Punjab State Board PSEB 10th Class Hindi Book Solutions Chapter 18 सूखी डाली Textbook Exercise Questions and Answers.
PSEB Solutions for Class 10 Hindi Chapter 18 सूखी डाली
Hindi Guide for Class 10 PSEB सूखी डाली Textbook Questions and Answers
(क) विषय-बोध
I. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक या दो पंक्तियों में दीजिए
प्रश्न 1.
दादा मूलराज के बड़े पुत्र की मृत्यु कैसे हुई?
उत्तर:
दादा मूलराज के बड़े पुत्र की मृत्यु सन् 1914 के महायुद्ध में सरकार की तरफ से लड़ते हुए हुई।
प्रश्न 2.
‘सूखी डाली’ एकांकी में घर में काम करने वाली नौकरानी का क्या नाम था?
उत्तर:
घर में काम करने वाली नौकरानी का नाम पारो था।
प्रश्न 3.
बेला का मायका किस शहर में था?
उत्तर:
लाहौर शहर में।
प्रश्न 4.
दादा जी की पोती इंदु ने कहां तक शिक्षा प्राप्त की थी?
उत्तर:
प्राईमरी तक।
प्रश्न 5.
‘सूखी डाली’ एकांकी में दादा जी ने अपने कुटुंब की तुलना किससे की है?
उत्तर:
दादा जी अपने कुटुंब की तुलना बरगद के वृक्ष से की है।
प्रश्न 6.
बेला ने अपने कमरे का फर्नीचर बाहर क्यों निकाल दिया?
उत्तर:
बेला के कमरे का सारा फर्नीचर टूटा-फूटा और पुराना था इसलिए उसने उसे बाहर निकाल दिया था।
प्रश्न 7.
दादा जी पुराने नौकरों के हक में क्यों थे?
उत्तर:
दादा जी पुराने नौकरों को दयानतदार, कर्त्तव्यनिष्ठ, ईमानदार और विश्वसनीय मानते थे इसलिए वे उनके हक में थे।
प्रश्न 8.
बेला ने मिश्रानी को काम से क्यों हटा दिया?
उत्तर:
बेला ने मिश्रानी को काम से इसलिए हटा दिया क्योंकि उसे काम करना नहीं आता था।
II. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर तीन-चार पंक्तियों में दीजिए-
प्रश्न 1.
एकांकी के पहले दृश्य में इंदु बिफरी हुई क्यों दिखाई देती है?
उत्तर:
एकांकी के पहले दृश्य में इंदु बिफरी हुई इसलिए दिखाई देती है क्योंकि वह अकेली. ही घर में सबसे ज्यादा पढ़ी-लिखी है। दूसरा उसके दादा जी उससे बहुत प्यार करते हैं। वह सबकी लाडली बनी हुई है।
प्रश्न 2.
दादा जी कर्मचंद की किस बात से चिंतित हो उठते हैं?
उत्तर:
दादा जी ने कर्मचंद से छोटी बहु के अभिमान और घृणा के कारण परिवार में ईर्ष्या, द्वेष और परस्पर कलह होने की बात सुनी और यह जाना कि छोटी बहु को लेकर छोटी-छोटी बात पर झगड़ा होने लगा था। घर की सुखशांति मिटने लगी थी। छोटी बहु अपनी अलग गृहस्थी बसाना चाहती थी जिससे संयुक्त परिवार टूटने के कगार पर पहुँच चुका था। दादा जी इस बात से चिंतित हो उठते हैं।
प्रश्न 3.
कर्मचंद ने दादा जी को छोटी बहु बेला के विषय में क्या बताया?
उत्तर:
कर्मचंद ने दादा जी को छोटी बहु बेला के विषय में बताया कि उसके मन में बहुत अभिमान है। वह मायके के घराने को ससुराल से ज्यादा ऊँचा समझती है और इस घर को घृणा की दृष्टि से देखती है। शायद इसलिए उसने मलमल के थान और रजाई के अबरे नहीं रखें।
प्रश्न 4.
परेश ने दादा जी के पास जाकर अपनी पत्नी बेला के संबंध में क्या बताया?
अथवा
‘सुखी डाली’ एकांकी में परेश ने दादा जी के पास जाकर अपनी पत्नी बेला के सम्बन्ध में क्या बताया?
उत्तर:
परेश ने दादा जी के पास जाकर बताया कि उसकी पत्नी बेला का मन इस घर में नहीं लगता था। उसे कोई भी पसंद नहीं करता था। सब उसकी निंदा करते थे और सब उसकी शिकायत करते थे, ताने देते थे। वह ऐसा समझती थी जैसे वह परायों में आ गई थी। वह आज़ादी चाहती है और दूसरों का हस्तक्षेप पसंद नहीं करती। वह अपनी अलग गृहस्थी बसाना चाहती थी जहाँ उस पर कोई रोक-टोक नहीं।
प्रश्न 5.
जब परेश ने दादा जी से कहा कि बेला अपनी गृहस्थी अलग बसाना चाहती है तो दादा जी ने परेश को क्या समझाया?
उत्तर:
दादा जी ने परेश को समझाया कि वे अपने जीते जी पूरे परिवार को एक वट वृक्ष की तरह देखना चाहते थे। वह अपने परिवार को टूटते हुए नहीं देखना चाहते थे। वे परिवार के सभी सदस्यों को समझा देंगे। किसी को बेला का तिरस्कार करने का साहस नहीं रहेगा। वे अवश्य ही ऐसा कोई उपाय ढूँढ़ लेंगे कि वह स्वयं को परायों में घिरा हुआ महसूस नहीं करेगी।
प्रश्न 6.
एकांकी के अंत में बेला रूंधे कंठ से क्या कहती है?
उत्तर:
एकांकी के अंत में बेला रूंधे कंठ से कहती है कि अब दादा जी पेड़ से किसी डाली का टूटकर अलग होना पसन्द नहीं करते तो वे ये भी नहीं चाहेंगे कि वह डाल पेड़ से लगी-लगी सूख कर मुरझा जाए अर्थात् परिवार का एक सदस्य परिवार से अलग होकर कभी खुश नहीं रह सकता।
III. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर छह या सात पंक्तियों में दीजिए
प्रश्न 1.
इंदु को बेला की कौन सी बात सबसे अधिक परेशान करती है? क्यों?
उत्तर;
बेला अपने घमंड के कारण मायके को ही सबसे ऊपर देखती है। उसके लिए मायके से ऊपर कुछ भी नहीं है। यही उसके लिए सर्वोपरि है। अपने मायके के सामने वह किसी को कुछ भी नहीं समझती। उसके लिए मूर्ख, गंवार और असभ्य हैं। बेला की यह बात इंदु को सबसे अधिक परेशान करती है क्योंकि यह बात उसके मन में घर कर गई है।
प्रश्न 2.
दादा जी छोटी बहु के अलावा घर के सभी सदस्यों को बुलाकर क्या समझाते हैं?
उत्तर:
दादा जी छोटी बहु के अलावा घर के सभी सदस्यों को बुलाकर समझाते हैं कि मुझे बड़ा दुःख है कि छोटी बहु का मन यहां नहीं लगा। इसमें दोष हमारा है। वह एक बड़े घर की बेटी है और अत्यधिक पढ़ी-लिखी है। वह अपने घर की लाडली है किन्तु यहां वह केवल एक छोटी बहु है उसे सबका आदर करना पड़ता है। हर एक से दबना पड़ता है। यहां उसका व्यक्तित्व दबकर रह गया। कोई भी इंसान योग्यता और बुद्धि से बड़ा होता है उम्र से नहीं। छोटी बहु निश्चय से ही अक्ल में सबसे बड़ी है इसलिए हम सबको उसकी योग्यता का लाभ उठाना चाहिए। उसे सबको आदर देना चाहिए। सब उसका कहना मानें। उससे परामर्श लें। हमें उसे आगे पढ़ने-लिखने का अवसर देना चाहिए। यह कुटुंब एक महान् वृक्ष है। हम सब उसकी डालियां हैं। डालियों से ही पेड़ है और डालियां छोटी हो चाहे बड़ी सब उसकी छाया को बढ़ाती हैं। मैं नहीं चाहता कि कोई डाली इससे टूटकर पृथक् हो जाए।
प्रश्न 3.
