बाक्सिंग (मुक्केबाज़ी) (Boxing) Game Rules – PSEB 10th Class Physical Education

Punjab State Board PSEB 10th Class Physical Education Book Solutions बाक्सिंग (मुक्केबाज़ी) (Boxing) Game Rules.

बाक्सिंग (मुक्केबाज़ी) (Boxing) Game Rules – PSEB 10th Class Physical Education

मुक्केबाजी में याद रखने योग्य बातें

  1. रिंग का आकार = वर्गाकार
  2. एक भुजा की लम्बाई = 20 फुट
  3. रस्सों की संख्या = तीन अथवा पांच
  4. भारों की संख्या = 11
  5. पट्टी की लम्बाई = 8’4″
  6. पट्टी की चौड़ाई = \(1 \frac{1}{4}\)
  7. रिंग की फर्श से ऊंचाई = 3’4″
  8. सीनियर प्रतियोगिता का समय = 3-1-3-1-3
  9. जुनियर के लिए समय = 2-1-2-2
  10. अन्तर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता के लिए समय = 2-1-2-1-2-1–2-1-2
  11. कोर्नर का रंग = लाल और नीला
  12. अधिकारी = 1 रैफरी, 3 या 5 जज

खेल सम्बन्धी महत्त्वपूर्ण जानकारी

  1. बाक्सिग में रिंग का आकार वर्गाकार और एक भुजा की लम्बाई 20 फुट होती है।
  2. रिंग में रस्सों की गिनती तीन होती है और साइडों का रंग एक नीला तथा दूसरा लाल होता है।
  3. बाक्सिग के लिए भार के वर्गों की गिनती 12 होती है।
  4. दस्तानों का भार 10 औंस से अधिक नहीं होना चाहिए।
  5. पट्टी की लम्बाई 8 फुट 4 इंच और चौड़ाई \(1 \frac{3}{4}\) इंच 4.4 सैं० मी० होनी चाहिए।
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बाक्सिंग (मुक्केबाज़ी) (Boxing) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education

प्रश्न
बाक्सिग में भार अनुसार कितने प्रकार की प्रतियोगिताएं होती हैं ?
उत्तर-
मुक्केबाज़ी के भारों का वर्गीकरण
(Weight Categories in Boxing)

  1. लाइट फलाई वेट (Light Fly Weight) = 48 kg
  2. फलाई वेट (Fly Weight) = 51 kg
  3. बैनटम वेट (Bentum Weight) = 54 kg
  4. फ़ैदर वेट (Feather Weight) = 57 kg
  5. लाइट वेट (Light Weight) = 60 kg
  6. लाइट वैल्टर वेट (Light Welter Weight) = 63.5 kg
  7. वैल्टर वेट (Welter Weight) = 67 kg
  8. लाइट मिडल वेट (Light Middle Weight) = 71 kg
  9. मिडल वेट (Middle Weight) = 75 kg
  10. लाइट हैवी वेट (Light Heavy Weight) = 81 kg से 91 kg तक
  11. हैवी वेट (Heavy Weight) = 91 kg से अधिक 100 kg तक
  12. सुपर हैवी वेट (Super Heavy Weight) = 100 kg से ऊपर

प्रश्न
बाक्सिग में रिंग, रस्सा, प्लेटफ़ार्म, अंडर-कवर, पोशाक और पट्टियों के बारे में लिखें।
उत्तर-
रिंग (Ring)-सभी प्रतियोगिताओं में रिंग का आन्तरिक माप 12 फुट से 20 फुट (3 मी० 66 सैं० मी० से 6 मी० 10 सैं० मी०) वर्ग में होगा। रिंग की सतह से सबसे ऊपरी रस्से की ऊंचाई 16”, 28”, 40”, 50” होगी।
रस्सा (Rope)-रिंग चार रस्सों के सैट से बना होगा जोकि लिनन या किसी नर्म पदार्थ से ढका होगा।

प्लेटफ़ार्म (Platform)-प्लेटफार्म सुरक्षित रूप में बना होगा। यह समतल तथा बिना किसी रुकावटी प्रक्षेप के होगा। यह कम-से-कम 18 इंच रस्सों की लाइन से बना रहेगा उस पर चार कार्नर पोस्ट लगे होंगे जो इस प्रकार बनाए जाएंगे कि कहीं चोट न लगे।
अंडर-कवर (Under-cover)-फर्श एक अण्डर-कवर से ढका होगा जिस पर कैनवस बिछाई जाएगी।

पोशाक (Costumes)-प्रतियोगी एक बनियान (Vest) पहन कर बाक्सिग करेंगे जोकि पूरी तरह से छाती और पीठ ढकी रखेगी। शार्ट्स उचित लम्बाइयों की होगी जोकि जांघ के आधे भाग तक जाएगी। बूट या जूते हल्के होंगे। तैराकी वाली पोशाक पहनने की आज्ञा नहीं दी जाएगी। प्रतियोगी उन्हें भिन्न-भिन्न दर्शाने वाले रंग धारण करेंगे जैसे कि कमर के गिर्द लाल या नीले कमर-बन्द, दस्ताने (Gloves) स्टैंडर्ड भार के होंगे। प्रत्येक दस्ताना 8 औंस (227 ग्राम) भारी होगा।

पट्टियां (Bandages)-एक नर्म सर्जिकल पट्टी जिसकी लम्बाई 8 फुट 4 इंच (2.5 मी०) से अधिक तथा चौड़ाई \(1 \frac{3}{4}\) इंच (4.4 सैं० मी०) से अधिक न हो या एक वैल्यियन टाइप पट्टी जो 6 फुट 6 इंच से अधिक लम्बी तथा \(1 \frac{3}{4}\) इंच (4.4 सैं० मी०) से अधिक चौड़ी नहीं होगी, प्रत्येक हाथ पर पहनी जा सकती है।
अवधि (Duration)-सीनियर मुकाबलों तथा प्रतियोगिताओं के लिए खेल की अवधि निम्नलिखित होगी—
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प्रतियोगिताएं (Competitions)—
Senior National Level 3-1-3-1-3 तीन-तीन मिनट के तीन राऊण्ड
Junior National Level
2-1-2-1-2 दो-दो मिनट के तीन राऊण्ड
International Level
2-1-2-1-2-1-2 दो-दो मिनट के पांच राऊण्ड

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प्रश्न
बाक्सिग में ड्रा, बाई, वाक ओवर के बारे में लिखें।
उत्तर-
ड्रा, बाई, वाक ओवर (The Draw, Byes and Walk-over)

  1. सभी प्रतियोगिताओं के लिए भार तोलने तथा डॉक्टरी निरीक्षण के बाद ड्रा किया जाएगा।
  2. वे प्रतियोगिताओं में जिनसे चार से अधिक प्रतियोगी हैं, पहली सीरीज़ में बहुतसी बाई निकाली जाएंगी ताकि दूसरी सीरीज़ में प्रतियोगियों की संख्या कम रह जाए।
  3. पहली सीरीज़ में जो मुक्केबाज़ (Boxer) बाई में आते हैं वे दूसरी सीरीज़ में पहले बाक्सिग करेंगे। यदि बाइयों की संख्या विषय हो तो अन्तिम बाई का बाक्सर दूसरी सीरीज़ में पहले मुकाबले के विजेता के साथ मुकाबला करेगा।
  4. कोई भी प्रतियोगी पहली सीरीज़ में बाई ओर दूसरी सीरीज़ में वाक ओवर नहीं प्राप्त कर सकता या दो प्रतियोगियों के नाम ड्रा निकाला जाएगा जोकि अब भी मुकाबले में हों। इसका अर्थ इन प्रतियोगियों के लिए विरोधी प्रदान करना है जोकि पहली सीरीज़ में पहले ही वाक ओवर ले चुके हैं।

सारणी-बाऊट से बाइयां निकालना
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प्रतियोगिता की सीमा (Limitation of Competitors)-किसी भी प्रतियोगिता में 4 से लेकर 8 प्रतियोगियों को भाग लेने की आज्ञा है। यह नियम किसी ऐसोसिएशन द्वारा आयोजित किसी चैम्पियनशिप पर लागू नहीं होता। प्रतियोगिता का आयोजन करने वाली क्लब को अपना एक सदस्य प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए मनोनीत करने का अधिकार है, परन्तु शर्त यह है कि वह सदस्य प्रतियोगिता में सम्मिलित न हो।

नया ड्रा (Fresh Draw)–यदि किसी एक ही क्लब के दो सदस्यों का पहली सीरीज़ में ड्रा निकल जाए तो उनमें एक-दूसरे के पक्ष में प्रतियोगिता से निकलना चाहे तो नया ड्रा किया जाएगा।
वापसी (Withdrawl)-ड्रा किए जाने के बाद यदि प्रतियोगी बिना किसी सन्तोषजनक कारण के प्रतियोगिता से हटना चाहे तो इन्चार्ज अधिकारी इन दशाओं में एसोसिएशन को रिपोर्ट करेगा।

रिटायर होना (Retirement)-यदि कोई प्रतियोगी किसी कारण प्रतियोगिता से रिटायर होना चाहता है तो उसे इन्चार्ज अधिकारी को सूचित करना होगा।
बाई (Byes)—पहली सीरीज़ के बाद उत्पन्न होने वाली बाइयों के लिए निश्चित समय के लिए वह विरोधी छोड़ दिया जाता है जिससे इन्चार्ज अधिकारी सहमत हो।
सैकिण्ड (Second)—प्रत्येक प्रतियोगी के साथ एक सैकिण्ड (सहयोगी) होगा तथा राऊंड के दौरान वह सैकिण्ड प्रतियोगी को कोई निर्देश या कोचिंग नहीं दे सकता।
केवल पानी की आज्ञा (Only water allowed)–बाक्सर को बाऊट से बिल्कुल पहले या मध्य में पानी के अतिरिक्त कोई अन्य पीने वाली चीज़ नहीं दी जा सकती।

बाक्सिंग (मुक्केबाज़ी) (Boxing) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education

प्रश्न
बाक्सिग में बाऊट को नियन्त्रण कैसे किया जाता है ?
उत्तर-
बाऊट का नियन्त्रण
(Bout’s Control)

  1. सभी प्रतियोगिताओं के मुकाबले एक रैफ़री, तीन जजों, एक टाइम कीपर द्वारा निश्चित किए जाएंगे। रैफ़री रिंग में होगा। जब तीन से कम जज होंगे तो रैफ़री स्कोरिंग पेपर को पूरा करेगा। प्रदर्शनी ब्राऊट एक रैफ़री द्वारा कण्ट्रोल किए जाएंगे।
  2. रैफ़री एक स्कोर पैड या जानकारी सलिप का प्रयोग बाक्सरों के नाम तथा रंगों का रिकार्ड रखने के लिए करेगा। इन सब स्थितियों को जब बाऊट चोट लगने के कारण या किसी अन्य कारणवश स्थगित हो जाए तो रैफ़री इस पर कारण रिपोर्ट करके इंचार्ज अधिकारी को देगा।
  3. टाइम कीपर रिंग के एक ओर बैठेगा तथा जज अन्य तीन ओर बैठेंगे। सीटें इस प्रकार की होंगी कि वे बाक्सिग को सन्तोषजनक ढंग से देख सकें। ये दर्शकों से अलग होंगी। रैफ़री बाऊट को नियमानुसार कण्ट्रोल करने के लिए अकेला ही उत्तरदायी होगा तथा जज स्वतन्त्रतापूर्वक प्वाइंट देंगे।
  4. प्रमुख टूर्नामैंट में रैफ़री सफेद कपड़े धारण करेगा। प्वाईंट देना (Awarding of Points)
    • सभी प्रतियोगिताओं में जज प्वाईंट देगा।
    • प्रत्येक राऊंड के अन्त में प्वाईंट स्कोरिंग पेपर पर लिखे जाएंगे तथा बाऊंट के अन्त में जमा किए जाएंगे, भिन्नों का प्रयोग नहीं किया जाएगा।
    • प्रत्येक जज को विजेता मनोनीत करना होगा या उसे अपने स्कोरिंग पेपर पर हस्ताक्षर करने होंगे। जज का नाम बड़े अक्षरों (Block Letters) में लिखा जाएगा। उसे स्कोरिंग स्लिपों पर हस्ताक्षर करने होंगे।

प्रश्न
बाक्सिग में स्कोर कैसे मिलते हैं ?
उत्तर-
स्कोरिंग (Scoring)

  1. जो बाक्सर अपने विरोधी को सबसे अधिक मुक्के मारेगा उसे प्रत्येक राऊंड के अन्त में 20 प्वाईंट दिए जाएंगे। दूसरे बाक्सर को उसी अनुपात में अपने स्कोरिंग मुक्कों में कम प्वाईंट मिलेंगे।
  2. जब जज यह देखता है कि दोनों बाक्सरों ने एक जितने मुक्के मारे हैं तो प्रत्येक प्रतियोगी को 20 प्वाईंट दिए जाएंगे।
  3. यदि बाक्सरों को मिले प्वाईंट बाऊट के अन्त में बराबर हों तो जज अपना निर्णय उस बाक्सर के पक्ष में देगा जिसने अधिक पहल दिखाई हो, परन्तु यदि समान हो उस बाक्सर के पक्ष में जिसने बेहतर स्टाइल दिखाया हो। यदि वह सोचे कि वह इन दोनों पक्षों में बराबर हैं तो वह अपना निर्णय उस बाक्सर के पक्ष में देगा जिसने अच्छी सुरक्षा (Defence) का प्रदर्शन किया हो।

परिभाषाएं (Definitions)-उपर्युक्त नियम निम्नलिखित परिभाषाओं द्वारा लागू होता है—

  1. स्कोरिंग मुक्के या प्रहार (Scoring Blows)-वे मुक्के जो किसी भी दस्ताने के नक्कल से रिंग के सामने या साइड की ओर या शरीर के बैल्ट के ऊपर मारे जाएं।
  2. नान-स्कोरिंग मुक्के (Non-Scoring Blows)
    • नियम का उल्लंघन करके मारे गए मुक्के।
    • भुजाओं या पीठ पर मारे गए मुक्के।
    • हल्के मुक्के या बिना ज़ोर की थपकियां।
  3. पहल करना (Leading Off)-पहला मुक्का मारना या पहला मुक्का मारने की कोशिश करना। नियमों का उल्लंघन पहल करने के स्कोरिंग मूल्य को समाप्त कर देता है।
  4. सुरक्षा (Defence)–बाक्सिग, पैरिंग, डकिंग, गार्डिंग, साइड स्टैपिंग द्वारा प्रहरों से बचाव करना।.

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प्रश्न
बाक्सिग में कोई दस त्रुटियां लिखें।
उत्तर-
त्रुटियां (Fouls)-जजों या रैफ़री का फ़ैसला अन्तिम होगा। रैफ़री को निम्नलिखित कार्य करने पर बाक्सर को चेतावनी देने या अयोग्य घोषित करने का अधिकार है—

  1. खुले दस्ताने से चोट करना, हाथ के आन्तरिक भाग या बट के साथ चोट करना, कलाइयों से चोट करना या बन्द दस्ताने के नक्कल वाले भाग को छोड़कर किसी अन्य भाग से चोट करना।
  2. कुलनी से मारना।
  3. बैल्ट के नीचे मारना।
  4. किडनी पंच (Kidney Punch) का प्रयोग करना।
  5. पिवट ब्लो (Pivot Blow) का प्रयोग करना।
  6. गर्दन या सिर के नीचे जानबूझ कर चोट करना।
  7. नीचे पड़े प्रतियोगी को मारना।
  8. पकड़ना।
  9. सिर या शरीर के भार लेटना।
  10. बैल्ट के नीचे किसी ढंग से डकिंग (Ducking) करना जोकि विरोधी के लिए खतरनाक हो।
  11. बाक्सिग का सिर पर खतरनाक प्रयोग। (12) रफिंग (Roughing)
  12. कन्धे मारना।
  13. कुश्ती करना।
  14. बिना मुक्का लगे जान-बूझ कर गिरना।
  15. निरन्तर ढक कर रखना।
  16. रस्सों का अनुचित प्रयोग करना।
  17. कानों पर दोहरी चोट करना।

ब्रेक (Break) जब रैफ़री दोनों प्रतियोगियों को ब्रेक (To Break) की आज्ञा देता है तो दोनों बाक्सरों को पुनः बाक्सिग शुरू करने से पहले एक कदम पीछे हटना ज़रूरी है। ‘ब्रेक’ के समय एक बाक्सर को विरोधी को मारने की आज्ञा नहीं होती।
डाऊन तथा गिनती (Doun and Count)-एक बाक्सर को डाऊन (Doun) समझा जाता है जब शरीर का कोई भाग सिवाए उसके पैरों के फर्श पर लग जाता है या जब वह रस्सों से बाहर या आंशिक रूप में बाहर होता है या वह रस्सी पर लाचार लटकता है।
बाऊट रोकना (Stopping the Bout)—

  1. यदि रैफ़री के मतानुसार एक बाक्सर चोट लगने के कारण खेल जारी नहीं रख सकता या वह बाऊट बन्द कर देता है तो उसके विरोधी को विजेता घोषित कर दिया जाता है। यह निर्णय करने का अधिकार रैफ़री को होता है जोकि डॉक्टर का परामर्श ले सकता है।
  2. रैफ़री को बाऊट रोकने का अधिकार है यदि उसकी राय में प्रतियोगी को मात हो गई है या वह बाऊट जारी रखने के योग्य नहीं है।

बाऊट पुनः शुरू करने में असफल होना (Failure to resume Bout) सभी बाऊटों में यदि कोई प्रतियोगी समय कहे जाने पर बाऊट को पुनः शुरू करने में असमर्थ होता है तो वह बाऊट हार जाएगा।

नियमों का उल्लंघन (Breach of Rules)-बाक्सर या उसके सैकिण्ड (Second) द्वारा इन नियमों के किसी भी उल्लंघन से उसे अयोग्य घोषित किया जाएगा। एक प्रतियोगी जो अयोग्य घोषित किया गया हो उसे कोई ईनाम नहीं मिलेगा।

शंकित फाऊल (Suspected Foul)–यदि रैफ़री को किसी फ़ाऊल का सन्देह हो जाए जिसे उसने स्वयं साफ नहीं देखा, वह जजों की सलाह ले सकता है तथा उसके अनुसार अपना फैसला दे सकता है।

PSEB 10th Class SST Solutions History Chapter 8 अंग्रेजों और सिक्खों के युद्ध और पंजाब पर अंग्रेजों का आधिपत्य

Punjab State Board PSEB 10th Class Social Science Book Solutions History Chapter 8 अंग्रेजों और सिक्खों के युद्ध और पंजाब पर अंग्रेजों का आधिपत्य Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 10 Social Science History Chapter 8 अंग्रेजों और सिक्खों के युद्ध और पंजाब पर अंग्रेजों का आधिपत्य

SST Guide for Class 10 PSEB अंग्रेजों और सिक्खों के युद्ध और पंजाब पर अंग्रेजों का आधिपत्य Textbook Questions and Answers

(क) निम्नलिखित प्रत्येक प्रश्न का उत्तर एक शब्द/एक पंक्ति (1-15 शब्दों) में लिखें

प्रश्न 1.
महाराजा रणजीत सिंह के बाद कौन उसका उत्तराधिकारी बना?
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह के बाद खड़क सिंह उसका उत्तराधिकारी बना।

प्रश्न 2.
मुदकी की लड़ाई में सिक्खों की हार क्यों हुई?
उत्तर-
(1) सिक्ख सरदार लाल सिंह ने गद्दारी की और युद्ध के मैदान से भाग निकला।
(2) अंग्रेजों की तुलना में सिक्ख सैनिकों की संख्या कम थी।

प्रश्न 3.
सभराओं की लड़ाई कब हुई और इसका परिणाम क्या निकला?
उत्तर-
सभराओं की लड़ाई 10 फरवरी, 1846 ई० को हुई। इसमें सिक्ख पराजित हुए और अंग्रेजी सेना बिना किसी बाधा के सतलुज नदी को पार कर गई।

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प्रश्न 4.
सुचेत सिंह के खजाने का मामला क्या था?
उत्तर-
डोगरा सरदार सुचेत सिंह द्वारा छोड़े गए ख़ज़ाने पर लाहौर सरकार अपना अधिकार समझती थी, परन्तु अंग्रेज़ी सरकार इस मामले को अदालती रूप देना चाहती थी।

प्रश्न 5.
गौओं सम्बन्धी झगड़े के बारे में जानकारी दो।
उत्तर-
21 अप्रैल, 1846 ई० को गौओं के एक झुंड पर एक यूरोपियन तोपची ने तलवार चला दी जिससे हिन्दू और सिक्ख अंग्रेजों के विरुद्ध भड़क उठे।

प्रश्न 6.
पंजाब को अंग्रेजी साम्राज्य में कब शामिल किया गया ? (P.B. 2014) उस समय भारत का गवर्नर जनरल कौन था?
उत्तर-
पंजाब को अंग्रेजी साम्राज्य में 1849 ई० में सम्मिलित किया गया। उस समय भारत का गवर्नर जनरल लॉर्ड डल्हौज़ी था।

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(ख) निम्नलिखित प्रत्येक प्रश्न का उत्तर लगभग 30-50 शब्दों में लिखो

प्रश्न 1.
भैरोंवाल की सन्धि क्यों की गई?
उत्तर-
लाहौर की संधि के अनुसार महाराजा और नागरिकों की सुरक्षा के लिए लाहौर में एक वर्ष के लिए अंग्रेजी सेना रखी गई थी। अवधि समाप्त होने पर लॉर्ड हार्डिंग ने इस सेना को वहां स्थायी रूप से रखने की योजना बनाई। परन्तु महारानी जिंदां को यह बात मान्य नहीं थी। इसलिए 15 दिसम्बर, 1846 ई० को लाहौर दरबार के मंत्रियों और सरदारों की एक विशेष सभा बुलाई गई। इस सभा में गवर्नर जनरल की केवल उन्हीं शर्तों का उल्लेख किया गया जिनके आधार पर सिक्ख 1846 ई० के बाद लाहौर में अंग्रेजी सेना रखने के लिए सहमत हुए थे। इस प्रकार महारानी जिंदा तथा प्रमुख सिक्ख सरदारों ने 16 दिसंबर, 1846 को भैरोंवाल के संधि पत्र पर हस्ताक्षर कर दिए।

प्रश्न 2.
भैरोंवाल की सन्धि की कोई चार धाराएं बताओ।
उत्तर-
भैरोंवाल की संधि की चार मुख्य धाराएं निम्नलिखित थीं

  1. लाहौर में एक ब्रिटिश रैजीडेंट रहेगा जिसकी नियुक्ति गवर्नर जनरल करेगा।
  2. महाराजा दलीप सिंह के बालिग (वयस्क) होने तक राज्य का शासन प्रबन्ध आठ सरदारों की कौंसिल ऑफ़ रीजैंसी द्वारा चलाया जाएगा।
  3. कौंसिल ऑफ़ रीजैंसी ब्रिटिश रैजीडेंट के परामर्श से प्रशासन का कार्य करेगी।
  4. महारानी जिंदां को राज्य प्रबंध से अलग कर दिया गया। उसे डेढ़ लाख रुपये वार्षिक पेंशन दे दी गई।

प्रश्न 3.
भैरोंवाल की सन्धि का क्या महत्त्व है?
उत्तर-
भैरोंवाल की संधि पंजाब और भारत के इतिहास में बड़ा महत्त्व रखती है

  1. इस सन्धि द्वारा अंग्रेज़ पंजाब के स्वामी बन गए। लाहौर राज्य के प्रशासनिक मामलों में ब्रिटिश रैजीडेंट को असीमित अधिकार तथा शक्तियाँ प्राप्त हो गईं। हैनरी लारेंस को पंजाब में पहला रैजीडेंट नियुक्त किया गया।
  2. इस सन्धि द्वारा महारानी जिंदां को राज्य प्रबन्ध से अलग कर दिया गया। पहले उसे शेखुपुरा भेज दिया गया। परन्तु बाद में उसे देश निकाला देकर बनारस भेज दिया गया।

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प्रश्न 4.
पहले आंग्लो-सिक्ख युद्ध के बाद अंग्रेजों ने पंजाब को अपने कब्जे में क्यों नहीं किया? कोई दो कारण बताओ।
उत्तर-
पहले आंग्ल-सिक्ख युद्ध के पश्चात् अंग्रेजों ने निम्नलिखित कारणों से पंजाब पर अपना अधिकार नहीं किया

  1. सिक्ख मुदकी, फिरोजशाह और सभराओं की लड़ाइयों में अवश्य पराजित हुए थे, परन्तु लाहौर, अमृतसर, पेशावर आदि स्थानों पर अभी भी सिक्ख सैनिक तैनात थे। यदि अंग्रेज़ उस समय पंजाब पर अधिकार करते तो उन्हें इन सैनिकों का सामना भी करना पड़ता।
  2. अंग्रेजों को पंजाब में शान्ति व्यवस्था स्थापित करने के लिए आय से अधिक व्यय करना पड़ता।
  3. सिक्ख राज्य अफ़गानिस्तान तथा ब्रिटिश साम्राज्य के बीच मध्यस्थ राज्य का कार्य करता था। इसलिए अभी पंजाब पर अधिकार करना अंग्रेजों के लिए उचित नहीं था।
  4. लॉर्ड हार्डिंग पंजाबियों के साथ एक ऐसी संधि करना चाहता था, जिससे पंजाब कमजोर हो जाए, ताकि वे जब चाहे पंजाब पर अधिकार कर सकें। इसलिए उन्होंने लाहौर सरकार के साथ केवल ऐसी सन्धि की जिसके कारण लाहौर (पंजाब) राज्य आर्थिक और सैनिक दृष्टि से कमजोर हो गया। (कोई दो लिखें)

प्रश्न 5.
भैरोंवाल की सन्धि के पश्चात् अंग्रेजों ने रानी जिंदां के साथ कैसा व्यवहार किया?
उत्तर-
भैरोंवाल की सन्धि के अनुसार महारानी जिंदां को सभी राजनीतिक अधिकारों से वंचित कर दिया गया। उसका लाहौर के राज्य प्रबंध से कोई संबंध न रहा। यही नहीं उसे अनुचित ढंग से कैद कर लिया गया और उसे शेखुपुरा के किले में भेज दिया गया। उसकी पेंशन डेढ़ लाख से घटा कर 48 हज़ार रु० कर दी गई। तत्पश्चात् उसे देश निकाला देकर बनारस भेज दिया गया। इस प्रकार महारानी जिंदां से बहुत ही बुरा व्यवहार किया गया। परिणामस्वरूप पंजाब के देशभक्त सरदारों की भावनाएं अंग्रेजों के विरुद्ध भड़क उठीं।

प्रश्न 6.
महाराजा दलीप सिंह के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर-
महाराजा दलीप सिंह पंजाब (लाहौर राज्य) का अंतिम सिक्ख शासक था। प्रथम ऐंग्लो-सिक्ख युद्ध के समय वह नाबालिग था। अत: 1846 ई० की भैरोंवाल की सन्धि के अनुसार लाहौर-राज्य के शासन प्रबन्ध के लिए एक कौंसिल ऑफ़ रीजैंसी की स्थापना की गई। इसे महाराजा के बालिग होने तक कार्य करना था। परन्तु दूसरे ऐंग्लो-सिक्ख युद्ध में सिक्ख पुनः पराजित हुए। परिणामस्वरूप महाराजा दलीप सिंह को राजगद्दी से उतार दिया गया और उसकी 4-5 लाख रु० के बीच वार्षिक पेंशन निश्चित कर दी गई। पंजाब अंग्रेजी साम्राज्य का अंग बन गया।

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(ग) निम्नलिखित प्रत्येक प्रश्न का उत्तर लगभग 100-120 शब्दों में लिखो

प्रश्न 1.
अंग्रेजों और सिक्खों की पहली लड़ाई के कारण लिखो।
उत्तर-
अंग्रेजों तथा सिक्खों के बीच पहली लड़ाई 1845-46 ई० में हुई। इसके मुख्य कारण निम्नलिखित थे

  1. अंग्रेजों की लाहौर राज्य को घेरने की नीति — अंग्रेजों ने महाराजा रणजीत सिंह के जीवन काल से ही लाहौर राज्य को घेरना आरम्भ कर दिया था। इसी उद्देश्य से उन्होंने 1835 ई० में फिरोजपुर पर अधिकार कर लिया। 1838 ई० में उन्होंने वहां एक सैनिक छावनी स्थापित कर दी। लाहौर दरबार के सरदारों ने अंग्रेजों की इस नीति का विरोध किया।
  2. पंजाब में अशांति और अराजकता — महाराजा रणजीत सिंह की मृत्यु के पश्चात् पंजाब में अशांति और अराजकता फैल गई। इसका कारण यह था कि उसके उत्तराधिकारी खड़क सिंह, नौनिहाल सिंह, रानी जिंदां कौर, शेर सिंह आदि निर्बल थे। अत: लाहौर दरबार में सरदारों ने एक दूसरे के विरुद्ध षड्यंत्र रचने आरम्भ कर दिये। अंग्रेज़ इस स्थिति का लाभ उठाना चाहते थे।
  3. प्रथम अफ़गान युद्ध में अंग्रेजों की कठिनाइयां और असफलताएं — प्रथम ऐंग्लो-अफ़गान युद्ध के समाप्त होते ही अफ़गानों ने दोस्त मुहम्मद खां के पुत्र मुहम्मद अकबर खां के नेतृत्व में विद्रोह कर दिया। अंग्रेज़ विद्रोहियों को दबाने में असफल रहे। अंग्रेज सेनानायक बर्नज़ और मैकनाटन को मौत के घाट उतार दिया गया। वापस जा रहे अंग्रेज सैनिकों में से केवल एक सैनिक ही बच पाया। अंग्रेजों की इस असफलता को देखकर सिक्खों का अंग्रेजों के विरुद्ध युद्ध छेड़ने के लिए उत्साह बढ़ गया।
  4. अंग्रेजों द्वारा सिन्ध को अपने राज्य में मिलाना — 1843 ई० में अंग्रेजों ने सिन्ध पर आक्रमण करके उसे अपने राज्य में मिला लिया। इस घटना ने उनकी महत्त्वाकांक्षा को बिल्कुल स्पष्ट कर दिया। सिक्खों ने यह जान लिया कि साम्राज्यवादी अंग्रेज़ सिन्ध की भान्ति पंजाब के लिए भी काल बन सकते हैं। वैसे भी पंजाब पर अधिकार किए बिना सिन्ध पर अंग्रेजी नियन्त्रण बने रहना असम्भव था। फलतः सिक्ख अंग्रेजों के इरादों के प्रति और भी चौकन्ने हो गए।
  5. ऐलनबरा की पंजाब पर अधिकार करने की योजना — सिन्ध को अंग्रेजी साम्राज्य में मिला लेने के पश्चात् लॉर्ड ऐलनबरा ने पंजाब पर अधिकार करने की योजना बनाई। इस योजना को वास्तविक रूप देने के लिए उसने सैनिक तैयारियां आरम्भ कर दी। इसका पता चलने पर सिक्खों ने भी युद्ध की तैयारी आरम्भ कर दी।
  6. लॉर्ड हार्डिंग की गवर्नर जनरल के पद पर नियुक्ति — जुलाई, 1844 ई० में लॉर्ड ऐलनबरा के स्थान पर लॉर्ड हार्डिंग भारत का गवर्नर जनरल बना। वह एक कुशल सेनानायक था। उसकी नियुक्ति से सिक्खों के मन में यह शंका उत्पन्न हो गई कि हार्डिंग को जान-बूझकर भारत भेजा गया है, ताकि वह सिक्खों से सफलतापूर्वक युद्ध कर सके।
  7. अंग्रेजों की सैनिक तैयारियां — पंजाब में फैली अराजकता ने अंग्रेजों को पंजाब पर आक्रमण करने के लिए प्रेरित किया और उन्होंने सैनिक तैयारियां करनी आरम्भ कर दीं। शीघ्र ही अंग्रेज़ी सेनाएं सतलुज नदी के आस-पास इकट्ठी होने लगीं। उन्होंने सिन्ध में भी अपनी सेनाओं की वृद्धि कर ली तथा सतलुज को पार करने के लिए एक नावों का पुल बना लिया। अंग्रेजों की ये गतिविधियां प्रथम सिक्ख युद्ध का कारण बनीं।
  8. सुचेत सिंह के खजाने का मामला — डोगरा सरदार सुचेत सिंह लाहौर दरबार की सेवा में था। अपनी मृत्यु से पूर्व वह 15 लाख रुपये की धन राशि छोड़ गया था। परंतु उसका कोई पुत्र नहीं था। इसलिए लाहौर सरकार इस राशि पर अपना अधिकार समझती थी। दूसरी ओर अंग्रेज़ इस मामले को अदालती रूप देना चाहते थे। इससे सिक्खों को अंग्रेजों की नीयत पर संदेह होने लगा।
  9. मौड़ा गांव का मामला — मौड़ा गांव नाभा प्रदेश में था। वहां के भूतपूर्व शासक ने यह गांव महाराजा रणजीत सिंह को दिया था जिसे महाराजा ने धन्ना सिंह को जागीर में दे दिया। परन्तु 1843 ई० के आरम्भ में नाभा के नये शासक तथा धन्ना सिंह में मतभेद हो जाने के कारण नाभा के शासक ने यह गांव वापस ले लिया। जब लाहौर सरकार ने इस पर आपत्ति की तो अंग्रेजों ने नाभा के शासक का समर्थन किया। इस घटना ने अंग्रेजों तथा लाहौर दरबार एवं सिक्ख सेना के आपसी सम्बन्धों को और भी बिगाड़ दिया।
  10. ब्राडफुट की सिक्ख विरोधी गतिविधियां — नवम्बर, 1844 ई० में मेजर ब्राडफुट लुधियाना का रैजीडेंट नियुक्त हुआ। वह सिक्खों के प्रति घृणा-भाव रखता था। उसने सिक्खों के विरुद्ध कुछ ऐसे कार्य किए जिससे सिक्ख अंग्रेजों के विरुद्ध हो गए।
  11. लाल सिंह और तेज सिंह का सेना को उकसाना — सितम्बर, 1845 ई० में लाल सिंह लाहौर राज्य का प्रधानमन्त्री बना। उसी समय तेज सिंह को प्रधान सेनापति बनाया गया। अब तक सिक्ख सेना की शक्ति काफ़ी बढ़ चुकी थी। अत: लाल सिंह और तेज सिंह सिक्ख सेना से भयभीत थे। अपनी सुरक्षा के लिए ये दोनों गुप्त रूप से अंग्रेज़ी सरकार से मिल गए। सिक्ख सेना को कमजोर करने के लिए उन्होंने सिक्ख सेना को अंग्रेज़ों के विरुद्ध भड़काया।
    युद्ध का वातावरण तैयार हो चुका था। 13 दिसम्बर, 1845 ई० को लॉर्ड हार्डिंग ने सिक्खों के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी।

प्रश्न 2.
पहले आंग्लो-सिक्ख युद्ध की घटनाएं लिखो।
उत्तर-
सिक्ख सेना ने लाहौर से प्रस्थान किया और 11 दिसम्बर, 1845 ई० को सतलुज नदी को पार करना आरम्भ कर दिया। अंग्रेज़ तो पहले ही इसी ताक में थे कि सिक्ख सैनिक कोई ऐसा पग उठाएं जिससे उन्हें सिक्खों के विरुद्ध युद्ध छेड़ने का अवसर मिल सके। अत: 13 दिसम्बर को लॉर्ड हार्डिंग ने सिक्खों के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी। इस युद्ध की मुख्य घटनाओं का वर्णन इस प्रकार है

  1. मुदकी की लड़ाई-अंग्रेज़ी सेना फिरोज़शाह से 15-16 कि० मी० की दूरी पर मुदकी के स्थान पर आ पहुंची। जिसका नेतृत्व सरहयूग गफ्फ कर रहा था। 18 दिसम्बर, 1845 ई० के दिन अंग्रेज़ों व सिक्खों में इसी स्थान पर पहली . लड़ाई हुई। यह एक खूनी युद्ध था। योजना के अनुसार लाल सिंह ने अपनी सेना के साथ विश्वासघात किया और सैनिकों . को अकेला छोड़ कर रणक्षेत्र से भाग निकला। तेज सिंह ने भी ऐसा ही किया। परिणामस्वरूप सिक्ख पराजित हुए।
  2. बद्दोवाल की लड़ाई-21 जनवरी, 1846 ई० को फिरोजशाह की लड़ाई के पश्चात् अंग्रेज सेनापति लॉर्ड गफ… ने अम्बाला तथा देहली से सहायक सेनाएं बुला भेजीं। जब खालसा सेना को अंग्रेज़ सेनाओं के आगमन की सूचना मिली. तो रणजोध सिंह तथा अजीत सिंह लाडवा ने 8000 सैनिकों तथा 70 तोपों सहित सतलुज नदी को पार किया और : लुधियाना से 7 मील की दूरी पर बरां हारा के स्थान पर डेरा डाल दिया। उन्होंने लुधियाना की अंग्रेज़ चौकी में आग लगा दी। सर हैरी स्मिथ (Harry Smith) को फिरोजपुर से लुधियाना की सुरक्षा के लिए भेजा गया। बद्दोवाल के स्थान पर दोनों पक्षों में एक भयंकर युद्ध हुआ। रणजोध सिंह व अजीत सिंह ने अंग्रेजी सेना के पिछले भाग पर धावा बोल कर उनके शस्त्र तथा खाद्य सामग्री लूट ली। फलस्वरूप यहां अंग्रेजों को पराजय का मुंह देखना पड़ा।
  3. अलीवाल की लड़ाई-28 जनवरी, 1846 को बुद्दोवाल की विजय के पश्चात् रणजोध सिंह ने उस गांव को. खाली करा लिया तथा सतलुज के मार्ग से जंगरांव, घुगरांना इत्यादि पर आक्रमण करके अंग्रेज़ों के मार्ग को रोकना चाहा। इसी बीच हैरी स्मिथ ने बुद्दोवाल पर अधिकार कर लिया। इतने में फिरोजपुर से भी एक सहायक सेनाःस्मिथ की सहायता के लिए आ पहुंची। सहायता पाकर उसने सिक्खों पर धावा बोल दिया। 28 जनवरी, 1846 ई० के दिन अलीवाल के स्थान पर एक भीषण लड़ाई हुई जिसमें सिक्खों की पराजय हुई।
  4. सभराओं की लड़ाई-अलीवाल की पराजय के कारण लाहौर दरबार की सेनाओं को अपनी सुरक्षा की चिन्ता पड़ गई। आत्म रक्षा के लिए उन्होंने सभराओं के स्थान पर खाइयां खोद लीं। परन्तु यहां उन्हें 10 फरवरी, 1846 ई० के दिन एक बार फिर शत्रु का सामना करना पड़ा। यह खूनी लड़ाई थी। कहते हैं कि यहां वीरगति को प्राप्त होने वाले सिक्ख सैनिकों के रक्त से सतलुज का पानी भी लाल हो गया। अंग्रेजों की सभराओं विजय निर्णायक सिद्ध हुई। डॉ० स्मिथ के अनुसार, इस विजय से अंग्रेज़ सबसे वीर और सबसे सुदृढ़ शत्रुओं के विरुद्ध युद्ध की गम्भीर स्थिति में अपमानित होने से बच गए। इस विजय के पश्चात् अंग्रेजी सेनाओं ने सतलुज को पार (13 फरवरी, 1846 ई०) किया और 20 फरवरी, 1846 ई० को लाहौर पर अधिकार कर लिया।

