Punjab State Board PSEB 12th Class Hindi Book Solutions Chapter 15 सच्ची वीरता Textbook Exercise Questions and Answers.
PSEB Solutions for Class 12 Hindi Chapter 15 सच्ची वीरता
Hindi Guide for Class 12 PSEB सच्ची वीरता Textbook Questions and Answers
(क) लगभग 60 शब्दों में उत्तर दो:
प्रश्न 1.
सच्चे वीर पुरुष का स्वभाव कैसा होता है ?
उत्तर:
सच्चा वीर पुरुष धीर, गम्भीर और आज़ाद होता है। उसके मन की गम्भीरता और शान्ति समुद्र की तरह विशाल और आकाश की तरह स्थिर और अचल होती है। वे कभी चंचल नहीं होते। वे सत्वगुण के क्षीरसागर में ऐसे डूबे रहते हैं जिसकी दुनिया को खबर ही नहीं होती।
प्रश्न 2.
‘वीर पुरुष का दिल सबका दिल हो जाता है’ लेखक पूर्ण सिंह की इस उक्ति का क्या भाव है ?
उत्तर:
प्रस्तुत पंक्ति का अर्थ यह है कि वीर पुरुष भले ही सामने न आए, किन्तु अपने प्रेम से लोगों के दिलों पर राज करता है, जिससे वीर पुरुष का दिल सबका दिल हो जाता है। उसका मन सबका मन हो जाता है अर्थात् जैसे वह सोचता है या करता है सब वैसा ही सोचते या करते हैं।
(ख) लगभग 150 शब्दों में उत्तर दो:
प्रश्न 3.
‘सच्ची वीरता’ निबन्ध का सार अपने शब्दों में लिखें।
उत्तर:
देखिए पाठ के आरम्भ में दिया गया सार।
प्रश्न 4.
जापान के ओशियो की वीरता का उदाहरण प्रस्तुत निबन्ध के आधार पर लिखो।
उत्तर:
ओशियो जापान के एक छोटे से गाँव की एक झोंपड़ी में रहता था। वह बड़ा अनुभवी और ज्ञानी था। वह कडे स्वभाव का स्थिर, धीर और अपने ही विचारों में डूबा रहने वाला पुरुष था। लोग उसे मामूली आदमी समझते थे। एक बार संयोग से दो तीन साल फसलें न होने के कारण देश में अकाल पड़ गया। लोग लाचार होकर उसके पास मदद माँगने गए। वह उनकी मदद करने को तैयार हो गया। पहले वह अमीर और भद्र पुरुषों के पास गया और उससे मदद माँगी। उन्होंने मदद का वादा किया पर निभाया नहीं। ओशो ने अपने कपड़े और किताबें बेच कर प्राप्त धन को किसानों में बाँट दिया। पर उससे भी कुछ न हुआ। इस पर ओशियो ने लोगों को विद्रोह करने के लिए तैयार किया और बादशाह के महल की ओर कूच किया।
सिपाहियों ने गोली चलानी चाही लेकिन बादशाह ने ऐसा करने से रोक दिया। ओशियो किले में दाखिल हुआ। उसे सरदार पकड़ कर बादशाह के पास ले गया। ओशियो ने बादशाह से कहा कि वह अन्न से भरे राज भण्डार ग़रीबों की मदद के लिए खोल दे। उसकी आवाज़ में दैवी शक्ति थी। बादशाह ने अन्न भण्डार खोलने की आज्ञा दी और सारा अन्न ग़रीबों में बाँटने का आदेश दिया। ओशियो ने जिस काम के लिए कमर बाँधी थी उसे पूरा कर दिया था।
प्रश्न 5.
‘सच्चे वीर पुरुष मुसीबत को मखौल समझते हैं।’ ईसा मसीह, मीराबाई और गुरु नानक देव जी के जीवन से उदाहरण देते हुए प्रस्तुत निबन्ध के आधार पर स्पष्ट करें।
उत्तर:
संसार जिस बात को मुसीबत समझता है सच्चे वीर उसे मखौल समझते हैं। अमर ईसा को जब सूली पर चढ़ाया गया, उससे भारी सलीब उठवाई गई जिस कारण वह कभी गिरता, ज़ख्मी भी होता और कभी बेहोश हो जाता है। कोई पत्थर मारता है, कोई ढेला मारता है, कोई थूकता है, मगर उस मर्द का दिल नहीं हिलता, वह उस मुसीबत को मज़ाक समझता है। इसी प्रकार राणा जी ने मीराबाई को ज़हर के प्याले से डराना चाहा। मीरा उस ज़हर को अमृत समझ कर पी गई। उसे शेर और हाथी के सामने डाला गया, लेकिन वह डरी नहीं।
प्रेम में मस्त हाथी और शेर ने उस देवी के चरणों की धूल को माथे से लगाया और अपनी राह ली। वीर पुरुष आगे नहीं पीछे जाते हैं, भीतर ध्यान करते हैं, मारते नहीं मरते हैं। इसी प्रकार बाबर के सिपाहियों ने जब लोगों के साथ गुरु नानक देव जी को बेगार में पकड़ लिया और उनके सिर पर बोझ रखकर कहा कि चलो। आप चल पड़े। डरे नहीं, घबराए नहीं, बल्कि मर्दाना से कहा कि सारंगी बजाओं हम गाते हैं। उस भीड़ में सारंगी बज रही थी और गुरु जी गा रहे थे। वे उस मुसीबत को मुसीबत न समझ कर मज़ाक समझते हैं।
(ग) सप्रसंग व्याख्या करें:
प्रश्न 6.
