PSEB 6th Class Hindi Solutions Chapter 13 नर हो, न निराश करो मन को

Punjab State Board PSEB 6th Class Hindi Book Solutions Chapter 13 नर हो, न निराश करो मन को Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 6 Hindi Chapter 13 नर हो, न निराश करो मन को

Hindi Guide for Class 6 नर हो, न निराश करो मन को Textbook Questions and Answers

भाषा-बोध

1. शब्दों के अर्थ व्याख्या के साथ दिए जा चुके हैं।

मास = महीना
खगोल शास्त्र = सौर-मण्डल सम्बन्धी अध्ययन
सून = खाली, रिक्त
गणितज्ञ = गणित को जानने वाला
आविष्कार = खोज
गणना = गिनना, गिनती
कौड़ी = घोंघे, शंख आदि
परिक्रमा = फेरी, प्रदक्षिणा
शिलालेख = किसी सम्राट द्वारा पत्थर पर खुदवाया आदेश
अक्ष = धरनी की धूरी
शताब्दी = सौ वर्ष का समय
अनमोल = अमूल्य
वैदिक काल = वेदों की रचना का युग
दरमिक प्रणाली = दस गुना तथा अपने से ठीक ऊंचे मान का दसवाँ भाग ।

2. निम्नलिखित शब्दों का वाक्यों में प्रयोग करो-

सुयोग = ………………………
अवलम्बन = ………………………
दान = …………………….
धन = ……………………
सुख = ……………………..
उत्तर:
सुयोग (अच्छा अवसर) – मनुष्य को जीवन में सुयोग कभी-कभी ही मिलता है।
अवलम्बन (सहारा) – ईश्वर के अवलम्बन से ही कल्याण सम्भव है।
दान (उपकार के लिए कोई वस्तु देना) – दान देने से मनुष्य का कल्याण होता है।
धन (दौलत, पैसा) – अधिक धन का लालच नहीं करना चाहिए।
सुख (आराम) – दुःख उठाकर ही सुख प्राप्त होता है।

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3. निम्नलिखित शब्दों के समानार्थक शब्द लिखो

नर = ………………….
जग = ……………….
तन = …………………
पथ = ………………….
प्रभु = ………………..
कर = ………………..
धन = ………………..
उत्तर:
नर = मनुष्य
जग = जगत्, संसार
तन = शरीर
पथ = मार्ग
प्रभु = परमात्मा
कर = हाथ
धन = वित्त, दौलत।

4. ‘सुयोग’ शब्द सु + योग से बना है। इसी प्रकार ‘अलभ्य’ शब्द अ + लभ्य से बना है। ‘सु’ और ‘अ’ का प्रयोग करते हुए पाँच-पाँच नए शब्द बनाओ।
उत्तर:
सु-सुविचार, सुनिश्चित, सुकृत, सुशोभित, सुकोमल।
अ-अप्राप्य, अलख, असाधारण, असंख्य, असाध्य।

5. काव्य-पंक्तियाँ पूरी करो

निज गौरव का………… ।
हम भी कुछ हैं यह ……….।
प्रभु ने तुमको………. ।
सब वांछित ………..।
उत्तर:
निज गौरव का नित ज्ञान रहे
हम भी हैं कुछ है यह ध्यान रहे
प्रभु ने तुमको कर दान किए
सब वांछित बस्तु विधान दिये

विचार-बोध(प्रश्न)

(क)
प्रश्न 1.
कवि ने क्या करने की प्रेरणा दी है ?
उत्तर:
कवि ने समय व्यर्थ न गँवाने और काम करते रहने की प्रेरणा दी है। मनुष्य को कभी निराश नहीं होना चाहिए।

प्रश्न 2.
मनुष्य को किस प्रकार कर्म करने को कहा है ?
उत्तर:
कविने मनुष्य को हमेशा आलस्य छोड़ कर निरन्तर कार्य करने को कहा है। समय बीत जाने पर व्यक्ति को पछताना पड़ता है। काम न करने से जीवन व्यर्थ चला जाएगा।

