PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 16 क्या निराश हुआ जाए?

Punjab State Board PSEB 12th Class Hindi Book Solutions Chapter 16 क्या निराश हुआ जाए? Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Hindi Chapter 16 क्या निराश हुआ जाए?

Hindi Guide for Class 12 PSEB क्या निराश हुआ जाए? Textbook Questions and Answers

(क) लगभग 60 शब्दों में उत्तर दें:

प्रश्न 1.
आजकल चिन्ता का क्या कारण है ?
उत्तर:
आज देश में आरोप-प्रत्यारोप का ऐसा वातावरण बन गया है कि लगता है कि कोई ईमानदार आदमी रहा ही नहीं। जो व्यक्ति जितने ऊँचे पद पर है, उसमें उतने ही अधिक दोष दिखाए जाते हैं। जो व्यक्ति कुछ करेगा उसके कार्य में कोई न कोई दोष तो होगा ही किन्तु उसके गुणों को भुलाकर दोषों को ही देखना निश्चय ही चिन्ता का विषय है।

प्रश्न 2.
जीवन के महान् मूल्यों के बारे में लोगों की आस्था क्यों हिलने लगी है ?
उत्तर:
आज देश में कुछ ऐसा वातावरण बना है कि ईमानदारी से मेहनत करके रोटी रोज़ी कमाने वाले भोले-भाले मज़दर पिस रहे हैं और झठ और फरेब का धन्धा करने वाले फल-फूल रहे हैं। ईमानदारी मूर्खता समझी जाने लगी है और सच्चाई केवल कायर और बेबस लोगों के पास रह गयी है। ऐसी हालत में लोगों की जीवन के महान् मूल्यों के बारे में आस्था हिलने लगी है।

प्रश्न 3.
वे कौन-से विकार हैं जो मनुष्य में स्वाभाविक रूप में विद्यमान रहते हैं ?
उत्तर:
लोभ-मोह, काम-क्रोध आदि विकार मनुष्य में स्वाभाविक रूप से विद्यमान रहते पर इन्हें प्रधान शक्ति मान लेना और अपने मन तथा बुद्धि को उन्हीं के इशारे पर छोड़ देना बहुत बुरा नीच आचरण है। हमारे यहाँ इन विकारों को संयम के बन्धन में बाँधकर रखने का प्रयत्न किया जाता है।

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 16 हजारी प्रसाद द्विवेदी

प्रश्न 4.
धर्म और कानून में क्या अन्तर है ?
उत्तर:
धर्म को धोखा नहीं दिया जा सकता जबकि कानून को दिया जा सकता है। भारत वर्ष में अब भी यह अनुभव किया जाता है कि धर्म कानून से बड़ी चीज़ है। कानून की त्रुटियों से लाभ उठाया जा सकता है जबकि धर्म में आस्था रखने वाला ऐसा नहीं करता। .

प्रश्न 5.
किसी ऐसी घटना का वर्णन करो जिससे लोक चित्त में अच्छाई की भावना जागृत हो।
उत्तर:
कुछ महीने पहले की बात है कि मैं अपने मम्मी पापा के साथ टेक्सी में कही जा रहा था। टैक्सी से उतरते समय मेरी मम्मी टैक्सी में अपना पर्स भूल गईं। उसमें तीन हजार रुपए और मम्मी के कुछ गहने और मोबाइल था। हम सभी हैरान थे कि अब क्या किया जाए हमने तो टैक्सी का नम्बर और टैक्सी ड्राइवर का नाम भी नहीं पूछा था। थोड़ी देर बाद हमारे आश्चर्य का ठिकाना न रहा जब वही टैक्सी ड्राइवर हमारे पास मम्मी का पर्स लौटने आ पहुँचा। मम्मी और पापा ने उसे सौ रुपया पुरस्कार देना चाहा तो उसने इन्कार करते हुए कहा-यह तो मेरा फर्ज़ था।

(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 150 शब्दों में लिखो।

प्रश्न 1.
‘क्या निराश हुआ जाए ?’ निबन्ध का सार लिखो।
उत्तर:
देखिए पाठ के आरम्भ में दिया गया निबन्ध का सार ।

प्रश्न 2. इस निबन्ध में द्विवेदी जी ने कुछ घटनाएँ दी हैं जो सच्चाई और ईमानदारी को उजागर करती हैं। उनमें से किसी एक घटना का वर्णन अपने शब्दों में करें।
उत्तर:
द्विवेदी जी एक बार सपरिवार बस में यात्रा कर रहे थे। उनकी बस गंतव्य से पाँच मील पहले एक सूनी निर्जन जगह पर खराब हो गई। उस समय रात के दस बजे थे सभी यात्री घबरा गए। कंडक्टर बस के ऊपर से साइकल उठाकर चला गया। उसके जाने पर यात्रियों को संदेह हुआ कि उन्हें धोखा दिया जा रहा है। एक यात्री ने चिन्ता जताते हुए कहा कि यहाँ डकैती होती है, दो दिन पहले ही एक बस को लूटने की घटना हुई है। द्विवेदी जी परिवार सहित अकेले यात्री थे। बच्चे पानी के लिए चिल्ला रहे थे और पानी का कहीं ठिकाना न था।