सच है, सच्चे वीरों की नींद आसानी से नहीं खुलती। वे सत्व गुण के क्षीर समुद्र में ऐसे डूबे रहते हैं कि उनको दुनिया की खबर ही नहीं होती।
उत्तर:
प्रसंग:
प्रस्तुत पंक्तियाँ अध्यापक पूर्ण सिंह द्वारा लिखित निबन्ध ‘सच्ची वीरता’ में से ली गई हैं। प्रस्तुत पंक्तियों में लेखक ने कुम्भकरण की गाढ़ी नींद को वीरता का चिह्न बताया है।
व्याख्या:
लेखक कुम्भकरण की गाढ़ी नींद को वीरता का चिह्न बताते हुए कहते हैं कि यह सच है कि वीरों की नींद आसानी से नहीं खुलती क्योंकि वे सात्विक प्रवृत्तियों के दूध के सागर में ऐसे डूबे रहते हैं कि उन्हें दीन-दुनिया की खबर ही नहीं रहती अर्थात् वे अपने में ही सदा मस्त रहते हैं।
प्रश्न 7.
कायर पुरुष कहते हैं-‘आगे बढ़े चलो।’ वीर कहते हैं ‘पीछे हट चलो।’ कायर कहते हैं”उठाओ तलवार।’ वीर कहते हैं-‘सिर आगे करो।’
प्रसंग:
प्रस्तुत पंक्तियाँ अध्यापक पूर्ण सिंह द्वारा लिखित निबन्ध ‘सच्ची वीरता’ में से ली गई हैं। प्रस्तुत पंक्तियों में लेखक वीर और कायर पुरुष की तुलना करता हुआ कहता है कि कायर पुरुष दिखावे के लिए आगे बढ़ने की बात करता है।
व्याख्या:
लेखक कहते हैं कि कायर पुरुष कहते हैं कि आगे बढ़े चलो। उनका ऐसा कहना दिखावे और नाम के लिए होता है जबकि वीर कहते हैं कि पीछे हट चलो। उनका ऐसा कहना जीवन की तुच्छता या नश्वरता की ओर संकेत करता है। कायर कहते हैं कि ‘उठाओ तलवार’ अर्थात् उसका ऐसा कहना दिखावे और नाम के लिए होता है। वीर कहते हैं-‘सिर आगे करो’ उनका ऐसा कहना उनके आत्म त्याग की भावना के कारण है।
प्रश्न 8.
मगर वाह रे प्रेम। मस्त हाथी और शेर ने देवी के चरणों की धूल को अपने मस्तक पर मला और अपना रास्ता लिया। इसके वास्ते वीर पुरुष आगे नहीं पीछे जाते हैं, भीतर ध्यान करते हैं, मारते नहीं, मरते हैं।
प्रसंग:
प्रस्तुत पंक्तियाँ अध्यापक पूर्ण सिंह द्वारा लिखित निबन्ध ‘सच्ची वीरता’ में से ली गई हैं। प्रस्तुत पंक्तियों में लेखक श्रीकृष्ण भक्त मीरा बाई की प्रेम भावना का उदाहरण देते हुए सच्चे वीर की विशेषताओं पर प्रकाश डाल रहे हैं।
व्याख्या:
लेखक वीर लोगों द्वारा मुसीबत को मखौल समझने की व्याख्या करते हुए कृष्ण भक्त मीराबाई का उदाहरण देते हुए कहते हैं कि मीरा को डराने के लिए राणा जी ने विष का प्याला भेजा, जिसे वह अमृत समझकर पी गई। मीरा शेर और हाथी के सामने की गई, मगर वाह रे उनका सच्चा प्रेम। मस्त हाथी और शेर ने मीरा के चरणों की धूल को अपने मस्तक पर मला और अपना रास्ता लिया अर्थात् वहाँ से चल दिए। यही कारण है कि वीर पुरुष आगे नहीं पीछे जाते हैं। अपने हृदय के भीतर ही ध्यान करते हैं। वह किसी को मारते नहीं, स्वयं मरते हैं।
प्रश्न 9.
पेड़ तो ज़मीन से रस ग्रहण करने में लगा रहता है। उसे ख्याल ही नहीं होता कि मुझ में कितने फल या फूल लगेंगे और कब लगेंगे।
प्रसंग:
प्रस्तुत पंक्तियाँ अध्यापक पूर्ण सिंह द्वारा लिखित निबन्ध ‘सच्ची वीरता’ में से ली गई हैं। प्रस्तुत पंक्तियों में लेखक वीरता के कारनामों का वीर लोग अपनी दिनचर्या में शामिल न करने की बात को पेड़ का उदाहरण देकर स्पष्ट कर रहे हैं।
व्याख्या:
लेखक वीर लोगों के अन्दर ही अन्दर बढ़ने और सत्य के भाव पर स्थिर रहने की बात को एक पेड़ के उदाहरण से स्पष्ट करते हुए कहता है कि पेड़ तो धरती से रस ग्रहण करने में लगा रहता है। उसे इस बात की सोच नहीं होती कि उसमें कितने फल या फूल लगेंगे और कब खिलेंगे। उसका काम तो अपने आपको सत्य में रखना है।
PSEB 12th Class Hindi Guide सच्ची वीरता Additional Questions and Answers
अति लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
‘सच्ची वीरता’ शीर्षक निबंध किसके द्वारा रचित है?
उत्तर:
सरदार पूर्ण सिंह।
प्रश्न 2. सरदार पूर्ण सिंह के जन्म और मृत्यु के वर्ष लिखिए।
उत्तर:
जन्म-सन् 1881 ई०, मृत्यु-सन् 1931 ई०।
प्रश्न 3.
सरदार पूर्ण सिंह के द्वारा रचित चार अन्य निबंधों के नाम लिखिए।
उत्तर:
आचरण की सभ्यता, मज़दूरी और प्रेम, सच्ची वीरता, नयनों की गंगा।
प्रश्न 4.
