Punjab State Board PSEB 11th Class Political Science Book Solutions Chapter 22 मौलिक अधिकार Textbook Exercise Questions and Answers.
PSEB Solutions for Class 11 Political Science Chapter 22 मौलिक अधिकार
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न-
प्रश्न 1.
भारतीय संविधान में दिए गए मौलिक अधिकारों की विशेषताओं की व्याख्या करो।
(Discuss the special features of the Fundamental Rights as given in the Indian Constitution.)
अथवा
हमारे संविधान में दिए गए मौलिक अधिकारों की प्रकृति की व्याख्या करो।
(Discuss the nature of Fundamental Rights as mentioned in our Constitution.)
उत्तर-
भारत के संविधान के तीसरे भाग में नागरिकों के मौलिक अधिकारों का उल्लेख किया गया है और संविधान द्वारा उनकी केवल घोषणा ही नहीं बल्कि उनकी सुरक्षा भी की गई है। भारत के संविधान में मूल अधिकारों का वर्णन केवल इसलिए ही नहीं किया गया कि उस समय यह कोई फैशन था। यह वर्णन उस सिद्धान्त की पुष्टि के लिए लिया गया है, जिसके अनुसार सरकार कानून के अनुसार कार्य करे, न कि गैर-कानूनी तरीके से।
मौलिक अधिकारों की प्रकृति अथवा स्वरूप
अथवा
मौलिक अधिकारों की विशेषताएं
संविधान ने जो भी मौलिक अधिकार घोषित किए हैं, उनकी कुछ अपनी ही विशेषताएं हैं जो कि निम्नलिखित हैं-
1. व्यापक और विस्तृत-भारतीय संविधान में लिखित मौलिक अधिकार बड़े व्यापक तथा विस्तृत हैं। इनका वर्णन संविधान के तीसरे भाग की 24 धाराओं (Art. 12-35) में किया गया है। नागरिकों को 6 प्रकार के मौलिक अधिकार दिए गए हैं और प्रत्येक अधिकार की विस्तार से व्याख्या की गई है।
2. मौलिक अधिकार सब नागरिकों के लिए हैं-संविधान में दिए गए मौलिक अधिकारों की यह विशेषता है कि ये भारत के सभी नागरिकों के लिए समान रूप से उपलब्ध हैं। ये अधिकार सभी को जाति, धर्म, रंग, लिंग आदि के भेदभाव के बिना दिए गए हैं।
3. मौलिक अधिकार असीमित नहीं हैं-कोई भी अधिकार पूर्ण और असीमित नहीं हो सकता। भारतीय संविधान में दिए गए मौलिक अधिकार भी असीमित नहीं हैं। संविधान के अन्दर ही मौलिक अधिकारों पर अनेक प्रतिबन्ध लगाए गए हैं।
4. मौलिक अधिकार केन्द्र तथा राज्य सरकार की शक्तियों पर प्रतिबन्ध लगाते हैं-मौलिक अधिकार केन्द्र तथा राज्य सरकारों की शक्तियों पर प्रतिबन्ध लगाते हैं और उनके माध्यम से प्रत्येक ऐसी संस्था जिसको कानून बनाने का अधिकार है, पर प्रतिबन्ध लगाते हैं। केन्द्रीय सरकार, राज्य सरकारों तथा स्थानीय सरकारों को मौलिक अधिकारों के अनुसार ही कानून बनाने पड़ते हैं तथा ये कोई ऐसा कानून नहीं बना सकतीं जो मौलिक अधिकारों पर के विरुद्ध हो।
5. अधिकार न्याय योग्य हैं-मौलिक अधिकार न्यायालयों द्वारा लागू किए जा सकते हैं। यदि इन अधिकारों में से किसी का उल्लंघन किया जाता है, तो वह व्यक्ति जिसको इनके उल्लंघन से हानि होती है, अपने अधिकारों की रक्षा के लिए सर्वोच्च न्यायालय की शरण में जा सकता है। सर्वोच्च न्यायालय संसद् अथवा राज्य विधान-मण्डलों के पास हुए कानून तथा आदेश को अवैध घोषित कर सकती है यदि वह कानून अथवा आदेश संविधान के मौलिक अधिकारों के विरुद्ध हो।
6. अधिकार निलम्बित किए जा सकते हैं-राष्ट्रपति संकट काल की घोषणा करके संविधान में दिए गए मौलिक अधिकारों को निलम्बित कर सकता है तथा साथ ही उच्च न्यायालयों तथा सर्वोच्च न्यायालय में इन अधिकारों के उल्लंघन के विरुद्ध अपील करने के अधिकार का भी निषेध कर सकता है। 44वें संशोधन के अन्तर्गत यह व्यवस्था की गई है कि अनुच्छेद 21 के अन्तर्गत दिए निजी और स्वतन्त्रता के अधिकार को आपात्कालीन स्थिति के दौरान भी स्थगित नहीं किया जा सकता, परन्तु 59वें संशोधन द्वारा इस अधिकार को भी निलम्बित किया जा सकता है।
7. नकारात्मक तथा सकारात्मक अधिकार-हमारे संविधान में नकारात्मक तथा सकारात्मक दोनों प्रकार के अधिकार हैं। नकारात्मक अधिकार निषेधों की तरह हैं जो राज्य की शक्ति पर सीमाएं लगाते हैं। उदाहरणस्वरूप अनुच्छेद 18 राज्यों को आदेश देता है कि वह किसी नागरिक को सेना या विद्या सम्बन्धी उपाधि के अलावा और किसी प्रकार की उपाधि नहीं देंगे, यह नकारात्मक अधिकार है। सकारात्मक अधिकार वे होते हैं जो नागरिक को किसी काम को करने की स्वतन्त्रता प्रदान करते हैं। बोलने का अधिकार सकारात्मक अधिकार है।
8. कुछ मौलिक अधिकार विदेशियों को भी प्राप्त हैं-संविधान में कुछ अधिकार तो केवल भारतीय नागरिकों को दिए गए हैं, जैसे अनुच्छेद 15, 16, 19 तथा 30 में वर्णित अधिकार और कुछ अधिकार नागरिकों तथा विदेशियों को समान रूप में मिले हैं, जैसे कानून के समक्ष समानता तथा समान संरक्षण, धर्म की स्वतन्त्रता, शोषण के विरुद्ध अधिकार इत्यादि।
9. इनका संशोधन किया जा सकता है-मौलिक अधिकारों की अनुच्छेद 368 में दी गई विधि कार्यविधि में संशोधन किया जा सकता है। इसके लिए कुल सदस्यों के बहुमत एवं संसद् के दोनों सदनों में से प्रत्येक में उपस्थित व मत देने वाले सदस्यों के दो तिहाई बहुमत का होना ज़रूरी है।
10. मौलिक अधिकारों को लागू करने के लिए विशेष संवैधानिक व्यवस्था-अनुच्छेद 32 में लिखा है कि भारत में किसी भी अधिकारी द्वारा यदि किसी व्यक्ति के अधिकारों को छीनने का प्रयत्न किया जाता है, तो वह अपने अधिकारों को लागू कराने के लिए उचित विधि द्वारा सर्वोच्च न्यायालय में जा सकता है ताकि आदेश अथवा रिट, हैबीयस कॉर्पस (Habeaus Corpus), मण्डामस (Mandamus), वर्जन (Prohibition), कौवारण्टो (Quo Warranto) एवं सरटरारी (Certiorari) जो भी उचित हो, जारी करवा सके।
11. साधारण व्यक्तियों तथा संस्थाओं पर लागू होना-मौलिक अधिकारों का प्रभाव सरकार तथा सरकारी संस्थाओं के अतिरिक्त गैर-सरकारी व्यक्तियों और संस्थाओं पर भी है।
12. संविधान नागरिक स्वतन्त्रताओं पर अधिक बल देता है-मौलिक अधिकारों की एक अन्य विशेषता यह है कि इसमें नागरिक स्वतन्त्रताओं (कानून के समक्ष समता, भाषण तथा अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता इत्यादि) पर ही अधिक बल दिया गया है। मौलिक अधिकारों में आर्थिक अधिकारों, जैसे काम करने का अधिकार का वर्णन नहीं किया है।
13. भारतीय संविधान में न तो प्राकृतिक और न ही अप्रगणित अधिकारों का वर्णन है (No Natural and Uneumerated Rights in the Indian Constitution)-प्राकृतिक अधिकार व्यक्ति को प्रकृति की ओर से मिले होते हैं। यह मनुष्य को जन्म से ही प्राप्त होते हैं। इन अधिकारों का सम्बन्ध प्राकृतिक न्याय से है। यह राज्य और सरकार के जन्म से पूर्व के हैं, अतः अधिकारों के सिद्धान्त के अनुसार अधिकारों का आधार संविधान में लिखा जाना मात्र नहीं है। इनका आधार सामाजिक समझौता है। सामाजिक समझौते के आधार पर ही राज्य की स्थापना हुई थी, परन्तु भारतीय संविधान में दिए गए मौलिक अधिकारों का आधार प्राकृतिक आधार नहीं है।
अमेरिका का सर्वोच्च न्यायालय संविधान में प्रगणित अधिकारों की व्याख्या तो कर ही सकता है, साथ ही वह अनेकों दूसरे अधिकारों की व्याख्या कर सकता है जिसका स्पष्ट रूप से संविधान में वर्णन नहीं, ऐसा अमेरिका के संविधान में लिखा है। किन्तु गोपालन बनाम मद्रास (चेन्नई) राज्य वाले विवाद में भारत की सर्वोच्च न्यायपालिका ने यह फैसला कर दिया था कि “जब तक विधानमण्डल द्वारा बनाया गया कोई अधिनियम संविधान के किसी उपबन्ध के विपरीत नहीं, उस अधिनियम को केवल इस आधार पर कि न्यायालय उसे संविधान की भावना के विरुद्ध समझता है अवैध नहीं घोषित किया जाएगा।”
प्रश्न 2.
भारतीय संविधान में दिए गए मौलिक अधिकारों की संक्षिप्त व्याख्या करें।
(Explain in brief the meaning of the fundamental rights given in the constitution.)
अथवा
भारतीय संविधान में दिए गए नगारिक अधिकारों का संक्षेप में वर्णन करें।
(Explain in brief the fundamental rights enshrined in the India constitution.)
