गई है इसलिए रोज़गार की तलाश में प्रतिदिन शहरों में आते हैं।
  3. अधिक व्यय की समस्या–हरित क्रान्ति के कारण कृषि में प्रयोग होने वाले साधनों की लागत बहुत अधिक हो गई है। छोटे किसान आधुनिक मशीनों, उर्वरकों तथा नए उन्नत बीजों का प्रयोग नहीं कर सकते।
  4. अमीर किसानों को लाभ-हरित क्रान्ति का लाभ बड़े अमीर किसानों को हुआ है। इससे अमीर किसान और अमीर हो गए हैं। निर्धन किसानों की हालत और बिगड़ गई है। इस प्रकार अमीर तथा गरीब किसानों में असमानता बढ़ गई है।

IV. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
वर्ष 1966 से पंजाब की कृषि के विकास की प्रकृति की मुख्य विशेषताओं का वर्णन करें।
(Explain the main features of the nature of Agricultural development in Punjab Since 1966.)
उत्तर-
पंजाब में कृषि विकास की प्रकृति (Nature of Agricultural Development in Punjab)पंजाब का पुनर्गठन 1 नवम्बर, 1966 को भाषा के आधार पर किया गया। इसके पश्चात् पंजाब की कृषि में तकनीकी क्रान्ति का आरम्भ हुआ, जिसको हरित क्रान्ति कहा जाता है। डॉ० आर० एस० जौहर तथा परमिन्द्र के अनुसार, “पंजाब में विशेषतया छठे दशक के मध्य से नई कृषि तकनीक के कारण तीव्रता से रूपांतर हुआ है।” (“The Punjab Agriculture underwent a rapid transformation particularly after the mid sixties in the wake of new farm Technology.” -Dr. R.S. Johar & Parminder Singh)

पंजाब में खनिज पदार्थ प्राप्त नहीं होते। कृषि ही अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी है। पंजाब की कृषि विकास की प्रकृति का अनुमान निम्नलिखित तत्त्वों से लगाया जा सकता है-
1. उन्नत कृषि (Progressive Agriculture)-पंजाब की कृषि देश के अन्य राज्यों की तुलना में उन्नत तथा प्रगतिशील है। पंजाब में पैदा होने वाली मुख्य फसलों का प्रति हेक्टेयर उत्पादन भारत की उत्पादन शक्ति से बहुत अधिक है। वर्ष 2019-20 में पंजाब में गेहूँ तथा चावल का प्रति हेक्टेयर उत्पादन क्रमानुसार 5188 किलोग्राम तथा 4132 किलोग्राम था।

2. आर्थिक विकास का आधार (Basis of Economic Development)-पंजाब में कृषि आर्थिक विकास का मुख्य आधार बन गई है। वर्ष 1980-81 में पंजाबी कुल आय 5,025 करोड़ में कृषि का योगदान ₹ 2,422 करोड़ था। 2019-20 में पंजाब की आय ₹ 644321 करोड़ हो गई है जिसमें कृषि का योगदान 68% है। इस प्रकार पंजाब के आर्थिक विकास में कृषि आर्थिक विकास का मुख्य साधन है।

3. कृषि का मशीनीकरण (Mechanised Agriculture)-पंजाब की कृषि में मशीनों का योगदान दिन प्रतिदिन बढ़ा है। पंजाब में ट्रैक्टर, हारवैस्टर, ट्यूबवैल आम नज़र आते हैं। राज्य में 85% बोए गए शुद्ध क्षेत्रफल पर एक से अधिक बार फसलें उगाई जाती हैं परिणामस्वरूप कृषि की उत्पादन शक्ति में वृद्धि हुई है।

4. कृषि साधनों का उत्तम प्रयोग (Proper Utilisation of Agricultural Resources)-पंजाब में कृषि के साधनों का उत्तम प्रयोग किया जाता है। कृषि के लिए उचित मिट्टी तथा जलवायु की आवश्यकता होती है। पंजाब में धरती समतल है। इसमें दोमट मिट्टी प्राप्त होती है जो कि फसलों की बोआई के लिए सर्वोत्तम मानी जाती है। पंजाब में जल के लिए तीन नदियां सतलुज, ब्यास तथा रावी बहती हैं। इसलिए गहन कृषि की जाती है। वर्ष में एक-से-अधिक फसलें प्राप्त की जाती हैं।