सच्चे वीरों की दो विशेषताएं लिखिए।
उत्तर:
धीर, वीर, गंभीर और स्वतंत्र।
प्रश्न 5.
सच्चे वीरों का व्यक्तित्व कैसा होता है?
उत्तर:
दिव्य।
प्रश्न 6.
शासकों/सम्राटों को सच्चा वीर क्यों नहीं मान सकते?
उत्तर:
वे शोषण से महान् बनते हैं और सदा अपने पापों से कांपते रहते हैं।
प्रश्न 7.
सच्चा वीर क्या त्यागने में एक पल भी नहीं व्यतीत करते?
उत्तर:
अपने जीवन का बलिदान।
प्रश्न 8.
सच्चे वीरों का जीवन किस भाव से सदा भरा रहता है?
उत्तर:
परोपकार का भाव।
प्रश्न 9.
महात्मा बुद्ध सच्चे वीर क्यों माने जाते हैं?
उत्तर:
उन्होंने गूढ़ तत्व और सत्य की खोज के लिए ऐश्वर्य त्याग दिया था।
प्रश्न 10.
वीर पुरुष किस का प्रतिनिधि होता है?
उत्तर:
वीर पुरुष समाज का प्रतिनिधि होता है।
प्रश्न 11.
कोई व्यक्ति वास्तव में वीर किस प्रकार बनता है?
उत्तर:
वह अपनी अंतः प्रेरणा से ही अपना निर्माण स्वयं करता है।
प्रश्न 12.
स्वभाव से वीर पुरुष कैसे होते हैं?
उत्तर:
स्वभाव से वीर पुरुष धीर-गंभीर होते हैं वे आडंबर रहित होते हैं।
प्रश्न 13.
सच्चे वीर अपने वीरत्व को कब प्रकट करते हैं?
उत्तर:
सच्चे वीर उचित समय आने पर ही अपने वीरत्व को प्रकट करते हैं।
प्रश्न 14.
सच्चा वीर बनने के लिए क्या करना चाहिए?
उत्तर:
सच्चा वीर बनने के लिए हमें अपने भीतर के गुणों का विकास करना चाहिए।
वाक्य पूरे कीजिए
प्रश्न 15.
सच्चे वीर पुरुष धीर, गंभीर और………..होते हैं।
उत्तर:
आजाद।
प्रश्न 16.
वीरता एक प्रकार का…………….या….. ……..प्रेरणा है।
उत्तर:
इहलाम, दैवी।
प्रश्न 17.
वे………के वृक्षों की तरह जीवन के अरण्य में खुदबखूद पैदा होते हैं।
उत्तर:
देवदार।
हाँ-नहीं में उत्तर दीजिए
प्रश्न 18.
वीरों का स्वभाव सदा छिपे रहने का नहीं होता।
उत्तर:
हाँ।
प्रश्न 19.
आकाश उनके ऊपर बादल के छाते नहीं लगाता।
उत्तर:
नहीं।
प्रश्न 20.
सच्चे वीरों की नींद आसानी से नहीं खुलती।
उत्तर:
हाँ।
बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर
1. ‘सच्ची वीरता’ किस विद्या की रचना है ?
(क) निबंध
(ख) कहानी
(ग) उपन्यास
(घ) कविता
उत्तर:
(क) निबंध
2. अध्यापक पूर्ण सिंह के निबंधों का आधार क्या है ?
(क) मानवीय दृष्टि
(ख) आध्यात्मिक चेतना
(ग) ये दोनों
(घ) कोई नहीं।
उत्तर:
(ग) ये दोनों
3. अध्यापक पूर्ण सिंह किसकी पवित्रता को अधिक महत्त्व देते थे ?
(क) मानव के आचरण
(ख) मानवता
(ग) बुद्धि कौशल
(घ) मेहनत।
उत्तर:
(क) मानव के आचरण
4. ‘सच्ची वीरता’ कैसा निबंध है ?
(क) संवेदनशील
(ख) विचारात्मक
(ग) विवेचनात्मक
(घ) संवादात्मक।
उत्तर:
(ख) विचारात्मक
5. लेखक के अनुसार मनुष्य का सर्वश्रेष्ठ गुण है
(क) वीरता
(ख) न्याय
(ग) कर्म
(घ) सत्य।
उत्तर:
(क) वीरता
सच्ची वीरता गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या
1. सच्चे वीर पुरुष धीर, गम्भीर और आज़ाद होते हैं। उनके मन की गम्भीरता और शान्ति समुद्र की तरह विशाल और गहरी, या आकाश की तरह स्थिर और अचल होती है। वे कभी चंचल नहीं होते।
प्रसंग:
प्रस्तुत पंक्तियाँ अध्यापक पूर्ण सिंह द्वारा रचित निबन्ध ‘सच्ची वीरता’ से ली गई हैं। प्रस्तुत निबन्ध में उन्होंने वीरता के व्यापक क्षेत्र का उल्लेख करते हुए वीरों की चरित्रगत विशेषताओं पर प्रकाश डाला है। यहाँ वे सच्चे वीर के स्वरूप पर प्रकाश डालते हुए कहते हैं।
व्याख्या:
सच्चे वीर पुरुष स्वभाव से धीर, गम्भीर एवं स्वतन्त्र होते हैं। उनके मन की गम्भीरता एवं शान्ति की तुलना समुद्र की विशालता एवं गहराई से तथा आकाश की स्थिरता एवं अचलता से की जाती है। सच्चे वीर कभी चंचल नहीं होते। भाव यह है कि वीर पुरुष स्वभाव से दृढ़ होते हैं।
विशेष:
- सच्चे वीरों के गुणों का उल्लेख है।
- भाषा सरल, भावपूर्ण तथा शैली व्याख्यात्मक है।
2. सत्वगुण के समुद्र में जिनका अन्तःकरण निमग्न हो गया, वे ही महात्मा, साधु और वीर हैं। वे लोग अपने क्षुद्र जीवन को परित्याग कर ऐसा ईश्वरीय जीवन पाते हैं कि उनके लिए संसार के सब अगम्य मार्ग साफ़ हो जाते
प्रसंग:
