क्रिकेट (Cricket) Game Rules – PSEB 10th Class Physical Education

Punjab State Board PSEB 10th Class Physical Education Book Solutions क्रिकेट (Cricket) Game Rules.

क्रिकेट (Cricket) Game Rules – PSEB 10th Class Physical Education

याद रखने योग्य बातें

  1. क्रिकेट में खिलाड़ियों की गिनती = 16 (11 + 5 रिज़र्व)
  2. विकटों के मध्य की दूरी = 22 गज़ (20.12 मीटर)
  3. पिच की चौड़ाई। = 4’4′
  4. विकटों की चौड़ाई = 9″, (22.9 सी० मै०)
  5. क्रिकेट गेंद का घेरा = 8″ से 9″, (22, 4 सैं मी० से 22.4 मैं० मी०)
  6. क्रिकेट गेंद का घेरा क्रिकेट गेद का भार = 51/2 औंस 5% औंस (156 ग्राम सैं० मी० 163 ग्राम)
  7. बैट की चौड़ाई = 41/4″, (10.8 सैं०मी०)
  8. बैट की लम्बाई = 38″, (6.5 सैं० मी०)
  9. गेंद का रंग = दिन के मैच के लिए लाल और रात के लिए सफ़ेद
  10. केन्द्र से बड़े सर्कल की दूरी = 75 गज़ से 85 गज़ (68 मीटर से 58 मीटर)
  11. विकटों की ज़मीन से ऊंचाई = 28″, (71 cm.)
  12. मैच की किस्में = 20, 20 ओवर, एक दिवसीय मैच, पांच दिन का टेस्ट मैच
  13. मैच के अम्पायर = दो
  14. तीसरा अम्पायर = एक मैच रैफ़री
  15. केन्द्रीय विकेट के दोनों ओर पिच = 4 फुट 4 इंच की चौड़ाई
  16. स्कोरर की संख्या = 2
  17. पारी बदली का समय = 10 मिनट
  18. खिलाड़ी बदली का समय = 2 मिनट
  19. छोटे सर्कल का रेडियस = 2.7 मी०

क्रिकेट खेल की संक्षेप रूपरेखा
(Brief outline of the Cricket Game)

  1. मैच दो टीमों के बीच खेला जाता है। प्रत्येक टीम में 11 खिलाड़ी होते हैं।
  2. मैच के लिए दो अम्पायर नियुक्त किए जाते हैं। दोनों तरफ एक-एक अम्पायर होता है।
  3. रनों का रिकार्ड स्कोरर रखता है।
  4. ज़ख्मी या बीमार होने की दशा में खिलाड़ी तबदील किया जा सकता है, परन्तु उसे बैट या बाऊल करने की आज्ञा नहीं होती, वह विकटों के मध्य दूसरे खिलाड़ी के लिए दौड़ सकता है या फील्ड कर सकता है।
  5. बदला हुआ खिलाड़ी अपने विशिष्ट स्थान (Specialised Position) पर फील्ड नहीं कर सकता।
  6. बैट करने के लिये या फील्ड करने के लिए टीम के कप्तान टॉस करते हैं।
  7. प्रत्येक इनिंग के आरम्भ में नया गेंद लिया जाता है। 200 रन बनने के पश्चात् या 75 ओवरों के बाद गेंद नया लिया जा सकता है। गेंद गुम हो जाने या नष्ट हो जाने पर नया गेंद ले सकते हैं, परन्तु उसकी हालत गुम हुए या खराब हुए गेंद से मिलती-जुलती होनी चाहिए।

क्रिकेट (Cricket) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education

प्रश्न
क्रिकेट गेंद, बैट, पिच विकट बाऊलिंग,पायिंग क्रीजें, पारी, खेल के आरम्भ, अन्त और इन्टरवल आदि के विषय में संक्षिप्त लिखें।
उत्तर-
(क) खिलाड़ी, निर्णायक (अम्पायर)
तथा फलांकनकर्ता (स्कोरर)

  1. क्रिकेट मैच दो टीमों के बीच खेला जाता है। प्रत्येक टीम में खिलाड़ियों की संख्या 11-11 होती है। प्रत्येक टीम का एक कप्तान होता है जो पारी के लिए टॉस होने से पहले अपने खिलाड़ी मनोनीत करता है।।
  2. किसी खिलाड़ी के घायल या अस्वस्थ हो जाने पर उसकी जगह पर किसी अन्य खिलाड़ी को लिए जाने की आज्ञा है। नए खिलाड़ी को सबस्टीच्यूट खिलाड़ी कहते हैं। सबस्टीच्यूट खिलाड़ी केवल फील्ड ही कर सकता है। वह बैट या बाऊल नहीं कर सकता।
  3. पारी के लिए टॉस से पहले दोनों सिरों के लिए एक-एक निर्णायक (अम्पायर) नियुक्त किया जाता है, जो खेल का निष्पक्ष नियन्त्रण करता है।
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  4. सभी दौड़ों का रिकार्ड रखने के लिए दो फलांकनकर्ता (स्कोरर) नियुक्त किये जाते हैं। वे अम्पायरों के सभी इशारों तथा अनुदेशों का पालन करते हैं।

क्रिकेट किट
(Cricket Kit)
क्रिकेट के खिलाड़ी के लिए किट पहननी ज़रूरी है। किट से अभिप्राय सफेद पैंट, सफ़ेद कमीज़, बूट, जुराबें, पैड, अबडायिनल गार्ड, दस्ताने और बैट हैं।
(ख) खेल की सामग्री तथा मैदान

  1. गेंद (Ball) क्रिकेट बाल (गेंद) का वज़न \(5 \frac{1}{2}\) औंस से कम और \(5 \frac{3}{4}\) औंस से से अधिक नहीं होना चाहिए। इसकी परिधि (घेरा) \(8 \frac{13}{16}\) कम तथा 9” से अधिक नहीं होनी चाहिए।
    कोई भी कप्तान प्रत्येक पारी (इनिंग्ज़) के शुरू में नई गेंद ले सकता है। यदि खेल के दौरान गेंद गुम हो जाए या खराब हो जाए तो अम्पायर दूसरी गेंद लेने की अनुमति दे देता है। दूसरी गेंद प्रयोग या बनावट में पुरानी या खोई हुई गेंद से मिलती-जुलती होनी चाहिए।
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  2. बैट (Bat) क्रिकेट बैट सबसे चौड़े भाग में \(4 \frac{1}{4}\)” तथा लम्बाई में 38” से अधिक नहीं होना चाहिए। साधारण क्रिकेट बैट का भार \(2 \frac{1}{4}\) पौंड होता है।
  3. पिच (Pitch) बाऊलिंग करने वाले स्थानों के बीच का क्षेत्र पिच कहलाता है। यह क्रिकेट के केन्द्र को जोड़ने वाली रेखा के दोनों ओर 4-4″ चौड़ी होती है तथा कुल पिच की चौड़ाई 8′-8″ होती है।
  4. विकेट (Wicket)-पिच के आमने-सामने तीन-तीन विकेट गाड़ी जाएंगी तथा आमने-सामने की विकेटों की दूरी 22 गज़ होगी। विकटों की चौड़ाई 9” होगी और उन पर जाने वाली दो गिल्लियां (वेल्ज़) होंगी। स्टम्प इस प्रकार गाड़े जाएंगे कि उनमें से गेंद न निकल सके। स्टम्प की भूमि से ऊंचाई 28” होगी। प्रत्येक गुल्ली \(4 \frac{3}{4}\)” लम्बी होगी तथा स्टम्प पर रखी हुई उनसे \( \frac{1}{2}\)” से अधिक बाहर न निकलेगा।
    नोट-जब तेज़ हवा चल रही हो तब टीमों के कप्तान अम्पायर की स्वीकृति से गिल्लियों का प्रयोग छोड़ भी सकते हैं।
  5. गेंद प्रक्षेपण तथा अदृश्य मंज रेखा (Bowling Crease and Popping Crease)—प्रक्षेपण (बाऊलिंग) मंज रेखा स्टम्पों की सीध में 8 फुट 8” लम्बी होगी। इसके केन्द्र में स्टम्प होंगे। प्रक्षेपण मंज स्टम्पों के समानान्तर 4 फुट सामने की ओर अदृश्य मंज रेखा अंकित की जाएगी। यह स्टम्प रेखा के किसी भी पार्श्व सिरे से कम से कम 6 फुट तक बढ़ती है। विकेट के पीछे दोनों ओर समकोण पर 4 फुट की निवर्तन रेखा होगी। निवर्तन तथा अदृश्य मंज रेखाएं लम्बाई में असीमित मानी जाएंगी।

प्रश्न
क्रिकेट खेल कितने खिलाड़ी, निर्णायक, स्कोरर और उनकी किट के बारे में लिखें।
उत्तर-
खेल की रीति (Rules of Game)—

  1. प्रत्येक टीम को बारी-बारी से दो पारियां मिलेंगी।
  2. खेल आरम्भ होने से कम-से-कम 15 मिनट पहले दोनों टीमों के कप्तान पारियों के लिए टॉस (Toss) करेंगे।
  3. टॉस जीतने वाली टीम का कप्तान बैट या फील्ड करने के निर्णय की सूचना विरोधी टीम के कप्तान को देगा। इस निर्णय का बाद में परिवर्तन नहीं हो सकता।
  4. अनुवर्तित (फालो ऑन) (Follow on) कराना-पहले बैट करने वाली टीम यदि पांच दिन के मैच में 200, तीन दिन के मैच में 150, दो दिन के मैच में 100 और एक दिन के मैच में 75 (दौड़ें) रन अधिक बना लेती है तो वह अपनी विरोधी टीम से पारी अनुवर्तित (Follow on) करने के लिए कह सकती है।
  5. पारी की घोषणा करना (डिक्लेयर करना) (Inning Declare)-मैच के दौरान किसी भी समय बैट करने वाली टीम का कप्तान अपनी पारी (इनिंग्ज़) समाप्त करने की घोषणा (Declare) कर सकता है।
  6. खेल का प्रारम्भ, समाप्ति तथा इन्टरवल (Start, Finish and Interval)प्रति-दिन खेल निश्चित समय पर शुरू होगा। खेल की अवधि प्रायः 5, 55 या 6 घंटे की होती है। पहले दो घंटे के खेल के बाद 45 मिनट के लिए भोजन का इन्टरवल (Lunch Interval) हो जाता है। इसके बाद दो घंटे के खेल के बाद 20 मिनट का चाय के लिए इन्टरवल (Tea Interval) होता है। प्रत्येक पारी के बीच 10 मिनट तथा प्रत्येक नए बैट्समैन के आने के लिए अधिक-से-अधिक 2 मिनट का समय दिया जाता है।

क्रिकेट (Cricket) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education

प्रश्न
क्रिकेट खेल में निम्नलिखित से आप क्या समझते हैं ?
फलांकन, सीमाएं, गेंद का गुम होना, ओवर, विकेट का गिरना, मृत बाल, नो बाल, वाइड बाल, बाई, लैग बाई, बाऊल्ड, कैच, एल० बी० डब्ल्यू, स्टम्पड, रन आउट।
उत्तर-
फलांकन (Score)—फलांकन (Score) के लिए दौड़ों (रनों) की गिनती की जाती है। जब बैट्समैन गेंद को हिट करने के बाद एक छोर (सिरे) से दूसरे छोर (सिरे) पर पहुंचे बिना ही रास्ते में से लौट जाता है तो वह दौड़ (रन) नहीं गिनी जाएगी। इसे शार्ट रन (Short Run) कहते हैं। यदि रन बनाते समय बाल हवा में हो और वह लपक लिया जाए तो वह ‘रन’ (दौड़) गिनी नहीं जाएगी। इसी प्रकार यदि बैट्समैन ‘रन’ बनाते समय आऊट (Run out) हो जाए तो उस ‘रन’ को भी गिना नहीं जाएगा।

सीमाएं (Boundaries) खेल की सीमाएं सफेद रंग द्वारा अंकित की जानी चाहिएं। यदि बैट्समैन के हिट करने पर गेंद मैदान को छूती हुई सीमा रेखा के पार चली जाती है तो इसे बाऊण्डरी कहते हैं। बाऊण्डरी के लिए 4 दौड़ें (र.) दी जाती हैं। हां, यदि हिट की गई गेंद सीमा रेखा के बाहर गिरती है (भले ही उसे फील्डर ने छू लिया हो) तो इसे ‘छक्का’ (Sixer) कहते हैं। छक्के में 6 दौड़ें होती हैं। यदि बाऊण्डरी ओवर थ्रो के कारण हो तो बने हुए रन तथा बाऊण्डरी के ‘रन’ स्कोर में जोड़े जाएंगे।
गेंद का गुम होना (Loss of Ball)-यदि खेल के दौरान गेंद गुम हो जाती है तो स्कोर में 6 ‘रन’ जोड़ दिए जाएंगे। परन्तु गेंद गुम होने से पहले 6 से अधिक रन बने हों तो उतनी ही रने’ जोड़ी जाएंगी जितनी कि बनाई जा चुकी हों।
‘ परिणाम (Result) जो भी टीम दो पारियों (इनिंग) में अधिक दौडें बना लेती है उसे विजयी माना जाएगा। एक दिन के मैच में एक पारी पर फैसला होगा। यदि मैच पूरा न हो सके तो वह बराबर माना जाता है। ओवर में 6 या 8 बार गेंद फेंकी जाएगी। ये ओवर विकट के सिरे से बारी-बारी दिए जाते हैं। ‘नो-बाल’ तथा ‘वाइड-बाल’ ओवर में नहीं गिने जाएंगे। एक इनिंग में कोई भी बाऊलर लगातार दो ओवर नहीं कर सकता।
ओवर (Over)—एक ओवर में 6 बार गेंद फेंकी जाएगी। यह ओवर विकेट के सिरे पर बारी-बारी दिए जाते हैं। ‘No Ball’ तथा ‘Wide Ball’ ओवर में नहीं गिने जाएंगे। एक इनिंग में कोई भी ‘Bowler’ निरन्तर दो ‘Overs Bowl’ नहीं कर सकता।
मृत बाल (Dead Ball)-गेंद निम्नलिखित दशाओं में मृत गेंद कहलाएगी—

  1. जब बाऊलर या विकेट कीपर के हाथ में पूरी तरह आ जाए।
  2. सीमा तक पहुंच जाए या ठप्पा खा जाए।
  3. खेलने या न खेलने पर बैट्समैन या अम्पायर के कपड़ों में उलझ जाए।
  4. अम्पायर द्वारा ओवर या ‘समय’ की घोषणा कर दी जाए।
  5. बैट्समैन के आऊट होने पर।

नो बाल (No Ball)—गेंद करते समय यदि गेंदबाज़ का अगला पैर Bowling Crease से आगे चला जाता है या Return Crease को काटता है तो Umpire, No Ball घोषित कर देगा।
बैट्समैन नो बाल पर हिट लगाकर जितनी भी दौड़ें सम्भव हो, बना सकता है। इस प्रकार बनी दौडों को कुल स्कोर में जमा कर लिया जाएगा। यदि कोई भी दौड न बनी हो तो केवल एक दौड़ ही स्कोर में जोड़ी जाएगी। अम्पायर अपनी एक भुजा फैलाकर ‘नो बाल’ का संकेत देता है।

वाइड बाल (Wide Ball)-यदि बाऊलर गेंद को विकेट से उतनी ऊंचाई पर या चौड़ाई पर फेंकता है कि अम्पायर के विचार में यह बैट्समैन की पहुंच से बाहर है तो वह वाइड बाल की घोषणा कर देता है। वाइड बाल के समय बनने वाली दौड़ों की गिनती वाइड बाल में की जाती है। यदि कोई भी दौड़ न बने तो एक दौड़ बनी समझी जाती है।
बाई या लैग बाई (Bye or Leg Bye)–यदि कोई गेंद, जो न ही नो बाल हो और न ही वाइड बाल हो, प्रहारक (स्ट्राइकर) के बैट या शरीर को बिना स्पर्श किए पास से गुज़र जाए और ‘रन’ बन जाए तो अम्पायर, बाई घोषित करता है परन्तु गेंद प्रहारक के बैट वाले हाथ को छोड़कर शरीर के किसी भाग से छू कर पास से गुज़र जाए और ‘रन’ बन जाए तो अम्पायर लैग-बाई घोषित करेगा।

विकेट का गिरना (The Wicket is done) यदि प्रहारक स्वयं या उसका बैट या गेंद स्टम्प्स के ऊपर एक या दोनों गिल्लियां गिरा दे या प्रहार द्वारा भूमि से उखड़ जाए तो विकेट गिरी मानी जाएगी।
अपने क्षेत्र के बाहर (Out of his Ground) बैट्समैन अपने क्षेत्र से बाहर माना जाएगा जब उसके हाथ के बैट का कुछ भाग या उसका शरीर कल्पित मंज रेखा की पीछे ज़मीन पर न हो।
बैट्समैन की निवृत्ति (Batsman Retirement)-बैट्समैन किसी भी समय घायल या बीमारी की दशा में निवृत्त (Retire) हो सकता है। वह बल्लेबाजी तो कर सकता है परन्तु उसको विपक्षी कप्तान की आज्ञा लेनी पड़ेगी कि किस नम्बर पर बल्लेबाज़ी करे।
बाऊल्ड (Bowled)-जब विकेट गेंद मारकर गिरा दी जाए तो प्रहारक बाऊल्ड माना जाएगा। भले ही गेंद उसके बैट या शरीर के भाग से स्पर्श कर चुकी हो।

पकड़ आऊट (कैच आऊट) (Catch Out)-यदि बैट के प्रहार से, या बैट वाले हाथ से (कलाई से नहीं) लग कर ज़मीन छूने से पहले किसी फील्डर द्वारा गेंद लपक ली जाए तो प्रहारक पकड़ आऊट (कैच आऊट) होगा। यदि गेंद विकेट कीपर के पैडों में भी अटके तो भी बैट्समैन पकड़े आऊट माना जाएगा।
गेंद को हाथ लगाना आऊट (Handle the Ball) यदि खेलते समय कोई बैट्समैन हाथों से गेंद को छू लेता है तो उसे गेंद के साथ हाथ लगाना आऊट माना जाएगा।
गेंद पर दो प्रहार (Hit the Ball twice)-प्रहारक (स्ट्राइकर) गेंद पर ‘दो प्रहार’ आऊट होगा यदि गेंद उसके शरीर के किसी भाग से लगकर रुक जाती या वह उस पर जान-बूझ कर पुनः प्रहार करता है। केवल अपनी विकेट के बचाव के लिए ही प्रहार किया जा सकता है।

विकेट पर प्रहार आऊट (Hit Wicket Out) यदि गेंद खेलते समय प्रहारक (Striker) अपने बैट या शरीर के किसी भाग से विकेट मार गिराता है तो इसे ‘विकेट पर प्रहार’ (हिट विकेट) आऊट माना जाएगा। यदि उसकी विकेट टोपी या हैट गिरने या टूटे हुए बैट के किसी भाग के लगने से गिर जाती है तो भी उसे विकेट पर प्रहार आऊट माना जाएगा।
पगबाधा एल० बी० डब्ल्यू० (L.B.W.)(लैग बिफोर विकेट) या पगबाधा आऊटप्रहारक (Striker) उस समय ‘लैग बिफोर विकेट’ (एल० बी० डब्ल्यू०) आऊट माना जाता है जब गेंद को बल्ले से स्पर्श करने से पहले शरीर के किसी भाग से रोकने का यत्न करता है और अम्पायर के अनुसार गेंद विकेट की सीधी रेखा में है और यदि बैट्समैन इसे अपने शरीर के किसी भाग से न रोकता तो गेंद सीधे विकेट पर ही लगती।

क्षेत्र में बाधा (Obstruction) आऊट-कोई भी बैट्समैन ‘क्षेत्र में बाधा’ आऊट हो सकता है यदि वह जान-बूझ कर किसी फील्डर को गेंद पकड़ने से रोकता है।
स्टम्पड (Stumped) आऊट-प्रहारक (Stricker) उस समय ‘स्टम्पड आऊट’ माना जाता है जब बाऊलर द्वारा बाऊल की गई गेंद को प्राप्त करते समय रन बनाने की स्थिति के अतिरिक्त अपने क्षेत्र से बाहर चला जाए और विकेट कीपर विकेट उखाड़ दे या विकेटों के ऊपर रखी गिल्लियां उतार दे।
रन आऊट (Run Out)–जब कोई बैट्समैन दौड़ते समय या जब गेंद खेल में हो अपने क्षेत्र से बाहर चला जाए और कोई फील्डर गेंद मारकर उसकी विकेट गिरा दे और विकेटों के ऊपर से गेंद लगने से गिल्लियां गिर जाएं तो बैट्समैन को रन आऊट माना जाता है। यदि बैट्समैन एक-दूसरे को पार कर जाए तो उस बैट्समैन को आऊट माना जाएगा जो गिरी हुई विकेट की ओर दौड़ रहा है।
विकेट रक्षक (विकेट कीपर) (Wicket Keeper)-विकेट कीपर सदा विकेटों के पीछे रहेगा जब तक कि बाऊलर द्वारा संक्रमित (फेंकी हुई) गेंद बल्ले या प्रहारक के शरीर पर स्पर्श न कर ले या विकेट पार न चली जाए या प्रहारक रन (दौड़) बनाने की कोशिश न करे, वह गेंद को नहीं पकड़ सकता।

क्षेत्र रक्षक (Fielder) क्षेत्र रक्षक (फील्डर) अपने शरीर के किसी भी भाग से गेंद को रोक सकता है। क्षेत्र रक्षक टोपी या रूमाल से गेंद नहीं रोक सकता। यदि वह जानबूझ कर टोपी या रूमाल से गेंद रोकता है तो बनाए हुए रनों में पांच रन और जमा कर दिए जाएंगे। यदि कोई ‘रन’ न बना हो तो ‘रन’ और दिए जाएंगे।
क्षेत्र, मौसम और प्रकाश (Field, Weather and Light)-मैच शुरू होने से पहले टीमों के कप्तान खेल क्षेत्र, मौसम तथा प्रकाश के उचित होने को निश्चित करने के लिए चुनाव करेंगे। यदि इस विषय में पहले सहमति न हो गई हो। यदि किसी प्रकार की सहमति हुई हो तो उसका फैसला अम्पायर करेंगे।

  1. टैस्ट मैच (Test Match)-टैस्ट मैच में दोनों टीमों में से प्रत्येक को दो इनिंग Inning खेलने का अवसर मिलता है। टैस्ट मैच 5 दिनों में खेला जाता है।
  2. एक दिवसीय मैच (One day Match)-एक दिवस के मैच में दोनों टीमों 50-50 ओवरों को बैट करेगी। एक दिवसीय मैच दिन अथवा रात को हो सकता है।
  3. 20, 20 मैच (20, 20 Match)—यह एक दिवसीय मैच की तरह है इसे 20, 20 ओवर का मैच कहा जाता है क्योंकि दोनों टीम 20, 20 ओवर ही खेलती है। इस में नए नियम हैं जो इस प्रकार है। फ्री-हिट (Free Hit) जब बाउलर बाउलिंग करीज़ पार करके बाल फेंकता है। उसे नो बाल कहा जाता है। इसमें बैटस मैन को फ्री-हिट मिलती है। इस फ्री-हिट में बैटस मैन आऊट नहीं होगा सिर्फ रन आउट होने पर ही आउट माना जाता है।
  4. बाल आउट (Ball Out)-जब मैच बराबर हो जाता है तो बाल आऊट के द्वारा जीत का फैसला किया जाता है इसमें दोनों टीमों के पांच-पांच खिलाड़ियों को बाल करने का अवसर दिया जाता है। जिसमें कोई बैटस मैन नहीं होता जो टीम अधिक विकट लेती ही जाती मानी जाती है।
  5. पावर प्ले (Power Play)-क्रिकेट में नए नियम लागू हुए हैं जो इस प्रकार हैं। 50 ओवरों में तीन पावर प्ले 10 ओवर, 5 ओवर और 5 ओवर के होने चाहिए। पहले 10 पावर प्ले खेल के आरम्भ में लेने होते हैं 5-5 Overs बैटिंग और फीलडिंग टीम जब चाहे ले सकते हैं।

अपील (Appeal) अम्पायर किसी बैट्समैन को आऊट नहीं देगा जब तक कि किसी फील्डर द्वारा अपील न की गई हो। यह अपील अगली गेंद फेंकने तथा ‘समय’ पुकारने से पहले होनी चाहिए। अपील करते समय फील्डर अम्पायर से कहते हैं। ‘हाऊ इज़ दिस’ (यह कैसे हुआ) अम्पायर आऊट का निर्णय अपनी निर्देशिका अंगुली उठा कर देता है।

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प्रश्न
क्रिकेट के खेल में खिलाड़ियों के फील्ड करने की पोजीशन को चित्र द्वारा प्रकट करें।
उत्तर-
क्षेत्र रक्षक की व्यूह रचना (फील्ड सैटिंग)
(CRICKET FIELD)
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प्रायः मैदान में क्षेत्र रक्षक चित्र के अनुसार स्थान ग्रहण करते हैं।

प्रश्न
क्रिकेट खेल के महत्त्वपूर्ण तकनीक लिखें।
उत्तर-
क्रिकेट में बैटिंग निपुणता और तकनीकें
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किसी भी हिट को सफलतापूर्वक खेलने के लिए बैट्समैनों को तीन बातों का ध्यान रखना चाहिए। उसे अवश्य ही पहले बाल को ढूंढ़ना चाहिए और तब निरन्तर बाल की ओर ध्यान रखना चाहिए। उसे यह निर्णय देना होता है कि कौन-सी हिट ठीक है। उस हिट को ठीक तरह से खेलने के लिए अपने बदन को छोड़ना चाहिए।

पहले कहने को तो काफ़ी आसान है परन्तु वास्तव में इतना आसान नहीं है। यह बात सोचनी तो आसान है कि तुम बाल की ओर देख रहे हो। यह वास्तव में किसी आ रहे बाल को देखना आसान है बशर्ते कि तुमने अपना मन बनाया हुआ हो। किन्तु पूरी पारी में प्रत्येक बाल की जांच करने की आदत डालनी, सही अर्थों में जांच करनी एक बड़ा कठिन कार्य है। आप ऐसा केवल अपने हाथ के कार्य पर ध्यान केन्द्रित करना सीख कर ही कर सकते हो। यह वास्तव में बड़ा कठिन है, परन्तु यदि तुम इस प्रकार करना सीख लेते हो तो यह तुम्हें क्रिकेट में ही सहायक सिद्ध नहीं होगा बल्कि जीवन में भी।

अच्छी प्रकार निर्णय करना कि किसी विशेष बाल को किस तरह हिट करना है। यह एक प्रकार से अन्तर प्रेरणा का साधन है, या जिसे प्रायः क्रिकेट में ‘बाल सूझ’ कहा जाता है। कारण यह मुख्यतः अनुभव का कार्य है।
खिलाड़ी की स्थिति
खिलाड़ी की आरामदायक, तनावहीन तथा सन्तुलित स्थिति बनी रहनी आवश्यक है। बाल की ठीक परख करना और प्रत्येक स्ट्रोक के लिए पांव की हिल-डुल इस पर ही निर्भर करती है। पांव साधारणतः क्रीज़ की ओर समानान्तर होने चाहिएं और इनके पंजे लक्ष्य की ओर होने चाहिएं।
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एक ठीक बैक लिफ्ट’ का बहुत महत्त्व है। बायां बाजू और कलाई को ही समस्त कार्य करना चाहिए और बैट को आसानी से लक्ष्य की ओर, जैसे कि बैट उतरता है।
सिर और बदन बिल्कुल स्थिर होने चाहिएं। उभार के सिरे पर दाईं कुहनी बदन से कुछ पीछे होनी चाहिए और बायां हाथ पैंट की दाईं जेब के बिल्कुल सामने ऊपर की ओर होना चाहिए।
बैट नीचे की ओर इच्छुक हिट की रेखा पर घूमना चाहिए। प्रहार के समय लिफ्ट कुदरती है कि अधिक परिपक्व हो।

सीधे बाल को सामने की सुरक्षा हिट
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सामने की हिट सुरक्षा में न केवल बहुमूल्य है, बल्कि सब हिटों का आधार भी है। इसे ठीक ढंग से खेलना लगभग आधा बाल बैटमैन बनने के तुल्य है। उद्देश्य बाल को जितना प्वाइंट के निकट से निकट सम्भव हो सके, खेलने का है।
सिर आगे की ओर बढ़ाते, बायां कूल्हा और कन्धा बाल की रेखा से बाहर रख कर बाल को बैट पर बाएं पांव से कुछ इंच सामने लेना होता है और पांव मिड ऑफ व एक्स्ट्रा कवर के बीच की सेध में होना चाहिए। बदन का बोझ मुड़े हुए बाएं घुटने से बिल्कुल सामने की ओर हो।
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बाल की समस्त मार्ग परख करो। इस तरह करने के लिए तुम्हें अपना सिर जहां तक हो सके, सन्तुलन में रखना चाहिए। सिर ऊपर उठाने का लोभ कम करो।
हिट में नियन्त्रण आवश्यक है-यदि तुम मज़बूत हिट मारना चाहते हो तो तुम्हारी हिट घूमने की अपेक्षा अधिक अच्छी लम्बी हो सकती है।
बाल को साफ़-साफ़ व आसान ढंग से हिट करने के लिए उसे सीमा (बाऊंडरी) की ओर फेंकने की अपेक्षा मैदान में फेंकना चाहिए।
यदि बाल काफ़ी दूर ऊपर है तो हिट एक ही लम्बे कदम से भरी जा सकती है, मगर तुम्हें पिच पर कम गति, तेज़ व अधूरे (Shorter) बाल को खेलने के लिए पांव का प्रयोग करना भी सीखना चाहिए।
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आफ़ ड्राइव में सबसे आवश्यक बात यह है कि सिर, बायां कन्धा और कमर बाल की रेखा पर होने चाहिएं। यदि वह ठीक दिशा में होंगे तो बायां पांव अपने आप ही ठीक दिशा में काम करेगा। पहुंच से बाहर बाल और साधारण बाल को प्राप्त करने के लिए बाएं कन्धे की पीठ गेंद करने वाले की ओर होनी चाहिए और आफ़ साइड की ओर हिट का लक्ष्य होना चाहिए। वास्तव में अपनी नीचे की ओर गति फाइन लैग की रेखा से आरम्भ करेगा। जहां तक सम्भव हो सके बैट का पूरा भाग हिट की रेखा द्वारा घूमना चाहिए।
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युवकों में आन ड्राइव की योग्यता बहुत ही कम है, मगर यदि वह इसे हासिल कर लें तो अपने रन बनाने की सामर्थ्य को काफ़ी बढ़ा सकते हैं।
इससे पहली हरकत बाएं कन्धे को हल्का-सा नीचे रखना है। इस प्रकार बाएं पांव और सन्तुलन रेखा को ठीक रखने, सिर को आगे की ओर करके बाल की रेखा पर आने की सहायता मिलेगी। बायां पांव रेखा से हल्का-सा दूर होगा।
बैट्समैन को हिट का निशाना लेना चाहिए और अन्तिम बैट की चौड़ाई की ओर से नीचे घूमना चाहिए। बैट्समैन को अपनी आन ड्राइवस दाएं हाथ और दाएं कन्धे से अधिक काम लेने की रुचि को दृढ़ता से कम करना होगा। उसे अपने बाएं कूल्हे को भी दूर होने की आज्ञा नहीं देनी चाहिए।
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जब तक एक बैट्समैन बाल के आकर्षण की अच्छी तरह पड़ताल नहीं कर लेता तो उसे बैक स्ट्रोक से ही खेलना चाहिए और इस प्रकार उसे बाल के आकर्षण के पश्चात् जांच करने का समय भी मिलेगा। हल्की बाल और अधिक कठिन विकट में उसे अवश्य ही बैक स्ट्रोक पर निर्भर करना चाहिए।
दायां पांव क्रीज़ की ओर पंजा समानान्तर रहते बाल की रेखा के भीतर और पीछे की ओर अच्छी तरह हिल-डुल कर सकता है। बदन का बोझ इस पांव पर बदली किया जा सकता है परन्तु सिर आगे की ओर झुका हुआ होना चाहिए। बाएं पांव पर होते हुए एक सन्तुलनीय-सा कार्य करता है।
बाल दृष्टि से कुछ नीचे मिलना चाहिए जोकि जितना सम्भव स्तर हो सके होना चाहिए क्योंकि वह बाल को नीचे पिच की ओर झांकती है। हिट पर नियन्त्रण बाएं हाथ से बाजू की ओर से कोहनी ऊपर उठा कर किया जाता है। दायां हाथ अंगूठे पर अंगुलियों की पकड़ में आरामदायक होता है। बदन को जितना सम्भव हो सके साइडों की ओर रखना चाहिए।

समतल बैट स्ट्रोक
क्रिकेट (Cricket) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education 12
एक लड़का जब तक सीधी हिट नहीं मारना सीखता तब तक बैट्समैन नहीं बनता परन्तु उसे पूरे भाव से अनुचित बाल से खेलने का ढंग भी होना चाहिए। यह बात विशेष तौर पर लम्बे टिप्पों और पूर्ण उछाल में वास्तविक लगती है और विशेषतः जूनियर क्रिकेट में चौके मारने के उत्तम अवसर प्रदान करती है।
ये हिटें अधिक आसान होती हैं क्योंकि ये सीधी बैट हिटों से अधिक प्राकृतिक होती हैं, परन्तु इनको दृढ़ता से खेलने के लिए तुम्हें चतुराई से खेलने का ढंग सीखना चाहिए।

पिछले पांव का स्कवेयर कट
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बाल रेखा और प्वाइंट पर सामने से या पीछे मिले बाल से निपटने के लिए दायां पांव दाएं कूल्हे के आर-पार घूमता है। तब कलाइयों और हाथों को एक ऊंची बैक लिफ्ट से नीचे घुमाया जाता है और सिर व बदन, झुके हुए दाएं घुटने और स्ट्रोक रेखा में घूमता है।

लेट कट
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यह हिट भी ऊपरी हिट जैसी ही है, सिवाय इसके कि यह बाएं कन्धे के अधिक घुमाव से आरम्भ होती है और दायां पांव थर्ड स्लिप की ओर से पंजे की ओर भूमि पर होता है। बाल विकटों की सतह के बराबर मिलता है और कलाई आगे बढ़ाते बैट्समैन इसे गुल्ली या स्लिप की दिशा में हिट करता है।
इन दोनों कट्स में बायां पांव पंजे पर विश्राम अवस्था में रहता है और बोझ झुके हुए दाएं घुटने पर पूरी तरह रहता है।

क्रिकेट (Cricket) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education

PSEB 10th Class Physical Education Practical क्रिकेट (Cricket)

प्रश्न 1.
क्रिकेट के खेल में एक टीम में कितने खिलाड़ी होते हैं ?
उत्तर-
11 खिलाड़ी भाग लेते हैं तथा 5 अतिरिक्त (Substitute) खिलाड़ी होते हैं

प्रश्न 2.
क्रिकेट की गेंद का भार तथा परिधि कितनी होती है ?
उत्तर-
गेंद का भार 155.9 ग्राम (\(5 \frac{1}{2}\) औंस) से 163 ग्राम (\(5 \frac{3}{4}\) औंस) तक तथा परिधि 22.4 सेमी० (\(3 \frac{13}{16}\)) 22.9 सेमी० (9”) तक होती है।

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प्रश्न 3.
क्रिकेट के खेल में अधिकारियों की संख्या कितनी होती है ?
उत्तर-

  1. अम्पायर-2
  2. स्कोरर-2

प्रश्न 4.
क्रिकेट के बैट की लम्बाई तथा चौड़ाई कितनी होती है ?
उत्तर-
लम्बाई 96.5 सेमी० तथा अधिक-से-अधिक चौड़ाई 10.8 सेमी० होती है।

प्रश्न 5.
विकटों की एक स्टम्प से दूसरी स्टम्प तक दूरी कितनी होती है ?
उत्तर-
20.12 मीटर या 22 गज।

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प्रश्न 6.
डैड बाल से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
डैड बाल (Dead Ball)

  1. जब गेंद बाऊलर या विकेट कीपर ने ठीक तरह से पकड़ लिया हो।
  2. जब वह सीमा तक पहुंच जाये या ठप्पा खा जाए।
  3. वह खेले या बिना खेले या अम्पायर या बैट्समैन के कपड़ों से उलझ जाए।
  4. बैट्समैन आऊट हो जाये।
  5. गेंद फेंकने वाले के गेंद फिर प्राप्त करने के ऊपर अम्पायर खेल को यदि रोकना चाहे।
  6. अम्पायर द्वारा समय या ओवर की घोषणा करने पर।

नोट-बाऊलर को गेंद फेंकने की क्रिया या दौड़ शुरू करते ही गेंद डैड नहीं रहेगा।

प्रश्न 7.
क्रिकेट में ओवर से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
ओवर (Over)-प्रायः एक ओवर में 6 बार गेंदें खेली जाती हैं, यदि पहले निश्चित कर लिया जाए तो ओवर में आठ गेंदें भी खेली जा सकती हैं। यदि नो बाल या वाइड बाल हो जाये तो ओवर में एक गेंद और फेंकने की वृद्धि की जाती है। जितने नो बाल उस ओवर में होंगे उतने और गेंद फेंके जाते हैं। यदि अम्पायर से ओवर के बालों की गिनती में भूल हो जाती है तो अम्पायर द्वारा गिना गया ओवर ही माना जायेगा।
भारत में एक ओवर छ: गेंदों का होता है जबकि ऑस्ट्रेलिया में आठ गेंदें होती थीं।

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प्रश्न 8.
निम्नलिखित से आप क्या समझते हैंस्टम्पड, बोल्ड, विकेट पर चोट, गेंद को हाथ लगाना, गेंद पर दो चोंटे, रन आऊट, पगबाधा (LBW), नो बाल, वाइड बाल, बाई और लैग बाई।
उत्तर-

  1. स्टम्पड (Stumped)-बैट्समैन के हाथ का बैट या उसका पांव मानी गई भंज-रेखा के पीछे पृथ्वी पर न हो तो वह क्षेत्र से बाहर माना जाता है। यदि विकेट कीपर गेंद विकेट को लगाकर गिल्ली उड़ा दे तो बैट्समैन स्टम्पड आऊट होगा।
  2. बोल्ड (Bowled)-बाऊलर यदि गेंद फेंक कर विकेट गिरा दे तो बैट्समैन Bowled out कहलाता है, चाहे गेंद पहले उसके पैर या शरीर को छू चुकी हो।
  3. विकेट पर चोट (Hit wicket)-विकेट पर चोट खेलते हुए चाहे बैट्समैन के बैट या शरीर के किसी भी भाग को छू कर यदि विकेट या इस पर रखी गिल्ली (Bail) गिर जाए तो वह बैट्समैन आऊट समझा जाएगा।
  4. गेंद को हाथ लगाना (Handled the ball) यदि बैट्समैन खेलता हुआ गेंद को छू ले तो वह आऊट माना जाएगा।
  5. गेंद पर दो चोटें (Hit the Ball twice)-गेंद पर चोट लगाते समय यदि गेंद पर चोट लगाने वाले के शरीर के किसी भी भाग पर लगे या रुक जाए और वह उस पर जानबूझ कर फिर चोट लगाए तो वह गेंद पर चोट वाला आऊट हो जाता है। परन्तु एक शर्त है कि ऐसा विकट के बचाव के लिए न किया गया हो।
  6. रन आऊट (Run out)-जिस समय गेंद मैदान में हो और बैट्समैन भागते हुए अपने क्षेत्र से बहार चला जाए और विरोधी टीम का खिलाड़ी उसकी विकेट गिरा दे तो बैट्समैन रन आऊट हो जाता है।
  7. पगबाधा (LBW)–एक बैट्समैन पगबाधा (LBW) आऊट हो जाता है जबकि उसके शरीर का भी कोई भाग सिवाए हाथ के दोनों विकटों के बिल्कुल सामने हो क्योंकि अम्पायर के विचार में यदि ऐसा न होता तो गेंद सीधा विकटों में लगता है।
  8. नो बाल (No Ball)-जब गेंदबाज का गेंद फेंकते समय एक पैर पॉपिंग क्रीज़ से पीछे और रिटर्न क्रीज़ के मध्य में हो तथा दोनों में से किसी एक को छू रहा हो या उसके ऊपर टिका हो तो नो बाल हो जाता है। नो बाल की एक दौड़ होती है। यदि नो बाल पर बैट्समैन हिट करके कुछ दौड़ें बना ले तो वे दौड़ें बैट्समैन के खाते में जमा होंगी। अम्पायर अपनी एक भुजा फैलाकर नो बाल का संकेत करता है।
  9. वाइड बाल (Wide Ball)–यदि गेंद इतनी ऊंचा या बाहर फेंकी जाए कि वह बैट्समैन की पहुंच से बाहर हो तो उसे वाइड बाल कहते हैं। जो दौड़ें बाल के समय बनें, उन्हें वाइड बाल में गिना जाता है। यदि कोई भी दौड़ न बने तो वह एक दौड़ बनी समझी जाती है। वाइड बाल का संकेत अम्पायर अपनी दोनों भुजाएं फैला कर करता है।
  10. बाई और लैग बाई (Bye and Leg Bye)–यदि गेंद स्ट्राइक लेने वाले ‘बैट्समैन’ के पास से गुज़र जाए तो इसके साथ जितनी दौड़ें बनें उन्हें ‘बाई’ कहते हैं परन्तु नो बाल या वाइड बाल नहीं होना चाहिए। यदि गेंद उसके बैट वाले हाथ को छोड़ शरीर के किसी दूसरे अंग के साथ छू कर दूर चला जाता है और इतनी देर में कोई दौड़ बन जाए उसे लैग बाई कहते हैं।

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प्रश्न 9.
निम्नलिखित से क्या अभिप्राय है
(1) अनिवार्य ओवर
(2) एक दिवसीय मैच।
उत्तर-

  1. अनिवार्य ओवर (Mandatory Over)-मैच समाप्ति के एक घण्टा पहले निर्णायक अनिवार्य ओवर का संकेत देगा। उसके बाद खेल 20 ओवरों तक और खेला जाता है। प्रत्येक ओवर में 6 गेंदें खेली जाती हैं। यदि मैच अनिर्णित प्रतीत हो तो इन 20 ओवरों से पहले भी खेल स्थगित की जा सकती है।
  2. एक दिवसीय मैच-राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर एक दिवसीय टेस्ट मैच होता है जिसमें दोनों टीमें 40-40 या 50-50 ओवर खेलती हैं। जो टीम अधिक रन बनाती है वह जीत जाती है।

PSEB 10th Class SST Solutions History Chapter 5 गुरु गोबिन्द सिंह जी का जीवन, खालसा की संरचना, युद्ध तथा उनका व्यक्तित्व

Punjab State Board PSEB 10th Class Social Science Book Solutions History Chapter 5 गुरु गोबिन्द सिंह जी का जीवन, खालसा की संरचना, युद्ध तथा उनका व्यक्तित्व Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 10 Social Science History Chapter 5 गुरु गोबिन्द सिंह जी का जीवन, खालसा की संरचना, युद्ध तथा उनका व्यक्तित्व

SST Guide for Class 10 PSEB गुरु गोबिन्द सिंह जी का जीवन, खालसा की संरचना, युद्ध तथा उनका व्यक्तित्व Textbook Questions and Answers

(क) निम्नलिखित प्रत्येक प्रश्न का उत्तर एक शब्द/एक पंक्ति (1-15 शब्दों) में लिखो

प्रश्न 1.
गुरु गोबिन्द राय जी का जन्म कब और कहां हुआ ? उनके माता-पिता का नाम भी बताओ।
उत्तर-
22 दिसम्बर, 1666 ई० को पटना में। उनकी माता का नाम गुजरी जी और पिता का नाम श्री गुरु तेग़ बहादुर जी था।

प्रश्न 2.
बचपन में पटना में गुरु गोबिन्द जी क्या-क्या खेल खेलते थे?
उत्तर-
नकली लड़ाइयां तथा अदालत लगाकर अपने साथियों के झगड़ों का निपटारा करना।

प्रश्न 3.
गुरु गोबिन्द राय जी ने किस-किस अध्यापक से शिक्षा ली?
उत्तर-
काज़ी पीर मुहम्मद, पण्डित हरजस, राजपूत बजर सिंह, भाई साहिब चन्द, भाई सतिदास आदि से।

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प्रश्न 4.
कश्मीरी पण्डितों की क्या समस्या थी ? गुरु तेग़ बहादुर जी ने उसे कैसे हल किया?
उत्तर-
औरंगज़ेब कश्मीरी पण्डितों को ज़बरदस्ती मुसलमान बनाना चाहता था। गुरु तेग़ बहादुर जी ने इस समस्या को आत्म-बलिदान देकर हल किया।

प्रश्न 5.
भंगानी की विजय के बाद गुरु गोबिन्द राय ने कौन-कौन से किले बनवाए?
उत्तर-
आनन्दगढ़, केशगढ़, लोहगढ़ तथा फतेहगढ़।

प्रश्न 6.
पांच प्यारों के नाम लिखिए।
उत्तर-
भाई दया सिंह, भाई धर्म सिंह, भाई मोहकम सिंह, भाई साहब सिंह तथा भाई हिम्मत सिंह।

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प्रश्न 7.
गुरु गोबिन्द सिंह जी ज्योति जोत कैसे समाए?
उत्तर-
एक पठान ने गुरु साहिब के पेट में छुरा घोंप दिया।

प्रश्न 8.
‘खण्डे का पाहुल’ तैयार करते समय किन-किन बाणियों का पाठ किया जाता है?
उत्तर-
जपुजी साहिब, आनन्द साहिब, जापु साहिब, सवैये, चौपाई आदि बाणियों का।

प्रश्न 9.
खालसा का सृजन कब और कहां किया गया?
उत्तर-
1699 ई० में आनन्दपुर साहिब में।

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प्रश्न 10.
बिलासपुर के राजा भीमचन्द पर खालसा की स्थापना का क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर-
उसने गुरु जी के विरुद्ध कई पहाड़ी राजाओं से गठजोड़ कर लिया।

प्रश्न 11.
नादौन के युद्ध का क्या कारण था?
उत्तर-
पहाड़ी राजाओं ने गुरु साहिब से मित्रता स्थापित करके मुग़ल सरकार को वार्षिक कर देना बन्द कर दिया था।

प्रश्न 12.
मुक्तसर का पुराना नाम क्या था? इसका यह नाम क्यों रखा गया?
उत्तर-
खिदराना। खिदराना के युद्ध में शहीदी को प्राप्त हुए सिक्खों को 40 मुक्ते’ का नाम दिया गया और उनकी याद में खिदराना का नाम मुक्तसर रखा गया।

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प्रश्न 13.
‘ज़फ़रनामा’ नामक पत्र गुरु जी ने किसे लिखा था?
उत्तर-
मुग़ल सम्राट औरंगजेब को।

प्रश्न 14.
गुरु गोबिन्द सिंह जी की प्रसिद्ध चार रचनाओं के नाम लिखिए।
उत्तर-
जापु साहिब, ज़फ़रनामा, अकाल उस्तति तथा शस्त्र नाम माला।

(ख) निम्नलिखित प्रत्येक प्रश्न का उत्तर लगभग 30-50 शब्दों में लिखिए

प्रश्न 1.
गुरु गोबिन्द सिंह जी ने पटना में अपना बचपन कैसे बिताया?
उत्तर-
गुरु गोबिन्द सिंह जी ने बचपन के पांच वर्ष पटना में व्यतीत किए। वहां उनकी देख-रेख उनके मामा कृपाल ने की। कहते हैं कि घूड़ाम (पटियाला में स्थित) का एक मुस्लिम फ़कीर भीखणशाह बालक गोबिन्द राय के दर्शनों के लिए पटना गया था। बालक को देखते ही उसने यह भविष्यवाणी की थी कि “यह बालक बड़ा होकर महान् पुरुष बनेगा और लोगों का पथ-प्रदर्शन करेगा।” उसकी यह भविष्यवाणी बिल्कुल सत्य सिद्ध हुई। गुरु जी में महानता के लक्षण बाल्यकाल से ही दिखाई देने लगे थे। वे अपने साथियों को दो टोलियों में बांटकर युद्ध का अभ्यास किया करते थे और उन्हें कौड़ियां तथा मिठाई आदि देते थे। वे उनके झगड़ों का निपटारा भी करते थे। कोई भी निर्णय करते समय वे बड़ी सूझबूझ से काम लेते थे।

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प्रश्न 2.
गुरु गोबिन्द सिंह जी के राजसी चिह्नों का वर्णन करो।
उत्तर-
गुरु गोबिन्द सिंह जी ने अपने दादा गुरु हरगोबिन्द जी की भान्ति राजसी चिह्नों को अपनाया। वे राजगद्दी जैसे ऊँचे सिंहासन पर विराजमान होने लगे और अपनी पगड़ी पर कलगी सजाने लगे। उन्होंने अपने सिक्खों के दीवान सुन्दर तथा मूल्यवान् तम्बुओं में लगाने आरम्भ कर दिये। वे साहसी सिक्खों के साथ-साथ अपने पास हाथी तथा घोड़े भी रखने लगे। वे आनन्दपुर के जंगलों में शिकार खेलने जाते। इसके अतिरिक्त उन्होंने ‘रणजीत नगारा’ भी बनवाया।

प्रश्न 3.
खालसा के नियमों का वर्णन करो।
उत्तर-
खालसा की स्थापना 1699 ई० में गुरु गोबिन्द सिंह जी ने की । खालसा के नियम निम्नलिखित थे

  1. प्रत्येक खालसा अपने नाम के साथ ‘सिंह’ शब्द लगाएगा । खालसा स्त्री अपने नाम के साथ ‘कौर’ शब्द लगाएगी ।
  2. खालसा में प्रवेश से पूर्व प्रत्येक व्यक्ति को ‘खण्डे के पाहुल’ का सेवन करना पड़ेगा । तभी वह स्वयं को खालसा कहलवाएगा।
  3. प्रत्येक ‘सिंह’ आवश्यक रूप से पांच ‘ककार’ धारण करेगा-केश, कड़ा, कंघा, किरपान तथा कछहरा।
  4. सभी सिक्ख प्रतिदिन प्रात:काल स्नान करके उन पांच बाणियों का पाठ करेंगे जिनका उच्चारण ‘खण्डे का पाहुल’ तैयार करते समय किया गया था।

प्रश्न 4.
भंगानी के युद्ध के क्या कारण थे?
उत्तर-
भंगानी की लड़ाई 1688 ई० में पहाड़ी राजाओं तथा गुरु गोबिन्द राय जी के बीच हुई । इस लड़ाई के निम्नलिखित कारण थे

  1. पहाड़ी राजा गुरु गोबिन्द राय जी की सैनिक गतिविधियों को अपने लिए खतरा समझते थे।
  2. गुरु जी मूर्ति-पूजा के विरोधी थे । परन्तु पहाड़ी राजा मूर्ति-पूजा में विश्वास करते थे।
  3. गुरु जी ने मुगल सेना में से निकाले गए 500 पठानों को अपनी सेना में भर्ती कर लिया था। पहाड़ी राजा मुग़ल सरकार के स्वामिभक्त थे । इसलिए वे गुरु जी के विरुद्ध हो गए।
  4. मुग़ल फ़ौजदारों ने पहाड़ी राजाओं को गुरु जी के विरुद्ध उकसा दिया था।
  5. गुरु जी के साथ पहाड़ी राजा भीमचन्द की पुरानी शत्रुता थी। भीमचन्द के पुत्र की बारात गढ़वाल जा रही थी, परन्तु सिक्खों ने इन्हें पाऊंटा साहब से न गुज़रने दिया। परिणामस्वरूप पहाड़ी राजाओं ने गुरु जी से युद्ध करने का निर्णय कर लिया।

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प्रश्न 5.
आनन्दपुर साहिब की दूसरी लड़ाई कब हुई? इसका संक्षेप में वर्णन करो।
उत्तर-
आनन्दपुर की दूसरी लड़ाई 1704 ई० में हुई। आनन्दपुर साहिब के पहले युद्ध में गुरु गोबिन्द साहिब से पहाड़ी राजा बुरी तरह पराजित हुए थे। सन्धि के बाद भी वे पुनः सैनिक तैयारियां करने लगे । उन्होंने गुज्जरों को अपने साथ मिला लिया । मुगल सम्राट ने भी उनकी सहायता की प्रार्थना को स्वीकार कर लिया । 1704 ई० में सरहिन्द के गवर्नर वज़ीर खां ने सिक्खों की शक्ति को कुचलने के लिए विशाल सेना भेजी। सभी ने मिलकर आनन्दपुर का घेरा डाल दिया। गुरु जी ने अपने वीर सिक्खों की सहायता से डट कर मुग़लों का सामना किया, परन्तु धीरे-धीरे सिक्खों की रसद समाप्त हो गई । उन्हें भूख और प्यास सताने लगी। इस कठिन समय में 40 सिक्ख बेदावा लिखकर गुरु जी का साथ छोड़कर चले गए। अन्त में 21 दिसम्बर, 1704 ई० को माता गुजरी जी के कहने पर गुरु जी ने आनन्दपुर साहिब को छोड़ दिया।

प्रश्न 6.
चमकौर साहिब की लड़ाई पर नोट लिखें।
उत्तर-
सरसा नदी को पार करके गुरु गोबिंद सिंह जी चमकौर पहुंचे। वहां उन्होंने गांव के ज़मींदार के कच्चे मकान में आश्रय लिया परन्तु पहाड़ी राजाओं तथा मुग़ल सेनाओं ने उन्हें वहां भी घेर लिया। उस समय गुरु जी के साथ केवल 40 सिक्ख तथा उनके दोनों साहिबजादे अजीत सिंह तथा जुझार सिंह थे। फिर भी गुरु जी ने साहस न छोड़ा और मुग़लों का डट कर सामना किया। इस युद्ध में उनके दोनों साहिबजादे वीरगति को प्राप्त हुए। इसके अतिरिक्त 35 सिक्ख भी लड़ते-लड़ते शहीद हो गए। इनमें तीन प्यारे भी शामिल थे। परिस्थितियां बिल्कुल विपरीत थीं। अत: सिक्खों के प्रार्थना करने पर गुरु जी अपने पांच साथियों सहित माछीवाड़ा के जंगलों की ओर चले गए।

प्रश्न 7.
खिदराना की लड़ाई का वर्णन करो।
उत्तर-
चमकौर के युद्ध के पश्चात् गुरु गोबिन्द सिंह जी खिदराना में दाब नामक स्थान पर पहुंचे। वहां मुग़लों से उनका अन्तिम युद्ध हुआ। इस युद्ध में वे 40 सिक्ख भी गुरु जी के साथ आ मिले जो आनन्दपुर के दूसरे युद्ध में उनका साथ छोड़ गए थे। उन्होंने अपनी गुरु भक्ति का परिचय दिया और लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। उनकी इस गुरु भक्ति तथा बलिदान से गुरु जी बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने वहां इन शहीदों की मुक्ति के लिए प्रार्थना की । ये 40 शहीद इतिहास में ’40 मुक्ते ‘ कहलाते हैं। इस लड़ाई में माई भागो विशेष रूप से गुरु साहिब के पक्ष में लड़ने के लिए पहुंची थी। वह भी बुरी तरह से घायल हुई। अंत में गुरु साहिब विजयी रहे और मुग़ल सेना परास्त होकर भाग खड़ी हुई।

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प्रश्न 8.
गुरु गोबिन्द सिंह जी के सेनानायक के रूप में व्यक्तित्व का वर्णन करो।
उत्तर-
गुरु गोबिन्द सिंह जी एक कुशल सेनापति तथा वीर सैनिक थे । पहाड़ी राजाओं तथा मुग़लों के विरुद्ध लड़े गए प्रत्येक युद्ध में उन्होंने अपने वीर सैनिक होने का परिचय दिया। तीर चलाने, तलवार चलाने तथा घुड़सवारी करने में तो वे विशेष रूप से निपुण थे। गुरु जी में एक उच्च कोटि के सेनानायक के भी सभी गुण विद्यमान थे। उन्होंने कम सैनिक तथा कम युद्ध सामग्री के होते हुए भी पहाड़ी राजाओं तथा मुग़लों के नाक में दम कर दिया। चमकौर की लड़ाई में तो उनके साथ केवल चालीस सिक्ख थे, परन्तु गुरु जी के नेतृत्व में उन्होंने वे हाथ दिखाए कि एक बार तो हज़ारों की मुग़ल सेना घबरा उठी।

(ग) निम्नलिखित प्रत्येक प्रश्न का उत्तर लगभग 100-120 शब्दों में लिखिए

प्रश्न 1.
गुरु गोबिन्द सिंह जी के जीवन के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर-
गुरु गोबिन्द सिंह जी सिक्खों के दसवें तथा अन्तिम गुरु थे। उनमें आध्यात्मिक नेता, उच्चकोटि के संगठनकर्ता, सफल सेनानायक, प्रतिभाशाली विद्वान् तथा महान् सुधारक सभी के गुण विद्यमान थे। उनके जीवन का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है —
जन्म तथा माता-पिता — गुरु गोबिन्द सिंह जी का जन्म 22 दिसम्बर,1666 ई० में पटना (बिहार की राजधानी) में हुआ। वह गुरु तेग़ बहादुर जी के इकलौते पुत्र थे। उनकी माता का नाम गुजरी जी था। आरम्भ में उनका नाम गोबिन्द दास रखा गया परन्तु कुछ समय पश्चात् उन्हें गोबिन्द राय भी कहा जाने लगा।

पटना में बचपन — गोबिन्द राय जी ने अपने जीवन के प्रारम्भिक पाँच वर्ष पटना में व्यतीत किए। बचपन में वह ऐसे खेल खेलते थे, जिनसे यह पता चलता था कि एक दिन वह धार्मिक एवं महान् नेता बनेंगे। वह अपने साथियों की दौड़ें, कुश्तियाँ तथा नकली युद्ध करवाया करते थे। वह स्वयं भी इन खेलों में भाग लेते थे। वह अपने साथियों के झगडे का निपटारा करने के लिए अदालत भी लगाया करते थे। __ लखनौर में दस्तार — बंदी की रस्म-1671 ई० में बालक गोबिन्द राय जी की लखनौर में दस्तारबन्दी की रस्म पूरी की गई।
शिक्षा-1672 ई० के आरम्भ में गुरु तेग़ बहादुर जी अपने परिवार सहित चक नानकी (आनन्दपुर साहिब) में रहने लगे। यहां गोबिन्दराय जी को संस्कृत, फारसी तथा पंजाबी भाषा के साथ-साथ घुड़सवारी तथा अस्त्र-शस्त्र चलाने की शिक्षा दी गई।

पिता की शहादत तथा गुरु — गद्दी की प्राप्ति-1675 ई० में गुरु साहिब के पिता गुरु तेग़ बहादुर जी ने मुग़ल अत्याचारों के विरोध में अपनी शहीदी दे दी। पिता जी की शहादत के पश्चात् गोबिन्द राय जी ने गुरुगद्दी सम्भाली और सिक्खों का नेतृत्व करना आरम्भ किया।

विवाह-कुछ विद्वानों के अनुसार गोबिन्द राय जी ने माता जीतो, माता सुन्दरी तथा माता साहिब कौर नामक तीन स्त्रियों से विवाह किया था। परंतु कुछ विद्वान ये तीनों नाम माता जीतो जी के ही मानते हैं। गुरु जी के चार पुत्र हुएसाहिबजादा अजीत सिंह, साहिबजादा जुझार सिंह, साहिबजादा जोरावर सिंह तथा साहिबजादा फतह सिंह।

सेना का संगठन — सिक्ख धर्म की रक्षा के लिए गुरु साहिब के लिए सेना का संगठन करना अत्यन्त आवश्यक था। अत: गुरु साहिब जी की ओर से यह घोषणा कर दी गई कि जिस सिक्ख के चार पुत्र हों, उनमें से वह दो पुत्रों को उनकी सेना में भर्ती करवाए। सिक्खों को यह भी आदेश दिया गया कि वे अन्य वस्तुओं के स्थान पर घोड़े तथा शस्त्र भेंट करें। परिणामस्वरूप शीघ्र ही गुरु साहब के पास बहुत-से सैनिक तथा युद्ध-सामग्री इकट्ठी हो गई। उन्होंने सढौरा के पीर बुद्ध शाह के 500 पठान सैनिकों को भी अपनी सेना में शामिल कर लिया।

गुरु जी के राजसी चिह्न तथा शानदार दरबार — गुरु गोबिन्द राय जी ने भी अपने दादा गुरु हरगोबिन्द जी की भान्ति राजसी चिह्नों को अपनाया। वह राजगद्दी की तरह ऊँचे सिंहासन पर विराजमान होने लगे और अपनी पगड़ी पर कलगी सजाने लगे। उन्होंने सिक्खों के दीवान सुन्दर तथा मूल्यवान् तम्बुओं में लगाने आरम्भ कर दिए। वह साहसी सिक्खों के साथ-साथ अपने पास हाथी तथा घोड़े भी रखने लगे। वह आनन्दपुर के जंगलों में शिकार खेलने जाते। इसके अतिरिक्त उन्होंने ‘रणजीत नगारा’ भी बनवाया।
गुरु जी पाऊँटा साहब में — गुरु साहिब द्वारा आनन्दपुर साहिब में की गई कार्यवाहियाँ बिलासपुर के राजा भीमचन्द को अच्छी नहीं लगीं। इसलिए वह किसी-न-किसी बहाने गुरु जी से युद्ध करना चाहता था। परन्तु गुरु जी उससे लड़ाई करके अपनी सैनिक शक्ति नहीं गंवाना चाहते थे। इसलिए वह नाहन के राजा मेदिनी प्रकाश के निमन्त्रण पर नाहन राज्य में चले गए। वहां उन्होंने यमुना नदी के किनारे एक सुन्दर एकान्त स्थान को चुन लिया। उस स्थान का नाम ‘पाऊँटा’ रखा गया।
खालसा की स्थापना से पहले (पूर्व खालसा काल) की लड़ाइयां —

  1. 1688 ई० में गुरु जी को भंगानी की लड़ाई लड़नी पड़ी। इस युद्ध में गुरु जी ने राजा फतह शाह तथा उसके साथियों को हराया।
  2. इसी बीच मुग़ल सम्राट औरंगज़ेब ने 1693 ई० में पंजाब के शासकों को आदेश दिया कि वे गुरु जी के विरुद्ध युद्ध छेड़ें। अतः कांगड़ा प्रदेश के फ़ौजदार ने अपने पुत्र खानजादा को गुरु जी के विरुद्ध भेजा, परन्तु सिक्खों ने उसे हरा दिया।
  3. 1696 ई० के आरम्भ में कांगड़ा प्रदेश के फ़ौजदार ने हुसैन खान को गुरु जी के विरुद्ध भेजा। परन्तु वह पहाड़ी राजाओं के साथ ही उलझ कर रह गया।

खालसा की स्थापना — 1699 ई० में बैसाखी के दिन गुरु गोबिन्द राय जी ने खालसा की साजना की। उन्होंने अमृत तैयार करके पाँच प्यारों-दया राम, धर्म दास, मोहकम चन्द, साहब चन्द तथा हिम्मत राय को छकाया और उनके नाम के साथ ‘सिंह’ शब्द लगाया। गुरु जी ने स्वयं भी अपने नाम के साथ ‘सिंह’ शब्द जोड़ा।
उत्तर खालसा काल की लड़ाइयां-खालसा की स्थापना के बाद के काल को ‘उत्तर खालसा काल’ कहा जाता है। इस काल में गुरु जी युद्धों में ही उलझे रहे। उन्होंने 1701 ई० में आनन्दपुर का पहला युद्ध, 1702 ई० में निरमोह का युद्ध, 1702 ई० में ही बसौली का युद्ध, 1704 ई० में आनन्दपुर का दूसरा युद्ध, शाही टिब्बी का युद्ध तथा 1705 ई० में चमकौर का युद्ध लड़ा। चमकौर से निकलकर वह माछीवाड़ा, दीना कांगड़ आदि स्थानों से होते हुए खिदराना (मुक्तसर) पहुँचे। वहाँ 1705 ई० में उन्होंने मुग़ल सेना को हराया। खिदराना से वह तलवंडी साबो चले गए। ___ गुरु साहिब का ज्योति-जोत समाना-गुरु गोबिन्द सिंह जी सितम्बर, 1708 ई० में नंदेड़ (दक्षिण) पहुँचे। एक दिन सायं एक पठान ने गुरु साहिब के पेट में छुरा घोंप दिया। इसी घाव के कारण 7 अक्तूबर, 1708 ई० को गुरु जी ज्योति-जोत समा गए।

PSEB 10th Class SST Solutions History Chapter 5 गुरु गोबिन्द सिंह जी का जीवन, खालसा की संरचना, युद्ध तथा उनका व्यक्तित्व

प्रश्न 2.
गुरु गोबिन्द सिंह जी को खालसा के सृजन की आवश्यकता क्यों पड़ी?
उत्तर-
प्रत्येक वर्ग, जाति, धर्म तथा समुदाय के जीवन में एक ऐसा भी दिन आता है जब उसका रूप परिवर्तन होता है सिक्ख धर्म के इतिहास में भी एक ऐसा दिन आया जब गुरु नानक देव जी के सन्त ‘सिंह’ बनकर उभरे। यह महान परिवर्तन 1699 ई० में गुरु गोबिन्द सिंह जी द्वारा खालसा की स्थापना से आया। गुरु साहिब को निम्नलिखित कारणों से खालसा की स्थापना की आवश्यकता पड़ी

  1. प्रथम नौ गुरु साहिबान के कार्य-खालसा की स्थापना की पृष्ठभूमि गुरु नानक देव जी के समय से ही तैयार हो रही थी। गुरु नानक देव जी ने जाति-प्रथा तथा मूर्ति-पूजा का खण्डन किया और अत्याचारों के विरुद्ध आवाज़ उठाई। इस प्रकार उन्होंने खालसा की स्थापना के बीज बोये। गुरु नानक देव जी के पश्चात् सभी गुरु साहिबान ने इन्हीं बातों का बढ़-चढ़ कर प्रचार किया। गुरु अर्जन देव जी की शहीदी को देखते हुए छठे गुरु हरगोबिन्द जी ने ‘नवीन नीति’ का अनुसरण किया और सिक्खों को ‘सन्त सिपाही’ बना दिया। नौवें गुरु तेग़ बहादुर जी ने धर्म की रक्षा के लिए अपना जीवन बलिदान कर दिया और शहीदी से पूर्व अपने सिक्खों से ये शब्द कहे-“न किसी से डरो और न किसी को डराओ।” उनके इन शब्दों से सिक्खों में वीरता और साहस के भाव उत्पन्न हुए जो खालसा की स्थापना की आधारशिला बने।
  2. औरंगजेब के अत्याचार-गुरु गोबिन्द सिंह जी के समय में मुग़लों के अत्याचार दिन-प्रतिदिन बढ़ते जा रहे थे। मुग़ल सम्राट औरंगज़ेब ने हिन्दुओं के अनेक मन्दिर गिरवा दिये थे और उन्हें सरकारी पदों से हटा दिया था। उसने हिन्दुओं पर अतिरिक्त कर और कुछ अन्य अनुचित प्रतिबन्ध भी लगा दिये। सबसे बढ़कर वह हिन्दुओं को बलपूर्वक मुसलमान बना रहा था। फलस्वरूप हिन्दू धर्म का अस्तित्व मिटने को था। गुरु गोबिन्द सिंह जी अत्याचारों के विरोधी थे और वे अत्याचारी को मिटाने के लिए दृढ़ संकल्प थे। इसलिए उन्होंने खालसा पंथ की स्थापना करके एक शक्तिशाली सेना का संगठन किया।
  3. जाति-पाति का अस्तित्व-भारतीय समाज में अभी तक भी बहुत-सी बुराइयां चली आ रही थीं। इनमें से एक बुराई जाति-प्रथा की थी। ऊँच-नीच के भेदभाव के कारण हिन्दू जाति पतन की ओर जा रही थी। गंडा सिंह के मतानुसार जाति-पाति राष्ट्रीय एकता के मार्ग में एक बहुत बड़ी बाधा बन गई थी। शूद्रों तथा उच्च जाति के लोगों के बीच एक बहुत बड़ा अन्तर आ चुका था। इस अन्तर को मिटाने के लिए इस समय कोई गम्भीर कदम उठाना अत्यन्त आवश्यक था। इसी कारण से गुरु गोबिन्द सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना करने का विचार किया। गुरु जी चाहते थे कि इस पंथ के लोग अपने सभी भेद-भावों को भूल कर एकता के सूत्र में बंध जायें।
  4. पहाड़ी राजाओं द्वारा गुरु जी का विरोध-खालसा की स्थापना से पहले गुरु गोबिन्द सिंह जी शिवालिक की पहाड़ी रियासतों के राजाओं के साथ मिलकर अत्याचारी मुग़ल साम्राज्य के विरुद्ध एक संयुक्त मोर्चा बनाना चाहते थे। परन्तु शीघ्र ही गुरु जी को यह पता चल गया कि पहाड़ी राजाओं पर विश्वास नहीं किया जा सकता। ऐसी दशा में गुरु गोबिन्द सिंह जी ने निश्चय कर लिया कि औरंगज़ेब के अत्याचारों का सामना करने के लिये उनका अपना सैनिक दल होना आवश्यक है। अतः उन्होंने खालसा पंथ की स्थापना की।
  5. गुरु जी के जीवन का उद्देश्य–’बचित्तर नाटक’, जोकि गुरु जी की आत्मकथा है, में गुरु साहिब ने लिखा है कि उनके निजी जीवन का उद्देश्य संसार में धर्म का प्रचार करना, अत्याचारी लोगों का नाश करना तथा सन्त-महात्माओं की रक्षा करना है। किसी शस्त्रधारी धार्मिक संगठन के बिना यह उद्देश्य पूरा नहीं हो सकता था। फलस्वरूप गुरु साहिब ने खालसा की स्थापना आवश्यक समझी।

प्रश्न 3.
खालसा की स्थापना का क्या महत्त्व था?
उत्तर-
खालसा की स्थापना सिक्ख इतिहास की एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण घटना मानी जाती है। डॉ० हरिराम गुप्ता के शब्दों में, “खालसा की स्थापना देश के धार्मिक तथा राजनीतिक इतिहास की एक युग-प्रवर्तक घटना थी।” (“The creation of the Khalsa was an epoch making event in the religious and political history of the country.”)
इस घटना का महत्त्व निम्नलिखित बातों से जाना जा सकता है —

  1. गुरु नानक देव जी द्वारा प्रारम्भ किए गए कार्यों की पूर्ति-गुरु नानक देव जी ने सिक्ख धर्म की नींव रखी थी। गुरु गोबिन्द सिंह जी ने खालसा का सृजन करके उनके द्वारा प्रारम्भ किए गए कार्य को सम्पन्न किया।
  2. मसन्द प्रथा का अन्त-चौथे गुरु रामदास जी ने ‘मसन्द प्रथा’ का आरम्भ किया था। मसन्दों ने सिक्ख धर्म के प्रचार तथा प्रसार में उल्लेखनीय योगदान दिया था। परन्तु गुरु तेग़ बहादुर जी के समय तक मसन्द लोग स्वार्थी, लोभी तथा भ्रष्टाचारी हो गए थे। इसलिए गुरु गोबिन्द सिंह जी ने अपने सिक्खों को आदेश दिया कि वे मसन्दों से कोई सम्बन्ध न रखें। परिणामस्वरूप मसन्द-प्रथा समाप्त हो गई।
  3. खालसा संगतों के महत्त्व में वृद्धि-गुरु गोबिन्द सिंह जी ने खालसा संगत को ‘खण्डे का पाहुल’ छकाने का अधिकार दिया। उन्हें आपस में मिलकर निर्णय करने का अधिकार भी दिया गया। परिणामस्वरूप खालसा संगतों का महत्त्व बढ़ गया।
  4. सिक्खों की संख्या में वृद्धि-गुरु गोबिन्द सिंह जी ने अपने सिक्खों को अमृत छका कर खालसा बनाया। इसके उपरान्त गुरु साहिब ने यह आदेश दे दिया कि खालसा के कोई पाँच सदस्य अमृत छका कर किसी को भी खालसा में शामिल कर सकते हैं। फलस्वरूप सिक्खों की संख्या में निरन्तर वृद्धि होने लगी।
  5. सिक्खों में नई शक्ति का संचार-खालसा की स्थापना से सिक्खों में एक नई शक्ति का संचार हुआ। अमृत छकने के बाद वे स्वयं को ‘सिंह’ कहलाने लगे। ‘सिंह’ कहलाने के कारण उनमें भय तथा कायरता का कोई अंश न रहा। वे अपना चरित्र भी शुद्ध रखने लगे। इसके अतिरिक्त खालसा जाति-पाति का भेदभाव समाप्त हो जाने से सिंहों में एकता की भावना मज़बूत हुई।
  6. मुग़लों का सफलतापूर्वक विरोध-गुरु गोबिन्द सिंह जी ने खालसा का सृजन करके सिक्खों में वीरता तथा साहस की भावनाएं भर दीं। उन्होंने चिड़िया को बाज़ से तथा एक सिक्ख को एक लाख से लड़ना सिखाया। परिणामस्वरूप गुरु जी के सिक्खों ने 1699 ई० से 1708 ई० तक मुगलों के साथ कई सफलतापूर्वक युद्ध लड़े।।
  7. गुरु साहिब के पहाड़ी राजाओं से युद्ध-खालसा की स्थापना से पहाड़ी राजा भी घबरा गए। विशेष रूप से बिलासपुर का राजा भीमचन्द गुरु साहिब की सैनिक कार्यवाहियों को देख कर भयभीत हो उठा। उसने अन्य कई पहाड़ी राजाओं से गठजोड़ करके गुरु साहिब की शक्ति को दबाने का प्रयास किया। अतः गुरु साहिब को पहाड़ी राजाओं से कई युद्ध करने पड़े।
  8. सिक्ख सम्प्रदाय का पृथक् स्वरूप-गुरु गोबिन्द सिंह जी के काल तक सिक्खों के अपने कई तीर्थ-स्थान बन गए थे। उनके लिए पवित्र ग्रन्थ ‘आदि ग्रन्थ साहिब’ का संकलन भी हो चुका था। वे अपने ही ढंग से तीज-त्योहार मनाते थे। अब खालसा की स्थापना से सिक्खों ने पाँच ‘ककारों’ का पालन करना आरम्भ कर दिया। इस प्रकार उन्होंने अपने बाहरी स्वरूप को भी जन-साधारण से अलग कर लिया।
  9. लोकतान्त्रिक तत्त्वों का प्रचलन-गुरु गोबिन्द सिंह जी ने ‘पाँच प्यारों’ को अमृत छकाने के बाद स्वयं उनके हाथों से अमृत छका। उन्होंने यह आदेश दिया कि कोई भी पाँच सिंह या संगत किसी भी व्यक्ति को अमृत छका कर सिंह बना सकती है। अपने ज्योति जोत समाने से पहले गुरु जी ने गुरु-शक्ति को ‘गुरु ग्रन्थ साहिब’ तथा खालसा में बांट कर लोकतान्त्रिक परम्परा की नींव रखी।
  10. सिक्खों की राजनीतिक शक्ति का उत्थान-खालसा के संगठन से सिक्खों में वीरता, निडरता, हिम्मत तथा आत्म-बलिदान की भावनाएँ जागृत हो उठीं। परिणामस्वरूप सिक्ख एक राजनीतिक शक्ति के रूप में उभरे।
    सच तो यह है कि खालसा की स्थापना ने ‘सिंहों’ को ऐसा अडिग विश्वास प्रदान किया जिसे कभी भी विचलित नहीं किया जा सकता।

