PSEB 11th Class Hindi संप्रेषण कौशल पंजाबी वाक्यों का हिन्दी में अनुवाद

Punjab State Board PSEB 11th Class Hindi Book Solutions Hindi संप्रेषण कौशल पंजाबी वाक्यों का हिन्दी में अनुवाद Questions and Answers, Notes.

PSEB 11th Class Hindi संप्रेषण कौशल पंजाबी वाक्यों का हिन्दी में अनुवाद

(क) पंजाबी वाक्यों का हिन्दी में अनुवाद

1. विधा वठवे प्टिम हुँ तथउ मशिना नाहे ।
कृपया इसे गोपनीय समझिए।

2. उवमा लप्टी येत चै ।
आदेश के लिए प्रस्तुत है।

3. ‘उठ मिलर टी मरठा उन ठिी ताप्टी चै।
पत्र मिलने की सूचना भेज दी गई है।

4. ਵਿਚਾਰਾਧੀਨ ਪੱਤਰ ਮਿਲਣ ਦੀ ਸੂਚਨਾ ਨਹੀਂ ਭੇਜੀ ਗਈ ਹੈ ।
विचाराधीन पत्र की प्राप्ति की सूचना नहीं भेजी गई है।

5. उठ रा भमरा भठत्नुठी लप्टी येन चै ।
उत्तर का मसौदा अनुमोदन के लिए प्रस्तुत है।

6. सतुती वाढहाप्टी वत रिंडी ताप्टी चै ।
ज़रूरी कार्यवाही कर दी गई है।

7. लेडीरे वातास पॅउठ ठेठां उँधे उठ ।
अपेक्षित कागज़-पत्र नीचे रखे हैं।

8. साली मृतठा टी हिडीव वठे ।
अगली सूचना की प्रतीक्षा करें।

9. ਮਸੌਦਾ ਸੋਧੇ ਰੂਪ ਵਿਚ ਮਨਜ਼ੂਰ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।
मसौदा संशोधित रूप में अनुमोदित किया जाता है।

10. विठया वठवे पवे उपाधत वीडे ताठ |
कृपया पूरे हस्ताक्षर किए जाएँ।

11. मत्ती ठामठत व ठिी नाहे ।
आवेदन अस्वीकार कर दिया जाए।

12. सती पट व लिभा साहे ।
ज़रूरी संशोधन कर लिया जाए।

13. यमाह मापले-भाध रिस मसट चै ।
प्रस्ताव अपने-आप में स्पष्ट है।

14. Yध भिमप्ल रे हायम माहट सी हडीव वीठी साहे ।
मुख्य मिसल के वापस आने की प्रतीक्षा की जाए।

15. रेव वे पंठहार मउिउ हाधित वीउ सांरा चै ।
देखकर सधन्यवाद वापस किया जाता है।

16. माठ वेष्टी टिपटी ठगीं वठठी ।
हमें कोई टिप्पणी नहीं करनी है।

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17. हेठी MAHIGव उतिभा साहे ।
तुरन्त अनुस्मारक भेजिए।

18. भाप्ली वैठव हित हिसाठ वठ लिभा साठा |
आगामी बैठक में विचार कर लिया जाएगा।

19. पित रे मुशाहां रे भायात उ भर्मेरा उिभात वीउ साहे ।
ऊपर के सुझावों के आधार पर उत्तर का मसौदा तैयार कीजिए।

20. माते मयिउ प्लेव टिम लु विभाठ ठाल ठेट व लैट ।
सभी सम्बन्धित लोग इसे ध्यान से नोट कर लें।

21. वितधा वठवे पिहला मढ़ा रेवे ।
कृपया पिछला पृष्ठ देखें।

22. भलीभां भंगीनां नाल ।
प्रार्थना पत्र माँगे जाएँ।

23. यमामठिव भठसठी उपमिल वीठी नाहे ।
प्रशासनिक मान्यता प्राप्त की जाए।

24. ਵਿਭਾਗ ਵਲੋਂ ਕਾਰਵਾਈ ਕੀਤੀ ਜਾ ਰਹੀ ਹੈ ।
विभागीय कार्यवाही की जा रही है।

25. सहाव भगिना माहे |
जवाब तलब किया जाए।

26. भाभले डे ठहें मिते 3 हिसाठ वठठा चै ।
मामले पर नए सिरे से विचार करना है।

27. सांस वीडी डे मी पाटिमा |
जाँच की और सही पाया।

28. पिहले वातास ठाप्ल प्लाठि ।
पिछले कागज़ साथ लगाएं।

29. हिलाता हूँ टिम रे ममात मुनिउ वत ठिा साहेठाा |
विभाग को तदनुसार सूचित कर दिया जाएगा।

30. उनाडा पॅउठ टिम सहउठ हिर पुग्धउ ठगीं सायरा |
आपका पत्र इस कार्यालय में प्राप्त हुआ नहीं जान पड़ता।

31. ਦੱਸੋ ਕਿ ਤੁਹਾਡੇ ਖਿਲਾਫ਼ ਅਨੁਸ਼ਾਸਨਾਤਮਿਕ ਕਾਰਵਾਈ ਕਿਉਂ ਨਾ ਕੀਤੀ ਜਾਵੇ ?
बताएं कि आपके विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्यवाही क्यों न की जाए?

32. डोटी ठियेतट टी हडीव ।
आगे की रिपोर्ट की प्रतीक्षा है।

33. ਜੇਕਰ ਤੁਸੀ ਸਹਿਮਤ ਹੋ ਤਾਂ ਕਾਗਜ਼ ਫਾਇਲ ਕਰ ਦਿੱਤੇ ਜਾਣ ।
यदि आप सहमत हों तो कागज़ फाईल कर दिए जाएँ।

34. भैलु टिम भाभले हि वेप्टी ग्रािष्टिउ ठगीं मिली चै ।
मुझे इस मामले में कोई हिदायत नहीं मिली है।

35. मठापठाउभिव गहाप्टी वीठी सा पवटी चै ।
अनुशासनात्मक कार्यवाही की जा सकती है।

36. मधेप टिपटी चेठां येस वै ।।
संक्षिप्त टिप्पणी नीचे प्रस्तुत है।

37. सि वि धूमउगह वीउ निभा चै, प्टिहें वाराहाटी वीठी माहे ।
यथा प्रस्तावित कार्यवाही की जाए।

38. वैठव रा टेनडा घेत चै ।
बैठक की कार्य सूची प्रस्तुत है।

39. मेपिसा ऐष्टिमा उठाइट रेवट हामडे येत चै ।
संशोधित प्रारूप अवलोकनार्थ प्रस्तुत है।

40. भांसी पालठा वीडी माहे ।
आदेशों का पालन किया जाए।

41. वाधी लॅपी चै ।
प्रतिलिपि संलग्न है।

42. भाभले हरा भने डैमप्ला ठा वीउ साहे ।
मामले को अभी निर्णय न किया जाए।

43. ਮੈਂ ਇਸ ਪ੍ਰਸਤਾਵ ਦੇ ਨਾਲ ਆਪਣੀ ਸਹਿਮਤੀ ਪ੍ਰਗਟ ਕਰਦਾ ਹਾਂ ।
मैं इस प्रस्ताव से अपनी सहमति प्रकट करता हूँ।

44. माटवाठी रे लप्टी घेत वै ।
सूचना के लिए प्रस्तुत है।

45. विठया वठवे मामले टी मधेधिवा उिभात वीठी नाहे ।
कृपया मामले की संक्षेपिका तैयार कीजिए।

46. Yध मिसल डे मला वेट उँव व सॅधी ताहे ।
मुख्य मिसल पर निर्णय होने तक इसे रोके रखिए।

47. भाभले 3 घेत वठठे हि चेप्टी रेत लप्टी धेर नै ।
मामले को प्रस्तुत करने में हुई देरी के लिए खेद है।

48. भंगी ताप्टी मसठउ हुँटी रे रिडी साहे ।
माँगी गई आकस्मिक छुट्टी दे दी जाए।

49. नांच पुठी वीठी साहे बडे ठिठट हेठी घेत वीठी माहे ।
जाँच पूरी की जाए और रिपोर्ट जल्दी प्रस्तुत की जाए।

50. उठाइट Tठ साठी वठ ठिा साहे ।
प्रारूप अब जारी कर दिया जाए।

51. सवल से महिला टी ठा रेमठी ठगी चै ठा सुप्मभटी ।
अक्ल के अंधों की न दोस्ती अच्छी न ही दुश्मनी।

52. उठ उठ ठ विडे ही ठीं टिंव मवरे ।
आलसी नौकर कहीं भी नहीं टिक सकते।

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53. ਸ਼ਾਇਦ ਔਰਤਾਂ ਨੂੰ ਚਿੜਾਉਣ ਲਈ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਕਿ ਇਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਗੁੱਤ ਪਿੱਛੇ ਮੱਤ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ।
शायद औरतों को चिढ़ाने के लिए कहा जाता है कि उनकी चोटी के पीछे अक्ल होती है।

54. ਜੁਬਾਨੀ ਜਮਾ ਖਰਚ ਕਰਨ ਦੀ ਥਾਂ ਅਮਲੀ ਕੰਮ ਕਰਨਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ ।
जबानी जमा खर्च करने के स्थान पर अमली कार्य करना चाहिए।

55. ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਵੰਡ ਛਕਣ ਅਤੇ ਦਸਾਂ ਨੌਹਾਂ ਦੀ ਕਮਾਈ ਕਰਨ ਦੀ ਸਿੱਖਿਆ ਦਿੱਤੀ ।
गुरु नानक देव जी ने बाँट कर खाने और दसों नाखूनों द्वारा कर्म करने की शिक्षा दी।

56. मॉन-वल्ल रे लीडठ ढमली घटेठे उठ ।
आज कल के लीडर फसली बटेरे हैं।

57. विमे Hठीढ भाटभी उल वे ही हुँताप्ल ठगीं वठठी नागीटी ।
किसी सज्जन पुरुष पर भूलकर भी उँगली नहीं उठानी चाहिए।

58. ਇਕ ਮੁੱਠ ਹੋ ਕੇ ਹੀ ਵੈਰੀ ਨੂੰ ਹਰਾਇਆ ਜਾ ਸਕਦਾ ਹੈ ।
एक होकर ही शत्रु को पराजित किया जा सकता है।

59. पी रे हिभाउ रे घन हमें हमरा उँप उता ने निभा |
बेटी की शादी के खर्च के कारण उसका हाथ तंग हो गया।

60. ਉਸਨੇ ਆਪਣੀਆਂ ਕਾਲੀਆਂ ਕਰਤੂਤਾਂ ਕਾਰਨ ਆਪਣੇ ਖਾਨਦਾਨ ਦੇ ਸਿਰ ਖੇਹ ਪੁਆਈ ਹੈ ।
उसने अपनी काली करतूतों के द्वारा अपने खानदान की बदनामी करवाई है।

61. मैं प्टिंधे माहिट लप्टी विप्लवल आप्त ठगी गं ।
मैं यहाँ आने के लिए कदापि खुश नहीं हूँ।

62. हमरा पॅउठ पडाप्टी हॅप्ल पिभाठ ठगी रिंग चै ।
उसका बेटा पढ़ाई की तरफ ध्यान नहीं देता।

63. ਜਦੋਂ ਉਸਨੇ ਸੋਹਣ ਕੋਲੋਂ ਕਿਤਾਬ ਉਧਾਰੀ ਮੰਗੀ, ਤਾਂ ਉਸਨੇ ਟਕੇ ਵਰਗਾ ਜਵਾਬ ਦੇ ਦਿੱਤਾ।
जब उसने सोहन से पुस्तक उधार माँगी तो उसने टका सा जवाब दे दिया।

64. ਬੰਦਾ ਬਹਾਦਰ ਨੇ ਵਜ਼ੀਰ ਖਾਂ ਨੂੰ ਮੌਤ ਦੇ ਘਾਟ ਉਤਾਰ ਦਿੱਤਾ ।
बन्दा बहादुर ने वज़ीर खाँ को मौत के घाट उतार दिया।

65. ਮੈਂ ਹੱਥਲਾ ਕੰਮ ਮੁਕਾ ਕੇ ਹੀ ਦਸ ਸਕਾਗਾ ।
मैं हाथ का काम समाप्त करके ही बता पाऊँगा।

66. विमे सी तातीधी सी प्ल3 3 मार्ट सॅव ठगी उहिला नग्गी
किसी की ग़रीबी की हालत पर हमें नाक नहीं चिढ़ाना चाहिए।

67. ऑन मैं पजु-पड वे ऑव ठिाना |
आज मैं पढ़-पढ़ कर उकता गया।

68. वी धेडरे हमरे पैठ डे मॅट लॅगी ।
हॉकी खेलते समय उसके पैर पर चोट लगी।

69. भेठी ठॉल मठ वे म उन पप्टे ।
मेरी बात सुनकर सब हंस पड़े।

70. वॅचा भाटभी टिउवात जैता ठगी गुटा ।
कच्चा व्यक्ति विश्वास के योग्य नहीं होता।

71. भेठी पड़ी ठीव हवउ रिटी नै ।
मेरी घड़ी ठीक समय देती है।

72. पसउव रा हाधा हपीना उठा साठीरा चै ।
प्रत्येक पुस्तक की छपाई बढ़िया होनी चाहिए।

73. ३ वाठठ पॅच ठगी ठिवप्ली ।।
बदली छाई होने के कारण धूप नहीं निकली।

74. रत-रत टॅवठां भाठ रा वी प्ला ?
जगह-जगह ठोकरें खाने का क्या लाभ?

75. विधा वठवे पिढप्लीमा टिपटीमा रेध लहि ।
कृपया पिछली टिप्पणियाँ देख लें।

76. प्टिम भाभप्ले हुँडे भने वैप्टी डैमप्ला ठगी गेप्टिमा ।
इस मामले पर अभी तक कोई निर्णय नहीं हुआ है।

77. विधा वतवे माविमा हुँ रिवा वे हटिल वत रिँडा माहे ।
कृपया सभी को दिखा कर फाइल कर दीजिए।

78. प्टिस बिड हित माडा प म उ स वै ।
इस गांव में हमारा घर सबसे ऊंचा है।

79. वेठे उ €उत वे ठॉल वते ।
छत से उतर कर बात करो।

80. मॉन मैं पड-पज वे व ठिामा ।
आज मैं पढ़-लिख कर ऊब गया।

81. ਪਿਸ਼ਨ ਤੇ ਜਾ ਰਹੇ ਅਧਿਆਪਕ ਨੂੰ ਵਿਦਿਆਰਥੀਆਂ ਨੇ ਹਾਰ ਪਾਏ ।
पैंशन पर जा रहे अध्यापक को विद्यार्थियों ने हार पहनाए।

82. भेठा रिष्ठ वॅचा चे ठिा चै ।
मेरा दिल कच्चा हो रहा है।

83. ममी भविभाठां टी वध धाउठ वीडी ।
हमने मेहमानों की खूब आवभगत की।

84. रख-रत टॅवतां माठ रा वी ला ?
दर-दर ठोकरें खाने का क्या लाभ? ।

85. ਇਸ ਸੂਟ ਨਾਲ ਦਾ ਸਵੈਟਰ ਕਿੱਥੇ ਹੈ ?
इस सूट के साथ का स्वैटर कहां है?

86. Jउठ टा &उठ रेह टी विधा वठठी ।
पत्र का उत्तर देने की कृपा करें।

87. हा मुल्य चै ।
वह ऊँचा सुनता है।

88. उप रा प्टिव तोप्ला ही घडी उपाठी वत रिट चै ।
तोप का एक गोला भी बड़ी तबाही कर देता है।

89. उनी पड़ी-पझी भै? उठा ठा वते ।
आप घड़ी-घड़ी मुझे तंग न करें।

90. भेठी ठॉल मुह वे म उन पप्टे ।
मेरी बात सुनकर सब हँस पड़े।

91. प्टिम डेल हिस से भट माटा पै सवरा चै ।
इस डोल में दो मन आटा पड़ सकता है।

92. ताल भेता पॅवा मिउठ चै ।।
राज मेरा पक्का मित्र है।

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93. ਉਸਦੇ ਨਾਲ ਮੇਰੀ ਬਣਦੀ ਨਹੀਂ ।
उससे मेरी बनती नहीं।

94. THठ रमही पेटी हिरिभातवी चै ।
रमन दसवीं श्रेणी का विद्यार्थी है।

95. मैं वल्ल प्लिी ताहांठा ।
मैं कल दिल्ली जाऊंगा।

96. मप्लीम भापटी पाउर पइसा चै ।
सलीम अपनी पुस्तक पढ़ता है।

97. तातपीउ उभेमा पग्लेि ठप्पत उ माठिटी चै ।
गुरप्रीत हमेशा पहले नम्बर पर आती है।

98. मग्राम सभा उठाहां हि मतमाताठ म उ पनिय वै ।
सूरदास की रचनाओं में सूरसागर सबसे प्रसिद्ध है।

99. उनी विपशीलां-विग्मीमा धेडां वेडरे ने ।
आप कौन-कौन से खेल खेलते हो।

100. संडीला हित हॅडीमा-हॅडीमा टिभाठ ठ ।
चण्डीगढ़ में बड़ी-बड़ी इमारतें हैं।

101. भेठा हॅहा उठा हवील चै ।
मेरा बड़ा भाई वकील है।

102. तेरिउ मेघ वांरा चै ।
रोहित सेब खाता है।

103. वल्लु माडे मप्ठ हिउ धेडां उष्टीला मठ ।
कल हमारे स्कूल में खेलें हुई थीं।

104. ਐਤਵਾਰ ਨੂੰ ਸਾਡੇ ਸਕੂਲ ਦਾ ਸਾਲਾਨਾ ਇਨਾਮ ਵੰਡ ਸਮਾਰੋਹ ਹੋਵੇਗਾ ।
रविवार को हमारे स्कूल का वार्षिक पुरस्कार वितरण समारोह होगा।

105. मायले रेस टी धिभा लप्टी वष्टी मैतिव मीर प्टेि ।
अपने देश की रक्षा के लिए अनेक सैनिक शहीद हुए।

106. ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੇ ਆਪਣੇ ਨੂੰ ਚੇਲਿਆਂ ਨੂੰ ਅਸਤਰ-ਸ਼ਸਤਰ ਚਲਾਉਣ ਦੀ ਸਿੱਖਿਆ ਦਿੱਤੀ ।
गुरु जी ने अपने शिष्यों को अस्त्र-शस्त्र चलाने की शिक्षा दी।

107. साथटे मारा-पिता सी मागिभा रा पालठ वठे ।
अपने माता-पिता की आज्ञा का पालना करो।

108. प्टीतहत है उभेला जार उँधे ।
ईश्वर को सदा याद रखो।

109. प्टेवा हि वल चै ।
एकता में बल है।

110. मन BOHP रा पध मठेउ चै ।
सूर्य ऊर्जा का प्रमुख स्रोत है।

111. माडे पत मउिभाठ भाप्टे चेप्टे उठ ।
हमारे घर मेहमान आए हुए हैं।

112. धूिपही मुतन रे भाप्ले-सभाले नटी चै ।
पृथ्वी सूर्य के इर्द-गिर्द घूमती है।

113. मी ताठ ठोधिर मिप नी ते 1699 प्टीः हि धालमा धंघ ती मिठसठा वीठी मी ।
श्री गुरु गोबिन्द सिंह जी ने 1699 ई० में खालसा पंथ का सृजन किया था।

114. तान रेह ती निधा रे नहें ताठ मत |
गुरु अर्जन देव जी सिक्खों के पाँचवें गुरु थे।

115. ਸਾਡੇ ਮੁੱਖ ਅਧਿਆਪਕ ਗ਼ਰੀਬ ਬੱਚਿਆਂ ਨੂੰ ਮੁਫ਼ਤ ਪੜਾਉਂਦੇ ਹਨ ।
हमारे मुख्य अध्यापक ग़रीब बच्चों को मुफ्त पढ़ाते हैं।

116. सेठ ठगल रा ।
शेर जंगल का राजा है।

117, ਅੱਜ ਦੇ ਵਿਗਿਆਨਕ ਸਭਿਅਤਾ ਵਿਚ ਮਨੁੱਖੀ ਭਾਵਨਾਵਾਂ ਦਾ ਲੋਪ ਹੁੰਦਾ ਜਾ ਰਿਹਾ ਹੈ ।
आज की वैज्ञानिक सभ्यता में मानवीय मूल्यों का ह्रास होता जा रहा है।

118. पठभाउभा डे हिप्सहात , हर मउ रा महाभी चै ।
ईश्वर पर विश्वास रखो वह सबका स्वामी है।

119. विठी रे टेचे ताठात हिल माठात लप्टी पमिय उठ ।
बिहारी के दोहे गागर में सागर के लिए प्रसिद्ध हैं।

120. भिउठठी हिवठी उमेमां महल ने सांरा चै ।
परिश्रमी व्यक्ति हमेशा सफ़ल हो जाता है।

121. ठो ठाल भेठे भठ ? मांडी ठगीं टी, मों पिढें मानांठी उगंध हांना भेटी चै ।
नशे से मेरे मन को शान्ति नहीं होती, बल्कि बाद में अशांति की तरह मचती है।

122. ਕੁਝ ਚਿਰ ਲਈ ਸੋਚ ਸ਼ਕਤੀ ਜਾਂਦੀ ਰਹਿੰਦੀ ਹੈ ਅਤੇ ਮਨੁੱਖ ਸਮਝਦਾ ਹੈ ਕਿ ਮਨ ਟਿਕ ਰਿਹਾ ਹੈ ।
कुछ समय पश्चात् सोच शक्ति जाती रहती है और मनुष्य समझता है कि मन टिक रहा है।

123. निम्मत रा भी मीठा टी वहिउा रा मध हिमा चै ।
कृष्ण का प्रेम ही मीरा की कविता का मुख्य विषय है।

124. मुतराम सीमा तसताहां हिन मुमाठाठ म उ पनिय चै ।
सूरदास की रचनाओं में सूरसागर सबसे प्रसिद्ध है।

125. भेता उता रिंली ना विग चै ।
मेरा भाई दिल्ली जा रहा है।

126. भाठा-पिठा हुँ माघटे पॅसिमां सा पिसाठ वटा सागीरा चै ।
माता-पिता को अपने बच्चों का ध्यान रखना चाहिए।

127. भिउठउ वठे, विडे टिम उता ठा हे उमी हेल ने ताहे ।
परिश्रम करो, कहीं ऐसा न हो कि आप फेल हो जाओ।

128. मॅसे घटतां टी ठीर सप्लटी ठगी धप्लटी ।
सच्चे वीरों की नींद आसानी से नहीं खुलती।

129. ठ ठोविट मिध्य ती ठे ‘वालमा यंच’ सी मिलनठा वीठी मी ।
गुरु गोबिन्द सिंह जी ने ‘खालसा पंथ’ का निर्माण किया था।

130. माडे मभान हिट उर पडे अउर रेटें उठ ।
हमारे समाज में भेद और अभेद दोनों हैं।

131. ‘] गूप माउिघ’ दिस रप्टी तुलां टी घाटी मुविभाउ चै ।
‘गुरु ग्रन्थ साहिब’ में कई गुरुओं की वाणी सुरक्षित है।

132. ਉਹੀ ਵਿਅਕਤੀ ਸਭ ਦੀ ਸੇਵਾ ਕਰ ਸਕਦਾ ਹੈ ਜਿਹੜਾ ਪੂਰੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਸਵਾਰਥ ਤੋਂ ਰਹਿਤ ਹੋਵੇ ।
वही व्यक्ति सबकी सेवा कर सकता है जो पूर्णतः निःस्वार्थी हो।

133. ५ दिन हिमाम उँधे ।
प्रभु में विश्वास रखो।

134. बैंमत प्टिव उिभाठव ठेठा चै ।
कैंसर एक भयानक रोग है।

135. डीठाइ उिठ तासां सी तालयाठी वै ।
चण्डीगढ़ तीन राज्यों की राजधानी है।

136. Hधरेट वत्सयत 3 ठी दि३ मा रे मठ |
सुखदेव बचपन से ही दृढ़ स्वभाव के थे।

137. दितिाभाधत वाला उनी ठाल हुँठठी व ती चै ।
विज्ञापन कला तेज़ी से उन्नति कर रही है।

138. पिठां वर वीडे मनवाट विमे रे पिढे ठगी पैटी ।
बिना कुछ किए सरकार किसी के पीछे नहीं पड़ती।

139. वडी भां €जी महाल हित लेठी ठाा ती पी ।
बूढ़ी मां ऊंचे स्वर में लोरी गा रही थी।

140, ਪੰਜਾਬੀ ਸਭਿਆਚਾਰ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਭੂਗੋਲਿਕ ਖੇਤਰ ਦੀ ਪੈਦਾਵਾਰ ਹੈ ।
पंजाबी सभ्यता पंजाब के भौगोलिक क्षेत्र की उत्पत्ति है।

141. ताव ी गोलिव उरटी लगाउात वरप्लटी सांटी नै ।
पंजाब की भौगोलिक सीमा निरन्तर बदलती जा रही है।

142. ਪੰਜਾਬੀ ਭਾਸ਼ਾ ਪੱਖੋਂ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਇਲਾਕੇ ਅਜੋਕੇ ਪੰਜਾਬ ਤੋਂ ਹੀ ਬਾਹਰ ਹਨ ।
पंजाबी भाषा के बहुत से क्षेत्र आज के पंजाब से ही बाहर हैं।

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143. ताव ममल हित हिडिंठ ठसप्लां, साठां पठन सी ममेल भी चै ।
पंजाब वास्तव में विभिन्न नस्लों, जातियों, धर्मों की मिली-जुली भूमि है।

144. ਉਪਜਾਊ ਭੂਮੀ ਕਾਰਨ ਭੁੱਖੇ ਮਰਨਾ ਪੰਜਾਬੀਆਂ ਦੇ ਹਿੱਸੇ ਨਹੀਂ ਆਇਆ ।
उपजाऊ भूमि के कारण भूखे मरना पंजाबियों के हिस्से नहीं आया।

145. ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਨੇ ਪੰਜਾਬੀਆਂ ਨੂੰ ਬੜੇ ਖੋਫਨਾਕ ਸਬਕ ਸਿਖਾਏ ਹਨ ।
जिन्दगी ने पंजाबियों को बड़े खौफनाक सबक सिखाए हैं।

146. ताप्पीभां रे ठाप्टिव उठ-लेगी, जेया रे मातर |
पंजाबियों के नायक हैं-जोगी, योद्धा और आशिक।

147. ਪੰਜਾਬੀ ਸੱਭਿਆਚਾਰ ਵਿੱਚ ਪਿਛਲੀ ਇੱਕ ਸਦੀ ਤੋਂ ਬਹੁਤ ਤੇਜ਼ੀ ਨਾਲ ਪਰਿਵਰਤਨ ਵਾਪਰੇ ਹਨ ।
पंजाबी सभ्यता में पिछली एक सदी से बहुत तेजी से परिवर्तन हुए हैं।

148, ਰਹਿਣ-ਸਹਿਣ ਸ਼ਾਂਤ ਪਾਣੀ ਵਾਂਗ ਠਹਿਰਿਆਂ ਹੋਇਆ ਸੰਕਲਪ ਨਹੀਂ, ਸਗੋਂ ਇਕ ਗਤੀਸ਼ੀਲ ਨਿਰੰਤਰ ਬਦਲਦਾ मवलप चै ।
रहन-सहन शान्त पानी की तरह ठहरा हुआ संकल्प नहीं अपितु एक गतिशील निरन्तर बदलता संकल्प है।

149. विठ-मग्टि रे पाठी मामउठ हांठा ममें टी Hउठत ‘डे चाप्लां सॅलरा चै ।
रहन-सहन दो धारी हथियार की तरह समय की शतरंज पर चाल चलता है।

150. मडिभासाठ लेव मभुत शुभाता मिनी हिमेत तीठ सांस रा ठां चै ।
सभ्यता लोगों के समूह द्वारा बनाई विशेष जीवन जांच का नाम है।

151. ਤੀਜੇ ਉਹ ਅਣਖੀ ਲੋਕ ਸਨ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਇਹਨਾਂ ਹਮਲਿਆਂ ਸਾਹਮਣੇ ਹਮੇਸ਼ਾਂ ਸੀਨਾ ਤਾਣ ਕੇ ਜੀਣਾ ਸਿੱਖਿਆ ।
तीसरे वे आने वाले लोग थे जिन्होंने इन आक्रमणों के सामने सदा सीना तानकर जीना सीखा।

152. तग्लि-मचिट ठितउत गाठीतील वै. प्टिव ठिउठ घरप्ल विना नै ।
रहन-सहन निरन्तर गतिशील है, यह निरन्तर बदल रहा है।

153. घातीठात घातीनां पा वे लवां रा भनठ वठरे उठ ।
बाज़ीगर बाजियां डालकर लोगों का मनोरंजन करते हैं।

154. विडे भान उठ ‘डे धीही रख पीड़ी उलटे चिरे उठ ।
काम साधारणतः पीढ़ी दर पीढ़ी चलते रहते हैं।

155. ਇਹ ਗੱਲ ਠੀਕ ਹੈ ਕਿ ਦੁਨੀਆਂ ਦੀ ਹਰ ਵਸਤੁ ਧਰਤੀ ਦੀ ਹੀ ਪੈਦਾਵਾਰ ਹੈ ।
यह बात ठीक है कि दुनिया की प्रत्येक वस्तु धरती की ही उत्पत्ति है।

156. लॅवड़ी रे वभ ठाल घउ माते विडे तुझे चेप्टे उठ ।
लकड़ी के काम के साथ बहुत सारे काम जुड़े हुए हैं।

157. ਕਲਾ, ਆਦਿਕਾਲ ਤੋਂ ਹੀ ਮਨੁੱਖ ਦੀ ਮਾਨਸਿਕ ਤ੍ਰਿਪਤੀ ਦਾ ਇੱਕ ਅਹਿਮ ਸਾਧਨ ਰਹੀ ਹੈ ।
कला, आदिकाल से ही मनुष्य की मानसिक सन्तुष्टि का एक अहम् साधन रही है।

158. ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਲੋਕ-ਚਿੱਤਰਕਲਾ ਮਾਨਵੀ ਜੀਵਨ ਦੀਆਂ ਮੂਲ ਪ੍ਰਵਿਰਤੀਆਂ ਨਾਲ ਭਰੀ ਹੋਈ ਹੈ ।
पंजाब की लोक-चित्रकला मानवीय जीवन की मूल प्रवृत्तियों के साथ जुड़ी हुई है।

159. ਮੂਰਤੀ ਵਿੱਚ ਦੇਵੀ ਦਾ ਰੰਗ ਸੁਨਹਿਰੀ ਅਤੇ ਵਸਤਰਾਂ ਦਾ ਰੰਗ ਲਾਲ ਕੀਤਾ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ।
मूर्ति में देवी का रंग सुनहरी तथा वस्त्रों का रंग लाल किया जाता है।

160. नाव हित ‘ठां वट’ हामडे वेष्टी धाम ठाम ममराठ ठगी मठाप्टिमा नसा ।
पंजाब में ‘नामकरण’ के लिए कोई विशेष नाम संस्कार नहीं मनाया जाता।

161. मुंडे ही रे महाठ गेट ‘डे हिमान टीनां तमना सी प्लझी मनु सांटी चै ।
लड़के-लड़की के जवान होने पर विवाह की रस्मों की परम्परा शुरू हो जाती है।

162. ਵਿਆਹ ਵਿੱਚ ਫੇਰਿਆਂ ਦੀ ਰਸਮ ਬਹੁਤ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਹੈ ਕਿਉਂਕਿ ਇਸ ਤੋਂ ਬਿਨਾਂ ਵਿਆਹ ਸੰਪੂਰਨ ਨਹੀਂ मशिभा सांग।
विवाह में फेरों की रस्म बहुत महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इसके बिना विवाह सम्पूर्ण नहीं समझा जाता।

163. ਜੀਵਨ ਨਾਟਕ ਦੇ ਆਰੰਭ ਤੋਂ ਅੰਤ ਤੱਕ ਵਿਭਿੰਨ ਰਸਮ ਰਿਵਾਜ਼ ਕੀਤੇ ਜਾਂਦੇ ਹਨ ।
जीवन नाटक के आरम्भ से अन्त तक विभिन्न रस्म-रिवाज़ किए जाते हैं।

164. ਕਿਸੇ ਜਾਤੀ ਦੀ ਸੰਸਕ੍ਰਿਤਕ ਨੁਹਾਰ ਮੇਲਿਆਂ ਤੇ ਤਿਉਹਾਰਾਂ ਵਿੱਚੋਂ ਪੂਰੇ ਰੰਗ ਵਿੱਚ ਪ੍ਰਤਿਬਿੰਬਿਤ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ।
किसी जाति की सांस्कृतिक झलक मेलों और त्योहारों में पूरे रंग में प्रतिबिम्बित होती है।

165. घेडा सा भठंधी सीहत ठाल हुँया मधय चै ।
खेलों का मानवीय जीवन के साथ गहरा सम्बन्ध है।

166. निघे ही नात धनाची टिवठे रे उठ, हर परिप्लां ]तर भाता मघाघउ वत लैरे उठ ।
जहां भी चार पंजाबी इकट्ठे होते हैं, वहां पहले गुरुद्वारा स्थापित कर लेते हैं।

167. Vताव रे घउ भेप्ले भेममा, लॅां अडे उिहितां ठाल मपिउ उठ ।
पंजाब के बहुत से मेले मौसम, ऋतुओं तथा त्योहारों से सम्बन्धित हैं।

168. पंताव रे भेले, यासीठवाल 3 सप्लीमा ठगी मय-पता टी रेठ उठ ।
पंजाब के कुछ मेले प्राचीन काल से चली आ रही सर्प-पूजा की देन हैं।

PSEB 11th Class Hindi व्याकरण रस : शृंगार, हास्य, करुण, शांत, वीर, रौद्र, भयानक, वीभत्स, अद्भुत

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PSEB 11th Class Hindi व्याकरण रस : शृंगार, हास्य, करुण, शांत, वीर, रौद्र, भयानक, वीभत्स, अद्भुत

(ग) रस

प्रश्न 1.
रस की परिभाषा लिखिए।
उत्तर:
आचार्य विश्वनाथ ने रस को काव्य की आत्मा माना है। ‘वाक्यं रसात्मकं काव्यं’ अर्थात् रसात्मक वाक्य ही काव्य है।

प्रश्न 2.
रस के विभिन्न अंग कौन-से हैं ?
उत्तर:
रस स्थायीभाव, विभाव, अनुभाव और संचारी भाव के संयोग से बनता है या अभिव्यक्त होता है। इन चारों को ही रस के अंग माना जाता है।

प्रश्न 3.
स्थायी भाव किसे कहते हैं ?
उत्तर:
जो भाव सहृदयजन के चित्त में स्थायी रूप से विद्यमान रहते हैं उन्हें स्थायी भाव कहा जाता है। ये भाव अनुकूल परिस्थिति आने पर प्रकट होते हैं।

प्रश्न 4.
स्थायी भावों के नाम उनके रसों के नाम सहित लिखें।
उत्तर:

  1. शृंगार-रति
  2. वीर-उत्साह
  3. शांत-निर्वेद
  4. करुण-शोक
  5. रौद्र-क्रोध
  6. भयानक-भय
  7. वीभत्स-घृणा
  8. अद्भुत-विस्मय
  9. हास्य-हास।

प्रश्न 5.
विभाव किसे कहते हैं ?
उत्तर:
विभाव से अभिप्राय उन वस्तुओं और विषयों के वर्णन से है जिनके प्रति किसी प्रकार की संवेदना होती है अर्थात् भाव के जो कारण होते हैं उन्हें विभाव कहते हैं।

PSEB 11th Class Hindi व्याकरण रस

प्रश्न 6.
विभाव कितने प्रकार के होते हैं ?
उत्तर:
विभाव के दो प्रकार होते हैं-आलम्बन और उद्दीपन।

प्रश्न 7.
अनुभाव किसे कहते हैं ?
उत्तर:
अनुभाव सदा आश्रय से सम्बन्धित होते हैं अर्थात् जहाँ विषय की बाहरी चेष्टाओं को उद्दीपन कहा जाता है वहाँ आश्रय के शरीर विकारों को अनुभाव कहते हैं।

प्रश्न 8.
संचारी भाव किसे कहते हैं ?
उत्तर:
मन के चंचल विकारों को संचारी भाव कहते हैं। ये सदा आश्रय के मन में उत्पन्न होते हैं।

प्रश्न 9.
रस के कितने भेद हैं ?
उत्तर:
साहित्य में रस नौ प्रकार के माने गए हैं
श्रृंगार, हास्य, करुण, रौद्र, वीर, भयानक, वीभत्स, शांत और अद्भुत। कुछ लोग वात्सल्य और भक्ति को भी रस की संज्ञा देते हैं।

प्रश्न 10.
विभिन्न रसों के स्थायी भाव लिखिए।
उत्तर:

  1. श्रृंगार-रति
  2. हास्य-हास
  3. वीर-उत्साह
  4. करुण-शोक
  5. रौद्र-क्रोध
  6. भयानक-भय।
  7. वीभत्स-घृणा (जुगुप्सा)
  8. अद्भुत-विस्मय
  9. शांत-शान्त हो जाना, निर्वेद
  10. वात्सल्य–सन्तान स्नेह।

प्रश्न 11.
रस की निष्पत्ति कैसे होती है ?
उत्तर:
जब विभाव, अनुभाव और संचारी भाव का संयोग स्थायी भाव से होता है तब रस की निष्पत्ति होती है।

प्रश्न 12.
श्रृंगार रस और वात्सल्य रस में अन्तर स्पष्ट करें।
उत्तर:
शृंगार रस में रति स्थायी भाव अपने प्रिय (पति-पत्नी या प्रेमी-प्रेमिका) के प्रति होता है। जबकि वात्सल्य रस में अपनी सन्तान या छोटे बच्चों या भाई बहन के प्रति स्नेह के कारण होता है।

1. शृंगार रस

प्रश्न 13.
श्रृंगार रस किसे कहते हैं ? उदाहरण सहित लिखें।
उत्तर:
सहृदय जनों में रति स्थायी भाव अनुकूल वातावरण पाकर परिपक्व अवस्था में पहुँचता है तो उसे शृंगार रस कहा जाता है।

प्रश्न 14.
श्रृंगार रस के कितने भेद हैं ? उदाहरण सहित लिखें।
उत्तर:
शृंगार रस के दो भेद हैं

  1. संयोग शृंगार
  2. वियोग शृंगार।

संयोग में नायक नायिका के मिलन, वार्तालाप, दर्शन, स्पर्श आदि का वर्णन होता है।
उदाहरण-

एक पल मेरे प्रिया के दृग पलक,
थे उठे ऊपर, सहज नीचे गिरे।
चपलता के इस विकंपित पुलक से,
दृढ़ किया मानो प्रणय सम्बन्ध था।
वियोग की अवस्था में जब नायक नायिका के प्रेम का वर्णन हो तो उसे वियोग श्रृंगार कहा जाता है।
उदाहरण-
निसिदिन बरसत नैन हमारे। सदा रहत पावस ऋतु हम पै जब तै स्याम सिधारे ।। दृग अंजन लागत नहिं कबहू उर कपोल भये कारे ।।

2. हास्य रस

प्रश्न 15.
हास्य रस का लक्षण उदाहरण सहित दें।
उत्तर:
लक्षण-हास्य रस का विषय हास (हँसी) होता है। किसी विचित्र आकार, वेश या चेष्टा वाले लोगों को देखकर एवं उनकी विचित्र चेष्टाएं, कथन आदि को देख-सुनकर जब हँसी आए तो हास्य रस उत्पन्न होता है। उदाहरण-वेणी कवि को किसी ने श्राद्ध के दिन बासी पेड़े दे दिए, तब वेणी कवि ने कहा

माटिह में कुछ स्वाद मिले, इन्हें खाय तो ढूँढत हर्रे बहेड़ो,
चौंकि परयो पितुलोक में बाप, धरे जब पूत सराध के पेड़े।

अथवा

एक कबूतर देख हाथ में पूछा कहाँ अपर है ?
उसने कहा अपर कैसा ? वह उड़ गया समर है।
उत्तेजित हो पूछा उसने, उड़ा अरे वह कैसे ?
‘फड़’ से उड़ा दूसरा बोली, उड़ा देखिए ऐसे।

3. करुण रस

प्रश्न 16.
करुण रस का लक्षण उदाहरण सहित लिखें।
उत्तर:
लक्षण-करुण रस का विषय शोक होता है। किसी प्रिय व्यक्ति के मर जाने पर या किसी प्रिय वस्तु के नष्ट होने पर जो शोक जागृत होता है उसे करुण रस कहते हैं।

उदाहरण-

हा पुत्र ! कहकर शीघ्र ही वे मही पर गिर पड़े,
क्या वज्र गिरने पर बड़े भी वृक्ष रह सकते खड़े।
अथवा
देखि सुदामा की दीन दसा करुना करि कै करुना निधि रोये।
पानी परात को हाथ छुयो नहिं, नैननि के जल सों पग धोये॥

4. शांत रस

प्रश्न 17.
शांत रस का लक्षण उदाहरण सहित लिखें।
उत्तर:
संसार की असारता, नश्वरता को देखकर ईश्वर का रूप जानकर हृदय को जो शान्ति मिलती है उसे ही शान्त रस कहते हैं।
उदाहरण-
समता लहि सीतल भया, मिटी मोह की ताप।
निसि-वासर सुख निधि लह्या, अंतर प्रगट्या आप॥
अथवा
तू ही है सर्वत्र व्याप्त हरि तुझ में यह सारा संसार।
इसी भावना से अंतर भर मिलूँ सभी से तुझे निहार ।।
अथवा
पोथी पढ़ी-पढ़ी जग मुवा, पंडित भया न कोय।
ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय ।।

5. वीर रूस

प्रश्न 18.
वीर रस का लक्षण उदाहरण सहित लिखें।
उत्तर:
लक्षण-वीर रस का विषय उत्साह या जोश होता है। जैसे किसी व्यक्ति को देखकर लड़ने का उत्साह, किसी दीन-हीन को देखकर उसकी सहायता करने का उत्साह आदि।
उदाहरण-
जय के दृढ़ विश्वास-युक्त थे दीप्तिमान जिनके मुख-मंडल।
पर्वत को भी खण्ड-खण्ड कर रजकण कर देने को चंचल॥
अथवा
हे सारथे ! द्रोण क्या ? आवें स्वयं देवेन्द्र भी।
वे भी न जीतेंगे समर में आज क्या मुझ से कभी॥

PSEB 11th Class Hindi व्याकरण रस

6. रौद्र रस

प्रश्न 19.
रौद्र रस का लक्षण उदाहरण सहित लिखें।
उत्तर:
लक्षण-रौद्र रस का विषय क्रोध है। अपने अपकार करने वाले या शत्रु को सामने देखकर जो भाव मन में पैदा होते हैं उन्हें रौद्र रस कहा जाता है।

उदाहरण-
मातु पितहि जानि सोच बस, करसि महीप किशोर।
गर्भन के अर्भक दलन, परशु मोर अति घोर ॥

अथवा
श्री कृष्ण के सुन वचन अर्जुन क्रोध से जलने लगे।
सब शोक अपना भूलकर करतल-युगल मलने लगे।
संसार देखे अब हमारे शत्रु रण में मृत पड़े।
करते हुए यह घोषणा वे हो गये उठकर खड़े॥
अथवा
उस काल मारे क्रोध के तनु उनका कांपने लगा।
मानो हवा के जोर से सोता हुआ सागर जगा।।

7. भयानक रूस

प्रश्न 20.
भयानक रस का लक्षण उदाहरण सहित लिखें।
उत्तर:
किसी भयानक वस्तु को देखने से या किसी बलवान् शत्रु आदि को देखकर या उसकी डरावनी बातें सुनने से जो भाव जागृत होते हैं उसे भयानक रस कहा जाता है।
उदाहरण-
समस्त सॉं संग श्याम ज्यों कढ़े
कालिंद की नंदिनी के सु-अंक से।
खड़े किनारे जितने मनुष्य थे,
सभी महा शंकित भीत हो उठे॥
अथवा
नभ ते झपटत बाज़ लखि, भूल्यो सकल प्रपंच।
कंपित तन व्याकुल नयन, लावक हिल्यों न रंप ॥

8. वीभत्स रस

प्रश्न 21.
वीभत्स रस का लक्षण उदाहरण सहित लिखें।
उत्तर:
रक्त, मांस-मज्जा, दुर्गन्ध आदि वस्तुओं को देखकर हृदय में जो ग्लानि या जुगुप्सा के भाव जागृत होते हैं उन्हें वीभत्स कहा जाता है।
उदाहरण-
बहुँस्थान इक अस्थिखंड लै चरि चिचोरत,
कहु कारो महि काक चोंच सो ठोरि टटोरत।
अथवा
रक्त-मांस के सड़े पंक से उमड़ रही है,
महाघो दुर्गन्ध, रुद्ध हो उठती श्वासा।

9. अद्भुत रस

प्रश्न 22.
अद्भुत रस का लक्षण उदाहरण सहित लिखें।
उत्तर:
लक्षण-किसी अलौकिक या अदृष्टपूर्व वस्तु को देखकर जब हृदय में विस्मय का भाव जागृत होता है तो उसे अद्भुत रस कहा जाता है।

उदाहरण-
अखिल भुवन चर-अचर जग हरि मुख में लखि मातु।
चकित भई, गद्गद् वचन, विकसित दृग, पुलकातु॥
अथवा
जहँ चितवइ तहँ प्रभु आसीना। सेवहि सिद्ध मुनीस प्रवीना॥
सोई रघुबर, सोई लक्ष्मण सीता। देखि सती अति भयी सभीता॥

बहुविकल्पी प्रश्नोत्तर

1. रस को काव्य की आत्मा माना है ?
(क) आचार्य विश्वनाथ ने
(ख) आचार्य शुक्ल ने
(ग) अज्ञेय ने
(घ) भवभूति ने
उत्तर:
(क) आचार्य विश्वनाथ

2. श्रृंगार रस का स्थायी भाव है ?
(क) रति
(ख) उत्साह
(ग) निर्वेद
(घ) शोक
उत्तर:
(क) रति

3. करुण रस का स्थायी भाव है
(क) रति
(ख) शोक
(ग) निर्वेद
(घ) उत्साह
उत्तर:
(ख) शोक

4. निर्वेद स्थायी भाव का रस है
(क) शांत
(ख) करुण
(ग) वीर
(घ) शृंगार
उत्तर:
(क) शांत

5. वीर रस का स्थायी भाव है।
(क) करुण
(ख) उत्साह
(ग) शांत
(घ) वीभत्स
उत्तर:
(ख) उत्साह

6. “कहत-नटत, रीझत, खिझत, मिलत खिलत लजियात भरे मौन में करत है नैनहूं ही सब बात” में निहित रस है।
(क) करुण
(ख) शृंगार
(ग) वीर
(घ) भयानक
उत्तर:
(ख) शृंगार

PSEB 11th Class Hindi व्याकरण वाक्य विचार वाक्य विश्लेषण/संश्लेषण

Punjab State Board PSEB 11th Class Hindi Book Solutions Hindi व्याकरण वाक्य विचार विश्लेषण/संश्लेषण Questions and Answers, Notes.