प्रस्तुत अवतरण अध्यापक पूर्ण सिंह द्वारा रचित निबन्ध ‘सच्ची वीरता’ से अवतरित है। इसमें लेखक ने वीरता के व्यापक क्षेत्र का वर्णन किया है।
व्याख्या:
लेखक सच्चे वीरों की परिभाषा देते हुए कहते हैं कि सात्विक गुणों के सागर में जिनका हृदय डूब जाता है, वे ही महात्मा, साधु और वीर हैं अर्थात् सच्चे वीर स्वाभाव से सात्विक होते हैं। सच्चे वीर अपने सांसारिक तुच्छ जीवन का परित्याग कर ऐसा दिव्य अथवा अलौकिक जीवन प्राप्त करते हैं कि उनके लिए संसार के सभी अगम्य मार्ग सुगम बन जाते हैं। भाव यह है कि सच्चा वीर अपने साधनामय जीवन के द्वारा ईश्वरीय रूप प्राप्त कर लेते हैं। उनके लिए संसार के सभी कार्य सरल बन जाते हैं।
विशेष:
- सच्चे वीर दिव्यगणों से सम्पन्न होते हैं।
- भाषा तत्सम प्रधान, भावपूर्ण तथा शैली विचार प्रधान है।
3. आकाश उनके ऊपर बादलों के छाते लगाता है। प्रकृति उनके मनोहर माथे पर राज-तिलक लगाती है। हमारे असली और सच्चे राजा वे ही साधु पुरुष हैं। हीरे और लाल से जड़े हुए, सोने और चांदी के जर्क-बर्क सिंहासन पर बैठने वाले दुनिया के राजाओं की तो, जो गरीब किसानों की कमाई हुई दौलत पर पिंडोपजीवी होते हैं, लोगों ने अपनी मूर्खता से वीर बना रखा है। ये ज़री, मखमल और जेवरों से लदे हुए मांस के पुतले तो हर दम कांपते रहते हैं। क्यों न हो, उनकी हुकूमत लोगों के दिलों पर नहीं होती। दुनिया के राजाओं के बल की दौड़ लोगों के शरीर तक है। .
प्रसंग:
प्रस्तुत पंक्तियाँ अध्यापक पूर्ण सिंह द्वारा रचित निबन्ध ‘सच्ची वीरता’ से ली गई हैं। इस निबन्ध में लेखक ने सच्ची वीरता की विशेषताओं का वर्णन किया है।
व्याख्या:
लेखक का कथन है कि सात्विक जीवन व्यतीत करने वाले पुरुष ही सच्चे वीर होते हैं। प्रकृति भी सच्चे वीरों की पूजा करती है। आकाश उनके सिर पर बादलों के छाते तानता है। प्रकृति उनके सुन्दर मस्तक पर राज तिलक लगाती है। हमारे लिए असली एवं सच्चे राजा ऐसे ही वीर पुरुष हैं जिनका आचरण पवित्र है। जो लोग हीरे और लाल से जड़े हुए तथा सोने एवं चाँदी के निर्मित सिंहासनों पर बैठते हैं जो गरीब किसानों की मेहनत से कमाई दौलत छीनकर अपने शरीर को पुष्ट करते हैं तथा ऐश्वर्यमय जीवन व्यतीत करते हैं ऐसे शासकों को लोगों ने अपनी मूर्खता से वीर बना रखा है लेखक ने यहां ऐसे लोगों को वीरों की कोटि में नहीं रखा जो दूसरों के बल पर ऐश कर जीवन जीते हैं।
ये ज़री, मखमल एवं गहनों से लदे हुए मांस के पुतले हैं जो अपने कुकर्मों के कारण हमेशा डर से कांपते रहते हैं। ये लोग जनता के हृदयों पर शासन नहीं करते। संसार के राजाओं के बल की पहुँच लोगों के शरीर तक है। सच्चे वीरों के चरित्र में एक अद्भुत आकर्षण होता है जो दूसरों को अपने सद्गुणों के बल पर मोहित कर लेते हैं।
विशेष:
- सच्चे वीर अपनी वीरता से सब का सम्मान प्राप्त करते हैं तथा सबके आकर्षण का केन्द्र बने रहते हैं।
- भाषा तत्सम, तद्भव शब्दों से युक्त तथा शैली भावपूर्ण है।
4. वीरता का विकास नाना प्रकार से होता है। कभी तो उसका विकास लड़ने मरने में, खून बहाने में, तलवारतोप के सामने जान गंवाने में होता है, कभी प्रेम के मैदान में उसका झण्डा खड़ा होता है। कभी साहित्य और संगीत में वीरता खिलती है। कभी जीवन के गूढ़ तत्व और सत्य की तलाश में बुद्ध जैसे राजा विरक्त होकर वीर हो जाते हैं। कभी किसी आदर्श पर और कभी किसी वीरता पर अपना फरहरा लहराती है। परन्तु वीरता एक प्रकार का इलहाम या दैवी प्रेरणा है।
प्रसंग:
प्रस्तुत पंक्तियाँ अध्यापक पूर्ण सिंह द्वारा रचित निबन्ध ‘सच्ची वीरता’ से ली गई हैं। इस निबन्ध में लेखक ने वीरता के व्यापक क्षेत्र का परिचय दिया है।
व्याख्या:
लेखक वीरता के व्यापक क्षेत्र पर प्रकाश डालते हुए कहता है-वीरता का विकास अनेक रूपों में होता है। कभी तो इस वीरता का विकास युद्धभूमि में बलिदान के रूप में, खून बहाने में तथा तलवार-तोप के सामने निडरता से जान की बाज़ी लगा देने में होता है। कभी यह वीरता प्रेम के मैदान में अपना कमाल दिखाती है और इसकी विजय का झण्डा लहराती है।
