PSEB 7th Class Hindi रचना निबंध-लेखन (2nd Language)

Punjab State Board PSEB 7th Class Hindi Book Solutions Hindi Rachana Nibandh Lekhan निबंध-लेखन Exercise Questions and Answers, Notes.

PSEB 7th Class Hindi रचना निबंध-लेखन (2nd Language)

निबंध सूची :

  1. श्री गुरु नानक देव जी
  2. श्री गुरु तेग़ बहादुर का बलिदान
  3. श्री गुरु गोबिन्द सिंह जी
  4. गुरु रविदास
  5. महाराजा रणजीत सिंह
  6. लाला लाजपत राय
  7. महात्मा गांधी
  8. पं० जवाहर लाल नेहरू
  9. अमर शहीद सरदार भगत सिंह
  10. हमारा देश
  11. मेरा पंजाब
  12. मेरा गाँव
  13. मेरी पाठशाला (स्कूल)
  14. मेरा प्रिय अध्यापक
  15. मेरा मित्र
  16. लोहड़ी
  17. दशहरा
  18. दीवाली
  19. वैशाखी
  20. होली
  21. बसंत ऋतु
  22. प्रातः काल की सैर
  23. स्वतंत्रता दिवस (15 अगस्त)
  24. गणतन्त्र दिवस (26 जनवरी)
  25. समाचार पत्र 26. विद्यार्थी जीवन
  26. पर्यावरण प्रदूषण की समस्या
  27. टेलीविज़न के लाभ-हानियां
  28. मेरी पर्वतीय यात्रा
  29. आँखों देखी प्रदर्शनी
  30. जनसंख्या की समस्या
  31. देशभक्त/स्वदेश प्रेम
  32. आँखों देखा मैच

PSEB 7th Class Hindi रचना निबंध-लेखन (2nd Language)

1. श्री गुरु नानक देव जी

श्री गुरु नानक देव जी सिक्खों के पहले गुरु थे। इनका जन्म सन् 1469 में तलवण्डी नामक गाँव में हुआ। इनके पिता जी का नाम मेहता कालू राय जी और माता का नाम तृप्ता देवी जी था।

वह बचपन से ही प्रभु भक्ति में लीन रहते थे। इसलिए इनका मन पढ़ने में नहीं लगता था। एक बार पिता जी ने इनको कुछ रुपए दिए और सौदा ले आने को कहा। मार्ग में इन्होंने भूखे साधुओं को देखा, इन्होंने उनको भोजन करा दिया और खाली हाथ लौट आए। पिता जी इन पर बहुत गुस्से हुए। फिर उन्होंने गुरु नानक जी को सुल्तानपुर लोधी के मोदी खाने में नौकरी दिलवा दी। यहाँ भी वे अपना वेतन गरीबों और साधुओं में बाँट देते थे।

14 वर्ष की आयु में इनका विवाह सुलक्षणी देवी से हो गया। इनके दो पुत्र हुए श्री चन्द और लखमी दास। लेकिन घर में मन न लगने पर वह घर छोड़कर स्थान-स्थान पर घूमे। इन्होंने अपना सारा जीवन लोगों की भलाई में लगा दिया। लोगों को उपदेश देने के लिए इन्होंने कई यात्राएँ कीं। वह मक्का मदीना भी गए। इन्होंने ईश्वर को निराकार बताया और कहा कि ईश्वर एक है। हम सब भाई-भाई हैं। सदा सच बोलना चाहिए। इनकी वाणी गुरु ग्रन्थ साहिब में है। अन्त में वह करतारपुर में आ गए और वहीं ईश्वर का भजन करते स्वर्ग सिधार गए।

2. श्री गुरु तेग़ बहादुर का बलिदान

सिक्खों के नवम् गुरु श्री गुरु तेग़ बहादुर का आत्म-बलिदान इतिहास की एक अद्भुत घटना है। गुरु जी का जन्म 1 अप्रैल, सन् 1621 ई० को अमृतसर में हुआ। आपके पिता श्री गुरु हरगोबिन्द जी थे। आप शुरू से ही प्रभु के भक्त थे। आप में भलाई की भावना कूट-कूट कर भरी हुई थी।

एक बार कश्मीर का शासक ब्राह्मणों पर घोर अत्याचार कर रहा था। वह ब्राह्मणों को ज़बरदस्ती मुसलमान बनाना चाहता था। तब दुःखी ब्राह्मण गुरु जी के पास आए और उन्हें अपने दुःख का कारण बताया। कारण सुनकर गुरु तेग़ बहादुर जी भी चिन्ता में डूब गए। तभी पुत्र गोबिन्द राय ने चिन्ता का कारण पूछा। तब गुरु तेग बहादुर ने कहा कि किसी बड़े भारी बलिदान की आवश्यकता है। तब गोबिन्द राय ने कहा कि आप से बढ़कर कौन महान् है। अपने पुत्र के इस कथन से गुरु जी बहुत प्रसन्न हुए।

गुरु जी दिल्ली में औरंगजेब के दरबार में पहुंचे। उन्होंने औरंगजेब को काफ़ी समझाया। लेकिन इनके महान् उपदेश का उस पर कोई प्रभाव न पड़ा। उसने गुरु जी को मौत के घाट उतारने का हुक्म दे दिया। जैसे ही जल्लाद ने तलवार से गुरु जी पर प्रहार किया, आँधी चलने लगी। भाई जैता जी गुरु जी का शीश उठाकर आनन्दपुर गुरु गोबिन्द सिंह जी के पास ले गया। यहाँ शीश का अन्तिम संस्कार किया गया। भाई लखी शाह गुरु जी के शव को उठाकर अपने घर ले गया और घर को आग लगाकर उनका अन्तिम संस्कार कर दिया। दिल्ली में गुरुद्वारा शीश गंज उनके बलिदान की याद दिलाता है।

इस प्रकार गुरु जी ने अपने बलिदान से लोगों को यह प्रेरणा दी कि मौत से नहीं डरना चाहिए। सत्य की रक्षा के लिए उन्होंने अपनी जान की बाज़ी लगा दी। इनका बलिदान सदैव अमर रहेगा।

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3. श्री गुरु गोबिन्द सिंह जी

श्री गुरु गोबिन्द सिंह जी सिक्खों के दसवें गुरु थे। आपका जन्म सन् 1666 ई० में पटना में हुआ था। आपके पिता का नाम श्री गुरु तेग बहादुर और माता का नाम माता गुजरी देवी जी था। आपको बचपन से ही तीर चलाने और घुड़सवारी का शौक था। आपने फ़ारसी और संस्कृत की शिक्षा प्राप्त की। आप बहुत निडर और शक्तिशाली योद्धा थे।

9 वर्ष की आयु में पिता के बलिदान के बाद आप गुरुगद्दी पर बैठे। समाज में फैले अत्याचारों को रोकने के लिए आपने सन् 1699 ई० में खालसा पंथ की स्थापना की तथा पाँच प्यारों को अमृत छकाया। धर्म की रक्षा के लिए आपके चारों पुत्रों ने अपने प्राण तक न्योछावर कर दिए। आप सारे सिक्खों को अपने पुत्रों के समान समझते थे तथा उनसे प्रेम का व्यवहार करते थे।

अपने अन्तिम समय में आप नंदेड़ चले गए। वहाँ पर गुलखां नामक पठान ने अपनी पुरानी शत्रुता के कारण आपको छुरा घोंप दिया। घाव गहरा था। यहीं पर आपने बन्दा बैरागी को अपने उत्तराधिकारी के रूप में, बुराई के विरुद्ध लड़ने का संदेश देकर भेजा। सन् 1708 ई० में गुरु जी ज्योति जोत समा गए। आपने देश व धर्म के लिए अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया। इतिहास में आपका नाम हमेशा अमर रहेगा।

4. गुरु रविदास जी

आचार्य पृथ्वीसिंह आजाद के अनुसार भक्तिकाल के महान् संत कवि रविदास (रैदास) जी का जन्म विक्रमी संवत् 1433 ई० में माघ की पूर्णिमा को रविवार के दिन बनारस के निकट मंडुआडीह नामक गाँव में हुआ।

गुरु जी बचपन से ही संत स्वभाव के थे। उनका अधिकांश समय साधु संगति और ईश्वर भक्ति में व्यतीत होता था। गुरु जी जातिपांति या ऊँच-नीच में विश्वास नहीं रखते थे। उन्होंने अहंकार के त्याग, दूसरों के प्रति दया भाव रखना तथा नम्रता का व्यवहार करने का उपदेश दिया। उन्होंने लोभ, मोह को त्याग कर सच्चे हृदय से ईश्वर भक्ति करने की सलाह दी।

गुरु जी की वाणी में ऐसी शक्ति थी कि लोग उनके उपदेश सुनकर सहज ही उनके अनुयायी बन जाते थे। उनके अनुयायियों में महारानी झालाबाई और कृष्ण भक्त कवयित्री मीरा बाई का नाम उल्लेखनीय है। गुरु जी की वाणी के 40 पद आदिग्रन्थ श्री गुरु ग्रन्थ साहब में संकलित हैं जो समाज कल्याण के लिए आज भी अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। रहती दुनिया तक गुरु जी की अमृतवाणी लोगों का मार्ग दर्शन करती रहेगी।