एकांकी के अंतिम भाग में घर के सदस्यों के बदले हुए व्यवहार से बेला परेशान क्यों हो जाती है?
उत्तर:
घर के सदस्यों के बदले हुए व्यवहार से भी बेला इसलिए परेशान हो जाती है क्योंकि उसे उनका बदला हुआ व्यवहार कुछ ज़्यादा ही औपचारिक प्रतीत होता है। उसे लगता है कि शायद वे उसके प्रति जान-बूझकर ऐसा करते हैं। जब वह जाती है तो सब खड़ी हो जाती हैं। बड़ी भाभी, मँझली भाभी और माँ जी कोई भी उसके सामने नहीं हँसता और न ही कोई अधिक समय तक बात करता है। उसके जाते ही सब डर से जाते हैं। उसे इतना आदर, सत्कार और आराम अच्छा नहीं लगता।
प्रश्न 4.
मँझली बहू के चरित्र की कौन सी विशेषता इस एकांकी में सबसे अधिक दृष्टिगोचर होती है?
उत्तर:
मँझली बहु के चरित्र की विनोदी स्वभाव की विशेषता इस एकांकी द्वारा सबसे अधिक दृष्टिगोचर होती है। मँझली बहू का स्वभाव विनोदी एवं हास्यभाव से परिपूर्ण है। वह छोटी-छोटी बात पर हंसती-मुस्कराती रहती है। किसी के विचित्र व्यवहार पर हँसना और ठहाके लगाना उसके लिए सामान्य सी बात है। परेश और बेला में किसी बहस पर वह इतना हँसती है कि बेकाबू हो जाती है। उसकी हँसी बेला को और भी खिझा देती है।
प्रश्न 5.
‘सूखी डाली’ एकांकी से हमें क्या शिक्षा मिलती है?
उत्तर:
सूखी डाली’ एकांकी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें परिवार के सभी सदस्यों का समान भाव से आदर-सम्मान करते हुए प्रेम एवं श्रद्धापूर्वक मिलजुल कर रहना चाहिए। हमें अपने बुजुर्गों, माता-पिता का आदर करना चाहिए। उनके प्रति श्रद्धाभाव रखना चाहिए तथा उनके द्वारा बताए गए सुझावों को सहर्ष स्वीकार करना चाहिए। अपने को सुशिक्षित एवं सुसंस्कृत मानकर घमंड में चूर नहीं रहना चाहिए अन्यथा घमंड में रहकर आदमी परिवार के साथ रहकर भी पेड़ पर लगी सूखी डाली के समान जड़ बनकर रह जाता है। छोटा-बड़ा कोई उम्र से नहीं बल्कि ज्ञान और बुद्धि से होता है। महानता मनवाने से नहीं बल्कि व्यवहार से होती है।
प्रश्न 6.
निम्नलिखित का आशय स्पष्ट कीजिए
(क) यह कुटुंब एक महान वृक्ष है। हम सब इसकी डालियाँ हैं। डालियों से ही पेड़-पेड़ है और डालियाँ छोटी हों चाहे बड़ी, सब उसकी छाया को बढ़ाती हैं। मैं नहीं चाहता, कोई डाली इससे टूटकर पृथक् हो जाए।
(ख) दादा जी, आप पेड़ से किसी डाली का टूटकर अलग होना पसंद नहीं करते, पर क्या आप यह चाहेंगे कि पेड़ से लगी-लगी वह डाल सूख कर मुरझा जाए……।
उत्तर:
(क) दादा जी इंदु को समझाते हुए कहते हैं कि संयुक्त परिवार एक महान् वृक्ष के समान है। हम सब परिवार के सदस्य इसकी शाखाएं हैं और इन शाखाओं से ही वृक्ष की शोभा होती है। वृक्ष की प्रत्येक शाखा का अपना महत्त्व होता है। शाखा छोटी हो या बड़ी सबका परस्पर संयोग उसकी छाया को बढ़ाता है। उसको सौंदर्य प्रदान करता है।
भाव यह है कि परिवार में सब मनुष्य समान होते हैं। प्रत्येक मनुष्य परिवार के लिए महत्त्वपूर्ण होता है। हर सदस्य परिवार की शोभा होता है। सबको मिलजुल कर रहने से ही परिवार की सुख-समृद्धि संभव है। छोटा हो या बड़ा सबकी अपनी-अपनी भागीदारी होती है। इसलिए दादा जी इंदु को समझाते हैं वह नहीं चाहता कि परिवार का कोई सदस्य परिवार से अलग रहे।
(ख) इस गद्यांश का भाव है कि परिवार जनों के व्यवहार ने छोटी बहू का अंतर्मन झकझोर दिया। उसे दादा जी तथा परिवार के महत्त्व का बोध हो गया इसलिए वह सबके प्रति सहयोगी बनकर रहना चाहती है। वह दुःखी होकर दादा जी से आग्रह करती है कि आप परिवार से किसी का अलग होकर रहना पसंद नहीं करते किन्तु क्या आप चाहेंगे कि परिवार के साथ रहकर ही कोई सदस्य जड़ बन जाए।
(ख) भाषा-बोध
I. निम्नलिखित शब्दों के दो-दो पर्यायवाची शब्द लिखिए
प्रतिष्ठा – ————-
आकाश – —————-
वृक्ष – —————-
प्रसन्न – —————
परामर्श – —————
अवसर – —————
आदेश – ————–
आलोचना – —————-
उत्तर:
प्रतिष्ठा = शान, आन, सम्मान
आकाश = नभ, असीम, शून्य
वृक्ष = विटप, पेड़, तरु
प्रसन्न = खुश, सुखी, संतुष्ट
परामर्श = राय, विचार, सलाह
अवसर = समय, मौका, सुयोग
आदेश = आज्ञा, हुक्म, हिदायत
आलोचना = निंदा, देखना, परखना।
II. निम्नलिखित शब्दों के विलोम शब्द लिखिए
आकाश = ————
आज़ादी = ————–
पसन्द = ————–
शान्ति = ————–
आदर = ————-
प्रसन्न = ————-
झूठ = ————-
निश्चय = ————-
मूर्ख = ————-
इच्छा = ————-
घृणा = ————
विश्वसनीय
उत्तर:
आकाश = पाताल
आज़ादी = गुलामी
पसंद = नापसंद
शांति = अशांति
आदर = अनादर
प्रसन्न = अप्रसन्न
झूठ = सच
निश्चय = अनिश्चय
मूर्ख = समझदार
इच्छा = अनिच्छा
घृणा = प्रेम
विश्वसनीय = अविश्वसनीय।
III. निम्नलिखित समरूपी भिन्नार्थक शब्दों के अर्थ बताते हुए वाक्य बनाइए
सूखी, सुखी सास, साँस कुल, कूल और, ओर
उत्तर:
सूखी = सूखी हुई, मुरझायी हुई-वर्षा न होने के कारण फ़सल सूखी पड़ी है।
सुखी = प्रसन्न, खुश-हर व्यक्ति अपने घर सुखी रहे।
सास = पति या पत्नी की माँ-महेश की सास तेज़ स्वभाव की प्रतीत होती है।
साँस = साँसें-दौड़ते-दौड़ते मेरी साँस ही फूल गई थी।
कुल = जोड़-इन सभी संख्याओं का कुल योग क्या है?