कभी साहित्य और संगीत के क्षेत्र में इसका चमत्कार देखने को मिलता है। कभी आध्यात्मिक क्षेत्र में विजय प्राप्त करने के लिए बुद्ध जैसे राजा सब कुछ त्यागकर वैरागी बनकर जीवन के गूढ़ रहस्य को सुलझाने तथा सत्य की खोज में अपना जीवन झण्डा लहराती है। आगे लेखक कहता है कि वीरता का गुण सहज नहीं। वास्तव में यह एक दैवी प्रेरणा है।
विशेष:
- इन पंक्तियों में लेखक ने वीरता के विविध क्षेत्रों पर प्रकाश डाला है। वीरता का सम्बन्ध केवल युद्ध से ही नहीं जीवन के अन्य क्षेत्रों में भी इसका प्रभाव देखने को मिलता है।
- भाषा सहज, सरल, भावपूर्ण तथा शैली विचारात्मक है।
5. वीरता देशकाल के अनुसार संसार में जब कभी प्रकट हुई तभी एक नया स्वरूप लेकर आई, जिसके दर्शन करते ही सब लोग चकित हो गए-कुछ न बन पड़ा और वीरता के आगे सिर झुका दिया।
प्रसंग:
प्रस्तुत पंक्तियाँ अध्यापक पूर्ण सिंह द्वारा रचित निबन्ध ‘सच्ची वीरता’ से ली गई हैं। इस निबन्ध में लेखक ने वीरता के व्यापक क्षेत्र का परिचय दिया है।
व्याख्या:
लेखक वीरता के प्रभाव पर प्रकाश डालते हुए कहता है-वीरता परिस्थितियों की आवश्यकता के अनुसार जब कभी प्रकट हुई है तभी एक नया रूप लेकर आई है, जिसे देखकर सब लोग आश्चर्यचकित हो गए। यदि लोगों से उन वीरों की स्तुति में ओर कुछ न बन पड़ा तो श्रद्धा से भरकर उनके आगे सिर झुका दिया।
विशेष:
- इस कथन के माध्यम से लेखक ने स्पष्ट किया है कि वीरता का उदय देश की आवश्यकता के अनुसार होता है। सच्चे वीरों के आगे लोग श्रद्धा से नतमस्तक हो जाते हैं।
- भाषा सहज, सरल, भावपूर्ण तथा शैली विचारात्मक है।
6. वीरों के बनाने के कारखाने कायम नहीं हो सकते। वे देवदार के वृक्षों की तरह जीवन के अरण्य में खुदबखुद पैदा होते हैं और बिना किसी के पानी दिए, बिना किसी के दूध पिलाए, बिना किसी के हाथ लगाए तैयार होते हैं। दुनिया के मैदान में अचानक आकर खड़े हो जाते हैं। उनका सारा जीवन अन्दर ही अन्दर होता है। बाहर तो जवाहरात की खानों की ऊपरी जमीन की तरह कुछ भी दृष्टि में नहीं आता। वीर की ज़िन्दगी मुश्किल से कभी-कभी बाहर नज़र आती है। उसका स्वभाव छिपे रहने का नहीं है।
प्रसंग:
यह गद्यावतरण अध्यापक पूर्ण सिंह द्वारा रचित निबन्ध ‘सच्ची वीरता’ से अवतरित है। इसमें लेखक ने वीरता की विशेषताओं का वर्णन किया है।
व्याख्या:
इन पंक्तियों में अध्यापक पूर्ण सिंह जी ने यह स्पष्ट किया है कि वीरों का उदय बड़े स्वाभाविक रूप से होता है। वीरों के बनाने के कारखाने स्थापित नहीं किए जा सकते। सच्चे वीरों की तुलना देवदार के वृक्षों से की जा सकती है। देवदार के वृक्ष जंगल में स्वयं पैदा होते हैं और बिना किसी के पानी दिए, बिना किसी के हाथ लगाए स्वयं फलते-फूलते हैं। उसी प्रकार वीर पुरुष भी बिना किसी के दूध पिलाए तथा रक्षा किए अपना पथ आप बनाते हैं। वीर का जीवन भीतर ही भीतर पनपता है। वह आडम्बर की भावना से मुक्त होता है।
आवश्यकता पड़ने पर ऐसे वीर अचानक इस दुनिया के मैदान में आकर खड़े हो जाते हैं और अपना चमत्कार दिखाने लगते हैं। उनका सारा जीवन भीतरी गुणों के विकास में तल्लीन रहता है। जैसे खानों की ऊपर की सतह पर कुछ नहीं होता। उनके भीतर ही बहुमूल्य हीरे-जवाहरात छिपे रहते हैं। इसी प्रकार वीर का जीवन भी बाहर कठिनाई से ही दिखाई देता है। उसका स्वभाव तो छिपकर अपने गुणों का विकास करता है।
विशेष:
- सच्चे वीर आत्म-निर्भर होते हैं। वे आडम्बर से दूर रहते हैं। वे आन्तरिक गुणों के विकास पर बल देते हैं।
- भाषा सहज, सरल, प्रवाहपूर्ण तथा शैली विश्लेषणात्मक है।
7. इस वास्ते वीर पुरुष आगे नहीं, पीछे जाते हैं। अन्दर ध्यान करते हैं। मारते नहीं मरते हैं। वीर क्या टीन के बर्तन की तरह झट गरम और झट ठण्डा हो जाता है ? सदियों नीचे आग जलती रहे तो भी शायद ही वीर गरम हो और हज़ारों वर्ष बर्फ उस पर जमती रहे तो भी क्या मजाल जो उसकी वाणी तक ठण्डी हो। उसे खुद गरम और सर्द होने से क्या मतलब ?