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प्रश्न 4.
गुरु गोबिन्द सिंह जी की पूर्व खालसा काल की लड़ाइयों का वर्णन करो।
उत्तर-
गुरु गोबिन्द सिंह जी के जीवन काल में 1675 ई० से 1699 ई० तक का समय पूर्व खालसा काल के नाम से विख्यात है। इस काल में गुरु साहिब ने निम्नलिखित लड़ाइयां लड़ी___

  1. भंगानी का युद्ध-बिलासपुर का राजा भीमचन्द गुरु जी की बढ़ती हुई सैनिक शक्ति से घबरा उठा और वह उनके विरुद्ध युद्ध की तैयारी करने लगा। यह बात नाहन के राजा मेदिनी प्रकाश के लिए चिन्ताजनक थी। इसलिए उसने गुरु जी से सम्बन्ध बढ़ाने चाहे और गुरु जी को अपने यहां आमन्त्रित किया। गुरु जी पाऊंटा पहुंचे और वहां उन्होंने पौण्टा नामक किले का निर्माण करवाया। कुछ समय पश्चात् भीमचन्द ने अपने पुत्र की बारात को पाऊंटा में से गुज़ारना चाहा, परन्तु गुरु जी जानते थे कि उसकी नीयत ठीक नहीं है। इसलिए उन्होंने भीमचन्द को पाऊंटा में से गुज़रने की आज्ञा न दी। भीमचन्द ने इसे अपना अपमान समझा और अपने पुत्र के विवाह के पश्चात् अन्य पहाड़ी राजाओं की सहायता से गुरु जी पर आक्रमण कर दिया। पाऊंटा से कोई 6 मील दूर भंगानी के स्थान पर घमासान लड़ाई लड़ी गई। इस लड़ाई में गुरु जी ने पहाड़ी राजाओं को बुरी तरह से परास्त किया।
  2. नादौन का युद्ध-भंगानी की विजय के पश्चात् भीमचन्द और अन्य पहाड़ी राजाओं ने गुरु जी से मित्रता कर ली और मुग़ल सम्राट को कर देना बन्द कर दिया। इस पर सरहिन्द के मुग़ल गवर्नर ने अलिफ खां के नेतृत्व में पहाड़ी राजाओं तथा गुरु जी के विरुद्ध एक विशाल सेना भेजी। कांगड़ा से 20 मील दूर नादौन के स्थान पर घमासान युद्ध हुआ। इस युद्ध में मुग़ल बुरी तरह पराजित हुए।
  3. मुग़लों से संघर्ष-मुग़ल सम्राट औरंगज़ेब उस समय दक्षिण में था जब गुरु साहिब की शक्ति बढ़ रही थी। उसने पंजाब में मुग़ल फ़ौजदारों को आदेश दिया कि वह गुरु साहिब के विरुद्ध कार्यवाही करें।
    1. सर्वप्रथम कांगड़ा प्रदेश के फ़ौजदार दिलावर खां ने अपने पुत्र खानज़ादा रुस्तम खां के अधीन गुरु साहिब के विरुद्ध 1694 ई० में मुहिम भेजी। सिक्ख पहले ही उससे दो-दो हाथ करने को तैयार थे। उन्होंने शत्रु पर अभी कुछ गोले ही बरसाए थे कि खानजादा तथा उसके साथी भयभीत होकर भाग गए। इस प्रकार गुरु साहिब को बिना युद्ध किए ही विजय प्राप्त हुई।
    2. 1696 ई० के आरम्भ में दिलावर खां ने हुसैन खां को आनन्दपुर साहब पर आक्रमण करने के लिए भेजा। मार्ग में हुसैन खां ने गुलेर तथा जसवान के राजाओं से कर मांगा। परन्तु उन्होंने कर देने की बजाय हुसैन खां से युद्ध करने का निर्णय कर लिया। भीमचन्द (बिलासपुर) तथा किरपाल चन्द (कांगड़ा) हुसैन खां से जा मिले। परन्तु गुरु जी ने अपने कुछ सिक्खों को हुसैन खां के विरुद्ध भेजा। हुसैन खां की पराजय हुई और वह मारा गया।
    3. हुसैन खां की मृत्यु के पश्चात् दिलावर खां ने जुझार सिंह तथा चंदेल राय के नेतृत्व में सेनाएँ भेजीं। परन्तु वे भी आनन्दपुर साहिब में पहुँचने से पहले ही राजा राजसिंह (जसवान) से पराजित होकर भाग गईं।
    4. अंततः मुग़ल सम्राट औरंगजेब ने शहज़ादा मुअज्जम को गुरु साहिब तथा पहाड़ी राजाओं के विरुद्ध भेजा। उसने लाहौर पहुँच कर मिर्जा बेग के नेतृत्व में एक विशाल सेना पहाड़ी राजाओं के विरुद्ध भेजी। वह पहाड़ी राजाओं को परास्त करने में सफल रहा।

प्रश्न 5.
गुरु गोबिन्द सिंह जी की उत्तर-काल की लड़ाइयों का वर्णन करो।
उत्तर-
उत्तर-खालसा काल में गुरु जी अनेक युद्धों में उलझे रहे। इन युद्धों का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है —

  1. आनन्दपुर का प्रथम युद्ध 1701 ई०-खालसा की स्थापना से पहाड़ी राजा घबरा गए। अतः बिलासपुर के राजा भीमचन्द ने गुरु जी को पत्र लिखा कि वे या तो आनन्दपुर छोड़ दें या जितना समय वह वहाँ रहे हैं उसका किराया दें। गुरु जी ने उसकी इस अनुचित माँग को अस्वीकार कर दिया। इस पर भीमचन्द ने अन्य पहाड़ी राजाओं के साथ मिलकर आनन्दपुर पर आक्रमण कर दिया। गुरु जी कम सैनिकों के होते हुए भी उन्हें परास्त करने में सफल हो गए। तत्पश्चात् पहाड़ी राजाओं ने मुग़लों से सहायता प्राप्त की और एक बार फिर आनन्दपुर पर आक्रमण किया। इस बार भी उन्हें मुँह की खानी पड़ी। विवश होकर उन्हें गुरु जी से सन्धि करनी पड़ी। सन्धि की शर्त के अनुसार गुरु साहिब आनन्दपुर छोड़कर निरमोह नामक स्थान पर चले गये।
  2. निरमोह का युद्ध 1702 ई०-राजा भीमचन्द ने अनुभव किया कि उसके लिए सिक्खों की शक्ति को समाप्त करना असम्भव है। अतः उसने मुग़ल सरकार से सहायता की मांग की। 1702 ई० के आरम्भ में एक ओर से राजा भीमचन्द की सेना और दूसरी ओर से सरहिन्द के सूबेदार के नेतृत्व में मुग़ल सेना ने निरमोह पर आक्रमण कर दिया। आस-पास के गूजरों ने भी आक्रमणकारियों का साथ दिया। सिक्खों ने बड़ी वीरता से शत्रु का सामना किया। एक रात तथा एक दिन तक लड़ाई होती रही। अन्त में गुरु जी ने शत्रु की सेना को भागने पर विवश कर दिया।
  3. सतलुज की लड़ाई 1702 ई०-निरमोह की विजय के पश्चात् गुरु जी ने निरमोह छोड़ने का निर्णय कर लिया। उन्होंने अभी सतलुज नदी को पार भी नहीं किया था कि शत्रु सेना ने उन पर पुनः आक्रमण कर दिया। लगभग चार घण्टे युद्ध चला जिसमें गुरु जी विजयी रहे।
  4. बसौली का युद्ध 1702 ई०-सतलुज नदी को पार करके गुरु जी अपने सिक्खों सहित बसौली में चले गए। यहां भी राजा भीमचन्द की सेना ने गुरु जी की सेना का पीछा किया। परन्तु गुरु जी ने उन्हें फिर से हरा दिया। क्योंकि बसौली तथा जसवान के राजा गुरु जी के मित्र थे, इसलिए भीमचन्द ने गुरु जी से समझौता करने में ही अपनी भलाई समझी। यह सन्धि 1702 ई० के मध्य में हुई। परिणामस्वरूप गुरु जी फिर से आनन्दपुर में आ गए।
  5. आनन्दपुर का दूसरा युद्ध 1704-पहाड़ी राजाओं ने एक संघ स्थापित करके गुरु जी से आनन्दपुर छोड़कर चले जाने के लिए कहा। जब गुरु जी ने उनकी मांग को स्वीकार न किया तो उन्होंने गुरु जी पर धावा बोल दिया। परन्तु उन्हें एक बार फिर मुंह की खानी पड़ी। अपनी पराजय का बदला लेने के लिए भीमचन्द तथा अन्य पहाड़ी राजाओं ने मुग़ल सरकार से सहायता प्राप्त कर गुरु जी पर आक्रमण कर दिया और आनन्दपुर साहिब को चारों ओर से घेर लिया। परिणामस्वरूप सिक्खों के लिए युद्ध जारी रखना कठिन हो गया। सिक्खों ने आनन्दपुर छोड़कर जाना चाहा, परन्तु गुरु जी न माने। इस संकट के समय में चालीस सिक्ख अपना ‘बेदावा’ लिख कर गुरु जी का साथ छोड़ गए। अन्त में 21 दिसम्बर, 1704 ई० को माता गुजरी जी के कहने पर गुरु साहिब ने आनन्दपुर साहिब को छोड़ दिया।
  6. शाही टिब्बी का युद्ध-गुरु गोबिन्द सिंह जी द्वारा आनन्दपुर छोड़ देने के पश्चात् शत्रु ने आनन्दपुर पर अपना अधिकार कर लिया। उन्होंने सिक्खों का पीछा भी किया। गुरु जी के आदेश पर उनके सिक्ख ऊधे सिंह ने अपने 50 साथियों के साथ शत्रु की विशाल सेना का शाही टिब्बी नामक स्थान पर डट कर सामना किया। भले ही ये सभी सिक्ख शहीद हो गए, तो भी उन्होंने सैंकड़ों शत्रुओं को मौत के घाट उतार दिया।
  7. सरसा की लड़ाई-आगे बढ़ते हुए गुरु साहिब तथा उनके साथी सरसा नदी पर पहुँचे। शत्रु की सेना भी उनके निकट पहुँच चुकी थी। गुरु जी ने अपने एक मुख्य सिक्ख भाई जीवन सिंह रंगरेटा को लगभग 100 सिक्खों सहित शत्रु का सामना करने के लिए पीछे छोड़ दिया था। इन सिक्खों ने शत्रु का डट कर सामना किया तथा शत्रु को भारी क्षति पहुँचाई। । उस समय सरसा नदी में बाढ़ आई हुई थी। फिर भी गुरु जी, उनके सैंकड़ों सिक्ख तथा साथी अपने घोड़ों सहित नदी में कूद पड़े। इस भाग-दौड़ में बहुत-से सिक्ख तथा गुरु जी के छोटे साहिबजादे ज़ोरावर सिंह तथा फतेह सिंह तथा माता गुजरी जी उनसे बिछुड़ गए।
  8. चमकौर का युद्ध 1705 ई०-सरसा नदी को पार करके गुरु जी चमकौर पहुंचे। परन्तु पहाड़ी राजाओं तथा मुग़ल सेनाओं ने उन्हें वहाँ भी घेर लिया। उस समय गुरु जी के साथ केवल 40 सिक्ख तथा उनके दो साहिबजादे अजीत सिंह तथा जुझार सिंह थे। फिर भी गुरु जी ने मुग़लों का डट कर सामना किया। इस युद्ध में 35 सिक्ख तथा दोनों साहिबजादे अजीत सिंह तथा जुझार सिंह वीरगति को प्राप्त हुए। गुरु साहिब खिदराना पहुंचे।
  9. खिदराना का युद्ध 1705 ई०-खिदराना में मुग़लों से गुरु जी का अन्तिम युद्ध हुआ। इस युद्ध में वे 40 सिक्ख भी गुरु जी के साथ आ मिले जो आनन्दपुर के दूसरे युद्ध में उनका साथ छोड़ गए थे। गुरु जी के पास लगभग 2000 सिक्ख थे जिन्हें 10,000 मुग़ल सैनिकों का सामना करना पड़ा। गुरु जी के पास पुनः आए सिक्खों ने अपनी गुरु भक्ति का परिचय दिया और लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। उनकी गुरु भक्ति तथा बलिदान से गुरु जी बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने वहां इन शहीदों की मुक्ति के लिए प्रार्थना की। ये 40 शहीद इतिहास में 40 मुक्ते’ कहलाते हैं। आज भी सिक्ख अपनी अरदास के समय इन्हें याद करते हैं। उनकी याद में खिदराना का नाम मुक्तसर पड़ गया।

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प्रश्न 6.
मनुष्य के रूप में आप गुरु गोबिन्द सिंह जी के बारे में क्या जानते हैं?
उत्तर-
गुरु गोबिन्द सिंह जी सिक्ख इतिहास की महानतम् विभूतियों में से एक थे। वह सचरित्र, साहस, सन्तोष तथा सहनशीलता की मूर्ति थे। मानव के रूप में इनका और कहीं उदाहरण मिलना कठिन ही नहीं, अपितु असम्भव है। आदर्श मानव के रूप में गुरु साहिब के चरित्र के विभिन्न पक्षों का वर्णन इस प्रकार है —

  1. प्रभावशाली आकृति-गुरु गोबिन्द सिंह जी एक सुन्दर आकृति वाले पुरुष थे। उनका कद लम्बा, रंग गोरा, माथा चौड़ा तथा शरीर गठा हुआ था। उनके चेहरे पर एक विशेष चमक थी। वह शस्त्र धारण करके रहते थे. उनकी पगड़ी पर कलगी लगी रहती थी और उनके हाथ में बाज़ होता था।
  2. आदर्श पुत्र तथा पिता-गुरु जी आदर्श पुत्र तथा पिता थे। अपने पिता को यह कहकर कि “बलिदान देने के लिए आपसे बढ़कर योग्य कौन हो सकता है,” उन्होंने एक आदर्श पुत्र होने का ज्वलन्त उदाहरण दिया। धर्म के लिए उन्होंने अपने चारों पुत्रों को हँसते-हँसते बलिदान कर दिया। उनके दो पुत्र दीवार में जीवित चिनवा दिए गए। उनके अन्य दो पुत्र आनन्दपुर के दूसरे युद्ध में शहीद हो गए थे। यह गुरु जी के आदर्श पिता होने का स्पष्ट प्रमाण है। गुरु जी अपनी माता जी की आज्ञा का पालन करना भी अपना बहुत बड़ा कर्त्तव्य समझते थे। उन्होंने अपनी माता जी के कहने पर आनन्दपुर का किला खाली कर दिया था।
  3. दृढ़ संकल्प-गुरु गोबिन्द सिंह जी एक दृढ़ संकल्प वाले व्यक्ति थे। भयंकर से भयंकर विपत्तियां भी उन्हें अपने मार्ग से विचलित न कर सकीं। अभी वह 9 वर्ष के ही थे कि उनके पिता ने धर्म की रक्षा के लिए अपना बलिदान दे दिया। उनके दो पुत्रों को दीवार में जीवित चिनवा दिया गया। उनके अन्य दो पुत्र युद्ध में शहीदी को प्राप्त हुए। इतना होने पर भी गुरु जी अपने पथ से विचलित नहीं हुए। उन्होंने सत्य के मार्ग पर चलते हुए आजीवन संघर्ष जारी रखा।
  4. उदार तथा सहनशील-मुग़ल सम्राट औरंगज़ेब ने अपनी धार्मिक कट्टरता के कारण गुरु गोबिन्द सिंह जी के पिता गुरु तेग़ बहादुर जी को शहीद कर दिया था, फिर भी गुरु गोबिन्द सिंह जी के मन में मुसलमानों के प्रति कोई घृणा नहीं थी। गुरु साहिब के उदार तथा सहनशील स्वभाव के कारण ही पीर मुहम्मद, पीर बुद्ध शाह, निहंग खान, नबी खां, गनी खां जैसे मुसलमान गुरु जी के मित्र थे। गुरु जी की सेना में भी अनेक मुसलमान तथा पठान सैनिक थे।
  5. सर्वगुण-सम्पन्न-गुरु जी एक सर्वगुण-सम्पन्न व्यक्ति थे। वे निडर, सहनशील तथा स्वतन्त्र विचारों वाले व्यक्ति थे। उस समय की सबसे बड़ी शक्ति मुग़ल भी उन्हें न डरा सकी। उन्होंने अपने पुत्रों का बलिदान दे दिया, परन्तु मुग़लों के सामने घुटने न टेके। उनके स्वतन्त्र विचारों का ज्ञान हमें उनकी रचना ‘ज़फ़रनामा’ से हो जाता है। ज़फ़रनामा में उन्होंने औरंगजेब की शक्ति को ललकारा था। उन्होंने इसमें औरंगज़ेब के पिठू कर्मचारियों की खुले रूप से निन्दा की है। इन सब बातों से हमें पता चलता है कि गुरु जी एक स्वतन्त्र विचारों वाले व्यक्ति थे।

प्रश्न 7.
चमकौर साहिब तथा खिदराना की लड़ाई का वर्णन करें।
उत्तर-
चमकौर साहिब तथा खिदराना की लड़ाइयां गुरु गोबिन्द सिंह जी द्वारा लड़ी गईं दो महत्त्वपूर्ण लड़ाइयां थीं। . ये दोनों लड़ाइयां गुरु साहिब ने उत्तर खालसा काल में लड़ी।

  1. चमकौर का युद्ध 1705 ई०-सरसा नदी को पार करके गुरु साहिब अपने सिक्खों सहित चमकौर साहिब पहुंच गए। उस समय उनके साथ केवल 40 सिक्ख थे। उनके दो बड़े साहिबजादे अजीत सिंह तथा जुझार सिंह उनके साथ थे। वहां उन्होंने एक कच्ची गढ़ी में शरण ली। इसी बीच शत्रु सेना ने उन पर आक्रमण कर दिया। सिक्खों ने इसका उत्तर बड़ी वीरता से दिया। गुरु जी के दोनों साहिबजादे बड़े साहस से लड़े। शत्रु को मारते-काटते वे शहीदी को प्राप्त हुए। पाँच प्यारों में से तीन प्यारे-साहिब सिंह, मोहकम सिंह तथा हिम्मत सिंह ने भी इसी युद्ध में शहादत प्राप्त की। अन्त में गुरु जी के सिंहों में से केवल पांच सिंह ही रह गए। उन्होंने हुक्मनामे के रूप में गुरु जी को चमकौर साहिब छोड़ जाने के लिए विवश कर दिया। भाई दया सिंह तथा भाई धरम सिंह उनके साथ गढ़ी से बाहर चले गए। शेष सिंह लड़ते-लड़ते वीरगति को प्राप्त हुए।
    गुरु गोबिन्द सिंह जी माछीवाड़ा, आलमगीर, दीना आदि स्थानों से होते हुए खिदराना की ओर चले गए।
  2. खिदराना का युद्ध 1705 ई०-चमकौर साहिब से चलकर गुरु गोबिन्द सिंह जी जब खिदराना में ढाब नामक स्थान पर पहुंचे तो उस समय तक उनके साथ असंख्य सिक्ख शामिल हो चुके थे। वे 40 सिंह जो आनन्दपुर के दूसरे युद्ध में गुरु जी को ‘बेदावा’ लिख कर गुरु साहिब का साथ छोड़ गए थे, वे भी वहां पहुंच गए। उनके साथ माई भागो विशेष रूप से गुरु जी के पक्ष में लड़ने के लिए वहाँ पहुंची थी। कुल मिला कर गुरु जी के पास लगभग 2,000 सिक्ख थे।
    दूसरी ओर सरहिन्द का सूबेदार वज़ीर खां 10,000 सैनिकों की विशाल सेना लेकर वहां पहुंचा। 29 दिसम्बर, 1705 ई० को खिदराना की ढाब नामक स्थान पर घमासान युद्ध हुआ। इस युद्ध में भी गुरु साहिब तथा उनके साथियों ने अपने अद्वितीय शौर्य का परिचय दिया। उन्होंने शत्रु की भयंकर मार-काट की। वहाँ पानी की कमी के कारण मुग़लों के लिए लड़ना बड़ा कठिन था। परिणामस्वरूप मुग़ल सेना परास्त हो कर भाग खड़ी हुई। चाहे माई भागो बुरी तरह से घायल हुई तथा बेदावा लिखने वाले 40 सिंह भी शहीद हो गए, परन्तु विजय गुरु जी की ही हुई। गुरु जी ने चालीस सिंहों की वीरता देख कर उनके मुखिया भाई महा सिंह के सामने उनकी ओर से दिया गया ‘बेदावा’ फाड़ दिया। उन सिक्खों को अब इतिहास में ‘चालीस मुक्ते’ कह कर याद किया जाता है। उनकी याद में ही खिदराना का नाम ‘मुक्तसर’ पड़ गया।

PSEB 10th Class Social Science Guide गुरु गोबिन्द सिंह जी का जीवन, खालसा की संरचना, युद्ध तथा उनका व्यक्तित्व Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

I. उत्तर एक शब्द अथवा एक लाइन में

प्रश्न 1.
(i) गुरु गोबिन्द सिंह जी के बचपन का क्या नाम था?
(ii) उन्होंने कब से कब तक गुरु गद्दी का संचालन किया?
उत्तर-
(i) गुरु गोबिन्द सिंह जी के बचपन का नाम गोबिन्द राय था।
(ii) उन्होंने 1675 ई० में गुरु गद्दी सम्भाली। गुरु जी ने 1708 ई० तक गुरु गद्दी का संचालन किया।

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प्रश्न 2.
गुरु गोबिन्द सिंह जी ने कौन-सा नगारा बनवाया?
उत्तर-
गुरु गोबिन्द सिंह जी ने एक नगारा बनवाया जिसे रणजीत नगारा के नाम से पुकारा जाता था।

प्रश्न 3.
(i) आनन्दपुर का प्रथम युद्ध किस-किस के बीच हुआ?
(ii) इस युद्ध में किसकी विजय हुई?
उत्तर-
(i) आनन्दपुर का प्रथम युद्ध बिलासपुर के पहाड़ी राजा भीमचन्द तथा गुरु गोबिन्द सिंह जी के बीच हुआ।
(ii) इस युद्ध में गुरु जी ने पहाड़ी राजा को बुरी तरह परास्त किया।

प्रश्न 4.
आनन्दपुर के दूसरे युद्ध में किसकी विजय हुई?
उत्तर-
आनन्दपुर के दूसरे युद्ध में गुरु गोबिन्द सिंह जी की विजय हई।

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प्रश्न 5.
(i) भंगानी का युद्ध कब हुआ?
(ii) दो पहाड़ी राजाओं के नाम बताओ जो इस युद्ध में गुरु गोबिन्द सिंह जी के विरुद्ध लड़े।
उत्तर-
(i) भंगानी का युद्ध 1688 ई० में हुआ।
(ii) इस युद्ध में बिलासपुर का राजा भीमचन्द तथा कांगड़ा का राजा कृपाल चन्द गुरु साहिब के विरुद्ध लड़े।

प्रश्न 6.
(i) आनन्दपुर की सभा में कितने व्यक्तियों ने अपने आपको बलिदान देने के लिए उपस्थित किया?
(ii) उसमें से पहला व्यक्ति कौन था?
उत्तर-
(i) इस सभा में पांच व्यक्तियों ने अपने आपको बलिदान देने के लिए उपस्थित किया।
(ii) इनमें से पहला व्यक्ति लाहौर का दयाराम खत्री था।

प्रश्न 7.
खालसा के सदस्य आपस में मिलते समय किन शब्दों से एक-दूसरे का अभिवादन करते हैं?
उत्तर-
खालसा के सदस्य ‘वाहिगुरु जी का खालसा’, ‘वाहिगुरु जी की फतेह’ कह कर एक-दूसरे का अभिवादन करते हैं।

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प्रश्न 8.
(i) गुरु जी के दो साहिबजादों के नाम बताओ जिन्हें जीवित दीवार में चिनवा दिया गया था।
(ii) उनके किन दो साहिबजादों ने चमकौर के युद्ध में शहीदी दी?
उत्तर-
(i) गुरु जी के दो साहिबजादों जोरावर सिंह तथा फतेह सिंह को जीवित दीवार में चिनवा दिया गया।
(ii) चमकौर के युद्ध में शहीदी देने वाले दो साहिबजादे थे-अजीत सिंह तथा जुझार सिंह।

प्रश्न 9.
गुरु गोबिन्द राय जी के बचपन के प्रथम पांच वर्ष कहां बीते?
उत्तर-
पटना में।

प्रश्न 10.
गुरु गोबिन्द राय जी की दस्तारबंदी कहां हुई?
उत्तर-
लखनौर में।

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प्रश्न 11.
गुरु तेग बहादुर जी की शहीदी कब हुई?
उत्तर-
11 नवम्बर, 1675 ई० को।

प्रश्न 12.
गुरु तेग बहादुर साहिब के शीश का, अन्तिम संस्कार किसने और कहां किया?
उत्तर-
गुरु तेग़ बहादुर साहिब के शीश का अन्तिम संस्कार भाई नेता तथा गोबिन्द्र राय जी ने आनन्दपुर साहिब में किया।

प्रश्न 13.
गुरु गोबिन्द राय जी द्वारा अपनाए गए किसी एक राजसी चिन्ह का नाम बताओ।
उत्तर-
कलगी।

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प्रश्न 14.
‘पाऊंटा साहिब’ का क्या अर्थ है?
उत्तर-
‘पाऊंटा साहिब’ का अर्थ है-पैर रखने का स्थान।

प्रश्न 15.
सढौरा की पठान सेना का नेता कौन था?
उत्तर-
पीर बुद्धू शाह।।

प्रश्न 16.
गुरु गोबिन्द सिंह जी ने खिदराना (मुक्तसर) में मुगल सेना को कब हराया?
उत्तर-
1705 में।

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प्रश्न 17.
गुरु गोबिन्द सिंह जी कब और कहां ज्योति जोत समाए?
उत्तर-
गुरु गोबिन्द सिंह जी 7 अक्तूबर, 1708 को नंदेड़ में ज्योति जोत समाए।

प्रश्न 18.
किस मुगल बादशाह ने हिन्दुओं को इस्लाम धर्म अपनाने पर विवश किया?
उत्तर-
औरंगजेब ने।

प्रश्न 19.
गुरु गोबिन्द सिंह जी की जीवन कथा से सम्बन्धित ग्रन्थ कौन-सा है?
उत्तर-
बचित्तर नाटक।

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प्रश्न 20.
खालसा स्त्री अपने नाम के साथ कौन-सा अक्षर लगाती है?
उत्तर-
कौर।

प्रश्न 21.
खालसा को कितने ‘ककार’ धारण करने होते हैं?
उत्तर-
पांच।

प्रश्न 22.
मसन्द प्रथा को किसने समाप्त किया?
उत्तर-
गुरु गोबिन्द सिंह जी ने।

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प्रश्न 23.
सिक्खों के अन्तिम तथा दसवें गुरु कौन थे?
उत्तर-
गुरु गोबिन्द सिंह जी।

प्रश्न 24.
प्रत्येक खालसा के नाम के साथ लगा ‘सिंह’ शब्द किस बात का प्रतीक है?
उत्तर-
यह शब्द उनकी वीरता तथा निडरता का प्रतीक है।

प्रश्न 25.
नादौन का युद्ध कब हुआ?
उत्तर-
1690 ई० में।

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प्रश्न 26.
उत्तर-खालसा काल की समयावधि क्या थी?
उत्तर-
1699-1708 ई०।

प्रश्न 27.
निरमोह का युद्ध कब हुआ?
उत्तर-
1702 ई० में।

प्रश्न 28.
आनन्दपुर साहिब में ‘बेदावा’ लिखने वाले 40 सिंहों को खिदराना के युद्ध में क्या नाम दिया गया?
उत्तर-
चालीस मुक्ते।

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प्रश्न 29.
आनन्दपुर साहिब के दूसरे युद्ध में ‘बेदावा’ लिखने वाले 40 सिक्खों का मुखिया कौन था?
उत्तर-
भाई महा सिंह।

प्रश्न 30.
गुरु गोबिन्द सिंह साहिब के जीवन काल का अन्तिम युद्ध कौन सा था?
उत्तर-
खिदराना का युद्ध।

प्रश्न 31.
‘आदि ग्रन्थ साहिब’ को अन्तिम रूप किसने दिया?
उत्तर-
गुरु गोबिन्द सिंह साहिब जी ने।

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II. रिक्त स्थानों की पूर्ति

  1. गुरु गोबिन्द राय जी के पिता का नाम …………….. और माता का नाम ………. था।
  2. खालसा की स्थापना …………… ई० में हुआ।
  3. मुक्तसर का पुराना नाम …………….. था।
  4. गुरु गोबिन्द सिंह जी ने ‘जफ़रनामा’ नामक पत्र मुग़ल सम्राट् ………….. को लिखा।
  5. श्री गुरु …………. को लोकतंत्र प्रणाली का प्रारम्भकर्ता कहा जाता है।
  6. मसन्द प्रथा को …………… ने समाप्त किया।
  7. आनन्दपुर साहिब के दूसरे युद्ध में ‘बेदावा’ लिखने वाले 40 सिखों का मुखिया ……… था।

उत्तर-

  1. श्री गुरु तेग़ बहादुर जी, गुजरी जी,
  2. 1699,
  3. खिदराना,
  4. औरंगज़ेब,
  5. गोबिंद सिंह जी,
  6. गुरु गोबिन्द सिंह जी,
  7. भाई महा सिंह।

III. बहविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
गुरु गोबिन्द राय जी का जन्म हुआ
(A) 2 दिसंबर, 1666 ई० को
(B) 22 दिसंबर, 1666 ई० को
(C) 22 दिसंबर, 1661 ई० को
(D) 2 दिसंबर, 1661 ई० को।
उत्तर-
(B)

प्रश्न 2.
गुरु गोबिन्द जी ने शिक्षा ली
(A) काजी पीर मुहम्मद
(B) पटना में
(C) भाई सतिदास
(D) अमृतसर में।
उत्तर-
(D) अमृतसर में।

प्रश्न 3.
ख़ालसा का सृजन हुआ
(A) करतारपुर में
(B) पण्डित हरजस से
(C) आनंदपुर साहिब में
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(C) आनंदपुर साहिब में

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प्रश्न 4.
भंगानी का युद्ध कब हुआ?
(A) 1699 ई० में
(B) 1705 ई० में
(C) 1688 ई० में
(D) 1675 ई० में।
उत्तर-
(C) 1688 ई० में

प्रश्न 5.
गुरु गोबिन्द सिंह जी ने खिदराना (श्री मुक्तसर साहिब) में मुग़ल सेना को पराजित किया
(A) 1688 ई० में
(B) 1699 ई० में
(C) 1675 ई० में
(D) 1705 ई० में।
उत्तर-
(B) 1699 ई० में

IV. सत्य-असत्य कथन

प्रश्न-सत्य/सही कथनों पर (✓) तथा असत्य/ग़लत कथनों पर (✗) का निशान लगाएं

  1. पहाड़ी राजाओं ने अब तक मुग़लों के विरुद्ध गुरु गोबिंद सिंह जी का साथ दिया।
  2. ‘खालसा’ की स्थापना पटना में हुई।
  3. ‘बचित्तर नाटक’ गुरु गोबिंद सिंह जी की आत्मकथा है।
  4. ‘चालीस मुक्तों’ का संबंध खिदराना के युद्ध से है।
  5. सिक्ख परम्परा में ‘खण्डे के पाहुल’ की बहुत बड़ी महिमा है।

उत्तर-

  1. (✗),
  2. (✗),
  3. (✓),
  4. (✓),
  5. (✓).

V. उचित मिलान

  1. ज़फरनामा लखनौर
  2. गोबिन्द राय जी की दस्तारबंदी – पीर बुद्ध शाह
  3. सढौरा की पठान सेना का नेता – गुरु गोबिन्द सिंह जी
  4. मसन्द प्रथा को समाप्त किया – मुग़ल सम्राट औरंगजेब

उत्तर-

  1. ज़फरनामा-मुग़ल सम्राट औरंगजेब,
  2. गोबिन्द राय जी की दस्तारबंदी-लखनौर,
  3. सढौरा की पठान सेना का नेता-पीर बुद्धू शाह,
  4. मसन्द प्रथा को समाप्त किया-गुरु गोबिन्द सिंह जी।

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छोटे उत्तर वाले प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
पहाड़ी राजाओं तथा गुरु गोबिन्द सिंह जी के बीच भंगानी के युद्ध ( 1688 ई०) पर एक संक्षिप्त नोट लिखो।
(Sure)
उत्तर-
पहाड़ी राजा गुरु जी द्वारा की जा रही सैनिक तैयारियों को अपने लिए खतरा समझते थे। इस कारण वे गुरु जी के विरुद्ध थे। इन्हीं दिनों एक और घटना घटी। बिलासपुर के पहाड़ी राजा भीमचन्द ने अपने पुत्र की बारात को पाऊंटा से गुजारना चाहा, परन्तु गुरु जी ने उसे पाऊंटा से गुजरने की आज्ञा न दी। भीमचन्द ने इसे अपना अपमान समझा
और उसने पुत्र के विवाह के पश्चात् अन्य पहाड़ी राजाओं की सहायता से गुरु जी पर आक्रमण कर दिया। पाऊंटा से कोई 6 मील दूर भंगानी नामक स्थान पर घमासान लड़ाई लड़ी गई। युद्ध में पठान तथा उदासी सैनिक गुरु जी का साथ छोड़ गए। परन्तु ठीक उसी समय सढौरा का पीर बुद्धू शाह गुरु जी की सहायता के लिए आ पहुंचा। अपने 4 पुत्रों और 700 शिष्यों सहित उनकी सहायता से गुरु जी ने पहाड़ी राजाओं को बुरी तरह परास्त किया। यह गुरु जी की पहली महत्त्वपूर्ण विजय थी।

प्रश्न 2.
खालसा की स्थापना पर एक संक्षिप्त नोट लिखो।
उत्तर-
1699 ई० को वैशाखी के दिन गुरु गोबिन्द सिंह जी ने आनन्दपुर में एक विशाल सभा बुलाई। इस सभा में लगभग 80 हजार लोग शामिल हुए। जब सभी लोग अपने-अपने स्थान पर बैठ गए तो गुरु जी ने नंगी तलवार घुमाते हुए कहा-“क्या आप में कोई ऐसा सिक्ख है जो धर्म के लिए अपना सिर दे सके ?” गुरु जी ने इस वाक्य को तीन बार दोहराया। तब लाहौर निवासी दयाराम ने अपने को बलिदान के लिए पेश किया। गुरु जी उसे शिविर में ले गए। बाहर आकर उन्होंने एक बार फिर बलिदान की मांग की। तब क्रमशः धर्मदास, मोहकमचन्द, साहिब चन्द, हिम्मत राय बलिदान के लिए उपस्थित हुए। सिक्ख इतिहास में इन पांच व्यक्तियों को ‘पंज प्यारे’ कह कर पुकारा जाता है। गुरु जी ने दोधारी तलवार खण्डा से तैयार किया हुआ पाहुल अर्थात् अमृत उन्हें छकाया। वे ‘खालसा’ कहलाए और सिंह बन गए। गुरु जी ने स्वयं भी उनके हाथों से अमृतपान किया। इस प्रकार गुरु गोबिन्द राय से गुरु गोबिन्द सिंह जी बन गए।

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प्रश्न 3.
पूर्व खालसा काल ( 1675 से 1699) में गुरु गोबिन्द सिंह जी की किन्हीं चार सफलताओं का वर्णन करो।
उत्तर-
इस काल में गुरु साहिब की चार सफलताओं का वर्णन इस प्रकार है

  1. सेना का संगठन-गुरु गोबिन्द सिंह जी अभी 9 वर्ष के ही थे कि उनके पिता को हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए शहीदी देनी पड़ी! गुरु जी ने धर्म की रक्षा करनी थी। इसलिए उन्होंने सेना का संगठन करना आरम्भ कर दिया।
  2. रणजीत नगारे का निर्माण-गुरु जी ने एक नगारा भी बनवाया जिसे रणजीत नगारा के नाम से पुकारा जाता था। शिकार पर निकलते समय इस नगारे को बजाया जाता था।
  3. पाऊंटा दुर्ग का निर्माण-गुरु जी नाहन के राजा मेदिनी प्रकाश के निमन्त्रण पर उसके यहां गए। वहां उन्होंने पाऊंटा नामक किले का निर्माण करवाया।
  4. पहाड़ी राजाओं से संघर्ष-1688 ई० में बिलासपुर के राजा भीमचन्द ने अन्य पहाड़ी राजाओं की सहायता से गुरु जी पर आक्रमण कर दिया। भंगानी नामक स्थान पर घमासान लड़ाई हुई। युद्ध में गुरु जी ने पहाड़ी राजाओं को बुरी तरह परास्त किया।

प्रश्न 4.
सिक्ख इतिहास में खालसा की स्थापना का क्या महत्त्व है?
उत्तर-
सिक्ख इतिहास में खालसा की स्थापना एक अति महत्त्वपूर्ण घटना मानी जाती है।

  1. इसकी स्थापना से सिक्खों के एक नए वर्ग-सन्त सिपाहियों का जन्म हुआ। इससे पहले सिक्ख केवल नाम जपने को ही वास्तविक धर्म मानते थे, परन्तु अब गुरु जी ने तलवार को भी धर्म का आवश्यक अंग बना दिया।
  2. खालसा की स्थापना से सिक्खों की संख्या लगातार बढ़ने लगी। खालसा के नियमों के अनुसार कोई भी पांच सदाचारी सिक्ख ‘खण्डे का पाहुल’ छका कर अर्थात् अमृतपान करा कर किसी को भी खालसा पन्थ में सम्मिलित कर सकते थे।
  3. खालसा की स्थापना से पंजाब में जातीय भेदभाव की दीवारें टूटने लगी और शताब्दियों से पिसती आ रही दलित जातियों को नया जीवन मिला।
  4. खालसा की स्थापना से सिक्खों में वीरता की भावना उत्पन्न हुई। निर्बल से निर्बल सिक्ख भी सिंह (शेर) का रूप धारण करके सामने आया।

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प्रश्न 5.
गुरु गोबिन्द सिंह जी के चरित्र एवं व्यक्तित्व की कोई चार महत्त्वपूर्ण विशेषताएं बताओ।
उत्तर-
गुरु गोबिन्द सिंह जी एक महान् चरित्र तथा व्यक्तित्व के स्वामी थे।

  1. महान् विद्वान्-गुरु साहिब एक उच्च कोटि के विद्वान् भी थे। उन्हें पंजाबी, संस्कृत, फ़ारसी तथा ब्रज भाषा का पूरा ज्ञान था। उन्होंने अनेक काव्यों की रचना की जिसमें ‘अकाल उस्तत’, ‘बचित्तर नाटक’ तथा ‘चण्डी दी वार’ प्रमुख हैं।
  2. महान् संगठनकर्ता, सैनिक तथा सेनानायक-गुरु जी एक महान् संगठनकर्ता, सैनिक तथा सेनानायक थे। उन्होंने खालसा की स्थापना करके सिक्खों को सैनिक रूप से संगठित किया। उन्होंने कई लड़ाइयों में अपने सैनिकों का कुशल नेतृत्व भी किया।
  3. महान् सन्त तथा धार्मिक नेता-गुरु साहिब एक महान् सन्त तथा धार्मिक नेता के गुणों से परिपूर्ण थे। उन्होंने अपने सिक्खों में गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं का प्रचार किया और धर्म की रक्षा के लिए उन्हें लड़ना सिखाया।
  4. उच्चकोटि के समाज सुधारक-गुरु साहिब ने जाति-पाति का विरोध किया और अन्य सामाजिक कुरीतियों की घोर निन्दा की।

प्रश्न 6.
क्या गुरु गोबिन्द सिंह जी एक राष्ट्र-निर्माता थे ? किन्हीं चार तथ्यों के आधार पर अपने तथ्यों की पुष्टि कीजिए।
उत्तर-
गुरु गोबिन्द सिंह जी निःसन्देह एक महान् राष्ट्र निर्माता थे।

  1. गुरु साहिबान ने गुरु नानक देव जी द्वारा रखी गई नींव के ऊपर एक ऐसे महल का निर्माण किया जहां बैठ कर लोग अपने भेदभाव भूल गए। मुसलमानों से युद्ध करने में उनका उद्देश्य कोई अलग राज्य स्थापित करना नहीं था बल्कि देश से अत्याचारों का नाश करना था। उनका मुग़लों से कोई धार्मिक विरोध नहीं था।
  2. गुरु साहिब ने खालसा की स्थापना करके सिक्खों में एकता की भावना उत्पन्न की। इससे खालसा के द्वार सभी जातियों के लिए समान रूप से खुले थे। अतः गुरु जी द्वारा स्थापित यह संस्था एक राष्ट्रीय संस्था ही थी।
  3. गुरु साहिब ने जिस साहित्य की रचना की वह किसी एक जाति के लिए नहीं अपितु पूरे राष्ट्र के लिए है।
  4. गुरु साहिब द्वारा समाज सुधार कार्य भी राष्ट्र निर्माण से ही प्रेरित था।

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बड़े उत्तर वाले प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
भंगानी के युद्ध ( 1688 ई०) का विस्तृत वर्णन कीजिए।
उत्तर-
भंगानी का युद्ध 1688 ई० में पहाड़ी राजाओं तथा गुरु गोबिन्द सिंह जी के बीच हुआ। इस युद्ध में भाग लेने वाले प्रमुख पहाड़ी राजा थे-बिलासपुर का शासक भीमचन्द, कटोच का शासक कृपाल, श्रीनगर का शासक फतेहशाह, गुलेर का शासक गोपालचन्द तथा जस्सोवाल का शासक केसर चन्द। इन राजाओं का मुखिया बिलासपुर का राजा भीमचन्द था।
कारण-गुरु जी तथा पहाड़ी राजाओं के बीच भंगानी के युद्ध के मुख्य कारण निम्नलिखित थे

  1. गुरु जी ने अपने अनुयायियों को अपनी सेना में भर्ती करना आरम्भ कर दिया था। उन्होंने सैनिक सामग्री भी इकट्ठी करनी आरम्भ कर दी थी। पहाड़ी राजा गुरु जी की इन सैनिक गतिविधियों को सन्देह की दृष्टि से देखने लगे।
  2. पहाड़ी राजा मूर्ति-पूजा में विश्वास रखते थे, परन्तु गुरु जी ने पाऊंटा में रहते हुए मूर्ति-पूजा का घोर खण्डन किया।
  3. गुरु जी अब शाही ठाठ-बाठ से रहने लगे थे। उनके इस कार्य से भी पहाड़ी राजाओं के मन में ईर्ष्या पैदा हो गई।
  4. गुरु जी पहाड़ी प्रदेश में रहकर सैनिक तैयारियां कर रहे थे। अत: पहाड़ी राजा यह नहीं चाहते थे कि गुरु जी के कारण उन्हें सम्राट औरंगज़ेब से उलझना पड़े।
  5. सिक्ख गुरु जी को बहुमूल्य भेटें देते रहते थे। इन भेंटों के कारण पहाड़ी राजा गुरु जी से ईर्ष्या करने लगे थे।
  6. इस युद्ध का तात्कालिक कारण यह था कि बिलासपुर के पहाड़ी राजा भीमचन्द ने अपने पुत्र की बारात को पाऊंटा में से गुज़ारना चाहा। परन्तु गुरु जी को उसकी नीयत पर सन्देह था, इसलिए उन्होंने उसे ऐसा करने की अनुमति न दी। क्रोध में आकर उसने अन्य पहाड़ी राजाओं की सहायता से गुरु जी पर आक्रमण कर दिया।

घटनाएं-गुरु साहिब ने युद्ध के लिए भंगानी नामक स्थान को चुना। युद्ध शुरू होते ही गुरु जी के लगभग 500 पठान सैनिक उनका साथ छोड़ गए। परंतु उसी समय सढौरा के पीर बुद्ध शाह अपने चार पुत्रों तथा 700 अनुयायियों सहित गुरु जी से आ मिला। 22 सितंबर 1688 ई० को दोनों पक्षों में एक घमासान युद्ध हुआ। वीरतापूर्वक लड़ते हुए सिक्खों ने पहाड़ी राजाओं को बुरी तरह हराया।

युद्ध का महत्त्व-भंगानी की विजय गुरु गोबिन्द सिंह जी के जीवन की पहली तथा अत्यन्त महत्त्वपूर्ण विजय थी। इसका निम्नलिखित महत्त्व था

  1. इस विजय से गुरु जी की शक्ति की धाक जम गई।
  2. गुरु जी को विश्वास हो गया कि वह अपने अनुयायियों को अच्छी तरह से संगठित करके मुग़लों के अत्याचारों का सफलतापूर्वक सामना कर सकते हैं।
  3. पहाड़ी राजाओं ने गुरु जी का विरोध छोड़कर उनसे मित्रतापूर्ण सम्बन्ध स्थापित कर लिए।
  4. इस विजय ने गुरु जी को पाऊंटा साहिब छोड़कर फिर से आनन्दपुर में जाने का अवसर प्रदान किया।
  5. राजा भीमचन्द ने विशेषकर गुरु जी से मित्रता की नीति अपनाई।
  6. गुरु साहिब ने भीमचन्द की मित्रता का लाभ उठाते हुए आनन्दपुर में आनन्दगढ़, केशगढ़, लोहगढ़ तथा फतेहगढ़ नामक चार किलों का निर्माण करवाया।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित बिन्दुओं के आधार पर गुरु गोबिन्द सिंह जी के चरित्र एवं व्यक्तित्व का वर्णन कीजिए

  1. संगठनकर्ता
  2. सन्त तथा धार्मिक नेता
  3. समाज सुधारक
  4. कवि तथा विद्वान्।

उत्तर-

  1. संगठनकर्ता के रूप में गुरु गोबिन्द सिंह जी एक महान् संगठनकर्ता थे। उनकी संगठन शक्ति असाधारण थी। उन्होंने ‘खालसा की स्थापना’ करके सामाजिक तथा धार्मिक भेदभावों के कारण बिखरी हुई सिक्ख जनता को एक सूत्र में पिरो दिया। गुरु जी पहले भारतीय नेता थे, जिन्होंने प्रजातन्त्रात्मक सिद्धान्त सिखाए तथा अपने अनुयायियों को गुरमत्ता अर्थात् सब. की राय पर चलने को तैयार किया।” वास्तव में ही गुरु गोबिन्द सिंह जी ने ‘खालसा’ का द्वार सभी जातियों के लिए खोलकर एक राष्ट्रीय संगठन को जन्म दिया।
  2. सन्त तथा धार्मिक नेता के रूप में गुरु जी एक धार्मिक नेता के रूप में महान् थे। सहनशीलता उनके धर्म का विशेष गुण था। उन्हें इस्लाम धर्म उतना ही प्यारा था जितना कि अपना धर्म, परन्तु गुरु, जी का धर्म यह आज्ञा नहीं देता था कि माला हाथ में लिए चुपचाप अत्याचारों को सहन करते जाओ। उनकी ‘खालसा स्थापना’ का मुख्य उद्देश्य ही अत्याचारों का विरोध करना था।
    एक सन्त होने के नाते गुरु जी को सर्वशक्तिमान ईश्वर पर पूरा भरोसा था और वह अपने सभी कार्य उसी की कृपा पर छोड़ देते थे। उनके महान् सन्त होने का सबसे बड़ा प्रमाण यह है कि उनकी नज़र में धन की कोई कीमत नहीं थी। उन्हें जब कभी भी कहीं से धन प्राप्त हुआ, उन्होंने सारे का सारा धन निर्धनों तथा ज़रूरतमन्दों में बांट दिया।
  3. समाज सुधारक के रूप में गुरु गोबिन्द सिंह जी एक महान् सुधारक भी थे। उन्होंने जाति-प्रथा और मूर्ति-पूजा आदि सामाजिक बुराइयों का घोर खण्डन किया। उनके द्वारा स्थापित ‘खालसा’ में सभी जातियों के लोग प्रवेश पा सकते थे। गुरु जी के प्रयत्नों से वे जातियां जो समाज पर कलंक समझी जाती थीं अब वीर योद्धा बन गईं और उन्होंने देश तथा धर्म की रक्षा का भार सम्भाल लिया। गुरु जी ने यज्ञ, बलि आदि व्यर्थ के कर्म काण्डों का खुला विरोध किया और समाज को एक आदर्श रूप प्रदान किया।
  4. कवि तथा विद्वान् के रूप में गुरु गोबिन्द सिंह जी एक उच्च कोटि के कवि तथा विद्वान् थे। उन्हें पंजाबी, संस्कृत, फारसी, हिन्दी आदि सभी भाषाओं का पूरा ज्ञान था। उन्हें कविता लिखने का विशेष चाव था। उनकी कविताएं मार्मिकता तथा वीरता से परिपूर्ण हैं। जापु साहिब, ज़फ़रनामा, चण्डी दी वार, अकाल उस्तत तथा बचित्तर नाटक गुरु जी की महत्त्वपूर्ण रचनाएं मानी जाती हैं। गुरु जी कवियों की संगति में बैठने में भी विशेष रुचि लेते थे। पाऊंटा में रहते हुए उनके पास 52 कवि थे।

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प्रश्न 3.
‘खालसा’ की स्थापना किस प्रकार हुई? इसके सिद्धान्तों का वर्णन करो।
उत्तर-
‘खालसा’ की स्थापना 1699 ई० में गुरु गोबिन्द सिंह जी ने की। इसे सिक्ख इतिहास की महानतम घटना माना जाता है। खालसा की स्थापना के मुख्य चरण निम्नलिखित थे

  1. पांच प्यारों का चुनाव-1699 ई० में बैसाखी के दिन गुरु गोबिन्द सिंह जी ने आनन्दपुर साहिब में सिक्खों की एक विशाल सभा बुलाई। इस सभा में विभिन्न प्रदेशों से 80,000 के लगभग लोग इकट्ठे हुए। गुरु जी सभा में पधारे और तलवार को म्यान से निकाल कर घुमाते हुए कहा-“कोई ऐसा सिक्ख है जो धर्म के लिए अपने प्राणों का बलिदान दे सके।” यह सुनकर सभा में सन्नाटा छा गया। गुरु जी ने अपने शब्दों को तीन बार दोहराया। अन्त में दयाराम नामक एक क्षत्रिय ने अपने आपको बलिदान के लिए प्रस्तुत किया। गुरु जी उसे समीप लगे एक तम्बू में ले गये। कुछ समय के पश्चात् वह तम्बू से बाहर आए और उन्होंने एक और व्यक्ति का शीश मांगा। इस बार दिल्ली निवासी धर्मदास जाट ने अपने आप को भेंट किया। गुरु गोबिन्द सिंह जी ने यह क्रम तीन बार फिर दोहराया। क्रमशः मोहकम चन्द, साहिब चन्द तथा हिम्मत राय नामक तीन अन्य व्यक्तियों ने अपने आपको बलिदान के लिए प्रस्तुत किया। यहां यह स्पष्ट करना उचित होगा कि गुरु जी ने यह सब कुछ अपने अनुयायियों की परीक्षा लेने के लिए किया। तम्बू में गुरु जी ने उनके साथ क्या किया, इस बारे में वह स्वयं भली-भान्ति जानते थे। अन्त में गुरु जी पांचों व्यक्तियों को सभा के सामने लाए और उन्हें ‘पंज प्यारे’ की उपाधि दी।
  2. खण्डे का पाहुल-पांच प्यारों का चुनाव करने के पश्चात् गुरु जी ने उन्हें अमृतपान करवाया जिसे ‘खण्डे का पाहुल’ कहा जाता है। यह अमृत गुरु जी ने विभिन्न बाणियों का पाठ करते हुए स्वयं तैयार किया।
    सभी प्यारों के नाम के पीछे ‘सिंह’ शब्द जोड़ दिया गया। फिर गुरु जी ने पांच प्यारों के हाथ से स्वयं अमृत छका। इस प्रकार ‘खालसा’ का जन्म हुआ।

खालसा पंथ के सिद्धान्त

खालसा पंथ के सिद्धान्त निम्नलिखित हैं

  1. ‘खालसा’ में प्रवेश करने के लिए प्रत्येक व्यक्ति को ‘खण्डे का पाहुल’ का सेवन करना पड़ेगा। तब वह स्वयं को खालसा कहलवाएगा।
  2. प्रत्येक खालसा अपने नाम के साथ ‘सिंह’ शब्द लगाएगा और खालसा स्त्री अपने नाम के साथ ‘कौर’ शब्द लगाएगी।
  3. प्रत्येक खालसा पाँच ‘ककार’-केश, कंघा, कड़ा, कछहरा तथा किरपान धारण करेगा।
  4. खालसा केवल एक ईश्वर में विश्वास रखेगा तथा किसी देवी-देवता तथा मूर्ति की पूजा से दूर रहेगा।
  5. वह प्रात:काल जल्दी उठ कर स्नान करेगा और पाँच बाणियों-जपुजी साहिब, जापु साहिब, आनन्द साहिब, सवैये तथा चौपाई का पाठ करेगा।
  6. वह दस नाखूनों की किरत अर्थात् मेहनत की कमाई करेगा। वह अपनी नेक कमाई में से धार्मिक कार्यों के लिए दसवन्द (दसवां हिस्सा) भी निकालेगा।
  7. वह जाति-पाति तथा ऊँच-नीच के भेदभाव में विश्वास नहीं रखेगा।
  8. प्रत्येक खालसा गुरु तथा पंथ के लिए अपना सर्वस्व बलिदान करने को सदैव तैयार रहेगा।
  9. वह अस्त्र-शस्त्र धारण करेगा और धर्म की रक्षा के लिए युद्ध लड़ने के लिए तत्पर रहेगा।
  10. वह तम्बाकू तथा अन्य नशीली वस्तुओं का सेवन नहीं करेगा।
  11. वह नैतिकता का पालना करेगा और अपने चरित्र को शुद्ध रखेगा।
  12. खालसा लोग आपस में मिलते समय ‘वाहिगुरु जी का खालसा, वाहिगुरु जी की फतह’ कह कर एकदूसरे का अभिवादन करेंगे।

PSEB 10th Class SST Solutions History Chapter 5 गुरु गोबिन्द सिंह जी का जीवन, खालसा की संरचना, युद्ध तथा उनका व्यक्तित्व

गुरु गोबिन्द सिंह जी का जीवन, खालसा की संरचना, युद्ध तथा उनका व्यक्तित्व PSEB 10th Class History Notes

  • जन्म तथा माता-पिता-गुरु गोबिन्द साहिब का जन्म 22 दिसम्बर, 1666 ई० को पटना में हुआ। उनके पिता गुरु तेग़ बहादुर जी थे। उनकी माता जी का नाम गुजरी जी था।
  • बचपन तथा शिक्षा-गुरु गोबिन्द सिंह जी के बचपन का नाम गोबिन्द राय था। उनके जीवन के आरम्भिक पांच वर्ष पटना में बीते। उन्होंने फ़ारसी की शिक्षा काज़ी पीर मुहम्मद से तथा गुरुमुखी की शिक्षा भाई सतिदास से प्राप्त की। उन्होंने संस्कृत का ज्ञान पण्डित हरजस से तथा घुड़सवारी और अस्त्र-शस्त्र चलाने की शिक्षा (सैनिक शिक्षा) बजर सिंह नामक राजपूत से प्राप्त की।
  • सैनिक संगठन-गुरु गोबिन्द सिंह जी सिक्खों को सैनिक शक्ति बनाना चाहते थे। अतः उन्होंने भेंट में हथियार तथा घोड़े प्राप्त करने को अधिक महत्त्व दिया।
  • खालसा की स्थापना–’खालसा की स्थापना’ गुरु गोबिन्द सिंह जी ने 1699 ई० में की । खालसा की स्थापना के तीन प्रमुख उद्देश्य थे-मुग़लों के बढ़ते हुए अत्याचारों से मुक्ति, जाति प्रथा के दोषों को समाप्त करना तथा दोषपूर्ण मसन्द प्रथा का अन्त करना ।
  • पांच ककार-खालसा के पांच ककार थे-केश, कंघा, कड़ा, किरपाण तथा कछहरा।
  • खालसा की स्थापना का महत्त्व-खालसा की स्थापना से सिक्खों में एक नए वर्ग सन्त सिपाहियों का जन्म हुआ जिसके परिणामस्वरूप सिक्ख आगे चलकर राजनीतिक शक्ति के रूप में उभरे।
  • साहित्यिक रचनाएं-गुरु साहिब ने पाऊंटा में, ‘अकाल उस्तत’, ‘शस्त्र नाम माला’ तथा ‘चण्डी दी वार’ की रचना की।
  • भंगानी का युद्ध-भंगानी का युद्ध 1688 ई० में हुआ । इस युद्ध में बिलासपुर का राजा भीमचन्द तथा कांगड़ा का राजा कृपाल चन्द गुरु साहिब के विरुद्ध लड़े और पराजित हुए।
  • नादौन का युद्ध-नादौन का युद्ध 1690 ई० में हुआ। यह युद्ध मुग़लों और पहाड़ी राजाओं के बीच हुआ। गुरु गोबिन्द सिंह जी इस युद्ध में पहाड़ी राजाओं के पक्ष में लड़े थे। उन्होंने मुग़ल सेनाओं को परास्त किया।
  • आनन्दपुर का प्रथम युद्ध, 1701 ई०-आनन्दपुर का प्रथम युद्ध बिलासपुर के पहाड़ी राजा भीमचन्द तथा गुरु गोबिन्द सिंह जी के बीच हुआ। इस युद्ध में गुरु जी ने पहाड़ी राजा को बुरी तरह परास्त किया।
  • आनन्दपुर का दूसरा युद्ध, 1704 ई०-आनन्दपुर के दूसरे युद्ध में बिलासपुर, कांगड़ा तथा गुलेर के पहाड़ी राजा गुरु साहिब के विरुद्ध लड़े । इस युद्ध में गुरु गोबिन्द सिंह जी की विजय हुई।
  • ज्योति-जोत समाना-गुरु जी 1708 ई० में मुग़ल सम्राट् बहादुरशाह के साथ दक्षिण की ओर गए। कुछ समय के लिए वह नांदेड़ नामक स्थान पर ठहरे। वहीं पर 7 अक्तूबर, 1708 ई० को छुरा लगने से ‘गुरु साहिब’ ज्योतिजोत समा गए।

PSEB 10th Class Welcome Life Solutions Chapter 3 आपसी संबंध

Punjab State Board PSEB 10th Class Welcome Life Book Solutions Chapter 3 आपसी संबंध Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 10 Welcome Life Chapter 3 आपसी संबंध

PSEB 10th Class Welcome Life Guide आपसी संबंध Textbook Questions and Answers

अभ्यास-I

प्रश्न 1.
इस नाटक को पढ़ने के बाद आपको क्या महसूस हुआ?
उत्तर-
इस नाटक को पढ़ने के बाद, हमने महसूस किया कि हमें बड़ों के साथ दुर्व्यवहार नहीं करना चाहिए बल्कि उनके साथ अच्छा व्यवहार करना चाहिए। जब हम बच्चे थे, तो उन्होंने हमें बड़े प्यार से पाला और जब वे काफी बूढ़े हो गए और वे कुछ नहीं कर सकते, तो हमें उनसे दूर नहीं होना चाहिए, बल्कि उसी प्यार से उनकी सेवा करनी चाहिए जैसे उन्होंने की थी। ऐसे करने से उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है और हमारे बच्चों को यह भी प्रेरित करता है कि हम बड़ों के साथ कैसा व्यवहार करें।

प्रश्न 2.
आप अपने बड़ों की देखभाल कैसे करते हैं?
उत्तर-

  1. हम अपने बड़ों के साथ कभी दुर्व्यवहार नहीं करते हैं। इसके बजाय हम उनके साथ बड़े प्यार से बात करते हैं। इससे उन्हें खुशी होती है, चाहे वे कितनी भी कठिनाई का सामना कर रहे हों।
  2. हम उन्हें प्यार से खिलाते हैं ताकि वे अलग-अलग महसूस न करें।
  3. हम अपने बड़ों के साथ प्यार से बैठते हैं और उनके जीवन के अनुभवों को सुनते हैं ताकि हम जीवन में वे गलतियां न करें जो शायद उन्होंने की हों।
  4. कभी-कभी हमें उनके साथ बैठना और बातचीत करनी चाहिए ताकि वे अकेलापन महसूस न करें।

प्रश्न 3.
नाटक का कौन-सा चरित्र है, आप सबसे अधिक सहनशील व्यक्ति पाते हैं?
उत्तर-
मुझे रितंबर (पोता) नाटक में सबसे अधिक सहनशील चरित्र के रूप में मिलता है। इसका कारण यह है कि वह अपनी दादी से बहुत प्यार करता है लेकिन वह उसके लिए कर कुछ नहीं सकता। वह देखता है कि कैसे उसके पिता (करणबीर) और मां (सिमरन) उसकी दादी के साथ दुर्व्यवहार करते हैं। कई बार वह इसका विरोध करता है लेकिन असहाय है। उसकी दादी को वृद्धाश्रम भेज दिया जाता है लेकिन वह कुछ नहीं कर पाता। उसके पास धैर्य दिखाने के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं बचा।

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प्रश्न 4.
नाटक के पात्रों के बारे में अपनी राय दें। 1. दादी 2. रितंबर 3. माँ 4. करणबीर।
उत्तर-

  1. दादी-वह इस लघु नाटक की बेहतरीन पात्र है क्योंकि वह जानती थी कि करणबीर उनका गोद लिया
    पुत्र है और कुछ और कहने की बजाय वह कहती है कि उसे एक वृद्धाश्रम भेज दे। यह घर में चल रहे रोज़ाना के झगड़े को रोक देगा। वह वृद्धाश्रम में गर्मी में रहती है लेकिन अपने बेटे को दो पंखे और फ्रिज दान करने के लिए कहती है ताकि दूसरों को भीषण गर्मी से राहत मिल सके। इस तरह, वह भाग्य के रूप में हर दुःख को समाप्त करती है।
  2. रितंबर-रितंबर लघु नाटक का सबसे सहनशील चरित्र है क्योंकि वह अपनी दादी से बहुत प्यार करता है, , लेकिन वह अपनी दादी के लिए कुछ नहीं कर सकता। वह अपनी दादी के लिए अपने माता-पिता से भी लड़ता है लेकिन वे कभी भी उसकी भावनाओं की परवाह नहीं करते। इसलिए वह काफी सहनशील लगता है।
  3. माँ (सिमरन)-सिमरन ने इस नाटक में बहू का किरदार निभाया है और वह दोहरे चरित्र की है। एक तरफ वह अपनी सास को सताती है और अपने पति को उसे वृद्धाश्रम भेजने के लिए मजबूर करती है और दूसरी तरफ वह अपने भाई को धमकी देती है कि वह माँ की देखभाल करे। इस तरह उसे एक क्रूर बहू और एक प्यारी बेटी के रूप में चित्रित किया गया है।
  4. पापा (करणबीर)-करणबीर नाटक का एक पात्र है जो अपनी माँ को वृद्धाश्रम भेजता है। उसने कभी अपने बेटे की परवाह नहीं की और न ही कभी अपनी माँ के लिए कोई प्यार दिखाया। अंत में, जब उसे पता चलता है कि वह गोद लिया पुत्र है, तो वह अपनी माँ को वापस अपने घर ले जाने का फैसला करता है।

अभ्यास-II

स्थिति 1:
आप एक सड़क पर जा रहे हैं। आपके सामने, एक लड़का एक केला खा रहा है और वह केले के छिलके को सड़क पर फेंक देता है, तो आपकी प्रतिक्रिया क्या होगी?
(i) आप लड़के को उसकी ग़लती के बारे में समझाएंगे।
(ii) आप केले के छिलके को उठाने के लिए किसी और को बुलाएंगे।
(iii) आप स्वयं केले के छिलके को उठाकर कूड़ेदान में फेंक देंगे।
(iv) आप पुलिस को कॉल करेंगे और लड़के की शिकायत करेंगे।
उत्तर-
(i) आप लड़के को उसकी ग़लती के बारे में समझाएंगे।

स्थिति 2:
आपके जन्मदिन पर आपके दोस्तों ने आपको खाली चॉक बाक्स गिफ्ट किया है। बाक्स पूरी तरह से खाली है। आपकी प्रतिक्रिया क्या होगी?
(i) आप उनसे बात करनी बंद कर देंगे।
(ii) आप उन्हें देखेंगे और मुस्कुराएंगे।
(iii) आप उनकी उपेक्षा करेंगे।
(iv) आप उनके प्रति गुस्से में देखेंगे।
उत्तर-
(i) आप उन्हें देखेंगे और मुस्कुराएंगे।

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Welcome Life Guide for Class 10 PSEB आपसी संबंध Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

(क) बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
रितंबर की आयु क्या है?
(a) 7-8 वर्ष
(b) 8-9 वर्ष
(c) 9-10 वर्ष
(d) 11-12 वर्ष।
उत्तर-
(a) 7-8 वर्ष।

प्रश्न 2.
करणबीर को किसने कहा कि वह गोद लिया हुआ बेटा है?
(a) माँ ने
(b) सिमरन ने
(c) प्रबंधक ने
(d) रितंबर ने।
उत्तर-
(c) प्रबंधक ने।

प्रश्न 3.
दादी को उनके बेटे करणबीर ने कहां भेजा था?
(a) सिमरन के घर पर
(b) वृद्धाश्रम
(c) तीर्थ यात्रा
(d) घूमने के लिए।
उत्तर-
(b) वृद्धाश्रम।

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प्रश्न 4.
………… की सामाजिक सीमाएं होती हैं?
(a) देशों
(b) संबंधों
(c) राज्यों
(d) ये सभी।
उत्तर-
(b) संबंधों।

प्रश्न 5.
संबंधों को क्यों बना कर रखना चाहिए?
(a) संबंधों को तोड़ने के लिए
(b) संबंध बनाने के लिए
(c) संबंधों को बचाने के लिए
(d) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(c) संबंधों को बचाने के लिए।

प्रश्न 6.
जब भी हम किसी से विदाई लेते हैं
(a) धन्यवाद कहना चाहिए
(b) मीठी यादें साझा करके
(c) फोन नंबर साझा करके
(d) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(d) उपरोक्त सभी।

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प्रश्न 7.
जिस कहानी को अंत तक नहीं ला सकते
(a) उसको अच्छा मोड़ देकर छोड़ देना चाहिए
(b) उसको घसीटना चाहिए
(c) उसको बढ़ाना चाहिए
(d) उसको जबरदस्ती आगे बढ़ाना चाहिए।
उत्तर-
(a) उसको अच्छा मोड़ देकर छोड़ देना चाहिए।

प्रश्न 8.
इनमें से कौन-सी अच्छे व्यवहार की विशेषता है?
(a) खुश रहो
(b) आशावादी रहो
(c) मीठा बोला
(d) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(d) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 9.
सभी पात्रों में से कौन चतुर है?
(a) दादी
(b) रितंबर
(c) सिमरन
(d) प्रबंधक।
उत्तर-
(c) सिमरन।

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(ख) खाली स्थान भरें

  1. ………….. के साथ समय बिताना उनकी असली पूजा है।
  2. सिमरन ने अपने …………. को माँ की देखभाल करने के लिए कहा।
  3. करणबीर अपनी माँ को ………… में छोड़ देता है।
  4. ………….. महीनों के बाद, करणबीर अपनी माँ को मिलने के लिए जाता है।
  5. ………….. करणबीर से कहता है कि उसके पिता ने उसे वृद्धाश्रम से गोद लिया था।
  6. हर ………… की एक सीमा होती है।
  7. …………. हमारे व्यक्तित्व को चमका देता है।

उत्तर-

  1. बुजुर्ग.
  2. भाई.
  3. वृद्धाश्रम,
  4. छह,
  5. प्रबंधक,
  6. रिश्ते,
  7. अच्छा व्यवहार।

(ग) सही/ग़लत चुनें

  1. करणबीर रितंबर का पिता था।
  2. हमें बुरी यादों को भूल जाना चाहिए।
  3. हमें एक अच्छे मोड़ पर संबंधों को छोड़ना चाहिए।
  4. व्यक्ति पूरे जीवन के लिए संबंध बनाए रखते हैं।
  5. अच्छा व्यवहार हमारे व्यक्तित्व को चमका देता है।
  6. हमें सामाजिक मर्यादाओं का परीक्षण नहीं करना चाहिए।

उत्तर-

  1. सही,
  2. सही,
  3. सही,
  4. ग़लत,
  5. सही,
  6. ग़लत।

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(घ) कॉलम से मेल करें

कॉलम ए — कॉलम बी
(a) ओमिनियस — (i) निषिद्ध
(b) टी०बी० — (ii) विधि
(c) मापदंड — (iii) जो किसी के बारे में ग़लत सोचता है
(d) प्रतिबंध — (iv) रोग
(e) शिष्टाचार — (v) नियम।
उत्तर-
(a) ओमिनियस — (iii) जो किसी के बारे में ग़लत सोचता है
(b) टी०बी० — (iv) रोग
(c) मापदंड — (v) नियम
(d) प्रतिबंध — (i) निषिद्ध
(e) शिष्टाचार — (ii) विधि।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
हम अपने बुजुर्गों की पूजा कैसे कर सकते हैं?
उत्तर-
समय बिताना और उनकी सेवा करना ही बुजुर्गों की सच्ची पूजा है।

प्रश्न 2.
‘मनहूस’ कौन है?
उत्तर-दादी के अनुसार, “जो बुरा है, दूसरों के बारे में बुरा सोचता है और जो घर पर पूरे दिन लड़ता है वह एक मनहूस है।
(iv) रोग

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प्रश्न 3.
सिमरन ने रितंबर को उसकी दादी के पास जाने से क्यों रोका?
उत्तर-
क्योंकि सिमरन ने सोचा कि दादी को खांसी है, टी०बी० है और रितंबर को बीमार कर सकती है।

प्रश्न 4.
करणबीर को अपनी माँ को वृद्धाश्रम में छोड़ने के लिए किसने कहा?
उत्तर-
सिमरन ने करणबीर को अपनी माँ को वृद्धाश्रम में छोड़ने के लिए कहा।

प्रश्न 5.
सिमरन ने किसको और क्या खुशखबरी दी?
उत्तर-
सिमरन ने अपने भाई को खुशखबरी दी कि करणबीर ने अपनी माँ को वृद्धाश्रम में छोड़ दिया है।

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प्रश्न 6.
सिमरन ने अपने भाई को क्या धमकी दी?
उत्तर-
सिमरन ने अपने भाई को धमकी दी कि वह माँ की देखभाल करे नहीं तो वह उसे अपने घर ले जाएगी।

प्रश्न 7.
रितंबर ने अपने पिता को क्या बताया?
उत्तर-
रितंबर ने अपने पिता से कहा कि एक दिन वह अपने पिता को भी किसी वृद्धाश्रम भेज देगा।

प्रश्न 8.
दादी ने अपने बेटे को वृद्धाश्रम क्यों बुलाया?
उत्तर-
क्योंकि वह चाहती थी कि करणबीर दो पंखे और फ्रिज वृद्धाश्रम में दान करे।

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प्रश्न 9.
प्रबंधक ने करणबीर को क्या रहस्य बताया?
उत्तर-
प्रबंधक ने करणबीर को बताया कि पैंतीस साल पहले, उसके पिता ने उसे इसी वृद्धाश्रम से गोद लिया था।

प्रश्न 10.
करणबीर को अपनी ग़लती का एहसास कब हुआ?
उत्तर-
जब उसने महसूस किया कि वह गोद लिया हुआ बेटा है, तो उसे अपनी ग़लती का एहसास हुआ।

प्रश्न 11.
करणबीर ने ग़लती का एहसास होने पर क्या किया?
उत्तर-
वह अपनी माँ को अपने घर वापस ले आया।

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प्रश्न 12.
हमें किस सीमा को पार नहीं करना चाहिए?
उत्तर-
हमें रिश्तों की सीमा को पार नहीं करना चाहिए।

