PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 6 कीमत मांग की लोच

Punjab State Board PSEB 11th Class Economics Book Solutions Chapter 6 कीमत मांग की लोच Textbook Exercise Questions, and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Economics Chapter 6 कीमत मांग की लोच

PSEB 11th Class Economics कीमत मांग की लोच Textbook Questions and Answers

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

प्रश्न 1.
माँग की कीमत लोच से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
वस्तु की कीमत में परिवर्तन के फलस्वरूप उसकी माँग में आने वाले परिवर्तन के अनुपात को माँग की कीमत लोच कहते हैं।
अथवा
कीमत में होने वाले प्रतिशत परिवर्तन तथा माँग में होने वाले प्रतिशत परिवर्तन के माप को माँग की कीमत लोच कहते हैं।

प्रश्न 2.
माँग की लोच से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
माँग को प्रभावित करने वाले संख्यात्मक तत्वों में परिवर्तन के फलस्वरूप माँग की मात्रा में आने वाले परिवर्तन के माप को माँग की लोच कहते हैं।

प्रश्न 3.
कीमत माँग की लोच इकाई के बराबर कब होती है ?
उत्तर-
जब माँग तथा कीमत में समान अनुपात से परिवर्तन होता है।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 6 कीमत मांग की लोच

प्रश्न 4.
पूर्णतः लोचदार माँग से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
पूर्णतः लोचदार माँग में प्रचलित कीमतों पर माँग अनन्त होती है।

प्रश्न 5.
पूर्णतः लोचदार माँग वक्र बनाएँ।
उत्तर-
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 6 कीमत मांग की लोच 1

प्रश्न 6.
पूर्णतः बेलोचदार माँग से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
पूर्णतः बेलोचदार माँग में कीमत में परिवर्तन होने पर माँग में कोई परिवर्तन नहीं होता।

प्रश्न 7.
पूर्णतः बेलोचदार माँग वक्र बनाएँ।
उत्तर-
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 6 कीमत मांग की लोच 2

प्रश्न 8.
पूर्णतः लोचदार माँग कब होती है ?
उत्तर-
पूर्ण प्रतियोगिता की स्थिति में एक फ़र्म की माँग पूर्णतः लोचदार होती है।

प्रश्न 9.
इकाई लोचदार माँग से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
कीमत में होने वाले प्रतिशत परिवर्तन के बराबर माँग में प्रतिशत परिवर्तन हो तो इस स्थिति को इकाई लोचदार माँग कहते हैं।

प्रश्न 10.
जिन वस्तुओं की हम को आदत पड़ जाती है, उन वस्तुओं की लोच कैसी होती है ?
उत्तर-
इन वस्तुओं की माँग की लोच इकाई से कम होती है।

प्रश्न 11.
माँग की कीमत लोच के माप के सूत्रों के नाम लिखो।
उत्तर-

  • आनुपातिक विधि
  • कुल व्यय विधि
  • ज्यामितिक विधि अथवा बिंदु लोच विधि।

प्रश्न 12.
आनुपातिक विधि का सूत्र लिखें।
उत्तर-
\(\Sigma d=(-) \frac{\mathrm{P}}{\mathrm{Q}} \times \frac{\Delta \mathrm{Q}}{\Delta \mathrm{P}}\)

प्रश्न 13.
किसी वस्तु की कीमत ₹ 10 से बढ़कर ₹ 20 हो जाती है, परन्तु उस वस्तु की माँग में कोई परिवर्तन नहीं होता, तो इस वस्तु की माँग की लोच किस प्रकार की है ?
उत्तर-
माँग की लोच इकाई से कम है (Σd < 1).

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 6 कीमत मांग की लोच

प्रश्न 14.
कीमत मांग की लोच (ed) = ………..
उत्तर-
कीमत मांग की लोच (ed) = (-) \(\frac{\Delta D}{\Delta P} \times \frac{P}{D}\)

प्रश्न 15.
प्रतिशत विधि अनुसार कीमत मांग की लोच (ed) = ……
उत्तर-
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 6 कीमत मांग की लोच 3

प्रश्न 16.
वस्तु की मांग तथा कीमत में होने वाले आनुपातिक परिवर्तन को आय मांग की लोच कहते हैं।
उत्तर-
ग़लत।