5. महाराजा रणजीत सिंह

महाराजा रणजीत सिंह पंजाब के एक महान् और वीर सपूत थे। इतिहास में वे ‘शेरे पंजाब’ के नाम से मशहूर है। उनका जन्म 2 नवम्बर, सन् 1780 ई० को गुजराँवाला में हुआ। आपके पिता सरदार महासिंह सुकरचकिया मिसल के मुखिया थे। आपकी माता राज कौर जींद की फुलकिया मिसल के सरदार की बेटी थी। आपका बचपन का नाम बुध सिंह था। सरदार महासिंह ने जम्मू को जीतने की खुशी में बुध सिंह की जगह अपने बेटे का नाम रणजीत सिंह रख दिया।

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महाराजा रणजीत सिंह को वीरता विरासत में मिली थी। उन्होंने दस साल की उम्र में गुजरात के भंगी मिसल के सरदार साहिब सिंह को लड़ाई में करारी हार दी थी। महासिंह के बीमार होने के कारण सेना की बागडोर रणजीत सिंह ने सम्भाली थी।

महाराजा रणजीत सिंह के पिता की मौत इनकी छोटी उम्र में ही हो गई थी। इसी कारण ग्यारह साल की उम्र में उन्हें राजगद्दी सम्भालनी पड़ी। पन्द्रह साल की उम्र में महाराजा रणजीत सिंह का विवाह कन्हैया मिसल के सरदार गुरबख्श सिंह की बेटी महताब कौर से हुआ। इन्होंने दूसरा विवाह नकई मिसल के सरदार की बहन से किया।

महाराजा रणजीत सिंह ने बड़ी चतुराई से सभी मिसलों को इकट्ठा किया और हुकूमत अपने हाथ में ले ली। 19 साल की उम्र में आपने लाहौर पर अधिकार कर लिया और उसे अपनी राजधानी बनाया। धीरे-धीरे जम्मू-कश्मीर, अमृतसर, मुलतान, पेशावर आदि सब इलाके अपने अधीन करके एक विशाल राज्य की स्थापना की। आपने सतलुज की सीमा तक सिक्ख राज्य की जडें पक्की कर दी।

महाराजा अनेक गुणों के मालिक थे। वे जितने बड़े बहादुर थे, उतने ही बड़े दानी और दयालु भी थे। छोटे बच्चों से उन्हें बहुत प्यार था। चेचक के कारण उनकी एक आँख खराब हो गई थी। इस पर भी उनके चेहरे पर तेज था। वे प्रजा-पालक थे। उनकी अच्छाइयाँ आज भी हमारे दिलों में उत्साह भर रही हैं। उनमें एक आदर्श प्रशासक के गुण थे, जो आज के प्रशासकों को रोशनी दिखा सकते हैं।

6. लाला लाजपत राय

पंजाब केसरी लाला लाजपत राय भारत के वीर शहीदों में सबसे आगे हैं। लाला जी का जन्म जगराओं के समीप दुढिके ग्राम में 28 जनवरी, सन् 1865 में हुआ। इनके पिता लाला राधाकृष्ण एक अध्यापक थे। मैट्रिक परीक्षा में वज़ीफा प्राप्त कर वे गवर्नमैंट कॉलेज में प्रविष्ट हुए। एम० ए० पास करके फिर इन्होंने वकालत पास की। फिर हिसार में वकालत शुरू की।

इनमें देश-भक्ति की भावना कूट-कूट कर भरी हुई थी। देश की स्वतन्त्रता के लिए इन्होंने आन्दोलनों में बढ़-चढ़ कर भाग लिया। वे इंग्लैण्ड भी गए। वहाँ से वापस आकर इन्होंने बंग-भंग आन्दोलन में भाग लिया जिस कारण इनको जेल में बन्दी बना लिया गया। फिर यूरोप और अमेरिका की यात्रा की।

सन् 1928 ई० में साइमन कमीशन भारत आया तब इन्होंने उसका काली झण्डियों से स्वागत किया। पुलिस ने इन पर लाठियाँ बरसाईं। लाला जी की छाती पर कई चोटें आईं। इन घावों के कारण वे 17 नवम्बर, सन् 1928 को संसार से सदा के लिए विदा हो गए। इन्होंने देश की आज़ादी के लिए अपने जीवन का बलिदान कर दिया। भारत इनके महान् बलिदान को हमेशा याद रखेगा।

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7. महात्मा गांधी

महात्मा गांधी भारत के महान नेताओं में से एक थे। इनका जन्म 2 अक्तूबर, सन् 1869 को पोरबन्दर (गुजरात) में हुआ। इनके पिता का नाम कर्मचन्द गांधी और माता का नाम पुतली बाई था जो एक धार्मिक स्वभाव की स्त्री थी। इन्होंने मैट्रिक परीक्षा पोरबन्दर में ही पास की। 13 वर्ष की आयु में आपका विवाह हो गया। उच्च शिक्षा के लिए आप विदेश गए। फिर आप बैरिस्टर बनकर भारत में आए तथा बम्बई (मुम्बई) में वकालत शुरू की। किसी मुकद्दमे के सिलसिले में ये दक्षिणी अफ्रीका गए। वहाँ भारतीयों के साथ अंग्रेज़ों का दुर्व्यवहार देखकर ये बहुत दुःखी हुए।

सन् 1915 में भारत वापस आकर सत्याग्रह आन्दोलन चलाया। सन् 1920 में असहयोग आन्दोलन चलाया। सन् 1928 में साइमन कमीशन का बायकॉट किया। देश के आन्दोलनों में बढ़-चढ़ कर भाग लेने के कारण कई बार जेल गए। सन् 1947 में अपने अहिंसा के शस्त्र से इन्होंने देश को आजाद करवाया। सारा देश इन्हें बापू गांधी कहता है। वे सारे राष्ट्र के पिता थे। 30 जनवरी, सन् 1948 को वे नाथू राम गोडसे की गोली का शिकार हो गए जिससे इनकी मृत्यु हो गई। गांधी जी मर कर भी अमर हैं। हमें गांधी जी के जीवन से शिक्षा लेनी चाहिए।

8. पं० जवाहर लाल नेहरू

पं० जवाहर लाल नेहरू भारत के पहले प्रधानमन्त्री थे। इनका जन्म 14 नवम्बर, सन् 1889 को इलाहाबाद में हुआ था। इनके पिता का नाम मोती लाल नेहरू तथा माता का नाम स्वरूप रानी था। इनका बचपन बड़े लाड़-प्यार से बीता। 15 वर्ष की आयु में ये इंग्लैण्ड गए। पहले ये हैरो स्कूल में पढ़े फिर कैम्ब्रिज में। वहाँ से बैरिस्टरी पास करके ये भारत लौटे।

वापस आने पर इनका विवाह कमला नेहरू से हुआ। दोनों पति-पत्नी ने बढ़-चढ़ कर देश के कार्यों में भाग लेना शुरू कर दिया। इनमें शुरू से ही देश-प्यार कूट कूट कर भरा हुआ था। देश को स्वतन्त्र कराने के लिए इन्हें कई बार कारावास का दण्ड मिला। सन् 1942 में कांग्रेस ने ‘भारत छोड़ो’ का नारा लगाया। अन्य नेताओं के साथ नेहरू जी भी कारावास में बन्द कर दिए गए। सन् 1947 में जब भारत आज़ाद हुआ तो ये प्रधानमन्त्री बने।

ये सादगी को पसन्द करते थे। ये शान्ति के अवतार और प्रसिद्ध राजनीतिज्ञ थे। बच्चे प्यार से इन्हें ‘चाचा नेहरू’ कहते थे। 27 मई, सन् 1964 को पं० जवाहर लाल नेहरू स्वर्ग सिधार गए। उन्होंने देश के लिए जितने कष्ट सहन किए, उनकी कोई तुलना नहीं हो सकती। वे भारत के सर्वाधिक लोकप्रिय नेता थे।

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9. अमर शहीद सरदार भगत सिंह

सरदार भगत सिंह पंजाब के महान सपूत थे। उन्होंने देश को आजाद करवाने के लिए क्रान्तिकारी रास्ता अपनाया। देश की खातिर हँसते-हँसते फाँसी के तख्ने पर झूल गए। उनकी कुर्बानी रंग लाई और आजादी के लिए तड़प पैदा की। उनका जन्म 28 सितम्बर, सन् 1907 को जन्म हुआ था। इनके पिता सरदार किशन सिंह और चाचा सरदार अजीत सिंह कट्टर देशभक्त थे। उन्होंने शिक्षा गाँव में तथा लाहौर के डी० ए० वी० स्कूल में प्राप्त की।

