PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 5 कानून

Punjab State Board PSEB 11th Class Political Science Book Solutions Chapter 5 कानून Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Political Science Chapter 5 कानून

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
कानून क्या है ? आप इसे कैसे परिभाषित करेंगे ?
(What is Law ? How would you define it ?)
उत्तर-
राज्य का मुख्य उद्देश्य शान्ति की स्थापना करना तथा व्यक्तियों के पारस्परिक सम्बन्धों को निश्चित करना होता है। राज्य अपने इस उद्देश्य की पूर्ति कानून द्वारा करता है। राज्य की इच्छा कानून द्वारा प्रकट होती है तथा कानून द्वारा ही लागू की जाती है। कानून द्वारा ही व्यक्ति तथा राज्य के पारस्परिक सम्बन्ध, व्यक्ति तथा अन्य समुदायों के सम्बन्ध तथा व्यक्तियों के पारस्परिक सम्बन्ध निश्चित किए जाते हैं।

कानून की परिभाषा (Definition of Law)-कानून शब्द को अंग्रेज़ी में लॉ (Law) कहते हैं। लॉ (Law) शब्द टयूटॉनिक भाषा के शब्द लेग (Lag) से निकला है, जिसका अर्थ है-‘निश्चित’ या स्थिर। इस प्रकार कानून का अर्थ है-निश्चित नियम।

कानून शब्द का प्रयोग भिन्न-भिन्न रूपों में किया जाता है। जो कानून समाज में रहते हुए व्यक्तियों के पारस्परिक सम्बन्धों को निश्चित करते हैं, उन्हें सामाजिक कानून अथवा मानवीय कानून कहा जाता है। मानवीय कानूनों में से कुछ कानून ऐसे होते हैं जो मनुष्य के आन्तरिक व्यवहार को नियन्त्रित करते हैं-ऐसे कानून नैतिकता पर आधारित होते हैं और इन कानूनों को नैतिक कानून कहा जाता है। नैतिक कानूनों का उल्लंघन करने पर सज़ा नहीं मिलती। दूसरे वे कानून हैं जो मनुष्य के बाहरी कार्यों को नियन्त्रित करते हैं और इन कानूनों को राज्य की मान्यता प्राप्त होती है और जो इन कानूनों का उल्लंघन करता है राज्य उसे दण्ड देता है। ऐसे कानूनों को राजनीतिक कानून कहा जाता है। राजनीति शास्त्र में हमारा सम्बन्ध केवल उन कानूनों से है जिन्हें राज्य बनाता है तथा राज्य ही लागू करता है।

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 5 कानून

विभिन्न लेखकों ने ‘कानून’ की विभिन्न परिभाषाएं दी हैं जिनमें से मुख्य परिभाषाएं निम्नलिखित हैं-

  • ऑस्टिन (Austin) के शब्दों में, “कानून उच्चतर का निम्नतर को आदेश है।” (“Law is a command of superior to an inferior.”) फिर ऑस्टिन ने आगे लिखा है, “कानून प्रभुसत्ताधारी का आदेश है।” (“Law is a command of a sovereign.”’)
  • वुडरो विल्सन (Woodrow Wilson) के अनुसार, “कानून स्थापित विचारधारा तथा अभ्यास का वह भाग है जिन्हें सामान्य रूप के नियमों में स्वीकृति मिली होती है तथा जिन्हें सरकार की शक्ति का समर्थन प्राप्त होता है।”
  • विलोबी (Willoughby) के अनुसार, “कानून आचरण के वे नियम हैं जिनकी सहायता से न्यायालय अपने क्षेत्राधिकार में कार्य करते हैं। वैसे तो समाज में आचरण के बहुत-से नियम होते हैं, परन्तु कानून में यह विशेषता होती है कि उसे राज्य की सम्पूर्ण शक्ति प्राप्त होती है।”
  • हालैंड (Holland) के शब्दों में, “कानून मनुष्य के बाहरी जीवन से सम्बन्धित सामान्य नियम हैं जो राजनीतिक प्रभुसत्ताधारी द्वारा लागू किए जाते हैं।”
  • पाउण्ड (Pound) के अनुसार, “न्याय-प्रशासन में सार्वजनिक और नियमित न्यायालयों द्वारा मान्यता प्राप्त और लागू किए गए सिद्धान्तों को कानून कहते हैं।”
  • टी० एच० ग्रीन (T.H. Green) के शब्दों में, “कानून अधिकारों और ज़िम्मेदारियों (कर्त्तव्यों) की वह व्यवस्था है जिसे राज्य लागू करता है।”

कानून की ऊपरलिखित परिभाषाओं से कानून के निम्नलिखित तत्त्वों का पता चलता है-

  1. कानून समाज में रहने वाले व्यक्तियों के पारस्परिक सम्बन्धों को निश्चित करता है।
  2. कानून व्यक्तियों के बाहरी कार्यों को नियन्त्रित करता है।
  3. कानून का निर्माण राजनीतिक प्रभुसत्ताधारी द्वारा किया जाता है और उसी द्वारा लागू किया जाता है।
  4. कानून निश्चित तथा सर्वव्यापक होता है। कानून सभी व्यक्तियों पर समान रूप से लागू होते हैं।
  5. कानून का उल्लंघन करने वाले को दण्ड दिया जाता है। कानून न्यायालयों द्वारा लागू किए जाते हैं।

प्रश्न 2.
कानून कितने प्रकार के होते हैं ?
(What are the different kinds of Law ?)
अथवा
कानून के विभिन्न रूपों का वर्णन कीजिए।
(Discuss the various kinds of Law.)
उत्तर-
राज्य की इच्छा कानून द्वारा प्रकट होती है और कानून द्वारा ही लागू की जाती है। कानून व्यक्ति तथा राज्य के आपसी सम्बन्ध, व्यक्ति तथा अन्य समुदायों के सम्बन्ध तथा व्यक्तियों के पारस्परिक सम्बन्धों को नियमित करता है। कानून राज्य में शान्ति की स्थापना करता है और कानून ही अपराधियों को दण्ड देता है। उन नियमों को कानून कहते हैं जो व्यक्ति के बाहरी कार्यों को नियन्त्रित करते हैं और जिन्हें राज्य की मान्यता प्राप्त होती है।

कानून के प्रकार (Different kinds of law)-कई विचारकों ने कानून का वर्गीकरण इस प्रकार किया है। प्रो० गैटेल (Gattell) के अनुसार, कानून तीन प्रकार का होता है-(1) व्यक्तिगत कानून (Private Law), (2) सार्वजनिक कानून (Public Law), (3) अन्तर्राष्ट्रीय कानून (International Law)।

प्रो० हालैंड के अनुसार, कानून दो प्रकार का होता है-व्यक्तिगत कानून (Private Law), (2) सार्वजनिक कानून (Public Law)।

सार्वजनिक कानून के हालैंड ने तीन उपभेद किए हैं-

  1. संवैधानिक कानून
  2. प्रशासकीय कानून
  3. दण्ड कानून । व्यक्तिगत कानून के हालैंड ने आगे उपभेद किए हैं-(1) सम्पत्ति तथा समझौता कानून (2) नियम कानून (3) व्यक्तिगत सम्बन्ध कानून (4) व्यावहारिक कानून।

प्रो० मैकाइवर (Maclver) का वर्गीकरण निम्नलिखित तालिका से स्पष्ट हो जाता है-

Class 11 Political Science Solutions Chapter 5 कानून 1

कुछ विचारक कानून के स्रोत के आधार पर भी कानून का वर्गीकरण करते हैं-वैधानिक कानून (Statutory Law), कॉमन लॉ (Common Law), न्यायाधीशों द्वारा निर्मित कानून (Judge-made Law) तथा अध्यादेश (Ordinance)।
ऊपरलिखित कानून के वर्गीकरण के आधार पर हम कानून के विभिन्न प्रकारों का संक्षेप में वर्णन करते हैं

  • अन्तर्राष्ट्रीय कानून (International Law)-अन्तर्राष्ट्रीय कानून वह नियम है जो राज्यों के आपसी सम्बन्धों को नियमित करता है और उनके झगड़ों को निपटाता है। अन्तर्राष्ट्रीय कानून का सम्बन्ध केवल राज्यों से होता है, व्यक्तियों से नहीं।
  • राष्ट्रीय कानून (National Law)-राष्ट्रीय कानून वह नियम है जो राज्य की सीमा के अन्दर व्यक्तियों तथा समुदायों पर लागू होते हैं। इन कानूनों को राज्य की मान्यता प्राप्त होती है और जो व्यक्ति अथवा समुदाय इन कानूनों का उल्लंघन करते हैं उन्हें दण्ड दिया जाता है। देश के न्यायालय इन्हीं कानूनों द्वारा न्याय करते हैं।

राष्ट्रीय कानून को दो भागों में बांटा जा सकता है-संवैधानिक कानून तथा साधारण कानून।

1. संवैधानिक कानून (Constitutional Law)-संवैधानिक कानून वह कानून है जो सरकार के संगठन, कार्यों तथा शक्तियों को निश्चित करता है। यह देश का सर्वोच्च कानून होता है। संवैधानिक कानून लिखित तथा अलिखित दोनों प्रकार के होते हैं। भारत, अमेरिका, जापान तथा स्विट्जरलैंड के संवैधानिक कानून लिखित हैं, परन्तु इंग्लैण्ड का संवैधानिक कानून अलिखित है।

2. साधारण कानून (Ordinary Law)—साधारण कानून राष्ट्रीय कानून का वह भाग है जो व्यक्तियों के आपसी सम्बन्धों को निश्चित करता है। साधारण कानून सरकार द्वारा बनाए जाते हैं और सरकार द्वारा ही लागू किए जाते हैं। साधारण कानूनों को दो भागों में बांटा जाता है(क) सार्वजनिक कानून तथा (ख) व्यक्तिगत कानून।

3. सार्वजनिक कानून (Public Law)—सार्वजनिक कानून राज्य तथा व्यक्तियों के पारस्परिक सम्बन्धों को नियमित करता है। सार्वजनिक कानून दो प्रकार का होता है-

(i) प्रशासकीय कानून तथा (ii) आम कानून।

(i) प्रशासकीय कानून (Administrative Law)—प्रशासकीय कानून सार्वजनिक कानून का वह भाग है जो राज्य तथा सरकारी कर्मचारियों के सम्बन्ध नियमित करता है। प्रशासकीय कानून सरकारी कर्मचारियों के कार्यों, शक्तियों तथा स्तर को निश्चित करता है। प्रशासकीय कानून सभी देशों में नहीं मिलते। प्रशासकीय कानून का सबसे अच्छा उदाहरण फ्रांस है। (ii) आम कानून (General Law)-आम कानून सार्वजनिक कानून का वह भाग है जो सभी व्यक्तियों पर बिना सरकारी तथा गैर-सरकारी का भेद किए लागू होता है, उनके व्यवहारों को नियमित करता है।

4. व्यक्तिगत कानून (Private Law)-व्यक्तिगत कानून साधारण कानून का वह भाग है जो व्यक्तियों के आपसी सम्बन्धों को नियमित करता है। व्यक्तिगत कानून में उत्तराधिकार, विवाह तथा सम्पत्ति के आदान-प्रदान के कानून शामिल है।

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 5 कानून

5. वैधानिक कानून (Statutory Law)-वैधानिक कानून वे कानून हैं जो राज्य के विधानमण्डल द्वारा बनाए जाते हैं। प्रत्येक लोकतन्त्रीय राज्य में विधानमण्डल होता है। आजकल लोकतन्त्रीय राज्य में अधिकांश कानून विधानमण्डल द्वारा बनाए जाते हैं।

6. कॉमन लॉ (Common Law)-कॉमन लॉ का निर्माण विधानमण्डल द्वारा नहीं किया जाता। कॉमन लॉ देश में रीति-रिवाज़ों पर आधारित होते हैं जिन्हें न्यायालय मान्यता प्रदान कर चुके होते हैं। इंग्लैण्ड में कॉमन लॉ का बहुत बड़ा महत्त्व है।

7. न्यायाधीशों द्वारा निर्मित कानून (Judge-made Laws)-न्यायाधीश कानून की व्याख्या करते समय नए कानूनों को जन्म देते हैं। कई बार न्यायाधीश मुकद्दमों का निर्णय न्याय-भावना के आधार पर करते हैं। उनके निर्णय आने वाले वैसे मुकद्दमों के लिए कानून माने जाते हैं।

8. अध्यादेश (Ordinance)-अध्यादेश वे कानून हैं जो किसी विशेष परिस्थिति पर काबू पाने के लिए जारी किए जाते हैं। अध्यादेश कार्यपालिका द्वारा उस समय जारी किए जाते हैं जब विधानमण्डल का अधिवेशन नहीं हो रहा होता। जब विधानमण्डल का अधिवेशन होता है तब इन अध्यादेशों को विधानमण्डल से स्वीकृति लेनी पड़ती है। जिन अध्यादेशों को विधानमण्डल की स्वीकृति प्राप्त हो जाती है वे कानून बन जाते हैं और जिनको स्वीकृति प्राप्त नहीं होती वे रद्द हो जाते हैं। जब अध्यादेश जारी किया जाता है तब उसे साधारण कानून की तरह ही मान्यता प्राप्त होती है और जो व्यक्ति अध्यादेश का उल्लंघन करता है उसे दण्ड दिया जाता है।

9. दीवानी कानून (Civil Laws)-वैधानिक कानून (Statutory Law) दीवानी और फ़ौजदारी कानूनों में बंटे होते हैं। दीवानी कानून धन, सम्पत्ति और उत्तराधिकार आदि मामलों से सम्बन्धित होते हैं।

10. फ़ौजदारी कानून (Criminal Laws)—फ़ौजदारी कानून लड़ाई-झगड़े, हत्या, डकैती आदि मामलों से सम्बन्धित होते हैं।

प्रश्न 3.
कानून के स्रोतों की व्याख्या करें।
(Discuss the sources of Law.).
उत्तर-
ऑस्टिन के अनुसार, कानून का स्रोत प्रभुसत्ताधारी है क्योंकि कानून प्रभुसत्ताधारी का आदेश है। पर प्रत्येक कानून प्रभु का आदेश नहीं होता। कई ऐसे कानून होते हैं जिनका निर्माण प्रभु न करके केवल लागू करता है। आजकल अधिकतर कानूनों का निर्माण विधानमण्डल के द्वारा किया जाता है। परन्तु वास्तविकता यह है कि कानून के अनेक स्रोत हैं। कानून के निम्नलिखित स्रोत हैं

1. रीति-रिवाज (Customs)-रीति-रिवाज कानून का सबसे पुराना स्रोत है। प्राचीनकाल में रीति-रिवाज द्वारा ही सामाजिक व्यवहार को नियमित किया जाता था। रीति-रिवाजों को ही कबीले का कानून माना जाता था। जब राज्य की स्थापना हुई तो रीति-रिवाजों को ही कानून का रूप दे दिया गया। यह ठीक है कि रीति-रिवाज स्वयं कानून नहीं हैं पर राज्य के अधिकतर कानून रीति-रिवाजों पर ही आधारित होते हैं। कोई भी राज्य रीति-रिवाजों के विरुद्ध कानून बनाने का प्रयत्न नहीं करता और यदि कोई राज्य रीति-रिवाजों के विरुद्ध कानून बनाता है तो जनता उन कानूनों के विरुद्ध आन्दोलन करती है। महाराजा रणजीत सिंह जो निरंकुश राजा था, अपने कानूनों को रीति-रिवाजों के अनुसार ही बनाता था। भारत में हिन्दू लॉ (Hindu Law) तथा मुस्लिम लॉ (Muslim Law) जनता के रीति-रिवाजों पर आधारित हैं।

2. धर्म (Religion)-धर्म कानून का महत्त्वपूर्ण स्रोत है। प्राचीनकाल में सामाजिक जीवन पर धर्म का बहुत प्रभाव होता था। रीति-रिवाज पर धर्म का बहुत प्रभाव होता था। जिन रीति-रिवाजों को धर्म की मान्यता प्राप्त होती थी उन रीति-रिवाजों का अधिक पालन होता था। राज्य में राजा द्वारा निर्मित कानून दैवी अधिकारों पर आधारित होते थे और उनका उल्लंघन करना पाप समझा जाता था। वास्तव में प्राचीन काल में रीति-रिवाजों तथा धार्मिक नियमों में भेद करना अति कठिन था। कई देशों में तो पुरोहित ही राजा (Priest King) होते थे। भारत में फिरोज़ तुग़लक ने वही टैक्स लगाए जिनकी कुरान में आज्ञा थी। औरंगजेब ने भी अधिक कानून कुरान के सिद्धान्तों के अनुसार बनाए। आजकल भी मुस्लिम देशों के अधिक कानून कुरान के सिद्धान्तों पर आधारित हैं। हिन्दुओं के विवाह तथा उत्तराधिकार से सम्बन्धित कानून उनकी धार्मिक पुस्तक ‘मनुस्मृति’ पर आधारित हैं। इस प्रकार धर्म भी कानून का एक महान् स्रोत है और आज भी इसका प्रभाव है।

3. न्यायालयों के निर्णय (Judicial Decisions) न्यायालयों के निर्णय कानून का महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं। झगड़ों का निर्णय न्यायालयों द्वारा किया जाता है। न्यायालय निर्णय करते समय नए कानून को जन्म देते हैं। कई बार न्यायाधीश के सामने ऐसे मुकद्दमे आते हैं जिनके बारे में बनाए हुए कानून स्पष्ट नहीं होते। न्यायाधीश इस कानून की व्याख्या कर के निर्णय देते हैं। न्यायाधीशों के निर्णय आने वाले वैसे ही मुकद्दमों के लिए कानून का काम करते हैं। अतः न्यायाधीश अपने निर्णयों द्वारा नए कानूनों को जन्म देते हैं। कानून की व्याख्या करते समय भी न्यायाधीश कानूनों का निर्माण करते हैं।

4. न्यायाधीशों की न्याय भावना (Equity)-न्यायाधीशों की न्याय-भावना भी कानून का महत्त्वपूर्ण स्रोत है। कई बार न्यायाधीश के सामने ऐसे मुकद्दमे आते हैं जहां प्रचलित कानून या तो स्पष्ट नहीं होता या कानून बिल्कुल ही नहीं होता। ऐसी परिस्थितियों में न्यायाधीश का कर्त्तव्य होता है कि वह न्याय भावना, न्याय बुद्धि, सद्भावना तथा ईमानदारी से नए कानून बनाकर मुकद्दमे का निर्णय करे। इन निर्णयों द्वारा बने कानूनों को न्यायाधीशों द्वारा निर्मित कानून (Judgemade Laws) कहा जाता है। गिलक्राइस्ट (Gilchrist) का कहना है कि, “न्याय भावना नए कानून को बनाने या पुराने कानून को बदलने का अनौपचारिक तरीका है जो व्यवहार की शुद्ध निष्पक्षता या समानता पर निर्भर है।”

5. वैज्ञानिक टिप्पणियां (Scientific Commentaries)—वैज्ञानिक टिप्पणियां कानून का महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं। कानून के प्रसिद्ध ज्ञाता कानून पर टिप्पणियां करके कानून के दोषों को स्पष्ट करते हैं और कानून में सुधार करने के लिए सुझाव भी देते हैं। न्यायाधीश झगड़ों का निर्णय करते समय कानून की व्याख्या के लिए प्रसिद्ध कानून-ज्ञाता की टिप्पणियों से सहायता लेते हैं और इन्हें मान्यता प्रदान करते हैं जिससे वे टिप्पणियां कानून बन जाती हैं। इंग्लैण्ड में डायसी, कोक तथा ब्लेकस्टोन प्रसिद्ध कानून-ज्ञाता हुए जिन्होंने ब्रिटिश कानून पर टिप्पणियां लिखी हैं जो बहुत लाभदायक सिद्ध हुई हैं। भारत में विज्ञानेश्वर, अपारर्क तथा मिताक्षर प्रसिद्ध कानून-ज्ञाता हुए हैं।

6. विधानमण्डल (Legislature) आधुनिक युग में विधानमण्डल कानून का सबसे महत्त्वपूर्ण स्रोत है। प्राचीन काल में शक्तियों का केन्द्रीयकरण होता था जिसके कारण राजा ही कानूनों का निर्माण करता था। लोकतन्त्रात्मक राज्यों में कानूनों का निर्माण विधानमण्डल द्वारा किया जाता है। प्रत्येक लोकतन्त्रात्मक राज्य में विधानमण्डल होता है जिसके पास कानून–निर्माण की शक्ति होती है। विधानमण्डल के सदस्य जनता के प्रतिनिधि होते हैं। विधानमण्डल के बनाए हुए कानूनों द्वारा ही न्यायालय न्याय करते हैं तथा वकील इन्हीं कानूनों को मान्यता देते हैं। विधानमण्डल जनता की इच्छानुसार कानून का निर्माण करता है। कई देशों में जैसे कि स्विट्ज़रलैण्ड में जनता प्रत्यक्ष रूप से कानून निर्माण में भाग लेती है। परन्तु विधानमण्डल को हम प्रजातन्त्र राज्यों में ही देख सकते हैं। तानाशाही राज्यों तथा राजतन्त्र में कानूननिर्माण की शक्ति एक ही व्यक्ति के हाथ में होती है। आधुनिक युग में न्यायाधीशों के निर्णय, रीति-रिवाज, न्यायबुद्धि तथा वैज्ञानिक टिप्पणियों की महानता कानून के स्रोत के रूप में कम हो गई है। गैटेल (Getell) के शब्दों में, “वर्तमान राज्यों में व्यवस्थापन द्वारा घोषित राज्य की इच्छा कानून का प्रमुख स्रोत है और वह अन्य स्रोतों का भी स्थान लेता जा रहा है।”

7. कार्यपालिका (Executive)—आजकल कानून निर्माण का कार्य तो आमतौर पर विधानमण्डल करती है, परन्तु कई परिस्थितियों में ऐसा कार्य कार्यपालिका को भी करना पड़ता है। यदि विधानमण्डल स्थगित या भंग हुआ है तो भारतीय संविधान के अनुसार आवश्यकतानुसार राष्ट्रपति केन्द्रीय सरकार में और राज्यपाल अपनी राज्य सरकार में अध्यादेश जारी कर सकते हैं। ये अध्यादेश स्थायी तो नहीं होते परन्तु जब लागू रहते हैं तो उन्हें पूर्ण कानून की सत्ता प्राप्त होती है।

8. जनमत (Public Opinion)-कई विचारकों का मत है कि जनमत को भी कानून का स्रोत माना जाना चाहिए। आजकल के प्रजातन्त्रात्मक युग में लोगों की राय की कानून-निर्माण में प्रेरक के तौर पर एक महत्त्वपूर्ण भूमिका है। आधुनिक युग में लोग ही राज्य की प्रभुसत्ता के स्रोत माने जाते हैं और यह तो स्वतः सिद्ध है कि जो कानून जनमत के अनुकूल होंगे उनका पालन आसानी से करवाया जा सकता है। स्विट्ज़रलैंड जैसे देश में जहां प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र किसीन-किसी रूप में काम करता है यह स्रोत और भी महत्त्वपूर्ण हो जाता है।

निष्कर्ष (Conclusion)-इस प्रकार कानून का निर्माण किसी एक स्रोत द्वारा नहीं हुआ बल्कि कानून के अनेक स्रोत हैं। प्रत्येक स्रोत का किसी-न-किसी समय पर विशेष महत्त्व रहा है। प्राचीन काल में रीति-रिवाज तथा धर्म कानून के महत्त्वपूर्ण स्रोत थे। आज कानून का सबसे महत्त्वपूर्ण स्रोत विधानमण्डल है। पर विधानमण्डल अधिकतर कानून रीति-रिवाजों के अनुसार ही बनाता है।

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लघु उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
कानून का अर्थ एवं परिभाषा लिखें।
उत्तर-
कानून शब्द को अंग्रेज़ी में लॉ (Law) कहते हैं। लॉ (Law) शब्द ट्यूटानिक भाषा में शब्द लैग (Lag) से निकला है जिसका अर्थ है निश्चित। इस प्रकार कानून शब्द का अर्थ हुआ निश्चित नियम। कानून की कुछ मुख्य परिभाषाएं निम्नलिखित हैं :-

  • ऑस्टिन के शब्दों में, “कानून उच्चतर का निम्नतर को आदेश है।” फिर ऑस्टिन ने आगे लिखा है “कानून प्रभुसत्ताधारी का आदेश है।”
  • वुडरो विल्सन के अनुसार, “कानून स्थापित विचारधारा तथा अभ्यास का वह भाग है जिन्हें सामान्य रूप के नियमों में स्वीकृति मिली होती है तथा जिन्हें सरकार की शक्ति का समर्थन प्राप्त होता है।”
  • हालैंड के शब्दों में, “कानून मनुष्य के बाहरी जीवन से सम्बन्धित नियम हैं जो राजनीतिक प्रभुसत्ताधारी द्वारा लागू किए जाते हैं।”

प्रश्न 2.
कानून के किन्हीं चार स्रोतों का वर्णन करें।
उत्तर-
कानून के मुख्य स्रोत निम्नलिखित हैं :-

  1. रीति-रिवाज-रीति-रिवाज कानून का सबसे पुराना स्रोत हैं। प्राचीनकाल में रीति-रिवाजों द्वारा ही सामाजिक व्यवहार को नियमित किया जाता था। जब राज्य की स्थापना हुई तो रीति-रिवाजों को ही कानून का रूप दे दिया गया। राज्य के अधिकतर कानून रीति-रिवाजों पर ही आधारित होते हैं।
  2. धर्म-धर्म कानून का महत्त्वपूर्ण स्रोत है। जिन रीति-रिवाजों को धर्म की मान्यता प्राप्त होती है उनका पालन अधिक होता है। मुस्लिम देशों के अधिकतर कानून उनकी धार्मिक पुस्तक ‘कुरान’ पर आधारित हैं।
  3. न्यायालयों के निर्णय-कई बार न्यायाधीश के सामने ऐसे मुकद्दमे आते हैं जिनके विषय में स्पष्ट कानून नहीं होते। तब न्यायाधीश कानून की व्याख्या करके निर्णय देते हैं। न्यायाधीशों के निर्णय आने वाले वैसे ही मुकद्दमों के लिए कानून का काम करते हैं।
  4. वैज्ञानिक टिप्पणियां कानून का महत्त्वपूर्ण स्रोत है।

प्रश्न 3.
कानून का सबसे महत्त्वपूर्ण स्रोत क्या है ?
उत्तर-
आधुनिक युग में विधानमण्डल कानून का सबसे महत्त्वपूर्ण स्रोत है। लोकतन्त्रात्मक राज्यों में कानून का निर्माण विधानमण्डल द्वारा किया जाता है। प्रत्येक लोकतन्त्रात्मक राज्य में विधानमण्डल होता है जिसके पास कानूननिर्माण की शक्ति होती है। विधानमण्डल के सदस्य जनता के प्रतिनिधि होते हैं। विधानमण्डल के बनाए कानूनों द्वारा अदालतें न्याय करती हैं तथा वकील इन्हीं कानूनों को मान्यता देते हैं। विधानमण्डल जनता की इच्छानुसार कानून का निर्माण करता है। कई देशों में जैसे कि स्विट्ज़रलैंड में जनता प्रत्यक्ष से कानून निर्माण में भाग लेती है।

प्रश्न 4.
जनमत किस तरह कानून का स्रोत है ?
उत्तर-
कई विचारकों का मत है कि जनमत को भी कानून का स्रोत माना जाना चाहिए। आजकल के प्रजातन्त्रात्मक युग में लोगों की राय की कानून-निर्माण में प्रेरक के तौर पर एक महत्त्वपूर्ण भूमिका है। आधुनिक युग में लोग ही राज्य की प्रभुसत्ता के स्रोत माने जाते हैं यह तो स्वतः सिद्ध है कि कानून जनमत के अनुकूल होंगे उनका पालन आसानी से करवाया जा सकता है। स्विट्ज़रलैंड जैसे देश में जहां प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र किसी-न-किसी रूप में काम करता है यह स्रोत और भी महत्त्वपूर्ण हो जाता है।

प्रश्न 5.
कानून के स्रोत के रूप में रीति-रिवाजों का वर्णन करें।
उत्तर-
रीति-रिवाज कानून का सबसे पुराना स्रोत है। प्राचीनकाल में रीति-रिवाजों द्वारा ही सामाजिक व्यवहार को नियमित किया जाता था। रीति-रिवाजों को ही कबीले का कानून माना जाता था। जब राज्य की स्थापना हुई तो रीतिरिवाजों को ही कानून का रूप दिया गया। यह ठीक है कि रीति-रिवाज स्वयं कानून नहीं हैं पर राज्य के अधिकतर कानून रीति-रिवाजों पर ही आधारित होते हैं। कोई भी राज्य नीति-रिवाजों के विरुद्ध कानून बनाता है तो जनता उन कानूनों के विरुद्ध आन्दोलन करती है। महाराजा रणजीत सिंह जो निरंकुश बादशाह था, अपने कानूनों को रीति-रिवाजों के अनुसार ही बनाता था। भारत में हिन्दू लॉ (Hindu Law) तथा मुस्लिम लॉ (Muslim Law) जनता के रीतिरिवाजों पर आधारित हैं।

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प्रश्न 6.
धर्म किस प्रकार कानून के स्रोत के रूप में कार्य करता है ?
उत्तर-
धर्म कानून का महत्त्वपूर्ण स्रोत है। भारत में फिरोज तुग़लक ने वही टैक्स लगाए जिनकी कुरान में आज्ञा थी। औरंगज़ेब ने भी अधिक कानून कुरान के सिद्धान्तों के अनुसार बनाए। आज भी मुस्लिम देशों के अधिक कानून कुरान के सिद्धान्तों पर आधारित हैं। हिन्दुओं के विवाह तथा उत्तराधिकार से सम्बन्धित कानून उनकी धार्मिक पुस्तक ‘मनुस्मृति’ पर आधारित हैं। इस प्रकार धर्म भी कानून का एक महान् स्रोत है और आज भी इसका प्रभाव है।

प्रश्न 7.
कानून कितने प्रकार के होते हैं ?
उत्तर-
मुख्य तौर पर कानून चार प्रकार के होते हैं-

(1) अन्तर्राष्ट्रीय कानून
(2) राष्ट्रीय कानून
(3) संवैधानिक कानून
(4) व्यक्तिगत कानून।

  1. अन्तर्राष्ट्रीय कानून-अन्तर्राष्ट्रीय कानून वे नियम हैं जो राज्यों के आपसी सम्बन्धों को नियमित करते हैं और उनके झगड़ों को निपटाते हैं।
  2. राष्ट्रीय कानून-राष्ट्रीय कानून वे नियम हैं जो राज्य की सीमा के अन्दर व्यक्तियों तथा समुदायों पर लागू होते हैं। इन कानूनों को राज्य की मान्यता प्राप्त होती है।
  3. संवैधानिक कानून-संवैधानिक कानून वे कानून हैं जो सरकार की शक्तियों, कार्यों तथा संगठन को निश्चत करता है।
  4. व्यक्तिगत कानून-व्यक्तिगत कानून साधारण कानून का वह भाग है, जो व्यक्तियों के आपसी सम्बन्धों को नियमित करता है।

प्रश्न 8.
कानून के तत्त्वों का वर्णन करें।
उत्तर-

  1. कानून समाज में रहने वाले व्यक्तियों पर पारस्परिक सम्बन्धों को निश्चित करता है।
  2. कानून व्यक्तियों के बाहरी कार्यों को नियन्त्रित करता है।
  3. कानून का निर्माण राजनीतिक प्रभुसत्ताधारी द्वारा किया जाता है और उसी द्वारा लागू किया जाता है।
  4. कानून निश्चित तथा सर्वव्यापक होता है।
  5. कानून का उल्लंघन करने वाले को दंड दिया जाता है।

प्रश्न 9.
कानून तथा स्वतन्त्रता में क्या सम्बन्ध है ?
अथवा ‘कानून स्वतन्त्रता का विरोधी नहीं है।’ व्याख्या करो।
उत्तर-
व्यक्तिवादियों के मतानुसार राज्य जितने अधिक कानून बनाता है, व्यक्ति की स्वतन्त्रता उतनी कम होती है। अतः उनका कहना है, व्यक्ति की स्वतन्त्रता तभी सुरक्षित रह सकती है जब राज्य अपनी सत्ता का प्रयोग कमसे-कम करे।

परन्तु आधुनिक लेखकों के मतानुसार स्वतन्त्रता तथा कानून परस्पर विरोधी न होकर परस्पर सहायक तथा सहयोगी हैं। राज्य ही ऐसी संस्था है जो कानूनों द्वारा ऐसा वातावरण उत्पन्न करती है जिसमें व्यक्ति अपनी स्वतन्त्रता का आनन्द उठा सकता है। राज्य कानून बना कर एक नागरिक को दूसरे नागरिक के कार्यों में हस्तक्षेप करने से रोकता है। राज्य कानूनों द्वारा सभी व्यक्तियों को समान सुविधाएं प्रस्तुत करता है ताकि मनुष्य अपना विकास कर सके। स्वतन्त्रता और कानून एक-दूसरे के विरोधी न होकर एक-दूसरे के पूरक हैं। लॉक ने ठीक ही कहा है कि “जहां कानून नहीं वहां पर स्वतन्त्रता भी नहीं।”

प्रश्न 10.
एक अच्छे कानून की चार विशेषताएं बताइए।
उत्तर-

  1. कानून की भाषा सरल तथा स्पष्ट होनी चाहिए।
  2. कानून सार्वजनिक कल्याण के लिए होना चाहिए।
  3. कानून में स्थायीपन होना चाहिए।
  4. कानून देश तथा समाज की आवश्यकतानुसार होने चाहिएं।

प्रश्न 11.
कानून के प्रमुख उद्देश्य बताइए।
उत्तर-
विभिन्न विद्वानों ने कानून के भिन्न-भिन्न उद्देश्य बताए हैं। ऑर० पाण्डेय ने कानून के चार मुख्य उद्देश्य बताएं हैं-

  1. राज्य में शान्ति स्थापित करना
  2. समानता स्थापित करना
  3. व्यक्तित्व की रक्षा तथा उसका विकास करना तथा
  4. मनुष्य की आवश्यकताओं को पूरा करना।

प्रश्न 12.
कानून तथा नैतिकता में सम्बन्ध बताओ।
उत्तर-
कानून तथा नैतिकता में घनिष्ठ सम्बन्ध पाया जाता है। दोनों का उद्देश्य नैतिक जीवन के उच्चतम आदर्शों की स्थापना करना है। राज्य का उद्देश्य आदर्श नागरिक बनाना है और कोई भी आदर्श नागरिक बिना नैतिक आदर्शों के नहीं बन सकता। व्यक्ति यदि नैतिक है तो राज्य भी नैतिक होगा। राज्य के कानून प्रायः नैतिकता पर ही आधारित होते हैं और जो कानून नैतिकता के विरुद्ध होता है वह सफल नहीं होता और ऐसे कानून को लागू करना बड़ा कठिन होता है। राज्य के कानून नैतिकता को बढ़ावा देते हैं।

प्रश्न 13.
अध्यादेश (Ordinance) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
अध्यादेश वह कानून हैं जो किसी विशेष परिस्थिति पर काबू पाने के लिए जारी किए जाते हैं। अध्यादेश कार्यपालिका द्वारा उस समय जारी किए जाते हैं जब विधानमण्डल का अधिवेशन नहीं हो रहा होता। जब विधानमण्डल का अधिवेशन होता है तब इन अध्यादेशों के लिए विधानमण्डल से स्वीकृति लेनी पड़ती है। जिन अध्यादेशों को विधानमण्डल की स्वीकृति प्राप्त हो जाती है वे कानून बन जाते हैं और जिनको स्वीकृति प्राप्त नहीं होती वे रद्द हो जाते हैं। जब अध्यादेश जारी किया जाता है तब उसे साधारण कानून की तरह ही मान्यता प्राप्त होती है और जो व्यक्ति अध्यादेश का उल्लंघन करता है उसे दण्ड दिया जाता है।

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 5 कानून

प्रश्न 14.
हम कानून का पालन क्यों करते हैं ? अपने विचार दीजिए।
उत्तर-
कानून का पालन किसी भी सभ्य समाज के लिए अत्यावश्यक है। कानून के पालन के लिए निम्नलिखित तर्क दिए जा सकते हैं

  • कानून से समाज में शान्ति व सुरक्षा बनाई रखी जा सकती है–प्रायः प्रत्येक समाज में समाज विरोधी तत्त्व पाए जाते हैं। ये समाज में शान्ति व व्यवस्था को भंग करके नागरिकों की सुरक्षा के लिए ख़तरा उत्पन्न करते हैं। अतः इन समाज विरोधी तत्त्वों से निपटने तथा समाज में शान्ति व व्यवस्था बनाए रखने के लिए कानून का पालन करना अनिवार्य है।
  • कानून जन-कल्याण को बढ़ावा देते हैं लोगों के लिए कानून का पालन करना तब तक सम्भव नहीं होता जब तक कि उनमें कानून के प्रति सम्मान की भावना न हो और ऐसा तभी हो सकता है जब लोगों का विश्वास हो कि कानून सद्जीवन तथा जन कल्याण के विकास में सहायक होगा। लोगों में यदि यह विश्वास हो कि कानून के पालन से न केवल उनका अपना व्यक्तिगत विकास होगा सारे समाज का भी कल्याण होगा, तो वे कानून का पालन करेंगे।
  • नियमों के अनुरूप चलने की आदत-प्रायः लोगों का यह विश्वास है कि सामाजिक जीवन का समुचित ढंग से निर्वहन तभी किया जा सकता है यदि कानूनों का पालन किया जाए। इसे नियमों के अनुरूप चलने की आदत कहा जाता है। इसी कारण लोग कानूनों का पालन करते हैं।
  • कानून समाज में अनुशासन एवं संयम पैदा करते हैं।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
कानून का अर्थ लिखें।
उत्तर-
कानून शब्द को अंग्रेज़ी में लॉ (Law) कहते हैं। लॉ (Law) शब्द ट्यूटानिक भाषा में शब्द लैग (Lag) से निकला है जिसका अर्थ है निश्चित। इस प्रकार कानून शब्द का अर्थ हुआ निश्चित नियम।

प्रश्न 2.
कानून को परिभाषित करें।
उत्तर-

  • ऑस्टिन के शब्दों में, “कानून उच्चतर का निम्नतर को आदेश है।” फिर ऑस्टिन ने आगे लिखा है, “कानून प्रभुसत्ताधारी का आदेश है।”
  • वुडरो विल्सन के अनुसार, “कानून स्थापित विचारधारा तथा अभ्यास का वह भाग है जिन्हें सामान्य रूप के नियमों में स्वीकृति मिली होती है तथा जिन्हें सरकार की शक्ति का समर्थन प्राप्त होता है।”

प्रश्न 3.
कानून के किन्हीं दो स्रोतों का वर्णन करें।
उत्तर-

  1. रीति-रिवाज-रीति-रिवाज कानून के सबसे पुराना स्रोत हैं। प्राचीनकाल में रीति-रिवाजों द्वारा ही सामाजिक व्यवहार को नियमित किया जाता था। राज्य के अधिकतर कानून रीति-रिवाजों पर ही आधारित होते हैं।
  2. धर्म-धर्म कानून का महत्त्वपूर्ण स्रोत है। जिन रीति-रिवाजों को धर्म की मान्यता प्राप्त होती है उनका पालन अधिक होता है।

प्रश्न 4.
कानून के किन्हीं दो प्रकारों का वर्णन करो।
उत्तर-

  1. अन्तर्राष्ट्रीय कानून- अन्तर्राष्ट्रीय कानून वे नियम हैं जो राज्यों के आपसी सम्बन्धों को नियमित करते हैं और उनके झगड़ों को निपटाते हैं।
  2. राष्ट्रीय कानून-राष्ट्रीय कानून वे नियम हैं जो राज्य की सीमा के अन्दर व्यक्तियों तथा समुदायों पर लागू होते हैं। इन कानूनों को राज्य की मान्यता प्राप्त होती है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न-

प्रश्न I. एक शब्द/वाक्य वाले प्रश्न-उत्तर-

प्रश्न 1. कानून शब्द को अंग्रेजी में क्या कहते हैं ?
उत्तर-कानून शब्द को अंग्रेजी में लॉ (Law) कहते हैं।

प्रश्न 2. लॉ (Law) शब्द किस भाषा से निकला है ?
उत्तर-लॉ (Law) शब्द टयूटॉनिक भाषा के शब्द लेग (Lag) से निकला है।

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 5 कानून

प्रश्न 3. कानून की कोई एक परिभाषा दें।
उत्तर-ऑस्टिन के अनुसार, “कानून उच्चतर का निम्नतर को आदेश है।”

प्रश्न 4. कानून के कोई दो प्रकार लिखें।
उत्तर-

  1. राष्ट्रीय कानून
  2. अन्तर्राष्ट्रीय कानून।

प्रश्न 5. प्रशासकीय कानून किसे कहते हैं ?
उत्तर-प्रशासकीय कानून सार्वजनिक कानून का वह भाग है, जो राज्य तथा सरकारी कर्मचारियों के सम्बन्ध नियमित करता है।

प्रश्न 6. अन्तर्राष्ट्रीय कानून किसे कहते हैं?
उत्तर-अन्तर्राष्ट्रीय कानून वह नियम है, जो राज्यों के आपसी सम्बन्धों को नियमित करता है, और उनके झगड़ों को निपटाता है।

प्रश्न 7. कानून के कोई दो स्रोत लिखें।
उत्तर-

  1. रीति-रिवाज
  2. धर्म।

प्रश्न 8. राष्ट्रीय कानून किसे कहते हैं ?
उत्तर-राष्ट्रीय कानून वह नियम है जो राज्य की सीमा के अन्दर व्यक्तियों तथा समुदायों पर लागू होते हैं।

प्रश्न 9. संवैधानिक कानून किसे कहते हैं?
उत्तर-संवैधानिक कानून वह कानून है जो सरकार के संगठन, कार्यों तथा शक्तियों को निश्चित करता है।

प्रश्न 10. साधारण कानून किसे कहते हैं?
उत्तर-साधारण कानून राष्ट्रीय कानून का वह भाग है, जो व्यक्तियों के आपसी सम्बन्धों को निश्चित करता है।

प्रश्न II. खाली स्थान भरें-

1. …………… अधिकारों और कर्तव्यों की व्यवस्था है, जिसे राज्य लागू करता है।
2. कानून व्यक्ति के …………… कार्यों को नियन्त्रित करता है।
3. कानून …………. तथा सर्वव्यापक होता है।
4. कानून का उल्लंघन करने वाले को ……….. दी जाती है।
5. कानून ………… द्वारा लागू किये जाते हैं।
उत्तर-

  1. कानून
  2. बाहरी
  3. निश्चित
  4. सज़ा
  5. न्यायालयों ।

प्रश्न III. निम्नलिखित कथनों में से सही एवं ग़लत का चुनाव करें-

1. प्रो० गैटल के अनुसार कानून पांच प्रकार के होते हैं।
2. प्रो० हालैण्ड के अनुसार कानून दो प्रकार के होते हैं।
3. साधारण कानून राष्ट्रीय कानून का वह भाग है, जो व्यक्तियों के आपसी सम्बन्धों को निश्चित करता है।
4. सार्वजनिक कानून राज्य तथा व्यक्तियों के पारस्परिक सम्बन्धों को नियमित नहीं करता।
5. सामान्य कानून (General Law) सार्वजनिक कानून का वह भाग है, जो व्यक्तियों के आपसी सम्बन्धों को नियमित करता है।
उत्तर-

  1. ग़लत
  2. सही
  3. सही
  4. ग़लत
  5. ग़लत।

प्रश्न IV. बहुविकल्पीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
प्रो० मैकाइवर के अनुसार कानून का एक रूप/प्रकार है-
(क) सार्वजनिक कानून
(ख) राष्ट्रीय कानून
(ग) अन्तर्राष्ट्रीय कानून
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 2.
कानून का स्रोत है-
(क) रीति-रिवाज
(ख) धर्म
(ग) विधानमण्डल
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 3.
कौन-सा कानून लड़ाई-झगड़े, हत्या तथा डकैती इत्यादि से सम्बन्धित होता है ?
(क) दीवानी कानून
(ख) फौजदारी कानून
(ग) व्यक्तिगत कानून
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(ख) फौजदारी कानून।

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प्रश्न 4.
यह कथन किसका है कि “न्याय भावना नए कानून को बनाने या पुराने कानून को बदलने का औपचारिक तरीका है, जो व्यवहार की शुद्ध निष्पक्षता या समानता पर निर्भर है।”
(क) लॉस्की
(ख) विलोबी
(ग) गिलक्राइस्ट
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(ग) गिलक्राइस्ट।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 3(ii) ग्लेशियर के अनावृत्तिकरण कार्य

Punjab State Board PSEB 11th Class Geography Book Solutions Chapter 3(ii) ग्लेशियर के अनावृत्तिकरण कार्य Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Geography Chapter 3(ii) ग्लेशियर के अनावृत्तिकरण कार्य

PSEB 11th Class Geography Guide ग्लेशियर के अनावृत्तिकरण कार्य Textbook Questions and Answers

1. उत्तर एक-दो वाक्यों में दें-

प्रश्न (क)
भारत का सबसे बड़ा ग्लेशियर कौन-सा है ?
उत्तर-
भारत का सबसे बड़ा ग्लेशियर सियाचिन है।

प्रश्न (ख)
विश्व का सबसे बड़ा ग्लेशियर कौन-सा है ?
उत्तर-
विश्व का सबसे बड़ा ग्लेशियर हुब्बार्ड ग्लेशियर (अलास्का) है।

प्रश्न (ग)
हिमालय के कुल क्षेत्रफल में से कितना भाग बर्फ से ढका हुआ है ?
उत्तर-
हिमालय के कुल क्षेत्रफल में से 33000 वर्ग कि०मी० भाग बर्फ से ढका है।

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प्रश्न (घ)
इंदिरा कोल/पास कहाँ स्थित है ?
उत्तर-
इंदिरा कोल/पास उत्तर-पश्चिम हिमालय में स्थित है।

प्रश्न (ङ)
अंटार्कटिका का तापमान हर दस साल बाद कितना बढ़ता है ?
उत्तर-
अंटार्कटिका का तापमान हर दस साल बाद 0.12°C बढ़ता है।

2. निम्नलिखित में अन्तर स्पष्ट करो-

प्रश्न 1.
निम्नलिखित में अन्तर स्पष्ट कीजिए-
(क) बगली मोरेन-प्रतिसारी हिमोढ़/मोरेन
(ख) ड्रमलिन-ऐस्कर
(ग) सिरक-यू-आकार की घाटी।
उत्तर-
(क) बगली मोरेन (Lateral Moraine)-
पिघलती हुई हिमनदी अपने किनारों पर चट्टानों के ढेर बना कर सैंकड़ों फुट ऊँची दीवार बना देती है, इसे बगली मोरेन कहते हैं।

प्रतिसारी हिमोढ़/मोरेन (Recessional Moraine) –
जब हिमनदी पीछे हटती है और पिघलती है, तो उसके अंतिम सिरे पर एक गोल आकार की श्रेणी बन जाती है, जिसे प्रतिसारी मोरेन कहते हैं।

(ख) ड्रमलिन (Drumlin)-
आधे अंडे अथवा उलटी नाव के आकार जैसे टीलों को ड्रमलिन कहते हैं।

ऐस्कर (Eskar)-
हिमनदी के अगले भाग में हिम की एक गुफा बनती है, जिसमें हिमनदी का जल-प्रवाह होता है और एक टेढ़ीमेढ़ी श्रेणी बन जाती है।

(ग) सिरक अथवा बर्फ़ कुंड (Cirque)-
पर्वत की ढलान पर हिम से ढका एक कुंड बन जाता है जिसे सिरक कहते हैं। बर्फ के पिघलने से यहाँ एक झील बन जाती है।

यू-आकार की घाटी (U-Shaped Valley)-
जब यू-आकार की घाटी में हिम सरकती है, तो उसके दोनों सिरे तीखी ढलान वाले बन जाते हैं। यह घाटी अंग्रेजी भाषा के U-आकार जैसी बन जाती है।

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3. निम्नलिखित का उत्तर विस्तार सहित दो-

प्रश्न (क)
ग्लेशियर किसे कहते हैं ? इसको कितने भागों में बाँटा जा सकता है ?
उत्तर-
जब किसी हिम क्षेत्र में हिम बहुत अधिक बढ़ जाती है, तो यह नीचे की ओर खिसकती है। खिसकते हुए हिम पिंड को हिमनदी कहते है। (A Glacier is a large mass of moving ice.) कई विद्वानों ने हिम नदी को ‘बर्फ की नदी’ माना है। (Glacier are rivers of ice.)

हिम नदी के कारण-हिम नदी हिम क्षेत्रों से जन्म लेती है। लगातार हिमपात के कारण हिमखंडों का भार बढ़ जाता है। यह हिम समूह निचली ढलान की ओर एक जीभ (Tongue) के रूप में खिसकने लगता है। इसे हिम नदी कहते हैं।

हिम नदी के खिसकने के कई कारण हैं –

  1. हिम का अधिक भार (Pressure)
  2. ढलान (Slope)
  3. गुरुत्वाकर्षण शक्ति (Gravity)

सबसे तेज़ चलने वाली हिम नदियाँ ग्रीनलैंड में मिलती हैं, जो गर्मियों में 18 मीटर प्रतिदिन चलती हैं। हिम नदियाँ तेज़ ढलान पर और अधिक ताप वाले प्रदेशों में अधिक गति से चलती हैं, पर कम ढलान और ठंडे प्रदेशों में धीरे-धीरे आगे बढ़ती हैं। ये हिम नदियाँ हिम क्षेत्रों से सरक कर मैदानों में आकर पिघल जाती हैं और कई नदियों के पानी का स्रोत बनती हैं, जिस प्रकार भारत में गंगा नदी गंगोत्री हिम नदी से जन्म लेती है।

हिम नदी के प्रकार (Types of Glaciers)-स्थिति और आकार के आधार पर हिम नदियाँ तीन प्रकार की होती हैं-

1. घाटी ग्लेशियर (Valley Glaciers)—इसे पर्वतीय हिम नदी (Mountain Glaciers) भी कहते हैं। यह हिम नदी ऊंचे पहाड़ों की चोटियों से उतर कर घाटियों में बहती है। यह हिमनदी एक चौड़े और गहरे बेसिन (Basin) की रचना करती है। सबसे पहले अल्पस (Alps) पहाड़ में मिलने के कारण इसे अल्पाइन (Alpine) हिमनदी भी कहते हैं। हिमालय पर्वत पर इस प्रकार की कई हिम नदियाँ भी हैं, जिस प्रकार गंगोत्री हिम नदी जो कि 25 कि०मी० लंबी है। भारत में सबसे बड़ी हिम नदी काराकोरम पर्वत में सियाचिन (Siachin) है, जोकि 72 कि०मी० लंबी है। अलास्का में संसार की सबसे बड़ी हिम नदी हुब्बार्ड है, जोकि
128 कि०मी० लंबी है।

2. महाद्वीपीय ग्लेशियर (Continental Glaciers)-बड़े क्षेत्रों में फैली हुई हिम नदियों को महाद्वीपीय हिम नदी अथवा हिम चादर (Ice Sheets) कहते हैं। इस प्रकार की हिम चादरें ध्रुवीय क्षेत्रों (Polar Areas) में मिलती हैं। लगातार हिमपात, निम्न तापमान और कम वाष्पीकरण के कारण हिम पिघलती नहीं है। संसार की सबसे बड़ी हिम चादर अंटार्कटिका (Antarctica) में 130 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में 1500 मीटर मोटी है। ग्रीनलैंड (Greenland) में ऐसी ही एक हिम चादर का क्षेत्रफल 17 लाख वर्ग किलोमीटर है। आज से लगभग 25 हज़ार वर्ष पहले हिम युग (Ice Age) में धरती का 1/3 भाग हिम चादरों से ढका हुआ था।

3. पीडमांट ग्लेशियर (Piedmont Glaciers)—ये हिम नदियाँ पर्वतों के निचले भागों में होती हैं। वादी हिम नदियाँ जब पर्वतों के आगे कम ढलान वाली भूमि पर फैल जाती हैं और इनमें अनेक हिम नदियाँ आकर मिल जाती हैं, तो ये एक विशाल रूप बना लेती हैं। ऐसी हिमनदी को पर्वत-धारा हिमनदी या पीडमांट हिमनदी कहते हैं। ऐसी हिम नदियाँ अलास्का में बहुत मिल जाती हैं। यहां की मैलास्पीन (Melaspine) हिमनदी पीडमांट हिमनदी है। हिमाचल प्रदेश की कुल्लू घाटी में मोम (Mom) हिमनदी इसका एक अन्य उदाहरण है।

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प्रश्न (ख)
ग्लेशियर अनावृत्तिकरण का एक महत्त्वपूर्ण साधन है, कैसे ?
उत्तर-
ग्लेशियरों द्वारा अनावृत्तिकरण-ग्लेशियर अनावृत्तिकरण का महत्त्वपूर्ण साधन है
प्राचीन समय से अनावृत्तिकरण-यदि पृथ्वी का इतिहास देखा जाए, तो कई हज़ार साल पहले बर्फ़ युग (Ice Age) में धरती का 20% हिस्सा ग्लेशियरों के अधीन था, परंतु आज यह भाग केवल 10% तक ही सीमित रह गया है। ऐसा वैश्विक जलवायु (Global Climate) में बदलाव आने से हुआ है।

ग्लेशियरों का विस्तार-अंटार्कटिक और ग्रीनलैंड में, विश्व के ग्लेशियरों का 96% भाग है। अंटार्कटिक में तो इस बर्फ की तह की मोटाई (Thickness) कई स्थानों पर 1500 मीटर और कई स्थानों पर 4000 मीटर तक भी है।

ग्लेशियर और तापमान-अमेरिकी अंतरिक्ष खोज एजेंसी (NASA) की एक खोज के अनुसार पिछले 50 वर्षों में अंटार्कटिक का तापमान 0.12° प्रति दशक (Per Decade) गर्म हो रहा है, जिसके फलस्वरूप बर्फ की परतों के तल (Ice Sheets) टूटते जा रहे हैं और समुद्र (Sea Level) 73 मीटर तक ऊँचा उठ गया है।

ग्लेशियर और हिमपात (Snowfall)—ग्लेशियर केवल पहाड़ों, उच्च अक्षांशों अथवा ध्रुवों के पास ही मिलते हैं क्योंकि इन स्थानों पर तापमान हिमांक से भी नीचे होता है। पृथ्वी के इन क्षेत्रों में बर्फ रूपी वर्षा होती है। बर्फ की वर्षा में बर्फ रुई के समान कोमल होती है। लगातार बर्फ की वर्षा होने से और तापमान बहुत ही कम होने के कारण बर्फ की निचली परतें जमती रहती हैं और बर्फ ठोस रूप धारण कर लेती है। इसे ग्लेशियर कहते हैं। बर्फ की वर्षा अधिकांश क्षेत्रों में सर्दी के मौसम में ही होती है, जबकि गर्मी बर्फ को पिघलाने का काम करती है।

ग्लेशियरों का सरकना-धरती की ढलान और गर्मी के कारण जिस समय बर्फ धीरे-धीरे खिसकना शुरू कर देती है, तो इसे ग्लेशियर का सरकना या खिसकना कहा जाता है। 1834 में Lious Agassiz ने सिद्ध किया था कि ग्लेशियर के चलने की दर मध्य में सबसे अधिक और किनारों की ओर कम होती जाती है।

मैदानों की रचना- ग्लेशियर रेत, बजरी आदि के निक्षेप से मैदानों की रचना करते हैं, जो उपजाऊ क्षेत्र होते हैं।
पानी के भंडार-ग्लेशियर पिघलने के बाद पूरा वर्ष पानी प्रदान करते हैं।
झरने-कई स्थानों पर झरने बनते हैं, जो बिजली पैदा करने में मदद करते हैं।
झीलें-ग्लेशियर कई झीलों का निर्माण करते हैं, जैसे-Great Lake.

प्रश्न (ग)
ग्लेशियर के जलोढ़ निक्षेप क्या है ? विस्तार सहित व्याख्या करो।
उत्तर-
ग्लेशियर का निक्षेपण कार्य (Depositional Work of Glacier)-
पर्वतों के निचले भाग में आकर जब हिमनदी पिघलना आरंभ कर देती है, तो इसके द्वारा प्रवाहित चट्टानें, पत्थर, कंकर आदि निक्षेप हो जाते हैं। हिम के पिघलने से बनी जल धाराओं द्वारा भी इन पदार्थों को ढोने में सहायता मिलती है। हिमनदी द्वारा किए गए निक्षेप नीचे लिखे दो प्रकार के होते हैं

  1. ड्रिफ्ट (Drift)
  2. टिल्ल (Till).

हिम नदी द्वारा बहाकर लाए गए पत्थर, चट्टानी टुकड़े, कंकर आदि को हिमनदी ढेर कहा जाता है। यह सामग्री अलग-अलग स्थितियों में कटकों (Ridges) के रूप में जमा हो जाती है। इन कटकों को मोरेन (Moraine) कहा जाता है। मोरेन के अलग-अलग रूप नीचे लिखे हैं –

1. बगली मोरेन (Lateral Moraine) पिघलती हई हिम नदी जो पदार्थ अपने किनारों पर जमा करती है, वे एक कटक के रूप में एकत्र हो जाते हैं। इन्हें बगली मोरेन कहा जाता है। ये लगभग 30 मीटर ऊँचे होते हैं।

2. मध्यवर्ती अथवा सांझे मोरेन (Medial Moraine)-जब दो हिम नदियाँ आपस में मिलती हैं और वे संयुक्त रूप में आगे बढ़ती हैं तो उनके संगम के भीतरी किनारों की तरफ आधे चाँद जैसे मोरेन भी मिलकर आगे बढ़ते हैं। इन्हें मध्यवर्ती या सांझे मोरेन कहते हैं।

3. तल के मोरेन (Ground Moraine)-हिम नदी के तल पर बड़े चट्टानी टुकड़े और भारी पत्थर होते हैं, जो साथ-साथ तल को घिसाते हुए आगे बढ़ते हैं। हिम नदी के पिघलने पर ये भारी चट्टानें तल पर एकत्र होकर कटक का रूप धारण कर लेती हैं। ऐसे कटकों को तल के मोरेन कहते हैं। इस मोरेन में अधिकतर चट्टानी टुकड़े, पत्थर और चिकनी मिट्टी होती है। इसे बोल्डर क्ले या टिल्ल (Boulder Clay or Till) कहते हैं।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 3(ii) ग्लेशियर के अनावृत्तिकरण कार्य 1

4. अंतिम मोरेन (Terminal Moraine)-हिम नदी द्वारा कुछ पत्थर इसके अगले भाग में धकेल दिए जाते हैं। हिम नदी के पिघलने के बाद यह इसके अगले भाग में ही एकत्र होकर एक चट्टान का रूप धारण कर लेते हैं। इसे अंतिम मोरेन कहते हैं।

5. मोरेन झील (Moraine Lake)-हिम नदी के अगले भाग में कुछ बर्फ पिघल जाती है। यदि वहाँ अंतिम मोरेन हों तो इस जल का बहाव रुक जाता है और वहाँ एक झील बन जाती है, जिसे मोरेन झील कहते हैं।

6. केतलीनुमा सुराख (Kettle Holes)—जब ग्लेशियर चलता है, तो इसके ऊपर पत्थर या चट्टानों के टुकड़े गिर जाते हैं और कुछ समय बाद बर्फ पिघलती है, तो ग्लेशियर के अंदर छोटे-बड़े सुराख बन जाते हैं, जिन्हें केतलीनुमा सुराख कहते हैं। इसे नॉब और बेसिन भू-आकृति (Knob and Basin Topography) कहते हैं।

7. विस्थापित चट्टानी खंड (Erratic Blocks)-हिम नदी बड़े चट्टानी खंडों और भारी पत्थरों को प्रवाहित करके पर्वत के निचले भाग में ले जाती है और पिघलने पर उनका वहाँ निक्षेपण हो जाता है। ये चट्टानी खंड रचना में निकटवर्ती भूमि की चट्टानों के समान नहीं होते। इन्हें विस्थापित चट्टानी खंड कहते हैं।

8. हिमोढ़ी टीले (Drumlins)-हिम नदी तल पर हिमोढ़ को कई बार छोटे-छोटे गोल टीलों (Mounds) के रूप में इस तरह जमाकर देती है कि वे आधे अंडे अथवा उलटी नाव के समान दिखाई देते हैं। इन्हें हिमोढ़ी टीले (Drumlins) कहते हैं। दूर से देखने पर ये अंडे की टोकरी के समान प्रतीत होते हैं, इसलिए इस आकार वाली भूमि को अंडों की टोकरी वाली भू-आकृति (Basket of Eggs Topography) कहते हैं।

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प्रश्न (घ)
ग्लेशियर (हिम नदी) की अपघर्षण की क्रिया से कौन-कौन-सी रूप रेखाएँ बनती हैं, वर्णन करें।
उत्तर-
हिम नदी का अपरदन कार्य (Erosional Work of Glacier)-

पर्वतीय ढलानों से चट्टानी टुकड़े, पत्थर, कंकर आदि गुरुत्वाशक्ति के प्रभाव से घाटी हिम नदी के तल पर गिरते रहते हैं। कुछ समय बाद ये पत्थर आदि दिन के समय गर्म हो जाते हैं और बर्फ़ को पिघलाकर हिम नदी के तल (bed) पर पहुंच जाते हैं और हिम नदी के साथ-साथ चलते हैं। हिम नदी पर ये उपकरण बनकर अपरदन का काम करते हैं।

हिम नदी का अपघर्षण/अपरदन (Glacier Erosion)-

पानी के समान हिम नदी भी अपघर्षण/अपरदन, ढोने और जमा करने के तीन काम करती है। हिम नदी पहाड़ी प्रदेशों में अपघर्षण का काम, मैदानों में जमा करने और पठारों में रक्षात्मक काम करती है।

अपघर्षण (Erosion)-हिम नदी अनेक क्रियाओं द्वारा अपघर्षण का काम करती है-

  1. तोड़ने की क्रिया (Plucking or Quarrying)
  2. खड्डे बनाना (Grooving)
  3. अपघर्षण (Abrasion)
  4. पीसना (Grinding)
  5. चमकाना (Polishing)

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हिम नदी के कार्य हिम नदी अपने रास्ते के बड़े-बड़े पत्थरों को खोदकर खड्डे पैदा कर देती है। हिम-स्खलन (Avalanche) और भू-स्खलन (Land Slide) के कारण कई चट्टानी पत्थर हिम नदी के साथ मिल जाते हैं। ये पत्थर चट्टानों के साथ रगड़ते और घिसते हुए चलते हैं और हिम नदी के तल और किनारों को चिकना बनाते हैं। पहाड़ी प्रदेशों का रूप ही बदल जाता है। घाटी का तल चमकीला और चिकना हो जाता है। हिम नदी का अपघर्षण कई तत्त्वों पर निर्भर करता है

  1. हिम की मोटाई (Amount of Ice)-अधिक हिम के कारण कटाव भी अधिक होता है।
  2. चट्टानों की रचना (Nature of Rocks)-कठोर चट्टानों पर कम और नर्म चट्टानों पर अधिक कटाव होता है।
  3. हिम नदी की गति (Movement of Glaciers)-तेज़ गति वाली हिम नदियाँ शक्तिशाली होती हैं और अधिक कटाव करती हैं।
  4. भूमि की ढलान (Slope of Land)–धरातल की तेज़ ढलान अधिक अपरदन करने में सहायक होती है।

हिम नदी के अपघर्षण द्वारा बनी भू-आकृतियाँ (Land forms Produced by Glacier Erosion) –

हिम नदी के अपरदन क्रिया द्वारा पर्वतों में नीचे लिखी भू-आकृतियाँ बनती हैं-

1. बर्फ कुंड अथवा सिरक (Cirque or Corrie or CWM)-सूर्य-ताप के कारण दिन के समय कुछ मात्रा में हिम पिघल कर जल के रूप में दरारों में प्रवेश कर जाती है। रात के समय अधिक सर्दी होने के कारण यह जल फिर हिम में बदल जाता है और फैल जाता है फलस्वरूप यह चट्टानों पर दबाव डालकर उन्हें तोड़

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देता है। इस क्रिया में नियमित रूप में चलते रहने के फलस्वरूप पर्वत की ढलान पर खड्डा बन जाता है। सामान्य रूप से यह बर्फ से भरा रहता है और धीरे-धीरे तुषारचीरन (Frost Wedging) की क्रिया से एक विशाल कुंड का रूप धारण कर लेता है। इसे हिमगार भी कहा जाता है। इसे फ्रांस में सिरक (Cirque), स्कॉटलैंड में कोरी (Corrie), जर्मनी में कैरन (Karren) और इंग्लैंड में वेल्ज़ (Wales of England) के कूम (CWM) कहते हैं। हिमगार की बर्फ़ जब पिघल जाती है, तो इसमें पानी भरा रहता है, इसे गिरिताल (Tarn Lake) कहते हैं। इसी प्रकार पर्वतीय ढलानों पर अर्धगोले के आकार के खड्डों को हिम कुंड कहते हैं (Cirques are Semi-circular hollow on the side of a mountain)। इनका आकार आरामकुर्सी (Arm chair) अथवा कटोरे के समान होता है।

2. दर्रा अथवा कोल (Pass or Col) कई बार पर्वत की विपरीत ढलानों की एक समान ऊँचाई पर हिमगार कारण पर्वत का वह भाग बाकी भागों की अपेक्षा नीचा हो जाता है। पर्वत के इस निचले भाग को दर्रा (Saddle) कहते हैं। कनाडा का रेल मार्ग कोल क्षेत्रों में से निकलता है।

3. कंघीदार श्रृंखला (Comb Ridge)-कई बार पर्वत माला की एक श्रृंखला (Ridge) के विपरीत ढलानों पर कई हिमगार बन जाते हैं और श्रृंखला कई स्थानों से नीची हो जाती है, जिसके फलस्वरूप श्रृंखला कंघी के आकार की प्रतीत होती है और इसके चट्टानी खंभे (Rock-Pillars) दिखाई देते हैं। कुछ समय के बाद जब ये खंभे नष्ट हो जाते हैं तो श्रृंखला उस्तरे जैसी तीखी धार वाली (Rajor-edged) बन जाती है। तब इस श्रृंखला को एरैटी या तीखी श्रृंखला (Arete) कहते हैं।

4. पर्वत या गिरि श्रृंग (Horn)-कई बार किसी पर्वत के दो-तीन या चारों तरफ एक जैसी ऊँचाई पर हिमगारों का निर्माण हो जाता है। कुछ समय के बाद उनकी पिछली तरफ के शिखर के कटाव के कारण ये अंदर ही अंदर आपस में मिल जाते हैं, जिसके फलस्वरूप इनके मध्य में एक ठोस पिरामिड (Pyramid) आकार का शिखर बाकी रह जाता है।

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इस शिखर को पर्वत-श्रृंग कहते हैं। स्विट्ज़रलैंड (Switzerland) का मैटरहॉर्न (Matterhorn) इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। इसके अतिरिक्त कश्मीर घाटी पहलगाम (Pahalgam) से 25 किलोमीटर ऊपर की ओर कोलहाई (Kholhai) हिम नदी के स्रोत पर ऐसा ही एक पर्वत श्रृंग है।

5. भेड़ पहाड़ या रोशे मुताने (Sheep Rocks or Roche Muttonne)-हिम नदी के मार्ग में अनेक छोटी छोटी रुकावटें आती हैं, जिन्हें वह अपने प्रवाह के दबाव के साथ उखाड़ देती है। परंतु कई बार बड़ी रुकावटों जैसे पर्वतीय टीलों आदि को उखाड़ने में वह असमर्थ रहती है। परिणामस्वरूप इसे उन रुकावटों के ऊपर से होकर निकलना पड़ता है। हिम नदी के सामने वाली ढलान हिमनदी संघर्षण क्रिया द्वारा घिसकर

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चिकनी और नर्म (Smooth) हो जाती है। हिमनदी जब टीले की दूसरी तरफ उतरती है, तो यह अपनी उखाड़ने की शक्ति (Plucking) द्वारा चट्टानों को उखाड़ देती है। इससे दूसरी तरफ की ढलान ऊबड़-खाबड़ हो जाती है। ये टीले दूर से ऐसे लगते हैं, जैसे भेड़ की पीठ हो, इसलिए इसे भेड़-पीठ कहते हैं। ‘Roche Muttonne’ फ्रांसीसी (French) भाषा के दो शब्द हैं, जिनका अर्थ भेड़-दुम चट्टान होता है।

6. यू-आकार की घाटी (U-Shaped Valley)-हिमनदी सदा पहले से बनी घाटी में बहती है। जिस घाटी में हिम नदी चलती है, उसे अपनी घर्षण और उखाड़ने की क्रिया द्वारा नीचे से और दोनों तरफ से तीखी ढलान वाली बना देती है, जिसके कारण हिम नदी घाटी अंग्रेजी भाषा के अक्षर ‘U’ आकार की बन जाती है। नदी द्वारा बनी V- आकार की घाटियाँ हिम नदी की अपरदन क्रिया द्वारा U- आकार की हो जाती हैं। इसका तल समतल और चौकोर होता है। इसके किनारे खड़ी ढलान वाले होते हैं। समुद्र में डूबी हुई यू-आकार की घाटियों को फियॉर्ड (Fiord) कहते हैं। उदाहरण-उत्तरी अमेरिका में सेंट लारेंस घाटी।

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7. लटकती घाटी (Hanging Valley)–एक बड़ी हिमनदी में कई छोटी हिम नदियाँ आकर मिलती हैं। ये मुख्य हिम नदी की सहायक (Tributaries) कहलाती हैं। मुख्य हिम नदी सहायक हिम नदियों के मुकाबले में अधिक अपरदन करती है, जिसके कारण मुख्य हिम नदी घाटी का तल, सहायक हिम नदी के तल की तुलना में अधिक नीचा हो जाता है। कुछ समय के बाद, जब हिम नदियाँ पिघल जाती हैं, तो सहायक नदियों की घाटियाँ मुख्य नदी की घाटी पर लटकती हुई दिखाई देती हैं और वहाँ जल झरने बन जाते हैं। इस प्रकार यह लटकती घाटियाँ मुख्य हिम नदी और सहायक हिम नदी की घाटियों में अपरदन की भिन्नता के कारण बनती हैं।

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Geography Guide for Class 11 PSEB ग्लेशियर के अनावृत्तिकरण कार्य Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर 2-4 शब्दों में दें-

प्रश्न 1.
भारत की किसी एक हिमनदी का नाम बताएँ।
उत्तर-
सियाचिन।

प्रश्न 2.
हिमनदी शृंग का एक उदाहरण दें।
उत्तर-
मैटर हॉर्न।

प्रश्न 3.
विश्व के कितने क्षेत्र में ग्लेशियर हैं ?
उत्तर-
10 प्रतिशत।

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प्रश्न 4.
अंटार्कटिका में हिम की मोटाई बताएँ।
उत्तर-
4000 मीटर।

प्रश्न 5.
उस विद्वान का नाम बताएँ, जिसने पुष्टि की थी कि हिम नदी की गति होती है।
उत्तर-
लुईस अगासीज़।

प्रश्न 6.
हिमालय पर्वत की हिम रेखा की ऊँचाई बताएँ।
उत्तर-
5000 मीटर।

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प्रश्न 7.
अलास्का के पीडमांट ग्लेशियर का नाम बताएँ।
उत्तर-
मैलास्पीना।

प्रश्न 8.
सिरक के अन्य नाम बताएँ।
उत्तर-
कोरी, कैरन।

अति लघु उत्तरात्मक प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर 2-3 वाक्यों में दें-

प्रश्न 1.
हिम क्षेत्र से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
हिम क्षेत्र (Snow field) हिम रेखा से ऊपर सदैव बर्फ से ढके प्रदेशों को हिम क्षेत्र कहते हैं।

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प्रश्न 2.
हिम रेखा किसे कहते हैं ?
उत्तर-
हिम रेखा (Snow line)—यह वह ऊँचाई है, जिसके ऊपर सारा साल हिम जमी रहती है।

प्रश्न 3.
घाटी हिम नदी क्या है ?
उत्तर-
घाटी हिम नदी (Valley Glacier)—पर्वतों से खिसककर घाटी में उतरने वाली हिम नदी को घाटी हिम नदी कहते हैं।

प्रश्न 4.
महाद्वीपीय हिम नदी क्या है ?
उत्तर-
महाद्वीपीय हिम नदी (Continental Glacier) ध्रुवीय क्षेत्रों के बड़े क्षेत्रों पर हिम चादर को महाद्वीपीय नदी कहते हैं।

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प्रश्न 5.
हिमकुंड की परिभाषा दें।
उत्तर-
हिमकुंड (Cirque)-पर्वतीय ढलानों पर अर्धगोले के आकार के गड्ढों को हिमकुंड कहते हैं।

प्रश्न 6.
हिम रेखा की ऊँचाई किन तत्वों पर निर्भर करती है ?
उत्तर-

  1. अक्षांश
  2. हिम की मात्रा
  3. पवनों
  4. ढलान।

प्रश्न 7.
हिमालय पर्वत पर हिमरेखा की ऊँचाई बताएँ।
उत्तर-
5000 मीटर।

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प्रश्न 8.
ध्रुवों पर हिमरेखा की ऊँचाई बताएँ।
उत्तर-
समुद्र तल।

प्रश्न 9.
हिम नदी किसे कहते हैं ?
उत्तर-
हिम क्षेत्रों से नीचे की ओर खिसकते हुए हिमकुंड को हिम नदी कहते हैं।

प्रश्न 10.
भारत में सबसे बड़ी हिम नदी कौन-सी है ?
उत्तर-
सियाचिन।

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प्रश्न 11.
गंगा नदी किस हिमनदी से जन्म लेती है ?
उत्तर-
गंगोत्री।

प्रश्न 12.
हिम नदियों के तीन मुख्य प्रकार बताएँ।
उत्तर-
घाटी हिम नदी, पीडमांट हिम नदी, हिम चादर (महाद्वीपीय हिम नदी)

प्रश्न 13.
हिम-स्खलन (Avalanche) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
नीचे की ओर खिसकती बर्फ पर्वतीय ढलानों से चट्टानी टुकड़े उखाड़ लेती है, इन्हें हिम-स्खलन (Avalanche) कहते हैं।

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प्रश्न 14.
महाद्वीपीय हिम नदी से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
जब कोई हिम नदी एक विशाल क्षेत्र को घेर लेती है, जैसे कि एक महाद्वीप, तब उसे हिम चादर या महाद्वीपीय हिम नदी कहते हैं।

प्रश्न 15.
हिम नदी के अपरदन के रूप बताएँ।
उत्तर-

  1. उखाड़ना (Plucking)
  2. खड्डे बनाना (Grooving),
  3. अपघर्षण (Abrasion),
  4. पीसना (Grinding)

प्रश्न 16.
सिरक (Cirque) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
पर्वतीय ढलानों पर अर्धगोले के आकार के खड्डों को हिमकुंड या सिरक कहते हैं।

प्रश्न 17.
टार्न झील (गिरिताल) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
किसी सिरक में बर्फ के पिघलने के बाद एक झील बन जाती है, जिसे टार्न झील या गिरिताल कहते हैं।

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प्रश्न 18.
पर्वतश्रृंग (Horn) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
किसी पहाड़ी के पीछे के कटाव के कारण नुकीली चोटियाँ बनती हैं, जिन्हें Horn कहते हैं।

प्रश्न 19.
कोल या दर्रा किसे कहते हैं ?
उत्तर-
किसी-पहाड़ी के दोनों तरफ के सिरक आपस में मिलने से एक दर्रा बनता है, जिसे कोल (Col) या दर्रा (Pass) कहते हैं।

प्रश्न 20.
फियॉर्ड से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
तटों पर डूबी हुई यू-आकार की घाटियों को फियॉर्ड कहते हैं।

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प्रश्न 21.
हिमोढ़ किसे कहते हैं ?
उत्तर-
हिम नदी अपने भार को एक टीले के रूप में जमा करती है, जिसे हिमोढ़ कहते हैं।

लघु उत्तरात्मक प्रश्न (Short Answer Type Questions)

नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर 60-80 शब्दों में दें-

प्रश्न 1.
हिम रेखा किसे कहते हैं ? इसकी ऊँचाई किन तत्त्वों पर निर्भर करती है ?
उत्तर-
हिम रेखा (Snow line) स्थायी हिम क्षेत्रों की निचली सीमा को हिम रेखा कहते हैं। इस स्थल पर सबसे कम ऊँचाई होती है, जहाँ सदा हिम जमी रहती है। यह वह ऊंचाई है, जिसके ऊपर हिम पिघल नहीं सकती और सारा साल हिम रहती है। धरती के अलग-अलग भागों में हिम रेखा की ऊँचाई अलग-अलग होती है, जैसे हिमालय पर 5000 मीटर, अल्पस पहाड़ पर 2000 मीटर है। हिमरेखा की ऊँचाई पर कई तत्त्वों का प्रभाव पड़ता है-

  1. अक्षांश (Latitude)—ऊँचे अक्षांशों पर कम तापमान होने के कारण, हिम रेखा की ऊँचाई कम होती है, परंतु निचले अक्षांशों में हिम रेखा की अधिक ऊँचाई मिलती है। ध्रुवों पर हिम रेखा समुद्री तल पर मिलती है। भूमध्य रेखा पर हिम क्षेत्र 5500 मीटर की ऊँचाई पर मिलते हैं।
  2. हिम की मात्रा (Amount of Snow)-अधिक हिम वाले क्षेत्रों में हिम रेखा नीचे होती है, परंतु कम हिम वाले क्षेत्रों में हिमरेखा ऊँची होती है।
  3. पवनें (Winds)—शुष्क हवा के कारण ऊँची और नम हवा के कारण निचली हिम रेखा मिलती है। 4. ढलान (Slope)-तीव्र ढलान पर ऊँची और मध्यम ढलान पर निचली हिम रेखा मिलती है।

प्रश्न 2.
घाटी हिम नदी पर एक नोट लिखें।
उत्तर-
घाटी हिम नदी (Valley Glaciers)—इन्हें पर्वतीय हिम नदी (Mountain Glaciers) भी कहते हैं। ये हिम नदी ऊँचे पहाड़ों की चोटियों से उतर कर घाटियों में बहती है। यह हिम नदी एक चौड़े और गहरे बेसिन (Basin) की रचना करती है। सबसे पहले अल्पस पहाड़ (Alps) में मिलने के कारण इन्हें एल्पाइन (Alpine) हिम नदी भी कहते हैं। हिमालय पहाड़ पर इस प्रकार की कई हिम नदियाँ भी हैं, जैसे गंगोत्री हिम नदी, जोकि 25 कि०मी० लंबी है। भारत में सबसे बड़ी हिमनदी काराकोरम पर्वत में सियाचिन (Siachin) है, जोकि 72 कि०मी० लंबी है। अलास्का में संसार की सबसे बड़ी हिमनदी हुब्बार्ड है, जोकि 128 कि०मी० लंबी है।

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प्रश्न 3.
महाद्वीपीय हिम नदियों का विस्तार बताएँ।
उत्तर-
महाद्वीपीय हिम नदियाँ (Continental) Glaciers)-बड़े क्षेत्रों में फैली हुई हिम नदियों को महाद्वीपीय हिमनदी या हिम चादर (Ice Sheets) कहते हैं। इसी प्रकार की हिम चादरें ध्रुवीय क्षेत्रों (Polar Areas) में मिलती हैं। लगातार हिमपात, कम तापक्रम और कम वाष्पीकरण के कारण हिम पिघलती नहीं है। संसार की सबसे बड़ी हिम चादर अंटार्कटिका (Antarctica) में 130 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में 1500 मीटर मोटी है। ग्रीनलैंड (Greenland) में ऐसी ही एक हिमचादर का क्षेत्रफल 17 लाख वर्ग कि०मी० है।

प्रश्न 4.
हिम नदी के अपरदन का कार्य किन कारकों पर निर्भर करता है ?
उत्तर-

  1. हिम की मोटाई (Amount of Ice)-अधिक हिम के कारण अधिक कटाव होता है।
  2. चट्टानों की रचना (Nature of Rocks)-कठोर चट्टानों पर कम और नर्म चट्टानों पर अधिक कटाव होता
  3. हिमनदी की गति (Movement of Glaciers)—तेज़ गति वाली हिम नदियाँ शक्तिशाली होती हैं और अधिक कटाव करती हैं।
  4. भूमि की ढलान (Slope of Land)–धरातल की तेज़ ढलान अधिक अपरदन में सहायक होती है।

प्रश्न 5.
मोरेन (हिमोढ़) कितने प्रकार के होते हैं ?
उत्तर-
निक्षेपण के स्थान के आधार पर मोरेन चार प्रकार के होते हैं-

  1. बगली मोरेन (Lateral Moraines) हिमनदी के किनारों के साथ-साथ बने लंबे और कम चौड़े मोरेन को बगली मोरेन कहते हैं। ये मोरेन एक लंबी श्रेणी (Ridge) के रूप में लगभग 30 मीटर ऊँचे होते हैं।
  2. मध्यवर्ती (सांझे) मोरेन (Medial Moraines)—दो हिम नदियों के संगम के कारण उनके भीतरी किनारे वाले अर्ध-चंद्र के आकार के टीले मिलकर एक हो जाते हैं। इसे मध्यवर्ती या सांझे मोरेन कहते हैं। ये मोरेन नदी के बीच दिखाई देते हैं।
  3. अंतिम मोरेन (Terminal Moraines) हिमनदी के पिघल जाने पर इसके अंतिम किनारे पर बने मोरेन को अंतिम मोरेन कहते हैं। ये मोरेन अर्ध चंद्रमा के आकार जैसे और ऊँचे-नीचे होते हैं।
  4. तल के मोरेन (Ground Moraines)-हिम नदी के तल या आधार पर जमे हुए पदार्थों के ढेर को तल के मोरेन कहते हैं।

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प्रश्न 6.
हिमपात या बर्फबारी से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
हिमपात या बर्फबारी (Snowfalls)-उच्च अक्षांशों के प्रदेशों और ऊँचे पर्वतीय क्षेत्रों में बादलों से पानी के स्थान पर बर्फ (Snow) गिरती है। इसे हिमपात या बर्फबारी कहते हैं। इसका मूल कारण वहाँ की अति ठंडी जलवायु है। ये प्रदेश सदा बर्फ से ढके रहते हैं।

ध्रुवीय और ऊँचे पर्वत सदा बर्फ से ढके रहते हैं। इन प्रदेशों में सारा साल वर्षा, बर्फबारी (Snowfall) के रूप में होती है। लगातार बर्फ गिरने के कारण यह जमकर ठोस हो जाती है और हिम (Ice) बन जाती है। ऊंचे पहाड़ों पर गर्मी की ऋतु में ही हिमनदी पिघलती है। ऐसे हिम के साथ सदा ढके रहने वाले क्षेत्रों को हिमक्षेत्र (Snow fields) या नेवे (Neves) कहते हैं। संसार के सबसे ऊँचे क्षेत्रों पर हिम-क्षेत्र मिलते हैं। हिमक्षेत्र हिमरेखा से ऊँचे स्थित होते हैं। हिमक्षेत्र ऑस्ट्रेलिया को छोड़कर सभी महाद्वीपों में मिलते हैं।

निबंधात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर 150-250 शब्दों में दें-

प्रश्न 1.
हिम नदी किसे कहते हैं ? इसका जन्म कैसे होता है ? इसके प्रमुख प्रकार बताएँ।
उत्तर-
हिम नदी (Glacier) –

जब किसी हिमक्षेत्र में हिम बहुत अधिक बढ़ जाती है, तो यह नीचे को ओर खिसकती है। खिसकते हुए हिमपिंड को हिम नदी कहते हैं। (A Glacier is a large mass of moving ice.) कई विद्वानों ने हिम नदी को ‘बर्फ की नदी’ माना है। (Glaciers are rivers of ice)

हिमनदी के कारण-हिम नदी हिम क्षेत्रों से जन्म लेती है। लगातार हिमपात के कारण हिम खडों का भार बढ़ जाता है। ये हिम समूह निचली ढलान की ओर एक जीभ (Tongue) के रूप में खिसकने लगता है। इसे हिम नदी कहते हैं। हिम नदी के खिसकने के कई कारण हैं

  1. हिम का अधिक भार (Pressure)
  2. ढलान (Slope)
  3. गुरुत्वाकर्षण शक्ति (Gravity)

सबसे तेज़ चलने वाली हिम नदियाँ ग्रीनलैंड में मिलती हैं, जो गर्मियों में 18 मीटर प्रति दिन चलती हैं। हिम नदियाँ तेज़ ढलान पर और अधिक ताप वाले प्रदेशों में अधिक गति के साथ चलती हैं। परंतु कम ढलान और ठंडे प्रदेशों में धीरे-धीरे आगे बढ़ती हैं। ये हिमनदियाँ हिम-क्षेत्रों से सरककर मैदानों में आकर पिघल जाती हैं और कई नदियों के पानी का स्रोत बनती हैं, जैसे भारत में गंगा गंगोत्री हिमनदी से जन्म लेती है।

हिम नदी के प्रकार (Types of Glaciers)-स्थिति और आकार की दृष्टि से हिम नदियाँ दो प्रकार की होती हैं-

1. घाटी हिम नदी (Valley Glaciers)—इन्हें पर्वतीय हिमनदी (Mountain Glaciers) भी कहते हैं। यह हिमनदी ऊँचे पहाड़ों की चोटियों से उतर कर घाटियों में बहती है। यह हिम नदी एक चौड़े और गहरे बेसिन (Basin) की रचना करती है। सबसे पहले अल्पस (Alps) पर्वत में मिलने के कारण इन्हें एल्पाइन (Alpine) हिमनदी भी कहते हैं। हिमालय पर्वत पर इस प्रकार की कई हिम नदियाँ भी हैं, जैसे गंगोत्री हिमनदी, जो कि 25 कि०मी० लंबी है। भारत में सबसे बड़ी हिम नदी काराकोरम पर्वत में सियाचिन (Siachin) है, जोकि 72 कि०मी० लंबी है। अलास्का में संसार की सबसे बड़ी हिमनदी हुब्बार्ड है, जोकि 128 कि०मी० लंबी है।

2. महाद्वीपीय हिमनदी (Continental Glaciers)-बड़े क्षेत्रों में फैली हुई हिमनदियों को महाद्वीपीय हिमनदी या हिमचादर (Ice-Sheets) कहते हैं। इसी प्रकार की हिम-चादरें ध्रुवीय क्षेत्रों (Polar Areas) में मिलती है। लगातार हिमपात, निम्न तापमान और कम वाष्पीकरण के कारण हिम पिघलती नहीं है। संसार की सबसे बड़ी हिम-चादर अंटार्कटिका (Antarctica) में 130 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में 1500 मीटर मोटी है। ग्रीनलैंड (Greenland) में ऐसी ही एक हिम-चादर का क्षेत्रफल 17 लाख वर्ग कि०मी० है। आज से लगभग 25 हज़ार वर्ष पहले हिम युग (Ice age) में धरती का 1/3 भाग हिम-चादरों से ढका हुआ था।

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प्रश्न 2.
हिम नदी जल प्रवाह के निक्षेप से बनने वाले भू-आकारों के बारे में बताएँ।
उत्तर-
हिम नदी जल-प्रवाह के निक्षेप से उत्पन्न भू-आकृतियाँ (Landforms Produced by Glacio-fluvial Deposites)-

जब हिम नदी पिघलती है, तो उसके अगले भाग से पानी की अनेक धाराएँ उत्पन्न हो जाती हैं। ये धाराएँ अपने बारीक पदार्थों-रेत, मिट्टी आदि को बहाकर ले जाती हैं और कुछ दूर जाकर उन्हें एक स्थान पर ढेरी कर देती हैं।
जल प्रवाह का निक्षेप नदी के पिघल जाने के बाद होता है। उससे उत्पन्न भू-आकृतियाँ नीचे लिखी हैं- .