PSEB 11th Class Hindi व्याकरण वाक्य विचार विश्लेषण/संश्लेषण

वाक्य विचार : वाक्य विश्लेषण/संश्लेषण

वाक्य व्यवस्था

प्रश्न 1.
वाक्य किसे कहते हैं ?
उत्तर:
सार्थक शब्दों के समूह को वाक्य कहते हैं, जैसे-मैं जम्मू जाऊँगा।

प्रश्न 2.
वाक्य के कितने खंड होते हैं ?
उत्तर:
वाक्य के दो खंड होते हैं
1. उद्देश्य-जिसके विषय में कुछ विधान किया जाता है, उस शब्द को उद्देश्य कहते हैं। जैसे-रमा अपने पिता के साथ गई।
2. विधेय-उद्देश्य के सम्बन्ध में कुछ बताने या विधान करने वाले शब्द को विधेय कहते हैं। जैसे-ऊपर के वाक्य में ‘पिता के साथ गई’ विधेय है।

  • राम (उद्देश्य) वन को गये (विधेय)।
  • गंगा (उद्देश्य) हिमालय से निकलती है (विधेय)।

प्रश्न 3.
अर्थ के आधार पर वाक्य के कितने भेद हैं ? सोदाहरण बताइए।
उत्तर:
अर्थ के आधार पर वाक्य के निम्नलिखित आठ भेद होते हैं
1. विधानवाचक:
जिस वाक्य में किसी कार्य के होने का बोध हो, उसे विधानवाचक वाक्य कहते हैं; जैसेदिनेश पढ़ता है। सूर्य प्रातः काल निकलता है।
2. प्रश्नवाचक:
जिस वाक्य में प्रश्न पूछे जाने का बोध हो, उसे प्रश्नवाचक वाक्य कहते हैं: जैसेआप क्या कर रहे हैं ? उस मकान में कौन रहता है ?
3. निषेधवाचक:
जिस वाक्य से किसी कार्य के न होने का बोध हो, उसे निषेधवाचक वाक्य कहते हैं; जैसे-वह बाज़ार नहीं गया है? वह आज स्कूल नहीं जाएगा।
4. आज्ञावाचक:
जिस वाक्य से किसी प्रकार की आज्ञा का बोध हो, उसे आज्ञावाचक वाक्य कहते हैं; जैसेमोहन, बैंच पर खड़े हो जाओ। तुम उसके साथ जाओ।
5. संदेहवाचक:
जिस वाक्य से कार्य के होने में संदेह प्रकट हो, उसे संदेहवाचक वाक्य कहते हैं; जैसेउसका पास होना मुश्किल है। वह शायद ही स्कूल आए।
6. इच्छावाचक:
जिस वाक्य से इच्छा, आशीर्वाद, शुभकामना का भाव व्यक्त हो, उसे इच्छावाचक कहते हैं; जैसेईश्वर करे, आप परीक्षा में सफल हों। भगवान् तुम्हें दीर्घायु बनाए।
7. संकेतवाचक:
जिस वाक्य में एक बात के होने को दूसरी बात के होने पर निर्भर किया गया है। उसे संकेतवाचक वाक्य कहते हैं; जैसे
यदि गाड़ी समय पर आई, तो मैं उसे घर ले जाऊँगा।
यदि तुम कल दुकान पर जाते, तो पुस्तक मिल जाती।
8. विस्मयादिवाचक:
जिस वाक्य से घृणा, शोक, हर्ष, विस्मय आदि का बोध हो, उसे विस्मयादिवाचक वाक्य कहते हैं; जैसे
वाह ! बहुत अच्छे अंकों से पास हुए। छिः ! छिः ! कितनी गंदगी है।

प्रश्न 4.
रचना के आधार पर वाक्य के कितने भेद होते हैं ? सोदाहरण बताओ।
उत्तर:
रचना के आधार पर वाक्य के तीन भेद होते हैं

1. सरल वाक्य-जिस वाक्य में एक ही उद्देश्य तथा एक ही विधेय हो, उसे सरल या साधारण वाक्य कहते हैं; जैसे-अशोक पुस्तक पढ़ता है।
2. संयुक्त वाक्य-जिस वाक्य में दो या दो अधिक उपवाक्य स्वतन्त्र रूप से समुच्चय बोधक अथवा योजक द्वारा मिले हुए हों, उसे संयुक्त वाक्य कहते हैं-
जैसे-

  • अशोक स्कूल जाता है और मन लगाकर पढ़ता है।
  • वह चला तो था, परन्तु रास्ते से लौट गया। ऊपर के दोनों वाक्य संयुक्त वाक्य हैं। पहला वाक्य ‘और’ तथा दूसरा ‘परन्तु’ समुच्चय बोधक अव्यय द्वारा संयुक्त किया गया है।

3. मिश्र वाक्य-जिस वाक्य में एक प्रधान उपवाक्य हो और एक या अधिक आश्रित उपवाक्य हों, उसे मिश्र वाक्य कहा जाता है;
जैसे-(i) खाने-पीने का मतलब है कि मनुष्य स्वस्थ बने। खाने-पीने का मतलब है = स्वतन्त्र या प्रधान उपवाक्य। कि = समुच्चय बोधक या योजक। मनुष्य स्वस्थ बने = आश्रित उपवाक्य।

PSEB 11th Class Hindi व्याकरण वाक्य विचार

प्रश्न 5.
‘वाक्य विश्लेषण या ‘वाक्य विग्रह’ से क्या अभिप्राय है। इसमें मुख्यतया किन बातों का विश्लेषण किया जाता है।
उत्तर:
किसी वाक्य के अंगों को अलग-अलग करके उनके पारस्परिक सम्बन्ध का विश्लेषण ‘वाक्य विश्लेषण’ या ‘वाक्य विग्रह’ कहलाता है। ‘वाक्य विग्रह’ में निम्नलिखित बातों का विश्लेषण किया जाता है–

(क) वाक्य-भेद-अर्थात् सरल, मिश्रित तथा संयुक्त कौन-सा वाक्य है? यदि ‘मिश्रित’ और ‘संयुक्त’ वाक्य हैं तो उसमें ‘प्रधान वाक्य’ अथवा ‘आश्रित वाक्य’ कौन-कौन से हैं? ‘आश्रित वाक्य’ में भी ‘संज्ञा उपवाक्य’, ‘विश्लेषण उपवाक्य’ तथा ‘क्रिया-विश्लेषण’ में कौन-सा वाक्य है?
(ख) उद्देश्य-संज्ञा या संज्ञा के समान प्रयुक्त सर्वनाम का पृथक् निर्देश करना चाहिए।
(ग) उद्देश्य का विस्तार-वे शब्द या वाक्यांश, जिनका सम्बन्ध ‘उद्देश्य’ अथवा कर्ता के साथ होता है और जो ‘उद्देश्य’ की विशेषता बताते हैं। उद्देश्य का विस्तार-निम्नलिखित चार प्रकार के शब्दों से होता है

(1) विशेषण से
(2) सम्बन्ध कारक से
(3) समानाधिकरण से
(4) वाक्यांश से।

(घ) विधेय (क्रिया) का उल्लेख।
(ङ) विधेय का विस्तार-वे शब्द जिनका सम्बन्ध ‘विधेय’ अथवा ‘क्रिया’ के साथ होता है और जो क्रिया की विशेषता बताते हैं।
विधेय का विस्तार कर्म, पूरक, क्रियाविशेषण, पूर्वकालिक क्रिया, कारक और क्रियाद्योतक कृदंत से होता है। ‘विधेय-विस्तार’ के अन्तर्गत ‘कर्म’ का भी उल्लेख है। कर्ता (उद्देश्य) के समान ‘कर्म’ में भी संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण, वाक्यांश आदि कुछ विशेषता सूचक शब्द होते हैं। इसे ‘कर्म का विस्तार’ कहते हैं। जैसे- उदाहरण”मैंने अपने मित्र राम को प्यार से समझाया।” इस वाक्य में ‘मैंने’ उद्देश्य है और ‘समझाया’ विधेय है। ‘राम को’ कर्म तथा ‘अपने मित्र’ कर्म का विस्तार (विशेषण) है। ‘बड़े प्यार से’ क्रिया का विस्तार है।

प्रश्न 6.
सरल संयुक्त और मिश्र वाक्यों का विग्रह सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
सरल वाक्य का विग्रह
कर्ता और उससे सम्बन्धित शब्दों (अर्थात् कर्ता के विस्तार) के अतिरिक्त सरल वाक्य के शेष सभी शब्द ‘विधेय’ कहलाते हैं। कर्त्त और विस्तार के सभी शब्द उद्देश्य कहलाते हैं; जैसे

कर्ता
राम
दशरथ का पुत्र राम
दशरथ का पुत्र सीतापति राम

विधेय
आया
आया
वन से लौट आया

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वाक्य संश्लेषण

संश्लेषण शब्द विश्लेषण का एकदम उलट है। वाक्य विश्लेषण में वाक्यों को एक-दूसरे से अलग-अलग किया जाता है जबकि वाक्य संश्लेषण में अलग-अलग वाक्यों को एक किया जाता है। किसी घटना के दृश्य को देखते समय मन में विचार या भाव छोटे-छोटे वाक्यों में आते हैं। अभिव्यक्ति के समय ये सब वाक्य/विचार एक हो जाते हैं।

प्रश्न 1.
वाक्य संश्लेषण से क्या तात्पर्य है ? सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
एक से अधिक वाक्यों का एक वाक्य बनाना ‘वाक्य संश्लेषण’ कहलाता है। साधारण (सरल) वाक्यों का संश्लेषण करने का तरीका
1. सभी वाक्यों में महत्त्वपूर्ण क्रिया चुनकर उसे मुख्य क्रिया बना लिया जाता है।
2. अन्य वाक्यों की क्रियाओं को पूर्वकालिक क्रिया, विशेषण या संज्ञा पदबन्ध में बदल लिया जाता है।
3. आवश्यकतानुसार उपसर्ग अथवा प्रत्यय लगाकर शब्दों की रचना की जाती है और उन्हें मुख्य क्रिया के साथ सम्बद्ध कर वाक्य बनाया जाता है।

1. अनेक सरल वाक्यों का एक सरल वाक्य में संश्लेषण
उदाहरण-1.

  • विद्यार्थी ने पुस्तकें बैग में डालीं।
  • विद्यार्थी ने बैग उठाया।
  • विद्यार्थी पढ़ने चला गया।

इन तीनों वाक्यों का एक वाक्य में संश्लेषण इस प्रकार होगा- पुस्तकें बैग में डालकर और उसे उठाकर विद्यार्थी पढ़ने चला गया।
2. वहां एक गाँव था। वह गाँव छोटा-सा था। उसके चारों ओर जंगल था। उस गाँव में आदिवासियों के दस परिवार रहते थे।
इन चारों का एक सरल वाक्य में संश्लेषण इस प्रकार होगावहां चारों ओर जंगल से घिरे एक छोटे से गांव में आदिवासियों के दस परिवार रहते थे।

2. अनेक सरल वाक्यों का मिश्र अथवा संयुक्त वाक्य में संश्लेषण
जिस प्रकार अनेक सरल वाक्यों को एक सरल वाक्य में संश्लिष्ट किया जाता है उसी प्रकार उन्हें मिश्र वाक्य में ही प्रस्तुत किया जाता है।
जैसे:
(1) पुस्तक में एक कठिन प्रश्न था।
(2) कक्षा में उस प्रश्न को कोई भी हल नहीं कर सका।
(3) मैंने उस प्रश्न को हल कर लिया।
मिश्र वाक्य में संश्लेषण-पुस्तक के जिस कठिन प्रश्न को कक्षा में कोई भी हल नहीं कर सका, मैंने उसे हल कर लिया है।
संयुक्त वाक्य में संश्लेषण-पुस्तक में आए उस कठिन प्रश्न को सारी कक्षा में कोई भी हल नहीं कर सका, पर मैंने उसे हल कर दिया।

प्रश्न 2.
वाक्य परिवर्तन से क्या अभिप्राय है ? यह कितने प्रकार से होता है ? सभी को सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
एक प्रकार के वाक्य को दूसरे प्रकार के वाक्य में बदलने की प्रक्रिया को ‘वाक्य-परिवर्तन’ कहते हैं। वाक्य परिवर्तन तीन प्रकार से होता है
1. वाच्य की दृष्टि से वाक्य परिवर्तन-हिंदी में ‘वाच्य’ तीन हैं-

  • कर्तृवाच्य
  • कर्मवाच्य
  • भाववाच्य।

2. रचना की दृष्टि से वाक्य परिवर्तन-रचना की दृष्टि से वाक्य तीन प्रकार के सरल वाक्य, मिश्रित वाक्य और संयुक्त वाक्य हैं। इनका एक-दूसरे में परिवर्तन होना ही रचना की दृष्टि से वाक्य परिवर्तन कहलाता है। जैसे
सरल वाक्य से मिश्र और संयुक्त वाक्य

1. सरल- वह फल खरीदने के लिए बाजार गया।
मिश्र-उसे फल खरीदने थे इसलिए वह बाजार गया।
संयुक्त-वह बाज़ार गया और वहाँ उसने फल खरीदे।

2. सरल-मैंने उसे पढ़ाकर नौकरी दिलवाई।
संयुक्त-मैंने उसे पढ़ाया और नौकरी दिलवाई।
मिश्र-मैंने पहले उसे पढ़ाया तब नौकरी दिलवाई।

संयुक्त एवं मिश्र वाक्य से सरल वाक्य

1. संयुक्त-बिल्ली झाड़ियों में छिप कर बैठ गई और कुत्ते के जाने की प्रतीक्षा करने लगी।
सरल-झाड़ियों में छिप कर बैठी बिल्ली कुत्ते के जाने की प्रतीक्षा करने लगी।

2. संयुक्त-मज़दूर मेहनत करता है लेकिन उसका लाभ उसे नहीं मिलता।
सरल-मजदूर को अपनी मेहनत का लाभ नहीं मिलता।

3. मिश्र-अध्यापक ने छात्रों से कहा कि तुम लोग परिश्रमपूर्वक पढ़ो और परीक्षा में अच्छी श्रेणी लाओ।
सरल-अध्यापक ने छात्रों को परिश्रमपूर्वक पढ़कर परीक्षा में अच्छी श्रेणी लाने के लिए कहा।

3. अर्थ की दृष्टि से वाक्य परिवर्तन-अर्थ की दृष्टि से वाक्य आठ प्रकार के होते हैं। उनका परस्पर रूपांतर ही वाक्य परिवर्तन कहलाता है।

विधानवाचक-राम स्कूल जाएगा।
निषेधवाचक-राम स्कूल नहीं जाएगा।
प्रश्नवाचक-क्या राम स्कूल जाएगा ?
आज्ञावाचक-राम, स्कूल जाओ।
विस्मयवाचक-अरे ! राम स्कूल जाएगा।
इच्छावाचक-राम स्कूल जाए।
संदेहवाचक-राम स्कूल गया होगा।
संकेतवाचक-राम स्कूल जाए तो।

PSEB 11th Class Hindi व्याकरण वाक्य विचार

प्रश्न 3. निम्नलिखित वाक्य का विश्लेषण कीजिएपवन पुत्र हनुमान ने देखते-ही-देखते सोने की लंका जला दी।
उत्तर:
उद्देश्य-पवन पुत्र (कर्ता विस्तार) हनुमान ने (कर्ता)। विधेय-देखते-ही-देखते (क्रिया विशेषण), सोने की (कर्म विस्तार), लंका (कर्म) जला दी (क्रिया पद)।

प्रश्न 4.
साधारण तथा मिश्र वाक्य का एक-एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
साधारण वाक्य-बच्चे आँगन में खेल रहे हैं। मिश्र वाक्य-देव ने कहा कि वह बनारस जा रहा है। प्रश्न-नीचे लिखे सरल वाक्यों को मिश्र वाक्यों में बदलो
(1) अच्छे छात्र बड़ों की आज्ञा का पालन करते हैं।
(2) ग़रीब होने पर भी वह ईमानदार है।
उत्तर:
(1) जो छात्र अच्छे हैं, वे बड़ों की आज्ञा का पालन करते हैं।
(2) यद्यपि वह ग़रीब है, तथापि ईमानदार है।

प्रश्न 5.
‘वह फल खरीदने के लिए बाज़ार गया’- इस सरल वाक्य को संयुक्त वाक्य में लिखिए।
उत्तर:
वह बाज़ार गया और वहां उसने फल खरीदे।

प्रश्न:
निम्नलिखित वाक्यों को निर्देशानुसार बदलिए-
(1) झाड़ियों में छिप कर बैठी बिल्ली कुत्ते के जाने की प्रतीक्षा करने लगी। (संयुक्त वाक्य में)
(2) सुबह पहली बस पकड़ो और शाम तक लौट आओ। (साधारण वाक्य में)
(3) मैंने उस व्यक्ति को देखा जो पीड़ा से कराह रहा था। (साधारण वाक्य में)
(4) उसने नौकरी के लिए प्रार्थना-पत्र लिखा। (मिश्र वाक्य में)
(5) दिन-रात मेहनत करने वालों को सोच-समझ कर खर्च करना चाहिए। (मिश्र वाक्य में)
(6) लता ने मधुर गीत गा कर सब को मुग्ध कर दिया। (संयुक्त वाक्य में)
(7) कल फूलपुर में मेला है और हम वहां जाएँगे। (साधारण वाक्य में)
(8) मेहनत करने पर भी ग़रीबों को भर पेट रोटी नहीं मिलती। (संयुक्त वाक्य में)
(9) जो लोग परिश्रम करते हैं, उन्हें अधिक समय तक निराश नहीं होना पड़ता। (साधारण वाक्य में)
(10) जो समय पर काम करते हैं, उन्हें पछताना नहीं पड़ता। (साधारण वाक्य में)
उत्तर:
(1) बिल्ली झाड़ियों में छिप कर बैठ गई और कुत्ते के जाने की प्रतीक्षा करने लगी।
(2) सुबह पहली बस पकड़ कर शाम तक लौट आओ।
(3) मैंने पीड़ा से कराहते हुए व्यक्ति को देखा।
(4) उसने जो प्रार्थना-पत्र लिखा था, वह नौकरी के लिए था।
(5) जो दिन-रात मेहनत करते हैं, उन्हें सोच-समझ कर खर्च करना चाहिए।
(6) लता ने एक मधुर गीत गाया और उससे उसने सबको मुग्ध कर दिया।
(7) कल हम फूलपुर के मेले में जाएँगे।
(8) ग़रीब मेहनत करते हैं, फिर भी उन्हें भर पेट रोटी नहीं मिलती।
(9) परिश्रम करने वालों को अधिक समय तक निराश नहीं होना पड़ता।
(10) समय पर काम करने वालों को पछताना नहीं पड़ता।

प्रश्न:
निम्नलिखित वाक्यों को निर्देशानुसार बदलिए
(1) सोहन परीक्षा में उत्तीर्ण हो गया। (प्रश्नवाचक में)
(2) अच्छी वर्षा से अच्छी फसल होती है। (संकेतवाचक में)
(3) उसके पिता जी चल बसे। (विस्मयादिवाचक में)
(4) ग़रीब मेहनत करते हैं तब उन्हें भर पेट रोटी मिलती है। (निषेधवाचक में)
(5) मेरा पत्र आया है। (प्रश्नवाचक में)
(6) आप यहाँ से नहीं जाएँगे। (प्रश्नवाचक में)
(7) वर्षा होगी। (संदेहवाचक में)

उत्तर:
(1) क्या सोहन परीक्षा में उत्तीर्ण हो गया ?
(2) यदि वर्षा अच्छी होती है तो फसल भी अच्छी होती है।
(3) ओह ! उसके पिता जी चल बसे।
(4) ग़रीब मेहनत करते हैं पर उन्हें भर पेट रोटी के अतिरिक्त कुछ नहीं मिलता।
(5) क्या मेरा पत्र आया ?
(6) क्या आप यहाँ से नहीं जाएँगे ?
(7) शायद वर्षा हो।

बहुविकल्पी प्रश्नोतरा

1. शब्दों का सार्थक समूह कहलाता है ?
(क) शब्द
(ख) वाक्य
(ग) सार्थक
(घ) पद।
उत्तर:
(ख) वाक्य

2. वाक्यों के कितने खंड होते हैं ?
(क) एक
(ख) दो
(ग) तीन
(घ) चार
उत्तर:
(ख) दो

3. अर्थ के आधार पर वाक्य के भेद होते हैं
(क) पाँच
(ख) छह
(ग) सात
(घ) आठ
उत्तर:
(घ) आठ

4. रचना के आधार पर वाक्य के भेद हैं,
(क) एक
(ख) दो
(ग) तीन
(घ) चार
उत्तर:
(ग) तीन

5. ‘मीरा गा कर नाच रही है’ रचना की दृष्टि से वाक्य भेद हैं
(क) सरल
(ख) संयुक्त
(ग) मिश्र
(घ) कोई नही
उत्तर:
(क) सरल

6. स्वामी विवेकानंद जी ने कहा था कि चरित्र-निर्माण मानव का आधार है। रचना की दृष्टि से वाक्य भेद है।
(क) सरल
(ख) संयुक्त
(ग) मिश्र
(घ) कोई नहीं
उत्तर:
(ग) मिश्र

PSEB 11th Class Hindi व्याकरण सन्धि और सन्धिच्छेद

Punjab State Board PSEB 11th Class Hindi Book Solutions Hindi व्याकरण सन्धि और सन्धिच्छेद Questions and Answers, Notes.

PSEB 11th Class Hindi व्याकरण सन्धि और सन्धिच्छेद

(क) सन्धि और सन्धि-विच्छेद (प्रकार, नियम और उदाहरण)

प्रश्न 1.
सन्धि किसे कहते हैं और ये कितने प्रकार की हैं?
उत्तर:
दो वर्गों के विकार या परिवर्तन सहित मेल को सन्धि कहते हैं। सन्धि तीन प्रकार की होती है
1. स्वर-सन्धि
2. व्यंजन-सन्धि
3. विसर्ग-सन्धि

1. स्वर-सन्धि-स्वर से परे स्वर आने पर जो विकार होता है, उसे स्वर-सन्धि कहते हैं।
जैसे-विद्या + आलय = विद्यालय।। (अ + ई = ए)
परम + ईश्वर = परमेश्वर (आ + आ = आ)

2. व्यंजन-सन्धि-व्यंजन से परे स्वर या व्यंजन आने से जो व्यंजन में विकार होता है, उसे व्यंजन-सन्धि कहते
जैसे-जगत् + ईश = जगदीश। सम् + कल्प = संकल्प।

3. विसर्ग-सन्धि-विसर्ग से परे स्वर या व्यंजन आने से विसर्ग में जो विकार होता है, उसे विसर्ग-सन्धि कहते
जैसे-निः + पाप = निष्पाप। दुः + गति = दुर्गति।

(क) स्वस्सन्धि

स्वर-सन्धि के पांच भेद हैं।
(क) दीर्घ-सन्धि (ख) गुण-सन्धि (ग) वृद्धि-सन्धि (घ) यण-सन्धि (ङ) अयादि-सन्धि।

PSEB 11th Class Hindi व्याकरण सन्धि और सन्धिच्छेद

(क) दीर्घ-सन्धि:
हस्व और दीर्घ अ, इ, उ, ऋ से परे क्रम से यदि वही ह्रस्व और दीर्घ अ, इ, उ, ऋ हो तो दोनों के स्थान में वही दीर्घ स्वर हो जाता है, इसे दीर्घ-सन्धि कहते हैं।

अ-आ

अ + अ = आ-वेद + अंत = वेदांत, धर्मार्थ, ग्रामांतर, परमार्थ।
अ + आ = आ-हिम + आलय = हिमालय, गृहागत, धर्माधार।
आ + अ = आ-विद्या + अर्थी = विद्यार्थी, महानुभाव, दयार्णव।
आ + आ = आ-विद्या + आलय = विद्यालय, लताश्रय, महाकार।

इ-ई

इ + इ = ई-कवि + इन्द्र = कवीन्द्र, हरीच्छा, मुनीन्द्र।
इ + ई = ई-कवि + ईश = कवीश, मुनीश्वर, मुनीश।
ई + इ = ई-मही + इन्द्र = महीन्द्र, नदीन्द्र।
ई + ई = ई-मही + ईश = महीश, नदीश, रजनीश।

उ-ऊ

उ + ऊ = ऊ-भानु + उदय = भानूदय, विधूदय, प्रभूक्ति, गुरूपदेश।
ऊ + उ = ऊ-वधू + उत्सव = वधूत्सव, श्वश्रूपदेश।
(‘उ’ तथा ‘ऊ’ या ‘ऊ’-‘ऊ’ की सन्धि वाले शब्द हिन्दी में इने-गिने ही आते हैं और ऋ तथा ऋ की सन्धि के शब्द तो हिन्दी में प्रयुक्त ही नहीं होते।

(ख) गुण-सन्धि-अ या आ से परे यदि ह्रस्व और दीर्घ इ, उ और ऋ हो तो दोनों के स्थान पर क्रम से ए, ओ तथा अर् हो जाता है। इसे गुण सन्धि कहते हैं।

अ और आ से परे इ और ई।

अ + इ = ए-देव + इन्द्र = देवेन्द्र, नरेन्द्र, राजेन्द्र।
अ + ई = ए-नर + ईश = नरेश, गणेश, राजेश ।
आ + इ = ए-महा + इन्द्र = महेन्द्र, रमेश, यथेष्ट।
आ + ई = ए-रमा + ईश = रमेश, महेश
अ + इ = ए-स्व + इच्छा = स्वेच्छा।

अ और आ से परे उ और ऊ

अ + उ = ओ-वीर + उचित = वीरोचित, उत्तरोत्तर, सूर्योदय, अरुणोदय।
आ + उ = ओ-महा + उत्सव = महोत्सव, महोदय।
अ + ऋ = अर्-देव + ऋषि = देवर्षि, सप्तर्षि ।
आ + ऋ = अर्-महा + ऋषि = महर्षि, ब्रह्मर्षि।

3. वृद्धि-सन्धि-अ और आ से परे यदि ए और ऐ, ओ और औ हो तो दोनों के स्थान में क्रम से ऐ, औ हो जाते हैं। इसे वृद्धि-सन्धि कहते हैं।

अ और आ से परे ए और ऐ

अ + ए = ऐ-एक + एक = एकैक।
आ + ए = ऐ-सदा + एव = सदैव।
अ + ऐ = ऐ-परम + ऐश्वर्य = परमैश्वर्य, मतैक्य।
आ + ऐ = ए-महा + ऐश्वर्य = महैश्वर्य।

अ और आ से परे ओ और औ

अ + ओ = औ-वन + औषिधि = बनौषधि, जलौदधि।
आ + ओ = औ-महा + ओज = महौज।
अ + औ = औ-परम + औषध = परमौषध।
अ + औ = औ-महा + औषध = महौषध।

4. यण-सन्धि-ह्रस्व और दीर्घ इ, उ, ऋ से परे यदि कोई असमान स्वर हो तो इ और ई को य, उ और ऊ को व् और ऋ को र् हो जाता है। इसे यण्-सन्धि कहते हैं।

इ को य-यदि + अपि = यद्यपि, अत्याचाले, भूम्याधार।
ई को य्-देवी + अर्पण = देव्यर्पण, देव्याज्ञा, नद्यवतरण।
उ को व्-सु + आगत = स्वागत, अन्वेषण।
ऊ को व्-स्वयंभू + आज्ञा = स्वयंभ्वाज्ञा।
ऋ को र्-मातृ + आनन्द = मात्रानन्द, पित्राज्ञा।

5. अयादि-सन्धि-ए, ओ, ऐ, औ से परे यदि स्वर हो तो ए को अय, ओ को अव, ऐ को आय और औ को आव् हो जाता है। इसे अयादि-सन्धि कहते हैं।

ए को अय्-ने + अन = नयन।
ओ को अव्-भो + अन = भवन, लवण।
ऐ को आय्-गै + अक = गायक।
औ को आव्-भौ + उक = भावुक।

(क) स्वस्सन्धि

(i) दीर्घ-सन्धि

सन्धि:
स्व + अधीन = स्वाधीन
सत्य + अर्थ = सत्यार्थ
धर्म + अर्थ = धर्मार्थ
विद्या + आलय = विद्यालय
रत्न + आकर = रत्नाकर
देव + आलय = देवालय
हिम + आलय = हिमालय
परम + अर्थ = परमार्थ
राम + अयन = रामायण
विद्या + अर्थी = विद्यार्थी
सचिव + आलय = सचिवालय
कवि + इन्द्र = कवीन्द्र
अवनि + इन्द्र = अवनीन्द्र
मही + इन्द्र = महीन्द्र
नारी + इच्छा = नारीच्छा
परि + ईक्षा = परीक्षा
लक्ष्मी + ईश = लक्ष्मीश
गुरु + उपदेश = गुरूपदेश
मधु + उर्मि = मधूर्मि
अनु + उदित = अनूदित
मातृ + ऋण = मातृण

सन्धि-विच्छेद:
कृपालु = कृपा + आलु
दयानन्द = दया + आनन्द
कार्यालय = कार्य + आलय
पुस्तकालय = पुस्तक + आलय
परमानन्द = परम + आनन्द
कुसुमाकर = कुसुम + आकर
चरणामृत = चरण + अमृत
सुधीन्द्र = सुधि + इन्द्र
सतीश = सती + ईश
मुनीश = मुनी + ईश
गिरीश = गिरी + ईश
भानुदय = भानु + उदय
वधूरु = वधू + ऊरु
वधूत्सव = वधू + उत्सव
पितृण = पितृ + ऋण

(ii) गुण सन्धि

सन्धि:
सुर + इन्द्र = सुरेन्द्र
गज + इन्द्र = गजेन्द्र
भारत + इन्दु = भारतेन्दु
रमा + ईश = रमेश
राज + ईश = राजेश
परम + ईश्वर = परमेश्वर
महा + उत्सव = महोत्सव
महा + उदधि = महोदधि
गंगा + उदक = गंगोदक
चन्द्र + उदय = चन्द्रोदय
मद + उन्मत्त = मदोन्मत्त
लोक + उक्ति = लोकोक्ति
भाग्य + उदय = भाग्योदय
महा + उदय = महोदय
जल + ऊर्मि = जलौर्मि
यमुना + ऊर्मि = यमुनोर्मि
सप्त + ऋषि = सप्तर्षि
महा + ऋषि = महर्षि
देव + ऋषि = देवर्षि

PSEB 11th Class Hindi व्याकरण सन्धि और सन्धिच्छेद

सन्धि-विच्छेद:
सुरेश = सुर + ईश
उपेन्द्र = उप + इन्द्र
नरेन्द्र = नर + इन्द्र
यथेष्ट = यथा + इष्ट
हितोपदेश = हित + उपदेश
नरोत्तम = नर + उत्तम
नरोत्तम = नर + उत्तम
पुरुषोत्तम = पुरुष + उत्तम
परोपकार = पर + उपकार
प्रश्नोत्तर = प्रश्न + उत्तर
पत्रोत्तर = पत्र + उत्तर
अछूतोद्धार = अछूत + उद्धार
ब्रह्मर्षि = ब्रह्म + ऋषि
राजर्षि = राज + ऋषि
वसन्तर्तु = वसन्त + ऋतु

(iii) वृद्धि सन्धि

सन्धि:
तथा + एव = तथैव
महा + ऐश्वर्य = महैश्वर्य
धृत + औदन = धृतोदन
सदा + एव = सदैव
परम + ऐश्वर्य = परमैश्वर्य
महा + औषध = महौषध
परम + औदार्य = परमौदार्य

सन्धि-विच्छेद:
मतैक्य = मत + ऐक्य
जनश्वर्य = जन + ऐश्वर्य
अमृतौषध = अमृत + औषध
लोकैषणा = लोक + एषणा
वनौषधि = वन + औषधि
महौज = महा + ओज

(iv) यण सन्धि

सन्धि
प्रति + उत्तर = प्रत्युत्तर
सु + आगत = स्वागत
पितृ + उपदेश = पितृोपदेश
अति + अल्प = अत्यल्प
उपरि + उक्त = उपर्युक्त
नि + ऊन = न्यून
अभि + आगत = अभ्यागत
अति + उपकार = अत्युपकार
देवी + अर्पण = देव्यर्पण
देवी + आगम = देव्यागम
सखि + आगम = सख्यागम
सखि + उचित = सख्युचित
गुरु + आज्ञा = गुर्वाज्ञा
सु + अल्प = स्वल्प

सन्धि-विच्छेद:
अन्वेषण = अनु + एषण
मात्रानुमति = मातृ + अनुमति
पिताज्ञा = पितृ + आज्ञा
अभ्यागत = अभि + आगत
अत्यावश्यक = अति + आवश्यक
अत्याचार = अति + आचार
इत्यादि = इति + आदि
वध्वागम = वधू + आगम
मध्वालय = मधु + आलय
प्रत्याशा = प्रति + आशा
प्रत्येक = प्रति + एक
अन्वय = अनु + अय
अन्वर्थ = अनु + अर्थ
अन्विति = अनु + इति

(v) अयादि सन्धि

सन्धि
चे + अन = चयन
ने + अन = नयन
दै + अक = दायक
नै + अक = नायक
गै + अक = गायक
पो + अन = पवन
गै + अन = गायन
नौ + इक = नाविक
भो + अन = भवन
हो + अन = हवन

सन्धि-विच्छेद:
शयन = शे + अन
सायक = सै + अक
गवेषणा = गौ + एषणा
पावन = पौ + अन
पावक = पो + अक
भावुक = भौ + उक
भाव = भो + अ

(ख) व्यंजन-सन्धि

(i) किसी वर्ण के पहले वर्ण से परे यदि कोई स्वर या किसी वर्ग का तीसरा, चौथा वर्ण अथवा य, र, ल, ह में से कोई वर्ण हो तो पहले वर्ण को उसी वर्ग का तीसरा वर्ण हो जाता है। जैसे

दिक् + दर्शन = दिग्दर्शन (क् को ग्) ।
अच् + अंत = अजंत (च् को ज्)।
षट् + दर्शन = षड्दर्शन (ट् को ड्)।
जगत् + ईश = जगदीश (त् को द्)।
अप् + ज = अब्ज (प् को ब्)।

(ii) किसी वर्ग के पहले या तीसरे वर्ण से परे यदि किसी वर्ग का पाँचवां वर्ण हो तो पहले और तीसरे वर्ण को अपने वर्ग का पाँचवां वर्ण हो जाता है। जैसे

वाक् + मय = वाड्मय (क् को ङ्)।
पट् + मास = पण्मास (ट् को ण्)।
जगत् + नाथ = जगन्नाथ (त् को न्)।
अप् + मय = अम्मय (प् को म्)।

(iii) त् और द् को च और छ परे होने पर च, ज और झ परे होने पर ज, ट और ठ परे होने पर ट्, ड और ढ परे होने पर इ और ल परे होने पर ल हो जाता है। जैसे

PSEB 11th Class Hindi व्याकरण सन्धि और सन्धिच्छेद Img 1

(iv) त् और द् से परे श् हो तो त् और द् को च् और श् को छ् हो जाता है। जैसे

PSEB 11th Class Hindi व्याकरण सन्धि और सन्धिच्छेद Img 2

उद् + शिष्ट = उच्छिष्ट (द् को च्, श् को छ)।

त् और द् से परे यदि ह् हो तो त् को द् और ह् को ध् हो जाता है।
जैसे-उत् + हार = उद्धार (ह् को ध्)
उत् + हरण = उद्धरण।

(v) म् के बाद यदि क् से म् तक में से कोई वर्ण हो तो म् को अनुस्वार अथवा बाद के वर्ण के वर्ग का पाँचवां वर्ण हो जाता है। जैसे
सम् + कल्प = संकल्प, संकल्प (म् को अनुस्वार और ङ)।
सम् + चार = संचार, सञ्चार, किंचित-किञ्चित् (म् को अनुस्वार और ज्)।
सम् + तोप = संतोष, सन्तोष (म् को अनुस्वार और न्)।
सम् + पूर्ण = संपूर्ण, सम्पूर्ण (म् को अनुस्वार और म्)।
सम् + बन्ध = संबंध, सम्बन्ध (म् को अनुस्वार और म्)।

(vi) क् से म् तक वर्णों को छोड़कर यदि और कोई व्यंजन म् से परे हो तो म् को अनुस्वार हो जाता है। जैसे-
सम् + हार = संहार, सम् + यत = संयत, सम् + रक्षण = संरक्षण, सम् + लग्न = संलग्न, सम् + वत् = संवत् (म् को अनुस्वार), सम् + वेदना = संवेदना, सम् + शय = संशय, सम् + सार = संसार ।

(vii) स्वर से परे यदि छ आये तो छ के पूर्व च लग जाता है। (इसे आगम कहते हैं)।
आ + छादन = आच्छादन। वृक्ष + छाया = वृक्षच्छाया (च् का आगम)।
स्व + छंद = स्वच्छंद। प्र + छन्न = प्रच्छन्न।

(viii) ऋ, र, ष से परे न् को ण हो जाता है।
स्वर, कवर्ग, पवर्ग, अनुस्वार और य, व, ह में से किन्हीं वर्गों के बीच आ जाने पर भी ऋ, ऋ, र् और प् से परे न् को ण् हो जाता है। जैसे
भर् + अन = भरण, भूष + अन = भूषण।

(ix) स् से पूर्व अ या आ से भिन्न कोई स्वर हो तो स् को ष् हो जाता है।
जैसे-अभि + सेक = अभिषेक (स् को ष्), सु + समा = सुषमा।

PSEB 11th Class Hindi व्याकरण सन्धि और सन्धिच्छेद Img 3

(ग) विसर्ग संधि

(i) विसर्ग से पहले और बाद में दोनों ओर ‘अ’ होने पर विसर्ग ‘ओ’ में बदल जाते हैं। जैसे-मनः + अनुकूल = मनोऽनुकूल, यश: + अभिलाषा = यशोऽभिलाषा।
(ii) विसर्ग से पहले ‘अ’ तथा बाद में किसी भी वर्ग का तीसरा, चौथा, पाँचवां वर्ण तथा य, र, ल, व, ह में से कोई वर्ण हो तो विसर्ग को ‘ओ’ हो जाता है। जैसे
(iii) विसर्ग के बाद किसी भी वर्ग का तीसरा, चौथा, पाँचवां वर्ण होने पर विसर्ग को ओ
सरः + ज = सरोज
मनः + ज = मनोज।
पयः + द = पयोद
पयः + धर = पयोधर।
तपः + बल = तपोबल।

(iv) विसर्ग के बाद य, र, ल, व, ह होने पर विसर्ग को ओ

मनः + रंजन = मनोरंजन
मनः + हर + मनोहर।
मनः + योग = मनोयोग
मनः + रथ = मनोरथ।
वयः + वृद्ध = वयोवृद्ध
मनः + बल = मनोबल।

PSEB 11th Class Hindi व्याकरण सन्धि और सन्धिच्छेद

(v) विसर्ग से पहले अ, आ के अतिरिक्त कोई स्वर तथा बाद में कोई स्वर किसी भी वर्ग का तीसरा, चौथा, पांचवां वर्ण तथा य, र, ल, व, ह में से कोई भी वर्ण हो तो विसर्ग को ‘र’ हो जाता है। जैसे

(vi) विसर्ग के बाद कोई स्वर होने पर विसर्ग को र

दुः + उपयोग = दुरुपयोग
दुः = आशा = दुराशा।
निः + आकार = निराकार
निः + आश्रित = निराश्रित।

(vii) विसर्ग के बाद किसी भी वर्ग का तीसरा, चौथा, पाँचवां वर्ण होने पर

निः + झर = निर्झर
पुनः + जन्म = पुनर्जन्म।
पुनः + निर्माण = पुनर्निर्माण
निः + जन = निर्जन।
दुः + गुण = दुर्गुण
निः + नय = निर्णय।
बहिः + मुख = बहिर्मुख
दु: + बल = दुर्बल।

(viii) विसर्ग के बाद य, र, व, ह होने पर विसर्ग को

र्निः + विकार = निर्विकार
दुः + व्यवहार = दुर्व्यवहार
अन्तः + यामी = अंतर्यामी
दु: + लभ = दुर्लभ

(ix) विसर्ग के बाद च, छ हो तो विसर्ग को ‘श्’, ट्, ठ हो तो ‘ष’ तथा त, थ. हो तो ‘स्’ में परिवर्तित हो जाता है। जैसे

दु: + चरित्र = दुश्चरित्र
हरिः + चंद्र = हरिश्चंद्र।
निः + चय = निश्चय
निः + छल = निश्छल।
‘धनु: + टंकार = धनुष्टंकार
इतः + ततः = इतस्ततः
नमः + ते = नमस्ते
दुः + तर = दुस्तर
मनः = ताप = मनस्ताप।

(x) निः तथा दुः के बाद क-ख या प-फ हो तो इनके विसर्ग को ‘ष’ हो जाता है। जैसे-

निः + कपट = निष्कपट
निः + काम = निष्काम।
दुः + कर = दुष्कर
दुः + काल = दुष्काल।
निः + पाप = निष्पाप
निः + फल = निष्फल।
दु: + प्राप्य = दुष्प्राप्य
दुः + प्रभाव = दुष्प्रभाव।

(xi) विसर्ग के बाद यदि श, स हो तो विकल्प के विसर्ग को भी क्रमशः श् तथा स् ही हो जाता है। जैसे-

दु: + शासन = दुश्शासन या दुःशासन दुः + शील = दुश्शील या दुःशील।
निः + सन्देह = निस्सन्देह या निःसन्देह नि: + सार = निस्सार या नि:सार।
दुः + साहस = दुस्साहस।

(xii) यदि विसर्ग से पहले ‘अ’ तथा बाद में ‘अ-आ’ के अतिरिक्त कोई स्वर हो तो विसर्ग लोप हो जाता है .और फिर उन अक्षरों में संधि नहीं होती। जैसे-

अतः + एव = अतएव
ततः + एव = तथैव।

हिंदी में अलग से विसर्ग संधि तो नहीं है, किंतु उसने संस्कृत के दो विसर्ग संधि शब्दों को संस्कृत से भिन्न रूप से ही अपनाया है
संस्कृत रूप हिंदी रूप अंतः + राष्ट्रीय अंताराष्ट्रीय अंतर्राष्ट्रीय पुनः + रचना पुनारचना
पुनर्रचना

प्रश्न 1.
व्यंजन संधि और विसर्ग संधि में क्या अंतर है ? उसे उदाहरण सहित समझाइए।
उत्तर:
व्यंजन संधि वहाँ होती है जब पहले शब्द के अंत में व्यंजन हो और दूसरे शब्द के आदि में व्यंजन या स्वर हो तब दोनों के मिलने से जो परिवर्तन होता है। जैसे-सत् + जन = सज्जन, जगत् + ईश = जगदीश। विसर्ग संधि वहाँ होती है जब विसर्ग का किसी स्वर या व्यंजन के साथ मेल होने पर परिवर्तन होता है। जैसे-नम: + ते = नमस्ते, दु: + उपयोग = दुरुपयोग।

प्रश्न 2.
संधि-विच्छेद से आप क्या समझते हैं ? दो उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
जब संधि युक्त शब्दों को अलग-अलग करके लिखा जाता है तब उसे संधि-विच्छेद कहते हैं। जैसेमहोत्सव = महा + उत्सव, उज्ज्वल = उत् + ज्वल, निर्धन = निः + धन।

अभ्याम

सन्धि:
दिक् + गज = दिग्गज
दिवग् + गत = दिवंगत
पट् + मास = पण्मास
उत् + मूलन = उन्मूलन
उत् + चारण = उच्चारण
तत् + चित्र = तच्चित्र
उत् + श्वास = उच्छ्वास
भगवत् + शास्त्र = भगवच्छास्त्र
तत् + हित = तद्धित
उत् + हरण = उद्धरण
सत् + गति = सद्गति
सत् + आनन्द = सदानन्द
उद् + वेग = उद्वेग
सत् + धर्म = सद्धर्म
अहम् + कार = अहंकार
सम् + चय = संचय
दम् + डित = दण्डित
सम् + जय = संजय
सम् + गति = संगति
सम् + योग = संयोग
सम् + लग्न = संलग्न
सम् + शय = संशय
किम् + चित् = किंचित
सम + कल्प = संकल्प
स्व + छन्द = स्वच्छन्द
सन्धि + छेद = सन्धिच्छेद/सन्धिछेद
निर + नय = निर्णय
विष् + नु = विष्णु
भाश + अन = भाषण
पोष + अन = पोषण
अर्प + न = अर्पण
दर्प + न = दर्पण
निर् + रोग = नीरोग
निर् + रस = नीरस
उत् + डयन = उड्डयन
उत् + लंघन = उल्लंघन
उत् + लास = उल्लास
सम् + राट् = सम्राट
वि + सम = विषम
अभि + सेक = अभिषेक
निस् + गुण = निर्गुण
दुस् + बोध = दुर्बोध
पुरुस् + कार = पुरस्कार
भास + कर = भास्कर
राम + अयन = रामायण
जब + ही = जभी
अब + ही = अभी

PSEB 11th Class Hindi व्याकरण सन्धि और सन्धिच्छेद

सन्धि-विच्छेद:
षडानन = षट् + आनन
बागीश = वाक् + ईश
अम्मय = अप् + मय
तन्मय = तत् + मय
बृहच्छवि = बृहत् + छवि
सच्चित् = सत् + चित
भगवच्छोभा = भगवत् + शोभा
उद्धत = उत् + हत
उद्योग = उत् + योग
उद्गार = उत् + गार
उद्भव = उत् + भव
तद्रूप = तत् + रूप
उद्धृत = उत् + धृत
संतप्त = सम् + तप्त
संतान = सम् + तान
संधान = सम् + धान
संभव = सम् + भव
संपूर्ण = सम् + पूर्ण
संवरण = सम् + वरण
संसार = सम् + सार
संहार = सम् + हार
शंकर = शम् + कर
परिच्छेद = परि + छेद
विच्छेद = वि + छेद
तृष्णा = तृप + ना
जिष्णु = जिष् + नु
परिणाम = परि + नाम
प्रमाण = प्रमा + न
ऋण = ऋ+ न
भूषण = भूष् + अन्
नीरव = निर् + रव
नीरज = निर् + रज
उल्लेख = उत् + लेख
तल्लीन = तत् + लीन
विद्युल्लता = विद्युत् + लता
सामराज्य = साम् + राज्य
निषेध = नि + सेध
निषिद्ध = नि + सिद्ध
निर्वाध = निर + वाध
दुर्गुण = दुर + गुण
नमस्कार = नमस + कार
तिरस्कार = तिरस् + कार
मरण = मर् + अन
तभी = तब + ही
कभी = कब + ही

विसर्ग सन्धि:

सन्धि:
अधः + गति = अधोगति
मनः + ज = मनोज
मनः + बल = मनोबल
पयः + द = पयोद
यशः + दा = यशोदा
पयः + धर = पयोधर
तपः + बल = तपोबल
मनः + रंजन = मनोरंजन
मनः + हर = मनोहर
मनः + रथ = मनोरथ
मनः + विज्ञान = मनोविज्ञान
मनः + योग = मनोयोग
वयः + वृद्ध = वयोवृद्ध
दुः + उपयोग = दुरुपयोग
निः + चल = निश्चिल
निः + चय = निश्चय
हरिः + चन्द्र = हरिश्चन्द्र
धनुः + टंकार = धनुष्टंकार
निः + ठुर = निष्ठुर
निः + छल = निश्चल
मनः + ताप = मनस्ताप
निः + तेज = निस्तेज
दुः + शासन = दुशासन
निः + सन्देह = निस्सन्देह
निः + संतान = निस्संतान
निः + कपट = निष्कपट
दुः + प्रकृति = दुष्प्रकृति
दुस्तर = दुः + तर
दुष्प्राप्य = दुः + प्राप्य
निष्फल = निः + फल
निष्काम = निः + काम
दुष्प्रभाव = दुः + प्रभाव
दुस्साहस = दु: + साहस

सन्धि-विच्छेद:
निः + आशा = निराशा
निः + गुण = निर्गुण
दुः + नीति = दुर्नीति
निः + आकार = निराकार
निः + आहार = निराहार
निः + आधार = निराधार
दु: + गति = दुर्गति
दु: + भावना = दुर्भावना
निर् + रोग = नीरोग
निर् + रस = नीरस
मनः + अभीष्ट = मनोऽभीष्ट
अतः + एव = अतएव
निः + झर = निर्झर
दुः + आशा = दुराशा
निः + आशा = निराशा
निः + मल = निर्मल
निराश्रित = निः + आश्रित
पुनर्निर्माण = पुनः + निर्माण
निर्जन = निः + जन
दुर्गुण = दुः + गुण
बहिर्मुख = बहिः + मुख
दुर्बल = दु: + बल
निर्णय = निः + नय
निर्विकार = निः + विकार
दुर्लभ = दुः + लभ
दुश्चरित्र = दु: + चरित्र
हरिश्चंद्र = हरिः + चंद्र
नमस्ते = नमः + ते
मनस्ताप = मनः + ताप
तथैव = ततः + एव
निस्सार = निः + सार
दुश्शील = दु: + शील
दुः + कर = दुष्कर
दुः + फल = दुष्फल

बहुविकल्पी प्रश्नोत्तर

1. स्वर संधि के कितने भेद हैं ?
(क) दो
(ख) तीन
(ग) चार
(घ) पाँच
उत्तर:
(घ) पाँच

2. संधि के कितने भेद हैं ?
(क) एक
(ख) दो
(ग) तीन
(घ) चार
उत्तर:
(ग) तीन

3. ‘ने + अन’ में कौन-सी संधि है ?
(क) यण
(ख) वृद्धि
(ग) गुण
(घ) अयादि
उत्तर:
(घ) अयादि

4. ‘विद्या + अर्थी’ में सधि है ?
(क) दीर्घ
(ख) गुण
(ग) यण
(घ) अयादि।
उत्तर:
(क) दीर्घ

5. ‘उत् + ज्वल की संधि है ?
(क) उज्ज्वल
(ख) उत्जवल
(ग) उज्जवल
(घ) उज्जला।
उत्तर:
(क) उज्ज्वल

6. ‘भो + अन किसका विच्छेद है ?
(क) भोउन
(ख) भवन
(ग) भोवन
(घ) भुवन
उत्तर:
(ख) भवन

7. मनोरंजन का संधिविच्छेद है
(क) मनः + रंजन
(ख) मनो + रंजन
(ग) मनः + रंजन
(घ) मनोः + रंजन
उत्तर:
(क) मनः + रंजन

PSEB 11th Class Hindi रचना अनुच्छेद-लेखन

Punjab State Board PSEB 11th Class Hindi Book Solutions Hindi रचना अनुच्छेद-लेखन Questions and Answers, Notes.