अथवा
भारतीय संविधान में अंकित मौलिक अधिकारों का वर्णन करो। इनका महत्त्व क्या है ?
(Describe briefly the fundamental rights as given in the Indian constitution. What is their significance ?)
उत्तर-
भारतीय संविधान में मौलिक अधिकारों का वर्णन संविधान के तीसरे भाग में धारा 12 से 35 तक की धाराओं में किया गया है।
44वें संशोधन से पूर्व संविधान में दिए गए मौलिक अधिकारों को सात श्रेणियों में बांटा गया था परन्तु 44वें संशोधन द्वारा अनुच्छेद 19 में संशोधन करके और अनुच्छेद 31 को हटा कर सम्पत्ति के अधिकार को मौलिक अधिकारों के अध्याय से निकाल कर कानूनी अधिकार बना दिया गया है। अतः 44वें संशोधन के बाद 6 मौलिक अधिकार रह गये हैं जो निम्नलिखित हैं
1. समानता का अधिकार (अनुच्छेद 14, 15, 16, 17 व 18) [Right to Equality (Art. 14, 15, 16, 17 and 18)] – समानता का अधिकार एक महत्त्वपूर्ण मौलिक अधिकार है जिसका वर्णन अनुच्छेद 14 से 18 तक में किया गया है। भारतीय संविधान में नागरिकों को निम्नलिखित समानता प्रदान की गई है
(I) कानून के समक्ष समानता (Equality before Law, Art. 14) संविधान के अनुच्छेद 14 में “कानून के समक्ष समानता और कानूनों के समान संरक्षण” शब्दों का एक साथ प्रयोग किया गया है और संविधान में लिखा गया है कि भारत के राज्य क्षेत्र में किसी भी व्यक्ति को कानून के समक्ष समानता और कानून के समान संरक्षण से राज्य द्वारा वंचित नहीं किया जाएगा।
कानून के समक्ष समानता (Equality before Law) का अर्थ यह है कि कानून के सामने सभी बराबर हैं और किसी को विशेषाधिकार प्राप्त नहीं है। कोई भी व्यक्ति देश के कानून से ऊपर नहीं है। सभी व्यक्ति भले ही उनकी कुछ भी स्थिति हो, साधारण कानून के अधीन हैं और उन पर साधारण न्यायालय में मुकद्दमा चलाया जा सकता है।
कानून के समान संरक्षण (Equal Protection of Law) का यह आभप्राय कि समान परिस्थितियों में सब के साथ समान व्यवहार किया जाए।
अपवाद (Exceptions)—इस अधिकार के निम्नलिखित अपवाद हैं।
- विदेशी राज्यों के अध्यक्ष तथा राजदूतों के विरुद्ध भारतीय कानूनों के अन्तर्गत कोई कार्यवाही नहीं की जा सकती।
- राष्ट्रपति तथा राज्य के राज्यपाल के विरुद्ध उनके कार्यकाल में कोई फौजदारी मुकद्दमा नहीं चलाया जा सकता।
- मन्त्रियों, विधानमण्डल के सदस्यों, न्यायाधीशों और दूसरे कर्मचारियों को भी कुछ विशेषाधिकार दिए गए हैं और ये विशेषाधिकार साधारण नागरिकों को प्राप्त नहीं हैं।
(II) भेदभाव की मनाही (Prohibition of Discrimination, Art. 15)—अनुच्छेद 15 के अनुसार अग्रलिखित व्यवस्था की गई है-
- राज्य किसी नागरिक के विरुद्ध धर्म, मूल वंश, जाति लिंग, जन्म-स्थान अथवा इनमें से किसी के आधार पर कोई भेद-भाव नहीं करेगा।
- दुकानों, सार्वजनिक भोजनालयों, होटलों और मनोरंजन के सार्वजनिक स्थानों के ऊपर दिए गए किसी आधार पर किसी नागरिक को अयोग्य व प्रतिबन्धित नहीं किया जाएगा।
- उन कुओं, तालाबों, नहाने के घाटों, सड़कों व सैर के स्थानों से जिनकी राज्य की निधि से अंशतः या पूर्णतः देखभाल की जाती है अथवा जिनको सार्वजनिक प्रयोग के लिए दिया गया हो, किसी नागरिक को जाने की मनाही नहीं होगी अर्थात् सार्वजनिक स्थान सभी नागरिकों के लिए बिना किसी भेदभाव के खुले हैं।
अपवाद (Exception)-अनुच्छेद 15 में दिए गए अधिकारों के निम्न दो अपवाद हैं-
- राज्य स्त्रियों और बच्चों के हितों की रक्षा के लिए विशेष व्यवस्था कर सकता है।
- राज्य पिछड़ी जातियों, अनुसूचित जन-जातियों तथा अनुसूचित कबीलों के लोगों की भलाई के लिए विशेष व्यवस्थाओं का प्रबन्ध कर सकता है।
(III) सरकारी नौकरियों के लिए अवसर की समानता (Equality of Opportunity in Matter of Public Employment-Art. 16) अनुच्छेद 16 राज्य में सरकारी नौकरियों या पदों (Employment or Appointment) पर नियुक्ति के सम्बन्ध में सब नागरिकों को समान अवसर प्रदान करता है। सरकारी नौकरियां या पदों पर नियुक्ति के सम्बन्ध में धर्म, मूल वंश, लिंग, जन्म-स्थान, निवास या इनमें से किसी के आधार पर किसी नागरिक के साथ भेदभाव नहीं किया जाएगा।
(IV) छुआछूत की समाप्ति (Abolition of Untouchability, Art. 17)-अनुच्छेद 17 द्वारा छुआछूत को समाप्त किया गया है। किसी भी व्यक्ति के साथ अछूतों जैसा व्यवहार करना या उसको अछूत समझकर सार्वजनिक स्थानों, होटलों, घाटों, तालाबों, कुओं, सिनेमा घरों, पार्कों तथा मनोरंजन के स्थानों के उपयोग से रोकना कानूनी अपराध है। छुआछूत की समाप्ति एक महान् ऐतिहासिक घटना है।
(V) उपाधियों की समाप्ति (Abolition of Titles, Art. 18) अनुच्छेद 18 के अनुसार यह व्यवस्था की गई है कि-
- सेना या शिक्षा सम्बन्धी उपाधि के अतिरिक्त राज्य कोई और उपाधि नहीं देगा।
- भारत का कोई भी नागरिक किसी विदेशी राज्य से कोई उपाधि स्वीकार नहीं करेगा।
- कोई व्यक्ति जो भारत का नागरिक नहीं, परंतु भारत में किसी लाभप्रद अथवा भरोसे के पद पर नियुक्त है, राष्ट्रपति की आज्ञा के बिना किसी विदेशी से कोई उपाधि प्राप्त नहीं कर सकता।
- कोई भी व्यक्ति जो राज्य के किसी लाभदायक पद पर विराजमान है, राष्ट्रपति की आज्ञा के बिना कोई भेंट, वेतन अथवा किसी प्रकार का पद विदेशी राज्य से प्राप्त नहीं कर सकता।
भारत सरकार नागरिकों को भारत रत्न (Bharat Ratan), पदम् विभूषण (Padam Vibhushan), पदम् भूषण (Padam Bhushan), पद्म श्री (Padam Shri) आदि उपाधियां देती है जिस कारण अलोचकों का कहना है कि ये उपाधियां अनुच्छेद 18 के साथ मेल नहीं खातीं।
2. स्वतन्त्रता का अधिकार अनुच्छेद 19 से 22 तक (Right to Freedom Art. 19 to 22) – स्वतन्त्रता का अधिकार प्रजातन्त्र की स्थापना के लिए उतना ही आवश्यक है जितना कि समानता का अधिकार। भारत के संविधान में स्वतन्त्रता के अधिकार का वर्णन अनुच्छेद 19 से 22 में किया गया है। स्वतन्त्रता के अधिकार को संविधान का ‘प्राण तथा आत्मा’ और स्वतन्त्रताओं का पत्र कहा जाता है। श्री एम० वी० पायली (M. V. Pylee) ने लिखा है, “स्वतन्त्रता के अधिकार सम्बन्धी ये चार धाराएं मौलिक अधिकारों के अध्याय का मूल आधार हैं।” अब हम अनुच्छेद 19 से 22 तक में दिए गए स्वतन्त्रता के अधिकार का वर्णन करते हैं-
(क) अनुच्छेद 19-अनुच्छेद 19 के अन्तर्गत नागरिकों को निम्नलिखित 6 स्वतन्त्रताएं प्राप्त हैं
- भाषण तथा विचार प्रकट करने की स्वतन्त्रता-प्रत्येक नागरिक को भाषण देने तथा विचार प्रकट करने की स्वतन्त्रता प्राप्त है। कोई भी नागरिक बोलकर या लिखकर अपना विचार प्रकट कर सकता है परन्तु भाषण देने और विचार प्रकट करने की स्वतन्त्रता असीमित नहीं है।
- शान्तिपूर्ण तथा बिना अस्त्रों के सम्मेलन की स्वतन्त्रता-भारतीय नागरिकों को शान्तिपूर्ण तथा बिना हथियारों के अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए सम्मेलन करने का अधिकार प्राप्त है, परन्तु राज्य भारत की प्रभुसत्ता और अखण्डता, सार्वजनिक व्यवस्था के हित में शान्तिपूर्वक तथा बिना शस्त्रों के इकट्ठे होने के अधिकार को सीमित कर सकता है।
- संस्था तथा संघ बनाने की स्वतन्त्रता-संविधान नागरिकों को अपने सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक तथा सांस्कृतिक लक्ष्यों की पूर्ति के लिए संस्था तथा संघ बनाने की स्वतन्त्रता प्रदान करता है। परन्तु संघ तथा संस्था बनाने के अधिकार को राज्य भारत की प्रभुसत्ता तथा अखण्डता, सार्वजनिक व्यवस्था तथा नैतिकता के हित में उचित प्रतिबन्ध लगाकर सीमित कर सकता है।
- समस्त भारत में चलने-फिरने की स्वतन्त्रता-संविधान नागरिकों को समस्त भारत में घूमने-फिरने की स्वतन्त्रता प्रदान करता है। भारत के किसी भी भाग में जाने के लिए पासपोर्ट की आवश्यकता नहीं है, परन्तु राज्य जनता के हितों और अनुसूचित कबीलों के हितों की सुरक्षा के लिए इस स्वतन्त्रता पर उचित प्रतिबन्ध लगा सकता है।
- भारत के किसी भाग में रहने तथा बसने की स्वतन्त्रता- भारतीय नागरिक किसी भी भाग में रह सकते हैं
और अपना निवास स्थान बना सकते हैं। राज्य जनता के हितों और अनुसूचित कबीलों के हितों की सुरक्षा के लिए इस स्वतन्त्रता पर भी उचित प्रतिबन्ध लगा सकता है।