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प्रश्न 3.
लाहौर की पहली संधि की धाराएं लिखो।
उत्तर-
प्रथम ऐंग्लो-सिक्ख युद्ध के घातक परिणाम निकले। सभराओं के युद्ध में तो इतना खून बहा कि. संतलुज नदी का पानी भी लाल हो गया। इस विजय के पश्चात् यदि लॉर्ड हार्डिंग चाहता तो पंजाब को अंग्रेजी साम्राज्य में मिला सकता था, परन्तु कई कारणों से उसने ऐसा न किया। 9 मार्च, 1846 ई० को अंग्रेज़ों तथा सिक्खों के बीच एक सन्धि हो गई जो लाहौर की पहली सन्धि कहलाती है। इसकी मुख्य धाराएं निम्नलिखित थीं

  1. सतलुज तथा ब्यास नदियों के बीच के सारे मैदानी तथा पर्वतीय प्रदेश पर अंग्रेज़ों का अधिकार मान लिया गया।
  2. युद्ध की क्षति पूर्ति के रूप में लाहौर दरबार ने अंग्रेज़ी सरकार को डेढ़ करोड़ रुपये की धन राशि देना स्वीकार किया।
  3. दरबार की सैनिक संख्या 20,000 पैदल तथा 12,000 घुड़सवार सैनिक निश्चित कर दी गई।
  4. लाहौर दरबार ने युद्ध में अंग्रेजों से छीनी गई सभी तोपें तथा 36 अन्य तोपें अंग्रेजी सरकार को देने का वचन दिया।
  5. सिक्खों ने ब्यास तथा सतलुज के बीच दोआब के समस्त प्रदेश तथा दुर्गों पर से अपना अधिकार छोड़ दिया और उन्हें अंग्रेज़ी सरकार के हवाले कर दिया।
  6. लाहौर राज्य ने यह वचन दिया कि वह अपनी सेना में किसी भी अंग्रेज़ अथवा अमरीकन को भर्ती नहीं करेगा।
  7. लाहौर राज्य अंग्रेज़ सरकार की पूर्व स्वीकृति लिये बिना अपनी सीमाओं में किसी प्रकार का परिवर्तन नहीं करेगा।
  8. कुछ विशेष प्रकार की परिस्थितियों में अंग्रेज़ सेनाएं लाहौर राज्य के प्रदेशों से बिना रोकथाम के गुज़र सकेंगी।
  9. सतलुज के दक्षिण पूर्व में स्थित लाहौर राज्य के प्रदेश ब्रिटिश साम्राज्य में मिला लिए गए।
  10. अवयस्क दलीप सिंह को महाराजा स्वीकार कर लिया गया। रानी जिन्दां उसकी प्रतिनिधि बनी और लाल सिंह प्रधानमन्त्री बना।
  11. अंग्रेजों ने यह विश्वास दिलाया कि वे लाहौर राज्य के आन्तरिक मामलों में कोई हस्तक्षेप नहीं करेंगे। परन्तु अवयस्क महाराजा की रक्षा के लिए लाहौर में एक विशाल ब्रिटिश सेना की व्यवस्था की गई। सर लारेंस हैनरी को लाहौर में ब्रिटिश रैजीडेन्ट नियुक्त किया गया।

प्रश्न 4.
भैरोंवाल की सन्धि के बारे में जानकारी दो।
उत्तर-
लाहौर की सन्धि के अनुसार महाराजा और नागरिकों की सुरक्षा के लिए लाहौर में एक वर्ष के लिए अंग्रेज़ी सेना रखी गई थी। अवधि समाप्त होने पर लॉर्ड हार्डिंग ने इस सेना को वहां स्थायी रूप से रखने की योजना बनाई। इसी उद्देश्य से उन्होंने लाहौर सरकार से भैरोंवाल की सन्धि की। इस संधि पत्र पर महारानी जिंदां तथा प्रमुख सरदारों ने 16 दिसम्बर, 1846 को हस्ताक्षर कर दिए।
धाराएं-भैरोंवाल की सन्धि की मुख्य धाराएं निम्नलिखित थीं

  1. लाहौर में एक ब्रिटिश रैजीडेंट रहेगा जिसकी नियुक्ति गवर्नर जनरल करेगा।
  2. महाराजा दलीप सिंह के बालिग (वयस्क) होने तक राज्य का शासन प्रबन्ध आठ सरदारों की कौंसिल ऑफ़ रीजैंसी द्वारा चलाया जाएगा।
  3. कौंसिल ऑफ़ रीजैंसी ब्रिटिश रैजीडेंट के परामर्श से प्रशासन का कार्य करेगी।
  4. महारानी जिंदां को राज्य प्रबन्ध से अलग कर दिया गया। उसे डेढ़ लाख रुपये वार्षिक पेंशन दे दी गई।
  5. महाराजा की सुरक्षा तथा लाहौर राज्य में शान्ति एवं व्यवस्था बनाए रखने के लिए ब्रिटिश सेना लाहौर में रहेगी।
  6. यदि गवर्नर जनरल आवश्यक समझे तो उसके आदेश पर ब्रिटिश सरकार लाहौर राज्य के किसी किले या सैनिक छावनी को अपने अधिकार में ले सकती है।
  7. ब्रिटिश सेना के व्यय के लिए लाहौर राज्य ब्रिटिश सरकार को 22 लाख रुपये वार्षिक देगी।
  8. इस सन्धि की शर्ते महाराजा दलीप सिंह के वयस्क होने (4 सितम्बर, 1854 ई०) तक लागू रहेंगी।

महत्त्व-भैरोंवाल की सन्धि पंजाब और भारत के इतिहास में बड़ा महत्त्व रखती है —

  1. इस सन्धि द्वारा अंग्रेज़ पंजाब के स्वामी बन गए। लाहौर राज्य के प्रशासनिक मामलों में ब्रिटिश रैजीडेंट को असीमित अधिकार तथा शक्तियां प्राप्त हो गईं। हैनरी लारेंस (Henery Lawrence) को पंजाब में पहला रैजीडेंट नियुक्त किया गया।
  2. इस सन्धि द्वारा महारानी जिंदां को राज्य प्रबन्ध से अलग कर दिया गया। पहले उसे शेखुपुरा भेज दिया गया। परन्तु बाद में उसे देश निकाला देकर बनारस भेज दिया गया।

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प्रश्न 5.
दूसरे आंग्लो-सिक्ख युद्ध के कारण बताओ।
उत्तर-
दूसरा आंग्ल-सिक्ख युद्ध 1848-49 ई० में हुआ। इसमें भी अंग्रेजों को विजय प्राप्त हुई और पंजाब को अंग्रेज़ी साम्राज्य में मिला लिया गया। इस युद्ध के कारण निम्नलिखित थे —

  1. सिक्खों के विचार–पहले आंग्ल-सिक्ख युद्ध में सिक्खों की पराजय अवश्य हुई थी परन्तु उनके साहस में कोई कमी नहीं आई थी। उनको अब भी अपनी शक्ति पर पूरा विश्वास था। उनका विचार था कि वे पहली लड़ाई में अपने साथियों की गद्दारी के कारण हार गए थे। अतः अब वे अपनी शक्ति को एक बार फिर आज़माना चाहते थे।
  2. अंग्रेज़ों की सुधार नीति-अंग्रेज़ों के प्रभाव में आकर लाहौर दरबार ने अनेक प्रगतिशील पग (Progressive measures) उठाये। एक घोषणा द्वारा सती प्रथा, कन्या वध, दासता, बेगार तथा ज़मींदारी प्रथा की घोर निन्दा की गई। पंजाब के लोग अपने धार्मिक तथा सामाजिक जीवन में इस प्रकार के हस्तक्षेप को सहन न कर सके। अत: उन्होंने अंग्रेजों के विरुद्ध हथियार उठा लिये।
  3. रानी जिन्दां तथा लाल सिंह से कठोर व्यवहार-रानी जिंदां का सिक्ख बड़ा आदर करते थे, परन्तु अंग्रेजों ने उसे षड्यन्त्रकारिणी उहराया और उसे निर्वासित करके शेखपुरा भेज दिया। अंग्रेजों के इस कार्य से सिक्खों के क्रोध की सीमा न रही। इसके अतिरिक्त वे अपने प्रधानमन्त्री लाल सिंह के विरुद्ध अंग्रेजों के कठोर व्यवहार को भी सहन न कर सके और उन्होंने अपनी रानी तथा अपने प्रधानमन्त्री के अपमान का बदला लेने का निश्चय कर लिया।
  4. अंग्रेज़ अफसरों की उच्च पदों पर नियुक्ति-भैंरोवाल की सन्धि से पंजाब में अंग्रेजों की शक्ति काफ़ी बढ़ गई थी। अब उन्होंने पंजाब को अपने नियन्त्रण में लेने के लिए धीरे-धीरे सभी उच्च पदों पर अंग्रेज़ अफसरों को नियुक्त करना आरम्भ कर दिया था। सिक्खों को यह बात बहुत बुरी लगी और वे पंजाब को अंग्रेजों से मुक्त कराने के विषय में गम्भीरता से सोचने लगे।
  5. सिक्ख सैनिकों की संख्या में कमी-लाहौर की सन्धि के अनुसार सिक्ख सैनिकों की संख्या घटा कर 20 हज़ार पैदल तथा 12 हजार घुड़सवार निश्चित कर दी गई थी। इसका परिणाम यह हुआ कि हजारों सैनिक बेकार हो गए। बेकार सैनिक अंग्रेजों के घोर विरोधी हो गए। इसके अतिरिक्त अंग्रेजों ने उन सैनिकों के भी वेतन घटा दिये जो कि सेना में काम कर रहे थे। परिणामस्वरूप उन में भी असन्तोष फैल गया और वे भी अंग्रेज़ों को पंजाब से बाहर निकालने के लिए तैयारी करने लगे।
  6. मुलतान के दीवान मूलराज का विद्रोह-मूलराज मुल्तान का गवर्नर था। अंग्रेजों ने उसके स्थान पर काहन सिंह को मुलतान का गवर्नर नियुक्त कर दिया। इस पर मुलतान के सैनिकों ने विद्रोह कर दिया और मूलराज ने फिर मुलतान पर अधिकार कर लिया। धीरे-धीरे इस विद्रोह की आग सारे पंजाब में फैल गई।
  7. भाई महाराज सिंह का विद्रोह-भाई महाराज सिंह नौरंगबाद के संत भाई वीर सिंह का शिष्य था। उसने सरकार-ए-खालसा को बचाने के लिए अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह कर दिया। अतः ब्रिटिश रैजीडेंट हैनरी.लारेंस ने उसे बंदी बनाने के आदेश जारी किए। परन्तु उसे पकड़ा न जा सका। उसने अपने अधीन सैंकड़ों लोग इकट्ठे कर लिए। मूलराज की प्रार्थना पर वह उसकी सहायता के लिए 400 घुड़सवारों सहित मुलतान भी गया। परन्तु अनबन हो जाने के कारण वह मूलराज को छोड़ कर चतर सिंह अटारीवाला तथा उसके पुत्र शेर सिंह से जा मिला।
  8. हज़ारा के चतर सिंह का विद्रोह-चतर सिंह अटारीवाला को हज़ारा का गवर्नर नियुक्त किया गया था। उसकी सहायता के लिए कैप्टन ऐबट को रखा गया था। परन्तु ऐबट के अभिमानपूर्ण व्यवहार के कारण चतर सिंह को अंग्रेजों पर संदेह होने लगा। इसी बीच कैप्टन ऐबट ने चतर सिंह पर यह आरोप लगाया कि उसकी सेनाएं मुलतान के विद्रोहियों से जा मिली हैं। चतर सिंह इसे सहन न कर सका और उसने अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह कर दिया।
  9. शेर सिंह का विद्रोह-जब शेर सिंह को यह पता चला कि उसके पिता चतर सिंह को हज़ारा के नाज़िम (गवर्नर) के पद से हटा दिया गया है, तो उसने भी अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह कर दिया। वह अपने सैनिकों सहित मूलराज के साथ जा मिला। शेर सिंह ने एक घोषणा के अनुसार ‘सब अच्छे सिक्खों’ से अपील की कि वे अत्याचारी और धोखेबाज़ फिरंगियों को पंजाब से बाहर कर दें। अतः अनेक पुराने सैनिक अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह में शामिल हो गए।
  10. पंजाब पर अंग्रेजों का हमला-मूलराज, चतर सिंह और शेर सिंह द्वारा विद्रोह कर देने के बाद लॉर्ड डल्हौज़ी ने अपनी पूर्व निश्चित योजना को कार्यकारी रूप देना आरम्भ कर दिया। डल्हौज़ी के आदेश पर ह्यूग गफ (Hugh Gough) के नेतृत्व में अंग्रेज़ी सेना नवम्बर, 1848 ई० को लाहौर पहुंच गई। यह सेना आते ही विद्रोहियों का दमन करने में जुट गई।
    यह द्वितीय आंग्ल-सिक्ख युद्ध का आरम्भ था।

प्रश्न 6.
दूसरे आंग्लो-सिक्ख युद्ध की घटनाएं बताओ।
उत्तर-
द्वितीय आंग्ल-सिक्ख युद्ध नवम्बर, 1848 ई० में अंग्रेज़ी सेना द्वारा सतलुज नदी को पार करने के पश्चात् आरम्भ हुआ। इस युद्ध की प्रमुख घटनाओं का वर्णन इस प्रकार है

  1. रामनगर की लड़ाई-दूसरे आंग्ल-सिक्ख युद्ध में अंग्रेज़ों तथा सिक्खों के बीच पहली लड़ाई रामनगर की थी। अंग्रेज़ सेनापति जनरल गफ (General Gough) ने 16 नवम्बर, 1848 ई० के दिन रावी नदी पार की तथा 22. नवम्बर को रामनगर पहुंचा। वहां पहले से ही शेर सिंह अटारीवाला के नेतृत्व में सिक्ख सेना एकत्रित थी। रामनगर के स्थान पर दोनों सेनाओं में युद्ध हुआ, परन्तु इसमें हार-जीत का कोई फैसला न हो सका।
  2. चिलियांवाला की लड़ाई-13 जनवरी, 1849 ई० को जनरल गफ के नेतृत्व में अंग्रेज़ी सेनाएं चिलियांवाला गांव में पहुँची जहां सिक्खों की एक शक्तिशाली सेना थी। जनरल गफ ने आते ही अंग्रेज सेनाओं को शत्रु पर आक्रमण करने का आदेश जारी कर दिया। दोनों सेनाओं में घमासान युद्ध हुआ परन्तु हार-जीत का कोई फैसला इस बार भी न हो सका। इस युद्ध में अंग्रेजों के 602 व्यक्ति मारे गए तथा 1651 घायल हुआ। सिक्खों के भी बहुत-से लोग मारे गए और उन्हें 12 तोपों से हाथ धोना पड़ा।
  3. मुलतान की लड़ाई-अप्रैल 1848 में दीवान मूलराज ने मुलतान पर दोबारा अधिकार कर लिया था। इस पर अंग्रेजों ने एक सेना भेज कर मुलतान को घेर लिया। मूलराज ने डट कर मुकाबला किया परन्तु एक दिन अचानक एक गोले के फट जाने से उसके सारे बारूद में आग लग गई। परिणामस्वरूप मूलराज और अधिक दिनों तक अंग्रेजों के विरुद्ध युद्ध जारी न रख सका। 22 जनवरी, 1849 ई० को उसने हथियार डाल दिए। मुलतान की विजय से अंग्रेजों का काफ़ी मान बढ़ा।
  4. गुजरात की लड़ाई-अंग्रेज़ों और सिक्खों के बीच निर्णायक लड़ाई गुजरात में हुई। इस लड़ाई से पहले शेर सिंह और चतर सिंह आपस में मिल गए। महाराज सिंह तथा अफ़गानिस्तान के अमीर दोस्त मुहम्मद ने भी सिक्खों का साथ दिया। परंतु गोला बारूद समाप्त हो जाने तथा शत्रु की भारी सैनिक संख्या के कारण सिक्ख पराजित हुए।

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प्रश्न 7.
दूसरे आंग्लो-सिक्ख युद्ध के परिणाम लिखो।
उत्तर-
दूसरा आंग्ल-सिक्ख युद्ध लाहौर के सिक्ख,राज्य के लिए घातक सिद्ध हुआ। इसके निम्नलिखित परिणाम निकले —

  1. पंजाब का ब्रिटिश साम्राज्य में विलय-युद्ध में सिक्खों की पराजय के पश्चात् 29 मार्च, 1849 ई० को गवर्नर जनरल लॉर्ड डल्हौज़ी ने एक आदेश जारी किया। इसके अनुसार पंजाब राज्य को समाप्त कर दिया गया। महाराजा दलीप सिंह को गद्दी से उतार दिया गया और पंजाब को अंग्रेजी साम्राज्य में मिला लिया गया।
  2. मूलराज और महाराज सिंह को दण्ड-मूलराज को ऐग्न्यु और ऐंडरसन नामक अंग्रेज़ अफसरों के वध के अपराध में काले पानी की सज़ा दी गई। 29 दिसम्बर, 1849 ई० में महाराज सिंह को भी बंदी बना लिया गया। उसे आजीवन कारावास का दंड देकर सिंगापुर भेज दिया गया।
  3. खालसा सेना को भंग करना-खालसा सेना को भंग कर दिया गया। उससे सभी शस्त्र छीन लिए गए। नौकरी से हटे सिक्ख सैनिकों को ब्रिटिश सेना में भर्ती कर लिया गया।
  4. प्रमुख सरदारों की शक्ति का दमन-लॉर्ड डल्हौज़ी के आदेश से जॉन लारेंस ने पंजाब में प्रमुख सरदारों की शक्ति को समाप्त कर दिया। फलस्वरूप वे सरदार जो पहले धनी ज़मींदार थे और सरकार में ऊंचे पदों पर थे, अब साधारण लोगों के समान हो गए।
  5. पंजाब में अंग्रेज अफसरों की नियुक्ति-दूसरे ऐंग्लो-सिक्ख युद्ध के परिणामस्वरूप राज्य के उच्च पदों पर सिक्खों, हिन्दुओं या मुसलमानों के स्थान पर अंग्रेजों तथा यूरोपियनों को नियुक्त किया गया। उन्हें भारी वेतन तथा भत्ते भी दिए गए।
  6. उत्तरी-पश्चिमी सीमा को शक्तिशाली बनाना-पंजाब को ब्रिटिश साम्राज्य में सम्मिलित करने के बाद अंग्रेजों ने उत्तरी-पश्चिमी सीमा को शक्तिशाली बनाने के लिए सड़कों तथा छावनियों का निर्माण किया। सैनिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण किलों की मुरम्मत की गई। कई नए किले भी बनाए गए। उत्तरी-पश्चिमी कबीलों को नियंत्रित करने के लिए विशेष सैनिक दस्ते भी बनाए गए।
  7. पंजाब के राज्य प्रबन्ध की पुनर्व्यवस्था-पंजाब पर अंग्रेजों का अधिकार हो जाने के पश्चात् प्रशासन समिति (Board of Administration) की स्थापना की गई। इसका प्रधान हैनरी लारेंस था। पंजाब प्रांत के प्रबन्धकीय ढाँचे को पुनः संगठित किया गया। न्याय प्रणाली, पुलिस प्रबन्ध और भूमि कर प्रणाली में सुधार किए गए। डाक का समुचित प्रबन्ध किया गया।
  8. पंजाब की देशी रियासतों के प्रति नीति में परिवर्तन-दूसरे आंग्ल-सिक्ख युद्ध में पटियाला, जींद, नाभा, कपूरथला तथा फरीदकोट के राजाओं ने अंग्रेजों की सहायता की थी। बहावलपुर तथा मलेरकोटला के नवाबों ने भी अंग्रेज़ों का साथ दिया था। अतः अंग्रेजों ने प्रसन्न होकर इनमें से कई देशी शासको का पुरस्कार दिए। उन्होंने देशी रियासतों को ब्रिटिश साम्राज्य में सम्मिलित न करने का निर्णय भी किया।

प्रश्न 8.
अंग्रेजों ने पंजाब पर कब्जा कैसे किया?
उत्तर-
1839 ई० में महाराजा रणजीत सिंह की मृत्यु हो गई। इसके पश्चात् सिक्खों का नेतृत्व करने वाला कोई योग्य नेता न रहा। शासन की सारी शक्ति सेना के हाथ में आ गई। अंग्रेजों ने इस अवसर का लाभ उठाया और सिक्खों से दो युद्ध किये। दोनों युद्धों में सिक्ख सैनिक बड़ी वीरता से लड़े, परन्तु अपने अधिकारियों की गद्दारी के कारण वे पराजित हुए। 1849 ई० में दूसरे सिक्ख युद्ध की समाप्ति पर लॉर्ड डल्हौजी ने पूरे पंजाब को अंग्रेजी राज्य में मिला लिया।
अंग्रेज़ों की पंजाब विजय का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है

  1. पहला आंग्ल-सिक्ख युद्ध-अंग्रेज़ काफ़ी समय से पंजाब को अपने राज्य में मिलाने का प्रयास कर रहे थे। रणजीत सिंह की मृत्यु के पश्चात् अंग्रेज़ों को अपनी इच्छा पूरी करने का अवसर मिल गया। उन्होंने सतलुज के किनारे अपने किलों को मजबूत करना आरम्भ कर दिया। सिक्ख नेता अंग्रेज़ों की सैनिक तैयारियों को देखकर भड़क उठे। अतः 1845 ई० में सिक्ख सेना सतलुज को पार करके फिरोजपुर के निकट आ डटी। कुछ ही समय पश्चात् अंग्रेज़ों और सिक्खों में लड़ाई आरम्भ हो गई। इसी समय सिक्खों के मुख्य सेनापति तेज सिंह और वज़ीर लाल सिंह अंग्रेजों से मिल गये। उनके इस विश्वासघात के कारण मुदकी तथा फिरोजशाह के स्थान पर सिक्खों की हार हुई।
    सिक्खों ने साहस से काम लेते हुए 1846 ई० में सतलुज को पार करके लुधियाना के निकट अंग्रेज़ों पर धावा बोल दिया। यहाँ अंग्रेज़ बुरी तरह से पराजित हुए और उन्हें पीछे हटना पड़ा। परन्तु गुलाब सिंह के विश्वासघात के कारण अलीवाल और सभराओं के स्थान पर सिक्खों को एक बार फिर हार का मुँह देखना पड़ा। मार्च, 1846 ई० में गुलाब सिंह के प्रयत्नों से सिक्खों और अंग्रेजों के बीच एक सन्धि हो गई। सन्धि के अनुसार सिक्खों को अपना काफ़ी सारा प्रदेश और डेढ़ करोड़ रुपया अंग्रेजों को देना पड़ा। दिलीप सिंह के युवा होने तक पंजाब में शान्ति व्यवस्था बनाये रखने के लिए एक अंग्रेज़ी सेना रख दी गई।
  2. दूसरा आंग्ल-सिक्ख युद्ध और पंजाब का अंग्रेजी राज्य में विलय-1848 ई० में अंग्रेजों और सिक्खों में पुनः युद्ध छिड़ गया। अंग्रेजों ने मुलतान के लोकप्रिय गवर्नर दीवान मूलराज को ज़बरदस्ती हटा दिया था। यह बात वहाँ के नागरिक सहन न कर सके और उन्होंने अनेक अंग्रेज अफसरों को मार डाला। अत: लॉर्ड डल्हौजी ने सिक्खों के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी। इस युद्ध की महत्त्वपूर्ण लड़ाइयाँ रामनगर (22 नवम्बर, 1848 ई०), मुलतान (दिसम्बर, 1848 ई०) चिलियांवाला। (13 जनवरी, 1849 ई०) और गुजरात (फरवरी, 1849 ई०) में लड़ी गईं। रामनगर की लड़ाई में कोई निर्णय न हो सका। परन्तु मुलतान, चिलियांवाला और गुजरात के स्थान पर सिक्खों की हार हुई। सिक्खों ने 1849 ई० में पूरी तरह अपनी पराजय स्वीकार कर ली। इस विजय के पश्चात् अंग्रेजों ने पंजाब को अंग्रेजी राज्य में मिला लिया।

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(घ) मानचित्र संबंधी प्रश्न

  1. मुदकी, फिरोजपुर, बद्दोवाल, अलीवाल और सभराओं को पंजाब के मानचित्र में अंकित करो (पहला आंग्लो-सिक्ख युद्ध)
  2. पंजाब के मानचित्र में दूसरे आंग्लो-सिक्ख युद्ध की लड़ाइयों के स्थानों को प्रदर्शित करो।
    उत्तर-विद्यार्थी अध्यापक की सहायता से स्वयं करें।

अन्य परीक्षा शैली प्रश्न (OTHER EXAMINATION STYLE QUESTIONS)

वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

I. उत्तर एक शब्द अथवा एक लाइन में

प्रश्न 1.
प्रथम सिक्ख युद्ध की चार प्रमुख लड़ाइयां कहां-कहां लड़ी गईं?
उत्तर-
प्रथम सिक्ख युद्ध की चार लड़ाइयां मुदकी, फिरोज़शाह, अलीवाल तथा सभराओं में लड़ी गईं।

प्रश्न 2.
(i) प्रथम सिक्ख युद्ध किस सन्धि के परिणामस्वरूप समाप्त हुआ?
(ii) यह सन्धि कब हुई?
उत्तर-
(i) प्रथम सिक्ख युद्ध लाहौर की सन्धि के परिणामस्वरूप समाप्त हुआ।
(ii) यह सन्धि मार्च, 1846 ई० को हुई।

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प्रश्न 3.
द्वितीय सिक्ख युद्ध की चार प्रमुख घटनाएं कौन-कौन सी थीं?
उत्तर-
(i) रामनगर की लड़ाई
(ii) मुलतान की लड़ाई
(iii) चिलियांवाला की लड़ाई
(iv) गुजरात की लड़ाई।

प्रश्न 4.
पंजाब को अंग्रेजी राज्य में कब मिलाया गया?
उत्तर-
29 मार्च, 1849 ई० को।

प्रश्न 5.
पहला आंग्ल-सिक्ख युद्ध कब हुआ?
उत्तर-
1845-46 में।

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प्रश्न 6.
अंग्रेजों ने फिरोजपुर पर कब कब्जा किया?
उत्तर-
1835 ई० में।

प्रश्न 7.
अकबर खां के नेतृत्व में अफ़गान विद्रोहियों ने किन दो अंग्रेज सेनानायकों को मौत के घाट उतारा?
उत्तर-
बर्नज़ तथा मैकनाटन।

प्रश्न 8.
अंग्रेजों ने सिंध पर कब अधिकार किया?
उत्तर-
1843 ई० में।

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प्रश्न 9.
लार्ड हार्डिंग को भारत का गवर्नर जनरल कब नियुक्त किया गया?
उत्तर-
1844 ई० में।

प्रश्न 10.
लाल सिंह लाहौर राज्य का प्रधानमन्त्री कब बना?
उत्तर-
1845 ई० में।

प्रश्न 11.
प्रथम आंग्ल-सिक्ख युद्ध की किस लड़ाई में सिक्खों की जीत हुई?
उत्तर-
बद्दोवाल की लड़ाई में।

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प्रश्न 12.
बद्दोवाल की लड़ाई में सिक्ख सेना का नेतृत्व किसने किया?
उत्तर-
सरदार रणजोध सिंह मजीठिया ने।

प्रश्न 13.
लाहौर की पहली सन्धि कब हुई?
उत्तर-
9 मार्च, 1846 को।

प्रश्न 14.
लाहौर की दूसरी सन्धि कब हुई?
उत्तर-
11 मार्च, 1846 को।

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प्रश्न 15.
भैरोंवाल की सन्धि कब हुई?
उत्तर-
26 दिसम्बर, 1846 को।

प्रश्न 16.
दूसरा अंग्रेज़-सिक्ख युद्ध कब हुआ?
उत्तर-
1848-49 में।

प्रश्न 17.
महारानी जिंदां को देश निकाला देकर कहां भेजा गया?
उत्तर-
बनारस।

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प्रश्न 18.
लार्ड डल्हौज़ी भारत का गवर्नर जनरल कब बना?
उत्तर-
जनवरी 1848 में।

प्रश्न 19.
दीवान मूलराज कहां का नाज़िम था?
उत्तर-
मुलतान का।

प्रश्न 20.
राम नगर की लड़ाई ( 22 नवम्बर, 1848) में किस की हार हुई?
उत्तर-
अंग्रेजों की।

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प्रश्न 21.
दूसरे अंग्रेज़-सिक्ख युद्ध की अन्तिम तथा निर्णायक लड़ाई कहां लड़ी गई?
उत्तर-
गुजरात में।

प्रश्न 22.
पंजाब को अंग्रेजी राज्य में कब मिलाया गया?
उत्तर-
1849 ई० में।

प्रश्न 23.
पंजाब को अंग्रेजी राज्य में किसने मिलाया?
उत्तर-
लार्ड डल्हौज़ी ने।

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प्रश्न 24.
दूसरे अंग्रेज़-सिक्ख युद्ध के समय पंजाब का शासक कौन था?
उत्तर-
महाराजा दलीप सिंह।

प्रश्न 25.
दूसरे अंग्रेज़-सिक्ख युद्ध के परिणामस्वरूप कौन-सा बहुमूल्य हीरा अंग्रेजों के हाथ लगा?
उत्तर-
कोहिनूर।

प्रश्न 26.
पंजाब विजय के बाद अंग्रेज़ों ने वहां का प्रशासन किसे सौंपा?
उत्तर-
हैनरी लारेंस को।

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प्रश्न 27.
अंग्रेजों ने पंजाब से प्राप्त कोहिनूर हीरा किसके पास भेजा?
उत्तर-
इंग्लैंड की महारानी के पास।

II. रिक्त स्थानों की पूर्ति

  1. अकबर खां के नेतृत्व में अफ़गान विद्रोहियों ने …………. और ……………. अंग्रेज़ सेनानायकों को मौत के घाट उतार दिया।
  2. अंग्रेजों ने ………. ई० में सिंध पर अधिकार कर लिया।
  3. ………….. ई० में लाल सिंह लाहौर राज्य का प्रधानमंत्री बना।
  4. बद्धोवाल की लड़ाई में सिक्खों का नेतृत्व ……… ने किया।
  5. ………. ई० से ……….. ई० तक दूसरा अंग्रेज़ सिक्ख युद्ध हुआ।
  6. दूसरे अंग्रेज़-सिक्ख युद्ध के समय पंजाब का शासक …………. था।
  7. दूसरे अंग्रेज़-सिक्ख युद्ध के परिणामस्वरूप …………. हीरा अंग्रेजों को मिला।

उत्तर-

  1. बर्नज़, मैकनाटन,
  2. 1843,
  3. 1845,
  4. सरदार रणजोध सिंह मजीठिया,
  5. 1848; 1849,
  6. महाराजा दलीप सिंह,
  7. कोहिनूर।

III. बहुविकल्पीय

प्रश्न 1.
महाराजा रणजीत सिंह का उत्तराधिकारी बना-
(A) मोहर सिंह
(B) चेत सिंह
(C) खड़क सिंह
(D) साहिब सिंह।
उत्तर-
(C) खड़क सिंह

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प्रश्न 2.
मुदकी की लड़ाई में किस सिक्ख सरदार ने गद्दारी की?
(A) चेत सिंह
(B) लाल सिंह ने
(C) साहिब सिंह
(D) मोहर सिंह।
उत्तर-
(B) लाल सिंह ने

प्रश्न 3.
सभराओं की लड़ाई हुई
(A) 10 फरवरी, 1846 ई०
(B) 10 फरवरी, 1849 ई०
(C) 20 फरवरी, 1846 ई०
(D) 10 फरवरी, 1830 ई०
उत्तर-
(A) 10 फरवरी, 1846 ई०

प्रश्न 4.
पंजाब को 1849 ई० में अंग्रेजी साम्राज्य में शामिल करने वाला भारत का गवर्नर जनरल था
(A) लॉर्ड कर्जन
(B) लॉर्ड डल्हौज़ी
(C) लॉर्ड वैलजली
(D) लॉर्ड माउंटबेटन।
उत्तर-
(B) लॉर्ड डल्हौज़ी

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प्रश्न 5.
प्रथम अंग्रेज़-सिक्ख युद्ध के परिणामस्वरूप लाहौर की संधि हुई
(A) मार्च, 1849 ई० में
(B) मार्च, 1843 ई० में
(C) मार्च, 1846 ई० में
(D) मार्च, 1835 ई० में।
उत्तर-
(C) मार्च, 1846 ई० में

प्रश्न 6.
पहला आंग्ल-सिक्ख युद्ध हुआ
(A) 1843-44 ई० में
(B) 1847-48 ई० में
(C) 1830-31 ई० में
(D) 1845-46 ई० में।
उत्तर-
(D) 1845-46 ई० में।

IV. सत्य-असत्य कथन

प्रश्न-सत्य/सही कथनों पर (✓) तथा असत्य/ग़लत कथनों पर (✗) का निशान लगाएं

  1. 1849 में पंजाब को लार्ड हेस्टिंग्ज़ ने अंग्रेजी साम्राज्य में मिलाया।
  2. अंग्रेजों को पंजाब विजय के लिए सिखों के विरोध का सामना नहीं करना पड़ा।
  3. कौंसिल ऑफ़ रीजैंसी लाहौर राज्य का शासन चलाने के लिए बनाई गई थी।
  4. मुदकी की लड़ाई में सिख सरदार लाल सिंह ने सिखों से गद्दारी की।
  5. दूसरे आंग्ल-सिख युद्ध में सिखों ने पंजाब को अंग्रेजों से मुक्त करवा लिया।

उत्तर-

  1. (✗),
  2. (✗),
  3. (✓),
  4. (✓),
  5. (✗)

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V. उचित मिलान

  1. सरदार रणजोध सिंह मजीठिया गुजरात
  2. दीवान मूलराज दूसरे आंग्ल-सिक्ख युद्ध के समय पंजाब का शासक
  3. दूसरे आंग्ल-सिक्ख युद्ध की अंतिम तथा निर्णायक लड़ाई – बद्दोवाल की लड़ाई
  4. महाराजा दलीप सिंह – मुलतान।

उत्तर-

  1. सरदार रणजोध सिंह मजीठिया-बद्दोवाल की लड़ाई,
  2. दीवान मूलराज-मुलतान,
  3. दूसरे आंग्लसिक्ख युद्ध की अंतिम तथा निर्णायक लड़ाई-गुजरात,
  4. महाराजा दलीप सिंह-दूसरे आंग्ल-सिक्ख युद्ध के समय पंजाब का शासक।

छोटे उत्तर वाले प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
प्रथम सिक्ख युद्ध का वर्णन करें।
उत्तर-
रणजीत सिंह की मृत्यु के पश्चात् अंग्रेजों ने अपनी सैनिक तैयारियों की गति तीव्र कर दी। इस बात पर सिक्खों का भड़कना स्वाभाविक था। 1845 ई० में फिरोज़पुर के निकट सिक्खों और अंग्रेजों में लड़ाई आरम्भ हो गई। सिक्खों के मुख्य सेनापति तेज सिंह और वज़ीर लाल सिंह के विश्वासघात के कारण मुदकी तथा फिरोज़शाह नामक स्थान पर सिक्खों की हार हुई। 1846 ई० में सिक्खों ने लुधियाना के निकट अंग्रेजों को बुरी तरह पराजित किया। परन्तु गुलाब सिंह के विश्वासघात के कारण अलीवाल और सभराओं नामक स्थान पर सिक्खों को एक बार फिर हार का मुंह देखना पड़ा। मार्च, 1846 ई० में गुलाब सिंह के प्रयत्नों से सिक्खों और अंग्रेजों के बीच एक सन्धि हो गई। सन्धि के अनुसार सिक्खों को अपना बहुत-सा प्रदेश और डेढ़ करोड़ रुपये अंग्रेजों को देने पड़े। दिलीप सिंह के युवा होने तक पंजाब में शान्ति व्यवस्था बनाये रखने के लिए एक अंग्रेजी सेना रख दी गई।

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प्रश्न 2.
द्वितीय सिक्ख युद्ध पर नोट लिखें।
उत्तर-
1848 ई० में अंग्रेज़ों और सिक्खों में पुनः युद्ध छिड़ गया। अंग्रेजों ने मुलतान के लोकप्रिय गवर्नर दीवान मूलराज को ज़बरदस्ती हटा दिया था। यह बात वहां के नागरिक सहन न कर सके और उन्होंने अनेक अंग्रेज़ अफसरों को मार डाला। अत: लॉर्ड डल्हौजी ने सिक्खों के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी। इस युद्ध की महत्त्वपूर्ण लड़ाइयां रामनगर (22 नवम्बर, 1848 ई०), मुलतान (दिसम्बर, 1848 ई०), चिलियांवाला (13 जनवरी, 1849 ई०) और गुजरात (पंजाब) (फरवरी, 1849 ई०) में लड़ी गईं। रामनगर की लड़ाई में कोई निर्णय न हो सका। परन्तु मुलतान, चिलियांवाला और गुजरात (पंजाब) नामक स्थानों पर सिक्खों की हार हुई। सिक्खों ने 1849 ई० में पूरी तरह अपनी पराजय स्वीकार कर ली। इस विजय के पश्चात् अंग्रेजों ने पंजाब को अंग्रेज़ी राज्य में मिला लिया।

प्रश्न 3.
पंजाब विलय पर एक टिप्पणी लिखें।
उत्तर-
1839 ई० में महाराजा रणजीत सिंह की मृत्यु हो गई। इसके पश्चात् सिक्खों का नेतृत्व करने वाला कोई योग्य नेता न रहा। शासन की सारी शक्ति सेना के हाथ में आ गई। अंग्रेजों ने इस अवसर का लाभ उठाया और सिक्ख सेना के प्रमुख अधिकारियों को लालच देकर अपने साथ मिला लिया। इसके साथ-साथ उन्होंने पंजाब के आस-पास के इलाकों में अपनी सेनाओं की संख्या बढ़ानी आरम्भ कर दी और सिक्खों के विरुद्ध युद्ध की तैयारी करने लगे। उन्होंने सिक्खों से दो युद्ध किये। दोनों युद्धों में सिक्ख सैनिक बड़ी वीरता से लड़े। परन्तु अपने अधिकारियों की गद्दारी के कारण वे पराजित हुए। प्रथम युद्ध के बाद अंग्रेजों ने पंजाब का केवल कुछ भाग अंग्रेज़ी राज्य में मिलाया और वहां सिक्ख सेना के स्थान पर अंग्रेज़ सैनिक रख दिये गये। परन्तु 1849 ई० में दूसरे सिक्ख युद्ध की समाप्ति पर लॉर्ड डल्हौजी ने पूरे पंजाब को अंग्रेजी राज्य में मिला लिया।

प्रश्न 4.
प्रथम ऐंग्लो-सिक्ख युद्ध के चार कारण लिखें।
उत्तर-

  1. खालसा सेना की शक्ति इतनी बढ़ गई थी कि रानी जिन्दां और लाल सिंह इस सेना का ध्यान अंग्रेज़ों की ओर आकर्षित करना चाहते थे।
  2. लाल सिंह और रानी जिन्दां ने खालसा सेना को यह समझाने का प्रयास किया कि सिन्ध विलय के पश्चात् अंग्रेज़ पंजाब को अपने राज्य में मिलाना चाहते हैं।
  3. अंग्रेजों ने सतलुज के पार 35000 से भी अधिक सैनिक एकत्रित कर लिए थे।
  4. अंग्रेजों ने सिन्ध में भी अपनी सेना में वृद्धि की और सिन्धु नदी पर एक पुल बनाया। इन उत्तेजित कार्यों से प्रभावित होकर सिक्ख सेना ने सतलुज नदी पार की और प्रथम ऐंग्लो-सिक्ख युद्ध आरम्भ किया।

