PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 24 उसकी माँ

Punjab State Board PSEB 11th Class Hindi Book Solutions Chapter 24 उसकी माँ Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Hindi Chapter 24 उसकी माँ

Hindi Guide for Class 11 PSEB उसकी माँ Textbook Questions and Answers

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दें-

प्रश्न 1.
‘उसकी माँ’ कहानी का सार लिखें।
उत्तर:
‘उसकी मां’ कहानी पाण्डेय बेचन शर्मा उग्र की महत्त्वपूर्ण कहानियों में से एक है। यह कहानी राष्ट्रीय भावना से पूर्ण है। कुछ क्रान्तिकारियों ने देश की आजादी के लिए अपना बलिदान दे दिया। लेखक ने कहानी में लाल की माँ के बलिदान और ममता का वर्णन किया है।

लेखक दोपहर के समय अपनी पुस्तकालय से किसी महान् लेखक की कृति देखने की बात सोच रहा था कि उसके घर पुलिस सुपरिटेंडेंट पधारे। उन्होंने एक तस्वीर दिखाकर उसके विषय में जानकारी चाही। लेखक ने बताया कि वह उनका पड़ोसी लाल है जो कॉलेज में पढ़ रहा है। जाते-जाते पुलिस सुपरिटेंडेंट ने लेखक को सलाह दी कि वह लाल के परिवार से जरा सावधान और दूर रहे। – लेखक ने लाल की माँ से भी उसके विषय में जानने की कोशिश की कि उसका बेटा आजकल क्या करता है। कहीं वह सरकार के विरुद्ध षड्यन्त्र करने वालों का साथी तो नहीं बन गया है। उसने लाल से भी यही बात पूछी। लाल ने बताया कि वह किसी षड्यन्त्र में शामिल नहीं पर उसके विचार अवश्य स्वतन्त्र हैं। वह देश की दुर्दशा पर दु:खी है। लेखक ने लाल को समझाया कि उसे केवल पढ़ना चाहिए। पहले घर का उद्धार कर लो तब सरकार के उद्धार का काम करना।

एक दिन लेखक ने लाल की माँ से लाल के मित्रों के बारे में जानना चाहा तो लाल की माँ ने बताया कि लाल और उसके मित्र पुलिस के अत्याचारों की बातें करते हैं। लेखक कुछ दिनों के लिए बाहर गया। लौटने पर उसे मालूम हुआ कि पुलिस लाल और उसके बारह-पन्द्रह साथियों को पकड़कर ले गई है। तलाशी में लाल के घर से दो पिस्तौल, बहुत से कारतूस और पत्र बरामद हुए थे। उन पर हत्या, षड्यन्त्र और सरकार उल्टने की चेष्टा आदि के अपराध लगाए गए।

लाल और उसके साथियों पर कोई एक वर्ष तक मुकद्दमा चला कि कोई भी वकील उनका केस लड़ने को तैयार न हुआ। मुकद्दमे के दौरान लाल की माँ सबको नियमपूर्वक भोजन पहुँचाती रही। फिर एक दिन अदालत का फैसला आया, जिसके अनुसार लाल और उसके तीन साथियों को फाँसी और उसके शेष साथियों को सात से दस वर्ष की कड़ी सजा सुनाई गई। फांसी पाने से पहले लाल ने अपनी माँ को लिखा कि वह भी वहीं आ जाए। वह जन्म-जन्मांतर तक उसकी माँ रहेगी।

अगले दिन लेखक ने देखा कि लाल की माँ दरवाज़े पर मरी पड़ी है।

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प्रश्न 2.
सरलता, ममता, त्याग और तपस्या की सजीव मूर्ति के आधार पर लाल की माँ का चरित्र-चित्रण कीजिए।
उत्तर:
लाल की माँ प्रस्तुत कहानी की नायिका है। वह इतनी सरल हृदया है कि उसे अपने बेटे और उसके मित्रों की बातों से किसी षड्यन्त्र की बू नहीं आती। उसका तो बस अपने पुत्र लाल से और उसके मित्रों से स्नेहमयी, ममतामयी माँ का रिश्ता है। लाल के मित्र भी उसे लाल जैसे प्यारे दिखते हैं। जब वे सभी उसे माँ कहकर पुकारते हैं, तब उसकी छाती फूल उठती है-मानों वे उसके बच्चे हों। उसकी यह कामना है कि सारे बच्चे हँसते रहें।

लाल और उसके साथियों के पकड़े जाने पर वह बड़े प्यार से उनके लिए परांठे, हलवा और तरकारी बनाती है। मुकद्दमा लड़ने के लिए, बच्चों को भोजन पहुँचाने के लिए वह घर का सारा सामान बेच देती है। स्वयं सूखकर काँटा हो जाती है पर जेल में बन्द बच्चों को हृष्ट-पुष्ट रखती है। अन्त में बच्चों की इच्छा के अनुरूप ही वह परलोक भी सिधार जाती है। कहानीकार ने लाल की माँ जानकी को ममता, त्याग और तपस्या की सजीव मूर्ति के रूप में प्रस्तुत किया है। कहानी का शीर्षक भी उसी के अनुरूप दिया गया है जो अत्यन्त सार्थक एवं सटीक बन पड़ा है।

(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दें-

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प्रश्न 1.
पुलिस सुपरिटेंडेंट के पूछने पर लेखक ने लाल के परिवार के बारे में उन्हें क्या बताया ?
उत्तर:
पुलिस सुपरिटेंडेंट के पूछने पर लेखक ने बताया कि लाल नाम के इस लड़के का घर उसके बंगले के ठीक सामने है। घर में वह और उसकी बूढ़ी माँ रहती है। सात वर्ष हुए लाल के पिता का देहान्त हो गया। उसका पिता जब तक जीवित रहा लेखक की ज़िमींदारी का मुख्य मैनेजर था। उसका नाम रामनाथ था। वही लेखक के पास कुछ हज़ार रुपए जमा कर गया था, जिससे अब तक उनका खर्च चल रहा है। लड़का कॉलेज में पढ़ रहा है।

प्रश्न 2.
पुलिस सुपरिटेंडेंट ने लेखक को लाल से सावधान और दूर रहने का सुझाव क्यों दिया ?
उत्तर:
पुलिस सुपरिटेंडेंट ने लेखक को लाल से सावधान और दूर रहने का सुझाव इसलिए दिया था क्योंकि उसे शक था कि लाल राजविरोधी गतिविधियों में संलिप्त है और राज उलटने के षड्यन्त्र में शामिल है। पुलिस सुपरिटेंडेंट ने लेखक से यह बात अत्यन्त गोल-मोल ढंग से कही। उसने इतना ही कहा कि फिलहाल इससे अधिक मुझे कुछ कहना नहीं!

प्रश्न 3.
लाल और उसके साथियों को पैरवी करने के लिए कोई भी वकील क्यों नहीं मिला ?
उत्तर:
लाल और उसके साथियों को पैरवी करने के लिए कोई भी वकील इसलिए नहीं मिल रहा था कि तत्कालीन शासन तन्त्र के अत्याचारों से आम लोग ही नहीं वकील भी भयभीत थे। इसलिए कोई भी एक विद्रोही की माँ से सम्बन्ध रखकर या विद्रोहियों के मुकद्दमे की पैरवी करके कोई भी मुसीबत मोल लेना नहीं चाहता था। उस समय की समाज व्यवस्था भी ऐसी ही थी।

प्रश्न 4.
लाल की माँ सभी युवकों को लाल की तरह ही क्यों मानती थी ?
उत्तर:
लाल की माँ सभी युवकों को लाल की तरह ही इसलिए मानती थी कि सभी लापरवाह, हँसते-गाते और हल्ला मचाते थे। उनकी इन हरकतों को देखकर लाल की माँ मुग्ध हो जाती थी। वे सभी बड़े प्रेम से उसे ‘माँ’ कहते थे। इस सम्बोधन शब्द को सुनकर लाल की माँ को लगता था कि वे सब उसी के बच्चे हैं। एक दिन तो लाल के एक हँसोड़ मित्र ने उसे भारत माँ ही बना दिया।

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प्रश्न 5.
लड़कों ने माँ से अपनी फाँसी की सजा की बात क्यों छिपाई ?
उत्तर:
लड़कों ने माँ से अपनी फाँसी की सजा की बात इसलिए छिपाई कि उनकी माँ को उनके मरने का दुःख न हो। उन्होंने परोक्ष रूप में माँ को भी वहां आने के लिए कहा। जहाँ वे लोग जा रहे थे। लड़कों ने यह भी कहा कि वहाँ हम स्वतन्त्रता से मिलेंगे, तेरी गोद में खेलेंगे। तुझे कन्धे पर उठाकर तुझे इधर-से उधर दौड़ते रहेंगे। लड़कों की बातें सुनकर भोली जानकी के मुँह से इतना ही निकला, तुम वहां जाओगे पगलो ?

प्रश्न 6.
प्रस्तुत कहानी से लाल और उसके साथियों से आज के नवयुवकों को क्या प्रेरणा मिलती है ?
उत्तर:
प्रस्तुत कहानी में लाल और उसके साथियों से आज के नवयुवकों को राष्ट्र भक्ति की प्रेरणा मिलती है। देश पर कुर्बान होने की प्रेरणा मिलती है। देश के लिए हँसते-हँसते कष्ट सहने की प्रेरणा मिलती है। साथ ही यह भी प्रेरणा मिलती है कि राष्ट्र या समाज का अहित करने वाले के विरुद्ध डटकर खड़ा हो जाना चाहिए।

प्रश्न 7.
‘उसकी माँ’ कहानी के शीर्षक की सार्थकता को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रस्तुत कहानी का शीर्षक अत्यन्त सार्थक और सटीक बन पड़ा है। पूरी कहानी में लाल की माँ जानकी को लेखक ने केन्द्र में ही रखा। उसे कहानी की नायिका के रूप में प्रस्तुत किया। न वह राजभक्त है और न राजद्रोही। राजनीति से उसका कोई लेना-देना नहीं। वह तो स्नेहमयी, ममतामयी माँ है। त्याग और तपस्या की सजीव मूर्ति है। अतः कहना न होगा कि प्रस्तुत कहानी का शीर्षक ‘उसकी माँ’ अत्यन्त सार्थक एवं सटीक बन पड़ा है।

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PSEB 11th Class Hindi Guide उसकी माँ Important Questions and Answers

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘उसकी माँ’ कहानी के रचनाकार कौन हैं ?
उत्तर:
पाण्डेय बेचन शर्मा ‘उग्र’।

प्रश्न 2.
लेखक पाण्डेय बेचन शर्मा ‘उग्र’ दोपहर के समय अपने पुस्तकालय में क्या देखने की सोच रहा था ?
उत्तर:
किसी महान् लेखक की कृति देखने के बारे में।

प्रश्न 3.
लाल और उसके साथियों पर कितने समय तक मुकद्दमा चला ?
उत्तर:
लगभग एक वर्ष तक।

प्रश्न 4.
मुकद्दमे के दौरान लाल की माँ सबके लिए क्या भेजती रही ?
उत्तर:
भोजन।

प्रश्न 5.
अगले दिन लेखक ने क्या देखा ?
उत्तर:
अगले दिन लेखक ने देखा कि लाल की माँ दरवाजे पर मरी पड़ी है।

प्रश्न 6.
लेखक ने लाल के बारे में किससे जानना चाहा था ?
उत्तर:
लाल की माँ से।

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प्रश्न 7.
लेखक के घर कौन आया था ?
उत्तर:
पुलिस सुपरिटेंडेंट।

प्रश्न 8.
लाल किसके पड़ोस में रहता था ?
उत्तर:
लेखक के।

प्रश्न 9.
लाल कहाँ पढ़ रहा था ?
उत्तर:
कॉलेज में।

प्रश्न 10.
पुलिस सुपरिटेंडेंट ने लेखक को किस से सावधान रहने की सलाह दी ?
उत्तर:
लाल के परिवार से।

प्रश्न 11.
लाल के विचार कैसे थे ?
उत्तर:
स्वतंत्र तथा देश हित में।

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प्रश्न 12.
लाल दुःखी क्यों था ?
उत्तर:
देश की दुर्दशा पर।

प्रश्न 13.
लेखक ने लाला को पहले किसका उद्धार करने की बात कही ?
उत्तर:
अपने घर का।

प्रश्न 14.
तलाशी में लाल के घर से क्या मिला था ?
उत्तर:
दो पिस्तौल, बहुत से कारतूस तथा पत्र।

प्रश्न 15.
लाल तथा उसके साथियों पर कौन-से आरोप लगाए गए थे ?
उत्तर:
हत्या, षड्यंत्र तथा सरकार पलटने का।

प्रश्न 16.
फाँसी पाने से पहले लाल ने अपनी माँ को ………… लिखा।
उत्तर:
पत्र।

प्रश्न 17.
लाल और उसके साथियों का केस लड़ने को कौन तैयार नहीं था ?
उत्तर:
कोई भी वकील।

प्रश्न 18.
लाल के साथ उसके कितने साथियों को फाँसी की सजा हुई थी ?
उत्तर:
तीन।

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प्रश्न 19.
शेष साथियों को क्या सजा मिली थी ?
उत्तर:
सात से दस वर्ष की कड़ी सजा।

प्रश्न 20.
पत्र में लाल ने क्या लिखा था ?
उत्तर:
वह जन्म-जन्मांतर तक उसकी माँ रहेगी।

बहुविकल्पी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
‘उसकी माँ’ किस विधा की रचना है ?
(क) कहानी
(ग) निबंध
(घ) नाटक।
उत्तर:
(क) कहानी

प्रश्न 2.
‘उसकी माँ’ कहानी किस भावना से पूर्ण है ?
(क) राष्ट्रीय भावना
(ख) विचारधारा
(ग) आशावादी
(घ) हास्यपूर्ण।
उत्तर:
(क) राष्ट्रीय भावना

प्रश्न 3.
लाल की माँ किसकी मूर्ति थी ?
(क) ममता
(ख) त्याग
(ग) तपस्या
(घ) सभी।
उत्तर:
(घ) सभी

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प्रश्न 4.
भारतमाता का सिर क्या है ?
(क) हिमालय
(ख) देवालय
(ग) गंगा
(घ) यमुना।
उत्तर:
(क) हिमालय

प्रश्न 5.
भारतमाता का नाम क्या है ?
(क) हिमालय
(ख) विन्धयांचल
(ग) पूर्वांचल
(घ) उत्तरोंचल।
उत्तर:
(ख) विन्धयांचल।

कठिन शब्दों के अर्थ :

फरमादार = आदेश मानने वाले, सेवा करने वाले। दुर्दशा = बुरी स्थिति। हवाई किले उठाना = बड़े-बड़े सपने बुनना। वय = आयु। सहस्त्र = हजार। छाती फूल उठना = बहुत प्रसन्न हो जाना। गप हाँकना = जिन बातों का कोई अर्थ नहीं। त्रास = दु:ख। दाँत निपोरना = खुशामद करना। निस्तेज = तेज हीन। कमर टूटना = सब कुछ समाप्त होना, बहुत ज्यादा दु:खी होना। दूध का दूध और पानी का पानी होना = सभी बातों का साफ होना, गलत फहमी दूर होना, सच और झूठ का पता चलना। गाँव का सिवान = गाँव की सीमा। ब्यालू = रात का भोजन। दिवाकर = सूर्य।

प्रमुख अवतरणों की सप्रसंग व्याख्या

(1) “तुम्हारी ही बात सही, तुम षड्यन्त्र में नहीं, विद्रोह में नहीं, पर यह बक-बक क्यों ? इससे फायदा ? तुम्हारी इस बक-बक से न तो देश की दुर्दशा दूर होगी और न उसकी पराधीनता। तुम्हारा काम पढ़ना है, पढ़ो। इसके बाद कर्म करना होगा, परिवार और देश की मर्यादा बचानी होगी। तुम पहले अपने घर का उद्धार तो कर लो, तब सरकार के सुधार पर विचार करना।”

प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियाँ पाण्डेय बेचन शर्मा ‘उग्र’ जी द्वारा लिखित कहानी ‘उसकी माँ’ में से ली गई हैं। लेखक से जब सुपरिटेंडेंट पुलिस ने लाल के बारे में जानकारी प्राप्त की तो जाते-जाते उस परिवार से सावधान और दूर रहने की सलाह दी तो लेखक को यह शक हुआ कि लाल सरकार के विरुद्ध किसी षड्यन्त्र में शामिल है। उसने लाल से यही बात पूछी। लाल के इन्कार करने पर लेखक ने उसे समझाते हुए प्रस्तुत पंक्तियाँ कही हैं।

व्याख्या :
लाल ने जब किसी षड्यन्त्र में शामिल न होने की बात कही तो लेखक ने उसे समझाते हुए कहा कि तुम्हारी ही बात सही है कि तुम किसी षडयन्त्र में या विद्रोह में शामिल नहीं हो। किन्तु तुम सरकार के विरुद्ध, सरकार की दुर्व्यवस्था के विरुद्ध क्यों बोलते हो। तुम्हारे इस काम का अथवा बोलने का कोई लाभ न होगा। तुम्हारी इन बातों से न तो देश की दुर्दशा सुधरेगी और न ही उसकी पराधीनता समाप्त होगी। तुम अभी विद्यार्थी हो। अतः तुम्हारा काम केवल पढ़ना है। पढ़ाई समाप्त होने पर तुम्हें कर्म करना होगा। परिवार और देश की मर्यादा बचानी होगी। तुम पहले अपने घर का उद्धार तो कर लो तब सरकार के सुधार का विचार करना अर्थात् उसे बदलने की बात सोचना।

विशेष :

  1. लाल के राष्ट्रभक्त और लेखक के राजभक्त होने की ओर संकेत किया गया है। कहना न होगा कि लेखक जैसे राजभक्तों के कारण ही देश कई सौ वर्षों तक गुलाम बना रहा।
  2. भाषा सरल, व्यावहारिक और सहज है। बक-बक करना मुहावरे का प्रयोग है।

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(2) “चाचा जी, नष्ट हो जाना यहाँ का नियम है। जो सँवारा गया है, वह बिगड़ेगा ही। हमें दुर्बलता के डर से अपना काम नहीं रोकना चाहिए। कर्म के समय हमारी भुजाएँ दुर्बल नहीं, भगवान् की सहस्त्र भुजाओं की सखियाँ हैं।”

प्रसंग :
यह गद्यावतरण पाण्डेय बेचन शर्मा ‘उग्र’ जी द्वारा लिखित कहानी ‘उसकी माँ’ से अवतरित है। लाल ने दुष्ट, व्यक्तिनाशक राज के सर्वनाश में अपना हाथ होने की बात कही तो लेखक ने उसे समझाते हुए अथवा यूँ कहें कि डराते हुए कहा कि तुम्हारे हाथ दुर्बल हैं जिस सरकार से तुम मुकाबला करने जा रहे हो, वह सरकार तुम्हारे हाथों को तोड़-मरोड़ देगी। लेखक का यह उत्तर सुनकर लाल ने प्रस्तुत पंक्तियाँ कही हैं।

व्याख्या :
जब लेखक ने लाल से शासन तन्त्र के ताकतवर होने की बात कही जो उसे नष्ट कर देगी तो लाल ने कहा, चाचा जी, नष्ट हो जाना तो प्रकृति का नियम है। जो बना है, वह बिगड़ेगा ही, किन्तु हमें अपनी कमजोरी के डर से अपना काम नहीं रोकना चाहिए। तात्पर्य यह है कि हमें हर हाल में कर्म करते रहना चाहिए। कर्म करते समय हमारी भुजाओं में कमज़ोरी नहीं आती कर्म करने पर बल्कि भगवान् की हज़ारों भुजाओं जैसी शक्ति आ जाती है।

विशेष :

  1. भारतवासियों की एक विशेषता कर्म में विश्वास रखना अथवा कर्मवीर होना पर प्रकाश डाला गया है।
  2. भाषा संस्कृतनिष्ठ है। शैली ओजपूर्ण है।

(3) “माँ त। त तो ठीक भारत माता-सी लगती है। तू बूढ़ी, वह बढ़ी। उसका उजला हिमालय है, तेरे केश। हाँ नक्शे से साबित करता हूँ, तू भारत माता है। सिर तेरा हिमालय माथे की दोनों गहरी बड़ी रेखाएँ गंगा और यमुना, यह नाक विन्धयाचल, ठोड़ी कन्याकुमारी तथा छोटी-बड़ी झुर्रियाँ-रेखाएँ भिन्न-भिन्न पहाड़ और नदियाँ हैं। ज़रा पास आ मेरे। तेरे केशों को पीछे से आगे बाएँ कन्धे पर लहरा ढूँ। वह बर्मा बन जाएगा। बिना उसके भारत माता का श्रृंगार शद्ध न होगा।”

प्रसंग :
यह गद्यांश पाण्डेय बेचन शर्मा ‘उग्र’जी के द्वारा लिखित कहानी ‘उसकी माँ’ से अवतरित है। प्रस्तुत पंक्तियों में लाल की माँ लेखक को लाल के एक हँसोड़ मित्र द्वारा उसे भारत माता कहकर पुकारे जाने का वर्णन कर रही है।

व्याख्या :
लाल की माँ जानकी लेखक को, लाल के एक मित्र को जब वह उसे हलवा परोस रही थी तो उसने मुँह की तरफ देखकर जो कहा उसका वर्णन करती हुई कहती है कि माँ तू तो ठीक भारत माता जैसी लगती है। तू भी बूढ़ी है और भारत माता भी। उसका उजला हिमालय है अर्थात् बर्फ से ढका है और तेरे केश भी बर्फ की तरह सफ़ेद हैं।

लाल की माँ कहती है कि इसके बाद उस लड़के ने नक्शा बनाकर समझाते हुए कहा कि तेरा सिर हिमालय है, माथे की दोनों गहरी रेखाएं गंगा और यमुना हैं, तुम्हारी नाक विन्धयाचल पर्वत जैसी है तो तेरी ठोडी कन्याकुमारी है। तेरे मुँह पर बनी यह छोटी-बड़ी झुर्रियां भिन्न-भिन्न पहाड़ और नदियां हैं। फिर उसने मुझे पास बुलाकर कहा तेरे केशों को पीछे से आगे बाएं कन्धे पर लहरा दूं तो वर्मा बन जाएगा। बिना उसके भारत माता का श्रृंगार शुद्ध न होगा।

विशेष :

  1. प्राचीन समय का बर्मा जो आज म्यांमार कहलाता है, पहले भारत का ही एक भाग हुआ करता था। लाल के मित्रों की देश-भक्ति का परिचय मिलता है। वे लाल की माँ में भारत माता को देखते हैं।
  2. भाषा अलंकृत है। शैली भावपूर्ण है।

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(4) “पुलिस वाले केवल सन्देह पर भले आदमियों के बच्चों को नाम देते हैं, मारते हैं, सताते हैं। यह अत्याचारी पुलिस की नीचता है। ऐसी नीच शासन-प्रणाली को स्वीकार करना अपने धर्म को, कर्म को, आत्मा को परमात्मा को भुलाना है। धीरे-धीरे घुलाना-मिटाना है।”

प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियाँ पाण्डेय बेचन ‘उग्र’ जी द्वारा लिखित कहानी ‘उसकी माँ’ में से ली गई हैं। इन पंक्तियों में लाल की माँ लेखक से लाल के साथियों के उत्तेजित होकर पुलिसवालों के अत्याचारों का वर्णन करती हुई कह रही

व्याख्या :
लाल की माँ लेखक को बताती है कि महीना भर पहले लड़के बहुत उत्तेजित थे। सरकार न जाने कहां लड़कों को पकड़ रही थी। इस पर एक लड़के ने कहा कि पुलिस वाले केवल सन्देह के आधार पर ही भले घरों के बच्चों को पकड़ कर डराते धमकाते हैं, मारते हैं, सताते हैं। यह अत्याचारी पुलिस की नीचता है जो निर्दोष लड़कों को पकड़कर तंग करती है। ऐसी नीच शासन प्रणाली को स्वीकार करना, अपने धर्म,कर्म, आत्मा और परमात्मा को भूलने के समान है तथा ऐसी शासन प्रणाली को स्वीकार करना अपने आपको धीरे-धीरे धुलाना और मिटाना है।

विशेष :

  1. अंग्रेज़ी शासन के दौरान पुलिस के अत्याचारों की ओर संकेत किया गया है तथा ऐसे शासन तन्त्र के विरुद्ध आह्वान किया गया है। अत्याचारी शासन के स्वीकार करना परमात्मा तथा स्वयं के साथ धोखा करना है।
  2. भाषा सरल, सहज और स्वाभाविक है।
  3. शैली ओजगुण से युक्त है।

(5) “अजी, ये परदेसी कौन लगते हैं हमारे जो बरबस राजभक्त बनाए रखने के लिए हमारी छाती पर तोप का मुँह लगाए अड़े और खड़े हैं। उफ़! इस देश के लोगों के हिये की आँखें मुंद गई हैं। तभी तो इतने जुल्मों आत्मा की चिता संवारते फिरते हैं। नाश हो इस परतन्त्रवाद का।”

प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियाँ पाण्डेय बेचन शर्मा उग्र’ जी द्वारा लिखित कहानी ‘उसकी माँ’ में से ली गई हैं। प्रस्तुत पंक्तियाँ लाल के एक मित्र ने उत्तेजित भाव से कही हैं जिन्हें लाल की माँ लेखक को बता रही हैं।

व्याख्या :
लाल की माँ कहती है कि पुलिस वालों के अत्याचार की बात सुनकर लाल के एक मित्र ने उत्तेजित भाव से कहा कि यह परदेसी अर्थात् अंग्रेज़ हमारे क्या लगते हैं जो ज़बरदस्ती हमें राजभक्त बनाएँ रखने के लिए हमारी छाती पर तोप का मुँह लगाए खड़े हैं। उफ! इस देश के लोगों के हृदय की आँखें भी मूंद गई हैं। तभी तो यह क्रान्ति की आवाज़ नहीं उठा पा रहे। अंग्रेजों के इतने अत्याचार सहकर भारतवासी इतना डरा हुआ है कि उसे एक-दूसरे से डर लगता है। भारतवासी आज अपने शरीर की रक्षा के लिए अपनी आत्मा को दबा रहे हैं। ऐसे परतन्त्रवाद का नाश हो। लाल के मित्र के कहने का भाव यह है कि अंग्रेजों के अत्याचारों से लोग इतने डरे हुए हैं कि उनके विरुद्ध आवाज़ नहीं उठा पा रहे। उन्हें अपने शरीर की रक्षा की अधिक चिन्ता है आत्मा की नहीं।

विशेष :

  1. लाल के मित्र के भावों में किसी क्रान्तिकारी के विचारों की झलक मिलती है। अंग्रेज़ी शासन के अत्याचारों और उनसे भयभीत आम लोगों का वर्णन किया गया है।
  2. तत्सम और तद्भव शब्दावली का प्रयोग है। ‘आँखें मूंदना’ मुहावरे का प्रयोग है। शैली भावपूर्ण है।

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(6) “लोग ज्ञान न पा सकें, इसलिए इस सरकार ने हमारे पढ़ने-लिखने के साधनों को अज्ञान से भर रखा लोग वीर और स्वाधीन न हो सकें, इसलिए अपमानजनक और मनुष्यता हीन नीति-मर्दक कानून गढ़े हैं। गरीबों को चूसकर, सेना के नाम पले हुए पशुओं को शराब से कबाब से, मोटा-ताज़ा रखती है। यह सरकार धीरे-धीरे जोंक की तरह हमारे देश का धर्म, प्राण और धन-चूसती चली जा रही है यह शासन-प्रणाली।”

प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियाँ पाण्डेय बेचन शर्मा ‘उग्र’ द्वारा लिखित कहानी ‘उसकी माँ’ में से ली गई हैं। इनमें लाल के एक मित्र द्वारा अंग्रेज़ी शासन प्रणाली की आलोचना की गई है।

व्याख्या :
लाल के एक मित्र ने पुलिस के अत्याचारों का उल्लेख किया था तथा दूसरे मित्र ने परतन्त्रवाद का विरोध किया, यह सुन लाल के एक अन्य मित्र ने अंग्रेजी सरकार की शिक्षा नीति की आलोचना करते हुए कहा कि अंग्रेजी शासन ने ऐसी शिक्षा-प्रणाली लागू कर रखी है जिससे भारतवासी ज्ञान न प्राप्त कर सकें। इसलिए सरकार ने भारतीयों के पढ़ने-लिखने के साधनों को अज्ञान से भर रखा है। ताकि ज्ञान प्राप्त करके भारतीय वीर न बन सकें तथा न ही अंग्रेज़ों की गुलामी से मुक्त होकर स्वाधीन होने की बात सोच सकें।

इसके लिए अंग्रेज़ी शासन ने ऐसे अपमानजनक और मानवताहीन कानून बनाए हैं, जिनसे नीति का नाश हो सके। ग़रीबों का खून चूसकर सेना के नाम पर पल रहे पशुसमान मनुष्यों को शराब पिलाकर मांस खिलाकर मोटा-ताज़ा रखे हुए हैं। यह शासन प्रणाली जोंक की तरह धीरे-धीरे हमारे धर्म, प्राण और धन को चूसती जा रही है।

विशेष :

  1. अंग्रेजी सरकार की शोषक-नीति पर प्रकाश डाला गया है। अंग्रेजों ने भारतीयों से मनुष्य से मनुष्य होने का अधिकार भी छिन लिया।
  2. भाषा तत्सम प्रधान, भावपूर्ण तथा शैली ओजस्वी है।

(7) “सब झूठ है। न जाने कहाँ से पुलिस वालों ने ऐसी-ऐसी चीजें हमारे घरों से पैदा कर दी हैं। वे लड़के केवल बातूनी हैं। हाँ, मैं भगवान् का चरण छूकर कह सकती हूँ, तुम्हें जेल में जाकर देख आओ, वकील बाब! भला, फूल-से बच्चे हत्या कर सकते हैं ?”

प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियाँ पाण्डेय बेचन शर्मा ‘उग्र’ जी द्वारा लिखित कहानी ‘उसकी माँ’ में से ली गई हैं। प्रस्तुत पंक्तियाँ लाल की माँ ने लाल और उसके साथियों का मुकदमा लड़ रहे वकील से कही हैं।

व्याख्या :
लाल की माँ ने गिड़गिड़ाते हुए वकील से कहा कि लाल और उसके साथियों पर जो आरोप लगाए गए हैं वे सब झूठ हैं। पुलिस वालों ने न जाने कहाँ से हमारे घर में हथियार रख दिए। यह लड़के तो केवल बातें ही बनाते हैं। हाँ मैं भगवान् का चरण छूकर कह सकती हूँ, तुम जेल में जाकर देख आओ कि भला ऐसे फूल से बच्चे हत्या कर सकते हैं।

विशेष :

  1. अंग्रेज़ी शासन में पुलिस द्वारा निर्दोष युवकों पर झूठे मुकद्दमे बनाकर उन्हें सज़ा दिलवाने की ओर संकेत किया गया है। लाल की माँ का ममतामयी और स्नेहमयी रूप हमारे सामने आता है। जिसने अपने बच्चों के लिए अपने गहने तथा अपने घर का लोटा थाली तक बेच दिया था।
  2. भाषा तत्सम और तद्भव प्रधान है। शैली भावात्मक है।

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(8) “माँ!” वह मुस्कराया, “अरे, हमें तो हलवा खिला-खिलाकर तूने गधे-सा तगड़ा कर दिया है, ऐसा कि फाँसी की रस्सी टूट जाए और हम अमर के अमर बने रहें। मगर तू स्वयं सूखकर काँटा हो गई है। क्यों पगली, तेरे लिए घर में खाना नहीं है क्या ?”

प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियाँ पाण्डेय बेचन शर्मा ‘उग्र’ जी द्वारा लिखित कहानी ‘उसकी माँ’ में से ली गई हैं। प्रस्तुत पंक्तियाँ लाल के एक मित्र ने फाँसी की सजा पाने के बाद बेड़ियां बजाते हुए मस्ती से झूमते हुए अदालत से बाहर आते समय कही हैं।

व्याख्या :
लाल के एक मित्र ने लाल की माँ को कहकर पुकारा और कहा कि तुमने तो हमें हलवा खिला-खिलाकर गधे के समान ऐसा तगड़ा कर दिया है कि फांसी की रस्सी भी टूट जाए और हम अमर के अमर बने रहें। उसने लाल की माँ के कमज़ोर शरीर को देखकर कहा हमें मोटा-ताज़ा रखकर तुम क्यों सूखकर कांटा हो गई हो ? क्या घर में तुम्हारे लिए खाना नहीं है।

विशेष :

  1. लाल की माँ के चरित्र पर प्रकाश डाला गया है जिसने स्वयं भूखे रहकर लाल और उसके साथियों के लिए भोजन जुटाया। इस भोजन जुटाने में उसने अपने सब गहने और घर का सारा सामान तक बेच दिया।
  2. भाषा तत्सम, तद्भव और मुहावरेदार है। शैली भावपूर्ण है।

(9) “माँ!” उसके लाल ने कहा, “तू भी जल्द वहीं आना जहाँ हम लोग जा रहे हैं। यहां से थोड़ी ही देर का रास्ता है, माँ! एक साँस में पहुंचेगी। वहीं हम स्वतन्त्रता से मिलेंगे, तेरी गोद में खेलेंगे। तुझे कन्धे पर उठाकर इधर से उधर दौड़ते फिरेंगे। समझती है ? वहाँ बड़ा आनन्द है।”

प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियाँ पाण्डेय बेचन शर्मा ‘उग्र’ जी द्वारा लिखित कहानी ‘उसकी माँ’ में से ली गई हैं। जब अदालत ने उसे और उसके तीन साथियों को झूठे मुकद्दमे में फँसा कर फाँसी की सजा सुनाई थी। तब लाल ने यह पंक्तियाँ अपनी माँ से कहीं हैं।

व्याख्या :
फाँसी की सजा पाए हुए लाल ने अपनी माँ से कहा कि वह भी शीघ्र ही वहां आ जाए जहाँ हम लोग जा रहे हैं। यहां से थोड़ी ही देर का रास्ता है। एक सांस में पहुंचेगी। लाल का संकेत स्वर्ग सिधारने की ओर था। यहां पहुँचने के लिए एक ही सांस की ज़रूरत होती है। लाल ने अपनी माँ से कहा कि हे माँ, स्वर्ग में ही हम स्वतन्त्रता से मिलेंगे, तेरी गोद में खेलेंगे। तुझे कन्धे पर उठाकर इधर-उधर दौड़ते फिरेंगे। हे माँ, स्वर्ग में बड़ा आनन्द है।

विशेष :

  1. लाल की मातृ-भक्ति एवं मातृ स्नेह की ओर संकेत किया गया है। लाल अपनी शहीदी के बाद अपनी माँ को अकेली छोड़ना नहीं चाहता। इसलिए वह अपनी मां से उनके पास आने के लिए कहता है।
  2. भाषा सहज, सरल तथा शैली भावात्मक है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 24 उसकी माँ

उसकी माँ Summary

उसकी माँ कहानी का सार

‘उसकी मां’ कहानी पाण्डेय बेचन शर्मा उग्र की महत्त्वपूर्ण कहानियों में से एक है। यह कहानी राष्ट्रीय भावना से पूर्ण है। कुछ क्रान्तिकारियों ने देश की आजादी के लिए अपना बलिदान दे दिया। लेखक ने कहानी में लाल की माँ के बलिदान और ममता का वर्णन किया है।

लेखक दोपहर के समय अपनी पुस्तकालय से किसी महान् लेखक की कृति देखने की बात सोच रहा था कि उसके घर पुलिस सुपरिटेंडेंट पधारे। उन्होंने एक तस्वीर दिखाकर उसके विषय में जानकारी चाही। लेखक ने बताया कि वह उनका पड़ोसी लाल है जो कॉलेज में पढ़ रहा है। जाते-जाते पुलिस सुपरिटेंडेंट ने लेखक को सलाह दी कि वह लाल के परिवार से जरा सावधान और दूर रहे। – लेखक ने लाल की माँ से भी उसके विषय में जानने की कोशिश की कि उसका बेटा आजकल क्या करता है। कहीं वह सरकार के विरुद्ध षड्यन्त्र करने वालों का साथी तो नहीं बन गया है। उसने लाल से भी यही बात पूछी। लाल ने बताया कि वह किसी षड्यन्त्र में शामिल नहीं पर उसके विचार अवश्य स्वतन्त्र हैं। वह देश की दुर्दशा पर दु:खी है। लेखक ने लाल को समझाया कि उसे केवल पढ़ना चाहिए। पहले घर का उद्धार कर लो तब सरकार के उद्धार का काम करना।

एक दिन लेखक ने लाल की माँ से लाल के मित्रों के बारे में जानना चाहा तो लाल की माँ ने बताया कि लाल और उसके मित्र पुलिस के अत्याचारों की बातें करते हैं। लेखक कुछ दिनों के लिए बाहर गया। लौटने पर उसे मालूम हुआ कि पुलिस लाल और उसके बारह-पन्द्रह साथियों को पकड़कर ले गई है। तलाशी में लाल के घर से दो पिस्तौल, बहुत से कारतूस और पत्र बरामद हुए थे। उन पर हत्या, षड्यन्त्र और सरकार उल्टने की चेष्टा आदि के अपराध लगाए गए।