- कोई भी व्यवसाय, पेशा करने अथवा व्यापार एवं वाणिज्य करने की स्वतन्त्रता- प्रत्येक नागरिक को अपनी इच्छा से कोई भी व्यवसाय, पेशा अथवा व्यापार करने की स्वतन्त्रता दी गई है। राज्य किसी नागरिक को कोई विशेष व्यवसाय अपनाने के लिए मजबूर नहीं कर सकता।
(ख) जीवन और व्यक्तिगत स्वतन्त्रता की सुरक्षा (Right of Life and Personal Liberty-Art. 20-22)
अनुच्छेद 20 व्यक्ति और उसकी व्यक्तिगत स्वतन्त्रता की रक्षा करता है; जैसे-
- किसी व्यक्ति को किसी ऐसे कानून का उल्लंघन करने पर दण्ड नहीं दिया जा सकता जो कानून उसके अपराध करते समय लागू नहीं था।
- किसी व्यक्ति को उससे अधिक सज़ा नहीं दी जा सकती जितनी अपराध करते समय प्रचलित कानून के अधीन दी जा सकती है।
- किसी भी व्यक्ति के विरुद्ध उसी अपराध के लिए एक बार से अधिक मुकद्दमा नहीं चलाया जाएगा और दण्डित नहीं किया जाएगा।
- किसी अभियुक्त को अपने विरुद्ध गवाही देने के लिए बाध्य नहीं किया जाएगा।
अनुच्छेद 21 में लिखा है कि कानून द्वारा स्थापित पद्धति के बिना, किसी व्यक्ति को उसके जीवन और उसकी व्यक्तिगत स्वतन्त्रता से वंचित नहीं किया जाएगा।
शिक्षा का अधिकार (Right to Education)-दिसम्बर, 2002 में राष्ट्रपति ने 86वें संवैधानिक संशोधन को अपनी स्वीकृति प्रदान की। इस स्वीकृति के बाद शिक्षा का अधिकार (Right to Education) संविधान के तीसरे भाग में शामिल होने के कारण एक मौलिक अधिकार बन गया है। इस संशोधन द्वारा यह व्यवस्था की गई है, कि 6 वर्ष से लेकर 14 वर्ष तक के सभी भारतीय बच्चों को शिक्षा का मौलिक अधिकार प्राप्त होगा। बच्चों के माता-पिता अभिभावकों या संरक्षकों का यह कर्त्तव्य होगा कि वे अपने बच्चों को ऐसे अवसर उपलब्ध करवाएं, जिनसे उनके बच्चे शिक्षा प्राप्त कर सकें। शिक्षा के अधिकार के लागू होने के बाद भारतीय बच्चे इस अधिकार के उल्लंघन होने पर न्यायालय में जा सकते हैं, क्योंकि मौलिक अधिकारों में शामिल होने के कारण ये अधिकार न्याय योग्य है।
1 अप्रैल, 2010 से बच्चों को निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009′ के लागू होने के पश्चात् 6 वर्ष से 14 वर्ष तक के प्रत्येक बच्चे को निःशुल्क और अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा पाने का कानूनी अधिकार मिल गया है।
(ग) गिरफ्तारी एवं नज़रबन्दी के विरुद्ध रक्षा (Protection against Arrest and Detention in Certain Cases-Art. 22) –
अनुच्छेद 22 गिरफ्तार तथा नजरबन्द नागरिकों के अधिकारों की घोषणा करता है। अनुच्छेद 22 के अनुसार-
- गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को, गिरफ्तारी के तुरन्त पश्चात् उसकी गिरफ्तारी के कारणों से परिचित कराया जाना चाहिए।
- उसे अपनी पसन्द के वकील से परामर्श लेने और उसके द्वारा सफाई पेश करने का अधिकार होगा।
- बन्दी-गृह में बन्द किए गए किसी व्यक्ति को बन्दी-गृह से किसी मैजिस्ट्रेट के न्यायालय तक की यात्रा के लिए आवश्यक समय निकाल कर 24 घण्टों के अन्दर-अन्दर निकट-से-निकट मैजिस्ट्रेट के न्यायालय में उपस्थित किया जाए।
- बिना मैजिस्ट्रेट की आज्ञा के 24 घण्टे से अधिक समय के लिए किसी व्यक्ति को कारावास में नहीं रखा जाएगा।
अपवाद-अनुच्छेद 22 में लिखे अधिकार उस व्यक्ति को नहीं मिलते जो शत्रु विदेशी है या निवारक नजरबन्दी कानून के अनुसार गिरफ्तार किया गया हो।
3. शोषण के विरुद्ध अधिकार (अनुच्छेद 23-24)
(Right Against Exploitation-Art. 23-24) – संविधान के 23वें तथा 24वें अनुच्छेदों में नागरिकों के शोषण के विरुद्ध अधिकारों का वर्णन किया गया है। इस अधिकार का उद्देश्य है कि समाज का कोई भी शक्तिशाली वर्ग किसी निर्बल वर्ग पर अन्याय न कर सके।
(I) मानव के व्यापार और बलपूर्वक मज़दूरी की मनाही (Prohibition of traffic in human beings and forced Labour)-अनुच्छेद 23 के अनुसार ‘मनुष्यों का व्यापार, बेगार और अन्य प्रकार का बलपूर्वक श्रम निषेध है और इस व्यवस्था का उलंलघन करना दण्डनीय अपराध है।’ जब भारत स्वतन्त्र हुआ तब भारत के कई भागों में दासता और बेगार की प्रथा प्रचलित थी। ज़मींदार किसानों से बहुत काम करवाया करते थे, परन्तु उसके बदले उनको कोई मज़दूरी नहीं दी जाती थी। मनुष्यों को विशेषकर स्त्रियों को पशुओं की तरह खरीदा और बेचा जाता था, अतः इन बुराइयों को समाप्त करने के लिए अनुच्छेद 23 द्वारा उठाया गया पग बहुत ही महत्त्वपूर्ण है।
अपवाद-परन्तु इस अधिकार का एक अपवाद है। सरकार को जनता के हितों के लिए अपने नागरिकों से आवश्यक सेवा (Compulsory Service) करवाने का अधिकार है।
(II) कारखानों आदि में बच्चों को काम पर लगाने की मनाही (Prohibition of employment of children in factories etc.)–अनुच्छेद 24 के अनुसार 14 वर्ष से कम आयु वाले किसी भी बच्चे को किसी भी कारखाने अथवा खान में नौकर नहीं रखा जा सकता और न ही किसी संकटमयी नौकरी में लगाया जा सकता है। यह इसलिए किया गया है ताकि बच्चों को काम में लगाने के स्थान पर उनको शिक्षा दी जा सके। इसीलिए निर्देशक सिद्धान्तों में राज्य को यह निर्देश दिया गया है कि वह 14 वर्ष तक की आयु के बच्चों के लिए अनिवार्य और नि:शुल्क शिक्षा का प्रबन्ध करे।
4. धार्मिक स्वतन्त्रता का अधिकार (अनुच्छेद 25, 26, 27 व 28)
(Right to Freedom of Religion-Art. 25, 26, 27 and 28) –
संविधान के अनुच्छेद 25 से 28 तक में नागरिकों को धार्मिक स्वतन्त्रता का अधिकार दिया गया है।
(i) अन्तःकरण की स्वतन्त्रता तथा किसी भी धर्म को मानने व उसका प्रचार करने की स्वतन्त्रता-अनुच्छेद 25 में कहा गया है कि सार्वजनिक व्यवस्था नैतिकता, स्वास्थ्य और संविधान के तीसरे भाग की अन्य व्यवस्थाओं पर विचार करते हुए सभी व्यक्तियों को अन्तःकरण की स्वतन्त्रता (Freedom of Conscience) का अधिकार प्राप्त है और बिना रोक-टोक के धर्म में विश्वास (Profess) रखने, धार्मिक कार्य करने (Practice) तथा प्रचार (Propagation) करने का अधिकार है। यह अनुच्छेद भारत में एक धर्म-निरपेक्ष राज्य की स्थापना करता है। राज्य किसी धर्म विशेष का पक्षपात नहीं करता है और न ही उसे कोई विशेष सुविधा ही प्रदान करता है।
(ii) अनुच्छेद 26 के अनुसार धार्मिक मामलों का प्रबन्ध करने की स्वतन्त्रता (Freedom to manage Religious Affairs) दी गई है। सार्वजनिक व्यवस्था, स्वास्थ्य और नैतिकता को ध्यान में रखते हुए धार्मिक समुदायों या उसके किसी भाग को निम्नलिखित अधिकार दिए गए हैं
(क) धार्मिक एवं परोपकार के उद्देश्यों से संस्थाएं स्थापित करे तथा उन्हें चलाए। (ख) धार्मिक मामलों में अपने कार्यों का प्रबन्ध करे। (ग) चल तथा अचल सम्पत्ति का स्वामित्व ग्रहण करे। (घ) वह अपनी सम्पत्ति का कानून के अनुसार प्रबन्ध करे।
(iii) अनुच्छेद 27 के अनुसार किसी धर्म विशेष के प्रसार के लिए कर न देने की स्वतन्त्रता है-किसी भी व्यक्ति को कोई ऐसा कर देने के लिए विवश नहीं किया जा सकता जिसको इकट्ठा करके किसी विशेष धर्म या धार्मिक समुदाय के विकास या बनाए रखने के लिए खर्च किया जाता हो।
(iv) सरकारी शिक्षण संस्थाओं में धार्मिक शिक्षा पर रोक-अनुच्छेद 28 में निम्नलिखित व्यवस्था की गई है
(क) किसी भी सरकारी शिक्षण संस्था में कोई धार्मिक शिक्षा नहीं दी जाएगी, परन्तु यह धारा ऐसी शिक्षण संस्था ‘ पर लागू नहीं होती जिसका प्रबन्ध सरकार करती है, परन्तु जिसकी स्थापना किसी धनी, दानी अथवा ट्रस्ट द्वारा की गई है, तो ऐसी संस्थाओं में धार्मिक शिक्षा देना वांछित घोषित करता है।
(ख) गैर-सरकारी शिक्षा संस्थाओं में जिन्हें राज्य द्वारा मान्यता प्राप्त है अथवा जिन्हें सरकारी सहायता प्राप्त होती है किसी विद्यार्थी को उसकी इच्छा के विरुद्ध धार्मिक शिक्षा ग्रहण करने या धार्मिक पूजा में सम्मिलित होने के लिए विवश नहीं किया जा सकता। यदि विद्यार्थी वयस्क न हो तो उसके संरक्षक की अनुमति आवश्यक है।
धार्मिक स्वतन्त्रता से स्पष्ट पता चलता है कि भारत एक धर्म-निरपेक्ष राज्य है जिसमें व्यक्ति को अपनी इच्छानुसार अपने धर्म को मानने की स्वतन्त्रता दी गई है।