प्रश्न 13.
हमें समाज में क्या जांच करनी चाहिए?
उत्तर-
हमें समाज द्वारा तय की गई सीमाओं की जांच करनी चाहिए।

प्रश्न 14.
हमें किस शिष्टाचार को समझना चाहिए?
उत्तर-
हमें रिश्तों के शिष्टाचार को समझना चाहिए।

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प्रश्न 15.
रिश्तों को बनाए रखते हुए क्या देखना है?
उत्तर-
हमें रिश्तों की सीमा नहीं लांघनी चाहिए।

प्रश्न 16.
रिश्ते निभाते समय किस चीज़ का ध्यान रखना चाहिए?
उत्तर-
रिश्ते निभाते समय हमें ध्यान रखना चाहिए कि किसी ओर हम इतना भी न जाएं कि और रिश्तों को भूल ही जाएं।

प्रश्न 17.
क्या सभी रिश्ते जीवन भर चलते हैं?
उत्तर-
नहीं, सभी रिश्ते जीवन भर नहीं चलते।

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प्रश्न 18.
हम किसी से विदाई कैसे ले सकते हैं?
उत्तर-
हमें किसी से उचित शिष्टाचार से विदाई लेनी चाहिए।

प्रश्न 19.
एक अच्छे व्यवहार की विशेषताएं क्या हैं?
उत्तर-
खुश रहना, सकारात्मक रहना, कड़ी मेहनत करना, धीरे बोलना इत्यादि ऐसी विशेषताएं हैं जिनमें हमें संबंधों की सीमाएं पार नहीं करनी चाहिएं।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
नाटक की शुरुआत कैसे होती है?
उत्तर-
नाटक की शुरुआत घर के ड्राइंग रूम में होती है जहां दादी और उसका पोता रितंबर बैठे हैं और खेल रहे हैं। पोते ने दादी को उसके साथ खेलने के लिए कहा लेकिन वह थकने पर उसे मना कर देती है। फिर पोता अपनी दादी से पूछता है कि ‘ओमिनस’ का अर्थ क्या है। सबसे पहले दादी उसे समझने के लिए छोटा कहकर उसे टाल देती है लेकिन अंत में वह उसे बताती है कि वह व्यक्ति ओमिनस (Ominous) है जो खुद बुरा है और दूसरों के लिए बुरा सोचता है और जिसके कारण घर हमेशा मुसीबत में रहता है।

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प्रश्न 2.
सिमरन (माँ) क्यों नहीं चाहती कि उसका बेटा अपनी दादी के साथ खेले?
उत्तर-
सिमरन को उसकी सास पसंद नहीं थी। जब सास को खांसी होती है, तो वह सोचती है कि वह टी०बी० की मरीज है और अपनी दादी के साथ खेलने से रितंबर भी उसी से पीड़ित हो जाएगा। इसके साथ ही वह यह भी कहती है कि उसकी सास कभी भी घर का काम नहीं करती और पूरे दिन खांसती रहती है। इसलिए सिमरन नहीं चाहती कि उसका बेटा अपनी दादी के साथ खेले।

प्रश्न 3.
अपने बेटे और बहू का झगड़ा होते देख दादी क्या कहती है?
उत्तर-
जब करणबीर घर वापस आता है तो सिमरन उसकी माँ के बारे में बहुत बुरा बोलती है। सिमरन यह भी कहती है कि बुढिया को पता नहीं है कि उसने किस बीमारी से संपर्क किया है और पूरे दिन खांसी होती है। जब दादी उन दोनों के बीच लड़ाई सुनती है तो वह अपने बेटे से कहती है कि लड़ने की ज़रूरत नहीं है। इससे बेहतर है कि उसे किसी वृद्धाश्रम में छोड़ आए। वहां पर वह अपने बचे हुए दिन काट लेगी। करणबीर अपनी मां को वृद्धाश्रम छोड़ आता है।

प्रश्न 4.
दादी छह महीने के बाद अपने बेटे को वृद्धाश्रम क्यों बुलाती है?
उत्तर-
वह बड़ी समस्या के साथ वृद्धाश्रम में पहले छह महीने बिताती है लेकिन उसके बाद वह अपने बेटे को बुलाती है। सिमरन और करणबीर को लगता है कि वह अपनी मौत के किनारे पर है और इसलिए उसने उन्हें बुलाया है। जब वे वहां जाते हैं तो मां अपने पुत्र करणबीर को वहां दो पंखे दान करने के लिए कहती है क्योंकि वहां काफी गर्मी है। वह उसे फ्रिज दान करने के लिए भी कहती है क्योंकि गर्मियों के दौरान पानी बहुत गर्म होता है। वह करणबीर को कहती है कि जब उसका बेटा रितंबर उसे वृद्धाश्रम में छोड़ देगा, तो उसके आखिरी दिन आराम से व्यतीत होंगे।

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प्रश्न 5.
करणबीर को अपनी ग़लती का एहसास कब होता है?
उत्तर-
जब करणबीर वृद्धाश्रम में अपनी माँ से मिलने गया, तो उसने उससे दो पंखे और एक फ्रिज वहां पर दान करने के लिए कहा। जब करणबीर अपनी माँ से बात कर रहा था तो उस समय वृद्धाश्रम का प्रबंधक वहां आता है, उसे पहचानता है और उसे बताता है कि वृद्ध महिला के पति हरदेव सिंह बराड़ ने उसे उसी वृद्धाश्रम से गोद लिया था। यह सुनने के बाद करणबीर को अपनी ग़लती का एहसास होता है और वह अपनी माँ को अपने साथ वापस ले जाता है।

प्रश्न 6.
संबंध छोड़ने का शिष्टाचार क्या है?
उत्तर-
एक व्यक्ति अपने जीवन काल के दौरान कई रिश्ते बनाता है। कुछ रिश्ते जीवन भर चलते हैं लेकिन कुछ रिश्ते रास्ते में टूट जाते हैं और दिल के एक कोने में रह जाते हैं। कई बार, हमें एहसास होता है कि यह रिश्ता लंबे समय तक नहीं रहेगा और इसे यहां रोकना बेहतर है। इसलिए हमें ऐसे रिश्ते को उचित तरीके से खत्म करना चाहिए। हमें दूसरे व्यक्ति से बात करनी चाहिए और विनम्रता से उसे यह बताना चाहिए कि अब रिश्ते को निभाना संभव नहीं है। इसके आगे बढ़ना बेहतर है। रिश्ते से आगे बढ़ने का यह सबसे अच्छा तरीका है।

प्रश्न 7.
“अच्छा व्यवहार और रवैया हमारे व्यक्तित्व को चमका देता है”। स्पष्ट करो।
उत्तर-
इस तथ्य से कोई इनकार नहीं है कि अच्छा व्यवहार और रवैया हमारे व्यक्तित्व को चमका देता है। किसी विशेष समय में, हम कैसे प्रतिक्रिया या व्यवहार करते हैं, यह सब हमारे व्यक्तित्व के बारे में बताता है। इसलिए हमें इस तरह से व्यवहार करना सीखना चाहिए कि यह दूसरों के लिए एक सबक बन जाए। इसलिए, हमें खुश रहना चाहिए, कड़ी मेहनत करनी चाहिए, सकारात्मक बनना चाहिए और दूसरों के साथ विनम्रता से बात करनी चाहिए। ये एक अच्छे व्यवहार के गुण हैं और यह हमारे व्यक्तित्व के बारे में भी बताते हैं।

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दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
सभी रिश्तों की सामाजिक सीमाएं होती हैं।” कथन की व्याख्या करो।
उत्तर-
हमारे समाज ने कुछ नियम बनाए हैं कि हमारे रिश्ते कुछ सीमाओं के भीतर रहने के लिए बाध्य हैं, इसके अतिरिक्त यह भी बताया गया है कि हर रिश्ते में कितनी सीमा की आवश्यकता होती है। इसलिए हम कभी भी अपनी सीमाओं को पार नहीं करते हैं। हमारे माता-पिता, शिक्षक, दोस्त इत्यादि हमें लगातार ऐसी सीमाओं के बारे में बताते हैं। इसलिए हमें ऐसी सीमाओं की पहचान करनी चाहिए। सीमाओं का उल्लंघन न करें, यह हमारे साथ-साथ समाज के लिए भी अच्छा होगा।

घर के अंदर संबंध घनिष्ठता रखते हैं लेकिन घर के बाहर के रिश्ते बनावटी होते हैं और निकटता कम होती है। यह हमारे प्यार और तीव्रता पर निर्भर करता है। कई बार हम किसी अजनबी के साथ बहुत अच्छे संबंध बना लेते हैं और कभी-कभी हमारे खून के रिश्तेदारों के साथ भी खटास भरे रिश्ते बन जाते हैं। रिश्ते निभाना आसान नहीं होता। यह पेंसिल के साथ कागज़ पर एक रेखा खींचने जैसा नहीं है। यह ऐसा रिश्ता है जो जल्दी खत्म नहीं हो सकता। इसलिए रिश्तों की मर्यादा बनाए रखना ज़रूरी है।

प्रश्न 2.
रिश्ता तोड़ने या छोड़ते समय किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
उत्तर-
हम सभी एक सामाजिक जीवन जीते हैं और एक सामाजिक जीवन जीते हए, हम कई रिश्ते बनाते हैं। कछ रिश्ते जीवन भर चलते हैं लेकिन कुछ रिश्ते खत्म हो जाते हैं। किसी रिश्ते को खत्म करते समय, हमें कुछ बातों को ध्यान में रखना चाहिए ताकि यदि भविष्य में उस रिश्ते को पुनर्जीवित करने की आवश्यकता होती है, तो हम आसानी से ऐसा कर सकेंगे। हमें रिश्ते को खत्म करते समय निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखना चाहिए

  1. व्यक्ति के साथ बिताया गया समय याद रखें और उसे अच्छे से धन्यवाद दें।
  2. खट्टी यादें छोड़ दें और केवल अच्छी यादों को याद रखें और साझा करें।
  3. यदि आप उस व्यक्ति के साथ संपर्क रखना चाहते हैं।
  4. यदि आप उस व्यक्ति पर विश्वास नहीं करते हैं, तो आप भावुक न हों और उस व्यक्ति के साथ निजी जानकारी साझा न करें।
  5. उस व्यक्ति पर क्रोधित न हों या बदला लेने की कोशिश न करें ताकि बाद में पछताना न पड़े। इसलिए यह कहा जाता है कि एक कहानी को एक अच्छे मोड़ पर समाप्त करना अच्छा होगा जिसे अंत तक नहीं लिया जा सकता।

PSEB 10th Class Welcome Life Solutions Chapter 3 आपसी संबंध

आपसी संबंध PSEB 10th Class Welcome Life Notes

  • यह अध्याय एक छोटे नाटक से शुरू होता है, जो हमें बताता है कि हमें हमारे बुजुर्गों का सम्मान करना चाहिए।
  • नाटक की शुरुआत दादी और उसके पोते (रितंबर) के बीच हुई बातचीत से शुरू होता है। जो दोनों के बीच आंतरिक प्रेम और सहानुभूति को दिखाता है।
  • फिर कहानी में बहू (सिमरन) प्रवेश करती है जो अपने बेटे (रितंबर) को उसकी दादी से दूर रखना चाहती है।
  • तब दादी का बेटा (करणबीर सिंह बराड़) सामने आता है और उसकी पत्नी (सिमरन) उसे बताती है कि उसकी माँ (दादी) अपने पोते (रितंबर) को मेरे (सिमरन) खिलाफ उकसा रही है। वह करणबीर से पूछती है कि या तो वह अपनी माँ को वृद्धाश्रम भेज दे या वह अपनी मां के घर चली जाएगी।
  • अंत में दादी आती है और अपने बेटे करणबीर से कहती है कि उसे वृद्धाश्रम भेज दे क्योंकि वह यहां नहीं रह सकती।
  • एक तरफ करणबीर अपनी माँ को वृद्धाश्रम भेजता है और दूसरी तरफ सिमरन अपने भाई को माँ की देखभाल करने की धमकी देती है कि नहीं तो वह माँ को अपने घर ले जाएगी।
  • फिर छह महीने बाद दृश्य बदल जाता है जब वृद्धाश्रम से करणबीर की माँ का फोन आता है कि वह उसे मिलना चाहती है।
    करणबीर और सिमरन को लगता है कि यह उसका आखिरी समय है और इसलिए वह दोनों उससे मिलने के लिए तैयार हो गए।
  • दादी अपने बेटे करणबीर को दो पंखे और एक फ्रिज वृद्धाश्रम में दान करने के लिए कहती है क्योंकि लोगों को वहां बहुत सारी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। करणबीर चीज़ों को दान करने के लिए सहमत हो जाता है।
  • इसी समय वृद्धाश्रम का प्रबंधक आता है, करणबीर को पहचानता है और उसे बताता है कि पैंतीस साल पहले उसके पिता हरदेव सिंह ने उसे यहां से गोद लिया था। यदि वह उसे न अपनाता तो वह कहीं भिखारी होता।
  • प्रबंधक की बात सुनने के बाद, करणबीर और सिमरन को एहसास हुआ कि उन्होंने अपनी माँ के साथ गलत किया है। उन्होंने माँ को सॉरी कहा और अपने घर ले गये।
  • यह लघु नाटक हमें बताता है कि हमें अपने बड़ों के साथ दुर्व्यवहार नहीं करना चाहिए। इसके बजाय हमें उनका सम्मान करना चाहिए और उनसे आशीर्वाद लेना चाहिए।
  • हर रिश्ते की एक सामाजिक सीमा होती है और हमें ऐसी सीमाओं का ध्यान रखना चाहिए।
  • सभी रिश्ते महत्त्वपूर्ण हैं और उनके महत्त्व को ध्यान में रखते हुए हमें अपनी सीमाएं बनाए रखनी चाहिए।
  • करीबी और दूर के रिश्तों में प्यार और तीव्रता होनी चाहिए। इसलिए रिश्तों की मर्यादा में रहना चाहिए।
  • व्यक्ति जीवन में कई तरह के रिश्ते बनाता है। कुछ रिश्ते जीवन भर चलते हैं और कुछ रास्ते में ही टूट जाते हैं। कुछ रिश्ते सिर्फ दिल में रहते हैं।
  • कल्पना कीजिए कि यदि हमें कोई रिश्ता छोड़ने की ज़रूरत है, तो हमें कुछ बातों को ध्यान में रखना चाहिए। हमें एक-दूसरे को धन्यवाद कहना चाहिए। फोन नंबर साझा करना चाहिए इत्यादि।
  • हमें बच्चों के साथ अच्छा व्यवहार करना चाहिए और यह अच्छा व्यवहार हमारे व्यक्तित्व की पहचान बन जाता है।

PSEB 10th Class Welcome Life Solutions Chapter 2 तर्कशील सोच

Punjab State Board PSEB 10th Class Welcome Life Book Solutions Chapter 2 तर्कशील सोच Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 10 Welcome Life Chapter 2 तर्कशील सोच

PSEB 10th Class Welcome Life Guide तर्कशील सोच Textbook Questions and Answers

अभ्यास – I

प्रश्न 1.
पंजाब का दूसरा भाग कहाँ स्थित है?
(a) दिल्ली
(b) कनाडा
(c) पाकिस्तान
(d) राजस्थान।
उत्तर-
(b) पाकिस्तान ।

प्रश्न 2.
पंजाब में कितने विधानसभा क्षेत्र हैं?
(a) 116
(b) 21
(c) 31
(d) 117
उत्तर-
(d) 117.

प्रश्न 3.
पंजाब में कितने संसदीय निर्वाचन क्षेत्र (लोकसभा) हैं?
(a) 117
(b) 13
(c) 21
(d) 22.
उत्तर-
(b) 13.

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प्रश्न 4.
यूनानियों ने पंजाब को किस नाम से बुलाया?
(a) सप्त-सिंधु
(b) पेंटापोटामिया
(c) पंचनद
(d) सिंध।
उत्तर-
(b) पेंटापोटामिया।

प्रश्न 5.
पंजाब का विश्व का सबसे पुराना विश्वविद्यालय कौन-सा है?
(a) पंजाबी विश्वविद्यालय
(b) पंजाब विश्वविद्यालय
(c) तक्षशिला विश्वद्यिालय
(d) नालंदा विश्वविद्यालय।
उत्तर-
(b) तक्षशिला विश्वद्यिालय।

अभ्यास-II

वर्कशीट के लिए प्रश्न

प्रश्न 1.
संदीप के मन में कौन-सी गलत धारणा थी?
उत्तर-
संदीप के दिमाग में यह गलत धारणा थी कि उत्पाद और टॉनिक शारीरिक शक्ति बढ़ाते हैं और एथलीट खेलों में बेहतर प्रदर्शन करते हैं। वह मेहनत के बजाय दवा और उत्पाद लेना पसंद कर रहे थे जो कि ग़लत धारणा है।

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प्रश्न 2.
मैडम ने अपनी जवान छात्राओं को क्या समझाया?
उत्तर-
मैडम ने जवान छात्राओं को समझाया कि वे अपने मन में गलत धारणा न रखें। कई लोग अपने मज़बूत शरीर को दिखाने के लिए दवाओं का उपयोग करते हैं जो कि ग़लत है। बच्चे स्टेशल मीडिया विज्ञापनों के जाल में फंस जाते हैं। इन विज्ञापनों के जाल में फंसने से पहले हमें सावधानी से सोचने की ज़रूरत है। इन दवाओं को लेने के बजाय, हमें मेहनत और देसी आहार पर अधिक ध्यान देना चाहिए। मैडम ने लड़कियों से कहा कि हमारे पास बहुत से उदाहरण हैं जहाँ सामान्य परिवारों के कई खिलाड़ियों ने कड़ी मेहनत की है और बहुत सफलता प्राप्त की है।

प्रश्न 3.
प्रिंट मीडिया इलेक्ट्रॉनिक और सोशल मीडिया को देखते समय किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
उत्तर-
कंपनियों प्रिंट मीडिया और सोशल मीडिया पर अपने उत्पादों का विज्ञापन करती हैं। इस प्रकार के विज्ञापन किसी भी टीवी चैनल का हिस्सा नहीं हैं और इन पर लिखा होता है कि यह एक कंपनी का विज्ञापन है। इसलिए, इससे पहले कि हम उन्हें खरीदें और उनके जाल में पड़ें। हमें उनके बारे में सच्चाई का पता लगाना चाहिए। हमें तर्कसंगत रूप से सोचना चाहिए कि क्या यह संभव है। यदि नहीं, तो हमें वह उत्पाद नहीं खरीदना चाहिए।

प्रश्न 4.
हम गलतफहमियों से कैसे छुटकारा पा सकते हैं?
उत्तर-
हमें किसी भी चीज़ के बारे में तर्कसंगत रूप से सोचना चाहिए कि यह सही है या ग़लत। हमें दूसरों से बात करनी चाहिए और यदि हमारे विचार मेल खाते हैं, तो हमें गलतफहमी को दूर करना चाहिए और इसके पीछे के कारण पर विचार करना चाहिए।

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Welcome Life Guide for Class 10 PSEB तर्कशील सोच Important Questions and Answers

(क) बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
कौन-से छात्र अद्वितीय और सफल होते हैं?
(a) वह जो समय को महत्त्व देता है
(b) वह जो खेल खेलता है
(c) जो सोशल मीडिया पर मस्त हो
(d) इनमें से कोई भी नहीं।
उत्तर-
(a) वह जो समय को महत्त्व देता है।

प्रश्न 2.
समाज में लैंगिक भेदभाव को किसने दूर किया है?
(a) धर्म
(b) विज्ञान और प्रौद्योगिकी
(c) सोसायटी
(d) सरकार।
उत्तर-
(b) विज्ञान और प्रौद्योगिकी।

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प्रश्न 3.
कौन-सा उदाहरण हमें महिलाओं की हिम्मत और दया के बारे में बताता है?
(a) माई भागो
(b) माता गुजरी
(c) रानी लक्ष्मीबाई
(d) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(d) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 4.
क्या हम आधुनिक समय में लैंगिक भेदभाव देख सकते हैं?
(a) हाँ
(b) नहीं
(c) पता नहीं
(d) कुछ नहीं कह सकते।
उत्तर-
(a) हाँ!

प्रश्न 5.
हमें किस की कद्र करनी चाहिए?
(a) पैसे की
(b) समय की
(c) अंधविश्वास की
(d) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(b) समय की।

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प्रश्न 6.
वर्तमान युग में हम ……….. का सही उपयोग करके बचत कर सकते हैं।
(a) धर्म
(b) सोशल मीडिया
(c) समाचार पत्र
(d) पत्रिका।
उत्तर-
(b) सोशल मीडिया।

प्रश्न 7.
………….. के साथ हम अपना समय अच्छे से बिता सकते हैं?
(a) नियोजन
(b) मोबाइल
(c) टी०वी०
(d) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(a) नियोजन।

प्रश्न 8.
आधुनिक क्रांतिकारी परिवर्तनों के वर्तमान युग में ……… की भूमिका काफी बढ़ गई है।
(a) धर्म
(b) सरकार
(c) संचार के साधन
(d) व्यक्तिगत साधन।
उत्तर-
(c) संचार के साधन।

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प्रश्न 9.
संचार के साधनों से हमें क्या मिलता है?
(a) सूचना
(b) ज्ञान
(c) मनोरंजन
(d) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(d) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 10.
संचार के साधनों का अवगण क्या है?
(a) एक व्यक्ति स्वाभाविक हो जाता है।
(b) बच्चे बुरी आदतों को अपनाते हैं।
(c) बच्चे अपने वास्तविक उद्देश्य से विचलित होते हैं।
(d) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(d) उपरोक्त सभी।

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(ख) खाली स्थान भरें

  1. …………. के उपयोग से हम अपने लक्ष्यों को प्राप्त कर सकते हैं।
  2. ………….. के उपयोग से हमें बहुत-सी जानकारी मिलती है।
  3. ………….. का दुरुपयोग नहीं होना चाहिए।
  4. आदि काल से ही समाज में ………… और ……….. के बीच भेदभाव चल रहा है।
  5. हमें मन में …………… धारणाएं नहीं रखनी चाहिए।

उत्तर-

  1. समय,
  2. संचार के साधनों,
  3. सोशल मीडिया,
  4. लड़के, लड़कियां,
  5. ग़लत।

(ग) सही/ग़लत चुनें

  1. हमें ग़लत धारणाओं से बचना चाहिए।
  2. लिंग आधारित भेदभाव आधुनिक समाज की एक धारणा है।
  3. लड़कों और लड़कियों के बीच भेदभाव प्राचीन काल से चला आ रहा है।
  4. कई लोग मीडिया के जाल में फंस जाते हैं।
  5. खाने के उत्पाद खेलकूद के लिए आवश्यक हैं।

उत्तर-

  1. सही,
  2. ग़लत,
  3. सही,
  4. सही,
  5. ग़लत।

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(घ) कॉलम से मेल करें

कॉलम ए — कॉलम बी
(a) भेदभाव — (i) संचार का साधन
(b) विचित्र — (ii) सप्त सिंधु
(c) अनुसूची — (iii) अंतर
(d) इंटरनेट — (iv) विशेष
(e) पंजाब — (v) टाइम टेबल।
उत्तर-
(a) भेदभाव — (iii) अंतर
(b) विचित्र — (iv) विशेष
(c) अनुसूची — (v) टाइम टेबल
(d) इंटरनेट — (i) संचार का साधन
(e) पंजाब — (ii) सप्त सिंधु।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
क्या समाज में लिंग आधारित भेदभाव होता है?
उत्तर-
हां, समाज में लिंग आधारित भेदभाव होता है।

प्रश्न 2.
किस ने समाज में लिंग आधारित भेदभाव को कम किया है?
उत्तर-
विज्ञान और प्रौद्योगिकी ने समाज में लिंग आधारित भेदभाव को काफी कम कर दिया है।

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प्रश्न 3.
किन पहलुओं से, हम एक लड़के और लड़की के बीच अंतर नहीं देख सकते?
उत्तर-
साहस, मानसिक स्तर, कड़ी मेहनत इत्यादि के दृष्टिकोण से।

प्रश्न 4.
महिलाओं की बहादुरी, वीरता और दयालुता का उदाहरण दें।
उत्तर-
माई भागो, माता गुजरी, रानी लक्ष्मीबाई इत्यादि महिलाएं बहादुरी, वीरता और दयालुता की उदाहरणे है।

प्रश्न 5.
क्या आधुनिक समय में कोई लिंग आधारित भेदभाव है?
उत्तर–
हाँ, आधुनिक समय में लिंग आधारित भेदभाव है।

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प्रश्न 6.
कौन-से छात्र विशिष्ट तथा सफल हैं?
उत्तर-
समय को महत्त्व देने वाले छात्र विशिष्ट तथा सफल हैं।

प्रश्न 7.
हमें समय की कद्र क्यों करनी चाहिए?
उत्तर-
क्योंकि एक बार समय निकल जाने के बाद कभी वापस नहीं आता।

प्रश्न 8.
समय बर्बाद होने पर क्या होता है?
उत्तर-
समय हमारी कद्र नहीं करेगा और हम जीवन में सफल नहीं हो पाएंगे।

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प्रश्न 9.
कौन-सा छात्र जीवन में सफल हो जाता है?
उत्तर-
जो छात्र समय की योजना बनाते हैं, वह जीवन में सफल हो जाते हैं।

प्रश्न 10.
समय नियोजन से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
इसका मतलब है कि समय हमें इस तरह से लगाना चाहिए कि हर मिनट का उपयोग हो सके।

प्रश्न 11.
हम अपना समय कैसे बचा सकते हैं?
उत्तर-
सोशल मीडिया का प्रयोग करके हम अपना समय बचा सकते हैं।

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प्रश्न 12.
सोशल मीडिया का उपयोग करने से क्या फायदा है?
उत्तर-
हमें सोशल मीडिया से बहुत सारी जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

प्रश्न 13.
आधुनिक समय में किसकी भूमिका काफ़ी बढ़ गई है?
उत्तर-
आधुनिक समय में संचार के साधनों की भूमिका काफी बढ़ गई है।

प्रश्न 14.
मीडिया चलाने वाली कंपनियों का मुख्य उद्देश्य क्या है?
उत्तर-
उनका मुख्य उद्देश्य पैसा कमाना है।

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प्रश्न 15.
संचार के साधन हमें क्या प्रदन करते हैं?
उत्तर-
वह हमें विभिन्न प्रकार की जानकरी प्रदान करते हैं।

प्रश्न 16.
संचार के दुरुपयोग के सधनों का नुकसान क्या है?
उत्तर-
लोग गलत आदतें अपनाते हैं और अपने वास्तविक उद्देश्यों से भटक जाते हैं।

प्रश्न 17.
इंटरनेट और मोबाइल का उपयोग करने से पहले छात्रों को क्या प्रतिज्ञा करनी चाहिए?
उत्तर-
उन्हें यह संकल्प लेना चाहिए कि वह उनका उपयोग केवल अपना ज्ञान बढ़ाने के लिए करेंगे।

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प्रश्न 18.
इंटरनेट और संचार के साधनों का सही उपयोग करने से क्या लाभ है?
उत्तर-
वह अपने ज्ञान को बढ़ाते हैं और एक व्यक्ति के व्यक्तित्व को चमकते हैं।

प्रश्न 19.
गेम खेलने के लिए उत्पादों और टॉनिक का उपयोग करना आवश्यक है?
उत्तर-
नहीं, ऐसी चीज़ों का उपयोग करने की कोई आवश्यकता नहीं है।

प्रश्न 20.
हम एक खेल में कैसे महारत हासिल कर सकते हैं?
उत्तर-
निरंतर अभ्यास से, हम एक खेल में महारत हासिल कर सकते हैं।

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लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
लिंग भेदभाव से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
समाज में दो लिंग होते हैं-पुरुष और स्त्री। यदि उनके बीच कोई भेदभाव होता है, तो इसे लैंगिक भेदभाव कहा जाता है। हमारे समाज में, पुरुषों की तुलना में महिलाओं में बहत भेदभाव किया जाता है। उदाहरण के लिए कुछ कार्य हैं, जिनके बारे में यह कहा जाता है कि वे केवल पुरुषों के लिए हैं। पुरुष शारीरिक रूप से शक्तिशाली होते हैं और वे महिलाओं के साथ भेदभाव करते हैं। महिलाओं को कोई अधिकार नहीं दिया गया। इसे लैंगिक भेदभाव कहा जाता है।

प्रश्न 2.
क्या वर्तमान समाज में लैंगिक भेदभाव मौजूद है?
उत्तर-
हां, वर्तमान समाज में लिंग भेदभाव अभी भी मौजूद है। इसका सामान्य उदाहरण किसी भी कार्य स्थल पर देखा जा सकता है जहां महिलाओं को पुरुषों की तुलना में कम वेतन दिया जाता है। राजनीतिक जीवन में बहुत कम महिलाएं हैं। ज्यादातर अपराध महिलाओं से जुड़े हैं। हालांकि उन्हें संविधान द्वारा समान अधिकार दिए गए हैं, लेकिन समाज में समानता प्राप्त करने में असमर्थ हैं।

प्रश्न 3.
क्या हमें लड़कों और लड़कियों के बीच भेदभाव को खत्म करना चाहिए?
उत्तर-
हाँ, समाज में इस भेदभाव को खत्म करना चाहिए। एक आदर्श समाज समानता पर आधारित है और ऐसे समाज में कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए। यदि हम पुरुषों और महिलाओं द्वारा किए गए कार्यों को देखते हैं, तो हम आसानी से देख सकते हैं कि महिलाओं को अधिक कठिन काम दिए जाते हैं और उन्हें पूरा करने के लिए बहुत धैर्य की आवश्यकता होती है। पुरुष इस तरह के कार्यों को उचित तरीके से पूरा करने में असमर्थ हैं। इसीलिए भेदभाव को खत्म करना होगा और सामाजिक समानता लाने के प्रयास करने होंगे।

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प्रश्न 4.
हमें समय की कद्र क्यों करनी चाहिए?
उत्तर-
ऐसा कहा जाता है कि अतीत वापस नहीं आता है। एक बार समय समाप्त हो जाता है, चाहे आप कितनी भी कोशिश कर लें, यह वापस नहीं आएगा। यदि हम समय को महत्त्व देते हैं, तो हम अपने सभी काम समय पर और सही तरीके से कर पाएंगे, समय का सही मूल्य पड़ेगा। समय सार का होगा और हमारा जीवन सफल होगा। इसलिए, सबसे पहले यह महत्त्वपूर्ण है कि हमें अपना समय बचाना चाहिए। यदि हम अपने समय का ध्यान रखते हैं तो निश्चित रूप से हम जीवन में प्रगति कर पाएंगे और अपने लक्ष्यों को प्राप्त कर पाएंगे। इसीलिए कहा जाता है कि समय अमूल्य है और हमें इसे बर्बाद नहीं करना चाहिए।

प्रश्न 5.
“समय का सही उपयोग समय का सबसे अच्छा सदुपयोग है।” कथन स्पष्ट करो।
उत्तर-
यह सही कहा जाता है कि समय का सही उपयोग समय का सबसे ,सदुपयोग है। वास्तव में यह हमारे हाथ में है कि हम अपने समय का उपयोग कैसे करते हैं। यदि कोई व्यक्ति अपने समय का बुद्धिमानी से उपयोग करता है, शिक्षा प्राप्त करता है और प्रगति करने के लिए प्रयास करता है, तो उसका ज्ञान और धन निश्चित रूप से बढ़ता है। लेकिन यदि वह ऐसा नहीं करता, न तो ज्ञान और न ही पैसा उसके पास जाता है। एक छात्र को हमेशा अपना खुद का टाइम टेबल बनाने और सभी विषयों पर बराबर ध्यान देने के लिए कहा जाता है। यदि वह अपनी समय सारिणी निर्धारित नहीं करता है और व्यर्थ में समय बिताता है, तो आने वाले समय में उसके लिए सही नहीं होगा। इसलिए सभी को अपने समय का सदुपयोग जीवन में प्रगति करने के लिए करना चाहिए।

प्रश्न 6.
हम बेहतर तरीके से सोशल मीडिया का उपयोग कैसे कर सकते हैं?
उत्तर-
हमारे जीवन में सोशल मीडिया का महत्त्व इन दिनों बहुत बढ़ गया है। फेसबुक, इंस्टाग्राम, गूगल इत्यादि सोशल मीडिया में शामिल हैं। इनमें से गूगल हमारे लिए बहुत मददगार हो सकता है। हर प्रकार की जानकारी गूगल पर उपलब्ध है। कोई फर्क नहीं पड़ता कि विषय क्या है, गूगल हमें एक सेकंड के भीतर जानकारी प्रदान करता है। इसके अलावा जब हम काम करते हुए थक जाते हैं, तो हम फेसबुक, इंस्टाग्राम इत्यादि पर अपना मनोरंजन कर सकते हैं। इस तरह, हम अपने जीवन को कई तरीकों से दिलचस्प बना सकते हैं, उनका सही इस्तेमाल कर सकते हैं।

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प्रश्न 7.
स्कूल के शिक्षा द्वारा छात्रों के व्हाट्सएप समूह बनाने के क्या लाभ हैं?
उत्तर-

  1. व्याटसएप ग्रुप बनाकर, शिक्षक छात्रों को होमवर्क दे सकते हैं।
  2. यदि छात्रों को पढ़ाई करते समय कोई समस्या आती है, तो वह शिक्षकों से प्रश्न पूछ सकते हैं।
  3. छात्र एक-दूसरे के प्रश्नों का उत्तर देते हैं जिससे सभी छात्र पाठ की दोहराई कर सकते हैं।
  4. छात्र परीक्षा के समय में एक-दूसरे के करीब आते हैं और एक-दूसरे की मदद करते हैं।
  5. समूह का उचित उपयोग बच्चों के लिए फायदेमंद है क्योंकि वे जानते हैं कि किसी विशेष क्षण में क्या करना है या क्या नहीं करना है।

प्रश्न 8.
क्या हम उत्पादों और टॉनिक का उपयोग करके अपने खेल में सुधार कर सकते हैं?
उत्तर-
नहीं, खेल उत्पादों और टॉनिक का सेवन करके नहीं सुधारा जा सकता। यह केवल एक विशेष क्षण के लिए शारीरिक शक्ति बढ़ा सकता है। यदि शरीर को इसकी आदत हो जाए तो शरीर क्षतिग्रस्त हो सकता है। खेल को केवल हार्डवर्क से ही बेहतर बनाया जा सकता है और बड़ी सफलता प्राप्त की जा सकती है। यह एक गलत धारणा है कि उत्पादों और टॉनिक का सेवन करके खेल को बेहतर बनाया जा सकता है। हमें इस तरह की गलतफहमियों से दूर रहना चाहिए।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न-हम मोबाइल, इंटरनेट और संचार के अन्य साधनों का सही उपयोग कैसे कर सकते हैं?
उत्तर-वर्तमान समय में हमारे जीवन में संचार की भूमिका बहुत बढ़ गई है और हम इसका भरपूर उपयोग कर रहे हैं। हमें इसकी आदत नहीं बनानी चाहिए । इसके बजाय हमें इसका उचित उपयोग करना चाहिए। निम्नलिखित विधियों के साथ हम मोबाइल, इंटरनेट और संचार के अन्य साधनों का सही उपयोग कर सकते हैं

  1. हमें मोबाइल फोन पर गेम नहीं खेलनी चाहिए, हमें इसका उपयोग ज्ञान प्राप्त करने के लिए करना चाहिए।
  2. हर प्रकार की जानकारी गूगल पर उपलब्ध है। संचार के साधनों का उपयोग कर हमें जानकारी एकत्र करनी चाहिए और अपने विषय में कुशल बनना चाहिए।
  3. वर्तमान में, छात्र मोबाइल और इंटरनेट के साथ शिक्षा ले रहे हैं। इसका इस्तेमाल समझदारी से करना चाहिए।
  4. मोबाइल या कंप्यूटर के अधिक उपयोग से हमारी आँखों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। इसका उपयोग सीमित सीमा तक किया जाना चाहिए।
  5. ऐसे साधनों का उपयोग करके हम अपने व्यक्तित्व का विकास कर सकते हैं और एक बेहतर भविष्य का निर्माण कर सकते हैं।
  6. इनकी सहायता से छात्र अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं अर्थात् जीवन में प्रगति कर सकते हैं।

PSEB 10th Class Welcome Life Solutions Chapter 2 तर्कशील सोच

तर्कशील सोच PSEB 10th Class Welcome Life Notes

  • सदियों से हमारे समाज में लड़कों और लड़कियों के बीच भेदभाव किया जाता है। लड़कों को लड़कियों से बेहतर माना जाता है और इसका मुख्या कारण पुरुष प्रधान समाज है।
  • आधुनिक समय में विज्ञान और प्रौद्योगिकी ने इस लिंग भेदभाव को बहुत हद तक खत्म कर दिया है। यद्यपि यह भेदभाव कम हुआ है लेकिन फिर भी यह भेदभाव अभी भी कई क्षेत्रों में व्याप्त है।
  • हमारे पास इतिहास में कई उदाहरणें हैं जिनसे हमें पता चलता है कि आवश्यकता पड़ने पर महिलाओं ने बहुत साहस दिखाया है; जैसे कि रानी लक्ष्मीबाई। यह हमें महिलाओं में कुछ गुणों को भी दिखाता है जैसे कि साहस, दूसरों की मदद करना इत्यादि।
  • समाज में रहते हुए, हमें हर प्रकार के भेदभाव का विरोध करना चाहिए और समाज में समानता लाने का प्रयास करना चाहिए।
  • हमें समय का बुद्धिमानी से उपयोग करना चाहिए। यदि आज हम समय को महत्त्व नहीं देते हैं, तो कल यह हमें महत्त्व नहीं देगा।
  • यह आवश्यक है कि हमें एक समय सारणी बनानी चाहिए और उसके अनुसार अपना जीवन ढालना चाहिए। यह हमारे जीवन में अनुशासन लाएगी और हम सही समय पर सब कुछ करने में सक्षम होंगे।
  • हमें सोशल मीडिया का बेहतर तरीके से उपयोग करना चाहिए। हमें अच्छा ज्ञान प्राप्त करना चाहिए और केवल उस समय को सोशल मीडिया के लिए समर्पित करना चाहिए जिसकी आवश्यकता है। मनोरंजन के लिए, हम सोशल मीडिया को छोड़कर अन्य साधनों का उपयोग कर सकते हैं।
  • हमें रचनात्मक तरीके से मोबाइल, इंटरनेट और संचार के अन्य साधनों का उपयोग करना चाहिए। वे हमें अध्ययन के लिए बहुत अच्छी सामग्री प्रदान करते हैं। इनका सही तरीके से उपयोग करके हम एक बेहतर व्यक्तित्व का निर्माण कर सकते हैं। प्रत्येक छात्र को रचनात्मक तरीके से उनका उपयोग करना चाहिए।
  • हमारे आसपास बहुत सारी नकारात्मकता फैली हुई है। हमें किसी भी तरह की नकारात्मकता से बचना चाहिए और जितना हो सके सकारात्मकता को अपनाने और फैलाने की कोशिश करनी चाहिए।
  • साथ ही, हमें समाज में मौजूद भ्रांतियों से भी बचना चाहिए। हमें अपने विवेक और दिमाग का उपयोग ग़लत धारणाओं से बचने के लिए करना चाहिए और उन्हें समाज से हटाने का प्रयास करना चाहिए।

PSEB 10th Class Home Science Solutions Chapter 1 गृह व्यवस्था व अच्छा प्रबन्धक

Punjab State Board PSEB 10th Class Home Science Book Solutions Chapter 1 गृह व्यवस्था व अच्छा प्रबन्धक Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 10 Home Science Chapter 1 गृह व्यवस्था व अच्छा प्रबन्धक

PSEB 10th Class Home Science Guide गृह व्यवस्था व अच्छा प्रबन्धक Textbook Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
गृह व्यवस्था की परिभाषा लिखो।
अथवा
गृह व्यवस्था से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
गृह व्यवस्था घर के साधनों का सही ढंग से प्रयोग करके पारिवारिक आवश्यकताओं को पूर्ण करने की कला है। एक अच्छा गृह प्रबन्धक साधनों के कमसे-कम प्रयोग से भी पारिवारिक उद्देश्यों को प्राप्त कर लेता है।

प्रश्न 2.
घर और मकान में क्या अन्तर है?
उत्तर-
मकान मिट्टी, सीमेन्ट, ईंटों, पत्थर आदि का बना ढांचा होता है जो हमें बारिश, तूफान, गर्मी, सर्दी, जंगली जानवर और चोर डाकुओं से बचाता है। परन्तु घर एक परिवार के सदस्यों की भावनाओं का सूचक है। जहाँ परिवार के सभी सदस्य इकट्ठे होकर अपनी समस्याओं का समाधान ढूंढ कर जीवन सुखमयी बनाते हैं।

प्रश्न 3.
लक्ष्य से आप क्या समझते हो?
अथवा
पारिवारिक लक्ष्य क्या होते हैं?
उत्तर-
लक्ष्य परिवार के सदस्यों के वे कार्य होते हैं जिनको वह अकेले या मिलकर करते हैं। प्रत्येक परिवार के कुछ-न-कुछ लक्ष्य अवश्य निर्धारित होते हैं जो समय-समय पर बदलते रहते हैं।

प्रश्न 4.
परिवार के साधनों को मुख्य रूप से कौन-से दो भागों में बांटा जा सकता है?
उत्तर-
परिवार के साधनों को दो मुख्य भागों में विभाजित किया जा सकता है

  1. मानवीय साधन जैसे काम करने की योग्यता, कुशलता और स्वास्थ्य।
  2. भौतिक साधन जैसे समय, पैसा, जायदाद आदि।

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प्रश्न 5.
व्यक्ति की योग्यता तथा रुचि कौन-से साधन हैं और कैसे?
उत्तर-
योग्यता और रुचि महत्त्वपूर्ण मानवीय साधन हैं क्योंकि ये साधन मनुष्य में समाए हुए होते हैं और मनुष्य का ही भाग हैं। इनके अस्तित्व के बिना किसी भी भौतिक साधन का योग्य प्रयोग असम्भव है।

प्रश्न 6.
समय और शक्ति कौन-से साधन हैं?
उत्तर-
समय एक भौतिक साधन है और प्रत्येक व्यक्ति के पास रोज़ाना 24 घण्टे का समय होता है। शक्ति एक मानवीय साधन है क्योंकि यह मनुष्य का भाग है जो कि भिन्न-भिन्न व्यक्तियों में भिन्न-भिन्न होती है। इन साधनों के सदुपयोग से पारिवारिक लक्ष्यों को प्राप्त किया जा सकता है।

छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 7.
घर के साधनों में समय और शक्ति की व्यवस्था महत्त्वपूर्ण कैसे है?
उत्तर-
समय और शक्ति ऐसे साधन हैं जिनको बचाकर नहीं रखा जा सकता। इनकी उपयोगिता इनके सही प्रयोग से जुड़ी हुई है। जिस परिवार में समय और परिवार के सदस्यों की शक्ति को सही ढंग से प्रयोग में लाया जाता है वह परिवार अपने लक्ष्यों की प्राप्ति आसानी से कर लेता है।

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प्रश्न 8.
अच्छे गृह प्रबन्धक में काम करने का उत्साह तथा निर्णय लेने की शक्ति का होना क्यों ज़रूरी है?
उत्तर-
अच्छे गृह प्रबन्धक में काम करने का उत्साह इसलिए आवश्यक है कि इससे परिवार के शेष सदस्य भी काम करने के लिए उत्साहित होते हैं। गृह प्रबन्धक की फैसला लेने की शक्ति से समय की बचत होती है और परिवार के शेष सदस्यों को प्रतिनिधित्व मिलता है।

प्रश्न 9.
अच्छे प्रबन्धक को गृह व्यवस्था की जानकारी क्यों जरूरी है?
उत्तर-
अच्छी गृह व्यवस्था का मुख्य उद्देश्य लक्ष्यों की पूर्ति करना है। इन लक्ष्यों की पूर्ति के लिए गृह प्रबन्धक के पास योग्यता और कुशलता का होना अति आवश्यक है। योग्यता और कुशलता प्राप्त करने के लिए गृह व्यवस्था की प्रारम्भिक जानकारी का होना अति आवश्यक है। इस जानकारी से ही यह गृह प्रबन्धक अपने परिवार के मानवीय और भौतिक साधनों का उचित प्रयोग करने के योग्य हो सकता है। इस तरह वह पारिवारिक लक्ष्यों की पूर्ति कर सकता है।

प्रश्न 10.
अच्छे प्रबन्धक में काम करने का उत्साह होना क्यों जरूरी है?
उत्तर–
पारिवारिक लक्ष्यों की पूर्ति के लिए गृह प्रबन्धक में काम करने का उत्साह होना इसलिए आवश्यक है क्योंकि घर में एक प्रबन्धक की भूमिका एक नेता वाली होती है। यदि प्रबन्धक में काम करने का उत्साह होगा तो शेष सदस्य भी घर के काम में योगदान देंगे। एक आलसी गृह प्रबन्धक घर के अन्य सदस्यों को भी आलसी बना देता है जिससे घर का सारा वातावरण खराब हो जाता है और परिवार अपने लक्ष्यों की पूर्ति नहीं कर सकता।

प्रश्न 11.
घर के अच्छे प्रबन्ध सम्बन्धी जानकारी कहां से ली जा सकती है?
उत्तर-
घर का अच्छा प्रबन्ध कोई बच्चों का खेल नहीं है। इसलिए गृहिणी को घर के सभी साधनों को सूझ-बूझ से प्रयोग करने की जानकारी का होना अति आवश्यक है। पुराने समय में यह जानकारी परिवार के बड़े-बूढ़ों से प्राप्त हो जाती थी, परन्तु आजकल इस जानकारी के लिए और साधन भी हैं। स्कूलों और कॉलेजों में गृह विज्ञान का विषय पढ़ाया जाता है जहाँ गृह प्रबन्ध से सम्बन्धित ज्ञान प्रदान किया जाता है। इसके अतिरिक्त रेडियो, टेलीविज़न, समाचार-पत्र, मैगज़ीन आदि से अच्छे गृह प्रबन्ध की जानकारी मिलती है।

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प्रश्न 12.
विज्ञान की प्रगति से गृह व्यवस्था कैसे जुड़ी हुई है?
उत्तर-
विज्ञान की उन्नति से गृह प्रबन्ध में कई बढ़िया परिवर्तन आए हैं। आजकल बाज़ार में ऐसे उपकरण मिलते हैं जिनसे गृहिणी का समय और शक्ति दोनों की बहुत बचत होती है। जैसे मिक्सी, आटा गूंथने की मशीन, कपड़े धोने वाली मशीन, फ्रिज, माइक्रोवेव ओवन आदि। इन उपकरणों का सही प्रयोग करके गृहिणियां अपने गृह प्रबन्ध को अच्छे ढंग से चला सकती हैं। इसके अतिरिक्त टेलीविज़न और इन्टरनेट जैसे वैज्ञानिक उपकरण भी नई-से-नई जानकारी प्रदान करके गृहिणियों की सहायता करते हैं।

प्रश्न 13.
घर में वृद्ध हों तो गृह व्यवस्था कैसे प्रभावित होती है?
उत्तर-
क्योंकि बुजुर्गों की आवश्यकताएं परिवार के शेष सदस्यों से भिन्न होती हैं इसलिए घर के प्रबन्ध में कुछ विशेष परिवर्तन करने पड़ते हैं जैसे बुजुर्गों की खुराक को ध्यान में रखकर खाना बनाया जाता है। उठने और सोने का समय भी बुजुर्गों के अनुकूल ही रखा जाता है। घर में शोर-गुल को रोकना पड़ता है। बुजुर्गों के लिए पूजा-पाठ आदि का प्रबन्ध किया जाता है। इस तरह कई ढंगों से घर की व्यवस्था प्रभावित होती है।

प्रश्न 14.
गृह व्यवस्था करने के लिए किन-किन साधनों का प्रयोग किया जाता है तथा इनका महत्त्व क्या है?
उत्तर-
गृह व्यवस्था में परिवार के मानवीय और भौतिक साधन एक अभिन्न भूमिका निभाते हैं, परिवार की जायदाद, आमदन, भौतिक साधन हैं पर इनका पारिवारिक लक्ष्यों के लिए योग्य प्रयोग परिवार के मानवीय साधन पर निर्भर करता है। एक मेहनती और संयम से चलने वाला परिवार कम साधनों के बावजूद एक बढ़िया ज़िन्दगी व्यतीत कर सकता है जबकि एक नालायक और खर्चीला परिवार अधिक जायदाद और आमदन के बावजूद भी मुश्किल में होता है। इसलिए अच्छी व्यवस्था के लिए अच्छे भौतिक साधनों के साथ-साथ अच्छे मानवीय साधनों का होना भी अति आवश्यक है।

प्रश्न 15.
अच्छी गृह व्यवस्था का मुख्य उद्देश्य लक्ष्यों की पूर्ति करना है। स्पष्टीकरण दें।
उत्तर-
अच्छी गृह व्यवस्था का उद्देश्य लक्ष्यों की पूर्ति करना ही है। प्रत्येक परिवार के कुछ-न-कुछ लक्ष्य होते हैं। लक्ष्य परिवार के सदस्यों के वे कार्य होते हैं जिनको वह अकेले या मिलकर करते हैं। प्रत्येक परिवार के कुछ-न-कुछ लक्ष्य अवश्य निर्धारित होते हैं जो समय-समय पर बदलते रहते हैं। समय अनुसार इनको दो भागों में विभाजित किया जाता है —

  1. छोटे समय के लक्ष्य (Short Term Goals) जैसे बच्चों को स्कूल भेजना, काम पर जाना और घर के अन्य रोज़ाना कार्य।
  2. दीर्घ समय के लक्ष्य (Long Term Goals) जैसे मकान बनाना, बच्चों के विवाह करने आदि।
    इन लक्ष्यों को इनकी किस्म अनुसार दो भागों में बांटा जा सकता है

    1. व्यक्तिगत लक्ष्य
    2. पारिवारिक लक्ष्य।

व्यक्तिगत लक्ष्य जैसे बड़े बच्चे ने डॉक्टर बनना है। पारिवारिक लक्ष्य जैसे परिवार के लिए घर बनाना है।
इन लक्ष्यों की पूर्ति के लिए परिवार के साधनों का योग्य प्रयोग अति आवश्यक है। इसके योग्य प्रयोग के लिए गृह प्रबन्धक की कुशलता योग्यता और ज्ञान पर निर्भर करती है। इसलिए एक अच्छी गृह व्यवस्था से लक्ष्यों की पूर्ति हो सकती है।

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प्रश्न 16.
अच्छे प्रबन्धक के किन्हीं छः गुणों के बारे में लिखो।
उत्तर-
घर की सही व्यवस्था पारिवारिक खुशी का आधार है। इसलिए घर की व्यवस्था चलाने वाले व्यक्ति का गुणवान होना आवश्यक है। एक अच्छे गृह प्रबन्धक में निम्नलिखित गुणों का होना अति आवश्यक है

  1. अच्छा खाना बनाना-एक अच्छी गृहिणी को खाना पकाना आना चाहिए जोकि घर के सभी सदस्यों की आवश्यकता अनुसार हो।
  2. समय की कीमत के बारे जानकारी-आजकल की तेज़ रफ्तार ज़िन्दगी में गृहिणियों को कई काम करने पड़ते हैं, जैसे बच्चों को स्कूल भेजना, पति को दफ्तर भेजना आदि। ये काम समय अनुसार ही होने चाहिएं। इसलिए गृहिणी को समय का ठीक प्रयोग करना चाहिए।
  3. अर्थशास्त्र के बारे में ज्ञान-आजकल महंगाई के ज़माने. में एक समझदार गृहिणी को बजट बनाना और उसके अनुसार चलना चाहिए।
  4. काम करने का उत्साह-एक अच्छे प्रबन्धक को अपने घर के सभी कामों को करने का उत्साह होना चाहिए। इससे घर के शेष सदस्य भी काम करने के लिए उत्साहित होंगे।
  5. सोचने और फैसला लेने की शक्ति-घर के प्रबन्ध में काम करने के साथसाथ सोच शक्ति का होना भी अति आवश्यक है। जो गृहिणी दिमाग से काम लेती है वह कम पैसे और शक्ति से भी बढ़िया घर व्यवस्था चला सकती है।
  6. सहनशीलता और स्व:नियन्त्रण-एक अच्छे गृह प्रबन्धक या गृहिणी में सहनशीलता का होना अति आवश्यक है। जहाँ गृहिणी में सहनशीलता और स्व:नियन्त्रण नहीं होता उन घरों का प्रबन्ध भी अच्छा नहीं होता।

प्रश्न 17.
अच्छी गृह व्यवस्था का क्या महत्त्व है?
उत्तर-
परिवार की सुख-शान्ति और खुशहाली के लिए अच्छी गृह व्यवस्था का होना आवश्यक है। निम्नलिखित कारणों के कारण अच्छी व्यवस्था हमारी ज़िन्दगी के लिए और भी महत्त्वपूर्ण बन जाती है

  1. घर को खूबसूरत और खुशहाल बनाना-अच्छी गृह व्यवस्था से ही घर अधिक सुन्दर, सजीला और खुशहाल हो सकता है। यदि व्यवस्था अच्छी हो तो कम साधनों से भी परिवार खुशी और उन्नति प्राप्त कर सकता है।
  2. स्वास्थ्य सम्भाल-अच्छी गृह व्यवस्था में गृह परिवार के सदस्यों का स्वास्थ्य अच्छा रह सकता है। सन्तुलित खुराक, सफ़ाई आदि एक अच्छी व्यवस्था वाले घर में प्राप्त होती है।
  3. अच्छी गृह व्यवस्था में ही बच्चों का उचित मानसिक विकास होता है तथा वे अपनी पढ़ाई और कैरियर में उच्च मंज़िलें प्राप्त करते हैं।

इनके अतिरिक्त परिवार को आनन्दमयी बनाना, साधनों का सही प्रयोग और आपसी प्यार एक अच्छी व्यवस्था में ही सम्भव हो सकता है।

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निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 18.
अच्छे गृह प्रबन्धक में क्या गुण होने ज़रूरी हैं?
उत्तर-
अच्छा गृह प्रबन्ध गृह प्रबन्धक की योग्यता पर ही निर्भर करता है। गृह प्रबन्धक के गुण और अवगुण किसी घर को स्वर्ग बना सकते हैं और किसी को नरक। घर को सामाजिक गुणों का झूला कहा जाता है। प्रत्येक इन्सान का प्रारम्भिक व्यक्तित्व घर में ही बनता है। इसलिए घर का वातावरण बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। बढ़िया पारिवारिक व्यवस्था तथा वातावरण पैदा करने के लिए गृह प्रबन्धक में निम्नलिखित योग्यताओं या गुणों का होना आवश्यक है

  1. मानसिक गुण (Psychological Qualities)
  2. शारीरिक गुण (Physical Qualities)
  3. सामाजिक और नैतिक गुण (Social and Moral Qualities)
  4. ग्रहणशीलता (Adaptability)
  5. काम में कुशलता (Efficient Worker)
  6. तकनीकी गुण (Technical Qualities)
  7. बाह्य गुण (Outdoor Qualities)

1. मानसिक गुण (Psychological Qualities)

  1. बुद्धि (Intelligence) — सफल गृहिणी के लिए बुद्धि एक आवश्यक विशेषता है। किसी मुश्किल को अच्छी तरह समझने, पूरे हालात का जायजा लेने, पहले अनुभवों से हुई जानकारी को नई समस्या के समाधान के लिए प्रयोग कर उद्देश्यों की पूर्ति करना गृहिणी की बुद्धिमत्ता पर आधारित है।
  2. ज्ञान (Knowledge) — ज्ञान भी एक साधन है। यह साधन घर को अच्छी तरह चलाने में सहायक होता है। इसके अतिरिक्त यह हमें अन्य मानवीय और भौतिक साधनों के बारे में परिचित कराता है जोकि घरेलू उद्देश्यों की प्राप्ति में सहायक होता है।
  3. उत्साह (Enthusiasm) — उत्साह बढ़िया शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य का सूचक है। एक सफल गृह प्रबन्धक के लिए यह गुण बहुत आवश्यक है। यदि गृहिणी घर के काम के लिए उत्साहित होगी तो परिवार के अन्य सदस्यों पर भी अच्छा प्रभाव होता है। वे भी काम में रुचि लेते हैं। उत्साह होने से प्रत्येक काम आसान लगता है और ज्ञान-इन्द्रियों की हरकत तेज़ हो जाती है।
  4. मानवीय स्वभाव को समझने का सामर्थ्य (Ability to Understand Human Nature) — परिवार के सभी सदस्यों के स्वभाव भिन्न-भिन्न होते हैं। इस कारण ही उनकी रुचियां और आवश्यकताएं भी भिन्न-भिन्न होती हैं। गृह प्रबन्धक को इन सबका ध्यान रखना चाहिए। परिवार के सदस्यों की रुचियों, योग्यताओं और आवश्यकताओं की जानकारी, योजना बनाने और काम के विभाजन में सहायक होती है।
  5. कल्पना शक्ति (Imagination) — गृह प्रबन्ध सम्बन्धी आयोजन के लिए रचनात्मक कल्पना शक्ति का होना आवश्यक गुण है। कल्पना शक्ति से गृहिणी योजना बनाते समय ही आने वाली समस्याओं को देख सकती है और उनका हल ढूंढने में सफल हो सकती है।
  6. निर्णय लेने की शक्ति (Decision Making Power) — गृह प्रबन्ध में निर्णय लेने का बहुत महत्त्व है। ठीक निर्णय लेना प्रबन्धक की दूर दृष्टि पर निर्भर करता है और इसके लिए अच्छे तजुर्बे की भी आवश्यकता होती है। इसलिए. गृह प्रबन्धक में निर्णय लेने की शक्ति एक आवश्यक विशेषता है।

2. शारीरिक गुण (Physical Qualities) — गृहिणी के लिए शारीरिक गुणों का होना भी बहुत आवश्यक है। यदि वह निरोग और तन्दुरुस्त होगी तो अपने घर के कार्यों और उद्देश्यों को और परिवार के सदस्यों की इच्छाओं की प्राप्ति उत्साहपूर्ण कर सकती है। तन्दुरुस्ती उसको काम के लिए उत्साहित करती है। बीमार और आलसी गृहिणी अपने परिवार के उद्देश्यों की प्राप्ति में पूर्ण सफल नहीं हो सकती।

3. सामाजिक और नैतिक गुण (Social and Moral Qualities) — परिवार समाज की प्रारम्भिक इकाई है और इन्सान समाज में रहना, सामाजिक और नैतिक गुण परिवार में से ही ग्रहण करता है।

  1. दृढ़ता (Firmness) — जिस गृहिणी में यह गुण होता है वह अपने उद्देश्यों और इच्छाओं की प्राप्ति के लिए हमेशा यत्नशील रहती है। वह कठिनाइयों का बहुत हौसले और बहादुरी से सामना करने के योग्य होती है। इस गुण के परिणामस्वरूप ही वह अपने लिए गए निर्णयों की प्राप्ति के लिए हमेशा यत्नशील रहती है और सफलता प्राप्त करती है।
  2. सहयोग (Co-operation) — गृह प्रबन्धक के इस गुण से घर परिवार खुशहाल रहता है। सहयोग भाव एक दूसरे के काम करने, लेन-देन से आपसी निकटता बढ़ती है और गृहिणी का बोझ भी कम हो जाता है। सहयोग के कारण ही बहुत-से काम पूरे हो जाते हैं।
  3. प्यार, हमदर्दी और स्वःनियन्त्रण की भावना (Love, Sympathy and Self-Control) — प्यार, हमदर्दी से ही गृहिणी दूसरों का सहयोग प्राप्त कर सकती है और बच्चों के लिए आदर्श बन सकती है। एक समझदार गृहिणी में बातचीत करने के ढंग, बच्चों या छोटों को प्यार, बड़ों का सत्कार और दुःखियों से हमदर्दी होनी चाहिए। वह अपने गुणों के कारण ही परिवार की सुख-शान्ति बनाए रख सकती है।
  4. सहनशक्ति और धैर्य (Tolerance and Patience) — गृहिणी के मानवीय स्वभाव को समझते हुए सहनशक्ति और धैर्य से काम लेना चाहिए ताकि परिवार में आपसी मतभेद और तनाव पैदा न हो। परिवार में कोई दुःखदायक घटना घटने पर धीरज और हौसला रखकर शेष सदस्यों को भी धैर्य देना चाहिए ताकि परिवार संकटमयी समय से आसानी से निकल सके।

4. ग्रहणशीलता (Adaptability) — ग्रहणशीलता के गुण से गृहिणी दूसरों के ज्ञान और तजुर्बे से लाभ उठाकर अपने घर-प्रबन्ध के काम को और भी बढ़िया ढंग से चला सकती है। वैसे भी समाज परिवर्तनशील है, इसलिए गृहिणी की योजना इतनी लचकदार होनी चाहिए कि वह बदलती परिस्थितियों के अनुसार अपनी योजना और अपने आपको ढाल सके। परिस्थितियां और मानवीय आवश्यकताएं रोजाना परिवर्तित होती रहती हैं। यदि वह बदलती आवश्यकताओं और परिस्थितियों के अनुसार अपने आप को ढाल सके तभी वह आगे बढ़ सकती है।

5. काम में कुशलता (Efficient Worker) — घर का बढ़िया गृह प्रबन्ध, गृहिणी की काम में कुशलता पर निर्भर करता है। इससे काम कम समय में, कम थकावट से और अच्छे ढंग से करके खुशी मिलती है। पर यह सब तभी हो सकता है यदि गृहिणी में सिलाई, कढ़ाई, खाना बनाने, परोसने और घर की सजावट आदि के गुण होंगे।

6. तकनीकी गुण (Technical Qualities) — गृहिणी के तकनीकी ज्ञान से न सिर्फ धन की बचत होती है बल्कि रुकावट दूर करके समय भी बचा लिया जाता है। गृहिणी में छोटी-छोटी वस्तुओं की तकनीकी जानकारी होना बहुत आवश्यक है जैसे फ्यूज़ लगाना, गैस का चूल्हा ठीक करना, बिजली के प्लग की मुरम्मत और छोटे-छोटे उपकरणों की मुरम्मत आदि का ज्ञान होना आवश्यक है।

7. बाह्य गुण (Outdoor Qualities) — आज के युग में विशेषकर जब गृह प्रबन्धक घर की चार-दीवारी तक ही सीमित नहीं रह गया इसलिए इसके गुणों का महत्त्व और भी बढ़ जाता है। इसलिए उसको बैंक, डाकघर, बीमा आदि सेवाओं के बारे में जानकारी होनी चाहिए और साइकल, स्कूटर और कार चलानी आनी चाहिए। इसके साथ-साथ यातायात के साधनों और खरीदारी करने के गुणों का ज्ञान होना चाहिए ताकि आवश्यकता पड़ने पर उसको किसी पर निर्भर न करना पड़े और अपने गुणों के कारण परिवार को उन्नति के रास्ते पर लेकर खुशहाल बना सके।

प्रश्न 19.
अच्छी गृह व्यवस्था के लिए अच्छे प्रबन्धक की आवश्यकता है। क्या आप इस तथ्य से सहमत हैं? यदि हो तो क्यों?
अथवा
गृह व्यवस्था से क्या अभिप्राय है? इसके महत्त्व के बारे में विस्तारपूर्वक लिखें।
उत्तर-
गृह प्रबन्ध का महत्त्व (Importance of Home Management) — प्रबन्ध प्रत्येक घर में होता है यद्यपि अमीर हो या ग़रीब। पर इसकी गुणवत्ता में ही अन्तर होता है। पारिवारिक खुशहाली और सुख-शान्ति समूचे गृह प्रबन्ध का निष्कर्ष है। निम्नलिखित महत्त्व के कारण यह परिवार के लिए लाभदायक है

  1. रहन-सहन का स्तर ऊंचा होता है । (Rise in standard of living.)
  2. पारिवारिक कार्यों को वैज्ञानिक ढंगों से किया जा सकता है। (Use of scientific methods and appliances for working.)
  3. कुशलता का विकास होता है। (Development of skill.)
  4. सीमित साधनों से बढ़िया जीवन गुज़ारा जा सकता है। (More satisfaction with limited resources.)
  5. जीवन खुशहाल और सुखमयी होता है। (Life becomes pleasant and comfortable.)
  6. बच्चों के लिए शिक्षा और उनका योगदान (Children learn by contributing their share and responsibility.)