PSEB 11th Class Hindi रचना अनुच्छेद-लेखन

(ख) अनच्छद लखन

यदि आप किसी भी छपी गद्य रचना को ध्यान से देखें तो आप पाएँगे कि प्रत्येक लेख, अध्याय, कहानी, उपन्यास आदि अनुच्छेदों में बंटा है । प्रत्येक अनुच्छेद पंक्ति से थोड़ा दाएँ हट कर शुरू किया जाता है । ऐसा उस गद्य रचना को पढ़ने और समझने में सहायक होता है।

परिभाषा:
अनुच्छेद लेखन का अर्थ है कि किसी कथन, निजी अनुभव अथवा संस्मरण को संक्षेप में किन्तु सार गर्भित ढंग से लिखना । मान लीजिए आपने कोई विशेष घटना देखी हो, किसी नेता का भाषण सुना हो अथवा कोई निजी अनुभव या कथन पर कुछ लिखना हो तो उसे एक ही अनुच्छेद में लिखना अनुच्छेद लेखन कहलाता है ।

अनुच्छेद लेखन और सार में अन्त:
अनुच्छेद लेखन सार लेखन से बिल्कुल विपरीत है । सार लेखन में एक अनुच्छेद दिया गया होता है उसका लगभग एक तिहाई शब्दों में संक्षेपीकरण या सार लिखना होता है, जबकि अनुच्छेद लेखन के लिए कोई एक विषय दिया गया होता है । जिस पर आपको केवल एक अनुच्छेद लिखना होता है । अनुच्छेद विषयानुसार छोटा बड़ा हो सकता है ।

अनुच्छेद लेखन का उद्देश्य:
परीक्षा में अनुच्छेद लेखन का प्रश्न विद्यार्थी की मौलिक सूझ-बूझ, स्मरण शक्ति और कल्पना शक्ति के विकास में सहायता करने के लिए रखा जाता है । भावी जीवन में इसका बहुत बड़ा महत्त्व होता है ।

अनुच्छेद लेखन के भेद:
अनुच्छेद लेखन दो प्रकार का होता है
(1)निजी अनुभव पर(किसी घटना आदि से सम्बन्धित) संस्मरणात्मक अनुच्छेद:
ऐसे अनुच्छेद में लेखक आपबीती उत्तम पुरुष एकवचन में लिखता है । जैसे भीड़ भरी बस की यात्रा, मतदान केन्द्र का दृश्य आदि विषयों पर लिखे अनुच्छेद।

(2) विचारात्मक अनुच्छेद:
ऐसे अनुच्छेद किसी महापुरुष के कथन, किसी मुहावरे या विचारात्मक विषय पर लिखे जाते हैं । जैसे परहित सरिस धर्म नहिं भाई, सवै दिन जात न एक समान, नेता नहीं नागरिक चाहिए, बढ़ते फैशन और युवावर्ग आदि।

अनुच्छेद लेखन में ध्यान देने योग्य बातें

  1. अनुच्छेद लेखन में सारी बात एक ही अनुच्छेद में लिखनी चाहिए
  2. अनुच्छेद लेखन में भाव या विचार की एकता होनी चाहिए ।
  3. अनुच्छेद लेखन में ऐसा कोई वाक्य नहीं होना चाहिए जो मूल विषय या कथन से सम्बन्ध न रखता हो । सारे वाक्य एक ही भाव से परस्पर जुड़े हुए होने चाहिएं । इसमे इधर-उधर की बातों के लिए कोई गुंजाइश नहीं है ।
  4. निजी अनुभव पर आधारित अनुच्छेद उत्तम पुरुष एकवचन में लिखना चाहिए जैसे कोई आत्मकथा लिख रहा हो ।
  5. शब्दों में चित्रात्मकता का गुण होना चाहिए । जैसे मैं पढ़ने बैठा ही था कि अचानक बादल घिर आए, बिजली कड़कने लगी, तेज़ हवा भी चलने लगी और घर की बिजली अचानक बन्द हो गई—आदि ।
  6. वाक्य रचना ऐसी होनी चाहिए कि अनुच्छेद रोचक बन जाए ।
  7. अनुच्छेद की भाषा सरल, स्पष्ट और व्याकरण की अशुद्धियों से रहित होनी चाहिए । भाषा ऐसी हो जो विषय को स्पष्ट कर दे।
  8. अनुच्छेद जहाँ तक हो सके संक्षिप्त होना चाहिए । यदि परीक्षा में अनुच्छेद लेखन की कोई शब्द-सीमा निर्धारित की गई हो तो उसका ध्यान भी रखना चाहिए ।

विशेष:
यहाँ आपकी जानकारी एवं मार्ग दर्शन के लिए निजी अनुभव पर आधारित तथा कुछ विचारात्मक विषयों पर प्रसिद्ध साहित्याकरों, महापुरुषों द्वारा लिखे गए निबन्धों या आत्मकथाओं से अलग-अलग उदाहरण दे दिए गये हैं ।

प्रस्तुत पुस्तक में अनुच्छेद लेखन को दो भागों में प्रस्तुत किया गया है–(क) निजी अनुभव पर आधारित संस्मरणात्मक अनुच्छेद (ख) विचारात्मक विषयों, कथनों पर आधारित अनुच्छेद। परीक्षा की दृष्टि से सभी सम्भावित विषयों पर अनुच्छेद लेखन के उदाहरण दिये गये हैं । अभ्यास से आप किसी भी विषय पर आसानी से अनुच्छेद लिख सकते हैं ।

(क) निजी अनुभव पर आधारित संस्मरणात्मक अनुच्छेद

1. हीरो बनने के चक्कर में

अपने मित्र के कहने पर एक दिन मैंने भान्जे साहब से, क्योंकि वे मुझ से काफ़ी खुल गये थे, अपनी इच्छा प्रकट की । मित्र ने भी रद्दा जमाया । मेरी एक्टिंग, मेरे गले और मेरी बॉडी की प्रशंसा की और कहा कि इस बार यदि कैमरा टैस्ट हो जाए तो मेरे हीरो बनने के रास्ते में कोई बाधा नहीं हो सकती । मेरा ख्याल था कि मेरी इच्छा सुनते ही मामा का वह भान्जा झट मेरे साथ पूना की गाड़ी पर जा बैठेगा । इतने दिन मेरे पैसे पर उसने गुलछर्रे उड़ाए थे । लेकिन नहीं, ऐसी कोई बात नहीं हुई । बड़े इत्मीनान से उसने कहा कि यदि उसे पचास रुपए दिये जाएं तो वह मामा से मिलायेगा और पचास और दिये जाएं तो कैमरा टैस्ट का प्रबन्ध करेगा । मेरे लगभग सात-आठ सौ रुपए उन पन्द्रह बीस दिनों में खर्च हो चुके थे, पाँच-छ: सौ रुपए बचे थे । सौ-डेढ़ सौ का नुस्खा उसने बता दिया, लेकिन मैं चुप रहा । बोला कुछ नहीं । हां, मेरे होटल वाले मित्र को बड़ा क्रोध आया। उसने उसे डॉटा । बड़ी खिट-खिट हुई । आखिर वह पच्चीस रुपए उस समय, पच्चीस मामा से मिलाने पर ओर पचास टैस्ट करा देने और काम बनवा देने के बाद लेने को तैयार हो गया । खैर साहब, हम तीनों पूना के लिए दक्खन क्वीन में सवार हुए ।

PSEB 11th Class Hindi Vyakaran व्यावहारिक व्याकरण वाक्य विचार : वाक्य विश्लेषण/संश्लेषण

ट्रेन फर्राटे भरती उड़ चली और साथ ही मेरी कल्पना दक्खन क्वीन से भी तेज़ फर्राटे भरती उड़ चली। मुझे लगा कि मंज़िल अब बहुत दूर नहीं । माइक और साऊँड टैस्ट हुआ कि मैं हीरो बना । पूना पहुँच कर स्टेशन के पास ही एक होटल में टिका। नाश्ता-वाश्ता करके हम स्टूडियो को चले। गेट पर चौकीदार ने रोक दिया। तब मामा के उस भान्जे ने एक चिट्ठी लिखी । कुछ देर बाद उत्तर आ गया हमें बाहर ही रोक कर वह अन्दर गया । कोई पन्द्रह मिनट बाद वापस आया तो बोला मामा जी स्टूडियो में व्यस्त हैं, फिल्म की शूटिंग हो रही है। कल सुबह मिलने का टाइम उन्होंने दिया है। मैंने कहा, हमें शूटिंग ही दिखा दो । उसने कहा तुमने पहले कहा होता तो मैं तय कर आता, लेकिन अब कल ही दिखा दूंगा, बात पक्की हुई समझो। खुश-खुश हम लौटे। रात को मित्र ने सुझाया कि भान्जे को खुश रखना चाहिए ताकि यह टैस्ट ही न कराये, बल्कि तुम्हें हीरो का कांट्रेक्ट ले दे । बात उसकी ठीक थी । पूरी बोतल मेज़ पर आ गई । वह खत्म हुई तो दूसरी आयी । बस इतना ही याद है और कुछ याद नहीं । सुबह उठा तो देखा कमरा खाली है । बस जो कपड़े तन पर हैं, वही हैं, बाकी सब कुछ गायब हैं।
(-उपेन्द्रनाथ अश्क द्वारा लिखित एक रिपोर्ताज से)

2. सहानुभूति दिखाना भी मुसीबत मोल लेना है

एक और जाति को सहानुभूति दिखाकर मुझे भारी नुकसान उठाना पड़ा है । यह जाति परीक्षा में बैठने वाले स्टूडेंट्स की है जो अपने नम्बर बढ़वाने के लिए पहुँच जाते हैं । इस बारे में एक पुरानी घटना याद आ रही है । एक बार एक लड़की ने मुझे यहाँ तक धमकी दे दी कि अगर मैं उसे पास नहीं करता तो वह नदी में छलांग लगा देगी । मैं इतना डर गया कि मैंने सहानुभूति दिखाने का उसे वचन भी दे डाला । वह बिना सहायता के पास थी, लेकिन एक महीने के बाद मेरे बारे में जांच पड़ताल शुरू हो गई क्योंकि उस लड़की ने अपनी सहेलियों से शोखी मैं आकर यह कह दिया कि वह मेरी सहानभूति से पास हुई है । उसकी एक सहेली ने मेरे बारे में गुमनाम शिकायत लिख कर भेज दी । तब से कानों को हाथ लगाया और तय किया कि इनसे सहानुभूति करना कितना खतरनाक हो सकता है। अब भी कभी कभार स्टूडेंट्स आ टपकते हैं और यही दलील देते हैं कि सब परीक्षक सहानुभूति दिखाते हैं, मैं इतना कठोर क्यों हो गया हूँ ? मेरा एक ही जबाव होता है कि इस तरह की सहानुभूति दिखाने से मेरी नौकरी छूटने का भय है और मैं एक डरपोक आदमी हूँ। वह मेरी बात मानते तो नहीं लेकिन निराश होकर चले अवश्य जाते हैं ।।
(—श्री इन्द्रनाथ मदान द्वारा लिखित निबन्ध ‘सहानुभूति दिखाने पर’ में से)

3. आँखों देखा गोली काण्ड

दोपहर होते-होते नौजवानों की भीड़ ‘नहीं रखनी सरकार भाइयों नहीं रखनी, यह अंग्रेज़ी सरकार भाइयो नहीं रखनी’ के नारे लगाते हुए तिरंगा झण्डा लिए सचिवालय की ओर बढ़ने लगे। गोरखा फौज उनके सामने दीवार की तरह आकर खड़ी हो गई । जिलाधीश ने नौजवानों से पूछा, ‘तुम क्या चाहते हो ? ‘उन्होंने उत्तर दिया हम सचिवालय पर तिरंगा झण्डा फहरायेंगे । ज़िलाधीश ने कहा, वहाँ तो यूनियन-जैक लहरा रहा है । नौजवानों ने कहा-अब वहाँ तिरंगा लहरायेगा । अंग्रेज़ तमतमा उठा, बोला ऐसा कभी भी नहीं हो सकता । भाग जाओ । नौजवानों ने कहा हम तो आज तिरंगा झण्डा फहराकर ही लौटेंगे । अंग्रेज़ का अहंकार गुर्रा उठा, बोला, तुम में से जो झण्डा फहराना चाहता है वह आगे आए । ग्यारह विद्यार्थी भीड़ में से एक साथ आगे बढ़ कर आए। इन ग्यारह में सब से आगे जो विद्यार्थी था, उसकी देह ने अभी चौदहवीं वर्षगांठ भी न मनाई थी, पर उसके कंधों का तनाव ऐसा प्रचण्ड था कि पहाड़ के शिखिर भी देखकर शरमा जाएँ ? अंग्रेज़ ज़िलाधीश ने राक्षसी क्रूरता से उस किशोर से पूछा ‘तुम भी फहराओगे झण्डा ?’ ‘हाँ क्यों नहीं ?’ भारत की आत्मा उस बालक के कण्ठ से कूक उठी।

तभी अंग्रेज़ ने अपने गोरखा सैनिकों को गोली चलाने का आदेश दिया ग्यारह राइफलें उभर कर गरी—’धड़ाम’ । जीते जागते ग्यारह राम-लक्ष्मण पलक मारते धरती पर गिर पड़े, खून से लथपथ, पर शान्त। ‘फायर’ अंग्रेज़ अफ़सर फिर चिल्लाया और सिपाहियों ने गोलियाँ दागीं। बहुत से लोग घायल हो कर गिर पड़े पर भागा कोई नहीं । पीछे कोई नहीं हटा । ‘इन्कलाब ज़िन्दाबाद’, ‘अंग्रेज़ो भारत छोड़ो’ के नारों से आकाश गूंज उठा । तभी न जाने किधर से एक विद्यार्थी सचिवालय के गुम्बद पर जा चढ़ा और उसने तिरंगा झण्डा फहरा कर वहीं से नारे लगाये । अंग्रेज़ अफसर का मुँह एक बार तो काला पड़ गया था तब उसने दांत किटकिटा कर कहा—फायर तब वह किशोर टूटते तारे-सा धरती पर आ गिरा । अस्पताल की मेज़ पर उसने पूछा मेरे गोली कहाँ लगी है ? छाती में डॉक्टर ने कहा । तब ठीक है मैंने पीठ पर गोली नहीं खाई उसने कहा और हमेशा के लिए आँख मूंद ली ।
(— कन्हैया लाल मिश्र प्रभाकर के एक लेख से)

4. जब मैं घर से बाहर पढने गया

इस कमरे में भी मैं तो बहुत परेशान हाल में रहा । देश बहुत याद आता था । माता का प्रेम आँखों के सामने नाचा करता । रात हुई कि रोना शुरू हुआ । घर की अनेक प्रकार की स्मृतियों की चढ़ाई के कारण नींद कहां से आ पाती ? यह दुःख गाथा किसी से कह भी न सकता था । कहने से फायदा भी क्या था ? मैं स्वयं नहीं जानता था कि क्या करने से मेरा चित्तन्त होगा। मनुष्य विचित्र, रहन-सहन विचित्र, घर भी विचित्र । घरों में रहने की रीति-नीति भी वैसी ही विचित्र । क्या बोलने और क्या करने में यहाँ का शिष्टाचार भंग होता है, इस का भी बहुत कम पता था । तिस पर से खाने-पीने का बराव-बचाव । जो चीजें खा सकता वे रूखी और नीरस लगती थीं । इस से मेरी दशा सौते में सुपारी की सो हो गई । विलायत रुच नहीं रहा था और देश को लौटा नहीं जा सकता । विलायत आया था तो तीन साल पूर करने ही थे ।
(-महात्मा गान्धी की आत्म कथा से)

5. जब दाखिला लेने गया

एक महीने के बाद मैं फिर मि० रिचर्डसन से मिला और सिफारिशी चिट्ठी दिखाई । प्रिंसिपल ने मेरो ओर तीव्र नेत्रों से देख कर पूछा ‘इतने दिन कहाँ थे’ ? ‘बीमार हो गया था’ मैंने कहा। क्या बीमारी थी ? मैं इस प्रश्न के लिए तैयार न था। अगर ज्वर बताता हूँ तो शायद साहब मुझे झुठा समझें । ज्वर मेरी समझ में हल्की चीज़ थी, जिसके लिए इतनी लम्बी गैर हाजिरी अनावश्यक थी। कोई ऐसी बीमारी बतानी चाहिए जो अपनी कष्ट साध्यता के कारण दया भी उभारे । उस वक्त मुझे नाम याद न आया । ठाकुर इन्द्रनारायण सिंह से जब मैं सिफारिश के लिए मिला था तब उन्होंने अपने दिल की धड़कन की बीमारी की चर्चा की थी। वह शब्द याद आ गया मैंने कहा, पेलपिटेशन आफ हार्ट (दिल की धड़कन) सर ।

साहब ने विस्मित होकर मेरी ओर देखा और कहा, अब तुम बिल्कुल अच्छे हो ? जी हाँ, मैंने कहा । उन्होंने कहा, अच्छा प्रवेश पत्र लाओ । मैंने समझा बेड़ा पार हुआ । फार्म लिया, खाना पुरी की और पेश कर दिया । साहब उस समय कोई क्लास ले रहे थे । तीन बजे मुझे फार्म वापस मिला । उस पर लिखा था-इसकी योग्यता की जाँच की जाए । यह नई समस्या उपस्थित हुई। मेरा दिल बैठ गया । अंग्रेज़ी के सिवा और किसी विषय में पास होने की आशा न थी और बीजगणित से मेरी रूह काँपती थी । जो कुछ याद था वह भी भूल गया था, परन्तु दूसरा उपाय ही क्या था ।(-प्रेमचंद की आत्मकथा से)

(ख) विचारात्मक अनुच्छेद

1. मजदूरी का महत्व

खेद का विषय है कि हमारे और अन्य पूर्वी देशों में लोगों को मज़दूरी से लेश मात्र भी प्रेम नहीं है, पर वे तैयारी कर रहे हैं काली मशीनों का आलिगंन करने की । पश्चिम वालों के तो यह गले पड़ी हुई बहती नदी की काली कमली हो रही है । वे छोड़ना चाहते हैं, परन्तु काली कमली उन्हें नहीं छोड़ती । देखेंगे पूर्व वाले इस कमली को छाती से लगाकर कितना आनन्द अनुभव करते हैं। यदि हम में से हर आदमी अपनी दस उंगलियों की सहायता से साहसपूर्वक अच्छी तरह काम करे तो हम मशीनों की कृपा से बढ़े हुए पश्चिम वालों को, वाणिज्य के जातीय संग्राम में सहज ही पछाड़ सकते हैं । इंजनों की वह मज़दूरी किस काम की जो बच्चों, स्त्रियों और कारीगरों को ही भूखा और नंगा रखती है और केवल सोने, चाँदी, लोहे आदि धातुओं का ही पालन करती है। पश्चिम को विदित हो चुका है इससे मनुष्य का दुःख दिन पर दिन बढ़ता है ।

भारतवर्ष जैसे दरिद्र देश में मनुष्यों के हाथों की मज़दूरी के बदले कलों के काम लेना काल का डंका बजाना होगा । दरिद्र प्रजा और भी दरिद्र होकर मर जाएगी । चेतन से चेतन की वृद्धि होती है । मनुष्य को तो मनुष्य सुख दे सकता है। परस्पर की निष्कपट सेवा से मनुष्य जाति का कल्याण हो सकता है । धन एकत्र करना तो मनुष्य के आनन्द मण्डल का एक साधारण सा और महातुच्छ उपाय है । धन की पूजा करना नास्तिकता है, ईश्वर को भूल जाना है। अपने भाई-बहनों तथा मानसिक सुख और कल्याण के देने वालों को मार कर अपने सुख के लिए शारीरिक राज्य की इच्छा करना हैं। जिस डाल पर बैठे हैं, उसी डाल को स्वयं ही कुल्हाड़े से काटना है । अपने प्रियजनों से रहित राज्य किस काम का ? आओ, यदि हो सके तो, टोकरी उठा कर कुदाली हाथ में लें । मिट्टी खोंदे और अपने हाथ से उस के प्याले बनावें । फिर एक-एक प्याला घर-घर में, कुटियाकुटिया में रख आयें और सब लोग उसी में मजदूरी का प्रेमामृत पान करें ।
(सरदार पूर्ण सिंह के लेख ‘मज़दूरी और प्रेम से’ )

2. अंग्रेज़ी हटाओ, राष्ट्रभाषा और प्रान्तीय भाषा लाओ

संविधान के निर्णयानुसार 15 वर्षों के भीतर, अर्थात् सन् 1965 तक हिन्दी का राज भाषा विषयक रूप विकसित हो जाना चाहिए था अर्थात् उस समय तक कानून की सभी पुस्तकों का हिन्दी में अनुवाद हो जाना चाहिए, साहित्य एवं विज्ञान की इतनी पुस्तकें प्रकाशित हो जानी चाहिएं कि हिन्दी के माध्यम से विश्वविद्यालयों में ऊंची-से-ऊंची शिक्षा दी जा सके तथा न्यायालयों एवं महान्यायालयों में हिन्दी के माध्यम से विचार और विमर्श किया जा सके । साथ ही हिन्दी प्रान्तों में तब तक हिन्दी का इतना प्रचार भी कर देना है कि उन प्रान्तों के साथ केन्द्रीय एवं अन्य प्रान्तीय शासनों का पत्राचार हिन्दी में चल सके तथा जो व्यक्ति सार्वदेशीय धरातल से देश के साथ हिन्दी में बोलना चाहें, उन्हें शिक्षा साधनों के सीमित होने के कारण कोई कठिनाई नहीं हो । प्रायः लोग इस भ्रम में पड़ जाते हैं कि अंग्रेज़ी के हटने पर जो स्थान रिक्त होगा वह सब का सब हिन्दी को मिल जाएगा। यह हिन्दी के पक्ष में अनुचित उत्साह है। अंग्रेजी केवल हिन्दी का अधिकार दबा कर नहीं बैठी है। वह अधिक स्थान तो क्षेत्रीय भाषाओं के ही दबाए हुए हैं । अंग्रेज़ी के हटने पर भी प्रान्तीय शासन और जनता चाहे तो, शिक्षा के भी काम वहाँ की प्रान्तीय भाषाओं में ही चलेंगे ।

PSEB 11th Class Hindi Vyakaran व्यावहारिक व्याकरण वाक्य विचार : वाक्य विश्लेषण/संश्लेषण

अतएव आवश्यकता है कि प्रत्येक क्षेत्र की जनता में अपनी मातृभाषा के लिए अनुराग उत्पन्न किया जाए । इसी अनुराग को जगाकर हम अंग्रेज़ी को वर्तमान पद से हटा सकते हैं । जब तक जनता में मातृभाषा के लिए प्रेम नहीं जागता, तब तक प्रान्तीय भाषाओं के क्षेत्रों में राष्ट्रभाषा का मार्ग भी वंचित रहेगा। प्रसन्नता की बात है कि हिन्दी प्रान्तों में शासन के कार्यों में हिन्दी का प्रयोग बढ़ने लगा है। इसका अनुकरण अन्य भाषा अनुच्छेद लेखन भाषी क्षेत्रों में भी होना चाहिए जिससे वहाँ के भी शासन सम्बन्धी कार्य क्षेत्रीय भाषाओं में किये जा सकें। प्रान्तों में जब क्षेत्रीय भाषाओं का प्रयोग होना आरम्भ हो जाएगा, तभी वहाँ की जनता अंग्रेज़ी के स्थान पर अपनी राष्ट्रभाषा सीखने के महत्त्व को सरलता से समझेगी और तभी यह आशंका भी दूर हो जाएगी जिस से ग्रसित होने के कारण कहीं-कहीं लोग यह समझ रहें हैं कि राष्ट्रभाषा के प्रचार से क्षेत्रीय भाषाओं का दलन होने वाला है ।
(श्री रामधारी सिंह दिनकर के राष्ट्रभाषा शीर्षक लेख से-)

3. अबला जीवन हाय तेरी यही कहानी

हिन्दू नारी का घर और समाज इन्हीं दो से विशेष सम्पर्क रहता है । परन्तु इन दोनों ही स्थानों में उसकी स्थिति कितनी करुण है उसके विचार मात्र से ही किसी भी सहृदय का हृदय काँपे बिना नहीं रहता । अपने पितृ गृह में उसे वैसे ही स्थान मिलता है जैसा किसी दुकान में उस वस्तु को प्राप्त होता है जिसके रखने और बेचने दोनों में ही दुकानदार को हानि की सम्भावना रहती है । जिस घर में उसके जीवन को ढलकर बनना पड़ता है, उसके चरित्र को एक विशेष रूप रेखा धारण करनी पड़ती है जिस पर वह शैशव का सारा स्नेह ढुलकाकर भी तृप्त नहीं होती उसी घर में वह भिक्षुक के अतिरिक्त और कुछ नहीं हैं । दुःख के समय अपने आहत हृदय और शिथिल शरीर को लेकर वह उसमें विश्राम नहीं पाती, भूल के समय वह अपना लज्जित मुख उसके स्नेहांचल में नहीं छिपा सकती और आपत्ति के समय एक मुट्ठी अन्न की भी उस घर से आशा नहीं रख सकती।

ऐसी ही है उसकी वह अभागी जन्म भूमि, जो जीवित रहने के अतिरिक्त और कोई अधिकार नहीं देती । पति गृह, जहाँ उस उपेक्षित प्राणी को जीवन का शेष भाग व्यतीत करना पड़ता है, अधिकार में उससे कुछ अधिक परन्तु सहानुभूति में उससे बहुत कम है इसमें सन्देह नहीं । यहाँ उसकी स्थिति पल-भर भी आशंका से रहित नहीं । यदि वह विद्वान पति की इच्छानुकूल विदुषी नहीं तो उसका स्थान दूसरी को दिया जा सकता है । यदि वह सौंदर्योपासक पति की कल्पना के अनुरूप अप्सरा नहीं है तो उसे अपना स्थान रिक्त कर देने का आदेश दिया जा सकता है । यदि वह पति कामना का विचार करके संतान या पुत्रों की सेना नहीं दे सकती, यदि वह रुग्ण है या दोषों का नितांत अभाव होने पर भी पति की अप्रसन्नता की दोषी है तो भी उसे घर में दासत्व स्वीकार करना पड़ेगा ।
(महादेवी वर्मा द्वारा लिखित ‘नारीत्व का अभिशाप’ शीर्षक निबन्ध से )

4. जीवन युद्ध है आराम नहीं

जीवन को जो आराम मानते हैं, वे जीवन को नहीं जानते । वे जीवन का स्वाद नहीं पाएँगे। जीवन युद्ध है आराम नहीं और अगर आराम है तो वह उसी को प्राप्य है जो उस युद्ध में पीछे कुछ न छोड़ अपने पूरे अस्तित्व से उस में जूझ पड़ता है । जो सपने लेते हैं वे सपने लेते रहेंगे । वे आराम नहीं, आराम के ख्याल में ही भरमाये रहते हैं । पर जो सदानन्द है, वह क्या सपने से मिलता है ? आदमी सोकर सपने लेता है । पर जो जागेगा वही पाएगा । सोने का पाना झूठा पाना है । सपना सपने से बाहर खो जाता है । असल उपलब्धि वहाँ नहीं । इससे मिलेगा वही जो कीमत देकर लिया जाएगा । जो आनन्दरूप है, वह जानने से जान लिया नहीं जाएगा । उसे तो दुःख पर दुःख उठाकर उपलब्ध करना होगा । इसलिए लिखने-पढ़ने और मनन करने से उसकी स्तुति अर्चना ही की जा सकती है, उपलब्धि नहीं की जा सकती । उपलब्धि तो उसे होगी जो जीवन के प्रत्येक क्षण योद्धा है, जो अपने को बचाता नहीं है, और बस अपने इष्ट को ही जानता है, कहो कि उसके लिए अपने को भी नहीं रखता है ।
(-जैनेन्द्र कुमार द्वारा लिखित निबन्ध ‘युद्ध’ से)

5. सांस्कृतिक कार्यक्रम कितने असांस्कृतिक

आज हमारे देश में सांस्कृतिक कार्यक्रमों की सर्वत्र धूम है । पंजाब में सभ्याचारक मेलों के नाम पर ऐसे कार्यक्रम सरकार द्वारा भी जगह-जगह करवाये जा रहे हैं । इन सांस्कृतिक कार्यक्रमों में लचरपने को देखकर हमारा सिर शर्म से झुक जाता है और हम यह सोचने पर विवश हो जाते हैं कि क्या यही हमारी संस्कृति है जिसके बूते पर हम संसार का गुरु होने का दावा सदियों तक करते रहे हैं । आज किसी शिक्षण संस्था को देखिए, किसी राष्ट्रीय पर्व में शामिल होइए या किसी विदेशी अतिथि के स्वागत समारोह में जाइए-आपको सर्वत्र पायलों की झंकार और नुपुरों की मधुर रुनझुन सुनाई देगी। आज प्राइमरी स्कूलों के नन्हें-मुन्ने बालक-बालिकाओं से लेकर विश्वविद्यालयों के विकसित मस्तष्कि वाले युवक-युवतियां भी इन तथाकथित सांस्कृतिक कार्यक्रमों में मग्न दिखाई दे रही हैं। प्रश्न उठता है कि हमारे देश की संस्कृति केवल नृत्य, गीत, राग-रस तक ही सीमित रह गयी है । संस्कृति के उदात्त तत्व को केवल संगीत और अभिनय तक ही सीमित कर देना कहां तक न्याय है ? हमारे देश के विद्यालयों के अधिकांश छात्रों का पर्याप्त समय इन कार्यक्रमों की तैयारी में ही नष्ट हो जाता है । आज 15 अगस्त है तो कल 26 जनवरी !

आज युवक समारोह (Youth Festival) है तो कल कुछ और । छात्रों को शिक्षा और उनके चरित्र के विषय में कुछ भी अवगत न कराया जाए परन्तु एक रसिक आयोजन अवश्य होगा। इन आयोजनों की तैयारी में छात्रों का अमूल्य समय और उससे भी मूल्यवान चरित्र कितना नष्ट होता है, इसकी ओर किसी का ध्यान ही नहीं है । आज विदेशी अतिथि आते हैं, हमारी सभ्यता, विचारधारा और जीवन निर्वाह के साधन देखने के लिए, परन्तु हम भारत की वास्तविकता दिखाने की अपेक्षा ‘कल्चरल प्रोग्राराम’ के नाम पर उन्हें दिखाते हैं अपनी जवान बहिन-बेटियों का नाच ? क्या हमारे पास कोई अच्छी वस्तु दिखाने को नहीं है । क्या हम उन्हें अरविन्द आश्रम, शान्ति-निकेतन और गुरुकुलों की सैर नहीं करा सकते? जो लोग इन नाचों को कराते हैं, चाहे वे माता-पिता हों या शिक्षक हों या सरकारी अधिकारी हों अथवा मन्त्री हों वे अवश्य ही पापों को प्रोत्साहन देने वाले हैं । हम शिक्षकों और शिक्षिकाओं से निवेदन करते हैं कि कृपया वे बालिकाओं को नाचना न सिखायें और उनका जीवन विलासिताप्रिय न बनाएं । प्रसिद्ध आचार्य श्री क्षति मोहन सेन ने ठीक ही कहा था कि मुझे तो ऐसा लगता है कि हम लोग संस्कृति शब्द का अर्थ ही भूल गये हैं ।
(कल्याण मासिक’ के वर्ष 62 के वार्षिकांक में प्रकाशित श्री भवानी लाल जी भारतीय के एक लेख से)

2. (क) निजी अनुभव पर आधारित संस्मरणात्मक अनुच्छेद

1. मेले में दो घंटे

भारत एक त्योहारों का देश है । इन त्योहारों को मनाने के लिए जगह- जगह मेले लगते हैं । इन मेलों का महत्त्व कुछ कम नहीं है किन्तु पिछले दिनों मुझे जिस मेले को देखने का सुअवसर मिला वह अपने आप में अलग ही था । इस मेले में बिताए दो घंटों का विवरण यहां प्रस्तुत कर रहा हूँ । भारतीय मेला प्राधिकरण तथा भारतीय कृषि और अनुसंधान परिषद् के सहयोग से हमारे नगर में एक कृषि मेले का आयोजन किया गया था । भारतीय कृषि विश्वविद्यालयों का इस मेले में सहयोग प्राप्त किया गया था । इस मेले में विभिन्न राज्यों ने अपने-अपने मंडप लगाए थे । उत्तर प्रदेश, पंजाब, बिहार और महाराष्ट्र के मंडपों में गन्ने और गेहूँ की पैदावार से सम्बन्धित विभिन्न चित्रों का प्रदर्शन किया गया था। केरल, गोवा के काजू और मसालों, असम में चाय, बंगाल में चावल, गुजरात, मध्य प्रदेश और पंजाब में रुई की पैदावार से संबंधित सामग्री प्रदर्शित की थी ।

अनेक व्यावसायिक एवं औद्योगिक कम्पनियों ने भी अपने अलग-अलग मंडप सजाए थे । इसमें रासायनिक खाद , ट्रैक्टर, डीज़ल पम्प, मिट्टी खोदने के उपकरण, हल, अनाज की कटाई और छटाई के अनेक उपकरण प्रदर्शित किए गए थे । इसी मेले में मुझे यह जानकारी प्राप्त कर खुशी हुई कि पंजाब में बने ट्रैक्टरों की बिक्री और मांग देश में सबसे अधिक है । यह मेला एशिया में अपनी तरह का पहला मेला था । इसमें अनेक एशियाई देशों ने भी अपने व्यापार को बढ़ाने के लिए मण्डप लगाए थे । इनमें जापान का मंडप सबसे विशाल था । इस मंडप को देख कर हमें पता चला कि जापान जैसा छोटासा देश कृषि के क्षेत्र में कितनी उन्नति कर चुका है । हमारे प्रदेश के बहुत-से कृषक यह मेला देखने आए थे । मेले में उन्हें अपनी खेती के विकास संबंधी काफी जानकारी प्राप्त हुई । इस मेले का सबसे बड़ा आकर्षण था मेले में आयोजित विभिन्न प्रान्तों के लोकनृत्यों का आयोजन । सभी नृत्य एक से बढ़ कर एक थे । मुझे पंजाब और हिमाचल प्रदेश के लोकनृत्य सबसे अच्छे लगे । इन नृत्यों को आमने-सामने देखने का मेरा यह पहला ही अवसर था । लगभग दो घंटे मेले में बिताने के बाद मैं घर लौट आया और अपने साथ ढेर सारी सूचना एकत्र करके लाया ।

2. प्रदर्शनी अवलोकन

पिछले महीने मुझे दिल्ली में अपने किसी मित्र के पास जाने का अवसर प्राप्त हुआ । संयोग से उन दिनों दिल्ली के प्रगति मैदान में एक अंतर्राष्ट्रीय प्रदर्शनी चल रही थी । मैंने अपने मित्र के साथ इस प्रदर्शनी को देखने का निश्चय किया । शाम अनुच्छेद लेखन को लगभग पांच बजे हम प्रगति मैदान पर पहुंचे । प्रदर्शनी के मुख्य द्वार पर हमें यह सूचना मिल गई कि इस प्रदर्शनी में लगभग तीस देश भाग ले रहे हैं । हमने देखा की सभी देशों ने अपने-अपने पंडाल बड़े कलात्मक ढंग से सजाए हुए हैं। उन पंडालों में उन देशों की निर्यात की जाने वाली वस्तुओं का प्रदर्शन किया जा रहा था। अनेक भारतीय कम्पनियों ने भी अपने-अपने पंडाल सजाए हुए थे । प्रगति मैदान किसी दुल्हन की तरह सजाया गया था । प्रदर्शनी में सजावट और रोशनी का प्रबन्ध इतना शानदार था कि अनायास ही मन से वाह निकल पड़ती थी ।

प्रदर्शनी देखने आने वालों की काफी भीड़ थी। हमने प्रदर्शनी के मुख्य द्वार से टिकट खरीद कर भीतर प्रवेश किया। सबसे पहले हम जापान के पंडाल में गए । जापान ने अपने पंडाल में कृषि, दूर संचार, कम्प्यूटर आदि से जुड़ी वस्तुओं का प्रदर्शन किया था । हमने वहां इक्कीसवीं सदी में टेलीफोन एवं दूर संचार सेवा कैसी होगी इस का एक छोटा-सा नमूना देखा । जापान ने ऐसे टेलिफोन का निर्माण किया था जिसमें बातें करने वाले दोनों व्यक्ति एक-दूसरे की फोटो भी देख सकेंगे । वहीं हमने एक पॉकेट टेलीविज़न भी देखा जो माचिस की डिबिया जितना था। सारे पंडाल का चक्कर लगाकर हम बाहर आए ।

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उसके बाद हमने दक्षिण कोरिया,ऑस्ट्रेलिय और जर्मनी के पंडाल देखे । उस प्रदर्शनी को देख कर हमें लगा कि अभी भारत को उन देशों का मुकाबला करने के लिए काफ़ी मेहनत करनी होगी । हमने वहां भारत में बनने वाले टेलीफोन, कम्प्यूटर आदि का पंडाल भी देखा । वहां यह जानकारी प्राप्त करके मन बहुत खुश हुआ कि भारत दूसरे बहुत-से देशों को ऐसा सामान निर्यात करता है । भारतीय उपकरण किसी भी हालत विदेशों में बने सामान से कम नहीं थे । कोई घण्टा भर प्रदर्शनी में घूमने के बाद हमने प्रदर्शनी में ही बने रस्टोरेंट में चाय-पान किया और इक्कीसवीं सदी में दुनिया में होने वाली प्रगति का नक्शा आँखों में बसाए विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में होने वाली अत्याधुनिक जानकारी प्राप्त करके घर वापस आ गए ।

3. नदी किनारे एक शाम

गर्मियों की छुट्टियों के दिन थे । कॉलेज जाने की चिंता नहीं थी और न ही होमवर्क की । एक दिन चार मित्र एकत्र हुए और सभी ने यह तय किया कि आज की शाम नदी किनारे सैर करके बिताई जाए । कुछ तो गर्मी से राहत मिलेगी कुछ प्रकृति के सौन्दर्य के दर्शन करके जी खुश होगा। एक ने कही दूजे ने मानी के अनुसार हम सब लगभग छ: बजे के करीब एक स्थान पर एकत्र हुए और पैदल ही नदी की ओर चल पड़े । दिन अभी ढला नहीं था बस ढलने ही वाला था । ढलते सूर्य की लाललाल किरणें पश्चिम क्षितिज पर ऐसे लग रही थीं मानो प्रकृति रूपी युवती लाल-लाल वस्त्र पहने मचल रही हो । पक्षी अपने-अपने घौंसलों की ओर लौटने लगे थे । खेतों में हरियाली छायी हुई थी । ज्यों ही हम नदी किनारे पहुंचे सूर्य की सुनहरी किरणें नदी के पानी पर पड़ती हुई बहुत भली प्रतीत हो रही थीं । ऐसे लगता था मानों नदी के जल में हजारों लाल कमल एक साथ खिल उठे हों। नदी तट पर लगे वृक्षों की पंक्ति देख कर ‘तरनि तनूजा तट तमाल तरुवर बहु छाए’ कविता की पंक्ति याद हो आई । नदी तट के पास वाले जंगल से ग्वाले पशु चरा कर लौट रहे थे । पशुओं के पैरों से उठने वाली धूलि एक मनोरम दृश्य उपस्थित कर रही थी ।