लाल और उसके साथियों पर कोई एक वर्ष तक मुकद्दमा चला कि कोई भी वकील उनका केस लड़ने को तैयार न हुआ। मुकद्दमे के दौरान लाल की माँ सबको नियमपूर्वक भोजन पहुँचाती रही। फिर एक दिन अदालत का फैसला आया, जिसके अनुसार लाल और उसके तीन साथियों को फाँसी और उसके शेष साथियों को सात से दस वर्ष की कड़ी सजा सुनाई गई। फांसी पाने से पहले लाल ने अपनी माँ को लिखा कि वह भी वहीं आ जाए। वह जन्म-जन्मांतर तक उसकी माँ रहेगी।

अगले दिन लेखक ने देखा कि लाल की माँ दरवाज़े पर मरी पड़ी है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 23 प्रेरणा

Punjab State Board PSEB 11th Class Hindi Book Solutions Chapter 23 प्रेरणा Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Hindi Chapter 23 प्रेरणा

Hindi Guide for Class 11 PSEB प्रेरणा Textbook Questions and Answers

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दें-

प्रश्न 1.
‘प्रेरणा’ कहानी मानव मन की सूक्ष्म वृत्तियों का खुलासा करती है-कैसे ? तर्क सम्मत उत्तर दीजिए।
उत्तर:
प्रस्तुत कहानी में मानव मन की सूक्ष्म वृत्तियों का खुलासा किया गया है। सूर्यप्रकाश एक उदंड लड़का है। उसकी शरारतों और दादागिरी से स्कूल के प्रिंसीपल से लेकर चपड़ासी तक सारा स्कूल डरता है। वह नित नई-नई शरारतें करता है। क्योंकि उस समय उस पर कोई उत्तरदायित्व नहीं था कथावाचक उस लड़के को प्यार, उपेक्षा, मारफटकार, अपमान, आदि उपायों से सुधारने की कोशिश करता है। किन्तु वह बिगड़ा हुआ बालक सुधरता नहीं, लेकिन जैसे ही उस पर छोटे से मोहन को सम्भालने का दायित्व आ जाता है, वह खुद और खुद सही रास्ते पर आ जाता है।

अब वह अपने व्यक्तित्व को ऐसा बनाना चाहता था कि उसका छोटा भाई मोहन उससे प्रेरणा ले सके। मानव मनोविज्ञान का एक सत्य यह भी है कि व्यक्ति पर कोई दायित्व आ जाता है, तब उसके भीतर से ही एक प्रेरणा प्रस्फुटित होती है, जो उसके जीवन की दशा को बदल देती है। कहानी में सूर्यप्रकाश को सुधारने का यत्न कथावाचक अध्यापक करता है। किन्तु उसमें शायद वह इसलिए सफल नहीं हो पाता कि इसमें कोई कमी थी। जिसके कारण वह सूर्यप्रकाश की प्रेरणा न बन सका जबकि सूर्यप्रकाश मोहन की ज़िम्मेदारी लेकर कर्मठ बनकर अपने जीवन को भी सफल बना लेता है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 23 प्रेरणा

प्रश्न 2.
‘प्रेरणा’ कहानी में समकालीन व्यवस्था में फैली भ्रष्टता का अमानवीय चेहरा दिखाया गया हैकैसे ? युक्ति युक्त उत्तर दीजिए।
उत्तर:
लेखक इंग्लैंड में विद्या अभ्यास करने के बाद लौट कर एक कॉलेज का प्रिंसीपल बन गया। उसकी इच्छा और अधिक उन्नति पाने की थी। उसके लिए उसने शिक्षा मन्त्री से जान-पहचान बढ़ाई। शिक्षा मन्त्री को शिक्षा के मौलिक सिद्धान्तों का कुछ भी ज्ञान नहीं था। अतः उन्होंने सारा भार लेखक पर डाल दिया। परिणाम यह हुआ कि राजनीतिक विपक्षियों ने लेखक का विरोध शुरू कर दिया। उस पर बे-वजह आक्रमण होने लगे। लेखक सिद्धान्त रूप से अनिवार्य शिक्षा का विरोधी था।

उसके अनुसार यूरोप में अनिवार्य शिक्षा की ज़रूरत है भारत में नहीं। इसके अतिरिक्त लेखक का यह भी विचार था कि कम वेतन पाने वाले अध्यापक से यह आशा नहीं की जा सकती कि वह कोई ऊँचा आदर्श पेश करें। अतः लेखक ने विधानसभा में अनिवार्य शिक्षा का जो प्रस्ताव पेश करवाया मन्त्री महोदय ने उसका विरोध किया वह प्रस्ताव पारित न हो सका। उस दिन के बाद मन्त्री महोदय और लेखक में नोंक-झोंक शुरू हो गई। उसे गरीब की बीवी की तरह सबकी भाभी बनना पड़ा। उसे देशद्रोही, उन्नति का शत्रु, और नौकरशाही का गुलाम कहा गया। उसके द्वारा किए जाने वाले हर कार्य की आलोचना की जाने लगी। फलस्वरूप व्यवस्था में फैली भ्रष्टता और अमानवीयता के कारण लेखक को त्याग-पत्र देना पड़ा।

प्रश्न 3.
‘प्रेरणा’ कहानी के आधार पर सूर्यप्रकाश और उसके अध्यापक (कथावाचक) का चरित्र चित्रण कीजिए।
उत्तर:
(1) सूर्यप्रकाश

सूर्यप्रकाश के दो रूप हमारे सामने आते हैं-पहला एक उदंड लड़के के रूप में तथा दूसरा एक सफल व्यक्ति के रूप में। पहले पहल वह स्कूल में अपनी शरारतों और दादागिरी से सबको डराकर रखता था। उस पर किसी अध्यापक की सुधारनीति का असर नहीं होता था। बारह-तेरह साल के उस उदण्ड बालक से सारा स्कूल थर-थर काँपता था। वार्षिक परीक्षा में भी न जाने किस रहस्य के कारण ऊँचे अंक प्राप्त करता था।

किन्तु उसी सूर्यप्रकाश के कन्धों पर जब छोटे भाई को सम्भालने का बोझ आ पड़ता है तो वह अपने आप सुधरने लगता है, बदल जाता है वह अपने आप ही सही रास्ते पर आ जाता है। एक अपने छोटे भाई मोहन की प्रेरणा बनने के लिए वह एक कर्मठ और परिश्रमी बालक बन जाता है। वही उद्यमी बालक जब परिश्रमी बन जाता है तो एक दिन जिले का डिप्टी कमिश्नर बन जाता है। वह जानता है कि जीवन में प्रेरणा सफलता को देने वाली है।

(2) अध्यापक (कथावाचक)

अध्यापक (कथावाचक) की नियुक्ति एक ऐसे स्कूल में होती है जहाँ सूर्यप्रकाश नाम के एक लड़के ने सबको डरा रखा है। सूर्यप्रकाश क्योंकि अध्यापक की कक्षा का विद्यार्थी था अतः उसकी शरारतों को उसे अधिक भोगना पड़ता था। एक दिन तो सूर्यप्रकाश ने उसकी मेज़ के दराज़ में एक मेंढ़क छिपा दिया, क्रोध से उसकी तरफ देखने पर सिर झुकाकर मुस्कराता रहा। उस स्कूल से अध्यापक का तबादला होने पर ही वह सूर्य प्रकाश की शरारतों से बच सका। किन्तु दूसरे स्कूल में जाकर भी उसे सूर्यप्रकाश याद आता रहा।

अध्यापक को संयोग से इंग्लैंड में विद्याभ्यास करने का अवसर मिल गया। तीन साल बाद लौटने पर उसे एक कॉलेज का प्रिंसीपल बना दिया गया। अध्यापक की पदलिप्सा और भी बढ़ गई। उसने मन्त्री महोदय से जान-पहचान पढ़ाई, किन्तु शिक्षा-प्रणाली के विषय को लेकर उसकी मन्त्री महोदय और कॉलेज कॉउन्सिल से खटपट हो गई और उसे त्याग-पत्र देना पड़ा। बेकारी से बचने के लिए अपने गाँव में एक छोटी-सी पाठशाला खोल ली। वहीं एक दिन उसे बचपन का उदंड सूर्यप्रकाश जिले के डिप्टी कमिश्नर के रूप में मिलता है। वह उसे बताता है कि किस प्रकार वह अपने भाई की प्रेरणा बनकर इस पद तक पहुँचा है। तब लेखक को लगता है कि शायद उसी में कोई कमी थी जो वह सूर्यप्रकाश की प्रेरणा न बन सका।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 23 प्रेरणा

प्रश्न 4.
‘प्रेरणा’ कहानी के शीर्षक के औचित्य पर विचार कीजिए।
उत्तर:
प्रस्तुत कहानी का शीर्षक अत्यंत सार्थक, सटीक और उपर्युक्त है। कहानी में यह बताया गया है कि किस प्रकार व्यक्ति पर कोई दायित्व आ जाने पर उसके भीतर से ही एक ऐसी प्रेरणा जागती है जो उसके जीवन की दशा को बदल देती है। कहानी के अनुसार सूर्यप्रकाश को प्रेरित करने में, उसको सुधारने में उसके सारे अध्यापक असफल हो जाते हैं। प्यार, उपेक्षा, मार फटकार, अपमान किसी भी उपाय से वह बिगड़ा हुआ बालक सुधरता नहीं है, लेकिन जैसे ही उस पर छोटे भाई मोहन को संभालने का दायित्व आ जाता है, वह स्वयंमेव ही सही रास्ते पर आ जाता है। अब वह अपने व्यक्तित्व को ऐसा बनाना चाहता था कि मोहन उससे प्रेरणा ले सके। वह मोहन का आदर्श बनना चाहता था। सच है जब मनुष्य पर कोई ज़िम्मेवारी आ जाती है तो उसे अपने आप ही इस बात का एहसास हो जाता है कि उसे निभाना है, इसमें सफल होना। तब व्यक्ति अपनी प्रेरणा स्वयं बनता है और जीवन में सफल हो जाता है। भीतर से पैदा होने वाली प्रेरणा कभी मरती नहीं। यही वास्तविक प्रेरणा है। अतः कहना न होगा कि प्रस्तुत कहानी का शीर्षक मुंशी प्रेमचन्द जी ने सर्वथा उचित और सार्थक दिया है।

(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दें-

प्रश्न 1.
सूर्यप्रकाश ने मोहन की देखभाल के लिए क्या क्या प्रयास किए ?
उत्तर:
सूर्यप्रकाश ने मोहन की देखभाल के लिए सबसे पहला काम यह किया कि होस्टल छोड़कर एक किराए के मकान में उसके साथ रहने लगा। मोहन बहुत कमज़ोर और गरीब था। सूर्यप्रकाश उसे बड़ी मुश्किल से भोजन करने के लिए उठाता, दिन चढ़ने तक सोया रहने पर उसे गोद में उठाकर बिठा लेता, उसे कोई बीमारी होती तो डॉक्टर के पास दौड़ता, दवाई लाता और मोहन को खुशामद करके दवा पिलाता।

प्रश्न 2.
कथावाचक (अध्यापक) को गाँव में रहने पर कैसा अनुभव हुआ ?
उत्तर:
कथावाचक (अध्यापक) संसार से विरक्त होकर हमारे और एकांतवास जीवन में दिन व्यतीत करने का निश्चय करके एक छोटे से गाँव में जा बसा। चारों तरफ ऊँचे-ऊँचे टीले थे, एक ओर गंगा बहती थी। कथावाचक ने नदी के किनारे एक छोटा-सा घर बना लिया और उसी में रहने लगा। बेकारी मिटाने के लिए उसने एक छोटी-सी पाठशाला खोल ली।

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प्रश्न 3.
इस कहानी में शिक्षा से होने वाले कौन-कौन से लाभों का उल्लेख किया गया है ?
उत्तर:
प्रस्तुत कहानी में शिक्षा के विषय में कहा गया है कि मनुष्य को उन विषयों में ज्यादा स्वाधीनता होनी चाहिए, जिसका उससे निज का सम्बन्ध है। ग़रीब से ग़रीब हिन्दुस्तानी मज़दूर भी शिक्षा के उपकारों का कायल है। इसलिए वह चाहता है कि उसका बच्चा पढ़-लिख जाए। इसलिए नहीं कि पढ़-लिखकर उसे कोई अधिक अधिकार मिले बल्कि इसलिए कि विद्या मानवीयशील का श्रृंगार है।

प्रश्न 4.
कथावाचक ने इस्तीफा क्यों दिया ?
उत्तर:
कथावाचक ने अपने कॉलेज के एक चपड़ासी को नौकरी से अलग कर दिया। सारी काउन्सिल उसके पीछे पंजे झाड़ कर पड़ गई। आखिर मन्त्री महोदय को विवश होकर उस चपड़ासी को बहाल करना पड़ा। यह अपमान कथावाचक को सहन न हो सका। इसी तरह के और भी सारहीन आक्षेपों के कारण कथावाचक ने कॉलेज के प्रिंसीपल पद से इस्तीफा दे दिया।

प्रश्न 5.
कहानी के आधार पर सूर्यप्रकाश द्वारा की गई शरारतों की सूची बनाइए।
उत्तर:
सूर्यप्रकाश की सब से बड़ी शरारत थी कि उसने स्कूल में इंस्पैक्टर साहब के मुआयने के लिए आने पर स्कूल में ग्यारह बजे तक लड़कों को आने ही नहीं दिया। सूर्य प्रकाश ने कथावाचक (अध्यापक) की मेज़ की दराज में एक बड़ा-सा मेंढक लाकर डाल दिया। अध्यापक के क्रोध से देखने पर वह सिर झुकाकर हँसता रहा।

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PSEB 11th Class Hindi Guide प्रेरणा Important Questions and Answers

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘प्रेरणा’ कहानी के रचनाकार कौन हैं ?
उत्तर:
मुंशी प्रेमचंद।

प्रश्न 2.
‘प्रेरणा’ कहानी में लेखक ने क्या बताया है ?
उत्तर:
मानवीय, स्वभाव की विचित्रता और अनिश्चितता का वर्णन किया है।

प्रश्न 3.
‘प्रेरणा’ कहानी में कथावाचक क्या थे ?
उत्तर:
एक स्कूल में अध्यापक।

प्रश्न 4.
सूर्य प्रकाश नाम का लड़का स्वभाव से कैसा था ?
उत्तर:
उदण्ड।

प्रश्न 5.
सूर्य प्रकाश ने किसकी फ़ौज बना ली थी ?
उत्तर:
खुदाई फ़ौजदारों की।

प्रश्न 6.
खुदाई फ़ौजदारों के दम पर सूर्य प्रकाश किस पर शासन करता था ?
उत्तर:
सारी पाठशाला पर।

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प्रश्न 7.
सूर्य प्रकाश का रौब कैसा था ?
उत्तर:
मुख्याध्यापक से लेकर स्कूल के अर्दली तथा चपड़ासी तक उससे काँपते थे।

प्रश्न 8.
स्कूल में कौन आने वाला था ?
उत्तर:
इंस्पैक्टर।

प्रश्न 9.
…………. बजे तक कोई भी छात्र स्कूल नहीं आया।
उत्तर:
ग्यारह।

प्रश्न 10.
छात्रों को स्कूल आने से किसने रोका था ?
उत्तर:
सूर्य प्रकाश ने।

प्रश्न 11.
मंत्री महोदय से झगड़ा क्यों हुआ था ?
उत्तर:
शिक्षा प्रणाली को लेकर।

प्रश्न 12.
लेखक ने गाँव में आकर ……… खोली।
उत्तर:
छोटी-सी पाठशाला।

प्रश्न 13.
पाठशाला के पास किसकी कार आकर रुकी थी ?
उत्तर:
डिप्टी कमिश्नर।

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प्रश्न 14.
डिप्टी कमिश्नर का नाम क्या था ?
उत्तर:
सूर्य प्रकाश।

प्रश्न 15.
सूर्य प्रकाश के छोटे भाई का क्या नाम था ?
उत्तर:
मोहन।

प्रश्न 16.
मोहन की सेवा किसने की थी ?
उत्तर:
सूर्य प्रकाश।

प्रश्न 17.
मोहन की मृत्यु कैसे हुई थी ?
उत्तर:
बीमारी के कारण।

प्रश्न 18.
किसकी प्रेरणा सूर्य प्रकाश का मार्गदर्शन बनी ?
उत्तर:
छोटे भाई मोहन की पवित्र आत्मा।

प्रश्न 19.
कथावाचक ने अपने कॉलेज के एक चपड़ासी को ……….. से अलग कर दिया था।
उत्तर:
नौकरी।

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प्रश्न 20.
सूर्य प्रकाश ने कथावाचक की मेज़ की दराज में क्या रखा था ?
उत्तर:
मेढ़क।

बहुविकल्पी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
‘प्रेरणा’ कहानी के लेखक कौन हैं ?
(क) प्रेमचन्द
(ख) देवचन्द
(ग) नेमचन्द
(घ) प्रसाद।
उत्तर:
(क) प्रेमचन्द

प्रश्न 2.
सूर्य प्रकाश स्वभाव से कैसा था ?
(क) सरल
(ख) उदण्ड
(ग) नीरस
(घ) सरस।
उत्तर:
(ख) उदण्ड

प्रश्न 3.
लेखक स्वभाव से कैसा है ?
(क) निराशावादी
(ख) आशावादी
(ग) आस्थावादी
(घ) घमंडी।
उत्तर:
(क) निराशावादी

प्रश्न 4.
डिप्टी कमिश्नर का नाम क्या था ?
(क) सूर्य
(ख) प्रकाश
(ग) सूर्य प्रकाश
(घ) अशोक प्रकाश।
उत्तर:
(ग) सूर्य प्रकाश।

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कठिन शब्दों के अर्थ :

उधमी = शरारती। साबका न पड़ा = पाला नहीं पड़ा। मुख्य अधिष्ठाता = मुख्य अधिकारी। निर्दिष्ट = दिए गए। अक्ल काम न करना = बुद्धि का जबाव दे देना, समझ में न आना कि क्या किया जाए। गिरह = गाँठ। जहीन = होशियार । निर्विवाद = बिना किसी विवाद के। निष्कपट = छल रहित, बिना किसी कपट के। अल्पकाय = छोटी सी काया। दस्तूर = नियम। मालिन्य = मैल से भरा। सात्विक = शुद्ध। आक्षेप = आरोप। बहाल करना = दुबारा नौकरी पर रखना। तीक्षता = तेजी। भृकुटि = आँख की भौंहें। अवलंब = सहारा। विरक्त होना = मोह-माया से दूर होना। जिला देना = जीवन देना। जीर्ण काया = कमज़ोर शरीर । तातील = बहुत ज्यादा तपन, गर्मी।

प्रमुख अवतरणों की सप्रसंग व्याख्या

(1) मेरी कक्षा में सूर्यप्रकाश से ज्यादा उधमी कोई लड़का न था। बल्कि यों कहो कि अध्यापन-काल के दस वर्षों में मुझे ऐसी विषम प्रकृति के शिष्य से सामना न पड़ा था। कपट-क्रीड़ा में उसकी जान बसती थी। अध्यापकों को बनाने और चिढ़ाने, उद्योगी बालकों को छेड़ने और रुलाने में ही उसे आनंद आता था। ऐसे-ऐसे षड्यन्त्र रचता, ऐसे-ऐसे फंदे डालता, ऐसे-ऐसे मंसूबे बाँधता कि देखकर आश्चर्य होता था। गिरोहबंदी में अभ्यस्त था।

प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियाँ मुंशी प्रेमचन्द द्वारा लिखित कहानी ‘प्रेरणा’ में से ली गई हैं। इनमें लेखक ने सूर्यप्रकाश नाम के एक शरारती विद्यार्थी के चरित्र की विशेषताओं पर प्रकाश डाला है।

व्याख्या :
लेखक कहता है कि मेरी कक्षा में सूर्यप्रकाश सब से ज्यादा उद्यम मचाने वाला लड़का था। मुझे अध्यापन काल के दस वर्षों में ऐसे बिगड़ा हुआ विद्यार्थी कभी न मिला था। वह छल-कपट करने में माहिर था। अध्यापकों को बनाने और चिढ़ाने में तथा मेहनती लड़कों को छेड़ने और रुलाने में उसे आनन्द आता था। वह ऐसे षड्यन्त्र रचता, ऐसे-ऐसे फंदे डालता, ऐसी-ऐसी योजनाएँ बनाता कि देखकर आश्चर्य होता था। गुटबन्दी या धड़े बंदी बनाने का उसे अभ्यास हो चुका था।

विशेष :

  1. सूर्य प्रकाश के चरित्र पर प्रकाश डाला गया है।
  2. भाषा सरल, सहज तथा प्रवाहमयी है।
  3. शैली सूत्रात्मक है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 23 प्रेरणा

(2) मुझे अपनी संचालन विधि पर गर्व था। ट्रेनिंग कॉलेज में इस विषय में मैंने ख्याति प्राप्त की थी। मगर यहां मेरा सारा संचालन-कौशल मोर्चा खा गया था। कुछ अक्ल ही काम नहीं करती कि शैतान को कैसे मार्ग पर लाएं। कई अध्यापकों की बैठक हुई, पर यह गिरह न खुली। नई शिक्षा विधि के अनुसार मैं दण्ड-नीति का पक्षपाती न था, मगर हम यहां इस नीति से केवल विरस्त थे की कहीं उपचार रोग से भी असाध्य न हो जाए।

प्रसंग :
यह गद्यावतरण मुंशी प्रेमचंद जी द्वारा लिखित कहानी ‘प्रेरणा’ में से अवतरित है। इसमें स्कूल के सारे स्टॉफ द्वारा सूर्यप्रकाश की शरारतों से तंग आए अध्यापकगण उसे सुधारने के लिए एक बैठक बुलाते हैं। इसी प्रसंग में लेखक अपनी संचालन विधि पर गर्व करते हुए प्रस्तुत पंक्तियाँ कह रहे हैं।

व्याख्या :
लेखक कहता है कि मुझे अपनी पढ़ाई के दौरान बच्चों को सम्भालने की विधि पर गर्व था। ट्रेनिंग कॉलेज में इसी विषय पर मेरी कार्यकुशलता को देखकर मैंने सबकी प्रशंसा प्राप्त की थी। परन्तु इस स्कूल में सूर्यप्रकाश के सामने मेरा सारा संचालन कौशल असफल हो गया था। अक्ल ही काम नहीं करती थी कि उस शैतान को कैसे रास्ते पर लाया जाए। कई बार अध्यापकों की बैठक हुई, पर समस्या का कोई समाधान न निकला। नई शिक्षा-नीति के अनुसार में विद्यार्थी को दण्ड देने के पक्ष में नहीं था। किन्तु यहां दण्ड नीति का प्रयोग न करना ऐसा लगता था कि कहीं इस इलाज से रोग और भी असाध्य न हो जाए।

विशेष :

  1. स्कूलों में शिक्षकों द्वारा विद्यार्थियों को दण्ड न दिए जाने की नीति का उल्लेख किया गया है।
  2. भाषा सरल, मुहावरेदार है शैली सूत्रात्मक है।
  3. शरारती बच्चों को सुधारने के लिए कोई उपाय काम नहीं आता।

(3) मैं कदाचित स्वभाव से ही निराशावादी जरा भी हूँ। अन्य अध्यापकों को मैं सूर्य प्रकाश के विषय में चिंतित न पाता था। मानो ऐसे लड़कों का स्कूल में आना कोई नई बात, मगर मेरे लिए एक विकट रहस्य था।अगर यही ढंग रहे, तो एक दिन वह जेल में होगा या पागल खाने में।

प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियाँ मुंशी प्रेमचन्द जी द्वारा लिखित कहानी ‘प्रेरणा’ में से ली गई हैं। लेखक द्वारा कड़ी निगरानी किए जाने के बावजूद वार्षिक परीक्षा में शरारती बालक सूर्य प्रकाश ने अच्छे अंक प्राप्त किए। इसी प्रसंग में लेखक को जानबूझकर मक्खी निगलनी पड़ी। प्रस्तुत पंक्तियों में लेखक ने सूर्य प्रकाश के विषय में अपना मत व्यक्त किया है।

व्याख्या-लेखक कहता है कि मैं स्वभाव से ही निराशावादी हूँ। स्कूल के दूसरे अध्यापक सूर्य प्रकाश के विषय में तनिक भी चिंतित न थे। ऐसे लगता था कि उनके लिए ऐसे शरारती लड़कों का स्कूल में आना कोई नई बात न हो। परन्तु लेखक के लिए यह एक भयानक रहस्य था। सूर्य प्रकाश के बारे में लेखक सोचने लगा कि अगर उसके यही रंगढंग रहे तो एक दिन ऐसा शरारती लड़का या तो जेल जाएगा या पागल खाने में।।

विशेष :

  1. सूर्य प्रकाश की कपट-क्रीड़ा के प्रभाव को लेखक पर पड़ते दर्शाया गया है।
  2. भाषा सरल, सहज एवं स्वाभाविक है।
  3. लेखक को सूर्यप्रकाश के भविष्य की चिन्ता है।

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(4) उसकी झिझक तो क्षमा योग्य थी, पर मेरा अवरोध अक्षम्य था। सम्भव था, उस करुणा और ग्लानि की दशा में मेरी दो-चार निष्कपट बातें तो उसके दिल पर असर कर जाती, मगर इन्हीं खोए हुए अवसरों का नाम तो जीवन है।

प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियाँ मुन्शी प्रेमचन्द जी द्वारा लिखित कहानी ‘प्रेरणा’ में से ली गई हैं। लेखक का तबादला किसी दूसरी जगह हो जाता है। सभी लड़के गीली आँखों से उसे विदा करने स्टेशन पर पहुंचे। उन लड़कों में सूर्यप्रकाश भी था, जो सबसे पीछे लज्जित खड़ा था। उसकी आँखों में भी आँसू थे। वह कुछ कहना चाहता था किन्तु लेखक ने उससे कोई बात न की। इसी प्रसंग में ग्लानि का अनुभव करता हुआ लेखक प्रस्तुत पंक्तियाँ कह रहा है।

व्याख्या :
लेखक कहता है कि सूर्यप्रकाश की मुझसे बात न करने की झिझक तो क्षमा योग्य थी, पर मेरा उससे बात न करना क्षमा योग्य नहीं था। लेखक सोचता है कि हो सकता है कि उस करुणा और ग्लानि की दशा में पड़े हुए सूर्यप्रकाश को कही हुई उसकी दो-चार निष्कपट बातें उसके दिल पर असर कर जातीं। मगर ऐसा न हो सका। इन्हीं खोए हुए अवसरों का नाम तो जीवन है।

विशेष :

  1. कथावाचक की चलते समय सूर्यप्रकाश से बात न करने पर उत्पन्न ग्लानि की ओर संकेत किया गया
  2. भाषा सरल, सहज तथा प्रवाहमयी है शैली सूत्रात्मक है।

(5) मैं सिद्धान्त रूप से अनिवार्य शिक्षा का विरोधी हूँ। मेरा विचार है कि प्रत्येक मनुष्य को उन विषयों में ज्यादा स्वाधीनता होनी चाहिए, जिसका उससे निज का सम्बन्ध है। मेरा विचार है कि यूरोप में अनिवार्य शिक्षा की जरूरत है, भारत में नहीं। भौतिकता पश्चिमी सभ्यता का मूल तत्व है। वहां किसी काम की प्रेरणा आर्थिक लाभ के आधार पर होती है। ज़िन्दगी की ज़रूरतें ज्यादा हैं, इसलिए जीवन-संग्राम भी अधिक भीषण है।

प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियाँ मुंशी प्रेमचंद जी द्वारा लिखित कहानी ‘प्रेरणा’ में से ली गई हैं। लेखक इंग्लैंड में पढाई के बाद लौट कर एक कॉलेज के प्रिंसीपल बन गए। वहीं उन्होंने वर्तमान शिक्षा-नीति पर अपने विचार प्रस्तुत करते हुए प्रस्तुत पंक्तियां कही हैं।

व्याख्या :
लेखक कहता है कि मैं सिद्धान्त रूप से अनिवार्य शिक्षा को लागू किए जाने के पक्ष में नहीं हूँ। मेरा विचार है कि प्रत्येक मनुष्य को ऐसे विषय चुनने की आज़ादी होनी चाहिए जिसका संबंध उसके अपने से हो। मेरा विचार है कि यूरोप में अनिवार्य शिक्षा की ज़रूरत है, भारत में नहीं। पाश्चात्य सभ्यता में भौतिकता मूल तत्व है। वहाँ किसी काम की प्रेरणा आर्थिक दृष्टि से लाभ को देखकर होती है। उन लोगों के जीवन की ज़रूरतें अधिक होने के कारण उन्हें जीवन संघर्ष भी कड़ा करना पड़ता है।

विशेष :

  1. भारतीय एवं पाश्चात्य शिक्षा नीति की तुलना की गई है और साथ ही यह भी बताया गया है कि पाश्चात्य देशों में शिक्षा को आर्थिक दृष्टि से नापा जाता है।
  2. लेखक अनिवार्य शिक्षा का विरोधी है।
  3. भाषा सरल, सहज एवं प्रवाहमयी है, शैली सूत्रात्मक है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 23 प्रेरणा

(6) भारतीय जीवन में सात्विक सरलता है। हम उस वक्त तक अपने बच्चों से मजदूरी नहीं कराते जब तक परिस्थिति हमें विवश न कर दे। दरिद्र से दरिद्र हिन्दुस्तानी मजदूर भी शिक्षा के उपकारों का कायल है। उसके मन में यह अभिलाषा होती है कि मेरा बच्चा चार कक्षा पढ़ जाए। इसलिए नहीं कि उसे कोई अधिकार मिलेगा, बल्कि केवल इसलिए कि विद्या मानवीशील का श्रृंगार है।

प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियाँ मुंशी प्रेमचन्द जी द्वारा लिखित कहानी ‘प्रेरणा’ में से ली गई हैं। प्रस्तुत पंक्तियों में लेखक विद्या के महत्त्व को स्पष्ट कर रहा है।

व्याख्या :
लेखक कहता है कि भारतीय जीवन में सरलता है। भारत में लोग उस समय तक अपने बच्चों से मजदूरी नहीं कराते, जब तक कि परिस्थितियाँ उन्हें विवश न कर दें। गरीब से गरीब हिन्दुस्तानी मज़दूर भी शिक्षा के उपकारों को मानता है। उसके मन में यह इच्छा होती है कि उसका बच्चा चार जमात पढ़ जाए। इसलिए नहीं कि पढ़-लिखकर उसे कोई अधिकार मिलेगा, बल्कि केवल इसलिए कि वे लोग विद्या को इन्सानियत का श्रृंगार मानते हैं।

विशेष :

  1. भारतीयों द्वारा शिक्षा के उद्देश्य को किस ढंग से लिया जाता है इस पर प्रकाश डाला गया है।
  2. गरीब व्यक्ति भी शिक्षा के महत्त्व को समझता है।
  3. भाषा सरल, सहज तथा प्रवाहमयी है, शैली सूत्रात्मक है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 23 प्रेरणा

(7) अर्द्धशिक्षित और अल्प वेतन पाने वाले अध्यापकों से आप यह आशा नहीं कर सकते हैं कि वह कोई ऊंचा आदर्श अपने सामने रख सके। अधिक-से-अधिक इतना ही होगा कि चार-पांच वर्ष में बालक को अक्षर का ज्ञान हो जाएगा। मैं इसे पर्वत खोदकर चुहिया निकालने के तुल्य मानता हूँ। वयस प्राप्त हो जाने पर यह मामला एक महीने में आसानी से तय किया जा सकता है। मैं अनुभव से कह सकता हूं कि युवावस्था में हम जितना ज्ञान एक महीने में प्राप्त कर सकते हैं, उतना बाल्यकाल में तीन साल में भी नहीं कर सकते, फिर खामखाह बच्चों को मदरसे में कैद करने से क्या लाभ ?

प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियाँ मुंशी प्रेमचन्द द्वारा लिखित कहानी प्रेरणा में से ली गई हैं। प्रस्तुत पंक्तियों में लेखक अनिवार्य शिक्षा के विपक्ष में अपना मत प्रस्तुत कर रहा है।

व्याख्या :
लेखक कहता है कि कम पढ़े-लिखे और कम वेतन पाने वाले अध्यापकों से यह आशा नहीं की जा सकती कि वे कोई ऊँचा आदर्श सामने रख सकें। अधिक से अधिक इतना ही होगा कि चार-पांच वर्ष में वे बालक को अक्षर ज्ञान करवा दें। लेखक इसे पर्वत खोदकर चुहिया निकालने के बराबर मानता है। लेखक के अनुसार बड़ी उम्र का हो जाने पर जितना बालक तीन-चार वर्षों में सीखता है वह एक महीने में आसानी से सीख जाएगा। तात्पर्य यह है कि जवानी में हम जितना ज्ञान एक महीने में प्राप्त कर सकते हैं उतना बाल्यकाल में तीन साल में भी नहीं कर सकते फिर व्यर्थ में बच्चों को स्कूल में कैद कर रखना कहाँ तक उचित है ?