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5. कृषि का अधिक उत्पादन (More Agricultural Production)-पंजाब में कृषि का उत्पादन बहुत अधिक होता है। यह उत्पादन न केवल पंजाब राज्य की आवश्यकताएं पूर्ण करता है बल्कि देश के लिए अन्न भण्डार का साधन है। 1966 के पश्चात् हरित क्रान्ति के परिणामस्वरूप पंजाब में उत्पादन शक्ति में बहुत वृद्धि हुई है। 1965-66 में चावल का उत्पादन 292 हज़ार टन किया गया जो 2019-20 में बढ़ कर 315 लाख टन हो गया है।

6. मुख्य फसलें (Main Crops)-पंजाब की कृषि मुख्यतः दो फसलों गेहूँ तथा चावल पर निर्भर है। पंजाब में बोए गए कुल क्षेत्र का 70% गेहूँ तथा चावल के लिए प्रयोग किया जाता है जबकि अन्य फसलों में वृद्धि सन्तोषजनक नहीं है।

7. व्यापारिक कृषि (Commercial Agriculture)-पंजाब की कृषि अब केवल जीवन निर्वाह कृषि नहीं है बल्कि कृषि उत्पादन आवश्यकता से अधिक प्राप्त किया जाता है जिसको बाज़ार में बेच कर अधिक लाभ प्राप्त करने के लिए यत्न किए जाते हैं अर्थात् पंजाब की कृषि व्यापारिक कृषि हो गई है।

8. रोज़गार का साधन (Source of Employment)-पंजाब की कृषि में प्रत्यक्ष तौर पर 65.5% जनसंख्या निर्भर करती है जिसमें कुल कार्यशील जनसंख्या का 56% भाग कृषि में कार्य करता है। इस प्रकार कृषि तथा इससे सम्बन्धित उद्योग राज्य के लोगों को रोजगार की सुविधाएं प्रदान करते हैं।

प्रश्न 2.
पंजाब में हरित क्रान्ति के क्या कारण हैं ? इसकी सफलताओं अथवा प्रभावों की व्याख्या करें।
(What are the causes of Green Revolution in Punjab ? Discuss the achievements and effects of Green Revolution.)
अथवा
नए कृषि ढांचे से क्या अभिप्राय है ? इसके कारण तथा प्राप्तियों को स्पष्ट करें। (What is new Agricultural Strategy ? Explain its causes and achievements.)
उत्तर-
पंजाब का 1 नवम्बर, 1966 को पुनर्गठन किया गया है। इस समय में नए कृषि ढांचे (New Agicultural Strategy) को अपनाया गया है। इसके परिणामस्वरूप पंजाब में कृषि का उत्पादन बहुत बढ़ गया तथा हरित क्रान्ति उत्पन्न हुई।

हरित क्रान्ति का अर्थ (Meaning of Green Revolution)—प्रो० एफ० आर० फ्रैक्ल के अनुसार, “हरित क्रान्ति एक सुन्दर नारा है जिसके द्वारा यह सिद्ध किया जा चुका है कि विज्ञान तथा तकनीकी विकास द्वारा कृषि के क्षेत्र में शान्तिपूर्वक रूपान्तर किया जा सकता है अथवा क्रान्ति लाई जा सकती है।” हरित क्रान्ति से अभिप्राय कृषि उत्पादन में होने वाली वृद्धि से है जो कृषि में नई नीति के अपनाने के कारण हुआ है। इसलिए हम कह सकते हैं कि कृषि के क्षेत्र में जो थोड़े समय में असाधारण विकास तथा वृद्धि हुई है, उसको हरित क्रान्ति कहा जाता है। पंजाब में 1965-66 में 33 लाख टन कृषि उत्पादन किया गया जो कि 2019-20 में बढ़ कर 315.35 लाख मीट्रिक टन हो गया है।