हम सभी मित्र बातें कम कर रहे थे, प्रकृति के रूप रस का पान अधिक कर रहे थे । हमने देखा कुछ शहरी लोग नदी किनारे सूर्यास्त का दृश्य देखने के लिए आ रहे हैं । हमने उन लोगों से दूर रहना ही उचित समझा क्योंकि वे लोग बातें अधिक कर रहे थे, प्रकृति का रूप कम निहार रहे थे। थोड़ी ही देर में सूर्य अस्तांचल की ओर जाता हुआ प्रतीत हुआ । नदी का जो जल पहले लाल-लाल लगता था अब धीरे-धीरे नीला पड़ना शुरू हो गया था । उड़ते हुए बगुलों की सफेद-सफेद पंक्तियाँ उस धूमिल वातावरण में और भी अधिक सफेद लग रही थीं । नदी तट पर सैर करते-करते हम गांव से काफी दूर निकल आए थे। प्रकृति की सुन्दरता निहारते-निहारते ऐसे खोये थे कि समय का ध्यान ही न रहा । हम सब गांव की ओर लौट पड़े और हम सब ने एक-दूसरे को यह बताया कि हमने क्या देखा, क्या अनुभव किया । सभी एक मत थे कि नदी तट पर नृत्य करती हुई प्रकृति रूपी नदी की यह शोभा विचित्र थी, अनोखी थी जिसे कोई दिल वाला ही अनुभव कर सकता है। नदी किनारे सैर करते हुए बितायी वह शाम ज़िन्दगी भर नहीं भूलेगी।

4. छुट्टी का दिन

छुट्टी के दिन की हर किसी को प्रतीक्षा होती है । विशेषकर विद्यार्थियों को तो इस दिन की प्रतीक्षा बड़ी बेसबरी से होती है। उस दिन न तो जल्दी उठने की चिन्ता होती है; न कॉलेज जाने की। स्कूल में भी छुट्टी की घण्टी बजते ही विद्यार्थी कितनी प्रसन्नता से ‘छुट्टी ओए’ का नारा लगाते हुए कक्षाओं से बाहर आ जाते हैं । प्राध्यापक महोदय के भाषण का आधा वाक्य ही उनके मुँह में रह जाता है और विद्यार्थी कक्षा छोड़ कर बाहर की ओर भाग जाते हैं और जब यह पता चलता है कि आज दिन भर की छुट्टी है तो विद्यार्थी की खुशी का ठिकाना नहीं रहता । छुट्टी के दिन का पूरा मज़ा तो लड़के ही उठाते हैं। वे उस दिन खूब जी भर कर खेलते हैं, घूमते हैं । कोई सारा दिन क्रिकेट के मैदान में बिताता है तो कोई पतंग बाज़ी में सारा दिन बिता देते हैं । सुबह के घर से निकले शाम को ही घर लौटते हैं । कोई कुछ कहे तो उत्तर मिलता है कि आज तो छुट्टी है।

परन्तु हम लड़कियों के लिए छुट्टी का दिन घरेलू काम-काज का दिन होता है । हाँ यह ज़रूर है कि उस दिन पढ़ाई से छुट्टी होती है । छुट्टी के दिन मुझे सुबह सवेरे उठ कर अपनी माता जी के साथ कपड़े धोने में सहायता करनी पड़ती है । मेरी माता जी एक स्कूल में पढ़ाती हैं अत: उनके पास कपड़े धोने के लिए केवल छुट्टी का दिन ही उपयुक्त होता है। कपड़े धोने के बाद मुझे अपने बाल धोने होते हैं बाल धोकर स्नान करके फिर रसोई में माता जी का हाथ बटाना पड़ता है । छुट्टी के दिन ही हमारे घर में विशेष व्यंजन पकते हैं ।

दूसरे दिनों में तो सुबह सवेरे सब को भागम भाग लगी होती है। किसी को स्कूल जाना होता है तो किसी को दफ्तर । दोपहर के भोजन के पश्चात् थोड़ा आराम करते हैं । फिर माता जी मुझे लेकर बैठ जाती हैं । कुछ सिलाई, बुनाई या कढ़ाई की शिक्षा देने । उनका मानना है कि लड़कियों को ये सब काम आने चाहिएं । शाम होते ही शाम की चाय का समय हो जाता है । छुट्टी के दिन शाम की चाय में कभी समोसे, कभी पकौड़े बनाये जाते हैं । चाय पीने के बाद फिर रात के खाने की चिन्ता होने लगती है और इस तरह छुट्टी का दिन एक लड़की के लिए छुट्टी का नहीं अधिक काम का दिन होता है । सोचती हूं काश मैं लड़का होती तो मैं भी छुट्टी के दिन का पूरा आनन्द उठाती ।

5. वर्षा ऋतु की पहली वर्षा

जून का महीना था । सूर्य अंगारे बरसा रहा था । धरती तप रही थी । पशु-पक्षी तक गर्मी के मारे परेशान थे । हमारे यहां तो कहावत प्रचलित है कि ‘जेठ हाड़ दियाँ धुपां पोह माघ दे पाले’ । जेठ अर्थात् ज्येष्ठ महीना हमारे प्रदेश में सबसे अधिक तपने वाला महीना होता है । इसका अनुमान तो हम जैसे लोग ही लगा सकते हैं । मजदूर और किसान ही इस तपती गर्मी को झेलते हैं । पंखों, कूलरों या एयर कंडीशनरों में बैठे लोगों को इस गर्मी की तपश का अनुमान नहीं हो सकता । ज्येष्ठ महीना बीता, आषाढ़ महीना शुरू हुआ इस महीने में ही वर्षा ऋतु की पहली वर्षा होती है । सब की दृष्टि आकाश की ओर उठती है । किसान लोग तो ईश्वर से प्रार्थना के लिए अपने हाथ ऊपर उठा देते हैं । सहसा एक दिन आकाश में बादल छा गये । बादलों की गड़गड़ाहट सुन कर मोर अपनी मधुर आवाज़ में बोलने लगे । हवा में भी थोड़ी शीतलता आ गई । मैं अपने कुछ साथियों के साथ वर्षा ऋतु की पहली वर्षा का स्वागत करने की तैयारी करने लगा । धीरे-धीरे हल्की-हल्की बूंदा-बंदी शुरू हो गयी । हमारी मण्डली की खुशी का ठिकाना न रहा । मैं अपने साथियों के साथ गांव की गलियों में निकल पड़ा । साथ ही हम नारे लगाते जा रहे थे, ‘कालियाँ इट्टां काले रोड़ मीह बरसा दे जोरो जोर’। कुछ साथी गा रहे थे ‘बरसो राम धड़ाके से, बुढ़िया मर गई फाके से’ ।

किसान लोग भी खुश थे । उनका कहना था – ‘बरसे सावन तो पाँच के हों बावन’ नववधुएं भी कह उठी ‘बरसात वर के साथ’ और विरहिणी स्त्रियां भी कह उठीं कि ‘छुट्टी लेके आजा बालमा, मेरा लाखों का सावन जाए ।’ वर्षा तेज़ हो गयी थी । हमारी मित्र मंडली वर्षा में भीगती गलियों से निकल खेतों की ओर चल पड़ी । खुले में वर्षा में भीगने, नहाने का मजा ही कुछ और है । हमारी मित्र मंडली में गांव के और बहुत से लड़के शामिल हो गये थे । वर्षा भी उस दिन कड़ाके से बरसी । मैं उन क्षणों को कभी भूल नहीं सकता । सौन्दर्य का ऐसा साक्षात्कार मैंने कभी न किया था। जैसे वह सौंदर्य अस्पृश्य होते हुए भी मांसल हो । मैं उसे छू सकता था, देख सकता था और पी सकता था । मुझे अनुभव हुआ कि कवि लोग क्योंकर ऐसे दृश्यों से प्रेरणा पाकर अमर काव्य का सृजन करते हैं । वर्षा में भीगना, नहाना, नाचना, खेलना उन लोगों के भाग्य में कहां जो बड़ी-बड़ी कोठियों में एयरकंडीशनर कमरों में रहते हैं।

6. रेलवे प्लेटफार्म का दृश्य

एक दिन संयोग से मुझे अपने बड़े भाई को लेने रेलवे स्टेशन पर जाना पड़ा । मैं प्लेटफार्म टिकट लेकर रेलवे स्टेशन के अन्दर गया। पूछताछ खिड़की से पता लगा कि दिल्ली से आने वाली गाड़ी प्लेटफार्म नं० 4 पर आएगी । मैं रेलवे पुल पार करके प्लेटफार्म नं० 4 पर पहुंच गया। वहां यात्रियों की काफ़ी बड़ी संख्या मौजूद थी । कुछ लोग मेरी तरह अपने प्रियजनों को लेने के लिए आये थे तो कुछ लोग अपने प्रियजनों को गाड़ी में सवार कराने के लिए आये हुए थे । जाने वाले यात्री अपने-अपने सामान के पास खड़े थे । कुछ यात्रियों के पास कुली भी खड़े थे । मैं भी उन लोगों की तरह गाड़ी की प्रतीक्षा करने लगा । इसी दौरान मैंने अपनी नज़र रेलवे प्लेटफार्म पर दौड़ाई ।

मैंने देखा कि अनेक युवक और युवितयाँ अनुच्छेद लेखन अत्याधुनिक पोशाक पहने इधर-उधर घूम रहे थे । कुछ युवक तो लगता था यहाँ केवल मनोरंजन के लिए ही आए थे । वे आने-जाने वाली लड़कियों, औरतों को अजीब-अजीब नज़रों से घूर रहे थे । ऐसे युवक दो-दो, चार-चार के ग्रुप में थे । कुछ यात्री टी-स्टाल पर खड़े चाय की चुस्कियाँ ले रहे थे, परन्तु उनकी नज़रे बार-बार उस तरफ उठ जाती थीं, जिधर से गाड़ी आने वाली थी। कुछ यात्री बड़े आराम से अपने सामान के पास खड़े थे, लगता था कि उन्हें गाड़ी आने पर जगह प्राप्त करने की कोई चिन्ता नहीं । उन्होंने पहले से ही अपनी सीट आरक्षित करवा ली थी ।

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कुछ फेरी वाले भी अपना माल बेचते हुए प्लेटफार्म पर घूम रहे थे । सभी लोगों की नज़रें उस तरफ थीं जिधर से गाड़ी ने आना था । तभी लगा जैसे गाड़ी आने वाली हो । प्लेटफार्म पर भगदड़-सी मच गई । सभी यात्री अपना-अपना सामान उठा कर तैयार हो गये । कुलियों ने सामान अपने सिरों पर रख लिया । सारा वातावरण उत्तेजना से भर गया । देखते ही देखते गाड़ी प्लेटफार्म पर आ पहुंची । कुछ युवकों ने तो गाड़ी के रुकने की भी प्रतीक्षा न की । वे गाड़ी के साथ दौड़ते-दौड़ते गाड़ी में सवार हो गये । गाड़ी रुकी तो गाड़ी में सवार होने के लिए धक्कम-पेल शुरू हो गयी । हर कोई पहले गाड़ी में सवार हो जाना चाहता था। उन्हें दूसरों की नहीं केवल अपनी चिन्ता थी। मेरे भाई मेरे सामने वाले डिब्बे में थे । उनके गाड़ी से नीचे उतरते ही मैंने उनके चरण स्पर्श किये और उनका सामान उठाकर स्टेशन से बाहर की ओर चल पड़ा । चलते-चलते मैंने देखा जो लोग अपने प्रियजनों को गाड़ी में सवार कराकर लौट रहे थे उनके चेहरे उदास थे और मेरी तरह जिनके प्रियजन गाड़ी से उतरे थे उनके चेहरों पर रौनक थी, खुशी थी।

7. बस अड्डे का दृश्य

आजकल पंजाब में लोग अधिकतर बसों से ही यात्रा करते हैं । पंजाब का प्रत्येक गांव मुख्य सड़क से जुड़ा होने के कारण बसों का आना-जाना अब लगभग हर गांव में होने लगा है । बस अड्डों का जब से प्रबन्ध पंजाब रोडवेज़ के अधिकार क्षेत्र में आया है बस अड्डों का हाल दिनों-दिन बरा हो रहा है । हमारे शहर का बस अड्डा भी उन बस अड्डों में से एक है जिसका प्रबन्ध हर दृष्टि से बेकार है । इस बस अड्डे के निर्माण से पूर्व बसें अलग-अलग स्थानों से अलगअलग अड्डों से चला करती थीं । सरकार ने यात्रियों की असुविधा को ध्यान में रखते हुए सभी बस अड्डे एक स्थान पर कर दिये । शुरू-शुरू में तो लोगों को लगा कि सरकार का यह कदम बड़ा सराहनीय है किन्तु ज्यों-ज्यों समय बीतता गया जनता की कठिनाइयां, परेशानियां बढ़ने लगीं। हमारे शहर के बस अड्डे पर भी अन्य शहरों की तरह अनेक दुकानें बनाई गई हैं । जिनमें खान-पान, फल-सब्जियों आदि की दुकानों के अतिरिक्त पुस्तकों की, मनियारी आदि की भी अनेक दुकानें हैं । हलवाई की दुकान से उठने वाला धुआँ सारे यात्रियों की परेशानी का कारण बनता है । चाय पान आदि की दुकानों की साफ सफाई की तरफ कोई ध्यान नहीं देता । वहाँ माल भी महँगा मिलता है और गंदा भी।

बस अड्डे में अनेक फलों की रेहड़ी वालों को भी माल बेचने की आज्ञा दी गई है । ये लोग काले लिफाफे रखते हैं जिनमें वे सड़े गले फल पहले से ही तोल कर रखते हैं और लिफाफा इस चतुराई से बदलते हैं कि यात्री को पता नहीं चलता । घर पहुंच कर ही पता चलता है कि उन्होंने जो फल चुने थे वे सब बदल दिये गये हैं । अड्डा इन्चार्ज इस सम्बन्ध में कोई कार्यवाही नहीं करते। बस अड्डे की शौचालय की साफ-सफ़ाई न होने के बराबर है । यात्रियों को टिकट देने के लिए लाइन नहीं लगवाई जाती । बस आने पर लोग भाग दौड़ कर बस में सवार होते हैं । औरतों, बच्चों और वृद्ध लोगों का बस में चढ़ना ही कठिन होता है । बहुत बार देखा गया है कि जितने लोग बस के अन्दर होते हैं उतने ही बस के ऊपर चढ़े होते हैं । पंजाब में एक कहावत प्रसिद्ध है कि रोडवेज़ की लारी न कोई शीशा न कोई बारी । पर बस अड्डों का हाल तो उनसे भी बुरा है । जगह-जगह खड्डे, कीचड़, मक्खियां, मच्छर और न जाने क्या-क्या । आज यह बस अड्डे जेब कतरों और नौसर बाजों के अड्डे बने हुए हैं । हर यात्री को अपने-अपने घर पहुंचने की जल्दी होती है इसलिए कोई भी बस अड्डे की इस दुर्दशा की ओर ध्यान नहीं देता ।

8. मतदान केन्द्र का दृश्य

प्रजातन्त्र में चुनाव अपना विशेष महत्त्व रखते हैं । गत 13 फरवरी को हमारे कस्बे में नवांशहर विधानसभा क्षेत्र के लिए भी चुनाव हुआ । चुनाव से कोई महीना भर पहले विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा बड़े जोर-शोर से चुनाव प्रचार किया गया । धन और शराब का खुलकर वितरण किया गया । पंजाब में एक कहावत प्रसिद्ध है कि चुनाव के दिनों में यहाँ नोटों की वर्षा की जाती है और शराब की नदियां बहती हैं । चुनाव आयोग ने लाख सिर पटका पर ढाक के तीन पात ही रहे । आज मतदान का दिन है । मतदान से एक दिन पूर्व ही मतदान केन्द्रों की स्थापना की गई है । मतदान वाले दिन जनता में भारी उत्साह देखा गया ।

इस बार पंजाब में पहली बार इलेक्ट्रॉनिक मशीनों का प्रयोग किया जा रहा था । अब मतदाताओं को मतदान केन्द्र पर मत-पत्र नहीं दिये जाने थे और न ही उन्हें अपने मत मतपेटियों में डालने थे । अब तो मतदाताओं को अपनी पसन्द के उम्मीदवार के नाम और चुनाव चिह्न के आगे लगे बटन को दबाना भर था । इस नए प्रयोग के कारण भी मतदाताओं में काफी उत्साह देखने में आया। मतदान प्रात: आठ बजे शुरू होना था किन्तु मतदान केन्द्रों के बाहर विभिन्न राजनीतिक दलों ने अपने-अपने पंडाल समय से काफ़ी पहले सजा लिये । उन पंडालों में उन्होंने अपनी-अपनी पार्टी के झण्डे एवं उम्मीदवार के चित्र भी लगा रखे थे । दो तीन मेजें भी पंडाल में लगाई गई थीं जिन पर उम्मीदवार के कार्यकर्ता मतदान सूचियाँ लेकर बैठे थे और मतदाताओं को मतदाता सूची में से उनकी क्रम संख्या तथा मतदान केन्द्र की संख्या तथा मतदान केन्द्र का नाम लिखकर एक पर्ची दे रहे थे ।

आठ बजने से पूर्व ही मतदान केन्द्रों पर मतदाताओं की लम्बी-लम्बी कतारें लगनी शुरू हो गई थीं । मतदाता विशेषकर स्त्री मतदाता खूब सज-धज कर आए थे । ऐसा लगता था कि वे किसी मेले में आए हों । दोपहर होते-होते मतदाताओं की भीड़ में कमी आने लगी । राजनीतिक पार्टियों के कार्यकर्ता मतदाताओं को घेर-घेर कर ला रहे थे । हालांकि चुनाव आयोग ने मतदाताओं को किसी प्रकार के वाहन में लाने की मनाही की है किन्तु सभी उम्मीदवार अपने-अपने मतदाताओं को रिक्शा, जीप या कार में बिठा कर ला रहे थे । सायं पांच बजते-बजते यह मेला उजड़ने लगा। भीड़ मतदान केन्द्र से हट कर उम्मीदवारों के पंडालों में जमा हो गयी थी और सभी अपने-अपने उम्मीदवार की जीत के अनुमान लगाने में मस्त थे ।

9. रेल यात्रा का अनुभव

हमारे देश में रेलवे ही एक ऐसा विभाग है जो यात्रियों को टिकट देकर सीट की गारण्टी नहीं देता । रेल का टिकट खरीद कर सीट मिलने की बात तो बाद में आती है पहले तो गाड़ी में घुस पाने की भी समस्या सामने आती है । और यदि कहीं आप बाल-बच्चों अथवा सामान के साथ यात्रा कर रहे हों तो यह समस्या और भी विकट हो उठती है । कभी-कभी तो ऐसा भी होता है कि टिकट पास होते हुए भी आप गाड़ी में सवार नहीं हो पाते और ‘दिल की तमन्ना दिल में रह गयी’ गाते हुए या रोते हुए घर लौट आते हैं । रेलगाड़ी में सवार होने से पूर्व गाड़ी की प्रतीक्षा करने का समय बड़ा कष्टदायक होता है । मैं भी एक बार रेलगाड़ी में मुम्बई जाने के लिए स्टेशन पर गाड़ी की प्रतीक्षा कर रहा था । गाड़ी कोई दो घंटे लेट थी । यात्रियों की बेचैनी देखते ही बनती थी । गाड़ी आई तो गाड़ी में सवार होने के लिए जोर आज़माई शुरू हो गयी । किस्मत अच्छी थी कि मैं गाड़ी में सवार होने में सफल हो सका । गाड़ी चले अभी घंटा भर ही हुआ था कि कुछ यात्रियों के मुख से मैंने सुना कि यह डिब्बा जिसमें मैं बैठा था अमुक स्थान पर कट जाएगा ।

यह सुनकर मैं तो दुविधा में पड़ गया । गाड़ी रात के एक बजे उस स्टेशन पर पहुंची जहाँ हमारा वह डिब्बा मुख्य गाड़ी से कटना था और हमें दूसरे डिब्बे में सवार होना था । उस समय अचानक तेज़ वर्षा होने लगी । स्टेशन पर कोई भी कुली नज़र नहीं आ रहा था। सभी यात्री अपना-अपना सामान उठाये वर्षा में भीगते हुए दूसरे डिब्बे की ओर भागने लगे । मैं भी ईश्वर चन्द्र विद्यासागर का स्मरण करते हुए अपना सामान स्वयं ही उठाने का निर्णय करते हुए अपना सामान गाड़ी से उतारने लगा । मैं अपना अटैची लेकर उतरने लगा कि एक दम से वह डिब्बा चलने लगा । मैं गिरते-गिरते बचा और अटैची मेरे हाथ से छूट कर प्लेटफार्म पर गिर पड़ा और पता नहीं कैसे झटके के साथ खुल गया । मेरे कपड़े वर्षा में भीग गये। मैंने जल्दी-जल्दी अपना सामान समेटा और दूसरे डिब्बे की ओर बढ़ गया । गर्मी का मौसम और उस डिब्बे के पंखे बन्द । खैर गाड़ी चली तो थोड़ी हवा लगी और कुछ राहत मिली । बड़ी मुश्किल से मैं मुम्बई पहुँचा ।।

10. बस यात्रा का अनुभव

पंजाब में बस-यात्रा करना कोई आसान काम नहीं है । एक तो पंजाब की बसों के विषय में पहले ही कहावत प्रसिद्ध है कि रोडवेज़ दी लारी न कोई शीशा न कोई बारी’ दूसरे 52 सीटों वाली बस में ऊपर-नीचे कोई सौ सवा सौ आदमी सवार होते हैं । ऐसे अवसरों पर कंडक्टर महाश्य की तो चांदी होती है । वे न किसी को टिकट देते हैं और न किसी को बाकी पैसे । मुझे भी एक बार ऐसी ही बस यात्रा करने का अनुभव हुआ । मैं बस अड्डे पर उस समय पहुँचा जब बस चलने वाली ही थी अतः मैं टिकट खिड़की की ओर न जाकर सीधा बस की ओर बढ़ गया। बस ठसा ठस भरी हुई थी । मुझे जाने की जल्दी थी इसलिए मैं भी उस बस में घुस गया । बड़ी मुश्किल से खड़े होने की जगह मिली । मेरे बस में सवार होने के बाद भी बहुत से यात्री बस में चढ़ना चाहते थे । कंडक्टर ने उन्हें बस की छत्त के ऊपर चढ़ने के लिए कहा । पुरुष यात्री तो सभी अनुच्छेद लेखन छत पर चढ़ गये परन्तु स्त्रियां और बच्चे न चढ़े। बस चली तो लोगों ने सुख की सांस ली। थोड़ी देर में बस कंडक्टर टिकटें काटता हुआ मेरे पास आया । मुझे लगा उसने शराब पी रखी है । मुझ से पैसे लेकर उसने बकाया मेरी टिकट के पीछे लिख दिया और आगे बढ़ गया ।

मैंने अपने पास खड़े एक सज्जन से कंडक्टर के शराब पीने की बात कही तो उन्होंने कहा कि शाम के समय ये लोग ऐसे ही चलते हैं । हराम की कमाई है शराब में नहीं उड़ाएंगे तो और कहाँ उड़ाएंगे । थोड़ी ही देर में एक बूढ़ी स्त्री का उस कंडक्टर से झगड़ा हो गया । कंडक्टर उसे फटे हुए नोट बकाया के रूप में वापस कर रहा था और बुढ़िया उन नोटों को लेने से इन्कार कर रही थी । कंडक्टर कह रहा था ये सरकारी नोट हैं हमने कोई अपने घर तो बनाये नहीं । इसी बीच उसने उस बुढ़िया को कुछ अपशब्द कहे । बुढ़िया ने उठ कर उसको गले से पकड़ लिया । सारे यात्री कंडक्टर के विरुद्ध हो गये। कंडक्टर बजाए क्षमा मांगने के और भी गर्म हो रहा था । अभी उन में यह झगड़ा चल ही रहा था कि मेरे गांव का स्टाप आ गया । बस रुकी और मैं जल्दी से उतर गया । बस क्षण भर रुकने के बाद आगे बढ़ गयी। मेरी सांस में सांस आई । जैसे मुझे किसी ने शिकंजे में दबा रखा हो। इसी घबराहट में मैं कंडक्टर से अपने बकाया पैसे लेना भी भूल गया।

11. परीक्षा भवन का दृश्य

अप्रैल महीने की पहली तारीख थी । उस दिन हमारी वार्षिक परीक्षाएं शुरू हो रही थीं । परीक्षा शब्द से वैसे सभी मनुष्य घबराते हैं परन्तु विद्यार्थी वर्ग इस शब्द से विशेष रूप से घबराता है । मैं जब घर से चला तो मेरा दिल भी धक-धक कर रहा था । रात भर पढ़ता रहा। चिन्ता थी कि यदि सारी रात के पढ़े में से कुछ भी प्रश्न पत्र में न आया तो क्या होगा । परीक्षा भवन के बाहर सभी विद्यार्थी चिन्तित से नज़र आ रहे थे । कुछ विद्यार्थी किताबें लेकर अब भी उनके पन्ने उलट पुलट रहे थे। कुछ बड़े खुश-खुश नज़र आ रहे थे। लड़कों से ज्यादा लड़कियां अधिक गम्भीर नज़र आ रही थीं । कुछ लड़कियाँ तो इसी आत्मविश्वास के कारण ही शायद हर परीक्षा में लड़कों से बाजी मार जाती हैं। मैं अपने सहपाठियों से उस दिन के प्रश्न पत्र के बारे में बात कर ही रहा था कि परीक्षा भवन में घंटी बजनी शुरू हो गई । यह संकेत था कि हमें परीक्षा भवन में प्रवेश कर जाना चाहिए। सभी विद्यार्थियों ने परीक्षा भवन में प्रवेश करना शुरू कर दिया । भीतर पहुँच कर हम सब अपने अपने रोल नं० के अनुसार अपनी-अपनी सीट पर जाकर बैठ गये ।

थोड़ी ही देर में अध्यापकों द्वारा उत्तर पुस्तिकाएं बांट दी गईं और हम ने उस पर अपना-अपना रोल नं० आदि लिखना शुरू कर दिया । ठीक नौ बजते ही एक घंटी बजी और अध्यापकों ने प्रश्न पत्र बाँट दिये । कुछ विद्यार्थी प्रश्न पत्र प्राप्त करके उसे माथा टेकते देखे गये। मैंने भी ऐसा ही किया। माथा टेकने के बाद मैंने प्रश्न पत्र पढ़ना शुरू किया । मेरी खुशी का कोई ठिकाना न था क्योंकि प्रश्न पत्र के सभी प्रश्न मेरे पढ़े हुए या तैयार किये हुए प्रश्नों में से थे । मैंने किये जाने वाले प्रश्नों पर निशान लगाये और कुछ क्षण तक यह सोचा कि कौन-सा प्रश्न पहले करना चाहिए और फिर उत्तर लिखना शुरू कर दिया । मैंने देखा कुछ विद्यार्थी अभी बैठे सोच ही रहे थे शायद उनके पढ़े में से कोई प्रश्न न आया हो । तीन घण्टे तक मैं बिना इधर-उधर देखे लिखता रहा । परीक्षा भवन से बाहर आकर ही मुझे पता चला कि कुछ विद्यार्थियों ने बड़ी नकल की परन्तु मुझे इसका कुछ पता नहीं चला । मेज़ से सिर उठाता तो पता चलता । मैं प्रसन्न था कि उस दिन मेरा पर्चा बहुत अच्छा हुआ था।

12. मेरे जीवन की अविस्मरणीय घटना

आज मैं बी० ए० प्रथम वर्ष में हो गया हूँ । माता-पिता कहते हैं कि अब तुम बड़े हो गये हो । मैं भी कभी-कभी सोचता हूँ कि क्या मैं सचमुच बड़ा हो गया हूँ । हां, मैं सचमुच बड़ा हो गया हूँ । मुझे बीते दिनों की कुछ बातें आज भी याद हैं जो मेरा मार्गदर्शन कर रही हैं । एक घटना ऐसी है जिसे मैं आज भी याद करके आनन्द विभोर हो उठता हूँ । घटना कुछ इस तरह से है । कोई दो तीन साल पहले की घटना है । मैंने एक दिन देखा कि हमारे आंगन में लगे वृक्ष के नीचे एक चिड़िया का बच्चा घायल अवस्था में पड़ा है । मैं उस बच्चे को उठा कर अपने कमरे में ले आया। मेरी माँ ने मुझे रोका भी कि इसे इस तरह न उठाओ यह मर जाएगा किन्तु मेरा मन कहता था कि इस चिड़िया के बच्चे को बचाया जा सकता है । मैंने उसे चम्मच से पानी पिलाया । पानी मुँह में जाते ही उस बच्चे ने जो बेहोश-सा लगता था पंख फड़फड़ाने शुरू कर दिये । यह देख कर मैं प्रसन्न हुआ । मैंने उसे गोद में लेकर देखा कि उस की टांग में चोट आई है । मैंने अपने छोटे भाई से माँ से मरहम की डिबिया लाने को कहा । वह तुरन्त मरहम की डिबिया ले आया। उस में से थोड़ी सी मरहम मैंने उस चिड़िया के बच्चे की चोट पर लगाई ।

मरहम लगते ही मानो उसकी पीड़ा कुछ कम हुई । वह चुपचाप मेरी गोद में ही लेटा था । मेरा छोटा भाई भी उस के पंखों पर हाथ फेर कर खुश हो रहा था । कोई घण्टा भर मैं उसे गोद में ही लेकर बैठा रहा । मैंने देखा कि बच्चा थोड़ा उड़ने की कोशिश करने लगा था । मैंने छोटे भाई से एक रोटी मंगवाई और उसकी चूरी बनाकर उसके सामने रखी । वह उसे खाने लगा । हम दोनों भाई उसे खाते हुए देख कर खुश हो रहे थे । मैंने उसे अब अपनी पढ़ाई की मेज़ पर रख दिया । रात को एक बार फिर उस के घाव पर मरहम लगाई । दूसरे दिन मैंने देखा चिड़िया का वह बच्चा मेरे कमरे में इधर-उधर फुदकने लगा है । वह मुझे देख चींची करके मेरे प्रति अपना आभार प्रकट कर रहा था । एक दो दिनों में ही उस का घाव ठीक हो गया और मैंने उसे आकाश में छोड़ दिया । वह उड़ गया । मुझे उस चिड़िया के बच्चे के प्राणों की रक्षा करके जो आनन्द प्राप्त हुआ उसे मैं जीवन भर नहीं भुला पाऊँगा ।

13. आँखों देखी दुर्घटना का दृश्य

पिछले रविवार की बात है मैं अपने मित्र के साथ सुबह-सुबह सैर करने माल रोड पर गया। वहाँ बहुत से स्त्री-पुरुष और बच्चे भी सैर करने आये हुए थे। जब से दूरदर्शन पर स्वास्थ्य सम्बन्धी कार्यक्रम आने लगे हैं अधिक-से-अधिक लोग प्रातः भ्रमण के लिए इन जगहों पर आने लगे हैं। रविवार होने के कारण उस दिन भीड़ कुछ अधिक थी । तभी मैंने वहाँ एक युवा दम्पति को अपने छोटे बच्चे को बच्चा गाड़ी में बिठा कर सैर करते देखा । अचानक लड़कियों के स्कूल की ओर एक तांगा आता हुआ दिखाई पड़ा। उस में चार पाँच सवारियाँ भी बैठी थीं । बच्चा गाड़ी वाले दम्पत्ति ने तांगे से बचने के लिए सड़क पार करनी चाही। जब वे सड़क पार कर रहे थे तो दूसरी तरफ से बड़ी तेज़ गति से आ रही एक कार उस तांगे से टकरा गई। तांगा चलाने वाला और दो सवारियां बुरी तरह से घायल हो गये थे। बच्चा गाड़ी वाली स्त्री के हाथ से बच्चा गाड़ी छूट गयी किन्तु इस से पूर्व कि वह बच्चे समेत तांगे और कार की टक्कर वाली जगह पर पहुँच कर उन से टकरा जाती मेरे साथी ने भागकर उस बच्चा गाड़ी को सम्भाल लिया। कार चलाने वाले सज्जन को भी काफ़ी चोटें आई थीं पर उस की कार को कोई खास क्षति नहीं पहुंची थी।

माल रोड पर गश्त करने वाली पुलिस के तीन चार सिपाही तुरन्त घटना स्थल पर पहुँच गये । उन्होंने वायरलैस द्वारा अपने अधिकारियों और हस्पताल को फोन किया। कुछ ही मिनटों में वहाँ एम्बुलैंस गाड़ी आ गई । हम सब ने घायलों को उठा कर एम्बुलैंस में लिटाया। पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी भी तुरन्त वहाँ पहुँच गये। उन्होंने कार चालक को पकड़ लिया था। प्रत्यक्षदर्शियों ने पुलिस को बताया कि सारा दोष कार चालक का था। इस सैर सपाटे वाली सड़क पर वह 100 कि० मी० की स्पीड से कार चला रहा था और तांगा सामने आने पर ब्रेक न लगा सका। दूसरी तरफ बच्चे को बचाने के लिए मेरे मित्र द्वारा दिखाई फुर्ती और चुस्ती की भी लोग सराहना कर रहे थे। उस दम्पति ने उस का विशेष धन्यवाद किया । बाद में हमें पता चला कि तांगा चालक ने हस्पताल में जाकर दम तोड़ दिया । जिसने भी इस घटना के बारे में सुना वह दु:खी हुए बिना न रह सका ।

14. कैसे मनायी हम ने पिकनिक

पिकनिक एक ऐसा शब्द है जो थके हुए शरीर एवं मन में एक दम स्फूर्ति ला देता है । मैंने और मेरे मित्र ने परीक्षा के दिनों में बड़ी मेहनत की थी । परीक्षा का तनाव हमारे मन और मस्तिष्क पर विद्यमान था अतः उस तनाव को दूर करने के लिए हम दोनों ने यह निर्णय किया कि क्यों न किसी दिन माधोपुर हैडवर्क्स पर जाकर पिकनिक मनायी जाए । अपने इस निर्णय से अपने मुहल्ले के दो-चार और मित्रों को अवगत करवाया तो वे भी हमारे साथ चलने को तैयार हो गये। माधोपुर हैडवर्क्स हमारे शहर से लगभग 10 कि० मि० दूरी पर था अतः हम सब ने अपने-अपने साइकलों पर जाने का निश्चय किया । पिकनिक के लिए रविवार का दिन निश्चित किया गया क्योंकि उस दिन वहाँ बड़ी रौनक रहती है ।

रविवार वाले दिन हम सब ने नाश्ता करने के बाद अपने-अपने लंच बाक्स तैयार किये तथा कुछ अन्य खाने का सामान अपने-अपने साइकलों पर रख लिया । मेरे मित्र के पास एक छोटा टेपरिकार्डर भी था उसे भी उसने साथ ले लिया तथा साथ में कुछ अपने मन पसन्द गानों की टेपस् भी रख ली । हम सब अपनी-अपनी साइकल पर सवार हो, हँसते गाते एक-दूसरे को चुटकले सुनाते पिकनिक स्थल की ओर बढ़ चले । लगभग 45 मिनट में हम सब माधोपुर हैडवर्क्स पर पहुँच गये। वहां हम ने प्रकृति को अपनी सम्पूर्ण सुषमा के साथ विराजमान देखा । चारों तरफ रंग-बिरंगे फूल खिले हुए थे, शीतल, और मन्द-मन्द हवा बह रही थी । हम ने एक ऐसी जगह चुनी जहाँ घास की प्राकृतिक कालीन बिछी हुई थी । हमने वहाँ एक दरी, जो हम साथ

अनुच्छेद लेखन लाये थे, बिछा दी । साइकिल चलाकर हम थोड़ा थक गये थे अत: हमने पहले थोड़ी देर विश्राम किया । हमारे एक साथी ने हमारी कुछ फोटो उतारी । थोड़ी देर सुस्ता कर हमने टेप रिकार्डर चला दिया और गीतों की धुन पर मस्ती में भर कर नाचने लगे । कुछ देर तक हम ने इधर-उधर घूम कर वहाँ के प्राकृतिक दृश्यों का नज़ारा किया । दोपहर को हम सब ने अपनेअपने टिफन खोले और सबने मिल बैठ कर एक दूसरे का भोजन बांट कर खाया । उस के बाद हम ने वहां स्थित कैनाल रेस्ट हाऊस रेस्टोरों में जाकर चाय पी । चाय पान के बाद हम ने अपने स्थान पर बैठ कर ताश खेलनी शुरू की । साथ में हम संगीत भी सुन रहे थे । ताश खेलना बन्द करके हमने एक दूसरे को कुछ चुटकले और कुछ आप बीती हंसी मज़ाक की बातें बताईं । हमें समय कितनी जल्दी बीत गया इसका पता ही न चला । जब सूर्य छिपने को आया तो हम ने अपना-अपना सामान समेटा और घर की तरफ चल पड़े । सच ही वह दिन हम सबके लिए एक रोमांचकारी दिन रहा।

15. पर्वतीय स्थान की यात्रा

आश्विन महीने के नवरात्रों में पंजाब के अधिकतर लोग देवी दुर्गा माता के दरबार में हाजिरी लगवाने और माथा टेकने जाते हैं। पहले हम हिमाचल प्रदेश में स्थित माता चिन्तापूर्णी और माता ज्वाला जी के मंदिरों में माथा टेकने आया करते थे। इस बार हमारे मुहल्ले वासियों ने मिल कर जम्मू क्षेत्र में स्थित माता वैष्णों देवी के दर्शनों को जाने का निर्णय किया । हमने एक बस का प्रबन्ध किया था, जिसमें लगभग पचास के करीब बच्चे-बूढ़े और स्त्री-पुरुष सवार होकर जम्मू के लिए रवाना हुए । सभी परिवारों ने अपने साथ भोजन आदि सामग्री भी ले ली थी । पहले हमारी बस पठानकोट पहुँची, वहां कुछ रुकने के बाद हम ने जम्मू क्षेत्र में प्रवेश किया । हमारी बस टेढ़े-मेढ़े पहाड़ी रास्ते को पार करती हुई जम्मू तवी पहुँच गयी । सारे रास्ते में दोनों तरफ अद्भुत प्राकृतिक दृश्य देखने को मिले जिन्हें देख कर हमारा मन प्रसन्न हो उठा । बस में सवार सभी यात्री माता की भेंटें गा रहे थे और बीच में माँ शेरा वाली का जयकारा भी बुला रहे थे । लगभग 6 बजे हम लोग कटरा पहुँच गये । वहाँ एक धर्मशाला में हम ने अपना सामान रखा और विश्राम किया और वैष्णो देवी जाने के लिए टिकटें प्राप्त की। दूसरे दिन सुबह सवेरे हम सभी माता की जय पुकारते हुए माता के दरबार की ओर चल पड़े। कटरा से भक्तों को पैदल ही चलना पड़ता है । कटरे से माता के दरबार तक जाने के दो मार्ग हैं । एक सीढ़ियों वाला मार्ग तथा दूसरा साधारण ।

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हमने साधारण मार्ग को चुना । इस मार्ग पर कुछ लोग खच्चरों पर सवार होकर भी यात्रा कर रहे थे । यहाँ से लगभग 14 किलोमीटर की दूरी पर माता का मन्दिर है । मार्ग में हमने बाण गंगा में स्नान किया । पानी बर्फ-सा ठंडा था फिर भी सभी यात्री बड़ी श्रद्धा से स्नान कर रहे थे। कहते हैं यहाँ माता वैष्णो देवी ने हनुमान जी की प्यास बुझाने के लिए बाण चलाकर गंगा उत्पन्न की थी । यात्रियों को बाण गंगा में नहाना ज़रूरी माना जाता है अन्यथा कहते हैं कि माता के दरबार की यात्रा सफल नहीं होती । चढ़ाई बिल्कुल सीधी थी । चढ़ाई चढ़ते हुए हमारी सांस फूल रही थी परन्तु सभी यात्री माता की भेंटें गाते हुए और माता की जय जयकार करते हुए बड़े उत्साह से आगे बढ़ रहे थे । सारे रास्ते में बिजली के बल्ब लगे हुए थे और जगह-जगह पर चाय की दुकानें और पीने के पानी का प्रबंध किया गया था । कुछ ही देर में हम आदक्वारी नामक स्थान पर पहुँच गये । मन्दिर के निकट पहुँच कर हम दर्शन करने वाले भक्तों की लाइन में खड़े हो गये । अपनी बारी आने पर हम ने माँ के दर्शन किये । श्रद्धा पूर्वक माथा टेका और मन्दिर से बाहर आ गए । आजकल मन्दिर का सारा प्रबन्ध जम्मू-कश्मीर की सरकार एवं एक ट्रस्ट की देख-रेख में होता है । सभी प्रबन्ध बहुत अच्छे एवं सराहना के योग्य थे । घर लौटने तक हम सभी माता के दर्शनों के प्रभाव को अनुभव करते रहे ।

16. ऐतिहासिक स्थान की यात्रा

यह बात पिछली गर्मियों की है । मुझे मेरे एक पत्र मित्रं का पत्र प्राप्त हुआ जिसमें मुझे कुछ दिन उसके साथ आगरा में बिताने का निमंत्रण दिया गया था । यह निमन्त्रण पाकर मैं बहुत प्रसन्न हुआ । किसी महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थान को देखने का मुझे अवसर मिल रहा था । मैंने अपने पिता से बात की तो उन्होंने खुशी-खुशी मुझे आगरा जाने की अनुमति दे दी। मैं रेल द्वारा आगरा पहुँचा। मेरा मित्र मुझे स्टेशन पर लेने आया हुआ था । वह मुझे अपने घर लिवा ले गया । यह मात्र संयोग की बात थी या फिर मेरा सौभाग्य कि उस दिन पूर्णिमा थी और कहते हैं पूर्णिमा की चाँदनी में ताजमहल को देखने का आनन्द ही कुछ और होता है । रात के लगभग नौ बजे हम घर से निकले ।

दूर से ही ताजमहल के मीनारों और गुम्बदों का दृश्य दिखाई दे रहा था । हमने प्रवेश द्वार से टिकट खरीदे और अपनी बारी की प्रतीक्षा करने लगे। भारत सरकार ने ताजमहल को प्रदूषण से बचाने के लिए कई उपाय किये हैं जिन में यात्रियों की संख्या को नियन्त्रित करना भी एक है। ताजमहल के चारों ओर लाल पत्थर की दीवारें हैं जिसमें एक बहुत बड़ा और सुन्दर उद्यान है जिस की सजावट और हरियाली देख कर मन मोहित हो उठता है । हमने ताजमहल परिसर में जब प्रवेश किया तो देखा कि अन्दर देशी कम विदेशी पर्यटक अधिक थे । ताजमहल तक जाने के लिए सब से पहले एक बहुत ऊँचे और सुन्दर द्वार से होकर जाना पड़ता है ।

ताजमहल उद्यान के एक ऊँचे चबूतरे पर बनाया गया है जो सफेद संगमरमर का बना है । इसका गुम्बद बहुत ऊँचा है उस के चारों ओर बड़ीबड़ी मीनारें हैं । ताजमहल के पश्चिम की ओर यमुना नदी बहती है । यमुना जल में ताज की परछाई बहुत सुंदर व मोहक लग रही थी । हम ने ताजमहल के भीतर प्रवेश किया। सबसे नीचे के भवन में मुग़ल सम्राट शाहजहां और उस की पत्नी और प्रेमिका मुमताज महल की कब्रे हैं । उन पर अरबी भाषा में कुछ लिखा हुआ है और बहुत से रंग बिरंगे बेलबूटे बने हुए हैं। इस कमरे के ठीक ऊपर एक ऐसा ही भाग है । सौन्दर्य की दृष्टि से भी उसका विशेष महत्त्व है। कहते हैं इस में बनी संगमरमर की जाली की जगह पहले सोने की बनी जाली थी जिसे औरंगजेब ने हटवा दिया था । कहते हैं कि ताजमहल के निर्माण में बीस वर्ष लगे थे और उस युग में तीस लाख रुपए खर्च हुए थे । इसे बनाने में तीस हज़ार मजदूरों ने योगदान किया था । यह स्मारक बादशाह ने अपनी पत्नी की याद में बनवाया था ।

आज इसे संसार का आठवां अजूबा भी कहा जाता है । दुनिया भर से हर वर्ष लाखों लोग इसे देखने के लिए आते हैं । आज ताजमहल भी प्रदूषण का शिकार हो रहा है इसे बचाने के हर सम्भव उपाय किये जाने चाहिए । इसे देखकर हमारे मन में यह भाव जाग्रत होते हैं कि सच्चा प्रेम सदा अमर रहता है । जी न करते हुए भी हमें वहाँ से लौटकर वापस घर आना पड़ा।

17. तेते पाँव पसारिये जेती लाम्बी सौर

बड़े बुजुर्गों ने ठीक ही कहा है कि लेते पाँव पसारिये जेती लाम्बी सौर। अर्थात् व्यक्ति को अपनी सामर्थ्य के अनुसार ही कार्य करना चाहिए अथवा खर्च करना चाहिए। अपनी सामर्थ्य से बाहर खर्च करने पर व्यक्ति को कष्ट तो उठाना ही पड़ता है बाद में दुःख भी झेलना पड़ता है। आज महंगाई बढ़ने का एक कारण यह भी है कि मध्यम वर्ग ने अपनी चादर से बाहर पैर पसारने शुरू कर दिए हैं। अमीर बनने या अमीरी का दिखावा करने के कारण वह सामर्थ्य से बाहर खर्च करने का आदी बन गया है। घर में दिखावे की प्रत्येक वस्तु फ्रिज, टी० वी०, कूलर, ए० सी० आदि पर खर्च कर वह चादर से बाहर पैर पसारने का यत्न करता है। आजकल कार रखना भी एक स्टेटस सिम्बल बन गया है।

मध्यवर्गीय व्यक्ति ब्याह-शादी में भी अमीरों की नकल करते हुए खर्च करता है चाहे उसका बाल-बाल कर्जे में बिंध जाए पर अपनी नाक रखने के लिए समाज में अपने रुतबे को ध्यान में रखते हुए वह आखा, ढाका, सगाई और विवाह जैसी दिखावे की रस्मों पर अपनी सामर्थ्य से बढ़कर खर्च करता है। पुराने समय में एक कमाता था तो दस खाते थे क्योंकि वे अपनी चादर के भीतर ही पैर पसारते थे और सुखी रहते थे। आज के ज़माने में दस के दस कमाते हैं फिर भी घर का खर्च नहीं चलता। कारण लोगों को चादर से बाहर पैर पसारने की आदत पड़ गई है। इसी कारण आज गृहस्वामिनी को भी नौकरी करनी पड़ रही है। चादर से बाहर पैर पसारने की आदत ने लोगों को पैसे की दौड़ में शामिल होने पर विवश कर दिया है और पैसा कमाने के लिए लोगों को कई प्रकार के अनैतिक कार्य भी करने पड़ रहे हैं। बड़ों की मानें तो चादर के भीतर ही पैर पसारने में सुख है।