रहन-सहन का स्तर ऊंचा होता है — जीवन का स्तर तभी ऊंचा उठ सकता है, यादि सीमित साधनों के योग्य प्रयोग से अधिक-से-अधिक लाभ उठाया जाए और एक अच्छी गृहिणी प्रबन्ध द्वारा अपनी मुख्य आवश्यकताओं और उद्देश्यों को न पहल देकर बच्चों की शिक्षा, स्वास्थ्य, समय, व्यक्तित्व को पहल देती है और हमेशा परिवार के उद्देश्यों के लिए यत्नशील रहती है। ऐसे परिवार के सदस्य सन्तुष्ट और अच्छे व्यक्तित्व के मालिक होते हैं और वे समाज में अपनी जगह बना लेते हैं। इन सब से ही परिवार का स्तर ऊँचा होता है।

2. पारिवारिक कार्यों को वैज्ञानिक ढंगों से किया जा सकता है — आधुनिक युग की गृहिणी सिर्फ घर तक ही सीमित नहीं रहती बल्कि वह घरों से बाहर भी काम करती है। दोनों ज़िम्मेदारियों को अच्छी तरह निभाने के लिए उसको अधिक समय और शक्ति की आवश्यकता है। वह घरेलू कामों को मशीनी उपकरणों से करने से समय और शक्ति दोनों ही बचा लेती है जैसे मिक्सी, प्रेशर कुक्कर, फ्रिज, कपड़े धोने वाली मशीन और बर्तन साफ़ करने वाली मशीन आदि।

3. कुशलता का विकास होता है — गृह प्रबन्ध करते समय साधनों का उचित प्रयोग गृहिणी की आन्तरिक कला और रुचि का विकास करती है। जैसे कि घर को कम-से-कम व्यय करके कैसे सजाया जाए कि घर की सुन्दरता भी बढ़े और अधिकसे-अधिक सन्तुष्टि भी मिले।

4. सीमित साधनों से बढ़िया जीवन गुजारा जा सकता है — प्रत्येक परिवार में ही आय और साधन सीमित होते हैं आवश्यकताएं असीमित। परिवार की खुशी बनाये रखने के लिए गृह प्रबन्ध द्वारा असीमित आवश्यकताओं को सीमित आय में पूरा करने के लिए गृहिणी को घर के खर्चे का बजट बनाकर और आवश्यकताओं को महत्ता के अनुसार क्रमानुसार कर लेना चाहिए। सबसे ज़रूरी और मुख्य आवश्यकताओं को पहले पूरा करके फिर अगली आवश्यकताओं की ओर ध्यान दिया जा सकता है। इससे कम-से-कम साधनों से अधिक-से-अधिक सन्तुष्टि प्राप्त की जा सकती है।

5. जीवन खुशहाल और सुखमयीं होता है — गृह प्रबन्ध का मुख्य उद्देश्य खुशहाल परिवार का सृजन है। अच्छे प्रबन्ध से परिवार के प्रत्येक सदस्य की आवश्यकताओं, रुचियों और सुविधाओं का ध्यान रखा जाता है; जिससे परिवार खुश और सन्तुष्ट रहता है। इसके अतिरिक्त गृह प्रबन्ध से

  1. पारिवारिक सदस्यों को सन्तुष्टि और मानसिक सन्तुष्टि मिलती है जो एक अच्छे व्यक्तित्व के लिए बहुत आवश्यक है।
  2. परिवार फिजूल खर्ची से बच जाता है क्योंकि यदि बजट बनाकर खर्च किया जाए तो फिजुल खर्ची की सम्भावना ही नहीं रहती।
  3. घरेलू उलझनें हल हो जाती हैं और इससे
  4. परिवार के आराम और मनोरंजन को भी आँखों से ‘ओझल नहीं किया जाता।

6. बच्चों के लिए शिक्षा और उनका योगदान-घर के वातावरण की बच्चे के जीवन पर अमिट छाप रहती है। एक खुशहाल परिवार के बच्चे हमेशा सन्तुष्ट होते हैं। अपने मां-बाप के अच्छे घरेलू प्रबन्ध से प्रभावित होकर बच्चे भी अच्छी शिक्षा लेते हैं और अपनी ज़िन्दगी में सफल होते हैं। जिन परिवारों में सभी सदस्य इकट्ठे होकर अपने उद्देश्य के लिए योजनाबन्दी करते हैं और प्रत्येक अपनी-अपनी योग्यता और ज़िम्मेदारी से सहयोग देता है तो उद्देश्यों की पूर्ति बड़ी आसानी से हो जाती है और परिवार का प्रत्येक सदस्य सन्तुष्ट होता है। भाव गृह प्रबन्ध खुश और सुखी परिवार का आधार है।

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प्रश्न 20.
अच्छा गृह प्रबन्धक बनने के लिए अपने में क्या सुधार लाये जा सकते हैं ?
उत्तर-
गृह प्रबन्धक, गृह व्यवस्था का धुरा होता है। घर की पूरी व्यवस्था उसके इर्द-गिर्द घूमती है। पारिवारिक लक्ष्यों की पूर्ति और घर की खुशहाली, सुख-शान्ति उसकी योग्यता पर ही निर्भर करती है। ग्रहणशीलता अर्थात् वातावरण के अनुसार अपने आपको ढालना, घर की आवश्यकताओं के अनुसार अपनी कमज़ोरियों को दूर करना अच्छे गृह प्रबन्धक की निशानियां हैं। अच्छे गृह प्रबन्धक को अपने आप में निम्नलिखित सुधार लाने चाहिएं —

1. ज्ञान को बढ़ाना-ज्ञान एक बहुत ही अनमोल मानवीय स्रोत है और ज्ञान प्राप्त करने से ही व्यक्ति समझदार और योग्य बनता है। गृह प्रबन्ध के मसले में ज्ञान का बहुत महत्त्व है। एक अच्छी गृहिणी, घर से सम्बन्धित मामलों में हर समय जानकारी प्राप्त करने के लिए तैयार रहती है। आजकल विज्ञान का युग है और समाज में बहुत तेजी से परिवर्तन आ रहे हैं।
कपड़े, भोजन, स्वास्थ्य, वैज्ञानिक उपकरणों के बारे में ज्ञान होना गृह प्रबन्धक की आवश्यकता है। इसलिए अच्छे गृह प्रबन्धक को अपने ज्ञान का स्तर बढ़ाना चाहिए।

2. कार्य में कुशलता प्राप्त करनी-कार्य में कुशलता एक सफल गृहिणी का महत्त्वपूर्ण गुण है। घर के कार्य ऐसे होते हैं जिनमें कुशलता प्राप्त करने के लिए गृहिणी को लगातार मेहनत करने की आवश्यकता पड़ती है। जैसे पौष्टिक और स्वादिष्ट खाना प्रत्येक घर की आवश्यकता है। समझदार गृहिणी अपनी कोशिश से बढ़िया खाना बनाना सीख सकती है। इस तरह घर के अन्य कार्य जैसे कपड़े सिलना, वैज्ञानिक उपकरणों का सही प्रयोग, घर की सफ़ाई आदि में प्रत्येक गृहिणी को कुशलता प्राप्त करनी चाहिए।

3. सामाजिक और नैतिक गुणों का विकास करना-परिवार समाज की एक प्रारम्भिक इकाई है। कोई भी परिवार समाज से अलग नहीं रह सकता। इसलिए समाज में परिवार का एक इज्जत योग्य स्थान बनाने के लिए गृहिणी को सामाजिक गुणों का विकास करना चाहिए। आस-पड़ोस से बढ़िया सम्बन्ध रखने, सामाजिक जिम्मेदारियों को अच्छी तरह निभाना, दूसरे लोगों से सहयोग करना, मुसीबत के समय किसी के काम आना, ग़रीबों से हमदर्दी रखना आदि गुण विकसित करके एक गृहिणी समाज में परिवार की इज्जत बढ़ा सकती है।

4. परिवार के सदस्यों की मानसिक बनावट को समझना-परिवार के सदस्यों का स्वभाव और मानसिकता भिन्न-भिन्न होती है जो गृहिणी हमारे परिवार के सदस्यों से एक तरह व्यवहार करती है, उसको सफल गृहिणी नहीं कहा जा सकता। इसलिए एक सफल गृहिणी को परिवार के सभी सदस्यों की मानसिकता को ध्यान में रखकर ही उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति के यत्न करने चाहिए ताकि परिवार के सभी सदस्य खुश रह सकें।

5. सहनशीलता और धैर्य-सहनशीलता और धैर्य ऐसे गुण हैं जो प्रत्येक सफल गृह प्रबन्धक में होने चाहिएं। यदि गृहिणी में इनकी कमी है तो उस घर में कभी सुख शान्ति नहीं रह सकती। गृहिणी परिवार का एक धुरा होता है। सारा परिवार अपनी आवश्यकताओं के लिए उसकी ओर देखता है और गृहिणी को प्रत्येक सदस्य की बात धैर्य से सुनकर उसका समाधान ढूंढना चाहिए। इससे घर का वातावरण ठीक रहता है। यदि गृहिणी में ही सहनशीलता की कमी है तो घर में अशान्ति और लड़ाई झगड़े होंगे और घर की बदनामी होगी और परिवार अपने उद्देश्य पूरे नहीं कर सकेगा। ऐसे वातावरण में बच्चों के व्यक्तित्व का विकास बढ़िया नहीं होगा इसलिए एक अच्छी गृहिणी को सहनशीलता और धैर्य रखने के गुण विकसित करने चाहिएं।

6. तकनीकी गुणों का विकास-आजकल विज्ञान का युग है। एक सफल प्रबन्धक के लिए घर में प्रयोग आने वाले उपकरणों की सही प्रयोग की जानकारी बहुत आवश्यक है और यह जानकारी इन उपकरणों के साथ दिए गए निर्देशों में से आसानी से प्राप्त की जा सकती है। इस जानकारी से इन उपकरणों को घर के प्रबन्ध में आसानी से प्रयोग कर सकती है और अपनी शक्ति और समय बचा सकती है।
आजकल की तेज़ रफ्तार ज़िन्दगी में प्रत्येक गृहिणी को कार या स्कूटर की ड्राइविंग भी अवश्य सीखनी चाहिए। इससे उसमें घर की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए दूसरों पर निर्भरता कम होगी। इसके अतिरिक्त बच्चों को पढ़ाने के लिए हर जानकारी प्राप्त करने के लिए कम्प्यूटर और इन्टरनेट के बारे में सीखना चाहिए।

Home Science Guide for Class 10 PSEB गृह व्यवस्था व अच्छा प्रबन्धक Important Questions and Answers

अति लघु उत्तराय प्रश्न

प्रश्न 1.
छोटे समय के लक्ष्य की उदाहरण दें।
उत्तर-
बच्चों को स्कूल भेजना।

प्रश्न 2.
दीर्घ समय के लक्ष्य की उदाहरण दें।
अथवा
लम्बी अवधि के टीचे का उदाहरण दें।
उत्तर-
मकान बनाना।

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प्रश्न 3.
मानवीय साधनों की दो उदाहरण दें।
उत्तर-
कुशलता, स्वास्थ्य, योग्यता आदि।

प्रश्न 4.
शक्ति कैसा साधन है?
उत्तर-
मानवीय साधन।

प्रश्न 5.
अच्छे गृह प्रबन्धक में काम करने का उत्साह क्यों आवश्यक है?
उत्तर-
इससे परिवार के अन्य सदस्य भी काम करने के लिए उत्साहित होते हैं।

प्रश्न 6.
लक्ष्यों को किस्म के अनुसार कितने भागों में बांटा जा सकता है?
उत्तर-
दो भागों में व्यक्तिगत लक्ष्य तथा पारिवारिक लक्ष्य।

प्रश्न 7.
गृह प्रबन्धक के मानसिक गुण बताओ।
उत्तर-
बुद्धि, ज्ञान, उत्साह, निर्णय लेने की शक्ति, कल्पना शक्ति आदि।

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प्रश्न 8.
गृह प्रबन्धक के सामाजिक तथा नैतिक गुण बताओ।
उत्तर-
दृढ़ता, सहयोग, प्यार, हमदर्दी, स्वः नियन्त्रण की भावना आदि।

प्रश्न 9.
अच्छे गृह प्रबन्धक के दो गुण बताओ।
उत्तर-
अच्छा खाना पकाना, सोचने तथा निर्णय लेने की शक्ति।

प्रश्न 10.
समय, पैसा तथा घर का सामान कैसा साधन है?
अथवा
समय, पैसा तथा जायदाद कैसे साधन हैं?
उत्तर-
भौतिक साधन।

प्रश्न 11.
कुशलता तथा योग्यता कैसे साधन हैं?
उत्तर-
मानवीय साधन।

PSEB 10th Class Home Science Solutions Chapter 1 गृह व्यवस्था व अच्छा प्रबन्धक

प्रश्न 12.
मकान बनाना किस अरसे का लक्ष्य है?
उत्तर-
लम्बे अरसे का।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
गृह व्यवस्था के साथ गृहिणी समय का ठीक उपयोग कैसे करती है?
उत्तर-
अच्छी गृहिणी घर के सारे कार्य को योजनाबद्ध ढंग से करती है। वह कार्य करने के लिए समय सारिणी निश्चित करती हैं तथा घर के सभी सदस्यों को कार्य इसी सारिणी के अनुसार करने के लिए प्रेरित करती है। घर के भिन्न-भिन्न कार्य सदस्यों में बाँट देती है। इस प्रकार सभी कार्य समयानुसार निपट जाते हैं तथा समय भी बच जाता है।

प्रश्न 2.
अच्छे प्रबन्धक के कोई दो गुणों के बारे में बताएं।
उत्तर-
देखें उपरोक्त प्रश्नों में।

प्रश्न 3.
कोई दो विद्वानों द्वारा दी गई गृह विज्ञान की परिभाषाएं दें।
उत्तर-

  1. पी० निक्कल तथा जे० एम० डोरसी के अनुसार, गृह प्रबन्ध परिवार के उद्देश्यों को प्राप्त करने के इरादे से परिवार में उपलब्ध साधनों को योजनाबद्ध तथा संगठित करके अमल में लाने का नाम है।
  2. गुड्ड जॉनसन के अनुसार, गृह व्यवस्था करना सभी देशों में एक आम व्यवसाय (कार्य) है तथा इस व्यवसाय में अन्य व्यवसायों से अधिक लोग कार्यरत हैं। इसमें धन का प्रयोग भी अधिक होता है तथा यह लोगों के स्वास्थ्य की दृष्टि से सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है।

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प्रश्न 4.
गृह व्यवस्था व्यक्तित्व का विकास किस प्रकार करती है?
उत्तर-
यदि गृह व्यवस्था अच्छी हो तो मनुष्य घर में सुख, आनन्द की प्राप्ति कर लेता है तथा सन्तुलित रहता है। ऐसे आनन्दमयी तथा सुखी वातावरण का प्रभाव बच्चों पर भी अच्छा पड़ता है तथा उसका सर्वपक्षीय विकास होता है। घर में ही बच्चों में कार्य करने सम्बन्धी लगन लगती है। बहुत से महान् कलाकारों को यह वरदान घर से ही प्राप्त हुआ है।

प्रश्न 5.
अच्छे प्रबन्धक के तीन गुणों का वर्णन करें।
उत्तर-
देखें उपरोक्त प्रश्न।

प्रश्न 6.
अच्छे गृह प्रबन्धक में निर्णय लेने की शक्ति और सहनशीलता का होना क्यों जरूरी है?
उत्तर-
देखें उपरोक्त प्रश्नों में।

PSEB 10th Class Home Science Solutions Chapter 1 गृह व्यवस्था व अच्छा प्रबन्धक

प्रश्न 7.
घर एक निजी स्वर्ग का स्थान है क्यों?
उत्तर-
घर का प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में सबसे महत्त्वपूर्ण स्थान होता है। घर में न केवल मनुष्य की भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति होती है, बल्कि उसकी भावनात्मक आवश्यकताएं भी पूर्ण होती हैं। घर का प्रत्येक मनुष्य की खुशियों तथा उसके व्यक्तित्व . के विकास में सबसे अधिक योगदान होता है। इसलिये घर को निजी स्वर्ग भी कहा जाता है।

प्रश्न 8.
अच्छे प्रबन्धक के लिए अर्थशास्त्र का ज्ञान क्यों ज़रूरी है?
उत्तर-
अच्छे प्रबन्धक को बजट बनाना तथा उसके अनुसार कार्य करना आना चाहिए। उपभोक्तावाद के इस युग में कौन-सी वस्तुओं को अधिक खरीद कर लाभ हो सकता है तथा कुछ वस्तुओं को आवश्यकता के अनुसार खरीदना चाहिए। कुछ पैसे भविष्य के लिए बचा कर रखने चाहिए। आमदनी तथा खर्च में सामंजस्य होना चाहिए। यह तभी सम्भव है यदि गृह प्रबन्धक को अर्थशास्त्र का ज्ञान होगा।

प्रश्न 9.
अच्छी गृह व्यवस्था के लिए समय और शक्ति की व्यवस्था क्यों ज़रूरी है?
उत्तर-
देखें उपरोक्त प्रश्नों में।

प्रश्न 10.
परिवार के साधनों को कितने भागों में बांटा जा सकता है? विस्तार में लिखो।
उत्तर-
देखें उपरोक्त प्रश्नों में।

PSEB 10th Class Home Science Solutions Chapter 1 गृह व्यवस्था व अच्छा प्रबन्धक

प्रश्न 11.
गृह प्रबन्धक को अच्छा खरीददार होना क्यों ज़रूरी है?
उत्तर-
गृह प्रबन्धक को अच्छा खरीददार होना चाहिए। उसको घर के सदस्यों की आवश्यकताओं का पता होना चाहिए तथा ऐसा सामान खरीदना चाहिए जो सभी के लिए लाभदायक हो। बाज़ार में सर्वे करके बढ़िया तथा सस्ता सामान खरीदना चाहिए। लम्बे समय तक स्टोर की जाने वाली वस्तुओं को, जब वे सस्ती हों, अधिक मात्रा में खरीद लेना चाहिए। केवल वही वस्तुओं को खरीदना चाहिए जिनकी घर में आवश्यकता हो तथा लाभकारी हों।

प्रश्न 12.
अच्छे गृह प्रबन्धक में काम करने का उत्साह तथा होशियारी का होना क्यों ज़रूरी है?
उत्तर-
देखें उपरोक्त प्रश्नों में।

प्रश्न 13.
लक्ष्यों से क्या भाव है?
उत्तर-
देखें उपरोक्त प्रश्न 3 (2-4 वाक्य वाला)।

प्रश्न 14.
गृह प्रबन्धक की क्या महत्ता है?
उत्तर-
देखें उपरोक्त प्रश्नों में।

PSEB 10th Class Home Science Solutions Chapter 1 गृह व्यवस्था व अच्छा प्रबन्धक

प्रश्न 15.
समय के अनुसार लक्ष्य कैसे बांटा जा सकता है?
उत्तर-
उदाहरण सहित बताओ।

  1. छोटे समय के लक्ष्य (Short Term Goals) जैसे बच्चों को स्कूल भेजना, काम पर जाना और घर के अन्य रोज़ाना कार्य।
  2. दीर्घ समय के लक्ष्य (Long Term Goals) जैसे मकान बनाना, बच्चों के विवाह करने आदि।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
अच्छी गृह व्यवस्था का महत्त्व विस्तारपूर्वक बताएं।
उत्तर-
अच्छी गृह व्यवस्था का महत्त्व इस प्रकार है

  1. घर को सुन्दर तथा खुशहाल बनाना-अच्छी गृह व्यवस्था से घर सुन्दर, खुशहाल, सजीला बन जाता है। बेशक साधन सीमित हों तो भी घर को सुन्दर, बढ़िया
    तथा सुखी बनाया जा सकता है। प्रत्येक सदस्य अपनी बुद्धि विवेक के अनुसार घर
    की खुशहाली में योगदान डालता है।
  2. पारिवारिक स्तर को ऊँचा उठाना-गृह व्यवस्था अच्छी हो तो पारिवारिक स्तर ऊँचा उठाने में सहायता मिलती है। घर में ही मनुष्य को अपनी सफलता के लिए सीढ़ी का पहला सोपान प्राप्त होता है जिस पर चढ़ कर वह सफलता प्राप्त कर सकता है।
  3. व्यक्तित्व का विकास-यदि घर की व्यवस्था अच्छी हो तो मनुष्य घर में सुख, आनन्द की प्राप्ति कर लेता है तथा सन्तुलित रहता है। ऐसे आनन्ददायक तथा सुखी वातावरण का प्रभाव बच्चों पर पड़ता है तथा उसका सर्वपक्षीय विकास होता है। घर से ही बच्चों में किसी काम को करने की लगन लगती है। बहुत से महान् कलाकारों को यह वरदान घर से ही प्राप्त हुआ है।
  4. समय का उचित प्रयोग-समय एक ऐसा सीमित साधन है जिसे बचाया नहीं जा सकता। इसलिए समय का उचित प्रयोग करके कार्य को सरल बनाया जा सकता है। गृह व्यवस्था अच्छे ढंग से की जाए तो घर के सभी कार्य समय पर निपट जाते हैं। अच्छी गृहिणी परिवार के सदस्यों को एक समय सारणी में ढाल लेती है तथा घर के काम परिवार के सदस्यों में बांट देती है। प्रत्येक सदस्य अपनी सामर्थ्य अनुसार काम करता है तथा घर में खुशी बनी रहती है।
  5. मानसिक सन्तोष-जब गृह व्यवस्था अच्छी हो तो मानसिक सन्तोष की प्राप्ति होती है। घर के लक्ष्य बहुत ऊँचे न हों तथा गृह व्यवस्था अच्छी हो तो लक्ष्यों की प्राप्ति सरलता से हो जाती है। इस प्रकार मानसिक सन्तुष्टि मिलती है।

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प्रश्न 2.
अच्छे प्रबन्धक के गुणों का वर्णन करें।
उत्तर-
देखें उपरोक्त प्रश्नों में।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

I. रिक्त स्थान भरें

  1. ………. ही गृह विज्ञान का आधार है।
  2. मकान बनाना ………………….. समय का लक्ष्य है।
  3. शक्ति एक ………………… साधन है।
  4. बच्चे को डॉक्टर अथवा इन्जीनियर बनाना …………………. समय का लक्ष्य
  5. समय, पैसा तथा जायदाद (सम्पत्ति) …………………. साधन हैं।
  6. योग्यता, रुचि तथा कुशलता ………………….. साधन हैं।
  7. बढ़िया गृह व्यवस्था से ………………….. संतोष की प्राप्ति होती है।
  8. प्यार, हमदर्दी, सहयोग आदि गृह प्रबन्धक के ……………… गुण हैं।

उत्तर-

  1. गृह व्यवस्थ,
  2. लम्बे,
  3. भौतिक,
  4. लम्बे,
  5. भौतिक,
  6. मानवी,
  7. मानसिक,
  8. सामाजिक तथा नैतिक।

II. ठीक गलत बताएं

  1. मकान बनाना लम्बे समय का लक्ष्य है।
  2. अच्छे गृह प्रबन्धक के लिए बजट बनाना कोई आवश्यक नहीं है।
  3. शक्ति मानवीय साधन है।
  4. पैसा मानवीय साधन है।
  5. बच्चों को स्कूल भेजना छोटे समय का लक्ष्य है।

उत्तर-

  1. ठीक,
  2. ग़लत,
  3. ठीक,
  4. ग़लत,
  5. ठीक।

III. बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
भौतिक साधन है
(क) पैसा
(ख) जायदाद
(ग) घर का सामान
(घ) सभी ठीक।
उत्तर-
(घ) सभी ठीक।

प्रश्न 2.
गृह प्रबन्धक के ‘मानसिक गुण हैं
(क) बुद्धि
(ख) उत्साह
(ग) ज्ञान
(घ) सभी ठीक।
उत्तर-
(घ) सभी ठीक।

PSEB 10th Class Home Science Solutions Chapter 1 गृह व्यवस्था व अच्छा प्रबन्धक

प्रश्न 3.
मानवीय साधन नहीं हैं
(क) शक्ति
(ख) ज्ञान
(ग) पैसा
(घ) कुशलता।
उत्तर-
(ग) पैसा

गृह व्यवस्था व अच्छा प्रबन्धक PSEB 10th Class Home Science Notes

  • गृह व्यवस्था पारिवारिक लक्ष्यों की प्राप्ति की कला है।
  • मकान भौतिक वस्तुओं से बनता है परन्तु घर भावनाओं से बनता है।
  • प्रत्येक परिवार के पास मानवीय और भौतिक साधन होते हैं।
  • समय एक ऐसा साधन है जो प्रत्येक के पास बराबर होता है।
  • अच्छे गृह प्रबन्धक में उत्साह और निर्णय लेने की योग्यता होनी चाहिए।
  • एक अच्छा प्रबन्धक वैज्ञानिक उपकरणों को घरेलू व्यवस्था के लिए सुलझे ढंग से प्रयोग करता है।
  • परिवार के सभी सदस्यों की आवश्यकताएं पूरी करनी गृह प्रबन्धक का फर्ज है।
  • अच्छा गृह प्रबन्धक पारिवारिक लक्ष्यों की पूर्ति इस ढंग से करता है कि कम-से-कम साधन खर्च हों।
  • अच्छा गृह प्रबन्धक परिवार के सदस्यों के स्वास्थ्य और बच्चों की शिक्षा प्रति विशेष ध्यान देता है।

घर की व्यवस्था एक कला है जिस द्वारा परिवार के सभी सदस्यों की मानसिक और भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति करके घर में एक खुशहाल वातावरण पैदा किया जाता है। परिवार की खुशहाली और खुशी, पारिवारिक साधनों के साथ-साथ गृह प्रबन्धक की योग्यता पर भी निर्भर करती है।

PSEB 10th Class SST Solutions History Chapter 4 गुरु अंगद देव जी से लेकर गुरु तेग बहादुर जी तक सिक्ख गुरुओं का योगदान

Punjab State Board PSEB 10th Class Social Science Book Solutions History Chapter 4 गुरु अंगद देव जी से लेकर गुरु तेग बहादुर जी तक सिक्ख गुरुओं का योगदान Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 10 Social Science History Chapter 4 गुरु अंगद देव जी से लेकर गुरु तेग बहादुर जी तक सिक्ख गुरुओं का योगदान

SST Guide for Class 10 PSEB गुरु अंगद देव जी से लेकर गुरु तेग बहादुर जी तक सिक्ख गुरुओं का योगदान Textbook Questions and Answers

(क) निम्नलिखित प्रत्येक प्रश्न का उत्तर एक शब्द/एक पंक्ति (1-15 शब्दों) में लिखो

प्रश्न 1.
भाई लहना किस गुरु का पहला नाम था?
उत्तर-
गुरु अंगद साहिब का।

प्रश्न 2.
लंगर प्रथा से क्या भाव है?
उत्तर-
लंगर प्रथा अथवा पंगत से भाव उस प्रथा से है जिसके अनुसार सभी जातियों के लोग बिना किसी भेदभाव के एक ही पंगत में इकट्ठे बैठकर खाना खाते थे।

प्रश्न 3.
गोइन्दवाल में बाऊली (जल स्त्रोत) की नींव किस गुरु ने रखी थी?
उत्तर-
गोइन्दवाल में बाऊली की नींव गुरु अंगद देव जी ने रखी थी।

PSEB 10th Class SST Solutions History Chapter 4 गुरु अंगद देव जी से लेकर गुरु तेग बहादुर जी तक सिक्ख गुरुओं का योगदान

प्रश्न 4.
अकबर कौन-से गुरु को मिलने गोइन्दवाल आया?
उत्तर-
अकबर गुरु अमरदास जी से मिलने गोइन्दवाल आया था।

प्रश्न 5.
मसन्द प्रथा के उद्देश्य लिखिए।
उत्तर-
मसन्द प्रथा के मुख्य उद्देश्य थे-सिक्ख धर्म के विकास कार्यों के लिए धन एकत्रित करना तथा सिक्खों को संगठित करना।

प्रश्न 6.
सिक्खों के चौथे गुरु कौन थे तथा उन्होंने कौन-सा शहर बसाया?
उत्तर-
गुरु रामदास जी सिक्खों के चौथे गुरु थे जिन्होंने रामदासपुर (अमृतसर) नामक नगर बसाया।

PSEB 10th Class SST Solutions History Chapter 4 गुरु अंगद देव जी से लेकर गुरु तेग बहादुर जी तक सिक्ख गुरुओं का योगदान

प्रश्न 7.
हरिमंदिर साहिब की नींव कब तथा किसने रखी?
उत्तर-
हरिमंदिर साहिब की नींव 1589 ई० में उस समय के प्रसिद्ध सूफ़ी सन्त मियां मीर ने रखी।

प्रश्न 8.
हरिमंदिर साहिब के चारों तरफ दरवाज़े रखने से क्या भाव है?
उत्तर-
हरिमंदिर साहिब के चारों तरफ दरवाज़े रखने से भाव यह है कि यह पवित्र स्थान सभी वर्गों, सभी जातियों और सभी धर्मों के लिए समान रूप से खुला है।

प्रश्न 9.
गुरु अर्जन देव जी द्वारा स्थापित किए गए चार शहरों के नाम लिखिए।
उत्तर-
तरनतारन, करतारपुर, हरगोबिन्दपुर तथा छहरटा।

PSEB 10th Class SST Solutions History Chapter 4 गुरु अंगद देव जी से लेकर गुरु तेग बहादुर जी तक सिक्ख गुरुओं का योगदान

प्रश्न 10.
‘दसवन्ध’ से क्या भाव है?
उत्तर-
‘दसवन्ध’ से भाव यह है कि प्रत्येक सिक्ख अपनी आय का दसवां भाग गुरु जी के नाम भेंट करे।

प्रश्न 11.
‘आदि ग्रन्थ’ का संकलन क्यों किया गया?
उत्तर-
आदि ग्रन्थ साहिब का संकलन सिक्खों को गुरु साहिबान की शुद्धतम तथा प्रामाणिक वाणी का ज्ञान करवाने के लिए किया गया।

प्रश्न 12.
लंगर प्रथा के बारे में आप क्या जानते हो?
उत्तर-
लंगर प्रथा का आरम्भ गुरु नानक साहिब ने सामाजिक भाईचारे के लिए किया।

PSEB 10th Class SST Solutions History Chapter 4 गुरु अंगद देव जी से लेकर गुरु तेग बहादुर जी तक सिक्ख गुरुओं का योगदान

प्रश्न 13.
गुरु अंगद देव जी संगत प्रथा के द्वारा सिक्खों को क्या उपदेश देते थे?
उत्तर-
गुरु अंगद देव जी संगत प्रथा के द्वारा सिक्खों को ऊंच-नीच के भेदभाव को भूल कर प्रेमपूर्वक रहने की शिक्षा देते थे।

प्रश्न 14.
गुरु अंगद देव जी की पंगत-प्रथा के बारे में जानकारी दो।
उत्तर-
गुरु अंगद देव जी ने गुरु नानक देव जी के द्वारा चलाई गई पंगत-प्रथा (लंगर) को आगे बढ़ाया जिसका खर्च सिक्खों की कार सेवा से चलता था।

प्रश्न 15.
गुरु अंगद देव जी द्वारा स्थापित अखाड़े के बारे में लिखिए।
उत्तर-
गुरु अंगद देव जी ने सिक्खों को शारीरिक रूप से मज़बूत बनाने के लिए खडूर साहिब के स्थान पर एक अखाड़ा बनवाया।

PSEB 10th Class SST Solutions History Chapter 4 गुरु अंगद देव जी से लेकर गुरु तेग बहादुर जी तक सिक्ख गुरुओं का योगदान

प्रश्न 16.
गोइन्दवाल के बारे में आप क्या जानते हो?
उत्तर-
गोइन्दवाल नामक नगर की स्थापना गुरु अंगद देव जी ने की जो सिक्खों का एक प्रसिद्ध धार्मिक केन्द्र बन गया।

प्रश्न 17.
गुरु अमरदास जी के जाति-पाति के बारे में विचार बताओ।
उत्तर-
गुरु अमरदास जी जातीय भेदभाव तथा छुआछूत के विरोधी थे।

प्रश्न 18.
सती प्रथा के बारे में गुरु अमरदास जी के क्या विचार थे?
उत्तर-
गुरु अमरदास जी ने सती प्रथा का खण्डन किया।

PSEB 10th Class SST Solutions History Chapter 4 गुरु अंगद देव जी से लेकर गुरु तेग बहादुर जी तक सिक्ख गुरुओं का योगदान

प्रश्न 19.
गुरु अमरदास जी ने जन्म, विवाह तथा मृत्यु सम्बन्धी क्या सुधार किए?
उत्तर-
गुरु अमरदास जी ने जन्म तथा विवाह के अवसर पर ‘आनन्द’ वाणी का पाठ करने की प्रथा चलाई और सिक्खों को आदेश दिया कि वे मृत्यु के समय ईश्वर का स्तुति तथा भक्ति के शब्दों का गायन करें।

प्रश्न 20.
रामदासपुर या अमृतसर की स्थापना की महत्ता बताइए।
उत्तर-
रामदासपुर की स्थापना से सिक्खों को एक अलग तीर्थ-स्थान तथा महत्त्वपूर्ण व्यापारिक केन्द्र मिल गया।

प्रश्न 21.
लाहौर की बाऊली (जल स्त्रोत) के बारे में जानकारी दीजिए।
उत्तर-
लाहौर के डब्बी बाज़ार में बाऊली का निर्माण गुरु अर्जन देव जी ने करवाया।

PSEB 10th Class SST Solutions History Chapter 4 गुरु अंगद देव जी से लेकर गुरु तेग बहादुर जी तक सिक्ख गुरुओं का योगदान

प्रश्न 22.
गुरु अर्जन देव जी को आदि ग्रन्थ साहिब की स्थापना की आवश्यकता क्यों पड़ी?
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी सिक्खों को एक पवित्र धार्मिक ग्रन्थ देना चाहते थे, ताकि वे गुरु साहिबान की शुद्ध वाणी को पढ़ तथा सुन सकें।

प्रश्न 23.
गुरु अर्जन देव जी के समय घोड़ों के व्यापार के लाभ बताएं।
उत्तर-
इस व्यापार से सिक्ख धनी बने और गुरु साहिब के खज़ाने में भी धन की वृद्धि हुई।

प्रश्न 24.
गुरु अर्जन देव जी के समाज सुधार के कोई दो काम लिखो।
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी ने विधवा विवाह के पक्ष में प्रचार किया और सिक्खों को शराब तथा अन्य नशीली वस्तुओं का सेवन करने से मना किया।

PSEB 10th Class SST Solutions History Chapter 4 गुरु अंगद देव जी से लेकर गुरु तेग बहादुर जी तक सिक्ख गुरुओं का योगदान

प्रश्न 25.
गुरु अर्जन देव जी तथा अकबर के सम्बन्धों का वर्णन करो।
उत्तर-
गुरु अर्जन देव के सम्राट अकबर के साथ मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध थे।

प्रश्न 26.
जहांगीर गुरु अर्जन देव जी को क्यों शहीद करना चाहता था?
उत्तर-
जहांगीर को गुरु अर्जन देव जी की बढ़ती हुई ख्याति से ईर्ष्या थी।
अथवा
जहांगीर को इस बात का दुःख था कि हिन्दुओं के साथ-साथ कई मुसलमान भी गुरु साहिब से प्रभावित हो रहे हैं।

प्रश्न 27.
मीरी तथा पीरी तलवारों की विशेषताएं बताएं।
उत्तर-
‘मीरी’ तलवार सांसारिक विषयों में नेतृत्व का प्रतीक थी, जबकि पीरी’ लकार आध्यात्मिक विषयों में नेतृत्व का प्रतीक थी।

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प्रश्न 28.
अमृतसर की किलाबन्दी बारे गुरु हरगोबिन्द जी ने क्या किया?
उत्तर-
गुरु हरगोबिन्द साहिब ने अमृतसर की रक्षा के लिए इसके चारों ओर एक दीवार बनवाई और नगर में ‘लोहगढ़’ नामक एक किले का निर्माण करवाया।

(ख) निम्नलिखित प्रत्येक प्रश्न का उत्तर लगभग 30-50 शब्दों में लिखिए

प्रश्न 1.
गोइन्दवाल की बाऊली (जल स्रोत) का वर्णन करो।
उत्तर-
गोइन्दवाल नामक स्थान पर बाऊली (जल स्रोत) का निर्माण कार्य गुरु अमरदास जी ने पूरा किया जिसका शिलान्यास गुरु अंगद देव जी के समय में किया गया था। गुरु अमरदास जी ने इस बावली में 84 सीढ़ियां बनवाईं। उन्होंने अपने शिष्यों को बताया कि जो सिक्ख प्रत्येक सीढ़ी पर श्रद्धा और सच्चे मन से ‘जपुजी साहिब’ का पाठ करके 84वीं सीढ़ी पर स्नान करेगा वह जन्म-मरण के चक्कर से मुक्त हो जाएगा और मोक्ष को प्राप्त करेगा। डॉ० इन्दू भूषण बनर्जी लिखते हैं, “इस बाऊली की स्थापना सिक्ख धर्म के इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण कार्य था।” गोइन्दवाल की बाऊली सिक्ख धर्म का प्रसिद्ध तीर्थ स्थान बन गई। इस बाऊली पर एकत्रित होने से सिक्खों में आपसी मेल-जोल की भावना भी बढ़ी और वे परस्पर संगठित होने लगे।

प्रश्न 2.
मंजी-प्रथा से क्या भाव है तथा इसका क्या उद्देश्य था?
उत्तर-
मंजी प्रथा की स्थापना गुरु अमरदास जी ने की थी। उनके समय में सिक्खों की संख्या काफ़ी बढ़ चुकी थी। परन्तु गुरु जी की आयु अधिक होने के कारण उनके लिए एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाकर अपनी शिक्षाओं का प्रचार करना कठिन हो गया था। अत: उन्होंने अपने सारे आध्यात्मिक प्रदेश को 22 भागों में बांट दिया। इनमें से प्रत्येक भाग को ‘मंजी’ कहा जाता था। प्रत्येक मंजी छोटे-छोटे स्थानीय केन्द्रों में बंटी हुई थी जिन्हें पीढ़ियां (Piris) कहते थे। मंजी प्रणाली का सिक्ख धर्म के इतिहास में विशेष महत्त्व है। डॉ० गोकुल चन्द नारंग के शब्दों में, “गुरु जी के इस कार्य ने सिक्ख धर्म की नींव सुदृढ़ करने तथा देश के सभी भागों में इसका प्रचार कार्य को बढ़ाने में विशेष योगदान दिया।”

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प्रश्न 3.
गुरु अमरदास जी ने सिक्खों को उदासी मत से कैसे अलग किया?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी के बड़े पुत्र श्रीचन्द जी ने उदासी सम्प्रदाय की स्थापना की थी। उसने संन्यास का प्रचार किया। यह बात गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं के विरुद्ध थी। गुरु अंगद देव जी ने सिक्खों को स्पष्ट किया कि सिक्ख धर्म गृहस्थियों का धर्म है। इसमें संन्यास का कोई स्थान नहीं है। उन्होंने यह भी घोषणा की कि वह सिक्ख जो संन्यास में विश्वास रखता है, सच्चा सिक्ख नहीं है। इस प्रकार उदासियों को सिक्ख सम्प्रदाय से अलग करके गुरु अंगद देव जी ने सिक्ख धर्म को ठोस आधार प्रदान किया।

प्रश्न 4.
गुरु अमरदास जी ने ब्याह की रस्मों में क्या सुधार किए?
उत्तर-गुरु अमरदास जी के समय समाज में जाति मतभेद का रोग इतना बढ़ चुका था कि लोग अपनी जाति से बाहर विवाह करना धर्म के विरुद्ध मानने लगे थे। गुरु जी का विश्वास था कि ऐसे रीति-रिवाज लोगों में फूट डालते हैं। इसीलिए उन्होंने सिक्खों को जाति-मतभेद भूल कर अन्तर्जातीय विवाह करने का आदेश दिया। उन्होंने विवाह की रीतियों में भी सुधार किया। उन्होंने विवाह के समय रस्मों, फेरों के स्थान पर ‘लावां’ की प्रथा आरम्भ की।

प्रश्न 5.
आनन्द साहिब बारे लिखो।
उत्तर-
गुरु अमरदास जी ने एक नई वाणी की रचना की जिसे आनन्द साहिब कहा जाता है। गुरु साहिब ने अपने सिक्खों को आदेश दिया कि जन्म, विवाह तथा खुशी के अन्य अवसरों पर ‘आनन्द’ साहिब का पाठ करें। इस राग के प्रवचन से सिक्खों में वेद-मन्त्रों के उच्चारण का महत्त्व बिल्कुल समाप्त हो गया। आज भी सभी सिक्ख जन्म-विवाह तथा प्रसन्नता के अन्य अवसरों पर इसी राग को गाते हैं।

प्रश्न 6.
रामदासपुर या अमृतसर की स्थापना का वर्णन करो।
उत्तर-
गुरु रामदास जी ने रामदासपुर की नींव रखी। आजकल इस नगर को अमृतसर कहते हैं। गुरु साहिब ने 1577 ई० में यहां अमृतसर तथा सन्तोखसर नामक दो सरोवरों की खुदाई आरम्भ की, परन्तु उन्होंने देखा कि गोइन्दवाल में रहकर खुदाई के कार्य का निरीक्षण करना कठिन है। अत: उन्होंने यहीं डेरा डाल दिया। कई श्रद्धालु लोग भी यहीं आ कर बस गए और कुछ ही समय में सरोवर के चारों ओर एक छोटा-सा नगर बस गया। इसे रामदासपुर का नाम दिया गया। गुरु जी ने इस नगर को हर प्रकार से आत्मनिर्भर बनाने के लिए एक बाज़ार की स्थापना की जिसे आजकल ‘गुरु का बाज़ार’ कहते हैं। इस नगर के निर्माण से सिक्खों को एक महत्त्वपूर्ण तीर्थ स्थान मिल गया जिससे सिक्ख धर्म के विकास में सहायता मिली।

PSEB 10th Class SST Solutions History Chapter 4 गुरु अंगद देव जी से लेकर गुरु तेग बहादुर जी तक सिक्ख गुरुओं का योगदान

प्रश्न 7.
सिक्खों तथा उदासियों में हुए समझौते के बारे में जानकारी दीजिए।
उत्तर-
गुरु अंगद देव जी तथा गुरु अमरदास जी ने सिक्खों को उदासी सम्प्रदाय से अलग कर दिया था, परन्तु गुरु रामदास जी ने उदासियों से बड़ा विनम्रतापूर्ण व्यवहार किया। उदासी सम्प्रदाय के संचालक बाबा श्री चन्द जी एक बार गुरु रामदास जी से मिलने गए। उनके बीच एक महत्त्वपूर्ण वार्तालाप भी हुआ। श्री चन्द जी गुरु साहिब की विनम्रता से बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने गुरु जी की श्रेष्ठता को स्वीकार कर लिया। इस प्रकार उदासियों ने सिक्ख गुरु साहिबान का विरोध करना छोड़ दिया।

प्रश्न 8.
हरिमंदिर साहिब बारे में जानकारी दीजिए ।
उत्तर-
गुरु रामदास जी के ज्योति जोत समाने के पश्चात् गुरु अर्जन देव जी ने ‘अमृतसर’ सरोवर के बीच हरिमंदिर साहिब का निर्माण करवाया। इसका नींव पत्थर 1589 ई० में सूफी फ़कीर मियां मीर जी ने रखा। गुरु जी ने इसके चारों ओर एक-एक द्वार रखवाया। ये द्वार इस बात के प्रतीक हैं कि यह धर्म-स्थल सभी जातियों तथा धर्मों के लोगों के लिए समान रूप से खुला है। हरमंदर साहिब का निर्माण कार्य भाई बुड्डा जी की देख-रेख में 1601 ई० में पूरा हुआ। 1604 ई० में हरिमंदिर साहिब में आदि ग्रन्थ साहिब की स्थापना की गई और भाई बुड्डा जी वहां के पहले ग्रन्थी बने।
हरिमंदिर साहिब शीघ्र ही सिक्खों के लिए मक्का’ तथा ‘गंगा-बनारस’ अर्थात् एक बहुत बड़ा तीर्थ-स्थल बन गया।

प्रश्न 9.
तरनतारन साहिब के बारे में आप क्या जानते हो?
उत्तर-
तरनतारन का निर्माण गुरु अर्जन देव जी ने करवाया। इसके निर्माण का सिक्ख इतिहास में बड़ा महत्त्व है। अमृतसर की भान्ति तरनतारन भी सिक्खों का प्रसिद्ध तीर्थ स्थान बन गया। हजारों की संख्या में यहां सिक्ख यात्री स्नान करने के लिए आने लगे। उनके प्रभाव में आकर माझा प्रदेश के अनेक जाट सिक्ख धर्म के अनुयायी बन गए। इन्हीं जाटों ने आगे चल कर मुग़लों के विरुद्ध युद्धों में बढ़-चढ़ कर भाग लिया और असाधारण वीरता का परिचय दिया। डॉ० इन्दू भूषण बनर्जी ठीक ही लिखते हैं, “जाटों के सिक्ख धर्म में प्रवेश से सिक्ख इतिहास को एक नया मोड़ मिला।”

प्रश्न 10.
गुरु साहिबों के समय दौरान बनी बाऊलियों (जल स्रोतों) का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
गुरु साहिबों के समय में निम्नलिखित बाऊलियों का निर्माण हुआ

  1. गोइन्दवाल की बाऊली-गोइंदवाल की बाऊली का शिलान्यास गुरु अंगद देव जी के समय में हुआ था। गुरु अमरदास जी ने इस बाऊली को पूर्ण करवाया। उन्होंने इसके जल तक पहुंचने के लिए 84 सीढ़ियां बनवाईं। उन्होंने अपने शिष्यों को बताया कि जो सिक्ख प्रत्येक सीढ़ी पर श्रद्धा और सच्चे मन से जपुजी साहिब (Japuji Sahib) का पाठ करेगा वह जन्म-मरण की चौरासी लाख योनियों के चक्कर से मुक्त हो जाएगा।
  2. लाहौर की बाऊली-लाहौर के डब्बी बाज़ार में स्थित इस बाऊली का निर्माण गुरु अर्जन साहिब ने करवाया। यह बाऊली सिक्खों का एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थान बन गई।

PSEB 10th Class SST Solutions History Chapter 4 गुरु अंगद देव जी से लेकर गुरु तेग बहादुर जी तक सिक्ख गुरुओं का योगदान

प्रश्न 11.
मसन्द प्रथा से सिक्ख धर्म को क्या लाभ हुए?
उत्तर-
सिक्ख धर्म के संगठन तथा विकास में मसन्द प्रथा का विशेष महत्त्व रहा। इसके महत्त्व को निम्नलिखित बातों से जाना जा सकता है —

  1. गुरु जी की आय अब नियमित तथा लगभग निश्चित हो गई। आय के स्थायी हो जाने से गुरु जी को अपने रचनात्मक कार्यों को पूरा करने में बहुत सहायता मिली। उन्होंने इस धन राशि से न केवल अमृतसर तथा सन्तोखसर के सरोवरों का निर्माण कार्य सम्पन्न किया अपितु अन्य कई नगरों, तालाबों, कुओं आदि का भी निर्माण किया।
  2. मसन्द प्रथा के कारण जहां गुरु जी की आय निश्चित हुई वहां सिक्ख धर्म का प्रचार भी ज़ोरों से हुआ। गुरु अर्जन देव जी ने पंजाब से बाहर भी मसन्दों की नियुक्ति की। इससे सिक्ख धर्म का प्रचार क्षेत्र बढ़ गया।
  3. मसन्द प्रथा से प्राप्त होने वाली स्थायी आय से गुरु जी अपना दरबार लगाने लगे। वैशाखी के दिन जब दूरदूर से आए मसन्द तथा श्रद्धालु गुरु जी से भेंट करने आते तो वे बड़ी नम्रता से गुरु जी के सम्मुख शीश झुकाते थे। उनके ऐसा करने से गुरु जी का दरबार वास्तव में शाही दरबार-सा बन गया और गुरु जी ने ‘सच्चे पातशाह’ की उपाधि धारण कर ली।

प्रश्न 12.
गुरु हरगोबिन्द साहिब की सेना के संगठन का वर्णन करो।
उत्तर-
गुरु हरगोबिन्द जी ने आत्मरक्षा के लिए सेना का संगठन किया। इस सेना में अनेक शस्त्रधारी सैनिक तथा स्वयं सेवक सम्मिलित थे। माझा के अनेक युद्ध प्रिय युवक गुरु जी की सेना में भर्ती हो गए। मोहसिन फानी के मतानुसार, गुरु जी की सेना में 800 घोड़े, 300 घुड़सवार तथा 60 बन्दूकची थे। उनके पास 500 ऐसे स्वयं सेवक भी थे जो वेतन नहीं लेते थे। यह सिक्ख सेना पांच जत्थों में बंटी हुई थी। इनके जत्थेदार थे-विधिचंद, पीराना, जेठा, पैरा तथा लंगाह । इसके अतिरिक्त पैंदा खां के नेतृत्व में एक पृथक् पठान सेना भी थी।

प्रश्न 13.
गुरु हरगोबिन्द जी के रोज़ाना जीवन के बारे में लिखें।
उत्तर-
गुरु हरगोबिन्द जी की नवीन नीति के अनुसार उनकी दिनचर्या में भी कुछ परिवर्तन आए। नई दिनचर्या के अनुसार वह प्रात:काल स्नान आदि करके हरमंदर साहिब में धार्मिक उपदेश देने के लिए चले जाते थे और फिर अपने सिक्खों तथा सैनिकों को प्रातःकाल का लंगर कराते थे। इसके पश्चात् वह कुछ समय के लिए विश्राम करके शिकार के लिए निकल पड़ते थे। गुरु जी ने अब्दुल तथा नत्था मल को वीर रस की वारें सुनाने के लिए नियुक्त किया। उन्होंने दुर्बल मन को सबल बनाने के लिए अनेक गीत मंडलियां बनाईं। इस प्रकार गुरु जी ने सिक्खों में नवीन चेतना और नये उत्साह का संचार किया।

प्रश्न 14.
अकाल तख्त के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर-
गुरु हरगोबिन्द साहिब हरमंदर साहिब में सिक्खों को धार्मिक शिक्षा देते थे। उन्हें राजनीति की शिक्षा देने के लिए गुरु साहिब ने हरमंदर साहिब के सामने पश्चिम की ओर एक नया भवन बनाया जिसका नाम अकाल तख्त (ईश्वर की गद्दी) रखा गया। इस नए भवन के अन्दर 12 फुट ऊंचे एक चबूतरे का निर्माण भी करवाया गया। इस चबूतरे पर बैठ कर वह सिक्खों की सैनिक तथा राजनीतिक समस्याओं का समाधान करने लगे। इसी स्थान पर वह अपने सैनिकों को वीर रस के जोशीले गीत सुनवाते थे। अकाल तख्त के निकट वह सिक्खों को व्यायाम करने के लिए प्रेरित करते थे।

PSEB 10th Class SST Solutions History Chapter 4 गुरु अंगद देव जी से लेकर गुरु तेग बहादुर जी तक सिक्ख गुरुओं का योगदान

प्रश्न 15.
गुरु अंगद देव जी द्वारा सिक्ख संस्था (पंथ) के विकास के लिए किए गए किन्हीं चार कार्यों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
श्री गुरु नानक देव जी महाराज (1539 ई०) के पश्चात् गुरु अंगद देव जी गुरुगद्दी पर आसीन हुए। उनका नेतृत्व सिक्ख धर्म के लिए वरदान सिद्ध हुआ। उन्होंने निम्नलिखित कार्यों द्वारा सिक्ख धर्म के विकास में योगदान दिया —

  1. गुरुमुखी लिपि में सुधार-गुरु अंगद देव जी ने गुरुमुखी लिपि में सुधार किया। कहते हैं कि गुरु अंगद देव जी ने गुरुमुखी के प्रचार के लिए गुरुमुखी वर्णमाला में ‘बाल बोध’ की रचना की।
  2. गुरु नानक देव जी की जन्म-साखी-श्री गुरु अंगद देव जी ने श्री गुरु नानक देव जी की सारी वाणी को एकत्रित करके भाई बाला से गुरु जी की जन्म-साखी (जीवन-चरित्र) लिखवाई। इससे सिक्ख गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं का पालन करने लगे।
  3. लंगर प्रथा-श्री गुरु अंगद देव जी ने लंगर प्रथा जारी रखी। इस प्रथा से जाति-पाति की भावनाओं को धक्का लगा और सिक्ख धर्म के प्रसार में सहायता मिली।
  4. गोइन्दवाल का निर्माण-गुरु अंगद देव जी ने गोइन्दवाल नामक नगर की स्थापना की। गुरु अमरदास के समय में यह नगर एक प्रसिद्ध धार्मिक केन्द्र बन गया। आज भी यह सिक्खों का एक पवित्र धार्मिक स्थान है।

प्रश्न 16.
‘मसन्द प्रथा’ सिक्ख धर्म के विकास के लिए किस प्रकार लाभदायक सिद्ध हुई?
उत्तर-
प्रश्न नं० 11 देखें।

प्रश्न 17.
गुरु अर्जन देव जी की शहादत पर एक नोट लिखिए।
उत्तर-
मुग़ल सम्राट अकबर के पंचम पातशाह (सिक्ख गुरु) गुरु अर्जन देव जी के साथ बहुत अच्छे सम्बन्ध थे, परन्तु अकबर की मृत्यु के पश्चात् जहांगीर ने सहनशीलता की नीति छोड़ दी। वह उस अवसर की खोज में रहने लगा जब वह सिक्ख धर्म पर करारी चोट कर सके। इसी बीच जहांगीर के पुत्र खुसरो ने उसके विरुद्ध विद्रोह कर दिया। खुसरो पराजित होकर गुरु अर्जन देव जी के पास आया। गुरु जी ने उसे आशीर्वाद दिया। इस आरोप में जहांगीर ने गुरु अर्जन देव जी पर दो लाख रुपये का जुर्माना लगा दिया। परन्तु गुरु अर्जन देव जी ने जुर्माना देने से इन्कार कर दिया। इसलिए उन्हें बन्दी बना लिया गया और अनेक यातनाएं देकर शहीद कर दिया गया। गुरु अर्जन देव जी की शहीदी से सिक्ख भड़क उठे। वे समझ गए कि उन्हें अब अपने धर्म की रक्षा के लिए शस्त्र धारण करने पड़ेंगे।

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(ग) निम्नलिखित प्रत्येक प्रश्न का उत्तर लगभग 100-120 शब्दों में लिखिए

प्रश्न 1.
गुरु अंगद देव जी ने सिक्ख धर्म के विकास के लिए क्या योगदान दिया?
उत्तर-
गुरु अंगद देव जी सिक्खों के दूसरे गुरु थे। उनका नेतृत्व सिक्ख धर्म के लिए वरदान सिद्ध हुआ। उन्होंने निम्नलिखित ढंग से सिक्ख धर्म के विकास में योगदान दिया —

  1. गुरुमुखी लिपि में सुधार-गुरु अंगद देव जी ने गुरुमुखी लिपि में सुधार किया। कहते हैं कि गुरु अंगद देव जी ने गुरुमुखी के प्रचार के लिए गुरुमुखी वर्णमाला में ‘बाल बोध’ की रचना की। जनसाधारण की भाषा होने के कारण इससे सिक्ख धर्म के प्रचार के कार्य को बढ़ावा मिला। आज सिक्खों के सभी धार्मिक ग्रन्थ इसी भाषा में हैं।
  2. गुरु नानक देव जी की जन्म-साखी-श्री गुरु अंगद देव जी ने श्री गुरु नानक देव जी की सारी वाणी को एकत्रित करके भाई बाला से गुरु जी की जन्म-साखी (जीवन-चरित्र) लिखवाई। इससे सिक्ख गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं का पालन करने लगे।
  3. लंगर प्रथा-श्री गुरु अंगद देव जी ने लंगर प्रथा जारी रखी। उन्होंने यह आज्ञा दी कि जो कोई उनके दर्शन को आए, उसे पहले लंगर में भोजन कराया जाए। यहां प्रत्येक व्यक्ति बिना किसी भेद-भाव के भोजन करता था। इससे जाति-पाति की भावनाओं को धक्का लगा और सिक्ख धर्म के प्रसार में सहायता मिली।
  4. उदासियों को सिक्ख धर्म से निकालना-गुरु नानक देव जी के बड़े पुत्र श्रीचन्द जी ने उदासी सम्प्रदाय की स्थापना की थी। उन्होंने संन्यास का प्रचार किया। यह बात गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं के विरुद्ध थी। अतः गुरु अंगद देव जी ने उदासियों से नाता तोड़ लिया।
  5. गोइन्दवाल का निर्माण-गुरु अंगद देव जी ने गोइन्दवाल नामक नगर की स्थापना की। गुरु अमरदास जी के समय में यह नगर सिक्खों का एक प्रसिद्ध धार्मिक केन्द्र बन गया। आज भी यह सिक्खों का एक पवित्र धार्मिक स्थान है।
  6. अनुशासन को बढ़ावा-गुरु जी बड़े ही अनुशासन प्रिय थे। उन्होंने सत्ता और बलवंड नामक दो प्रसिद्ध रबाबियों को अनुशासन भंग करने के कारण दरबार से निकाल दिया, परन्तु बाद में भाई लद्धा के प्रार्थना करने पर गुरु जी ने उन्हें क्षमा कर दिया।
    सच तो यह है कि गुरु अंगद देव जी ने सिक्ख धर्म को पृथक् पहचान प्रदान की।

प्रश्न 2.
गुरु अमरदास जी ने सिक्ख धर्म के विकास के लिए क्या-क्या कार्य किए?
उत्तर-
गुरु अमरदास जी को सिक्ख धर्म में विशिष्ट स्थान प्राप्त है। गुरु नानक देव जी ने धर्म का जो बीज बोया था वह गुरु अंगद देव जी के काल में अंकुरित हो गया। गुरु अमरदास जी ने अपने कार्यों से इस नये पौधे की रक्षा की। संक्षेप में, गुरु अमरदास जी के कार्यों का वर्णन इस प्रकार है —

  1. गोइन्दवाल की बावली का निर्माण-गुरु अमरदास जी ने सर्वप्रथम गोइन्दवाल के स्थान पर एक बावली (जल-स्रोत) का निर्माण कार्य पूरा किया जिसका शिलान्यास गुरु अंगद देव जी के समय रखा गया था। गुरु अमरदास जी ने इस बावली की तह तक पहुंचने के लिए 84 सीढ़ियां बनवाईं। गुरु जी के अनुसार प्रत्येक सीढ़ी पर जपुजी साहिब का पाठ करने से जन्म-मरण की चौरासी लाख योनियों के चक्कर से मुक्ति मिलेगी। गोइन्दवाल की बावली सिक्ख धर्म का एक प्रसिद्ध तीर्थ-स्थान बन गई।
  2. लंगर प्रथा-गुरु अमरदास जी ने लंगर प्रथा का विस्तार करके सिक्ख धर्म के विकास की ओर एक और महत्त्वपूर्ण कदम उठाया। उन्होंने लंगर के लिए कुछ विशेष नियम बनाए। अब कोई भी व्यक्ति लंगर में भोजन किए बिना गुरु जी से नहीं मिल सकता था। लंगर प्रथा से जाति-पाति तथा रंग-रूप के भेदभावों को बड़ा धक्का लगा और लोगों में समानता की भावना का विकास हुआ। परिणामस्वरूप सिक्ख एकता के सूत्र में बंधने लगे।
  3. सिक्ख गुरु साहिबान के शब्दों को एकत्रित करना-गुरु नानक देव जी के शब्दों तथा श्लोकों को गुरु अंगद देव जी ने एकत्रित करके उनके साथ अपने रचे हुए शब्द भी जोड़ दिए थे। यह सारी सामग्री गुरु अंगद देव जी ने गुरु अमरदास जी को सौंप दी थी। गुरु अमरदास जी ने कुछ-एक नए श्लोकों की रचना की और उन्हें पहले वाले संकलन (collection) के साथ मिला दिया। इस प्रकार विभिन्न गुरु साहिबान के शब्दों तथा उपदेशों के एकत्र हो जाने से ऐसी सामग्री तैयार हो गई जो आदि-ग्रन्थ साहिब के संकलन का आधार बनी।
  4. मंजी प्रथा-वृद्धावस्था के कारण गुरु साहिब जी के लिए एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाकर अपनी शिक्षाओं का प्रचार करना कठिन हो गया था। अतः उन्होंने अपने पूरे आध्यात्मिक साम्राज्य को 22 प्रान्तों में बांट दिया। इनमें से प्रत्येक प्रान्त को मंजी’ कहा जाता था। प्रत्येक मंजी सिक्ख धर्म के प्रचार का एक केन्द्र थी। गुरु अमरदास जी द्वारा स्थापित मंजी प्रणाली का सिक्ख धर्म के इतिहास में विशेष महत्त्व है। डॉ० गोकुल चन्द नारंग के शब्दों में, “गुरु जी के इस कार्य ने सिक्ख धर्म की नींव सुदृढ़ करने तथा देश के सभी भागों में प्रचार कार्य बढ़ाने में विशेष योगदान दिया।”
  5. उदासियों से सिक्खों को पृथक करना-गुरु साहिब ने उदासी सम्प्रदाय के सिद्धान्तों का जोरदार शब्दों में खण्डन किया। उन्होंने अपने अनुयायियों को समझाया कि कोई भी व्यक्ति, जो उदासी नियमों का पालन करता है, सच्चा सिक्ख नहीं हो सकता। गुरु जी के इन प्रयत्नों से सिक्ख उदासियों से पृथक् हो गए और सिक्ख धर्म का अस्तित्व मिटने से बच गया।
  6. नई परम्पराएं-गुरु अमरदास जी ने सिक्खों को व्यर्थ के रीति-रिवाजों का त्याग करने का उपदेश दिया। हिन्दुओं में किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाने पर खूब रोया-पीटा जाता था। परन्तु गुरु अमरदास जी ने सिक्खों को रोने-पीटने के स्थान पर ईश्वर का नाम लेने का उपदेश दिया। उन्होंने विवाह की भी नई विधि आरम्भ की जिसे आनन्द कारज कहते हैं।
  7. आनन्द साहिब की रचना-गुरु अमरदास जी ने एक नई वाणी की रचना की जिसे आनन्द साहिब कहा जाता है।
    सच तो यह है कि गुरु अमरदास जी का गुरु काल सिक्ख धर्म के इतिहास में विशेष महत्त्व रखता है। गुरु जी के द्वारा बाऊली का निर्माण, मंजी प्रथा के आरम्भ, लंगर प्रथा के विस्तार तथा नए रीति-रिवाजों ने सिक्ख धर्म के संगठन में बड़ी मज़बूती प्रदान की।

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प्रश्न 3.
गुरु अमरदास जी के द्वारा किए गए सुधारों का वर्णन करो।
उत्तर-
गुरु अमरदास जी के समय में समाज अनेकों बुराइयों का शिकार हो चुका था। गुरु जी इस बात को भलीभान्ति समझते थे, इसलिए उन्होंने कई महत्त्वपूर्ण सामाजिक सुधार किए। सामाजिक क्षेत्र में गुरु जी के कार्यों का वर्णन इस प्रकार है —

  1. जाति-पाति का विरोध-गुरु अमरदास जी ने जाति-मतभेद का खण्डन किया। उनका विश्वास था कि जातीय तभेद परमात्मा की इच्छा के विरुद्ध है।
  2. छुआछूत की निन्दा-गुरु अमरदास जी ने छुआछूत को समाप्त करने के लिए महत्त्वपूर्ण कार्य किया। उनके लंगर में जाति-पाति का कोई भेदभाव नहीं था। वहां सभी लोग एक साथ बैठकर भोजन करते थे।
  3. विधवा विवाह-गुरु अमरदास के समय में विधवा विवाह निषेध था। किसी स्त्री को पति की मृत्यु के पश्चात् सारा जीवन विधवा के रूप में व्यतीत करना पड़ता था। गुरु जी ने विधवा विवाह को उचित बताया और इस प्रकार स्त्री जाति को समाज में योग्य स्थान दिलाने का प्रयत्न किया।
  4. सती-प्रथा की भर्त्सना-उस काल के समाज में एक और बड़ी बुराई सती-प्रथा की थी। जी० वी० स्टॉक के अनुसार, गुरु अमरदास जी ने सती-प्रथा की सबसे पहले निन्दा की। उनका कहना था कि वह स्त्री सती नहीं कही जा सकती जो अपने पति के मृत शरीर के साथ जल जाती है। वास्तव में वही स्त्री सती है जो अपने पति के वियोग की पीड़ा को सहन करे।
  5. पर्दे की प्रथा का विरोध-गुरु जी ने स्त्रियों में प्रचलित पर्दे की प्रथा की भी घोर निन्दा की। वह पर्दे की प्रथा को समाज की उन्नति के मार्ग में एक बहुत बड़ी बाधा मानते थे। इसलिए उन्होंने स्त्रियों को बिना पर्दा किए लंगर की सेवा करने तथा संगत में बैठने का आदेश दिया।
  6. नशीली वस्तुओं की निन्दा-गुरु अमरदास जी ने अपने अनुयायियों को नशीली वस्तुओं से दूर रहने का उपदेश दिया। उन्होंने अपने एक ‘शब्द’ में शराब सेवन की खूब निन्दा की है। गुरु अमरदास जी गुरु नानक देव जी की भान्ति ऐसी शराब का सेवन करना चाहते थे जिसका नशा कभी न उतरे। वह नशा बेहोश करने वाला न होकर, समाज सेवा के लिए प्रेरित करने वाला होना चाहिए।
  7. सिक्खों में भ्रातृत्व की भावना-गुरु जी ने सिक्खों को यह आदेश दिया कि वे माघी, दीपावली और वैशाखी आदि त्योहारों को एक साथ मिलकर नई परंपरा के अनुसार मनायें। इस प्रकार उन्होंने सिक्खों में भ्रातृत्व की भावना जागृत करने का प्रयास किया।
  8. जन्म तथा मृत्यु के सम्बन्ध में नये नियम-गुरु अमरदास जी ने सिक्खों को जन्म-मृत्यु तथा विवाह के अवसरों पर नये रिवाजों का पालन करने को कहा। ये रिवाज हिन्दुओं के रीति-रिवाजों से बिल्कुल भिन्न थे। इनके लिए ब्राह्मण वर्ग को बुलाने की कोई आवश्यकता न थी। इस प्रकार गुरु साहिब ने सिक्ख धर्म को पृथक् पहचान प्रदान की।
    सच तो यह है कि गुरु अमरदास जी ने अपने कार्यों से सिक्ख धर्म को नया बल दिया।

प्रश्न 4.
गुरु रामदास जी ने सिक्ख धर्म के विकास के लिए क्या यल किए?
उत्तर-
गुरु रामदास जी सिक्खों के चौथे. गुरु थे। उन्होंने सिक्ख पंथ के विकास में निम्नलिखित योगदान दिया —

  1. अमृतसर का शिलान्यास-गुरु रामदास जी ने रामदासपुर की नींव रखी। आजकल इस नगर को अमृतसर कहते हैं। 1577 ई० में गुरु जी ने यहां अमृतसर तथा सन्तोखसर नामक दो सरोवरों की खुदाई आरम्भ की। कुछ ही समय में सरोवर के चारों ओर एक छोटा-सा नगर बस गया। इसे रामदासपुर का नाम दिया गया। गुरु जी इस नगर को हर प्रकार से आत्मनिर्भर बनाना चाहते थे। अत: उन्होंने 52 अलग-अलम प्रकार के व्यापारियों को आमन्त्रित किया। उन्होंने एक बाजार की स्थापना की जिसे आजकल ‘गुरु का बाज़ार’ कहते हैं।
  2. मसन्द प्रथा का आरम्भ-गुरु रामदास जी को अमृतसर तथा सन्तोखसर नामक सरोवरों की खुदाई के लिए काफ़ी धन की आवश्यकता थी। अतः उन्होंने मसन्द प्रथा का आरम्भ किया। इन मसन्दों ने विभिन्न प्रदेशों में सिक्ख धर्म का खूब प्रचार किया तथा काफ़ी धन राशि एकत्रित की।
  3. उदासियों से मत-भेद की समाप्ति-गुरु अंगद देव जी तथा गुरु अमरदास जी ने सिक्खों को उदासी.सम्प्रदाय से अलग कर दिया था। परन्तु गुरु रामदास जी ने उदासियों से बड़ा विनम्रतापूर्ण व्यवहार किया। उदासी सम्प्रदाय के संचालक बाबा श्री चन्द जी एक बार गुरु रामदास जी से मिलने आए। दोनों के बीच एक महत्त्वपूर्ण वार्तालाप हुआ। श्री चन्द जी गुरु साहिब की विनम्रता से बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने गुरु जी की. श्रेष्ठता को स्वीकार कर लिया।
  4. सामाजिक सुधार-गुरु रामदास जी ने गुरु अमरदास जी द्वारा आरम्भ किए गए नए सामाजिक रीति-रिवाजों को जारी रखा। उन्होंने सती प्रथा की घोर निन्दा की, विधवा पुनर्विवाह की अनुमति दी तथा विवाह और मत्यु-सम्बन्धी कुछ नए नियम जारी किए।
  5. अकबर के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध -मुग़ल सम्राट अकबर सभी धर्मों के प्रति सहनशील था। वह गुरु रामदास जी का बड़ा सम्मान करता था। कहा जाता है कि गुरु रामदास जी के समय में एक बार पंजाब बुरी तरह अकाल की चपेट में आ गया जिससे किसानों की दशा बहुत खराब हो गई, परन्तु गुरु जी के कहने पर अकबर ने पंजाब के कृषकों. का पूरे वर्ष का लगान माफ कर दिया।’
  6. गुरुगद्दी का पैतृक सिद्धान्त-गुरु रामदास जी ने गुरुगद्दी को पैतृक रूप प्रदान किया। उन्होंने ज्योति जोत समाने से कुछ समय पूर्व गुरु-गद्दी अपने छोटे, परन्तु सबसे योग्य पुत्र अर्जन देव जी को सौंप दी।
    गुरु रामदास जी ने गुरुगद्दी को पैतृक बनाकर सिक्ख इतिहास में एक नवीन अध्याय का श्रीगणेश किया। परन्तु एक बात ध्यान देने योग्य है कि गुरु पद का आधार गुण तथा योग्यता ही रहा।
    सच तो यह है कि गुरु रामदास जी ने बहुत ही कम समय तक सिक्ख मत का मार्ग-दर्शन किया। परन्तु इस थोड़े समय में ही उनके प्रयत्नों से सिक्ख धर्म के रूप में विशेष निखार आया।

प्रश्न 5.
गुरु अर्जन देव जी ने सिक्ख धर्म के विकास के लिए क्या योगदान दिया?
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी के गुरुगद्दी सम्भालते ही सिक्ख धर्म के इतिहास ने नवीन दौर में प्रवेश किया। उनके प्रयास से हरमंदर साहिब बना और सिक्खों को अनेक तीर्थ स्थान मिले। यही नहीं उन्होंने गुरु ग्रन्थ साहिब का संकलन किया जिसे आज सिक्ख धर्म में वही स्थान प्राप्त है जो हिन्दुओं में रामायण, मुसलमानों में कुरान शरीफ तथा इसाइयों में बाइबिल को प्राप्त है। संक्षेप में, गुरु अर्जन देव जी के कार्यों तथा सफलताओं का वर्णन इस प्रकार है —

  1. हरमंदर साहिब का निर्माण-गुरु रामदास जी के ज्योति जोत समाने के पश्चात् गुरु अर्जन देव जी ने अमृतसर तथा सन्तोखसर नामक तालाबों का निर्माण कार्य पूरा किया। उन्होंने ‘अमृतसर’ तालाब के बीच हरमंदर साहिब का निर्माण करवाया। गुरु जी ने इसके चारों ओर एक-एक द्वार रखवाया। ये द्वार इस बात का प्रतीक हैं कि यह मंदर सभी जातियों तथा धर्मों के लोगों के लिए खुला है।
  2. तरनतारन की स्थापना-गुरु अर्जन देव जी ने अमृतसर के अतिरिक्त अन्य अनेक नगरों, सरोवरों तथा स्मारकों का निर्माण करवाया। तरनतारन भी इनमें से एक था। उन्होंने इसका निर्माण प्रदेश के ठीक मध्य में करवाया। अमृतसर की भान्ति तरनतारन भी सिक्खों का प्रसिद्ध तीर्थ स्थान बन गया।
  3. लाहौर में बाऊली का निर्माण-गुरु अर्जन देव जी ने अपनी लाहौर यात्रा के दौरान डब्बी बाज़ार में एक बाऊली का निर्माण करवाया। इस बाऊली के निर्माण से निकटवर्ती प्रदेशों के सिक्खों को एक तीर्थ स्थान की प्राप्ति हुई।
  4. हरगोबिन्दपुर तथा छरहटा की स्थापना-गुरु जी ने अपने पुत्र हरगोबिन्द के जन्म की खुशी में ब्यास नदी के तट पर हरगोबिन्दपुर नामक नगर की स्थापना की। इसके अतिरिक्त उन्होंने अमृतसर के निकट पानी की कमी को दूर करने के लिए एक कुएं का निर्माण करवाया। इस कुएं पर छः रहट चलते थे। इसलिए इसको छहरटा के नाम से पुकारा जाने लगा।
  5. करतारपुर की नींव रखना-गुरु जी ने 1593 ई० में जालन्धर दोआब में एक नगर की स्थापना की जिसका नाम करतारपुर रखा गया। यहां उन्होंने एक तालाब का निर्माण करवाया जो गंगसर के नाम से प्रसिद्ध है।
  6. मसन्द प्रथा का विकास-गुरु अर्जन देव जी ने सिक्खों को आदेश दिया कि वे अपनी आय का 1/10 भाग (दशांश अथवा दसवंद) आवश्यक रूप से मसन्दों को जमा कराएं। मसन्द वैसाखी के दिन इस राशि को अमृतसर के केन्द्रीय कोष में जमा करवा देते थे। राशि को एकत्रित करने के लिए वे अपने प्रतिनिधि नियुक्त करने लगे। इन्हें ‘संगती’ . कहते थे।
  7. आदि ग्रन्थ साहिब का संकलन-गुरु अर्जन देव जी ने आदि ग्रन्थ साहिब का संकलन करके सिक्खों को एक धार्मिक ग्रन्थ प्रदान किया। गुरु जी ने रामसर में आदि ग्रन्थ साहिब का संकलन कार्य आरम्भ कर दिया। इस कार्य में भाई गुरदास जी ने गुरु जी को सहयोग दिया। अन्त में आदि ग्रन्थ साहिब की रचना का कार्य 1604 ई० में सम्पन्न हुआ। इस पवित्र ग्रन्थ में उन्होंने अपने से पहले चार गुरु साहिबान की वाणी, फिर अपने भक्तों की वाणी तथा उसके पश्चात् भट्टों की वाणी का संग्रह किया।
  8. घोड़ों का व्यापार-गुरु जी ने सिक्खों को घोड़ों का व्यापार करने के लिए प्रेरित किया। इससे सिक्खों को निम्नलिखित लाभ हुए
    (i) उस समय घोड़ों के व्यापार से बहुत लाभ होता था। परिणामस्वरूप सिक्ख लोग भी धनी हो गए। अब उनके लिए दसवंद (1/10) देना कठिन न रहा।
    (ii) इस व्यापार से सिक्खों को घोड़ों की अच्छी परख हो गई। यह बात उनके लिए सेना संगठन के कार्य में बड़ी काम आई।
  9. धर्म प्रचार कार्य-गुरु अर्जन देव जी ने धर्म-प्रचार द्वारा भी अनेक लोगों को अपना शिष्य बना लिया। उन्होंने अपनी आदर्श शिक्षाओं, सद्व्यवहार, नम्र स्वभाव तथा सहनशीलता से अनेक लोगों को प्रभावित किया।
    संक्षेप में, इतना कहना ही काफ़ी है कि गुरु अर्जन देव जी के काल में सिक्ख धर्म ने बहुत प्रगति की। आदि ग्रन्थ साहिब की रचना हुई, तरनतारन, करतारपुर तथा छहरटा अस्तित्व में आए तथा हरमंदर साहिब सिक्ख धर्म की शोभा बन गया।

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प्रश्न 6.
मसन्द प्रथा के आरम्भ, विकास तथा लाभों का वर्णन करो।
उत्तर-
आरम्भ-मसन्द प्रथा को चौथे गुरु रामदास जी ने आरम्भ किया। जब गुरु जी ने सन्तोखसर तथा अमृतसर के तालाबों की, खुदवाई आरम्भ करवाई तो उन्हें बहुत-से धन की आवश्यकता अनुभव हुई। अतः उन्होंने अपने सच्चे शिष्यों को अपने अनुयायियों से चन्दा एकत्रित करने के लिए देश के विभिन्न भागों में भेजा। गुरु जी द्वारा भेजे गए ये लोग मसन्द कहलाते थे।
विकास-गुरु अर्जन साहिब ने मसन्द प्रथा को नया रूप प्रदान किया ताकि उन्हें अपने निर्माण कार्यों को पूरा करने के लिए निरन्तर तथा लगभग निश्चित धन राशि प्राप्त होती रहे। उन्होंने निम्नलिखित बातों द्वारा मसन्द प्रथा का रूप निखारा —

  1. गुरु जी ने अपने अनुयायियों से भेंट में ली जाने वाली धन राशि निश्चित कर दी। प्रत्येक सिक्ख के लिए अपनी आय का दसवां भाग (दसवन्द) प्रतिवर्ष गुरु जी के लंगर में देना अनिवार्य कर दिया गया।
  2. गुरु अर्जन देव जी ने दसवन्द की राशि एकत्रित करने के लिए अपने प्रतिनिधि नियुक्त किए जिन्हें मसन्द कहा जाता था। ये मसन्द एकत्रित की गई धन राशि को प्रति वर्ष वैशाखी के दिन अमृतसर में स्थित गुरु जी के कोष में जमा करते थे। जमा की गई राशि के बदले मसन्दों को रसीद दी जाती थी।
  3. इन मसन्दों ने दसवन्द एकत्रित करने के लिए अपने प्रतिनिधि नियुक्त किए हुए थे जिन्हें संगतिया कहते थे। संगतिये दूर-दूर के क्षेत्रों से दसवन्द एकत्रित करके मसन्दों को देते थे जो उन्हें गुरु जी के कोष में जमा कर देते थे।
  4. मसन्द अथवा संगतिये दसवन्द की राशि में से एक पैसा भी अपने पास रखना पाप समझते थे। इस बात को स्पष्ट करते हुए गुरु जी ने कहा था कि जो कोई भी दान की राशि खाएगा, उसे शारीरिक कष्ट भुगतना पड़ेगा।
  5. ये मसन्द न केवल अपने क्षेत्र में दसवन्द एकत्रित करते थे अपितु धर्म प्रचार का कार्य भी करते थे। मसन्दों की नियुक्ति करते समय गुरु जी इस बात का विशेष ध्यान रखते थे कि वे उच्च चरित्र के स्वामी हों तथा सिक्ख धर्म में उनकी अटूट श्रद्धा हो।

महत्व अथवा लाभ-सिक्ख धर्म के संगठन तथा विकास में मसन्द प्रथा का विशेष महत्त्व रहा है। सिक्ख धर्म के संगठन में इस प्रथा के महत्त्व को निम्नलिखित बातों से जाना जा सकता है —

  1. गुरु जी की आय अब निरन्तर तथा लगभग निश्चित हो गई। आय के स्थायी हो जाने से गुरु जी को अपने रचनात्मक कार्यों को पूरा करने में बहुत सहायता मिली। उनके इन कार्यों ने सिक्ख धर्म के प्रचार तथा प्रसार में काफ़ी सहायता दी।
  2. पहले धर्म प्रचार का कार्य मंजियों द्वारा होता था। ये मंजियां पंजाब तक ही सीमित थीं। परन्तु गुरु अर्जन देव जी ने पंजाब के बाहर भी मसन्दों की नियुक्ति की। इससे सिक्ख धर्म का प्रचार क्षेत्र बढ़ गया।
  3. मसन्द प्रथा से प्राप्त होने वाली स्थायी आय से गुरु जी अपना दरबार लगाने लगे। वैशाखी के दिन जब दूर-दूर से आए मसन्द तथा श्रद्धालु भक्त गुरु जी को भेंट करने आते तो वे बड़ी नम्रता से गुरु जी के सम्मुख शीश झुकाते थे। उनके ऐसा करने से गुरु जी का दरबार वास्तव में शाही दरबार सा बन गया और गुरु जी ने ‘सच्चे पातशाह’ की उपाधि धारण कर ली।
    सच तो यह है कि एक विशेष अवधि तक मसन्द प्रथा ने सिक्ख धर्म के प्रचार तथा प्रसार में प्रशंसनीय योगदान दिया।

प्रश्न 7.
गुरु हरगोबिन्द जी की नई नीति का वर्णन करो।
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी के पश्चात् उनके पुत्र हरगोबिन्द जी सिक्खों के छठे गुरु बने। उन्होंने एक नई नीति को जन्म दिया। इस नीति का प्रमुख उद्देश्य सिक्खों को शान्ति-प्रिय होने के साथ निडर तथा साहसी बनाना था। गुरु साहिब द्वारा अपनाई गई नवीन नीति की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित थीं —