हरित क्रान्ति के कारण (Causes of Green Revolution)-पंजाब में हरित क्रान्ति के मुख्य कारण इस प्रकार-
1. भूमि सुधार (Land Reform)-पंजाब में कृषि क्षेत्र में कई प्रकार के सुधार किए गए हैं। जैसे कि भूमि की चकबन्दी की गई है। छोटे-छोटे टुकड़ों को एक स्थान पर एकत्रित किया गया है। सिंचाई साधनों का विस्तार तथा मशीनों के प्रयोग के कारण हरित क्रान्ति के लिए भूमिका तैयार की गई है।

2. कृषि अधीन क्षेत्रों का विस्तार (Extent in area Under Cultivation)-पंजाब में कृषि अधीन क्षेत्र में काफ़ी वृद्धि हुई है। 1965-66 में 38 लाख हेक्टेयर भूमि कृषि अधीन थी जोकि 2019-20 में बढ़ कर 80 लाख हेक्टेयर की गई है।

3. कृषि का मशीनीकरण (Mechanisation of Agriculture)-कृषि में आधुनिक मशीनों का प्रयोग किया जाता है जैसे कि ट्रैक्टर, कंबाइन, हारवैस्टर, डीज़ल इंजन इत्यादि यन्त्रों का प्रयोग होने के कारण उत्पादन शक्ति में बहुत वृद्धि हुई है 1966-67 में पंजाब में 10,000 ट्रैक्टर थे जिनकी संख्या 2019-20 में बढ़कर 5.15 लाख हो गई है।

4. उन्नत बीज (High yielding varieties of seeds)-पंजाब में हरित क्रान्ति का एक और कारण उन्नत बीजों का अधिक प्रयोग किया जाना है। गेहूँ, चावल, बाजरा, मक्की तथा ज्वार की फसलों के लिए बीजों की उन्नत किस्में बनाई गई हैं। गेहूं तथा चावल के लिए 100%, मक्की के लिए 90% तथा बाजरे के लिए 60% अधिक पैदावार देने वाले बीजों का प्रयोग 1999-2000 में किया गया।

5. रासायनिक उर्वरक (Fertilizers)-पंजाब में रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग के कारण अनाज के उत्पादन में काफ़ी वृद्धि हुई है। हरित क्रान्ति आने का एक कारण उर्वरकों का अधिक प्रयोग करना है। 1966-67 में 51 हजार टन रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग किया गया था। 2019-20 में 1750 हजार टन रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग किया गया है।

6. सिंचाई (Irrigation)-पंजाब में सिंचाई की अधिक सहूलतों के कारण हरित क्रान्ति पर बहुत प्रभाव पड़ा है। पंजाब में सारा वर्ष .चलने वाले तीन दरिया सतलुज, ब्यास तथा रावी हैं जिनसे विद्युत् पैदा की जाती है तथा सिंचाई के लिए नहरें निकाली गई है। ट्यूबवैल, कुएं तथा तालाब की सिंचाई के साधन हैं। 1965-66 में 59% क्षेत्र पर सिंचाई की जाती थी। 2019-20 में 78.3 लाख हैक्टर क्षेत्र पर सिंचाई की जाती है।

7. साख सहूलतें (Credit Facilities) हरित क्रान्ति के लिए साख सहूलतों का योगदान बहुत अधिक है। 1967-68 में सहकारी समितियों द्वारा ₹75 करोड़ की साख सहूलतें प्रदान की गई थीं जो कि 2019-20 में बढ़ कर ₹ 6515 करोड़ हो गई हैं।

8. खोज (Research)-पंजाब में कृषि यूनिवर्सिटी लुधियाना में खोज का कार्य किया जाता है। कृषि यूनिवर्सिटी में नए बीज, भूमि की परख, उर्वरकों का प्रयोग, कीट नाशक दवाइयों के प्रयोग सम्बन्धी अल्प अवधि के कोर्स आरम्भ किए जाते हैं। इससे किसानों को फसलों की देख रेख करने सम्बन्धी जानकारी प्राप्त होती है। परिणामस्वरूप कृषि के उत्पादन पर अच्छा प्रभाव पड़ता है।

