PSEB 11th Class Agriculture Objective Questions and Answers

Punjab State Board PSEB 11th Class Agriculture Book Solutions Agriculture Objective Questions and Answers.

PSEB 11th Class Agriculture Objective Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

ख़रीफ़ की फसलें

बहुविकल्पीय प्रश्न –

प्रश्न 1.
सावनी की अनाज वाली फसलें हैं :
(क) मक्की
(ख) धान
(ग) ज्वार
(घ) सभी ठीक।
उत्तर-
(घ) सभी ठीक।

प्रश्न 2.
कपास की बोवाई का समय है :
(क) 1 अप्रैल से 15 मई
(ख) 1 जनवरी से 15 जनवरी
(ग) दिसम्बर
(घ) जून।
उत्तर-
(क) 1 अप्रैल से 15 मई

प्रश्न 3.
मक्की की पर्ल पॉपकार्न के लिए बीज की मात्रा है :
(क) 7 किलो प्रति एकड़
(ख) 20 किलो प्रति एकड़
(ग) 25 किलो प्रति एकड़
(घ) कोई नहीं।
उत्तर-
(क) 7 किलो प्रति एकड़

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प्रश्न 4.
सावनी की फ़सल कब काटी जाती है ?
(क) जनवरी-फरवरी
(ख) अक्तूबर-नवम्बर
(ग) अप्रैल-मई
(घ) कभी भी।
उत्तर-
(ख) अक्तूबर-नवम्बर

प्रश्न 5.
भारत में सब से अधिक दाल की पैदावार …………. में होती है।
(क) हिमाचल प्रदेश
(ख) राजस्थान
(ग) पंजाब
(घ) गुजरात।
उत्तर-
(ख) राजस्थान

सही-गलत –

1. बासमती की किस्में हैं-पंजाब बासमती-3, पूसा पंजाब बासमती-1509, पूसा बासमती-1121.
2. मक्की की पैदावार में संयुक्त राज्य अमेरिका विश्व में तथा भारत में आंध्र प्रदेश सबसे आगे हैं।
3. मूंगी के लिए ठंडे जलवायु की आवश्यकता होती है।
4. सोयाबीन, दाल तथा तेल बीज दोनों श्रेणियों में है।
5. सोयाबीन को चितकबरा.रोग लग जाता है।
उत्तर-

1. सही
2. सही
3. गलत
4. सही
5. सही।

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रिक्त स्थान भरो –

1. मूंगी की लगभग ………………… पक जाने पर काट लें।
2. मक्की को उत्पन्न होने से लेकर फसल पकने तक ……………… जलवायु की आवश्यकता है।
3. सोयाबीन को ………………. जलवायु की आवश्यकता है।
4. बासमती को ………………… तत्त्व वाली खाद अधिक मात्रा में नहीं डालनी चाहिए।
5. सोयाबीन के …………………… बीज प्रति एकड़ की आवश्यकता होती है।
उत्तर-

  1. 80% फलियां
  2. नमी और गर्म
  3. गर्म
  4. नाइट्रोजन
  5. 25-30 किलो।

ख़रीफ़ की सब्ज़ियाँ

बहुविकल्पीय प्रश्न –

प्रश्न 1.
टमाटर के लिए बीज की मात्रा है : .
(क) 1000 ग्राम प्रति एकड़
(ख) 500 ग्राम प्रति एकड़
(ग) 100 ग्राम प्रति एकड़
(घ) कोई नहीं।
उत्तर-
(ग) 100 ग्राम प्रति एकड़

प्रश्न 2.
पंजाब बरकत ……………. की किस्म है।
(क) घीया
(ख) करेला
(ग) टमाटर
(घ) मिर्च।
उत्तर-
(क) घीया

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प्रश्न 3.
करेले की किस्म है :
(क) पंजाब करेली-1
(ख) पंजाब चप्पन कद्
(ग) पंजाब नीलम ।
(घ) पी०ए०जी०-3.
उत्तर-
(क) पंजाब करेली-1

प्रश्न 4.
खरबूजे के लिए बीज की मात्रा है (प्रति एकड़):
(क) 200 ग्राम
(ख) 70 ग्राम
(ग) 100 ग्राम
(घ) 400 ग्राम।
उत्तर-
(घ) 400 ग्राम।

प्रश्न 5.
पंजाब नवीन ……………. की किस्म है।
(क) पेठा
(ख) घीया
(ग) टमाटर
(घ) खीरा।
उत्तर-
(घ) खीरा।

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सही-गलत-

1. सब्जियों में कार्बोहाइड्रेट्स, प्रोटीन, धातु, विटामिन आदि तत्त्व होते हैं।
2. अच्छे स्वास्थ्य के लिए प्रत्येक व्यक्ति को प्रतिदिन 50 ग्राम सब्जियां खानी चाहिए।
3. पत्तों वाली सब्जियां हैं-पालक, मेथी, सलाद और साग।
4. जड़ों वाली सब्जियां हैं-गाजर, मूली, शलगम।
5. पौधे का नर्म भाग जैसे कि-फल, पत्ते, जड़ें, तना आदि को सलाद के रूप में कच्चा खाया जाता है, सब्जी कहलाता है।
उत्तर-

  1. सही
  2. गलत
  3. सही
  4. सही
  5. सही।

रिक्त स्थान भरो-

1. …………………….. की सब्जियां हैं-मिर्च, बैंगन, भिण्डी, करेला, चप्पन कद्दू, टमाटर, तोरी, घीया कद्, टिण्डा, ककड़ी, खीरा आदि।
2. मिर्च के लिए एक मरले की पनीरी के लिए ……………… बीज की आवश्यकता
3. बैंगन की पनीरी के लिए ………………. बीज प्रति एकड़ की आवश्यकता होती है।
4. पंजाब सुर्ख …………………. की किस्म है।
5. पंजाब-7, पंजाब-8 और पंजाब पदमनी ………………. की किस्में हैं।
उत्तर-

  1. खरीफ
  2. 200 ग्राम
  3. 300-400 ग्राम
  4. मिर्च
  5. भिण्डी।

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फूलों की खेती

बहुविकल्पीय प्रश्न –

प्रश्न 1.
डंडी वाले फूलों की उगाई जाने वाली मुख्य फ़सल है :
(क) गेंदा
(ख) गुलाब
(ग) ग्लैडीऑल्स
(घ) कोई नहीं।
उत्तर-
(ग) ग्लैडीऑल्स

प्रश्न 2.
रजनीगंधा फूलों की डंडी रहित प्रति एकड़ उत्पादन है :
(क) 2-2.5 टन
(ख) 5 टन
(ग) 20 टन
(घ) 1 टन।
उत्तर-
(क) 2-2.5 टन

प्रश्न 3.
ग्लैडीऑल्स की कृषि ……………. से की जाती है :
(क) बल्बों से
(ख) कलमों से
(ग) पत्ते से
(घ) कुछ भी।
उत्तर-
(क) बल्बों से

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प्रश्न 4.
डंडी रहित फूल है:
(क) गेंदा
(ख) गुलाब
(ग) मोतिया
(घ) सभी ठीक।
उत्तर-
(घ) सभी ठीक।

प्रश्न 5.
फ्रांसीसी फूल ………………… की किस्म है।
(क) गेंदा
(ख) गुलाब
(ग) मोतिया
(घ) जरवरा।
उत्तर-
(क) गेंदा

सही-गलत-

1. पंजाब में 5000 हैक्टेयर क्षेत्रफल फूलों की कृषि के अधीन है।
2. पंजाब में 3000 हैक्टेयर क्षेत्रफल पर ताज़े तोड़ने वाले फूलों की कृषि होती है।
3. ग्लैडीऑल्स की कृषि बल्बों से की जाती है।
4. गेंदे की कृषि के लिए एक एकड़ की नर्सरी के लिए 600 ग्राम बीज की आवश्यकता है।
5. गुलदाउदी डंडी वाला तथा डंडी रहित फूल दोनों तरह प्रयोग होते हैं।
उत्तर-

  1. गलत
  2. गलत
  3. सही
  4. सही
  5. सही।

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रिक्त स्थान भरो-

1. पंजाब में मुख्य फूलों वाली फसलों को …………………. भागों में बांटा जाता है-डंडी रहित फूल (Loose flower), डंडी वाले फूल (Cut flower)। ।
2. डंडी रहित फूलों को ……………….. के साथ तोड़ा जाता है। उदाहरण_ग्लैडीऑल्स गुलाब, मोतिया आदि।
3. गेंदा पंजाब का .. …………… फूलों वाला मुख्य फूल है।
4. रजनीगंधा के बल्ब गांठें …………………. के लगाए जाते हैं।
5. मोतिया के फूल ……………… के तथा खुश्बूदार होते हैं।
उत्तर-

  1. दो
  2. लम्बी डंडी
  3. डंडी रहित
  4. फरवरी-मार्च
  5. सफेद रंग।

कृषि उत्पादों का मंडीकरण

बहुविकल्पीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
मंडी में उपज ले जाने का उचित समय है :
(क) रात का
(ख) सवेर का
(ग) सायंकाल
(घ) वर्षा का।
उत्तर-
(ख) सवेर का

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प्रश्न 2.
फसल की कटाई देर से करने पर :
(क) दाने गिरने का डर लगता है
(ख) कुछ नहीं होता
(ग) अधिक लाभ होता है
(घ) सभी गलत।
उत्तर-
(क) दाने गिरने का डर लगता है

प्रश्न 3.
ठीक तथ्य है :
(क) उपज की दर्जाबंदी (वर्गीकर्ण) करके मंडी में ले जाना चाहिए
(ख) मंडीकरण एकट 1961 किसानों को तुलाई की जांच का अधिकार देता है।
(ग) किसानों को J फार्म लेना चाहिए
(घ) सभी ठीक।
उत्तर-
(घ) सभी ठीक।

प्रश्न 4.
दर्जाबंदी कारण उपज बेचने के लिए अधिक कीमत मिलती है :
(क) 10-20%
(ख) 50%
(ग) 1%
(घ) 40%
उत्तर-
(क) 10-20%

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सही-गलत

1. कृषि उपज का मंडीकरण बढ़िया ढंग से किया जाए तो अधिक मुनाफ़ा कमाया जा सकता है।
2. निराई, दवाइयों का प्रयोग, पानी, खाद, कटाई आदि विशेषज्ञों की सलाह से करें।
3. अच्छे मंडीकरण के लिए बुवाई के समय से ही ध्यान रखना पड़ता है।
4. उत्पाद बेचने के दौरान आढ़ती से फार्म व रसीद ले लें ताकि मुनाफे और खर्चे की पड़ताल की जा सके।
5. कृषकों को अपने आस-पास की मंडियों के भाव की जानकारी लेने की ज़रूरत नहीं होती।
उत्तर-

  1. सही,
  2. सही
  3. सही
  4. सही
  5. गलत।

रिक्त स्थान भरो-

1. उत्पाद निकालने के बाद इसे ………………. चाहिए।
2. किसानों को अपनी उपज का मंडीकरण ………………… संस्थाओं द्वारा करना चाहिए।
3. पंजाब राज्य मंडी बोर्ड द्वारा कुछ मंडियों में ………………. इकाइयाँ स्थापित की गई हैं।
4. ……………… द्वारा मंडी गोबिन्दगढ़, मोगा तथा जगराओं में गेहूँ को संभालने के लिए बड़े स्तर पर प्रबंध इकाइयों की स्थापना की गई है।
5. भिन्न-भिन्न ……………… मूल्य रेडियो, टी०वी० तथा समाचार-पत्रों आदि से भी पता लगते रहते हैं।
उत्तर-

  1. तोल लेना
  2. सांझी तथा सहकारी
  3. मकैनिकल हैंडलिंग
  4. भारतीय खाद्य निगम
  5. मंडियों के।

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बीज, खाद और कीड़ेमार दवाइयों का क्वालिटी कन्ट्रोल

बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
खादों की प्रयोगशाला कहां है ?
(क) लुधियाना
(ख) कपूरथला
(ग) जालंधर
(घ) नहीं है।
उत्तर-
(क) लुधियाना

प्रश्न 2.
कीटनाशक दवाइयों के लिए प्रयोगशाला कहां है ?
(क) लुधियाना
(ख) भटिण्डा
(ग) अमृतसर ।
(घ) सभी ठीक।
उत्तर-
(घ) सभी ठीक।

प्रश्न 3.
बीज कन्ट्रोल आर्डर कब बना ?
(क) 1980
(ख) 1983
(ग) 1950
(घ) 1995.
उत्तर-
(ख) 1983

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प्रश्न 4.
कीटनाशक दवाइयों के लिए इनसैक्टीसाइड एक्ट कब लागू किया गया ?
(क) 1950
(ख) 1968
(ग) 1990
(घ) 2000.
उत्तर-
(ख) 1968

प्रश्न 5.
खाद कन्ट्रोल आर्डर कब बना ?
(क) 1985
(ख) 1968
(ग) 1995
(घ) 1989.
उत्तर-
(क) 1985

सही-गलत

1. फ़सलों की लाभदायक उत्पादन के लिए बीज, खाद तथा कीटनाशक दवाइयां मुख्य तीन वस्तुएं हैं।
2. इन्सैक्टीसाइड अधिनियम (कीटनाशक एक्ट) 1968 में बनाया नहीं गया।
3. भारत सरकार ने अनिवार्य वस्तुओं के कानून के अन्तर्गत कृषि में काम आने वाली इन तीनों वस्तुओं के लिए विभिन्न कानून बनाए हैं।
4. ये कानून हैं बीज कन्ट्रोल आर्डर, खाद कन्ट्रोल आर्डर, कीटनाशक एक्ट।।
5. बीज कानून की धारा 7 के अन्तर्गत केवल निर्धारित बीजों की ही बिक्री नहीं की जा सकती है।
उत्तर-

  1. सही
  2. गलत
  3. सही
  4. सही
  5. गलत।

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रिक्त स्थान भरो-

1. खाद परीक्षण प्रयोगशाला ………………… तथा ………………… में है।
2. खाद कन्ट्रोल आर्डर ……………….. बनाया गया है जो कि खादों की क्वालटी तथा वज़न को ठीक रखने तथा मिलावट, घटिया तथा अप्रमाणित खादें बेचने को रोकने के लिए सहायक है।
3. दवाइयां चैक करने के लिए प्रयोगशालाएं लुधियाना, भटिण्डा तथा …………….. में हैं।
4. सेन्ट्रल इन्सैक्टीसाइड बोर्ड (केन्द्रीय कीटनाशक बोर्ड) ……………… को यह अधिनियम लागू करने की सलाह देता है।
5. सेन्ट्रल (केन्द्रीय) रजिस्ट्रेशन कमेटी कृषि रसायनों की रजिस्ट्रेशन करके इन्हें ……………. तथा आयात निर्यात के लिए आज्ञा देती है।
उत्तर-

  1. लुधियाना, फरीदकोट
  2. 1985
  3. अमृतसर
  4. सरकार
  5. बनाने।

पशु पालन

बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
भैंस के दो सूयों में अंतर होता है :
(क) 15-16 माह
(ख) 24-25 माह
(ग) 4-5 माह
(घ) 6-7 माह।
उत्तर-
(क) 15-16 माह

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प्रश्न 2.
जर्सी नस्ल का मूल घर है :
(क) पंजाब
(ख) हरियाणा
(ग) इंग्लैंड
(घ) सिंध।
उत्तर-
(ग) इंग्लैंड

प्रश्न 3.
गाय के पहले सूये की आयु बताएं।
(क) 30 माह
(ख) 10 माह
(ग) 50 माह
(घ) 100 माह।
उत्तर-
(क) 30 माह

प्रश्न 4.
400 किलो भार की गाय के लिए हरे चारे की मात्रा है :
(क) 50 किलो
(ख) 400 किलो
(ग) 35 किलो
(घ) 100 किलो।
उत्तर-
(ग) 35 किलो

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प्रश्न 5.
स्वस्थ रहने के लिए प्रतिदिन कितना दूध आवश्यक है ?
(क) 250 ग्राम
(ख) 500 ग्राम
(ग) 100 ग्राम
(घ) 700 ग्राम।
उत्तर-
(क) 250 ग्राम

सही-गलत-

1. पंजाब में लगभग 70% जनसंख्या ग्रामीण है।
2. थारपार्कर तथा हरियाणा द्विउद्देश्यीय नसलें हैं।
3. देसी गाय एक सुए में लगभग 1000 से 1700 किलोग्राम दूध देती है।
4. पंजाब में 17 लाख गायें तथा 60 लाख भैंसें हैं।
5. होलस्टीन-फ्रीज़ियन दूध देने वाली सबसे बढ़िया विदेशी नसल है।
उत्तर-

  1. सही
  2. सही
  3. गलत
  4. गलत
  5. सही।

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रिक्त स्थान भरो-

1. बछड़े को दूध पिलाना चाहिए तथा ………………… नहीं चाहिए।
2. दूध दोहन का काम ……………….. मिनट में पूरी मुट्ठी से करना चाहिए।
3. दूध को 5°C तक ठण्डा करके रखें, इस तरह …………… फलते फूलते – नहीं।
4. भारत में भैंस के एक सूए का औसतन दूध ……………. किलोग्राम है। पंजाब में यह 1500 किलोग्राम है।
5. दूध वाले ………………… को अच्छी तरह साफ़ करना चाहिए।
उत्तर-

  1. चुसवाना
  2. 6-8
  3. बैक्टीरिया
  4. 500
  5. बर्तनों।

दूध और दूध से बनने वाले पदार्थ

बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
गाय के एक किलो दूध से कितना खोया तैयार हो सकता है ?
(क) 200 ग्राम
(ख) 500 ग्राम
(ग) 700 ग्राम
(घ) 300 ग्राम।
उत्तर-
(क) 200 ग्राम

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प्रश्न 2.
गाय के दूध में कितने प्रतिशत वसा होती है ?
(क) 4%
(ख) 50%
(ग) 0.5%
(घ) 70%.
उत्तर-
(क) 4%

प्रश्न 3.
टोन्ड दूध में कितनी वसा होती है ?
(क) 1/2%
(ख) 3%
(ग) 10%
(घ) 25%.
उत्तर-
(ख) 3%

प्रश्न 4.
भैंस के एक किलोग्राम दूध में से कितना पनीर तैयार हो जाता है ?
(क) 100 ग्राम
(ख) 50 ग्राम
(ग) 520 ग्राम
(घ) 250 ग्राम।
उत्तर-
(घ) 250 ग्राम।

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प्रश्न 5.
डब्ल टोन्ड दूध में SNF की प्रतिशत मात्रा है ?
(क) 3%
(ख) 1%
(ग) 9%
(घ) 2%.
उत्तर-
(ग) 9%

सही-गलत-

1. दूध से बनाए जाने वाले पदार्थ हैं-खोया, पनीर, घी, दही आदि।
2. गाय के एक किलोग्राम दूध में से 200 ग्राम खोया तथा 160 ग्राम पनीर मिल जाता है।
3. दूध में कई आहारीय तत्त्व जैसे-प्रोटीन, हड्डियों के लिए कैल्शियम, अन्य धातुएं आदि होते हैं।
4. दूध एक अनमोल (बहुमूल्य) तथा बहुत बढ़िया पौष्टिक पदार्थ नहीं है।
5. भैंस के दूध में फैट की मात्रा 6% तथा एस०एन०एफ० की मात्रा 9% होनी चाहिए।
उत्तर-

  1. सही
  2. गलत
  3. सही
  4. गलत
  5. सही।

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रिक्त स्थान भरो-

1. दूध के ……………….. में सहकारी सभाओं का बहुत योगदान है।
2. दूध की श्रेणियां हैं-टोन्ड दूध, डबल टोन्ड दूध, …… ……. दूध।
3. दूध के ……………… से दूध की तुलना में अधिक कमाई की जा सकती है।
4. कच्चा दूध जल्दी ……………….. हो जाता है।
5. भैंस के एक किलोग्राम दूध में 250 ग्राम खोया तथा ……………….. ग्राम पनीर मिल जाता है।
उत्तर-

  1. मण्डीकरण
  2. स्टैंडर्ड
  3. पदार्थों
  4. खराब
  5. 250.

मुर्गी पालन

बहुविकल्पीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
मुर्गी कितने दिनों बाद अण्डे देना शुरू करती है ?
(क) 50 दिन
(ख) 160 दिन
(ग) 500 दिन
(घ) 250 दिन।
उत्तर-
(ख) 160 दिन

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प्रश्न 2.
चूचों को गर्मी देने वाला यन्त्र है :
(क) माइक्रोवेव ओवन
(ख) बरूडर
(ग) अंगीठी
(घ) तवा।
उत्तर-
(ख) बरूडर

प्रश्न 3.
विष्ठी से कौन-सी गैस बनती है ?
(क) ऑक्सीजन
(ख) हाइड्रोजन
(ग) अमोनिया
(घ) हीलीयम।
उत्तर-
(ग) अमोनिया

प्रश्न 4.
रैड आइलैंड रैंड रंग के अण्डे देती है :
(क) खाकी
(ख) सफेद
(ग) काले
(घ) संतरी।
उत्तर-
(क) खाकी

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प्रश्न 5.
सतलुज लेयर के अण्डे का औसत भार है –
(क) 10 ग्राम
(ख) 20 ग्राम
(ग) 100 ग्राम
(घ) 55 ग्राम।
उत्तर-
(घ) 55 ग्राम।

सही-गलत-

1. ‘पोल्ट्री’ शब्द का अर्थ है ऐसे हर प्रकार के पक्षियों को पालना जो आर्थिक आवश्यकताओं को पूरा कर सकते हों।
2. सतलुज लेयर, मुर्गियों की एक जाति है जो एक वर्ष में 255-265 अण्डे देती
है तथा अण्डे का औसत भार 55 ग्राम होता है।
3. ह्वाइट लैगहार्न विदेशी नसल है, जो वर्ष में 100-200 अण्डे देती है।
4. रैड आईलैंड रैड खाकी रंग के लगभग वार्षिक 180 अण्डे देती है।
5. आई० बी० एल० 80 ब्रायलर मीट पैदा करने वाली मुर्गियों की एक जाति है।
उत्तर-

  1. सही
  2. सही
  3. गलत
  4. सही
  5. सही।

रिक्त स्थान भरो-

1. चूजों को गर्मी देने वाला यंत्र ……………….. होता है।
2. एक मुर्गी को …………….. वर्ग फुट स्थान चाहिए।
3. पक्षियों के शरीर में पसीने के लिए …………….. नहीं होते।
4. ह्वाइट प्लाइमाऊथ राक वार्षिक ………………… के लगभग अण्डे देती है तथा इसके चूज़े दो माह में एक किलो भार के हो जाते हैं।
5. मुर्गियों को अपने भोजन में . …………… से अधिक तत्त्वों की आवश्यकता होती है।
उत्तर-

  1. बरूडर,
  2. 2
  3. रोमछिद्र
  4. 140
  5. 40.

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सूअर, भेड़ें/बकरियां और खरगोश पालना

बहुविकल्पीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
सफेद यार्कशायर किस की किसकी किस्म है ?
(क) मुर्गी
(ख) सूअर
(ग) गाय
(घ) भेड़।
उत्तर-
(ख) सूअर

प्रश्न 2.
बकरी की नसल नहीं है :
(क) सानन
(ख) बोअर
(ग) बीटल
(घ) मैरीनो।
उत्तर-
(घ) मैरीनो।

प्रश्न 3.
मास वाले छल्लों को कब खस्सी करवाना चाहिए?
(क) 2 माह की आयु में
(ख) 10 माह की आयु में
(ग) 15 माह की आयु में
(घ) 20 माह की आयु में।
उत्तर-
(क) 2 माह की आयु में

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प्रश्न 4.
मादा सुअर एक बार में कितने बच्चे पैदा कर सकती है ?
(क) 25-30
(ख) 10-12
(ग) 20-25
(घ) 3-40.
उत्तर-
(ख) 10-12

प्रश्न 5.
खरगोश की मादा पहली बार किस आयु में गर्भित हो जाती है ?
(क) 3-4 माह
(ख) 6-9 माह
(ग) 15-20 माह
(घ) 12-13 माह।
उत्तर-
(ख) 6-9 माह

सही-गलत-

1. सूअर अपने वंश की वृद्धि तेज़ी से करते हैं तथा कम आहार लेते हैं।
2. स्वस्थ मादा सूअर पहली बार 3-4 माह की आयु में कामवेग में आती हैं।
3. सूअरों के 160 वर्ग फुट में 10 बच्चे रखे जा सकते हैं।
4. बकरी की नसलें हैं-बीटल, जमनापरी।
5. भेड़ों की नसलें हैं-मैरीनो, कोरीडेल।
उत्तर-

  1. सही
  2. गलत
  3. गलत
  4. सही
  5. सही।

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रिक्त स्थान भरो-

1. मादा सूअर वर्ष में दो बार प्रसव कर सकती है तथा एक बार में बच्चे पैदा करती है।
2. बकरी तथा भेड़ का गर्भकाल का समय ………………… दिन है।
3. खरगोश की मादा पहली बार ……………….. माह की आयु में गर्भ धारण कर सकती है।
4. वार्षिक ऊन की क्रमशः पैदावार रूसी, ब्रिटिश तथा जर्मन अंगोरा से 215, 230 तथा ………………. ग्राम है।
5. खरगोश की आयु औसतन ……………….. वर्ष की है।
उत्तर-

  1. 10-12
  2. 145-153
  3. 6-9,
  4. 590
  5. 5.

मछली पालन

बहुविकल्पीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
मछली कब बेचने योग्य हो जाती है ?
(क) 500 ग्राम की
(ख) 50 ग्राम की
(ग) 10 ग्राम की
(घ) 20 ग्राम की।
उत्तर-
(क) 500 ग्राम की

PSEB 11th Class Agriculture Objective Questions and Answers

प्रश्न 2.
नदीन मछली है :
(क) कतला
(ख) मरीगल
(ग) पुट्ठी कंघी
(घ) रोहू।
उत्तर-
(ग) पुट्ठी कंघी

प्रश्न 3.
प्रति एकड़ कितने बच्चे तालाब में छोड़े जाते हैं ?
(क) 4000
(ख) 15000
(ग) 1000
(घ) 500.
उत्तर-
(क) 4000

प्रश्न 4.
मांसाहारी मछली है :
(क) सिंगाड़ा
(ख) डोला
(ग) मल्ली
(घ) सभी ठीक।
उत्तर-
(घ) सभी ठीक।

PSEB 11th Class Agriculture Objective Questions and Answers

प्रश्न 5.
मछली पालन के लिए प्रयोग किए जाने वाले पानी का पी०एच० अंक कितना होना चाहिए ?
(क) 7-9
(ख) 2-3
(ग) 13-14
(घ) 11-72.
उत्तर-
(क) 7-9

सही-गलत-

1. मछलियों की भारतीय किस्में हैं-कतला, रोहू तथा मरीगल।
2. जौहड (छप्पड़) 1-5 एकड़ क्षेत्रफल के तथा 6-7 फुट गहरा होना चाहिए।
3. पानी की गहराई 2-3 फुट होनी चाहिए।
4. मछलियों को 10% प्रोटीन वाला सहायक भोजन देना चाहिए।
5. विभिन्न संस्थाओं से मछली पालन के व्यवसाय के लिए प्रशिक्षण नहीं लेना चाहिए।

रिक्त स्थान भरो-

1. जौहड़ में 1-2 इंच आकार के ………………. प्रति एकड़ के हिसाब से डालो।
2. …………………… ग्राम की मछली को बेचा जा सकता है।
3. वैज्ञानिक विधि से मछलियां पालने से वर्ष में लाभ ……………………. से भी अधिक हो जाता है।
4. ………………. बनाने के लिए चिकनी अथवा चिकनी मैरा मिट्टी वाली भूमि का प्रयोग करना चाहिए।
5. पानी का पी०एच० अंक ……. ……………….. के मध्य होना चाहिए। यदि 7 से कम हो तो चूने के प्रयोग से बढ़ाया जा सकता है।
उत्तर-

  1. 4000
  2. 500
  3. कृषि
  4. जौहड़
  5. 7-9.

PSEB 11th Class Agriculture Objective Questions and Answers
कुछ नए कृषि विषय

बहुविकल्पीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
ग्रीन हाऊस गैसें हैं :
(क) कार्बन डाइऑक्साइड
(ख) नाइट्रस ऑक्साइड
(ग) मीथेन
(घ) सभी ठीक।
उत्तर-
(घ) सभी ठीक।

प्रश्न 2.
पौधे की किस्म तथा किसान अधिकार सुरक्षा एक्ट कौन-से वर्ष पास हुआ ?
(क) 1985
(ख) 2001
(ग) 2015
(घ) 1980.
उत्तर-
(ख) 2001

प्रश्न 3.
धान में पानी की बचत करने वाला यंत्र :
(क) टैशियोमीटर
(ख) कराहा
(ग) बी०टी०
(घ) कोई नहीं।
उत्तर-
(क) टैशियोमीटर

PSEB 11th Class Agriculture Objective Questions and Answers

प्रश्न 4.
ग्रीन हाऊस गैसों के कारण पिछले सौ वर्षों में धरती की सतह पर तापमान में कितनी वृद्धि हुई है ?
(क) 0.5°C
(ख) 5C
(ग) 2°C
(घ) 10°C.
उत्तर-
(क) 0.5°C

सही-गलत-

1. आदिकाल से ही मनुष्य कृषि का व्यवसाय नहीं करता आ रहा है।
2. बी० टी० का अर्थ बैसिलस थुरिजैनिसस नाम के बैक्टीरिया से है।
3. बी० टी० नरमे की किस्म से पैदावार पाँच क्विंटल कपास प्रति एकड़ से भी ज्यादा नहीं मिलता है।
4. बी० टी० किस्मों के प्रयोग के कारण कीटनाशकों के प्रयोग पर भी रोक लगी है।
5. वृक्ष और बेलदार वाली फ़सलों का समय पहले 9 साल तथा बढ़ा कर 10 साल तक हो सकता है।
उत्तर-

  1. गलत
  2. सही
  3. गलत
  4. सही
  5. गलत।

PSEB 11th Class Agriculture Objective Questions and Answers

रिक्त स्थान भरो –

1. नई तकनीकों का प्रयोग करके किसी ओर फ़सल या जीव जंतु का ……….. किसी फ़सल में डाल कर इसको संशोधित जाता है।
2. बी० टी० नरमे (कपास) में एक रवेदार प्रोटीन पैदा होता है जिसको खाकर ……………….. मर जाती हैं।
3. जीन डाल कर संशोधित फ़सल को जी० एम० या .. ……………… फ़सलें कहा जाता है।
4. किसानों के अधिकार और पौधे किस्मों के संबंध में ……………… में भारत सरकार ने पौध किस्म और किसान अधिकार सुरक्षा एक्ट पास किया।
5. बैंगन, सोयाबीन, मक्की , चावल आदि की भी ………………. फ़सलें तैयार की जा चुकी हैं।

PSEB 10th Class SST Solutions Geography उद्धरण संबंधी प्रश्न

Punjab State Board PSEB 10th Class Social Science Book Solutions Geography उद्धरण संबंधी प्रश्न

PSEB 10th Class Social Science Solutions Geography उद्धरण संबंधी प्रश्न

(1)

नीचे दिए गए उद्धरणों को ध्यानपूर्वक पढ़िए और दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए
इसी विशालता के कारण ही भारत को एक उप-महाद्वीप (Indian sub-continent) कहकर पुकारा जाता है। उपमहाद्वीप एक विशाल और स्वतंत्र क्षेत्र होता है। जिसके भू-खंड की सीमाएँ विभिन्न प्राकृतिक भू-आकृतियों (Natural Features) द्वारा बनाई जाती हैं, जो उसे आस-पास के क्षेत्रों से अलग करती हैं। भारत को भी उत्तर दिशा में हिमालय के पार अगील (Aghil), मुझतघ (Muztgh), कुनलुन (Kunlun), कराकोरम, हिन्दुकुश और जसकर पर्वत श्रेणियाँ तिब्बत से, दक्षिणी दिशा में पाक-जल ढमरू मध्य और मन्नार की खाड़ी श्रीलंका से, पूर्वी दिशा में अराकान योमा मियांमार (Burma) से और पश्चिमी दिशा. में विशाल थार मरुस्थल, पाकिस्तान से अलग करते हैं। भारत के इतने विशाल क्षेत्र के कारण ही अनेक सांस्कृतिक, आर्थिक व सामाजिक विभिन्नताएं पाई जाती हैं। परन्तु इसके बावजूद भी देश में जलवायु, संस्कृति आदि में एकता पाई जाती है।

(a) भारत को उपमहाद्वीप क्यों कहा जाता है?
(b) देश की अनेकता में एकता’ बनाए रखने में कौन-कौन से तत्त्वों का योगदान है ?
उत्तर-
(a) अपने विस्तार और स्थिति के कारण भारत को उप-महाद्वीप का दर्जा दिया जाता है। उप-महाद्वीप एक विशाल तथा स्वतन्त्र भू-भाग होता है जिसकी सीमाएं विभिन्न स्थलाकृतियों द्वारा बनाई जाती हैं। ये स्थलाकृतियां इसे अपने आस-पास के क्षेत्रों से अलग करती हैं। भारत के उत्तर में हिमालय से पार अगील (Agill), मुझतघ (Mugtgh), कुनलुन (Kunlun), कराकोरम, हिन्दुकुश आदि पर्वत श्रेणियां उसे एशिया के उत्तर-पश्चिमी भागों से अलग करती हैं। दक्षिण में पाक जलडमरू मध्य तथा मन्नार की खाड़ी इसे श्रीलंका से अलग करते हैं। पूर्व में अराकान योमा इसे म्यनमार से अलग करते हैं। थार का मरुस्थल इसे पाकिस्तान के बहुत बड़े भाग से अलग करता है। इतना होने पर भी हम वर्तमान भारत को उपमहाद्वीप नहीं कह सकते। भारतीय उप-महाद्वीप का निर्माण अविभाजित भारत, नेपाल, भूटान तथा बांग्लादेश मिल कर करते हैं।
(b) भारत विभिन्नताओं का देश है। फिर भी हमारे समाज में एक विशिष्ट एकता दिखाई देती है। भारतीय समाज को एकता प्रदान करने वाले मुख्य तत्त्व निम्नलिखित हैं —

  1. मानसूनी ऋतु-मानसून पवनें अधिकांश वर्षा ग्रीष्म ऋतु में करती हैं। इससे देश की कृषि भी प्रभावित होती है और अन्य व्यवसाय भी। मानसूनी पवनें पहाड़ी प्रदेशों में वर्षा करके बिजली की आपूर्ति को विश्वसनीय बनाती हैं। वास्तव में मानसूनी वर्षा पूरे देश की अर्थव्यवस्था का आधार है।
  2. धार्मिक संस्कृति-धार्मिक संस्कृति के पक्ष में दो बातें हैं। एक तो यह कि धार्मिक स्थानों ने देश के लोगों को एक सूत्र में बांधा है। दूसरे, धार्मिक सन्तों ने अपने उपदेशों द्वारा भाईचारे की भावना पैदा की है। तिरूपती, जगन्नाथपुरी, अमरनाथ, अजमेर, हरिमन्दिर साहिब, पटना, हेमकुण्ट साहिब तथा अन्य तीर्थ स्थानों पर देश के सभी भागों से लोग आते हैं और पूजा करते हैं। सन्तों ने भी धार्मिक समन्वय पैदा करने का प्रयास किया है।
  3. भाषा तथा कला-लगभग सारे उत्तरी भारत में वेदों का प्रचार संस्कृत भाषा में हुआ। इसी भाषा के मेल से मध्य युग में उर्दु का जन्म हुआ। अंग्रेज़ी सम्पर्क भाषा है और हिन्दी राष्ट्र भाषा है। इन सब ने मिलकर एक-दूसरे को निकट से समझने का अवसर प्रदान किया है। इसी तरह लोकगीतों तथा लोक-कलाओं ने भी लोगों को समान भावनाएं व्यक्त करने का अवसर जुटाया है।
  4. यातायात तथा संचार के साधन-रेलों तथा सड़कों ने विभिन्न क्षेत्रों के लोगों को समीप लाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। दूरदर्शन तथा समाचार-पत्रों जैसे संचार के साधनों ने भी लोगों की राष्ट्रीय सोच देकर राष्ट्रीय धारा से जोड़ दिया है।
  5. प्रवास-गांवों के कई लोग शहरों में आकर बसने लगे हैं। उनमें जातीय विभिन्नता होते हुए भी वे एक-दूसरे को समझने लगे हैं और इस प्रकार वे एक-दूसरे के निकट आए हैं।
    सच तो यह है कि अनेक प्राकृतिक और सांस्कृतिक तत्त्वों ने हमारे देश को एकता प्रदान की है।

(2)

हिमालय के साथ लगते विशाल उत्तरी मैदान देश की 40% जनसंख्या को निवास व जीवन-यापन प्रदान करते हैं। इनकी उपजाऊ मिट्टी, उपयुक्त जलवायु, समतल धरातल ने दरियाओं, नहरों, सड़कों, रेलों व शहरों के प्रसार व विस्तृत तथा कृषि के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। इसीलिए यह मैदानी क्षेत्र देश के अन्न भंडार होने का गौरव रखते हैं। इन मैदानों ने आर्य लोगों से लेकर अब तक एक विशेष प्रकार की सभ्यता व समाज का निर्माण किया है। सारे देश के लोग गंगा को अभी भी एक पवित्र नदी मानते हैं और इसकी घाटी में बसे ऋषिकेश, हरिद्वार, मथुरा, प्रयाग, अयोध्या, कांशी आदि स्थान देश के विभिन्न भागों में रहने वाले सूफी सन्त और धार्मिक लोगों के आकर्षण का केंद्र रहे हैं। इन मैदानी भागों में बाद में सिख गुरु, महात्मा बुद्ध, महावीर जैन जैसे महापुरुषों ने जन्म लिया और अलग-अलग धर्म स्थापित हुए। इसका गहरा प्रभाव हिमालय पर्वत और दक्षिण भारत में भी देखा जा सकता है।

(a) उत्तर के विशाल मैदानों में नदियों द्वारा निर्मित प्रमुख भू-आकृतियों के नाम बताइए।
(b) विशाल उत्तरी मैदानों का देश के विकास में योगदान बताइए।
उत्तर-
(a) उत्तरी मैदानों में नदियों द्वारा निर्मित भू-आकार हैं-जलोढ़ पंख, जलोढ़ शंकु, सर्पदार मोड़, दरियाई सीढ़ियां, प्राकृतिक बांध तथा बाढ़ के मैदान।
(b) हिमालय क्षेत्रों का देश के विकास में निम्नलिखित योगदान है —

  1. वर्षा-हिन्द महासागर से उठने वाली मानसून पवनें हिमालय पर्वत से टकरा कर खूब वर्षा करती हैं। इस प्रकार यह उत्तरी मैदान में वर्षा का दान देता है। इस मैदान में पर्याप्त वर्षा होती है।
  2. उपयोगी नदियां-उत्तरी भारत में बहने वाली सभी मुख्य नदियां गंगा, यमुना, सतलुज, ब्रह्मपुत्र आदि हिमालय पर्वत से ही निकलती हैं। ये नदियां सारा वर्ष बहती रहती हैं। शुष्क ऋतु में हिमालय की बर्फ इन नदियों को जल देती है।
  3. फल तथा चाय-हिमालय की ढलाने चाय की खेती के लिए बड़ी उपयोगी हैं। इनके अतिरिक्त पर्वतीय ढलानों पर फल भी उगाए जाते हैं।
  4. उपयोगी लकड़ी-हिमालय पर्वत पर घने वन पाए जाते हैं। ये वन हमारा धन हैं। इनसे प्राप्त लकड़ी पर भारत के अनेक उद्योग निर्भर हैं। यह लकड़ी भवन-निर्माण कार्यों में भी काम आती है।
  5. अच्छी चरागाहें-हिमालय पर सुन्दर और हरी-भरी चरागाहें मिलती हैं। इनमें पशु चराये जाते हैं।
  6. खनिज पदार्थ-इन पर्वतों में अनेक प्रकार के खनिज पदार्थ पाए जाते हैं।

PSEB 10th Class SST Solutions Geography उद्धरण संबंधी प्रश्न
(3)

‘जलवाय’ अथवा ‘पवन-पानी’ शब्द से तात्पर्य यह है कि किसी स्थान में लम्बी अवधि की मौसमी स्थितियाँ. जिनमें उस स्थान का तापमान वहाँ से बह रही वायु में जल की कितनी मात्रा है। ये स्थितियाँ मुख्य रूप से उस स्थान की धरातलीय विभिन्नता, समुद्र-तट से दूरी तथा भूमध्य रेखा से दूरी जैसे महत्त्वपूर्ण तत्त्वों के द्वारा निर्धारित की जाती है। इसका मानव एवम् मानवीय क्रिया-कलापों पर गहरा प्रभाव पड़ता है।
भारत एक विशाल देश है। जिसकी विशाल धरातलीय इकाइयां, प्रायद्वीपीय स्थिति और कर्क रेखा का इसके बीच से होकर गुज़रना इसकी जलवायु पर गहरा प्रभाव डालते हैं। देश की विशालतम धरातलीय विभिन्नताओं के कारण ही इसमें तापमान, वर्षा, पवनों व बादलों आदि की विभिन्नताएं मिलती हैं।