18. जैसी संगति बैठिए तैसोई फल होत
अथवा
सत्संगति

अंग्रेज़ी में एक कहावत है कि “A man is known by the company he keeps”. अर्थात् मनुष्य अपनी संगति से जाना जाता है। कबीर जी ने बुरी संगति को काजल की कोठरी से उपमा देते हुए कहा है कि इसमें कितना ही सयाना जाए उसे एक न एक काली लकीर अवश्य लग जाएगी। इसलिए उन्होंने साधु संगति पर बल दिया है। साधु संगति अर्थात् सत्संगति मनुष्य के स्वभाव को निर्मल ही नहीं बनाती बल्कि उसके कई दोष अथवा विकार भी दूर करती है। इसके अनुच्छेद लेखन विपरीत कोयले की दलाली में हमेशा मुँह काला ही होता है। मनुष्य को सबसे पहले संगति अपने माता-पिता की मिलती है। माता-पिता यदि सज्जन होंगे तो बच्चे का स्वभाव भी अच्छा होगा।

माता-पिता से ही बच्चे गालियाँ निकालना, सिगरेट-शराब आदि पीना, झूठ बोलना, चोरी करना जैसी बुरी आदतें सीखते हैं। व्यक्ति के सम्पर्क में दूसरा व्यक्ति मित्र आता है। मित्र यदि सच्चरित्र, लायक, प्रतिभावान होगा तो व्यक्ति विशेष भी चरित्रवान और प्रतिभावान होगा। इसके विपरीत यदि मित्रगण अच्छे नहीं हैं तो व्यक्ति बुरी आदतें जैसे नशा करना आदि सीखते हैं। कुसंगति वैसी ही है, जैसे एक मछली सारे तालाब को गन्दा कर देती है और सत्संगति वैसी ही है जैसे चन्दन का वृक्ष जो अपने आस-पास के वृक्षों को भी सुगन्धित बना देता है। सत्संगति के कारण ही ढाक का पत्ता राजा तक पहुँचने का गौरव प्राप्त करता है क्योंकि पान का बीड़ा उसी में बाँधा जाता है। अतः यह ठीक ही कहा गया है कि”जैसी संगति बैठिए तैसोई फल होत”।

19. बोए पेड़ बबूल के आम कहाँ ते होय

यदि कोई व्यक्ति काँटेदार वृक्ष बबूल को बो कर उस पर मीठे आम लगने की आशा करता है तो निश्चय ही वह मूर्ख है। जो बोया जाता है अन्त में उसे ही काटना पड़ता है। इस नियम में कोई परिवर्तन नहीं हो सकता। हिन्दू विश्वास के अनुसार व्यक्ति के कर्म फल को टाला नहीं जा सकता। जो व्यक्ति दूसरों को दुःखी करता है, कष्ट पहुँचाता है वह कैसे दूसरों से सुख की कामना कर सकता है। उसे तो जीवन में दुःख ही मिलेगा। हिरण्यकश्यप, रावण, कंस आदि ने सुख और महत्त्व पाने की आशा से बुरे कर्म किए, लोगों को सताया, वे लोग दूसरों से सुख की आशा रखते थे जो दुराशा ही सिद्ध हुई और उन्हें अपने बुरे कर्मों का फल भोगना भी पड़ा। दुर्योधन ने भी सुखों की आशा में अपने भाई पाण्डवों पर अत्याचार किए, उनके अधिकार छीने किन्तु अन्त में जैसी करनी वैसी भरनी वाली बात ही हुई, दुर्योधन युद्ध में पराजित ही नहीं हुआ अपने प्राणों से भी हाथ धो बैठा।

अंग्रेजों ने भी भारत पर अधिकार बनाए रखने के लिए लाठी, गोली का प्रयोग किया। निरपराध और निहत्थे लोगों की हत्याएँ की, परन्तु अंग्रेजों के इन अत्याचारों ने क्रांति की भावना को न केवल जन्म दिया बल्कि उसे भड़काया भी। परिणामस्वरूप अंग्रेजों को भारत छोड़कर जाना पड़ा। इससे यह स्पष्ट है कि व्यक्ति के अच्छे कर्म का फल सदा अच्छा ही होता है। आम बो कर ही आम खाए जा सकते हैं। बबूल बोकर आमों की आशा करना असम्भव तो है ही प्रकृति के नियमों के विरुद्ध भी है।

20. परिवर्तन प्रकृति का नियम है
अथवा
सब दिन न होत एक समान

संसार परिवर्तनशील है। कुछ परिवर्तन हमें नज़र आते हैं, कुछ सूक्ष्म रूप से होते रहते हैं। जैसे फूलदान में रखे फूल, आज ताज़े हैं पर कल वे मुरझा जाएँगे। यह हुआ सामने नज़र आने वाला परिवर्तन। वह फूलदान जिस मेज़ पर रखा है उस मेज़ में होने वाले परिवर्तन सूक्ष्म होते हैं। कल जहाँ सुन्दर भवन था आज वहाँ खण्डहर नज़र आता है। कल का शिशु आज का युवक बन जाता है। आज का युवक कल बूढ़ा हो जाएगा। अत: यह कहा जा सकता है कि परिवर्तन का नाम ही संसार है। हमारा जीवन भी परिवर्तनशील है। उसमें सुख-दुःख आते-जाते रहते हैं। यदि सदा ही सुख या सदा ही दुःख रहें तो मनुष्य जीवन की इस एकरसता से ऊब जाएगा। पंत जी ने ठीक ही कहा है

जग पीड़ित है अति दुःख से,
जग पीड़ित रे अति सुख से।

सब दिन सदा एक समान नहीं रहते। रहीम जी ने ठीक ही कहा है “जब नीके दिन आइ हैं, बनत न लगि है देर।” अगर सभी के दिन एक जैसे रहते तो मनुष्य का जीवन आकर्षणहीन हो जाता। संसार में जहाँ सृजन है वहाँ संहार भी है। वही भारत जो एक दिन सोने की चिड़िया कहलाया करता था आज एक निर्धन देश कहलाता है। यह परिवर्तन की ही तो माया है। राजा हरिशचन्द्र को चाण्डाल का दास बनना पड़ा। भगवान् राम को चौदह बरस का बनवास हुआ। सीता जी का गर्भावस्था में परित्याग हुआ। यह सभी घटनाएँ परिवर्तन की सूचक हैं। यही परिवर्तन प्रकृति में सदा गतिशीलता बनाए रखता है।

21. अनुशासन

अपने ऊपर शासन करना अनुशासन है। अपने को वश में करना अनुशासन है। सत्ता, संस्था, समाज, वर्ग के नियमानुसार आचरण करना अनुशासन है। कुछ लोग माता-पिता और गुरुओं की आज्ञा का पालन करने को भी अनुशासन मानते हैं। नियमपूर्वक जीवन बिताना अर्थात् समय पर सोना, समय पर जागना, समय पर भोजन करना आदि नित्य कर्म करना भी अनुशासन में ही गिने जाते हैं। अनुशासन व्यक्ति के मन को निडर और निर्मल बनाता है। अनुशासन व्यक्ति के वचनों में मधुरता लाता है। अनुशासन में रहता हुआ व्यक्ति ही सत् कर्म करने की ओर प्रवृत्त होता है। उसके अन्तःकरण में दिव्य चेतना का प्रकाश होता है। आज देखने में आ रहा है कि समाज के प्रत्येक वर्ग में अनुशासनहीनता घर किए हुए है।

हमारी राय में इसके लिए सर्वप्रमुख उत्तरदायी माता-पिता हैं। क्योंकि वे आरम्भ में ही बच्चों को अनुशासन का प्रशिक्षण नहीं देते। अनुशासनहीनता का दूसरा बड़ा कारण हमारी शिक्षा प्रणाली है। आज की शिक्षा विद्यार्थी को निश्चित भविष्य का आश्वासन नहीं देती। अनिश्चित भविष्य होने के कारण युवा पीढ़ी में असन्तोष के साथसाथ अनुशासनहीनता भी बढ़ती जा रही है। अतः देश में अनुशासन की स्थापना के लिए शिक्षा व्यवस्था में नैतिक और चारित्रिक शिक्षा पर बल दिया जाना चाहिए। अनुशासित राष्ट्र विकास के पथ पर अग्रसर होगा। अनुशासित समाज सभ्यता और संस्कृति का उत्तम प्रतीक बनेगा।

22. कथनी से करनी भली

कहने का सम्बन्ध केवल जिह्वा से है। इसलिए यह कह देना बहुत आसान है, किन्तु जुबानी जमा खर्च से कुछ नहीं भरता जब तक उस कथन को क्रियात्मक रूप न दिया जाए। इसीलिए यह कहा जाता है कि कथनी से करनी भली। जो व्यक्ति केवल कहता है किन्तु आप उस बात का पालन नहीं करता उसका प्रभाव दूसरों पर कदापि नहीं पड़ सकता। दूसरों को गुड़ न खाने का उपदेश देने वाले के कथन का तभी प्रभाव होगा जब वह स्वयं गुड़ खाना छोड़ देगा। गाँधी जी प्रायः जिस बात का उपदेश दिया करते थे उसे वह अपनी जीवनचर्या के अंग के रूप में अपनाये होते थे। उन्होंने कताई का कोरा उपदेश ही नहीं दिया अपितु संध्या वंदना आदि की तरह ही उसे अपनी दैनिकचर्या का अंग बनाया।

PSEB 11th Class Hindi Vyakaran व्यावहारिक व्याकरण वाक्य विचार : वाक्य विश्लेषण/संश्लेषण

आजकल के साधु उपदेश देते समय प्राय: माया के मिथ्या होने की और उसके जाल में न फंसने की बात कहते हैं, किन्तु स्वयं बड़े-बड़े मठ और भवन बनाते हैं। गुरु गद्दी के लिए नित्य लड़ाई-झगड़े होने की बात आम है। क्या यह अच्छा होता यदि प्रत्येक साधु झोंपड़ी में रहकर जीवन बिताए और सेवा भाव को अपनाकर समाज कल्याण में जुट जाए। देश के दूसरे प्रधानमन्त्री श्री लाल बहादुर शास्त्री जी का उदाहरण हमारे सामने है जिन्होंने देश के लिए जो कहा वह कर भी दिखाया। कथनी और करनी में एकता के लिए मन, वचन, कर्म की एकाग्रता होनी जरूरी है। कहने से कर दिखाना कहीं श्रेष्ठ है।

23. निर्धनता एक अभिशाप है

धन सम्पत्ति का न होना ही निर्धनता है। यह मनुष्य जीवन के लिए एक भयानक अभिशाप है। भले ही यह कहा जाता है कि निर्धन व्यक्ति चैन से सोते हैं। किन्तु यह सत्य है कि निर्धनता भरा जीवन नरक के समान दुःखदायी होता है। निर्धन व्यक्ति का सारा जीवन रोटी, कपड़ा और मकान की दौड़-धूप में ही बीत जाता है। कड़ी मेहनत करने पर भी उसे भर-पेट रोटी नसीब नहीं होती। न तन ढाँपने को पूरे वस्त्र मिलते हैं और न ही सिर छुपाने के लिए कोई जगह। बीमारी की दशा में उनके पास दवाई तक खरीदने के पैसे नहीं होते। निर्धनता के कारण वे बच्चों का ठीक ढंग से पालन पोषण भी नहीं कर सकते। उनका भविष्य बनाने की बात तो दूर रही। अन्ततः निर्धनता ही बच्चों में चोरी की आदत डालती है अथवा अन्य अपराधों को जन्म देती है। निर्धनता एक ऐसा दुःख है, जिसको बटाने के लिए कोई आगे नहीं आता।

यहाँ तक कि उसके सगे-सम्बन्धी भी उससे मुँह फेर लेते हैं। निर्धन व्यक्ति न तो इस लोक को संवार सकता है न ही परलोक को। वह बेचारा तो अपनी मन की इच्छाओं को अपने मन में ही दबाए रखता है। कई बार निर्धनता अनुच्छेद लेखन व्यक्ति को आत्महत्या तक करने को विवश कर देती है। आंध्र प्रदेश का उदाहरण हमारे सामने है। वहाँ कितने ही किसानों ने निर्धनता से तंग आकर आत्महत्या कर ली है। कभी-कभी ऐसे समाचार भी सुनने में आते हैं कि निर्धनता से तंग आकर व्यक्ति ने अपने पूरे परिवार को समाप्त कर दिया। जो जीवन की सारी इच्छाओं का गला घोंट दे वह निर्धनता अभिशाप नहीं तो क्या है।

24. परिश्रम सफलता की कुंजी है

मनुष्य अपनी बुद्धि और परिश्रम द्वारा जो खजाना चाहे खोज ले और जहाँ तक चाहे उन्नति के शिखर पर पहुँच जाए। परिश्रम करना उसके अपने हाथ में है और सफलता रूपी देवी भी उसी के सामने प्रकट होती है जो परिश्रम करता है। एक साधारण किसान से लेकर बड़े-बड़े विज्ञान वेत्ताओं तक की सफलता का मूल कारण परिश्रम ही है। जो काम देखने में बड़े कठोर और भयंकर दिखाई देते हैं परिश्रम रूपी मंत्र उन्हें सरल बना देता है। यह एक ऐसी चमत्कारपूर्ण शक्ति है जिसके आगे असफलता का भूत टिक ही नहीं सकता। पूरे मनोयोग से किया हुआ परिश्रम मनुष्य को अपने ध्येय तक पहुँचा देता है। किसान के कठोर परिश्रम से ही धरती अनाज से भर जाती है। वैज्ञानिकों के कठोर परिश्रम के परिणामस्वरूप ही अनेक उपग्रह छोड़े जा चुके हैं। अन्तरिक्ष में मनुष्य की विजय वैज्ञानिकों के परिश्रम का ही परिणाम है। अपने परिश्रम द्वारा ही महान् वैज्ञानिक डॉक्टर ए० पी० जे० अब्दुल कलाम हमारे देश के राष्ट्रपति के पद पर आसीन हए थे। परिश्रम रूपी कुँजी को लेकर ही मनुष्य उन रहस्यों का ताला खोल सकता है जिनमें न जाने कितनी अमूल्य निधियाँ भरी पड़ी हैं। मनुष्य अपने जीवन का लक्ष्य पूरा करने में सफल तभी हो सकता है जब वह परिश्रम को अपने जीवन का मूल मन्त्र बना ले।

25. समय का सदुपयोग

समय सबसे मूल्यवान् वस्तु है। संसार की अन्य समस्त वस्तुएँ एक बार खो जाने पर पुनः प्रयास करके प्राप्त किया जा सकता है, लेकिन एक बार जो समय गुजर गया उसे किसी भी स्थिति में दोबारा नहीं पाया जा सकता। ‘समय’ के बारे में विदेशी लेखकों व समीक्षकों ने अपने विचारों में कहा है-Time is precious’ ; “Time is gold.’ भारतीय मनीषियों ने समय की महत्ता को जानते हुए कहा है कि आज का काम कल पर मत छोड़ो।

“काल करे सो आज कर, आज करे सो अब
पल में प्रलय होयगी बहुरि करेगा कब।”

कल किसने जाना है, किसने देखा है। जो है बस यही एक पल है। इतिहास साक्षी है कि संसार में जिन लोगों ने समय के महत्त्व को समझा वे जीवन में सफल रहे और जिन्होंने समय के पालन में जरा सी भी चूक की, समय ने उसे भी कहीं का नहीं रखा। पृथ्वीराज चौहान समय के मूल्य को न समझने के कारण ही गौरी से पराजित हुआ। नेपोलियन भी वाटरलू के युद्ध में पाँच मिनटों के महत्त्व को न समझ पाने के कारण पराजित हुआ। इसके विपरीत जर्मन के महान् दार्शनिक कांट, जो अपना जीवन समय के बंधन में बाँधकर कुछ इस तरह बिताते थे कि लोग उन्हें दफ्तर आते देखकर अपनी घड़ियाँ मिलाया करते थे।

आधुनिक जीवन में तो समय का महत्त्व
और भी बढ़ गया है। आज जीवन में दौड़-भाग और व्यस्तता इतनी अधिक हो गई है कि यदि हम समय के साथ-साथ कदम मिलाकर न चलें तो जीवन की दौड़ में अवश्य पीछे रह जाएंगे। समय की दौड़ के साथ हमारे कदम न मिले तो यही सुनने को मिलेगा

‘अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत।’ ।
अत: आज के युग में सच्चे कर्मयोगी की यही पहचान है ‘वर्तमान पर नज़र रखो और हर पल का भरपूर प्रयोग करो।’ अतः जब तक सांस है तब तक समय का सदुपयोग करो।

26. मजहब नहीं सिखाता आपस में वैर रखना

इस संसार में अनेकों धर्म, सम्प्रदाय और पंथ प्रचलित हैं, किन्तु कोई भी धर्म एक-दूसरे से ईर्ष्या, द्वेष या वैर-भाव रखने का उपदेश नहीं देता। प्रत्येक धर्म आपसी भाईचारे और प्रेम सौहार्द का संदेश देता है। धर्म का आधार केवल मनुष्य को ईश्वर तक पहुँचने का मार्ग बताना भर है। आज मनुष्य ने अपनी बौद्धिक क्षमता से प्रकृति के समस्त रहस्यों को जान लिया है, आकाश की ऊँचाइयों को छू लिया है, लेकिन खेदजनक है कि इक्कीसवीं सदी में पदार्पण करके भी हम आज भी मजहब के नाम पर रक्त बहाने को तत्पर हैं। हमारी अभी भी यह मानसिकता नहीं बदली। आज भी हमने धर्म और सम्प्रदाय के नाम पर कई दीवारें खड़ी कर रखी हैं।

यह जानते हुए भी कि ‘मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना’, हम छोटी-छोटी बातों में लड़ते-झगड़ते रहते हैं। इसी साम्प्रदायिकता के विष के परिणामस्वरूप देश में हिन्दू-मुस्लिम दंगे हुए जिनमें हज़ारों बेकसूर लोग आहत हुए। इससे भी खेदजनक है जब पढ़े-लिखे लोग ही यह घोषणा करते फिरें कि यह प्रान्त मेरा है, यह धर्म मेरा है, इस पर दूसरों का कोई हक नहीं। अरे चाहिए तो यह कि हम सब यह कहें, यह सोचें कि यह देश हमारा है, इसकी प्रगति कैसे करें। हम सब मानव ही बने रहें यही सबसे बड़ी बात होगी। सभी धर्म एक हैं। सभी मनुष्य समान हैं। सभी में उसी अव्वल अल्लाह का नूर बसता है। सभी धर्म ‘सरबत का भला’ चाहते हैं। भारतीय सभ्यता तो आरम्भ से ही ‘जीयो और जीने दो’ के सिद्धान्त को मानने वाली रही है। अतः हमें भारत देश के विकास के लिए धर्म, मजहब के बन्धनों से मुक्त होकर एक राष्ट्र का नागरिक बनना होगा।

27. व्यायाम के लाभ

महर्षि चरक के अनुसार शरीर की जो चेष्टा देह को स्थिर करने एवं उसका बल बढ़ाने वाली हो, उसे व्यायाम कहते हैं। महाकवि कालिदास ने भी कहा है ‘शरीरमाद्यं खलु धर्म साधनम्’ अर्थात् धर्म का सर्वप्रथम साधन स्वस्थ शरीर है। यदि शरीर स्वस्थ नहीं तो मन भी स्वस्थ नहीं रह सकता। मन स्वस्थ नहीं तो विचार भी स्वस्थ नहीं हो सकते। इसलिए शरीर को स्वस्थ रखना व्यक्ति का परम कर्त्तव्य है। शरीर को स्वस्थ रखने के लिए व्यायाम नितान्त आवश्यक है। पुराने समय में हमारे बड़े-बुजुर्गों ने हमारी दिनचर्या कुछ ऐसी निश्चित की थी कि जिससे हमारा व्यायाम भी नियमित होता रहे और हमें पता भी न चले। सूर्योदय से पहले उठना, सैर को जाना, कसरत करना, बग़ीचे की सैर करना, खुली हवा में विचरना ये सब क्रियाएँ हमारे शरीर को स्वस्थ रखने का ही उपाय था।

लेकिन आज भौतिक सुख लिप्सा में ग्रस्त मानव इन सब नियमों की तिलांजलि देकर दिन-रात केवल धन के चक्कर में अपना स्वास्थ्य बिगाड़ने पर उतारू है। उसे अपने स्वस्थ और निरोग शरीर की परवाह उतनी नहीं जितनी धन को बचाने और कमाने की है। आराम पसन्द व्यक्ति हर काम पैसे के बल पर बैठे-बैठे ही कर लेना चाहता है। सारा दिन कुर्सी पर बैठकर काम करने वाला व्यक्ति यदि कोई व्यायाम नहीं करेगा तो स्वयं ही बीमारियों को आमन्त्रण देने का काम करेगा। आज अधिकतर लोग मधुमेह, उच्च रक्तचाप, आदि अनेक बीमारियों से ग्रस्त हैं उनके पीछे मूल कारण ही अव्यवस्थित दिनचर्या और अपौष्टिक खान-पान है। मनीषियों के साथ-साथ अब तो डॉक्टर भी सबको स्वस्थ रहने के लिए प्रातः भ्रमण और व्यायाम करने की सलाह देने लगे हैं। नीरोग रहने के लिए वे भी व्यायाम को ही आवश्यक और अचूक औषधि मानने लगे हैं। अतः नीरोगी काया के लिए व्यायाम अपरिहार्य है।

28. संगठन में शक्ति है

कहते हैं अकेला चना भाड़ भी नहीं झोंक सकता। पानी की एक बूंद का भी कुछ महत्त्व नहीं होता। जब तक पानी की अनेक बँदें मिलकर धारा का रूप धारण नहीं करती तो वे बड़े-बड़े पर्वतों को काटकर भी अपने लिए रास्ता बना लेती हैं। पानी की एक बूंद असमर्थ और तुच्छ होती है और यही बूंद मिलकर जब सागर बन जाती है तो वह शक्तिशाली बन जाती है। उसकी एक लहर बड़े-बड़े जहाजों को डूबोने की शक्ति रखती है। सागर की लहरें तटवर्ती नगरों को पल भर में वीरान बना सकती हैं। व्यक्ति अकेला एक कण की तरह है और उसका संगठित रूप सागर की शक्ति का रूप धारण कर लेता है। एक अकेला होता है दो ग्यारह होते हैं। भारतवासियों की संगठन शक्ति का ही यह परिणाम था कि उन्होंने शक्तिशाली अंग्रेज़ को देश छोड़ने पर विवश कर दिया। रूस में भी मज़दूर और किसान संगठन द्वारा ही ज़ार के राज्य को पलटने में समर्थ हो गए।

आज भी हम देखते हैं कि जिन मजदूरों या कर्मचारियों का मज़बूत संगठन होता है वे अपनी माँगें तुरन्त मनवा लेते हैं। जाल में बँधे हुए कबूतरों ने अपनी संगठित शक्ति द्वारा ही अपनी जान बचाई थी। अकेली लकड़ी को हर कोई तोड़ सकता है, किन्तु लकड़ियों के गढे को तोड़ना मुश्किल ही नहीं असम्भव भी है। अत: यह निश्चित ही है कि अकेला व्यक्ति चाहे कितना भी बुद्धिमान, धनवान्, शक्तिमान क्यों न हो वह संगठन के बिना सफल नहीं हो सकता क्योंकि संगठन में ही शक्ति है।

29. जिन्दगी जिन्दादिली का नाम है

ज़िन्दादिली से जिया गया जीवन अल्पकालीन भले ही हो किन्तु आदर्श जीवन होता है। बंदा वैरागी से जब बादशाह ने पूछा कि बोल तुझे कैसी मौत चाहिए तो उसने निर्भीकता से बादशाह को गीता का ज्ञान सुनाते हुए कहा, तू कौन होता है मुझे पूछने वाला ? मेरा शरीर भले ही नाशवान है पर आत्मा अमर है। मैं मरकर भी नहीं मरूँगा। महाराणा प्रताप और छत्रपति शिवा जी महाराज जितनी देर तक जीवित रहे ज़िन्दादिली से जिए। उन्होंने मुग़लों की अधीनता स्वीकार नहीं की। गुरु गोबिन्द सिंह जी के दोनों साहबजादों ने भी जिन्दादिली दिखाई। दीवारों में चुना जाना तो स्वीकार किया पर झुकना नहीं। ऐसी ही ज़िन्दादिली बाल हकीकत राय ने भी दिखाई। वे लोग अमर हो गए।

मरकर भी वे मरे नहीं। वे मृत्यु से भयभीत नहीं हुए। मृत्यु पर जैसे उन्होंने विजय पा ली हो। इसके विपरीत जो लोग मुर्दादिल होते हैं उनका जीवन पशुओं के समान व्यतीत होता है। जीवित रहकर भी वे मरे हुओं के समान होते हैं। उनका जीवन लोहार की धौंकनी की तरह होता है जो साँस लेती हुई भी मुर्दा होती है। आज की महानगरीय सभ्यता ने मनुष्य को मुर्दादिल बना दिया है। उसका हृदय संवेदना शून्य हो गया है। उसे हरदम अपने स्वार्थ साधन की चिन्ता होती है। वे समाज के लिए कोई आदर्श स्थापित नहीं कर पाते। जबकि जिन्दादिल मनुष्य जो कुछ भी कर जाता है वह आने वाली पीढ़ियों के लिए आदर्श बन जाता है। मृत्यु तो एक दिन सबको आनी है लेकिन जब तक जिओ ज़िन्दादिली से जिओ जीवन का वास्तविक आनन्द इसी में है।

30. आँखों देखा हॉकी मैच

भले ही आज लोग क्रिकेट के दीवाने बने हुए हैं। परन्तु हमारा राष्ट्रीय खेल हॉकी ही है। लगातार कई वर्षों तक भारत हॉकी के खेल में विश्वभर में सब से आगे रहा, किन्तु खेलों में भी राजनीतिज्ञों के दखल के कारण हॉकी के खेल में हमारा स्तर दिनों दिन गिर रहा है। 70 मिनट की अवधि वाला यह खेल अत्यन्त रोचक, रोमांचक और उत्साहवर्धक होता है। मेरा सौभाग्य है कि मुझे ऐसा ही एक हॉकी मैच देखने को मिला। यह मैच नामधारी एकादश और रोपड़ हॉक्स की टीमों के बीच रोपड़ के खेल परिसर में खेला गया। दोनों टीमें अपने-अपने खेल के लिए पंजाब भर में जानी जाती हैं। दोनों ही टीमों में राष्ट्रीय स्तर के कुछ खिलाड़ी भाग ले रहे थे। रोपड़ हॉक्स की टीम क्योंकि अपने घरेलू मैदान पर खेल रही थी इसलिए उसने नामधारी एकादश को मैच के आरम्भिक दस मिनटों में दबाए रखा उसके फारवर्ड खिलाड़ियों ने दो-तीन बार विरोधी गोल पर आक्रमण किये। परन्तु नामधारी एकादश का गोलकीपर बहुत चुस्त और होशियार था। उसने अपने विरोधियों के सभी आक्रमणों को विफल बना दिया। तब नामधारी एकादश ने तेजी पकड़ी और देखते ही देखते रोपड़ हॉक्स के विरुद्ध एक गोल दाग दिया।

गोल होने पर रोपड़ हॉक्स की टीम ने भी एक जुट होकर दो-तीन बार नामधारी एकादश पर कड़े आक्रमण किये, परन्तु उनका प्रत्येक आक्रमण विफल रहा। इसी बीच रोपड़ हॉक्स को दो पनल्टी कार्नर भी मिले पर वे इसका लाभ न उठा सके। नामधारी एकादश ने कई अच्छे मूव बनाये उनका कप्तान बलजीत सिंह तो जैसे बलबीर सिंह ओलंपियन की याद दिला रहा था। इसी बीच नामधारी एकादश को भी एक पनल्टी कार्नर मिला जिसे उन्होंने बड़ी खूबसूरती से गोल में बदल दिया। इससे रोपड़ हॉक्स के खिलाड़ी हताश हो गये। रोपड़ के दर्शक भी उनके खेल को देख कर कुछ निराश हुए। मध्यान्तर के समय नामधारी एकादश दो शून्य से आगे थी। मध्यान्तर के बाद खेल बड़ी तेज़ी से शुरू हुआ। रोपड़ हॉक्स के खिलाड़ी बड़ी तालमेल से आगे बढ़े और कप्तान हरजीत सिंह ने दायें कोण से एक बढ़िया हिट लगाकर नामधारी एकल पर एक गोल कर दिया। इस गोल से रोपड़ हॉक्स के जोश में ज़बरदस्त वृद्धि हो गयी। उन्होंने अगले पांच मिनटों में दूसरा गोल करके मैच बराबरी पर ला दिया। दर्शक खुशी के मारे नाच उठे। मैच समाप्ति की सीटी के बजते ही दर्शकों ने अपने खिलाड़ियों को मैदान में जाकर शाबाशी दी। मैच का स्तर इतना अच्छा था कि मैच देख कर आनन्द आ गया।

31. परीक्षा शुरू होने से पहले

वैसे तो हर मनुष्य परीक्षा से घबराता है, किन्त विद्यार्थी इससे विशेष रूप से घबराता है। परीक्षा में पास होना ज़रूरी है नहीं तो जीवन का एक बहुमूल्य वर्ष नष्ट हो जाएगा। अपने साथियों से बिछड़ जाएंगे। ऐसी चिन्ताएं हर विद्यार्थी को रहती हैं। परीक्षा शुरू होने से पूर्व जब मैं परीक्षा भवन पहुँचा तो मेरा दिल धक-धक् कर रहा था। परीक्षा शुरू होने से आधा घंटा पहले मैं वहां पहुंच गया था। मैं सोच रहा था कि सारी रात जाग कर जो प्रश्न तैयार किए हैं यदि वे प्रश्नपत्र में न आए तो मेरा क्या होगा ? इसी चिंता में अपने सहपाठियों से खुलकर बात नहीं कर रहा था। परीक्षा भवन के बाहर का दृश्य बड़ा विचित्र था। परीक्षा देने आए कुछ विद्यार्थी बिल्कुल बेफिक्र लग रहे थे। वे आपस में ठहाके मारमार कर बातें कर रहे थे। कुछ ऐसे भी विद्यार्थी थे जो अभी तक किताबों या नोट्स से चिपके हुए थे। कुछ विद्यार्थी आपस में नकल करने के तरीकों पर विचार कर रहे थे।

मैं अकेला ऐसा विद्यार्थी था जो अपने साथ घर से कोई किताब या सहायक पुस्तक नहीं लाया था। क्योंकि मेरे पिता जी कहा करते हैं कि परीक्षा के दिन से पहले की रात को ज्यादा पढ़ना नहीं चाहिए। सारे साल का पढ़ा हुआ भूल नहीं जाता, यदि आप ने कक्षा में अध्यापक को ध्यान से सुना हो। वे परीक्षा के दिन से पूर्व की रात को जल्दी सोने की भी सलाह देते हैं ताकि सवेरे उठकर विद्यार्थी ताज़ा दम होकर परीक्षा देने जाए न कि थका-थका महसूस करे। परीक्षा भवन के बाहर लड़कों की अपेक्षा लड़कियाँ अधिक खुश नज़र आ रही थीं। उनके खिले चेहरे देखकर ऐसा लगता था मानो परीक्षा के भूत का उन्हें कोई डर नहीं। उन्हें अपनी स्मरण शक्ति पर पूरा भरोसा था।

इसी आत्मविश्वास के कारण तो लड़कियां हर परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त करती हैं। दूसरे, लड़कियाँ कक्षा में दत्तचित्त होकर अध्यापक का भाषण सुनती हैं जबकि लड़के शरारतें करते रहते हैं। थोड़ी देर में घंटी बजी। यह घंटी परीक्षा भवन में प्रवेश की घंटी थी । इसी घंटी को सुनकर सभी ने परीक्षा भवन की ओर जाना शुरू कर दिया। हंसते हुए चेहरों पर भी अब गम्भीरता आ गई थी। परीक्षा भवन के बाहर अपना रोल नं० और सीट नं० देखकर मैं परीक्षा भवन में दाखिल हुआ और अपनी सीट पर जाकर बैठ गया। कुछ विद्यार्थी अब भी शरारतें कर रहे थे। मैं मौन हो धड़कते दिल से प्रश्न-पत्र बंटने की प्रतीक्षा करने लगा।

32. नशाबन्दी

भारत में नशीली वस्तुओं का प्रयोग दिन-प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है। विशेषकर हमारी युवा पीढ़ी इस लत की अधिक शिकार हो रही है। यह चिन्ता का कारण है। उपन्यास सम्राट् प्रेमचन्द जी ने कहा था कि जिस देश में करोड़ों लोग भूखों मरते हों वहां शराब पीना, गरीबों का रक्त पीने के बराबर है। किन्तु शराब ही नहीं अन्य नशीले पदार्थों के सेवन का प्रचलन बढ़ता ही जा रहा है। कोई भी खुशी का मौका हो शराब पीने पिलाने के बिना वह अवसर सफल नहीं माना जाता। होटलों, क्लबों में खुले आम शराब पी-पिलाई जाती है। पीने वालों को पीने का बहाना चाहिए। शराब को दारू अर्थात् दवाई भी कहा जाता है किन्तु कौन ऐसा है जो इसे दवाई की तरह पीता है। यहाँ तो बोतलों की बोतलें चढ़ाई जाती हैं। शराब महंगी होने के कारण नकली शराब का धन्धा भी फल-फूल रहा है। इस नकली शराब के कारण कितने लोगों को जान गंवानी पड़ी है। यह हर कोई जानता है कितने ही राज्यों की सरकारों ने सम्पूर्ण नशाबन्दी लागू करने का प्रयास किया।

किन्तु वे असफल रहीं। ऐसा उदाहरण हरियाणा का लिया जा सकता है। कितने ही होटल बन्द हो गए और नकली शराब बनाने वालों की चांदी हो गई। विवश होकर सरकार को नशाबन्दी समाप्त करनी पड़ी। पंजाब में भी टेकचन्द कमेटी ने नशाबन्दी लागू करने का बारह सूत्री कार्यक्रम दिया था। किन्तु जो सरकार शराब की बिक्री से करोड़ों रुपए कमाती हो, वह इसे कैसे लागू कर सकती है। आप शायद हैरान होंगे कि पंजाब में शराब की खपत देश भर में सब से अधिक है, किसी ने ठीक ही कहा है बुरी कोई भी आदत हो वह आसानी से नहीं जाती। किन्तु सरकार यदि दृढ़ निश्चय कर ले तो क्या नहीं हो सकता। सरकार को ही नहीं जनता को भी इस बात का ध्यान रखना होगा कि नशा अनेक झगड़ों को ही जन्म नहीं देता बल्कि वह नशा करने वाले के स्वास्थ्य को भी प्रभावित करता है। ज़रूरत है जनता में जागरूकता पैदा करने की। नशाबन्दी राष्ट्र की प्रगति के लिए आवश्यक है। शराब की बोतलों पर चेतावनी लिखने से काम न चलेगा, कुछ ठोस कदम उठाने होंगे।

PSEB 11th Class Hindi रचना पत्र-लेखन

Punjab State Board PSEB 11th Class Hindi Book Solutions Hindi रचना पत्र-लेखन Questions and Answers, Notes.

PSEB 11th Class Hindi रचना पत्र-लेखन

(क) पत्र-लेखन

पत्र लिखना भी एक कला है। जिस प्रकार संगीत, नृत्य इत्यादि के लिए अभ्यास की आवश्यकता है, उसी प्रकार पत्र लिखने के अभ्यास से ही अच्छा पत्र लिखा जा सकता है। एक विद्वान् ने कहा है जिस प्रकार कुंजी बक्स खोलने में सहायक होती है उसी प्रकार पत्र भी हृदय के अनेक द्वारों को खोलने में सहायक होते हैं। मनुष्य अपनी अनुभूतियों को पत्र द्वारा ही अभिव्यक्त (प्रकट) कर सकता है। यह दो व्यक्तियों के बीच हृदय सम्बन्धों को दृढ़ बनाने में सहायक होता है। अतः पत्र का हमारे जीवन में बड़ा महत्त्व है। इसका अनुभव आप इसी एक बात से लगा सकते हैं कि आज बहुत-से उपन्यास भी पत्र-शैली में लिखे जाने लगे हैं। उदाहरणस्वरूप, आप हिन्दी के प्रसिद्ध उपन्यासकार श्री उग्र जी का “चन्द हसीनों के खतूत” उपन्यास देख सकते हैं। पत्र में जितनी स्वाभाविकता होगी, वह उतना ही प्रभावशाली होगा। एक अच्छे पत्र से लेखक की भावनाएं ही व्यक्त नहीं होतीं, बल्कि उससे उसका व्यक्तित्व भी उभर कर सामने आता है।

अच्छे पत्र के गुण

अच्छे पत्र में निम्नलिखित गुण होने चाहिएँ

1. सरल भाषा-शैली:
पत्र में साधारणतः सरल और बोल-चाल की भाषा होनी चाहिए। शब्द बड़ी सावधानी से प्रयोग में लाए जाएं। थोड़े-से बहुत कहने की रीति को अपनाया गया हो। बात सीधे-साधे ढंग से कही जाए। घुमा-फिरा कर लिखने से पत्र की शोभा बिगड़ जाती है।

2. संक्षेप विवरण:
पत्र में व्यर्थ की व्याख्या नहीं होनी चाहिए। जितनी बात प्रश्न में पूछी गई है, उसकी व्याख्या करनी चाहिए। इधर-उधर की हांकने से पत्र में दोष आ जाता है। पत्र को पढ़ने वाले के दिमाग में सारी बात स्पष्ट हो जानी चाहिए, यह न हो कि वह किसी प्रकार की उलझन में फँसा रहे।

3. प्रभावोत्पादक:
पत्र ऐसा होना चाहिए कि जिसको पढ़कर पढ़ने वाले पर प्रभाव पड़े। इसके लिए उसे पत्र के आरम्भ और अन्त को ध्यानपूर्वक लिखना चाहिए। इसके लिए पत्र लिखने के नियमों का पूरा पालन किया गया हो।

पत्रों के प्रकार:
मुख्यतः पत्र दो तरह के होते हैं

  1. अनौपचारिक पत्र
  2. औपचारिक पत्र।

1.अनौपचारिक पत्र-ऐसे पत्रों में निजी या पारिवारिक पत्र आते हैं। इन पत्रों को लिखते समय व्यक्ति को खुली छूट होती है कि वह जैसा चाहे पत्र लिख सकता है। ऐसे पत्र प्रायः अपने परिवार के सदस्यों-भाई, बहन, माता-पिता आदि तथा मित्रों को लिखे जाते हैं। ऐसे पत्रों का विषय प्रायः व्यक्तिगत होता है। कभी-कभी ऐसे पत्रों में उपदेश या सलाह भी दी जाती है। बधाई पत्र, शोक पत्र तथा सांत्वना पत्र भी इसी कोटि में आते हैं।

2. औपचारिक पत्र-निजी या पारिवारिक पत्रों को छोड़कर हम जितने भी पत्र लिखते हैं, वे सब औपचारिक पत्र होते हैं। ऐसे पत्र प्रायः उन लोगों को लिखे जाते हैं जिनसे हमारा व्यक्तिगत सम्बन्ध नहीं होता।
औपचारिक पत्रों के प्रकारऔपचारिक पत्र कई प्रकार के हो सकते हैं, जैसे

1. प्रशासनिक पत्र या अधिकारियों को पत्र-ऐसे पत्र उच्च अधिकारियों या शासकीय अधिकारियों को लिखे जाते हैं। ये तीन प्रकार के होते हैं
(क) आवेदन-पत्र
(ख) अधिकारियों को शिकायत सम्बन्धी पत्र
(ग) अधिकारियों या समाचार-पत्र के सम्पादक को सुझाव सम्बन्धी पत्र।

2. कार्यालयी पत्र:
ऐसे पत्र प्रायः एक कार्यालय से दूसरे कार्यालय को लिखे जाते हैं। राज्य सरकार अपने अधीनस्थ कार्यालयों या केन्द्र सरकार को ऐसे पत्र लिखती है। केन्द्र सरकार के कार्यालय भी जो पत्र राज्य सरकारों या अपने कार्यालय के अधिकारियों को लिखते हैं वे भी इसी कोटि में आते हैं।

3. व्यावहारिक पत्र:
ऐसे पत्र किसी व्यापारिक संस्थान द्वारा अथवा किसी व्यापारिक संस्थान को उपभोक्ता या ग्राहक द्वारा लिखे जाते हैं।

ध्यान रहे कि औपचारिक पत्रों की भाषा नियमबद्ध और परम्परागत होती है। ऐसे पत्र अति संक्षिप्त होते हैं। पारिवारिक पत्र लिखते समय ध्यान में रखने योग्य बातें पारिवारिक या व्यक्तिगत पत्र लिखते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना ज़रूरी है

(1) लिखने की शैली उत्तम हो अर्थात् पत्र में उचित स्थान पर ठीक शब्दों का प्रयोग किया जाए जिससे पढ़ने वाले को पत्र में लिखी बातें आसानी से समझ में आ जाएं।
(2) पत्र की भाषा सरल होनी चाहिए। मुश्किल शब्दों का प्रयोग कभी नहीं करना चाहिए।
(3) पत्र संक्षिप्त होना चाहिए। (4) पत्र में छोटे-छोटे वाक्यों का प्रयोग करना चाहिए।
(5) पत्र में केवल प्रसंग की ही बात लिखनी चाहिए। कहानियां लिखने नहीं लग जाना चाहिए।

पारिवारिक पत्र के अंग

पारिवारिक पत्र लिखते समय पत्र के निम्नलिखित अंगों पर विशेष ध्यान देना चाहिए

1. पत्र का आरम्भ:
पत्र के आरम्भ में सबसे ऊपर दाहिनी ओर पत्र लिखने वाले का अपना पता लिखना चाहिए। पते के नीचे तिथि भी लिखनी चाहिए। जिस पंक्ति में तिथि लिखो जाए उससे अगली पंक्ति में पत्र के बायीं ओर हाशिया छोड़ कर जिसे पत्र लिखा जा रहा है उसे यथा विधि सम्बोधन करना चाहिए। आगे सम्बोधन शब्द अलग से दिये गये हैं। सम्बोधन से अगली पंक्ति में ऊपर की पंक्ति से कुछ अधिक स्थान छोड़कर अभिवादन सूचक लगाना चाहिए।

2. पत्र का कलेवर:
पत्र का कलेवर बहुत बड़ा नहीं चाहिए। पत्र में हर विचार अलग-अलग पैरा में लिखना चाहिए।

3. पत्र का अन्त:
पत्र समाप्त होने पर लिखने वाले को पत्र के अन्त में दायीं ओर अपना नाम, पारिवारिक सम्बन्ध का स्वनिर्देश भी लिखना चाहिए।

पत्र के आरम्भ तथा अन्त में लिखने वाली
कुछ याद रखने वाली बातें

पत्र लिखने वाला जिसे पत्र लिखता है उसके पारिवारिक सम्बन्ध के अनुसार पत्र में सम्बोधन, अभिवादन और स्वनिर्देश में परिवर्तन हो जाता है, जैसे-नीचे दिये ब्योरे में दिया गया है

1. अपने से बड़ों को-जैसे माता, पिता, बड़ा भाई, बड़ी बहन, चाचा, अध्यापक, गुरु आदि।
सम्बोधन-पूज्य, पूजनीय, परमपूज्य, आदरणीय,
अभिवादन-प्रणाम, नमस्कार, नमस्ते, सादर प्रणाम
स्वनिर्देश-आपका आज्ञाकारी, आपका स्नेह पात्र, आपका प्रिय भाई, आपका प्रिय भतीजा, आपका प्रिय शिष्य

याद रखिए

स्त्री सम्बन्धी या परिचितों के लिए भी ‘पूज्य’ और ‘आदरणीय’ सम्बोधन का प्रयोग होगा। जैसे पूज्य माता जी, आदरणीय मुख्याध्यापिका जी आदि। ‘पूज्य’ या ‘आदरणीया’ का प्रयोग नहीं करना चाहिए।

2. अपने से छोटों को – जैसे छोटा भाई, मित्र आदि।
सम्बोधन – प्रिय, प्रियवर, चिंरजीव, प्यारे।।
अभिवादन – खुश रहो, शुभाशीष, शुभाशीर्वाद, स्नेह भरा प्यार, प्यार।
स्वनिर्देश – तुम्हारा शुभचिन्तक, शुभाभिलाषी, हितचिन्तक।

3. मित्रों को या हम उमर को

सम्बोधन – प्रिय भाई, प्रिय दोस्त (मित्र का नाम), प्रियवर, बन्धुवर, प्रिय बहन, प्रिय सखी, प्रिय-(सखी का नाम)
अभिवादन – नमस्ते, जयहिन्द, सप्रेम नमस्ते, मधुर स्मरण, स्नेह भरा नमस्ते, प्यार।
स्वनिर्देश – तुम्हारा मित्र, तुम्हारा स्नेही मित्र, तुम्हारा दोस्त, तुम्हारी सखी, तुम्हारी स्नेह पात्र, तुम्हारी अपनी, तुम्हारी अभिन्न सखी।