कूल = किनारा-हम सब यमुना के कूल पर देर तक बैठे रहे।
और = तथा-मोहन और राकेश आये थे।
ओर = की तरफ-गेंद मेरी ओर फैंक दो।
IV. निम्नलिखित मुहावरों के अर्थ समझकर उनका वाक्यों में प्रयोग कीजिए
मुहावरा – अर्थ
1. काम आना = मारा जाना
2. नाक-भौं चढ़ाना = घृणा या असंतोष प्रकट करना
3. पारा चढ़ना = क्रोधित होना
4. भीगी-बिल्ली बनना = सहम जाना
5. मरहम लगाना = सांत्वना देना
6. ठहाका मारना = ज़ोर से हँसना
7. खलल पड़ना = किसी काम में बाधा आना
8. कमर कसना = किसी काम के लिए निश्चयपूर्वक तैयार होना
उत्तर:
1. काम आना (मारा जाना) वाक्य-हमारे देश के अनेक सैनिक सन् 1962 के चीन के आक्रमण में काम आए थे।
2. नाक-भौं चढ़ाना (घृणा या असंतोष प्रकट करना) वाक्य-सुरेश तो रमेश की बातें सुनकर नाक-भौं चढ़ाने लगा था।
3. पारा चढ़ना (क्रोधित होना) वाक्य-रावण को देखकर हनुमान जी का पारा चढ़ने लगा था।
4. भीगी-बिल्ली बनना (सहम जाना) वाक्य-चोर पुलिस को देखकर भीगी-बिल्ली बन गया।
5. मरहम लगाना (सांत्वना देना) वाक्य-शहीद के घर जाकर सभी लोगों ने परिवार को मरहम लगाया।
6. ठहाका मारना (ज़ोर से हँसना) वाक्य-जोकर को देखकर बच्चे ठहाके मारने लगे थे।
7. खलल पड़ना (किसी काम में बाधा आना) वाक्य-लक्ष्य के आते ही वैदेही के काम में खलल पड़ गया।
8. कमर कसना (किसी काम के लिए निश्चयपूर्वक तैयार होना) वाक्य-मार्च आते ही विद्यार्थियों ने परीक्षा के लिए कमर कस ली।
(ग) रचनात्मक अभिव्यक्ति
प्रश्न 1.
कल्पना कीजिए कि आप बेला हैं और दादा जी आपसे आपकी परेशानी का कारण जानना चाहते हैं। आप क्या उत्तर देंगी?
उत्तर:
मैं दादा जी को उत्तर देती कि परिवार के सदस्यों के साथ वह सामंजस्य बिठाने में न जाने क्यों असफल रही। वह सबके साथ मिल-जुलकर रहना चाहती है किन्तु फिर भी परिस्थितियाँ उसके अनुकूल नहीं बन पाती। ऐसी अवस्था में वह क्या करे? किस प्रकार सभी लोगों से तालमेल बिठाए? सबको कैसे खुश रखे?
प्रश्न 2.
आज भारत में संयुक्त परिवार विघटित हो रहे हैं ? बताइए कि इसके क्या कारण हैं?
उत्तर:
इसमें निम्नलिखित कारण हैं-
- आज भारत में भौतिकतावादी संस्कृति का बोलबाला है।
- स्वार्थभावना सर्वोपरि समझी जा रही है।
- परस्पर ईर्ष्या, द्वेष की भावना बढ़ रही है।
- परिवार के लोगों में लालच और घृणा बढ़ता जा रहा है।
- प्रेमभाव, सद्भाव, सहयोग, आदर-सम्मान एवं श्रद्धाभाव कम हो रहे हैं।
- पश्चिमीकरण का दुष्प्रभाव बढ़ता जा रहा है।
प्रश्न 3.
नौकरी की तलाश में आज घर के सदस्यों को देश के दूर-दराज के इलाकों में ही नहीं, विदेशों में भी जाना पड़ता है, ऐसे में दादा जी की वटवृक्ष वाली कल्पना कहाँ तक प्रासंगिक है?
उत्तर:
वर्तमान युग वैश्वीकरण, औद्योगीकरण का युग है। वैश्वीकरण एवं भूमंडलीकरण के इस युग में कोई भी मनुष्य विश्व के किसी भी कोने में जाकर मेहनत से कमा सकता है। ऐसे में उस सदस्य को अपने परिवार से अलग रहना पड़ता है। ऐसे में दादा जी को वटवृक्ष वाली कल्पना अप्रासंगिक सी जान पड़ती है क्योंकि मनुष्य को अपनी आजीविका कमाने हेतु अपने बच्चों के साथ देश के किसी भी कोने तथा देश से बाहर जाकर रहना पड़ सकता है किन्तु इससे यह बात महत्त्वपूर्ण है कि भले ही वह मनुष्य शारीरिक रूप से परिवार के साथ वटवृक्ष की शाखाओं से जुड़कर न रह सके किंतु वह अंतर्मन से तो अपने परिवार के साथ जुड़ा रहता है। वह दूर रहकर भी परिवार के प्रति अपने उत्तरदायित्वों का पूर्ण निर्वाह कर सकता है।
प्रश्न 4.
‘घर में नई बहू के आने पर घर के माहौल में घुल-मिल जाना जहाँ उसकी ज़िम्मेदारी है, वहीं परिवार के शेष सदस्यों की भी ज़िम्मेदारी है कि वे भी उसकी आशाओं-अपेक्षाओं के अनुसार खुद को बदलें’….. क्या आप इस कथन से सहमत हैं? क्यों?
उत्तर:
हाँ; मैं इस कथन से पूर्ण रूप से सहमत हूँ क्योंकि जब घर में नई बहू का आगमन होता है तो वहाँ का वातावरण और वहाँ के सदस्य उसके लिए बिल्कुल अनजान होते हैं। वह परिवार के किसी भी सदस्य को आचारव्यवहार से बिल्कुल अनजान होती है। नए घर में आने पर उसकी बहुत सी आशाएं और अपेक्षाएं होती हैं जिन्हें वह नए परिवार जनों के साथ सौहार्दपूर्ण एवं प्रेमपूर्वक पूर्ण करना चाहती है। घर के अन्य सदस्यों के अलावा वही अकेली नई होती है इसलिए घर के सभी सदस्यों को उसकी भावनाओं, आशाओं का ध्यान रखना चाहिए। यह परिवार के शेष सदस्यों की अहम ज़िम्मेदारी है। किंतु इसके साथ नई बहू को भी नए वातावरण के अनुसार खुद को बदलना चाहिए। पिछली बातों को भूलकर नए माहौल में घुल-मिल जाना चाहिए।
प्रश्न 5.
यदि आपके घर में कोई सदस्य या कोई आपका मित्र/रिश्तेदार धूम्रपान जैसी लत का शिकार है तो आप उसकी यह लत छुड़वाने में कैसे मदद करेंगे?
उत्तर:
मैं उसे धूम्रपान से होने वाली हानियाँ के बारे में बताऊँगा। उसे किसी अस्पताल में फेफड़ों के कैंसर से पीड़ित रोगी से मिलवाऊँगा ताकि उसे देखकर धूम्रपान के द्वारा होने वाली क्षति को समझ सके।
प्रश्न 6.