इसी बीच कुछ नवयुवक यात्रियों ने ड्राइवर को पीटने का मन बनाया। जब लोगों ने उसे पकड़ा तो वह घबराकर । द्विवेदी जी से उसे लोगों से बचाने की प्रार्थना करने लगा। ड्राइवर ने कहा कि हम लोग बस का कोई उपाय कर रहे
हैं।

द्विवेदी जी लोगों को समझा-बुझा कर उसे पिटने से तो बचा लेते हैं किन्तु लोगों ने ड्राइवर को बस से उतार कर घेर लिया और कोई घटना होने पर पहले उसे मारना ही उचित समझा। इतने में यात्रियों ने देखा कि कंडक्टर एक खाली बस लिए चला आ रहा है। आते ही उसने बताया कि अड्डे से नयी बस लाया हूँ। फिर वह कंडक्टर द्विवेदी जी के पास आकर लोटे में पानी और थोडा दुध दिया। उसने कहा कि बच्चे का रोना उससे देखा न गया। सब यात्रियों ने उसे धन्यवाद दिया और ड्राइवर से क्षमा माँगी। रात बारह बजे से पहले ही वे बस अड्डे पहुंच गए।

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 16 हजारी प्रसाद द्विवेदी

प्रश्न 3.
मानवीय मूल्य से सम्बन्धित यदि कोई ऐसी ही घटना आपके साथ घटित हुई हो, तो उसका वर्णन अपने शब्दों में करें।
उत्तर:
पिछले महीने की बात है कि मैं साइकिल पर जा रहा था कि एक ट्रक पीछे से आया और मुझे टक्कर मारकर चला गया। मैं सड़क पर जख्मी हालत में पड़ा था। मेरे पास से कई स्कूटर, कई कारें गुजरे किन्तु किसी ने मेरी ओर ध्यान नहीं दिया। मैं घायल अवस्था में सड़क के किनारे कोई एक घण्टा तक पड़ा रहा। मेरे शरीर से खून बह रहा था। चोट अधिकतर टांगों और बाहों पर लगी थी। मैंने सहायता के लिए कई लोगों को पुकारा भी किन्तु किसी को भी मेरी हालत पर दया नहीं आई। लगता था कि लोग पुलिस के डर से मेरी सहायता नहीं कर रहे थे। क्योंकि आजकल पुलिस वाले उलटे सहायता करने वाले पर ही केस बना देती है। कहती है एक्सीडेंट तुम्हीं ने किया है। मैं निराश होकर ईश्वर से प्रार्थना करने लगा।

तभी अचानक मेरे पास आकर एक कार रुकी। कार में दो व्यक्ति सवार थे। वे दोनों कार से उतरे। दोनों ने मिलकर मुझे अपनी कार में डाला और तुरन्त निकट के अस्पताल में ले गए। मेरी साइकिल जो बुरी तरह टूट चुकी थी, उन्होंने वही छोड़ दी। अस्पताल के डॉक्टर ने बताया कि इस रोमी को कम से कम एक बोतल खून की ज़रूरत है। उन दोनों व्यक्तियों ने बिना हिचक के अपना खून देने की रजामंदी प्रकट की। प्रभु कृपा से उन दोनों का खून मेरे खून के ग्रुप से मिल गया। तुरन्त उनमें से छोटी आयु के व्यक्ति ने अपना खून दिया। मेरे घावों की मरहम पट्टी कर दी गई थी। दो दिन के इलाज के बाद मुझे अस्पताल से छुट्टी मिल गई। मुझे डॉक्टरों से पता चला कि वे सज्जन मेरे इलाज का सारा खर्चा अदा कर गए हैं। मैं उन दोनों व्यक्तियों को भगवान् समझता हूँ किन्तु खेद है कि मैं उनका नाम तक नहीं जानता।

(ग) सप्रसंग व्याख्या करें

1. “जीवन के महान् मूल्यों के बारे में आस्था ही हिलने लगी है।”
उत्तर:
प्रसंग-प्रस्तुत पंक्ति डॉ० हजारी प्रसाद द्विवेदी द्वारा लिखित निबन्ध ‘क्या निराश हुआ जाए ?’ में से ली गई

व्याख्या:
लेखक कहते हैं कि आज देश में ऐसा वातावरण बना है कि ईमानदारी को मूर्खता का पर्याय समझा जाने लगा है। सच्चाई केवल डरपोक और बेबस लोगों के पास रह गयी ऐसी स्थिति में लोगों की जीवन के महान् मूल्यों के प्रति आस्था डाँवाडोल होने लगी है।

2. “धर्म को धोखा नहीं दिया जा सकता, कानून को दिया जा सकता है।”
उत्तर:
प्रसंग-प्रस्तुत पंक्ति डॉ० हजारी प्रसाद द्विवेदी द्वारा लिखित निबन्ध ‘क्या निराश हुआ जाए ?’ में से ली गई