प्रसंग:
यह गद्यावतरण द्विवेदीयुगीन प्रसिद्ध लेखक श्री पूर्ण सिंह द्वारा रचित ‘सच्ची वीरता’ शीर्षक निबन्ध से अवतरित हैं। इसमें लेखक ने सच्चे वीर के स्वभाव पर प्रकाश डाला है।
व्याख्या:
धीरे, गम्भीर और स्वतन्त्र प्रकृति के वीरों का स्वभाव संसार के सामान्य पुरुषों से भिन्न होता है। ईश्वरीय प्रेम में निमग्न सच्चे वीर पुरुष बढ़ने की अपेक्षा पीछे हटते हैं अर्थात् वे त्याग और बलिदान के पथ पर बढ़ते हैं। वे अपनी आत्मा को विशाल बनाते हैं। वे योगी की भान्ति आत्मलीन रहते हैं। त्याग की भावना को अपना आदर्श मानने वाले वीर पुरुष किसी को मारते नहीं, बल्कि स्वयं मरते हैं। वीर का स्वभाव टीन के बर्तन की भान्ति नहीं होता, जो शीघ्र ही गर्म अथवा ठण्डा हो जाता है। वह सदा अडिग और गम्भीर रहता है।
उसके नीचे सदियों तक आग जलती रहे तो भी गरम नहीं होता तथा सदियों उसके ऊपर जमा देने वाली बर्फ पड़ती रहे तो भी वह ठण्डा नहीं होता। उसकी वाणी सदियों तक संसार के कानों में गूंजती रहती है अर्थात् उनकी वाणी का प्रभाव सरलता से समाप्त नहीं होता।
विशेष:
- यहां वीर पुरुष के आन्तरिक गुणों का उल्लेख है।
- भाषा सहज, सरल, प्रवाहपूर्ण तथा शैली विश्लेषणात्मक है।
8. प्यारे, अन्दर के केन्द्र की ओर अपनी चाल उल्टो और इस दिखावटी और बनावटी जीवन की चंचलता में अपने आपको न खो दो। वीर नहीं तो वीरों के अनुगामी हो और वीरता के काम नहीं तो धीरे-धीरे अपने अन्दर वीरता के परमाणुओं को जमा करो।
प्रसंग:
प्रस्तुत पंक्तियां अध्यापक पूर्ण सिंह द्वारा लिखित निबन्ध ‘सच्ची वीरता’ से ली गई हैं। इस निबन्ध में लेखक ने सच्चे वीरों का गुणगान किया है। यहां स्पष्ट किया गया है कि सच्चे वीर वही हैं जो आडम्बरपूर्ण जीवन को छोड़ कर मानसिक तथा आत्मिक विकास की ओर ध्यान देते हैं।
व्याख्या:
लेखक वीरता के पथ पर बढ़ने वालों को लक्ष्य कर कहता है कि यदि तुम वीर बनना चाहते हो तो भीतरी गुणों के विकास पर बल दो अर्थात् वीरता का सम्बन्ध मन की दृढ़ता तथा इच्छा शक्ति की प्रबलता से है। आडम्बर पूर्ण एवं बनावटी जीवन की चंचलता में अपना बहुमूल्य जीवन नष्ट न करो। यदि तुम वीर नहीं बन सकते तो वीरों के अनुयायी बन जाओ।
अगर वीरस को प्रकट करने वाले असाधारण काम नहीं कर सकते तो धीरे-धीरे अपने भीतर वीरता के परमाणु इकट्ठे करो। अभिप्राय यह है कि अगर हम वीरता जैसे देवी गुण से वंचित हैं तो दूसरे वीरों के अनुगामी बनकर अपने भीतर वीरता के .गुण जमा कर सकते हैं और इस प्रकार हम भी असाधारण काम करने में असमर्थ हो सकते हैं।
विशेष:
- मन की दृढ़ता से वीरता के गुणों का विकास होता है।
- भाषा तत्सम प्रधान, सरल तथा शैली उद्बोधनात्मक है।
9. टीन के बर्तन का स्वभाव छोड़कर अपने जीवन के केन्द्र में निवास करो और सच्चाई की चट्टानों पर दृढ़ता से खड़े हो जाओ। अपनी ज़िन्दगी किसी और के हवाले करो ताकि ज़िन्दगी को बचाने की कोशिशों में कुछ भी समय व्यर्थ न करो। इसलिए बाहर की सत्ता को छोड़कर जीवन के अन्दर की तहों में घुस जाओ, तब नए रंग खुलेंगे।
प्रसंग:
प्रस्तुत पंक्तियाँ अध्यापक पूर्ण सिंह द्वारा रचित निबन्ध ‘सच्ची वीरता’ से ली गई हैं जिसमें लेखक ने वीरता के विभिन्न पक्षों पर प्रकाश डाला है।
व्याख्या:
लेखक पाठकों को सम्बोधित करते हुए कहता है कि टीन के बर्तन का स्वभाव छोड़कर अपने जीवन के केन्द्र में निवास करो अर्थात् टीन के बर्तन के खोखले एवं आडम्बरपूर्ण स्वभाव को छोड़कर सच्चाई की ठोस चट्टानों पर दृढ़ता के साथ खड़े हो जाओ। अपने जीवन को किसी दूसरे के हित के लिए अर्पित कर देना चाहिए ताकि हम इसे बचाने की कोशिश में अपना थोड़ा-सा समय भी नष्ट न करें।
अत: आवश्यकता इस बात की है कि तुम लोग जीवन के बाहरी अस्तित्व को त्याग कर अन्दर की तहों में वास करो तभी नए रंग खुलेंगे। भाव यह है कि जीवन विकास के लिए मनुष्य को चरित्र बल की आवश्यकता है। चरित्र बल को अर्जित करने के लिए यह आवश्यक है कि मनुष्य अपने भीतर के गुणों का विकास करे।
विशेष:
- यहां वीरों के स्वभावानुसार धीरता, गम्भीरता और दृढ़ता को अपनाने की प्रेरणा दी गई है।
- भाषा सहज, सरल तथा शैली उद्बोधनात्मक है।
10. पेड़ तो ज़मीन से इसे ग्रहण करने में लगा रहता है, उसे ख्याल ही नहीं होता कि मुझमें कितने फल या फूल लगेंगे और कब लगेंगे ?