1. एस्कर या हिमोढ़ी टीला (Eskar)-Snout की बारीक सामग्री को जल धाराएँ बहाकर ले जाती हैं और भारी पत्थर, कंकर आदि का ढेर साँप के समान बल खाती एक लंबी श्रृंखला के समान बन जाता है। चिकने पत्थर, कंकर आदि की साँप के समान बल खाती श्रृंखला को हिमोढ़ी टीला या एस्कर कहते हैं। एस्कर आइरिश भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ

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2. कंकड़-पहाड़ या केम (Kame)-हिमनदी के अगले भाग से निकली कुछ धाराएँ रेत और छोटे पत्थर, कंकर आदि को टीलों के रूप में ढेरी कर देती हैं। इन्हें कंकड़-पहाड़ भी कहा जाता है।

3. ग्लेशियर नदी मैदान (Outward Plain or Outwash Plain)-हिम नदी द्वारा उत्पन्न जल धाराओं द्वारा निक्षेप की गई सामग्री से एक मैदान का निर्माण हो जाता है। इसे ग्लेशियर नदी मैदान कहते हैं।

4. घाटी मोरेन (Valley Moraines)-हिम नदी के पिघलने पर जल धाराएं अपने साथ तल के अंतिम मोरेन के नुकीले पदार्थो को निचले भागों में पंक्तियों में निक्षेप कर देती हैं। इन निक्षेपों को घाटी मोरेन कहते हैं।

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 19 अंग्रेजी साम्राज्य के समय में आर्थिक और सामाजिक परिवर्तन

Punjab State Board PSEB 11th Class History Book Solutions Chapter 19 अंग्रेजी साम्राज्य के समय में आर्थिक और सामाजिक परिवर्तन Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 History Chapter 19 अंग्रेजी साम्राज्य के समय में आर्थिक और सामाजिक परिवर्तन

अध्याय का विस्तृत अध्ययन

(विषय-सामग्री की पूर्ण जानकारी के लिए)

प्रश्न 1.
अंग्रेजी साम्राज्य की व्यापारिक, औद्योगिक तथा लगान सम्बन्धी नीतियों का भारत की अर्थ-व्यवस्था तथा समाज पर क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर-
भारत मे ब्रिटिश राज्य की व्यापारिक, औद्योगिक तथा लगान सम्बन्धी नीतियों का भारत के सामाजिक तथा आर्थिक क्षेत्र पर बहुत प्रभाव पड़ा। भारत जो कि कृषि प्रधान देश था, कई बार अकाल का शिकार हुआ। किसानों की दशा दिन-प्रतिदिन बिगड़ने लगी। ब्रिटिश सरकार ने कृषक तथा कृषि की ओर कोई ध्यान न दिया। देश में जो थोड़े बहुत कुटीर-उद्योग थे, उन्हें भी इंग्लैंड की औद्योगिक उन्नति के लिए नष्ट कर दिया गया। ब्रिटिश राज्य में भारत आर्थिक रूप से ऐसा पिछड़ा कि आज तक भी नहीं सम्भल सका। भारतीय अर्थ-व्यवस्था पर ब्रिटिश राज्य का प्रभाव निम्नलिखित बातों से जाना जा सकता है

I. कृषि पर प्रभाव –

1. भूमि का स्वामित्व-अंग्रेज़ों से पूर्व भारत में भूमि आजीविका कमाने का साधन था । इसे न तो खरीदा जा सकता था और न बेचा जा सकता था। भूमि पर कृषि करने वाले उपज का एक निश्चित भाग भूमि-कर के रूप में सरकार को दे दिया करते थे, परन्तु अंग्रेजों ने इस आदर्श प्रणाली को समाप्त कर दिया। लॉर्ड कार्नवालिस ने बंगाल में भूमि का स्थायी बन्दोबस्त किया। इसके अनुसार भूमि सदा के लिए ज़मींदारों को दे दी गई। उन्हें सरकारी खज़ानों में निश्चित कर जमा करना होता था। वे यह ज़मीन अपनी इच्छानुसार किसी भी व्यक्ति को दे सकते थे। इस तरह भूमि पर कृषि करने वालों का दर्जा एक नौकर के समान हो गया। स्वामी सेवक बन गए और भूमि-कर उगाहने वाले सेवक स्वामी बन गए।

2. कृषकों का शोषण- अंग्रेजी शासन के अधीन भूमि की पट्टेदारी की तीन विधियां आरम्भ की गईं-स्थायी प्रबन्ध, रैय्यतवाड़ी प्रबन्ध तथा महलवाड़ी प्रबन्ध । इन तीनों विधियों के अन्तर्गत किसानों को ऐसे अनेक कष्ट सहने पड़े। भूमि का स्वामी किसानों को जब चाहे भूमि से बेदखल कर सकता था। इस नियम का सहारा लेकर वह किसानों से मनमानी रकम ऐंठने लगा। भूमि की सारी अतिरिक्त उपज वह स्वयं हड़प जाते थे। किसानों के पास इतना अनाज भी नहीं बचा था कि उन्हें पेट भर भोजन मिल सके। रैयतवाड़ी प्रथा के अनुसार तो किसानों को और भी अधिक कष्ट उठाने पड़े। किसान भूमि के स्वामी तो मान लिए गए, परन्तु कर की दर इतनी अधिक थी कि इनके लिए कर चुकाना भी कठिन था। कर चुकाने के लिए किसान साहूकारों से ऋण ले लिया करते थे और सदा के लिए साहूकार के चंगुल में फंस जाते थे। वास्तव में वह किसान जो भूस्वामी हुआ करता था, अंग्रेज़ी राज्य की छाया में मजदूर बन कर रह गया।

3. कृषि का पिछड़ापन- अंग्रेज़ी शासन के अधीन कृषक के साथ-साथ कृषि की दशा भी बिगड़ने लगी। कृषक पर भारी कर लगा दिए गए। ज़मींदार उससे बड़ी निर्दयता से रकम ऐंठता था। ज़मीदार स्वयं तो शहरों में रहते थे । उनके मध्यस्थ किसानों की उपज का अधिकतर भाग ले जाते थे। ज़मींदार की दिलचस्पी पैसा कमाने में थी। वह भूमि सुधारने में विश्वास नहीं रखता था। इधर किसान दिन-प्रतिदिन निर्धन तथा निर्बल होता जा रहा था। अत: वह भूमि में धन तथा श्रम दोनों ही नहीं लगा पा रहा था। उसे एक और भी हानि हुई। इंग्लैंड का मशीनी माल आ जाने से ग्रामीण उद्योग-धन्धे नष्ट हो गए। अतः खाली समय में वह इन उद्योगों द्वारा जो पैसे कमाया करता था, अब बन्द हो गया। अब मुकद्दमेबाज़ी उसके जीवन का अंग बन गई । इन मुकद्दमों पर उसका समय तथा धन दोनों ही नष्ट होने लगे और कृषि पिछड़ने लगी। संक्षेप में, अंग्रेज़ों की भूराजनीति ने कृषक के उत्साह को बड़ी ठेस पहुंचाई जो कृषि के लिए हानिकारक सिद्ध हुई।

II. उद्योगों पर प्रभाव-

1. भारतीय सूती कपड़े के उद्योग का विनाश- अंग्रेजी राज्य स्थापित होने से पूर्व भारतीय सूती कपड़ा उद्योग उन्नति की चरम सीमा पर पंहुचा हुआ था। भारत में बने सूती कपड़े की इंग्लैंड में बड़ी मांग थी। इंग्लैंड की स्त्रियां भारत के बेलबूटेदार वस्त्रों को बहुत पसन्द करती थीं। कम्पनी ने आरम्भिक अवस्था में कपड़े का निर्यात करके खूब पैसा कमाया। परन्तु 1760 तक इंग्लैंड ने ऐसे कानून पास कर दिए जिनके अनुसार रंगे कपड़े पहनने की मनाही कर दी गई। इंग्लैंड की एक महिला को केवल इसलिए 200 पौंड जुर्माना किया गया था क्योंकि उसके पास विदेशी रूमाल पाया गया था। इंग्लैंड का व्यापारी तथा औद्योगिक वर्ग कम्पनी की व्यापारिक नीति की निन्दा करने लगा। विवश होकर कम्पनी को वे विशेषज्ञ इंग्लैंड वापस भेजने पड़े जो भारतीय जुलाहों को अंग्रेजों की मांगों तथा रुचियों से परिचित करवाते थे। इंग्लैंड की सरकार ने भारतीय कपड़े पर आयात कर बढ़ा दिया और कम्पनी की कपड़ा सम्बन्धी आयात नीति पर अनेक प्रतिबन्ध लगा दिए। इन सब बातों के परिणामस्वरूप भारत के सूती वस्त्र उद्योग को भारी क्षति पहुंची।

2. निर्धनता, बेकारी तथा अकाल- अंग्रेजी राज्य की स्थापना से भारत में निर्धनता का अध्याय आरम्भ हुआ। किसान भारी करों के बोझ तले दबने लगे। उनके गाढ़े पसीने की कमाई ज़मींदार, साहूकार तथा सरकार लूटने लगी। उन्हें पेट भर रोटी नसीब नहीं होती थी। इधर आर्थिक शोषण, करों की ऊंची दर तथा भारतीय धन की निकासी के कारण भी निर्धनता बढ़ने लगी। गरीबी की चरम सीमा उस समय देखने को मिली जब भारत 19वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में अकालों की लपेट में आ गया। उत्तर प्रदेश के अकाल (1860-61 ई०) में 2 लाख लोग मरे। पूर्वी प्रान्तों में फैले अकाल (1865-66 ई०) में 20 लाख लोगों की जानें गईं। दस लाख लोग केवल उड़ीसा राज्य में मरे। राजपूताना की रियासतों की जनसंख्या का तीसरा या चौथा भाग अकाल की भेंट चढ़ गया। 1876-78 ई० के अकाल ने तो त्राहि-त्राहि मचा दी। इस अकाल के कारण महाराष्ट्र के आठ लाख, मद्रास के तैंतीस लाख तथा मैसूर के लगभग 20 % लोग मृत्यु का ग्रास बने। ब्रिटिश राज्य में इन भयानक-दृश्यों के साथ-साथ बेकारी का दौर भी जारी रहा। अनेक कारीगर बेकार थे। व्यापारियों का व्यापार नष्ट हो चुका था। लाखों किसान अपनी ज़मीनें छोड़ कर भाग गए थे।

3. ग्रामीण उद्योगों का विनाश- अंग्रेजी राज्य स्थापित होने से अंग्रेजी माल भारतीय गांवों में पहुंचने लगा। यह माल बढ़िया तथा सस्ता होता था। परिणामस्वरूप ग्रामीण उद्योगों को बड़ा धक्का लगा। ग्रामीण कारीगरों के हाथों से ग्राहक निकलने लगे और वे (कारीगर) अपना धंधा छोड़ काश्तकार के रूप में मजदूरी करने लगे। 19वीं शताब्दी के पहले 50 वर्षों में ऐसे दृश्य आम देखे जाते थे कि कैसे एक जुलाहा अपनी खड्डी छोड़कर हल धारण कर रहा है। यह परिवर्तन उन लोगों के लिए कितना दुःखदायी होगा जिनकी पीढ़ियां इन उद्योगों को अर्पित हो गई थीं। श्री ताराचन्द लिखते हैं, “उन्नीसवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में यहां के गांवों के श्रमिक समाज में उजड़े हुए किसानों के बाद बुनकरों तथा गांव के अन्य कारीगरों का स्थान सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण था।” यह सब अंग्रेजी शासन का ही प्रभाव था।

III. व्यापार पर प्रभाव-

अंग्रेज़ी राज्य स्थापित होने से कृषि तथा उद्योगों के साथ-साथ भारतीय व्यापार को भी हानि पहुंची। कम्पनी ने भारतीय व्यापार पर पूरा नियन्त्रण कर लिया। भारतीय तथा विदेशी व्यापारियों को विधिवत् रूप से व्यापार करने से रोक दिया गया। सारा व्यापार कम्पनी के हाथ में आ गया। कम्पनी के बड़े-बड़े कर्मचारियों ने अपने अलग व्यापारिक संस्थान खोल लिए और उनका देश के उत्पादित माल पर पूर्ण अधिकार हो गया। इस व्यापार का सारा लाभ कम्पनी के कर्मचारियों की जेब में जाता था। कम्पनी के बड़े-बड़े कर्मचारी मालामाल हो गए थे। गवर्नर-जनरल तक भी खूब हाथ रंगते थे। इस व्यापारिक धांधली के कारण न केवल भारतीयों को आन्तरिक व्यापार से बाहर ही निकाल दिया गया,बल्कि उत्पादक तथा उपभोक्ता दोनों के साथ छल भी किया गया। उन्हें सस्ते दामों पर कच्चा माल बेच कर महंगे दामों पर तैयार माल खरीदने के लिए बाध्य किया । व्यापार के इसी एकाधिकारपूर्ण नियम के कारण बंगाल अकाल की लपेट में आ गया। भारतीय माल पर करों की दर बढ़ा दी गई ताकि कोई विदेशी या भारतीय व्यापारी भारतीय माल का व्यापार न कर सके। इस प्रकार अंग्रेज़ी शासन के अधीन भारतीय व्यापार बिल्कुल नष्ट हो गया।

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प्रश्न 2.
इंग्लैंड में नई विचारधारा के संदर्भ में भारत में अंग्रेजी साम्राज्य के अधीन सामाजिक सुधार तथा शिक्षा के विकास की चर्चा करें।
उत्तर-
इंग्लैंड में नवीन विचारधारा के कारण यह विश्वास दृढ़ हो गया कि भारत के परम्परावादी सामाजिक ढांचे में परिवर्तन होना चाहिए। इस संदर्भ में भारतीय समाज में अनेक परिवर्तन हुए और शिक्षा में पाश्चात्य विचारों का समावेश हुआ। इस तरह देश के सामाजिक तथा शिक्षा के क्षेत्र में नवीन परिवर्तन हुए जिनका वर्णन इस प्रकार है

1. सती प्रथा का अन्त- सती-प्रथा हिन्दू समाज में प्रचलित एक बहुत बुरी प्रथा थी। हिन्दू स्त्रियां पति की मृत्यु पर उसके साथ ही जीवित जल जाया करती थीं। राजा राममोहन राय ने इस कुप्रथा के विरुद्ध आवाज़ उठाई। उनकी प्रार्थना पर विलियम बैंटिंक ने इस कुप्रथा का अन्त करने के लिए 1829 ई० में एक कानून बनाया। इस प्रकार सती-प्रथा को कानून के विरुद्ध घोषित कर दिया गया।

2. बाल हत्या पर रोक-कुछ हिन्दू जातियां अपने देवताओं को प्रसन्न करने के लिए अपने बच्चों को बलि चढ़ा दिया करती थीं। 1802 ई० में वैल्जेली ने इस प्रथा के विरुद्ध एक कानून पास किया। इसके अनुसार बाल-हत्या पर रोक लगा दी गई।

3. विधवा-विवाह- भारत में विधवाओं की दशा बड़ी खराब थी। उन्हें पुनः विवाह की आज्ञा नहीं थी। अतः अनेक युवा विधवाओं को दुःख और कठिनाई भरा जीवन व्यतीत करना पड़ता था । उनकी दुर्दशा को देखते हुए राजा राममोहन राय, महात्मा फूले, ईश्वरचन्द्र विद्यासागर तथा महर्षि कर्वे ने विधवा-विवाह के पक्ष में जोरदार आवाज़ उठाई। फलस्वरूप 1856 में विधवा-विवाह वैध घोषित कर दिया गया।

4. दास प्रथा का अन्त- भारत में ज़मींदारी प्रथा के कारण किसान बहुत ही निर्धन हो गए थे। इन किसानों को दास बना कर ब्रिटिश उपनिवेशों में भेजा जाने लगा। इसके अतिरिक्त कुछ अंग्रेज़ भी भारतीयों से दासों जैसा व्यवहार करते थे और उनसे बेगार लेते थे। 1843 ई० में कानून द्वारा इस प्रथा का अन्त कर दिया गया। .

5. स्त्री शिक्षा का विकास- स्त्री-शिक्षा के लिए भारतीय महापुरुषों ने विशेष प्रयत्न किए। उनके प्रयत्नों से स्त्रियां कॉलेजों तथा विश्वविद्यालयों में प्रवेश पाने लगीं। फलस्वरूप देश में शिक्षित स्त्रियों की संख्या बढ़ने लगी।

6. जाति बन्धन में ढील- अंग्रेजी शिक्षा तथा ईसाई पादरियों के प्रचार के कारण भारत में जाति बन्धन टूटने लगे। ईसाई पादरी ऊंच-नीच की परवाह नहीं करते थे। इससे प्रभावित होकर निम्न जातियों के लोग ईसाई धर्म स्वीकार करने लगे। यह बात हिन्दू समाज के लिए बहुत बड़ा खतरा बन गई। अतः उस समय के समाज-सुधारकों ने जाति-प्रथा की निन्दा की। परिणामस्वरूप जाति बन्धन काफ़ी ढीले हो गए।

भारत में अंग्रेजी शिक्षा का विकास- भारत में अंग्रेजी शिक्षा के विस्तार की वास्तविक कहानी 1813 ई० से आरम्भ होती है। इससे पहले कम्पनी ने इस दिशा में कोई कार्य नहीं किया। यदि कुछ कार्य हुए भी तो वे ईसाई पादरियों की ओर से हुए, परन्तु 1813 ई० में शिक्षा का विकास विधिवत् रूप से होने लगा। 1813 ई० में चार्टर एक्ट पास हुआ। इसमें कहा गया कि भारतीयों की शिक्षा पर हर वर्ष एक लाख रुपया खर्च किया जाएगा। यह भी कहा गया कि 50 वर्ष के अन्दर -अन्दर पूरे भारत में शिक्षा के प्रसार का कार्य सुचारू रूप से होने लगेगा। देश में कुछ स्कूल तथा कॉलेज भी खोले गए। परन्तु शीघ्र ही यह विवाद उठ खड़ा हुआ कि यह धन किस शिक्षा पर व्यय किया जाए-भारतीय भाषाओं की शिक्षा पर अथवा अंग्रेज़ी शिक्षा पर।

शिक्षा के माध्यम का विवाद धीरे-धीरे गम्भीर रूप धारण कर गया। कुछ लोग अंग्रेज़ी को शिक्षा का माध्यम बनाना चाहते थे जबकि दूसरे लोग देशी भाषाओं को ही माध्यम बनाने के पक्ष में थे। आखिर अंग्रेजी माध्यम का पक्ष भारी रहा और इसे ही स्वीकार कर लिया गया। 1854 ई० में चार्ल्स वुड समिति बनाई गई। इस समिति ने शिक्षा के क्षेत्र में सुधार लाने के लिए ये सुझाव दिए-

(i) भारत में लन्दन विश्वविद्यालय के ढंग पर विश्वविद्यालय खोले जाएं।
(ii) विश्वविद्यालय के अधीन कॉलेज खोले जाएं।

(iii) प्रत्येक प्रान्त में एक शिक्षा-विभाग खोला जाए। वुड समिति की इन सिफ़ारिशों के कारण शिक्षा प्रणाली में महत्त्वपूर्ण उन्नति हुई। 1882 ई० में हण्टर आयोग की नियुक्ति की गई। इस आयोग ने बड़े अच्छे सुझाव दिए। सरकार ने हण्टर आयोग की सभी सिफ़ारिशों को स्वीकार कर लिया। देश में नए-नए कॉलेज तथा स्कूल खुलने लगे। 1882 ई० में पंजाब विश्वविद्यालय की स्थापना की गई।

लॉर्ड कर्जन के शासनकाल में विश्वविद्यालयों पर सरकारी नियन्त्रण बढ़ गया। विश्वविद्यालयों के क्षेत्र नियत कर दिए गए। अध्यापकों आदि की नियुक्ति का काम भी विश्वविद्यालयों को सौंप दिया गया। लॉर्ड कर्जन के इस एक्ट की भारतीयों ने बड़ी निन्दा की। 1917 ई० में भारत सरकार ने शिक्षा सुधार के लिए एक और आयोग नियुक्त किया जिसके अध्यक्ष मि० सैडलर थे। इस आयोग ने ये सिफ़ारिशें की-

(i) विश्वविद्यालयों पर सरकारी नियन्त्रण कम कर दिया जाए।
(ii) माध्यमिक तथा इन्टरमीडियेट शिक्षा विद्यालय के नियन्त्रण में नहीं रहनी चाहिए।

(iii) कॉलेजों में शिक्षा का माध्यम अंग्रेज़ी होना चाहिए। इस प्रकार इस आयोग की सिफ़ारिशों के कारण देश में अनेक विश्वविद्यालयों की स्थापना हुई। मैसूर, उस्मानिया, अलीगढ़, दिल्ली, नागपुर आदि नगरों में विश्वविद्यालय खोले गए। इसके अतिरिक्त शिक्षा के प्रसार के लिए और कई पग उठाए गए। 1928 ई० में हरयेग कमेटी नियुक्त की गई। 1944 ई० में सार्जेन्ट योजना पर अमल किया गया। इस प्रकार भारत में अंग्रेजी शिक्षा का प्रसार होने लगा।

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महत्त्वपूर्ण परीक्षा-शैली प्रश्न

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न

1. उत्तर एक शब्द से एक वाक्य तक

प्रश्न 1.
भारत में पहली तार लाइन कब स्थापित की गई?
उत्तर-
1833 ई० में।

प्रश्न 2.
जी० टी० रोड का आधुनिक नाम क्या है?
उत्तर-
शेरशाह सूरी मार्ग।

प्रश्न 3.
भारत में कॉफी के बाग़ कब लगाने शुरू हुए?
उत्तर-
1860 ई० के पश्चात्।

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प्रश्न 4.
कलकत्ता मदरसा किस अंग्रेज़ गवर्नर-जनरल ने स्थापित किया?
उत्तर-
लार्ड हेस्टिग्ज ने।

प्रश्न 5.
सती प्रथा को किसने अवैध घोषित किया?
उत्तर-
लॉर्ड विलियम बैंटिंक ने।

2. रिक्त स्थानों की पूर्ति

(i) लाहौर में गवर्नमेंट कॉलेज की स्थापना …………. ई० में हुई।
(ii) भारत में ईसाई मिशनरियों द्वारा स्थापित स्कूलों में …………. ढंग की शिक्षा दी जाती थी।
(iii) बंगाल में स्थायी बंदोबस्त …………….. में लागू हुआ।
(iv) सती प्रथा के विरुद्ध कानून ………………. के प्रभाव अधीन बना।
(v) भारत में पहली आधुनिक जहाज़रानी कम्पनी ………….. ई० में खोली गई।
उत्तर-
(i) 1864
(ii) अंग्रेजी
(iii) 1793
(iv) ईसाई मिशनरियों
(v) 1919.

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3. सही/गलत कथन

(i) पंजाब यूनिवर्सिटी 1888 में बनी। — (√)
(ii) बंगाल में स्थायी बंदोबस्त लॉर्ड कार्नवालिस ने लागू किया। — (√)
(iii) भारत में पहली रेलवे लाइन की लंबाई 121 मील थी। — (×)
(iv) इंग्लैंड से बहुत-सा धन भारत लाया गया। — (×)
(v) भारत में सीमेंट तथा शीशा बनाने के उद्योग 1930 के बाद विकसित हुए। — (√)

4. बहु-विकल्पीय प्रश्न

प्रश्न (i)
1791 में संस्कृत कॉलेज की स्थापना की गई
(A) कलकत्ता में
(B) बनारस में
(C) बम्बई में
(D) मद्रास में।
उत्तर-
(B) बनारस में

प्रश्न (ii)
1857 में किस नगर में विश्वविद्यालय स्थापित हुआ?
(A) मद्रास
(B) बंबई
(C) कलकत्ता
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(D) उपरोक्त सभी।

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प्रश्न (iii)
निम्न स्थान भूमि के स्थायी बंदोबस्त के अंतर्गत नहीं आता था-
(A) मद्रास
(B) उड़ीसा
(C) उत्तरी सरकार
(D) बनारस।
उत्तर-
(A) मद्रास

प्रश्न (iv)
1857 ई० में इंजीनियरिंग कॉलेज स्थापित किया गया-
(A) रिवाड़ी में
(B) दिल्ली में
(C) रुड़की में
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(C) रुड़की में

प्रश्न (v)
अंग्रेजी भाषा को शिक्षा का माध्यम बनाया गया-
(A) 1935
(B) 1835
(C) 1857
(D) 1891.
उत्तर-
(B) 1835

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II. अति छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
इंग्लैंड में औद्योगिक क्रान्ति किन दो वर्षों के मध्य प्रफुल्लित हुई ?
उत्तर-
इंग्लैंड में औद्योगिक क्रान्ति सन् 1760 से 1830 के मध्य प्रफुल्लित हुई।

प्रश्न 2.
बर्तानिया के उद्योगपतियों को भारत में बिना कर व्यापार करने की छूट किस वर्ष में मिली तथा इस वर्ष कितने लाख-पौंड मूल्य का अंग्रेजी मशीनी कपड़ा भारत में आया ।
उत्तर-
बर्तानिया के उद्योगपतियों को भारत में बिना कर व्यापार करने की छूट 1813 में मिली। उस वर्ष 11 लाख पौंड का अंग्रेजी मशीनी कपडा भारत में आया।

प्रश्न 3.
1856 में बर्तानिया की मिलों में बना हुआ किस मूल्य का कपड़ा भारत में आया तथा किस मूल्य का कपड़ा भारत से बाहर भेजा गया ?
उत्तर-
1856 में साठ लाख पौंड का कपड़ा भारत आया और 8 लाख पौंड मूल्य का कपड़ा बाहर भेजा गया।

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प्रश्न 4.
1856 में कितने मूल्य की कपास तथा अनाज भारत से बाहर भेजे गए ?
उत्तर-
1856 में 43 लाख पौंड की कपास भारत से बाहर भेजी गई। 29 लाख पौंड का अनाज भी भारत से बाहर भेजा गया।

प्रश्न 5.
भारत में पहली कपड़ा मिल कब, किसने और कहां लगवाई? .
उत्तर-
कपड़े की पहली मिल मुम्बई में कावासजी नानाबाई ने 1853 में स्थापित की।

प्रश्न 6.
1880 तक भारत में कितनी कपड़ा मिलें थीं तथा उनमें कितने मजदूर काम करते थे ?
उत्तर-
1880 तक भारत में 56 कपड़ा मिलें थीं । इनमें 43 हजार मजदूर काम करते थे ।

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प्रश्न 7.
पटसन (जूट) के सबसे अधिक कारखाने भारत के किस प्रान्त में थे तथा बीसवीं सदी के शुरू में इनकी गिनती कितनी हो गई ?
उत्तर-
पटसन (जूट) के सब से अधिक कारखाने बंगाल प्रान्त में थे। बीसवीं सदी के आरम्भ में इन की गिनती 36 हो गई।

प्रश्न 8.
बीसवीं सदी में कौन से चार प्रकार के उद्योग भारत में विकसित हुए ?
उत्तर-
बीसवीं सदी में भारत में ऊनी कपड़ा बनाने का उद्योग, कागज़ बनाने का उद्योग, चीनी बनाने का उद्योग तथा सूती धागा बनाने का उद्योग विकसित हुए।

प्रश्न 9.
1930 के बाद विकसित होने वाले दो उद्योगों के नाम बताएं।
उत्तर-
1930 के पश्चात् भारत में सीमेंट तथा शीशा बनाने के उद्योग विकसित हुए।

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प्रश्न 10.
भारत में नील की खेती कब शुरू हुई तथा यह किसके हाथों में थी ?
उत्तर-
भारत में नील की खेती 18वीं सदी के उत्तरार्द्ध में आरम्भ हुई। यह विदेशियों के हाथों में थी।

प्रश्न 11.
1825 में भारत में नील की खेती के अधीन कुल क्षेत्र कितना था तथा 1915 में नील की खेती लगभग कितने क्षेत्र में सीमित रह गई थी एवं इसके कम होने का क्या कारण था ?
उत्तर-
1825 में 35 लाख बीघा भूमि नील उत्पादन के अन्तर्गत थी और 1915 में नील की खेती तीन चार लाख बीघे तक सीमित रह गई। इस का कारण भूमि की कमी थी।

प्रश्न 12.
अंग्रेज़ी कम्पनी का चीन की चाय का एकाधिकार कब समाप्त हुआ तथा ‘आसाम टी कम्पनी’ कब बनाई गई ?
उत्तर-
अंग्रेज़ी कम्पनी का चीन की चाय का एकाधिकार 1833 में समाप्त हो गया। 1839 में आसाम टी कम्पनी बनाई गई।

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प्रश्न 13.
1920 तक कितनी भूमि चाय की खेती के अधीन थी तथा कितने मूल्य की चाय भारत से बाहर भेजी जाती थी ?
उत्तर-
1920 तक 7 लाख एकड़ भूमि चाय की खेती के अधीन थी। उस समय तक 34 करोड़ पौंड मूल्य की चाय भारत से बाहर भेजी जाती थी ।

प्रश्न 14.
कॉफी के बाग कब लगने शुरू हुए तथा किस देश की कॉफी मण्डी में आने से भारत को नुकसान हुआ ?
उत्तर-
कॉफी के बाग 1860 के पश्चात् लगने आरम्भ हुए। ब्राजील की कॉफी मण्डी में आने से भारत को नुकसान पहुंचा।

प्रश्न 15.
भारत में पहली तार लाइन कब और किन दो नगरों के बीच स्थापित की गई ?
उत्तर-
पहली तार लाइन कलकत्ता (कोलकाता) से आगरा के बीच 1853 में स्थापित की गई ।

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प्रश्न 16.
किस गवर्नर जनरल ने एक ही मूल्य का डाक टिकट शुरू किया तथा इसका मूल्य क्या था ?
उत्तर-
लॉर्ड डल्हौजी ने एक ही मूल्य का डाक टिकट आरम्भ किया था। इस टिकट का मूल्य आधा आना था।

प्रश्न 17.
जी० टी० रोड किन दो शहरों को जोड़ती थी तथा इसका आधुनिक नाम क्या है ?
उत्तर-
जी० टी० रोड पेशावर (पाकिस्तान) तथा कलकत्ता (कोलकाता) को जोड़ती थी। इस का आधुनिक नाम शेरशाह सूरी मार्ग है ।

प्रश्न 18.
जी० टी० रोड किन वर्षों में पक्की की गई तथा 1947 में भारत में सड़कों की कुल लम्बाई कितनी थी ?
उत्तर-
जी० टी० रोड 1839 से लेकर 1864 तक के समय के बीच पक्की की गई। 1947 में भारत में सड़कों की कुल लम्बाई 2,96,000 मील थी ।

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प्रश्न 19.
भारत में पहली आधुनिक जहाजरानी कम्पनी कब खोली गई ?
उत्तर-
भारत में पहली आधुनिक जहाजरानी कम्पनी 1919 में खोली गई ।

प्रश्न 20.
भारत में हवाई यातायात की ओर कब ध्यान देना आरम्भ किया गया ? इससे पहले हवाई जहाजों का प्रयोग किस लिए किया जाता था ?
उत्तर-
भारत में हवाई यायायात की ओर 1930 के बाद ध्यान दिया गया । इससे पहले हवाई जहाज़ों का प्रयोग अधिकतर डाक तथा सामान ले जाने के लिए किया जाता था।

प्रश्न 21.
भारत में पहली रेलवे लाइन किन दो शहरों के बीच एवं कब बनी तथा इसकी लम्बाई कितनी थी ?
उत्तर-
भारत में पहली रेलवे लाइन 1853 में मुम्बई तथा थाना के बीच बनी इसकी लम्बाई 21 मील थी ।।

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प्रश्न 22.
1947 में भारत में रेलवे लाइन की कुल लम्बाई कितनी थी तथा रेलवे के कारण किन दो प्रकार के माल के निर्यात तथा आयात में तेजी से वृद्धि हुई ?
उत्तर-
1947 में भारत में रेलवे लाइन की कुल लम्बाई 40,000 मील थी। रेलों के कारण कच्चे माल के निर्यात तथा मशीनी चीजों के आयात में तेजी से वृद्धि हुई ।

प्रश्न 23.
किस वर्ष में भारत से धन की निकासी शुरू हुई तथा दादा भाई नौरोजी के अनुसार देश से हर वर्ष कितनी धन राशि इंग्लैंड भेजी जाती थी ?
उत्तर-
1757 से धन की निकासी आरम्भ हो गई। दादा भाई नौरोजी के अनुसार प्रति वर्ष 3-4 करोड़ पौंड की राशि भारत से इंग्लैंड भेजी जाती थी ।

प्रश्न 24.
स्थायी बन्दोबस्त किसने शुरू किया तथा यह कब और किस वर्ग के साथ किया गया ?
उत्तर-
स्थायी बन्दोबस्त लार्ड कार्नवालिस ने 1793 में शुरू किया। यह बन्दोबस्त मध्यवर्ती ज़मींदार वर्ग के साथ किया गया।

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प्रश्न 25.
स्थायी बन्दोबस्त के अन्तर्गत इलाकों के नाम बताएं।
उत्तर-
स्थायी बन्दोबस्त के अन्तर्गत उड़ीसा, उत्तरी सरकार तथा बनारस थे।

प्रश्न 26.
रैय्यतवाड़ी प्रबन्ध किन दो प्रान्तों में तथा किस वर्ग पर लागू किया गया तथा उससे सम्बन्धित अंग्रेज़ अफसर का नाम क्या था?
उत्तर-
रैय्यतवाड़ी प्रबन्ध मद्रास तथा महाराष्ट्र में किसानों पर लागू किया गया। इसे अंग्रेज अफसर मुनरो ने लागू किया था।

प्रश्न 27.
महलवाड़ी प्रबन्ध कौन से तीन क्षेत्रों में लागू किया गया तथा इसके अन्तर्गत लगान उगाहने की इकाई कौन-सी थी ?
उत्तर-
महलवाड़ी प्रबन्ध वर्तमान उत्तर प्रदेश में लागू किया गया । इसमें लगान उगाहने की इकाई ‘महल’ थी।

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प्रश्न 28.
अंग्रेजों के अधीन लगान प्रबन्ध की सभी व्यवस्थाओं से भारत के किस वर्ग को विशेष लाभ हुआ ?
उत्तर-
अंग्रेजों के अधीन लगान प्रबन्ध की सभी व्यवस्थाओं से भारत के ज़मींदार वर्ग को विशेष लाभ हुआ ।

प्रश्न 29.
1905 तक सरकार ने रेलों तथा सिंचाई के विकास पर कितना धन खर्च किया था ?
उत्तर-
1905 तक सरकार ने रेलों तथा सिंचाई के विकास पर 360 करोड़ रुपये खर्च किये।

प्रश्न 30.
1951 तक भारत में किन दो प्रकार के हल प्रचलित थे तथा इनमें से किसका प्रयोग बहुत अधिक किया जाता था ?
उत्तर-
1951 तक भारत में लकड़ी तथा लोहे के फाले वाले हल प्रचलित थे। इन में से लोहे के फाले वाले हलों का प्रयोग बहुत अधिक किया जाता था ।

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प्रश्न 31.
1939 में भारत में कितने कृषि कॉलेज थे तथा उनमें विद्यार्थियों की कुल संख्या कितनी थी ?
उत्तर-
1939 में भारत में केवल छः कृषि कॉलेज थे। उनमें विद्यार्थियों की कुल संख्या 1300 के लगभग थी।

प्रश्न 32.
भारत में ईसाई मिशनरियों को अपने केन्द्र स्थापित करने की छूट कब मिली तथा इनके स्कूल-कॉलेज में किस ढंग की शिक्षा दी जाती थी ?
उत्तर-
1813 में ईसाई मिशनरियों को अपने केन्द्र स्थापित करने की छूट मिल गई। इनके स्कूल-कॉलेज में अंग्रेज़ी ढंग की शिक्षा दी जाती थी।

प्रश्न 33.
मिशनरियों के प्रभाव अधीन कौन-सा कानून बना ?
उत्तर-
मिशनरियों के प्रभाव अधीन सती प्रथा का अन्त करने का कानून बना ।।

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प्रश्न 34.
भारत में सती प्रथा को कब और किस गवर्नर-जनरल ने गैर कानूनी घोषित किया ?
उत्तर-
भारत में सती प्रथा को 1829 में गवर्नर-जनरल विलियम बैंटिंक ने गैर कानूनी घोषित किया।

प्रश्न 35.
सती प्रथा का प्रचलन कौन से वर्ग तथा जातियों में था ?
उत्तर-
सती प्रथा का प्रचलन राजघरानों, उच्च वर्गों अथवा ब्राह्मणों में था ।

प्रश्न 36.
“कलकत्ता (कोलकाता) मदरसा” कब और किसने स्थापित किया ?
उत्तर-
कलकत्ता (कोलकाता) मदरसा 1781 में गवर्नर-जनरल वारेन हेस्टिंग्ज़ ने स्थापित किया ।

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प्रश्न 37.
संस्कृत कॉलेज की स्थापना कब और कहां की गई ?
उत्तर-
संस्कृत कॉलेज की स्थापना 1791 में बनारस में की गई ।

प्रश्न 38.
1835 में शिक्षा सम्बन्धी क्या फैसला किया गया तथा इससे सम्बन्धित अंग्रेज अधिकारी का नाम क्या था ?
उत्तर-
1835 में शिक्षा सम्बन्धी यह निर्णय किया गया कि सरकार विज्ञान तथा पश्चिमी ढंग की शिक्षा अंग्रेज़ी भाषा में देने के लिये धन खर्च करेगी। इससे सम्बन्धित अंग्रेज़ अधिकारी का नाम ‘मैकाले’ था ।

प्रश्न 39.
1857 में किन तीन नगरों में विश्वविद्यालय स्थापित हुए ?
उत्तर-
1857 में बम्बई (मुम्बई), कलकत्ता (कोलकाता) और मद्रास (चेन्नई) में विश्वविद्यालय स्थापित हुए ।

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प्रश्न 40.
1857 में मैडिकल कॉलेज कौन से तीन नगरों में थे तथा इंजीनियरिंग कॉलेज किस स्थान पर स्थापित किया गया ?
उत्तर-
1857 में मैडिकल कॉलेज बम्बई (मुम्बई), कलकत्ता (कोलकाता) तथा मद्रास, (चेन्नई) में थे। इंजीनियरिंग कॉलेज रुड़की में स्थापित किया गया।

प्रश्न 41.
लाहौर में गवर्नमैंट कॉलेज तथा पंजाब यूनिवर्सिटी किन वर्षों में बने ?
उत्तर-
लाहौर में गवर्नमेंट कॉलेज 1864 में तथा पंजाब यूनिवर्सिटी 1888 में बने।

प्रश्न 42.
अंग्रेजी साम्राज्य का सबसे अधिक लाभ किस नये वर्ग को हुआ तथा इस वर्ग से सम्बन्धित चार व्यवसायों के नाम बताएं।
उत्तर-
अंग्रेज़ी साम्राज्य का सबसे अधिक लाभ मध्य वर्ग को हुआ इस वर्ग से सम्बन्धित चार व्यवसायों के नाम थेसाहूकार, डॉक्टर, अध्यापक तथा वकील ।

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III. छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
अंग्रेजी साम्राज्य ने भारत में विदेशी पूंजीपतियों की सहायता किस प्रकार की ?
उत्तर-
भारत में अंग्रेजी साम्राज्य ने विदेशी पूंजीपतियों की बड़ी सहायता की। देशी उद्योगों को नष्ट किया गया। इनके स्थान पर विदेशी पूंजीपतियों को प्रोत्साहित किया गया । इंग्लैंड की औद्योगिक क्रान्ति के पश्चात् इंग्लैंड के पूंजीपतियों ने यहां कारखाने लगाए। उन्हें यहां सस्ते मज़दूर मिलते थे और सरकार से पूरा सहयोग मिलता था। विदेशी पूंजीपतियों ने यहां रेलवे लाइनों में भी खूब पूंजी लगाई। वैसे भी उद्योग स्थापित करने की सुविधाएं भी उन्हें ही दी जाती थीं। कर की व्यवस्था भी उन के पक्ष में थी। विदेशी माल पर कर नहीं लगता था जबकि भारतीय माल पर शुल्क की दर बढ़ा दी गई थी। रेलों की स्थापना भी विदेशी व्यापार को सुविधा पहुंचाने के लिए की गई थी । सच तो यह है कि अंग्रेजी साम्राज्य ने विदेशी पूंजीपतियों की खूब सहायता की ।

प्रश्न 2.
भारत में अंग्रेजी साम्राज्य के अधीन रेलों के विस्तार के कारण तथा उनका महत्त्व बताएं ।
उत्तर-
भारत में पहली रेलवे लाइन (1853) में डल्हौजी के समय में मुम्बई से थाना तक आरम्भ की गई । इसकी लम्बाई 21 मील थी। 1905 ई० तक लगभग 28,000 मील लम्बी रेलवे लाइन बनकर तैयार हो गई थी। रेलें यातायात का महत्त्वपूर्ण साधन सिद्ध हुईं । रेलों के कारण अन्तरिक सुरक्षा मजबूत हुई । सेना को एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजने में सुविधा हो गई। रेलों के कारण कच्चा माल बन्दरगाहों से कारखानों तक सफलतापूर्वक ले जाया जाने लगा और तैयार माल कारखानों से विभिन्न मण्डियों में भेजा जाने लगा। रेलों के कारण मशीनी चीजों के आयात में वृद्धि हुई । उदाहरण के लिए कपास का निर्यात पहले से तीन गुणा अधिक होने लगा और कपड़े का आयात पहले से दो गुणा ज्यादा हो गया । सच तो यह है कि रेलों के और पूंजीपतियों को हुआ।

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प्रश्न 3.
भारत में धन की निकासी किन तरीकों से होती थी ?
उत्तर-
अंग्रेजों की आर्थिक नीति के कारण भारत को बहुत हानि हुई। देश का धन देश के काम आने के स्थान पर विदेशियों के काम आने लगा। 1757 के पश्चात् ईस्ट इण्डिया कम्पनी तथा इसके कर्मचारियों ने भारत से प्राप्त धन को इंग्लैण्ड भेजना आरम्भ कर दिया। कहते हैं कि 1756 ई० से 1765 तक लगभग 60 लाख पौंड की राशि भारत से बाहर गई। और तो और लगान आदि से प्राप्त राशि भी भारतीय माल खरीदने में व्यय की गई। अतिरिक्त सिविल सर्विस और सेना के उच्च अफसरों के वेतन का पैसा भी देश से बाहर जाता था। औद्योगिक विकास का भी अधिक लाभ विदेशियों को ही हुआ। विदेशी पूंजीपति इस देश पर धन लगाते थे और लाभ की रकम इंग्लैण्ड में ले जाते थे। इस तरह भारत का धन कई प्रकार से विदेशों में जाने लगा।

प्रश्न 4.
स्थायी बन्दोबस्त क्या था तथा उसके क्या आर्थिक प्रभाव थे ?
उत्तर-
अंग्रेज़ शासक कृषि के क्षेत्र में भी भूमि से अधिक से अधिक आय प्राप्त करना चाहते थे। इसी उद्देश्य को सामने रख कर लगान व्यवस्था का पुनर्गठन किया गया। कार्नवालिस ने 1793 में बंगाल और बिहार में ‘परमानेंट सेटलमैंट’ अथवा स्थायी व्यवस्था की। इसके अन्तर्गत लगान वसूल करने वाले ज़मींदार भूमि के स्वामी बना दिये गये। इस व्यवस्था के महत्त्वपूर्ण आर्थिक प्रभाव पड़े। इस प्रकार सरकार की वार्षिक आय भी निश्चित हो गई जिस से बजट बनाना सरल हो गया। परन्तु किसानों की स्थिति केवल मुज़ारों की ही बन कर रह गई। ज़मींदार उन के साथ जैसा चाहे व्यवहार कर सकता था। सभी ज़मींदारों के लिए निश्चित लगान देना इतना सुगम सिद्ध न हुआ। बहुत से ज़मींदारों को अपनी भूमि बेचनी पड़ी। ये भूमि व्यापारी वर्ग के धनी साहूकारों ने खरीद ली। ये नये ज़मींदार शहरों में रहते थे तथा इनके गुमाश्ते किसानों के साथ दुर्व्यवहार करते थे। भूमि से उपज कम होने लगी। परिणामस्वरूप कृषि और कृषक की दशा खराब हो गई।

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प्रश्न 5.
कौन-से नए विचारों के प्रभावाधीन भारत में सामाजिक सुधार लाने के प्रयास किए गए ?
उत्तर-
आरम्भ में कम्पनी के शासकों ने भारतीय समाज के प्रति विशेष रुचि न दिखाई। उनमें से अधिकांश का विचार था कि एक पुरानी सभ्यता होने के कारण भारतीय सभ्यता में परिवर्तन नहीं होना चाहिये। परन्तु 19वीं सदी के उत्तरार्द्ध में एक नई विचारधारा बल पकड़ने लगी। विज्ञान और यान्त्रिकी की उन्नति के साथ लोगों के विचारों और सामाजिक मूल्यों पर भी प्रभाव पड़ा। परिणामस्वरूप यह रुचि बढ़ने लगी कि समाज को बदला जाये। ऐसे कानून बनाये जायें जिनके अनुसार प्रत्येक व्यक्ति न्याय प्राप्त करने में बराबर का अधिकारी हो। ऐसी आर्थिक नीतियां अपनाई जाएं जिनसे आर्थिक प्रगति हो और जनसाधारण जीवन की आरम्भिक आवश्यकताओं का आनन्द भोग सकें। ऐसे रीति-रिवाजों का अन्त किया जाये जो अन्धविश्वासों पर आधारित थे। इसके साथ इंग्लैण्ड में ईसाई मत के प्रचार के समर्थक भी इस बात पर जोर देते थे कि भारतीय समाज को नवीन रंग में रंगा जाये।

प्रश्न 6.
भारत में अंग्रेजों ने शिक्षा सम्बन्धी क्या नीति अपनाई ?
उत्तर-
1813 में यह निर्णय किया गया कि भारतीयों को विज्ञान की शिक्षा भी दी जाये। बीस वर्ष तक यह विवाद चलता रहा कि अंग्रेजी साम्राज्य में शिक्षा भारतीय संस्कृति के अनुसार दी जाये अथवा पश्चिमी संस्कृति के आधार पर। 1835 में यह निर्णय हुआ कि पश्चिमी ढंग की शिक्षा अंग्रेजी भाषा के माध्यम द्वारा उच्च स्तर पर दी जाये। इसी नीति के आधार पर 1857 में बम्बई (मुम्बई), कलकत्ता (कोलकाता) और मद्रास (चेन्नई) में विश्वविद्यालय स्थापित किये गये। इसके बाद धीरे-धीरे अन्य शहरों में भी विश्वविद्यालय और कॉलेज स्थापित हुए। नवीन शिक्षा नीति अपनाये जाने के अनेक कारण थे –

  • अंग्रेज़ अफसरों की बहुसंख्या इस बात में विश्वास रखती थी कि आधुनिक यूरोपीय सभ्यता विश्व की अन्य सभ्यताओं की तुलना में उत्तम है।
  • सरकारी कार्यों के लिए शिक्षित भारतीयों की आवश्यकता थी।
  • ईसाई पादरियों का विचार था कि अंग्रेजी शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् भारतीय जल्दी ही ईसाई बन जायेंगे।
  • कुछ का विश्वास था कि भारतीय अंग्रेज़ी रहन-सहन अपना लेंगे तो वे इंग्लैण्ड में बनी वस्तुओं का अधिक प्रयोग करेंगे और इस प्रकार अंग्रेजों के व्यापार में भी वृद्धि होगी।
  • बहुत-से भारतीय भी यह मांग करने लगे थे कि अंग्रेजी भाषा के द्वारा ही विज्ञान और साहित्य की शिक्षा दी जाये।

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प्रश्न 7.
अंग्रेजी साम्राज्य ने भारत में मध्य वर्ग के उत्थान में क्या योगदान दिया ?
उत्तर-
अंग्रेजी साम्राज्य की समृद्धि के कारण भारत में मध्य वर्ग का जन्म हुआ। कम्पनी को अपने व्यापार की वृद्धि के लिये भारतीय व्यापारियों की सहायता की आवश्यकता थी। इसलिए जैसे-जैसे अंग्रेज़ी व्यापार का विकास हुआ, भारतीय व्यापारी भी धनी बने और उन का महत्त्व भी बढ़ा। इन्हीं व्यापरियों ने साहूकारी शुरू कर ऋण दिये। इन्होंने ही भूमि खरीदने की ओर ध्यान दिया। अधिक धनी साहूकारों ने निजी उद्योग स्थापित किये। इनमें से बहुत से लोग अंग्रेज़ी शिक्षा के पक्ष में थे। अंग्रेजी शिक्षा प्राप्त करने के बाद सरकारी नौकरियों में भी उनकी संख्या में वृद्धि हुई। इसके अतिरिक्त अंग्रेजी शिक्षा पाकर मध्य वर्गों के लोग डॉक्टर, अध्यापक और वकील बने। इस प्रकार मध्य वर्ग का प्रभाव बढ़ता गया।

प्रश्न 8.
अंग्रेजी साम्राज्य में सामाजिक सुधारों का वर्णन करो।
अथवा
अंग्रेजी साम्राज्य में भारत में किस प्रकार के सामाजिक परिवर्तन हुए ?
उत्तर-
अंग्रेजों ने 19वीं शताब्दी के आरम्भ में समाज सुधार की ओर ध्यान दिया। उन्होंने 1829 ई० में सती-प्रथा पर रोक लगा दी। उस समय राजपूत लोग लड़कियों को पैदा होते ही मार देते थे। इसी तरह कुछ अन्य लोग देवी-देवताओं को प्रसन्न करने के लिए अपने बच्चों की बलि दे देते थे। अतः पहले लॉर्ड विलियम बैंटिंक और फिर लॉर्ड हार्डिंग ने बाल हत्या पर रोक लगी दी। उस समय विधवाओं को समाज में घृणा की दृष्टि से देखा जाता था। उन्हें पुनः विवाह करने की आज्ञा नहीं थी। अतः 1856 ई० में लॉर्ड डल्हौज़ी ने एक कानून द्वारा विधवाओं को पुनः विवाह करने की आज्ञा दे दी। अंग्रेज़ों का विचार था कि भारतीय समाज की गिरी हुई दशा को केवल पश्चिमी शिक्षा के प्रसार से ही सुधारा जा सकता है। अतः भारत में अंग्रेजी भाषा को शिक्षा का माध्यम बना दिया गया। अंग्रेजों के प्रयत्नों से भारत में स्त्री शिक्षा का प्रसार भी हुआ।

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प्रश्न 9.
रैय्यतवाड़ी लगान व्यवस्था की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
1820 ई० में थामस मुनरो मद्रास का गवर्नर नियुक्त हुआ। उसने भूमि का प्रबन्ध एक नए ढंग से किया जिसे रैय्यतवाड़ी प्रथा के नाम से पुकारा जाता है। यह प्रबन्ध पहले-पहल दक्षिण के प्रान्तों में लागू किया। सरकार ने भूमि-कर उन लोगों से लेने का निश्चय किया जो अपने हाथों से कृषि करते थे। अतः सरकार तथा कृषकों के बीच जितने भी मध्यस्थ थे उन्हें हटा दिया। यह प्रबन्ध स्थायी प्रबन्ध की अपेक्षा अधिक लाभदायक था क्योंकि इससे कृषकों के अधिकार बढ़ गए तथा सरकारी आय में वृद्धि हुई। इस प्रथा में कुछ दोष भी थे-जो भूमि कृषि के बिना रह जाती थी उसे सरकारी भूमि समझा जाता था। ऐसी भूमि में कृषि करने का अधिकार किसी भी किसान को न था। फलस्वरूप यह भूमि प्रायः खाली पड़ी रहती थी। इस प्रथा के कारण गांव का भाई-चारा समाप्त होने लगा। गांव की पंचायतों का महत्त्व भी कम हो गया। प्रत्येक किसान एक पृथक् व्यक्तित्व बन कर रह गया।

प्रश्न 10.
महलवाड़ी भूमि-प्रबन्ध की मुख्य विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
रैय्यतवाड़ी प्रथा के दोषों को दूर करने के लिए उत्तर-पश्चिमी प्रान्त में एक और नया प्रयोग किया गया जिसे महलवाड़ी प्रबन्ध कहा जाता है। इस प्रबन्ध की विशेषता यह थी कि इसके द्वारा भूमि का सम्बन्ध न तो किसी बड़े ज़मींदार के साथ जोड़ा जाता था और न ही किसी कृषक के साथ। यह प्रबन्ध वास्तव में गांव के समूचे भाई-चारे के साथ होता था। यदि कोई किसान अपना भाग नहीं देता था तो उसकी वसूली गांव के भाई-चारे से की जाती थी। ऐसे प्रबन्ध के कारण सरकार को कभी हानि नहीं होती थी। प्रत्येक गांव में जो भूमि अविभाजित रह जाती थी, उसे भाई-चारे की संयुक्त सम्पत्ति माना जाता था। ऐसी भूमि को ‘शामलात भूमि’ कहते थे। इस प्रबन्ध को सबसे अच्छा प्रबन्ध माना जाता है क्योंकि इसमें पहले के दोनों प्रबन्धों के गुण विद्यमान थे। इस प्रबन्ध में केवल एक ही दोष था। वह यह था कि इसके अनुसार लोगों को बहुत अधिक भूमि-कर देना पड़ता था।

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प्रश्न 11.
ब्रिटिश शासनकाल में भारतीय किसानों की निर्धनता के क्या कारण थे ?
उत्तर-
ब्रिटिश शासनकाल में किसानों की दशा बड़ी ही शोचनीय थी। उनकी निर्धनता दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही थी। उनकी निर्धनता के कारणों का वर्णन इस प्रकार है-

  1. ब्रिटिश शासन काल में ज़मींदारी प्रथा प्रचलित थी। भूमि के स्वामी बड़े-बड़े ज़मींदार होते थे जो किसानों का बहुत शोषण करते थे। वे उनसे बेगार भी लेते थे।
  2. किसानों के खेती करने के ढंग बहुत पुराने थे। कृषि के लिए अच्छे बीज तथा खाद की कोई व्यवस्था नहीं थी। सिंचाई के उपयुक्त साधन उपलब्ध न होने के कारण किसानों को केवल वर्षा पर निर्भर रहना पड़ता था।
  3. ब्रिटिश सरकार ने किसानों की दशा सुधारने की ओर कोई ध्यान नहीं दिया।
  4. किसान प्रायः साहूकारों से ऋण लेता था जिस पर उसे भारी ब्याज देना पड़ता था। सरकार की ओर से उन्हें ऋण देने का कोई प्रबन्ध नहीं था।
  5. किसानों को बहुत अधिक भूमि-कर देना पड़ता था। यह भी उनकी निर्धनता का एक बहुत बड़ा कारण था।

IV. निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
अंग्रेजी कम्पनी की व्यापारिक नीति कैसी थी और भारत पर इसका क्या आर्थिक प्रभाव पड़ा ?
उत्तर-
अंग्रेजों की व्यापारिक नीति से अभिप्राय उस नीति से है जो उन्होंने भारत के देशी तथा विदेशी व्यापार के प्रति अपनाई। आरम्भ में अंग्रेजी ईस्ट इण्डिया कम्पनी का मुख्य ध्येय भारतीय कपड़े को सस्ते दामों पर खरीद कर विदेशी मण्डियों में महंगे दामों पर बेचना था। परन्तु जब कम्पनी की लाभ नीति इंग्लैण्ड के उद्योगों के लिए घातक सिद्ध हुई, तो कम्पनी को अपनी नीति में परिवर्तन लाना पड़ा। औद्योगिक क्रान्ति के कारण इंग्लैण्ड में मशीनों द्वारा अधिक से अधिक माल तैयार होने लगा। इस सारे माल की खपत के लिए इंग्लैण्ड के व्यापारियों को अधिक से अधिक मण्डियों की आवश्यकता थी। अतः वहां के व्यापारी वर्ग ने इंग्लैण्ड की सरकार पर ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी के व्यापारिक एकाधिकार को समाप्त करने के लिए दबाव डालना आरम्भ कर दिया। फलस्वरूप 1813 ई० में कम्पनी के व्यापारिक एकाधिकार छीन लिए गए और भारत को एक स्वतन्त्र व्यापार क्षेत्र घोषित कर दिया। भारत के द्वार विदेशी वस्तुओं के लिए खोल दिये गये। उधर ब्रिटेन ने भारत के बने माल पर प्रतिवर्ष कर बढ़ाने आरम्भ कर दिये। 1824 ई० में भारतीय कैलिको पर 65\(\frac{1}{2}\)% और भारतीय मलमल पर 37\(\frac{1}{2}\)% शुल्क देना पड़ता था। भारतीय चीनी पर उसकी लागत से तीन गुणा अधिक कर देना पड़ता था। ऐसी भी कुछ भारतीय वस्तुएं थीं जिन पर इंग्लैण्ड ने 400% शुल्क लगा दिया। स्पष्ट है कि स्वतन्त्र व्यापारिक नीति ने भारत के व्यापारिक हितों को बड़ी हानि पहुंचाई।

नीति का आर्थिक प्रभाव-अंग्रेजी कम्पनी की व्यापारिक नीति का भारत की अर्थव्यवस्था पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ा। भारत के देशी उद्योग नष्ट हो गये। भारतीय मजदूर तथा कारीगर बेकार हो गए और वे निर्धनता में अपना जीवन व्यतीत करने लगे। अधिक आयात के कारण भारत धन का भुगतान करने में असमर्थ हो गया। भारत के व्यापारिक असन्तुलन के कारण अनेक अंग्रेज़ उद्योगपतियों को अपनी पूंजी भारत में लगाने के लिए प्रेरित किया गया। परिणामस्वरूप देश में रेलों तथा सड़कों का जाल बिछ गया। परन्तु इससे भी अंग्रेजों को ही लाभ पहुंचा।

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प्रश्न 2.
अंग्रेजी साम्राज्य की व्यापारिक, औद्योगिक और भूमि-कर सम्बन्धी नीतियों का भारत की अर्थ-व्यवस्था तथा समाज पर क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर-
अंग्रेजी साम्राज्य की व्यापारिक, औद्योगिक तथा भूमि-कर सम्बन्धी नीतियों का भारत पर गहरा प्रभाव पड़ा। उनके अधीन भूमि का क्रय-विक्रय आरम्भ हो गया। अंग्रेजों ने भारत में भूमि की पट्टेदारी नए ढंग से आरम्भ की। बंगाल के स्थायी बन्दोबस्त द्वारा ज़मींदारों को भूमि का स्वामी स्वीकार कर लिया गया। इस प्रकार सरकार को लगान देने वाले ठेकेदार भूमि के स्वामी बन गए। पट्टेदारी की प्रचलित सभी विधियां किसानों के हितों के विरुद्ध थीं। जमींदार किसी भी समय कृषकों को बेदखल कर सकता था। इस नियम की आड़ में वे कृषकों से मनचाही रकम बटोरने लगे। रैय्यतवाड़ी प्रथा के अनुसार यद्यपि भूमि का स्वामी किसान को मान लिया गया तथापि कर की दर इतनी अधिक थी कि किसानों को साहूकारों से धन ब्याज पर लेना पड़ता था। अंग्रेज़ी शासन का भारत की कृषि पर भी बहुत प्रभाव पड़ा। ज़मींदार किसानों से पैसा तो खूब ऐंठते थे, परन्तु भूमि सुधार की ओर ज़रा भी ध्यान नहीं देते थे। किसान के पास इतना भी धन नहीं रह पाता था कि वह स्वयं भूमि का सुधार कर सके। फलस्वरूप भारतीय कृषि पिछड़ने लगी।

अंग्रेजी शासन के अधीन भारतीय उद्योग-धन्धे भी नष्ट हो गए। भारत का सूती कपड़ा उद्योग बिल्कुल ठप्प हो गया। भारत में बने सूती कपड़े की इंग्लैण्ड में बड़ी मांग थी। परन्तु इंग्लैण्ड की सरकार ने भारतीय कपड़े पर आयात कर बढ़ा दिया और कम्पनी की कपड़ा सम्बन्धी आयात नीति पर अनेक प्रतिबन्ध लगा दिए। धीरे-धीरे इंग्लैण्ड की सरकार ने ऐसे नियम बना दिए कि भारत का माल इंग्लैंड में बिकने की बजाय इंग्लैंड का माल भारत में बिकने लगा। इंग्लैण्ड में औद्योगिक विकास के कारण इंग्लैंड की आयात-निर्यात की नीति में भारी परिवर्तन आया। भारत से कच्चा माल आयात करना तथा तैयार माल का निर्यात करना उनका उद्देश्य बन गया। अंग्रेजी शासन के कारण भारत का काफ़ी सारा धन प्रति-वर्ष इंग्लैण्ड जाने लगा। अंग्रेजी राज्य के अधीन भारत में बेकारी और निर्धनता का वातावरण पैदा हो गया। कृषकों पर अधिक करों तथा भारतीय उद्योग-धन्धों की समाप्ति के कारण अनेक लोग बेकार हो गए। अंग्रेज़ी शासन के कारण भारतीय व्यापार भी ठप्प हो गया। कम्पनी ने भारतीय व्यापार पर पूरी तरह अपना नियन्त्रण स्थापित कर लिया।

प्रश्न 3.
ब्रिटिश काल में उद्योगों के विकास की कमजोरियों का वर्णन कीजिए।
अथवा
अंग्रेज़ी शासन के अधीन औद्योगिक विकास के मार्ग की किन्हीं पांच बाधाओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
ब्रिटिश शासन के आरम्भ के साथ उद्योगों में तीन बातें घटित हुईं। पहली यह कि उन्होंने भारतीय कुटीर उद्योगों को नष्ट कर दिया। दूसरे, इस देश को इंग्लैण्ड के औद्योगिक माल की मण्डी बना दिया। तीसरे, इस देश में कुछ नए उद्योग आरम्भ किए गए। अब देखना यह है कि इस औद्योगिक विकास की कमजोरियां क्या थीं-

1. भारी उद्योगों का अभाव-अंग्रेजों ने भारत में मूल उद्योग आरम्भ न किए। यदि ऐसा होता तो भारत में औद्योगिक विकास की आधारशिला तैयार हो जाती। परन्तु अंग्रेज़ भारत को उन्नत औद्योगिक राष्ट्र के रूप में देखना ही नहीं चाहते थे।

2. कम्पनी की आवश्यकताओं को प्राथमिकता-अंग्रेजों ने भारत में केवल वही उद्योग स्थापित किए जिनके उत्पादों की उन्हें आवश्यकता थी।

3. उद्योगों का एकाधिकार-सभी बड़े-बड़े उद्योगों का स्वामित्व अंग्रेजों को दिया गया। बहुत कम भारतीयों को उद्योग स्थापित करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।

4 उद्योगों का असमान वितरण-अंग्रेज़ों ने भारत के कुछ ही भागों में उद्योग स्थापित किए। शेष भाग उद्योगों से वंचित रहे।

5. कुटीर उद्योगों को प्रोत्साहन न देना-अंग्रेजों ने भारत में छोटे तथा कुटीर उद्योगों को प्रोत्साहन न दिया। ऐसे उद्योगों द्वारा ही भारत की अधिकांश जनता को लाभ पहुँच सकता था।

6. कच्चे माल का निर्यात-अंग्रेज़ इंग्लैण्ड के हित में काम करते थे। वे इस देश से कच्चा माल इंग्लैण्ड को सस्ते दामों पर निर्यात करते थे और फिर तैयार माल लाकर भारत में महँगे दामों पर बेचते थे।

7. प्रशिक्षण का अभाव-अंग्रेजों ने न अधिक इंजीनियरिंग कॉलेज स्थापित किए और न ही श्रमिकों के प्रशिक्षण के लिए ही कोई प्रबन्ध किया। ऐसी अवस्था में उद्योगों का पूर्ण विकास नहीं हो सकता था।

8. दूषित कर-प्रणाली-अंग्रेजों ने कर प्रणाली भी इंग्लैण्ड के पक्ष में ही स्थापित की। उन्होंने इंग्लैण्ड से आने वाले माल पर कस्टम ड्यूटी माफ कर दी। इसके विपरीत भारतीय माल पर इंग्लैण्ड में भारी कर लगा दिए। परिणामस्वरूप पहले भारतीय उद्योगों का विनाश हुआ और बाद में भारत इंग्लैण्ड के तैयार माल की मण्डी बन गया।

सच तो यह है कि अंग्रेजों ने भारत में औद्योगिक विकास की दृष्टि से उद्योग स्थापित न किए थे। उनका मुख्य उद्देश्य इंग्लैण्ड को लाभ पहुँचाना था।

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प्रश्न 4.
18वीं तथा 19वीं शताब्दी में भारत के आर्थिक शोषण की मुख्य विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
अथवा
ईस्ट इण्डिया कम्पनी की आर्थिक नीति की विवेचना कीजिए जिसके फलस्वरूप भारतीय अर्थव्यवस्था की बरबादी हुई।
उत्तर-
18वीं शताब्दी में भारत का शासन ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी के हाथ में आ गया। कम्पनी सरकार ने अपने स्वार्थ तथा इंग्लैण्ड के हितों को बढ़ावा देने के लिए भारत तथा भारतीयों का खूब आर्थिक शोषण किया। इस उद्देश्य से अंग्रेज़ों ने निम्नलिखित कार्य किए-

1. ग्रामीण कपड़ा उद्योगों का विनाश-अंग्रेजी सरकार अपने गुमाश्तों द्वारा भारतीय जुलाहों से कपड़े का सस्ते दामों पर जबरदस्ती सौदा कर लेती थी। सौदा करने के लिए जुलाहों को पेशगी राशि दे दी जाती थी। यदि वे पेशगी लेने से इन्कार करते तो उन्हें पीटा जाता था और कोड़े लगाए जाते थे। इस प्रकार जुलाहे अपना माल कम्पनी को छोड़कर किसी के पास नहीं बेच सकते थे, भले ही उन्हें वहाँ से कितनी ही अधिक राशि क्यों न मिलती हो। परिणामस्वरूप धीरे-धीरे भारतीय जुलाहों की कपड़ा उद्योग में रुचि समाप्त हो गई और भारतीय कपड़ा उद्योग समाप्त हो गया।

2. इंग्लैण्ड में भारतीय माल पर अधिक कर-इंग्लैण्ड में भारतीय कपड़े की बड़ी माँग थी। परन्तु इंग्लैण्ड की सरकार ने भारतीय कपड़े पर भारी आयात कर लगा दिया। फलस्वरूप इंग्लैण्ड पहुँचते-पहुँचते भारतीय कपड़ा इतना महँगा हो जाता था कि वहां के लोग इसे खरीदने से भी डरने लगे। अतः इंग्लैण्ड में भारतीय कपड़े की माँग बिल्कुल समाप्त हो गई।

3. भारत का मण्डी के रूप में प्रयोग-इंग्लैण्ड में औद्योगिक क्रान्ति के बाद अनेक कारखाने खुल गए और भारी मात्रा में उत्पादन होने लगा। इन कारखानों को कच्चा माल जुटाने तथा वहाँ के तैयार माल को बेचने के लिए अंग्रेजों ने भारत को एक मण्डी बना दिया। वे यहाँ का सारा कच्चा माल सस्ते दामों पर खरीद कर इंग्लैण्ड भेजने लगे। इंग्लैण्ड का तैयार माल भारत में बिना रोक-टोक आने लगा और यहाँ उसे महँगे दामों पर बेचा जाने लगा। परिणामस्वरूप भारत का धन निरन्तर इंग्लैण्ड पहुँचने लगा।

4. व्यापार पर एकाधिकार-अंग्रेजी कम्पनी ने भारतीय व्यापार पर एकाधिकार स्थापित कर लिया। एक ओर तो वे भारतीय जुलाहों से सस्ते दामों पर कपड़े का सौदा कर लेते थे, दूसरी ओर सारा कच्चा माल पहले से ही खरीदकर अपने गोदामों में भर लेते थे। विवश होकर भारतीय जुलाहों को किया गया सौदा पूरा करने के लिए महंगे दामों पर अंग्रेजों से कच्चा माल खरीदना पड़ता था। परिणामस्वरूप देखते ही देखते देश में निर्धनता और बेकारी फैल गई।

5. इंग्लैण्ड के हित में नए उद्योग-अंग्रेजों ने भारत में कुछ नए उद्योग भी लगाए। परन्तु इनका उद्देश्य भी भारत का आर्थिक शोषण करना ही था। उदाहरण के लिए, इंग्लैण्ड में चाय की माँग थी तो भारत में बड़े पैमाने पर चाय के बागान लगाए गए। इसी प्रकार कपास तथा पटसन आदि की खेती, नील उद्योग आदि सभी इंग्लैण्ड के हितों की ही पूर्ति करते थे। इन उद्योगों के आरम्भ से भारत आवश्यक उद्योगों में पिछड़ गया।
सच तो यह है कि अंग्रेज़ी सरकार ने अपनी प्रत्येक नीति भारत का धन हड़पने के लिए ही निर्धारित की।

प्रश्न 5.
अंग्रेजों के अधीन भारत के सामाजिक जीवन में क्या-क्या परिवर्तन हुए ? किन्हीं पांच परिवर्तनों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
अंग्रेज़ इस देश में व्यापारी तथा शासक के रूप में लगभग 350 वर्ष तक रहे। उन्होंने लगभग 200 वर्ष तक यहां शासन भी किया। इस देश में उनका मुख्य उद्देश्य अंग्रेज़ी सत्ता को दृढ़ करना था। इसलिए उन्होंने हमारे सामाजिक क्षेत्रों में काफी परिवर्तन किए। इन परिवर्तनों का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है-

1. आधुनिक शिक्षा का आरम्भ-आधुनिक शिक्षा प्रणाली अंग्रेजों की देन है। 1835 ई० में यह निर्णय लिया गया कि भारत में शिक्षा का माध्यम अंग्रेज़ी होगा। 1854 ई० में वुड डिस्पैच तथा 1882 ई० में हण्टर आयोग के सुझावों को स्वीकार किया गया। इनके अनुसार देश में शिक्षा विभाग की स्थापना हुई, विश्वविद्यालय खोले गए तथा अनेक स्कूलों तथा कॉलेजों की व्यवस्था की गई। प्राइवेट स्कूलों को अनुदान देने की प्रणाली आरम्भ की गई। अध्यापकों के लिए प्रशिक्षण की व्यवस्था की गई। इस प्रकार भारत में शिक्षा के क्षेत्र में बड़ी उन्नति हुई।

2. जाति बन्धन में ढील तथा सती प्रथा का अन्त-अंग्रेजी शिक्षा तथा ईसाई पादरियों के प्रचार के कारण भारत में जाति बन्धन टूटने लगे। ईसाई पादरी ऊंच-नीच की परवाह नहीं करते थे। इससे प्रभावित होकर निम्न जातियों के लोग ईसाई धर्म स्वीकार करने लगे। यह बात हिन्दू समाज के लिए बहुत बड़ा खतरा बन गई। इस खतरे को टालने के लिए उस समय के समाज-सुधारकों ने जाति-प्रथा की निन्दा की। परिणामस्वरूप जाति बन्धन काफ़ी ढीले हो गए। उस समय हिन्दू समाज में सती-प्रथा भी प्रचलित थी। इस अमानवीय प्रथा के विरुद्ध लॉर्ड विलियम बैंटिंक ने दिसम्बर, 1829 में एक कानून पास किया और सती-प्रथा को कानून के विरुद्ध घोषित कर दिया।

3. बाल-हत्या तथा नर-बलि पर रोक, विधवा विवाह की आज्ञा-मध्य भारत की कुछ जातियां दहेज आदि की कठिनाई से बचने के लिए कन्याओं को पैदा होते ही मार डालती थीं। इस पर रोक लगाने के लिए लॉर्ड वैल्ज़ली ने 1802 में एक कानून पास किया। इसके अनुसार बाल-हत्या पर रोक लगा दी गई। भारत के कुछ भागों में देवताओं को प्रसन्न करने के लिए नर-बलि दी जाती थी। यह प्रथा मद्रास में विशेष रूप से प्रचलित थी। विलियम बैंटिंक ने इस क्रूर प्रथा का भी अन्त कर दिया। विधवाओं की स्थिति सुधारने के लिए जुलाई, 1856 ई० में सरकार ने विधवा-विवाह को कानून द्वारा वैध घोषित कर दिया।

4. स्त्री शिक्षा का प्रसार-राजा राम मोहन राय, जगन्नाथ शंकर सेठ, रानाडे, महात्मा फूले तथा ईश्वरचन्द्र विद्यासागर के प्रयत्नों के फलस्वरूप स्त्रियों को ये सुविधाएं मिलीं-

  1. उन्हें उच्च शिक्षा प्राप्त करने की आज्ञा दे दी गई,
  2. उनके लिए अलग कॉलेजों की व्यवस्था की गई,
  3. उन्हें विश्वविद्यालयों में भी प्रवेश पाने की आज्ञा दे दी गई।

5. साम्प्रदायिकता का आरम्भ-अंग्रेजों ने अपनी सत्ता को दृढ़ बनाए रखने के लिए “फूट डालो और राज्य करो” की नीति अपनाई। इस नीति से देश में साम्प्रदायिकता का विष फैलने लगा।

6. भारतीय सभ्यता और संस्कृति का ह्रास-भारत में अंग्रेज़ी शासन स्थापित होने से भारतीय सभ्यता तथा संस्कृति को भारी धक्का लगा। अंग्रेजों ने इस बात का प्रचार किया कि भारतीय असभ्य हैं और अंग्रेज़ उन्हें सभ्यता का पाठ पढ़ाने आए हैं। अत: भारतीय उनकी सभ्यता को उच्च मानकर उसी के प्रभाव में बहने लगे। इस प्रकार एक लम्बे समय तक भारतीय सभ्यता और संस्कृति का विकास रुका रहा।

7. भारतीय मध्यम वर्ग का उदय-अंग्रेज़ी राज्य की स्थापना से भारत में मध्यम वर्ग का उदय हुआ। नवीन भूमि कानूनों के कारण ज़मींदार, महाजन तथा व्यापारी लोग अस्तित्व में आये। यही लोग बीसवीं शताब्दी में भारत की मध्यम श्रेणी के रूप में उभरे। पैसा अधिक होने के कारण इस श्रेणी के लोगों ने पाश्चात्य शिक्षा ग्रहण की और राष्ट्रीय आन्दोलन में लोगों का नेतृत्व किया।

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 19 अंग्रेजी साम्राज्य के समय में आर्थिक और सामाजिक परिवर्तन

प्रश्न 6.
अंग्रेजों के आगमन से पूर्व भारत की कृषि की क्या दशा थी ? अंग्रेज़ी राज्य में इसमें कौन-कौन से परिवर्तन आए ? कोई पांच परिवर्तन लिखिए।
उत्तर-
अंग्रेजों के आगमन से पूर्व कृषि की दशा-अंग्रेजों के आगमन से पूर्व खेती-बाड़ी की दशा अधिक अच्छी नहीं थी। कृषि का उद्देश्य केवल किसानों की आवश्यकताओं को पूरा करना था। किसान को जिस चीज़ की जितनी मात्रा में आवश्यकता होती, वह केवल उतनी ही वस्तु का उत्पादन करता था। वह खाने के लिए अनाज, तेल के लिए सरसों, तोरिया, तिल, तारामीरा आदि तथा मीठे के लिए गन्ना उगा लेता था। वह वस्त्रों के लिए कपास और अपने पशुओं के लिए आवश्यक चारा भी उगा लेता था। अपनी आवश्यकता से अधिक वह किसी भी चीज़ का उत्पादन नहीं करता था।

उस समय की खेती में कुछ अन्य त्रुटियां भी थीं। खेती करने का ढंग पुराना था। सिंचाई के साधन भी अधिक विकसित नहीं थे। किसानों को सिंचाई के लिए अधिकतर वर्षा पर निर्भर रहना पड़ता था। यदि वर्षा ठीक समय पर उचित मात्रा में हो जाती तो उपज अच्छी हो जाती थी। इसके विपरीत वर्षा कम होने पर सूखा पड़ जाता और अधिक होने पर बाढ़ आ जाती थी। परिणामस्वरूप फसलें नष्ट हो जाती थीं और लोगों को भयंकर अकाल का सामना करना पड़ता था।

अंग्रेजी राज्य में कृषि में परिवर्तन-18वीं शताब्दी में इंग्लैण्ड में औद्योगिक क्रान्ति आई और वहां अनेक कारखाने खुल गए। इन कारखानों को चलाने के लिए अंग्रेजों को कच्चे माल की आवश्यकता थी। यह कच्चा माल भारतीय कृषि से मिल सकता था। इसलिए उन्होंने भारत की कृषि को उन्नत करने में रुचि ली और इसमें निम्नलिखित परिवर्तन किए-

1. यातायात के साधनों का विकास-उन्होंने यातायात के साधनों का विकास किया। उन्होंने किसान को अधिक उत्पादन करने के लिए प्रेरित किया ताकि वे अतिरिक्त उपज को बेच कर अधिक धन कमा सकें। कमाई के अच्छे अवसर देखकर किसान अपनी कृषि में सुधार लाने लगे।

2. आदर्श कृषि फार्म-देश में बड़े-बड़े फार्म खोले गए जिनमें नमूने की (आदर्श) खेती की जाती थी। इन्हें देखकर किसान भी अपनी खेती में सुधार लाने का प्रयत्न करने लगे।

3. सिंचाई के साधनों का विकास-सिंचाई के लिए देश के विभिन्न भागों में नहरें तथा कुएं खोदे गए। देश के दक्षिणी भागों में वर्षा का पानी इकट्ठा करके अथवा नदियों से पानी लेकर सिंचाई के लिए बड़े-बड़े तालाब बनाए गए।

4. नई फसलों का उत्पादन सरकार ने ऐसी फसलों के उत्पादन पर अधिक बल दिया जिनका प्रयोग कच्चे माल के रूप में हो सकता था। उन्होंने बाहर से भी कुछ नई फसलें लाकर भारत में बोई। इन फसलों में अमेरिकन कपास, आलू, सिनकोना आदि प्रमुख थीं।

5. नये कृषि यन्त्र-कृषि के औजारों में परिवर्तन किया गया। अब लकड़ी के पुराने हलों के स्थान पर लोहे के नये हल चलाए गए।

6. उत्तम प्रकार के बीज-उत्तम प्रकार के बीज पैदा करने के लिए पूना में एक अनुसंधान विभाग खोला गया।

7. ऋण संस्थाएं-किसानों की सहायता के लिए कुछ संस्थाएं खोली गईं ताकि किसान धनवान महाजनों के चंगुल से बचें।

प्रश्न 7.
व्याख्या सहित बताओ कि अंग्रेजी शासन ने ग्रामों की आर्थिकता में कौन-कौन से परिवर्तन किए ?
उत्तर-
अंग्रेज़ी राज्य की स्थापना के समय भारत की लगभग 95 प्रतिशत जनसंख्या गांवों में ही रहती थी। उस समय प्रत्येक गांव अपने आप में एक इकाई था। ग्रामीण आर्थिकता का आधार आत्म-निर्भरता थी। गांव के किसान खेती करते थे और अन्य लोग उनकी खेती सम्बन्धी तथा अन्य आवश्यकताओं को पूरा करते थे। उदाहरण के लिए जुलाहे उनके लिए कपड़ा बुनते थे, कुम्हार उन्हें बर्तन आदि देते थे और बढ़ई तथा लुहार उनके लिए हल, पंजालियां आदि बनाते थे। इसके बदले में किसान केवल वही वस्तुएं उगाते थे जिनकी उन्हें या गांववासियों को आवश्यकता होती थी। आवश्यकता से अधिक किसी भी वस्तु का उत्पादन नहीं किया जाता था। देश में अंग्रेजी राज्य स्थापित होने के कारण ग्रामों की आर्थिकता में कई महत्त्वपूर्ण परिवर्तन आए जिनका वर्णन इस प्रकार है-

1. व्यापारिक उपजों पर बल-इंग्लैंड के कारखानों को चलाने के लिए अधिक मात्रा में कच्चे माल की आवश्यकता थी। इसके अतिरिक्त इंग्लैण्ड में अधिक अन्न भी चाहिए था। अंग्रेजों ने यह कच्चा माल और अनाज भारत से प्राप्त करने का प्रयत्न किया। उन्होंने सबसे पहले सड़कों, रेलों तथा भाप से चलने वाले जहाजों में सुधार किया ताकि देश के भिन्न-भिन्न भागों से माल को इंग्लैंड तक आसानी से पहुंचाया जा सके। इसके साथ ही भारतीय किसानों को व्यापारिक फसलें उगाने के लिए प्रेरित किया गया ताकि इंग्लैंड में उनकी मांग को पूरा किया जा सके। फलस्वरूप गांवों में व्यापारिक फसलों की खेती होने लगी।

2. सिक्के का प्रसार-व्यापार आरम्भ होने से सिक्के का प्रसार बढ़ गया। अब किसान अपनी उपज बेचकर धन कमाने लगे और गांव में कई सेवाओं के बदले वे अनाज के स्थान पर नकद पैसे देने लगे। गांवों से कई लोग अधिक धन कमाने की इच्छा से नगरों में आकर भी काम करने लगे।

3. नए भूमि-प्रबन्ध-ग्रामों की आर्थिकता में सबसे बड़ा परिवर्तन नए भूमि-प्रबन्ध आरम्भ होने से आया। बंगाल, बिहार और उड़ीसा में भूमि का स्थायी बन्दोबस्त लागू किया गया। इसमें बड़े-बड़े ज़मींदारों को भूमि का स्वामी बना दिया गया और सदियों से भूमि पर खेती करने वाले किसान भूमि-हीन हो गए। वे अपने ज़मींदारों की इच्छा के दास थे। फलस्वरूप उनके मन में खेती के प्रति उत्साह कम हो गया। नए भूमि-प्रबन्ध के कारण ग्रामों की आर्थिकता पर बड़ा बुरा प्रभाव पड़ा।

4. नई न्याय प्रणाली-गांवों की आर्थिकता में पंचायतों का बड़ा महत्त्व था। प्रत्येक गांव में झगड़ों का निपटारा पंचायतें ही करती थीं और सभी को उसका निर्णय मानना पड़ता था। इसलिए झगड़ों के निपटारे पर अधिक धन और समय नष्ट नहीं होता था, परन्तु अंग्रेजों ने एक नई न्याय-प्रणाली आरम्भ की। इसके अनुसार अब गांव के झगड़ों का निपटारा पंचायतें नहीं कर सकती थीं। फलस्वरूप गांव के लोगों को भारी हानि उठानी पड़ी।

सच तो यह है कि अंग्रेजों के शासन काल में ग्रामीण आर्थिकता का रूप बिल्कुल बदल गया।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 9 महासागर

Punjab State Board PSEB 11th Class Geography Book Solutions Chapter 9 महासागर Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Geography Chapter 9 महासागर

PSEB 11th Class Geography Guide महासागर Textbook Questions and Answers

1. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक शब्द में दीजिए-

प्रश्न (i)
जलमंडल धरती की सतह का कितने प्रतिशत भाग घेरता है ?
उत्तर-
71%.