  1. राजसी चिह्न तथा ‘सच्चे पातशाह’ की उपाधि धारण करना–नवीन नीति का अनुसरण करते हुए गुरु हरगोबिन्द जी ने ‘सच्चे.पातशाह’ की उपाधि धारण की तथा अनेक राजसी चिह्न धारण करने आरम्भ कर दिए। उन्होंने शाही वस्त्र धारण किए और सेली तथा टोपी पहनना बन्द कर दिया क्योंकि ये फ़कीरी के प्रतीक थे। इसके विपरीत उन्होंने दो तलवारें, छत्र और कलगी धारण कर ली। गुरु जी अब अपने अंगरक्षक भी रखने लगे।
  2. मीरी तथा पीरी-गुरु हरगोबिन्द जी अब सिक्खों के आध्यात्मिक नेता होने के साथ-साथ उनके सैनिक नेता भी बन गए। वे सिक्खों के पीर भी थे और मीर भी। इन दोनों बातों को स्पष्ट करते हुए उन्होंने पीरी तथा मीरी नामक दो तलवारें धारण की। उन्होंने सिक्खों को व्यायाम करने, कुश्तियां लड़ने, शिकार खेलने तथा घुड़सवारी करने की प्रेरणा दी। इस प्रकार उन्होंने सन्त सिक्खों को सन्त सिपाहियों का रूप भी दे दिया।
  3. अकाल तख्त का निर्माण-गुरु जी सिक्खों को आध्यात्मिक शिक्षा देने के अतिरिक्त सांसारिक विषयों में भी उनका पथ-प्रदर्शन करना चाहते थे। हरमंदर साहिब में वे सिक्खों को धार्मिक शिक्षा देने लगे। परन्तु सांसारिक विषयों में सिक्खों का पथ-प्रदर्शन करने के लिए उन्होंने हरमंदर साहिब के सामने एक नया भवन बनाया जिसका नाम अकाल तख्त (ईश्वर की गद्दी) रखा गया।
  4. सेना का संगठन-गुरु हरगोबिन्द जी ने आत्मरक्षा के लिए सेना का संगठन किया। इस सेना में अनेक शस्त्रधारी सैनिक तथा स्वयं सेवक सम्मिलित थे। माझा, मालवा तथा दोआबा के अनेक युद्ध प्रिय युवक गुरु जी की सेना में भर्ती हो गए। उनके पास 500 ऐसे स्वयं सेवक भी थे जो वेतन नहीं लेते थे। ये पांच जत्थों में विभक्त थे। इसके अतिरिक्त पैंदे खां नामक पठान के अधीन पठानों की एक पृथक सेना थी।
  5. घोड़े तथा शस्त्रों की भेंट-गुरु हरगोबिन्द जी ने अपनी नवीन-नीति को अधिक सफल बनाने के लिए एक अन्य महत्त्वपूर्ण पग उठाया। उन्होंने अपने सिक्खों से आग्रह किया कि वे जहां तक सम्भव हो शस्त्र तथा घोड़े ही उपहार में भेट करें। परिणामस्वरूप गुरु जी के पास काफ़ी मात्रा में सैनिक सामग्री इकट्ठी हो गई। .
  6. अमृतसर की किलेबन्दी-गुरु जी ने सिक्खों की सुरक्षा के लिए रामदासपुर (अमृतसर) के चारों ओर एक दीवार बनवाई। इस नगर में दुर्ग का निर्माण भी किया गया जिसे लोहगढ़ का नाम दिया गया। इस किले में काफ़ी सैनिक सामग्री रखी गई।
  7. गुरु जी की दिनचर्या में परिवर्तन-गुरु हरगोबिन्द जी की नवीन नीति के अनुसार उनकी दिनचर्या में भी कुछ परिवर्तन आए। नई दिनचर्या के अनुसार वे प्रातःकाल स्नान आदि करके हरमंदर साहिब में धार्मिक उपदेश देने के लिए चले जाते थे और फिर अपने सैनिकों में प्रात:काल का भोजन बांटते थे। इसके पश्चात् वे कुछ समय के लिए विश्राम करके शिकार के लिए निकल पड़ते थे। गुरु जी ने अब्दुल तथा नत्थामल को जोशीले गीत ऊंचे स्वर में गाने के लिए नियुक्त किया। इस प्रकार गुरु जी ने सिक्खों में नवीन चेतना और नये उत्साह का संचार किया।
  8. आत्मरक्षा की भावना-गुरु हरगोबिन्द जी की नवीन नीति आत्मरक्षा की भावना पर आधारित थी। वह सैनिक बल द्वारा न तो किसी के प्रदेश पर अधिकार करने के पक्ष में थे और न ही वह किसी पर जबरदस्ती आक्रमण करने के पक्ष में थे। यह सच है कि उन्होंने मुग़लों के विरुद्ध अनेक युद्ध किए। परन्तु इन युद्धों का उद्देश्य मुग़लों के प्रदेश छीनना नहीं था, बल्कि उनसे अपनी रक्षा करना था।

प्रश्न 8.
नई नीति के अतिरिक्त गुरु हरगोबिन्द जी ने सिक्ख धर्म के विकास के लिए अन्य क्या कार्य किए ?
उत्तर-
गुरु हरगोबिन्द जी पांचवें गुरु अर्जन देव जी के इकलौते पुत्र थे। उनका जन्म जून,1595 ई० में अमृतसर जिले के एक गांव वडाली में हुआ था। अपने पिता जी की शहीदी पर 1606 ई० में वह गुरु गद्दी पर बैठे और 1645 ई० तक सिक्ख धर्म का सफलतापूर्वक नेतृत्व किया। गुरु साहिब द्वारा किए कार्यों का वर्णन इस प्रकार है —

  1. कीरतपुर में निवास-कहलूर का राजा कल्याण चन्द गुरु हरगोबिन्द साहब का भक्त था। उसने गुरु साहिब को कुछ भूमि भेंट की। गुरु साहिब ने इस भूमि पर कीरतपुर नगर का निर्माण करवाया। 1635 ई० में गुरु जी ने इस नगर में निवास कर लिया। उन्होंने अपने जीवन के अन्तिम दस वर्ष यहीं पर धर्म का प्रचार करते हुए व्यतीत किए।
  2. पहाड़ी राजाओं को सिक्ख बनाना-गुरु हरगोबिन्द साहब ने अनेक पहाड़ी लोगों को अपना सिक्ख बनाया। . यहां तक कि कई पहाड़ी राजा भी उनके सिक्ख बन गए। परन्तु यह प्रभाव अस्थायी सिद्ध हुआ। कुछ समय पश्चात् पहाड़ी राजाओं ने पुनः हिन्दू धर्म की मूर्ति-पूजा आदि प्रथाओं को अपनाना आरम्भ कर दिया। ये प्रथाएं गुरु साहिबान की शिक्षाओं के अनुकूल नहीं थीं।
  3. गुरु हरगोबिन्द जी की धार्मिक यात्राएं-ग्वालियर के किले से रिहा होने के पश्चात् गुरु हरगोबिन्द साहब के मुग़ल सम्राट् जहांगीर से मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध स्थापित हो गए। इस शान्तिकाल में गुरु जी ने धर्म प्रचार के लिए यात्राएं की। सबसे पहले वह अमृतसर से लाहौर गए। वहाँ पर आप ने गुरु अर्जन देव जी की स्मृति में गुरुद्वारा डेरा साहब बनवाया। लाहौर से गुरु जी गुजरांवाला तथा भिंभर (गुजरात) होते हुए कश्मीर पहुंचे। यहाँ पर आप ने ‘संगत’ की स्थापना की। भाई सेवा दास जी को इस संगत का मुखिया नियुक्त किया गया।
    गुरु हरगोबिन्द जी ननकाना साहब भी गए। वहाँ से लौट कर उन्होंने कुछ समय अमृतसर में बिताया। वह उत्तर प्रदेश में नानकमता (गोरखमता) भी गए। गुरु जी की राजसी शान देखकर वहां के योगी नानकमता छोड़ कर भाग गए। वहाँ से लौटते समय गुरु जी पंजाब के मालवा क्षेत्र में गए। तख्तूपुरा, डरौली भाई (फिरोजपुर) में कुछ समय ठहर कर गुरु जी पुनः अमृतसर लौट आए।
  4. धर्म-प्रचारक भेजना-गुरु हरगोबिन्द जी 1635 ई० तक युद्धों में व्यस्त रहे। इसलिए उन्होंने अपने पुत्र बाबा गुरदित्ता जी को सिक्ख धर्म के प्रचार एवं प्रसार के लिए नियुक्त किया। बाबा गुरदित्ता जी ने सिक्ख धर्म के प्रचार के लिए चार मुख्य प्रचारकों-अलमस्त, फूल, गौंडा तथा बलु हसना को नियुक्त किया। इन प्रचारकों के अतिरिक्त गुरु हरगोबिन्द जी ने भाई विधिचन्द को बंगाल तथा भाई गुरदास को काबुल तथा बनारस में धर्म-प्रचार के लिए भेजा।
  5. हरराय जी को उत्तराधिकारी नियुक्त करना-अपना अन्तिम समय निकट आते देख गुरु हरगोबिन्द जी ने अपने पौत्र हरराय (बाबा गुरुदित्ता जी के छोटे पुत्र) को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया।

PSEB 10th Class SST Solutions History Chapter 4 गुरु अंगद देव जी से लेकर गुरु तेग बहादुर जी तक सिक्ख गुरुओं का योगदान

प्रश्न 9.
सिक्ख धर्म के विकास के लिए गुरु हरराय जी के कामों (कार्यों) का वर्णन करो।
उत्तर-
गुरु हरराय जी सिक्खों के सातवें गुरु थे। उन्होंने गुरु हरगोबिन्द साहिब के ज्योति जोत समाने के पश्चात् गुरुगद्दी सम्भाली। वह स्वभाव से कोमल मन तथा शान्तिप्रिय व्यक्ति थे। उनके गुरु काल (1645-1661 ई०) में सिक्ख धर्म के विकास का वर्णन इस प्रकार है —

  1. सिक्ख धर्म के प्रति सेवाएं-गुरु हरराय जी ने युद्ध की नीति को त्याग दिया और सदा शान्ति की नीति का अनुसरण किया। वह जीवन भर गुरु नानक देव जी के पद-चिह्नों पर चले। उनका अधिकतर समय कीरतपुर में व्यतीत हुआ। उन्होंने सिक्ख धर्म का खूब प्रचार किया। वे लोगों को धार्मिक जीवन व्यतीत करने के लिए प्रेरित करते थे और उन्हें सन्मार्ग पर चलने की शिक्षा देते थे। उन्होंने सिक्ख धर्म के प्रचार के लिए निम्नलिखित कार्य किए
    1. वह प्रतिदिन प्रातः तथा सायंकाल धर्म सभाएं करके सिक्ख धर्म का प्रचार करते थे। वह लोगों को धार्मिक जीवन व्यतीत करने के लिए प्रोत्साहित करते थे।
    2. उन्होंने अनेक लोगों को सिक्ख धर्म का अनुयायी बनाया। उनके नए शिष्यों में प्रमुख व्यक्तियों के नाम थेबैरागी भक्त गीर, भाई संगतिया, भाई गोंदा तथा भाई भगत।
    3. उन्होंने सिक्ख धर्म के प्रचार के लिए स्थान-स्थान पर प्रचारक भेजे। उन्होंने ‘भक्त गीर’ नाम के एक बैरागी को अपना चेला बना लिया। गुरु जी ने उसका नाम भक्त भगवान् रखा और उसे पूर्व में धर्म प्रचार का कार्य सौंप दिया। वह इतना प्रभावशाली प्रचारक सिद्ध हुआ कि उसने भारतवर्ष में लगभग 360 गद्दियां स्थापित की। इनमें से कुछ गद्दियां आज भी मौजूद हैं। गुरु हरराय जी स्वयं भी धर्म प्रचार के लिए पंजाब में कई स्थानों पर गए और उन्होंने वहां अनेक अनुयायी बनाए। उन्होंने मुख्य रूप से करतारपुर, मुकन्दपुर (जालन्धर), दोसांझ तथा मालवा में धर्म-प्रचार का कार्य किया। इस प्रकार गुरु हरराय जी के काल में सिक्ख धर्म में बड़ी उन्नति हुई।
  2. फूल और उसके परिवार को आशीर्वाद देना-गुरु हरराय जी एक बार मालवा के एक गांव नथाना (Nathana) में गए। वहां उन्होंने फूल नामक एक गूंगे बालक को आशीर्वाद दिया कि वह बड़ा धनवान् तथा प्रसिद्ध व्यक्ति बनेगा और उसकी सन्तान के घोड़े यमुना का पानी पीयेंगे। इसके अतिरिक्त वे कई पीढ़ियों तक राज करेंगे और जितनी गुरु की सेवा करेंगे उतना ही उनका सम्मान बढ़ेगा। गुरु जी की भविष्यवाणी सत्य निकली। फूल की सन्तान ने नाभा, जींद और पटियाला के राज्यों पर राज किया।
  3. दारा शिकोह को आशीर्वाद-गुरु हरराय जी बड़े शान्तिप्रिय व्यक्ति थे और लड़ाई-झगड़े से दूर ही रहना चाहते थे। शाहजहां के बड़े पुत्र दारा शिकोह के साथ उनके मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध थे। 1657-58 ई० में शाहजहां के बेटों में सिंहासन प्राप्ति के लिए युद्ध आरम्भ हो गया। इसमें औरंगजेब की जीत हुई और दारा को पराजय का मुंह देखना पड़ा। दारा अपने बच्चों सहित पंजाब की ओर भाग निकला। दारा गुरु जी से परिचित था। अतः गुरु जी से आशीर्वाद प्राप्त करने तथा उनसे सहायता लेने के लिए वह उनके पास गया। गुरु जी बहुत शान्तिप्रिय व्यक्ति थे। वह दारा को सैनिक सहायता नहीं दे सकते थे। अत: उन्होंने दारा को केवल शरण और आशीर्वाद दिया।
  4. गुरु हरराय जी का दिल्ली बुलाया जाना-मुग़ल सम्राट औरंगजेब गुरु हरराय जी द्वारा दारा शिकोह को दी जाने वाली सहायता के बारे में जानना चाहता था। अतः उसने गुरु जी को दिल्ली बुलवा भेजा। गुरु जी ने स्वयं जाने की बजाए अपने पुत्र रामराय को औरंगजेब के दरबार में भेज दिया। औरंगजेब ने रामराय से बहुत-से प्रश्न किए जिनका रामराय ने बड़ी योग्यतापूर्वक उत्तर दिया। औरंगजेब यह सिद्ध करना चाहता था कि कुछ बातें ग्रन्थ साहिब में मुसलमानों के विरुद्ध लिखी हुई हैं। इसी उद्देश्य से उसने गुरु नानक देव जी की ‘आसा दी वार’ के एक श्लोक की ओर इशारा किया जिसका भाव इस प्रकार है-“मुसलमान की मिट्टी कुम्हार के भट्टे में जाकर जल सकती है, क्योंकि इससे बर्तन और ईंट बनता है। ज्यों-ज्यों यह जलती है, यह चिल्लाती है।” रामराय ने चतुराई दिखाते हुए जान-बूझ कर कुछ शब्द बदल दिये। रामराय ने औरंगजेब को बताया कि श्लोक में ‘मुसलमान’ शब्द भूल से लिखा गया है। वास्तव में यह शब्द ‘बेइमान’ है, परन्तु जब गुरु जी को इस बात का पता चला तो वे बड़े दुःखी हुए। उन्होंने रामराय के विषय में यह घोषणा की कि ऐसे डरपोक को गुरुगद्दी पर बैठने का कोई हक नहीं है।
  5. हरकृष्ण जी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त करनी-गुरुं हरराय जी रामराय को उसकी कायरता के कारण क्षमा न कर सके। अतः उन्होंने रामराय को गुरुगद्दी से वंचित कर दिया और अपने पांच वर्षीय पुत्र हरकृष्ण को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त कर दिया। लगभंग सत्रह वर्ष तक गुरुगद्दी सम्भालने के पश्चात् 6 अक्तूबर, 1661 को गुरु हरराय जी ज्योति-जोत समा गए।

प्रश्न 10.
गुरु हरकृष्ण जी ने सिक्ख धर्म के विकास के लिए क्या योगदान दिया?
उत्तर-
गुरु हरकृष्ण जी का जन्म 7 जुलाई, 1656 ई० को कीरतपुर में हुआ। उनकी माता का नाम सुलखणी तथा पिता का नाम गुरु हरराय जी था। वह 1661 ई० में सिक्खों के आठवें गुरु बने। इस समय उनकी आयु केवल पांच वर्ष की थी। एक बालक होने के कारण गुरु हरकृष्ण जी को ‘बाल गुरुं’ के नाम से भी याद किया जाता है। उनके गुरुकाल की प्रमुख घटनाओं का वर्णन इस प्रकार है

  1. रामराय का विरोध-गुरु हरकृष्ण जी को अपने स्वार्थी भाई रामराय के विरोध का सामना भी करना पड़ा। रामराय सातवें गुरु हरराय जी का बड़ा पुत्र होने के नाते गुरुगद्दी पर अपना अधिकार समझता था। वह किसी भी मूल्य पर गुरुगद्दी के अधिकार को खोना नहीं चाहता था। अत: उसने औरंगजेब के दरबार में न्याय की मांग की। औरंगजेब उस समय विद्रोहों को दबाने में लगा हुआ था। इसलिए वह इस ओर कोई विशेष ध्यान न दे सका, परन्तु कुछ समय पश्चात् उसने दोनों भाइयों का झगड़ा निपटाने का फैसला कर लिया। उसने गुरु हरकृष्ण जी को दिल्ली आने के लिये आमन्त्रित किया।
  2. गुरु जी दिल्ली में-गुरु हरकृष्ण जी मार्ग में सिक्ख धर्म का प्रचार करते हुए दिल्ली पहुंचे। वहां वह मिर्जा राजा जय सिंह के घर ठहरे। राजा जय सिंह ने गुरु साहिब की सूझ-बूझ देखने के लिए अपनी महारानी को एक दासी के वस्त्र पहना कर अन्य दासियों के बीच बिठा दिया। तब गुरु जी को महारानी की गोद में बैठने के लिये कहा गया। गुरु जी ने सभी स्त्रियों के चेहरों को ध्यानपूर्वक देखा और महारानी को पहचान गए। वह झट से उसकी गोद में जा बैठे। राजा जय सिंह गुरु साहिब की सूझबूझ से बहुत प्रभावित हुआ। इस स्थान पर आजकल गुरुद्वारा बंगला साहिब बना हुआ है।
  3. ज्योति-जोत समाना-उन दिनों दिल्ली में चेचक तथा हैजे की बीमारियां फैली हुई थीं। गुरु जी ने बीमारों और ज़रूरतमन्दों की अथक सेवा की परन्तु गुरु जी को चेचक के भयंकर रोग ने जकड़ लिया । उन्होंने अपना अन्त समय निकट जान अपना उत्तराधिकारी घोषित करने का प्रयास किया। वह केवल ‘बाबा बकाला’ के ही शब्द बोल सके तथा उस परम ज्योति में समा गए। बाबा बकाला से अभिप्राय यह था कि उनका उत्तराधिकारी बकाला गांव (अमृतसर) में है। यह घटना 30 मार्च, 1664 ई० की थी। गुरु जी की याद में यमुना के किनारे गुरुद्वारा बाला साहिब का निर्माण करवाया गया।

प्रश्न 11.
गुरु तेग बहादुर जी की मालवा-यात्रा का वर्णन करो।
उत्तर-
1673 ई० के मध्य में गुरु तेग़ बहादुर साहिब मालवा प्रदेश की यात्रा पर गए। इस यात्रा में उनकी पत्नी गुजरी जी तथा पुत्र गोबिन्द दास भी उनके साथ थे।

  1. गुरु साहिब सर्वप्रथम सैफ़ाबाद पहुंचे। सैफ़ाबाद में गुरु साहिब की यह दूसरी यात्रा थी। यहां के मनसबदार – नवाब सैफूद्दीन ने उनका पुनः हार्दिक स्वागत किया। उसने गुरु साहिब तथा उनके परिवार को दुर्ग में ठहराया। गुरु साहिब यहां तीन मास तक रहे। यहां रहकर उन्होंने सिख धर्म का प्रचार किया।
  2. सैफ़ाबाद के पश्चात् गुरु साहिब ने मालवा तथा बांगर प्रदेश के अनेक गांवों तथा नगरों की यात्रा की। डॉ० त्रिलोचन सिंह के अनुसार, इस प्रदेश में गुरु साहिब ने लगभग 10 स्थानों का भ्रमण किया। इनमें से कुछ महत्त्वपूर्ण स्थान ये थे : मूलोवाल, सेखों, ढिल्लवां, जोगा, भीखी, खीवा, समऊं, खियाला, मौंड, तलवंडी साबो, भठिंडा, बराह, धमधान आदि। इन सभी स्थानों पर आज भी गुरुद्वारे बने हुए हैं जो गुरु साहिब की यात्रा की याद दिलाते हैं। मूलोवाल में गुरु साहिब में पानी की कमी को दूर करने के लिए एक कुआं खुदवाया। अन्य गांव भी काफ़ी पिछड़े हुए थे। गुरु साहिब ने इन सभी गांवों में लोगों के कष्टों को दूर करने का प्रयास किया। गुरु साहिब 1673 से 1675 ई० के बीच इस प्रदेश के गांवों का भ्रमण करते रहे और यहां के लोगों में धर्म का प्रचार करते रहे।

प्रभाव-मालवा में गुरु साहिब की यात्राओं का लोगों पर गहरा प्रभाव पड़ा

  1. गुरु साहिब के प्रेमपूर्वक व्यवहार से प्रभावित होकर वहां के ज़मींदारों ने किसानों के साथ अच्छा व्यवहार करना आरम्भ कर दिया।
  2. गुरु साहिब ने स्थान-स्थान पर धर्म-प्रचार केन्द्र स्थापित किए। उनके आकर्षक व्यक्तित्व तथा मधुर वाणी से प्रभावित होकर हज़ारों लोग उनके शिष्य बन गए।
  3. उनके उपदेशों के फलस्वरूप लोगों में नई चेतना का संचार हुआ। उनमें नया धार्मिक उत्साह उत्पन्न हुआ और वे साहसी एवं निडर बने। सिक्खों में ऐसे उत्साह एवं एकता को देखकर मुग़ल सरकार भी चिन्ता में पड़ गई।

PSEB 10th Class SST Solutions History Chapter 4 गुरु अंगद देव जी से लेकर गुरु तेग बहादुर जी तक सिक्ख गुरुओं का योगदान

PSEB 10th Class Social Science Guide गुरु अंगद देव जी से लेकर गुरु तेग बहादुर जी तक सिक्ख गुरुओं का योगदान Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

I. उत्तर एक शब्द अथवा एक लाइन में

प्रश्न 1.
गुरु अंगद देव जी का नाम अंगद देव कैसे पड़ा?
उत्तर-
गुरु अंगद देव जी गुरु नानक देव जी के लिए सर्दी की रात में दीवार बना सकते थे तथा कीचड़ से भरी घास की गठरी उठा सकते थे, इसलिए गुरु जी ने उनका नाम अंगद अर्थात् शरीर का एक अंग रख दिया।

प्रश्न 2.
लहना (गुरु अंगद साहिब) के माता-पिता का नाम क्या था?
उत्तर-
लहना (गुरु अंगद साहिब) के पिता का नाम फेरूमल और माता का नाम सभराई देवी था।

प्रश्न 3.
गुरु अंगद साहिब का बचपन किन दो स्थानों पर बीता?
उत्तर-
गुरु अंगद साहिब का बचपन हरिके तथा खडूर साहिब में बीता।

प्रश्न 4.
लहना जी का विवाह किसके साथ हुआ और उस समय उनकी आयु कितनी थी?
उत्तर-
लहना जी का विवाह 15 वर्ष की आयु में ‘मत्ते दी सराय’ के निवासी श्री देवीचन्द जी की सुपुत्री बीबी खीवी से हुआ।

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प्रश्न 5.
लहना जी के कितने पुत्र और पुत्रियां थीं ? उनके नाम भी लिखो।
उत्तर-
लहना जी के दो पुत्र दत्तू तथा दस्सू तथा दो पुत्रियां बीबी अमरों तथा बीबी अनोखी थीं।

प्रश्न 6.
‘उदासी’ मत किसने स्थापित किया?
उत्तर-
‘उदासी’ मत गुरु नानक देव जी के बड़े पुत्र बाबा श्री चन्द जी ने स्थापित किया।

प्रश्न 7.
गुरु अंगद साहिब ने ‘उदासी’ मत के प्रति क्या रुख अपनाया?
उत्तर-
गुरु अंगद साहिब ने उदासी मत को गुरु नानक साहिब के उद्देश्यों के प्रतिकूल बताया और इस मत का विरोध किया।

प्रश्न 8.
गुरु अंगद देव जी की धार्मिक गतिविधियों का केन्द्र कौन-सा स्थान था?
उत्तर-
गुरु अंगद देव जी की धार्मिक गतिविधियों का केन्द्र अमृतसर जिले में खडूर साहिब था।

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प्रश्न 9.
गुरु अमरदास जी का जन्म कब और कहां हुआ था?
उत्तर-
गुरु अमरदास जी का जन्म 1479 ई० में जिला अमृतसर में स्थित बासरके नामक गाँव में हुआ था।

प्रश्न 10.
गुरु अमरदास जी को गद्दी सम्भालते समय किस कठिनाई का सामना करना पड़ा?
उत्तर-
गुरु अमरदास जी को गुरु अंगद देव जी के पुत्रों दासू और दातू के विरोध का सामना करना पड़ा।
अथवा
गुरु जी को गुरु नानक देव जी के बड़े पुत्र बाबा श्रीचन्द के विरोध का भी सामना करना पड़ा।

प्रश्न 11.
सिक्खों के दूसरे गुरु कौन थे?
उत्तर-
गुरु अंगद देव जी।

प्रश्न 12.
गुरु अंगद देव जी का पहला नाम क्या था?
उत्तर-
भाई लहना।

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प्रश्न 13.
गुरु अंगद देव जी को गुरु-गही कब सौंपी गई?
उत्तर-
1538 ई० में।

प्रश्न 14.
लंगर प्रथा किसने चलाई?
उत्तर-
लंगर प्रथा गुरु नानक देव जी ने चलाई।

प्रश्न 15.
उदासी सम्प्रदाय किसने चलाया?
उत्तर-
श्रीचन्द जी ने।

प्रश्न 16.
गोइन्दवाल की स्थापना (1546 ई०) किसने की?
उत्तर-
गुरु अंगद देव जी ने।

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प्रश्न 17.
गुरु अंगद देव जी ज्योति-जोत कब समाये?
उत्तर-
1552 ई० में।

प्रश्न 18.
गुरु अंगद देव जी ने अखाड़े का निर्माण कहाँ करवाया?
उत्तर-
खडूर साहिब में।

प्रश्न 19.
गोइन्दवाल में बाऊली का निर्माण कार्य किसने पूरा करवाया?
उत्तर-
गुरु अमरदास जी ने।

प्रश्न 20.
जहांगीर के काल में कौन-से सिख गुरु शहीद हुए थे?
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी।

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प्रश्न 21.
गुरु तेग़ बहादुर जी की शहीदी किस मुगल शासक के काल में हुई?
उत्तर-औरंगज़ेब।

प्रश्न 22.
मंजी प्रथा किस गुरु जी ने आरम्भ करवाई?
उत्तर-
गुरु अमरदास जी ने।

प्रश्न 23.
‘आनन्द’ नामक बाणी की रचना किसने की?
उत्तर-
गुरु अमरदास जी ने।

प्रश्न 24.
अमृतसर शहर की नींव किसने रखी?
उत्तर-
गुरु रामदास जी ने।

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प्रश्न 25.
सिक्खों के चौथे गुरु कौन थे?
उत्तर-
श्री गुरु रामदास जी।

प्रश्न 26.
मसंद प्रथा का आरम्भ सिक्खों के किस गुरु ने आरम्भ किया?
उत्तर-
श्री गुरु रामदास जी ने।

प्रश्न 27.
सिक्खों के पांचवें गरु कौन थे?
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी।

प्रश्न 28.
अमृतसर में हरमंदर साहिब का निर्माण किसने करवाया?
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी ने।

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प्रश्न 29.
गुरु अर्जन देव जी ने कौन-कौन से शहर बसाये?
उत्तर-
तरनतारन, करतारपुर तथा हरगोबिन्दपुर।

प्रश्न 30.
‘दसवंद’ (आय का दसवां भाग) का सम्बन्ध किस प्रथा से है?
उत्तर-
मसंद प्रथा से।

प्रश्न 31.
‘आदि ग्रन्थ’ साहिब का संकलन कार्य कब पूरा हुआ?
उत्तर-
1604 ई० में।

प्रश्न 32.
‘आदि ग्रन्थ’ साहिब का संकलन कार्य किसने किया?
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी ने।

प्रश्न 33.
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी कब हुई?
उत्तर-
1606 ई० में।

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प्रश्न 34.
मीरी तथा पीरी नामक दो तलवारें किसने धारण की?
उत्तर-
गुरु हरगोबिन्द जी ने।

प्रश्न 35.
गुरु हरगोबिन्द जी का पठान सेनानायक कौन था?
उत्तर-
पैदा खां।

प्रश्न 36.
अकाल तख़्त का निर्माण, लोहगढ़ का निर्माण तथा सिक्ख सेना का संगठन सिक्खों के किस गुरु ने किया?
उत्तर-
गरु हरगोबिन्द जी ने।

प्रश्न 37.
अमृतसर की किलाबन्दी किसने करवाई?
उत्तर-
गुरु हरगोबिन्द जी ने।

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प्रश्न 38.
कीरतपुर शहर के लिए जमीन किसने भेंट की थी?
उत्तर-
राजा कल्याण चन्द ने।

प्रश्न 39.
किस मुग़ल बादशाह ने गुरु हरगोबिन्द जी को ग्वालियर के किले में बन्दी बनाया?
उत्तर-
जहांगीर ने।

प्रश्न 40.
सिक्खों के सातवें गुरु कौन थे?
उत्तर-
श्री गुरु हरराय जी।

प्रश्न 41.
शाहजहां के किस पुत्र को गुरु हरराय जी का आशीर्वाद प्राप्त हुआ?
उत्तर-
दारा शिकोह को।

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प्रश्न 42.
‘आसा-दी-वार’ के एक श्लोक का अर्थ बदलने की ग़लती किसने की?’
उत्तर-
रामराय ने।

प्रश्न 43.
गुरु हरकृष्ण जी गुरु-गद्दी पर कब बैठे?
उत्तर-
1661 ई० में।

प्रश्न 44.
दिल्ली में गुरु हरकृष्ण जी किसके बंगले पर ठहरे?
उत्तर-
गुरु हरकृष्ण जी दिल्ली में राजा जयसिंह के बंगले पर ठहरे।

प्रश्न 45.
बालगुरु के नाम से कौन विख्यात है?
उत्तर-
गुरु हरकृष्ण जी।

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प्रश्न 46.
गुरुद्वारा बंगला साहिब कहाँ स्थित है?
उत्तर-
दिल्ली में।

प्रश्न 47.
‘बाबा बकाला’ वास्तव में कौन थे?
उत्तर-
गुरु तेग़ बहादुर जी।

प्रश्न 48.
गुरु तेग़ बहादुर जी ने घूके वाली गाँव का नाम क्या रखा?
उत्तर-
गुरु का बाग।

प्रश्न 49.
गुरु तेग़ बहादुर जी की शहादत कब हुई?
उत्तर-
1675 ई० में।

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प्रश्न 50.
गुरु गोबिन्द सिंह जी का जन्म कहाँ हुआ?
उत्तर-
पटना में।

प्रश्न 51.
गुरु गोबिन्द सिंह जी का जन्म कब हुआ?
उत्तर-
22 दिसम्बर, 1666.

प्रश्न 52.
गुरु तेग़ बहादुर जी की शहीदी कहाँ हुई?
उत्तर-
दिल्ली में।

प्रश्न 53.
गुरु अमरदास जी के कितने पुत्र तथा पुत्रियां थीं? उनके नाम लिखो।
उत्तर-
गुरु अमरदास जी के दो पुत्र थे। मोहन तथा मोहरी तथा उनकी दो पुत्रियां दानी और भानी थीं।

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प्रश्न 54.
गोइन्दवाल की बावली में कितनी सीढ़ियां बनवाई गईं और क्यों?
उत्तर-
इस बावली में 84 सीढ़ियां बनवाई गईं क्योंकि गुरु साहिब ने घोषणा की थी कि प्रत्येक सीढ़ी पर बैठ कर जपुजी साहिब का पाठ करने वाले को 84 लाख योनियों के चक्कर से मुक्ति मिल जाएगी।

प्रश्न-55.
‘मंजियों’ की स्थापना किस गुरु साहिब ने की?
उत्तर-
‘मंजियों’ की स्थापना गुरु अमरदास जी ने की।

प्रश्न 56.
गुरु अमरदास जी ने किन दो अवसरों के लिए सिक्खों के लिए विशिष्ट रीतियां निश्चित की?
उत्तर-
गुरु अमरदास जी ने आनन्द विवाह की पद्धति आरम्भ की जिसमें जन्म तथा मरण के अवसरों पर सिक्खों के लिए विशिष्ट रीतियां निश्चित की गईं।

प्रश्न 57.
गुरु अमरदास जी द्वारा सिक्ख मत के प्रसार के लिए किया गया कोई एक कार्य लिखो।
उत्तर-
गुरु अमरदास जी ने गोइन्दवाल में बावली का निर्माण किया।
अथवा
उन्होंने मंजी प्रथा की स्थापना की तथा लंगर प्रथा का विस्तार किया।

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प्रश्न 58.
गुरु अमरदास जी ने सिक्खों को कौन-कौन से तीन त्योहार मनाने का आदेश दिया?
उत्तर-
उन्होंने सिक्खों को वैशाखी, माघी तथा दीवाली के त्योहार मनाने का आदेश किया।

प्रश्न 59.
गुरु अमरदास जी के काल में सिक्ख अपने त्योहार मनाने के लिए कहां एकत्रित होते थे?
उत्तर-
सिक्ख अपने त्योहार मनाने के लिए गुरु अमरदास जी के पास गोइन्दवाल में एकत्रित होते थे।

प्रश्न 60.
गुरु अमरदास जी ज्योति-जोत कब समाए?
उत्तर-
गुरु अमरदास जी 1574 ई० में ज्योति-जोत समाए।

प्रश्न 61.
गुरुगद्दी को पैतृक रूप किसने दिया?
उत्तर-
गुरुगद्दी को पैतृक रूप गुरु अमरदास जी ने दिया।

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प्रश्न 62.
गुरु अमरदास जी ने गुरु-गद्दी किस घराने को सौंपी?
उत्तर-
गुरु अमरदास जी ने यह गद्दी गुरु रामदास जी तथा बीबी भानी जी के सोढी घराने को सौंपी।

प्रश्न 63.
गुरु रामदास जी की पत्नी का क्या नाम था?
उत्तर-
गुरु रामदास जी की पत्नी का नाम बीबी भानी था।

प्रश्न 64.
गुरु रामदास जी के कितने पुत्र थे? पुत्रों के नाम भी बताओ।
उत्तर-
गुरु रामदास जी के तीन पुत्र थे-पृथी चन्द, महादेव तथा अर्जन देव।

प्रश्न 65.
गुरु रामदास जी द्वारा सिक्ख धर्म के विस्तार के लिए किया गया कोई एक कार्य बताओ।
उत्तर-
गुरु रामदास जी ने अमृतसर नगर बसाया। इस नगर के निर्माण से सिक्खों को एक महत्त्वपूर्ण तीर्थ स्थान मिल गया।
अथवा
उन्होंने मसन्द प्रथा को आरम्भ किया। मसन्दों ने सिक्ख धर्म का खूब प्रचार किया।

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प्रश्न 66.
अमृतसर नगर का प्रारम्भिक नाम क्या था? इसकी स्थापना किसने की थी?
उत्तर-
अमृतसर नगर का प्रारम्भिक नाम रामदासपुर था तथा इस नगर की स्थापना चौथे गुरु रामदास जी ने की।

प्रश्न 67.
गुरु रामदास जी द्वारा खुदवाए गए दो सरोवरों के नाम लिखो।
उत्तर-
गुरु रामदास जी द्वारा खुदवाए गए दो सरोवर संतोखसर तथा अमृतसर हैं।

प्रश्न 68.
गुरु रामदास जी ने अमृतसर सरोवर के चारों ओर जो बाज़ार बसाया वह किस नाम से प्रसिद्ध हुआ?
उत्तर-
गुरु रामदास जी द्वारा बसाया गया यह बाज़ार ‘गुरु का बाज़ार’ के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

प्रश्न 69.
गुरु रामदास जी ने “गुरु का बाज़ार’ की स्थापना किस उद्देश्य से की?
उत्तर-
गुरु रामदास जी अमृतसर नगर को हर प्रकार से आत्म-निर्भर बनाना चाहते थे। इसी कारण उन्होंने 52 अलग-अलग प्रकार के व्यापारियों को आमन्त्रित किया और इस बाज़ार की स्थापना की।

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प्रश्न 70.
गुरु अर्जन देव जी का जन्म कब और कहां हुआ?
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी का जन्म 15 अप्रैल, 1563 ई० को गोइन्दवाल में हुआ।

प्रश्न 71.
गुरु अर्जन देव जी के माता-पिता का नाम लिखो।
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी के पिता का नाम गुरु रामदास जी तथा उनकी माता जी का नाम बीबी भानी था।

प्रश्न 72.
गुरु रामदास जी ने महादेव को गुरु गद्दी के अयोग्य क्यों समझा?
उत्तर-
महादेव फ़कीर स्वभाव का था तथा उसे सांसारिक विषयों से कोई लगाव नहीं था।

प्रश्न 73.
गुरु रामदास जी ने पृथी चन्द को गुरु गद्दी के अयोग्य क्यों समझा?
उत्तर-
गुरु रामदास जी ने पृथी चंद को गुरुपद के अयोग्य इसलिए समझा क्योंकि वह धोखेबाज़ और षड्यन्त्रकारी था।

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प्रश्न 74.
गुरु गद्दी की प्राप्ति में गुरु अर्जन देव जी की कोई एक कठिनाई बताओ।
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी को अपने भाई पृथिया की शत्रुता तथा विरोध का सामना करना पड़ा।
अथवा
गुरु अर्जन देव जी का ब्राह्मणों तथा कट्टर मुसलमानों ने विरोध किया।

प्रश्न 75.
शहीदी देने वाले प्रथम सिक्ख गुरु का नाम बताओ।
उत्तर-
शहीदी देने वाले प्रथम गुरु का नाम गुरु अर्जन साहिब था।

प्रश्न 76.
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी का एक प्रभाव लिखो।
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी ने सिक्खों को शस्त्र उठाने के लिए प्रेरित किया। वे समझ गए कि धर्म की रक्षा के लिए शस्त्र उठाना आवश्यक है।
अथवा
गुरु जी की शहीदी के परिणामस्वरूप सिक्खों और मुग़लों के सम्बन्ध बिगड़ गए।

प्रश्न 77.
हरमंदर साहिब की योजना को कार्य रूप देने में किन दो व्यक्तियों ने गुरु अर्जन साहिब की सहायता की?
उत्तर-
हरमंदर साहिब की योजना को कार्य रूप देने में भाई बुड्डा जी तथा भाई गुरदास जी ने गुरु अर्जन साहिब की सहायता की।

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प्रश्न 78.
हरमंदर साहब का निर्माण कार्य कब पूरा हुआ?
उत्तर-
हरमंदर साहिब का निर्माण कार्य 1601 ई० में पूरा हुआ।

प्रश्न 79.
गुरु जी के प्रतिनिधियों को क्या कहते थे और वे संगतों से उनकी आय का कौन-सा भाग एकत्र करते थे?
उत्तर-
गुरु जी के प्रतिनिधियों को मसन्द कहा जाता था तथा वे संगतों से उनकी आय का दसवां भाग एकत्र करते थे।

प्रश्न 80.
आदि ग्रन्थ साहिब का संकलन किन्होंने किया?
उत्तर-
आदि ग्रन्थ साहिब का संकलन कार्य गुरु अर्जन देव जी ने किया।

प्रश्न 81.
आदि ग्रन्थ साहिब का संकलन कब सम्पूर्ण हुआ?
उत्तर-
आदि ग्रन्थ साहिब का संकलन कार्य 1604 ई० में सम्पूर्ण हुआ।

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प्रश्न 82.
‘आदि ग्रन्थ साहिब’ को कहां स्थापित किया गया?
उत्तर-
आदि ग्रन्थ साहिब को अमृतसर के हरमंदर साहिब में स्थापित किया गया। .

प्रश्न 83.
हरमंदर साहिब का पहला ग्रन्थी किस व्यक्ति को नियुक्त किया गया?
उत्तर-
हरमंदर साहिब का पहला ग्रन्थी बाबा बुड्डा जी. को नियुक्त किया गया।

प्रश्न 84.
‘आदि ग्रन्थ साहिब’ में क्रमशः गुरु नानक देव जी, गुरु अंगद देव जी, गुरु अमरदास जी तथा गुरु रामदास जी के कितने-कितने शब्द हैं?
उत्तर-
आदि ग्रन्थ साहिब में गुरु नानक देव जी के 976, गुरु अंगद देव जी के 61, गुरु अमरदास जी के 907 तथा गुरु रामदास जी के 679 शब्द हैं।

प्रश्न 85.
गुरु हरगोबिन्द जी ने धार्मिक तथा शस्त्र चलाने की शिक्षा किससे प्राप्त की?
उत्तर-
गुरु हरगोबिन्द जी ने धार्मिक तथा शस्त्र चलाने की शिक्षा भाई बुड्डा जी से प्राप्त की।

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प्रश्न 86.
गुरु हरगोबिन्द जी की गद्दी पर बैठते समय आयु कितनी थी?
उत्तर-
गुरु गद्दी पर बैठते समय उनकी आयु केवल ग्यारह वर्ष की थी।

प्रश्न 87.
गुरु हरगोबिन्द जी द्वारा नवीन नीति (सैन्य-नीति) अपनाने की कोई एक कारण बताओ।
उत्तर-
मुग़लों और सिक्खों के आपसी सम्बन्ध बिगड़ चुके थे। अतः सिक्खों की रक्षा के लिए गुरु जी ने नवीन नीति का सहारा लिया।
अथवा
सिक्ख धर्म में जाटों के प्रवेश से भी सैन्य-नीति को बल मिला।

प्रश्न 88.
गुरु हरगोबिन्द साहिब के समय तक कौन-कौन से चार स्थान सिक्खों के तीर्थ स्थान बन चुके थे?
उत्तर-
गुरु हरगोबिन्द साहिब के समय तक गोइन्दवाल, अमृतसर, तरनतारन तथा करतारपुर सिक्खों के तीर्थ स्थान बन चुके थे।

प्रश्न 89.
सिक्ख धर्म के संगठन एवं विकास में किन चार संस्थाओं ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई?
उत्तर-
सिक्ख धर्म के संगठन एवं विकास में ‘पंगत’, ‘संगत’, ‘मंजी’ तथा ‘मसन्द’ संस्थाओं ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।

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प्रश्न 90.
गुरु हरगोबिन्द साहिब के किन्हीं चार सेनानायकों के नाम बताओ।
उत्तर-
गुरु हरगोबिन्द साहिब के चार सेनानायकों के नाम विधिचन्द, पीराना, जेठा और पैंदे खां थे।

प्रश्न 91.
गुरु हरगोबिन्द साहिब ने अपने दरबार में किन दो संगीतकारों को वीर रस के गीत गाने के लिए नियुक्त किया?
उत्तर-
उन्होंने अपने दरबार में अब्दुल तथा नत्थामल नामक दो संगीतकारों को वीर रस के गीत गाने के लिए नियुक्त किया।

प्रश्न 92.
गुरु हरगोबिन्द जी को बन्दी बनाए जाने का एक कारण बताओ।
उत्तर-
जहांगीर को गुरु साहिब की नवीन नीति पसन्द न आई।
अथवा
चन्दू शाह ने जहांगीर को गुरु जी के विरुद्ध भड़काया जिससे वह गुरु जी का विरोधी हो गया।

प्रश्न 93.
गुरु हरगोबिन्द जी को ‘बन्दी छोड़ बाबा’ की उपाधि क्यों प्राप्त हुई?
उत्तर-
52 बन्दी राजाओं को मुक्त कराने के कारण।

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प्रश्न 94.
गुरु हरगोबिन्द जी के समय में मुगलों और सिक्खों के बीच कितने युद्ध हुए? यह युद्ध कब और कहां हुए?
उत्तर-
गुरु हरगोबिन्द जी के समय में मुग़लों और सिक्खों के बीच तीन युद्ध हुए। लहिरा (1631), अमृतसर (1634) तथा करतारपुर (1635)।

प्रश्न 95.
गुरु हरगोबिन्द साहिब के समय के चार प्रमुख प्रचारकों (उदासियों) के नाम लिखो।
उत्तर-
गुरु हरगोबिन्द साहिब के समय के चार प्रमुख प्रचारकों (उदासियों) के नाम अलमस्त, फूल, गौड़ा तथा बलु हसना थे।

प्रश्न 96.
गुरु हरराय जी के माता-पिता का नाम बताओ।
उत्तर-
गुरु हरराय जी के पिता का नाम बाबा गुरदित्ता जी तथा उनकी माता का नाम निहाल कौर जी था।

प्रश्न 97.
गुरु हरराय जी के बेटों के नाम बताएं।
उत्तर-
गुरु हरराय जी के बेटों के नाम थे-रामराय तथा हरकृष्ण।

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प्रश्न 98.
गुरु हरराय जी के किन्हीं चार प्रमुख नवीन शिष्यों के नाम बताओ।
उत्तर-
गुरु हरराय जी के चार प्रमुख नवीन शिष्यों के नाम थे-बैरागी भक्त गीर, भाई संगतिया, भाई गौंडी तथा भाई भगतू।

प्रश्न 99.
गुरु हरराय जी ने धर्म प्रचार के लिए किन तीन व्यक्तियों को नियुक्त किया?
उत्तर-
गुरु हरराय जी ने धर्म प्रचार के लिए कई व्यक्तियों को नियुक्त किया जिनमें से प्रमुख थे-भक्त भगवान, भाई फेरू और भाई गौंडा।

प्रश्न 100.
दिल्ली में गुरु हरकृष्ण जी जहां रुके थे आज वहां कौन-सा गुरुद्वारा है?
उत्तर-
दिल्ली में गुरु हरकृष्ण जी मिर्जा राजा जय सिंह के घर ठहरे, वहां उस स्थान पर आजकल गुरुद्वारा बंगला साहिब बना हुआ है।

II. रिक्त स्थानों की पूर्ति

  1. गुरु …………. का पहला नाम भाई लहना था।
  2. ……………. सिक्खों के चौथे गुरु थे।
  3. ……………. नामक नगर की स्थापना गुरु अंगद देव जी ने की।
  4. गुरु हरगोबिन्द साहिब ने अपने जीवन के अंतिम दस वर्ष …………. में धर्म प्रचार में व्यतीत किए।
  5. गुरु अंगद देव जी के पिता का नाम श्री …………….. और मां का नाम माता ………….. था।
  6. ‘उदासी’ मत गुरु नानक देव जी के बड़े पुत्र ………… जी ने स्थापित किया।
  7. मंजियों की स्थापना गुरु ………….. ने की।
  8. गुरु अर्जन देव जी का जन्म 15 अप्रैल, 1563 ई० को ………… में हुआ।
  9. ……….. शहीदी देने वाले प्रथम सिक्ख गुरु थे।
  10. हरमंदर साहब का निर्माण कार्य …………. ई० में पूरा हुआ।

उत्तर-

  1. अंगद साहिब,
  2. गुरु रामदास जी,
  3. गोइंदवाल साहिब,
  4. कीरतपुर साहिब,
  5. फेरूमल तथा सभराई देवी,
  6. बाबा श्रीचंद,
  7. अमर दास जी,
  8. गोइंदवाल साहिब
  9. गुरु अर्जन साहिब,
  10. 1601.

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III. बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
गोइंदवाल साहिब में बाऊली (जल-स्रोत) की नींव रखी-
उत्तर –
(A) गुरु अर्जन देव जी ने
(B) गुरु नानक देव जी ने
(C) गुरु अंगद देव जी ने
(D) गुरु तेग़ बहादुर जी ने।
उत्तर-
(C) गुरु अंगद देव जी ने

प्रश्न 2.
गुरु रामदास जी ने नगर बसाया-
(A) अमृतसर
(B) जालंधर
(C) कीरतपर साहिब
(D) गोइंदवाल साहिब।
उत्तर-
(A) अमृतसर

प्रश्न 3.
गुरु अर्जन देव जी ने रावी तथा ब्यास के बीच किस नगर की नींव रखी?
(A) जालंधर
(B) गोइंदवाल साहिब
(C) अमृतसर
(D) तरनतारन।
उत्तर-
(D) तरनतारन।

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प्रश्न 4.
गुरु अंगद देव जी को गुरुगद्दी मिली
(A) 1479 ई० में
(B) 1539 ई० में
(C) 1546 ई० में
(D) 1670 ई० में।
उत्तर-
(B) 1539 ई० में

प्रश्न 5.
गुरु अंगद देव जी ज्योति-जोत समाये
(A) 1552 ई० में
(B) 1538 ई० में
(C) 1546 ई० में
(D) 1479 ई० में।
उत्तर-
(A) 1552 ई० में

प्रश्न 6.
जहांगीर के काल में शहीद होने वाले सिख गुरु थे
(A). गुरु अंगद देव जी
(B) गुरु अमरदास जी
(C) गुरु अर्जन देव जी
(D) गुरु राम दास जी।
उत्तर-
(C) गुरु अर्जन देव जी

प्रश्न 7.
गुरु हरकृष्ण जी गुरु गद्दी पर बैठे
(A) 1661 ई० में
(B) 1670 ई० में
(C) 1666 ई० में
(D) 1538 ई० में।
उत्तर-
(A) 1661 ई० में

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प्रश्न 8.
बालगुरु के नाम से विख्यात हैं
(A) गुरु तेग़ बहादुर जी
(B) गुरु हरकृष्ण जी
(C) गुरु गोबिन्द सिंह जी
(D) गुरु अमरदास जी।
उत्तर-
(B) गुरु हरकृष्ण जी

प्रश्न 9.
‘बाबा बकाला’ वास्तव में थे
(A) गुरु तेग़ बहादुर जी
(B) गुरु हरकृष्ण जी
(C) गुरु गोबिन्द सिंह जी
(D) गुरु अमरदास जी।
उत्तर-
(A) गुरु तेग़ बहादुर जी

प्रश्न 10.
गुरु गोबिन्द सिंह जी का जन्म हुआ
(A) कीरतपुर साहिब में
(B) पटना में
(C) दिल्ली में
(D) तरनतारन में।
उत्तर-
(B) पटना में

प्रश्न 11.
गुरु अमरदास जी ज्योति-जोत समाए
(A) 1564 ई० में
(B) 1538 ई० में
(C) 1546 ई० में
(D) 1574 ई० में।
उत्तर-
(D) 1574 ई० में।

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प्रश्न 12.
गुरुगद्दी को पैतृक रूप दिया
(A) गुरु अमरदास जी ने
(B) गुरु रामदास जी ने
(C) गुरु गोबिन्द सिंह जी ने
(D) गुरु तेग़ बहादुर जी ने।
उत्तर-
(A) गुरु अमरदास जी ने

प्रश्न 13.
आदि ग्रंथ साहिब का संकलन किया-
(A) गुरु अमरदास जी ने
(B) गुरु अर्जन देव जी ने
(C) गुरु रामदास जी ने
(D) गुरु तेग़ बहादुर जी ने।
उत्तर-
(B) गुरु अर्जन देव जी ने

प्रश्न 14.
हरमंदर साहिब का पहला ग्रन्थी नियुक्त किया गया
(A) भाई पृथिया को
(B) श्री महादेव जी को
(C) बाबा बुड्डा जी को
(D) नत्थामल जी को।
उत्तर-
(C) बाबा बुड्डा जी को

प्रश्न 15.
दिल्ली में गुरु हरराय जी किस के घर-ठहरे?
(A) राजा जय सिंह के
(B) गुरु हरगोबिन्द जी के
(C) बैरागी भक्त गीर के
(D) मुगल शासक जहांगीर के।
उत्तर-
(A) राजा जय सिंह के

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IV. सत्य-असत्य कथन

प्रश्न-सत्य/सही कथनों पर (✓) तथा असत्य/ग़लत कथनों पर (✗) का निशान लगाएं

  1. गुरु अंगद साहिब का पहला नाम भाई लहना था।
  2. अकबर गुरु अमरदास जी से मिलने गोइन्दवाल आया था।
  3. गुरु रामदास जी सिखों के छठे गुरु थे।
  4. हरमंदर साहिब की नींव गुरु रामदास जी ने रखी।
  5. गुरु अर्जन देव जी ने रावी और ब्यास नदियों के बीच तरनतारन नगर की नींव रखी।
  6. गोइन्दवाल नामक नगर की स्थापना गुरु तेग बहादुर जी ने की थी।
  7. जहांगीर को गुरु अर्जन देव जी की बढ़ती हुई ख्याति से ईर्ष्या थी।
  8. गुरु हरगोबिन्द साहिब ने अपने जीवन के अन्तिम दस वर्ष कीरतपुर में धर्म प्रचार में व्यतीत किए।
  9. गुरुद्वारा बंगला साहिब पटना में स्थित है।
  10. गुरु तेग़ बहादुर जी की शहादत 1675 ई० में हुई।

उत्तर-

  1. (✓),
  2. (✓),
  3. (✗),
  4. (✗),
  5. (✓),
  6. (✗),
  7. (✓),
  8. (✓)
  9. (✗),
  10. (✓)

V. उचित मिलान

  1. भाई लहना – गुरु रामदास जी
  2. अकबर गोइन्दवाल में मिलने आया – सूफी संत मियां मीर
  3. सिक्खों के चौथे गुरु – गुरु अंगद साहिब
  4. हरमंदर साहिब की नींव रखी – गुरु अमरदास जी

उत्तर-

  1. भाई लहना-गुरु अंगद साहिब,
  2. अकबर गोइन्दवाल में मिलने आया-गुरु अमरदास जी,
  3. सिक्खों के चौथे गुरु-गुरु रामदास जी,
  4. हरमंदर साहिब की नींव रखी-सूफी संत मियां मीर।

PSEB 10th Class SST Solutions History Chapter 4 गुरु अंगद देव जी से लेकर गुरु तेग बहादुर जी तक सिक्ख गुरुओं का योगदान

छोटे उत्तर वाले प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
सिक्ख पन्थ में गुरु और सिक्ख (शिष्य) की परम्परा कैसे स्थापित हुई?
उत्तर-
गुरु नानक साहिब के 1539 में ज्योति-जोत समाने से पूर्व एक विशेष धार्मिक भाई-चारा अस्तित्व में आ चुका था। गुरु नानक देव जी इसे जारी रखना चाहते थे इसीलिए उन्होंने अपने जीवन काल में ही अपने शिष्य भाई लहना जी को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया। भाई लहना जी ने गुरु नानक साहिब के ज्योति-जोत समाने के पश्चात् गुरु अंगद देव जी के नाम से गुरुगद्दी सम्भाली। इस प्रकार गुरु और सिक्ख (शिष्यों) की परम्परा स्थापित हुई और सिक्ख इतिहास के बाद के समय में यह विचार गुरु पन्थ के सिद्धान्त के रूप में विकसित हुआ।

प्रश्न 2.
गुरु नानक साहिब ने अपने पुत्रों के होते हुए भाई लहना जी को अपना उत्तराधिकारी क्यों बनाया?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी ने अपने दो पुत्रों श्री चन्द तथा लक्षमी दास के होते हुए भी भाई लहना को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया था। उसके पीछे कुछ विशेष कारण थे

  1. आदर्श गृहस्थ जीवन का पालन गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं का मुख्य सिद्धान्त था, परन्तु उनके दोनों पुत्र गुरु जी के इस सिद्धान्त का पालन नहीं कर रहे थे। इसके विपरीत भाई लहना गुरु नानक देव जी के सिद्धान्त का पालन सच्चे मन से कर रहे थे।
  2. नम्रता तथा सेवा-भाव भी गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं का मूल मन्त्र था, परन्तु बाबा श्री चन्द नम्रता तथा सेवा-भाव दोनों ही गुणों से खाली थे। दूसरी ओर, भाई लहना नम्रता तथा सेवा-भाव की साक्षात् मूर्ति थे।
  3. गुरु नानक देव जी को वेद-शास्त्रों तथा ब्राह्मण वर्ग की सर्वोच्चता में विश्वास नहीं था। वे संस्कृत को भी पवित्र भाषा स्वीकार नहीं करते थे, परन्तु उनके पुत्र श्रीचन्द जी को संस्कृत भाषा तथा वेद-शास्त्रों में गूढ़ विश्वास था।

प्रश्न 3.
गुरु अंगद देव जी के समय में लंगर प्रथा तथा उसके महत्त्व का वर्णन करो।
उत्तर-
लंगर में सभी सिक्ख मिल कर भोजन करते थे। गुरु अंगद देव जी ने इस प्रथा को काफ़ी प्रोत्साहन दिया। लंगर प्रथा के विस्तार तथा प्रोत्साहन के कई महत्त्वपूर्ण परिणाम निकले। यह प्रथा धर्म प्रचार कार्य का एक शक्तिशाली साधन बन गई। निर्धनों के लिए एक आश्रय स्थान का कार्य करने के अतिरिक्त यह प्रचार तथा प्रसिद्धि का एक महान् यन्त्र बनी। गुरु जी के अनुयायियों द्वारा दिए गए अनुदानों, चंढ़ावे इत्यादि को इसने निश्चित रूप दिया। हिन्दुओं द्वारा अकेले में स्थापित की गई दान संस्थाएं अनेक थीं, परन्तु गुरु जी का लंगर सम्भवतः पहली संस्था थी जिसका खर्च समस्त सिक्खों के संयुक्त दान तथा भेटों से चलाया जाता था। इस बात ने सिक्खों में ऊंच-नीच की भावना को समाप्त करके एकता की भावना जागृत की।

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प्रश्न 4.
गुरु अंगद देव जी के जीवन की किस घटना से उनके अनुशासनप्रिय होने का प्रमाण मिलता है?
उत्तर-
गुरु अंगद देव जी ने सिक्खों के समक्ष अनुशासन का एक बहुत बड़ा उदाहरण प्रस्तुत किया। कहा जाता है कि सत्ता और बलवण्ड नामक दो प्रसिद्ध रबाबी उनके दरबार में रहते थे। उन्हें अपनी कला पर इतना अभिमान हो गया कि वे गुरु जी के आदेशों का उल्लंघन करने लगे। वे इस बात का प्रचार करने लगे कि गुरु जी की प्रसिद्धि केवल हमारे ही मधुर रागों और शब्दों के कारण है। इतना ही नहीं उन्होंने तो गुरु नानक देव जी की महत्ता का कारण भी मरदाना का मधुर संगीत बताया। गुरु जी ने इस अनुशासनहीनता के कारण सत्ता और बलवण्ड को दरबार से निकाल दिया। अन्त में श्रद्धालु भाई लद्धा जी की प्रार्थना पर ही उन्हें क्षमा किया गया। इस घटना का सिक्खों पर गहरा प्रभाव पड़ा। परिणामस्वरूप सिक्ख धर्म में अनुशासन का महत्त्व बढ़ गया।

प्रश्न 5.
गुरु अमरदास जी गुरु अंगद देव जी के शिष्य कैसे बने? उन्हें गुरु गद्दी कैसे मिली?
उत्तर-
गुरु अमरदास जी ने एक दिन गुरु अंगद देव जी की पुत्री बीबी अमरो के मुंह से गुरु नानक देव जी की वाणी सुनी। वे वाणी से इतने प्रभावित हुए कि तुरन्त गुरु अंगद देव जी के पास पहुंचे और उनके शिष्य बन गये। इसके पश्चात् गुरु अमरदास जी ने 1541 से 1552 ई० तक (गुरुगद्दी मिलने तक) खडूर साहिब में रह कर गुरु अंगद देव जी की खूब सेवा की। एक दिन कड़ाके की ठण्ड में अमरदास जी गुरु अंगद देव जी के स्नान के लिए पानी का घड़ा लेकर आ रहे थे। मार्ग में ठोकर लगने से वह गिर पड़े। यह देख कर एक बुनकर की. पत्नी ने कहा कि यह अवश्य निथावां (जिसके पास कोई स्थान न हो) अमरू ही होगा। इस घटना की सूचना जब गुरु अंगद देव जी को मिली तो उन्होंने अमरदास को अपने पास बुलाकर घोषणा की कि, “अब से अमरदास निथावां नहीं होगा, बल्कि अनेक निथावों का सहारा होगा।” मार्च, 1552 ई० में गुरु अंगद देव जी ने अमरदास जी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त कर दिया। इस प्रकार गुरु अमरदास जी सिक्खों के तीसरे गुरु बने।

प्रश्न 6.
गुरु अमरदास जी के समय में लंगर प्रथा के विकास का वर्णन करो।
उत्तर-
गुरु अमरदास जी ने लंगर के लिए कुछ विशेष नियम बनाये। अब कोई भी व्यक्ति लंगर में भोजन किए बिना गुरु जी से नहीं मिल सकता था। कहा जाता है कि सम्राट अकबर को गुरु जी के दर्शन करने से पहले लंगर में भोजन करना पड़ा था। गुरु जी का लंगर प्रत्येक जाति, धर्म और वर्ग के लोगों के लिए खुला था। लंगर में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा शूद्र सभी जातियों के लोग एक ही पंक्ति में बैठकर भोजन करते थे। इससे जाति-पाति तथा रंग-रूप के भेद-भावों को बड़ा धक्का लगा और लोगों में समानता की भावना का विकास हुआ। परिणामस्वरूप सिक्ख एकता के सूत्र में बंधने लगे।

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प्रश्न 7.
गुरु अमरदास जी के समय में मंजी प्रथा के विकास पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
मंजी प्रथा की स्थापना गुरु अमरदास जी ने की थी। उनके समय में सिक्खों की संख्या काफी बढ़ चुकी थी। परन्तु गुरु जी की आयु अधिक होने के कारण यह बहुत कठिन हो गया कि वे एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाकर अपनी शिक्षाओं का प्रचार करें। अत: उन्होंने अपने सारे आध्यात्मिक प्रदेश को 22 भागों में बांट दिया। इनमें से प्रत्येक भाग को ‘मंजी’ कहा जाता था। प्रत्येक मंजी छोटे-छोटे स्थानीय केन्द्रों में बंटी हुई थी जिन्हें पीड़ियां (Piris) कहते थे। मंजी प्रणाली का सिक्ख धर्म के इतिहास में विशेष महत्त्व है। डॉ० गोकुल चन्द नारंग के शब्दों में, “गुरु जी के इस कार्य ने सिक्ख धर्म की नींव सुदृढ़ करने तथा देश के सभी भागों में प्रचार कार्य को बढ़ाने में विशेष योगदान दिया होगा।”

प्रश्न 8.
“गुरु अमरदास जी एक महान् समाज सुधारक थे।” इस कथन के पक्ष में कोई चार तर्क दीजिए।
उत्तर-
गुरु अमरदास जी ने निम्नलिखित महत्त्वपूर्ण सामाजिक सुधार किए-

  1. गुरु अमरदास जी ने जाति मतभेद का खण्डन किया। गुरु जी का विश्वास था कि जाति मतभेद परमात्मा की इच्छा के विरुद्ध है। इसलिए गुरु जी के लंगर में जाति-पाति का कोई भेद-भाव नहीं रखा जाता था।
  2. उस समय सती प्रथा जोरों से प्रचलित थी। गुरु जी ने इस प्रथा के विरुद्ध जोरदार आवाज़ उठाई।
  3. गुरु जी ने स्त्रियों में प्रचलित पर्दे की प्रथा की भी घोर निन्दा की। वे पर्दे की प्रथा को समाज की उन्नति के मार्ग में एक बहुत बड़ी बाधा मानते थे।
  4. मुरु अमरदास जी नशीली वस्तुओं के सेवन के भी घोर विरोधी थे। उन्होंने अपने अनुयायियों को सभी नशीली वस्तुओं से दूर रहने का निर्देश दिया।

प्रश्न 9.
पंथ के विकास में गुरु अर्जन देव जी के योगदान की चर्चा कीजिए।
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी सिक्खों के पांचवें गुरु थे। उन्होंने सिक्ख धर्म के विकास के लिए अनेक कार्य किये

  1. उन्होंने अमृतसर में हरमंदर साहिब का निर्माण कार्य पूरा करवाया।
  2. उन्होंने तरनतारन और करतारपुर नगरों की नींव रखी।
  3. उन्होंने श्री गुरु ग्रन्थ साहिब की बीड़ तैयार की और उसे हरमंदर साहिब में स्थापित किया। उन्होंने बाबा बुड्डा जी को वहां का प्रथम ग्रन्थी नियुक्त किया।
  4. सिक्ख पहले अपनी इच्छा से गुरु जी को भेंट देते थे, परन्तु अब गुरु जी ने सिक्खों से आय का दसवां भाग एकत्रित करने के लिए स्थान-स्थान पर सेवक रखे। इन सेवकों को मसन्द कहते थे।

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प्रश्न 10.
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी पर एक संक्षिप्त नोट लिखो। सिक्ख इतिहास में इसका क्या महत्त्व है?
उत्तर-
मुग़ल सम्राट अकबर के गुरु अर्जन देव जी के साथ बहुत अच्छे सम्बन्ध थे। परन्तु अकबर की मृत्यु के पश्चात् जहांगीर ने सहनशीलता की नीति को छोड़ दिया। वह उस अवसर की खोज में रहने लगा जब वह सिक्ख धर्म पर करारी चोट कर सके। इसी बीच जहांगीर के पुत्र खुसरो ने उसके विरुद्ध विद्रोह कर दिया। खुसरो पराजित होकर गुरु अर्जन देव जी के पास आया। गुरु जी ने उसे आशीर्वाद दिया। इस आरोप में जहांगीर ने गुरु अर्जन देव जी पर दो लाख रुपये जुर्माना लगा दिया। परन्तु गुरु जी ने जुर्माना देने से इन्कार कर दिया। इसलिए उन्हें बन्दी बना लिया गया और अनेक यातनाएं देकर शहीद कर दिया गया। गुरु अर्जन देव जी की शहीदी से सिक्ख भड़क उठे। वे समझ गए कि उन्हें अब अपने धर्म की रक्षा के लिए शस्त्र धारण करने पड़ेंगे।

प्रश्न 11.
आदि ग्रन्थ साहिब का सिक्ख इतिहास में क्या महत्त्व है?
उत्तर-
आदि ग्रन्थ साहिब के संकलन से सिक्ख इतिहास को एक ठोस आधारशिला मिली। यह सिक्खों के लिए पवित्र और प्रमाणिक बन गया। उनके जन्म, नामकरण, विवाह, मृत्यु आदि सभी संस्कार इसी ग्रन्थ को साक्षी मान कर सम्पन्न होने लगे। इसके अतिरिक्त आदि ग्रन्थ साहिब के प्रति श्रद्धा रखने वाले सभी सिक्खों में जातीय प्रेम की भावना जागृत हुई और वे एक अलग पंथ के रूप में उभरने लगे। आगे चल कर इसी ग्रन्थ साहिब को ‘गुरु पद’ प्रदान किया गया और सभी सिक्ख इसे गुरु मान कर पूजने लगे। आज सभी सिक्ख गुरु ग्रन्थ साहिब में संग्रहित वाणी को आलौकिक ज्ञान का भण्डार मानते हैं। उनका विश्वास है कि इसका श्रद्धापूर्वक अध्ययन करने से सच्चा आनन्द प्राप्त होता है।

प्रश्न 12.
आदि ग्रन्थ साहिब के ऐतिहासिक महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
आदि ग्रन्थ साहिब सिक्खों का पवित्र धार्मिक ग्रन्थ है। यद्यपि इसे ऐतिहासिक दृष्टिकोण से नहीं लिखा गया, तो भी इसका अत्यन्त ऐतिहासिक महत्त्व है। इसके अध्ययन से हमें 16वीं तथा 17वीं शताब्दी के पंजाब के राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक तथा सांस्कृतिक जीवन की अनेक बातों का पता चलता है। गुरु नानक देव जी ने अपनी वाणी में लोधी शासन तथा पंजाब के लोगों पर बाबर द्वारा किये गये अत्याचारों की घोर निन्दा की। उस समय की सामाजिक अवस्था के विषय में पता चलता है कि देश में जाति-प्रथा जोरों पर थी, नारी का कोई आदर नहीं था तथा समाज में अनेक व्यर्थ के रीति-रिवाज प्रचलित थे। इसके अतिरिक्त धर्म माम की कोई चीज नहीं रही थी। गुरु नानक देव जी ने स्वयं लिखा है “न कोई हिन्दू है, न कोई मुसलमान” अर्थात् दोनों ही धर्मों के लोग पथ भ्रष्ट हो चुके थे।

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प्रश्न 13.
किन्हीं चार परिस्थितियों का वर्णन करो जो गुरु अर्जन देव जी की शहीदी के लिए उत्तरदायी थीं।
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी के मुख्य कारण निम्नलिखित थे —

  1. जहांगीर की धार्मिक कट्टरता-मुग़ल सम्राट जहांगीर गुरु जी से घृणा करता था। वह या तो उन्हें मारना चाहता था या फिर उन्हें मुसलमान बनने के लिए बाध्य करना चाहता था।
  2. पृथिया की शत्रुता-गुरु रामदास जी ने गुरु अर्जन देव जी की बुद्धिमत्ता से प्रभावित होकर उन्हें अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया था, परन्तु यह बात गुरु अर्जन देव जी का बड़ा भाई पृथिया सहन न कर सका। इसलिए वह गुरु साहिब के विरुद्ध षड्यन्त्र रचने लगा।
  3. गुरु जी का शाही ठाठ-बाठ-गुरु जी ने एक शानदार दरबार की स्थापना कर ली थी और वह शाही ठाठ-बाठ से रहने लगे थे। उन्होंने अब ‘सच्चा पातशाह’ की उपाधि धारण कर ली थी। मुग़ल सम्राट् जहांगीर इस बात को सहन न कर सका और उसने गुरु जी के विरुद्ध कार्यवाही करने का निश्चय कर लिया।
  4. गुरु अर्जन देव जी पर जुर्माना-धीरे-धीरे जहांगीर की धर्मान्धता चरम सीमा पर पहुंच गई। उसने विद्रोही राजकुमार खुसरो की सहायता करने के अपराध में गुरु जी पर दो लाख रुपये जुर्माना कर दिया। परंतु गुरु जी ने यह जुर्माना देने से इन्कार कर दिया। इस पर उसने गुरु जी को कठोर शारीरिक कष्ट देकर शहीद कर दिया।

प्रश्न 14.
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी की क्या प्रतिक्रिया हुई?
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी की महत्त्वपूर्ण प्रतिक्रिया हुई —

  1. गुरु अर्जन देव जी ने ज्योति-जोत समाने से पहले अपने पुत्र हरगोबिन्द के नाम यह सन्देश छोड़ा, “वह समय बड़ी तेजी से आ रहा है जब भलाई और बुराई की शक्तियों की टक्कर होगी। अतः मेरे पुत्र तैयार हो जा, आप शस्त्र पहन और अपने अनुयायियों को शस्त्र पहना।” गुरु जी के इन अन्तिम शब्दों ने सिक्खों में सैनिक भावना को जागृत कर लिया। अब सिक्ख ‘सन्त सिपाही’ बन गए जिनके एक हाथ में माला थी और दूसरे हाथ में तलवार।।
  2. गुरु जी की शहीदी से पूर्व सिक्खों तथा मुग़लों के आपसी सम्बन्ध अच्छे थे। परन्तु इस शहीदी ने सिक्खों की धार्मिक भावनाओं को भड़का दिया जिससे उनके मन में मुगल राज्य के प्रति घृणा उत्पन्न हो गई।
  3. इस शहीदी से सिक्ख धर्म को लोकप्रियता मिली। सिक्ख अब अपने धर्म के लिए अपना सर्वस्व बलिदान करने को तैयार हो गए। निःसन्देह गुरु अर्जन देव जी की शहीदी सिक्ख इतिहास में एक नया मोड़ सिद्ध हुई।

प्रश्न 15.
गुरु अर्जन देव जी के चरित्र तथा व्यक्तित्व के किन्हीं चार महत्त्वपूर्ण पहलुओं को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
पांचवें सिक्ख गुरु अर्जन देव जी उच्च कोटि के चरित्र तथा व्यक्तित्व के स्वामी थे। उनके चरित्र के चार विभिन्न पहलुओं का वर्णन इस प्रकार है —

  1. गुरु जी एक बहुत बड़े धार्मिक नेता और संगठनकर्ता थे। उन्होंने सिक्ख धर्म का उत्साहपूर्वक प्रचार किया और मसन्द प्रथा में आवश्यक सुधार करके सिक्ख समुदाय को एक संगठित रूप प्रदान किया।
  2. गुरु साहिब एक महान् निर्माता भी थे। उन्होंने अमृतसर नगर का निर्माण कार्य पूरा किया, वहां के सरोवर में हरमंदर साहिब का निर्माण करवाया और तरनतारन, हरगोबिन्दपुर आदि नगर बसाये। लाहौर में उन्होंने एक बावली बनवाई।
  3. उन्होंने ‘आदि ग्रन्थ साहिब’ का संकलन करके एक महान् सम्पादक होने का परिचय दिया।
  4. उनमें एक समाज सुधारक के भी सभी गुण विद्यमान थे। उन्होंने विधवा विवाह का प्रचार किया और नशीली वस्तुओं के सेवन को बुरा बताया। उन्होंने एक बस्ती की स्थापना करवाई जहां रोगियों को औषधियों के साथ-साथ मुफ्त भोजन तथा वस्त्र भी दिए जाते थे।

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प्रश्न 16.
किन्हीं चार परिस्थितियों का वर्णन करो जिनके कारण गुरु हरगोबिन्द जी को नवीन नीति अपनानी पड़ी।
उत्तर-
गुरु हरगोबिन्द जी ने निम्नलिखित कारणों से नवीन नीति को अपनाया

  1. मुगलों की शत्रुता तथा हस्तक्षेप-मुग़ल सम्राट् जहांगीर ने गुरु अर्जन देव जी की शहीदी के बाद भी सिक्खों के प्रति दमन की नीति जारी रखी। फलस्वरूप नए गुरु हरगोबिन्द जी के लिए सिक्खों की रक्षा करना आवश्यक हो गया और उन्हें नवीन नीति का आश्रय लेना पड़ा।
  2. गुरु अर्जन देव जी की शहीदी-गुरु अर्जन देव जी की शहीदी से यह स्पष्ट हो गया था कि यदि सिक्ख धर्म को बचाना है तो सिक्खों को माला के साथ-साथ शस्त्र भी धारण करने पड़ेंगे। इसी उद्देश्य से गुरु जी ने ‘नवीन नीति’ अपनाई।
  3. गुरु अर्जन देव जी के अन्तिम शब्द-गुरु अर्जन देव जी ने शहीदी से पहले अपने सन्देश में सिक्खों को शस्त्र धारण करने के लिए कहा था। अतः गुरु हरगोबिन्द जी ने सिक्खों को आध्यात्मिक शिक्षा देने के साथ-साथ सैनिक शिक्षा भी देनी आरम्भ कर दी।
  4. जाटों का सिक्ख धर्म में प्रवेश-जाटों के सिक्ख धर्म में प्रवेश के कारण भी गुरु हरगोबिन्द जी को नवीन नीति अपनाने पर विवश होना पड़ा। ये लोग स्वभाव से ही स्वतन्त्रता प्रेमी थे और युद्ध में उनकी विशेष रुचि थी।

प्रश्न 17.
गुरु हरगोबिन्द जी के जीवन तथा कार्यों पर प्रकाश डालो।
उत्तर-
गुरु हरगोबिन्द जी सिक्खों के छठे गुरु थे। उन्होंने सिक्ख पन्थ को एक नया मोड़ दिया। –

  1. उन्होंने गुरुगद्दी पर बैठते ही दो तलवारें धारण की। एक तलवार मीरी की और दूसरी पीरी की। इस प्रकार सिक्ख गुरु धार्मिक नेता होने के साथ-साथ राजनीतिक नेता भी बन गये।
  2. उन्होंने हरमंदर साहिब के सामने एक नया भवन बनवाया। यह भवन अकाल तख्त के नाम से प्रसिद्ध है। गुरु हरगोबिन्द जी ने सिक्खों को शस्त्रों का प्रयोग करना भी सिखलाया।
  3. जहांगीर ने गुरु हरगोबिन्द जी को ग्वालियर के किले में बन्दी बना लिया। कुछ समय के पश्चात् जहांगीर को पता चल गया कि गुरु जी निर्दोष हैं। इसलिए उनको छोड़ दिया गया। परन्तु गुरु जी के कहने पर जहांगीर को उनके साथ के बन्दी राजाओं को भी छोड़ना पड़ा।
  4. गुरु जी ने मुग़लों के साथ युद्ध भी किए। मुग़ल सम्राट् शाहजहां ने तीन बार गुरु जी के विरुद्ध सेना भेजी। गुरु जी ने बड़ी वीरता से उनका सामना किया। फलस्वरूप मुग़ल विजय प्राप्त करने में सफल न हो सके।

प्रश्न 18.
सिक्ख धर्म के प्रति गुरु हरराय जी की कोई चार सेवाएं बताओ।
उत्तर-
गुरु हरराय जी ने सिक्ख धर्म के प्रचार के लिए निम्नलिखित कार्य किए

  1. वे प्रतिदिन प्रातः तथा सायंकाल को धर्म सभाएं करके सिक्ख धर्म का प्रचार करते थे। वे लोगों को धार्मिक जीवन व्यतीत करने के लिए प्रोत्साहित करते थे।
  2. उन्होंने अनेक लोगों को इस धर्म का अनुयायी बनाया। उनके नवीन शिष्यों में प्रमुख व्यक्तियों के नाम थेबैरागी भक्त गीर, भाई संगतिया, भाई गौंडा तथा भाई भगतु।
  3. उन्होंने सिक्ख धर्म के प्रचार के लिए स्थान-स्थान पर प्रचारक भेजे। उन्होंने ‘भक्त गीर’ नामक एक बैरागी साधु को अपना शिष्य बना लिया और उसका नाम भक्त भगवान् रखा। उसने भारतवर्ष में लगभग 360 गद्दियां स्थापित की। इनमें से कुछ गद्दियां आज भी मौजूद हैं।
  4. गुरु हरराय जी स्वयं भी धर्म प्रचार के लिए पंजाब में कई स्थानों पर गए और उन्होंने वहां अनेक अनुयायी बनाए।

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बड़े उत्तर वाले प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
उन परिस्थितियों का वर्णन करो जो गुरु अर्जन देव जी की शहीदी के लिए उत्तरदायी थीं। इस शहीदी का क्या महत्त्व है?
अथवा
“गुरु अर्जन देव जी के बलिदान ने सिक्ख इतिहास के पन्ने पलट दिए।” इस कथन की पुष्टि करो।
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी उन महापुरुषों में से एक थे जिन्होंने धर्म की खातिर अपने प्राणों की आहुति दे दी। उनकी शहीदी के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं.