प्रश्न 3.
प्रभु ने मनुष्य को क्या दिया है ?
उत्तर:
प्रभु ने मनुष्य को हाथ दिये हैं। इसके अतिरिक्त काम करने के अन्य साधन भी उपलब्ध किए गए हैं।

प्रश्न 4.
कवि ने मनुष्य को किस प्रकार प्रोत्साहित किया है?
उत्तर:
कवि ने मनुष्य को कर्म करने के लिए प्रोत्साहित किया है।

(ख) सप्रसंग व्याख्या लिखो

निज गौरव……………मन को।
नोट-सरलार्थ के लिए विद्यार्थी व्याख्या भाग देखें।

आत्म-बोध (प्रश्न)

1. इस कविता को कंठस्थ करो। नित्य प्रति इसका गुणगान करते हुए इससे प्रेरणा लो।
2. मैथिलीशरण गुप्त हिन्दी के राष्ट्रकवि थे। अपने अध्यापक से पता करो कि अन्य कौन-कौन से राष्ट्रकवि हुए हैं। गुप्त जी की रचनाओं के बारे में पढ़ो।
3. कविता में निरन्तर कर्म करने की प्रेरणा दी है। ‘श्रीमद्भगवत गीता’ से उन पंक्तियों को ढूँढ़ो जिनमें कर्मरत रहने को कहा गया है।
उत्तर:
विद्यार्थी स्वयं करें।

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बहुवैकल्पिक प्रश्न

प्रश्न 1.
इस कविता में कवि ने क्या बनने की प्रेरणा दी है ?
(क) आशावादी
(ख) निराशावादी
(ग) भाववादी
(घ) सिपाही
उत्तर:
(क) आशावादी

प्रश्न 2.
इस कविता में कवि ने मनुष्य को क्या करने की प्रेरणा दी है ?
(क) खेलने की
(ख) जागने की
(ग) कर्म करने की
(घ) चलने की
उत्तर:
(ग) कर्म करने की

प्रश्न 3.
प्रभु ने मनुष्य को क्या दिया ?
(क) धन
(ख) हाथ
(ग) तन
(घ) मन
उत्तर:
(ख) हाथ

प्रश्न 4.
कवि ने मन को क्या न होने की प्रेरणा दी है ?
(क) निराश
(ख) उदास
(ग) हताश
(घ) विश्वास
उत्तर:
(क) निराश

प्रश्न 5.
कवि के अनुसार मनुष्य का क्या रहना चाहिए ?
(क) धन
(ख) तन
(ग) मन
(घ) मान
उत्तर:
(घ) मान

पद्यांशों के सरलार्थ

1. नर हो, न निराश करो मन को,
कुछ काम करो, कुछ काम करो।
जग में रहकर कुछ नाम करो,
यह जन्म हुआ किस अर्थ अहो।
समझो, जिसमें यह व्यर्थ न हो।
कुछ तो उपयुक्त करो तन को,
नर हो, न निराश करो मन को।।

शब्दार्थ:
नर = मनुष्य। जग = संसार। व्यर्थ = फ़िजूल।

प्रसंग:
यह पद्यांश श्री मैथिलीशरण गुप्त द्वारा रचित ‘नर हो, न निराश करो मन को’ नामक कविता से लिया गया है। इसमें कवि ने मनुष्य को निराशा को छोड़कर परिश्रमी बनने के लिए प्रोत्साहित किया है।

सरलार्थ:
कवि कहता है-तुम मनुष्य हो, अपने मन को निराश मत करो। कुछ-नकुछ काम अवश्य करो। संसार में रहकर अपना कुछ नाम पैदा करो। प्रसिद्धि प्राप्त करो। यह तुम्हारा जन्म किस लिए हुआ है। तुम समझो या सम्भल जाओ, जिससे तुम्हारा यह मनुष्य जन्म बेकार न चला जाए। तुम अपने शरीर को कुछ तो काम करने के योग्य बनाओ। तुम मनुष्य हो, अतः अपने मन को निराश न होने दो।