उनमें देशभक्ति और क्रान्ति के संस्कार बचपन से थे। सन् 1919 में सारे भारत में रौलेट-एक्ट का विरोध हुआ था। भगत सिंह सातवीं में पढ़ते थे, जब जलियाँवाला बाग का हत्याकाण्ड हुआ था। सन् 1920 में असहयोग आन्दोलन शुरू हुआ। भगत सिंह पढ़ाई छोड़कर कांग्रेस के स्वयं सेवकों में भर्ती हो गए। इन्होंने अपना जीवन देश को अर्पण करने की प्रतिज्ञा ली। सन् 1926 में ‘नौजवान भारत सभा’ की स्थापना हुई।

भगत सिंह उसके जनरल सैक्रेटरी बने। इस सभा का उद्देश्य क्रान्तिकारी आन्दोलन को बढ़ावा देना था। अक्तूबर, सन् 1927 में लाहौर में दशहरे के अवसर पर किसी ने बम फेंका। पुलिस ने सरदार भगत सिंह को गिरफ्तार कर लिया। वे दो सप्ताह हवालात में रहे। 30 अक्तूबर, सन् 1928 को ‘साइमन कमीशन’ लाहौर पहुँचा तो इसके विरोध का नेतृत्व “नौजवान भारत सभा” ने अपने हाथ में लिया। कांग्रेसी नेता लाला लाजपत राय साइमन कमीशन के विरुद्ध निकाले गए जुलूस में सबसे आगे थे। वे पुलिस द्वारा किए गए लाठीचार्ज से बुरी तरह घायल हो गए। कुछ दिन बाद उनकी मृत्यु हो गई।

भगत सिंह ने अपने प्यारे नेता की हत्या का बदला सांडर्स की जान लेकर किया। 8 अप्रैल, सन् 1929 को केन्द्रीय विधानसभा में एक काला कानून बनाया जा रहा था। सरदार भगत सिंह और उनके साथी बटुकेश्वर दत्त ने अपना रोष प्रकट करने के लिए केन्द्रीय विधानसभा में बम फेंका। उन्होंने ‘इन्कलाब ज़िन्दाबाद’ के नारे लगाते हुए अपने आपको गिरफ्तारी के लिए पेश किया। उन पर मुकद्दमा चला। 17 अक्तूबर, सन् 1930 को उन्हें फाँसी की सजा हुई।

23 मार्च, सन् 1931 को अंग्रेज़ सरकार ने सरदार भगत सिंह तथा उनके दो साथियों सुखदेव और राजगुरु को फाँसी के तख्ते पर चढ़ा दिया। सरदार भगत सिंह अपनी शहादत से भारतीय नौजवानों के सामने एक महान् आदर्श कायम कर गए। सदियों तक भारत की आने वाली पीढ़ियाँ भगत सिंह और उनके साथियों की कुर्बानी से प्रेरणा लेती रहेंगी।

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10. हमारा देश

हमारे देश का नाम भारत है। यह हमारी मातृभूमि है। दुष्यन्त और शकुन्तला के पुत्र भरत के नाम पर इसका भारत नाम पड़ा। यह एक विशाल देश है। जनसंख्या की दृष्टि से यह संसार में दूसरे स्थान पर है। इसकी जनसंख्या 125 करोड़ से ऊपर पहुँच चुकी है। यहाँ पर अलग-अलग जातियों के लोग रहते हैं।

भारत के उत्तर में हिमालय है और शेष तीनों ओर समुद्र है। इस पर अनेक पर्वत, नदियाँ, मैदान और मरुस्थल हैं। स्थान-स्थान पर हरे-भरे वन इसकी शोभा हैं। यह एक कृषि-प्रधान देश है। यहाँ की अधिकतर जनता गाँवों में रहती है। यहाँ गेहूँ, मक्का, बाजरा, ज्वार, गन्ना आदि फसलें होती हैं। यहाँ की धरती बहुत उपजाऊ है। यहाँ गंगा, यमुना जैसी पवित्र नदियाँ बहती हैं। इसकी भूमि से लोहा, कोयला, सोना आदि कई प्रकार के खनिज पदार्थ निकलते हैं।

यहाँ पर कई धर्मों के लोग निवास करते हैं। सभी प्रेम से रहते हैं। यहाँ पर अनेक तीर्थ स्थान हैं। ताजमहल, लाल किला, सारनाथ, शिमला, मसूरी, श्रीनगर आदि प्रसिद्ध स्थान हैं जो देखने योग्य हैं। यहाँ पर कई महापुरुषों ने जन्म लिया। श्री राम, श्री कृष्ण, गुरु नानक, स्वामी दयानन्द, रामतीर्थ, तिलक, महात्मा गाँधी आदि इस देश की शोभा हैं। यह देश दिन दुगुनी रात चौगुनी उन्नति कर रहा है।

11. मेरा पंजाब

पौराणिक ग्रंथों में पंजाब का पुराना नाम ‘पंचनद’ मिलता है। मुस्लिम शासन के आगमन पर इसका नाम पंजाब अर्थात् पाँच पानियों (नदियों) की धरती पड़ गया। किन्तु देश के विभाजन के पश्चात् अब रावी, ब्यास और सतलुज तीन ही नदियाँ पंजाब में रह गई हैं। 15 अगस्त, 1947 को इसे पूर्वी पंजाबी की संज्ञा दी गई। 1 नवम्बर 1966 को इसमें से हिमाचल प्रदेश और हरियाणा प्रदेश अलग कर दिए गए किन्तु फिर से इस प्रदेश को पंजाब पुकारा जाने लगा।

आज के पंजाब का क्षेत्रफल 50,362 वर्ग किलोमीटर तथा सन् 2001 की जनगणना के अनुसार इसकी जनसंख्या 2.42 करोड़ है।।

पंजाब के लोग बड़े मेहनती हैं। यही कारण है कि कृषि के क्षेत्र में यह प्रदेश सबसे आगे है। औद्योगिक क्षेत्र में भी यह प्रदेश किसी से पीछे नहीं है। पंजाब का प्रत्येक गाँव पक्की सड़कों से जुड़ा है। शिक्षा के क्षेत्र में भी पंजाब देश में दूसरे नम्बर पर है। यहाँ छ: विश्वविद्यालय हैं।

गुरुओं, पीरों, वीरों की यह धरती. उन्नति के नए शिखरों को छू रही है।

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12. मेरा गाव

मेरे गाँव का नाम…….है। यह होशियारपुर का सबसे बड़ा गाँव है। यहाँ की जनसंख्या पन्द्रह हज़ार है। यह होशियारपुर से छ: मील की दूरी पर स्थित है। यह पक्की सड़कों द्वारा शहर के साथ जुड़ा हुआ है। यहाँ पर रेल लाइन भी बिछी है जिस कारण यहाँ के रहने वालों को आने-जाने में कोई मुश्किल नहीं होती।

इस गाँव में एक हाई स्कूल तथा एक प्राइमरी स्कूल भी है। यहाँ लड़के और लड़कियाँ शिक्षा प्राप्त करते हैं। यहाँ पर अधिकतर लोग खेती-बाड़ी करते हैं। वे नए ढंगों से खेती करते हैं। यहाँ सब लोग मिल-जुलं कर रहते हैं।

मेरे गाँव में एक सरकारी अस्पताल भी है जहाँ पर रोगियों की देखभाल की जाती है। एक पंचायत घर भी है जहाँ लोगों को सच्चा न्याय मिलता है। यहाँ पर ट्यूबवैल और कुओं आदि से खेती की जाती है। पीने के पानी का विशेष प्रबन्ध है।

अधिकतर मकान कच्चे हैं। कुछ पक्के भी हैं। गाँव की गलियाँ पक्की बनी हुई हैं। लोग आपस में मिल-जुल कर रहते हैं। गाँव की सफाई का पूर्ण ध्यान रखते हैं। मुझे अपने गाँव की मिट्टी के कण-कण से प्यार है तथा मैं इस पर गर्व करता हूँ।

13. मेरी पाठशाला (स्कूल)

मेरी पाठशाला का नाम………..है। यह एक बहुत बड़ी इमारत है। यह जी० टी० रोड पर स्थित है। इसमें 20 कमरे हैं। सभी कमरे खुले और हवादार हैं। प्रत्येक कमरे में दो खिड़कियाँ और दो-दो दरवाज़े हैं। ये बहुत साफ़-सुथरे हैं।

पानी पीने के लिए यहाँ पर चार नलके लगे हुए हैं। पुस्तकें पढ़ने के लिए एक पुस्तकालय है। यहाँ पर लगभग 12 हज़ार पुस्तकें हैं। पाठशाला के सामने ही एक वाटिका है। यहाँ पर कई प्रकार के फूल लगे हैं जो पाठशाला की शोभा को चार चाँद लगा देते हैं।

पाठशाला में अन्दर आते ही मुख्याध्यापक का दफ्तर है और दूसरी तरफ अध्यापकों का कमरा है। इनके साथ ही एक साईंस-रूम है। यहाँ बच्चों को क्रियात्मक कार्य करवाया जाता है।