जब दादा जी ने घर के सदस्यों को बुलाया तो घर के बालक तथा युवक तख्त और चारपाइयों पर बैठते हैं जबकि स्त्रियाँ बरामदे के फर्श पर मोढ़े और चटाइयों पर बैठती हैं-क्या आपको इस तरह की व्यवस्था उचित लगी और क्या आज भी आप स्त्रियों के साथ आप इस तरह का भेदभाव देखते हैं? इसकी कक्षा में चर्चा कीजिए।
उत्तर:
अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से आप इस विषय पर चर्चा कीजिए।
प्रश्न 7.
दादा जी में अनेक चारित्रिक गुण हैं किंतु हुक्का गुड़गुड़ाते रहना तथा छोटी बहू से अपनी पोती के लिए दहेज की अपेक्षा करना उनके चरित्र की कमियाँ हैं-इस संबंध में अपने विचार प्रकट कीजिए।
उत्तर:
निश्चित रूप से ये दोनों बातें दादा जी के चरित्र को कलुषित करती हैं। हुक्का गुड़गुड़ाते रहना केवल दादा जी के स्वास्थ्य के लिए ही हानिकारक नहीं है बल्कि पूरे परिवार के लिए हानिकारक है। इससे उत्पन्न धुआं सारे घर के लोगों को कैंसर का शिकार बनाता है। कैंसर ऐसा भयानक रोग है जो किसी भी परिवार को शारीरिक, मानसिक और आर्थिक दृष्टि से तोड़ कर रख देता है। छोटी बहू से अपनी पोती के दहेज की अपेक्षा करना अत्यंत बुरी बात है। दहेज प्रथा समाज के लिए कलंक है। इसे समाप्त करना ही चाहिए और किसी भी तरह प्रोत्साहित नहीं किया जाना चाहिए।
(घ) पाठ्येत्तर सक्रियता
प्रश्न 1.
‘सूखी डाली’ एकांकी को अपने स्कूल के मंच पर खेलिए।
उत्तर:
विद्यार्थी अपने शिक्षक के सहयोग से इस एकांकी का मंच पर मंचन करें।
प्रश्न 2.
अपने पुस्तकालय से उपेंद्रनाथ अश्क के अन्य एकांकियों को लेकर पढ़िए।
उत्तर:
विद्यार्थी पुस्तकालय से उपेंद्रनाथ अश्क की अन्य एकांकियों जैसे-“देवताओं की छाया में पर्दा उठाओ, पर्दा गिराओ, पक्का गाना, चरवाहे” आदि को लेकर पढ़ें।
प्रश्न 3.
वट वृक्ष के बारे में विस्तृत जानकारी एकत्र कीजिए।
उत्तर:
वट वृक्ष जिसे बरगद का वृक्ष नाम से भी जाना जाता है। यह एक ऐतिहासिक वृक्ष है। भारतीय संस्कृति में वट वृक्ष का नाम बड़े आदर एवं सम्मान से लिया जाता है। हमारी संस्कृति में इसको पूजनीय एवं श्रद्धेय माना जाता है। इसकी पूजा की जाती है। प्राचीन संस्कृति में वट वृक्ष को परिवार के मुखिया की तरह पूजा जाता था। यह एक औषधीय वृक्ष है।
प्रश्न 4.
वट वृक्ष की भिन्न-भिन्न विशेषताओं को बताने वाले चित्र एकत्र कीजिए और उन्हें एक चार्ट पर चिपका कर अपनी कक्षा में लगाएं।
उत्तर:
विद्यार्थी शिक्षक की सहायता से स्वयं करें।
प्रश्न 5.
लाहौर शहर के बारे में विस्तृत जानकारी एकत्र कीजिए।
उत्तर:
आप अपने अध्यापक/अध्यापिका या इंटरनेट की सहायता से लाहौर की जानकारी प्राप्त कीजिए।
प्रश्न 6.
बच्चे, बूढ़े और जवान बात सुनो खोलकर कान धूम्रपान है मौत का सामान है तुम्हें क्या इसका ज्ञान-इस विषय पर स्कूल की प्रार्थना सभा में भाषण प्रतियोगिता का आयोजन कीजिए।
उत्तर:
अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से कीजिए।
प्रश्न 7.
दहेज एक सामाजिक कलंक है। यह प्रथा अनैतिक, अवांछनीय एवं अविवेकपूर्ण है-इस विषय पर स्कूल में निबंध/कविता अथवा चित्रकला आदि गतिविधियों का आयोजन करके उसमें सक्रिय रूप से भाग लें।
उत्तर:
इस स्वयं करें।
(ङ) ज्ञान-विस्तार
1. वटवृक्ष- भारत के राष्ट्रीय वृक्ष को ‘बरगद’ का पेड़ भी कहा जाता है। अंग्रेज़ी में यह ‘बनियन ट्री’ और वैज्ञानिक भाषा में ‘फाइकस वेनगैलेसिस’ नाम से प्रसिद्ध है। यह हिंदुओं का परम-पवित्र एवं पूजनीय वृक्ष है।
2. 1914 महायुद्ध-विश्व के अनेक देशों का प्रथम महायुद्ध सन् 1914 से लेकर 1919 तक चलता रहा था। यह एशिया, अफ्रीका और यूरोप में जल, थल और आकाश में पाँच वर्ष तक लड़ा जाता रहा था। अनेक देशों के द्वारा एक साथ लड़े जाने के कारण वे इसे महायुद्ध या विश्व युद्ध का नाम दिया गया है। इसमें विश्व भर की अपार क्षति हुई थी।
3. लाहौर-पाकिस्तान के इस नगर को उस देश का ‘दिल’ भी कहते हैं। यह पाकिस्तान के इतिहास, संस्कृति और शिक्षा को बहुत बड़ी देन है। यह वहां के पंजाब की राजधानी भी है।
4. ग्रेजुएट-जो व्यक्ति स्नातक डिग्री को प्राप्त कर चुका हो इसे ‘ग्रेजुएट’ कहते हैं। यह विश्वविद्यालय की पहली उपाधि होती है जो कला, विज्ञान, कॉमर्स आदि विषयों में होती है। पुराने ज़माने में विद्यार्थियों की शिक्षा गुरुकुलों में पूरी होती थी और तब पूरी शिक्षा प्राप्त कर लेने वाले विद्यार्थियों को पवित्र जल से स्नान करवा कर सम्मानित किया जाता था इसीलिए उन्हें ‘स्नातक’ कहते थे।
हुक्का गुड़गुडाना : हुक्का तंबाकू के प्रयोग का ही एक तरीका है, जिसका अपार प्रयोग अति हानिकारक होता है। यह शरीर के अधिकतर हिस्सों को अपार हानि पहुंचाता है। जिन लोगों की उपस्थिति में कोई व्यक्ति तंबाकू का उपयोग करता है वे सब भी हवा के माध्यम से इसके विष से प्रभावित होते हैं। भारत सरकार ने सार्वजनिक रूप से इसके प्रयोग को प्रतिबंधित कर दिया है। इसके सेवन से कैंसर हो जाता है। फेफड़े, मुँह, गले आदि के कैंसर का यह मुख्य कारण है। यह हृदय को तरह-तरह की बीमारियां प्रदान करता है। इसका उपयोग कदापि नहीं करना चाहिए। यह लत डालने वाला होता है।
PSEB 10th Class Hindi Guide सूखी डाली Important Questions and Answers
प्रश्न 1.
‘सूखी डाली’ एकांकी में कैसे परिवार की कहानी का वर्णन है?
उत्तर:
‘सूखी डाली’ एकांकी में एक संयुक्त परिवार की कहानी का वर्णन है।
प्रश्न 2.