5. सांस्कृतिक तथा शैक्षणिक अधिकार (अनुच्छेद 29 व 30) (Cultural and Educational Rights—Art. 29 and 30)- भारत में अनेक धर्मों को मानने वाले लोग हैं जिनकी भाषा, रीति-रिवाज और सभ्यता एक-दूसरे से भिन्न हैं। अनुच्छेद 29 तथा 30 के अधीन नागरिकों को विशेषतः अल्पसंख्यकों को सांस्कृतिक तथा शैक्षणिक अधिकार प्रदान किए गए हैं। ये अधिकार निम्नलिखित हैं-
(क) भाषा, लिपि और संस्कृति को बनाए रखने का अधिकार (Right to conserve the Language, Script and Culture)-
- अनुच्छेद 29 के अनुसार भारत के किसी भी क्षेत्र में रहने वाले नागरिकों के किसी भी वर्ग या उसके किसी भाग को जिसकी अपनी भाषा, लिपि अथवा संस्कृति हो, उसे यह अधिकार है कि वह उनकी रक्षा करे।
अनुच्छेद 29 के अनुसार केवल अल्पसंख्यकों को ही अपनी भाषा, संस्कृति इत्यादि को सुरक्षित रखने का अधिकार प्राप्त नहीं है बल्कि यह अधिकार नागरिकों के प्रत्येक वर्ग को प्राप्त है।
- किसी भी नागरिक को राज्य द्वारा या उसकी सहायता से चलाई जाने वाली शिक्षा संस्था में प्रवेश देने से धर्म, जाति, वंश, भाषा या इसमें किसी के आधार पर इन्कार नहीं किया जा सकता।
(ख) अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा-
- अनुच्छेद 30 के अनुसार सभी अल्पसंख्यकों को चाहे वे धर्म पर आधारित हों या भाषा पर, यह अधिकार प्राप्त है कि वे अपनी इच्छानुसार शिक्षा संस्थाओं की स्थापना करें तथा उनका प्रबन्ध करें।
- अनुच्छेद 30 के अनुसार राज्य द्वारा शिक्षण संस्थाओं को सहायता देते समय शिक्षा संस्था के प्रति इस आधार पर भेदभाव नहीं होगा कि अल्पसंख्यकों के प्रबन्ध के अधीन है, चाहे वह अल्पसंख्यक भाषा के आधार पर हो या धर्म के आधार पर।
6. संवैधानिक उपायों का अधिकार (अनुच्छेद 32) (Right to Constitutional Remedies—Art. 32) – अनुच्छेद 32 के अनुसार प्रत्येक नागरिक अपने मौलिक अधिकारों की प्राप्ति और रक्षा के लिए उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय के पास जा सकता है। यदि सरकार हमारे किसी मौलिक अधिकार को लागू नहीं करती या उसके विरुद्ध कोई काम करती है तो उसके विरुद्ध न्यायालय में प्रार्थना-पत्र दिया जा सकता है और न्यायालय द्वारा उस अधिकार को लागू करवाया जा सकता है या उस कानून को रद्द करवाया जा सकता है। उच्च न्यायालयों तथा सर्वोच्च न्यायालय को इस सम्बन्ध में कई प्रकार के लेख (Writs) जारी करने का अधिकार है।
निष्कर्ष (Conclusion)-निःसन्देह भारतीय संविधान में दिए गए मौलिक अधिकारों की कई पक्षों से आलोचना की गई है। मौलिक अधिकारों द्वारा नागरिकों की व्यक्तिगत स्वतन्त्रता की रक्षा की गई है और कार्यपालिका तथा संसद् की स्वेच्छाचारिता पर अंकुश लगा दिया गया है। हम एम० वी० पायली (M. V. Pylee) के इस कथन से सहमत हैं कि “सम्पूर्ण दृष्टि से संविधान में अंकित मौलिक अधिकार भारतीय प्रजातन्त्र को दृढ़ तथा जीवित रखने का आधार हैं।”
प्रश्न 3.
भारतीय संविधान में लिखित संवैधानिक उपचारों के मौलिक अधिकार पर विवेचना कीजिए।
(Discuss the fundamental right to constitutional remedies.)
उत्तर-
संविधान में मौलिक अधिकारों का वर्णन कर देना ही काफ़ी नहीं है, इनकी सुरक्षा के उपायों की व्यवस्था भी उतनी ही आवश्यक है, इसलिए हमारे संविधान निर्माताओं ने संविधान में न्यायिक उपचारों की व्यवस्था की। इन उपचारों का वर्णन अनुच्छेद 32 में किया गया है। अनुच्छेद 32 के अनुसार यह व्यवस्था की गई है-
- मौलिक अधिकारों को लागू करने के लिए सर्वोच्च न्यायालय को उचित कार्यवाही करने का अधिकार प्रदान किया गया है। अनुच्छेद 226 के अनुसार इन मौलिक अधिकारों को लागू करवाने का अधिकार उच्च न्यायालय को भी दिया गया है।
- सर्वोच्च न्यायालय को मौलिक अधिकारों को लागू करने के लिए निर्देश, आदेश और लेख-बन्दी प्रत्यक्षीकरण (Habeas Corpus), परमादेश (Mandamus), निषेध (Prohibition), उत्प्रेषण (Certiorari) व अधिकार पृच्छा (Quo-Warranto) जारी करने का अधिकार प्राप्त है।
- संसद् कानून द्वारा किसी भी न्यायालय को, सर्वोच्च न्यायालय की शक्तियों को हानि पहुंचाए बिना उसके क्षेत्राधिकार को स्थानीय सीमाओं के अन्तर्गत आदेश (Writ) जारी करने की सब या कुछ शक्ति दे सकती है।
- उन परिस्थितियों को छोड़ कर जिनका संविधान में वर्णन किया गया है संवैधानिक उपचारों के मौलिक अधिकारों को स्थगित नहीं किया जा सकता। सर्वोच्च न्यायालय मौलिक अधिकारों को लागू करने के लिए निम्नलिखित आदेश जारी कर सकता है-
1. बन्दी प्रत्यक्षीकरण लेख (Writ of Habeas Corpus)-‘हेबियस कॉर्पस’ लैटिन भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है ‘हमारे सम्मुख शरीर को प्रस्तुत करो’, (Let us have the body)। इस आदेश के अनुसार न्यायालय किसी अधिकारी को जिसने किसी व्यक्ति को गैर-कानूनी ढंग से बन्दी बना रखा हो, आज्ञा दे सकता है कि कैदी को समीप के न्यायालय में उपस्थित किया जाए ताकि उसकी गिरफ्तारी के कानून का औचित्य या अनौचित्य का निर्णय किया जा सके। अनियमित गिरफ्तारी की दशा में न्यायालय उसको स्वतन्त्र करने का आदेश दे सकता है। अतः इस प्रकार की यह व्यवस्था नागरिक की व्यक्तिगत स्वतन्त्रता के लिए बहुत बड़ी सुरक्षा है।
2. परमादेश का आज्ञा पत्र (Writ of Mandamus)-‘मैण्डैमस’ शब्द भी लैटिन भाषा का है जिसका अर्थ है, “हम आदेश देते हैं।” (We Command) । इस आदेश द्वारा न्यायालय किसी अधिकारी, संस्था अथवा निम्न न्यायालय को अपने कर्तव्यों का पालन करने के लिए बाध्य कर सकता है। इस आदेश द्वारा न्यायालय राज्य के कर्मचारियों से ऐसे कार्य करवा सकता है जिनको वे किसी कारण न कर रहे हों तथा जिनके न किए जाने से किसी नागरिक के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हो रहा हो। ये आदेश केवल सरकारी कर्मचारियों या अन्य व्यक्तियों के विरुद्ध नहीं बल्कि स्वयं सरकार तथा अधीनस्थ न्यायालयों, न्यायिक संस्थाओं के विरुद्ध भी जारी किया जा सकता है यदि वे अपने अधिकारों का उचित प्रयोग और कर्त्तव्य का पालन न करें।
3. प्रतिषेध अथवा मनाही आज्ञा पत्र (Writ of Prohibition)-इस शब्द का अर्थ है “रोकना अथवा मनाही करना”। इस आदेश द्वारा सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालय किसी निम्न न्यायालय को आदेश देता है कि वह अमुक कार्य जो उसके अधिकार-क्षेत्र से बाहर है न करे अथवा एक दम बन्द कर दे। जहां परमादेश किसी कार्य को करने का आदेश देता है वहां प्रतिषेध किसी कार्य को न करने का आदेश देता है। प्रतिषेध केवल न्यायिक अथवा अर्द्ध-न्यायिक न्यायाधिकरणों के विरुद्ध जारी किया जा सकता है और उस सरकारी कर्मचारी के विरुद्ध जारी नहीं किया जा सकता जो न्यायिक कार्य न कर रहा हो।
4. उत्प्रेषण लेख (Writ of Certiorari)—इसका अर्थ है, “अच्छी प्रकार सूचित करो।” यह आदेश न्यायालय निम्न न्यायालय को जारी करता है जिसके द्वारा निम्न न्यायालय को किसी अभियोग के विषय में अधिक जानकारी देने का आदेश दिया जाता है। यह लेख निम्न न्यायालय के मुकद्दमे की सुनवाई आरम्भ होने से पहले तथा उसके बाद भी जारी किया जाता है।
5. अधिकार-पृच्छा लेख (Writ of Quo-Warranto)—इसका अर्थ है “किस के आदेश से” अथवा किस अधिकार से। यह आदेश उस समय जारी किया जाता है जब कोई व्यक्ति किसी ऐसे कार्य को करने का दावा करता है जिसको करने का उसको अधिकार न हो। इस लेख (Writ) के अनुसार उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय किसी व्यक्ति को पद ग्रहण करने से रोकने के लिए निषेध जारी कर सकता है और उक्त पद के रिक्त होने की तब तक के लिए घोषणा कर सकता है जिसके लिए अवकाश प्राप्ति की उम्र 70 से कम है तो न्यायालय उस व्यक्ति के विरुद्ध अधिकार-पृच्छा लेख जारी कर उस पद को रिक्त घोषित कर सकता है।
डॉ० अम्बेदकर (Dr. Ambedkar) ने अनुच्छेद 32 में दिए गए संवैधानिक उपचारों को संविधान की आत्मा तथा हृदय बताया है। उन्होंने अनुच्छेद 32 के सम्बन्ध में कहा था, “यदि मुझ से कोई यह पूछे कि संविधान का कौन-सा महत्त्वपूर्ण अनुच्छेद है, जिसके बिना संविधान प्रभाव शून्य हो जाएगा तो मैं इस अनुच्छेद के अतिरिक्त किसी और अनुच्छेद की ओर संकेत नहीं कर सकता। यह संविधान की आत्मा है। यह संविधान का हृदय है।”
प्रश्न 4.