भावार्थ:
कवि ने मनुष्य को जीवन में काम करने की प्रेरणा दी है।

2. समझो, कि सुयोग न जाए चला,
कब व्यर्थ हुआ सदुपाय भला।
समझो, जग को न निरा सपना,
पथ आप करो प्रशस्त अपना।
अखिलेश्वर है अवलम्बन को,
नर हो, न निराश करो मन को।

शब्दार्थ:
सुयोग = अच्छा अवसर। सदुपाय = अच्छा उपाय। प्रशस्त = पक्का करना, बनाना। अखिलेश्वर = ईश्वर। अवलम्बन = सहारा ।

प्रसंग:
प्रस्तुत पद्यांश हमारी हिन्दी की पाठ्य-पुस्तक में संकलित ‘नर हो, न निराश करो मन को’ कविता में से लिया गया है। इसके रचयिता श्री मैथिलीशरण गुप्त हैं। इसमें कवि ने मनुष्य को निराशा को छोड़कर परिश्रमी बनने के लिए प्रोत्साहित किया है।

सरलार्थ:
कवि मनुष्य को प्रोत्साहित करते हुए कहता है-तुम संभल जाओ ताकि तुम्हारे हाथ से अच्छा अवसर न निकल जाए। तुम यह बताओ कि अच्छी तरह से किया हुआ उपाय भला कब व्यर्थ जाता है ? संसार को तुम निरा स्वप्न ही मत समझो बल्कि अपने जीवन के मार्ग को स्वयं बनाओ! क्योंकि तुम्हारा सहारा ईश्वर है। तुम मनुष्य हो, इसलिए मन को निराश मत होने दो।

भावार्थ:
कवि ने ईश्वर पर विश्वास रखते हुए किसी भी प्रकार की निराशा से बचने का पाठ पढ़ाया है।

3. निज गौरव का नित ज्ञान रहे,
हम भी कुछ हैं यह ध्यान रहे।
सब जाये अभी, पर मान रहे,
मरने पर गुंजित गान रहे।
कुछ हो, न तजो निज साधन को,
नर हो, न निराश करो मन को।

शब्दार्थ:
निज = अपना। गौरव = बड़प्पन, स्वाभिमान। तजो = छोड़ो। प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हमारी हिन्दी की पाठ्य-पुस्तक में संकलित ‘नर हो, न निराश करो मन को’ कविता में से लिया गया है। इसके रचयिता श्री मैथिलीशरण गुप्त हैं। इसमें कवि ने मनुष्य को निराशा को छोड़कर परिश्रमी बनने के लिए प्रोत्साहित किया है।

सरलार्थ:
कवि काम करते समय मनुषण को सावधान रहने की शिक्षा देते हुए कहता है-तुम्हें अपने स्वाभिमान का हमेशा ज्ञान होना चाहिए। संसार में हम भी कुछ हैं, इस बात का अवश्य ध्यान होना चाहिए। संसार की सब योग्य वस्तुएँ अथवा सुख साधन सभी नष्ट हो जाएँ किन्तु सम्मान बना रहे, जिससे यश के गीत, मरने के बाद भी संसार में गूंजते रहें। कुछ भी हो, तुम अपने साधन को मत छोड़ो। तुम मनुष्य हो, इसलिए अपने मन को निराश मत होने दो।

भावार्थ:
कवि ने निराशा के भावों को मन में कभी न आने की प्रेरणा दी है।

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4. प्रभु ने तुम को कर दान किए,
सब वांछित वस्तु-विधान किए।
तुम प्राप्त करो उनको न अहो,
फिर है किसका यह दोष कहो।
समझो न अलभ्य किसी धन को,
नर हो, न निराश करो मन को।।