व्याख्या:
लेखक कहते हैं भारत वर्ष में सदा कानून को धर्म माना जाता रहा है किन्तु आज कानून और धर्म में अन्तर आ गया है। लोग यह जानते हैं कि धर्म को धोखा नहीं दिया जा सकता जब कानून को दिया जा सकता है। इसी कारण . धर्म से डरने वाले लोग भी कानून की कमियों से लाभ उठाने में संकोच नहीं करते।

3. ‘अच्छाई को उजागर करना चाहिए, बुराई में रस नहीं लेना चाहिए।’
उत्तर:
प्रसंग-प्रस्तुत पंक्ति डॉ० हजारी प्रसाद द्विवेदी द्वारा लिखित निबन्ध ‘क्या निराश हुआ जाए ?’ में से ली गई

व्याख्या:
लेखक कहते हैं कि दोषों से पर्दा उठाना बुरी बात नहीं है। लेकिन किसी की बुराई करते समय जब उसमें रस लिया जाता और उसे कर्त्तव्य मान लिया जाता है तो यह बुरी बात है और इससे भी बुरी बात वह जब अच्छाई को उतना ही रस लेकर प्रकट न करना।

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 16 हजारी प्रसाद द्विवेदी

4. सामाजिक कायदें-कानून कभी युग-युग से परीक्षत आदर्शों से टकराते हैं, इससे ऊपरी सतह आलोड़ित भी होती है, पहले भी हुआ है, आगे भी होगा। उसे देखकर हताश हो जाना ठीक नहीं है।
उत्तर:
प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश डॉ० हजारी प्रसाद द्विवेदी द्वारा लिखित निबन्ध ‘क्या निराश हुआ जाए ?’ में से लिया गया है।

व्याख्या:
लेखक कहते हैं कि सामाजिक नियम और कानून समाज के हित को ध्यान में रखकर मनुष्य द्वारा ही बनाये जाते हैं। उनकी ठीक सिद्ध न होने पर उन्हें बदल दिया जाता है। ये नियम-कानून सबके लिए होते हैं परन्तु कोईकोई नियम सबके लिए सुखकर नहीं होता। जब सामाजिक नियम-कानून युगों से परीक्षित आदर्शों से टकराते हैं तो जो हलचल होती है वह ऊपरी सतह पर ही होती है। वह हलचल भीतरी सतह में नहीं होती अतः इस हलचल को देखकर निराश हो जाना ठीक नहीं है।

PSEB 12th Class Hindi Guide क्या निराश हुआ जाए? Additional Questions and Answers

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘क्या निराश हुआ जाए?’ किसके द्वारा रचित है?
उत्तर:
आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी।

प्रश्न 2.
आचार्य द्विवेदी का जन्म कब और कहाँ हुआ था? ।
उत्तर:
सन् 1907 ई० में उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में ‘आरत दुबे का छपर गाँव में’।

प्रश्न 3.
आचार्य द्विवेदी को भारत सरकार ने किस अलंकार से सम्मानित किया था ?
उत्तर:
पद्म भूषण से।

प्रश्न 4.
आचार्य द्विवेदी किन-किन विश्वविद्यालयों के हिंदी-विभागाध्यक्ष बने थे?
उत्तर:
हिंदू विश्वविद्यालय और पंजाब विश्वविद्यालय।

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प्रश्न 5.
द्विवेदी जी के द्वारा रचित उपन्यासों में से किन्हीं दो का नाम लिखिए।
उत्तर:
अनामदास का पोथा, बाणभट्ट की आत्मकथा, चारुचंद्र लेख।

प्रश्न 6.
‘क्या निराश हुआ जाए ?’ किस प्रकार का निबंध है?
उत्तर:
विचारात्मक निबंध।

प्रश्न 7.
इस निबंध में किस प्रकार की बुराइयों पर प्रकाश डाला गया है?
उत्तर:
सामाजिक बुराइयों पर।

प्रश्न 8.
जो आदमी कुछ नहीं करता वह अधिक सुखी क्यों होता है?
उत्तर:
उसके काम में कोई दोष ही नहीं निकल पाता।

प्रश्न 9.
वर्तमान में कौन पिस रहा है और कौन फल-फूल रहा है ?
उत्तर:
वर्तमान में मज़दूर पिस रहे हैं और धोखेबाज फल-फूल रहे हैं।

प्रश्न 10.
भारतवासियों ने आत्मा को क्या महत्त्व दिया था?
उत्तर:
भारतवासियों ने आत्मा को चरण और परम माना था।

प्रश्न 11
द्विवेदी जी ने लोभ-मोह को क्या कहा है ?
उत्तर-:
उन्हें विकार कहा है।

प्रश्न 12.
कानून को भारत में क्या महत्त्व दिया गया है?
उत्तर:
कानून को धर्म का दर्जा दिया गया है।

प्रश्न 13.
लोग किसी दुर्घटना में वाहन के चालक को ही ज़िम्मेदार क्यों मानते हैं ?
उत्तर:
लोगों को लगता है कि वाहन के कल-पुर्जा, चालन, देख-रेख आदि सभी की ज़िम्मेदारी वाहन के चालकी होती है, जो कि पूरी तरह से ठीक नहीं है।