भारतीय संविधान में दिए हुए मौलिक अधिकारों का आलोचनात्मक मूल्यांकन करो।
(Give a critical assessment of the fundamental rights as contained in the constitution.)
उत्तर-
वर्तमान युग में प्राय: सभी देशों में नागरिकों को मौलिक अधिकार दिए जाते हैं क्योंकि बिना मौलिक अधिकारों के व्यक्ति अपने व्यक्तित्व का विकास नहीं कर सकता। भारत में तो मौलिक अधिकारों की अन्य देशों के मुकाबले में आवश्यकता अधिक थी। इसी कारण संविधान निर्माताओं ने संविधान में मौलिक अधिकारों की बड़ी विस्तृत व्याख्या की। संविधान के तीसरे भाग में अनुच्छेद 14 से 32 तक में मौलिक अधिकारों की व्याख्या की गई है।
44वें संशोधन से पूर्व संविधान में दिए गए मौलिक अधिकारों को सात श्रेणियों में बांटा गया था परन्तु 44वें संशोधन के अन्तर्गत सम्पत्ति के अधिकार को मौलिक अधिकारों के अध्याय से निकालकर कानूनी अधिकार बनाने की व्यवस्था की गई है। अतः 44वें संशोधन के बाद 6 मौलिक अधिकार रह गए हैं जो कि अग्रलिखित हैं-
- समानता का अधिकार (Right to Equality)
- स्वतन्त्रता का अधिकार (Right to Freedom)
- शोषण के विरुद्ध अधिकार (Right Against Exploitation)
- धार्मिक स्वतन्त्रता का अधिकार (Right to Religious Freedom)
- सांस्कृतिक तथा शिक्षा सम्बन्धी अधिकार (Cultural and Educational Right)
- संवैधानिक उपचारों का अधिकार (Right to Constitutional Remedies)
नोट-इन अधिकारों की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए।
मौलिक अधिकारों की आलोचना (Criticism of Fundamental Rights) – मौलिक अधिकारों की निम्नलिखित अधिकारों पर कड़ी आलोचना की गई है
1. बहुत अधिक बन्धन- मौलिक अधिकारों पर इतने अधिक प्रतिबन्ध लगाए गए हैं कि अधिकारों का महत्त्व बहुत कम हो गया है। इन अधिकारों पर इतने अधिक प्रतिबन्ध हैं कि नागरिकों को यह समझने के लिए कठिनाई आती है कि इन अधिकारों द्वारा उन्हें कौन-कौन सी सुविधाएं दी गई हैं।
2. निवारक नज़रबन्दी व्यवस्था-अनुच्छेद 22 के अन्तर्गत व्यक्तिगत स्वतन्त्रता की व्यवस्था की गई है, परन्तु इसके साथ ही संविधान में निवारक नजरबन्दी की भी व्यवस्था की गई है। जिन व्यक्तियों को निवारक नज़रबन्दी कानून के अन्तर्गत गिरफ्तार किया गया हो उनको अनुच्छेद 22 में दिए गए अधिकार प्राप्त नहीं होते। निवारक नज़रबन्दी के अधीन सरकार कानून बना कर किसी भी व्यक्ति को बिना मुकद्दमा चलाए अनिश्चित काल के लिए जेल में बन्द कर सकती है तथा उसकी स्वतन्त्रता का हनन कर सकती है।
3. आर्थिक अधिकारों का अभाव-मौलिक अधिकारों की इसलिए भी कड़ी आलोचना की गई है कि इस अध्याय में आर्थिक अधिकारों का वर्णन नहीं किया गया है जबकि समाजवादी राज्यों में आर्थिक अधिकार भी दिए जाते हैं।
4. संकटकाल के समय अधिकार स्थागित किए जा सकते हैं-राष्ट्रपति अनुच्छेद 352 के अन्तर्गत संकटकाल की घोषणा कर के मौलिक अधिकारों को स्थगित कर सकता है। राष्ट्रपति द्वारा मौलिक अधिकारों को स्थगित किया जाना लोकतन्त्र की भावना के विरुद्ध है।
5. मौलिक अधिकारों की भाषा कठिन और अस्पष्ट मौलिक अधिकारों की आलोचना इस आधार पर की जाती है कि मौलिक अधिकारों की भाषा उलझन वाली तथा कठिन है।
6. न्यायपालिका के निर्णय संसद् के कानूनों द्वारा रद्द-सर्वोच्च न्यायालय ने अनेक बार संसद् के कानूनों को इस आधार पर रद्द किया है कि वे कानून नागरिकों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करते हैं, परन्तु संसद् ने संविधान में संशोधन करके न्यायपालिका द्वारा रद्द घोषित किए गए कानूनों को वैध तथा संवैधानिक घोषित कर दिया।
मौलिक अधिकारों का महत्त्व (Importance of Fundamental Rights) – यह कहना है कि मौलिक अधिकारों का कोई महत्त्व नहीं है एक बड़ी मूर्खता के अतिरिक्त और कुछ नहीं है। 1950 में ‘लीडर’ नामक पत्रिका ने मौलिक अधिकारों के बारे में कहा था कि “व्यक्तिगत अधिकारों पर लेख जनता को कार्यपालिका की स्वेच्छाचारिता की सम्भावना के विरुद्ध आश्वासन देता है। इन मौलिक अधिकारों का मनोवैज्ञानिक महत्त्व है, जिसकी कोई भी बुद्धिमान राजनीतिज्ञ उपेक्षा नहीं कर सकता।’ मौलिक अधिकारों का व्यक्तिगत स्वतन्त्रता तथा अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा के सम्बन्ध में विशेष महत्त्व है। मौलिक अधिकार वास्तव में लोकतन्त्र की आधारशिला हैं। मौलिक अधिकारों के अध्ययन का महत्त्व निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत किया जा सकता है
1. मौलिक अधिकार नागरिकों के व्यक्तित्व के विकास के लिए आवश्यक परिस्थितियां उत्पन्न करते हैं-व्यक्ति अपने व्यक्तित्व.का विकास तभी कर सकता है जब उसे आवश्यक सुविधाएं प्राप्त हों। भारतीय संविधान में दिए गए मौलिक अधिकार नागरिकों को वे सुविधाएं प्रदान करते हैं जिनके प्रयोग द्वारा व्यक्ति अपने व्यक्तित्व का विकास कर सकता है।
2. मौलिक अधिकार सरकार की निरंकुशता को रोकते हैं-मौलिक अधिकारों का महत्त्व इस में है कि ये सरकार को निरंकुश बनने से रोकते हैं। केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकारें शासन चलाने के लिए अपनी इच्छानुसार कानून नहीं बना सकतीं। कोई भी सरकार इन मौलिक अधिकारों के विरुद्ध कानून नहीं बना सकती।
3. मौलिक अधिकार व्यक्तिगत हितों तथा सामाजिक हितों में उचित सामंजस्य स्थापित करते हैं-मौलिक अधिकारों द्वारा व्यक्तिगत हितों तथा सामाजिक हितों में सामंजस्य उत्पन्न करने के लिए काफ़ी सीमा तक सफल प्रयास किया गया है।
4. मौलिक अधिकार कानून का शासन स्थापित करते हैं-मौलिक अधिकारों का महत्त्व इसमें है कि ये कानून के शासन की स्थापना करते हैं। सभी व्यक्ति कानून के समक्ष समान हैं और सभी को कानून द्वारा समान संरक्षण प्राप्त है।
5. मौलिक अधिकार सामाजिक समानता स्थापित करते हैं-मौलिक अधिकार सामाजिक समानता स्थापित करते हैं। मौलिक अधिकार सभी नागरिकों को बिना किसी भेद-भाव के दिए गए हैं। सरकार धर्म, जाति, भाषा, रंग, लिंग आदि के आधार पर भेद-भाव नहीं कर सकती है।
6. मौलिक अधिकार धर्म-निरपेक्षता की स्थापना करते हैं- अनुच्छेद 25 से 28 तक में नागरिकों को धार्मिक स्वतन्त्रताएं प्रदान की गई हैं और यह धार्मिक स्वतन्त्रता भारत में धर्म-निरपेक्ष राज्य की स्थापना करती है। यदि भारत को धर्म-निरपेक्ष राज्य न बनाया जाता तो भारत की एकता ही खतरे में पड़ जाती।
7. मौलिक अधिकार अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा करते हैं- अल्पसंख्यकों को अपनी भाषा, लिपि तथा संस्कृति को सुरक्षित रखने का अधिकार दिया गया है। अल्पसंख्यक अपनी पसन्द की शिक्षा संस्थाओं की स्थापना कर सकते हैं और उनका संचालन करने का अधिकार भी उनको प्राप्त है। सरकार अल्पसंख्यकों के साथ किसी प्रकार का भेद-भाव नहीं करेगी।
8. मौलिक अधिकार भारतीय लोकतन्त्र की आधारशिला हैं-समानता, स्वतन्त्रता तथा भ्रातृभाव लोकतन्त्र की नींव है। मौलिक अधिकारों द्वारा समानता, स्वतन्त्रता तथा भ्रातृभाव की स्थापना की गई है।
निष्कर्ष (Conclusion) हम प्रो० टोपे (Tope) के इस कथन से सहमत हैं कि, “मैं यह मानता हूं कि मौलिक अधिकारों सम्बन्धी अध्याय में कुछ त्रुटियां रह गई हैं, परन्तु इस पर भी यह अध्याय सामूहिक रूप से सन्तोषजनक है।”
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
मौलिक अधिकारों का क्या अर्थ है ? भारतीय संविधान में दिए गए मौलिक अधिकारों के नाम लिखें।
उत्तर-
मौलिक अधिकार उन आधारभूत आवश्यक तथा महत्त्वपूर्ण अधिकारों को कहा जाता है जिनके बिना देश के नागरिक अपने जीवन का विकास नहीं कर सकते। जो स्वतन्त्रताएं तथा अधिकार व्यक्ति तथा व्यक्तित्व का विकास करने के लिए समाज में आवश्यक समझे जाते हों, उन्हें मौलिक अधिकार कहा जाता है। भारतीय संविधान में मूल रूप से सात प्रकार के मौलिक अधिकारों का वर्णन किया गया है, परन्तु 44वें संशोधन के द्वारा सम्पत्ति के अधिकार को मौलिक अधिकारों की सूची से निकाल दिया गया। अतः अब 6 तरह के अधिकार नागरिकों को प्राप्त हैं।
संविधान में नागरिकों को 6 प्रकार के मौलिक अधिकार दिए गए हैं-
- समानता का अधिकार
- स्वतन्त्रता का अधिकार
- शोषण के विरुद्ध अधिकार
- धार्मिक स्वतन्त्रता का अधिकार
- सांस्कृतिक और शैक्षणिक अधिकार
- संवैधानिक उपायों का अधिकार।
प्रश्न 2.