प्रसंग:
प्रस्तुत पंक्तियाँ अध्यापक पूर्ण सिंह द्वारा रचित निबंध ‘सच्ची वीरता’ में से ली गई हैं जिसमें सच्ची वीरता की विशेषताएं बताई गई हैं।
व्याख्या:
लेखक का कथन है कि किस प्रकार वीर अपनी वीरता का बखान नहीं करते हैं। लेखक पेड़ का उदाहरण देकर समझाता है कि पेड़ सदा धरती से जल रूपी रस ग्रहण कर हरा-भरा बना रहता है। उसे यह कभी विचार नहीं आता कि उस पर कितने फल या फूल लगेंगे तथा कब लगेंगे। उसी प्रकार से वीर भी अपने वीरतापूर्ण कार्य करता रहता है परन्तु उनके विषय में सोचता नहीं है।
विशेष:
सच्चे वीर प्रचार-प्रसार से दूर रहते हुए नि:स्वार्थ भाव से अपना कार्य करते रहते हैं।
11. सच है, सच्चे वीरों की नींद आसानी से नहीं खुलती। वे सत्वगुण के क्षीर समुद्र में ऐसे डूबे रहते हैं कि उनको दुनिया की खबर नहीं रहती।
प्रसंग:
प्रस्तुत पंक्तियाँ अध्यापक पूर्ण सिंह द्वारा रचित निबन्ध ‘सच्ची वीरता’ से ली गई हैं जिसमें लेखक ने सच्चे वीरों के गुणों का वर्णन किया है।
व्याख्या:
लेखक कहता है कि सच्चे वीर निश्चित भाव से सोते हैं। यह सत्य है कि सच्चे वीरों की नींद भी आसानी से नहीं खुलती क्योंकि उनका अंत: करण सदा निर्मल होता है। वे सोते समय अपने सत्वगुण रूपी क्षीर-सागर में ऐसे डूब जाते हैं कि उन्हें दीन-दुनिया की कोई खबर नहीं रहती। उनकी नींद भी उन्हीं की तरह मस्ती से भरी होती है, जो आसानी से नहीं टूटती है।
विशेष:
सच्चे वीर गहरी नींद में चिंतामुक्त होकर सोते हैं।
कठिन शब्दों के अर्थ
स्थिर = एक जगह ठहरा हुआ। अचल = न हिलने वाला। अन्तः करण = हृदय। निमग्न = लीन। अगम्य = जहाँ न पहुँचा जा सके, कठिन। हुकूमत = शासन। तिरस्कार = अपमान। सत्कार = आवभगत, आदर। विरक्त = उदास। फरहरा = झण्डा। दैवी = ईश्वरीय। संकल्प = दृढ़ निश्चय। अरण्य = जंगल, वन। कंदरा = गुफ़ा, गार। स्तुति = प्रशंसा। बुज़दिली = कायरता। फिजूल = व्यर्थ । मरकज = केन्द्र। शांहशाह-ए-हकीकी = वास्तविक राजा, ईश्वर । सल्तनत = राज्य। मिज़ाज = स्वभाव। खयालात = विचार। निखट्ट = जो कोई काम न करे। दुर्भिक्ष = अकाल। एक दफा = एक बार। इत्तिफाक = संयोग। धनाढ्य = अमीर। बग़ावत = विद्रोह। सब्ज = हरे। वर्कों = पृष्ठों। दरिद्र = गरीब। अनुगामी = पीछे चलने वाला। चिरस्थायी = देर तक रहने वाला। जाया = नष्ट।
सच्ची वीरता Summary
सच्ची वीरता जीवन परिचय
अध्यापक पूर्ण सिंह का संक्षिप्त जीवन-परिचय लिखें।
अध्यापक पूर्ण सिंह का जन्म सन् 1881 ई० में तथा मृत्यु सन् 1931 में हुई। अध्यापक होने के नाते इनके नाम के साथ अध्यापक शब्द जुड़ गया है। ‘आचरण की सभ्यता’, ‘मज़दूरी और प्रेम’, ‘सच्ची वीरता’ और ‘नयनों की गंगा’ इनके प्रसिद्ध निबन्ध हैं। इनके निबन्धों का आधार मानवीय दृष्टि एवं आध्यात्मिक चेतना है। पूर्ण सिंह ऐसे संवेदनशील व्यक्ति थे जो औद्योगिक क्रान्ति की अपेक्षा मानव के आचरण की पवित्रता को अधिक महत्त्व देते थे। इन्होंने अपने निबन्धों को दृष्टान्तों के माध्यम से सरल और रोचक बनाने का प्रयास किया। इनकी भाषा प्रवाहमयी तथा लाक्षणिक शब्दावली से युक्त है।
सच्ची वीरता निबन्ध का सार
‘सच्ची वीरता’ निबन्ध के रचयिता अध्यापक पूर्ण सिंह जी हैं। यह उनका एक विचारात्मक निबन्ध है जिसमें लेखक ने यह सिद्ध करने का प्रयत्न किया है कि वीरता मनुष्य का सर्वश्रेष्ठ गुण है। इसका क्षेत्र अत्यन्त व्यापक है। रणक्षेत्र में अपना बलिदान देने वाले योद्धा ही वीरों की कोटि में नहीं आते वरन् किसी पवित्र ध्येय, आदर्श और कार्य के लिए अपना जीवन होम कर देने वाले व्यक्ति भी सच्चे वीर हैं, वीरों के कार्यों की गूंज शताब्दियों तक गूंजती रहती है। वीरों का निर्माण किसी बाहरी प्रेरणा से नहीं होता, वे तो अपनी आन्तरिक प्रेरणा से ही सत्कार्यों में लीन होते हैं। मानवता की रक्षा के लिए अपना सर्वस्व अर्पित कर देने वाले सब से बड़े वीर हैं।।