(a) भारत की जलवायु को प्रभावित करने वाले (दो) तत्त्वों को बताइए।
(b) भारतीय जलवायु की प्रादेशिक विभिन्नताएं कौन-कौन सी हैं?
उत्तर-
(a) भारत की जलवायु को प्रभावित करने वाले मुख्य तत्त्व हैं-

  1. भूमध्य रेखा से दूरी,
  2. धरातल का स्वरूप,
  3. वायुदाब प्रणाली,
  4. मौसमी पवनें और
  5. हिन्द महासागर से समीपता।

(b) भारतीय जलवायु की प्रादेशिक विभिन्नताएं निम्नलिखित हैं

  1. सर्दियों में हिमालय पर्वत के कारगिल क्षेत्रों में तापमान-45° सेन्टीग्रेड तक पहुंच जाता है परन्तु उसी समय तमिलनाडु के चेन्नई (मद्रास) महानगर में यह 20° सेंटीग्रेड से भी अधिक होता है। इसी प्रकार गर्मियों की ऋतु में अरावली पर्वत की पश्चिमी दिशा में स्थित जैसलमेर का तापमान 50° सेन्टीग्रेड को भी पार कर जाता है, जबकि श्रीनगर में 20° सेन्टीग्रेड से कम तापमान होता है।
  2. खासी पर्वत श्रेणियों में स्थित माउसिनराम (Mawsynaram) में 1141 सेंटीमीटर औसतन वार्षिक वर्षा दर्ज की जाती है। परन्तु दूसरी ओर पश्चिमी थार मरुस्थल में वार्षिक वर्षा का औसत 10 सेंटीमीटर से भी कम है।
  3. बाड़मेर और जैसलमेर में लोग बादलों के लिए तरस जाते हैं परन्तु मेघालय में सारा साल आकाश बादलों से ढका रहता है।
  4. मुम्बई तथा अन्य तटवर्ती नगरों में समुद्र का प्रभाव होने के कारण तापमान वर्ष भर लगभग एक जैसा ही रहता है। इसके विपरीत राष्ट्रीय क्षेत्र दिल्ली और आसपास के क्षेत्रों में सर्दी एवं गर्मी के तापमान में भारी अन्तर पाया जाता है।

(4)

किसी भी देश या क्षेत्र के आर्थिक, धार्मिक तथा सामाजिक विकास में वहां की जलवायु का गहरा प्रभाव होता है। उस क्षेत्र की आर्थिक प्रगति का अनुमान वहाँ की कृषि, उद्योग, खनिज-सम्पदा के विकास से लगाया जा सकता है। भारतीय जीवन लगभग पूरी तरह से कृषि पर आधारित है। जिसके विकास में मानसूनी वर्षा ने एक प्रमुख एवम् सुदृढ़ आधार प्रदान करने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। मानसून को देश का केंद्रीय ध्रुव (Pivotal Point) माना जाता है। इस पर कृषि के अलावा समूचा आर्थिक ढाँचा निर्भर करता है। मानसूनी वर्षा जब समय से तथा उचित मात्रा में होती है तो कृषि उत्पादन बढ़ जाता है तथा चारों तरफ हरियाली व खुशहाली होती है। परन्तु इसकी असफलता के परिणामस्वरूप फसलें सूख जाती हैं। देश में सूखा पड़ जाता है तथा अनाज के भंडारों में कमी आ जाती है।

(a) भारत में मानसूनी वर्षा की (कोई तीन) महत्त्वपूर्ण विशेषताएं बताइए।
(b) भारतीय अर्थव्यवस्था (बजट) को मानसून पवनों का जुआ क्यों कहा जाता है ?
उत्तर-
(a) भारत में मानसूनी वर्षा मुख्यतः जुलाई से सितम्बर के महीनों में होती है। देश में इसका विस्तार दक्षिणपश्चिमी मानसून पवनों के विस्तार के साथ होता है। मानसूनी वर्षा की तीन महत्त्वपूर्ण विशेषताएं निम्नलिखित हैं —

  1. अस्थिरता-भारत में मानसून भरोसे योग्य नहीं है। यह आवश्यक नहीं है कि वर्षा एक-समान होती रहे। वर्षा की इसी अस्थिरता के कारण ही भुखमरी और अकाल की स्थिति पैदा हो जाती है। वर्षा की यह अस्थिरता देश के आन्तरिक भागों तथा राजस्थान में अपेक्षाकृत अधिक है।
  2. असमान वितरण-देश में वर्षा का वितरण समान नहीं है। पश्चिमी घाट के पश्चिमी ढलानों और मेघालय तथा असम की पहाड़ियों में 250 सेंटीमीटर से भी अधिक वर्षा होती है। इसके विपरीत पश्चिमी राजस्थान, पश्चिमी गुजरात, उत्तरी कश्मीर आदि में 25 सेंटीमीटर से भी कम वर्षा होती है।
  3. अनिश्चितता-भारत में होने वाली मानसूनी वर्षा की मात्रा निश्चित नहीं है। कभी तो मानसून पवनें समय से पहले पहुंचकर भारी वर्षा करती हैं, परन्तु कभी यह वर्षा इतनी कम होती है या निश्चित समय से पहले ही समाप्त हो जाती है। परिणामस्वरूप देश में सूखे की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।

(b) “भारतीय अर्थव्यवस्था मानसून पवनों का जुआ है”-यह वक्तव्य इस बात को प्रकट करता है कि भारत की अर्थव्यवस्था की उन्नति या अवनति इस बात पर निर्भर करती है कि किसी वर्ष वर्षा का समय, वितरण तथा मात्रा कितनी उपयुक्त है। यदि वर्षा समय पर आती है और उसका वितरण और मात्रा भी उपयुक्त है, तो कृषि की अच्छी फसल की आशा की जा सकती है। उदाहरण के लिए अच्छी मानसून के कारण फसलें अच्छी होती हैं, तो तीन बातें घटित होती हैं।

  1. कारखानों के लिए उचित कच्चा माल उपलब्ध होता है। कपास, पटसन, तिलहन, ईख इत्यादि की अधिकता से सम्बन्धित उद्योग फलते-फूलते हैं।
  2. अच्छी मानसून से जब कृषि और उद्योगों को बल मिलता है, तो उत्पादकता बढ़ती है। एक ओर निर्यात को बढ़ावा मिलता है, तो दूसरी ओर अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार फलता-फूलता है। देश में धन की वृद्धि होती है और लोगों का जीवन स्तर उन्नत होता है।
  3. अच्छी मानसून के कारण नदियों में जल की वृद्धि होती है। बांधों का जलस्तर ऊंचा उठता है। इस जल से जहां जल-विद्युत् के उत्पादन में सहयोग मिलता है, वहां सिंचाई की व्यवस्था में सुधार होता है। इससे देश में आर्थिक गतिविधियों में हलचल पैदा होती है।
    इसमें कोई सन्देह नहीं है कि आज विज्ञान की उन्नति के कारण हम मानसून के अभाव में भी अच्छी फसल उगा सकते हैं, परन्तु हमें सोचना यह है कि क्या सभी किसान वर्षा के अभाव में या वर्षा के असमान वितरण से लाभ उठा सकते हैं। अच्छी मानसून पूरे देश के प्रत्येक वर्ग तथा प्रत्येक क्षेत्र को प्रभावित करती है। यदि मानसून उपयुक्त है, तो देश का आर्थिक विकास सुनिश्चित है। अतः भारतीय अर्थव्यवस्था को मानसून पवनों का जुआ कहना उचित है।

PSEB 10th Class SST Solutions Geography उद्धरण संबंधी प्रश्न

(5)

कृषि की भारतीय अर्थव्यवस्था में एक अहम् भूमिका है। कृषि क्षेत्र देश के लगभग दो-तिहाई श्रमिकों को रोजगार प्रदान करता है। इस क्षेत्र से कुल राष्ट्रीय आय का 29.0 भाग प्राप्त होता है और विदेश निर्यात में भी कृषि उत्पादों का महत्त्वपूर्ण स्थान है। कृषि के अनेकों उत्पादन हमारे कल-कारखानों में कच्चे माल के रूप में इस्तेमाल किये जाते हैं। कृषि के क्षेत्र में तरक्की के कारण ही प्रति व्यक्ति खाद्यान्नों की उपलब्धि जो 1950 के वर्षों में 395 ग्राम थी, 1991 में बढ़कर 510 ग्राम प्रति व्यक्ति प्रति दिन तक पहुंच गयी है। रासायनिक खादों के उपयोग में भी भारत का स्थान, विश्व में चौथा है। हमारे देश में दालों के अन्तर्गत क्षेत्र, विश्व में सबसे अधिक हैं। कपास उत्पाद के क्षेत्र में भारत विश्व में पहला देश है जहां उन्नत किस्म की कपास पैदा करने के प्रयास सबसे पहले किये गये। देश ने झींगा मछली का बीज तैयार करने तथा कीट संवर्धन (pest culture) तकनीकी विकास में महत्त्वपूर्ण उपलब्धियां हासिल कर ली हैं।

(a) भारत में कितने प्रतिशत भूमि कृषि योग्य है?
(b) कृषि को भारतीय अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार क्यों कहा जाता है?
उत्तर-
(a) भारत में 51% भूमि कृषि योग्य है।
(b) कृषि भारत की अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार है। कुल राष्ट्रीय उत्पादन में अब कृषि का योगदान भले ही केवल 33.7% है, तो भी इसका महत्त्व कम नहीं है।

  1. कृषि हमारी 2/3 जनसंख्या का भरण-पोषण करती है।
  2. कृषि क्षेत्र से देश के लगभग दो-तिहाई श्रमिकों को रोजगार मिलता है।
  3. अधिकांश उद्योगों को कच्चा माल कृषि से प्राप्त होता है। सच तो यह है कि कृषि की नींव पर उद्योगों का महल खड़ा किया जा रहा है।

(6)

दालों की प्रति व्यक्ति उपलब्धि में पंजाब एवं देश के अन्य भागों में इतनी गिरावट चिन्ता का एक विषय है। ऐसा लगता है कि ‘हरित क्रांति’ की लहर, जिसने देश में गेहूँ व चावल के उत्पादन में क्रांतिकारी परिवर्तन ला दिया है, दालों के उत्पादन को बढ़ाने में कोई विशेष योगदान नहीं कर पाया है। असल में अगर यह कहा जाये कि नुकसान पहुंचाया है तो कोई गलत नहीं होगा। क्योंकि ‘हरित क्रांति’ के बाद के वर्षों में दालों का क्षेत्रफल काफी मात्रा में गेहूँ एवं चावल जैसी अधिक उत्पादन देने वाली फसलों की ओर मोड़ दिया गया है। ऐसा विशेष तौर पर पंजाब जैसे व्यावसायिक कृषि प्रधान राज्यों में काफी बड़े स्तर पर हुआ है।
(a) पंजाब में दाल उत्पादन क्षेत्र में हरित क्रान्ति के बाद किस प्रकार का परिवर्तन आया है? (b) दालों के उत्पादन क्षेत्र में गिरावट के मुख्य कारण क्या हैं?
उत्तर-
(a) हरित क्रान्ति के बाद दाल उत्पादन क्षेत्र 9.3 लाख हेक्टेयर से घटकर मात्रा 95 हजार हेक्टेयर रह गया।
(b) पिछले दशकों में दालों के उत्पादन क्षेत्र में कमी आई है। इसके मुख्य कारण निम्नलिखित हैं

  1. दालों वाले क्षेत्रफल को हरित क्रान्ति के बाद अधिक उत्पादन देने वाली गेहूं तथा चावल जैसी फसलों के अधीन कर दिया गया है।
  2. कुछ क्षेत्र को विकास कार्यों के कारण नहरों, सड़कों तथा अन्य विकास परियोजनाओं के अधीन कर दिया गया है।
  3. बढ़ती हुई जनसंख्या के आवास के लिए बढ़ती हुई भूमि की मांग के कारण भी दालों के उत्पादन क्षेत्र में कमी आई है।

PSEB 10th Class SST Solutions Geography उद्धरण संबंधी प्रश्न

(7)

हमारा देश भी खनिज सम्पदा की दृष्टि से काफी सम्पन्न माना जाता है। एक अनुमान के अनुसार देश में विश्व के कुल लौह अयस्क (Iron ore) भण्डार का एक चौथाई भाग है। लौह-इस्पात उद्योग में काम आने वाले प्रमुख खनिज मैंगनीज़ के भी विशाल भण्डार भारत में पाये जाते हैं। देश में कोयला, चूने का पत्थर, बाक्साइट तथा अभ्रक के भी प्रचुर भण्डार हैं। लेकिन अलौह खनिजों (Non-ferrous) जैसे जस्ता, सीसा, तांबा, और सोने के भण्डार बहुत ही सीमित मात्रा में हैं। देश में गंधक का भण्डार लगभग नहीं के बराबर है, जबकि गंधक आधुनिक रासायन उद्योग का प्रमुख आधार है। हमारे यहां जल शक्ति के संसाधन तथा परमाणु खनिज भी काफी हैं। इनका शक्ति साधनों के रूप में उपयोग इनकी शक्ति क्षमता तथा वातावरण के साथ बहुत कम छेड़-छाड़ करने के कारण तेज़ी से बढ़ रहा है। इसी कारण सौर-ऊर्जा भी शक्ति साधन के रूप में इस्तेमाल हो रही है। सौर ऊर्जा ईश्वर की दी अमूल्य शक्ति भंडार है। इसका उपयोग भविष्य में तेज़ी से शक्ति के स्रोत के रूप में बढ़ेगा।

प्रश्न
(a) खनिजों का राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में क्या योगदान है?
(b) सौर ऊर्जा को भविष्य की ऊर्जा का स्त्रोत क्यों कहा जाता है?
उत्तर-
(a) खनिजों का राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में बड़ा महत्त्व है। निम्नलिखित तथ्यों से यह बात स्पष्ट हो जाएगी

  1. देश का औद्योगिक विकास मुख्य रूप से खनिजों पर निर्भर करता है। लोहा और कोयला मशीनी युग का आधार हैं। हमारे यहां संसार के लौह-अयस्क के एक-चौथाई भण्डार हैं। भारत में कोयले के भी विशाल भण्डार पाये जाते हैं।
  2. खनन कार्यों से राज्य सरकारों को आय में वृद्धि होती है और लाखों लोगों को रोजगार मिलता है।
  3. कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस आदि खनिज ऊर्जा के महत्त्वपूर्ण साधन हैं।
  4. खनिजों से तैयार उपकरण कृषि की उन्नति में सहायक हैं।

(b) कोयला और खनिज तेल समाप्त होने वाले साधन हैं। एक दिन ऐसा आएगा जब विश्व के लोगों को इनसे पर्याप्त ऊर्जा नहीं मिलेगी। इनके भण्डार समाप्त हो चुके होंगे। इनके विपरीत सूर्य ऊर्जा कभी न समाप्त होने वाला साधन है। इससे विपुल मात्रा में ऊर्जा मिलती है। जब कोयले और खनिज तेल के भण्डार समाप्त हो जाएंगे तब सौर बिजली घरों से शक्ति प्राप्त होगी और हम अपने घरेलू कार्य और संयन्त्रों से सुगमता से कर लेंगे।

(8)

प्राकृतिक वनस्पति में वह सारे वृक्ष, कंटीली झाड़ियाँ, पौधे व घास आदि शामिल किये जाते हैं जो कि मानव हस्तक्षेप के बिना ही उगते हैं। इसका अध्ययन प्रारम्भ करने से पहले वनस्पति जाति (Flora), वनस्पति (Vegetation) और वन (Forests) जैसे सम्बन्धित शब्दों की जानकारी होना अनिवार्य है। वनस्पति जाति में किसी निश्चित समय तथा निश्चित क्षेत्र में उगने वाले पौधों की भिन्न-भिन्न किस्में (Species) शामिल की जाती हैं। किसी निश्चित वातावरण में किसी स्थान पर पैदा होने वाली झाड़ियों, पौधे, घास आदि को वनस्पति कहा जाता है। जबकि सघन व एक दूसरे पास उगे हुए पेड़, पौधे, कंटीली झाड़ियों आदि से घिरे हुए एक बड़े क्षेत्र को वन कहा जाता है। जंगल शब्द का प्रयोग सबसे अधिक वातावरण वैज्ञानिक और वन रक्षक तथा भूगोलवेत्ता करते हैं। हर एक किस्म की विकसित वनस्पति को अपने वातावरण के साथ एक नाजुक सन्तुलन (Delicate Balance) बना कर एक लम्बे जीवन-चक्र में से निकलना पड़ता है, जो इसके आपसी सामंजस्य और मौसमानुसार ढलने की क्षमता के गुण पर निर्भर करता है। हमारे देश में मिलने वाली सम्पूर्ण वनस्पति जाति (Flora) स्थानीय नहीं है, बल्कि इसका 40% भाग विदेशी जातियों का है जिन को बोरिअल (Boreal) और पेलियो-उष्ण-खण्डीय (Paleo-Tropical) जातियाँ कहा जाता है।

(a) देश में मौजूद विदेशी वनस्पति जातियों के (i) नाम तथा (i) मात्रा बताइए।
(b) पतझड़ या मानसूनी वनस्पति पर संक्षेप में टिप्पणी लिखें।
उत्तर-
(a) देश में मौजूद विदेशी वनस्पति जातियों को बोरिअल (Boreal) और पेलियो-उष्ण खण्डीय (PaleoTropical) के नाम से पुकारते हैं। (ii) भारत की वनस्पति में विदेशी वनस्पति की मात्रा 40% है।
(b) वह वनस्पति जो ग्रीष्म ऋतु के शुरू होने से पहले अधिक वाष्पीकरण को रोकने के लिए अपने पत्ते गिरा देती है, पतझड़ या मानसून की वनस्पति कहलाती है। इस वनस्पति को वर्षा के आधार पर आई व आर्द्र-शुष्क दो उप-भागों में बाँटा जा सकता है।

  1. आई पतझड़ वन- इस तरह की वनस्पति उन चार बड़े क्षेत्रों में पाई जाती है, जहाँ पर वार्षिक वर्षा 100 से 200 से०मी० तक होती है। इन क्षेत्रों में पेड़ कम सघन होते हैं परन्तु इनकी ऊँचाई 30 मीटर तक पहुंच जाती है। साल, शीशम, सागौन, टीक, चन्दन, जामुन, अमलतास, हलदू, महुआ, शारबू, ऐबोनी, शहतूत इन वनों के प्रमुख वृक्ष हैं।
  2. शुष्क पतझड़ी वनस्पति- इस प्रकार की वनस्पति 50 से 100 सें०मी० से कम वर्षा वाले क्षेत्रों में मिलती है। इसकी लम्बी पट्टी पंजाब से आरम्भ होकर दक्षिण के पठार के मध्यवर्ती भाग के आस-पास के क्षेत्रों तक फैली हुई है। कीकर, बबूल, बरगद, हलदू यहां के मुख्य वृक्ष हैं।

PSEB 10th Class SST Solutions Geography उद्धरण संबंधी प्रश्न

(9)

हमारे देश में वनस्पति की विविधता के साथ-साथ जीव-जन्तुओं में भी बहुत बड़ी विविधता पायी जाती है। वास्तव में दोनों के बीच गहरा अन्तर्सम्बन्ध है। देश में जीव-जन्तुओं की लगभग 76 हज़ार जातियां मिलती हैं। देश के ताजे और खारे पानी में 2500 जाति की मछलियाँ पायी जाती हैं। इसी प्रकार पक्षियों की भी 2000 जातियां हैं। सांपों की 400 जातियों भारत में मिलती हैं। इसके अतिरिक्त उभयचारी, सरीसृप, स्तनधारी तथा छोटे कीट और कृमि भी पाये जाते हैं।

स्तनधारियों में राजसी ठाठ-बाठ वाले पशु हाथो प्रमुख हैं। यह विषुवतरेखीय उष्म आई वनों का जीव है। हमारे देश में यह असम, केरल तथा कर्नाटक के जंगलों में पाया जाता है। यहां भारी वर्षा होती है तथा जंगल भी बहुत घने हैं। इसके विपरीत ऊंट और जंगली गधे बहुत ही गर्म तथा शुष्क मरुस्थलों में पाये जाते हैं। ऊँट थार मरुस्थल का सामान्य पशु है, जबकि जंगली पौधे केवल कच्छ के रन (Rann of Kuchh) में ही मिलते हैं। इनकी विपरीत दिशा में एक सींग वाला गैंडा रहता है। ये असम और पश्चिमी बंगाल के ऊत्तरी भागों में दलदली क्षेत्रों में रहते हैं। भारतीय जन्तुओं में भारतीय गौर (बाइसन), भारतीय भैंसा तथा नील गाय विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। हिरण भारतीय जीव जगत की विशेषता है।

(a) हिमालय में मिलने वाले जीवों के नाम बताओ।
(b) देश में जीव-जन्तुओं की देख-रेख के लिए कौन-कौन में कार्य किये जा रहे हैं?
उत्तर-
(a) हिमालय में जंगली भेड़, पहाड़ी बकरी, साकिन (एक लम्बे सींग वाली जंगली बकरी) तथा टैपीर आदि जीव-जन्तु पाये जाते हैं, जबकि उच्च पहाड़ी क्षेत्रों में पांडा तथा हिमतेंदुआ नामक जन्तु मिलते हैं।
(b)

  1. 1972 में भारतीय वन्य जीवन सुरक्षा अधिनियम बनाया गया। इसके अन्तर्गत देश के विभिन्न भागों में 1,50,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र (देश का 2.7 प्रतिशत तथा कुल वन क्षेत्र का 12 प्रतिशत भाग) को राष्ट्रीय उद्यान तथा वन्य प्राणी अभ्याकरण घोषित कर दिया गया।
  2. संकटापन्न (Near Extinction) वन्य जीवों पर विशेष ध्यान दिया जाने लगा है।
  3. पशु-पक्षियों की गणना का कार्य राष्ट्रीय स्तर पर आरम्भ किया गया है।
  4. देश के विभिन्न भागों में इस समय बाघों के 16 आरक्षित क्षेत्र हैं।
  5. असम में गैंडे के संरक्षण की एक विशेष योजना चलायी जा रही है। सच तो यह है कि देश में अब तक 18 जीव आरक्षित क्षेत्र (Biosphere Reserves) स्थापित किये जाय है।
    योजना के अधीन सबसे पहले जीवन आरक्षण क्षेत्र नीलगिरि में बनाया गया था। इस योजना के अन्तर्गत प्रत्येक. जन्तु का संरक्षण अनिवार्य है। यह प्राकृतिक धरोहर (Natural heritage) भावी पीढ़ियों के लिए है।

(10)

पृथ्वी के धरातल पर मिलने वाले हल्के, ढीले और असंगठित चट्टानी चूरे व बारीक जीवांश के संयुक्त मिश्रण को मृदा/मिट्टी कहा जाता है, जिसमें पौधों को जन्म देने की शक्ति होती है।
इस मिश्रण का जमाव 15-30 सैं०मी० से लेकर कई मीटर तक की गहरी तहों में मिलता है। लेकिन मदा वैज्ञानिक, मिट्टी के रंग, बनावट, कणों के आकार आदि की मात्रा के आधार व गहराई में क्रमवार, ए०बी० व सी० नामक तीन परतों में बाँटा जाता है।’ए’ होराईजन वाली मिट्टियों में गल्लढ़ (ह्यूमस) मात्रा अधिक होने के कारण इनका रंग काला होना शुरू हो जाता है। लेकिन इस परत पर निक्षालय क्षेत्र (Zone of leaching) में स्थित होने के कारण खनिज घुलकर नीचे चले जाते . हैं व रंग हल्का काला होना शुरू हो जाता है। इस परत के नीचे ‘बी’ होराईजन वाली उप-परत का रंग ऊपरी परत से रिस कर आए खनिज पदार्थ के कारण रंग भूरा होता है। लेकिन इसमें ह्यूमस की मात्रा कम हो जाती है। इस परत के नीचे ‘सी’ होराईजन वाली मिट्टी की परत मिलती है। जिसमें उपरोक्त चट्टानों से अलग हुए पदार्थों में कोई खास तबदीली नहीं होती व आगे चलकर मुख्य आधार वाली चट्टान से जा मिलती है। इस उप-चट्टानी सतह का रंग सलेटी या हल्का भूरा होता है।

(a) मिट्टी की परिभाषा बताइए।
(b) मिट्टियों के जन्म में प्राथमिक चट्टानों का क्या योगदान है ?
उत्तर-
(a) पृथ्वी के धरातल पर पाये जाने वाले हल्के, ढीले तथा असंगठित चट्टानी चूरे (शैल चूर्ण) तथा बारीक जीवांश के संयुक्त मिश्रण को मिट्टी अथवा मृदा कहा जाता है।
(b) देश में प्राथमिक चट्टानों में उत्तरी मैदानों की तहदार चट्टानें अथवा पठारी भाग की लावा निर्मित चट्टानें आती हैं। इनमें विभिन्न प्रकार के खनिज होते हैं। इसलिए इनसे अच्छी किस्म की मिट्टी बनती है।
प्राथमिक चट्टानों से बनने वाली मिट्टी का रंग, गठन, बनावट आदि इस बात पर निर्भर करता है कि चट्टानें कितने समय से तथा किस तरह की जलवायु द्वारा प्रभावित हो रही हैं। पश्चिमी बंगाल जैसे प्रदेश में, जलवायु में रासायनिक क्रियाओं के प्रभाव तथा ह्यूमस के कारण मृदा अति विकसित होती है। परन्तु राजस्थान जैसे शुष्क क्षेत्र में वनस्पति के अभाव के कारण मिट्टी की उपजाऊ शक्ति कम हो जाती है। इसी तरह अधिक वर्षा तथा तेज़ पवनों वाले क्षेत्र में मिट्टी का कटाव अधिक होता है। परिणामस्वरूप उपजाऊपन कम हो जाता है।

PSEB 10th Class SST Solutions Geography उद्धरण संबंधी प्रश्न

(11)

आज के जानकारी एवं सूचना आधारित (knowledge and information based) विश्व में मानव संसाधनों के महत्त्वपूर्ण योगदान का राष्ट्रीय निर्माण एवं विकास में पहले की अपेक्षा ज्यादा बेहतर ढंग से महसूस किया जाने लगा है। आज विश्व के सभी देश, विशेषकर विकासशील देश, मानव संसाधनों के विकास की ओर पहले से ज्यादा ध्यान देने लगे हैं। बच्चो क्या आप सोच सकते हैं, ऐसा क्यों है ? ‘ऐशियन टाईगर’ के नाम से जाने वाले दक्षिणी कोरिया, ताईवान, हांगकांग, सिंगापुर, मलेशिया आदि देशों में बड़ी तेजी से हो रहे आर्थिक विकास का श्रेय वहाँ पिछले कुछ दशकों में मानव संसाधनों के विकास पर हुए भारी निवेश को दिया जा रहा है। मानव संसाधन विकास में न केवल शिक्षा, तकनीकी कुशलता, स्वास्थ्य एवं पोषण जैसे मापकों को बल्कि मानव-आचार-विचार, सभ्यता-संस्कृति, प्रजाति एवं राष्ट्र-गर्व जैसे मापकों को भी शामिल किया जाना चाहिए। इसके बाद ही मानव संसाधन विकास एक सम्पूर्ण विचारधारा बन सकेगा।

(a) किसी देश का सबसे बहुमूल्य संसाधन क्या होता है?
(b) देश की जनसंख्या की संरचना का अध्ययन करना क्यों ज़रूरी है?
उत्तर-
(a) बौद्धिक एवं शारीरिक रूप से स्वस्थ नागरिक।
(b) किसी देश की जनसंख्या की संरचना को जानना क्यों आवश्यक है, इसके कई कारण हैं-

  1. सामाजिक एवं आर्थिक नियोजन के लिए किसी भी देश की जनसंख्या के विभिन्न लक्षणों जैसे जनसंख्या की आयु-संरचना, लिंगसंरचना, व्यवसाय संरचना आदि के आंकड़ों की जरूरत पड़ती है।
  2. जनसंख्या की संरचना के विभिन्न घटकों का देश के आर्थिक विकास से गहरा सम्बन्ध है। जहाँ एक और से जनसंख्या संरचना घटक आर्थिक विकास से प्रभावित होते हैं, वहीं वे आर्थिक विकास की प्रगति एवं स्तर के प्रभाव से भी अछूते नहीं रह पाते। उदाहरण के लिए यदि किसी देश की जनसंख्या की आयु संरचना में बच्चों तथा बूढ़े लोगों का प्रतिशत बहुत अधिक है तो देश को शिक्षा एवं स्वास्थ्य जैसी मूलभूत सुविधाओं पर अधिक-से-अधिक वित्तीय साधनों को खर्च करना पड़ेगा। दूसरी ओर, आयु संरचना में कामगार आयु-वर्गों (Working age-groups) का भाग अधिक होने से देश के आर्थिक विकास की दर तीव्र हो जाती है।

(12)

जनसंख्या वितरण के क्षेत्रीय प्रारूप का अध्ययन, जनसंख्या के सभी जनसांख्यिकीय घटकों को समझने के लिए आधार प्रदान करता है। इस कारण से जनसंख्या के वितरण के क्षेत्रीय प्रारूप को समझना बहुत आवश्यक है। यहां सबसे पहले हमें जनसंख्या वितरण एवं जनसंख्या घनत्व के बीच अन्तर को भी स्पष्ट कर लेना ज़रूरी है।
जनसंख्या वितरण का सम्बन्ध स्थान से तथा घनत्व का सम्बन्ध अनुपात से है। जनसंख्या वितरण से यही अर्थ निकलता है कि देश के किसी एक हिस्से में जनसंख्या का क्षेत्रीय प्रारूप (Pattern) कैसा है, यानि जनसंख्या प्रारूप फैलाव (nucleated) लिए है या एक ही जगह पर इकट्ठा जमाव (agglomerated) है। दूसरी तरफ घनत्व में, जिसका सम्बन्ध जनसंख्या आकार एवं क्षेत्र से होता है, मनुष्य तथा क्षेत्र (area) के अनुपात पर ध्यान दिया जाता है।
भारत में मानव बस्तियों का इतिहास बहुत पुराना है। इसी कारण देश का हर वह भाग जो मानव निवास के योग है जनसंख्या निवास करती है। फिर भी जनसंख्या का वितरण भूमि के उपजाऊपन से बहुत अधिक प्रभावित होता है। भारत एक कृषि प्रधान देश होने के कारण, जनसंख्या वितरण का प्रारूप कृषि-उत्पादकता (agricultural productivity) पर निर्भर करता है। इसी कारण जिन प्रदेशों में कृषि-उत्पादकता अधिक है जनसंख्या का जमाव भी उतना ही अधिक है। कृषि उत्पादकता के अलावा, प्राकृतिक कारकों (physical factors) की विभिन्नता, औद्योगिक विकास एवं सांस्कृतिक तत्वों का भी भारत के जनसंख्या वितरण प्रारूप को प्रभावित करने में महत्त्वपूर्ण योगदान है।

(a) देश के सबसे अधिक और सबसे कम जनसंख्या वाले राज्यों के नाम बताइए।
(b) देश में जनसंख्या वितरण के प्रादेशिक प्रारूप की प्रमुख विशेषताओं को बताते हुए प्रारूप का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
(a) देश में सबसे अधिक जनसंख्या वाला राज्य उत्तर प्रदेश और सबसे कम जनसंख्या वाला राज्य सिक्किम
(b) भारत में जनसंख्या वितरण का प्रादेशिक प्रारूप तथा उसकी महत्त्वपूर्ण विशेषताएं निम्नलिखित हैं

  1. भारत में जनसंख्या का वितरण बहुत असमान है। नदियों की घाटियों और समुद्र तटीय मैदानों में जनसंख्या बहुत सघन है, परन्तु पर्वतीय, मरुस्थलीय एवं अभाव-ग्रस्त क्षेत्रों में जनसंख्या बहुत ही विरल है। उत्तर के पहाड़ी प्रदेशों में देश के 16 प्रतिशत भू-भाग पर मात्र 3 प्रतिशत जनसंख्या निवास करती है, जबकि उत्तरो मैदानों में देश के 18 प्रतिशत भूमि पर 40 प्रतिशत जनसंख्या निवास करती है। राजस्थान में देश के मात्र 6 प्रतिशत भू-भाग पर 6 प्रतिशत जनसंख्या निवास करती है।
  2. अधिकांश जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों में बसी है। देश की कुल जनसंख्या का लगभग 71% भाग ग्रामीण क्षेत्रों में लगभग 29% भाग शहरों में निवास करता है। शहरी जनसंख्या का भारी जमाव बड़े शहरों में है। कुल शहरी जनसंख्या का दो-तिहाई भाग एक लाख या इससे अधिक आबादी वाले प्रथम श्रेणी के शहरों में रहता है।
  3. देश के अल्पसंख्यक समुदायों का जमाव अति संवेदनशील एवं महत्त्वपूर्ण बाह्य सीमा क्षेत्रों में है। उदाहरण के लिए उत्तर-पश्चिमी भारत में भारत-पाक सीमा के पास पंजाब में सिक्खों तथा जम्मू-कश्मीर में मुसलमानों का बाहुल्य है। इसी तरह उत्तर-पूर्व में चीन व बर्मा (म्यनमार) की सीमाओं के साथ ईसाई धर्म के लोगों का जमाव है। इस तरह के वितरण से अनेक सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक कठिनाइयां सामने आती हैं।
  4. एक ओर तटीय मैदानों एवं नदियों की घाटियों में जनसंख्या घनी है तो दूसरी ओर पहाड़ी, पठारी एवं रेगिस्तानी भागों में जनसंख्या विरल है। यह वितरण एक जनसांख्यिकी विभाजन (Demographic divide) जैसा लगता है।

PSEB 6th Class Physical Education Solutions Chapter 5 सुरक्षा शिक्षा

Punjab State Board PSEB 6th Class Physical Education Book Solutions Chapter 5 सुरक्षा शिक्षा Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 6 Physical Education Chapter 5 सुरक्षा शिक्षा

PSEB 6th Class Physical Education Guide सुरक्षा शिक्षा Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
सुरक्षा शिक्षा किसे कहते हैं ?
उत्तर-
सुरक्षा शिक्षा (Safety Education)-सुरक्षा शिक्षा वह विज्ञान है जिससे हमें प्रतिदिन जीवन में घटने वाली दुर्घटनाओं के बारे में पता चलता है। यदि हमें सुरक्षा के नियमों का ज्ञान न हो अथवा उन नियमों का हम पालन न करें तो हम दुर्घटनाओं का शिकार हो सकते हैं। सुरक्षा शिक्षा वह शिक्षा है जो हमें दुर्घटनाओं और टकराने से बचाती है। वर्तमान मशीनी युग में दुर्घटनाएं अक्सर होती रहती हैं। समाचार-पत्रों में प्रतिदिन किसीन-किसी दुर्घटना का समाचार प्रकाशित होता रहता है। दुर्घटनाओं से बचने के लिए सुरक्षा शिक्षा की बहुत ही अधिक आवश्यकता है। इस शिक्षा के ज्ञान के द्वारा हम काफ़ी समय तक दुर्घटनाओं को कम कर सकते हैं। यदि हम सुरक्षा सम्बन्धी नियमों का पालन करें तो कोई कारण नहीं कि हम दुर्घटनाओं का शिकार बनें। इस प्रकार सुरक्षा शिक्षा हमें सुखी और लम्बा जीवन व्यतीत करने में बहुत सहायक हो सकती है।

प्रश्न 2.
सुरक्षा शिक्षा की क्या आवश्यकता है ?
उत्तर-
सुरक्षा शिक्षा की आवश्यकता (Need for Safety Education)-वर्तमान युग मशीनों का युग है। आजकल यातायात के साधन बहुत ही विकसित और तेज़ हैं।

सड़कों पर यातायात की भरमार होती है। इसलिए प्रतिदिन अनेक दुर्घटनाएं होती हैं। कोई ऐसा दिन नहीं जाता, जबकि समाचार-पत्रों में किसी दुर्घटना का समाचार प्रकाशित न हो। कहीं दो कारों की टक्कर होती है, कहीं कार ट्रक से टकराती है, कहीं बस किसी खड्डे में गिर जाती है और कहीं स्कूल जाता बच्चा कार अथवा ट्रक के नीचे आ जाता है। इस प्रकार की दुर्घटनाओं से बहुत-सी जानों और सम्पत्ति की क्षति होती है। इन दुर्घटनाओं से बचने का एकमात्र इलाज सुरक्षा शिक्षा है। सुरक्षा शिक्षा द्वारा हमें ऐसे नियमों की जानकारी हो जाएगी, जिनका पालन करके हम दुर्घटनाओं का शिकार नहीं हो सकते। इसलिए वर्तमान युग में सुरक्षा-शिक्षा की बहुत ही अधिक आवश्यकता है।

  1. सुरक्षा शिक्षा द्वारा प्रतिदिन घटने वाली दुर्घटनाओं पर नियन्त्रण करने का अवसर मिलता है।
  2. सुरक्षा शिक्षा हमें सरलता से सड़क पार करने में सहायता करती है।
  3. सुरक्षा शिक्षा के ज्ञान द्वारा हम चौराहे पर खड़े सिपाही के इशारों को समझ कर दुर्घटनाओं से बच सकते हैं।
  4. सुरक्षा के ज्ञान से ही हम हमेशा सड़क के बाएं हाथ चलते हैं। .
  5. सुरक्षा शिक्षा के नियमों का ज्ञान होते हुए हम अपने से आगे जाने वाले साइकिल, कार, स्कूटर, रिक्शा आदि को पार करते समय हम उस के दाएं तरफ से जाएंगे।

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प्रश्न 3.
घर में चोटें लगने के क्या कारण हैं ?
उत्तर-
यह प्राय: देखने में आता है कि हमारे घरों और स्कूलों में दुर्घटनाएं होती रहती हैं। घर अथवा स्कूल में चोट लगने के अलग-अलग कारणों का विवरण इस प्रकार है

घर में चोटें लगने के कारण (Causes of injuries at Home)-घरों में अक्सर दुर्घटनाएं रसोई घर, गुसलखाने, रिहायशी कमरों, सीढ़ियों अथवा आंगन में होती हैं। इन स्थानों पर दुर्घटनाएं होने के कारण इस प्रकार हैं –

(क) रसोई घर में दुर्घटना के कारण (Causes of injuries at Kitchen)

  1. धुएं के निकास का उचित प्रबन्ध न होना।
  2. प्रकाश का उचित प्रबन्ध न होना।
  3. रसोई घर का फ़र्श अधिक फिसलन वाला होना।
  4. रसोई घर में बिजली की तारें नंगी होना।
  5. ज्वलनशील कपड़े पहन कर रसोई में कार्य करना।
  6. रसोई घर की भली प्रकार सफ़ाई न होना।
  7. चाकू, छुरियों आदि वस्तुओं का ठिकाने पर न पड़े होना।
  8. जलती हुई लकड़ियों और कोयलों के प्रति लापरवाही बरतना।
  9. मिट्टी के तेल आदि का उचित स्थान पर न पड़े होना।
  10. रसोई में साबुन, जूठे बर्तनों आदि का बिखरे होना।

(ख) गुसलखानों में दुर्घटनाओं के कारण (Causes of injuries at Bathroom)

  1. गुसलखाने के फ़र्श पर साबुन, तेल आदि बिखरा होना।
  2. गुसलखाने में स्थान तंग होना।
  3. गुसलखाने में पानी की टूटी अथवा फव्वारे का उचित ऊंचाई पर न होना।
  4. गुसलखाने में ब्लेड, सूई, पिन, तेल की टूटी शीशी पड़े होना।
  5. गुसलखाने में खूटियों का उचित स्थान पर लगे न होना।
  6. गुसलखाने में फर्श पर काई आदि का जमना।

(ग) रिहायशी कमरे में दुर्घटना के कारण (Causes of injuries at Living Room) –

  1. फ़र्श पर बच्चों के खिलौने बिखरे होना।
  2. फ़र्श फिसलन वाला होना।
  3. फ़र्श पर बिछी दरी और गलीचे का मुड़ा होना।
  4. फ़र्नीचर ठीक स्थान पर न पड़ा होना।
  5. सिगरेट-बीड़ी आदि के जलते टुकड़ों को इधर-उधर फर्श पर फेंकना।
  6. कमरे में रोशनी का उचित प्रबन्ध न होना।
  7. सर्दियों में जलती हुई अंगीठी रखकर सो जाना।
  8. चलने-फिरने में रुकावटों का होना।
  9. बन्दूक, पिस्तौल और तलवार का ठीक ठिकाने पर न पड़े होना।
  10. बिस्तरों में कैंची, चाक आदि पड़े होना।

(घ) सीढ़ियों पर दुर्घटना के कारण (Causes of injuries on stairs)

  1. सीढ़ियों पर प्रकाश का उचित प्रबन्ध न होना।
  2. सीढ़ियों का तंग होना।
  3. सीढ़ियों पर चढ़ते अथवा उतरते समय मज़बूत सहारे का न होना।
  4. अन्तिम अथवा पहली सीढ़ी की कोई विशेष निशानी न होना।
  5. सीढ़ियों पर चारपाई या साइकिल अथवा अन्य सामान रखना।

(ङ) आंगन में दुर्घटना के कारण (Causes of injuries at Lawn)

  1. आंगन का समतल न होना।
  2. आंगन में कूड़ा-कर्कट बिखरा होना।
  3. पशुओं का खूटा आंगन में गड़ा होना।
  4. बच्चों द्वारा खेलते समय आंगन में गड्ढे खोदना।
  5. पशुओं का चारा आदि आंगन में बिखरा होना।

स्कूल में दुर्घटना के कारण (Causes of injuries at School)-दुर्घटनाएं केवल घरों में ही नहीं होतीं बल्कि स्कूलों में भी हो जाती हैं। स्कूल में दुर्घटनाओं के निम्नलिखित कारण हैं –

  1. खेलों के मैदान साफ़-सुथरे और समतल न होना।
  2. खेलों के टूटे-फूटे सामान का इधर-उधर बिखरे पड़े होना।
  3. स्कूलों के फ़र्श गंदे अथवा फिसलन वाले होना।
  4. बच्चों द्वारा केले, संगतरे आदि के छिलके इधर-उधर फेंकना।
  5. स्कूल के मूत्रालय अथवा शौचालय में फिसलन का होना।
  6. खेलों में अनाड़ी खिलाड़ियों का भाग लेना।
  7. खेलों की ट्रेनिंग अनुभवी अध्यापकों द्वारा न देना।

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प्रश्न 4.
घर में बचाव के क्या-क्या तरीके हैं ?
उत्तर-
घर में बचाव की विधियां (Methods of Safety at Home)-घर में दुर्घटनाओं से बचाव की मुख्य विधियां निम्नलिखित हैं

  1. घर में रोशनी का उचित प्रबन्ध करना चाहिए।
  2. रसोई में से धुएं के निकास का उचित प्रबन्ध होना चाहिए।
  3. घर में बिजली की तारें नंगी नहीं रखनी चाहिएं।
  4. कमरों के फ़र्श की अच्छी तरह से सफ़ाई रखनी चाहिए।
  5. स्नानगृह (गुसलखाने) में काई (हरियाली) नहीं रहने देनी चाहिए।
  6. घर का सारा सामान उचित ढंग से रखना चाहिए।
  7. फ़र्श पर चाकू, कैंची आदि नहीं रखना चाहिए। इन्हें प्रयोग करने के बाद उचित स्थान पर रख देना चाहिए।
  8. रसोई में आग को भड़काने वाले कपड़े पहनकर काम नहीं करना चाहिए।
  9. सिगरेट और बीड़ियों के जलते हुए टुकड़ों को फ़र्श पर इधर-उधर नहीं फेंकना चाहिए।
  10. सर्दियों में जलती हुई अंगीठी कमरे में रख कर नहीं सोना चाहिए।
  11. सीढ़ियों पर चारपाइयां, साइकिल आदि सामान नहीं रखना चाहिए।
  12. सीढ़ियों पर चढ़ने और उतरने के लिए मज़बूत आश्रय (सहारे) होने चाहिएं।
  13. घर का आंगन साफ़-सुथरा और समतल होना चाहिए।
  14. पशुओं का चारा या अन्य सामान आंगन में बिखरा हुआ नहीं होना चाहिए।
  15. घर का सारा फर्नीचर यथा स्थान होना चाहिए।

प्रश्न 5.
सुरक्षा शिक्षा की ज़िम्मेवारी किस-किस की है ?
उत्तर-
सुरक्षा शिक्षा का दायित्व (Responsibility for Safety Education)सुरक्षा शिक्षा का दायित्व किसी एक व्यक्ति या संस्था का नहीं है। यह तो माता-पिता, अध्यापक, नगरपालिका, सरकार और समाज का सामूहिक उत्तरदायित्व है।

घर को प्राथमिक पाठशाला कहा जाता है। बच्चा अपना अधिक समय घर में ही व्यतीत करता है। इसलिए माता-पिता की ज़िम्मेदारी है कि वे अपने बच्चों को सुरक्षा सम्बन्धी ज्ञान दें। इससे बच्चे दुर्घटनाओं का शिकार नहीं होंगे। घर के पश्चात् स्कूल एक ऐसा स्थान है जहां बच्चा पांच-छ: घण्टे व्यतीत करता है। स्कूल में अध्यापकों का कर्त्तव्य है कि वे बच्चों को सुरक्षा की शिक्षा दें ताकि वे स्कूल आते-जाते या मैदान में खेलते समय किसी दुर्घटना का शिकार न हों। इसी प्रकार नगरपालिका और सरकार की भी जिम्मेवारी है कि वह लोगों को सुरक्षा सम्बन्धी जानकारी दे। इससे प्रतिदिन होने वाली दुर्घटनाओं में कमी आयेगी। लोग लम्बी आयु व्यतीत कर सकेंगे।

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प्रश्न 6.
सुरक्षा के लिए कौन-कौन सी संस्थाएं सहायक हो सकती हैं और कैसे ?
उत्तर-
सुरक्षा के लिए सहायक संस्थाएं-सुरक्षा के लिए निम्नलिखित संस्थाएं सहायता प्रदान कर सकती हैं –
1. स्कूल और कॉलेज (School and Colleges)-स्कूलों और कॉलेजों में ही अध्यापकों को सुरक्षा के नियमों के विषय में जानकारी देनी चाहिए। .