भारतीय संविधान में दिए गए मौलिक अधिकारों की चार विशेषताएं बताओ।
उत्तर-
मौलिक अधिकारों की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं-
- व्यापक और विस्तृत-भारतीय संविधान में लिखित मौलिक अधिकार बड़े विस्तृत तथा व्यापक हैं। इनका वर्णन संविधान के तीसरे भाग की 24 धाराओं में किया गया है। नागरिकों को 6 प्रकार के मौलिक अधिकार दिए गए हैं और प्रत्येक अधिकार की विस्तृत व्याख्या की गई है।
- मौलिक अधिकार सब नागरिकों के लिए हैं-संविधान में दिए गए मौलिक अधिकारों की एक विशेषता यह है कि ये भारत के सभी नागरिकों को समान रूप से प्राप्त हैं। ये अधिकार सभी को जाति, धर्म, रंग, लिंग आदि के भेदभाव के बिना दिए गए हैं।
- मौलिक अधिकार असीमित नहीं हैं-कोई भी अधिकार पूर्ण और असीमित नहीं हो सकता। भारतीय संविधान में दिए गए मौलिक अधिकार भी असीमित नहीं हैं। संविधान के अन्तर्गत ही मौलिक अधिकारों पर कई प्रतिबन्ध लगाए गए हैं।
- मौलिक अधिकार न्याय योग्य हैं।
प्रश्न 3.
समानता के अधिकार का संक्षिप्त वर्णन करो।
उत्तर-
समानता के अधिकार का वर्णन अनुच्छेद 14 से 18 तक में किया गया है। अनुच्छेद 14 के अनुसार किसी भी व्यक्ति को कानून के समक्ष समानता तथा कानून के समान संरक्षण से राज्य द्वारा वंचित नहीं किया जाएगा। कानून के सामने सभी बराबर हैं और कोई कानून से ऊपर नहीं है। अनुच्छेद 15 के अनुसार राज्य किसी भी नागरिक के विरुद्ध धर्म, मूल, वंश, जाति, लिंग, जन्म स्थान अथवा इनमें से किसी के आधार पर कोई भेदभाव नहीं करेगा। सरकारी पदों पर नियुक्तियां करते समय जाति, धर्म, वंश, रंग, लिंग आदि के आधार पर कोई भेद-भाव नहीं किया जा सकता है। सभी नागरिकों को सभी सार्वजनिक स्थानों का प्रयोग करने का समान अधिकार है। छुआछूत को समाप्त कर दिया गया है। सेना तथा शिक्षा सम्बन्धी उपाधियों को छोड़ कर अन्य सभी उपाधियों को समाप्त कर दिया गया है।
प्रश्न 4.
कानून के समान संरक्षण पर संक्षिप्त नोट लिखो।
उत्तर-
कानून के समान संरक्षण से यह अभिप्राय है कि समान परिस्थितियों में सबके साथ समान व्यवहार किया जाए। जेनिंग्स (Jennings) के अनुसार, “समानता के अधिकार का यह अर्थ है कि समान स्थिति में लोगों के साथ समान व्यवहार किया जाए और समान लोगों के ऊपर समान कानून लागू हो।”
अनुच्छेद 14 द्वारा दिए गए समानता के अधिकार की व्याख्या करते हुए सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश श्री के० सुब्बाराव (K. Subba Rao) ने 1960 में कहा था कि “कानून के समक्ष समानता नकारात्मक तथा कानून द्वारा समान सुरक्षा सकारात्मक विचार है। पहला इस बात की घोषणा करता है कि प्रत्येक व्यक्ति कानून के समक्ष समान है, कोई भी व्यक्ति विशेष सुविधाओं का दावा नहीं कर सकता तथा सब श्रेणियां समान रूप से देश के साधारण कानून के अधीन हैं तथा बाद वाला एक-जैसी दशाओं तथा एक-जैसी स्थिति में एक-जैसे व्यक्तियों की समान सुरक्षा स्वीकार करता है। उत्तरदायित्व स्थापित करते समय या विशेष सुविधाएं प्रदान करते समय किसी प्रकार का कोई भेदभाव नहीं किया जा सकता।”
कानून के समक्ष समानता का अधिकार केवल भारतीय नागरिकों को ही नहीं बल्कि विदेशी नागरिकों को भी प्राप्त है।
प्रश्न 5.
‘अवसर की समानता’ से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
अनुच्छेद 16 राज्य के सरकारी नौकरियों या पदों (Employment or Appointment) पर नियुक्ति के सम्बन्ध में सब नागरिकों को समान अवसर प्रदान करता है। सरकारी नौकरियों या पदों पर नियुक्ति के सम्बन्ध में धर्म, मूल वंश, जाति, लिंग, जन्म स्थान, निवास या इनमें से किसी के आधार पर किसी नागरिक के साथ भेदभाव नहीं किया जाएगा।
वेंकटरमन बनाम मद्रास (चेन्नई) राज्य [Vankataraman Vs. Madras (Chennai) State] के मुकद्दमे में सर्वोच्च न्यायालय ने मद्रास (चेन्नई) सरकार की 1951 की उस साम्प्रदायिक राज्याज्ञा (Communal Gazetted Order of Madras (Chennai) Government] को अवैध घोषित कर दिया था जिसके अन्तर्गत कुछ तकनीकी संस्थाओं और अधीनस्थ न्यायिक सेवाओं में अनुसूचित जातियों तथा पिछड़े वर्गों के अतिरिक्त कुछ अन्य वर्गों और सम्प्रदायों के लिए स्थान सुरक्षित रखे गए थे।
प्रश्न 6.
अनुच्छेद 19 में दी गई स्वतन्त्रताओं का संक्षिप्त वर्णन करो।
उत्तर-
अनुच्छेद 19 में 6 प्रकार की स्वतन्त्रताओं का वर्णन किया गया है-
- प्रत्येक नागरिक को भाषण देने और विचार प्रकट करने की स्वतन्त्रता है।
- प्रत्येक नागरिक को शान्तिपूर्वक तथा बिना हथियारों के इकट्ठे होने और किसी समस्या पर विचार करने की स्वतन्त्रता है।
- नागरिकों को संस्थाएं तथा संघ बनाने की स्वतन्त्रता है।
- नागरिकों को समस्त भारत में घूमने-फिरने की स्वतन्त्रता है।
- नागरिकों को भारत के किसी भी भाग में रहने तथा बसने की स्वतन्त्रता है।
- प्रत्येक नागरिक को अपनी इच्छा से कोई भी व्यवसाय, पेशा अथवा नौकरी करने की स्वतन्त्रता है।
प्रश्न 7.
भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता के अधिकार को समझाइए।
उत्तर-
प्रत्येक नागरिक को भाषण देने तथा विचार प्रकट करने की स्वतन्त्रता प्राप्त है। कोई भी नागरिक बोलकर या लिखकर अपने विचार प्रकट कर सकता है। प्रेस की स्वतन्त्रता, भाषण देने तथा विचार प्रकट करने की स्वतन्त्रता का एक साधन है। परन्तु भाषण देने और विचार प्रकट करने की स्वतन्त्रता असीमित नहीं है। संसद् भारत की प्रभुसत्ता और अखण्डता, राज्य की सुरक्षा, सार्वजनिक व्यवस्था, शिष्टता अथवा नैतिकता, न्यायालय का अपमान, मान-हानि व हिंसा के लिए उत्तेजित करना आदि के आधारों पर भाषण तथा विचार प्रकट करने की स्वतन्त्रता पर प्रतिबन्ध लगा सकती है।
प्रश्न 8.
भारतीय संविधान के द्वारा दी गई धर्म की स्वतन्त्रता का क्या अर्थ है ?