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प्रश्न 14.
वर्तमान में ईमानदारी को क्या समझा जाता है?
उत्तर:
वर्तमान में ईमानदारी को मूर्खता का पर्यायवाची समझा जाता है। वाक्य पूरे कीजिए

प्रश्न 15.
ईमानदारी को…. .पर्याय समझा जाने लगा है।
उत्तर:
मूर्खता।

प्रश्न 16.
भारतवर्ष ने कभी भी………………के संग्रह क. अधिक महत्त्व नहीं दिया।
उत्तर:
भौतिक वस्तुओं।

प्रश्न 17.
बुराई में……………लेना बुरी बात है।
उत्तर:
रस।

हाँ-नहीं में उत्तर दीजिए

प्रश्न 18.
दोषों का पर्दाफाश करना बुरी बात नहीं है।
उत्तर:
हाँ।

प्रश्न 19.
जीवन के महान् मूल्यों के बारे में आस्था ही हिलने लगी है।
उत्तर:
हाँ।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

1. द्विवेदी जी को साहित्य अकादमी पुरस्कार किस कृति पर मिला ?
(क) आलोक पर्व
(ख) आलोकित
(ग) आलोक
(घ) पर्व।
उत्तर:
(क) आलोक पर्व

2. ‘अशोक के फूल’ किस विधा की रचना है ?
(क) निबंध
(ख) कहानी
(ग) रेखाचित्र
(घ) संस्मरण।
उत्तर:
(क) निबंध

3. द्विवेदी जी का साहित्य किसका संगम है ?
(क) मानवतावाद का
(ख) भारतीय संस्कृति का
(ग) मानवतावाद एवं भारतीय संस्कृति का
(घ) कोई नहीं।
उत्तर:
(ग) मानवतावाद एवं भारतीय संस्कृति का

4. ‘क्या निराश हुआ जाए’ कैसा निबंध है ?
(क) सकारात्मक
(ख) विचारात्मक
(ग) विवेचनात्मक
(घ) प्रेरणात्मक
उत्तर:
(ख) विचारात्मक

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क्या निराश हुआ जाए? गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या

1. क्या यही भारतवर्ष है, जिसका सपना तिलक और गाँधी ने देखा था ? रवींद्रनाथ ठाकुर और मदनमोहन मालवीय का महान् संस्कृति-सभ्य भारतवर्ष किस अतीत के गह्वर में डूब गया ? आर्य और द्रविड़, हिन्दू और मुसलमान, यूरोपीय और भारतीय आदर्शों की मिलन-भूमि ‘मानव महासमुद्र’ क्या सूख गया ? मेरा मन कहता है ऐसा हो नहीं सकता। हमारे महान् मनीषियों के सपनों का भारत है और रहेगा।

प्रसंग:
प्रस्तुत गद्यांश ‘हजारी प्रसाद द्विवेदी द्वारा रचित’ “क्या निराश हुआ जाए ?” शीर्षक निबंध में से लिया गया है। इस गद्यांश में लेखक अपने इस विश्वास को प्रकट करता है कि अनेक विकृतियों के आ जाने के बावजूद भी भारतवर्ष से प्राचीन मानवीय आदर्श विलुप्त नहीं हुए हैं।

व्याख्या:
द्विवेदी जी कहते हैं कि आज चारों ओर भ्रष्टाचार, अनैतिकता, शोषण, बेईमानी आदि का बोलबाला है। वह प्रश्न करते हैं कि क्या यह वही भारतवर्ष है जिसका सपना हमारे महापुरुषों ने देखा था ? क्या इसी भारतवर्ष का स्वप्न कर्मयोगी लोकमान्य तिलक ने देखा था अथवा क्या यह राष्ट्रपति महात्मा गांधी के सपनों का भारत है ? संस्कृति से सभ्य यह रवींद्रनाथ ठाकुर और मदनमोहन मालवीय का देश है। यहां की संस्कृति अत्यंत प्राचीन है और अध्यात्म प्रधान है। इस सुसंस्कृत और सुसभ्य देश को न जाने क्या हुआ है ? लगता है कि यह किसी अतीत की गुफा में लुप्त हो गया। भाव यह है कि वर्तमान भारत में उसका सुसंस्कृत और सभ्य रूप नहीं मिलता।

रवींद्रनाथ ठाकुर इस भारतवर्ष को ‘मानव महासमुद्र’ कहते थे। इसमें अनेकानेक जातियों के मनुष्य रहते हैं और वे नदियों की भांति इस महासमुद्र में लीन हैं। आर्य और द्रविड़, संस्कृति, हिंदू और मुस्लिम संस्कृति, भारतीय और यूरोपीय संस्कृति के आदर्शों और सिद्धान्तों का यह संगम स्थल है। क्या यह ‘महासमुद्र’ सूख गया है ? लेखक की मान्यता है कि ऐसा संभव नहीं है। आज भी यह महान् विचारकों, ऋषियों एवं दार्शनिकों के स्वप्नों और कल्पनाओं का देश है और भविष्य में भी इसी रूप में रहेगा।