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प्रश्न 5.
प्रथम ऐंग्लो-सिक्ख युद्ध के क्या परिणाम निकले?
उत्तर-

  1. दोआब बिस्त जालन्धर पर अंग्रेजों का अधिकार हो गया।
  2. दिलीप सिंह को महाराजा बनाया गया और एक कौंसिल स्थापित की गई जिसमें आठ सरदार थे।
  3. सर हैनरी लारेंस को लाहौर का रैजीडेंट नियुक्त कर दिया गया।
  4. सिक्खों को 1 करोड़ रुपया दण्ड के रूप में देना था, लेकिन उनके कोष में केवल 50 लाख रुपया था। बाकी रुपया उन्होंने जम्मू और कश्मीर का प्रान्त गुलाब सिंह को बेच कर पूरा किया।
  5. लाहौर में एक अंग्रेज़ी सेना रखने की व्यवस्था की गई। इस सेना के 22 लाख रुपया वार्षिक खर्चे के लिए खालसा दरबार उत्तरदायी था।
  6. सिक्ख सेना पहले से घटा दी गई। अब उसकी सेना में केवल 20 हज़ार पैदल सैनिक रह गये थे।

प्रश्न 6.
द्वितीय सिक्ख युद्ध के चार कारण लिखो।
उत्तर-

  1. लाहौर और भैरोंवाल की सन्धि ने सिक्खों के सम्मान पर एक करारी चोट की। वे अंग्रेजों से इस अपमान का बदला लेना चाहते थे।
  2. 1847 और 1848 ई० में ऐसे सुधार किए गए जो सिक्खों के हितों के विरुद्ध थे। सिक्ख इस बात से बड़े उत्तेजित हुए।
  3. जिन सिक्ख सैनिकों को सेना से निकाल दिया गया वे अपने वेतन तथा अन्य भत्तों से वंचित हो गए थे। अतः वे भी अंग्रेजों से बदला लेने का अवसर खोज रहे थे।
  4. युद्ध का तात्कालिक कारण मुलतान के गवर्नर मूलराज का विद्रोह था।

प्रश्न 7.
द्वितीय सिक्ख युद्ध के क्या परिणाम निकले?
उत्तर-
इस युद्ध के निम्नलिखित परिणाम निकले

  1. 29 मार्च, 1849 ई० को पंजाब अंग्रेजी साम्राज्य में मिला लिया गया और इसके शासन प्रबन्ध के लिए तीन अधिकारियों का एक बोर्ड स्थापित किया गया।
  2. दिलीप सिंह की पचास हज़ार पौंड वार्षिक पेंशन नियत कर दी गई और उसे इंग्लैंड भेज दिया गया।
  3. मूल राज पर मुकद्दमा चला कर उसे काला पानी भिजवा दिया गया।

सच तो यह है कि द्वितीय आंग्ल-सिक्ख युद्ध के परिणामस्वरूप अंग्रेजों का सबसे प्रबल शत्रु पंजाब उनके साम्राज्य का भाग बन गया। अब अंग्रेज़ नि:संकोच अपनी नीतियों को कार्यान्वित कर सकते थे और भारत के लोगों को दासता के चंगुल में जकड़ सकते थे।

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प्रश्न 8.
पंजाब में सिक्ख राज्य के पतन के चार कारण लिखो।
उत्तर-

  1. महाराजा रणजीत सिंह का शासन स्वेच्छाचारिता पर आधारित था। इस शासन को चलाने के लिए महाराजा रणजीत सिंह जैसे योग्य व्यक्ति की ही आवश्यकता थी। अतः महाराजा रणजीत सिंह की मृत्यु के पश्चात् इस राज्य को कोई भी न सम्भाल सका।
  2. महाराजा रणजीत सिंह की दुर्बल नीति के परिणामस्वरूप अंग्रेजों का साहस बढ़ता चला गया। धीरे-धीरे अंग्रेज़ पंजाब की स्थिति को पूरी तरह समझ गए और अन्ततः उन्होंने पंजाब पर अधिकार कर लिया।
  3. महाराजा रणजीत सिंह का शासन शक्तिशाली सेना पर आधारित था। उसकी मृत्यु के पश्चात् यह सेना राज्य की वास्तविक शक्ति बन बैठी। अतः सिक्ख सरदारों ने इस सेना को समाप्त करने के अनेक प्रयास किए।
  4. पहले तथा दूसरे सिक्ख युद्ध में ऐसे अनेक अवसर आये जब अंग्रेज़ पराजित होने वाले थे, परन्तु अपने ही साथियों के कारण सिक्खों को पराजय का मुंह देखना पड़ा।

अंग्रेजों और सिक्खों के युद्ध और पंजाब पर अंग्रेजों का आधिपत्य PSEB 10th Class History Notes

  1. महाराजा रणजीत सिंह के उत्तराधिकारी-महाराजा रणजीत सिंह के उत्तराधिकारी खड़क सिंह, नौनिहाल सिंह, रानी जिंदां कौर, शेर सिंह आदि थे। ये सभी शासक निर्बल एवं अयोग्य सिद्ध हुए।
  2. ऐंग्लो-सिक्ख युद्ध-अंग्रेजों ने सिक्ख (लाहौर) राज्य की कमजोरी का लाभ उठाते हुए सिक्खों से तो युद्ध किए और अंततः पंजाब को अंग्रेजी साम्राज्य में मिला लिया।
  3. प्रथम ऐंग्लो-सिक्ख युद्ध-यह युद्ध 1845-46 ई० में हुआ। इसमें सिक्खों की हार हुई और अंग्रेजों ने उनसे जालन्धर दोआब का क्षेत्र छीन लिया। अंग्रेजों ने कश्मीर का प्रदेश अपने एक मित्र गुलाब सिंह को 10 लाख पौंड के बदले दे दिया।
  4. दूसरा ऐंग्लो-सिक्ख युद्ध-दूसरा ऐंग्लो-सिक्ख युद्ध 1848-1849 ई० में हुआ। इस युद्ध में भी सिक्ख पराजित हुए और पंजाब को अंग्रेज़ी राज्य (1849 ई०) में मिला लिया गया।
  5. महाराजा दलीप सिंह-महाराजा दलीप सिंह लाहौर राज्य का अंतिम सिक्ख शासक था। दूसरे ऐंग्लो-सिक्ख युद्ध के पश्चात् उसे राजगद्दी से उतार दिया गया।
  6. महारानी जिंदां-महारानी जिंदां महाराजा दलीप सिंह की संरक्षिका थी। भैरोंवाल की सन्धि (16 दिसम्बर, 1846) के अनुसार उससे सभी राजनीतिक अधिकार छीन लिए गए। इसके पश्चात् अंग्रेजों ने महारानी से बहुत बुरा व्यवहार किया।
  7. लाल सिंह तथा तेज सिंह-लाल सिंह महारानी जिंदां का प्रधानमंत्री था। तेज सिंह सिक्ख सेना का प्रधान सेनापति था। इन दोनों के विश्वासघात के कारण ही सिक्खों को अंग्रेजों के विरुद्ध पराजय का मुंह देखना पड़ा।

योग (Yoga) Game Rules – PSEB 10th Class Physical Education

Punjab State Board PSEB 10th Class Physical Education Book Solutions योग (Yoga) Game Rules.

योग (Yoga) Game Rules – PSEB 10th Class Physical Education

प्रश्न
योग का इतिहास और नियम लिखें।
उत्तर-
योग का इतिहास
(History of Yoga)
‘योग’ का इतिहास वास्तव में बहुत पुराना है। योग के उद्भव के बारे में दृढ़तापूर्वक व स्पष्टता से कुछ भी नहीं कहा जा सकता। केवल यह कहा जा सकता है कि योग का उद्भव भारतवर्ष में हुआ था। उपलब्ध तथ्य यह दर्शाते हैं कि योग सिन्धु घाटी सभ्यता से सम्बन्धित है। उस समय व्यक्ति योग किया करते थे। गौण स्रोतों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि योग का उद्भव भारतवर्ष में लगभग 3000 ई० पू० हुआ था। 147 ई० पू० पतंजलि (Patanjali) के द्वारा योग पर प्रथम पुस्तक लिखी गई थी। वास्तव में योग संस्कृत भाषा के ‘युज्’ शब्द से लिया गया है। जिसका अभिप्राय है ‘जोड़’ या ‘मेल’। आजकल योग पूरे विश्व में प्रसिद्ध हो चुका है। आधुनिक युग को तनाव, दबाव व चिंता का युग कहा जा सकता है। इसलिए अधिकतर व्यक्ति खुशी से भरपूर व फलदायक जीवन नहीं गुजार रहे हैं। पश्चिमी देशों में योग जीवन का एक भाग बन चुका है। मानव जीवन में योग बहुत महत्त्वपूर्ण है।

यौगिक व्यायाम के नये नियम
(New Rules of Yogic Exercise)

  1. यौगिक व्यायाम करने का स्थान समतल होना चाहिए। ज़मीन पर दरी या कम्बल डाल कर यौगिक व्यायाम करने चाहिए।
  2. यौगिक व्यायाम करने का स्थान एकान्त, हवादार और सफाई वाला होना चाहिए।
  3. यौगिक व्यायाम करते हुए श्वास और मन को शान्त रखना चाहिए।
  4. भोजन करने के बाद कम-से-कम चार घण्टे के पश्चात् यौगिक आसन करने चाहिए।
  5. यौगिक आसन धीरे-धीरे करने चाहिए और अभ्यास को धीरे-धीरे बढ़ाना चाहिए।
  6. अभ्यास प्रतिदिन किसी योग्य प्रशिक्षक की देख-रेख में करना चाहिए।
  7. दो आसनों के मध्य में थोड़ा विश्राम शव आसन द्वारा कर लेना चाहिए।
  8. शरीर पर कम-से-कम कपड़े पहनने चाहिए, लंगोट, निक्कर, बनियान आदि, और सन्तुलित भोजन करना चाहिए।

बोर्ड द्वारा निर्धारित पाठ्यक्रम में निम्नलिखित यौगिक व्यायाम सम्मिलित किए गए हैं जिनके दैनिक अभ्यास द्वारा एक साधारण व्यक्ति का स्वास्थ्य बना रहता है—

  1. ताड़ासन
  2. अर्द्धचन्द्रासन
  3. भुजंगासन
  4. शलभासन
  5. धनुरासन
  6. अर्द्धमत्स्येन्द्रासन
  7. पश्चिमोत्तानासन
  8. पद्मासन
  9. स्वास्तिकासन
  10. सर्वांगासन
  11. मत्स्यासन
  12. हलासन
  13. योग मुद्रा
  14. मयूरासन
  15. उड्डियान
  16. प्राणायाम : अनुलोम विलोम
  17. सूर्य नमस्कार
  18. शवासन

योग (Yoga) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education

प्रश्न
ताड़ासन और भुजंगासन की विधि बताकर इनके लाभ लिखें।
उत्तर-
ताड़ासन (Tarasan) इस आसन में खड़े होने की स्थिति में धड़ को ऊपर की ओर खींचा जाता है।
ताड़ासन की स्थिति (Position of Tarasan)—इस आसन में स्थिति ताड़ के वृक्ष जैसी होती है।
ताड़ासन की विधि (Technique of Tarasan)-खड़े होकर पांव की एड़ियों और अंगुलियों को जोड़ कर भुजाओं को ऊपर सीधा करें। हाथों की अंगुलियां एक-दूसरे हाथ में फंसा लें। हथेलियां ऊपर और नज़र सामने हो। अपना पूरा सांस अन्दर की ओर खींचें। एड़ियों को ऊपर उठा कर शरीर का सारा भार पंजों पर ही डालें। शरीर को ऊपर की ओर खींचे। कुछ समय के बाद सांस छोड़ते हुए शरीर को नीचे लाएं। ऐसा दस पन्द्रह बार करो।
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ताड़ासन ताड़ासन के लाभ (Advantages of Tarasan)-

  1. इससे शरीर का मोटापा दूर होता है।
  2. इससे कब्ज दूर होती है।
  3. इससे आंतों के रोग नहीं लगते।
  4. प्रतिदिन ठण्डा पानी पी कर इस आसन को करने से पेट साफ रहता है।

भुजंगासन (Bhujangasana)-इसमें चित्त लेट कर धड़ को ढीला किया जाता है।
भुजंगासन की विधि (Technique of Bhujangasana)-इसे सर्पासन भी कहते हैं। इसमें शरीर की स्थिति सर्प के आकार जैसी होती है। सासन करने के लिए भूमि पर पेट के बल लेटें। दोनों हाथ कन्धों के बराबर रखो। धीरे-धीरे टांगों को अकड़ाते हुए हथेलियों के बल छाती को इतना ऊपर उठाएं कि भुजाएं बिल्कुल सीधी हो जाएं। पंजों को अन्दर की ओर करो और सिर को धीरे-धीरे पीछे की ओर लटकाएं। धीरे-धीरे पहली स्थिति में लौट आएं। इस आसन को तीन से पांच बार करें।
लाभ (Advantages)—

  1. भुजंगासन से पाचन शक्ति बढ़ती है।
  2. जिगर और तिल्ली के रोगों से छुटकारा मिलता है।
  3. रीढ़ की हड्डी और मांसपेशियां मज़बूत बनती हैं।
  4. कब्ज दूर होती है।
  5. बढ़ा हुआ पेट अन्दर को धंसता है।
  6. फेफड़े शक्तिशाली होते हैं।
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    भुजंगासन

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प्रश्न
धनुरासन, अर्द्धमत्स्येन्द्रासन और पश्चिमोत्तानासन की विधि और लाभ लिखें।
उत्तर-
धनुरासन (Dhanurasana)-इसमें चित्त लेट कर और टांगों को ऊपर खींच कर पांवों को हाथों से पकड़ा जाता है।
धनुरासन की विधि (Technique of Dhanurasana)-इससे शरीर की स्थिति कमान की तरह होती है। धनुरासन करने के लिए पेट के बल भूमि पर लेट जाएं। घुटनों को पीछे की ओर मोड़ कर रखें। टखनों के समीप पांवों को हाथ से पकड़ें। लम्बी सांस
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धनुरासन
लेकर छाती को जितना हो सके ऊपर की ओर उठाएं। अब पांव अकड़ायें जिससे शरीर का आकार कमान की तरह बन जाए। जितने समय तक सम्भव हो ऊपर वाली स्थिति में रहें। सांस छोड़ते समय शरीर को ढीला रखते हुए पहले वाली स्थिति में आ जाएं। इस आसन को तीन-चार बार करें। भुजंगासन और धनुरासन दोनों ही आसन बारी-बारी करने चाहिए।
लाभ (Advantages)—

  1. इस आसन से शरीर का मोटापा कम होता है।
  2. इससे पाचन शक्ति बढ़ती है।
  3. गठिया और मूत्र रोगों से छुटकारा मिलता है।
  4. मेहदा तथा आंतें अधिक ताकतवर बनती हैं।
  5. रीढ़ की हड्डी तथा मांसपेशियां मज़बूत और लचकीली बनती हैं।

अर्द्धमत्स्येन्द्रासन (Ardhmatseyandrasana)-इसमें बैठने की स्थिति में धड़ को पाश्र्यों की ओर धंसा जाता है।
विधि-ज़मीन पर बैठकर बाएं पांव की एड़ी को दाईं ओर नितम्ब के पास ले जाओ। जिससे एड़ी का भाग गुदा के निकट लगे। दायें पांव को ज़मीन पर बायें पांव के घुटने के निकट रखो फिर वक्षस्थल के निकट बाईं भुजा को लाएं, दायें पांव के घुटने के नीचे अपनी जंघा पर रखें, पीछे की ओर से दायें हाथ द्वारा कमर को लपेट कर नाभि को स्पर्श करने का यत्न करें। फिर पांव बदल कर सारी क्रिया को दोहराएँ।
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अर्द्धमत्स्येन्द्रासन
लाभ—

  1. इस आसन द्वारा मांसपेशियां और जोड़ अधिक लचीले रहते हैं और शरीर में शक्ति आती है।
  2. यह आसन वायु विकार और मधुमेह दूर करता है तथा आन्त उतरने (Hernia) में लाभदायक है।
  3. यह आसन मूत्राशय, अमाशय, प्लीहादि के रोगों में लाभदायक है।
  4. इस आसन के करने से मोटापा दूर रहता है।
  5. छोटी तथा बड़ी आन्तों के रोगों के लिए बहुत उपयोगी है।।

पश्चिमोत्तानासन (Paschimotanasana)—इसमें पांवों के अंगूठों को अंगुलियों से पकड़ कर इस प्रकार बैठा जाता है कि धड़ एक ओर ज़ोर से चला जाए।
पश्चिमोत्तानासन की स्थिति (Position of Paschimotanasana)-इस आसन में सारे शरीर को फैला कर मोड़ा जाता है।
पश्चिमोत्तानासन की विधि (Technique of Paschimotansana)—दोनों टांगें आगे की ओर फैला कर भूमि पर बैठ जाएं। दोनों हाथों से पांवों के अंगूठे पकड़ कर धीरे-धीरे सांस छोड़ते हुए घुटनों को छूने की कोशिश करो। फिर धीरे-धीरे सांस लेते हुए सिर को ऊपर उठाएं और पहले वाली स्थिति में आ जाएं। यह आसन हर रोज़ 10-15 बार करना चाहिए।
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पश्चिमोत्तानासन

लाभ (Advantages)—

  1. इस आसन से जंघाओं को शक्ति मिलती है।
  2. नाड़ियों की सफाई होती है।
  3. पेट के अनेक प्रकार के रोगों से छुटकारा मिलता है।
  4. शरीर की बढ़ी हुई चर्बी कम होती है।
  5. पेट की गैस समाप्त होती है।

प्रश्न
पद्मासन, मयूरासन, सर्वांगासन और मत्स्यासन की विधि और लाभ बताएं।
उत्तर-
1. पद्मासन (Padamasana)—इसमें टांगों की चौंकड़ी लगा कर बैठा जाता है।
पद्मासन की विधि (Technique of Padamasana)-चौकड़ी मार कर बैठने के बाद दायां पांव बाईं जांघ पर इस तरह रखें कि दायें पांव की एड़ी बाईं जांघ पर पेड्र हड्डी को छुए। इसके पश्चात् बायें पांव को उठा कर उसी प्रकार दायें पांव की जांघ पर रख लें। रीढ़ की हड्डी बिल्कुल सीधी रहनी चाहिए। बाजुओं को तान कर हाथों को घुटनों पर रखो। कुछ दिनों के अभ्यास द्वारा इस आसन को बहुत ही आसानी से किया जा सकता है।
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पद्मासन
लाभ (Advantages)—

  1. इस आसन में पाचन शक्ति बढ़ती है।
  2. यह आसन मन की एकाग्रता के लिए सर्वोत्तम है।
  3. कमर दर्द दूर होता है।
  4. दिल के तथा पेट के रोग नहीं लगते।
  5. मूत्र के रोगों को दूर करता है।

2. मयूरासन (Mayurasana)
विधि (Technique)—पेट के बल ज़मीन पर लेट कर दोनों पांवों के पंजों को मिलाओ। दोनों कहनियों को आपस में मिला कर ज़मीन पर ले जाओ। सम्पूर्ण शरीर का भार कुहनियों पर दे कर घुटनों और पैरों को जमीन से उठाए रखो।
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मयूरासन

लाभ (Advantages)—

  1. यह आसन फेफड़ों की बीमारी दूर करता है। चेहरे को लाली प्रदान करता है।
  2. पेट की सभी बीमारियां इससे दूर होती हैं और बांहों तथा हाथों को बलवान बनाता है।
  3. इस आसन से आंखों की नज़र पास की व दूर की ठीक रहती है।
  4. इस आसन से मधुमेह रोग नहीं होता यदि हो जाए तो दूर हो जाता है।
  5. यह आसन रक्त संचार को नियमित करता है।

3. सर्वांगासन (Sarvangasana)—इसमें कन्धों पर खड़ा हुआ जाता है।
सर्वांगासन की विधि (Technique of Sarvangasana)-सर्वांगासन में शरीर की स्थिति अर्द्ध हल आसन की भान्ति होती है। इस आसन के लिए शरीर को सीधा करके पीठ के बल ज़मीन पर लेट जाएं। हाथों को जंघाओं के बराबर रखें। दोनों पांवों को एक बार उठा कर हथेलियों द्वारा पीठ को सहारा देकर कुहनियों को ज़मीन पर टिकाएँ। सारे
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सर्वांगासन
शरीर को सीधा रखें। शरीर का भार कन्धों और गर्दन पर रहे। ठोडी कण्ठकूप से लगी रहे। कुछ समय इस स्थिति में रहने के पश्चात् धीरे-धीरे पहली स्थिति में आएं। आरम्भ में आसन का समय बढ़ा कर 5 से 7 मिनट तक किया जा सकता है। जो व्यक्ति किसी कारण शीर्षासन नहीं कर सकते उन्हें सर्वांगासन करना चाहिए।
लाभ (Advantages)—

  1. इस आसन से कब्ज दूर होती है, भूख खूब लगती है।
  2. बाहर को बढ़ा हुआ पेट अन्दर धंसता है।
  3. शरीर के सभी अंगों में चुस्ती आती है।
  4. पेट की गैस नष्ट होती है।
  5. रक्त का संचार तेज़ और शुद्ध होता है।
  6. बवासीर के रोग से छुटकारा मिलता है।

4. मत्स्यासन (Matsyasana)-इसमें पद्मासन में बैठकर Supine लेते हुए और पीछे की ओर arch बनाते हैं।
विधि (Technique)—पद्मासन लगा कर सिर को इतना पीछे ले जाओ जिससे सिर की चोटी का भाग ज़मीन पर लग जाए और पीठ का भाग ज़मीन से ऊपर उठा हो। दोनों हाथों से दोनों पैरों के अंगूठे पकड़ें।
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मत्स्यासन
लाभ (Advantages)—

  1. वह आसन चेहरे को आकर्षक बनाता है। चर्म रोग को दूर करता है।
  2. यह आसन टांसिल, मधुमेह, घुटनों तथा कमर दर्द के लिए लाभदायक है। शुद्ध रक्त का निर्माण तथा संचार करता है।
  3. इस आसन द्वारा मेरूदण्ड में लचक आती है, कब्ज दूर होती है, भूख बढ़ती है, पेट की गैस को नष्ट करके भोजन पचाता है।
  4. यह आसन फेफड़ों के लिए लाभदायक है, श्वास सम्बन्धी रोग जैसे खांसी, दमा, श्वास नली की बीमारी आदि दूर करता है। नेत्र दोषों को दूर करता है।
  5. यह आसन टांगों और भुजाओं की शक्ति को बढ़ाता है और मानसिक दुर्बलता को दूर करता है।

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प्रश्न
हलासन और शवासन की विधि और लाभ बताएं।
उत्तर-
हलासन (Halasana)—इसमें Supine लेते हुए, टांगें उठा कर और सिर से परे रखी जाती हैं।
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हलासन
विधि (Technique)-दोनों टांगों को ऊपर उठाएं, सिर को पीछे रखें और दोनों पांवों को सिर के पीछे ज़मीन पर रखें। पैरों के अंगूठे जमीन को छू लें। यह स्थिति जब तक हो सके रखें। इसके पश्चात् अपनी टांगें पहले वाले स्थान पर लाएं जहां से आरम्भ किया था।
लाभ (Advantages)—

  1. हल आसन औरतों और मर्दो के लिए हर आयु में लाभदायक है।
  2. यह आसन रक्त के दबाव अधिक और कम के लिए भी फायदेमंद है। जिस व्यक्ति को दिल की बीमारी हो उसके लिए भी लाभदायक है।
  3. रक्त का दौरा नियमित हो जाता है।
  4. इस आसन को करने से व्यक्ति की वसा कम हो जाती है और कमर व पेट पतले हो जाते हैं।
  5. रीढ़ की हड्डी लचकदार हो जाती है।

शवासन (Shavasana)-चित्त लेट कर मीटर को ढीला छोड़ दें।
शवासन की विधि (Technique of Shavasana)-शवासन में पीठ के बल सीधा लेट कर शरीर को पूरी तरह ढीला छोड़ा जाता है। शवासन करने के लिए जमीन पर पीठ के बल लेट जाओ और शरीर के अंगों को ढीला छोड़ दें। धीरे-धीरे लम्बे सांस लो। बिल्कुल चित्त लेट कर सारे शरीर के अंगों को ढीला छोड़ दो। दोनों पांवों के बीच एक डेढ़ फुट की दूरी होनी चाहिए। हाथों की हथेलियों को आकाश की ओर करके शरीर से दूर रखो। आंखें बन्द कर अन्तर्ध्यान हो कर सोचो कि शरीर ढीला हो रहा है। अनुभव करो कि शरीर विश्राम की स्थिति में है। यह आसन 3 से 5 मिनट तक करना चाहिए। इस आसन का अभ्यास प्रत्येक आसन के शुरू या अन्त में करना ज़रूरी है।
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शवासन
महत्त्व (Importance)—

  1. शवासन से उच्च रक्त चाप और मानसिक तनाव से छुटकारा मिलता है।
  2. यह दिल और दिमाग को ताज़ा करता है।
  3. इस आसन द्वारा शरीर की थकावट दूर होती है।

योग मुद्रा (Yog Mudra)—इसमें व्यक्ति पद्मासन में बैठता है, धड़ को झुकाता है और भूमि पर सिर को विश्राम देता है।
मयूरासन (Mayurasana)-इसमें शरीर को क्षैतिज रूप में कुहनियों पर सन्तुलित किया जाता है। हथेलियां भूमि पर टिकाई होती हैं।
उड्डियान (Uddiyan)-पांवों को अलग-अलग करके खड़ा होकर धड़ को आगे की ओर झुकाएं। हाथों को जांघों पर रखें। सांस बाहर निकालें और पसलियों के नीचे अन्दर को सांस खींचने की नकल करें।
प्राणायाम : अनुलोम विलोम (Pranayam : Anulom Vilom)-बैठकर निश्चित अवधि के लिए बारी-बारी सांस को अन्दर खींचें, ठोडी की सहायता से सांस रोकें और सांस बाहर निकालें।
लाभ (Advantages—प्राणायाम आसन द्वारा रक्त, नाड़ियों और मन की शुद्धि होती है।
सूर्य नमस्कार (Surya Namaskar)—सूर्य नमस्कार के 16 अंग हैं परन्तु 16 अंगों वाला सूर्य सम्पूर्ण सृष्टि के लय होने के समय प्रकट होता है। साधारणतया इसके 12 अंगों का ही अभ्यास किया जाता है।
लाभ (Advantages)—यह श्रेष्ठ यौगिक व्यायाम है। इससे व्यक्ति को आसन, मुद्रा और प्राणायाम के लाभ प्राप्त होते हैं। अभ्यासी का शरीर सूर्य के समान चमकने लगता है। चर्म सम्बन्धी रोगों से बचाव होता है। कोष्ठ बद्धता दूर होती है। मेरूदण्ड और कमर लचकीली होती है। गर्भवती स्त्रियों और हर्निया के रोगियों को इसका अभ्यास नहीं करना चाहिए।

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प्रश्न
वज्रासन, शीर्षासन, चक्रासन, और गरुड़ासन की विधि एवं लाभ लिखें।
उत्तर-
वज्रासन (Vajur Asana)-पैरों को पीछे की ओर मोड़ कर बैठना और हाथों को घुटनों पर रखना इसकी स्थिति है।
विधि (Technique)—

  1. घुटने मोड़ कर पैरों को पीछे की ओर करके पैरों के तलुओं के भार बैठो।
  2. नीचे पैर इस प्रकार हों कि पैर के अंगूठे एक दूसरे से मिले हों।
  3. दोनों घुटने भी मिले हों और कमर तथा पीठ दोनों एकदम सीधे रहें।
  4. दोनों हाथों को तान कर घुटनों के पास रखो।
  5. सांसें लम्बी-लम्बी और साधारण हों।
  6. यह आसन प्रतिदिन 3 मिनट से लेकर 20 मिनट तक करना चाहिए।

लाभ (Advantages)—
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वज्रासन

  1. शरीर में स्फूर्ति आती है।
  2. शरीर का मोटापा दूर हो जाता है।
  3. शरीर स्वस्थ रहता है।
  4. मांसपेशियां मज़बूत होती हैं।
  5. इससे स्वप्न दोष दूर हो जाता है।
  6. पैरों का दर्द दूर हो जाता है।
  7. मानसिक शांति प्राप्त होती है।
  8. मनुष्य निश्चिंत हो जाता है।
  9. इससे मधुमेह की बीमारी में लाभ पहुंचता है।
  10. पाचन क्रिया ठीक रहती है।

शीर्षासन (Shirsh Asana)-इस आसन में सिर नीचे और पैर ऊपर की ओर होते
विधि (Technique)—

  1. एक दरी या कम्बल बिछा कर घुटनों के भार बैठो।
  2. दोनों हाथों की अंगुलियां कस कर बांध लो। दोनों हाथों को कोणदार बना कर कम्बल या दरी पर रखो।
  3. सिर का सामने वाला भाग हाथों में इस प्रकार जमीन पर रखो कि दोनों अंगूठे सिर के पिछले हिस्से को दबाएं।
  4. टांगों को धीरे-धीरे अन्दर की ओर मोड़ते हुए शरीर को सिर और दोनों हाथों के सहारे आसमान की ओर उठाओ।
  5. पैरों को धीरे-धीरे ऊपर उठाओ। पहले एक यंग को सीधा करो, फिर दूसरी को।
  6. शरीर को बिल्कुल सीधा रखो।
  7. शरीर का सारा भार बांहों और सिर पर बराबर पड़े।
  8. दीवार या साथी का सहारा लो।

लाभ (Advantages)—
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शीर्षासन

  1. यह आसन भूख बढ़ाता है।
  2. इससे स्मरण-शक्ति बढ़ती है।
  3. मोटापा दूर हो जाता है।
  4. जिगर ठीक प्रकार से कार्य करता है।
  5. पेशाब की बीमारियां दूर हो जाती हैं।
  6. बवासीर आदि बीमारियां दूर हो जाती हैं।
  7. इस आसन का प्रतिदिन अभ्यास करने से कई मानसिक बीमारियां दूर हो जाती हैं।

सावधानियां (Precautions)-

  1. जब आंखों में लाली आ जाए तो बन्द कर दो।
  2. सिर चकराने लगे तो आसन बन्द कर दें।
  3. कानों में सां-सां की ध्वनि सुनाई दे तो शीर्षासन बन्द कर दें।
  4. नाक बन्द हो जाए तो यह आसन बन्द कर दें।
  5. यदि शरीर भार सहन न कर सके तो आसन बन्द कर दें।
  6. पैरों व बांहों में कम्पन होने लगे तो आसन बन्द कर दो।
  7. यदि दिल घबराने लगे तो भी आसन बन्द कर दो।
  8. शीर्षासन सदैव एकान्त स्थान पर करना चाहिए।
  9. आवश्यकता होने पर दीवार का सहारा लेना चाहिए।
  10. यह आसन केवल एक मिनट से पांच मिनट तक करो। इससे अधिक शरीर के लिए हानिकारक है।

चक्रासन (Chakar Asana) की स्थिति-इस आसन में शरीर को गोल चक्र जैसा बनाना पड़ता है।
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चक्रासन
विधि (Technique)—

  1. पीठ के भार लेट कर, घुटनों को मोड़ कर, पैरों के तलवों को ज़मीन से लगाओ। दोनों पैरों के बीच में एक से डेढ़ फुट का अन्तर रखो।
  2. हाथों को पीछे की ओर ज़मीन पर रखो। तलवों और अंगुलियों को दृढ़ता के साथ ज़मीन से लगाए रखो।
  3. अब हाथ-पैरों के सहारे पूरे शरीर को चक्रासन या चक्र की शक्ल में ले जाओ।
  4. सारे शरीर की स्थिति गोलाकार होनी चाहिए।
  5. आंखें बन्द रखो ताकि श्वास की गति तेज़ हो सके।

लाभ (Advantages)—

  1. शरीर की सारी कमजोरियां दूर हो जाती हैं।
  2. शरीर के सारे अंगों को लचीला बनाता है।
  3. हर्निया तथा गुर्दो के रोग दूर करने में लाभदायक होता है।
  4. पाचन शक्ति को बढ़ाता है।
  5. पेट की वायु विकार आदि बीमारियां दूर हो जाती हैं।
  6. रीढ़ की हड्डी मज़बूत हो जाती है।
  7. जांघ तथा बाहें शक्तिशाली बनती हैं।
  8. गुर्दे की बीमारियां घट जाती हैं।
  9. कमर दर्द दूर हो जाता है।
  10. शरीर हल्कापन अनुभव करता है।

गरुड़ आसन (Garur Asana) की स्थिति- गरुड़ आसन में शरीर की स्थिति गरुड़ पक्षी की भांति पैरों पर सीधे खड़ा होना होता है।
विधि (Technique)—
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गरुड़ासन

  1. सीधे खड़े होकर बायें पैर को उठा कर दाहिनी टांग में बेल की तरह लपेट लो।
  2. बाईं जांघ दाईं जांघ पर आ जायेगी तथा बाईं जांघ पिंडली को ढांप देगी।
  3. शरीर का सारा भार एक ही टांग पर कर दो।
  4. बाएं बाजू को दायें बाजू से दोनों हथेलियों को नमस्कार की स्थिति में ले जाओ।
  5. इसके बाद बाईं टांग को थोड़ा सा झुका कर शरीर को बैठने की स्थिति में ले जाओ। इस प्रकार शरीर की नसें खिंच जाती हैं। अब शरीर को सीधा करो और सावधान की स्थिति में हो जाओ।
  6. अब हाथों और पैरों को बदल कर पहली वाली स्थिति में पुनः दोहराओ।

लाभ (Advantages)—

  1. शरीर के सभी अंगों को शक्तिाली बनाता है।
  2. शरीर स्वस्थ हो जाता है।
  3. यह बांहों को ताकतवर बनाता है।
  4. यह हर्निया रोग से मनुष्य को बचाता है।
  5. टांगें शक्तिशाली हो जाती हैं।
  6. शरीर हल्कापन अनुभव करता है।
  7. रक्त संचार तेज़ हो जाता है।
  8. गरुड़ आसन करने से मनुष्य बहुत-सी बीमारियों से बच जाता है।

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प्रश्न
प्राणायाम क्या है ? प्राणायाम के भेद और करने की विधियां लिखें।
उत्तर-
प्राणायाम
(Pranayama)
प्राणायाम दो शब्दों के मेल से बना है “प्राण” का अर्थ है ‘जीवन’ और ‘याम’ का अर्थ है, ‘नियन्त्रण’ जिससे अभिप्राय है जीवन पर नियन्त्रण अथवा सांस पर नियन्त्रण।
प्राणायाम वह क्रिया है जिससे जीवन की शक्ति को बढ़ाया जा सकता है और इस पर नियन्त्रण किया जा सकता है।
मनु-महाराज ने कहा है, “प्राणायाम से मनुष्य के सभी दोष समाप्त हो जाते हैं और कमियां पूरी हो जाती हैं।”

प्राणायाम के आधार
(Basis of Pranayama)
सांस को बाहर की ओर निकालना तथा फिर अन्दर की ओर करना और अन्दर ही कुछ समय रोक कर फिर कुछ समय के बाद बाहर निकालने की तीनों क्रियाएं ही प्राणायाम का आधार हैं।
रेचक-सांस बाहर को छोड़ने की क्रिया को ‘रेचक’ कहते हैं।
पूरक-जब सांस अन्दर खींचते हैं तो इसे पूरक कहते हैं।
कुम्भक-सांस को अन्दर खींचने के बाद उसे वहां ही रोकने की क्रिया को कुम्भक कहते हैं।

प्राण के नाम
(Name of Prana)
व्यक्ति के सारे शरीर में प्राण समाया हुआ है। इसके पांच नाम हैं—

  1. प्राण-यह गले से दिल तक है। इसी प्राण की शक्ति से सांस शरीर में नीचे जाता है।
  2. अप्राण-नाभिका से निचले भाग में प्राण को अप्राण कहते हैं। छोटी और बडी आन्तों में यही प्राण होता है। यह टट्टी, पेशाब और हवा को शरीर में से बाहर निकालने के लिए सहायता करता है।
  3. समान-दिल और नाभिका तक रहने वाली प्राण क्रिया को समान कहते हैं। यह प्राण पाचन क्रिया और एडरीनल ग्रन्थि की कार्यक्षमता में वृद्धि करता है।
  4. उदाना- गले से सिर तक रहने वाले प्राण को उदान कहते हैं। आंखों, कानों, नाक, मस्तिष्क इत्यादि अंगों का काम इसी प्राण के कारण होता है।
  5. ध्यान-यह प्राण शरीर के सभी भागों में रहता है और शरीर का अन्य प्राणों से मेल-जोल रखता है। शरीर के हिलने-जुलने पर इसका नियन्त्रण होता है।

प्राणायाम के भेद
(Kinds of Pranayama)
शास्त्रों में प्राणायाम कई प्रकार के दिये गए हैं, परन्तु प्राय: यह आठ होते हैं—

  1. सूर्य-भेदी प्राणायाम
  2. उजयी प्राणायाम
  3. शीतकारी प्राणायाम
  4. शीतली प्राणायाम
  5. भस्त्रिका प्राणायाम
  6. भ्रमरी प्राणायाम
  7. मुर्छा प्राणायाम
  8. कपालभाती प्राणायाम

प्राणायाम करने की विधि
(Technique of doing Pranayama)
प्राणायाम श्वासों पर नियन्त्रण करने के लिए किया जाता है। इस क्रिया से श्वास अन्दर की ओर खींच कर रोक लिया जाता है और कुछ समय रोकने के बाद फिर छोड़ा जाता है। इस प्रकार सांस धीरे-धीरे नियन्त्रण करने के समय को बढ़ाया जा सकता है। अपनी दाईं नासिका को बन्द करके, बाईं से आठ गिनते समय तक सांस खींचो। फिर नौ और दस गिनते हुए सांस रोको। इससे पूरा सांस बाहर निकल जाएगा। फिर दाईं नासिका से गिरते हुए सांस खींचो। नौ-दस तक रोके। फिर दाईं नासिका बन्द करके बाईं से आठ तक गिनते हुए सांस बाहर निकालो तथा नौ-दस तक रोको।

मार्चिंग (Marching) Game Rules – PSEB 10th Class Physical Education

Punjab State Board PSEB 10th Class Physical Education Book Solutions मार्चिंग (Marching) Game Rules.