मेरी पाठशाला में पच्चीस अध्यापक हैं जो बहुत योग्य हैं और परिश्रम से बच्चों को पढ़ाते हैं। वे मुख्याध्यापक का सम्मान करते हैं और बच्चों के साथ भी प्रेम का व्यवहार करते हैं। पाठशाला के पीछे एक खेल का मैदान है जहाँ पर बच्चे शाम को खेलते हैं। मेरी पाठशाला का परिणाम हर साल बहुत अच्छा निकलता है। अनुशासन और प्रेम का व्यवहार यहाँ पर सिखाया जाता है। मुझे अपनी पाठशाला पर गर्व है।

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14. मेरा प्रिय अध्यापक

मेरे स्कूल में बहुत से अध्यापक हैं लेकिन उन सबमें से मुझे श्री वेद प्रकाश जी बहुत अच्छे लगते हैं। वह हमें हिन्दी पढ़ाते हैं। उनके पढ़ाने का ढंग बहुत अच्छा है। उन्होंने बी० ए० और प्रभाकर किया हुआ है। वह ओ० टी० भी हैं। वह सभी विद्यार्थियों से स्नेह का व्यवहार करते हैं और पाठ को अच्छी तरह से समझाते हैं।

वह एक उच्च विचारों वाले और नम्र स्वभाव के व्यक्ति हैं। वह सादगी को बहुत पसन्द करते हैं और बच्चों को भी सादा रहने का उपदेश देते हैं। वह सदा सच बोलते हैं। वह हमेशा समय पर स्कूल आते हैं। वह अन्य सभी अध्यापकों का तथा मुख्याध्यापक का बहुत सम्मान करते हैं। उनकी वाणी में मिठास है। वह किसी बच्चे को पीटते नहीं हैं बल्कि उन्हें प्यार से समझाते हैं। वे किसी भी बुरी आदत के शिकार नहीं हैं।

वह बहुत रहम दिल हैं और वह कमज़ोर और ग़रीब बच्चों की सहायता करते हैं। वह बच्चों के सच्चे हित को चाहने वाले हैं। वह एक खिलाड़ी हैं और बच्चों को भी खेलने की प्रेरणा देते हैं। बच्चे उनकी शिक्षाओं से अच्छे बन सकते हैं। सभी विद्यार्थी उनका बहुत सम्मान करते हैं। मुझे उन पर गर्व है।

15. मेरा मित्र

रमेश मेरा बहुत अच्छा मित्र है। वह मेरे साथ ही सातवीं कक्षा में पढ़ता है। उसकी आयु बारह साल के लगभग है। उसके पिता जी एक डॉक्टर हैं। उसकी माता जी एक धार्मिक स्वभाव की स्त्री हैं। वह उसे सदाचार की शिक्षा देती हैं।

रमेश पढ़ने में बहुत होशियार है। परीक्षा में वह सदा प्रथम रहता है। वह हमारे घर के पास ही रहता है। उसके पिता जी उसे और मुझे सुबह सैर करने ले जाते हैं। वह सुबह जल्दी ही उठ जाता है। वह प्रतिदिन स्नान करता है और समय पर स्कूल जाता है। वह सभी के साथ बड़ा नम्र व्यवहार करता है। वह हमेशा सादे कपड़े पहनता है और सदा सत्य बोलता है। उसका चेहरा हँसमुख और स्वभाव सरल है। वह किसी बुरे और शरारती लड़के की संगति नहीं करता है और मुझे भी बुरी संगति करने से रोकता है। वह कमजोर विद्यार्थियों की सहायता करता है।

रमेश खेलों में भी बहुत रुचि लेता है। वह स्कूल की हॉकी टीम में खेलता है। वह शाम को खेलने जाता है। वह बड़ा स्वस्थ दिखाई देता है। वह रात को पढ़ता है। वह बड़ा मन व्याकरण तथा रचना भाग लगाकर पढ़ाई करता है। इसी कारण वह हमेशा प्रथम रहता है। उसे कई इनाम भी मिल चुके हैं। सभी अध्यापक उसे बहुत प्यार करते हैं। मुझे अपने इस मित्र पर गर्व है।

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16. लोहड़ी

लोहड़ी का त्योहार विक्रमी संवत् के पौष मास के अन्तिम दिन अर्थात् मकर संक्रान्ति से एक दिन पहले मनाया जाता है। अंग्रेज़ी महीने के अनुसार यह दिन प्राय: 13 जनवरी को पड़ता है। इस दिन सामूहिक तौर पर या व्यक्तिगत रूप में घरों में आग जलाई जाती है और उसमें मूंगफली, रेवड़ी और फूल-मखाने की आहुतियाँ डाली जाती हैं। लोग एक दूसरे को तिल, गुड़ और मूंगफली बाँटते हैं।

पता नहीं कब और कैसे इस त्योहार को लड़के के जन्म के साथ जोड़ दिया गया। प्रायः उन घरों में लोहडी विशेष रूप से मनाई जाती है जिस घर में लड़का हआ हो। किन्तु पिछले वर्ष से कुछ जागरूक और सूझवान लोगों ने लड़की होने पर भी लोहड़ी मनाना शुरू कर दिया है।

लोहड़ी, अन्य त्योहारों की तरह ही पंजाबी संस्कृति के साँझेपन का, प्रेम और भाईचारे का त्योहार है। खेद का विषय है कि आज हमारे घरों में ‘दे माई लोहडी-तेरी जीवे जोडी’ या ‘सुन्दर मुन्दरिये हो, तेरा कौन बेचारा’ जैसे गीत कम ही सुनने को मिलते हैं। लोग लोहड़ी का त्योहार भी होटलों में मनाने लगे हैं जिससे इस त्योहार की सारी गरिमा कम होती जा रही है।

17. दशहरा

दशहरा प्रधान त्योहारों में से एक है। यह आश्विन मास की शुक्ला दशमी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन श्री राम ने लंका के सम्राट् रावण पर विजय पाई थी। भगवान् राम के वनवास के दिनों में रावण छल से सीता को हर कर ले गया था। राम जी ने हनमान और सुग्रीव आदि मित्रों की सहायता से लंका पर हमला किया तथा रावण को मार कर लंका पर विजय पाई। तभी से यह दिन मनाया जाता है।

दशहस रामलीला का आखिरी दिन होता है। भिन्न-भिन्न स्थानों में अलग-अलग प्रकार से यह दिन मनाया जाता है। बड़े-बड़े नगरों में रामायण के पात्रों की झांकियाँ निकाली जाती हैं। दशहरे के दिन रावण, कुम्भकर्ण तथा मेघनाद के कागज़ के पुतले बनाए जाते हैं। सायँकाल के समय राम और रावण के दलों में बनावटी लड़ाई होती है। राम रावण को मार देते हैं। रावण, कुम्भकर्ण तथा मेघनाद के पुतले जलाए जाते हैं। पटाखे आदि छोड़े जाते हैं। बाजारों में दुकानें खूब सजी होती हैं और बाजारों में खूब रौनक होती है। लोग मिठाइयाँ तथा खिलौने लेकर घरों को लौटते हैं।

इस दिन कुछ लोग शराब पीते हैं और जुआ आदि भी खेलते हैं। यह सब ठीक नहीं है। यदि ठीक ढंग से इस त्योहार को मनाया जाए तो बहुत लाभ हो सकता है।

18. दीवाली

दीवाली हमारे देश का एक पवित्र और प्रसिद्ध त्योहार है। यह त्योहार कार्तिक मास की अमावस्या को मनाया जाता है। यह दशहरे के बीस दिन बाद आता है। इस दिन भगवान् राम लंका के राजा रावण को मार कर तथा वनवास के चौदह वर्ष खत्म कर अयोध्या लौटे थे। तब लोगों ने उनके स्वागत में रात को दिये जलाए थे। उनकी पवित्र याद में यह दिन बड़े सम्मान से मनाया जाता है।

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इसी दिन सिक्खों के छठे गुरु हरगोबिन्द जी ग्वालियर के किले से जहाँगीर की कैद से मुक्त होकर लौटे थे। लोगों ने उनके स्वागत में घर-घर दीपमाला की थी।

दीवाली से कई दिन पूर्व तैयारी आरम्भ हो जाती है। लोग घरों की लिपाई-पुताई करते हैं। कमरों को सजाते हैं। घरों का कूड़ा-कर्कट बाहर निकालते हैं। अमावस को दीपमाला की जाती है।

इस दिन लोग मित्रों को बधाई देते हैं और मिठाइयाँ बाँटते हैं। बच्चे नए-नए कपड़े पहनते हैं। रात को लक्ष्मी पूजा के बाद बच्चे आतिशबाजी चलाते हैं। कई लोग दुर्गा सप्तशती का पाठ भी करते हैं।

दीवाली हमारा धार्मिक त्योहार है। इसे उचित रीति से मनाना चाहिए। विद्वान लोगों को जन-साधारण को उपदेश देकर अच्छे रास्ते पर चलाना चाहिए। कुछ लोग इस दिन जुआ खेलते और शराब पीते हैं जो कि बहुत बुरा है, लोगों को इससे बचना चाहिए। आतिशबाजी पर अधिक खर्च नहीं करना चाहिए।