2. नगरपालिका (Municipal Committees)-नगरपालिका को भी सिनेमा, स्लाइडों और प्रदर्शनियों द्वारा सुरक्षा-सम्बन्धी नियमों का प्रचार करना चाहिए।

3. समाज (Society)-समाज भी सुरक्षा के लिए सहायक हो सकता है। समाज द्वारा लोगों को सुरक्षा सम्बन्धी जानकारी देनी चाहिए। लोगों को इस बात का ज्ञान होना चाहिए कि सड़कों, गलियों में छिलके आदि न फेंकें। यदि सड़क पर कोई रुकावट हो तो उसे हटाने का प्रयत्न करना चाहिए।

4. सरकार (Government) सरकार भी लोगों की सुरक्षा सम्बन्धी बहुत सहायता कर सकती है। सरकार को पैदल चलने वालों के लिए सड़क पर फुटपाथ बनाने चाहिएं। लोगों को ट्रेनिंग के नियमों के विषयों में जानकारी देनी चाहिए। यातायात को कण्ट्रोल में रखने के लिए प्रत्येक चौराहे (चौक) पर सिपाही या ट्रैफिक लाइटों का प्रबन्ध करना चाहिए।

Physical Education Guide for Class 6 PSEB सुरक्षा शिक्षा Important Questions and Answers

बहुत छोटे उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
जो शिक्षा हमें दुर्घटनाओं से बचाने की शिक्षा देती है उसे क्या कहते हैं ?
उत्तर-
सुरक्षा शिक्षा।

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प्रश्न 2.
कौन-सी शिक्षा द्वारा हम दुर्घटनाओं को कम कर सकते हैं?
उत्तर-
बचाव की शिक्षा।

प्रश्न 3.
रात को गाड़ी चलाते समय किस वस्तु का प्रयोग करना चाहिए ?
उत्तर-
डिपर का।

प्रश्न 4.
किस हालत में गाड़ी चलाना खतरनाक है ?
उत्तर-
शराब पी कर।

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प्रश्न 5.
सड़क पर पैदल चलने वालों के लिए किस वस्तु का प्रबन्ध किया जाता है ?
उत्तर-
फुटपाथ का।

प्रश्न 6.
चौराहे पर ट्रैफिक को नियंत्रण करने के लिए क्या करना चाहिए ?
उत्तर-
सिपाही अथवा ट्रैफिक लाइट्स का।

प्रश्न 7.
दुर्घटनाओं के बचाव के लिए लोगों को किस का ध्यान रखना चाहिए?
उत्तर-
ट्रैफिक के नियमों का।

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प्रश्न 8.
दुर्घटनाओं से बचने के लिए स्कूल का मैदान कैसा होना चाहिए ?
उत्तर-
समतल और साफ़-सुथरा।

छोटे उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
सड़क पर दुर्घटनाओं के कोई पांच कारण बताएं।
उत्तर-

  1. शराब पीकर गाड़ी चलाना।
  2. चौराहे पर खड़े सिपाही के इशारों की परवाह न करना।
  3. सड़क पर तेज़ रफ्तार से साइकिल, स्कूटर और कार चलाना।
  4. दूसरी गाड़ी के आगे जाने की कोशिश करना।
  5. मोड़ पार करते समय ठीक इशारा न करना।

प्रश्न 2.
रसोई घर में दुर्घटनाओं के पांच कारण लिखो।
उत्तर-

  1. रसोई घर का फ़र्श अधिक फिसलन वाला होना।
  2. रसोई में धुएं के निकास का उचित प्रबन्ध न होना।
  3. ज्वलनशील कपड़े पहन कर रसोई में कार्य करना।
  4. रसोई में साबुन, जूठे बर्तन आदि का बिखरे होना।
  5. रसोई में प्रकाश का उचित प्रबन्ध न होना।

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प्रश्न 3.
गुसलखाने में दुर्घटनाओं के पांच कारण लिखें।
उत्तर-

  1. गुसलखाने के फ़र्श पर साबुन, तेल आदि बिखरे होना।
  2. गुसलखाने में पानी की टूटी अथवा फव्वारे का उचित ऊंचाई पर न होना।
  3. गुसलखाने में फ़र्श पर काई आदि का जमना।
  4. गुसलखाने में स्थान तंग होना।
  5. गुसलखाने में ब्लेड, सूई, पिन, तेल की टूटी शीशी पड़े होना।

प्रश्न 4.
रिहायशी कमरों में दुर्घटना के पांच कारण लिखें।
उत्तर-

  1. फ़र्श फिसलने वाला होना।
  2. फ़र्नीचर ठीक स्थान पर न पड़ा होना।
  3. कमरे में रोशनी का उचित प्रबन्ध न होना।
  4. सर्दियों में जलती हुई अंगीठी रख कर सोना।
  5. बिस्तरों पर कैंची, चाक आदि पड़े होना।

प्रश्न 5.
स्कूल में बचाव के कौन-कौन से ढंग हैं ?
उत्तर-
स्कूल में बचाव के ढंग (Methods of Safety at School)-स्कूल में दुर्घटनाओं से बचाव के निम्नलिखित ढंग हैं-

  1. स्कूल का खेल का मैदान साफ़-सुथरा और समतल होना चाहिए।
  2. स्कूल के खेलों का टूटा-फूटा सामान एक बन्द कमरे में रखना चाहिए।
  3. कबड्डी, कुश्ती आदि खेलते समय बच्चों को अंगूठियां या अन्य कोई तीखी वस्तु नहीं पहनने देनी चाहिए।
  4. स्कूल के फर्श साफ़ होने चाहिएं।
  5. बच्चों को केले, संगतरे आदि के छिलके इधर-उधर नहीं फेंकने चाहिएं।
  6. खेल में अनाड़ी खिलाड़ियों को भाग नहीं लेने देना चाहिए।
  7. खेलों का अभ्यास अनुभवी कोचों द्वारा ही करवाना चाहिए।

PSEB 6th Class Physical Education Solutions Chapter 5 सुरक्षा शिक्षा

प्रश्न 6.
सड़क पर दुर्घटनाओं के क्या कारण हैं ?
उत्तर-
सड़क पर दुर्घटनाओं के कारण (Causes of Road Accidents)-

  1. सुरक्षा नियमों की परवाह न करना।
  2. तीव्र गति से गाड़ी चलाना।
    PSEB 6th Class Physical Education Solutions Chapter 5 सुरक्षा शिक्षा 1
  3. शराब या अन्य नशीली वस्तुओं का सेवन करके वाहन चलाना।
  4. गाड़ियों की बत्तियों का ठीक प्रयोग न करना।
  5. मोड़ काटते समय ठीक संकेत का प्रयोग न करना।
  6. गाड़ियों, स्कूटरों, मोटरों आदि में अचानक किसी खराबी का आ जाना।
  7. सड़कों पर केले, संगतरे आदि के छिलके फेंकना।
  8. कम समय होने पर शीघ्र पहुंचने के लिए अन्य गाड़ियों से आगे निकलना।
  9. चौराहे पर खड़े सिपाही के संकेत की अवहेलना करना।
  10. ट्रैफिक के नियमों का ज्ञान न होना।
  11. सड़क के आस-पास की मिट्टी का नर्म होना या सड़क में गड्ढे आदि होना।
  12. चालक की दृष्टि कमज़ोर होना।
  13. लम्बी यात्रा के कारण ड्राइवरों का थका-मदा होना।
  14. किसी पशु या बच्चे आदि का अचानक सड़क पर आ जाना।
  15. बच्चों का सड़क पर खेलना।

प्रश्न 7.
जनसंख्या में वृद्धि के कारण अनेक दुर्घटनाएं होती हैं क्यों ?
उत्तर-
प्रतिदिन समाचार-पत्रों में कहीं-न-कहीं किसी-न-किसी दुर्घटना का समाचार पढ़ने को मिलता है। इन दुर्घटनाओं का प्रमुख कारण जनसंख्या में वृद्धि है। जनसंख्या के बढ़ने से सड़कों पर चलने वाले लोगों की भीड़ बढ़ जाती है। इसी प्रकार सड़क पर चलने वाले वाहनों (मोटरों, कारों, मोटर साइकिलों, स्कूटरों, ट्रकों) आदि की संख्या में भी वृद्धि हुई है। भीड़ युक्त सड़कों पर वाहन चालक अपने-अपने वाहनों पर ठीक नियन्त्रण नहीं रख पाते। इसलिए अनेक दुर्घटनाएं हो जाती हैं। कभी ट्रक कार से टकरा जाता है, कभी मोटर साइकिल स्कूटर से टकरा जाता है तथा कभी कोई स्कूटर या मोटर साइकिल सवार किसी पैदल चलने वाले व्यक्ति को कुचल देता है। इस प्रकार जनसंख्या में वृद्धि अनेक दुर्घटनाओं को जन्म देती है। अतः दुर्घटनाओं में कमी लाने के लिए जनसंख्या में वृद्धि पर रोक लगाना आवश्यक है।

PSEB 6th Class Physical Education Solutions Chapter 5 सुरक्षा शिक्षा

रिक्त स्थानों की पूर्ति –

प्रश्न-
निम्नलिखित वाक्यों में खाली स्थानों को कोष्ठक में दिए गए शब्दों में से उचित शब्द चुन कर भरो

  1. जब हम दूसरी गाड़ी …………… की कोशिश करते हैं तो दुर्घटना हो जाती है। (पीछे होने, आगे निकलने)
  2. हमें सड़क पर सदा अपने…………. हाथ चलना चाहिए। (दायें, बायें)
  3. आग भड़काने वाले कपड़े पहन कर ………….. में काम नहीं करना चाहिए। (स्नानगृह, रसोई)
  4. हमारे घरों के फ़र्श ………….. होने चाहिएं। (फिसलने वाले, साफ़-सुथरे)
  5. दुर्घटनाओं से बचने के लिए घर में ………… का उचित प्रबन्ध होना चाहिए। (पानी, रोशनी)
  6. हमें घर में बिजली की तारों को …………. रखना चाहिए। (ढक कर, नंगा कर)
  7. घरों में आंगन ……………. होना चाहिए। (समतल, खुरदरा)

उत्तर-

  1. आगे निकलने
  2. बायें
  3. रसोई
  4. साफ़-सुथरे
  5. रोशनी
  6. ढक कर
  7. समतल।

पंजाब स्टाइल कबड्डी अथवा वृत्त कबड्डी (Punjab Style Kabaddi or Circle Kabaddi) Game Rules – PSEB 10th Class Physical Education

Punjab State Board PSEB 10th Class Physical Education Book Solutions पंजाब स्टाइल कबड्डी अथवा वृत्त कबड्डी (Punjab Style Kabaddi or Circle Kabaddi) Game Rules.

पंजाब स्टाइल कबड्डी अथवा वृत्त कबड्डी (Punjab Style Kabaddi or Circle Kabaddi) Game Rules – PSEB 10th Class Physical Education

वृत कबड्डी

  1. मैदान का आकार = वृत्ताकार
  2. वृत्त का अर्ध व्यास = 65′ से 75′ फुट (50 से 70 मी०)
  3. गेट का फासला, = 20 फुट (6.10 मीटर)
  4. गेट की मार्किंग = दोनों सिरों पर मिट्टी की ढेरियां
  5. प्रत्येक पाले का व्यास = 6 ईंच
  6. खेल का समय = 20-20 मिनट की दो पारियां
  7. विश्राम का समय = 5 मिनट
  8. एक टीम में खिलाड़ियों = 14 खिलाड़ी, 6 बदलवें खिलाड़ी की संख्या
  9. मैच के अधिकारी = दो अम्पायर, एक रैफरी, एक स्कोरर, एक टाइमकीपर

पंजाब स्टाइल अथवा वृत्त कबड्डी खेल की संक्षेप रूपरेखा
(Brief outline of Punjab Style or Circle Kabaddi Game)

  1. खेल दो टीमों के मध्य होती है। प्रत्येक टीम में 14 खिलाड़ी खेलते हैं तथा 6 खिलाड़ी स्थानापन्न (Substitutes) होते हैं।
  2. खेल के दौरान किसी भी खिलाड़ी को चोट लग जाने पर उसका स्थान अतिरिक्त खिलाड़ी ग्रहण कर लेता है।
  3. खिलाड़ी केवल नंगे पांव खेल सकता है।
  4. खिलाड़ी कड़ा, अंगूठी आदि पहनकर नहीं खेल सकता।
  5. कोई भी खिलाड़ी निरन्तर दो से अधिक बार आक्रमण नहीं कर सकता।
  6. ऐसा स्पर्श या आक्रमण मना है जिससे खिलाड़ी के जीवन को भय उत्पन्न हो।
  7. मैदान के बाहर से कोचिंग देना मना है।
  8. विपक्षी खिलाड़ी आक्रामक खिलाड़ी के मुंह पर हाथ रख कर कबड्डी बोलने से नहीं रोक सकता।
  9. कोई भी खिलाड़ी तेल मल कर नहीं खेल सकता।
  10. यदि कोई खिलाड़ी दम भरते समय मार्ग में सांस तोड़े तो रैफरी दुबारा दम भरने के लिए कहता है।

प्रश्न
पंजाब स्टाइल कबड्डी के खेल के मैदान, खेल की अवधि, टीमें, अधिकारी और खिलाडियों को पोशाक के विषय में लिखें।
उत्तर-
खेल का मैदान (Play Ground)-खेल का मैदान वृत्ताकार (Circular) होता है।
KABADDI GROUND PUNJAB STYLE OR CIRCLE KABADDI
पंजाब स्टाइल कबड्डी अथवा वृत्त कबड्डी (Punjab Style Kabaddi or Circle Kabaddi) Game Rules-PSEB 10th Class 1
वृत्त का अर्द्धव्यास 65′ से 75′ तक होता है। केन्द्रीय रेखा इसे दो बराबर भागों में बांटती है। केन्द्रीय रेखा के मध्य में 20 फुट का गेट होता है। गेट के दोनों सिरों पर मिट्टी की ढेरियां बनाई जाती हैं। इन्हें पाला कहते हैं। प्रत्येक पाले का व्यास 6 इंच होता है। इनकी धरती से ऊंचाई एक फुट तक होती है। मध्य रेखा के दोनों ओर 20 फुट लम्बी रेखा के साथ ही डी-क्षेत्र लगाया जाता है। यह पालों से साइडों की ओर 15 फुट दूर होता है। यह मध्य रेखा को जा स्पर्श करता है तथा पाले इसके मध्य में आ जाते हैं।

खेल की अवधि (Duration of Play)-खेल 20-20 मिनट की दो अवधियों में खेला जाता है। पहले 20 मिनट की खेल के पश्चात् 5 मिनट का अवकाश होता है। अवकाश के पश्चात् दोनों टीमें पक्ष बदल लेती हैं।

टीम (Teams)—प्रत्येक टीम में दस खिलाड़ी होते हैं । इनके अतिरिक्त दो खिलाड़ी रिज़र्व में होते हैं। मैंच के अन्त में एक टीम में 10 खिलाड़ियों की संख्या बनी रहनी चाहिए। यदि कोई टीम 10 खिलाड़ियों से कम खिलाड़ियों से खेल रही है तो विरोधी टीम में उतने ही खिलाड़ी कम किए जाएंगे जितनी कि दूसरे खिलाड़ियों की संख्या 10 से कम है। जो भी टीम कम खिलाड़ियों के साथ खेल रही है उसका कोई खिलाड़ी रैफरी को सूचित करके खेल में सम्मिलित हो सकता है। यदि किसी खिलाड़ी को खेल के दौरान चोट लग जाती है तो उसे रिज़र्व खिलाड़ी से बदल लिया जाता है।

निर्णय (Decision) मैच में जो टीम अधिक अंक प्राप्त करती है उसे विजयी घोषित कर दिया जाता है। मैच बराबर रहने की दशा में 5-5 मिनट का अतिरिक्त समय दिया जाता है।
अधिकारी (Officials) मैच के निम्नलिखित अधिकारी होते हैं—
अम्पायर (2), रैफरी (1), स्कोरर (1), टाइम-कीपर (1)
अपने-अपने अर्द्धकों में,दोनों अम्पायर निर्णय देने का काम करते हैं। किसी विवाद की स्थिति में रैफरी का निर्णय अन्तिम माना जाता है।

टॉस (Toss)—दोनों टीमों के कप्तान साइड के चुनाव के लिए या पहले खिलाड़ी भेजने के लिए टॉस करते हैं।
पोशाक (Dress)-खिलाड़ी जांघिए पहन सकते हैं। जांघिए का रंग टीम के अनुसार होता है। खिलाड़ी नंगे पांव या फिर पतले रबड़ के तलों वाले टैनिस शू पहनकर खेल सकते हैं। खिलाड़ी अंगूठी (Rings), कड़े आदि धारण नहीं कर सकते क्योंकि इनसे विरोधी खिलाड़ी को चोट पहुंचने की सम्भावना होती है।

प्रश्न
पंजाब स्टाइल कबड्डी के नियमों का वर्णन करो।
उत्तर-
खेल के साधारण नियम
(General Rules of Play)

  1. खिलाड़ी बारी-बारी से ‘कबड्डी’ शब्द का उच्चारण करते हुए विरोधी पक्ष की ओर जाएगा। ‘कबड्डी’ पालों से शुरू करनी चाहिए तथा सभी को सुनाई देनी चाहिए। रास्ते में सांस न टूटे और वापिस मुड़ते समय पालों तक सांस कायम रहना चाहिए।
  2. कोई भी खिलाड़ी दो बार कबड्डी डाल सकता है।
  3. ‘कबड्डी’ डालने वाला खिलाड़ी कम-से-कम आवश्यक सीमा को स्पर्श करे। यदि वह ऐसा नहीं करता तो अम्पायर उसे दोबारा कबड्डी डालने के लिए कह सकता है।
  4. प्रत्येक खिलाड़ी को कई बार कबड्डी डालनी चाहिए। ऐसा न हो कि खेल पर एक दो प्रमुख खिलाड़ी एकाधिकार जमा लें।
  5. जब कोई खिलाड़ी किसी विरोधी खिलाड़ी को स्पर्श करके वापस मुड़ रहा है तो उसका पीछा उस समय तक नहीं किया जा सकता जब तक वह अपने पक्ष की आवश्यक रेखा पार नहीं कर लेता।
  6. यदि कबड्डी डालने वाला खिलाड़ी किसी विरोधी खिलाड़ी को छू लेता है तथा फिर अपने कोर्ट में वापिस आ जाता है तो कबड्डी डालने वाली टीम को एक अंक मिल जाता है।
  7. कबड्डी डालने वाला तथा विरोधी पक्ष के खिलाड़ी छूने या पकड़ने के समय शेष सभी खिलाड़ी प्वाईंट का फैसला दिए जाने तक अस्थाई रूप में आऊट माने जाते हैं।
  8. अस्थाई रूप में खिलाड़ी दूर रहते हैं। रक्षक टीम के खिलाड़ी द्वारा किसी बाधा उत्पन्न करने की दशा में आक्रामक टीम को प्वाईंट मिल जाता है।
  9. आक्रमण के समय ‘छू’ या पकड़ हो जाए तथा यदि कबड्डी डालने वाला या विरोधी खिलाड़ी सीमा रेखा से बाहर चला जाए तो विरोधी टीम को 1 अंक मिलेगा। यदि दोनों खिलाड़ी बाहर निकल जाएं तो किसी को कोई प्वाइंट नहीं मिलेगा।
  10. कोई भी ऐसी पकड़ या आक्रमण अयोग्य है जिसमें खिलाड़ी के जीवन को खतरा है। ठोकर मारना, दांतों से काटना, जांघिये को पकड़ना वर्जित है।
  11. शरीर पर तेल या चिकनाहट वाली वस्तुओं का लेप करना मना है।
  12. मैदान के बाहर से कोचिंग वर्जित है, यदि चेतावनी देने के बाद कोचिंग जारी रहती है तो जिस टीम को कोचिंग दी जा रही हो उसका एक अंक काट दिया जाए।
  13. कोई भी रेडर 30 सैकिण्ड के अन्दर-अन्दर रेड डाल कर बिना किसी को हाथ लगाए वापिस आ सकता है । यदि तीस सैकिण्ड के समय में किसी विरोधी को हाथ नहीं लगता और वापिस अपने पाले में नहीं आता हो विरोधी टीम को एक अंक मिल जाता है।

PSEB 6th Class Home Science Practical सिलाई के सादा टाँके

Punjab State Board PSEB 6th Class Home Science Book Solutions Practical सिलाई के सादा टाँके Notes.

PSEB 6th Class Home Science Practical सिलाई के सादा टाँके

अति छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
सादे टाँके का प्रयोग कब किया जाता है ?
उत्तर-
सादे टाँके का प्रयोग आमतौर पर दो कपड़ों को आपस में जोड़ने के लिए किया जाता है।

प्रश्न 2.
सादे टाँके करने का क्या महत्त्व है ?
उत्तर-
सादे टाँके लगाने से स्थायी अन्तिम सिलाई सरलता से और उत्तम होती है।

प्रश्न 3.
बारबर के सादे टाँके किस काम में लाए जाते हैं ?
उत्तर-
एक लाइन में कोट आदि का किनारा जमाने तथा कई लाइन में फ्रॉक, झबले आदि में स्मोकिंग का आधार बनाने के लिए।

PSEB 6th Class Home Science Practical सिलाई के सादा टाँके

प्रश्न 4.
तिरछा सादा टाँका किस काम में लाया जाता है ?
उत्तर-
अस्तर आदि जोड़ने के।

प्रश्न 5.
‘बखिया’ किन कामों में प्रयोग किया जाता है ?
उत्तर-
फटे कपड़ों की मरम्मत में, आल्ट्रेशन के समय तथा जो हिस्से मशीन के पैर के नीचे नहीं दबाए जा सकते वहाँ।

छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
सिलाई का सादा टाँका क्या होता है ? इसे चित्र द्वारा समझायें।
उत्तर-
यह अस्थायी टाँका है। इस टाँके का उपयोग अधिकतर तह और अस्तर जमाने के लिए तथा ट्रायल के लिए सादी सिलाई के उद्देश्य से किया जाता है। सादे टाँके लगाने से स्थायी अन्तिम सिलाई सरलता से और उत्तम होती है। इसमें दूर-दूर सूई में थोड़ा कपड़ा लेकर शेष धागा छोड़ दिया जाता है। धागे को गाँठ देकर कपड़े को दाईं ओर से बाईं ओर सीया जाता है। यह टाँका 2 से० मी० से 1 से० मी० लम्बा हो सकता है।
PSEB 6th Class Home Science Practical सिलाई के सादा टाँके 1
चित्र 5.1.1. सादा टाँका (टैकिंग)

PSEB 6th Class Home Science Practical सिलाई के सादा टाँके

प्रश्न 2.
टाँके कितने प्रकार के होते हैं ?
उत्तर-
टाँके तो बहुत प्रकार के होते हैं, परन्तु बहुत ही आवश्यक तथा सामान्य प्रकार के टाँके निम्नलिखित हैं

  1. सादा टाँका,
  2. बखिया या बैक टाँका,
  3. तुरपन पर हैमिंग टाँका।

प्रश्न 3.
वस्त्र पर सादा टाँका न लगाने से क्या दुष्परिणाम हो सकते हैं ?
उत्तर-
वस्त्र पर सादा टाँका न लगाने से सिलाई टेढ़ी-मेढ़ी होती है तथा विशेषकर रेशमी कपड़ों में ढीलापन होता है जिससे सिलाई ठीक से नहीं होती है।

बड़े उत्तर वाले प्रश्

प्रश्न 1.
सादा टाँका कितने प्रकार का होता है ? इसका प्रयोग कहाँ-कहाँ किया जाता है ?
उत्तर-
सादा टाँका कई प्रकार का होता है-
1. बराबर का सादा टाँका (टाँका तथा जगह बराबर)
PSEB 6th Class Home Science Practical सिलाई के सादा टाँके 2
चित्र 5.1.2.
2. टाँका जगह से दुगना
PSEB 6th Class Home Science Practical सिलाई के सादा टाँके 3
चित्र 5.1.3.
3. जगह टाँके से दुगुनी
PSEB 6th Class Home Science Practical सिलाई के सादा टाँके 4
चित्र 5.1.4.
4. असमान सादा टाँका (छोटा बड़ा सादा)
5. छोटा सादा टाँका
PSEB 6th Class Home Science Practical सिलाई के सादा टाँके 5
चित्र 5.1.5.
चित्र 5.1.6.
6. तिरछा सादा टाँका
PSEB 6th Class Home Science Practical सिलाई के सादा टाँके 6
चित्र 5.1.7. सादा टाँका
सादे टाँकों का प्रयोग निम्नलिखित कार्यों के लिए किया जाता है-

  1. आमतौर पर दो कपड़ों को आपस में जोड़ने के लिए।
  2. तह और अस्तर जमाने के लिए तथा ट्रायल के लिए कच्ची सिलाई के रूप में।
  3. कोट आदि का किनारा जमाने के लिए।
  4. फ्रॉक, झबले आदि में स्मोकिंग का आधार बनाने के लिए।

PSEB 6th Class Home Science Practical सिलाई के सादा टाँके

प्रश्न 2.
बखिया व तुरपन किस प्रकार की जाती है ?
उत्तर-
बखिया (बैक स्टिच)-यह स्थायी टाँका है। यह बहुत महीन होता है, इसलिए इसमें काफ़ी समय लगता है। यह दो भागों को स्थायी रूप से जोड़ने में काम आता है, जैसे-कंधों की सिलाई, पेटीकोट या सलवार के अलग-अलग भागों को आपस में जोड़ने के लिए। यह टाँका दाहिनी ओर से आरम्भ होता है। इन टाँकों के बीच में जगह बिलकुल नहीं छोड़ी जाती। इसमें सूई पर एक बार में एक टाँका और टाँके बराबर होने चाहिएं। सूई जहाँ से निकाली गई हो वहीं से एक बार पीछे की ओर डोरा निकालकर आगे बढ़ना चाहिए। यह बखिया से ही शुरू होता है तथा बखिया से ही समाप्त होता है। यह टाँका मशीन के द्वारा भी लगाया जा सकता है।
PSEB 6th Class Home Science Practical सिलाई के सादा टाँके 7
चित्र 5.1.8. बखिया (बैक टाँका) बड़ा
PSEB 6th Class Home Science Practical सिलाई के सादा टाँके 8
चित्र 5.1.9. बखिया (बैक टाँका) छोटा
तुरपन (तुरपाई या हैमिंग स्टिच)-किसी भी वस्त्र के घेरे पर, मोहरी के निचले बॉर्डर मोड़ने के लिए तथा महिलाओं, बच्चों के वस्त्रों में पट्टियों आदि की सफ़ाई सुन्दरता के लिए इसका प्रयोग किया जाता है। इसका प्रयोग तब भी किया जाता है जब कपड़े के धागे निकलने वाले किनारे को बन्द करना हो। यह वस्त्र की उल्टी ओर से लगाया जाता है। इस टॉक में यह ध्यान रखना आवश्यक होता है कि दूसरी ओर अर्थात् वस्त्र की सीधी ओर भी टाँके सम दरी पर छोटे और सुन्दर हों। तुरपाई के टाँके तीन तरह से लिए जाते हैं-सीधे, कम तिरछे और अधिक तिरछे। अधिकतर सूती तथा रेशमी वस्त्रों में कम तिरछे टाँके ही चलते हैं। सीधे टाँके कोटिंग आदि में मजबूती के लिए लगाए जाते हैं। अधिक तिरछे टाँके सस्ते व्यावसायिक कामों में उपयोग किए जाते हैं। खूबसूरत तुरपाई के लिए सूई में बहुत कम कपड़ा लेना चाहिए ताकि टाँके पिछली ओर से भी बड़े दिखाई न दें।
PSEB 6th Class Home Science Practical सिलाई के सादा टाँके 9
चित्र 5.1.10. तुरपाई (हैमिंग टाँका)
तुरपाई को शुरू करने के लिए सूई को कपड़े में से इस प्रकार निकालते हैं कि थोड़ासा धागा पीछे बचा रहे। इसी धागे को मोड़कर अन्दर दबाकर दाईं ओर से बाईं ओर को तुरपाई करते हैं। मोड़े हुए हिस्से को सदा ऊपर की ओर रखते हैं। टाँके सादे की तरह सीधे न होकर आगे व पीछे दोनों ओर तिरछे, छोटे व बराबर होने चाहिएं। तुरपाई को बन्द करते समय अन्तिम टाँके को दोहराते हैं। इस प्रकार यह टाँका अंग्रेजी अक्षर V के समान बन जाता है। फिर सूई को 1 या 2 सेंटीमीटर ऊपर निकालकर धागे को कैंची से काट देते हैं।

PSEB 6th Class Home Science Practical सिलाई के सादा टाँके

सिलाई के सादा टाँके PSEB 6th Class Home Science Notes

  • वस्त्रों की सिलाई के लिए या उनका सौन्दर्य बढ़ाने के लिए टाँकों का इस्तेमाल करते हैं।
  • सिलाई कपड़े के दो टुकड़ों को जोड़ने के लिए या कपड़े के किनारों से धागों को बाहर निकलने से बचाने के लिए की जाती है।
  • कई टाँके सजावट के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं, जैसे-चेन स्टिच, दसूती आदि।
  • सादा टाँका तुरपन, बखिया आदि सभी टाँकों से आसान होता है।
  • बखिया टाँका सादे और तुरपन वाले टाँके से अधिक मजबूत होता है।
  • तुरपाई टाँका किनारों से धागों को बाहर निकलने से रोकने के लिए किया जाता है।
  • चेन या संगली टाँका सजावट या नमूने के किनारे बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है।

PSEB 7th Class Agriculture Solutions Chapter 9 अनाज की संभाल

Punjab State Board PSEB 7th Class Agriculture Book Solutions Chapter 9 अनाज की संभाल Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 7 Agriculture Chapter 9 अनाज की संभाल

PSEB 7th Class Agriculture Guide अनाज की संभाल Textbook Questions and Answers

(क) एक-दो शब्दों में उत्तर दें:

प्रश्न 1.
अनाज को लगने वाले दो कीड़ों के नाम बताएं।
उत्तर-
खपरा, सुसरी, दाने का छोटा बोरर।।

प्रश्न 2.
मूंग और चने को लगने वाले कीड़े का नाम बताएं।
उत्तर-
ढोरा।

प्रश्न 3.
गोदामों को शोधने के लिए प्रयोग में आने वाली एक दवाई का नाम बताएं।
उत्तर-
मैलाथियान, एल्यूमीनियम फॉस्फाइड।

PSEB 7th Class Agriculture Solutions Chapter 9 अनाज की संभाल

प्रश्न 4.
गोदाम बनाने के लिए ऋण-सुविधा देने वाले किसी एक संस्था का नाम लिखें।
उत्तर-
पंजाब वित्त कार्पोरेशन।

प्रश्न 5.
कौन-सी संस्था को गोदाम किराये पर दिया जा सकता है ?
उत्तर-
भारतीय फूड कार्पोरेशन ऑफ इण्डिया, मार्कफैड आदि।

(ख) एक-दो वाक्यों में उत्तर दें:

प्रश्न 1.
सुसरी चावल को किस प्रकार नुकसान पहुंचाती है ?
उत्तर-
यह दाने के अन्दर अण्डे देती है तथा दाने को अन्दर से खा जाती है।

PSEB 7th Class Agriculture Solutions Chapter 9 अनाज की संभाल

प्रश्न 2.
स्टोर में जीर्ण-शीर्ण दाने स्टोर क्यों नहीं करने चाहिए ?
उत्तर-
स्टोरों में टूट-फूट वाले दाने स्टोर नहीं करने चाहिएं क्योंकि ऐसे दाने स्टोर करने से कीड़ों की आमद उस समय अधिक हो जाती है।

प्रश्न 3.
स्टोर करने वाले कमरे में बोरियां दीवारों से क्यों दूर रखनी चाहिए ?
उत्तर-
ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि दीवारों से नमी बोरियों को खराब न करे।

प्रश्न 4.
सैलोज़ से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
इनमें दाने स्टोर किये जाते हैं। यह लोहे तथा कंक्रीट के बने होते हैं।

PSEB 7th Class Agriculture Solutions Chapter 9 अनाज की संभाल

प्रश्न 5.
गोदामों या ढोलों को कीड़ों से कैसे मुक्त किया जा सकता है ?
उत्तर-
इसके लिये 100 मि.ली. साइथियन (मैलाथियान प्रीमियम ग्रेड) 50 शक्ति को 10 लिटर पानी में घोलकर छत तथा फर्श पर छिड़काव करना चाहिए।

प्रश्न 6.
स्टोर किए जाने वाले दानों को कैसे बचाया जा सकता है ?
उत्तर-
अनाज स्टोर करने के लिये केवल नई बोरियों का प्रयोग करो तथा पुरानी बोरियों को सुमीसाइडीन अथवा सिंबुश से सुधार लें। स्टोर अथवा ढोल को एल्यूमीनियम फॉस्फाइड की धूनी दें।

प्रश्न 7.
पुरानी बोरियों में अनाज़ स्टोर करने से पहले कैसे शोधा जाता है ?
उत्तर-
पुरानी बोरियों को 6 मि०ली. सुमीसाइडीन 20 ई०सी० को 5 मि०ली० सिंबुश 25 ई०सी० को 10 लिटर पानी में घोलकर बोरियों को इस घोल में 10 मिनट के लिये भिगोकर रखो। बोरियों को छांव में सुखाकर उनमें दाने भर दो।

PSEB 7th Class Agriculture Solutions Chapter 9 अनाज की संभाल

प्रश्न 8.
टोपी गोदाम के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर-
यह खुले मैदान में दाने स्टोर करने की विधि है। इसका आकार 9.5 × 6.1 मीटर होता है। इस गोदाम में 96 बोरियां 6-6 लाइनों में लकड़ी के डण्डों पर रखी जाती हैं। इस गोदाम पर 7 गुणा खर्च कम होता है।

(ग) पाँच-छ: वाक्यों में उत्तर दें:

प्रश्न 1.
अनाज भण्डारण में हानिकारक कीड़ों की रोकथाम क्यों ज़रूरी है ?
उत्तर-
अनाज भण्डार किसी देश की खुशहाली का प्रतीक होते हैं। अनाज का सही मण्डीकरण तथा रख-रखाव किसी भी देश की प्रगति का प्रतीक है। अनाज को कई तरह के कीड़े तथा जानवर नुकसान पहुंचाते हैं। भण्डार किए दानों को लगभग 20 किम के कीड़े लग सकते हैं। जैसे सुसरी, दाने का छोटा बोरर तथा चावलों की सुण्डी, पतंगा, ढोरा, खपरा आदि। कीड़ों के आक्रमण से दानों की वृद्धि की शक्ति समाप्त हो जाती है। दानों का भार भी घट जाता है तथा अनाज के खाद्य तत्त्व भी कम हो जाते हैं। इसके स्वाद में भी फर्क पड़ जाता है।

कीड़े साधारणतः स्टोर के फर्शों, दीवारों तथा छतों आदि की दरारों से आते हैं। इस तरह अनाज का बहुत नुकसान होता है तथा इसे कई ढंगों का प्रयोग करने और सम्भालने की जरूरत पड़ती है।

प्रश्न 2.
अनाज भण्डारण के लिए कोठी बनाने के समय कौन-कौन सी बातों का ध्यान रखना चाहिए ?
उत्तर-

  1. कोठरी कमरे से अलग तथा पक्की होनी चाहिए।
  2. ऐसी कोठरी भूमि की सतह से 30-40 से० मी० ऊंची रखो ताकि कोठरी में नमी न जा सके।
  3. कोठरी को नमी रहित करने के लिए पॉलीथीन की शीट लगा दो।
  4. कोठरी में दाने डालने के लिये एक छिद्र ऊपर तथा दाने निकालने के लिये एक छिद्र नीचे होना चाहिए। जब प्रयोग न किया जाये तो हवा छिद्र बन्द होने आवश्यक हैं।
  5. कोठरी में सूखे तथा साफ़ दाने ही स्टोर करने चाहिएं।
  6. दाने स्टोर करने वाली कोठरी की दीवार कमरे की दीवार से 45-60 सें० मी० दूर होनी चाहिए।

PSEB 7th Class Agriculture Solutions Chapter 9 अनाज की संभाल

प्रश्न 3.
कौन-कौन से कीड़े अनाज को लगते हैं ? सूची बनाओ।
उत्तर-
पतंगा, वीवल, मक्खियां, ढोरा, सुसरी, खपरा, दाने का छोटा बोरर, चावलों की भुण्डी, दानों का गडूयां। पतंगा साधारणतः मक्की, ज्वार, गेहूँ, जवी, जौ आदि को नुकसान पहुंचाता है। सुसरी, खपरा, दाने का छोटा बोरर तथा चावलों की भुण्डी साधारणतः धान, गेहूँ, मक्की, जौ आदि को लगते हैं। ढोरा मोटे तौर पर मूंगी, चना तथा अन्य दालों को हानि पहुंचाता है।

प्रश्न 4.
कीड़े लगने से अनाज को कैसे बचाया जा सकता है ? विस्तार से लिखो।
उत्तर-

  1. नये दाने साफ़-सुथरे गोदामों अथवा ढोलों में रखने चाहिएं।
  2. गोदामों की सभी दरारें, दरजें, छिद्र आदि अच्छी तरह बन्द करके रखने चाहिएं।
  3. नाज को स्टोर करने के लिये सिर्फ नई बोरियों का ही प्रयोग करना चाहिए। अगर पुरानी बोरियों का प्रयोग करना हो तो उन्हें पहले सुधार लेना चाहिए। इसके लिए सुमीसाइडीन अथवा सिंबुश का प्रयोग करो। बोरियों को छांव में सुखाओ तथा फिर दाने भरो।
  4. गोदामों अथवा ढोलों को कीड़ों से मुक्त करने के लिये निम्नलिखित किसी एक ढंग का प्रयोग करो
    • 100 मि० ली० मैलाथियान 50 ग्राम ताकत को 10 लिटर पानी में घोल कर छत तथा फर्श पर छिड़काव कर देना चाहिए।
    • गोदामों में एल्यूमीनियम फॉस्फाइड की 25 गोलियां प्रति घन मीटर के हिसाब से रखें तथा 7 दिन तक हवा बंद रखें।

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प्रश्न 5.
व्यापारिक स्तर पर अन्न भण्डार करने के लिए बनाए जाने वाले भिन्नभिन्न गोदामों का विवरण दें।
उत्तर-
1. रिवायती चौड़े गोदाम-इन गोदामों में दानों से भरी बोरियां रखी जाती हैं। इनमें 1-2 वर्ष तक अनाज स्टोर किया जा सकता है। स्टोर किये दानों में नमी की मात्रा 14-15% से अधिक नहीं होनी चाहिए। इन गोदामों की पलिंथ ऊंची, फर्श नमी रहित होनी चाहिए। इनके अन्दर चूहे तथा पक्षी न जा सकते हों। यह रोशनीदार होने चाहिएं तथा सड़क तथा रेल की पहुंच में होने चाहिएं। बोरियों की धाकें लकड़ी के फ्रेम पर लगाई जाती हैं तथा प्लास्टिक से ढक दी जाती हैं।

2. सैलोज़ गोदाम-इनमें दालों तथा मिलर चावलों के अतिरिक्त सभी तरह के दाने 5 वर्ष तक स्टोर किये जा सकते हैं। इन स्टोर किये दानों में नमी की मात्रा 20% तक हो सकती है। यह कम स्थान घेरते हैं तथा इनमें रखे दानों का नुकसान भी बहुत कम होता है। यह सैलोज़ सिलिण्डर की शक्ल के होते हैं तथा नीचे से हापर टाइप के होते हैं। यह लोहे तथा कंकरीट के बने होते हैं। दाने रखने तथा निकालने के लिए लम्बी बैल्टे अथवा अन्य कैनवेयर लगे होते हैं। भारत में मिलने वाले सैलोज़ सिलिण्डर की ऊँचाई 30 से 50 मीटर तथा घेरा 6 से 10 मीटर तक होता है। इन्हें हवादार बनाने के लिये सैंट्रीफ्यूगल पम्पों का प्रयोग किया जाता है।

3. टोपी गोदाम-खुले मैदानों में दाने रखने के लिये इस तरीके का प्रयोग किया जाता है। इसका क्षेत्र 9.5 × 6.1 मीटर होता है। इसमें 96 बोरियां 6-6 लाइनों में लकड़ी के डण्डों पर रखी जा सकती हैं। प्रत्येक बोरी मोटी प्लास्टिक की चादर से ढंकी होती है। जब बाहरी तापमान तथा नमी कम हो तो प्लास्टिक की चादर उतारकर इन बोरियों को हवा दी जाती है।

Agriculture Guide for Class 7 PSEB अनाज की संभाल Important Questions and Answers

बहुत छोटे उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
स्टोर की जाने वाली मूंगफली में अधिक-से-अधिक कितने प्रतिशत नमी होनी चाहिए ?
उत्तर-
10%.