  1. सिक्ख धर्म का विस्तार-गुरु अर्जन देव जी के समय सिख धर्म का तेजी से विस्तार हो रहा था। कई नगरों की स्थापना, श्री हरमंदर साहिब के निर्माण तथा आदि ग्रंथ साहिब के संकलन के कारण लोगों की सिक्ख धर्म में आस्था बढ़ती जा रही थी। दसबंध प्रथा के कारण गुरु साहिब की आय में वृद्धि हो रही थी। अतः लोग गुरु अर्जन देव जी को ‘सच्चे पातशाह’ कह कर पुकारने लगे थे। मुग़ल सम्राट् जहांगीर इस स्थिति को राजनीतिक संकट के रूप में देख रहा था।
  2. जहांगीर की धार्मिक कट्टरता-1605 ई० में जहांगीर मुग़ल सम्राट् बना। यह सिक्खों के प्रति घृणा की भावना रखता था। इसलिए वह गुरु जी से घृणा करता था। वह या तो उनको मारना चाहता था और या फिर उन्हें मुसलमान बनने के लिए बाध्य करना चाहता था। अत: यह मानना ही पड़ेगा कि गुरु जी की शहीदी में जहांगीर का पूरा हाथ था।
  3. पृथिया (पिरथी चन्द) की शत्रुता-गुरु रामदास जी ने गुरु अर्जन देव जी की बुद्धिमता से प्रभावित होकर उन्हें अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया था। परन्तु यह बात गुरु अर्जन देव जी का बड़ा भाई पृथिया सहन न कर सका। उसने मुगल सम्राट अकबर से यह शिकायत की कि गुरु अर्जन देव जी एक ऐसे धार्मिक ग्रंथ (आदि ग्रंथ साहिब) की रचना कर रहे हैं, जो इस्लाम धर्म के सिद्धांतों के विरुद्ध है, परन्तु सहनशील अकबर ने गुरु जी के विरुद्ध कोई कार्यवाही न की। इसके बाद पृथिया लाहौर के गवर्नर सुलेही खां तथा वहां के वित्त मंत्री चंदुशाह से मिलकर गुरु अर्जन देव जी के विरुद्ध षड्यंत्र रचने लगा। मरने से पहले वह मुग़लों के मन में गुरु जी के विरुद्ध घृणा के बीज बो गया।
  4. नक्शबंदियों का विरोध-नक्शबंदी लहर एक मुस्लिम लहर थी जो गैर मुसलमानों को कोई भी सुविधा दिए जाने के विरुद्ध थे। इस लहर के एक नेता शेख अहमद सरहिंदी के नेतृत्व में मुसलमानों ने गुरु अर्जन देव जी के विरुद्ध सम्राट अकबर से शिकायत की। परन्तु एक उदारवादी शासक होने के कारण अकबर ने नक्शबंदियों की शिकायतों की ओर कोई ध्यान न दिया। अत: अकबर की मृत्यु के बाद नक्शबंदियों ने जहांगीर को गुरु साहिब के विरुद्ध भड़कना शुरु कर दिया।
  5. चन्दू शाह की शत्रुता-चन्दू शाह लाहौर का दीवान था। गुरु अर्जन देव जी ने उसकी पुत्री के साथ अपने पुत्र का विवाह करने से इन्कार कर दिया था। अतः उसने पहले सम्राट अकबर को तथा बाद में जहांगीर को गुरु जी के विरुद्ध यह कह कर भड़काया कि उन्होंने विद्रोही राजकुमार की सहायता की है। जहांगीर पहले ही गुरु जी के बढ़ते हुए प्रभाव को रोकना चाहता था। इसलिए वह गुरु जी के विरुद्ध कठोर पग उठाने के लिए तैयार हो गया।
  6. आदि ग्रन्थ साहिब का संकलन-गुरु जी ने आदि ग्रन्थ साहिब का संकलन किया था। गुरु जी के शत्रुओं ने जहांगीर को बताया कि आदि ग्रन्थ साहिब में इस्लाम धर्म के विरुद्ध बहुत कुछ लिखा गया है। अत: जहांगीर ने गुरु जी को आदेश दिया कि आदि ग्रन्थ साहिब में से ऐसी सभी बातें निकाल दी जाएं जो इस्लाम धर्म के विरुद्ध हों। इस पर गुरु जी ने उत्तर दिया, “आदि ग्रन्थ साहिब से हम एक भी अक्षर निकालने के लिए तैयार नहीं हैं क्योंकि इसमें हमने कोई भी ऐसी बात नहीं लिखी जो किसी धर्म के विरुद्ध हो।” कहते हैं कि यह उत्तर पाकर जहांगीर ने गुरु अर्जन देव जी से कहा कि वे इस ग्रन्थ में मुहम्मद साहिब के विषय में भी कुछ लिख दें। परन्तु गुरु जी ने जहांगीर की यह बात स्वीकार न की और कहा कि इस विषय में ईश्वर के आदेश के सिवा किसी अन्य के आदेश का पालन नहीं किया जा सकता।
  7. राजकुमार खुसरो का मामला (तात्कालिक कारण)-खुसरो जहांगीर का सबसे बड़ा पुत्र था। उसने अपने पिता के विरुद्ध विद्रोह कर दिया। जहांगीर की सेनाओं ने उसका पीछा किया। वह भाग कर गुरु अर्जन देव जी की शरण में पहुंचा। कहते हैं कि गुरु जी ने उसे आशीर्वाद दिया और उसे लंगर भी छकाया। परन्तु गुरु साहिब के विरोधियों ने जहांगीर के कान भरे कि गुरु साहिब ने खुसरो की धन से सहायता की है। इसे गुरु जी का अपराध माना गया और उन्हें बंदी बनने का आदेश दिया गया।
  8. शहीदी-गुरु साहिब को 24 मई, 1606 ई० को बंदी के रूप में लाहौर लाया गया। उपर्युक्त बातों के कारण जहांगीर की धर्मान्धता चरम सीमा पर थी। अतः उसने गुरु अर्जन देव जी को शहीद करने का आदेश जारी कर दिया। शहीदी से पहले गुरु साहिब को कठोर यातनाएं दी गईं। कहा जाता है कि उन्हें तपते लोहे पर बिठाया गया और उनके शरीर पर गर्म रेत डाली गई। 30 मई 1606 ई० को गुरु जी शहीदी को प्राप्त हुए। उन्हें शहीदों का ‘सरताज’ कहा जाता है।
    शहीदी का महत्त्व-गुरु अर्जन देव जी की शहीदी को सिक्ख इतिहास में बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है।

    1. गुरु जी की शहीदी ने सिक्खों में सैनिक भावना जागृत की। अतः शान्तिप्रिय सिक्ख जाति ने लड़ाकू जाति का रूप धारण कर लिया। वास्तव में वे ‘सन्त सिपाही’ बन गए।
    2. गुरु जी की शहीदी से पूर्व सिक्खों तथा मुगलों के आपसी सम्बन्ध अच्छे थे। परन्तु इस शहीदी ने सिक्खों की धार्मिक भावनाओं को भड़का दिया और उनके मन में मुग़ल राज्य के प्रति घृणा पैदा हो गई।
    3. इस शहीदी से सिक्ख धर्म को लोकप्रियता मिली। सिक्ख अब अपने धर्म के लिए अपना सब कुछ बलिदान करने के लिए तैयार हो गए।
      निःसन्देह गुरु अर्जन देव जी की शहीदी सिक्ख इतिहास में एक नया मोड़ सिद्ध हुई। इसने शान्तिप्रिय सिक्खों को सन्त सिपाही बना दिया। उन्होंने समझ लिया कि यदि उन्हें अपने धर्म की रक्षा करनी है तो उन्हें शस्त्र धारण करने ही पड़ेंगे।

प्रश्न 2.
उन परिस्थितियों का वर्णन करो जो गुरु तेग बहादुर जी की शहीदी के लिए उत्तरदायी थीं। सिक्ख इतिहास में इसका क्या महत्त्व है?
उत्तर-
गुरु तेग़ बहादुर जी की शहीदी निम्नलिखित कारणों से हुई.

  1. सिक्खों और मुगलों में बढ़ता हुआ विरोध-जहांगीर ने सिक्ख गुरु अर्जन देव जी को शहीद किया था। अतः सिक्खों ने आत्मरक्षा के लिए शस्त्र धारण करने आरम्भ कर दिए थे। उनके शस्त्र धारण करते ही मुग़लों तथा सिक्खों में शत्रुता इतनी गहरी हो गई जो आगे चलकर गुरु तेग़ बहादुर जी के बलिदान का कारण बनी।
  2. औरंगजेब की असहनशीलता की नीति-औरंगजेब एक कट्टर सुन्नी मुसलमान था। उसने अपनी हिन्दू जनता । पर अत्याचार करने शुरू कर दिए और उन पर अनेक प्रतिबन्ध लगा दिए। उन्हें जबरदस्ती मुसलमान बनाने का प्रयास भी किया। औरंगज़ेब द्वारा निर्दोष लोगों पर लगाए जा रहे प्रतिबन्धों ने गुरु तेग बहादुर जी के मन पर बड़ा गहरा प्रभाव डाला और उन्होंने निश्चय कर लिया कि वे अपनी जान देकर भी इन अत्याचारों से लोगों की रक्षा करेंगे। आखिर उन्होंने यही किया।
  3. सिक्ख धर्म का उत्साहपूर्ण प्रचार-गुरु नानक देव जी के पश्चात् गुरु तेग़ बहादुर जी ही सिक्खों के एक ऐसे गुरु थे जिन्होंने स्थान-स्थान पर भ्रमण करके सिक्ख मत का प्रचार किया। औरंगजेब सिक्ख धर्म के इस प्रचार को सहन न कर सका। वह मन ही मन सिक्ख गुरु तेग बहादुर जी से ईर्ष्या करने लगा।
  4. राम राय की शत्रुता-गुरु हरकृष्ण जी के भाई रामराय ने औरंगजेब से शिकायत की कि गुरु जी का धर्म प्रचार का कार्य राष्ट्र हित के विरुद्ध है। उसकी बातों में आकर औरंगजेब ने गुरु जी को सफ़ाई पेश करने के लिए मुग़ल दरबार में (दिल्ली) बुलाया और यहां गुरु जी ने अपने प्राणों की आहुति दे दी।
  5. कश्मीरी ब्राह्मणों की पुकार-कुछ कश्मीरी ब्राह्मण मुसलमानों के अत्याचारों से तंग आ चुके थे। गुरु साहिब ने महसूस किया कि धर्म को बलिदान की आवश्यकता है। अतः उन्होंने ब्राह्मणों से कहा कि वे औरंगजेब से जाकर कहें कि “पहले गुरु तेग़ बहादुर को मुसलमान बनाओ, फिर हम सब लोग भी आपके धर्म को स्वीकार कर लेंगे।”

इस प्रकार आत्म-बलिदान की भावना से प्रेरित होकर गुरु तेग़ बहादुर जी दिल्ली की ओर चल पड़े जहां उन्हें शहीद कर दिया गया। महत्त्व-इतिहास में गुरु तेग़ बहादुर साहिब की शहीदी के महत्त्व को निम्नलिखित बातों के आधार पर जाना जा सकता है

  1. धर्म की रक्षा के लिए बलिदान की परम्परा को बनाये रखना-गुरु तेग़ बहादुर जी ने धर्म की रक्षा के लिए अपने जीवन का बलिदान देकर गुरु साहिबान द्वास बलिदान की परम्परा को बनाए रखा।
  2. मुग़लों के अत्याचारों के विरुद्ध घृणा तथा बदले की भावनाएं-गुरु तेग बहादुर जी के बलिदान से सारे पंजाब में मुग़लों के अत्याचारों के विरुद्ध घृणा तथा बदले की भावनाएं भड़क उठीं।
  3. खालसा की स्थापना-गुरु तेग़ बहादुर जी के बलिदान से गुरु गोबिन्द सिंह जी इस परिणाम पर पहुंचे कि जब तक भारत में मुग़ल राज्य रहेगा, तब तक धार्मिक अत्याचार समाप्त नहीं होंगे। मुग़ल अत्याचारों का सामना करने के लिए उन्होंने 1699 ई० में आनन्दपुर साहिब में खालसा की स्थापना की।
  4. मुगल साम्राज्य को धक्का-गुरु तेग बहादुर जी के बलिदान ने मुग़ल साम्राज्य की नींव हिला दी। गुरु गोबिन्द सिंह जी के वीर खालसा मुग़ल साम्राज्य से निरन्तर जूझते रहे जिससे मुग़लों की शक्ति को भारी धक्का लगा।

PSEB 10th Class SST Solutions History Chapter 4 गुरु अंगद देव जी से लेकर गुरु तेग बहादुर जी तक सिक्ख गुरुओं का योगदान

गुरु अंगद देव जी से लेकर गुरु तेग बहादुर जी तक सिक्ख गुरुओं का योगदान PSEB 10th Class History Notes

  • गुरु अंगद देव जी-दूसरे सिक्ख गुरु अंगद देव जी ने गुरु नानक साहिब की वाणी एकत्रित की और इसे गुरुमुखी लिपि में लिखा। उनका यह कार्य गुरु अर्जन साहिब द्वारा संकलित ‘ग्रन्थ साहिब’ की तैयारी का पहला चरण सिद्ध हुआ। गुरु अंगद देव जी ने स्वयं भी गुरु नानक देव जी के नाम से वाणी की रचना की। इस प्रकार उन्होंने गुरु पद की एकता को दृढ़ किया। संगत और पंगत की संस्थाएं गुरु अंगद साहिब के अधीन भी जारी रहीं।
  • गुरु अमरदास जी-गुरु अमरदास जी सिक्खों के तीसरे गुरु थे। वह 22 वर्ष तक गुरुगद्दी पर रहे। वह खडूर साहिब से गोइन्दवाल चले गए। वहां उन्होंने एक बावली बनवाई जिसमें उनके सिक्ख (शिष्य) धार्मिक अवसरों पर स्नान करते थे। गुरु अमरदास जी ने विवाह की एक साधारण विधि प्रचलित की और इसे आनन्द-कारज का नाम दिया। उनके समय में सिक्खों की संख्या काफ़ी बढ़ गई।
  • गुरु रामदास जी-चौथे गुरु रामदास जी ने रामदासपुर (आधुनिक अमृतसर) में रह कर प्रचार कार्य आरम्भ किया। इसकी नींव गुरु अमरदास जी के जीवन-काल के अन्तिम वर्षों में रखी गई थी। श्री रामदास जी ने रामदासपुर में एक बहुत बड़ा सरोवर बनवाया जो अमृतसर अर्थात् अमृत के सरोवर के नाम से प्रसिद्ध हुआ। उन्हें अमृतसर तथा सन्तोखसर नामक तालाबों की खुदाई के लिए काफ़ी धन की आवश्यकता थी। इसलिए उन्होंने मसन्द प्रथा का श्रीगणेश किया। उन्होंने गुरुगद्दी को पैतृक रूप भी प्रदान किया।
  • गुरु अर्जन देव जी-गुरु अर्जन देव जी सिक्खों के पांचवें गुरु थे। आपने अमृतसर में हरमंदर साहिब का निर्माण कार्य पूरा करवाया। आपने तरनतारन और करतारपुर नगरों की नींव रखी। आपने श्री गुरु ग्रन्थ साहिब की बीड़ तैयार की और उसे हरमंदर साहिब में स्थापित किया। बाबा बुड्डा जी को वहां का प्रथम ग्रन्थी नियुक्त किया गया। गुरु साहिब ने धर्म की रक्षा के लिए अपनी शहीदी देकर सिक्ख धर्म को सुदृढ़ बनाया।
  • गुरु हरगोबिन्द जी-गुरु हरगोबिन्द जी सिक्खों के छठे गुरु थे। उन्होंने गुरुगद्दी पर बैठते ही ‘नवीन नीति’ अपनाई। इसके अनुसार वह सिक्खों के धार्मिक नेता होने के साथ-साथ राजनीतिक नेता भी बन गये। उन्होंने हरमंदर साहिब के सामने एक नया भवन बनवाया। यह भवन अकाल तख्त के नाम से प्रसिद्ध है। गुरु हरगोबिन्द जी ने सिक्खों को शस्त्रों का प्रयोग करना भी सिखलाया।
  • श्री गुरु हरराय जी तथा श्री हरकृष्ण जी-गुरु हरगोबिन्द जी के पश्चात् श्री गुरु हरराय जी तथा श्री गुरु हरकृष्ण जी ने सिक्खों का धार्मिक नेतृत्व किया। उनका समय सिक्ख इतिहास में शान्तिकाल कहलाता है।
  • श्री गुरु तेग बहादुर जी-नौवें गुरु तेग़ बहादुर जी गुरु नानक देव जी की भान्ति शान्त स्वभाव, गुरु अर्जन देव जी की भान्ति आत्म-त्यागी तथा पिता गुरु हरगोबिन्द जी की भान्ति साहसी तथा निर्भीक थे। उन्होंने बड़ी निर्भीकता से सिक्ख धर्म का नेतृत्व किया। उन्होंने अपनी शहीदी द्वारा सिक्ख धर्म में एक नवीन क्रान्ति पैदा कर दी।
  • मसन्द प्रथा-‘मसन्द’ फ़ारसी भाषा के शब्द मसनद से लिया गया है। इसका अर्थ है-‘उच्च स्थान’। गुरु रामदास जी द्वारा स्थापित इस संस्था को गुरु अर्जन देव जी ने संगठित रूप दिया। परिणामस्वरूप उन्हें सिक्खों से निश्चित धन-राशि प्राप्त होने लगी।
  • आदि ग्रन्थ का संकलन-आदि ग्रन्थ साहिब का संकलन कार्य गुरु अर्जन देव जी ने किया। गुरु अर्जन देव जी लिखवाते जाते थे और उनके प्रिय शिष्य भाई गुरदास जी लिखते जाते थे। आदि ग्रन्थ साहिब का संकलन कार्य 1604 ई० में सम्पूर्ण हुआ।
  • मीरी तथा पीरी-गुरु हरगोबिन्द साहिब ने ‘मीरी’ और ‘पीरी’ नामक दो तलवारें धारण कीं। उनके द्वारा धारण की गई ‘मीरी’ तलवार सांसारिक विषयों में नेतृत्व का प्रतीक थी। ‘पीरी’ तलवार आध्यात्मिक विषयों में नेतृत्व का प्रतीक थी।

बॉस्केट बाल (Basket Ball) Game Rules – PSEB 10th Class Physical Education

Punjab State Board PSEB 10th Class Physical Education Book Solutions बॉस्केट बाल (Basket Ball) Game Rules.

बॉस्केट बाल (Basket Ball) Game Rules – PSEB 10th Class Physical Education

याद रखने योग्य बातें

  1. बॉस्केट बाल कोर्ट की लम्बाई और चौड़ाई = 28 × 15 मीटर
  2. बॉस्केट बाल टीम के खिलाड़ी = 12 खिलाड़ी खेलते हैं, सात बदलवें
  3. कोर्ट के केन्द्रीय चर्क का अर्धव्यास = 1.80 मीटर सैं०मी०
  4. रेखाओं की चौड़ाई = 5 सैं० मी०
  5. बोर्ड की मोटाई = 3 सैं० मी०
  6. बोर्ड की ज़मीन से निचले भाग की ऊंचाई = 2.90 मीटर
  7. बोर्ड का आकार = 180 × 120 मीटर
  8. बाल का घेरा = 75 से 78 सै० मी०
  9. बाल का भार = 600 से 650 ग्राम
  10. बोर्ड के आयात का साइज़ = 49 × 45 ग्राम
  11. पोलों की दूरी = 2 मीटर
  12. खेल का समय = 40 मिनट के चार क्वाटर 10-2-10 (10) 10-2-10
  13. बास्केट बाल के अधिकारी = एक टेबल कमिश्नर, एक रैफरी, एक अम्पायर, एक चीफ रैफरी, एक टाइम कीपर, एक स्कोरर कम 24 सैकिण्ड आपरेटर
  14. फालतू समय की मियाद = 5 मिनट
  15. दो मध्य के बीच आराम = 10 मिनट।

बास्केट बाल खेल की संक्षेप रूपरेखा
(Brief outline of the Basket-Ball)

  1. बॉस्केट बाल का मैच दो टीमों के मध्य होता है। प्रत्येक टीम में पाँच-पाँच खिलाड़ी होते हैं। इसके अतिरिक्त सात अतिरिक्त खिलाड़ी होते हैं जिन्हें हम बदलवें खिलाड़ी (Substitutes) कहते हैं।
  2. प्रत्येक टीम चाहती है कि वह विरोधी टीम की बॉस्केट में गेंद डाल दे तथा विरोधी टीम को न ही गेंद मिले और न ही प्वाईंट।
  3. बॉस्केट बाल खेल का मैदान आयताकार होता है। मैदान की लम्बाई 28 मीटर तथा चौड़ाई 15 मीटर होती है।
  4. टीम के प्रत्येक खिलाड़ी की बनियान के सामने और पीछे नम्बर लगे होते हैं। एक टीम के दो खिलाड़ी एक ही नम्बर नहीं डाल सकते।
  5. जब तक मध्यान्तर (Interval) न हो या अधिकारी आज्ञा न दे कोई भी खिलाड़ी मैदान से बाहर नहीं जा सकता।
  6. खेल 10 – 2 – 10, 10, 10 – 2- 10 की चार अवधियों की होती है तथा दो अवधियों के पश्चात् 10 मिनट का विश्राम होता है।
  7. बॉस्केट बाल के खेल में खिलाड़ियों को जितनी बार चाहे बदला जा सकता है।
  8. जब कोई टीम 4 फ़ाऊल कर जाती है तो विरोधी टीम को 2 या 3 फ्री-थ्रोज़ हालात अनुसार दी जाती हैं।
  9. किसी टीम का एक खिलाड़ी यदि 5 फ़ाऊल कर दे तो उसे मैच में से बाहर निकाल दिया जाता है।
  10. खेल के मध्य किसी समय भी कोई खिलाड़ी बदला जा सकता है परन्तु शर्त यह है कि थ्रो उस टीम की हो।

बॉस्केट बाल (Basket Ball) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education

प्रश्न
बॉस्केट बाल का संक्षिप्त परिचय दीजिए। रैस्ट्रिक्टेड एरिया से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
खेल-बॉस्केट बाल खेल दो टीमों के बीच खेला जाता है। प्रत्येक टीम में पांच-पांच खिलाड़ी होते हैं। प्रत्येक टीम का यह लक्ष्य होता है कि वह विरोधी टीम की बॉस्केट में गेंद फेंक दे, न विरोधी टीम के हाथ गेंद लगने दे और न ही अंक प्राप्त करने दे।

कोर्ट-बॉस्केट बाल कोर्ट 28 मीटर लम्बा और 15 मीटर चौड़ा होगा। यह आयताकार और ठोस धरातल वाला होगा। यदि खेल हाल कमरे में हो तो हाल की छत की ऊंचाई कम-से-कम 7 मीटर होनी चाहिए। सम्बन्धित अधिकारी दो मीटर की लम्बाई और दो मीटर चौड़ाई की सीमा के अन्दर परिवर्तन (यह परिवर्तन एक-दूसरे पर निर्भर होते हैं) की आज्ञा दे सकता है। फिर भी फीबा (FIBA-International Amateur Basketball Federation) की बड़ी सरकारी प्रतियोगिताओं के लिए निर्णित लम्बाई-चौड़ाई के अनुसार नई कोर्ट (Court) बनाई जाएगी। कोर्ट में पर्याप्त मात्रा में एक-सा प्रकाश रहना चाहिए।

सीमा-रेखाएं-कोर्ट की परिधि स्पष्ट रेखाओं द्वारा अंकित की जाएगी जो प्रत्येक स्थान से बाधाओं से कम-से-कम 2 मीटर की दूरी पर होगी। इन रेखाओं और दर्शकों के बीच दूरी कम-से-कम 3 मीटर की होगी।
केन्द्रीय वृत्त-कोर्ट के मध्य में एक वृत्त अंकित किया जाएगा। उसका अर्द्धव्यास 1.80 मीटर होगा। इसे केन्द्रीय वृत्त कहा जाता है।
केन्द्रीय रेखा-अन्त रेखाओं के समानान्तर केन्द्रीय रेखा खींची जाएगी जो कोर्ट को आगे वाली कोर्ट और पीछे वाली कोर्ट में विभक्त करेगी। यह रेखा 15 सम बाहर दोनों तरफ होगी।
BASKET-BALL GROUND
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तीन अंक मैदानी गोल-क्षेत्र-एक नई मार्किंग “तीन अंक मैदानी गोल क्षेत्र” की जाती है। यह दो सीमित चापें होती हैं जिनमें से प्रत्येक का बाहरी किनारों से अर्द्धव्यास 6.25 मीटर होता है। केन्द्र फर्श पर बिन्दु होता है, टोकरी के केन्द्र के ठीक लम्ब रूप होता है और किनारे वाली लकीरों पर समाप्त होती हुई पार्श्व रेखाओं के समानान्तर रहती है। केन्द्र अन्तिम लकीर के केन्द्रीय बिन्दु से 1.20 मीटर 0.225 मीटर + 0.10 मीटर + 1.525 मीटर होता है।
नोट-यह चाप केवल अर्द्ध वृत्त तक ही है और इसके पश्चात् पार्श्व रेखा के समानान्तर है (देखो चित्र)
फ्री-थो रेखाएं-प्रत्येक अन्त-रेखा के समानान्तर एक फ्री-थ्रो रेखा खींची जाएगी जो अन्त-रेखा के भीतर किनारे से 5.80 मीटर दूर होगी। इसकी लम्बाई 3.60 मीटर होगी तथा केन्द्र बिन्दु दोनों अन्त-रेखाओं के मध्य बिन्दुओं को जोड़ने वाली रेखा पर होगा।

प्रतिबद्ध क्षेत्र (रिस्ट्रिकटेड एरिया) तथा फ्री-थो रेखाएं-ये स्थान जिन पर परिधि अन्त-रेखाओं, फ्री-थ्रो रेखाओं से निकलने वाली रेखाओं से निर्धारित होती है, उन्हें प्रतिबद्ध क्षेत्र कहते हैं। सिरों की ओर फ्री-थ्रो रेखाएं इसके अर्द्धव्यास को अंकित करती हैं। इन रेखाओं का बाहरी किनारा अन्त-रेखाओं के मध्य बिन्दु से 3 मीटर होगा औरफ्री-थ्रो रेखाओं के सिरों पर आकर समाप्त हो जाएगा।
RESTRUCT AREA
REGULATION FREE THROW LANE
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फ्री-थ्रो रेखाएं वे प्रतिबद्ध स्थान हैं जो कोर्ट में 1.80 मीटर के अर्द्धव्यास वाले अर्द्ध-वृत्त में फैले होते हैं।
पहली रेखा सिरे वाली रेखा के भीतरी किनारे में 1.75 मीटर है। पहली गली के स्थान से आगे एक उदासीन क्षेत्र (Neutral Zone) होगा जिसकी चौड़ाई 30 सैंटीमीटर होगी। दूसरी गली का स्थान 85 सैंटीमीटर चौड़ा होगा और उदासीन क्षेत्र के साथ लगता होगा। तीसरी गली का स्थान दूसरी गली के साथ लगता है और इसकी चौड़ाई 85 सैंटीमीटर होगी। जहां तक टूटे हुए अर्द्ध वृत्त का सम्बन्ध है, प्रत्येक अंकित क्षेत्र की लम्बाई 35 सैंटीमीटर होगी और दोनों भागों के बीच की दूरी 40 सम होगी।

पिछले बोर्ड का आकार, पदार्थ और स्थिति (Back Board-Size, Material and Position)-पीछे वाले बोर्ड कठोर लकड़ी के बनाए जाएंगे या फाइबर ग्लास के भी हो सकते हैं जिनकी मोटाई 3 सम होगी। ये टेढ़े रुख 1.80 मीटर तथा खड़े रुख में 1.20 मीटर होंगे। यहां रिंग लगता है, उसके पीछे बोर्ड पर 59 सैंटीमीटर x 45 सैंटीमीटर की आयत बनाई जाती है। किनारा रिंग की सतह के बराबर होगा। बोर्ड की सीमाएं 5 सैंटीमीटर चौड़ी रेखाओं द्वारा अंकित की जाएंगी।
यह बोर्ड के रंग के उलट वाले रंग की होगी। बोर्ड का निचला किनारा ज़मीन से 2.75 मीटर ऊंचा होगा। पीछे बोर्ड के आधार स्तम्भ सीमा के बाहरी क्षेत्र में अन्त-रेखाओं के बाह्य किनारे से कम-से-कम 1.00 मीटर दूर गाड़े जाएंगे।

बॉस्केट-बॉस्केट छल्लों और जाली की बनी होती है। बॉस्केट नारंगी रंग वाले अन्दर से 45 सैंटीमीटर व्यास के लोहे के घेरे होते हैं। घेरे की धातु 20 मिलीमीटर मोटी होगी। जाल सफ़ेद रस्सी का बना होता है जोकि छल्लों से लटकता है। यह छल्ले इस प्रकार के बने होते हैं कि जब गेंद इनसे गुजरती है, वह इसे थोड़ी देर के लिए रोक लेते हैं।
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गेंद-गेंद गोलाकार होगी। यह चमड़े की बनी होगी और इसके अन्दर का ब्लैडर रबड़ का होगा। इसकी परिधि 75 सम से 78 सम होगी। इसका भार 600 ग्राम से 650 ग्राम होगा।
अब नियम यह आज्ञा देता है कि प्रयुक्त गेंद भी प्रयोग की जा सकती है। फिर भी गेंद के विषय रैफरी ने सहमति प्रकट की हो। रैफरी प्रयुक्त गेंद चुन सकता है। जब गेंद एक बार चुन ली गई हो तो कोई भी टीम खेल की गेंद का प्रयोग नहीं करती। यदि उचित पुरानी गेंद न मिल सकती हो तो नई गेंद प्रयुक्त की जा सकती है।

बॉस्केट बॉल का इतिहास (History of Basket Ball)
बॉस्केट बॉल एक उत्तेजना पूर्ण खेल है तथा इसका मूल स्थान अमेरिका है। इसका आविष्कार “अन्तर्राष्ट्रीय YMCA” के शिक्षक डॉ० स्मिथ (Dr. Smith) ने सन् 1891 में स्प्रिंगफील्ड मैसाशसटस (Spring filed Massa Chussets U.S.A.) में किया था। इसके नियम बाद में संशोधित (Revised) किए गए, जिनके अन्तर्गत ‘गोल’ (Goals) को कोर्ट (Court) के ठीक बाहर रखा गया, शारीरिक सम्पर्क (Body Contact) को स्वीकृति नहीं दी गई तथा गेंद के साथ-साथ दौड़ने को ‘फाऊल’ (Foul) घोषित कर दिया गया। अनुभवहीन खिलाड़ियों को खेल में शामिल करने के प्रयोजन से खेल को अधिक सरल बनाया गया। डॉ० स्मिथ ने खेल क्षेत्र के दोनों ओर दो बाक्स (Reach Baskets) दोनों ओर एक-एक, एक निश्चित ऊंचाई पर टांग दिए तथा खिलाड़ियों को स्कोर के लिए गेंद उन बाक्सों में फेंकनी पड़ती थी।

अब गेंद के बाक्स से वापस आने की समस्या थी इसलिए ‘बाक्स’ के स्थान पर आज की तरह के ‘गोल’ प्रयोग किए गए। इस प्रकार यह खेल अमेरिका में शुरू हुआ तथा इसके नियमों को सन् 1934 में मानक (Standardized) रूप दिया गया।
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बॉस्केट बाल (Basket Ball) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education

प्रश्न
बॉस्केट बाल खेल में तकनीकी उपकरण (सामान) क्या-क्या होते हैं ?
उत्तर-
तकनीकी उपकरण (सामान)
(क) (1) खेल की घड़ी (गेम-वाच)
(2) टाइम-आऊट के लिए घड़ी (टाइम-आऊट वाच)-एक
(3) स्टाप घड़ियां (स्टाप वाचिज़)

  1. टाइम कीपर के पास कम-से-कम दो घड़ियां होनी चाहिएं और खेल घड़ी मेज़ पर रखी जाएगी।
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  2. स्कोर-शीट
  3. कम-से-कम 20 सम × 10 सम आकार के एक से पांच तक अंक-एक से चार तक के काले रंग के अंक तथा पांच के लिए लाल रंग के अंक।
  4. 24 सैकिंड नियम के प्रबन्ध के लिए एक योग्य यन्त्र जिसको खिलाड़ी और दर्शक देख सकें।
  5. सब को दिखाई देने वाला एक खेल अंक बोर्ड स्कोर बोर्ड होगा जिस पर दोनों टीमों के खेल अंक लिखे जाएंगे।
  6. स्कोरर के पास दो लाल झण्डे दोनों टीमों के फाऊल मार्कर के हाथ में होंगे। इसे आठ फाऊल एक अवधि में होने की अवस्था में इस टीम की तरफ लिया जाएगा तथा खिलाड़ियों, कोच साहिब और खेल अधिकारियों को दिखाई दे सकेगा।

टीमें-प्रत्येक टीम में दस खिलाड़ी होंगे और सात खिलाड़ी प्रतिस्थापन के लिए होते हैं। प्रत्येक खिलाड़ी की कमीज़ के सामने और पिछली ओर कमीज़ के रंग से अलग नम्बर लगे होते हैं। यह नम्बर 4 से 15 तक होते हैं।
एक टीम के सभी खिलाड़ी ऐसी कमीजें पहनेंगे जिनका रंग आगे और पीछे की ओर एक जैसा होगा।
खिलाड़ी द्वारा कोर्ट छोड़ना-जब तक मध्यान्तर (Interval) न हो जाए अथवा नियम स्वीकृति न दे कोई भी खिलाड़ी बिना अधिकारियों की आज्ञा के कोर्ट छोड़ कर बाहर नहीं जा सकता।
कप्तान-इसके अधिकार और कर्त्तव्य-केवल कप्तान की सूचना लेने के लिए या किसी तरह की व्याख्या के लिए अधिकारी से बातचीत कर सकता है। खिलाड़ी बदलने का अधिकार कोच या कोच के स्थान पर काम कर रहे अधिकारी का होता है। _खेल की अवधि-खेल 10-2-10-10-2-10 मिनट की चार अवधियों में खेला जाएगा। इन दोनों अवधियों में 10 मिनट का अवकाश होगा।

खेल का आरम्भ-खेल का आरम्भ रैफरी द्वारा किया जाएगा। वह दोनों विरोधियों के बीच केन्द्र में गेंद को ऊपर उछालेगा। खेल उस समय तक आरम्भ नहीं होगा जब तक एक टीम पांच खिलाड़ियों सहित मैदान में खेलने के लिए प्रस्तुत न हो जाए। यदि खेल आरम्भ होने के समय तक कोई अनुपस्थित टीम मैदान में नहीं पहंचती तो उसकी विरोधी टीम को वॉक ओवर मिल जाता है, अर्थात् उसे बिना खेल के ही विजयी घोषित कर दिया जाता है।

प्रश्न
जम्प बाल और जम्प बाल के समय फाऊल बताएं।
उत्तर-
जम्प बाल-जम्प बाल के समय दो कूदने वाले अर्द्ध-वृत्त के अन्दर पांव रख कर अपनी-अपनी बॉस्केट के समीप खड़े होंगे तथा उनका एक पांव बीच में पड़ी रेखा के केन्द्र के पास होगा। उस समय कोई अधिकारी गेंद को इतनी ऊंचाई से ऊपर फैंकेगा कि उनमें से कोई खिलाड़ी उछल कर गेंद न पकड़ सके और गेंद उन दोनों के मध्य में गिरे। कोई खिलाड़ी गेंद को उस समय तक थपथपाने का यत्न नहीं करेगा जब तक उसने अधिकतम ऊंचाई प्राप्त न कर ली हो। कूदने वाला खिलाड़ी केवल दो बार ही गेंद को थपथपा सकता है।
जिस समय जम्प बाल (Jump Ball) में नियम तोड़ा जाता है इसके दण्ड-स्वरूप पार्श्व रेखा (Side line) पर से थ्रो-इन (Throw-in) दी जाती है। यह अपने विरोधियों के लिए केन्द्र बिन्दु होता है।

कोच (Coach)-खेल के आरम्भ होने के निश्चित समय से लगभग 20 मिनट पहले कोच (Coach) फलांकन कर्ता (Scorer) को उन खिलाड़ियों के नाम और गिनती जिन्होंने खेल में खेलना है, के अतिरिक्त कप्तान, कोच और सहायक कोच के नाम देगा। _ खेल के आरम्भ होने से स्कोर शीट (Score-Sheet) पर यह हस्ताक्षर करके खिलाड़ियों के नाम और गिनती से अपनी सहमति प्रकट करेंगे और उसी समय पांच खिलाडियों के नाम बताएंगे जिन्होंने खेल आरम्भ करना है।
ए (A) टीम का कोच यह जानकारी पहले देगा।
नोट-ऐसा न करने पर और जिससे खेल आरम्भ होने में देरी हो, कोच पर तकनीकी फाऊल (Technical Foul) का दोष लग सकता है और खेल दो फ्री-थ्रो (Free Throws) करने के पश्चात् आरम्भ होगा।
गोल-जब गेंद बास्केट में ऊपर से जाकर रुक जाए या निकल जाए तब गोल बन जाता है। रेखा के क्षेत्र से किए गए गोल के दो अंक तथा फ्री-थ्रो द्वारा किए गए गोल का एक अंक होता है।
बिन्दु रेखा से परे फील्ड गोल लगाने के लिए प्रयत्न करने के तीन अंक दिए जाएंगे।

आक्रमण के समय बाधा उत्पन्न करना-जिस समय गेंद बॉस्केट के समतल के ऊपर से नीचे की ओर आती है तो कोई खिलाड़ी अपने सीमित क्षेत्र में न तो गेंद को छु सकता है और न ही वह इसे पकड़ सकता है चाहे वह गोल बनाने की कोशिश में हो।
प्रतिरक्षा के समय गेंद में बाधा-जब विरोधी खिलाड़ी गोल करने के लिए गेंद फेंकता है तथा सारी गेंद बॉस्केट के घेरे की सतह के ऊपर हो, उस समय जैसे ही गेंद नीचे
आना शुरू करे, प्रतिरक्षा खिलाड़ी उसको छूने की बिल्कुल कोशिश नहीं करेगा। उल्लंघन होने पर गेंद मृत (Dead) हो जाती है। यदि फ्री-थ्रो के समय उल्लंघन हो तो फेंकने वाले के पक्ष में एक अंक यदि गोल की चेष्टा के समय हो तो फेंकने वाले के पक्ष में जोड़ दिए जाते हैं।
गोल के पश्चात् गेंद खेल में-गोल बनाने के 5 सैकिंड बाद विरोधी टीम का कोई खिलाड़ी, कोर्ट के अन्त में, परिधि से बाहर किसी भी बिन्दु से, जहां गोल बना था, गेंद खेल में डालेगा।

पिवटिंग
(Pivoting)
जब गेंद पकड़े हुए कोई खिलाड़ी एक ही पैर से एक बार या अधिक बार किसी दिशा में बढ़ता (घूमता) है तो इसे “पिवटिंग” (Pivoting) कहते हैं। खिलाड़ी के दूसरे पैर को जो ज़मीन के साथ सम्पर्क में रहता है-‘पिवट’ कहा जाता है।
बॉस्केट बॉल में पिवटिंग अग्रलिखित तीन प्रकार की होती है—
1. स्थित पिवट (Stationary Pivot)—इस पिवट में-

  1. एक खिलाड़ी दोनों पैरों को ज़मीन पर टिकाए हुए गेंद प्राप्त करता है।
  2. यह रिबाउण्ड (Rebound) लेता है।
  3. हवा में पास (Pass) देता है तथा दोनों पैरों को एक साथ ही भूमि पर टिकाते हुए वापस आता है। चाहे पैर एक-दूसरे के समान्तर हैं अथवा एक पैर दूसरे के सामने है। खिलाड़ी किसी भी पैर का प्रयोग करते हुए पिवट (रिवर्स अथवा रेयर पिवट) ले सकता है। यदि कोई खिलाड़ी ड्रिबलिंग (Dribbling) कर रहा है अर्थात् वह गतिशील है तो वह गेंद प्राप्त करके एक पैर को दूसरे पैर के सामने रखते हुए तथा सामने वाले पैर को किसी भी दिशा में गतिशील करते हुए स्ट्राइड स्टॉप (Stride Stop) में आ जाता है। इस पिवट का प्रयोग विपक्ष के खिलाड़ी से दूर जाने तथा अपने ही किसी साथी को खेल में लाने के लिए किया जाता है।

सामने या भीतरी पिवट
(Front or Inside Pivot)
इसकी तकनीक वही है जो रेयर पिवट (Rare Pivot) की है किन्तु इसमें अपने सामने के विपक्षी खिलाड़ी की तरफ टर्न (Turn) लिया जाता है अर्थात् गेंद पकड़े हुए खिलाड़ी एक पैर को आगे रख कर खड़ा होता है तथा दूरवर्ती पैर को विपक्षी खिलाड़ी के लगभग निकट रखते हुए अपने सामने के पैर पर पिवट लेता है।

आधिकारिक संकेत
(Official Signals)

  1. जब स्वतन्त्र थ्रो की संख्या का संकेत देता हो तो उंगलियों को अपने चेहरे की ऊंचाई पर रख कर कलाई से नीचे की ओर बार-बार गति दी जाती है।
  2. टाइम चार्ज (Charged Time Out) के लिए अधिकारी अपनी हथेली पर उंगलियों से T का चिह्न बनाता है।
  3. जम्प बॉल (Jump Ball) के संकेत के लिए अधिकारी अपने दोनों अंगूठे ऊपर करते हैं।
  4. त्रुटिपूर्ण ड्रिबल (Illegal dribble) के लिए वह Patting motion देता है।
  5. तीन सैकेण्ड के नियम (Three second rule) का उल्लंघन होने पर अधिकारी अपनी तीन उंगलियों (अंगूठा सहित) को साइड की तरफ करके संकेत करता है।
  6. किसी क्षेपण को निरस्त (Cancellation of a throw) करने के लिए अधिकारी अपने बाजुओं को अपने शरीर पर स्थानान्तरित करता है।
  7. स्टैपिंग (Stepping or travelling) के संकेत के लिए अधिकारी अपनी मुट्ठी घुमाता है।
  8. व्यक्तिगत फाऊल के लिए रैफरी बन्द मुट्ठी (Close fist) द्वारा संकेत करता है।
  9. व्यक्तिगत फाऊल की स्थिति में यदि कोई स्वतन्त्र क्षेपण न देता हो तो अधिकारी अपनी उंगली को साइड रेखा की तरफ कर देता है।
  10. किसी तकनीकी फाऊल का संकेत देने के लिए अधिकारी खुली हथेली से ‘T’ बनाता है तथा उसे दूसरी हथेली पर दिखाता है।
  11. दोहरे फाऊल के संकेत के लिए वह अपनी बन्द मुट्ठियों को अपने सिर के ऊपर हिलाता है।
  12. जानबूझ कर किए गए फाऊल के लिए रैफरी अपनी मुट्ठियों को बन्द रखते हुए अपनी कलाई को पकड़ कर संकेत करता है।
  13. धकेलने तथा चार्जिंग के संकेत के लिए रैफरी धकेलने जैसी नकल करता है।
  14. सीमाओं के उल्लंघन के लिए रैफरी हाथ हिला कर सीमा के बाहर संकेत करता है तत्पश्चात् उस टीम की बॉस्केट की तरफ संकेत करता है-जिसे “आऊट ऑफ़ बाऊण्ड-बॉल” दी गई है।
  15. टाइम आऊट के लिए अधिकारी सिर के ऊपर खुली हथेली से संकेत करता है।

बॉस्केट बाल (Basket Ball) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education

प्रश्न
बॉस्केट बाल खेल के विभिन्न पासों के विषय में लिखें ।
उत्तर-
पास के प्रकार
(Types of Passes)
पासिंग (Passing)-बॉस्केट बॉल के खिलाड़ी को उन सभी प्रकार के पास (Passes) देने में निपुण होना चाहिए जिनका प्रयोग गेंद को अपने साथी को देने के लिए विपक्षी खिलाड़ी के ऊपर से, नीचे से अथवा उसके पास से फेंका जाता है।

पास देने के लिए आवश्यक बातें
(Some Essentials of Passing)
पास देने के लिए कुछ आवश्यक बातें निम्नलिखित हैं—

  1. पास देने से पहले सामने देखने की आदत बनाओ।
  2. पास प्राप्त करने वाले साथी की दूरी का अनुमान लगाना तथा साथ ही यह अनुमान भी लगाना कि कितने समय में गेंद उसके पास पहुंचेगी।
  3. पास करने से पहले विपक्षी खिलाड़ी की स्थिति का अनुमान लगाना। (4) “पास” सही तथा शीघ्र होना चाहिए।

दो हाथ का छाती वाला या पुश पास
(Two Handed Chest Pass or Push Pass)
बॉस्केट बॉल में यह सबसे अधिक प्रयुक्त होने वाला पास है। कम या मध्यम दूरियों के लिए इस पास का प्रयोग होता है तथा इसमें कलाई द्वारा अतिरिक्त शक्ति लगाई जाती है। गेंद को छाती की ऊंचाई पर लाना चाहिए ताकि इसे सरलता से प्राप्त (Catch) किया जा सके। पास देने के लिए गेंद को छाती के सामने दोनों हाथों में पकड़ा जाता है, कोहनियां काफ़ी दूर होती हैं ताकि गति में अवरोध न हो। इस स्थिति में खिलाड़ी गेंद को पास, शूट या स्टार्ट (Pass, Shoot or Start) कर सकता है। भुजाओं को फैला कर तथा हथेली को पास की दिशा में घुमाकर गेंद को शक्ति के साथ आगे की ओर धकेलना चाहिए।

दो हाथ का बाउन्स पास (Two Handed Bounce Pass) यह पास भी लगभग “Chest Pass” की तरह ही है। इसमें गेंद को ठीक पहले की तरह ही फेंका जाता है किन्तु इसे ज़मीन की तरफ प्राप्तकर्ता खिलाड़ी के यथासम्भव निकट फेंकते हैं ताकि वह गेंद को घुटनों तथा कमर के बीच किसी ऊंचाई पर प्राप्त करके ले। “बाउन्स पास” का प्रयोग साधारणतया छोटी दूरियों के लिए किया जाता है। बाउन्स पास देने के लिए गेंद को अपनी छाती या कभर की ऊंचाई पर दोनों हाथों में पकड़े कोहनियों को सीधा करें तथा हथेली से शक्ति के साथ गेंद को ज़मीन की तरफ इस प्रकार फेंको कि विपक्षी के पास से होकर जैसे ही गेंद जमीन को छुए, वह उछल कर प्राप्तकर्ता के हाथ में गिरे।

दो हाथों का अण्डर हैण्ड पास
(Two Handed Under Hand Pass)
इसे शौवल पास (Shoval Pass) भी कहते हैं। यह तब प्रयोग किया जाता है जब खिलाड़ी (Passer) अपने साथी खिलाड़ी के निकट ही हो। गेंद शीघ्र देने के लिए यह एक छोटा पास है। यह पास देने के लिए कोहनियों को बाहर की तरफ़ मोड़ते हुए दाएं या बाएं तरफ से दोनों हाथों का प्रयोग करो। दाईं साइड के पास के लिए बायां तथा बाईं साइड के पास के लिए तुम्हें दायां पैर आगे धकेलना चाहिए।

बेस बॉल पास
(Base Ball Pass)
यह पास बहुत प्रभावशाली है। इसका प्रयोग गेंद को पिवट खिलाड़ी (Pivot Player) को देने अथवा लम्बा पास देने के लिए होता है। सुविधा के अनुसार दायां या बायां हाथ प्रयोग किया जा सकता है। पास को अधिक प्रभावशाली बनाने के लिए गेंद को अपने कन्धों के ऊपर तथा दाएं कान के निकट रखो। अब गेंद को पूरी शक्ति के साथ आगे फेंको। इस पूरी क्रिया में तुम्हारा दायां हाथ पीछे रहना चाहिए। इस पास में देखने की महत्त्वपूर्ण बात यह है कि गेंद को कलाई (न कि बाजुओं) की मदद से कितनी शक्ति से धकेला जाता है।

दो हाथों वाला साइड पास
(Two Handed Side Pass)
सिवाय हाथों की स्थिति के, यह पास “बेस बॉल पास” की तरह ही है। इसमें हाथों को गेंद के दोनों तरफ फैलाना चाहिए। इसे हुक के दाएं या बाएं किसी तरफ से भी खेला जा सकता है।
बैक पास
(Back Pass)
अपने असुरक्षित साथी (Unguarded) को गेंद देने के लिए यह सर्वोत्तम पास है। इसमें गेंद को पीछे से, कलाई से तथा उंगलियों की मदद से पास किया जाता है। क्रिया को सुविधाजनक बनाने के लिए कूल्हों (Hips) को थोड़ा हिलाया जा सकता है। किसी भी हाथ से यह पास प्रभावशाली ढंग से दिया जा सकता है।

एक हाथ का बाऊन्स पास
(One Handed Bounce Pass)
यह दाएं या बाएं हाथ से दिया जाता है। इसका प्रयोग दो स्थितियों में किया जाता है।

  1. जब “गार्ड” खिलाड़ी (Guard Player) पासर खिलाड़ी (Passer Player) को बहुत निकट से गार्ड कर रहा है।
  2. जब गतिशील प्राप्तकर्ता खिलाड़ी बहुत निकट से गार्ड किया जा रहा हो।

इस ‘पास’ की तकनीक स्थिति के साथ बदलती रहती है। पहली स्थिति में पास को प्रभावशाली बनाने के लिए इसे शीघ्रता से तथा अकस्मात् (Suddenness and Surprise) किया जाता है। इसकी साधारण विधि में इसे शुरू करके आवश्यकतानुसार किसी भी साइड में शीघ्रता से हट जाना होता है। ठीक उसी समय गार्ड खिलाड़ी से बचने के लिए बाजू को कदम की दिशा में बढ़ा कर गेंद प्राप्तकर्ता की तरफ आवश्यकतानुसार स्विग (Swing) के साथ उछाल दिया जाता है। दूसरे प्रकार का ‘एक हाथ वाला पास’ तब आवश्यक होता है जब दौड़ता हुआ प्राप्तकर्ता (Receiver) खिलाड़ी बहुत निकट से गार्ड हो रहा हो। इस स्थिति में ‘गार्ड’ द्वारा इसी प्रकार का सीधा पुश पास प्रयोग करना सम्भावित है। इस पास (Pass) को फेंकने के लिए गेंद को थोड़ा-सा कन्धों के ऊपर कानों के पास रखा जाता है। इसके बाद बाजू को आगे तथा नीचे की तरफ इस तरह फैलाया जाता है कि गेंद को सामने स्विंग किया जा सके परन्तु गेंद ‘गार्ड’ (जो प्राप्तकर्ता को कवर किए हैं) की पहुंच के बाहर होनी चाहिए।

फ्लिप पास
(Flip Pass) ‘फ्लिप पास’ का प्रयोग गेंद को निकट से ‘पास’ के लिए किया जाता है। यह आवश्यकतानुसार दोनों हाथों से या एक हाथ से किया जा सकता है। थोड़ी दूरी पर खड़े खिलाड़ी को गेंद फ्लिप करने के लिए झुकी हुई कलाई (Flexed Wrist) का प्रयोग किया जाता है। क्योंकि यह एक छोटा ‘पास’ है गेंद को केवल कलाई द्वारा ही ‘फ्लिप’ किया जाता है ताकि गेंद को केवल इतना बल ही मिले कि प्राप्तकर्ता इसे सरलता से तथा निश्चित रूप से दबोच सके। क्योंकि दूरी कम होती है इसलिए प्रतिपक्षी खिलाड़ी इसे रोक नहीं सकता तथा प्राप्तकर्ता इसे सरलता से पकड़ लेता है।

एक हाथ का साइड पास
(One Handed Side Pass)
जब अधिक शुद्धता (Accuracy) तथा गति (Speed) की आवश्यकता न हो तो उस स्थिति में यह ‘पास’ प्रयोग किया जाता है। इस पास की तकनीक इस प्रकार है—
गेंद को अपने हाथों में पकड़ो, हाथों की उंगलियां अच्छी तरह फैली हुई हों ताकि पूरे गेंद को ढक सकें। अपने शरीर को थोड़ा-सा घुमाते हुए गेंद को दाएं कान के पास ले जाओ। कोहनियों को खोलते हुए तथा उसी समय बाएं पैर को आगे बढ़ाओ। कोहनी को नीचे की तरफ खोलते हुए दाएं हाथ से गेंद को आगे की ओर फेंको। विश्राम सहित (Relaxed) शरीर तथा कलाई द्वारा इसका पीछा करो। पास देते समय बाईं भुजा, दाईं भुजा की मदद करती है। परन्तु बाईं कोहनी छाती की ऊंचाई पर मुड़ी रहती है।

टिप अर्थात् वॉली पास
(Tip or Volley Pass)
किसी दिशा में भी एक कदम लेकर फ्रन्ट लाइन की स्थिति से यह पास दिया जा सकता है। गेंद पकड़ते समय एक हाथ गेंद के नीचे तथा दूसरा उसकी मदद करते हुए होता है। गेंद को उंगलियों के सिरों से या कलाई द्वारा फ्लिप करके थोड़ी दूर पर खड़े अपने साथी खिलाड़ी को लुढ़का दिया जाता है।

पासिंग क्रिया की आवश्यक बातें
(Some Hints on Passing Strategy)

  1. ‘पासर’ खिलाड़ी को प्राप्तकर्ता खिलाड़ी की स्थिति तथा उसके द्वारा की जाने वाली सम्भावित कार्यवाही का पूर्व अनुमान लगा लेना चाहिए।
  2. पास देते समय शीघ्रता नहीं करनी चाहिए विशेषकर जब उसका साथी विपक्षी खिलाड़ियों से घिरा हुआ हो।
  3. टीम का आफैन्स (Offence) मुख्य रूप से छोटे पासों (Short Passes) पर ‘निर्भर होता है।

बॉस्केटबाल में प्रयुक्त शब्दावली
पिछला कोर्ट-कोर्ट का आधा भाग जहां से आक्रामक टीम आती है। अन्य शब्दों में, वह अर्द्ध भाग है जिसमें कि बॉस्केट होती है जिसको उन्होंने बचाना होता है।
ब्लाईंड पास–एक दिशा में देखते हुए बाल को पृथक् दिशा का प्रयोग करते हुए दूसरी दिशा में पास देना।
स्पष्ट शॉट-यह शॉट जो बोर्डों या रिंग को बिना छुए सीधा बॉस्केट में जाता है।

क्षेत्र से क्षेत्र की प्रतिरक्षा (Zone to Zone defence) यह एक प्रकार की प्रतिरक्षा प्रणाली है जिसमें खिलाड़ी किसी क्षेत्र की केवल प्रतिरक्षा के ज़िम्मेदार होते हैं। इनका ध्यान केवल गेंद की तरफ होता है, प्रतिपक्षी खिलाड़ी की तरफ नहीं।
खिलाड़ी से खिलाड़ी की प्रतिरक्षा (Man to Man defence)-यह वह प्रतिरक्षा प्रणाली है जिसमें प्रत्येक खिलाड़ी की ज़िम्मेदारी किसी विशेष शत्रु खिलाड़ी से प्रतिरक्षा की होती है।
मिश्रित प्रतिरक्षा (Combined defence)—यह प्रतिरक्षा प्रणाली दोनों प्रणालियों ‘क्षेत्र से क्षेत्र’ तथा ‘खिलाड़ी से खिलाड़ी’ का मिश्रण है।
कट इन (Cut in)-किसी खिलाड़ी का दो या अधिक शत्रु खिलाड़ियों के मध्य से होकर गेंद प्राप्त करने के लिए किसी बॉस्केट की ओर तेज़ी से भागना ‘कट इन’ कहलाता है।

चार्जिंग (Charging)-किसी खिलाड़ी के साथ अनावश्यक शारीरिक सम्पर्क। किसी खिलाड़ी के बीच से निकलना तथा उससे बचने की कोशिश करना।
फाऊल आऊट (Fouled Out)-पांच फाऊलों के बाद खिलाड़ी को क्षेत्र से बाहर कर दिया जाता है। इसे फाऊल आऊट कहते हैं।
फ्रीज या हैल्ड गेंद (Freeze or Held ball)-गेंद को बजाय खेलने की कोशिश करने के उसे अपने पास ही रख लेना।
ओवर लोडिंग (Over Loading)-‘क्षेत्र से क्षेत्र प्रतिरक्षा’ के विरुद्ध विरोधी खिलाडियों की आक्रामक प्रणाली। इस हेतु एक ही तरफ अधिक आक्रामक खिलाड़ियों को खड़े करने की प्रणाली को ओवरलोडिंग कहा जाता है।
पोस्ट खिलाड़ी (Post Player)—स्वतन्त्र थ्रो के क्षेत्र में खड़े आक्रामक खिलाड़ी को पोस्ट खिलाड़ी कहते हैं।
स्क्रीन (Screen)-जब कोई खिलाड़ी अपने साथी की रक्षा के लिए उसके गार्ड के मार्ग में स्वयं को खड़ा कर लेता है।
खेल का निर्णय-खेल में अधिक अंक प्राप्त करने वाली टीम को विजयी घोषित किया जाएगा।

खेल का अधिकार छिन जाना—मध्यान्तर या टाइम-आऊट के पश्चात् यदि कोई टीम रैफरी के बुलाने के बाद एक मिनट के अन्दर खेल के लिए मैदान में नहीं उतरती तो गेंद खेल में लाई जाएगी और अनुपस्थित टीम खेल अधिकार खो देगी। यदि खेल के दौरान किसी टीम के खिलाड़ियों की संख्या दो से कम रह जाए तो खेल समाप्त हो जाएगा और टीम भी खेल अधिकार खो देगी।

स्कोर तथा अतिरिक्त समय—यदि दूसरे खेल अर्द्धक की समाप्ति तक दोनों टीमों के अंक बराबर हों तो पांच मिनटों की अधिक अवधि दी जाएगी और ऐसी अवधि जब तक खेल का फैसला न हो, दी जाएगी। अतिरिक्त समय में बॉस्केट के चुनाव के लिए टॉस होगा और उसके बाद प्रत्येक अतिरिक्त समय के लिए बॉस्केट बदल लिया जाएंगे।
टाइम-आऊट-मध्यान्तर तक प्रत्येक टीम को दो टाइम-आऊट मिल सकते हैं तथा अतिरिक्त समय में एक टाइम-आऊट मिल सकता है। किसी खिलाड़ी को चोट लगने की दशा में एक मिनट का टाइम-आऊट मिलता है। यदि इस बीच घायल खिलाड़ी ठीक नहीं होता तो उसकी जगह नया खिलाड़ी ले लिया जाता है।

खेल की समाप्ति-टाइम कीपर द्वारा खेल की समाप्ति की सूचना दिए जाने पर खेल समाप्त कर दिया जाएगा।
खिलाड़ी का बदलना-स्थानापन्न खिलाड़ी (Substitute Player) मैदान में उतरने से पहले स्कोरर के पास रिपोर्ट करेगा और तुरन्त खेलने के लिए प्रस्तुत रहेगा। अधिकारी का संकेत पाते ही मैदान में तुरन्त उतरेगा। स्थानापन्न को मैदान में उतरने के लिए 20 सैकिंड से अधिक समय नहीं लगना चाहिए। यदि उसे अधिक समय लगता है तो टाइमआऊट माना जाएगा और विरोधी दल के विरुद्ध अंकित कर दिया जाएगा।

मृत गेंद (Dead Ball)—गेंद उस समय भी मृत होती है जब गेंद जो पहले ही गोल के लिए शॉट (Shot) के लिए उड़ान में होती है और खिलाड़ी के द्वारा उस समय के पश्चात् छुई जाती है जब बाधा या फाऊल समय पूरा हो चुका होता है या जब फाऊल बुलाया जा चुका होता है। (ऊपर की ओर उड़ान में जब गेंद को छुआ जाता है, बॉस्केट यदि असफल हो, नहीं गिनी जाती।)

बॉस्केट बाल (Basket Ball) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education

प्रश्न
बास्केट बाल खेल में तीन सैकिण्ड, पांच सैकिण्ड, आठ सैकिण्ड और चौबीस सैकिण्ड नियम क्या हैं ?
उत्तर-
तीन सैकिण्ड नियम-जब गेंद किसी टीम के अधिकार में हो तो उस टीम का कोई भी खिलाड़ी विरोधी टीम के प्रतिबद्ध क्षेत्र में तीन सैकिण्ड से अधिक नहीं रहेगा। पांच सैकिण्ड नियम-जब पास का कोई रक्षक खिलाड़ी गेंद को खेलने से रोकता है और वह पांच सैकिण्ड के अन्दर गेंद को खेल में डालने की कोई सामान्य कोशिश नहीं करता तो वह ब्लॉकिंग कहलाता है।
आठ सैकिण्ड नियम -जब किसी टीम को मैदान के पिछले भाग में गेंद प्राप्त हो जाता है तो उसे आठ सैकिण्ड के अन्दर गेंद को अगले भाग में डालना पड़ता है।
चौबीस सैकिण्ड नियम-नये नियम के अनुसार पार्श्व रेखा (Side line) पर आऊट ऑफ बाऊंड्ज़ (Out of bounds) से थ्रो-इन के पश्चात् एक नई चौबीस (26) सैकिण्ड की अवधि तब तक आरम्भ नहीं होती जब तक

  1. गेंद आऊट ऑफ बाऊंड्ज़ (Out of bounds) नहीं जाती है और उसी टीम के खिलाड़ी के द्वारा थ्रो-इन नहीं ली जाती।
  2. अधिकारी (Officials) ने किसी आहत को बचाने के लिए खेल को रोक (Suspend) कर दिया हो और आहत खिलाड़ी वाली टीम के खिलाड़ी ने थ्रो-इन (Throw-in) ली हो।

24 सैकिण्ड आप्रेटर (Operator) उस समय से घड़ी को रोके हुए समय से चलाये जब तक वह टीम थ्रो-इन (Throw-in) किये जाने के पश्चात् पुनः काबू पा लेती है।
फाऊल के बाद गेंद खेल में-जब गेंद किसी फाऊल के साथ खेल से बाहर हो जाए तो इस स्थिर गेंद को—

  1. बाहर से थ्रो करके, या
  2. किसी एक वृत्त में जम्प बाल द्वारा, या
  3. एक या अधिक फ्री-थ्रो द्वारा फिर खेल में लाया जाएगा।

थो-इन-जब किसी नियम का उल्लंघन हो जाए तो गेंद स्थिर समझी जाती है और विरोधी टीम को साइड-लाइन के समीपवर्ती बिन्दु से थ्रो-इन के लिए दी जाती है।।
अब नियम उस खिलाड़ी को आज्ञा देता है जिसने थ्रो-इन (Throw-in) करना है कि वह समाप्ति रेखा (End line) को छुए और यह नियम का उल्लंघन नहीं है।
फ्री-थो-जिस खिलाड़ी पर फाऊल किया गया हो वह फ्री-थ्रो लेता है परन्तु किसी तकनीकी फाऊल होने की दशा में कोई भी खिलाड़ी फ्री-थ्रो ले सकता है। जब फ्री-थ्रो ली जाती है, तो खिलाड़ियों की स्थिति इस प्रकार होती है—

  1. विरोधी टीम के दो खिलाड़ी बॉस्केट के समीप खड़े होंगे।
  2. अन्य खिलाड़ी भिन्न-भिन्न पोजीशन लेंगे।
  3. बाकी के खिलाड़ी कोई भी और पोजीशन ले सकते हैं परन्तु वे फ्री-थ्रो के समय बाधक नहीं बनने चाहिएं।

फ्री-थ्रो के उल्लंघन-फ्री-थ्रो करने वाले सैकिण्ड खिलाड़ी के अधिकार में गेंद देने के पश्चात्

  1. इन पांच सैकिण्ड के अन्दर गेंद को इस तरह फेंकेगा कि खिलाड़ी द्वारा छुए जाने से पहले गेंद बॉस्केट में चली जाए या घेरे का स्पर्श कर ले।
  2. गेंद के बॉस्केट की ओर जाते समय या अन्दर पहुंचने पर न तो वह और न ही कोई दूसरा खिलाड़ी गेंद या बॉस्केट को छुएगा।
  3. वह फ्री-थ्रो लाइन या उसके परे भूमि को छुएगा और न ही किसी टीम का कोई दूसरा खिलाड़ी फ्री-थ्रो लाइन को छुएगा या फ्री-थ्रो करने वाले खिलाड़ी को बाधा पहुंचाएगा।

खेल को प्रतिबन्धित करना (Game to be Forefeited)-नये नियम के अनुसार रैफरी को अब यह आवश्यक नहीं है कि वह गेंद को उस विधि से खेल में रखे जैसे कि दोनों टीमें फर्श पर खेलने के लिए और खेल को प्रतिबन्धित करने के लिए तैयार हों। अब रैफरी के खेल में बुलाने के पश्चात् यदि एक टीम खेलने से इन्कार कर देती है तो खेल प्रतिबन्धित हो जाता है।
गेंद का पिछली कोर्ट को वापिस जाना (Ball Return to Back Court)-नये नियम के अनुसार गेंद को टीम ए (A) को पिछली कोर्ट की ओर भेजा जाता है, शर्त यह है कि इसको टीम ए (A) का एक खिलाड़ी छूता है जबकि टीम ‘A’ सामने की कोर्ट में गेंद को नियन्त्रित रखती है। इसके अनुसार A, खिलाड़ी को छूना जबकि गेंद टीम ए के सामने की कोर्ट में टीम बी (B) के नियन्त्रण में है। यदि गेंद टीम ए (A) के सामने की कोर्ट में जाता है उसको ऐसा नहीं समझा जाता है कि पिछली कोर्ट में जाने दिया जाए।
इसके आगे केन्द्र (Mid-Point) से थ्रो-इन (Throw-in) के बीच अधिकारी (Official) यह निश्चित बताएगा कि खिलाड़ी बढ़ाई गई पार्श्व रेखा (Side-line) के दोनों ओर एक पैर रख कर पोजीशन स्थापित करता है।

आऊट आफ बाऊंड खेल पर नियम का उल्लंघन (Violation on out of bounds play)-यह नियम को तोड़ना नहीं है जबकि थ्रो-इन (Throw-in) दी गई है, खिलाड़ी गेंद को छोड़ते समय लकीर पर पांव रखता है।
दण्ड—

  1. फ्री-थ्रो करने वाले खिलाड़ी द्वारा उल्लंघन होने पर कोई अंक रिकार्ड न होगा। फ्री-थ्रो करने वाले खिलाड़ी के विपक्षी की गेंद फ्री-थ्रो लाइन के सामने दे दी जाएगी।
  2. फ्री-थ्रो करने वाले खिलाड़ी को टीम के अन्य खिलाड़ी द्वारा नियम का उल्लंघन होने पर भी अंक रिकार्ड होगा। यदि नियम (ख) का बन दोनों टीमों द्वारा होता है तो कोई अंक दर्ज नहीं होगा और फ्री-थ्रो लाइन पर जम्प बाल द्वारा खेल जारी किया जाएगा।
  3. यदि नियम (ग) का उल्लंघन फ्री-थ्रो करने वाले खिलाड़ी के साथी द्वारा होता है तथा फ्री-थ्रो सफल हो जाती है तो उल्लंघन की उपेक्षा करके गोल गिन लिया जाएगा और उसका दण्ड दिया जाएगा।
  4. यदि (ग) नियम का उल्लंघन फ्री-थ्रो करने वाले खिलाड़ी के विरोधियों से होता है तो फ्री-थ्रो सफल होने पर उल्लंघन की उपेक्षा करके गोल गिना जाएगा।
  5. यदि नियम (ग) का उल्लंघन दोनों टीमों द्वारा होता है और फ्री-थ्रो सफल हो जाती है तो उल्लंघन की उपेक्षा करके गोल गिना जाएगा। फ्री-थ्रो सफल न होने की दशा में फ्री-थ्रो लाइन पर जम्प बाल के साथ खेल पुनः जारी किया जाएगा।

बॉस्केट बाल (Basket Ball) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education

प्रश्न
बॉस्केट बाल खेल में खिलाड़ी के तकनीकी फाऊल लिखें।
उत्तर-
खिलाड़ी द्वारा तकनीकी फाऊल-कोई भी खिलाड़ी अधिकारियों द्वारा दी गई चेतावनी की अवहेलना नहीं करेगा और न ही ऐसा व्यवहार करेगा जो एक खिलाड़ी को शोभा न दे, जैसे—

  1. अधिकारी को अपमानजनक ढंग से सम्बोधित करना या मिलना।
  2. असभ्य व्यवहार करना।
  3. विरोधी खिलाड़ी को तंग करना या उसकी आंखों के आगे हाथ करके उसे देखने में रुकावट डालना।
  4. खेल को अनुसूचित ढंग से विलम्बित करना।
  5. फाऊल का संकेत मिलने पर ठीक ढंग से बाजू न उठाना।
  6. स्कोरर या रैफरी को बिना सूचित किए अपना नम्बर बदलना।
  7. स्कोरर को सूचित किए बिना स्थानापन्न (Substitute) की तरह कोर्ट में प्रवेश करना।

दण्ड-प्रत्येक अपराध को एक फाऊल माना जाएगा और प्रत्येक फाऊल के लिए विरोधी को दो फ्री-थ्रो दी जाएंगी। इस नियम का बार-बार उल्लंघन किए जाने पर खिलाड़ी को अयोग्य घोषित करके खेल से निकाल दिया जाएगा।
कोच का स्थानापन्न (Substitute) द्वारा तकनीकी फाऊल-कोई कोच या स्थानापन्न बिना अधिकारी की आज्ञा के कोर्ट में दाखिल नहीं हो सकता, न ही कोर्ट के कार्यों को जानने के लिए अपना स्थान छोड़ सकता है और न ही किसी अधिकारी या विरोधी को अपमानजक ढंग से बुला सकता है।