विशेष:

  1. लेखक ने भारत के सुसंस्कृत भविष्य के प्रति आशा व्यक्त की है।
  2. भाषा-शैली सरल, सहज और स्वाभाविक है।

2. यह सही है कि इन दिनों कुछ ऐसा माहौल बना है कि ईमानदारी से मेहनत करके जीविका चलाने वाले निरीह और भोले-भाले श्रमजीवी पिस रहे हैं और झूठ तथा फरेब का रोज़गार करने वाले फल-फूल रहे हैं। ईमानदारी को मूर्खता का पर्याय समझा जाने लगा है, सच्चाई केवल भीरु और बेबस लोगों के हिस्से पड़ी है। ऐसी स्थिति में जीवन के महान् मूल्यों के बारे में लोगों की आस्था ही हिलने लगी है।

प्रसंग:
प्रस्तुत गद्यांश डॉ० हजारी प्रसाद द्विवेदी द्वारा लिखित ‘क्या निराश हुआ जाए ?’ शीर्षक निबन्ध से लिया गया है। इन पंक्तियों में लेखक ने आज के भारत के दोषपूर्ण वातावरण का यथार्थ चित्रण किया है।

व्याख्या:
लेखक कहता है कि आज इस देश के वातावरण में भ्रष्टाचार और अनैतिकता का बोलबाला है। आज ऐसा माहौल बन चुका है कि ईमानदारी और सच्चाई की कद्र नहीं है। ईमानदारी से मेहनत करके अपने जीवन का निर्वाह करने वाले भोले-भाले और सीधे-साधे लोगों का शोषण हो रहा है। उनकी मेहनत-मज़दूरी के बदले में उन्हें इतना कम पैसा मिलता है कि वह पेट भर भोजन भी नहीं पा सकते। इसके विपरीत असत्य तथा छल-कपट का व्यवहार करने वाले लोग समुन्नत और समृद्ध हो रहे हैं। इस प्रकार ईमानदारी पूर्ण श्रम पर झूठ और कपट हावी हो रहे हैं।

आज ईमानदारी और मूर्खता समानार्थक हो गए हैं। भाव यह है कि ईमानदारी को मूर्ख समझा जाने लगा है। इसी प्रकार जो व्यक्ति सच्चाई से काम लेते हैं उन्हें धर्मभीरु तथा लाचार कहा जाता है। इस प्रकार आज ऐसा माहौल हो गया है कि जीवन के उच्च मूल्यों, मानवीय एवं सांस्कृतिक आदर्शों के बारे में लोगों का विश्वास डगमगाने लगा है।

विशेष:

  1. आज के भ्रष्टाचारी वातावरण में साधारण लोगों की जीवन के आदर्शों से आस्था टूट रही है।
  2. भाषा-शैली सरल, सहज और प्रवाहमयी है।।

3. सदा मनुष्य-बुद्धि नयी परिस्थितियों का सामना करने के लिए नये सामाजिक विधि-निषेधों को बनाती है, उनके ठीक साबित न होने पर उन्हें बदलती है। नियम कानून सबके लिए बनाए जाते हैं, पर सबके लिए कभीकभी एक ही नियम सुखकर नहीं होते। सामाजिक कायदे-कानून कभी युग-युग से परीक्षित आदर्शों से टकराते हैं इससे ऊपरी सतह आलोड़ित भी होती है, पहले भी हुआ है, आगे भी होगा। उसे देखकर हताश हो जाना ठीक नहीं है।

प्रसंग:
प्रस्तुत गद्यांश डॉ० हजारी प्रसाद द्विवेदी के निबंध ‘क्या निराश हुआ जाए ?’ में सें अवतरित किया गया है। इसमें लेखक ने यह स्पष्ट किया है कि युग-परिवर्तन के साथ जब नये नियम बनाए जाते हैं, तब उनका पुराने परखै नियमों के साथ टकराव भी होता है, जिससे समाज में उथल-पुथल होती है, परन्तु इससे निराश होने की आवश्यकता नहीं है।

व्याख्या:
लेखक का कथन है कि मनुष्य हमेशा ही नई परिस्थितियों का सामना करने के लिए अपनी बुद्धि द्वारा कार्यालय सम्बन्धी नियम बनाता है। यह प्रत्येक युग के अनुकूल करने योग्य एवं न करने योग्य’ सामाजिक नियमों की प्रतिष्ठा करता है। इन सामाजिक विधि-निषेधों के उचित होने पर वे समाज द्वारा अपना लिए जाते हैं और ठीक न सिद्ध होने पर उन्हें छोड़ दिया जाता है। मनुष्य की बुद्धि उन्हें बदलती है ये विधि-निषेध के नियम कायदे सामान्य होते हैं। सबके लिए होते हैं, परन्तु एक ही नियम कई बार सबके लिए उपयोगी और सुखदायक नहीं होता।