19. वैशाखी

भारत में हर साल अनेक प्रकार के उत्सव बड़ी धूमधाम से मनाए जाते हैं। वैशाखी भी ऐसा ही पर्व है जिसमें लोग अपनी खुशी प्रकट करते हैं। यह त्योहार हर साल नवीन उत्साह एवं उमंग लेकर आता है तथा लोगों में एक नई चेतना भरता है। वैशाखी वैशाख मास की संक्रान्ति को होती है। 13 अप्रैल को यह मेला मनाया जाता है। सूर्य के गिर्द वर्ष भर का चक्कर काट कर पृथ्वी जब दूसरा चक्कर आरम्भ करती है तो उस दिन वैशाखी होती है। वैशाख महीने से नया साल शुरू होता है। इसी दिन वर्ष भर के कामों का लेखा-जोखा किया जाता है। इस समय नई फसल पक कर तैयार हो जाती है। किसान अपनी फसल को पाकर झूम उठते हैं। वे कहते हैं –

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फसलां दी मुक गई राखी
ओ जट्टा, आई वैशाखी

इस प्रकार इस पर्व का सम्बन्ध मौसम से माना जाता है। ऐतिहासिक दृष्टि से भी यह एक महत्त्वपूर्ण त्योहार है। इस दिन अर्थात् 13 अप्रैल, सन् 1699 ई० को दशम गुरु श्री को गुरु गोबिन्द सिंह जी ने आनंदपुर साहिब में खालसा पंथ की नींव रखकर पाँच प्यारों को अमृत छकाया था। सन् 1919 में वैशाखी वाले दिन ही अमृतसर में जलियाँवाले बाग में अंग्रेज़ हाकिम डायर ने निहत्थे भारतीयों पर गोली चलाई थी और सैंकड़ों लोगों को मौत की नींद सुला दिया था।

वैशाखी के दिन पंजाब के कई स्थानों पर मेले लगते हैं। लोग नए-नए रंग-बिरंगे कपड़े पहन कर मेला देखने आते हैं। वहाँ कई प्रकार की दुकानें सजी होती हैं जहाँ से लोग अपनी मन पसंद चीजें खरीदते हैं। लोगों की बहत भीड होती है। पशुओं की मंडियाँ लगती हैं। जगह-जगह पर कुश्तियाँ होती हैं। मदारी अपने करतब दिखाते हैं। बच्चे तो बड़े खुश दिखाई देते हैं। गीत गाते हैं और झूम-झूम कर अपनी मस्ती और खुशी प्रकट करते हैं। किसानों के दल खुशी से अपने लहलहाते खेतों को देखकर भंगड़ा डालते हैं। ढोल की आवाज़ सबको अपनी ओर आकर्षित करती है।

इस दिन लोग पवित्र नदियों और सरोवरों में स्नान करते हैं। इसके बाद वे श्रद्धा अनुसार दान-पुण्य करते हैं और मित्रों में मिठाई बाँटते हैं। अमृतसर में वैशाखी का मेला देखने योग्य होता है।

20. होली

होली बसन्त का उल्लासमय पर्व है। इसे ‘बसन्त का यौवन’ कहा जाता है।

होली प्रकृति की सहचरी है। बसन्त में जब प्रकृति के अंग-अंग में यौवन फूट पड़ता है तो होली का त्योहार उसका श्रृंगार करने आता है। होली ऋतु सम्बन्धी त्योहार है। शीत की समाप्ति पर किसान आनन्द विभोर हो जाते हैं। खेती पक कर तैयार होने लगती है। इसी कारण सभी मिल कर हर्षोल्लास में खो जाते हैं।

कहते हैं कि भक्त प्रह्लाद भगवान् का नाम लेता था। उसका पिता हिरण्यकश्यप ईश्वर को नहीं मानता था। वह प्रह्लाद को ईश्वर का नाम लेने से रोकता था। प्रह्लाद इसे किसी भी रूप में स्वीकार करने को तैयार न था। हिरण्यकश्यप की बहन होलिका को वरदान था कि आग उसे जला नहीं सकती। वह प्रह्लाद को गोद में लेकर आग में बैठ गई। इसमें होलिका जल गई और प्रह्लाद बच गया। इसी कारण होली के दिन होलिका दहन होता है।

आज कुछ लोगों ने होली का रूप बिगाड़ कर रख दिया है। सुन्दर एवं कच्चे रंगों के स्थान पर कुछ लोग काली स्याही व तवे की कालिमा का प्रयोग करते हैं। कुछ मूढ़ व्यक्ति एक-दूसरे पर गन्दगी फेंकते हैं। प्रेम और आनन्द के त्योहार को घृणा और दुश्मनी का त्योहार बना दिया जाता है। इन बुराइयों को समाप्त करने का प्रयत्न किया जाना चाहिए।

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होली के पवित्र अवसर पर हमें ईर्ष्या, द्वेष, कलह आदि बुराइयों को दूर भगाना चाहिए। समता और भाईचारे का प्रचार करना चाहिए।

21. वसंत ऋतु

वसंत ऋतु को ऋतुओं का राजा कहा जाता है। यह ऋतु विक्रमीसंवत के महीने चैत्र और वैशाख महीने में आती है। इस ऋतु के आगमन की सूचना हमें कोयल की कूहू-कूहू की आवाज़ से मिल जाती है। वृक्षों पर, लताओं पर नई कोंपलें आनी शुरू हो जाती हैं। प्रकृति भी सरसों के फूले खेतों में पीली चुनरिया ओढ़ें प्रतीत होती है। इसी ऋतु में शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को वसंत पंचमी का त्योहार मनाया जाता है। जो पूर्णमासी तक कौमदी महोत्सव तक मनाया जाता है इस त्योहार में लोग पीले वस्त्र पहनते हैं। घरों में पीला हलवा या पीले चावल बनाया जाता है। कुछ लोग वसंत पंचमी वाले दिन व्रत भी रखते हैं।

पुराने जमाने में पटियाला और कपूरथला की रियासतों में यह दिन बड़ी धूमधाम से मनाया जाता था। पतंगबाजी के मुकाबले होते थे। कुश्तियों और शास्त्रीय संगीत का आयोजन किया जाता था। पुराना मुहावरा था कि आई वसंत तो पाला उड़त किंतु पर्यावरण दूषित होने के कारण अब तो पाला वसंत के बाद ही पड़ता है। पंजाबियों को ही नहीं समूचे भारतवासियों को अमर शहीद सरदार भगत सिंह का मेरा रंग दे वसंती चोला इस दिन की सदा याद दिलाता रहेगा।

22. प्रातः काल की सैर

प्रात:काल की सैर मनुष्य के लिए बहुत आवश्यक है। यह स्वास्थ्य के लिए बड़ी लाभदायक होती है। सुबह के समय सैर करना वैसे भी मनोरंजन करने के समान है। सुबह के समय प्राकृतिक छटा निराली होती है। सुबह की लाली चारों ओर फैली होती है। पक्षियों के कलरव हो रहे होते हैं जो बहुत अच्छे लगते हैं। शीतल हवा चल रही होती है। खिले हुए फूल बड़े सुन्दर लगते हैं। पेड़-पौधों का दृश्य बड़ा लुभावना होता है।

सुबह की सैर के लाभ भी बहुत होते हैं। शरीर में फुर्ती आती है। स्वच्छ वायु के सेवन से खून साफ़ होता है। शरीर की कसरत होती है। शारीरिक रोगों से बचाव होता है। दिमाग की ताकत बढ़ती है। आलस्य दूर भागता है। सदाचार की वृद्धि होती है। काम करने में मन लगता है।

अत: हमें नियमित रूप से प्रातः भ्रमण करना चाहिए।

23. स्वतन्त्रता दिवस (15 अगस्त)

पन्द्रह अगस्त, 1947 का दिन भारत के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाने योग्य है। इस दिन भारत माता की गुलामी के बन्धन टूटे थे। इस आज़ादी को प्राप्त करने के लिए अनेक देशभक्तों ने अपने प्राण न्योछावर कर दिए थे। पण्डित जवाहर लाल जी स्वतन्त्र भारत के पहले प्रधानमन्त्री बने। संसद् भवन पर तिरंगा झण्डा लहराया गया। उस दिन दिल्ली के लाल किले पर पं० जवाहर लाल नेहरू जी ने अपने हाथों से तिरंगा झण्डा लहराया। लाखों लोगों ने इसमें भाग लिया।

तब से लेकर अब तक यह त्योहार हर वर्ष सारे भारतवर्ष में बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता है। दिल्ली में वायुयानों द्वारा फूलों की वर्षा की जाती है। उसके बाद तीन सेनाओं के जवान सलामी देते हैं। इस दिन लाल किले के सामने विशाल जन समूह इस शोभा को देखता है। प्रधानमन्त्री जी का भाषण होता है। इण्डिया गेट की शोभा निराली ही होती है। देश के सभी नगरों में यह उत्सव बड़े धूम-धाम से मनाया जाता है। रात को समस्त सरकारी भवन बिजली के बल्बों से जगमगा रहे होते हैं।