उत्तर-
संविधान के अनुच्छेद 25 से 28 तक में नागरिकों को धार्मिक स्वतन्त्रता का अधिकार दिया गया है। सभी व्यक्तियों को अन्तःकरण की स्वतन्त्रता का समान अधिकार प्राप्त है और बिना रोक-टोक के धर्म में विश्वास रखने, धार्मिक कार्य करने तथा प्रचार करने का अधिकार है। सभी व्यक्तियों को धार्मिक मामलों का प्रबन्ध करने की स्वतन्त्रता दी गई है। किसी भी व्यक्ति को कोई ऐसा कर देने के लिए विवश नहीं किया जा सकता जिसको इकट्ठा करके किसी विशेष धर्म या धार्मिक समुदाय के विकास या बनाए रखने के लिए खर्च किया जाना हो। किसी भी सरकारी शिक्षण संस्था में कोई धार्मिक शिक्षा नहीं दी जा सकती। गैर-सरकारी शिक्षण संस्थाओं में जिन्हें राज्य द्वारा मान्यता प्राप्त है अथवा जिन्हें सरकारी सहायता प्राप्त होती है, किसी विद्यार्थी को उसकी इच्छा के विरुद्ध धार्मिक शिक्षा ग्रहण करने या धार्मिक पूजा में सम्मिलित होने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता।
प्रश्न 9.
शोषण के विरुद्ध अधिकार से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
संविधान की धारा 23 और 24 के अनुसार नागरिकों को शोषण के विरुद्ध अधिकार दिए गए हैं। इस अधिकार के अनुसार व्यक्तियों को बेचा या खरीदा नहीं जा सकता। किसी भी व्यक्ति से बेगार नहीं ली जा सकती। किसी भी व्यक्ति की आर्थिक दशा से अनुचित लाभ नहीं उठाया जा सकता और कोई भी काम उसकी इच्छा के विरुद्ध करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों को किसी ऐसे कारखाने या खान में नौकर नहीं रखा जा सकता, जहां उसके स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ने की सम्भावना हो।
प्रश्न 10.
भारतीय संविधान में ‘शिक्षा के अधिकार’ की व्याख्या का वर्णन करें।
उत्तर-
- किसी भी नागरिक को राज्य द्वारा या उसकी सहायता से चलाए जाने वाली संस्था में प्रवेश देने से धर्म, जाति, भाषा या इनमें से किसी के आधार पर इन्कार नहीं किया जा सकता।
- अनुच्छेद 30 के अनुसार सभी अल्पसंख्यकों को, चाहे वे धर्म पर आधारित हों या भाषा पर, यह अधिकार प्राप्त है कि वे अपनी इच्छानुसार शिक्षण संस्थाओं की स्थापना करें तथा उनका प्रबन्ध करें।
- अनुच्छेद 30 के अनुसार राज्य द्वारा शिक्षण संस्थाओं को सहायता देते समय शिक्षण संस्था के प्रति इस आधार पर भेदभाव नहीं होगा, कि वह अल्पसंख्यकों के प्रबन्ध के अधीन हैं, चाहे वह अल्पसंख्यक भाषा के आधार पर हो या धर्म के आधार पर।
प्रश्न 11.
संवैधानिक उपचारों के अधिकार से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
संवैधानिक उपचारों का अधिकार नागरिकों के मौलिक अधिकारों की प्राप्ति की रक्षा का अधिकार है। अनुच्छेद 32 के अनुसार प्रत्येक नागरिक अपने मौलिक अधिकारों की प्राप्ति और रक्षा के लिए उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय के पास जा सकता है। यदि सरकार हमारे किसी मौलिक अधिकार को लागू न करे या उसके विरुद्ध कोई काम करे तो उसके विरुद्ध न्यायालय में प्रार्थना-पत्र दिया जा सकता है और न्यायालय द्वारा उस अधिकार को लागू करवाया जा सकता है या कानून को रद्द कराया जा सकता है। उच्च न्यायालयों तथा सर्वोच्च न्यायालय को इस सम्बन्ध में कई प्रकार के लेख (Writs) जारी करने का अधिकार है।
प्रश्न 12.
भारतीय संविधान के दिए गए मौलिक अधिकारों के कोई चार महत्त्व लिखें।
उत्तर-
- मौलिक अधिकार नागरिकों के व्यक्तित्व के विकास के लिए आवश्यक परिस्थितियां उत्पन्न करते हैं-व्यक्ति अपने व्यक्तित्व का विकास तभी कर सकता है जब उसे आवश्यक सुविधाएं प्राप्त हों। भारतीय संविधान में दिए गए मौलिक अधिकार नागरिकों को वे सुविधाएं प्रदान करते हैं जिनके प्रयोग द्वारा व्यक्ति अपने व्यक्तित्व का विकास कर सकता है।
- मौलिक अधिकार सरकार की निरंकुशता को रोकते हैं-मौलिक अधिकारों का महत्त्व इसमें है कि ये अधिकार सरकार को निरंकुश बनने से रोकते हैं। केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकारें शासन चलाने के लिए अपनी इच्छानुसार कानून नहीं बना सकती। कोई भी सरकार इन मौलिक अधिकारों के विरुद्ध कानून नहीं बना सकती।
- मौलिक अधिकार कानून का शासन स्थापित करते हैं-मौलिक अधिकारों का महत्त्व इसमें है कि ये कानून के शासन की स्थापना करते हैं।
- मौलिक भारतीय लोकतन्त्र की आधारशीला है।
प्रश्न 13.
बन्दी प्रत्यक्षीकरण लेख (Writ of Habeas Corpus) से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
‘हेबयिस कॉर्पस’ लैटिन भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है, ‘हमारे सम्मुख शरीर को प्रस्तुत करो।’ (Let us have the body) इस आदेश के अनुसार, न्यायालय किसी भी अधिकारी को, जिसने किसी व्यक्ति को गैर-काननी ढंग से बन्दी बना रखा हो, आज्ञा दे सकता है कि कैदी को समीप के न्यायालय में उपस्थित किया जाए ताकि उसकी गिरफ्तारी के कानून का औचित्य या अनौचित्य का निर्णय किया जा सके। अनियमित गिरफ्तारी की दशा में न्यायालय उसको स्वतन्त्र करने या आदेश दे सकता है।
प्रश्न 14.
परमादेश के आज्ञा-पत्र (Writ of Mandamus) से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
‘मैण्डमस’ शब्द लैटिन भाषा का है जिसका अर्थ है ‘हम आदेश देते हैं’ (We Command)। इस आदेश द्वारा न्यायालय किसी भी अधिकारी, संस्था अथवा निम्न न्यायालय को अपने कर्तव्यों का पालन करने के लिए बाध्य कर सकता है। इस आदेश द्वारा न्यायालय राज्य के कर्मचारियों से ऐसा कार्य करवा सकता है जिनको वे किसी कारण न कर रहे हों तथा जिनके न किए जाने से किसी नागरिक के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हो रहा हो।
प्रश्न 15.
अधिकार पृच्छा लेख (Writ of Quo-Warranto) से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
इसका अर्थ है ‘किसके आदेश से’ अथवा ‘किस अधिकार से’। यह आदेश उस समय जारी किया जाता है जब कोई व्यक्ति किसी ऐसे कार्य को करने का दावा करता हो जिसको करने का उसका अधिकार न हो। इस आदेश के अनुसार उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय किसी व्यक्ति को एक पद ग्रहण करने से रोकने के लिए निषेध जारी कर सकता है और उक्त पद के रिक्त होने की तब तक के लिए घोषणा कर सकता है जब तक कि न्यायालय द्वारा कोई निर्णय न हो।
प्रश्न 16.
86वें संवैधानिक संशोधन के अन्तर्गत शिक्षा के अधिकार की क्या व्यवस्था की गई है ?
उत्तर-
दिसम्बर 2002 में राष्ट्रपति ने 86वें संवैधानिक संशोधन को अपनी स्वीकृति प्रदान की। इस स्वीकृति के बाद शिक्षा का अधिकार (Right to Education) संविधान के तीसरे भाग में शामिल होने के कारण एक मौलिक अधिकार बन गया है। इस संशोधन द्वारा यह व्यवस्था की गई है कि 6 वर्ष से लेकर 14 वर्ष तक के सभी भारतीय बच्चों को शिक्षा का मौलिक अधिकार प्राप्त होगा। बच्चों के माता-पिता अभिभावकों या संरक्षकों का यह कर्त्तव्य होगा, कि वे अपने बच्चों को ऐसे अवसर उपलब्ध करवाएं, जिनसे उनके बच्चे शिक्षा प्राप्त कर सकें। शिक्षा के अधिकार के लागू होने के बाद भारतीय बच्चे इस अधिकार के उल्लंघन होने पर न्यायालय में जा सकते हैं क्योंकि मौलिक अधिकारों में शामिल होने के कारण ये अधिकार न्याय योग्य हैं।
प्रश्न 17.
मौलिक अधिकारों की श्रेणी में से सम्पत्ति के अधिकार को क्यों निकाल दिया गया है ?
उत्तर-
भारतीय संविधान में मूल रूप से सम्पत्ति के अधिकार का मौलिक अधिकारों के अध्याय में वर्णन किया गया था, परन्तु 44वें संशोधन द्वारा सम्पत्ति के अधिकार को मौलिक अधिकारों में से निकल दिया गया है। मौलिक अधिकारों की श्रेणी में से सम्पत्ति के अधिकारों को निम्नलिखित कारणों से निकाला गया है-
(1) भारत में निजी सम्पत्ति के बढ़ते प्रभाव को कम करने के लिए सम्पत्ति के अधिकार को मूल अधिकारों में से निकाल दिया गया है।
(2) 42वें संशोधन द्वारा प्रस्तावना में समाजवाद शब्द रखा गया। समाजवाद और सम्पत्ति का अधिकार एक साथ नहीं चलते। अतः सम्पत्ति के अधिकार को मूल अधिकारों से निकाल दिया गया है।
अति लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
मौलिक अधिकारों का क्या अर्थ है ?
उत्तर-मौलिक अधिकार उन आधारभूत आवश्यक तथा महत्त्वपूर्ण अधिकारों को कहा जाता है जिनके बिना देश के नागरिक अपने जीवन का विकास नहीं कर सकते। जो स्वतन्त्रताएं तथा अधिकार व्यक्ति तथा व्यक्तित्व का विकास करने के लिए समाज में आवश्यक समझे जाते हों, उन्हें मौलिक अधिकार कहा जाता है।
प्रश्न 2.
संविधान में भारतीय नागरिकों को कितने मौलिक अधिकार प्राप्त हैं ?
उत्तर-
संविधान में भारतीय नागरिकों को 6 प्रकार के मौलिक अधिकार प्राप्त हैं-
- समानता का अधिकार
- स्वतन्त्रता का अधिकार
- शोषण के विरुद्ध अधिकार
- धार्मिक स्वतन्त्रता का अधिकार
- सांस्कृतिक और शैक्षणिक अधिकार
- संवैधानिक उपायों का अधिकार।
प्रश्न 3.