विशेष :

  1. लेखक बच्चों को बंद कमरे में शिक्षा देने के विरुद्ध है। उनके विकास के लिए शिक्षा उन पर लादनी नहीं चाहिए।
  2. भाषा सरल, भावपूर्ण तथा शैली उपदेशात्मक है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 23 प्रेरणा

(8) मैं जीवन में अब तक उन्हीं के सहारे खड़ा था। जब वह अबलंबहीन रहा, तो जीवन कहाँ रहता। खाने और सोने का नाम जीवन नहीं। जीवन नाम है सदैव आगे बढ़ते रहने की लगन का। यह लगन गायब हो गई। मैं संसार से विरक्त हो गया, और एकांतवास में जीवन के दिन व्यतीत करने का निश्चय करके एक छोटे से गाँव में जा बसा।

प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियाँ मुंशी प्रेमचन्द जी द्वारा लिखित कहानी ‘प्रेरणा’ में से ली गई हैं। प्रस्तुत पंक्तियाँ कथावाचक अध्यापक अपनी पत्नी की मृत्यु हो जाने के बाद अपने जीवन में आए एकाकीपन की चर्चा कर रहे हैं।

व्याख्या :
कथावाचक अध्यापक कहता है कि मैं जीवन में अब तक उन्हीं के सहारे खड़ा था। अब वह सहारा (मेरी पत्नी) ही न रहा तो जीवन कहां रहता। जीवन केवल खाने और सोने का नाम नहीं है, जीवन नाम है आगे बढ़ते रहने की लग्न का। किन्तु मेरी पत्नी की मृत्यु के बाद मेरी वह लग्न ही लुप्त हो गई। अतः मैं संसार से विरक्त हो गया और अकेले रह कर जीवन व्यतीत करने का निश्चय करके मैं छोटे से गाँव में जा बसा।

विशेष :

  1. लेखक अपने अकेलेपन को दूर करने के लिए छोटे गाँव में रहने लगे।
  2. भाषा सरल और शैली सूत्रात्मक है।

(9) इस एकांत जीवन में मुझे जीवन के तत्त्वों का वह ज्ञान हुआ, जो सम्पत्ति और अधिकार की दौड़ में किसी तरह सम्भव न था। इतिहास और भूगोल के पीथे चाटकर यूरोप के विद्यालयों की शरण जाकर भी मैं अपनी ममता को न मिटा सका। बल्कि यह रोग दिन-दिन और असाध्य हो जाता था।

प्रसंग :
यह गद्यांश मुंशी प्रेमचन्द जी द्वारा लिखित कहानी ‘प्रेरणा’ से लिया गया है। कथावाचक अध्यापक से जब उनके डिप्टी कमिश्नर बने पुराने शिष्य सूर्यप्रकाश ने मन्त्री महोदय से उनके त्यागपत्र देने की घटना का उल्लेख करने की बात कही तो कथावाचक अध्यापक ने उस एकांतवास को मन को शांति देने वाला बताते हुए प्रस्तुत पंक्तियाँ कही है।

व्याख्या :
कथावाचक (अध्यापक) कहता है उन्हें जो दंड मिला है जो उनकी स्वार्थ-लिप्सा के कारण मिला था अत: मन्त्री महोदय से पूछना व्यर्थ है। दूसरे मुझे इस एकांतवास में जीवन के जिस रहस्य का ज्ञान हुआ है जो मुझे सम्पत्ति और अधिकार की दौड़ में किस तरह न मिल सकता था। विदेश में जाकर इतिहास और भूगोल की पुस्तकों को पढ़कर भी अपने अन्दर की ममता को न मिटा सका बल्कि यह रोग दिन-ब-दिन और भी ला इलाज होता गया।

विशेष :

  1. लेखक ने एकान्तवास के लाभ की चर्चा की है। एकान्त में मनुष्य स्वयं को खोज सकता है।
  2. भाषा सरल है। शैली सूत्रात्मक है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 23 प्रेरणा

(10) आप सीढ़ियों पर पाँव रखे बगैर छत की ऊंचाई तक नहीं पहुँच सकते। सम्पत्ति की अट्टालिका तक पहुँचने में दूसरे जिन्दगी ही जीनों का काम देती है। आप उन्हें कुचल कर ही लक्ष्य तक पहुँच सकते हैं। वहां सौजन्य और सहानुभूति का स्थान ही नहीं।

प्रसंग :
प्रस्तुत मुंशी प्रेमचन्द जी द्वारा लिखित कहानी ‘प्रेरणा’ में से से ली गई हैं। इनमें कथावाचक अपने शिष्य सूर्यप्रकाश को स्वार्थ लिप्सा पूरा करने के लिए दूसरों का अहित करने की बात बता रहे हैं।

व्याख्या :
कथावाचक (अध्यापक) अपने शिष्य सूर्य प्रकाश को बताता है कि सीढ़ियों पर पाँव रखे बिना छत की ऊँचाई तक नहीं पहुँच सकते । यदि तुम्हें सम्पत्ति के महल तक पहुँचना है तो किसी दूसरे का जीवन सीढ़ियों का काम करता है। आप दूसरों को कुचल कर ही अपना स्वार्थ पूरा कर सकते हैं। स्वार्थ के मामले में किसी दूसरे का भला था उससे सहानुभूति का कोई स्थान नहीं है।

विशेष :

  1. स्वार्थ पूरा करने के लिए व्यक्ति कैसे दूसरों का गला घोंटता है, दूसरों का अहित करता है-इसी तथ्य पर प्रकाश डाला गया है।
  2. भाषा सरल, सहज एवं प्रवाहमयी है। शैली भावात्मक है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 23 प्रेरणा

प्रेरणा Summary

प्रेरणा कहानी का सार

‘प्रेरणा’ कहानी मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखित है। इस कहानी में मानवीय स्वभाव की विचित्रता और अनिश्चिता का वर्णन किया गया है। मनुष्य पर जब कोई दायित्व आ जाता है। तब उसके अन्दर से एक ऐसी प्रेरणा प्रस्फुटित होती है जो उसके जीवन की दिशा बदल देती है।

कथावाचक एक स्कूल में अध्यापक थे। उस स्कूल में सूर्यप्रकाश नाम का एक लड़का बड़ा उदंड था। उसने खुदाई फ़ौजदारों की एक फ़ौज बना ली थी और उसके आतंक से वे सारी पाठशाला पर शासन किया करता था। मुख्याध्यापक से लेकर स्कूल के अर्दली तथा चपड़ासी तक उससे थर-थर काँपते थे। एक दिन तो उसने कमाल ही कर दिया। स्कूल में इंस्पैक्टर साहब आने वाले थे। मुख्याध्यापक ने सब लड़कों को आधा घण्टा पहले आने का आदेश दिया। किन्तु ग्यारह बजे तक कोई भी छात्र स्कूल नहीं आया। सूर्यप्रकाश ने उन सबको रोक रखा था, पर पूछने पर किसी ने भी उसका नाम नहीं लिया। परीक्षा में वह कथावाचक की असाधारण देखभाल के कारण अच्छे अंक प्राप्त कर सका। उसकी शरारतें देखकर लेखक को लगा कि एक दिन वह जेल जाएगा या पागलखाने में।

लेखक का उस स्कूल से तबादला हो गया। फिर वह इंग्लैण्ड पढ़ने के लिए चला गया। तीन साल बाद वहाँ से लौटा तो एक कॉलेज का प्रिंसीपल बना दिया गया। उसका शिक्षा प्रणाली को लेकर मंत्री महोदय से झगड़ा हो गया। परिणामस्वरूप उन्होंने उसे पदच्युत कर दिया। तब लेखक ने किसी गाँव में आकर एक छोटी-सी पाठशाला खोली। एक दिन वह अपनी कक्षा को पढ़ा रहा था कि पाठशाला के पास जिले के डिप्टी कमिश्नर की कार आकर रुकी। कथावाचक ने झेंपते हुए उनसे हाथ मिलाने के लिए हाथ आगे बढ़ाया तो डिप्टी कमिश्नर ने उसके पैरों की ओर झुककर अपना सिर उन पर रख दिया। डिप्टी कमिश्नर ने बताया कि उसका नाम सूर्यप्रकाश है। उसने बताया कि आज वह जो कुछ है उन्हीं के आशीर्वाद का परिणाम है।

सूर्यप्रकाश ने अपनी राम कहानी सुनाते हुए कहा कि किस तरह उसने अपने ऊपर अपने छोटे भाई की ज़िम्मेदारी ली और शरारती लड़के से एक कर्मठ और जिम्मेवार व्यक्ति बन गया। उसने अपने छोटे भाई मोहन के बीमार होने पर बहुत सेवा की, किन्तु उसे बचा न सका। छोटे भाई की पवित्र आत्मा ही उसकी प्रेरणा बन गई और वह कठिन से कठिन परीक्षाओं में भी सफल होता गया। उस दिन से लेखक कई बार सूर्यप्रकाश से मिले। वह अब भी मोहन को अपना इष्टदेव समझता है। मानव प्रकृति का यह एक ऐसा रहस्य है जिसे लेखक आज तक नहीं समझ पाया है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 22 विज्ञापन युग

Punjab State Board PSEB 11th Class Hindi Book Solutions Chapter 22 विज्ञापन युग Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Hindi Chapter 22 विज्ञापन युग

Hindi Guide for Class 11 PSEB विज्ञापन युग Textbook Questions and Answers

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दें-

प्रश्न 1.
‘विज्ञापन युग’ निबन्ध में लेखक ने विज्ञापन कला पर करारा व्यंग्य किया है।
उत्तर:
प्रस्तुत निबन्ध में लेखक ने विज्ञापन कला पर करारा व्यंग्य किया है। लेखक कहते हैं कि उसे गज़लों, गानों और गीतों के साथ-साथ सिर दर्द के विज्ञापन भी सुनने को मिलते हैं। लेखक कहते हैं-पहले बहुत मीठे गले से ‘रहना नहीं देश विराना है’ की लय और उसके तुरन्त बाद-क्या आपके शरीर में खुजली होती है? खुजली का नाश करने के लिए एक ही राम बाण औषधि है-कर लें भगत कबीर क्या करते हैं। खुजली कंपनी उनकी जिस रचना पर चाहे अपनी मोहर चिपका सकती है। _लेखक कहते हैं कि विज्ञापन गीत गज़लों तक ही सीमित नहीं रहते, आज हर चीज़ का विज्ञापन मौजूद है। अजन्ता और एलोरा की मूर्तियों के केश सौन्दर्य लेखक को तेल की एक शीशी के विज्ञापन की याद दिलाता है; उन मूर्तियों की आँखें किसी फॉर्मेसी का विज्ञापन प्रतीत होती हैं तथा उनका समूचा शरीर किसी पेट्रोल कम्पनी का विज्ञापन।

लेखक विज्ञापन कला पर व्यंग्य करते हुए कि देश के कोने में स्थित मन्दिर, पुराने खंडहर स्मारक आदि पर्यटन व्यवसाय को प्रोत्साहन देने के साथ-साथ विज्ञापनों का भी साधन बन सकते हैं। लेखक को डर है कि विज्ञापन कला जिस तेज़ी से उन्नति कर रहा है एक दिन ऐसा आएगा जब शिक्षा, विज्ञान, संस्कृति और साहित्य का प्रयोग केवल विज्ञापन के लिए ही रह जाएगा तथा विज्ञापन का उपयोग एक-दूसरे पर आश्रित जगहों पर किया जाएगा। जैसे दवा की शीशियों में मक्खन के डिब्बों के विज्ञापन और मक्खन के डिब्बों पर दवा की शीशियों के विज्ञापन।

लेखक के अनुसार आज हर जगह विज्ञापन ही विज्ञापन नज़र आते हैं। लेखक को हर चेहरे में एक विज्ञापन नज़र आता है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 22 विज्ञापन युग

प्रश्न 2.
‘विज्ञापन युग’ निबन्ध का सार लिखें।
उत्तर:
प्रस्तुत निबन्ध एक व्यंग्यपरक निबन्ध है। इसमें लेखक ने विज्ञापन कला के विकसित होने पर उसे सिर दर्द कारण भी बताया गया है। लेखक कहते हैं कि पड़ोसियों की कृपा से उसे दिन रात गज़लों और भजनों के साथ चाय, तेल और सिर दर्द की टिक्कियों के विज्ञापन सुनने पड़ते हैं। यह विज्ञापन लेखक के दिलो-दिमाग़ पर सदा छाए रहते हैं। परिणाम यह हुआ है कि लेखक के लिए गज़ल-गज़ल न रह कर किसी न किसी चीज़ का विज्ञापन बन गए। लेखक को लगता है कि हर चीज़ विज्ञापन बन कर रह गई है। अजन्ता एलोरा की मूर्तियों का केश विन्यास लेखक को एक तेल की शीशी की याद दिलाता है। इसी तरह मूर्तियों की आँखें एवं उनका समूचा कलेवर किसी-न-किसी कम्पनी का विज्ञापन बन कर रह गया है।

लेखक कहते हैं कि देश में जितने भी मन्दिर पुराने किले और स्मारक आदि हैं वे सब पर्यटन व्यवसाय को प्रोत्साहन देने के साथ-साथ एक विशेष ब्रांड के सीमेंट की मजबूती को व्यक्त करने के प्रतीक बन सकें। इसी तरह सफ़ेद रंग के शहद का विज्ञापन और सेब के मुरब्बे का विज्ञापन हो सकता है। लेखक का मत है कि विज्ञापन किसी भी चीज़ का हो सकता है। हम जहाँ भी रहे विज्ञापनों की लपेट से नहीं बच सकते।

लेखक का मत है कि विज्ञापन कला इतनी तेजी से उन्नति कर रही है कि उसे डर है कि आने वाले समय में शिक्षा, विज्ञान, संस्कृति और साहित्य आदि का उपयोग विज्ञापन कला के लिए ही रह जाएगा। लेखक कहते हैं कि अभी तक बहुत सारे ऐसे क्षेत्र हैं जिनका विज्ञापन के लिए प्रयोग नहीं किया जा सका है जैसे दवा की शीशियों में मक्खन के डिब्बों के विज्ञापन होने चाहिएँ। कम्बलों और दुशालों में चाय और कोको के विज्ञापन दिए जा सकते हैं। अस्पताल की दीवारों पर वैवाहिक विज्ञापन लगाए जा सकते हैं। यह तो भविष्य की बात है, पर आज की स्थिति यह है कि लेखक को हर जगह विज्ञापन ही विज्ञापन दिखाई देता है। लेखक को चाय देने वाला लड़का भी क्लोरोफ़िल मुस्कराहट मुस्करा रहा होता है। तब लेखक को स्त्री कण्ठ की मधुर आवाज़ में यह विज्ञापन सुनाई पड़ता है कि लिवर ठीक रखने के लिए लिवर इमल्शन लीजिए। लेखक को अपने सामने आने वाला हर चेहरा किसी विज्ञापन का रूप नज़र आता है।

(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दें-

प्रश्न 1.
विज्ञापन ने व्यक्तिगत जीवन में किस प्रकार प्रवेश कर लिया है ? पाठ के आधार पर उत्तर दें।
उत्तर:
विज्ञापन आज व्यक्तिगत जीवन में भी प्रवेश कर गया है। इस बात पर प्रकाश डालते हुए लेखक कहते हैं कि उन्हें गीत, भजन और गज़ल सुनने के साथ-साथ चाय, तेल और सिरदर्द की टिकियों के विज्ञापन भी सुनने पड़ते हैं। परिणामस्वरूप लेखक के लिए कोई गज़ल, गज़ल नहीं रही, गीत-गीत न रहा सब किसी-न-किसी चीज़ का विज्ञापन बन गए हैं। दिन भर यह गीत और विज्ञापन लेखक का पीछा करते रहते हैं।

प्रश्न 2.
लेखक के अनुसार ऐतिहासिक महत्त्व की कलाकृत्तियों को नई सार्थकता कैसे प्राप्त हुई है?
उत्तर:
लेखक के अनुसार अजन्ता के चित्र और एलोरा की मूर्तियां जो ऐतिहासिक महत्त्व की कलाकृतियां थीं आज विज्ञापन के सहारे उन्हें एक नई सार्थकता प्राप्त हो गई है। आज उन मूर्तियों का सौन्दर्य लेखक को तेल की शीशी की याद दिलाता है, उनकी आँखें एक फॉर्मेसी का विज्ञापन प्रतीत होती हैं, और उनका समूचा कलेवर एक पेट्रोल कम्पनी की कला अभिरुचि को प्रमाणित करता है। उन कलाकृतियों का निर्माण करने वाले हाथ भी आज एक बिस्कुट कम्पनी की विकास योजना के विज्ञापन के रूप में सार्थक हो रहे हैं।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 22 विज्ञापन युग

प्रश्न 3.
हर चीज़, हर जगह अपने अलावा किसी भी चीज़ और किसी भी जगह का विज्ञापन हो सकती है? लेखक के इस कथन में निहित व्यंग्य को स्पष्ट करें।
उत्तर:
लेखक के प्रस्तुत कथन में यह व्यंग्य छिपा हुआ है कि लेखक को हर जगह विज्ञापन ही विज्ञापन दिखाई देता है। लेखक का दिमाग हर चेहरे, हर आवाज़ और हर नाम का सम्बन्ध किसी-न-किसी विज्ञापन के साथ जोड़ देता है। सुबह चाय लाने वाले को जब वह चाय लाने के लिए कहता है तो चाय का नाम लेते ही लेखक को नीलगिरि की सुन्दरी का ध्यान हो जाता है।

प्रश्न 4.
शिक्षा, विज्ञान संस्कृति और साहित्य जैसे क्षेत्रों में विज्ञापन कला में अपनी धाक कैसे जमा ली है?
उत्तर:
शिक्षा के क्षेत्र में जब विद्यार्थियों को दीक्षान्त समारोह पर डिग्रियां दी जाएंगी तो उनके निचले कोने में एक विज्ञापन छिपा रहेगा। विज्ञान के क्षेत्र में मूर्तियों के नीचे ऐसा विज्ञापन रहेगा कि इस मूर्ति और भवन के निर्माण का श्रेय लाल हाथी के निर्माण वाले निर्माताओं को है। वास्तु-सम्बन्धी अपनी सभी आवश्यकताओं के लिए लाल हाथी का निशान कभी मत भूलिए। इसी तरह किसी उपन्यास की जिल्द पर एक ओर बारीक अक्षरों में छिपा होगा-“साहित्य में अभिरुचि रखने वालों को इक्का मार्का साबुन बनाने वालों की एक ओर तुच्छ भेंट।”

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 22 विज्ञापन युग

PSEB 11th Class Hindi Guide विज्ञापन युग Important Questions and Answers

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
कौन-सी कला तेज़ी से उन्नति कर रही है ?
उत्तर:
विज्ञापन कला।

प्रश्न 2.
लेखक के लिए गज़ल-गजल न होकर क्या थी ?
उत्तर:
विज्ञापन।

प्रश्न 3.
मूर्तियों का समूचा क्लेवर क्या बनकर रह गया था ?
उत्तर:
किसी कम्पनी का विज्ञापन।

प्रश्न 4.
‘विज्ञापन युग’ किसकी रचना है ?
उत्तर:
मोहन राकेश की।

प्रश्न 5.
लेखक को चाय देने वाला लड़का कौन-सी मुस्कराहट मुस्करा रहा होता है ?
उत्तर:
क्लोरोफ़िल मुस्कराहट।

प्रश्न 6.
लेखक को स्त्री कण्ठ की मधुर आवाज में क्या सुनाई पड़ा ?
उत्तर:
विज्ञापन।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 22 विज्ञापन युग

प्रश्न 7.
कम्बलों और दुशालों में किसके विज्ञापन दिए जा सकने के डर हैं ?
उत्तर:
चाय और कोक के।

प्रश्न 8.
खुजली का नाश करने के लिए ……… औषधि है।
उत्तर:
रामबाण।

प्रश्न 9.
लेखक ने विज्ञापन कला पर …….. किया है।
उत्तर:
करारा व्यंग्य।

प्रश्न 10.
आज प्रत्येक चीज़ का ……. मौजूद है।
उत्तर:
विज्ञापन।

प्रश्न 11.
लेखक ने विज्ञापनों के ………… जीवन पर दखल देने पर व्यंग्य किया है।
उत्तर:
व्यक्तिगत।

प्रश्न 12.
हम किसकी लपेट से नहीं बच सकते ?
उत्तर:
विज्ञापन।

प्रश्न 13.
आज हर जगह क्या नजर आते हैं ?
उत्तर:
विज्ञापन ही विज्ञापन ।

प्रश्न 14.
विज्ञापन कला का क्षेत्र ………… है।
उत्तर:
अत्यंत व्यापक।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 22 विज्ञापन युग

प्रश्न 15.
भगवान् की बनाई धरती का आजकल क्या हो रहा है ?
उत्तर:
दुरुपयोग।

प्रश्न 16.
उत्तरी ध्रुव से दक्षिणी ध्रुव तक धरती का कोई भी कोना ……. से नहीं बचा।
उत्तर:
विज्ञापन।

प्रश्न 17.
मनुष्य का संपूर्ण व्यक्तित्व ……. हो गया है।
उत्तर:
विज्ञापनमय।

प्रश्न 18.
किस वस्तु का उपभोग होगा ?
उत्तर:
जिसका विज्ञापन अधिक होगा।

प्रश्न 19.
आने वाले समय में जीवन का प्रत्येक क्षेत्र किससे जुड़ जाएगा ?
उत्तर:
विज्ञापन कला से।

प्रश्न 20.
……… आज व्यक्तिगत जीवन में भी प्रवेश कर गया है।
उत्तर:
विज्ञापन।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 22 विज्ञापन युग

बहुविकल्पी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
विज्ञापन युग कैसा निबंध है ?
(क) हास्यपरक
(ख) व्यंग्यपरक
(ग) सामाजिक
(घ) धार्मिक।
उत्तर:
(ख) व्यंग्यपरक

प्रश्न 2.
लेखक के अनुसार विज्ञापन कला का विकास किसका कारण है ?
(क) सिरदर्द का
(ख) द्वन्द्व का
(ग) हास्य का
(घ) सफलता का।
उत्तर:
(क) सिरदर्द का

प्रश्न 3.
लेखक ने इस निबंध में किस कला पर कटु व्यंग्य किया है ?
(क) नृत्य
(ख) गायन
(ग) भजन
(घ) विज्ञापन।
उत्तर:
(घ) विज्ञापन

प्रश्न 4.
‘विज्ञापन युग’ किसकी रचना है ?
(क) धर्मवीर भारती
(ख) मोहन राकेश की
(ग) पंत की
(घ) निराला की।
उत्तर:
(ख) मोहन राकेश का।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 22 विज्ञापन युग

कठिन शब्दों के अर्थ :

स्मारक = यादगार। चस्पा करना = चिपकाना। पार्वतय सुषमा = पर्वतों का प्राकृतिक सौन्दर्य । विधाता = विधाता, ईश्वर। अन्योन्याश्रित = एक दूसरे पर निर्भर। बरीकी बीनी = सूक्ष्म दृष्टि। अन्देशा = डर, चिन्ता। खासा = बहुत।

प्रमुख अवतरणों की सप्रसंग व्याख्या

(1) परिणाम यह है कि अब मेरे लिए कोई गज़ल-गज़ल नहीं रही, कोई गीत-गीत नहीं रहा, सब किसी-न-किसी चीज़ का विज्ञापन बन गए हैं। दिन भर ये गीत और विज्ञापन मेरा पीछा करते रहते हैं। पहले बहुत मीठे गले से रहना नहीं देश विराना है’ की लय और उसके तुरन्त बाद-क्या आपके शरीर में खुजली होती है ? खुजली का नाश करने के लिए एक ही राम बाण औषधि हैं……..कर लें भगत कबीर क्या करते हैं।

प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियाँ श्री मोहन राकेश द्वारा लिखित निबन्ध ‘विज्ञापन युग’ में से ली गई हैं। इन पंक्तियों में लेखक ने विज्ञापनों के व्यक्तिगत जीवन में दखल देने पर व्यंग्य किया है।

व्याख्या :
लेखक कहता है कि पड़ोसियों की कृपा से उसे दिन रात गीत, भजन और गज़लों के साथ कुछ विज्ञापन सुनने की आदत हो गई जिसका परिणाम यह हुआ कि आज मेरे लिए न कोई गज़ल-गज़ल रह गई और न ही कोई गीत-गीत सभी किसी-न-किसी चीज़ का विज्ञापन बन कर रह गये हैं। विज्ञापनों ने मनुष्य के जीवन को इतना अधिक प्रभावित कर दिया है कि उसे सब जगह विज्ञापन दिखाई और सुनाई देते हैं। दिन भर ये गीत और उनके पीछे दिये जाने वाले विज्ञापन मेरा पीछा करते रहते हैं।

विज्ञापनों के कारण जीवन का आनन्द समाप्त हो गया है, जैसे पहले एक मधुर कण्ठ से कबीर के इस भगत की पंक्ति उभरती है ‘रहना नहिं देश वीराना है उस पंक्ति के तुरन्त बाद खुजली का विज्ञापन प्रसारित होता है-खुजली का नाश करने के लिए एक ही रामबाण औषधि है …. । लेखक कहते हैं कि इस विज्ञापन को सुनकर कबीर भी कुछ नहीं कर सकते हैं अर्थात् ऐसा लगता है जैसे भजन सुनकर खुजली होने वाली है।

विशेष :

  1. विज्ञापनों के व्यक्तिगत जीवन में दखल देने की ओर संकेत किया गया है।
  2. भाषा सरल, सुबोध एवं स्पष्ट है। मिश्रित भाषा शब्दावली का प्रयोग है।
  3. वर्णनात्मक शैली है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 22 विज्ञापन युग

(2) कोई चीज़ ऐसी नहीं जो किसी-न-किसी चीज़ का विज्ञापन न हो। अजन्ता के चित्र और एलोरा की मूर्तियाँ कभी अछूती कला का उदाहरण रही होंगी, परन्तु आज उस कला को एक नयी सार्थकता प्राप्त हो गई है।

प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियां श्री मोहन राकेश द्वारा लिखित निबन्ध ‘विज्ञापन युग’ में से ली गई हैं। इनमें लेखक ने ऐतिहासिक कलाकृतियों को नयी सार्थकता प्राप्त होने की बात कही है।

व्याख्या :
लेखक कहता है आज के युग में कोई चीज़ ऐसी नहीं है जिसका विज्ञापन न हो। सभी चीज़ों का विज्ञापन होने लगा है। अजन्ता के चित्र और एलोरा की मूर्तियां कभी अछूती कला का उदाहरण रही होंगी, किन्तु आज के विज्ञापन यग में इन ऐतिहासिक महत्त्व की कलाकृतियों को भी एक नयी सार्थकता प्राप्त हो गई है। मनुष्य अपने लाभ के लिए ऐतिहासिक कलाकृतियों का प्रयोग विज्ञापन के लिए कर सकता है।

विशेष :

  1. विज्ञापन युग में सभी चीज़ों का विज्ञापन सम्भव है।
  2. भाषा सरल, सुबोध स्पष्ट है।
  3. शैली व्यंग्यात्मक है।

(3) कश्मीर की सारी पार्वत्त्य सुषमा, वहां की नव युवतियों का भाव सौन्दर्य और वहां के कारीगरों की दिन रात की मेहनत, ये सब इस बात को विज्ञापित करने के लिए हैं कि सफेद रंग का वह शहद जो बन्द डिब्बों में मिलता है, सबसे अच्छा शहद है।

प्रसंग :
यह अवतरण श्री मोहन राकेश द्वारा लिखित निबन्ध ‘विज्ञापन युग’ से अवतरित हैं। इसमें लेखक ने शहद के विज्ञापन में कश्मीर के प्राकृतिक सौन्दर्य का हवाला दिये जाने की बात कही है।

व्याख्या :
लेखक कहता है कि मनुष्य किसी भी वस्तु की उपयोगिता सिद्ध करने के लिए किसी भी चीज़ का प्रयोग कर सकते हैं। कश्मीर की सारी पर्वतीय प्राकृतिक सुन्दरता, वहाँ की नवयुवतियों का भाव-सौन्दर्य और वहाँ के कारीगरों की दिन-रात की मेहनत ये सभी इस बात का विज्ञापन देने में काम आते हैं कि सफेद रंग का शहद जो डिब्बों में बंद मिलता है, सबसे अच्छा शहद है। कश्मीर की सफेद बर्फीली चोटियाँ, वहाँ की नवयुवतियों का सौन्दर्य और मधुमख्यियों की तरह कारीगरों की मेहनत की तुलना शहद से की है।

विशेष :

  1. शहद के विज्ञापन में किस-किस तरह की वस्तुओं से साम्यता दर्शायी जाती है। इस पर व्यंग्य किया गया है।
  2. भाषा सरल, सुबोध एवं स्पष्ट है।
  3. तत्सम शब्दावली है। शैली व्यग्यात्मक है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 22 विज्ञापन युग

(4) विधाता ने इतनी बारीकबीनी से यह जो धरती बनाई है, और मनुष्य ने विज्ञान के आश्रय से उसमें जो चार चाँद लगाए हैं, वे इसलिए कि विज्ञापन कला के लिए उपयुक्त भूमि प्रस्तुत की जा सके। उत्तरी ध्रुव से दक्षिणी ध्रुव तक कोई कोना ऐसा न बचा होगा जिसका किसी-न-किसी चीज़ के विज्ञापन के लिए उपयोग न किया जा रहा हो। हर चीज़ हर जगह अपने अलावा किसी भी चीज़ और किसी भी जगह का विज्ञापन हो सकती है।

प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियाँ श्री मोहन राकेश द्वारा लिखित निबन्ध ‘विज्ञापन युग’ में से ली गई हैं। प्रस्तुत पंक्तियों में लेखक ने दुनिया के कोने-कोने में, हर जगह विज्ञापन लगाने की बात कही है अर्थात् भगवान और मनुष्य ने मिलकर धरती को सुन्दर बनाया है, परन्तु कुछ लोग इसी धरती का दुरुपयोग अपने स्वार्थ के लिए कर रहे हैं।

व्याख्या :
लेखक कहता है कि विधाता ने इतनी सूक्ष्म दृष्टि से जो धरती बनाई है और जिसे मनुष्य ने विज्ञान का सहारा लेकर सुन्दर बनाया है, स्वार्थी मनुष्य ने धरती को इसीलिए सुन्दर बनाया है कि विज्ञापन चिपकाने के लिए उपयुक्त भूमि तैयार की जा सके। उत्तरी ध्रुव से दक्षिणी ध्रुव तक धरती का कोई भी कोना नहीं बचा जिसका किसीन-किसी चीज़ के विज्ञापन के लिए उपयोग न किया गया हो। हर चीज़, हर जगह अपने के अतिरिक्त किसी भी चीज़ और किसी भी जगह का विज्ञापन हो सकती है अर्थात् विज्ञापन के लिए किसी स्थान का सम्बन्ध वस्तु से होना आवश्यक नहीं हैं परन्तु उसका उपयोग वस्तु के साथ जोड़ दिया जाता है।

विशेष :

  1. भगवान की बनाई धरती जिसे मानव ने सुन्दर बनाया आज उसका दुरुपयोग हो रहा है।
  2. भाषा सरल सुबोध एवं स्पष्ट है, मिश्रित शब्दावली है।
  3. व्यग्यात्मक शैली है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 22 विज्ञापन युग

(5) विज्ञापन-कला जिस तेज़ी से उन्नति कर रही है, उससे मुझे भविष्य के लिए और भी अंदेशा है। लगता है, ऐसा युग आने वाला है जब शिक्षा, विज्ञान, संस्कृति और साहित्य, इनका केवल विज्ञापन कला के लिए ही उपभोग रह जाएगा। वैसे तो आज भी इस कला के लिए इनका खासा उपयोग होता है। मगर आने वाले युग में यह कला, दो कदम और आगे बढ़ जाएगी।

प्रसंग :
यह गद्यांश श्री मोहन राकेश द्वारा लिखित निबन्ध ‘विज्ञापन युग’ में से ली गई हैं। इसमें लेखक ने व्यंग्य से कहा है भविष्य में विज्ञापनों का उपयोग शिक्षा, विज्ञान, संस्कृति और साहित्य में भी होने लगेगा।

व्याख्या :
लेखक कहता है कि जिस तेज़ी से विज्ञापन-कला उन्नति कर रही है, उसे देखते हुए मुझे डर है कि आने वाले समय में ऐसा युग आने वाला है जब शिक्षा, विज्ञान, संस्कृति और साहित्य आदि का केवल विज्ञापन कला के लिए ही उपयोग रह जाएगा। मानव का भविष्य विज्ञापन कला पर निर्भर रह जाएगा। जिस वस्तु के विज्ञापन का अधिक से अधिक प्रचार होगा उसी का उपभोग अधिक होगा चाहे वह किसी क्षेत्र से सम्बन्धित हो। वैसे तो आज भी इस कला के लिए इनका बहुत विशिष्ट उपयोग होता है। मगर आने वाले समय में यह कला, दो कदम आगे बढ़ जाएगी अर्थात् जीवन का हर क्षेत्र विज्ञापन कला से जुड़ जाएगा।

विशेष :

  1. विज्ञापन कला का क्षेत्र इतना व्यापक हो जाएगा जिससे मनुष्य का भविष्य उस पर निर्भर हो जाएगा।
  2. भाषा सरल, सुबोध एवं स्पष्ट है। तत्सम शब्दावली है।
  3. व्यंग्यात्मक शैली है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 22 विज्ञापन युग

(6) दफ़्तर की नई टाइपिस्ट रोज़ी का समूचा व्यक्तित्व मुझे लाल रंग की लिपिस्टिक का विज्ञापन प्रतीत होता है और किसी को कहिएगा नहीं, पर हालत यहां तक पहुंच गई है कि अब मैं खुद आइने के सामने खड़ा होता हूँ तो लगता है कि अपना चेहरा नहीं सिल्वर सॉल्ट का विज्ञापन देख रहा हूँ।

प्रसंग :
यह अवतरण श्री मोहन राकेश द्वारा लिखित निबन्ध ‘विज्ञापन युग’ से अवतरित है। इसमें लेखक ने विज्ञापन कला पर तीखा व्यंग्य किया है।

व्याख्या :
लेखक विज्ञापन कला पर व्यंग्य करते हुए कहता है कि अपने दफ्तर की नई टाइपिस्ट रोज़ी को जब मैं लाल वस्त्रों में देखता हूँ तो मुझे उसका समूचा व्यक्तित्व लाल रंग की लिपिस्टिक का विज्ञापन लगता है और किसी से कहिएगा नहीं कि हालत यहां तक पहुंच गई है कि जब मैं स्वयं दर्पण के सामने खड़ा होता हूँ तो मुझे लगता है कि मैं अपना चेहरा नहीं सिल्वर सॉल्ट का विज्ञापन देख रहा हूँ। लेखक को सब जगह, सब चीज़ों में, अपने में तथा दूसरों में, सब में विज्ञापन ही विज्ञापन दिखाई देते हैं।

विशेष :

  1. मनुष्य का सम्पूर्ण व्यक्तित्व विज्ञापनमय हो गया है।
  2. भाषा सरल, सुबोध एवं स्पष्ट है। मिश्रित शब्दावली है।
  3. व्यंग्यात्मक शैली है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 22 विज्ञापन युग

विज्ञापन युग Summary

विज्ञापन युग निबन्ध का सार

प्रस्तुत निबन्ध एक व्यंग्यपरक निबन्ध है। इसमें लेखक ने विज्ञापन कला के विकसित होने पर उसे सिर दर्द कारण भी बताया गया है। लेखक कहते हैं कि पड़ोसियों की कृपा से उसे दिन रात गज़लों और भजनों के साथ चाय, तेल और सिर दर्द की टिक्कियों के विज्ञापन सुनने पड़ते हैं। यह विज्ञापन लेखक के दिलो-दिमाग़ पर सदा छाए रहते हैं। परिणाम यह हुआ है कि लेखक के लिए गज़ल-गज़ल न रह कर किसी न किसी चीज़ का विज्ञापन बन गए। लेखक को लगता है कि हर चीज़ विज्ञापन बन कर रह गई है। अजन्ता एलोरा की मूर्तियों का केश विन्यास लेखक को एक तेल की शीशी की याद दिलाता है। इसी तरह मूर्तियों की आँखें एवं उनका समूचा कलेवर किसी-न-किसी कम्पनी का विज्ञापन बन कर रह गया है।

लेखक कहते हैं कि देश में जितने भी मन्दिर पुराने किले और स्मारक आदि हैं वे सब पर्यटन व्यवसाय को प्रोत्साहन देने के साथ-साथ एक विशेष ब्रांड के सीमेंट की मजबूती को व्यक्त करने के प्रतीक बन सकें। इसी तरह सफ़ेद रंग के शहद का विज्ञापन और सेब के मुरब्बे का विज्ञापन हो सकता है। लेखक का मत है कि विज्ञापन किसी भी चीज़ का हो सकता है। हम जहाँ भी रहे विज्ञापनों की लपेट से नहीं बच सकते।

लेखक का मत है कि विज्ञापन कला इतनी तेजी से उन्नति कर रही है कि उसे डर है कि आने वाले समय में शिक्षा, विज्ञान, संस्कृति और साहित्य आदि का उपयोग विज्ञापन कला के लिए ही रह जाएगा। लेखक कहते हैं कि अभी तक बहुत सारे ऐसे क्षेत्र हैं जिनका विज्ञापन के लिए प्रयोग नहीं किया जा सका है जैसे दवा की शीशियों में मक्खन के डिब्बों के विज्ञापन होने चाहिएँ। कम्बलों और दुशालों में चाय और कोको के विज्ञापन दिए जा सकते हैं। अस्पताल की दीवारों पर वैवाहिक विज्ञापन लगाए जा सकते हैं। यह तो भविष्य की बात है, पर आज की स्थिति यह है कि लेखक को हर जगह विज्ञापन ही विज्ञापन दिखाई देता है। लेखक को चाय देने वाला लड़का भी क्लोरोफ़िल मुस्कराहट मुस्करा रहा होता है। तब लेखक को स्त्री कण्ठ की मधुर आवाज़ में यह विज्ञापन सुनाई पड़ता है कि लिवर ठीक रखने के लिए लिवर इमल्शन लीजिए। लेखक को अपने सामने आने वाला हर चेहरा किसी विज्ञापन का रूप नज़र आता है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 21 शहीद सुखदेव

Punjab State Board PSEB 11th Class Hindi Book Solutions Chapter 21 शहीद सुखदेव Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Hindi Chapter 21 शहीद सुखदेव

Hindi Guide for Class 11 PSEB शहीद सुखदेव Textbook Questions and Answers

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दें

प्रश्न 1.
‘क्रान्तिकारी इतिहास में सुखदेव का महत्त्व किसी भी प्रकार कम नहीं आंका जा सकता।’ लेखक के इस कथन के आधार पर सुखदेव के गुण लिखें।
उत्तर:
क्रान्तिकारी इतिहास में सुखदेव का महत्त्व किसी प्रकार भी कम नहीं आंका जा सकता। अंग्रेजों की दमनकारी नीतियों को देखते हुए सुखदेव के मन में उन के प्रति नफ़रत की भावना निरन्तर बढ़ती गई। जलियांवाला बाग की घटना ने जलती पर घी का काम किया। सरकार ने मार्शल लॉ लागू कर दिया और सभी स्कूलों में सेना अधिकारी तैनात कर दिए गए। एक दिन परेड के समय सभी छात्रों को अंग्रेज़ी अफ़सर को सलामी देने को कहा गया। सुखदेव ने स्पष्ट रूप में घोषणा की “मैं अंग्रेज़ को किसी भी कीमत पर सलामी नहीं दूंगा।” इस पर अंग्रेज़ अफ़सर ने उन्हें खूब पीटा।

बड़े होने पर सुखदेव के स्वभाव में दृढ़ता और अंग्रेज़ी सत्ता के प्रति नफ़रत और भी बढ़ती चली गई। हाई स्कूल की परीक्षा पास कर सुखदेव ने लाहौर के नेशनल कॉलेज में प्रवेश लिया। वहीं वे क्रान्तिकारियों के सम्पर्क में आए। सन् 1926 में भगत सिंह तथा भगवती चरण वर्मा के साथ मिलकर “नौजवान भारत सभा” का गठन किया जिसका उद्देश्य लोगों में राष्ट्र-चेतना जागृत करना था। सुखदेव, भगत सिंह आदि के सुझाव पर हिन्दुस्तान सोशलिस्ट ‘रिपब्लिकन आर्मी’ का गठन किया गया। सुखदेव को पंजाब प्रान्त का प्रमुख संगठनकर्ता घोषित किया गया।

सुखदेव चाहते थे कि उन्हें जनता की सहानुभूति भी प्राप्त हो सके। लोग क्रान्तिकारियों को आतंकवादी न समझ लें। सांडर्स हत्याकांड में सुखदेव की अहम भूमिका रही। असैंबली बम कांड के कुछ ही दिन बाद सुखदेव को भी कैद कर लिया गया। वहां भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी की सजा सुनाई। 23 मार्च, सन् 1931 को अंग्रेज़ सरकार ने जनता के कड़े विरोध के बावजूद इन तीनों देशभक्तों को फाँसी दे दी।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 21 शहीद सुखदेव

प्रश्न 2.
सुखदेव की राष्ट्रवादी सोच पर किन-किन व्यक्तियों ने अपना गहरा प्रभाव दिखाया ? पाठ के आधार पर उत्तर दें।
उत्तर:
हाई स्कूल की परीक्षा पास करने के बाद सुखदेव ने लाहौर के नेशनल कॉलेज में दाखिला लिया। वहीं सुखदेव की भेंट प्रिंसिपल जुगल किशोर, भाई परमानन्द, जयचन्द विद्यालंकार आदि कुछ ऐसे अध्यापकों से हुई जो स्वयं तो राष्ट्र सेवा में जुटे हुए थे, साथ ही कॉलेज के विद्यार्थियों में देश प्रेम की भावना जागृत करने का प्रयास कर रहे थे। मित्रों में सुखदेव सिंह को भगत सिंह का साथ मिला। दोनों एक साथ रहते और घण्टों समाजवाद तथा देश की स्थिति पर चर्चा करते रहते। सुखदेव की राष्ट्रवादी सोच पर गहरा प्रभाव छोड़ने वाले व्यक्तियों में भगवती चरण वर्मा तथा चन्द्रशेखर आज़ाद का गहरा प्रभाव पड़ा।