दण्ड-कोच द्वारा इस नियम का उल्लंघन करने पर उसके नाम फाऊल दर्ज किया जाएगा। प्रत्येक अपराध के लिए एक फ्री-थ्रो दी जाएगी और बाल उसी टीम को केन्द्रीय रेखा पर थ्रो-इन करने के लिए मिलेगा। इस नियम के बार-बार उल्लंघन किए जाने पर कोच को क्षेत्र की सीमाओं से बाहर निकाला जा सकता है।
निजी फाऊल-निजी फाऊल उस खिलाड़ी का होता है तो विरोधी खिलाड़ी को ब्लॉक करता है, पकड़ता है, धक्का देता है तथा उस पर आक्रमण करता है।
दण्ड-यदि शूटिंग करते समय खिलाड़ी पर फाऊल देता है तो—

  1. यदि गोल हो जाता है तो उसकी गिनती की जाएगी और एक फ्री-थ्रो दी जाएगी।
  2. यदि गोल (2 अंक) असफल हो, दो फ्री-थ्रो (Free Throw) दिए जाएंगे।
  3. यदि गोल (Goal) के लिए शाट (Shot) असफल होता है तो तीन फ्री-थ्रो (Free Throws) दिये जाएंगे।

जानबूझ कर (साभिप्राय) फाऊल-यह वह शारीरिक फाऊल है जो किसी खिलाड़ी द्वारा जानबूझ कर दिया जाता है। जो खिलाड़ी बार-बार साभिप्राय फाऊल करता है उसे अयोग्य करार देकर खेल से निकाला जा सकता है।
दण्ड-अपराधी पर शारीरिक फाऊल का दोष लगाया जाएगा और दो फ्री-थ्रो दिए जाएंगे। यदि यह फाऊल ऐसे खिलाड़ी पर होता है तो गोल बनाता है तो यह गोल माना जाएगा और एक अतिरिक्त फ्री-थ्रो दी जाएगी।
डबल फाऊल-डबल फाऊल उस स्थिति में होता है जब दो खिलाड़ी एक-दूसरे के प्रति लगभग एक ही समय फाऊल करते हैं। डबल फाऊल होने पर निकटतम वृत्त से जम्प बाल द्वारा खेल पुनः शुरू करवा दी जाएगी।
बहुपक्षीय (Multiple) फाऊल-बहुपक्षीय फाऊल उस समय होता है जब एक टीम के दो या तीन खिलाड़ी एक ही विरोधी खिलाड़ी पर निजी फाऊल कर देते हैं।
इस स्थिति में प्रत्येक अपराधी खिलाड़ी पर एक फाऊल लगेगा और जिस खिलाड़ी के प्रति अपराध हुआ है उसे दो फ्री-थ्रो दी जाएगी। यदि फेंकने की प्रक्रिया में किसी खिलाड़ी के प्रति फाऊल हुआ है तो गोल बनने पर किया जाएगा और एक फ्री-थ्रो दी जाएगी।

पांच फाऊल-यदि कोई खिलाड़ी पांच फाऊल (निजी या तकनीकी) करता है तो उसे नियमानुसार बाहर निकाल देना चाहिए।
तीन और दो नियम (Three for two Rule)-जब खिलाड़ी गोल करने लगा हो तो उस पर विरोधी टीम का खिलाड़ी फाऊल कर दे और यदि गोल बन जाए तो एक और फ्री-थ्रो मिलेगा। गोल न होने की अवस्था में दोनों फ्री-थ्रो में से एक भी न होने पर अतिरिक्त फ्री-थ्रो मिलेगा।
चयन का अधिकार (Right of Option) केन्द्र बिन्दु (Mid Point) से थ्रो-इन के लिए चयन का अधिकार एक, दो और तीन थ्रो की दशा में लागू होता है। चयन करने से पहले कप्तान को कोच के साथ संक्षिप्त परामर्श करने की आज्ञा होती है।
टीम के द्वारा चार फाऊल (Four fouls by the Team)-जब टीम किसी अवधि में चार खिलाड़ियों का फ़ाऊल (निजी और तकनीकी) कर चुकती है, इस अवधि समय में सभी बाद के खिलाड़ियों को फाऊल होने पर दो फ्री-थ्रो मिलती है।

बॉस्केट बाल (Basket Ball) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education

PSEB 10th Class Physical Education Practical बॉस्केट बाल (Basket Ball)

प्रश्न 1.
बास्केट-बाल टीम में कितने खिलाड़ी होते हैं ?
उत्तर-
बास्केट-बाल टीम में 12 खिलाड़ी होते हैं जिनमें 5 खिलाड़ी खेलते हैं और 7 खिलाड़ी अतिरिक्त (Substitutes) होते हैं।

प्रश्न 2.
बास्केट-बाल का कोर्ट बनाओ और लम्बाई-चौड़ाई बताओ।
उत्तर-
बास्केट-बाल कोर्ट की लम्बाई 28 मीटर और चौड़ाई 15 मीटर होती है। इसकी लम्बाई 2 मीटर और चौड़ाई एक मीटर कम की जा सकती है।

प्रश्न 3.
बास्केट-बाल के खेल का कितना समय होता है ? बराबर की स्थिति में आप क्या करोगे ?
उत्तर-
बास्केट-बाल खेल का समय 10-2-10,-10-10-2-10 मिनट की चार अवधियों का होता है। बराबर की स्थिति में 5-2-5 मिनट दिए जाते हैं। यदि फिर भी बराबर रह जाए तो 5-5 मिनट दिए जाते हैं। परन्तु आराम का समय नहीं होता। 5 मिनट के पश्चात् केवल साइड ही बदलते हैं। उतनी देर तक 5-5 मिनट दिए जाएंगे जब तक फैसला नहीं होता।

बॉस्केट बाल (Basket Ball) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education

प्रश्न 4.
बास्केट-बाल के खेल में हार-जीत का फैसला कैसे होता है ?
उत्तर-
बास्केट-बाल में हार-जीत का फैसला इस प्रकार होता है कि जो टीम अधिक प्वाईंट बना लेती है उसे विजयी घोषित किया जाता है।

प्रश्न 5.
बास्केट-बाल के खेल में कितने फाऊल होते हैं ?
उत्तर-
बास्केट-बाल में 5 फाऊल होते हैं; जैसे—

  1. निजी फाऊल (Personal Foul)
  2. तकनीकी फाऊल (Technical Foul)
  3. दोहरा फाऊल (Double Foul)
  4. बहुमुखी फाऊल (Multiple Foul)
  5. जानबूझ कर फाऊल (Attentional Foul)

प्रश्न 6.
खिलाड़ी को कितने फाऊलों के बाद टीम में से निकाला जाता है ?
उत्तर-
बास्केट-बाल के खेल में जब एक खिलाड़ी पांच फाऊल कर देता है तो उसको टीम से बाहर निकाल दिया जाता है।

बॉस्केट बाल (Basket Ball) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education

प्रश्न 7.
बास्केट-बाल की खेल में टाइम आऊट कितने होते हैं ? उनका समय बताओ।
उत्तर-
बास्केट-बाल के खेल में दो टाइम आऊट आराम से पहले दोनों अवधियों में और दो बाद में लिए जाते हैं। टाइम आऊट का समय एक मिनट का होता है।

प्रश्न 8.
कितने खिलाड़ियों को बास्केट-बाल के खेल में बदला जा सकता है और कितना समय लिया जाता है ?
उत्तर-
बास्केट-बाल के खेल में किसी समय भी खिलाड़ी को बदला जा सकता है । शर्त यह है कि साइड थ्रो उनकी हो तथा समय 30 सैकिंड का होता है।

प्रश्न 9.
बास्केट-बाल के खेल में तकनीकी सामान का वर्णन करो।
उत्तर-
तकनीकी सामान (Technical Equipments)

  1. खेल की घड़ी (Game Watch)
  2. टाइम आऊट के लिए घड़ी (Time out watch)
  3. 24 सैकिण्ड रूल स्कोर शीट के लिए 24 सैकिण्ड आप्रेटर (24 Second Operator for Twenty four second Rule Score Sheet)

बॉस्केट बाल (Basket Ball) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education

प्रश्न 10.
बास्केट-बाल का भार कितना होता है और उसका घेरा बताओ।
उत्तर-
बास्केट-बाल का भार 600 से 650 ग्राम और घेरा 75 सैंटीमीटर से 78 सैंटीमीटर तक होता है।

प्रश्न 11.
बास्केट-बाल की ग्राऊंड में कितने चक्कर होते हैं और कितने चौड़े होते हैं ?
उत्तर-
बास्केट-बाल के खेल में तीन चक्कर होते हैं और चौड़ाई 1.80 मीटर होती है।

प्रश्न 12.
बास्केट-बाल की ग्राऊंड में पोल ग्राऊंड से कितनी दूरी पर बाहर होते
उत्तर-
बास्केट-बाल की ग्राऊंड में पोल ग्राऊंड से एक मीटर बाहर होते हैं।

बॉस्केट बाल (Basket Ball) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education

प्रश्न 13.
बास्केट-बाल के खेल में स्कोर कैसे लिए जाते हैं ?
उत्तर-
बास्केट-बाल के खेल में यदि सीधी बास्केट हो तो 2 अंक होते हैं। Free Throw हो तो एक अंक माना जाता है। यदि सर्कल के बाहर से गोल हो तो तीन अंक मिलते हैं।

प्रश्न 14.
7 फाऊल रूल क्या है ?
उत्तर-
जो टीम 7 फाऊल कर देती है उसकी विरोध टीम को Free Throws दी जाती हैं।

प्रश्न 15.
आठ सैकिण्ड नियम किसे कहते हैं ?
उत्तर-
इसके आधार पर एक टीम को अपने कोर्ट में आठ सैकिण्ड के अन्दर बाल को दूसरे कोर्ट में देना पड़ता है। दूसरे कोर्ट में वह दूसरी बार बाल अपने कोर्ट में नहीं दे सकता।

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प्रश्न 16.
तीन सैकिण्ड रूल किसे कहते हैं ?
उत्तर-
जब कोई खिलाड़ी वर्जित क्षेत्र (Restricted Area) में तीन सैकिण्ड से अधिक ठहरता है तो उस समय रैफरी द्वारा विरोधी को थ्रो दी जाती है।

प्रश्न 17.
24 सैकिण्ड से आपका क्या भाव है ?
उत्तर-
जब एक टीम बाल को नियन्त्रित रखती है तो वह उस टीम को 24 सैकिण्ड के अन्दर गेंद स्कोर करने के लिए हाथ में से नहीं छोड़नी चाहिए। फिर दूसरी टीम को बाल दे दिया जाता है। यह अवसर कभी-कभी ही खेल में आता है।

प्रश्न 18.
बास्केट-बाल के खेल में अधिकारियों की संख्या बताओ।
उत्तर-
बास्केट-बाल के खेल में निम्नलिखित अधिकारी होते हैं—

  1. रैफ़री = 1
  2. अम्पायर = 1
  3. स्कोरर = 1
  4. टाइम कीपर = 1
  5. 24 सैकिण्ड = 1
  6. ओप्रेटर = 1
  7. इंडीकेटर = 1

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प्रश्न 19.
बास्केट-बाल की खेल में बनियान के नम्बर किससे आरम्भ होते हैं ?
उत्तर-
बास्केट-बाल की खेल में 4 से लेकर 15 तक बनियान के नम्बर लगाए जाते

प्रश्न 20.
बास्केट-बाल के रिंग की जाली की लम्बाई बताएं।
उत्तर-
बास्केट-बाल के रिंग की जाली की लम्बाई 40 सैंटीमीटर लम्बी होती है।

PSEB 10th Class Physical Education Solutions Chapter 4 एशियन और ओलिम्पिक खेलें

Punjab State Board PSEB 10th Class Physical Education Book Solutions Chapter 4 एशियन और ओलिम्पिक खेलें Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 10 Physical Education Chapter 4 एशियन और ओलिम्पिक खेलें

PSEB 10th Class Physical Education Guide एशियन और ओलिम्पिक खेलें Textbook Questions and Answers

बहुत छोटे उत्तरों वाले प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
ओलिम्पिक खेलों का नाम ओलिम्पिक क्यों पड़ा ?
(Why Olympic games are called Olympic?)
उत्तर-
प्राचीन ओलिम्पिक खेलें ओलिम्पिया नामक नगर से आरम्भ हुई थीं। इसलिए इन का नाम ओलिम्पिक खेलें पड़ा।

प्रश्न 2.
प्राचीन ओलिम्पिक खेलें कब आरम्भ हुईं ?
(When Ancient Olympic started ?)
उत्तर-
प्राचीन ओलिम्पिक खेलें 776 ई० पूर्व यूनान में आरम्भ हुईं।

प्रश्न 3.
ओलिम्पिक ध्वज में कितने रिंग होते हैं ?
(How many rings are there in Olympic Flag ?)
उत्तर-
पांच रिंग।

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प्रश्न 4.
प्राचीन ओलिम्पिक खेलों के विजेता को क्या ईनाम मिलता था ?
(What prizes are given to the winners of Ancient Olympic ?)
उत्तर-
जीतने वाले को जीयस देवता के मन्दिर में ले जाकर जैतून वृक्ष की टहनियां और पत्ते भेंट किए जाते थे।

प्रश्न 5.
प्राचीन ओलिम्पिक खेलें के कोई दो नियम लिखो।
(Write any two rules of Ancient Olympic.)
उत्तर-

  1. इन खेलों में भाग लेने वाले सभी खिलाड़ी यूनान के नागरिक होने चाहिएं।
  2. कोई भी व्यावसायिक (Professional) खिलाड़ी इन खेलों में भाग नहीं ले सकता था।

प्रश्न 6.
नवीन ओलिम्पिक खेलों किसने शुरू करवाईं ?
(Who was the founder of modern Olympic games ?)
उत्तर-
बैरन दि कुबर्टिन ने।

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प्रश्न 7.
नवीन ओलिम्पिक खेलें कहां तथा कब आरम्भ हुई ?
(When and where modern Olympic were started ?)
उत्तर-
नवीन ओलिम्पिक खेलें 1896 ई० में ऐथेन में आरम्भ हुईं।

प्रश्न 8.
नवीन ओलिम्पिक खेलों के कोई दो नियम लिखें।
(Write any two Rules of modern Olympic games.)
उत्तर-

  1. इनमें भाग लेने वाले खिलाड़ी पर आयु, जाति, धर्म आदि का कोई प्रतिबन्ध नहीं होता।
  2. कोई भी व्यावसायिक खिलाड़ी (Professional player) ओलिम्पिक में भाग नहीं ले सकता।

प्रश्न 9.
एशियाई खेलें किस के प्रयल से आरम्भ हुई ?
(Who has originated Asian Games ?)
उत्तर-
महाराजा पटियाला श्री यादविन्दर सिंह और श्री जी० डी० सोंधी के प्रयत्नों से यह खेलें आरम्भ हुईं।

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प्रश्न 10.
एशियाई खेलें कब और कहां शुरू हुई ?
(When and where Asian games were started ?)
उत्तर-
पहली एशियाई खेलें 1951 में नई दिल्ली के नैशनल स्टेडियम में हुईं।

प्रश्न 11.
ओलिम्पिक खेलें कितने वर्षों के बाद होती हैं ?
(After how many years olympic games were held ?).
उत्तर-
चार वर्ष के बाद।

प्रश्न 12.
पांचवीं एशियाई खेलें कहां हुई ?
(Where were the fifth Asian games were held ?)
उत्तर-
1966 में जकार्ता (इण्डोनेशिया) में।

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प्रश्न 13.
मिलखा सिंह ने कौन-से ओलिम्पिक में 400 मीटर दौड़ में चौथा स्थान प्राप्त किया ?
(In which Olympic Mr. Milkha Singh got 4th position in 400 meters race ?)
उत्तर-
1960 (Rome Olympic) खेलों में मिलखा सिंह ने 400 मीटर दौड़ में चौथा स्थान प्राप्त किया था।

प्रश्न 14.
भारत ने ओलिम्पिक में पहली बार कब भाग लिया ?
(In which year India participated in Olympic first time ?)
उत्तर-
1920 की ओलिम्पिक खेलों में भाग लिया।

प्रश्न 15.
2008 बीजिंग ओलम्पिक खेलों में किस भारतीय खिलाड़ी ने स्वर्ण पदक जीता ?
(Name the Indian player who won the gold medal in 2008 Beizing olympic games.)
उत्तर-
श्री अभिनव बिंदरा ने 2008 में बीजिंग ओलम्पिक खेलों में स्वर्ण पदक जीता।

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छोटे उत्तरों वाले प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
ओलिम्पिक झण्डे के विषय में संक्षिप्त जानकारी दो।
(Give brief description about Olympic Flag.)
उत्तर-
ओलिम्पिक झण्डा 1919 ई० में एंटवर्प (Antwerp) में होने वाली ओलिम्पिक खेलों में फहराया गया। इस झण्डे की रचना क्यूबर्टिन ने की थी। इस झण्डे में पांच रंगोंलाल, हरे, पीले, नीले तथा काले से पांच चक्कर परस्पर जोड़ कर बनाए गए हैं। ये पांच चक्कर यूरोप, ऑस्ट्रेलिया, एशिया, अफ्रीका तथा अमेरिका पांच महाद्वीपों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
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इन चक्रों का परस्पर जुड़ा होना इन पांच महाद्वीपों की मित्रता तथा सद्भावना का प्रतीक है।

प्रश्न 2.
एशियाई खेलें कब तथा क्यों शुरू हुईं ? इन खेलों को शुरू करने में भारत का क्या योगदान है ?
(When and where Asian games were started ? Write the contribution of India to start Asian games.)
उत्तर-
एशियाई खेलें (Asian Games)-14वीं ओलिम्पिक खेलों का 1948 ई० में लन्दन में आयोजन हुआ। उस समय श्री जी० डी० सोंधी ने यह विचार प्रस्तुत किया कि जब भारतीय या एशियाई खिलाड़ी यूरोपीय देशों में आयोजित खेलों के मुकाबलों में भाग लेने जाते हैं तो वे खेल का अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाते। इसलिए यदि एशियाई देशों के खिलाड़ी पहले आपस में मुकाबला कर लें तो एक तो उनमें मुकाबला करने की शक्ति बढ़ेगी और दूसरे खेल का स्तर उन्नत होगा। इस विचार को कार्यरूप देने के लिए उन्होंने 8 अगस्त, 1945 ई० को लन्दन के साऊंड पायल होटल में एशियाई देशों की एक सभा बुलाई। इस सभा में कोरिया, बर्मा (म्यनमार), चीन, श्रीलंका आदि देशों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। इन सभी सदस्यों ने एशिया में खेल मुकाबले करवाने के सुझाव का समर्थन किया।

महाराजा पटियाला श्री यादविन्दर सिंह ने भी एशियाई खेलों के आरम्भ करने में विशेष महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने फरवरी, 1949 में दिल्ली में एशियाई खेलों के लिए एशियाई देशों की सभा बुलाई। इस सभा में भारत, अफ़गानिस्तान, श्रीलंका, बर्मा, पाकिस्तान, इण्डोनेशिया, नेपाल, फिलीपाइन तथा थाइलैंड आदि देशों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। इस सभा में एशियाई एथलैटिक्स फैडरेशन को खेल फैडरेशन का नाम दिया गया था। इसके संविधान का निर्माण किया गया। एशियाई खेलों को हर चार वर्ष बाद आयोजित करने का निश्चय किया गया। पहली एशियाई खेलें 4 मार्च से 11 मार्च तक, 1951 में दिल्ली के नैशनल स्टेडियम में हुईं। फिर 1982 में नौवीं एशियाई खेलें दिल्ली में तथा 10वीं एशियाई खेलें सिओल में सम्पन्न हुईं।

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बड़े उत्तरों वाले प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
ओलिम्पिक खेलें कब और किन-किन देशों में हुईं ?
(When and where Olympic Games were organised ?)
उत्तर-
पहली ओलिम्पिक खेलों के स्थान एवं तिथियां
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1906 के खेल, आधुनिक खेलों की 10वीं वर्षगांठ मनाए जाने हेतु खेले गये थे, मगर इनकी गिनती नहीं की गई क्योंकि ये खेल 1904-1908 के ओलिम्पियाड के प्रथम वर्ष में नहीं आयोजित किए गए थे।
यहां केवल घुड़-सवारी के खेल ही करवाए गए थे।

प्रश्न 2.
प्राचीन ओलिम्पिक खेलें कहां और कब आरम्भ हुईं ?
(When and where Ancient Olympic was organised?)
उत्तर-
इतिहास (History)-प्राचीन ओलिम्पिक खेलें 776 ई० पूर्व यूनान के ओलिम्पिया नामक नगर में आरम्भ हुईं। इन खेलों का आरम्भ करने का श्रेय इफिटस तथा कलाऊस्थैनीज़ को दिया जाता है। ये खेलें अगस्त तथा सितम्बर महीने की पूर्णिमा की रात को आरम्भ हुईं। प्रथम ओलिम्पिक खेलों के विजेता का नाम कोर्बस था। ये खेलें हर चार वर्ष के पश्चात् आयोजित की जाती थीं। 394 ई० पू० में रोमन सम्राट् थ्यूसिडियस के आदेश से ये खेलें बन्द हो गईं। ओलिम्पिक नगर एल्फिस नदी के तट पर बसा हुआ था। यह एलिस राज्य का पवित्र नगर था। 1100 ई० पू० में खेलों के लिए विशेष जगह बन गई जिनकी मन्दिर के समान पूजा होने लगी। ओलिम्पिक खेलों के शुरू होने पर सारे यूनान में लड़ाइयां बन्द हो जाती थीं। ओलिम्पिक नगर में कोई भी शस्त्रों के साथ प्रवेश नहीं कर सकता था।

खेलें (Sports)—प्राचीन ओलिम्पिक खेलों में पहले केवल की दौड़ की वृद्धि की गई। पन्द्रहवीं ओलिम्पिक खेलों में तीन मील की दौड़ की वृद्धि की गई। 18वीं ओलिम्पिक में पेंटाथलीन (Pantathlon) शुरू की गई। इसमें लम्बी छलांग, दो सौ गज़ की दौड़, नेज़ा फेंकना तथा कुश्तियां पांच खेलें रखी गईं। 25वीं ओलिम्पिक्स में रथ दौड (Chariot Race) तथा 30वीं ओलिम्पिक्स में मुक्केबाज़ी, पानी की खेलें, कुश्तियां तथा पैक्ट्रयम आदि खेलें सम्मिलित की गईं। ये खेलें तीन से पांच दिन तक चलती थीं। पहले स्त्रियां इन खेलों में भाग नहीं ले सकती थीं परन्तु बाद में स्त्रियों के लिए भी द्वार खोल दिए गए।

ईनाम (Rewards)—इन खेलों के विजेताओं को खूब सम्मानित किया जाता था। उन्हें जीयस देवता के मन्दिर में ले जाकर जैतून वृक्ष की टहनियां और पत्ते भेंट किए जाते थे। लोग उनकी विजय के गीत गाते थे। विजेताओं के नाम पर खेलों के नाम रखे जाते थे। विजेताओं के साथी बाजा बजाकर उनके घर छोड़ कर आते थे। विजेता खिलाड़ियों पर देश गर्व करता था। सभी यूनानी इन खेलों में विजय प्राप्त करने की हार्दिक कामना करते थे।

समाप्ति (End)—समय की गति के साथ ये खेलें लोकप्रिय होती गईं और अन्य देशों तथा राष्ट्रों ने भी भाग लेना आरम्भ कर दिया। रोमनों द्वारा यूनान की विजय के पश्चात् इन खेलों की लोकप्रियता को ठेस पहुंची। कई व्यावसायिक (Professional) खिलाड़ी इनमें भाग लेने लगे। इससे इन खेलों में कई बुराइयां घर कर गईं। रोमन सम्राट् थिओडसस के आदेश से 394 ई० पू० में ये खेलें बन्द कर दी गईं। 395 ई० पू० में जीयस देवता का बुत भी तोड़ दिया गया। ओलिम्पिक नगर की चहल-पहल समाप्त हो गई। रोमन सम्राट् थिओडसस द्वितीय ने स्टेडियम भी नष्ट करवा दिया। इस प्रकार कुछ समय तक ओलिम्पिक खेलों तथा ओलिम्पिया नगर के चिन्ह ही मिट गए।

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प्रश्न 3.
प्राचीन ओलिम्पिक खेलों के क्या नियम थे और कौन-कौन सी खेलें करवाई जाती थी ?
(What were the main rules of the Ancient Olympic Games ? Which were the different games organised ?)
उत्तर-
प्राचीन ओलिम्पिक खेलों के नियम (Rules of Ancient Olympics)प्राचीन ओलिम्पिक खेलों में भाग लेने के लिए निम्नलिखित नियमों का पालन करना परमावश्यक था—

  1. इन खेलों में भाग लेने वाले सभी खिलाड़ी यूनान के नागरिक होने चाहिएं।
  2. खिलाड़ी के लिए खेलों में भाग लेने से पूर्व किसी की देख-रेख में 10 मास तक प्रशिक्षण पाना ज़रूरी था। उसे अन्तिम एक मास ओलिम्पिक में व्यतीत करना पड़ता था।
  3. कोई भी व्यावसायिक (Professional) खिलाड़ी इन खेलों में भाग नहीं ले सकता था।
  4. आरम्भ में औरतों को न तो खेलों में भाग लेने और न ही इन्हें देखने की आज्ञा थी।
  5. खिलाड़ियों को खेलों में ठीक ढंग से भाग लेने की शपथ लेनी पड़ती थी।
  6. खिलाड़ियों पर किसी प्रकार के अपराध का आरोप नहीं होना चाहिए था।
  7. ओलिम्पिक में खिलाड़ियों की देख-रेख की ज़िम्मेदारी खेलों के जजों की थी।
  8. पहला और अन्तिम दिन धार्मिक रीतियों और बलियों के लिए निश्चित था।

खेलें (Sports)—प्राचीन ओलिम्पिक खेलों में पहले तो केवल एक दौड़ सम्मिलित थी परन्तु धीरे-धीरे इसमें और खेलों का समावेश हो गया। यह दौड़ लगभग 100 गज़ लम्बी थी। 724 ई० पू० में आयोजित 14वीं ओलिम्पिक खेलों में 400 गज़ की दौड़ और 15वीं ओलिम्पिक खेलों में 3 मील की दौड़ सम्मिलित की गई। 18वीं ओलिम्पिक खेलों में पेंटाथलोन आरम्भ की गई। इसमें लम्बी छलांग, नेज़ाबाजी, 300 गज़ दौड़, डिस्कस थ्रो तथा कुश्तियां पांच खेलें आती थीं। 25वीं ओलिम्पिक्स में पुरुषों के लिए बॉक्सिंग (मुक्केबाज़ी) आरम्भ की गई। ओलिम्पिक खेलों में रथ दौड़ तथा 30वीं ओलिम्पिक्स स्त्रियां इन खेलों में भाग नहीं ले सकती थीं परन्तु बाद में उन्हें अनुमति दे दी गई।

प्रश्न 4.
नवीन ओलिम्पिक खेलें किसने शुरू करवाईं ? उसके विषय में आप क्या जानते हो ?
(Who has started Modern Olympic Games ? What do you know about him ?)
उत्तर-
14वीं शताब्दी तक ओलिम्पिक खेलों के महत्त्व की ओर किसी ने तनिक ध्यान न दिया। परन्तु इन खेलों का पुनर्जन्म लिखा हुआ था। 1829 ई० में जापानी तथा फ्रांसीसी वैज्ञानिकों ने ओलिम्पिया की खुदवाई का काम आरम्भ किया। वर्षों के प्रयत्नों के पश्चात् उनके हाथ सफलता लगी। इन खुदाइयों से ओलिम्पिया के मन्दिर और स्टेडियम प्राप्त हुए।
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बैरन दि कबर्टिन को नवीन ओलिम्पिक खेलों के जन्मदाता माना जाता है। उनका जन्म 1863 ई० में फ्रांस में हुआ। वह फ्रांस के शिक्षा विभाग में कार्य करते थे। उनकी शारीरिक शिक्षा से विशेष रुचि थी। 1854 ई० में वे इंग्लैण्ड के भ्रमण पर गए। वे इंग्लैण्ड के शैक्षणिक ढांचे से अत्यधिक प्रभावित हुए।

कुबर्टिन बर्तानिया और अमेरिका गए। वहां इन्होंने लोगों को अपनी योजनाओं से अवगत कराया। इस पर अन्य खेल प्रेमियों ने उनको सहायता देने का समर्थन किया। कुबर्टिन खेलों के माध्यम से स्वास्थ्य, सुन्दरता, मनोरंजन तथा सहयोग बढ़ाना चाहते थे। उन्होंने विभिन्न देशों का दौरा किया और वहां के लोगों को अपने विचारों की जानकारी दी। उन्होंने फ्रांस में फ्रांसीसी खेल संघ की आधारशिला रखी। 16 जून, 1894 ई० को एक अन्तर्राष्ट्रीय कांग्रेस के समक्ष ओलिम्पिक योजना रखी गई।
इसका सभी ने समर्थन किया। फलस्वरूप 5 अप्रैल से 15 अप्रैल, 1896 ई० तक प्रथम ओलिम्पिक खेलों का आयोजन किया गया। इन खेलों के लिए कुबर्टिन ने एक महान् आदर्श प्रस्तुत किया। वह आदर्श है-“ओलिम्पिक खेलों में महत्त्वपूर्ण बात, जीत प्राप्त करना नहीं बल्कि उनमें भाग लेना है। आवश्यक बात जीतना नहीं है बल्कि अच्छी तरह मुकाबला करना है।” (“The important thing in Olympics is not to win but to take part. As the important thing in life is not triumph but struggle. The essential thing is not to have conquered but to have fought well.”;

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प्रश्न 5.
नवीन ओलिम्पिक खेलों का मॉटो तथा शपथ क्या है ?
(What is Olympic Motto and Olympic Oath of modern Olympic Games ?)
उत्तर-
ओलिम्पिक मॉटो (Olympic Motto)-ओलिम्पिक मॉटो तीन शब्दों से बना है। ये तीन शब्द हैं—
सीटियस (Citius), आल्टीयस (Altius), फार्टियस (Fortius)
सीटियस (Citius) का अर्थ है बहुत तेज़.
आल्टीयस (Altius) का अर्थ है बहुत ऊंचा
फार्टियस (Fortius) का अर्थ है बहुत जोर से।
ये तीनों शब्द खिलाड़ी के लक्ष्य को सूचित करते हैं। इनका अभिप्राय है-बहुत तेज़ भागना, बहुत ऊंची छलांग लगाना तथा बहुत जोर से डिस्कस या गोला फेंकना।

ओलिम्पिक शपथ—यह रीति 1920 ई० में अन्तदीप में शुरू हुई थी। वर्ष 1984 में ओलिम्पिक खेलों के चार्टर रूप 63 में कहा गया है कि मेज़बान राष्ट्र का एक खिलाड़ी अपने बाएं हाथ में ओलिम्पिक झण्डे का कोना पकड़ कर और अपना दायां हाथ ऊपर उठा कर निम्नलिखित शपथ लेगा—

“सभी खिलाड़ियों की ओर से मैं बचन लेता हूं कि हम इन ओलिम्पिक खेलों में उन नियमों का आदर करते हुए और उन पर पाबन्द रहते हुए जो कि इसकी निगरानी करते हैं, खिलाड़ियों की सच्ची भावना से खेलों के गौरव और हमारी टीमों के सम्मान के लिए शामिल होंगे।”

ओलिम्पिक झण्डा (Olympic Flag)—ओलिम्पिक झण्डा (Olympic Flag) सर्वप्रथम बैल्जियम (Belgium) के ऐंटवरप (Antwerp) नगर में हुई ओलिम्पिक खेलों में लहराया गया। यह झण्डा सफ़ेद रंग का होता है। इसमें पांच चक्र परस्पर जुड़े हुए भिन्न-भिन्न रंगों के (लाल, हरा, पीला, नीला तथा काला) होते हैं। ये अंग्रेजी अक्षर W जैसे आकार के होते हैं। ये संसार के पांच महाद्वीपों यूरोप, अमेरिका, एशिया, अफ्रीका तथा ऑस्ट्रेलिया का प्रतिनिधित्व करते हैं। झण्डे पर ओलिम्पिक मॉटो (Motto), तीन शब्दों Citius, Altius तथा Fortius द्वारा दर्शाया जाता है।
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नोट—सभी खिलाड़ियों की ओर से ओलिम्पिक शपथ लेने वाले खिलाड़ी—

वर्ष नाम राष्ट्र एवं खेल
1920 विक्टर बैन (बैल्जियम, गतका)
1924 जियो एंङ्गीअ (फएंसम ऐथलैटिक्स)
1928 हैनरी डैनिस (नीदरलैंडस, फुटबाल)
1932 जार्ज चार्ल्स कैनन (अमेरिका, गतका)
1936 रुडुलफ इस्मायर (जर्मनी, भार उठाना)
1948 डोनलड फिनले (इंग्लैंड, ऐथलैटिक्स)
1952 हेईकी सावीलैनेन (फिनलैंड, जिमनास्टिक्स)
1956 जॉन लैंडी (आस्ट्रेलिया, ऐथलैटिक्स)
1960 एडोलफो कांसोलिनी (इटली, ऐथलैटिक्स)
1964 टकाशी ऊनो. (जापान, जिमनास्टिक्स)
1968 पाबलो मैरीडो (मैक्सिको, ऐथलैटिक्स)
1972 हेईडी सक्यूल  (पश्चिमी जर्मनी, ऐथलैटिक्स)
1976 पीएरे सेंट जीन (कैनेडा, भार उठाना)
1980 निकोलाई एंड्रीयनोव (सोवियत रूस, जिमनास्टिक्स)

 

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प्रश्न 6.
नवीन ओलिम्पिक खेलों के क्या नियम हैं ? (अभ्यास का प्रश्न 5)
(Discuss the main rules of Modern Olympics.)
उत्तर-
नवीन ओलिम्पिक खेलों के नियम (Rules of New Olympics)-पहले. तो खेलों के नियम बहुत ही साधारण थे। कोई भी व्यक्ति इनमें भाग ले सकता था। 1908 ई० में ओलिम्पिक खेलें लन्दन में आयोजित की गईं और नियमों का निर्माण किया गया। ये नियम इस प्रकार हैं—

  1. प्रत्येक देश जो ओलिम्पिक खेलों का सदस्य है अपने किसी भी देशवासी को खेलों में भाग लेने के लिए भेज सकता है।
  2. कोई भी व्यावसायिक खिलाड़ी (Professional player) इनमें भाग नहीं ले सकता। इस बात की पुष्टि उसकी राष्ट्रीय कमेटी करती है। इस विषय में खिलाड़ी को भी लिख कर देना पड़ता है।
  3. इनमें भाग लेने वाले खिलाड़ी पर आयु, जाति, धर्म आदि का प्रतिबन्ध नहीं है।
  4. कोई भी खिलाड़ी नशे की हालत में खेलों में भाग नहीं ले सकता।
  5. खिलाड़ी के लिंग की जांच की जाती है।
  6. किसी एक देश की ओर से भाग लेने वाला खिलाड़ी किसी दूसरे राष्ट्र की ओर से भाग नहीं ले सकता।
  7. यदि कोई नया देश अस्तित्व में आया हो तो वह अपना खिलाड़ी भेज सकता है।

इन खेलों का आयोजन, अन्तर्राष्ट्रीय ओलिम्पिक कमेटी द्वारा किया जाता है। इस कमेटी में प्रत्येक देश का मैम्बर होता है। परन्तु जिस देश में ओलिम्पिक कमेटियां स्थापित हों अथवा जहां खेलों का आयोजन भली-भांति हो, उसके दो सदस्य भी हो सकते हैं। इस कमेटी के सदस्य आठ वर्ष के लिए अपने अध्यक्ष का चुनाव करते हैं। इसके अतिरिक्त चार वर्ष के लिए दो उपाध्यक्षों का चुनाव करते हैं। पांच अन्य सदस्य भी इस कमेटी के सदस्य चुने जाते हैं। यह कमेटी नियमानुसार ओलिम्पिक खेलों का आयोजन करती है।

प्रश्न 7.
भारतीय खिलाड़ियों को ओलिम्पिक खेलों में क्या स्थान प्राप्त है ?
(Discuss the main achievements of Indian players in Olympic ?)
उत्तर-
ओलिम्पिक खेलों में भारतीय खिलाड़ियों की सफलताएं (Achievements of Indian players in Olympics)-नवीन ओलिम्पिक खेलों का आरम्भ 1896 ई० में हुआ। इस कार्य में फ्रांस के बैरन दि कुबर्टिन ने प्रशंसनीय भूमिका निभाई थी। इसी कारण उसे ओलिम्पिक खेलों का जन्मदाता कहा जाता है। भारत ने इन खेलों में 1900 ई० में पहली बार भाग लिया। भारतीय खिलाड़ी नार्मन ने 200 मीटर की दौड़ में दूसरा स्थान प्राप्त करके चांदी का तमगा प्राप्त किया। 1920 ई० की ओलिम्पिक खेलों में भारत की ओर से छ: खिलाड़ियों ने एथलैटिक्स और कुश्तियों में भाग लिया। 1924 में पैरिस ओलिम्पिक खेलों का आयोजन हुआ। इन में आठ भारतीय खिलाड़ियों ने भाग लिया। श्री जी० डी० सोंधी, एच० सी० बक और ए० जी० कारेन ने ओलिम्पिक लहर को देश में लोकप्रिय करने के लिए महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। 1927 ई० में इण्डियन

ओलिम्पिक एसोसिएशन की स्थापना हुई।—1928 ई० में भारतीय हॉकी टीम ने प्रथम बार एमस्टर्डम में आयोजित ओलिम्पिक खेलों में भाग लिया। इसने सोने का तमगा जीता। 1928 ई० से 1956 ई० तक भारत हॉकी जगत् में छाया रहा। 1952 ई० में के० डी० यादव ने कुश्ती के मुकाबले में भाग लिया और तांबे का तमगा जीता। 1956 में मैलबोर्न में आयोजित ओलिम्पिक खेलों में भारत की फुटबाल टीम ने पहली बार भाग लिया। इस टीम ने चौथा स्थान प्राप्त किया। 1960 में रोम में हई ओलिम्पिक खेलों में भारतीय हॉकी टीम ने दूसरा स्थान प्राप्त किया और पहला स्थान पाकिस्तानी टीम ने प्राप्त किया। इसी वर्ष मिलखा सिंह ने 400 मीटर दौड़ में चौथा स्थान प्राप्त किया।

1964 में टोकियो में ओलिम्पिक खेलों का आयोजन हुआ। इसमें भारतीय हॉकी की टीम फिर से प्रथम स्थान पाने में सफल हुई। 1968, 1972 तथा 1976 में आयोजित होने वाली ओलिम्पिक खेलों में भारतीय हॉकी – प्रथम स्थान पा कर सोने का तमगा जीतने में सफल रही। 1976 में ओलिम्पिक खेलें मांट्रियाल में हुईं। इसमें शिवनाथ ने मैरथान दौड़ में ग्यारहवां और श्री राम ने 800 मीटर दौड़ में सातवां स्थान प्राप्त किया। 1980 में मास्को में हुई ओलिम्पिक खेलों में भारतीय हॉकी टीम ने सोने का तमगा जीतने में सफलता प्राप्त की। इन खेलों में भारतीय टीम ने एथलैटिक्स, कुश्तियां, बॉक्सिग, बास्केट बाल, निशानेबाज़ी तथा वालीबाल में तो भाग लिया था, परन्तु इनमें उसे कोई विशेष सफलता हाथ नहीं लगी थी। 1984 में लास ऐंजलस में आयोजित ओलिम्पिक खेलों में भारतीय खिलाड़ियों का प्रदर्शन बहुत निराशाजनक रहा। 28वीं ओलम्पिक खेलें 2004 में ऐन्थन ग्रीस में हुईं इसमें मेजर राजवर्धन सिंह राठौर ने सूटिंग मुकबाले में दूसरा स्थान प्राप्त करके भारत की शान बढ़ाई। ऐथलैटिक में अंजू बोबी जार्ज ने लोंग जम्प में छठा स्थान प्राप्त किया और भारतीय हाकी टीम सातवां स्थान ही प्राप्त कर सकी।

PSEB 10th Class Physical Education Solutions Chapter 4 एशियन और ओलिम्पिक खेलें

प्रश्न 8.
अन्तर्राष्ट्रीय ओलिम्पिक कमेटी के बारे संक्षेप से लिखें।
(Write in brief about International Olympic Committee I.O.A.)
उत्तर-
अन्तर्राष्ट्रीय ओलिम्पिक (International Olympic Committee)
ओलिम्पिक खेलों के संगठन के लिए सर्वोच्चतम कमेटी अन्तर्राष्ट्रीय ओलिम्पिक कमेटी है। 25 जून, 1894 में पेरिस की कांग्रेस के अनुसार अन्तर्राष्ट्रीय ओलिम्पिक कमेटी को निम्न उत्तरदायित्व सौंपे गए—

  1. खेलों का लगातार करना।
  2. खेलें कुबर्टिन के आम आशय के अनुसार तथा सारे विश्व में प्रेम और शान्ति का सन्देश दें।
  3. खेलों में अव्यावसायिक प्रतियोगिता को उच्चतम स्थान दें।
  4. खेलें विश्व शान्ति तथा मैत्री को बढ़ाएं।

ओलिम्पिक खेलों की इस कमेटी में प्रत्येक देश का एक प्रतिनिधि होता है। परन्तु ऐसे देश जहां ओलिम्पिक खेलें हुई हों तथा वे देश जिन्होंने ओलिम्पिक खेल में महत्त्वपूर्ण काम किया हो, के दो सदस्य होते हैं अन्तर्राष्ट्रीय ओलिम्पिक कमेटी अपने लिए बैकट द्वारा अपना प्रधान चुनती है जो पांच वर्ष तक इस पद पर रहता है। फिर दुबारा चुने जाने पर वह चार वर्ष और रह सकता है। इसमें दो उप-प्रधान भी होते हैं जिनकी कार्य अवधि चार वर्ष होती है। यह दुबारा चुनाव लड़ सकते हैं। उप-प्रधान तथा पांच कार्यपालिका के सदस्य हर चार साल बाद इन खेलों को कराने में सहायता करते हैं।

अन्तर्राष्ट्रीय ओलिम्पिक कमेटी का मुख्य कार्यालय सीरोन (स्विट्ज़रलैण्ड) में है।
एशियाई खेलें
(Asian Games)
एशियाई खेलों का जन्म 13 जनवरी, 1949 में नई दिल्ली के पटियाला हाऊस में अफगानिस्तान, म्यनमार (बर्मा), भारत, पाकिस्तान तथा फिलीपाइन्स के प्रतिनिधियों के हस्ताक्षरों के साथ हुआ। इन खेलों के लिए सदैव आगे (Ever onward) का आदर्श अपनाया गया। इन खेलों को प्रारम्भ करने का श्रेय अन्तर्राष्ट्रीय ओलम्पिक कमेटी के भारतीय प्रतिनिधि स्वर्गीय जी० डी० सोंधी को है। श्री सोंधी तत्कालीन भारतीय ऐथलैटिक्स संघ के प्रधान थे। इन खेलों से पहले एशियन क्षेत्र में सुदूर पूर्व खेलें, पश्चिमी एशियन खेलें, जिनमें जापान, चीन, फिलीपाइन तथा स्वेज़ नहर के पूर्वी देश तथा सिंगापुर के पश्चिमी देश भाग लेते थे। मगर यह खेलें द्वितीय विश्व युद्ध के कारण बन्द हो गई।

एशियाई खेलों को कराने के पीछे प्रमुख उद्देश्य था कि एशियाई सब देश खेल के मैदान में इच्छुक हो। इस सम्बन्ध में मार्च, 1949 में पंडित नेहरू द्वारा नई दिल्ली में एशियाई देशों सम्बन्धी कान्फ्रेंस का आयोजन किया गया जिसमें एशियाई खेलों की तरफ आए हुए सदस्यों का ध्यान इस तरफ आकर्षित किया गया। जी० डी० सोंधी द्वारा पंडित नेहरू का ध्यान इस तरफ आकर्षित किया। श्री नेहरू के इस विचार का अपना अनुमोदन किया। 1949 में लन्दन के ओलम्पिक खेलों में भाग लेने वाले एशियाई सदस्यों को एकत्र करके पहले एशियाई खेलों का प्रारम्भ 1950 में माना गया। फलस्वरूप प्रारम्भिक खेलें नई दिल्ली, मार्च, 1951 में कराई गई। ये खेलें हर चार साल बाद कराई जाती हैं। विभिन्न खेलों के विवरण इस तरह हैं—
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सदस्य देश
(Member Countries)
अफगानिस्तान, बेहरी, म्यनमार (बर्मा) चीन, हांगकांग, भारत, इण्डोनेशिया, ईरानइराक, इजराइल, जापान, गणतन्त्र कोरिया, गणतंत्र जनतांत्रिक कोरिया, मलेशिया, मंगोलिया, नेपाल, पाकिस्तान, फिलिपाइन, सऊदी अरब, सिंगापुर, श्रीलंका, थाईलैंड, वियतनाम।

विभिन्न खेलें
(Different Games)
एथलैटिक, बैडमिन्टन, बास्केट बाल, बाक्सिंग, साइकलिंग, सलवान, खाली, फुटबाल, जिमनास्टिक, हॉकी, निशानेबाजी, तैराकी, टेबल-टैनिस, लान-टैनिस यांत्री, भार उठाना, कुश्ती।

प्रश्न 9.
एशियाई खेलों में भारतीयों ने कौन-कौन से इनाम जीते हैं ?
(Write about Indian players who won Lourels in Asian Games ?)
उत्तर-
एशियाई खेलों में भारत की सफलता (India’s achievement in Asian Games)-पहली एशियाई खेलों का आयोजन नई दिल्ली में 1951 ई० में हुआ।

इन खेलों में भारतीयों ने 15 स्वर्ण, 16 रजत तथा 21 कांस्य पदक जीते। भारतीय फुटबाल टीम ने सोने का तमगा जीता। भारतीय एथलीट लेरी पिंटो ने 100 तथा 200 मीटर दौड़ में, रणजीत सिंह ने 800 मीटर में, निक्का सिंह ने 1500 मीटर में एवं मदन लाल ने गोला फेंकने में तथा मक्खन सिंह ने डिस्कस फेंकने में सोने के पदक जीते। 1954 ई० में दूसरे एशियाई खेल मनीला में हुए। इन में अजीत सिंह ने ऊंची छलांग, प्रद्युमन सिंह ने डिस्कस तथा गोला फेंकने में, सरवन सिंह ने 110 मीटर बाधा दौड़ में स्वर्ण पदक जीते जबकि सोहन सिंह ने 800 मीटर में तथा जोगिन्दर सिंह ने 400 मीटर दौड़ में रजत पदक पाये। भारतीय महिलाओं ने 4 × 100 मीटर रिले दौड़ में गोल्ड मैडल हासिल किया। 1958 ई० में तीसरी एशियाई खेलें टोकियो में सम्पन्न हुईं। इन में मिलखा सिंह ने 200 तथा 400. ‘ मीटर में, बलकार सिंह ने डिस्कस थ्रो में, प्रद्युमन सिंह ने गोला फेंकने में तथा महिन्दर सिंह ने हाप स्टेप जम्प में स्वर्ण पदक जीते तथा भारत का नाम खेल जगत् में ऊंचा किया। भारतीय हॉकी टीम ने दूसरा स्थान प्राप्त करके चांदी का तमगा जीता। भारत ने इन खेलों में 5 सोने के, 4 चांदी के तथा 4 तांबे के तमगे जीते। 1962 की चतुर्थ एशियाई खेलें जर्काता में सम्पन्न हुईं। इन में मिलखा सिंह ने 400 मीटर में, मोहिन्द्र सिंह ने 1500 मीटर में, तरलोक सिंह ने 10,000 मीटर में तथा पुरुषों की 4 × 400 मीटर रिले दौड़ में स्वर्ण पदक जीते। भारतीय हॉकी टीम को दूसरा स्थान मिला। भारत ने इन खेलों में 11 सोने के, 13 चांदी के तथा 10 तांबे के पदक जीते।

1966 ई० में एशियाई खेलों का आयोजन बैंकाक में हुआ जिन में भारतीय खिलाड़ियों ने 7 सोने के, 3 चांदी के तथा 11 तांबे के पदक जीते। भारतीय हॉकी टीम ने दूसरा स्थान पाया तथा भारतीय एथलीट अजमेर ने 400 मीटर में, बी० एस० बरुआ ने 800 मीटर में, भीम सिंह ने ऊंची छलांग लगाने में, परवीन ने डिस्कस और जोगिन्दर सिंह ने गोला फेंकने में सोने के पदक जीते।

1970 में बैंकाक में आयोजित एशियाई खेलों में परवीन ने डिस्कस में, महिन्दर सिंह ने हाप स्टेप जम्प में, जोगिन्दर सिंह ने गोला में महिला एथलीट कंवलजीत सन्धु ने 400 मीटर दौड़ में सोने का तमगा जीत कर . ख्याति में वृद्धि की। भारतीय हॉकी टीम को दूसरा स्थान मिला। कुल मिला कर भारत ने इन खेलों में 6 सोने के, 9 चांदी के और 10 तांबे के पदक जीते।

1974 में तेहरान में आयोजित एशियाई खेलों में भारत ने 4 सोने, 12 चांदी और 12 तांबे के तमगे जीत कर सातवां स्थान प्राप्त किया। इन खेलों में श्री राम सिंह ने 800 मीटर दौड़ में, शिव नाथ सिंह ने 5000 मीटर (नया रिकार्ड) सोने का तथा 10,000 मीटर दौड़ में चांदी का तथा टी० सी० योगनन ने लम्बी छलांग में सोने के तमगे जीते।

1978 ई० में बैंकाक में आयोजित एशियाई खेलों में भारत ने 11 सोने के, 11 चांदी के तथा 6 तांबे के पदक जीत कर छठा स्थान प्राप्त किया। 5000 तथा 10,000 मीटर दौड़ में हरि चन्द ने, बहादुर सिंह ने गोला फेंकने में, सुरेश बाबू ने लम्बी छलांग में, हुक्म सिंह ने 20 किलोमीटर वाक में स्वर्ण पदक जीते। गीता जुत्शी ने 1500 मीटर दौड़ में चांदी का मैडल तथा 800 मीटर में स्वर्ण पदक जीते। भारतीय हॉकी टीम को दूसरा स्थान मिला।

1982 में नवम एशियाई खेलें नई दिल्ली में हुईं जिनमें भारत ने 13 सोने, 19 चांदी और 19 कांस्य पदक जीते। भारतीय महिला हॉकी टीम ने सोने का तथा पुरुष हॉकी टीम ने चांदी का पदक प्राप्त किया। गीता जुत्शी ने 800, 1500 मीटर दौड़ में दूसरा स्थान, बाल सम्मा ने 400 मीटर हर्डल दौड़ में तथा 800 मीटर दौड़ में चार्ल्स बरोनियो ने सोने के पदक जीते। 1986 में एशियाई खेल सिओल में आयोजित किए गए। भारतीय महिला एथलीट पी० टी० ऊषा ने 200, 400, 800 मीटर हर्डल तथा 4 × 400 मीटर रिले में स्वर्ण पदक जीत कर भारत को पदक तालिका में सम्मानजनक स्थिति पर ला खड़ा किया। ऊषा ने 100 मीटर दौड़ में दूसरा स्थान पाया। उसने सर्वोत्तम प्रदर्शन द्वारा भारत के नाम को रोशन किया। भारत ने कुल 5 सोने के, 9 चांदी के तथा 23 कांस्य पदक जीते। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर नाम कमाने वाले भारतीय खिलाड़ियों का वर्णन इस प्रकार है—

  1. लैरी पिंटो ने 1951 में हुई पहली एशियाई खेलों में 100 मीटर दौड़ में प्रथम स्थान पाकर सोने का तमगा जीता।
  2. 1954 में मनीला में आयोजित एशियाई खेलों में सोहन सिंह ने 400 मीटर दौड़, अजीत सिंह ने ऊंची छलांग, प्रद्युमन सिंह ने डिस्कस तथा गोला फेंकने में सोने के तमगे जीते। इनके अतिरिक्त जोगिन्दर सिंह ने चांदी का और ए० ग्रेबियन ने 100 मीटर दौड़ तथा दालू राम ने 3000 और 5000 मीटर दौड़ में तीसरा स्थान प्राप्त करके तांबे के तमगे जीते।
  3. 1958 में हुई एशियाई खेलों में फ्लाईंग सिक्ख (Flying Sikh) मिलखा सिंह ने 200 मीटर और 400 मीटर दौड़ में, महिन्दर सिंह ने हाप स्टैप एण्ड जम्प में, बलकार सिंह ने जैवलिन फेंकने में, प्रद्युमन सिंह ने गोला फेंकने में, एच० चांद ने 100 मीटर हर्डल्ज़ में और 400 मीटर हर्डल्ज़ में जगदेव सिंह ने सोने का तमगा प्राप्त किया। इसके अतिरिक्त स्वीटी डिसूजा ने 200 मीटर दौड़ की हीट्स में नया रिकार्ड कायम किया। एलिज़ाबैथ डैवनपोर्ट ने 46.07 मीटर दूर जैवलिन फेंक कर दूसरा स्थान प्राप्त किया।
  4. 1966 में हुई एशियाई खेलों में अजमेर सिंह ने 400 मीटर, बी० एस० बरुआ ने डिस्कस थ्रो, जोगिन्दर सिंह ने गोला फेंकने तथा भीम सिंह ने गोला फेंकने में सोने के तमगे जीते।
  5. 1970 में बैंकाक में आयोजित एशियाई खेलों में कंवलजीत संधु ने 400 मीटर दौड़ में, महिन्दर सिंह ने हाप स्टैप एण्ड जम्प में, जोगिन्दर सिंह ने गोला फेंकने में सोने के तमगे प्राप्त किए। इसके अतिरिक्त एडवर्ड शकेरा ने 5000 मीटर में, श्रीराम ने 800 मीटर में, लाभसिंह ने लम्बी छलांग तथा हाप स्टेप जम्प में चांदी के तमगे प्राप्त किये। मनजीत वालिया ने 80 मीटर हर्डल्ज़, सुच्चा सिंह ने 400 मीटर में और गुरमेज सिंह ने 3000 मीटर में तांबे का तमगा प्राप्त किया।
  6. 1974 में तेहरान में हुई एशियाई खेलों में शिवनाथ ने 5000 मीटर में नया रिकार्ड स्थापित किया। कंवलजीत संधू ने 56.5 सैकिण्ड में 400 मीटर की दौड़ जीत कर भारतीय स्त्री खिलाड़ियों की ओर से सोने का तमगा जीता। इन्हीं खेलों में टी० सी० योग ने लम्बी छलांग में तथा वी० एस० चौहान ने 1500 मीटर दौड़ में सोने का तमगा प्राप्त किया। निर्मल सिंह ने हैमर फेंकने में चांदी का तथा लैहम्बर सिंह ने 400 मीटर हर्डल में तांबे का तमगा प्राप्त किया।
  7. 1978 की एशियाई खेलों में हरिचन्द ने 1000 मीटर दौड़ में सोने का तमंगा प्राप्त किया। गीता जुत्शी ने 1500 मीटर में चांदी तथा 800 मीटर दौड़ में सोने के तमगे प्राप्त किए।

उपर्युक्त खिलाड़ियों के अतिरिक्त कई अन्य भारतीय खिलाड़ियों ने ओलिम्पिक खेलों में भी अपने उत्तम खेल का प्रदर्शन करके अन्तर्राष्ट्रीय क्रीडा क्षेत्र में बहुत नाम कमाया।

1982 की नौवीं खेलें जो दिल्ली में हुई थीं, बहादुर सिंह ने गोला फेंकने में नया रिकार्ड कायम किया। गीता जुत्शी ने 800, 1500 मीटर दौड़ में दूसरा स्थान, बालसम्मा ने 400 . मीटर हर्डल दौड़ में प्रथम स्थान, 800 मीटर दौड़ में बरोनियो ने प्रथम स्थान प्राप्त किया। हॉकी में लड़कियों ने सोने का तमगा और लड़कों ने चांदी का तमगा जीता। कुश्तियों में सत्यपाल ने सोने का तमगा और करतार सिंह ने चांदी का तमगा जीता। कौर सिंह ने बाक्सिग में सोने का तमगा जीता। भारत की घोड़ों की टीम ने सोने के तमगे जीते और भारत की गोल्फ की टीम ने सोने के तमगे जीते।

1986 की एशियाई खेलों में भारतीय महिला खिलाड़ी पी० टी० ऊषा ने 200, 400, 400 मीटर हर्डल तथा 4 × 400 मीटर रिले में सोने के पदक जीत कर खेल जगत में तहलका मचा दिया। ऊषा ने सिओल में सम्पन्न इन खेलों में 100 मीटर दौड़ में चांदी का पदक जीता।

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प्रश्न 10.
वर्ष 1982 में एशियाई खेलें किस देश में हुई थीं।
उत्तर-
वर्ष 1982 में एशियाई खेलें भारत में हुई थीं।

प्रश्न 11.
नवीन ओलिम्पिक खेलों में कौन-कौन सी खेलें होती हैं ?
(Name the main sports events which are organised in Modern Olympic.)
उत्तर-

  1. तीर अन्दाजी
  2. एथलैटिक्स
  3. बॉक्सिग
  4. बास्केटबाल
  5. कैनोईग
  6. साइकलिंग
  7. इकवीएस टीरंग
  8. फुटबाल
  9. जिम्नास्टिकस
  10. हैंडबाल
  11. हाकी
  12. जूड़ो
  13. निशानेबाजी
  14. रोईग
  15. तैराकी और डुबकी लगाना
  16. तलवार बाजी
  17. वालीबाल
  18. भार उठाना
  19. कुश्ती
  20. बाटर पोलो
  21. याट किशती दौड़।

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प्रश्न 12.
11वीं एशियाई खेलों में भारत ने कौन-कौन से इनाम प्राप्त किये?
(Which awards India won in the Eleventh Asian Games ?)
उत्तर-
11वीं एशियाई खेलें बीजिंग (चीन) में 1990 में हुई थी जिसमें भारत ने नीचे लिखे मुकाबलों में इनाम प्राप्त किए थे।
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बैडमिन्टन (Badminton) Game Rules – PSEB 10th Class Physical Education

Punjab State Board PSEB 10th Class Physical Education Book Solutions बैडमिन्टन (Badminton) Game Rules.

बैडमिन्टन (Badminton) Game Rules – PSEB 10th Class Physical Education

याद रखने योग्य बातें

  1. डबल्ज़ खिलाड़ियों के लिए कोर्ट का = 40′ × 20′, 13.40 × 6.10 मीटर आकार
  2. सिंगल्ज़ के लिए कोर्ट का आकार = 40′ × 17′, 13.40 × 5.18 मीटर
  3. जाल की चौड़ाई = 2′ × 6″
  4. जाल की केन्द्र से पृथ्वी से ऊंचाई = 5′, 1.52 मीटर
  5. पोलो से जाल की ऊंचाई = 5′, 1″, 1.55 मीटर
  6. शटल के परों की गिनती = 16
  7. शटल के परों की लम्बाई = 21/2″ से 33/4″, 62 से 70 मि० मी०
  8. डबल्ज़ खेल में अंक = 21
  9. स्त्रियों के सिंगल खेल के अंक = 21
  10. किनारों की गैलरी का आकार = 1.6″ 45 सी० मी०
  11. पिछली गैलरी का आकार = 2′ 6″, 75 सै० मी०
  12. रैकट का भार और लम्बाई = 85 से 140 ग्राम, लम्बाई 27″, 686 मि०मी०
  13. अधिकारी = रैफ़री एक, अम्पायर एक, सर्विस अम्पायर एक, लाइनमैन 10
  14. सैटों की संख्या = तीन
  15. रैकेट की लम्बाई = 27″ अथवा 80 मि०मी०
  16. फ्रेम की लम्बाई = 11″ या 270 मि०मी०
  17. फ्रेम की चौड़ाई = 9″

बैडमिन्टन खेल की संक्षेप रूपरेखा
(Brief outline of the Badminton Game)

  1. बैडमिन्टन खेल दो प्रकार की होती है-सिंगल्ज़ और डबल्ज़। सिंगल में एक खेलने वाला तथा एक अतिरिक्त खिलाड़ी होता है। डबल्ज़ में चार खिलाड़ी, दो खेलने वाले तथा दो स्थानापन्न (Substitutes) होते हैं।
  2. सिंगल्ज़ खेल के लिए बैडमिन्टन कोर्ट का आकार 13.40 मीटर × 5.18 मीटर (44′. × 17) होता है तथा डबल्ज़ के लिए 13.40 मीटर × 6.10 मीटर (44.20)
  3. टॉस जीतने वाला इस बात का फैसला करता है कि उसने पहले सर्विस करनी है या साइड लेनी है।
  4. पुरुषों का डबल्ज़ खेल भी 21 अंकों का होगा।
  5. लड़कियों के लिए सिंगल मैच के 11 प्वाईंट का होता है।
  6. सर्विस तब तक नहीं की जा सकती जब तक विरोधी खिलाड़ी पूरी तरह तैयार न हो।
  7. सिंगल्ज़ खेल में 5 प्वाईंट हो जाने पर दोनों खिलाड़ी आधी कोर्ट बदल लेंगे।
  8. बैडमिन्टन खेल का समय नहीं होता बल्कि इसमें बैस्ट आफ थ्री गेम्ज़ होती हैं। जो टीम तीन में से दो गेमें जीत जाती है उसे विजयी घोषित किया जाता है।
  9. खेल में व्हिसल का प्रयोग नहीं किया जाता।
  10. इस खेल को प्राय: Indoor Stadium में ही खेला जाता है।

बैडमिन्टन (Badminton) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education

प्रश्न
बैडमिन्टन कोर्ट, जाल, बल्लियां और शटल काक के विषय में विस्तार से लिखें।
उत्तर-
बैडमिन्टन में दो प्रकार की खेलें होती हैं-सिंगल्ज़ और डबल्ज। इन दोनों खेलों के लिए बैडमिन्टन कोर्ट के नाप को चित्र में दिखाई \(1 \frac{1}{2}\) (4 सम) मोटी सफ़ेद या लाल रेखाओं से स्पष्ट किया जाएगा।
डबल्ज़ के लिए कोर्ट का आकार 44 फुट × 20 फुट तथा सिंगल्ज़ के लिए 44 फुट × 17 फुट होगा। नैट के दोनों ओर \(6 \frac{1}{2}\) फुट शर्ट सर्विस रेखा खींची जाएगी। कोर्ट को दो समान भागों में बांटने के लिए साइड लाइन के समानान्तर एक रेखा खींची जाएगी। कोर्ट का बायां आधा भाग बाईं सर्विस कोर्ट तथा दायां आधा भाग दाई सर्विस कोर्ट कहलाएगा। पीछे की गैलरी \(2 \frac{1}{2}\) फुट तथा साइड गैलरी \(1 \frac{1}{2}\) फुट होगी।

बल्लियां (Poles)-नैट (जाल) को तान कर रखने के लिए दो बल्लियां लगाई जाएंगी। ये बल्लियां, फर्श से 5 फुट 1 इंच (1.55 मी०) ऊंची होंगी।
जाल (Net)—जाल बढ़िया रंगीन डोरी का बना होगा। इसकी जाली \(\frac{3}{4}\)” से 1″ होगी। इसकी चौड़ाई 2 फुट 6 इंच (0.76 मीटर) होनी चाहिए। इसका ऊपरी भाग केन्द्र में भूमि से 5 फुट तथा बल्लियों से 5 फुट 1 इंच ऊंचा होना चाहिए। जाल के दोनों सिरों पर 3′ दोहरी टेप होनी चाहिए जिनके बीच डोरियां हों जो जाल को बल्लियों पर कस कर ताने रखने के काम लाई जा सकें।।

चिड़ियां (शटल कॉक) (Shuttle Cock)-चिड़िया का वज़न 73 ग्रेन (4.73 ग्राम) से 85 ग्रेन (5.50 ग्राम) हो। इसमें 1″ से \(1 \frac{1}{2}\)व्यास वाली कार्क में 14 से 16 तक कस कर पर लगे हुए हों। परों की लम्बाई \(2 \frac{1}{2}\) से \(2 \frac{3}{4}\) हो तथा ये \(2 \frac{1}{8}\) से \(2 \frac{1}{2}\) फैले हुए हों। कार्क का व्यास \(1 \frac{1}{2}\) तक होता है।
BADMINTON COURT
बैडमिन्टन (Badminton) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education 1

बैडमिन्टन (Badminton) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education

प्रश्न
बैडमिन्टन खेल में खिलाड़ी, स्कोर और दिशाएं बदलना से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
खिलाड़ी (Players) डबल्ज़ खेल में प्रत्येक पक्ष में दो खिलाड़ी तथा सिंगल्ज़ खेल में प्रत्येक पक्ष में एक खिलाड़ी होगा। खेल के शुरू में जो टीम पहले सर्विस करेगी, उस टीम की साइड को इन साइड (Inside) और विरोधी टीम की साइड को आऊट साइड (Outside) कहेंगे।
बैडमिन्टन (Badminton) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education 2

टॉस (Toss) खेल प्रारम्भ होने से पहले दोनों पक्षों द्वारा टॉस किया जाएगा। टॉस जीतने वाला पक्ष निम्नलिखित का चुनाव करेगा—

  1. पहले सर्विस करना या
  2. पहले सर्विस न करना या
  3. दिशा का चुनाव करना।

शेष बातों का चुनाव टॉस हारने वाला पक्ष करेगा।
स्कोर (Score)-(1) पुरुषों के डबल्ज़ और सिंगल्ज़ के लिए 15 अंकों की खेल होती है। (2) महिलाओं के खेल में 11 अंक होते है। पुरुषों के खेल में स्कोर 14-14 बराबर होने पर पहले 14 अंक बनाने वाला पक्ष 3 अंक पर खेल स्थिर (सैट) कर लेता है। 14 अंकों पर स्थिर होने पर 17 अंक पहले लेने वाला विजयी होता है। महिलाओं के खेल में 10 अंक बराबर होने पर 12 अंक की खेल होती है। जिसने पहले 10 अंक बनाए हों वह 12 अंकों की ऑपशन ले सकता है। जहां पर लड़के और लडकियां बैडमिंटन फैडरेशन के (I.B.E.) अनुसार लागू किए गए हैं।

दिशाएं बदलना (Changing Sides)-पूर्व निर्णय के अनुसार विपक्षी दल तीन खेल खेलेंगे। तीनों में से दो खेल जीतने वाला विजेता कहलाएगा। खिलाड़ी दूसरा खेल आरम्भ होने पर दिशाएं बदलेंगे। यदि खेल के निर्णय के लिए तीसरा खेल आवश्यक हो तो उसमें भी दिशाएं बदली जाएंगी।

प्रश्न-बैडमिन्टन खेल में डबल्ज़ और सिंगल्ज़ खेल क्या होते हैं ?
उत्तर-डबल्ज़ खेल (Doubles)-(1) पहले सर्विस करने वाले पक्ष का निर्णय होने पर उस पक्ष के दायें अर्द्ध-क्षेत्र का खिलाड़ी शुरू करेगा। वह दायें अर्द्ध-क्षेत्र के विपक्षी को सर्विस देगा। यदि विपक्षी खिलाड़ी चिड़िया (शटल कॉक) के भूमि से स्पर्श करने से पहले उसे वापिस कर दे तो खेल आरम्भ करने वाला खिलाड़ी फिर उसे वापिस करेगा। इस प्रकार खेल तब तक जारी रहेगा जब तक कि फाऊल न हो जाए या चिड़िया खेल में न रहे। सर्विस वापिस न होने अथवा विपक्षी द्वारा फाऊल होने की दशा में सर्विस करने वाला एक अंक जीत जाएगा। सर्विस करने अथवा विपक्षी द्वारा फाऊल होने की दशा में सर्विस करने वाला एक अंक जीत जाएगा। सर्विस करने वाले पक्ष के खिलाड़ी अपना अर्द्ध-क्षेत्र बदलेंगे। अब सर्विस करने वाला बायें अर्द्धक में रहेगा तथा सामने की ओर बायें अर्द्धक का खिलाड़ी सर्विस प्राप्त करेगा।
बैडमिन्टन (Badminton) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education 3
(2) प्रत्येक पारी के आरम्भ में प्रत्येक टीम पहली सर्विस दायें अर्द्ध-क्षेत्र से करेगी।
सर्विस सम्बन्धी अन्य नियम (Some other rules regarding Service)—

  1. सर्विस वही खिलाड़ी प्राप्त करेगा जिसे सर्विस दी जाती है। यदि चिड़िया दूसरे खिलाड़ी को स्पर्श कर जाए या वह उसे मार दे तो सर्विस करने वाले को अंक मिल जाता है। एक खिलाड़ी खेल में दो बार सर्विस प्राप्त नहीं कर सकता।
    बैडमिन्टन (Badminton) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education 4
  2. पहली पारी में खेल आरम्भ करने वाला केवल एक ही खिलाड़ी सर्विस करेगा। आगे की पारियों में प्रत्येक खिलाड़ी सर्विस कर सकता है। खेल जीतने वाला पक्ष ही पहले सर्विस करेगा। जीते हुए पक्ष का कोई भी खिलाड़ी सर्विस कर सकता है और हारे हुए पक्ष का कोई भी खिलाड़ी इसे प्राप्त कर सकता है।
  3. यदि कोई खिलाड़ी अपनी बारी के बिना या ग़लत अर्द्ध-क्षेत्र से सर्विस कर दे और अंक जीत जाए तो वह सर्विस ‘लैट’ (LET) कहलाएगी, परन्तु इस ‘लैट’ की मांग दूसरी सर्विस शुरू होने से पहले की जानी चाहिए।

सिंगल्ज खेल के लिए (For Singles) ऊपर के सभी नियम सिंगल्ज़ खेल में लागू होंगे परन्तु—

  1. खिलाड़ी उसी दिशा में दायें अर्द्ध-क्षेत्र में सर्विस करेगा या प्राप्त करेगा जब स्कोर शून्य (0) है या खेल में सम (Even) अंक प्राप्त किए गए हों। अंक विषय (Odd) होने की दशा में सर्विस सदैव बायें अर्द्ध-क्षेत्र की ओर से प्राप्त की जाएगी।
  2. अंक बन जाने पर दोनों खिलाड़ी बारी-बारी से अर्द्ध-क्षेत्र बदलेंगे।

बैडमिन्टन (Badminton) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education

प्रश्न
बैडमिन्टन खेल में त्रुटियों का वर्णन करें।
उत्तर-
त्रुटियां (Faults) खेल रहे पक्ष के खिलाड़ी द्वारा त्रुटि होने पर उस पक्ष का सर्विस करने वाला खिलाड़ी आऊट हो जाएगा। यदि विपक्षी त्रुटि करता है तो खेल रहे पक्ष को एक अंक प्राप्त होगा।
त्रुटि मानी जाएगी—

  1. यदि सर्विस करते समय चिड़िया खिलाड़ी की कमर से ऊंची हो या रैकट का अगला सिरा चिड़िया को मारते समय सर्विस करने वाले रैकट वाले हाथ से ऊंचा उठा हो।
  2. यदि सर्विस करते समय खिलाड़ी के पांव ठीक अर्द्ध-क्षेत्र में न हों।
  3. यदि खिलाड़ी सर्विस करने से पहले या सर्विस करते समय जानबूझ कर विपक्ष के रास्ते में रुकावट डाले।
  4. यदि सर्विस करते समय, खेल के समय चिड़िया सीमाओं से बाहर निकल जाए, जाल के बीच या नीचे से निकल जाए या जाल न पार कर सके या किसी खिलाड़ी के किसी कपड़े या छाती को छू जाए।
  5. यदि खेल के समय जाल पर जाने पर पहले ही मारने वाली की ओर चिड़िया टकरा जाए।
  6. जब चिड़िया खेल में हो और खिलाड़ी रैकट शरीर या कपड़ों से जाल या बल्लियों को छू दे।
  7.  चिड़िया रैकट पर रुक जाए, कोई खिलाड़ी चिड़िया को लगातार दो बार मार दे या पहले वह और बाद में उसका साथी बारी-बारी लगातार मार दे।
  8. विपक्षी तैयार माना जाएगा यदि खेल के समय वह चिड़िया को वापिस करता है या मारने की चेष्टा करता है भले ही वह क्षेत्र की सीमा के बाहर खड़ा हो या भीतर।
  9. यदि कोई खिलाड़ी विरोधी खिलाड़ी की खेल में रुकावट डालता है।

साधारण नियम
(General Rules)

  1. सर्विस करने वाला या सर्विस प्राप्त करने वाले खिलाड़ी अपने-अपने अर्द्ध-क्षेत्रों की सीमाओं में खड़े होंगे तथा इनके दोनों पांवों के कुछ अंग सर्विस प्राप्त होने तक भूमि से टिके रहेंगे।
  2. सर्विस उस समय तक नहीं करनी चाहिए जब तक कि विपक्षी तैयार नहीं होता, परन्तु यदि विपक्षी सर्विस प्राप्त करने की चेष्टा करता है तो उसे तैयार माना जाएगा।