सच्चे वीर पुरुष स्वभाव से धीर, वीर, गंभीर एवं स्वतंत्र होते हैं। उनके मन की गम्भीरता सागर के समान विशाल एवं गहरी अथवा आकाश के सामान स्थिर होती है। उनके कार्य दूसरों को प्रेरणा देते हैं। जिनका मन सात्विक वृत्तियों के सागर में डूब जाता है वे ही सच्चे वीर, महात्मा एवं साधु कहलाते हैं। उनका व्यक्तित्व दिव्य होता है। प्रकृति भी सच्चे वीरों की पूजा करती है। सच्चे वीर ही असली राजा हैं, सोने के सिंहासनों पर बैठने वाले लोग असली शासक नहीं क्योंकि वे तो निर्धनों का शोषण कर महान् बने हैं। वे अपने पापों के कारण हमेशा कांपते रहते हैं। लेखक के कहने का भाव यह है कि सरलता तथा साधुता के पथ पर चलने वाले लोग ही सच्चे वीर कहलाने के अधिकारी हैं।
सच्चे वीरों को कोई पराजित नहीं कर सकता। वे बड़े-बड़े बादशाहों को भी ताकत की हद दिखला देते हैं। बादशाह शरीर पर शासन करता है जबकि वीर व्यक्ति अपने कारनामों से लोगों के दिलों पर शासन करते हैं। सच्चा वीर अपने जीवन का उत्सर्ग करने में विलम्ब नहीं करता।
वीर पुरुष हर समय अपने आपको महान् बनाने में लीन रहता है। वह न तो अपने कारनामों का गुणगान करता है और न ही उन्हें याद रखता है। वह तो उस वृक्ष के समान होता है.जो पृथ्वी से रस लेकर अपने आपको पुष्ट करता है। वह इस बात की चिन्ता नहीं करता कि उस पर फल कब लगेंगे और कौन उनको खाएगा। उसका लक्ष्य तो अपने अन्दर सत्य को कूट-कूट-कूट कर भरना है। सच्चे वीरों का जीवन परोपकार के लिए होता है। वीरता का विकास विभिन्न क्षेत्रों में होता है। कभी युद्ध के मैदान में, कभी प्रेम के क्षेत्र में वीरता अपना कमाल दिखाती है और कभी जीवन के किसी गूढ़ तत्व एवं सत्य की खोज में बुद्ध जैसे राजा ऐश्वर्य का परित्याग कर आगे बढ़ते हैं।
वीरता एक प्रकार का दैवी गुण है, वीरता की नकल सम्भव नहीं। जापानी वीरता की मूर्ति की पूजा करते हैं। वीर पुरुष अपने समाज का प्रतिनिधि होता है। उसका मन सब का मम तथा उसके विचार सबके विचार बन जाते हैं। लेखक ने स्पष्ट किया है कि वीर बनाने से नहीं बनते। ये तो अपनी अन्तः प्रेरणा से अपना निर्माण आप करते हैं। “वे तो देवदार के वृक्षों की तरह जीवन के अरण्य में अपने-आप पैदा होते हैं और बिना किसी के पानी दिए, बिना किसी के दूध पिलाए, बिना किसी के हाथ लगाए तैयार होते हैं।”
सच्चे वीर आत्मोत्सर्ग में विश्वास करते हैं। वे अपने अन्दर की शक्ति के विकास में लीन रहते हैं। वीर पुरुष स्वभाव से धीरे एवं गम्भीर होते हैं। वे न तो जल्दी चंचल बनते हैं और न ही उनके साहस एवं ओज को शीघ्र दबाया जा सकता है। आगे लेखक कहता है कि वीरों को आडम्बर अथवा दिखावे का आश्रय नहीं लेना चाहिए। अपने भीतर ही भीतर वीरत्व को संजोना चाहिए और समय आने पर उसे प्रकट करना चाहिए।
अन्त में लेखक कहता है कि जब कभी हम वीरों की कहानियां सुनते हैं तो हमारे अन्दर भी वीरता की लहरें उठती हैं लेकिन वे चिरस्थायी नहीं होतीं। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि जिस धैर्य एवं साहस की आवश्यकता होती है उसका प्रायः हमारे हृदय में अभाव होता है। इसलिए हम वीरता की कल्पना करके रह जाते हैं। टीन जैसे बर्तन का स्वभाव छोड़कर हमें अपने भीतर निवास करना चाहिए। अपने जीवन को दूसरे के लिए अर्पित कर देना चाहिए ताकि इसकी रक्षा की चिन्ता से मुक्त हो जाए। सच्चा वीर बनने के लिए यह आवश्यक है कि अपने भीतर के गुणों का विकास किया जाए।