प्रश्न 3.
‘शहीद सुखदेव’ निबन्ध का सार लिखें।
उत्तर:
‘शहीद सुखदेव डॉ० रविकुमार ‘अनु’ द्वारा लिखित निबन्ध है। इस निबन्ध में लेखक ने शहीद सखदेव के जीवन की घटनाओं का वर्णन किया है। उन्होंने अंग्रेजी साम्राज्य की नींव को हिलाने में पंजाब के क्रांतिकारियों द्वारा हुए आंदोलनों के पीछे शहीद सुखदेव की महत्त्वूपर्ण भूमिका पर प्रकाश डाला है। शहीद सुखदेव का जन्म 15 मई, सन् 1907 को लुधियाना के मुहल्ला नौधराँ में हुआ। आपके पिता उन दिनों लायलपुर में व्यापार करते थे। आपके जन्म के बाद आपके पिता ने इन्हें माता सहित लायलपुर बुला लिया। सन् 1910 में आपके पिता का देहांत हो गया। आपका पालन-पोषण आपके ताया लाला चिंतराम थापर ने किया। लाला चिंतराम आर्य समाजी विचारधारा रखते थे। वे आर्यसमाज के कार्यों में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते थे। सुखदेव पर उनका बहुत प्रभाव पड़ा।

बचपन से आप पढ़ाई के अतिरिक्त समाज सेवा के कामों में भी हिस्सा लिया करते थे। हरिजन बच्चों को उन दिनों सरकारी और धार्मिक स्कूलों में दाखिला नहीं मिलता था। यह देख कर सुखदेव दुःखी हो उठे थे। उन्होंने पास की बस्तियों में जाकर हरिजन बच्चों को पढ़ाना शुरू कर दिया।

अंग्रेजों की दमनकारी नीति के कारण वे उन से घृणा करते थे। बड़े होकर उन्होंने लाहौर के नेशनल कॉलेज में दाखिला लिया। यहीं उनकी भेंट लाला लाजपत राय से हुई। वहीं प्रिंसिपल जुगल किशोर, भाई परमानंद, जयचंद्र विद्यालंकार सरीखे अध्यापकों से उनकी भेंट हुई। सरदार भगत सिंह से भी इनकी मुलाकात यहीं हुई। उन्होंने भगत सिंह के साथ मिलकर ‘नौजवान भारत सभा’ की स्थापना की। देश की आजादी के लिए क्रांतिकारी गतिविधियों में भाग लिया।

क्रांतिकारियों ने स्कॉट के भ्रम में सांडर्स की हत्या कर दी। सरकार सचेत हो गई। जगह-जगह छापे पड़ने लगे। 8 अप्रैल, सन् 1929 को भगत सिंह और दत्त ने असेंबली में बम फेंका और गिरफ्तारी दी। 15 अप्रैल, सन् 1929 को एक बम फैक्टरी पर पड़े छापे के दौरान सुखदेव भी साथियों सहित गिरफ्तार कर लिए गए। उन पर भगत सिंह और दत्त के साथ ही मुकद्दमा चलाया गया और अंग्रेजी सरकार ने गुप्त रूप से 23 मार्च, सन् 1931 को सतलुज नदी के किनारे फिरोजपुर में उनको फाँसी दे दी।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 21 शहीद सुखदेव

(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दें-

प्रश्न 1.
सुखदेव का बचपन कहां बीता? उन्होंने कहाँ-कहाँ शिक्षा प्राप्त की?
उत्तर:
सुखदेव का बचपन लायलपुर (अब पाकिस्तान) में बीता। उनके ताया लाला चिन्तराम थापर शेरे लायलपुर कहलाते थे। लायलपुर के सनातन धर्म स्कूल में उन्होंने हाई स्कूल की परीक्षा पास की। तदुपरांत उन्होंने लाहौर के नेशनल कॉलेज में दाखिला लिया। यहीं उनकी क्रान्तिकारी सोच परवान चढ़ी।।

प्रश्न 2.
दीपावली पर झाँसी की रानी की तस्वीर खरीदने पर उन्होंने अपनी माँ से क्या कहा? इस से उनके चरित्र की किस विशेषता का पता चलता है ?
उत्तर:
दीवाली के अवसर पर जहाँ सभी बच्चे खिलौने खरीद रहे थे सखदेव ने झाँसी की रानी की तस्वीर खरीदी और घर लौट कर अपनी माँ को बड़े उत्साह के साथ बताया, “देखो माँ लक्ष्मी बाई की तस्वीर। इसने अंग्रेजों से लोहा लिया था न? इसकी बहादुरी तो देखो? एक हाथ में तलवार और एक हाथ में घोड़े की लगाम सम्भाले पीठ पर बच्चा बाँध कर यह कितनी बहादुरी से लड़ी होगी? मैं भी ऐसा ही बनूँगा।” प्रस्तुत घटना से सुखदेव के चरित्र की इस विशेषता का पता चलता है कि देश भक्ति के अंकुर उन में बचपन से ही थे।

प्रश्न 3.
निबन्ध के आधार पर उनके द्वारा किए गए सामाजिक कार्यों का उल्लेख करें।
उत्तर:
जिन दिनों सुखदेव सनातम धर्म स्कूल के विद्यार्थी थे, तो उन्हें पता चला कि हरिजन बच्चों को सरकारी और धार्मिक स्कूलों में प्रवेश नहीं दिया जाता तो सुखदेव सिंह को बहुत दुःख हुआ। उन्होंने स्वयं ही लायलपुर के पास की हरिजन बस्तियों में जाकर बच्चों को पढ़ाना शुरू कर दिया।

सन् 1918 में जब महामारी फैली तो सुखदेव ने बच्चों के साथ मिलकर एक सेवा समिति बनाई। जिस का काम दवाइयाँ इकट्ठा करना और घर-घर बाँटना था। उन दिनों सुखदेव ने अपनी चिन्ता न कर के दिन-रात लोगों की सेवा की।

प्रश्न 4.
स्कूल में आए अंग्रेज़ अफ़सर को उन्होंने सलामी क्यों नहीं दी?
उत्तर:
सुखदेव के मन में अंग्रेजों की दमनकारी नीतियों को देखते हुए उनके प्रति नफ़रत की भावना बढ़ती गई थी। उन्हीं दिनों जलियांवाला बाग की घटना के कारण सुखदेव का खून खौल उठा था। इसी नफ़रत के कारण उन्होंने ने अंग्रेज़ अफ़सर को सलामी देने से इन्कार कर दिया।

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प्रश्न 5.
लाहौर नेशनल कॉलेज पहुँचने पर सुखदेव का सम्पर्क किन क्रान्तिकारियों से हुआ? इससे उनके दृष्टिकोण में क्या परिवर्तन हुआ?
उत्तर:
लाहौर नेशनल कॉलेज में सुखदेव इतिहास के अध्यापक जयचन्द्र विद्यालंकार के माध्यम से क्रान्तिकारियों के सम्पर्क में आए। वहीं उनकी भेंट भगतसिंह और भगवती चरण जैसे देशभक्त क्रान्तिकारियों से हई। इससे उनकी कार्यशैली में अनेक परिवर्तन आए। उन्होंने क्रान्तिकारी कार्यों में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेना शुरू कर दिया। सुखदेव को पंजाब प्रान्त का प्रमुख संगठनकर्ता नियुक्त किया गया। उन्होंने अंग्रेज़ी सरकार के विरुद्ध अनेक प्रदर्शन किए और लाला लाजपतराय की मृत्यु का बदला लेने की योजना बनाने का जिम्मा भी इन्हें ही सौंपा गया।

प्रश्न 6.
नौजवान भारत सभा की स्थापना का क्या उद्देश्य था?
उत्तर:
नौजवान भारत सभा का वास्तविक उद्देश्य इश्तहारों, भाषणों और सभाओं के द्वारा जन साधारण में राष्ट्रीय भावना जागृत करना था। इस मंच के द्वारा वे नवयुवकों को देश के स्वतन्त्रता संग्राम में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करना चाहते थे। लोगों में देश के लिए एक नई चेतना जागृत करने के उद्देश्य से सन् 1926 में भगत सिंह और भगवती चरण के साथ मिलकर नौजवान सभा की स्थापना की और उन्होंने करतार सिंह सराभा का शहीदी दिन मनाया था।

प्रश्न 7.
क्रान्तिकारियों की बैठक में कौन-कौन से महत्त्वपूर्ण निर्णय लिए गए?
उत्तर:
क्रान्तिकारियों की बैठक में पहला महत्त्वपूर्ण फैसला यह लिया गया कि क्रान्तिकारी संगठनों की एक केन्द्रीय समिति बनाई जाए। इस दल को नया नाम दिया गया–हिन्दुस्तान ‘सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी’। इस दल का उद्देश्य केवल आजादी की लड़ाई तक ही सीमित नहीं अपितु आज़ादी के बाद समाज में शोषण की प्रक्रिया को भी समाप्त करना था। चन्द्रशेखर आजाद को पार्टी का कमाण्डर इन चीफ बनाया गया।

प्रश्न 8.
लाला लाजपत राय की मृत्यु का बदला लेने में सुखदेव की भूमिका क्या थी?
उत्तर:
क्रान्तिकारियों ने लाला जी आहत होने का बदला लेने का मन बना लिया था। सुखदेव को इस कार्य की योजना बनाने का काम सौंपा गया। सुखदेव इस कार्य को इस ढंग से करना चाहते थे जिससे लोगों की सहानुभूति प्राप्त हो सके। वे नहीं चाहते थे कि लोग क्रान्तिकारियों को सामान्य लूट-मार करने वाले अपराधी समझें। इसलिए वे प्रोपेगैंडा एक्शन्स में विश्वास रखते थे। 17 नवम्बर को लाला जी की मृत्यु हो जाने पर इन लोगों का काम आसान हो गया। उन्होंने स्कॉट की हत्या की योजना बनाई। सुखदेव ने अकेले ही सारे हथियारों को दूसरी सुरक्षित जगह पहुँचाया था।

प्रश्न 9.
दिल्ली असैम्बली में बम फेंकने की योजना क्यों बनाई गई?
उत्तर:
सुखदेव का विचार था कि असैम्बली की कार्यवाही को रोकने का एक ही उपाय है कि उसे बीच में ही रोक दिया जाए। सुखदेव चाहते थे कि असैम्बली में बम गिरने के बाद क्रान्तिकारियों की गिरफ्तारी होगी तो वे पुलिस और जनता के सामने वज़नदार तर्क प्रस्तुत कर जनता में जागृति की भावना जागृत करने में सफल हो सकते हैं। भगत सिंह और दत्त ने असैम्बली में बम फेंक कर गिरफ्तारी दी और अपना मुकद्दमा लड़ते समय ऐसे तर्क दिए जो जनता में जागृति लाने में सहायक सिद्ध हुए।

प्रश्न 10.
सुखदेव की गिरफ्तारी कैसे हुई? उन्हें फाँसी क्यों दी गई?
उत्तर:
15 अप्रैल, सन् 1929 को सुखदेव अपने कुछ साथियों सहित लाहौर बम फैक्टरी पर डाले गए छापे के दौरान पकड़े गए। उन पर चलाए जाने वाले मुकद्दमे के दौरान यह सिद्ध किया गया कि सुखदेव सारे क्रान्तिकारी षड्यन्त्रों के सरदार थे और भगत सिंह उनका का दायां हाथ था। 7 अक्तूबर, सन् 1930 को उन्हें फाँसी की सज़ा देने का फैसला सुनाया गया।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 21 शहीद सुखदेव

PSEB 11th Class Hindi Guide शहीद सुखदेव Important Questions and Answers

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘शहीद सुखदेव’ किसकी रचना है ?
उत्तर:
डॉ० रविकुमार ‘अनु’।

प्रश्न 2.
सुखदेव पास की बस्तियों में किसे पढ़ाते थे ?
उत्तर:
हरिजन बच्चों को।

प्रश्न 3.
बचपन में सुखदेव पढ़ाई के अतिरिक्त क्या करते थे ?
उत्तर:
समाज सेवा के कार्य।

प्रश्न 4.
शहीद सुखदेव का जन्म कब हुआ था ?
उत्तर:
15 मई, सन् 1907 को।

प्रश्न 5.
शहीद सुखदेव का जन्म कहाँ हुआ था ?
उत्तर:
पंजाब राज्य के लुधियाना शहर के मुहल्ला नौधरा में।

प्रश्न 6.
शहीद सुखदेव के पिता पेशे से क्या थे ?
उत्तर:
व्यापारी।

प्रश्न 7.
शहीद सुखदेव के पिता का देहांत कब हुआ था ?
उत्तर:
सन् 1910 में।

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प्रश्न 8.
शहीद सुखदेव का पालन-पोषण किसने किया था ?
उत्तर:
ताया लाला चिंतराम थापर ने।

प्रश्न 9.
लाला चिंतराम किस प्रकार की विचारधारा रखते थे ?
उत्तर:
आर्य समाजी।।

प्रश्न 10.
शहीद सुखदेव अंग्रेजों से घृणा क्यों करते थे ?
उत्तर:
उनकी दमनकारी नीतियों के कारण।

प्रश्न 11.
शहीद सुखदेव ने किस कॉलेज में दाखिला लिया था ?
उत्तर:
नेशनल कॉलेज में।

प्रश्न 12.
नेशनल कॉलेज कहाँ पर स्थित है ?
उत्तर:
लाहौर में।

प्रश्न 13.
शहीद सुखदेव की भेंट लाला लाजपतराय से कहाँ हुई थी ?
उत्तर:
लाहौर नेशनल कॉलेज में।

प्रश्न 14.
शहीद सुखदेव ने भगत सिंह के साथ मिलकर किस सभा की स्थापना की थी ?
उत्तर:
नौजवान भारत सभा।

प्रश्न 15.
क्रांतिकारियों ने स्कॉट के भ्रम में किसकी हत्या की थी ?
उत्तर:
सांडर्स की।

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प्रश्न 16.
असेंबली में बम कब फेंका गया था ?
उत्तर:
8 अप्रैल, सन् 1929 को।

प्रश्न 17.
असेंबली में बम किसने फेंका था ?
उत्तर:
भगतसिंह और सुखदेव ने।

प्रश्न 18.
असेंबली में बम फेंकने के बाद भगत सिंह और सुखदेव ने क्या किया ?
उत्तर:
अपनी गिरफ्तारी दी।

प्रश्न 19.
सुखदेव की गिरफ्तारी कब हुई थी ?
उत्तर:
15 अप्रैल, सन् 1929 को।

प्रश्न 20.
सुखदेव की गिरफ्तारी कहां हुई थी ?
उत्तर;
एक बम फैक्टरी में।

प्रश्न 21.
सुखदेव को फांसी कब हुई थी ?
उत्तर:
23 मार्च, सन् 1931 को।

प्रश्न 22.
सुखदेव को फांसी कहाँ दी गई ?
उत्तर:
सतलुज नदी के किनारे फिरोजपुर में।

प्रश्न 23.
सुखदेव को किस प्रकार फांसी दी गई ?
उत्तर:
गुप्त रूप से।

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बहुविकल्पी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
शहीद सुखदेव ने किस साम्राज्य की नींव को हिला दिया था ?
(क) अंग्रेज़ी
(ख) हिंदी
(ग) मुग़ल
(घ) डच।
उत्तर:
(क) अंग्रेजी

प्रश्न 2.
शहीद सुखदेव का जन्म कब हुआ था ?
(क) 1905 ई०
(ख) 1906 ई०
(ग) 1907 ई०
(घ) 1908 ई०.
उत्तर:
(ग) 1907 ई०

प्रश्न 3.
लाला चिंताराम किस विचारधारा के व्यक्ति थे ?
(क) आर्य समाज
(ख) धर्म समाज
(ग) रूही समाज
(घ) ब्रह्म समाज।
उत्तर:
(क) आर्य समाज

प्रश्न 4.
शहीद सुखदेव ने किसके साथ मिलकर नौजवान भारत सभा’ की स्थापना की ?
(क) शहीद भगत सिंह के
(ख) तांत्या टोपे के
(ग) नेता जी के
(घ) राजगुरु के।
उत्तर:
(क) शहीद भगत सिंह के।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 21 शहीद सुखदेव

कठिन शब्दों के अर्थ :

कट्टर = पक्के । महासचिव = महामंत्री। अंकुरित करना = पैदा करना। नफ़रत = घृणा। समाहित = शामिल । वक्ताओं = भाषणों। उग्र = तीव्र, तेज़। संरचना = बनावट। अनुग्रह = कृपा।

प्रमुख अवतरणों की सप्रसंग व्याख्या

(1) देख माँ, रानी लक्ष्मीबाई की तस्वीर। इन्होंने अंग्रेजों से लोहा लिया था ना। इनकी बहादुरी को देखो। एक हाथ में तलवार तथा एक हाथ घोड़े की लगाम सम्भाले पीठ पर बच्चा बाँधकर वह कितनी बहादुरी से लड़ी होगी।

प्रसंग :
प्रस्तुत अवतरण डॉ० रवि कुमार अनु द्वारा लिखित निबन्ध ‘शहीद सुखदेव’ में से लिया गया है। प्रस्तुत निबन्ध में लेखक ने शहीद सुखदेव के जीवन की घटनाओं का भावमय शैली में वर्णन किया है। इसमें सुखदेव के बचपन की घटनाओं का वर्णन किया है

व्याख्या :
प्रस्तुत पंक्तियाँ उस समय कही गयी हैं जब शहीद सुखदेव दीपावली के अवसर पर अन्य बच्चों की तरह खिलौने न खरीद कर झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की तस्वीर खरीदकर अपनी माँ को दिखाता है।

सुखदेव अपनी मां से तस्वीर दिखाकर कहता है कि माँ! यह लक्ष्मीबाई की तस्वीर है। ये वो वीरांगना है जो अंग्रेज़ों से लडी थीं। इन्होंने बहादुरी से अंग्रेजों का सामना किया है। इन्होंने युद्ध के मैदान में एक हाथ में तलवार पकड़ी है तो दूसरे हाथ में घोड़े की लगाम है और पीठ पर बच्चे को बाँधे रखा था। ऐसी अवस्था में वे कितनी बहादुरी से लड़ी थीं।

विशेष :
शहीद सुखदेव बचपन से ही वीरता की प्रतिमूर्तियों से प्रभाव थे। “भाषा सरल तथा सहज है मुहावरे के प्रयोग से रोचकता आ गई है।” चित्रात्मकता का गुण विद्यमान है।

(2) मैं अंग्रेज़ को किसी भी कीमत पर सलामी नहीं दूंगा।

प्रसंग :
प्रस्तुत अवतरण डॉ० रवि कुमार (अनु) द्वारा लिखित निबन्ध ‘शहीद सुखदेव’ में से लिया गया है। प्रस्तुत निबन्ध में शहीद सुखदेव के जीवन की घटनाओं का भावमय शैली में वर्णन किया है। इन पंक्तियों में सुखदेव के बचपन की घटना का वर्णन किया है कि वे बचपन से ही अंग्रेजों से नफ़रत करते थे।

व्याख्या :
अंग्रेज़ अफसर को परेड के समय सलामी न देने पर सुखदेव ने अपने प्राचार्य से कहा कि वह अंग्रेज़ को किसी कीमत पर भी सलामी नहीं देगा क्योंकि उसके दिल में अंग्रेज़ों के प्रति भारी घृणा थी।

विशेष :

  1. शहीद सुखदेव के मन में बचपन से ही अंग्रेजों के प्रति नफ़रत थी।
  2. भाषा सरल एवं सहज है। ओज गुण विद्यमान है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 21 शहीद सुखदेव

शहीद सुखदेव Summary

शहीद सुखदेव निबन्ध का सार

‘शहीद सुखदेव डॉ० रविकुमार ‘अनु’ द्वारा लिखित निबन्ध है। इस निबन्ध में लेखक ने शहीद सखदेव के जीवन की घटनाओं का वर्णन किया है। उन्होंने अंग्रेजी साम्राज्य की नींव को हिलाने में पंजाब के क्रांतिकारियों द्वारा हुए आंदोलनों के पीछे शहीद सुखदेव की महत्त्वूपर्ण भूमिका पर प्रकाश डाला है। शहीद सुखदेव का जन्म 15 मई, सन् 1907 को लुधियाना के मुहल्ला नौधराँ में हुआ। आपके पिता उन दिनों लायलपुर में व्यापार करते थे। आपके जन्म के बाद आपके पिता ने इन्हें माता सहित लायलपुर बुला लिया। सन् 1910 में आपके पिता का देहांत हो गया। आपका पालन-पोषण आपके ताया लाला चिंतराम थापर ने किया। लाला चिंतराम आर्य समाजी विचारधारा रखते थे। वे आर्यसमाज के कार्यों में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते थे। सुखदेव पर उनका बहुत प्रभाव पड़ा।

बचपन से आप पढ़ाई के अतिरिक्त समाज सेवा के कामों में भी हिस्सा लिया करते थे। हरिजन बच्चों को उन दिनों सरकारी और धार्मिक स्कूलों में दाखिला नहीं मिलता था। यह देख कर सुखदेव दुःखी हो उठे थे। उन्होंने पास की बस्तियों में जाकर हरिजन बच्चों को पढ़ाना शुरू कर दिया।

अंग्रेजों की दमनकारी नीति के कारण वे उन से घृणा करते थे। बड़े होकर उन्होंने लाहौर के नेशनल कॉलेज में दाखिला लिया। यहीं उनकी भेंट लाला लाजपत राय से हुई। वहीं प्रिंसिपल जुगल किशोर, भाई परमानंद, जयचंद्र विद्यालंकार सरीखे अध्यापकों से उनकी भेंट हुई। सरदार भगत सिंह से भी इनकी मुलाकात यहीं हुई। उन्होंने भगत सिंह के साथ मिलकर ‘नौजवान भारत सभा’ की स्थापना की। देश की आजादी के लिए क्रांतिकारी गतिविधियों में भाग लिया।

क्रांतिकारियों ने स्कॉट के भ्रम में सांडर्स की हत्या कर दी। सरकार सचेत हो गई। जगह-जगह छापे पड़ने लगे। 8 अप्रैल, सन् 1929 को भगत सिंह और दत्त ने असेंबली में बम फेंका और गिरफ्तारी दी। 15 अप्रैल, सन् 1929 को एक बम फैक्टरी पर पड़े छापे के दौरान सुखदेव भी साथियों सहित गिरफ्तार कर लिए गए। उन पर भगत सिंह और दत्त के साथ ही मुकद्दमा चलाया गया और अंग्रेजी सरकार ने गुप्त रूप से 23 मार्च, सन् 1931 को सतलुज नदी के किनारे फिरोजपुर में उनको फाँसी दे दी।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 20 एक मिलियन डालर दृश्य

Punjab State Board PSEB 11th Class Hindi Book Solutions Chapter 20 एक मिलियन डालर दृश्य Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Hindi Chapter 20 एक मिलियन डालर दृश्य

Hindi Guide for Class 11 PSEB एक मिलियन डालर दृश्य Textbook Questions and Answers

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दें-

प्रश्न 1.
‘एक मिलियन डालर दृश्य’ में पर्वतीय सौन्दर्य का अनूठा वर्णन है, लेख के आधार पर उत्तर दें।
उत्तर:
प्रस्तुत लेख में लेखक ने पर्वतीय सौन्दर्य का अनूठा वर्णन किया है। चण्डीगढ़ से शिमला की यात्रा करते हुए लेखक सोलन रुकता है। वहाँ नगर के बीचों बीच शिमला जाने वाली सड़क है। लेखक ने कालका से शिमला जाने वाली रेल यात्रा का उल्लेख करते हुए कहा है कि यह सारा रास्ता दिलकश नज़ारों से भरा है। छोटी पट्टी की रेल की गुफ़ाओं से गुजरकर जाती। छोटे-बड़े पुलों पर से निकलती है। लेखक की गाड़ी भी इस रेल के साथ-साथ चलती है। पर्वतीय दृश्य बड़ें मनोहर हैं। ढलाने पेड़ों और हरी घास से ढकी हैं। चीड़ और देवदार के पेड़ दिखाई देने लगते हैं।

तारादेवी के मोड़ से लेखक ज्यों ही आगे बढ़ता है शिमला नगर की बत्तियाँ सामने नज़र आती हैं। ऐसे लगता था कि,आसमान के सारे सितारे धरती पर उतर आए हों। यही लेखक को एक मिलियन डालर दृश्य जान पड़ा।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 20 एक मिलियन डालर दृश्य

प्रश्न 2.
‘एक मिलियन डॉलर दृश्य’ निबन्ध का सार लिखें।
उत्तर:
‘एक मिलियन डालर दृश्य’ इन्द्रनाथ चावला द्वारा लिखित है। प्रस्तुत निबन्ध में लेखक ने चण्डीगढ़ से शिमला की यात्रा का वर्णन किया है। इसके साथ ही लेखक ने सोलन नगर के सौन्दर्य का वर्णन करते हुए वहाँ के जन जीवन की समस्याओं की ओर संकेत किया है। लेखक अपने मित्र के साथ पहाड़ की यात्रा के लिए जा रहा है। दोनों लोग चण्डीगड़ से हिमाचल में किन्नौर की यात्रा के लिए निकले। किन्तु कालका शिमला सड़क पर स्थित धर्मपुर पहुँच कर उनकी गाड़ी खराब हो गई। शाम तक गाड़ी ठीक हुई और वे आगे बढ़ गए। मार्ग में सोलन में चाय पीने के लिए रुके। सोलन में कृषि विश्वविद्यालय और जिला बनने से वहाँ की आबादी बढ़ गई है।

परिवार एक-एक कमरे में रहते हैं जिससे गन्दगी दिखाई देती है। लेखक यहाँ कालका से शिमला जाने वाली छोटी लाइन की रेलगाड़ी का वर्णन करता है जिससे यात्रा करना अत्यन्त सुखद लगता है। गाड़ी बिगड़ जाने के कारण रात उन्हें शिमला में ही बिताने का निर्णय लेना पड़ा। पहाड़ी रास्ता टेढ़ा-मेढ़ा होने के कारण वे आपस में बातचीत भी नहीं कर रहे थे। तारादेवी पहुँच कर उन्होंने सुख की साँस ली। वहाँ शिमला की बत्तियाँ ऐसे दिखाई देती थीं जैसे आकाशलोक में कोई समारोह हो रहा हो, ऐसा लग रहा था शिमला तारादेवी से झिलमिलाता हुआ मिलन करने जा रहा हो। लेखक को लगा शिमला में हर रोज़ इसी तरह जगमगाहट होती है जैसे दीपावली हो। लेखक को वह दृश्य एक मिलियन डालर दृश्य लगता है जिसे देखने के लिए कोई भी विदेशी पर्यटक मुँह माँगे दाम दे सकता है। लेखक ने कुछ पूर्व भी शिमला की ऐसी ही अनोखी छवि देखी थी।

एक मोड़ आने पर वह दृश्य लुप्त हो गया। लेखक अपने मित्रों सहित शिमला पहुँच गया। कुछ दिनों बाद शिमला से चण्डीगढ़ लौटते हुए ढल्ली गाँव के पास पहुँच कर कालका के जगमगाते रूप को देखकर उसे शिमला की याद हो जाती है। कालका से चण्डीगढ़ की रोशनियाँ भी दिखाई देती हैं जैसे मखमली चादर पर सितारे जड़े गए हों।

प्रश्न 3.
चण्डीगढ़ से शिमला तक की यात्रा का वर्णन प्रस्तुत निबन्ध के आधार पर करें।
उत्तर:
लेखक अपने मित्रों सहित चण्डीगढ़ से किन्नौर की यात्रा के लिए निकला। धर्मपुर पहुंच कर उनकी गाड़ी खराब हो गई जो शाम तक ठीक हुई। वहाँ से चलने के बाद वे सोलन में चाय पीने के लिए रुकते हैं। शिमला जाते समय तारा देवी के मोड़ पर पहुँच कर उन्हें शिमला की रोशनियां दिखाई पड़ती हैं। तारा देवी से दिखाई देने वाला शिमला का दृश्य लेखक को एक मिलियन डालर का दृश्य लगता है। शिमला वे देर रात पहुँचे। माल रोड़ खाली हो चुकी थी। अतः वे सीधे अपने होटल में चले गए।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 20 एक मिलियन डालर दृश्य

(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दें-

प्रश्न 1.
लेखक ने एक मिलियन डॉलर दृश्य किसे कहा है ?
उत्तर:
लेखक ने तारा देवी के मोड़ से आगे बढ़कर दूर से शिमला नगर की बिजली की बत्तियों को देखा तो लेखक को लगा नीचे खड्ड से लेकर ऊपर पहाड़ तक हज़ारों बत्तियाँ एक साथ जगमगा उठी हों। अब बत्तियों को देखकर ऐसा लगा कि आसमान के सारे तारे धरती पर उतर आए हों चारों ओर जगमगाहट देखकर ऐसा लग रहा था कि आकाश लोक में कोई विशेष समारोह है। इसी कारण धरती से आकाश तक पर्वत की ढलाने जगमगा उठी हैं। इसी दृश्य को लेखक ने ‘एक मिलियन डॉलर दृश्य’ कहा है।

प्रश्न 2.
कालका से शिमला जाने का रेल यात्रा का अनुभव क्या है?
उत्तर:
कालका से शिमला छोटी लाइन की रेल से यात्रा करना एक अलग तरह का अनुभव है। सारा रास्ता अद्भुत दृश्यों से भरा पड़ा है। रेल कई गुफाओं से गुज़र कर जाती है। घुमावदार लम्बे मोड़ काटती हुई सीटी बजाती है जैसे डिज्नीलैंड का कोई खेल हो। पर्वतीय दृश्य अत्यन्त मनोहर हैं। ढलाने पेड़ों और हरी घास से ढकी हैं। चीड़ के वृक्षों की लम्बी कतारें देखने को मिलती हैं।

प्रश्न 3.
तारा देवी के मोड़ से निकलने पर शिमला नगर की बिजली की बत्तियों के सौन्दर्य का वर्णन लेखक ने किस प्रकार किया है ?
उत्तर:
तारा देवी के मोड़ से निकलते ही लेखक ने देखा कि नीचे एक खड्ड से लेकर पर्वत की ढलान के साथसाथ ऊपर तक बने हुए घरों में हज़ारों बत्तियां जगमगा उठी हों। इस दृश्य को देखकर लेखक मन्त्र विमुग्ध सा हो उठा। उसे लगा जैसे आकाश के सारे तारे धरती पर उतर आए हों और रंग-बिरंगे मोतियों की तरह झिलमिला रहे हों।

प्रश्न 4.
शिमला से वापस आते हुए चण्डीगढ़ की बत्तियों के दृश्य का वर्णन करें।
उत्तर:
शिमला से वापस आते हुए कालका से चण्डीगढ़ की रोशनियाँ भी दिखाई पड़ती हैं। रात में चण्डीगढ़ एक काली मखमली चादर पर जड़ित सितारों-सा दिखाई देता है। पूर्व से पश्चिम की ओर और उत्तर से दक्षिण की ओर जाती रोशनियों की बीसियों सीधी कतारें नज़र आती हैं। लगता है देवताओं ने रात्रि को सुखना झील के किनारे एक विशाल जगमगाता चौपड़ बिछाया हो या आज की रात आकाश शिवालिक की गोदी में अपना सिर रखकर धरती पर सो रहा हो।

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PSEB 11th Class Hindi Guide एक मिलियन डालर दृश्य Important Questions and Answers

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
शिमला की बत्तियाँ कैसी दिखाई देती हैं ?
उत्तर:
जैसे आकाश लोक में कोई समारोह हो।

प्रश्न 2.
शिमला का दृश्य लेखक को कैसा लगा ?
उत्तर:
लेखक को वह दृश्य एक मिलियन डालर दृश्य लगा।

प्रश्न 3.
लेखक इन्द्र नाथ चावला किसके साथ शिमला गया था ?
उत्तर:
अपने मित्रों के साथ।

प्रश्न 4.
एक मिलियन डालर दृश्य’ में लेखक ने किस स्थान का उल्लेख किया है ?
उत्तर:
चण्डीगढ़ से शिमला की यात्रा का वर्णन किया है।

प्रश्न 5.
लेखक ने किस नगर के सौंदर्य का वर्णन किया है ?
उत्तर:
सोलन।

प्रश्न 6.
लेखक अपने मित्र के साथ कहाँ जा रहा था ?
उत्तर:
पहाड़ की यात्रा पर।

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प्रश्न 7.
‘एक मिलियन डालर दृश्य’ किस प्रकार की विधा है ?
उत्तर:
यात्रा वर्णन।

प्रश्न 8.
पहाड़ी रास्ता कैसा था ?
उत्तर:
टेढ़ा-मेढ़ा।

प्रश्न 9.
चमकते हुए सितारे कैसे झिलमिला रहे थे ? ।
उत्तर:
मोतियों के समान।

प्रश्न 10.
पहाड़ों की ढलानें किससे ढकी थी ?
उत्तर:
पेडों और हरी घास से।

प्रश्न 11.
लेखक ने सोलन में बढ़ रही ……….. का वर्णन किया है।
उत्तर:
आबादी।

प्रश्न 12.
लेखक ने पाठ में किस रेलमार्ग का उल्लेख किया है ?
उत्तर:
कालका-शिमला रेल मार्ग।

प्रश्न 13.
लेखक ने किस प्रकार के दृश्यों का वर्णन किया है ?
उत्तर:
पर्वतों के मनोहारी रूप का वर्णन किया है।

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प्रश्न 14.
रात में चण्डीगढ़ कैसा दिखाई देता था ?
उत्तर:
काली मखमली चादर पर जड़ित सितारों-सा।

प्रश्न 15.
किस झील के बारे में उल्लेख हुआ है ?
उत्तर:
सुखना झील।

प्रश्न 16.
नीला आकाश किसकी गोदी में सिर रखकर सो रहा था ?
उत्तर:
शिवालिक पर्वत की गोदी में।

प्रश्न 17.
बिजली की बत्तियों ने पर्वत की ढलानों को किससे जोड़ दिया था ?
उत्तर:
आकाश लोक से।

प्रश्न 18.
अंधेरे में कौन-सी चीजें अंधकार को और अधिक बढ़ा देती हैं ?
उत्तर:
चमकदार चीजें।

प्रश्न 19.
रात की देवी ने बालों में क्या गूंथ रखा था ?
उत्तर:
रत्न जड़ित मालाएँ।

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प्रश्न 20.
………….. के मोड़ से निकलने पर लेखक ने शिमला नगर की बत्तियों का सौंदर्य देखा।
उत्तर:
तारा देवी।

बहुविकल्पी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
‘एक मिलियन डालर दृश्य’ में किस माया का वर्णन है ?
(क) चंडीगढ़ से वैष्णो देवी
(ख) चंडीगढ़ से शिमला
(ग) चंडीगढ़ से मनाली
(घ) चंडीगढ़ से जम्मू।
उत्तर:
(ख) चंडीगढ़ से शिमला

प्रश्न 2.
प्रस्तुत निबंध में लेखक ने किसके सौंदर्य का चित्रण किया है ?
(क) पर्वतीय
(ख) समुद्रीय
(ग) जंलीय
(घ) वाष्पीय।
उत्तर:
(क) पर्वतीय

प्रश्न 3.
लेखक को कहां का एक दृश्य एक मिलियन डालर जैसा प्रतीत हुआ ?
(क) शिमला का
(ख) चंडीगढ़ का
(ग) जम्मू का
(घ) सोलन का।
उत्तर:
(क) शिमला का।

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कठिन शब्दों के अर्थ :

विख्यात = प्रसिद्ध। अवसर = मौका। हरीतिमा = हरियाली। कटाव = मोड़। अद्भुत = अनोखा। चिरस्मरणीय = देर तक याद रहने वाला।

प्रमुख अवतरणों की सप्रसंग व्याख्या

(1) एक जगह तो पर्वत से पत्थर और चट्टानें गिरने से एक नदी का जल मार्ग ही रुक गया था और एक छोटी-सी झील बन गई थी। फिर पानी के तेज़ प्रवाह से यह प्राकृतिक बाँध स्वयं ही टूट गया और जलाशय खाली हो गया।

प्रसंग :
प्रस्तुत अवतरण प्रो० इन्द्रनाथ चावला द्वारा लिखित यात्रावृत्त ‘एक मिलियन डालर दृश्य’ में से लिया गया है। इस यात्रावृत्त में लेखक ने अपनी चण्डीगढ़ से शिमला यात्रा के दौरान तारा देवी के मोड़ से शिमला शहर को देखे अद्भुत दृश्य का वर्णन किया है।

व्याख्या :
लेखक ने किन्नौर की सड़कों का भूकम्प के बाद होने वाली हालत का वर्णन किया है। लेखक कहता है कि किन्नौर की सड़क पर एक स्थान पर पर्वत से पत्थर और चट्टानें गिरने से एक नदी का जल मार्ग ही रुक गया था इसलिए वहाँ एक छोटी-सी झील बन गई थी। उस झील के कारण जो वहाँ एक बाँध सा बन गया था वह नदी के तेज बहाव के कारण अपने आप ही टूट गया और इस तरह वह झील खाली हो गई। अब वहाँ पानी इकट्ठा नहीं रहा था।