खेल में आराम-यदि दोनों टीमें सहमत हों तो दूसरी तथा तीसरी खेल के मध्य में पांच मिनट का आराम ले सकती हैं।
फाऊल
(Foul)
अधिकारी फाऊल खेलने पर अथवा खेल में किसी प्रकार की अनुचित कारवाई के लिए खिलाडियों को दो प्रकार के कार्ड दिखा सकता है, जो इस प्रकार हैं—
पीला कार्ड (Yellow Card)- यह कार्ड खिलाड़ी को उसके अनुचित व्यवहार के लिए दिखाया जाता है।
लाल कार्ड (Red Card)- यह कार्ड मैच अथवा टूर्नामैंट से बाहर निकालने के लिए दिखाया जाता है।

PSEB 10th Class Physical Education Practical बैडमिन्टन (Badminton)

प्रश्न 1.
बैडमिन्टन में कुल कितने खिलाड़ी होते हैं ?
उत्तर-
बैडमिन्टन में दो प्रकार की खेल होती है जैसे-सिंगल्ज़ और डबल्ज़। सिंगल्ज़ में 2 खिलाड़ी होते हैं जिनमें एक खिलाड़ी खेलता है और एक खिलाड़ी अतिरिक्त (Substitute) होता है। डबल्ज में तीन खिलाड़ी होते हैं जिनमें दो खेलते हैं और एक अतिरिक्त (Substitute) होता है।

बैडमिन्टन (Badminton) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education

प्रश्न 2.
बैडमिन्टन कोर्ट की लम्बाई-चौड़ाई बताओ।
उत्तर-
बैडमिन्टन में दो तरह के कोर्ट होते हैं—

  1. सिंगल्ज़ में लम्बाई 44 फुट और चौड़ाई 17 फुट होती है।
  2. डबल्ज़ में लम्बाई 44 फुट और चौड़ाई 20 फुट होती है।

प्रश्न 3.
खेल किस प्रकार शुरू होता है ?
उत्तर-
टॉस जीतने वाला यह फैसला करता है कि सर्विस करनी है या साइड लेनी है।

प्रश्न 4.
खेल कितने अंकों की होती है ?
उत्तर-
बैडमिन्टन खेल लड़कों की 15 और लड़कियों की 11 अंकों की होती

बैडमिन्टन (Badminton) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education

प्रश्न 5.
बैडमिन्टन कोर्ट को हम कितने भागों में बांट सकते हैं ?
उत्तर-
इसको हम दो भागों में बांट सकते हैं-दाईं कोर्ट और बाई कोर्ट।

प्रश्न 6.
बैडमिन्टन कोर्ट में साइडों की गैलरी की लम्बाई-चौड़ाई बताओ।
उत्तर-
बैडमिन्टन कोर्ट में साइडों की लम्बाई 2/2 फुट और चौड़ाई 19 फुट होती है।

प्रश्न 7.
जाल की लम्बाई बताओ।
उत्तर-
जाल की लम्बाई इतनी हो कि सीमा रेखाओं के दोनों ओर फैल जाए। उसकी चौड़ाई 2 फुट-6 इन्च हो और स्तम्भों की तरफ से इसकी ऊंचाई 5 फुट 1 इन्च हो और मध्य में इसकी ऊंचाई 5 फुट हो।

बैडमिन्टन (Badminton) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education

प्रश्न 8.
शटल का भार बताओ।
उत्तर-
शटल का भार 73 ग्रेन से 85 ग्रेन तक होता है।

प्रश्न 9.
डबल्ज़ खेल के मुख्य नियम बताओ।
उत्तर-

  1. इसमें कुल चार खिलाड़ी खेल सकते हैं। दो-दो की टीम होती है। टॉस के पश्चात् टीमें अपनी-अपनी कोर्ट सम्भाल कर सर्विस शुरू करती हैं।
  2. इसमें लड़कों के लिए 15 प्वाईंट और लड़कियों के 11 प्वाईंट होते हैं।
  3. यदि 15 प्वाईंट की खेल हो तो 14-14 बराबर होने पर यह गेम 3 प्वाईंट और आगे चल सकती है।

प्रश्न 10.
सिंगल खेल के क्या नियम हैं ?
उत्तर-
इस खेल के लिए डबल के सारे नियम लागू होते हैं। केवल निम्नलिखित बातें ध्यान योग्य हैं—

  1. जब सर्विस करने वाले का प्वाईंट Even हो तो सर्विस हमेशा दाईं कोर्ट में की जाती है या प्राप्त की जाती है। यदि Odd हो तो बाईं कोर्ट में से सर्विस करनी और प्राप्त करनी चाहिए।
  2. एक प्वाईंट हो जाने पर खिलाड़ी कोर्ट बदल लेते हैं।

बैडमिन्टन (Badminton) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education

प्रश्न 11.
बैडमिन्टन खेल की मुख्य त्रुटियों का वर्णन करो।
उत्तर-

  1. यदि सर्विस ओवर हैड हो अर्थात् सर्विस करते समय शटल खिलाड़ी की कमर से ऊपर हो या उसका हाथ रैकट वाले हाथ से ऊपर हो।
  2. यदि सर्विस करते समय शटल गलत क्षेत्र में जाकर गिरे भाव वह सर्विस करने वाले के सामने वाले आधे भाग में जाकर गिरे या लम्बी सर्विस रेखा से एक तरफ जा गिरे।
  3. सर्विस करते समय खिलाड़ी के पैर ठीक आधे क्षेत्र में न हो या जब तक सर्विस न हो चुके, सर्विस प्राप्त करने वाले खिलाड़ी के पैर अपने अर्द्धक्षेत्र में न हों।
  4. यदि खेल के समय दोनों खिलाड़ी एक समय ही शटल पर चोट करें।
  5. यदि खेल के मध्य खिलाड़ी का रैकट, कपड़ा आदि नैट को छू जाएं।

PSEB 10th Class SST Solutions History Chapter 3 गुरु नानक देव जी तथा उनकी शिक्षाएं

Punjab State Board PSEB 10th Class Social Science Book Solutions History Chapter 3 गुरु नानक देव जी तथा उनकी शिक्षाएं Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 10 Social Science History Chapter 3 गुरु नानक देव जी तथा उनकी शिक्षाएं

SST Guide for Class 10 PSEB गुरु नानक देव जी तथा उनकी शिक्षाएं Textbook Questions and Answers

(क) निम्नलिखित प्रत्येक प्रश्न का उत्तर एक शब्द/एक पंक्ति (1-15 शब्दों) में लिखिए

प्रश्न 1.
किस घटना को ‘सच्चा सौदा’ का नाम दिया गया है?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी द्वारा व्यापार करने के लिए दिए गए 20 रुपयों से साधु-संतों को भोजन कराना।

प्रश्न 2.
गुरु नानक देव जी की पत्नी कहां की रहने वाली थीं ? उनके पुत्रों के नाम लिखिए।
उत्तर-
गुरु नानक देव जी की पत्नी बीबी सुलखनी बटाला (ज़िला गुरदासपुर) की रहने वाली थीं। उनके पुत्रों के नाम श्री चन्द तथा लक्षमी दास थे।

प्रश्न 3.
गुरु नानक देव जी ने ज्ञान प्राप्ति के बाद क्या शब्द कहे तथा उनका क्या भाव था?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी ने ज्ञान पाप्ति के बाद ये शब्द कहे-‘न कोई हिन्दू न कोई मुसलमान।’ इसका भाव था कि हिन्दू तथा मुसलमान दोनों ही अपने धर्म के मार्ग से भटक चुके हैं।

PSEB 10th Class SST Solutions History Chapter 3 गुरु नानक देव जी तथा उनकी शिक्षाएं

प्रश्न 4.
सुल्तानपुर में गुरु नानक देव जी ने किसके पास क्या काम किया?
उत्तर-
सुल्तानपुर में गुरु नानक देव जी ने वहां के फ़ौजदार दौलत खाँ लोधी के अधीन मोदी खाने में भण्डारी का काम किया।

प्रश्न 5.
गुरु नानक देव जी की चार बाणियां कौन-सी हैं?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी की चार बाणियां हैं-‘वार मल्हार’, ‘वार आसा’, ‘जपुजी साहिब’ तथा ‘बारह माहा’।

प्रश्न 6.
गुरु नानक देव जी ने कुरुक्षेत्र में क्या उपदेश दिए?
उत्तर-
कुरुक्षेत्र में गुरु जी ने यह उपदेश दिया कि मनुष्य को सूर्य ग्रहण तथा चंद्र ग्रहण जैसे अंधविश्वासों में पड़ने की बजाय प्रभु भक्ति और शुभ कर्म करने चाहिएं।

PSEB 10th Class SST Solutions History Chapter 3 गुरु नानक देव जी तथा उनकी शिक्षाएं

प्रश्न 7.
गोरखमता में गुरु नानक देव जी ने सिद्धों तथा योगियों को क्या उपदेश दिया?
उत्तर-
गुरु नानक साहिब ने उन्हें उपदेश दिया कि शरीर पर राख मलने, हाथ में डंडा पकड़ने, सिर मुंडाने, संसार त्यागने जैसे व्यर्थ के आडम्बरों से मनुष्य को मोक्ष प्राप्त नहीं होता।

प्रश्न 8.
गुरु नानक देव जी के मतानुसार परमात्मा कैसा है?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी के मतानुसार परमात्मा निराकार, सर्वशक्तिमान् , सर्वव्यापक तथा सर्वोच्च है।

प्रश्न 9.
‘सच्चा सौदा’ से क्या भाव है?
उत्तर-
सच्चा सौदा से भाव है-पवित्र व्यापार जो गुरु नानक साहिब ने अपने 20 रु० से फ़कीरों को रोटी खिला कर किया था।

PSEB 10th Class SST Solutions History Chapter 3 गुरु नानक देव जी तथा उनकी शिक्षाएं

(ख) निम्नलिखित प्रश्न का उत्तर लगभग 30-50 शब्दों में लिखो

प्रश्न 1.
गुरु नानक देव जी के परमात्मा सम्बन्धी विचारों का संक्षेप में वर्णन करो।
उत्तर-
गुरु नानक देव जी के परमात्मा सम्बन्धी विचारों का वर्णन इस प्रकार है

  1. परमात्मा एक है-गुरु नानक देव जी ने लोगों को बताया कि परमात्मा एक है। उसे बांटा नहीं जा सकता। उन्होंने एक ओंकार का सन्देश दिया।
  2. परमात्मा निराकार तथा स्वयंभू है-गुरु नानक देव जी ने परमात्मा को निराकार बताया और कहा कि परमात्मा का कोई आकार व रंग-रूप नहीं है। फिर भी उसके अनेक गुण हैं जिनका वर्णन शब्दों में नहीं किया जा सकता। उनके अनुसार परमात्मा स्वयंभू तथा अकालमूर्त है। अतः उसकी मूर्ति बना कर पूजा नहीं की जा सकती।
  3. परमात्मा सर्वव्यापी तथा सर्वशक्तिमान् है-गुरु नानक देव जी ने परमात्मा को सर्वशक्तिमान् तथा सर्वव्यापी बताया। उनके अनुसार वह सृष्टि के प्रत्येक कण में विद्यमान है। उसे मन्दिर अथवा मस्जिद की चारदीवारी में बन्द नहीं रखा जा सकता।
  4. परमात्मा सर्वश्रेष्ठ है-गुरु नानक देव जी के अनुसार परमात्मा सर्वश्रेष्ठ है। वह अद्वितीय है। उसकी महिमा तथा महानता का पार नहीं पाया जा सकता।
  5. परमात्मा दयालु है-गुरु नानक देव जी के अनुसार परमात्मा दयालु है। वह आवश्यकता पड़ने पर अपने भक्तों की सहायता करता है।

प्रश्न 2.
गुरु नानक देव जी दूसरी उदासी (यात्रा) के समय कहां-कहां गए?
उत्तर-
अपनी दूसरी उदासी के समय गुरु साहिब सर्वप्रथम आधुनिक हिमाचल प्रदेश में गए। यहां उन्होंने बिलासपुर, मंडी, सुकेत, ज्वाला जी, कांगड़ा, कुल्लू, स्पीति आदि स्थानों का भ्रमण किया और कई लोगों को अपना श्रद्धालु बनाया। इस उदासी में गुरु साहिब तिब्बत, कैलाश पर्वत, लद्दाख तथा कश्मीर में अमरनाथ की गुफा में भी गए। तत्पश्चात् उन्होंने हसन अब्दाल तथा सियालकोट का भ्रमण किया। वहां से वह अपने निवास स्थान करतारपुर चले गए।

प्रश्न 3.
गुरु नानक देव जी की जनेऊ की रस्म का वर्णन करो।
उत्तर-
अभी गुरु नानक देव जी की शिक्षा चल रही थी कि उन्हें जनेऊ पहनाने का निश्चय किया गया। इसके लिए रविवार का दिन निश्चित हुआ। सभी सगे सम्बन्धी इकट्ठे हुए और ब्राह्मणों को बुलाया गया। प्रारम्भिक मन्त्र पढ़ने के पश्चात् पण्डित हरदयाल ने गुरु नानक देव जी को अपने सामने बिठाया और उन्हें जनेऊ पहनने के लिए कहा। परन्तु उन्होंने इसे पहनने से स्पष्ट इन्कार कर दिया। उन्होंने कहा कि मुझे अपने शरीर के लिए नहीं बल्कि आत्मा के लिए एक स्थायी जनेऊ चाहिए। मुझे ऐसा जनेऊ चाहिए जो सूत के धागे से नहीं बल्कि सद्गुणों के धागे से बना हो।

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प्रश्न 4.
गुरु नानक देव जी ने अपने प्रारम्भिक जीवन में क्या-क्या व्यवसाय अपनाए?
उत्तर-
गुरु नानक साहिब जी पढ़ाई तथा अन्य सांसारिक विषयों की उपेक्षा करने लगे थे। उनके व्यवहार में परिवर्तन लाने के लिए उनके पिता जी ने उन्हें पशु चराने के लिए भेजा। वहां भी गुरु नानक देव जी प्रभु चिन्तन में मग्न रहते और पशु दूसरे किसानों के खेतों में चरते रहते थे। किसानों की शिकायतों से तंग आकर मेहता कालू राम जी ने गुरु नानक देव जी को व्यापार में लगाने का प्रयास किया। उन्होंने गुरु नानक देव जी को 20 रुपए देकर व्यापार करने भेजा, परन्तु गुरु जी ने ये रुपये भूखे संतों को भोजन कराने में व्यय कर दिये। यह घटना सिक्ख इतिहास में ‘सच्चा सौदा’ के नाम से प्रसिद्ध है।

प्रश्न 5.
गुरु नानक देव जी पहली उदासी (यात्रा) के समय कौन-कौन से स्थानों पर गए?
उत्तर-
अपनी पहली उदासी के समय गुरु नानक साहिब निम्नलिखित स्थानों पर गए

  1. सुल्तानपुर से चलकर वह सैय्यदपुर गए जहां उन्होंने भाई लालो को अपना श्रद्धालु बनाया।
  2. तत्पश्चात् गुरु साहिब तुलुम्बा (सज्जन ठग के यहां), कुरुक्षेत्र तथा पानीपत गए। इन स्थानों पर उन्होंने लोगों को शुभ कर्म करने की प्रेरणा दी।
  3. पानीपत से वह दिल्ली होते हुए हरिद्वार गए। इन स्थानों पर उन्होंने अन्ध-विश्वासों का खण्डन किया।
  4. इसके पश्चात् गुरु साहिब ने केदारनाथ, बद्रीनाथ, गोरखमता, बनारस, पटना, हाजीपुर, धुबरी, कामरूप, शिलांग, ढाका, जगन्नाथपुरी तथा दक्षिण भारत के कई स्थानों का भ्रमण किया।
    अंततः पाकपट्टन से दीपालपुर होते हुए वह सुल्तानपुर लोधी पहुंच गए।

प्रश्न 6.
गुरु नानक देव जी की तीसरी उदासी (यात्रा) के महत्त्वपूर्ण स्थानों के बारे में बताओ।
उत्तर-
गुरु साहिब ने अपनी तीसरी उदासी का आरम्भ पाकपट्टन से किया। अन्ततः वह सैय्यदपुर से आ गए। इस बीच उन्होंने निम्नलिखित स्थानों की यात्रा की

  1. मुल्तान
  2. मक्का
  3. मदीना
  4. बग़दाद
  5. तेहरान
  6. कंधार
  7. पेशावर
  8. हसन अब्दाल तथा
  9. गुजरात।

PSEB 10th Class SST Solutions History Chapter 3 गुरु नानक देव जी तथा उनकी शिक्षाएं

प्रश्न 7.
गुरु नानक देव जी द्वारा करतारपुर में बिताए गए जीवन का ब्यौरा दीजिए।
उत्तर-
1521 ई० के लगभग गुरु नानक देव जी ने रावी नदी के किनारे एक नया नगर बसाया। इस नगर का नाम ‘करतारपुर’ अर्थात् ईश्वर का नगर था। गुरु जी ने अपने जीवन के अन्तिम 18 वर्ष परिवार के अन्य सदस्यों के साथ यहीं पर व्यतीत किये।
कार्य-

  1. इस काल में गुरु नानक देव जी ने अपने सभी उपदेशों को निश्चित रूप दिया और ‘वार मल्हार’ और ‘वार माझ’, ‘वार आसा’, ‘जपुजी’, ‘पट्टी’, ‘ओंकार’, ‘बारहमाहा’ आदि वाणियों की रचना की ।
  2. करतारपुर में उन्होंने ‘संगत’ तथा ‘पंगत’ (लंगर) की संस्था का विकास किया।
  3. कुछ समय पश्चात् अपने जीवन का अन्त निकट आते देख उन्होंने भाई लहना जी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त कर दिया। भाई लहना जी सिक्खों के दूसरे गुरु थे जो गुरु अंगद देव जी के नाम से प्रसिद्ध हुए।

(ग) निम्नलिखित प्रत्येक प्रश्न का उत्तर लगभग 100-120 शब्दों में लिखिए

प्रश्न 1.
गुरु नानक देव जी की किन्हीं छः शिक्षाओं के बारे में लिखें।
उत्तर-
गुरु नानक देव जी की शिक्षाएं उतनी ही आदर्श थीं जितना कि उनका जीवन। वह कर्म-काण्ड, जाति-पाति, ऊंच-नीच आदि संकीर्ण विचारों से कोसों दूर थे। उन्हें तो सतनाम से प्रेम था और इसी का सन्देश उन्होंने अपने सम्पर्क में आने वाले प्रत्येक प्राणी को दिया। उनकी मुख्य शिक्षाओं का वर्णन इस प्रकार है —

  1. ईश्वर की महिमा–गुरु साहिब ने ईश्वर की महिमा का बखान अपने निम्नलिखित विचारों द्वारा किया है
    1. एक ईश्वर में विश्वास-श्री गुरु नानक देव जी ने इस बात का प्रचार किया कि ईश्वर एक है। वह अवतारवाद को स्वीकार नहीं करते थे। उनके अनुसार संसार का कोई भी देवी-देवता परमात्मा का स्थान नहीं ले सकता।
    2. ईश्वर निराकार तथा स्वयं-भू है-श्री गुरु नानक देव जी ने ईश्वर को निराकार बताया। उनके अनुसार परमात्मा स्वयं-भू है। अत: उसकी मूर्ति बनाकर पूजा नहीं की जानी चाहिए।
    3. ईश्वर सर्वव्यापी तथा सर्वशक्तिमान् है-श्री गुरु नानक देव जी ने ईश्वर को सर्वव्यापी तथा सर्वशक्तिमान् बताया। उनके अनुसार ईश्वर संसार के कण-कण में विद्यमान है। सारा संसार उसी की शक्ति पर चल रहा है।
      (iv) ईश्वर दयालु है-श्री गुरु नानक देव जी का कहना था कि ईश्वर दयालु है। वह आवश्यकता पड़ने पर अपने भक्तों की सहायता करता है। जो लोग अपने सभी काम ईश्वर पर छोड़ देते हैं, ईश्वर उनके कार्यों को स्वयं करता है।
  2. सतनाम के जाप पर बल-श्री गुरु नानक देव जी ने सतनाम के जाप पर बल दिया। वह कहते थे कि जिस प्रकार शरीर से मैल उतारने के लिए पानी की आवश्यकता होती है उसी प्रकार मन का मैल हटाने के लिए सतनाम का जाप आवश्यक है।
  3. गुरु का महत्त्व-गुरु नानक देव जी के अनुसार ईश्वर प्राप्ति के लिए गुरु को बहुत आवश्यकता है। गुरु रूपी जहाज़ में सवार होकर संसार रूपी सागर को पार किया जा सकता है। उनका कथन है कि “सच्चे गुरु की सहायता के बिना किसी ने भी ईश्वर को प्राप्त नहीं किया।” गुरु ही मुक्ति तक ले जाने वाली वास्तविक सीढ़ी है।
  4. कर्म सिद्धान्त में विश्वास-गुरु नानक देव जी का विश्वास था कि मनुष्य अपने कर्मों के अनुसार बार-बार जन्म लेता है और मृत्यु को प्राप्त होता है। उनके अनुसार बुरे कर्म करने वाले व्यक्ति को अपने कर्मों का फल भुगतने के लिए बार-बार जन्म लेना पड़ता है। इसके विपरीत, शुभ कर्म करने वाला व्यक्ति जन्म-मरण के चक्कर से छूट जाता है और निर्वाण प्राप्त करता है।
  5. आदर्श गृहस्थ जीवन पर बल-गुरु नानक देव जी ने आदर्श गृहस्थ जीवन पर बल दिया। उन्होंने इस धारणा को सर्वथा ग़लत सिद्ध कर दिखाया कि संसार माया जाल है और उसका त्याग किए बिना व्यक्ति मोक्ष प्राप्त नहीं कर सकता। उनके शब्दों में, “अंजन माहि निरंजन रहिए” अर्थात् संसार में रहकर भी मनुष्य को पृथक् और पवित्र जीवन व्यतीत करना चाहिए।
  6. मनुष्य-मात्र के प्रेम में विश्वास-गुरु नानक देव जी रंग-रूप के भेद-भावों में विश्वास नहीं रखते थे। उनके अनुसार एक ईश्वर की सन्तान होने के नाते सभी मनुष्य भाई-भाई हैं।
  7. जाति-पाति का खण्डन-गुरु नानक देव जी ने जाति-पाति का घोर विरोध किया। उनकी दृष्टि में न कोई हिन्दू था और न कोई मुसलमान। उनके अनुसार सभी जातियों तथा धर्मों में मौलिक एकता और समानता विद्यमान है।
  8. समाज सेवा-गुरु नानक देव जी के अनुसार जो व्यक्ति ईश्वर के प्राणियों से प्रेम नहीं करता, उसे ईश्वर की प्राप्ति कदापि नहीं हो सकती। उन्होंने अपने अनुयायियों को नि:स्वार्थ भावना से मानव प्रेम और समाज सेवा करने का उपदेश दिया। उनके अनुसार मानवता के प्रति प्रेम, ईश्वर के प्रति प्रेम का ही प्रतीक है।
  9. मूर्ति-पूजा का खण्डन-गुरु नानक देव जी ने मूर्ति-पूजा का कड़े शब्दों में खण्डन किया। उनके अनुसार ईश्वर की मूर्तियां बनाकर पूजा करना व्यर्थ है, क्योंकि ईश्वर अमूर्त तथा निराकार है। गुरु नानक देव जी के अनुसार ईश्वर की
  10. यज्ञ, बलि तथा व्यर्थ के कर्म-काण्डों में अविश्वास-गुरु नानक देव जी ने व्यर्थ के कर्मकाण्डों का घोर खण्डन किया और ईश्वर की प्राप्ति के लिए यज्ञों तथा बलि आदि को व्यर्थ बताया। उनके अनुसार बाहरी दिखावे का प्रभु भक्ति में कोई स्थान नहीं है।
  11. सर्वोच्च आनन्द (सचखण्ड) की प्राप्ति-गुरु नानक देव जी के अनुसार मनुष्य जीवन का उद्देश्य सर्वोच्च आनन्द की (सचखण्ड) प्राप्ति है। सर्वोच्च आनन्द वह मानसिक स्थिति है जहां मनुष्य सभी चिन्ताओं तथा कष्टों से मुक्त हो जाता है। उसके मन में किसी प्रकार का कोई भय नहीं रहता और उसका दुखी हृदय शान्त हो जाता है। ऐसी अवस्था में मनुष्य की आत्मा पूरी तरह से परमात्मा में लीन हो जाती है।
  12. नैतिक जीवन पर बल-गुरु नानक देव जी ने लोगों को नैतिक जीवन व्यतीत करने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने आदर्श जीवन के लिए ये सिद्धान्त प्रस्तुत किए-
    1. सदा सत्य बोलना।
    2. चोरी न करना।
    3. ईमानदारी से अपना जीवन निर्वाह करना।
    4. दूसरों की भावनाओं को कभी ठेस न पहुंचाना।
      सच तो यह है कि गुरु नानक देव जी एक महान् सन्त और समाज सुधारक थे। उन्होंने अपनी मधुर वाणी से लोगों के मन में नम्र भाव उत्पन्न किये। उन्होंने लोगों को सतनाम का जाप करने और एक ही ईश्वर में विश्वास रखने का उपदेश दिया। इस प्रकार उन्होंने भटके हुए लोगों को जीवन का उचित मार्ग दिखाया।
      नोट-विद्यार्थी इनमें से कोई छ: शिक्षाएं लिखें।

PSEB 10th Class SST Solutions History Chapter 3 गुरु नानक देव जी तथा उनकी शिक्षाएं

प्रश्न 2.
गुरु नानक देव जी की पहली उदासी (यात्रा) के बारे में विस्तार से लिखिए।
उत्तर-
गुरु नानक देव जी अपनी पहली उदासी में भारत की पूर्वी तथा दक्षिणी दिशाओं में गए। यह यात्रा लगभग 1500 ई० में आरम्भ हुई। उन्होंने अपने प्रसिद्ध शिष्य भाई मरदाना को अपने साथ लिया। मरदाना रबाब बजाने में कुशल था। इस यात्रा के दौरान गुरुजी ने निम्नलिखित स्थानों का भ्रमण किया

  1. सैय्यदपुर-गुरु साहिब सुल्तानपुर लोधी से चल कर सबसे पहले सैय्यदपुर गए। वहाँ उन्होंने लालो नामक बढ़ई को अपना श्रद्धालु बनाया।
  2. तुलम्बा अथवा तालुम्बा-सैय्यदपुर से गुरु नानक देव जी मुल्तान जिला में स्थित तुलम्बा नामक स्थान पर पहुंचे। यहां सज्जन नामक एक व्यक्ति रहता था जो बड़ा धर्मात्मा कहलाता था। परन्तु वास्तव में वह ठगों का नेता था। गुरु नानक देव जी के प्रभाव में आकर उसने ठगी का धन्धा छोड़ धर्म प्रचार की राह अपना ली। तेजा सिंह ने ठीक ही कहा है कि गुरु जी की अपार कृपा से “अपराध की गुफ़ा ईश्वर की उपासना का मन्दिर बन गई।” (“The criminal’s den became a temple for God worship.”)
  3. कुरुक्षेत्र-तुलम्बा से गुरु साहिब हिन्दुओं के प्रसिद्ध तीर्थ-स्थान कुरुक्षेत्र पहुंचे। उस वर्ष वहां सूर्य ग्रहण के अवसर पर हज़ारों ब्राह्मण, साधु-फ़कीर तथा हिन्दू यात्री एकत्रित थे। गुरु जी ने एकत्र लोगों को यह उपदेश दिया कि मनुष्य को बाहरी अथवा शारीरिक पवित्रता की बजाय मन तथा आत्मा की पवित्रता पर बल देना चाहिए।
  4. पानीपत, दिल्ली तथा हरिद्वार-कुरुक्षेत्र से गुरु जी पानीपत पहुँचे। यहाँ से वह दिल्ली होते हुए हरिद्वार पहुँचे। यहाँ गुरु जी ने लोगों को सूर्य की ओर मुँह करके अपने पूर्वजों को पानी देते देखा। इस अन्धविश्वास को दूर करने के लिए गुरु साहिब ने उल्टी ओर पानी देना आरम्भ कर दिया। लोगों के पूछने पर गुरु जी ने बताया कि वह पंजाब में अपने खेतों को पानी दे रहे हैं। लोगों ने उनका मजाक उड़ाया। इस पर गुरु जी ने उनसे यह प्रश्न पूछा कि यदि मेरा पानी कुछ मील दूर नहीं जा सकता तो आप का पानी करोड़ों मील दूर पूर्वजों तक कैसे जा सकता है ? इस उत्तर से अनेक लोग प्रभावित हुए।
  5. गोरखमता-हरिद्वार के बाद गुरु जी केदारनाथ, बद्रीनाथ, जोशीमठ आदि स्थानों का भ्रमण करते हुए गोरखमता पहुंचे। वहाँ उन्होंने गोरखनाथ के अनुयायियों को मोक्ष प्राप्ति का सही मार्ग दिखाया।
  6. बनारस-गोरखमता से गुरु जी बनारस पहुँचे। यहाँ उनकी भेंट पण्डित चतुरदास से हुई। वह गुरु जी के उपदेशों से इतना अधिक प्रभावित हुआ कि वह अपने शिष्यों सहित गुरुजी का अनुयायी बन गया।
  7. गया-बनारस से चल कर गुरु जी बौद्ध धर्म के प्रसिद्ध तीर्थ स्थान ‘गया’ पहुँचे। यहाँ उन्होंने बहुत-से लोगों को अपने विचारों से प्रभावित किया और उन्हें अपना श्रद्धालु बनाया।
    यहाँ से वह पटना तथा हाजीपुर भी गए तथा लोगों को अपने विचारों से प्रभावित किया।
  8. आसाम-गुरु नानक देव जी बिहार तथा बंगाल होते हुए आसाम पहुँचे। वहाँ उन्होंने कामरूप की एक जादूगरनी को उपदेश दिया कि सच्ची सुन्दरता सच्चरित्र में है।
  9. ढाका, कटक तथा जगन्नाथपुरी-तत्पश्चात् गुरु जी ढाका पहुँचे। वहाँ पर उन्होंने विभिन्न धर्मों के नेताओं से मुलाकात की। ढाका से कटक होते हुए गुरु जी उड़ीसा में जगन्नाथपुरी गए। पुरी के मन्दिर में उन्होंने बहुत-से लोगों को विष्णु जी की मूर्ति पूजा तथा आरती करते देखा। वहाँ पर गुरु जी ने उपदेश दिया कि मूर्ति पूजा व्यर्थ है। ईश्वर सर्वव्यापक है।
  10. दक्षिणी भारत-पुरी से गुरु नानक देव जी दक्षिण की ओर गए। वह गंटूर, कांचीपुरम, त्रिचन्नापल्ली, नागापट्टम, रामेश्वरम, त्रिवेन्द्रम होते हुए लंका पहुँचे। वहाँ का राजा शिवनाभ गुरु जी के व्यक्तित्व तथा वाणी से बहुत प्रभावित हुआ और वह गुरु जी का शिष्य बन गया। लंका में गुरु साहिब ने झंडा बेदी नामक एक श्रद्धालु को ईश्वर का प्रचार करने के लिए भी नियुक्त किया। · ।
    वापसी यात्रा-लंका से वापसी पर गुरु जी कुछ समय के लिए पाकपट्टन पहुँचे। वहाँ पर उनकी भेंट शेख फरीद के दसवें उत्तराधिकारी शेख ब्रह्म अथवा शेख इब्राहिम के साथ हुई। वह गुरु जी के विचार सुन कर बहुत प्रसन्न हुआ।
    पाकपट्टन से दीपालपुर होते हुए गुरु साहिब वापिस सुल्तानपुर लोधी आ गए।

प्रश्न 3.
गुरु नानक देव जी के बचपन (जीवन) के बारे में प्रकाश डालिए।
उत्तर-
जन्म तथा माता-पिता-श्री गुरु नानक देव जी का जन्म 15 अप्रैल, 1469 ई० को हुआ। उनके पिता का नाम मेहता कालू राम जी तथा माता का नाम तृप्ता जी था।
बाल्यकाल तथा शिक्षा-बालक नानक को 7 वर्ष की आयु में उन्हें गोपाल पण्डित की पाठशाला में पढ़ने के लिए भेजा गया। वहाँ दो वर्षों तक उन्होंने देवनागरी तथा गणित की शिक्षा प्राप्त की। तत्पश्चात् उन्हें पण्डित बृज लाल के पास संस्कृत पढ़ने के लिए भेजा गया। वहाँ गुरु जी ने ‘ओ३म’ शब्द का वास्तविक अर्थ बताकर पण्डित जी को चकित .कर दिया। सिक्ख परम्परा के अनुसार उन्हें अरबी तथा फ़ारसी पढ़ने के लिए मौलवी कुतुबुद्दीन के पास भी भेजा गया।

जनेऊ की रस्म-अभी गुरु नानक देव जी की शिक्षा चल ही रही थी कि उनके माता पिता ने सनातनी रीति-रिवाजों के अनुसार उन्हें जनेऊ पहनाना चाहा। परन्तु गुरु साहिब ने जनेऊ पहनने से इन्कार कर दिया। उन्होंने कहा कि उन्हें सूत के बने धागे के जनेऊ की नहीं, बल्कि सद्गुणों के धागे से बने जनेऊ की आवश्यकता है।

विभिन्न व्यवसाय-पढ़ाई में गुरु नानक देव जी की रुचि न देख कर उनके पिता जी ने उन्हें पशु चराने के लिए भेजा। वहाँ भी गुरु नानक देव जी प्रभु चिन्तन में मग्न रहते और पशु दूसरे किसानों के खेतों में चरते रहते थे। किसानों की शिकायतों से तंग आकर मेहता कालू राम जी ने गुरु नानक देव जी को व्यापार में लगाने का प्रयास किया। उन्होंने श्री गुरु नानक देव जी को 20 रुपये देकर व्यापार करने भेजा, परन्तु गुरु जी ने ये रुपये भूखे साधुओं को भोजन कराने में व्यय कर दिये। यह घटना सिक्ख इतिहास में ‘सच्चा सौदा’ के नाम से प्रसिद्ध है।
विवाह-अपने पुत्र की सांसारिक विषयों में रुचि न देखकर मेहता कालू राम जी निराश हो गए। उन्होंने इनका विवाह बटाला के खत्री मूलराज की सुपुत्री सुलखनी से कर दिया। इस समय गुरु जी की आयु केवल 15 वर्ष की थी।

उनके यहां श्री चन्द और लक्षमी दास नामक दो पुत्र भी पैदा हुए। मेहता कालू राम जी ने गुरु जी को नौकरी के लिए सुल्तानपुर लोधी भेज दिया। वहाँ उन्हें नवाब दौलत खाँ के अनाज घर में नौकरी मिल गई। वहाँ उन्होंने ईमानदारी से काम किया। फिर भी उनके विरुद्ध नवाब से शिकायत की गई। परन्तु जब जांच-पड़ताल की गई तो हिसाब-किताब बिल्कुल ठीक था।

ज्ञान-प्राप्ति-गुरु जी प्रतिदिन प्रातःकाल ‘काली बेईं’ नदी पर स्नान करने जाया करते थे। वहां वह कुछ समय प्रभु चिन्तन भी करते थे। एक प्रातः जब वह स्नान करने गए तो निरन्तर तीन दिन तक अदृश्य रहे। इसी चिन्तन की मस्ती में उन्हें सच्चे ज्ञान की प्राप्ति हुई। अब वह जीवन के रहस्य को भली-भान्ति समझ गए। उस समय उनकी आयु 30 वर्ष की थी। शीघ्र ही उन्होंने अपना प्रचार कार्य आरम्भ कर दिया। उनकी सरल शिक्षाओं से प्रभावित होकर अनेक लोग उनके अनुयायी बन गये।

PSEB 10th Class SST Solutions History Chapter 3 गुरु नानक देव जी तथा उनकी शिक्षाएं

प्रश्न 4.
गुरु नानक देव जी के सुल्तानपुर लोधी के समय का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
1486-87 ई० में गुरु साहिब को उनके पिता मेहता कालू राम जी ने स्थान बदलने के लिए सुल्तानपुर लोधी में भेज दिया। वहाँ वह अपने बहनोई (बीबी नानकी के पति) जैराम के पास रहने लगे।
मोदीखाने में नौकरी-गुरु जी को फ़ारसी तथा गणित का ज्ञान तो था। इसलिए उन्हें जैराम की सिफ़ारिश पर सुल्तानपुर लोधी के फ़ौजदार दौलत खाँ के सरकारी मोदीखाने (अनाज का भण्डार) में भण्डारी की नौकरी मिल गई। वहाँ वह अपना काम बड़ी ईमानदारी से करते रहे। फिर भी उनके विरुद्ध शिकायत की गई। शिकायत में कहा गया कि वह अनाज को साधुसन्तों में लुटा रहे हैं। परन्तु जब मोदीखाने की जांच की गई तो हिसाब-किताब बिल्कुल ठीक निकला।

गृहस्थ जीवन तथा प्रभु सिमरण-कुछ समय पश्चात् गुरु नानक साहिब ने अपनी पत्नी को भी सुल्तानपुर में ही बुला लिया। वह वहाँ सादा तथा पवित्र गृहस्थ जीवन बिताने लगे। प्रतिदिन सुबह वह शहर के साथ बहती हुए बेई नदी में स्नान करते, परमात्मा के नाम का स्मरण करते तथा आय का कुछ भाग ज़रूरतमन्दों को सहायता के लिए देते थे।

ज्ञान-प्राप्ति-जन्म साखी के अनुसार एक दिन गुरु नानक साहिब प्रतिदिन की तरह बेई नदी पर स्नान करने गए। परन्तु वह तीन दिन तक घर वापस न पहुँचे। इस पर सुल्तानपुर लोधी में गुरु जी के बेईं नदी में डूब जाने की अफवाह फैल गई। नानक जी के सगे सम्बन्धी तथा अन्य सज्जन चिन्ता में पड़ गए। लोग तरह-तरह की बातें भी बनाने लगे। परन्तु गुरु नानक जी ने वे तीन दिन गम्भीर चिंतन में बिताए। इसी बीच उन्होंने अपने आत्मिक ज्ञान को अन्तिम रूप देकर उसके प्रचार के लिए एक कार्यक्रम तैयार किया।

ज्ञान-प्राप्ति के पश्चात् जब गुरु नानक देव जी सुल्तानपुर लोधी वापस पहुँचे तो वे चुप थे। जब उन्हें बोलने के लिए विवश किया गया तो उन्होंने केवल ये शब्द कहे-‘न कोई हिन्दू न कोई मुसलमान।’ लोगों ने गुरु साहिब से इस वाक्य का अर्थ पूछा। गुरु साहिब ने इसका अर्थ बताते हुए कहा कि हिन्दू तथा मुसलमान दोनों ही अपने-अपने धर्म के सिद्धान्तों को भूल चुके हैं। इन शब्दों का अर्थ यह भी था कि हिन्दुओं और मुसलमानों में कोई भेद नहीं है। वे एक समान हैं । उन्होंने इन्हीं महत्त्वपूर्ण शब्दों से अपने सन्देश का प्रचार आरम्भ किया। इस उद्देश्य से उन्होंने अपनी नौकरी से इस्तीफा दे कर लम्बी यात्राएँ आरम्भ कर दी।

प्रश्न 5.
गुरु नानक देव जी के प्रारम्भिक जीवन का वर्णन कीजिए ।
उत्तर-
इसके लिए 100-120 शब्दों वाला प्रश्न नं0 3 पढ़ें।

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प्रश्न 6.
गुरु नानक देव जी के ईश्वर के बारे में विचारों का वर्णन करो।
उत्तर-
ईश्वर का गुणगान गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं का मूल मन्त्र है। ईश्वर के विषय में उन्होंने निम्नलिखित विचार प्रस्तुत किए हैं

  1. ईश्वर एक है-गुरु नानक देव जी ने लोगों को ‘एक ओंकार’ का सन्देश दिया। यही उनकी शिक्षाओं का मूल मन्त्र था। उन्होंने लोगों को बताया कि ईश्वर एक है और उसे बांटा नहीं जा सकता। इसलिए गुरु नानक देव जी ने अवतारवाद को स्वीकार नहीं किया। गोकुलचन्द नारंग का कथन है कि गुरु नानक साहिब के विचार में, “ईश्वर विष्णु , शिव, कृष्ण और राम से बहुत बड़ा है और वह इन सबको पैदा करने वाला है।”
  2. ईश्वर निराकार तथा स्वयंभू है-गुरु नानक देव जी ने ईश्वर को निराकार बताया। उनका कहना था कि ईश्वर का कोई आकार अथवा रंग-रूप नहीं है। फिर भी उसके अनेक गुण हैं जिनका वर्णन शब्दों में नहीं किया जा सकता। वह स्वयंभू, अकाल अगम्य तथा अकाल मूर्त है। अत: उसकी मूर्ति बनाकर पूजा नहीं की जा सकती।
  3. ईश्वर सर्वव्यापी तथा सर्वशक्तिमान् है-गुरु नानक देव जी ने ईश्वर को सर्वशक्तिमान् तथा सर्वव्यापी बताया है। उनके अनुसार ईश्वर सृष्टि के प्रत्येक कण में विद्यमान है। उसे मन्दिर अथवा मस्जिद की चारदीवारी में बन्द नहीं रखा जा सकता। तभी तो वह कहते हैं
    “दूजा काहे सिमरिए, जन्मे ते मर जाए।
    एको सिमरो नानका जो जल थल रिहा समाय।”
  4. ईश्वर दयालु है-गुरु नानक देव जी के अनुसार ईश्वर दयालु है। वह आवश्यकता पड़ने पर अपने भक्तों को अवश्य सहायता करता है। वह उनके हृदय में निवास करता है। जो लोग अपने आपको ईश्वर के प्रति समर्पित कर देते हैं, उनके सुख-दुःख का ध्यान ईश्वर स्वयं रखता है। वह अपनी असीमित दया से उन्हें आनन्दित करता रहता है।
  5. ईश्वर महान् तथा सर्वोच्च है-गुरु नानक देव जी के अनुसार ईश्वर सबसे महान् और सर्वोच्च है। मनुष्य के लिए उसकी महानता का वर्णन करना कठिन ही नहीं, अपितु असम्भव है। अपनी महानता का रहस्य स्वयं ईश्वर ही जानता है। इस विषय में नानक जी लिखते हैं, “नानक वडा आखीए आप जाणै आप।” अनेक लोगों ने ईश्वर की महानता का बखान करने का प्रयास किया है, परन्तु कोई भी उसकी सर्वोच्चता को नहीं छू सका।
  6. ईश्वर की आज्ञा का महत्त्व-गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं में ईश्वर की आज्ञा अथवा हुक्म का बहुत महत्त्व है। उनके अनुसार सृष्टि का प्रत्येक कार्य उसी (ईश्वर) के हुक्म से होता है। अतः हमें उसकी प्रत्येक आज्ञा को ‘मिट्ठा भाणा’ समझकर स्वीकार कर लेना चाहिए।

PSEB 10th Class Social Science Guide गुरु नानक देव जी तथा उनकी शिक्षाएं Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

I. उत्तर एक शब्द अथवा एक लाइन में

प्रश्न 1.
गुरु नानक देव जी का जन्म कहां हुआ था?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी का जन्म लाहौर के दक्षिण-पश्चिम में 64 किलोमीटर की दूरी पर स्थित तलवण्डी नामक गाँव में हुआ था। आजकल इसे ननकाना साहिब कहते हैं।

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प्रश्न 2.
सुल्तानपुर में गुरु नानक देव जी ने क्या किया?
उत्तर-
सुल्तानपुर में गुरु नानक देव जी ने दौलत खाँ लोधी के मोदीखाने में दस वर्ष तक कार्य किया।

प्रश्न 3.
गुरु नानक देव जी को सुल्तानपुर क्यों भेजा गया?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी को उनकी बहन नानकी तथा जीजा जैराम के पास इसलिए भेजा गया ताकि वह कोई कारोबार कर सकें।

प्रश्न 4.
गुरु नानक देव जी ने एक नए भाई-चारे का आरम्भ कहां किया?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी ने एक नए भाई-चारे का आरम्भ करतारपुर में किया।

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प्रश्न 5.
गुरु नानक देव जी ने एक नए भाई-चारे का आरम्भ किन दो संस्थाओं द्वारा किया?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी ने इसका श्री गणेश संगत तथा पंगत नामक दो संस्थाओं द्वारा किया।

प्रश्न 6.
गुरु नानक देव जी की उदासियों से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी की उदासियों से अभिप्राय उन यात्राओं से है जो उन्होंने एक उदासी के वेश में की।

प्रश्न 7.
गुरु नानक देव जी की उदासियों का क्या उद्देश्य था?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी की उदासियों का उद्देश्य अन्ध-विश्वासों को दूर करना तथा लोगों को धर्म का उचित मार्ग दिखाना था।

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प्रश्न 8.
करतारपुर की स्थापना कब और किसने की?
उत्तर-
करतारपुर की स्थापना 1521 ई० के लगभग श्री गुरु नानक देव जी ने की।

प्रश्न 9.
करतारपुर की स्थापना के लिए भूमि कहां से प्राप्त हुई?
उत्तर-
इसके लिए दीवान करोड़ीमल खत्री नामक एक व्यक्ति ने भूमि भेंट में दी थी।

प्रश्न 10.
गुरु नानक देव जी की सज्जन ठग से भेंट कहां हुई?
उत्तर-
सज्जन ठग से गुरु नानक देव जी की भेंट तुलम्बा में हुई।

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प्रश्न 11.
गुरु नानक देव जी और सज्जन ठग की भेंट का सज्जन पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर-
गुरु जी के सम्पर्क में आकर सज्जन ने बुरे कर्म छोड़ दिए और वह गुरु जी की शिक्षाओं का प्रचार करने लगा।

प्रश्न 12.
गोरखमता का नाम नानकमता कैसे पड़ा?
उत्तर-
गोरखमता में गुरु नानक देव जी ने नाथ योगियों को जीवन का वास्तविक उद्देश्य बताया था और उन्होंने गुरु जी की महानता को स्वीकार कर लिया था। इसी घटना के बाद गोरखमता का नाम नानकमता पड़ गया।

प्रश्न 13.
गुरु नानक देव जी के अन्तिम वर्ष कहां व्यतीत हुए?
उत्तर-
गुरु जी के अन्तिम वर्ष करतारपुर में धर्म प्रचार करते हुए व्यतीत हुए।

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प्रश्न 14.
गुरु नानक देव जी की कोई एक शिक्षा लिखो।
उत्तर-
ईश्वर एक है और हमें केवल उसी की पूजा करनी चाहिए।
अथवा
ईश्वर प्राप्ति के लिए गुरु का होना आवश्यक है।

प्रश्न 15.
गुरु नानक देव जी के ईश्वर सम्बन्धी विचार क्या थे?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी के अनुसार ईश्वर एक है और वह निराकार, स्वयं-भू, सर्वव्यापी, सर्वशक्तिमान्, दयालु तथा महान् है।

प्रश्न 16.
गुरु नानक देव जी की माताजी का नाम क्या था?
उत्तर-
तृप्ता जी।

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प्रश्न 17.
गुरु नानक देव जी को पढ़ने के लिए किसके पास भेजा गया?
उत्तर-
पण्डित गोपाल के पास।

प्रश्न 18.
गुरु नानक देव जी द्वारा 20 रुपये से फ़कीरों को भोजन खिलाने की घटना को किस नाम से जाना जाता है?
उत्तर-
सच्चा सौदा।

प्रश्न 19.
गुरु नानक देव जी के पुत्रों के नाम बताओ।
उत्तर-
श्रीचन्द और लक्ष्मीदास।

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प्रश्न 20.
गुरु नानक देव जी का जन्म कब हुआ?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी का जन्म 15 अप्रैल, (वैशाख मास) 1469 ई० को हुआ।

प्रश्न 21.
गुरु नानक देव जी को सच्चे ज्ञान की प्राप्ति कब हुई?
उत्तर-
1499 ई० में।

प्रश्न 22.
पहली उदासी में गुरु नानक देव जी के साथी (रबाबी) कौन थे?
उत्तर-
भाई मरदाना।

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प्रश्न 23.
गुरु नानक देव जी के प्रताप से किस स्थान का नाम ‘नानकमता’ पड़ा?
उत्तर-
गोरखमता।

प्रश्न 24.
अपनी दूसरी उदासी में गुरु नानक देव जी कहाँ गए?
उत्तर-
भारत के उत्तर में।

प्रश्न 25.
‘धुबरी’ नामक स्थान पर गुरु नानक देव जी की मुलाकात किस से हुई?
उत्तर-
सन्त शंकर देव से।

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प्रश्न 26.
गुरु नानक देव जी ने अपनी तीसरी उदासी कब आरम्भ की?
उत्तर-
1517 ई० में।

प्रश्न 27.
गुरु नानक देव जी ने किस स्थान पर एक जादूगरनी को उपदेश दिया?
उत्तर-
कामरूप।

प्रश्न 28.
गुरु नानक देव जी द्वारा मक्का में काबे की ओर पांव करके सोने का विरोध किसने किया?
उत्तर-
काज़ी रुकनुद्दीन ने।

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प्रश्न 29.
गुरुद्वारा पंजा साहिब कहाँ स्थित है?
उत्तर-
सियालकोट में।

प्रश्न 30.
गुरु नानक देव जी ने अपनी तीसरी उदासी का आरम्भ किस स्थान से किया?
उत्तर-
पाकपट्टन से।

प्रश्न 31.
बाबर ने किस स्थान पर गुरु नानक देव जी को बन्दी बनाया?
उत्तर-
सैय्यदपुर।

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प्रश्न 32.
गुरु नानक देव जी ने अपनी किस रचना में बाबर के सैय्यदपुर पर आक्रमण की निन्दा की है?
उत्तर-
बाबर-वाणी में।

प्रश्न 33.
गुरु नानक देव जी ने अपने जीवन के अन्तिम 18 साल कहाँ व्यतीत किए?
उत्तर-
करतारपुर में।

प्रश्न 34.
परमात्मा के बारे में गुरु नानक देव जी के विचारों का सार उनकी किस वाणी में मिलता है?
उत्तर-
जपुजी साहिब में।

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प्रश्न 35.
लंगर प्रथा से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
सभी लोगों द्वारा बिना किसी भेदभाव के एक स्थान पर बैठ कर भोजन करना।

प्रश्न 36.
सिक्ख धर्म के संस्थापक अथवा सिक्खों के पहले गुरु कौन थे?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी।

प्रश्न 37.
गुरु नानक देव जी ज्योति-जोत कब समाए?
उत्तर-
22 सितम्बर, 1539।

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प्रश्न 38.
गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं का पंजाब की जनता पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर-
उनकी शिक्षाओं के प्रभाव से मूर्ति पूजा तथा अनेक देवी-देवताओं की पूजा कम हुई और लोग एक ईश्वर की उपासना करने लगे।
अथवा
उनकी शिक्षाओं से हिन्दू तथा मुसलमान अपने धार्मिक भेद-भाव भूल कर एक-दूसरे के समीप आए।

प्रश्न 39.
गुरु नानक देव जी ने बाबर के किस हमले की तुलना ‘पापों की बारात’ से की है?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी ने बाबर के भारत पर तीसरे हमले की तुलना ‘पापों की बारात’ से की है।

II. रिक्त स्थानों की पूर्ति

  1. गुरु नानक देव जी द्वारा व्यापार के लिए दिए गए 20 रुपयों से साधु-संतों को भोजन कराने को ………….. नामक घटना के नाम से जाना जाता है।
  2. …………… गुरु नानक देव जी की पत्नी थीं।
  3. गुरु नानक देव जी के पुत्रों के नाम …………… तथा …………
  4. गुरु नानक देव जी की ‘वार मल्हार’, ‘वार आसा’ …………… और ……….. नामक चार वाणियां हैं।
  5. गुरु नानक जी का जन्म लाहौर के समीप …………… नामक गांव में हुआ।
  6. गुरुद्वारा पंजा साहिब …………… में स्थित है।

उत्तर-

  1. सच्चा सौदा,
  2. बीबी सुलखनी,
  3. श्रीचंद तथा लक्षमी दास,
  4. जपुजी साहिब, बारह माहा,
  5. तलवंडी,
  6. सियालकोट।

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III. बहुविकल्पीय

प्रश्न 1.
गुरु नानक देव जी की पत्नी बीबी सुलखनी रहने वाली थीं
(A) बटाला की
(B) अमृतसर की
(C) भठिण्डा की
(D) कीरतपुर साहिब की।
उत्तर-
(A) बटाला की

प्रश्न 2.
करतारपुर की स्थापना की
(A) गुरु अंगद देव जी ने
(B) श्री गुरु नानक देव जी ने
(C) गुरु रामदास जी ने
(D) गुरु अर्जन देव जी ने।
उत्तर-
(B) श्री गुरु नानक देव जी ने

प्रश्न 3.
सज्जन ठग से श्री गुरु नानक देव जी की भेंट हुई
(A) पटना में
(B) सियालकोट में
(C) तुलम्बा में
(D) करतारपुर में।
उत्तर-
(C) तुलम्बा में

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प्रश्न 4.
श्री गुरु नानक देव जी की माता जी थीं
(A) सुलखनी जी
(B) तृप्ता जी
(C) नानकी जी
(D) बीबी अमरो जी।
उत्तर-
(B) तृप्ता जी

प्रश्न 5.
बाबर ने गुरु नानक देव जी को बन्दी बनाया
(A) सियालकोट में
(B) कीरतपुर साहिब में
(C) सैय्यदपुर में
(D) पाकपट्टन में।
उत्तर-
(C) सैय्यदपुर में

IV. सत्य-असत्य कथन

प्रश्न-सत्य/सही कथनों पर (✓) तथा असत्य/ग़लत कथनों पर (✗) का निशान लगाएं

  1. करतारपुर की स्थापना 1526 ई० के लगभग श्री गुरु नानक देव जी ने की थी।
  2. श्री गुरु नानक देव जी को सच्चे ज्ञान की प्राप्ति 1499 ई० में हुई।
  3. गुरुद्वारा पंजा साहिब अमृतसर में स्थित है।
  4. श्री गुरु नानक देव जी 22 सितम्बर 1539 ई० को ज्योति जोत समाए।
  5. श्री गुरु नानक देव जी ने अपनी तीसरी उदासी 1499 ई० में आरम्भ की।

उत्तर-

  1. (✗),
  2. (✓),
  3. (✗),
  4. (✓),
  5. (✗).

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V. उचित मिलान

  1. गुरु नानक देव जी — भाई मरदाना
  2. करतारपुर की स्थापना के लिए भूमि — करतारपुर की स्थापना
  3. पहली उदासी में गुरु नानक देव जी के साथी — संत शंकर देव
  4. धुबरी नामक स्थान पर गुरु नानक देव जी की मुलाकात हुई — दीवान करोड़ी मल खत्री।

उत्तर-

  1. गुरु नानक देव जी-करतारपुर की स्थापना,
  2. करतारपुर की स्थापना के लिए भूमि-दीवान करोड़ी मल खत्री,
  3. पहली उदासी में गुरु नानक देव जी के साथी-भाई मरदाना,
  4. धुबरी नामक स्थान पर गुरु नानक देव जी की मुलाकात हुई-संत शंकर देव।

छोटे उत्तर वाले प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
गुरु नानक साहिब की यात्राओं अथवा उदासियों के बारे में बताएं।
उत्तर-
गुरु नानक साहिब ने अपने संदेश के प्रसार के लिए कुछ यात्राएं की। उनकी यात्राओं को उदासियां भी कहा जाता है। इन यात्राओं को चार हिस्सों अथवा उदासियों में बांटा जाता है। यह समझा जाता है कि इस दौरान गुरु नानक साहिब ने उत्तर में कैलाश पर्वत से लेकर दक्षिण में रामेश्वरम् तक तथा पश्चिम में पाकपट्टन से लेकर पूर्व में असम तक की यात्रा की थी। वे सम्भवतः भारत से बाहर श्रीलंका, मक्का, मदीना तथा बग़दाद भी गये थे। उनके जीवन के लगभग बीस वर्ष ‘उदासियों’ में गुजरे। अपनी सुदूर ‘उदासियों’ में गुरु साहिब विभिन्न धार्मिक विश्वासों वाले अनेक लोगों के सम्पर्क में आए। ये लोग भांति-भांति की संस्कार विधियों और रस्मों का पालन करते थे। गुरु नानक साहिब ने इन सभी लोगों को धर्म का सच्चा मार्ग दिखाया।

PSEB 10th Class SST Solutions History Chapter 3 गुरु नानक देव जी तथा उनकी शिक्षाएं

प्रश्न 2.
गुरु नानक साहिब ने किन प्रचलित धार्मिक विश्वासों तथा प्रथाओं का खण्डन किया?
उत्तर-
गुरु नानक साहिब का विचार था कि बाहरी कर्मकाण्डों में सच्ची धार्मिक श्रद्धा-भक्ति के लिए कोई स्थान नहीं था। इसलिए गुरु साहिब ने कर्मकाण्डों का खण्डन किया। ये बातें थीं-वेद, शास्त्र, मूर्ति पूजा, तीर्थ यात्रा और मानव जीवन के महत्त्वपूर्ण अवसरों से सम्बन्धित संस्कार विधियां और रीति-रिवाज। गुरु नानक देव जी ने जोगियों की पद्धति को भी अस्वीकार कर दिया। इसके दो मुख्य कारण थे-जोगियों द्वारा परमात्मा के प्रति व्यवहार में श्रद्धा-भक्ति का अभाव और अपने मठवासी जीवन में सामाजिक दायित्व से विमुखता। गुरु नानक देव जी ने वैष्णव भक्ति को भी स्वीकार नहीं किया और अपनी विचारधारा में अवतारवाद को भी कोई स्थान नहीं दिया। इसके अतिरिक्त उन्होंने मुल्ला लोगों के विश्वासों, प्रथाओं तथा व्यवहारों का खण्डन किया।

प्रश्न 3.
गुरु नानक साहिब के संदेश के सामाजिक अर्थ क्या थे?
उत्तर-
गुरु नानक साहिब के संदेश के सामाजिक अर्थ बड़े महत्त्वपूर्ण थे। उनका सन्देश सभी के लिए था। प्रत्येक स्त्री-पुरुष उनके बताये मार्ग को अपना सकता था। इसमें जाति-पाति या धर्म का कोई भेद-भाव नहीं था। इस प्रकार वर्ण व्यवस्था के जटिल बन्धन टूटने लगे और लोगों में समानता की भावना का संचार हुआ। गुरु साहिब ने अपने आपको जनसाधारण के साथ सम्बन्धित किया। इसी कारण उन्होंने अपने समय के शासन में प्रचलित अन्याय, दमन और भ्रष्टाचार का बड़ा ज़ोरदार खण्डन किया। फलस्वरूप समाज अनेक कुरीतियों से मुक्त हो गया।

प्रश्न 4.
श्री गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं का संक्षिप्त वर्णन करो।
उत्तर-
गुरु नानक देव जी ने लोगों को ये शिक्षाएं दी –

  1. ईश्वर एक है। वह सर्वशक्तिमान् और सर्वव्यापी है।
  2. जाति-पाति का भेदभाव मात्र दिखावा है। अमीर-ग़रीब, ब्राह्मण, शूद्र सभी समान हैं।
  3. शुद्ध आचरण मनुष्य को महान् बनाता है।
  4. ईश्वर भक्ति सच्चे मन से करनी चाहिए।
  5. गुरु नानक देव जी ने सच्चे गुरु को महान् बताया। उनका विश्वास था कि प्रभु को प्राप्त करने के लिए सच्चे गुरु का होना आवश्यक है।
  6. मनुष्य को सदा नेक कमाई खानी चाहिए।
  7. नारी का स्थान बहुत ऊंचा है। वह बड़े-बड़े महापुरुषों को जन्म देती है। इसलिए सभी को स्त्री का सम्मान करना चाहिए।

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बड़े उत्तर वाले प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
एक शिक्षक तथा सिक्ख धर्म के संस्थापक के रूप में गुरु नानक देव जी का वर्णन करो ।
उत्तर-
(क) महान् शिक्षक के रूप में

  1. सत्य के प्रचारक-गुरु नानक देव जी एक महान् शिक्षक थे। कहते हैं कि लगभग 30 वर्ष की आयु में उन्हें सच्चे ज्ञान की प्राप्ति हुई। इसके पश्चात् उन्होंने देश-विदेश में सच्चे ज्ञान का प्रचार किया। उन्होंने ईश्वर के संदेश को पंजाब के कोने-कोने में फैलाने का प्रयत्न किया। प्रत्येक स्थान पर उनके व्यक्तित्व तथा वाणी का लोगों पर बड़ा गहरा प्रभाव पड़ा। गुरु नानक देव जी ने लोगों को मोह-माया, स्वार्थ तथा लोभ को छोड़ने की शिक्षा दी और उन्हें आध्यात्मिक जीवन व्यतीत करने के लिए प्रेरणा दी। गुरु नानक देव जी के उपदेश देने का ढंग बहुत ही अच्छा था। वह लोगों को बड़ी सरल भाषा में उपदेश देते थे। वह न तो गूढ़ दर्शन का प्रचार करते थे और न ही किसी प्रकार के वाद-विवाद में पड़ते थे। वह जिन सिद्धान्तों पर स्वयं चलते थे उन्हीं का लोगों में प्रचार भी करते थे।
  2. सब के गुरु-गुरु नानक देव जी के उपदेश किसी विशेष सम्प्रदाय, स्थान अथवा लोगों तक सीमित नहीं थे, अपितु उनकी शिक्षाएं तो सारे संसार के लिए थीं। इस विषय में प्रोफैसर करतार सिंह के शब्द भी उल्लेखनीय हैं। वह लिखते हैं-“उनकी (गुरु नानक देव जी) शिक्षा किसी विशेष काल के लिए नहीं थी। उनका दैवी उपदेश सदा अमर रहेगा। उनके उपदेश इतने विशाल तथा बौद्धिकतापूर्ण थे कि आधुनिक वैज्ञानिक विचारधारा भी उन पर टीका टिप्पणी नहीं कर सकती।” उनकी शिक्षाओं का उद्देश्य मानव-कल्याण था। वास्तव में, मानवता की भलाई के लिए ही उन्होंने चीन, तिब्बत, अरब आदि देशों की कठिन यात्राएं कीं।

(ख) सिक्ख धर्म के संस्थापक के रूप में गुरु नानक देव जी ने सिक्ख धर्म की नींव रखी। टाइनबी (Toynbee) जैसा इतिहासकार इस बात से सहमत नहीं है। वह लिखता है कि सिक्ख धर्म हिन्दू तथा इस्लाम धर्म के सिद्धान्तों का मिश्रण मात्र था, परन्तु टाइनबी का यह विचार ठीक नहीं है। गुरु जी के उपदेशों में बहुत-से मौलिक सिद्धान्त ऐसे भी थे जो न तो हिन्दू धर्म से लिए गए थे और न ही इस्लाम धर्म से। उदाहरणतया, गुरु नानक देव जी ने ‘संगत’ तथा ‘पंगत’ की संस्थाओं को स्थापित किया। इसके अतिरिक्त गुरु नानक देव जी ने अपने किसी भी पुत्र को अपना उत्तराधिकारी न बना कर भाई लहना जी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया। ऐसा करके गुरु जी ने गुरु संस्था को एक विशेष रूप दिया और अपने इन कार्यों से उन्होंने सिक्ख धर्म की नींव रखी।

प्रश्न 2.
गुरु नानक देव जी की दूसरी उदासी का वर्णन करो।
उत्तर-
गुरु नानक देव जी ने अपनी दूसरी उदासी (यात्रा) 1514 ई० में आरम्भ की। इस बार वह उत्तर दिशा में गए। इस यात्रा के दौरान गुरु जी निम्नलिखित स्थानों पर गए —

  1. हिमाचल प्रदेश-गुरु जी ने पंजाब के प्रदेशों में से गुजरते हुए आधुनिक हिमाचल प्रदेश में प्रवेश किया। वहाँ पर सबसे पहले उनकी भेंट पीर बुड्डन शाह से हुई। वह पीर गुरु जी का अनुयायी बन गया। हिमाचल में गुरु जी बिलासपुर, मंडी, सुकेत, रिवालसर, ज्वाला जी, कांगड़ा, कुल्लू, स्पीति आदि स्थानों पर गए और वहाँ के विभिन्न सम्प्रदायों के लोगों को अपना शिष्य बनाया।
  2. तिब्बत-स्पीति घाटी पार करके गुरु नानक साहिब ने तिब्बत में प्रवेश किया। जब वह मानसरोवर झील तथा कैलाश पर्वत पर पहुँचे तो यहां पर उन्होंने अनेक सिद्ध योगियों से भेंट की। गुरु जी ने उन्हें उपदेश दिया कि पहाड़ों पर बैठने से कोई लाभ नहीं। उन्हें मैदानों में जाकरं अज्ञान के अन्धेरे में भटक रहे लोगों को ज्ञान का मार्ग दिखाना चाहिए।
  3. लद्दाख-कैलाश पर्वत के पश्चात् गुरु जी लद्दाख गए। वहाँ पर अनेक श्रद्धालुओं ने उनकी याद में एक गुरुद्वारे का निर्माण किया।
  4. कश्मीर-सकारदू तथा कारगिल होते हुए गुरु जी कश्मीर में अमरनाथ की गुफ़ा में गए। इसके बाद वह पहलगांव तथा मटन नामक स्थानों पर पहुंचे। मटन में उनकी भेंट पण्डित ब्रह्मदास से हुई जो वेद-शास्त्रों का बहुत बड़ा ज्ञानी माना जाता था। गुरु जी ने उसे उपदेश दिया कि केवल शास्त्रों को पढ़ लेने मात्र से ही मोक्ष प्राप्त नहीं हो जाता। यहाँ से गुरु जी बारामूला, अनंतनाग तथा श्रीनगर भी गए।
  5. हसन अब्दाल-कश्मीर से वापस आते हुए गुरु जी रावलपिंडी के उत्तर-पश्चिम में स्थित हसन अब्दाल नामक स्थान पर ठहरे। वहाँ उन्हें एक अहंकारी मुसलमान फ़कीर वली कंधारी ने पहाड़ी से पत्थर फेंक कर मारने का प्रयास किया। परन्तु गुरु जी ने उस पत्थर को अपने पंजे से रोक लिया। आजकल वहां एक सुन्दर गुरुद्वारा पंजा साहिब बना हुआ है।
  6. सियालकोट-जेहलम तथा चिनाब नदियों को पार करने के पश्चात् गुरु नानक साहिब सियालकोट पहुँचे। वहाँ पर भी उन्होंने अपने प्रवचनों से अपने श्रद्धालुओं को प्रभावित किया। अंत में गुरु जी अपने निवास स्थान करतारपुर में चले गए।

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प्रश्न 3.
गुरु नानक देव जी की तीसरी उदासी का वर्णन करो।
उत्तर-
गुरु नानक देव जी ने तीसरी उदासी (यात्रा) 1517 ई० में आरम्भ की। इस बार उन्होंने एक मुस्लिम हाजी वाला नीला पहरावा धारण किया। इस बार वह पश्चिमी एशिया की ओर गए। मरदाना भी उनके साथ था। इस यात्रा में वह निम्नलिखित स्थानों पर गए

  1. पाकपट्टन तथा मुल्तान-सर्वप्रथम गुरु साहिब पाकपट्टन पहुंचे। यहाँ शेख ब्रह्म से मिलने के उपरान्त वह मुल्तान पहुँचे। यहाँ पर उनकी भेंट प्रसिद्ध सूफ़ी सन्त शेख बहाउद्दीन से हुई जो गुरु जी के विचारों से अत्यन्त प्रभावित हुआ।
  2. मक्का-गुरु नानक देव जी उच्च शुकर, मियानी तथा हिंगलाज नामक स्थानों पर प्रचार करते हुए हजरत मुहम्मद के जन्म स्थान मक्का पहुँचे। वहाँ गुरु जी काबे की ओर पाँव करके सो गए। वहाँ के काज़ी रुकनुद्दीन ने गुरु जी के ऐसा करने पर आपत्ति प्रकट की। परन्तु गुरु जी शांत रहे। उन्होंने काजी से प्रेमपूर्वक ये शब्द कहे- “आप मेरे पाँव उठा कर उस ओर कर दें, जिधर अल्लाह नहीं है।” काजी तुरन्त समझ गया कि अल्लाह का निवास हर जगह है।
  3. मदीना-मक्का के बाद गुरु जी मदीना पहुँचे। यहाँ पर उन्होंने हज़रत मुहम्मद की कब्र देखी। गुरु जी ने यहाँ इमाम आज़िम खान से धार्मिक विषय पर बातचीत भी की और अनेक लोगों को अपने विचारों से प्रभावित किया।
  4. बग़दाद-मदीना से गुरु जी ने बग़दाद की ओर प्रस्थान किया। वहां वह शेख बहलोल लोधी से मिले। वह उनकी वाणी से प्रभावित होकर उनका शिष्य बन गया। गुरु जी की इस यात्रा की पुष्टि नगर से दो किलोमीटर की दूरी पर स्थित शेख बहलोल के मकबरे पर अरबी भाषा में अंकित शब्दों से होती है।
  5. काबुल-बग़दाद से गुरु जी तेहरान तथा कन्धार होते हुए काबुल पहुँचे। काबुल में उस समय बाबर (मुग़ल बादशाह) का राज्य था। यहाँ पर गुरुजी ने अपने उपदेशों का प्रचार किया और अनेक लोगों को अपना श्रद्धालु बनाया।
  6. सैय्यदपुर-काबुल से दर्रा खैबर पार करके गुरु नानक देव जी पेशावर, हसन अब्दाल तथा गुजरात होते हुए सैय्यदपुर पहुंचे। उस समय सैय्यदपुर पर बाबर ने आक्रमण किया हुआ था। इस आक्रमण के समय बाबर ने सैय्यदपुर के लोगों पर बड़े अत्याचार किए। उसने अनेक लोगों को बन्दी बना लिया। गुरु नानक साहिब भी इन में से एक थे। जब बाबर को इस बात का पता चला तो वह स्वयं गुरु जी को मिलने के लिए आया। वह गुरु जी के व्यक्तित्व से इतना अधिक प्रभावित हुआ कि उसने गुरु जी सहित अनेक बंदियों को मुक्त कर दिया। गुरु नानक देव जी ने ‘बाबरवाणी’ में बाबर के इस आक्रमण की घोर निन्दा की है। उन्होंने इसकी तुलना पाप की बारात से की है।
    गुरु नानक देव जी ने अपनी अन्तिम उदासी (यात्रा) 1521 ई० में पूर्ण की। इसके बाद वह पंजाब के आस-पास ही यात्राएं करते रहे। उन्होंने अपने जीवन के अन्तिम 18 वर्ष करतारपुर में अपने परिवार के साथ एक आदर्श गृहस्थी के रूप में ही व्यतीत किए।

गुरु नानक देव जी तथा उनकी शिक्षाएं PSEB 10th Class History Notes

  • जन्म-गुरु नानक देव जी सिक्ख धर्म के प्रवर्तक थे। भाई मेहरबान तथा भाई मनी सिंह की पुरातन साखी के अनुसार उनका जन्म 15 अप्रैल, 1469 ई० को तलवण्डी नामक स्थान पर हुआ। आजकल इस स्थान को ननकाना साहिब कहते हैं।
  • माता-पिता-गुरु नानक देव जी की माता का नाम तृप्ता जी तथा पिता का नाम मेहता कालू राम जी था। मेहता कालू राम जी एक पटवारी थे।
  • जनेऊ की रस्म-गुरु नानक देव जी व्यर्थ के आडम्बरों के विरोधी थे। इसलिए उन्होंने सूत के धागे से बना जनेऊ पहनने से इन्कार कर दिया।
  • सच्चा सौदा-गुरु नानक देव जी को उनके पिता ने व्यापार करने के लिए 20 रुपये दिए थे। गुरु नानक देव जी ने इन रुपयों से भूखे साधु-सन्तों को भोजन कराकर ‘सच्चा सौदा’ किया।
  • ज्ञान-प्राप्ति-गुरु नानक देव जी को सच्चे ज्ञान की प्राप्ति बेईं नदी में स्नान करते समय हुई। उन्होंने नदी में गोता लगाया और तीन दिन बाद प्रकट हुए।
  • उदासियां-गुरु नानक देव जी की उदासियों से अभिप्राय उन यात्राओं से है जो उन्होंने एक उदासी के वेश में कीं। इन उदासियों का उद्देश्य अन्ध-विश्वासों को दूर करना तथा लोगों को धर्म का उचित मार्ग दिखाना था।
  • करतारपुर में निवास-1522 ई० में गुरु नानक साहिब परिवार सहित करतारपुर में बस गए। यहां रह कर उन्होंने ‘वार मल्हार’, ‘वार माझ’, ‘वार आसा’, ‘जपुजी’, ‘पट्टी’, ‘बारह माहा’
    आदि वाणियों की रचना की। उन्होंने संगत तथा पंगत (लंगर) की प्रथाओं का विकास भी किया।
  • गुरु साहिब का ज्योति-जोत समाना-गुरु जी के अन्तिम वर्ष करतारपुर में धर्म प्रचार करते हुए व्यतीत हुए। 22 सितम्बर, 1539 ई० को वह ज्योति-जोत समा गए। इससे पूर्व उन्होंने भाई लहना जी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया।
  • ईश्वर सम्बन्धी विचार-गुरु नानक देव जी के अनुसार ईश्वर एक है और वह निराकार, स्वयंभू, सर्वव्यापी, सर्वशक्तिमान् , दयालु तथा महान् है। उसे आत्म-त्याग तथा सच्चे गुरु की सहायता से प्राप्त किया जा सकता है।
  • संगत तथा पंगत-‘संगत’ से अभिप्राय गुरु के शिष्यों के उस समूह से है जो एक साथ बैठ कर गुरु जी के उपदेशों पर विचार करते थे। ‘पंगत’ के अनुसार शिष्य इकडे मिल कर एक पंगत में बैठकर भोजन खाते थे।