प्रश्न (ii)
धरती को नीला ग्रह क्यों कहा जाता है ?
उत्तर-
धरती पर जल के अधिक होने के कारण।

प्रश्न (iii)
समुद्रों की गहराई को कैसे मापा जाता है ?
उत्तर-
सॉनिक डैप्थ रिकार्डर द्वारा।

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प्रश्न (iv)
प्लैक्टन किसे कहते हैं ?
उत्तर-
जीव-जंतुओं के गले सड़े अंश।

प्रश्न (v)
हिंद महासागर की एक गहरी खाई (Trench) का नाम लिखें।
उत्तर-
सुंडा खाई। (Sunda Trench)।

प्रश्न (vi)
विश्व के सबसे बड़े महासागर का नाम क्या है ?
उत्तर-
प्रशांत महासागर।

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प्रश्न (vii)
ऐगुल्लास धारा (Agulhas Current) कौन-से महासागर की धारा है ?
(क) हिंद महासागर
(ख) अंध महासागर
(ग) आर्कटिक महासागर
(घ) शांत महासागर।
उत्तर-
(क) हिंद महासागर।

प्रश्न (vii)
प्रशांत महासागर की सबसे गहरी खाई (Deepest Trench) का नाम क्या है ?
उत्तर-
मेरिआना।

प्रश्न (ix)
हिंद महासागर की औसत गहराई कितनी है ?
उत्तर-
3960 मीटर।

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प्रश्न (x)
प्रशांत महासागर के किनारे किन पाँच महाद्वीपों को छूते हैं ?
उत्तर-

  1. उत्तरी अमेरिका
  2. दक्षिणी अमेरिका
  3. एशिया
  4. आस्ट्रेलिया
  5. अंटार्कटिका।

प्रश्न (xi)
सुनामी लहरें क्या होती हैं ?
उत्तर-
महासागर के धरातल पर भूकंप के कारण बहुत ऊंची लहरें उठती हैं, जिन्हें सुनामी. कहते हैं।

प्रश्न (xii)
तापमान अक्षांश और गहराई बढ़ने से कम होता है, क्यों ?
उत्तर-
भूमध्य रेखा पर पूरा वर्ष सूर्य की किरणें लंब रूप में पड़ती हैं और इसलिए वहाँ तापमान अधिक होता है, परंतु ध्रुवीय क्षेत्रों में तापमान कम होता है। गहराई के बढ़ने से तापमान कम हो जाता है। 200 मीटर की गहराई पर तापमान 15.9°C रहता है परंतु 1000 मीटर की गहराई पर केवल 5°C हो जाता है।

प्रश्न (xiii)
भूमध्य रेखा के नज़दीक गर्मी की ऋतु में खुले महासागर का औसत तापमान क्या होता है ?
उत्तर-
26° C.

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प्रश्न (xiv)
क्या गल्फ स्ट्रीम (Gulf Stream) गर्म जल की धारा है ?
उत्तर-
हाँ, यह गर्म जल की धारा है।

प्रश्न (xv)
अल्बेडो (Albedo) की परिभाषा दें।
उत्तर-
सूर्य की किरणों के परिवर्तन को अल्बेडो कहते हैं।

प्रश्न (xvi)
खारापन (लवणता) क्या होता है ?
उत्तर-
खारेपन से अभिप्राय समुद्री जल में घुले हुए नमक की मात्रा है।

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प्रश्न (xvii)
निम्नलिखित अक्षांशों में से सबसे अधिक खारापन कहाँ होगा ?
(क) 10°A – 15°N
(ख) 15°N – 40°N
(ग) 60°S – 70°S.
उत्तर-
(ख) 15°N – 40°N पर सबसे अधिक खारापन होगा।

प्रश्न (xviii)
महासागरों के जल का खारापन नापने की इकाई क्या है ?
(क) 10 ग्राम
(ख) 1000 ग्राम
(ग) 100 ग्राम।
उत्तर-
(ख) 1000 ग्राम।

प्रश्न (xix)
सागरीय लवणता को कौन-से तत्त्व प्रभावित करते हैं ?
उत्तर-
(i) हिंद महासागर संसार का तीसरा सबसे बड़ा महासागर है, जोकि तीन तरफ से स्थल भागों (अफ्रीका, एशिया, ऑस्ट्रेलिया) से घिरा हुआ है। इसका विस्तार 20° पूर्व से लेकर 115° पूर्व तक है। इसकी औसत गहराई 4000 मीटर है। यह सागर उत्तर में बंद है और दक्षिण में अंध महासागर और प्रशांत महासागर से मिल जाता है।
(ii) समुद्री पहाड़ियाँ (Ridges)—इस महासागर में कई पहाड़ियाँ मिलती हैं-

(क) मध्यवर्ती पहाड़ी (Mid Indian Ridge) कन्याकुमारी से लेकर अंटार्कटिका महाद्वीप तक 75° पूर्व देशांतर के साथ-साथ स्थित है। इसके समानांतर पूर्वी हिंद पहाड़ी और पश्चिमी हिंद पहाड़ियाँ स्थित हैं। दक्षिण में ऐमस्ट्रडम-सेंट पॉल पठार स्थित है।
(ख) अफ्रीका के पूर्वी सिरे पर स्कोटा छागोश पहाड़ी।
(ग) हिंद महासागर के पश्चिम में मैडगास्कर और प्रिंस ऐडवर्ड पहाड़ियाँ और कार्ल्सबर्ग पहाड़ियाँ स्थित हैं।

(ii) सागरीय बेसिन (Ocean Basin)-कई पहाड़ियों (Ridges) के कारण हिंद महासागर कई छोटे-छोटे बेसिनों में बँट गया है, जैसे-खाड़ी बंगाल, अरब सागर, सोमाली बेसिन, पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया का बेसिन और दक्षिणी हिंद बेसिन।

(iv) समुद्री निवाण (Ocean Deeps)—इस सागर में समुद्री निवाण बहुत कम हैं। सबसे अधिक गहरा स्थान सुंडा खाई (Sunda Trench) के निकट प्लैनट निवाण है, जोकि 4076 फैदम गहरा है।

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(v) सीमावर्ती सागर (Marginal Sea)-हिंद महासागर में अधिकतर सीमावर्ती सागर उत्तर की ओर हैं, जो इस प्रकार हैं-

(क) लाल सागर (Red Sea)
(ख) खाड़ी सागर (Persian Gulf)
(ग) अरब सागर (Arabian Sea)
(घ) खाड़ी बंगाल (Bay of Bengal)
(ङ) मोज़म्बिक चैनल (Mozambique Strait)
(च) अंडमान सागर (Andaman Sea)।

(vi) द्वीप (Islands)

(क) श्रीलंका और मैलागासी जैसे बड़े द्वीप
(ख) अंडमान-निकोबार, जंजीबार, लक्षद्वीप और मालदीव,
(ग) मारीशस और रीयूनियन जैसे ज्वालामुखी द्वीप।

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प्रश्न (xx)
अंतर स्पष्ट करें-लवणता/तापमान।
उत्तर-
लवणता उस अनुपात को कहते हैं, जो घुले हुए पदार्थों के भार और समुद्री जल के भार में होती है। महासागरीय जल के तापमान पर महासागरों की गतियाँ निर्भर करती हैं। महासागरीय जल के तापमान का प्रमुख स्रोत सूर्य की गर्मी है।

2. निम्नलिखित को परिभाषित करें-

प्रश्न (i)
महाद्वीपीय ढलान।
उत्तर-
महाद्वीपीय शैल्फ से आगे महासागर की ओर तीखी ढलान को महाद्वीपीय ढलान कहते हैं।

प्रश्न (ii)
सपाट पर्वत (Guyots) और सागरीय पर्वत (Sea Mount)।
उत्तर-
सपाट शिखर वाली पहाड़ियों को. सपाट पर्वत कहते हैं। 1000 मीटर से अधिक ऊँची पहाड़ियों को समुद्री पर्वत कहते हैं।

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प्रश्न (iii)
जल चक्र।
उत्तर-
समुद्री जल के वाष्पीकरण द्वारा वायुमंडल और जल पर पानी के चक्र में घूमने को जल चक्र कहा जाता है।

प्रश्न (iv)
गहरे मैदान (Abyssal Plains) और महाद्वीपीय ढलान (Continental Slopes)।
उत्तर-
महाद्वीपीय शैल्फ से आगे महासागर की ओर तीखी ढलान को महाद्वीपीय ढलान कहते हैं। महाद्वीपीय ढलान से आगे समतल मैदान (3000 से 6000 मीटर तक) को गहरा सागरीय मैदान कहते हैं।

प्रश्न (v)
महासागरीय धाराएँ।
उत्तर-
महासागर के एक भाग से दूसरे भाग की ओर एक विशेष दिशा में लगातार प्रवाह को महासागरीय धाराएँ कहते हैं।

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प्रश्न (vi)
सागरीय धाराएँ क्यों पैदा होती हैं ? कोई चार कारण विस्तार से लिखें।
उत्तर-
समुद्र विज्ञान (Oceanography)—महासागरों का अध्ययन प्राचीन काल से ही होता चला आ रहा है। महासागरों की परिक्रमा, ज्वारभाटे की जानकारी आदि ईसा से कई वर्ष पूर्व ही प्राप्त थी। जलवायु, समुद्री मार्गों, जीवविज्ञान आदि पर प्रभाव के कारण समुद्री विज्ञान भौतिक भूगोल में एक विशेष स्थान रखता है।

समुद्र विज्ञान दो शब्दों Ocean + Graphy के मेल से बना है। इस प्रकार इस विज्ञान में महासागरों का वर्णन होता है। एम०ए०मोरमर (M.A. Mormer) के अनुसार, “समुद्र विज्ञान महासागरों की आकृति, स्वरूप, पानी और गतियों का अध्ययन है।” (Oceanography is the study of the Science of Oceans-its form, nature, waters and movements.)। मोंक हाऊस के अनुसार, “समुद्र विज्ञान महासागरों के भौतिक और जैव गुणों का अध्ययन है।” (Oceanography is the study of a wide range of Physical and biological phenomena of oceans.)

I डब्ल्यू० फ्रीमैन (W. Freeman) के अनुसार, “समुद्र विज्ञान भौतिक भूगोल का वह भाग है, जो पानी की गतियों
और मूल शक्तियों का अध्ययन करता है। इस अध्ययन में ज्वारभाटा, धाराओं, तट रेखाओं, समुद्री धरातल और जीवों का अध्ययन शामिल होता है।”

महासागर-विस्तार (Ocean-Extent)-पृथ्वी के तल पर जल में डूबे हुए भाग को जलमंडल (Hydrosphere) कहते हैं। जलमंडल में महासागर, सागर, खाड़ियाँ, झीलें आदि सभी जल-स्रोत आ जाते हैं। सौर-मंडल में पृथ्वी ही एक-मात्र ग्रह है, जिस पर जलमंडल मौजूद है। इसी कारण पृथ्वी पर मानव-जीवन संभव है।

पृथ्वी के लगभग 71% भाग पर जलमंडल का विस्तार है। इसलिए इसे जल-ग्रह (Watery Planet) कहते हैं। अंतरिक्ष से पृथ्वी का रंग नीला दिखाई देता है, इसलिए इसे नीला ग्रह (Blue Planet) भी कहते हैं।

धरातल पर जलमंडल लगभग 3,61,059,000 वर्ग किलोमीटर में फैले हुए हैं जोकि पृथ्वी के धरातल के कुल क्षेत्रफल का 71% भाग है।
उत्तरी गोलार्द्ध का 61% भाग और दक्षिणी गोलार्द्ध का 81% भाग महासागरों द्वारा घिरा हुआ है। उत्तरी गोलार्द्ध की तुलना में दक्षिणी गोलार्द्ध में जल का विस्तार अधिक है, इसलिए इसे (Water Hemisphere) भी कहते हैं। जल और थल का विभाजन प्रति ध्रुवीय (Antipodal) है। उत्तरी ध्रुव की ओर चारों तरफ आर्कटिक महासागर स्थित है और दक्षिणी ध्रुव अंटार्कटिका महाद्वीप द्वारा घिरा हुआ है ।

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जलमंडल का क्षेत्रफल (Area of Hydrosphere) ब्रिटिश भूगोल वैज्ञानिक जॉन मरें (John Murray) ने जलमंडल का क्षेत्रफल 3626 लाख वर्ग किलोमीटर बताया है । महासागरों में प्रमुख प्रशांत महासागर, अंधमहासागर, हिंद महासागर और आर्कटिक महासागर हैं । प्रशांत महासागर सबसे बड़ा महासागर है, जो जलमंडल के 45.1% भाग पर फैला हुआ है ।

Areas of Different Oceans

Ocean — Area (Sq. K.m.)
प्रशांत महासागर — 16,53, 84,000
अंध महासागर — 8,22,17,000
हिंद महासागर — 7,34,81,000
आर्कटिक महासागर –1,40,56,000

महासागरों की औसत गहराई 3791 मीटर है। स्थल मंडल की अधिकतम ऊँचाई एवरेस्ट चोटी (Everest Peak) है, जोकि समुद्र तल से 8848 मीटर ऊँची है। जलमंडल की अधिकतम गहराई 11,033 मीटर, फिलीपीन देश के निकट प्रशांत महासागर की मेरियाना खाई में चैलंजर निवाण (Challeger Deep) में है। इस प्रकार यदि संसार के सबसे ऊँचे शिखर ऐवरेस्ट को प्रशांत महासागर की मेरियाना खाई में डुबो दिया जाए, तो उसके शिखर पर 2000 मीटर से अधिक पानी होगा।

प्रश्न (vii)
अंध महासागर की कोई दो गर्म पानी की धाराओं की व्याख्या करें।
उत्तर-

  • फ्लोरिडा गर्म पानी की धारा-यह धारा दक्षिणी-पूर्वी (यू०एस०ए०) तट से होते हुए चलती है, जोकि फ्लोरिडा की धारा के नाम से जानी जाती है। ..
  • नॉर्वे की गर्म पानी की धारा-अंध महासागर के पूर्वी हिस्से में पहुँचकर (North Atlantic Drift) उत्तरी अटलांटिक धारा दो हिस्सों में बाँटी जाती है, उत्तर की ओर मुड़ा हुआ हिस्सा नॉर्वे के तटों के साथ-साथ होता हुआ आर्कटिक (Arctic) सागर में जा मिलता है, जो नॉर्वे की गर्म पानी की धारा के नाम से जाना जाता है।

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प्रश्न (viii)
न्यूफाउंडलैंड में धुंध होने के कारण क्या हैं ? कारण बताएं।
उत्तर-
न्यूफाउंडलैंड के निकट खाड़ी की गर्म धारा और लैब्रेडोर की ठंडी धाराएँ आपस में मिलती हैं। इनके प्रभाव से धुंध पैदा हो जाती है और जहाज़ों के आने-जाने में रुकावट पैदा होती है।

प्रश्न (ix)
महासागरीय धाराओं और ज्वारभाटा में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर-
महासागरों में एक विशेष दिशा में लगातार प्रवाह को महासागरीय धाराएँ कहते हैं। जबकि सागरीय जल के समय के अनुसार उतार-चढ़ाव को ज्वारभाटा कहते हैं।

प्रश्न (x)
गहराई के साथ समुद्री तापमान में बदलाव क्यों आता है ? ताप-परतों के बारे में बताएँ।
उत्तर-
गहराई के साथ-साथ समुद्री जल का तापमान कम होता जाता है। सूर्य की किरणें 100 फैदम तक ही पानी को गर्म करती हैं। पहली परत 500 मीटर तक होती है। दूसरी परत 500-1000 मीटर तक होती है, जिसे थर्मोक्लाईन कहते हैं। इससे अधिक गहराई पर तापमान कम होना शुरू होने लगता है।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 9 महासागर

प्रश्न (xi)
सागरीय धाराओं का तापमान पर क्या प्रभाव होता है ?
उत्तर-
धाराओं से ऊपर बहने वाली पवनें अपने साथ गर्मी या सर्दी ले जाती हैं। गर्म धाराओं के प्रभाव से निकट के क्षेत्र में तापमान ऊँचा हो जाता है और जलवायु सम हो जाती है। (Warm currents raises and cold currents lowers the temprature)। ठंडी धाराओं के कारण सर्दी की ऋतु आरंभ हो जाती है।

प्रश्न (xii)
महासागरीय जल के तापमान वितरण के ऊपर प्रभाव डालने वाले तत्त्वों के बारे में विस्तार से लिखें।
उत्तर-
1. विस्तार और आकार (Shape and Size)—यह त्रिभुज (A) आकार का महासागर पृथ्वी के 30% भाग पर फैला हुआ है। इसकी औसत गहराई 5000 मीटर है। उत्तर में यह बेरिंग समुद्र और आर्कटिक महासागर द्वारा बंद है। प्रशांत महासागर भूमध्य रेखा पर लगभग 16000 कि०मी० चौड़ा है।

2. समुद्री पहाड़ियाँ (Ridges)—प्रशांत महासागर में पहाड़ियों (Ridges) की कमी है। इसके कुछ भागों में पठारों के रूप में उठे हुए चबूतरे पाए जाते हैं। प्रमुख उभार इस प्रकार हैं –

  • हवाई उभार, जोकि लगभग तीन हज़ार कि०मी० लंबा है।
  • अल्बेट्रोस पठार, जोकि लगभग 1500 कि०मी० लंबा है।
  • इस सागर में अनेक उभार (Swell), ज्वालामुखी पहाड़ियाँ और प्रवाल भित्तियाँ पाई जाती हैं।

3. सागरीय बेसिन (Ocean Basin)-प्रशांत महासागर में कई प्रकार के बेसिन मिलते हैं, जो छोटी-छोटी पहाड़ियों (Ridges) द्वारा एक-दूसरे से अलग हैं। प्रमुख बेसिन इस प्रकार हैं –

  • ऐलुशीयन बेसिन
  • फिलिपीन बेसिन
  • फिज़ी बेसिन
  • पूर्वी ऑस्ट्रेलिया का बेसिन
  • प्रशांत अंटार्कटिका बेसिन।

4. सागरीय निवाण (Ocean Deeps)—इस महासागर में लगभग 32 निवाण मिलते हैं, जिनमें से अधिक Trenches हैं। इस सागर के निवाण (Deeps) और खाइयाँ (Trenches) अधिकतर इसके पश्चिमी भाग में हैं। इस सागर में सबसे गहरा स्थान मैरियाना खाई (Mariana Trench) है, जिसकी गहराई 11022 मीटर है। इसके अलावा ऐलुशीयन खाई, क्यूराइल खाई, जापान खाई, फिलीपाइन खाई, बोनिन खाई, मिंडानो टोंगा खाई और एटाकामा खाई प्रसिद्ध सागरीय निवाण हैं, जिनकी गहराई 7000 मीटर से भी अधिक है।

5. सीमवर्ती सागर (Marginal Seas)—प्रशांत महासागर में अधिकतर सीमावर्ती सागर पश्चिमी भागों में मिलते हैं। इसके पूर्वी भाग में कैलीफोर्निया की खाड़ी और अलास्का की खाड़ी है। शेष महत्त्वपूर्ण सागर पश्चिमी भाग में हैं(i) बेरिंग सागर (Bering Sea) (ii) पीला सागर (Yellow Sea) (iii) ओखोत्सक सागर (Okhotsk Sea) (iv) जापान सागर (Japan Sea) (v) चीन सागर (China Sea)।

6. द्वीप (Islands)—प्रशांत महासागर में लगभग 20 हज़ार द्वीप पाए जाते हैं। प्रमुख द्वीप ये हैं-

  • ऐलुशियन द्वीप और ब्रिटिश कोलंबिया द्वीप।
  • महाद्वीपीय द्वीप, जैसे-क्यूराईल द्वीप, जापान द्वीप समूह, फिलीपाइन द्वीप, इंडोनेशिया द्वीप और न्यूज़ीलैंड द्वीप।
  • ज्वालामुखी द्वीप जैसे-हवाई द्वीप।
  • प्रवाल द्वीप, जैसे-फिजी द्वीप।

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प्रश्न (xiii)
लहरें (तरंगें) क्या होती हैं ?
उत्तर-
पवनों के प्रभाव से महासागरीय तल का जल ऊँचा-नीचा होता है, जिन्हें लहरें कहते हैं।

प्रश्न (xiv)
सुनामी लरहें (तरंगें) क्या होती हैं और इनके कारण होने वाली तबाही के बारे में एक नोट लिखें।
उत्तर–
महासागर के धरातल पर भूकंप के कारण बहुत ऊँची लहरें उठती हैं, जिन्हें सुनामी कहते हैं। ये लहरें बहुत विनाशकारी होती हैं। इन सुनामी लहरों के कारण सन् 2004 में दक्षिणी भारत में जान और माल का बहुत नुकसान हुआ था।

प्रश्न (xv)
लहरों की लंबाई क्या होती है ? .
उत्तर-
महासागरों में लहरों के कारण जल ऊँचा-नीचा होता रहता है, जिन्हें तरंगें या लहरें कहते हैं। लहरों के ऊपरी भाग को शिखर (Crest) और निचले भाग को गर्त (Trough) कहते हैं। इस शिखर और गर्भ के बीच की लंबाई को लहर की लंबाई कहते हैं।

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प्रश्न (xvi)
लहर की ऊँचाई क्या होती है ?
उत्तर-
लहर के निचले हिस्से गर्त (Trough) से लेकर लहर के शिखर तक की ऊँचाई को लहर की ऊँचाई कहते हैं।

प्रश्न (xvi)
लहरों और पवनों का आपसी संबंध बताएँ। लहरों की गति देखने के लिए किस फॉर्मूले का प्रयोग किया जाता है ?
उत्तर-
महासागरों का जल हवा की दिशा के साथ लहरों के रूप में गतिशील होता है। जल के ऊपर उठने और नीचे आने की क्रिया को लहर कहते हैं। लहरों को मापने के लिए नीचे लिखे फार्मूले का प्रयोग किया जाता है।
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प्रश्न (xvii)
Surge की परिभाषा लिखें।
उत्तर-
जब कोई लहर समुद्र-तट की ओर आती है, तो उसे Swash या Surge कहते हैं। यह लहर हानिकारक होती है।

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प्रश्न (xix)
ज्वारभाटा कब आता है ?
उत्तर-
समुद्र का जल नियमित रूप से दिन में दो बार (24 घंटे में) ऊपर उठता है और नीचे आता है। इसे ज्वारभाटा कहते हैं।

प्रश्न (xx)
ज्वार दिन में कितनी बार आता है और इनका आपसी अंतर (Magnitude) क्या होता है ?
उत्तर-
प्रत्येक स्थान पर ज्वार 12 घंटे 26 मिनट के बाद आता है। हर रोज़ ज्वार पिछले दिन की तुलना में देर से आता है।

प्रश्न (xxi)
एक औसतन ज्वार की ऊँचाई कितनी होती है ?
उत्तर-
0.55 मीटर।

प्रश्न (xxii)
अंतर स्पष्ट करेंऊँचा ज्वार (Spring Tide) और छोटा ज्वार (Neap Tide)
उत्तर-
ऊँचा ज्वार (Spring Tide)-सबसे ऊँचे ज्वार को ऊँचा ज्वार कहते हैं। यह हालत अमावस्या (New Moon) और पूर्णिमा (Full Moon) को होती है।
छोटा ज्वार (Neap Tide)-अमावस्या के सात दिन बाद या पूर्णिमा के सात दिन बाद ज्वार की ऊँचाई दूसरे दिनों की तुलना में नीची रह जाती है। इसे छोटा ज्वार कहते हैं। इस हालत को शुक्ल और कृष्ण पक्ष की अष्टमी कहते हैं, जब चाँद आधा (Half Moon) होता है।

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3. विस्तार से दें-

प्रश्न (i)
महासागरीय बेसिन (Ocean Basin) क्या होता है ? विस्तार से लिखें।
उत्तर-
महासागरीय बेसिन (Ocean Basin)-समुद्री धरातल के ऊँचे-नीचे भाग को महासागरीय बेसिन कहते हैं। इसके फर्श पर पठार, टीले, घाटियाँ और खाइयाँ मिलती हैं। महासागरीय बेसिन को नीचे लिखे प्रमुख भागों में बाँटा जा सकता है-

1. महाद्वीपीय शैल्फ (Continental Shelf)-समुद्री किनारे के साथ समुद्री हिस्से को महाद्वीपीय शैल्फ कहा जाता है। महाद्वीपीय शैल्फ समुद्री किनारों से लेकर समुद्रों के नीचे उस सीमा तक फैले हुए होते हैं, जहाँ से समुद्र की गहराई शुरू होती है। महाद्वीपीय शैल्फ की औसत गहराई 100 फैदम (Fathom) तक मानी जाती है, परंतु कई बार यह अधिक भी हो सकती है। इसकी ढलान बहुत कम होने के कारण यह समतल ही नज़र आती है।

विस्तार-महासागरों के 7.5% भाग (260 लाख वर्ग किलोमीटर) पर महाद्वीपीय शैल्फों का विस्तार है। इसका सबसे अधिक विस्तार अंधमहासागर (13.3%) में है। इसकी औसत चौड़ाई 67 किलोमीटर और गहराई लगभग 72 फैदम होती है। आर्कटिक सागर के तट पर इसका विस्तार 1000 किलोमीटर से भी अधिक है।

उत्पत्ति-महाद्वीपीय शैल्फ की उत्पत्ति के बारे में विचारकों के नीचे लिखे विचार हैं-

  • कुछ विचारकों के अनुसार महाद्वीपीय शैल्फ वास्तव में स्थल का बढ़ा हुआ रूप होता है। समुद्र तल के ऊपर उठ जाने से या स्थल भाग के नीचे धंस जाने से महाद्वीपीय शैल्फ की रचना हुई।
  • यह भी माना जाता है कि सागरीय अपरदन से भी इनकी रचना हुई।
  • नदियों, लहरों, वायु आदि द्वारा तलछट के निक्षेप से भी इनका निर्माण हुआ।

महत्त्व-महाद्वीपीय शैल्फ मनुष्य के लिए काफी लाभदायक है। इन प्रदेशों में मछलियों के भंडार होते हैं। यहाँ तेल और गैस का उत्पादन होता है। यहाँ समुद्री जीवों और वनस्पति की अधिकता होती है।

2. महाद्वीपीय ढलान (Continental Slope) समुद्री फ़र्श का यह भाग महाद्वीपीय शैल्फ के समाप्त होने पर शुरू होता है और गहरे समुद्री मैदान तक जारी रहता है। दूसरे शब्दों में महाद्वीपीय ढलान महाद्वीपीय शैल्फ और गहरे समुद्री मैदान के बीच का भाग होता है। इस भाग की गहराई 100 फैदम से लेकर 2000 फैदम तक मानी जाती है। (भाव 200 मीटर से 4000 मीटर तक)। इसका कुल विस्तार 8.5% क्षेत्रफल पर है। इसका सबसे अधिक विस्तार अंध महासागर में है, जो कि 72.4% होता है। इस ढाल का औसत कोण 4° होता है, परंतु स्पेन के निकट यह कोण 36° होता है। इस ढाल की मुख्य रूप से पाँच किस्में हैं –

  • कैनियन द्वारा कटे हुए ढाल।
  • पहाड़ियों और बेसिन वाला मंद ढाल।
  • दरार के कारण टूटा हुआ ढाल।
  • सीढ़ीदार ढाल।
  • समुद्री टीलों वाला ढाल।

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3. गहरा समुद्री मैदान (Deep Sea Plain)-महाद्वीपीय ढलान से निचले चौड़े और समतल क्षेत्र को गहरे समुद्री मैदान कहा जाता है। इनकी औसत गहराई 3000 से लेकर 6000 मीटर तक होती है। कुल महासागर में इसका विस्तार 7.7% है। इसका सबसे अधिक विस्तार प्रशांत महासागर में है। इन मैदानों की ढाल 1/1000 से भी कम होती है। इन मैदानों के ऊपर कई भू-दृश्य पाए जाते हैं, जैसे—समुद्री पहाड़ियाँ (Ridges), समुद्री टीले (Sea Mounts) आदि। इस भाग में अधिकतर मरे हुए जानवरों के अवशेष, हड्डियाँ, खोल और कीचड़ आदि पाए जाते हैं। समुद्री निवाण (Ocean Deeps)—समुद्री मैदानों में पाए जाने वाले सबसे गहरे हिस्सों को समुद्री निवाण कहा जाता है। इनका क्षेत्रफल बहुत कम और ढलान बहुत अधिक तीखी होती है।

4. समुद्री निवाण (Ocean Deeps) आमतौर पर द्वीप श्रृंखलाओं के निकट, ज्वालामुखी पर्वतों और भूकंप वाले क्षेत्रों में पाए जाते हैं। कुल महासागरों के 7% भाग पर समुद्री निवाण पाए जाते हैं। विश्व के कुल सागरों में 57 खाइयाँ हैं, जिनमें से 32 प्रशांत महासागर में, 19 अंधमहासागर में और 6 हिंद महासागर में हैं। इन खाइयों की नीचे लिखी विशेषताएं है-

  • ये महासागरों के किनारे के साथ-साथ पाई जाती हैं।
  • ये अधिकतर ज्वालामुखी क्षेत्रों में होती हैं।
  • ये द्वीप श्रृंखलाओं की चाप के साथ-साथ मिलती हैं।

5. समुद्री कटक, घाटियाँ, पठार और ज्वालामुखी पहाड़ियाँ (Ocean Ridges, Valleys, Plateaus and Volcano Hills)-समुद्रों में कई स्थानों पर समुद्री कटक, घाटियाँ, पठार और ज्वालामुखी पहाड़ियाँ पाई जाती हैं। उदाहरण के लिए अंध-महासागर में मध्यवर्ती कटक (Mid-Atlantic Ridge) ग्रीनलैंड से लेकर अंटार्कटिक तक फैली हुई है।

प्रश्न (ii)
पंजाब की जलगाहों के विषय में जानकारी दें और इनका प्रदूषण रोकने के लिए सुझाव दें।
उत्तर-
पंजाब के दो जलगाह नीचे लिखे हैं-
1. हरीके पत्तन जलगाह-यह जलगाह बहुत गहरी और बड़ी, जल की आर्द्रभूमि है, जो पंजाब के तरनतारन जिले में स्थित है। 1953 ई० में हरीके के स्थान पर सतलुज नदी के पानी को बांधकर इस जलगाह को बनाया गया था। यहाँ सतलुज और ब्यास नदियों का संगम होता है। यह जलगाह मनुष्य द्वारा बनाई गई है, जोकि 4100 हैक्टेयर के क्षेत्र में तीन जिलों तरनतारन, फिरोजपुर और कपूरथला में फैली हुई है।

2. कांजली जलगाह-पंजाब के कपूरथला जिले की यह जलगाह 1870 ई० में सिंचाई के उद्देश्य से बनाई गई थी। यह जलगाह काली बेंई जोकि ब्यास नदी में से निकलती है, के बहाव को बाँधकर बनाई गई थी। इस जलगाह को 2002 ई० में रामसर समझौते के अनुसार अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व वाली जलगाहों वाला दर्जा दिया गया था।

इनके प्रदूषण की रोकथाम के लिए जरूरी सुझाव-इन जलगाहों में फैंके गए कूड़ा-कर्कट के कारण प्रदूषण होता है। यह कूड़ा-कर्कट पानी के ऊपर तैरता रहता है इसलिए इन जलगाहों को प्रदूषण से बचाने के लिए इनमें कूड़ाकर्कट न फेंका जाए।

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प्रश्न (iii)
महासागरीय जल के तापमान वितरण पर प्रभाव डालने वाले तत्त्वों के बारे में विस्तार से लिखें।
उत्तर-
सागरों का जल, तापमान का एक उत्तम संचालक होता है, इसलिए थल की तुलना में जल देर से गर्म होता है और देर से ठंडा होता है। सागरीय जल का तापमान सभी स्थानों पर एक-समान नहीं होता। सागरीय जल का अलगअलग तापमान नीचे लिखी बातों पर निर्भर करता है-

1. भूमध्य रेखा से दूरी-भूमध्य रेखा पर सूर्य की किरणें पूरा वर्ष सीधी पड़ती हैं, इसलिए भूमध्यवर्ती सागरों में तापमान अधिक होता है और पूरा वर्ष एक-समान रहता है। भूमध्य रेखा के ऊपर यह तापमान 26°C के लगभग होता है। 70° अक्षांश पर सागरीय जल का तापमान 5°C पाया जाता है। इसी प्रकार उच्च अक्षांशीय क्षेत्रों में तापमान कम हो जाता है।

2. प्रचलित पवनें-जब स्थायी पवनें चलती हैं, तो सागरों की सतह के जल को गतिशील बना देती हैं। एक स्थान से हिले हुए जल का स्थान लेने के लिए निचला जल ऊपर आ जाता है। इसे Upwelling of Water कहते हैं। इसके फलस्वरूप सागरों के तापमान पर गहरा प्रभाव पड़ता है।

3. सागरीय धाराओं का प्रभाव-सागरीय धाराएँ जिस क्षेत्र से आती हैं, उसका जल अपने साथ ले आती हैं। यदि कोई सागरीय धारा भूमध्य रेखा से ध्रुवों की ओर चल रही हो, तो स्वाभाविक तौर पर ध्रुवों का जल जब भूमध्यरेखीय धाराओं के संपर्क में आएगा, तो उसका तापमान भी बढ़ जाएगा। जो धारा ध्रुवों से भूमध्य रेखा की ओर चलती है, तो उसका तापमान कम हो जाएगा। इस प्रकार कहा जा सकता है कि सागरीय धाराएँ सागरों के तापमान पर गहरा प्रभाव डालती हैं। खाड़ी की गर्म धारा पश्चिमी यूरोप के तापमान को 5°C तक बढ़ा देती है परन्तु लैबरेडोर की ठंडी धारा तापमान को 0°C तक कम कर देती है।

4. खारेपन की मात्रा-सागरों का खारापन भी सागरीय जल के तापमान को प्रभावित करता है। सागरों का जल जितना अधिक खारा होगा, उतना ही तापमान अधिक होगा। जितना खारापन कम होगा, उतना ही तापमान कम होगा।

5. थल-मंडलों का प्रभाव-उष्ण-कटिबंध में स्थल द्वारा घिरे हुए सागरों का तापमान अधिक होता है, परंतु शीत कटिबंध में कम होता है।

6. समुद्र की गहराई-समुद्र की गहराई बढ़ने से तापमान कम होता जाता है। ऊपरी सतह से लेकर 1800 मीटर की गहराई तक सागरीय जल का तापमान 15°C से कम होकर 20°C तक रह जाता है। 1800 से 4000 मीटर की गहराई तक यह तापमान 2°C से कम होकर 1.6°C रह जाता है।

प्रश्न (iv)
अलग-अलग सागरों में खारेपन की मात्रा को प्रभावित करने वाले तत्त्वों का वर्णन करें।
उत्तर-
समुद्र का पानी हमेशा खारा होता है। सागरीय जल के 1000 ग्राम पानी में लगभग 35 ग्राम नमक घुला हुआ होता है। खारेपन की यह मात्रा भिन्न-भिन्न सागरों में भिन्न-भिन्न होती है। खारेपन की यह भिन्नता नीचे लिखे तत्त्वों पर निर्भर करती है-

1. ताजे जल की पूर्ति (Supply of Fresh Water) ताज़े पानी की अधिकता से सागरों में खारेपन की मात्रा कम हो जाती है। साफ़ जल की पूर्ति कई साधनों द्वारा होती है। भूमध्यरेखीय खंड में अधिक वर्षा के कारण सागरीय जल में खारेपन की मात्रा कम होती है, इसलिए कर्क रेखा और मकर रेखा के आसपास खारेपन की मात्रा अधिक होती है। ध्रुवीय प्रदेशों में हिम (बर्फ) के पिघलने से साफ़ जल प्राप्त होता रहता है, जिससे खारापन कम हो जाता है। बड़ी नदियों के मुहानों पर खारापन कम होता है।

2. वाष्पीकरण (Evaporation)—जिन महासागरों में वाष्पीकरण अधिक होता है, उनका जल अधिक खारा होगा। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि वाष्पीकरण की क्रिया द्वारा सागरीय-जल वाष्प बनकर ऊपर उठता है और बाकी बचे जल में खारेपन की मात्रा बढ़ जाती है। अधिक तापमान, वायु की तीव्रता और शुष्कता के कारण सागरों में खारापन अधिक होता है। कर्क रेखा और मकर रेखा के निकट अधिक वाष्पीकरण के कारण खारापन अधिक होता है। कम तापमान और कम वाष्पीकरण के कारण खारापन कम हो जाता है।

3. पवनों की दिशा (Wind Direction) यदि एक ही दिशा से तेज़ गति वाली पवनें दूसरी दिशा की ओर चल रही हों, तो वे सागरों की सतह का जल भी अपने साथ बहाकर ले जाती हैं, जिस कारण सागरों में खारेपन की मात्रा परिवर्तित होती रहती है। नीचे उतरती पवनों के कारण अधिक वाष्पीकरण और अधिक खारापन होता है।

4. सागरीय जल की गति (Movement of the Sea Water) सागरों के जल की गति द्वारा भी खारेपन पर प्रभाव पड़ता है। सागरों का जल गतिशील होने के कारण एक स्थान से दूसरे स्थान को जाता है और अपने मूल गुणों को भी बहाकर ले जाता है। यदि मूल जल में खारेपन की मात्रा अधिक होगी, तो नए स्थान का खारापन अधिक हो जाएगा। दूसरी तरफ अधिक ताज़ा जल नए स्थान का खारापन कम कर देता है।

5. समुद्री धाराएँ (Currents)-खुले सागरों में धाराएँ एक भाग से दूसरे भाग तक जल ले जाती हैं । गर्म धाराएँ खारेपन की मात्रा को बढ़ा देती हैं, जबकि ठंडी धाराओं के साथ खारेपन की मात्रा कम हो जाती है।

6. समुद्री जल की मिश्रण क्रिया (Mixing of Water)–ज्वारभाटा, लहरें और धाराएँ समुद्री जल को दूर दूर तक बहाकर ले जाती हैं। जल के इस मिश्रण से स्थानीय रूप में खारापन बढ़ जाता है या कम हो जाता है।

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प्रश्न (v)
समुद्री धाराएँ क्या होती हैं ? ये किस प्रकार पैदा होती हैं ? उदाहरण भी दें।
उत्तर-
समुद्री धाराएँ (Ocean Currents)-समुद्र के एक भाग से दूसरे भाग की ओर, एक विशेष दिशा में पानी के लगातार प्रवाह को समुद्री धाराएँ कहते हैं (Regular Movement of water from one part of the ocean to another is called an ocean current)। समुद्री धाराओं में पानी नदियों के समान आगे बढ़ता है। इनके किनारे स्थिर पानी वाले होते हैं। इन्हें समुद्री नदियाँ भी कहते हैं (An ocean current is like a river in the ocean)।

धाराओं के पैदा होने के कारण (Causes)—समुद्री धाराओं के पैदा होने के प्रमुख कारण नीचे लिखे हैं-

1. प्रचलित पवनें (Prevailing Winds)- हवा अपनी अपार शक्ति के कारण पानी को गति देती है। धरातल पर चलने वाली स्थायी पवनें (Planetary winds) लगातार एक ही दिशा में चलने के कारण धाराओं को जन्म देती हैं। संसार की प्रमुख धाराएँ स्थायी पवनों की दिशा के अनुसार चलती हैं (Ocean currents are wind determined)। मौसमी पवनें (Seasonal Winds) भी धाराओं की दिशा और उत्पत्ति में सहायक होती हैं।

उदाहरण (Examples)-

  • व्यापारिक पवनें (Trade Winds)—इनके द्वारा उत्तरी और दक्षिणी भूमध्य रेखीय धाराएँ (Equatorial Currents) पूर्व से पश्चिम की ओर चलती हैं।
  • पश्चिमी पवनें (Westerlies)-इनके प्रभाव से खाड़ी की धारा (Gulf Stream) और क्यूरोशियो (Kuroshio) धारा पश्चिम से पूर्व की ओर बहती है।

2. तापमान की भिन्नता (Difference in Temperature)-गर्म पानी हल्का होकर फैलता है और उसकी ऊँचाई बढ़ जाती है। ठंडा पानी भारी होने के कारण नीचे बैठ जाता है। कम ताप के कारण ठंडा पानी सिकुड़कर भारी हो जाता है। इस प्रकार समुद्र के पानी की सतह बराबर नहीं रहती और धाराएँ चलती हैं।

3. खारेपन में भिन्नता (Difference in Salinity)–अधिक खारा पानी भारी होने के कारण तल के नीचे की ओर बहता है। कम खारा पानी हल्का होने के कारण तल पर ही बहता है।

उदाहरण (Examples)

(क) भूमध्य सागर के अधिक खारे पानी की धारा तल के नीचे अंध महासागर की ओर चलती है।
(ख) बाल्टिक सागर (Baltic Sea) से कम खारे पानी की धारा तल पर उत्तरी सागर (North sea) की ओर बहती है।

4. वाष्पीकरण और वर्षा की मात्रा (Evaporation and Rainfall)-अधिक वाष्पीकरण से पानी भारी और अधिक खारा हो जाता है और तल की ओर नीचा हो जाता है, परंतु वर्षा अधिक होने से पानी हल्का हो जाता है और उसका तल ऊँचा हो जाता है। इस प्रकार ऊँचे तल से निचले तल की ओर धाराएँ चलती हैं।

5. धरती की दैनिक गति (Rotation)-फैरल के सिद्धान्त (Ferral’s law) के अनुसार धाराएँ उत्तरी गोलार्द्ध में अपनी दायीं ओर तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में अपनी बायीं ओर मुड़ जाती हैं। धरती की गति के कारण धाराओं का प्रवाह गोल आकार का बन जाता है।
उदाहरण (Examples)–धाराओं का चक्र उत्तरी गोलार्द्ध में घड़ी की सुइयों की दिशा के अनुकूल (Clockwise) और दक्षिणी गोलार्द्ध में घड़ी की सुइयों के विपरीत (Anti-Clockwise) चलता है।

6. तटों का आकार (Shape of Coasts)-तटों का आकार धाराओं के मार्ग में रोक पैदा कर देता है। समुद्री जल तटों से टकराकर धाराओं के रूप में बहने लगता है। धाराएँ तट के सहारे मुड़ जाती हैं। यदि थल प्रदेश न होते, तो धरती के आस-पास एक महान् भूमध्य रेखीय धारा (Great Equatorial Current) चलती।

उदाहरण (Examples)-

(क) ब्राज़ील के नुकीले तट पर सेन-रॉक अंतरीप (Cape san-Rocque) से टकराकर भूमध्य रेखीय धारा ब्राजील की धारा के रूप में बहती है।

(ख) महाद्वीपों की खाड़ियों वाले तटों पर पानी की अधिक मात्रा इकट्ठी हो जाती है। जिस प्रकार मैक्सिको की खाड़ी (Gulf of Maxico) से फ्लोरिडा (Florida) की धारा।

7. ऋतु परिवर्तन (Change of Season) मौसम के अनुसार पवनों की दिशा में परिवर्तन होने के कारण धाराओं की दिशा भी बदल जाती है।
उदाहरण (Examples)-हिंद महासागर में गर्मी की ऋतु में S.W. Monsoon Drift और सर्दी की ऋतु में N.E. Monsoon Drift बहती है।

प्रश्न (vi)
अंध महासागर की धाराओं का वर्णन करें और पड़ोसी देशों पर उनके प्रभाव बताएँ।
उत्तर-
अंध महासागर की धाराएँ (Currents of the Atlantic Ocean)-अंध महासागर स्पष्ट रूप से उत्तरी और दक्षिणी अंध महासागर के दो भागों में बंटा हुआ है। दोनों भागों में धाराओं का प्रभाव-क्रम एक समान है। उत्तरी अंध महासागर में धाराएँ घड़ी की सुइयों की दिशा (Clockwise) में चक्र पूरा करती हैं, परंतु दक्षिणी अंध महासागर में घड़ी की सुइयों की विपरीत दिशा (Anti-clockwise) में चक्र पूरा करती हैं। अंध महासागर की प्रमुख धाराएँ निम्नलिखित हैं-

1. उत्तरी भूमध्य रेखीय धारा (North Equatorial Current)—यह गर्म जल की धारा है, जो भूमध्य रेखा के उत्तर में व्यापारिक पवनों के प्रभाव से पूर्व से पश्चिम दिशा में बहती है। इस धारा का जल मैक्सिको की खाड़ी (Gulf of Maxico) में इकट्ठा हो जाता है।

2. खाड़ी की धारा (Gulf Stream Current)-उत्पत्ति (Origin)—यह धारा मैक्सिको की खाड़ी में एकत्रित जल द्वारा पैदा होती है, इसीलिए इसे खाड़ी की धारा कहते हैं । यह धारा उत्तरी अमेरिका के पूर्वी तट के साथ-साथ उत्तर की ओर न्यूफाउंडलैंड (New Foundland) तक बहती है। यह गर्म जल की धारा है, जो एक नदी के समान तेज़ चाल से बहती है। इसका रंग नीला होता है। यह लगभग 1 कि०मी० गहरी, 50 कि०मी० चौड़ी है और इसकी गति 8 कि०मी० प्रति घंटा है।

शाखाएँ और क्षेत्र (Branches and Area)—यह धारा 40° उत्तरी अक्षांश के निकट पश्चिमी पवनों (Westerlies) के प्रभाव से पश्चिम से पूर्व दिशा में बहती है। इसकी मुख्य धारा यूरोप की ओर बहती है, जिसे उत्तरी अटलांटिक प्रवाह (North Atlantic Drift) कहते हैं। यह एक धीमी धारा है, जिसे पश्चिमी पवनों के कारण पश्चिमी पवन प्रवाह (West Wind Drift) भी कहते हैं । यूरोप के तट पर यह धारा कई शाखाओं में बँट जाती है। ब्रिटेन का चक्कर लगाती हुई एक शाखा नॉर्वे के तट को पार करके आर्कटिक सागर में स्पिट्ज़बर्जन (Spitsbergen) तक पहुँच जाती है, जहाँ इसे नार्वेजियन (Norwegian) धारा कहते हैं।

प्रभाव (Effects) –

  • यह एक गर्म जल धारा है, जो ठंडे अक्षांशों में गर्म जल पहुँचाती है।
  • यह धारा पश्चिमी यूरोप को गर्मी प्रदान करती है। यूरोप में सर्दी की ऋतु में साधारण से ऊँचा तापमान इसी धारा की देन है।
  • पश्चिमी यूरोप की सुहावनी जलवायु इस धारा की देन है, इसलिए इसे यूरोप की जीवन रेखा (Life line of Europe) भी कहते हैं।
  • पश्चिमी यूरोप की बंदरगाहें सर्दी की ऋतु में नहीं जमतीं और व्यापार के लिए खुली रहती हैं।
  • इस धारा के ऊपर से निकलने वाली पश्चिमी पवनें (westerlies) यूरोप में बहुत वर्षा करती हैं।

3. कनेरी की धारा (Canary Current)-यह ठंडे जल की धारा है, जो स्पेन, पुर्तगाल और अफ्रीका के उत्तर-पश्चिमी भागों पर कनेरी द्वीप के निकट से गुज़रती है। दैनिक गति के प्रभाव से उत्तरी अटलांटिक ड्रिफ्ट का कुछ जल दक्षिण की ओर मुड़कर भूमध्य रेखा की ओर निकलता है। इसके प्रभाव से सहारा (Sahara) मरुस्थल शुष्क रहता है।

4. लैबरेडोर की धारा (Labrador Current)—यह ठंडे पानी की धारा है, जो आर्कटिक सागर (Arctic Ocean) से उत्तरी अंध-महासागर की ओर बहती है। यह धारा बैफिन खाड़ी (Bafin Bay) से निकलकर कनाडा के तट के साथ बहती हुई न्यूफाउंडलैंड तक आ जाती है। यहाँ यह खाड़ी की धारा के साथ मिल जाती है, जिससे घना कोहरा पैदा होता है। इसकी एक शाखा सेंट लारेंस (St. Lawrence) घाटी में दाखिल होती है, जो कई महीने बर्फ से जमी रहती है।

प्रभाव (Effects)-

  • ये प्रदेश बर्फ से ढके रहने के कारण अनुपजाऊ हैं।
  • इस ठंडी धारा के कारण इस प्रदेश के तट की बंदरगाहें सर्दी की ऋतु में जम जाती हैं और व्यापार बंद हो जाता है।
  • ये धाराएँ अपने साथ आर्कटिक सागर पर बर्फ की बड़ी-बड़ी चट्टानें ले आती हैं। कोहरे के कारण जहाज़ इन हिमशैलों से टकराकर दुर्घटनाओं का शिकार हो जाते हैं।

5. दक्षिणी भूमध्य रेखीय धारा (South Equatorial Current)—यह धारा भूमध्य रेखा के दक्षिण में भूमध्य रेखा के समानांतर बहती है। व्यापारिक पवनों के प्रभाव से यह पूर्व से पश्चिम की दिशा में बहती है। यह गर्म जल की धारा है, जो अफ्रीका की गिनी की खाड़ी (Gulf of Guinea) से आरम्भ होकर ब्राज़ील के (Brazil) तट तक बहती है।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 9 महासागर 1

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 9 महासागर

प्रश्न (vii)
किसी देश की जलवायु और व्यापार पर समुद्री धाराओं के प्रभाव का वर्णन करें।
उत्तर-
समुद्री धाराओं का प्रभाव (Effects of Ocean Currents) समुद्री धाराएँ निकट के क्षेत्रों के मानवीय जीवन पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव डालती हैं। धाराओं का यह प्रभाव कई प्रकार से होता है
1. जलवायु पर प्रभाव (Effects on Climate)-

  • जलवायु (Climate)-जिन तटों पर गर्म या ठंडी धाराएँ चलती हैं, वहाँ की जलवायु क्रमशः गर्म या ठंडी हो जाती है।
  • तापमान (Temperature)-धाराओं के ऊपर बहने वाली पवनें अपने साथ गर्मी या सर्दी ले जाती हैं। गर्म धाराओं के प्रभाव से तटीय प्रदेशों का तापमान अधिक हो जाता है और जलवायु सम हो जाती है (Warm currents raise and cold temperature lower the temperature of the neighbouring areas) I OST धारा के कारण सर्दी की ऋतु में तापमान बहुत कम हो जाता है और जलवायु विषम और कठोर हो जाती है।

उदाहरण (Examples)-

(i) लैबरेडोर (Labrador) की ठंडी धारा के प्रभाव से कनाडा का पूर्वी तट और क्यूराईल (Kurile) की ठंडी धारा के प्रभाव से साइबेरिया का पूर्वी तट सर्दी ऋतु में बर्फ से जमा रहता है।

(ii) खाड़ी की गर्म धारा के प्रभाव से ब्रिटिश द्वीप समूह और नॉर्वे के तट के भागों का तापमान उच्च रहता है और पानी सर्दी की ऋतु में भी नहीं जमता। जलवायु सुहावनी और सम रहती है।

(iii) वर्षा (Rainfall)-गर्म धाराओं के निकट के प्रदेशों में अधिक वर्षा होती है परंतु ठंडी धाराओं के निकट के प्रदेशों में कम वर्षा होती है। गर्म धाराओं के ऊपर बहने वाली पवनों में नमी धारण करने की शक्ति बढ़ जाती है, पर ठंडी धाराओं के संपर्क में आकर पवनें ठंडी हो जाती हैं और वे अधिक नमी धारण नहीं कर सकतीं।

उदाहरण (Examples)-

  • उत्तर-पश्चिमी यूरोप में खाड़ी की गर्म धारा के कारण और जापान के पूर्वी तट पर क्यूरोशियो की गर्म धारा के कारण अधिक वर्षा होती है।
  • संसार के प्रमुख मरुस्थलों के तटों के नज़दीक ठंडी धाराएँ बहती हैं, जैसे सहारा तट पर कनेरी धारा, कालाहारी तट पर बेंगुएला धारा, ऐटेकामा तट पर पेरू की धारा।

(iv) धुंध की उत्पत्ति (Fog)-गर्म और ठंडी धाराओं के मिलने से धुंध और कोहरा पैदा हो जाता है। गर्म धारा के ऊपर की हवा ठंडी हो जाती है। उसके जलकण सूर्य की किरणों का रास्ता रोककर कोहरा पैदा कर देते हैं।
उदाहरण (Examples)-खाड़ी की गर्म धारा और लैबरेडोर की गर्म धारा के ऊपर की हवा के मिलने से न्यूफाऊंडलैंड (New Foundland) के निकट धुंध पैदा हो जाती है।

(v) तूफ़ानी चक्रवात (Cyclones)-गर्म और ठंडी धाराओं के मिलने से गर्म हवा बड़े वेग से ऊपर उठती है और तेज़ तूफानी चक्रवातों को जन्म देती है।

2. व्यापार पर प्रभाव (Effects on Trade)-

(i) बंदरगाहों का खुला रहना (Open Sea-ports)-ठंडे प्रदेशों में गर्म धाराओं के प्रभाव से सर्दियों में बर्फ नहीं जमती और बंदरगाह व्यापार के लिए सारा साल खुले रहते हैं, परंतु ठंडी धाराओं के निकट का तट बर्फ से जमा रहता है। ठंडी धाराएँ व्यापार में रुकावट डालती हैं।

उदाहरण (Examples)–

  • खाड़ी की धारा के कारण नॉर्वे और ब्रिटिश द्वीप समूह की बंदरगाहें पूरा वर्ष खुली रहती हैं, परंतु हॉलैंड, फिनलैंड और स्वीडन की बंदरगाहें समुद्र का पानी जम जाने के कारण सर्दी की ऋतु में बंद हो जाती हैं।
  • लैबरेडोर की ठंडी धारा के कारण पूर्वी कनाडा और सेंट लॉरेंस घाटी (St. Lawrance Valley) की बंदरगाहें तथा क्यूराईल की ठंडी धारा के कारण व्लाडिवॉस्टक (Vladivostok) की बंदरगाहें सर्दी की ऋतु में जम जाती हैं।

(ii) समुद्री मार्ग (Ocean Routes)-धाराएँ जल-मार्ग को निर्धारित करती हैं। ठंडे सागरों से ठंडी धाराओं के साथ बहकर आने वाले हिम-शैल (Icebergs) जहाज़ों का बहुत नुकसान करते हैं। इनको ध्यान में रखकर समुद्री मार्ग निर्धारित किए जाते हैं।

(iii) जहाजों की गति पर प्रभाव (Effect on the velocity of the Ships)-प्राचीन काल में धाराओं का बादबानी जहाज़ों की गति पर प्रभाव पड़ता था। धाराओं के अनुकूल दिशा में चलने से उनकी गति बढ़ जाती थी, परंतु विपरीत दिशा में जाने से उनकी चाल कम हो जाती थी। आजकल भाप से चलने वाले जहाज़ों (Steam Ships) की गति पर धाराओं का कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ता।

(iv) समुद्र के जल की शुद्धि-धाराओं के कारण समुद्र का जल गतिशील, शुद्ध और साफ रहता है। धाराएँ तट पर जमा पदार्थ दूर बहाकर ले जाती हैं और समुद्र तट गंदे होने से बचे रहते हैं।

(v) दुर्घटनाएँ-कोहरे और धुंध के कारण दृश्यता (visibility) कम हो जाती है। आमतौर पर जहाज़ों के डूबने और टकराने की दुर्घटनाएं होती रहती हैं।

3. समुद्री जीवों पर प्रभाव (Effects on Marine life)-
समुद्री जीवों का भोजन (Plankton)-धाराएँ समुद्री जीवों की प्राण हैं। ये अपने साथ अनेकों गली-सड़ी वस्तुएँ (plankton) बहाकर ले आती हैं। ये पदार्थ मछलियों के भोजन का आधार हैं।

प्रश्न (viii)
महासागरीय धाराओं के प्रभाव लिखें।
उत्तर-
महासागरीय जल में खारापन (Salinity of Ocean Water)-
महासागरीय जल सदा खारा होता है, परंतु यह कहीं कम खारा और कहीं अधिक खारा होता है। सागर के इस खारेपन को ही महासागरीय खार या जल की लवणता कहा जाता है। यह खारापन महासागरीय जल में पाए जाने वाले नमक के कारण होता है। प्रसिद्ध सागर वैज्ञानिक मरे (Murray) के अनुसार प्रति घन किलोमीटर जल में 4/4 करोड़ टन नमक होता है। यदि महासागरीय जल के कुल नमक को बिछाया जाए, तो संपूर्ण पृथ्वी पर लगभग 150 मीटर मोटी परत बन जाएगी।

महासागरों का औसत खारापन (Average Salinity of Ocean)-
खुले महासागरों के जल में पाए जाने वाले लवणों के घोल को खारापन कहते हैं। (The total Salt Content of Oceans is Called Salinity.) । सागरीय जल का औसत खारापन 35 ग्राम प्रति हजार अर्थात् 35% होता है। खुले महासागरों में 1000 ग्राम जल में लगभग 35 ग्राम नमक होता है। ऐसे जल के खारेपन को 35 ग्राम प्रति हज़ार (Thirty five per thousand) कहा जाता है क्योंकि खारेपन को प्रति हज़ार ग्राम में ही दर्शाया जाता है।

महासागरों में खारेपन के कारण (Origin of Salinity in the Ocean)-
वैज्ञानिकों के अनुसार पृथ्वी की उत्पत्ति के बाद जब महासागरों की रचना हुई तो उस समय पृथ्वी के अधिकतर नमक इस जल में घुल गए। इसके बाद स्थलों से आने वाली अनगिनत नदियाँ अपने साथ घोल के रूप में नमक महासागरों में निक्षेप कर रही हैं, जिससे महासागरों में खारेपन की वृद्धि होती रही है। वाष्पीकरण द्वारा महासागरों का ताज़ा जल वायुमंडल में मिलकर वर्षा का कारण बनता है। यह वर्षा नदियों के रूप में स्थल पर नमक प्रवाहित करके महासागरों में पहुँचाती है।

सागरीय जल के नमक (Salts of Ocean)-
सागरीय जल में पाए जाने वाले नमक इस प्रकार हैं–

(i) सोडियम क्लोराइड — 77.8 प्रतिशत
(ii) मैग्नीशियम क्लोराइड — 10.9 प्रतिशत
(iii) मैग्नीश्यिम सल्फेट — 4.7 प्रतिशत
(iv) कैल्शियम सल्फेट — 3.6 प्रतिशत
(v) पोटाशियम सल्फेट — 2.5 प्रतिशत
(vi) कैल्शियम कार्बोनेट — 0.3 प्रतिशत
(vii) मैग्नीशियम ब्रोमाइड — 0.2 प्रतिशत

खारेपन का महत्त्व (Importance of Salinity) –
समुद्री जल के खारेपन का महत्त्व नीचे लिखे अनुसार है-

  • समुद्र में खारेपन की भिन्नता के कारण धाराएँ उत्पन्न होती हैं; जो निकटवर्ती क्षेत्रों में जलवायु को प्रभावित करती हैं।
  • समुद्री जल में मौजूद कैल्शियम कार्बोनेट नमक समुद्री जीव-जंतुओं विशेषकर मूंगा (Coral) और पंक (Ooze) का ज़ोन है, जिससे इनकी हड्डियाँ और पिंजर बनते हैं।
  • खारेपन के कारण धरती पर वनस्पति उगती है।
  • लवण ठंडे महासागरों को जमने नहीं देते और जीव-जंतु विशेष रूप से बहुमूल्य मछलियाँ नहीं मरती और जल परिवहन चालू रहता है।
  • खारेपन के कारण जल का घनत्व बढ़ जाता है, इसीलिए जहाज़ तैरते हैं।

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प्रश्न (ix)
गर्म और ठंडी धाराओं का आस-पास के क्षेत्र पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर-
महासागरीय जल में तापमान का क्षैतिज विभाजन (Horizontal Distribution of Temperature in Ocean Water)-अर्ध-खुले सागरों और खुले सागरों के तापमान में भिन्नता होती है। इसका कारण यह है कि अर्ध खुले सागरों के तापमान पर निकटवर्ती क्षेत्रों का प्रभाव पड़ता है।

(क) महासागरों में जल पर तापमान का क्षैतिज विभाजन (Horizontal Distribution of Temperature in Ocean Water)-महासागरों में जल-तल (Water-surface) के तापमान का क्षैतिज विभाजन नीचे लिखे अनुसार है :

  • भूमध्य रेखीय भागों के जल का तापमान 26° सैल्सियस, ध्रुवीय क्षेत्रों में 0° सैल्सियस से -5° (minus five degree) सैल्सियस और 20°, 40° और 60° अक्षांशों के तापमान क्रमशः 23°, 14° और 1° सैल्सियस रहता है। इस प्रकार भूमध्य रेखा से ध्रुवों की ओर महासागरीय जल का क्षैतिज तापमान कम होता जाता है। इसका कारण यह है कि भूमध्य रेखा पर सूर्य की किरणें लंब और ध्रुवों की ओर तिरछी पड़ती हैं।
  • ऋतु परिवर्तन के साथ महासागरों के ऊपरी तल के तापमान में परिवर्तन आ जाता है। गर्मी की ऋतु में दिन लंबे होने के कारण तापमान ऊँचा और सर्दी की ऋतु में दिन छोटे होने के कारण तापमान कम रहता है।
  • स्थल की तुलना में जल देरी से गर्म और देरी से ही ठंडा होता है। उत्तरी गोलार्द्ध में जल की तुलना में स्थल अधिक है और दक्षिणी गोलार्द्ध में जल का क्षेत्र अधिक है। इसलिए उत्तरी गोलार्द्ध में समुद्री जल का तापमान स्थलीय प्रभाव के कारण ऊँचा रहता है। इसकी तुलना में जल की अधिकता के कारण दक्षिणी गोलार्द्ध में तापमान कम रहता है।

3. अर्ध-खले सागरों में जल के तापमान का क्षैतिज विभाजन (Horizontal Distribution of Temperature in Partially Enclosed Seas) अर्ध-खुले सागरों के तापमान पर निकटवर्ती स्थलखंडों का प्रभाव अधिक पड़ता है।

(i) लाल सागर और फारस की खाड़ी (Red Sea and Persian Gulf)—ये दोनों अर्ध-खुले सागर हैं, जो संकरे जल संयोजकों (Straits) द्वारा हिंद महासागर से मिले हुए हैं। इन दोनों के चारों ओर मरुस्थल हैं, जिनके प्रभाव से तापमान उच्च, क्रमश: 32° से० और 34° से० रहता है। विश्व में सागरीय तल का अधिक-सेअधिक तापमान 34° से० है, जोकि फारस की खाड़ी में पाया जाता है।

कुछ सागरों के जल का तापमान-

सागर — तापमान
लाल सागर — 32°C.
खाड़ी फारस –34°C.
बाल्टिक सागर –10°C.
उत्तरी सागर –17°C.
प्रशांत महासागर –19.1°C.
हिंद महासागर –17.0°C.
अंध महासागर — 16.9°C.

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(ii) बाल्टिक सागर (Baltic Sea)-इस सागर में तापमान कम रहता है और शीत ऋतु में यह बर्फ में बदल जाता है। इसका मुख्य कारण यह है कि यह शीत प्रदेशों से घिरा हुआ है, जोकि सर्दियों में बर्फ से ढके रहते हैं। इसकी तुलना में निकट का विस्तृत उत्तर सागर (North Sea) कभी भी नहीं जमता। इसका कारण यह है कि एक तो यह खुला सागर है और दूसरा अंध महासागर की तुलना में गर्म जलं इसमें बेरोक प्रवेश करता है।

(iii) भूमध्य सागर या रोम सागर (Mediterranean Sea)—यह भी एक अर्ध-खुला समुद्र है, जो जिब्राल्टर (Gibraltar) जल संयोजक द्वारा अंध महासागर से जुड़ा हुआ है। इसका तापमान उच्च रहता है क्योंकि इसके दक्षिण और पूर्व की ओर मरुस्थल हैं। दूसरा, इस जल संयोजक की ऊँची कटक महासागर के जल को इस सागर में बहने से रोकती है।

महासागरीय जल में ताप का लंबवर्ती विभाजन-(Vertical Distribution of Temperature of Ocean Water)-सूर्य का ताप सबसे पहले महासागरीय तल का जल प्राप्त करता है और सबसे ऊपरी परत गर्म होती है। सूर्य के ताप की किरणें ज्यों-ज्यों गहराई में जाती हैं, तो बिखराव (Scattering), परावर्तन (Reflection) और प्रसारण (Diffusion) के कारण उनकी ताप-शक्ति नष्ट हो जाती है। इस प्रकार तल के नीचे के पानी का तापमान गहराई के साथ कम होता जाता है।

महासागरीय जल का तापमान-
गहराई के अनुसार (According to Depth)-

गहराई (Depth) मीटर — तापमान (°C)
200 — 15.9°C
400 —  10.0°C
1000 — 4.5°C
2000 — 2.3°C
3000 — 1.8°C
4400 — 1.7°C

1. महासागरीय जल का तापमान गहराई बढ़ने के साथ-साथ कम होता जाता है। इसका कारण यह है कि सूर्य की किरणें अपना प्रभाव महाद्वीपीय बढ़ौतरी की अधिकतम गहराई भाव 183 मीटर (100 फैदम) तक ही डाल सकती हैं।
2. महाद्वीपीय तट के नीचे महासागरों में तापमान अधिक कम होता है परंतु अर्ध-खुले सागरों में तापमान जल संयोजकों की कटक तक ही गिरता है और इससे आगे कम नहीं होता।

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हिंद महासागर के ऊपरी तल और लाल सागर के ऊपरी तल का तापमान लगभग समान (27°C) होता है। इन दोनों के बीच बाब-अल-मेंडर जल संयोजक की कटक है। उस गहराई तक दोनों में तापमान एक समान कम होता है क्योंकि इस गहराई तक हिंद महासागर का जल लाल सागर में प्रवेश करता रहता है। परंतु इससे अधिक गहराई पर लाल सागर का तापमान कम नहीं होता, जबकि हिंद महासागर में यह निरंतर कम होता रहता है।

3. गहराई के साथ तापमान कम होने की दर सभी गहराइयों में एक समान नहीं होती। लगभग 100 मीटर की गहराई तक जल का तापमान निकटवर्ती धरातलीय तापमान के लगभग बराबर होता है। धरातल से 1000 से 1800 मीटर की गहराई पर तापमान लगभग 15° से कम होकर लगभग 2°C रह जाता है। 4000 मीटर की गहराई पर तापमान कम होकर 1.6°C रह जाता है। महासागरों में किसी भी गहराई पर तापमान 1°C से कम नहीं होता। यद्यपि ध्रुवीय महासागरों की ऊपरी परत जम जाती है, पर निचला पानी कभी नहीं जमता। इसी कारण मछलियाँ और अन्य जीव-जन्तु निचले जल में मरते नहीं।

महासागरीय जल में खारापन (Salinity of Ocean Water)-
महासागरीय जल सदा खारा होता है, परंतु यह कहीं कम खारा और कहीं अधिक खारा होता है। सागर के इस खारेपन को ही महासागरीय खार या जल की लवणता कहा जाता है। यह खारापन महासागरीय जल में पाए जाने वाले नमक के कारण होता है। प्रसिद्ध सागर वैज्ञानिक मरे (Murray) के अनुसार प्रति घन किलोमीटर जल में 4/4 करोड़ टन नमक होता है। यदि महासागरीय जल के कुल नमक को बिछाया जाए, तो संपूर्ण पृथ्वी पर लगभग 150 मीटर मोटी परत बन जाएगी।

महासागरों का औसत खारापन (Average Salinity of Ocean)-
खुले महासागरों के जल में पाए जाने वाले लवणों के घोल को खारापन कहते हैं। (The total Salt Content of Oceans is Called Salinity.) । सागरीय जल का औसत खारापन 35 ग्राम प्रति हजार अर्थात् 35% होता है। खुले महासागरों में 1000 ग्राम जल में लगभग 35 ग्राम नमक होता है। ऐसे जल के खारेपन को 35 ग्राम प्रति हज़ार (Thirty five per thousand) कहा जाता है क्योंकि खारेपन को प्रति हज़ार ग्राम में ही दर्शाया जाता है।

महासागरों में खारेपन के कारण (Origin of Salinity in the Ocean)-
वैज्ञानिकों के अनुसार पृथ्वी की उत्पत्ति के बाद जब महासागरों की रचना हुई तो उस समय पृथ्वी के अधिकतर नमक इस जल में घुल गए। इसके बाद स्थलों से आने वाली अनगिनत नदियाँ अपने साथ घोल के रूप में नमक महासागरों में निक्षेप कर रही हैं, जिससे महासागरों में खारेपन की वृद्धि होती रही है। वाष्पीकरण द्वारा महासागरों का ताज़ा जल वायुमंडल में मिलकर वर्षा का कारण बनता है। यह वर्षा नदियों के रूप में स्थल पर नमक प्रवाहित करके महासागरों में पहुँचाती है।

सागरीय जल के नमक (Salts of Ocean)-
सागरीय जल में पाए जाने वाले नमक इस प्रकार हैं–

(i) सोडियम क्लोराइड — 77.8 प्रतिशत
(ii) मैग्नीशियम क्लोराइड — 10.9 प्रतिशत
(iii) मैग्नीश्यिम सल्फेट — 4.7 प्रतिशत
(iv) कैल्शियम सल्फेट — 3.6 प्रतिशत
(v) पोटाशियम सल्फेट — 2.5 प्रतिशत
(vi) कैल्शियम कार्बोनेट — 0.3 प्रतिशत
(vii) मैग्नीशियम ब्रोमाइड — 0.2 प्रतिशत

खारेपन का महत्त्व (Importance of Salinity) –
समुद्री जल के खारेपन का महत्त्व नीचे लिखे अनुसार है-

  • समुद्र में खारेपन की भिन्नता के कारण धाराएँ उत्पन्न होती हैं; जो निकटवर्ती क्षेत्रों में जलवायु को प्रभावित करती हैं।
  • समुद्री जल में मौजूद कैल्शियम कार्बोनेट नमक समुद्री जीव-जंतुओं विशेषकर मूंगा (Coral) और पंक (Ooze) का ज़ोन है, जिससे इनकी हड्डियाँ और पिंजर बनते हैं।
  • खारेपन के कारण धरती पर वनस्पति उगती है।
  • लवण ठंडे महासागरों को जमने नहीं देते और जीव-जंतु विशेष रूप से बहुमूल्य मछलियाँ नहीं मरती और जल परिवहन चालू रहता है।
  • खारेपन के कारण जल का घनत्व बढ़ जाता है, इसीलिए जहाज़ तैरते हैं।

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प्रश्न (x)
हिंद महासागर की धाराओं का वर्णन करें। उत्तरी हिंद महासागर की धाराओं का मानसून पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर-
हिंद महासागर की धाराएँ (Currents of Indian Ocean)-हिंद महासागर के माध्यम से धाराओं और पवनों के संबंध को स्पष्ट रूप से समझा जा सकता है। यहाँ मानसून पवनों के कारण समुद्री धाराओं का क्रम भी मौसमी (Seasonal) होता है। उत्तरी हिंद महासागर में चलने वाली धाराएँ, मानसून पवनों के कारण प्रति छह महीने बाद अपनी दिशा बदल लेती हैं। परंतु दक्षिणी हिंद महासागर में धाराएँ पूरा वर्ष एक ही दिशा में चलने के कारण स्थायी होती हैं।

उत्तरी हिंद महासागर की परिवर्तनशील धाराएँ-मानसून के प्रभाव के कारण धाराएँ पूरा वर्ष अपनी दिशा बदलती रहती हैं। वास्तव में कोई भी निश्चित धारा नहीं मिलती। छह महीने के बाद इन धाराओं की दिशा और क्रम बदल जाता है।

  • दक्षिण-पश्चिमी मानसून प्रवाह (S.W. Monsoon Drift)–यह धारा गर्मी की ऋतु में दक्षिण-पश्चिमी मानसून पवनों के प्रभाव से चलती है। इस धारा का जल अफ्रीका के पूर्वी तट के साथ बहकर अरब सागर, श्रीलंका और बंगाल की खाड़ी का चक्कर लगाता है। यह धारा बर्मा के तट तक पहुँच जाती है।
  • उत्तर-पूर्वी मानसून प्रवाह (N.E. Monsoon Drift)-सर्दी की ऋतु में मानसून पवनों की दिशा उल्टी हो जाती है और धाराओं का क्रम भी उल्टा हो जाता है। यह धारा बर्मा के तट से शुरू होकर बंगाल की खाड़ी और अरब सागर का चक्कर लगाकर अफ्रीका के पूर्वी तट तक बहती है।

दक्षिणी हिंद महासागर की स्थायी धाराएँ-ये धाराएँ पूरा वर्ष एक ही दिशा में चलती हैं, इसलिए इन्हें स्थायी धाराएँ कहते हैं। ये धाराएँ घड़ी की विपरीत दिशा में (Anti-clockwise) चक्कर काटती हैं।

1. दक्षिणी भूमध्य रेखीय धारा (South Equatorial Current)-यह एक गर्म धारा है जो भूमध्य रेखा के दक्षिण में व्यापारिक पवनों के प्रभाव से पूर्व से पश्चिम दिशा में बहती है। यह धारा इंडोनेशिया से निकलकर अफ्रीका के पूर्वी तट तक बहती है। मैडागास्कर द्वीप के निकट यह दक्षिण की ओर मुड़ जाती है।

2. भारतीय विपरीत धारा (Indian Counter Current)-भूमध्य रेखा के निकट पश्चिम से पूर्व दिशा में बहने वाली धारा को भारतीय विपरीत धारा कहते हैं।

3. मोज़म्बीक की धारा (Mozambique Current)—मैडागास्कर (मलागासी द्वीप) के कारण भूमध्य रेखीय – धारा कई शाखाओं में बँट जाती है-

  • मैडागास्कर धारा (Medagasker)-यह गर्म धारा मैडागास्कर के पूर्व में बहती है। इसमें दक्षिणी भूमध्य रेखीय धारा कई शाखाओं में बँट जाती है।
  • मोज़म्बीक धारा (Mozambique Current)-यह मैडागास्कर द्वीप के पश्चिम में एक तंग भाग Mozambique channel में बहती है। यह धारा भँवर के रूप में होती है। (iii) ऐगुलॉस धारा (Agulhas Current) ऊपर लिखित दोनों धाराएं मिलकर मैडागास्कर के दक्षिण में एक नई धारा को जन्म देती है, जिसे ऐगुलॉस धारा कहते हैं।

4. अंटार्कटिक धारा (Antarctic Current)-यह ठंडे जल की धारा है।।
5. पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया की धारा (West Australian Current)—यह ठंडी धारा ऑस्ट्रेलिया के पश्चिमी तट पर बहती है।

6. विपरीत भूमध्य रेखीय धारा (Counter Equatorial Current)-पानी की अधिकता और धरती की दैनिक गति के कारण भूमध्य रेखा के साथ-साथ विपरीत भूमध्य रेखीय धारा बहती है। यह धारा पश्चिम से पूर्व में अफ्रीका के गिनी तट तक बहती है। इसे गिनी की धारा (Guinea stream) भी कहते हैं।

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7. ब्राज़ील की धारा (Brazilian Current)—यह एक गर्म पानी की धारा है, जो ब्राज़ील तट के साथ दक्षिण की ओर बहती है। उत्तर की ओर ब्राज़ील की गर्म धारा के मिलने से कोहरा पैदा हो जाता है। इससे जहाज़ों का आना-जाना बंद हो जाता है।

8. फाकलैंड धारा (Falkland Current)-यह ठंडी धारा दक्षिणी अमेरिका के दक्षिणी सिरे (Cape Horn) और फाकलैंड के निकट बहती है। उत्तर की ओर ब्राज़ील की गर्म धारा के मिलने से कोहरा पैदा हो जाता है। इससे जहाजों का आना-जाना बंद हो जाता है।

9. अंटार्कटिक प्रवाह (Antarctic Drift)—यह बहुत ठंडे पानी की धारा है, जो अंटार्कटिक महाद्वीप के चारों तरफ पश्चिम से पूर्व दिशा में बहती है। यह अंध महासागर, शांत महासागर और हिंद महासागर की सांझी धारा है। थल की कमी के कारण यह पश्चिमी पवनों के प्रवाह से लगातार बहती है।

10. बैंगुऐला धारा (Benguela Current)—यह ठंडे पानी की धारा दक्षिणी अफ्रीका के पश्चिमी तट पर बहती है। व्यापारिक पवनों के कारण तल का गर्म जल दूर बह जाता है और नीचे का ठंडा पानी ऊपर आ जाता है, जिसे Upwelling of water कहते हैं। अफ्रीका में कालाहारी मरुस्थल इसी धारा के कारण है।

प्रश्न (xi)
ज्वारभाटा किसे कहते हैं ? ये कैसे पैदा (बनते) होते हैं और इनका क्या महत्त्व है ? विस्तार से लिखें।
उत्तर-
ज्वारभाटा समुद्र की एक गति है। समुद्र का जल नियमित रूप से प्रतिदिन दो बार ऊँचा उठता है और दो बार नीचे उतरता है। “समुद्री जल के इस नियमित उतार-चढ़ाव को ज्वारभाटा कहते हैं।” (“Regular rise and fall of sea water is called Tides.”)। पानी के ऊपर उठने की क्रिया को ज्वार (Flood or High Tide or Incoming Tide) कहते हैं। पानी के नीचे उतरने की क्रिया को भाटा (Ebb or low Tide or Out Going Tide) कहते हैं।

विशेषताएँ :

  1. प्रत्येक स्थान पर ज्वारभाटे की ऊँचाई अलग-अलग होती है।
  2. प्रत्येक स्थान पर ज्वार और भाटे का समय अलग-अलग होता है।
  3. समुद्र का पानी 6 घंटे 13 मिनट तक ऊपर चढ़ता है और इतनी ही देर में नीचे उतरता है।
  4. ज्वारभाटा एक स्थान पर नित्य ही एक समय पर नहीं आता।

उत्पत्ति के कारण (Causes of Origin)—पुरातन काल में यूनान और रोम के निवासियों को ज्वारभाटे की जानकारी थी। ज्वारभाटे की उत्पत्ति का मूल कारण चंद्रमा की आकर्षण शक्ति होती है। सबसे पहले न्यूटन ने यह बताया था कि सूर्य और चंद्रमा की गतियों (Movements) तथा ज्वारभाटा में आपस में कुछ संबंध होता है।

चाँद अपने आकर्षण बल (Gravitational Attraction) के कारण धरती के जल को अपनी ओर खींचता है। स्थल-भाग कठोर होता है, इस कारण खींचा नहीं जा सकता, परंतु जल-भाग तरल होने के कारण ऊपर उठ जाता है। यह पानी चाँद की ओर उठता है। वहाँ से निकट का पानी सिमटकर ऊपर उठता जाता है, जिसे ऊँचा ज्वार (High Tide) कहते हैं। जिस स्थान पर पानी की मात्रा कम रह जाती है, वहाँ पानी अपने तल से नीचे गिर जाता है, उसे नीचा ज्वार (Low Tide) कहते हैं। धरती की दैनिक गति के कारण प्रत्येक स्थान पर दिन-रात में दो बार ज्वार आता है। एक ही समय में धरती के तल पर दो बार ज्वार पैदा होते हैं-एक ठीक चाँद के सामने और दूसरा उसकी विपरीत दिशा में (Diametrically Opposite)। चाँद की आकर्षण शक्ति के कारण ज्वार उठता है, इसे सीधा ज्वार (Direct Tide) कहते हैं। विपरीत दिशा में अपकेंद्रीय बल (Centrifugal Force) के कारण पानी ऊपर उठता है और ऊँचा ज्वार पैदा होता है। इसे Indirect Tide कहते हैं। इस प्रकार धरती के एक तरफ ज्वार आकर्षण शक्ति की अधिकता के कारण और दूसरी तरफ अपकेंद्रीय शक्ति की अधिकता के कारण पैदा होते हैं।

सूर्य का प्रभाव (Effect of Sun)-सभी ग्रहों पर सूर्य का प्रभाव होता है। धरती पर सूर्य और चंद्रमा दोनों का आकर्षण होता है। समुद्र के जल पर भी दोनों का आकर्षण होता है। सूर्य चाँद की तुलना में बहुत दूर है, इसलिए सूर्य की आकर्षण शक्ति बहुत साधारण है और चाँद की तुलना में 5/11 भाग कम है।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 9 महासागर 10

ऊँचा ज्वारभाटा (Spring Tide)—सबसे अधिक ऊँचे ज्वार को बड़ा ज्वार कहते हैं। यह महीने में दो बार पूर्णिमा (Full Moon) और अमावस्या (New Moon) को होता है।

कारण (Causes)-इस दशा में सूर्य, चंद्रमा और धरती एक सीधी रेखा में होते हैं। सूर्य और चाँद की सांझी आकर्षण शक्ति बढ़ जाने से ज्वार-शक्ति बढ़ जाती है। सूर्य और चाँद के कारण उत्पन्न ज्वार इकट्ठे हो जाते हैं (Spring tide is the sum of Solar and Lunar tides.)। इन दिनों में ज्वार अधिक ऊँचा और भाटा कम-से-कम नीचा होता है। ऊँचा ज्वार साधारण ज्वार से 20% अधिक ऊँचा होता है।

लघु ज्वार (Neap Tide)-अमावस्या के सात दिन बाद या पूर्णिमा के सात दिन बाद ज्वार की ऊँचाई दूसरे दिनों की तुलना में नीची रह जाती है। इसे लघु-ज्वार कहते हैं। इस हालत को शुक्ल और कृष्ण पक्ष की अष्टमी कहते हैं, जब आधा चाँद (Half Moon) होता है।

कारण (Causes)-इस हालत में सूर्य और चाँद, धरती के समकोण (At Right Angles) पर होते हैं। सूर्य और चांद की आकर्षण-शक्ति विपरीत दिशाओं में काम करती है। जहाँ सूर्य ज्वार पैदा करता है, चाँद वहाँ भाटा पैदा करता है। सूर्य और चाँद के ज्वार-भाटा एक-दूसरे को कम करते हैं (Neap tide is the difference of Solar and Lunar tides)। इन दिनों में ऊँचा ज्वार, कम ऊँचा और भाटा कम नीचा होता है। लघु ज्वार अक्सर साधारण ज्वार से 20% कम ऊँचा होता है।

ज्वारभाटे के लाभ (Advantages)-

  1. ज्वारभाटा समुद्र के तटों को साफ़ रखता है। यह उतार के समय कूड़ा-कर्कट, कीचड़ आदि को अपने साथ बहाकर ले जाता है।
  2. ज्वारभाटे की हलचल के कारण समुद्र का पानी जमता नहीं।
  3. ज्वार के समय नदियों के मुहानों पर पानी की गहराई बढ़ जाती हैं, जिससे बड़े-बड़े जहाज़ सेंट लारेंस, हुगली, हडसन नदी में प्रवेश कर सकते हैं। ज्वारभाटे के समय को बताने के लिए टाईम-टेबल बनाए जाते हैं।
  4. ज्वारभाटे के मुड़ते हुए पानी से पन-बिजली पैदा की जा सकती है। इस बिजली का प्रयोग करने के लिए फ्रांस और अमेरिका में कई प्रयत्न किए गए हैं।
  5. ज्वारभाटे के कारण बहुत सी सिप्पियां, कोड़ियाँ, अन्य वस्तुएँ आदि तट पर इकट्ठी हो जाती है। कई समुद्री जीव तटों पर पकड़े जाते हैं।
  6. ज्वारभाटा बंदरगाहों की अयोग्यता को दूर करते हैं और आदर्श बंदरगाहों को जन्म देते हैं। कम गहरी बंदरगाहों में बड़े-बड़े जहाज़ ज्वार के साथ दाखिल हो जाते हैं और भाटे के साथ वापस लौट आते हैं, जैसे-कोलकाता, कराची, लंदन आदि।
  7. ज्वारभाटा अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को सरल, आसान और निरंतर रखता है।

हानियाँ (Disadvantages)-

  1. ज्वारभाटे से कभी-कभी जहाज़ों को नुकसान होता है। छोटे-छोटे जहाज़ और नाव डूब जाते हैं।
  2. इससे बंदरगाहों के निकट रेत जम जाने से जहाजों के आने-जाने में रुकावट आती है।
  3. ज्वारभाटे के कारण मिट्टी के बहाव के कारण डेल्टा नहीं बनते।
  4. मछली पकड़ने के काम में रुकावट होती है।
  5. ज्वार का पानी जमा होने से तट पर दलदल बन जाती है।

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Geography Guide for Class 11 PSEB महासागर Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न | (Objective Type Questions)

नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर 2-4 शब्दों में दें-

प्रश्न 1.
पृथ्वी के कितने % भाग पर जल है ?
उत्तर-
71%।

प्रश्न 2.
महाद्वीपीय शैल्फ तट की औसत गहराई बताएँ।
उत्तर-
150 से 200 मीटर।

प्रश्न 3.
विश्व में सबसे अधिक गहरे स्थान के बारे में बताएँ।
उत्तर-
मेरियाना खाई – 11022 मीटर।

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प्रश्न 4.
किस महासागर के मध्य में ‘S’ आकार की पहाड़ी है ?
उत्तर-
अंध महासागर।।

प्रश्न 5.
किस महासागर में सबसे अधिक खाइयाँ हैं ?
उत्तर-
प्रशांत महासागर।

प्रश्न 6.
जल में डूबी पहाड़ियों की कुल लंबाई बताएँ।
उत्तर-
7500 कि० मी०।

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प्रश्न 7.
किसी एक प्रसिद्ध केनीयन का नाम बताएँ।
उत्तर-
ओशनो ग्राफर केनीयन।

प्रश्न 8.
महाद्वीपीय ढलान का कोण बताएँ।
उत्तर-
2°-5° तक।

प्रश्न 9.
संसार के प्रमुख महासागरों के नाम बताएँ।
उत्तर-
प्रशांत महासागर, अंध महासागर, हिंद महासागर, आर्कटिक महासागर।

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प्रश्न 10.
पृथ्वी को जलीय ग्रह क्यों कहा जाता है ?
उत्तर-
अधिक जल होने के कारण।

प्रश्न 11.
किस गोलार्द्ध को जलीय गोलार्द्ध कहते हैं ?
उत्तर-
दक्षिणी गोलार्द्ध।

प्रश्न 12.
किस यंत्र से समुद्र की गहराई मापी जाती है ?
उत्तर-
Sonic Depth Recorder.