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आज हमें आजादी तो मिल गई है परन्तु हमें देश के प्रति कर्त्तव्यों को निभाना चाहिए। हमें उन शहीदों को याद रखना चाहिए जिन्होंने अपनी कुर्बानी देकर हमें आजादी दिलवाई।

24. गणतन्त्र दिवस (26 जनवरी)

भारत पर्यों तथा त्योहारों की भूमि है। भारत में साल-भर में भिन्न-भिन्न ऋतुओं में भिन्न-भिन्न पर्व मनाए जाते हैं। 26 जनवरी का दिन भारत के लिए विशेष महत्त्व का दिन है। यह एक राष्ट्रीय त्योहार है। इस दिन अर्थात् 26 जनवरी, सन् 1950 के दिन हमारे देश का संविधान लागू हुआ था और इसी दिन भारत एक गणराज्य घोषित किया गया था। भारत की सभी जातियाँ-हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई, बौद्ध तथा जैनी बिना किसी भेदभाव के इसे बड़े उत्साह से मनाती हैं।

26 जनवरी का दिन प्रतिवर्ष भारत के प्रत्येक प्रांत में बड़े उत्साह से मनाया जाता है। नगर-नगर में सभाएँ तथा जुलूस निकलते हैं। राष्ट्रीय झण्डे लहराए जाते हैं। किन्तु दिल्ली में यह दिन जिस धूमधाम से मनाया जाता है, उसकी तुलना किसी से नहीं की जा सकती। वहां इस त्योहार की शान तो निराली ही होती है। यह समारोह भारत के राष्ट्रपति की सवारी से शुरू होता है।

राष्ट्रपति की सवारी को सलामी देने के लिए स्थल सेना, जल सेना और वायु सेना तीनों की चुनी हुई टुकड़ियाँ सवारी के साथ-साथ चलती हैं। सवारी इण्डिया गेट से शुरू होती है और नई दिल्ली के खास-खास स्थानों से होती हुई आगे बढ़ती है। अनगिनत नर-नारी सवारी को देखने के लिए इकट्ठे हो जाते हैं। सवारी के पीछे-पीछे अलग-अलग प्रान्तों के लोग अपने कार्यक्रम की झांकियाँ दिखाते हैं। राष्ट्रपति को 21 तोपों से सलामी दी जाती है।

26 जनवरी का दिन मनोरंजन का दिन ही नहीं मानना चाहिए बल्कि इस दिन हमें कुछ प्रतिज्ञाएँ करनी चाहिए ताकि देश में बढ़ती हुई रिश्वतखोरी, लूटमार, पक्षपात आदि दूर किए जा सकें। हमें उन वीरों का कर्जा चुकाना होगा जिन्होंने अपनी कुर्बानियों द्वारा हमें आजादी से साँस लेने का अवसर दिया। तभी हमारी आज़ादी सफल तथा पूर्ण होगी।

25. समाचार-पत्र

मनुष्य एक जिज्ञासु प्राणी है। वह अपने आस-पास घटने वाली घटनाओं की जानकारी प्राप्त करना चाहता है। प्राचीन काल में उसकी यह जिज्ञासा पूरी न हो पाती थी। विज्ञान ने जहाँ हमें अन्य प्रकार की सुविधाएँ दी हैं, उनमें समाचार-पत्र के द्वारा हम घर पर बैठे ही देश-विदेश के समाचारों को जान लेते हैं। संसार के किसी कोने में घटने वाली घटना तार, टेलीफोन अथवा टेलीप्रिंटर के द्वारा समाचार-पत्रों के कार्यालयों में पहुँच जाती है।

समाचार-पत्रों से हमें अनेक लाभ हैं। नगर, प्रान्त, देश तथा विदेश आदि के समाचारों को हम समाचार-पत्र द्वारा घर बैठे जान लेते हैं। इससे हमारे ज्ञान में भी वृद्धि होती है। समय-समय पर इनमें अनेक प्रकार के चित्र भी छपते रहते हैं। इन चित्रों के द्वारा जहाँ हमारा मनोरंजन होता है, वहाँ इनसे अनेक प्रकार के ऐतिहासिक, धार्मिक, प्राकृतिक स्थानों की भी जानकारी होती है।

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समाचार-पत्रों में कहानियाँ, कविताएँ, जीवनियाँ तथा हास्य की सामग्री भी छपती रहती हैं। इन्हें पढ़कर हमारा मनोरंजन होता है। इनमें नौकरी सम्बन्धी विज्ञापन भी छपते हैं। पाठक अपने विचारों को भी समाचार-पत्र में छपवा सकते हैं। इस प्रकार ये समाचार-पत्र हमारे लिए वरदान का काम करते हैं। उनके द्वारा हमें घर बैठे ही बहुत-सी जानकारी प्राप्त होती है।

26. विद्यार्थी जीवन

विद्यार्थी जीवन मनुष्य के जीवन का सबसे महत्त्वपूर्ण भाग है। यह मानव जीवन की नींव है। इसी पर उसके जीवन की सफलता-असफलता निर्भर करती है। यह जीवन तैयारी का जीवन है।

विद्यार्थी जीवन विद्या प्राप्ति का समय है। विद्यार्थी का यह कर्त्तव्य है कि वह पढ़ाई में अपना मन लगाए। उसे घर के अन्य छोटे-छोटे कामों में हाथ बँटाना चाहिए। विद्यार्थी जीवन की सफलता अच्छी बातों के पालन पर निर्भर करती है। उसे अपने अध्यापकों के उपदेश के अनुसार चलना चाहिए। माता-पिता की आज्ञा का पालन करना भी उसका प्रमुख कर्त्तव्य है। उसे स्वभाव का नम्र और मधुरभाषी होना चाहिए। उसे अपने स्वास्थ्य की ओर विशेष ध्यान देना चाहिए। स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन का वास होता है। उसे हमेशा अच्छे छात्रों का संग करना चाहिए। अच्छी संगति स्वयं में एक शिक्षा है। समय का पालन करना चाहिए।

विद्यार्थी जीवन में खूब परिश्रम करना चाहिए। परिश्रम के द्वारा ही मनुष्य उन्नति कर सकता है। आलसी व्यक्ति तो अपने लिए ही बोझ बनकर जीता है। अतः प्रत्येक विद्यार्थी का यह कर्त्तव्य है कि वह अपने विद्यार्थी जीवन का सदुपयोग करे। अच्छा विद्यार्थी ही अच्छा नागरिक तथा अच्छा नेता बन सकता है।

27. पर्यावरण प्रदूषण की समस्या

वनस्पति जगत् से मानव का बहुत प्राचीन सम्बन्ध है। आम, तुलसी, केला, आँवला, बरगद आदि वृक्षों की लोग पूजा करते रहे हैं। प्रकृति और मानव का मधुर सम्बन्ध था, इसी कारण मानव-समाज सुखी था। आज प्रकृति पर विजय पाने की इच्छा से प्रदूषण फैल रहा है। इसके कारण अनेक समस्याएं जन्म ले रही हैं।

जनसंख्या की वृद्धि के साथ-साथ वनों को काटकर उद्योग-धंधों के विस्तार से कल कारखानों से दूषित विषैले पदार्थ बाहर निकलने लगे हैं। इससे वायुमण्डल दूषित हो रहा है तथा पर्यावरण संतुलन भी बिगड़ रहा है। प्रदूषण के कारण ही समय पर वर्षा नहीं होती, कहीं कम होती है तो कहीं बाढ़ें आती हैं।

भीड़-भाड़ वाले बड़े नगरों में वाहनों से निकलने वाले धुएँ तथा पेट्रोल की गंध से कार्बन डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन, सीसा के तत्व आदि हानिकारक पदार्थ निकलते हैं। इनसे साँस, फेफड़े आदि के रोग तथा दमा, जुकाम, कैंसर जैसे अन्य रोग फैलते हैं। गंदी वायु में साँस लेने से खून शुद्ध नहीं रह पाता। आँखों की रोशनी कमजोर हो जाती है और चर्म रोग भी हो जाते हैं। वायु का प्रदूषण ‘धीमा विष’ जो धीरे-धीरे स्वास्थ्य को प्रभावित करता है।

वायु प्रदूषण की तरह जल प्रदूषण भी होता है। गंदा पानी, नालियों में प्रवाहित मल तथा कल-कारखानों से निकलने वाले अवशिष्ट पदार्थ नदियों में बहा दिए जाते हैं जिससे पानी पीने योग्य नहीं रहता तथा फसलों तथा फलों को भी हानि पहुंचाता है। सुख के लिए काम मानव के दुःख के कारण बन गए। पेड़, पौधों की कटाई से हरियाली समाप्त हो गई, सुन्दरता नष्ट हो गई।

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कृषि योग्य भूमि की कमी हो जाने से लोगों को शहरों की तंग गलियों में रहना पड़ रहा है। विज्ञान का वरदान उसके लिए अभिशाप बन गया। प्रदूषण के कारण गंगा का जल विषैला बन गया। विश्व प्रसिद्ध ताजमहल, मथुरा तेल शोधक कारखाने की चिमनियों के धुएँ तथा आगरा के चमड़ा उद्योगों से अपना सौन्दर्य खो रहा है।