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हरित क्रान्ति की प्राप्तियां (Achievements of Green Revolution)
अथवा
हरित क्रान्ति के प्रभाव (Effects of Green Revolution) –
हरित क्रान्ति की मुख्य प्राप्तियां इस प्रकार हैं-
1. उत्पादन में वृद्धि (Increase in Production)-हरित क्रान्ति के परिणामस्वरूप कृषि के उत्पादन में काफ़ी वृद्धि हुई है। 1965-66 में 33 लाख टन अनाज पैदा किया गया था। हरित क्रान्ति के परिणामस्वरूप वर्ष 2019-20 में कृषि का उत्पादन 315.33 लाख मीट्रिक टन हो गया है।

2. रोज़गार में वृद्धि (Increase in Employment) हरित क्रान्ति के कारण मशीनों का प्रयोग बढ़ गया है। परन्तु फिर भी वर्ष में कई फसलें पैदा होने लगी हैं इसलिए रोजगार में वृद्धि हुई है।

3. उद्योगों में वृद्धि (Increase in Industries) हरित क्रान्ति का प्रभाव उद्योगों के विकास पर अच्छा पड़ा है। पंजाब में कृषि यन्त्र हारवैस्टर, थ्रेशर इत्यादि की मांग बढ़ने के कारण बहुत से उद्योग स्थापित किए गए हैं।

4. उत्पादकता में वृद्धि (Increase in Productivity) हरित क्रान्ति के पश्चात् गेहूँ तथा चावल की उत्पादन शक्ति बहुत बढ़ गई है। यद्यपि गेहूँ, मक्की, ज्वार, कपास की प्रति हेक्टेयर उत्पादकता में काफ़ी वृद्धि हुई है जिसका मुख्य कारण अच्छे बीजों, रासायनिक उर्वरकों का अधिक प्रयोग है।

5. ग्रामीण विकास (Rural Development)-हरित क्रान्ति के परिणामस्वरूप ग्रामीण लोगों की आय में वृद्धि हो गई है इसलिए ग्रामीण लोगों में उच्च जीवन स्तर व्यतीत करने की इच्छा पैदा हो गई है।

प्रश्न 3.
पंजाब की प्रमुख फसलों का वर्णन करें। पंजाब में पुनर्गठन के पश्चात् फसलों के ढांचे में कौन-से परिवर्तन हुए हैं ? .
उत्तर-
पंजाब में कई प्रकार की फसलों का उत्पादन किया जाता है। इन फसलों को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है
A. खाद्य फसलें (Food Crops)-ये वह फसलें हैं जोकि भोजन के रूप में खाने के लिए प्रयोग की जाती हैं जैसे कि गेहूँ, चावल, ज्वार, बाजरा, मक्की, दालें तथा चने इत्यादि।
B. व्यापारिक फसलें (Commercial Crops)-व्यापारिक फसलें वे हैं जिनका प्रयोग उद्योगों में कच्चे माल के रूप में किया जाता है। जैसे कि गन्ना, कपास, तिलहन इत्यादि।

A. खाद्य फसलें (Food Crops)-पंजाब की खाद्य फसलों की व्याख्या इस प्रकार की जा सकती है –
1. गेहूँ (Wheat)-पंजाब में गेहूँ भोजन के लिए मुख्य फसल है। गेहूँ की बिजाई नवम्बर-दिसम्बर के महीने में की जाती है जोकि अप्रैल-मई के महीने में काटी जाती है। पंजाब के सब ज़िलों में गेहूँ की बिजाई की जाती है परन्तु संगरूर, फिरोज़पुर तथा लुधियाना जिले में अन्य जिलों से गेहूँ अधिक होती है। 2019-20 में गेहूँ की उत्पादन शक्ति पंजाब में 5188 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर थी। जबकि भारत में गेहूँ की औसत उत्पादकता 3600 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर थी। स्पष्ट है कि पंजाब में गेहूँ का उत्पादन 17613 हज़ार मीट्रिक टन है जो अन्य राज्यों से अधिक है।