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प्रश्न 13.
महासागरीय जल के गर्म होने की क्रियाएं बताएँ।
उत्तर-
विकिरण और संवहन।

प्रश्न 14.
महासागरों में नमक के स्रोत बताएँ।
उत्तर-
नदियाँ, लहरें और ज्वालामुखी।

प्रश्न 15.
महासागरीय जल के प्रमुख लवणों के नाम बताएँ।
उत्तर-
सोडियम क्लोराइड, मैग्नीशियम क्लोराइड, मैग्नीशियम सल्फेट, कैल्शियम सल्फेट, पोटाशियम सल्फेट।

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प्रश्न 16.
तरंग के दो भाग बताएँ।
उत्तर-
शिखर और गहराई।

प्रश्न 17.
भूमध्य रेखा पर सागरीय जल का ताप बताएँ।
उत्तर-
भूमध्य रेखा – 26°

प्रश्न 18.
पलावी हिम शैल के दो स्रोत बताएँ।
उत्तर-
अलास्का और ग्रीन लैंड।

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प्रश्न 19.
घिरे हुए एक सागर का नाम और उसका खारापन बताएँ।
उत्तर-
ग्रेट साल्ट झील – 220 ग्राम प्रति हज़ार।

प्रश्न 20.
भूमध्य रेखा के निकट खारापन कम क्यों है ?
उत्तर-
अधिक वर्षा के कारण।

प्रश्न 21.
काले सागर में खारापन कम क्यों है ?
उत्तर-
नदियों से ताज़ा पानी प्राप्त होने के कारण।

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प्रश्न 22.
लाल सागर में खारापन अधिक क्यों है ?
उत्तर-
नदियों की कमी और अधिक वाष्पीकरण के कारण।

प्रश्न 23.
महासागरों में औसत खारापन बताएँ।
उत्तर-
35 ग्राम प्रति हज़ार।

प्रश्न 24.
महासागरीय जल की तीन गतियाँ बताएँ।
उत्तर-

  1. तरंगें
  2. धाराएँ
  3. ज्वारभाटा।

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प्रश्न 25.
ज्वारभाटा कितने प्रकार का होता है ?
उत्तर-
लघु ज्वारभाटा और ऊँचा ज्वारभाटा।

प्रश्न 26.
तरंगों के तीन प्रमुख प्रकार बताएँ।
उत्तर-
सरफ, स्वैश और अध-प्रवाह।

प्रश्न 27.
ऊँचा ज्वारभाटा कब उत्पन्न होता है ?
उत्तर-
अमावस्या और पूर्णिमा को।

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प्रश्न 28.
लघु ज्वारभाटा कब होता है ?
उत्तर-
कृष्ण और शुक्ल अष्टमी को।

प्रश्न 29.
अंध-महासागर में सबसे प्रसिद्ध गर्म धारा बताएँ।
उत्तर-
खाड़ी की धारा।

प्रश्न 30.
ज्वारभाटा के उत्पन्न होने का प्रमुख कारण बताएँ।
उत्तर-
चंद्रमा की आकर्षण-शक्ति।

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प्रश्न 31.
सरफ किसे कहते हैं ?
उत्तर-
तटीय क्षेत्रों की टूटती लहरों को।

प्रश्न 32.
ज्वार की सबसे अधिक ऊँचाई कहाँ होती है ?
उत्तर-
फंडे की खाड़ी में।

प्रश्न 33.
न्यूफाउंडलैंड के निकट कोहरा क्यों पैदा होता है ?
उत्तर-
लैबरेडोर की ठंडी और खाड़ी की धारा मिलने के कारण।

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प्रश्न 34.
प्रशांत महासागर की दो ठंडी धाराओं के नाम बताएँ।
उत्तर-
पेरु की धारा और कैलीफोर्निया की धारा।

प्रश्न 35.
कालाहारी मरुस्थल के तट पर कौन-सी धारा चलती है ?
उत्तर-
बैंगुएला की धारा।

प्रश्न 36.
दो ज्वारों के बीच समय का अंतर बताएँ।
उत्तर-
12 घंटे 26 मिनट।

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बहुविकल्पीय प्रश्न

नोट-सही उत्तर चुनकर लिखें-

प्रश्न 1.
पृथ्वी का जल-मंडल कितने प्रतिशत है ?
(क) 51%
(ख) 61%
(ग) 71%
(घ) 81%.
उत्तर-
71%.

प्रश्न 2.
विश्व में सबसे गहरी खाई कौन-सी है ?
(क) पोरटोरिको
(ख) मेरियाना
(ग) सुंडा
(घ) एटाकामा।
उत्तर-
मेरियाना।

प्रश्न 3.
कौन-सा भाग महासागरीय तल का सबसे अधिक भाग घेरता है ?
(क) निमग्न तट
(ख) महाद्वीपीय फाल
(ग) महासागरीय मैदान
(घ) खाइयाँ।
उत्तर-
महाद्वीपीय मैदान।

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प्रश्न 4.
महाद्वीपीय निमग्न तट की औसत गहराई है-
(क) 100 फैदम
(ख) 500 फुट
(ग) 300 मीटर
(घ) 400 मीटर।
उत्तर-
100 फैदम।

प्रश्न 5.
विश्व में सबसे छोटा महासागर कौन-सा है ?
(क) हिंद महासागर
(ख) अंध महासागर
(ग) आर्कटिक महासागर
(घ) प्रशांत महासागर।
उत्तर-
आर्कटिक महासागर ।

प्रश्न 6.
महासागरों में खारेपन को प्रभावित करने वाला महत्त्वपूर्ण कारक है-
(क) धाराएँ
(ख) पवनें
(ग) वाष्पीकरण
(घ) जल-मिश्रण।
उत्तर-
वाष्पीकरण।

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प्रश्न 7.
विश्व में औसत खारापन है-
(क) 35 ग्राम प्रति हज़ार
(ख) 210 ग्राम प्रति हज़ार
(ग) 16 ग्राम प्रति हज़ार
(घ) 112 ग्राम प्रति हज़ार।
उत्तर-
35 ग्राम प्रति हज़ार।

प्रश्न 8.
किस सागर में सबसे अधिक खारापन है ?
(क) लाल सागर
(ख) बाल्टिक सागर
(ग) मृत सागर
(घ) भूमध्य सागर।
उत्तर-
मृत सागर।

प्रश्न 9.
काले सागर में औसत खारापन है-
(क) 170 ग्राम प्रति हज़ार
(ख) 18 ग्राम प्रति हज़ार
(ग) 40 ग्राम प्रति हज़ार
(घ) 330 ग्राम प्रति हजार।
उत्तर-
18 ग्राम प्रति हजार

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प्रश्न 10.
निम्नलिखित में प्रशांत महासागर की धारा बताएँ।
(क) मैडगास्कर की धारा
(ख) खाड़ी की धारा
(ग) क्यूरोशियो की धारा
(घ) लैबरेडोर की धारा।
उत्तर-
क्यूरोशियो की धारा।

प्रश्न 11.
महासागरीय धाराओं का प्रमुख कारण है-
(क) पवनें
(ख) जल के घनत्व में अंतर
(ग) पृथ्वी की दैनिक गति
(घ) स्थल खंडों की रुकावट।
उत्तर-
पवनें।

प्रश्न 12.
लघु ज्वार कब होता है ?
(क) पूर्णिमा
(ख) अमावस्या
(ग) अष्टमी
(घ) पूर्ण चंद्रमा।
उत्तर-
अष्टमी।

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प्रश्न 13.
अंध महासागर की गर्म धारा है।
(क) खाड़ी की धारा
(ख) कनेरी की धारा
(ग) लैबरेडोर की धारा
(घ) अंटार्कटिका की धारा।
उत्तर-
खाड़ी की धारा।

प्रश्न 14.
कालाहारी मरुस्थल के तट पर बहने वाली धारा है-
(क) खाड़ी की धारा
(ख) बैंगुएला की धारा
(ग) मानसून की धारा ।
(घ) लैबरेडोर की धारा।
उत्तर-
बैंगुएला की धारा।

अति लघु उत्तरात्मक प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर 2-3 वाक्यों में दें-

प्रश्न 1.
जलमंडल से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
पृथ्वी के तल पर पानी के नीचे डूबे हुए भाग को जलमंडल (Hydrosphere) कहते हैं। जलमंडल के अधीन महासागर, सागर, खाड़ी, झील आदि सब आ जाते हैं।

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प्रश्न 2.
जलमंडल का विस्तार बताएँ।
उत्तर-
प्रसिद्ध भूगोल वैज्ञानिक क्रुम्मेल (Krummel) के अनुसार जलमंडल का विस्तार पृथ्वी के 71% भाग पर है। जलमंडल लगभग 3626 लाख वर्ग किलोमीटर पर फैला हुआ है।

प्रश्न 3.
जलीय गोलार्द्ध (Water Hemisphere) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
उत्तरी गोलार्द्ध में 40% जल और 60% थल भाग हैं। दक्षिणी गोलार्द्ध में 81% जल और 19% थल भाग हैं।
दक्षिणी गोलार्द्ध में जल अधिक होने के कारण यह जलीय गोलार्द्ध कहलाता है। उत्तरी गोलार्द्ध को थल गोलार्द्ध (Land Hemisphere) कहा जाता है।

प्रश्न 4.
विश्व के प्रसिद्ध चार महासागरों के नाम और उनके क्षेत्रफल बताएँ।
उत्तर-

  1. प्रशांत महासागर – 1654 लाख वर्ग कि०मी०
  2. अंध महासागर – 822 लाख वर्ग कि०मी०
  3. हिंद महासागर – 735 लाख वर्ग कि०मी० .
  4. आर्कटिक महासागर – 141 लाख वर्ग कि०मी०

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प्रश्न 5.
महासागरीय फ़र्श को कितने मुख्य भागों में बाँटा जाता है ?
उत्तर-
महासागरीय फ़र्श को चार मुख्य भागों में बाँटा जाता है-

  1. महाद्वीपीय शैल्फ (Continental Shelf)
  2. महाद्वीपीय missing (Continental Slope)
  3. महाद्वीपीय मैदान (Deep Sea Plain)
  4. समुद्री गहराई (Ocean Deeps)

प्रश्न 6.
महासागरीय फ़र्श पर सबसे अधिक मिलने वाली भू-आकृतियों के नाम लिखें।
उत्तर-

  • समुद्री उभार (Ridges)
  • पहाड़ियाँ (Hills)
  • समुद्री टीले (Sea Mounts)
  • डूबे हुए द्वीप (Guyots)
  • खाइयाँ (Trenches)
  • कैनियान (Canyons)
  •  प्रवाह भित्तियाँ (Coral Reefs)।

प्रश्न 7.
पृथ्वी को जल ग्रह और नीला ग्रह क्यों कहते हैं ?
उत्तर-
पृथ्वी के तल पर 71% भाग पर जलमंडल का विस्तार है, इसलिए इसे जल ग्रह (Watery Planet) कहते हैं। इस कारण अंतरिक्ष से पृथ्वी का रंग नीला दिखाई देता है और इसे नीला ग्रह (Blue Planet) कहते हैं।

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प्रश्न 8.
प्रति-ध्रुवीय स्थिति (Anti-Podal) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
इसका अर्थ है कि पृथ्वी पर जल और स्थल एक-दूसरे के विपरीत स्थित हैं। यदि पृथ्वी के केंद्र से कोई व्यास खींचा जाए तो उसके एक सिरे पर जल और दूसरे सिरे पर स्थल होगा। यह स्थिति Diametrically Opposite होगी।

प्रश्न 9.
पृथ्वी पर सबसे बड़ा महासागर कौन-सा है और उसका क्षेत्रफल कितना है ?
उत्तर–
प्रशांत महासागर पृथ्वी का सबसे बड़ा महासागर है, जिसका क्षेत्रफल 1654 लाख वर्ग किलोमीटर है।

प्रश्न 10.
महासागरों की गहराई किस यंत्र से मापी जाती है ?
उत्तर-
महासागरों की गहराई Sound Waves का प्रयोग करके Sonic Depth Recorder नामक यंत्र के द्वारा मापी जाती है।

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प्रश्न 11.
पृथ्वी के सबसे ऊँचे भाग और महासागरों के सबसे गहरे भाग में कितना अंतर है ?
उत्तर-
पृथ्वी के सबसे ऊँचे भाग मांऊट एवरेस्ट की ऊँचाई 8848 मीटर है और सबसे गहरे भाग मेरियाना खाई की गहराई 11033 मीटर है और दोनों में अंतर 19881 मीटर है। यदि एवरेस्ट शिखर को मेरियाना खाई में डुबो दिया जाए, तो इसके शिखर पर 2185 मीटर गहरा पानी होगा।

प्रश्न 12.
महाद्वीपीय शैल्फ (Continental Shelf) किसे कहते हैं ?
उत्तर-
महाद्वीपों के चारों ओर के मंद ढलान वाले, समुद्री हिस्से को महाद्वीपीय शैल्फ कहा जाता है। यह क्षेत्र जल में डूबा रहता है।

प्रश्न 13.
महाद्वीपीय शैल्फ की औसत गहराई और विस्तार बताएँ।
उत्तर-
महाद्वीपीय शैल्फ की औसत गहराई 100 फैदम (Fathom) या 183 मीटर मानी जाती है। महासागरों के 7.6% भाग (360 लाख वर्ग कि०मी०) पर इसका विस्तार है। सबसे अधिक विस्तार अंध महासागर में 13.3% क्षेत्र पर है।

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प्रश्न 14.
महाद्वीपीय ढलान (Continental Slope) की परिभाषा दें।
उत्तर-
महाद्वीपीय शैल्फ से आगे गहरे समुद्री भाग तक तीखी ढलान को महाद्वीपीय ढलान कहते हैं। इसकी औसत ढलान 2° से 5° तक होती है और इसकी गहराई 200 मीटर से 3660 मीटर तक होती है। इसका सबसे अधिक विस्तार अंध महासागर के 12.4% भाग पर है।

प्रश्न 15.
महाद्वीपीय शैल्फ की रचना की विधियाँ बताएँ।
उत्तर-

  • जल सतह के ऊपर उठने या थल सतह के धंसने से।
  • अपरदन से।
  • तटों पर निक्षेप से।

प्रश्न 16.
विश्व में सबसे गहरी खाई कौन-सी है ?
उत्तर-
अंधमहासागर में गुयाम द्वीप के निकट मेरियाना खाई (11033 मीटर गहरी) सबसे गहरी खाई है।

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प्रश्न 17.
समुद्री खाई और कैनियन में क्या अंतर है ?
उत्तर-
महासागरीय फ़र्श पर गहरे मैदान में बहुत गहरी, तंग, लंबी और तीखी ढलान वाली गहराई को खाई (Trench) कहते हैं। परंतु महाद्वीपीय शैल्फ और ढलान पर तीखी ढलान वाली गहरी घाटियों और खाइयों को समुद्री कैनियन (Canyons) कहते हैं।

प्रश्न 18.
प्रशांत महासागर की तीन खाइयों के नाम बताएँ।
उत्तर-

  • चैलंजर खाई
  • होराइज़न खाई
  • ऐमडन खाई।

प्रश्न 19.
विश्व में कुल कितनी खाइयाँ हैं ? सबसे अधिक खाइयाँ किस महासागर में हैं ?
उत्तर-
विश्व में सभी महासागरों में 57 खाइयाँ हैं। सबसे अधिक खाइयाँ प्रशांत महासागर में हैं।

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प्रश्न 20.
प्रशांत महासागर की उत्पत्ति के बारे में बताएँ।
उत्तर-
एक विचार के अनुसार पृथ्वी से चंद्रमा के अलग होने के बाद बने गर्त से प्रशांत महासागर बना है। दूसरे विचार के अनुसार एक विशाल भू-खंड के धंस जाने से यह महासागर बना है।

प्रश्न 21.
मध्यवर्ती अंध महासागरीय कटक का वर्णन करें।
उत्तर-
यह ‘S’ आकार की कटक 14400 कि०मी० लंबी है और अंध-महासागर के मध्य में उत्तर में आइसलैंड से लेकर दक्षिण में बोविट टापू तक फैली हुई है और औसत रूप में 4000 मीटर गहरी है।

प्रश्न 22.
अंध महासागर की तीन प्रसिद्ध कटकोम के नाम बताएँ
उत्तर-

  1. डॉल्फिन कटक
  2. चैलंजर कटक
  3. वैलविस कटक
  4. रियो ग्रांड कटक
  5. विवल टामसन कटक।

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प्रश्न 23.
हिंद महासागर का क्षेत्रफल और आकार बताएँ।
उत्तर-
हिंद महासागर का कुल क्षेत्रफल लगभग 735 लाख वर्ग किलोमीटर है, जोकि जल-मंडल का 20% भाग है। यह त्रिकोण आकार का महासागर उत्तर में बंद है और स्थल-खंड से घिरा हुआ है।

प्रश्न 24.
हिंद महासागर को आधा-महासागर (Half Ocean) क्यों कहते हैं ?
उत्तर-
हिंद महासागर का विस्तार केवल कर्क रेखा तक है और उत्तर में यह स्थल-खंड से बंद है। यह केवल दक्षिणी गोलार्द्ध में ही पूरी तरह फैला हुआ है, इसलिए इसे आधा महासागर कहते हैं।

प्रश्न 25.
हिंद महासागर का सबसे गहरा स्थान बताएँ।
उत्तर-
हिंद महासागर में सुंडा खाई (Sunda Trench) सबसे गहरा स्थान है, जो 7450 मीटर गहरा है और इंडोनेशिया के निकट स्थित है।

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प्रश्न 26.
महासागरों के तापमान के विभाजन पर कौन-से कारक प्रभाव डालते हैं ?
उत्तर-

  • भूमध्य रेखा से दूरी
  • प्रचलित पवनें और धाराएँ
  • थल खंडों का प्रभाव
  • हिम खंडों का बहाव।

प्रश्न 27.
उत्तरी सागर का तापमान ऊँचा क्यों रहता है ?
उत्तर-
खाड़ी की गर्म धारा के कारण।

प्रश्न 28.
लाल सागर और खाड़ी फारस के जल का तापमान बताएँ।
उत्तर-
खाड़ी फारस के जल का तापमान 34°C और लाल सागर के जल का तापमान 32°C रहता है।

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प्रश्न 29.
1° अक्षांश पर महासागरों के जल के तापमान के कम होने की क्या दर है ?
उत्तर-
1° अक्षांश पर 0.3°C तापमान कम होता है।

प्रश्न 30.
महासागरों के तापमान का कटिबंधों के अनुसार विभाजन बताएँ।
उत्तर-

  • उष्ण कटिबंध में उच्च तापमान (27°C)
  • शीतोष्ण कटिबंध में मध्यम तापमान (15°C)
  • ध्रुवीय कटिबंध में निम्न तापमान (0°C)

प्रश्न 31.
महासागरों में सूर्य की किरणों का प्रभाव कितनी गहराई तक होता है ?
उत्तर-
लगभग 183 मीटर तक।

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प्रश्न 32.
तीन महासागरों की सतह के जल का तापमान बताएँ।
उत्तर-

  • प्रशांत महासागर – 19.1°C
  • हिंद महासागर – 17.03°C
  • अंध महासागर-16.9°C

प्रश्न 33.
4000 मीटर की गहराई पर महासागरों का तापमान कितना होता है ?
उत्तर-
1.7°C.

प्रश्न 34.
हिंद महासागर और लाल सागर की 2400 मीटर की गहराई पर पानी के तापमान में बहुत अंतर क्यों है ?
उत्तर-
इन दोनों सागरों में बॉब० एल० मंदेब (Bob-el Mandeb) नाम के कटक पानी के मिलने में रुकावट डालते हैं। हिंद महासागर की गहराई पर 15°C तापमान है जबकि लाल सागर में 21°C है।

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प्रश्न 35.
महासागरों के खारेपन से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
महासागरीय जल का खारापन वह अनुपात है, जो घुले हुए नमक की मात्रा और सागरीय जल की मात्रा में होता है।

प्रश्न 36.
महासागरीय खारेपन के स्रोत बताएँ।
उत्तर-

  • नदियाँ
  • लहरें
  • ज्वालामुखी।

प्रश्न 37.
महासागरीय जल में से नमक हटा लेने से क्या प्रभाव होगा ?
उत्तर-

  • महासागरीय जल के नमक को यदि भू-तल पर बिछा दिया जाए, तो भू-तल पर 55 मीटर की परत बिछ जाएगी।
  • समुद्र तल लगभग 30 मीटर नीचा हो जाएगा।

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प्रश्न 38.
महासागरीय जल का औसत खारापन कितना है ?
उत्तर-
महासागरीय जल का औसत खारापन 35 ग्राम नमक प्रति 1000 ग्राम जल है और इसे 35% के रूप में प्रकट किया जाता है।

प्रश्न 39.
महासागरीय जल के पाँच प्रसिद्ध लवण (नमक) और उनकी मात्रा बताएँ।
उत्तर-

  1. सोडियम क्लोराइड – 77.8%
  2. मैग्नीशियम क्लोराइड – 10.9%
  3. मैग्नीशियम सल्फेट – 4.7%
  4. कैल्शियम सल्फेट – 3.6%
  5. पोटाशियम सल्फेट – 2.5%

प्रश्न 40.
महासागरीय जल के खारेपन को नियंत्रित करने वाले तीन कारक बताएँ।
उत्तर-

  • तजें जल की प्रपत्ति वर्षा ओर नदियों से
  • वाष्पीकरण की तीव्रता और मात्रा।
  • पवनों और धाराओं द्वारा पानी की मिश्रण क्रिया।

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प्रश्न 41.
पानी के उत्थान (Upwelling of Water) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
जिस प्रदेश से प्रचलित पवनें पानी बहाकर ले जाती हैं, उस स्थान पर नीचे से पानी की गहरी सतह ऊपर आ जाती है। इस क्रिया को पानी का उत्थान कहते हैं।

प्रश्न 42.
कर्क रेखा और मकर रेखा पर अधिक खारेपन के तीन कारण बताएँ।
उत्तर-

  • बादल रहित आकाश के कारण तीव्र वाष्पीकरण।
  • उच्च वायुदाब पेटियों के कारण वर्षा की कमी।
  • बड़ी नदियों का न होना।

प्रश्न 43.
भूमध्य रेखीय खंड में खारापन कम क्यों है ?
उत्तर-

  • हर रोज़ तेज़ वर्षा होने के कारण।
  • बड़ी-बड़ी नदियों (अमेज़न आदि) के कारण ताज़े जल की प्राप्ति।

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प्रश्न 44.
ध्रुवीय प्रदेशों में न्यूनतम खारेपन का कारण बताएँ।
उत्तर-

  • सूर्य का ताप कम है और वाष्पीकरण कम है।
  • हिम पिघलने से ताज़े जल की प्राप्ति।
  • विशाल नदियों से ताज़े जल की प्राप्ति।

प्रश्न 45.
भूमध्य सागर और लाल सागर में उच्च खारापन क्यों हैं ?
उत्तर-
भूमध्य सागर (39%) और लाल सागर (41%) में अधिक खारेपन का मुख्य कारण निकट के मरुस्थलों के कारण तीव्र वाष्पीकरण है। बड़ी नदियों की कमी के कारण ताज़े जल की प्राप्ति कम है।

प्रश्न 46.
काला सागर और बाल्टिक सागर में खारापन कम क्यों है ? .
उत्तर-
काला सागर (18%) और बाल्टिक सागर (8%) में कम खारेपन का मुख्य कारण इन शीत प्रदेशों में वाष्पीकरण की कमी है। अधिक वर्षा, हिम के पिघलने और बड़ी नदियों से ताज़े जल की पर्याप्त प्राप्ति है।

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प्रश्न 47.
मृत सागर कहाँ स्थित है और इसमें बहुत ऊँचा खारापन क्यों है ?
उत्तर-
मृत सागर पश्चिमी एशिया में इज़रायल और जॉर्डन देशों की सीमा पर स्थित है। इस पूर्ण बंद सागर में 237% खारापन है। आस-पास के शुष्क मरुस्थलों के कारण वाष्पीकरण तेज़ होता है, वर्षा नहीं होती, यह एक अंदरूनी प्रवाह वाला सागर है और कोई भी नदी इससे बाहर नहीं बहती।

प्रश्न 48.
किन्हीं तीन घिरे हुए बंद सागरों और झीलों के नाम और खारापन बताएँ।
उत्तर-

  • मृत सागर – 237.5%
  • ग्रेट साल्ट लेक – 220%
  • वान झील – 330%.

प्रश्न 49.
महासागर के जल की कौन-सी विभिन्न गतियाँ हैं ?
उत्तर-
महासागर के जल की तीन प्रकार की गतियाँ हैं-

  • लहरें
  • धाराएँ
  • ज्वारभाटा।

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प्रश्न 50.
समुद्री लहरें क्या होती हैं ?
उत्तर-
महासागरों में जल के ऊपर उठने और नीचे आने की गति (हलचल) को लहर कहा जाता है।

प्रश्न 51.
लहर के दो प्रमुख भाग बताएँ।
उत्तर-
लहर में जल के ऊपर उठे हुए भाग को शिखर (Crest) और निचले भाग को गर्त (Trough) कहते हैं।

प्रश्न 52.
लहर की लंबाई की परिभाषा लिखें।
उत्तर-
लहर के एक शिखर से दूसरे शिखर तक की दूरी को लहर की लंबाई कहते हैं।

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प्रश्न 53.
लहर की गति का नियम क्या है ?
उत्तर-
PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 9 महासागर 11

प्रश्न 54.
महासागरीय लहरों की प्रमुख किस्में बताएँ।
उत्तर-

  1. सी (sea)
  2. स्वैल (Swell)
  3. सर्फ (Surf)।

प्रश्न 55.
स्वॉश (Swash) और बैकवॉश (Backwash) में क्या अंतर है ?
उत्तर-
लहर का जल जब तट पर प्रवाह करता है, तो उसे स्वॉश कहते हैं। तट से लौटते हुए जल को उल्ट प्रवाह या बैकवॉश (Backwash) कहते हैं।

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प्रश्न 56.
सागरीय धारा की परिभाषा दें।
उत्तर-
समुद्र के एक भाग से दूसरे भाग की ओर, एक निश्चित दिशा में, विशाल जल-राशि के लगातार प्रवाह को सागरीय धारा कहते हैं।

प्रश्न 57.
ड्रिफ्ट और धारा में क्या अंतर है ?
उत्तर-
जब पवनों के वेग से, सागर तल पर जल धीमी गति से आगे बढ़ता है, तो उसे ड्रिफ्ट कहते हैं, जैसेमानसून ड्रिफ्ट। जब सागरीय जल तेज़ गति से आगे बढ़ता है तो उसे धारा कहते हैं।

प्रश्न 58.
धाराओं की उत्पत्ति के तीन प्रमुख कारण बताएँ।
उत्तर-

  • प्रचलित पवनें
  • तापमान और खारेपन में विभिन्नता
  • पृथ्वी की दैनिक गति।

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प्रश्न 59.
उत्तरी हिंद महासागर में धाराएँ सर्दी और गर्मी में अपनी दिशा क्यों बदल लेती हैं ?
उत्तर-
यहाँ गर्मियों में दक्षिण-पश्चिमी मानसून पवनें चलती हैं, परंतु सर्दियों में उत्तर-पूर्वी मानसून पवनें चलती हैं। पवनों की दिशा बदलने से धाराएँ भी अपनी दिशा बदल लेती हैं।

प्रश्न 60.
धाराओं के संबंध में फैरल के सिद्धान्त का उल्लेख करें।
उत्तर-
फैरल के सिद्धान्त के अनुसार धाराएँ उत्तरी गोलार्द्ध में अपनी दायीं ओर और दक्षिणी गोलार्द्ध में अपनी बायीं ओर मुड़ जाती हैं।

प्रश्न 61.
महासागरों में भूमध्य रेखीय विपरीत धारा का क्या कारण है ?
उत्तर-
भूमध्य रेखा पर अपकेंद्रीय बल अधिक होने के कारण जल पृथ्वी की परिभ्रमण दिशा के साथ-साथ पश्चिम से पूर्व दिशा की ओर बहता है।

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प्रश्न 62.
तीनों महासागरों की सांझी धारा कौन-सी है ?
उत्तर–
तीनों महासागरों में निर्विघ्न विस्तार के कारण जल की लगातार एक सांझी धारा बहती है, जिसे पश्चिमी पवन प्रवाह कहते हैं।

प्रश्न 63.
पश्चिमी यूरोप पर गल्फ स्ट्रीम के कोई दो प्रभाव बताएँ।
उत्तर-

  • पश्चिमी यूरोप में सर्दी की ऋतु में तापमान साधारण से 50°C ऊँचा रहता है।
  • पश्चिमी यूरोप की बंदरगाहें सारा साल व्यापार के लिए खुली रहती हैं।

प्रश्न 64.
नीचे लिखी धाराओं के कारण कौन-कौन से मरुस्थल बनते हैं
(i) कनेरी की धारा
(ii) पेरु की धारा
(iii) बैंगुएला की धारा।
उत्तर-
(i) कनेरी की धारा – सहारा मरुस्थल
(ii) पेरु की धारा – ऐटेकामा मरुस्थल
(iii) बैंगुएला की धारा – कालाहारी मरुस्थल।

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प्रश्न 65.
हिम शैलों (खंडों) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
जल में तैरते हुए हिम खंडों के बड़े-बड़े टुकड़ों को हिम शैल कहते हैं। इनका 1/10 भाग ही जल की सतह के ऊपर रहता है।

प्रश्न 66.
हिम शैलों के किन्हीं दो प्रदेशों के नाम बताएँ।
उत्तर-
अलास्का और ग्रीनलैंड।

प्रश्न 67.
अंध महासागर की कौन-सी दो धाराएँ न्यूफाऊंडलैंड के निकट आपस में मिलती हैं ?
उत्तर-
लैबरेडोर की ठंडी धारा और खाड़ी की गर्म धारा।

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प्रश्न 68.
ज्वारभाटा की परिभाषा दें।
उत्तर-
सागरीय जल के नियमित उतार-चढ़ाव को ज्वारभाटा कहते हैं। पानी के ऊपर उठने को ज्वार और पानी के नीचे उतरने की क्रिया को भाटा कहते हैं।

प्रश्न 69.
विश्व में सबसे ऊँचा ज्वार कहाँ आता है ?
उत्तर-
दक्षिण-पूर्वी कनाडा की फंडे की खाड़ी (Bay of Funday) में 22 मीटर ऊँचा ज्वार आता है।

प्रश्न 70.
ज्वारभाटे की उत्पत्ति का प्रमुख कारण क्या है ?
उत्तर–
ज्वारभाटे की उत्पत्ति का प्रमुख कारण चंद्रमा की गुरुत्वाकर्षण शक्ति है।

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प्रश्न 71.
ऊँचा ज्वार और लघु ज्वार में क्या अंतर है ?
उत्तर-
जब सूर्य, चाँद और धरती एक सीधी रेखा में होते हैं, तो सबसे अधिक ऊँचे ज्वार को ऊँचा ज्वार कहते हैं। जब सूर्य और चाँद धरती से समकोण की स्थिति में होते हैं, तो कम ऊँचे ज्वार को लघु ज्वार कहते हैं।

प्रश्न 72.
लघु ज्वार और ऊँचा ज्वार किन तिथियों को आते हैं ?
उत्तर-
ऊँचा ज्वार अमावस्या और पूर्णिमा को आते हैं, जबकि लघु ज्वार अष्टमी वाले दिनों में आते हैं।

प्रश्न 73.
दो बंदरगाहों के नाम बताएँ, जहाँ जहाज़ ज्वारभाटा की मदद से प्रवेश करते हैं ?
उत्तर-
कोलकाता और कराची।

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प्रश्न 74.
किसी स्थान पर ज्वार हर दिन 52 मिनट देरी से क्यों आता है ?
उत्तर-
चाँद पृथ्वी के सामने 24 घंटे बाद पहले स्थान पर नहीं आता, बल्कि 13° के कोण में आगे बढ़ जाता है। इसलिए किसी स्थान को चाँद के सामने आने के लिए 13° x 4 = 52 मिनट का अधिक समय लगता है।

प्रश्न 75.
ज्वार की दीवार से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
जब ज्वार का जल नदी में प्रवेश कर जाता है, तो वह जल की विपरीत दिशा में बहता है। ज्वार की लहर की ऊँचाई बढ़ जाती है। इसे ज्वार की दीवार कहते हैं।

प्रश्न 76.
किन नदियों में ज्वार की दीवार बनती है ?
उत्तर-
हुगली नदी, अमेज़न नदी, हडसन नदी।

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लघु उत्तरात्मक प्रश्न । (Short Answer Type Questions)

नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर 60-80 शब्दों में दें-

प्रश्न 1.
मनुष्य के लिए महासागरों की महत्ता का वर्णन करें।
उत्तर-
महासागरों की महत्ता (Significance of Oceans)—महासागर अनेक प्रकार से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से मनुष्य के लिए उपयोगी हैं-

  1. महासागर जलवायु पर व्यापक प्रभाव डालते हैं।
  2. महासागर मनुष्यों के लिए मछलियों और खाद्य-पदार्थों के विशाल भंडार हैं।
  3. समुद्री जंतुओं से तेल, चमड़ा आदि कई उपयोगी वस्तुएँ प्राप्त होती हैं।
  4. महासागरों के कम गहरे क्षेत्रों में तेल और प्राकृतिक गैस के भंडार हैं और वहाँ कई खनिज भी मिलते हैं।
  5. महासागरों में ज्वारीय और भू-तापीय ऊर्जा पैदा की जा सकती है।
  6. महासागर आवाजाही के महत्त्वपूर्ण, सस्ते और प्राकृतिक स्रोत हैं।

प्रश्न 2.
“महासागर भविष्य के भंडार हैं।” कथन की व्याख्या करें।
उत्तर-
महासागर प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से धरती पर नमी, वर्षा, तापमान आदि पर प्रभाव डालते हैं। महासागर बढ़ती हुई जनसंख्या के लिए खाद्य-पदार्थों के विशाल स्रोत हैं। मछलियाँ मानवीय भोजन का 10% भाग प्रदान करती हैं। मनुष्य कई प्रकार के उपयोगी पदार्थों के लिए महासागरों पर निर्भर करता है। खनिज तेल के 20% भंडार महासागर में मौजूद हैं। कई देशों में ऊर्जा संकट पर नियंत्रण करने के लिए महासागर से ज्वारीय और भू-तापीय ऊर्जा प्राप्त की जाती है। इस प्रकार भविष्य में मनुष्य की बढ़ती हुई माँगों की पूर्ति महासागरों से ही की जा सकेगी, इसीलिए महासागरों को भविष्य के भंडार कहा जाता है।

प्रश्न 3.
महाद्वीपीय शैल्फ और महाद्वीपीय ढलान में अंतर बताएँ।
उत्तर-
महाद्वीपीय शैल्फ (Continental Shelf)-

  1. महाद्वीपों के चारों ओर पानी के नीचे डूबे चबूतरों को महाद्वीपीय शैल्फ कहते हैं।
  2. इसकी औसत गहराई 200 मीटर (100 फैदम) होती है।
  3. सभी महासागरों के 7.5% भाग पर इसका विस्तार है।
  4. इसकी औसत ढलान 1° से कम है।
  5. मछली क्षेत्रों और पैट्रोलियम के कारण इसकी आर्थिक महत्ता है।

महाद्वीपीय ढलान (Continental Slope)-

  1. महाद्वीपीय शैल्फ से महासागर के ओर की ढलान को महाद्वीपीय ढलान कहते हैं।
  2. इसकी औसत गहराई 200 मीटर से 3000 मीटर तक होती है।
  3. सभी महासागरों के 8.5% भाग पर इसका विस्तार है।
  4. इसकी औसत ढलान 2° से 5° तक है।
  5. इस पर अनेक समुद्री कैनियन मिलती हैं।

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प्रश्न 4.
समुद्री पर्वत और डूबे हुए द्वीप में अंतर बताएँ।
उत्तर-
समुद्री पर्वत (Sea Mounts)-

  1. यह एक प्रकार की समुद्री पहाड़ी होती है।
  2. यह समुद्र तल से 1000 मीटर ऊँचे होते हैं।
  3. इनकी चोटियाँ नुकीली होती हैं।

डूबे हुए द्वीप (Guyots)-

  1. ये ज्वालामुखी चोटियों के बचे-खुचे भाग होते हैं।
  2. ये समुद्री द्वीप कम ऊँचे होते हैं।
  3. इनकी चोटियाँ कटाव के कारण चौकोर होती

प्रश्न 5.
समुद्री खाई और समुद्री कैनियन में अंतर बताएँ।
उत्तर –
समुद्री खाई (Sub-marine Trench)-

  1. ये समुद्र के गहरे भागों में मिलती हैं।
  2. ये लंबी, गहरी और तंग खाइयाँ होती हैं।
  3. ये मोड़दार पर्वतों के साथ पाई जाती हैं।
  4. मेरियाना खाई सबसे गहरी खाई है, जोकि 11 किलोमीटर गहरी है।

समुद्री कैनियन (Sub-marine Canyon)-

  1. ये महाद्वीपीय शैल्फ और ढलानों पर मिलती हैं।
  2. ये तंग और गहरी ‘V’ आकार की घाटियाँ होती हैं।
  3. ये समुद्री तटों और नदियों के मुहानों पर पाई जाती हैं।
  4. बैरिंग कैनियन विश्व में सबसे बड़ी कैनियन है, जोकि 400 किलोमीटर लंबी है।

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प्रश्न 6.
धरती पर महासागरों को जलवायु के महान् नियंत्रक क्यों कहा जाता है ?
उत्तर-
महासागर जलवायु पर व्यापक प्रभाव डालते हैं, इसलिए इन्हें जलवायु के प्रमुख नियंत्रक कहा जाता है।

  • महासागर धरती पर नमी, वर्षा और तापमान के विभाजन पर प्रभाव डालते हैं।
  • महासागर सूर्य की ऊर्जा के भंडार हैं।
  • महासागरों के कारण तटीय भागों में समकारी जलवायु पाई जाती है।
  • समुद्री धाराएँ अपने निकट के तटीय प्रदेशों के तापमान को समकारी बनाती हैं।

प्रश्न 7.
झीलों और आंतरिक सागरों में खारेपन के विभाजन के बारे में बताएँ।
उत्तर-
झीलों और आंतरिक सागरों में खारापन (Salinity in Lakes and Inland Seas)-झीलों और आंतरिक सागरों में खारेपन की मात्रा इनमें गिरने वाली नदियों, वाष्पीकरण की मात्रा और स्थिति के कारण भिन्न-भिन्न है। झीलों में नदियों के गिरने से ताज़ा जल अधिक हो जाता है और खारेपन की मात्रा कम हो जाती है। अधिक तापमान से वाष्पीकरण अधिक होता है, जिससे खारापन बढ़ जाता है। कैस्पियन सागर के उत्तरी भाग में खारापन 14 ग्राम प्रति हज़ार ग्राम जल है, परंतु दक्षिणी भाग में यह मात्रा 170 ग्राम प्रति हजार ग्राम जल है। संयुक्त राज्य अमेरिका की साल्ट झील में खारापन 220 ग्राम प्रति हज़ार है। जॉर्डन में मृत सागर (Dead Sea) में खारापन 238 ग्राम प्रति हज़ार है। तुर्की की वैन झील (Van Lake) में खारेपन की मात्रा 330 ग्राम प्रति हज़ार है। यहाँ अधिक वाष्पीकरण और नदियों की कमी के कारण खारापन अधिक है।

प्रश्न 8.
सागरीय जल के खारेपन से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
समुद्र के जल का स्वाद खारा होता है। यह खारापन कई स्थानों पर अधिक और कई स्थानों पर कम होता है। समुद्र के जल में खारापन पैदा करने में नदियों का योगदान होता है। नदियों के पानी में कई तरह के नमक घुले होते हैं, जिन्हें नदियाँ अपने साथ समुद्रों में ले जाती हैं। इन नमक युक्त पदार्थों को ही खारेपन का नाम दिया जाता है। अनुमान है कि विश्व की सभी नदियाँ हर वर्ष 5 अरब 40 करोड़ टन नमक समुद्रों में ले जाती हैं। समुद्रों का औसत खारापन 35% होता है, परंतु सभी समुद्रों में यह एक समान नहीं होता। कहीं बहुत अधिक और कहीं बहुत कम होता है।

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प्रश्न 9.
झीलों और आंतरिक सागरों में खारेपन का विभाजन बताएँ।
उत्तर-
झीलों और आंतरिक सागरों (Lakes and Inland Seas) में खारापन झीलों और आंतरिक सागरों में खारेपन की मात्रा इन में गिरने वाली नदियों, वाष्पीकरण की मात्रा और स्थिति के कारण भिन्न-भिन्न होती है। झीलों में नदियों के गिरने से ताज़ा जल अधिक हो जाता है और खारेपन की मात्रा कम हो जाती है। अधिक तापमान के कारण वाष्पीकरण अधिक होता है, जिससे खारापन अधिक हो जाता है। कैस्पियन सागर के उत्तरी भाग में खारापन 14 ग्राम प्रति हज़ार है, परंतु दक्षिणी भाग में यह मात्रा 170 ग्राम प्रति हज़ार है। संयुक्त राज्य अमेरिका की साल्ट झील में खारापन 220 प्रति हज़ार है। जार्डन में मृत सागर (Dead Sea) में खारापन 238 ग्राम प्रति हज़ार है। तुर्की की वैन झील (Van Lake) में खारेपन की मात्रा 330 ग्राम प्रति हज़ार है। यहाँ अधिक खारापन अधिक वाष्पीकरण और नदियों की कमी के कारण होता है।

प्रश्न 10.
अलग-अलग सागरों के खारेपन की मात्रा पर वाष्पीकरण का क्या प्रभाव है ?
उत्तर-
जिन महासागरों में वाष्पीकरण अधिक होगा, उनका जल अधिक खारा होगा। ऐसा इसलिए होता है कि वाष्पीकरण की क्रिया द्वारा सागरीय जल वाष्प बनकर उड़ जाता है और बाकी बचे जल में खारेपन की मात्रा अधिक हो जाती है। अधिक तापमान, वायु की तीव्रता और शुष्कता के कारण सागरों का खारापन बढ़ जाता है। कर्क रेखा और मकर रेखा के निकट अधिक वाष्पीकरण के कारण खारापन अधिक होता है। कम तापमान और कम वाष्पीकरण के कारण खारापन कम हो जाता है।

प्रश्न 11.
महासागरीय धाराओं की प्रमुख विशेषताएँ बताएँ।
उत्तर-

  1. धाराएँ लगातार एक निश्चित दिशा में बहती हैं।
  2. गर्म धाराएँ निचले अक्षांशों से ऊँचे अक्षांशों की ओर बहती हैं।
  3. ठंडी धाराएँ ऊँचे अक्षांशों से निचले अक्षांशों की ओर बहती हैं।
  4. उत्तरी गोलार्द्ध में धाराएँ अपनी दायीं ओर तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में अपनी बायीं ओर मुड़ जाती हैं।
  5. निचले अक्षांशों में पूर्वी तटों पर गर्म धाराएँ और पश्चिमी तटों पर ठंडी धाराएँ बहती हैं।
  6. उच्च अक्षांशों में पश्चिमी तटों पर गर्म धाराएँ और पूर्वी तटों पर ठंडी धाराएँ बहती हैं।

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प्रश्न 12.
हुगली नदी में जहाज़ चलाने के लिए ज्वारभाटे की महत्ता बताएँ।
उत्तर-
हुगली नदी में ज्वारभाटे की विशेष महत्ता है। कोलकाता बंदरगाह एक कम गहरी और कृत्रिम बंदरगाह है। जब ज्वार के समय पानी ऊपर होता है, तो कोलकाता की कम गहरी बंदरगाह में बड़े-बड़े जहाज़ दाखिल हो जाते हैं। इस प्रकार पानी के बड़े-बड़े जहाज़ समुद्र में कई मील अंदर तक प्रवेश कर जाते हैं। भाटे के समय जहाज़ वापस हो जाते हैं। कोलकाता हुगली नदी के किनारे समुद्र तट से 120 किलोमीटर दूर है। परंतु हुगली नदी में आने वाले ऊँचे ज्वारभाटे के कारण पानी के जहाज़ कोलकाता तक पहुँच जाते हैं। जब ज्वार नहीं होता, तो जहाज़ों को कोलकाता से 70 किलोमीटर दूर डायमंड हार्बर (Diamond Harbour) में रुके रहना पड़ता है।

प्रश्न 13.
ज्वार की दीवार पर एक संक्षिप्त नोट लिखें।।
उत्तर-
ज्वार की दीवार (Tidal Wall)-नदियों के मुहाने में पानी की ऊँची दीवार को ज्वार की दीवार कहते हैं। जब ज्वार उठता है, तो पानी की एक धारा नदी घाटी में प्रवेश करती हैं। यह, लहर नदी के जल को विपरीत दिशा में बहाने का यत्न करती है, ज्वार की लहर की ऊँचाई बहुत बढ़ जाती है। नदियों में पानी का बहाव विपरीत हो जाता है। पानी समुद्र से अंदर की ओर बहने लगता है। पानी की इस ऊँची दीवार को ज्वार-दीवार कहते हैं। ज्वारदीवार विशेषकर उन नदियों में दिखाई देती है, जिनका खुला मुहाना कुप्पी जैसा होता है। तंग मुँह और तेज़ धारा के कारण ज्वार-लहर के आगे एक दीवार खड़ी हो जाती है। यह ज्वार-दीवार बहुत विनाशकारी होती है। इससे नावें उलट जाती हैं। जहाज़ों के रस्से टूट जाते हैं। जहाज़ नष्ट हो जाते हैं । हुगली नदी में इन दीवारों के कारण छोटी नावों को बहुत नुकसान होता है। यंग-सी घाटी (चीन) में 3-4 मीटर ऊँची ज्वार की दीवार पाई जाती है, जो 16 किलोमीटर प्रति घंटे की दर से नदी में अंदर बढ़ती जाती है।

प्रश्न 14.
“धाराएँ प्रचलित पवनों के द्वारा निर्धारित होती हैं।” व्याख्या करें।
उत्तर-
प्रचलित पवनें (Prevailing Winds)-हवा अपनी अपार शक्ति के कारण पानी को गति देती है। धरातल पर चलने वाली स्थायी पवनें (Planetary Winds) लगातार एक ही दिशा में चलने के कारण धाराओं को जन्म देती हैं। विश्व की प्रमुख धाराएँ स्थायी पवनों की दिशा के अनुसार चलती हैं। (Ocean currents are wind determined) । मौसमी पवनें (Seasonal Winds) भी धाराओं की दिशा और उत्पत्ति में सहायक होती हैं।

उदाहरण (Examples)-

  1. व्यापारिक पवनें (Trade Winds)—इनके द्वारा उत्तरी और दक्षिणी भूमध्य रेखीय धाराएँ (Equational Currents) पूर्व से पश्चिम की ओर चलती हैं।
  2. पश्चिमी पवनें (Westerlies)—इनके प्रभाव से खाड़ी की धारा (Gulf Stream) और क्यूरोशियो (Curoshio) धारा पश्चिम से पूर्व की ओर बहती है।

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प्रश्न 15.
किसी क्षेत्र की वर्षा पर धाराओं के प्रभाव का उल्लेख करें।
उत्तर-
गर्म धाराओं के निकट के प्रदेशों में वर्षा अधिक होती है, परंतु ठंडी धाराओं के निकट के प्रदेशों में वर्षा कम होती है। गर्म धाराओं के ऊपर बहने वाली पवनों में नमी धारण करने की शक्ति बढ़ जाती है, परंतु ठंडी धाराओं के संपर्क में आकर पवनें ठंडी हो जाती हैं और अधिक नमी धारण नहीं कर सकतीं।

उदाहरण (Examples)–

  • उत्तर-पश्चिमी यूरोप में खाड़ी की गर्म धारा के कारण और जापान के पूर्वी तट पर क्यूरोशिओ की गर्म धारा के कारण अधिक वर्षा होती है।
  • विश्व के प्रमुख मरुस्थलों के तटों के निकट ठंडी धाराएँ बहती हैं, जैसे-सहारा तट पर कैनेरी धारा, कालाहारी तट पर बेंगुएला धारा, ऐटेकामा तट पर पेरू की धारा।

प्रश्न 16.
खाड़ी की धारा का वर्णन करते हुए इसके प्रभाव बताएँ।
उत्तर-
खाड़ी की धारा (Gulf Stream Current)
उत्पत्ति (Origin)—यह धारा खाड़ी मैक्सिको में एकत्र पानी द्वारा पैदा होती है, इसीलिए इसे खाड़ी की धारा कहते हैं। यह धारा उत्तरी अमेरिका के पूर्वी तट के साथ-साथ उत्तर की ओर न्यूफाउंडलैंड (New Foundland) तक बहती है। यह गर्म पानी की धारा है, जो एक नदी के समान तेज़ चाल से चलती है। इसका रंग नीला होता है। यह लगभग 1 किलोमीटर गहरी और 50 किलोमीटर चौड़ी है और इसकी गति 8 किलोमीटर प्रति घंटा है।

शाखाओं के क्षेत्र (Areas)- 40° उत्तरी अक्षांशों के निकट यह धारा पश्चिमी पवनों (Westerlies) के प्रभाव से पश्चिम से पूर्व दिशा में बहती है। इसकी मुख्य धारा यूरोप की ओर बहती है, जिसे उत्तरी अटलांटिक प्रवाह (North Atlantic Drift) कहते हैं। यह एक धीमी धारा है, जिसे पश्चिमी पवनों के कारण पश्चिमी पवन प्रवाह (West Wind Drift) भी कहते हैं। यूरोप के तट पर यह धारा कई शाखाओं में बाँटी जाती है। ब्रिटेन का चक्कर लगाती हुई एक शाखा नॉर्वे के तट को पार करके आर्कटिक सागर में स्पिटसबर्जन (Spitsbergen) तक पहुँच जाती है, जहाँ इसे नॉर्वेजियन धारा (Norwegian Current) कहते हैं।

प्रभाव (Effects)-

  1. यह एक गर्म जलधारा है, जो ठंडे अक्षांशों में गर्म जल पहुँचाती है।
  2. यह धारा पश्चिमी यूरोप को गर्मी प्रदान करती है। यूरोप में सर्दी की ऋतु में साधारण तापमान इसी धारा की देन है।
  3. पश्चिमी यूरोप की सुहावनी जलवायु इसी धारा की देन है, इसलिए इसे यूरोप की जीवन-रेखा (Life Line of Europe) भी कहते हैं।
  4. पश्चिमी यूरोप के बंदरगाह सर्दी की ऋतु में नहीं जमते और व्यापार के लिए खुले रहते हैं।
  5. इस धारा के ऊपर से निकलने वाली पश्चिमी पवनें (Westerlies) यूरोप में बहुत वर्षा करती हैं।

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प्रश्न 17.
लैबरेडोर की धारा का वर्णन करें।
उत्तर-
लैबरेडोर की धारा (Labrador Current)—यह ठंडे पानी की धारा है, जो आर्कटिक सागर (Arctic Ocean) से उत्तरी अंध-महासागर की ओर बहती है। यह धारा बैफिन खाड़ी (Baffin Bay) से निकलकर कनाडा के तट के साथ बहती हुई न्यूफाउंडलैंड तक आ जाती है। यहाँ यह खाड़ी की धारा के साथ मिल जाती है, जिससे घना कोहरा पैदा होता है, इसकी एक शाखा सैंट लारेंस (St. Lawrance) घाटी में प्रवेश करती है, जो कई महीने बर्फ से जमी रहती है।

प्रभाव (Effects)-

  • ये प्रदेश बर्फ से ढके रहने के कारण अनुपजाऊ होते हैं।
  • ठंडी धारा के कारण इस प्रदेश के बंदरगाह सर्दी की ऋतु में जम जाते हैं और व्यापार बंद हो जाता है।
  • यह धारा अपने साथ आर्कटिक सागर से बर्फ के बड़े-बड़े खंड (Icebergs) ले आती है। कोहरे के कारण जहाज़ इन खंडों से टकराकर दुर्घटनाओं के शिकार हो जाते हैं।

प्रश्न 18.
उत्तरी हिंद महासागर की धाराओं पर मानसून पवनों के प्रभाव के बारे में बताएँ।
उत्तर-
हिंद महासागर की धाराएं (Currents of Indian Ocean)-धाराओं और पवनों का संबंध हिंद महासागर में स्पष्ट रूप से समझा जा सकता है। यहाँ मानसून पवनों के कारण समुद्री धाराओं का क्रम भी मौसमी (Seasonal) होता है। यहाँ उत्तरी हिंद महासागर में चलने वाली धाराएँ, मानसून पवनों के कारण छह महीने के बाद अपनी दिशा बदल लेती हैं। परंतु दक्षिणी हिंद महासागर में धाराएँ पूरा वर्ष एक ही दिशा में चलने के कारण स्थायी होती हैं।

मानसून के प्रभाव के कारण धाराएँ सारा साल अपनी दिशा बदलती रहती हैं। वास्तव में कोई भी निश्चित धारा नहीं मिलती। छह महीने बाद इन धाराओं की दिशा और कर्म बदल जाते हैं।

प्रश्न 19.
ज्वारभाटा किसे कहते हैं ?
उत्तर-
ज्वारभाटा समुद्र की एक गति है। समुद्र का जल नियमित रूप से प्रतिदिन दो बार ऊपर उठता है और दो बार नीचे उतरता है। “समुद्री जल के इस नियमित उतार-चढ़ाव को ज्वारभाटा कहते हैं।” (Regular rise and fall of sea water is called Tides) जल के ऊपर उठने की क्रिया को ज्वार (Flood or High Tides or Incoming Tide) कहते हैं। जल के नीचे उतरने की क्रिया को भाटा (Ebb or low Tide or Outgoing Tide) कहते हैं।

विशेषताएँ

  1. प्रत्येक स्थान पर ज्वारभाटे की ऊँचाई अलग-अलग होती है।
  2. प्रत्येक स्थान पर ज्वार और भाटे का समय अलग-अलग होता है।
  3. समुद्र का जल 6 घंटे 13 मिनट तक ऊपर चढ़ता है और इतनी ही देर में नीचे उतरता है।
  4. ज्वारभाटा एक स्थान पर नित्य ही एक समय नहीं आता।

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प्रश्न 20.
ज्वारभाटे की उत्पत्ति के कारण बताएँ।
उत्तर-
उत्पत्ति के कारण (Causes of Origin) चंद्रमा अपनी गुरुत्वाकर्षण शक्ति (Gravitational Attraction) के कारण धरती के जल को अपनी ओर खींचता है। स्थल भाग कठोर होता है, इस कारण वह खींचा नहीं जा सकता, परंतु जल भाग तरल होने के कारण ऊपर उठता जाता है। यह जल चंद्रमा की ओर उठता है। वहाँ से निकट का जल सिमटकर ऊपर उठता जाता है, जिसे उच्च ज्वार (High Tide) कहते हैं। जिस स्थान पर जल की मात्रा कम रह जाती है, वहाँ जल अपने तल से नीचे गिर जाता है, उसे नीचा ज्वार (Low Tide) कहते हैं। धरती की दैनिक गति के कारण प्रत्येक स्थान पर दिन-रात में दो बार ज्वार आता है। एक ही समय में धरती के तल पर दो बार ज्वार पैदा होते हैंएक ठीक चाँद के सामने और दूसरा उसकी विपरीत दिशा में (Diametrical Opposite) चाँद की आकर्षण शक्ति के कारण ज्वार उठता है। इसे सीधा ज्वार (Direct Tide) कहते हैं। विपरीत दिशा में अपकेंद्रीय बल (Centrifugal Force) के कारण ज्वार उठता है और ऊँचा ज्वार पैदा होता है। इसे अप्रत्यक्ष ज्वार (Indirect Tide) कहते हैं। इस प्रकार धरती के एक तरफ ज्वार आकर्षण शक्ति की अधिकता के कारण और दूसरी तरफ अपकेंद्रीय शक्ति की अधिकता के कारण पैदा होते हैं।

प्रश्न 21.
लघु ज्वार और ऊँचे ज्वार में अंतर बताएँ।
उत्तर-
ऊँचा ज्वार (Spring Tide)-सबसे अधिक ऊँचे ज्वार को ऊँचा ज्वार कहते हैं। यह दशा अमावस्या (New moon) और पूर्णिमा (Full Moon) के दिन होती है।

कारण (Causes)-इस दशा में सूर्य, चाँद और धरती एक सीधी रेखा में होते हैं। सूर्य और चाँद की सांझी आकर्षण-शक्ति अधिक हो जाने से ज्वार-शक्ति बढ़ जाती है। सूर्य और चाँद के कारण उत्पन्न ज्वार इक्ट्ठे हो जाते हैं। (Spring tide is the sum of solar and luner tides.)। इन दिनों में ज्वार अधिक ऊँचा और भाटा बहुत कम नीचा होता है। ऊँचे ज्वार साधारण ज्वार से 20% अधिक ऊँचे होते हैं।

लघु ज्वार (Neap Tide)-अमावस्या के सात दिन बाद या पूर्णिमा के सात दिन बाद ज्वार की ऊँचाई दूसरे दिनों की तुलना में नीची रह जाती है। इसे लघु ज्वार कहते हैं। इस दशा को शुक्ल और कृष्ण पक्ष की अष्टमी कहते हैं, जब चाँद आधा (Half Moon) होता है।

कारण (Causes)—इस दशा में सूर्य और चाँद धरती की समकोण दशा (At Right Angles) पर होते हैं। सूर्य और चाँद की गुरुत्वाकर्षण शक्ति विपरीत दिशाओं में काम करती है। जहाँ सूर्य ज्वार पैदा करता है, वहाँ चाँद भाटा पैदा करता है। सूर्य और चाँद के ज्वारभाटा एक-दूसरे को कम करते हैं। (Neap tide is the difference of solar and luner tides) । इन दिनों में ऊँचा ज्वार कम ऊँचा और भाटा कम नीचा होता है। छोटा ज्वार प्रायः साधारण ज्वार से 20% कम ऊँचा होता है।

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प्रश्न 22.
दो ज्वारों के बीच कितने समय का अंतर होता है ?
उत्तर-
ज्वारभाटे का नियम (Law of Tides)—किसी स्थान पर ज्वारभाटा नित्य एक समय पर नहीं आता। धरती अपनी धुरी पर 24 घंटों में एक पूरा चक्कर लगाती है। इसलिए विचार किया जाता है कि ज्वार प्रत्येक स्थान पर 12 घंटे बाद आए, परंतु प्रत्येक स्थान पर ज्वार 12 घंटे 26 मिनट बाद आता है। हर रोज़ ज्वार पिछले दिन की तुलना में देर से आता है।

कारण (Causes)–चाँद धरती के चारों ओर 28 दिनों में पूरा चक्कर लगाता है। धरती के चक्कर का 28 वाँ भाग चाँद हर रोज़ आगे बढ़ जाता है। इसलिए किसी स्थान को चाँद के सामने दोबारा आने में 24 घंटे से कुछ अधिक समय ही लगता है। 24 घंटे 60 मिनट

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दूसरे शब्दों में, हर 24 घंटे के बाद चाँद अपनी पहले वाली स्थिति से लगभग 13° (360/28 = 13°) आगे निकल जाता है। इसलिए किसी स्थान को चाँद के ठीक सामने आने में 13 x 4 = 52 मिनट अधिक समय लग जाता है क्योंकि दिन में दो बार ज्वार आता है, इसलिए प्रतिदिन ज्वार 26 मिनट के अंतर से अनुभव किया जाता है। पूरे 12 घंटे बाद पानी का चढ़ाव देखने में नहीं आता, बल्कि ज्वार 12 घंटे 26 मिनट बाद आता है। 6 घंटे 13 मिनट तक जल ऊपर उठता और उसके बाद 6 घंटे 13 मिनट तक जल नीचे उतरता रहता है। ज्वार के उतार-चढ़ाव का यह क्रम चलता रहता है।

निबंधात्मक प्रश्न । (Essay Type Questions)

नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर 150-250 शब्दों में दें-

प्रश्न 1.
अंध महासागर की स्थल रूपरेखा के प्रमुख लक्षणों का वर्णन करें।
उत्तर-
अंधमहासागर (Atlantic Ocean)-
1. विस्तार और आकार (Shape and Size) इस सागर का क्षेत्रफल 8 करोड़ 20 लाख किलोमीटर है जोकि कुल सागरीय क्षेत्रफल का 1/6 भाग है। इसका आकार अंग्रेज़ी के ‘S’ अक्षर जैसा है। यह सागर भूमध्य रेखा पर लगभग 2560 कि०मी० चौड़ा है, परंतु दक्षिण की ओर इसकी चौड़ाई 4800 कि० मी० है। यह सागर उत्तर की ओर से बंद है, जबकि दक्षिण की ओर से खुला होने के कारण यह हिंद महासागर और प्रशांत महासागर के साथ मिल जाता है।

2. समुद्र तल (Ocean Floor)—इस सागर के तटों पर चौड़ा महाद्वीपीय शैल्फ पाया जाता है। यूरोप और उत्तरी अमेरिका के तटों पर इसकी चौड़ाई 400 कि०मी० तक होती है। यहाँ प्रसिद्ध मछली क्षेत्र पाए जाते हैं।

3. समुद्री पहाड़ियाँ (Ridges)—इस सागर में नीचे लिखी प्रमुख समुद्री पहाड़ियाँ (Ridges) हैं

  • अंध महासागरीय मध्यवर्ती पहाड़ी (Central Ridge)
  • डॉल्फिन पहाड़ी (Dolphin Ridge)
  • दक्षिणी भाग में चैलंजर पहाड़ी (Challanger Ridge)
  • उत्तरी भाग में टैलीग्राफ पठार।

4. सागरीय बेसिन (Ocean Basin)-अंध महासागर में कई छोटे-छोटे बेसिन पाए जाते हैं, जैसे

  • लैबरोडोर बेसिन
  • स्पेनिश बेसिन
  • उत्तरी अमेरिका बेसिन
  • केपवरडे बेसिन
  • गिनी का बेसिन
  • ब्राज़ील का बेसिन।

5. अंध-महासागर के निवाणं (Deeps of Atlantic Ocean)-इस सागर के तट के साथ-साथ मोड़दार पर्वत होने के कारण यहाँ निवाण (Deeps) कम ही मिलते हैं। Mr. Murry के अनुसार इस सागर में 10 निवाण हैं। प्रमुख इस प्रकार हैं-

(i) प्यूरटो रीको निवाण (Puerto Rico Deep) यह इस सागर का सबसे गहरा स्थान (4812 फैदम) है।
(ii) रोमांच निवाण (Romanche Deep)—यह 4030 फैदम गहरा है।

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(iii) दक्षिणी सैंडविच निवाण (South Sandwitch Deep)-यह फाकलैंड के निकट 4575 फैदम गहरा है।
(iv) सीमावर्ती सागर (Marginal Sea)-अंध-महासागर में सीमावर्ती समुद्र कम ही मिलते हैं। इसमें पाए जाने वाले सीमावर्ती सागर अधिकतर यूरोप की ओर हैं। प्रमुख सीमावर्ती सागर इस प्रकार हैं-

(क) बाल्टिक सागर (Baltic Sea)
(ख) उत्तरी सागर (North Sea)
(ग) रोम सागर (Mediterranean Sea)
(घ) काला सागर (Black Sea)
(ङ) कैरेबीयन सागर (Caribbean Sea)
(च) बेफिन की खाड़ी (Baffin Bay)
(छ) खाड़ी मैक्सिको (Mexica Bay)
(ज) हडसन की खाड़ी (Hudson Bay)।

(v) द्वीप (Islands)—इस सागर में ग्रेट ब्रिटेन और न्यूफाउंडलैंड महत्त्वपूर्ण द्वीप हैं, जोकि महाद्वीपीय शैल्फ के ऊँचे भाग हैं। वेस्ट इंडीज़ द्वीपों का समूह है, जोकि चाप के रूप में उत्तरी और दक्षिणी अमेरिका के बीच फैला हुआ है। इनके बारे में कहा जाता है कि ये डूबे हुए पहाड़ों के ऊँचे उठे हुए भाग हैं। मध्यवर्ती उभार पर कई द्वीप मिलते हैं, जैसे-

(क) फैरोस द्वीप (Faroes Island)
(ख) अज़ोरस द्वीप (Azores Island)
(ग) फाकलैंड द्वीप (Falkland Island)
(घ) सेंट हैलेना द्वीप (St. Helena Island)
(ङ) बरमुदा द्वीप (Barmuda Island)।
(च) अफ्रीका तट पर ज्वालामुखी के केपवरडे द्वीप और कनेरी द्वीप आदि।

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प्रश्न 2.
प्रशांत महासागर की स्थल रुपरेखा के प्रमुख लक्षणों का वर्णन करें।
उत्तर-
1. विस्तार और आकार (Shape and Size)—यह त्रिभुज (A) आकार का महासागर पृथ्वी के 30% भाग पर फैला हुआ है। इसकी औसत गहराई 5000 मीटर है। उत्तर में यह बेरिंग समुद्र और आर्कटिक महासागर द्वारा बंद है। प्रशांत महासागर भूमध्य रेखा पर लगभग 16000 कि०मी० चौड़ा है।

2. समुद्री पहाड़ियाँ (Ridges)—प्रशांत महासागर में पहाड़ियों (Ridges) की कमी है। इसके कुछ भागों में पठारों के रूप में उठे हुए चबूतरे पाए जाते हैं। प्रमुख उभार इस प्रकार हैं –

  • हवाई उभार, जोकि लगभग तीन हज़ार कि०मी० लंबा है।
  • अल्बेट्रोस पठार, जोकि लगभग 1500 कि०मी० लंबा है।
  • इस सागर में अनेक उभार (Swell), ज्वालामुखी पहाड़ियाँ और प्रवाल भित्तियाँ पाई जाती हैं।

3. सागरीय बेसिन (Ocean Basin)-प्रशांत महासागर में कई प्रकार के बेसिन मिलते हैं, जो छोटी-छोटी पहाड़ियों (Ridges) द्वारा एक-दूसरे से अलग हैं। प्रमुख बेसिन इस प्रकार हैं –

  • ऐलुशीयन बेसिन
  • फिलिपीन बेसिन
  • फिज़ी बेसिन
  • पूर्वी ऑस्ट्रेलिया का बेसिन
  • प्रशांत अंटार्कटिका बेसिन।

4. सागरीय निवाण (Ocean Deeps)—इस महासागर में लगभग 32 निवाण मिलते हैं, जिनमें से अधिक Trenches हैं। इस सागर के निवाण (Deeps) और खाइयाँ (Trenches) अधिकतर इसके पश्चिमी भाग में हैं। इस सागर में सबसे गहरा स्थान मैरियाना खाई (Mariana Trench) है, जिसकी गहराई 11022 मीटर है। इसके अलावा ऐलुशीयन खाई, क्यूराइल खाई, जापान खाई, फिलीपाइन खाई, बोनिन खाई, मिंडानो टोंगा खाई और एटाकामा खाई प्रसिद्ध सागरीय निवाण हैं, जिनकी गहराई 7000 मीटर से भी अधिक है।

5. सीमवर्ती सागर (Marginal Seas)—प्रशांत महासागर में अधिकतर सीमावर्ती सागर पश्चिमी भागों में मिलते हैं। इसके पूर्वी भाग में कैलीफोर्निया की खाड़ी और अलास्का की खाड़ी है। शेष महत्त्वपूर्ण सागर पश्चिमी भाग में हैं(i) बेरिंग सागर (Bering Sea) (ii) पीला सागर (Yellow Sea) (iii) ओखोत्सक सागर (Okhotsk Sea) (iv) जापान सागर (Japan Sea) (v) चीन सागर (China Sea)।

6. द्वीप (Islands)—प्रशांत महासागर में लगभग 20 हज़ार द्वीप पाए जाते हैं। प्रमुख द्वीप ये हैं-

  • ऐलुशियन द्वीप और ब्रिटिश कोलंबिया द्वीप।
  • महाद्वीपीय द्वीप, जैसे-क्यूराईल द्वीप, जापान द्वीप समूह, फिलीपाइन द्वीप, इंडोनेशिया द्वीप और न्यूज़ीलैंड द्वीप।
  • ज्वालामुखी द्वीप जैसे-हवाई द्वीप।
  • प्रवाल द्वीप, जैसे-फिजी द्वीप।

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प्रश्न 3.
हिंद महासागर के फर्श का वर्णन करें।
उत्तर-
(i) हिंद महासागर संसार का तीसरा सबसे बड़ा महासागर है, जोकि तीन तरफ से स्थल भागों (अफ्रीका, एशिया, ऑस्ट्रेलिया) से घिरा हुआ है। इसका विस्तार 20° पूर्व से लेकर 115° पूर्व तक है। इसकी औसत गहराई 4000 मीटर है। यह सागर उत्तर में बंद है और दक्षिण में अंध महासागर और प्रशांत महासागर से मिल जाता है।
(ii) समुद्री पहाड़ियाँ (Ridges)—इस महासागर में कई पहाड़ियाँ मिलती हैं-

(क) मध्यवर्ती पहाड़ी (Mid Indian Ridge) कन्याकुमारी से लेकर अंटार्कटिका महाद्वीप तक 75° पूर्व देशांतर के साथ-साथ स्थित है। इसके समानांतर पूर्वी हिंद पहाड़ी और पश्चिमी हिंद पहाड़ियाँ स्थित हैं। दक्षिण में ऐमस्ट्रडम-सेंट पॉल पठार स्थित है।

(ख) अफ्रीका के पूर्वी सिरे पर स्कोटा छागोश पहाड़ी।
(ग) हिंद महासागर के पश्चिम में मैडगास्कर और प्रिंस ऐडवर्ड पहाड़ियाँ और कार्ल्सबर्ग पहाड़ियाँ स्थित हैं।

(ii) सागरीय बेसिन (Ocean Basin)-कई पहाड़ियों (Ridges) के कारण हिंद महासागर कई छोटे-छोटे बेसिनों में बँट गया है, जैसे-खाड़ी बंगाल, अरब सागर, सोमाली बेसिन, पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया का बेसिन और दक्षिणी हिंद बेसिन।

(iv) समुद्री निवाण (Ocean Deeps)—इस सागर में समुद्री निवाण बहुत कम हैं। सबसे अधिक गहरा स्थान सुंडा खाई (Sunda Trench) के निकट प्लैनट निवाण है, जोकि 4076 फैदम गहरा है।

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(v) सीमावर्ती सागर (Marginal Sea)-हिंद महासागर में अधिकतर सीमावर्ती सागर उत्तर की ओर हैं, जो इस प्रकार हैं-

(क) लाल सागर (Red Sea)
(ख) खाड़ी सागर (Persian Gulf)
(ग) अरब सागर (Arabian Sea)
(घ) खाड़ी बंगाल (Bay of Bengal)
(ङ) मोज़म्बिक चैनल (Mozambique Strait)
(च) अंडमान सागर (Andaman Sea)।

(vi) द्वीप (Islands)

(क) श्रीलंका और मैलागासी जैसे बड़े द्वीप
(ख) अंडमान-निकोबार, जंजीबार, लक्षद्वीप और मालदीव,
(ग) मारीशस और रीयूनियन जैसे ज्वालामुखी द्वीप।

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प्रश्न 4.
महासागरों के विस्तार का वर्णन करें।
उत्तर-
समुद्र विज्ञान (Oceanography)—महासागरों का अध्ययन प्राचीन काल से ही होता चला आ रहा है। महासागरों की परिक्रमा, ज्वारभाटे की जानकारी आदि ईसा से कई वर्ष पूर्व ही प्राप्त थी। जलवायु, समुद्री मार्गों, जीवविज्ञान आदि पर प्रभाव के कारण समुद्री विज्ञान भौतिक भूगोल में एक विशेष स्थान रखता है।

समुद्र विज्ञान दो शब्दों Ocean + Graphy के मेल से बना है। इस प्रकार इस विज्ञान में महासागरों का वर्णन होता है। एम०ए०मोरमर (M.A. Mormer) के अनुसार, “समुद्र विज्ञान महासागरों की आकृति, स्वरूप, पानी और गतियों का अध्ययन है।” (Oceanography is the study of the Science of Oceans-its form, nature, waters and movements.)। मोंक हाऊस के अनुसार, “समुद्र विज्ञान महासागरों के भौतिक और जैव गुणों का अध्ययन है।” (Oceanography is the study of a wide range of Physical and biological phenomena of oceans.) I ___डब्ल्यू० फ्रीमैन (W. Freeman) के अनुसार, “समुद्र विज्ञान भौतिक भूगोल का वह भाग है, जो पानी की गतियों
और मूल शक्तियों का अध्ययन करता है। इस अध्ययन में ज्वारभाटा, धाराओं, तट रेखाओं, समुद्री धरातल और जीवों का अध्ययन शामिल होता है।”

महासागर-विस्तार (Ocean-Extent)-पृथ्वी के तल पर जल में डूबे हुए भाग को जलमंडल (Hydrosphere) कहते हैं। जलमंडल में महासागर, सागर, खाड़ियाँ, झीलें आदि सभी जल-स्रोत आ जाते हैं। सौर-मंडल में पृथ्वी ही एक-मात्र ग्रह है, जिस पर जलमंडल मौजूद है। इसी कारण पृथ्वी पर मानव-जीवन संभव है।

पृथ्वी के लगभग 71% भाग पर जलमंडल का विस्तार है। इसलिए इसे जल-ग्रह (Watery Planet) कहते हैं। अंतरिक्ष से पृथ्वी का रंग नीला दिखाई देता है, इसलिए इसे नीला ग्रह (Blue Planet) भी कहते हैं।

धरातल पर जलमंडल लगभग 3,61,059,000 वर्ग किलोमीटर में फैले हुए हैं जोकि पृथ्वी के धरातल के कुल क्षेत्रफल का 71% भाग है।
उत्तरी गोलार्द्ध का 61% भाग और दक्षिणी गोलार्द्ध का 81% भाग महासागरों द्वारा घिरा हुआ है। उत्तरी गोलार्द्ध की तुलना में दक्षिणी गोलार्द्ध में जल का विस्तार अधिक है, इसलिए इसे (Water Hemisphere) भी कहते हैं। जल और थल का विभाजन प्रति ध्रुवीय (Antipodal) है। उत्तरी ध्रुव की ओर चारों तरफ आर्कटिक महासागर स्थित है और दक्षिणी ध्रुव अंटार्कटिका महाद्वीप द्वारा घिरा हुआ है ।

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जलमंडल का क्षेत्रफल (Area of Hydrosphere) ब्रिटिश भूगोल वैज्ञानिक जॉन मरें (John Murray) ने जलमंडल का क्षेत्रफल 3626 लाख वर्ग किलोमीटर बताया है । महासागरों में प्रमुख प्रशांत महासागर, अंधमहासागर, हिंद महासागर और आर्कटिक महासागर हैं । प्रशांत महासागर सबसे बड़ा महासागर है, जो जलमंडल के 45.1% भाग पर फैला हुआ है ।

Areas of Different Oceans

Ocean — Area (Sq. K.m.)
प्रशांत महासागर — 16,53, 84,000
अंध महासागर — 8,22,17,000
हिंद महासागर — 7,34,81,000
आर्कटिक महासागर –1,40,56,000

महासागरों की औसत गहराई 3791 मीटर है। स्थल मंडल की अधिकतम ऊँचाई एवरेस्ट चोटी (Everest Peak) है, जोकि समुद्र तल से 8848 मीटर ऊँची है। जलमंडल की अधिकतम गहराई 11,033 मीटर, फिलीपीन देश के निकट प्रशांत महासागर की मेरियाना खाई में चैलंजर निवाण (Challeger Deep) में है। इस प्रकार यदि संसार के सबसे ऊँचे शिखर ऐवरेस्ट को प्रशांत महासागर की मेरियाना खाई में डुबो दिया जाए, तो उसके शिखर पर 2000 मीटर से अधिक पानी होगा।

प्रश्न 5.
सागरीय जल के खारेपन से क्या अभिप्राय है ? विश्व के भिन्न-भिन्न सागरों में खारेपन के विभाजन का वर्णन करें।
उत्तर-
समुद्र के जल का स्वाद खारा होता है। खारापन कई स्थानों पर अधिक और कई स्थानों पर कम होता है। समुद्र के जल में खारापन पैदा करने में दरिया के पानी का हाथ होता है। दरिया के पानी में कई प्रकार के नमक घुले हुए होते हैं, जिन्हें दरिया अपने साथ समुद्र में ले जाते हैं। इन नमक पदार्थों को भी खारेपन का नाम दिया जाता है। अनुमान है कि विश्व के सभी दरिया हर वर्ष 5 अरब 40 करोड़ टन नमक समुद्र में ले जाते हैं। समुद्रों का औसत खारापन 35% होता है, परंतु यह सब समुद्रों में एक समान नहीं है। कहीं बहुत अधिक है और कहीं बहुत कम। विश्व के भिन्न-भिन्न सागरों में खारेपन का विभाजन इस प्रकार है-

खारेपन का विभाजन-कई भौगोलिक तत्त्वों के कारण भिन्न-भिन्न सागरों में खारेपन की मात्रा में भिन्नता पाई जाती है-

1. खुले महासागरों में खारापन (Salinity in Open Seas)-

(i) भूमध्य रेखा के आस-पास के क्षेत्र (Near the Equator)—इन सागरों में औसत खारापन कम है, जोकि प्रति हजार ग्राम पानी में लगभग 34 ग्राम है।
कारण (Causes)

  • अधिक वर्षा का होना।
  • अमेज़न और कांगो जैसी बड़ी-बड़ी नदियों से ताज़े जल की प्राप्ति।

(ii) कर्क और मकर रेखा के निकट (Near the Tropics)—यहाँ खारेपन की मात्रा सबसे अधिक है, जोकि 36% है।
कारण (Causes)-

  • अधिक वाष्पीकरण का होना।
  • वर्षा का कम होना।
  • बड़ी नदियों की कमी होना।

(iii) ध्रुवीय क्षेत्र (Polar Areas)-इन क्षेत्रों में खारेपन की मात्रा 20 से 30 ग्राम प्रति हज़ार होती है।
GARUT (Causes) –

  • कम तापमान के कारण कम वाष्पीकरण का होना।
  • पश्चिमी पवनों द्वारा अधिक वर्षा का होना।
  • बर्फ के पिघलने से ताज़े जल की प्राप्ति होना।

2. घिरे हुए समुद्रों में खारापन (Salinity in Enclosed Seas)-इन सागरों के खारेपन में काफी अंतर पाया जाता है। जैसे-

  • भूमध्य सागर में जिब्रालटर के निकट खारेपन की मात्रा 37 ग्राम प्रति हज़ार से 39 ग्राम प्रति हज़ार होती है। अधिक खारापन शुष्क गर्म ऋतु, अधिक वाष्पीकरण और नदियों की कमी के कारण होता है।
  • लाल सागर में 39 ग्राम प्रति हज़ार, खाड़ी स्वेज़ 41 ग्राम प्रति हज़ार और खाड़ी फारस में 38 ग्राम प्रति हज़ार खारेपन की मात्रा पाई जाती है।
  • काला सागर में 17 ग्राम प्रति हजार और इज़ेव सागर में 18 ग्राम प्रति हज़ार खारेपन की मात्रा है। बाल्टिक सागर में यह केवल 8 ग्राम प्रति हज़ार है।

कारण (Causes)-

  • यहाँ वाष्पीकरण कम है।
  • बड़ी-बड़ी नदियों का पानी साफ है।
  • हिम के पिघलने से भी अधिक जल की प्राप्ति होती है।

3. झीलों और आंतरिक सागरों में (Lakes and Inland Seas)-झीलों और आंतरिक सागरों में खारेपन की मात्रा इनमें गिरने वाली नदियों, वाष्पीकरण की मात्रा और स्थिति के कारण भिन्न-भिन्न है। समुद्रों में नदियों के गिरने से ताज़ा जल अधिक हो जाता है और खारेपन की मात्रा कम हो जाती है। अधिक तापमान के कारण वाष्पीकरण अधिक होता है, जिससे खारापन अधिक हो जाता है। कैस्पियन सागर के उतरी भाग में खारेपन की मात्रा 14 ग्राम प्रति हज़ार है, परंतु दक्षिणी भाग में यह मात्रा 170 ग्राम प्रति हज़ार है। संयुक्त राज्य अमेरिका की साल्ट झील में खारेपन की मात्रा 220 ग्राम प्रति हज़ार है। जॉर्डन में मृत सागर (Dead Sea) में खारेपन की मात्रा 238 ग्राम प्रति हज़ार है। तुर्की की वैन झील (Van Lake) में खारेपन की मात्रा 330 ग्राम प्रति हज़ार है। यहाँ अधिक खारापन अधिक वाष्पीकरण और नदियों की कमी के कारण होता है।

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प्रश्न 6.
महासागरों में तापमान के क्षितिजीय विभाजन का वर्णन करें।
उत्तर-
महासागरीय जल में तापमान का क्षैतिज विभाजन (Horizontal Distribution of Temperature in Ocean Water)-अर्ध-खुले सागरों और खुले सागरों के तापमान में भिन्नता होती है। इसका कारण यह है कि अर्ध खुले सागरों के तापमान पर निकटवर्ती क्षेत्रों का प्रभाव पड़ता है।

(क) महासागरों में जल पर तापमान का क्षैतिज विभाजन (Horizontal Distribution of Temperature in Ocean Water)-महासागरों में जल-तल (Water-surface) के तापमान का क्षैतिज विभाजन नीचे लिखे अनुसार है :

  • भूमध्य रेखीय भागों के जल का तापमान 26° सैल्सियस, ध्रुवीय क्षेत्रों में 0° सैल्सियस से -5° (minus five degree) सैल्सियस और 20°, 40° और 60° अक्षांशों के तापमान क्रमशः 23°, 14° और 1° सैल्सियस रहता है। इस प्रकार भूमध्य रेखा से ध्रुवों की ओर महासागरीय जल का क्षैतिज तापमान कम होता जाता है। इसका कारण यह है कि भूमध्य रेखा पर सूर्य की किरणें लंब और ध्रुवों की ओर तिरछी पड़ती हैं।
  • ऋतु परिवर्तन के साथ महासागरों के ऊपरी तल के तापमान में परिवर्तन आ जाता है। गर्मी की ऋतु में दिन लंबे होने के कारण तापमान ऊँचा और सर्दी की ऋतु में दिन छोटे होने के कारण तापमान कम रहता है।
  • स्थल की तुलना में जल देरी से गर्म और देरी से ही ठंडा होता है। उत्तरी गोलार्द्ध में जल की तुलना में स्थल अधिक है और दक्षिणी गोलार्द्ध में जल का क्षेत्र अधिक है। इसलिए उत्तरी गोलार्द्ध में समुद्री जल का तापमान स्थलीय प्रभाव के कारण ऊँचा रहता है। इसकी तुलना में जल की अधिकता के कारण दक्षिणी गोलार्द्ध में तापमान कम रहता है।

3. अर्ध-खले सागरों में जल के तापमान का क्षैतिज विभाजन (Horizontal Distribution of Temperature in Partially Enclosed Seas) अर्ध-खुले सागरों के तापमान पर निकटवर्ती स्थलखंडों का प्रभाव अधिक पड़ता है।

(i) लाल सागर और फारस की खाड़ी (Red Sea and Persian Gulf)—ये दोनों अर्ध-खुले सागर हैं, जो संकरे जल संयोजकों (Straits) द्वारा हिंद महासागर से मिले हुए हैं। इन दोनों के चारों ओर मरुस्थल हैं, जिनके प्रभाव से तापमान उच्च, क्रमश: 32° से० और 34° से० रहता है। विश्व में सागरीय तल का अधिक-सेअधिक तापमान 34° से० है, जोकि फारस की खाड़ी में पाया जाता है।

कुछ सागरों के जल का तापमान-

सागर — तापमान
लाल सागर — 32°C.
खाड़ी फारस –34°C.
बाल्टिक सागर –10°C.
उत्तरी सागर –17°C.
प्रशांत महासागर –19.1°C.
हिंद महासागर –17.0°C.
अंध महासागर — 16.9°C.