प्रश्न 2.
चौड़े गोदामों में कितने समय के लिए अनाज स्टोर किया जा सकता है ?
उत्तर-
1-2 वर्ष तक।

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प्रश्न 3.
कीड़े लगे दानों का इलाज करने के लिए प्रयुक्त की जाने वाली किसी एक दवाई का नाम बताओ।
उत्तर-
फोस्टोक्सीन अथवा सैलफास।

प्रश्न 4.
दस क्विटल अनाज की सुरक्षा के लिए एल्यूमीनियम फॉस्फाइट की कितनी गोलियों की आवश्यकता होती है ?
उत्तर-
एल्यूमीनियम फॉस्फाइड की 2 गोलियां 10 क्विटल दानों में काफ़ी हैं।

प्रश्न 5.
टोपी गोदाम का आकार क्या है ?
उत्तर-
9.5 × 6.1 मीटर।

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प्रश्न 6.
स्टोर में कीड़े कहां से आ जाते हैं ?
उत्तर-
स्टोर की दीवारों, फर्श तथा छतों आदि की दरारों से।

प्रश्न 7.
भण्डार किए दानों पर कितनी किस्म के कीड़े हमला करते हैं ?
उत्तर-
20 किस्म के।

प्रश्न 8.
दानों का पतंगा कौन-से अनाज को नुकसान पहुंचाता है ?
उत्तर-
गेहूँ, मक्की, ज्वार, जवी, जौ आदि।,

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प्रश्न 9.
खपरा, सुसरी, दाने का छोटा बोरर तथा चावलों की मक्खी कौन-से । अनाज को नुकसान करते हैं ?
उत्तर-
गेहूँ, चावल, जौ, मक्की आदि को।

प्रश्न 10.
हानिकारक कीड़ों के नाम बताओ।
उत्तर-
वीवल, मक्खियां, ढोरा, पतंगा।

प्रश्न 11.
कौन-सा पतंगा खेतों में बल्लियों पर अण्डे देता है ?
उत्तर-
एगुमस दाने का पतंगा।

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प्रश्न 12.
पतंगे के नुकसान की पहचान कैसे की जाती है ?
उत्तर-
दानों में पड़े जाले से इसके नुकसान की पहचान हो जाती है। जाले में 5-6 दाने इकट्ठे फंसे होते हैं।

प्रश्न 13.
दाने के अन्दर अण्डे कौन-सा कीड़ा देता है ?
उत्तर-
वीवल।

प्रश्न 14.
दाने की मक्खी तथा जवान कीड़ा दाने का कौन-सा हिस्सा खाती
उत्तर-
दाने का भ्रूण।

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प्रश्न 15.
दानों में कौन-सी मक्खियां गर्मी पैदा करती हैं ?
उत्तर-
तीखे दांतों वाली दाने की मक्खी, आटे की चपटी मक्खी, आटे की लाल मक्खी आदि।

प्रश्न 16.
स्टोर की गेहूँ को कौन-सी मक्खी नुकसान पहुंचाती है ?
उत्तर-
दांतों की मक्खी।

प्रश्न 17.
स्टोर किये आटे में कौन-सी भण्डी पड़ जाती है ?
उत्तर-
आटे की लाल भुण्डी।

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प्रश्न 18.
स्टोरों में नुकसान करने वाली सबसे महत्त्वपूर्ण भुण्डी कौन-सी है ?
उत्तर-
खपरा भुण्डी।

प्रश्न 19.
भुण्डियां स्टोर में कहां रहती हैं ?
उत्तर-
यह स्टोर की चीथों में रहती हैं।

प्रश्न 20.
दालों को हानि पहुंचाने वाले कीड़े का नाम बताओ।
उत्तर-
ढोरा।

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प्रश्न 21.
ढोरे के आक्रमण की पहचान कैसे होती है ?
उत्तर-
स्टोर की गई दालों पर सफ़ेद धब्बे पड़ जाते हैं जो इसके अण्डे होते हैं।

प्रश्न 22.
कौन-से तापमान पर कीड़े अण्डे देना बन्द कर देते हैं तथा मर जाते
उत्तर-
दानों का तापमान 65°F से घट जाने पर कीड़े अण्डे देना बन्द कर देते हैं तथा 30°F तक तापमान घट जाने पर कीड़े मर जाते हैं।

प्रश्न 23.
दाने स्टोर करने वाली कोठरी की दीवार कमरे की दीवार से कितनी दूर होनी चाहिए ?
उत्तर-
45-60 सें० मी०।

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प्रश्न 24.
दाने स्टोर करने वाले कमरे का फर्श ज़मीन से कितना ऊँचा होना चाहिए ?
उत्तर-
75 सें. मी०।

प्रश्न 25.
बोरियां दीवारों से कितनी दूर रखनी चाहिएं ?
उत्तर-
1.5 से 2 फुट।

प्रश्न 26.
बांस के बर्तनों का प्रयोग किन इलाकों में होता है ?
उत्तर-
कण्डी तथा नीम पहाडी इलाकों में।

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प्रश्न 27.
पंजाब में स्टोरों की दाने स्टोर करने की क्षमता कितनी है ?
उत्तर-
149 लाख मीट्रिक टन।

प्रश्न 28.
स्टोर भण्डार कितनी प्रकार के होते हैं ?
उत्तर-
3 प्रकार के।

प्रश्न 29.
विभिन्न गोदामों के नाम बताओ।
उत्तर-
रिवायती चौड़े गोदाम, सैलोज़ गोदाम, टोपी गोदाम।

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प्रश्न 30.
सैलोज़ गोदाम में दाने कितने समय के लिये स्टोर किये जा सकते हैं ?
उत्तर-
5 वर्ष तक।

प्रश्न 31.
भारत में मिलने वाले सैलोज़ सिलिण्डर की ऊँचाई तथा घेरा कितना होता है ?
उत्तर-
ऊँचाई 30-50 मीटर तथा घेरा 6-10 मीटर होता है।

प्रश्न 32.
टोपी गोदाम में कितनी बोरियां रखी जा सकती हैं ?
उत्तर-
96 बोरियां।

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छोटे उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
कीड़ों के आक्रमण से दानों को क्या हानि होती है ?
उत्तर-
कीड़ों के आक्रमण से दानों की बढ़ने की शक्ति घट जाती है। दानों का भार घट जाता है। अनाज के खाद्य तत्त्व घट जाते हैं, यह हमारे खाने लायक नहीं रहता तथा इनके स्वाद में भी फर्क पड़ जाता है।

प्रश्न 2.
वीवल के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर-
वीवल एक सुण्डी है। यह दानों के अन्दर अण्डे देती है तथा दानों को अन्दर से खा जाती है। बाद में यह टूटी में बदल जाती है, जोकि दाने के बीच में ही होती है। बाद में टूटियों से वीवलें बाहर आ जाती हैं।

पतंगों से अलग यह कीड़ा सुंडी तथा जवान कीड़े की अवस्था में फसल को काफ़ी नुकसान पहुंचाता है। यह सुण्डी खेतों में गेहूँ पर हमला नहीं करती, पर कभी-कभी मक्की की फसल पर ज़रूर हमला करती है। इसी तरह ग्रेलरी वीवल तथा लैसर चावल वीवल से भी दानों को काफी नुकसान होता है।

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प्रश्न 3.
चावलों, मूंगफली, सूरजमुखी तथा तोरिये में कितनी नमी होनी चाहिए ?
उत्तर-
चावलों में 12-13%, मूंगफली में 10%, सूरजमुखी तथा तोरिये में 9-10% से अधिक नमी नहीं होनी चाहिए।

प्रश्न 4.
गोदाम बना कर कौन-कौन सी संस्थाओं को किराये पर दिया जा सकता
उत्तर-
गोदाम बनाकर लम्बे समय के लिये मार्कफैड, पंजाब तथा सैंट्रल वेयर हाऊसिंग कार्पोरेशन फूड कार्पोरेशन आदि संस्थाओं को किराये पर दिये जा सकते हैं।

बड़े उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
कुछ हानिकारक कीड़ों के बारे में जानकारी दो।
उत्तर-
कीड़ों में साधारणत: पतंगे, वीवल, कीट तथा ढोरा आदि कीड़े फसलों का काफ़ी नुकसान करते हैं।—
1. पतंगे-एगुमस दाने का पतंगा खेतों में ही बल्लियों पर अण्डे देता है। जब दाने निकाल कर स्टोर किये जाते हैं तो स्टोर में इनकी वृद्धि होने लगती है। पतंगे की सुण्डियां दाने को अन्दर से खाकर खोखला कर देती हैं । खाये हुए दाने में साधारणतः छिद्र नज़र आने लगता है। स्टोरों में इन्हें साधारणतः उड़ते देखा जा सकता है।

2. भारतीय भोजन पतंगा-यह भी खेतों से ही आता है। यह सुण्डियां दाने के भ्रूण को अन्दर से खा जाती हैं। इस कीड़े के अण्डे, सुण्डी, टूटी तथा पतंगा सभी दानों से हमेशा बाहर मिलते हैं। इसके नुकसान की पहचान दानों में पड़े जाले से होती है। जाले में 56 दाने इकट्ठे फंसे हुये देखे जा सकते हैं।

3. भुण्डियां-दाने की भुण्डियां तथा सूड़े की भुण्डियां स्टोर किये दानों का नुकसान करती हैं। दाने की मक्खी की सुण्डी तथा जवान कीड़ा साधारणत: दाने का भ्रूण खा जाते हैं। तीखे दांतों वाली दाने की मक्खी, आटे की चपटी मक्खी, आटे की लाल मक्खी आदि दानों में गर्मी पैदा करती हैं तथा अपने मल त्याग से दानों को खराब कर देती हैं। स्टोर की गेहूँ पर दांतों की मक्खी, जबकि स्टोर किये आटे में आटे की लाल मक्खी पड़ जाती है। इसके अतिरिक्त खपरा स्टोरों में काफ़ी नुकसान करती हैं। सुण्डियों पर पीले बाल काफ़ी होते हैं तथा वह साधारणत: स्टोरों की चीथों में रहती हैं।

4. ढोरा-यह स्टोर की हुई दालों को हानि पहुंचाने वाला कीड़ा है। इसके आक्रमण की पहचान स्टोर की दालों पर सफ़ेद धब्बे से होती है, जोकि वास्तव में इनके अण्डे होते हैं। मुंगी तथा चने का ढोरा महत्त्वपूर्ण है।

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प्रश्न 2.
घरेलू अनाज भण्डार की तीन विधियां बताएं।
उत्तर-
1. ढोल-घरों में अनाज भण्डारण के लिए इनका प्रयोग किया जाता है। यह विभिन्न क्षमता वाले तथा विभिन्न धातुओं के बने हो सकते हैं। यह ढोल हवा रहित होते हैं तथा इस प्रकार बनाये जाते हैं कि इनमें अनाज को हानि पहुंचाने वाले कीड़े, चूहे आदि नहीं जा सकते। जो कीट अनाज के अन्दर रह जाते हैं उन्हें फलने-फूलने के लिये उचित वातावरण नहीं मिलता।
लाभ-

  • इनकी कीमत कम होती है।।
  • इन्हें एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाना आसान है।
  • इनकी बनावट सादी होती है।
    ध्यान रखने योग्य बातें-ढोलों में दाने सम्भालने से पहले इन्हें अन्दर से अच्छी तरह साफ कर लेना चाहिए ताकि इनमें पहले स्टोर किये अनाज के अवशेष न रहें। ढक्कन अच्छी तरह कस कर बन्द करना चाहिए। दाने अच्छी तरह साफ़ किये होने चाहिएं तथा
    टूटे-फूटे दाने अलग कर देने चाहिएं। नए दानों को पुराने दानों में नहीं मिलाना चाहिए। हो सकता है कि उन्हें कीड़े लगे हों। लगे हुए अथवा नम दाने स्टोर नहीं करने चाहिएं। दाने अच्छी तरह धूप में सुखाकर तथा ठण्डे करके ढोलों में डालने चाहिए।

2. दाने स्टोर करने वाला कमरा-किसान दाने स्टोर करने के लिये कमरे बना लेते हैं। स्टोर किये यह दाने मण्डी में कीमत बढ़ने पर बेचे जाते हैं। दाने स्टोर करने वाले कमरे का फर्श ज़मीन से 75 सें० मी० ऊंचा होना चाहिए। कमरे के चारों ओर बरामदा होना चाहिए। कमरे में एक दरवाजा और कम-से-कम दो रोशनदान होने चाहिएं। दीवारें आदि साफ तथा सफ़ेदी की हुई होनी चाहिए। कमरा बनाने के पश्चात् जब यह अच्छी तरह सूख जायें तो ही इनमें बोरियां रखो। बोरियों के दीवारों से दूरी 1.5-2.0 फुट होनी चाहिए।

3. बांस के बने स्टोर-कण्डी तथा नमी पहाड़ी इलाकों में किसान बांस के बने बड़े बर्तनों में दाने स्टोर करते हैं।

प्रश्न 3.
यदि अनाज को कीड़ा लग जाये तो उसकी सुरक्षा के लिए क्या काना चाहिए ?
उत्तर-
1. कीड़ों से बचाने के लिये-अगर दानों को खपरा लग जाए तो उन्हें गोदामों में एल्यूमीनियम फॉस्फाइड की दो गोलियां प्रति 10 क्विटल के हिसाब से धूनी देनी चाहिए। दाने सुखा कर रखने चाहिएं। टिन के बर्तन साफ़ होने चाहिएं तथा इन्हें 2-3 दिन धूप लगवा लेनी चाहिए। नए दानों को पुराने दानों में नहीं मिलाना चाहिए।

2. कीड़े लगे दानों का इलाज-निम्नलिखित दवाइयों में से किसी एक से हवाबन्द कमरे में धूनी दें

i) डैल्शिया अथवा फोस्टोक्सिन अथवा सैल्फास (एल्यूमीनियम फॉस्फाइड) की 3 ग्राम की एक गोली को एक टिन दानों के लिए अथवा 25 गोलियों को 100 घन मीटर स्थान के लिए प्रयोग किया जा सकता है। कमरे में धूनी देने के पश्चात् कमरे को 7 दिन तक हवाबन्द रखो।

ii) ई० डी० सी० टी० मिश्रण (क्लिोपटोरा) एक लिटर को 20 क्विटल दानों अथवा 35 लिटर को 100 घन मीटर स्थान के लिए प्रयोग करना चाहिए। इसके प्रयोग के पश्चात् गोदाम को 4 दिन हवा बन्द रखना चाहिए।

iii) ई० डी० बी० (एथलीन डाइब्रोमाइंड) 3 मि० ली० प्रति क्विटल दानों के हिसाब से प्रयोग करनी चाहिए तथा दानों को 4 दिन हवाबन्द रखना चाहिए।

सिफ़ारिश की गई दवाई का प्रयोग न किया जाये तो टिन के बर्तनों में भी दानों को कीड़े लग सकते हैं। इन कीड़ों से बचाव धूनी देने वाली दवाइयों से किया जा सकता है। धूनी देने वाले पदार्थों का प्रयोग केवल हवाबन्द गोदामों में ही करना चाहिए।

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अनाज की संभाल PSEB 7th Class Agriculture Notes

  • एक अनुमान के अनुसार फसल की कटाई से लेकर दानों की खपत तक लगभग 10% नुकसान हो जाता है। इसका कारण कीट, चूहे तथा पक्षी होते हैं।
  • अनाज खराब होने से इसके पौष्टिक तत्त्व कम हो जाते हैं तथा स्वाद में अन्तर आ जाता है।
  • कीड़ों के आक्रमण से दानों की उगने की शक्ति कम हो जाती है।
  • कीड़े साधारणतः स्टोर की दीवारों, फर्श तथा छतों आदि की दरारों में से आ जाते
  • कीड़े लगे पुराने अनाज के पास नया अनाज रखने से उसे भी कीड़े लग जाते हैं।
  • भण्डार किये अनाज पर 20 किस्म के कीड़े हमला करते हैं जैसे-सुसरी, खपरा, दाने का छोटा बोरर, चावलों की भण्डी, दानों का पतंगा, ढोरा आदि।
  • एगुमस दाने का पतंगा खेतों में ही बल्लियों पर अण्डे देता है।
  • वीवल सुण्डी दाने को अन्दर से खा जाती है।
  • मक्खियां दाने का भ्रूण खाती हैं तथा दानों में गर्मी पैदा करती हैं।
  • खपरा भुण्डी सबसे अधिक नुक्सान करता है।
  • ढोरा स्टोर की दालों को नुक्सान पहुंचाता है।
  • दालों पर सफ़ेद धब्बे ढोरे के अण्डे होते हैं।
  • दाने स्टोर करने से पहले अच्छी तरह सुखा लेने चाहिएं।
  • दानों के तापमान 65°F पर कीड़े अण्डे देना बन्द कर देते हैं तथा 35°F पर कीड़े मर जाते हैं।
  • चावल में 12-13%, मूंगफली में 10%, सूर्यमुखी तथा तोरिया में 9-10% से अधिक नमी नहीं होनी चाहिए।
  • किसान दाने स्टोर करने के लिये पक्की कोठरी भी बनाते हैं।
  • व्यापारिक अन्न भण्डार के लिये रिवायती चौड़े गोदाम, ब्लॉक गोदाम, टोपी गोदाम आदि बनाये जाते हैं।
  • दानों को कीड़ों से बचाने के लिये सुमीसाइडीन, सिम्बुश, साइथियॉन, एल्यूमीनियम फॉस्फाइड आदि दवाइयों का प्रयोग किया जाता है।

PSEB 7th Class Home Science Solutions Chapter 8 बनावटी ढंग से बनाए गए कपड़ों की देखभाल

Punjab State Board PSEB 7th Class Home Science Book Solutions Chapter 8 बनावटी ढंग से बनाए गए कपड़ों की देखभाल Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 7 Home Science Chapter 8 बनावटी ढंग से बनाए गए कपड़ों की देखभाल

PSEB 7th Class Home Science Guide बनावटी ढंग से बनाए गए कपड़ों की देखभाल Textbook Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
रेयॉन किस प्रकार का रेशा है?
उत्तर-
सेल्यूलोज से उत्पादित कृत्रिम रेशा।

प्रश्न 2.
रेयॉन के वस्त्रों पर तेज़ाब का क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर-
शक्तिशाली तेज़ाब तथा क्षार दोनों से ही रेयॉन के वस्त्रों को हानि होती है।

प्रश्न 3.
नायलॉन किस प्रकार का तन्तु है?
उत्तर-
तन्तुविहीन रसायनों से प्राप्त किए जाने वाला।

PSEB 7th Class Home Science Solutions Chapter 8 बनावटी ढंग से बनाए गए कपड़ों की देखभाल

लघूत्तर प्रश्न

प्रश्न 1.
गर्मी का नाइलॉन और करेप पर क्या असर होता है?
उत्तर-
गर्मी का नाइलॉन और करेप पर बड़ी जल्दी असर होता है। ये नरम हो जाते हैं। इसके इसी गुण के कारण नाइलॉन की जुराबों की शक्ल दी जा सकती है। लेकिन ज्यादा गर्मी से यह ख़राब हो जाती है। यह पानी नहीं सोखती। इसलिए गर्मियों में अगर इनको पहना जाए तो बेचैनी होती है।

प्रश्न 2.
नाइलॉन के कपड़ों को किस तरह धोना चाहिए?
उत्तर-
अगर नाइलॉन के कपड़े अधिक मैले हों तो 10-15 मिनट के लिए गुनगुने पानी में भिगो देना चाहिए। गुनगुने पानी में साबुन की झाग बनाकर कपड़ों की धोना चाहिए। ज़्यादा मैले हिस्सों को हाथ से मलकर धोना चहिए।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
थर्मोप्लास्टिक और नान थर्मोप्लास्टिक रेशों में क्या अन्तर है?
उत्तर-
थर्मोप्लास्टिक और नान थर्मोप्लास्टिक में अन्तर —

थर्मोप्लास्टिक नान थर्मोप्लास्टिक
(i) ये ज़्यादा गर्मी से सड़ जाते हैं। (i) ये ज़्यादा गर्मी से सड़ते तो नहीं पर खराब हो जाते हैं।
(ii) ये पानी नहीं चूसते, इसलिए सिकुड़ते नहीं और जल्दी सूख जाते (ii) ये देखने में सिल्क की तरह लगते हैं।
(iii) ये आसानी से धोए जा सकते हैं और प्रैस करने की भी अधिक ज़रूरत नहीं पड़ती। (iii) ये पानी में कमजोर हो जाते हैं। इसलिए धोने के समय मलने पर फटने का डर रहता है।

PSEB 7th Class Home Science Solutions Chapter 8 बनावटी ढंग से बनाए गए कपड़ों की देखभाल

प्रश्न 2.
रेयॉन के कपड़े धोने के लिए कौन-कौन सी सावधानियां बरतनी चाहिएं?
उत्तर-
रेयॉन के कपड़े धोने के लिए निम्नलिखित सावधानियां बरतनी चाहिएं —

  1. रेयॉन के वस्त्रों को भिगोना, उबालना या ब्लीच नहीं करना चाहिए।
  2. साबुन मुदु प्रकृति का प्रयोग करना चाहिए।
  3. गुनगुना पानी ही प्रयोग में लाना चाहिए, अधिक गर्म नहीं।
  4. साबुन का अधिक-से-अधिक झाग बनाना चाहिए जिससे साबुन पूरी तरह घुल जाए।
  5. गीली अवस्था में रेयॉन के कपड़े अपनी शक्ति 50% तक खो देते हैं, अतः वस्त्रों में से साबुन की झाग निकालने के लिए उन्हें सावधानीपूर्वक निचोड़ना चाहिए।
  6. साबुन की झाग निचोड़ने के बाद वस्त्र को दो बार गुनगुने पानी में से खंगालना , चाहिए।
  7. वस्त्रों में से पानी को भी कोमलता से निचोड़कर निकालना चाहिए। वस्त्र को मरोड़कर नहीं निचोड़ना चाहिए।
  8. वस्त्र को किसी भारी तौलिए में रखकर, लपेटकर हल्के-हल्के दबाकर नमी को सुखाना चाहिए।
  9. वस्त्र को धूप में नहीं सुखाना चाहिए।
  10. वस्त्र को लटकाकर नहीं सुखाना चाहिए।
  11. वस्त्र को हल्की नमी की अवस्था में वस्त्र की उल्टी तरफ इस्तिरी करना चाहिए।
  12. वस्त्रों को अलमारी में रखने अर्थात् तह करके रखने से पूर्व यह देख लेना चाहिए कि उनमें से नमी पूरी तरह से दूर हो चुकी है या नहीं।

प्रश्न 3.
तेज़ाब, क्षार, रंगकाट और अल्कोहल का रेयॉन और नाइलॉन पर क्या असर होता है ?
उत्तर-
साबुन, क्षार, अल्कोहल का इस पर कोई असर नहीं होता लेकिन तेज़ाब से यह खराब हो जाता है, रंगकाट का भी इस पर कोई असर नहीं होता। इसलिए रंग खराब हुए नाइलॉन के कपड़ों को सफ़ेद करने के लिए रंगकाट का प्रयोग नहीं किया जाता है। इस पर आसानी से पक्के रंग किए जा सकते हैं।

PSEB 7th Class Home Science Solutions Chapter 8 बनावटी ढंग से बनाए गए कपड़ों की देखभाल

Home Science Guide for Class 7 PSEB बनावटी ढंग से बनाए गए कपड़ों की देखभाल Important Questions and Answers

अति छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
रेयॉन के वस्त्रों की धुलाई कठिन क्यों होती है?
उत्तर-
क्योंकि रेयॉन के वस्त्र पानी के सम्पर्क से निर्बल पड़ जाते हैं।

प्रश्न 2.
रेयॉन के वस्त्रों के लिए किस प्रकार की धुलाई अच्छी रहती है?
उत्तर-
शुष्क धुलाई (ड्राइक्लीनिंग)।

प्रश्न 3.
रेयॉन के वस्त्रों को धोते समय क्या बातें वर्जित हैं?
उत्तर-
वस्त्र को पानी में फुलाना, ताप, शक्तिशाली रसायनों तथा अल्कोहल का प्रयोग।

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प्रश्न 4.
रेयॉन के वस्त्रों की धुलाई के लिए कौन-स विधि उपयुक्त होती है?
उत्तर-
गूंधने और निपीडन की विधि।

प्रश्न 5.
रेयॉन के वस्त्रों को कहाँ सुखाना चाहिए?
उत्तर-
छायादार स्थान पर तथा बिना लटकाये हुए चौरस स्थान पर।

प्रश्न 6.
रेयॉन के वस्त्रों पर इस्तिरी किस प्रकार करनी चाहिए?
उत्तर-
कम गर्म इस्तिरी वस्त्र के उल्टी तरफ से करनी चाहिए। इस्तिरी करते समय वस्त्र में हल्की सी नमी होनी चाहिए।

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प्रश्न 7.
मानव-निर्मित अथवा मानवकृत तन्तुओं के कुछ उदाहरण दो।
उत्तर-
नायलॉन, पॉलिएस्टर, टेरीलीन, डेक्रॉन, ऑरलॉन, एक्रीलिक आदि।

प्रश्न 8.
रेयॉन किस प्रकार का तन्तु है-प्राकृतिक या मानव-निर्मित?
उत्तर-
रेयॉन प्राकृतिक तथा मानव-निर्मित दोनों ही प्रकार का तन्तु है।

प्रश्न 9.
सबसे पुराना मानवकृत तन्तु कौन-सा है?
उत्तर-
रेयॉन।

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प्रश्न 10.
सेल्युलोज से कौन-सा तन्तु मानव-निर्मित है?
उत्तर-
रेयॉन।

प्रश्न 11.
जानवरों के बालों से प्राप्त होने वाला प्रमुख वस्त्रीय तन्तु कौन-सा है?
उत्तर-
ऊन।

प्रश्न 12.
प्राकृतिक तन्तु वाले पदार्थों से रासायनिक विधियों से नए प्रकार का कौन-सा मुख्य तन्तु प्राप्त किया जाता है?
उत्तर-
रेयॉन।

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प्रश्न 13.
तन्तु स्रोत को कितने भागों में बाँटा जा सकता है?
उत्तर-
दो भागों में—

  1. प्राकृतिक तथा
    मानव-निर्मित।

छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
रेयॉन की विशेषताएं बताइए।
उत्तर-
भौतिक विशेषताएं-रेयॉन का तन्तु भारी, कड़ा तथा कम लचकदार होता है। जब रेयॉन के धागे को जलाया जाता है तो सरलता से जल जाता है। सूक्ष्मदर्शी यन्त्र से देखने पर इसके तन्तु लम्बाकार, चिकने एवं गोलाकार दिखाई देते हैं। रेयॉन में प्राकृतिक तन्यता नहीं होती है। यह वस्त्र रगड़ने से कमजोर हो जाता है तथा इसकी चमक नष्ट हो जाती है। यदि धोते समय वस्त्र को रगड़ा जाये तो छेद होने का भय रहता है। पानी से रेयॉन की शक्ति नष्ट हो जाती है। जब रेयॉन सूख जाता है तो पुनः अपनी शक्ति को प्राप्त कर लेता है। रेयॉन ताप का अच्छा संचालक है। यह उष्णता को शीघ्र निकलने देता है, अतः यह ठण्डा रहता है।
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ताप के प्रभाव से रेयॉन के तन्तु पिघल जाते हैं तथा उनकी चमक नष्ट हो जाती है। धूप रेयॉन की शक्ति को नष्ट करती है।
रासायनिक विशेषताएं-रेयॉन की रासायनिक विशेषताएं कुछ-कुछ रूई के समान ही हैं। क्षार के प्रयोग से रेयॉन की चमक नष्ट हो जाती है। द्रव अम्ल व अम्लीय क्षार का रेयॉन पर प्रयोग किया जा सकता है क्योंकि यह रेयॉन को कोई हानि नहीं पहुँचाता है।

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प्रश्न 2.
टेरीलीन की भौतिक तथा रासायनिक विशेषताएं बताइए।
उत्तर-
भौतिक विशेषताएं-टेरीलीन के तन्तु भारी एवं मज़बूत होते हैं।
सक्ष्मदर्शी यन्त्र द्वारा देखा जाये तो ये रेयॉन एवं नायलॉन के तन्तुओं की भाँति दिखाई देते हैं। ये तन्तु सीधे, चिकने एवं चमकदार होते हैं।
टेरीलीन में नमी को शोषित करने की शक्ति नहीं होती है, इसलिए पानी से इसके रूप में कोई परिवर्तन नहीं आता है।
टेरीलीन तन्तु जलाने पर धीरे-धीरे जलते हैं व धीरे-धीरे पिघलते भी हैं। यह प्रकाश अवरोधक होते हैं।
टेरीलीन के वस्त्र को धोने पर उसमें सिकुड़ने नहीं आती हैं। रासायनिक विशेषताएं
टेरीलीन पर अम्ल का प्रभाव हानिकारक नहीं होता परन्तु, अधिक तीव्र आम्लिक क्रिया वस्त्र को नष्ट कर देती है। क्षार का इस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। किसी भी प्रकार के रंग में इन्हें रंगा जा सकता है।
टेरीलीन के वस्त्र अधिक मज़बूत एवं टिकाऊ होते हैं ।

प्रश्न 3.
ऑरलॉन तन्तुओं की विशेषताएं बताइए।
उत्तर-
सूक्ष्मदर्शी यन्त्र से देखने पर ये हड्डी के समान दिखाई देते हैं। ऑरलॉन में ऊन तथा रूई से कम अपघर्षण प्रतिरोधन-शक्ति होती है।
ऑरलॉन में उच्च श्रेणी की स्थाई विद्युत शक्ति होती है। जलाने पर यह जलता है व साथ-साथ पिघलता भी है।
ऑरलॉन का तन्तु आसानी से नहीं रंगा जा सकता है। रंग का पक्कापन रंगाई की विधि पर तथा वस्तु की बनावट पर निर्भर करता है। इस तन्तु को रंगने के लिए ताँबा-लोहा विधि बहुत सफल हुई है। वस्त्र का सिकुड़ना उसकी बनावट पर निर्भर करता है।
ऑरलॉन के वस्त्रों को धोने के पश्चाः इस्तिरी करने की आवश्यकता नहीं रहती है। यह शीघ्रता से सूख जाते हैं। इन वस्त्रों में टिकाऊपन अधिक होता है।

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एक शब्द में उत्तर दें

प्रश्न 1.
बनावटी ढंग से बनाए धागों को कितने भागों में बाँटा जा सकता है?
उत्तर-
दो भागों में।

प्रश्न 2.
रेयॉन के कपड़ों में ……. नहीं होती।
उत्तर-
अधिक लचक।

प्रश्न 3.
…… को टिड्डियां बड़ी जल्दी खा जाती हैं।
उत्तर-
रेयॉन।

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प्रश्न 4.
टेरीलीन के कपड़ों को ……. में लटका कर सुखाना चाहिए।
उत्तर-
हैंगर।

प्रश्न 5.
……………… के कपड़े को धोने के बाद प्रेस करने की आवश्यकता नहीं रहती।
उत्तर-
ऑरलॉन।

प्रश्न 6.
……………….. से रेऑन की शक्ति घटती है।
उत्तर-
धूप।

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बनावटी ढंग से बनाए गए कपड़ों की देखभाल PSEB 7th Class Home Science Notes

  • बनावटी ढंग से बनाये गए धागों को दो भागों में बाँटा जा सकता है (i) नान थर्मोप्लास्टिक रेशे, (ii) थर्मोप्लास्टिक रेशे। रेयॉन
  • पानी में बहुत कमजोर हो जाती है। इसीलिए नमी युक्त कपड़े को ज़्यादा रगड़ना नहीं चाहिए।
  • रेयॉन लचकदार नहीं होती है।
  • बढ़िया किस्म की रेयॉन जिसका रंग निकलता हो या बहुत भारी कपड़े जैसे गरारा, सूट आदि को ड्राइक्लीन ही करवाना चाहिए।
  • रेयॉन के कपड़े को मरोड़कर नहीं निचोड़ना चाहिए। – रेयॉन को धूप में या लटकाकर नहीं सुखाना चाहिए।
  • रेयॉन कपड़े को बटनों पर प्रैस नहीं करना चाहिए। इससे कपड़ों के फटने का डर रहता है।
  • अगर कपड़े अधिक मैले हों तो उनको 10-15 मिनट के लिए गुनगुने पानी में भिगो देना चाहिए।
  • सफ़ेद कपड़ों को रंगदार कपड़ों से अलग ही धोना चाहिए। नाइलॉन और टेरीलीन के कपड़ों को बहुत हल्की गर्म प्रेस से हल्का-हल्का प्रैस करना चाहिए।

PSEB 6th Class Physical Education Solutions Chapter 4 पंजाब की लोक खेलें

Punjab State Board PSEB 6th Class Physical Education Book Solutions Chapter 4 पंजाब की लोक खेलें Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 6 Physical Education Chapter 4 पंजाब की लोक खेलें

PSEB 6th Class Physical Education Guide पंजाब की लोक खेलें Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
बच्चों की कोई चार खेलों के नाम लिखो।
उत्तर-

  1. लुका-छिपी
  2. गुल्ली डंडा
  3. रस्सी कूदना
  4. कोटला छपाकी।

प्रश्न 2.
पुगने की कितनी विधियां होती हैं ? इनमें से किसी एक विधि का वर्णन कीजिए।
उत्तर–
पुगने के तीन तरीके होते हैं।
पहला तरीका-पहले तीन खिलाड़ी दायां हाथ एक दूसरे हाथ पर रखते हैं और एक समय हाथों को हवा में उछाल कर उल्टा देते हैं। तीन में से अगर दो खिलाड़ियों के हाथ उलेटे और तीसरे खिलाड़ी का हाथ सीधा हो तो वो पुग जाता है। इस तरह बारी-बारी एक को छोड़ कर सभी खिलाड़ी पुग जाते हैं।

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प्रश्न 3.
खेलों की महत्त्व पर नोट लिखिए।
उत्तर-

  1. खेलों की महत्ता-शारीरिक बल, फुर्ती, दिमागी चुस्ती आदि खेलों में आते हैं। उदाहरण के तौर पर जब खिलाड़ी ठीकरियों पर निशाना लगाने की खेल खेलता है तो उसको ध्यान एकाग्रता का प्रशिक्षण मिलता है। कोटला छपाकी’ खेल में चौकस रहने की शिक्षा मिलती है। कई खेलें राष्ट्रीय स्तर पर ही खेली जाती हैं। जैसे कुश्ती और कबड्डी।
  2. कुश्ती और कबड्डी के साथ शारीरिक ताकत आती है।
  3. खेलों के साथ दिमागी चुस्ती भी बढ़ती है।
  4. यह खेलें बच्चों में आपसी साथ को बढ़ाती हैं।
  5. हमारे विरासत और सभ्याचार को कायम रखने में सहायक होते हैं।

प्रश्न 4.
बन्दर किल्ला खेल की विधि के बारे में लिखिए।
उत्तर-
मुहल्ले के सभी बच्चे इकट्ठे होकर बन्दर किल्ला खेलने के लिए किल्ले के लिए जगह का चुनाव करते हैं। खेल शुरू करने से पहले बच्चे गाते हुए एक-दूसरे को कहते हैं –

जुत्तियां, चप्पलां दा,
कर लो वी हीला।
हुण असीं रल के,
खेलना बंदर किल्ला।

बन्दर किल्ला खेलने वाले बच्चे अपनी जूतियों और चप्पलों को उतार कर किल्ले के नज़दीक इकट्ठे कर लेते हैं। किल्ले की निचली तरफ 5-7 मी० की लम्बी रस्सी बांध लेते हैं। बांदर किल्ला खेलने वाले बच्चे बारी देने वाले बच्चे को पुगते हैं। चुनाव करने के बाद बारी देने वाला बच्चा बन्दर माना जाता है।
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बन्दर बना बच्चा किल्ले के साथ बंधी रस्सी को पकड़कर सभी जूतियों और चप्पलों की रखवाली करता है। बन्दर बना बच्चा रस्सी को बिना छोड़े किसी दूसरे बच्चे को जो आपनी चप्पलें लेने आता है उसको पकड़ता है। दूसरे बच्चे अपनी जूतियां और चप्पलें उठाने की कोशिश करते हैं। अगर चप्पलें उठाते समय बन्दर बना बच्चा किसी दूसरे बच्चे को हाथ लगाये तो बारी उसी बच्चे की आ जाती है। यदि सभी बच्चे बिना पकड़े अपनी चप्पलें और जूतियां उठाने में कामयाब हो जाते हैं तो बारी देने वाला बन्दर बच्चा रस्सी को छोड़ दौड़ेगा और खास जगह पर हाथ लगायेगा। निश्चित जगह पर पहुंचने से पहले-पहले बाकी बच्चे बन्दर बच्चे को चप्पलों से मारते हैं। बन्दर के निश्चित जगह पर पहुंचने पर जूतियां मारनी बंद कर देते हैं। इसके बाद किसी और बच्चे की बन्दर बनने की बारी आ जाती है।