पत्र शुरू किन वाक्यों से करना चाहिए

  1. आपका कृपा पत्र प्राप्त हुआ। धन्यवाद।
  2. तुम्हारा हिन्दी में लिखा पत्र मिला। पढ़कर बड़ी खुशी हुई।
  3. आपका कुशल समाचार बड़ी देर से नहीं मिला। क्या बात है ?
  4. आपका पत्र पाकर कृतज्ञ हूँ।
  5. आपको यह जानकर प्रसन्नता होगी कि.
  6. यह जानकर हार्दिक हर्ष हुआ कि………
  7. खेद के साथ लिखना पड़ता है कि….
  8. यह जानकर अत्यन्त दुःख हुआ कि..
  9. आपको एक कष्ट देना चाहता हूं, आशा है कि आप क्षमा करेंगे।
  10. एक प्रार्थना है, आशा है आप उस पर सहानुभूतिपूर्वक विचार करेंगे।

ध्यान रखें:
आजकल पत्र का आरम्भ ऐसे वाक्यों में नहीं किया जाता
‘हम यहां पर कुशलपूर्वक हैं आपकी कुशलता श्री भगवान् से शुभ चाहते हैं।’ यह फैशन पुराना हो गया है। अतः सीधे वर्ण्य विषय का आरम्भ कर देना चाहिए।

पत्र समाप्त करने के लिए वाक्य

  1. कृपया पत्र का उत्तर शीघ्र देने का कष्ट करें।
  2. पत्र का उत्तर शीघ्र दें/लौटती डाक से दें।
  3. भेंट होने पर और बातचीत होगी।
  4. कभी-कभी पत्र लिखते रहा करें।
  5. तुम्हारे पत्र का इंतज़ार रहेगा।
  6. यहां सब कुशल हैं। माँ-पिता की ओर से ढेर सारा प्यार।
  7. अपने पूज्य पिता जी तथा माता जी को मेरा प्रणाम/नमस्ते कहिए।
  8. आपके उत्तर की प्रतीक्षा में हूं।
  9. सब मित्रों को मेरी ओर से नमस्ते कहना।
  10.  इसके लिए मैं सदा आपका आभारी रहूंगा।

प्रशासकीय या अधिकारियों को लिखे जाने वाले पत्र में ध्यान रखने वाली बातें

ऐसे पत्र शासकीय काम-काज से सम्बन्धित होते हैं। कभी-कभी ऐसे पत्र आम आदमी भी लिखता है, जैसे-आवेदन पत्र या उच्च अधिकारियों को की जाने वाली शिकायत सम्बन्धी। ऐसे पत्रों में पत्र लिखने वाला कोई प्रार्थना या शिकायत अथवा सुझाव प्रस्तुत करता है। याद रखिए अधिकारियों को शिकायत भी प्रार्थना के रूप में ही की जानी चाहिए।

PSEB 11th Class Hindi Vyakaran सन्धि और सन्धिच्छेद

अधिकारियों को लिखे जाने वाले औपचारिक पत्र के अंग
उच्च अधिकारियों को लिखे जाने वाले पत्र के निम्नलिखित अंग होते हैं

  1. शीर्षक
  2. पत्र संख्या एवं दिनांक
  3. प्रेषित का नाम और पता
  4. विषय
  5. सन्दर्भ
  6. सम्बोधन
  7. पत्र का मूल भाग
  8. प्रशंसात्मक अन्त
  9. स्वनिर्देश एवं हस्ताक्षर
  10. प्रेषक का नाम और पता

औपचारिक पत्र लिखते समय ध्यान में रखने योग्य बातें

1. पत्र का आरम्भ:
औपचारिक पत्र लिखते समय सब से पहले पत्र के बायें कौने में हाशिये के साथ सेवा में, लिखना चाहिए। उसके बाद कुछ जगह छोड़ कर दूसरी पंक्ति में जिस अधिकारी को पत्र लिखा जाना है उसका पदनाम, फिर उससे अगली पंक्ति में उसका पता लिखना चाहिए।
औपचारिक पत्र पदनाम से ही लिखने चाहिएँ। उसके बाद जहां आपने सेवा में लिखा है उसके ठीक नीचे विषय शब्द लिख कर (:) विराम चिह्न लगाना चाहिएइसी पंक्ति में जहां से आपने अधिकारी का पदनाम लिखा है उसके ठीक नीचे पत्र का विषय लिखना चाहिए।
औपचारिक पत्रों में अभिवादन शब्द अनौपचारिक पत्रों के समान अलग-अलग नहीं होता बल्कि सब पत्रों में एक-जैसा ही होता है, जैसे–महोदय, प्रिय महोदय।

2. पत्र का मूल भाग:
पत्र में जहाँ से आपने अधिकारी का पदनाम लिखा है उसके ठीक नीचे से सम्बोधन सूचक शब्द के बाद वाली पंक्ति में-पत्र लिखना आरम्भ करना है। पत्र की दूसरी पंक्ति आप ने वहां से शुरू करनी है जहाँ से आप ने सेवा में लिखा था। पत्र में पहले अनुच्छेद को क्रम नहीं दिया जाता। उसके बाद के अनुच्छेदों में 2, 3, 4 क्रम दिया जा सकता है।

औपचारिक पत्र लिखने की एक खास विधि होती है जिसका ध्यान रखना ज़रूरी है। ऐसे पत्र बहुत लम्बे नहीं होते। मतलब की बात कम-से-कम शब्दों में लिखनी चाहिए। भाषा में भी औपचारिकता बरतनी चाहिए।

3. प्रशंसात्मक अन्त:
अनौपचारिक पत्र यदि आम आदमी की तरफ से-जो स्वयं अधिकारी नहीं है-लिखा जाता है तो पत्र के मूल भाग के प्रशंसात्मक शब्द लिख कर समाप्त करना चाहिए। यह प्रशंसात्मक शब्द नयी पंक्ति में लिखना चाहिए। सभी ऐसे पत्रों में प्रशंसात्मक शब्द समान होता है, जैसे-‘धन्यवाद सहित’।

4. समाप्ति निर्देश:
औपचारिक पत्रों में समाप्ति निर्देश आपका आज्ञाकारी या भवदीय लिख कर नीचे पत्र भेजने वाला अपना हस्ताक्षर करता है तथा अपना पूरा पता लिखता है।
ऐसा पत्र की बायीं ओर लिखा जाता है। नीचे आपकी जानकारी के लिए अनौपचारिक तथा औपचारिक पत्रों की रूपरेखा दी जा रही है।

अनौपचारिक (पारिवारिक या सामाजिक) पत्र की रूपरेखा

अपने से बड़ों को पत्र-पिता को पत्र

18-लाजपतराय नगर,
जी० टी० रोड,
जालन्धर।
दिसम्बर, 18…
पूज्य पिता जी,
सादर प्रणाम।
आपका कृपा पत्र मिला, समाचार ज्ञात हुआ। निवेदन है कि……………………………………..
…………………………………………………………………….
……………………………………………………………………
………………………………………………………………………
पूज्य माता जी को मेरा प्रमाण कहना।
आपका आज्ञाकारी पुत्र
…………………………..
……………………………

प्रशासनिक पत्र की रूपरेखा

उच्च अधिकारियों को लिखा जाने वाला पत्र
सेवा में
कलक्टर,
ज़िला…………………………………..
पंजाब।
विषय:
लाऊडस्पीकर के प्रयोग पर पाबन्दी लगाये जाने बारे।
महोदय,
सविनय निवेदन है कि…………………………………………
2. ………………………………………..
3…………………………………………
धन्यवाद सहित,
आपका विश्वासी
(हस्ताक्षर)
नाम-पता……………………………
………………………….
दिनांक ……………………….

विशेष रूप से ध्यान देने योग्य बातें

ऊपर दी गई रूप-रेखा के अनुसार ही पत्र लिखने चाहिएँ, चाहे वे व्यक्तिगत पत्र हों या प्रशासनिक (प्रार्थना-पत्र आदि)। प्रायः देखने में आता है कि लोग इन नियमों का पालन नहीं करते हैं। हालांकि इस छोटी-सी बात को दफ्तरों का साधारण कर्मचारी जानता है। वह ऊपर दिये गये नियमों के अनुसार ही पत्र लिखता अथवा टाइप करता है। आगे चलकर इन नियमों का पालन करते हुए लिखे गये पत्र को ही अच्छे अंक दिये जाते हैं। आशा है आप पत्र लिखते समय इन नियमों का पूरी तरह पालन करेंगे।

1. कुकिंग गैस की अनियमित आपूर्ति की शिकायत।
सेवा में
खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति अधिकारी
रामनगर,
जालन्धर।
विषय-कुकिंग गैस की अनियमित आपूर्ति बारे।
महोदय,
इस पत्र के द्वारा मैं आप का ध्यान नगर की एकमात्र कुकिंग गैस वितरण की ऐजेंसी द्वारा कुकिंग गैस की अनियमित आपूर्ति की ओर दिलाना चाहता हूँ।
महोदय, उपर्युक्त ऐजेंसी ने गैस के कनक्शन देते समय सभी उपभोक्ताओं को भरोसा दिलाया था कि गैस बुक करवाने के एक सप्ताह के भीतर कुकिंग गैस उपभोक्ता के घर पर पहुंचा दी जाएगी। भारतीय तेल कम्पनी ने भी ऐसी ही सुविधा की घोषणा कर रखी है, किन्तु खेद के साथ कहना पड़ता है कि ऊपरिलिखित गैस एजेंसी के मालिक बार-बार याद दिलाने पर भी गैस की आपूर्ति में दो से तीन सप्ताह का समय लगाते हैं। कुकिंग गैस के उपभोक्ताओं को कितना कष्ट झेलना पड़ता है, इसका आप सहज ही अनुमान लगा सकते हैं।

आप से प्रार्थना है कि आप समय-समय पर उक्त गैस ऐजेंसी का निरीक्षण करें और गैस की आपूर्ति को नियमित करने के आवश्यक निर्देश जारी करें। सुनने में आया है कि ऐजेंसी के मालिक गैस ब्लैक में बेचते हैं, भले ही हमारे पास इसका कोई प्रमाण नहीं है, किन्तु यदि आप नियमित रूप से इस गैस एजेंसी के स्टॉक और वितरण प्रणाली का निरीक्षण करते रहेंगे तो गैस की ब्लैक रुक जाएगी।

हम आशा करते हैं कि नगर निवासियों को पेश आने वाली असुविधाओं को ध्यान में रखते हुए आप इस दिशा में तुरन्त व उचित कार्रवाई करेंगे। हम आपके आभारी होंगे।

धन्यवाद सहित,
आपका विश्वासी,
(सुजान सिंह कालरा)
512-नेहरू नगर,
जालन्धर शहर।
दिनांक 2 जनवरी, 20…..

2. किसी समाचार पत्र के सम्पादक को केबल नेटवर्क एवं वीडियो खेलों के दुष्परिणामों के बारे में।
113, कर्णपुरी,
मोहाली।
5 जनवरी, 20….
सेवा में
सम्पादक,
दैनिक जागरण
चंडीगढ़।
विषय : केबल नेटवर्क एवं वीडियो खेलों के दुष्परिणामों के बारे।
महोदय,
मैं आपके लोकप्रिय दैनिक की नियमित पाठिका हूँ। आपके समाचार-पत्र के माध्यम से मैं केबल नेटवर्क एवं वीडियो गेम्स के दुष्परिणामों से आपके पाठकों को अवगत करवाना चाहती हूँ।
भवदीय
मारिया
आशा है आप मेरे इन विचारों को अपने पत्र में प्रकाशित करके मुझे अनुगृहीत करेंगे। इस लेख में आपको उचित संशोधन करने की पूरी छूट है।

आज का युग विज्ञान का युग होने के कारण नए-नए आविष्कार हो रहे हैं। इसी कारण देश के कोने-कोने में सुखसुविधाओं के अनेक साधन उपलब्ध हैं, किन्तु जब से दूरदर्शन पर केबल नेटवर्क का प्रसारण शुरू हुआ है शहरों के साथसाथ गाँव भी इसकी लपेट में आते जा रहे हैं। भले ही दूरदर्शन का प्रसार हमारे राष्ट्र की उन्नति का प्रतीक है परन्तु केबल नेटवर्क पर जो विदेशी चैनलों द्वारा जो अश्लील कार्यक्रम दिखाये जा रहे हैं उनका बुरा असर हमारी सभ्यता और संस्कृति पर भी हो रहा है।

इन कार्यक्रमों का सब से बुरा असर छोटे बच्चों पर हो रहा है, क्योंकि छोटे बच्चों पर बुरी बातों का जल्दी असर होता है। बच्चे अधिकतर अपने टी० वी० सैट के सामने बैठे रहते हैं। पढ़ाई की तरफ ध्यान देना तो दूर की बात वे खेलों की ओर भी ध्यान नहीं देते। अधिक देर तक टी० वी० सैट के सामने बैठने पर वे अनेक रोगों का शिकार हो रहे हैं। जिन में उनकी नेत्र ज्योति कमजोर होना सब से बड़ी बीमारी है। सोने पर सुहागा वीडियो गेम्स ने किया है। छोटे बच्चे घंटों तक इस खेल में मस्त रहते हैं।

हमारे यहाँ लगभग 40 चैनलों पर कार्यक्रम दिखाये जाते हैं जिस में ‘एफ’ चैनल जैसे चैनल तो फैशन-परेड ही दिखाते हैं। नग्न, अर्धनग्न लड़कियों को देख कर शहरों के ही नहीं, गाँवों के लड़के-लड़कियां भी बिगड़ने लगे हैं। इस दिशा में सरकार कुछ नहीं कर सकती। जो कुछ करना है हमें ही करना है। यदि हम यह प्रतिज्ञा कर लें कि अपने घरों में ऐसे गन्दे, बेहूदा कार्यक्रम नहीं देखेंगे तो समाज और देश का भला हो सकता है।

PSEB 11th Class Hindi Vyakaran सन्धि और सन्धिच्छेद

3. निदेशक, शिक्षा निदेशालय को बोर्ड की वार्षिक परीक्षा के दौरान परीक्षा भवन में हो रही नकल की शिकायत करते हुए।
108, संत नगर
अमृतसर।
सेवा में
निदेशक,
शिक्षा निदेशालय,
चण्डीगढ़।

विषय:
परीक्षा भवन में नकल होने बारे। महोदय,

मैं इस पत्र द्वारा आपका ध्यान बोर्ड की वार्षिक परीक्षाओं के दौरान अपने क्षेत्र के उच्च माध्यमिक विद्यालय में हो रही नकल की ओर दिलाना चाहता हूँ। महोदय, आज वार्षिक परीक्षा शुरू हुए मात्र तीन ही दिन हुए हैं। इन तीन दिनों में मैंने देखा है कि परीक्षा भवन में खुले आम नकल हो रही है। कुछ गुंडा टाइप के विद्यार्थी तो खुले आम पुस्तकें खोलकर प्रश्न-पत्र हल करते हैं। उन्हें निरीक्षक दल का कोई भी अध्यापक कुछ नहीं कहता। देखा देखी दूसरे विद्यार्थी भी नकल करने लगे हैं।

महोदय, नकल के कारण मेरे जैसे कुछ विद्यार्थी काफ़ी घाटे में रहेंगे, क्योंकि जो मेहनत करता है, ईमानदारी से परीक्षा देता है उसके अंक तो कम आएँगे और नकल करने वाले विद्यार्थी अधिक अंक प्राप्त करने में सफल हो जाएंगे।

आप से विनम्र प्रार्थना है कि अपने निदेशालय की ओर से कुछ अधिकारियों को उड़न दस्ते के रूप में भेजकर उक्त विद्यालय में ही नहीं अन्य परीक्षा केन्द्रों पर भी छापे मारे जाएँ और दोषी विद्यार्थियों और अध्यापकों को कड़ी-से-कड़ी सज़ा दी जाए।

मैं आपसे अपना नाम और पता गुप्त रखने की प्रार्थना के साथ परीक्षा में नकल की रोकथाम किये जाने की उचित कार्रवाई किये जाने की भी प्रार्थना करता हूँ।
आपका विश्वासी,
अमरजीत सिंह

4. महाप्रबन्धक, राज्य परिवहन निगम को अपने गाँव में बस स्टॉप की मंजूरी के लिए पत्र लिखती लिखता है।
513, सेक्टर-6
मोहाली।
5 जून 20….
सेवा में
महाप्रबन्धक
पंजाब राज्य परिवहन निगम,
चण्डीगढ़।

विषय-गाँव दोनापावला में बस स्टाप की मंजूरी की प्रार्थना
महोदय,
मैं इस पत्र के माध्यम से दोनापावला गाँव के समस्त निवासियों, विशेषकर छात्रों की ओर से आपकी सेवा में यह निवेदन करना चाहता हूँ कि हमारे गाँव में एक नियमित बस स्टॉप बनाया जाए।

आपका ध्यान गाँववासियों की इस तकलीफ की ओर भी दिलाना चाहता हूँ कि नियमित बस-स्टॉप न होने के कारण सभी बसें हमारे गाँव में नहीं रुकती हैं। कभी कभार यदि कोई बस पीछे से खाली आ रही हो तो रुकती है नहीं तो नहीं रुकती। गाँववासियों को विशेषकर छात्रों को कई-कई घंटे बस की प्रतीक्षा करनी पड़ती है। कभी-कभी तो दिन भर कोई भी बस हमारे गाँव में रुकती ही नहीं। यदि आप हमारे गाँव में एक नियमित बस स्टॉप मंजूर करके उसकी मंजूरी की सूचना अपने सभी बस चालकों और कण्डक्टरों को प्रसारित कर सूचित कर दें तो हम आपके अति आभारी होंगे।

यहाँ यह बात भी आपके ध्यान में लाना ज़रूरी समझता हूँ कि हमारी ग्राम पंचायत ने इस आशय का एक प्रस्ताव पारित करके तथा बस स्टॉप के लिए पंचायत के खर्चे पर शैड बनाने के भरोसे की सूचना आपको पहले ही भेजी जा चुकी है।
आशा है आप गाँववासियों के कष्ट का निवारण करने हेतु उचित एवं शीघ्र कार्रवाई करेंगे।
धन्यवाद सहित,
विश्वजीत

5. मुख्य अभियन्ता राज्य विद्युत् बोर्ड को बिजली का बिल बढ़ा-चढ़ा कर भेजने की शिकायत बारे।
13, विधि नगर
मोहाली।
13 जनवरी, 20…..
सेवा में
मुख्य अभियंता,
चंडीगढ़।
विषय-बिजली के बिल में गड़बड़ी के विषय में।
महोदय,
मैं इस पत्र के माध्यम से आपके कार्यालय द्वारा भेजे गए जनवरी-फरवरी 2018 के बिजली के बिल में कुछ गड़बड़ी होने की ओर दिलाना चाहता हूँ।

मैं शान्ति नगर के मकान नं0 521 का निवासी हूँ। मेरा खाता नं० ए० डी० 1563 है। इस बार बिजली का बिल 2000/रुपए का भेजा गया है और अन्तिम मीटर रीडिंग 51007 दिखाई गई है। इस बिल में कोई गड़बड़ी लगती है। हमारा बिजली । का बिल कभी दो-तीन सौ से ऊपर नहीं आया। इस तथ्य की जांच आप मेरे खाते को देखकर कर सकते हैं। हमारा मीटर आज भी रीडिंग 41047 दिखा रहा है जबकि आपके बिल में 51007 दिखाया है। लगता है मीटर पढ़ने वाले कर्मचारी ने भूल से 4 के स्थान पर 5 अंक लिख दिया है।

आप से नम्र निवेदन है कि आप मामले की व्यक्तिगत स्तर पर जाँच करके मेरे बिजली के बिल को सही करके दोबारा भेजें ताकि मैं बिजली का किराया समय पर आपके कार्यालय में जमा करा सकूँ।
आपसे तुरन्त एवं उचित कार्रवाई करने की पुन: प्रार्थना की जाती है।
भवदीय
शिवराज।

6. पुलिस अधीक्षक को नगर में चोरी की बढ़ती घटनाओं की रोकथाम करने के उपाय करने की प्रार्थना करते हुए।
525, आदर्श नगर
अमृतसर,
13 जून, 20….
सेवा में
पुलिस अधीक्षक,
अमृतसर।
विषय-नगर में बढ़ती चोरी की घटनाओं की रोकथाम करने के बारे में। महोदय,
मैं आपके पुलिस क्षेत्र के अन्तर्गत आने वाले रामनगर मुहल्ले का निवासी हूं। इस पत्र द्वारा इस तथ्य की ओर ध्यान दिलाना चाहता हूं कि हमारे मुहल्ले में पिछले कुछ दिनों से कई चोरियां हुई हैं। समाचार-पत्रों के माध्यम से हमें ऐसी जानकारी मिली है कि हमारे ही मुहल्ले में नहीं बल्कि नगर के अनेक क्षेत्रों में चोरी की घटना हुई है।

मुझे खेद के साथ कहना पड़ता है कि इस सम्बन्ध में पुलिस विभाग ने कोई उचित कार्रवाई नहीं की है। ऐसे भी समाचार मिले हैं कि नगर में कोई ससंगठित चोरों का गिरोह आया हुआ है जो इन चोरियों के लिए उत्तरदायी है, पर लगता है आपका विभाग घोड़े बेचकर सो रहा है। नगर में इतनी घटनाएं हो गईं और पुलिस विभाग के कान पर जूं तक नहीं रेंगी।

मान्यवर, आप तो जानते ही हैं पुलिस विभाग पर आम नागरिकों की जान-माल की सुरक्षा का उत्तरदायित्व होता है पर पुलिस ही ऐसी घटनाओं के प्रति उदासीनता दिखाए तो आम आदमी का पुलिस विभाग और लोकतन्त्र में विश्वास कैसे बहाल किया जा सकता है।

आपसे विनम्र प्रार्थना है कि आप इस सम्बन्ध में अपने विभाग को अधिक चुस्त-दुरुस्त करें और अपराधियों को पकड़ने के उचित उपाय करें ताकि आम जनता भयमुक्त होकर राहत की सांस ले सके और अपने आपको सुरक्षित समझ सके।
आपसे उचित और शीघ्र कार्रवाई के लिए पुनः प्रार्थना की जाती है।
धन्यवाद सहित,
भवदीय,
समर सिंह।

7. मुहल्ले में प्रदूषित जल की आपूर्ति के सम्बन्ध में नगरपालिका के स्वास्थ्य अधिकारी को शिकायती-पत्र लिखिए
मकान संख्या-1303
गांधी नगर,
लुधियाना।
13 अगस्त, 20….
सेवा में
स्वास्थ्य अधिकारी।
लुधियाना।
विषय- मुहल्ला गाँधी नगर में प्रदूषित जल की आपूर्ति के बारे में।
महोदय,
मैं मुहल्ला गाँधी नगर के निवासियों की ओर से आपका ध्यान, नगरपालिका द्वारा घरों में सप्लाई किये जाने वाले प्रदूषित जल के बारे में आकर्षित करना चाहता हूं। हमारे मुहल्ले में पिछले कई दिनों से नगरपालिका के नलों में गन्दा पानी आ रहा है। कभी-कभी उसमें कुछ कीड़े-मकोड़े भी देखे गए हैं। ऐसा जल पीने के योग्य नहीं है। ऐसे जल से तो लोग कपड़े तक धोने में भी झिझक महसूस करते हैं।

आपसे विनम्र प्रार्थना है कि आप जल आपूर्ति विभाग के कर्मचारियों को उचित आदेश देकर जहाँ-जहाँ से पानी की पाइप फटी हुई है और उनमें गन्दा पानी प्रवेश कर रहा है, उन पाइपों की तुरन्त मरम्मत करवाएं।
आपका ध्यान मैं इस बात की ओर भी दिलाना चाहता हूं कि ऐसा पानी पी कर लोगों का स्वास्थ्य तो बिगड़ेगा ही नगर में संक्रामक रोग फैलने का भी डर है।

मैं आशा करता हूं कि मुहल्ला वासियों के स्वास्थ्य का ध्यान करके तुरन्त शुद्ध एवं प्रदूषण रहित जल की आपूर्ति करने के लिए उचित व शीघ्र कार्रवाई करेंगे।
धन्यवाद सहित,
भवदीय,
अमरजीत सिंह।

PSEB 11th Class Hindi Vyakaran सन्धि और सन्धिच्छेद

8. कलेक्टर महोदय, को पत्र लिखकर लाउडस्पीकरों के प्रयोग पर पाबन्दी लगाने की प्रार्थना।
103, रामनगर,
नवांशहर,
2 मार्च, 20….
सेवा में
उपायुक्त महोदय,
नवांशहर।
विषय-ऊँची आवाज़ में लाउडस्पीकर बजाने को बन्द करने के बारे में।
महोदय,
मैं आपकी सेवा में समूह छात्र वर्ग की ओर से प्रार्थना करना चाहता हूं कि आजकल हमारी वार्षिक परीक्षाएं शुरू हैं, किन्तु नगर में आए दिन किसी-न-किसी बात को लेकर लाउडस्पीकरों पर ऊँची-ऊँची आवाज़ में फिल्मी गाने बजाए जाते हैं। इस शोर से हमारी पढ़ाई में बाधा पड़ती है। लाउडस्पीकर की आवाज़ में घरों में एक-दूसरे से बात करना भी कठिन होता जाता है। कुछ सुनाई ही नहीं देता। घरों में बच्चे विशेषकर बूढ़े लोग काफ़ी परेशान होते हैं। रोगियों की दशा का तो अन्दाज़ा सहज ही लगाया जा सकता है।

आपसे विनम्र, निवेदन है कि आप लाउडस्पीकर बजाने पर पाबन्दी लगा दें। यदि आप ऐसा न कर सकते हों तो कमसे-कम रात दस बजे के बाद हर हालत में लाउडस्पीकर का प्रयोग करने पर पाबन्दी लगा दें। ऐसी पाबन्दी लगाना आपके अधिकार क्षेत्र में है। समूह नगर निवासी आपके आभारी होंगे। नागरिक शोर प्रदूषण के भयंकर परिणामों से भी सुरक्षित रहेंगे।

आपसे उचित एवं शीघ्र कार्रवाई की पुनः प्रार्थना करता हूं।
धन्यवाद सहित,
भवदीय
विश्वास सिंह

9. महाप्रबन्धक, पंजाब राज्य सड़क, परिवहन निगम चण्डीगढ़ को बस कंडक्टर की पैसे लेकर टिकट न देने की शिकायत करते हुए।
202, कृष्ण कुंज
संत नगर,
अमृतसर।
2 अगस्त, 20…..
सेवा में
महाप्रबन्धक,
पंजाब राज्य सड़क परिवहन निगम,
चण्डीगढ़।
विषय- बस कंडक्टर के भ्रष्टाचार के बारे में शिकायत।
महोदय,
इस पत्र के माध्यम से मैं आपका ध्यान आपके परिवहन निगम की बस नं० 1313 के कंडक्टर के भ्रष्टाचार की ओर दिलाना चाहती हूँ।

कल मैं सुबह सात बजे के करीब ऊपर लिखी बस में अमृतसर के लिए जाने पर सवार हुई। मैंने नोट किया कि बस कंडक्टर यात्रियों से पैसे तो ले रहा है पर टिकट नहीं दे रहा। जब वह मेरे पास आया तो मैंने पैसे देकर उसे टिकट देने की मांग की। इस पर वह कंडक्टर भड़क उठा और मुझ से अशिष्ट भाषा में बात करने लगा। उसने कहा जब अन्य यात्री टिकट की मांग नहीं कर रहे हैं तो आप क्यों ऐसा कर रही हैं। उसने मुझे जो कुछ कहा वह मैं लिख नहीं सकती। मैंने उसे कहा कि तुम्हें महिलाओं से बात करने की भी तमीज़ नहीं है तो उसने कहा सारी तमीज़ तुम्हीं में है। बस में सवार अन्य यात्रियों ने उसे सभ्य व्यवहार करने को कहा पर उस पर कोई असर नहीं हुआ।

आपसे विनम्र प्रार्थना है कि आप उस कंडक्टर के विरुद्ध उचित अनुशासनिक कार्रवाई करें। उसके द्वारा टिकट के पैसों में घपला करने की भी जाँच कारवाई जाए। यह देखा जाए कि 52 यात्रियों वाली बस में उसने कितनी टिकटों के पैसे निगम के कार्यालय में जमा करवाये हैं। एक जागरूक नागरिक के नाते आपको इस भ्रष्टाचार की सूचना देना मैं अपना कर्तव्य समझ कर दे रही हूँ।
भवदीय,
सिमरनजीत कौर।

10. पिता जी के स्थानान्तरण पर प्राचार्य को पाठशाला त्याग प्रमाण-पत्र प्रदान करने हेतु आवेदन पत्र लिखिए।
सेवा में
प्राचार्य,
शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय,
पटेल नगर।
विषय-पाठशाला त्याग प्रमाण-पत्र जारी किए जाने हेतु।
महोदय,
निवेदन है कि मैं आपकी पाठशाला में ग्यारहवीं कक्षा के अनुभाग ‘ख’ का विद्यार्थी हूं। मेरे पिताजी भारतीय स्टेट बैंक में मैनेजर के पद पर नियुक्त हैं। कुछ ही दिन पूर्व उनका स्थानान्तरण भोपाल हो गया है। हम सब भी उनके साथ भोपाल जा रहे हैं। आपसे विनम्र निवेदन है कि मुझे पाठशाला त्याग प्रमाण-पत्र प्रदान करने की कृपा करें। ताकि मैं भोपाल में किसी पाठशाला में प्रवेश ले सकूँ।
मैं आपका हृदय से आभारी रहूंगा।
आपका आज्ञाकारी छात्र
सतनाम सिंह

11. मुख्य अभियन्ता को अपने गाँव के रास्ते की मरम्मत के लिए प्रार्थना-पत्र लिखते हुए।
संत सदन,
राम नगर,
चंडीगढ़।
13 मई, 20….
सेवा में
मुख्य अभियन्ता,
सार्वजनिक बांधकाम विभाग,
पंजाब सरकार, चण्डीगढ़।
विषय-गाँव रामनगर की सड़क की मरम्मत बारे।
महोदय,

मैं इस पत्र के माध्यम से आपका ध्यान गाँव रामनगर के रास्ते की खस्ता हालत की ओर दिलाना चाहता हूँ। गत दो वर्षों से इस रास्ते की मरम्मत की ओर कोई ध्यान नहीं दिया गया। सारे रास्ते पर कई-कई फुट चौड़े और गहरे खड्डे बने हुए हैं, जिससे अक्सर यहाँ दुर्घटनाएँ होती रहती हैं। यह रास्ता वर्षा के दिनों में तो एक नहर का रूप धारण कर लेता है। आपका ध्यान इस बात की ओर भी दिलाना चाहता हूँ कि जगह-जगह पानी जमा हो जाने पर उस पर मच्छर पलते हैं जो बीमारी फैलाने का कारण बन सकते हैं।

आपसे विनम्र प्रार्थना है कि अपने विभाग को इस रास्ते की मरम्मत पहल के आधार पर किये जाने के उचित एवं तुरन्त आदेश जारी किया जाएं ताकि आम जनता सुख की साँस ले सके और उनकी किसी संक्रामण रोग से रक्षा हो सके। सभी गाँव वासी आपके अति आभारी होंगे।
भवदीय
अक्षर।

12. प्राचार्य महोदय को रुग्णावकाश हेतु प्रार्थना-पत्र लिखते हुए।
सेवा में
प्राचार्य,
राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय,
बालघाट
फरीदकोट।
विषय-रुग्णावकाश के लिए प्रार्थना।
महोदय,
मैं आपकी विद्यालय में कक्षा ग्यारह का विद्यार्थी हूं। गत एक सप्ताह से मुझे थोड़ा-थोड़ा बुखार था। बुखार की हालत में मैं विद्यालय आता रहा। आज बाद दोपहर से मुझे 102 डिग्री बुखार हो गया है। डॉक्टर को दिखाया है। उसने मुझे कमसे-कम चार दिनों के लिए आराम करने की सलाह दी है। अतः आपसे विनम्र प्रार्थना है कि मुझे दिनांक 4 जनवरी से 7 जनवरी 20…… तक के लिए अवकाश की मंजूरी प्रदान की जाए। मैं आपका अति आभारी रहूंगा।
आपका आज्ञाकारी,
अंकेश भण्डारी
कक्षा XI, क्रम संख्या-642 अनुभाग ‘ख’

13. पुलिस थाने के थानेदार को अपने घर में हुई चोरी की खबर देते हुए।
म.नं. 513
गोविंदपुर
5 मई, 2018
सेवा में
थाना अधिकारी,
पुलिस थाना, गोविंद पुर
गोविंदगढ़।
विषय-घर में चोरी के बारे में प्रथम सूचना रिपोर्ट। महोदय,

निवेदन है कि मैं मोहन लाल सुपुत्र श्री सोहन लाल वासी मकान नं0 513 अपने घर में कल रात हुई चोरी के बारे प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करवाना चाहता हूँ। घटना का ब्योरा नीचे दिया जा रहा है-कल रात दिनांक 24 फरवरी सन् 20…. रात्रि के समय मेरे घर में चोरी हो गई है। यह घटना रात्रि के 2 बजे से 4 बजे के बीच होने की सम्भावना है क्योंकि रात एक बजे तक तो परिवार के सभी सदस्य दूरदर्शन पर एक फिल्म देख रहे थे। हमें चोरी का ज्ञान प्रायः 5 बजे के करीब हुआ जब मैं प्रातः प्रार्थना के लिए उठा। सोने के कमरे के अतिरिक्त सारे घर का सामान बिखरा पड़ा था। घर का बहुत-सा सामान और नकद पाँच हज़ार रुपए जो मेरे मेज़ की दराज़ में पड़े थे गायब पाये गये हैं।

आपसे विनम्र प्रार्थना है कि आप स्वयं हमारे घर पधार कर पंचनामा तैयार कर लें तथा चोरों के पैरों या हाथों के निशान उतारने के उपकरण भी साथ लाएं।
आपसे प्रार्थना है कि शीघ्र अति शीघ्र मामले की जाँच करके चोरों को पकड़ने और हमारा चोरी हो गया सामान बरामद करने के लिए उचित कार्रवाई करें। मैं आपका आभारी हूँगा।
धन्यवाद सहित,
भवदीय मोहनलाल

14. अधिक बस सेवा के लिए प्रार्थना-पत्र।
131, कबीर नगर,
मुक्तसर।
13 जनवरी, 20…..
सेवा में
सम्पादक,
पंजाब केसरी
अमृतसर।
विषय- ज्यादा बसें चलाए जाने के बारे राज्य परिवहन निगम से प्रार्थना।
महोदय,
आपके लोकप्रिय दैनिक पत्र द्वारा मैं राज्य परिवहन निगम से यह प्रार्थना करना चाहती हूँ कि प्रातः स्कूल एवं कॉलेज के खुलने तथा सायं इन शिक्षा संस्थाओं के बन्द होने के समय नगर-निगम की ओर से कुछ अतिरिक्त बसें चलाई जाएँ।

हमने अपने विद्यालय के प्राचार्य महोदय के द्वारा भी परिवहन विभाग के निदेशक महोदय को एक प्रत्यावेदन भिजवाया था किन्तु न तो उस पत्र की कोई पावती सूचना प्राचार्य महोदय को दी गई और न ही कोई वांछित कार्रवाई की गई। इसी कारण मैंने आपके पत्र द्वारा राज्य परिवहन निगम विभाग तक अपनी मांग पहुंचाने का निर्णय लिया है।

हमारी प्रार्थना है कि प्रातः 7 बजे से नौ बजे के बीच तथा सायं चार बजे से छ: बजे के बीच अतिरिक्त बसें चलाई जाएँ। इस अवधि में स्कूल-कॉलेज एवं दफ्तरों को जाने वाले यात्रियों को अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। प्राय: बसें पीछे से ठसा ठस भरी आती हैं तथा वे निश्चित बस स्टॉप पर रुकती ही नहीं। यदि रुकती भी है तो उनमें चढ़ना विशेषकर लड़कियों एवं महिलाओं के लिए भारी मुसीबत का कारण बनता है। ऐसी भीड़ भरी बसों में चढ़ने पर लड़कियों और महिलाओं को अभद्र व्यवहार या छेड़खानी जैसी घटनाओं का सामना करना पड़ता है। कुछ ऐसी ही समस्याओं से महिलाओं को संध्या के समय चलने वाली बसों में दो-चार होना पड़ता है।

हमारी प्रार्थना है कि यदि नगर निगम और परिवहन विभाग इन समयों में कुछ अतिरिक्त बस सेवा चालू कर दें तो बहुतसी समस्याओं का समाधान हो सकता है। हमारी उचित एवं शीघ्र कार्रवाई के लिए विभाग से प्रार्थना है।
भवदीय,
नवनीत।

15. मुहल्ले में फैले मलेरिया से बचाव के लिए प्रार्थना-पत्र।
मकान नं. 13
नेहरू नगर
जालन्धर।
13 मई, 20….
सेवा में
मुख्याधिकारी,
स्वास्थ्य केन्द्र,
जालंधर।
विषय-नेहरू नगर, में फैले मलेरिया की रोकथाम बारे।
महोदय,

निवेदन है कि आप का ध्यान मुहल्ला नेहरू नगर, में फैले मलेरिया के फैलाव और उसकी रोकथाम के लिए उचित एवं शीघ्र कार्रवाई करने की ओर दिलाना चाहता हूँ।

हमारे मुहल्ले में मलेरिया जैसा भयानक रोग फैलने के दो मुख्य कारण हैं जिनकी ओर आपका ध्यान दिलाना ज़रूरी समझता हूँ। पहला कारण यह है कि मुहल्ले की सफ़ाई का कोई उचित प्रबन्ध नहीं है। जगह-जगह कूड़े-कर्कट के ढेर लगे हैं जिनसे बदबू फैलने के साथ-साथ मक्खी और मच्छर भी पलते हैं। दूसरा कारण मुहल्ले की गलियों और सड़कों की काफ़ी देर से मुरम्मत न होना है जिसके कारण जगह-जगह गड्ढे बन गये हैं। जिनमें बरसात का पानी जमा हो जाता है जो मच्छरों की संख्या में वृद्धि करने में सहायक होता है।

आपसे विनम्र प्रार्थना है कि मलेरिया की रोकथाम के लिए सबसे पहले मुहल्ले की सफ़ाई की ओर ध्यान दिया जाए तथा दूसरे डी० डी० टी० जैसी कीटाणु नाशक दवाइयों का सारे मुहल्ले में, और अगर हो सके तो सारे शहर में छिड़काव किया जाए। नगर के सभी अस्पतालों में मलेरिया से पीड़ित रोगियों के लिए अलग से एवं उचित प्रबन्ध किए जाएं। सभी स्वास्थ्य केन्द्रों में दवाइयों का समुचित स्टॉक उपलब्ध करवाया जाए।

महोदय आपको विदित ही है कि कुछ वर्ष पहले नवम्बर मास में बिहार तथा आन्ध्र प्रदेश में इस रोग से कितने लोगों की जानें गयी थीं। ऐसा न हो कि पंजाबवासियों के लिए और आपके लिए यह बीमारी भी एक रोग बन जाए। इसे फैलने से पूर्व ही इसके उचित उपाय करने की आप से पुनः प्रार्थना की जाती है।
धन्यवाद सहित,
अभिजीत सिंह

PSEB 11th Class Hindi Vyakaran सन्धि और सन्धिच्छेद

16. नगरपालिका को बिल्डिंग के सामने पड़े कचरे से उत्पन्न होने वाली समस्याओं से अवगत करवाते हुए नगरपालिका स्वास्थ्य अधिकारी को इस कचरे को तुरन्त उठाने की प्रार्थना करते हुए।
1056, देवनगर
मोहाली।
1 मार्च, 20…..
सेवा में
स्वास्थ्य अधिकारी,
मोहाली।

विषय-लक्ष्मी बिल्डिंग मोहाली के सामने पड़े कचरे के ढेर को हटाये जाने के बारे।
महोदय,

इस पत्र के द्वारा मैं आपका ध्यान नगर में लक्ष्मी बिल्डिंग के सामने पड़े कचरे के ढेर की तरफ दिलाना चाहता हूँ। गन्दगी का यह ढेर गत एक महीने से यूँ ही पड़ा है, बल्कि इसमें दिन-प्रतिदिन और वृद्धि होती जा रही है। नगरपालिका का कोई भी सफ़ाई कर्मचारी इसे हटाने का प्रबन्ध नहीं करता। इस क्षेत्र में सफाई कर्मचारी को कई बार इस ढेर को उठाने की प्रार्थना की गई पर उस पर हमारी प्रार्थना का कोई असर नहीं होता। कई बार क्षेत्र के नगर पिता के ध्यान में भी यह बात लायी गयी है। उनका कहना है कि मैं चूंकि विरोधी दल का सदस्य हूँ, इसलिए मेरे क्षेत्र की ओर कोई ध्यान नहीं दिया जाता।

महोदय नगरवासियों के स्वास्थ्य एवं नगर की सफ़ाई का उत्तरदायित्व समूची नगरपालिका पर है न कि किसी एक नगर पिता पर । इस बिल्डिंग के सामने पड़े कचरे से इतनी दुर्गन्ध उठने लगी है कि बिल्डिंग में रहने वालों का जीना तो दूभर हो ही गया है, यहां से गुजरने वाले राहगीरों की परेशानी का कारण भी है। यदि आपने तुरन्त इस कचरे के ढेर को हटाने का प्रबन्ध न किया तो मुहल्ले में ही नहीं नगर में भी किसी संक्रामक रोग के फैलने का डर पैदा हो सकता है।

हम आशा करते हैं कि इस, सम्बन्ध में शीघ्र कार्रवाई करके आप बिल्डिंग वासियों की कठिनाई को दूर करने की कृपा करेंगे। हम सब आपके आभारी होंगे।
भवदीय,
सर्वजीत सिंह।

17. महाप्रबन्धक, पंजाब रोडवेज़, लुधियाना को बस कंडक्टर के अशिष्ट व्यवहार की शिकायत है।
1050, संतपुरी,
लुधियाना।
11 फरवरी, 20…….
सेवा में
महाप्रबन्धक,
पंजाब रोडवेज़,
लुधियाना।
विषय: बस कंडक्टर के अशिष्ट व्यवहार की शिकायत।
महोदय,
मैं आपका ध्यान आपके परिवहन की बस नं० PBN 2627 के कंडक्टर के अशिष्ट व्यवहार की ओर दिलाना चाहती हूँ। घटना दिनांक 4 मार्च की है। मैं अपने विद्यालय जाने के लिए सराभा नगर बस-स्टैण्ड से बस स्टैण्ड की ओर जाने वाली बस में सुबह के करीब 7 बजे सवार हुई। बस में काफ़ी भीड़ थी। बहुत-से लोग खड़े थे। बस कंडक्टर टिकटें काटते समय जहाँ लड़की बैठी थी उसकी सीट के साथ सटकर टिकट काट रहा था। जब वह मेरे पास टिकट देने के लिए आया तो वह कुछ आपत्तिजनक मुद्रा में मेरे साथ सटकर खड़ा हो गया।

पहले तो मैं अपने आपको बचाने के लिए कुछ परे खिसकी पर कंडक्टर भी उसी ओर बढ़ने लगा। मैंने उसे चेतावनी देते हुए सही ढंग से खड़े होने को कहा तो वह अनाप-शनाप बकने लगा। मैंने उसे कहा कि तुम्हें लड़कियों से बात तक करने की तमीज़ नहीं तो उसने कहा अपनी तमीज़ अपने पास रखो यहाँ तो ऐसे ही चलेगा। बस में सवार अन्य यात्रियों ने भी उसे मना किया कि वह लड़कियों से छेड़खानी क्यों करता है और सही ढंग से क्यों नहीं बोलता।

महोदय, बस से उतरने पर मेरी सहपाठिनों ने मुझे बताया कि वह कंडक्टर लड़कियों से आए दिन बदतमीज़ी करता है। आपसे विनम्र प्रार्थना है कि उस कंडक्टर के विरुद्ध उचित और शीघ्र अनुशासनात्मक कार्यवाही की जाए। किसी दिन विद्यार्थी वर्ग ने सामूहिक रूप से उसके विरुद्ध स्वयं कार्यवाही करने की ठान ली तो प्रशासन के लिए कानून व्यवस्था की समस्या खड़ी हो जाएगी।

मैं आशा करती हूँ कि आप उक्त कंडक्टर के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई करेंगे एवं उसे भविष्य में यात्रियों से विशेषकर महिलाओं से अशिष्ट व्यवहार न करने की चेतावनी दी जाएगी।
धन्यवाद सहित,
भवदीया
सिमर कौर

18. परीक्षा में विशेष सफलता पाने पर माता की ओर से पुत्री को पत्र लिखो।
सी-17, शक्ति विहार,
लुधियाना।
तिथि : 2 जुलाई, 20….
चिरंजीव मालती,
स्नेहाशीष।
आज प्रात: जैसे ही समाचार-पत्र हाथ में लिया तो ऊपर ही मोटे-मोटे अक्षरों में तुम्हारी बारहवीं कक्षा के परीक्षापरिणाम सम्बन्धी खबर पढ़ी। जब रोल नम्बरों की सूची में तुम्हारा रोल नं० ढूंढ रही थी तो मेरी धड़कन तेज़ हो गई थी। यद्यपि मुझे पूरा विश्वास था कि तुम दसवीं के परीक्षा-परिणामों के अनुरूप यहां भी प्रथम श्रेणी में ही उत्तीर्ण होगी। तुम्हारा रोल नं० पाकर कुछ सन्तुष्टि हुई फिर उसी समय तुम्हारे पापा को गजट में तुम्हारा परिणाम देखने को भेजा। अंकों के आधार पर पता चला कि तुम 75 प्रतिशत अंक प्राप्त कर प्रथम श्रेणी में पास हुई हो।

प्यारी बिटिया, तुम्हारे जन्म से ही मुझे तुमसे कुछ आशाएँ बंध गई थी कि जो लक्ष्य जीवन में मैं न पा सकी उन्हें तुम प्राप्त करो। मेरा आशीर्वाद सदा-सदा तुम्हारे साथ है, तुम जीवन में हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त करो और अपना तथा परिवार का नाम रोशन करो। तुम्हारे पापा भी आज बहुत खुश हैं। तुम्हारा छोटा भाई तो खुशी से फूला ही नहीं समा रहा। वह तो अपने दोस्तों को भी बता आया है।