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 9 महासागर 6

(ii) बाल्टिक सागर (Baltic Sea)-इस सागर में तापमान कम रहता है और शीत ऋतु में यह बर्फ में बदल जाता है। इसका मुख्य कारण यह है कि यह शीत प्रदेशों से घिरा हुआ है, जोकि सर्दियों में बर्फ से ढके रहते हैं। इसकी तुलना में निकट का विस्तृत उत्तर सागर (North Sea) कभी भी नहीं जमता। इसका कारण यह है कि एक तो यह खुला सागर है और दूसरा अंध महासागर की तुलना में गर्म जलं इसमें बेरोक प्रवेश करता है।

(iii) भूमध्य सागर या रोम सागर (Mediterranean Sea)—यह भी एक अर्ध-खुला समुद्र है, जो जिब्राल्टर (Gibraltar) जल संयोजक द्वारा अंध महासागर से जुड़ा हुआ है। इसका तापमान उच्च रहता है क्योंकि इसके दक्षिण और पूर्व की ओर मरुस्थल हैं। दूसरा, इस जल संयोजक की ऊँची कटक महासागर के जल को इस सागर में बहने से रोकती है।

महासागरीय जल में ताप का लंबवर्ती विभाजन-(Vertical Distribution of Temperature of Ocean Water)-सूर्य का ताप सबसे पहले महासागरीय तल का जल प्राप्त करता है और सबसे ऊपरी परत गर्म होती है। सूर्य के ताप की किरणें ज्यों-ज्यों गहराई में जाती हैं, तो बिखराव (Scattering), परावर्तन (Reflection) और प्रसारण (Diffusion) के कारण उनकी ताप-शक्ति नष्ट हो जाती है। इस प्रकार तल के नीचे के पानी का तापमान गहराई के साथ कम होता जाता है।

महासागरीय जल का तापमान-
गहराई के अनुसार (According to Depth)-

गहराई (Depth) मीटर — तापमान (°C)
200 — 15.9°C
400 —  10.0°C
1000 — 4.5°C
2000 — 2.3°C
3000 — 1.8°C
4400 — 1.7°C

1. महासागरीय जल का तापमान गहराई बढ़ने के साथ-साथ कम होता जाता है। इसका कारण यह है कि सूर्य की किरणें अपना प्रभाव महाद्वीपीय बढ़ौतरी की अधिकतम गहराई भाव 183 मीटर (100 फैदम) तक ही डाल सकती हैं।

2. महाद्वीपीय तट के नीचे महासागरों में तापमान अधिक कम होता है परंतु अर्ध-खुले सागरों में तापमान जल संयोजकों की कटक तक ही गिरता है और इससे आगे कम नहीं होता।

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हिंद महासागर के ऊपरी तल और लाल सागर के ऊपरी तल का तापमान लगभग समान (27°C) होता है। इन दोनों के बीच बाब-अल-मेंडर जल संयोजक की कटक है। उस गहराई तक दोनों में तापमान एक समान कम होता है क्योंकि इस गहराई तक हिंद महासागर का जल लाल सागर में प्रवेश करता रहता है। परंतु इससे अधिक गहराई पर लाल सागर का तापमान कम नहीं होता, जबकि हिंद महासागर में यह निरंतर कम होता रहता है।

3. गहराई के साथ तापमान कम होने की दर सभी गहराइयों में एक समान नहीं होती। लगभग 100 मीटर की गहराई तक जल का तापमान निकटवर्ती धरातलीय तापमान के लगभग बराबर होता है। धरातल से 1000 से 1800 मीटर की गहराई पर तापमान लगभग 15° से कम होकर लगभग 2°C रह जाता है। 4000 मीटर की गहराई पर तापमान कम होकर 1.6°C रह जाता है। महासागरों में किसी भी गहराई पर तापमान 1°C से कम नहीं होता। यद्यपि ध्रुवीय महासागरों की ऊपरी परत जम जाती है, पर निचला पानी कभी नहीं जमता। इसी कारण मछलियाँ और अन्य जीव-जन्तु निचले जल में मरते नहीं।

प्रश्न 7.
महासागरीय जल में खारेपन के कारण और महत्ता बताएँ।
उत्तर-
महासागरीय जल में खारापन (Salinity of Ocean Water)-
महासागरीय जल सदा खारा होता है, परंतु यह कहीं कम खारा और कहीं अधिक खारा होता है। सागर के इस खारेपन को ही महासागरीय खार या जल की लवणता कहा जाता है। यह खारापन महासागरीय जल में पाए जाने वाले नमक के कारण होता है। प्रसिद्ध सागर वैज्ञानिक मरे (Murray) के अनुसार प्रति घन किलोमीटर जल में 4/4 करोड़ टन नमक होता है। यदि महासागरीय जल के कुल नमक को बिछाया जाए, तो संपूर्ण पृथ्वी पर लगभग 150 मीटर मोटी परत बन जाएगी।

महासागरों का औसत खारापन (Average Salinity of Ocean)-
खुले महासागरों के जल में पाए जाने वाले लवणों के घोल को खारापन कहते हैं। (The total Salt Content of Oceans is Called Salinity.) । सागरीय जल का औसत खारापन 35 ग्राम प्रति हजार अर्थात् 35% होता है। खुले महासागरों में 1000 ग्राम जल में लगभग 35 ग्राम नमक होता है। ऐसे जल के खारेपन को 35 ग्राम प्रति हज़ार (Thirty five per thousand) कहा जाता है क्योंकि खारेपन को प्रति हज़ार ग्राम में ही दर्शाया जाता है।

महासागरों में खारेपन के कारण (Origin of Salinity in the Ocean)-
वैज्ञानिकों के अनुसार पृथ्वी की उत्पत्ति के बाद जब महासागरों की रचना हुई तो उस समय पृथ्वी के अधिकतर नमक इस जल में घुल गए। इसके बाद स्थलों से आने वाली अनगिनत नदियाँ अपने साथ घोल के रूप में नमक महासागरों में निक्षेप कर रही हैं, जिससे महासागरों में खारेपन की वृद्धि होती रही है। वाष्पीकरण द्वारा महासागरों का ताज़ा जल वायुमंडल में मिलकर वर्षा का कारण बनता है। यह वर्षा नदियों के रूप में स्थल पर नमक प्रवाहित करके महासागरों में पहुँचाती है।

सागरीय जल के नमक (Salts of Ocean)-
सागरीय जल में पाए जाने वाले नमक इस प्रकार हैं–

(i) सोडियम क्लोराइड — 77.8 प्रतिशत
(ii) मैग्नीशियम क्लोराइड — 10.9 प्रतिशत
(iii) मैग्नीश्यिम सल्फेट — 4.7 प्रतिशत
(iv) कैल्शियम सल्फेट — 3.6 प्रतिशत
(v) पोटाशियम सल्फेट — 2.5 प्रतिशत
(vi) कैल्शियम कार्बोनेट — 0.3 प्रतिशत
(vii) मैग्नीशियम ब्रोमाइड — 0.2 प्रतिशत

खारेपन का महत्त्व (Importance of Salinity) –
समुद्री जल के खारेपन का महत्त्व नीचे लिखे अनुसार है-

  • समुद्र में खारेपन की भिन्नता के कारण धाराएँ उत्पन्न होती हैं; जो निकटवर्ती क्षेत्रों में जलवायु को प्रभावित करती हैं।
  • समुद्री जल में मौजूद कैल्शियम कार्बोनेट नमक समुद्री जीव-जंतुओं विशेषकर मूंगा (Coral) और पंक (Ooze) का ज़ोन है, जिससे इनकी हड्डियाँ और पिंजर बनते हैं।
  • खारेपन के कारण धरती पर वनस्पति उगती है।
  • लवण ठंडे महासागरों को जमने नहीं देते और जीव-जंतु विशेष रूप से बहुमूल्य मछलियाँ नहीं मरती और जल परिवहन चालू रहता है।
  • खारेपन के कारण जल का घनत्व बढ़ जाता है, इसीलिए जहाज़ तैरते हैं।

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प्रश्न 8.
समुद्री तरंगों की रचना और किस्मों का वर्णन करें।
उत्तर-
समुद्री तरंगें या लहरें (Sea Waves)—पवनों के प्रभाव के कारण समुद्री तल के किसी भाग में जल ऊँचा और किसी भाग में नीचा होता है। इस क्रिया को लहर कहते हैं। लहरों के कारण जल आगे को नहीं बढ़ता, बल्कि अपने स्थान पर ही ऊँचा-नीचा और आगे-पीछे होता रहता है। लहर के ऊपर उठे भाग को तरंग शिखर (Crest) और निचले भाग को तरंग गर्त (Trough) कहते हैं। एक शिखर से दूसरे शिखर तक और एक गर्त से दूसरे गर्त तक की लंबाई को Wave Length कहा जाता है। गर्त और शिखर के बीच की दूरी को लहर की ऊँचाई (Amplitude of Wave) कहते हैं।

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लहर की किस्में (Types of Waves) –
पवनों द्वारा उत्पन्न महासागरीय जल की तरंगें तीन किस्म की होती हैं-

  1. सी
  2. स्वैल
  3. सरफ।

1. सी (Sea)—पवनों के घर्षण से कई बार एक ही समय में विभिन्न लंबाई (Wave Length) वाली और विभिन्न दिशाओं में बढ़ने वाली तरंगें उत्पन्न हो जाती हैं। इन्हें ‘सी’ (Sea) कहकर पुकारा जाता है।

2. महातरंग या स्वैल (Swell)-जब सी नामक अनियमित तरंगें महासागरीय जल-तल को उथल-पुथल करने वाली पवनों के प्रभाव से मुक्त होकर नियमित रूप में तरंग शिखर और तरंग गर्त की श्रृंखला में बढ़ती हैं, तो इन्हें महातरंग या स्वैल कहा जाता है।

3. सरफ (Surf)-जब महातरंग या स्वैल तट के निकट गहरे पानी (Deep Water) में पहुँचती है, तो इसके तरंग शिखर आपस में मिलकर ऊँचे हो जाते हैं, तरंग शिखर आगे की ओर झुक जाता है और टूट जाता है। तब इन्हें ब्रेकर या भंग-तरंग (Breaker) कहते हैं।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 7 विवाह, परिवार तथा नातेदारी

Punjab State Board PSEB 11th Class Sociology Book Solutions Chapter 7 विवाह, परिवार तथा नातेदारी Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Sociology Chapter 7 विवाह, परिवार तथा नातेदारी

पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न (Textual Questions)

I. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 1-15 शब्दों में दीजिए :

प्रश्न 1.
अन्तर्विवाह से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
वह विवाह जिसमें व्यक्ति को एक निश्चित समूह, जाति या उपजाति के अंदर ही विवाह करवाना पड़े, अन्तर्विवाह होता है।

प्रश्न 2.
विवाह संस्था की उत्पत्ति के कोई दो महत्त्वपूर्ण आधार बताइये।
उत्तर-
शारीरिक आवश्यकता, भावात्मक आवश्यकता, समाज को आगे बढ़ाना तथा बच्चों का पालन-पोषण करके विवाह की संस्था सामने आयी।

प्रश्न 3.
एक विवाह किसे कहते हैं ?
उत्तर-
जब एक पुरुष का एक समय में एक स्त्री के साथ विवाह होता है तो इसे एक विवाह का नाम दिया जाता है।

प्रश्न 4.
साली विवाह किसे कहते हैं ?
उत्तर-
जब एक व्यक्ति अपनी पत्नी की मृत्यु के पश्चात् उसकी बहन से विवाह कर लेता है तो उसे साली विवाह कहते हैं।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 7 विवाह, परिवार तथा नातेदारी

प्रश्न 5.
बहुपति विवाह के प्रकार बताइये।
उत्तर-
यह दो प्रकार का होता है-भातृ बहुपति विवाह जिसमें स्त्री के सभी पति भाई होते हैं तथा अभ्रातृ बहुपति विवाह जिसमें स्त्री के सभी पति भाई नहीं होते।

प्रश्न 6.
बहुपत्नी विवाह के प्रकार बताइये।
उत्तर-
यह दो प्रकार का होता है-द्वि-पत्नी विवाह जिसमें एक व्यक्ति की दो पत्नियाँ होती हैं तथा बहुपत्नी विवाह जिसमें व्यक्ति की कई पत्नियाँ होती हैं।

प्रश्न 7.
अन्तर्विवाह के कुछ उदाहरण दीजिए।
उत्तर-
मुसलमानों में शिया तथा सुन्नी अन्तर्वैवाहिक समूह हैं। ईसाइयों में रोमन कैथोलिक तथा प्रोटैस्टैंट अन्तर्वैवाहिक समूह है।

प्रश्न 8.
विवाह को परिभाषित कीजिए।
उत्तर-
लुण्डबर्ग के अनुसार, “विवाह के नियम तथा तौर-तरीके होते हैं जो पति पत्नी के एक-दूसरे के प्रति अधिकारों, कर्तव्यों तथा विशेष अधिकारों का वर्णन करते हैं।”

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 7 विवाह, परिवार तथा नातेदारी

प्रश्न 9.
परिवार के दो प्रकार्य बताइये।
उत्तर-

  1. परिवार बच्चों का समाजीकरण करता है।
  2. परिवार बच्चे को सम्पत्ति प्रदान करता है।

प्रश्न 10.
आकार के आधार पर परिवार के स्वरूपों के नाम लिखिए।
उत्तर-
आकार के आधार पर परिवार के तीन प्रकार होते हैं-केन्द्रीय परिवार, संयुक्त परिवार तथा विस्तृत परिवार।

प्रश्न 11.
सत्ता के आधार पर परिवार के स्वरूपों के नाम लिखिए।
उत्तर-
सत्ता के आधार पर परिवार के दो प्रकार होते हैं-पितृसत्तात्मक व मातृसत्तात्मक।

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प्रश्न 12.
वैवाहिक सम्बन्ध किसे कहते हैं ?
उत्तर-
वह नातेदारी जो विवाह के पश्चात् बनती है, उसे वैवाहिक नातेदारी कहते हैं। उदाहरण के लिए सास, ससुर, जमाई, बहू इत्यादि।

प्रश्न 13.
संयुक्त परिवार से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
वह परिवार जिसमें दो से अधिक पीढ़ियों के लोग रहते हैं तथा एक रसोई में खाना खाते हैं, संयुक्त परिवार होता है।

प्रश्न 14.
नातेदारी से आप क्या समझते हैं ? .
उत्तर-
नातेदारी में वह संबंध शामिल होते हैं जो काल्पनिक या वास्तविक वंश परम्परागत बन्धनों पर आधारित तथा समाज द्वारा प्रभावित होते हों।

प्रश्न 15.
नातेदारी के प्रकार बताइये।
उत्तर-
नातेदारी दो प्रकार की होती है :- वैवाहिक तथा रक्त संबंधी।

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II. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 30-35 शब्दों में दीजिए :

प्रश्न 1.
संस्था शब्द से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
संस्था न तो लोगों का समूह है तथा न ही संगठन है। संस्था तो किसी कार्य या उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए परिमापों की व्यवस्था है। संस्था तो किसी विशेष महत्त्वपूर्ण मानवीय क्रियाओं के इर्द-गिर्द केन्द्रित रूढ़ियों तथा लोक रीतियों का गुच्छा है। संस्थाएं तो संरचित प्रक्रियाएं हैं जिसके द्वारा व्यक्ति अपने कार्य करता है।

प्रश्न 2.
अधिमान्य नियम किसे कहते हैं ?
उत्तर-
प्रत्येक संस्था के कुछ अधिमान्य नियम होते हैं जिन्हें सबको मानना पड़ता है। उदाहरण के लिए विवाह एक ऐसी संस्था है जो पति-पत्नी के बीच संबंधों को नियमित करती है। इस प्रकार शैक्षिक संस्थाओं के रूप में स्कूल तथा कॉलेज के अपने-अपने नियम तथा कार्य करने के तौर-तरीके होते हैं।

प्रश्न 3.
अनुलोम तथा प्रतिलोम क्या है ?
उत्तर-

  • अनुलोम-यह एक प्रकार का सामाजिक नियम है जिसके अनुसार उच्च जाति का लड़का निम्न जाति की लड़की से विवाह कर सकता है।
  • प्रतिलोम-यह एक प्रकार का विवाह है जिसमें निम्न जाति का लड़का उच्च जाति की लड़की से विवाह करता है। इस प्रकार के विवाह को मान्यता नहीं मिलती है।

प्रश्न 4.
बहुविवाह के दो प्रकारों पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर-

  1. बहपति विवाह-इस प्रकार के विवाह में एक स्त्री के कई पति होते हैं तथा इसके दो प्रकार होते हैं। भ्रातृ बहुपति विवाह जिसमें सभी पति भाई होते हैं तथा गैर-भ्रातृ बहुपति विवाह जिसमें सभी पति भाई नहीं होते।
  2. बहुपत्नी विवाह-इस प्रकार के विवाह में एक पति की एक समय में कई पत्नियाँ होती हैं।

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प्रश्न 5.
भ्रातृत्व बहपति विवाह किसे कहते हैं ?
उत्तर-
इस प्रकार के विवाह में एक पत्नी के कई पति होते हैं तथा वह सभी आपस में भाई होते हैं। बच्चों का पिता बड़े भाई को माना जाता है तथा पत्नी से संबंध बनाने से पहले बड़े भाई की आज्ञा लेनी पड़ती है।

प्रश्न 6.
निकटाभिगमन निषेध की चर्चा कीजिए।
उत्तर-
निकटाभिगमन निषेध का अर्थ है शारीरिक अथवा वैवाहिक संबंध उन दो व्यक्तियों के बीच एक-दूसरे के साथ रक्त संबंधित हैं अथवा एक परिवार से संबंध रखते हैं। इस प्रकार के संबंध सभी मानवीय समाजों में वर्जित हैं। किसी भी संस्कृति में रक्त संबंधियों के बीच किसी प्रकार के लैंगिक संबंधों की आज्ञा नहीं होती है।

प्रश्न 7.
गोत्र किसे कहते हैं ?
उत्तर-
गोत्र रिश्तेदारों का समूह होता है जो किसी साझे पूर्वज की एक रेखीय संतान होते हैं। पूर्वज साधारणतया कल्पित ही होते हैं क्योंकि उनके बारे में किसी को कुछ पता नहीं होता। यह बहिर्वैवाहिक समूह होते हैं। यह वंश समूह का ही विस्तृत रूप है जोकि माता या पिता के अनुरेखित रक्त संबंधियों से बनता है।

प्रश्न 8.
सलिंग तथा विलिंग सहोदर विवाह के मध्य अन्तर कीजिए।
उत्तर-

  • सलिंग विवाह एक प्रकार का विवाह है जिसमें दो भाइयों या दो बहनों के बच्चों का विवाह कर दिया जाता है। मुसलमानों में यह विवाह प्रचलित है।
  • विलिंग सहोदर विवाह में व्यक्ति के मामा की बेटी या बुआ की लड़की के साथ विवाह हो जाता है। इस प्रकार के विवाह गोंड, उराओं तथा खड़िया जनजातियों में प्रचलित हैं।

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प्रश्न 9.
निकटता तथा दूरी के आधार पर नातेदारी को परिभाषित कीजिए।
उत्तर-
निकटता तथा दूरी के आधार पर तीन प्रकार की नातेदारी होती है-

  • प्राथमिक रिश्तेदार-वह रिश्तेदार जिनके साथ हमारा सीधा तथा नज़दीक का रक्त संबंध होता है जैसे कि माता-पिता, भाई-बहन।
  • द्वितीय रिश्तेदार-यह हमारे प्राथमिक रिश्तेदारों के प्राथमिक रिश्तेदार होते हैं जैसे कि पिता के पितादादा।
  • तृतीय रिश्तेदार-वह रिश्तेदार जो हमारे द्वितीय संबंधियों के प्राथमिक रिश्तेदार होते हैं जैसे कि चाचा की पत्नी-चाची।

III. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 75-85 शब्दों में दीजिए :

प्रश्न 1.
महत्त्वपूर्ण सामाजिक संस्थाओं पर संक्षेप में चर्चा कीजिए।
उत्तर-
1. विवाह-विवाह सबसे महत्त्वपूर्ण सामाजिक संस्था है जिसकी सहायता से व्यक्ति को अपनी पत्नी के साथ संबंध बनाने तथा बच्चे पैदा करने की आज्ञा होती है। विवाह के बाद ही परिवार का निर्माण होता है।

2. परिवार-जब व्यक्ति विवाह करता है तथा बच्चे पैदा करता है तो परिवार का निर्माण होता है। परिवार ही व्यक्ति को जीवन जीने के तरीके सिखाता है तथा उसे समाज में रहने के तरीके सिखाता है।

3. नातेदारी-नातेदारी रिश्तेदारों की व्यवस्था है जिसमें रक्त संबंधी व वैवाहिक संबंधी रिश्तेदार शामिल होते हैं। रिश्तेदारी के बिना व्यक्ति जीवन जी नहीं सकता है।

प्रश्न 2.
विवाह की महत्त्वपूर्ण विशेषताएं कौन-सी हैं ?
उत्तर-

  • विवाह एक सर्वव्यापक संस्था है जो प्रत्येक समाज में पाई जाती है।
  • विवाह लैंगिक संबंधों को सीमित तथा नियन्त्रित करता है।
  • विवाह से व्यक्ति के लैंगिक संबंधों को सामाजिक मान्यता प्राप्त होती है।
  • विवाह से स्त्री व पुरुष को सामाजिक स्थिति प्राप्त हो जाती है।
  • अलग-अलग समाजों में अलग-अलग प्रकार के विवाह होते हैं।
  • इसकी सहायता से धार्मिक रीति-रिवाजों को सुरक्षित रखा जाता है।

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प्रश्न 3.
विवाह के स्वरूपों के रूप में एक विवाह तथा बहविवाह के बीच विवाह के मध्य अंतर कीजिए।
उत्तर-
1. एक विवाह-आजकल के समय में एक विवाह का प्रचलन सबसे अधिक है। इस प्रकार के विवाह में एक पुरुष एक समय में एक ही स्त्री से विवाह करवा सकता है। इसमें एक पति या पत्नी के रहते हुए दूसरा विवाह ग़ैर-कानूनी है। पति-पत्नी के संबंध गहरे, स्थायी तथा प्यार से भरपूर होते हैं।

2. बहुविवाह-बहुविवाह का अर्थ है एक से अधिक विवाह करवाना। अगर एक स्त्री या पुरुष एक से अधिक विवाह करवाए तो इसे बहुविवाह कहते हैं। यह दो प्रकार का होता है-बहुपत्नी विवाह तथा बहुपति विवाह । बहुपति विवाह दो प्रकार का होता है-भ्रातृ बहुपति विवाह तथा गैर-भ्रातृ बहुपति विवाह।

प्रश्न 4.
परिवार के प्रकार्यों को समझाइये।
उत्तर-

  • परिवार में बच्चे का समाजीकरण होता है। परिवार में व्यक्ति समाज में रहने के तौर-तरीके सीख़ता है तथा अच्छा नागरिक बनता है।
  • परिवार हमारी संस्कृति को संभालता है। प्रत्येक परिवार अपने बच्चों को संस्कृति देता है जिससे संस्कृति का पीढ़ी दर पीढ़ी संचार होता रहता है।
  • परिवार में व्यक्ति की संपत्ति एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुंच जाती है तथा इससे व्यक्ति के जीवन भर की कमाई सुरक्षित रह जाती है।
  • पैसे की आवश्यकता व्यक्ति की आवश्यकताएं पूर्ण करने के लिए होती हैं तथा इस कारण ही परिवार पैसे का भी प्रबन्ध करता है।
  • परिवार व्यक्ति के ऊपर नियन्त्रण रखता है ताकि वह गलत रास्ते पर न जाए।

प्रश्न 5.
(अ) अनुलोम (ब) प्रतिलोम (स) लेवीरेट/ देवर विवाह (द) सोरोरेट/साली विवाह जैसी अवधारणाओं की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
(अ) अनुलोम-यह एक प्रकार का सामाजिक नियम है जिसके अनुसार उच्च जाति का लड़का निम्न जाति की लड़की से विवाह कर सकता है।
प्रतिलोम-यह एक प्रकार का विवाह है जिसमें निम्न जाति का लड़का उच्च जाति की लड़की से विवाह करता है। इस प्रकार के विवाह को मान्यता नहीं मिलती है।

(ब) अनुलोम-यह एक प्रकार का सामाजिक नियम है जिसके अनुसार उच्च जाति का लड़का निम्न जाति की लड़की से विवाह कर सकता है।
प्रतिलोम-यह एक प्रकार का विवाह है जिसमें निम्न जाति का लड़का उच्च जाति की लड़की से विवाह करता है। इस प्रकार के विवाह को मान्यता नहीं मिलती है।

(स) देवर विवाह-विवाह की इस प्रथा में पति की मृत्यु के पश्चात् पत्नी पति के छोटे भाई से विवाह कर लेती है। इससे परिवार की जायदाद सुरक्षित रह जाती है तथा परिवार टूटने से बच जाता है। बच्चों का पालन-पोषण ठीक ढंग से हो जाता है।

(द) साली विवाह-इस विवाह में पुरुष अपनी पत्नी की मृत्यु के पश्चात् अपनी साली से विवाह करवा लेता है। यह दो प्रकार का होता है-सीमित साली विवाह तथा समकालीन साली विवाह।

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IV. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 250-300 शब्दों में दें :

प्रश्न 1.
संस्था से आप क्या समझते हैं ? इसकी विशेषताएं बताइये।
उत्तर-
संस्था का अर्थ (Meaning of Institution)-हम अपने जीवन में हजारों बार इस संस्था शब्द का प्रयोग करते हैं। एक आम इन्सान की नज़र में संस्था का अर्थ किसी इमारत (Building) तक ही सीमित रहता है जबकि एक समाज शास्त्री की नज़र में इसका अर्थ किसी इमारत या लोगों के समूह से नहीं लिया जाता। समाज शास्त्री तो संस्था का अर्थ विस्तृत शब्दों में तथा समाज के अनुसार करते हैं। इनके अनुसार एक संस्था नियमों तथा परिमापों की व्यवस्था है जो मनुष्य की आवश्यकताओं को पूर्ण करने में मदद करती हैं। इस तरह संस्था तो व्यक्तियों की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए रूढ़ियों तथा लोक रीतियों का समूह है। यह तो वह प्रक्रिया है जिनकी मदद से व्यक्ति अपने कार्य करता है। संस्था तो सम्बन्धों की वह संगठित व्यवस्था है जिसमें समाज की कीमतें शामिल होती हैं तथा जो समाज की आवश्यकताओं को पूरा करती है। इसका कार्य मनुष्य की आवश्यताओं को पूरा करना होता है तथा मनुष्य के कार्य तथा व्यवहारों को पूरा करना होता है। इसमें पदों तथा भूमिकाओं का भी जाल होता है तथा इन्हें विभाजित किया जाता है।

इस तरह हम कह सकते हैं कि संस्था मनुष्य की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए कार्यविधियां, व्यवस्थाओं तथा नियमों का संगठन है। मनुष्य को अपनी ज़रूरतें पूरी करने के लिए अनेक समूहों का सदस्य बनना पड़ता है। हर समूह में अपने सदस्यों की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए बहुत कोशिशें होती रहती हैं। बहुत-सी सफल तथा असफल कोशिशों के बाद समूह अपने सदस्य की ज़रूरतों को पूरा करने के तरीके ढूंढ लेता है तथा समूह के सभी सदस्य इन तरीकों को मान लेते हैं। इस तरह समूह के सभी नहीं तो ज्यादातर सदस्य इनको मान लेते हैं। इस तरह समाज में कुछ विशेष हालातों के लिए कुछ विशेष प्रकार के तरीके निर्धारित हो जाते हैं तथा इन तरीकों के विरुद्ध काम करना ठीक नहीं समझा जाता। इस तरह मनुष्यों की विशेष आवश्यकताओं को पूरा करना तथा सभी के द्वारा मान्यता प्राप्त कार्यविधियों को संस्था कहते हैं।

परिभाषाएं (Definitions) –

  • मैरिल तथा एलडरिज़ (Meril and Eldridge) के अनुसार, “सामाजिक संस्थाएं सामाजिक प्रतिमान हैं जोकि मनुष्य प्राणियों के अपने मौलिक कार्यों को करने में व्यवस्थित व्यवहार को स्थापित करती है।”
  • एलवुड (Elwood) के अनुसार, “संस्था इकट्ठे मिलकर रहने के प्रतिमानित तरीके हैं जो समुदाय की सत्ता द्वारा स्वीकृत, व्यवस्थित तथा स्थापित किए गए हों।”
  • सुदरलैंड (Sutherland) के अनुसार, “समाजशास्त्रीय भाषा में संस्था उन लोक रीतों तथा रूढ़ियों का समूह है जो मनुष्यों के उद्देश्यों या लक्षणों को प्राप्ति में केन्द्रित हो जाता है।”

इस तरह उपरोक्त परिभाषाओं से यह स्पष्ट हो जाता है कि संस्था का विकास किसी विशेष उद्देश्य की प्राप्ति के लिए ही हुआ है। इसलिए यह रीति-रिवाजों, परिमापों, नियमों, कीमतों आदि का भी समूह है। समनर (sumner) ने अपनी पुस्तक “Folkways” में, सामाजिक संरचना को भी संस्था में शामिल कर लिया है। संस्था व्यक्ति को व्यक्तिगत व्यवहार के तरीके पेश करती है। संक्षेप में हम यह कह सकते हैं कि संस्था क्रियाओं का वह संगठन होता है, जिसे समाज किसी विशेष उद्देश्य की पूर्ति के लिए स्वीकार कर लेता है। समाज में अलगअलग सभाएं पाई जाती हैं तथा हर एक सभा की अपनी ही संस्था होती है, जिसके द्वारा वह अपने उद्देश्य की पूर्ति कर लेती है। उदाहरण के लिए राज्य की संस्था सरकार होती है। यह संस्थाएं व्यक्तियों को आपस में बाँध कर रखती हैं।

संस्था की विशेषताएं (Characteristics of Institution) –

1. यह सांस्कृतिक तत्त्वों से बनती है (It is made up of cultural things)-समाज में संस्कृति के जो तत्त्व मौजूद होते हैं जैसे रूढ़ियों, लोकरीतियों, परिमाप, प्रतीमान के संगठन को संस्था कहते हैं। एक समाज शास्त्री ने तो इसे प्रथाओं का गुच्छा कहा है। जब समाज में मिलने वाली प्रथाएं रीति-रिवाज, लोकरीतियां, रूढियां संगठित हो जाती हैं तथा एक व्यवस्था का रूप धारण कर लेती हैं तो यह संस्था है। इस तरह व्यवस्था संस्कृति में मिलने वाले तत्त्वों से बनती है तथा यह फिर मनुष्य की अलग-अलग आवश्यकताओं को पूरा करती है।

2. यह स्थायी होती है (It is Permanent) एक संस्था तब तक उपयोगी नहीं हो सकती जब तक वह ज्यादा समय तक लोगों की ज़रूरतों को पूरा न करे। अगर वह कम समय तक लोगों की आवश्यकता को पूरा करती है तो वह संस्था नहीं बल्कि सभा कहलाएगी। इस तरह संस्था अधिक समय तक लोगों की आवश्यकताओं को पूरा करती है। इसका यह अर्थ नहीं है कि संस्था कभी भी अलोप हो सकती है। किसी भी संस्था मांग समय के अनुसार होती है। किसी विशेष समय में किसी संस्था की मांग कम भी हो सकती है तथा अधिक भी। अगर किसी समय में किसी संस्था की आवश्यकता नहीं होती या कोई संस्था अगर लोगों की आवश्यकताओं को पूरा नहीं करती तो वह धीरे-धीरे अलोप हो जाती है।

3. इसके कुछ विशेष उद्देश्य होते हैं (It has some special motives or objectives)-जब भी संस्था का निर्माण होता है तो उसका कोई विशेष उद्देश्य होता है। संस्था को यह ज्ञान होता है कि अगर वह बन रही है तो उसके क्या उद्देश्य हैं। इसका मुख्य उद्देश्य व्यक्तियों की विशेष प्रकार की ज़रूरतों को पूरा करना है। इस तरह लोगों की ज़रूरतों को पूरा करना ही इनका विशेष उद्देश्य होता है परन्तु फिर भी यह हो सकता है कि समय बदलने के साथ-साथ संस्था लोगों की आवश्यकताओं को पूरा न कर सके तो फिर इन स्थितियों में उसकी जगह कोई और संस्था उत्पन्न हो जाती है।

4. संस्कृति के उपकरण (Cultural Equipments)-संस्था के उद्देश्य की पूर्ति के लिए संस्कृति के भौतिक पक्ष का सहारा लिया जाता है, जैसे फर्नीचर, ईमारत इत्यादि। इनका रूप तथा व्यवहार दोनों ही निश्चित किए जाते हैं। इस तरह अगर संस्था को अपने उद्देश्य पूरे करने हैं तो उसे भौतिक संस्कृति से बहुत कुछ लेना पड़ता है। अभौतिक संस्कृति जैसे विचार, लोक रीतियां, रूढ़ियां इत्यादि तो पहले ही संस्था में रहते हैं।

5. अमूर्तता (Abstractness)—जैसे कि ऊपर बताया गया है कि संस्था का विकास लोक रीतियों, रूढ़ियों, रिवाजों के साथ होता है। ये सभी अभौतिक संस्कृति का ही भाग हैं तथा अभौतिक संस्कृति के इन पक्षों को हम देख नहीं सकते केवल महसूस कर सकते हैं। इस तरह संस्था में अमूर्त्तता का पक्ष शामिल होता है। इसे स्पर्श नहीं सकते केवल महसूस किया जा सकता है। संस्था किसी स्पर्श करने वाली वस्तुओं का संगठन नहीं बल्कि नियमों, कार्य प्रणालियों, लोक रीतों का संगठन है जोकि मनुष्य की ज़रूरत को पूरा करने के लिए विकसित होती है।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 7 विवाह, परिवार तथा नातेदारी

प्रश्न 2.
एक सामाजिक संस्था के रूप में विवाह पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर-
विवाह स्त्री व पुरुष का समाज की ओर से स्वीकृत मेल है जो नए गृहस्थ का निर्माण करता है। विवाह न केवल आदमी व औरत के सम्बन्धों को ही मान्यता प्रदान करता है बल्कि इससे अन्य सम्बन्धों को भी मान्यता मिलती है। विवाह का अर्थ केवल सम्भोग नहीं है बल्कि विवाह परिवार की नींव है। विवाह की सहायता से व्यक्ति लैंगिक सम्बन्धों में प्रवेश करता है, घर बसाता है व सन्तान पैदा करके उसका पालन-पोषण करता है।

विवाह का अर्थ (Meaning of Marriage)-साधारण शब्दों में विवाह से अर्थ केवल लिंग सम्बन्धों की पूर्ति तक ही लिया जाता है। समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से यह अर्थ बिल्कुल ही अधूरा है। विवाह का अर्थ है कि उस संस्था में विरोधी लिंगों के मेल जिसके द्वारा परिवार का निर्माण हो व समाज के द्वारा स्वीकारा जाए अर्थात् विवाह की संस्था का अर्थ केवल लैंगिक इच्छाओं की पूर्ति ही नहीं बल्कि सामाजिक स्वीकृति से भी जोड़ते हैं।

विवाह की परिभाषाएं (Definitions of Marriage) –
1. मजूमदार (Majumdar) के अनुसार, “विवाह पुरुष व स्त्री का सामाजिक तौर से स्वीकार किया हुआ मेल होता है या पुरुष व स्त्री के मेल और सम्भोग को मान्यता प्रदान करने के लिए समाज द्वारा निकाली एक प्रतिनिधि या गौण संस्था है जिसका उद्देश्य है-(1) घर की स्थापना (2) लैंगिक सम्बन्धों में प्रवेश (3) बच्चे पैदा करना (4) बच्चों का पालन-पोषण करना ।”

2. वैस्टर मार्क (Western Mark) के अनुसार, “विवाह एक या अधिक पुरुषों का एक या अधिक स्त्रियों से होने वाला वह सम्बन्ध है, जो प्रथा या कानून द्वारा स्वीकार किया गया है जिसमें विवाह के दोनों पक्षों के और उनसे पैदा होने वाले बच्चों के अधिकार व कर्त्तव्य भी शामिल होते हैं।”

3. एण्डर्सन व पार्कर (Anderson and Parker) के अनुसार, “विवाह एक या ज्यादा पुरुषों व एक या अधिक स्त्रियों के बीच समाज द्वारा स्वीकारा स्थायी सम्बन्ध है, जिसमें पितृत्व हेतु सम्भोग की आज्ञा होती है।”

उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर हम यह कह सकते हैं कि विवाह की संस्था एक ऐसी संस्था है, जिसके ऊपर हमारे समाज की संरचना भी निर्भर करती है। आदमी व औरत के लैंगिक सम्बन्धों को नियमित करके ही हम बच्चों के पालन-पोषण पर ध्यान दे सकते हैं। इसी कारण इस संस्था को सामाजिक स्वीकृति भी प्राप्त होती है। जब यह लिंग सम्बन्ध समाज के द्वारा स्वीकारे बिना ही स्थापित हो जाएं तो हम उस विवाह को या उन सम्बन्धों को गैर-कानूनी करार दे देते हैं व पैदा हुए बच्चों के लिए भी ‘नाजायज़ बच्चा’ (illegal child) शब्द का प्रयोग करते हैं। इस कारण विवाह का अर्थ केवल लैंगिक इच्छाओं की पूर्ति ही नहीं बल्कि व्यक्ति इस संस्था का सदस्य बन कर कई और तरह के काम करता है, जो समाज के विकास के लिए ज़रूरी होते हैं।

प्रश्न 3.
विवाह के विभिन्न प्रकारों अथवा स्वरूपों को विस्तार से समझाइये।
उत्तर-
प्रत्येक समाज अपने आप में दूसरे समाज से अलग है। प्रत्येक समाज के अपने-अपने नियम, परम्पराएं व संस्थाएं होती हैं व प्रत्येक समाज में अलग-अलग संस्थाओं के भिन्न-भिन्न प्रकार होते हैं। क्योंकि प्रत्येक समाज में इन प्रकारों को अपनी आवश्यकताओं के अनुसार बनाया जाता है। इस तरह विवाह नामक संस्था की अलगअलग समाजों में उनकी आवश्यकताओं के मुताबिक प्रकार किस्में या रूप हैं। इन रूपों का वर्णन निम्नलिखित है-

1. एक विवाह (Monogamy)-आजकल के आधुनिक युग में एक विवाह का प्रचलन अधिक है। इस तरह से विवाह में एक आदमी एक समय में एक ही औरत से विवाह करवा सकता है। एक पत्नी के रहते हुए दूसरा विवाह ग़ैर-कानूनी है। इसमें पति-पत्नी के सम्बन्ध अधिक स्थाई, गहरे, प्यार व हमदर्दी पूर्ण होते हैं। इसमें बच्चों का पालन-पोषण सही ढंग से हो सकता है और उन्हें माता-पिता का भरपूर प्यार मिलता है। इस तरह के विवाह में पति-पत्नी में पूरा तालमेल होता है जिससे परिवार में झगड़े होने की सम्भावना काफ़ी कम रहती है। किन्तु इस तरह के विवाह में कई समस्याएं भी हैं। पत्नी अथवा पति के अस्वस्थ होने पर सारे काम रुक जाते हैं व बच्चों की ओर पूरा ध्यान नहीं दिया जा सकता।

2. बहु पति विवाह (Polyandry)- इसमें एक स्त्री के कई पति होते हैं। यह आगे दो प्रकार का होता है।

(i) भ्रातृ बहुपति विवाह (Fraternal Polyandry)-इस विवाह के अनुसार स्त्री के सारे पति आपस में भाई होते हैं पर कभी-कभी ये सगे भाई न होकर एक ही जाति के व्यक्ति भी होते हैं। इस विवाह की प्रथा में सबसे बड़ा भाई एक स्त्री से विवाह करता है और उसके सब भाई उस पर पत्नी के रूप में अधिकार मानते हैं व सारे उससे लैंगिक सम्बन्ध रखते हैं। यदि कोई छोटा भाई विवाह करता है तो उसकी पत्नी भी सब भाइयों की पत्नी होती है जितने बच्चे होते हैं वह सब बड़े भाई के माने जाते हैं व सम्पत्ति में अधिकार भी सबसे अधिक बड़े भाई या सबसे पहले पति का होता है। भारत में ये प्रथा मालाबार, पंजाब, नीलगिरि, लद्दाख, सिक्किम व आसाम में पाई जाती है।

(ii) गैर-भ्रातृ बहुपति विवाह (Non Fraternal Polyandry) बहुपति विवाह के इस प्रकार में एक स्त्री के पति आपस में भाई नहीं होते। यह सब पति भिन्न-भिन्न स्थान के रहने वाले होते हैं। ऐसे हालात में स्त्री निश्चित समय के लिए एक पति के पास रहती है व फिर दूसरे के पास व फिर तीसरे के पास। इस तरह सम्पूर्ण वर्ष वह अलग-अलग पतियों के पास जीवन व्यतीत करती है। जिस समय में एक स्त्री एक पति के पास रहती है उस समय दौरान दूसरे पतियों को उससे सम्बन्ध बनाने का अधिकार नहीं होता। बच्चा होने के पश्चात् कोई एक पति एक विशेष संस्कार से उसका पिता बन जाता है। वह गर्भावस्था में स्त्री को तीर कमान भेंट करता है व उसे बच्चे का पिता मान लिया जाता है। बारी-बारी सभी पतियों को ऐसा करने दिया जाता है।

3. बहु-पत्नी विवाह (Polygyny)-बहु-पत्नी विवाह की प्रथा भारतवर्ष में पुराने समय में प्रचलित थी। राजा और उसके बड़े-बड़े मन्त्री बहुत सी पत्नियों को रखा करते थे। उस समय राजा के स्तर का अनुमान उसके द्वारा रखी गयी पत्नियों से होता था। मध्यकाल में भी मुग़ल वंशों में बहुत-सी पत्नियां रखने की प्रथा प्रचलित थी और अब भी मुसलमानों में चार विवाहों की प्रथा प्रचलित है। पुरुष की लैंगिक इच्छा को पूरा करने और परिवार की इच्छा को पूरा करने के कारण विवाह की इस प्रथा को अपनाया गया। इस प्रथा से समाज में बहुत सी समस्याएं पैदा हो गयी हैं और समाज में स्त्री को निम्न स्तर प्राप्त होता है।

4. साली विवाह (Sarorate-Marriage)—इस विवाह में पुरुष अपनी पत्नी की बहन के साथ विवाह करता है। साली के साथ विवाह दो तरह का होता है। साली विवाह में पुरुष अपनी पत्नी की मृत्यु के बाद उसकी बहन के साथ विवाह करता है। समकाली साली विवाह में पति अपनी पत्नी की सभी छोटी बहनों को अपनी पत्नी जैसा समझ लेता है। विवाह की इस पहली प्रथा का प्रचलन दूसरी प्रथा से अधिक प्रचलित है। इस प्रथा में परिवार के टूटने की शंका नहीं रहती और बच्चों का पालन-पोषण अच्छी तरह से हो जाता है।

5. देवर विवाह (Levirate Marriage)-विवाह की इस प्रथा के अनुसार पत्नी अपने पति की मौत के बाद पति के छोटे भाई से विवाह करती है। इस प्रथा के कारण ही एक तो घर की जायदाद सुरक्षित रहती है और दूसरा परिवार भी टूटने से बच जाता है, तीसरा बच्चों का पालन-पोषण ठीक ढंग से हो जाता है। इस प्रथा के अनुसार लड़के के माता-पिता को लड़की के माता-पिता का मूल्य वापिस नहीं करना पड़ता।

6. प्रेम विवाह (Love Marriage)-आधुनिक समाज में प्रेम विवाह का प्रचलन भी बढ़ता जा रहा है। इस विवाह में लड़का और लड़की में कॉलेज में पढ़ते हुए या इकट्ठे दफ्तर में नौकरी करते हुए पहली नज़र में ही प्यार हो जाता है। उनमें आपस की मुलाकातों का सिलसिला आरम्भ हो जाता है। वह दोनों होटल, सिनेमा, पार्क आदि में मिलते रहते हैं। वह सच्चे प्यार और आपस में जीने मरने की कसमें खाते हैं। समाज उनको विवाह करने से रोकता है और उनके रास्ते में कई तरह की समस्याएं खड़ी करने की कोशिश की जाती है पर वह दोनों अपने फैसले पर अटल रहते हैं। यदि लड़का और लड़की के माता-पिता उनके विवाह को इजाजत नहीं देते हैं। वह दोनों अदालत में जाकर कानूनी तौर पर विवाह कर लेते हैं। इस तरह इस विवाह को प्रेम विवाह कहा जाता है।

7. अन्तर्विवाह (Endogamy)—अन्तर्विवाह के अन्तर्गत व्यक्ति को अपनी ही जाति की स्त्री से विवाह करवाना पड़ता था। अन्तर्विवाह के गुणों का वर्णन इस प्रकार है। इसके साथ रक्त की शुद्धता को सम्भाल कर रखा जाता है। इसके साथ समाज में एकता को बनाये रखा जाता है। इसके साथ सामूहिक जाति की सम्पत्ति सुरक्षित रहती है। इस विवाह में स्त्रियां काफ़ी खुश रहती हैं क्योंकि अपनी ही संस्कृति मिलने से उनका आपस में तालमेल अच्छा बैठता है। परन्तु दूसरी तरफ इस तरह का विवाह देश की एकता में रुकावट पैदा करता है। इस तरह जातिवाद को बढ़ावा मिलता है जिससे सामाजिक प्रगति में रुकावट पैदा होती है।

8. बहिर्विवाह (Exogemy)-बहिर्विवाह का अर्थ अपने गोत्र अपने गांव के बाहर वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित करना है। एक ही गोत्र और गांव के आदमी और औरत आपस में भाई-बहन माने जाते हैं। वैस्टमार्क के अनुसार ऐसे विवाह का उद्देश्य नज़दीकी रिश्तेदारी में यौन सम्बन्धों को स्थापित न करना। यह विवाह प्रगतिवाद का सूचक है। इस विवाह से अलग-अलग समूहों में सम्बन्ध बढ़ता है। जैविक दृष्टिकोण से भी इस विवाह को उचित माना गया है। इस विवाह का सबसे बड़ा अवगुण यह है कि इसमें लड़का और लड़की को एक-दूसरे के विचारों को समझने में मुश्किल होती है। बर्हिविवाह करने से अलग-अलग समूहों में प्यार बढ़ता है। इस तरह राष्ट्रीय एकता की भावना को बल मिलता है।

9. अनुलोम विवाह (Anulom Marriage)-अनुलोम हिन्दू विवाह का एक नियम है जिसमें उच्च जाति या पुरुष अपने से नीची जाति की लड़कियों से विवाह कर सकता है। उदाहरण के तौर पर एक ब्राह्मण व्यक्ति क्षत्रिय, वैश्य और निम्न जाति की लड़की के साथ विवाह कर सकता था। इसका मुख्य कारण निम्न जाति के लोग उच्च जाति में विवाह करना अपनी इज्जत समझते थे क्योंकि इस तरह के विवाह से उनको भी समाज में उच्च स्थान मिल जाता था।

10. प्रतिलोम विवाह (Pratilom Marriage)–इस तरह के विवाह में निम्न जाति के पुरुष उच्च जाति की स्त्रियों के साथ विवाह करते थे। मनु ने इस तरह के विवाह का सख्त विरोध किया है। मनु के अनुसार इस तरह के विवाह से पैदा हुई सन्तान को अस्पृश्य माना जाता है। मनु ने ब्राह्मण स्त्री और निम्न जाति पुरुष से पैदा हुई सन्तान को चंडाल की संज्ञा दी थी। इसलिए इस तरह का विवाह हमेशा संकीर्णता के साथ देखा गया है। इस तरह से पैदा हुई सन्तान को किसी भी वंश के नाम को धारण नहीं कर सकती थी।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 7 विवाह, परिवार तथा नातेदारी

प्रश्न 4.
विवाह को परिभाषित कीजिए। जीवन साथी चुनने के नियमों को विस्तार से लिखिए।
उत्तर-
विवाह स्त्री व पुरुष का समाज की ओर से स्वीकृत मेल है जो नए गृहस्थ का निर्माण करता है। विवाह न केवल आदमी व औरत के सम्बन्धों को ही मान्यता प्रदान करता है बल्कि इससे अन्य सम्बन्धों को भी मान्यता मिलती है। विवाह का अर्थ केवल सम्भोग नहीं है बल्कि विवाह परिवार की नींव है। विवाह की सहायता से व्यक्ति लैंगिक सम्बन्धों में प्रवेश करता है, घर बसाता है व सन्तान पैदा करके उसका पालन-पोषण करता है।

विवाह का अर्थ (Meaning of Marriage)-साधारण शब्दों में विवाह से अर्थ केवल लिंग सम्बन्धों की पूर्ति तक ही लिया जाता है। समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से यह अर्थ बिल्कुल ही अधूरा है। विवाह का अर्थ है कि उस संस्था में विरोधी लिंगों के मेल जिसके द्वारा परिवार का निर्माण हो व समाज के द्वारा स्वीकारा जाए अर्थात् विवाह की संस्था का अर्थ केवल लैंगिक इच्छाओं की पूर्ति ही नहीं बल्कि सामाजिक स्वीकृति से भी जोड़ते हैं।

विवाह की परिभाषाएं (Definitions of Marriage) –
1. मजूमदार (Majumdar) के अनुसार, “विवाह पुरुष व स्त्री का सामाजिक तौर से स्वीकार किया हुआ मेल होता है या पुरुष व स्त्री के मेल और सम्भोग को मान्यता प्रदान करने के लिए समाज द्वारा निकाली एक प्रतिनिधि या गौण संस्था है जिसका उद्देश्य है-(1) घर की स्थापना (2) लैंगिक सम्बन्धों में प्रवेश (3) बच्चे पैदा करना (4) बच्चों का पालन-पोषण करना ।”

2. वैस्टर मार्क (Western Mark) के अनुसार, “विवाह एक या अधिक पुरुषों का एक या अधिक स्त्रियों से होने वाला वह सम्बन्ध है, जो प्रथा या कानून द्वारा स्वीकार किया गया है जिसमें विवाह के दोनों पक्षों के और उनसे पैदा होने वाले बच्चों के अधिकार व कर्त्तव्य भी शामिल होते हैं।”

3. एण्डर्सन व पार्कर (Anderson and Parker) के अनुसार, “विवाह एक या ज्यादा पुरुषों व एक या अधिक स्त्रियों के बीच समाज द्वारा स्वीकारा स्थायी सम्बन्ध है, जिसमें पितृत्व हेतु सम्भोग की आज्ञा होती है।”

उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर हम यह कह सकते हैं कि विवाह की संस्था एक ऐसी संस्था है, जिसके ऊपर हमारे समाज की संरचना भी निर्भर करती है। आदमी व औरत के लैंगिक सम्बन्धों को नियमित करके ही हम बच्चों के पालन-पोषण पर ध्यान दे सकते हैं। इसी कारण इस संस्था को सामाजिक स्वीकृति भी प्राप्त होती है। जब यह लिंग सम्बन्ध समाज के द्वारा स्वीकारे बिना ही स्थापित हो जाएं तो हम उस विवाह को या उन सम्बन्धों को गैर-कानूनी करार दे देते हैं व पैदा हुए बच्चों के लिए भी ‘नाजायज़ बच्चा’ (illegal child) शब्द का प्रयोग करते हैं। इस कारण विवाह का अर्थ केवल लैंगिक इच्छाओं की पूर्ति ही नहीं बल्कि व्यक्ति इस संस्था का सदस्य बन कर कई और तरह के काम करता है, जो समाज के विकास के लिए ज़रूरी होते हैं।

साथी के चुनाव के नियम (Rules of Mate Selection)—प्रत्येक समाज में जीवन साथी के चुनाव के नियम पाए जाते हैं, जो व्यक्ति को यह बताते हैं कि वह किस लड़की या लड़के से विवाह करवा सकता है व किससे नहीं करवा सकता यह नियम निम्नलिखित है-

  1. अन्तर्विवाह (Endogamy)
  2. बहिर्विवाह (Exogamy) –
  3. अनुलोम (Hyperpamy)
  4. प्रतिलोम (Hypogamy)

अन्तर्विवाह (Endogamy)-अन्तर्विवाह के नियम के द्वारा व्यक्ति को अपनी जाति में ही विवाह करवाना पड़ता था। जाति आगे उप-जातियों में (Sub-caste) बंटी हुई थी। इस प्रकार व्यक्ति को उपजाति में ही विवाह करवाना पड़ता था। जाति प्रथा के समय अन्तः विवाह के इस नियम को बहुत सख्ती से लागू किया गया था। यदि कोई व्यक्ति इस नियम की उल्लंघना करता था तो उसको जाति में से बाहर निकाल दिया जाता था व उससे हर तरह के सम्बन्ध भी तोड़ लिए जाते थे। धार्मिक ग्रन्थों के अनुसार समाज को चार जातियों में बांटा हुआ था।

यह जातियां आगे उप-जातियों में बंटी हुई थीं। प्रत्येक व्यक्ति अपनी उप-जाति में ही विवाह करवाता था। वर्तमान भारतीय समाज में विवाह के इस रूप में काफ़ी परिवर्तन देखने को मिलता है।

होईबल (Hoebal) के अनुसार, “अन्तर्विवाह एक सामाजिक नियम है जो यह मांग करता है कि व्यक्ति अपने सामाजिक समूह में जिसका वह सदस्य है विवाह करवाए।”
(“Endogamy is a social rule which demands that a person should marry with in a group at in which he is a member.”)

बहिर्विवाह (Exogamy) – विवाह की संस्था एक महत्त्वपूर्ण सामाजिक संस्था है। कोई भी समाज किसी जोडे को बिना विवाह के पति-पत्नी के सम्बन्धों को स्थापित करने की स्वीकृति नहीं देता। इसी कारण प्रत्येक समाज विवाह स्थापित करने के लिए कुछ नियम बना लेता है। सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य साथी का चुनाव करना होता है। बहिर्विवाह में भी साथी के चुनाव करने का नियम होता है।

कई समाज में जिन व्यक्तियों में रक्त के सम्बन्ध होते हैं या अन्य किसी किस्म से वह एक-दूसरे से सम्बन्धित हों तो ऐसी अवस्था में उन्हें विवाह करने की स्वीकृति नहीं दी जाती।

इस प्रकार बहिर्विवाह का अर्थ होता है कि व्यक्ति को अपने समूह में विवाह करवाने की मनाही होती है। एक ही माता-पिता के बच्चों को आपस में विवाह करने से रोका जाता है।

मुसलमानों में माता-पिता के रिश्तेदारों में विवाह करने की इजाजत दी जाती है। इंग्लैण्ड के रोमन कैथोलिक चर्च में व्यक्ति को अपनी पत्नी की मौत के पश्चात अपनी साली से विवाह करने की इजाजत नहीं दी जाती।
ऑस्ट्रेलिया में लड़का अपने पिता की पत्नी से विवाह कर सकता है यदि वह उसकी सगी मां नहीं है।

बर्हिविवाह के नियम अनुसार व्यक्ति को अपनी जाति, गोत्र, स्पर्वर, सपिंड आदि में विवाह करवाने की आज्ञा नहीं दी जाती इसके कुछ प्रकार निम्नलिखित हैं

1. गोत्र बहिर्विवाह-गोत्र बहिर्विवाह का अर्थ यह होता है कि व्यक्ति को अपने गोत्र में विवाह करवाने की इजाजत नहीं दी जाती। अर्थात् एक ही गोत्र के व्यक्तियों में विवाहित सम्बन्ध स्थापित नहीं किए जा सकते। गोत्र का अर्थ गायों को पालने वाला समूह होता है। मैक्स मूलर के अनुसार जो लोग अपनी गायों को एक ही स्थान पर बाँधते थे, उनमें नैतिक सम्बन्ध स्थापित हो जाते थे जिस कारण वह आपस में विवाह नहीं करवा सकते थे। इस प्रकार गोत्र में उन व्यक्तियों को शामिल किया जाता है जिनमें नैतिक सम्बन्ध या रक्त सम्बन्ध पाए जाएं। इसी कारण एक गोत्र के व्यक्ति को दूसरे गोत्र के व्यक्ति से विवाह करवाने की इजाजत नहीं दी जाती।

2. स्पर्वर बहिर्विवाह-स्पर्वर बहिर्विवाह के नियम अनुसार एक ही पर्वर (Pravara) के लड़के व लड़की को विवाह करवाने की इजाजत नहीं होती। पर्वर में उन व्यक्तियों को शामिल किया जाता है जिनमें साझे ऋषि-पूर्वज होते हैं। इस प्रकार कोई भी व्यक्ति अपने पर्वर के पूर्वजों से सम्बन्धित औरत से विवाह नहीं करवा सकता।

3. सपिंडा बहिर्विवाह-सपिण्ड बहिर्विवाह के नियम अनुसार उन सभी व्यक्तियों को शामिल किया जाता है जिनके माता-पिता, दादा-दादी, नाना-नानी एक ही होते हैं। पुत्र के शरीर में माता-पिता दोनों के रक्त कण होते हैं। वैज्ञानिकों ने रक्त से सम्बन्धित रिश्तेदारों में माता द्वारा पांच पीढ़ियों व पिता द्वारा सात पीढ़ियों के व्यक्तियों को शामिल किया है। इस तरह से सम्बन्धित लोगों में पुरुष व स्त्री विवाह नहीं करवा सकते। माता व पिता की तरफ से पीढ़ियों को निश्चित करना समाज के अपने ऊपर निर्भर करता है।

गांव बहिर्विवाह-इस नियम के अनुसार एक गांव के व्यक्ति आपस में विवाह नहीं करवा सकते। उत्तरी भारत में विवाह का यह नियम काफ़ी प्रचलित है। एक ही गांव के व्यक्तियों को आपस में सगे-सम्बन्धियों से भी अधिक माना जाता है। जैसे पंजाब में आमतौर से यह शब्द कहे जाते हैं कि गांव की बहन बेटी सबकी ही होती इसके अतिरिक्त गांव में लोग एक-दूसरे को रिश्तेदारियों के नाम से ही बुलाना शुरू कर देते हैं।

5. टोटम बहिर्विवाह-इस विवाह के नियम के अनुसार एक टोटम की पूजा करने वाले व्यक्ति आपस में विवाह नहीं करवा सकते। टोटम का अर्थ किसी पौधे या जानवर आदि को अपना देवता मान लेते हैं। इस प्रकार का नियम भारत के कबाईली लोगों में पाया जाता है। इसमें व्यक्ति अपने टोटम से बर्हिविवाह करवाता है।

अनुलोम विवाह (Hypergamy)-अनुलोम विवाह का वह नियम होता है जिसमें लड़की का विवाह उसके बराबर या उससे ऊंची जाति वाले लड़के के साथ किया जाता है। दूसरे अर्थ अनुसार उच्च जाति का पुरुष, निम्न जाति की स्त्री से जब विवाह करवाता था तो उसे अनुलोम विवाह का नाम दिया जाता था। इस प्रकार के विवाह को कुलीन विवाह का नाम भी दिया जाता है। इस प्रकार के विवाह में ब्राह्मण लड़की, केवल ब्राह्मण लड़के से ही विवाह करवा सकती है। क्षत्रिय लड़की क्षत्रिय लड़के या ब्राह्मण लड़के से विवाह करवा सकती है। वैश्य लड़की वैश्य लड़के या क्षत्रिय लड़के या ब्राह्मण लड़के से विवाह करवा सकती है।

इसके अतिरिक्त ब्राह्मण लड़का किसी भी जाति की लड़की से विवाह करवा सकता है। क्षत्रिय लड़का ब्राह्मण लड़की के अलावा बाकी किसी भी लड़की से विवाह करवा सकता है। वैश्य लड़का ब्राह्मण व क्षत्रिय लड़की के अलावा किसी भी लड़की से व निम्न जाति का लड़का केवल निम्न जाति की लड़की से ही विवाह करवा सकता है। जब अन्तः विवाह के द्वारा समाज में समस्याएं पैदा होनी आरम्भ हो गईं तो अनुलोम विवाह को प्रोत्साहन मिला।

कुलीन विवाह भी अनुलोम विवाह की भान्ति थे। इस नियम अनुसार एक ही जाति का व्यक्ति, उसी जाति या निम्न जाति की लड़की से विवाह करवा सकता था। कुलीन विवाह के पाए जाने के कुछ कारण भी थे। एक तो यह कि प्रत्येक कोई अपनी लड़की का विवाह उच्च जाति के लड़के से करना चाहता था। उच्च जाति में लड़कियों की कमी होनी शुरू हो जाती थी। इस कारण कई लड़कों को बिना विवाह के ही ज़िन्दगी गुजारनी पड़ जाती थी। लड़की की कीमत बढ़ जाती थी। कई बार उच्च जाति का वर ढूंढ़ते समय उन्हें बड़ी उम्र के व्यक्ति से अपनी लड़की का विवाह करना पड़ जाता था। बहु विवाह की प्रथा भी इसी नियम के कारण ही पाई जाती थी। इसके अतिरिक्त अनैतिकता में भी बढ़ोत्तरी हुई व औरत की स्थिति में काफ़ी गिरावट आई। इस प्रकार कुलीन विवाह की प्रथा ने भी हमारे भारतीय समाज में कई सामाजिक बुराइयां पैदा की जिन्हें समाप्त करने के लिए सरकार को कई कानून बनाने पड़े।

प्रतिलोम विवाह (Hypogamy)-अन्तर्जातीय विवाह का दूसरा नियम प्रतिलोम है। यह नियम अनुलोम के बिल्कुल विपरीत है। इस नियम के अनुसार निम्न जाति का लड़का उच्च जाति की लड़की से विवाह करवाता था। जैसे ब्राह्मण जाति की लड़की क्षत्रिय जाति के लड़के से विवाह करवाए या फिर क्षत्रिय जाति का लड़का ब्राह्मण लड़की से। प्रतिलोम विवाह के नियम में यदि निम्न जाति का लड़का उच्च जाति की लड़की से विवाह करवाता था तो उससे पैदा सन्तान किसी भी जाति में नहीं रखी जाती थी व उसको चाण्डाल कहा जाता था।

अन्तर्जातीय विवाह के दोनों रूप हमारे भारतीय समाज में विकसित रहे हैं। वर्तमान समाज में अन्तर्जातीय विवाह की पाबन्दी नहीं है। जाति प्रथा का भेद-भाव भी हमारे भारतीय समाज में समाप्त हो गया है। अन्तर्जातीय विवाह की मदद से हम भारतीय समाज में पाई जा रही कई सामाजिक बुराइयों का खात्मा कर सकेंगे।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 7 विवाह, परिवार तथा नातेदारी

प्रश्न 5.
परिवार किसे कहते हैं ? परिवार की मूलभूत विशेषताएं कौन-सी हैं ?
उत्तर-
यदि हम मानवीय समाज का अध्ययन करें तो हमें पता चलेगा कि सबसे पहला समूह परिवार ही है। प्राचीन समय में तो श्रम-विभाजन परिवारों के आधार पर ही होता था। हमें कोई भी समाज ऐसा नहीं मिलेगा जहां कि परिवार नाम की संस्था न हो। आदिम समाज से लेकर आधुनिक समाज तक प्रत्येक स्थान पर यह संस्था मौजूद रही है। चाहे और बहुत सारी संस्थाएं विकसित हैं या समाप्त हो गईं पर परिवार की संस्था वहीं पर ही खड़ी है। चाहे आजकल के विकसित समाज में परिवार का महत्त्व कुछ कम हो गया है, परिवार के बहुत सारे कार्य अन्य संस्थाओं ने ले लिए हैं, परन्तु आजकल भी मानव की अधिकतर क्रियाएं परिवार को केन्द्र मानकर ही होती हैं। मनोवैज्ञानिकों ने यह सिद्ध कर दिया है कि जिस तरह का परिवार बच्चे को प्राप्त होता है, उसी प्रकार का चरित्र बच्चे का बनता है व वह उसी अनुसार आगे चलकर कार्य करता है। सामाजिक विघटन व समाज की बहुत सारी समस्याओं के कारण ही परिवार में विघटन होता है।

परिवार सामाजिक संगठन के लिए एक महत्त्वपूर्ण समूह है, अंग्रेजी शब्द ‘Family’ रोमन भाषा के शब्द ‘Famulous’ से लिया गया है, जिसका अर्थ है ‘नौकर’। रोमन कानून के अनुसार इस शब्द का अर्थ ऐसे समूह से है, जिसमें नौकर, दास या मालिक वह सभी सदस्य शामिल होते हैं जो रक्त सम्बन्धों या विवाह सम्बन्धों पर आधारित होते हैं। यह एक ऐसा समूह है, जो आदमी व औरत की लैंगिक इच्छाओं की पूर्ति के लिए समाज द्वारा बनाया जाता है। बच्चा परिवार में पल कर बड़ा होता है व समाज का एक नागरिक बनता है।

साधारण शब्दों में परिवार का अर्थ पति-पत्नी व उनके बच्चों से है, पर समाज शास्त्र में इसका अर्थ केवल लोगों का संग्रह ही नहीं बल्कि उनके आपसी सम्बन्धों की व्यवस्था है व इसका मुख्य उद्देश्य बच्चे पैदा करना, उनका पालन-पोषण करना, समाजीकरण करना व लैंगिक इच्छाओं की पूर्ति करना है।

परिभाषाएं (Definitions) –
1. मैकाइवर (Maclver) के अनुसार, “परिवार बच्चों की उत्पत्ति व पालन-पोषण की व्यवस्था करने के लिए काफ़ी रूप से निश्चित व स्थायी यौन सम्बन्धों से परिभाषित एक समूह है।”

2. जी० पी० मर्डोक (G. P. Murdock) के अनुसार, “परिवार एक ऐसा समूह है, जिसकी विशेषताएं साझी रिहायश, आर्थिक सहयोग व सन्तान की उत्पत्ति या प्रजनन हैं। इसमें दोनों लिंगों के बालिग शामिल होते हैं, जिनमें कम-से-कम दो में समाज द्वारा स्वीकृत लैंगिक सम्बन्ध होता है व लैंगिक सम्बन्धों में बने इन बालिगों में अपने या स्वीकृत एक या अधिक बच्चे होते हैं।”

3. एच० एम० जॉनसन (H. M. Johnson) के अनुसार, “परिवार रक्त, विवाह या गोद लेने के आधार पर सम्बद्ध दो या दो से अधिक व्यक्तियों का समूह है। इन सभी व्यक्तियों को एक परिवार का सदस्य समझा जाता है।”

इस प्रकार परिवार वह समूह है जिसमें आदमी व औरत के लैंगिक सम्बन्धों को समाज के द्वारा स्वीकृत किया जाता है। यह एक सर्व व्यापक समूह है। इसके अर्थ के बारे में अन्त में हम यह कह सकते हैं कि परिवार एक जैविक इकाई है जिसको लैंगिक सम्बन्धों के लिए एक संस्था के तौर पर स्वीकृत किया जाता है। इसमें सदस्य एक दूसरे से निजी रूप से प्रजनन की प्रक्रिया से जुड़े होते हैं। संक्षेप में हम यह कह सकते हैं कि परिवार में मातापिता व बच्चों को शामिल किया जाता है, जो प्रत्येक समाज में विकसित हैं।

विशेषताएं (Characteristics)-

1. सर्वव्यापकता (Universality)-परिवार एक सामाजिक समूह है। यह मानवीय इतिहास में पहली संस्था के रूप में जाना जाता है क्योंकि प्रत्येक समय पर प्रत्येक समाज में यह किसी-न-किसी किस्म में विकसित रहा है। समाज का प्रत्येक व्यक्ति किसी-न-किसी परिवार का सदस्य ज़रूर होता है।

2. भावात्मक आधार (Emotional Basis)-परिवार मानवीय समाज की नींव होता है जो व्यक्ति की मूल प्रवृत्तियों पर आधारित होती है जैसे-सन्तान उत्पत्ति, पति-पत्नी सम्बन्ध, वंश परम्परा कायम रखना, जायदाद की सुरक्षा आदि जैसी भावनाएं भी इसमें सम्मिलित होती हैं व इसके साथ ही सहयोग, प्यार, त्याग इत्यादि की भावना का भी विकास होता है जो समाज की प्रगति व विकास के लिए भी आवश्यक होता है।

3. रचनात्मक प्रभाव (Formative Influence) सामाजिक संरचना में परिवार को एक महत्त्वपूर्ण इकाई माना जाता है। परिवार व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास के लिए भी रचनात्मक प्रभाव डालता है। परिवार ही पहली ऐसी संस्था होती है जिसमें रहकर बच्चा सामाजिक व्यवहार के बारे में जानकारी लेता है। व्यक्ति का बहुपक्षीय विकास परिवार की संस्था में ही हो सकता है।

4. लघु आकार (Small Size)-परिवार का आकार सीमित होता है क्योंकि जिन्होंने जन्म लिया होता है या जिनमें विवाह के सम्बन्ध होते हैं उसे ही परिवार में शामिल किया जाता है। प्राचीन समय में जब कृषि प्रधान समाज होता था तो संयुक्त परिवार पाया जाता था जिसमें माता-पिता, दादा-दादी, चाचा-चाची, ताया-ताई इकट्ठे मिलकर रहते थे। जैसे-जैसे समाज में शिक्षा का विकास हुआ, स्त्रियों का नौकरी करना आरम्भ हुआ इत्यादि के साथ मूल परिवार अस्तित्व में आया जिसमें माता-पिता व बच्चे ही केवल शामिल किए जाते हैं। छोटे आकार का अर्थ होता है कि परिवार में व्यक्ति की सदस्यता केवल जन्म पर आधारित होती है व इसमें रक्त सम्बन्ध भी पाए जाते हैं।

5. सामाजिक संरचना में केन्द्रीय स्थान (Central position in the Social Structure)-परिवार पर हमारा सारा समाज आधारित होता है व अलग-अलग सभाओं का निर्माण भी परिवार से ही होता है। इसी कारण सामाजिक संरचना में इसको केन्द्रीय स्थान प्राप्त होता है। आरम्भिक समाज में संगठन परिवार पर ही आधारित होता था। सामाजिक प्रगति भी इस पर आधारित होती थी। चाहे आजकल के समय में अन्य संस्थाओं ने परिवार के कई काम ले लिए हैं परन्तु फिर भी कुछ काम समाज के लिए परिवार जो कर सकता है, वह दूसरी संस्थाएं नहीं कर सकती।

6. सदस्यों की ज़िम्मेदारी (Responsibility of the members)—परिवार का प्रत्येक सदस्य एक-दूसरे से जुड़ा होता है व परिवार के सभी सदस्य एक-दूसरे के प्रति अपनी ज़िम्मेदारियों को भी संभालते हैं। इसमें किसी भी सदस्य में स्वार्थ की भावना नहीं होती बल्कि वह जो कुछ भी करता है अपने परिवार के विकास के लिए ही करता है। यहां तक कि उसमें त्याग की भावना का विकास भी परिवार में रहकर ही होता है। जिस तरह के निजी सम्बन्ध परिवार के सदस्यों में पाए जाते हैं उस प्रकार के सम्बन्ध किसी दूसरी संस्था में नहीं पाए जाते। परिवार में यदि कोई भी व्यक्ति बीमार पड़ जाता है तो दूसरे सदस्य अपना फर्ज़ समझने लगते हैं कि उस व्यक्ति की सेवा करें। इस प्रकार उनमें सहयोग की भावना का भी विकास हो जाता है।

7. यौन सम्बन्ध (Sexual relation)-परिवार के द्वारा ही आदमी व औरत में यौन सम्बन्धों की स्थापना होती है क्योंकि समाज के द्वारा स्वीकृति भी विवाह के पश्चात् ही परिवार का निर्माण करने की होती है। आरम्भिक समाज में यौन सम्बन्धों की उत्पत्ति से सम्बन्धित किसी प्रकार के कोई नियम नहीं होते थे तो परिवार का वास्तविक रूप भी नहीं था। हमारे सामने समाज भी विघटन की दिशा की ओर अग्रसर था।

प्रश्न 6.
परिवार के विभिन्न प्रकारों को विस्तार से समझाइये ।
उत्तर-
अलग-अलग समाजों में अलग-अलग आधारों पर कई प्रकार के परिवार पाए जाते हैं जिनका वर्णन इस प्रकार है-

(A) सत्ता के आधार पर परिवार के प्रकार (Types of Family on the Basis of Authority)-सत्ता के आधार पर परिवार के निम्नलिखित प्रकार हैं

  1. पित प्रधान परिवार (Patriarchal Family)
  2. मातृ प्रधान परिवार (Matriarchal Family)

1. पितृ प्रधान परिवार (Patriarchal Family)-इस प्रकार के परिवार की किस्म में सम्पूर्ण शक्ति आदमी के हाथ में होती है। परिवार का मुखिया भी आदमी को बनाया जाता है। वंश परम्परा भी पिता पर ही निर्भर होती है। विवाह के पश्चात् औरत, आदमी के घर रहने लग जाती है व जायदाद भी केवल लडकों के बीच बांटी जाती है। घर में सबसे बड़े लड़के को सबसे अधिक आदर व सम्मान मिलता है। उसकी घर में इज्ज़त पिता के बराबर ही होती है। घर के हर तरह के ज़रूरी मामलों में भी आदमियों की ही दखलअंदाजी को ठीक समझा जाता है। यदि हम प्राचीन हिन्दू समाज की तरफ देखें तो भी वैदिक ग्रन्थों के अनुसार आदमी को ही औरत के लिए परमात्मा समझा जाता था। पिता के मरने के पश्चात् उसके सारे अधिकार उनके पुत्र को मिल जाते हैं।

2. मातृ प्रधान परिवार (Matriarchal Family)-इस प्रकार के परिवार में स्त्री जाति की ही समाज में प्रधानता होती थी। घर की सारी जायदाद की मलकीयत भी उसके हाथ में होती थी। परिवार की स्त्रियों का ही सम्पत्ति पर अधिकार होता है। विवाह के पश्चात् लड़का-लड़की के घर रहने चला जाता था। पुरोहितों का काम भी स्त्रियां ही करती थीं। परिवार की जायदाद का विभाजन भी स्त्रियों के बीच ही होता था। स्त्री की वंश- परम्परा ही आगे चलती थी। मैकाइवर ने मात प्रधान परिवार की कुछ विशेषताओं का वर्णन किया जो निम्नानुसार है –

  • इन बच्चों का वंश परिवार में मां के वंश के साथ निर्धारित होता है। इसलिए बच्चे पिता के कुल के नहीं बल्कि मां के कुल से सम्बन्धित समझे जाते हैं।
  • स्त्री व उसकी मां, भाई-बहन व बहनों के बच्चे शामिल होते हैं।
  • इन परिवारों के बीच पुत्र को पिता से कोई सम्पत्ति नहीं प्राप्त होती क्योंकि सम्पत्ति सम्बन्धी अधिकार माता द्वारा निश्चित किए जाते हैं।
  • सामाजिक सम्मान के पद पुत्र की बजाए भांजे को मिलते हैं।
  • इन परिवारों का अर्थ यह नहीं कि समाज में सभी अधिकार औरतों के होते हैं, आदमियों को कोई अधिकार प्राप्त नहीं होते। कई क्षेत्रों में पुरुषों को कुछ अधिकार प्राप्त होते हैं, परन्तु मिलते औरतों के द्वारा ही हैं।

(B) विवाह के आधार पर परिवार के प्रकार (Types of Family On the Basis of Marriage)विवाह के आधार पर परिवार के निम्नलिखित प्रकार हैं

  1. एक विवाही परिवार (Monogamous Family)
  2. बहु-पत्नी विवाह (Polygamous Family)
  3. बहु-पति परिवार (Polyandrous Family)

1. एक विवाही परिवार (Monogamous Family)-जब एक पुरुष एक स्त्री से या एक स्त्री एक पुरुष से विवाह करवाती है तो इस विवाह के आधार पर जो परिवार पाया जाता है उसको एक विवाह परिवार का नाम दिया जाता है। आधुनिक समय में इस परिवार को अधिक महत्ता प्राप्त है। इस परिवार की किस्म में सदस्यों का रहन-सहन का दर्जा ऊंचा होता है। बच्चों की परवरिश बहुत अच्छे ढंग से होती है। पुरुष व स्त्री के सम्बन्धों में भी बराबरी पाई जाती है। इसमें बच्चों की संख्या भी बहुत कम होती है। जिस कारण परिवार का आकार छोटा होता है।

2. बहु-पत्नी परिवार (Polygamous Family)-परिवार की इस प्रकार में एक पुरुष कई स्त्रियों से विवाह करवाता है। आरम्भ के राजा-महाराजाओं के समय इस प्रकार के विवाह द्वारा पाए गए परिवार को महत्ता प्राप्त थी। राजा-महाराजा कितने-कितने विवाह करवा लेते थे व पैदा हुए बच्चों का सम्मान भी काफ़ी होता था। फर्क कई बार यह होता था कि पहली पत्नी से पैदा हुए बच्चे को राजगद्दी दी जाती थी। आधुनिक समय में भारत में कानून द्वारा इस प्रकार के विवाह की पाबन्दी लगा दी है।

3. बहु-पति परिवार (Polyandrous Family)-इस प्रकार के परिवार में एक स्त्री के कितने ही पति होते थे। इसमें दो प्रकार पाए जाते हैं। इस प्रकार के परिवार को भ्रातृ विवाही परिवार का नाम दिया जाता है व दूसरे प्रकार के परिवार में स्त्री के सभी पतियों का भाई होना ज़रूरी नहीं होता। इस कारण इसको गैर भ्रातृ विवाही परिवार का नाम दिया जाता है। इस प्रकार के परिवार में स्त्री बारी-बारी सभी पतियों के पास रहती है। कुछ कबायली समाज में अभी भी इस प्रकार के विवाह की प्रथा के आधार पर परिवार पाए जाते हैं। उदाहरण के तौर पर देहरादून के ‘ख़स’ कबीले व आस्ट्रेलिया के कुछ कबीलों में भी इस प्रकार के परिवार पाए जाते हैं।

(C) वंश के आधार पर परिवार के प्रकार (Types of Family On the Basis of Nomenclature)-

  1. पितृ वंशी परिवार (Patrilineal)
  2. मातृ वंशी परिवार (Matrilineal)
  3. दो वंश-नामी परिवार (Bilinear)
  4. अरेखकी परिवार (Nonunilineal)

पितृ वंशी परिवार में व्यक्ति का वंश अपने पिता वाला होता है। इस प्रकार का परिवार आजकल भी पाया जा रहा है। मात वंशी परिवार में मां के वंश नाम ही बच्चों को प्राप्त होता है। दो वंश नामी परिवार में माता व पिता दोनों का वंश साथ-साथ चलता है व अरेखकी परिवार में वंश के रिश्तेदार जो माता द्वारा या पिता द्वारा होते हों, इसके आधार पर पाया जाता है।

(D) रहने के स्थान के आधार पर परिवार के प्रकार (Types of Family On the Basis of Residence)—इस आधार पर परिवार के तीन प्रकार हैं-

  1. पितृ स्थानीय परिवार (Patrilocal Family)
  2. मातृ स्थानीय परिवार (Matrilocal Family)
  3. नव-स्थानीय परिवार (Neolocal Family)

पितृ स्थानीय परिवार में विवाह के बाद लड़की पति के घर जाकर रहने लग जाती है व मातृ स्थानीय परिवार में पति विवाह के पश्चात् पत्नी के घर रहने लग जाता है व नव स्थानीय परिवार में विवाह के पश्चात् पति-पत्नी दोनों अपना अलग किस्म का घर बनाकर रहने लग जाते हैं।

(E) रिश्तेदारी के आधार पर परिवार के प्रकार (Types of Family On the Basis of Relatives)- लिंटन ने इस प्रकार के परिवारों को दो भागों में बांटा है-

  1. रक्त सम्बन्धी परिवार (Consanguine family)
  2. विवाह सम्बन्धी परिवार (Conjugal family)

रक्त सम्बन्धी परिवार में केवल लिंग सम्बन्ध नहीं बल्कि दूसरे ही शामिल होते हैं। इस प्रकार के परिवार में सम्बन्ध व्यक्ति के जन्म पर आधारित होते हैं। यह तलाक होने पर भी टूटता नहीं। विवाह सम्बन्धी परिवार में पतिपत्नी व उनके अविवाहित बच्चे पाए जाते हैं।
इस प्रकार का परिवार पति-पत्नी के तलाक होने के पश्चात् टूट जाता है।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 7 विवाह, परिवार तथा नातेदारी

प्रश्न 7.
समकालीन समय में परिवार संस्था में होने वाले परिवर्तनों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
आधुनिक समय में परिवार नामक संस्था में हर पक्ष से परिवर्तन आ गए हैं क्योंकि जैसे-जैसे हमारे सामाजिक ढांचे में परिवर्तन आ रहे हैं, उसी तरह से पारिवारिक व्यवस्था भी बदल रही है। परिवार की बनावट और कामों पर नए हालातों का काफ़ी प्रभाव पड़ा है। अब हम देखेंगे कि परिवार के ढांचे और कामों में किस तरह के परिवर्तन आए हैं-

1. स्थिति में परिवर्तन-पुराने समय में लडकी के जन्म को शाप माना जाता था। उसको शिक्षा भी नहीं दी जाती थी। धीरे-धीरे समाज में जैसे-जैसे परिवर्तन आए, औरत ने भी शिक्षा लेनी प्रारम्भ कर दी। पहले विवाह के बाद औरत सिर्फ़ पति पर ही निर्भर होती थी पर आजकल के समय में काफ़ी औरतें आर्थिक पक्ष से आज़ाद हैं और वह पति पर कम निर्भर हैं। कई स्थानों पर तो पत्नी की तनख्वाह पति से ज़्यादा है। इन हालातों में पारिवारिक विघटन की स्थिति पैदा होने का खतरा हो जाता है। इसके अलावा पति-पत्नी की स्थिति आजकल बराबर होती है जिसके कारण दोनों का अहं एक-दूसरे से नीचा नहीं होता। इस कारण दोनों में लड़ाई-झगड़ा शुरू हो जाता है और इससे बच्चे भी प्रभावित होते हैं। इस तरह ऐसे कई और कारण हैं जिनके कारण परिवार के टूटने के खतरे काफ़ी बढ़ जाते हैं और बच्चे तथा परिवार दोनों मुश्किल में आ जाते हैं।