2. चावल (Rice)-पंजाब में चावल की खाद्य फसलों में से प्रमुख फसल है। इसकी बिजाई मई-जून में की जाती है तथा यह अक्तूबर-नवम्बर तक तैयार हो जाती है। चावल का उत्पादन पंजाब के सब जिलों में होता है परन्तु सबसे अधिक उत्पादन अमृतसर, पटियाला, लुधियाना तथा संगरूर जिलों में होता है। 2019-20 में पंजाब में चावल की प्रति हेक्टेयर उपज 4132 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर थी जबकि समूचे भारत में औसत उत्पादकता 2708 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर थी। पंजाब में चावल का उत्पादन 13311 हज़ार मीट्रिक टन था।

3. जौ (Barley)-पंजाब में जौ रबी की फसल है। इसको पंजाब में सितम्बर-अक्तूबर के महीने में बोआ जाता है तथा यह अप्रैल में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसका उत्पादन भटिंडा, होशियारपुर इत्यादि जिलों में होता है। 1965-66 में जौ की प्रति हेक्टेयर उत्पादकता 1030 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर था। 2019-20 में इसकी उत्पादन शक्ति बढ़कर 3017 किलोग्राम हो गई है। जौ का उत्पादन 117 हज़ार मीट्रिक टन हुआ था।

4. मक्की (Maize)-पंजाब में मक्की खरीफ की फसल है। मक्की जून-जुलाई के महीने में बोई जाती है तथा मक्की की फसल सितम्बर, अक्तूबर तक तैयार हो जाती है। पंजाब में अधिकतर मक्की लुधियाना, जालन्धर, होशियारपुर ज़िलों में पैदा होती है। 1970-71 में प्रति हेक्टेयर उत्पादन शक्ति 1555 किलोग्राम थी। 2019-20 में इसकी उत्पादन शक्ति बढ़कर 3515 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर हो गई है। मक्की का उत्पादन 396 लाख मीट्रिक टन हुआ था।

5. ज्वार तथा बाजरा (Jowar and Bazra)-ज्वार तथा बाजरा खरीफ की फसलें हैं। ज्वार मुख्यतः रूपनगर तथा मुक्तसर जिलों में पैदा की जाती है। बाजरे की फसल, गुरदासपुर, फिरोजपुर, फरीदकोट तथा संगरूर में होती है। बाजरे की उत्पादन शक्ति 1965-66 में 548 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर थी जोकि 2019-20 में बढ़कर 987 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर हो गई है। ज्वार का उत्पादन 800 मीट्रिक टन तथा बाजरे का उत्पादन 800 मीट्रिक टन हुआ था।

6. चने (Gram)-यह रबी की फसल है जोकि अक्तूबर-नवम्बर में बोई जाती है। यह फसल अप्रैल-मई तक तैयार हो जाती है। यह फसल भटिंडा तथा मुक्तसर जिलों में होती है क्योंकि रेतीली भूमि इसके लिए अधिक उपयुक्त होती है। इसकी उत्पादकता 1245 kg प्रति हैक्टेयर और उत्पादन 3 हज़ार मीट्रिक टन था।

7. दालें (Pulses)-पंजाब में लोगों के भोजन का मुख्य अंग दालें हैं। पंजाब में मांह, मोठ, मूंगी, मसर इत्यादि दालों का प्रयोग किया जाता है। दालों की उत्पादकता में भी वृद्धि हुई है। 2019-20 में दालों की पैदावार 25 हज़ार मीट्रिक टन थी।