प्रदूषण की समस्या भारत में ही नहीं सम्पूर्ण विश्व में बढ़ रही है। इसे रोकना हमारा परम कर्त्तव्य है। इसे रोकने के लिए हम गंदगी न फैलाएँ तथा वृक्ष लगाएँ।

28. टेलीविज़न के लाभ-हानियाँ

टेलीविज़न का आविष्कार सन् 1926 ई० में स्काटलैण्ड के इन्जीनियर जान एल० बेयर्ड ने किया। भारत में इसका प्रवेश सन् 1964 में हुआ। दिल्ली में ऐशियाई खेलों के अवसर पर टेलीविज़न रंगदार हो गया। टेलीविज़न को आधुनिक युग का मनोरंजन का सबसे बड़ा साधन माना जाता है। केवल नेटवर्क के आने पर इस में क्रान्तिकारी परिवर्तन हो गया है। आज देश भर में दूरदर्शन के अतिरिक्त 300 से अधिक चैनलों द्वारा कार्यक्रम प्रसारित किये जा रहे है। इन में कुछ चैनल तो केवल समाचार, संगीत या नाटक ही प्रसारित करते हैं।

टेलीविज़न के आने पर हम दुनिया के किसी भी कोने में होने वाले मैच का सीधा प्रसारण देख सकते हैं। आज व्यापारी वर्ग अपने उत्पाद की विक्री बढ़ाने के लिए टेलीविज़न पर प्रसारित होने वाले विज्ञापनों का सहारा ले रहे हैं। ये विज्ञापन टेलीविजन चैनलों की आय का स्रोत भी है। शिक्षा के प्रचार प्रसार में टेलीविज़न का महत्त्वपूर्ण योगदान है।

टेलीविज़न की कई हानियाँ भी हैं। सबसे बड़ी हानि छात्र वर्ग को हुई है। टेलीविज़न उन्हें खेल के मैदान से तो दूर ले जाता ही है अतिरिक्त पढ़ाई में भी रूचि कम कर रहा है। टेलीविज़न अधिक देखना छात्रों की नेत्र ज्योति को भी प्रभावित कर रहा है। हमें चाहिए कि टेलीविज़न के गुणों को ही ध्यान में रखें, इसे बीमारी न बनने दें।

29. मेरी पर्वतीय यात्रा

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। एक स्थान पर रहते-रहते मनुष्य का मन ऊब जाता है। वह इधर-उधर घूम कर अन्य प्रदेशों के रीति-रिवाजों आदि से परिचित होना चाहता है और इस प्रकार अपना ज्ञान बढ़ाता है। – दशहरे की छुट्टियां आने वाली थीं। मेरे मित्र सुरेन्द्र ने आकर शिमला चलने की बात कही। माता जी से परामर्श करने के पश्चात् बात पक्की हो गई। अगले दिन प्रात:काल ही हम दोनों मित्र रेलगाड़ी में जा बैठे। मैदान तो मैंने देखे ही थे पर जब पर्वतीय क्षेत्र आया तो मैं देख रहा था कि नदियां कलकल ध्वनि के साथ इठलाती बहुत सुन्दर लग् रही थीं। रास्ते का दृश्य बड़ा मनोहारी था।

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हम प्रसन्न मुद्रा में शिमला पहुंचे। शिमला हिमाचल प्रदेश की राजधानी है। अधिकतर मकान आधुनिक ढंग से बने हुए हैं। शहर के अन्दर आधुनिक ढंग के कई होटल तथा सिनेमा गृह हैं जो कि वहां की सुन्दरता को चार चांद लगाते हैं।

मुझे स्केटिंग रिंक बहुत सुन्दर लगा। सुरेन्द्र के पिता जी ने मुझे बताया कि शरद् ऋतु में युवक तथा युवतियां इस ऋतु का आनन्द लूटने के लिये यहां पर आते हैं। सुरेन्द्र को यह सब सुनने में कोई आनन्द नहीं आ रहा था। वह तो राजभवन देखने का इच्छुक था। अतः कुछ समय के पश्चात् हम लोग विशाल भवन के सम्मुख थे। इस दो दिवसीय यात्रा से हमने इस विशाल नगरी का प्रत्येक ऐतिहासिक स्थान देख लिया।

दो दिवसीय यात्रा के पश्चात् हम सब वहां से चल पड़े। मैं और सुरेन्द्र तो वहां से चलना नहीं चाहते थे। कारण कि हमें पर्वतीय छटा ने अत्यधिक आकृष्ट कर लिया था। वहां का शान्त एवं सुन्दर वातावरण मुझे अधिक प्रिय लग रहा था। पर सुरेन्द्र के पिता केवल चार दिन का अवकाश लेकर ही चले थे। अत: मन को मार कर हम सब वापस लौट पड़े। यह यात्रा सदा स्मरण रहेगी।

30. आँखों देखी प्रदर्शनी

हमारे देश में हर साल अनेक प्रदर्शनियां आयोजित होती हैं। लाखों लोग इनसे मनोरंजन प्राप्त करते हैं। प्रदर्शनियां देख-कर व्यक्ति का ज्ञान भी बढ़ता है। दिल्ली में लगी उद्योग प्रदर्शनी मझे कभी नहीं भल सकती। मेरे मन-मस्तिष्क पर इस की छाप आज भी ज्यों की त्यों बनी हुई है। इस अन्तर्राष्ट्रीय प्रदर्शनी का विवरण इस प्रकार है –

विगत मास दिल्ली में एक अन्तर्राष्ट्रीय उद्योग प्रदर्शनी आयोजित की गई थी। यह प्रदर्शनी एक विशाल उद्योग मेला ही था। क्योंकि इसमें विश्व के लगभग साठ विकसित और विकासशील देशों ने भाग लिया था। तीन किलोमीटर की परिधि में फैली इस महान् एवं आकर्षक प्रदर्शनी में प्रत्येक देश ने अपने मंडप सजाए थे, जिनमें अपने देश की औद्योगिक झांकी प्रदर्शित की थी। मुख्य द्वार पर प्रदर्शनी में भाग लेने वाले देशों के झंडे फहरा रहे थे। जिधर भी नज़र उठती दूर तक मंडप ही दिखाई देते। इतनी बड़ी प्रदर्शनी को कुछ समय में देखना असम्भव था।

छात्रों को यह प्रदर्शनी दिखाने की विशेष व्यवस्था की गई थी। सब से पहले हमारी टोली भारतीय मंडप में पहुँची। यह मंडप क्या था मानो एक विशाल भारत का लघु रूप था। देश में तैयार होने वाले छोटे-से-छोटे पुर्जे से लेकर युद्ध पोत तक का प्रदर्शन किया गया था। कहीं आधुनिक राडार युक्त तोपें थीं। कहीं नेट-जेट विमान और कहीं टैंक। वहां स्वदेश निर्मित साइकिलों, स्कूटरों, विभिन्न तरह की कारों, बसों का मॉडल देखकर आश्चर्य होने लगा था।

अमेरिका, रूस, इंग्लैंड, पश्चिमी जर्मनी, जापान आदि विकसित देशों में मंडप देखकर हमारी टोली का प्रत्येक सदस्य चकित रह गया। एक से बढ़िया इलैक्ट्रानिक उपकरण। हर काम मिनटों-सैकिंडों में करने वाली मशीनें मनुष्य की दास बनी प्रतीत हुईं। मिनटों में मैले कपड़े धुल कर प्रैस होकर और तह लगकर आपके सामने लाने वाली धुलाई मशीनें। धड़कते दिल का साफ चित्र लेने वाले श्रेष्ठतम उपकरण चिकित्सा क्षेत्र में एक नई उपलब्धि है।

दिन भर हमारी टोली औद्योगिक प्रदर्शनी का कोना-कोना झांकती रही। इधर से उधर घूमते-घूमते हमारी टांगें जवाब देने लगी थीं, परन्तु दिल नहीं भरे थे। आँखें हर नई चीज़ देखने को तरस रही थीं। शाम तक बहुत कुछ देखा, बहुत कुछ सुना। ज्ञान के नये चूंट पीने को मिले। इसलिये यह अन्तर्राष्ट्रीय औद्योगिक प्रदर्शनी सदा याद रहेगी।

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31. जनसंख्या की समस्या

बढ़ती हुई जनसंख्या देश के लिए एक भयानक समस्या बन गई है। प्राचीन काल में लोग अधिक संतान की इच्छा करते थे। आज स्थिति बदल गई है। आज बड़े परिवार का पालन-पोषण एक समस्या है। अधिक आबादी किसी भी देश के लिए लाभकारी नहीं। भारत इस समय जनसंख्या की दृष्टि से चीन के बाद दूसरे स्थान पर आता है। इस समय भारत की जनसंख्या 121 करोड़ से अधिक है।

बढ़ती हुई जनसंख्या ने अनेक समस्याओं को जन्म दिया है। बेकारी की समस्या, महंगाई की समस्या तथा अन्न का संकट इसी की देन है। यही कारण है कि आज जनसंख्या के नियन्त्रण की ज़रूरत समझी जा रही है। छोटा परिवार सुखी परिवार का नारा लगाया जा रहा है।