शैक्षिक कार्यों में परिवर्तन-समाज में परिवर्तन आने के साथ इसकी सारी संस्थाओं में भी परिवर्तन आ रहे हैं। परिवार जो भी काम पहले अपने सदस्यों के लिए करता था। उनमें भी ख़ासा परिवर्तन आया है। प्राचीन समाजों में बच्चा शिक्षा परिवार में ही लेता था और शिक्षा भी परिवार के परम्परागत काम से सम्बन्धित होती थी। ऐसा इसलिए होता था क्योंकि संयुक्त परिवार प्रणाली होती थी और जो काम पिता करता था वही काम पुत्र भी करता था और पिता के अधीन पुत्र भी उस काम में माहिर हो जाता था। धीरे-धीरे आधुनिकता के अधीन बच्चा पढ़ाई करने के लिए शिक्षण संस्थाओं में जाने लग गया और इसके कारण वह अब परिवार के परम्परागत कामों से दूर होकर कोई अन्य कार्य अपनाने लग गया है। इस तरह परिवार का शिक्षा का परम्परागत काम उससे कट कर शिक्षण संस्थाओं के पास चला गया है।

2. आर्थिक कार्यों में परिवर्तन-पहले समय में परिवार आर्थिक क्रियाओं का केन्द्र होता था। रोटी कमाने का सारा काम परिवार ही करता था जैसे-आटा पीसने का काम, कपड़ा बनाने का काम, आदि। इस तरह जीने के सारे साधन परिवार में ही उपलब्ध थे। पर जैसे-जैसे औद्योगीकरण शुरू हुआ और आगे बढ़ा, उसके साथ-साथ परिवार के यह सारे काम बड़े-बड़े उद्योगों ने ले लिए हैं, जैसे कपड़ा बनाने का काम कपड़े की मिलें कर रही हैं, आटा चक्की पर पीसा जाता है। इस तरह परिवार के आर्थिक कार्य कारखानों में चले गए हैं। इस तरह आर्थिक उत्पादन की ज़िम्मेदारी परिवार से दूसरी संस्थाओं ने ले ली है।

3. धार्मिक कार्यों में परिवर्तन-पुराने समय में परिवार का एक मुख्य काम परिवार के सदस्यों को धार्मिक शिक्षा देना होता है। परिवार में ही बच्चे को नैतिकता और धार्मिकता के पाठ पढ़ाए जाते हैं। पर जैसे-जैसे नई वैज्ञानिक खोजें और आविष्कार सामने आएं, वैसे-वैसे लोगों का दृष्टिकोण बदलकर धार्मिक से वैज्ञानिक हो गया। पहले ज़माने में धर्म की बहुत महत्ता थी, परन्तु विज्ञान ने धार्मिक क्रियाओं की महत्ता कम कर दी है। इस प्रकार परिवार के धार्मिक काम भी अब पहले से कम हो गए हैं।

4. सामाजिक कार्यों में परिवर्तन-परिवार के सामाजिक कार्यों में भी काफ़ी परिवर्तन आया है। पराने ज़माने में पत्नी अपने पति को परमेश्वर समझती थी। पति का यह फर्ज़ होता था कि वह अपनी पत्नी को खुश रखे। इसके अलावा परिवार अपने सदस्यों पर सामाजिक नियन्त्रण रखने का भी काम करता था, पर अब सामाजिक नियन्त्रण का कार्य अन्य एजेंसियां, जैसे पुलिस, सेना, कचहरी आदि, के पास चला गया है। इसके अलावा बच्चों के पालनपोषण का काम भी परिवार का होता था। बच्चा घर में ही पलता था और बड़ा हो जाता था और घर के सारे सदस्य उसको प्यार करते थे। पर धीरे-धीरे आधुनिकीकरण के कारण औरतों ने घर से निकलकर बाहर काम करना शुरू कर दिया और बच्चों की परवरिश के लिए क्रैच खुल गए जहां बच्चों को दूसरी औरतों द्वारा पाला जाने लग गया। इस तरह परिवार के इस काम में भी कमी आ गई है।

5. पारिवारिक एकता में कमी-पुराने जमाने में विस्तृत परिवार हुआ करते थे, पर आजकल परिवारों में यह एकता और विस्तृत परिवार खत्म हो गए हैं। हर किसी के अपने-अपने आदर्श हैं। कोई एक-दूसरे की दखलअंदाजी पसंद नहीं करता। इस तरह वह इकट्ठे रहते हैं, खाते-पीते हैं पर एक-दूसरे के साथ कोई वास्ता नहीं रखते। उनमें एकता का अभाव होता है।

प्रश्न 8.
नातेदारी को परिभाषित कीजिए तथा इसके प्रकारों को विस्तार से समझाइये।
उत्तर-
नातेदारी का अर्थ (Meaning of Kinship)-Kin शब्द अंग्रेजी भाषा का शब्द है, जोकि शब्द Cynn से निकला है जिसका अर्थ केवल ‘रिश्तेदार’ होता है और समाज शास्त्रियों और मानव वैज्ञानियों ने अपने अध्ययन के वक्त इस ‘रिश्तेदार’ शब्द को मुख्य रखा है। नातेदारी शब्द में रिश्तेदार होते हैं ; जैसे रक्त सम्बन्धी, सगे और रिश्तेदार।

आम शब्दों में समाज शास्त्र में नातेदारी व्यवस्था से मतलब उन नियमों के संकूल से है जो वंश क्रम, उत्तराधिकार, विरासत, विवाह, विवाह के बाहर लैंगिक सम्बन्धों, निवास आदि का नियमन करते हुए समाज विशेष में मनुष्य या उसके समूह की स्थिति उसके रक्त के सम्बन्धों या विवाहिक सम्बन्धों के पक्ष से निर्धारित करते हों। इसका यह अर्थ हुआ कि असली या रक्त और विवाह द्वारा बनाए और विकसित सामाजिक सम्बन्धों की व्यवस्था नातेदारी व्यवस्था कहलाती है। इसका साफ़ एवं स्पष्ट अर्थ यह हुआ कि वह सम्बन्ध जो खून द्वारा बनाए होते हैं और विवाह द्वारा बन जाते हैं वह सभी नातेदारी व्यवस्था का हिस्सा होते हैं। इसमें वह सारे रिश्तेदार शामिल होते हैं जोकि खून और विवाह द्वारा बनाए जाते हैं। उदाहरण के लिए माता-पिता, दादा-दादी, चाचा-चाची, मामा-मामी, ताया-ताई, भाई-बहन, सास-ससुर, साला-साली आदि। यह सभी हमारे रिश्तेदार होते हैं और नातेदारी व्यवस्था का हिस्सा होते हैं।

परिभाषाएं (Definitions) –

  1. लूसी मेयर (Lucy Mayor) के अनुसार, “बंधुत्व या नातेदारी में, सामाजिक सम्बन्धों को जैविक शब्दों में व्यक्त किया जाता है।”
  2. चार्ल्स विनिक (Charles Winick) के अनुसार, “नातेदारी व्यवस्था में वह सम्बन्ध शामिल किए जाते हैं जो कल्पित या वास्तविक वंश परम्परागत बन्धनों पर आधारित और समाज द्वारा प्रभावित होते हैं।”
  3. लैवी टास (Levi Strauss) के अनुसार, “नातेदारी व्यवस्था एक निरंकुश व्यवस्था है।”
  4. रैडक्लिफ ब्राऊन (Redcliff Brown) के अनुसार, “परिवार और विवाह के अस्तित्व से पैदा हुए या इसके परिणामस्वरूप पैदा हुए सारे सम्बन्ध नातेदारी व्यवस्था में होते हैं।”
  5. डॉ० मजूमदार (Dr. Majumdar) के अनुसार, “सारे समाजों में मनुष्य भिन्न प्रकार के बन्धनों में समूह में बंधे हुए हैं। इन बन्धनों में सबसे सर्वव्यापक और सबसे ज़्यादा मौलिक वह बन्धन है जोकि सन्तान पैदा करने पर आधारित है जोकि आन्तरिक मानव प्रेरणा है। यही नातेदारी कहलाती है।”

उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर हम कह सकते हैं कि दो व्यक्ति रिश्तेदार होते हैं यदि उनके पूर्वज एक ही हों तो वह एक व्यक्ति की संतान होते हैं। नातेदारी व्यवस्था रिश्तेदारों की व्यवस्था है जोकि रक्त सम्बन्धों या विवाह सम्बन्धों पर आधारित होता है। नातेदारी व्यवस्था सांस्कृतिक है और इसकी बनावट सारे संसार में अलगअलग है। नातेदारी व्यवस्था में उन सभी असली या नकली रक्त-सम्बन्धों को शामिल किया जाता है जो समाज द्वारा मान्यता प्राप्त होते हैं। एक नाजायज़ बच्चे को नातेदारी में ऊंचा स्थान प्राप्त नहीं हो सकता, पर एक गोद लिए बच्चे को नातेदारी व्यवस्था में ऊंचा स्थान प्राप्त हो जाता है। यह एक विशेष नातेदारी समूह की व्यवस्था है जिसमें सारे रिश्तेदार शामिल होते हैं और जो एक-दूसरे के प्रति अपनी ज़िम्मेदारियां समझते हैं। इस तरह समाज द्वारा मान्यता प्राप्त असली या नकली रक्त के और विवाह द्वारा स्थापित और गहरे सामाजिक सम्बन्धों की व्यवस्था को नातेदारी व्यवस्था कहा जाता है।

नातेदारी के प्रकार (Types of Kinship)-व्यक्ति की नज़दीकी और दूरी के आधार पर नातेदारी को अलग-अलग श्रेणियों में बांटा गया है। नातेदारी में सभी रिश्तेदारों में एक जैसे सम्बन्ध नहीं पाए जाते हैं। जो सम्बन्ध हमारे अपने माता-पिता, पति-पत्नी, बच्चों के साथ होंगे वह हमारे अपने चाचे-भतीजे, मामा-मामी के साथ नहीं हो सकते क्योंकि हमारा अपने माता-पिता, पति-पत्नी के साथ जो सम्बन्ध है वह चाचा, भतीजे, मामा आदि के साथ नहीं हो सकता। उनमें बहुत ज्यादा गहरे सम्बन्ध नहीं पाए जाते। इस नज़दीकी और दूरी के आधार पर नातेदारी को तीन श्रेणियों में बांटा गया है जिनका वर्णन इस प्रकार है-

1. प्राथमिक रिश्तेदार (Primary relatives)-पहली श्रेणी की नातेदारी में प्राथमिक रिश्तेदार जैसे, पतिपत्नी, पिता-पुत्र, माता-पुत्र, माता-पुत्री, पिता-पुत्री, बहन-बहन, भाई-बहन, बहन-भाई, भाई-भाई आदि आते हैं। मरडोक के अनुसार, यह आठ प्रकार के होते हैं। यह प्राथमिक इसलिए होते हैं क्योंकि इनमें सम्बन्ध प्रत्यक्ष और गहरे होते हैं।

2. गौण सम्बन्धी (Secondary relations)-हमारे कुछ रिश्तेदार प्राथमिक होते हैं जैसे, माता, पिता, बहन, भाई आदि। इनके साथ हमारा प्रत्यक्ष रिश्ता होता है। पर कुछ रिश्तेदार ऐसे होते हैं जिनके साथ हमारा प्रत्यक्ष रिश्ता नहीं होता बल्कि, हम उनके साथ प्राथमिक रिश्तेदार के माध्यम के साथ जुड़े होते हैं जैसे-माता का भाई, पिता का भाई, माता की बहन, पिता की बहन, बहन का पति, भाई की पत्नी आदि। इन सब के साथ हमारा गहरा रिश्ता नहीं होता बल्कि यह गौण सम्बन्धी होते हैं। मर्डोक के अनुसार, यह सम्बन्ध 33 प्रकार के होते हैं।

3. तीसरे दर्जे के सम्बन्धी (Tertiary Kins) सबसे पहले रिश्तेदार प्राथमिक होते हैं और फिर गौण सम्बन्धी अर्थात् प्राथमिक सम्बन्धों की मदद के साथ रिश्ते बनते हैं। तीसरी प्रकार के सम्बन्धी वह होते हैं जो गौण सम्बन्धियों के प्राथमिक रिश्तेदार हैं। जैसे पिता के भाई का पुत्र, माता के भाई की पत्नी-(मामी), पत्नी के भाई की पत्नी अर्थात् साले की पत्नी, माता की बहन का पति अर्थात् मौसा जी इत्यादि। मर्डोक ने इनकी संख्या 151 दी है।

इस प्रकार यह तीन श्रेणियों की नातेदारी होती है पर यदि हम चाहें तो हम चौथी और पांचवीं श्रेणी के बारे में ज्ञान सकते हैं।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 7 विवाह, परिवार तथा नातेदारी

प्रश्न 9.
सामाजिक जीवन में नातेदारी के महत्त्व को समझाइये।
उत्तर-
नातेदारी व्यवस्था का सामाजिक संरचना में एक विशेष स्थान है। इसके साथ ही समाज की बनावट बनती है। यदि नातेदारी व्यवस्था ही न हो तो समाज एक संगठन की तरह नहीं बन सकेगा और सही तरीके से काम नहीं कर सकेगा। इसलिए इसका महत्त्व काफ़ी बढ़ गया है जिसका वर्णन अग्रलिखित है

1. नातेदारी सम्बन्धों के माध्यम से ही कबाइली और खेती वाले समाजों के बीच अधिकार और परिवार एवं विवाह, उत्पादन और उपभोग की पद्धति और राजनीतिक सत्ता के अधिकारों का निर्धारण होता है। शहरी समाजों में भी विवाह और पारिवारिक उत्सवों के समय नातेदारी सम्बन्धों का महत्त्व देखने को मिलता है।

2. नातेदारी, परिवार और विवाह में गहरा सम्बन्ध है। नातेदारी के माध्यम से ही इस बात का निर्धारण होता है कि कौन किसके साथ विवाह कर सकता है और कौन-कौन से सम्बन्धों की शब्दावली भी है। नातेदारी से ही वंश सम्बन्ध, गोत्र और खानदान का निर्धारण होता है और वंश, गोत्र और खानदान में बहिर्विवाह का सिद्धान्त पाया जाता है।

3. पारिवारिक जीवन, वंश सम्बन्ध, गोत्र और खानदान के सदस्यों के बीच नातेदारी के आधार पर ही जन्म से लेकर मृत्यु तक के संस्कारों एवं कर्म-काण्डों में किसका क्या अधिकार और ज़िम्मेदारी है, इसका निर्धारण होता है, जैसे ; विवाह के संस्कार और इसके साथ जुड़े कर्म-काण्डों में बड़े भाई, मां और बुआ का विशेष महत्त्व है। मृत्यु के बाद आग कौन देगा, इसका सम्बन्ध भी नातेदारी पर निर्भर करता है। जिन लोगों को आग देने का अधिकार होता है, नातेदारी उनके उत्तराधिकार को निश्चित करती है। सामाजिक संगठन (जन्म, विवाह, मौत) और सामूहिक उत्सवों के मौकों और नातेदारी या रिश्तेदारों को बुलाया जाना जरूरी होता है, ऐसा करने के साथ सम्बन्धों में और मज़बूती बढ़ती है।

4. नातेदारी व्यवस्था के साथ समाज को मज़बूती मिलती है। नातेदारी व्यवस्था सामाजिक संगठन को बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यदि नातेदारी व्यवस्था ही न हो तो सामाजिक संगठन टूट जाएगा और समाज में अव्यवस्था फैल जाएगी।

5. नातेदारी व्यवस्था लैंगिक सम्बन्धों को निश्चित करती है। नातेदारी व्यवस्था में लैंगिक सम्बन्ध बनाने, हमारे समाज में वर्जित है। यदि नातेदारी व्यवस्था न हो तो समाज में अव्यवस्था फैल जाएगी और नाजायज़ लैंगिक सम्बन्ध और अवैध बच्चों की भरमार होगी जिसके साथ समाज छिन्न-भिन्न हो जाएगा।

6. नातेदारी व्यवस्था विवाह निर्धारण करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। अपने गोत्र में विवाह नहीं करवाना, माता की तरफ से कितने रिश्तेदार छोड़ने हैं, पिता की तरफ से कितने रिश्तेदार छोड़ने हैं, यह सब कुछ नातेदारी व्यवस्था पर भी निर्भर करता है। यदि यह व्यवस्था न हो तो विवाह करने में किसी भी नियम की पालना नहीं होगी जिसके कारण समाज में अव्यवस्था फैल जाएगी।

7. नातेदारी व्यवस्था मनुष्य को मानसिक शान्ति प्रदान करती है। आजकल के औद्योगिक समाज में चाहे हमारे विचार Practical हो चुके हैं पर फिर भी मनुष्य नातेदारी के बन्धनों से मुक्त नहीं हो सका है। वह अपने बुजुर्गों की तस्वीरें घर में टांग कर रखता है, उनकी तस्वीरों का संग्रह करता है, मरने के बाद उनका श्राद्ध करता है। मनुष्य जाति नातेदारी पर आधारित समूहों में रही है। नातेदारी के बिना व्यक्ति एक मरे हुए व्यक्ति के समान है। हमारे रिश्तेदार हमें सबसे ज्यादा जानते हैं, पहचानते हैं। वह अपने आपको अपने परिवार का हिस्सा समझते हैं। यदि हम किसी परेशानी में होते हैं तो हमारे रिश्तेदार हमें मानसिक तौर पर शान्त करते हैं। हम अपने रिश्तेदारों में ही रह कर सबसे ज्यादा प्रसन्नता और आनन्द महसूस करते हैं।

8. हमारी नातेदारी ही हमारे विवाह और परिवार का निर्धारण करती है कि किसके साथ विवाह करना है, किसके साथ नहीं करना है। सगोत्र, अन्तर्जातीय विवाह सब कुछ ही नातेदारी पर ही निर्भर करता है। परिवार में ही खून और विवाह के सम्बन्ध पाए जाते हैं। नातेदारी के कारण ही विवाह और नातेदारी में व्यवस्था पैदा होती है।

प्रश्न 10.
वैवाहिक तथा रक्त सम्बन्धों में अन्तर कीजिए।
उत्तर-
(i) रक्त संबंधी नातेदारी (Consanguinity) सगोत्र नातेदारी शुरुआती परिवार के आधार पर और इसमें पैदा हुए असली या नकली रक्त के वंश परम्परागत सम्बन्धों को सगोत्र नातेदारी कहते हैं। आम शब्दों में वह सभी रिश्तेदार या व्यक्ति जो रक्त के बन्धनों में बन्धे होते हैं उनको सगोत्र नातेदारी कहते हैं। रक्त का सम्बन्ध चाहे असली हो या नकली इसको नातेदारी व्यवस्था में तो ही ऊंचा स्थान प्राप्त होता है। यदि इस सम्बन्ध को समाज की मान्यता प्राप्त हो। उदाहरण के तौर पर नाजायज़ बच्चे को, चाहे उसके साथ भी रक्त सम्बन्ध होता है, समाज में मान्यता प्राप्त नहीं होती क्योंकि उसको समाज की मान्यता प्राप्त नहीं होती और गोद लिए बच्चे को, चाहे उसके साथ रक्त सम्बन्ध नहीं होता, समाज में मान्यता प्राप्त होती है और वह सगोत्र प्रणाली का हिस्सा होते हैं। रक्त सम्बन्धों को हर प्रकार के समाजों में मान्यता प्राप्त है।

इस तरह इस चर्चा से स्पष्ट है कि शुरुआती परिवार के आधार पर रक्त-वंश परम्परागत सम्बन्धों से पैदा हुए सारे रिश्तेदार इस सगोत्र नातेदारी प्रणाली में शामिल है। हम उदाहरण ले सकते हैं बहन-भाई, मामा, चाचा, ताया, नाना-नानी, दादा-दादी आदि। यहाँ यह बताने योग्य है कि रक्त सम्बन्ध सिर्फ़ पिता वाली तरफ से ही नहीं होता बल्कि माता वाली तरफ से भी होता है। इस तरह पिता वाली तरफ से रक्त सम्बन्धियों को पितृ पक्ष रिश्तेदार कहते हैं और माता वाली तरफ से रक्त सम्बन्धियों को मात पक्ष रिश्तेदार।

वर्गीकरण-खून के आधार पर आधारित रिश्तेदारों को अलग-अलग नामों के साथ जाना जाता है। एक ही मां-बाप के बच्चे, जो आपस में सगे भाई-बहन होते हैं, को सिबलिंग (Sibling) कहते हैं और सौतेले बहन-भाई को हॉफ़ सिबलिंग (Half sibling) कहते हैं। पिता वाली तरफ सिर्फ आदमियों के रक्त सम्बन्धियों जो सिर्फ आदमी होते हैं उनको सगा-सम्बन्धी (Agnates) कहते हैं और इसी तरह माता वाली तरफ सिर्फ औरतों के रक्त सम्बन्धियों जो सिर्फ औरतें होती हैं, उनको (Utrine) कहते हैं। इसी तरह वह लोग जो रक्त सम्बन्धों के कारण सम्बन्धित हों, उनको रक्त सम्बन्धी रिश्तेदार (Consanguined kin) कहा जाता है। इन रक्त सम्बन्धियों को दो हिस्सों में बांटा जाता है।

  • एक रेखकी रिश्तेदार (Unilineal Kin)-इस प्रकार की रिश्तेदारी में वह व्यक्ति आते हैं जो वंश क्रम की सीधी रेखा द्वारा सम्बन्धित हों जैसे पिता, पिता का पिता, पुत्र और पुत्र का पुत्र ।
  • कुलेटरल या समानान्तर रिश्तेदार (Collateral Kin)-इस प्रकार के रिश्तेदार वह व्यक्ति होते हैं, जो हर रिश्तेदारों के द्वारा असीधे तौर पर सम्बन्धित हों जैसे पिता का भाई चाचा, मां की बहन मौसी, मां का भाई मामा आदि।

(ii) विवाह संबंधी नातेदारी (Affinity)—इसको सामाजिक नातेदारी का नाम भी दिया जाता है। इस प्रकार की नातेदारी में उस तरह के रिश्तेदार शामिल होते हैं जो किसी आदमी या औरत के विवाह करने से पैदा होते हैं। जब किसी लड़के का लड़की से विवाह होता है तो उसका सिर्फ लड़की के साथ ही सम्बन्ध स्थापित नहीं होता बल्कि लड़की के माध्यम से उसके परिवार के बहुत सारे सदस्यों के साथ सम्बन्ध स्थापित हो जाता है। इसी तरह जब लड़की का लड़के के साथ विवाह होता है तो लड़की का भी लड़के के परिवार के सारे सदस्यों के साथ सम्बन्ध स्थापित हो जाता है। इस तरह सिर्फ विवाह करवाने के साथ ही लड़का-लड़की के कई प्रकार के नए रिश्ते अस्तित्व में आ जाते हैं। इस तरह विवाह पर आधारित नातेदारी को विवाहिक नातेदारी का नाम दिया जाता है। उदाहरण के तौर पर जीजा-साला, साढू-जमाई, ससुर, ननद, भाभी, बहु, सास आदि। इस तरह की नातेदारी की प्राणीशास्त्री महत्ता के साथ-साथ सामाजिक महत्ता भी होती है। प्राणीशास्त्रीय महत्त्व तो पति-पत्नी के लिए है पर सास-ससुर, देवर, ननद, भाभी, साढ़, साली, साला, जमाई आदि रिश्ते सामाजिक होते हैं। मॉर्गन ने दुनिया के कई भागों में प्रचलित साकेदारियों का अध्ययन किया और इनको वर्णनात्मक और व्यक्तिनिष्ठ नामकरण के साथ तो मनुष्य श्रेणियों में बांटा है। वर्णनात्मक प्रणाली में आम-तौर पर विवाहिक सम्बन्धियों के लिए एक ही नाम दिया जाता है। ऐसे नाम नातेदारी की तुलना में सम्बन्ध के बारे में ज्यादा बताते हैं। व्यक्तिनिष्ठ शब्द असली सम्बन्धों के बारे में बताते हैं। जैसे-अंकल को हम मामा, चाचा, फुफड़ और मौसा के लिए प्रयोग करते हैं। यह पहले प्रकार की उदाहरण है। परन्तु फादर या पिता के लिए कोई शब्द प्रयोग नहीं हो सकते।

इस तरह Nephew को भतीजे या भांजे के लिए, cousin को मामा, चाचा, ताया, मासी, बुआ के बच्चों के लिए प्रयोग किया जाता है। इस तरह Sister-in-law को साली और ननद और Brother-in-law को देवर तथा साले के लिए प्रयोग किया जाता है।

इस तरह आधुनिक समाज में नए-नए शब्दों का प्रयोग किया जाता है। असल में यह सारे शब्द नातेदारी के सूचक हैं और विवाहिक नातेदारी पर आधारित होते हैं। जैसे व्यक्ति को जमाई का दर्जा, पति का दर्जा, औरत को बहू और पत्नी का दर्जा विवाह के कारण ही प्राप्त होता है। इस तरह हम बहुत सारी वैवाहिक रिश्तेदारियों को गिन सकते हैं।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 7 विवाह, परिवार तथा नातेदारी

वस्तुनिष्ठ प्रश्न 

I. बहुविकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions) :

प्रश्न 1.
समाज की आधारभूत इकाई कौन-सी होती है ?
(A) परिवार
(B) विवाह
(C) नातेदारी
(D) सरकार।
उत्तर-
(A) परिवार।

प्रश्न 2.
यौन इच्छाओं की पूर्ति के लिए समाज ने एक संस्था को मान्यता दी है जिसे ……. कहते हैं।
(A) विवाह
(B) परिवार
(C) सरकार
(D) नातेदारी।
उत्तर-
(A) विवाह।

प्रश्न 3.
बच्चे का समाजीकरण कौन शुरू करता है ?
(A) सरकार
(B) परिवार
(C) पड़ोस
(D) खेल समूह।
उत्तर-
(B) परिवार।

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प्रश्न 4.
कौन अगली पीढ़ी को संस्कृति का हस्तांतरण करता है ?
(A) पड़ोस
(B) सरकार
(C) परिवार
(D) समाज।
उत्तर-
(C) परिवार।

प्रश्न 5.
यौन इच्छा ने किस संस्था को जन्म दिया ?
(A) परिवार
(B) समाज
(C) सरकार
(D) विवाह।
उत्तर-
(D) विवाह।

प्रश्न 6.
मातुलेय परिवारों में किन रिश्तेदारों में निकटता होती है ?
(A) मामा-भांजा
(B) माता-पुत्री
(C) पिता-पुत्र
(D) चाचा-भतीजा।
उत्तर
(A) मामा-भांजा।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 7 विवाह, परिवार तथा नातेदारी

प्रश्न 7.
रक्त सम्बन्धी या सीधे सम्बन्धी ……. सम्बन्धी होते हैं।
(A) प्राथमिक
(B) द्वितीय
(C) तृतीय
(D) चतुर्थ।
उत्तर-
(A) प्राथमिक।

प्रश्न 8.
जो सम्बन्ध हमारे माता पिता के लिए प्राथमिक होता है उसे क्या कहते हैं ?
(A) प्राथमिक सम्बन्ध
(B) द्वितीय सम्बन्ध
(C) तृतीय सम्बन्ध
(D) चतुर्थ सम्बन्ध।
उत्तर-
(B) द्वितीय सम्बन्ध।

प्रश्न 9.
जो सम्बन्धी द्वितीय सम्बन्धों से बनते हैं वह हमारे ……….. सम्बन्धी होते हैं।
(A) प्राथमिक
(B) द्वितीय
(C) तृतीय
(D) चतुर्थ।
उत्तर-
(C) तृतीय।

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प्रश्न 10.
बच्चे की प्रथम पाठशाला कौन सी होती है ?
(A) सरकार
(B) परिवार
(C) खेल समूह
(D) पड़ोस।
उत्तर-
(B) परिवार।

प्रश्न 11.
उस परिवार को क्या कहते हैं जिसमें पति पत्नी तथा उनके अविवाहित बच्चे रहते हैं ?
(A) केंद्रीय परिवार
(B) संयुक्त परिवार ।
(C) विस्तृत परिवार
(D) नव स्थानीय परिवार।
उत्तर-
(A) केन्द्रीय परिवार।

प्रश्न 12.
इनमें से कौन सा परिवार का कार्य है ?
(A) बच्चे का समाजीकरण
(B) बच्चों पर नियंत्रण
(C) बच्चे का पालन-पोषण
(D) उपर्युक्त सभी।
उत्तर-
(D) उपर्युक्त सभी।

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प्रश्न 13.
विवाह के आधार पर परिवार का प्रकार बताएं।
(A) एक विवाह परिवार
(B) बहु विवाही परिवार
(C) समूह विवाही परिवार
(D) उपर्युक्त सभी।
उत्तर-
(D) उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 14.
नातेदारी के कितने प्रकार होते हैं ?
(A) एक
(B) दो
(C) तीन
(D) चार।
उत्तर-
(B) दो।

प्रश्न 15.
प्राथमिक रिश्तेदार कितने प्रकार के होते हैं ?
(A) पाँच
(B) छः
(C) आठ
(D) दस।
उत्तर-
(C) आठ।

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प्रश्न 16.
द्वितीयक सम्बन्धी कितने प्रकार के होते हैं ?
(A) 30
(B) 33
(C) 36
(D) 39.
उत्तर-
(B) 33.

II. रिक्त स्थान भरें (Fill in the blanks) :

1. ……….. परिवार में पिता की सत्ता चलती है।
2. ………… परिवार में माता की सत्ता चलती है।
3. ………….. विवाह में अपने समूह में ही विवाह करवाया जाता है।
4. ……….. परिवार में दो या अधिक पीढ़ियों में परिवार इकट्ठे रहते हैं।
5. बहुपति विवाह …………….. प्रकार का होता है।
6. आकार के आधार पर परिवार ……….. प्रकार के होते हैं।
7. सत्ता के आधार पर परिवार …………… प्रकार के होते हैं।
उत्तर-

  1. पितृसत्तात्मक,
  2. मातृसत्तात्मक,
  3. अन्तः,
  4. संयुक्त,
  5. दो,
  6. तीन,
  7. दो।

III. सही/गलत (True/False) :

1. एकाकी परिवार में संपूर्ण नियंत्रण पिता के हाथों में होता है।
2. स्त्रियों की संख्या कम होने के कारण बहुपति विवाह होते हैं।
3. बहुविवाह संसार में सबसे अधिक प्रचलित हैं।
4. नातेदारी के दो प्रकार होते हैं।
5. परिवार संस्कृति के वाहक के रूप में कार्य करता है।
6. मातृवंशी परिवार में सम्पत्ति पुत्री को नहीं मिलती है।
7. परिवार के सदस्यों में रक्त संबंध होते हैं।
उत्तर-

  1. गलत,
  2. सही,
  3. गलत,
  4. सही,
  5. सही,
  6. गलत,
  7. सही।

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IV. एक शब्द/पंक्ति वाले प्रश्न उत्तर (One Wordline Question Answers) :

प्रश्न 1.
एक विवाह का क्या अर्थ है ?
उत्तर-
जब एक पुरुष एक स्त्री से विवाह करता है तो उसे एक विवाह कहते हैं।

प्रश्न 2.
बहुविवाह के कितने प्रकार हैं ?
उत्तर-
बहुविवाह के तीन प्रकार हैं।

प्रश्न 3.
द्विविवाह में एक पुरुष की कितनी पत्नियां होती हैं ?
उत्तर-
द्विविवाह में एक पुरुष की दो पत्नियां होती हैं।

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प्रश्न 4.
बहुपति विवाह में एक स्त्री के कितने पति हो सकते हैं ?
उत्तर-
बहुपति विवाह में एक स्त्री के कई पति हो सकते हैं।

प्रश्न 5.
अन्तर्विवाह का अर्थ बताएं।
उत्तर-
जब व्यक्ति केवल अपनी ही जाति में विवाह करवा सकता हो उसे अंतर्विवाह कहा जाता है।

प्रश्न 6.
बर्हिविवाह का अर्थ बताएं।
उत्तर-
जब व्यक्ति को अपनी गोत्र के बाहर परंतु अपनी जाति के अंदर विवाह करवाना पड़े तो उसे बर्हिविवाह कहते हैं।

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प्रश्न 7.
यह शब्द किसके हैं, “विवाह एक समझौता है जिसमें बच्चों की पैदाइश तथा देखभाल होती
उत्तर-
यह शब्द मैलीनोवस्की के हैं।

प्रश्न 8.
संसार में विवाह का कौन-सा प्रकार सबसे अधिक प्रचलित है ?
उत्तर-
संसार में विवाह का सबसे अधिक प्रचलित प्रकार एक विवाह है।

प्रश्न 9.
बहु-पत्नी विवाह का अर्थ।
उत्तर-
जब एक पुरुष कई स्त्रियों के साथ विवाह करवाए तो उसे बहु-पत्नी विवाह कहते हैं।

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प्रश्न 10.
बहु-पति विवाह का अर्थ।
उत्तर-
जब कई पुरुष मिलकर एक स्त्री से विवाह करते हैं, तो उसे बहु-पति विवाह कहते हैं।

प्रश्न 11.
एफिनिटी क्या होता है ?
उत्तर-
सामाजिक सम्बन्ध जो विवाह पर आधारित होते हैं, उन्हें एफिनिटी कहते हैं।

प्रश्न 12.
यौन इच्छाओं की पूर्ति के लिए सामाजिक मान्यता प्राप्त संस्था कौन-सी है ?
उत्तर-
यौन इच्छाओं की पूर्ति के लिए समाज ने एक संस्था को मान्यता दी हुई है, जिसे परिवार कहते हैं।

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प्रश्न 13.
यौन इच्छा ने किस प्रथा को जन्म दिया ?
उत्तर-
यौन इच्छा ने विवाह नामक प्रथा को जन्म दिया।

प्रश्न 14.
विवाह क्या होता है ?
उत्तर-
यौन सम्बन्धों को समाज ने एक प्रथा के द्वारा मान्यता दी हुई है, जिसे विवाह कहते हैं।

प्रश्न 15.
कुलीन विवाह क्या होता है ?
उत्तर-
जब एक ही जाति में ऊंचे कुलों से सम्बन्धित लड़के-लड़की का विवाह होता है तो उसे कुलीन विवाह कहते हैं।

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प्रश्न 16.
प्रेम विवाह का प्राचीन नाम क्या है ?
उत्तर-
प्रेम विवाह का प्राचीन नाम गंधर्व विवाह है।

प्रश्न 17.
भ्रातृक बहुपति विवाह का अर्थ बताएं।
उत्तर-
अगर सभी भाई एक स्त्री से इकट्ठे विवाह करें तो उसे भ्रातृक बहुपति विवाह कहते हैं।

प्रश्न 18.
कौन-से पुरुष को पूर्ण पुरुष कहा जाता है ?
उत्तर-
जिस पुरुष के स्त्री तथा बच्चे हों, उसे पूर्ण पुरुष कहा जाता है।

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प्रश्न 19.
अन्तर्विवाह का कोई कारण बताओ।
उत्तर-
रक्त की शुद्धता बनाए रखने के लिए अन्तर्विवाह की आवश्यकताएं पड़ी।

प्रश्न 20.
प्राथमिक सम्बन्धी कौन-से होते हैं ? ।
उत्तर-
रक्त सम्बन्धी या सीधे सम्बन्ध प्राथमिक सम्बन्ध होते हैं, जैसे कि पिता, माता, भाई, बहन इत्यादि।

प्रश्न 21.
द्वितीय सम्बन्धी कौन-से होते हैं ?
उत्तर-
जो हमारे माता या पिता का प्राथमिक सम्बन्धी होता है वह हमारे लिए द्वितीय सम्बन्धी होता है, जैसे मामा, चाचा, ताया, बुआ इत्यादि।

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प्रश्न 22.
तृतीय सम्बन्धी कौन-से होते हैं ? .
उत्तर-
जो सम्बन्धी द्वितीय सम्बन्धों से बनते हैं वह हमारे तृतीय सम्बन्धी होते हैं, जैसे पिता की बहन का पति, माता के भाई की पत्नी इत्यादि।

प्रश्न 23.
समूह विवाह क्या होता है ?
उत्तर-
जब बहुत सारी स्त्रियों का बहुत सारे पुरुषों के साथ इकट्ठे विवाह होता है, उसे समूह विवाह कहते

प्रश्न 24.
बहिर्विवाह में किससे बाहर विवाह करना पड़ता है ?
उत्तर-
बहिर्विवाह में अपने सपिण्ड, प्रवर तथा गोत्र से बाहर करना पड़ता है।

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प्रश्न 25.
अन्तर्विवाह क्या होता है ?
उत्तर-
जब व्यक्ति को अपने समूह या जाति के अन्दर विवाह करना पड़े तो उसे अन्तर्विवाह कहते हैं।

प्रश्न 26.
प्रतिलोम विवाह क्या होता है ?
उत्तर-
जब निम्न जाति का पुरुष उच्च जाति की स्त्री से विवाह करता है तो उसे प्रतिलोम विवाह कहते हैं।

प्रश्न 27.
कौन-सी संस्था परिवार के निर्माण में सहायक होती है ?
उत्तर-
विवाह नामक संस्था परिवार के निर्माण में सहायक होती है।

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प्रश्न 28.
किस संस्था से समाज विघटन से बचता है ?
उत्तर-
विवाह नामक संस्था के कारण समाज का विघटन नहीं होता।

प्रश्न 29.
बहु-पत्नी विवाह का अर्थ बताएं।
उत्तर-
जब एक व्यक्ति एक से अधिक स्त्रियों से विवाह करवाए तो उसे बहु-पत्नी विवाह कहते हैं।

प्रश्न 30.
बहु-पति विवाह का अर्थ बताएं।
उत्तर-
जब एक स्त्री के कई पति हों तो उस विवाह को बहुपति विवाह कहते हैं।

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प्रश्न 31.
बहु-पति विवाह के कितने प्रकार होते हैं ?
उत्तर-
बहुपति विवाह के दो प्रकार-भ्रातृ बहुपति विवाह तथा गैर-भ्रात बहुपति विवाह होते हैं।

प्रश्न 32.
एक विवाह को आदर्श क्यों माना जाता है ?
उत्तर-
क्योंकि इससे परिवार अधिक स्थायी रहते हैं।

प्रश्न 33.
पितृ सत्तात्मक परिवार में ……….. शक्ति अधिक होती है।
उत्तर-
पितृ सत्तात्मक परिवार में पिता की शक्ति अधिक होती है।

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प्रश्न 34.
मातृ सत्तात्मक परिवार में …………… की सत्ता चलती है।
उत्तर-
मातृ सत्तात्मक परिवार में माता की सत्ता चलती है।

प्रश्न 35.
रक्त सम्बन्धी परिवार में कौन-से सम्बन्ध पाए जाते हैं ?
उत्तर-
रक्त सम्बन्धी परिवार में रक्त सम्बन्ध पाए जाते हैं।

प्रश्न 36.
सदस्यों के आधार पर परिवार के कितने तथा कौन-से प्रकार होते हैं ?
उत्तर-
सदस्यों के आधार पर परिवार के तीन प्रकार केन्द्रीय परिवार, संयुक्त परिवार तथा विस्तृत परिवार होते हैं।

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प्रश्न 37.
विवाह के आधार पर परिवार के कितने तथा कौन-से प्रकार होते हैं ?
उत्तर-
विवाह के आधार पर परिवार के दो प्रकार-एक विवाही परिवार तथा बहुविवाही परिवार होते हैं।

प्रश्न 38.
वंश के आधार पर कितने प्रकार के परिवार होते हैं ?
उत्तर-
चार प्रकार के परिवार ।

प्रश्न 39.
केन्द्रीय परिवार का अर्थ बताएं।
उत्तर-
वह परिवार जिसमें पति-पत्नी तथा उनके अविवाहित बच्चे रहते हों उसे केन्द्रीय परिवार कहा जाता है।

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प्रश्न 40.
हिन्दू विधवा पुनर्विवाह एक्ट कब पास हुआ था ?
उत्तर-
सन् 1856 में।

प्रश्न 41.
शब्द Family किस भाषा के शब्द का अंग्रेजी रूपान्तर है ?
उत्तर-
शब्द Family लातीनी भाषा के शब्द का अंग्रेज़ी रूपान्तर है।

प्रश्न 42.
शब्द Family लातीनी भाषा के किस शब्द से निकला है ?
उत्तर-
शब्द Family लातीनी भाषा के शब्द Famulus से निकला है।

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प्रश्न 43.
परिवार के स्वरूप में परिवर्तन का एक कारण बताओ।
उत्तर-
आजकल स्त्रियां घर से जाकर दफ्तरों में काम करने लगी हैं जिससे उनकी परिवार तथा पति पर निर्भरता काफ़ी कम हो गई है।

प्रश्न 44.
परिवार एक सर्वव्यापक संस्था है। कैसे ?
उत्तर-
परिवार एक सर्वव्यापक संस्था है क्योंकि यह प्रत्येक समाज में किसी-न-किसी रूप में पाया जाता है।

प्रश्न 45.
परिवार में सदस्यों के बीच किस प्रकार के सम्बन्ध होते हैं ?
उत्तर-
परिवार में सदस्यों के बीच रक्त सम्बन्ध होते हैं।

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प्रश्न 46.
समाज में परिवार का किस प्रकार का स्थान होता है ?
उत्तर-
समाज में परिवार का केन्द्रीय स्थान होता है।

प्रश्न 47.
परिवार के सदस्यों में किस प्रकार के गुण पाए जाते हैं ? ।
उत्तर-
परिवार के सदस्यों में हमदर्दी, त्याग, प्रेम जैसे गुण पाए जाते हैं।

प्रश्न 48.
परिवार के दो जैविक कार्य बताएं।
उत्तर-

  1. परिवार में ही व्यक्ति अपनी पत्नी के साथ सम्बन्ध बनाता है।
  2. परिवार में ही सन्तान उत्पन्न होती है।

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प्रश्न 49.
परिवार के दो आर्थिक कार्य बताएं।
उत्तर-

  1. परिवार सदस्यों के खाने का प्रबन्ध करता है।
  2. परिवार एक उत्पादक इकाई के रूप में कार्य करता है।

प्रश्न 50.
परिवार में उत्तराधिकार का निर्धारण कैसे होता है ?
उत्तर-
बेटों में जायदाद का समान विभाजन कर दिया जाता है।

प्रश्न 51.
परिवार के दो सामाजिक कार्य बताएं।
उत्तर-

  1. परिवार व्यक्ति को सामाजिक स्थिति प्रदान करता है।
  2. परिवार संस्कृति को अगली पीढ़ी को सौंप देता है।

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प्रश्न 52.
कौन-सी संस्था बच्चे का समाजीकरण करती है ?
उत्तर-
परिवार नामक संस्था बच्चे का समाजीकरण करती है।

अति लघु उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
विवाह से व्यक्ति की सामाजिक स्थिति निश्चित हो जाती है। स्पष्ट करें।
उत्तर-
विवाह के कारण व्यक्ति को समाज में कई सारे पद मिल जाते हैं, जैसे-पति, पिता, जीजा, दामाद इत्यादि। इन सभी पदों में ज़िम्मेदारी होती है। विवाह से व्यक्ति की सामाजिक स्थिति निश्चित हो जाती है।

प्रश्न 2.
मनु ने प्रतिलोम विवाह के बारे में कौन-से विचार व्यक्त किए हैं ?
उत्तर-
मनु के अनुसार निम्न जाति के पुरुष का उच्च जाति की स्त्री से विवाह करना पाप है। इसे उन्होंने निषेध करार दिया है। इस प्रकार के विवाह से पैदा होने वाली सन्तान को उन्होंने चण्डाल कहा है।

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प्रश्न 3.
अनुलोम विवाह क्या होता है ?
उत्तर-
जब एक उच्च जाति का लड़का निम्न जाति की लड़की से विवाह करता है तो उसे अनुलोम विवाह कहते हैं। इस प्रकार के विवाह को सामाजिक मान्यता प्राप्त है तथा इस प्रकार के विवाह साधारणतया होते रहते थे।

प्रश्न 4.
विवाह पर प्रतिबन्ध।
उत्तर-
कई समाजों में विवाह करवाने के ऊपर कई प्रकार के प्रतिबन्ध होते हैं कि किस समूह में विवाह करना है तथा किस में नहीं। साधारणतया रक्त सम्बन्धी, एक ही गोत्र वाले व्यक्ति आपस में विवाह नहीं करवा सकते।

प्रश्न 5.
गैर-भातृ बहुपति विवाह।
उत्तर-
बहुपति विवाह का वह प्रकार जिसमें पत्नी के सभी पति आपस में भाई नहीं होते गैर-भ्रातृ बहुपति विवाह होता है। विवाह के पश्चात् पत्नी निश्चित समय के लिए अलग-अलग पतियों के साथ रहती है।

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प्रश्न 6.
बहुपत्नी विवाह का अर्थ।
उत्तर-
यह विवाह का वह प्रकार है जिसमें एक व्यक्ति की एक से अधिक पत्नियां होती हैं। यह दो प्रकार का होता है-प्रतिबन्धित तथा अप्रतिबन्धित बहु-पत्नी विवाह । इस प्रकार का विवाह आजकल वर्जित है।

प्रश्न 7.
बहु-पत्नी विवाह में स्त्रियों की स्थिति।
उत्तर-
बहु-पत्नी विवाह में स्त्रियों की स्थिति काफ़ी निम्न होती है क्योंकि उसे कई पुरुषों से विवाह तथा संबंध रखने पड़ते हैं। इसका उसके स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है तथा उनकी सामाजिक स्थिति भी निम्न होती है।

प्रश्न 8.
एक विवाह पर संक्षेप नोट लिखें।
उत्तर-
जब एक ही स्त्री से एक ही पुरुष विवाह करवाता है तो विवाह को एक विवाह कहते हैं। जब तक दोनों जीवित हैं अथवा एक दूसरे से तलाक नहीं ले लेते, वह दूसरा विवाह नहीं करवा सकते।

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प्रश्न 9.
बहु-पति विवाह के दो अवगुण।
उत्तर-

  1. इस प्रकार के विवाह में स्त्री का स्वास्थ्य खराब हो जाता है क्योंकि उसे कई पतियों की लैंगिक इच्छा को पूर्ण करना पड़ता है।
  2. इस प्रकार के विवाह में स्त्री के लिए पतियों में झगडे होते रहते हैं।

प्रश्न 10.
एक विवाह के दो गुण।
उत्तर-

  1. एक विवाह में पति-पत्नी के संबंध अधिक गहरे होते हैं।
  2. इस विवाह में बच्चों का पालन-पोषण ठीक ढंग से हो जाता है।
  3. इस विवाह में पारिवारिक झगड़े कम होते हैं।
  4. इसमें पति-पत्नी में तालमेल रहता है।

प्रश्न 11.
बहुपत्नी विवाह के मुख्य कारण बताएं।
उत्तर-

  1. पुरुषों की अधिक यौन संबंधों की इच्छा के कारण बहुपत्नी विवाह सामने आए।
  2. लड़कियां पैदा होने के कारण तथा लड़का होने की इच्छा के कारण यह विवाह बढ़ गए।
  3. राजा-महाराजाओं के अधिक पत्नियां रखने के शौक के कारण यह विवाह सामने आए।

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प्रश्न 12.
परिवार क्या होता है ?
उत्तर-
परिवार उस समूह को कहते हैं जो यौन सम्बन्धों पर आधारित है और जो इतना छोटा व स्थायी है कि उससे बच्चों की उत्पत्ति तथा पालन-पोषण हो सके। इसमें सभी रक्त संबंधी शामिल होते हैं।

प्रश्न 13.
पितृ सत्तात्मक परिवार कौन-सा होता है ?
उत्तर-
वह परिवार जहां सारे अधिकार पिता के हाथ में होते हैं, परिवार पिता के नाम पर चलता है तथा परिवार पर पिता का पूरा नियन्त्रण होता है। घर के सभी सदस्यों को पिता की आज्ञा के अनुसार कार्य करना पड़ता है।

प्रश्न 14.
मातृ-सत्तात्मक परिवार।
उत्तर-
वह परिवार जहां सारे अधिकार माता के हाथ में होते हैं, परिवार माता के नाम पर चलता है तथा परिवार पर माता का नियन्त्रण होता है। सम्पत्ति पर माता का अधिकार होता है तथा माता के पश्चात् सम्पत्ति पुत्री को प्राप्त होती है।

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प्रश्न 15.
विवाह के आधार पर परिवार के कितने प्रकार होते हैं ?
उत्तर-
विवाह के आधार पर परिवार दो प्रकार के होते हैं-

  1. एक विवाही परिवार
  2. बहु विवाही परिवार।

प्रश्न 16.
परिवार में शिक्षा संबंधी कार्यों में परिवर्तन।
उत्तर–
पहले परिवार बच्चों को शिक्षा देता था परन्तु अब इसमें परिवर्तन आ गया है। अब परिवार का यह कार्य स्कूलों, कॉलेजों तथा विश्वविद्यालयों ने लिया है। पहले परिवार के बड़े बुजुर्ग बच्चों को शिक्षा देते थे परन्तु अब यह कार्य औपचारिक संस्थाओं के पास है।

प्रश्न 17.
परिवार की केंद्रीय स्थिति।
उत्तर-
परिवार की समाज में केन्द्रीय स्थिति है क्योंकि परिवार के बिना समाज अस्तित्व में नहीं आ सकता तथा प्रत्येक व्यक्ति समाज में ही रहना पसंद करता है। परिवार के कारण ही समाज अस्तित्व में आता है।

प्रश्न 18.
बच्चों का पालन-पोषण।
उत्तर-
बच्चों का पालन-पोषण परिवार का एक महत्त्वपूर्ण कार्य है क्योंकि परिवार ही बच्चों की सभी आवश्यकताएं पूर्ण करता है। परिवार उसे अच्छा नागरिक बनाने के लिए सभी चीजें उपलब्ध करवाता है।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 7 विवाह, परिवार तथा नातेदारी

प्रश्न 19.
घर की व्यवस्था।
उत्तर-
परिवार अपने सदस्यों के लिए घर की व्यवस्था करता है। घर के बिना परिवार न तो बन सकता है तथा न ही प्रगति कर सकता है। इस प्रकार घर की व्यवस्था करके परिवार सदस्यों के व्यक्तित्व का विकास भी करता है।

प्रश्न 20.
परिवार में सहयोग।
उत्तर-
पति तथा पत्नी एक-दूसरे से सहयोग करते हैं ताकि परिवार का कल्याण हो सके। वह अपने बच्चों तथा परिवार को अच्छा जीवन देने के लिए एक-दूसरे से सहयोग करते हैं। पति-पत्नी के सहयोग के कारण ही परिवार सामने आता है।

प्रश्न 21.
साझे परिवार पर पश्चिमी संस्कृति का प्रभाव।
उत्तर-
साझे परिवार में रहने वाले व्यक्ति पश्चिमी संस्कृति के प्रभाव के अधीन आ रहे हैं। इस कारण वह अपने सांझे परिवारों को छोड़ रहे हैं तथा केंद्रीय परिवार बसा रहे हैं। इस तरह साझे परिवार खत्म हो रहे हैं।

प्रश्न 22.
परिवार के दो कार्यों का वर्णन करें।
उत्तर-

  1. परिवार में व्यक्ति की सम्पत्ति एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुँच जाती है तथा किसी तीसरे व्यक्ति के पास नहीं जाती।
  2. बच्चों के पालन-पोषण तथा सुरक्षा का कार्य परिवार का ही होता है तथा उनका सही विकास परिवार में ही हो सकता है।

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प्रश्न 23.
परिवार के कार्यों में कोई दो परिवर्तन।
उत्तर-

  1. आजकल के परिवार अधिक प्रगतिशील हो रहे हैं।
  2. स्त्रियां घरों से बाहर निकल कर कार्य कर रही हैं जिस कारण उनके कार्य बदल रहे हैं।
  3. परिवार के मुखिया का नियन्त्रण कम हो गया है तथा सभी अपनी इच्छा से कार्य करते हैं।

प्रश्न 24.
नवस्थानीय परिवार।
उत्तर-
इस प्रकार के परिवार में विवाह के पश्चात् पति-पत्नी अपने माता-पिता के घर जाकर नहीं रहते बल्कि अपना नया घर बसाते हैं तथा बिना रोक-टोक के रहते हैं। आजकल इस प्रकार के परिवार पाए जाते हैं।

लघु उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
सामाजिक संस्था।
उत्तर-
संस्था न तो लोगों का समूह है और न ही संगठन है। सामाजिक संस्था तो किसी कार्य या उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए परिमाप की व्यवस्था है। संस्था तो किसी विशेष महत्त्वपूर्ण क्रिया के आस-पास केन्द्रित रूढियों और लोक रीतों का जाल है। संस्थाएं तो संरचिंत प्रक्रियाएं हैं जिनके द्वारा व्यक्ति अपने कार्य करता है।

प्रश्न 2.
संस्था के दो महत्त्वपूर्ण तत्त्व बताइये।
उत्तर-

  1. निश्चित उद्देश्य-संस्था विशेष मानवीय आवश्यकता के लिए विकसित होती है। बिना उद्देश्य के संस्था नहीं होती है। इस प्रकार संस्था किसी निश्चित उद्देश्य के लिए बनती है।
  2. एक विचार-विचार ही संस्था का आवश्यक तत्त्व है। किसी भी आवश्यकता की पूर्ति के लिए एक विचार की शुरुआत होती है जिसको समूह अपने लिए आवश्यक समझता है। इस कारण इसकी रक्षा हेतु वह संस्था को विकसित करता है।

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प्रश्न 3.
संस्था की चार विशेषताएं लिखो।
उत्तर-

  1. संस्था व्यवस्था एक इकाई है।
  2. संस्था के स्पष्ट तौर पर परिभाषित उद्देश्य हैं।
  3. संस्था अमूर्त होती है।
  4. संस्था की एक परम्परा व प्रतीक होता है।

प्रश्न 4.
संस्था के कोई चार कार्य बतायें।
उत्तर-

  1. संस्था समाज के ऊपर नियन्त्रण रखती है।
  2. संस्था व्यक्ति को पद एवं भूमिका प्रदान करती है।
  3. संस्था उद्देश्य को पूरा करने में मदद करती है।
  4. संस्था सांस्कृतिक एकसारता प्रदान करती है।
  5. संस्था संस्कृति की वाहक है।

प्रश्न 5.
संस्था कितने प्रकार की होती है ?
उत्तर-
वैसे तो संस्थाएं कई प्रकार की होती हैं, पर साधारणतया संस्थाएं चार प्रकार की होती हैं-

  1. सामाजिक संस्थाएं (Social Institutions)
  2. राजनैतिक संस्थाएं (Political Institutions)
  3. आर्थिक संस्थाएं (Economic Institutions)
  4. धार्मिक संस्थाएं (Religious Institutions)।

प्रश्न 6.
विवाह का अर्थ।
उत्तर–
प्रत्येक समाज में परिवार की स्थापना के लिए स्त्री व पुरुष के लिंगक सम्बन्धों को स्थापित करने की मान्यता विवाह द्वारा दी जाती है। इस प्रकार लिंग सम्बन्धों को निश्चित करने व संचालित करने के लिए बच्चों के पालनपोषण की ज़िम्मेदारी को निर्धारित करने व परिवार को स्थाई रूप देने के लिए बनाए गए नियमों को विवाह कहते हैं। परिवार बसाने के लिए दो या दो से अधिक स्त्रियों व पुरुषों के बीच ज़रूरी सम्बन्ध स्थापित करने व उन्हें स्थिर रखने के लिए संस्थात्मक व्यवस्था को विवाह कहते हैं। जिसका उद्देश्य घर की स्थापना, यौन सम्बन्धों में प्रवेश व बच्चों का पालन-पोषण है।

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प्रश्न 7.
एक विवाह।
उत्तर-
आजकल के आधुनिक युग में एक विवाह का प्रचलन सबसे अधिक है। इस तरह के विवाह में एक पुरुष एक ही समय, एक ही स्त्री के साथ विवाह कर सकता है। एक विवाह में पत्नी के रहते हुए दूसरा विवाह करना गैरकानूनी माना जाता है। इसमें पति-पत्नी के सम्बन्ध गहरे, स्थायी और प्यार हमदर्दी वाले होते हैं। इसमें बच्चों का पालनपोषण अच्छे ढंग से हो जाता है। उनको माता-पिता का पूरा प्यार मिलता है। पति-पत्नी में प्यार और तालमेल होता है। इसमें पुरुष और स्त्री के सम्बन्धों में समान अधिकार पाये जाते हैं।

प्रश्न 8.
एक विवाह के गुण।
उत्तर-

  1. पति-पत्नी के सम्बन्ध अधिक गहरे होते हैं।
  2. इसमें बच्चों का पालन-पोषण अच्छी तरह होता है।
  3. पति-पत्नी में तालमेल अधिक रहता है।
  4. पारिवारिक झगड़े कम होते हैं।
  5. व्यक्ति मनोवैज्ञानिक और जैविक तनावों से मुक्त रहता है।
  6. लड़का और लड़की दोनों को समान अधिकार प्राप्त होता है।

प्रश्न 9.
एक विवाह के अवगुण।
उत्तर-

  1. बीमारी या गर्भावस्था में पति-पत्नी के साथ यौन सम्बन्ध नहीं रख सकता इसलिए वह बाहर जाना आरम्भ कर देता है।
  2. बाहरी सम्बन्धों की वजह से अनैतिकता बढ़ती है।
  3. कई मनोवैज्ञानिक समस्याएं पैदा हो जाती हैं।
  4. पति का पत्नी के बीमार होने से घरेलू काम रुक जाते हैं, जिससे बच्चों का पालन-पोषण सही नहीं हो पाता।

प्रश्न 10.
बहिर्विवाह से क्या अर्थ है ?
उत्तर-
बहिर्विवाह का अर्थ है कि अपनी गोत्र, अपने सपिण्ड और टोटम से बाहर वैवाहिक सम्बन्ध पैदा करने पड़ते हैं। एक ही गोत्र, सपिण्ड और टोटम के पुरुष और स्त्री आपस में भाई-बहन माने जाते हैं। वैस्ट मार्क के अनुसार इस विवाह का उद्देश्य नज़दीक के रिश्तेदारों में यौन सम्बन्ध स्थापित न होने देना है। ये विवाह प्रगतिवाद का सूचक है और ये विवाह भिन्न-भिन्न वर्गों में सम्पर्क बढ़ाता है। जैविक दृष्टिकोण से यह विवाह ठीक माना गया है। इस विवाह का सबसे बड़ा अवगुण यह है कि इसमें वर-वधू को एक-दूसरे के विचारों को जानने में बड़ी मुश्किलें आती हैं।

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प्रश्न 11.
अन्तर्विवाह।
उत्तर-
अन्तर्विवाह में व्यक्ति को अपनी ही जाति में विवाह करना पड़ता था। इसमें विवाह का एक बन्धन क्षेत्र होता है जिसके अनुसार आदमी औरत एक निश्चित सामाजिक समूह के अधीन ही विवाह कर सकते हैं। इसके साथ समूह की एकता रखी जा सकती है। यह राष्ट्रीय एकता और सामाजिक प्रगति में रुकावट पैदा करती है। इसके साथ जातिवाद की भावना को भी बढ़ावा मिलता है।

प्रश्न 12.
दो पत्नी विवाह।
उत्तर-
इस प्रकार के विवाह में एक पुरुष का विवाह दो स्त्रियों के साथ होता है। ये दोनों स्त्रियां उस पुरुष की पत्नियां होती हैं। इसलिये इस विवाह को दो पत्नी विवाह कहा जाता है। इसमें पुरुष को दो पत्नियां रखने की इजाजत दी जाती है।

प्रश्न 13.
बहु-पत्नी प्रथा।
उत्तर-
यह बहु-विवाह का एक अन्य रूप है। इस तरह के विवाह में व्यक्ति एक से अधिक पत्नियों के साथ विवाह करवाता है। रिउटर के अनुसार बहु-पत्नी विवाह विवाह का वह रूप है, जिसमें व्यक्ति एक ही समय में एक से अधिक पत्नियों को रख सकता है। ये प्रथा संसार के सभी समाजों में पाई जाती है। पुरुष में यौन की इच्छा और बड़े परिवार की चाह के कारण इस विवाह प्रथा को अपनाया गया।

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प्रश्न 14.
बहु-पत्नी विवाह के कारण।
उत्तर-

  1. पुरुषों की अधिक यौन सम्बन्धों की इच्छाओं के कारण बहु विवाह होते हैं।
  2. बड़े परिवार की इच्छा के कारण यह विवाह होते हैं।
  3. लड़कियां होने पर लड़कों की इच्छा के कारण यह विवाह होते हैं।
  4. स्त्रियों की गणना बढ़ने के कारण भी यह विवाह होते थे।
  5. राजाओं, महाराजाओं की अधिक पत्नियां रखने के शौक के कारण इस प्रकार के विवाह होते थे।

प्रश्न 15.
बहु-पत्नी विवाह के गुण।
उत्तर-

  1. बच्चों का बढ़िया पालन-पोषण हो जाता है।
  2. मर्दो की अधिक यौन इच्छाओं की पूर्ति हो जाती है।
  3. सम्पत्ति घर में ही रहती है।
  4. सन्तान शक्तिशाली और सेहतमंद पैदा होती है।
  5. एक पत्नी के बीमार होने से घर के काम चलते रहते हैं।
  6. लिंग सम्बन्धों की पूर्ति के कारण अनैतिकता नहीं फैलती।

प्रश्न 16.
बहु-पत्नी विवाह के अवगुण।
उत्तर-

  1. इसके साथ स्त्रियों का दर्जा निम्न होता है।
  2. स्त्रियों की यौन इच्छा पूरी नहीं होती, जिसके लिये वह बाहर जाती हैं और अनैतिकता फैलती है।
  3. अधिक पत्नियों के कारण उनमें झगड़ा रहता है।
  4. परिवार में अशान्ति रहती है।
  5. परिवार में आर्थिक बोझ बढ़ता है।

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प्रश्न 17.
कुलीन विवाह।
उत्तर-
हिन्दू समाज में बहु-पत्नी विवाह का सबसे मुख्य उदाहरण कुलीन बहु-विवाह है। सभी चाहते हैं कि उनकी लड़कियों का विवाह बड़ी जाति के लड़कों के साथ हो पर कुलीन वंश की गिनती अधिक नहीं थी। एक-एक कुलीन ब्राह्मण 100-100 लड़कियों के साथ विवाह करवाता था। इस कारण दहेज प्रथा बढ़ गई और समाज में अनैतिकता भी बढ़ गई।

प्रश्न 18.
साली विवाह।
उत्तर-
इस विवाह में पुरुष अपनी स्त्री की बहन के साथ विवाह करता है। ये विवाह दो तरह का होता है। सीमित साली विवाह, समकालीन साली विवाह, सीमित साली विवाह में पुरुष अपनी स्त्री की मौत के बाद उसकी बहन के साथ विवाह करता है। समकालीन साली विवाह में पुरुष अपनी स्त्री की सभी-बहनों को अपनी पत्नियों के समान मानता है। पहली किस्म का प्रचलन अधिक है। इनमें परिवार नहीं टूटता और बच्चों का पालन-पोषण अधिक अच्छी तरह होता है।

प्रश्न 19.
देवर विवाह।
उत्तर-
विवाह की इस प्रथा में पत्नी अपने पति की मौत के बाद उसके भाई के साथ विवाह करवाती है। इसके साथ परिवार की सम्पत्ति सुरक्षित रह जाती है। परिवार टूटने से बचता है। बच्चों का पालन-पोषण ठीक हो जाता है। इस विवाह के साथ लड़के के माता-पिता को लड़की का मूल्य वापिस नहीं करना पड़ता।

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प्रश्न 20.
बहु-पति विवाह।
उत्तर-
इस विवाह में एक स्त्री बहुत से पतियों के साथ विवाह करती है। एक ही समय में वह सभी की पत्नी होती है इसके दो प्रकार हैं। भ्रात बहु-पति विवाह, जिसमें स्त्री के सभी पति आपस में भाई होते हैं और गैर-भ्रातृ बहु-पति विवाह, जिसमें स्त्री के सभी पति आपस में भाई नहीं होते। ग़रीबी और स्त्रियों की कम गिनती के कारण ये प्रथा बढ़ी।

प्रश्न 21.
भ्रातृ बहु-पति विवाह।
उत्तर-
इस विवाह की प्रथा के अनुसार स्त्री के सारे पति परस्पर भाई हुआ करते थे अथवा एक ही जाति के व्यक्ति होते थे। इस विवाह की प्रथा में सबसे बड़ा भाई एक स्त्री से विवाह करता है तथा उसके सब भाइयों का उस पर पत्नी रूप में अधिकार होता है व सारे उससे लैंगिक सम्बन्ध रखते हैं। यदि कोई छोटा भाई विवाह करता है तो उसकी भी पत्नी सब भाइयों की पत्नी होती है, जो बच्चे होते हैं वो सब बड़े भाई के नाम से माने जाते हैं व सम्पत्ति पर भी अधिकार बड़े भाई का अधिक होता है।

प्रश्न 22.
गैर-भ्रातृ बहु-पति विवाह।
उत्तर–
बहु-पति विवाह की इस प्रकार में एक औरत के पति आपस में भाई नहीं होते। यह पति सब भिन्न-भिन्न स्थानों में रहते हैं। ऐसे समय में औरत निश्चित समय के लिए एक पति के पास रहती है इस प्रकार दूसरे, तीसरे, चौथे के पास। इस तरह सारा साल अलग-अलग पतियों के पास जीवन व्यतीत करती है। जिस समय एक स्त्री एक पति के पास रहती है उस समय दूसरे पतियों को उससे सम्बन्ध बनाने का अधिकार नहीं होता। बच्चा होने पर एक विशेष संस्कार अनुसार पति उसका पिता बन जाता है जो वह गर्भावस्था में स्त्री को धनुष (तीर-कमान) भेंट करता है। उसे उस बच्चे का पिता मान लिया जाता है।

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प्रश्न 23.
परिवार का अर्थ।
उत्तर-
परिवार एक ऐसी संस्था है जिससे स्त्री व पुरुष समाज से मान्यता प्राप्त लिंग सम्बन्ध स्थापित करता है। परिवार व्यक्तियों का वह समूह है जो एक विशेष नाम से पहचाना जाता है जिसमें पति-पत्नी के स्थाई लिंग सम्बन्ध होते हैं जिसमें सदस्यों के पालन-पोषण की पूर्ण व्यवस्था होती है जिससे सदस्यों में खून के सम्बन्ध होते हैं व इसके सदस्य एक खास निवास स्थान पर रहते हैं।

प्रश्न 24.
परिवार की विशेषताएं।
उत्तर-

  1. परिवार सर्वव्यापक है।
  2. परिवार लिंग सम्बन्धों से उत्पन्न समूह है।
  3. परिवार का सामाजिक आधार में केन्द्रीय स्थान होता है।
  4. परिवार में रक्त सम्बन्धों का बन्धन होता है।
  5. परिवार में सदस्यों की ज़िम्मेदारी अन्य सदस्य चुनते हैं।
  6. परिवार सामाजिक नियन्त्रण का आधार होता है।

प्रश्न 25.
परिवार व सामाजिक नियन्त्रण।
उत्तर-
परिवार ही बच्चों पर नियन्त्रण रखता है व उसको नियन्त्रण में रहना सिखाता है। परिवार उस पर इस प्रकार से नियन्त्रण रखता है कि उसमें ग़लत आदतें न उत्पन्न हो सकें। परिवार अपने सदस्यों के हर तरह के व्यवहार व क्रियाओं पर नियन्त्रण रखता है। इस तरह बच्चा अनुशासन में रहना सीखता जाता है। इस प्रकार परिवार बच्चे पर निगरानी रखकर एक तरह से सामाजिक नियन्त्रण रखता है।

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प्रश्न 26.
परिवार व समाजीकरण।
उत्तर-
परिवार माता-पिता व बच्चों की स्थायी संस्था है, जिसका प्रथम कार्य बच्चों का समाजीकरण करना है। परिवार में बच्चा हमदर्दी, प्यार व ज़िम्मेदारी की पालना करना सीखता है। परिवार से ही वह छोटे, बराबर के व बड़ों के प्रति व्यवहार प्रकट करना सीखता है। परिवार में उसकी आदतों, अनुभवों, शिक्षाओं व कार्यों से ही आगे जाकर समाज में उसका काम व आचरण निश्चित होता है। परिवार में ही वह सामाजिक रीति-रिवाजों, रस्मों, आचरण, नियमों, सामाजिक बन्धनों की पालना इत्यादि सीखता है। इस प्रकार परिवार समाजीकरण का सबसे महत्त्वपूर्ण साधन है।

प्रश्न 27.
एकाकी परिवार क्या है ?
उत्तर-
इकाई परिवार वह परिवार है जिसमें पति-पत्नी व उनके अविवाहित बच्चे रहते हैं। विवाह के बाद बच्चे अपना अलग घर कायम कर लेते हैं। यह सबसे छोटे परिवार होते हैं। यह परिवार अधिक प्रगतिशील होते हैं व उनके फैसले तर्क के आधार पर होते हैं। इसमें पति-पत्नी को बराबर का दर्जा हासिल होता है। आजकल इकाई परिवार का अधिक चलन है।

प्रश्न 28.
इकाई परिवार की विशेषताएं बताओ।
उत्तर-

  1. केन्द्रीय परिवार या इकाई परिवार आकार में छोटा होता है।
  2. इकाई परिवार में सम्बन्ध सीमित होते हैं।
  3. परिवार के प्रत्येक सदस्य को महत्त्व मिलता है।
  4. परिवार की सत्ता साझी होती है।

प्रश्न 29.
इकाई परिवार के गुण (लाभ)।
उत्तर-

  1. इकाई परिवारों में औरतों की स्थिति ऊंची होती है।
  2. इसमें रहने-सहने का दर्जा उच्च वर्ग का होता है।
  3. व्यक्ति को मानसिक सन्तुष्टि मिलती है।
  4. व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास होता है।
  5. सदस्यों में सहयोग की भावना होती है।

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प्रश्न 30.
इकाई परिवार के अवगुण (हानियां)।
उत्तर-

  1. यदि माता या पिता में से कोई बीमार पड़ जाए तो घर के कामों में रुकावट आ जाती है।
  2. इसमें बेरोज़गार व्यक्ति का गुजारा मुश्किल से होता है।
  3. पति की मौत के पश्चात् यदि औरत अशिक्षित हो तो परिवार की पालना कठिन हो जाती है।
  4. कई बार आर्थिक मुश्किलों के कारण पति-पत्नी में लड़ाई-झगड़े होते रहते हैं।

प्रश्न 31.
संयुक्त परिवार।
उत्तर-
संयुक्त परिवार एक मुखिया की ओर से शासित अनेकों पीढ़ियों के रक्त सम्बन्धियों का एक ऐसा समूह है जिनका निवास, चूल्हा व सम्पत्ति संयुक्त होते हैं। वह सब कर्तव्यों व बन्धनों में बंधे रहते हैं। संयुक्त परिवार की विशेषताएं हैं-(1) साझा चूल्हा (2) साझा निवास (3) साझी सम्पत्ति (4) मुखिया का शासन (5) बड़ा आकार। आजकल इस प्रकार के परिवारों की बजाय केन्द्रीय परिवार चलन में आ गए हैं।

प्रश्न 32.
संयुक्त जायदाद या ‘संयुक्त सम्पत्ति’।
उत्तर-
संयुक्त परिवार में सम्पत्ति पर सभी सदस्यों का बराबर अधिकार होता है। प्रत्येक सदस्य अपनी सामर्थ्य अनुसार इस सम्पत्ति में अपना योगदान डालता है। जिस व्यक्ति को जितनी आवश्यकता होती है वह उतनी सम्पत्ति खर्च कर लेता है। परिवार का कर्त्ता साझी जायदाद की देख-रेख करता है।

प्रश्न 33.
साझा रसोई-घर।
उत्तर-
संयुक्त परिवार की सबसे महत्त्वपूर्ण विशेषता यह है कि इसके सभी सदस्य एक ही रसोई घर का इस्तेमाल करते हैं। भाव यह कि उनका खाना एक ही जगह बनता है व उसे वह इकट्ठे ही मिलकर खाते हैं। ऐसा करते समय वह अपने विचार एक-दूसरे से बांटते हैं। इससे उनका आपसी प्यार व हमदर्दी बनी रहती है।

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प्रश्न 34.
साझे परिवार में कर्ता।
उत्तर-
संयुक्त परिवार में घर के मुखिया की मुख्य भूमिका होती है जिसको कर्ता कहते हैं। परिवार का सबसे बड़ा सदस्य परिवार का मुखिया या कर्ता होता है। परिवार से सम्बन्धित सारे महत्त्वपूर्ण फैसले उसके द्वारा लिए जाते हैं। वह परिवार की साझी सम्पत्ति की देखभाल करता है। परिवार के सभी सदस्य उसकी आज्ञा का पालन करते हैं। कर्ता की मृत्यु के पश्चात् परिवार की देखभाल की ज़िम्मेदारी उसके सबसे बड़े बेटे पर आ जाती है और वह परिवार का कर्ता बन जाता है।

प्रश्न 35.
संयुक्त परिवार के गुण (लाभ)।
उत्तर-

  1. संयुक्त परिवार संस्कृति व समाज की सुरक्षा करता है।
  2. संयुक्त परिवार बच्चों का पालन-पोषण करता है।
  3. संयुक्त परिवार सामाजिक नियन्त्रण व मनोरंजन का केन्द्र होता है।
  4. संयुक्त परिवार सम्पत्ति के विभाजन को रोकता है, उत्पादन में बढ़ोत्तरी व खर्च में कमी करता है।
  5. बुजुर्गों व बीमार सदस्यों की मदद करता है।

प्रश्न 36.
संयुक्त परिवार के अवगुण (हानियां)।
उत्तर-

  1. संयुक्त परिवार में व्यक्ति के व्यक्तित्व का सम्पूर्ण विकास नहीं हो पाता।
  2. संयुक्त परिवार में औरतों का निम्न दर्जा होता है।
  3. इनमें व्यक्तियों की खाली रहने की आदत पड़ जाती है।
  4. चिंता न होने से अधिक संतान उत्पत्ति होती है।
  5. लड़ाई-झगड़े अधिक होते हैं।
  6. पति-पत्नी को एकान्त प्राप्त नहीं होता।

प्रश्न 37.
क्यों संयुक्त परिवार टूट रहे हैं ?
उत्तर-
संयुक्त परिवारों के टूटने के कई कारण हैं; जैसे-

  1. धन की बढ़ती महत्ता के कारण।
  2. पश्चिमी प्रभाव के कारण।
  3. औद्योगीकरण के बढ़ने के कारण।
  4. सामाजिक गतिशीलता के सामने आने के कारण।
  5. जनसंख्या की बढ़ती दर के कारण।
  6. यातायात के साधनों का विकास की वजह से।
  7. स्वतन्त्रता व समानता के आदर्श के सामने आने से।
  8. औरतों के आधुनिक शिक्षा प्राप्त करने से।

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प्रश्न 38.
पितृ-मुखी परिवार क्या है ?
अथवा
पितृसत्तात्मक परिवार।
उत्तर-
जैसे कि नाम से ही ज्ञात होता है कि इस प्रकार के परिवारों की सत्ता या शक्ति पूरी तरह से पिता के हाथ में होती है। परिवार के सम्पूर्ण कार्य पिता के हाथ में होते हैं। वह ही परिवार का कर्ता होता है। परिवार के सभी छोटे या बड़े कार्यों में पिता का ही कहना माना जाता है। परिवार के सभी सदस्यों पर पिता का ही नियन्त्रण होता है। इस तरह का परिवार पिता के नाम पर ही चलता है। पिता के वंश का नाम पुत्र को मिलता है व पिता के वंश का महत्त्व होता है। आजकल इस प्रकार के परिवार मिलते हैं।

प्रश्न 39.
मातृ-वंशी परिवार।
अथवा
मातृसत्तात्मक परिवार।
उत्तर-
जैसे कि नाम से ही स्पष्ट है कि परिवार में सत्ता या शक्ति माता के हाथ ही होती है। बच्चों पर माता के रिश्तेदारों का अधिकार अधिक होता है न कि पिता के रिश्तेदारों का। स्त्री ही मूल पूर्वज मानी जाती है। सम्पत्ति का वारिस पुत्र नहीं बल्कि मां का भाई या भांजा होता है। परिवार मां के नाम से चलता है। इस प्रकार का परिवार भारत में कुछ कबीलों में जैसे गारो, खासी आदि में मिल जाता है।

प्रश्न 40.
परिवार के मुख्य कार्य बताओ।
उत्तर-

  1. लैंगिक सम्बन्धों की पूर्ति करता है।
  2. सन्तान पैदा करना।
  3. सदस्यों की सुरक्षा व पालन-पोषण करता है।
  4. सम्पत्ति की देखभाल व आय-व्यय का प्रबन्ध करता है।
  5. धर्म की शिक्षा देना।
  6. बच्चों का समाजीकरण करता है।
  7. संस्कृति का संचार व विकास करता है।
  8. परिवार सामाजिक नियन्त्रण में मदद करता है।

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प्रश्न 41.
परिवार के कार्यों में परिवर्तन।
उत्तर-

  1. परिवार अधिकतर प्रगतिशील हो रहे हैं।
  2. धार्मिक उत्तरदायित्वों की पालना की भावना कम हो रही है।
  3. पारिवारिक महत्त्व काफ़ी कम हो गया है।
  4. औरतें काम करने के लिए बाहर जाती हैं, इसलिए उनके काम बदल रहे हैं।
  5. संयुक्त परिवार कम हो रहे हैं।

प्रश्न 42.
रक्त सम्बन्धी परिवार।
उत्तर-
इस प्रकार के परिवार में रक्त-सम्बन्ध का स्थान सर्वोच्च होता है। इनमें किसी प्रकार के लिंग सम्बन्ध नहीं होते। इसमें पति-पत्नी भी होते हैं परन्तु वह परिवार के आधार नहीं होते। इसमें सदस्यता जन्म पर आधारित होती है। तलाक भी इन परिवारों को भिन्न नहीं कर सकता और यह स्थाई होते हैं।

प्रश्न 43.
पितृ स्थानीय परिवार।
उत्तर-
इस प्रकार के परिवार में लड़की विवाह के उपरान्त अपने पिता का घर छोड़कर अपने पति के घर जाकर रहने लग जाती है और पति के माता-पिता व पति के साथ वहीं घर बसाती है। इस प्रकार के परिवार आमतौर से प्रत्येक समाज में मिल जाते हैं।

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प्रश्न 44.
नव स्थानीय परिवार।
उत्तर-
इस प्रकार के परिवार पहली दोनों किस्मों से भिन्न हैं। इसमें पति-पत्नी कोई भी एक-दूसरे के पिता के घर जाकर नहीं रहते बल्कि वह किसी और स्थान पर जाकर नया घर बसाते हैं। इसलिए इसको नव स्थानीय परिवार कहते हैं। आजकल के औद्योगिक समाज में इस तरह के परिवार आम पाए जाते हैं।

प्रश्न 45.
नातेदारी क्या होती है ?
अथवा
नातेदारी।
उत्तर-
चार्लस विनिक के अनुसार, “नातेदारी व्यवस्था में वे सम्बन्ध शामिल किये जाते हैं जोकि कल्पित या वास्तविक वंश परम्परागत बन्धनों के ऊपर आधारित एवं समाज के द्वारा प्रभावित होते हैं।”

प्रश्न 46.
नातेदारी को कितने भागों में बांटा जा सकता है?
उत्तर-
निम्न तीन में बांटा जा सकता है-

  1. व्यावहारिक नातेदारी।
  2. सगोत्र नातेदारी।
  3. कल्पित या रस्मी नातेदारी।

प्रश्न 47.
सगोत्र नातेदारी क्या होती है ?
उत्तर-
वह सभी व्यक्ति जिनमें रक्त का बन्धन है, सगोत्र नातेदारी का ही भाग होते हैं। रक्त का सम्बन्ध यद्यपि वास्तविक हो या कल्पित तो ही इसी आधार के ऊपर सम्बन्धित व्यक्तियों को नातेदारी व्यवस्था में स्थान प्राप्त है यदि इसको सामाजिक मान्यता प्राप्त होती है।

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प्रश्न 48.
वंश समूह क्या होता है ?
उत्तर-
वंश समूह माता या पिता में से किसी एक के रक्त सम्बन्धियों से मिलकर बनता है। इन सभी सम्बन्धियों के किसी एक स्त्री या पुरुष के साथ वास्तविक वंश परम्परागत होते (Ties) हैं। सभी सदस्य वास्तविक साझे पूर्वज की सन्तान होने के कारण अपने वंश समूह में विवाह नहीं करवाते। इस प्रकार वंश समूह उन रक्त के सम्बन्धियों का समूह होता है। जो साझे पूर्वज की एक रेखकी सन्तान होते है और जिनकी पहचान को अनुरेखित किया जाता
है।

प्रश्न 49.
गोत्र क्या होते हैं ?
उत्तर-
गोत्र वंश समूह का ही विस्तृत रूप है, जोकि माता-पिता के किसी एक के अनुरेखित रक्त सम्बन्धियों से मिलकर बनता है। इस तरह गोत्र रिश्तेदारों का समूह होता है, जो किसी साझे पूर्वज की एक रेखकी सन्तान होती है। पूर्वज आमतौर पर कल्पित ही होते हैं। क्योंकि इनके बारे में किसी को कुछ पता नहीं होता है। यह बहिर्विवाही समूह होते हैं।

प्रश्न 50.
वैवाहिक नातेदारी।
उत्तर-
वैवाहिक नातेदारी पति-पत्नी के यौन सम्बन्धों पर आधारित होती है। यद्यपि उनमें कोई रक्त सम्बन्ध नहीं होता। परन्तु उनमें विवाह के बाद सम्बन्ध स्थापित हो जाते हैं। विवाह के बाद व्यक्ति को पति के साथ जवाई, फूफड़, जीजा, सांदू आदि के रुतबे हासिल होते हैं। इस तरह स्त्री को भी पत्नी के साथ-साथ, देवराणी, जेठानी, चाची, ताई इत्यादि का रुतबा प्राप्त होता है। इस तरह के रुतबों को वैवाहिक नातेदारी का नाम दिया जाता है।

बड़े उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
विवाह की विशेषताओं का वर्णन करें।
उत्तर-
विवाह की विशेषताओं का वर्णन नीचे दिया गया है-
1. विवाह एक सर्वव्यापक संस्था है (It is an universal insitutions)-विवाह की संस्था चाहे प्राचीन थी, चाहे आधुनिक है, सभी समाजों में पाई जाती है। यह सर्वव्यापक है। इस संस्था के बिना किसी स्थिर समाज की हम कल्पना तक नहीं कर सकते।

2. इस संस्था के द्वारा आदमी व औरत के लैंगिक सम्बन्धों को सामाजिक मान्यता प्राप्त होती है (Social sanction)-बिना सामाजिक मान्यता के यह सम्बन्ध गैर कानूनी करार दिए जाते हैं। इस संस्था का सदस्य बन कर व्यक्ति अपने दूसरे अधिकारों को भी जान जाता है व उसका दायरा कुछ सीमित हो जाता है।

3. दो विरोधी लिंगों का सम्बन्ध इस संस्था को जन्म देता है (Development of institution)-इससे मानव अपनी जैविक ज़रूरत को भी पूरा कर लेता है। पशुओं में भी विरोधी लिंगों का मेल होता है। लेकिन मानवों के इस मेल के द्वारा विवाह की संस्था का जन्म होता है परन्तु जानवरों का इस संस्था से किसी प्रकार का सम्बन्ध नहीं होता।

4. विवाह की संस्था के द्वारा व्यक्ति को सामाजिक स्थिति भी प्राप्त हो जाती है (Provide social status)-विवाह के पश्चात् पुरुष व स्त्री, पति-पत्नी के रूप में स्वीकृत किए जाते हैं। बच्चा पैदा होने के बाद उनकी सामाजिक स्थिति माता-पिता से सम्बन्धित हो जाती है जिसके साथ परिवार का जन्म हो जाता है।