विशेष :

  1. लेखक ने प्राकृतिक दृश्य का सुन्दर वर्णन किया है।
  2. भाषा सरल, सहज एवं रोचक है।
  3. तत्सम शब्दावली है।
  4. चित्रात्मक शैली का प्रयोग है।

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(2) सोलन नगर के बीचों बीच शिमला जाने वाली सड़क है। घर, बाजार, कॉलेज, दफ्तर, सिनेमा और होटल सब इसी सड़क के किनारे स्थित हैं। बाजार के बीच में ही बस अड्डा भी है। इसलिए हर समय बाजार में भीड़ रहती है।

प्रसंग :
प्रस्तुत अवतरण प्रो० इन्द्रनाथ चावला द्वारा लिखित यात्रावृत ‘एक मिलियन डालर दृश्य’ से लिया गया है। इसमें लेखक ने सोलन में बढ़ रही भीड़ के कारण का वर्णन किया है।

व्याख्या :
लेखक ने चण्डीगढ़ शिमला मार्ग पर स्थित सोलन नगर का चित्र अंकित किया है। लेखक कहता है कि सोलन नगर के बीचों बीच शिमला जाने वाली सड़क है। इसलिए इसी सड़क के किनारे घर, बाजार, कॉलेज, दफ्तर, सिनेमा और होटल आदि बने हुए हैं। बाजार के बीच में ही बस अड्डा भी है इसलिए यहाँ हर समय भीड़ रहती है। सोलन में बढ़ती भीड़ का कारण सोलन में से शिमला तक विशेष जाने वाली सड़क है। लेखक सोलन में बढ़ रही आबादी का वर्णन करता है जिसके कारण वहाँ गन्दगी बढ़ रही है।

विशेष :

  1. इसमें लेखक ने सोलन नगर का दृश्य प्रस्तुत किया है।
  2. भाषा सरल एवं सहज है।।
  3. तत्सम एवं तद्भव शब्दावली है।
  4. वर्णनात्मक शैली है।

(3) पर्वतीय दृश्य बहुत मनोहर है। ढलाने पेड़ों और हरी घास से ढकी हैं और धीरे-धीरे ऊँचाई बढ़ने से वनस्पति और ढलानों की हरीतिमा की चादर के रंगों में भी परिवर्तन आता जाता है।

प्रसंग :
प्रस्तुत अवतरण प्रो० इन्द्रनाथ चावला द्वारा लिखित यात्रा वृतान्त ‘एक मिलियन डालर दृश्य’ में से लिया गया है। इसमें लेखक ने प्रकृति सौंदर्य का वर्णन किया है।

व्याख्या :
लेखक ने कालका-शिमला रेल मार्ग के साथ-साथ जाते हुए प्राकृतिक सौन्दर्य का वर्णन किया है। लेखक कहता है कि कालका-शिमला मार्ग पर पहाड़ के दृश्य मन को लुभाने वाले हैं। पहाड़ों की ढलाने पेड़ों और हरी घास से ढकी हैं और ज्यों-ज्यों ऊँचाई बढ़ती जाती है तो ऐसा लगता है कि पेड़-पौधो और ढलानों की हरियाली की चादर ने ढक रखा है और उनके रंगों में भी बदलाव आता जाता है। पहाड़ों के दृश्य वनस्पति के कारण हर समय एक नए रंग में दिखाई देते हैं।

विशेष :

  1. पर्वतों के मनोहारी दृश्यों का वर्णन है जिसमें प्रकृति अपने विभिन्न रंग रूप दिखाती है।
  2. भाषा सरल एवं सहज है।।
  3. तद्भव एवं तत्सम शब्दावली है।
  4. चित्रात्मक शैली है।

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(4) ऐसा लगता था कि आज की रात आकाश के सारे सितारे धरती पर उतर आए हों। हमारे इतने समीप। केवल एक खड्ड भर की दूरी थी।अन्धेरे में खड्ड भी तो दिखाई नहीं देती। सारी दूरी मिट जाती थी। वे सब और समीप आ गए थे हमारे। जैसे हम उन्हें हाथों से छू सकते थे। दीप्तमान सहस्रों सितारे रंग-बिरंगे मोतियों की तरह झिलमिला रहे थे।

प्रसंग :
प्रस्तुत अवतरण प्रो० इन्द्र नाथ चावला द्वारा लिखित ‘एक मिलियन डालर का दृश्य’ से लिया गया है। लेखक ने रात के समय पर्वतीय क्षेत्र की सुंदरता का सहज वर्णन किया है।

व्याख्या :
प्रस्तुत पंक्तियों में लेखक तारा देवी के मोड़ से देखे गए शिमला शहर के बिजली की बत्तियों से जगमगाते दृश्य का वर्णन कर रहे हैं। लेखक कहता है कि शिमला शहर में बत्तियों की रोशनी ऐसे प्रतीत हो रही थी जैसे रात में आकाश के सारे सितारे धरती पर उतर आए हों और वे दूर आकाश में न होकर हमारे बहुत निकट हों। हमारे और सितारों के बीच में एक खड्ड वे दूरी थी और अन्धेरे में वह खड्ड भी दिखाई नहीं देती थी। अत: सारी दूरी मिट गई थी। वे सितारे जैसे हमारे इतने निकट आ गए थे कि हम उन्हें अपने हाथों से छू सकते थे। चमकते हुए हज़ारों सितारे रंग-बिरंगे मोतियों की तरह झिलमिला रहे थे। रात के समय पहाड़ों पर बिजली की बत्तियों का दृश्य बहुत मनोहर था।

विशेष :

  1. लेखक को शिमला शहर में जलती हुई बत्तियाँ आकाश के चमकते हुए सितारों के समान लग रही थीं।
  2. भाषा सरल, सहज एवं रोचक है।
  3. तद्भव और तत्सम शब्दावली है।
  4. चित्रात्मक शैली है।

(5) क्या आज आकाशलोक में कोई विशेष समारोह है जो ये सब धरती से आकाश तक पर्वत की ढलाने सहस्रों जगमगाते हीरे-मोतियों, मणियों और मूंगों से जड़ी हैं। अथवा रात्रि देवी के लम्बे काले केशों में यह कोई रत्नजड़ित मालाएँ हैं जिनके हीरे मोती जगमगा कर अन्धकार को और भी गहरा कर देते हैं।

प्रसंग :
प्रस्तुत अवतरण प्रो० इन्द्रनाथ चावला द्वारा लिखित मिलियन डालर का दृश्य से लिया गया है। लेखक ने शिमला की रात्रिकालीन सुंदरता का वर्णन किया है।

व्याख्या :
प्रस्तुत पंक्तियों में लेखक शिमला शहर में बिजली की बत्तियों को देखकर कल्पना करता हुआ कहता है कि आज आकाश में कोई विशेष समारोह है इसलिए धरती और आकाश के बीच बनी पर्वत की ढलाने हज़ारों जगमगाते होरेमोतियों, मणियों और मूंगों से सजी हुई हैं जिनके हीरे मोती जगमगा कर अन्धेरे को और भी गहरा कर देते हैं। अर्थात् बिजली की बत्तियों ने पर्वत की ढलानों को आकाश लोक तक जोड़ दिया है। उनकी जगमगाहट किसी विशेष समारोह की याद दिलाती थी या फिर ऐसा लग रहा था जैसे रात की देवी ने अपने बालो में रत्न जड़ित मालएं गूंथ रखी हैं जिससे हीरे मोतियों की चमक ने रात के अंधकार को और भी बढ़ा दिया था। अन्धेरे में चमकदार चीजें अन्धकार को ओर बढ़ा देती हैं।

विशेष :

  1. लेखक ने दूर शिमला में जल रही बत्तियों की जगमगाट से धरती और आकाश भुला दिया है।
  2. बत्तियों की जगमगाहट से ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे आकाशलोक में समारोह हो रहा है।

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(6) कहीं ऐसा तो नहीं कि आज देवताओं ने रात्रि को सुखना झील के किनारे एक विशाल जगमगाता चौपड़ बिछाया हो या आज की रात नीला आकाश शिवालिक की गोदी में अपना सिर रख धरती पर सो रहा हो।

प्रसंग :
प्रस्तुत अवतरण प्रो० इन्द्रनाथ चावला द्वारा लिखित यात्रा वृतान्त ‘एक मिलियन डॉलर का दृश्य’ से लिया गया है। लेखक ने चंडीगढ़ की प्राकृतिक सुंदरता का सहज वर्णन किया है।

व्याख्या :
प्रस्तुत पंक्तियों में लेखक ने कालका से जगमगाते चण्डीगढ़ को देखकर अपनी कल्पना को अभिव्यक्त किया है। लेखक को लगता है कि आज देवताओं ने रात में सुखना झील के किनारे एक बहुत बड़ा जगमगाता चौपड़ बिछाया हो अथवा आज की रात नीला आकाश शिवालिक पर्वत की गोदी में अपना सिर रख धरती पर सो रहा हो।

विशेष :

  1. रात के समय चण्डीगढ़ के जगमगाते रूप का वर्णन किया गया है।
  2. भाषा सरल है।
  3. तद्भव एवं तत्सम शब्दावली है।
  4. चित्रात्मक शैली है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 20 एक मिलियन डालर दृश्य

एक मिलियन डालर दृश्य Summary

एक मिलियन डालर दृश्य निबन्ध का सार

‘एक मिलियन डालर दृश्य’ इन्द्रनाथ चावला द्वारा लिखित है। प्रस्तुत निबन्ध में लेखक ने चण्डीगढ़ से शिमला की यात्रा का वर्णन किया है। इसके साथ ही लेखक ने सोलन नगर के सौन्दर्य का वर्णन करते हुए वहाँ के जन जीवन की समस्याओं की ओर संकेत किया है। लेखक अपने मित्र के साथ पहाड़ की यात्रा के लिए जा रहा है। दोनों लोग चण्डीगड़ से हिमाचल में किन्नौर की यात्रा के लिए निकले। किन्तु कालका शिमला सड़क पर स्थित धर्मपुर पहुँच कर उनकी गाड़ी खराब हो गई। शाम तक गाड़ी ठीक हुई और वे आगे बढ़ गए। मार्ग में सोलन में चाय पीने के लिए रुके। सोलन में कृषि विश्वविद्यालय और जिला बनने से वहाँ की आबादी बढ़ गई है।

परिवार एक-एक कमरे में रहते हैं जिससे गन्दगी दिखाई देती है। लेखक यहाँ कालका से शिमला जाने वाली छोटी लाइन की रेलगाड़ी का वर्णन करता है जिससे यात्रा करना अत्यन्त सुखद लगता है। गाड़ी बिगड़ जाने के कारण रात उन्हें शिमला में ही बिताने का निर्णय लेना पड़ा। पहाड़ी रास्ता टेढ़ा-मेढ़ा होने के कारण वे आपस में बातचीत भी नहीं कर रहे थे। तारादेवी पहुँच कर उन्होंने सुख की साँस ली। वहाँ शिमला की बत्तियाँ ऐसे दिखाई देती थीं जैसे आकाशलोक में कोई समारोह हो रहा हो, ऐसा लग रहा था शिमला तारादेवी से झिलमिलाता हुआ मिलन करने जा रहा हो। लेखक को लगा शिमला में हर रोज़ इसी तरह जगमगाहट होती है जैसे दीपावली हो। लेखक को वह दृश्य एक मिलियन डालर दृश्य लगता है जिसे देखने के लिए कोई भी विदेशी पर्यटक मुँह माँगे दाम दे सकता है। लेखक ने कुछ पूर्व भी शिमला की ऐसी ही अनोखी छवि देखी थी।

एक मोड़ आने पर वह दृश्य लुप्त हो गया। लेखक अपने मित्रों सहित शिमला पहुँच गया। कुछ दिनों बाद शिमला से चण्डीगढ़ लौटते हुए ढल्ली गाँव के पास पहुँच कर कालका के जगमगाते रूप को देखकर उसे शिमला की याद हो जाती है। कालका से चण्डीगढ़ की रोशनियाँ भी दिखाई देती हैं जैसे मखमली चादर पर सितारे जड़े गए हों।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 19 रसायन और हमारा पर्यावरण

Punjab State Board PSEB 11th Class Hindi Book Solutions Chapter 19 रसायन और हमारा पर्यावरण Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Hindi Chapter 19 रसायन और हमारा पर्यावरण

Hindi Guide for Class 11 PSEB रसायन और हमारा पर्यावरण Textbook Questions and Answers

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दो-

प्रश्न 1.
रसायन हमारी आवश्यकता है। जीवन के विभिन्न क्षेत्रों से उदाहरण देते हुए स्पष्ट करें।
उत्तर:
हम रसायनों के युग में रह रहे हैं और आज रसायन हमारी आवश्यकता बन गया है। हमारे पर्यावरण की सारी वस्तुएँ और हम सब, रासायनिक यौगिकों के बने हैं। हवा, मिट्टी, पानी, खाना, वनस्पति और जीव-जन्तु ये सब अजूबे जीवन की रासायनिक सच्चाई ने पैदा किये हैं। प्रकृति में सैंकड़ों-हज़ारों रासायनिक पदार्थ हैं। रसायन न होते तो धरती पर जीवन भी नहीं होता। पानी तो जीवन का आधार है, यह पानी हाइड्रोजन और ऑक्सीजन से बना एक रासायनिक यौगिक है। मधुर मीठी चीनी कार्बन, हाइड्रोजन और ऑक्सीजन से बनी है। कोयला और तेल, बीमारियों से मुक्ति दिलाने वाली औषधियाँ-एंटीबायोटिक्स, एस्प्रीन और पेनेसिलिन, अनाज, सब्ज़ियाँ, फल और मेवे भी तो रसायन हैं। इस प्रकार यह हमारे पर्यावरण में सदा से विद्यमान रहे हैं इसीलिए इनकी महत्ता के विषय में जानकारी होनी आवश्यक है, क्योंकि ये हमारे जीवन की आवश्यकता है।

प्रश्न 2.
‘रसायनों का ज़रूरत से अधिक और गलत प्रयोग हमारे पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए विनाशकारी सिद्ध हो सकता है।’ पाठ से उदाहरण देकर इस तथ्य को सिद्ध करें।
उत्तर:
रसायनों का प्रयोग उत्पाद में वृद्धि के लिए किया जाता है किन्तु इसका अधिक प्रयोग भूमि प्रदूषण एवं जलाने का कारण तो बनता ही है, स्वास्थ्य के लिए भी हानिकारक है। फलों और सब्जियों पर किया जाने वाला कीटनाशक दवाइयों का अधिक प्रयोग खाने वालों के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। अनेक रसायन ऐसे हैं जिनका अधिक एवं गलत प्रयोग गम्भीर एवं भयंकर रोग पैदा करने वाला होता है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 19 रसायन और हमारा पर्यावरण

प्रश्न 3.
‘रसायन और हमारा पर्यावरण’ निबन्ध का सार लिखें।
उत्तर:

‘रसायन और हमारा पर्यावरण’ डॉ० एम० एल० रामनाथन द्वारा लिखित है। लेखक ने इस निबन्ध में आधुनिक जीवन में रसायनों के दिन प्रतिदिन बढ़ रहे प्रयोग के प्रति मानव को सतर्क किया है। नि:संदेह रसायनों का प्रयोग आज अनिवार्य है। परन्तु हमें उनके प्रयोग में सावधानी बरतते हुए विनाशकारी और हानिकारक प्रभाव से जीवन को अधिक-से-अधिक सुरक्षित रखना चाहिए। प्रस्तुत निबन्ध में लेखक के बढ़ते प्रयोग द्वारा पर्यावरण के प्रदूषित होने की बात कही है। लेखक का कहना है कि रसायनों का प्रयोग आज के युग की आवश्यकता बन गया है। जीवन का प्रत्येक क्षेत्र रसायनों के प्रभाव से ही जुड़ा हुआ हैं। रसायन न हो तो धरती पर जीवन ही सम्भव न हो पाता। चीनी, कोयला, तेल तथा बीमारियों से मुक्ति दिलाने वाली एंटीबायोटिक्स, एस्प्रीन और पेनेसिलन जैसी औषधियाँ, सब्ज़ियाँ, फल, मेवे इत्यादि सभी रसायन होते हैं। आज रसायन विज्ञान काफ़ी उन्नत अवस्था में हैं। किन्तु चिंता का विषय रसायनों के बढ़ते एवं गलत प्रयोग से है। रसायनों का अधिक मात्रा में प्रयोग पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए विनाशकारी सिद्ध हो सकता है। आज रसायनों के ऐसे प्रयोग विनाशकारी होने के कारण चिंता का कारण हैं। हालांकि रसायन उद्योग में रसायनों के संपर्क में रहने वाले कर्मचारियों के लिए कदम उठाए गए हैं।

खेतों में रसायनों का प्रयोग उत्पाद में वृद्धि में उपयोगी तो है किन्तु इसका अंधा-धुंध प्रयोग हानिकारक भी है। ये रसायन कैंसर जैसी भयंकर बीमारियाँ भी फैलाते हैं। रसायन तो शुरू से ही हमारे पर्यावरण का हिस्सा रहे हैं। हमें कम रसायनों के बारे में जानने की अधिक ज़रूरत है। हमें किसी भी रसायन का हानिकारक रूप ढूँढना होगा, तब तक उसका प्रयोग जारी रहना चाहिए किन्तु उसके गलत प्रयोग पर हाथ पीछे खींचना चाहिए।

(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दें-

प्रश्न 1.
रसायनों के तात्कालिक खतरे कौन-से हैं ?
उत्तर:
खेती में इस्तेमाल होने वाले कीटनाशक मनुष्य के लिए किसी हद तक खतरनाक हैं। नमक का अधिक और लम्बे समय तक रक्तचाप बढ़ने का कारण बन सकता है। समुद्र के पानी में अनेक रसायन मिले होने के कारण सेहत के लिए उसे पीना भी खतरनाक है। रसायनों का सबसे बड़ा खतरा कैंसर जैसे रोग के फैलने का है।

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प्रश्न 2.
रसायनों के दीर्घकालिक प्रभाव क्या हैं ? उदाहरण देकर उत्तर दें।
उत्तर:
रसायनों के दीर्घकालिक खतरे अभी हाल ही में उजागर हुए हैं। कुछ रसायन आगामी पीड़ियों को प्रभावित करते हैं। जैसे थैलीडोमाईड तथा ऐस्वेस्टॉस जो कैंसर पैदा करता है। इसी तरह पौलीकलोरीनेटिड बाइफेनिल जो बाद में जीवों, मछलियों और यहां तक कि मनुष्य के लिए भी खतरा उत्पन्न कर देते हैं।

प्रश्न 3.
रसायनों के प्रयोग में नियन्त्रण व निर्णय में सरकार की क्या भूमिका हो सकती है ? स्पष्ट करें।
उत्तर:
रसायनों के गलत एवं अधिक प्रयोग से होने वाली हानियों से सरकार जनता को अवगत करवा सकती है। पर्यावरण को रसायन किसी प्रकार की हानि नहीं पहुँचा सकें इसके लिए उचित कानून बना सकती है। सरकार ने पर्यावरण सुरक्षा सम्बन्धी एक अलग से विभाग भी बनाया है। पर्यावरण को सुरक्षित रखने के अनेक उपाय भी किए हैं। किन्तु हमारा मानना है कि सरकार के साथ-साथ आम लोगों को भी इसमें सहयोग देना चाहिए।

प्रश्न 4.
पर्यावरण को रसायनों से होने वाली हानि से कैसे बचाया जा सकता है ? स्पष्ट करें।
उत्तर:
पर्यावरण को रसायनों से होने वाली हानि से बचने के लिए हमें उनका नियन्त्रित प्रयोग करना चाहिए। कुछ रसायन अपने आप में सुरक्षित हैं किन्तु वे उस समय हानि पहुँचाते हैं जब उनका मेल अन्य पदार्थों का होता है। हमें इससे बचना चाहिए। इस तरह हम कैंसर जैसे भयानक रोग एवं पेट की बीमारियों से बच सकते हैं। रसायनों के प्रयोग सम्बन्धी सरकारी कानून और नियमों का पालन करना चाहिए। रसायनों का प्रयोग उनसे जुड़े अनुसंधान या सूचनाओं के आधार पर ही करना चाहिए। रसायनों के प्रयोग से होने वाली हानि एवं लाभ को ध्यान में रखना चाहिए। रसायनों का प्रयोग सुरक्षित ढंग से सुरक्षित मात्रा में करना चाहिए। रासायनिक सुरक्षा को प्रतिदिन का कार्य मान लिया जाना चाहिए। इस तरह हम रासायनों से होने वाली हानि से बच सकते हैं।

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PSEB 11th Class Hindi Guide रसायन और हमारा पर्यावरण Important Questions and Answers

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
हमें किसी भी रसायन का कौन-सा रूप ढूँढ़ना होगा ?
उत्तर:
हानिकारक रूप।

प्रश्न 2.
आज रसायनों का प्रयोग चिंता का कारण क्यों बना है ?
उत्तर:
रसायनों के अंधा-धुंध प्रयोग के कारण।

प्रश्न 3.
‘रसायन और हमारा पर्यावरण’ के माध्यम से लेखक ने क्या संदेश दिया है ?
उत्तर:
रसायनों के प्रयोग के प्रति मानव को सतर्क किया है।

प्रश्न 4.
पर्यावरण प्रदूषित क्यों हुआ है ?
उत्तर:
रसायनों के अधिक प्रयोग के कारण।

प्रश्न 5.
जीवन का प्रत्येक क्षेत्र किससे जुड़ा हुआ है ?
उत्तर:
रसायनों से।

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प्रश्न 6.
रसायनों के विनाशकारी प्रभाव से जीवन को ………. रखना होगा।
उत्तर:
सुरक्षित।

प्रश्न 7.
रसायन कौन-सी बीमारियाँ फैलाते हैं ?
उत्तर:
कैंसर जैसी।

प्रश्न 8.
प्रारम्भ से हमारे पर्यावरण का कौन हिस्सा रहे हैं ?
उत्तर:
रसायन।

प्रश्न 9.
आज का युग किसका युग कहा जा सकता है ?
उत्तर:
रसायनों का।

प्रश्न 10.
पानी कैसे बना है ?
उत्तर:
हाइड्रोजन और ऑक्सीजन के योग से।

प्रश्न 11.
चीनी कैसे बनी है ?
उत्तर:
कार्बन, हाइड्रोजन और ऑक्सीजन।

प्रश्न 12.
प्रकृति में …………. रासायनिक पदार्थ हैं।
उत्तर:
सैकड़ों-हज़ारों।

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प्रश्न 13.
रसायनों का प्रयोग किस लिए किया जाता है ?
उत्तर:
उत्पाद की वृद्धि के लिए।

प्रश्न 14.
कुछ रसायन …………… को प्रभावित करते हैं।
उत्तर:
आगामी पीढ़ियों को।

प्रश्न 15.
हमारे पर्यावरण की सारी वस्तुएँ किसके योग से बनी हैं ?
उत्तर:
रसायनों के योग से।

प्रश्न 16.
कीटनाशक के प्रयोग से पर्यावरण पर क्या असर पड़ता है ?
उत्तर:
पर्यावरण प्रदूषित होता है।

प्रश्न 17.
हमारी मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति कौन करता है ?
उत्तर:
रसायन।

प्रश्न 18.
कुशल व्यक्ति की देखरेख में किया गया रासायनिक छिड़काव कैसा रहता है ?
उत्तर:
उत्पादन वृद्धि में सहायक।

प्रश्न 19.
हमें किसके बारे में जानने की अधिक ज़रूरत है ?
उत्तर:
रसायनों के।

प्रश्न 20.
किससे संबंधित आँकड़े विश्वास करने योग्य हैं ?
उत्तर:
कैंसर।

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बहुविकल्पी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
‘रसायन और हमारा पर्यावरण’ किस विधा की रचना है ?
(क) कविता
(ख) निबन्ध
(ग) कहानी
(घ) उपन्यास।
उत्तर:
(ख) निबंध

प्रश्न 2.
इस निबन्ध में लेखक ने मानव को किसके प्रयोग के प्रति सतर्क किया है ?
(क) रसायनों के
(ख) विज्ञान के
(ग) जल के
(घ) प्रदूषण के।
उत्तर:
(क) रसायनों के

प्रश्न 3.
रसायन के बिना धरती पर क्या संभव नहीं था ?
(क) वायु
(ख) जल
(ग) जीवन
(घ) मरण।
उत्तर:
(ग) जीवन

प्रश्न 4.
रसायनों का अधिक प्रयोग कैसा है ?
(क) हानिकारक
(ख) लाभदायक
(ग) शिथिल
(घ) शीत।
उत्तर:
(क) हानिकारक।

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कठिन शब्दों के अर्थ :

अपरिहार्य = जिसे त्यागा न जा सके। अभिक्रिया = रासायनिक प्रतिक्रिया। मारकशक्ति = मारने की शक्ति । आनुवंशिक = वंश परम्परा के अनुसार, पुश्तैनी। क्षयकारी = विनाशकारी। अप्रत्याशित = जिसकी आशा न हो। तात्कालिक = उस समय का । प्रतिबन्ध = रोक।

प्रमुख अवतरणों की सप्रसंग व्याख्या

(1) हम रसायनों के युग में रह रहे हैं। हमारे पर्यावरण की सारी वस्तुएँ और हम सब, रासायनिक यौगिक के बने हैं। हवा, मिट्टी, पानी, खाना, वनस्पति और जीव-जन्तु ये सब अजूबे जीवन की रासायनिक सच्चाई ने पैदा किए हैं। प्रकृति में सैंकड़ों, हज़ारों रासायनिक पदार्थ हैं । रासायन न होते तो धरती पर जीवन भी नहीं होता।

प्रसंग :
प्रस्तुत अवतरण डॉ० एम० एल० रामनाथन द्वारा लिखित निबन्ध ‘रसायन और हमारा पर्यावरण’ में से लिया गया है। प्रस्तुत निबन्ध में लेखक ने प्रकृति में आदिकाल से ही रसायनों के विद्यमान होने की बात कहते हुए इनके अत्यधिक एवं गलत प्रयोग के लिए मनुष्य को सतर्क किया है।

व्याख्या :
लेखक कहता है कि आज का युग रसायनों का युग है अर्थात् हम लोग इनके बिना जीवन जीने की कल्पना नहीं कर सकते। हमारे पर्यावरण की सारी वस्तुएँ तथा हम सब रसायनों के मेल से ही बने हैं। हवा, मिट्टी, पानी, भोजन, पेड़-पौधे और जीव-जन्तु ये सब रसायनों से ही बने हैं। यह सच है कि हमारी उत्पत्ति भी एक रसायन क्रिया है इससे हम इन्कार नहीं कर सकते हैं। प्रकृति में सैंकड़ों हज़ारों रासायनिक पदार्थ हैं। यदि रसायन न होते तो धरती पर जीवन ही न होता। रसायन प्रकृति का अंग हैं और हमारा जीवन भी इन्हीं के मेल से बना है।

विशेष :

  1. भाषा सरल, स्वाभाविक एवं प्रभावशाली है।
  2. तत्सम तथा उर्दू शब्दावली है।
  3. शैली विचारात्मक है।

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(2) मनुष्य और रसायन-उद्योग ने रसायन के तात्कालिक उग्र खतरे को पहचानने की दिशा में अच्छा काम किया है और जनता तथा उन कर्मचारियों को, जो काम के दौरान रसायनों के सम्पर्क में रहते हैं, रसायनों के कुप्रभाव से बचने के लिए आवश्यक एतिहायाती कदम उठाए गए हैं।

प्रसंग :
प्रस्तुत अवतरण डॉ० एम० एल० रामनाथन द्वारा लिखित निबन्ध ‘रसायन और हमारा पयांवरण’ में से लिया गया है। इसमें लेखक ने रसायनों के खतरों को पहचान कर किए काम की ओर संकेत किया है।

व्याख्या :
लेखक ने रसायन उद्योग द्वारा अपनाए गए बचाव कदमों का उल्लेख करते हुए कहा है कि मनुष्य और रासायनिक उद्योग ने रसायन के उसी समय होने वाले तेज़ खतरे को पहचानने की दिशा में अच्छा काम किया है। जं लोग इस काम में लगे हैं वे इन कामों से होने वाले खतरों के प्रति सतर्क हैं। उसने जनता तथा उन कर्मचारियों को जो काम के समय रसायनों के सम्पर्क में रहते हैं, रसायनों के बुरे प्रभाव से बचाने के लिए आवश्यक सावधानी वाले य बचाव वाले कदम उठाए हैं। रसायनों के प्रयोग से उत्पन्न खतरों की जागरूकता ने लोगों को स्वास्थ्य के प्रति जागरूक किया है।

विशेष :

  1. मनुष्य का स्वास्थ्य के प्रति जागरूक होना ही रसायन के ग़लत प्रयोग को रोक सकता है।
  2. भाषा प्रभावशाली है।
  3. तत्सम और उर्दू शब्दावली है।
  4. शैली विचारात्मक है।

(3) खेती में इस्तेमाल होने वाले कीटनाशक मनुष्य के लिए किसी हद तक ज़हरीले हैं, इन्हें पर्यावरण में जानबूझ कर छिड़का जाता है, किन्तु इसके लिए इन्हें भली-भान्ति परखा जाता है और इस्तेमाल की अनुमति दी जाती है। कारण इससे फसल की वृद्धि के रूप में अधिक लाभ प्राप्त होता है।

प्रसंग :
प्रस्तुत अवतरण डॉ० एम० एल० रामनाथन द्वारा लिखित निबन्ध रसायन और हमारा पर्यावरण से लिया गया है। इसमें लेखक ने कीटनाशक के होने वाले प्रयोग से लाभ और हानि का वर्णन किया है

व्याख्या :
लेखक ने बताया है कि रसायनों के उचित छिड़काव से फसल के उत्पाद में वृद्धि हो सकती है। लेखक कहते हैं कि खेतों में प्रयोग होने वाले कीटनाशक मनुष्य के लिए कुछ सीमा तक विषैले हैं। फसलों पर छिड़का गया कीटनाशक खाने के साथ मनुष्य के शरीर में प्रवेश करता है तथा उसे अस्वस्थ बना देता है। इन्हें पर्यावरण में जान-बूझ कर छिडका जाता है। कीटनाशक के प्रयोग से पर्यावरण दूषित होता है किन्तु यदि इन्हें भली प्रकार से जाँच-परखकर प्रयोग की सलाह दी जाए तो फसल के उत्पाद में वृद्धि हो सकती है। कुशल व्यक्ति की देख-रेख में छिड़का गया कीटनाशक फसलों की पैदावार बढ़ाने में सहायाक है।

विशेष :

  1. कीटनाशक फसलों के उत्पादन को बढ़ाते हैं।
  2. भाषा सरल है।
  3. त्सम और उर्दू शब्दावली है।
  4. शैली वर्णनात्मक है।

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(4) रसायन हमारी आवश्यकता हैं। ये हमारे पर्यावरण में हमेशा मौजूद हैं जो सूक्ष्म अथवा लेशमात्र भी अर्थपूर्ण हो सकते हैं। इन लेश रसायनों के बारे में हमें अधिक जानने की ज़रूरत है।

प्रसंग :
प्रस्तुत अवतरण डॉ० एम० एल० रामनाथन द्वारा रचित वैज्ञानिक निबन्ध रसायन और पर्यावरण से लिया गया है जिसमें रसायनों के महत्त्व को प्रकट किया गया है।

व्याख्या :
लेखक कहता है कि रसायन हमारी आवश्यकता है। ये हमारे पर्यावरण में सदा से विद्यमान हैं। रसायन का प्रयोग आधुनिक जीवन की देन नहीं है। यह आदिकाल से ही प्रकृति में विद्यमान हैं। ये रसायन सूक्ष्म हों चाहे थोड़ी मात्रा में, अर्थपूर्ण हो सकते हैं। इन थोड़ी मात्रा में विद्यमान रसायनों के बारे में जानने की हमें अधिक ज़रूरत है। रसायनों के लाभ-हानि सम्बन्धी जानकारी प्राप्त करना अत्यन्त आवश्यक है। क्योंकि आज रसायन प्राकृतिक नहीं हैं यह यौगिक क्रियाओं की देन हैं इसलिए इनका उचित ज्ञान होना आवश्यक है।

विशेष :

  1. रसायन हमारी मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं।
  2. शब्दावली तत्सम एवं उर्दू है।
  3. शैली वर्णनात्मक है।
  4. भाषा संस्कृत एवं उर्दू है।

(5) कैंसर बहुत भयानक रोग है। कहा जाता है कि कैंसर अधिकतर पर्यावरणीय रसायनों के प्रति उद्भासन के कारण होता है। यह तथ्य है या यूं ही उड़ाई गई बात ? कैंसर से सम्बन्धित आंकड़े आज विश्वसनीय हैं। ऐसी रिपोर्ट भी मौजूद है जो संकेत देती है कि कैंसर के मामले बढ़ रहे हैं। किन्तु अन्य रिपोर्ट के अनुसार कैंसर के मामले कम होते जा रहे हैं। पिछले 25 वर्षों से पेट के कैंसर के मामले में कमी आई है किन्तु फेफड़ों का कैंसर बड़ा है।

प्रसंग :
प्रस्तुत अवतरण डॉ० एम० एल० रामनाथन द्वारा लिखित निबन्ध ‘रसायन और हमारा पर्यावरण’ में से लिया गया है। प्रस्तुत पंक्तियों में लेखक कैंसर जैसे भयानक रोग के बारे में बता रहे हैं।

व्याख्या :
लेखक कहता है कि कैंसर सबसे भयानक रोग है जो अधिकतर पर्यावरणीय रसायनों के प्रति उद्भासन के कारण होता है। कैंसर जैसा भयानक रोग पर्यावरण के प्रदूषित होने के कारण है और यह प्रदूषण खतरनाक रसायनों का कारण है। रसायनों का प्रयोग करने वाले कैंसर का सम्बन्ध उससे मानने से इनकार करते हैं। अब कैंसर के विषय में यह बात तथ्य है या अफवाह इसका कहना मुश्किल है। कैंसर से सम्बन्धित आंकड़े विश्वास करने योग्य हैं। कुछ रिपोर्टों में इसके बढ़ने तथा कुछ में कम होने की बात कही गयी है। पिछले 25 वर्षों में पेट के कैंसर के मामलों में कमी आई है पर फेफड़ों के कैंसर बढ़े हैं अर्थात् रसायनों ने मनुष्य के स्वास्थ्य को प्रभावित किया है। इसीलिए मनुष्य को एक से एक लाईलाज बीमारियों ने घेर रखा है।

विशेष :

  1. रसायनों ने कैंसर की बीमारी से मनुष्य को ही नहीं हमारे समाज में भौतिकवादिता की बीमारी को भी बढ़ावा दिया है।
  2. भाषा सरल है।
  3. तत्सम और उर्दू शब्दावली है।
  4. शैली वर्णनात्मक है।

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रसायन और हमारा पर्यावरण Summary

रसायन और हमारा पर्यावरण निबन्ध का सार

‘रसायन और हमारा पर्यावरण’ डॉ० एम० एल० रामनाथन द्वारा लिखित है। लेखक ने इस निबन्ध में आधुनिक जीवन में रसायनों के दिन प्रतिदिन बढ़ रहे प्रयोग के प्रति मानव को सतर्क किया है। नि:संदेह रसायनों का प्रयोग आज अनिवार्य है। परन्तु हमें उनके प्रयोग में सावधानी बरतते हुए विनाशकारी और हानिकारक प्रभाव से जीवन को अधिक-से-अधिक सुरक्षित रखना चाहिए। प्रस्तुत निबन्ध में लेखक के बढ़ते प्रयोग द्वारा पर्यावरण के प्रदूषित होने की बात कही है। लेखक का कहना है कि रसायनों का प्रयोग आज के युग की आवश्यकता बन गया है। जीवन का प्रत्येक क्षेत्र रसायनों के प्रभाव से ही जुड़ा हुआ हैं। रसायन न हो तो धरती पर जीवन ही सम्भव न हो पाता। चीनी, कोयला, तेल तथा बीमारियों से मुक्ति दिलाने वाली एंटीबायोटिक्स, एस्प्रीन और पेनेसिलन जैसी औषधियाँ, सब्ज़ियाँ, फल, मेवे इत्यादि सभी रसायन होते हैं। आज रसायन विज्ञान काफ़ी उन्नत अवस्था में हैं। किन्तु चिंता का विषय रसायनों के बढ़ते एवं गलत प्रयोग से है। रसायनों का अधिक मात्रा में प्रयोग पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए विनाशकारी सिद्ध हो सकता है। आज रसायनों के ऐसे प्रयोग विनाशकारी होने के कारण चिंता का कारण हैं। हालांकि रसायन उद्योग में रसायनों के संपर्क में रहने वाले कर्मचारियों के लिए कदम उठाए गए हैं।

खेतों में रसायनों का प्रयोग उत्पाद में वृद्धि में उपयोगी तो है किन्तु इसका अंधा-धुंध प्रयोग हानिकारक भी है। ये रसायन कैंसर जैसी भयंकर बीमारियाँ भी फैलाते हैं। रसायन तो शुरू से ही हमारे पर्यावरण का हिस्सा रहे हैं। हमें कम रसायनों के बारे में जानने की अधिक ज़रूरत है। हमें किसी भी रसायन का हानिकारक रूप ढूँढना होगा, तब तक उसका प्रयोग जारी रहना चाहिए किन्तु उसके गलत प्रयोग पर हाथ पीछे खींचना चाहिए।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 18 भीड़ में खोया आदमी