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प्रश्न 5.
आपको कौन-सा लोक खेल अच्छा लगता है ? उसे कैसे खेला जाता है ?
उत्तर-
हमारी मनोभावी खेल कोटला छपाकी’ है। इस खेल को खेलने के लिए बच्चों की गिनती नहीं होती। इस खेल का दूसरा नाम ‘काजी कोटले की मार’ भी है। इस खेल को खेलने के लिए 10-15 बच्चे खेलते हैं और खेलने से पहले किसी कपड़े को वट चढ़ा कर दोहरा करके कोटला बना लेते हैं। फिर बच्चा ज़मीन पर किसी तीखी चीज़ से लाइन लगा कर गोला बनाता है। बाकी सभी बच्चे चक्कर की खींची लाइन पर मुंह अन्दर करके बैठ जाते हैं। अब बारी देने वाला बच्चा कोटले को पकड़ कर चक्कर के आस-पास दौड़ता है। दौड़ते हुए यह गीत गाता है –

कोटला छपाकी जुम्मे रात आई जे,
जिहड़ा अग्गे, पिच्छे देखे, ओहदी शामत आई जे।

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गोले में बैठे बच्चे गीत गाने वाले बच्चे के पीछे गीत गाते हैं। बारी देने वाला बच्चा ‘कोटला छपाकी जुम्मे रात आई जे’ और गोले का चक्कर लगाता है। इस खेल में कोई भी बच्चा पीछे नहीं देख सकता। सभी बच्चे ज़मीन की तरफ देखते हैं। यदि कोई चक्कर में बैठा बच्चा पीछे देखता है तो बारी देने वाला बच्चा उसके 4-5 कोटले मार देता है, बारी देने वाला बच्चा चक्कर पूरा करते ही किसी बच्चे के पीछे चुप करके कोटला रख देता है और चक्कर लगा कर उस बैठे बच्चे के पास आ जाता है। यदि बैठे बच्चे को कोटले का पता नहीं चलता तो बारी देने वाला बच्चा कोटला उठाकर उस बच्चे को मारना शुरू कर देता है। मार खाने वाला बच्चा मार से बचने के लिए चक्कर के आस-पास तेज़ी से दौड़ता है, जब तक वह बच्चा अपनी जगह पर दोबारा नहीं पहुंच जाता। तब तक बच्चे को कोटले की मार सहनी पड़ती है । यदि बैठे हुए खिलाड़ी को कोटला रखने के बारे में पता चल जाता है तो वह कोटला उठा कर बारी देने वाले खिलाड़ी को तब तक मारता है जब तक वह चक्कर लगाकर बैठने वाले की खाली जगह पर आकर बैठ नहीं जाता। इस तरह खेल चलती रहती है।

Physical Education Guide for Class 6 PSEB पंजाब की लोक खेलें Important Questions and Answers

बहुत छोटे उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
लोक खेलों के कोई दो नाम लिखो।
उत्तर-

  1. कीकली
  2. कोटला छपाकी।

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प्रश्न 2.
कोटला छपाकी का गीत लिखो।
उत्तर-
कोटला छपाकी जुम्मे रात आई जे, जिहड़ा अग्गे, पिच्छे देखे, ओहदी शामत आई जे।

प्रश्न 3.
बन्दर किल्ला की चार लाइनें लिखो।
उत्तर-
जुत्तियां, चप्पलां दा,
कर लो वी हीला।
हुण असीं रल के,
खेलना बांदर किल्ला।

प्रश्न 4.
पुगने के कितने तरीके हैं ?
उत्तर-
पुगने के तीन तरीके हैं।

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प्रश्न 5.
किसी मनपसंद लोक खेल का नाम लिखो।
उत्तर-
बन्दर किल्ला ।

प्रश्न 6.
स्वास्थ्य की दृष्टि से सबसे अच्छी खेल कौन-सी है ?
उत्तर-
रस्सी कूदना।

प्रश्न 7.
चुस्ती, फुर्ती और एकाग्रता किस खेल से आती है ?
उत्तर-
पिठू गर्म करने से।

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प्रश्न 8.
बड़ी और लोक खेलों का एक-एक नाम लिखो।
उत्तर-

  1. हॉकी
  2. कोटला छपाकी।

प्रश्न 9.
लोक खेलों की एक महत्ता लिखो।
उत्तर-
इस खेलों से शरीर स्वस्थ्य रहता है।

प्रश्न 10.
कीकली लोक खेल को कौन खेलता है ?
उत्तर-
यह लड़कियों का खेल है।

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छोटे उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
खेल क्या है ?
उत्तर-
खेल वह क्रिया है जिसको मन बहलाने के लिए खेला जाता है और ऐसी क्रिया करने के साथ हमें खुशी मिलती है।

प्रश्न 2.
खेल किस उम्र के लोग खेलते हैं ?
उत्तर-
खेल हर उम्र के लोग खेलते हैं, बच्चे जवान और बुजुर्ग भी खेल खेलते हैं और लड़के, लड़कियां भी खेलते हैं।

प्रश्न 3.
खेलों की बांट किस तरह की जाती है ?
उत्तर-
हमारी लोकप्रिय खेलें जैसे क्रिकेट, हॉकी, वालीबॉल, फुटबॉल आदि।

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प्रश्न 4.
लोक खेलों में क्या नियम निश्चित होते हैं ?
उत्तर-
ऐसी खेलें खेलने के लिए कोई सामान या नियम निश्चित नहीं होते हैं।

प्रश्न 5.
बड़ी खेलों में क्या नियम होते हैं ?
उत्तर-
बड़ी खेलों में सामान, खेल का मैदान और नियम निश्चित होते हैं। ये खेलें नियम के अनुसार ही खेली जाती हैं।

प्रश्न 6.
लोक खेलें खेलने के लिए पारी पुगने की विधि लिखो।
उत्तर-
पहले तीन खिलाड़ी अपना दायां हाथ दूसरे के दायें हाथ पर रखते हैं और एक समय हाथों को हवा में घुमा कर उल्टा देते हैं। तीन में से यदि दो खिलाड़ियों के हाथ उल्टे और तीसरे खिलाड़ी का हाथ सीधा हो, तो वह पुग जाता है। इस तरह बारी-बारी एक को छोड़ कर सभी खिलाड़ी पुग जाते हैं।

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प्रश्न 7.
पुगने की दूसरी विधि का गीत लिखो।
उत्तर-
ईंगण, मींगण, तली तलींगण
काला, पीला, डकरा
गुड़ खावां, बेल बधावां,
मूली पत्तरा।
पत्ता वा, घोड़े आये,
हथ्थ कुताड़ी, पैर कुताड़ी
निक्के वालियां, तेरी वारी।

प्रश्न 8.
क्या लोक खेलों में टीमों की बांट की जाती है ?
उत्तर-
हां, कई खेलों में आपस में टीमों की बांट की जाती है जैसे- कबड्डी, गुल्ली डंडा, रस्सी कूदना।

प्रश्न 9.
लोक खेलों के कोई पाँच नाम लिखो।
उत्तर-

  1. बन्दर किल्ला
  2. कोटला छपाकी
  3. कीकली
  4. पिठू गर्म करना
  5. रस्सी कूदना।

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प्रश्न 10.
लोक खेलों में से किसी दो की महत्ता लिखो।
उत्तर-

  1. खेलों को खेलते हुए फुर्ती, शारीरिक बल और दिमागी चुस्ती आदि के गुण आते हैं।
  2. जब खिलाड़ी ठीकरियों के साथ निशाना लगाने की खेल खेलते हैं तो उनको एकाग्रता करने की सिखलाई मिलती है।

बड़े उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
खेलों की किस्में लिखो।
उत्तर-
खेलों की बांट कई तरह से की जा सकती है, जैसे कि शारीरिक खेलें, दिमागी खेलें आदि। ऐसी ही एक बांट है हमारी विरासती खेलें। क्रिकेट, हॉकी, वालीबॉल, फुटबॉल आदि ऐसी खेलें हैं जिनको खेलने के लिए विशेष सामान, निश्चित खेल मैदान और विशेष खेल नियम होते हैं। लोक खेलें इसके उल्ट कही जा सकती हैं।

प्रश्न 2.
रस्सी कूदना की महत्ता लिखो।
उत्तर-
यह खेल कसरत करने की बहुत ही बढ़िया खेल है। पुगने के बाद जो दो बच्चे पीछे रह जाते हैं वह एक-दूसरे के सामने खड़े होकर एक हाथ रस्सी. को ज़मीन के साथ छुआते हुए एक तरफ घुमाते हैं। बाकी बच्चे लाइन बनाकर एक-एक, दो-दो टप्पे लेते हैं। इस तरह यह खेल खेली जाती है।

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प्रश्न 3.
पिठू गर्म करना क्या है ?
उत्तर–
पिठू गर्म करना पंजाब के बच्चों के लिए बड़ी दिलचस्प खेल है। इस खेल में खेलने वाले बच्चे दो टोलियां बना लेते हैं और 10-15 फुट की दूरी पर गिटियां रखकर उस पर निशाना लगाते हैं। इस तरह यह खेल खेली जाती है।

प्रश्न 4.
कीकली की महत्ता लिखो।
उत्तर-
कीकली पंजाब की लड़कियों की बहुत ही प्रिय खेल है । कीकली खेल और गिद्दे का सुमेल है। इस खेल को लड़कियां चाव के साथ खेलती हैं। इस खेल में लड़कियां एक जगह पर इकट्ठी होकर आपस में जोड़े बना कर एक-दूसरे के हाथों में कंघियां डालकर घूमती हैं। उन्होंने एक-दूसरे का हाथ बायें हाथ से बायां हाथ और दाएं हाथ से दायां हाथ पकड़ा होता है। इस तरह यह खेल खेली जाती है।

प्रश्न 5.
कोटला छपाकी की महत्ता लिखो।
उत्तर-
कोटला छपाकी गांवों में खेली जाने वाली छोटी उम्र के लड़के-लड़कियों की खेल है। इस खेल को ‘काजी कोटले की मार’ के नाम से जाना जाता है।
कोटला छपाकी जुम्मे रात आई जे, जिहड़ा अग्गे, पिच्छे देखे, ओहदी शामत आई जे। गोल चक्कर में बैठे हुए बच्चे बारी देने वाले के पीछे-पीछे यह गीत गाते हैं।

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प्रश्न 6.
पुगने की दूसरी कोई विधि लिखो।
उत्तर-
पुगने की दूसरी विधि-सभी खिलाड़ी गोल चक्कर में खड़े हो जाते हैं।
उनके बीच में से एक खिलाड़ी बारी-बारी सभी खिलाड़ियों के कन्धे पर हाथ लगा कर यह गीत गाता है-

ईंगण, मींगण, तली तलींगण
काला, पीला, डकरा
गुड़ खावां, बेल बधावां,
मूली पत्तरा।
पत्ता वा, घोड़े आये,
हाथ कुताड़ी, पैर कुताड़ी
निक्के वालियां, तेरी वारी।

जिस खिलाड़ी को आखिरी शब्द पर हाथ लगता है वह पुग जाता है। इस तरह बारबार करते हुए अंत में रह जाने वाले की बारी तय हो जाती है। कई खेलें आपस में दो टीमें बनाकर खेली जाती हैं। जैसे कबड्डी, गुल्ली डंडा, रस्सा कशी और खो-खो आदि।

प्रश्न 7.
रस्सी कूदना और पिठू खेल के बारे में लिखो।
उत्तर-
रस्सी कूदना-यह खेल कसरत की तरह बहुत ही बढ़िया खेल है। पुगने के बाद जो दो बच्चे पीछे रह जाते हैं वह एक-दूसरे के सामने खड़े होकर हाथ रस्सी को ज़मीन के साथ छूते हुए एक साईड घुमाते हैं। बाकी बच्चे लाइन बना कर एक-एक, दोदो टप्पे लेते हैं। जिस बच्चे के पैरों को रस्सी लग जाये वह आऊट हो जाता है और रस्सी घुमाने की बारी देता है। यह खेल लड़कियों की प्रिय खेल रही है पर आजकल बहुत कम हो गई है।

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पिठू गर्म करना-यह बच्चों की बड़ी दिलचस्प खेल है, जिसमें बच्चों की गिनती निश्चित नहीं होती। इसमें दो टोलियां होती हैं, खेलने की जगह पर सात गीटियां एक-दूसरे के ऊपर रख लेते हैं। इन चुनी गीटियों के लगभग 12 फुट की दूरी पर एक लाइन खींच दी जाती है। फिर दोनों टीमें पुगने के बाद जो टीम पुग जाती है उस टीम का एक खिलाड़ी लाइन पर खड़ा होकर रबड़ की गेंद के साथ गीटियों पर निशाना लगाता है। एक खिलाड़ी को निशाना लगाने के तीन मौके दिये जाते हैं। तीन बार निशाना लगाने के बाद यदि ठीकरियों पर निशाना नहीं लगता तो वह खिलाड़ी आऊट हो जाता है। यदि बॉल को ठप्पा डाल कर सामने वाले खिलाड़ी पकड़ लेते हैं तो भी निशाना लगाने वाला खिलाड़ी आऊट हो जाता है। यदि निशाना लगाने वाला खिलाडी ठीकरियों पर ठीक निशाना लगा देता है तो ठीकरियां ज़मीन पर बिखर जाती हैं। निशाना लगाने वाला खिलाड़ी ज़मीन पर बिखरी ठीकरियों को जल्दी-जल्दी इकट्ठी करके एक-दूसरी पर रखता है तो विरोधी टीम के खिलाड़ी उन ठीकरियों को चुनने वाले खिलाड़ी को गेंद का निशाना बनाते हैं। यदि ठीकरियां चिनने वाले खिलाड़ी को गेंद लग जाती है तो वह आऊट हो जाता है। यदि ठीकरियां चुनने वाला खिलाड़ी गेंद लगने से पहले ठीकरियां इकट्ठी कर लेता है तो उसको और बारी दी जाती है, आऊट होने पर दूसरे खिलाड़ी की बारी आ जाती है। इस तरह खेल चलती रहती है।

PSEB 6th Class Physical Education Solutions Chapter 4 पंजाब की लोक खेलें 4

PSEB 6th Class Physical Education Solutions Chapter 4 पंजाब की लोक खेलें

प्रश्न 8.
कीकली के बारे में लिखो।
उत्तर-
कीकली-पंजाब में कीकली लड़कियों की प्रिय खेल है। किलकिला का अर्थ है खुशी और चाव की आवाज़ करना। कीकली खेल और गिद्दे का जोड़ है। कीकली में लड़कियां एक-दूसरे के हाथों में कंघियां डाल कर घूमती हैं। वह एक-दूसरे का बायां हाथ बायें हाथ के साथ और दायां हाथ दायें हाथ के साथ पकड़ती हैं। दोनों लड़कियों की बाजू की शक्ल 8 अंक जैसा बन जाती है। घूमने पर लड़कियां कीकली के गीत गाती हैं-

कीकली. कलीर दी,
पग मेरे वीर दी,
दुपट्टा भरजाई दा,
फिट्टे मुंह जवाई दा।

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इस तरह आपस में जोड़ियों का मुकाबला होने लग पड़ता है। देशी खेलों में टूर्नामेंट नहीं कराया जा सकता है। कीकली डालते समय यदि जोड़ी में किसी एक लड़की का हाथ दूसरी लड़की के हाथ से छूट जाता है या किकली डालते हुए लड़की गिर जाये तो सब कुछ हंसी में भूल जाता है। इस तरह लड़कियां इस खेल का बहुत आनन्द लेती हैं।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 10 जनमत

Punjab State Board PSEB 12th Class Political Science Book Solutions Chapter 10 जनमत Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Political Science Chapter 10 जनमत

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
लोकमत का क्या अर्थ है ? इसकी मुख्य विशेषताओं की चर्चा कीजिए।
(What is meant by Public Opinion ? Discuss its main characteristics.)
अथवा
जनमत की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन करो। (Explain the main characteristics of Public Opinion.)
उत्तर-
लोकतन्त्र सरकार को प्रायः लोकमत राज्य भी कहा जाता है। जो सरकार लोकमत के अनुसार काम नहीं करती, वह बहुत समय तक नहीं चल सकती। इसका कारण यह है कि लोकतन्त्रीय राज्य में सर्वोच्च शक्ति जनता के हाथों में होती है। रूसो (Rousseau) के शब्दों में, “जनता की आवाज़ वास्तव में भगवान् की आवाज़ होती है।” यदि लोगों का सरकार के प्रति विश्वास न रहे तो बड़ी-से-बड़ी शक्ति भी सरकार को अस्तित्व में नहीं रख सकती। उदाहरणस्वरूप 1971 में पूर्वी पाकिस्तान के लोकमत ने पाकिस्तान की सैनिक तानाशाही के विरुद्ध आवाज़ उठाई और बंगला देश के नाम से एक स्वतन्त्र राज्य बन गया। . नेपोलियन (Napolean) जैसे तानाशाह ने भी एक बार कहा था, “एक लाख तलवारों की अपेक्षा मुझे तीन समाचार-पत्रों से अधिक भय है।” _जनमत का अर्थ (Meaning of Public Opinion)-जनमत क्या है ? जनमत सार्वजनिक मामलों पर जनता की राय को कहते हैं। परन्तु किसी भी विषय पर समस्त नागरिक एकमत नहीं हो सकते। समाज के सामने कोई समस्या हो, उसके समाधान के बारे में लोगों के अलग-अलग मत हो सकते हैं और होते हैं। तो क्या ऐसे समाज में राज्य को बहुमत के कार्य करने चाहिएं ? परन्तु बहुमत ‘बहुमत’ है, जनमत नहीं। जनमत के लिए बहुमत का होना काफ़ी नहीं है क्योंकि बहुमत में बहुमत संख्या का अपना दृष्टिकोण रहता है, समस्त राष्ट्र का नहीं। इसलिए केवल बहुमत को जनमत का नाम नहीं दिया जा सकता। जनमत की विद्वानों ने विभिन्न परिभाषाएं दी हैं, जिनमें कुछ निम्नलिखित हैं-

1. लॉर्ड ब्राइस (Lord Bryce) का कहना है कि, “समस्त समाज से सम्बन्धित किसी समस्या पर जनता के सामूहिक विचारों को जनमत कहा जा सकता है।” (“Public opinion is commonly used to denote the aggregate of the views, which men hold regarding matters that effect or interest the community.”)

2. लावेल (Lowell) का कहना है कि, “जनमत बनाने के लिए केवल बहुमत काफ़ी नहीं और सर्वसम्मति आवश्यक नहीं, परन्तु राय ऐसी होनी चाहिए जिससे अल्पसंख्यक वर्ग बेशक सहमत न हों, लेकिन फिर भी वे भय के कारण नहीं बल्कि विश्वास से मानने को तैयार हों।” (“In order that opinion may be public, a majority is not enough and unanimity is not required, but the opinion must be such that while the minority may not share it they feel bound by conviction and not by fear to accept it.”’)

3. कैरोल (Carrol) के अनुसार, “साधारण प्रयोग में जनमत साधारण जनता की मिली-जुली प्रतिक्रिया को कहा जाता है।” (“In its common use it refers to composite reactions of the general public.”)

4. डॉ० बेनी प्रसाद (Dr. Beni Prasad) का कहना है, “केवल उसी राय को वास्तविक जनमत कहा जा सकता है जिसका उद्देश्य जनता का कल्याण हो। हम कह सकते हैं कि सार्वजनिक मामलों पर बहुसंख्यक का वह मत जिसे अल्पसंख्यक भी अपने हितों के विरुद्ध नहीं मानते, जनमत कहलाता है।” (“Opinion may be regarded as truly public, when it is motivated by a regard for the welfare of the whole of the society.”)

5. डॉ० इकबाल नारायण (Dr. Iqbal Narayan) के अनुसार, “जनमत सार्वजनिक मामलों पर जनता का वह मत है, जो किसी समुदाय अथवा वर्ग विशेष का न होकर जन-साधारण का हो। जो किसी क्षणिक आवेश का परिणाम न होकर स्थायी हो और जिसमें लोक कल्याण की भावना निहित हो।” ___ उपर्युक्त दी गई परिभाषाओं के अनुसार भिन्न-भिन्न विद्वान् आपस में एकमत नहीं हैं। परन्तु इनमें कुछ एक बातों पर सहमति होनी आवश्यक है जैसे कि लोकमत के लिए अधिक-से-अधिक लोगों में उस पर सहमति होनी चाहिए। उस प्रस्ताव में समाज के अधिक भाग की भलाई की बात होनी चाहिए। चाहे इस लोकमत की गणना कोई अलग कार्य नहीं, परन्तु फिर भी लोगों में प्रायः किसी बात की सहमति के बारे में एकत्रित होना आवश्यक है।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 10 जनमत

प्रश्न 2.
लोकतन्त्रीय राज्य में जनमत के महत्त्व का वर्णन करें। (Discuss the importance of Public Opinion in a democratic state.)
उत्तर-
जनमत का महत्त्व मनुष्य के समाज के अस्तित्व में आने से ही माना जाता है। यह एक मानी हुई बात है
जाती है। आज के लोकतन्त्रीय युग में तो इसकी महानता को और भी अधिक माना जाता है। लोकतन्त्र में राज्य प्रबन्ध सदा लोगों की इच्छानुसार चलता है। अतः प्रत्येक राजनीतिक दल और सरकार चला रहा दल जनमत को अपने पक्ष में करने का यत्न करता है। जिस राजनीतिक दल की विचारधारा लोगों को अच्छी लगती है, लोग उसको शक्ति दे देते हैं। लोकतन्त्र में जनमत का महत्त्व निम्नलिखित तथ्यों से स्पष्ट हो जाता है-

1. लोकतन्त्र शासन-प्रणाली में सरकार का आधार जनमत होता है (Public Opinion is the basis of Government in a democratic set up)-सरकार जनता के प्रतिनिधियों द्वारा बनाई जाती है। कोई भी सरकार जनमत के विरुद्ध नहीं जा सकती। सरकार सदैव जनमत को अपने पक्ष में कायम रखने के लिए जनता में अपनी नीतियों का प्रचार करती रहती है। विरोधी दल जनमत को अपने पक्ष में करने का सदैव प्रयत्न करते रहते हैं ताकि सत्तारूढ़ दल को हटा कर अपनी सरकार बना सकें। जो सरकार जनमत के विरोध में काम करती है, वह शीघ्र ही हटा दी जाती है। यदि लोकतन्त्र सरकार जनमत के विरुद्ध कानून पास करती है तो उस कानून को सफलता प्राप्त नहीं होती। वास्तव में लोकतन्त्र में जनमत का शासन होता है। यदि हम जनमत को लोकतन्त्र सरकार की आत्मा कहें तो गलत न होगा।

2. जनमत सरकार की मार्गदर्शक है (Public Opinion is a guide to the Government)-जनमत लोकतन्त्र सरकार का आधार ही नहीं बल्कि जनमत लोकतन्त्र सरकार का मार्गदर्शक भी है। जनमत सरकार को रास्ता दिखाता है कि उसे क्या करना है और किस तरह करना है। सरकार कानूनों का निर्माण करते समय जनमत का ध्यान अवश्य रखती है। यदि सरकार को पता हो कि किसी कानून का जनमत विरोध करेगा तो सरकार ऐसे कानून को वापस ले लेती है। कई बार तो सरकार किसी विशेष समस्या को हल करने से पहले जनमत को जानना चाहती है। जनमत लोकतन्त्र सरकार में अध्यापक की तरह कार्य करता है। जिस प्रकार अध्यापक ‘अपने शिष्यों को रास्ता दिखाता है, उसी प्रकार जनमत लोकतन्त्र को रास्ता दिखाता है।’

3. जनता प्रतिनिधियों की निरंकुशता को नियन्त्रित करता है (Public Opinion checks the Despotism of the Representatives) लोकतन्त्र में जनता अपने प्रतिनिधियों को चुनकर भेजती है और जनमत जिस दल के पक्ष में होता है, उसी दल की सरकार बनती है। कोई भी प्रतिनिधि अथवा मन्त्री अपनी मनमानी नहीं कर सकता। उन्हें सदैव जनमत का डर रहता है। प्रतिनिधि को पता होता है कि यदि जनमत उसके विरुद्ध हो गया तो वह चुनाव नहीं जीत सकेगा। इसलिए प्रतिनिधि सदा जनमत के अनुसार कार्य करता है। इस प्रकार जनमत प्रतिनिधियों को तथा सरकार को मनमानी करने से रोकता है।

4. कानून निर्माण में सहायक (Helpful in Law-making)-लोकतन्त्र में कानून निर्माण में जनमत का महत्त्वपूर्ण हाथ होता है। विधानमण्डल कानूनों का निर्माण करते समय जनमत को अवश्य ही ध्यान में रखता है। कोई भी लोकतान्त्रिक सरकार ऐसा कोई कानून नहीं बना सकती जो जनमत के विरुद्ध हो। जो कानून जनमत के विरुद्ध होता है, उसकी जनता द्वारा अवहेलना की जाती है। कई बार विधानमण्डल कानून बनाने से पहले या किसी विधेयक को पास करने से पहले उस पर जनमत जानने के लिए उसे समाचार-पत्रों में प्रकाशित करता है। जनमत जानने के पश्चात् विधेयक में आवश्यक परिवर्तन किए जाते हैं।

5. नीति-निर्माण में सहायक (Helpful in Policy-making) सरकार गृह और विदेश नीति निर्माण करते समय जनमत से बहुत अधिक प्रभावित होती है। सरकार देश की आन्तरिक समस्याओं जैसे कि बेरोजगारी, ग़रीबी, महंगाई, भ्रष्टाचार आदि को हल करने के लिए नीति-निर्माण करती है और नीति-निर्माण करते समय सरकार जनमत को अवश्य ध्यान में रखती है। सरकार दूसरे देशों के साथ सम्बन्ध स्थापित करते समय, महान् शक्तियों के प्रति दृष्टिकोण अपनाते समय तथा संयुक्त राष्ट्र संघ और अन्य विश्व संस्थाओं में भूमिका निभाते समय जनमत को ध्यान में रखती है। जनमत के विरुद्ध सरकार किसी नीति का निर्माण नहीं करती।

6. जनमत सरकार का उत्साह बढ़ता है (Public Opinion encourages the Govt.)-जब प्रतिनिधि सरकार कोई अच्छा कार्य करती है तो जनता उस सरकार को प्रोत्साहन देती है। जब इन्दिरा सरकार ने बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया तो जनमत ने सरकार को उत्साहित किया कि वह ऐसे ही और कार्य करे जिससे समाज की भलाई हो।

7. जनमत अधिकारों की रक्षा करता है (Public Opinion protects the Rights)-लोकतन्त्र शासन प्रणाली में नागरिकों को सामाजिक तथा राजनीतिक अधिकार प्राप्त होते हैं। इन अधिकारों की रक्षा जनमत के द्वारा की जाती है। जनमत सरकार को ऐसा कानून नहीं बनाने देता जिससे जनता के अधिकारों में हस्तक्षेप हो। जब सरकार कोई ऐसा कार्य करती है जिससे जनता की स्वतन्त्रता समाप्त हो तो जनमत उस सरकार की आलोचना करता है और लोकतन्त्र में कोई भी सरकार जनमत की आलोचना का सामना करने को तैयार नहीं होती।

8. यह सरकार को दृढ़ बनाता है (It makes the Government Strong)-जनमत से सरकार को बल मिलता है और वह दृढ़ बन जाती है। जब सरकार को यह विश्वास हो कि जनमत उनके साथ है तो वह मज़बूती से अपनी नीतियों को लागू कर सकती है और प्रगतिशील काम भी कर सकती है।

9. सामाजिक क्षेत्र में जनमत का महत्त्व (Its importance in Social Field)—प्रत्येक समाज में कुछ बुराइयां पाई जाती हैं और सरकार केवल कानून निर्माण द्वारा उन बुराइयों को दूर नहीं कर सकती। सामाजिक बुराइयों को दूर करने के लिए जनमत की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। भारत में आज अनेक सामाजिक बुराइयां पाई जाती हैं जैसे कि दहेज प्रथा, छुआछूत, जातिवाद, सती प्रथा आदि। ये बुराइयां तब तक समाप्त नहीं हो सकती जब तक इनके लिए जनमत तैयार नहीं किया जाता। सरकार जनमत से प्रेरणा लेकर ही इन बुराइयों के विरुद्ध जंग छेड़ती है।

10. अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में जनमत का महत्त्व (Importance of Public Opinion in International Field)आधुनिक युग न केवल लोकतन्त्र का युग है बल्कि अन्तर्राष्ट्रीयवाद का युग है। कोई भी देश जनमत की अवहेलना नहीं कर सकता और जनमत अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यदि कोई देश मानव अधिकारों का उल्लंघन करता है और अपने नागरिकों पर अत्याचार करता है तो इसमें विश्व जनमत उस देश के विरुद्ध हो जाता है और उस देश को अपनी नीति बदलने के लिए मजबूर कर देता है। आज शक्तिशाली राज्य भी विश्व जनमत की अवहेलना करने की हिम्मत नहीं करता क्योंकि कोई भी राज्य यह नहीं चाहता है कि विश्व जनमत उसके विरुद्ध हो जाए। अफ़गानिस्तान से सोवियत संघ की सेना की वापसी इस बात का सबूत है। विश्व जनमत ने सोवियत संघ को ऐसा करने के लिए मजबूर कर दिया था।

निष्कर्ष (Conclusion)-संक्षेप में, लोकतन्त्र शासन प्रणाली में जनमत का विशेष महत्त्व है। सरकार का आधार जनमत ही होता है जो सरकार को रास्ता दिखाता है। सरकार जनमत की अवहेलना नहीं कर सकती और यदि करती है तो आने वाले चुनावों में उसे हटा दिया जाता है। इसलिए कहा जाता है कि लोकतन्त्र के लिए एक सचेत जनमत पहली आवश्यकता है। (An alert and enlightened public opinion is the first essential of democracy.)

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प्रश्न 3.
जनमत से क्या अभिप्राय है ? जनमत के निर्माण में राजनीतिक दल, शिक्षा संस्थाएं व आधुनिक श्रव्य-दृश्य (बिजली) साधन क्या भूमिका निभा सकते हैं ?
(What do you understand by word-Public Opinion ? What is the role performed by Political Parties, educational institutions and modern Audio-visual (Electrical) media in forming in Public Opinion ?)
अथवा
जनमत के निर्माण और अभिव्यक्ति के साधनों का वर्णन करो। (Explain the means of the formation and expression of Public Opinion.)
उत्तर-
जनमत के निर्माण में कई साधन भाग लेते हैं और जनमत कई साधनों द्वारा प्रकट होता है। जनमत कैसे बनता है, इसके बारे में लॉर्ड ब्राइस (Lord Bryce) बताते हैं कि समाज में तीन प्रकार के लोग होते हैं जो कि जनमत के बनने और सामने आने में सहायता करते हैं जैसे कि (क) जो जनमत को उत्पन्न करते हैं, (ख) जो इसको परिवर्तित करते हैं और (ग) जो इसको उतारते हैं। प्रथम प्रकार में तो बहुत कम लोग जैसे संसद् के प्रतिनिधि और पत्रकार आदि ही आते हैं। यह अपने इर्द-गिर्द की घटनाओं का अध्ययन करते हैं और विचारानुसार लोगों के सामने रखते हैं। यह अपने विचारों को प्रेस और राज्यों द्वारा दर्शाते हैं। दूसरी प्रकार के लोगों में वे व्यक्ति आते हैं जो राजनीतिक और सामाजिक कार्यों में बहुत रुचि रखते हैं। इस प्रकार के लोग देश में हो रही घटनाओं को अख़बार और वाद-विवाद के स्रोतों से पहचानते हैं और अपने ज्ञानानुसार उनकी अभिव्यक्ति करते हैं। तीसरी प्रकार में वे लोग आते हैं जो कि ऊपरिलिखित दोनों प्रकारों में नहीं आते। इस श्रेणी में सबसे अधिक लोग आते हैं। ये लोग अखबार तथा दूसरा साहित्य आदि पढ़ने में कम रुचि रखते हैं। ये लोग जलसों और नारों आदि से बहुत प्रभावित होते हैं। ये लोग किसी भी विचारधारा की आलोचना नहीं करते बल्कि हर प्रकार की विचारधारा मानने में विश्वास रखते हैं।

एक सफल लोकतन्त्र में यह आवश्यक है कि दूसरी प्रकार के लोग अधिक होने चाहिएं। ये लोग अखबारों और नई-नई समस्याओं के साथ अधिक सम्बन्धित होते हैं। इस प्रकार ये लोग देश में हो रही भिन्न-भिन्न घटनाओं का आलोचनात्मक अध्ययन करते हैं और ठीक रूप से और उचित रूप से अपना मत बनाकर जनता के सम्मुख प्रस्तुत करते हैं और तीसरी प्रकार के लोगों को प्रभावित करते हैं।

एक अच्छा और स्वस्थ जनमत बनाने के लिए आवश्यक है कि नागरिक पढ़े-लिखे हों और राजनीतिक मामलों में अधिक-से-अधिक रुचि रखते हों। भारत में इस प्रकार के लोग बहुत कम संख्या में हैं और भारतीय जनमत के विकास में यह एक बड़ी बाधा है। लोकतन्त्रीय सरकारें चाहे सफल हैं या असफल परन्तु जनमत का इसमें महत्त्वपूर्ण स्थान है।

जनमत के उत्थान के लिए वर्तमान युग में निम्नलिखित साधन हैं –

1. प्रैस (Press)-जनमत प्रकट करने तथा जनमत निर्माण करने में प्रेस का महत्त्वपूर्ण हाथ है। प्रैस का अर्थ छापाखाना नहीं बल्कि प्रैस से अभिप्रायः वे सभी प्रकाशित साधन हैं जिनके द्वारा मत प्रकट किए जाते हैं जैसे कि समाचार-पत्र, पत्रिकाएं, पुस्तकें । समाचार-पत्र दैनिक भी होते हैं, साप्ताहिक भी और मासिक भी। लोकतन्त्र के निर्माण में समाचार-पत्र महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। गैटेल (Gettell) का कहना है, “समाचार-पत्र सम्पादकीय लेखों और समाचारों द्वारा अपने विचार प्रकट करते हैं और अनेक तथ्यों पर टिप्पणियां करते हैं। यदि लोगों के सामने तथ्य ठीक प्रकार से और निष्पक्षता के साथ रखे जाएं तो समाचार-पत्र लोगों को दैनिक समस्याओं से परिचय करने में अमूल्य सेवा करते हैं।” समाचार-पत्र निम्नलिखित तरीकों द्वारा सार्वजनिक मामलों पर जनमत तैयार करते हैं-

(1) समाचार-पत्र जनता को दैनिक घटनाओं और समाचारों से परिचित रखता है। समाचार-पत्रों में देशविदेश में कहीं भी घटी घटनाओं का वर्णन होता है। देश की आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक और धार्मिक समस्याओं, उनके समाधान के बारे में विभिन्न नेताओं के विचारों, सरकार की नीतियों और कार्यों की जानकारी समाचार-पत्रों की सहायता से मिल जाती है।

(2) समाचार-पत्र और पत्रिकाएं सरकार के कार्यों पर टीका-टिप्पणी करते हैं और उसके कार्यों की प्रशंसा तथा आलोचना करते हैं। सम्पादकीय लेखों से शिक्षित जनता को अपना मत बनाने में सहायता मिलती है।

(3) समाचार-पत्र सरकार की गलत नीतियों की आलोचना करते हैं ताकि लोग सरकार को अपनी नीतियां बदलने के लिए मजबूर कर सकें।

(4) समाचार-पत्र प्रचार का भी मुख्य साधन है। राजनीतिक नेता प्रायः प्रैस सम्मेलन बुलाते हैं, जहां वे देश-विदेश की विभिन्न समस्याओं पर अपने विचार प्रेस प्रतिनिधियों के सामने रखते हैं।

(5) समाचार-पत्र लोगों की शिकायतें सरकार तक पहुंचाते हैं। जनता क्या चाहती है, उसकी क्या इच्छा है ? इन समस्याओं के बारे में उसकी क्या राय है ? उसे कैसा कानून चाहिए ? इन सब बातों को सरकार तक पहुंचाने का काम भी समाचार-पत्र ही सम्पादित करते हैं। सरकार की नीति और उसके कार्यों की जानकारी समाचार-पत्रों द्वारा ही जनता तक पहुंचाई जाती है।

(6) समाचार-पत्र जनमत को शिक्षित, सुचेत तथा संगठित करते हैं।

2. सार्वजनिक सभाएं (Public Meetings) सार्वजनिक सभाएं जनमत निर्माण में महत्त्वपूर्ण साधन हैं। सत्तारूढ़ दल सरकार की नीतियों का प्रचार करने के लिए सार्वजनिक सभाओं का सहारा लेते हैं। मन्त्री अपनी नीतियों की प्रशंसा करते हैं और जनमत को अपने पक्ष में कायम करने का प्रयत्न करते हैं जबकि विरोधी दल इन सभाओं में सरकार की कड़ी आलोचना करते हैं और सरकार की नीतियों के बुरे प्रभावों को जनता के सम्मुख रखते हैं। सार्वजनिक सभाएं अनपढ़ व्यक्तियों को बहुत प्रभावित करती हैं क्योंकि अनपढ़ व्यक्ति समाचार-पत्र अथवा पुस्तक इत्यादि नहीं पढ़ सकता। अनपढ़ व्यक्ति लीडरों के भाषण सुनकर अपनी राय बनाता है। सार्वजनिक सभाओं के द्वारा जनमत प्रकट होता है।

3. राजनीतिक दल (Political Parties) लोकतन्त्र सरकार में राजनीतिक दलों का बहुत महत्त्व होता है। वास्तविकता यह है कि बिना राजनीतिक दलों के लोकतन्त्र सरकार चल ही नहीं सकती। राजनीतिक दलों का उद्देश्य सरकार पर नियन्त्रण करना होता है ताकि अपने सिद्धान्तों को लागू कर सके। राजनीतिक दल सरकार की सत्ता को तभी नियन्त्रित कर सकते हैं जब जनमत उनके पक्ष में हो। इसलिए प्रत्येक राजनीतिक दल जनमत को अपने पक्ष में करने का प्रयत्न करता है। राजनीतिक दल समाचार-पत्रों द्वारा सार्वजनिक सभाओं द्वारा, रेडियो द्वारा तथा घर-घर जाकर अपने सिद्धान्तों का प्रचार करते हैं। देश की समस्याओं पर अपने विचार जनता को बताते हैं। चुनाव के दिनों में तो विशेषकर राजनीतिक दल अपने सिद्धान्तों का प्रचार करते हैं और अपने सिद्धान्तों से जनता को सहमत करवाने का यत्न करते हैं ताकि अधिक वोट प्राप्त कर सकें।

4. रेडियो और टेलीविज़न (Radio and Television)-आधुनिक युग में जनमत के निर्माण में रेडियो और टेलीविज़न महत्त्वपूर्ण साधन हैं। रेडियो और टेलीविज़न जनता का मनोरंजन ही नहीं करते बल्कि जनता को देश की समस्या से भी अवगत कराते हैं। राजनीतिक दलों के नेता तथा बड़े-बड़े विद्वान् अपने विचारों को रेडियो द्वारा जनता तक पहुंचाते हैं। अनपढ़ व्यक्ति रेडियो तथा टेलीविज़न द्वारा काफ़ी प्रभावित होते हैं।

5. विधानमण्डल (Legislature)-विधानमण्डल जनमत के निर्माण तथा प्रकट करने का महत्त्वपूर्ण साधन है। विधानमण्डल के सदस्य विभिन्न समस्याओं पर अपने विचार प्रकट करते हैं। वाद-विवाद के पश्चात् कानूनों का निर्माण किया जाता है। विरोधी दल के सदस्य और कई बार सत्तारूढ़ दल के सदस्य सरकार के कार्यों की आलोचना करते हैं, मन्त्रियों से प्रश्न पूछे जाते हैं जिनके उन्हें उत्तर देने पड़ते हैं। विधानमण्डल में जब बजट पेश होता है तब सरकार के प्रत्येक विभाग की कड़ी आलोचना की जाती है। विधानमण्डल की समस्त कार्यवाही समाचार-पत्रों में प्रकाशित होती है जिनको पढ़कर जनता अपने मत का निर्माण करती है।

6. शिक्षा संस्थाएं (Education Institutions)—आज के विद्यार्थी कल के नागरिक हैं। विद्यार्थी अपने मत का निर्माण प्रायः अपने अध्यापकों के विचारों को सुनकर करते हैं। स्कूलों और कॉलेजों में इतिहास, नागरिक शास्त्र, अर्थशास्त्र आदि अनेक विषय पढ़ाए जाते हैं, जिससे विद्यार्थियों के विचारों पर बहुत प्रभाव पड़ता है। नागरिक शास्त्र के अध्यापक विशेषकर पढ़ाते समय सरकार के कार्यों के उदाहरण देते हैं और कई अध्यापक सरकार की कड़ी आलोचना करते हैं और अपने विचारों को प्रकट करते हैं। अध्यापकों के विचारों का विद्यार्थी के मन पर बहुत प्रभाव पड़ता है।