संयुक्त परिवार में कैसी बहू का आगमन हुआ?
उत्तर:
संयुक्त परिवार में एक सुशिक्षित, सुसंस्कृत, नवीन विचारों वाली बहू का आगमन हुआ।
प्रश्न 3.
इस एकांकी में संयुक्त परिवार को टूटने से कौन बचाता है?
उत्तर:
इस एकांकी में संयुक्त परिवार को टूटने से दादा जी बचाते हैं।
प्रश्न 4.
दादा जी ने परिवार की क्या संज्ञा दी है?
उत्तर:
दादा जी ने परिवार को एक वट वृक्ष की संज्ञा दी है। परिवार एक वट वृक्ष के समान है और परिवार के सभी सदस्य उसकी शाखाओं के समान हैं।
प्रश्न 5.
दादा जी परिवार के लोगों को क्या संदेश देते हैं?
उत्तर:
दादा जी परिवार के लोगों को परस्पर प्रेमभाव, सद्भाव एवं श्रद्धापूर्वक मिल-जुलकर रहने का संदेश देते हैं।
प्रश्न 6.
किसको सभ्य समाज में अत्यंत निंदनीय माना जाता है?
उत्तर:
तानाशाही को सभ्य समाज में अत्यंत निंदनीय माना जाता है।
प्रश्न 7.
‘सूखी डाली’ एकांकी का मूलभाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
‘सूखी डाली’ उपेंद्रनाथ अश्क द्वारा रचित एक पारिवारिक एकांकी है। इसमें लेखक ने संयुक्त परिवार के आंतरिक सत्य की एक प्रामाणिक झांकी प्रस्तुत की है। दादा जी अपने परिवार रूपी वट वृक्ष की जड़ के समान है जो आखिरी तक अपने परिवार को टूटने एवं बिखरने से बचाते हैं। वे नई बहू के आने से सभी लोगों को सद्भाव से जोड़कर संयुक्त परिवार रूपी वट वृक्ष को सहारा देते हैं।
प्रश्न 8.
‘सूखी डाली’ एकांकी के आधार पर बेला का चरित्र-चित्रण कीजिए।
उत्तर:
‘सूखी डाली’ एकांकी में बेला का महत्त्वपूर्ण स्थान है। वह एक शिक्षित युवती थी। उसने बी० ए० तक शिक्षा प्राप्त की थी। वह एक प्रतिष्ठित कुल की कन्या थी। बेला दादा के संयुक्त परिवार में सबसे छोटी बहू थी। उस पर आधुनिकता का प्रभाव था। वह गर्व की भावना से युक्त थी। यही कारण था कि वह नये संयुक्त परिवार में अपने को अजनबी समझती थी। वह घर में सब कुछ नया चाहती थी। उसे घर की नौकरानी का काम पसंद नहीं थे। उसने उसे काम से हटा दिया था।
इंदु और मंझली बहू का व्यवहार उसे अधिक खिझा देता था। इससे बेला अंत: संघर्ष से पीड़ित हो गई थी। जब दादा को पता लगा कि बेला घर में अपने-आप को एक विचित्र स्थिति में महसूस कर रही थी तो उन्होंने उसे ठीक रास्ते पर लाने की युक्ति निकाल ली थी। अंत में दादा की युक्ति बेला के चरित्र में परिवर्तन ला दिया था। बेला भी अनुभव करती थी कि संयुक्त परिवार में रहने का अपना ही आनंद था। उसे जब घर में आदर के साथ स्नेह का भी भाव मिल गया तो वह घर के लोगों के साथ घुल-मिल गई थी।
प्रश्न 9.
‘सूखी डाली’ के आधार पर मंझली बहू का चरित्र-चित्रण कीजिए।
उत्तर:
मंझली बहू स्वभाव से विनोदी थी। किसी के विचित्र व्यवहार पर हँस पड़ना उसके लिए सामान्य-सी बात थी। परेश और बेला में किसी बहस पर वह इतना हँसती थी कि बेकाबू हो जाती थी। उसकी हँसी बेला को और भी खिझा देती थी। उसकी इस दुर्बलता को दादा जी भी समझते थे। तभी तो वे उसे लक्ष्य कर कहा था-“मंझली बहू तुम अपनी हँसी उन लोगों तक ही सीमित रखो बेटा, जो उसे सहन कर सकते हैं। बाहर के लोगों पर घर में बैठ कर हँसा जा सकता है किन्तु घर के लोगों को तब तक हँसी का निशाना बनाना ठीक नहीं, जब तक कि वे पूर्णतया घर का अंग न बन जाएं।”
दादा की प्रेरणा से मंझली बहू में परिवर्तन आ गया था। बेला के प्रति उसके व्यवहार में परिवर्तन आ गया था। इतना ही नहीं, उसमें मनोवैज्ञानिक सूझ-बूझ आ गई थी। यथा, “क्यों, बेटी अब रंजवा कुछ काम सीख गई या नहीं? …..बुढ़िया है तो सयानी।” वह आगे बेला को लक्ष्य कर कहती है-“मैंने एक अनुभवी नौकरानी खोज लाने के लिए कह दिया है जो नये फैशन के बड़े घरों में काम कर चुकी हो, वास्तव में बहू, दादा जी पुराने नौकरों के हक में हैंदयानतदार होते हैं और विश्वसनीय। हमारे पास पीढ़ी-दर-पीढ़ी काम करते आ रहे हैं।”
इस प्रकार मंझली बहू का चरित्र एकांकी में एक महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। लेखक ने उसके माध्यम से स्त्री-सुलभ गुण-दोषों पर प्रकाश डाला है।
प्रश्न 10.
‘सूखी डाली’ उद्देश्य प्रधान एकांकी है। इस कथन पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
‘सूखी डाली’ शीर्षक एकांकी अश्क जी की एक सोद्देश्य रचना है। इस एकांकी का मूल उद्देश्य संयुक्त परिवार प्रणाली का समर्थन करना है। आज का शिक्षित युवक अपने अहं की तुष्टि के लिए अपनी खिचड़ी अलग पकाना चाहता है। वह नहीं जानता कि मिल-जुल कर रहने का अपना आनंद है। इससे परिवार का गौरव और उसकी शक्ति बढ़ती है। एकता में बल है। लेखक ने वट वृक्ष के प्रतीक के माध्यम से बताया है कि दादा मूलराज जो परिवार के वरिष्ठ सदस्य हैं, उनकी स्थिति वट वृक्ष के समान है तथा अन्य सदस्य बेटे, बहुएं, पोते, पोतियां आदि उस वृक्ष की शाखाएं और पत्ते हैं। जिस प्रकार वृक्ष की शोभा उसकी शाखाओं और उसके पत्तों से है, उसी प्रकार परिवार की शोभा आपस में मिल-जुल कर रहने में है। जिस प्रकार वट वृक्ष अपने सशक्त तने और शाखाओं के बल पर आंधी-तूफ़ान का सामना करने में सक्षम बना रहता है, उसी प्रकार संयुक्त परिवार भी हर प्रकार के पारिवारिक संकट का सामना करने में समर्थ होता है।
प्रश्न 11.