Punjab State Board PSEB 11th Class Hindi Book Solutions Chapter 18 भीड़ में खोया आदमी Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Hindi Chapter 18 भीड़ में खोया आदमी

Hindi Guide for Class 11 PSEB भीड़ में खोया आदमी Textbook Questions and Answers

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दें-

प्रश्न 1.
‘भीड़ में खोया आदमी’ निबन्ध में लेखक ने आम आदमी की समस्याओं को उठाया है। स्पष्ट करें।
उत्तर:
प्रस्तुत निबन्ध में लेखक ने बढ़ती जनसंख्या से उत्पन्न होने वाली समस्याओं को उठाया है। सबसे पहले लेखक ने रेलयात्रा में बढ़ती भीड़ का उल्लेख किया है। रेलयात्रा आजकल बड़ी कठिन हो गई है। आरक्षण के लिए घंटों कतार में खड़ा रहना पड़ता है और बिना आरक्षण के यात्रा करना अधिक भीड़ के कारण कठिन हो गया है। लोग अपने प्राणों को संकट में डालकर छत पर सफर करने को विवश हैं।

दूसरी समस्या बेरोज़गारी की है। देश में बढ़ती जनसंख्या के कारण नौकरियाँ कम हैं और नौकरी पाने वाले अधिक शिक्षा पूरी कर वर्षों तक युवों को नौकरी नहीं मिलती ! तीसरी समस्या है आवास की कमी। जनसंख्या जिस तेजी से बढ़ रही है उतनी तेजी से मकान नहीं बन रहे हैं फिर मकान बनाने के लिए भूमि भी तो चाहिए। जनसंख्या में वृद्धि के कारण हमारी स्वास्थ्य सेवाएँ भी प्रभावित हो रही हैं। अस्पतालों में रोगियों की भीड़ रही है और डॉक्टरों की संख्या उस अनुपात में बहुत कम है। परिणामस्वरूप लोगों का स्वास्थ्य खराब हो रहा है।

लेखक सुझाव देते हैं कि यदि सीमित परिवार होंगे तो स्वच्छ जलवायु मिलने से लोग स्वस्थ रहेंगे। रेल, बस यात्रा में भीड़ कम होगी, सड़क पर दुर्घटनाएँ कम होंगी। भीड़ में खोया आदमी इतना तो समझ ही जाता है कि यह सब बढ़ती जनसंख्या का परिणाम है। इसलिए लेखक ने प्रस्तुत निबन्ध के माध्यम से आम आदमी की रोटी, कपड़ा, मकान और रोजगार जैसी समस्याओं को उठाया है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 18 भीड़ में खोया आदमी

प्रश्न 2.
इस निबन्ध में लेखक ने सभी समस्याओं का मूल कारण जनसंख्या की वृद्धि बताया है। क्या आप इससे सहमत हैं ? अपने विचारों की पुष्टि के लिए उदाहरण दें।
उत्तर:
प्रस्तुत निबन्ध में लेखक ने देश में उत्पन्न सभी समस्याओं का मूल कारण जनसंख्या की वृद्धि को बताया है लेखक के इस विचार से हम शतप्रतिशत सहमत हैं। जनसंख्या में वृद्धि के परिणामस्वरूप रेल और बस यात्रा दुष्कर हो गई है। लोगों को अपने प्राण संकट में डालकर रेल या बस की छत पर सफर करना पड़ता है। जनसंख्या में वृद्धि के कारण देश में बेरोजगारी अधिक फैल रही है पढ़े-लिखे युवक वर्षों तक कोई नौकरी पाने में सफल नहीं होते। जनसंख्या में वृद्धि के कारण मकान और खाद्यान्न की कमी हो रही है। जितनी तेजी से जनसंख्या बढ़ रही है, उतनी तेजी से मकान नहीं बन रहे।

भले ही विज्ञान की सहायता से खाद्यान्न के उत्पादन में वृद्धि हुई है किन्तु बढ़ती जनसंख्या ने इस वृद्धि को भी निमूर्ल सिद्ध कर दिया है। भूख और गरीबी दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है। जनसंख्या में वृद्धि के कारण और खाद्यान्न की कमी के कारण लोग कुपोषण का शिकार होकर रोगग्रस्त हो रहे हैं। अस्पतालों में रोगियों की भीड़ बढ़ रही है। जनसंख्या में वृद्धि के कारण दुकानदार जो पहले ग्राहक का स्वागत करते थे उन्हें भगवान् मानते थे अब ग्राहकों को अपना काम करवाने के लिए उनकी चिरौरी करनी पड़ती है। जनसंख्या में वृद्धि के कारण देश के अनुशासन पर भी दुष्प्रभाव पड़ता है। सार्वजनिक स्थानों पर भीड़ अधिक बढ़ गई है। सड़क दुर्घटनाएँ भी बढ़ती जनसंख्या के कारण बढ़ रही हैं। लोगों को अपना काम करवाने के लिए अपने समय, शक्ति और धन को बर्बाद करने पड़ता है। जनसंख्या यदि काबू में रहे तो ये समस्याएँ उत्पन्न ही न हों।।

प्रश्न 3.
निबन्ध के नामकरण की सार्थकता को स्पष्ट करें।
उत्तर:
निबन्ध का शीर्षक ‘भीड़ में खोया आदमी अत्यन्त सटीक और सार्थक बन पड़ा है। देश की जनसंख्या में वृद्धि होने के कारण रेल यात्रा में भीड़, अस्पतालों में भीड़, राशन की दुकान पर भीड़, रोजगार कार्यालय में भीड़, सड़कों पर, दफ्तरों में, बाजारों में भीड़ देखकर आम आदमी भीड़ में खाकर रह जाता है। भले ही वह जानता है कि यह सब बढ़ती जनसंख्या का परिणाम है। अतः कहना न होगा कि ‘भीड़ में खोया आदमी’ नामकरण अत्यन्त सार्थक बन पड़ा है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 18 भीड़ में खोया आदमी

(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दें-

प्रश्न 1.
रेल में यात्रा करते समय लेखक को किन-किन समस्याओं का सामना करना पड़ा?
उत्तर:
लेखक ने बिना आरक्षण के ही रेल यात्रा की। जब गाड़ी प्लेटफार्म पर आई तो उसमें तिल धरने की भी जगह नहीं थी। लेखक को कुली ने किसी तरह अन्दर धकेला। गाड़ी से उतरने में भी लेखक को असुविधा हुई। बाहर कूद कर आने पर उसने लोगों को रेल की छत पर सफर करते देखा।

प्रश्न 2.
दीनानाथ को नौकरी न मिलने का क्या कारण था ?
उत्तर:
दीनानाथ को पढ़ाई पूरा किये दो वर्ष हो गए थे। किन्तु देश में बढ़ती जनसंख्या के कारण रोजगार मिलना मुश्किल हो रहा था। रोज़गार कार्यालय में भी उसकी योग्यता वाले हज़ारों व्यक्ति उससे पहले अपना नाम दर्ज करवा चुके थे जब उन्हें कोई नौकरी नहीं मिली तो दीनानाथ को कहाँ से मिलती।

प्रश्न 3.
श्यामलाकांत ने शहर में मकान न मिलने का मुख्य कारण क्या बताया ?
उत्तर:
श्यामलाकांत ने शहर में मकान न मिलने का मुख्य कारण देश की बढ़ती जनसंख्या को बताया। जिस कारण शहर के कई गुणा फैल जाने के बावजूद और नई-नई कालोनियाँ बन जाने पर भी मकान कम पड़ रहे हैं और उन में रहने वालों की संख्या बढ़ती जा रही है।

प्रश्न 4.
श्यामलाकांत का परिवार अस्वस्थ क्यों रहता था ?
उत्तर:
श्यामलाकांत के परिवार के अस्वस्थ रहने का कारण तंग गलियों में रहना है। वहाँ का वातावरण स्वच्छ नहीं है। बड़ा परिवार होने के कारण सभी के स्वास्थ्य की ओर ठीक ढंग से ध्यान नहीं दिया जाता। उनके खाने-पीने की ओर उचित ध्यान नहीं मिलता है। यही कारण है श्यामलाकांत का परिवार बीमार रहता है।

प्रश्न 5.
लेखक ने अपने निबन्ध में बढ़ती हुई भीड़ का समाधान क्या बताया है ?
उत्तर:
लेखक ने सुझाव दिया है कि यदि सीमित परिवार हो, स्वच्छ जलवायु हो और खाने के लिए भरपूर भोजन सामग्री हो तो बीमारी से बचा जा सकता है। यदि बढ़ती जनसंख्या को न रोका गया तो सड़क दुर्घटनाएँ बढ़ेंगी रेलबस में यात्रा करना कठिन हो जाएगा तथा लोगों को अपना काम करवाने के लिए समय-शक्ति और धन का व्यय करना पड़ेगा।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 18 भीड़ में खोया आदमी

PSEB 11th Class Hindi Guide भीड़ में खोया आदमी Important Questions and Answers

अति लघूतरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
स्टेशन पर लीलाधर शर्मा के मित्र का कौन-सा बेटा उन्हें लेने आया था ?
उत्तर:
बड़ा बेटा।

प्रश्न 2.
लेखक के मित्र का घर कितना बड़ा था ?
उत्तर:
दो कमरों का घर था।

प्रश्न 3.
‘भीड़ में खोया आदमी’ किस प्रकार की विधा है ?
उत्तर:
निबंध।

प्रश्न 4.
‘भीड़ में खोया आदमी’ में किस समस्या को उठाया गया है ?
उत्तर:
बढ़ती जनसंख्या से उत्पन्न समस्याओं को।

प्रश्न 5.
सबसे पहले लेखक ने किस समस्या का उल्लेख किया ?
उत्तर:
रेलयात्रा में बढ़ती भीड़ का।

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प्रश्न 6.
आरक्षण के लिए घंटों ……………. में खड़ा रहना पड़ता है।
उत्तर:
कतार।

प्रश्न 7.
बढ़ती जनसंख्या से उपजी समस्याएँ कौन-सी हैं ?
उत्तर:
बेरोजगारी, भुखमरी आदि।

प्रश्न 8.
तीसरी सबसे बड़ी समस्या कौन-सी है ?
उत्तर:
आवास की समस्या।

प्रश्न 9.
लेखक ने रेल यात्रा कैसे की थी ?
उत्तर:
बिना आरक्षण के।

प्रश्न 10.
क्या मिलने से लोग स्वस्थ रहेंगे ?
उत्तर:
स्वच्छ जलवायु।

प्रश्न 11.
किसी सहायता से खाद्यान्न में वृद्धि हुई है ?
उत्तर:
विज्ञान।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 18 भीड़ में खोया आदमी

प्रश्न 12.
…………… दुर्घटनाएँ बढ़ती जनसंख्या का कारण बन रही हैं।
उत्तर:
सड़क।

प्रश्न 13.
लोगों को अपना काम करवाने के लिए क्या करना पड़ता है ?
उत्तर:
अपना समय, शक्ति तथा धन बर्बाद करना पड़ता है।

प्रश्न 14.
दीनानाथ को पढ़ाई पूरी किए कितने वर्ष हो गए थे ?
उत्तर:
दो वर्ष।

प्रश्न 15.
श्यामलाकांत को शहर में मकान क्यों नहीं मिल पाया था ?
उत्तर:
बढ़ती जनसंख्या के कारण।

प्रश्न 16.
श्यामलाकांत के घर की गलियों की क्या दशा थी ?
उत्तर:
तंग थी।

प्रश्न 17.
श्यामलाकांत के परिवार का अस्वस्थ रहने का क्या कारण था ?
उत्तर:
तंग गलियों में रहना।

प्रश्न 18.
जब आबादी कम थी तब दुकानदार …………….. का स्वागत करता था।
उत्तर:
ग्राहक का।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 18 भीड़ में खोया आदमी

प्रश्न 19.
सड़क दुर्घटनाएँ किस कारण बढी हैं ?
उत्तर:
बढ़ती जनसंख्या के कारण।

प्रश्न 20.
आजकल सार्वजनिक स्थलों पर ………….. बढ़ गई हैं।
उत्तर:
भीड़।

बहुविकल्पी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
‘भीड़ में खोया आदमी’ रचना किस विधा में है ?
(क) निबंध
(ख) कहानी
(ग) उपन्यास
(घ) नाटक।
उत्तर:
(क) निबंध

प्रश्न 2.
बढ़ती जनसंख्या से कौन-सी समस्या आती है ?
(क) बेरोज़गारी
(ख) भूखमरी
(ग) आवास की कमी
(घ) सभी।
उत्तर:
(घ) सभी

प्रश्न 3.
लोगों के स्वास्थ्य का मूलाधार क्या है ?
(क) स्वच्छ जलवायु
(ख) जल
(ग) वायु
(घ) स्वच्छ जल।
उत्तर:
(क) स्वच्छ जलवायु।

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कठिन शब्दों के अर्थ :

दुष्परिणाम = बुरे फल। स्तब्ध = हैरान। चिरौरी = चापलूसी। सुहाती है = अच्छी लगती है। स्वेच्छा = अपनी इच्छा से। संकीर्ण = तंग। चेता = जागा।

प्रमुख अवतरणों की सप्रसंग व्याख्या

(1) किसी तरह खिड़की से बाहर कूदा तो क्या देखता हूँ, पूरी ट्रेन की छत यात्रियों से भरी पड़ी है। सोचता हूँ, अपने प्राणों को भीषण संकट में डाल कर ट्रेन की छत पर यात्रा करने के लिए लोग क्यों मज़बूर हुए ? इन लोगों को रेल के नियम, व्यवस्था और अनुशासन का ध्यान क्यों नहीं है।

प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियाँ श्री लीलाधर शर्मा पर्वतीय जी द्वारा लिखित निबन्ध ‘भीड में खोया आदमी’ में से ली गई हैं। इसमें लेखक ने जनसंख्या वृद्धि के कारण रेल यात्रा में लोगों को रेल की छत पर सफर करने के लिए विवश होने की बात कही है।

व्याख्या :
लेखक हरिद्वार जाने वाली ट्रेन में यात्रा कर रहा था। लक्सर स्टेशन पर उसे गाड़ी बदलनी थी। भीड़ भरे डिब्बे से कूद कर बाहर आकर लेखक ने देखा कि ट्रेन की छत भी यात्रियों से भरी हुई है। लेखक सोचने लगा कि ये लोग रेल-यात्रा के लिए अपने प्राण संकट में डालने के लिए क्यों विवश हुए ? यह सब बढ़ती जनसंख्या के कारण हैं जिससे व्यक्ति को रेलगाड़ी के अंदर बैठने की जगह नहीं मिलती। क्या इन लोगों को रेल के नियम, व्यवस्था और व्यवस्था का बिल्कुल ही ध्यान नहीं है? ऐसा नहीं है परन्तु सबको अपनी मंजिल पर पहुँचने की जल्दी है।

विशेष :

  1. रेल यात्रा में बढ़ रही भीड़ को जनसंख्या में वृद्धि होना बताया गया है, जिस कारण लोगों को रेल की छत पर सफर करने पर विवश होना पड़ता है।
  2. भाषा सरल एवं सुबोध है।
  3. शैली विचारात्मक है।

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(2) भाई साहब, इतने बड़े परिवार में हर रोज़ कोई न कोई बीमार रहता ही है। डॉक्टर को दिखाने अस्पताल गई थी। मगर अस्पतालों में आजकल रोगी और उनके संबंधी मधु-मक्खी के छत्ते की तरह डॉक्टर को घेरे रहते हैं। वह भी अच्छी तरह किस किस को देखे।

प्रसंग :
यह अवतरण श्री लीलाधर शर्मा पर्वतीय द्वारा लिखित ‘भीड़ में खोया आदमी’ नामक निबंध से अवतरित है। इसमें लेखक के मित्र की पत्नी बच्चों के अस्वस्थ होने पर और डॉक्टर की दुकान पर लगने वाली भीड़ पर प्रकाश डाल रही है।

व्याख्या :
लेखक के यह पूछने पर कि बच्चों को डॉक्टर को दिखाकर इन का इलाज क्यों नहीं करवाती क्या ? तो लेखक के मित्र की पत्नी ने बताया कि इतने बड़े परिवार में हर रोज़ कोई न कोई बीमार रहता हो है। इतने बड़े परिवार में प्रतिदिन किसी न किसी के बीमार रहने पर अच्छे डॉक्टर को दिखाने के लिए धन कहाँ है। मैं इन्हें डॉक्टर को दिखाने अस्पताल गई थी। पर आजकल अस्पतालों में रोगियों की इतनी भीड़ बढ़ गई है कि रोगी और उन के रिश्तेदार डॉक्टर को मधुमक्खी के छत्ते की तरह घेरे रहते हैं कि डॉक्टर किसी भी रोगी को अच्छी तरह देख ही नहीं पाता। अस्पतालों में भी बढ़ती जनसंख्या ने डॉक्टरों के इलाज को प्रभावित किया है।

विशेष :

  1. जनसंख्या में वृद्धि के कारण अस्पतालों में रोगियों की भीड़ के बढ़ने और डाक्टरों द्वारा रोगियों को ठीक तरह से न देख पाने की बात कही गई है।
  2. भाषा सरल एवं सुबोध है।
  3. शैली विचारात्मक है।

(3) पहले ग्राहक का स्वागत होता था, उसे भी चिरौरी-सी करनी पड़ती है फिर भी समय पर काम नहीं होता। दुकानें पहले से कहीं अधिक खुल गई हैं लेकिन ग्राहकों की बढ़ती हुई भीड़ के लिए वे अब भी कम पड़ रही है।

प्रसंग :
प्रस्तुत पक्तियाँ श्री लीलाधर शर्मा पर्वतीय जी द्वारा लिखित निबन्ध ‘भीड़ में खोया हुआ आदमी’ में से ली गई हैं। प्रस्तुत पंक्तियों में लेखक के मित्र की पत्नी जनसंख्या में वृद्धि के कारण दुकानदारों की मनोवृत्ति पर प्रकाश डाल रही है।

व्याख्या :
लेखक के मित्र की पत्नी कहती है कि जब आबादी कम थी तो दुकानदार ग्राहक का स्वागत करता था किन्तु अब उसकी मिन्नत-समाजत करनी पड़ती है फिर भी काम समय पर नहीं होता। भले ही अब दुकानें पहले से कहीं अधिक खुल गई हैं लेकिन ग्राहकों की बढ़ती हुई भीड़ के लिए वे अब भी कम पड़ रही हैं। बढ़ती जनसंख्या ने उत्पादक और उत्पादन दोनों पर प्रभाव डाला है।

विशेष :

  1. आबादी बढ़ने के परिणामस्वरूप दुकानों पर भीड़ बढ़ने और दुकानदारों द्वारा नखरे किये जाने की ओर संकेत किया गया है।
  2. भाषा सरल एवं सुबोध है।
  3. शैली विचारात्मक है।

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(4) घर बच्चों की भीड़ है। यह भीड़ भले ही हमें अच्छी लगती हो लेकिन जब तक बच्चों के पालन-पोषण की रहन सहन की, शिक्षा-दीक्षा की पूरी सुव्यवस्था न हो, यह भीड़ दुःखदायी बन जाती है।

प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियाँ श्री लोलाधर शर्मा पर्वतीय द्वारा लिखित निबन्ध ‘भीड़ में खोया आदमी’ में से ली गई हैं। प्रस्तुत पंक्तियों में लेखक ने बच्चे अधिक होने की बात उस समय सोचनी चाहिए जब उनके पालन-पोषण और शिक्षादीक्षा की पूरी व्यवस्था हो जाए।

व्याख्या :
लेखक कहता है घर में बच्चों को भोड़ अर्थात् अधिक बच्चे किसे अच्छे नहीं लगते किन्तु जब तक उन बच्चों के पालन-पोषण की, रहन-सहन को, शिक्षा-दीक्षा आदि को अच्छी व्यवस्था न हो जाए अधिक बच्चों की भीड़ घर में लगाना दुःख का कारण बन जातो है। अधिक बच्चों के कारण गलन-पोषण तथा उनके भविष्य के प्रति मातापिता ध्यान नहीं दे पाते।

विशेष :

  1. अधिक बच्चों का होना माता-पिता और बच्चों दोनों के लिए दुःख का विषय बन जाता है !
  2. भाषा सरल एवं सुबोध है।
  3. शैली विचारात्मक है।

(5) ऐसा लगता है कि यदि समय रहते हमारा देश अब भी नहीं चेता और श्यामला बाबू की तरह परिवार बढ़ता गया तो वह दिन दूर नहीं जब वह स्वर्ग इस भीड़ में और इससे पैदा होने वाली समस्याओं में पूरी तरह खो जाएगा।

प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियाँ भी लोलाधर गमा पर्वतीय जी द्वारा लिखित निबन्ध भीड़ में खोया आदमी’ में से ली गई हैं। प्रस्तुत पंक्तियों में लेखक ने चेतावनी दी है यदि देश में बढ़ती जनसंख्या पर काबू न पाया गया तो देश नष्ट हो जाएगा?

व्याख्या :
लेखक ने जनसंख्या में वृद्धि को न रोक पाने पर चेतावनी देते हुए कहा है यदि हमारा देश समय रहते सावधान नहीं हुआ तो हमें बढ़ती जनसंख्या के कारण बहुत सारी समस्याओं का सामना करना पड़ेगा। श्यामला बाबू की तरह परिवार बढ़ता ही रहा अर्थात् देश की जनसंख्या बढ़ती हो रही तो वह दिन दूर नहीं जब स्वर्ग के समान सुन्दर यह हमारा देश जनसंख्या में वृद्धि से उत्पन्न होने वाली समस्याओं में पूरी तरह नष्ट हो जाएगा।

विशेष :

  1. लेखक ने देश को बढ़ रही जनसंख्या को रोकने को चेतावनी देते हुए कहा है कि यदि इस वृद्धि को न रोका गया तो देश एक दिन नष्ट हो जाएगा।
  2. भाषा सरल एवं सुबोध है। इसीलिए निबंध सरल एवं हृदयस्पर्शी है।
  3. शैली विचारात्मक है।

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भीड़ में खोया आदमी Summary

भीड़ में खोया आदमी निबन्ध का सार

भीड़ में खोया आदमी’ लीलाधर शर्मा पर्वतीय द्वारा लिखित निबंध है। इस निबंध में लेखक ने देश की बढ़ती जनसंख्या से उत्पन्न होने वाली विकट समस्याओं का वर्णन किया है। बढ़ती जनसंख्या से बेरोज़गारी, घटते हुए मकान और खाद्यान्न, अस्पतालों में बढ़ते मरीज, रेलों और बसों की भीड़ आदि सभी समस्याएं होती हैं।

लेखक के एक अभिन्न मित्र हैं-बाबू श्यामलाकान्त। वैसे तो वे परिश्रमी हैं, इमानदार हैं किन्तु निजी ज़िन्दगी के प्रति बड़े लापरवाह हैं। उमर में लेखक से छोटे होने पर भी अपने घर में बच्चों की फ़ौज खड़ी कर ली है। पिछले दिनों लेखक को उनकी लड़की के विवाह में शामिल होने के लिए हरिद्वार जाना था। पन्द्रह दिन पूर्व आरक्षण के लिए रेलवे स्टेशन पर गया। घंटों लाइन में लगने के बाद पता लगा कि किसी भी गाड़ी में स्थान खाली नहीं। विवश होकर लेखक को बिना आरक्षण के ही सफर करना पड़ा। लेखक ने पाया की गाड़ी में बहुत अधिक भीड़ थी और लोग ट्रेन की छत पर बैठ कर सफर कर रहे थे। । स्टेशन पर लेखक के मित्र का बड़ा लड़का उसे लेने आया था। उस लड़के को दो वर्ष हो चुके थे पढ़ाई पूरी किये। किन्तु अभी तक बेकार था। लेखक सोचने लगा कि इस छोटे से शहर का यह हाल है तो बड़े शहरों में बेकारों की कितनी भीड़ रही होगी।

लेखक ने अपने मित्र के घर आकर देखा कि उसका दो कमरों का मकान उसे बहुत छोटा पड़ रहा था लेखक के मित्र ने बताया कि बहुत ढूँढ़ने पर भी उसे यही मकान मिला। जनसंख्या बढ़ने के कारण मकान और खाद्यान्न घट रहे हैं। लेखक के सामने जब उसके मित्र के बच्चे आए तो उसे लगा कि वे सभी अस्वस्थ हैं। मित्र की पत्नी ने बताया कि अस्पतालों में इतनी भीड़ है कि डॉक्टर लोग ठीक से मरीजों को देख नहीं पाते।

मित्र की पत्नी ने यह भी बताया कि दुकानदार आजकल ग्राहक का स्वागत नहीं करते उल्टे ग्राहकों को अपना काम करवाने के लिए उनकी मिन्नत-समाजत या चापलूसी करनी पड़ती है। लेखक को इन सभी समस्याओं का एक ही कारण लगा देश की बढ़ती जनसंख्या। यदि समय रहते इस समस्या पर काबू न पाया गया तो ये समस्याएँ देश को खा जाएँगी।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 17 स्त्री के अर्थ-स्वातंत्र्य का प्रश्न

Punjab State Board PSEB 11th Class Hindi Book Solutions Chapter 17 स्त्री के अर्थ-स्वातंत्र्य का प्रश्न Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Hindi Chapter 17 स्त्री के अर्थ-स्वातंत्र्य का प्रश्न

Hindi Guide for Class 11 PSEB स्त्री के अर्थ-स्वातंत्र्य का प्रश्न Textbook Questions and Answers

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दें-

प्रश्न 1.
‘सामाजिक व्यवस्था में स्त्री और पुरुष के अधिकारों में विषमता क्यों नहीं मिट सकी ?’ पाठ के आधार पर उत्तर दें।
उत्तर:
लेखिका के अनुसार सामाजिक व्यवस्था में स्त्री और पुरुष के अधिकारों में विषमता इसलिए नहीं मिट सकी क्योंकि अर्थ सदा से ही शक्ति का अन्धानुगामी रहा है। जो अधिक सबल था उसने सुख के साधनों का पहला अधिकारी अपने आप को माना और अपनी इच्छा और सुविधा के अनुसार धन का बंटवारा करना अपना कर्तव्य समझा। यह सच है कि बाद में समाज के विकास के लिए प्रत्येक व्यक्ति को, चाहे वह सबल हो या निर्बल, तीव्र बुद्धि हो या मन्द बुद्धि जीवन निर्वाह का साधन देना आवश्यक-सा हो गया। परन्तु उस आवश्यकता में भी शक्ति का दखल रहा। सबल ने दुर्बलों को उसी मात्रा में निर्वाह की सुविधाएँ देना स्वीकार किया, जितनी वे उनके लिए उपयोगी हों। समाज में स्त्री चूंकि निर्बल मानी गई इसलिए सामाजिक व्यवस्था में स्त्री पुरुष में यह विषमता बनी रही।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 17 स्त्री के अर्थ-स्वातंत्र्य का प्रश्न

प्रश्न 2.
‘आर्थिक दृष्टि से स्त्री की स्थिति में कोई विशेष परिवर्तन नहीं हो सका।’ लेखिका के इस विचार से आप कहाँ तक सहमत हैं ? अपने विचार स्पष्ट करें।
उत्तर:
लेखिका की यह बात पूर्णतः सत्य है। भले ही स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद स्थिति में कुछ बदलाव आया है परन्तु मूल रूप से स्त्री की स्थिति ज्यों की त्यों बनी हुई है। इसका एक कारण हमारे समाज का पुरुष प्रधान होता है, जिस कारण स्त्री को आर्थिक दृष्टि से पुरुष पर निर्भर रहना पड़ता है। स्त्री की यह परवशता उसके विकास और आत्मविश्वास में बाधक है।

लेखिका के इस विचार से हम पूर्ण रूप से सहमत हैं कि क्यों पुरुष प्रधान समाज में कभी भी स्त्री को आर्थिक दृष्टि से स्वतन्त्र नहीं होने दिया। पुरुष बाहर जाकर कमाता था और स्त्री घर सम्भालती थी इसलिए स्त्री घर की चार दीवारी में बन्द होकर रह गयी उसे आर्थिक दृष्टि से सदा पुरुष का मुँह ही देखना पड़ा। उसे समाज ने कोई ऐसा अवसर प्रदान नहीं किया जिससे वह आर्थिक दृष्टि से स्वाबलम्बी बन सके।

प्रश्न 3.
नारी जाति की स्थिति में निरन्तर होने वाले सुधारों का ऐतिहासिक क्रम में उल्लेख करते हुए वर्तमान स्थिति में लेखिका द्वारा दिये गए सुझावों से आप कहाँ तक सहमत हैं ? स्पष्ट करें।
उत्तर:
प्राचीन वेदकालीन समाज में विवाह को बहुत महत्त्व दिया गया। सन्तान को जन्म देने के कारण स्त्री को बड़ा गौरवमय स्थान प्राप्त हुआ। स्त्री को घर गृहस्थी की मालिक बनाया गया। उसके मातृत्व को विशेष आदर दिया गया। सभ्यता के विकास के साथ-साथ स्त्री की स्थिति में कई परिवर्तन आए। स्त्री की स्थिति ही समाज के विकास के नापने का मापदंड माना जाता है। इस बर्बर समाज में स्त्री पर पुरुष का वैसा ही अधिकार है जैसे वह अपनी अन्य स्थावर सम्पत्ति पर रखने को स्वतंत्र है। इसके विपरीत पूर्ण विकसित समाज में स्त्री पुरुष की सहयोगिनी तथा समाज का आवश्यक अंग मानी जाकर माता तथा पत्नी के महिमामय आसन पर आसीन रहती है। लेखिका द्वारा दिये गए इन सुझावों से हम पूर्णतया सहमत हैं।

प्रश्न 4.
‘स्त्री के अर्थ स्वातंत्र्य का प्रश्न’ निबन्ध का सार अपने शब्दों में लिखें। उत्तर-देखिए पाठ के आरम्भ में दिया गया निबन्ध का सार। प्रश्न 5. लेखिका निबन्ध के उद्देश्य को स्पष्ट करने में कहाँ तक सफल रही है ?
उत्तर:
प्रस्तुत निबन्ध में महादेवी जी का उद्देश्य भारतीय नारी की आर्थिक दृष्टि से परवशता पर प्रकाश डालना है। लेखिका के अनुसार यह एक कटु सत्य है कि सारी सामाजिक, राजनैतिक और अन्य सुविधाओं की रूप-रेखा शक्ति के अनुसार ही निर्धारित होती रही है। युग आए-युग चले गए, सभ्यता में अनेक परिवर्तन हुए लेकिन आर्थिक दृष्टि से नारी आज भी बहुत कुछ उसी हीन और दुर्बल स्थिति में पड़ी है-जैसी प्राचीनकाल में भी थी। इस पुरुष प्रधान समाज में नारी निर्बल होने के कारण आर्थिक दृष्टि से स्वतन्त्र नहीं हो सकी।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 17 स्त्री के अर्थ-स्वातंत्र्य का प्रश्न

(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दें-

प्रश्न 1.
लेखिका ने समाज की व्यवस्था में साम्य न कर सकने का क्या कारण बताया है ? स्पष्ट करें।
उत्तर:
लेखिका का मत है कि धन सदा ही शक्ति का अनुगामी रहा है। शक्तिशाली मनुष्य ने अपनी इच्छा और सुविधा के अनुसार ही धन का विभाजन किया। शक्तिशाली मनुष्य ने दुर्बलों को उतनी ही मात्रा में सुख-सुविधाएँ दीं जो उनके लिए ज़रूरी एवं उपयोगी थीं। उसने समाज सुविधाएँ सबके लिए नहीं उपलब्ध कराईं। यही कारण था कि समाज की व्यवस्था में साम्यता न आ सकी।

प्रश्न 2.
वैदिक समाज में स्त्री की उन्नति का क्या कारण था ?
उत्तर:
वेदकालीन समाज में पुरुष ने सन्तान की आवश्यकता के कारण और अनाचार रोकने के लिए विवाह को अधिक महत्त्व दिया। सन्तान की जन्मदात्री होने के कारण स्त्री की गरिमा बढ़ गई। उसे यज्ञ जैसे धर्म कार्यों में पति का साथ देने के कारण सहधर्मिणी माना गया और घर की व्यवस्था करने के लिए गृहिणी का पद दिया गया।

प्रश्न 3.
स्त्री को पिता की सम्पत्ति से वंचित करने में क्या उद्देश्य रहा होगा ? पाठ के आधार पर उत्तर दें।
उत्तर:
वैसे तो इस उद्देश्य के बारे में कहना कठिन है किन्तु सम्भव है स्त्री के निकट वैवाहिक जीवन को अनिवार्य रखने के लिए ऐसी व्यवस्था की गई हो। यह भी हो सकता है पुरुष समाज में इस ओर ध्यान ही न दिया हो। कन्या को पिता की सम्पत्ति में स्थान देने से यह कठिनाई भी आ सकती थी कि पिता की सम्पत्ति पर दूसरे परिवारों को उत्तराधिकार हो जाने पर परिवार की व्यवस्था में अस्थिरता आ सकती हो।

प्रश्न 4.
‘प्राचीन समाज में स्त्री के स्वतन्त्र अस्तित्व की कभी चिन्ता ही नहीं की गई।’ इसका क्या कारण था ?
उत्तर:
समाज में स्त्री के मातृत्व को विशेष आदर दिया गया किन्तु सामाजिक व्यक्ति के रूप में उसे विशेष अधिकार न दिए गए। समाज के निकट स्त्री पुरुष की संगिनी होने के कारण ही उपयोगी थी। उससे भिन्न उसका अस्तित्व चिन्ता करने के योग्य नहीं रहता था। दूसरे, समाज भी पुरुष प्रधान था जिसने स्त्री के स्वतन्त्र अस्तित्व की बात कभी सोची ही नहीं।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 17 स्त्री के अर्थ-स्वातंत्र्य का प्रश्न

प्रश्न 5.
आर्थिक पराधीनता व्यक्ति के व्यक्तित्व पर क्या प्रभाव डालती है ?
उत्तर:
आर्थिक पराधीनता व्यक्ति का शारीरिक, मानसिक और बौद्धिक विकास रोक देती है। न व्यक्ति अपनी इच्छा से कुछ कर पाता है न ही करने के योग्य रहता है। व्यक्ति एक घेरे में कैद होकर रह जाता है जिस से बाहर आने के लिए उसके सारे संघर्ष बेकार सिद्ध हो जाते हैं। उसे अभिमन्यु की तरह हर ओर से घेरा जाता है। परिणाम वही होता जो महाभारत के अभिमन्यु का हुआ था।

प्रश्न 6.
सापेक्षता ही सामाजिक सम्बन्ध का मूल है। भारतीय समाज में स्त्री पुरुष का सम्बन्ध कहाँ तक सापेक्ष है ? पाठ के आधार पर उत्तर दें।
उत्तर:
समाज में पूर्ण रूप से स्वतन्त्र कोई भी नहीं है क्योंकि सापेक्षता ही सामाजिक सम्बन्ध का मूल है। व्यक्ति उतना ही दूसरे पर निर्भर करता है जितना वह उससे अपेक्षा रखता है। भारतीय समाज में स्त्री पुरुष सम्बन्ध सापेक्ष नहीं है। दोनों में यह भाव समान नहीं है। दोनों एक-दूसरे पर समान रूप से निर्भर नहीं करते। इसी कारण भारतीय स्त्री की सापेक्षता सीमातीत हो गई है। पुरुष की अपेक्षा स्त्री पुरुष पर अधिक निर्भर है। पुरुष को स्त्री रूपी साधन के नष्ट होने पर कुछ हानि नहीं होती जबकि स्त्री हर बात में पुरुष की सहायता चाहती है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 17 स्त्री के अर्थ-स्वातंत्र्य का प्रश्न

PSEB 11th Class Hindi Guide स्त्री के अर्थ-स्वातंत्र्य का प्रश्न Important Questions and Answers

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
वेदकालीन समाज में नारी को क्या समझा जाता था ?
उत्तर:
केवल संतान पैदा करने वाली और गृहस्थी संभालने वाली।

प्रश्न 2.
भारतीय पुरुष स्त्री को क्या कहता है ?
उत्तर-सहयात्री।

प्रश्न 3.
‘स्त्री के अर्थ स्वातंत्र्य का प्रश्न’ कहाँ से संकलित है ?
उत्तर:
महादेवी वर्मा की कृति ‘श्रृंखला की कड़ियों’ से।

प्रश्न 4.
शक्ति का अनुगामी कौन रहा है ?
उत्तर:
धन।

प्रश्न 5.
आदिकाल से स्त्री को क्या समझा जा रहा है ?
उत्तर:
सुख का साधन।

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प्रश्न 6.
आर्थिक रूप से स्त्री को किस पर निर्भर रहना पड़ता था ?
उत्तर:
पुरुष पर।

प्रश्न 7.
वेदकालीन समाज में नारी की …………. पर कोई ध्यान नहीं दिया गया।
उत्तर:
आर्थिक स्वतंत्रता।

प्रश्न 8.
वेदकालीन समाज में नारी को पिता की ………. में कोई अधिकार नहीं था।
उत्तर:
सम्पत्ति।

प्रश्न 9.
हमारे समाज में पुरुष को क्या कहा गया है ?
उत्तर:
भर्ता।

प्रश्न 10.
स्त्री सदा किसका मुँह ताकती रहती है ?
उत्तर:
पुरुष का।

प्रश्न 11.
प्राचीन समाज में स्त्री के मातृत्व को …………… दिया गया।
उत्तर:
विशेष आदर।

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प्रश्न 12.
प्रारम्भ से हमारा समाज कैसा रहा है ?
उत्तर:
पुरुष प्रधान।

प्रश्न 13.
किस समाज में विवाह को महत्त्व दिया गया ?
उत्तर:
वेदकालीन समाज में।

प्रश्न 14.
किसकी स्थिति समाज को मापने का मापदण्ड मानी जाती है ?
उत्तर:
स्त्री की।

प्रश्न 15.
पुरुष प्रधान समाज में नारी आर्थिक दृष्टि से स्वतंत्र क्यों नहीं हो सकी ?
उत्तर:
‘निर्बल होने के कारण।

प्रश्न 16.
समाज का निर्माण कौन करता है ?
उत्तर:
शक्तिशाली व्यक्ति।

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प्रश्न 17.
समाज में पूर्ण रूप से कौन स्वतंत्र है ?
उत्तर:
कोई भी नहीं।

प्रश्न 18.
व्यक्ति का शारीरिक, बौद्धिक तथा मानसिक विकास कौन रोक देता है ?
उत्तर:
आर्थिक पराधीनता।

बहुविकल्पी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
सामाजिक प्राणी के लिए किसका अधिक महत्त्व है ?
(क) धन का
(ख) मन का
(ग) तन का
(घ) मधुवन का ।
उत्तर:
(क) धन का

प्रश्न 2.
धन सदा किसका अनुगामी रहा है ?
(क) भक्ति का
(ख) शक्ति का
(ग) अनुशक्ति का
(घ) विरक्ति का।
उत्तर:
(ख) शक्ति का

प्रश्न 3.
पुरुष को हमारे समाज में क्या कहा जाता है ?
(क) भर्ता
(ख) कर्ता
(ग) अनुकर्ता
(घ) सतर्कता।
उत्तर:
(क) भर्ता

प्रश्न 4.
प्रारम्भ से भारतीय समाज कैसा है ?
(क) पुरुष प्रधान
(ख) स्त्री प्रधान
(ग) देव प्रधान
(घ) भोग प्रधान।
उत्तर:
(क) पुरुष प्रधान !