7. चुनाव (Election)-लोकतन्त्र में चार-पांच वर्ष पश्चात् चुनाव होते रहते हैं। चुनावों के समय राजनीतिक दल देश की समस्याओं को जनता के सामने प्रस्तुत करते हैं और अपने सिद्धान्तों का प्रचार करते हैं। प्रत्येक उम्मीदवार चुनाव जीतने के लिए जनता को अधिक-से-अधिक प्रभावित करने का यत्न करता है। स्वतन्त्र उम्मीदवार तथा राजनीतिक दल सार्वजनिक सभाओं द्वारा समाचार-पत्रों द्वारा अपने विचारों का प्रचार करते हैं। आजकल तो चुनाव के समय उम्मीदवार तथा उसके समर्थक घर-घर जाकर नागरिकों को अपने विचारों को बताते हैं। इश्तिहार छपवाकर सड़कों तथा गलियों में लगवाए जाते हैं। इस प्रकार चुनाव जनमत के निर्माण में महत्त्वपूर्ण साधन है।

8. सिनेमा (Cinema) सिनेमा भी जनमत निर्माण करने में महत्त्वपूर्ण साधन है। सरकार चल-चित्रों (News Reels) द्वारा देश की विभिन्न समस्याओं के सम्बन्ध में जनता को शिक्षित करती है।

9. धार्मिक संस्थाएं (Religious Institutions) धर्म का राजनीति पर बहुत प्रभाव पड़ता है। विभिन्न धार्मिक संस्थाएं समाज की बुराइयों को जनता के सामने पेश करती हैं और उन बुराइयों को समाप्त करने के लिए जनमत को तैयार करती हैं।

10. साहित्य (Literature)-साहित्य भी लोकमत के निर्माण में महत्त्वपूर्ण योगदान देता है। महान् लेखकों एवं विद्वानों के विचारों को जनता बड़े उत्साह से पढ़ती है जिसका आम जनता पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है।

11. अन्य संस्थाएं (Other Institutions)-ऊपरिलिखित भिन्न-भिन्न साधनों के अतिरिक्त और भी बहुत-सी संस्थाएं हैं, जो जनमत के उत्थान में अपना भाग डालती हैं। कई बार विशेष समस्या के उत्पन्न होने से भी उसके समाधान के लिए कई प्रकार के गुट अस्तित्व में आ जाते हैं। ये लोगों में अपने विचारों का प्रचार करते हैं और सरकार को कई प्रकार के प्रार्थना-पत्र आदि भेजते हैं। वह सरकार का ध्यान उन समस्याओं की ओर आकर्षित करने की चेष्टा करते हैं। इसकी कार्यवाहियों को समाचार-पत्रों और सार्वजनिक सभाओं द्वारा प्रसारित किया जाता है। कई बार ये गुट बड़ी राजनीतिक पार्टियों से जनता को झंझोड़ने में अधिक सफल हो जाते हैं और जनता के विचारों को प्रभावित करते हैं। इनको आजकल हम ‘दबाव समूह’ (Pressure Groups) भी कहते हैं।
अतः ऊपरलिखित सभी संस्थाएं जनमत के प्रचार में बढ़-चढ़ कर भाग लेती हैं।

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प्रश्न 4.
लोकमत के निर्माण के रास्ते में आने वाली रुकावटों का वर्णन करो। (Explain the hindrances in the way of formation of Public Opinion.)
अथवा
जनमत के निर्माण के मार्ग में बाधाओं का वर्णन करो। (Explain the hindrances in the way of the formation of Public Opinion.)
उत्तर-
लोकतन्त्र शासन प्रणाली का आधार जनमत है। जिस दल के पक्ष में जनमत होता है, उसी दल की सरकार बनती है। पर लोकतन्त्र सरकार की सफलता और समाज की भलाई के लिए यह आवश्यक है कि जनमत शुद्ध हो । यदि जनमत शुद्ध न होगा तो लोकतन्त्र सरकार का आधार भी गलत होगा। शुद्ध जनमत के निर्माण में निम्नलिखित बाधाएं आती हैं-

1. अनपढ़ता एवं अज्ञानता (Imliteracy and Ignorance)-अनपढ़ता तथा अज्ञानता शुद्ध जनमत के निर्माण में बहुत बड़ी रुकावट है। अनपढ़ता और अज्ञानता के फलस्वरूप जनता की सोचने की शक्ति तथा मनोवृत्ति संकुचित हो जाती है। अनपढ़ नागरिक अपने अधिकारों एवं कर्तव्यों को भली-भान्ति नहीं जानते। वे अपनी समस्याओं को समझ नहीं पाते तो वे सार्वजनिक समस्याओं पर क्या विचार करेंगे ? आधुनिक राज्य की समस्याएं बहुत जटिल हैं जिन्हें अनपढ़ व्यक्ति समझ नहीं सकता और न ही उनमें उन समस्याओं के बारे में सोचने की शक्ति होती है। अनपढ़ व्यक्ति शीघ्र ही अपने नेताओं के भड़कीले भाषण में आ जाता है और भावनाओं के आधार पर अपने मत का निर्माण कर लेता है। जिस देश की अधिकांश जनता अनपढ़ एवं अज्ञानी है वहां पर स्वस्थ जनमत का निर्माण नहीं हो सकता।

2. पक्षपाती प्रैस (Partial Press)-जो प्रैस पार्टियों द्वारा अथवा पूंजीपतियों द्वारा चलाए जाते हैं वे निष्पक्ष नहीं होते। ऐसे प्रैस सदा अपनी पार्टियों की प्रशंसा करते रहते हैं और दूसरी पार्टियों की निन्दा करते रहते हैं। ऐसे प्रैसों के समाचार-पत्रों में झूठी खबरें छपती रहती हैं जिससे साधारण जनता गुमराह हो जाती. है। पक्षपाती प्रैस देश का हित न सोचकर साम्प्रदायिकता की भावना को उत्साहित करते रहते हैं। भारत में ऐसे कई प्रैस हैं जो समस्त समाज का हित न सोचकर अपने सम्प्रदाय के हित के लिए उचित-अनुचित समाचार छापते हैं।

3. निर्धनता (Poverty)-निर्धनता भी शुद्ध जनमत के निर्माण में बहुत बड़ी बाधा है। निर्धन व्यक्ति को सदा रोटी की चिन्ता रहती है और इन्हीं उलझनों में फंसा रहता है। जिससे उसे समाज तथा देश की समस्याओं पर विचार करने का समय नहीं मिलता। एक भूखा व्यक्ति रोटी की खातिर अपने देश का अहित भी करने के लिए तैयार हो जाता है। वह अपने वोट को बेच देता है। निर्धन व्यक्ति का अपना कोई मत नहीं होता।

4. आलस्य और उदासीनता (Indolence and Indifference)-आलस्य और उदासीनता भी शुद्ध जनमत निर्माण में रुकावट डालते हैं। यदि किसी देश के नागरिक आलसी और सार्वजनिक समस्याओं के प्रति उदासीन हों तो शुद्ध जनमत का निर्माण नहीं हो पाता। भारत के नागरिक बहुत आलसी हैं। वे वोट डालने के लिए भी जाने के लिए तैयार नहीं होते। साधारण नागरिक यह सोचता है कि यदि वह वोट न डालेगा तो क्या अन्तर पड़ेगा, जिसने चुनाव जीतना है वह जीत ही जाएगा। अतः नागरिकों में राजनीतिक चेतना का अभाव शुद्ध जनमत के निर्माण में बाधा है।

5. रूढ़िवादिता (Conservatism)-रूढ़िवादिता से अभिप्रायः है पुरानी घिसी-पिटी परम्पराओं का पालन करते जाना। रूढ़िवादिता प्रगतिशील दृष्टिकोण के मार्ग में बहुत बड़ी बाधा है। रूढ़िवादी सामाजिक बुराइयों को दूर करने का प्रयास नहीं करते और अन्य लोगों को सुधार करने से रोकते हैं। अत: वे सामाजिक परिस्थितियों को आर्थिक दृष्टिकोण से नहीं समझते जिस कारण एक निष्पक्ष और बौद्धिक जनमत के निर्माण में बाधा उत्पन्न होती है।

6. गलत सिद्धान्तों पर आधारित राजनीतिक दल (Political Parties based on wrong Principles)जो राजनीतिक दल आर्थिक सिद्धान्तों और राजनीतिक सिद्धान्तों पर आधारित न होकर धर्म या जाति पर आधारित होते हैं, वे शुद्ध जनमत के निर्माण में बाधा डालते हैं। ऐसे राजनीतिक दल देश के हित की परवाह न करके अपनी जाति या सम्प्रदाय के लिए गलत बातों का प्रचार करते रहते हैं और एक सम्प्रदाय में दूसरे सम्प्रदाय के विरुद्ध नफरत की भावना पैदा करते रहते हैं। इन दलों से प्रभावित जनता शुद्ध जनमत का निर्माण नहीं कर सकती।

7. दोषपूर्ण शिक्षा प्रणाली (Defective Education System)—जिन देशों में दोषपूर्ण शिक्षा प्रणाली होती है वहां पर भी शुद्ध जनमत का निर्माण नहीं होता है। यदि स्कूल-कॉलेजों में धर्म पर आधारित शिक्षा दी जाए और विद्यार्थियों के दिलों में साम्प्रदायिकता की भावना को भर दिया जाए तो विद्यार्थी नागरिक बनकर प्रत्येक समस्या को धर्म अथवा सम्प्रदाय की दृष्टि से सुलझाना चाहेंगे जिससे शुद्ध जनमत का निर्माण नहीं हो सकेगा।

8. निरंकुश सरकार (Autocratic Governments)-लोकराज के उत्थान में निरंकुश सरकारें भी बाधा बनती हैं क्योंकि निरंकुश सरकारों में व्यक्तियों को विचार प्रकट करने और प्रेस की स्वतन्त्रता नहीं होती। यह केवल उन्हीं विचारों को प्रकट कर सकते हैं जो सरकार या शासकों के पक्ष में हों। शासकों के विरुद्ध मुंह खोलने की स्वतन्त्रता नहीं होती। व्यक्तियों को अपने विचारों को दबाना पड़ता है। ठीक जनमत के उत्थान के लिए लोकराज्यीय सरकारें बहुत सहायक होती हैं क्योंकि लोकराज्यीय सरकारों में वह सब वातावरण मिलता है जो शुद्ध जनमत के उत्थान के लिए आवश्यक है। निरंकुश सरकारों में प्रचार के सब साधनों पर सरकार का नियन्त्रण होता है।

9. अधिकारों और स्वतन्त्रताओं की अनुपस्थिति (Absence of Right and Liberties)-जहां लोगों को अधिकारों और स्वतन्त्रताओं की प्राप्ति नहीं है वहां भी जनमत का उत्थान करना सम्भव नहीं होता। अधिकार और स्वतन्त्रताएं एक ऐसा वातावरण उत्पन्न करते हैं जिनके अनुसार व्यक्ति अपने विचारों का ठीक प्रसार कर सकता है। यदि लोगों के विचारों को दबाया जाए और स्वतन्त्रता के साथ सोचने की स्वतन्त्रता न हो तो जनमत भी शुद्ध नहीं बन सकेगा। लोगों को ठीक विचारों का पता नहीं लग सकेगा और न ही वे ठीक रूप से सरकार की आलोचना ही कर सकेंगे। और वे गलत धारणाएं बना लेंगे। जितनी गलत धारणाएं बनेंगी उतना ही गलत जनमत तैयार होगा।

10. सामाजिक असमानता (Social Inequality)-समाज में सामाजिक असमानताएं भी जनमत के मार्ग में बाधा बनती हैं। सामाजिक असमानता वाले देशों में लोगों के मध्य जाति-पाति, धर्म, रंग, नस्ल के आधार पर भेदभाव किए जाते हैं। कुछ लोगों को नीचा समझा जाता है ओर कुछ व्यक्ति समाज में शेष लोगों से ऊंचे होते हैं। ऊंचे व्यक्ति निम्न व्यक्तियों पर अपना नियन्त्रण रखते हैं और अपने विचारों को निम्न के विचारों पर ठोंसते हैं। ऐसी दशा में तैयार किया गया जनमत कभी भी शुद्ध और निष्पक्ष नहीं हो सकता।

ऊपरिलिखित शुद्ध जनमत की बाधाओं को पढ़कर हम इस परिणाम पर पहुंचते हैं कि ठीक जनमत के उत्थान के लिए एक विशेष प्रकार के जनमत की आवश्यकता है। ऐसा वातावरण तभी तैयार हो सकता है यदि ऊपरिलिखित सब बाधाओं को दूर करने का यत्न किया जाए। शुद्ध जनमत लोकराज्यीय सरकार का प्राण है क्योंकि लोकराज्यीय सरकार जनमत पर ही आधारित होती है। यदि जनमत गलत और अशुद्ध है तो स्वाभाविक ही है कि नीतियां भी ठीक नहीं होंगी और राज्य प्रबन्ध भी ठीक नहीं होगा।

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प्रश्न 5.
स्वस्थ लोकमत के निर्माण के लिए कौन-सी शर्ते आवश्यक हैं ? (What conditions are essential for the formulation of Sound Public Opinion ?)
उत्तर-
शुद्ध जनमत के निर्माण के लिए विशेष अवस्थाओं की आवश्यकता होती है। शुद्ध जनमत के निर्माण में जो बाधाएं आती हैं, उनको दूर करके ही अवस्थाओं को उत्पन्न किया जा सकता है। शुद्ध जनमत के निर्माण के लिए अग्रलिखित अवस्थाएं आवश्यक हैं

1. शिक्षित जनता (Educated People)-शुद्ध जनमत के निर्माण के लिए जनता का होना आवश्यक है। शिक्षित नागरिक देश की समस्याओं को समझ सकता है और वह नेताओं के भड़कीले भाषणों को सुनकर अपने मत का निर्माण नहीं करता। वह सच, झूठ में अन्तर कर सकता है और वह प्रत्येक तर्क से काम लेता है। शिक्षित नागरिक देश की समस्याओं को सुलझाने के लिए अपने सुझाव भी दे सकता है अतः सरकार को चाहिए कि वह नागरिकों को शिक्षित करे।

2. निष्पक्ष प्रेस (Impartial Press)—शुद्ध जनमत के निर्माण के लिए निष्पक्ष प्रेस का होना आवश्यक है। प्रेस दलों और पूंजीपतियों से स्वतन्त्र होने चाहिएं ताकि सच्चे समाचार दे सकें और सरकार के अच्छे कार्यों की प्रशंसा कर सकें। सरकार का प्रेस पर कोई नियन्त्रण नहीं होना चाहिए ताकि प्रेस स्वतन्त्रतापूर्वक काम कर सके और सरकार बुरे कार्यों की आलोचना कर सके। पर सरकार को उन प्रेसों को बन्द कर देना चाहिए जो धर्म अथवा जाति पर आधारित होते हैं या जो पूंजीपतियों के हाथों की कठपुतली होते हैं। शुद्ध जनमत के निर्माण के लिए यह आवश्यक है कि प्रेस ईमानदार, निष्पक्ष और साम्प्रदायिक भावनाओं से ऊपर हों।

3. गरीबी का अन्त (End of Poverty)-शुद्ध जनमत के निर्माण के लिए यह आवश्यक है कि गरीबी का अन्त किया जाए। गरीब व्यक्ति, जिसे 24 घण्टे रोटी की चिन्ता रहती है, देश की समस्याओं पर नहीं सोच सकता। भूखा व्यक्ति उसी उम्मीदवार को अच्छा मानता है जो उसे रोटी-कपड़ा दे, चाहे वह उम्मीदवार देशद्रोही ही क्यों न हो। गरीब व्यक्ति अपने वोट को बेचने को सदा तैयार रहता है जिससे जनमत पूंजीपतियों के हाथों में आ जाता है। अतः शुद्ध जनमत के निर्माण के लिए यह आवश्यक है कि जनता को भर पेट भोजन मिलता हो, मज़दूरों का शोषण न होता हो और अकाल न पड़ते हों। ..

4. आदर्श शिक्षा प्रणाली (Ideal Education System)-देश की शिक्षा प्रणाली ऐसी होनी चाहिए कि विद्यार्थियों का दृष्टिकोण विशाल बन सके और वे साम्प्रदायिक भावनाओं से ऊपर उठकर देश के हित में सोच सकें अर्थात् आदर्श नागरिकों बन सकें।

5. राजनीतिक दल आर्थिक तथा राजनीतिक सिद्धान्तों पर आधारित होने चाहिएं (Political Parties should be based on Economic and Political Principles)-शुद्ध जनमत के निर्माण में राजनीतिक दलों का महत्त्वपूर्ण हाथ होता है। राजनीतिक दल धर्म अथवा जाति पर आधारित न होकर आर्थिक तथा राजनीतिक सिद्धान्तों पर आधारित होने चाहिएं। जो दल धर्म अथवा जाति पर आधारित होते हैं, वे अपने दल के हित में ही सोचते हैं न कि देश के हित में। ऐसे दल समाज में साम्प्रदायिक भावना का प्रचार करके जनता को गुमराह करते हैं।

6. धार्मिक सहिष्णुता (Religious Toleration)—शुद्ध जनमत के निर्माण के लिए यह आवश्यक है कि जनता में धार्मिक सहिष्णुता होनी चाहिए। नागरिक प्रत्येक समस्या पर उसके गुण तथा अवगुण के आधार पर अपने मत का निर्माण करे न कि धर्म की दृष्टि से प्रत्येक समस्या पर विचार करे। नागरिकों को धर्म, जाति, भाषा आदि से ऊपर उठ कर अपने मत का निर्माण करना चाहिए।

7. भाषण तथा विचार प्रकट करने की स्वतन्त्रता (Freedom of Speech and Expression)-शुद्ध जनमत के निर्माण के लिए यह आवश्यक है कि नागरिकों को भाषण देने तथा अपने विचार प्रकट करने की स्वतन्त्रता होनी चाहिए। नागरिकों को स्वतन्त्रता प्राप्त होनी चाहिए कि वे सरकार के बुरे कार्यों की आलोचना कर सकें और देश की समस्याओं को सुलझाने के लिए अपने सुझाव दे सकें। साधारण जनता विद्वानों तथा नेताओं के विचार सुनकर अपने मत का निर्माण करती है। यदि भाषण देने की स्वतन्त्रता नहीं होगी तो साधारण नागरिकों को विद्वानों और नेताओं के विचारों का ज्ञान न होगा जिससे शुद्ध जनमत का निर्माण नहीं हो सकेगा।

8. नागरिकों का उच्च चरित्र (High Character of the Citizens)-शुद्ध जनमत के निर्माण के लिए नागरिकों का चरित्र भी ऊंचा होना चाहिए। नागरिकों में सामाजिक एकता की भावना होनी चाहिए और उन्हें प्रत्येक समस्या पर राष्ट्रीय हित में सोचना चाहिए। उच्च चरित्र का नागरिक अपने वोट को नहीं बेचता और न ही झूठी बातों का प्रचार करता है। वह उन्हीं बातों तथा सिद्धान्तों का प्रचार करता है जिन्हें वह ठीक समझता है।

9. राष्ट्रीय आदर्शों की समरूपता (Uniformity over National Ideals)-स्वस्थ जनमत के निर्माण के लिए एक अनिवार्य तत्त्व यह है कि राष्ट्र के राज्य सम्बन्धी आदर्शों में जनता के मध्य अत्यधिक मतभेद नहीं होना चाहिए। जनता में राष्ट्रीय आदर्शों के विषय में एकता न होने की अवस्था में पारस्परिक कटुता और वैमनस्य इतना बढ़ जाएगा कि अराजकता फैलने की स्थिति आ जाएगी। ऐसी अवस्था में स्वस्थ जनमत का निर्माण नहीं हो सकता। इसके साथ ही राष्ट्र के तत्त्वों कम-से-कम विभिन्नता होनी चाहिए। जिस राष्ट्र में धर्म, भाषा, संस्कृति, प्राचीन इतिहास तथा राजनीतिक परम्पराओं के मध्य विभिन्नता होगी, वहां इन विषयों से सम्बद्ध सार्वजनिक नीतियों के सम्बन्ध में स्वस्थ जनमत के निर्माण में बड़ी बाधा पहुंचती है। उदाहरण के लिए भारत में भाषा की समस्या का हल अभी तक सन्तोषजनक नहीं हुआ है। स्वतन्त्रता के इतने वर्ष के पश्चात् भी अंग्रेजी की समाप्ति के प्रश्न पर स्वस्थ जनमत का निर्माण नहीं हो पाया है।

10. सहनशीलता एवं सहयोग की भावना (Spirit of toleration and co-operation)-शुद्ध जनमत के निर्माण के लिए लोगों में एक दूसरे के प्रति सहनशीलता एवं सहयोग की भावना का होना आवश्यक है। इन भावनाओं के अभाव में व्यक्ति दूसरे के विचार को नहीं सुन सकेगा जबकि उचित विचार वाद-विवाद के बाद ही सामने आते हैं। अतः सहनशीलता एवं परस्पर सहयोग की भावनाओं का विकास किया जाना चाहिए।

11. स्वस्थ दलीय प्रणाली (Healthy Party System)–लोकतान्त्रिक राज्यों में स्वस्थ दलीय प्रणाली भी जनमत बनाने में सहायक होती है। अतः राजनीतिक दलों का आधार ठीक होना चाहिए।
ऊपरलिखित अवस्थाओं के होने से ही शुद्ध जनमत का निर्माण हो सकता है।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 10 जनमत

लघु उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
जनमत से आपका क्या भाव है ?
उत्तर-
जनमत सार्वजनिक मामलों पर जनता की राय को कहते हैं, परन्तु किसी भी विषय पर समस्त नागरिक एकमत नहीं हो सकते । जनमत बहुमत नहीं है क्योंकि बहुमत में बहुमत संख्या का अपना दृष्टिकोण रहता है, समस्त राष्ट्र का नहीं। बहुमत का मत जनमत बन सकता है यदि उसमें जनसाधारण की भलाई छिपी हुई हो। डॉ० बेनी प्रसाद ने ठीक ही कहा है कि, “केवल उसी मत को वास्तविक जनमत कहा जा सकता है जिसका उद्देश्य जनता का कल्याण है।” लॉर्ड ब्राइस के अनुसार, “समस्त समाज से सम्बन्धित किसी समस्या पर जनता के सामूहिक विचारों को जनमत कहा जा सकता है” लावेल के अनुसार, “जनमत बनाने के लिए केवल बहुमत काफ़ी नहीं और सर्वसम्मति आवश्यक नहीं, परन्तु राय ऐसी होनी चाहिए जिससे अल्पसंख्यक वर्ग बेशक सहमत न हो, लेकिन फिर भी वह भय के कारण नहीं बल्कि विश्वास से मानने को तैयार हो।” इस प्रकार हम कह सकते हैं कि सार्वजनिक मामलों पर बहुसंख्यक का वह मत जिसे अल्पसंख्यक भी अपने हितों के विरुद्ध नहीं मानते, जनमत कहलाता है।

प्रश्न 2.
जनमत की कोई चार विशेषताएं लिखें।
उत्तर-

  • आम सहमति-जनमत की मुख्य विशेषता यह है कि इसमें आम सहमति होनी चाहिए। इसका अर्थ यह है कि किसी मामले पर सभी लोगों की एक राय हो।
  • जनता की भलाई-जनमत की दूसरी विशेषता जनता की भलाई है। जिस मत में जनता की भलाई निहित न हो वह मत जनमत नहीं बन सकता है।
  • तथ्यों पर आधारित-जनमत तथ्यों पर आधारित और तर्कों से भरपूर होना चाहिए। आम जनता को जनमत को स्वीकार करते समय यह देखना चाहिए कि यह तर्क पर आधारित है या नहीं।
  • जनमत का रूप सकारात्मक होता है।

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प्रश्न 3.
जनमत के निर्माण में शैक्षणिक संस्थाएं क्या भूमिका निभाती हैं ?
अथवा
लोकमत के निर्माण में शिक्षा संस्थानों की क्या भूमिका है?
उत्तर-
आज के विद्यार्थी कल के नागरिक हैं। विद्यार्थी अपने मत का प्रयोग प्रायः अपने अध्यापकों के विचारों को सुन कर करते हैं। स्कूलों और कॉलेजों में इतिहास, नागरिक शास्त्र, अर्थशास्त्र आदि अनेक विषय पढ़ाए जाते हैं, जिससे विद्यार्थियों के विचारों पर बहुत प्रभाव पड़ता है। नागरिक शास्त्र के अध्यापक विशेषकर पढ़ाते समय सरकार के कार्यों के उदाहरण देते हैं और कई अध्यापक सरकार की कड़ी आलोचना करते हैं तथा अपने विचारों को प्रकट करते हैं। अध्यापकों के विचारों का विद्यार्थी के मन पर बहुत प्रभाव पड़ता है। इसके अतिरिक्त स्कूलों और कॉलेजों में विभिन्न विषयों और समस्याओं पर वाद-विवाद तथा भाषण प्रतियोगिता होती रहती है। साहित्यिक गोष्ठियां (Study Circles) भी होती रहती हैं जिनमें विद्वानों तथा नेताओं को बुलाया जाता है। इस प्रकार शिक्षण संस्थाएं विद्यार्थियों के विचारों को बहुत प्रभावित करती हैं।

प्रश्न 4.
स्वस्थ लोकमत के निर्माण के लिए चार ज़रूरी शर्ते लिखो।
अथवा
स्वस्थ जनमत के निर्माण के लिए आवश्यक चार शर्ते लिखो। ।
उत्तर-
1. शिक्षित जनता-स्वस्थ जनमत के निर्माण के लिए जनता का शिक्षित होना आवश्यक है। शिक्षित नागरिक देश की समस्याओं को समझ सकता है तथा समस्याओं को हल करने के लिए सुझाव भी दे सकता है।

2. निष्पक्ष प्रेस-स्वस्थ जनमत के निर्माण के लिए निष्पक्ष प्रेस का होना आवश्यक है। प्रेस अर्थात् समाचार-पत्र राजनीतिक दलों और पूंजीपतियों से स्वतन्त्र होने चाहिए ताकि सच्चे समाचार दे सकें और सरकार के अच्छे कार्यों की प्रशंसा कर सकें। स्वस्थ जनमत के निर्माण के लिए यह आवश्यक है कि प्रेस ईमानदार, निष्पक्ष और साम्प्रदायिक भावनाओं से ऊपर हो।

3. ग़रीबी का अन्त-शुद्ध जनमत के निर्माण के लिए आवश्यक है कि ग़रीबी का अन्त किया जाए। ग़रीब व्यक्ति जिसे 24 घण्टे रोटी की चिन्ता रहती है, देश की समस्याओं पर नहीं सोच सकता। अतः शुद्ध जनमत के निर्माण के लिए यह आवश्यक है कि जनता को भर पेट भोजन मिलता हो, मजदूरों का शोषण न होता हो और अकाल न पड़ते हों।

4. राजनीतिक दल आर्थिक तथा राजनीतिक सिद्धान्तों पर आधारित होने चाहिए।

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प्रश्न 5.
दबाव समूह कानून निर्माण में किस प्रकार सहायता करते हैं ?
उत्तर-
वर्तमान समय में दबाव समूह सरकार की कानून निर्माण में काफ़ी सहायता करते हैं । जब संसद् की विभिन्न समितियाँ किसी बिल पर विचार-विमर्श कर रही होती है, तब वे अलग-अलग दबाव समूहों को अपना पक्ष रखने के लिए कहती हैं। दबाव समूह उस बिल के कारण उन पर पड़ने वाले सकारात्मक एवं नकारात्मक प्रभाव की बात कहते हैं। इस प्रकार अपने दृढ़ पक्ष से दबाव समूह कानून निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। संसद् की विभिन्न समितियां भी इनके विचारों, तर्कों एवं आंकड़ों को महत्त्व देती हैं।

प्रश्न 6.
स्वस्थ जनमत के निर्माण के रास्ते में आने वाली चार बाधाएं लिखो।
उत्तर-
स्वस्थ जनमत के निर्माण में मुख्य बाधाएं निम्नलिखित हैं –

  • अनपढ़ता तथा अज्ञानता-अनपढ़ता तथा अज्ञानता स्वस्थ जनमत के निर्माण में बहुत बड़ी बाधा है। अनपढ़ता और अज्ञानता के फलस्वरूप जनता की सोचने की शक्ति तथा मनोवृत्ति संकुचित हो जाती है।
  • निर्धनता-निर्धनता स्वस्थ जनमत के मार्ग में एक महत्त्वपूर्ण बाधा है। निर्धन व्यक्ति आर्थिक समस्याओं में जकड़ा रहता है। जहां ग़रीबी होती है वहां जनमत का निर्माण नहीं हो पाता।
  • आलस्य और उदासीनता-आलस्य और उदासीनता स्वस्थ जनमत के निर्माण में बाधा है। यदि किसी देश के नागरिक आलसी और सार्वजनिक समस्या के प्रति उदासीन हों तो शुद्ध जनमत का निर्माण नहीं हो पाता।
  • दोषणपूर्ण शिक्षा प्रणाली भी स्वस्थ लोकमत के निर्माण में एक बाधा है।

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प्रश्न 7.
लोकतन्त्र में लोकमत की क्या भूमिका है ?
उत्तर-
लोकतन्त्रीय राज्य में जनमत का बहुत अधिक महत्त्व है। रूसो के शब्दों में, “जनता की आवाज़ वास्तव में भगवान् की आवाज़ होती है।” लोकतन्त्र में जनमत का महत्त्व निम्नलिखित तथ्यों से स्पष्ट हो जाता है-

  • लोकतन्त्र शासन प्रणाली में सरकार का आधार जनमत होता है-लोकतन्त्र में सरकार जनता के प्रतिनिधियों द्वारा बनाई जाती है। कोई भी सरकार जनमत के विरुद्ध नहीं जा सकती। सरकार सदैव जनमत को अपने पक्ष में रखने के लिए जनता में अपनी नीतियों का प्रचार करती रहती है। जो सरकार जनमत के विरुद्ध काम करती है वह शीघ्र ही हटा दी जाती है।
  • जनमत सरकार का मार्गदर्शक है-जनमत लोकतन्त्रीय सरकार का आधार ही नहीं बल्कि मार्गदर्शक भी है। जनमत सरकार को रास्ता दिखाता है कि उसे क्या करना है और किस तरह करना है। सरकार कानूनों का निर्माण करते समय जनमत का ध्यान अवश्य रखती है।
  • जनमत प्रतिनिधियों की निरंकुशता को नियन्त्रित करता है-लोकतन्त्र में जनता अपने प्रतिनिधियों का चुनाव करती है और जिस दल के पक्ष में जनमत होता है, उस दल की सरकार बनती है। कोई भी प्रतिनिधि अथवा मन्त्री अपनी मनमानी नहीं कर सकता। उन्हें सदैव जनमत के विरोध का डर रहता है।
  • लोकतन्त्र में कानून निर्माण में जनमत का महत्त्वपूर्ण हाथ होता है।’

प्रश्न 8.
जनमत के निर्माण और अभिव्यक्ति के कोई चार साधन लिखें।
अथवा
जनमत के निर्माण में प्रेस, रेडियो और टेलीविज़न की क्या भूमिका है।
अथवा
जनमत के निर्माण और अभिव्यक्ति के कोई तीन साधन लिखो।
उत्तर-
लोकमत के निर्माण में प्रेस, राजनीतिक दल, टेलीविज़न इत्यादि महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

  • प्रेस-समाचार-पत्र, पत्र-पत्रिकाएं इत्यादि जनमत के निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। समाचार-पत्र लाखों व्यक्ति पढ़ते हैं उनके मतों पर समाचार-पत्रों का बहुत प्रभाव पड़ता है।
  • राजनीतिक दल-राजनीतिक दल जनमत को अपने पक्ष में करने का प्रयत्न करते हैं। राजनीतिक दल समाचारपत्रों द्वारा, सार्वजनिक सभाओं द्वारा, रेडियो द्वारा तथा घर-घर जाकर अपने सिद्धान्तों का प्रचार करते हैं। देश की समस्याओं पर अपने विचार जनमत को बताते हैं। राजनीतिक दल अपने सिद्धान्तों का प्रचार करते हैं। इन सब तरीकों से जनमत के निर्माण में सहायता मिलती है।
  • रेडियो और टेलीविज़न-रेडियो और टेलीविज़न जनता का मनोरंजन ही नहीं करते बल्कि जनता को देश-विदेश की समस्याओं से भी अवगत कराते हैं। राजनीतिक दलों के नेता, प्रधानमन्त्री, राष्ट्रपति तथा बड़े-बड़े विद्वान् अपने विचारों को रेडियो तथा टेलीविज़न द्वारा जनता तक पहुंचाते हैं। अनपढ़ व्यक्ति विशेषकर रेडियो तथा टेलीविज़न से काफ़ी प्रभावित होते हैं।
  • शैक्षिक संस्थाएं-शैक्षिक संस्थाएं भी जनमत निर्माण में महत्त्वपूर्ण योगदान देती हैं । अध्यापक अध्यापन के समय कई महत्त्वपूर्ण मामलों सम्बन्धी अपने विचार भी अभिव्यक्त करते हैं जिनका विद्यार्थियों पर व्यापक प्रभाव पड़ता है।
    सहा

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अति लघु उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
जनमत क्या होता है?
उत्तर-
जनमत सार्वजनिक मामलों पर जनता की राय को कहते हैं, परन्तु किसी भी विषय पर समस्त नागरिक एकमत नहीं हो सकते । जनमत बहुमत नहीं है क्योंकि बहुमत में बहुमत संख्या का अपना दृष्टिकोण रहता है, समस्त राष्ट्र का नहीं। बहुमत का मत जनमत बन सकता है यदि उसमें जनसाधारण की भलाई छिपी हुई हो।

प्रश्न 2.
जनमत की दो परिभाषाएं लिखें।
उत्तर-

  1. डॉ० बेनी प्रसाद के अनुसार, “केवल उसी मत को वास्तविक जनमत कहा जा सकता है जिसका उद्देश्य जनता का कल्याण है।”
  2. लॉर्ड ब्राइस के अनुसार, “समस्त समाज से सम्बन्धित किसी समस्या पर जनता के सामूहिक विचारों को जनमत कहा जा सकता है।”

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प्रश्न 3.
जनमत की कोई दो विशेषताएं लिखें।
उत्तर-

  • आम सहमति-जनमत की मुख्य विशेषता यह है कि इसमें आम सहमति होनी चाहिए। इसका अर्थ यह कि किसी मामले पर सभी लोगों की एक राय हो।
  • जनता की भलाई-जनमत की दूसरी विशेषता जनता की भलाई है। जिस मत में जनता की भलाई निहित न हो वह मत जनमत नहीं बन सकता है।

प्रश्न 4.
अच्छे व स्वस्थ लोकमत (जनमत) के लिए दो जरूरी शर्ते बताएं।
उत्तर-

  • शिक्षित जनता-स्वस्थ जनमत के निर्माण के लिए जनता का शिक्षित होना आवश्यक है। शिक्षित नागरिक देश की समस्याओं को समझ सकता है और समस्याओं को हल करने के लिए सुझाव भी दे सकता है।
  • निष्पक्ष प्रेस-स्वस्थ जनमत के निर्माण के लिए निष्पक्ष प्रेस का होना आवश्यक है। प्रेस अर्थात् समाचार-पत्र राजनीतिक दलों और पूंजीपतियों से स्वतन्त्र होने चाहिएं ताकि सच्चे समाचार दे सकें और सरकार के अच्छे कार्यों की प्रशंसा कर सकें।

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प्रश्न 5.
स्वस्थ लोकमत के निर्माण में आने वाली किन्हीं जो रुकावटों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-

  • अनपढ़ता तथा अज्ञानता-अनपढ़ता तथा अज्ञानता स्वस्थ जनमत के निर्माण में बहुत बड़ी बाधा हैं। अनपढ़ता और अज्ञानता के फलस्वरूप जनता की सोचने की शक्ति तथा मनोवृत्ति संकुचित हो जाती है।
  • निर्धनता-निर्धनता स्वस्थ जनमत के मार्ग में एक महत्त्वपूर्ण बाधा है। निर्धन व्यक्ति आर्थिक समस्याओं में जकड़ा रहता है। जहां ग़रीबी होती है वहां जनमत का निर्माण नहीं हो पाता।

प्रश्न 6.
लोकतन्त्र में लोकमत का क्या महत्त्व है ?
उत्तर-

  • लोकतन्त्र शासन प्रणाली में सरकार का आधार जनमत होता है-लोकतन्त्र में सरकार जनता के प्रतिनिधियों द्वारा बनाई जाती है। कोई भी सरकार जनमत के विरुद्ध नहीं जा सकती है। जो सरकार जनमत के विरुद्ध काम करती है वह शीघ्र ही हटा दी जाती है।
  • जनमत सरकार का मार्गदर्शक है-जनमत लोकतन्त्रीय सरकार का आधार ही नहीं बल्कि मार्गदर्शक भी है।

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प्रश्न 7.
जनमत के निर्माण और अभिव्यक्ति के कोई दो साधन लिखो।
उत्तर-
1. प्रेस-समाचार-पत्र, पत्र-पत्रिकाएं इत्यादि जनमत के निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। समाचारपत्रों में देश-विदेश की घटनाओं और समस्याओं को छापा जाता है। समाचार-पत्र जनता की शिकायतें सरकार तक पहुंचाते हैं और सरकार की गलत नीतियों की आलोचना करते हैं। समाचार-पत्र लाखों व्यक्ति पढ़ते हैं। उनके मतों पर समाचार-पत्र का बहुत प्रभाव पड़ता है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न-

प्रश्न I. एक शब्द/वाक्य वाले प्रश्न-उत्तर

प्रश्न 1.
जनमत से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
जनमत से हमारा अभिप्राय सार्वजनिक मामलों पर जनता की राय से है।

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प्रश्न 2.
लोकमत की एक परिभाषा लिखो।
उत्तर-
प्रो० ब्राईस के अनुसार, “समस्त समाज से सम्बन्धित समस्या पर जनता के सामूहिक विचारों को जनमत कहा जाता है।”

प्रश्न 3.
क्या बहुमत की राय को जनमत कहा जा सकता है? ,
उत्तर-
केवल बहुमत की राय को ही जनमत नहीं कहा जा सकता।

प्रश्न 4.
प्रेस जनमत के निर्माण में क्या भूमिका निभाता है ?
उत्तर-
प्रेस जनता को दैनिक घटनाओं और समाचारों से परिचित रखता है। ये सरकार के कार्यों पर टीका-टिप्पणी करते हैं और उनके कार्यों की प्रशंसा और आलोचना करते हैं।

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प्रश्न 5.
जनमत के निर्माण में राजनीतिक दल क्या भूमिका निभाते हैं ? .
उत्तर-
राजनीतिक दल लोगों के सामने देश की विभिन्न समस्याओं पर अपने विचार रखते हैं और समस्याओं को हल करने के लिए अपना कार्यक्रम प्रस्तुत करते हैं।

प्रश्न 6.
स्वस्थ लोकमत के निर्माण के मार्ग में कोई दो कठिनाइयां लिखो।
अथवा
लोकमत निर्माण में एक रुकावट लिखो।
उत्तर-

  1. अनपढ़ता
  2. पक्षपाती प्रेस।

प्रश्न 7.
जनमत के निर्माण का कोई एक साधन लिखो।
उत्तर-
राजनीतिक दल।

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प्रश्न 8.
रेडियो तथा टेलीविज़न जनमत के निर्माण में कैसे सहायक होते हैं ?
उत्तर-
रेडियो तथा टेलीविज़न द्वारा नेताओं के विचार लोगों तक पहुँचते हैं, तथा लोगों को राजनीतिक शिक्षा मिलती है।

प्रश्न 9.
जनमत की कोई एक विशेषता लिखो।
उत्तर-
जनमत तर्कसंगत होता है।

प्रश्न 10.
लोकमत के निर्माण और प्रकटावे के दो साधन लिखो।
अथवा
जनमत के निर्माण के दो साधन लिखें।
उत्तर-

  1. प्रेस
  2. राजनीतिक दल।

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प्रश्न II. खाली स्थान भरें-

1. ………… की आवाज परमात्मा की ……………. होती है।
2. नेपोलियन के अनुसार एक लाख तलवारों की अपेक्षा मुझे तीन ………… से अधिक भय है।
3. ……….. सार्वजनिक मामलों पर जनता की राय को कहते हैं।
4. कैरोल के अनुसार साधारण प्रयोग में जनमत साधारण जनता की ……… को कहते हैं।
5. ………. में लोकमत को बढ़ावा मिलता है।
6. लोकतन्त्र शासन प्रणाली में …………. का आधार जनमत होता है।
उत्तर-

  1. जनता, आवाज
  2. समाचार-पत्रों
  3. जनमत
  4. मिली-जुली प्रतिक्रिया
  5. लोकतन्त्र
  6. सरकार।

प्रश्न III. निम्नलिखित वाक्यों में से सही एवं ग़लत का चुनाव करें-

1. जनमत सरकार को निरंकुश बनने से रोकता है।
2. देश की बहुसंख्यक जनता के मत को जनमत कहते हैं।
3. जनमत नागरिकों के अधिकारों और स्वतन्त्रता को सुरक्षा प्रदान करता है।
4. श्रेष्ठ जनमत के निर्माण के लिए सबसे आवश्यक शर्त जनता का अशिक्षित होना है।
5. रेडियो और सिनेमा जनमत के निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
उत्तर-

  1. सही
  2. ग़लत
  3. सही
  4. ग़लत
  5. सही।

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प्रश्न IV. बहुविकल्पीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
निम्नलिखित में से कौन-सा तत्त्व स्वस्थ जनमत को बढ़ावा देता है ?
(क) साम्यवाद
(ख) जातिवाद
(ग) क्षेत्रवाद
(घ) स्वतन्त्र प्रेस।
उत्तर-
(घ) स्वतन्त्र प्रेस।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित में जनमत निर्माण का साधन है-
(क) प्रेस
(ख) सार्वजनिक सभाएं
(ग) राजनीतिक
(घ) उपरोक्त।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 10 जनमत

प्रश्न 3.
लोकतान्त्रिक सरकार की सफलता किस पर निर्भर करती है ?
(क) तानाशाह पर
(ख) क्षेत्रवाद पर
(ग) जातिवाद पर
(घ) जनमत पर।
उत्तर-
(घ) जनमत पर।

प्रश्न 4.
“एक लाख तलवारों की अपेक्षा मुझे तीन समाचार-पत्रों से अधिक भय है।” यह किसका कथन है?
(क) नेपोलियन
(ख) रूसो
(ग) हिटलर
(घ) मुसोलिनी।
उत्तर-
(क) नेपोलियन

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 10 जनमत

प्रश्न 5.
जनमत बनाने के लिए केवल बहुमत काफ़ी नहीं और सर्वसम्मति आवश्यक नहीं है।” यह किसका कथन
(क) डॉ० बेनी प्रसाद
(ख) लावेल
(ग) श्रीनिवास शास्त्री
(घ) लॉस्की ।
उत्तर-
(ख) लावेल

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 18 ऐंग्लो-सिख संबंध : 1800-1839

Punjab State Board PSEB 12th Class History Book Solutions Chapter 18 ऐंग्लो-सिख संबंध : 1800-1839 Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 History Chapter 18 ऐंग्लो-सिख संबंध : 1800-1839

निबंधात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

प्रथम चरण 1800-09 ई० (First Stage 1800-09 A.D.)