जिस परिवार के पास आय के साधन कम हों और बच्चों की संख्या अधिक होगी, वहां अनेक प्रकार की कठिनाइयां जन्म लेंगी। न तो बच्चों का ठीक तरह से पालन-पोषण हो पाएगा और न ही उनकी शिक्षा-दीक्षा का प्रबन्ध हो सकेगा। जीवन स्तर भी ऊँचा उठने की बजाए गिर जाएगा। ऐसे परिवार में निर्धनता अपना अड्डा जमा लेगी। देश और समाज भी तो परिवारों का योग है।

यदि देश के लोगों का स्तर ऊंचा न होगा तो देश का स्तर भी ऊंचा न हो सकेगा। यदि इसी तरह जनसंख्या बढ़ती गई तो एक दिन ऐसा आएगा कि न तो रोगियों के लिए अस्पताल में जगह रहेगी और न ही जीवन की अन्य आवश्यकताएं पूरी हो सकेंगी।

अतः जीवन को सुखी बनाने के लिए जनसंख्या की वृद्धि पर रोक लगाना ज़रूरी है। सरकार की ओर से इस दिशा में कई कदम उठाए गए हैं। लोगों को परिवार नियोजन का महत्त्व बताएं। सरकार को चाहिए कि वह परिवार नियोजन का पालन करने वालों को प्रोत्साहन दे। यदि हम स्वयं को तथा अपने देश को उन्नति के पथ पर ले जाना चाहते हैं तो बढ़ती हुई जनसंख्या पर रोक लगानी होगी।

32. देश-भक्ति अथवा स्वदेश-प्रेम

देश-भक्ति का अर्थ है अपने देश से प्यार अथवा अपने देश के प्रति श्रद्धा। जो मनुष्य जिस देश में पैदा होता है, उसका अन्न-जल खा पीकर बड़ा होता है, उसकी मिट्टी में खेल कर हृष्ट-पुष्ट होता है, वहीं पढ़-लिख कर विद्वान् बनता है, वही उसकी जन्म-भूमि है। – प्रत्येक मनुष्य तथा प्राणी अपने देश से प्यार करता है। वह कहीं भी चला जाए, संसार भर की खुशियों तथा महलों के बीच में क्यों न विचरण कर रहा हो उसे अपना देश, अपना स्थान ही प्रिय लगता है।

देश-भक्त सदा ही अपने देश की उन्नति के बारे में सोचता है। हमारा इतिहास इस बात का साक्षी है कि जब-जब देश पर विपत्ति के बादल मंडराए, जब-जब हमारी आजादी को खतरा रहा, तब-तब हमारे देश-भक्तों ने अपनी भक्ति भावना दिखाई। सच्चे देश-भक्त अपने सिर पर लाठियां खाते हैं, जेलों में जाते हैं, बार-बार अपमानित किए जाते हैं तथा हँसते-हँसते फांसी के फंदे चूम जाते हैं। जंगलों में स्वयं तो भूख से भटकते हैं और साथ ही अपने बच्चों को भी बिलखते देखते हैं।

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महाराणा प्रताप के नाम को कौन भूल सकता है। जो अपने देश की आजादी के लिए.. दर-दर भटकते रहे परन्तु शत्रु के सामने सिर नहीं झुकाया। हमारे देश के न जाने कितने वीरों ने अपना बलिदान दे कर अंग्रेजों की गुलामी से मुक्ति प्राप्त की थी। वे कट मरे लेकिन शत्रु के सामने उन्होंने सिर नहीं झुकाया। आज हम जो भी हैं वे सब उन देशभक्तों के कारण ही हैं। उन्हीं के त्याग के कारण हम सब स्वतन्त्र देश में सुख-चैन भरी सांस ले रहे हैं। हमें उन वीरों से प्रेरणा लेकर नि:स्वार्थ भाव से अपने देश की सेवा करने का वचन लेना चाहिए।

33. आँखों देखा हॉकी मैच

भले ही आज लोग क्रिकेट के दीवाने बने हुए हैं। परन्तु हमारा राष्ट्रीय खेल हॉकी ही है। लगातार कई वर्षों तक भारत हॉकी के खेल में विश्वभर में सबसे आगे रहा किन्तु खेलों में भी राजनीतिज्ञों के दखल के कारण हॉकी के खेल में हमारा स्तर दिनों दिन गिर रहा है। 70 मिनट की अवधि वाला यह खेल अत्यन्त रोचक, रोमांचक और उत्साहवर्धक होता है। मेरा सौभाग्य है कि मुझे ऐसा ही एक हॉकी मैच देखने को मिला।

यह मैच नामधारी एकादश और रोपड़ हॉक्स की टीमों के बीच रोपड़ के खेल परिसर में खेला गया। दोनों टीमें अपने-अपने खेल के लिए पंजाब भर में जानी जाती हैं। दोनों ही टीमों में राष्ट्रीय स्तर के कुछ खिलाड़ी भाग ले रहे थे। रोपड़ हॉक्स की टीम क्योंकि अपने घरेलू मैदान पर खेल रही थी इसलिए उसने नामधारी एकादश को मैच के आरम्भिक दस मिनटों में दबाए रखा। उसके फारवर्ड खिलाड़ियों ने दो-तीन बार विरोधी गोल पर आक्रमण किये।

परन्तु नामधारी, एकादश का गोलकीपर बहुत चुस्त और होशियार था। उसने अपने विरोधियों के सभी आक्रमणों को विफल बना दिया। तब नामधारी एकादश ने तेजी पकड़ी और देखते ही देखते रोपड़ हॉक्स के विरुद्ध एक गोल दाग दिया। गोल होने पर रोपड़ हॉक्स की टीम ने भी एक जुट होकर दो-तीन बार नामधारी एकादश पर कड़े आक्रमण किये परन्तु उनका प्रत्येक आक्रमण विफल रहा।

इसी बीच रोपड़ हॉक्स को दो पेनल्टी कार्नर भी मिले पर वे इसका लाभ न उठा सके। नामधारी एकादश ने कई अच्छे मूव बनाये उनका कप्तान बलजीत सिंह तो जैसे बलबीर सिंह ओलंपियन की याद दिला रहा था। इसी बीच नामधारी एकादश को भी एक पेनल्टी कार्नर मिला जिसे उन्होंने बड़ी खूबसूरती से गोल में बदल दिया। इससे रोपड़ हॉक्स के खिलाड़ी हताश हो गये। रोपड़ के दर्शक भी उनके खेल को देख कर कुछ निराश हुए। मध्यान्तर के समय नामधारी एकादश दो शून्य से आगे थी। मध्यान्तर के बाद खेल बड़ी तेज़ी से शुरू हुआ।

रोपड़ हॉक्स के खिलाड़ी बड़ी तालमेल से आगे बढ़े और कप्तान हरजीत सिंह ने दायें कोण से एक बढ़िया हिट लगाकर नामधारी एकादश पर एक गोल कर दिया। इस गोल से रोपड़ हॉक्स के जोश में जबरदस्त वृद्धि हो गयी। उन्होंने अगले पाँच मिनटों में दूसरा गोल करके मैच बराबरी पर ला दिया। दर्शक खुशी के मारे नाच उठे। मैच समाप्ति की सीटी के बजते ही दर्शकों ने अपने खिलाड़ियों को मैदान में जाकर शाबाशी दी। मैच का स्तर इतना अच्छा था कि मैच देख कर आनन्द आ गया।

PSEB 7th Class Hindi रचना निबंध-लेखन (2nd Language)

34. मेरी कक्षा का कमरा

मैं सातवीं कक्षा का छात्र हूँ। मेरे विद्यालय का नाम राजकीय सीनियर सैकण्डरी विद्यालय है। हमारा विद्यालय चार मंजिला इमारत का है। मेरी कक्षा का कमरा तीसरी मंजिल पर है। इसकी लम्बाई 20 फुट तथा चौड़ाई 15 फुट है। इसमें 20 बैंच हैं। बैंच और डैस्क एक साथ जुड़े हैं। कमरे में दो दरवाजें हैं। एक आगे की तरफ तथा दूसरा पीछे की तरफ। इसमें हवादार खिड़कियाँ भी हैं। कमरे की दीवार पर एक बुलेटिन बोर्ड भी है।

दूसरी तरफ डिस्पले बोर्ड है। इस पर हम हर महीने नई-नई चीजें लगाते रहते हैं। इसमें अध्यापक के लिए एक लैक्चर स्टैण्ड है। एक श्यामपट्ट भी है। हमारी कक्षा की दीवारों पर सुंदर-सुंदर चित्र लगे हुए हैं। पढ़ाई करने का एक उपयुक्त वातावरण हमें यहाँ मिलता है। मेरी कक्षा का कमरा मुझे बहुत अच्छा लगता है। हम इसे कभी गंदा नहीं करते। इसकी स्वच्छता का हम पूरा ध्यान रखते हैं।

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