‘सूखी डाली’ एक प्रतीकात्मक एकांकी है। इस दृष्टि से इसकी कथावस्तु की समीक्षा कीजिए।
उत्तर:
सूखी डाली’ एकांकी के रचयिता श्री उपेंद्रनाथ अश्क हैं। यह उनका एक प्रतीकात्मक एकांकी है जिसमें संयुक्त परिवार प्रणाली का समर्थन किया गया है। मूलराज अपने सारे परिवार को एक इकाई बनाये हुए हैं। वे एक महान् वट के समान हैं । वे उस वट की तरह हैं जिसकी लंबी-लंबी शाखाएं सारे आंगन को छाया प्रदान करती हैं। दादा मूलराज 72 वर्ष के हैं। उनकी सफेद दाढ़ी वट की लंबी-लंबी शाखाओं की भांति उनकी नाभि को छूती हुई मानो धरती को छूने का प्रण किए हुए हैं। उनका बड़ा लड़का सन् 1914 के महायुद्ध में सरकार की ओर से लड़ते-लड़ते काम आया था। उसके बलिदान के बदले में सरकार ने दादा को एक मुरब्बा ज़मीन प्रदान की थी। दादा ने अपनी मेहनत और अपने साहस के बल पर एक के दस मुरब्बे बनाये।
उनके दो बेटे तथा पोते सारे काम-काज की देखभाल करते हैं। सबसे छोटा पोता नायब तहसीलदार हो गया है। उसका विवाह लाहौर की एक सुशिक्षित युवती से हुआ है। घर में शिक्षित युवती के आगमन में एक संक-सा पैदा हो गया है। दादा की तीनों बहुएं घर में बड़ी भाभी, मंझली भाभी तथा छोटी भाभी के नाम से पुकारी जाती हैं। वे तीनों सीधी-सादी महिलाएं हैं। इन सब में उनकी (दादा की) पोती इंदु प्राइमरी तक पढ़ी है। वह स्वभाव से नटखट है। दादा भी उससे बड़ा प्यार करते हैं। पढ़ी-लिखी बहु बेला के आने से इस परिवार की शांति भंग होने लगती है।
अंत में ऐसी स्थिति आती है कि परेश तथा उसकी पत्नी बेला घर से अलग होने का निर्णय कर लेते हैं। दादा यह सहन नहीं कर सकते। वे नहीं चाहते कि घर के संयुक्त परिवार का कोई सदस्य-अलग हो। वे बड़ी युक्ति से इस टूटते हुए परिवार को बचा लेते हैं। उनका कथन है-“बेटा यह कुटुंब एक महान् वृक्ष है। हम सब इसकी डालियां हैं। डालियों ही से पेड़, पेड़ है…..और डालियां छोटी हों चाहे बड़ी सब उसकी छाया को बढ़ाती हैं। मैं नहीं चाहता कोई डाली इससे टूटकर पृथक् हो जाए।”
प्रश्न 12.
‘अश्क’ ने अपने नाटकों में किन समस्याओं को लिया है?
उत्तर:
अश्क’ ने अपने नाटकों में मुख्य रूप से सामाजिक तथा पारिवारिक समस्याओं का चित्रण किया है। इनमें से प्रमुख पारिवारिक विघटन, संयुक्त परिवार, भ्रष्टाचार, खानपान, रहन-सहन, पश्चिम का अंधानुकरण, भौतिकतावाद, दिखावा, कथनी और करनी में अंतर की समस्याएं हैं। इनके चित्रण द्वारा लेखक ने मानव को अपनी कमजोरियों को जानकर उन्हें त्यागने का संकेत दिया है।
प्रश्न 13.
आशय स्पष्ट करें-
(क) मीठी वे कब कहती हैं जो आज कड़वी कहेंगी।
(ख) कचहरी में होंगे तहसीलदार, घर में तो अभियुक्तों से भी गए बीते हो जाते हैं।
(ग) हल्की-सी खरोंच भी, यदि उस पर तत्काल दवाई न लगा दी जाए, बढ़कर एक बड़ा घाव बन जाती
उत्तर:
(क) प्रस्तुत कथन इंदु का है। छोटी भाभी इंदु से रजवा के रोने का कारण पूछती है और कहती है कि क्या छोटी बहू ने इसे कोई कड़वी बात कह दी है। इंदु छोटी भाभी के घर के सदस्यों के प्रति व्यवहार से असंतुष्ट है। झट से अपनी प्रतिक्रिया प्रकट करती हुई कहती है कि छोटी भाभी (बेला) मीठी कब बोलती है जो आज कड़वा बोलेगी अर्थात् वे कभी मीठा तो बोलती ही नहीं। जब भी बोलती है, कड़वा ही बोलती है।
(ख) बेला पढ़ी-लिखी बहू है। इसलिए उसे घर के पुराने रीति-रिवाज पसंद नहीं। परिणामस्वरूप वह प्रायः खीझी रहती है। उसके इस व्यवहार को लेकर छोटी भाभी इंदु से कहती है कि क्या परेश (बेला का पति) उसे समझाता नहीं। यह सुनकर इंदु कहती है कि वहां परेश की कौन-सी सुनवाई होती है तभी मंझली भाभी हस्तक्षेप करती हुई कहती है कि परेश कचहरी में तहसीलदार होगा। घर में तो वह अपराधियों से भी गया-बीता है। यहां मंझली बहू के कथन में व्यंग्य का भाव है।
(ग) दादा मूलराज को जब पता चलता है कि घर में बेला (नयी बहू) को लेकर सदस्यों में मनमुटाव चल रहा है तो वे अपने बेटे कर्मचंद से कहते हैं कि यह बात पहले उन्हें क्यों नहीं बताई गई। यदि उन्हें पता होता तो वे इस समस्या का समाधान करते। उनका कथन है कि हल्की-सी खरोंच का भी तत्काल इलाज न किया जाए तो वह बढ़ कर घाव बन जाती है। घाव का उपचार करना कठिन होता है। भाव है कि घर में कोई ऐसी बात तूल न पकड़े, जो संयुक्त परिवारप्रणाली में बाधक बन जाए।
प्रश्न 14.
इस एकांकी का कौन-सा पात्र आपको सबसे अच्छा लगता है? उस चरित्र की तीन विशेषताएँ लिखें।
उत्तर:
दादा मूलराज ‘सूखी डाली’ के सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण पात्र हैं। वे एकांकी की कथावस्तु के केंद्र बिंदु हैं। उन्हीं के माध्यम से एकांकी का उद्देश्य उभर कर सामने आया है। उनका चरित्रांकन निम्नलिखित शीर्षकों के अंतर्गत किया जा सकता है
अनुभवी व्यक्ति-दादा बहत्तर वर्ष के एक वृद्ध व्यक्ति हैं। इस आयु में अधिकांश वृद्ध चिड़चिड़े स्वभाव के तथा क्रोधी बन जाते हैं पर दादा इस तथ्य का अपवाद हैं। वे स्वभाव से सौम्य हैं। उन्हें संसार का गहरा अनुभव प्राप्त है। घर में उनकी स्थिति एक वट वृक्ष के समान है जो घर के सभी सदस्यों को छाया प्रदान करती है।
भावुक, सहृदय एवं संयुक्त परिवार-प्रणाली के समर्थक-दादा जी एक भावुक तथा सहृदय व्यक्ति हैं। वे घर के सभी सदस्यों से प्रेम करते हैं। बच्चों के प्रति उनका विशेष स्नेह है। वे यह सहन नहीं कर सकते कि उनके परिवार का कोई भी सदस्य अलग हो। जब उनका बेटा कर्मचंद उन्हें बताता है कि परेश शायद अलग होना चाहता है तो वे चिंता में डूब जाते हैं। वे कहते हैं- “मुझे किसी ने बताया तक नहीं। यदि कोई शिकायत थी तो उसे वहीं मिटा देना चाहिए था। हल्की-सी खरोंच भी यदि उस पर तत्काल दवाई न लगाई जाए, बढ़ कर एक बड़ा घाव बन जाती है और वही घाव फिर नासूर हो जाता है, फिर लाख मरहम लगाओ, ठीक ही नहीं होता।”
दूरदर्शी-दादा जी यह मान कर चलते हैं कि घृणा से घृणा तथा स्नेह से स्नेह उत्पन्न होता है। वे ऐसी युक्ति से काम लेते हैं कि एक टूटता हुआ परिवार टूटने से बच ही नहीं जाता बल्कि उसमें और अधिक स्थिरता आ जाती है। वे इन्दु तथा मंझली बहू को उनकी त्रुटियों से सूचित कर उन्हें बेला के प्रति स्नेह पूर्ण तथा आदरपूर्वक व्यवहार करने की प्रेरणा देते हैं। वे इन्दु और मंझली बहू को समझाते हुए कहते हैं-“मुझे शिकायत का अवसर न मिले (गला भर आता है)। यही मेरी आकांक्षा है कि सब डालियां साथ-साथ बढ़े, फले-फूलें, जीवन की सुखद, शीतल वायु के स्पर्श से झूमें और सरसायें। विटप से अलग होने वाली डाली की कल्पना ही मुझे सिहरा देती है।”
प्रश्न 15.