शब्दार्थ:
कर = हाथ। वांछित = मनचाही। अलभ्य = अप्रयाप्य, न मिलने योग्य।

प्रसंग:
प्रस्तुत पद्यांश हमारी हिन्दी की पाठ्य-पुस्तक में संकलित ‘नर हो, न निराश करो मन को’ कविता में से लिया गया है। इसके रचयिता श्री मैथिलीशरण गुप्त हैं। इसमें कवि ने मनुष्य को निराशा को छोड़कर परिश्रमी बनने के लिए प्रोत्साहित किया है।

सरलार्थ:
कवि मनुष्य को प्रेरणा देते हुए कहता है-परमात्मा ने तुम्हें दो हाथ प्रदान किए हैं और सब मन चाही वस्तुएँ भी प्रदान की हैं। फिर यदि तुम उनको प्राप्त न करो तो बताओ फिर यह उसका दोष है? किसी भी पदार्थ को तुम यह मत समझो कि यह प्राप्त नहीं हो सकता, सब कुछ सम्भव है बस अपने मन को निराश मत होने दो। तुम मनुष्य हो इसलिए अपने मन को निराश मत करो।

भावार्थ:
मनुष्य अपने तन-मन से किसी भी लक्ष्य की प्राप्ति कर सकने के योग्य है।

5. किस गौरव के तुम योग्य नहीं,
कब कौन तुम्हें सुख भोग्य नहीं।
जन हो तुम भी जगदीश्वर के,
सब हैं जिसके अपने घर के॥
फिर दुर्लभ क्या उसके जन को?
नर हो, न निराश करो मन को।

शब्दार्थ:
भोग्य = भोगने योग्य। जगदीश्वर = परमात्मा। दुर्लभ = जो कठिनाई से प्राप्त हो।

प्रसंग:
यह पद्यांश श्री मैथिलीशरण गुप्त द्वारा रचित ‘नर हो, न निराश करो मन को’ कविता से लिया गया है। इसमें कवि ने मनुष्य को निराशा को छोड़कर परिश्रमी बनने के लिए प्रोत्साहित किया है।

सरलार्थ:
कवि कहता है-कौन-सा ऐसा मान है जिसके लिए तुम योग्य नहीं हो अर्थात् तुम सब प्रकार का सम्मान प्राप्त करने की योग्यता रखते हो। ऐसा कौन-सा सुख है जिसको भोगने के तुम योग्य नहीं हो। तुम उस ईश्वर की सन्तान हो जिन्हें वो अपने घर का सदस्य मानते हैं। सभी प्राणी ईश्वर को समान रूप से प्यारे हैं। भला फिर उस ईश्वर के व्यक्ति के लिए कौन-सी वस्तु ऐसी है कि जिसे प्राप्त नहीं किया जा सकता। तुम मनुष्य हो, इसलिए अपने मन को निराश न करो।

भावार्थ:
मनुष्य को ईश्वर ने हर कार्य करने और उसमें सफलता प्राप्त करने के गुण प्रदान किए हैं।

नर हो, न निराश करो मन को Summary

नर हो, न निराश करो मन को कविता का सार

कवि मनुष्य को शिक्षा देते हुए कहता है कि तुम अपने में निराशा के भाव कभी मत लाओ। तुम नर हो और तुम्हारा कार्य परिश्रम करना है। व्यर्थ में अपना जीवन मत गंवाओ। यह संसार सपना नहीं। तुम ईश्वर का नाम लेकर इसमें अपना रास्ता स्वयं चुनो। अपने लक्ष्य को निश्चित कर तुम अपनी मंजिल की ओर बढ़ो। ईश्वर ने तुम्हें दो हाथ दिए हैं। उनसे परिश्रम करो और किसी भी धन को अप्राप्य न समझो। तुम ईश्वर के गुणों को प्राप्त कर धरती पर उत्पन्न हुए हो। इसलिए तुम्हारे लिए कोई भी कार्य करना कठिन नहीं है। तुम तन-मन से परिश्रम करो।

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