मार्चिंग (Marching) Game Rules – PSEB 10th Class Physical Education

प्रश्न
माचिंग का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
उत्तर-
सावधान
(Attention)
यह बहुत महत्त्वपूर्ण स्थिति है। पैरों की एड़ियां एक पंक्ति में परस्पर जुड़ी होती हैं तथा 30° का कोण बनाती हैं। घुटने सीधे, शरीर सीधा तथा छाती ऊपर को खींची होती है। बाजुएं शरीर के साथ लगें तथा मुट्ठियां थोड़ी सी बंद होनी चाहिए।
मार्चिंग (Marching) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education 1
गर्दन सीधी तथा अपने सामने की ओर नज़र करके तथा स्वाभाविक शरीर का भार दोनों पैरों पर बराबर, श्वास क्रिया स्वाभाविक ढंग से लेते हैं।

विश्राम
(Stand at Ease)
विश्राम में अपना बायां पैर बाईं ओर 12 इंच की दूरी तक ले जाते हैं, जिससे शरीर का सारा भार दोनों पैरों पर भी रहे तथा दोनों बाजुओं को पीछे ले जाएं जिससे दायां हाथ बाएं हाथ को पकड़े हुए होगा तथा दाएं हाथ का अंगूठा बाएं हाथ पर आराम से होगा।
मार्चिंग (Marching) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education 2
दोनों बाजुओं को सीधा रखते हुए उंगलियों को पूरी तरह से सीधा रखना है।

मार्चिंग (Marching) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education

दाएं सज
(Right Dress)
दाएं सज का निर्देश मिलने पर सभी विद्यार्थी बाएं पैर से आगे बढ़ते हुए 15 इंच के फासले पर स्थान ग्रहण करेंगे परन्तु इसमें दाईं ओर खड़ा विद्यार्थी वहां ही खड़ा होगा। पहली पंक्ति में खड़े सभी विद्यार्थी दायां हाथ अपने कन्धे के बराबर आगे को बढ़ाएंगे तथा हाथ की ऊंगलियां बंद होंगी। दूसरे विद्यार्थी उसके दाईं ओर हाथ द्वारा छूते हुए खड़े होंगे तथा बाकी उनके पीछे-पीछे खड़े होंगे। इनका परस्पर 30 इंच का फासला होगा।
मार्चिंग (Marching) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education 3

बाएं सज
(Left Dress)
बाएं सज का आदेश मिलने पर उपरोक्त सभी क्रियाएं बाएं हाथ को जाएंगी।

बाएं मुड़
(Left Turn)
मार्चिंग (Marching) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education 4
इस क्रिया में सावधान खड़े हो दो की गिनती करेंगे। एक की गिनती पर विद्यार्थी बाईं ओर 90° का कोण बनाते हुए एड़ी तथा दाएं पंजे को ऊपर उठाएंगे। इस क्रिया के बाद दो की गिनती पर 6 इंच ऊपर उठाकर अपने पैर के साथ मिलाएंगे।

दाएं मुड़
(Right Turn)
मार्चिंग (Marching) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education 5
यह क्रिया दो की गिनती में जिस प्रकार बाएं मुड़ की जाती है, उसी प्रकार दाईं एड़ी तथा बाएं पंजे को ऊपर करेंगे।

पीछे मुड़
(About Turn)
पीछे मुड़ का निर्देश मिलने पर विद्यार्थी दाईं ओर 180° का कोण बनाते हुए बाएं पैर की एड़ी तथा दाएं पैर के पंजे पर घुमेगा। इसमें शरीर का भार बराबर रखना होता है। दो गिनने पर विद्यार्थी बाएं पैर को ज़मीन से 6 इंच उठाते हुए दाएं पैर के बराबर लाएंगे तथा सावधान अवस्था में होंगे। सभी का क्रिया करते समय शरीर का भार दाएं पैर पर होगा।
मार्चिंग (Marching) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education 6
तेज़ चल
(Quick March)
इस निर्देश पर विद्यार्थी अपना बायां पैर आगे लायेगा। वह पैर ज़मीन के सामने आगे लाएगा। वह पैर ज़मीन के सामने घुटने को सीधा रखते हुए आगे लेकर जाएंगे तथा उसके साथ अपने दाएं हाथ को ऊपर घुमाते हुए कदम के स्तर तक ले जाएंगे। हाथ की उंगलियां बन्द होंगी। यह क्रिया दायां पैर आगे करते हुए दोहराएंगे तथा हाथ की स्थिति इससे विपरीत होगी। यह क्रिया एक दो गिनती पर निरन्तर चलती रहेगी।

मार्चिंग (Marching) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education

थम्म
(Halt)
थम्म का निर्देश जब दायां पैर बाएं पैर को पार करता है, तब दिया जाता है। इसके निर्देश मिलने पर विद्यार्थी, जैसे-बायां पैर जमीन को छू लेगा, दायां पैर बाएं पैर के बराबर आयेगा तथा विद्यार्थी वहीं खड़ा हो जायेगा तथा उनके दोनों हाथ बराबर होंगे तथा विद्यार्थी सावधान स्थिति में होंगे।

PSEB 10th Class SST Solutions History उद्धरण संबंधी प्रश्न

Punjab State Board PSEB 10th Class Social Science Book Solutions History उद्धरण संबंधी प्रश्न.

PSEB 10th Class Social Science Solutions History उद्धरण संबंधी प्रश्न

(1)

‘पंजाब’ फ़ारसी के दो शब्दों-‘पंज’ तथा ‘आब’ के मेल से बना है। इसका अर्थ है-पाँच पानियों अर्थात् पांच दरियाओं की धरती। ये पांच दरिया हैं-सतलुज, ब्यास, रावी, चिनाब व जेहलम। पंजाब भारत की उत्तर-पश्चिमी सीमा पर स्थित है। 1947 ई० में भारत का बंटवारा होने पर पंजाब दो भागों में बांटा गया। इसका पश्चिमी भाग पाकिस्तान बना दिया गया। पंजाब का पूर्वी भाग वर्तमान भारतीय गणराज्य का उत्तरी-पश्चिमी सीमा-प्रान्त बन गया है। पाकिस्तानी पंजाब जिसे पश्चिमी पंजाब कहा जाता है, में आजकल तीन दरिया-रावी, चिनाब व जेहलम बहते हैं। भारतीय पंजाब जिसे कि ‘पूर्वी पंजाब’ कहा जाता है, में दो दरिया ब्यास व सतलुज ही रह गए हैं। वैसे यह नाम ‘पंजाब’ इतना सर्वप्रिय है कि दोनों पंजाब के लोग आज भी अपने-अपने हिस्से में आए पंजाब को ‘पश्चिमी’ या ‘पूर्वी’ कहने की बजाए ‘पंजाब’ ही कहते हैं। हम इस पुस्तक में जमुना तथा सिंध के मध्य पुरातन पंजाब के बारे में पढ़ेंगे।
(a) पंजाब किस भाषा के शब्द-जोड़ से मिलकर बना है? इसका अर्थ भी बताएं।
उत्तर-
‘पंजाब’ फ़ारसी के दो शब्दों-‘पंज’ तथा ‘आब’ के मेल से बना है। जिसका अर्थ है-पांच पानियों अर्थात् पांच दरियाओं (नदियों) की धरती।।
(b) भारत के बंटवारे के बाद ‘पंजाब’ शब्द उचित क्यों नहीं रह गया ?
उत्तर-
बंटवारे से पहले पंजाब पांच दरियाओं की धरती था, परन्तु बंटवारे के कारण इसके तीन दरिया पाकिस्तान में चले गए और वर्तमान पंजाब में केवल दो दरिया (ब्यास तथा सतलुज) ही शेष रह गए।
(c) किन्हीं तीन दोआबों का संक्षिप्त वर्णन करो।
उत्तर-

  1. दोआबा सिन्ध सागर-इस दोआबे में दरिया सिन्ध तथा दरिया जेहलम के मध्य का प्रदेश आता है। यह भाग अधिक उपजाऊ नहीं है।
  2. दोआबा चज-चिनाब तथा जेहलम नदियों के मध्य क्षेत्र को चज दोआबा के नाम से पुकारते हैं। इस दोआब के प्रसिद्ध नगर गुजरात, भेरा तथा शाहपुर हैं।
  3. दोआबा रचना-इस भाग में रावी तथा चिनाब नदियों के बीच का प्रदेश सम्मिलित है जो काफ़ी उपजाऊ है। गुजरांवाला तथा शेखुपुरा इस दोआब के प्रसिद्ध नगर हैं।

(2)

इब्राहिम लोधी के बुरे व्यवहार के कारण अफगान सरदार उससे नाराज थे। अपनी नाराजगी जाहिर करने के लिए उन्होंने आलम खाँ को दिल्ली का शासक बनाने की योजना बनाई। उन्होंने इस उद्देश्य के लिए बाबर की सहायता लेने का फैसला किया। परन्तु 1524 ई० में अपने जीते हुए इलाकों का प्रबन्ध करके बाबर काबुल गया ही था कि दौलत खाँ लोधी ने अपनी सेनाएँ इकट्ठी करके अब्दुल अज़ीज से लाहौर छीन लिया। उसके उपरान्त उसने सुलतानपुर में से दिलावर खाँ को निकाल कर दीपालपुर में आलम खाँ को भी हरा दिया। आलम खाँ काबुल में बाबर की शरण में चला गया। फिर दौलत खाँ लोधी ने सियालकोट पर हमला किया पर वह असफल रहा। दौलत खाँ की बढ़ रही शक्ति को समाप्त करने के लिए तथा बाबर की सेना को पंजाब में से निकालने के लिए इब्राहिम लोधी ने फिर अपनी सेना भेजी। दौलत खाँ लोधी ने उस सेना को करारी हार दी। परिणाम स्वरूप केन्द्रीय पंजाब में दौलत खाँ लोधी का स्वतन्त्र राज्य स्थापित हो गया।
(a) इब्राहिम लोधी के किन्हीं दो अवगुणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-

  1. इब्राहिम लोधी पठानों के स्वभाव तथा आचरण को नहीं समझ सका।
  2. उसने पठानों में अनुशासन स्थापित करने का असफल प्रयास किया।

(b) दिलावर खां लोधी दिल्ली क्यों गया ? इब्राहिम लोधी ने उसके साथ क्या बर्ताव किया?
उत्तर-
दिलावर खां लोधी अपने पिता की ओर से आरोपों की सफाई देने के लिए दिल्ली गया। इब्राहिम लोधी ने दिलावर खां को खूब डराया धमकाया। उसने उसे यह भी बताने का प्रयास किया कि विद्रोही को क्या दण्ड दिया जा सकता है। उसने उसे उन यातनाओं के दृश्य दिखाए जो विद्रोही लोगों को दी जाती थीं और फिर उसे बन्दी बना लिया। परन्तु वह किसी-न-किसी तरह जेल से भाग निकला। लाहौर पहुंचने पर उसने अपने पिता को दिल्ली में हुई सारी बातें सुनाईं। दौलत खां समझ गया कि इब्राहिम लोधी उससे दो-दो हाथ अवश्य करेगा।

PSEB 10th Class SST Solutions History उद्धरण संबंधी प्रश्न

(3)

गुरु नानक देव जी से पहले पंजाब में मुसलमान शासकों की सरकार थी। इसलिए मुसलमान सरकार में ऊँची से ऊँची पदवी प्राप्त कर सकते थे। उनके साथ सम्मान जनक व्यवहार किया जाता था। सरकारी न्याय उनके पक्ष में ही होता था। उस समय का मुस्लिम समाज चार श्रेणियों में बंटा हुआ था-अमीर तथा सरदार, उलेमा व सैय्यद, मध्य श्रेणी व गुलाम।
मुस्लिम समाज में महिलाओं को कोई सम्मानयोग्य स्थान प्राप्त नहीं था। अमीरों तथा सरदारों की हवेलियों में स्त्रियों के ‘हरम’ होते थे। इन स्त्रियों की सेवा के लिए दासियाँ तथा रखैलें रखी जाती थीं। उस समय पर्दे का रिवाज आम था। साधारण मुसलमान घरों में स्त्रियों के रहने के लिए पर्देदार अलग स्थान बना होता था। उस स्थान को ‘जनान खाना’ कहा जाता था। इन घरों की स्त्रियाँ बुर्का पहन कर बाहर निकलती थी। ग्रामीण मुसलमानों में सख्त पर्दे की प्रथा नहीं थी।
(a) मुस्लिम समाज कौन-कौन सी श्रेणियों में बंटा हुआ था?
उत्तर-
15वीं शताब्दी के अन्त में मुस्लिम समाज चार श्रेणियों में बंटा हुआ था-

  1. अमीर तथा सरदार,
  2. उलेमा तथा सैय्यद,
  3. मध्य श्रेणी तथा
  4. गुलाम अथवा दास।

(b) मुस्लिम समाज में महिलाओं की दशा का वर्णन करो।
उत्तर-
मुस्लिम समाज में महिलाओं की दशा का वर्णन इस प्रकार है

  1. महिलाओं को समाज में कोई सम्मान जनक स्थान प्राप्त नहीं था।
  2. अमीरों तथा सरदारों की हवेलियों में स्त्रियों को हरम में रखा जाता था। इनकी सेवा के लिए दासियां तथा रखैलें रखी जाती थीं।
  3. समाज में पर्दे की प्रथा प्रचलित थी। परन्तु ग्रामीण मुसलमानों में पर्दे की प्रथा सख्त नहीं थी।
  4. साधारण परिवारों में स्त्रियों के रहने के लिए अलग स्थान बना होता था। उसे ‘जनान खाना’ कहा जाता था। यहां से स्त्रियां बुर्का पहन कर ही बाहर निकल सकती थीं।

(4)

ज्ञान-प्राप्ति के बाद जब गुरु नानक देव जी सुलतानपुर लोधी वापस पहुंचे तो वे चुप थे। जब उन्हें बोलने के लिए मजबूर किया गया तो उन्होंने केवल यह कहा-‘न कोई हिन्द्र न मुसलमान।’ जब दौलत खाँ, ब्राह्मणों तथा काज़ियों ने इस वाक्य का अर्थ पूछा तो गुरु साहिब ने कहा कि हिन्दू व मुसलमान दोनों ही अपने-अपने धर्मों के सिद्धान्तों को भूल चुके हैं। इन शब्दों का अर्थ यह भी था कि हिन्दू व मुसलमानों में कोई फर्क नहीं तथा वे एक समान हैं। उन्होंने इन महत्त्वपूर्ण शब्दों से अपने संदेश को शुरू किया। उन्होंने अपना अगला जीवन ज्ञान-प्रचार में व्यतीत कर दिया। उन्होंने अपनी नौकरी से इस्तीफा देकर लम्बी उदासियां (यात्राएँ) शुरू कर दी।
(a) गुरु नानक देव जी ने ज्ञान प्राप्ति के बाद क्या शब्द कहे तथा उनका क्या भाव था?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी ने ज्ञान प्राप्ति के बाद ये शब्द कहे-‘न कोई हिन्दू न कोई मुसलमान।’ इसका भाव था कि हिन्दू तथा मुसलमान दोनों ही अपने धर्म के मार्ग से भटक चुके हैं।
(b) गुरु नानक देव जी के परमात्मा सम्बन्धी विचारों का संक्षेप में वर्णन करो।
उत्तर-
गुरु नानक देव जी के परमात्मा सम्बन्धी विचारों का वर्णन इस प्रकार है

  1. परमात्मा एक है-गुरु नानक देव जी ने लोगों को बताया कि परमात्मा एक है। उसे बांटा नहीं जा सकता। उन्होंने एक ओंकार का सन्देश दिया।
  2. परमात्मा निराकार तथा स्वयंभू है-गुरु नानक देव जी ने परमात्मा को निराकार बताया और कहा कि परमात्मा का कोई आकार व रंग-रूप नहीं है। फिर भी उसके अनेक गुण हैं जिनका वर्णन शब्दों में नहीं किया जा सकता। उनके अनुसार परमात्मा स्वयंभू तथा अकालमूर्त है। अतः उसकी मूर्ति बना कर पूजा नहीं की जा सकती।
  3. परमात्मा सर्वव्यापी तथा सर्वशक्तिमान् है-गुरु नानक देव जी ने परमात्मा को सर्वशक्तिमान् तथा सर्वव्यापी बताया। उनके अनुसार वह सृष्टि के प्रत्येक कण में विद्यमान है। उसे मन्दिर अथवा मस्जिद की चारदीवारी में बन्द नहीं रखा जा सकता।
  4. परमात्मा सर्वश्रेष्ठ है -गुरु नानक देव जी के अनुसार परमात्मा सर्वश्रेष्ठ है। वह अद्वितीय है। उसकी महिमा तथा महानता का पार नहीं पाया जा सकता।
  5. परमात्मा दयालु है-गुरु नानक देव जी के अनुसार परमात्मा दयालु है। वह आवश्यकता पड़ने पर अपने भक्तों की सहायता करता है।

PSEB 10th Class SST Solutions History उद्धरण संबंधी प्रश्न

(5)

गुरु नानक देव जी के सांसारिक व्यवहार के प्रति उपेक्षा देख कर कालू जी उदास रहने लगे। आखिरकार गुरु जी की रुचियों में बदलाव लाने के लिए मेहता कालू जी ने उन्हें घर की भैंसें चराने का काम सौंप दिया। गुरु जी पशुओं को खेतों की तरफ ले तो जाते पर उनका ध्यान न रखते। वह अपना ध्यान ईश्वर में लगा लेते। भैंसें खेतों को उजाड़ देती। मेहता कालू जी को इस बारे में कई उलाहने मिलते। उन उलाहनों से तंग आकर मेहता जी ने गुरु जी को खेती का काम संभाल दिया। गुरु जी ने उस काम में भी कोई दिलचस्पी न दिखाई। हार कर मेहता कालू जी ने गुरु जी को व्यापार में लगाना चाहा। मेहता जी ने उनको 20 रुपए दिए तथा किसी मंडी में सच्चा तथा लाभ वाला सौदा करने को कहा। उनकी छोटी उम्र होने के कारण उनके साथ भाई बाला को भेजा गया। उन्हें रास्ते में फ़कीरों का एक टोला मिला जो कि भूखा था। गुरु नानक देव जी ने सारी रकम की रसद लाकर उन फ़कीरों को रोटी खिला दी। जब वे खाली हाथ घर लौटे तो मेहता जी बड़े दुखी हुए। जब उन्होंने 20 रुपयों का हिसाब मांगा तो गुरु जी ने सच बता दिया। इस घटना को ‘सच्चा सौदा’ कहा जाता है।
(a) ‘सच्चा सौदा’ से क्या भाव है?
उत्तर-
सच्चा सौदा से भाव है-पवित्र व्यापार जो गुरु नानक साहिब ने अपने 20 रु० से फ़कीरों को रोटी खिला कर किया था।
(b) गुरु नानक देव जी ने अपने प्रारम्भिक जीवन में क्या-क्या व्यवसाय अपनाए?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी पढ़ाई तथा अन्य सांसारिक विषयों की उपेक्षा करने लगे थे। उनके व्यवहार में परिवर्तन लाने के लिए. उनके पिता जी ने उन्हें पशु चराने के लिए भेजा। वहां भी गुरु नानक देव जी प्रभु चिन्तन में मग्न रहते और पशु दूसरे किसानों के खेतों में चरते रहते थे। किसानों की शिकायतों से तंग आकर मेहता कालू जी ने गुरु नानक देव जी को व्यापार में लगाने का प्रयास किया। उन्होंने गुरु नानक देव जी को 20 रुपए देकर व्यापार करने भेजा, परन्तु गुरु जी ने ये रुपये संतों को भोजन कराने में व्यय कर दिये। यह घटना सिक्ख इतिहास में ‘सच्चा सौदा’ के नाम से प्रसिद्ध है।

(6)

लंगर संस्था, जिसे गुरु नानक देव जी ने आरम्भ किया था, गुरु अंगद देव जी ने उसे जारी रखा। गुरु अमरदास जी के समय में भी यह संस्था विस्तृत रूप से जारी रही। उनके लंगर में ब्राह्मण, क्षत्रीय, वैश्य तथा शूद्रों को बिना किसी भेद-भाव के एक ही पंगत में बैठ कर इकट्ठे लंगर छकना पड़ता था। गुरु जी की आज्ञानुसार लंगर किए बगैर कोई भी उन्हें नहीं मिल सकता था। मुगल सम्राट अकबर तथा हरीपुर के राजा को भी गुरु साहिब को मिलने से पहले लंगर में से भोजन छकना पड़ा था। इस तरह से यह संस्था सिक्ख धर्म के प्रचार का एक शक्तिशाली साधन सिद्ध हुई।
(a) लंगर प्रथा से क्या भाव है?
उत्तर-
लंगर प्रथा अथवा पंगत से भाव उस प्रथा से है जिसके अनुसार सभी जातियों के लोग बिना किसी भेदभाव के एक ही पंगत में इकट्ठे बैठकर खाना खाते थे।
(b) मंजी-प्रथा से क्या भाव है तथा इसका क्या उद्देश्य था?
उत्तर-
मंजी प्रथा की स्थापना गुरु अमरदास जी ने की थी। उनके समय में सिक्खों की संख्या काफ़ी बढ़ चुकी थी। परन्तु गुरु जी की आयु अधिक होने के कारण उनके लिए एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाकर अपनी शिक्षाओं का प्रचार करना कठिन हो गया था। अत: उन्होंने अपने सारे आध्यात्मिक प्रदेशों को 22 भागों में बांट दिया। इनमें से प्रत्येक भाग को ‘मंजी’ कहा जाता था। प्रत्येक मंजी छोटे-छोटे स्थानीय केन्द्रों में बंटी हुई थी जिन्हें पीड़ियां (Piris) कहते थे। मंजी प्रणाली का सिक्ख धर्म के इतिहास में विशेष महत्त्व है। डॉ० गोकुल चन्द नारंग के शब्दों में, “गुरु जी के इस कार्य ने सिक्ख धर्म की नींव सुदृढ़ करने तथा देश के सभी भागों में प्रचार कार्य को बढ़ाने में विशेष योगदान दिया।”

PSEB 10th Class SST Solutions History उद्धरण संबंधी प्रश्न

(7)

गुरु अर्जुन देव जी ने अमृतसर सरोवर के बीच 1588 ई० में ‘हरिमंदिर साहिब’ का निर्माण कार्य करवाया। ऐसा माना जाता है कि हरिमंदिर साहिब की नींव का पत्थर 1589 ई० में सूफी फकीर, मीयां मीर ने रखा। हरिमंदिर साहिब के दरवाजे चारों तरफ रखे गए, भाव यह कि यह मन्दिर चारों जातियों तथा चारों दिशाओं से आने वाले लोगों के लिए खुला था। हरिमंदिर साहिब का निर्माण भाई बुड्डा सिंह जी तथा भाई गुरदास जी की देख-रेख में हुआ जो 1601 ई० में पूरा हुआ। सितम्बर 1604 ई० में हरिमंदिर साहिब में आदि ग्रन्थ की स्थापना कर दी गई। भाई बुड्डा सिंह जी को वहाँ का पहला ग्रन्थी बनाया गया था। __ अमृतसर में हरिमंदिर साहिब का निर्माण सिक्ख धर्म की दृढ़ता- पूर्वक स्थापना के लिए अत्यधिक महत्त्वपूर्ण कार्य था। इससे सिक्खों को हिन्दू तीर्थ-स्थानों की यात्रा करने की ज़रूरत न रही। अमृतसर सिक्खों का ‘मक्का’ तथा ‘गंगाबनारस’ बन गया।
(a) हरिमंदिर साहिब की नींव कब तथा किसने रखी?
उत्तर-
हरिमंदिर साहिब की नींव 1589 ई० में उस समय के प्रसिद्ध सूफ़ी सन्त मियां मीर ने रखी।
(b) हरिमंदिर साहिब के बारे में जानकारी दीजिए।
उत्तर-
गुरु रामदास जी के ज्योति जोत समाने के पश्चात् गुरु अर्जन देव जी ने ‘अमृतसर’ सरोवर के बीच हरिमंदिर साहिब का निर्माण करवाया। इसका नींव पत्थर 1589 ई० में सूफ़ी फ़कीर मियां मीर जी ने रखा। गुरु जी ने इसके चारों ओर एक-एक द्वार रखवाया। ये द्वार इस बात के प्रतीक हैं कि यह मंदिर सभी जातियों तथा धर्मों के लोगों के लिए समान रूप से खुला है। हरिमंदिर साहिब का निर्माण कार्य भाई बुड्डा जी की देख-रेख में 1601 ई० में पूरा हुआ। 1604 ई० में हरिमंदिर साहिब में आदि ग्रन्थ साहिब की स्थापना की गई और भाई बुड्डा जी वहां के पहले ग्रन्थी बने।
हरिमंदिर साहिब शीघ्र ही सिक्खों के लिए ‘मक्का’ तथा ‘गंगा-बनारस’ अर्थात् एक बहुत बड़ा तीर्थ-स्थल बन गया।

(8)

दो मुग़ल बादशाह-अकबर तथा जहांगीर गुरु अर्जुन देव जी के समकालीन थे। चूंकि गुरुओं के उपदेशों का उद्देश्य जाति-पाति, ऊँच-नीच, अंध-विश्वास तथा धार्मिक कट्टरता से रहित समाज की स्थापना करना था, इसलिए अकबर गुरुओं को पसंद करता था। पर जहाँगीर गुरु अर्जुन देव जी की बढ़ती हुई ख्याति को पसंद नहीं करता था। उसे इस बात का गुस्सा भी था कि हिन्दुओं के साथ-साथ कई मुसलमान भी गुरु जी से प्रभावित हो रहे थे। कुछ समय पश्चात् शहज़ादा खुसरो ने अपने पिता जहांगीर के विरुद्ध विद्रोह कर दिया। जब शाही सेनाओं ने खुसरो का पीछा किया तो वह भाग कर पंजाब आ गया तथा गुरु जी से मिला। इस पर जहांगीर ने जो पहले ही गुरु अर्जुन देव जी के विरुद्ध कार्यवाही करने का बहाना ढूंढ रहा था विद्रोही खुसरो की सहायता करने के अपराध में गुरु जी पर दो लाख रुपयों का जुर्माना कर दिया। गुरु जी ने इस जुर्माने को अनुचित मानते हुए इसे अदा करने से इन्कार कर दिया। इस पर उनको शारीरिक यातनाएँ देकर 1606 ई० में शहीद कर दिया गया।
(a) जहांगीर गुरु अर्जुन देव जी को क्यों शहीद करना चाहता था?
उत्तर-
जहांगीर को गुरु अर्जन देव जी की बढ़ती हुई ख्याति से ईर्ष्या थी। जहांगीर को इस बात का दुःख था कि हिन्दुओं के साथ-साथ कई मुसलमान भी गुरु साहिब से प्रभावित हो रहे हैं।
(b) गुरु अर्जुन देव जी की शहादत पर एक नोट लिखिए।
उत्तर-
मुग़ल सम्राट अकबर के पंचम पातशाह (सिक्ख गुरु) गुरु अर्जन देव जी के साथ बहुत अच्छे सम्बन्ध थे। परन्तु अकबर की मृत्यु के पश्चात् जहांगीर ने सहनशीलता की नीति छोड़ दी। वह उस अवसर की खोज में रहने लगा। जब वह सिक्ख धर्म पर करारी चोट कर सके। इसी बीच जहांगीर के पुत्र खुसरो ने उसके विरुद्ध विद्रोह कर दिया। खुसरो पराजित होकर गुरु अर्जन देव जी के पास आया। गुरु जी ने उसे आशीर्वाद दिया। इस आरोप में जहांगीर ने गुरु अर्जन देव जी पर दो लाख रुपये का जुर्माना लगा दिया। परन्तु गुरु अर्जन देव जी ने जुर्माना देने से इन्कार कर दिया। इसलिए उन्हें बन्दी बना लिया गया और अनेक यातनाएं देकर शहीद कर दिया गया। गुरु अर्जन देव जी की शहीदी से सिक्ख भड़क उठे। वे समझ गए कि उन्हें अब अपने धर्म की रक्षा के लिए शस्त्र धारण करने पड़ेंगे।

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(9)

गुरु गोबिन्द सिंह जी सिक्खों के दसवें तथा आखिरी गुरु हुए हैं। गुरु नानक देव जी ने सिक्ख धर्म की स्थापना का कार्य किया था। उनके आठ उत्तराधिकारों ने धीरे-धीरे सिक्ख धर्म का प्रचार व प्रसार किया। पर उस कार्य को संपूर्ण करने वाले गुरु गोबिन्द सिंह जी ही थे। उन्होंने 1699 ई० में खालसा की स्थापना कर के सिक्ख मत को अन्तिम रूप दिया। उन्होंने सिक्खों में विशेष दिलेरी, बहादुरी तथा एकता की भावना उत्पन्न कर दी। सीमित साधनों तथा बहुत थोड़े सिक्ख-सैनिकों की सहायता से उन्होंने मुगल साम्राज्य के अत्याचारों का विरोध किया। अपने देहान्त से पहले उन्होंने गुरु-परम्परा का अंत करते हुए गुरु की शक्ति गुरु ग्रन्थ साहिब तथा खालसा में बांटी। इसीलिए उनमें एक ही समय में आध्यात्मिक नेता, उच्च कोटि का संगठन-कर्ता, जन्म-सिद्ध सेनानायक, प्रतिभाशाली विद्वान तथा उत्तम सुधारक के गुण विद्यमान थे।
(a) गुरु गोबिन्द राय जी का जन्म कब और कहां हुआ? उनके माता-पिता का नाम भी बताओ।
उत्तर-
22 दिसम्बर, 1666 ई० को पटना में उनकी माता का नाम गुजरी जी और पिता का नाम श्री गुरु तेग बहादुर जी था।
(b) गुरु गोबिन्द सिंह जी के सेनानायक के रूप में व्यक्तित्व का वर्णन करो।
उत्तर-
गुरु गोबिन्द सिंह जी एक कुशल सेनापति तथा वीर सैनिक थे। पहाड़ी राजाओं तथा मुगलों के विरुद्ध लड़े गए प्रत्येक युद्ध में उन्होंने अपने वीर सैनिक होने का परिचय दिया। तीर चलाने, तलवार चलाने तथा घुड़सवारी करने में तो वे विशेष रूप से निपुण थे। गुरु जी में एक उच्च कोटि के सेनानायक के भी सभी गुण विद्यमान थे। उन्होंने कम सैनिक तथा कम युद्ध सामग्री के होते हुए भी पहाड़ी राजाओं तथा मुग़लों के नाक में दम कर दिया। चमकौर की लड़ाई में तो उनके साथ केवल चालीस सिक्ख थे, परन्तु गुरु जी के नेतृत्व में उन्होंने वे हाथ दिखाए कि एक बार तो हजारों की मुग़ल सेना घबरा उठी।

(10)

1699 ई० को वैशाखी के दिन गुरु गोबिन्द राय जी ने आनन्दपुर साहिब में सभा बुलाई। उस सभा की संख्या लगभग अस्सी हज़ार थी। जब सभी लोग अपने-अपने स्थान पर बैठ गए तो गुरु जी ने म्यान में से तलवार निकाल कर जोरदार शब्दों में कहा-तुममें से कोई ऐसा व्यक्ति है जो धर्म के लिए अपना सिर दे सके ? गुरु जी ने ये शब्द तीन बार दोहराए। तीसरी बार पर लाहौर-निवासी दया राम (क्षत्रिय) ने उठ कर गुरु जी के सामने अपना शीश झका दिया। गुरु जी उसे पास के एक तम्बू में ले गए। फिर वे तम्बू से बाहर आए और उन्होंने पहले की तरह ही एक और व्यक्ति का शीश मांगा। इस बार दिल्ली का धर्म दास (जाट) अपना सिर. भेंट करने के लिए आगे आया। गुरु साहिब उसे भी साथ के तम्बू में ले गए। इस प्रकार गुरु जी ने पांच बार शीश की मांग की और पांच व्यक्तियों भाई दयाराम तथा भाई धर्मदास के अतिरिक्त भाई मोहकम चंद (द्वारका का धोबी) भाई साहिब चंद (बीदर का नाई) तथा भाई हिम्मत राय (जगन्नाथ पुरी का कहार) ने गुरु जी को अपने सिर भेंट किए। कुछ समय पश्चात् गुरु जी उन पाँचों व्यक्तियों को केसरिया रंग के सुन्दर वस्त्र पहना कर लोगों के बीच में ले आए। उस समय स्वयं भी गुरु जी ने वैसे ही वस्त्र पहने हुए थे। लोग. उन पाँचों को देख कर आश्चर्यचकित हुए। गुरु साहिब ने उन्हें ‘पाँच-प्यारे’ की सामूहिक उपाधि दी।
(a) खालसा का सृजन कब और कहां किया गया ?
उत्तर-
1699 ई० में आनन्दपुर साहिब में।
(b) खालसा के नियमों का वर्णन करो।
उत्तर-
खालसा की स्थापना 1699 ई० में गुरु गोबिन्द सिंह जी ने की। खालसा के नियम निम्नलिखित थे

  1. प्रत्येक खालसा अपने नाम के साथ ‘सिंह’ शब्द लगाएगा। खालसा स्त्री अपने नाम के साथ ‘कौर’ शब्द लगाएगी।
  2. खालसा में प्रवेश से पूर्व प्रत्येक व्यक्ति को ‘खण्डे के पाहुल’ का सेवन करना पड़ेगा। तभी वह स्वयं को खालसा कहलवाएगा।
  3. प्रत्येक ‘सिंह’ आवश्यक रूप से पांच ‘ककार’ धारण करेगा-केश, कड़ा, कंघा, किरपान तथा कछहरा।
  4. सभी सिक्ख प्रतिदिन प्रातःकाल स्नान करके उन पांच बाणियों का पाठ करेंगे जिनका उच्चारण ‘खण्डे का पाहुल’ तैयार करते समय किया गया था।

PSEB 10th Class SST Solutions History उद्धरण संबंधी प्रश्न

(11)

बंदा सिंह बहादुर का असली निशाना सरहिन्द था। यहाँ के सबेदार वजीर खां ने सारी उम्र गरु गोबिन्द सिंह जी को तंग किया था। उसने आनन्दपुर साहिब तथा चमकौर साहिब के युद्धों में गुरु जी के खिलाफ फौज भेजी थी। यहीं पर उनके छोटे साहिबजादों को दीवार में चिनवा दिया गया था। वजीर खां ने हज़ारों निर्दोष सिक्खों तथा हिन्दुओं के खून से अपने हाथ रंगे थे। इसलिए बंदा बहादुर तथा सिक्खों को वजीर खां पर बहुत गुस्सा था। जैसे ही पंजाब में बंदा बहादुर के सरहिन्द की तरफ बढ़ने की खबरें पहुँची तो हजारों लोग बंदा सिंह बहादुर के झंडे के तले एकत्रित हो गए। सरहिन्द के कर्मचारी, सुच्चा नंद का भतीजा भी 1,000 सैनिकों के साथ बंदे की सेना में जा मिला। दूसरी तरफ वजीर खाँ की फौज की गिनती लगभग 20,000 थी। उसकी सेना में घुड़सवारों के अतिरिक्त बंदूकची तथा तोपची व हाथी सवार भी थे।
(a) हुक्मनामे में गुरु (गोबिन्द सिंह) जी ने पंजाब के सिक्खों को क्या आदेश दिए?
उत्तर-
बंदा सिंह बहादुर उनका राजनीतिक नेता होगा तथा वे मुग़लों के विरुद्ध धर्मयुद्ध में बंदे का साथ दें।
(b) चप्पड़-चिड़ी तथा सरहिन्द की लड़ाई का वर्णन करो।
उत्तर-
सरहिन्द के सूबेदार वज़ीर खान ने गुरु गोबिन्द सिंह जी को जीवन भर तंग किया था। इसके अतिरिक्त उसने गुरु साहिब के दो साहिबजादों को सरहिन्द में ही दीवार में चिनवा दिया था। इसलिए बंदा सिंह बहादुर इसका बदला लेना चाहता था। जैसे ही वह सरहिन्द की ओर बढ़ा, हजारों लोग उसके झण्डे तले एकत्रित हो गए। सरहिन्द के कर्मचारी, सुच्चा नंद का भतीजा भी 1,000 सैनिकों के साथ बंदा की सेना में जा मिला। परन्तु बाद में उसने धोखा दिया। दूसरी ओर वज़ीर खान के पास लगभग 20,000 सैनिक थे। सरहिन्द से लगभग 16 किलोमीटर पूर्व में चप्पड़चिड़ी के स्थान पर 22 मई, 1710 ई० को दोनों सेनाओं में घमासान युद्ध हुआ। वज़ीर खान को मौत के घाट उतार दिया गया। शत्रु के सैनिक बड़ी संख्या में सिक्खों की तलवारों के शिकार हुए। वज़ीर खान की लाश को एक पेड़ पर टांग दिया गया। सुच्चा नंद जिसने सिक्खों पर अत्याचार करवाये थे, की नाक में नकेल डाल कर नगर में उसका जुलूस निकाला गया।

(12)

1837 ई० में भारत का गवर्नर-जनरल लार्ड ऑक्लैड-अफगानिस्तान में रूस के बढ़ते हुए प्रभाव से भयभीत हो गया। वह यह भी महसूस करता था कि दोस्त मुहम्मद अंग्रेजों के शत्रु रूस से मित्रतापूर्ण सम्बन्ध कायम कर रहा था। इन हालातों में लार्ड ऑकलैंड ने दोस्त मुहम्मद की जगह शाह शुजाह को (अफगानिस्तान का भूतपूर्वकशासक जो अंग्रेजों की पैन्शन पर पलता था) अफगानिस्तान का शासक बनाना चाहा। इस उद्देश्य से 26 जून, 1838 ई० को अंग्रेज सरकार की आज्ञा से अंग्रेजों, रणजीत सिंह तथा शाह शुजाह के दरम्यान, एक संधि हुई जिसे ‘त्रिपक्षीय संधि’ कहा जाता है। इसके अनुसार अफगानिस्तान के होने वाले शासक शाह शुजाह ने अपनी तरफ से महाराजा के अफगानों से जीते गए सारे प्रदेश (कश्मीर, मुलतान, पेशावर, अटक, डेराजात आदि) पर उसका अधिकार स्वीकार कर लिया। महाराजा ने उस संधि की एक शर्त कि अफगान-युद्ध के समय वह अंग्रेजों को अपने इलाके में से होकर आगे जाने देगा, न मानी। इस पर अंग्रेजों तथा महाराजा के सम्बन्धों में बड़ी दरार पैदा हो गई। जून, 1839 ई० को महाराजा का देहान्त हो गया।
(a) रणजीत सिंह का जन्म कब हुआ तथा उसके पिता का क्या नाम था?
उत्तर-
रणजीत सिंह का जन्म 13 नवम्बर, 1780 को हुआ। उसके पिता का नाम सरदार महा सिंह था।
(b) त्रिपक्षीय सन्धि क्या थी?
उत्तर-
त्रिपक्षीय सन्धि 26 जून, 1838 ई० में महाराजा रणजीत सिंह, अंग्रेज़ों तथा शाह शुजाह के बीच हुई। इसकी शर्ते निम्नलिखित थीं

  1. महाराजा रणजीत सिंह द्वारा विजित प्रदेश शाह शुजाह के राज्य में नहीं मिलाए जाएंगे।
  2. तीनों में से कोई भी किसी विदेशी की सहायता नहीं करेगा।
  3. महाराजा रणजीत सिंह सिन्ध के उस भाग पर भी नियन्त्रण कर सकेगा जिस पर उसका अभी-अभी अधिकार हुआ था।
  4. एक का दुश्मन अन्य दोनों का दुश्मन समझा जाएगा।
  5. सिन्ध के मामले में अंग्रेज़ तथा महाराजा रणजीत सिंह मिल कर जो भी निर्णय करेंगे, वह शाह शुजाह को मान्य होगा।
  6. शाह शुजाह महाराजा रणजीत सिंह तथा अंग्रेजों की अनुमति के बिना किसी भी देश से अपना सम्बन्ध स्थापित नहीं करेगा।

PSEB 10th Class SST Solutions History उद्धरण संबंधी प्रश्न

(13)