तुम्हारे पिता जी की ओर से तुम्हें ढेर सारा प्यार। निशांत की ओर से प्यार। पत्र का उत्तर शीघ्र देना।
तुम्हारी माता,
सुनीता।

19. कुसंगति में फंसे अपने छोटे भाई को पत्र लिखो जिसमें सदाचार के गुण बताते हुए उसे बुरी संगति से दूर रहने की प्रेरणा हो।
317-आदर्श नगर,
जालन्धर शहर।
दिनांक : 6 फरवरी, 20….
प्रिय भाई संजीव,
आयुष्मान रहो।
पिछले दो सप्ताह से तुम्हारा कुछ भी संवाद नहीं मिल रहा, क्या कारण है। सारा परिवार तुम्हारी ही चिन्ता में पड़ा हुआ है। कभी-कभी तो मन सोचने लगता है कि हमने तुम्हें दूर होस्टल में पढ़ने भेजकर कहीं कुछ ग़लत तो नहीं किया। हमने तो ऐसा केवल इसलिए किया कि तुम अच्छे विद्यालय में पढ़कर अच्छी विद्या ग्रहण कर सको ताकि तुम्हारा भविष्य सुन्दर हो जाए। लेकिन हमें निरन्तर डर लगा रहता है कि तुम कहीं पढ़ाई से विमुख होकर कुसंगति का शिकार न हो जाओ। जीवन की उन्नति का आधार सदाचार है। सदाचार का अर्थ है-श्रेष्ठ आचरण। इसमें सत्य, उच्च विचार, नैतिकता आदि गुण आते हैं। वस्तुत: नैतिक मूल्यों के बिना, मनुष्य-जीवन ही व्यर्थ है। सदाचारहीन व्यक्ति अपना तो सर्वनाश कर ही लेता है, वह अपने समाज और राष्ट्र को भी कलंकित कर देता है। उसका विवेक नष्ट हो जाता है। उसे भले-बुरे का ज्ञान ही नहीं रहता।

प्रिय राजीव ! विद्या की देवी सदाचारी पर ही रीझती है। आज तक जितने भी महापुरुष हुए हैं, वे सदाचार के बल पर ही ऊंचे उठे हैं। विद्या प्राप्ति के लिए जीवन में कठोर तप और साधना करनी पड़ती है। तप और साधना सदाचारी ही कर सकता है। आचारहीन तो हाथ ही मलता रह जाता है, विद्या रूपी सुवासित फूल उसे कभी प्राप्त नहीं हो पाता। वह प्रख्यात उक्ति एक बार फिर तुम्हें याद दिलाना चाहता हूँ कि-‘आचारहीन न पुनन्ति वेदाः’ अर्थात् चरित्रहीन व्यक्ति को देव भी पवित्र नहीं कर सकते।

प्रिय भाई ! शिक्षा-काल में तो सदाचार की महती आवश्यकता रहती है क्योंकि संयम, धैर्य, सहिष्णुता, गुरु सेवा, व्रत आदि गुणों से ही पूर्ण शिक्षा उपलब्ध होती है। सदाचार का सूर्य शिक्षा का प्रकाश फैला सकता है। इसलिए मेरा बार-बार तुम से यही अनुरोध है कि जीवन में सदाचार को अपनाओ। गुरुजनों की आज्ञा से सदाचारी रहते हुए विद्या प्राप्ति के लिए जुट जाओ। किसी चीज़ की आवश्यकता हो तो नि:संकोच लिख भेजो। पत्र का उत्तर शीघ्र दे दिया करो।
तुम्हारा बड़ा भाई, राकेश।

20. पुत्र के विवाह के अवसर पर अपने मित्र को निमन्त्रण देते हुए पत्र लिखो।
47-बी, किशनपुरा,
गोल मार्किट, फगवाड़ा।
दिनांक : 12 जनवरी, 20….
प्रिय बन्धु ज्ञानेश्वर,
सादर नमस्कार।

आपको यह जानकर हार्दिक आनन्द का अनुभव होगा कि मेरे पुत्र संजीव का शुभ विवाह जालन्धर निवासी और उद्यमी पंकज आर्य की सुपुत्री संगीता के साथ 6 फरवरी, 20…. को होना निश्चित हुआ है। अतः आपसे निवेदन है कि इस शुभ अवसर पर आप सपरिवार हमारे निवास स्थान पर पधारें और नव वर-वधू को आशीर्वाद प्रदान कर कृतार्थ करें।

कार्यक्रम

सेहरा बन्दी-5 बजे शाम।
बारात रवानगी-7 बजे रात्रि।
(जालन्धर के लिए)

उत्तरापेक्षी
समस्त परिवारगण।

तुम्हारा अभिन्न।
राजशेखर।

21. पुलिस अधीक्षक दिल्ली को यात्रा में सामान खो जाने पर रिपोर्ट दर्ज करवाने के बाद भी पुलिस की अकर्मण्यता के सम्बन्ध में आवेदन पत्र लिखें।
ए-13, शांतिपुरम
रोहिणी, दिल्ली।
3 जून, 20…..
सेवा में
पुलिस अधीक्षक,
रोहिणी, दिल्ली।
विषय-यात्रा में खोए सामान और पुलिस की अकर्मण्यता सम्बन्धी।
महोदय,

विनम्र निवेदन यह है कि मैं दिनांक 13 अगस्त को जालन्धर से दिल्ली (रोहिणी सैक्टर 12) में अपनी बहन की लड़की की शादी में सपरिवार जा रहा था। कंडक्टर ने मुझे सामान बस के ऊपर रखने के लिए कहा। मेरे मना करने पर भी वह जिद्द में अड़ गया कि आपका सामान ज्यादा है इसे आप बस के ऊपर ही रखें। बेबसी में मुझे अपना सामान ऊपर ही रखना पड़ा। रास्ते में अम्बाला से कुछ आगे चलकर बस जब एक स्थान पर खाना खाने के लिए रुकी तो मैं बस पर चढ़कर अपना सामान देख आया। तब तक तो सारा सामान ठीक रखा हुआ था। इसके बाद जब बस दिल्ली पहुँची तो मैंने कुली को कहकर अपना सामान उतरवाया तो बाकी सामान तो मिल गया, लेकिन मेरा एक सूटकेस गायब
था जिसमें हमारा कीमती सामान और कुछ रुपए थे।

मैंने जब कंडक्टर से पूछा तो उसने भी सीधे मुँह कोई बात नहीं की। मैंने फिर इस चोरी की सूचना तुरन्त ही पुलिस थाना, दिल्ली में की किन्तु आज आठ दिन हो गए हैं, लेकिन कोई भी उचित कार्रवाई नहीं की गई। इस सम्बन्ध में जब भी थानेदार महोदय से मिलने की कोशिश की तो वह ठीक से बात ही नहीं करता।

साहब, इस चोरी से मेरा बहुत बड़ा नुक्सान हुआ है। मेरे सारे कीमती जेवर चोरी चले गए हैं। अतः आपसे निवेदन है कि आप व्यक्तिगत रूप से रुचि लेकर इसकी जाँच करवाएँ ताकि मुझ ग़रीब को न्याय जल्दी-से-जल्दी मिल सके।
आशान्वित।
भवदीय
दिव्यम भारती

PSEB 11th Class Hindi Vyakaran सन्धि और सन्धिच्छेद

22. हिन्दी की पुस्तकें मँगवाने के लिए पुस्तक प्रकाशक को पत्र लिखिए।
अ-111, संत नगर
नवांशहर।
10 मई, 20…..
सेवा में
प्रबन्धक,
मल्होत्रा बुक डिपो,
रेलवे रोड,
जालन्धर।
महोदय,

हमारे विद्यालय के पुस्तकालय के लिए हमें हिन्दी की निम्नलिखित पुस्तकें वी०पी०पी० द्वारा शीघ्रातिशीघ्र भेजकर अनुगृहीत करें। पुस्तकें भेजते समय इस बात का ध्यान रखें कि कोई पुस्तक मैली और फटी न हो। आपके नियमानुसार पाँच सौ रुपए मनीआर्डर द्वारा पेशगी के रूप में भेज रहा हूँ।

ये पुस्तकें पंजाब स्कूल शिक्षा बोर्ड के नये पाठ्यक्रम पर आधारित होनी चाहिएं।
पुस्तकें
1. हिन्दी साहित्यिक निबन्ध 8 प्रतियाँ
2. ऐम०बी०डी० नूतन पत्रावली 8 प्रतियाँ
3. ऐम०बी०डी० साहित्य रत्नाकर 8 प्रतियाँ
4. ऐम०बी०डी० हिन्दी व्याकरण बोध 8 प्रतियाँ
भवदीय,
मोहन लाल।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 34 टूटते परिवेश

Punjab State Board PSEB 11th Class Hindi Book Solutions Chapter 34 टूटते परिवेश Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Hindi Chapter 34 टूटते परिवेश

Hindi Guide for Class 11 PSEB टूटते परिवेश Textbook Questions and Answers

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दें –

प्रश्न 1.
‘टूटते परिवेश’ एकांकी में एक मध्यवर्गीय परिवार को टूटते हुए दिखाकर प्राचीन और नवीन पीढ़ी के सम्बन्ध को व्यक्त किया है। स्पष्ट करें।
उत्तर:
वैसे तो आदिकाल से ही प्राचीन और नवीन पीढ़ी में संघर्ष चला आ रहा है किन्तु बीसवीं शताब्दी तक आते-आते इस संघर्ष ने इतना भीषण रूप धारण कर लिया कि सदियों से चले आ रहे संयुक्त परिवार टूटने लगे। विशेषकर मध्यवर्गीय परिवारों पर इस टूटन की गाज सबसे अधिक गिरी। ‘टूटते परिवेश’ एकांकी में विष्णु प्रभाकर जी ने इसी समस्या को उठाया है। एकांकी में विश्वजीत और उसकी पत्नी करुणा पुरानी पीढ़ी तथा एकांकी के शेष सभी पात्र नई पीढ़ी के। एकांकी के आरम्भ में ही विश्वजीत की मंझली बेटी मनीषा के प्रस्तुत संवाद इसी संघर्ष को दर्शाता है-‘मैं पूछती हूँ कि मैं क्या आपको इतनी नादान दिखाई देती हूँ कि अपना भला-बुरा न सोच सकूँ ? जी नहीं, मैं अपना मार्ग आपको चुनने का अधिकार नहीं दे सकती, कभी नहीं दे सकती। मैं जा रही हूँ, वहाँ जहाँ मैं चाहती हूँ।’

अपने अधिकारों की आड़ में नई पीढ़ी धर्म, सभ्यता, संस्कृति, नैतिकता, सच्चरित्रता सभी का मज़ाक उड़ाती है। विवेक कहता है-पूजा में देर कितनी लगती है। बस पाँच मिनट …. और दीप्ति का यह कहना-‘गायत्री मंत्र ही पढ़ना है तो वह यहाँ भी पढ़ा जा सकता है। फिर पूजा की ज़रूरत ही क्या है।’ नई पीढ़ी की यह बातें धर्म का मज़ाक उड़ाने के बराबर है।

पुरानी पीढ़ी के विश्वजीत चाहते हैं कि दीवाली के अवसर पर तो सारा परिवार मिल बैठ कर लक्ष्मी पूजन कर ले, किन्तु नई पीढ़ी के पास तो इस बात के लिए समय ही कहाँ हैं। वह क्लब में, होटल में दीवाली नाइट मनाने जा सकते। पिता के होटल में जाने से मना करने पर विवेक उसे गुलाम बनाना चाहता है। पुरानी पीढ़ी कहती है कि युग बीत जाता है, नैतिकता हमेशा जीवित रहती है।’ जबकि नई पीढ़ी करती है-‘जीवन भर नैतिकता की दुहाई देने के सिवा आपने किया ही क्या है।’ चरित्र के विषय में नई पीढ़ी का विचार है कि जिसने सचरित्रता का रास्ता छोड़ा उसी ने सफलता प्राप्त की। नई पीढ़ी नेता और पिता को एक छद्म के दो मुखौटे कहती है। नई पीढ़ी मुक्त यौनाचार में विश्वास रखती है। तो पुरानी पीढ़ी सचरित्रता को ही सब से बड़ा मानती है। पुरानी पीढ़ी सब कुछ हो जाने पर भी सन्तान का हित, उसका मोह नहीं त्यागती, किन्तु नई पीढ़ी स्वार्थ में अन्धी होकर अपने पिता, अपने परिवार तक की परवाह नहीं करती।

इस प्रकार एकांकीकार ने संयुक्त परिवार टूटने का सबसे बड़ा कारण नई पीढ़ी के स्वार्थान्ध हो जाने को बताया है। प्रस्तुत एकांकी में लेखक ने इसी संघर्ष का सजीव चित्रण किया है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 34 टूटते परिवेश

प्रश्न 2.
‘टूटते परिवेश’ एकांकी का सार लिखें।
उत्तर:
टूटते परिवेश’ एकांकी के लेखक विष्णु प्रभाकर हैं। इसमें उन्होंने देश में नवयुवकों की बदल रही सोच को दिखाया है। ज्ञान-विज्ञान और नागरीकरण का जो प्रभाव हमारे धार्मिक, सामाजिक या नैतिक जीवन पर पड़ा है, उसे एक परिवार की जीवन स्थितियों के माध्यम से दिखाया गया है। इसमें पुरानी पीढ़ी नैतिकता, सिद्धान्त, त्याग, मानवीयता धर्म और चरित्र के परिवेश में रहना चाहती है और नई पीढ़ी उच्छंखल, अनैतिक, अव्यवहारिक तथा स्वच्छंद वातावरण में रहना चाहती है। इसी से परिवार में टकराव की स्थिति उत्पन्न होती है और परिवार टूटकर बिखर जाता है। प्रस्तुत एकांकी तीन अंकों में बँटा हुआ है। किन्तु घटनास्थल एक ही है।

एकांकी की कथावस्तु एक मध्यवर्गीय परिवार की नई पुरानी दो पीढ़ियों के संघर्ष और परिवार टूटने की कहानी है। नाटक के आरम्भ में परिवार के मुखिया विश्वजीत और उसकी पत्नी करुणा तथा बेटियों मनीषा और दीप्ति का परिचय दिया गया है। दीवाली का शुभ दिन है और विश्वजीत चाहते हैं कि सारा परिवार मिल बैठकर पूजा करे किन्तु नई पीढ़ी तो पूजा अर्चना को एक ढोंग समझती है। यही नहीं नई पीढ़ी भारतीय सभ्यता का मज़ाक भी उड़ाती है। परिवार का कोई भी सदस्य पूजा करने घर नहीं पहुँचता। सब को अपनी-अपनी पड़ी है। सभी दीवाली घर पर नहीं होटलों और क्लबों में मनाने चले जाते हैं। . एकांकी के दूसरे अंक में नई और पुरानी पीढ़ी का संघर्ष उग्र रूप धारण कर लेता है। मनीषा किसी विधर्मी से विवाह कर लेती है। दीप्ति हिप्पी बनी आवारा घूमती है और सिगरेट भी पीने लगी है। विवेक, जो सिवाए अर्जियाँ लिखने के कोई दूसरा काम नहीं जानता, विद्रोह करने पर उतारू हो जाता है और उनका साथ देने की बात कहता है।

विश्वजीत परिवार के सदस्यों (नई पीढ़ी) के व्यवहार से दुःखी होकर आत्महत्या करने घर से निकल जाते हैं घर पर सारा परिवार एकत्र होता है किन्तु किसी के पास अपने परिवार के मुखिया को ढूँढ़ने का समय नहीं है। हर कोई न कोई बहाने बनाता है। किन्तु विश्वजीत स्वयं ही लौट आते हैं कि यह सोचकर कि आत्महत्या का अर्थ है मौत और मौत का एक दिन निश्चित है। तब आत्महत्या क्यों की जाए।
विश्वजीत के लौट आने पर उसका बड़ा बेटा शरद् तो उनसे हाल-चाल भी नहीं पूछता है और अपने काम की जल्दी बता कर चला जाता है। परिवार के दूसरे सदस्य भी चले जाते हैं और पुरानी पीढ़ी के लोग विश्वजीत और उसकी पत्नी अकेले रह जाते हैं इस आशा में कि उनके बच्चे एक-न-एक दिन लौट आएँगे।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 34 टूटते परिवेश

प्रश्न 3.
निम्नलिखित की चारित्रिक विशेषताएँ लिखें-
(क) विश्वजीत
(ख) विवेक
(ग) दीप्ति उत्तर

(क) विश्वजीत :

परिचय-विश्वजीत पुराने विचारों का व्यक्ति है, परिवार का मुखिया है। उसके तीन बेटे-दीपक, शरद् और विवेक हैं तथा तीन बेटियाँ-इन्दू, मनीषा और दीप्ति। उसकी आयु 60-70 वर्ष की है।

निराश पिता :
दीवाली का दिन है और विश्वजीत चाहता है कि परिवार के सभी सदस्य मिलकर पूजा करें। तीन घंटे की प्रतीक्षा के पश्चात् भी कोई भी पूजा करने नहीं आता। जब उसकी पत्नी यह कहती है कि कोई नहीं आएगा तो विश्वजीत कहता है “कोई कैसे नहीं आएगा। घर के लोग ही न हों तो पूजा का क्या मतलब। यही तो मौके हैं, जब सब मिल बैठ पाते हैं।” मनीषा बिना बताए, बिना पूछे अपने किसी मित्र के साथ दीवाली मनाने जा चुकी होती है। इन्दू अपने पति के साथ दीवाली नाइट देखने जा रही है। दीपक दीवाली की शुभकामनाएँ देने मुख्यमन्त्री के घर गया है। रह गए दीप्ति और विवेक। उन्हें भी घर में होने वाली लक्ष्मी पूजा में कोई रुचि नहीं है। विश्वजीत के चेहरे की निराशा और उभर आती है, वह कहता है-“क्या हो गया है दुनिया को ? सब अकेले-अकेले अपने लिए ही जीना चाहते हैं। दूसरे की किसी को चिन्ता ही नहीं रह गई है। एक हमारा ज़माना था कि बड़ों की इजाजत के बिना कुछ कर ही न सकते थे।”

संतान से दुःखी :
विश्वजीत एक दुःखी पिता है, जिसकी सन्तान उसके कहने में नहीं है। विवेक के बेकार होने का उसे दुःख है। वह कहता है-“कुछ काम करता तो मेरी सहायता भी होती।” बेटों के व्यवहार से विश्वजीत को जो कष्ट होता है उसे वह निम्न शब्दों में व्यक्त करता है-“कैसा वक्त आ गया है ? एक हमारा ज़माना था, कितना प्यार, कितना मेल, एक कमाता दस खाते । हरेक एक-दूसरे से जुड़ने की कोशिश करता था और अब सब कुछ फट रहा है। सब एक-दूसरे से भागते हैं।”

उसकी पत्नी भी इस सम्बन्ध में व्यंग्य करती है “…… अपनी औलाद तो सम्भाले सम्भलती नहीं, बात करते हो भारत माता की।”

मानसिक असंतुलन :
विश्वजीत अपनी सन्तान के व्यवहार से दुःखी होकर जड़ हो जाता है। उसे जीवन में कोई रस नहीं दिखाई देता। गुस्से में आकर वह अपने आपको गालियाँ निकालने लगता है। हीन भावना और घोर निराशा का शिकार होकर वह आत्महत्या करने के लिए घर से बाहर चला जाता है, किन्तु यह सोचकर लौट आता है कि जब मौत का एक दिन निश्चित है तो आत्महत्या करके जान क्यों दी जाए। अन्तिम क्षण तक उसे बचा रखना चाहिए।

पिता का विश्वास :
जब विश्वजीत की पत्नी कहती है कि जब बच्चे उसे छोड़ कर चले गए तो वह भी बच्चों को छोड़ दे। तब विश्वजीत कहता है कि वह अपनी मजबूरियों का क्या करें। स्वभाव की, बच्चों को प्यार करने की. इनका बाप होने की तथा उनको खो देने पर यह आशा रखने की मजबूरी की एक दिन वे लौट आएंगे।

(ख) विवेक :

टूटते परिवेश एकांकी में विवेक पश्चिमी सभ्यता में रंगी नई युवा पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करता है। उसमें पुरानी पीढ़ी के प्रति घृणा है, बुजुर्गों के बनाए हुए नियमों का उल्लंघन करने में अपनी बहादुरी समझता है, उसके सामने न तो देश का हित है न ही अपने परिवार का। वह अपने माता-पिता की इज्जत भी नहीं करता। उसे अपनी सभ्यता, संस्कृति के प्रति कोई रुचि नहीं है। बस बात-बात में बड़ों से बहस करनी जानता है। नई पीढ़ी के बिगड़े हुए युवकों के सभी अवगुण उसमें मौजूद हैं।

परिचय :
विवेक, विश्वजीत का सब से छोटा बेटा है। उसकी आयु चौबीस वर्ष के लगभग हो गई है, किन्तु अभी तक बेकार है। बस अर्जियाँ लिखता रहता है। दूसरों को सफ़ाई की शिक्षा देने वाला विवेक अपनी अर्जियाँ तक भी सम्भाल कर नहीं रख सकता। वह घर में उन्हें इधर-उधर बिखेर देता है।

अव्यावहारिक :
विवेक एक ऐसा युवक है, जिसने किसी का आदर करना सीखा ही नहीं। उसे पुराने लोगों से चिढ़ है। चाहे वह उसका अपना बाप ही क्यों न हो। वह अपने बाप से कहता है-”पापा आप का ज़माना कभी का बीत गया। अब बीते जीवन की धड़कनें सुनने से अच्छा है कि वर्तमान की साँसों की रक्षा की जाए।” विवेक के पिता जब उसे दीवाली मनाने होटल पैनोरमा जाने से रोकते हैं तो वह उन्हें कहता है–“आप हमारे पिता हैं, इसमें कोई सन्देह नहीं। लेकिन इसलिए ही आप हमें रोक नहीं रहे हैं। आप हमें इसलिए रोक रहे हैं कि आप हमें पैसे देते हैं। पिता तो आप शरद्, इन्दू, मनीषा सभी के हैं। उन्हें रोक सके आप ? मैं आप पर आश्रित हूँ लेकिन गुलाम नहीं।”

सभ्यता संस्कृति से दूर :
विवेक एक ऐसा युवक है, जिसे अपनी सभ्यता-संस्कृति का कोई लिहाज़ नहीं, जो बड़ों का मज़ाक उड़ा सकता है वह भला धर्म और देवी-देवताओं का आदर कैसे कर सकता है। दीवाली के दिन होने वाली लक्ष्मी पूजा का मजाक उड़ाता हुआ वह कहता है-“पूजा में देर कितनी लगती है-पाँच मिनट। पंडित जी तो आए नहीं बस आप तीन बार गायत्री मंत्र पढ़ लीजिए।”

चरित्रहीन तथा कायर :
विवेक की दृष्टि में चरित्र का कोई महत्त्व नहीं। चरित्र हीनता ने उसे कायर भी बना दिया है। उसकी छोटी बहन हिप्पी बनी अनेक युवकों के साथ आवारागर्दी करती है; सिगरेट पीती है। उसकी मर्दानगी नहीं
जागती। उसकी बड़ी बहन एक विधर्मी से, बिना सूचना दिए, बिना आज्ञा विवाह कर लेती है, उसे जोश नहीं आता। उल्टे वह अपनी बड़ी बहन के कृत्य को उचित ठहराता है।

संयुक्त परिवार में विश्वास :
विवेक संयुक्त परिवार की प्रणाली में विश्वास नहीं रखता। जब उसके पिता कहते हैं कि देश और समाज के प्रति तुम्हारे भी कुछ कर्त्तव्य हैं तो विवेक कहता है-“कर्त्तव्य की दुहाई दे देकर आप लोगों ने सदा अपना स्वार्थ साधा है। संयुक्त परिवार में बाँधे रखा है। अब भी आप चाहते हैं कि हम आपकी वैसाखी बने रहें। नहीं पापा! वैसाखियों का युग अब बीत गया।”

घुटन का अनुभव :
विवेक को अपने घर में अपने देश में घुटन महसूस होती है। इस घुटन से छुटकारा पाने का साधन वह विदेश जाकर प्राप्त करना चाहता है।

इस प्रकार लेखक ने विवेक के चरित्र द्वारा आज की युवा पीढ़ी के उन युवकों का चरित्र प्रस्तुत किया है, जिन्हें आता-जाता कुछ नहीं, डींगें बड़ी-बड़ी हांकते हैं। हर बात में दोष निकालते हैं करते-धरते कुछ नहीं। जैसे थोथा चना बाजे घना।

(ग) दीप्ति :

परिचय :
दीप्ति नई पीढ़ी की उस युवा वर्ग का प्रतिनिधित्व करती है जो मध्यवर्गीय परिवारों की होती हुई भी अमीर लोगों की नकल करना अपना धर्म समझती है। आधुनिक बनने के चक्कर में वह चरित्र भी गँवा बैठती है।

नारी स्वतन्त्रता का दुरुपयोग :
दीप्ति विश्वजीत की सब से छोटी लड़की है। मध्यवर्गीय परिवार में जन्म लेकर भी वह हिप्पी बनी घूमती है, ‘सिगरेट पीती है’, आवारागर्दी करती है। लड़कों से दोस्ती करती है और वयस्क होने से पूर्व ही नितिन नाम के लड़के से विवाह करने का निश्चय कर लेती है। अपने ईश्क की बात वह निधड़क होकर अपनी माँ से कहती है।

परम्पराओं से दूर :
दीप्ति अपने भाई की तरह त्योहार, धर्म, पूजा आदि में कोई रुचि नहीं रखती उसकी रुचि घर पर दीवाली की पूजा करने से अधिक क्लब या होटल में दीवाली नाइट मनाने की है। धर्म और पूजा का मज़ाक उड़ाना वह अपना अधिकार समझती है। वह कहती है-‘गायत्री मंत्र पढ़ना है तो यहाँ भी पढ़ा जा सकता है। फिर पूजा की ज़रूरत ही क्या है।’ पूजा करने को वह लकीर पीटना कहती है। वह कहती है-‘चलो भैया लकीर पीटनी है, पीट लो जब तक पीटी जा सके।

अपनी बड़ी बहन मनीषा द्वारा किसी विधर्मी से विवाह करने को वह बुरा नहीं समझती बल्कि वह अपनी बहन को बधाई देने को तैयार हो जाती है।

आधुनिक विचारधारा का दुरुपयोग :
दीप्ति आवारागर्दी करने का भी अपना अधिकार समझती है। वह अपने भाई से कहती है-मैं कहाँ जाती हूँ ? कहाँ नहीं जाती ? तुम्हें इससे मतलब ? दीप्ति आधुनिकता की झोंक में अपनी माँ तक का भी निरादर कर देती है। अपनी माँ के चूल्हा चौंका करना, दूसरों का इन्तज़ार करना कर्त्तव्य नहीं आदत लगती है।

इस तरह हम देखते हैं कि दीप्ति आधुनिकता की झोंक में एक बिगड़ी हुई लड़की के रूप में हमारे सामने आती है जो न बड़ों की इज्जत करती है, न धर्म, सभ्यता, संस्कृति की कोई परवाह करती है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 34 टूटते परिवेश

प्रश्न 4.
‘आज की नारी स्वतन्त्रता की सीमा लाँध रही है’ एकांकी के आधार पर उत्तर दें।
उत्तर:
टूटते परिवेश एकांकी में आधुनिकता की आड़ में नारी स्वतन्त्रता की सीमा लाँघती दिखाई गई है। एकांकी के आरम्भ में ही मनीषा का दर्शकों को सम्बोधन करके कहा गया निम्न कथन इसका एक उदाहरण है ………. मैं पछती हूँ कि मैं आपको इतनी नादान दिखाई देती हूँ कि अपना भला-बुरा न सोच सकूँ ? जी नहीं, मैं अपना मार्ग आपको चुनने का अधिकार नहीं दे सकती, नहीं दे सकती, कभी नहीं दे सकती। मैं जा रही हूँ, वहीं मैं जाना चाहती हूँ।” वही मनीषा अपने प्रेमी से विवाह रचा लेती है तो घरवालों को केवल फ़ोन पर सूचना भर देती है। वही मनीषा जब उसके पापा घर से गायब हो जाते हैं तो वह क्षण भर भी वहाँ ठहर नहीं सकती। नारी स्वातंत्र्य का वह अनुचित लाभ उठाती है।

इसी तरह का एकांकी का दूसरा पात्र दीप्ति का है जो अभी वयस्क नहीं हुई कि हिप्पी बनी घूमती है, आवारागर्दी करती है; सिगरेट पीती है। वह यह नहीं समझती कि वैश्या और देवी में कोई अन्तर होता है। दीप्ति को धार्मिक त्योहारों, धर्म में, पूजा इत्यादि में कोई रुचि नहीं है। दीवाली के दिन उसका ध्यान लक्ष्मी पूजा में न होकर क्लब या होटल में मनाई जा रही दीवाली नाइट की तरफ अधिक है। वह आधुनिकता की आँधी में बहती हुई राजनीतिक सिद्धान्तों से, धन का परिश्रम से, आनन्द का आत्मा से, ज्ञान का चरित्र से, व्यापार का नैतिकता से, विज्ञान का मानवीयता से और पूजा का त्याग से कोई सम्बन्ध नहीं मानती। दीवाली पूजा को वह लकीर पीटना कहती है। वह अभी वयस्क भी नहीं हुई कि अपने किसी प्रेमी से विवाह करने की बात अपनी माँ के मुँह पर ही कह देती है। इस पर अकड़ यह है कि अपनी माँ से कहती है………. फिर भी आप नाराज़ हैं तो मुझे इसकी चिन्ता नहीं। दीप्ति होस्टल में भी इसी उद्देश्य से भर्ती होती है कि उसे वहाँ हर तरह की आज़ादी मिल सके और कोई उसे रोकने-टोकने वाला न रहे।

इस प्रकार एकांकीकार ने नारी स्वातंत्र्य की आड़ में नारी को अपनी सीमाएँ लाँघते हुए दिखाया है।

(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दें-

प्रश्न 1.
विवेक और दीप्ति अपने पिता विश्वजीत से किस प्रकार व्यवहार करते हैं ?
उत्तर:
विवेक और दीप्ति अपने पिता से अच्छा व्यवहार नहीं करते। दीवाली की पूजा वे पिता के कहने पर घर पर करने को तैयार नहीं। पिता की बातें उन्हें बुजुर्गाई भाषा लगती है। वे पिता से बात-बात में बहस करते हैं। विवेक अपने पिता का गुलाम नहीं बनना चाहता। उसे सचरित्रता से कोई सरोकार नहीं और दीप्ति हिप्पी बनना, सिगरेट पीना, आवारागर्दी करना अपना अधिकार समझती है। उसने नितिन से विवाह करने का निश्चय करके एक तरह से विश्वजीत के मुँह पर तमाचा मारा है।

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प्रश्न 2.
विवेक विदेश क्यों जाना चाहता है ?
उत्तर:
विवेक अपने पिता को विदेश जाने का कारण बताते हुए कहता है कि वह विदेश में जाकर लोगों से यह जानने का प्रयास करेगा कि नैतिकता क्या है ? कर्त्तव्य और अधिकार की परिभाषा क्या है ? फिर एक पुस्तक लिखेगा और ईश्वर ने चाहा तो कुछ कर भी सकेगा। किन्तु वास्तविकता यह थी कि संयुक्त परिवार में रहकर उसका दम घुटता है। उस घर से उसे बदबू आती है। वह इस यंत्रण से छटपटाना नहीं चाहता, उससे मुक्ति चाहता है। वह अपने मातापिता के प्रति कर्त्तव्य की वैसाखी नहीं बनना चाहता इसीलिए वह मुक्ति के नाम पर भागना चाहता है।

प्रश्न 3.
देश के भीतर एक और देश बनाए बैठे हैं हम। भीतर के देश का नाम है स्वार्थ, जो प्रान्त, प्रदेश, धर्म और जाति-इन रूपों में प्रकट होता है।’ दीप्ति के इस कथन से किस समस्या की ओर संकेत किया गया है ?
उत्तर:
प्रस्तुत पंक्तियों में देश में फैले भ्रष्टाचार की समस्या को उठाया गया है। दलबदलु विधानसभा के सदस्य अपने स्वार्थ के कारण दल बदलते हैं और नाम लेते हैं देश भक्ति का कि उन्होंने यह कार्य देश हित में किया है। स्वार्थ समाज के हर क्षेत्र में व्याप्त है चाहे वह धर्म हो या जाति । सत्ता में भी बना रहना राजनीतिज्ञों का स्वार्थ हो गया है।

प्रश्न 4.
‘स्वभाव की मजबूरी, बच्चों को प्यार करने की मजबूरी इन का बाप होने की मजबूरी, इनको खो देने पर यह आशा रखने की मजबूरी कि एक दिन लौट आएंगे।’ इन पंक्तियों में विश्वजीत का अन्तर्द्वन्द्व स्पष्ट उभर कर आया है। स्पष्ट करें।
उत्तर:
विश्वजीत पुरानी पीढ़ी का है नयी पीढ़ी की उसकी सन्तान उसे छोड़कर चली गई है। परिवार टूट गया है अत: वह निराश होकर अपने को जीवित नहीं मानता है और अपनी गिनती मूर्यों में नहीं करता। उसकी पत्नी ने कहा भी था कि बच्चों के जाने के बाद वे स्वतन्त्र हो गए हैं, बच्चों के दायित्व से स्वतन्त्र हो गए हैं किन्तु विश्वजीत एक ऐसा बाप है, जिसे अपने बच्चों से मोह है, बच्चे उसे पुरानी पीढ़ी का मानते हैं जो उनके आधुनिक जीवन में फिट नहीं बैठता। परन्तु विश्वजीत पुरानी मान्यताओं के कारण मजबूर है कि एक दिन बच्चे उसे समझेंगे और उसे विश्वास है एक-न-दिन उसके बच्चे अवश्य लौट आएंगे। प्रस्तुत पंक्तियों में विश्वजीत के इस मानसिक द्वन्द्व की ओर संकेत किया गया है।

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प्रश्न 5.
इस एकांकी के माध्यम से लेखक ने नई पीढ़ी को क्या सन्देश दिया है ?
उत्तर:
प्रस्तुत एकांकी के माध्यम से लेखक ने यह सन्देश दिया है कि बड़े बुजुर्ग नई पीढ़ी को जो कहते हैं वह उनके भले के लिए कहते हैं। घर के बुजुर्गों के पास जीवन का बहुत बड़ा अनुभव होता है इसीलिए आधुनिक विचारधारा को अपनाते समय पुरानी परम्पराओं को नहीं भूलना चाहिए। परम्पराएं हमारे अस्तित्व की जड़े हैं इसीलिए बड़ों का कहना मानना ही उनका धर्म होना चाहिए। हर काम में मन मर्जी नहीं करनी चाहिए और सबसे बड़ा सन्देश यह है कि नई पीढ़ी को कभी भी अपनी सभ्यता और संस्कृति को नहीं भूलना चाहिए।

प्रश्न 6.
इस एकांकी का शीर्षक कहाँ तक सार्थक है ? स्पष्ट करें।
उत्तर:
‘टूटते परिवेश’ एकांकी का शीर्षक अत्यन्त उपयुक्त, सार्थक और सटीक बन पड़ा है। एकांकी में नई और पुरानी पीढ़ी के बीच हो रहे संघर्ष को परिवारों के टूटने का कारण बताया।

पुरानी पीढ़ी के आदमी अपने स्वभाव को नई पीढ़ी के स्वभाव के साथ बदल नहीं पाते। इसीलिए दोनों में टकराहट होती है। विश्वजीत पुरानी पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करता है। वह नैतिकता, सिद्धान्त, त्याग, मानवीयता, धर्म तथा चरित्र निर्माण के परिवेश में रहना चाहता है जबकि उसकी संतान इस परिवेश से मुक्ति चाहती है। फलस्वरूप जीवन मूल्य ही बदल गए हैं। एकांकी के आरम्भ में ही मनीषा के कथन से इस तथ्य की ओर संकेत किया गया है। नई पीढ़ी पुरानी पीढ़ी का आदर नहीं करती है और उन्हें अपनी सभ्यता संस्कृति का सही ज्ञान नहीं है। ऐसे परिवेश टूटने से कैसे बच सकते हैं।

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PSEB 11th Class Hindi Guide टूटते परिवेश Important Questions and Answers

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘टूटते परिवेश’ किसकी रचना है ?
उत्तर:
टते परिवेश विष्णु प्रभाकर की रचना है।

प्रश्न 2.
‘टूटते परिवेश’ में लेखक ने क्या दर्शाया है ?
उत्तर:
टते परिवेश में लेखक ने देश में नवयुवकों की बदल रही सोच को दिखाया है।

प्रश्न 3.
विश्वजीत क्यों दुःखी था ?
उत्तर:
विश्वजीत परिवार के सदस्यों के व्यवहार से दुःखी था।

प्रश्न 4.
विश्वजीत के बड़े बेटे का क्या नाम है ?
उत्तर:
विश्वजीत के बड़े बेटे का नाम शरद है।

प्रश्न 5.
‘टूटते परिवेश’ किस प्रकार की विधा है ?
उत्तर:
एकांकी।

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प्रश्न 6.
‘टूटते परिवेश’ में किस सोच को दिखाया गया है ?
उत्तर:
नवयुवकों की बदल रही सोच को।

प्रश्न 7.
पुरानी पीढ़ी ……….. में रहना चाहती है।
उत्तर:
नैतिकता एवं मानवीयता के धर्म।

प्रश्न 8.
‘टूटते परिवेश’ एकांकी कितने अंकों में बंटी है ?
उत्तर:
तीन अंकों में।

प्रश्न 9.
नयी पीढ़ी भारतीय सभ्यता का ………. उड़ाती है।
उत्तर:
मज़ाक।

प्रश्न 10.
नयी पीढ़ी के लोग दीपावली मनाने कहाँ जाते हैं ?
उत्तर:
होटलों एवं क्लबों में।

प्रश्न 11.
एकांकी के दूसरे अंक में पुरानी पीढ़ी का संघर्ष कैसा रूप धारण कर लेता है ?
उत्तर:
उग्र रूप।

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प्रश्न 12.
दीप्ति क्या बनकर घूमती है ?
उत्तर:
हिप्पी।

प्रश्न 13.
मनीषा किसी ……….. से विवाह कर लेती है।
उत्तर:
विधर्मी।

‘प्रश्न 14.
दीप्ति ने क्या पीना शुरू कर दिया था ?
उत्तर:
सिगरेट।

प्रश्न 15.
विवेक क्या लिखता रहता था ?
उत्तर:
अर्जियाँ।

प्रश्न 16.
विश्वजीत क्या करने के लिए घर से निकल जाता है ?
उत्तर:
आत्महत्या करने के लिए।

प्रश्न 17.
पुरानी पीढ़ी किसे बड़ा मानती है ?
उत्तर:
सचरित्रता को।

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प्रश्न 18.
पुरानी पीढ़ी सब कुछ हो जाने पर भी क्या नहीं त्यागती है ?
उत्तर:
संतान का मोह।

प्रश्न 19.
संयुक्त परिवार के टूटने का सबसे बड़ा कारण क्या है ?
उत्तर:
स्वार्थ में अंधा होना।

प्रश्न 20.
विश्वजीत की पत्नी का क्या नाम था ?
उत्तर:
करुणा।

बहुविकल्पी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
‘टूटते परिवेश’ एकांकी के लेखक कौन हैं ?
(क) प्रेमचन्द
(ख) विष्णु प्रभाकर
(ग) देव प्रभाकर
(घ) मनु भंडारी।
उत्तर:
(ख) विष्णु प्रभाकर

प्रश्न 2.
इस एकांकी में लेखक ने किसकी बदलती सोच का चित्रण किया है ?
(क) लोगों की
(ख) नवयुवकों की
(ग) नेताओं की
(घ) लेखकों की।
उत्तर:
(ख) नवयुवकों की

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प्रश्न 3.
पुरानी पीढ़ी किसके परिवेश में रहना चाहती है ?
(क) नैतिकता के
(ख) त्याग के
(ग) मानवता के
(घ) इन सभी के।
उत्तर:
(घ) इन सभी के

प्रश्न 4.
नई पीढ़ी किसके परिवेश में रहना चाहती है ?
(क) अनैतिकता
(ख) उच्छृखलता
(ग) स्वच्छंदता
(घ) इन सभी के।
उत्तर:
(घ) इन सभी के।

कठिन शब्दों के अर्थ :

आलोकित करना-दिखाना। अर्जी-प्रार्थना-पत्र। बदइन्तजामी-ठीक से प्रबन्ध न होना। बुर्जुआई भाषा-सीधी और साफ़ बात कहना। इश्तहार-विज्ञापन। लकीर पीटना-बनी-बनाई परम्पराओं पर चलना। विध्वंस करना-नष्ट करना। सीलन-चिपचिपापन, गीला और सूखे के बीच की स्थिति। यन्त्रणाकष्ट, दुःख। निरर्थक-जिसका काई अर्थ न हो।

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टूटते परिवेश Summary

टूटते परिवेश एकांकी का सार

टूटते परिवेश’ एकांकी के लेखक विष्णु प्रभाकर हैं। इसमें उन्होंने देश में नवयुवकों की बदल रही सोच को दिखाया है। ज्ञान-विज्ञान और नागरीकरण का जो प्रभाव हमारे धार्मिक, सामाजिक या नैतिक जीवन पर पड़ा है, उसे एक परिवार की जीवन स्थितियों के माध्यम से दिखाया गया है। इसमें पुरानी पीढ़ी नैतिकता, सिद्धान्त, त्याग, मानवीयता धर्म और चरित्र के परिवेश में रहना चाहती है और नई पीढ़ी उच्छंखल, अनैतिक, अव्यवहारिक तथा स्वच्छंद वातावरण में रहना चाहती है। इसी से परिवार में टकराव की स्थिति उत्पन्न होती है और परिवार टूटकर बिखर जाता है। प्रस्तुत एकांकी तीन अंकों में बँटा हुआ है। किन्तु घटनास्थल एक ही है।

एकांकी की कथावस्तु एक मध्यवर्गीय परिवार की नई पुरानी दो पीढ़ियों के संघर्ष और परिवार टूटने की कहानी है। नाटक के आरम्भ में परिवार के मुखिया विश्वजीत और उसकी पत्नी करुणा तथा बेटियों मनीषा और दीप्ति का परिचय दिया गया है। दीवाली का शुभ दिन है और विश्वजीत चाहते हैं कि सारा परिवार मिल बैठकर पूजा करे किन्तु नई पीढ़ी तो पूजा अर्चना को एक ढोंग समझती है। यही नहीं नई पीढ़ी भारतीय सभ्यता का मज़ाक भी उड़ाती है। परिवार का कोई भी सदस्य पूजा करने घर नहीं पहुँचता। सब को अपनी-अपनी पड़ी है। सभी दीवाली घर पर नहीं होटलों और क्लबों में मनाने चले जाते हैं। . एकांकी के दूसरे अंक में नई और पुरानी पीढ़ी का संघर्ष उग्र रूप धारण कर लेता है। मनीषा किसी विधर्मी से विवाह कर लेती है। दीप्ति हिप्पी बनी आवारा घूमती है और सिगरेट भी पीने लगी है। विवेक, जो सिवाए अर्जियाँ लिखने के कोई दूसरा काम नहीं जानता, विद्रोह करने पर उतारू हो जाता है और उनका साथ देने की बात कहता है।

विश्वजीत परिवार के सदस्यों (नई पीढ़ी) के व्यवहार से दुःखी होकर आत्महत्या करने घर से निकल जाते हैं घर पर सारा परिवार एकत्र होता है किन्तु किसी के पास अपने परिवार के मुखिया को ढूँढ़ने का समय नहीं है। हर कोई न कोई बहाने बनाता है। किन्तु विश्वजीत स्वयं ही लौट आते हैं कि यह सोचकर कि आत्महत्या का अर्थ है मौत और मौत का एक दिन निश्चित है। तब आत्महत्या क्यों की जाए।
विश्वजीत के लौट आने पर उसका बड़ा बेटा शरद् तो उनसे हाल-चाल भी नहीं पूछता है और अपने काम की जल्दी बता कर चला जाता है। परिवार के दूसरे सदस्य भी चले जाते हैं और पुरानी पीढ़ी के लोग विश्वजीत और उसकी पत्नी अकेले रह जाते हैं इस आशा में कि उनके बच्चे एक-न-एक दिन लौट आएँगे।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 33 अधिकार का रक्षक

Punjab State Board PSEB 11th Class Hindi Book Solutions Chapter 33 अधिकार का रक्षक Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Hindi Chapter 33 अधिकार का रक्षक

Hindi Guide for Class 11 PSEB अधिकार का रक्षक Textbook Questions and Answers

(क) लिम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दें-

प्रश्न 1.
अधिकार का रक्षक’ एकांकी का सार लिखें।
उत्तर:

प्रस्तुत एकांकी एक सशक्त व्यंग्य है। लेखक ने आज के राजनीतिज्ञों की कथनी और करनी के अन्तर को स्पष्ट करने का प्रयास किया है। सेठ घनश्याम एक समाचार-पत्र के मालिक हैं। वे विधानसभा का चुनाव लड़ रहे हैं। वोट प्राप्त करने के लिए वे हरिजनों-विद्यार्थियों, घरेलू नौकरों, बच्चों, स्त्रियों और मजदूरों के अधिकारों की रक्षा करने का आश्वासन देते हैं किन्तु उनकी करनी उनकी कथनी के बिलकुल विपरीत है। वह अपने बच्चे को पीटते हैं। नौकर को गाली-गलौच करते हैं।