प्रश्न 17.
कीमत में परिवर्तन होने पर मांग में उन्नत परिवर्तन हो जाता है तो इस को ……………. कहते है।
(a) पूर्ण लोचदार मांग
(b) पूर्ण बेलोचदार मांग
(c) इकाई लोचदार मांग
(d) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(a) पूर्ण लोचदार मांग।

प्रश्न 18.
कीमत में परिवर्तन होने से मांग में कोई परिवर्तन नहीं होता तो इसको ……… कहते हैं।
(a) पूर्ण लोचदार मांग
(b) पूर्ण बेलोचदार मांग
(c) इकाई से कम लोचदार मांग
(d) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(b) पूर्ण बेलोचदार मांग।

प्रश्न 19.
कीमत में होने वाले प्रतिशत परिवर्तन के बराबर मांग में प्रतिशत परिवर्तन हो तो इस को …… कहते हैं।
(a) पूर्ण लोचदार मांग
(b) इकाई से अधिक लोचदार मांग
(c) इकाई से कम लोचदार मांग
(d) इकाई लोचदार मांग।
उत्तर-
(d) इकाई लोचदार मांग।

प्रश्न 20.
कीमत में होने वाले प्रतिशत परिवर्तन की अपेक्षा मांग में प्रतिशत परिवर्तन अधिक होता है तो इसको …….. कहते हैं।
(a) इकाई से अधिक लोचदार मांग
(b) पूर्ण लोचदार मांग
(c) इकाई से कम लोचदार मांग
(d) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(a) इकाई से अधिक लोचदार मांग।

प्रश्न 21.
कीमत में वृद्धि तथा कमी होने पर मांग में कोई परिवर्तन नहीं होता तो इसको शून्य मांग की कीमत लोच कहते हैं।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 22.
जब वस्तु की कीमत में थोड़ी सी वृद्धि होने पर उसकी मांग शून्य हो जाती है तो इसको इकाई मांग की लोच कहा जाता है।
उत्तर-
गलत।

प्रश्न 23.
वस्तु की कीमत लोच वह माप है जो वस्तु की कीमत में होने वाले % परिवर्तन के फलस्वरूप मांग में होने वाले % परिवर्तन को प्रकट करता है।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 24.
किसी वस्तु की मांग के विभिन्न तत्वों में से किसी में भी % परिवर्तन होने के फलस्वरूप वस्तु की मांग में होने वाले % परिवर्तन को कीमत मांग की लोच कहा जाता है।
उत्तर-
ग़लत।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 6 कीमत मांग की लोच

प्रश्न 25.
किसी वस्तु की मांग के विभिन्न तत्वों में से किसी में भी प्रतिशत परिवर्तन होने के फलस्वरूप वस्तु की मांग में होने वाले प्रतिशत परिवर्तन को मांग की लोच कहा जाता है।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 26.
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 6 कीमत मांग की लोच 4
उत्तर-
कीमत मांग की लोच। ।

प्रश्न 27.
किसी वस्तु की कीमत में 50% परिवर्तन होने से मांग में 25% परिवर्तन हो जाता है। कीमत मांग की लोच ज्ञात करें।
उत्तर-
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 6 कीमत मांग की लोच 5
= \(\frac{25 \%}{50 \%}=\frac{1}{2}\)
∴ Ed < 1

II. अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
कीमत मांग की लोच का अर्थ बताओ।
उत्तर-
कीमत मांग की लोच, कीमत में होने वाले प्रतिशत परिवर्तन तथा मांग में होने वाले प्रतिशत परिवर्तन का अनुपात होता है। मांग की लोच में कीमत तथा मांग के बीच वाले सम्बन्ध का अध्ययन किया जाता है। जब किसी वस्तु की कीमत में परिवर्तन होता है तो मांग जिस दर पर परिवर्तित होती है, उस दर को मांग की लोच कहा जाता है।

प्रश्न 2.
पूर्ण लोचशील मांग से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
पूर्ण लोचशील मांग-जब कीमत में कोई परिवर्तन नहीं होता, परन्तु मांग में परिवर्तन बहुत अधिक होता है अर्थात् मांग असीमित गुणा बढ़ जाती है अथवा कई गुणा कम हो जाती है तो इस स्थिति में मांग को पूर्ण लोचशील कहा जाता है। रेखाचित्र 3 में कीमत OP रहती है, जिस पर मांग शून्य की जाती है अथवा OM अथवा OM1 की जाती है अर्थात् इस कीमत पर मांग में कई गुणा (α) वृद्धि हो जाती है। इसको पूर्ण लोचशील मांग कहा जाता है।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 6 कीमत मांग की लोच 6