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कठिन शब्दों के अर्थ :

अनुगामी = पीछे चलने वाला। अर्थ = धन। सबल = शक्तिवान, शक्तिशाली। मेधावी = लायक, तीव्र बुद्धि। मंदबुद्धि = कम अक्ल, कमज़ोर बुद्धि वाला। सुगमतापूर्वक = आसानी से। प्रतिद्वंद्विता = बराबर वालों की लड़ाई । आदिम युग = प्राचीन युग, आरम्भिक युग। अनुगमन = साथ चलना। तुला = तराजू । परालंबन = दूसरे का सहारा, दूसरे पर निर्भर। भर्ता = स्वामी, भरण-पोषण करने वाला। परमुखापेक्षणी = दूसरे के मुँह की तरफ देखने वाली। विषमता = अन्तर, भेद, असमता। श्लाघ्य = प्रशंसनीय। द्रव्य-उपार्जन = धन कमाना। स्पृहणीय = वांछनीय। यीतुक = दहेज । अनिवार्य = ज़रूरी। विधान = नियम। स्वयंवरा = अपने आप वर की तलाश करना। बलात् = बलपूर्वक, ज़बरदस्ती। संगिनी = साथिन । नितान्त = बिलकुल। बर्बर = दुष्ट, अत्याचारी। परवशता = पराये वश में होना, दूसरे पर निर्भर। स्वावलम्बन = आत्मनिर्भरता। सापेक्षता = परस्पर सम्बन्ध और आदान-प्रदान की स्थिति। सीमातीत = सीमा से परे । क्षमता = सामर्थ्य । सहयात्री = हमसफर, साथ यात्रा करने वाली। उपहास = मज़ाक।

प्रमुख अवतरणों की सप्रसंग व्याख्या

(1) अर्थ सदा से शक्ति का अन्ध-अनुगामी रहा है। जो अधिक सबल था उसने सुख के साधनों का प्रथम अधिकारी अपने आप को माना और अपनी इच्छा और सुविधा के अनुसार ही धन का विभाजन करना कर्त्तव्य।

प्रसंग :
प्रस्तुत अवतरण श्रीमती महादेवी वर्मा के निबन्ध ‘स्त्री के अर्थ स्वातंत्र्य का प्रश्न’ में से लिया गया है। इसमें लेखिका ने ऐतिहासिक पृष्ठभूमि देते हुए आर्थिक दृष्टि से स्त्री की परवशता पर प्रकाश डाला है।

व्याख्या :
लेखिका स्त्री की आर्थिक दृष्टि से परवशता की ऐतिहासिक पृष्ठभमि का उल्लेख करती हुई कहती है कि आदिकाल से ही धन शक्ति का अन्धानुकरण करता रहा है। जो अधिक शक्तिशाली था उसने सुख के साधनों का पहला अधिकारी अपने आपको माना और धन का बँटवारा अपनी इच्छा और सुविधा के अनुसार ही किया।

विशेष :

  1. आदिकाल से ही शक्तिशाली व्यक्ति को सभी अधिकार मिले हुए थे।
  2. शक्तिशाली के समक्ष सभी लोग उसकी बात मानने के लिए बाध्य थे।
  3. भाषा संस्कृत-निष्ठ है। शैली प्रभावपूर्ण है।

(2) आदिम युग से सभ्यता के विकास तक स्त्री सुख के साधनों में गिनी जाती रही। उसके लिए परस्पर संघर्ष हुए, प्रतिद्वन्द्वता चली, महाभारत रचे गए और उसे चाहे इच्छा से हो और चाहे अनिच्छा से, उसी पुरुष का अनुगमन करना पड़ता रहा जो विजयी प्रमाणित हो सका।

प्रसंग :
प्रस्तुत अवतरण श्रीमती महादेवी वर्मा द्वारा लिखित निबन्ध ‘स्त्री के अर्थ स्वांतत्र्य का प्रश्न’ से लिया गया है। इसमें लेखिका ने आदिकाल से ही स्त्री को पुरुष के अधीन बताया है, उसकी अपनी इच्छा नहीं है।

व्याख्या :
स्त्री की परवशता पर प्रकाश डालते हुए लेखिका कहती है कि आदिकाल से सभ्यता के विकास तक स्त्री को सुख का साधन माना गया। स्त्री के लिए ही आपस में संघर्ष हुए, आपसी मुकाबला हुआ, महाभारत जैसे भीषण युद्धों की रचना हुई और स्त्री को चाहे मर्जी से न मर्जी से उसी पुरुष के साथ जाना पड़ा जो विजयी हो सका। लेखिका के कहने का भाव यह है कि स्त्री आदिकाल से ही पुरुष की शक्ति की गुलाम रही है।

विशेष :

  1. पुरुष के समक्ष स्त्री की अपनी कोई इच्छा का अर्थ नहीं था।
  2. जिस स्त्री को लेकर पुरुष आपस में युद्ध करते थे उसकी इच्छा का उनके लिए कोई अर्थ नहीं था।
  3. भाषा संस्कृतनिष्ठ है। शैली प्रभावपूर्ण है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 17 स्त्री के अर्थ-स्वातंत्र्य का प्रश्न

(3) जीवन में विकास के लिए दूसरों से सहायता लेना बुरा नहीं, परन्तु किसी को सहायता दे सकने की क्षमता न रहना अभिशाप है । सहयात्री वे कहे जाते हैं, जो साथ चलते हैं। कोई अपने बोझ को सहयात्री कहकर अपना उपहास नहीं करा सकता।

प्रसंग :
प्रस्तुत अवतरण श्रीमती महादेवी वर्मा के निबन्ध ‘स्त्री के अर्थ स्वातंत्र्य प्रश्न’ में से लिया गया है। इसमें लेखिका ने पुरुष द्वारा स्त्री को हम साथी कहने के साथ बोझ भी समझा है का वर्णन किया है।

व्याख्या :
प्रस्तुत पंक्तियों में लेखिका स्त्री की स्थिति को स्पष्ट करते हुए कहती है कि जीवन में विकास के लिए दूसरों से सहायता लेना बुरा नहीं है परन्तु किसी की सहायता न कर सकना या उसकी सामर्थ्य न रखना एक अभिशाप है। पुरुष ने स्त्री को सहयात्री कहा है। सहयात्री वे कहे जाते हैं जो साथ चलते हैं। कोई अपने बोझ को सहयात्री कह कर अपना मज़ाक नहीं उड़ा सकता। पुरुष ने स्त्री को सहयात्री भी कहा और उसे एक बोझ भी समझा, अपने सुख का साधन भी समझा।

विशेष :

  1. पुरुषों ने स्त्री को अपने जीवन की संगिनी बताया है परन्तु साथ ही उसे बोझ भी माना है।
  2. सहयात्री जीवन में एक-दूसरे के विकास में सहायता करते हैं।
  3. भाषा संस्कृतनिष्ठ है। शैली प्रभावपूर्ण है।

(4) गृह और सन्तान के लिए द्रव्य-उपार्जन पुरुष का कर्त्तव्य था अतः धन स्वभावतः उसी के अधिकार में रहा। गृहिणी गृहपति की आय के अनुसार व्यय कर गृह का प्रबन्ध और सन्तान पालन आदि का कार्य करने की अधिकारिणी मात्र थी।

प्रसंग :
प्रस्तुत अवतरण श्रीमती महादेवी वर्मा द्वारा लिखित निबन्ध ‘स्त्री के अर्थ स्वातंत्र्य का प्रश्न’ में से लिया गया है। इसमें समाज के पुरुष प्रधान होने और स्त्री के आर्थिक रूप से परवश होने की बात कही है।

व्याख्या :
लेखिका वेदकालीन समाज से चली आ रही परंपरा का उल्लेख करते हुए कहती है कि घर और सन्तान के लिए धन कमाना पुरुष का कर्तव्य था। अतः स्वाभाविक रूप से धन उसी के पास रहा। घरवाली घरवाले की आय के अनुसार खर्च कर घर का प्रबंध और सन्तान पालन आदि कार्य करने की अधिकारिणी मात्र थी।

विशेष :
लेखिका ने स्त्री के आर्थिक दृष्टि से परवश होने का कारण बताया है।
भाषा तत्सम प्रधान तथा शैली विचारात्मक है।

(5) सारी राजनीतिक, सामाजिक तथा अन्य व्यवस्थाओं की रूपरेखा शक्ति द्वारा ही निर्धारित होती रही और सबल की सुविधानुसार ही परिवर्तित और संशोधित होती गयी, इसी से दुर्बल को वही स्वीकार करना पड़ा जो सुगमतापूर्वक मिल गया। यही स्वाभाविक भी था।

प्रसंग :
प्रस्तुत अवतरण श्रीमती महादेवी वर्मा द्वारा लिखित निबन्ध ‘स्त्री के अर्थ स्वातंत्र्य का प्रश्न’ में से लिया गया है। इसमें लेखिका ने शक्तिशाली मनुष्य के अधिकारों का वर्णन किया है।

व्याख्या :
लेखिका धन सदा शक्ति का अनुगामी रहा है’ अपने विचार की व्याख्या करते हुए कहती है कि धन क्योंकि शक्तिशाली के ही अधिकार में रहा, इसलिए सारी राजनीतिक, सामाजिक तथा अन्य व्यवस्थाओं की रूपरेखा शक्ति द्वारा ही बनायी जाती रही और शक्तिशाली की सुविधा के अनुसार ही बदली गयी थी। उसमें कई संशोधन किए गए। यही कारण था कि कमज़ोर को वही स्वीकार करना पड़ा जो उसे आसानी से मिल गया। कमजोर व्यक्ति का ऐसा सोचना या करना स्वाभाविक ही था।

विशेष :

  1. जो व्यक्ति शक्तिशाली है समाज का निर्माण वही करता है।
  2. शक्तिशाली व्यक्ति के समक्ष कमज़ोर व्यक्ति की नहीं चलती। उसे वही स्वीकार करना पड़ता है जो उसे सुगमता से प्राप्त हो जाता है।
  3. भाषा संस्कृतनिष्ठ है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 17 स्त्री के अर्थ-स्वातंत्र्य का प्रश्न

(6) शताब्दियाँ-की-शताब्दियाँ आती जाती रहीं, परन्तु स्त्री की स्थिति की एक रसता में कोई परिवर्तन न हो सका। किसी भी स्मृतिकार ने उसके जीवन की विषमता पर ध्यान देने का अवकाश नहीं पाया ; किसी भी शास्त्रकार ने पुरुष से भिन्न करके उसकी समस्या को नहीं देखा।

प्रसंग :
प्रस्तुत अवतरण श्रीमती महादेवी वर्मा द्वारा लिखित निबन्ध ‘स्त्री के अर्थ स्वातंत्र्य का प्रश्न’ में से लिया गया है। लेखिका ने आदिकाल से चल आ रही स्त्री की स्थिति के लिए सभी को उत्तरदायी बताया है

व्याख्या :
इसमें लेखिका स्त्री की आर्थिक दृष्टि से परवशता पर किसी ने भी ध्यान देने की बात कही है। लेखिका कहती है कि सैंकड़ों साल बीत जाने पर भी स्त्री की स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया। अर्थात् जैसी स्थिति उसकी पहले थी वही अब है। किसी भी स्मृति ग्रन्थ लेखक को स्त्री के जीवन की इस असमता पर ध्यान देने का समय नहीं मिला। किसी भी शास्त्र लिखने वाले ने पुरुष से अलग करके स्त्री की समस्या को नहीं देखा।

विशेष :

  1. शताब्दियों के बीत जाने पर सब कुछ बदला परन्तु स्त्रियों की स्थिति नहीं बदली। प्राचीनकाल से लेकर अब तक किसी ने भी स्त्रियों की स्थिति बदलने के लिए प्रयास नहीं किए हैं।
  2. भाषा संस्कृतनिष्ठ है। शैली भावपूर्ण है।

(7) मातृत्व की गरिमा ने गुरु और पत्नीत्व के सौभाग्य से ऐश्वर्यशालिनी होकर भी भारतीय नारी अपने व्यावहारिक जीवन में सबसे अधिक क्षुद्र और रंक कैसे रह सकी, यही आश्चर्य है।

प्रसंग :
प्रस्तुत अवतरण श्रीमती महादेवी वर्मा द्वारा लिखित निबन्ध ‘स्त्री के अर्थ स्वातंत्र्य का प्रश्न’ से लिया गया है। इसमें लेखिका ने स्त्री को पुरुष समाज में महत्त्वपूर्ण भूमिका का वर्णन किया है।

व्याख्या :
लेखिका भारतीय स्त्री के गौरवमयी स्थान प्राप्त करने पर भी आर्थिक दृष्टि से परवश रहने की बात करती हुई कहती है कि माता का बड़ा दर्जा प्राप्त होने पर तथा पत्नी होने के कारण ऐश्वर्यशाली स्थान प्राप्त होने पर भी भारतीय नारी अपने व्यावहारिक एवं यथार्थ जीवन में सबसे तुच्छ और निर्धन कैसे रह सकी, यही आश्चर्य की बात है अर्थात् माता का एवं पत्नी का इतना ऊँचा और गौरवमय स्थान प्राप्त होने पर भी आर्थिक दृष्टि से वह आत्मनिर्भर न बन सकी, सदा परवश ही रही।

विशेष :

  1. स्त्री को पुरुष की पत्नी तथा माता होने का गौरव प्राप्त है, फिर भी वह पुरुषों के बनाए समाज में नीच मानी जाती है।
  2. पुरुषों ने कभी भी स्त्री के गौरवमय अस्तित्व को स्वीकार नहीं किया है।
  3. भाषा संस्कृतनिष्ठ है। शैली प्रभावपूर्ण है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 17 स्त्री के अर्थ-स्वातंत्र्य का प्रश्न

(8) धन की उच्छशृंखल बहुलता में जितने दोष हैं वे अस्वीकार नहीं किए जा सकते परन्तु इसके नितान्त अभाव में जो अभिशाप है वह उपेक्षणीय नहीं।

प्रसंग :
प्रस्तुत अवतरण श्रीमती महादेवी वर्मा द्वारा लिखित निबन्ध ‘स्त्री के अर्थ स्वातंत्र्य का प्रश्न’ से लिया गया है। इसमें लेखिका ने धन के गुण-दोष का वर्णन किया है।

व्याख्या :
लेखिका धन के महत्त्व पर प्रकाश डालती हुई कहती है कि धन के अधिक हो जाने पर उसमें अनेक दोष आ जाते हैं। इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता। किन्तु धन का अभाव अर्थात् निर्धनता भी तो एक अभिशाप है। इस बात की भी उपेक्षा नहीं की जा सकती। भाव यह है कि धन का सामाजिक प्राणी के जीवन में विशेष महत्त्व है।

विशेष :

  1. धन की अधिकता या कमी जीवन को नरक बना देती है।
  2. मनुष्य को अधिक धन की प्राप्ति बुरी संगति की ओर अग्रसर कर देती है तथा धन की कमी मनुष्य का जीवन उसके लिए अभिशाप बन जाता है।
  3. भाषा संस्कृतनिष्ठ है। शैली भावपूर्ण है।

स्त्री के अर्थ स्वातंत्र्य का प्रश्न Summary

स्त्री के अर्थ स्वातंत्र्य का प्रश्न का सार

प्रस्तुत निबन्ध महादेवी वर्मा जी की कृति श्रृंखला की कड़ियाँ’ में संकलित है। प्रस्तुत निबन्ध में लेखिका ने मनुष्य के सामाजिक विकास की ऐतिहासिक पृष्ठ भूमि देते हुए आर्थिक दृष्टि से नारी की परवशता पर प्रकाश डाला है।

लेखिका कहती है कि धन सदा शक्ति का अनुगामी रहा है। शक्तिशाली ने ही अपनी इच्छा और सुविधानुसार धन का बँटवारा किया है। सारी राजनीतिक, सामाजिक तथा अन्य व्यवस्थाओं की रूपरेखा इसी शक्ति पर आधारित रही है। आदिकाल से ही स्त्री को सुख का साधन तो समझा गया किन्तु उसे आर्थिक रूप से पुरुष पर ही निर्भर रहना पड़ा है। पुरुष को हमारे समाज में भर्ता कहा गया और स्त्री सदा उसका मुँह ताकती रही है।

वेदकालीन समाज में नारी को केवल सन्तान पैदा करने वाली एवं घर-गृहस्थी सम्भालने वाली के रूप में ही देखा गया। उसकी आर्थिक स्वतन्त्रता पर कोई ध्यान नहीं दिया गया। बस दहेज में जो कुछ दे दिया गया उसे ही काफ़ी समझा गया। पिता की सम्पत्ति में उसे कोई अधिकार नहीं दिया गया। सैंकड़ों साल बीत जाने पर भी स्त्री की स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ है।

एक सामाजिक प्राणी के लिए धन कितना महत्त्व रखता है, यह हर कोई जानता है। आर्थिक रूप से परवशता स्त्री के स्वाभाविक विकास और आत्म-विश्वास को प्रभावित करती है। भारतीय पुरुष-स्त्री को सहयात्री तो कहता है सहयोगी नहीं मानता। इसी विषमता को दूर करना होगा।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 16 युवाओं से

Punjab State Board PSEB 11th Class Hindi Book Solutions Chapter 16 युवाओं से Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Hindi Chapter 16 युवाओं से

Hindi Guide for Class 11 PSEB युवाओं से Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
स्वामी विवेकानन्द ने देश के नवयुवकों को कौन-कौन से गुण विकसित करने के लिए प्रेरित किया है ?
उत्तर:
स्वामी विवेकानन्द जी ने देश ने नवयुवकों को अपने अन्दर त्याग और सेवा के गुणों को विकसित करने की प्रेरणा दी है। स्वामी जी का कहना है कि इन गुणों को विकसित करने से तुम में शक्ति अपने आप जाग उठती है। दूसरों के लिए रत्ती भर भी सोचने से हृदय में सिंह जैसा बल आ जाता है। स्वामी जी कहते हैं कि नवयुवकों को निःस्वार्थ भाव से सेवा करनी चाहिए। उस सेवा के बदले में न धन की लालसा करनी चाहिए न कीर्ति की। हे वीर युवक ! गरीबों और पद दलितों के प्रति सहानुभूति रखो,ईश्वर में आस्था रखने, दीन-दुःखियों के दर्द को समझो और ईश्वर से उनकी सहायता करने की प्रार्थना करो। उठो और साहसी बनो, तीर्थवान बनो और सब उत्तरदायित्व अपने कंधे पर लो। इस तरह जो भी बल या सहायता चाहिए वह सब तुम्हारे भीतर ही मौजूद है।

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प्रश्न 2.
भारतवर्ष के राष्ट्रीय आदर्श कौन-कौन से हैं ? स्वामी जी ने उन आदर्शों की क्या व्याख्या की है ?
उत्तर:
स्वामी जी के अनुसार भारत के राष्ट्रीय आदर्श-त्याग और सेवा है। स्वामी जी का मत है कि इन आदर्शों का पालन करने से सब काम अपने आप ठीक हो जाएँगे। त्याग से इतनी शक्ति आएगी कि तुम उसे संभाल न सकोगे। दूसरों के हित के लिए सोचो इससे तुम्हारे अन्दर काम करने की शक्ति जाग उठेगी। धीरे-धीरे तुम में सिंह जैसा बल आ जाएगा। – स्वामी जी दूसरे राष्ट्रीय आदर्श सेवा के बारे में कहते हैं कि सेवा निःस्वार्थ भाव से की जानी चाहिए। उसमें किसी प्रकार के धन, यश या किसी दूसरी वस्तु की कामना नहीं करनी चाहिए। मनुष्य जब ऐसा करने में समर्थ हो जाएगा तो वह भी बुद्ध बन जाएगा और उसके भीतर से ऐसी शक्ति प्रकट होगी, जो संसार की अवस्था को सम्पूर्ण रूप से बदल सकती है।

प्रश्न 3.
स्वदेश भक्ति का स्वामी जी ने क्या अर्थ स्पष्ट किया है ?
उत्तर:
स्वामी जी ने स्वदेश भक्ति का अर्थ स्पष्ट करते हुए कहा है कि स्वदेश भक्ति के सम्बन्ध में उनका एक आदर्श है। बड़े काम करने के लिए तीन-चीजों की आवश्यकता होती है। बुद्धि और विचार शक्ति हमारी थोड़ी सहायता तो कर सकती है, हमें थोड़ी दूर आगे भी बहा सकती है। किन्तु वह वहीं ठहर जाती है किन्तु हमारा हृदय ही महाशक्ति को प्रेरणा देता है। प्रेम असंभव को भी संभव बना देता है। जगत के सब रहस्यों का द्वार प्रेम ही है। अतः स्वामी जी ने देश के नवयुवकों को हृदयवान बनने की प्रेरणा दी है साथ ही स्वामी जी ने कहा है कि जब तक तुम्हारा हृदय भूखेगरीबों के लिए नहीं धड़केगा। जब तक इस निर्धनता को नाश करने की बात नहीं सोचेंगे, तब तक तुम देशभक्ति की पहली सीढ़ी पर कदम नहीं रखोगे।

प्रश्न 4.
‘युवाओं से’ निबन्ध का शीर्षक कहाँ तक सार्थक है ? स्पष्ट करें।
उत्तर:
प्रस्तुत निबन्ध स्वामी विवेकानन्द जी के एक व्याख्यान का अंश है। स्वामी जी ने अपने इस व्याख्यान में नवयुवकों को सम्बोधित किया है। अतः प्रस्तुत निबन्ध का शीर्षक अत्यन्त सार्थक है। स्वामी जी ने प्रस्तुत व्याख्यान में राष्ट्रनिर्माण में नवयुवकों की महत्त्वपूर्ण भूमि का उल्लेख किया है। इसके लिए स्वामी जी ने नवयुवकों के मज़बूत एवं निर्भय बनने के लिए कहा है ऐसा वही युवक कर सकते हैं जो सच्चरित्र और अपनी शक्ति में विश्वास रखने वाले हों। जो अपनी शक्ति में विश्वास नहीं रखता वह नास्तिक है। युवाओं से सम्बोधन इस बात को सिद्ध करता है कि यह निबन्ध नवयुवकों को समर्पित हैं, जिन्हें नवभारत का निर्माण करना है। अतः कहना न होगा कि ‘युवाओं’ से शीर्षक अत्यन्त सार्थक है।

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प्रश्न 5.
स्वामी विवेकानन्द किस प्रकार का संगठन करना अपना ध्येय मानते थे ?
उत्तर:
स्वामी विवेकानन्द जी नवयुवकों का ऐसा संगठन बनाना अपना ध्येय मानते थे जो नवयुवक प्रत्येक नगर में जाकर दीनहीन और पददलित लोगों को सुख-सुविधा प्रदान कर उन्हें धर्म और नैतिकता की शिक्षा देकर उनकी अनपढता या अज्ञानता को दूर कर सकें।

प्रश्न 6.
‘उठो, जागो और तब तक नहीं रुको, जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाए।’ स्वामी जी के इस उद्बोधन का भाव समझाएँ।
उत्तर:
प्रस्तुत उद्बोधन द्वारा स्वामी जी ने देश के नवयुवकों को हृदयवान बनकर निर्धनता का नाश करने के उपाय सोचने के लिए कहा। उन्होंने नवयुवकों को स्वयं जाकर दूसरों को भी जगाकर अपने जन्म को सफल बनाने के लिए कहा है कि जब तक लक्ष्य पूरा न हो जाए अर्थात् निर्धनता का नाश नहीं हो जाता तब तक तुम्हें रुकना नहीं चाहिए।

प्रश्न 7.
नास्तिक व्यक्ति की स्वामी जी ने क्या व्याख्या की है ?
उत्तर:
स्वामी जी कहते हैं कि जो अपने में विश्वास नहीं करता वह नास्तिक है जबकि प्राचीन धर्मों ने कहा है कि जो ईश्वर में विश्वास नहीं रखता वह नास्तिक है। स्वामी जी के कहने का भाव यह है कि व्यक्ति ईश्वर का ही स्वरूप है। अत: व्यक्ति का अपने आप पर विश्वास ईश्वर में विश्वास के बराबर है और जो अपने पर विश्वास नहीं रखता वह ईश्वर में विश्वास कैसे रख सकता है ? वह नास्तिक ही कहलाएगा।

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प्रश्न 8.
स्वामी जी ने नवयुवकों को शारीरिक दृष्टि से मज़बूत बनने की सलाह क्यों दी है ?
उत्तर:
स्वामी जी नवयुवकों को शक्तिशाली बनने की सलाह देते हैं। धर्म को वे बाद की वस्तु मानते हैं। स्वामी जी का मानना है कि गीता के अध्ययन की अपेक्षा फुटबाल के खेल में दक्षता प्राप्त कर स्वर्ग के अधिक समीप पहुँचा जा सकता है। क्योंकि फुटबाल खेलकर युवकों का शरीर मज़बूत होगा। उनके स्नायु और मांसपेशियाँ अधिक मज़बूत होने पर वे गीता को अच्छी तरह समझ सकेंगे।

प्रश्न 9.
धर्म के सम्बन्ध में स्वामी जी का क्या विचार है ?
उत्तर:
स्वामी जी सब धर्मों को स्वीकार करते हैं और सबकी पूजा करते हैं। वे चाहे हिन्दू हों, चाहे मुसलमान, बौद्ध या ईसाई, उन सबके साथ ईश्वर की उपासना करते हैं, चाहे वे स्वयं ईश्वर की किसी भी रूप में उपासना करते हों। वे मस्जिद में जाएँगे, गिरजा में भी जाएँगे तथा बौद्ध मन्दिर में जाकर बौद्ध शिक्षा को ग्रहण करेंगे। वे उन हिन्दुओं के साथ जंगल में जाकर ध्यान करेंगे जो ज्योतिस्वरूप परमात्मा को प्रत्यक्ष देखने में लगे हुए हैं।

प्रश्न 10.
किस प्रकार की शिक्षा जीवन और चरित्र का निर्माण कर सकती है ?
उत्तर:
स्वामी जी का विचार है कि शिक्षा अब गया है। यह ज्ञान आत्मसात् हुए बिना निष्फल हो जाएगा। हमें उन विचारों को अनुभव करने की ज़रूरत है जो जीवननिर्माण, मनुष्य निर्माण तथा चरित्र-निर्माण में सहायक हों। यदि कोई केवल पाँच ही जांच-परखे विचारों को आत्मसात् कर ले जो चरित्र निर्माण कर सकते हों तो पूरे संग्रहालय को मुँह-जबानी याद करने वाले की अपेक्षा व्यक्ति अधिक शिक्षित कहलाएगा।

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PSEB 11th Class Hindi Guide युवाओं से Important Questions and Answers

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘युवाओं से’ निबंध का लेखक कौन हैं ?
उत्तर:
स्वामी विवेकानंद।

प्रश्न 2.
स्वामी जी ने किससे ऊपर उठने की बात कही है ?
उत्तर:
दलबंदी और ईर्ष्या से।

प्रश्न 3.
भारत के राष्ट्रीय आदर्श कौन-से हैं ?
उत्तर:
त्याग और सेवा।

प्रश्न 4.
दूसरों के लिए रत्ती भर सोचने मात्र से अपने अंदर कैसा बल आता है ?
उत्तर:
सिंह जैसा बल।

प्रश्न 5.
राष्ट की सबसे बडी सेवा क्या है ?
उत्तर:
गरीबों, भूखों, दलितों की सेवा करना।

प्रश्न 6.
राष्ट्रभक्ति …………….. नहीं है।
उत्तर:
कोरी भावना।

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प्रश्न 7.
राष्ट्रभक्ति का आधार क्या है ?
उत्तर:
विवेक और प्रेम।

प्रश्न 8.
शिक्षा विचारों को …………… नहीं है।
उत्तर:
ढेर।

प्रश्न 9.
भारत की उन्नति के लिए युवाओं को क्या करना होगा ?
उत्तर:
अपना आत्मिक बल बढ़ाना होगा।

प्रश्न 10.
नेतृत्व की महत्त्वाकांक्षा मनुष्य को ………….. बनाती है।
उत्तर:
असफल।

प्रश्न 11.
कमजोर व्यक्ति का जीवन किसके समान है ?
उत्तर:
मृत्यु के समान।

प्रश्न 12.
दूसरों को अपना बनाने के लिए क्या करना पड़ता है ?
उत्तर:
स्वयं अच्छा बनना पड़ता है।

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प्रश्न 13.
मनुष्य किसका अंश है ?
उत्तर:
परमात्मा का।

प्रश्न 14.
स्वामी जी सब ………… को स्वीकार करते थे।
उत्तर:
धर्मों।

प्रश्न 15.
स्वामी जी धर्म को कैसी वस्तु मानते थे ?
उत्तर:
बाद की वस्तु।

प्रश्न 16.
नेतृत्व की इच्छा रखने वाले लोग ……………. भूल जाते हैं।
उत्तर:
सेवा भाव।

प्रश्न 17.
प्राचीन धर्मों में क्या कहा गया है ?
उत्तर:

प्रश्न 18.
जो ईश्वर में विश्वास नहीं रखता वह नास्तिक है।
उत्तर:
जो स्वयं पर ।वश्वास नहीं करता वह नास्तिक है।

प्रश्न 19.
कौन अपने भाग्य के स्वयं निर्माता हैं ?
उत्तर:
देश के युवा।

प्रश्न 20.
कमज़ोरी कभी न हटने वाला …………. है।
उत्तर:
बोझ।

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बहुविकल्पी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
‘युवाओं से’ निबंध किनके भाषण का अंश है ?
(क) स्वामी विवेकानंद
(ख) स्वामी दयानंद
(ग) स्वामी परमहंस
(घ) महात्मा गांधी।
उत्तर:
(क) स्वामी विवेकानंद

प्रश्न 2.
प्रस्तुत निबंध में भारतीय नवयुवकों को किसके निर्माण की शिक्षा दी गई है ?
(क) चरित्र
(ख) धर्म
(ग) संस्कृति
(घ) अध्यात्म।
उत्तर:
(क) चरित्र

प्रश्न 3.
कमज़ोर व्यक्ति का जीवन किसके समान होता है ?
(क) धन के
(ख) मृत्यु के
(ग) नरक के
(घ) स्वर्ग के
उत्तर:
(ख) मृत्यु कें

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प्रश्न 4.
भारत के राष्ट्रीय आदर्श कौन-से हैं ?
(क) सेवा
(ख) त्याग
(ग) दोनों
(घ) कोई नहीं।
उत्तर:
(ग) दोनों।

कठिन शब्दों के अर्थ :

समग्र = सारे। पुनरुत्थान = दोबारा उन्नति। निःस्वार्थी = स्वार्थ से रहित। अवलंबन = सहारा। अप्रतिहत = जिसे कोई रोकने वाला न हो। पशुतुल्य = पशु के समान। आत्मसात = अपने में मिलाना। कंठस्थ = मुँह जबानी याद करना। क्रूर = दुष्ट। उन्मत्तता = पागलपन।

प्रमुख अवतरणों की सप्रसंग व्याख्या

(1) भारतवर्ष का पुनरुत्थान होगा, पर वह शारीरिक शक्ति से नहीं, वरन् वह आत्मा की शक्ति द्वारा। यह उत्थान विनाश की ध्वजा लेकर नहीं वरन् शांति और प्रेम की ध्वजा से होगा।

प्रसंग :
प्रस्तुत अवतरण स्वामी विवेकानन्द जी के व्याख्यान ‘युवाओं से’ के अंश में से लिया गया है। इसमें देश के नवयुवकों को सम्बोधित करते हुए उन्हें राष्ट्र निर्माण के लिए क्या कुछ करना चाहिए बताया गया है।

व्याख्या :
प्रस्तुत पंक्तियों में स्वामी विवेकानन्द जी देश के नवयुवकों को सम्बोधित करते हुए कहते हैं कि उन्हें देश की उन्नति के लिए शारीरिक शक्ति की नहीं आत्मिक शक्ति पैदा करनी होगी क्योंकि आत्मिक शक्ति से मनुष्य का चरित्र बनता है। देश की उन्नति विनाश का झंडा लेकर नहीं अपितु शांति और प्रेम का झंडा लेकर होगी। इसलिए हमें प्रेम और शांति का वातावरण बनाना होगा।

विशेष :

  1. इन पंक्तियों से लेखक का भाव यह है कि भारत की उन्नति के लिए युवाओं को अपना आत्मिक बल बढ़ाना होगा तथा प्रेम और शान्ति का वातावरण स्थापित करना होगा।
  2. भाषा तत्सम प्रधान है।
  3. शैली विचारात्मक है।

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(2) कैवल वही व्यक्ति सब की सेवा उत्तम रूप से कर सकता है, जो पूर्णत: नि:स्वार्थी है, जिसे न तो धन की लालसा है, न कीर्ति की और न किसी अन्य वस्तु की ही। और मनुष्य जब ऐसा करने में समर्थ हो जाएगा, तो वह भी एक बुद्ध बन जाएगा, और उसके भीतर से एक ऐसी शक्ति प्रकट होगी, जो संसार की अवस्था को सम्पूर्ण रूप से परिवर्तित कर सकती है।

प्रसंग :
प्रस्तुत अवतरण स्वामी विवेकानन्द जी के भाषण ‘युवाओं से’ के अंश से लिया गया है। प्रस्तुत पंक्तियों में वे युवकों को निष्काम सेवा का महत्त्व बताते हैं।

व्याख्या :
स्वामी विवेकानन्द जी कहते हैं कि केवल वही व्यक्ति दूसरों की अच्छी तरह से सेवा कर सकता है जो पूरी तरह स्वार्थ रहित हो। जिसे न धन की इच्छा हो, न यश की तथा न ही किसी दूसरी वस्तु की। जब मनुष्य ऐसा करने में समर्थ हो जाए तो वह भी एक बुद्ध अर्थात् ज्ञानी बन जाएगा और उसके अन्दर एक ऐसी शक्ति प्रकट होगी जो सारे संसार की हालत को पूरी तरह बदल सकती है।

विशेष :

  1. स्वामी जी के कहने का भाव यह है कि दूसरों की सेवा निःस्वार्थ भाव से ही की जा सकती है। यह भाव व्यक्ति में एक ऐसी शक्ति को जन्म देगा जो सारे संसार को बदल देने की क्षमता रखती है।
  2. भाषा तत्सम प्रधान और शैली विचारात्मक है।

(3) तुम लोग ईश्वर की सन्तान हो, अमर आनन्द के भागी हो स्वयं पवित्र और पूर्ण आत्मा हो। अत: तुम कैसे अपने को जबरदस्ती दुर्बल कहते हो ? उठो साहसी बनो, वीर्यवान होओ। सब उत्तरदायित्व अपने कंधे पर लो- यह याद रखो कि तुम स्वयं अपने भाग्य के निर्माता हो। तुम जो कुछ बल या सहायता चाहो, सब तुम्हारे ही भीतर विद्यमान है।

प्रसंग :
प्रस्तुत अवतरण स्वामी विवेकानन्द जी के व्याख्यान ‘युवाओं से’ के अंश में से लिया गया है। इसमें स्वामी युवाओं को आत्मिक बल को पहचान कर अपना भाग्य निर्माण करने का संदेश दे रहे हैं।