दादा मूलराज के घर में नई बहू बेला के आने से घर का वातावरण क्यों अशांत हो जाता है?
उत्तर:
नई बहू के घर में आ जाने से घर का वातावरण इसलिए अशांत हो जाता है क्योंकि बेला एक पढ़ी-लिखी युवती है। वह संपन्न परिवार से संबंध रखती है। उस पर आधुनिक जीवन-पद्धति की गहरी छाप है। परंपरावादी तथा संयुक्त परिवार-प्रणाली का समर्थन नहीं करती। वह व्यक्तिगत स्वतंत्रता के पक्ष में है। उसे न अपने ससुराल का पुराने ढंग का फर्नीचर पसंद है और न ही पुराने ढंग का आचार-व्यवहार। यहां तक कि उसे घर के पुराने नौकर-चाकर तक पसंद नहीं। घर के अन्य सदस्यों से भी उसकी नहीं बनती। किसी न किसी बात पर बेला को आपत्ति है। यही कारण है कि नई बहू के घर में आने से घर का वातावरण अशांत हो जाता है।
प्रश्न 16.
“यही मेरी आकांक्षा है कि सब डालियां साथ-साथ बढ़ें, फले-फूलें, जीवन की सुखद, शीतल वायु के स्पर्श से झूमें और सरसाएं।” यह वार्तालाप किस का है तथा किस बात को व्यंजित करता है?
उत्तर:
यह वार्तालाप दादा मूलराज का है। वे संयुक्त परिवार प्रणाली के समर्थक हैं। वे अपने परिवार को वट वृक्ष के समान मानते हैं। जिस प्रकार वट वृक्ष अपनी हरी-भरी शाखाओं तथा पत्रों के साथ शीतल छाया देता है, उसी प्रकार संयुक्त परिवार में भी सब प्रकार की सुख-सुविधाएं रहती हैं। जिस प्रकार वट वृक्ष से अलग होने पर शाखा अपना अस्तित्व खो बैठती है, उसका विकास रुक जाता है। इसी प्रकार किसी सदस्य का परिवार से अलग हो जाना उसके अकेलेपन का सूचक है। दादा मूलराज भी अपने वट वृक्ष रूपी परिवार के सदस्यों रूपी शाखाओं को बिखरता नहीं देख सकते।
एक पंक्ति में उत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
दादा किसके समान महान् दिखाई देते हैं?
उत्तर:
दादा वट के समान महान् दिखाई देते हैं।
प्रश्न 2.
परेश किस पद पर कार्य करता है?
उत्तर:
परेश नायब तहसीलदार के पद पर कार्य करता है।
प्रश्न 3.
क्या चीज़ जल देने से नहीं पनपती?
उत्तर:
पेड़ से टूटी डाली जल देने से नहीं पनपती।
प्रश्न 4.
दादा जी क्या नहीं सह सकते?
उत्तर:
दादी जी परिवार से किसी का अलग होना नहीं सह सकते।
बहुवैकल्पिक प्रश्नोत्तरनिम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक सही विकल्प चुनकर लिखें
प्रश्न 1.
बेला किसकी पत्नी है?
(क) जगदीश
(ख) भाषी
(ग) परेश
(घ) कर्मचंद।
उत्तर:
(ग) परेश
प्रश्न 2.
शायद छोटा अलग हो जाए-यह कथन किसका है?
(क) कर्मचंद का
(ख) जगदीश का
(ग) परेश का
(घ) भाषी का।
उत्तर:
(क) कर्मचंद
प्रश्न 3.
दादा की आयु कितनी है?
(क) 70
(ख) 72
(ग) 74
(घ) 76.
उत्तर:
(ख) 72
एक शब्द/हाँ-नहीं/सही-गलत/रिक्त स्थानों की पूर्ति के प्रश्न
प्रश्न 1.
‘मेरे मायके में यह होता है, मेरे मायके में यह नहीं होता’-इन्दु यह कथन किसके विषय में कह रही (एक शब्द में उत्तर दें)
उत्तर:
छोटी बहू बेला
प्रश्न 2.
बस करो भाषी ! क्या खट-खट लगा रखी है? (हा या नहीं में उत्तर लिखें)
उत्तर:
नहीं
प्रश्न 3.
यह परिवार बरगद के इस महान् पेड़ ही की भाँति है। (हाँ या नहीं में उत्तर लिखें)
उत्तर:
हाँ
प्रश्न 4.
दादा जी के चार कपड़े धोने को कहा था, वे तो पड़े गुसलखाने में गल रहे हैं। (सही या गलत लिखकर उत्तर दें)
उत्तर:
सही
प्रश्न 5.
परेश की तो छोटी बहू बहुत सुनती है। (सही या गलत लिखकर उत्तर दें)
उत्तर:
गलत
प्रश्न 6.
यदि कोई ………… थी तो उसे वहीं ……… देना चाहिए था।
उत्तर:
शिकायत, मिटा
प्रश्न 7.
मैं ऐसा ……… करती हूँ, जैसे मैं …….. में आ गयी हूँ।
उत्तर:
महसूस, परायों
प्रश्न 8.