प्रश्न 3.
अधिक लोचशील मांग का अर्थ स्पष्ट करो।
उत्तर-
किसी वस्तु की मांग को अधिक लोचशील कहा जाता है, जब कीमत में थोड़ा-सा परिवर्तन होता है, परन्तु मांग में परिवर्तन बहुत अधिक हो जाता है। जैसे कि कीमत में परिवर्तन 1% होता है तथा मांग में परिवर्तन 5% हो जाए तो इसको अधिक लोचशील मांग कहा जाता है। रेखाचित्र में इकाई के समान लोचशील मांग दिखाई गई है।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 6 कीमत मांग की लोच 7

प्रश्न 4.
पूर्ण अलोचशील मांग से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
मांग की लोच को पूर्ण अलोचशील कहा जाता है, जब कीमत में परिवर्तन जितना मर्जी हो जाए, परन्तु मांग में कोई परिवर्तन न हो। जब कीमत शून्य (0) होती है तो भी मांग उतनी ही की जाती है तथा कीमत के बढ़ने से मांग समान रहती है। इसको पूर्ण अलोचशील मांग कहते हैं।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 6 कीमत मांग की लोच 8

प्रश्न 5.
प्रतिशत विधि द्वारा मांग की लोच का मापने का सूत्र बताएं।
उत्तर-
प्रतिशत विधि द्वारा मांग की लोच का निम्नलिखित सूत्र द्वारा माप किया जाता हैकीमत मांग की लोच (Ed) =- \(\left(\frac{\Delta Q}{\Delta P} \times \frac{P}{Q}\right)\)
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 6 कीमत मांग की लोच 9

प्रश्न 6.
एक उपभोगी ₹ 5 प्रति इकाई कीमत पर वस्तु की 20 इकाइयों की मांग करता है, जब कीमत में 50% कमी हो जाती है, तो मांग बढ़ कर 40 इकाइयां हो जाती हैं। कीमत मांग की लोच ज्ञात करें।
उत्तर-
मौलिक मांग = 20
इकाइयां कीमत कम होने पर मांग = 40 इकाइयां
कीमत कम होने पर मांग में परिवर्तन = 40 – 20 = 20 इकाइयां
20 इकाइयों पर वृद्धि = 20
1 इकाई पर वृद्धि = \(\frac{20}{20}\)
100 इकाइयों पर वृद्धि = \(\frac{20}{20} \times 100\) = 100%
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 6 कीमत मांग की लोच 10
Ed => 1.

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 6 कीमत मांग की लोच

प्रश्न 7.
कीमत मांग की लोच 2 है कीमत में प्रतिशत परिवर्तन 10% है मांग की मात्रा में परिवर्तन ज्ञात करें।
उत्तर-
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 6 कीमत मांग की लोच 11
∴ मांग में प्रतिशत परिवर्तन = 2 × = 10% = 20% उत्तर

III. लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
कीमत मांग की लोच के महत्त्व को स्पष्ट करो। (Explain the Importance of Elasticity of Demand.)
उत्तर-
कीमत मांग की लोच के महत्त्व को निम्नलिखित अनुसार स्पष्ट किया जा सकता है-