B. व्यापारिक फसलें अथवा नकदी फसलें (Commercial Crops or Cash Crops)-पंजाब में व्यापारिक फसलें मुख्यतः निम्नलिखित हैं
1. गन्ना (Sugarcane)-पंजाब में गन्ना व्यापारिक खाद्य फसल है। इसका प्रयोग गुड़, शक्कर तथा चीनी तैयार करने के लिए किया जाता है। इसका बिजाई मार्च-अप्रैल तथा कटाई दिसम्बर-मार्च में की जाती है। गन्ना मुख्यतः जालन्धर, गुरदासपुर तथा रूपनगर जिलों में बोआ जाता है। पंजाब में चीनी बनाने के उद्योग के लिए कच्चा माल पंजाब में ही तैयार किया जाता है। 2019-20 में गन्ने का उत्पादन 7744 लाख मीट्रिक टन हुआ था।

2. कपास (Cotton)-कपास खरीफ की फसल है। यह अप्रैल से जून तक बोई जाती है जोकि सितम्बर से दिसम्बर तक तैयार हो जाती है। पंजाब में भटिंडा, फरीदकोट, फिरोज़पुर में कपास की अमेरिकन किस्म बोई जाती है जबकि अन्य जिलों में देशी कपास बोई जाती है। 2019-20 में कपास का उत्पादन 1283 हज़ार गांठें हुआ।

3. तेलों के बीज (Oil Seeds)-पंजाब में तेलों के बीज मुख्य नकदी फसल है। इसमें सरसों, तारामीरा, अलसी, तिल इत्यादि का उत्पादन होता है। इनमें से कुछ फसलें रबी की हैं तथा कुछ खरीफ की हैं। भटिंडा, फिरोज़पुर तथा पटियाला में सरसों तथा तारामीरा, संगरूर में मुख्यतः तारामीरा, लुधियाना में मूंगफली का उत्पादन किया जाता है। 2019-20 में 59.6 हज़ार मीट्रिक टन तेलों के बीज का उत्पादन हुआ।

प्रश्न 4.
पंजाब में कृषि उपज बिक्री के दोष बताएं और इन दोषों को दूर करने के लिये सुझाव दें। (Discuss the defects of Agricultural Marketing on Punjab. Suggest measures to remove the defects.)
उत्तर-
पंजाब में कृषि उपज बिक्री के मुख्य दोष इस प्रकार हैं-
1. ग्रेडिंग का अभाव (Lack of Grading)-पंजाब में किसान अपनी फसल की ग्रेडिंग नहीं करते। जो फसल बाज़ार में बिक्री के लिए भेजी जाती है उसमें मिलावट होने के कारण उपज का ठीक मूल्य प्राप्त नहीं होता।

2. उपज के भण्डार का अभाव (Lack of Storage Facilities)- किसान को अपनी उपज कटाई के बाद शीघ्र बेचनी पड़ती है क्योंकि फसलों के संग्रह करने के लिये उचित भण्डार साधन नहीं होते। इसलिए घर पर फसल रखने से उसके नष्ट होने का डर रहता है।

3. संगठन का अभाव (Lack of Organisation)-पंजाब में किसानों का कोई संगठन नहीं है जो कि उपज का उचित मूल्य दिला सके। किसान अपनी-अपनी फसल मण्डियों में बेचते हैं जिस कारण उनको उपज की कम कीमत प्राप्त होती है।

4. मण्डियों में अधिक मध्यस्थ (Many Intermediaries in Mandies)-मण्डी में मध्यस्थों की अधिकता के कारण भी किसान को उपज का ठीक मूल्य प्राप्त नहीं होता। किसान और उपभोक्ता के बीच कच्चा आढ़तिया, पक्का आढ़तिया, दलाल आदि बहुत-से मध्यस्थ होते हैं। मध्यस्थों के कारण किसान को उपज की पूरी कीमत प्राप्त नहीं होती।

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5. मण्डियों में अनुचित ढंग (Malpractices in Mandies) मण्डियों में किसान को कम कीमत देने के लिये कई प्रकार के अनुचित ढंगों का प्रयोग किया जाता है। किसान की उपज को तुरन्त खरीदा नहीं जाता और किसान को कई दिन उपज की सम्भाल करनी पड़ती है। उसको उपज की उचित कीमत का ज्ञान भी नहीं दिया जाता।