प्रश्न 1.
आलोचनात्मक दृष्टिकोण से 1800 से 1809 तक के अंग्रेज़-सिख संबंधों का अध्ययन कीजिए।
(Study the Anglo-Sikh relations from 1800 to 1809 from a critical point of view.)
अथवा
रणजीत सिंह के अंग्रेज़ों के साथ 1800 से 1809 ई० तक संबंधों का आलोचनात्मक विवरण दीजिए। (Critically examine Ranjit Singh’s relations with the British from 1800 to 1809.)
अथवा
अमृतसर की संधि जिन परिस्थितियों में हुई उनकी पड़ताल कीजिए। इसकी क्या धाराएँ.थीं तथा इससे महाराजा रणजीत सिंह और अंग्रेजों को क्या लाभ हुए ?
(Examine the circumstances leading to the Treaty of Amritsar in 1809. What were its terms and respective advantages derived from it by the Maharaja Ranjit Singh and the British from it ?)
अथवा
किन परिस्थितियों के कारण 1809 ई० में अमृतसर की संधि हुई ? इस संधि का महत्त्व बताइए।
(Discuss the circumstances leading to the Treaty of Amritsar (1809). Examine the significance of this treaty.)
अथवा
अमृतसर की संधि के बारे में आप क्या जानते हैं ? इस संधि के कारण महाराजा रणजीत सिंह तथा अंग्रेज़ों को क्या लाभ प्राप्त हुए ?
(What do you know about the Treaty of Amritsar ? What was gained by Maharaja Ranjit Singh and the English by this Treaty ?)
उत्तर-
अंग्रेज़ दीर्घकाल से पंजाब की ओर ललचाई दृष्टि से देख रहे थे। दूसरी ओर रणजीत सिंह भी समस्त पंजाब पर अपना एक-छत्र राज कायम करना चाहता था। दोनों धड़ों की साम्राज्यवादी महत्त्वाकाँक्षाओं ने परस्पर संबंधों को महत्त्वपूर्ण ढंग से प्रभावित किया। 1800-09 ई० तक महाराजा रणजीत सिंह और अंग्रेज़ों के मध्य संबंधों का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है—

1. यूसुफ अली का मिशन 1800 ई० (Mission of Yusuf Ali 1800 A.D.)-महाराजा रणजीत सिंह ने अफ़गानिस्तान के शासक शाह जमान से मित्रतापूर्ण संबंध स्थापित कर लिये थे। इस कारण अंग्रेज़ी सरकार को यह ख़तरा हो गया कि कहीं शाह जमान तथा महाराजा रणजीत सिंह मिलकर अंग्रेज़ों पर आक्रमण न कर दें। अंग्रेज़ों ने 1800 ई० में यूसुफ अली को अपना प्रतिनिधि बनाकर महाराजा रणजीत सिंह के दरबार में भेजा। परंतु यह मिशन अभी मार्ग में ही था कि अफ़गानिस्तान में राजगद्दी के लिये गृह युद्ध शुरू हो गया। शाह जमान के आक्रमण की संभावना समाप्त हो जाने के कारण यूसुफ अली को वापस बुला लिया गया। इस कारण यह मिशन केवल एक सद्भावना मिशन तक ही सीमित रहा।

2. होलकर का पंजाब आना 1805 ई० (Holkar’s visit to Punjab 1805 A.D.)-1805 ई० में अंग्रेजों से पराजित होकर मराठा सरदार जसवंत राव होलकर महाराजा रणजीत सिंह से अंग्रेजों के विरुद्ध सहायता लेने के लिये पंजाब आया। ऐसी स्थिति में महाराजा ने बहुत सूझ-बूझ से काम किया। उसने होलकर को सहायता देने से इंकार कर दिया। वह एक पराजित शासक की सहायता करके अंग्रेजों से टक्कर मोल नहीं लेना चाहता था।

3. लाहौर की संधि 1806 ई० (Treaty of Lahore 1806 A.D.)-क्योंकि महाराजा रणजीत सिंह ने होलकर की कोई सहायता नहीं की थी इस कारण अंग्रेज़ महाराजा रणजीत सिंह पर बहुत प्रसन्न हुए । उन्होंने 1 जनवरी, 1806 ई० को लाहौर में महाराजा रणजीत सिंह के साथ एक संधि की। इस संधि के अनुसार महाराजा रणजीत सिंह ने यह स्वीकार किया कि वह होलकर की कोई सहायता नहीं करेगा तथा उसको अमृतसर में से शांतिपूर्वक निकल जाने की अनुमति देगा। अंग्रेज़ों ने यह माना कि वे महाराजा रणजीत सिंह के राज्य में कोई हस्तक्षेप नहीं करेंगे।

4. नेपोलियन का ख़तरा (Napoleonic Danger)-इस समय अंतर्राष्ट्रीय परिस्थितियों में एक महत्त्वपूर्ण परिवर्तन आया। 1807 ई० में नेपोलियन ने रूस के साथ टिलसिट की संधि पर हस्ताक्षर किये। इस संधि के अनुसार रूस ने नेपोलियन को भारत पर आक्रमण करने के समय पूरा सहयोग देने का वचन दिया। नेपोलियन के बढ़ते हुए प्रभाव के कारण भारत में अंग्रेज़ी सरकार घबरा गई। उसने स्थिति का सामना करने के लिए महाराजा रणजीत सिंह के साथ मित्रता करने का निर्णय किया।

5. मैटकॉफ का प्रथम मिशन (Matcalfe’s First Mission)-अंग्रेज़ों ने महाराजा रणजीत सिंह के साथ संधि करने के लिये चार्ल्स मैटकॉफ को भेजा। वह 11 सितंबर, 1808 ई० को महाराजा को खेमकरण में मिला। यहाँ उसने अंग्रेजी सरकार के प्रस्ताव महाराजा रणजीत सिंह के समक्ष रखे। संधि के बदले महाराजा रणजीत सिंह ने अंग्रेजों के समक्ष ये शर्त रखीं—

  • उसको सभी सिख रियासतों का शासक माना जाये।
  • काबुल के शासक के साथ युद्ध के समय अंग्रेज़ तटस्थ रहेंगे परंतु यह बातचीत स्थगित कर दी गई।

6. मैटकॉफ का द्वितीय मिशन (Metcalfe’s Second Mission)–नेपोलियन स्पेन की लड़ाई में उलझ गया था। इस कारण उसका भारत पर आक्रमण का ख़तरा टल गया। अब अंग्रेजों ने महाराजा रणजीत सिंह के बढ़ते हुए प्रभाव को रोकने का निर्णय किया। इस संबंध में चार्ल्स मैटकॉफ 10 दिसंबर, 1808 ई० को महाराजा रणजीत सिंह को अमृतसर में मिला। परंतु इस बातचीत का भी कोई परिणाम न निकला।

7. लड़ाई की तैयारियाँ (Warfare Preparations)-अंग्रेज़ों ने अपनी शर्ते मनवाने के लिए लड़ाई की तैयारियां शुरू कर दी। उन्होंने फरवरी, 1809 ई० में सर डेविड आक्टरलोनी के नेतृत्व में एक सेना लुधियाना में भेजी। महाराजा रणजीत सिंह ने भी दीवान मोहकम चंद को फिल्लौर में नियुक्त किया। किसी समय भी लड़ाई शुरू हो सकती थी परंतु अंतिम क्षणों में महाराजा रणजीत सिंह ने अंग्रेज़ों की शर्तों को स्वीकार कर लिया।

8. अमृतसर की संधि 1809 ई० (Treaty of Amritsar 1809 A.D.)-महाराजा रणजीत सिंह तथा अंग्रेजों में 25 अप्रैल, 1809 ई० को अमृतसर की संधि हुई। इस संधि के अनुसार सतलुज नदी को महाराजा रणजीत सिंह के राज्य की पूर्वी सीमा स्वीकार कर लिया गया। अब वह सतलुज पार के प्रदेशों पर कोई आक्रमण नहीं करेगा। अंग्रेजों ने महाराजा को सतलुज के इस ओर का स्वतंत्र शासक स्वीकार कर लिया। दोनों ने एक दूसरे के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करने का निर्णय किया। ऐसा करने की स्थिति में संधि को रद्द समझा जायेगा।

9. अमृतसर की संधि की रणजीत सिंह को हानियाँ (Disadvantages of Treaty of Amritsar to Ranjit Singh)-1809 ई० में हुई अमृतसर की संधि की रणजीत सिंह को निम्नलिखित हानियाँ हुईं–

  • इस संधि के चलते महाराजा रणजीत सिंह का संपूर्ण सिख कौम के महाराजा बनने का स्वप्न. धूल में मिल गया।
  • इस संधि के कारण महाराजा रणजीत सिंह की प्रतिष्ठा को एक गहरा आघात लगा।
  • इस संधि के कारण अंग्रेजों के लिए पंजाब को हड़पना सुगम हो गया।
  • इस संधि के कारण महाराजा रणजीत सिंह सतलुज पार के क्षेत्रों पर अधिकार न कर सका। इस कारण उसे भारी क्षेत्रीय एवं आर्थिक हानि हुई।

10. अमृतसर की संधि के रणजीत सिंह को लाभ (Advantages of Treaty of Amritsar to Ranjit Singh)-1809 ई० में हुई अमृतसर की संधि के रणजीत सिंह को निम्नलिखित लाभ हुए—

  • महाराजा ने अंग्रेज़ों के साथ संधि करके पंजाब राज्य को नष्ट होने से बचा लिया। रणजीत सिंह अगर अंग्रेजों के साथ टक्कर लेता तो उसे अपना राज्य गंवाना पड़ता।
  • अमृतसर की संधि से महाराजा रणजीत सिंह के राज्य की पूर्वी सीमा सुरक्षित हो गई। परिणामस्वरूप महाराजा उत्तर पश्चिम के महत्त्वपूर्ण प्रदेशों जैसे अटक, मुलतान, कश्मीर तथा पेशावर को पंजाब राज्य में सम्मिलित करने में सफल रहा।

11. अमृतसर की संधि से अंग्रेजों को लाभ (Advantages of Treaty of Amritsar to the British)अमृतसर की संधि से अंग्रेज़ों को निम्नलिखित लाभ हुए–

  • अंग्रेज़ों ने बिना किसी नुकसान के ही रणजीत सिंह को पूर्व की ओर बढ़ने से रोक दिया।
  • अंग्रेजों को काफ़ी प्रादेशिक लाभ हुआ। उनका साम्राज्य जमुना नदी से लेकर सतलुज नदी तक फैल गया।
  • अंग्रेज़ अपना ध्यान भारत की अन्य शक्तियों का दमन करने में लगा सके।
  • पंजाब अफ़गानिस्तान तथा अंग्रेज़ों के मध्य एक मध्यवर्ती राज्य बन गया।
  • अंग्रेज़ी ईस्ट इंडिया के सम्मान में काफ़ी वृद्धि हुई।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 18 ऐंग्लो-सिख संबंध : 1800-1839

दूसरा चरण 1809-39 ई० (Second Stage 1809-39 A.D.)

प्रश्न 2.
1809 से 1839 तक ऐंग्लो-सिख संबंधों का वर्णन करो।
(Describe the Anglo-Sikh relations during 1809-1839.)
अथवा
1809 से 1839 तक महाराजा रणजीत सिंह तथा अंग्रेजों के संबंधों की मुख्य विशेषताएँ बताएँ । (Give the main features of the relations between Maharaja Ranjit Singh and the British during 1809 to 1839 A.D.)
अथवा 1809 से 1839 ई० तक महाराजा रणजीत सिंह के संबंधों का आलोचनात्मक वर्णन करें। (Critically discuss the Anglo-Sikh relations from 1809 to 1839 A.D.)
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह तथा अंग्रेज़ों के मध्य 25 अप्रैल, 1809 ई० को अमृतसर की संधि हुई। इससे अंग्रेज़-सिख संबंधों में नए युग का सूत्रपात हुआ। इस संधि के बाद महाराजा रणजीत सिंह और अंग्रेज़ों के मध्य रहे संबंधों का आलोचनात्मक वर्णन निम्नलिखित है—

1. कुछ संदेह तथा अविश्वास का समय (Period of some Distrust and Suspicion)-अमृतसर की संधि के बावजूद अंग्रेज़ों तथा महाराजा के बीच 1809 ई० से 1812 ई० तक परस्पर संदेह तथा अविश्वास का वातावरण बना रहा। दोनों ही पक्षों ने एक-दूसरे की सैनिक तथा कूटनीतिक योजनाओं के बारे जानकारी प्राप्त करने के लिए अपने जासूस छोड़े हुए थे। अंग्रेजों ने लुधियाना में एक शक्तिशाली सैनिक छावनी स्थापित कर ली। दूसरी ओर महाराजा रणजीत सिंह ने भी फिल्लौर में एक किले का निर्माण करवाया।

2. संबंधों में सुधार (Improvement in the Relations)-धीरे-धीरे महाराजा रणजीत सिंह तथा अंग्रेजों के बीच संदेह दूर होने शुरू हो गए। 1812 ई० में महाराजा रणजीत सिंह ने डेविड आक्टरलोनी को कुंवर खड़क सिंह के विवाह पर निमंत्रण दिया। लाहौर दरबार में पहुँचने पर उसका हार्दिक अभिनंदन किया गया। 1812 ई० से लेकर 1821 ई० तक के समय दौरान अंग्रेज़ों तथा महाराजा रणजीत सिंह ने एक दूसरे के मामलों में कोई हस्तक्षेप नहीं किया।

3. वदनी की समस्या (Problem of Wadni)-1822 ई० में वदनी गाँव के स्वामित्व के बारे अंग्रेज़ों तथा महाराजा रणजीत सिंह के परस्पर संबंधों में कुछ समय के लिये तनाव पैदा हो गया। अंग्रेजों ने वदनी में से महाराजा रणजीत सिंह की सेना को निकाल दिया। इस कारण महाराजा रणजीत सिंह को बहुत क्रोध आया परंतु उसने लड़ाई नहीं की।

4. संबंधों में सुधार (Cordiality Restored)-1823 ई० में वेड जो कि लुधियाना में अंग्रेजों का पुलीटीकल एजेंट था, के हस्तक्षेप करने पर वदनी का क्षेत्र महाराजा रणजीत सिंह को वापस सौंप दिया गया। महाराजा रणजीत सिंह ने भी 1824 ई० में जब नेपाल सरकार ने अंग्रेजों के विरुद्ध महाराजा रणजीत सिंह से सहायता माँगी तो उसने इंकार कर दिया। इसी तरह 1825 ई० में महाराजा ने भरतपुर के राजा को अंग्रेजों के विरुद्ध सहयोग न दिया। 1826 ई० में जब महाराजा रणजीत सिंह बीमार पड़ा तो अंग्रेज़ों ने इलाज के लिये डॉक्टर मरे को भेजा। इस तरह दोनों के संबंधों में पुनः सुधार होना शुरू हो गया।

5. सिंध का प्रश्न (Question of Sind)-सिंध का क्षेत्र व्यापारिक तथा भौगोलिक पक्ष से बहुत महत्त्वपूर्ण था। 1831 ई० में अंग्रेजों ने अलैग्जेंडर बर्नज को संधि के बारे जानकारी प्राप्त करने के लिये भेजा। महाराजा रणजीत सिंह को कोई संदेह न हो इसलिये उसको रोपड़ में गवर्नर-जनरल लॉर्ड बैंटिंक के साथ एक मुलाकात के लिये निमंत्रण भेजा गया। यह मुलाकात 26 अक्तूबर, 1831 ई० को हुई। अंग्रेजों ने बड़ी चतुराई से महाराजा रणजीत सिंह को बातचीत में लगाये रखा। दूसरी ओर अंग्रेज़ सिंध के साथ एक व्यापारिक संधि करने में सफल हुए। इस कारण महाराजा रणजीत सिंह तथा अंग्रेजों के बीच पुनः तनाव उत्पन्न हो गया।

6. शिकारपुर का प्रश्न (Question of Shikarpur)-शिकारपुर के प्रश्न पर महाराजा रणजीत सिंह तथा अंग्रेजों के बीच तनाव बढ़ गया। 1836 ई० में जब मजारिस नामक एक कबीले. को महाराजा रणजीत सिंह ने पराजित किया तथा शिकारपुर पर अधिकार कर लिया उस समय वेड के नेतृत्व में एक अंग्रेज़ी सेना भी वहाँ पहुँच गई। महाराजा रणजीत सिंह पीछे हट गया क्योंकि वह अंग्रेजों के साथ लड़ाई मोल नहीं लेना चाहता था।

7. फिरोजपुर का प्रश्न (Question of Ferozepur)-फिरोजपुर शहर पर महाराजा रणजीत सिंह का अधिकार था परंतु 1835 ई० में अंग्रेजों ने इस पर कब्जा कर लिया था। 1838 ई० में अंग्रेजों ने यहाँ एक शक्तिशाली सैनिक छावनी बना ली। यद्यपि महाराजा को इस बात पर क्रोध आया परंतु अंग्रेजों ने उसकी कोई परवाह न की। .

8. त्रिपक्षीय संधि (Tripartite Treaty)-1837 ई० में रूस बहुत तीव्रता के साथ एशिया की ओर बढ़ रहा था। अंग्रेजों को यह ख़तरा हो गया कि कहीं रूस अफ़गानिस्तान के मार्ग से भारत पर आक्रमण न कर दे। इस आक्रमण को रोकने के लिए तथा अफ़गानिस्तान के शासक दोस्त मुहम्मद खाँ को गद्दी से उतारने के लिए अंग्रेजों ने अफ़गानिस्तान के भूतपूर्व शासक शाह शुजा तथा महाराजा रणजीत सिंह के साथ 26 जून, 1838 ई० को एक त्रिपक्षीय समझौता किया। अंग्रेज़ों ने महाराजा रणजीत सिंह से इस समझौते पर जबरन हस्ताक्षर करवाये।
त्रिपक्षीय संधि की मुख्य शर्ते थीं-

  • शाह शुजा को अंग्रेज़ों एवं महाराजा रणजीत सिंह के सहयोग से अफ़गानिस्तान का सम्राट् बनाया जाएगा।
  • शाह शुजा ने महाराजा रणजीत सिंह द्वारा विजित किए समस्त अफ़गान क्षेत्रों पर उसका अधिकार मान लिया।
  • सिंध के संबंध में अंग्रेज़ों व महाराजा रणजीत सिंह के मध्य जो निर्णय होंगे, शाह शुज़ा ने उन्हें मानने का वचन दिया।
  • शाह शुज़ा अंग्रेज़ों एवं सिखों की आज्ञा लिए बिना विश्व की किसी अन्य शक्ति के साथ संबंध स्थापित नहीं करेगा।
  • एक देश का शत्रु दूसरे दो देशों का भी शत्रु माना जाएगा।
  • शाह शुजा को सिंहासन पर बिठाने के लिए महाराजा रणजीत सिंह 5,000 सैनिकों सहित सहायता 2करेगा तथा शाह शुजा इसके स्थान पर महाराजा को 2 लाख रुपए देगा।

त्रिपक्षीय संधि रणजीत सिंह की एक और कूटनीतिक पराजय थी। इस संधि ने रणजीत सिंह की सिंध एवं शिकारपुर पर अधिकार करने की सभी इच्छाओं पर पानी फेर दिया था। महाराजा रणजीत सिंह की 27 जून, 1839 ई० को मृत्यु हो गई।

महाराजा रणजीत सिंह की अंग्रेजों के प्रति नीति की समीक्षा (An Estimate of Maharaja Ranjit Singh’s Policy towards the British)
महाराजा रणजीत सिंह के अंग्रेजों के साथ कैसे संबंध थे इस बारे में इतिहासकारों में मतभेद पाये जाते हैं। कछ इतिहासकारों का विचार है कि महाराजा रणजीत सिंह ने अंग्रेजों के साथ लड़ाई न करके अपनी सूझ-बूझ तथा दूरदर्शिता का परिचय दिया। महाराजा रणजीत सिंह अंग्रेजों की शक्ति से अच्छी तरह अवगत था। वह अपने से कई गुना शक्तिशाली शत्रु के साथ टक्कर लेकर उभरते हुए खालसा राज्य को नष्ट होते नहीं देखना चाहता था। दूसरे, अंग्रेजों के साथ मित्रता के कारण ही महाराजा रणजीत सिंह उत्तर-पश्चिम की ओर सिख साम्राज्य का विस्तार कर सका।

दूसरी ओर कुछ अन्य इतिहासकारों ने इस नीति की कड़ी आलोचना की है। उनका विचार है कि महाराजा रणजीत सिंह ने अंग्रेजों के समक्ष सदैव झुकने की नीति अपनाई। 1809 ई० की अमृतसर की संधि द्वारा महाराजा रणजीत सिंह को सतलुज पार के प्रदेशों में से अपनी सेनाएँ निकालने के लिये विवश कर दिया गया था। सिंध, शिकारपुर तथा फिरोज़पुर के मामलों में महाराजा रणजीत सिंह का भारी अपमान किया गया था। त्रि-पक्षीय संधि भी महाराजा रणजीत सिंह पर जबरन थोपी गई थी। अत्याचारी के समक्ष सदैव झुकते रहना कभी उचित या योग्य नहीं कहा जा सकता। डॉक्टर एन०. के० सिन्हा के अनुसार,
“उसके हृदय के अंदर भी शायद वही चिंता थी जो प्रत्येक निर्माता को उत्तराधिकार में मिलती है । अपने हाथों से निर्मित साम्राज्य को वह युद्ध के ख़तरों के समक्ष नंगा करने से घबराता था तथा इसलिए उसने झुक जाने, झुक जाने तथा झुक जाने की नीति अपनाई।”1

1. “Perhaps with the solicitude inherent in all builders, he feared to expose the kingdom, he had created, to the risks of war and chose instead the policy of yielding, yielding and yielding.” Dr. N.K. Sinha, Ranjit Singh (Calcutta : 1975) p. 137.

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 18 ऐंग्लो-सिख संबंध : 1800-1839

प्रश्न 3.
1800 से 1839 ई० तक रणजीत सिंह के अंग्रेजों के साथ संबंधों का विवरण दीजिए।
(Discuss the relations of Ranjit Singh with the British from 1800 to 1839.)
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह तथा अंग्रेज़ों के मध्य 25 अप्रैल, 1809 ई० को अमृतसर की संधि हुई। इससे अंग्रेज़-सिख संबंधों में नए युग का सूत्रपात हुआ। इस संधि के बाद महाराजा रणजीत सिंह और अंग्रेज़ों के मध्य रहे संबंधों का आलोचनात्मक वर्णन निम्नलिखित है—

1. कुछ संदेह तथा अविश्वास का समय (Period of some Distrust and Suspicion)-अमृतसर की संधि के बावजूद अंग्रेज़ों तथा महाराजा के बीच 1809 ई० से 1812 ई० तक परस्पर संदेह तथा अविश्वास का वातावरण बना रहा। दोनों ही पक्षों ने एक-दूसरे की सैनिक तथा कूटनीतिक योजनाओं के बारे जानकारी प्राप्त करने के लिए अपने जासूस छोड़े हुए थे। अंग्रेजों ने लुधियाना में एक शक्तिशाली सैनिक छावनी स्थापित कर ली। दूसरी ओर महाराजा रणजीत सिंह ने भी फिल्लौर में एक किले का निर्माण करवाया।

2. संबंधों में सुधार (Improvement in the Relations)-धीरे-धीरे महाराजा रणजीत सिंह तथा अंग्रेजों के बीच संदेह दूर होने शुरू हो गए। 1812 ई० में महाराजा रणजीत सिंह ने डेविड आक्टरलोनी को कुंवर खड़क सिंह के विवाह पर निमंत्रण दिया। लाहौर दरबार में पहुँचने पर उसका हार्दिक अभिनंदन किया गया। 1812 ई० से लेकर 1821 ई० तक के समय दौरान अंग्रेज़ों तथा महाराजा रणजीत सिंह ने एक दूसरे के मामलों में कोई हस्तक्षेप नहीं किया।

3. वदनी की समस्या (Problem of Wadni)-1822 ई० में वदनी गाँव के स्वामित्व के बारे अंग्रेज़ों तथा महाराजा रणजीत सिंह के परस्पर संबंधों में कुछ समय के लिये तनाव पैदा हो गया। अंग्रेजों ने वदनी में से महाराजा रणजीत सिंह की सेना को निकाल दिया। इस कारण महाराजा रणजीत सिंह को बहुत क्रोध आया परंतु उसने लड़ाई नहीं की।

4. संबंधों में सुधार (Cordiality Restored)-1823 ई० में वेड जो कि लुधियाना में अंग्रेजों का पुलीटीकल एजेंट था, के हस्तक्षेप करने पर वदनी का क्षेत्र महाराजा रणजीत सिंह को वापस सौंप दिया गया। महाराजा रणजीत सिंह ने भी 1824 ई० में जब नेपाल सरकार ने अंग्रेजों के विरुद्ध महाराजा रणजीत सिंह से सहायता माँगी तो उसने इंकार कर दिया। इसी तरह 1825 ई० में महाराजा ने भरतपुर के राजा को अंग्रेजों के विरुद्ध सहयोग न दिया। 1826 ई० में जब महाराजा रणजीत सिंह बीमार पड़ा तो अंग्रेज़ों ने इलाज के लिये डॉक्टर मरे को भेजा। इस तरह दोनों के संबंधों में पुनः सुधार होना शुरू हो गया।

5. सिंध का प्रश्न (Question of Sind)-सिंध का क्षेत्र व्यापारिक तथा भौगोलिक पक्ष से बहुत महत्त्वपूर्ण था। 1831 ई० में अंग्रेजों ने अलैग्जेंडर बर्नज को संधि के बारे जानकारी प्राप्त करने के लिये भेजा। महाराजा रणजीत सिंह को कोई संदेह न हो इसलिये उसको रोपड़ में गवर्नर-जनरल लॉर्ड बैंटिंक के साथ एक मुलाकात के लिये निमंत्रण भेजा गया। यह मुलाकात 26 अक्तूबर, 1831 ई० को हुई। अंग्रेजों ने बड़ी चतुराई से महाराजा रणजीत सिंह को बातचीत में लगाये रखा। दूसरी ओर अंग्रेज़ सिंध के साथ एक व्यापारिक संधि करने में सफल हुए। इस कारण महाराजा रणजीत सिंह तथा अंग्रेजों के बीच पुनः तनाव उत्पन्न हो गया।

6. शिकारपुर का प्रश्न (Question of Shikarpur)-शिकारपुर के प्रश्न पर महाराजा रणजीत सिंह तथा अंग्रेजों के बीच तनाव बढ़ गया। 1836 ई० में जब मजारिस नामक एक कबीले. को महाराजा रणजीत सिंह ने पराजित किया तथा शिकारपुर पर अधिकार कर लिया उस समय वेड के नेतृत्व में एक अंग्रेज़ी सेना भी वहाँ पहुँच गई। महाराजा रणजीत सिंह पीछे हट गया क्योंकि वह अंग्रेजों के साथ लड़ाई मोल नहीं लेना चाहता था।

7. फिरोजपुर का प्रश्न (Question of Ferozepur)-फिरोजपुर शहर पर महाराजा रणजीत सिंह का अधिकार था परंतु 1835 ई० में अंग्रेजों ने इस पर कब्जा कर लिया था। 1838 ई० में अंग्रेजों ने यहाँ एक शक्तिशाली सैनिक छावनी बना ली। यद्यपि महाराजा को इस बात पर क्रोध आया परंतु अंग्रेजों ने उसकी कोई परवाह न की। .

8. त्रिपक्षीय संधि (Tripartite Treaty)-1837 ई० में रूस बहुत तीव्रता के साथ एशिया की ओर बढ़ रहा था। अंग्रेजों को यह ख़तरा हो गया कि कहीं रूस अफ़गानिस्तान के मार्ग से भारत पर आक्रमण न कर दे। इस आक्रमण को रोकने के लिए तथा अफ़गानिस्तान के शासक दोस्त मुहम्मद खाँ को गद्दी से उतारने के लिए अंग्रेजों ने अफ़गानिस्तान के भूतपूर्व शासक शाह शुजा तथा महाराजा रणजीत सिंह के साथ 26 जून, 1838 ई० को एक त्रिपक्षीय समझौता किया। अंग्रेज़ों ने महाराजा रणजीत सिंह से इस समझौते पर जबरन हस्ताक्षर करवाये।
त्रिपक्षीय संधि की मुख्य शर्ते थीं-

  • शाह शुजा को अंग्रेज़ों एवं महाराजा रणजीत सिंह के सहयोग से अफ़गानिस्तान का सम्राट् बनाया जाएगा।
  • शाह शुजा ने महाराजा रणजीत सिंह द्वारा विजित किए समस्त अफ़गान क्षेत्रों पर उसका अधिकार मान लिया।
  • सिंध के संबंध में अंग्रेज़ों व महाराजा रणजीत सिंह के मध्य जो निर्णय होंगे, शाह शुज़ा ने उन्हें मानने का वचन दिया।
  • शाह शुज़ा अंग्रेज़ों एवं सिखों की आज्ञा लिए बिना विश्व की किसी अन्य शक्ति के साथ संबंध स्थापित नहीं करेगा।
  • एक देश का शत्रु दूसरे दो देशों का भी शत्रु माना जाएगा।
  • शाह शुजा को सिंहासन पर बिठाने के लिए महाराजा रणजीत सिंह 5,000 सैनिकों सहित सहायता 2करेगा तथा शाह शुजा इसके स्थान पर महाराजा को 2 लाख रुपए देगा।

त्रिपक्षीय संधि रणजीत सिंह की एक और कूटनीतिक पराजय थी। इस संधि ने रणजीत सिंह की सिंध एवं शिकारपुर पर अधिकार करने की सभी इच्छाओं पर पानी फेर दिया था। महाराजा रणजीत सिंह की 27 जून, 1839 ई० को मृत्यु हो गई।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 18 ऐंग्लो-सिख संबंध : 1800-1839

संक्षिप्त उत्तरों वाले प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
जसवंत राव होल्कर कौन था ? महाराजा रणजीत सिंह ने उसकी सहायता क्यों न की ? (Who was Jaswant Rao Holkar ? Why Maharaja Ranjit Singh did not help him ?)
उत्तर-
जसवंत राव होल्कर मराठा सरदार था। वह 1805 ई० में महाराजा रणजीत सिंह से अंग्रेजों के विरुद्ध सहायता लेने के लिए अमृतसर पहुँचा। महाराजा रणजीत सिंह ने होल्कर की निम्नलिखित कारणों से कोई सहायतान की-प्रथम, महाराजा रणजीत सिंह अंग्रेज़ी सेना के अनुशासन को देखकर चकित रह गया था। द्वितीय, अमृतसर में हुए गुरमत्ता में निर्णय लिया गया कि जसवंत राव होल्कर की सहायता लाहौर राज्य के लिए विनाशकारी सिद्ध हो सकती है। तृतीय, महाराजा रणजीत सिंह पंजाब को युद्ध का क्षेत्र नहीं बनाना चाहता था। उसका राज्य अभी बहुत छोटा था तथा यह युद्ध नए उदय हो रहे सिख साम्राज्य के लिए हानिप्रद प्रमाणित हो सकता था।

प्रश्न 2.
अमृतसर की संधि की परिस्थितियों का वर्णन करें।
(Describe the circumstances leading to the Treaty of Amritsar.)
अथवा
अमृतसर की संधि की परिस्थितियों का अध्ययन करें।
(Study the circumstances leading to the Treaty of Amritsar.)
अथवा
1800 से 1809 ई० तक के अंग्रेज़-सिख संबंधों का विवरण दीजिए।
(Give an account of Anglo-Sikh relations from 1800 to 1809.)
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह पंजाब की सभी सिख रियासतों पर अपना अधिकार करना चाहता था। इस उद्देश्य से उसने 1806 ई० और 1807 ई० में मालवा प्रदेश पर आक्रमण किए। उसने कई क्षेत्रों पर अधिकार कर लिया। सितंबर, 1808 ई० में रणजीत सिंह तथा चार्ल्स मैटकॉफ के मध्य वार्ता असफल रही। रणजीत सिंह ने दिसंबर, 1808 ई० में मालवा पर तीसरी बार आक्रमण किया। अब अंग्रेजों ने रणजीत सिंह से अपनी शर्ते मनवाने के लिए युद्ध की तैयारियाँ आरंभ कर दी। परिणामस्वरूप 25 अप्रैल, 1809 ई० को रणजीत सिंह तथा अंग्रेजों के मध्य अमृतसर की संधि पर हस्ताक्षर हो गए।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 18 ऐंग्लो-सिख संबंध : 1800-1839

प्रश्न 3.
महाराजा रणजीत सिंह तथा अंग्रेजों के बीच हुई अमृतसर की संधि की महत्ता बताएँ।
(Describe the significance of the Treaty of Amritsar signed between Maharaja Ranjit Singh and the English.) .
अथवा
अमृतसर की संधि (1809) का ऐतिहासिक महत्त्व क्या था ? (What was the historical significance of the Treaty of Amritsar (1809)?]
अथवा
अमृतसर संधि की शर्ते एवं महत्त्व लिखें। (Write the main clauses and importance of the Treaty of Amritsar.)
अथवा
अमृतसर की संधि का क्या महत्त्व था?
(What was the significance of the Treaty of Amritsar ?)
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह तथा अंग्रेज़ों के मध्य हुई 25 अप्रैल, 1809 ई० को अमृतसर की संधि का पंजाब के इतिहास में महत्त्वपूर्ण स्थान है। इस संधि द्वारा रणजीत सिंह ने सतलुज नदी को राज्य की पूर्वी सीमा मान लिया। परिणामस्वरूप महाराजा रणजीत सिंह का सभी सिख रियासतों का महाराजा बनने का स्वप्न सदा के लिए टूट गया। रणजीत सिंह को न केवल राजनीतिक अपितु आर्थिक क्षति भी हुई। परंतु इस संधि द्वारा महाराजा अपने नव-निर्मित राज्य को अंग्रेजों से बचाने में सफल हो गया। यह संधि अंग्रेजों की एक बड़ी कूटनीतिक विजय थी।

प्रश्न 4.
अमृतसर की संधि की तीन शर्ते लिखें।
(What were the three conditions of the Treaty of Amritsar ?)
उत्तर-

  1. अंग्रेजी सरकार और लाहौर दरबार के मध्य मित्रता रहेगी।
  2. अंग्रेज़ी सरकार का सतलुज दरिया के उत्तर और महाराजा के प्रदेशों और प्रजा के साथ कोई संबंध नहीं रखेगी।
  3. महाराजा सतलुज दरिया के बाएँ तरफ के क्षेत्र जोकि उसके अधिकार में है उतनी ही सेना रखेगा जोकि उसके आंतरिक प्रबंध के लिए अनिवार्य है।

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प्रश्न 5.
सिंध के प्रश्न पर महाराजा रणजीत सिंह तथा अंग्रेजों के मध्य तनाव क्यों उत्पन्न हो गया ?
(Why was tension created between Maharaja Ranjit Singh and the English over Sind tangle ?)
उत्तर-
सिंध का क्षेत्र व्यापारिक तथा भौगोलिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण था। इसलिए महाराजा रणजीत सिंह तथा अंग्रेज़ दोनों इस क्षेत्र पर अधिकार करना चाहते थे। अंग्रेजों ने सिंध के साथ संधि करने के लिए कर्नल पोटिंगर को भेजा। वह 1832 ई० में सिंध के साथ एक व्यापारिक संधि करने में सफल रहा। इस कारण यह संधि अंग्रेज़ों के लिए बड़ी लाभदायक सिद्ध हुई। इस कारण अंग्रेजों तथा रणजीत सिंह के मध्य पुनः तनाव उत्पन्न हो गया। 1838 ई० में अंग्रेजों ने सिंध के अमीरों के साथ एक अन्य संधि कर ली। महाराजा रणजीत सिंह यह सहन करने को तैयार न था किंतु उसने अंग्रेजों के विरुद्ध कोई कदम उठाने का साहस न किया।

प्रश्न 6.
फिरोजपुर के प्रश्न पर महाराजा रणजीत सिंह तथा अंग्रेजों के मध्य तनाव क्यों उत्पन्न हो गया ?
(Why was tension created between Maharaja Ranjit Singh and the English over Ferozepur tangle ?)
उत्तर-
अंग्रेज़ फिरोज़पुर जैसे महत्त्वपूर्ण नगर को अपने अधिकार में लेना चाहते थे। यहाँ से अंग्रेज़ रणजीत सिंह के राज्य की गतिविधियों के संबंध में काफ़ी जानकारी प्राप्त कर सकते थे। इसके अतिरिक्त पंजाब में घेराव डालने के लिए फिरोज़पुर पर अधिकार करना आवश्यक था। इसलिए 1835 ई० में अंग्रेजों ने बलपूर्वक फिरोजपुर पर अधिकार कर लिया। रणजीत सिंह ने अंग्रेजों द्वारा फिरोजपुर पर अधिकार करने तथा यहाँ छावनी बनाए जाने के कारण चाहे बहुत क्रोध किया, किंतु अंग्रेजों ने इसकी कोई परवाह न की।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 18 ऐंग्लो-सिख संबंध : 1800-1839

प्रश्न 7.
त्रिपक्षीय संधि पर अपने विचार व्यक्त करो।
(Give your own opinion on Tri-partite Treaty.)
अथवा
त्रिपक्षीय संधि तथा इसके महत्त्व पर एक टिप्पणी लिखें।
(Write a brief note on Tri-partite Treaty and its significance.)
उत्तर-
1837 ई० में रूस बड़ी तेजी से भारत की ओर बढ़ रहा था। अफ़गानिस्तान का शासक दोस्त मुहम्मद खाँ यह चाहता था कि अंग्रेज़ पेशावर का क्षेत्र रणजीत सिंह से लेकर उसे दे दें। अंग्रेज़ ऐसा नहीं कर सकते थे। परिणामस्वरूप उन्होंने अफ़गानिस्तान के भूतपूर्व शासक शाह शुजा से वार्ता आरंभ कर दी। 26 जून, 1838 ई० को अंग्रेजों, शाह शुजा तथा महाराजा रणजीत सिंह के मध्य एक त्रिपक्षीय संधि पर हस्ताक्षर किए। इस संधि के अनुसार शाह शुजा को अफ़गानिस्तान का शासक बनाने का निर्णय किया गया। महाराजा रणजीत सिंह इस संधि में शामिल नहीं होना चाहता था, किंतु अंग्रेजों ने उसे ऐसा करने पर बाध्य किया।