अपने नौकर भगवती और सफाई सेवादार को कई-कई महीने का वेतन नहीं देते। भगवती के द्वारा अपना वेतन माँगने पर उस का झूठा मुकदमा या चोरी का दोष लगाने की धमकी भी देते हैं। चुनाव भाषणों में वह मजदूरों के कार्य समय घटाने का आश्वासन देते हैं जबकि अपने समाचार-पत्र में अधिक समय तक काम करने के लिए कहते हैं। वेतन बढ़ाने की माँग करने पर वह उसे नौकरी छोड़ देने तक की धमकी भी देते हैं। वह विद्यार्थियों के वोट प्राप्त करने के लिए उन्हें तरह-तरह के आश्वासन देते हैं किन्तु उनके ब्यान को अपने समाचार-पत्र में छापने के लिए तैयार नहीं होते। स्त्रियों के अधिकारों की रक्षा करने का आश्वासन देने वाले वह घर पर अपनी पत्नी को डाँट फटकार करते हैं। तंग आकर उसकी पत्नी घर छोड़कर अपने मायके चली जाती है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 33 अधिकार का रक्षक

प्रश्न 2.
‘अधिकार का रक्षक’ जन प्रतिनिधियों की कथनी और करनी में व्याप्त अन्तर स्पष्ट करता है। स्पष्ट करें।
उत्तर:
वोट प्राप्त करने के लिए जन प्रतिनिधि तरह-तरह के हथकंडे अपनाते हैं। वे जनता के हर वर्ग को आश्वासन देते हैं कि उनके अधिकारों की रक्षा करेंगे। किन्तु उनकी कथनी और करनी में भारी अन्तर होता है। एकांकी में सेठ घनश्याम जो विधान सभा का चुनाव लड़ रहे हैं, वह हरिजनों के कल्याण का वायदा करता है किन्तु अपनी सफाई सेवादार को कई-कई महीने वेतन नहीं देता। वह चुनाव सभाओं में घरेलू नौकरों के अधिकारों की रक्षा करने का वायदा करता है किन्तु अपने घरेलू नौकर को वेतन तक नहीं देता।

मांगने पर उसे झूठे मुकदमे में फंसाने की धमकी देता है। मजदूरों से अधिकारों की रक्षा करने का वायदा करने वाला अपने ही समाचार-पत्र के मैनेजर को अधिक समय तक काम करने की बात कहता है। वह विद्यार्थियों के अधिकारों की रक्षा करने की बात कहता है किन्तु उनके बयान को अपने समाचार-पत्र में छापने को तैयार नहीं है। वह बच्चों और स्त्रियों के अधिकारों की रक्षा करने का वायदा करता है किन्तु अपने ही पुत्र और पत्नी को पीटता एवं डॉटता है। इस तरह प्रस्तुत एकांकी में जन-प्रतिनिधियों की कथनी और करनी में अन्तर को स्पष्ट किया गया। वोट प्राप्त करने के लिए वे खोखले आश्वासन ही देते हैं जबकि यथार्थ जीवन में उनकी करनी कथनी के बिल्कुल विपरीत होती है।

प्रश्न 3.
‘अधिकार का रक्षक’ एकांकी में अधिकार का रक्षक कौन है ? क्या वह वास्तव में अधिकारों का रक्षक है?
उत्तर:
प्रस्तुत एकांकी में सेठ घनश्याम को अधिकार का रक्षक चित्रित किया गया है। वह वास्तव में अधिकारों का रक्षक नहीं है। वह केवल आश्वासन ही देता है। बच्चों के अधिकारों की रक्षा करने का वायदा करने वाला, अपने ही बच्चे को मेले में जाने के लिए पैसे मांगने पर पीटता है, डाँटता है। कथनी में वह बच्चों को शारीरिक दण्ड दिए जाने के विरुद्ध है। पर करनी में इसके बिलकुल विपरीत। वह हरिजनों के अधिकारों की रक्षा करने का आश्वासन देता है किन्तु अपनी ही सफ़ाई सेवादार को कई-कई महीने वेतन नहीं देता।

चुनाव में घरेलू नौकरों के अधिकारों की रक्षा करने का वायदा करता है। परन्तु अपने घरेलू नौकर को एक तो कई महीने वेतन नहीं देता ऊपर से उसे धमकाता भी है। वह स्त्रियों और बच्चों, विद्यार्थियों और मजदूरों के अधिकारों की रक्षा करने का आश्वासन देता है। किन्तु यथार्थ में उसके बिल्कुल विपरीत व्यवहार करता है। वास्तव में घनश्याम अधिकारों का रक्षक नहीं है। वह तो मात्र चुनाव जीतने के लिए भोले-भाले लोगों को झूठे आश्वासन देकर उनके वोट प्राप्त करना चाहता है जो आज का प्रत्येक नेता करता है। चुनाव जीत जाने के बाद नेता जी सारे वायदे सारे आश्वासन भूल जाते हैं।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 33 अधिकार का रक्षक

प्रश्न 4.
‘अधिकार का रक्षक’ एक सफल रंगमंचीय एकांकी है-सिद्ध करें।
उत्तर:
एकांकी को रंगमंच के अनुरूप बनाने के लिए संवादों का प्रभावोत्पादक होना तो जरूरी है ही साथ ही उचित रंग निर्देश होना भी जरूरी है जिससे एकांकी को सफलतापूर्वक अभिनीत किया जा सके। अश्क जी ने प्रस्तुत एकांकी में पात्रों के हाव-भाव प्रकट करने के लिए यथेष्ठ रंग संकेत दिये हैं जैसे विद्यार्थियों से बात करते हुए कुछ प्रोत्साहित होकर, गिरी हुई आवाज़ में, अन्यमनस्कता से आदि। इसी प्रकार क्रोध से अखबार को तख्तपोश पर पटककर क्रोध से पागल होकर पत्नी को ढकेलते हुए आदि।

एकांकी में संकलन अथवा स्थान, कार्य और समय की एकता का भी ध्यान रखा गया है। एकांकी की घटनाएं सेठ घनश्याम के ड्राइंग रूप में ही घटती हैं। मंच सज्जा भी जटिल नहीं है। इसी कारण आजकल यह एकांकी अनेक बार स्कूलों और कॉलेजों के रंगमंच पर सफलतापूर्वक अभिनीत किया गया है।

प्रश्न 5.
(i) अधिकार का रक्षक’ के आधार पर मि० सेठ का चरित्र-चित्रण करें।
उत्तर:
प्रस्तुत एकांकी में सेठ घनश्याम मुख्य पात्र है, अन्य पात्र बहुत थोड़ी देर के लिए रंगमंच पर आते हैं। सेठ घनश्याम अमीर आदमी है, एक दैनिक समाचार-पत्र का मालिक है। अमीर होने के कारण वह विधान सभा का चुनाव लड़ रहा है। किन्तु वह कंजूस भी है। अपने नौकर भगवती को तथा सफ़ाई सेवादार को कई महीनों का वेतन नहीं देता हालांकि चुनाव पर लाखों खर्च करने की क्षमता रखता है। बेटे को मेला देखने जाने पर पैसे माँगने पर भड़क उठता है। उसे मारतापीटता और डाँटता है। अपने सम्पादक का वेतन पाँच रुपए तक बढ़ाने को तैयार नहीं।

सेठ घनश्याम की करनी और कथनी में अन्तर है। वह समाज के हर वर्ग को झूठे आश्वासन देता है किन्तु यथार्थ जीवन में इसके विपरीत व्यवहार करता है। सेठ घनश्याम आज के नेता वर्ग का सच्चा प्रतिनिधित्व करता है। चुनाव आने पर जनता से झूठे वायदे करना और चुनाव जीत जाने के बाद जनता को मुँह तक न दिखाना।

प्रश्न 5
(ii) भगवती तथा राम-लखन के चरित्र की विशेषताएँ लिखो।
उत्तर :
भगवती :
भगवती सेठ घनश्याम का रसोइया है। भगवती ईमानदार नौकर है जी-जान से अपने मालिक की सेवा करता है। परन्तु जब उसे महीनों वेतन नहीं मिलता तो वह मुँहफट हो जाता है। अपना पूरा वेतन पाने के लिए सेठ से ज़िद्द करता है और जब सेठ उसे चोरी के अपराध में कैद कराने की धमकी देता है तो भगवती कहता है-गरीब लाख ईमानदार हो तो भी चोर है, डाकू है और वह सेठ को चन्दे के नाम पर हज़ारों डकार जाने की खरी-खरी भी सुना देता है।

रामलखन :
रामलखन सेठ घनश्याम का नौकर है। वह स्वामी भक्त है, बच्चों से स्नेह करने वाला है। सेठ द्वारा अपने बेटे को पीटे जाने पर वह उसे छुड़ाता है। रामलखन से गरीबों का दुःख नहीं देखा जाता। इसी कारण वह सफ़ाई सेवादार को मज़दूरी माँगने सेठ के कमरे में जाने देता है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 33 अधिकार का रक्षक

(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दें-

प्रश्न 1.
अधिकार का रक्षक’ एकांकी का नामकरण कहाँ तक सार्थक है-स्पष्ट करें।
उत्तर:
प्रस्तुत एकांकी एक व्यंग्य एकांकी है। इसमें राजनीतिज्ञों या जन प्रतिनिधि कहलाने वाले व्यक्तियों की कथनी और करनी को स्पष्ट करते हुए उनके द्वारा भोली-भाली जनता को झूठे आश्वासन देकर वोट प्राप्त करने की कला पर व्यंग्य किया गया है। जो व्यक्ति चुनाव सभाओं में दूसरों के अधिकारों की रक्षा करने की बड़ी-बड़ी डींगें हाँकता है, वही अपने यथार्थ जीवन में उनकी अवहेलना करता है अतः अधिकार का रक्षक न केवल सार्थक नामकरण है बल्कि एकांकी के कथ्य को भी स्पष्ट करने वाला है।

प्रश्न 2.
‘अधिकार का रक्षक’ श्री उपेन्द्रनाथ अश्क’ का सफल सामाजिक व्यंग्य है, सिद्ध करें।
उत्तर:
प्रस्तुत एकांकी अश्क जी ने सन् 1938 में लिखा था किन्तु इस एकांकी को पढ़कर हमें ऐसा लगता है कि मानो यह आज के राजनीतिज्ञों पर पूरा उतरता है। प्रस्तुत एकांकी में अश्क जी ने सेठ घनश्याम के माध्यम से नेताओं की पोल खोली है। नेता लोग चुनाव आने पर ही जनता को मुँह दिखाते हैं। उन्हें हाथ जोड़ते हैं। उन्हें झूठे आश्वासन देते हैं। चाहे ग़रीबी हटाओ का नारा हो चाहे सामाजिक अन्याय को दूर करने की बात हो। ये सब चुनाव तक ही सीमित रहते हैं। सेठ घनश्याम भी बच्चों, स्त्रियों, हरिजनों, घरेलू नौकरों, विद्यार्थियों और मज़दूरों से उनके अधिकारों की रक्षा करने की बात करते हैं जब अपने ही घर में यथार्थ जीवन में वे इन अधिकारों का हनन करते हैं। एकांकी में यही व्यंग्य छिपा है जिसे अश्क जी ने पूरी तरह चित्रित किया है।

प्रश्न 3.
‘अधिकार का रक्षक’ व्यंग्य के माध्यम से मानवीय नैतिक मूल्यों की स्थापना का प्रयास किया गया है, सिद्ध करें।
उत्तर:
‘अधिकार का रक्षक’ में व्यंग्य के माध्यम से जनता के प्रतिनिधियों के कच्चे चिट्टे को दर्शकों के सामने प्रस्तुत किया गया है। चुनाव आने पर जिस तरह राजनीतिज्ञ जनता से झूठे वायदे करते हैं उसकी पोल खोली गयी है। चुनाव के दिनों में हर नेता जनता के प्रत्येक वर्ग से अपना भाई-चारा जताता हुआ हाथ जोड़ता है। इसका यथार्थ रूप हमारे सामने प्रस्तुत किया गया है। इस व्यंग्य के माध्यम से लेखक कहना चाहता है कि जनता को पहचानना चाहिए कि उनके अधिकारों का रक्षक वास्तव में कौन है। ग़रीबी हटाओ या सामाजिक अन्याय दूर करने के नारे क्या वोट हथियाने के हत्थकंडे तो नहीं हैं। आज के युग में राजनीति का जो अपराधीकरण हो रहा है उसकी रोकथाम केवल वोटर ही कर सकता है।

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PSEB 11th Class Hindi Guide अधिकार का रक्षक Important Questions and Answers

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
सेठ घनश्याम कौन थे ?
उत्तर:
सेठ घनश्याम एक समाचार-पत्र के मालिक थे।

प्रश्न 2.
सेठ घनश्याम किस चीज़ का चुनाव लड़ रहे थे ?
उत्तर:
सेठ घनश्याम विधानसभा का चुनाव लड़ रहे थे।

प्रश्न 3.
वोट प्राप्त करने के लिए सेठ ने क्या किया ?
उत्तर:
सेठ ने तरह-तरह के हथकंडे अपनाए।

प्रश्न 4.
‘अधिकार का रक्षक’ किस प्रकार की विधा है ?
उत्तर:
एकांकी।

प्रश्न 5.
‘अधिकार का रक्षक’ एकांकी मुख्य रूप से क्या है ?
उत्तर:
सशक्त व्यंग्य है।

प्रश्न 6.
‘अधिकार का रक्षक’ एकांकी में लेखक ने क्या उजागर किया है?
उत्तर:
आज के राजनीतिज्ञों की कथनी-करनी में अंतर को स्पष्ट किया है।

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प्रश्न 7.
सेठ घनश्याम किन लोगों के अधिकारों की रक्षा का आश्वासन देते हैं ?
उत्तर:
हरिजनों, विद्यार्थियों, बच्चों, स्त्रियों, मजदूरों आदि।

प्रश्न 8.
सेठ घनश्याम अपने बच्चे को ……. थे।
उत्तर:
पीटते।

प्रश्न 9.
सेठ घनश्याम के नौकर का क्या नाम था ?
उत्तर:
भगवती।

प्रश्न 10.
सेठ घनश्याम ने भगवती को क्या धमकी दी ?
उत्तर:
झूठा मुकद्दमा तथा चोरी का दोष लगाने की।

प्रश्न 11.
सेठ घनश्याम अपनी पत्नी को ……….. थे।
उत्तर:
डाँटते फटकारते।

प्रश्न 12.
सफाई सेवादार को कई-कई महीनों का ……. नहीं देते थे।
उत्तर:
वेतन।

प्रश्न 13.
सेठ घनश्याम चुनाव सभाओं में ………… करता है।
उत्तर:
घरेलू नौकरों की रक्षा करने का वादा।

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प्रश्न 14.
चुनाव आने पर अधिकतर राजनीतिज्ञ ………….. करते हैं।
उत्तर:
जनता से झूठे वादे।

प्रश्न 15.
सेठ घनश्याम की कथनी और करनी में ……….. है।
उत्तर:
अंतर।

प्रश्न 16.
सेठ घनश्याम आज के नेता वर्ग का ……….. करता है।
उत्तर:
सच्चा प्रतिनिधित्व।

प्रश्न 17.
सेठ घनश्याम ने मजदूर की किस मांग का समर्थन किया ?
उत्तर:
काम समय की कमी।

प्रश्न 18.
सेठ घनश्याम ने मजदूरों की माँग का किससे समर्थन किया ?
उत्तर:
होजरी यूनियन के मन्त्री से एसेम्बली में।

प्रश्न 19.
मजदूरों से कितने घंटे काम लिया जाता था ?
उत्तर:
तेरह-तेरह घंटे।

प्रश्न 20.
व्यक्ति भले ही बूढ़ा हो किंतु उसके विचार…… नहीं होने चाहिए।
उत्तर:
बूढ़े।

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बहुविकल्पी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
‘अधिकार का रक्षक’ रचना की विधा है।
(क) कथा
(ख) लघुकथा
(ग) कहानी
(घ) एकांकी।
उत्तर:
(घ) एकांकी

प्रश्न 2.
‘अधिकार का रक्षक’ कैसी रचना है ?
(क) व्यंग्य प्रधान
(ख) भाव प्रधान
(ग) प्रेम प्रधान
(घ) रस प्रधान।
उत्तर:
(क) व्यंग्य प्रधान

प्रश्न 3.
इस एकांकी में लेखक ने राजनीतिज्ञों के किस अंत का चित्रण किया है ?
(क) कथनी-करनी
(ख) करनी-भरनी
(ग) जैसा-तैसा
(घ) धन-धान्य।
उत्तर:
(क) कथनी-करनी।

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कठिन शब्दों के अर्थ :

सुगमता = आसानी से। शोचनीय = खराब। पद्धति = नियमावली, परम्परा। दकियानूसी = पुराने विचार । निरीह = बेचारे । हिमायत करना = पक्ष लेना, सिफ़ारिश करना। प्रोपेगेंडा = किसी के पक्ष में प्रचार करना। वक्तव्य = भाषण। श्रमजीवियों = मज़दूरी करने वाले। सोलह आने = एक रुपया (पहले एक रुपए में सोलह आने होते थे, एकदम सही। प्रवाहिका = बहाने वाली। वैधानिक = कानूनी। जूं न रेंगना = सुनकर अनसुना कर देना। आफत आना = मुसीबत आना। सलीका = ढंग। मृदुलता = नम्रता। माधुर्य = मिठास।

प्रमुख अवतरणों की सप्रसंग व्याख्या

(1) वास्तव में मैंने अपना समस्त जीवन पीड़ितों, पद दलितों और गिरे हुओं को ऊपर उठाने में लगा दिया है।

प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियाँ श्री उपेन्द्र नाथ ‘अश्क’ जी द्वारा लिखित एकांकी ‘अधिकार का रक्षक’ में से ली गई हैं। प्रस्तुत पंक्तियाँ सेठ घनश्याम ने टेलीफोन पर मंत्री हरिजन सभा से बात करते हुए कही हैं।

व्याख्या :
जब मंत्री हरिजन सभा सेठ घनश्याम को यह बताता है कि उनके भाषण से सारे हरिजन उनके पक्ष में हो गए हैं तो वह अपनी प्रशंसा करता हुआ कहता है कि असल में मैंने अपना सारा जीवन पीड़ितों, पद दलितों और गिरे हुओं को ऊपर उठाने में लगा दिया है।

विशेष :
यह कह कर सेठ हरिजनों की वोट पक्की करना चाहता है।

(2) सच है बाबू जी ग़रीब लाख ईमानदार हो तो भी चोर है, डाकू है और अमीर यदि आँखों में धूल झोंक कर हज़ारों पर हाथ साफ कर जाए, चन्दे के नाम पर सहस्त्रों।

प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियाँ श्री उपेन्द्रनाथ ‘अश्क’ जी द्वारा लिखित एकांकी ‘अधिकार का रक्षक’ में से ली गई हैं। प्रस्तुत पंक्तियाँ सेठ घनश्याम के रसोइए भगवती ने सेठ से उस समय कही हैं जब अपना पिछला वेतन माँगने पर सेठ उस पर चोरी का दोष लगा कर जेल भिजवाने की धमकी देता है।

व्याख्या :
सेठ की धमकी सुनकर भगवती ने कहा कि बाबू जी यह सच है कि ग़रीब लाख ईमानदार हो तब भी वह चोर-डाकू कहलाता है जबकि अमीर व्यक्ति दूसरों की आँखों में धूल झोंक कर हज़ारों रुपयों पर हाथ साफ कर जाता है। वह चन्दे के नाम पर हजारों रुपए खा जाए तो भी चोर नहीं ईमानदार बना रहता है। गरीब व्यक्ति की कोई नहीं सुनता।

विशेष :
भगवती के उत्साह और मुँहफट होने का प्रमाण मिलता है। उनकी कथनी और करनी एक है।

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(3) इस ओर से आप बिल्कुल निश्चिन्त रहें। मैं उन आदमियों में से नहीं, जो कहते कुछ हैं और करते कुछ हैं। मैं जो कहता हूँ वही करता हूँ और जो करता हूँ वही कहता हूँ।

प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियाँ श्री उपेन्द्रनाथ ‘अश्क’ जी द्वारा लिखित एकांकी ‘अधिकार का रक्षक’ में से ली गई हैं। प्रस्तुत पंक्तियाँ सेठ घनश्याम ने टेलीफोन पर होजरी यूनियन के मन्त्री से कही हैं।

व्याख्या :
सेठ घनश्याम मजदूरों की दशा सुधारने सम्बन्धी अपने आश्वासन के विषय में होजरी यूनियन के मन्त्री से कहते हैं कि आप निश्चिन्त रहें क्योंकि मैं चुनाव जीतकर मजदूरों के लिए अवश्य काम करूँगा। मैं उन आदमियों में से नहीं जो कहते कुछ हैं और करते कुछ। मैं जो कहता हूँ वही करता हूँ और जो करता हूँ वही कहता हूँ। उनकी कथनी और करनी एक है।

विशेष :
सेठ के चरित्र की विशेषता की ओर संकेत किया गया है जो चुनाव आने पर हर वर्ग को झूठे आश्वासन देता है।

(4) सप्ताह में 42 घंटे काम की माँग कोई अनुचित नहीं। आखिर मनुष्य और पशु में कुछ तो अन्तर होना चाहिए। तेरहतेरह घंटे की ड्यूटी। भला काम की कुछ हद भी है।

प्रसंग :
यह अवतरण श्री उपेन्द्रनाथ ‘अश्क’ जी द्वारा लिखित एकांकी ‘अधिकार का रक्षक’ में से अवतरित है। प्रस्तुत पंक्तियाँ सेठ घनश्याम ने होजरी यूनियन के मन्त्री से मजदूरों के काम के समय कम करवाने सम्बन्धी आश्वासन देते हुए कही हैं।

व्याख्या :
सेठ घनश्याम ने होजरी यूनियन के मन्त्री से एसेम्बली में मजदूरों के काम समय में कमी की माँग का समर्थन करने का आश्वासन देते हुए कहा कि सप्ताह में 42 घंटे काम की माँग कोई अनुचित माँग नहीं है। आखिर मनुष्य और पशु में कोई तो अन्तर होना चाहिए। मनुष्यों की तुलना पशुओं से नहीं की जानी चाहिए। विशेषकर काम समय को लेकर। मज़दूरों से जो तेरह-तेरह घण्टे काम लिया जाता है यह अनुचित है। इसलिए काम की भी कोई सीमा होनी चाहिए।

विशेष :
सेठ घनश्याम के चरित्र की विशेषता पर प्रकाश डाला गया है जो वोट प्राप्त करने के लिए मज़दूर वर्ग को भी समर्थन देने का आश्वासन देते हैं।

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(5) जिन लोगों का मन बूढ़ा हो चुका है वे नवयुवकों का प्रतिनिधित्व क्या खाक करेंगे ? युवकों को तो उस नेता की आवश्यकता है जो शरीर से चाहे बूढ़ा हो चुका हो, पर जिसके विचार बूढ़े न हों, जो रिफोर्म से खौफ न खाये, सुधारों से कभी न कतराये।

प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियाँ श्री उपेन्द्रनाथ ‘अश्क’ जी द्वारा लिखित एकांकी ‘अधिकार का रक्षक’ में से ली गई हैं। प्रस्तुत पंक्तियाँ सेठ घनश्याम ने छात्र प्रतिनिधियों से कही हैं जो उनका वक्तव्य पढ़कर उन्हें अपना समर्थन देने आए थे।

व्याख्या :
सेठ घनश्याम छात्रों से कहते हैं कि उन्होंने अपने वक्तव्य में ठीक ही लिखा था कि जिन लोगों का मन बूढा हो चुका है वे नवयुवकों का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकते। व्यक्ति भले ही शरीर से बूढ़ा हो किन्तु उसके विचार बूढ़े नहीं होने चाहिएँ तथा वह सुधारों से डरे नहीं और न ही उन से कभी कतराये।

विशेष :
सेठ घनश्याम के चरित्र की विशेषता पर प्रकाश डाला गया है जो वोट पाने के लिए हर किसी की चिरौरी करना चाहता है।

(6) आप के पास हमारी बात सुनने के लिए कभी वक्त होता भी है ? मारने और पीटने के लिए जाने कहाँ से समय निकल आता है।

प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियाँ श्री उपेन्द्रनाथ ‘अश्क’ जी द्वारा लिखित एकांकी ‘अधिकार का रक्षक’ में से ली गई हैं। प्रस्तुत पंक्तियाँ से सेठ घनश्याम की पत्नी ने सेठ से उसके द्वारा बच्चे को पीटने पर कही हैं।

व्याख्या :
सेठ घनश्याम ने अपनी पत्नी को जब कहा कि उसके पास समय नहीं है, वह वहाँ से चली जाए तो उसने बच्चे के लाल हुए कान दिखाते हुए कहा कि आप के पास हमारी बात सुनने का कभी समय नहीं होता किन्तु बच्चे को मारनेपीटने के लिए न जाने कहाँ से समय मिल जाता है। वह अपने परिवार के प्रति क्रूर है।।

विशेष :
बच्चों को शारीरिक दण्ड दिए जाने का विरोध करने वाले सेठ घनश्याम अपने ही बच्चे को पीटते हैं। इससे उनकी कथनी और करनी में अन्तर स्पष्ट होता है।

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(7) ये बाप नहीं दुश्मन हैं। लोगों के बच्चों से प्रेम करेंगे, उनके सिर पर प्यार का हाथ फेरेंगे, उनके स्वास्थ्य के लिए बिल पास करायेंगे, उनकी उन्नति के लिए भाषण झाड़ते फिरेंगे और अपने बच्चों के लिए भूलकर भी प्यार का एक शब्द जबान पर न लाएँगे।

प्रस्तुत :
पंक्तियाँ श्री उपेन्द्रनाथ ‘अश्क’ जी द्वारा लिखित एकांकी ‘अधिकार का रक्षक’ में से ली गई हैं। प्रस्तुत पंक्तियाँ सेठ घनश्याम की पत्नी ने सेठ से उस समय कही हैं जब वह बच्चे को पीटने की शिकायत लेकर आती है और सेठ उसे वहाँ से चले जाने को कहते हैं तो वह सिर चढ़ कर बच्चे को थप्पड़ लगाती हुई कहती है।

व्याख्या :
सेठ घनश्याम की पत्नी अपने बच्चे को पति के सिर चढ़कर पीटती हुई कहती है कि तू उस कमरे में न आया कर वे बाप नहीं दुश्मन हैं। ये दूसरें के बच्चों से तो प्यार करेंगे, उनके सिर पर प्यार भरा हाथ फेरेंगे, उनकी सेहत के लिए विधानसभा में बिल पास करायेंगे, उनको उन्नति के लिए भाषण देते फिरेंगे। किन्तु अपने बच्चों के लिए भूलकर भी इनकी जुबान पर एक शब्द न आएगा।

विशेष :
सेठ घनश्याम की कथनी और करनी में अन्तर को स्पष्ट किया गया है।

(8) आप निश्चिय रखें। मैं जी जान से स्त्रियों के अधिकारों की रक्षा करूँगा। महिलाओं के अधिकारों का मुझ से बेहतर रक्षक आप को वर्तमान उम्मीदवारों में कहीं नज़र नहीं आएगा।

प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियाँ श्री उपेन्द्रनाथ ‘अश्क’ जी द्वारा लिखित एकांकी अधिकार का रक्षक’ में से ली गई हैं। प्रस्तुत पंक्तियाँ सेठ घनश्याम ने महिला समाज की प्रधान से टेलीफोन पर बात करते हुए उस समय कहीं हैं जब उनकी अपनी पत्नी उनसे दुखी होकर मायके जाने की तैयारी करती है।

व्याख्या :
सेठ घनश्याम महिला समाज की प्रधान से आश्वासन देते हुए कहते हैं कि आप निश्चय रखें। मैं जी जान से स्त्रियों के अधिकारों की रक्षा करूँगा। वर्तमान उम्मीदवारों में मुझ से बेहतर महिलाओं के अधिकारों की रक्षा करने वाला दूसरा न मिलेगा। अतः वोट मुझे ही दें।

विशेष :
सेठ घनश्याम की कथनी और करनी में अन्तर को स्पष्ट किया गया है जो जन प्रतिनिधियों का विशेष गुण माना जाता है। एकांकी के कथ्य की ओर भी संकेत किया गया है।

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अधिकार का रक्षक Summary

अधिकार का रक्षक एकांकी का सार

प्रस्तुत एकांकी एक सशक्त व्यंग्य है। लेखक ने आज के राजनीतिज्ञों की कथनी और करनी के अन्तर को स्पष्ट करने का प्रयास किया है। सेठ घनश्याम एक समाचार-पत्र के मालिक हैं। वे विधानसभा का चुनाव लड़ रहे हैं। वोट प्राप्त करने के लिए वे हरिजनों-विद्यार्थियों, घरेलू नौकरों, बच्चों, स्त्रियों और मजदूरों के अधिकारों की रक्षा करने का आश्वासन देते हैं किन्तु उनकी करनी उनकी कथनी के बिलकुल विपरीत है। वह अपने बच्चे को पीटते हैं। नौकर को गाली-गलौच करते हैं।

अपने नौकर भगवती और सफाई सेवादार को कई-कई महीने का वेतन नहीं देते। भगवती के द्वारा अपना वेतन माँगने पर उस का झूठा मुकदमा या चोरी का दोष लगाने की धमकी भी देते हैं। चुनाव भाषणों में वह मजदूरों के कार्य समय घटाने का आश्वासन देते हैं जबकि अपने समाचार-पत्र में अधिक समय तक काम करने के लिए कहते हैं। वेतन बढ़ाने की माँग करने पर वह उसे नौकरी छोड़ देने तक की धमकी भी देते हैं। वह विद्यार्थियों के वोट प्राप्त करने के लिए उन्हें तरह-तरह के आश्वासन देते हैं किन्तु उनके ब्यान को अपने समाचार-पत्र में छापने के लिए तैयार नहीं होते। स्त्रियों के अधिकारों की रक्षा करने का आश्वासन देने वाले वह घर पर अपनी पत्नी को डाँट फटकार करते हैं। तंग आकर उसकी पत्नी घर छोड़कर अपने मायके चली जाती है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 32 नई नौकरी

Punjab State Board PSEB 11th Class Hindi Book Solutions Chapter 32 नई नौकरी Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Hindi Chapter 32 नई नौकरी

Hindi Guide for Class 11 PSEB नई नौकरी Textbook Questions and Answers

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दें।

प्रश्न 1.
यशोदा अपने बेटे का घर क्यों छोड़ आई थी ?
उत्तर:
यशोदा अपने पति की मृत्यु के बाद अपने बेटे सुबोध के पास रहने लगी थी। परन्तु सुबोध की पत्नी ने यशोदा को अपने पास ज्यादा देर रहने नहीं दिया। दोनों में प्रतिदिन झगड़े होने लगे थे। एक दिन जब झगड़ा सीमा से बाहर हो गया तो यशोदा बेटे सुबोध का घर छोड़कर वापिस आ गई थी।

प्रश्न 2.
सुबोध यशोदा को लेने क्यों आया था ?
उत्तर:
सुबोध यशोदा, अपनी माँ, को लेने स्वार्थवश आया था। उसकी पत्नी को नौकरी मिल गई थी और घर तथा छोटे बेटे की सँभाल की समस्या उसके सामने खड़ी हो गयी थी। उसने घर के खर्चे में कमी करने के लिए नौकरानी को भी हटा दिया था। सुबोध यशोदा को ममतावश नहीं, स्वार्थवश अपने साथ शहर ले जाने के लिए आया था।

प्रश्न 3.
नई नौकरी लघु कथा आज के टूटते परिवारों व भौतिकवादी परिवेश की कहानी है, 60 शब्दों में स्पष्ट करें।
उत्तर:
प्रस्तुत लघु कथा आधुनिक जीवन के स्वार्थमय परिवेश की कहानी है। इसी स्वार्थ ने संयुक्त परिवार परम्परा को छिन्न-भिन्न करके रख दिया है। बेटा सुबोध अपनी माँ यशोदा को अपने स्वार्थ के कारण लेने आया है। उसकी पत्नी ने पहले उसकी माँ को नहीं रखा था परन्तु जब उसकी नौकरी लग गई और बच्चे और घर सम्भालने की बात आई तो उसने माँ को अपने पास बुलवाने के लिए सुबोध को माँ के पास भेज दिया। इससे परिवारों में आए स्वार्थ और भौतिकवादी परिवेश का पता चलता है। आज रिश्तों की बुनियाद केवल स्वार्थ पर आधारित होकर रह गई है। माँ बेटे का प्यार हो या भाई-भाई का प्यार सभी स्वार्थ की बलि चढ़ गए हैं।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 32 नई नौकरी

PSEB 11th Class Hindi Guide नई नौकरी Important Questions and Answers

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
यशोदा अपना गुज़ारा कैसे करती थी ?
उत्तर:
लोगों के घर में बर्तन साफ करके।

प्रश्न 2.
यशोदा के बेटे का क्या नाम था ?
उत्तर:
सुबोध।

प्रश्न 3.
सुबोध को यशोदा को लाने के लिए किसने भेजा था ?
उत्तर:
सुबोध को उसकी पत्नी ने भेजा था ।

प्रश्न 4.
‘नई नौकरी’ किस प्रकार की विधा है ?
उत्तर:
लघु कथा।

प्रश्न 5.
‘नई नौकरी’ लघुकथा किसके द्वारा रचित है ?
उत्तर:
विनोद शर्मा द्वारा।

प्रश्न 6.
‘नई नौकरी’ लघुकथा में लेखक ने किस बात का उल्लेख किया है ?
उत्तर:
आधुनिक जीवन के स्वार्थमय परिवेश का।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 32 नई नौकरी

प्रश्न 7.
आज के जीवन में रिश्तों की अहमियत किस बात पर टिकी है ?
उत्तर:
स्वार्थ के आधार पर।

प्रश्न 8.
सुबोध यशोदा को लेने क्यों आया था ?
उत्तर:
स्वार्थ के कारण।

प्रश्न 9.
सुबोध की पत्नी को ……… मिल गई थी।
उत्तर:
नौकरी।

प्रश्न 10.
सुबोध की पत्नी के समक्ष कौन-सी समस्या थी ?
उत्तर:
घर-परिवार तथा बच्चे को संभालने की।

प्रश्न 11.
घर के खर्चे में कमी के लिए सुबोध की पत्नी ने क्या किया ?
उत्तर:
घर की नौकरानी को हटा दिया।

प्रश्न 12.
सुबोध यशोदा को कहाँ ले जाना चाहता था ?
उत्तर:
अपने साथ शहर में।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 32 नई नौकरी

प्रश्न 13.
स्वार्थ के कारण आजकल …….. टूट रहे हैं।
उत्तर:
संयुक्त परिवार।

प्रश्न 14.
आज रिश्तों की नींव किस पर आधारित है ?
उत्तर:
स्वार्थ पर।

प्रश्न 15.
आज सभी रिश्ते ……….. की बलि चढ़ गए हैं।
उत्तर:
स्वार्थ की।

प्रश्न 16.
यशोदा किस बात को सुनकर सन्न रह जाती है ?
उत्तर:
नौकरानी को हटाने की बात को सुनकर।

बहुविकल्पी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
‘नई नौकरी’ किस विधा की रचना है ?
(क) लघु कथा
(ख) कथा
(ग) कहानी
(घ) उपन्यास।
उत्तर:
(क) लघु कथा

प्रश्न 2.
‘नई नौकरी’ लघुकथा में कैसे परिवेश का चित्रण है ?
(क) प्रेमपूर्ण
(ख) स्वार्थपूर्ण
(ग) धनी
(घ) निर्धन।
उत्तर:
(ख) स्वार्थपूर्ण

प्रश्न 3.
‘नई नौकरी’ लघुकथा में किस काल का वर्णन है ?
(क) आदिकाल
(ख) आधुनिक काल
(ग) भक्ति काल
(घ) पुरातन काल।
उत्तर:
(ख) आधुनिक काल।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 32 नई नौकरी

कठिन शब्दों के अर्थ :

डूब मरना-अपमान अनुभव करना। कहा-सुनी-वाद-विवाद। खुशी से पागल होना-बहुत अधिक खुश होना। चौका बर्तन-रसोई घर का काम। सन होना-सोचने समझने की शक्ति समाप्त होना। लुप्त होना-समाप्त होना।

नई नौकरी Summary

नई नौकरी कथा सार

‘नई नौकरी’ लघुकथा विनोद शर्मा द्वारा लिखित है। इसमें लेखक ने आधुनिक जीवन के स्वार्थमय परिवेश का वर्णन किया है। आज के जीवन में रिश्तों की अहमियत स्वार्थ के आधार पर टिक-सी गई है। यशोदा लोगों के घरों में बर्तन साफ़ करके अपना गुजारा कर रही है। एक दिन उसका बेटा सुबोध उसे लेने आता है यशोदा खुश हो जाती है। अचानक उसे सुबोध की पत्नी की याद आती है कि वह उसे पसंद नहीं करती। वह बेटे से कहती है कि उसकी पत्नी उसे पसंद नहीं करती है तब सुबोध उसे बताता है कि उसकी पत्नी ने ही उसे माँ को लाने भेजा है। उसकी नौकरी लग गई है हार और बच्चे की ज़िम्मेदारी सम्भालने के लिए वह उसे लेने आया है। उन्होंने अपनी नौकरानी को भी हटा दिया है। यह सुनकर यशोदा सन्न रह जाती है। उसे लगता है कि अब उसे नई नौकरी मिल गई है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 31 रिश्ते

Punjab State Board PSEB 11th Class Hindi Book Solutions Chapter 31 रिश्ते Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Hindi Chapter 31 रिश्ते

Hindi Guide for Class 11 PSEB रिश्ते Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
ड्राइवर बस धीमी गति से क्यों चला रहा था ?
उत्तर:
ड्राइवर की नौकरी का वह अन्तिम दिन था। इस सफर के समाप्त होते ही उसे रिटायर हो जाना था। रास्ते से एक रिश्ता स्थापित हो जाने के कारण वह अधिक-से-अधिक समय उस रास्ते पर बिताना चाहता था। इसी कारण वह बस धीमी गति से चला रहा था।

प्रश्न 2.
सवारियों की झल्लाहट का क्या कारण था ? स्पष्ट करें।
उत्तर:
ड्राइवर द्वारा बस धीमी गति से चलाने पर सवारियाँ झल्ला उठी थीं। उनका कहना था कि उन्हें आगे भी जाना है। बीस-तीस किलोमीटर प्रति घंटा की गति के कारण सवारियाँ परेशान हो उठती हैं।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 31 रिश्ते

प्रश्न 3.
रिश्ते लघुकथा मानवीय संवेदना की कहानी है, स्पष्ट करें।
उत्तर:
प्रस्तुत लघु कथा मानवीय सम्बन्धों की भावमयता पर आधारित है। मनुष्य मनुष्यों से ही नहीं पेड़-पौधों एवं रास्तों से भी रिश्ता स्थापित कर लेता है। कथानायक ड्राइवर सरूप सिंह भी रोज़ जिस रास्ते बस चला कर जाता है उससे रिश्ता स्थापित कर लेता है। रास्ते से अधिक देर तक सम्बन्ध बनाए रखने के लिए वह बस धीरे-धीरे चलाता है क्योंकि उसकी नौकरी का यह अन्तिम दिन था । बरसों से जुड़े उस रास्ते से आज का रिश्ता टूट-सा जाने वाला था। आज के बाद उसे रिटायर हो जाना है। फिर कभी वह इस रास्ते पर बस लेकर नहीं आएगा।

प्रश्न 4.
सरूप सिंह का चरित्र-चित्रण लगभग साठ शब्दों में करें।
उत्तर:
सरूप सिंह एक बस ड्राइवर है। वह प्रतिदिन जिस रास्ते से जाता था, उस रास्ते से उसने एक रिश्ता स्थापित कर लिया था। नौकरी के अन्तिम दिन उस रास्ते से अधिक से अधिक निकटता बनाए रखने के लिए वह बस धीमी गति से चलाता है। सवारियाँ परेशान थीं पर सरूप सिंह बड़ी मिठास से सब से बातें करता था। उसने सवारियों को यह भी बताया कि आज तक उसकी बस का एक्सीडेंट नहीं हुआ। इस बात से उसकी कार्यकुशलता का भी पता चलता है। भावुक होने के कारण ही वह रिटायर होने वाले दिन रास्ते पर अधिक देर तक बना रहना चाहता है।

प्रश्न 5.
सप्रसंग व्याख्या करें बात यह है कि इस रास्ते से मेरा तीस सालों का रिश्ता है। आज मैं यहाँ आखिरी बार बस चला रहा हूँ। बस के मुकाम पर पहुँचते ही मैं रिटायर हो जाऊँगा। इसलिए ……..
उत्तर:
प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियाँ श्री अशोक भाटिया द्वारा लिखित लघु कथा ‘रिश्ते’ में से ली गई हैं। प्रस्तुत पंक्तियों में ड्राइवर सरूप सिंह बस धीमी गति से चलाने का कारण बता रहा है।

व्याख्या :
सरूप सिंह द्वारा बस धीमी गति से चलाने पर सवारियाँ उत्तेजित हो उठती हैं। उन को शान्त करते हुए अपने आँसुओं से छलकते चेहरे को घुमाकर वह सवारियों से कहता है कि इस रास्ते से पिछले तीस वर्षों से मेरा रिश्ता है, अर्थात् मैं पिछले तीस सालों से इस रास्ते पर बस चला रहा हूँ, किन्तु आज मैं आखिरी बार इस रास्ते पर बस चला रहा हूँ, क्योंकि बस के मुकाम पर पहुँचते ही मैं रिटायर हो जाऊँगा। इसी कारण सरूप सिंह भावुक होने के कारण, इस से आगे कुछ न कह सका। वह कहना चाहता था कि इस रास्ते से रिश्ता स्थापित होने के कारण ही वह बस धीमी गति से चला रहा था।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 31 रिश्ते

PSEB 11th Class Hindi Guide रिश्ते Important Questions and Answers

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘रिश्ते’ लघुकथा किसकी रचना है ?
उत्तर:
अशोक भाटिया।

प्रश्न 2.
ड्राइवर का क्या नाम था ?
उत्तर:
ड्राइवर का नाम सरूप सिंह था।

प्रश्न 3.
सरूप सिंह का सड़क से कितना पुराना संबंध था ?
उत्तर:
तीस साल पुराना संबंध था।

प्रश्न 4.
रिटायर होने वाले दिन सरूप सिंह ……… पर अधिक देर तक बना रहता है।
उत्तर:
रास्ते।

प्रश्न 5.
रास्ते से सरूप सिंह ने क्या बना लिया था ?
उत्तर:
एक रिश्ता।

प्रश्न 6.
मंजिल पर पहुँचने पर सरूप सिंह का रास्ते से ………. छूट जाना था।
उत्तर:
संबंध।

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प्रश्न 7.
‘रिश्ते’ लघुकथा किस बात पर आधारित है ?
उत्तर:
मानवीय संबंधों की भावमयता पर।

प्रश्न 8.
मानव मानव के अतिरिक्त किस-से रिश्ता रखता है ?
उत्तर:
समस्त प्रकृति से।

प्रश्न 9.
सरूप सिंह पेशे से क्या था ?
उत्तर:
बस ड्राइवर।

प्रश्न 10.
सरूप सिंह कितने वर्षों की सेवा के बाद रिटायर हो रहा था ?
उत्तर:
तीस वर्षों की सेवा के बाद।

प्रश्न 11.
सरूप सिंह बस धीरे-धीरे क्यों चला रहा था ?
उत्तर:
क्योंकि वह आज रिटायर होने वाला था।

प्रश्न 12.
बस की सवारियाँ क्यों नाराज थीं ?
उत्तर:
बस की धीमी रफ्तार से।

प्रश्न 13.
सरूप सिंह क्यों रोने लगता है ?
उत्तर:
अपनी मजबूरी बताते हुए भावुक होने के कारण।

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प्रश्न 14.
सरूप सिंह किस प्रकार सवारियों से बातें कर रहा था ?
उत्तर:
बड़ी मिठास से।

प्रश्न 15.
लघुकथा में ‘मुकाम’ शब्द का क्या अर्थ है ?
उत्तर:
अंतिम मंजिल।

बहुविकल्पी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
रिश्ते लघु कथा किन संबंधों पर आधारित है ?
(क) मानवीय
(ख) अमानवीय
(ग) प्रेम
(घ) विरह।
उत्तर:
(क) मानवीय

प्रश्न 2.
ड्राइवर का सड़क से कितने साल पुराना रिश्ता था ?
(क) 20
(ख) 30
(ग) 40
(घ) 50.
उत्तर:
(ख) 30

प्रश्न 3.
मानव का मानव के साथ-साथ किससे रिश्ता होता है ?
(क) प्रकृति से
(ख) जल से
(ग) थल से
(घ) गगन से।
उत्तर:
(क) प्रकृति से।

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कठिन शब्दों के अर्थ :

ढीचम-ढीचम-धीरे-धीरे। छलकता चेहरा-आँसुओं से भरा चेहरा । मुकाम-मंज़िल।

रिश्ते Summary

रिश्ते कथा सार

“रिश्ते’ लघुकथा अशोक भाटिया द्वारा लिखित है। यह मानवीय सम्बन्धों की भावमयता पर आधारित है। मानव हाँड-माँस के जीवित व्यक्तियों से ही नहीं अपितु पेड़, पौधों, रास्तों से भी रिश्ता रखता है। ड्राइवर सरूप सिंह आज रिटायर होने वाला था। उसका सड़क से तीस साल पुराना सम्बन्ध था। इसलिए आज वह उस रास्ते पर आखिरी बार बस चला रहा था। इसलिए वह धीरे-धीरे बस चला रहा था। बस की सवारियाँ बस की रफ्तार से नाराज हो गई थीं उन्हें मंजिल पर पहुंचना था। परन्तु मंजिल पर पहुंच कर सरूप सिंह का उस रास्ते से संबंध छूट जाना था। इसलिए वह धीरे-धीरे सभी रास्तों, पेड़-पौधों से विदा लेता जा रहा था। वह सवारियों को अपनी मज़बूरी बताता है और रोने लगता है।