यद्यपि लार्ड हार्डिग ने सिक्खों को हराकर पंजाब को ब्रिटिश साम्राज्य में सम्मिलित नहीं किया, पर लाहौर सरकार
को कमजोर अवश्य कर दिया। अंग्रेजों ने लाहौर राज्य के सतलुज के दक्षिण स्थित क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया। उन्होंने दोआबा बिस्त जालन्धर के उपजाऊ क्षेत्रों पर अधिकार जमा लिया। कश्मीर, कांगड़ा और हजारा के पहाड़ी राज्य लाहौर राज्य से स्वतंत्र कर दिए गए। लाहौर राज्य की सेना कम कर दी गई। लाहौर राज्य से बहुत बड़ी धनराशि वसूल की गई। पंजाब को आर्थिक और सैनिक दृष्टि से इतना कमज़ोर कर दिया गया कि अंग्रेज़ जब भी चाहें उस पर कब्जा कर सकते थे।
(a) महाराजा रणजीत सिंह के बाद कौन उसका उत्तराधिकारी बना?
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह के बाद खड़क सिंह उसका उत्तराधिकारी बना।
(b) लाहौर की दूसरी सन्धि की धाराएं क्या थी?
उत्तर-
लाहौर की दूसरी सन्धि 11 मार्च, 1846 ई० को अंग्रेज़ों तथा सिक्खों के बीच हुई। इसकी मुख्य धाराएं निम्नलिखित थीं

  1. ब्रिटिश सरकार महाराजा दलीप सिंह और नगरवासियों की रक्षा के लिए लाहौर में बड़ी संख्या में सेना रखेगी। यह सेना 1846 ई० तक वहां रहेगी।
  2. लाहौर का किला और नगर अंग्रेज़ी सेना के अधिकार में रहेंगे।
  3. लाहौर-सरकार 9 मार्च, 1846 ई० को सन्धि द्वारा अंग्रेज़ों को दिए गए क्षेत्रों के जागीरदारों तथा अधिकारियों का सम्मान करेगी।
  4. लाहौर-सरकार को अंग्रेजों को दिए प्रदेशों के किलों में से तोपों के अतिरिक्त खज़ाना या सम्पत्ति लेने का कोई अधिकार नहीं होगा।

(14)

जनवरी 1848 ई० में लार्ड हार्डिग के स्थान पर लार्ड डलहौजी भारत का गवर्नर जनरल बना। वह भारत में ब्रिटिश साम्राज्य का विस्तार करने में विश्वास रखता था। सबसे पहले उसने पंजाब को ब्रिटिश साम्राज्य में मिलाने का फैसला किया। मुलतान के मूलराज और हज़ारा के चतर सिंह और उसके पुत्र शेर सिंह द्वारा विद्रोह कर देने पर उन्हें सिक्खों के साथ युद्ध करने का बहाना मिल गया। दूसरे आंग्ल-सिक्ख युद्ध में सिक्खों की हार के बाद पहले ही निश्चित नीति को वास्तविक रूप देने का काम विदेश सचिव हैनरी इलियट (Henry Elliot) को सौंपा गया। इलियट ने कौंसिल आफ रीजेंसी के सदस्यों को एक सन्धि-पत्र पर हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर कर दिया। उस सन्धि के अनुसार महाराजा दलीप सिंह को राजगद्धी से उतार दिया गया। पंजाब की सारी सम्पत्ति पर अंग्रेज़ों का अधिकार हो गया। कोहेनूर हीरा इंगलैंड की महारानी (विक्टोरिया) के पास भेज दिया गया। महाराजा दलीप सिंह की 4 लाख और 5 लाख के बीच पेंशन निश्चित कर दी गई। उसी दिन हैनरी इलियट ने लाहौर दरबार में लार्ड डलहौजी की ओर से घोषणा-पत्र पढ़कर सुनाया गया। इस घोषणा-पत्र में पंजाब को अंग्रेजी साम्राज्य में मिलाने को उचित ठहराया गया।
(a) पंजाब को अंग्रेजी साम्राज्य में कब शामिल किया गया ? उस समय भारत का गवर्नर जनरल कौन था?
उत्तर-
पंजाब को अंग्रेजी साम्राज्य में 1849 ई० में सम्मिलित किया गया। उस समय भारत का गवर्नर जनरल लॉर्ड डलहौज़ी था।
(b) महाराजा दलीप सिंह के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर-
महाराजा दलीप सिंह पंजाब (लाहौर राज्य) का अंतिम सिक्ख शासक था। प्रथम ऐंग्लो-सिक्ख युद्ध के समय वह नाबालिग था। अत: 1846 ई० की भैरोंवाल की सन्धि के अनुसार लाहौर-राज्य के शासन प्रबन्ध के लिए एक कौंसिल ऑफ़ रीजैंसी की स्थापना की गई। इसे महाराज के बालिग होने तक कार्य करना था। परन्तु दूसरे ऐंग्लोसिक्ख युद्ध में सिक्ख पुनः पराजित हुए। परिणामस्वरूप महाराजा दलीप सिंह को राजगद्धी से उतार दिया गया और उसकी 4-5 लाख रु० के बीच वार्षिक पेंशन निश्चित कर दी गई। पंजाब अंग्रेजी साम्राज्य का अंग बन गया।

PSEB 10th Class SST Solutions History उद्धरण संबंधी प्रश्न

(15)

अमृतसर और रायकोट के बूचड़खाने पर आक्रमण करके कई बूचड़ों को मार दिया। कूकों को सबके सामने फांसी की सजा दी जाती परन्तु वे अपने मनोरथ से पीछे न हटते। जनवरी 1872 में 150 कूकों का जत्था बूचड़ों को सज़ा देने के लिए मलेरकोटला पहुँचा। 15 जनवरी, 1872 को कूकों और मलेरकोटला की सेना के मध्य घमासान युद्ध हुआ। दोनों पक्षों के अनेक व्यक्ति मारे गये। अंग्रेज़ सरकार ने कूकों के विरुद्ध कार्यवाही करने के लिए अपनी सेना मलेरकोटला भेजी। 65 कूकों ने स्वयं को गिरफ्तार करवा दिया। उनमें से 49 कूकों को 17 जनवरी 1872 ई० में तोपों से उड़ा दिया गया। सरकारी मुकद्दमें के पश्चात् 16 कूकों को भी 18 जनवरी 1872 ई० में तोपों से उड़ा दिया। श्री सतगुरु रामसिंह जी को देश निकाला देकर रंगून भेज दिया गया। कई नामधारी सूबों को काले पानी भेज दिया। कइयों को समुद्र के पानी में डुबोकर मार दिया गया और कई कूकों की जायदाद जब्त कर ली गई। इस प्रकार अंग्रेज़ सरकार ने हर प्रकार से जुल्म ढाये परन्तु लहर तब तक चलती रही जब तक 15 अगस्त, 1947 ई० को देश आजाद नहीं हो गया।
(a) श्री सतगुरु राम सिंह जी ने अंग्रेज़ सरकार से असहयोग क्यों किया?
उत्तर-
क्योंकि श्री सतगुरु राम सिंह जी विदेशी सरकार, विदेशी संस्थाओं तथा विदेशी माल के कट्टर विरोधी थे।
(b) नामधारियों और अंग्रेजों के मध्य मलेरकोटला में हुई दुर्घटना का वर्णन करो।
उत्तर-
नामधारी लोगों ने गौ-रक्षा का कार्य आरम्भ कर दिया था। गौ-रक्षा के लिए वे कसाइयों को मार डालते थे। जनवरी, 1872 को 150 कूकों (नामधारियों) का एक जत्था कसाइयों को दण्ड देने मलेरकोटला पहुंचा। 15 जनवरी, 1872 ई० को कूकों और मालेरकोटला की सेना के बीच घमासान लड़ाई हुई। दोनों पक्षों के अनेक व्यक्ति मारे गए। अंग्रेजों ने कूकों के विरुद्ध कार्यवाही करने के लिए अपनी विशेष सेना मालेरकोटला भेजी। 65 कूकों ने स्वयं अपनी गिरफ्तारी दी। उनमें से 49 कूकों को 17 जनवरी, 1872 ई० को तोपों से उड़ा दिया गया। सरकारी मुकद्दमों के पश्चात् 16 कूकों को भी 18 जनवरी 1872 ई० में तोपों से उड़ा दिया।

(16)

अशांति और क्रोध के इस वातावरण में अमृतसर और गाँवों के लगभग 25,000 लोग 13 अप्रैल, 1919 ई० को वैशाखी वाले दिन जलियाँवाला बाग में जलसा करने के लिए इकट्ठे हुए। जनरल डायर ने उसी दिन साढ़े नौ बजे ऐसे जलसों को गैर कानूनी करार दे दिया, परन्तु लोगों को उस घोषणा का पता नहीं था। इसी कारण जलियांवाला बाग़ में जलसा हो रहा था। जनरल डायर को अंग्रेजों के कत्ल का बदला लेने का मौका मिल गया। वह अपने 150 सैनिकों समेत जलियाँवाला बाग के दरवाजे के आगे पहुंच गया। बाग में आने-जाने के लिए एक ही तंग रास्ता था। जनरल डायर ने उसी रास्ते के आगे खड़े होकर लोगों को तीन मिनट के अन्दर-अन्दर तितर-बितर हो जाने का आदेश दिया परन्तु ऐसा करना असम्भव था। तीन मिनट के बाद जनरल डायर ने गोली चलाने का आदेश दे दिया। लगभग 1000 लोग मारे गए और 3000 से भी अधिक जख्मी हो गए। जलियाँवाला बाग की घटना के बाद देश की स्वतंत्रता की लहर को एक नया रूप मिला। इस घटना का बदला सरदार ऊधम सिंह ने 21 वर्ष पश्चात् इंग्लैंड में सर माइकल ओ डायर (जो घटना के समय पंजाब का लेफ्टिनेंट गवर्नर था) को गोली मारकर उसकी हत्या करके लिया।
(a) जलियाँवाला बाग़ की दुर्घटना का बदला किसने और कैसे लिया?
उत्तर-
जलियाँवाला बाग़ की दुर्घटना का बदला शहीद ऊधमसिंह ने 21 वर्ष बाद इंग्लैंड में सर माइकल ओ’डायर की गोली मारकर हत्या करके लिया।
(b) जलियाँवाला बाग़ की दुर्घटना के क्या कारण थे?
उत्तर-
जलियाँवाला बाग़ की दुर्घटना निम्नलिखित कारणों से हुई

  1. रौलेट बिल-1919 में अंग्रेजी सरकार से ‘रौलेट बिल’ पास किया। इसके अनुसार पुलिस को जनता के दमन के लिए विशेष शक्तियां दी गईं। अतः लोगों ने इनका विरोध किया।
  2. डॉ० सत्यपाल तथा डॉ० किचलू की गिरफ्तारी-रौलेट बिल के विरोध में पंजाब तथा अन्य स्थानों पर हड़ताल हुई। कुछ नगरों में दंगे भी हुए। अतः सरकार ने पंजाब के दो लोकप्रिय नेताओं डॉ० सत्यपाल तथा डॉ० किचलू को गिरफ्तार कर लिया। इससे जनता और भी भड़क उठी।
  3. अंग्रेजों की हत्या-भड़के हुए लोगों पर अमृतसर में गोली चलाई गई। जवाब में लोगों ने पांच अंग्रेजों को मार डाला। अतः नगर का प्रबन्ध जनरल डायर को सौंप दिया गया। इन सब घटनाओं के विरोध में अमृतसर के जलियांवाला बाग़ में एक आम सभा हुई जहां भीषण हत्याकांड हुआ।

PSEB 10th Class SST Solutions History उद्धरण संबंधी प्रश्न

(17)

अकाली जत्थों ने चरित्रहीन महन्तों के अधिकार से गुरुद्वारों को खाली करवाने का काम आरम्भ किया। उन्होंने हसन अब्दाल स्थित गुरुद्वारा, पंजा साहिब, जिला शेखूपुरा का गुरुद्वारा सच्चा सौदा तथा अमृतसर जिले का गुरुद्वारा चोला साहिब महन्तों से खाली करवा लिए। तरनतारन में अकालियों की महन्तों से मुठभेड़ हो गई। स्यालकोट स्थित गुरुद्वारा बाबा की बेर और लायलपुर (फैसलाबाद) जिला के गुरुद्वारे गोजरां में भी ऐसे ही हुआ।.अकाली दल फिर भी गुरुद्वारों को स्वतंत्र करवाने में जुटा रहा। 20 फरवरी, 1921 ई० को ननकाना साहिब गुरुद्वारा में एक बड़ी दुर्घटना घटी। जब अकाली जत्था शांतिपूर्वक ढंग से गुरुद्वारा पहुंचा तो वहाँ के महन्त नारायण दास ने 130 अकालियों का कत्ल करवा दिया। अंग्रेज़ सरकार ने अकालियों के प्रति कोई भी सहानुभूति प्रदर्शित न की। पर सारे प्रांत के मुसलमानों और हिन्दुओं ने अकालियों के प्रति सहानुभूति दिखाई।
(a) चाबियाँ वाला मोर्चा क्यों लगाया गया?
उत्तर-
अंग्रेजी सरकार ने दरबार साहिब अमृतसर की गोलक की चाबियां अपने पास दबा रखी थीं जिन्हें प्राप्त करने के लिए सिक्खों ने चाबियों वाला मोर्चा लगाया।
(b) गुरु का बाग़ घटना ( मोर्चे) का वर्णन करो।
उत्तर-
गुरुद्वारा ‘गुरु का बाग़’ अमृतसर से लगभग 13 मील दूर अजनाला तहसील में स्थित है। यह गुरुद्वारा महंत सुन्दरदास के पास था जो एक चरित्रहीन व्यक्ति था। शिरोमणि कमेटी ने इस गुरुद्वारे को अपने हाथों में लेने के लिए 23 अगस्त, 1921 ई० को दान सिंह के नेतृत्व में एक जत्था भेजा। अंग्रेजों ने इस जत्थे के सदस्यों को बन्दी बना लिया।
इस घटना से सिक्ख भड़क उठे। सिक्खों ने कई और जत्थे भेजे जिन के साथ अंग्रेजों ने बहुत बुरा व्यवहार किया। सारे देश के राजनीतिक दलों ने सरकार की इस कार्यवाही की कड़ी निन्दा की। अंत में अकालियों ने ‘गुरु का बाग़’ मोर्चा शांतिपूर्ण ढंग से जीत लिया।

लेज़ियम डम्बल (Lezium Dumble) Game Rules – PSEB 10th Class Physical Education

Punjab State Board PSEB 10th Class Physical Education Book Solutions लेज़ियम डम्बल (Lezium Dumble) Game Rules.

लेज़ियम डम्बल (Lezium Dumble) Game Rules – PSEB 10th Class Physical Education

प्रश्न 1.
लेज़ियम से आप क्या समझते हो ? लेजियम की मूलभूत अवस्थाएं बताइए।
उत्तर-
लेज़ियम-इसमें 16 लकड़ियों का एक लम्बा हैंडल होता है जिसके साथ लोहे की चेन लगी होती है। यह लकड़ी के दोनों सिरों से जुड़ी होती है। इसमें एक 5 इंच की छड़ होती है जिसको पकड़कर लेज़ियम से तालयुक्त झंकार और ध्वनि उत्पन्न की जा सकती है। इसका भार लगभग एक किलोग्राम होता है।
लेज़ियम का प्रयोग भारत देश के ग्रामीणीय क्षेत्रों में तालयुक्त क्रियाओं के लिए किया जाता है। इसके साथ ढोलक पर ताल दी जाती है। स्कूली छात्र इसमें बड़े उत्साह से भाग लेते हैं। इसलिए लेज़ियम से बच्चों का मनोरंजन बहुत अधिक होता है। शारीरिक व्यायाम के रूप में लेज़ियम का बहुत महत्त्व है, क्योंकि इसमें भाग लेने वालों को काफी व्यायाम करना पड़ता है।

लेजियम की मूलभूत अवस्थाएं

  1. लेज़ियम संकद-इसको बाईं भुजा में डालकर कंधे पर रखा जाता है, जोकि अंडे के रूप में होती है। लकड़ी का बड़ा हैंडल कंधे के पीछे और लोहे की चेन सामने होती है।
    लेज़ियम डम्बल (Lezium Dumble) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education 1
  2. आराम-लेजियम को लोहे की छड़ से दाएं हाथ में पकड़कर और बाएं हाथ में पकड़कर बाईं तरफ लटके रहने दिया जाता है। जब विद्यार्थी इससे होशियार अवस्था में हो, तो आराम का आदेश दिया जाता है।
  3. होशियार-व्यायाम शुरू करने के लिए होशियार अवस्था में आना होता है। यह अवस्था उस समय की जा सकती है, जब बच्चे लेज़ियम को कंधे पर रखकर सावधान या आराम की अवस्था में हो, इस क्रिया की गणना दो में की जा सकती है। इसकी गणना में लोहे की छड़ को दाएं हाथ से पकड़ा जाता है। दो की गणना में लेज़ियम को बाएं कंधे से उतार कर छाती के सामने लाते हैं। बाएं हाथ में लकड़ी का हैंडल पकड़े हुए आगे को फैलाया जाता है और लोहे की छड़ को दाएं हाथ से छाती की तरफ खींचा जाता है। व्यायाम के बाद इस अवस्था में आना होता है।
  4. पवित्रता-यह अवस्था संकद अवस्था से हासिल की जाती है। दाएं घुटने को सीधा रख कर, बाएं घुटने में झुकाव डालकर, दायां पैर पीछे कर के घुटना झुकाकर, बाएं पैर पर आना चाहिए और उस पैर को नीचे दबाना चाहिए। शरीर का धड़ सीधा रख कर छाती, सिर और एड़ियों को ज़मीन पर रखते हुए ऊपर की तरफ करो इससे दायां पैर बाएं पैर के समकोण पर रहे, लेज़ियम होशियार अवस्था में होनी चाहिए।
  5. चार आवाज़-शुरू की अवस्था होशियार एक से घुटनों को सीधा रखते हुए, धड़ को नीचे झुकाओ और पैरों के नज़दीक पहला स्ट्रोक लो। इस अवस्था में बाईं कलाई बाहर की तरफ हो जाती है और लकड़ी का हैंडल शरीर के बराबर हो जाता है। दूसरी अवस्था में धड़ को ऊपर उठा कर और लोहे की चेन को लकड़ी के हैंडल से दूर खींच कर, दूसरा स्ट्रोक लें। इस अवस्था में लेज़ियम कमर के पास शरीर के सामने होगा।
    तीसरी अवस्था में धड़ सीधा करके खड़े होने की अवस्था में आकर, लकड़ी के हैंडल को जल्दी से दाएं कंधे के ऊपर लाओ, बायां हाथ सामने हो।
    चौथी अवस्था में हैंडल ऊपर की तरफ और मुंह सामने इस तरह फैलाओ जिससे लेजियम में देखा जा सके।
  6. एक जगह-इस व्यायाम में पहली चार गणनाएँ और लेजियम को अर्ध-गोलाकार रूप में घुमाकर बाएं से दाएं की तरफ लाया जाता है। इसके बाद अगली चार गणनाओं में इसे बाईं तरफ लाया जाता है।
  7. आदि लगाओ-इस व्यायाम में एक स्थान की सभी आठ गणनाएं उसी तरह होंगी और साथ ही प्रत्येक विषम गणना से पैर पर क्रिया की जाएगी, चार बार आवाज़ भिन्न करते समय बाईं टांग को दाईं टांग से लगाया जाएगा और बायां पैर दाईं एड़ी के नज़दीक ज़मीन पर रखा जाता है। टांगों को ऊपर ले जाते समय पहले उसको आगे फैलाओ और तब दूसरे के ऊपर ले जाओ।
  8. शुरू की अवस्था पवित्र-इस अवस्था में पीछे घूमते समय चार आवाज़ चार बार करो। शुरू की अवस्था में आने से क्रिया पूरी हो जाती है। घूमने की क्रिया दाएं तरफ को
    की जाती है और लेज़ियम को सामने की तरफ छाती की ऊँचाई तक रखा जाता है। ताल को बनाए रखने के लिए चौथी गणना के साथ तेज़ी से मुड़ा जाए। इस व्यायाम को करते समय भुजा गोलाकार घुमाई जाती है।
  9. दो रुख-यह आठ गणना का व्यायाम है। इसमें पवित्रता शुरू की अवस्था में होती है। तीन तक की गणना तीन गणना के सामने होती है। चौथे से उल्ट दिशा की तरफ़ मुंह करते हुए बदली हुई पवित्रता स्थिति में बाएं से एकदम आगे को झपटते हुए चार बार आवाज़ करो। पांच पर लेजियम को उल्टा करते हुए बाएं से दाएं पैर के नज़दीक होकर चार आवाज़ करो। छः दो बार, सात शुरू की दिशा में पूरी तरह मुड़ी और अच्छी पवित्रता अवस्थाएं बनाए रखते हुए चार आवाज़ तीन करो और आठ ऊपर शुरू की अवस्था जारी रखो।
  10. आगे छलांग-यह दस गणना का व्यायाम है। शुरू की अवस्था पवित्रता होती है। एक आगे झुककर बाएं पैर के नज़दीक चार बार आवाज़ तीन उस समय करो, जब दाएं पैर से लाया गया कदम पूरा हो जाए, जहां बाएं तरफ मुड़ा जाता है। तीसरी गणना से दाएं पैर से आगे कदम करते हुए पीछे मुड़ कर दूसरी दिशा की तरफ मुंह करके बाएं पैर से आगे को उछलते हैं। इस तरह बाएं पैर के नज़दीक पांच और चार आवाज़ एक किया जाता है। छठा और सातवां स्ट्रोक लेते समय लेज़ियम के साथ बनाया पैर भी आगे लाया जाता है
    और पवित्र अवस्था के साथ आगे रख दिया जाता है। आठ और चार आवाज़ चार बार करो। नौवें पर नीचे झुकते हुए चार आवाज़ एक स्ट्रोक बाएं पैर के नज़दीक लाया जाता है, दसवें पर धड़ को ऊपर उठा कर चार आवाज़ दो करके पवित्र अवस्था लेनी चाहिए।
  11. पीछे छलांग-इस व्यायाम के गणना दस से शुरू होगी और शुरू की अवस्था पवित्र होती है, पहला बाएं पैर के नज़दीक चार आवाज़ एक करो। दूसरे और तीसरे में दाएं तरफ घूमते हुए आवाज़ दो करो और विपरीत दिशा में बायां पैर आगे बढ़ा कर चार आवाज़ तीन करो और चार आवाज़ चार करो। पांच और बाएं पैर के नज़दीक आवाज़ एक करो। छठे और सातवें पर बाएं पैर की तरफ घूमते हए उस तरफ दायां पैर पीछे रखो। आठ से चार आवाज़ चार यहां विद्यार्थी बाएं तरफ पवित्र स्थिति में होंगे। नौवें से नीचे झुकते हुए चार आवाज़ एक दी जाती है।
  12. आगे झुकना-एक से बायां पैर थोड़ा सा आगे को रखें, दाईं तरफ नीचे झुको और झुके हुए धड़ की हालत में लेज़ियम खोलो। दो पर दायां पैर 3 इंच ऊपर उठाओ और झुके हुए धड़ की स्थिति में सामने की तरफ लेज़ियम बंद करो। तीन पर दायां पैर थोड़ सा आगे रखो और दायें तरफ गणना एक की हरकत दोहराओ। इस प्रकार व्यायाम जारी रखा जा सकता है। इस प्रकार लेज़ियम के भिन्न-भिन्न व्यायाम किए जा सकते हैं।

लेज़ियम डम्बल (Lezium Dumble) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education

प्रश्न 2.
डम्बल से आप क्या समझते हो ? विस्तारपूर्वक समझाइए।
उत्तर-
डम्बल-डम्बल पश्चिमी देशों का खेल है। जो शरीर निर्माण के लिए ज़िमनेज़ियम में प्रयोग किया जाता है। डम्बल दो प्रकार के होते हैं। एक भारी लोहे के दूसरे हल्के लकड़ी के। डम्बल का अर्थ दो सिरा भार है। लकड़ी के डम्बल से स्कूलों के बच्चे कसरत करते हैं। एक हाथ में एक डम्बल पकड़ा जाता है और बाजुओं को घुमाकर इनका अभ्यास किया जाता है। डम्बल से कसरत करने का उद्देश्य वह कसरत है जिस से शारीरिक और मानसिक विकास हो सके। इनके साथ बाजुओं की मांसपेशियां मज़बूत होती हैं। छाती चौड़ी होकर ज्यादा हवा सांस के द्वारा दिल तक पहुँचाती है जिससे खून साफ होता है। साफ खून मिलने से शरीर निरोग और स्वस्थ रहता है, पुरातन समय में मलयुद्ध और कुश्तियां करने वाले डम्बल का अभ्यास ज़रूर करते हैं। जिन लोगों को बाजुओं की मांसपेशियां बनानी होती थी और छाती चौड़ी करनी होती थी वह भी डम्बल का व्यायाम करते थे।
लेज़ियम डम्बल (Lezium Dumble) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education 2
आज भी डम्बल का प्रयोग पुरातन समय की तरह ही होता है। डम्बल एक प्रकार का खेल भी है और व्यायाम भी। खेल और व्यायाम के साथ ही मनोरंजन का साधन भी है। डम्बल सूखी लकड़ी का बना होता है जिसके अन्दर मुट्ठी होती है। यह दोनों सिरों से गोल एवं मोटा होता है। इस मुट्ठी को हाथ से पकड़ा जाता है। सूखी लकड़ी के डम्बल मज़बूत होते हैं। इसकी आवाज़ भी काफी तीखी होती है। डम्बल व्यायाम में परस्पर टकराया जाता है। इसलिए इन्हें सावधानी से पकड़ने की जरूरत होती है। डम्बल को बीच से पकड़कर, पहले मुट्ठी के गिर्द, चारों उंगलियों को लपेट लिया जाता है। अंगूठा चारों उंगलियों के बीच रखा जाता है। डम्बल इस ढंग से पकड़ना चाहिए कि डम्बल टकराते समय हाथ से गिर न जाए।

डम्बल करते समय शरीर की स्थिति—
डम्बल करते समय पैर से एड़ियां मिली होनी चाहिएं और पैर खुले होने चाहिएं। घटने एवं टांगें सीधी हों। कंधे को पीछे खींचने से छाती तनी होगी। आँखें सामने सीधी होंगी। डम्बल करते समय विद्यार्थी विश्राम से सावधान अवस्था में आता है और दोनों हाथों में डम्बल पकड़े होते हैं और उनको सावधान स्थिति में रहना पड़ता है।
लेज़ियम डम्बल (Lezium Dumble) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education 3
पहले अभ्यास को शुरू करते हुए लीडर सावधान की मुद्रा (अवस्था) में होने का निर्देश देता है। उसके आदेश पर विद्यार्थी सावधान अवस्था में डम्बल पकड़े हुए अपने हाथ ऊपर को उठाते हैं और वह डम्बलों को अपनी कहनी की तरफ मोडते हैं। डम्बलों को अपने पेट के पास लाते हैं और दोनों पैरों से मिलाते हुए एक ही सुर से बाएं और दाएं हाथ के डम्बल एक-दूसरे से टकराते हैं, डम्बल जब परस्पर टकराते हैं और साथ ही मिली जुली ध्वनि पैदा होती है। उसके अनुसार लीडर विश्राम का आदेश देता है। विश्राम के आदेश पर सभी विद्यार्थी अपने दाएं पैर को उठाएंगे और कम से कम 6 इंच की दूरी से ज़ोर से भूमि पर पटक के इकट्ठे ध्वनि पैदा करेंगे।

ऐसा करते हुए दोनों हाथों से पकड़े हुए डम्बल को पीछे की तरफ ले जाएंगे और इकट्ठे डम्बल इस तरह बजाएंगे कि एक साथ ध्वनि पैदा हो जाए। इसके बाद सावधान का आदेश देने से अभ्यास करता कुहनी को मोड़ कर और दोनों हाथों से पकड़े डम्बलों को अपनेअपने सामने लाकर टकराएंगे और एक साथ ध्वनि उत्पन्न करेंगे। फिर अपने दोनों हाथों को सीधा भूमि की तरफ ले जाते हैं। इस अभ्यास में निम्नलिखित अवस्थाएं होती हैं—
इस अवस्था में सबसे पहले सावधान हो जाएं। दोनों पैरों की एड़ियां आपस में मिलाई जाती हैं और पैर फैले हुए होते हैं। कुहनी घुमाकर दोनों हाथों में पकड़े डम्बलों को परस्पर टकराया जाता है और ध्वनि पैदा की जाती है।
दूसरी अवस्था में आने के लिए पहली अवस्था को बदल दिया जाता है। इसमें दोनों हाथों को सीधा आगे किया जाता है।
हाथों की हथेलियाँ भूमि की तरफ की जाती हैं। उपरोक्त मुद्रा में डम्बल परस्पर तीसरी अवस्था में आने के लिए दूसरी अवस्था में परिवर्तन किया जाता है।
तीसरी अवस्था से पहली अवस्था में आया जाता है। इस अवस्था में हाथों को अपनी ठोड़ी के नीचे लाया जाता है। इस अवस्था में हाथों की हथेलियां ऊपर की ओर होती हैं।
हाथों को ठोड़ी के नीचे लाकर डम्बलों को परस्पर टकराया जाता है और एक.साथ ध्वनि पैदा की जाती है।
चौथी अवस्था में आने के लिए फिर से तीसरी अवस्था में परिवर्तन किया जाता है। इस अवस्था में सावधान स्थिति में लाया जाया है। सावधान स्थिति में अभ्यास करने वाला एड़ियों को मिलाकर और पैर खोलकर रखते हैं। उनकी टांगें सीधी होती हैं और घुटने लगभग एक-दूसरे से मिले हुए होते हैं। हाथों में पकड़े हुए डम्बल नीचे शरीर के साथ स्पर्श करते हैं। इस समय गर्दन सीधी होती है। नज़रें सामने होती हैं। कंधे पीछे को खींचे हुए और सीना तना हुआ होता है।

  1. पहली अवस्था-अभ्यास नं० 4 की अवस्था का अभ्यास करने वाले सावधान की अवस्था में खड़े होते हैं। दोनों बाजुओं को आगे की तरफ फैलाया जाता है। हाथ की हथेलियां आगे को झुकी होती हैं।
    इस अवस्था में डम्बल परस्पर टकरा कर ध्वनि पैदा करते हैं और इस तरह करते समय नज़र सामने की तरफ सीधी रखी जाती हैं।
  2. दूसरी अवस्था—दूसरी अवस्था में आने के लिए पहली अवस्था में परिवर्तन किया जाता है।
    दोनों हाथों को ऊपर की तरफ सीधा किया जाता है और डम्बल सिर के ऊपर लाए जाते हैं। इस अवस्था में दोनों की हथेलियां आगे की तरफ आती हैं। बाजू पीछे रख कर डम्बल आपस में टकराए जाते हैं और एक साथ ध्वनि उत्पन्न की जाती है। इस अवस्था में ध्यान रखना चाहिए कि अभ्यास करने वाले का चेहरा सूरज की तरफ न हो।

(इ) तीसरी अवस्था-इस अवस्था में आने के लिए दूसरी अवस्था में परिवर्तन किया जाता है। ऊपर उठे हुए बाजुओं को पहले नीचे लेकर आते हैं, कुहनी मोड़ कर बाजू ऊपर की ओर जाती हैं और ठोड़ी के नीचे की जाती है।
डम्बलों को ठोड़ी के नीचे टकराकर ध्वनि पैदा की जाती है।

(ई) चौथी अवस्था–इस अवस्था में आने के लिए उठे हुए हाथों को नीचे लाया जाता है।
चौथी अवस्था में सावधान मुद्रा बनाई जाती है, जिस में अभ्यास करने वाले एड़ियां मिलाकर और पैर खोलकर खड़े होते हैं, टांगें सीधी होती हैं और घुटने लगभग एक-दूसरे से स्पर्श करते हैं, इस समय गर्दन सीधी रखी जाती है। नज़रें सामने को देखते हुए, कंधे पीछे को खींचे हुए और सीना तना हुआ होता है।
अभ्यास 5 में निम्नलिखित चार अवस्थाएं आती हैं—

  1. पहली अवस्था में अभ्यास करने वाला सावधान मुद्रा में आता है। फिर कुहनियों को मोड़ कर हाथ ऊपर की तरफ ले जाते हैं और फिर हाथ ठोड़ी के नीचे किए जाते हैं।
  2. दूसरी अवस्था में आने के लिए पहली अवस्था में काफी परिवर्तन किया जाता है। ऊपर को उठी बाजू को नीचे लाया जाता है और बाजुओं को पीछे करके हाथ पीछे लाए जाते हैं, फिर दोनों को सीधा करने के बाद कुहनियां पेट के साथ लगाई जाती है। इस मुद्रा में डम्बल परस्पर टकराकर एक ही समय ध्वनि उत्पन्न की जाती है।
  3. तीसरी अवस्था में आने के लिए पीछे किए हुए हाथों को वहां से हटा कर आगे लाया जाता है। इस मुद्रा में डम्बल परस्पर टकराकर एक ही समय ध्वनि उत्पन्न की जाती
  4. चौथी अवस्था में अभ्यास करने वाले सावधानी की अवस्था में आ जाते हैं, डम्बल मुट्ठी से हाथों में पकड़े हुए शरीर को स्पर्श करेंगे।

टेबल टेनिस (Table Tennis) Game Rules – PSEB 10th Class Physical Education

Punjab State Board PSEB 10th Class Physical Education Book Solutions टेबल टेनिस (Table Tennis) Game Rules.

टेबल टेनिस (Table Tennis) Game Rules – PSEB 10th Class Physical Education

याद रखने योग्य बातें

  1. टेबल टेनिस खेल की किस्म = दो सिंगल और डबल
  2. टेबल टेनिस मेज़ की लम्बाई और चौड़ाई = 274 × 152.5 सैंटीमीटर
  3. खेलने वाले फर्श की ऊंचाई = 76 सैंटीमीटर
  4. खेलने वाले फर्श से जाल की ऊंचाई = 15.25 सैंटीमीटर
  5. जाल की लम्बाई = 183 सैंटीमीटर
  6. गेंद का वज़न = 2.55 ग्राम के 2.7 ग्राम.
  7. गेंद किस वस्तु का बना होता है = सेल्यूलाइड अथवा सफेद प्लास्टिक
  8. गेंद की परिधि = 40 सैंटीमीटर
  9. गेंद का रंग = सफेद
  10. मैच के अधिकारी = 1 रैफ़री, अम्पायर, 1 सहायक अम्पायर।
  11. गेमों के मध्य अन्तराल = 1 मिनट
  12. मैच के दौरान टाइम आउट = 1 मिनट
  13. रेखाओं की चौडाई = 2 सैं०मी०
  14. सतह को विभाजित करने वाली रेखा की चौड़ाई = 3 मि०मी०

टेबल टेनिस खेल की संक्षेप रूप-रेखा
(Brief outline of the Table Tennis Game)

  1. टेबल टेनिस के मेज़ की लम्बाई 274 सैंटीमीटर और चौड़ाई 152.5 सैंटीमीटर होती है।
  2. टेबल टेनिस की खेल दो प्रकार की होती है-सिंगल्ज़ तथा डबल्ज़। सिंगल्ज़-इसमें कुल खिलाड़ी दो होते हैं। एक खिलाड़ी खेलता है तथा एक खिलाड़ी अतिरिक्त होता है। डबल्ज़-इसमें चार खिलाड़ी होते हैं, जिनमें से दो खेलते हैं तथा दो खिलाड़ी अतिरिक्त होते हैं।
  3. डबल्ज़ खेल के लिए खेलने की सतह (Playing Surface) को 3 सैंटीमीटर चौड़ी सफ़ेद रेखाओं द्वारा दो भागों में बांटा जाएगा।
  4. टेबल टेनिस की खेल में सिरों तथा सर्विस आदि के चुनाव का फैसला टॉस द्वारा किया जाता है।
  5. टॉस जीतने वाला सर्विस करने का फैसला करता है तथा टॉस हारने वाला सिरे का चुनाव करता है।
  6. सिंगल्ज़ खेल में 2 प्वाइंटों के बाद सर्विस बदल दी जाती है।
  7. मैच की अन्तिम सम्भव गेम में जब कोई खिलाड़ी या जोड़ी पहले 10 प्वाइंट कर ले तो सिरे बदल लिए जाते हैं।
    टेबल टेनिस (Table Tennis) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education 1
  8. मैच एक पांच गेमों या सात गेमों में से सर्वोत्तम गेम होता है।
  9. टेनिस के टेबल की लाइनें सफेद होनी चाहिएं।
  10. टेनिस के टेबल का शेष भाग हरा और नीला होना चाहिए।

टेबल टेनिस (Table Tennis) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education

प्रश्न
टेबल टेनिस की खेल के सामान का संक्षेप वर्णन करें।
उत्तर-
मेज़ (Table)-मेज़ आयताकार होता है। इसकी लम्बाई 274 सैंटीमीटर तथा चौड़ाई 152.5 सैंटीमीटर होती है। इसकी ऊपरी सतह फर्श से 76 सैंटीमीटर ऊंची होगी। मेज़ किसी भी पदार्थ से निर्मित हो सकता है, परन्तु उसके धरातल पर 30.5 सैंटीमीटर की ऊंचाई से कोई प्रामाणिक गेंद फैंकने पर एक सार ठप्पा खाएगी जो 22 सेंटीमीटर से कम तथा 25 सैंटीमीटर से अधिक ऊंचा नहीं होना चाहिए। मेज़ के ऊपरी धरातल को क्रीड़ा तल (Playing Surface) कहते हैं। यह गहरे हल्के रंग का होता है। इसके प्रत्येक किनारे 42 सैंटीमीटर चौड़ी श्वेत रेखा होगी, 152.2 सैं० मी० के किनारे वाली रेखाएं अन्त रेखाएं तथा 23.4 सैंटीमीटर किनारे की रेखाएं पार्श्व (साइड) रेखाएं कहलाती हैं। डबल्ज़ खेल में मेज़ की सतह 3 मिलीमीटर चौड़ी सफेद रेखा दो भागों में विभक्त होती है जो साइड रेखा के समान्तर तथा प्रत्येक के समान दूरी पर होती है, इसे केन्द्र रेखा कहते हैं।
टेबल टेनिस (Table Tennis) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education 2
जाल (Net)-जाल की लम्बाई 183 सैं० मी० होती है। इसका ऊपरी भाग क्रीडा तल (Playing Surface) से 15.25 सैं० मी० ऊंचा होता है। यह रस्सी द्वारा- 15.25 सैं० मी० ऊंचे सीधे खड़े डण्डों से बांधा होता है। प्रत्येक डण्डे की बाहरी सीमा उसी पार्श्व रेखा अर्थात् 15.25 सैंटीमीटर से बाहर की ओर होती है।
गेंद (Ball)—गेंद गोलाकार होती है। यह सैल्यूलाइड अथवा प्लास्टिक की सफ़ेद पीली परन्तु प्रतिबिम्बहीन होती है। इ’ का व्यास 37.2 मिलीमीटर से कम तथा 40 मि० गी0 से अधिक नहीं होता। इसका भार 2.40 ग्रा० से कम तथा 2.53 ग्रा० से अधिक नहीं होता।
रैकेट (Racket)-फेट किसी भी आकार या भार का हो सकता है। इसका तल गहरे रंग का होना चाहिए। यह खेल 21 अंक का होता है।

प्रश्न
टेबल टेनिस खेल में निम्नलिखित से आपका क्या भाव है ?
(1) टेबल का कम
(2) बाल खेल में
(3) अच्छी सर्विस
(4) अच्छी वापिसी
(5) लैट।
उत्तर-
खेल का क्रम (Order of Play) एकल (Single) खेल में सर्विस करने वाला (सर्वर) लगातार पांच वार सर्विस करता है, चाहे उसका अंक बने या न बने। उसके पश्चात् सर्विस दूसरे खिलाड़ी को मिलती है। इस तरह उसे भी पांच सर्विस करने का हक मलता है। इस तरह हर पांच सर्विस करने के बाद सर्विस में तबदीली होती है।
टेबल टेनिस (Table Tennis) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education 3
दोकल (Double)-खेल में सर्वर सर्विस करता है तथा रिसीवर अच्छी वापसी करेगा। सर्वर का साथी फिर बढ़िया वापसी करेगा और बारी-बारी प्रत्येक खिलाड़ी उसी क्रम से बढ़िया वापसी करेंगे।