व्याख्या :
स्वामी विवेकानन्द जी भारतीय युवकों को उनकी भीतरी शक्ति से परिचित करवाते हुए कहते हैं कि तुम ईश्वर की सन्तान हो अर्थात् ईश्वर तुम्हें जन्म देने वाले परम पिता हैं । इस कारण तुम अमर आनन्द को प्राप्त करने वाले हो। तुम पवित्र हो और पूर्ण आत्मा, ईश्वर का रूप हो। इसलिए तुम जबरदस्ती अपने को दुर्बल क्यों कहते हो। उठो और साहसी बनो, शक्तिवान बनो। अपनी सारी ज़िम्मेदारियाँ अपने कंधों पर लो। तुम्हें यह याद रखना होगा कि तुम अपने भाग्य के आप ही निर्माता हो। तुम्हें जो भी शक्ति या सहायता चाहिए वह सब तुम्हारे भीतर ही मौजूद है।

विशेष :

  1. स्वामी जी युवकों को याद दिलाना चाहते हैं कि वे अपने भाग्य के स्वयं निर्माता हैं और जो काम साहस से शक्ति से ही किया जा सकता है वो कहीं बाहर नहीं तुम्हारे अपने अंदर ही मौजूद है।
  2. शब्दावली तत्सम प्रधान है।
  3. भाषा सरल, सहज तथा प्रभावशाली है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 16 युवाओं से

(4) मेरे मित्रो, पहले मनुष्य बनिए, तब आप देखेंगे कि वे सब बाकी चीजें स्वयं आप का अनुसरण करेंगी।

प्रसंग :
प्रस्तुत अवतरण स्वामी विवेकानन्द जी के भाषण ‘युवाओं से’ के अंश से लिया गया है। इसमें स्वामी युवा को मनुष्य बनने का संदेश देते हैं।

व्याख्या :
स्वामी विवेकानन्द जी भारतीय युवकों से कहते हैं कि धन, यश आदि प्राप्त करने के लिए पहले मनुष्य बनना बहुत ज़रूरी है। मानवता के गुण अपना लेने पर बाकी सभी चीजें तुम्हें अपने आप प्राप्त हो जाएँगी। अतः सर्वप्रथम तुम्हें मनुष्य बनना चाहिए।

विशेष :
दूसरों को अपना बनाने के लिए स्वयं अच्छा बनना पड़ता है।
भाषा सरल, सहज तथा प्रभावशाली है।

(5) मैं तो सिर्फ उस गिलहरी की भाँति होना चाहता हूँ जो श्री राम चन्द्र जी के पुल बनाने के समय थोड़ा बालू देकर अपना भाग पूरा कर संतुष्ट हो गयी थी।

प्रसंग :
प्रस्तुत अवतरण स्वामी विवेकानन्द जी के भाषण ‘युवाओं से’ के अंश से लिया है। स्वामी जी युवाओं को देश की उन्नति में सहयोग देने के लिए कह रहे हैं।

व्याख्या :
स्वामी विवेकानन्द सुधार की अपेक्षा स्वाभाविक उन्नति में विश्वास रखने के अपने उद्देश्य को स्पष्ट करते हुए कहते हैं कि मैं तो केवल उस गिलहरी की भाँति होना चाहता हूँ जो श्री रामचंद्र जी के समुद्र पर पुल बनाते समय थोड़ी रेत देकर अपना भाग पूरा कर संतुष्ट हो गयी थी। इसी तरह भारतीय युवकों में शक्ति और विश्वास की भावना जगाने के अपने कर्त्तव्य या उत्तरदायित्व को पूरा करना चाहता हूँ।

विशेष :

  1. युवा देश की उन्नति में थोड़ा-थोड़ा सहयोग दें तो देश उन्नति के शिखर को छू लेगा।
  2. भाषा सहज, भावपूर्ण है।
  3. शैली आत्मकथात्मक है।

(6) जो अपने आप में विश्वास नहीं करता, वह नास्तिक है। प्राचीन धर्मों ने कहा है, वह नास्तिक है जो ईश्वर में विश्वास नहीं करता। नया धर्म कहता है, वह नास्तिक है जो अपने आप में विश्वास नहीं करता।

प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियाँ स्वामी विवेकानन्द जी के भाषण ‘युवाओं से’ के अंश से ली गई हैं। स्वामी जी युवाओं को सम्बोधित करते हुए नास्तिक की परिभाषा दे रहे हैं।

व्याख्या :
स्वामी विवेकानन्द जी भारतीय युवकों से अपने पर विश्वास करने की प्रेरणा देते हुए कहते हैं कि जो अपने में विश्वास नहीं करता वह नास्तिक है क्योंकि मनुष्य परमात्मा का ही तो अंश है अतः अपने पर विश्वास न करना परमात्मा पर विश्वास न करने के बराबर है। प्राचीन धर्मों में भी यही कहा गया है कि जो ईश्वर में विश्वास नहीं रखता वह नास्तिक है किन्तु नया धर्म कहता है कि जो अपने पर विश्वास नहीं करता वह नास्तिक है।

विशेष :

  1. धर्म से पहले मनुष्य अपने पर विश्वास करे तो वह धर्म का सही ढंग से पालन कर सकता है।
  2. भाषा सरल, सहज तथा प्रभावशाली है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 16 युवाओं से

(7) यह एक बड़ी सच्चाई है कि शक्ति ही जीवन है और कमजोरी ही मृत्यु है। शक्ति परम सुख है, जीवन अजरअमर है। कमज़ोरी कभी न हटने वाला बोझ और यंत्रणा है, कमज़ोरी ही मृत्यु है।

प्रसंग :
प्रस्तुत अवतरण स्वामी विवेकानन्द जी के भाषण ‘युवाओं से’ के अंश से लिया गया है। स्वामी जी युवाओं से कहते हैं कि कमज़ोर व्यक्ति सभी के लिए बोझ है।

व्याख्या :
स्वामी विवेकानन्द जी भारतीय युवकों को शक्ति प्राप्त करने की प्रेरणा देते हुए कहते हैं कि यह एक बहुत बड़ी सच्चाई है कि शक्ति ही जीवन है और कमज़ोरी ही मृत्यु है अर्थात् ज़िंदादिली ही जिंदगी का नाम है मुर्दादिल क्या खाक जिया करते हैं। शक्ति में ही परम सुख है। यह जीवन तो सदा रहने वाला है जबकि कमज़ोरी कभी न हटने वाला बोझ और पीड़ा के समान है। इसीलिए कमज़ोरी मृत्यु समान मानी गयी है।

विशेष :

  1. मन से शक्तिशाली मनुष्य का जीवन अमर है, जबकि कमज़ोर मन का मनुष्य स्वयं के लिए भी बोझ है तथा दूसरों के लिए भी बोझ है।
  2. कमज़ोर व्यक्ति का जीवन मृत्यु के समान है।
  3. भाषा प्रभावशाली तथा तत्सम प्रधान है।

(8) अपने भाइयों का नेतृत्व करने का नहीं, वरन् उनकी सेवा करने का प्रयत्न करते हैं। नेता बनने की इस क्रूर उन्मत्तता में बड़े-बड़े जहाजों को इस जीवन रूपी समुद्र में डुबो दिया है।

प्रसंग :
प्रस्तुत अवतरण स्वामी विवेकानन्द जी के भाषण ‘युवाओं से’ के अंश से लिया गया है। स्वामी जी युवाओं से कहते हैं कि नेतृत्व करने से अच्छा सेवा करना है।

व्याख्या :
स्वामी विवेकानन्द जी युवकों से कहते हैं कि वे अपने देशवासियों का नेतृत्व नहीं बल्कि उनकी सेवा करने का प्रयत्न करें। नेता बनने के निर्दयी पागलपन ने बड़े-बड़े जहाजों को अर्थात् व्यक्तियों को इस जीवन रूपी समुद्र में डुबो दिया है अर्थात् जो लोग नेता बनने का प्रयत्न करते हैं वे जीवन में असफल रहते हैं। लोगों की सेवा करना ही व्यक्ति के जीवन का लक्ष्य होना चाहिए।

विशेष :

  1. नेतृत्व की इच्छा रखने वाले लोग सेवा की भावना को भूल जाते हैं। नेतृत्व की महत्त्वाकांक्षा मनुष्य को असफल बना देती है।
  2. भाषा सहज, भावपूर्ण तथा शैली व्याख्यात्मक है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 16 युवाओं से

युवाओं से Summary

युवाओं से निबन्ध का सार

प्रस्तुत निबन्ध स्वामी विवेकानन्द जी के विद्यार्थियों को सम्बोधित करते हुए दिए गए एक भाषण का अंश है। स्वामी जी को युवाओं से बहुत आशाएँ हैं इसलिए उन्होंने इस भाषण में भारतीय नवयुवकों को चरित्रनिर्माण की शिक्षा देते हुए उन्हें राष्ट्र के नव-निर्माण के लिए प्रेरित किया है। स्वामी जी का कहना है कि इस समय देश को शारीरिक दृष्टि से मज़बूत निर्भय नवयुवकों की ज़रूरत है जो अपने आप में और अपनी शक्ति में विश्वास रखते हों। स्वामी जी की दृष्टि में जो अपने पर विश्वास नहीं रखता वह नास्तिक है। उसे ईश्वर पर विश्वास नहीं। भारतीय आदर्श त्याग और सेवा है। इन्हें अपनाकर गरीबों, भूखों और दलितों की सेवा करना राष्ट्र की सब से बड़ी सेवा है।

राष्ट्रभक्ति कोरी भावना नहीं है, उसका आधार विवेक और प्रेम है। इसका विवेकपूर्वक प्रयोग करते हुए बाहरी भेदभाव भुलाकर प्रत्येक मनुष्य से प्रेम करना चाहिए। शिक्षा के विषय में स्वामी जी का मत है कि शिक्षा विभिन्न जानकारियों का ढेर नहीं है जो मनुष्य के दिमाग में भर दिया जाए; अपितु शिक्षा उन विचारों की अनुभूति है जो जीवन निर्माण, मनुष्य निर्माण और चरित्र निर्माण में सहायक हो। लेखक युवाओं को कहता है कि उन्हें अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए निरन्तर प्रयासरत रहना चाहिए। स्वामी जी कहते हैं कि दलबंदी और ईर्ष्या से ऊपर उठकर यदि तुम पृथ्वी की तरह सहनशील हो जाओगे तो इस गुण के बल पर संसार तुम्हारे कदमों में लेटेगा।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 15 भारत की सांस्कृतिक एकता

Punjab State Board PSEB 11th Class Hindi Book Solutions Chapter 15 भारत की सांस्कृतिक एकता Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Hindi Chapter 15 भारत की सांस्कृतिक एकता

Hindi Guide for Class 11 PSEB भारत की सांस्कृतिक एकता Textbook Questions and Answers

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दें-

प्रश्न 1.
भारत में जाति, भाषा और धर्मगत विभिन्नता होते हुए भी सांस्कृतिक एकता किस प्रकार बनी हुई है ? निबन्ध के आधार पर उत्तर दें।
उत्तर:
भारत में हिन्दू, बौद्ध, जैन, सिक्ख, पारसी अनेक जातियों के लोग रहते हैं। भारत में अनेक भाषाएँ बोली जाती हैं। भारत में अनेक धर्मों को मानने वाले लोग रहते हैं, किन्तु फिर भी हमारे देश की सांस्कृतिक एकता बनी हुई है। इसका एक कारण तो यह है कि सभी धर्मों में त्याग और लय को महत्त्व दिया गया है। एक धर्म के आराध्य दूसरे धर्म में महापुरुष के रूप में स्वीकार किए गए हैं। जैसे भगवान् बुद्ध को हिन्दुओं का तेईसवाँ अवतार माना गया है। इसी प्रकार भगवान् ऋषभ देव का श्रीमद्भागवत में परम आदर के साथ उल्लेख हुआ है। जैन धर्म ग्रंथों में भगवान् राम और श्रीकृष्ण को तीर्थंकर तो नहीं कहा गया उनसे एक श्रेणी नीचे का स्थान मिला है। अन्य हिन्दू देवी-देवाताओं को भी उनके देव मंडल में स्थान मिला है।

प्राचीन काल में भारतीय धर्म और साहित्य ने राष्ट्रीय एकता का पाठ पढ़ाया है। सभी काव्य ग्रंथ रामायण और महाभारत को अपना प्रेरणा स्रोत बनाते रहे हैं। संस्कृत-प्राकृत और अपभ्रंश के काव्य ग्रंथ उत्तर दक्षिणा में समान रूप से मान्य है।

भाषा की दृष्टि से भी उत्तर भारत की प्रायः सभी भाषाएँ संस्कृत से निकलती हैं। दक्षिण की भाषाएँ भी संस्कृत से प्रभावित हुईं। उर्दु को छोड़ कर प्रायः सभी भाषाओं की वर्णमाला एक नहीं तो एक सी हैं। केवल लिपि का भेद है। भारत की विभिन्न भाषाओं के साहित्य ने भी भारत की सांस्कृतिक एकता को बनाए रखने में विशेष योगदान दिया। वेषभूषा, रहन-सहन, चाल-ढाल से भारतवासी जल्दी पहचाने जाते हैं। विदेशी प्रभाव पढ़ने पर भी वह बहुत अंशों में अक्षुण्ण बना हुआ है, वही हमारी एकता का मूल सूत्र है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 15 भारत की सांस्कृतिक एकता

प्रश्न 2.
‘भारत की सांस्कृतिक एकता’ निबन्ध का सार लिखें।
उत्तर:
लेखक कहता है कि देश राष्ट्रीयता का एक आवश्यक उपकरण है। भारत की अनेक नदियों को विभाजक रेखाएँ बतलाकर तथा भाषा और धर्मों एवं रीति-रिवाजों को आधार बनाकर कुछ लोगों ने हमारी राष्ट्रीयता को खंडित करने के लिए भारत को एक देश न कहकर उपमहाद्वीप कहा है। इस तरह उन लोगों ने हमारी राष्ट्रीयता को चुनौती दी है।

लेखक का मानना है कि प्रायः सभी देशों में जाति, भाषा और धर्मगत भेद हैं। जिस देश में भेद नहीं, उसकी इकाई शून्य की भान्ति दरिद्र इकाई है। सम्पन्नता भेदों में ही है। अतः भेदों के अस्तित्व को इन्कार करना मूर्खता होगी और उनकी उपेक्षा करना अपने को धोखा देना होगा। हमारे समाज में भेद और अभेद दोनों ही हैं। हमारे पूर्व शासकों ने अपने स्वार्थ के वश हमारे भेदों का अधिक विस्तार दिया जिससे हमारे देश में फूट पनपे और उनका उल्लू सीधा हो। उन शासकों ने हमारे अभेदों की उपेक्षा की। देश की नदियों को विभाजक रेखा बताने वाले यह भूल गए कि यही नदियाँ तो भारत भूमि को शस्य श्यामला बनाती हैं।

लेखक कहता है कि राजनीति की अपेक्षा धर्म और संस्कृति मनुष्य को हृदय के अधिक निकट हैं। भारतीय धर्मों में भेद होते हुए भी उनमें एक सांस्कृतिक एकता है। भारत में एक धर्म के आराध्य दूसरे धर्म में महापुरुष के रूप में स्वीकार किए गए।

मुसलमान और ईसाई धर्म एशियाई धर्म होने के कारण भारतीय धर्मों से बहुत कुछ समानता रखते हैं। रोमन कैथोलिकों की पूजा-अर्चना, धूप-दीप, व्रत-उपवास आदि हिन्दुओं जैसे ही हैं। ‘मुसलमान’ और ईसाइयों ने यहाँ की संस्कृति को प्रभावित किया तथा यहाँ की संस्कृति से प्रभावित भी हुए। तानसेन और ताज पर हिन्दु मुसलमान समान रूप से गर्व करते हैं। जायसी, रहीम, रसलीन आदि अनेक मुसलमान कवियों ने अपनी वाणी से हिन्दी की रसमयता बढ़ाई है।

जहाँ तक भाषा का प्रश्न है। उत्तर भारत की प्राय: सभी भाषाएँ संस्कृत से निकलती हैं। उर्दू को छोड़कर प्रायः भी भाषाओं की वर्णमाला एक नहीं तो एक-सी है। केवल लिपि का भेद है। भारत की विभिन्न भाषाओं के साहित्य का धूमिल इतिहास धुला-मिला सा है। मीरा, भूषण, संत तुकाराम, कबीर, दादू आदि। सारे भारत में समान रूप से आदर पाते हैं। विदेशी प्रभाव पड़ने पर भी हमारी राष्ट्रीय एकता अक्षुण्ण बनी हुई है।

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(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दें-

प्रश्न 1.
विरोधी लोग भारत को उपमहाद्वीप क्यों कहते हैं ?
उत्तर:
विरोधी लोग भारत की राष्ट्रीय एकता को खंडित करने के लिए नदियों के प्रवाह को विभाजक रेखा बता कर और भारत की अनेक भाषाओं, जातियों और धर्मों के आधार बनाकर भारत को देश न कहकर उपमहाद्वीप कहते हैं। उनकी दृष्टि में भौगोलिक आधार ही मूल विभाजन करते हैं, जोकि पूर्ण रूप से गलत है।

प्रश्न 2.
‘समाज में भेद और अभेद दोनों हैं। लेखक के इस कथन का क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
लेखक का अभिप्राय है कि हमारे पूर्व शासकों ने अपने स्वार्थ कर हमारे भेदों को अधिक विस्तार दिया ताकि देश में आपसी फूट पैदा हो और इस भेद नीति से उनका उल्लु सीधा हो। हमारे अभेदों की उपेक्षा की गई और उसमें हीनता की भावना पैदा की गई।

प्रश्न 3.
पंचशील से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
बौद्धों के पंचशील का अभिप्राय है कि हिंसा न करना, चोरी न करना, काम और मिथ्याचार से बचना, झूठ से बचना, नशीली वस्तुओं और आलस्य से बचना आदि। पंचशील मानव जीवन की उच्चता के आधार हैं।

प्रश्न 4.
धर्म और संस्कृति को लेखक ने हृदय के निकट स्वीकार किया है। निबन्ध के आधार पर उत्तर दें।
उत्तर:
राजनीति की अपेक्षा धर्म और संस्कृति मनुष्य के हृदय के अधिक निकट हैं। जन-साधारण जितना धर्म से प्रभावित होता है उतना राजनीति से नहीं। हमारे भारतीय धर्मों में भेद होते हुए भी उनमें एक सांस्कृतिक एकता है जो उनके अविरोध की परिचायक है। सभी भाषाओं की वर्णमाला एक नहीं तो एक सी है। केवल लिपि का भेद है।

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प्रश्न 5.
भारत की सांस्कृतिक एकता में सिक्ख गुरुओं का क्या योगदान है ?
उत्तर:
सिक्ख गुरुओं ने हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए कष्ट और अत्याचार भी सहे। भारत की सांस्कृतिक एकता के लिए सिक्ख गुरुओं विशेषकर गुरु नानक और गुरु गोबिन्द सिंह जी ने, हिन्दी में कविता की है। ‘गुरु ग्रंथ साहिब’ में कबीर आदि महात्माओं की वाणी आदर के साथ सुरक्षित है, उनका नित्य पाठ होता है।

प्रश्न 6.
मुसलमान और ईसाई धर्म की भारतीय धर्मों से क्या समानता है ?
उत्तर:
‘दूसरों के प्रति वैसा ही व्यवहार करो जैसा कि तुम दूसरों से अपने प्रति चाहते हो।’ ईसा मसीह का यह कथन महाभारत के ‘आत्मनः प्रतिकूलानि’ का ही पर्याय है। ईसाइयों की क्षमा और दया बौद्ध धर्म से मिलती जुलती है। रोमन कैथोलिकों की पूजा-अर्चना, धूप-दीप, व्रत-उपवास आदि हिन्दुओं के से हैं।

प्रश्न 7.
हिन्दू-तीर्थाटन में राष्ट्रीय भावना कैसे निहित है ?
उत्तर:
शिव भक्त ठेठ उत्तर की गंगोत्री से गंगा जल ला कर दक्षिणा के रामेश्वरम महादेव का अभिषेक करते हैं। उत्तर में बदरी-केदार, दक्षिण में रामेश्वरम, पूर्व में जगन्नाथ और पश्चिम में द्वारिका पुरी के तीर्थाटन में भारत की चारों दिशाओं की पूजा हो जाती है। ये मानव हृदय में आस्था के भावों को भरकर एकता का पाठ पढ़ाते हैं जिससे राष्ट्रीय भावना व्यक्त होती है।

प्रश्न 8.
भाषागत समानता से आप क्या समझते हो ?
उत्तर:
भाषागत समानता से तात्पर्य यह है कि उत्तर भारत की सभी भाषाएँ संस्कृत से निकलती हैं। इन सभी के शब्दों में पारिवारिक समानता है। दक्षिण की भाषाएँ भी संस्कृत से प्रभावित हुईं। उन्होंने भी थोड़ी बहुत संस्कृत की शब्दावली ग्रहण की। सभी भाषाओं की वर्णमाला एक नहीं तो एक सी है। केवल लिपि का भेद है।

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PSEB 11th Class Hindi Guide भारत की सांस्कृतिक एकता Important Questions and Answers

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
लेखक बाबू गुलाबराय ने नदियों को क्या बतलाया है ?
उत्तर:
विभाजक रेखाएँ।

प्रश्न 2.
लेखक बाबू गुलाबराय ने भारत को देश न कहकर क्या कहा है ?
उत्तर:
उपमहाद्वीप।

प्रश्न 3.
लेखक बाबू गुलाबराय के अनुसार राष्ट्रीयता का उपकरण क्या है ?
उत्तर:
देश।

प्रश्न 4.
सभी देशों में किस प्रकार के भेद हैं ?
उत्तर:
जाति, भाषा एवं धर्मगत भेद हैं।

प्रश्न 5.
जिस देश में भेद नहीं, उसकी इकाई कैसी है ?
उत्तर:
शून्य की भांति दरिद्र इकाई।

प्रश्न 6.
हमारे समाज में …………….. और …………….. हैं।
उत्तर:
भेद, अभेद।

प्रश्न 7.
मनुष्य के हृदय के अधिक निकट कौन हैं ?
उत्तर:
धर्म और संस्कृति।

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प्रश्न 8.
भारतीय धर्मों में भेद होते हुए भी उनमें …………….. है।
उत्तर:
सांस्कृतिक एकता।

प्रश्न 9.
दो मुसलमान कवियों के नाम लिखिए।
उत्तर:
मलिक मुहम्मद जायसी, रहीम।

प्रश्न 10.
उत्तर भारत की सभी भाषाएँ ………. से निकली हैं।
उत्तर:
संस्कृत से।

प्रश्न 11.
भाषाओं में विशेषकर किसका भेद है ?
उत्तर:
लिपि का।

प्रश्न 12.
विदेशी प्रभाव के बावजूद भी हमारी राष्ट्रीय एकता ……………
उत्तर:
अक्षुण्ण।

प्रश्न 13.
विरोधी लोग भारत को देश न कहकर क्या कहते हैं ?
उत्तर:
उपमहाद्ववीय।

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प्रश्न 14.
भारत के विरोधी भारत की एकता को तोड़ने के लिए ……….. अपनाते हैं।
उत्तर:
तरह-तरह के हथकंडे।

प्रश्न 15.
सिक्ख धर्म गुरुओं ने किसकी रक्षा के लिए कष्ट सहे ?
उत्तर:
हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए।

प्रश्न 16.
सभी धर्मों में ……………. का महत्त्व है।
उत्तर:
त्याग और लय।

प्रश्न 17.
सभी भाषाओं की वर्णमाला …………. नहीं है।
उत्तर:
एक।

प्रश्न 18.
रामेश्वरम कहाँ स्थित है ?
उत्तर:
भारत के दक्षिण में।

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प्रश्न 19.
ठेठ शिव भक्त रामेश्वरम महादेव का अभिषेक कैसे करते हैं ?
उत्तर:
गंगोत्री से गंगा जल लाकर।

प्रश्न 20.
भारतवासियों का एक ………….. है।
उत्तर:
जातीय व्यक्तित्व

बहुविकल्पी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
भारत में किन किन धर्मों के लोग रहते हैं ?
(क) हिंदू
(ख) सिख।
(ग) ईसाई
(घ) सभी।
उत्तर:
(घ) सभी

प्रश्न 2.
भारत की सांस्कृतिक एकता किस विधा की रचना है ?
(क) निबंध
(ख) कहानी
(ग) उपन्यास
(घ) नाटक ।
उत्तर:
(क) निबंध

प्रश्न 3.
पंचशील सिद्धांत किसका है ?
(क) बौद्धों का
(ख) जैनों का
(ग) सिक्खों का
(घ) ईसाइयों का।
उत्तर:
(क) बौद्धों का

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प्रश्न 4.
मनुष्य के हृदय के अधिक निकट कौन है ?
(क) धर्म
(ख) संस्कृति
(ग) दोनों
(घ) कोई नहीं।
उत्तर:
(ग) दोनों।

प्रमुख अवतरणों की सप्रसंग व्याख्या

(1) हमारी राष्ट्रीयता को चुनौती देने के निमित्त उत्तर-दक्षिण, अवर्ण-सवर्ण, हिन्दू-मुसलमान-सिक्ख-ईसाईजैन के भेद खड़े करके हमारी संगठित ईकाई को क्षति पहुँचाई गई। भाषा का भी बवंडर उठाया गया ताकि आपसी झगड़ों और भेद-भाव में हमारी शक्ति का ह्रास हो और विदेशी शासकों का राज्य अटल बना रहे।

प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियाँ बाबू गुलाब राय द्वारा लिखित निबन्ध ‘भारत की सांस्कृतिक एकता’ में से ली गई हैं। इसमें लेखक ने विदेशी शासकों अथवा विरोधियों द्वारा भारत को उपमहाद्वीप कहे जाने में देश की राष्ट्रीय एकता को खण्डित करने की चाल बताया है।

व्याख्या :
लेखक कहता है कि विरोधियों द्वारा भारत को देश न कहकर उपमहाद्वीप कहने से उनका तात्पर्य था कि हमारी राष्ट्रीयता को चुनौती दी जाए। इसके लिए उन्होंने उत्तर-दक्षिण, अगड़ी और पिछड़ी जाति, हिन्दू-मुसलमानसिक्ख-ईसाई-जैन धर्मावलंबी लोगों में भेद खड़े करके हमारी संगठित इकाई को हानि पहुँचाई है परन्तु वे अपने मकसद में पूरी तरह कामयाब नहीं हुए तो उन्होंने भाषा का भी तूफान खड़ा किया गया जिसे आपसी झगड़ों और भेद-भाव में हमारी शक्ति क्षीण हो और विदेशी शासकों का राज्य अटल बना रहे।

विशेष :

  1. इन पंक्तियों से लेखक का भाव यह है कि भारत के विरोधी भारतीयों की एकता को तोड़ने के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपना रहे हैं। परन्तु वे भारतीय एकता के समक्ष असफल हो जाते हैं।
  2. भाषा संस्कृत निष्ठ होते हुए भी बोधगम्य है।

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(2) भेदों के अस्तित्व से इन्कार करना मूर्खता होगी और उनकी उपेक्षा करना अपने को धोखा देना होगा। हमारे समान में भेद और अभेद दोनों ही हैं। हमारे पूर्व शासकों ने अपने स्वार्थ वश हमारे भेदों को अधिक विस्तार दिया और जिससे हमारे देश में फूट की बेल पनपे और इस भेद नीति से उनका उल्लू सीधा हो। हमारे अभेदों की उपेक्षा की गई या उनको नगण्य समझा गया। इसमें दीनता की मनोवृत्ति पैदा हो गई।

प्रसंग :
यह गद्यांश बाबू गुलाब राय जी द्वारा लिखित निबन्ध ‘भारत की सांस्कृतिक एकता’ में से लिया गया है। प्रस्तुत पंक्तियों में लेखक ने भारत में स्थित भेदों और उपभेदों को हवा देकर विदेशी शासकों द्वारा अपना उल्लू सीधा करने की बात कही है।

व्याख्या :
लेखक कहता है कि हमारे देश में जाति, धर्म, भाषा आदि के अनेक भेद हैं। इन भेदों के अस्तित्व से इन्कार करना मूर्खता होगी और उनकी उपेक्षा करना भी अपने आप को धोखा देने के बराबर होगा। लेखक मानता है कि हमारे समाज में भेद और अभेद दोनों ही हैं किन्तु हमारे पूर्व शासकों, अंग्रेजों ने अपने स्वार्थ के कारण हमारे भेदों को अधिक बढ़ावा दिया जिससे हमारे देश में आपसी फूट पैदा हो और विदेशी शासकों का उल्लू सीधा हो। अंग्रेज़ों ने हमारे अभेदों की उपेक्षा की या उन्हें महत्त्व हीन किया। ऐसा करके अंग्रेज़ शासकों द्वारा भारतीयों में हीन भावना पैदा की गई। भारतीयों के मनोबल को कमज़ोर किया गया।

विशेष :

  1. अंग्रेज़ों द्वारा भारतीय सांस्कृतिक एकता को नष्ट करके अपना उल्लू सीधा करने की बात पर प्रकाश डाला गया है।
  2. भाषा संस्कृत निष्ठ है। ‘उल्लू सीधा करना’ मुहावरे का प्रयोग करके अंग्रेजों की कूटनीति का वर्णन किया है।
  3. भाषा शैली सरल, सहज तथा प्रवाहमयी है।

(3) राजनीति की अपेक्षा धर्म और संस्कृति मनुष्य के हृदय के अधिक निकट है। यद्यपि राजनीति का सम्बन्ध भौतिक सुख-सुविधाओं से है फिर भी जन साधारण जितना धर्म से प्रभावित होता है उतना राजनीति से नहीं। हमारे भारतीय धर्मों में भेद होते हुए भी उन में एक सांस्कृतिक एकता है, जो उनके अवरोध की परिचायक है।

प्रसंग :
यह अवतरण बाबू गुलाब राय जी द्वारा लिखित निबन्ध ‘भारत की सांस्कृतिक एकता’ में से लिया गया है। लेखक ने राजनीति से अधिक धर्म के प्रभाव पर प्रकाश डाला है।

व्याख्या :
लेखक कहता है कि राजनीति की अपेक्षा धर्म और संस्कृति मनुष्य के हृदय के अधिक निकट होती है अर्थात् धर्म और संस्कृति मनुष्य की जड़ों से सम्बन्धित होती है। हालांकि राजनीति का सम्बन्ध सांसारिक सुख-सुविधाओं से है फिर भी आम लोग जितने धर्म से अधिक प्रभावित होते हैं राजनीति से उतने नहीं होते। हमारे भारतीय धर्मों में भले ही अनेक भेद हैं किन्तु उनमें सांस्कृतिक एकता भी मौजूद है, जो उनके मेल या सामंजस्य के परिचायक हैं अर्थात् उनके एक होने का प्रमाण है।

विशेष :
भारतीय धर्मों को सांस्कृतिक एकता बनाए रखने वाला बताया है।
भाषा संस्कृतनिष्ठ है।
भाषा शैली सरल, सहज तथा प्रवाहमयी है।

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(4) हमारा एक जातीय व्यकितत्व है। वह हमारी जातीय मनोवृत्ति, जीवन मीमांसा, रहन-सहन, रीति-रिवाज, उठने-बैठने के ढंग, चाल-ढाल, वेश-भूषा, साहित्य, संगीत और कला में अभिव्यक्त होता है। विदेशी प्रभाव पड़ने पर भी वह बहुत अंशों में अक्षुण्ण बना हुआ है, वहीं हमारी एकता का मूल सूत्र है।

प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियाँ बाबू गुलाब राय जी द्वारा लिखित निबन्ध ‘भारत की सांस्कृतिक एकता’ में से ली गई हैं। इनमें लेखक ने भारतीय सांस्कृतिक एकता बनी रहने के कारण पर प्रकाश डाला है।

व्याख्या :
लेखक कहता है कि भारतवासियों का एक जातीय व्यक्तित्व है। वह जातीय व्यक्तित्व हमारी जातीय मनोवृत्ति, जीवन-मीमांसा, रहन-सहन, रीति-रिवाज, उठने-बैठने के ढंग, चाल-ढाल, वेश-भूषा, साहित्य, संगीत और कला में प्रकट होता है। विदेशी प्रभाव पड़ने पर भी वह बहुत हद तक अखंडित बना हुआ है। विदेशी शासन का प्रभाव भी इसे नष्ट नहीं कर सका। वही हमारी राष्ट्रीय एकता का मूल सूत्र है। हमारी एकता किसी से प्रभावित नहीं होती।

विशेष :

  1. लेखक ने भारतीय सांस्कृतिक एकता के अखंडित रहने के कारणों पर प्रकाश डाला है।
  2. भाषा संस्कृतनिष्ठ है
  3. भाषा शैली सरल, सहज तथा प्रवाहमयी है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 15 भारत की सांस्कृतिक एकता

कठिन शब्दों के अर्थ :

हितचिन्तक = भला चाहने वाला। अवयवों = शरीर के अंगों। समायोजन = संगठन। उर्वरा = उपजाऊ। शस्यश्यामला = हरा-भरा, धन-धान्य से भरपूर, फल से भरपूर। अबाधित = बिना रुकावट के। अखिल = निरन्तर। अवरोध = मेल सामंजस्य। आराध्य = पूज्य। तीर्थंकर = जैन धर्म के पूज्य 24 श्लाघा पुरुष । आवागमन = बार-बार जन्म लेना आना जाना। मुदिता = प्रज्ञव्रता चित्त की दशा। स्वास्तिक चिह्न = मंगलकारी, गणेश जी की आकृति को दशाने वाला चिह्न । यम = अहिंसा, सत्य चोरी न करना, ब्रह्मचारी, आवश्यकता से अधिक संग्रह न करना यम कहलाते हैं। अणुव्रत = जैनधर्म में अहिंसा, सत्य, चोरी न करना, ब्रह्मचर्य और आवश्यकता से अधिक संग्रह न करना को अणुव्रत कहा गया है। तीर्थाटन = तीर्थों की यात्रा करना। जेन्दावेस्ता = पारसियों का धर्म ग्रन्थ एकता। आम्नाय = धर्मशास्त्रीय ग्रंथ। एकध्येयता = लक्ष्य की एकता।

भारत की सांस्कृतिक एकता Summary

भारत की सांस्कृतिक एकता का सार

लेखक कहता है कि देश राष्ट्रीयता का एक आवश्यक उपकरण है। भारत की अनेक नदियों को विभाजक रेखाएँ बतलाकर तथा भाषा और धर्मों एवं रीति-रिवाजों को आधार बनाकर कुछ लोगों ने हमारी राष्ट्रीयता को खंडित करने के लिए भारत को एक देश न कहकर उपमहाद्वीप कहा है। इस तरह उन लोगों ने हमारी राष्ट्रीयता को चुनौती दी है।

लेखक का मानना है कि प्रायः सभी देशों में जाति, भाषा और धर्मगत भेद हैं। जिस देश में भेद नहीं, उसकी इकाई शून्य की भान्ति दरिद्र इकाई है। सम्पन्नता भेदों में ही है। अतः भेदों के अस्तित्व को इन्कार करना मूर्खता होगी और उनकी उपेक्षा करना अपने को धोखा देना होगा। हमारे समाज में भेद और अभेद दोनों ही हैं। हमारे पूर्व शासकों ने अपने स्वार्थ के वश हमारे भेदों का अधिक विस्तार दिया जिससे हमारे देश में फूट पनपे और उनका उल्लू सीधा हो। उन शासकों ने हमारे अभेदों की उपेक्षा की। देश की नदियों को विभाजक रेखा बताने वाले यह भूल गए कि यही नदियाँ तो भारत भूमि को शस्य श्यामला बनाती हैं।

लेखक कहता है कि राजनीति की अपेक्षा धर्म और संस्कृति मनुष्य को हृदय के अधिक निकट हैं। भारतीय धर्मों में भेद होते हुए भी उनमें एक सांस्कृतिक एकता है। भारत में एक धर्म के आराध्य दूसरे धर्म में महापुरुष के रूप में स्वीकार किए गए।

मुसलमान और ईसाई धर्म एशियाई धर्म होने के कारण भारतीय धर्मों से बहुत कुछ समानता रखते हैं। रोमन कैथोलिकों की पूजा-अर्चना, धूप-दीप, व्रत-उपवास आदि हिन्दुओं जैसे ही हैं। ‘मुसलमान’ और ईसाइयों ने यहाँ की संस्कृति को प्रभावित किया तथा यहाँ की संस्कृति से प्रभावित भी हुए। तानसेन और ताज पर हिन्दु मुसलमान समान रूप से गर्व करते हैं। जायसी, रहीम, रसलीन आदि अनेक मुसलमान कवियों ने अपनी वाणी से हिन्दी की रसमयता बढ़ाई है।

जहाँ तक भाषा का प्रश्न है। उत्तर भारत की प्राय: सभी भाषाएँ संस्कृत से निकलती हैं। उर्दू को छोड़कर प्रायः भी भाषाओं की वर्णमाला एक नहीं तो एक-सी है। केवल लिपि का भेद है। भारत की विभिन्न भाषाओं के साहित्य का धूमिल इतिहास धुला-मिला सा है। मीरा, भूषण, संत तुकाराम, कबीर, दादू आदि। सारे भारत में समान रूप से आदर पाते हैं। विदेशी प्रभाव पड़ने पर भी हमारी राष्ट्रीय एकता अक्षुण्ण बनी हुई है।