भारतीय संविधान में दिए गए मौलिक अधिकारों की दो विशेषताएं बताओ।
उत्तर-
- व्यापक और विस्तृत-भारतीय संविधान में लिखित मौलिक अधिकार बड़े विस्तृत तथा व्यापक हैं। इनका वर्णन संविधान के तीसरे भाग की 24 धाराओं में किया गया है। नागरिकों को 6 प्रकार के मौलिक अधिकार दिए गए हैं और प्रत्येक अधिकार की विस्तृत व्याख्या की गई है।
- मौलिक अधिकार सब नागरिकों के लिए हैं-संविधान में दिए गए मौलिक अधिकारों की एक विशेषता यह है कि ये भारत के सभी नागरिकों को समान रूप से प्राप्त हैं। ये अधिकार सभी को जाति, धर्म, रंग, लिंग आदि के भेदभाव के बिना दिए गए हैं।
प्रश्न 4.
समानता के अधिकार का संक्षिप्त वर्णन करो।
उत्तर-
समानता के अधिकार का वर्णन अनुच्छेद 14 से 18 तक में किया गया है। अनुच्छेद 14 के अनुसार किसी भी व्यक्ति को कानून के समक्ष समानता तथा कानून के समान संरक्षण से राज्य द्वारा वंचित नहीं किया जाएगा। कानून के सामने सभी बराबर हैं और कोई कानून से ऊपर नहीं है। अनुच्छेद 15 के अनुसार राज्य किसी भी नागरिक के विरुद्ध धर्म, मूल, वंश, जाति, लिंग, जन्म स्थान अथवा इनमें से किसी के आधार पर कोई भेदभाव नहीं करेगा। सरकारी पदों पर नियुक्तियां करते समय जाति, धर्म, वंश, रंग, लिंग आदि के आधार पर कोई भेद-भाव नहीं किया जा सकता है।
प्रश्न 5.
‘अवसर की समानता’ से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
अनुच्छेद 16 राज्य के सरकारी नौकरियों या पदों (Employment or Appointment) पर नियुक्ति के सम्बन्ध में सब नागरिकों को समान अवसर प्रदान करता है। सरकारी नौकरियों या पदों पर नियुक्ति के सम्बन्ध में धर्म, मूल वंश, जाति, लिंग, जन्म स्थान, निवास या इनमें से किसी के आधार पर किसी नागरिक के साथ भेदभाव नहीं किया जाएगा।
प्रश्न 6.
अनुच्छेद 19 में दी गई स्वतन्त्रताओं में से किन्हीं दो का संक्षिप्त वर्णन करो।
उत्तर-
अनुच्छेद 19 में 6 प्रकार की स्वतन्त्रताओं का वर्णन किया गया है-
- प्रत्येक नागरिक को भाषण देने और विचार प्रकट करने की स्वतन्त्रता है।
- प्रत्येक नागरिक को शान्तिपूर्वक तथा बिना हथियारों के इकट्ठे होने और किसी समस्या पर विचार करने की स्वतन्त्रता है।
वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न I. एक शब्द/वाक्य वाले प्रश्न-उत्तर-
प्रश्न 1. मौलिक अधिकारों का वर्णन संविधान के किस भाग में किया गया है ? आजकल इनकी संख्या कितनी है ?
उत्तर-मौलिक अधिकारों का वर्णन संविधान के तीसरे भाग में किया गया है। आजकल नागरिकों को 6 प्रकार के मौलिक अधिकार प्राप्त हैं।
प्रश्न 2. भारतीय संविधान में अंकित मौलिक अधिकारों के नाम लिखें।
उत्तर-
- समानता का अधिकार
- स्वतंत्रता का अधिकार
- शोषण के विरुद्ध अधिकार
- धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार
- शैक्षिणक एवं सांस्कृतिक अधिकार
- संवैधानिक उपचारों का अधिकार।
प्रश्न 3. समानता के अधिकार का वर्णन कितने अनुच्छेदों में किया गया है ?
उत्तर-अनुच्छेद 14 से 18 तक।
प्रश्न 4. स्वतंत्रता के अधिकार का वर्णन कितने अनुच्छेदों में किया गया है ?
उत्तर-अनुच्छेद 19 से 22 तक।
प्रश्न 5. शोषण के विरुद्ध अधिकार का वर्णन कितने अनुच्छेदों में किया गया है ?
उत्तर- अनुच्छेद 23 एवं 24 में।
प्रश्न 6. धार्मिक स्वतन्त्रता के अधिकार का वर्णन कितने अनुच्छेदों में किया गया है?
उत्तर-अनुच्छेद 25 से 28 तक।
प्रश्न 7. शैक्षणिक एवं सांस्कृतिक अधिकारों का वर्णन कितने अनुच्छेदों में किया गया है?
उत्तर-अनुच्छेद 29 एवं 30 में।
प्रश्न 8. संवैधानिक उपचारों के अधिकार का वर्णन कितने अनुच्छेदों में किया गया है?
उत्तर-अनुच्छेद 32 में।
प्रश्न 9. जीवन तथा व्यक्तिगत स्वतन्त्रता का सम्बन्ध किस अनुच्छेद से है?
उत्तर-अनुच्छेद 21 से।
प्रश्न 10. सम्पत्ति का अधिकार कैसा अधिकार है?
उत्तर-संपत्ति का अधिकार एक कानूनी अधिकार है।
प्रश्न 11. मौलिक अधिकार न्याय योग्य हैं, या नहीं ?
उत्तर-मौलिक अधिकार न्याय योग्य हैं।
प्रश्न 12. मौलिक अधिकारों की सुरक्षा कौन करता है?
उत्तर- मौलिक अधिकारों की सुरक्षा सर्वोच्च न्यायालय करता है।
प्रश्न 13. मौलिक अधिकारों में संशोधन किसके द्वारा किया जा सकता है?
उत्तर-संसद् द्वारा।
प्रश्न 14. 44वें संशोधन द्वारा किस मौलिक अधिकार को संविधान में से निकाल दिया गया है?
उत्तर-44वें संशोधन द्वारा संपत्ति के अधिकार को संविधान में से निकाल दिया गया है।
प्रश्न 15. किस मौलिक अधिकार को संविधान की आत्मा कहा जाता है?
उत्तर-संवैधानिक उपचारों का अधिकार।
प्रश्न 16. हैबियस कॉपर्स (Habeas Corupus) शब्द किस भाषा से लिया गया है?
उत्तर-लैटिन भाषा से।
प्रश्न 17. हैबियस कॉपर्स का क्या अर्थ है?
उत्तर-हमारे सम्मुख शरीर को प्रस्तुत करो।
प्रश्न 18. मैंडामस (Mandamus) शब्द किस भाषा से लिया गया है?
उत्तर-लैटिन भाषा से।
प्रश्न 19. मैंडामस शब्द का क्या अर्थ है ?
उत्तर–हम आदेश देते हैं।
प्रश्न 20. को-वारंटो (Quo-Warranto) का क्या अर्थ है?
उत्तर-किस आदेश से।
प्रश्न 21. किस मौलिक अधिकार को संकटकाल के समय भी स्थगित नहीं किया जा सकता ?
उत्तर-व्यक्तिगत स्वतन्त्रता का अधिकार।
प्रश्न II. खाली स्थान भरें-
1. अनुच्छेद 19 के अंतर्गत नागरिकों को ………. प्रकार की स्वतंत्रताएं दी गई हैं।
2. ……….. के अनुसार ………… से कम आयु वाले किसी भी बच्चे को किसी भी कारखाने अथवा खान में नौकर नहीं रखा जा सकता।
3. ………. के अनुसार धार्मिक मामलों का प्रबन्ध करने की स्वतंत्रता दी गई है।
4. ………. ने अनुच्छेद 32 में दिए गए संवैधानिक उपचारों को संविधान की आत्मा तथा हृदय बताया है।
5. …….. लैटिन भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ है, हमारे सम्मुख शरीर को प्रस्तुत करो।
उत्तर-
- छह
- अनुच्छेद 24, 14 वर्ष
- अनुच्छेद 26
- डॉ० अम्बेडकर
- हैबियस कॉर्पस।
प्रश्न III. निम्नलिखित में से सही एवं ग़लत का चुनाव करें।
1. संविधान के तीसरे भाग में अनुच्छेद 10 से 20 तक में नागरिकों के 10 मौलिक अधिकारों का वर्णन किया गया
2. 42वें संशोधन द्वारा संपत्ति के अधिकार को मौलिक अधिकारों के अध्याय से निकालकर कानूनी अधिकार बनाने की व्यवस्था की गई।
3. मौलिक अधिकार न्याय संगत नहीं हैं, जबकि नीति-निर्देशक सिद्धांत न्यायसंगत हैं।
4. अनुच्छेद 14 से 18 तक में समानता के अधिकार का वर्णन किया गया है।
5. अनुच्छेद 19 में 10 प्रकार की स्वतन्त्राओं का वर्णन किया गया है।
उत्तर-
- ग़लत
- सही
- ग़लत
- सही
- ग़लत।
प्रश्न IV. बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1.
संपत्ति का अधिकार
(क) मौलिक अधिकार
(ख) कानूनी अधिकार
(ग) नैतिक अधिकार
(घ) राजनीतिक अधिकार।
उत्तर-
(ख) कानूनी अधिकार ।
प्रश्न 2.
मौलिक अधिकार
(क) न्याय योग्य हैं
(ख) न्याय योग्य नहीं हैं
(ग) उपरोक्त दोनों
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(क) न्याय योग्य हैं।
प्रश्न 3.
जीवन तथा व्यक्तिगत स्वतंत्रता का संबंध किस अनुच्छेद से है ?
(क) अनुच्छेद 21
(ख) अनुच्छेद 19
(ग) अनुच्छेद 18
(घ) अनुच्छेद 20.
उत्तर-
(क) अनुच्छेद 21।
प्रश्न 4.
मौलिक अधिकारों की सुरक्षा करता है-
(क) राष्ट्रपति
(ख) सर्वोच्च न्यायालय
(ग) प्रधानमंत्री
(घ) स्पीकर।
उत्तर-
(ख) सर्वोच्च न्यायालय।