उत्कृष्ट ( अच्छी) सर्विस (Good Service) सर्विस में गेंद का सम्पर्क करता हुआ मुक्त हाथ खुला, अंगुलियां जुड़ी हुईं तथा अंगूठा मुक्त रहेगा और क्रीड़ा तल के लेवल के द्वारा सर्वर गेंद को ला कर हवा में इस प्रकार सर्विस शुरू करेगा कि गेंद हर समय निर्णायक को नज़र आए।
गेंद फिर इस प्रकार प्रहारित होगी कि सर्वप्रथम सर्वर का स्पर्श करके सीधे जाल के ऊपर या आस-पास पार करती हुई पुनः प्रहारक के क्षेत्र का स्पर्श कर ले।
दोकल (Double)-खेल में गेंद पहले सर्वर का दायां अर्द्धक या उसके जाल की ओर की केन्द्र रेखा स्पर्श करके जाल के आस-पास या सीधे ऊपर से गुजर कर प्रहारक के दायें अर्द्धक या उसके जाल की ओर केन्द्र रेखा स्पर्श करे।
उत्कृष्ट ( अच्छी) वापसी (A Good Return) सर्विस या निवर्तन (Return) की हुई गेंद खिलाड़ी द्वारा इस प्रकार प्रहारित की जाएगी कि वह सीधे जाल को पार करके या चारों ओर पार करके विरोधी के क्षेत्र को स्पर्श कर ले।
बाल खेल में (Ball in Play)-सर्विस में हाथ द्वारा आगे को बढ़ाने के क्षण में गेंद खेल में मानी जाएगी जब तक कि—

  1. गेंद एक क्षेत्र में दो बार स्पर्श नहीं कर लेती।
  2. वह किसी खिलाड़ी को या उसके वस्त्र को छू नहीं लेती।
  3. वह किसी खिलाड़ी द्वारा एक से अधिक बार लगातार प्रहारित नहीं हो जाती।
  4. सर्विस को छोड़ कर वह प्रत्येक क्षेत्र को रैकेट तुरन्त प्रहारित किए बिना एकान्तर से स्पर्श नहीं कर लेती।
  5. बिना टप्पा खाए आती है।
  6. वह जाल तथा उसकी टेकों (Supports) को छोड़ कर किसी अन्य वस्तु से छू जाए।
  7. दोकल (Double) खेल की सर्विस में सर्वर या रिसीवर की बाईं कोर्ट को छू ले।
  8. डबल्ज़ खेल में यदि टीम से बाहर के खिलाड़ी ने प्रहार किया हो।

लैट (Let)—विराम लैट होता है—

  1. अच्छी सर्विस होने पर गेंद यदि जाल पार करते समय जाल या उसकी टेकों को छू जाती है।
  2. जब सर्विस प्राप्तकर्ता या उसके साथी के तैयार न होने की अवस्था में सर्विस कर दी जाए।
  3. यदि किसी दुर्घटना के कारण कोई खिलाड़ी अच्छी सर्विस या रिटर्न करने से रुक जाता है।
  4. यदि किसी त्रुटि को दूर करने के लिए खेल रोका जाता है।

टेबल टेनिस (Table Tennis) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education

प्रश्न
टेबल टेनिस खेल में अंक कैसे मिलते हैं और खिलाड़ी कैसे विजय होता है ?
उत्तर-
अंक (Points)—नियम 9 में दी गई स्थिति को छोड़ कर कोई भी खिलाड़ी अंक खो देगा—

  1. यदि वह अच्छी सर्विस करने में असफल रहता है।
  2. यदि विपक्षियों में से किसी एक द्वारा सर्विस या अच्छी रिटर्न होते पर वह अच्छी रिटर्न में असफल हो जाए।
  3. यदि किसी खिलाड़ी या गेंद के खेल में रहते हुए क्रीड़ा तल को हिला दे।
  4. यदि उसका मुक्त हाथ गेंद के खेल में रहते हुए क्रीड़ा तल का स्पर्श कर ले।
  5. यदि गेंद खेल में आने से पूर्व अन्त रेखा या पार्श्व रेखा पार करती हुई उनकी ओर की मेज़ के क्रीड़ा तल को स्पर्श नहीं कर पाई है।
  6. यदि गेंद बिना टप्पा खाये लौटता है।
  7. दोकल खेल (Double) में यदि वह उचित अनुक्रम के बिना गेंद को प्रहारित नहीं करता।

जब कोई खिलाड़ी सर्विस करता है या कोई स्ट्रोक मारता है तो उसकी तरफ से खेली गई गेंद विरोधी तरफ से टप्पा खाने की बजाए सीधी उसके रैकेट को लगती है तो उस अवस्था में टेकन होता है जो अंक या स्ट्रोक मारने वाले को मिलता है।
खेल (Game)-खेल उस खिलाड़ी या जोड़े द्वारा जीती हुई मानी जाएगी जो पहले 11 अंक बना लेगा। यदि दोनों खिलाड़ी जोड़े 10 अंक बना लेते हैं तो उस वक्त दोनों खिलाड़ी या जोड़े को क्रमवार एक-एक सर्विस करने के लिए सुचेत किया जाता है जो खिलाड़ी या जोड़ा पहले दो अंक विरोधी से अधिक बना लेगा वह विजयी कहलाएगा।

मैच (Match)—मैच एक गेम, तीन गेम या पांच गेम का होगा। खेल निरन्तर जारी रहेगा, जब तक कोई खिलाड़ी या युगल विश्राम के लिए नहीं कहता। यह विश्राम पांच खेल वाले में से तीसरी और चौथी खेल के बीच पांच मिनट से अधिक नहीं होगा। अन्तरवर्ती क्षेत्रों में विश्राम एक मिनट से अधिक नहीं होगा।

प्रश्न
टेबल टेनिस में दिशा और सर्विस का चुनाव कैसे होता है ? दिशा परिवर्तन कैसे होता है ? सर्विस और रसीव करने की ग़लतियों पर प्रकाश डालें।
उत्तर-
दिशा और सर्विस का चुनाव (Selection of side and service)प्रत्येक मैच में दिशा का चुनाव तथा सर्वर या प्रहारक बनने का अधिकार चुनता है तो विपक्षी को दिशा चुनने का अधिकार होगा। यह रीति विपरीत क्रम में भी रहेगी। टॉस जीतने वाला यदि चाहे तो विपक्षी को प्रथम- चयन का अधिकार दे सकता है।
दोकल (Double)-खेल में जिस जोड़े को पहले सर्विस करने का अधिकार होगा वह निश्चित करेगा कि किस साथी को ऐसा करना है। इसी प्रकार मैच के प्रथम खेल में विपक्षी जोड़ा भी यह निश्चित करेगा कि किस साथी खिलाड़ी ने पहले सर्विस प्राप्त करनी है।
दिशा परिवर्तन तथा सर्विस
(Change of Ends and Service)
खेल में एक दिशा से प्रारम्भ करने वाला खिलाड़ी या जोड़ा उससे अगले खेल में दूसरी ओर से प्रारम्भ करेगा। यह क्रम मैच के अन्त तक जारी रहेगा। मैच के अन्तिम खेल में जो खिलाड़ी या जोड़ा पहले 5 फलांकन बना लेगा वह दिशा परिवर्तन कर सकता है। . एकल (Single) खेल में 2 अंक के पश्चात् रिसीवर सर्वर बन जाएगा और सर्वर रिसीवर
और यही क्रम मैच के अन्त तक जारी रहेगा (नीचे दी हुई स्थिति को छोड़ कर)।

दोकल खेल में पहली 2 सर्विस उस जोड़े के चुने हुए साथी द्वारा होगी जिन्हें निर्णय का अधिकार या विपक्षी जोड़े के चुने हुए साथी द्वारा प्राप्त की जाएगी। दूसरी 2 सर्विस, प्रथम 2 सर्विस प्राप्त करने वाला प्रहार करेगा तथा पहली 2 सर्विस करने वाला सर्वर उन्हें प्राप्त करेगा। तीसरी 2 सर्विस प्रथम 2 सर्विस करने वाला सर्वर का साथी करेगा तथा प्रथम 2 सर्विस प्राप्त करने वाला प्रहारक का साथी उन्हें प्राप्त करेगा। चौथी । सर्विस प्रथम 2 सर्विस करने वाला प्रहारक का साथी करेगा तथा प्रथम 2 सर्विस करने वाला सर्वर उन्हें प्राप्त करेगा। पांचवीं 2 सर्विस प्रथम 2 सर्विस के समान संक्रमिन होगी। खेल इसी क्रम में जारी रहेगा जब तक खेल समाप्त नहीं हो (नीचे दी हुई स्थिति को छोड़ कर) जाता।

फलांकन के 10 अंक होने पर या खेल के एकस्पिडाइट पद्धति के अन्तर्गत खेले जाने पर सर्विस और प्रहार करने का क्रम वही रहेगा, किन्तु खेल के अन्त तक प्रत्येक खिलाड़ी बारी-बारी से केवल एक सर्विस करेगा जो खिलाड़ी या जोड़ा पहले खेल में सर्विस करेगा वह उससे अगले खेल में सर्विस प्राप्त करेगा।

‘दोकल’ मैच के अन्तिम खेल में 5 फलांकन पर जोड़े दिशा परिवर्तन कर लेंगे। इस तरह सिगल्ज़ में भी अन्तिम गेंद में 10 अंक खेलने के बाद दिशा बदल जाती है।
दिशा में सर्विस अनियमतता (Out of orders of Ends of Service)–यदि कोई खिलाड़ी समय पर दिशा परिवर्तन नहीं करते तो वे त्रुटि ज्ञात होते ही दिशाएं बदलेंगे, जब तक कि त्रुटि के बाद खेल समाप्त न हो चुका हो। तब त्रुटि की उपेक्षा कर दी जाएगी। किसी भी परिस्थिति में त्रुटि ज्ञात होने से पूर्व वे सब बनाए हुए अंक माने जाएंगे।

यदि कोई खिलाड़ी अपनी बारी के बिना सर्विस करता है तो त्रुटि ज्ञात होते ही खेल रोक दिया जाएगा और खेल उस खिलाड़ी की सर्विस या प्राप्ति द्वारा पुनः जारी किया जाएगा जिस खेल के प्रारम्भिक क्रम के अनुसार करनी चाहिए थी या फलांकन के 5 पर पहुंचने पर। यदि नियम 14 के अंतर्गत उस क्रम में परिवर्तन हो गया तो उसी क्रम के अनुसार उसे सर्विस करनी या प्राप्त करनी चाहिए। किसी भी परिस्थिति में त्रुटि होने से पूर्व के सब बनाये हुए अंक माने जाएंगे।

टेबल टेनिस (Table Tennis) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education

PSEB 10th Class Physical Education Practical टेबल टेनिस (Table Tennis)

प्रश्न 1.
टेबल टेनिस के मेज़ की लम्बाई और चौड़ाई बताओ।
उत्तर-
टेबल टेनिस के मेज़ की लम्बाई 2.74 सैंटीमीटर और चौड़ाई 152.5 सैंटीमीटर होती है।

प्रश्न 2.
टेबल टेनिस की खेल कितनी प्रकार की होती है ?
उत्तर-
टेबल टेनिस की खेल दो प्रकार की होती है—

  1. सिंगल्ज़
  2. डबल्ज़।

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प्रश्न 3.
टेबल टेनिस के खिलाड़ियों की संख्या बताओ।
उत्तर-

  1. सिंगल्ज़-इसमें दो खिलाड़ी होते हैं। एक खेलता है और एक खिलाड़ी अतिरिक्त (Substitute) होता है।
  2. डबल्ज़-इसमें तीन खिलाड़ी होते हैं। दो खिलाड़ी खेलते हैं और एक खिलाड़ी अतिरिक्त (Substitute) होता है।

प्रश्न 4.
खेल कैसे शुरू होता है ?
उत्तर-
टॉस जीतने वाला सर्विस करने का फैसला करता है और हारने वाला सिरे का चुनाव करता है।

प्रश्न 5.
जाल की लम्बाई और ऊंचाई बताओ।
उत्तर-
जाल की लम्बाई 1.83 सैंटीमीटर होगी और इसकी ऊंचाई सतह (Playing Surface) से 15.25 सैंटीमीटर होगी।

टेबल टेनिस (Table Tennis) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education

प्रश्न 6.
गेंद का भार और उसकी गोलाई बताओ।
उत्तर-
गेंद का भार कम-से-कम 2.40 ग्राम और अधिक-से-अधिक 2.50 ग्राम होगा। उसकी गोलाई कम-से-कम 37.2 m.m. और अधिक-से-अधिक 38.2 m.m. होनी चाहिए।

प्रश्न 7.
रैकेट किस तरह का होना चाहिए ?
उत्तर-
रैकेट (Racket) किसी भी आकार या भार का हो सकता है। इसका तल गहरे रंग (Dark Colour) का होना चाहिए।

प्रश्न 8.
टेबल टेनिस बाल को किस तरह जज करेंगे कि बाल ठीक है ?
उत्तर-
टेबल टेनिस का बाल 30.5 सेंटीमीटर की ऊंचाई से गिराया जाए तो कम-से-कम 22 सैंटीमीटर और अधिक-से-अधिक 25 सैंटीमीटर उछलना चाहिए।

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प्रश्न 9.
टेबल टेनिस की गेम कितने प्वाइंटों की होती है ?
उत्तर-
टेबल टेनिस का एक खिलाड़ी या एक जोड़ा गेम जीत जाएगा, यदि वह पहले 11 प्वाइंट स्कोर कर लेता है। जब दो खिलाड़ियों का जोड़ा 11 प्वाईंट कर ले तो वे खिलाड़ी या जोड़ा विजयी होगा जो दूसरे से पहले दो प्वाइंट प्राप्त कर लेगा।

प्रश्न 10.
टेबल टेनिस की खेल में प्वाइंट कैसे किए जाते हैं और कोई खिलाड़ी कैसे विजयी होता है ?
उत्तर-

  1. प्वाइंट (Point) एक खिलाड़ी एक प्वाइंट दे देगा यदि वह अच्छी सर्विस करने से असफल रहे।
  2. यदि उसके विरोधी ने अच्छी तरह सर्विस या अच्छी रिटर्न तो की है और वह आप अच्छी रिटर्न करने में असफल हो जाए।
  3. यदि वह या उसका रैकेट जाल को स्पर्श कर जाए जब कि गेंद खेल में (Ball in Play) हो।
  4. यदि उसका स्वतन्त्र हाथ (Free Hand) खेल की सतह (Playing Surface) को स्पर्श कर जाए जबकि गेंद खेल में (Ball in Play) हो।
  5. यदि वह गेंद को वॉली (Volley) मारता है।
  6. डबल्ज़ में अपनी बारी के बिना गेंद को चोट मारता है।

PSEB 10th Class Welcome Life Solutions Chapter 10 तनाव प्रबंधन

Punjab State Board PSEB 10th Class Welcome Life Book Solutions Chapter 10 तनाव प्रबंधन Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 10 Welcome Life Chapter 10 तनाव प्रबंधन

PSEB 10th Class Welcome Life Guide तनाव प्रबंधन Textbook Questions and Answers

अभ्यास-I

प्रश्न 1.
तनाव हमारे लिए कैसे उपयोगी हो सकता है?
उत्तर-
आमतौर पर कहा जाता है कि तनाव हमारे लिए हानिकारक है लेकिन कभी कभी यह उपयोगी भी हो सकता है। तनाव हमें प्रतिकूल परिस्थितियों से लड़ना सिखाता है, हमारी एकाग्रता को बढ़ाता है, हमारी कार्य क्षमता और आत्म सम्मान को बढ़ाता है। इस प्रकार तनाव हमारे लिए एक उपयोगी पहलू भी है।

प्रश्न 2.
तनाव ग्रस्त होने पर कौन-से शारीरिक और मानसिक परिवर्तन महसूस होते हैं?
उत्तर-
आंतरिक रूप से, तनाव का शरीर पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। व्यक्ति का दिल तेज़ी से धड़कता है, हृदय रोग होता है, सिरदर्द शुरू होता है और सांस लेने में समस्या शुरू हो जाती है। यह शरीर की रोगों से लड़ने की क्षमता को भी कम करता है। बाहरी रूप से शरीर कई बदलावों से गुज़रता है। व्यक्ति का वज़न बढ़ना शुरू हो जाता है, बाल झड़ने लगते हैं, पसीना निकलने लगता है। व्यक्ति शारीरिक और मानसिक रूप से बीमार हो जाता है, जिसका असर उसके चेहरे पर साफ दिखता है और उसके चेहरे पर चिंताएँ हमेशा दिखाई देती हैं।

PSEB 10th Class Welcome Life Solutions Chapter 10 तनाव प्रबंधन

प्रश्न 3.
तनाव ग्रस्त व्यक्ति का चेहरा कैसा होता है?
उत्तर-
तनाव ग्रस्त व्यक्ति का चेहरा मुरझा जाता है, वह हमेशा ही बीमार दिखने लगता है और उसके माथे पर हमेशा चिंता के भाव रहते हैं।

प्रश्न 4.
आपके लिए कौन-सी बातें तनाव देने वाली हैं?
उत्तर-
यदि हम छात्र के दृष्टिकोण से देखें, तो तनाव का मुख्य कारण कक्षा में कम अंक लाना, पीछे रह जाना तथा फेल होने का डर इत्यादि तनाव के मुख्य कारण होते हैं। एक पिता या पति के रूप में तनाव के मुख्य कारण नौकरी या व्यवसाय की चिंताएं, आय और व्यय की चिंता, परिवार की चिंता, बच्चों के सैट होने की चिंता तनाव के कारण हैं। इस प्रकार अलग-अलग परिस्थितियों तनाव के कारण अलग-अलग होते हैं।

व्यायाम-II

प्रश्न 1.
क्या इंसान जीव-जन्तुओं के बिना धरती पर रह सकता है?
उत्तर-
नहीं, इंसान जीव-जन्तुओं के बिना धरती पर जीवित नहीं रह सकता। इसका कारण यह है कि प्रकृति ने एक जीवन चक्र बनाया है जिसके अनुसार एक प्राणी दूसरों पर जीने के लिए निर्भन करता है। उसी तरह, मानव अपने अस्तित्व के लिए दूसरे जानवरों पर निर्भर करता है। उनकी अनुपस्थिति में, मानव अस्तित्व खतरे में होगा। यही कारण है कि मनुष्य दूसरे जीव-जन्तुओं पर निर्भर करता है।

PSEB 10th Class Welcome Life Solutions Chapter 10 तनाव प्रबंधन

प्रश्न 2.
प्राकृतिक वनस्पति को नष्ट करने से क्या नुकसान हैं?
उत्तर-

  1. प्राकृतिक वनस्पति वर्षा लाने में मदद करती है। इसके अभाव में वर्षा की कमी होगी।
  2. प्राकृतिक वनस्पति मिट्टी के कटाव को रोकती है। इसके अभाव में मिट्टी का कटाव कभी नहीं रुकेगा?
  3. प्राकृतिक वनस्पतियाँ लकड़ी की हमारी ज़रूरतों को पूरा करती हैं, और इसके अभाव में ऐसी ज़रूरतें पूरी नहीं होंगी।
  4. यदि प्राकृतिक वनस्पति नहीं होगी तो वन्य जीवों के लिए कोई निवास स्थान नहीं होगा।

प्रश्न 3.
प्रकृति के संतुलन को बनाए रखने के लिए हम छात्रों के रूप में क्या कर सकते हैं?
उत्तर-

  1. हम प्राकृतिक वनस्पति के संरक्षण के लिए दूसरों को प्रेरित कर सकते हैं।
  2. प्राकृतिक वनस्पति की संभाल के लिए सैमिनार आयोजित किया जा सकता है।
  3. छात्र प्राकृतिक वनस्पति बढ़ाने के लिए नए पौधे लगा सकते हैं।

पाठ पर अधारित प्रश्न

प्रश्न 1.
तनाव हमारे शरीर को कैसे प्रभावित करता है?
उत्तर-
अभ्यास-I का प्रश्न 2 देखें।

PSEB 10th Class Welcome Life Solutions Chapter 10 तनाव प्रबंधन

प्रश्न 2.
तनाव कम करने के लिए हम क्या कर सकते हैं?
उत्तर-

  1. जब भी आप तनाव में हों, धीरे-धीरे अपनी आँखें बंद करें। पांच मिनट के बाद अपनी आँखें खोलें। यह आपके तनाव को कम करेगा।
  2. जब भी आप तनाव में हों, गहरी सांस लें और धीरे-धीरे सांस छोड़ें।
  3. हमें सुबह की सैर के लिए बाहर जाने या योग करने की आवश्यकता है।
  4. संतुलित आहार लेने से तनाव को कम किया जा सकता है।
  5. तनाव कम करने के लिए आपको अपने परिवार के सदस्यों और रिश्तेदारों से बात करते रहना चाहिए।
  6. व्यक्ति को अपने शौक पूरे करने चाहिएं।

प्रश्न 3.
दूसरों को तनाव मुक्त रखने के लिए हम क्या कर सकते हैं?
उत्तर-
देखें पिछला प्रश्न।

प्रश्न 4.
क्या तनाव हमारे लिए उपयोगी भी हो सकता है?
उत्तर-
अभ्यास-I का प्रश्न नं0 1 देखें।

PSEB 10th Class Welcome Life Solutions Chapter 10 तनाव प्रबंधन

Welcome Life Guide for Class 10 PSEB तनाव प्रबंधन Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

(क) बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
………. वह स्थिति जो हमारे तन, मन की उम्मीद के अनुसार नहीं हो रही होती।
(a) तनाव
(b) खुशी
(c) घृणा
(d) द्वेश।
उत्तर-
(a) तनाव।

प्रश्न 2.
मन की वह स्थिति जिसको हम ………. मान लेते हैं उसे ही हम तनाव कहते हैं।
(a) घृणा
(b) बोझ
(c) खुशी
(d) अत्याचार।
उत्तर-
(d) यह सभी।

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प्रश्न 3.
इनमें से तनाव का कारण क्या है?
(a) अधिक आकांक्षाएं
(b) हमारा प्राकृतिक स्वभाव
(c) काम का दबाव
(d) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(d) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 4.
तनाव से हमारी ……… शक्ति कमजोर होती है।
(a) शारीरिक
(b) मानसिक
(c) दोनों (a) और (b)
(d) कोई नहीं।
उत्तर-
(c) दोनों (a) और (b)।

प्रश्न 5.
तनाव के कारण इनमें से कौन-सी बीमारी होती है?
(a) एड्स
(b) दिल का रोग
(c) कैंसर
(d) टी० बी०।
उत्तर-
(b) दिल का रोग।

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प्रश्न 6.
तनाव का गलत पहलू क्या है?
(a) व्यक्ति काम करना बंद कर देता है।
(b) व्यक्ति अपनी जिम्मेदारियों से दूर भागता है।
(c) तनाव कई बीमारियों का कारण बनता है।
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर-
(d) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 7.
तनाव कम करने के लिए छात्र क्या कर सकते हैं?
(a) सुबह की सैर या योग करके
(b) हम दोस्तो के साथ खेल सकते हैं
(c) हम परिवार के सदस्यों से बात कर सकते हैं
(d) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(d) उपरोक्त सभी।

(ख) खाली स्थान भरें

  1. पृथ्वी पर ………… और जीव-जन्तु रहने के लिए एक-दूसरे पर निर्भर हैं।
  2. ………….. वनस्पति को संरक्षित किया जाना चाहिए।
  3. ………….. करने से तनाव को कम किया जा सकता है।
  4. ………. के कारण दिल की बीमारी हो सकती है।
  5. तनाव हमारे जीवन की ……….. घटना है।
  6. तनाव हमारे लिए ………. भी हो सकता और ……… भी।

उत्तर-

  1. मनुष्य,
  2. प्राकृतिक,
  3. सुबह की सैर,
  4. तनाव,
  5. प्राकृतिक,
  6. लाभदायक, नुकसानदायक।

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(ग) सही/ग़लत

  1. तनाव के बोझ के कारण एड्स हो सकता है।
  2. तनाव दिमाग पर बोझ डाल देता है।
  3. काम के भोझ से तनाव नहीं होता।
  4. तनाव से मानसिक शक्ति कमज़ोर होती है।
  5. तनाव के कारण कई लोग ज़िम्मेदारियों से दूर भागते हैं।
  6. इंसान और जीव-जन्तु एक-दूसरे के मददगार हैं।

उत्तर-

  1. ग़लत,
  2. सही,
  3. ग़लत,
  4. सही,
  5. सही,
  6. सही।

(घ) कॉलम से मेल करें

कॉलम ए — कॉलम बी
(a) तनाव — (i) तनाव का नतीजा
(b) काम का दबाव — (ii) प्रकृति का संतुलन
(c) हृदय रोग — (iii) तनाव को दूर करने का तरीका
(d) गहरी सांस लेना — (iv) मन की स्थिति
(e) जीव-जंतु — (v) तनाव का कारण।
उत्तर-
कॉलम ए — कॉलम बी
(a) तनाव — (iv) मन की स्थिति
(b) काम का दबाव — (v) तनाव का कारण
(c) हृदय रोग — (i) तनाव का नतीजा
(d) गहरी सांस लेना — (iii) तनाव को दूर करने का तरीका
(e) जीव-जंतु — (ii) प्रकृति का संतुलन

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अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
तनाव क्या है?
उत्तर-
वह मन की अवस्था जिसे हम बोझ मान लेते हैं, तनाव होता है।

प्रश्न 2.
तनाव को कैसे कम किया जा सकता है?
उत्तर-
इसके कारण को समझ उसका समाधान करके से तनाव को कम किया जा सकता है।

प्रश्न 3.
हम तनावग्रस्त क्यों हो जाते हैं?
उत्तर-
जब हम किसी समस्या को बोझ मानने लगते हैं, तो हम तनावग्रस्त हो जाते हैं।

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प्रश्न 4.
तनाव का एक कारण दीजिए।
उत्तर-
हम तब तनाव में आते हैं जब हमारी आकांक्षाएं पूरी नहीं होती हैं।

प्रश्न 5.
दूसरों से तुलना करके हम तनाव में कैसे आ जाते हैं?
उत्तर-
जब हम देखते हैं कि अन्य लोग अधिक सफल हो रहे हैं, तो हम तनाव में आ जाते हैं।

प्रश्न 6.
तनाव का हम पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर-
तनाव हमारी शारीरिक और मानसिक स्थिति को कमज़ोर करता है।

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प्रश्न 7.
तनाव से कौन-सी बीमारी हो जाती है?
उत्तर-
तनाव से हृदय रोग होता है और रक्तचाप भी बढ़ सकता है।

प्रश्न 8.
तनाव का गलत पहलू क्या है?
उत्तर-
यह हमें काम करने से रोकता है और हमें कभी भी अपनी ज़िम्मेदारियों को पूरा नहीं करने देता है।

प्रश्न 9.
छात्र तनाव में क्यों आते हैं?
उत्तर-
असफलता का डर, कम अंक प्राप्त करने का डार, कक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त न करने का डर इत्यादि ऐसे कारण हैं जिनके कारण छात्र तनाव में आते हैं।

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प्रश्न 10.
तनाव कम करने के लिए हमें क्या करना चाहिए?
उत्तर-
धीरे-धीरे अपनी आँखें बंद करें, पाँच सैकेंड के बाद आँखें खोलें या तनाव को कम करने के लिए लंबी साँसें लें।

प्रश्न 11.
छात्र तनाव को कैसे कम कर सकते है?
उत्तर-
सुबह की सैर या योग करने से छात्र तनाव को कम कर सकते हैं।

प्रश्न 12.
प्रकृति का संतुलन क्या हैं?
उत्तर-
यह कि मनुष्य और अन्य जीव-जन्तु एक-दूसरे पर निर्भर हैं।

प्रश्न 13.
प्रकृति का संतुलन कैसे बनाए रखा जा सकता है?
उत्तर-
यदि हम सभी प्राकृतिक चीज़ों की परवाह करते हैं, तो प्रकृति का संतुलन बनाए रखा जा सकता है।

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प्रश्न 14.
प्राकृतिक वनस्पति का एक लाभ दें।
उत्तर-
प्राकृतिक वनस्पति से हमें ऑक्सीजन मिलती है।

प्रश्न 15.
प्राकृतिक वनस्पतियों को नष्ट करने का नुकसान कया है?
उत्तर-
इससे हमारी लकड़ी की ज़रूरत नहीं पूरी होगी और वर्षा भी कम होगी।

प्रश्न 16.
प्राकृतिक वनस्पति को कैसे बचाया जा सकता है?
उत्तर-
नए पौधे लगाकर, प्राकृतिक वनस्पति को बचाया जा सकता है।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
तनाव की स्थिति पर एक नोट लिखें।
उत्तर-
तनाव एक प्रकार की वह स्थिति है जो हमारे मन के अनुसार नहीं है। यह मन की वह स्थिति है जिसे हम बोझ समझते हैं और उसे तनाव का नाम देते हैं। उदाहरण के लिए यदि हमें किसी काम को करने में देर हो जाती है, तो हम तनाव में आ जाते हैं। तनाव सकारात्मक और साथ ही व्यक्ति के लिए नकारात्मक स्थिति भी पैदा कर सकता है। यदि हमें तनाव के कारण के बारे में पता चल जाए, तो हम आसानी से इसका समाधान पा सकते हैं। लेकिन यदि कारण का पता न चले तो यह समस्या हमारे लिए बोझ बन जाती है। यह हम पर निर्भर करता है कि हम तनाव को एक सहायक या समस्या के रूप में कैसे ले सकते हैं।

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प्रश्न 2.
तनाव के चार कारण बताइए।
उत्तर-

  1. हमारी कई आकांक्षाएं हैं और यदि वे पूरी नहीं होती हैं, तो हम तनाव में आ जाते हैं।
  2. कुछ लोगों का तनाव में रहना स्वाभाविक प्रवृत्ति है। वे हमेशा तनाव में रहते हैं।
  3. लोग काम के दबाव में होते हैं और अपने बॉस के गुस्से का शिकार हो जाते हैं। इसलिए वे तनाव में आते हैं।
  4. कई व्यक्तियों की पारिवारिक स्थिति अच्छी नहीं है और वे हमेशा तनाव में रहते हैं।

प्रश्न 3.
तनाव के प्रभाव क्या हैं?
उत्तर-

  1. तनाव हमारी शारीरिक और मानसिक शक्ति को कमज़ोर करता है और दिल की धड़कन तेज़ हो जाती है।
  2. व्यक्ति सो नहीं पाता और अधिक पसीना आने लगता है। वह मोटा हो जाता है। कई बीमारियां हो सकती हैं जैसे पेट में दर्द, सिरदर्द, दिल की बीमारियां, रक्तचाप बढ़ना इत्यादि।
  3. हम बीमारियों से लड़ने में बहुत अधिक ऊर्जा खो देते हैं और हम तनाव से राहत नहीं ले पाते।
  4. तनाव का सबसे बुरा हिस्सा यह है कि यह हमें अपनी ज़िम्मेदारियों से दूर भगाता है, और हमें काम करने से रोकता है।

प्रश्न 4.
तनाव से बचने के लिए छात्र क्या कर सकते हैं?
उत्तर-

  1. तनाव कम करने के लिए हम अपने परिवार के सदस्यों और दोस्तों के साथ खेल सकते हैं।
  2. तनाव को कम करने के लिए प्राकृतिक वातावरण में सैर के लिए निकल सकते हैं।
  3. हम परिवार के सदस्यों के साथ काम कर सकते हैं, उनके साथ सहयोग कर सकते हैं, तनाव को दूर करने में उनकी मदद ले सकते हैं।
  4. सुबह की सैर के लिए बाहर जा सकते हैं, योग कर सकते हैं और तनाव कम करने के लिए संतुलित आहार ले सकते हैं।

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दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न-तनाव के कारण क्या हैं?
उत्तर-

  1. हम अपनी पारिवारिक स्थितियों या पड़ोस की स्थितियों के कारण तनाव में आ जाते हैं।
  2. यदि किसी को छोटे कद या शरीर के किसी हिस्से के बारे में साथियों द्वारा चिढ़ाया जाता है, तो वह तनाव में आ सकता है।
  3. देश में विपरीत परिस्थितियों के कारण भी व्यक्ति तनाव में आ सकता है।
  4. हमारी कई आकांक्षाएँ हैं और यदि वे पूरी नहीं होती हैं तो हम तनाव में आ जाते हैं।
  5. कुछ लोग स्वाभाविक रूप से तनाव में रहते हैं।
  6. कुछ लोग काम के दबाव में और प्रबंधन के दबाव के कारण तनाव में रहते हैं।
  7. यदि कोई किसी बीमारी से पीड़ित है या किसी ने किसी से का लिया है, तो वह तनाव में रहता है।
  8. यदि हम दूसरों के साथ अपनी तुलना करते हैं तो हम तनाव में आ जाते हैं।

तनाव प्रबंधन PSEB 10th Class Welcome Life Notes

  • यदि कोई भी स्थिति हमारे मन के अनुरूप नहीं है या हमारे मन के अनुसार नहीं है, तो यह तनाव की स्थिति है। ज्यादातर तनाव हानिकारक होता है लेकिन कई बार यह फलदायक भी हो सकता है।
  • तनाव के कई कारण हो सकते हैं जैसे हमारा प्राकृतिक व्यवहार, अधिक आकांक्षाएं, बीमारी, कर्जा, काम का बोझ इत्यादि।
  • सकारात्मक दृष्टिकोण वाले लोग अपने लाभ के लिए भी तनावपूर्ण स्थिति का उपयोग करते हैं। तनाव का समाधान खोजने के दौरान वह एक नई चीज़ की खोज करते हैं या स्थिति से बहुत लाभ प्राप्त करते हैं।
  • तनाव से अनिद्रा, सिरदर्द, सांस लेने में तकलीफ, हृदय रोग इत्यादि जैसे गलत प्रभाव हो सकते हैं। तनाव से लड़ने में बहुत ऊर्जा खर्च होती है और इसीलिए लोग अपनी ज़िम्मेदारियों से दूर भागते हैं।
  • हालांकि तनाव किसी के जीवन का एक अभिन्न हिस्सा है लेकिन इसे कम करने के प्रयास किए जाने चाहिए। गहरी साँस लेना, आँखें बंद करके बैठना, चिंताओं के बारे में न सोचना यह कुछ ऐसे तरीके हैं जिनसे हम तनाव को कम कर सकते हैं।
  • धरती पर इंसान और जानवर एक-दूसरे का साथ देते हैं। यह प्राकृतिक प्रणाली को संतुलित करने में मदद करता है।

PSEB 10th Class SST Solutions History Chapter 6 बन्दा बहादुर तथा सिक्ख मिसलें

Punjab State Board PSEB 10th Class Social Science Book Solutions History Chapter 6 बन्दा बहादुर तथा सिक्ख मिसलें Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 10 Social Science History Chapter 6 बन्दा बहादुर तथा सिक्ख मिसलें

SST Guide for Class 10 PSEB बन्दा बहादुर तथा सिक्ख मिसलें Textbook Questions and Answers

(क) निम्नलिखित प्रत्येक प्रश्न का उत्तर एक शब्द/एक पंक्ति (1-15 शब्दों) में लिखें

प्रश्न 1.
हुक्मनामे में गुरु (गोबिन्द सिंह) जी ने पंजाब के सिक्खों को क्या आदेश दिए?
उत्तर-
बंदा सिंह बहादुर उनका राजनीतिक नेता होगा तथा वे मुग़लों के विरुद्ध धर्मयुद्ध में बंदे का साथ दें।

प्रश्न 2.
बंदा सिंह बहादुर दक्षिण से पंजाब की तरफ क्यों आया?
उत्तर-
मुगलों के विरुद्ध सैनिक कार्यवाही करने के लिए।

प्रश्न 3.
समाना पर बंदा सिंह बहादुर ने आक्रमण क्यों किया?
उत्तर-
बंदा सिंह बहादुर ने सिक्ख गुरुओं पर अत्याचार करने वाले जल्लादों को दण्ड देने के लिए समाना पर आक्रमण किया।

PSEB 10th Class SST Solutions History Chapter 6 बन्दा बहादुर तथा सिक्ख मिसलें

प्रश्न 4.
बंदा सिंह बहादुर की तरफ से भूणा गांव पर आक्रमण करने का क्या कारण था?
उत्तर-
अपनी सैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए धन प्राप्त करने के लिए।

प्रश्न 5.
बंदा सिंह बहादुर ने सढौरा पर क्यों आक्रमण किया?
उत्तर-
सढौरा के अत्याचारी शासक उसमान खान को दण्ड देने के लिए।

प्रश्न 6.
बंदा सिंह बहादुर ने चप्पड़-चिड़ी तथा सरहिन्द पर क्यों आक्रमण किए?
उत्तर-
सरहिन्द के अत्याचारी सूबेदार वज़ीर खान को दण्ड देने के लिए।

PSEB 10th Class SST Solutions History Chapter 6 बन्दा बहादुर तथा सिक्ख मिसलें

प्रश्न 7.
सहों के युद्ध के क्या कारण थे?
उत्तर-
जालन्धर दोआबे के सिक्खों ने वहां के फ़ौजदार शम्स खां के विरुद्ध शस्त्र उठा लिए।

प्रश्न 8.
बजीर खां कहां का सूबेदार था? उसका बंदा सिंह बहादुर के साथ किस स्थान पर युद्ध हुआ?
उत्तर-
बज़ीर खां सरहिन्द का सुबेदार था। चप्पड़-चिड़ी में।

प्रश्न 9.
बंदा सिंह बहादुर की शहादत के बारे में लिखिए।
उत्तर-
बंदा सिंह बहादुर को 1716 ई० को उसके साथियों सहित दिल्ली में शहीद कर दिया गया।

PSEB 10th Class SST Solutions History Chapter 6 बन्दा बहादुर तथा सिक्ख मिसलें

प्रश्न 10.
‘करोड़सिंघिया’ मिसल का नाम कैसे पड़ा?
उत्तर-
करोड़सिंघिया मिसल का नाम इसके संस्थापक करोड़सिंह के नाम पर पड़ा।

प्रश्न 11.
सदा कौर कौन थी?
उत्तर-
सदा कौर महाराजा रणजीत सिंह की सास थी।

(ख) निम्नलिखित प्रत्येक प्रश्न का उत्तर लगभग 30-50 शब्दों में लिखो

प्रश्न 1.
बंदा सिंह बहादुर तथा गुरु गोबिंद सिंह जी की मुलाकात का वर्णन करो।
उत्तर-
बंदा सिंह बहादुर का आरम्भिक नाम माधोदास था। वह एक बैरागी था। 1708 ई० में गुरु गोबिन्द सिंह जी मुग़ल सम्राट् बहादुरशाह के साथ दक्षिण में गए। वहां माधोदास उनके सम्पर्क में आया। गुरु जी के आकर्षक व्यक्तित्व ने उसे इतना अधिक प्रभावित किया कि वह शीघ्र ही उनका शिष्य बन गया। गुरु जी ने उसे सिक्ख बनाया और उसे पंजाब में ‘सिक्खों’ का नेतृत्व करने के लिए भेजा। पंजाब में वह ‘बंदा सिंह बहादुर’ के नाम से विख्यात हुआ।