प्रश्न 8.
1809 से 1839 ई० तक के अंग्रेज़-सिख संबंधों का विवरण दीजिए।
(Give an account of Agnlo-Sikh relations from 1809 to 1839.)
उत्तर-
1809 से 1839 ई० तक का काल अंग्रेज़-सिख संबंधों में विशेष स्थान रखता है। 1809 ई० में महाराजा रणजीत सिंह एवं अंग्रेजों के मध्य अमृतसर की संधि हुई। यह महाराजा रणजीत सिंह की अपेक्षा अंग्रेजों के लिए अधिक लाभकारी सिद्ध हुई। इस संधि के कारण महाराजा रणजीत सिंह का सभी सिख रियासतों का महाराजा बनने का स्वप्न चकनाचूर हो गया, किंतु उसने खालसा राज्य को नष्ट होने से बचा लिया। 1809 से 1830 ई० तक दोनों शक्तियों के मध्य कभी मित्रता तथा कभी तनाव स्थापित हो जाता। 1830 से 1839 ई० में दोनों शक्तियों के संबंधों में पुनः तनाव उत्पन्न हो गया।

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प्रश्न 9.
महाराजा रणजीत सिंह के अंग्रेजों के साथ संबंधों के स्वरूप का वर्णन करें। (Discuss the nature of Maharaja Ranjit Singh’s relation with the British.)
अथवा
महाराजा रणजीत सिंह की अंग्रेजों के सामने झुकने की नीति के बारे में अपने विचार लिखो। (Comment on Maharaja Ranjit Singh’s policy of yielding towards the British.)
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह ने सदैव अंग्रेजों के सामने झुकने की नीति अपनाई। अंग्रेजों ने उसे 1809 ई० में अमृतसर की संधि के लिए बाध्य किया। इस संधि के साथ महाराजा रणजीत सिंह के सभी सिखों का महाराजा बनने की आशा मिट्टी में मिल गई। 1822 ई० अंग्रेजों ने सदा कौर के कहने पर वदनी से रणजीत सिंह की सेनाओं को वहाँ से निकाल दिया। 1832 ई० में अंग्रेजों ने रणजीत सिंह को धोखे में रख कर संधि से व्यापारिक संधि कर ली। 1838 ई० में अंग्रेजों ने फिरोजपुर में एक छावनी स्थापित करके महाराजा रणजीत सिंह की शक्ति को एक बार फिर ललकारा।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न – (Objective Type Questions)

(i) एक शब्द से एक पंक्ति तक के उत्तर (Answer in One Word to One Sentence)

प्रश्न 1.
अंग्रेज़ों तथा रणजीत सिंह का पहला संपर्क कब हुआ ?
उत्तर-
1800 ई०।

प्रश्न 2.
यूसफ अली कौन था ?
उत्तर-
अंग्रेजों ने यूसफ अली को 1800 ई० में लाहौर दरबार में अपना दूत बनाकर भेजा था।

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प्रश्न 3.
मराठों का नेता जसवंत राव होल्कर कब पंजाब आया था ?
उत्तर-
1805 ई०।

प्रश्न 4.
महाराजा रणजीत सिंह तथा अंग्रेजों के मध्य प्रथम मित्रतापूर्वक सन्धि कब हुई ?
उत्तर-
1806 ई०।

प्रश्न 5.
1806 ई० की लाहौर की संधि की कोई एक मुख्य शर्त बताओ।
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह होल्कर की कोई सहायता नहीं करेगा।

प्रश्न 6.
चार्ल्स मैटकॉफ कौन था ?
उत्तर-
वह एक अंग्रेज अधिकारी था।

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प्रश्न 7.
चार्ल्स मैटकॉफ तथा महाराजा रणजीत सिंह के मध्य कितनी बार भेंट हुई ?
उत्तर-
दो।

प्रश्न 8.
महाराजा रणजीत सिंह ने मालवा प्रदेश पर कितनी बार आक्रमण किए ?
उत्तर-
तीन बार।

प्रश्न 9.
महाराजा रणजीत सिंह ने मालवा प्रदेश पर कब प्रथम आक्रमण किया ?
उत्तर-
1806 ई०।

प्रश्न 10.
कोई एक कारण बताएँ जिस कारण महाराजा रणजीत सिंह अंग्रेजों से संधि करने के लिए बाध्य हुआ।
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह के दरबारियों ने उसे अंग्रेजों के साथ संघर्ष न करने की सलाह दी।

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प्रश्न 11.
अमृतसर की संधि कब हुई ?
अथवा
अमृतसर की संधि पर कब हस्ताक्षर हुए ?
उत्तर-
25 अप्रैल, 1809 ई०।

प्रश्न 12.
अमृतसर की संधि (1809) की कोई एक मुख्य धारा लिखें।
उत्तर-
अंग्रेजी सरकार और लाहौर दरबार के मध्य स्थायी मित्रता रहेगी।

प्रश्न 13.
1809 ई० की अमृतसर की संधि के अनुसार कौन-सी नदी महाराजा रणजीत सिंह और अंग्रेजों के मध्य सीमा बनी ?
उत्तर-
सतलुज नदी।

प्रश्न 14.
अमृतसर की संधि से महाराजा रणजीत सिंह को क्या हानि हुई ?
उत्तर-
इसने महाराजा रणजीत सिंह के सब सिख शासकों के महाराजा बनने के स्वप्न को भंग कर दिया।

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प्रश्न 15.
अमृतसर की संधि से महाराजा रणजीत सिंह को क्या लाभ हुआ ?
उत्तर-
इस संधि के कारण महाराजा रणजीत सिंह का राज्य समय से पूर्व नष्ट होने से बच गया।

प्रश्न 16.
अमृतसर की संधि से अंग्रेज़ों को हुआ कोई एक मुख्य लाभ बताएँ।
उत्तर-
इस संधि से अंग्रेजों की प्रतिष्ठा में काफ़ी वृद्धि हुई।

प्रश्न 17.
महाराजा रणजीत सिंह तथा अंग्रेजों के मध्य वदनी का तनाव कब हुआ ?
उत्तर-
1822. ई० में।

प्रश्न 18.
1823 ई० में कौन लुधियाना का पुलिटिकल ऐंजट नियुक्त हुआ ?
उत्तर-
कैप्टन वेड।

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प्रश्न 19.
1826 ई० में किस अंग्रेज़ डॉक्टर ने महाराजा रणजीत सिंह का इलाज किया ?
उत्तर-
डॉक्टर मरे ने

प्रश्न 20.
महाराजा रणजीत सिंह तथा लॉर्ड विलियम बैंटिंक के मध्य मुलाकात कब हुई ?
उत्तर-
26 अक्तूबर, 1831 ई०।।

प्रश्न 21.
महाराजा रणजीत सिंह तथा लॉर्ड विलियम बैंटिंक के मध्य मुलाकात कहाँ हुई थी ?
उत्तर-
रोपड़।

प्रश्न 22.
अंग्रेजों ने सिंध के अमीरों से संधि कब की ?
उत्तर-
1832 ई०।

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प्रश्न 23.
अंग्रेजों ने फिरोज़पुर पर कब अधिकार कर लिया था ?
उत्तर-
1835 ई०।

प्रश्न 24.
त्रिपक्षीय संधि कब हुई ?
उत्तर-
26 जून, 1838 ई०।

(ii) रिक्त स्थान भरें (Fill in the Blanks)

प्रश्न 1.
यूसुफ अली मिशन ……… में पंजाब आया।
उत्तर-
(1800 ई०)

प्रश्न 2.
जसवंत राव होल्कर ………… में पंजाब आया।
उत्तर-
(1805 ई०)

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प्रश्न 3.
महाराजा रणजीत सिंह व अंग्रेजों के मध्य लाहौर की संधि………में हुई।
उत्तर-
(1806 ई०)

प्रश्न 4.
महाराजा रणजीत सिंह ने मालवा पर पहली बार ……में आक्रमण किया था।
उत्तर-
(1806 ई०)

प्रश्न 5.
महाराजा रणजीत सिंह ने मालवा पर तीसरी बार ………..में आक्रमण किया था।
उत्तर-
(1808 ई०)

प्रश्न 6.
चार्ल्स मैटकॉफ महाराजा रणजीत को दूसरी बार …….में मिला।।
उत्तर-
(अमृतसर)

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प्रश्न 7.
महाराजा रणजीत सिंह व अंग्रेज़ों के मध्य अमृतसर की संधि ……………..को हुई।
उत्तर-
(25 अप्रैल, 1809 ई०)

प्रश्न 8.
अमृतसर की संधि के अनुसार………दरिया को महाराजा रणजीत सिंह व अंग्रेजों के मध्य साम्राज्य की – सीमा माना गया था।
उत्तर-
(सतलुज)

प्रश्न 9.
1831 ई० में………में महाराजा रणजीत सिंह और लॉर्ड विलियम बैंटिंक की बैठक हुई।
उत्तर-
(रोपड़)

प्रश्न 10.
महाराजा रणजीत सिंह, शाह शुज़ा और अंग्रेजों के मध्य त्रिपक्षीय संधि……………..में हुई।
उत्तर-
(1838. ई०)

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(ii) ठीक अथवा गलत (True or False)

नोट-निम्नलिखित में से ठीक अथवा गलत चुनें—

प्रश्न 1.
यूसुफ अली मिशन 1800 ई० में पंजाब आया।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 2.
1805 ई० में मराठा नेता जसवंत राव होल्कर पंजाब आया।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 3.
जसवंत राव होल्कर 1805 ई० में पंजाब आया था।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 4.
महाराजा रणजीत सिंह और अंग्रेजों के मध्य लाहौर की संधि 1805 ई० में हुई।
उत्तर-
गलत

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प्रश्न 5.
महाराजा रणजीत सिंह ने मालवा पर प्रथम बार 1806 ई० में आक्रमण किया।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 6.
चार्ल्स मैटकॉफ 1808 ई० में महाराजा रणजीत सिंह को पहली बार खेमकरण में मिला था।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 7.
महाराजा रणजीत सिंह और अंग्रेजों के मध्य अमृतसर की संधि 25 अप्रैल, 1809 ई० को हुई।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 8.
अमृतसर की संधि के कारण महाराजा रणजीत सिंह के गौरव को भारी धक्का लगा था।
उत्तर-
ठीक

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प्रश्न 9.
1826 ई० में अंग्रेजों ने डॉक्टर मर्रे को महाराजा रणजीत के इलाज के लिए भेजा था।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 10.
लार्ड विलियम बैंटिंक महाराजा रणजीत सिंह को 1831 ई० में रोपड़ में मिला था।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 11.
अंग्रेज़ों ने 1835 ई० में फिरोजपुर पर कब्जा कर लिया था।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 12.
महाराजा रणजीत सिंह, शाह शुज़ा और अंग्रेजों के मध्य त्रि-पक्षीय संधि 26 जून, 1838 ई० को हुई थी।
उत्तर-
ठीक

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(iv) बहु-विकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions)

नोट-निम्नलिखित में से ठीक उत्तर का चयन कीजिए—

प्रश्न 1.
मराठों का नेता जसवंत राव होल्कर पंजाब कब आया था ?
(i) 1801 ई० में
(ii) 1802 ई० में
(iii) 1805 ई० में
(iv) 1809 ई० में।
उत्तर-
(iii)

प्रश्न 2.
महाराजा रणजीत सिंह और अंग्रेजों के मध्य पहली संधि कब हुई ?
(i) 1805 ई० में
(ii) 1806 ई० में
(iii) 1807 ई० में
(iv) 1809 ई० में।
उत्तर-
(ii)

प्रश्न 3.
महाराजा रणजीत सिंह ने मालवा पर कितनी बार आक्रमण किये ?
(i) दो बार
(ii) तीन बार
(iii) चार बार
(iv) पाँच बार।
उत्तर-
(ii)

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प्रश्न 4.
महाराजा रणजीत सिंह ने मालवा पर प्रथम आक्रमण कब किया ?
(i) 1805 ई० में
(ii) 1806 ई० में
(iii) 1807 ई० में
(iv) 1809 ई० में।
उत्तर-
(ii)

प्रश्न 5.
चार्ल्स मैटकॉफ महाराजा रणजीत सिंह को पहली बार कहाँ मिला था ?
(i) लुधियाना में
(ii) अमृतसर में
(iii) लाहौर में
(iv) खेमकरण में।
उत्तर-
(iv)

प्रश्न 6.
महाराजा रणजीत सिंह और अंग्रेजों में अमृतसर की संधि कब हुई ?
(i) 1805 ई० में
(ii) 1809 ई० में
(iii) 1812 ई० में
(iv) 1821 ई० में।
उत्तर-
(i)

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प्रश्न 7.
1809 ई० की अमृतसर की संधि के अनुसार कौन-सी नदी महाराजा रणजीत सिंह और अंग्रेज़ों के मध्य सीमा बनी ?
(i) ब्यास नदी
(ii) सतलुज नदी
(iii) रावी नदी
(iv) जेहलम नदी।
उत्तर-
(ii)

प्रश्न 8.
महाराजा रणजीत सिंह और लॉर्ड विलियम बैंटिंक में मुलाकात कब हुई थी ?
(i) 1809 ई० में
(ii) 1811 ई० में
(ii) 1821 ई० में
(iv) 1831 ई० में।
उत्तर-
(iv)

प्रश्न 9.
महाराजा रणजीत सिंह और लॉर्ड विलियम बैंटिंक में मुलाकात कहाँ हुई थी ?
(i) अमृतसर में
(ii) लुधियाना में
(iii) रोपड़ में
(iv) लाहौर में।
उत्तर-
(iii)

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प्रश्न 10.
अंग्रेजों ने सिंध के अमीरों से व्यापारिक संधि कब की थी ?
(i) 1829 ई० में
(ii) 1830 ई० में
(iii) 1831 ई० में
(iv) 1832 ई० में।
उत्तर-
(iv)

प्रश्न 11.
त्रिपक्षीय संधि कब हुई ?
(i) 1839 ई०
(ii) 1845 ई०
(iii) 1838 ई०
(iv) 1809 ई०।
उत्तर-
(iii)

Long Answer Type Question

प्रश्न 1.
जसवंत राव होल्कर कौन था ? महाराजा रणजीत सिंह ने उसकी सहायता क्यों न की ? (Who was Jaswant Rao Holkar ? Why Ranjit Singh did not help him ?)
उत्तर-
जसवंत राव होल्कर मराठा सरदार था। वह 1805 ई० में अंग्रेजों से पराजित हो गया था। परिणामस्वरूप वह महाराजा रणजीत सिंह से अंग्रेजों के विरुद्ध सहायता लेने के लिए अमृतसर पहुँचा। महाराजा रणजीत सिंह ने होल्कर का यद्यपि गर्मजोशी से स्वागत किया, परंतु निम्नलिखित कारणों से कोई सहायता न की-प्रथम, महाराजा रणजीत सिंह अंग्रेज़ी सेना के अनुशासन को देखकर चकित रह गया था। दूसरा, अंग्रेजों की थोड़ी-सी सेना ने मराठों की विशाल सेना को युद्ध-भूमि से भागने के लिए विवश कर दिया था। इस कारण महाराजा रणजीत सिंह द्वारा यह परिणाम निकालना स्वाभाविक था कि थोड़ी-सी सिख सेना के शामिल होने से स्थिति में कोई विशेष अंतर नहीं पड़ना था। तीसरा, होल्कर के संबंध में कोई निर्णय लेने के लिए महाराजा रणजीत सिंह ने अमृतसर में सिख सरदारों का एक सम्मेलन बुलाया। इसमें काफ़ी सोचने-विचारने के पश्चात् यह निर्णय लिया गया कि जसवंत राव होल्कर की सहायता लाहौर राज्य के लिए विनाशकारी सिद्ध हो सकती है। चौथा, महाराजा रणजीत सिंह पंजाब को युद्ध का क्षेत्र नहीं बनाना चाहता था। उसका राज्य अभी बहुत छोटा था तथा यह युद्ध नए उदय हो रहे सिख साम्राज्य के लिए हानिप्रद प्रमाणित हो सकता था।

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प्रश्न 2.
महाराजा रणजीत सिंह और अंग्रेजों के पहले पड़ाव के संबंधों का विश्लेषण कीजिए।
(Analyse the relationship of Ranjit Singh and Britishers in the first phase.)
अथवा
अमृतसर की संधि की परिस्थितियों का अध्ययन करें। (Study the circumstances leading to the Treaty of Amritsar.)
अथवा
1800 से 1809 ई० तक के अंग्रेज़-सिख संबंधों का विवरण दीजिए। (Give an account of Anglo-Sikh relations from 1800 to 1809.)
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह सभी सिख रियासतों को अपने अधिकार में लेना चाहता था। इस उद्देश्य से उसने 1806 ई० और 1807 ई० में दो बार मालवा प्रदेश पर आक्रमण किए। उसने कई क्षेत्रों पर अधिकार कर लिया और कई शासकों से नज़राना प्राप्त किया। इन आक्रमणों से घबरा कर मालवा रियासतों के सरदारों ने अंग्रेजों से सहायता की याचना की। क्योंकि इस समय नेपोलियन के भारत पर आक्रमण का खतरा बढ़ गया था इसलिए अंग्रेज़ मालवा के सरदारों को सहयोग देने की अपेक्षा महाराजा रणजीत सिंह से संधि करना चाहते थे। परंतु सितंबर, 1808 ई० में रणजीत सिंह तथा चार्ल्स मैटकाफ के मध्य वार्ता असफल रही। रणजीत सिंह ने दिसंबर, 1808 ई० में मालवा पर तीसरी बार आक्रमण करके कुछ क्षेत्रों पर अधिकार कर लिया। इसी मध्य नेपोलियन का भारत पर हमले का ख़तरा टल गया। अब अंग्रेजों ने रणजीत सिंह से अपनी शर्ते मनवाने के लिए युद्ध की तैयारियाँ आरंभ कर दी। परिणामस्वरूप 25 अप्रैल, 1809 ई० को रणजीत सिंह तथा अंग्रेजों के मध्य अमृतसर की संधि पर हस्ताक्षर हो गए।

प्रश्न 3.
महाराजा रणजीत सिंह तथा अंग्रेजों के बीच हुई अमृतसर की संधि की महत्ता बताएँ।
(Describe the significance of the Treaty of Amritsar signed between Ranjit Singh and the English.)
अथवा
अमृतसर की संधि ( 1809) का ऐतिहासिक महत्त्व क्या था ? (P.S.E.B. Mar. 2017, Sept. 17) (Describe the historical significance of the Treaty of Amritsar.)
अथवा
अमृतसर संधि की शर्ते एवं महत्त्व लिखें। (Write the main clauses and importance of Amritsar Treaty.)
अथवा
महाराजा रणजीत सिंह एवं अंग्रेजों के बीच हुई अमृतसर की संधि की मुख्य शर्तों एवं महत्त्व के बारे में बताएँ।
(Describe the main clauses and importance of Treaty of Amritsar between Maharaja Ranjit Singh and the English.)
उत्तर-
25 अप्रैल, 1809.ई० को महाराजा रणजीत सिंह तथा अंग्रेज़ों के मध्य अमृतसर में संधि हई थी। ऐतिहासिक दृष्टि से यह संधि बहुत महत्त्वपूर्ण थी। इस संधि द्वारा रणजीत सिंह ने सतलुज दरिया को राज्य की पूर्वी सीमा मान लिया। इस कारण महाराजा रणजीत सिंह का सभी सिख रियासतों का महाराजा बनने का स्वप्न सदा के लिए टूट गया। इस कारण रणजीत सिंह को न केवल राजनीतिक, अपितु आर्थिक क्षति भी हुई, परंतु यह संधि कुछ पक्षों से रणजीत सिंह के लिए लाभप्रद भी सिद्ध हुई। वह अपने नव-निर्मित राज्य को अंग्रेजों की सुदृढ़ शक्ति से बचाने में सफल हो सका। उसे उत्तर-पश्चिम की ओर अपने राज्य की सीमा बढ़ाने का अवसर मिला। दूसरी ओर. यह संधि अंग्रेजों के लिए बड़ी लाभदायक सिद्ध हुई। इस कारण अंग्रेज़ों का सतलुज नदी तक प्रभाव बढ़ गया। पंजाब की ओर से निश्चित हो जाने से अंग्रेज़ भारत के अन्य राज्यों में अपनी स्थिति सुदृढ़ कर सके। इस संधि ने अंग्रेज़ों की प्रतिष्ठा में पर्याप्त वृद्धि की।

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प्रश्न 4.
सिंध के प्रश्न पर महाराजा रणजीत सिंह तथा अंग्रेजों के मध्य तनाव क्यों उत्पन्न हो गया ?
(Why was tension created between Maharaja Ranjit Singh and the English over Sind tangle ?)
उत्तर-
सिंध का क्षेत्र व्यापारिक तथा भौगोलिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण था। इसलिए महाराजा रणजीत सिंह तथा अंग्रेज़ दोनों इस क्षेत्र पर अधिकार करना चाहते थे। 1831 ई० में अंग्रेजों ने अलैग्जेंडर बर्नज को सिंध के संबंध में जानकारी प्राप्त करने के लिए भेजा। महाराजा रणजीत सिंह को कोई संदेह न हो, इसलिए उसे रोपड़ में गवर्नरजनरल लार्ड विलियम बैंटिंक से भेंट के लिए निमंत्रण भेजा। यह भेंट 26 अक्तूबर, 1831 ई० को हुई। अंग्रेजों ने बड़ी चालाकी से रणजीत सिंह को बातों में लगाए रखा। दूसरी ओर अंग्रेजों ने सिंध के साथ संधि करने के लिए कर्नल पोटिंगर को भेजा। वह 1832 ई० में सिंध के साथ एक व्यापारिक संधि करने में सफल रहा। इस कारण यह संधि अंग्रेजों के लिए बड़ी लाभदायक सिद्ध हुई। इस कारण अंग्रेजों तथा रणजीत सिंह के मध्य पुनः तनाव उत्पन्न हो गया। 1838 ई० में अंग्रेजों ने सिंध के अमीरों के साथ एक अन्य संधि कर ली। इस कारण सिंध पूर्णतया अंग्रेज़ों के प्रभाव में आ गया। महाराजा रणजीत सिंह यह सहन करने को तैयार न था किंतु उसने अंग्रेजों के विरुद्ध कोई कदम उठाने का साहस न किया।

प्रश्न 5.
फिरोजपुर के प्रश्न पर महाराजा रणजीत सिंह तथा अंग्रेज़ों के मध्य तनाव क्यों उत्पन्न हो गया?
(Why was tension created between Maharaja Ranjit Singh and the English over Ferozepur tangle ?)
उत्तर-
अंग्रेज़ फिरोज़पुर जैसे महत्त्वपूर्ण नगर को अपने अधिकार में लेना चाहते थे। यह नगर लाहौर से केवल 40 मील की दूरी पर स्थित था। यहाँ से अंग्रेज़ रणजीत सिंह के राज्य की गतिविधियों के संबंध में काफ़ी जानकारी प्राप्त कर सकते थे। इसके अतिरिक्त पंजाब में घेराव डालने के लिए फिरोज़पुर पर अधिकार करना आवश्यक था। यद्यपि अंग्रेज़ फिरोज़पुर की ओर काफ़ी समय से ललचाई दृष्टि से देख रहे थे, किंतु वे इस पर अपने अधिकार को स्थगित करते हुए आ रहे थे ताकि रणजीत सिंह उनसे नाराज़ न हो जाए। इसी कारण अंग्रेज़ 1835 ई० तक फिरोजपुर पर रणजीत सिंह का अधिकार मानते आए थे, किंतु अब स्थिति परिवर्तित हो चुकी थी। अंग्रेज़ों को रणजीत सिंह की मैत्री की कोई विशेष आवश्यकता नहीं थी। इसलिए 1835 ई० में अंग्रेजों ने बलपूर्वक फिरोजपुर पर अधिकार कर लिया। 1838 ई० में अंग्रेजों ने यहाँ एक शक्तिशाली सैनिक छावनी बना ली। रणजीत सिंह ने अंग्रेज़ों द्वारा फिरोज़पुर पर अधिकार करने तथा यहाँ छावनी बनाए जाने के कारण चाहे बहुत क्रोध किया, किंतु अंग्रेजों ने इसकी कोई परवाह न की। महाराजा को मात्र क्रोध का चूंट पीकर रह जाना पड़ा।

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प्रश्न 6.
त्रिपक्षीय (तीन-पक्षीय) संधि पर नोट लिखें। (Write a brief note on Tri-partite Treaty and its significance.)
अथवा
तीन पक्षीय संधि के बारे में चर्चा करें।
(Discuss about Tri-partite Treaty.)
अथवा
त्रिपक्षीय संधि एवं उसके महत्त्व के बारे में आप क्या जानते हैं ?
(Write a note about Tri-partite Treaty and its importance.)
उत्तर-
1837 ई० में रूस बड़ी तेजी से भारत की ओर बढ़ रहा था। इस आक्रमण को रोकने के लिए अंग्रेजों ने अफ़गानिस्तान के शासक दोस्त मुहम्मद खाँ से मित्रता करनी चाही, परंतु दोस्त मुहम्मद खाँ यह चाहता था कि अंग्रेज़ पेशावर का क्षेत्र रणजीत सिंह से लेकर उसे दे दें। अंग्रेज़ ऐसे अवसर पर रणजीत सिंह से अपने संबंध बिगाड़ना नहीं चाहते थे। इसलिए उन्होंने अफ़गानिस्तान के भूतपूर्व शासक शाह शुजा से वार्ता आरंभ कर दी। 26 जून, 1838 ई० को अंग्रेजों, शाह शुजा तथा महाराजा रणजीत सिंह के मध्य एक त्रिपक्षीय संधि पर हस्ताक्षर किए गए। इस संधि के अनुसार शाह शुजा को अफ़गानिस्तान के सिंहासन पर बैठाने का निर्णय किया गया। शाह शुजा ने रणजीत सिंह द्वारा विजित किए समस्त अफ़गान क्षेत्रों पर उसका अधिकार मान लिया। महाराजा रणजीत सिंह को कहा गया कि वह शाह शुजा को 5,000 सैनिक सहायता के लिए भेजे। इसके बदले शाह शुजा रणजीत सिंह को 2 लाख रुपये देगा। महाराजा रणजीत सिंह इस संधि पर हस्ताक्षर करने को तैयार न था। किंतु अंग्रेजों ने उसे ऐसा करने पर बाध्य कर दिया। इस संधि ने महाराजा रणजीत सिंह की सिंध तथा शिकारपुर पर अधिकार करने की सभी इच्छाओं पर तुषारापात कर दिया।

प्रश्न 7.
1809 से 1839 ई० तक के अंग्रेज़-सिख संबंधों का विवरण दीजिए। (Give an account of Anglo-Sikh relations from 1809 to 1839.)
उत्तर-
1809 ई० में महाराजा रणजीत सिंह एवं अंग्रेजों के मध्य अमृतसर की प्रसिद्ध संधि हुई। यह संधि महाराजा रणजीत सिंह की अपेक्षा अंग्रेजों के लिए अधिक लाभकारी सिद्ध हुई। इस संधि के कारण यद्यपि महाराजा रणजीत सिंह का सभी सिख रियासतों का महाराजा बनने का स्वप्न पूरा न हो सका, किंतु उसने खालसा राज्य को नष्ट होने से बचा लिया। 1809 ई० से 1830 ई० तक दोनों शक्तियों के मध्य कभी मित्रता स्थापित हो जाती तथा कभी उनमें तनाव स्थापित हो जाता। 1830 से 1839 ई० में दोनों शक्तियों के संबंधों में आपसी तनाव अधिक बढ़ गया। इसका कारण यह था कि अंग्रेजों ने सिंध, शिकारपुर तथा फिरोजपुर पर अकारण ही कब्जा कर लिया था। इसके अतिरिक्त अंग्रेजों ने महाराजा रणजीत सिंह को 1838 ई० में त्रिपक्षीय संधि पर हस्ताक्षर करने के लिए बाध्य किया। इन कारणों से महाराजा रणजीत सिंह ने अपने को बहुत अपमानित महसूस किया। परिणामस्वरूप उसने इस अपमान का बदला लेने के लिए अंग्रेजों के विरुद्ध कोई पग उठाने का निर्णय किया। दुर्भाग्यवश 1839 ई० में महाराजा रणजीत सिंह की मृत्यु हो गई।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 18 ऐंग्लो-सिख संबंध : 1800-1839

प्रश्न 8.
रणजीत सिंह के अंग्रेजों के साथ संबंधों के स्वरूप का वर्णन करें। (Discuss the nature of Ranjit Singh’s relation with the British.)
अथवा
महाराजा रणजीत सिंह की अंग्रेजों के सामने झुकने की नीति के बारे में अपने विचार लिखो।’ (Comment on Maharaja Ranjit Singh’s policy of yielding towards the British.)
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह ने सदैव अंग्रेजों के समक्ष झुकने की नीति अपनाई। 1809 ई० में अंग्रेजों ने उसे अमृतसर की संधि करने के लिए बाध्य किया। इससे महाराजा रणजीत सिंह की समस्त सिखों का महाराजा बनने की आशाएँ धूल में मिल गईं। 1822 ई० में अंग्रेजों ने सदा कौर के कहने पर रणजीत सिंह की सेनाओं से वदनी खाली करवा लिया। 1832 ई० में अंग्रेज़ों ने रणजीत सिंह को धोखे में रख कर सिंध के अमीरों से एक व्यापारिक संधि कर ली। इस संबंधी जब महाराजा रणजीत सिंह को ज्ञात हुआ तो वह केवल छटपटा कर रह गया। 1835 ई० में अंग्रेजों ने महाराजा रणजीत सिंह को शिकारपुर खाली करने के लिए विवश किया। इसी वर्ष अंग्रेजों ने फिरोजपुर पर अधिकार कर महाराजा रणजीत सिंह की शक्ति को एक और चुनौती दी। महाराजा केवल गुस्से के चूंट पी कर रह गया। अंग्रेज़ों ने रणजीत सिंह से 26 जून, 1838 ई० को त्रिपक्षीय समझौते पर बलपूर्वक हस्ताक्षर करवाए। ये घटनाएँ इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण थीं कि महाराजा रणजीत सिंह सदा अंग्रेजों के आगे झुकता रहा।

Source Based Questions

नोट-निम्नलिखित अनुच्छेदों को ध्यानपूर्वक पढ़िए और उनके अंत में पूछे गए प्रश्नों का उत्तर दीजिए।

1
महाराजा रणजीत सिंह सभी सिख रियासतों को अपने अधिकार में लेना चाहता था। इस उद्देश्य से उसने 1806 ई० और 1807 ई० में दो बार मालवा प्रदेश पर आक्रमण किए। उसने कई क्षेत्रों पर अधिकार कर लिया और कई शासकों से नज़राना प्राप्त किया। इन आक्रमणों से घबरा कर मालवा रियासतों के सरदारो ने अंग्रेजों से सहायता की याचना की। क्योंकि इस समय नेपोलियन के भारत पर आक्रमण का खतरा बढ़ गया था इसलिए अंग्रेज़ मालवा के सरदारों को सहयोग देने की अपेक्षा महाराजा रणजीत सिंह से संधि करना चाहते थे। परंतु सितंबर, 1808 ई० में रणजीत सिंह तथा चार्ल्स मैटकाफ के मध्य वार्ता असफल रही। रणजीत सिंह ने दिसंबर, 1808 ई० में मालवा पर तीसरी बार आक्रमण करके कुछ क्षेत्रों पर अधिकार कर लिया। इसी मध्य नेपोलियन का भारत पर हमले का खतरा टल गया। अब अंग्रेजों ने रणजीत सिंह से अपनी शर्ते मनवाने के लिए युद्ध की तैयारियाँ आरंभ कर दीं। परिणामस्वरूप 25 अप्रैल, 1809 ई० को रणजीत सिंह तथा अंग्रेजों के मध्य अमृतसर की संधि पर हस्ताक्षर हो गए।

  1. महाराजा रणजीत सिंह ने मालवा पर प्रथम बार आक्रमण कब किया ?
    • 1805 ई०
    • 1806 ई०
    • 1807 ई०
    • 1808 ई०।
  2. महाराजा रणजीत सिंह ने मालवा पर आक्रमण क्यों किया ?
  3. नज़राना से क्या भाव है ?
  4. मालवा रियासतों के सरदारों ने अंग्रेजों से सहायता की माँग क्यों की ?
  5. महाराजा रणजीत सिंह तथा अंग्रेजों के मध्य अमृतसर की संधि कब हुई ?

उत्तर-

  1. 1806 ई०।
  2. इन आक्रमणों का उद्देश्य महाराजा रणजीत सिंह सभी सिख रियासतों को अपने अधीन लाना चाहता था।
  3. नज़राना से भाव है महाराजा को दिए जाने वाले उपहार।
  4. मालवा रियासतों के सरदारों ने अंग्रेजों से सहायता इसलिए मांगी थी क्योंकि उनको खतरा था कि महाराजा रणजीत सिंह उनकी रियासतों पर अधिकार कर लेगा।
  5. महाराजा रणजीत सिंह तथा अंग्रेजों के मध्य अमृतसर की संधि 25 अप्रैल, 1809 ई० को हुई।

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2
सिंध का प्रदेश व्यापारिक एवं भौगोलिक पक्ष से बहुत महत्त्वपूर्ण था। इसलिए महाराजा रणजीत सिंह तथा अंग्रेज़ दोनों इस क्षेत्र को अपने अधिकार में लेना चाहते थे। 1831 ई० में अंग्रेजों ने अलैग्जेंडर बर्नस को सिंध के संबंध में जानकारी प्राप्त करने के लिए भेजा। महाराजा रणजीत सिंह को कोई संदेह न हो, इसलिए उसको रोपड़ में गवर्नरजनरल लॉर्ड विलियम बैंटिंक के साथ एक मुलाकात के लिए निमंत्रण भेजा। यह मुलाकात 26 अक्तूबर, 1831 ई० को हुई। अंग्रेजों ने बहुत चालाकी के साथ रणजीत सिंह को बातों में लगाए रखा। दूसरी ओर अंग्रेजों ने सिंध के साथ संधि करने के लिए कर्नल पोटिजर को भेजा। वह 1832 ई० में सिंध के साथ एक व्यापारिक संधि करने में सफल हुआ। जब रणजीत सिंह को इस संधि के विषय में ज्ञात हुआ तो वह कई रातों तक सुख की नींद न सो पाया, किंतु उसने अंग्रेज़ों के इस पग के विरुद्ध एक भी शब्द बोलने का साहस न किया।

  1. महाराजा रणजीत सिंह सिंध पर अधिकार क्यों करना चाहता था ?
  2. अलैग्जेंडर बर्नस कौन था ?
  3. महाराजा रणजीत सिंह तथा लार्ड विलियम बैंटिंक के मध्य मुलाकात कब हुई ?
  4. महाराजा रणजीत सिंह तथा लार्ड विलियम बैंटिंक के मध्य मुलाकात कहाँ हुई थी ?
    • रोपड़ में
    • अमृतसर में
    • लाहौर में
    • दिल्ली में।
  5. अंग्रेज़ों तथा सिंध के मध्य एक व्यापारिक संधि करने में कौन सफल हुआ ?

उत्तर-

  1. महाराजा रणजीत सिंह सिंध पर अधिकार इसलिए करना चाहता था क्योंकि इसका भौगोलिक तथा व्यापारिक पक्ष से बहुत महत्त्व था।
  2. अलैग्जेंडर बर्नस एक अंग्रेज़ अधिकारी था जिसे अग्रेज़ों ने सिंध के बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिए भेजा था।
  3. महाराजा रणजीत सिंह तथा लार्ड विलियम बैंटिक के मध्य मुलाकात 26 अक्तूबर, 1831 ई० को हुई।
  4. रोपड़ में।
  5. अंग्रेजों तथा सिंध के मध्य एक व्यापारिक संधि करने में कर्नल पोटिजर सफल हुआ।

3
अंग्रेज़ फिरोज़पुर जैसे महत्त्वपूर्ण नगर को अपने अधिकार में लेना चाहते थे। यह नगर लाहौर से केवल 40 मील की दूरी पर स्थित था। यहाँ से अंग्रेज़ रणजीत सिंह के राज्य की गतिविधियों के संबंध में काफ़ी जानकारी प्राप्त कर सकते थे। इसके अतिरिक्त पंजाब में घेराव डालने के लिए फिरोज़पुर पर अधिकार करना आवश्यक था। यद्यपि अंग्रेज़ फिरोज़पुर की ओर काफ़ी समय से ललचाई दृष्टि से देख रहे थे, किंतु वे इस पर अपने अधिकार को स्थगित करते हुए आ रहे थे ताकि रणजीत सिंह उनसे नाराज़ न हो जाए। इसी कारण अंग्रेज़ 1835 ई० तक फिरोजपुर पर रणजीत सिंह का अधिकार मानते आए थे, किंतु अब स्थिति परिवर्तित हो चुकी थी। अंग्रेजों को रणजीत सिंह की मैत्री की कोई विशेष आवश्यकता नहीं थी। इसलिए 1835 ई० में अंग्रेजों ने बलपूर्वक फिरोजपुर पर अधिकार कर लिया। 1838 ई० में अंग्रेजों ने यहाँ एक शक्तिशाली सैनिक छावनी बना ली। रणजीत सिंह ने अंग्रेजों द्वारा फिरोज़पुर पर अधिकार करने तथा यहाँ छावनी बनाए जाने के कारण चाहे बहुत क्रोध किया, किंतु अंग्रेजों ने इसकी कोई परवाह न की।

  1. अंग्रेज़ फिरोजपुर पर क्यों अधिकार करना चाहते थे ?
  2. पंजाब में घेराव डालने के लिए ……………. पर अधिकार करना आवश्यक था।
  3. अंग्रेजों ने फिरोजपुर पर कब अधिकार कर लिया था ?
  4. अंग्रेजों ने फिरोज़पुर में कब एक सैनिक छावनी स्थापित की थी ?
  5. क्या महाराजा रणजीत सिंह फिरोजपुर के प्रश्न पर अंग्रेजों के आगे झुक गया था ?

उत्तर-

  1. अंग्रेज़ फिरोजपुर पर अधिकार करके महाराजा रणजीत सिंह के राज्य की गतिविधियों को पास से देख सकते थे।
  2. फिरोजपुर।
  3. अंग्रेजों ने 1835 ई० में फिरोजपुर पर अधिकार कर लिया था।
  4. अंग्रेजों ने 1838 ई० में फिरोज़पुर में एक सैनिक छावनी स्थापित कर ली थी।
  5. महाराजा रणजीत सिंह फिरोज़पुर के प्रश्न पर निःसन्देह अंग्रेजों के आगे झुक गया था।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 18 ऐंग्लो-सिख संबंध : 1800-1839

ऐंग्लो-सिख संबंध : 1800-1839 PSEB 12th Class History Notes

  • प्रथम चरण (First Stage)-महाराजा रणजीत सिंह और अंग्रेजों के मध्य संबंधों का प्रथम चरण 1800 से 1809 ई० तक चला-1800 ई० में अंग्रेजों ने यूसुफ अली के अधीन एक सद्भावना मिशन रणजीत सिंह के दरबार में भेजा-1805 में मराठा सरदार जसवंत राव होल्कर ने महाराजा से अंग्रेजों के विरुद्ध सहायता माँगी परंतु महाराजा ने इंकार कर दिया–प्रसन्न होकर अंग्रेजों ने महाराजा रणजीत सिंह के साथ 1 जनवरी, 1806 ई० को लाहौर की संधि की-महाराजा रणजीत सिंह की बढ़ती हुई शक्ति को रोकने के लिए अंग्रेजों ने चार्ल्स मैटकॉफ को 1808 ई० में बातचीत के लिए भेजा-बातचीत असफल रहने पर दोनों ओर से युद्ध की तैयारियाँ आरंभ हो गईं-अंतिम क्षणों में महाराजा अंग्रेज़ों के साथ संधि करने के लिए तैयार हो गया।
  • अमतृसर की संधि (Treaty of Amritsar)-अमृतसर की संधि महाराजा रणजीत सिंह तथा अंग्रेजों के मध्य 25 अप्रैल, 1809 ई० को हुई-इस संधि के अनुसार सतलुज नदी को लाहौर दरबार और अंग्रेजों के मध्य सीमा रेखा मान लिया गया-इस संधि से महाराजा रणजीत सिंह का समस्त सिख कौम को एक झंडे तले एकत्रित करने का सपना धूल में मिल गया-परंतु इस संधि से उसने अपने राज्य को पूर्णत: नष्ट होने से बचा लिया-अमृतसर की संधि अंग्रेजों की बड़ी कूटनीतिक विजय थी।
  • द्वितीय चरण (Second Stage)-महाराजा रणजीत सिंह और अंग्रेजों के मध्य संबंधों का दूसरा चरण 1809 से 1839 ई० तक चला-1809 से 1812 ई० तक दोनों पक्षों के मध्य संदेह और अविश्वास का वातावरण बना रहा-1812 से 1821 ई० तक का काल दोनों पक्षों के मध्य शांतिपूर्ण सहअस्तित्व का काल रहा-1832 में अंग्रेज़ों तथा सिंध में हुई व्यापारिक संधि से महाराजा रणजीत सिंह को गहरा आघात लगा- अंग्रेज़ों द्वारा 1835 ई० में शिकारपुर और फ़िरोज़पुर पर अधिकार करने पर भी महाराजा रणजीत सिंह खामोश रहा-अंग्रेज़ों ने 26 जून, 1838 ई० को महाराजा को त्रिपक्षीय संधि पर हस्ताक्षर करने के लिए बाध्य किया- महाराजा रणजीत सिंह ने अंग्रेजों के प्रति जो नीति अपनाई उसकी कुछ इतिहासकारों ने निंदा की है जबकि कुछ ने प्रशंसा।