6. मण्डियों के बारे में सूचना (Knowledge about Mandies) किसानों को बाज़ार की विभिन्न मण्डियों के बारे में पूरी जानकारी नहीं होती। इसलिये किसान अपनी उपज गांव के पास ही मण्डियों में कम कीमत पर बेच देता है।

7. वित्त का अभाव (Lack of Finance)-किसानों को फसल बीजने से लेकर, इस की कटाई होने तक बहुतसे वित्त की ज़रूरत होती है। पंजाब में बहुत-से किसान वित्त के लिये महाजनों तथा आढ़तियों पर निर्भर होते हैं। इसलिए किसान को अपनी उपज महाजनों तथा आढ़तियों को ही बेचनी पढ़ती है। इसलिए उपज की ठीक कीमत प्राप्त नहीं होती।

8. यातायात सुविधाओं का अभाव (Lack of Transport Facilities)—पंजाब में गांव में यातायात की असुविधाएं होने के कारण किसान को अपनी उपज गांव में या नज़दीक मण्डियों में ही बेचनी पड़ती है। इसलिये किसान को अपने उत्पादन को बहुत ही प्रतिकूल समय, प्रतिकूल दरों पर, प्रतिकूल बाज़ार में बेचना पड़ता है।

9. स्वेच्छा बिक्री का अभाव (Lack of Freedom of Sale)-पंजाब में किसान अपनी उपज स्वेच्छा से बिक्री नहीं कर सकता। उसको बैंक का कर्ज, साहूकार और आढ़तियों का कर्ज देना होता है। इसलिए फसल काटने के तुरन्त बाद उसको अपनी उपज बेचनी पड़ती है।

कृषि उपज की बिक्री के दोषों को दूर करने के लिए सुझाव (Suggestions to Remove the Defects of Agricultural Marketing) कृषि उपज की बिक्री में बहुत से दोष हैं। इन दोषों को दूर करने के लिए निम्नलिखित सुझाव दिये जाते हैं-
1. वित्त की सुविधा (Facilities of Finance)-पंजाब के किसानों को वित्त की सुविधा प्रदान करनी चाहिए। भारत सरकार ने इस वित्त की सुविधा को ध्यान में रखते हुए किसानों पर से 2019-20 में ₹ 2000 करोड़ का कर्ज़ माफ़ कर दिया है और बैंकों में किसानों को अधिक साख देने के लिये कहा है।

2. यातायात की सुविधा (Facilities of Transport)-पंजाब में किसान की उपज को बेचने के लिये सस्ती, कुशल तथा पर्याप्त सुविधाएं होनी चाहिएं। इस प्रकार किसान अपनी उपज को उचित बाजार, उचित समय तथा उचित कीमत पर बेच सकता है।

3. संग्रह की सुविधा (Facilities of Storage) संग्रह की सुविधा भी कृषि उपज की बिक्री के लिए बहुत ज़रूरी है। किसान के पास गांव में फसलों को संग्रह करने के लिये गड्ढ़े या कोठियां मिट्टी के बने होते हैं। इस कारण बहुत-सी फसल नष्ट हो जाती है। इसलिए संग्रह की सुविधा सरकार द्वारा प्रदान करनी चाहिए।

4. मध्यस्थों पर नियन्त्रण (Control over Middleman) कृषि उपज की उचित बिक्री के लिये मध्यस्थों पर नियन्त्रण आवश्यक है। मध्यस्थों पर नियन्त्रण करके किसान को उसकी उपज की ठीक कीमत दिलाई जा सकती है।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 27 1966 से पंजाब में कृषि का विकास

5. उचित कीमत (Suitable Price)-किसान द्वारा उपज की कीमत दूसरे खरीदार लगाते हैं जबकि उत्पादक अपनी वस्तु की कीमत स्वेच्छा से निर्धारित करते हैं। इसलिए किसान को अपनी उपज की कीमत स्वेच्छा से निर्धारित करने का अधिकार होना चाहिए।