PSEB 10th Class SST Solutions History Chapter 6 बन्दा बहादुर तथा सिक्ख मिसलें

प्रश्न 2.
बंदा सिंह बहादुर की समाना की विजय पर एक नोट लिखिए।
उत्तर-
बंदा सिंह बहादुर ने 26 नवम्बर, 1709 ई० को समाना पर आक्रमण किया। इसका कारण यह था कि गुरु गोबिन्द सिंह जी के दो साहिबजादों को शहीद करने वाले जल्लाद समाना के थे। समाना की गलियों में कई घण्टों तक लड़ाई होती रही। सिक्खों ने लगभग 10,000 मुसलमानों को मौत के घाट उतार दिया और नगर के कई सुन्दर भवनों को नष्ट कर दिया। हत्यारे जल्लाद परिवारों का सफाया कर दिया गया। इस विजय से बंदा सिंह बहादुर को बहुत-सा धन भी प्राप्त हुआ।

प्रश्न 3.
चप्पड़-चिड़ी तथा सरहिन्द की लड़ाई का वर्णन करो।
उत्तर-
सरहिन्द के सूबेदार वज़ीर खान ने गुरु गोबिन्द सिंह जी को जीवन भर तंग किया था। इसके अतिरिक्त उसने गुरु साहिब के दो साहिबजादों को सरहिन्द में ही दीवार में चिनवा दिया था। इसलिए बंदा सिंह बहादुर इसका बदला लेना चाहता था। जैसे ही वह सरहिन्द की ओर बढ़ा, हजारों लोग उसके झण्डे तले एकत्रित हो गए। सरहिन्द के कर्मचारी, सुच्चा नंद का भतीजा भी 1,000 सैनिकों के साथ बंदा की सेना से जा मिला। परन्तु बाद में उसने धोखा दिया। दूसरी ओर वज़ीर खान के पास लगभग 20,000 सैनिक थे। सरहिन्द से लगभग 16 किलोमीटर पूर्व में चप्पड़चिड़ी के स्थान पर 22 मई, 1710 ई० को दोनों सेनाओं में घमासान युद्ध हुआ। वज़ीर खान को मौत के घाट उतार दिया गया। शत्रु के सैनिक बड़ी संख्या में सिक्खों की तलवारों के शिकार हुए। वज़ीर खान की लाश को एक पेड़ पर टांग दिया गया, । सुच्चा नंद जिसने सिक्खों पर अत्याचार करवाये थे, की नाक में नकेल डाल कर नगर में उसका जुलूस निकाला गया।

प्रश्न 4.
गुरदास नंगल के युद्ध का वर्णन करो।
उत्तर-
मुग़ल बंदा सिंह बहादुर की निरन्तर विजयों से आग-बबूला हो उठे थे। अत: 1715 ई० में एक विशाल मुग़ल सेना ने बंदा सिंह बहादुर पर आक्रमण कर दिया। इस सेना का नेतृत्व अब्दुस्समद खां कर रहा था। सिक्खों ने इस सेना का वीरता से सामना किया, परन्तु उन्हें गुरदास नंगल (गुरदासपुर से 6 कि० मी० दूर पश्चिम में) की ओर हटना पड़ा। वहां उन्होंने बंदा सिंह बहादुर सहित दुनीचन्द की हवेली में शरण ली। शत्रु को दूर रखने के लिए उन्होंने हवेली के चारों ओर खाई खोद कर उसमें पानी भर दिया। अप्रैल, 1715 ई० में मुग़ल सेना ने भाई दुनी चन्द की हवेली को घेर लिया। सिक्ख बड़े साहस और वीरता से मुग़लों का सामना करते रहे। आठ मास के लम्बे युद्ध के कारण उनकी खाद्य सामग्री समाप्त हो गई। विवश होकर उन्हें पराजय स्वीकार करनी पड़ी। बंदा सिंह बहादुर तथा उसके 200 साथी बन्दी बना लिए गए।

PSEB 10th Class SST Solutions History Chapter 6 बन्दा बहादुर तथा सिक्ख मिसलें

प्रश्न 5.
सबसे पहली मिसल कौन-सी थी? उसका वर्णन करो।
उत्तर-
सबसे पहली मिसल फैज़लपुरिया मिसल थी। इसका संस्थापक नवाब कपूर सिंह था। उसने सबसे पहले अमृतसर के निकट फैजलपुर नामक गांव पर अधिकार किया और इसका नाम ‘सिंहपुर’ रखा। इसलिए इस मिसल को ‘सिंहपुरिया मिसल’ भी कहते हैं। 1753 ई० में नवाब कपूर सिंह की मृत्यु हो गई और उसका भतीजा खुशहाल सिंह इस मिसल का नेता बना। उसके काल में सिक्खों का प्रभुत्व काफ़ी बढ़ गया और सिंहपुरिया मिसल का अधिकार क्षेत्र दूर-दूर तक फैल गया। 1795 ई० में उसके पुत्र बुद्ध सिंह ने इस मिसल की बागडोर सम्भाली। वह अपने पिता के समान वीर तथा योग्य न था। 1819 ई० में महाराजा रणजीत सिंह ने इस मिसल को अपने राज्य में मिला लिया।

(ग) निम्नलिखित प्रत्येक प्रश्न का उत्तर लगभग 100-120 शब्दों में लिखो

प्रश्न 1.
बंदा सिंह बहादुर की प्रारम्भिक विजयों का वर्णन करो।
उत्तर-
बंदा सिंह बहादुर अपने युग का महान् सेनानायक था। गुरु साहिब का आदेश पाकर वह दिल्ली पहुंचा। उसने मालवा, दोआबा तथा माझा के सिक्खों के नाम गुरु गोबिन्द सिह जी के हुक्मनामे भेजे। शीघ्र ही हज़ारों की संख्या में सिक्ख उसके नेतृत्व में इकट्ठे हो गए। सेना का संगठन करने के पश्चात् बंदा सिंह बहादुर बड़े उत्साह से अत्याचारी मुग़लों के विरुद्ध सैनिक कार्यवाही करने के लिए पंजाब की ओर चल पड़ा।
यहां से उसका विजय अभियान आरम्भ हुआ।

  1. सोनीपत पर आक्रमण-बंदा सिंह बहादुर ने सबसे पहले सोनीपत पर आक्रमण किया। उस समय उसके साथ केवल 500 सिक्ख ही थे। परन्तु वहाँ का फ़ौजदार सिक्खों की वीरता के बारे में सुन कर अपने सैनिकों सहित शहर छोड़ कर भाग गया।
  2. भूणा (कैथल) के शाही खज़ाने की लूट-सोनीपत से बंदा सिंह बहादुर कैथल के पास पहुँचा। उसे पता चला कि कुछ मुग़ल सैनिक भूमिकर इकट्ठा करके भूना गांव में ठहरे हुए हैं। अत: बंदा सिंह बहादुर ने भूना पर धावा बोल दिया। कैथल के फ़ौजदार ने उसका सामना किया, परन्तु पराजित हुआ। बंदा बहादुर ने मुग़लों से सारा धन छीन लिया।
  3. समाना की विजय-भूणा के पश्चात् बंदा सिंह बहादुर समाना की ओर बढ़ा। गुरु तेग़ बहादुर जी को शहीद करने वाला जल्लाद सय्यद जलालुद्दीन वहीं का रहने वाला था। सरहिन्द में गुरु गोबिन्द सिंह जी के छोटे साहिबजादों (जोरावर सिंह तथा फतेह सिंह) को शहीद करने वाले जल्लाद शासल बेग तथा बाशल बेग भी समाना के ही थे। उन्हें दण्ड देने के लिए 26 नवम्बर,1709 ई० को बंदा सिंह बहादुर ने समाना पर आक्रमण कर दिया। लगभग 10,000 मुसलमानों को मौत के घाट उतार दिया गया। सय्यद जलालुद्दीन, शासल बेग तथा बाशल बेग के परिवारों का सफाया कर दिया गया।
  4. घुड़ाम की विजय-लगभग एक सप्ताह पश्चात् बंदा सिंह बहादुर ने घुड़ाम पर धावा बोल दिया। वहां के पठानों ने सिक्खों का विरोध किया, परन्तु अन्त में उन्हें भाग कर अपनी जान बचानी पड़ी। घुड़ाम से भी सिक्खों को बहुतसा धन मिला।
  5. कपूरी पर आक्रमण-घुड़ाम के बाद बंदा सिंह बहादुर कपूरी पहुँचा। वहाँ का शासक कतमऊद्दीन हिन्दुओं पर बहुत अत्याचार करता था। बंदा सिंह बहादुर ने उसे पराजित करके मौत के घाट उतार दिया। उसकी हवेली को जला कर राख कर दिया गया।
  6. सढौरा की विजय-सढौरे का शासक उसमान खान भी हिन्दुओं पर अत्याचार करता था। भंगानी के युद्ध में गुरु जी की सहायता करने के कारण उसने पीर बुद्ध शाह को कत्ल करवा दिया था। इन अत्याचारों का बदला लेने के लिए बंदा सिंह बहादुर ने सढौरा पर आक्रमण किया और उसमान खान को पराजित करके शहर को खूब लूटा ।
  7. मुखलिसपुर की जीत-अब बंदा सिंह बहादुर ने मुखलिसपुर पर धावा बोला और बहुत ही आसानी से वहां अधिकार जमा लिया। वहां के किले का नाम बदल कर लोहगढ़’ रख दिया । बाद में यही नगर बंदा सिंह बहादुर की राजधानी बना।
  8. चप्पड़-चिड़ी की लड़ाई तथा सरहिन्द की जीत-बंदा सिंह बहादुर का वास्तविक निशाना सरहिन्द था। यहाँ के सूबेदार वज़ीर खान ने गुरु गोबिन्द सिंह जी को जीवन भर तंग किया था। इसके अतिरिक्त उसने गुरु साहिब के दो छोटे साहिबजादों को सरहिन्द में ही दीवार में चिनवा दिया था। इसका बदला लेने के लिए बंदा ने सरहिंद पर आक्रमण कर दिया। सरहिन्द से लगभग 16 किलोमीटर पूर्व में चप्पड़-चिड़ी के स्थान पर 22 मई, 1710 ई० को दोनों सेनाओं में घमासान युद्ध हुआ। सिक्ख बड़े उत्साह से लड़े और उन्होंने वज़ीर खान को मौत के घाट उतार दिया। उसकी लाश को एक पेड़ पर टांग दिया गया। सुच्चानंद जिसने सिक्खों पर अत्याचार करवाये थे, की नाक में नकेल डाल कर नगर में उसका जुलूस निकाला गया। सिक्ख सैनिकों ने शहर में भारी लूट-मार की।
  9. सहारनपुर तथा जलालाबाद पर आक्रमण-इसी समय बंदा सिंह बहादुर को पता चला कि जलालाबाद का गवर्नर जलाल खां अपनी हिन्दू प्रजा पर घोर अत्याचार कर रहा है। अतः वह जलालाबाद की ओर बढ़ा। मार्ग में उसने सहारनपुर पर विजय प्राप्त की। परन्तु उसे जलालाबाद को विजय किए बिना ही वापस लौटना पड़ा।
  10. जालन्धर दोआब पर अधिकार-बंदा सिंह बहादुर की विजयों से उत्साहित होकर जालंधर दोआब के सिक्खों ने वहां के फ़ौजदार शम्स खां के विरुद्ध विद्रोह कर दिया और बंदा सिंह बहादुर को सहायता के लिए बुलाया। शम्स खां ने एक विशाल सेना सिक्खों के विरुद्ध भेजी। राहों के स्थान पर दोनों सेनाओं में एक भयंकर युद्ध हुआ, जिसमें सिक्ख विजयी रहे।
  11. अमृतसर, बटाला, कलानौर तथा पठानकोट पर अधिकार-बंदा सिंह बहादुर की सफलता से उत्साहित होकर लगभग आठ हज़ार सिक्खों ने मुसलमान शासकों के विरुद्ध विद्रोह कर दिया। शीघ्र ही उन्होंने अमृतसर, बटाला, कलानौर तथा पठानकोट को अपने अधिकार में ले लिया। कुछ समय पश्चात् लाहौर भी उनके अधिकार में आ गया।

PSEB 10th Class SST Solutions History Chapter 6 बन्दा बहादुर तथा सिक्ख मिसलें

प्रश्न 2.
बहादुर शाह ने बंदा बहादुर के विरुद्ध जो युद्ध लड़े, उनका वर्णन करो।
उत्तर-
बंदा सिंह बहादुर ने पंजाब के मुग़ल शासकों में हड़कंप मचा रखा था। जब यह समाचार मुग़ल सम्राट बहादुरशाह तक पहुंचा, तो वह क्रोधित हो उठा। उसने अपना सारा ध्यान पंजाब पर केन्द्रित कर दिया । 27 जून, 1710 ई० को वह अजमेर से पंजाब की ओर चल पड़ा। उसने दिल्ली तथा अवध के सूबेदारों तथा मुरादाबाद तथा इलाहाबाद के निज़ामों तथा फ़ौजदारों को आदेश दिया कि वे अपनी-अपनी सेनाओं सहित पंजाब में पहुंचे।

  1. अमीनाबाद की लड़ाई-बंदा सिंह बहादुर की शक्ति को कुचलने के लिए बहादुर शाह ने सर्वप्रथम फिरोज़ खान मेवाती तथा महावत खान के अधीन सिक्खों के विरुद्ध एक विशाल सेना भेजी। इस सेना का सामना बिनोद सिंह तथा राम सिंह ने 26 अक्तूबर, 1710 ई० को अमीनाबाद (बनेसर तथा तरावड़ी के बीच) में किया । उन्होंने महावत खान को एक बार तो पीछे धकेल दिया, परन्तु शत्रु की संख्या बहुत अधिक होने के कारण सिक्खों को अन्त में पराजय का मुंह देखना पड़ा।
  2. सढौरा की लड़ाई-जब बंदा सिंह बहादुर को सिक्खों की पराजय का समाचार मिला तो उसने अपने सैनिकों सहित शत्रु पर चढ़ाई कर दी। उस समय मुग़लों की विशाल सेना सढौरा में पड़ाव डाले हुए थी। 4 दिसम्बर, 1710 ई० को शत्र की सेना किसी उचित ठिकाने की खोज में निकली। अवसर का लाभ उठाकर सिक्खों ने उस पर धावा बोल दिया। उन्होंने शत्रु को बहुत क्षति पहुंचाई, परन्तु शाम को बहुत बड़ी संख्या में शाही सेना शत्रु की सेना से आ मिली। अतः सिक्खों ने लड़ाई छोड़ कर ‘लोहगढ़’ में शरण ली।।
  3. लोहगढ़ का युद्ध-अब बहादुर शाह ने स्वयं बंदा सिंह बहादुर के विरुद्ध कार्यवाही करने का निर्णय किया। उसने सिक्खों की शक्ति का पता लगाने के लिए वज़ीर मुनीम खान को किले की ओर बढ़ने का आदेश दिया। परन्तु उसने 10 दिसम्बर,1710 ई० को लोहगढ़ के किले पर आक्रमण कर दिया। उसे देखकर अन्य मुगल सरदारों ने भी किले पर धावा बोल दिया। सिक्खों ने शत्रु का डट कर सामना किया, परन्तु किले में खाद्य-सामग्री की कमी के कारण सिक्खों को काफ़ी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। अंत में बंदा सिंह बहादुर अपने सिक्खों सहित नाहन की पहाड़ियों की ओर निकल गया। ___ 11 दिसम्बर, 1710 ई० को मुनीम खान ने फिर से किले पर धावा बोल दिया और किले पर अधिकार कर लिया। अत: बहादुर शाह ने बंदा सिंह बहादुर का पीछा करने के लिए हमीद खान को नाहन की ओर भेजा। वह स्वयं सढौरा, बडौली, रोपड़, होशियारपुर, कलानौर आदि स्थानों से होता हुआ लाहौर जा पहुँचा।
  4. पहाड़ी प्रदेश में बंदा सिंह बहादुर की गतिविधियां-पहाड़ों में जाकर बंदा सिंह बहादुर ने सिक्खों के नाम हुक्मनामा भेजे। थोड़े समय में ही एक बड़ी संख्या में सिक्ख कीरतपुर में एकत्रित हो गए।
    1. सबसे पहले बंदा सिंह बहादुर ने गुरु गोबिन्द सिंह जी के पुराने शत्रु बिलासपुर के शासक भीमचन्द को एक ‘परवाना’ भेजा और उसे अधीनता स्वीकार करने के लिए कहा। उसके न करने पर बंदा ने बिलासपुर पर आक्रमण कर दिया। एक घमासान युद्ध हुआ जिसमें भीमचन्द तथा 1300 सैनिक मारे गए। सिक्खों को शानदार विजय प्राप्त हुई।
    2. बंदा सिंह बहादुर की विजय से शेष पहाड़ी राजा भयभीत हो गए। उनमें से कइयों ने बंदा सिंह बहादुर को नज़राना देना स्वीकार कर लिया। मण्डी के राजा सिद्ध सेन ने यह घोषणा कर दी कि वह सिक्ख गुरु साहिबान का अनुयायी है।
    3. मण्डी से बंदा सिंह बहादुर कुल्लू की ओर बढ़ा। वहाँ के शासक मान सिंह ने चालाकी से उसे कैद कर लिया, परन्तु जल्दी ही बंदा सिंह बहादुर वहां से बच निकलने में सफल हो गया।
    4. कुल्लू से बंदा सिंह बहादुर चम्बा रियासत की ओर बढ़ा। वहाँ के राजा उदय सिंह ने उसका हार्दिक स्वागत किया। उसने अपने परिवार में से एक लड़की का विवाह भी उसके साथ कर दिया। 1711 ई० के अन्त में बंदा के यहाँ एक पुत्र पैदा हुआ। उसका नाम अजय सिंह रखा गया।
    5. बहिरामपुर की लड़ाई-अब बंदा सिंह बहादुर रायपुर तथा बहिरामपुर के पहाड़ों से निकल कर मैदानी प्रदेश में आ गया। वहां जम्मू के फ़ौजदार बायजीद खां खेशगी ने उस पर आक्रमण कर दिया। 4 जून, 1711 ई० को बहिरामपुर के निकट लड़ाई हुई। इस लड़ाई में बाज़ सिंह तथा फतेह सिंह ने अपनी वीरता के जौहर दिखाए और सिक्खों को विजय दिलाई।
      बहिरामपुर की विजय के पश्चात् बंदा सिंह बहादुर ने रायपुर, कलानौर तथा बटाला पर आक्रमण किए और इन स्थानों को अपने अधिकार में ले लिया, परन्तु उसकी ये विजयें चिर-स्थायी सिद्ध न हुईं। उसने फिर से पहाड़ों में शरण ली। परन्तु बहादुर शाह के अधीन मुग़ल सरकार उसकी शक्ति को कुचलने में असफल रही।

प्रश्न 3.
बंदा सिंह बहादुर की गंगा-यमुना के इलाके में लड़ी गई लड़ाइयों का वर्णन करो।
उत्तर-
बंदा सिंह बहादुर की विजयों से जन साधारण में उत्साह की लहर दौड़ गई। लोगों को विश्वास हो गया कि बंदा ही उन्हें मुग़लों के अत्याचारों से मुक्ति दिला सकता है। बस फिर क्या था। देखते ही देखते बहुत-से हिन्दू तथा मुसलमान सिक्ख बनने लगे। उनारसा गाँव के निवासी भी सिक्ख बन गए। जलालाबाद का फ़ौजदार जलाल खां इसे सहन न कर सका। उसने वहाँ के बहुत-से सिक्खों को कैद कर लिया। उन सिक्खों को छुड़ाने के लिए बंदा सिंह बहादुर अपने सैनिकों को लेकर उनारसा की ओर चल पड़ा।

  1. सहारनपुर पर आक्रमण-यमुना नदी को पार करके सिक्खों ने पहले सहारनपुर पर आक्रमण किया। वहाँ का फ़ौजदार अली हामिद खान दिल्ली की ओर भाग गया। उसके कर्मचारियों ने सिक्खों का सामना किया, परन्तु वे परास्त हुए। नगर के अधिकतर भाग पर सिक्खों का अधिकार हो गया। उन्होंने सहारनपुर का नाम बदल कर भाग नगर’ रख दिया।
  2. बेहात की लड़ाई-सहारनपुर से बंदा सिंह बहादुर ने बेहात की ओर कूच किया। वहाँ के पीरज़ादे हिन्दुओं पर अत्याचार कर रहे थे। वे खुले तौर पर बाज़ारों तथा गलियों में गौ हत्या करते थे। बंदा सिंह बहादुर ने अनेक पीरज़ादों को मौत के घाट उतार दिया। कहते हैं कि उनमें से केवल एक पीरज़ादा ही जीवित बच सका जोकि बुलंद शहर गया हुआ था।
  3. अम्बेता पर आक्रमण-बेहात के उपरान्त बंदा सिंह बहादुर ने अम्बेता पर आक्रमण किया। वहाँ के पठान बड़े धनी थे। उन्होंने सिक्खों का कोई विरोध न किया। सिक्खों को वहाँ से बहुत-सा धन मिला।
  4. नानौता पर आक्रमण-21 जुलाई, 1710 ई० को सिक्खों ने नानौता पर आक्रमण किया। वहाँ के शेखज़ादे तीर चलाने में बड़े निपुण थे। वे सिक्खों के सामने डट गए। नानौता की गलियों तथा बाजारों में घमासान युद्ध हुआ। लगभग 300 शेखज़ादे युद्ध में मारे गए और सिक्खों को विजय प्राप्त हुई।
  5. उनारसा पर आक्रमण- यहाँ से बंदा सिंह बहादुर ने अपने मुख्य शत्रु अर्थात् उनारसा के जलाल खां की ओर ध्यान दिया। अपने दूत द्वारा उसने जलाल खां के पास एक पत्र भेजा। उसने लिखा कि वह कैदी सिक्खों को छोड़ दे तथा उसकी अधीनता स्वीकार कर ले। परन्तु जलाल खां ने बंदा सिंह बहादुर की इस मांग को ठुकरा दिया। उसने दूत का निरादर भी किया। परिणामस्वरूप बंदा सिंह बहादुर ने उनारसा पर भयंकर धावा बोल दिया। एक घमासान युद्ध हुआ जिसमें सिक्खों को विजय प्राप्त हुई। इस युद्ध में जलाल खां के दो भतीजे जमाल खां तथा पीर खां भी मारे गए।

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प्रश्न 4.
पंजाब की तीन प्रसिद्ध मिसलों का वर्णन करो।
उत्तर-
मिसल अरबी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है-एक समान। 1767 से 1799 ई० तक पंजाब में जितने भी सिक्ख जत्थे बने उनमें मौलिक समानता पाई जाती थी। इसलिए उन्हें मिसल कहा जाने लगा। प्रत्येक मिसल का सरदार अपने जत्थे के अन्य सदस्यों के साथ समानता का व्यवहार करता था। इसके अतिरिक्त एक मिसल का जत्थेदार तथा उसके सैनिक दूसरी मिसल के जत्थेदार तथा सैनिकों से भी भाई-चारे का नाता रखते थे। सिक्ख मिसलों की कल संख्या 12 थी। इनमें से तीन प्रसिद्ध मिसलों का वर्णन इस प्रकार है —

  1. फैजलपुरिया मिसल-फैजलपुरिया मिसल सबसे पहली मिसल थी। इस मिसल का संस्थापक नवाब कपूर सिंह था। उसने अमृतसर के पास फैजलपुर नामक गाँव पर कब्जा करके उसका नाम ‘सिंहपुर’ रखा। इसीलिए इस मिसल को ‘सिंहपुरिया’ मिसल भी कहा जाता है।
    1753 ई० में नवाब कपूर सिंह की मौत हो गई और उसका भतीजा खुशहार सिंह फैजलपुरिया मिसल का नेता बना। उसने अपनी मिसल का विस्तार किया। उसके अधीन फैजलपुरिया मिसल में जालन्धर, नूरपुर, बहरामपुर, पट्टी आदि प्रदेश शामिल थे। खुशहाल सिंह की मृत्यु के बाद उसका पुत्र बुध सिंह फैजलपुरिया मिसल का सरदार बना। वह अपने पिता की तरह वीर तथा साहसी नहीं था। रणजीत सिंह ने उसे हरा कर उसकी मिसल को अपने राज्य में मिला लिया।
  2. भंगी मिसल- भंगी मिसल सतलुज दरिया के उत्तर-पश्चिम में स्थित थी। इस मिसल के क्षेत्र में लाहौर, अमृतसर, गुजरात तथा सियालकोट जैसे महत्त्वपूर्ण शहर शामिल थे।
    रणजीत सिंह के मिसलदार बनने के समय भंगी मिसल पहले जैसी शक्तिशाली नहीं थी। इस मिसल के सरदार गुलाब सिंह तथा साहिब सिंह अयोग्य तथा व्यभिचारी थी। वे भांग व शराब पीने में ही अपना सारा समय बिता देते थे। वे अपनी मिसल के राजप्रबन्ध में बहुत रुचि नहीं लेते थे। अतः मिसल के लोग उनसे तंग आए हुए थे।
  3. आहलूवालिया मिसल-जस्सा सिंह अहलूवालिया के समय वह मिसल बड़ी शक्तिशाली थी। इस मिसल का सुलतानपुर लोधी, कपूरथला, होशियारपुर, नूरमहल आदि प्रदेशों पर अधिकार था। 1783 ई० में इस मिसल के सबसे शक्तिशाली सरदार जस्सासिंह अहलूवालिया की मृत्यु हो गई। 1783 से 1801 ई० तक इस मिसल का नेता भागसिंह रहा। उसके बाद फतह सिंह आहलूवालिया उसका उत्तराधिकारी बना। रणजीत सिंह ने समझदारी से काम लेते हुए उससे मित्रतापूर्ण सम्बन्ध स्थापित कर लिए और उसकी ताकत तथा सेवाओं का प्रयोग अपने राज्य विस्तार के लिए किया।

प्रश्न 5.
पंजाब में दिए गए मानचित्र पर बंदा सिंह बहादुर द्वारा किए गए युद्धों के स्थानों को दर्शाओ।
उत्तर-
विद्यार्थी अध्यापक की सहायता से स्वयं करें।

PSEB 10th Class Social Science Guide बन्दा बहादुर तथा सिक्ख मिसलें Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

I. उत्तर एक शब्द अथवा एक लाइन में

प्रश्न 1.
गुरदास नंगल के युद्ध में सिक्ख क्यों हारे?
उत्तर-
गुरदास नंगल के युद्ध में सिक्ख खाद्य सामग्री समाप्त हो जाने के कारण हारे।

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प्रश्न 2.
पंजाब में एक सिक्ख राज्य की स्थापना में बंदा सिंह बहादुर की असफलता का एक प्रमुख कारण बताएं।
उत्तर-
बंदा सिंह बहादुर अपने साधु स्वभाव को छोड़ कर राजसी ठाठ-बाठ से रहने लगा था।

प्रश्न 3.
नवाब कपूर सिंह ने सिक्खों को 1734 ई० में किन दो दलों में बांटा?
उत्तर-
1734 ई० में नवाब कपूर सिंह ने सिक्खों को दो दलों में बांट दिया-‘बुड्ढा दल’ तथा ‘तरुण दल’।

प्रश्न 4.
सिक्ख मिसलों की कुल संख्या कितनी थी?
उत्तर-
सिक्ख मिसलों की कुल संख्या 12 थी।

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प्रश्न 5.
फैज़लपुरिया, आहलूवालिया, भंगी तथा रामगढ़िया मिसल के संस्थापक कौन थे?
उत्तर-
नवाब कपूर सिंह, जस्सा सिंह आहलूवालिया, हरि सिंह तथा जस्सा सिंह रामगढ़िया ने क्रमश: फैजलपुरिया, आहलूवालिया, भंगी तथा रामगढ़िया मिसल की स्थापना की।

प्रश्न 6.
जय सिंह, सरदार चढ़त सिंह, चौधरी फूल सिंह तथा गुलाब सिंह ने क्रमशः किन-किन मिसलों की स्थापना की?
उत्तर-
जय सिंह, सरदार चढ़त सिंह, चौधरी फूल सिंह तथा गुलाब सिंह ने क्रमशः कन्हैया, शुकरचकिया, फुल्कियां तथा डल्लेवालिया मिसल की स्थापना की।

प्रश्न 7.
निशानवालिया, करोड़सिंघिया, शहीद अथवा निहंग तथा नक्कई मिसलों के संस्थापक कौन थे?
उत्तर-
रणजीत सिंह तथा मोहर सिंह, करोड़ सिंह, सुधा सिंह तथा हीरा सिंह ने क्रमशः निशानवालिया, करोड़सिंघिया, शहीद अथवा निहंग तथा नक्कई मिसलों की स्थापना की।

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प्रश्न 8.
बंदा सिंह बहादुर को पंजाब में किसने भेजा था?
उत्तर-
गुरु गोबिन्द सिंह जी ने।

प्रश्न 9.
माधोदास (बंदा सिंह बहादुर) के साथ गुरु गोबिन्द सिंह जी की मुलाकात कहां हुई थी?
उत्तर-
नंदेड़ में।

प्रश्न 10.
गुरु तेग़ बहादुर साहिब जी को शहीद करने वाला जल्लाद कौन था?
उत्तर-
सैय्यद जलालुद्दीन।

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प्रश्न 11.
सैय्यद जलालुद्दीन कहां का रहने वाला था?
उत्तर-
समाना का।

प्रश्न 12.
बंदा सिंह बहादुर ने सढौरा में किस शासक को हराया था?
उत्तर-
उसमान खां को।

प्रश्न 13.
सढौरा में स्थित पीर बुद्ध शाह की हवेली आजकल किस नाम से जानी जाती है?
उत्तर-
कत्लगढ़ी।

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प्रश्न 14.
बंदा सिंह बहादुर ने किस स्थान के किले को ‘लोहगढ़’ का नाम दिया?
उत्तर-
मुखलिसपुर।

प्रश्न 15.
गुरु गोबिन्द सिंह साहिब के दो छोटे साहिबजादों को दीवार में कहां चिनवाया गया था?
उत्तर-
सरहिन्द में।

प्रश्न 16.
बंदा द्वारा सुच्चानन्द की नाक में नकेल डाले जुलूस कहां निकाला गया था?
उत्तर-
सरहिन्द में।

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प्रश्न 17.
बंदा सिंह बहादुर ने सरहिन्द विजय के बाद वहां का शासक किसे नियुक्त किया?
उत्तर-
बाज़ सिंह को।

प्रश्न 18.
बंदा सिंह बहादुर ने किस स्थान को अपनी राजधानी बनाया?
उत्तर-
मुखलिसपुर को।

प्रश्न 19.
सहारनपुर का नाम ‘भाग नगर’ किसने रखा था?
उत्तर-
बंदा सिंह बहादुर ने।

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प्रश्न 20.
बंदा सिंह बहादुर की सिक्ख सेना को पहली बड़ी हार का सामना कब और कहां करना पड़ा?
उत्तर-
अक्तूबर 1710 में अमीनाबाद में।

प्रश्न 21.
मुग़ल सम्राट् बहादुर शाह की मृत्यु कब हुई?
उत्तर-
18 फरवरी, 1712 को।

प्रश्न 22.
बहादुर शाह के बाद मुग़ल राजगद्दी पर कौन बैठा?
उत्तर-
जहांदार शाह।

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प्रश्न 23.
जहांदार शाह के बाद मुग़ल सम्राट् कौन बना?
उत्तर-
फरुख़सीयर।

प्रश्न 24.
अब्दुससमद खां ने सढौरा तथा लोहगढ़ के किलों पर कब विजय प्राप्त की?
उत्तर-
अक्तूबर 1713 में।

प्रश्न 25.
गुरदास नंगल में सिक्खों ने मुगलों के विरुद्ध कहां शरण ली?
उत्तर-
दुनीचंद की हवेली में।

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प्रश्न 26.
दुनीचन्द की हवेली में बंदा सिंह बहादुर का साथ किसने छोड़ा?
उत्तर-
विनोद सिंह तथा उसके साथियों ने।

प्रश्न 27.
बंदा सिंह बहादुर को उसके 200 साथियों सहित कब गिरफ्तार किया गया?
उत्तर-
7 दिसम्बर, 1715 को।

प्रश्न 28.
बंदा सिंह बहादुर की शहीदी कब हुई?
उत्तर-
19 जून, 1716 को।

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प्रश्न 29.
दल खालसा की स्थापना कब और कहां हुई?
उत्तर-
दल खालसा की स्थापना 1748 में अमृतसर में हुई।

प्रश्न 30.
महाराजा रणजीत सिंह का सम्बन्ध किस मिसल से था?
उत्तर-
शुकरचकिया मिसल से।

प्रश्न 31.
महाराजा रणजीत सिंह शुकरचकिया मिसल का सरदार कब बना?
उत्तर-
1797 ई० में।

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प्रश्न 32.
करोड़सिंघिया मिसल का दूसरा नाम क्या था?
उत्तर-
पंजगढ़िया मिसल।

II. रिक्त स्थानों की पर्ति

  1. बंदा सिंह बहादुर ने उसमान खान को दण्ड देने के लिए …………. पर आक्रमण किया।
  2. बंदा सिंह बहादुर को उसके 200 साथियों सहित …………… ई० को गिरफ्तार किया गया।
  3. गुरु गोबिन्द सिंह साहिब के दो छोटे. साहिबजादों को दीवार में ……….. में चिनवाया गया था।
  4. बंदा सिंह बहादुर ने ……………. की नाक में नकेल डालकर सरहिंद में जुलूस निकाला।
  5. बंदा सिंह बहादुर ने सहारनपुर का नाम ………….. रखा।।
  6. गुरदास नंगल में सिक्खों ने मुग़लों के विरुद्ध ………….. की हवेली में शरण ली।
  7. दल ख़ालसा की स्थापना ………. ई० में हुई।
  8. बंदा सिंह बहादुर की शहीदी 1716 में …………. में हुई।

उत्तर-

  1. सढौरा,
  2. 7 दिसंबर, 1715,
  3. सरहिंद,
  4. सुच्चानन्द,
  5. भाग नगर,
  6. दुनीचंद,
  7. 1748,
  8. दिल्ली।

III. बहविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
गुरु गोबिन्द सिंह जी ने पंजाब में सिखों का नेतृत्व करने के लिए किसे भेजा?
(A) वज़ीर खां को
(B) जस्सा सिंह को
(C) बंदा सिंह बहादुर को
(D) सरदार राजेंद्र सिंह को।
उत्तर-
(C) बंदा सिंह बहादुर को

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प्रश्न 2.
वजीर खां और बंदा सिंह बहादुर का युद्ध किस स्थान पर हुआ?
(A) चप्पड़-चिड़ी
(B) सरहिन्द
(C) सढौरा
(D) समाना।
उत्तर-
(A) चप्पड़-चिड़ी

प्रश्न 3.
बंदा सिंह बहादुर की शहीदी कब हुई?
(A) 1761 ई० में
(B) 1716 ई० में
(C) 1750 ई० में
(D) 1756 ई० में।
उत्तर-
(B) 1716 ई० में

प्रश्न 4.
भंगी मिसल के सरदारों के अधीन इलाके थे
(A) लाहौर
(B) गुजरात
(C) सियालकोट
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(D) उपरोक्त सभी।

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प्रश्न 5.
आहलूवालिया मिसल का संस्थापक था
(A) करोड़ सिंह
(B) रणजीत सिंह
(C) जस्सा सिंह
(D) महा सिंह।
उत्तर-
(C) जस्सा सिंह

IV. सत्य-असत्य कथन

प्रश्न-सत्य/सही कथनों पर (✓) तथा असत्य/गलत कथनों पर (✗) का निशान लगाएं

  1. बंदा सिंह बहादुर की शहीदी 1716 में दिल्ली में हुई।
  2. सदा कौर महाराजा रणजीत सिंह की माता थी।
  3. फैजलपुरिया मिसल को सिंहपुरिया मिसल भी कहा जाता है।
  4. बंदा सिंह बहादुर ने गुरु-पुत्रों पर अत्याचार का बदला लेने के लिए सरहिन्द पर आक्रमण किया।
  5. दल खालसा की स्थापना आनंदपुर साहिब में हुई।

उत्तर-

  1. (✓),
  2. (✗),
  3. (✓),
  4. (✓),
  5. (✗).