5. विवाह को एक समझौता भी समझा जाता है (Social Contract)—इसमें आदमी व औरत न केवल अपनी लिंग इच्छाओं की पूर्ति करते हैं बल्कि बच्चों के पालन-पोषण का बोझ भी सम्भालते हैं व पारिवारिक उत्तरदायित्वों को भी अदा किया जाता है।

6. विवाह के प्रकार अलग-अलग समाजों में अलग-अलग पाए जाते हैं (Different types in different societies)—प्रत्येक समाज की अपनी ही संस्कृति होती है जिसकी सुरक्षा से बाकी संस्थाएं जुड़ी होती हैं। उदाहरण के लिए मुसलमानों की संस्कृति एक से अधिक विवाह की आज्ञा दे देती है परन्तु हिन्दुओं की संस्कृति इसके विपरीत है अर्थात् एक से अधिक विवाह को सामाजिक स्वीकृति प्राप्त नहीं होती।

7. विवाह के द्वारा व्यक्ति को कानूनन मान्यता प्राप्त हो जाती है (Legal Sanction)-इससे पुरुष व स्त्री के विवाह सम्बन्ध भी स्थापित हो जाते हैं।

8. इस संस्था के द्वारा धार्मिक रीति-रिवाज भी सुरक्षित रहते हैं। चाहे आधुनिक समय में कोर्ट-मैरिज होने लगी है, परन्तु धार्मिक संस्कार अभी भी इस संस्था से जुड़े हुए हैं।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 7 विवाह, परिवार तथा नातेदारी

प्रश्न 2.
एक विवाह का क्या अर्थ है ? इसके कारणों, लाभों तथा कमियों का वर्णन करें।
उत्तर-
आधुनिक समय में अधिकतर पाई जाने वाली विवाह का प्रकार ‘एक विवाह’ है। एक विवाह का अर्थ है जब एक आदमी, एक समय एक ही औरत से या एक औरत, एक समय, एक ही आदमी से विवाह करवाती है तो इसको एक विवाह का नाम दिया गया है। आजकल के सांस्कृतिक समाजों में इसको काफ़ी महत्ता प्राप्त है।

मैलिनोवस्की (Malinoviski) के अनुसार, “एक विवाह ही, विवाह का वास्तविक प्रकार है, जो पाई जा रही है व पाई जाती रहेगी।”
पीडीगंटन (Piddington) के अनुसार, “एक विवाह, विवाह का वह स्वरूप है, जिसके द्वारा कोई भी व्यक्ति एक से अधिक स्त्रियों के साथ एक ही समय पर विवाह सम्बन्ध स्थापित नहीं कर सकता।”

वुकेनोविक के अनुसार, “उसी विवाह को एक विवाह कहना ठीक होता है, जिसमें न केवल एक व्यक्ति की पत्नी या पति हो, बल्कि किसी की भी मौत हो जाने पर दूसरा विवाह न करे। आमतौर पर एक पति या पत्नी के जीते जी किसी से न विवाह करना ही एक विवाह माना जाता है।”

भारतीय समाज में हिन्दू धर्म के अनुसार भी एक विवाह को ही आदर्श विवाह माना जाता है। प्राचीन समय से ही स्त्री के लिए उसका पति ही परमेश्वर होता था। पति की मौत के साथ वह औरत आप भी सती होना बेहतर समझती थी। भारत में हिन्दू मैरिज एक्ट 1955 के अधीन भी बहु-विवाह को समाप्त कर दिया गया व एक विवाह करने की ही स्वीकृति हो गई। आधुनिक समय में तो कानून इतने सख्त हैं कि तलाक लिए बिना आदमी व औरत दूसरा विवाह नहीं करवा सकते। कुछ हालातों में दूसरे विवाह की इजाजत दी गई जैसे सन्तान न होने की सूरत में. पति या पत्नी में कोई एक ला-इलाज बीमारी से सम्बन्धित हो आदि।

कारण (Causes)-

1. आधुनिक समाज में एक विवाह की प्रथा ही प्रचलित रही है। इस प्रथा के आने से ही हमारे समाज में भी प्रगति हुई है। जहां एक विवाह की प्रथा पाई गई उस समाज में प्रगति भी अधिक हुई। समाज की प्रगति के लिए भी एक विवाह को आवश्यक समझा गया।

2. स्त्रियों व पुरुषों की जनसंख्या की दर में बराबरी पाए जाने के कारण भी एक विवाह ही ज़रूरी समझा गया। इस अनुपात की बराबरी के कारण समाज में स्थिरता भी आ गई।

3. एकाधिकार की भावना के कारण भी एक विवाह को स्वीकृति प्राप्त हुई। आदिम समाज में जब विवाह की संस्था अधिक नियमित नहीं थी हुई तो कोई भी आदमी, किसी भी औरत से सम्बन्ध रख लेता था। कुछ देर के बाद उनमें ईर्ष्या की भावना पैदा होनी शुरू हो गई क्योंकि प्रत्येक आदमी यह इच्छा रखने लगा कि उसकी औरत, दूसरे आदमी के पास न जाए। उस समय जो आदमी शारीरिक तौर पर अधिक बलवान् थे, उन्होंने स्त्री पर एकाधिकार रखना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे आजकल के समय में आदमी व औरत दोनों के द्वारा एकाधिकार की भावना को अपनाया जाने लगा व आधुनिक समाज में एक विवाह के प्रकार को अपनाया गया।

4. प्राचीन समय में स्त्री का मूल्य रखा जाता था। जो भी पुरुष उस कीमत को अदा कर देता था उसको वह स्त्री दे दी जाती थी। इसके अतिरिक्त परिवार की स्थिरता के कारण एक पुरुष व एक स्त्री का विवाह प्रचलित था।

एक विवाह के लाभ (Advantages of Monogamy)-

1. स्त्रियों की स्थिति में परिवर्तन (Change in the Status of Women)–प्राचीन समय से स्त्रियों की समाज में काफ़ी निम्न स्थिति थी। पुरुष ने जिस तरह चाहा, उसी तरह का स्त्री से व्यवहार किया। यहां तक कि आश्रम व्यवस्था में स्त्री ब्रह्मचर्य आश्रम में प्रवेश नहीं कर सकती थी। उस का कार्य केवल बच्चे पैदा करना, घर का काम करना इत्यादि तक सीमित था।

इसके अतिरिक्त यदि जाति-प्रथा पर नजर डालें तो वहां भी औरत के जन्म को बुरा समझा जाता था। बिना पुरुष के उसको समाज में जीने का कोई अधिकार नहीं होता था वह पति की मौत पर अपने आप को सती कर देती थी। धीरे-धीरे जब शिक्षा के क्षेत्र में परिवर्तन हुआ तो उनकी स्थिति पुरुषों के समान हो गई। इसी कारण एक विवाह की प्रथा के साथ स्त्री ने अपनी स्थिति को स्त्री के समान ही समझा। इस विवाह के प्रकार ने स्त्री की स्थिति में अधिक परिवर्तन किया।

2. बच्चों का पालन-पोषण (Up-bringing of Children)-एक विवाह के प्रकार के आधार पर जो परिवार पाया गया, उसमें बच्चों की परवरिश पहले से अधिक अच्छे ढंग से हो गई। दूसरे विवाह के प्रकारों में बच्चों में ईर्ष्या की भावना रहती थी। यहां तक कि परिवार के सभी सदस्यों में प्यार केवल दिखावा मात्र तक ही सीमित था। इस विवाह की किस्म से माता-पिता द्वारा बच्चों को सम्पूर्ण प्यार प्राप्त हुआ। उनकी हर तरह की ज़रूरतों की ओर ध्यान दिया गया। बच्चों में योग्यता व ज्ञान बढ़ा। उसके व्यक्तित्व का भी विकास हुआ।

3. परिवार की स्थिरता (Stability of Family)-एक विवाह से परिवार पहले से अधिक स्थिर हो गए। आदमी व औरत को एक-दूसरे के विचार समझने का मौका मिला। परिवार तब तक प्रगति नहीं कर सकता जब तक पुरुष व स्त्री दोनों में सूझ-बूझ न हो। बहु-विवाह में लड़ाई-झगड़ा अधिक रहता था, न तो पुरुष स्त्री को पूरा प्यार दे सकता था न ही स्त्री पुरुष को पूरा प्यार दे सकती थी। तनाव की स्थिति तकरीबन विकसित रहती थी। इस स्थिति का प्रभाव बच्चों पर पड़ता था जिससे बच्चों का सम्पूर्ण विकास नहीं हो सकता था। इसी कारण एक विवाह की प्रथा के द्वारा ही पारिवारिक जिन्दगी को अधिक स्थिरता प्राप्त हुई।

4. जायदाद का विभाजन (Division of Property)-जायदाद का विभाजन बहु-विवाह में एक समस्या बन जाती थी। कई बार तो भाई-भाई आपस में एक-दूसरे को मारने के लिए भी तैयार हो जाते थे। परन्तु एक विवाह की प्रथा में इस समस्या का हल हो गया। व्यक्ति की मृत्यु के पश्चात् उसकी जायदाद उसके बच्चों में बराबरी से विभाजित कर दी जाती थी।

5. रहन-सहन का उच्च-स्तर (Higher Standard of living)-आधुनिक समय में व्यक्ति की ज़िन्दगी प्राचीन समय से अधिक आरामदायक हो गई। एक पुरुष को केवल एक ही स्त्री व एक स्त्री को केवल एक ही पुरुष की देखभाल करनी पड़ती थी। हरेक व्यक्ति अपने बच्चों को अपनी इच्छा अनुसार अधिक-से-अधिक अच्छी शिक्षा दे सकता है व अपने आराम की सहूलतें भी प्राप्त कर लेता है। बहु-विवाह की प्रथा में अधिक बच्चों की परवरिश भी मुश्किल हो जाती थी। एक विवाह की प्रथा से सीमित परिवार को ज्यादातर अपनाया गया।

एक विवाह की कमियां (Demerits of Monogamy)-

1. एक विवाह की प्रथा में जब स्त्री बच्चा पैदा करने की अवस्था में होती है तो वह पुरुष को पूरा सहयोग नहीं दे सकती इसके अतिरिक्त बीमारी के समय पुरुष अपनी लैंगिक इच्छा की पूर्ति के लिए घर से बाहर जाना शुरू हो गया जिससे वेश्याओं को समाज में जगह मिल गई। कई स्थितियों में पुरुष व स्त्री को मजबूरन इकटे रहना पड़ता है चाहे उनमें आपसी प्यार न हो तो भी पुरुष व स्त्री दोनों अपनी जैविक भूख को मिटाने के लिए घर से बाहर जाने लगे हैं।

2. दूसरी कमी एक विवाह की प्रथा का कारण यह रहा कि यदि घर में पति या पत्नी दोनों में से कोई भी एक बीमार हो या दोनों, ऐसी स्थिति में घर बिलकुल बेहाल हो जाता है। बच्चों को खाने-पीने की समस्या का सामना करना पड़ जाता है व कई मनोवैज्ञानिक समस्याओं का भी सामना करना पड़ सकता है।

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प्रश्न 3.
बहु-विवाह की परिभाषाओं, प्रकारों, कारणों, लाभों तथा हानियों सहित व्याख्या करें।
उत्तर-
बहु-विवाह का अर्थ है जब तक एक से अधिक आदमी या औरतों से विवाह करने की स्वीकृति हो, उसको बह-विवाह का नाम दिया गया है। बलसेरा (Balsera) के अनुसार, “विवाह की वह प्रकार जिसमें पतियों व पत्नियों की बहुलता होती है, वह बहु-विवाह कहलाता है।”
बहु-विवाह के आगे भी कुछ प्रकार पाए गए हैं जो निम्नलिखित अनुसार है-

  1. दो-पत्नी विवाह (Bigamy)
  2. बहु-पत्नी विवाह (Polygyny)
  3. बहु-पति विवाह (Polyandry)

दो-पत्नी विवाह (Bigamy)-विवाह की इस प्रथा में एक पुरुष को केवल दो स्त्रियों से विवाह करवाने की आज्ञा होती है। विवाह का यह प्रकार पंजाब में भी प्रचलित रहा था।

बहु-पत्नी विवाह (Polygyny) विवाह के इस प्रकार का अर्थ है जब एक पुरुष का विवाह अधिक स्त्रियों से कर दिया जाता है, तो उसको बहु-पत्नी विवाह कहा जाता है।

के० एम० कपाड़िया (Kapadia) के अनुसार, “बहु-पत्नी विवाह, विवाह का वह प्रकार होता है, जिसमें पुरुष एक ही समय एक से अधिक स्त्रियां रख सकता है।”
जी० डी० मिचैल (G.D. Mitchell) के अनुसार, “एक पुरुष यदि एक से अधिक स्त्रियों से विवाह करवाता है तो उसको बहु-पत्नी विवाह का नाम दिया जाता है।

यह दो प्रकार का होता है :

  1. प्रतिबन्धित बहु-पत्नी विवाह (Restricted Polygyny Marriage) .
  2. अप्रतिबन्धित बहु-पत्नी विवाह (Unrestricted Polygyny Marriage)

प्रतिबन्धित बहु-पत्नी विवाह (Restricted Polygyny)-बहु-पत्नी विवाह के इस प्रकार में पत्नियों की संख्या सीमित कर दी जाती है। व्यक्ति उस सीमा से अधिक पत्नियां व्यक्ति नहीं रख सकता। मुसलमानों में प्रतिबन्धित बहु-पत्नी विवाह की प्रथा अनुसार एक व्यक्ति के लिए पत्नियों की संख्या भी निश्चित कर दी जाती है।

अप्रतिबन्धित बहु-पत्नी विवाह (Unrestricted Polygyny)–इस प्रथा के अनुसार कोई भी पुरुष जितनी मर्जी पत्नियां रख सकता है। भारत में भी प्राचीन समय में विवाह की यह प्रथा ही प्रचलित थी।

बहु-पत्नी विवाह के कारण (Causes of Polygyny)-वैस्टर मार्क ने बहु-पत्नी विवाह के कई कारण दिए हैं जो निम्नलिखित हैं-

  1. स्त्रियों के पुरुषों से जल्दी बूढ़े हो जाने के कारण बहु-पत्नी विवाह प्रचलित रहा। बच्चा पैदा होने के पश्चात् स्त्रियों की सेहत भी कमजोर हो जाती थी। ऐसा अधिकतर असभ्य समाजों में पाया गया है।
  2. विवाह के पश्चात् कुछ समय स्त्री व पुरुष के वैवाहिक सम्बन्धों पर पाबन्दी लगा दी जाती थी। उदाहरण के तौर पर गर्भवती स्त्री के लिए भी यौन सम्बन्धों पर पाबन्दी होती थी। इस कारण भी एक से अधिक विवाह की आज्ञा दी जाती थी।
  3. पुरुषों में अधिक यौन सम्बन्धों की इच्छा भी इस विवाह के कारणों में मुख्य थी व कई बार पुरुषों द्वारा परिवर्तन चाहने के कारण भी बहु-पत्नी विवाह प्रचलित था।
  4. विशाल परिवार को प्राचीन समय में अच्छा दर्जा प्राप्त होता था। बड़े आकार के परिवार की इच्छा भी बहुपत्नी विवाह को प्रभावित करती थी।
  5. प्राचीन कबीले-समाजों में समाज को सम्मान प्राप्त करने के लिए भी कबीले के सरदार एक से अधिक विवाह करवाने में विश्वास रखते थे। क्योंकि लोग उसको अधिक अमीर परिवार से सम्बन्धित कर देते थे।

बहु-पत्नी विवाह के लाभ (Merits of Polygyny)-

  1. बहु-पत्नी विवाह की प्रथा से बच्चों का पालनपोषण बहुत बढ़िया ढंग से हो जाता था क्योंकि कई औरतें मिल कर उनकी देखभाल कर लेती थीं। यदि एक औरत बीमार हो जाती थी तो दूसरी औरत उसके बच्चों को रोटी इत्यादि दे देती थी।
  2. इस विवाह का लाभ यह भी था कि वेश्याओं के पास पुरुष को जाकर पैसा बर्बाद करने की ज़रूरत नहीं पड़ती थी। घर में ही उसको अधिक काम इच्छा के लिए आवश्यक नवीनता भी प्राप्त हो जाती थी। इसकारण घर की सम्पत्ति भी सुरक्षित रहती थी।
  3. इस प्रथा से बच्चे भी स्वस्थ होते थे। क्योंकि एक स्त्री को ही अकेले बहुत बच्चों को जन्म देने के लिए उपयोग नहीं किया जाता था।
  4. बहु-पत्नी विवाह से जब कुलीन विवाह पाया गया तो निम्न जाति की लड़की भी उच्च जाति के लड़के से शादी करने लगी जिसके परिणामस्वरूप समाज में भाईचारे की भावना भी अधिक जागृत हुई।

बहु-पत्नी विवाह की हानियां (Demerits of Polygyny)-

  1. बहु-पत्नी विवाह की सबसे बड़ी कमी यह थी कि स्त्रियों का दर्जा समाज में बहुत निम्न था। क्योंकि स्त्री को केवल पुरुष के मनोरंजन के साधन रूप में ही समझा जाता था। आदमी के लिए औरत के प्रति प्यार की भावना नहीं थी बल्कि वह उसको केवल लिंग इच्छा की पूर्ति से ही सम्बन्ध रखता था। औरत की भावनाओं की ओर बिल्कुल ध्यान नहीं दिया जाता था। समाज में तो औरत की कोई पहचान ही नहीं थी।
  2. स्त्रियां जब लैंगिक इच्छाओं की पूर्ति से अधूरी रह जाती थी तो वह घर से बाहर जाकर अपने यौन सम्बन्ध कायम करने लग जाती थी क्योंकि एक पुरुष बहु-पत्नियों से विवाह करवा कर अपनी सन्तुष्टि तो कर सकता है परन्तु स्त्रियों की सन्तुष्टि नहीं हो सकती।
  3. परिवार में विवाह की इस प्रथा के साथ-माहौल दुःखदायक ही रह जाता था क्योंकि अधिक पत्नियां होने से आपस में लड़ाई-झगड़ा लगा रहता था।
  4. बहु-पत्नी विवाह की प्रथा के कारण समाज में परिवार के मुखिया पर आर्थिक बोझ अधिक होता था क्योंकि कमाने वाला एक होता था व बाकी परिवार के सभी सदस्य उस पर ही निर्भर होते थे। परिवार के रहन-सहन का दर्जा काफ़ी निम्न हो जाता था।
  5. बहु-पत्नी विवाह में परिवार का आकार बड़ा होता था जिस कारण मनोवैज्ञानिक समस्याएं पैदा रहती थीं।

प्रश्न 4.
बहु-पति विवाह के प्रकारों, कारणों, लाभों तथा हानियों सहित व्याख्या करें।
उत्तर-
संसार के कई समाजों में बहु-पति विवाह की प्रथा प्रचलित है। बहु-पति विवाह का अर्थ विवाह की वह प्रथा है जिसमें एक औरत एक ही समय में एक से अधिक आदमियों से विवाह करवाए। उसको बह-पति विवाह का नाम दिया जाता है। अधिकतर यह विवाह तिब्बत (Tibet) पोलीनेशिया (Polynesia) के मार्कयूज़नीम, मालाबार के टोडा (Todas) मलायाद्वीप के कुछ कबीलों में अभी भी प्रचलित है। हिन्दू धर्म ग्रन्थों में महाभारत के अनुसार पांच पाण्डव भाइयों की भी एक ही पत्नी थी। भारत में देहरादून के खस कबीले, मध्य भारत के टोडा कबीले, केरल के कोट कबीले में भी बह-पति विवाह की प्रथा अभी भी प्रचलित है। इसके अतिरिक्त कई पहाडी कबीलों में भी इसी प्रथा को मान्यता प्राप्त हुई है। बहु-पति विवाह के बारे अलग-अलग विद्वानों के विचार नीचे दिए जा रहे हैं-

के० एम० कपाड़िया (K.M. Kapadia) के अनुसार, “बहु-पति विवाह एक ऐसी संस्था है जिसमें एक स्त्री के एक ही समय एक से अधिक पति होते हैं या इस प्रथा के अनुसार सभी भाइयों की सामूहिक रूप से एक पत्नी या कई पत्नियां होती हैं।” ___* जी० डी० मिचैल (G. D. Mitchell) के अनुसार, “एक स्त्री का दो या दो से अधिक पुरुषों से विवाह की प्रथा बहु-पति विवाह है।” इस प्रकार जिस विवाह में एक स्त्री के एक से अधिक पति हों को बहु-पति विवाह कहा जाता है।

बहु-पति विवाह के प्रकार (Types of Polyandrous Marriage)-बहु-पति विवाह के दो मुख्य रूप पाए होते हैं :

  1. भ्रातृ बहु-पति विवाह (Fraternal Polyandry)
  2. गैर-भ्रातृ बहु-पति विवाह (Non-Fraternal Polyandry)

भ्रातृ बहु-पति विवाह (Fraternal Polyandry)-बहु-पति विवाह के इस प्रकार के अनुसार स्त्री के सभी पति आपस में भाई होते हैं। बड़े भाई को बच्चे का पिता समझा जाता था व बाकी छोटे भाई उस औरत के पति होते हैं व वह अपने बड़े भाई की आज्ञा के बिना यौन सम्बन्ध नहीं स्थापित कर सकते थे। घर में बड़े भाई की आज्ञा ही चलती थी व उसकी ही ज़िम्मेदारी होती थी कि वह बच्चों का पालन-पोषण करे। विवाह के पश्चात् यदि पति का और भाई भी जन्म लेता है तो उसको भी उस औरत का पति ही समझा जाता था। यदि बड़े के अलावा कोई और भाई भी किसी और जगह विवाह कर ले तो भी उसकी औरत के बाकी भाइयों से पत्नी वाले सम्बन्ध ही होते थे। यदि भाई इस बात को न मानें, अपनी पत्नी पर केवल अपना अधिकार ही समझे तो उसको जायदाद में से बेदखल कर दिया जाता था। भारत में नीलगिरी, लद्दाख, सिक्किम, असम इत्यादि में भी यह प्रथा पाई जाती है।

गैर-भ्रातृ बहुपति विवाह (Non-Fraternal Polyandry)-बहुपति विवाह के इस प्रकार में स्त्री के सभी पति भाई नहीं होते बल्कि वह सब अलग-अलग स्थान पर रहते हैं। औरत के लिए समय निश्चित किया जाता है कि उसने कितने समय के लिए एक पति के पास रहना है। निश्चित समय समाप्त होने पर वह दूसरे पति के साथ रहती है। इस प्रकार बारी-बारी वह सब पतियों के साथ रहती है। इस प्रकार में यदि स्त्री की मृत्यु हो जाए तो सारे पतियों को विधुर सा जीवन जीना पड़ता है। कई कबीले जिनमें यह प्रथा पाई जाती है तो सब जब स्त्री गर्भवती होती है तो गर्भ अवस्था में जो पति उसको तीरकमान भेंट करता है तो उसी को बच्चे का पिता स्वीकार कर लिया जाता है व बारी-बारी सभी पतियों को इस रस्म के अदा करने का अधिकार दिया जाता है। इस प्रकार इस प्रथा अनुसार यह भी नियम होता है कि एक निश्चित समय के लिए वह जिस पति के साथ रह रही होती है तो बाकी पतियों के उसके साथ लिंग सम्बन्धों की आज्ञा नहीं होती।

बहु-पति विवाह के कारण (Causes of Polyandry)-

1. प्राचीन कबीलों में रहते हुए लोगों के लिए एक व्यक्ति द्वारा पूरे परिवार की ज़िम्मेदारी उठानी मुश्किल होती थी जिस कारण व्यक्ति मिल कर एक स्त्री से विवाह करवा लेते थे। डॉ० कपाड़िया के अनुसार यह प्रथा कठोर प्राकृतिक परिस्थितियों के कारण भी पाई जाती थी। प्राचीन समय में रोजी रोटी के लिए व्यक्ति को बहुत लम्बा समय अपने परिवार से दूर रहना पड़ता था इस कारण कुछ व्यक्ति इस काम में व्यस्त रहते थे व बाकी पुरुष परिवार की देख-रेख के लिए घर रहते थे।

2. बढ़ती हुई जनसंख्या को सीमित करने के लिए भी विवाह की यह प्रथा पाई गई। इसमें परिवार सीमित रहता है। क्योंकि बच्चे कम पैदा होते हैं।

3. कई स्थानों पर रोजी रोटी के साधन सीमित होने के कारण भी यह प्रथा पाई गई क्योंकि कमाने वालों की संख्या सीमित साधनों के कारण अधिक थी व खाने वाले कम हो जाते थे, जिससे उनमें खुशहाली भी थी।

4. कई समाज शास्त्रियों के अनुसार विवाह की इस प्रथा के प्रचलित होने का कारण औरतों की संख्या का मर्दो की संख्या से कम होना भी है। ___5. कुछ क्षेत्रों में लड़की की कीमत अदा करने पर ही उसको पत्नी बनाया जा सकता था व कई बार लड़की की कीमत इतनी अधिक होती थी कि अकेले व्यक्ति की हैसियत से बाहर होती थी। इस कारण कई व्यक्ति मिलकर उसको पत्नी बनाने के लिए कीमत अदा करने के काबिल होते थे। इसी कारण वह सभी मिलकर एक ही औरत को अपनी पत्नी स्वीकार कर लेते थे।

बहुपति विवाह के लाभ (Merits of Polyandry)-
1. बहु-पति विवाह की प्रथा से जनसंख्या सीमित की जा सकती है क्योंकि कई समाजों में ग़रीबी का कारण भी बढ़ती. आबादी द्वारा होता है, इस प्रथा से बच्चों की संख्या कम हो जाती है।

2. इस प्रथा से जैसे जनसंख्या सीमित होती है उसी तरह रहन-सहन का दर्जा ऊंचा हो जाता है, क्योंकि कमाने वाले पर परिवार का बोझ काफ़ी कम होता है। कमाने वालों की संख्या अधिक होती है जिस कारण परिवार पर किसी प्रकार का आर्थिक बोझ नहीं पड़ता।

3. संयुक्त परिवार इस प्रथा के द्वारा ही पाया जाता है व साथ ही परिवार का आकार भी सीमित होता है। इस कारण लड़ाई-झगड़े भी कम हो जाते हैं क्योंकि प्रत्येक परिवार का सदस्य, परिवार के साझे लाभ के लिए ही मेहनत करता है।

4. बहुपति विवाह की प्रथा में बच्चों का पालन-पोषण अधिक स्थिर ढंग से होता है क्योंकि बच्चों की परवरिश की ज़िम्मेदारी परिवार के सभी सदस्यों की साझी होती है। माता व पिता का प्यार जो बच्चों के व्यक्तित्व के निर्माण के लिए पाया जाता है, भी बच्चों को प्राप्त हो जाता है। संघर्ष की स्थिति बहुत कम पाई जाती है।

बहुपति विवाह की हानियाँ (Demerits of Polyandry)-
1. बहुपति विवाह का सबसे बड़ा नुकसान औरतों के स्वास्थ्य से सम्बन्धित होता है क्योंकि एक स्त्री को कितने ही पुरुषों की लैंगिक इच्छा की पूर्ति करनी पड़ती है जिस कारण उनका स्वास्थ्य कमज़ोर हो जाता था।

2. विवाह की इस प्रथा से जन्म दर बहुत कम होती थी। यदि यह विवाह कुछ कबीलों में विकसित रहा तो आने वाले वर्षों में हो सकता है कि समाज भी समाप्त हो जाए।

3. सभी पुरुषों की काम वासना पूरी नहीं की जा सकती क्योंकि औरत के लिए प्रत्येक आदमी के पास रहने का समय निश्चित किया जाता है। जब वह निश्चित समय एक आदमी के पास रह रही होती है तो बाकी आदमियों को उसके साथ सहवास करने की मनाही होती है। ऐसी स्थिति में आदमी अपनी काम इच्छा की पूर्ति के लिए घर से बाहर निकल जाते हैं। इस प्रकार परिवार व समाज दोनों के बीच झगड़े से अनैतिकता में अधिकता पाई जाती है।

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प्रश्न 5.
विवाह की संस्था में आ रहे परिवर्तनों का वर्णन करो।
उत्तर-
1. सरकार द्वारा लाए गए परिवर्तन-जब विवाह को एक संस्था के रूप में समाज द्वारा मान्यता प्राप्त हुई तो इस संस्था में कई प्रकार के परिवर्तन भी लाए गए। विवाह सम्बन्धी कानून पास किए गए जिनमें हिन्दू मैरिज एक्ट सन् 1955 (Hindu Marriage Act 1955) में पास किया गया। इस कानून के तहत बहु-विवाह की प्रथा पर पाबन्दी लगा दी गई। एक विवाह को ही समाज द्वारा स्वीकारा गया व एक आदर्श विवाह भी माना गया। बाल विवाह जैसी बुराई जो बहुत समय से इस समाज में चली आ रही थी, को भी समाप्त किया गया व कानून की उल्लंघना करने वाले को कठोर सज़ा दिए जाने का भी प्रावधान बना। तलाक सम्बन्धी कानून भी पास किया ताकि आदमी व औरत की ज़िन्दगी तनाव भरपूर न रहे। पुराने समय में औरत से चाहे पति दुर्व्यवहार करे तो भी उसको अपनी सारी ज़िन्दगी बितानी पड़ती थी परन्तु अब आदमी व औरत दोनों को छूट दी गई है कि कोई भी अपने कानूनी अधिकारों का इस्तेमाल कर सकता है ताकि सुख से भरपूर जीवन व्यतीत कर सके।

2. विवाह को सामाजिक समझौते से सम्बन्धित किया गया-पुरानी विचारधारा के अनुसार आदमी व औरत के लिए विवाह एक धार्मिक बन्धन तक ही सीमित होता था, परन्तु आजकल की विचारधारा के अनुसार विवाह को इस बात तक सही बताया कि यदि पुरुष व स्त्री के बीच अच्छे सम्बन्ध हैं तो ठीक है, नहीं तो इस समझौते को तोड़ा भी जा सकता है। कई हालातों में जबरदस्ती विवाह कर दिया जाता है तो बाद में सुखी जीवन व्यतीत करने के लिए पति-पत्नी के द्वारा आप भी फ़ैसला लिया जा सकता है क्योंकि दोनों के लिए नियम भी समान के बनाए जाते हैं। आधुनिक समय में विवाह को निजी खुशी से सम्बन्धित किया है ताकि परिवार में बच्चों की देखभाल भी ठीक ढंग से हो सके।

3. औरतों की स्थिति में परिवर्तन-जैसे-जैसे औरतें समाज के प्रत्येक क्षेत्र में हिस्सा लेने लगी हैं वैसे-वैसे विवाह का स्वरूप भी बदल गया है। शुरू में समाज में औरत आर्थिक पक्ष से बिलकुल ही दूसरों पर आधारित होती थी। इस तरह वह हर तरह का दुःख भी बर्दाश्त कर लेती थी। परन्तु धीरे-धीरे औरत ने जब शिक्षा प्राप्त कर ली तो उससे वह आर्थिक तौर पर स्वतन्त्र हो गई। वह अपने फ़ैसले आप लेने लगी। कानूनी पक्ष से भी उसे काफ़ी मदद प्राप्त हुई। पति के जुल्म करने की स्थिति में वह उससे अलग होकर अपना जीवन अधिक अच्छी तरह गुज़ारने लगी। इस प्रकार जब औरत ने समाज में अपनी एक जगह बना ली तो विवाह की संस्था में स्वयं परिवर्तन आ गया। तलाक दर में तेजी आई। औरत की स्थिति पहले से अधिक अच्छी हो गई।

4. शिक्षा के विकास द्वारा परिवर्तन-शुरू में शिक्षा की ओर कोई महत्त्व नहीं दिया जाता था। इसी कारण धार्मिक संस्कार को पूरा करने के लिए विवाह की प्रथा विकसित रही। परन्तु जैसे-जैसे शिक्षा में बढ़ोत्तरी हुई तो विवाह को ज़रूरी न समझा गया व न ही छोटी उम्र में लड़की व लड़के की शादी की गई। शिक्षित बच्चे अपनी मर्जी से विवाह करवाने की इच्छा जाहिर करने लगे।

5. औद्योगीकरण के विकास द्वारा लाया परिवर्तन-पुराने समाज में विवाह सम्बन्धी नियम इतने कठोर होते थे कि हर एक व्यक्ति को अपनी ही जाति में विवाह करवाना पड़ता था। यदि वह उस नियम की उल्लंघना भी करता तो उसको सज़ा दी जाती थी। परन्तु जैसे-जैसे पैसे का महत्त्व समाज में बढ़ा तो विवाह के सम्बन्धों में परिवर्तन आ गया। प्राचीन समय की भान्ति विवाह में पवित्रता नहीं रही। आदमी व औरत ने अपने सम्बन्धों को भी काफ़ी हद तक पैसे के सुपुर्द कर दिया जिस कारण कई बार उनका एक-दूसरे पर विश्वास भी समाप्त हो जाता है व वह अलग रहना शुरू कर देते हैं। इसके अतिरिक्त औरतों व आदमियों दोनों तरफ से कुछ कमियां पैदा हो गई हैं जिनसे विवाह की संस्था की प्रबलता में भी कमी आई।

प्रश्न 6.
परिवार के मुख्य कार्यों का वर्णन करो।
उत्तर-
अलग-अलग समाजशास्त्रियों ने परिवार के कार्यों को अपने-अपने ढंग से वर्गीकृत किया। इनका वर्णन अग्रलिखित अनुसार है
I. जैविक कार्य (Biological Functions of Family)

1. लैंगिक इच्छाओं की पूर्ति (Satisfaction of Sexual desire) परिवार का यह ज़रूरी कार्य तब से पाया जा रहा है जब से मानवीय समाज पाया गया है क्योंकि लैंगिक इच्छाओं की पूर्ति परिवार का प्रारम्भिक कार्य होता है। इस उद्देश्य की पूर्ति ही आदमी व औरत को लम्बे समय तक जोड़े रखती है, जिसके साथ इनमें शख्सियत का भी निर्माण होता है। यदि हम इस इच्छा को दबा देते हैं तो इससे कई ऐसी समस्याएं पैदा हो जाती हैं जिनसे सामाजिक सम्बन्ध भी टूट जाते हैं।

2. सन्तान उत्पत्ति (Reproduction)—मानवीय समाज को जीवित रखने के लिए भी यह ज़रूरी होता है कि हम मानवीय नस्ल को आगे से आगे बढ़ाएं। हिन्दू धार्मिक ग्रन्थों के अनुसार व्यक्ति को तब तक मुक्ति प्राप्त नहीं हो सकती जब तक उसके पुत्र पैदा नहीं होता। समाज भी परिवार से बाहर पैदा हुए बच्चे को गैर-कानूनी करार दे देता है। इसी कारण परिवार को ही सन्तान उत्पत्ति का मनोरथ कहा जाता है।

3. रहने की व्यवस्था (Provision of Shelter)-परिवार के द्वारा व्यक्ति की सुरक्षा का प्रबन्ध भी किया जाता है। व्यक्ति के रहने के लिए घर की व्यवस्था की जाती है ताकि रोज़ाना के कार्यों से वापिस आकर वह घर में अपने परिवार सहित रह सके। आजकल के समय में क्लबों, होटलों आदि में चाहे आदमी को रहने के लिए जगह मिल जाती है परन्तु घर उसके लिए स्वर्ग के समान होता है क्योंकि जो आराम उसको घर में रहकर मिलता है वह कहीं और नहीं मिलता।

4. बच्चों का पालन-पोषण (Upbringing of Children) बच्चों की परवरिश की जिम्मेदारी का कार्य भी परिवार का ही होता है। बच्चा पैदा करने का अर्थ यह नहीं कि उसको परिवार की ज़रूरत नहीं बल्कि बच्चे का सही विकास माता-पिता की देख-रेख में ही ठीक हो सकता है। यह ठीक है कि आधुनिक समय में औरतों के रोज़गार में आ जाने से बच्चों की सम्भाल परिवार से बाहर क्रैचों में जाकर होने लगी है, परन्तु फिर भी हम यह देखते हैं कि जो बच्चे माता-पिता की देख-रेख में बड़े होते हैं, उनमें अधिक गुणों का भी विकास हुआ होता है। हैवलॉक (Havelock) के अनुसार अमेरिका में माँ का दूध पीने वाले बच्चों के बीच मृत्यु दर, दूसरा दूध पीने वाले बच्चों से बहुत कम है। इस प्रकार परिवार की सहायता के साथ ही हम बच्चों की परवरिश ठीक ढंग से कर सकते हैं व इससे ही बच्चे का सम्पूर्ण विकास भी हो सकता है।

II. आर्थिक कार्य (Economic Functions)-परिवार को शुरू से आर्थिक कार्यों का केन्द्र माना जाता रहा है क्योंकि अपने सदस्यों की आर्थिक सुरक्षा भी इसी से प्राप्त होती है। परंपरागत समाजों में तो काफ़ी चीजें घर में रहकर ही बनाई जाती थीं। परिवार के आर्थिक कार्य इस प्रकार हैं-

1. जायदाद की सुरक्षा (Protection of Property)—परिवार में व्यक्ति की जायदाद एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुंच जाती है। प्राचीन समय में अधिकतर पितृ प्रधान परिवार में जायदाद का विभाजन केवल लड़कों में ही किया जाता था परन्तु आजकल के आधुनिक समय में जायदाद का विभाजन कानून के द्वारा लड़के व लड़की दोनों के बीच किया जाने लगा है। यदि कोई व्यक्ति विवाहित नहीं होता तो उसकी मौत के बाद जायदाद के विभाजन पीछे, रिश्तेदारों के बीच भी लड़ाई शुरू हो जाती है। इस प्रकार जायदाद परिवार के सदस्यों के बीच परिवार के मुखिया की इच्छा के मुताबिक विभाजित कर दी जाती है।

2. पैसे का प्रबन्ध (Provision of Money)-पैसे की ज़रूरत परिवार के सदस्यों की ज़रूरतें पूरी करने के लिए होती है। इस कारण परिवार के मुखिया द्वारा ही प्राचीन समय में पैसे का प्रबन्ध किया जाता था। आजकल आदमी व औरत दोनों मिलकर मेहनत करके परिवार के सदस्यों की ज़रूरतों को पूरा करते हैं।

III. परिवार के सामाजिक कार्य(Social functions of family)—

1. समाजीकरण (Socialization)-परिवार में व्यक्ति समाज के बीच रहने के तौर-तरीके सीखकर ही एक अच्छा नागरिक बनता है व परिवार के द्वारा ही बच्चे का सामाजिक सम्पर्क भी स्थापित होता है। व्यक्ति का जन्म परिवार में होता है व सबसे पहले वह अपने माता-पिता के सम्पर्क में आता है क्योंकि उसकी प्राथमिक ज़रूरतों की पूर्ति भी इन्हीं से ही होती है। स्थिति व भूमिका की प्राप्ति भी व्यक्ति के परिवार में ही रहकर होती है। प्रदत्त पद की प्राप्ति भी परिवार से ही होती है।

परिवार में रहकर ही बच्चे के व्यक्तित्व का विकास होता है। यह सामाजिक विशेषता उसको परिवार में रहकर ही प्राप्त होती है। सैण्डरसन ने व्यक्ति की पशु प्रवृत्तियों को नियन्त्रण में रखना, अच्छी आदतों का निर्माण करना, ज़िम्मेदारियों को समझना व व्यक्ति में स्वः विश्वास का विकास करना भी परिवार के द्वारा किए जाने वाले कार्यों के रूप में स्वीकार किया गया है। सहयोग, प्यार, कुर्बानी, अनुशासन इत्यादि जैसे गुणों का विकास भी बच्चे में परिवार के बीच रहकर ही होता है। जिस प्रकार की शिक्षा बच्चा परिवार में रहकर प्राप्त करता है, उस प्रकार का असर बच्चे में समाज के लिए भी विकसित हो जाता है। उसको हर तरह से समाज में व्यवहार करने के बारे में पता लग जाता है।

2. सामाजिक संस्कृति को सुरक्षित रखना व आगे पहुंचाना (Protection and transmission of culture)-परिवार हमारी संस्कृति को सम्भालता है व यह संस्कृति ही हमारी सामाजिक विरासत होती है। इसमें निरन्तरता बनी रहती है। प्रत्येक परिवार अपनी यह ज़िम्मेदारी समझता है कि वह नई पीढ़ी को अच्छे संस्कार, आदतें, रीति-रिवाज, परम्पराएं इत्यादि प्रदान करे, बच्चा वह हर चीज़ अचेतन प्रक्रिया में ही सीखता रहता है। क्योंकि वह जो कुछ भी अपने माता-पिता को करता देखता है वही वह आप करने लग जाता है। प्रत्येक परिवार के अपने रीति-रिवाज होते हैं जिन पर वह आधारित होता है। परिवार कुछ चीजें बच्चों को चेतन रूप में भी सिखाता है ताकि बच्चा परिवार के बनाए हुए आदर्शों के मुताबिक चले। इस प्रकार इस निरन्तरता के आधार पर ही परिवार की संस्कृति सुरक्षित भी रहती है व अगली पीढ़ी तक भी पहुंच जाती है।

3. सामाजिक नियन्त्रण (Social Control)-परिवार को सामाजिक नियन्त्रण की एक एजेंसी के रूप में महत्ता प्राप्त है क्योंकि यह पहली एजेंसी होती है जिसमें बच्चे पर नियन्त्रण रखा जाता है ताकि गलत आदतों का निर्माण उसमें न हो सके। उदाहरण के लिए माता-पिता बच्चे के झूठ बोलने पर नियन्त्रण रखते हैं, बड़ों के साथ गलत व्यवहार आदि पर नियन्त्रण करते हैं ताकि बच्चा परिवार के बनाए हुए कुछ नियमों की पालना करे। प्रत्येक सदस्य परिवार के लिए ऐसा काम करना चाहता है जिससे समाज में उसके परिवार का गौरव अधिक बढ़े। परिवार अपने सदस्यों के हर तरह के व्यवहार व क्रियाओं पर नियन्त्रण रखता है। इससे बच्चा आज्ञाकारी व अनुशासन प्रिय बन जाता है। यदि घर का एक बच्चा अपने बड़े भाई बहन या माता-पिता से गलत तरीके से व्यवहार करेगा तो समाज के बाकी सदस्यों के साथ भी वह दुर्व्यवहार करने लग जाता है। जैसे चोरी करना जोकि समाज के कानूनों के द्वारा जुर्म करार दिया जाता है। उसकी आदत भी कई बार परिवार के बड़े सदस्यों को देखकर सीखी जाती है। यदि परिवार के माता-पिता बच्चे के किसी प्रकार की वस्तु चोरी करके घर लाने पर मनाही नहीं करेंगे तो बच्चा बड़ा होकर यही काम करने लगेगा। इसी तरह से परिवार बच्चे पर हर तरह की निगरानी रखकर सामाजिक नियन्त्रण रखता है।

4. स्थिति प्रदान करना (Provide Status)-परिवार में रहकर बच्चे को अपने स्थान व भूमिका का पता · चलता है। प्राचीन समाज में तो बच्चा जैसे भी परिवार में पैदा होता था उसी तरह का आदर उसको प्राप्त होने लग जाता था। जैसे अमीर परिवार, राजा-महाराजा के परिवार, जागीरदार के परिवार आदि में पैदा हुए बच्चे को उतना ही सम्मान समाज में प्राप्त होता था जितना उसके माता-पिता को। उसकी स्थिति वही होती थी। एक गरीब घर में पैदा हुए बच्चे की स्थिति भी निम्न होती थी। चाहे आजकल के समय में बच्चा समाज के बीच अपनी स्थिति परिश्रम से प्राप्त करने लगा है परन्तु फिर भी कुछ सीमा तक बच्चा जिस तरह के परिवार में जन्म लेता है उसको उसी प्रकार कम या अधिक परिश्रम करना पड़ता है।

IV. शिक्षा सम्बन्धी कार्य (Educational Function)-परिवार बच्चे की शिक्षा के लिए प्राथमिक साधन होता है क्योंकि सबसे प्रथम शिक्षा बच्चा परिवार में रहकर ही प्राप्त करता है। अच्छी आदतें सीखना व और अन्य कई गुण आदि परिवार से ही सम्बन्धित होते हैं। प्राचीन समाजों में व्यापार सम्बन्धी शिक्षा, धर्म सम्बन्धी शिक्षा, अच्छा नागरिक बनने सम्बन्धी, बच्चा परिवार में ही प्राप्त करता है। चाहे आज के समाज में बच्चे के शिक्षात्मक कार्य दूसरी संस्थाओं के पास चले गए हैं परन्तु फिर भी कुछ सीमा तक परिवार अभी भी इस शिक्षा सम्बन्धी कार्यों को अदा कर रहा है।

V. राजनीतिक कार्य (Political Function)-राजनीतिक क्षेत्र के लिए परिवार को एक महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त हैं। कनफ्यूशियस के अनुसार मनुष्य सबसे पहला सदस्य परिवार का है व बाद में राज्य का। आदिम (Primitve) समाज में परिवार की महत्ता राजनीतिक पक्ष से अधिक प्रबल होती थी। समाज अलग-अलग कबीलों में बंटा हुआ था। इन कबीलों के ऊपर सबसे बड़ी आयु वाले व्यक्तियों को मुखिया बनाया जाता था। परिवार में भी सबसे बड़ी आयु वाला मुखिया होता था व परिवार के बाकी सदस्य उसके मुताबिक चलते थे। भारतीय संयुक्त परिवार प्रणाली में भी परिवार के मुखिया की ही प्रतिनिधिता होती थी। यह मुखिया परिवार का दादा, पड़दादा आदि हो सकता था। परिवार के सदस्यों को अलग-अलग स्थितियां व रोल दिए जाते थे जिन्हें निभाना परिवार के प्रत्येक सदस्य का फर्ज होता था। परिवार की स्थिरता भी इसी कारण होती थी। आधुनिक समाज में परिवार के असंगठन का कारण ही परिवार के राजनीतिक कार्यों की कमी होती है। परिवार ही व्यक्ति को एक राजनीतिक व्यक्ति बनाने में मदद करता है जिससे व्यक्ति समाज का एक अच्छा नागरिक बन सकता है। यह राजनीतिक संगठन ही एक.ऐसा ताकतवर संगठन होता है जो व्यक्ति के सामाजिक सम्बन्धों को भी नियमित करता है। सो पारिवारिक संगठन ही हमारे सामाजिक संगठन के लिए उत्तरदायी होता है। इस प्रकार परिवार राजनीतिक कार्य भी अदा करता है।

VI. धार्मिक कार्य (Religious Function)-धार्मिक संस्कारों के बारे जानकारी व्यक्ति को परिवार से ही प्राप्त होती है। जैसे हिन्दू ग्रन्थों के अनुसार तब तक धार्मिक संस्कार अधूरे होते हैं जब तक पत्नी न हो। परिवार धार्मिक क्रियाओं का केन्द्र होता है। भारतीय समाज में विवाह को ही धार्मिक बन्धन का नाम दिया जाता है। धार्मिक क्रियाओं के द्वारा ही इसको पूरा किया जाता है। व्यक्ति के जन्म से लेकर मृत्यु तक के धार्मिक संस्कार परिवार द्वारा अदा किए जाते हैं। व्यक्ति में नैतिकता का विकास भी धर्म के द्वारा होता है। धर्म एक प्रकार से व्यक्ति पर नियन्त्रण भी रखता है। इससे व्यक्ति में अच्छे गुणों का विकास होता है जैसे कुर्बानी अथवा त्याग की भावना, प्यार, सहयोग इत्यादि।

धर्म के आधार पर ही पारिवारिक जीवन भी निर्भर करता है। इस प्रकार धर्म अपने सदस्यों को धार्मिक आदर्शों, नियमों आदि प्रति पहचान करवाता है जिससे व्यक्तियों में एकता इत्यादि की भावना भी कायम रहती है। चाहे आजकल के समाज में लोगों का दृष्टिकोण वैज्ञानिक हो गया है परन्तु फिर भी परिवार धार्मिक रिवाजों को कायम रख रहा है।

VII. मनोरंजन के कार्य (Recreational Function) परिवार अपने सदस्यों के मनोरंजन के लिए भी सहूलतें प्रदान करता है। शुरू के समाज में व्यक्ति रात के समय परिवार में इकट्ठे बैठकर एक-दूसरे से अपनी रोज़ाना की बातचीत करते थे व परिवार के बुजुर्ग सदस्य अपनी बाल कथाएं आदि सुनाकर शेष का मनोरंजन करते थे। उस समय मनोरंजन के दूसरे साधन विकसित नहीं थे। इसके अतिरिक्त त्योहारों के समय भी परिवार के सदस्य इकट्ठे मिल कर नाचते, गाना गाते थे जिनसे सबका मनोरंजन होता था।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 7 विवाह, परिवार तथा नातेदारी

प्रश्न 7.
गोत्र के बारे में आप क्या जानते हैं ? विस्तारपूर्वक लिखें।
उत्तर-
गोत्र को वंश समूह का विस्तृत रूप कह सकते हैं। जब कोई वंश समूह विकास के कारण बढ़ जाता है तो वह गोत्र का रूप धारण कर लेता है। यह माता या पिता के अनुरेखित रक्त सम्बन्धियों को मिलाकर बनता है। इस तरह हम कह सकते हैं कि गोत्र रक्त के रिश्तेदारों का समूह होता है और वह सभी किसी साझे पूर्वज के एक रेखकी सन्तान होते हैं। यहां एक बात ध्यान देने योग्य है कि यह साझे पूर्वज काल्पनिक होते हैं क्योंकि उनके बारे में किसी को पता नहीं होता है।

गोत्र किसी ऐसे व्यक्ति या पूर्वज से शुरू होता है जिसके बारे में किसी को कुछ पता नहीं होता। क्योंकि यह माना जाता है कि उसने ही परिवार को या उस गोत्र को शुरू किया था इसलिए उसको संस्थापक मान लिया जाता है। उस गोत्र का नाम भी उसके पूर्वज के नाम के साथ रख लिया जाता है। गोत्र हमेशा एक तरफ को चलती है मतलब किसी बच्चे के माता-पिता के गोत्र एक नहीं हो सकते वह हमेशा अलग-अलग होंगे। यह एक पक्ष का ही होता है। इसका यह अर्थ है कि माता की गोत्र अलग परिवारों का इकट्ठ है और पिता की गोत्र भिन्न परिवारों का इकट्ठ है। इस तरह यह गोत्र बाहर व्यक्ति का समूह होता है। एक ही गोत्र में विवाह नहीं हो सकता।

परिभाषाएं (Definitions) –

(1) मजूमदार (Majumdar) के अनुसार, “एक क्लैन या सिब अक्सर कुछ वंश समूहों का जुट होता है जोकि आपसी उत्पत्ति एक कल्पित पूर्वज से मानते हैं जोकि मनुष्य या मनुष्य की तरह, पशु, वृक्ष, पौधा या निर्जीव वस्तु हो सकता है।”
(“A clan or sib is often the combination of a few lineages and descent into may be ultimately traced to a mythical ancestor, who may be human, human like, animal, plant or even in animate.”)

(2) पिंडिगटन (Pidington) के अनुसार, “एक गोत्र जिसको कभी-कभी कुल (Sib) भी कहते हैं, एक बाहर विवाही सामाजिक समूह है जिसके सदस्य अपने आपको एक-दूसरे के साथ सम्बन्धित समझते हैं, जो आमतौर पर अपनी उत्पत्ति एक काल्पनिक वंशानुक्रम द्वारा किसी बड़े-बूढ़ों से मानते हैं।”
(“A clan some times called sib is an exogamous social group whose members regard themselves as being related to each other usually by functional descent from a common ancestor.”)

(3) रिवर्ज़ (Rivers) के अनुसार, “गोत्र में कबीले का एक बाहर विवाहित विभाजन है जिसके सदस्य अपने ही कुछ बन्धनों द्वारा एक-दूसरे के साथ सम्बन्धित रहते हैं। इस बन्धन का आकार एक साझे पूर्वज की सन्तान या वंश होने में विश्वास एक साझा टोटम या एक साझे भू-भाग में निवास हो सकता है।”(“Clan is an exogamous division of tribe the members of which are held to be related to one another by same common lies, it may be descent from a common ancestor, possession of a common totom or hibitationed of a common territory.”) .

इन परिभाषाओं को देखकर हम कह सकते हैं कि गोत्र एक काफ़ी बड़ा रक्त समूह होता है जोकि एक वंश के सिद्धान्त पर आधारित होता है। गोत्र अपने आप में एक पूरा सामाजिक संगठन है जोकि एक समाज की अलगअलग गोत्रों को एक खास रूप अर्थात् और काम प्रदान करती है। गोत्र या तो मातृ वंशी होती है या फिर पितृ वंशी, मतलब कि बच्चे या तो पिता की गोत्र के सदस्य होते हैं या फिर माता की गोत्र के सदस्य । एक गोत्र बाहरी समूह होता है अर्थात् विवाह गोत्र से बाहर होना चाहिए है। इसलिए माता-पिता के गोत्र अलग-अलग होने चाहिए।

गोत्र की विशेषताएं (Characteristics of Clan) –

1. गोत्र की सदस्यता वंश पर आधारित होती है (Membership of Clan depends upon Lineage)गोत्र की सदस्यता वंश परम्परा पर आधारित होती है। यह चाहे पितृ वंशी या मातृ वंशी हो सकता है जोकि उस समाज पर निर्भर करता है। व्यक्ति की गोत्र उसके हाथ में नहीं होती। यह उसकी इच्छा पर भी आधारित नहीं होती। यह तो जन्म पर आधारित होता है। व्यक्ति जिस गोत्र में जन्म लेता है उसका सदस्य बन जाता है। व्यक्ति जिस गोत्र में जन्म लेता है, उसमें ही बड़ा होता है और उसमें ही मर जाता है।

2. हर गोत्र का नाम होता है (Each clan has a name)-हर गोत्र का एक खास नाम होता है। चाहे यह नाम, पशु, वृक्ष, किसी प्राकृतिक वस्तु आदि से भी लिया जा सकता है। यह चार प्रकार के होते हैं-भू-भागी नाम, टोटम वाले नाम, उपनाम, ऋषि नाम।

3. एक पक्ष (Unilateral)–गोत्र हमेशा एक पक्ष का होता है। यह कभी भी दो पक्ष की नहीं हो सकती। इसका मतलब यह हुआ कि गोत्र या पितृ वंशी समूह होगा या मातृ वंशी समूह। पितृ वंशी समूह से मतलब है कि वह बच्चा पिता के वंश का सदस्य होगा और मातृ वंशी से मतलब है कि वह माता के वंश का सदस्य होगा। इस तरह सिर्फ एक पक्ष होगा दोनों तरफ से नहीं।

4. गोत्र के सदस्य एक स्थान पर नहीं रहते (Member of a clan do not live at one place)-गोत्र के सदस्यों में खून का सम्बन्ध होता है पर इसका मतलब यह नहीं है कि वह एक ही स्थान पर रहते हों। इनका निवास स्थान साझा नहीं होता।

5. साझा पूर्वज (Common Ancestor)—गोत्र का एक साझा पूर्वज होता है चाहे उस पूर्वज के बारे में किसी को पता नहीं होता। यह साझा पूर्वज हमेशा कल्पना पर आधारित होता है। चाहे वह पूर्वज असल में भी हो सकते हैं पर यह आमतौर पर कल्पित भी हो सकता है।

6. बर्हिविवाही समूह (Exogamous group)-गोत्र एक बर्हिविवाही समूह है। इसका मतलब है कि कोई भी एक ही गोत्र में विवाह नहीं करवा सकता। यह वर्जित होता है। यह इस वज़ह के कारण होता है क्योंकि गोत्र के सारे सदस्य एक साझे असली या कल्पित पूर्वज की पैदावार होते हैं और उन सभी में खून के सम्बन्ध होते हैं। इस वज़ह के कारण उस रिश्ते में बहन-भाई हुए और इनमें वर्जित है। विवाह अपनी गोत्र से बाहर ही करवाया जा सकता है

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 7 विवाह, परिवार तथा नातेदारी

विवाह, परिवार तथा नातेदारी PSEB 11th Class Sociology Notes

  • प्रत्येक समाज ने अपने सदस्यों की आवश्यकताओं को पूर्ण करने के लिए कुछ संस्थाओं का निर्माण किया होता है। संस्था सामाजिक व्यवस्था का एक ढांचा है जो एक समुदाय के सदस्यों के व्यवहार को निर्देशित करती है। यह विशेष प्रकार की आवश्यकता को पूर्ण करती है जो समाज के अस्तित्व के लिए आवश्यक है।
  • संस्थाओं की कुछ विशेषताएं होती हैं जैसे कि यह विशेष आवश्यकताएं पूर्ण करती हैं, यह नियमों का एक गुच्छा हैं, यह अमूर्त व सर्वव्यापक होती हैं, यह स्थायी होती हैं जिनमें आसानी से परिवर्तन नहीं आते, इनमें प्रकृति सामाजिक होती है इत्यादि।
  • विवाह एक ऐसी सामाजिक संस्था है जो प्रत्येक समाज में पाई जाती है। यह समाज की एक मौलिक संस्था . है। विवाह से दो विरोधी लिंगों के व्यक्तियों को पति-पत्नी के रूप में इकट्ठे रहने की आज्ञा मिल जाती है। वह लैंगिक संबंध स्थापित करते हैं, बच्चे पैदा करते हैं तथा समाज के आगे बढ़ने में योगदान देते हैं।
  • वैसे तो समाज में विवाह के कई प्रकार मिलते हैं परन्तु एक विवाह तथा बहु विवाह ही प्रमुख हैं। बहुविवाह आगे दो भागों में विभाजित हैं-बहुपति विवाह तथा बहुपत्नी विवाह । बहुपति विवाह कई जनजातीय समाजों में प्रचलित है तथा बहुपत्नी विवाह पहले हमारे समाजों में प्रचलित था।
  • हमारे समाज में जीवन साथी के चुनाव के कई तरीके प्रचलित हैं जिनमें से अन्तर्विवाह (Endogamy) तथा बहिर्विवाह (Exogamy) प्रमुख हैं। अन्तर्विवाह में व्यक्ति को एक निश्चित समूह के अंदर ही विवाह करना पड़ता है तथा बहिर्विवाह में व्यक्ति को एक निश्चित समूह से बाहर विवाह करवाना पड़ता है।
  • विवाह की संस्था में पिछले कुछ समय में कई प्रकार के परिवर्तन आए हैं। इन परिवर्तनों के कई मुख्य कारण हैं जैसे कि औद्योगीकरण, नगरीकरण, आधुनिक शिक्षा, नए कानूनों का बनना, स्त्रियों की स्वतन्त्रता, पश्चिमी समाजों का प्रभाव इत्यादि।
  • परिवार एक ऐसी सर्वव्यापक संस्था है जो प्रत्येक समाज में किसी न किसी रूप में मौजद है। व्यक्ति केजीवन में परिवार नामक संस्था का काफ़ी अधिक प्रभाव है तथा इसके बिना व्यक्ति जीवित नहीं रह सकता।
  • परिवार के कई विशेषताएं होती हैं जैसे कि यह सर्वव्यापक संस्था है, इसका भावात्मक आधार होता है, इसका आकार छोटा होता है यह स्थायी तथा अस्थायी दोनों प्रकार का होता है, यह व्यक्ति के व्यवहार को नियन्त्रित करता है इत्यादि।
  • परिवार के कई प्रकार होते हैं तथा इनके रहने के स्थान, सत्ता, सदस्यों इत्यादि के आधार पर कई भागों में विभाजित किया जा सकता है।
  • पिछले कुछ समय में परिवार नामक संस्था में कई प्रकार के परिवर्तन आए हैं जैसे कि आकार का छोटा होना, परिवारों का टूटना, स्त्रियों की स्थिति में परिवर्तन, नातेदारी के संबंधों का कमज़ोर होना, कार्यों में परिवर्तन इत्यादि।
  • नातेदारी व्यक्ति के रिश्तों की व्यवस्था है। इसमें कई प्रकार के रिश्ते आते हैं। नातेदारी को दो आधारों पर विभाजित किया जा सकता है। वह दो आधार हैं-रक्त संबंध तथा विवाह।
  • नज़दीकी तथा दूरी के आधार पर तीन प्रकार के रिश्तेदार पाए जाते हैं-प्राथमिक, द्वितीय तथा तृतीय प्रकार के रिश्तेदार। प्राथमिक रिश्तेदार माता-पिता, बहन-भाई होते हैं। द्वितीय रिश्तेदार हमारे प्राथमिक रिश्तेदारों के प्राथमिक रिश्तेदार होते हैं जैसे पिता का पिता-दादा। तृतीय प्रकार के रिश्तेदार द्वितीय रिश्तेदारों के प्राथमिक रिश्तेदार होते हैं जैसे-चाचा का पुत्र-चचेरा भाई।
  • पितृसत्तात्मक (Patriarchal)-वह परिवार जहाँ पिता की सत्ता चलती हो तथा उसका ही नियन्त्रण हो।
  • मातृसत्तात्मक (Matriarchal)—वह परिवार जहाँ माता की सत्ता चलती हो तथा उसका ही नियन्त्रण हो।
  • एकाकी परिवार (Nuclear Family)—वह परिवार जहाँ पति, पत्नी व उनके बिन ब्याहे बच्चे रहते हों।
  • संयुक्त परिवार (Joint Family)-वह परिवार जिसमें दो या अधिक पीढ़ियों के सदस्य इकट्ठे रहते हों तथा एक ही रसोई में से खाना खाते हों।
  • अन्तर्विवाह (Endogamy)-एक निश्चित समूह, जैसे कि जाति में ही विवाह करवाना।
  • बहिर्विवाह (Exogamy)-एक निश्चित समूह, जैसे कि गोत्र या परिवार से बाहर विवाह करवाना।
  • एक विवाह (Monogamy)-जब एक स्त्री का एक पुरुष से विवाह हो उसे एक विवाह कहते हैं।
  • बहु विवाह (Polygamy)-जब एक पुरुष या स्त्री दो या अधिक विवाह करवाएं तो उसे बहुविवाह कहते है।
  • विवाह मूलक नातेदारी (Affinal Kinship)—वह रिश्तेदारी जो व्यक्ति के विवाह के पश्चात् बनती है जैसे कि जमाई, जीजा, इत्यादि।
  • रक्त मूलक नातेदारी (Consanguineous Kinship)—वह नातेदारी जो व्यक्ति के जन्म के पश्चात् ही बन जाती है जैसे-पुत्र, पुत्री, माता, पिता, भाई, बहन इत्यादि।
  • नातेदारी (Kinship)-सामाजिक संबंध जो वास्तविक या काल्पनिक आधारों पर रक्त या विवाह के अनुसार बनते हों।

योग (Yoga) Game Rules – PSEB 11th Class Physical Education

Punjab State Board PSEB 11th Class Physical Education Book Solutions योग (Yoga) Game Rules.

योग (Yoga) Game Rules – PSEB 11th Class Physical Education

PSEB 11th Class Physical Education Guide योग (Yoga) Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
‘योग’ शब्द संस्कृत की किस धातु से लिया गया है ?
उत्तर-
योग शब्द संस्कृत की ‘युज्’ धातु से लिया गया है, जिसका अर्थ है ‘जोड़’ या ‘मेल’।

प्रश्न 2.
प्राणायाम की किस्मों के नाम लिखें।
उत्तर-
प्राणायाम
(Pranayama)
प्राणायाम दो शब्दों के मेल से बना है “प्राण” का अर्थ है ‘जीवन’ और ‘याम’ का अर्थ है, ‘नियन्त्रण’ जिससे अभिप्राय है जीवन पर नियन्त्रण अथवा सांस पर नियन्त्रण। प्राणायाम वह क्रिया है जिससे जीवन की शक्ति को बढ़ाया जा सकता है और इस पर नियन्त्रण किया जा सकता है।
मनु-महाराज ने कहा है, “प्राणायाम से मनुष्य के सभी दोष समाप्त हो जाते हैं और कमियां पूरी हो जाती हैं।”

प्राणायाम के आधार
(Basis of Pranayama)
सांस को बाहर की ओर निकालना तथा फिर अन्दर की ओर करना और अन्दर ही कुछ समय रोक कर फिर कुछ … समय के बाद बाहर निकालने की तीनों क्रियाएं ही प्राणायाम का आधार हैं।
रेचक-सांस बाहर को छोड़ने की क्रिया को ‘रेचक’ कहते हैं।
पूरक-जब सांस अन्दर खींचते हैं तो इसे पूरक कहते हैं।
कुम्भक-सांस को अन्दर खींचने के बाद उसे वहां ही रोकने की क्रिया को कुम्भक कहते हैं।

प्राण के नाम
(Name of Prana)
व्यक्ति के सारे शरीर में प्राण समाया हुआ है। इसके पांच नाम हैं—

  1. प्राण-यह गले से दिल तक है। इसी प्राण की शक्ति से सांस शरीर में नीचे जाता है।
  2. अप्राण-नाभिका से निचले भाग में प्राण को अप्राण कहते हैं। छोटी और बड़ी आन्तों में यही प्राण होता है। यह टट्टी, पेशाब और हवा को शरीर में से बाहर निकालने के लिए सहायता करता है।
  3. समान-दिल और नाभिका तक रहने वाली प्राण क्रिया को समान कहते हैं। यह प्राण पाचन क्रिया और एडरीनल ग्रन्थि की कार्यक्षमता में वृद्धि करता है।
  4. उदाना–गले से सिर तक रहने वाले प्राण को उदान कहते हैं। आंखों, कानों, नाक, मस्तिष्क इत्यादि अंगों का काम इसी प्राण के कारण होता है।
  5. ध्यान-यह प्राण शरीर के सभी भागों में रहता है और शरीर का अन्य प्राणों से मेल-जोल रखता है। शरीर के हिलने-जुलने पर इसका नियन्त्रण होता है।

प्राणायाम की किस्में
(Kinds of Pranayama)
शास्त्रों में प्राणायाम कई प्रकार के दिये गए हैं, परन्तु प्रायः यह आठ होते हैं—

  1. सूर्य-भेदी प्राणायाम
  2. उजयी प्राणायाम
  3. शीतकारी प्राणायाम
  4. शीतली प्राणायाम
  5. भस्त्रिका प्राणायाम
  6. भ्रमरी प्राणायाम
  7. मुर्छा प्राणायाम
  8. कपालभाती प्राणायाम

योग (Yoga) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education

प्रश्न 3.
योग की कोई छः किस्मों के नाम लिखें।
उत्तर-
योग की छ: किस्में-अष्टांग योग, हठ योग, जनन योग, मंत्र योग, भक्ति योग, कुंडली योग।

प्रश्न 4.
अष्टांग योग के तत्वों के नाम लिखें।
उत्तर-
यम, नियम, आसन, प्रत्याहार, प्राणायाम, धारणा, ध्यान तथा समाधि अष्टांग योग के तत्त्व हैं।

प्रश्न 5.
ताड़ासन की विधि लिखें।
उत्तर-
ताड़ासन (Tarasan)—इस आसन में खड़े होने की स्थिति में धड़ को ऊपर की ओर खींचा जाता है।
ताड़ासन की स्थिति (Position of Tarasan)-इस आसन में स्थिति ताड़ के वृक्ष जैसी होती है।
योग (Yoga) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education 1
ताड़ासन
ताड़ासन की विधि (Technique of Tarasan) खड़े होकर पांव की एड़ियों और अंगुलियों को जोड़ कर भुजाओं को ऊपर सीधा करें। हाथों की अंगुलियां एक-दूसरे हाथ में फंसा लें। हथेलियां ऊपर और नज़र सामने हो। अपना पूरा सांस अन्दर की ओर खींचें। एड़ियों को ऊपर उठा कर शरीर का सारा भार पंजों पर ही डालें। शरीर को ऊपर की ओर खींचे। कुछ समय के बाद सांस छोड़ते हुए शरीर को नीचे लाएं। ऐसा दस पन्द्रह बार करो।
ताड़ासन के लाभ (Advantages of Tarasan)-

  1. इससे शरीर का मोटापा दूर होता है।
  2. इससे कब्ज दूर होती है।
  3. इससे आंतों के रोग नहीं लगते।
  4. प्रतिदिन ठण्डा पानी पी कर इस आसन को करने से पेट साफ रहता है।

योग (Yoga) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education

प्रश्न 6.
पश्चिमोत्तानासन की विधि लिखें।
उत्तर-
पश्चिमोत्तानासन (Paschimotanasana)—इसमें पांवों के अंगूठों को अंगुलियों से पकड़ कर इस प्रकार बैठा जाता है कि धड़ एक ओर ज़ोर से चला जाए।
पश्चिमोत्तानासन की स्थिति (Position of Paschimotanasana)-इस आसन में सारे शरीर को फैला कर मोड़ा जाता है।
पश्चिमोत्तानासन की विधि (Technique of Paschimotansana)-दोनों टांगें आगे की ओर फैला कर भूमि पर बैठ जाएं। दोनों हाथों से पांवों के अंगूठे पकड़ कर धीरे-धीरे सांस छोड़ते हुए घुटनों को छूने की कोशिश करो। फिर धीरे-धीरे सांस लेते हुए सिर को ऊपर उठाएं और पहले वाली स्थिति में आ जाएं। यह आसन हर रोज़ 10-15 बार करना चाहिए।
योग (Yoga) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education 2
पश्चिमोत्तानासन
लाभ (Advantages)—

  1. इस आसन से जंघाओं को शक्ति मिलती है।
  2. नाड़ियों की सफाई होती है।
  3. पेट के अनेक प्रकार के रोगों से छुटकारा मिलता है।
  4. शरीर की बढ़ी हुई चर्बी कम होती है।
  5. पेट की गैस समाप्त होती है।

Physical Education Guide for Class 11 PSEB योग (Yoga) Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
योग का इतिहास लिखें।
उत्तर-
योग का इतिहास उत्तर
(History of Yoga)
‘योग’ का इतिहास वास्तव में बहुत पुराना है। योग के उद्भव के बारे में दृढ़तापूर्वक व स्पष्टता से कुछ भी नहीं कहा जा सकता। केवल यह कहा जा सकता है कि योग का उद्भव भारतवर्ष में हुआ था। उपलब्ध तथ्य यह दर्शाते हैं कि योग सिन्धु घाटी सभ्यता से सम्बन्धित है। उस समय व्यक्ति योग किया करते थे। गौण स्रोतों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि योग का उद्भव भारतवर्ष में लगभग 3000 ई० पू० हुआ था। 147 ई० पू० पतंजलि (Patanjali) के द्वारा योग पर प्रथम पुस्तक लिखी गई थी। वास्तव में योग संस्कृत भाषा के ‘युज्’ शब्द से लिया गया है। जिसका अभिप्राय है ‘जोड़’ या ‘मेल’। आजकल योग पूरे विश्व में प्रसिद्ध हो चुका है। आधुनिक युग को तनाव, दबाव व चिंता का युग कहा जा सकता है। इसलिए अधिकतर व्यक्ति खुशी से भरपूर व फलदायक जीवन नहीं गुजार रहे हैं। पश्चिमी देशों में योग जीवन का एक भाग बन चुका है। मानव जीवन में योग बहुत महत्त्वपूर्ण है।

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प्रश्न 2.
यौगिक व्यायाम के नए नियम लिखे।
उत्तर-
यौगिक व्यायाम के नये नियम
(New Rules of Yogic Exercise)

  1. यौगिक व्यायाम करने का स्थान समतल होना चाहिए। ज़मीन पर दरी या कम्बल डाल कर यौगिक व्यायाम करने चाहिए।
  2. यौगिक व्यायाम करने का स्थान एकान्त, हवादार और सफाई वाला होना चाहिए।
  3. यौगिक व्यायाम करते हुए श्वास और मन को शान्त रखना चाहिए।
  4. भोजन करने के बाद कम-से-कम चार घण्टे के पश्चात् यौगिक आसन करने चाहिए।
  5. यौगिक आसन धीरे-धीरे करने चाहिए और अभ्यास को धीरे-धीरे बढ़ाना चाहिए।
  6. अभ्यास प्रतिदिन किसी योग्य प्रशिक्षक की देख-रेख में करना चाहिए।
  7. दो आसनों के मध्य में थोड़ा विश्राम शव आसन द्वारा कर लेना चाहिए।
  8. शरीर पर कम-से-कम कपड़े पहनने चाहिए, लंगोट, निक्कर, बनियान आदि और सन्तुलित भोजन करना चाहिए।

बोर्ड द्वारा निर्धारित पाठ्यक्रम में निम्नलिखित यौगिक व्यायाम सम्मिलित किए गए हैं जिनके दैनिक अभ्यास द्वारा एक साधारण व्यक्ति का स्वास्थ्य बना रहता है—

  1. ताड़ासन
  2. अर्द्धचन्द्रासन
  3. भुजंगासन
  4. शलभासन
  5. धनुरासन
  6. अर्द्धमत्स्येन्द्रासन
  7. पश्चिमोत्तानासन
  8. पद्मासन
  9. स्वास्तिकासन
  10. सर्वांगासन
  11. मत्स्यासन
  12. हलासन
  13. योग मुद्रा
  14. मयूरासन
  15. उड्डियान
  16. प्राणायाम : अनुलोम विलोम
  17. सूर्य नमस्कार
  18. शवासन

प्रश्न 3.
भुजंगासन की विधि बताकर इसके लाभ लिखें।
उत्तर-
भुजंगासन (Bhujangasana)-इसमें चित्त लेट कर धड़ को ढीला किया जाता है।
भुजंगासन की विधि (Technique of Bhujangasana)—इसे सर्पासन भी कहते हैं। इसमें शरीर की स्थिति सर्प के आकार जैसी होती है। सर्पासन करने के लिए भूमि पर पेट के बल लेटें। दोनों हाथ कन्धों के बराबर रखो। धीरेधीरे टांगों को अकड़ाते हुए हथेलियों के बल छाती को इतना ऊपर उठाएं कि भुजाएं बिल्कुल सीधी हो जाएं। पंजों को अन्दर की ओर करो और सिर को धीरे-धीरे पीछे की ओर लटकाएं। धीरे-धीरे पहली स्थिति में लौट आएं। इस आसन को तीन से पांच बार करें।
लाभ (Advantages)—

  1. भुजंगासन से पाचन शक्ति बढ़ती है।
  2. जिगर और तिल्ली के रोगों से छुटकारा मिलता है।
  3. रीढ़ की हड्डी और मांसपेशियां मज़बूत बनती हैं।
  4. कब्ज दूर होती है।
  5. बढ़ा हुआ पेट अन्दर को धंसता है।
  6. फेफड़े शक्तिशाली होते हैं।
    योग (Yoga) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education 3
    भुजंगासन

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प्रश्न 4.
धनुरासन और अर्द्धमत्स्येन्द्रासन की विधि और लाभ लिखें।
उत्तर-
धनुरासन (Dhanurasana)—इसमें चित्त लेट कर और टांगों को ऊपर खींच कर पांवों को हाथों से पकड़ा जाता है।
धनुरासन की विधि (Technique of Dhanurasana)-इससे शरीर की स्थिति कमान की तरह होती है। धनुरासन करने के लिए पेट के बल भूमि पर लेट जाएं। घुटनों को पीछे की ओर मोड़ कर रखें। टखनों के समीप पांवों
योग (Yoga) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education 4
धनुरासन
को हाथ से पकड़ें। लम्बी सांस लेकर छाती को जितना हो सके ऊपर की ओर उठाएं। अब पांव अकड़ायें जिससे शरीर का आकार कमान की तरह बन जाए। जितने समय तक सम्भव हो ऊपर वाली स्थिति में रहें। सांस छोड़ते समय शरीर को ढीला रखते हुए पहले वाली स्थिति में आ जाएं। इस आसन को तीन-चार बार करें। भुजंगासन और धनुरासन दोनों ही आसन बारी-बारी करने चाहिए।
लाभ (Advantages)—

  1. इस आसन से शरीर का मोटापा कम होता है।
  2. इससे पाचन शक्ति बढ़ती है।
  3. गठिया और मूत्र रोगों से छुटकारा मिलता है।
  4. मेहदा तथा आंतें अधिक ताकतवर बनती हैं।
  5. रीढ़ की ‘हड्डी तथा मांसपेशियां मज़बूत और लचकीली बनती हैं।

अर्द्धमत्स्येन्द्रासन (Ardhmatseyandrasana) इसमें बैठने की स्थिति में धड़ को पावों की ओर धंसा जाता है।
विधि-ज़मीन पर बैठकर बाएं पांव की एड़ी को दाईं ओर नितम्ब के पास ले जाओ। जिससे एडी का भाग गदा के निकट लगे। दायें पांव को ज़मीन पर बायें पांव के घुटने के निकट रखो फिर वक्षस्थल के निकट बाईं भुजा को लाएं, दायें पांव के घुटने के नीचे अपनी जंघा पर रखें, पीछे की ओर से दायें हाथ द्वारा कमर को लपेट कर नाभि को स्पर्श करने का यत्न करें। फिर पांव बदल कर सारी क्रिया को दोहराएँ।
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अर्द्धमत्स्येन्द्रासन
लाभ—

  1. इस आसन द्वारा मांसपेशियां और जोड़ अधिक लचीले रहते हैं और शरीर में शक्ति आती है।
  2. यह आसन, वायु विकार और मधुमेह दूर करता है तथा आन्त उतरने (Hernia) में लाभदायक है।
  3. यह आसन मूत्राशय, अमाशय, प्लीहादि के रोगों में लाभदायक है।
  4. इस आसन के करने से मोटापा दूर रहता है।
  5. छोटी तथा बड़ी आन्तों के रोगों के लिए बहुत उपयोगी है।

प्रश्न 5.
पद्मासन, मयूरासन, सर्वांगासन और मत्स्यासन की विधि और लाभ बताएं।
उत्तर-
पद्मासन (Padamasana)-इसमें टांगों की चौंकड़ी लगा कर बैठा जाता है। पद्मासन की विधि (Technique of Padamasana)-चौकड़ी मार कर बैठने के बाद दायां पांव बाईं जांघ पर इस तरह रखें कि दायें पांव की एड़ी बाईं जांघ पर पेडू हड्डी को छुए। इसके पश्चात् बायें पांव को उठा कर उसी प्रकार दायें पांव की जांघ पर रख लें। रीढ़ की हड्डी बिल्कुल सीधी रहनी चाहिए। बाजुओं को तान कर हाथों को घुटनों पर रखो। कुछ दिनों के अभ्यास द्वारा इस आसन को बहुत ही आसानी से किया जा सकता है।
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पद्मासन
लाभ (Advantages)—

  1. इस आसन में पाचन शक्ति बढ़ती है।
  2. यह आसन मन की एकाग्रता के लिए सर्वोत्तम है।
  3. कमर दर्द दूर होता है।
  4. दिल के तथा पेट के रोग नहीं लगते।
  5. मूत्र के रोगों को दूर करता है।

मयूरासन (Mayurasana)
विधि (Technique)-पेट के बल ज़मीन पर लेट कर दोनों पांवों के पंजों को मिलाओ। दोनों कहनियों को आपस में मिला कर ज़मीन पर ले जाओ। सम्पूर्ण शरीर का भार कुहनियों पर दे कर घुटनों और पैरों को जमीन से उठाए रखो।
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मयूरासन
लाभ (Advantages)—

  1. यह आसन फेफड़ों की बीमारी दूर करता है। चेहरे को लाली प्रदान करता है।
  2. पेट की सभी बीमारियां इससे दूर होती हैं और बांहों तथा हाथों को बलवान बनाता है।
  3. इस आसन से आंखों की नज़र पास की व दूर की ठीक रहती है।
  4. इस आसन से मधुमेह रोग नहीं होता यदि हो जाए तो दूर हो जाता है।
  5. यह आसन रक्त संचार को नियमित करता है।

सर्वांगासन (Sarvangasana)—इसमें कन्धों पर खड़ा हुआ जाता है।
सर्वांगासन की विधि (Technique of Sarvangasana)—सर्वांगासन में शरीर की स्थिति अर्द्ध हल आसन की भान्ति होती है। इस आसन के लिए शरीर को सीधा करके पीठ के बल ज़मीन पर लेट जाएं। हाथों को जंघाओं के बराबर रखें। दोनों पांवों को एक बार उठा कर हथेलियों द्वारा पीठ को सहारा देकर कुहनियों को ज़मीन पर टिकाएँ।
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सर्वांगासन
सारे शरीर को सीधा रखें। शरीर का भार कन्धों और गर्दन पर रहे। ठोडी कण्ठकूप से लगी रहे। कुछ समय इस स्थिति में रहने के पश्चात् धीरे-धीरे पहली स्थिति में आएं। आरम्भ में आसन का समय बढ़ा कर 5 से 7 मिनट तक किया जा सकता है। जो व्यक्ति किसी कारण शीर्षासन नहीं कर सकते उन्हें सर्वांगासन करना चाहिए।
लाभ (Advantages)—

  1. इस आसन से कब्ज दूर होती है, भूख खूब लगती है।
  2. बाहर को बढ़ा हुआ पेट अन्दर धंसता है।
  3. शरीर के सभी अंगों में चुस्ती आती है।
  4. पेट की गैस नष्ट होती है।
  5. रक्त का संचार तेज़ और शुद्ध होता है।
  6. बवासीर के रोग से छुटकारा मिलता है।

मत्स्यासन (Matsyasana)—इसमें पद्मासन में बैठकर Supine लेते हुए और पीछे की ओर arch बनाते हैं।
विधि (Technique)—पद्मासन लगा कर सिर को इतना पीछे ले जाओ जिससे सिर की चोटी का भाग ज़मीन पर लग जाए और पीठ का भाग ज़मीन से ऊपर उठा हो। दोनों हाथों से दोनों पैरों के अंगूठे पकड़ें।
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मत्स्यासन
लाभ (Advantages)—

  1. वह आसन चेहरे को आकर्षक बनाता है। चर्म रोग को दूर करता है।
  2. यह आसन टांसिल, मधुमेह, घुटनों तथा कमर दर्द के लिए लाभदायक है। शुद्ध रक्त का निर्माण तथा संचार करता है।
  3. इस आसन द्वारा मेरूदण्ड में लचक आती है, कब्ज दूर होती है, भूख बढ़ती है, पेट की गैस को नष्ट करके भोजन पचाता है।
  4. यह आसन फेफड़ों के लिए लाभदायक है, श्वास सम्बन्धी रोग जैसे खांसी, दमा, श्वास नली की बीमारी आदि दूर करता है। नेत्र दोषों को दूर करता है।
  5. यह आसन टांगों और भुजाओं की शक्ति को बढ़ाता है और मानसिक दुर्बलता को दूर करता है।

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प्रश्न 6.
हलासन और शवासन की विधि और लाभ बताएं।
उत्तर-
हलासन (Halasana)—इसमें Supine लेते हुए, टांगें उठा कर और सिर से परे रखी जाती हैं।
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हलासन
विधि (Technique)—दोनों टांगों को ऊपर उठाएं, सिर को पीछे रखें और दोनों पांवों को सिर के पीछे ज़मीन पर रखें। पैरों के अंगूठे ज़मीन को छू लें। यह स्थिति जब तक हो सके रखें। इसके पश्चात् अपनी टांगें पहले वाले स्थान पर लाएं जहां से आरम्भ किया था।
लाभ (Advantages)—

  1. हल आसन औरतों और मर्दो के लिए हर आयु में लाभदायक है।
  2. यह आसन रक्त के दबाव अधिक और कम के लिए भी फायदेमंद है। जिस व्यक्ति को दिल की बीमारी हो उसके लिए भी लाभदायक है।
  3. रक्त का दौरा नियमित हो जाता है।
  4. इस आसन को करने से व्यक्ति की वसा कम हो जाती है और कमर व पेट पतले हो जाते हैं।
  5. रीढ़ की हड्डी लचकदार हो जाती है।

शवासन (Shavasana)—चित्त लेट कर मीटर को ढीला छोड़ दें।
शवासन की विधि (Technique of Shavasana)—शवासन में पीठ के बल सीधा लेट कर शरीर को पूरी तरह ढीला छोड़ा जाता है। शवासन करने के लिए जमीन पर पीठ के बल लेट जाओ और शरीर के अंगों को ढीला छोड़ दें। धीरे-धीरे लम्बे सांस लो। बिल्कुल चित्त लेट कर सारे शरीर के अंगों को ढीला छोड़ दो। दोनों पांवों के बीच एक डेढ़ फुट की दूरी होनी चाहिए। हाथों की हथेलियों को आकाश की ओर करके शरीर से दूर रखो। आंखें बन्द कर अन्तान हो कर सोचो कि शरीर ढीला हो रहा है। अनुभव करो कि शरीर विश्राम की स्थिति में है। यह आसन 3 से 5 मिनट तक करना चाहिए। इस आसन का अभ्यास प्रत्येक आसन के शुरू या अन्त में करना ज़रूरी है।
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शवासन
महत्त्व (Importance)—