मुझे केवल …………….. कहा कर, मेरी ………… इन्दु ।
उत्तर:
भाभी, प्यारी।
एकांकी भाग कठिन शब्दों के अर्थ
अराजकता = अव्यवस्था, जहाँ कानून न हो। हद = सीमा। सभ्य = संस्कृत। निंदनीय = निंदा योग्य। कुटुंब = परिवार। अटल = स्थिर। आच्छादित = ढके हुए, भाँति = समान। अगणित = असंख्य। वट = वट वृक्ष। प्रण = प्रतिज्ञा। कृपा = दया। सुशिक्षित = पढ़ी-लिखी। सुशिक्षित = अच्छा पढ़ा-लिखा। प्राइमरी = प्राथमिक। सम्मिलन = मिलन । कोलाहल = शोर। भृकुटी = भौंहें। विस्मित = हैरान। सिर्फ़ = केवल। निस्तब्धता = चुप्पी। मंझली = बीच वाली। नीरवता = शांति। स्वेच्छापूर्वक = अपनी इच्छा के अनुसार। तबदीली = ट्रांसफर। उद्धिग्नता = उदासीनता। तिलमिलाहट = गुस्सा। शाखा = टहनी। कृपा = दया। पूर्णतया = पूरी तरह से। बुद्धिमती = बुद्धि वाली। सुशिक्षित = अच्छी पढ़ी हुई। सुसंस्कृत = अच्छे संस्कार वाली। पूर्ववत् = पहले की तरह। आकुलता = व्याकुलता। बुहारना = लगाना। विश्वसनीय = विश्वास योग्य। सहसा = अचानक। सत्कार = सम्मान। निढाल = थकान।
एकांकी भाग Summary
एकांकी भाग लेखक-परिचय
अश्क जी की साहित्य के क्षेत्र में बहुमुखी प्रतिभा है। उनका जन्म सन् 14 दिसंबर, सन् 1910 ई० में हुआ था। उन्होंने हिंदी-साहित्य को अब तक अनेक अच्छे उपन्यास, कहानियां, बड़े नाटक, एकांकी तथा काव्य भेंट किए हैं। यद्यपि आपने आरंभ में उर्दू में साहित्य-रचना की थी पर अब आप हिंदी के श्रेष्ठ लेखकों में माने जाते हैं और आजकल लेखनी के द्वारा स्वतंत्र रूप से जीविकोपार्जन कर रहे हैं।
श्री उपेंद्रनाथ अश्क जी नाटक लिखते समय सदा रंगमंच का ध्यान रखते हैं अतः इनके नाटक रंगमंच पर बहुत सफल होते हैं। श्री अश्क के अंदर मानव-जीवन को बारीकी से देखने की अद्भुत शक्ति है। यथार्थ के चित्रण में उन्हें बहुत अधिक सफलता मिली है। उनके नाटकों में कहीं भी अस्वाभाविकता प्रतीत नहीं होती। श्री अश्क के पात्र सजीव होते हैं और जिन्दा-दिली से बात करते हैं। संवादों की भाषा बोल-चाल की और चुस्त होती है। कथानक में प्रवाह विद्यमान . रहता है। अश्क के नाटकों में कहीं भी नीरसता देखने को नहीं मिलती।
अश्क के एकांकियों का मुख्य क्षेत्र सामाजिक तथा पारिवारिक है तथा उनमें लेखक का उद्देश्य कोई उपदेश देना न होकर मानव-स्वभाव की कमजोरियों को सामने रखना होता है। श्री अश्क स्वयं एक कठोर जीवन-संघर्ष में से गुजरे थे और उन्होंने चारों ओर के जीवन के सभी पहलुओं को निकटता से देखा था, इसलिए उनको यथार्थ का चित्रण करने में इतनी सफलता मिली है। श्री अश्क के सामाजिक व्यंग्य और हास्य विशेष रूप से सफल बन पड़े हैं।
श्री अश्क के प्रमुख एकांकी संग्रह हैं- “देवताओं की छाया में”, “पर्दा उठाओ पर्दा गिराओ” (प्रहसन), “पक्का गाना”, “चरवाहे”, “अंधी गली”, “साहब को जुकाम है”, पच्चीस श्रेष्ठ एकांकी आदि। इनके द्वारा रचित नाटक हैं-‘छठा बेटा’, ‘अंधी गली’, ‘कैद’, ‘पैंतरे’, ‘उड़ान’, ‘जय-पराजय’, ‘अंजो दीदी’, ‘अलग-अलग रास्ते’। इनके उपन्यास हैं-‘सितारों के खेल’, ‘गिरती दीवारें’, ‘गर्म राख’, ‘बड़ी-बड़ी आँखें’, ‘पत्थर अल पत्थर’, ‘शहर में घूमता आइना’, ‘एक नन्हीं कन्दील’।
लेखक के कहानी संग्रह हैं-‘पिंजरा’, ‘जुदाई की शाम का गीत’, ‘दो धारा’, ‘छीटें’, ‘काले साहब’, पलंग, सत्तर श्रेष्ठ कहानियां, कहानी लेखिका और जेहलम के सात पुल।
एकांकी भाग एकांकी का सार
प्रस्तुत एकांकी ‘सूखी डाली’ अश्क जी के ‘चरवाहे’ नामक एकांकी-संकलन से ली गई है। यह संयुक्त परिवारों से जुड़ी एक प्रामाणिक कहानी है जिसमें नई पीढ़ी और पुरानी पीढ़ी की सोच में अंतर को प्रस्तुत किया गया है। इस एकांकी में अश्क जी ने बहत्तर वर्षीय दादा मूलराज के एक विस्तृत किंतु संगठित परिवार को अपनी लेखनी का केन्द्रबिन्दु बनाया है। दादा जी अपने परिवार के संगठन के लिए सदैव परेशान रहते हैं। दादा का व्यक्तित्व विशाल वट वृक्ष की तरह है जिसकी छत्रछाया में प्रत्येक प्राणी सुरक्षित है। उनके परिवार में स्त्री पात्रों में बेला की सास, छोटी भाभी, मंझली भाभी, बड़ी भाभी, बेला बहू, मंझली बहू, बड़ी बहू, बेला की ननद, इंदु तथा सेविका पारो एवं पुरुष पात्रों में कर्म चन्द, पौत्रों में नायब तहसीलदार परेश, अन्य छोटे भाई तथा मल्लू आदि हैं। दादा का परिवार संपन्न है। उनके पास . कृषि फार्म, डेयरी और चीनी का कारखाना है। समाज में उनकी अच्छी मर्यादा है। उनका पौत्र नायब तहसीलदार और उसकी पत्नी बेला सुशिक्षित बहू है।
बेला में पार्थक्य की प्रबल भावना है। वह अपने मायके को ससुराल से ऊंचा और इज्ज़तदार कहती रहती है। ‘पारो’ जैसी पुरानी सेविका को भी वह असभ्य कहकर अपनी सेवा से हटा देती है। ननद इंदु सहित परिवार के सभी सदस्य बेला के व्यवहार से दुःखी रहते हैं। उसका पति परेश भी उसके व्यवहार के प्रति चिंतित रहता है। दादा हेमराज को यह समाचार ज्ञात हो जाता है कि छोटी बहू बेला से सभी कटे-कटे रहते हैं। उन्हें अपनी पारिवारिक एकता भंग-सी होती जान पड़ती है। उनका वट वृक्ष कुछ शाखाहीन-सा होता जान पड़ता है। इस स्थिति से उनकी आत्मा तड़प उठती है। एक दिन सभी बहुओं को बुलाकर दादा समझाते हैं कि छोटी बहू नवागता और सुशिक्षित है। सभी लोग उनकी इज्जत करें और उसे कार्य न करने दें। उसका फर्नीचर भी बदल दें। यदि ऐसा नहीं होता तो इस घर से मेरा नाता सदा के लिए टूट जाएगा। देखते ही देखते सभी लोग बेला का आदर करने लगे और हिलमिल कर बातें भी करने लगे। इंदु अब गंदे कपड़े स्वयं धो लेती और बेला को छूने तक नहीं देती।
इस पारिवारिक परिवर्तन से बेला चकित हो उठती है। परिवार में अब उसका सम्मान बढ़ गया था। परिवार के नवीन व्यवहार से वह द्रवित हो उठती है। एक दिन इंदु के साथ ज़बरदस्ती वह भी कपड़े धोने चली जाती है। उसे ऐसा देखकर दादा कहते हैं कि कपड़ा धोना उसका कार्य नहीं है। उसे केवल पढ़ने-लिखने में लगे रहना चाहिए। उत्तर में बेला का गला भर आता है और कहती है-“दादा जी! आप पेड़ से किसी डाल का टूट कर अलग होना पसंद नहीं करते पर क्या यह चाहेंगे कि पेड़ से लगी वह डाल सूख कर मुरझा जाए।” बेला के इस कथन से दादा का उद्देश्य पूरा हो जाता है।