V. उचित मिलान

  1. नवाब कपूर सिंह – भंगी मिसल
  2. जस्सा सिंह आहलूवालिया – फैजलपुरिया मिसल
  3. हरि सिंह – रामगढ़िया मिसल
  4. जरसा सिंह रामगढ़िया – आहलूवालिया मिसल

उत्तर-

  1. नवाब कपूर सिंह-फ़ैज़लपुरिया मिसल,
  2. जस्सा सिंह आहलूवालिया-आहलूवालिया मिसल,
  3. हरि सिंह-भंगी मिसल,
  4. जस्सा सिंह रामगढ़िया-रामगढ़िया मिसल।

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छोटे उत्तर वाले प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
बंदा सिंह बहादुर के किन्हीं चार सैनिक कारनामों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
बंदा सिंह बहादुर के सैनिक कारनामों का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है —

  1. समाना और कपूरी की लूटमार-बंदा सिंह बहादुर ने सबसे पहले समाना पर आक्रमण किया और वहां भारी लूटमार की। तत्पश्चात् वह कपूरी पहुंचा। इस नगर को भी उसने बुरी तरह लटा।
  2. सढौरा पर आक्रमण-सढौरा का शासक उस्मान खां हिन्दुओं के साथ अच्छा व्यवहार नहीं करता था। उसे दण्ड देने के लिए बंदा सिंह बहादुर ने सढौरा पर धावा बोल दिया। इस नगर में इतने मुसलमानों की हत्या की गई कि उस स्थान का नाम ही ‘कत्लगढ़ी’ पड़ गया।
  3. सरहिन्द की विजय-सरहिन्द में गुरु जी के दो छोटे पुत्रों को दीवार में जीवित चिनवा दिया गया था। इस अत्याचार का बदला लेने के लिए बंदा सिंह बहादुर ने यहाँ भी मुसलमानों का बड़ी निर्दयता से वध किया। सरहिन्द का शासक नवाब वजीर खां भी युद्ध में मारा गया।
  4. जालन्धर दोआब पर अधिकार-बंदा सिंह बहादुर की विजयों ने जालन्धर दोआब के सिक्खों में उत्साह भर दिया। उन्होंने वहां के फ़ौजदार शम्स खां के विरुद्ध विद्रोह कर दिया और बंदा सिंह बहादुर को सहायता के लिए बुलाया। राहों नामक स्थान पर दोनों सेनाओं में भयंकर युद्ध हुआ। इस युद्ध में सिक्ख विजयी रहे। इस प्रकार जालन्धर और होशियारपुर के क्षेत्र सिक्खों के अधिकार में आ गए।

प्रश्न 2.
बंदा सिंह बहादुर की शहीदी पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
उत्तर-
गुरदास नंगल के युद्ध में बंदा सिंह बहादुर तथा उसके सभी साथियों को बन्दी बना लिया गया था। उन्हें पहले लाहौर और फिर दिल्ली ले जाया गया। दिल्ली के बाजारों में उनका जुलूस निकाला गया और उनका अपमान किया गया। बाद में बंदा सिंह बहादुर तथा उसके 740 साथियों को इस्लाम धर्म स्वीकार करने को कहा गया। उनके इन्कार करने पर बंदा सिंह बहादुर के सभी साथियों की हत्या कर दी गई। अन्त में 19 जून, 1716 ई० में मुग़ल सरकार ने बंदा सिंह बहादुर के वध का भी फरमान जारी कर दिया। उनके वध से पहले उन पर अनेक अत्याचार किए गए। उनकी आंखों के सामने उनके शिशु पुत्र के टुकड़े-टुकड़े कर दिए गए। लोहे की गर्म सलाखों से बंदा सिंह बहादुर का मांस नोचा गया। इस प्रकार बंदा सिंह बहादुर शहीदी को प्राप्त हुआ।

PSEB 10th Class SST Solutions History Chapter 6 बन्दा बहादुर तथा सिक्ख मिसलें

प्रश्न 3.
पंजाब में एक स्थायी सिक्ख राज्य की स्थापना में बंदा सिंह बहादुर की असफलता के कोई चार कारण बताओ।
उत्तर-
संक्षेप में, बंदा सिंह बहादुर द्वारा पंजाब में स्थायी सिक्ख राज्य की स्थापना करने में असफलता के कारण निम्नलिखित थे —

  1. बंदा सिंह बहादुर के शाही रंग-ढंग-बंदा सिंह बहादुर साधुपन को छोड़ राजसी ठाठ-बाठ से रहने लगा था। इसलिए समाज में उनका सम्मान कम हो गया।
  2. अन्धाधुन्ध हत्याएं-लाला दौलत राम के अनुसार बंदा सिंह बहादुर ने अपने अभियानों में पंजाबवासियों की अन्धाधुन्ध हत्याएं की और उन्होंने क्रूर मुसलमानों तथा निर्दोष हिन्दुओं में कोई भेद नहीं समझा। इस रक्तपात के कारण वह हिन्दू और सिक्खों का सहयोग खो बैठा।
  3. शक्तिशाली मुग़ल साम्राज्य-मुग़ल साम्राज्य अभी इतना क्षीण नहीं हुआ था कि बंदा सिंह बहादुर और उसके कुछ हज़ार साथियों के विद्रोह को न दबा पाता।
  4. बंदा सिंह बहादुर के सीमित साधन-अपने सीमित साधनों के कारण भी बंदा सिंह बहादुर पंजाब में स्थायी सिक्ख राज्य की स्थापना न कर सका। मुग़लों की शक्ति का सामना करने के लिए सिक्खों के पास अच्छे साधन नहीं थे।

प्रश्न 4.
आहलूवालिया मिसल का संस्थापक कौन था? उसने इस मिसल की शक्ति को कैसे बढ़ाया?
उत्तर-
आहलूवालिया मिसल का संस्थापक जस्सा सिंह आहलूवालिया था।

  1. 1748 से 1753 ई० तक जस्सा सिंह ने मीर मन्नू के अत्याचारों का सफलतापूर्वक सामना किया। अन्त में मीर मन्नू ने जस्सा सिंह के साथ सन्धि कर ली।
  2. 1761 ई० में जस्सा सिंह ने लाहौर पर आक्रमण किया और वहां के सूबेदार ख्वाजा आबेद को पराजित किया। लाहौर पर सिक्खों का अधिकार हो गया।
  3. 1762 ई० में अहमदशाह अब्दाली ने पंजाब पर आक्रमण किया। कुप्पर हीड़ा नामक स्थान पर जस्सा सिंह को पराजय का मुंह देखना पड़ा, परन्तु वह शीघ्र ही सम्भल गया। अगले ही वर्ष सिक्खों ने उसके नेतृत्व में कसूर तथा सरहिन्द को खूब लूटा।
  4. 1764 ई० में जस्सा सिंह ने दिल्ली पर आक्रमण किया और वहां खूब लूट-मार की।

प्रश्न 5.
रणजीत सिंह के उत्थान के समय मराठों की स्थिति कैसी थी?
उत्तर-
अहमदशाह अब्दाली ने मराठों को पानीपत के तीसरे युद्ध (1761) में हरा कर पंजाब से निकाल दिया था। परन्तु 18वीं शताब्दी के अन्त में वे फिर से पंजाब की ओर बढ़ने लगे।
मराठा सरदार दौलत राव सिंधिया ने दिल्ली पर अपना अधिकार जमा लिया था। उसने यमुना तथा सतलुज के मध्य के प्रदेशों पर भी आक्रमण करने आरम्भ कर दिए थे। परन्तु शीघ्र ही अंग्रेजों ने पंजाब की ओर उनके बढ़ते कदमों को रोक दिया।

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प्रश्न 6.
महाराजा रणजीत सिंह के उत्थान के समय भारत में अंग्रेजी राज्य का वर्णन करो।
उत्तर-
1773 ई० से 1785 ई० तक वारेन हेस्टिंग्ज़ भारत में अंग्रेज़ी राज्य का गवर्नर-जनरल रहा। उसने मराठों को पंजाब की ओर बढ़ने से रोका। परन्तु उसके उत्तराधिकारियों लॉर्ड कार्नवालिस (1786 ई० से 1793 ई०) तथा जॉन शोर (1793 ई० से 1798 ई० तक) ने ब्रिटिश राज्य की बढ़ौत्तरी के लिए कोई महत्त्वपूर्ण योगदान न दिया। 1798 ई० में लॉर्ड वैलज़ली गवर्नर-जनरल बना। उसने अपने राज्य में हैदराबाद, मैसूर, कर्नाटक, तंजौर, अवध आदि देसी रियासतों को मिलाया। वह मराठों के विरुद्ध भी लड़ता रहा। इसलिए वह पंजाब की ओर ध्यान न दे सका। 1803 ई० में अंग्रेजों ने दौलत राव सिंधिया को हरा कर दिल्ली पर अधिकार कर लिया।

बड़े उत्तर वाला प्रश्न (Long Answer Type Question)

प्रश्न
निम्नलिखित मिसलों की संक्षिप्त जानकारी दो

  1. फुल्कियां
  2. डल्लेवालिया
  3. निशानवालिया
  4. करोड़सिंघिया तथा
  5. शहीद मिसल।

उत्तर-
दी गई मिसलों के इतिहास का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है —

  1. फुल्कियां मिसल — फुल्कियां मिसल की नींव एक सन्धु जाट चौधरी फूल सिंह ने रखी थी, परन्तु इसका वास्तविक संगठन बाबा आला सिंह ने किया। उसने सबसे पहले बरनाला के आस-पास के प्रदेशों को विजय किया। 1762 ई० में अब्दाली ने उसे मालवा क्षेत्र का नायब बना दिया। 1764 ई० में उसने सरहिन्द के गवर्नर जैन खां को पराजित किया। 1765 ई० में आला सिंह की मृत्यु हो गई। उसकी मृत्यु के पश्चात् अमर सिंह ने फुल्कियां मिसल की बागडोर सम्भाली। उसने अपनी मिसल में भठिण्डा, रोहतक तथा हांसी को भी मिला लिया। अहमद शाह ने उसे ‘राजाए रजगाने’ की उपाधि प्रदान की। अमर सिंह की मृत्यु के पश्चात् उसका पुत्र साहिब सिंह मिसल का सरदार बना। वह बड़ा कमज़ोर शासक था। अन्त में 1809 ई० में एक सन्धि के अनुसार अंग्रेजों ने इस मिसल को ब्रिटिश साम्राज्य में मिला लिया।
  2. डल्लेवालिया मिसल — इस मिसल की स्थापना गुलाब सिंह ने की थी। वह रावी के तट पर स्थित ‘डल्लेवाल’ गांव का निवासी था। इसी कारण इस मिसल को डल्लेवालिया के नाम से पुकारा जाने लगा। इस मिसल का सबसे प्रसिद्ध तथा शक्तिशाली सरदार तारा सिंह घेबा था। उसके अधीन 7,500 सैनिक थे। वह अपार धन-दौलत का स्वामी था। जब तक वह जीवित रहा रणजीत सिंह उसका मित्र बना रहा, परन्तु उसकी मृत्यु के पश्चात् रणजीत सिंह ने इस मिसल को अपने राज्य में मिला लिया। तारा सिंह की पत्नी ने उसका विरोध किया, परन्तु उसकी एक न चली।।
  3. निशानवालिया मिसल — इस मिसल की नींव रणजीत सिंह तथा मोहर सिंह ने रखी थी। ये दोनों कभी खालसा दल का झण्डा (निशान) उठाया करते थे। इसलिए उनके द्वारा स्थापित मिसल को ‘निशानवालिया मिसल’ कहा जाने लगा। इस मिसल में अम्बाला तथा शाहबाद के प्रदेश सम्मिलित थे। राजनीतिक दृष्टि से इस मिसल का कोई विशेष महत्त्व नहीं था।
  4. करोड़सिंघिया मिसल — इस मिसल की नींव करोड़ सिंह ने रखी थी। बघेल सिंह इस मिसल का पहला प्रसिद्ध सरदार था। उसने नवांशहर, बंगा आदि प्रदेशों को जीता। उसकी गतिविधियों का केन्द्र करनाल से बीस मील की दूरी पर था। उसकी सेना में 12,000 सैनिक थे। सरहिन्द के गवर्नर जैन खां की मृत्यु के पश्चात् उसने सतलुज नदी के उत्तर की ओर के प्रदेशों पर अधिकार करना आरम्भ कर दिया। बघेल सिंह के पश्चात् जोध सिंह उसका उत्तराधिकारी बना। जोध सिंह ने मालवा के बहुत सारे प्रदेशों पर विजय प्राप्त की तथा उन्हें अपनी मिसल में मिला लिया। अन्त में इस मिसल का कुछ भाग कलसिया रियासत का अंग बन गया और शेष भाग महाराजा रणजीत सिंह ने अपने राज्य में मिला लिया।
  5. शहीद अथवा निहंग मिसल — इस मिसल की नींव सुधा सिंह ने रखी थी। वह मुसलमान शासकों के विरुद्ध लड़ता हुआ शहीद हो गया था। अतः उसके द्वारा स्थापित मिसल का नाम शहीद मिसल रखा गया। उसके पश्चात् इस मिसल के प्रसिद्ध नेता बाबा दीप सिंह, करम सिंह, गुरुबख्श सिंह आदि हुए। इस मिसल के अधिकांश सिक्ख अकाली अथवा निहंग थे। इस कारण इस मिसल को निहंग मिसल भी कहा जाता है। यहां निहंगों की संख्या लगभग दो हज़ार थी। इस मिसल का मुख्य कार्य अन्य मिसलों को संकट के समय सहायता देना था।

PSEB 10th Class SST Solutions History Chapter 6 बन्दा बहादुर तथा सिक्ख मिसलें

बन्दा बहादुर तथा सिक्ख मिसलें PSEB 10th Class History Notes

  • बंदा सिंह बहादुर गुरु गोबिन्द सिंह जी के सम्पर्क में-1708 ई० में माधोदास नामक एक रागी नंदेड नामक स्थान पर गुरु गोबिन्द सिंह जी के सम्पर्क में आया। गुरु जी के आकर्षक व्यक्तित्व ने उसे इतना प्रभावित किया कि वह शीघ्र ही उनका शिष्य बन गया। गुरु जी ने उसे सिक्खों का नेतृत्व करने के लिए पंजाब की ओर भेज दिया।
  • बंदा सिंह बहादुर पंजाब में-गुरु जी का आदेश पाकर बंदा सिंह बहादुर पंजाब पहुंचा। पंजाब में वह बंदा सिंह बहादुर के नाम से विख्यात हुआ। वहां उसने सिक्खों को संगठित किया और अपना सैनिक अभियान आरम्भ कर दिया।
  • बंदा सिंह बहादुर की सफलताएं-बंदा सिंह बहादुर ने गुरु गोबिन्द सिंह जी के साहिबजादों को शहीद करने वाले जल्लादों को दण्डित किया। उन्होंने सरहिन्द के फ़ौजदार वज़ीर खां का भी वध कर दिया। इसके अतिरिक्त उन्होंने गुरु गोबिन्द सिंह जी के विरोधी पहाड़ी राजा भीमचन्द को भी परास्त किया।
  • महत्त्वपूर्ण विजयें-बंदा सिंह बहादुर की महत्त्वपूर्ण विजयें थीं-सढौरा, सरहिन्द, जलालाबाद तथा लोहगढ़ की विजय।
  • गुरदास नंगल का युद्ध-1715 ई० में मुग़ल सेना ने गुरदास नंगल के स्थान पर सिक्खों को भाई दुनी चन्द की हवेली में घेर लिया। आठ मास के लम्बे युद्ध के कारण सिक्खों की खाद्य सामग्री समाप्त हो गई। विवश होकर उन्हें पराजय स्वीकार करनी पड़ी। बंदा सिंह बहादुर तथा उसके सभी साथी बन्दी बना लिए गए।
  • बंदा सिंह बहादुर की शहीदी-बंदा सिंह बहादुर तथा उसके बन्दी साथियों को लाहौर लाया गया। यहां से 1716 ई० को उन्हें दिल्ली ले जाया गया। जून, 1716 ई० में बंदा सिंह बहादुर तथा उसके साथियों का निर्ममता से वध कर दिया गया।
  • मिसलें-बंदा सिंह बहादुर की शहीदी के पश्चात् सिक्खों को एक लम्बे अन्धकार युग से गुज़रना पड़ा, परन्तु इसी संकट काल में उनके 12 जत्थों का उत्थान हुआ। इन जत्थों में समानता होने के कारण इन्हें मिसलों का नाम दिया गया।
  • रणजीत सिंह का उत्थान-रणजीत सिंह का सम्बन्ध शुकरचकिया मिसल से था। इस मिसल की स्थापना उसके दादा चढ़त सिंह ने की थी। 1792 ई० में अपने पिता महा सिंह की मृत्यु के पश्चात् रणजीत सिंह गद्दी पर बैठा। उसने थोड़े समय में ही पंजाब में एक विशाल साम्राज्य की स्थापना कर ली।

PSEB 10th Class Home Science Solutions Chapter 3 आस-पास की सफ़ाई

Punjab State Board PSEB 10th Class Home Science Book Solutions Chapter 3 आस-पास की सफ़ाई Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 10 Home Science Chapter 3 आस-पास की सफ़ाई

PSEB 10th Class Home Science Guide आस-पास की सफ़ाई Textbook Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
आस-पास की सफ़ाई से आप क्या समझते हैं?
उत्तर-
आस-पास से अभिप्राय घर का इर्द-गिर्द है जिसमें गली, पार्क और शैड शामिल किए जा सकते हैं। घर की भीतरी सफ़ाई के साथ-साथ आस-पास की सफ़ाई को इर्द-गिर्द की सफ़ाई कहा जाता है।

प्रश्न 2.
घरेलू कूड़े में कौन-कौन सी वस्तुएं होती हैं?
उत्तर-
घर में वस्तुओं का प्रयोग करते समय कूड़े-कर्कट का पैदा होना स्वाभाविक है। इस कूड़े-कर्कट में हम रसोई की जूठन, राख, फल और सब्जियों के छिलके, गत्ते के डिब्बे, पोलीथीन के लिफाफे, कागज़-पत्र आदि शामिल होते हैं।

प्रश्न 3.
आस-पास की सफ़ाई का क्या महत्त्व है?
उत्तर-
घर को साफ़ रखने के लिए घर के आस-पास की सफ़ाई होना बहुत आवश्यक है। घर के आस-पास की सफ़ाई के कई लाभ हैं।
साफ़ सुथरा आस-पास हमें बदबू और गन्दगी से बचाकर रखता है। कीड़े-मकौड़े पैदा नहीं होते। पानी और भूमि के प्रदूषण का डर नहीं रहता और आए गए को भी साफ़सुथरा स्थान अच्छा लगता है।

PSEB 10th Class Home Science Solutions Chapter 3 आस-पास की सफ़ाई

प्रश्न 4.
घर की नालियां साफ़ करना क्यों ज़रूरी है?
उत्तर-
घर की सफ़ाई तभी ठीक रह सकती है यदि घर में फालतू पानी का निकास ठीक हो। आजकल बड़े शहरों में तो भूमिगत (Underground) सीवरेज़ का प्रबन्ध हो चुका है, परन्तु गाँवों और कस्बों में फालतू पानी के निकास को ठीक रखने के लिए नालियों की रोज़ाना सफ़ाई आवश्यक है।

प्रश्न 5.
मल-मूत्र को ठिकाने लगाना सबसे जरूरी है, क्यों?
उत्तर-
मल-मूत्र को ठिकाने लगाने का कार्य सबसे महत्त्वपूर्ण है क्योंकि मल-मूत्र में हानिकारक बैक्टीरिया, वाइरस और जीवाणु होते हैं यदि इसको जल्दी ठिकाने न लगाया जाए तो बीमारियां फैलने का खतरा रहता है। कई बीमारियां जैसे टाइफाइड, हैज़ा और आंतों के रोग हो सकते हैं।

छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 6.
घर के कूड़े-कर्कट को कितने भागों में बांटा जा सकता है तथा इसका निपटारा कैसे करना चाहिए?
उत्तर-
घर के कूड़े-कर्कट को सम्भालना घर की सफ़ाई के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है। घर के कूड़े-कर्कट को हम चार भागों में विभाजित कर सकते हैं-

  1. फलों सब्जियों के छिलके और रसोई का कूड़ा-कर्कट आदि को सम्भालने के लिए एक मज़बूत कूड़ेदान होना चाहिए जिस पर ढक्कन हो और दोनों ओर कुण्डे लगे हों ताकि इसको आसानी से उठाया जा सके। इस कूड़ेदान को ऐसे स्थान पर रखना चाहिए जहां से तेज़ हवा से कूड़ा न उड़े और न ही वर्षा का पानी पड़ सके। इस कूड़े को रोज़ाना निपटाना आवश्यक है।
  2. आंगन और बगीची में झाड़ लगाते समय निकला कूड़ा, टूटी हुई वस्तुओं के टुकड़े और गुसलखाने का कूड़ा-कर्कट घर के कूड़े की दूसरी किस्म है । इसको भी किसी ढोल या कूड़ेदान में इकट्ठा करना आवश्यक है।
  3. जिस घर में पशु हों उसमें गोबर, बचा हुआ चारा, घर में काफ़ी कूड़ा-कर्कट पैदा करता है, इसको रोज़ाना सम्भालना चाहिए, पशुओं के गोबर से गोबर गैस भी बनाई जा सकती है और इसके उपले बनाकर भी प्रयोग किए जा सकते हैं।
  4. घर में मानवीय मल-मूत्र को ठिकाने लगाने के कार्य मुश्किल और महत्त्वपूर्ण हैं। यदि घर में फ्लश सिस्टम न हो तो मानवीय मल-मूत्र द्वारा बीमारियां फैलने का डर बना रहता है। इसलिए मानवीय मल-मूत्र जल्दी से जल्दी ठिकाने लगाने का पक्का प्रबन्ध होना चाहिए।

PSEB 10th Class Home Science Solutions Chapter 3 आस-पास की सफ़ाई

प्रश्न 7.
कूड़े को जलाया क्यों जाता है?
उत्तर-
वातावरण की सफाई के लिए कूड़े-कर्कट का निपटारा करना बहुत आवश्यक है। वैसे तो कूड़े के निपटारे के लिए कई ढंग हैं, परन्तु कूड़े को जलाना सब से अच्छा समझा जाता है। कूड़े-कर्कट को इकट्ठा करके खुले स्थान पर आग लगा कर नष्ट किया जा सकता है, परन्तु कूड़े को जलाने का सबसे बढ़िया ढंग भट्ठी बनाकर उसमें कूड़े को जलाना है, इस प्रकार कूड़ा भी नष्ट हो जाता है और धुआं भी चिमनी द्वारा ऊपर चला जाता है और वातावरण भी साफ़-सुथरा रहता है।

प्रश्न 8.
कूड़े-कर्कट से खाद कैसे बनाई जाती है? इसका क्या लाभ है?
अथवा
कूड़े से खाद किस प्रकार बनाई जाती है और इससे नीची जगह को कैसे भरा जाता है?
उत्तर-
कड़े-कर्कट को खाद में परिवर्तित कर देना सदियों पुराना लाभदायक ढंग है। इस ढंग से मल-मूत्र और कूड़ा कर्कट को विशेष प्रकार के गड्ढों में भर कर ऊपर सूखी मिट्टी डालकर ढक दिया जाता है। इस तरह कई गड्ढे भर लिए जाते हैं। गर्मियों के दिनों में कभी-कभी पानी फेंका जाता है। 4-6 महीनों के पश्चात् यह कूड़ा-कर्कट खाद में परिवर्तित हो जाता है।

कूड़े-कर्कट को खाद में परिवर्तित कर लेना बहुत लाभदायक ढंग है। बहुत कम मेहनत से कूड़ा केवल सम्भाला ही नहीं जाता बल्कि उसको खाद में परिवर्तित करके फ़सलों, सब्जियों आदि में प्रयोग किया जाता है, जिससे फ़सलें भी अच्छी होती हैं।

प्रश्न 9.
कूड़े-कर्कट से गड्ढे भरने का स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव होता है?
उत्तर-
कूड़े-कर्कट से खुले गड्ढे भरने से मानवीय स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है। यदि कूड़े-कर्कट को गड्ढे में डाल कर ऊपर से ढका न जाए तो जब कूड़ा गल जाता है उससे चारों ओर बदबू फैलती है। कई तरह के बैक्टीरिया और अन्य कीड़े-मकौड़े भी पैदा हो जाते हैं। इससे पूरा वातावरण दूषित हो जाता है और आस-पास रहते लोग कई बीमारियों का शिकार हो जाते हैं। इसके अतिरिक्त वर्षा के पानी के साथ मिलकर यह कूड़ा-कर्कट धरती निचले पानी को प्रदूषित कर देता है। इसलिए खुले गड्ढों में कूड़ाकर्कट फेंकने से मानवीय स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है।

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प्रश्न 10.
कूड़े का निपटारा करने के ढंगों के नाम लिखो।
उत्तर-
कूड़े के निपटारे की निम्नलिखित विधियां हैं

  1. भट्ठी में जलाना
  2. गड्ढों को भरना
  3. खाद बनाना
  4. छांटना।

प्रश्न 11.
गन्दगी का स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर-
देखें अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नों में।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 12.
कूड़े-कर्कट को ठिकाने लगाने की विधियों का वर्णन करें।
उत्तर-
देखें अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नों में।

PSEB 10th Class Home Science Solutions Chapter 3 आस-पास की सफ़ाई

प्रश्न 13.
आस-पास की सफ़ाई क्यों आवश्यक है? इसके लिए क्या-क्या करना चाहिए?
उत्तर-
घर की सफ़ाई परिवार के सदस्यों के स्वास्थ्य के लिये घर के आस-पास की सफ़ाई से प्रत्यक्ष रूप से जुड़ी हुई है। इसलिए परिवार के सदस्यों को बीमारियों से बचाने के लिए घर की सफ़ाई के साथ-साथ घर के आस-पास की सफ़ाई का भी ध्यान रखना चाहिए। घर के आस-पास की गन्दगी कई प्रकार के कीड़े-मकौड़े, बैक्टीरिया, मक्खी, मच्छर पैदा करने में सहायक होती है। इनसे मलेरिया, दस्त, टाइफाइड, फ्लू आदि बीमारियां लग सकती हैं और आस-पास की सफ़ाई करके हम काफ़ी हद तक इन बीमारियों से बच सकते हैं। इसके अतिरिक्त घर का साफ़-सुथरा आस-पास आए गए मेहमानों को सुन्दर लगता है और मेहमान भी खुश हो कर मिलने आते हैं। यदि घर के आस-पास गन्दगी होगी तो कोई सफ़ाई पसन्द मित्र और रिश्तेदार आप को मिलने आने से झिझकते हैं। इसलिए घर के आस-पास की गन्दगी परिवार का सामाजिक स्तर कम करती है।

आस-पास की सफ़ाई के लिए क्या करना चाहिए?

1. पानी के सही नियम का प्रबन्ध-गाँव और उन शहरों, कस्बों में जहां भूमिगत सीवरेज का प्रबन्ध नहीं है। घर के पानी से आस-पास प्रदूषित होता है क्योंकि खाना बनाना, बर्तन साफ़ करने, नहाना, पशुओं को साफ़ रखने के लिए, आंगन को साफ़ रखने के लिए पानी की अधिक मात्रा में आवश्यकता होती है और यदि इसका निकास ठीक न हो तो यह पानी घर के किसी कोने या घर के बाहर गली या किसी गड़े में इकट्ठा होता रहता है। इकट्ठा हुआ पानी केवल बदबू ही नहीं फैलाता बल्कि मच्छर, मक्खियों
और अन्य कीटाणुओं का जन्म स्थान बन जाता है जिससे कई बीमारियां फैलती हैं। इसलिए घर के पानी का सही निकास करके और बाहर नालियों की सफाई करके हम काफ़ी हद तक आस-पास को साफ़ रख सकते हैं।

2. गलियों की सफाई करके-प्रायः यह देखने में आता है कि अधिकतर लोग अपना फर्ज केवल घर के अन्दर को साफ़ करना ही समझते हैं या घर का कूड़ा-कर्कट बाहर गली में फेंक देते हैं। इससे केवल गली में ही गन्दगी नहीं फैलती बल्कि पूरा वातावरण ही दूषित हो जाता है। इसलिए घर के बाहर गली को घर का भाग समझ कर ही सफ़ाई करनी चाहिए।

3. घर के आस-पास पड़े खाली स्थान साफ़ करके-कई बार घरों के आसपास खाली स्थान पड़े होते हैं, जिसमें घास-फूस पैदा हो जाता है, गड्ढों में पानी भर जाता है, झाड़ियां पैदा हो जाती हैं, अन्धेरे में कई लोग जंगल पानी जाने लगते हैं। इस तरह गन्दगी बढ़ती जाती है और यह गन्दगी कई तरह की बीमारियों का कारण बनती है। ऐसे इलाके में बने खूबसूरत घर भी गन्दे लगते हैं। इसलिए ऐसे इलाके के निवासियों को खाली पड़े स्थान की सफ़ाई रखने की कोशिश करनी चाहिए। ऐसे स्थान में घास-फूस काट कर बच्चों के खेलने के लिए जगह बन सकती है या घास, फूल, पौधे लगा कर इसको खूबसूरत पार्क में परिवर्तित किया जाता है।

4. मुहल्ले के बच्चों को सफ़ाई प्रति चेतन करके-बच्चों को सफ़ाई प्रति चेतन करके बच्चों को घर के आस-पास की सफ़ाई करने के लिए लगाया जा सकता है। यह तर्जुबा कई समाज सेवी जत्थेबंदियां सफलतापूर्वक कर चुकी हैं। बच्चे आदर्शवादी और शक्ति भरपूर होते हैं। बस थोड़ी सी सीध देने और उत्साहित करने से वह घरों के आस-पास की सफ़ाई आसानी से कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त मुहल्ला निवासी पैसे इकट्ठे करके भी मज़दूरों से सफ़ाई करवा सकते हैं।
इसलिए उपरोक्त ढंगों को अपना कर घर का आस-पास साफ़-सुथरा रखा जा सकता है जो केवल सुन्दर ही नहीं लगता बल्कि स्वास्थ्य के लिए भी लाभदायक रहता है।

Home Science Guide for Class 10 PSEB आस-पास की सफ़ाई Important Questions and Answers

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
आसपास की सफ़ाई किसे कहते हैं?
उत्तर-
घर के आसपास की सफ़ाई को।

प्रश्न 2.
घरेलू कूड़े में क्या कुछ होता है?
उत्तर-
रसोई की जूठन, फल, सब्जियों के छिलके आदि।

PSEB 10th Class Home Science Solutions Chapter 3 आस-पास की सफ़ाई

प्रश्न 3.
पाखानों की उचित सफ़ाई न की जाए तो कौन-से रोग हो सकते हैं?
उत्तर-
टाईफाईड, हैजा।

प्रश्न 4.
नालियों को साफ रखने के लिए यह कैसी होनी चाहिए?
उत्तर-
पक्की होनी चाहिए।

प्रश्न 5.
कूड़े से खाद कितने दिनों में तैयार हो सकती है?
उत्तर-
4-6 महीनों में।

प्रश्न 6.
कूड़े के निपटारे के ढंग बताओ।
उत्तर-
भट्ठी में जलाना, गड्ढों को भरना, खाद बनाना, छांटना।

प्रश्न 7.
री साईकल करने वाले कूड़े में क्या कुछ आता है?
उत्तर-
टूटा कांच, चीनी का सामान, प्लास्टिक का सामान, रद्दी कागज़ आदि।

PSEB 10th Class Home Science Solutions Chapter 3 आस-पास की सफ़ाई

प्रश्न 8.
खाद किस प्रकार के कूड़े से बनाई जा सकती है?
उत्तर-
वनस्पति कूड़े-कर्कट से।

प्रश्न 9.
कूड़े के निपटारे के दो ढंग बताओ।
उत्तर-
भट्ठी में जलाना, गड्डों को भरना।

प्रश्न 10.
घरेलू कूड़े में क्या कुछ होता है?
उत्तर-
देखें उपरोक्त प्रश्नों में।

PSEB 10th Class Home Science Solutions Chapter 3 आस-पास की सफ़ाई

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
कूड़े-कर्कट को ठिकाने लगाने से पहले छांटना क्यों ज़रूरी है?
उत्तर-
कूड़े-कर्कट को ठिकाने लगाने से पहले छांटना इसलिये ज़रूरी है कि कूड़े के बीच चीज़ों को प्रयोग में लाया जा सके। जैसे-

  1. कूड़े में से कोयले, अर्द्ध जले कोयले, पत्थर-गीटे अलग करके प्रयोग में लाये जा सकते हैं।
  2. सब्जियों के छिलकों से खाद बनाई जा सकती है। कुछ चीजें कबाड़ियों को बेचकर पैसे कमाए जा सकते हैं।

प्रश्न 2.
कूड़े का अन्तिम निपटारा खाद बनाकर कैसे किया जाता है?
उत्तर-
स्वयं उत्तर दें।

प्रश्न 3.
कूड़े का अन्तिम निपटारा कैसे किया जाता है? विस्तार में बताएं।
उत्तर-
स्वयं उत्तर दें।

प्रश्न 4.
आस-पास की सफ़ाई क्यों ज़रूरी है?
उत्तर-
स्वयं उत्तर दें।

प्रश्न 5.
घर की नालियों की सफाई कैसे की जाती है?
उत्तर-
नालियों को साफ़-सुथरा रखने के लिए इनका पक्का होना आवश्यक है और इनकी ढलान इस तरह होनी चाहिए कि पानी आसानी से निकल सके। इनमें समय-समय पर कीटनाशक दवाइयां डालते रहना चाहिए ताकि मक्खी मच्छर पैदा न हों।

PSEB 10th Class Home Science Solutions Chapter 3 आस-पास की सफ़ाई

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
आस-पास की सफ़ाई का हमारे स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर-
परिवार के सदस्यों को स्वस्थ रखने के लिए घर की सफ़ाई के साथ-साथ घर के आस-पास की सफ़ाई करना भी बहुत आवश्यक है। यदि घर का इर्द-गिर्द साफ़ नहीं होगा तो गन्दी हवा मक्खी मच्छर घर के अन्दर आएंगे। घर के निकट ईंटें, लकड़ियां, उपले या कूड़े के ढेर नहीं होने चाहिएं। इन पर मक्खी मच्छर तो पैदा होते ही हैं। इसके साथ-साथ और अन्य खतरनाक जीव भी इसमें जाकर अपना स्थान बना लेते हैं। कई बार यह जानलेवा भी साबित हो जाते हैं। इसलिए इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि घर के इर्द-गिर्द कूड़े कर्कट के ढेर न हों, पानी खड़ा न हो और घास-फूस न उगा हो ताकि घर का आस-पास साफ़-सुथरा रह सके।

प्रश्न 2.
आस-पास की गन्दगी का मानवीय स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव पड़ता है?
अथवा
गन्दे वातावरण में रहने का क्या नुकसान है?
उत्तर-
आस-पास की गन्दगी का हमारे स्वास्थ्य पर सीधा प्रभाव पड़ता है। गन्दे वातावरण में रहने के निम्नलिखित नुकसान हैं —

  1. कीटाणुओं का पैदा होना-घर के इर्द-गिर्द गन्दगी होने के कारण कई बीमारियों के कीटाणु पैदा हो जाते हैं जिनसे कई बीमारियां जैसे तपेदिक, हैजा, टाइफाइड जैसे हानिकारक कीटाणु हमारे स्वास्थ्य को खराब कर सकते हैं।
  2. बदबू-गन्दगी और कूड़े-कर्कट के ढेरों में कुछ समय के पश्चात् बदबू आनी शुरू हो जाती है जो इर्द-गिर्द की वायु को दूषित करती हुई कई बीमारियों का कारण बनती है।
  3. कीड़े-मकौड़ों की उत्पत्ति-कूड़े-कर्कट में मक्खियां और मच्छर अनेकों प्रकार के कीड़े-मकौड़े पैदा होते हैं, जो हमारे स्वास्थ्य पर काफ़ी प्रभाव डालते हैं। मच्छर से मलेरिया फैल सकता है और मक्खियां भी हैजा, टाइफाइड आदि रोगों को फैलाती हैं।
  4. पानी का प्रदूषण-लगातार पड़ी रहने वाली गन्दगी के ढेर वर्षा के पानी में घुलकर धरती निचले पानी को भी दूषित करती है जिसका मानवीय स्वास्थ्य पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है।
  5. धूल और मिट्टी-यदि हम घर का इर्द-गिर्द साफ़ नहीं करते तो धूल और मिट्टी से घर भर जाता है जिससे फेफड़ों का रोग, दमा और कई प्रकार के चमड़ी के रोग भी हो सकते हैं।

PSEB 10th Class Home Science Solutions Chapter 3 आस-पास की सफ़ाई

प्रश्न 3.
घर के आस-पास को साफ़ रखने के लिए कूड़े का अन्तिम निपटारा किस तरह करना चाहिए?
अथवा
कूड़े-कर्कट को ठिकाने लगाने की विधियों का वर्णन करें।
उत्तर-
आस-पास को साफ़ रखने के लिए कूड़े-कर्कट को इस तरह ठिकाने लगाना चाहिए जिससे रोज़ाना लोगों को कोई परेशानी पैदा न हो। गाँवों में रहने वाले लोग जानते हैं कि पशुओं के गोबर और कूड़े को गड्ढों में भरकर खाद बनाई जाती है जो बाद में फ़सलों के काम आती है। इस तरह कूड़े-कर्कट को सही ढंग से ठिकाने लगाया जा सकता है। कूड़े-कर्कट को निम्नलिखित ढंगों से ठिकाने लगाया जा सकता है —

  1. भट्ठी में जलाना-यह ढंग सबसे अच्छा समझा जाता है। परन्तु कूड़े-कर्कट को एक विशेष भट्ठी में ही जलाया जाता है शेष केवल राख ही बचती है। कूड़े को जलाने के लिए पक्की भट्ठी बनाई जाती है। इसके निकट एक चबूतरा होना चाहिए जहां कि शहर से लाया गया कूड़ा-कर्कट रखा जा सके। भट्ठी में एक रास्ते द्वारा थोड़ा-थोड़ा करके कूड़ा भट्ठी में फेंका जाता है। इस तरह करने से धुआं चिमनी द्वारा बाहर निकल जाता है।
  2. निम्न स्थान को भरना-प्रत्येक शहर में या गांव में नीचे इलाके होते हैं जिनमें कूड़ा-कर्कट भरकर ठिकाने लगाया जाता है। कूड़ा-कर्कट कुछ देर पड़ा रहता है। धीरे-धीरे यह कूड़ा-कर्कट गल-सड़ कर दब जाता है फिर इस पर और कूड़ा-कर्कट फेंक दिया जाता है। इस तरह धीरे-धीरे सड़क आदि के बराबर आ जाता है फिर उस पर थोड़ी मिट्टी डालकर समतल कर दिया जाता है। इस तरह करने से स्थान साफ़सुथरा हो जाता है।
  3. खाद बनानी-कूड़े-कर्कट को खाद में परिवर्तित करना सदियों पुराना ढंग है। इस ढंग से मानवीय और पशुओं का मल-मूत्र और घर का अन्य कूड़ा-कर्कट एक गहरे गड्ढे में दबाकर खाद बनाई जाती है जो फ़सलों के प्रयोग में लाई जाती है। यह कूड़ाकर्कट सम्भालने का सबसे बढ़िया ढंग है।
  4. छांटना-कूड़े-कर्कट को सम्भालने से पहले उसको तीन भागों में बांट लिया जाता है
    1. कोयले, अर्द्ध जले कोयले, पत्थर गीटे, बट्टे आदि अलग करके ईंटें बनाने के लिए प्रयोग किया जाता है।
    2. वनस्पति कूड़ा-कर्कट जैसे फल सब्जियों के छिलके रसोई की जूठन आदि को अलग कर खाद बनाई जा सकती है।
    3. टूटे हुए कांच, चीनी, मिट्टी के बर्तन, प्लास्टिक के सामान को दोबारा प्रयोग कर लिया जा सकता है।
      उपरोक्त ढंगों को प्रयोग करने से कूड़े-कर्कट को सम्भाल लिया जाता है और कूड़े-कर्कट का लाभदायक प्रयोग भी किया जा सकता है।

प्रश्न 4.
कूड़े को भट्ठी में किस प्रकार जलाया जाता है?
उत्तर-
देखें उपरोक्त प्रश्नों के उत्तर में।

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वस्तनिष्ठ प्रश्न

I. रिक्त स्थान भरें

  1. घर के कूड़े-कर्कट को ……………. में नहीं फेंकना चाहिए।
  2. कूड़े से खाद ………………. महीनों में बन जाती है।
  3. खाद ………………. कूड़े-कर्कट से बनती है।

उत्तर-

  1. गली,
  2. 4 से 6,
  3. वनस्पति।

II. ठीक/ग़लत बताएं

  1. वातावरण की सफ़ाई के लिए कूड़े-कर्कट का निपटारा करना आवश्यक है।
  2. कूड़े-कर्कट से खुले खड्डे भरने से मानवीय स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव नहीं पड़ता
  3. घरेलू कूड़े का भाग है-रसोई की जूठन, फ़ल तथा सब्जियों के छिलके।

उत्तर-

  1. ठीक,
  2. ग़लत,
  3. ठीक।

III. बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
निम्न में ठीक है
(क) कूड़े-कर्कट को खाद में बदल लेना लाभदायक है।
(ख) कूड़ा-कर्कट को खुले खड्डे में न भरें।
(ग) कूड़े के निपटारे के लिए भट्ठी में जलाना भी एक ढंग है।
(घ) सभी ठीक।
उत्तर-
(घ) सभी ठीक।

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प्रश्न 2.
गंदे वातावरण से निम्नलिखित हानियां हैं
(क) कीटाणु पैदा होते हैं
(ख) बदबू पैदा होती है
(ग) पानी प्रदूषित होता है
(घ) सभी ठीक।
उत्तर-
(घ) सभी ठीक।

आस-पास की सफ़ाई 10th Class Home Science Notes

  1. घर के इर्द-गिर्द की सफाई को आस-पास की सफ़ाई कहा जाता है।
  2. घर की नालियों की सफाई के बिना घर साफ़ नहीं रह सकता।
  3. घर के आस-पास की सफ़ाई हमें बीसों बीमारियों से बचाती है।
  4. घर के कूड़े-कर्कट को गली में नहीं फेंकना चाहिए।
  5. कूड़े-कर्कट को सही ढंग से ही निपटाना चाहिए।
  6. घर के आस-पास गंदगी जमा नहीं होने देनी चाहिए।
  7. घर के आस-पास की सफ़ाई से परिवार का सामाजिक स्तर बढ़ता है।

परिवार के सदस्यों को खुश और तन्दुरुस्त रखने के लिए सफ़ाई रखनी आवश्यक है। घर जितना चाहे बढ़िया बना हो परन्तु यदि उसमें सफाई न हो तो अच्छा नहीं लगता। घर की गन्दगी बीमारियों को बुलावा देती है। परन्तु घर की सफ़ाई भी तभी रह सकती है यदि आस-पास भी साफ़ हो। इसलिए घर की सफ़ाई के साथ-साथ आस-पास की सफ़ाई का भी ध्यान रखना चाहिए।