ये सामाजिक विधिनिषेध के कायदे-कानून पुराने परखे नियमों से टकराते भी हैं और वर्तमान नये नियमों और पुराने परीक्षित मूल्यों में संघर्ष होता है। इससे समाज की बाहरी सतह पर हलचल भी होती है, परंतु यह नई बात नहीं है। यह पहले भी होता आया है और आगे भी होता रहेगा। अतः वर्तमान माहौल को देखकर निराश होना उचित नहीं है क्योंकि यह स्वाभाविक है फिर यह नयी बात नहीं है।

विशेष:

  1. पुराने सामाजिक कायदे-कानून तथा नये कायदे-कानून में संघर्ष होता ही रहता है। इससे निराश नहीं होना चाहिए।
  2. भाषा-शैली सरल, सहज तथा प्रभावशाली है।

4. भारतवर्ष ने कभी भी भौतिक वस्तुओं के संग्रह को बहुत अधिक महत्त्व नहीं दिया है, उसकी दृष्टि से मनुष्य के भीतर जो महान् आन्तरिक तत्व स्थिर भाव से बैठा हुआ है, वही चरम और परम है। लोभ-मोह, काम क्रोध आदि विकास मनुष्य में स्वाभाविक रूप से विद्यमान रहते हैं, पर उन्हें प्रधान शक्ति मान लेना और अपने मन तथा बुद्धि को उन्हीं के इशारे पर छोड़ देना बहुत निकृष्ट आचरण है।

प्रसंग:
यह गद्यावतरण डॉ० हजारी प्रसाद द्विवेदी के निबंध ‘क्या निराश हुआ जाए ?’ से अवतरित है। इसमें बताया गया है कि भारत में भौतिक चीजें इकट्ठी करने को अधिक महत्त्व नहीं दिया गया।

व्याख्या:
लेखक कहता है कि भारतवर्ष में किसी भी युग में दुनियावी चीजें एवं इंद्रिय सुख के भौतिक पदार्थों को इकट्ठा करने को ज्यादा महत्त्व नहीं दिया गया है। यहां सुख-साधन जुटाना बहुत ही सीमित रहा है। भारतीय मनीषियों ने आंतरिक तत्व को अधिक महत्त्व दिया है। उनकी दृष्टि शरीर की अपेक्षा आत्म तत्व पर अधिक रही है जो स्थिर एवं नित्य है। उसे ही यहां श्रेष्ठतम माना गया है। वे हमारे देश की संस्कृति भौतिक मूल्यों के स्थान पर आत्मिक, मानवीय एवं नैतिक मूल्यों को महत्त्व देती रही है। भौतिक पदार्थ नश्वर हैं तथा आंतरिक मानवीय मूल्य परम सत्य है।

इसमें संदेह नहीं कि मनुष्य में काम, क्रोध, लोभ, मोह आदि विकारों का अस्तित्व स्वाभाविक है, परन्तु इन्हें प्रधान शक्ति मान लेना उचित नहीं है। इन्हें मन और बुद्धि पर हावी होने देना अथवा इन्हें मनमानी करने देना क्षुद्र आचरण कहा जायेगा। यह सदाचरण अथवा उच्चारण नहीं हो सकता।

विशेष:

  1. भारतीय विचारधारा में भौतिक वस्तुओं के संग्रह की अपेक्षा मनुष्य के भीतर के परम तत्व को जानने पर बल दिया गया है।
  2. भाषा-शैली तत्सम प्रधान होते हुए भी सुबोध है।

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 16 हजारी प्रसाद द्विवेदी

5. दोषों का पर्दाफाश करना बुरी बात नहीं है। बुराई यह मालूम होती है कि किसी के आचरण के गलत पक्ष को उद्घाटित करके उसमें रस लिया जाता है और दोषोद्धाटन को एकमात्र कर्तव्य मान लिया जाता है। बुराई में रस लेना बुरी बात है, अच्छाई में उतना ही रस लेकर उजागर न करना और भी बुरी बात है।

प्रसंग:
प्रस्तुत गद्यांश डॉ० हजारी प्रसाद द्विवेदी के निबंध ‘क्या निराश हुआ जाए ?’ में से उद्धृत किया गया है। इसमें लेखक ने बताया है कि किसी के दोषों को सबके समक्ष लाने में कोई बुराई नहीं, बुराई इस बात में है कि साथ-साथ गुणों को उजागर नहीं किया जाता।

व्याख्या:
लेखक कहता है कि किसी व्यक्ति के दोषों को उजागर करने में कोई विशेष बुराई नहीं। बुराई तो इस बात में है कि किसी व्यक्ति की बुराइयों को उजागर करने में ही रस लिया जाता है तथा दोषों को उजागर करने वाला यह समझने लगता है कि उसका कर्तव्य तो अमुक व्यक्ति की बुराइयों को उद्घाटित करना मात्र है। मनुष्य किसी के गुणों को उजागर करने में कतई रस नहीं लेता। आज यह उसका स्वभाव ही बन गया है। बुराई में रस लेना बुरी बात है, मगर किसी की अच्छाई को उतना ही रस लेकर लोगों के सामने प्रकट न करना उससे भी बुरी बात है।