  1. शवासन से उच्च रक्त चाप और मानसिक तनाव से छुटकारा मिलता है।
  2. यह दिल और दिमाग को ताज़ा करता है।
  3. इस आसन द्वारा शरीर की थकावट दूर होती है।

योग मुद्रा (Yog Mudra)—इसमें व्यक्ति पद्मासन में बैठता है, धड़ को झुकाता है और भूमि पर सिर को विश्राम देता है।
मयूरासन (Mayurasana)—इसमें शरीर को क्षैतिज रूप में कुहनियों पर सन्तुलित किया जाता है। हथेलियां भूमि पर टिकाई होती हैं।
उड्डियान (Uddiyan)—पांवों को अलग-अलग करके खड़ा होकर धड़ को आगे की ओर झुकाएं। हाथों को जांघों पर रखें। सांस बाहर निकालें और पसलियों के नीचे अन्दर को सांस खींचने की नकल करें।

प्राणायाम : अनुलोम विलोम (Pranayam : Anulom Vilom)—बैठकर निश्चित अवधि के लिए बारीबारी सांस को अन्दर खींचें, ठोडी की सहायता से सांस रोकें और सांस बाहर निकालें।

लाभ (Advantages)—प्राणायाम आसन द्वारा रक्त, नाड़ियों और मन की शुद्धि होती है।
सूर्य नमस्कार (Surya Namaskar)—सूर्य नमस्कार के 16 अंग हैं परन्तु 16 अंगों वाला सूर्य सम्पूर्ण सृष्टि के लय होने के समय प्रकट होता है। साधारणतया इसके 12 अंगों का ही अभ्यास किया जाता है।

लाभ (Advantages)—यह श्रेष्ठ यौगिक व्यायाम है। इससे व्यक्ति को आसन, मुद्रा और प्राणायाम के लाभ प्राप्त होते हैं। अभ्यासी का शरीर सूर्य के समान चमकने लगता है। चर्म सम्बन्धी रोगों से बचाव होता है। कोष्ठ बद्धता दृर होती है। मेरूदण्ड और कमर लचकीली होती है। गर्भवती स्त्रियों और हर्निया के रोगियों को इसका अभ्यास नहीं करना चाहिए।

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प्रश्न 7.
वज्रासन, शीर्षासन, चक्रासन और गरुड़ासन की विधि एवं लाभ लिखें।
उत्तर-
वज्रासन (Vajur Asana)—पैरों को पीछे की ओर मोड़ कर बैठना और हाथों को घुटनों पर रखना इसकी स्थिति है।
विधि (Technique)—

  1. घुटने मोड़ कर पैरों को पीछे की ओर करके पैरों के तलुओं के भार बैठो।
  2. नीचे पैर इस प्रकार हों कि पैर के अंगूठे एक दूसरे से मिले हों।
  3. दोनों घुटने भी मिले हों और कमर तथा पीठ दोनों एकदम सीधे रहें।
  4. दोनों हाथों को तान कर घुटनों के पास रखो।
  5. सांसें लम्बी-लम्बी और साधारण हों।
  6. यह आसन प्रतिदिन 3 मिनट से लेकर 20 मिनट तक करना चाहिए।

लाभ (Advantages)—
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वज्रासन

  1. शरीर में स्फूर्ति आती है।
  2. शरीर का मोटापा दूर हो जाता है।
  3. शरीर स्वस्थ रहता है।
  4. मांसपेशियां मज़बूत होती हैं।
  5. इससे स्वप्न दोष दूर हो जाता है।
  6. पैरों का दर्द दूर हो जाता है।
  7. मानसिक शांति प्राप्त होती है।
  8. मनुष्य निश्चिंत हो जाता है।
  9. इससे मधुमेह की बीमारी में लाभ पहुंचता है।
  10. पाचन-क्रिया ठीक रहती है।

शीर्षासन (Shirsh Asana)-इस आसन में सिर नीचे और पैर ऊपर की ओर होते हैं।
विधि (Technique)—

  1. एक दरी या कम्बल बिछा कर घुटनों के भार बैठो।
  2. दोनों हाथों की अंगुलियां कस कर बांध लो। दोनों हाथों को कोणदार बना कर कम्बल या दरी पर रखो।
  3. सिर का सामने वाला भाग हाथों में इस प्रकार ज़मीन पर रखो कि दोनों अंगूठे सिर के पिछले हिस्से को दबाएं।
  4. टांगों को धीरे-धीरे अन्दर की ओर मोड़ते हुए शरीर को सिर और दोनों हाथों के सहारे आसमान की ओर उठाओ।
  5. पैरों को धीरे-धीरे ऊपर उठाओ। पहले एक टांग को सीधा करो, फिर दूसरी को।
  6. शरीर को बिल्कुल सीधा रखो।
  7. शरीर का सारा भार बांहों और सिर पर बराबर पड़े।
  8. दीवार या साथी का सहारा लो।

लाभ (Advantages)—
योग (Yoga) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education 13
शीर्षासन

  1. यह आसन भूख बढ़ाता है।
  2. इससे स्मरण-शक्ति बढ़ती है।
  3. मोटापा दूर हो जाता है।
  4. जिगर ठीक प्रकार से कार्य करता है।
  5. पेशाब की बीमारियां दूर हो जाती हैं।
  6. बवासीर आदि बीमारियां दूर हो जाती हैं।
  7. इस आसन का प्रतिदिन अभ्यास करने से कई मानसिक बीमारियां दूर हो जाती हैं।

सावधानियां (Precautions)—

  1. जब आंखों में लाली आ जाए तो बन्द कर दो।
  2. सिर चकराने लगे तो आसन बन्द कर दें।
  3. कानों में सां-सां की ध्वनि सुनाई दे तो शीर्षासन बन्द कर दें।
  4. नाक बन्द हो जाए तो यह आसन बन्द कर दें।
  5. यदि शरीर भार सहन न कर सके तो आसन बन्द कर दें।
  6. पैरों व बांहों में कम्पन होने लगे तो आसन बन्द कर दो।
  7. यदि दिल घबराने लगे तो भी आसन बन्द कर दो।
  8. शीर्षासन सदैव एकान्त स्थान पर करना चाहिए।
  9. आवश्यकता होने पर दीवार का सहारा लेना चाहिए।
  10. यह आसन केवल एक मिनट से पांच मिनट तक करो। इससे अधिक शरीर के लिए हानिकारक है।

चक्रासन (Chakar Asana) की स्थिति-इस आसन में शरीर को गोल चक्र जैसा बनाना पड़ता है।
योग (Yoga) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education 14
चक्रासन
विधि (Technique)—

  1. पीठ के भार लेट कर, घुटनों को मोड़ कर, पैरों के तलवों को जमीन से लगाओ। दोनों पैरों के बीच में एक से डेढ़ फुट का अन्तर रखो।
  2. हाथों को पीछे की ओर ज़मीन पर रखो। तलवों और अंगुलियों को दृढ़ता के साथ ज़मीन से लगाए रखो।
  3. अब हाथ-पैरों के सहारे पूरे शरीर को चक्रासन या चक्र की शक्ल में ले जाओ।
  4. सारे शरीर की स्थिति गोलाकार होनी चाहिए।
  5. आंखें बन्द रखो ताकि श्वास की गति तेज़ हो सके।

लाभ (Advantages)—

  1. शरीर की सारी कमजोरियां दूर हो जाती हैं।
  2. शरीर के सारे अंगों को लचीला बनाता है।
  3. हर्निया तथा गुर्दो के रोग दूर करने में लाभदायक होता है।
  4. पाचन शक्ति को बढ़ाता है।
  5. पेट की वायु विकार आदि बीमारियां दूर हो जाती हैं।
  6. रीढ़ की हड्डी मजबूत हो जाती है।
  7. जांघ तथा बाहें शक्तिशाली बनती हैं।
  8. गुर्दे की बीमारियां घट जाती हैं।
  9. कमर दर्द दूर हो जाता है।
  10. शरीर हल्कापन अनुभव करता है।

गरुड़ आसन (Garur Asana) की स्थिति- गरुड़ आसन में शरीर की स्थिति गरुड़ पक्षी की भांति पैरों पर सीधे खड़ा होना होता है।
विधि (Technique)—

  1. सीधे खड़े होकर बायें पैर को उठा कर दाहिनी टांग में बेल की तरह लपेट लो।
  2. बाईं जांघ दाईं जांघ पर आ जायेगी तथा बाईं जांघ पिंडली को ढांप देगी।
  3. शरीर का सारा भार एक ही टांग पर कर दो।
  4. बाएं बाजू को दायें बाजू से दोनों हथेलियों को नमस्कार की स्थिति में ले जाओ।
  5. इसके बाद बाईं टांग को थोड़ा सा झुका कर शरीर को बैठने की स्थिति में ले जाओ। इस प्रकार शरीर की नसें खिंच जाती हैं। अब शरीर को सीधा करो और सावधान की स्थिति में हो जाओ।
  6. अब हाथों और पैरों को बदल कर पहली वाली स्थिति में पुनः दोहराओ।

लाभ (Advantages)—
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गरुड़ासन

  1. शरीर के सभी अंगों को शक्तिाली बनाता है।
  2. शरीर स्वस्थ हो जाता है।
  3. यह बांहों को ताकतवर बनाता है।
  4. यह हर्निया रोग से मनुष्य को बचाता है।
  5. टांगें शक्तिशाली हो जाती हैं।
  6. शरीर हल्कापन अनुभव करता है।
  7. रक्त संचार तेज़ हो जाता है।
  8. गरुड़ आसन करने से मनुष्य बहुत-सी बीमारियों से बच जाता है।

योग (Yoga) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education

प्रश्न 8.
अष्टांग योग के अंगों के बारे में विस्तारपूर्वक लिखें।
उत्तर-
अष्टांग योग
(Ashtang Yoga)
अष्टांग योग के आठ अंग हैं, इसलिए इसका नाम अष्टांग योग है।
योगाभ्यास की पतजंलि ऋषि द्वारा आठ अवस्थाएं मानी गई हैं। इन्हें पतजंलि ऋषि का अष्टांग योग भी कहते हैं—

  1. यम (Yama, Forbearnace)
  2. नियम (Niyama, Observance)
  3. आसन (Asana, Posture)
  4. प्राणायाम (Pranayama, Regulation of Breathing)
  5. प्रत्याहार (Pratyahara, Abstracition)
  6. धारणा (Dharna, Concentration)
  7. ध्यान (Dhyana, Meditation)
  8. समाधि (Samadhi, Trance)।

योग की ऊपरी बताई गई आठ अवस्थाओं में से पहली पांच अवस्थाओं का सम्बन्ध आन्तरिक यौगिक क्रियाओं से है। इन सभी अवस्थाओं को आगे फिर इस प्रकार वर्गीकृत किया गया है—
1. यम (Yama, Forbearance) यम के निम्नलिखित पांच अंग हैं—

  • अहिंसा (Ahimsa, Non-violence)
  • सत्य (Satya, Truth)
  • अस्तेय (Astey, Conquest of the sense of mind)
  • अपरिग्रह (Aprigraha, Non-receiving)
  • ब्रह्मचर्य (Brahmacharya, Celibacy)।

2. नियम (Niyama, Observance)-नियम के निम्नलिखित पांच अंग हैं :—

  • शौच (Shauch, Obeying the call of nature)
  • सन्तोष (Santosh, Contentment)
  • तप (Tapas, Penance)
  • स्वाध्याय (Savadhyay, Self-study)
  • ईश्वर परिधान (Ishwar Pridhan, God Consciousness)।

3. आसन (Asana or Posture) आसनों की संख्या उतनी है जितनी कि इस संसार में पशु-पक्षियों की। आसन-शारीरिक क्षमता, शक्ति के अनुसार, प्रतिदिन सांस द्वारा हवा को बाहर निकलने, सांस रोकने और फिर सांस लेने से करने चाहिएं।

4. प्राणायाम (Pranayma, Regulation of Breathing), प्राणायाम उपासना की मांग है। इसको तीन भागों में बांटा जा सकता है—

  • पूरक (Purak, Inhalation)।
  • रेचक (Rechak, Exhalation) और
  • कुम्भक (Kumbhak, Holding of Breath)। कई प्रकार से सांस लेने तथा इसे रोककर बाहर निकालने को प्राणायाम कहते हैं।

5. प्रत्याहार (Pratyahara)– प्रत्याहार से अभिप्राय: है वापिस लाना तथा सांसारिक प्रसन्नताओं से मन को मोड़ना।

6. धारणा (Dharna)-अपनी इन्द्रियों पर नियन्त्रण रखने को धारणा कहते हैं जो बहुत कठिन है।

7. ध्यान (Dhyana)–जब मन पर नियन्त्रण हो जाता है तो ध्यान लगना आरम्भ हो जाता है। इस अवस्था में मन और शरीर नदी के प्रवाह की भान्ति हो जाते हैं जिसमें पानी की धाराओं का कोई प्रभाव नहीं होता।

8. समाधि (Samadhi)-मन की वह अवस्था जो धारणा से आरम्भ होती है, समाधि में समाप्त हो जाती है। इन सभी अवस्थाओं का आपस में गहरा सम्बन्ध है।

PSEB 11th Class Sociology Solutions स्रोत आधारित प्रश्न

Punjab State Board PSEB 11th Class Sociology Book Solutions स्रोत आधारित प्रश्न.

PSEB Solutions for Class 11 Sociology स्रोत आधारित प्रश्न

प्रश्न 1.
निम्नलिखित स्रोत को पढ़ें तथा साथ दिए प्रश्नों के उत्तर दें-
19वीं सदी में प्राकृतिक विज्ञानों ने बहुत प्रगति की। प्राकृतिक विज्ञानों के क्षेत्र में काम कर रहे लोगों द्वारा प्राप्त सफलता ने बड़ी संख्या में समाज, विचारकों को उनका अनुकरण करने के लिए प्रेरित किया। उनका मानना था कि यदि प्राकतिक विज्ञान की पद्धतियों से भौतिक विश्व में भौतिक या प्राकृतिक प्रघटनाओं को सफलतापूर्वक समझा जा सकता है तो उन्हीं पद्धतियों को सामाजिक विश्व की सामाजिक प्रघटनाओं को समझने में भी सफलतापूर्वक प्रयुक्त किया जा सकता है। अगस्त कोंत, हरबर्ट स्पेंसर, एमिल दुर्खाइम, मैक्स वेबर जैसे विद्वानों तथा अन्य समाजशास्त्रियों ने समाज का अध्ययन विज्ञान की पद्धतियों से करने का समर्थन किया क्योंकि वे प्राकृतिक वैज्ञानिकों की खोजों से प्रेरित थे और समान तरीके से ही समाज का अध्ययन करना चाहते थे।

(i) किस कारण सामाजिक विचारक प्राकृतिक विज्ञानों का अनुकरण करने के लिए प्रेरित हुए ?
(ii) किन समाजशास्त्रियों ने समाज का अध्ययन किया ?
(ii) समाजशास्त्रियों का प्राकृतिक विज्ञानों की पद्धतियों के बारे में क्या विचार था ?
उत्तर-
(i) 19वीं शताब्दी में प्राकृतिक विज्ञानों के क्षेत्र में कार्य कर रहे लोगों को काफी सफलता प्राप्त हुई। इस कारण सामाजिक विचारक प्राकृतिक विज्ञानों का अनुकरण करने के लिए प्रेरित हुए।
(ii) अगस्त कोंत, हरबर्ट स्पेंसर, एमिल दुर्खाइम, मैक्स वेबर जैसे समाजशास्त्रियों ने समाज का गहनता से अध्ययन किया।
(iii) समाजशास्त्रियों का मानना था कि जैसे प्राकृतिक विज्ञान की पद्धतियों से प्राकृतिक घटनाओं को आसानी से समझा जा सकता है तो उन्हीं पद्धतियों की सहायता से सामाजिक विश्व की सामाजिक प्रघटनाओं को भी सफलतापूर्वक समझा जा सकता है।

प्रश्न 2.
निम्न दिए स्रोत को पढ़ें व साथ दिए प्रश्नों के उत्तर दें
यूरोप और अमेरिका में, 19वीं सदी के बाद समाजशास्त्र एक विषय के रूप में विकसित हुआ। हालांकि, भारत में, यह न केवल थोड़ी देर से उभरा अपितु अध्ययन के एक विषय के रूप में इसे कम महत्त्व दिया गया। तथापि, स्वाधीनता प्राप्ति के बाद भारत में समाजशास्त्र के महत्त्व में वृद्धि हुई और देश के लगभग सभी विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम मे एक स्वतंत्र विषय के रूप में स्थान प्राप्त किया। इसके अतिरिक्त विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए एक विषय के रूप मे भी पहचान बनायी। राधा कमल मुखर्जी, जी० एस० धुर्ये, डी० पी० मुखर्जी, डी० एन० मजूमदार, के० एम० कपाडिया, एम० एन० श्रीनिवास, पी० एन० प्रभु, ए० आर० देसाई इत्यादि कुछ महत्त्पूर्ण विद्वान हैं जिन्होंने भारतीय समाजशास्त्र के विकास में योगदान दिया।

(i) एक विषय के रूप में समाजशास्त्र यूरोप में कब विकसित हुआ ?
(ii) कुछ भारतीय समाजशास्त्रियों के नाम बताएं जिन्होंने भारतीय समाजशास्त्र के विकास में योगदान दिया।
(iii) भारत में समाजशास्त्र कैसे विकसित हुआ ?
उत्तर-
(i) यूरोप तथा अमेरिका में समाजशास्त्र एक विषय के रूप में 19वीं शताब्दी के पश्चात् काफी तेज़ी से विकसित हुआ।
(ii) राधा कमल मुखर्जी, जी० एस० घुर्ये, डी० पी० मुखर्जी, डी० एन० मजूमदार, के० एम० कपाड़िया, एम० एन० श्रीनिवास, पी० एन० प्रभु, ए० आर० देसाई जैसे भारतीय समाजशास्त्रियों ने भारतीय समाजशास्त्र के विकास में काफी योगदान दिया।
(iii) 1947 से पहले भारत में समाजशास्त्र का विकास तेज़ी से न हो पाया क्योंकि भारत पराधीन था। परन्तु स्वतन्त्रता के पश्चात् भारत में समाजशास्त्र तेजी से विकसित हुआ तथा देश के लगभग सभी विश्वविद्यालयों में इसे एक स्वतन्त्र विषय के रूप में पढ़ाया जाने लगा। इसके अतिरिक्त, इसे विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में भी प्रयोग किया जाने लगा जिस कारण यह तेजी से विकसित हुआ।

PSEB 11th Class Sociology Solutions स्रोत आधारित प्रश्न

प्रश्न 3.
निम्न दिए स्रोत को पढ़ें व साथ दिए प्रश्नों के उत्तर दें-
मॉरिस गिंसबर्ग के अनुसार, ऐतिहासिक रूप से समाजशास्त्र की जड़ें राजनीति तथा इतिहास के दर्शन में हैं। इस कारण से समाजशास्त्र राजनीति विज्ञान पर निर्भर करता है। प्रत्येक सामाजिक समस्या का एक राजनीतिक कारण है। राजनीतिक व्यवस्था या शक्ति संरचना की प्रकृति में किसी भी प्रकार का परिवर्तन समाज में भी परिवर्तन लाता है। विभिन्न राजनीतिक घटनाओं को समझने के लिए समाजशास्त्र राजनीति विज्ञान से मदद लेता है। इसी तरह, राजनीति विज्ञान भी समाजशास्त्र पर पर निर्भर करता है। राज्य अपने नियमों, अधिनियमों और कानूनों का निर्माण सामाजिक प्रथाओं, परम्पराओं तथा मूल्यों के आधार पर करता है। अतः बिना समाजशास्त्रियों पृष्ठभूमि के राजनीति विज्ञान का अध्ययन अधूरा होगा। लगभग सभी राजनीतिक समस्याओं की उत्पत्ति सामाजिक है तथा इन राजनीतिक समस्याओं के समाधान के लिए राजनीति विज्ञान समाजशास्त्र की सहायता लेता है।

(i) मॉरिस गिंसबर्ग के अनुसार समाजशास्त्र राजनीति पर क्यों निर्भर है ?
(ii) गिंसबर्ग के अनुसार बिना समाजशास्त्रीय पृष्ठभूमि के राजनीति विज्ञान का अध्ययन क्यों अधूरा है ?
(ii) किस प्रकार राजनीति विज्ञान समाजशास्त्र की सहायता लेता है ?
उत्तर-
(i) गिंसबर्ग के अनुसार ऐतिहासिक रूप से समाजशास्त्र की जड़ें राजनीति व इतिहास के दर्शन में हैं। इसलिए समाजशास्त्र राजनीति विज्ञान पर निर्भर है।
(ii) गिंसबर्ग के अनुसार राज्य जब भी अपने नियम अथवा कानून बनाता है, उसे सामाजिक मूल्यों, प्रथाओं, परम्पराओं का ध्यान रखना पड़ता है। इस कारण बिना समाजशास्त्रीय पृष्ठभूमि के राजनीति विज्ञान का अध्ययन अधूरा है।
(iii) गिंसबर्ग के अनुसार लगभग सभी राजनीतिक समस्याओं की उत्पत्ति समाज में से ही होती है तथा समाज का अध्ययन समाजशास्त्र करता है। इस लिए जब भी राजनीति विज्ञान को समाज का अध्ययन करना होता है, उसे समाजशास्त्र की सहायता लेनी ही पड़ती है।

प्रश्न 4.
निम्न दिए स्त्रोत को पढ़ें व साथ दिए प्रश्नों के उत्तर दें
विभिन्न समाज विज्ञानों में समाज का भिन्न अर्थ लगाया जाता है, परन्तु समाजशास्त्र में इसका प्रयोग विभिन्न प्रकार की सामाजिक इकाइयों के संदर्भ में होता है। समाजशास्त्र का मुख्य ध्यान मानव समाज पर तथा इसमें पाये जाने वाले सम्बन्धों के नेटवर्क/जाल पर होता है। एक समाज में समाजशास्त्री सामाजिक प्राणियों के अन्तः सम्बन्धों का अध्ययन करते हैं तथा यह ज्ञात करते हैं कि एक विशिष्ट स्थिति में एक व्यक्ति कैसे व्यवहार करता है, उसे दूसरों से क्या उम्मीद करनी चाहिए तथा दूसरे उससे क्या उम्मीदें/अपेक्षाएं करते हैं।

(i) समाज शब्द का प्रयोग अलग-अलग समाज विज्ञानों में अलग-अलग क्यों है ?
(ii) समाजशास्त्र में समाज का क्या अर्थ है ?
(iii) समाज व एक समाज में क्या अंतर है ?
उत्तर-
(i) अलग-अलग समाज विज्ञान समाज के एक विशेष भाग का अध्ययन करते हैं। जैसे अर्थशास्त्र पैसे से संबंधित विषय का अध्ययन करता है। इस कारण वह समाज शब्द का अर्थ भी अलग-अलग ही लेते हैं।
(ii) समाजशास्त्र में सम्बन्धों के जाल को समाज कहा जाता है। जब लोगों के बीच सम्बन्ध स्थापित हो जाते हैं तो समाज का निर्माण होना शुरू हो जाता है। इस प्रकार सामाजिक सम्बन्धों के जाल को समाज कहते हैं।
(iii) जब हम समाज की बात करते हैं तो यह सभी समाजों को इक्ट्ठे लेते हैं तथा अमूर्त रूप से उसका अध्ययन करते हैं परन्तु एक समाज में हम किसी विशेष समाज की बात कर रहे होते हैं जैसे कि भारतीय समाज या अमेरिकी समाज। इस कारण यह मूर्त समाज हो जाता है।

PSEB 11th Class Sociology Solutions स्रोत आधारित प्रश्न

प्रश्न 5.
निम्न दिए स्त्रोत को पढ़ें व साथ दिए प्रश्नों के उत्तर दें-
समुदाय किसी भी आकार का एक सामाजिक समूह है जिसके सदस्य एक विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्र में निवास करते हैं, अक्सर एक सरकार तथा एक सांस्कृतिक तथा ऐतिहासिक विरासत को सांझा करते हैं। समुदाय से अभिप्राय लोगों के एक समुच्चय से भी लिया जाता है जो समान प्रकार के कार्य या गतिविधियों में संलग्न रहते हैं जैसे प्रजातीय समुदाय, धार्मिक समुदाय, एक राष्ट्रीय समुदाय, एक जाति समुदाय या एक भाषायी समुदाय इत्यादि। इस अर्थ में यह समान विशेषताओं या पक्षों वाले एक सामाजिक, धार्मिक या व्यावसायिक समूह का प्रतिनिधित्व करता है तथा वहद समाज जिसमें यह रहता है, से स्वयं को कुछ अर्थों में भिन्न प्रदर्शित करता है। अत: समुदाय का अभिप्राय एक विशाल क्षेत्र में फैले लोगों से है जो एक या अन्य किसी प्रकार से समानताओं का प्रतिनिधित्व करते हैं। उदाहरण के लिए, ‘अन्तर्राष्ट्रीय समदाय’ या ‘एन० आर० आई० समुदाय’ जैसे शब्द समान विशेषताओं से निर्मित कुछ सुसंगत समूहों के रूप में साहित्य में प्रयुक्त किये जाते हैं।

(i) समुदाय का क्या अर्थ है ?
(ii) समुदाय की कुछ उदाहरण दीजिए।
(iii) समुदाय तथा समिति में दो अंतर बताएं।
उत्तर-
(i) समुदाय किसी भी आकार का एक सामाजिक समूह है जिसके सदस्य एक विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्र में निवास करते हैं, अक्सर एक सरकार तथा एक सांस्कृतिक तथा ऐतिहासिक विरासत को सांझा करते हैं।
(ii) अंतर्राष्ट्रीय समुदाय, भारतीय समुदाय, पंजाबी समुदाय इत्यादि समुदाय के कुछ उदाहरण हैं।
(iii) (a) समुदाय स्वयं ही निर्मित हो जाता है परन्तु समिति को जानबूझ कर किसी विशेष उद्देश्य से निर्मित किया जाता है।
(b) सभी लोग स्वत: ही किसी न किसी समुदाय का सदस्य बन जाते हैं परन्तु समिति की सदस्यता ऐच्छिक होती है अर्थात् व्यक्ति जब चाहे किसी समिति की सदस्यता ले तथा छोड़ सकता है।

प्रश्न 6.
निम्न दिए स्रोत को पढ़ें व साथ दिए प्रश्नों के उत्तर दें
सामाजिक समूह व्यक्तियों का संगठन है जिसमें दो या दो से अधिक व्यक्तियों के मध्य अंतः क्रियाएँ पाई जाती हैं। इसमें वे व्यक्ति आते हैं, जो एक दूसरे के साथ अंतःक्रिया करते हैं, और अपने को अलग सामाजिक इकाई मानते हैं। समूह में सदस्यों की संख्या को दो से सौ व्यक्तियों की श्रेणी में रखा जा सकता है। इसके साथ, सामाजिक समूह की प्रकृति गतिशील होती है, इसकी गतिविधियों में समय-समय पर परिवर्तन आता रहता है। सामाजिक समूह के अन्तर्गत व्यक्तियों में अंतक्रियाएँ व्यक्तियों को अन्यों से पहचान के लिए भी प्रेरित करती हैं। समूह, आमतौर पर स्थिर तथा सामाजिक इकाई है। उदाहरण के लिए, परिवार, समुदाय, गाँव आदि, समूह विभिन्न संगठित क्रियाएँ करते हैं, जोकि समाज के लिए महत्त्वपूर्ण हैं।

(i) सामाजिक समूह का क्या अर्थ है ?
(ii) क्या भीड़ को समूह कहा जा सकता है ? यदि नहीं तो क्यों ?
(iii) प्राथमिक व द्वितीय समूह का क्या अर्थ है ?
उत्तर-
(i) व्यक्तियों के उस संगठन को सामाजिक समूह कहा जाता है, जिसमें व्यक्तियों के बीच अन्तक्रियाएँ पाई जाती हैं। जब लोग एक-दूसरे के साथ अन्तक्रियाएं करते हैं तो उनके बीच समूह का निर्माण होता है।
(ii) जी नहीं, भीड़ को समूह नहीं कहा जा सकता क्योंकि भीड में लोगों के बीच अन्तक्रिया नहीं होगी।
अगर अन्तक्रिया नहीं होगी तो उनमें संबंध नहीं बन पाएंगे। जिस कारण समूह का निर्माण नहीं हो पाएगा।
(iii) प्राथमिक समूह-वह समूह जिसके साथ हमारा सीधा, प्रत्यक्ष ब रोज़ाना का संबंध होता है उसे हम प्राथमिक समूह कहते हैं। जैसे-परिवार, मित्र समूह, स्कूल इत्यादि। द्वितीय समूह-वह समूह जिसके साथ हमारा प्रत्यक्ष व रोज़ाना का संबंध नहीं होता उसे हम द्वितीय
समूह कहते हैं। जैसे कि मेरे पिता का ऑफिस।

PSEB 11th Class Sociology Solutions स्रोत आधारित प्रश्न

प्रश्न 7.
निम्न दिए स्रोत को पढ़ें व साथ दिए प्रश्नों के उत्तर देंद्वितीय समूह लगभग प्राथमिक समूह के विपरीत होते हैं। कूले ने द्वितीय समूह के बारे में नहीं बताया, जब वह प्राथमिक समूह के सम्बन्ध में बता रहे थे। बाद में, विचारकों ने प्राथमिक समूह से द्वितीय समूह के विचार को समझा। द्वितीय समूह वे समूह हैं, जो आकार में बड़े होते हैं तथा थोड़े समय के लिए होते हैं। सदस्यों में विचारों का आदान-प्रदान औपचारिक, उपयोग-आधारित, विशेष तथा अस्थायी होता है। क्योंकि इसके सदस्य अपनी-अपनी, भूमिकाओं तथा किये जाने वाले कार्यों के कारण ही आपस में जुड़ें होते हैं। दुकान के मालिक एवं ग्राहक, क्रिकेट मैच में इकट्टे हुए लोग तथा औद्योगिक संगठन इसके उत्तम उदाहरण हैं। कारखाने के मजदूर, सेना, कॉलेज का विद्यार्थी-संगठन-विश्व-विद्यालय के विद्यार्थी, एक राजनैतिक दल आदि भी द्वितीय समूह के अन्रा उदाहरण हैं।

(i) द्वितीय समूह का क्या अर्थ है ?
(ii) द्वितीय समूह की कुछ उदाहरण दें।
(iii) प्राथमिक व द्वितीय समूहों में दो अंतर दें।
उत्तर-
(i) वह समूह जिनके साथ हमारा सीधा व प्रत्यक्ष संबंध नहीं होता, जिनकी सदस्यता हम अपनी इच्छा से ग्रहण करके कभी भी छोड़ सकते हैं, उसे द्वितीय समूह कहा जा सकता है।
(ii) पिता का दफ़तर, माता का ऑफिस, पिता का मित्र समूह, राजनीतिक दल, कारखाने के मजदूर इत्यादि द्वितीय समूह की उदाहरण हैं।
(iii) (a) प्राथमिक समूह आकार में काफ़ी छोटे होते हैं परन्तु द्वितीय समूह आकार में काफी बड़े होते हैं।
(b) प्राथमिक समूह के सदस्यों के बीच अनौपचारिक व प्रत्यक्ष संबंध होते हैं परन्तु द्वितीय समूह के सदस्यों के बीच औपचारिक व अप्रत्यक्ष संबंध होते हैं।

प्रश्न 8.
निम्न दिए स्रोत को पढ़ें व साथ दिए प्रश्नों के उत्तर दें-
संस्कृतियां एक समाज से दूसरे समाज तक भिन्नता रखती हैं तथा हर एक संस्कृति के अपने मूल्य तथा मापदण्ड होते हैं। सामाजिक मूल्य समाज द्वारा मान्यता प्राप्त व्यवहारों के नियम हैं जबकि मूल्य से अभिप्राय, उस सामान्य पक्ष से है कि “क्या ठीक है या अभिलाषित व्यवहार है” तथा “क्या नहीं होना चाहिए”मान्य से संबंधित है। उदाहरण के लिए किसी एक संस्कृति में सत्कार को उच्च सामाजिक मूल्य माना जाता है जबकि अन्य समाज मे ऐसा नहीं होता। सामान्यतः कुछ समाजों में बहुपत्नी प्रथा को एक पारम्परिक रूप का विवाह माना जाता है जबकि अन्य समाजों में इसे एक उपयुक्त प्रथा नहीं माना जाता।

(i) संस्कृति का क्या अर्थ है ?
(ii) क्या दो देशों की संस्कृति एक सी हो सकती है?
(iii) संस्कृति के प्रकार बताएं।
उत्तर-
(i) आदिकाल से लेकर आज तक जो कुछ भी मनुष्य ने अपने अनुभव से प्राप्त किया है, उसे संस्कृति कहते हैं। हमारे विचार अनुभव, विज्ञान, तकनीक, वस्तुएं, मूल्य, परंपराएं इत्यादि सब कुछ संस्कृति का ही हिस्सा हैं।
(ii) जी नहीं, दो देशों की संस्कृति एक सी नहीं हो सकती। चाहे दोनों देशों के लोग एक ही धर्म से क्यों न संबंध रखते हों, उनके विचारों, आदर्शों, मूल्यों इत्यादि में कुछ न कुछ अंतर अवश्य रहता है। इस कारण उनकी संस्कृति भी अलग होती है।
(iii) संस्कृति के दो प्रकार होते हैं-
(a) भौतिक संस्कृति-संस्कृति का वह भाग जिसे हम देख व स्पर्श कर सकते हैं, भौतिक संस्कृति कहलाता है। उदाहरण के लिए कार, मेज़, कुर्सी, पुस्तकें, पैन, इमारतें इत्यादि। (b) अभौतिक संस्कृति-संस्कृति का वह भाग जिसे हम देख या स्पर्श नहीं कर सकते, उसे अभौतिक संस्कृति कहते हैं। उदाहरण के लिए हमारे मूल्य, परंपराएं, विचार, आदर्श इत्यादि।

PSEB 11th Class Sociology Solutions स्रोत आधारित प्रश्न

प्रश्न 9.
निम्न दिए स्रोत को पढ़ें व साथ दिए प्रश्नों के उत्तर दें-
जीवन के विभिन्न स्तरों के दौरान व्यक्ति भिन्न-भिन्न संस्थाओं, समुदायों तथा व्यक्तियों के संपर्क में आता है। अपने संपूर्ण जीवन के दौरान वे बहुत कुछ सीखता है। व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास में विभिन्न अभिकरण तथा संगठन महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं तथा संस्कृति के विभिन्न तत्त्वों का संस्थापन करते हैं। प्रत्येक समाज के समाजीकरण के अभिकरण होते हैं जैसे व्यक्ति, समूह, संगठन तथा संस्थाएं जो कि जीवन क्रम के समाजीकरण के लिए पर्याप्त मात्रा प्रदान करते हैं। अभिकरण वह क्रिया विधि है जिसके द्वारा स्वयं विचारों, विश्वासों एवं संस्कृति के व्यावहारिक प्रारूपों को सीखता है। अभिकरण नए सदस्यों को समाजीकरण की सहायता से अनेक स्थानों को ढूंढ़ने में सहायता करते हैं उसी प्रकार जैसे वे समाज के वृद्धावस्था को नई जिम्मेदारियों के लिए तैयार करते हैं।

(i) समाजीकरण का क्या अर्थ है ?
(ii) समाजीकरण के साधनों के नाम बताएं।
(iii) अभिकरण क्या है ?
उत्तर-
(i) समाजीकरण एक सीखने की प्रक्रिया है। पैदा होने से लेकर जीवन के अंत तक मनुष्य कुछ न कुछ सीखता रहता है जिसमें जीवन जीने व व्यवहार करने के तरीके शामिल होते हैं। इस सीखने की प्रक्रिया को हम समाजीकरण कहते हैं।
(ii) परिवार, स्कूल, खेल समूह, राजनीतिक संस्थाएं, मूल्य, परम्पराएं इत्यादि समाजीकरण के साधन अथवा अभिकरण के रूप में कार्य करती हैं।
(iii) अभिकरण वह क्रिया विधि है जिसकी सहायता से व्यक्ति विचारों विश्वास व संस्कृति में व्यावहारिक प्रारूपों को सीखता है। अभिकरण नए सदस्यों को समाजीकरण की सहायता से अनेकों स्थानों को ढूंढने में सहायता करते हैं। इस प्रकार वृद्धावस्था में नए उत्तरदायित्वों को संभालने को तैयार होता है।

प्रश्न 10.
निम्न दिए स्रोत को पढ़ें व साथ दिए प्रश्नों के उत्तर दें
यद्यपि धर्म की महत्ता लोगों में अब कम हो गई है जबकि कुछ पीढ़ियां पहले, यह हमारे विचारों, मूल्यों और व्यवहारों को भी काफी प्रभावित करती थीं। भारत जैसे देश में धर्म हमारे जीवन के हर पक्ष को नियंत्रित करता है और यह समाजीकरण का एक शक्तिशाली अभिकर्ता (एजेंट) होता है।
कई प्रकार के धार्मिक संस्कार एवं कर्मकाण्ड, विश्वास एवं श्रद्धा, मूल्य एवं मापदण्ड धर्म के अनुसार ही एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक हस्तांतरित होते हैं। धार्मिक त्योहार आमतौर पर सामूहिक रूप से निभाये जाते हैं जोकि समाजीकरण की प्रक्रिया में सहायता करते हैं। धर्म के सहारे ही एक बच्चा एक अलौकिक शक्ति (भगवान) के बारे में सीखता है कि यह हमें बुरी आत्माओं तथा बुराई से बचाती है। यह देखा जाता है कि अगर एक व्यक्ति के माता-पिता धार्मिक होते हैं तो जब एक बच्चा बड़ा होगा वो भी धार्मिक बनता जाएगा।

(i) धर्म क्या है ?
(ii) धर्म की समाजीकरण में क्या भूमिका है ?
(iii) क्या आज धर्म का महत्त्व कम हो रहा है ? यदि हाँ तो क्यों ?
उत्तर-
(i) धर्म और कुछ नहीं बल्कि एक अलौकिक शक्ति में विश्वास है जो हमारी पहुँच से बहुत दूर है। यह विश्वासों, मूल्यों, परंपराओं इत्यादि की व्यवस्था है जिसमें इस धर्म के अनुयायी विश्वास करते हैं।
(ii) धर्म का समाजीकरण में काफी महत्त्व है क्योंकि व्यक्ति धर्म के मूल्यों, परंपराओं के विरुद्ध कोई कार्य नहीं करता । बचपन से ही बच्चों को धार्मिक मूल्यों की शिक्षा दी जाती है जिस कारण व्यक्ति शुरू से ही अपने धर्म से जुड़ जाता है। वह कोई ऐसा कार्य नहीं करता जो धार्मिक परंपराओं के विरुद्ध हो। इस प्रकार धर्म व्यक्ति पर नियन्त्रण भी रखता है और उसका समाजीकरण भी करता है।
(iii) यह सत्य है कि आजकल धर्म का महत्त्व कम हो रहा है। लोग आजकल अधिक शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं व विज्ञान की तरफ उनका झुकाव काफी बढ़ रहा है। परन्तु धर्म में तर्क का कोई स्थान नहीं होता जो विज्ञान में सबसे महत्त्वपूर्ण है। इस प्रकार लोग अब धर्म के स्थान पर विज्ञान को महत्त्व दे रहे हैं।

PSEB 11th Class Sociology Solutions स्रोत आधारित प्रश्न

प्रश्न 11.
निम्न दिए स्रोत को पढ़ें व साथ दिए प्रश्नों के उत्तर दें-
विवाह महिलाओं एवं पुरुषों की शारीरिक, सामाजिक, मनोवैज्ञानिक, सांस्कृतिक तथा आर्थिक आवश्यकताओं को संतुष्ट करने के लिए निर्मित एक संस्था है। यह पुरुष एवं महिला को परिवार निर्मित करने हेतु एक दूसरे से सम्बन्ध स्थापित करने की अनुमति देता है। विवाह का प्राथमिक उद्देश्य स्थायी सम्बन्धों के द्वारा यौनिक क्रियाओं को नियन्त्रित करना है। सरल शब्दों में, विवाह को एक ऐसी संस्था के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जो पुरुषों एवं महिलाओं को पारिवारिक जीवन में प्रवेश करने, बच्चों को जन्म देने तथा पति, पत्नी तथा बच्चों से सम्बन्धित विभिन्न अधिकारों और दायित्वों का निर्वाह करने की अनुमति प्रदान करता है। समाज एक पुरुष एवं महिला के मध्य वैवाहिक सम्बन्धों को एक धार्मिक संस्कार के रूप में अपनी अनुमति प्रदान करता है। विवाहित दंपति एक दूसरे के प्रति तथा सामान्य तौर पर समाज के प्रति अनेक दायित्वों का निर्वाह करते हैं। विवाह एक महत्त्वपूर्ण आर्थिक उद्देश्य को भी पूरा करता है यह उत्तराधिकार से सम्बद्ध सम्पत्ति अधिकार को परिभाषित करता है। इस प्रकार, हम समझ सकते हैं कि विवाह एक पुरुष और महिला के बीच बहु-आयामी सम्बन्धों को व्यक्त करता है।

(i) विवाह का क्या अर्थ है ?
(ii) हिन्दू धर्म में विवाह को क्या कहते हैं ?
(iii) क्या आजकल विवाह का महत्त्व कम हो रहा है ?
उत्तर-
(i) विवाह एक ऐसी संस्था है जो पुरुष-स्त्री को पारिवारिक जीवन में प्रवेश करने, बच्चों को जन्म देना तथा पति-पत्नी व बच्चों से संबंधित विभिन्न अधिकारों और दायित्वों का निर्वाह करने की अनुमति प्रदान करता है।
(ii) हिन्दू धर्म में विवाह को धार्मिक संस्कार माना जाता है क्योंकि विवाह बहुत से धार्मिक अनुष्ठान करके पूर्ण किया जाता है।
(iii) जी हाँ, यह सत्य है कि आजकल धर्म का महत्त्व कम हो रहा है। आजकल विवाह को धार्मिक
संस्कार न मानकर समझौता माना जाता है जिसे कभी भी तोड़ा जा सकता है। आजकल तो बहुत से युवक व युवतियों ने बिना विवाह किए इक्ट्ठे रहना शुरू कर दिया है जिससे विवाह का महत्त्व कम हो रहा है।

प्रश्न 12.
निम्न दिए स्रोत को पढ़ें व साथ दिए प्रश्नों के उत्तर दें
परिवार का अध्ययन इसलिये महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह पुरुषों और स्त्रियों तथा बच्चों को एक स्थाई सम्बन्धों में बांधकर मानव समाज के निर्माण में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। संस्कृति का हस्तान्तरण परिवारों के भीतर होता है। सामाजिक प्रतिमानों, प्रथाओं तथा मूल्यों के विषय में सांस्कृतिक समझ तथा ज्ञान एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तान्तरित होते हैं। एक परिवार जिसमें बच्चा जन्म लेता है उसे जन्म का परिवार’ कहते हैं। दूसरे शब्दों में, ऐसे परिवार को समरक्त परिवार कहते हैं जिसके सदस्य रक्त सम्बन्धों के आधार पर एक-दूसरे से जुड़े होते हैं जैसे भाई एवं बहिन तथा पिता और पुत्र इत्यादि।वह परिवार जो विवाह के बाद निर्मित होता है उसे ‘प्रजनन का परिवार’ या दापत्यमूलक परिवार कहते हैं जो ऐसे व्यस्क सदस्यों से निर्मित होता है जिनके बीच यौनिक सम्बन्ध होते हैं।

(i) परिवार किसे कहते हैं ?
(ii) जन्म का परिवार व दापत्यमूलक परिवार किसे कहते हैं ? ।
(ii) परिवार का अध्ययन क्यों महत्त्वपूर्ण है ?
उत्तर-
(i) परिवार पुरुष व स्त्री के मेल से बनी ऐसी संस्था है जिसमें उन्हें लैंगिक संबंध स्थापित करने, संतान उत्पन्न करने व उनका भरण पोषण करने की आज्ञा होती है।
(ii) एक परिवार जिसमें बच्चा जन्म लेता है उसे जन्म का परिवार कहते हैं। वह परिवार जो विवाह के बाद निर्मित होता है इसे दापत्यमूलक अथवा प्रजनन परिवार कहते हैं।
(iii) परिवार का अध्ययन काफी महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह पुरुष, स्त्री व बच्चों को एक स्थायी बंधन में बाँधकर रखता है। इससे परिवार समाज निर्माण मे महत्त्वपूर्ण योगदान देता है। परिवार ही संस्कृति के हस्तांतरण में सहायता करता है। सामाजिक प्रथाओं, प्रतिमानों, व्यवहार करने के तरीकों में हस्तांतरण में भी परिवार समाज की सहायता करता है। इस प्रकार परिवार हमारे जीवन में व समाज निर्माण में सहायक होता है।

PSEB 11th Class Practical Geography Chapter 7 मौसम यंत्र

Punjab State Board PSEB 11th Class Geography Book Solutions Practical Geography Chapter 7 मौसम यंत्र.

PSEB 11th Class Practical Geography Chapter 7 मौसम यंत्र

प्रश्न 1.
मौसम यंत्रों की बनावट, कार्य-विधि और प्रयोग का वर्णन करें।
उत्तर-
1. सिक्स का उच्चतम और न्यूनतम तापमापी यंत्र (Six’s Maximum and Minimum Thermometer) यह दिन का उच्चतम और न्यूनतम तापमान मापने का यंत्र है। इसकी खोज (Invention) जे. सिक्स (J. Six) नामक वैज्ञानिक ने की थी। उसके नाम पर ही इसे ‘सिक्स का उच्चतम और न्यूनतम थर्मामीटर’ (Six’s Maximum and Minimum Termometer) कहते हैं।

बनावट (Construction)-इस तापमापी यंत्र में ‘यू’ आकार की शीशे की एक नली होती हैं। इस नली के दोनों सिरों पर बल्ब लगे होते हैं, जिनमें अल्कोहल भरी होती हैं। एक बल्ब अल्कोहल से पूरा और दूसरा आधा भरा होता है। नली के निचले हिस्से में पारा (Mercury) भरा होता है। दोनों नलियों में एक-एक सूचक (Index) लगा होता है। यह सूचक चुंबक के द्वारा नीचे किए जाते हैं। नली के आधे खाली बल्ब के नीचे नली में अंक नीचे से ऊपर की ओर लिखे होते हैं। नली का यह भाग उच्चतम तापमान दर्शाता है। नली के दूसरे हिस्से में अंक ऊपर से नीचे की ओर दिए होते हैं, इसलिए यह भाग न्यूनतम तापमान दर्शाता है।

कार्य-विधि और प्रयोग (Working and Use)—सबसे पहले सूचकों को चुंबक के द्वारा पारे के तल पर लाया जाता है। तापमान के ऊँचा होने पर अल्कोहल फैलता है और उच्चतम तापमान दर्शाने वाली नली में पारा ऊपर की ओर चढ़ने लग जाता है और इस भाग में सूचक को ऊपर की ओर धकेलता है। पूरे भरे हुए भाग में अल्कोहल पारे को ऊपर नहीं चढ़ने देती।

PSEB 11th Class Practical Geography Chapter 7 मौसम यंत्र 1

तापमान कम होने पर अल्कोहल सिकुड़ती है; जिसके परिणामस्वरूप उच्चतम तापमान वाली नली में पारा नीचे की ओर गिरने लग जाता है और न्यूनतम तापमान वाली नली में ऊपर की ओर चढ़ने लग जाता है। इसके साथ-साथ न्यूनतम नली का सूचक भी ऊपर की ओर चढ़ने लग जाता है। उच्चतम तापमान वाली नली का सूचक कमानी के कारण नीचे नहीं गिरता। इस प्रकार 24 घंटों अर्थात् एक दिन में उच्चतम तापमान वाली नली के सूचक का निचला सिरा उच्चतम तापमान और न्यूनतम तापमान नली के सूचक का निचला सिरा न्यूनतम तापमान दर्शाएगा।

PSEB 11th Class Practical Geography Chapter 7 मौसम यंत्र

2. निद्भव हवा-दबाव मापक यंत्र (Aneroid Barometer)-इस यंत्र से हवा-दबाव मापते हैं। इसमें किसी द्रव (Liquid) का प्रयोग न करने के कारण इसे Aneroid कहते हैं। Aneroid शब्द का अर्थ है-द्रव रहित (A = without, neroid = Liquid)।

PSEB 11th Class Practical Geography Chapter 7 मौसम यंत्र 2

बनावट और कार्यविधि (Construction and Working)—यह यंत्र घड़ी जैसा होता है। पतली धातु से एक गोल खोखले डिब्बे (Shallow Metallic Box) को बनाकर उसमें से हवा निकाल ली जाती है। इसके ऊपर एक पतला लचकीला ढक्कन (Flexible Lid) लगा होता है, जो हवा के दबाव से ऊपर-नीचे होता रहता है। इस ढक्कन के ऊपरी हिस्से में एक लीवर (Lever) के द्वारा एक सूचक सूई लगी होती है, जोकि हवा के दबाव के बढ़ने से घड़ी की सुइयों की दिशा में (Clockwise) एक गोलाकार पैमाने पर घूमती है। हवा के दबाव के कम होने पर यह सूचक सुई घड़ी की सुइयों की उल्टी दिशा (Anti-Clockwise) में घूमती है। गोलाकार पैमाने पर हवा का दबाव इंच, सैंटीमीटर और मिलीबार में लिखा होता है। इस पैमाने पर मौसम की दशा बताने वाले शब्द अर्थात् वर्षा, (Rain), साफ (Clear), तूफानी (Stormy), बादल (Cloudy) और शुष्क (Dry) लिखे होते हैं। इनसे हमें मौसम अवस्था का ज्ञान होता है।

प्रयोग (Use)-इसे किसी स्थान के हवा के दबाव को मापने के लिए प्रयोग किया जाता है। इसकी सहायता से किसी स्थान की ऊँचाई मापी जा सकती है। घड़ी के समान आकार में छोटा होने के कारण इसे आसानी से एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाया जा सकता है।

3. हवा-दिशा सूचक यंत्र (Wind-vane)—इस यंत्र से हम हवा की दिशा के बारे में पता लगाते हैं। बनावट और कार्यविधि (Construction and Working)-लोहे की एक लंबवत छड़ी (Rod) पर लोहे की पतली चादर से बना एक मुर्गा (Weather Cock) या तीर लगा होता है। यह लोहे की छड़ी इस मुर्गे या तीर के लिए धुरी का काम करती है। हवा के वेग से यह मुर्गा या तीर घूमता है और हवा की दिशा का संकेत देता है। पवनमुख (Wind Ward Side) की ओर तीर या मुर्गे की पूँछ होती है। पवन विमुख की ओर (Leeward Side) मुर्गे का मुँह या तीर की नोक होती है। मुर्गे या तीर के नीचे चार मुख्य दिशाएँ-उत्तर, दक्षिण, पूर्व और पश्चिम दर्शायी होती हैं। इस यंत्र को किसी ऊँचे स्थान पर रखते हैं, जहाँ हवा के चलने में कोई रुकावट न हो।

PSEB 11th Class Practical Geography Chapter 7 मौसम यंत्र 3

4. शुष्क व नम बल्ब थर्मामीटर (Wet and Dry Bulb Thermometer)-इसे मेसन हाईग्रोमीटर (Mason Hygrometer) भी कहते हैं। इस यंत्र के द्वारा हवा की सापेक्ष नमी (Relative Humidity) मापी जाती है। बनावट और कार्यविधि (Construction and Working)लकड़ी से बने एक तख्ते पर तापमापी यंत्र (Thermometer) लटके होते हैं। एक थर्मामीटर (तापमापी यंत्र) के बल्ब पर बारीक मलमल का कपड़ा (Muslin Cloth) लपेटा होता है, जिसका एक सिरा साफ पानी में भरे एक छोटे-से बर्तन में डूबा रहता है। एक को गीला (नम) थर्मामीटर और दूसरे को शुष्क थर्मामीटर कहते हैं। कोशिकाक्रिया (Capillary Action) से पानी मलमल के कपड़े के द्वारा बल्ब को आर्द्रता प्रदान करता है, जिसके फलस्वरूप इस थर्मामीटर में वाष्पीकरण (Evaporation) होता रहता है, जिसके कारण इस यंत्र का तापमान निम्न रहता है। शुष्क थर्मामीटर में पानी की मात्रा न होने के कारण उसका तापमान उच्च होता है। इस प्रकार दोनों थर्मामीटरों के तापमान में अंतर हो जाता है। इस अंतर के द्वारा एक तालिका की सहायता से सापेक्ष आर्द्रता निकाल ली जाती है। दोनों थर्मामीटरों में तापमान में कम अंतर होने पर सापेक्ष नमी अधिक और अधिक अंतर होने पर सापेक्ष नमी कम होती है।

PSEB 11th Class Practical Geography Chapter 7 मौसम यंत्र 4

5. वर्षामापी यंत्र (Rain Gauge)-यह यंत्र वर्षा की मात्रा मापने के लिए प्रयोग में लाया जाता है।
बनावट (Construction)—इसमें नीचे लिखी अलग-अलग चीजें होती हैं-

PSEB 11th Class Practical Geography Chapter 7 मौसम यंत्र

(i) बेलनाकार बर्तन (Cylinderical Pot) तांबे का बना हुआ एक 12.5 सैं०मी० (5 इंच) या 20 सैं०मी० (8 इंच) व्यास का एक बेलनाकार बर्तन होता है। तांबा हर प्रकार के मौसमी प्रभाव को सहन करने की योग्यता रखता है, इसलिए आमतौर पर यह बर्तन तांबे का ही बना होता है।

(ii) कीप (Funnel)—एक बेलनाकार बर्तन के मुख पर तांबे से बनी उतने ही व्यास की एक कीप होती है। इस कीप के ऊपरी सिरे पर 1.2 सैं०मी० ( इंच) ऊँचा किनारा (Rim) लगा होता है, ताकि वर्षा के पानी की.छीटें बाहर न जाएँ।

(iii) शीशे का बर्तन या बोतल (Glass Container or Bottle)-तांबे के बेलनाकार बर्तन के अंदर एक तंग मुँह वाला शीशे का बर्तन या बोतल होती है, जिसमें कीप के द्वारा पानी जाता है। इसका तंग मुँह पानी का वाष्पीकरण रोकने के लिए होता है।

(iv) चिन्हित शीशे का बेलन (Graduated Glass Cylinder)-इससे वर्षा की मात्रा मापते हैं। यह शीशे का एक बेलन होता है, जिसके बाहर वर्षा को मापने के लिए पैमाना अंकित होता है। कार्य-विधि (Working)-वर्षा का पानी कीप के द्वारा बर्तन या बोतलों में एकत्र हो जाता है। इसी पानी को चिन्हित शीशे के बेलन में डालकर माप लिया जाता है। कीप के क्षेत्रफल और चिन्हित बेलन के मुख के क्षेत्रफल में एक निर्धारित अनुपात रखा जाता है। इस अनुपात पर चिन्हित बेलन का पैमाना आधारित होता है। तांबे के बेलनाकार बर्तन में 2.5 सैं०मी० (1 इंच) पानी की ऊँचाई चिन्हित बेलन में 25.4 सैं०मी० (10 इंच) दिखाई जाती है। इस यंत्र में 1/10 सैं०मी० (1/100 इंच) तक की वर्षा मापने की व्यवस्था होती है।

PSEB 11th Class Practical Geography Chapter 7 मौसम यंत्र 5

बाक्सिग (मुक्केबाजी) (Boxing) Game Rules – PSEB 11th Class Physical Education

Punjab State Board PSEB 11th Class Physical Education Book Solutions बाक्सिग (मुक्केबाजी) (Boxing) Game Rules.

बाक्सिग (मुक्केबाजी) (Boxing) Game Rules – PSEB 11th Class Physical Education

याद रखने योग्य बातें (TIPS TO REMEMBER)

  1. रिंग का आकार = वर्गाकार
  2. एक भुजा की लम्बाई = 20 फुट
  3. रस्सों की संख्या = तीन अथवा पांच
  4. भारों की संख्या = 11
  5. पट्टी की लम्बाई = 8′ 4″
  6. पट्टी की चौड़ाई = \(1 \frac{1}{4}\)“
  7. रिंग की फर्श से ऊंचाई = 3′ 4″
  8. सीनियर प्रतियोगिता का समय = 3-1-3-1-3
  9. जुनियर के लिए समय = 2-1-2-2
  10. अन्तर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता के लिए समय = 2-1-2-1-2-1-2-1-2
  11. अधिकारी = जज (अधिकतम 5 या 3), टाइम कीपर-1, रेफरी-1, घंटा ऑपरेटर-1, प्रर्यवेक्षक-1 उद्घोषक 1, रिकार्डर 1
  12. मुक्केबाजी दस्तानों का भार = 10 औंस, 12 औंस
  13. रिंग के कोनों का रंग = 1 लाल, 1 नीला, 2 सफेद
  14. राऊंड टाइम = 3 राउंड (प्रत्येक 3 मिनट)
  15. रस्सियों के पारस्परिक अंतर = रिंग के फर्श से (1) 40 सेंटीमीटर (2) 70 सेंटीमीटर, (3) 100 सेंटीमीटर, (4) 130 सेंटीमीटर।
  16. सलाखों की लम्बाई = = 2.5 मी.
  17. पट्टियों की चौड़ाई = 5 सेंटीमीटर
  18. बॉक्सर का तकनीकी नाम = पुगिलिटश
  19. अंडर 17 वर्ष के लड़कों के लिये प्रतियोगिताओं में कुल भार = 13

बाक्सिग (मुक्केबाजी) (Boxing) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education

खेल सम्बन्धी महत्वपूर्ण जानकारी

  1. बाक्सिग में रिंग का आकार वर्गाकार और एक भुजा की लम्बाई 20 फुट होती है।
  2. रिंग में रस्सों की गिनती तीन होती है और साइडों का रंग एक नीला तथा दूसरा लाल होता है।
  3. बाक्सिग के लिए भार के वर्गों की गिनती 12 होती है।
  4. दस्तानों का भार 10 औंस से अधिक नहीं होना चाहिए।
  5. पट्टी की लम्बाई 8 फुट 4 इंच और चौड़ाई \(1 \frac{1}{3}\) इंच 4.4 सैं० मी० होनी चाहिए।
    बाक्सिग (मुक्केबाजी) (Boxing) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education 1

PSEB 11th Class Physical Education Guide बाक्सिग (मुक्केबाजी) (Boxing) Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
मुक्केबाज़ का तकनीकी नाम लिखें।
उत्तर-
पुगिलिटस।

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प्रश्न 2.
मुक्केबाज़ (लड़के) अंडर-17 मुकाबले में कुल कितने भार वर्ग होते हैं ?
उत्तर-
कुल 13 भार वर्ग।

प्रश्न 3.
मुक्केबाज़ के मैच में RSC से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
रैफरी के द्वारा मुक्केबाज़ को चोट लगने पर बाऊट को रोक दिया जाना।

प्रश्न 4.
मुक्केबाजी के मैच में DSO से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
जब मुक्केबाज़ बार-बार किसी नियम की उल्लंघना करता है तो उस समय रैफरी द्वारा उसे अयोग्य घोषित कर देना।

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प्रश्न 5.
मुक्केबाज़ी के मैच में wo क्या होता है ?
उत्तर-
जब किसी खिलाड़ी को बाऊट के बिना ही विजयी घोषित कर दिया जाए।

प्रश्न 6.
मुक्केबाज़ी मुकाबले में एक राऊंड कितने समय का होता है ?
उत्तर-
4 मिनट का (प्रत्येक राऊंड के लिए)।

प्रश्न 7.
मुक्केबाज़ी रिंग के कोनों का रंग लिखें।
उत्तर-
लाल, नीला और सफेद।

बाक्सिग (मुक्केबाजी) (Boxing) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education

Physical Education Guide for Class 11 PSEB बाक्सिग (मुक्केबाजी) (Boxing) Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
बाक्सिंग में भार अनुसार कितने प्रकार की प्रतियोगिताएं होती हैं ?
उत्तर-
मुक्केबाज़ी के भारों का वर्गीकरण
(Weight Categories in Boxing)

  1. लाइट फलाई वेट (Light Fly Weight) = 48 kg
  2. फलाई वेट (Fly Weight) = 51 kg
  3. बैनटम वेट (Bentum Weight) = 54 kg
  4. फ़ैदर वेट (Feather Weight) = 57 kg
  5. लाइट वेट (Light Weight) = 60 kg
  6. लाइट वैल्टर वेट (Light Welter Weight) = 63.5 kg
  7. वैल्टर वेट (Welter Weight) = 67 kg
  8. लाइट मिडल वेट (Light Middle Weight) = 71 kg
  9. मिडल वेट (Middle Weight) = 75 kg
  10. लाइट हैवी वेट (Light Heavy Weight) = 81 kg से 91 kg तक
  11. हैवी वेट (Heavy Weight) = 91 kg से अधिक 100 kg तक
  12. सुपर हैवी वेट (Super Heavy Weight) = 100 kg से ऊपर

प्रश्न 2.
बाक्सिग में रिंग, रस्सा, प्लेटफ़ार्म, अंडर-कवर, पोशाक और पट्टियों के बारे में लिखें।
उत्तर-
रिंग (Ring)—सभी प्रतियोगिताओं में रिंग का आन्तरिक माप 12 फुट से 20 फुट (3 मी० 66 सैं० मी० से 6 मी० 10 सैं० मी०) वर्ग में होगा। रिंग की सतह से सबसे ऊपरी रस्से की ऊंचाई 16”, 28”, 40”, 50” होगी।
रस्सा (Rope)—रिंग चार रस्सों के सैट से बना होगा जोकि लिनन या किसी नर्म पदार्थ से ढका होगा।
प्लेटफ़ार्म (Platform)-प्लेटफार्म सुरक्षित रूप में बना होगा। यह समतल तथा बिना किसी रुकावटी प्रक्षेप के होगा। यह कम-से-कम 18 इंच रस्सों की लाइन से बना रहेगा उस पर चार कार्नर पोस्ट लगे होंगे जो इस प्रकार बनाए जाएंगे कि कहीं चोट न लगे।

अंडर-कवर (Under-cover)-फर्श एक अण्डर-कवर से ढका होगा जिस पर कैनवस बिछाई जाएगी।
पोशाक (Costumes)-प्रतियोगी एक बनियान (Vest) पहन कर बाक्सिंग करेंगे जोकि पूरी तरह से छाती और पीठ ढकी रखेगी। शार्ट्स उचित लम्बाइयों की होगी जोकि जांघ के आधे भाग तक जाएगी। बूट या जूते हल्के होंगे। तैराकी वाली पोशाक पहनने की आज्ञा नहीं दी जाएगी। प्रतियोगी उन्हें भिन्न-भिन्न दर्शाने वाले रंग धारण करेंगे जैसे कि कमर के गिर्द लाल या नीले कमर-बन्द, दस्ताने (Gloves) स्टैंडर्ड भार के होंगे। प्रत्येक दस्ताना 8 औंस (227 ग्राम) भारी होगा।

पट्टियां (Bandages)-एक नर्म सर्जिकल पट्टी जिसकी लम्बाई 8 फुट 4 इंच (2.5 मी०) से अधिक तथा चौड़ाई \(1 \frac{1}{3}\) इंच (4.4 सैं० मी०) से अधिक न हो या एक वैल्यियन टाइप पट्टी जो 6 फुट 6 इंच से अधिक लम्बी तथा \(1 \frac{1}{3}\) इंच (4.4 सैं० मी०) से अधिक चौड़ी नहीं होगी, प्रत्येक हाथ पर पहनी जा सकती है।
अवधि (Duration)—सीनियर मुकाबलों तथा प्रतियोगिताओं के लिए खेल की अवधि निम्नलिखित होगी—
बाक्सिग (मुक्केबाजी) (Boxing) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education 2
प्रतियोगिताएं (Competitions)—
Senior National Level
3-1-3-1-3 तीन-तीन मिनट के तीन राऊण्ड
Junior National Level 2-1-2-1-2
दो-दो मिनट के तीन राऊण्ड
International Level 2-1-2-1-2-1-2
दो-दो मिनट के पांच राऊण्ड

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प्रश्न 3.
बाक्सिग में ड्रा, बाई, वाक ओवर के बारे में लिखें।
उत्तर-
ड्रा, बाई, वाक ओवर (The Draw, Byes and Walk-over)

  1. सभी प्रतियोगिताओं के लिए भार तोलने तथा डॉक्टरी निरीक्षण के बाद ड्रा किया जाएगा।
  2. वे प्रतियोगिताओं में जिनसे चार से अधिक प्रतियोगी हैं, पहली सीरीज़ में बहुत-सी बाई निकाली जाएंगी ताकि दूसरी सीरीज़ में प्रतियोगियों की संख्या कम रह जाए।
  3. पहली सीरीज़ में जो मुक्केबाज़ (Boxer) बाई में आते हैं वे दूसरी सीरीज़ में पहले बाक्सिग करेंगे। यदि बाइयों की संख्या विषय हो तो अन्तिम बाई का बाक्सर दूसरी सीरीज़ में पहले मुकाबले के विजेता के साथ मुकाबला करेगा।
  4. कोई भी प्रतियोगी पहली सीरीज़ में बाई ओर दूसरी सीरीज़ में वाक ओवर नहीं प्राप्त कर सकता या दो प्रतियोगियों के नाम ड्रा निकाला जाएगा जोकि अब भी मुकाबले में हों। इसका अर्थ इन प्रतियोगियों के लिए विरोधी प्रदान करना है जोकि पहली सीरीज़ में पहले ही वाक ओवर ले चुके हैं।

सारणी-बाऊट से बाइयां निकालना
बाक्सिग (मुक्केबाजी) (Boxing) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education 3
प्रतियोगिता की सीमा (Limitation of Competitors)-किसी भी प्रतियोगिता में 4 से लेकर 8 प्रतियोगियों को भाग लेने की आज्ञा है। यह नियम किसी ऐसोसिएशन द्वारा आयोजित किसी चैम्पियनशिप पर लागू नहीं होता। प्रतियोगिता का आयोजन करने वाली क्लब को अपना एक सदस्य प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए मनोनीत करने का अधिकार है, परन्तु शर्त यह है कि वह सदस्य प्रतियोगिता में सम्मिलित न हो।
नया ड्रा (Fresh Draw) यदि किसी एक ही क्लब के दो सदस्यों का पहली सीरीज़ में ड्रा निकल जाए तो उनमें एक-दूसरे के पक्ष में प्रतियोगिता से निकलना चाहे तो नया ड्रा किया जाएगा।

वापसी (Withdrawl)-ड्रा किए जाने के बाद यदि प्रतियोगी बिना किसी सन्तोषजनक कारण के प्रतियोगिता से हटना चाहे तो इन्चार्ज अधिकारी इन दशाओं में एसोसिएशन को रिपोर्ट करेगा।

रिटायर होना (Retirement) यदि कोई प्रतियोगी किसी कारण प्रतियोगिता से रिटायर होना चाहता है तो उसे इन्चार्ज अधिकारी को सूचित करना होगा।
बाई (Byes)—पहली सीरीज़ के बाद उत्पन्न होने वाली बाइयों के लिए निश्चित समय के लिए वह विरोधी छोड़ दिया जाता है जिससे इन्चार्ज अधिकारी सहमत हो। सैकिण्ड (Second)—प्रत्येक प्रतियोगी के साथ एक सैकिण्ड (सहयोगी) होगा तथा राऊंड के दौरान वह सैकिण्ड प्रतियोगी को कोई निर्देश या कोचिंग नहीं दे सकता।

केवल पानी की आज्ञा (Only water allowed) बाक्सर को बाऊट से बिल्कुल पहले या मध्य में पानी के अतिरिक्त कोई अन्य पीने वाली चीज़ नहीं दी जा सकती।

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प्रश्न 4.
बाक्सिंग में बाऊट को नियन्त्रण कैसे किया जाता है ?
उत्तर-
बाऊट का नियन्त्रण
(Bout’s Control)
1. सभी प्रतियोगिताओं के मुकाबले एक रैफ़री, तीन जजों, एक टाइम कीपर द्वारा निश्चित किए जाएंगे। रैफ़री रिंग में होगा। जब तीन से कम जज होंगे तो रैफ़री स्कोरिंग पेपर को पूरा करेगा। प्रदर्शनी बाऊट एक रैफ़री द्वारा कण्ट्रोल किए जाएंगे।

2. रैफ़री एक स्कोर पैड या जानकारी सलिप का प्रयोग बाक्सरों के नाम तथा रंगों का रिकार्ड रखने के लिए करेगा। इन सब स्थितियों को जब बाऊट चोट लगने के कारण या किसी अन्य कारणवश स्थगित हो जाए तो रैफ़री इस पर कारण रिपोर्ट करके इंचार्ज अधिकारी को देगा।

3. टाइम कीपर रिंग के एक ओर बैठेगा तथा जज अन्य तीन ओर बैठेंगे। सीटें इस प्रकार की होंगी कि वे बाक्सिग को सन्तोषजनक ढंग से देख सकें। ये दर्शकों से अलग होंगी। रैफ़री बाऊट को नियमानुसार कण्ट्रोल करने के लिए अकेला ही उत्तरदायी होगा तथा जज स्वतन्त्रतापूर्वक प्वाइंट देंगे।

4. प्रमुख टूर्नामेंट में रैफ़री सफेद कपड़े धारण करेगा।

प्वाईंट देना (Awarding of Points)—

  1. सभी प्रतियोगिताओं में जज प्वाईंट देगा।
  2. प्रत्येक राऊंड के अन्त में प्वाईंट स्कोरिंग पेपर पर लिखे जाएंगे तथा बाऊट के अन्त में जमा किए जाएंगे, भिन्नों का प्रयोग नहीं किया जाएगा।
  3. प्रत्येक जज को विजेता मनोनीत करना होगा या उसे अपने स्कोरिंग पेपर पर हस्ताक्षर करने होंगे। जज का नाम बड़े अक्षरों (Block Letters) में लिखा जाएगा। उसे स्कोरिंग स्लिपों पर हस्ताक्षर करने होंगे।

प्रश्न 5.
बाक्सिग में स्कोर कैसे मिलते हैं ?
उत्तर-
स्कोरिंग (Scoring)
1. जो बाक्सर अपने विरोधी को सबसे अधिक मुक्के मारेगा उसे प्रत्येक राऊंड के अन्त में 20 प्वाईंट दिए जाएंगे। दूसरे बाक्सर को उसी अनुपात में अपने स्कोरिंग मुक्कों में कम प्वाईंट मिलेंगे।

2. जब जज यह देखता है कि दोनों बाक्सरों ने एक जितने मुक्के मारे हैं तो प्रत्येक प्रतियोगी को 20 प्वाईंट दिए जाएंगे।

3. यदि बाक्सरों को मिले प्वाईंट बाऊट के अन्त में बराबर हों तो जज अपना निर्णय उस बाक्सर के पक्ष में देगा जिसने अधिक पहल दिखाई हो, परन्तु यदि समान हो उस बाक्सर के पक्ष में जिसने बेहतर स्टाइल दिखाया हो। यदि वह सोचे कि वह इन दोनों पक्षों में बराबर हैं तो वह अपना निर्णय उस बाक्सर के पक्ष में देगा जिसने अच्छी सुरक्षा (Defence) का प्रदर्शन किया हो।

परिभाषाएं (Definitions)-उपर्युक्त नियम निम्नलिखित परिभाषाओं द्वारा लागू होता है—
(A) स्कोरिंग मुक्के या प्रहार (Scoring Blows)—वे मुक्के जो किसी भी दस्ताने के नक्कल से रिंग के सामने या साइड की ओर या शरीर के बैल्ट के ऊपर मारे जाएं।
(B) नान-स्कोरिंग मुक्के (Non-Scoring Blows)—

  • नियम का उल्लंघन करके मारे गए मुक्के।
  • भुजाओं या पीठ पर मारे गए मुक्के।
  • हल्के मुक्के या बिना ज़ोर की थपकियां।

(C) पहल करना (Leading Off)-पहला मुक्का मारना या पहला मुक्का मारने की कोशिश करना। नियमों का उल्लंघन पहल करने के स्कोरिंग मूल्य को समाप्त कर देता है।
(D) सुरक्षा (Defence)–बाक्सिग, पैरिंग, डकिंग, गार्डिंग, साइड स्टैपिंग द्वारा प्रहरों से बचाव करना।

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प्रश्न 6.
बाक्सिग में कोई दस त्रुटियां लिखें।
उत्तर-
त्रुटियां (Fouls)-जजों या रैफ़री का फ़ैसला अन्तिम होगा। रैफ़री को निम्नलिखित कार्य करने पर बाक्सर को चेतावनी देने या अयोग्य घोषित करने का अधिकार है—

  1. खुले दस्ताने से चोट करना, हाथ के आन्तरिक भाग या बट के साथ चोट करना, कलाइयों से चोट करना या बन्द दस्ताने के नक्कल वाले भाग को छोड़कर किसी अन्य भाग से चोट करना।
  2. कुलनी से मारना।
  3. बैल्ट के नीचे मारना।
  4. किडनी पंच (Kidney Punch) का प्रयोग करना।
  5. पिवट ब्लो (Pivot Blow) का प्रयोग करना।
  6. गर्दन या सिर के नीचे जानबूझ कर चोट करना।
  7. नीचे पड़े प्रतियोगी को मारना।
  8. पकड़ना।
  9. सिर या शरीर के भार लेटना।
  10. बैल्ट के नीचे किसी ढंग से डकिंग (Ducking) करना जोकि विरोधी के लिए खतरनाक हो।
  11. बाक्सिग का सिर पर खतरनाक प्रयोग।
  12. रफिंग (Roughing)
  13. कन्धे मारना।
  14. कुश्ती करना।
  15. बिना मुक्का लगे जान-बूझ कर गिरना।
  16. निरन्तर ढक कर रखना।
  17. रस्सों का अनुचित प्रयोग करना।
  18. कानों पर दोहरी चोट करना।

ब्रेक (Break)-जब रैफ़री दोनों प्रतियोगियों को ब्रेक (To Break) की आज्ञा देता है तो दोनों बाक्सरों को पुनः बाक्सिग शुरू करने से पहले एक कदम पीछे हटना ज़रूरी है। ‘ब्रेक’ के समय एक बाक्सर को विरोधी को मारने की आज्ञा नहीं होती।

डाऊन तथा गिनती (Doun and Count)-एक बाक्सर को डाऊन (Doun) समझा जाता है जब शरीर का कोई भाग सिवाए उसके पैरों के फर्श पर लग जाता है या जब वह रस्सों से बाहर या आंशिक रूप में बाहर होता है या वह रस्सी पर लाचार लटकता है।
बाऊट रोकना (Stopping the Bout)—

  1. यदि रैफ़री के मतानुसार एक बाक्सर चोट लगने के कारण खेल जारी नहीं रख सकता या वह बाऊट बन्द कर देता है तो उसके विरोधी को विजेता घोषित कर दिया जाता है। यह निर्णय करने का अधिकार रैफ़री को होता है जोकि डॉक्टर का परामर्श ले सकता है।
  2. रैफ़री को बाऊट रोकने का अधिकार है यदि उसकी राय में प्रतियोगी को मात हो गई है या वह बाऊट जारी रखने के योग्य नहीं है।

बाऊट पुनः शुरू करने में असफल होना (Failure to resume Bout) सभी बाऊटों में यदि कोई प्रतियोगी समय कहे जाने पर बाऊट को पुनः शुरू करने में असमर्थ होता है तो वह बाऊट हार जाएगा।

नियमों का उल्लंघन (Breach of Rules) बाक्सर या उसके सैकिण्ड (Second) द्वारा इन नियमों के किसी भी उल्लंघन से उसे अयोग्य घोषित किया जाएगा। एक प्रतियोगी जो अयोग्य घोषित किया गया हो उसे कोई ईनाम नहीं मिलेगा।

शंकित फाऊल (Suspected Foul) -यदि रैफ़री को किसी फ़ाऊल का सन्देह हो जाए जिसे उसने स्वयं साफ नहीं देखा, वह जजों की सलाह ले सकता है तथा उसके अनुसार अपना फैसला दे सकता है।

PSEB 11th Class Practical Geography Chapter 6 समोच्च रेखाएं

Punjab State Board PSEB 11th Class Geography Book Solutions Practical Geography Chapter 6 समोच्च रेखाएं.

PSEB 11th Class Practical Geography Chapter 6 समोच्च रेखाएं

प्रश्न 1.
समोच्च रेखाओं का सिद्धांत बताएँ। इनके गुण-दोष बताएँ।
उत्तर-
धरातल को दर्शाने वाली विधियाँ-धरातल को नक्शों पर चित्रित करने के लिए नीचे लिखी विधियों का प्रयोग किया जाता है

  1. हैशओर (Hachures)
  2. आकार रेखाएँ (Form-lines)
  3. समोच्च रेखाएँ (Contours)
  4. ऊँचाई दर्शक बिंदु (Spot Heights)
  5. निर्देश चिन्ह (Bench Marks) और तिकोने स्टेशन (Trignometrical Stations)
  6. पर्वतीय छायाकरण (Hill Shading)
  7. रंग-चित्रण (Layer tints)

समोच्च रेखा-समोच्च वह कल्पित रेखा है, जो औसत समुद्री सतह से समान ऊँचाई वाले स्थानों को आपस में मिलाकर खींची जाती है। (A contour is an imaginary line which joins the places of equal height above mean sea land.) यदि किसी पहाड़ी की परिक्रमा की जाए (बिना ऊपर-नीचे गए ताकि एक ही ऊँचाई पर परिक्रमा हो), तो यह रास्ता एक समोच्च रेखा होगी।

लंबात्मक अंतर और क्षितिज अंतर-

1. लंबात्मक अंतर (Vertical Interval) की क्रमिक (Successive) समोच्च रेखाओं के बीच की ऊँचाई को लंबात्मक अंतर कहा जाता है। इसे संक्षेप में VI भी लिखा जाता है। यह किसी एक नक्शे पर स्थित (Constant) होता है। यदि समोच्च रेखाएं 50, 100, 150, 200, 250 आदि खींची जाएँ, तो लंबात्मक अंतर 50 मीटर होगा।

2. क्षितिज अंतर (Horizontal Equivalent) की क्रमिक (Successive) समोच्च रेखाओं के बीच की क्षितिज दूरी को क्षितिज अंतर कहते हैं। इसे संक्षेप में H.E. भी लिखा जाता है। यह ढलान के अनुसार बदलता रहता है। हल्की ढलान के लिए H.E. अधिक होता है, पर तीखी ढलान के लिए कम होता है।

PSEB 11th Class Practical Geography Chapter 6 समोच्च रेखाएं

समोच्च रेखाओं की प्रमुख विशेषताएँ–समोच्च रेखाओं की विशेषताएँ नीचे लिखी हैं-

  1. ये कल्पित रेखाएँ होती हैं।
  2. ये रेखाएँ आम तौर पर भूरे (Brown) रंग से दिखाई जाती हैं।
  3. इनकी ऊँचाई समोच्च रेखाओं पर लिखी जाती हैं।
  4. ये रेखाएँ एक बंद चक्र बनाती हैं, ये एकदम शुरू या समाप्त नहीं होती।
  5. समोच्च रेखाएँ सदा एक निश्चित लंबात्मक अंतर पर खींची जाती हैं।
  6. जब समोच्च रेखाएँ एक-दूसरे के निकट होती हैं, तो तीखी ढलान प्रकट करती हैं, पर जब समोच्च रेखाएँ दूर – दूर होती हैं, तो हल्की ढलान प्रकट करती हैं।

गुण (Merits)

  1. धरातल को दिखाने के लिए यह सबसे बेहतर विधि है।
  2. इस विधि से अलग-अलग भू-आकारों को आसानी से दर्शाया जा सकता है।
  3. इस विधि से किसी क्षेत्र की ऊँचाई और ढलान पता लगाई जा सकती है।
  4. यह विधि गणित पर आधारित है और उचित है।

दोष (Demerits)-

1. जब लंबात्मक अंतर बड़ा हो, तो छोटे-छोटे भू-आकार नक्शे पर नहीं दिखाए जा सकते। 2. जब नक्शे पर पर्वतीय और मैदानी धरातल साथ-साथ दिखाना हो, तो कई मुश्किलें आती हैं। अलग-अलग भू-आकृतियों को समोच्च रेखाओं द्वारा दिखाना1. समतल ढलान (Uniform Slope)—यह ढलान एक समान होती है, इसलिए समोच्च रेखाएँ समान दूरी पर
खींची जाती हैं।

2. उत्तल ढलान (Convex Slope)—यह ढलान निचले भाग में तीखी होती है, पर ऊँचाई पर ऊपरी भाग में हल्की होती है। शुरू में समोच्च रेखाएँ पास-पास होती हैं और ऊँचाई बढ़ने से दूर-दूर होती जाती हैं।

3. अवतल ढलान (Concave Slope)—यह ढलान निचले भाग में हल्की और ऊपरी भाग में तीखी होती है। इसमें शुरू में समोच्च रेखाएँ दूर-दूर होती हैं, परंतु ऊँचाई पर पास-पास होती जाती हैं।

4. सीढ़ीदार ढलान (Terraced Slope)—यह ढलान सीढ़ी की तरह आगे बढ़ती जाती है। इसमें समोच्च रेखाएँ जोड़ों में होती हैं। दो रेखाएँ पास-पास और कुछ दूरी पर फिर दो रेखाएँ पास-पास होती हैं।

5. शंकु आकार की पहाड़ी (Conical Hill)—यह पहाड़ी दो आकार की होती है। इसकी ढलान चारों तरफ एक जैसी होती है। इसकी समोच्च रेखाएँ समकेंद्रीय चक्रों (Concentric Circles) जैसी होती हैं। केंद्र में पहाड़ी के शिखर को दिखाया जाता है।

6. पठार (Plateau)—पठार ऐसे प्रदेश को कहते हैं, जिसका शिखर समतल चौड़ा (Flat) हो और उसके किनारे पर तीखी ढलान हो। इसके किनारों पर समोच्च रेखाएँ पास-पास होती हैं, पर बीच में समतल स्थान होने के कारण कोई समोच्च रेखा नहीं होती।

7. कटक (Ridge) कम ऊँची और लंबी पहाड़ियों की श्रृंखला को कटक कहते हैं। इसके Contour लंबे और कम चौड़े होते हैं।

8. काठी (Saddle)-दो पर्वतीय शिखरों के बीच स्थित निचले भाग को काठी कहते हैं। इसका आकार घोड़े की काठी जैसा होता है।

9. टीला (Knoll) कम ऊँची और छोटी-सी कोण आकार की पहाड़ी को टीला कहते हैं। यह एक प्रकार का अलग टीला होता है। इसे एक या दो गोल आकार की समोच्च रेखाओं से दिखाया जाता है।

10. ‘वी’-आकार की घाटी (V-Shaped Valley) नदी अपने गहरे कटाव से V-आकार की घाटी बनाती है। इसमें समोच्च रेखाएँ अंग्रेज़ी के अक्षर ‘V’ जैसी होती हैं। इसके अंदर ऊँचाई कम होती है और V के शिखर की ओर अधिक ऊँचाई होती है।

11. ‘U’ आकार की घाटी (U-Shaped Valley)-यह घाटी हिम नदी के कटाव से बनती है और इसका आकार ‘U’ अक्षर के समान होता है। इसकी समोच्च रेखाएँ भी ‘U’ अक्षर के समान होती हैं। दोनों किनारों पर समोच्च रेखाएँ पास-पास होती हैं और तीखी ढलान होती हैं। इसके भीतरी भाग में कम ऊँचाई और बाहर की ओर अधिक ऊँचाई होती है।

12. पर्वत-स्कंध (Spur)—किसी ऊँचे प्रदेश से निचले प्रदेश की ओर जीभ की तरह आगे बढ़े हुए भू-भाग को पर्वत-स्कंध कहते हैं। इसमें समोच्च रेखाएँ उल्टे ‘V’ अक्षर के समान होती हैं। इसके भीतरी भाग में अधिव ऊँचाई होती है और बाहर की ओर कम।

13. कांधी (Cliff)—समुद्री तट रेखा पर एक ऊँची और खड़ी ढलान वाली चट्टान को कांधी कहते हैं। इस समोच्च रेखाएँ आपस में मिल जाती हैं, जो खड़ी ढलान प्रकट करती हैं। ऊँचे भाग की समोच्च रेखाएँ । दूर होती हैं और हल्की ढलान प्रकट करती हैं।

PSEB 11th Class Practical Geography Chapter 6 समोच्च रेखाएं

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