विशेष:

  1. लेखक के अनुसार केवल दोषों को ही नहीं गुणों को भी उजागर किया जाना चाहिए। बुराई में रस लेना बुरी बात है।
  2. भाषा-शैली सरल और प्रवाहपूर्ण है।

6. मैं भी बहुत भयभीत था, पर ड्राइवर को किसी तरह मार-पीट से बचाया। डेढ़-दो घंटे बीत गए। मेरे बच्चे भोजन और पानी के लिए व्याकुल थे। मेरी और पत्नी की हालत बुरी थी। लोगों ने ड्राइवर को मारा तो नहीं, पर उसे बस से उतारकर एक जगह घेरकर रखा। कोई भी दुर्घटना होती है तो पहले ड्राइवर को समाप्त कर देना उन्हें उचित जान पड़ा। मेरे गिड़गिड़ाने का कोई विशेष असर नहीं पड़ा। इसी समय क्या देखता हूँ कि एक खाली बस चली आ रही है और उस पर हमारा बस कंडक्टर भी बैठा हुआ है।।

प्रसंग:
प्रस्तुत गद्यांश डॉ० हजारी प्रसाद द्विवेदी द्वारा लिखित ‘क्या निराश हुआ जाए ?’ शीर्षक निबन्ध से लिया गया है। इन पंक्तियों में लेखक ने आज के भारत में प्रत्येक मानव पर संदेह करने की प्रवृत्ति को दर्शाया है।

व्याख्या:
यहां लेखक का कहना है कि बस के अचानक सुनसान जगह पर रुक जाने के कारण वह बहुत डरा हुआ था, किन्तु बस के ड्राइवर को बड़ी ही कठिनाई से पिटने से बचा लिया। बस को रुके लगभग डेढ़ से दो घंटे बीत चुके थे। बच्चे भूख से बेहाल और पानी के लिए तड़प रहे थे। स्वयं मेरी और मेरी धर्मपत्नी की दशा अत्यन्त विकट हो रही थी। यात्रियों ने ड्राइवर को मारने की बजाय, उसे नीचे उतारकर एक स्थान पर चारों ओर से उसे घेर लिया ऐसा उन्होंने इसलिए किया क्योंकि यदि कोई अप्रिय बात होती तो वे सबसे पहले ड्राइवर को ही मृत्युदंड देते। लेखक पुनः कहता है कि उसकी प्रार्थना और विनय का कोई विशेष प्रभाव यात्रियों पर नहीं पड़ा। सहसा लेखक देखता है कि एक खाली बस हमारी ओर चली आ रही है और उस पर कंडक्टर भी बैठा हुआ है।

विशेष:

  1. लेखक ने मनुष्य को संदेह करने की प्रवृत्ति को दर्शाया है।
  2. शब्द एवं वाक्य योजना सटीक है। भाषा सरल सहज एवं भावों के अनुरूप है।

कठिन शब्दों के अर्थ

मन बैठ जाना = उदास हो जाना, निराश हो जाना। तस्करी = स्मग्लिंग–किसी प्रतिबन्धित वस्तु का दूसरे से देश में अवैध तरीके से चोरी छिपे लाना। भ्रष्टाचार = बुरा आचरण, बेईमानी। आरोप-प्रत्यारोप = एक-दूसरे पर दोष लगाना। अतीत = बीता हुआ समय। निरीह = बेचारा, निर्दोष। गह्वर = गुफा, खोह। मनीषियों = विद्वानों। माहौल = वातावरण। श्रमजीवी = मज़दूर। फरेब = धोखा। पर्याय = बदल। भीरू = डरपोक। आस्था = श्रद्धा, विश्वास। मनुष्य-निर्मित = मनुष्य द्वारा बनाई गई। त्रुटियों = गलतियों, कमियों। विधि-निषेध = कानून द्वारा निषिद्ध, यह करो वह न करो। साबित = प्रमाणित । कायदे = नियम। आलोड़ित = मथा हुआ। हताश = निराश। निकृष्ट = नीच। गुमराह = भटका हुआ। दरिद्रजनों = ग़रीबों। कोटि-कोटि = करोड़ों। सुविधा = आराम। पैमाना = स्तर। विधान = कानून। विकार = दोष। विस्तृत = बढ़ना, फैलना। दकियानूसी = पुराने विचारों का। धर्मभीरू = धार्मिक दृष्टि से डरपोक। संकोच = झिझक। पर्याप्त = काफी। आक्रोश = क्रोध। साबित करना = प्रमाणित करना। प्रतिष्ठा = सम्मान । पर्दाफाश करना == भेद खोलना। उद्घाटित करना = खोलकर सामने रखना। दोषोद्घाटन = दोषों को प्रकट करना। उजागर करना = प्रकट करना। गंतव्य = जहां पहुंचना/जाना हो। हिसाब बनाना = मन बनाना। कातर = व्याकुल, भयभीत।

क्या निराश हुआ जाए? Summary

क्या निराश हुआ जाए? जीवन परिचय

हजारी प्रसाद द्विवेदी का जीवन परिचय लिखें।

हजारी प्रसाद द्विवेदी का जन्म गाँव आरतदुबे का छपरा, जिला बलिया (उत्तर प्रदेश) में सन् 1907 में हुआ। संस्कृत विश्वविद्यालय काशी से शास्त्री की परीक्षा तथा हिन्दू विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा प्राप्त कर काशी विश्वविद्यालय तथा पंजाब विश्वविद्यालय में हिन्दी-विभागाध्यक्ष रहे। इन्हें ‘आलोकपर्व’ पर साहित्य अकादमी पुरस्कार तथा भारत सरकार द्वारा पद्म भूषण अलंकार से सम्मानित किया गया था। इनका साहित्य मानवतावाद एवं भारतीय संस्कृति से युक्त है। सन् 1979 में दिल्ली में उनका निधन हो गया।
अशोक के फूल, विचार और वितर्क, कल्पलता, कुटज, आलोक पर्व इनके निबन्ध संग्रह हैं। चारूचन्द्रलेख, बाणभट्ट की आत्मकथा, अनामदास का पोथा इनके प्रसिद्ध उपन्यास हैं। सूर-साहित्य, हिन्दी-साहित्य की भूमिका इनके आलोचनात्मक ग्रन्थ हैं।

क्या निराश हुआ जाए? निबन्ध का सार

‘क्या निराश हुआ जाए ?’ आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी द्वारा रचित विचारात्मक निबन्ध है, जिसमें लेखक ने देश की सामाजिक बुराइयों पर प्रकाश डालते हुए स्पष्ट किया है कि समाचार पत्रों को बुराइयों के साथ-साथ अच्छाइयों को भी उजागर करना चाहिए। लेखक का मन समाचार-पत्रों में ठगी, डकैती, चोरी, तस्करी और भ्रष्टाचार के समाचार पढ़कर कभी-कभी बैठ जाता है। इन्हें पढ़कर लगता है कि देश में ईमानदार आदमी रह ही नहीं गया है। लेखक को एक बड़े आदमी ने एक बार कहा था कि जो आदमी कुछ नहीं करता वह अधिक सुखी है क्योंकि उसके किए काम में कोई दोष नहीं निकालता। लेखक को भारत की ऐसी हालत देखकर दुःख होता है किन्तु लेखक को विश्वास है कि हमारे महान् मनीषियों के सपनों का भारत है और रहेगा। यह सच है कि इन दिनों कुछ ऐसा वातावरण बन रहा है कि ईमानदारी करके कमाने वाले मज़दूर पिस रहे हैं और धोखे का धन्धा करने वाले फल फूल रहे हैं।

लेखक का विचार है जो ऊपर से दिखाई देता है वह मनुष्य द्वारा ही बनाया गया है। मनुष्य सामाजिक नियमों को परिस्थिति अनुसार बदलता भी रहता है। इस बदलाव को देखकर निराश होना ठीक नहीं है। भारत वर्ष ने कभी भी सांसारिक वस्तुओं के संग्रह को महत्त्व नहीं दिया बल्कि उसने आत्मा को चरम और परम माना। लोभ-मोह आदि विकारों के वश में होना उसने कभी उचित नहीं माना। इन विचारों को संयम के बँधन से बाँधने का प्रयत्न किया। परन्तु भूख की, बीमार के लिए दवा की और भटके हुए को रास्ते पर लाने के उपायों की उपेक्षा नहीं की जा सकती।

लेखक कहते हैं कि व्यक्ति का चित्त हर समय आदर्शों पर नहीं चलता। मनुष्य ने जितने भी उन्नति के कानून बनाए उतने ही लोभ-मोह आदि विकार बढ़ते गए। आदर्शों का मजाक उड़ाया गया और संयम को दकियानूसी कहा गया। परन्तु इससे भारतीय आदर्श अधिक स्पष्ट और महान् दिखाई देने लगे।

भारतवर्ष में कानून को धर्म का दर्जा दिया गया किन्तु कानून और धर्म में अन्तर कर दिया गया है। धर्म को धोखा नहीं दिया जा सकता कानून को दिया जा सकता है। इसी कारण से धर्मभीरू कानून की कमियों से लाभ उठाने में संकोच नहीं करते। भारतवर्ष में अब भी यह अनुभव किया जाता है कि धर्म कानून से बड़ी चीज़ है। भ्रष्टाचार आदि के प्रति लोगों का क्रोध यह सिद्ध करता है कि लोग इसे गलत समझते हैं। सैंकड़ों घटनाएँ आज भी घटती हैं जो लोक-चित्त में अच्छाई की भावना को जगाती हैं। लेखक ने ऐसी दो घटनाओं का उल्लेख किया जिनमें पहली रेलवे के एक टिकट बाबू की ईमानदारी और दूसरी एक बस कंडक्टर की मानवीयता को उजागर करने वाली घटना शामिल है। इन घटनाओं का उल्लेख करते हुए लेखक कहते हैं कि निराश होने की ज़रूरत नहीं है। भारत में अब भी सच्चाई और ईमानदारी मौजूद है।

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