  1. कर नीति-वित्त मंत्री कर नीति निश्चित करते समय उस वस्तु की मांग की लोच को ध्यान में रखते हैं। जिस वस्तु की मांग की लोच इकाई से कम होगी, उस वस्तु पर कर की मात्रा कम लगाई जाती है।
  2. जनतक सेवाएं-जो वस्तुएं राष्ट्र के लोगों के लिए अनिवार्य होती हैं, उनकी मांग की लोच इकाई से कम होती है। जैसे कि पानी, बिजली, खाना बनाने वाली गैस इत्यादि वस्तुओं की कीमतें कम निश्चित की जाती हैं, क्योंकि यह वस्तुएं लोगों की भलाई में वृद्धि करती हैं। यदि जनतक सेवाओं की कीमत बहुत अधिक बढ़ा दी जाती है तो मांग में ज्यादा कमी नहीं होती।
  3. उत्पादन के साधनों का मेहनताना-मांग की लोच उत्पादन के साधनों को दिए जाने वाले मुआवजे की मात्रा निश्चित करने में भी सहायक होती है। यदि किसी उद्योग में मशीनों का प्रयोग नहीं किया जा सकता, ऐसी स्थिति में मज़दूरों का महत्त्व अधिक होगा। मजदूरों की मांग लोच इकाई से कम होगी, इस कारण उद्यमी मज़दूरों को अधिक मज़दूरी देने के लिए तैयार होंगे।
  4. अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में महत्त्व-मांग की लोच द्वारा विभिन्न राष्ट्रों के बीच अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार की शर्ते निश्चित की जाती हैं, जैसे कि दुनिया में अरब के देशों में पेट्रोल प्राप्त होता है। यह देश-विदेशों को पेट्रोल अथवा मिट्टी का तेल निर्यात करते हैं। एकाधिकार होने के कारण तेल तथा पेट्रोल की मनमानी कीमत ली जाती है। इन वस्तुओं की मांग की लोच इकाई से कम होती है।

प्रश्न 2.
मांग की लोच का माप करने के लिए आनुपातिक विधि की व्याख्या करो।
उत्तर-
आनुपातिक विधि-मांग की लोच का माप करने के लिए इस विधि का निर्माण मार्शल (Marshal) द्वारा किया गया था। उन्होंने मांग की लोच का माप करने के लिए निम्नलिखित सूत्र दिया-
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 6 कीमत मांग की लोच 12
यहां ΔQ = 1; Q = 4, ΔP = -2, P=4
E = Ed = \(\frac{\frac{-1}{4}}{\frac{-2}{4}}=\frac{-1}{4} \times \frac{4}{-2}=\frac{1}{2} \mathrm{Ed}<1\)
जहां जवाब एक से कम बचता है तो मांग की लोच इकाई से कम होती है। यदि जवाब एक बचता हो तो मांग की लोच इकाई के समान तथा यदि एक से अधिक बचता हो तो मांग की लोच इकाई से अधिक होगी।

प्रश्न 3.
रेखाचित्र की सहायता से मांग की मान्यताओं को स्पष्ट करो।
उत्तर-
रेखाचित्र 6 अनुसार, मांग की मान्यताएं निम्नलिखित हैं :
1. पूर्ण लोचशील मांग-मांग पूर्ण लोचशील होती है, जब कीमत में कोई परिवर्तन नहीं होता, परन्तु मांग बहुत अधिक अथवा कम हो जाती है। इस स्थिति में मांग की लोच (Ed = α) अनन्त होती है, जैसे DD1 द्वारा दिखाया है।
2. अधिक लोचशील मांग-कीमत में कम परिवर्तन होता है, परन्तु मांग में अधिक मात्रा में परिवर्तन हो जाता है तो इसको अधिक लोचशील मांग (Ed > 1) कहा जाता है, जैसे D2 द्वारा दिखाया है।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 6 कीमत मांग की लोच 13
3. इकाई लोचशील मांग-कीमत में परिवर्तन तथा मांग में परिवर्तन एक समान होता है तो मांग की लोच इकाई के समान (Ed = 1) होती है, जैसे D3 द्वारा दिखाया है।
4. कम लोचशील मांग-कीमत में अधिक परिवर्तन होने के साथ-साथ मांग में कम दर पर परिवर्तन होता है तो मांग की लोच (Ed < 1) इकाई से कम होती है, जैसे D4 द्वारा दिखाया है।
5. पूर्ण अलोचशील मांग-कीमत में परिवर्तन होने के साथ मांग में कोई परिवर्तन न हो तो मांग पूर्ण बेलोचशील (Ed = 0) होती है। जैसे D5 द्वारा दिखाया है।

प्रश्न 4.
कीमत मांग की लोच
(a) शून्य (0)
(b) इकाई (1)
(c) अनन्त (α) को रेखाचित्रों द्वारा स्पष्ट करो।
उत्तर
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 6 कीमत मांग की लोच 14

  • रेखाचित्र 7 (a) में मांग पूर्ण अलोचशील है। इसलिए Ed = 0
  • रेखाचित्र 7 (b) में मांग रैकटेंगुलर हाइपर बोला है। इसके प्रत्येक बिन्दु पर Ed = 1 होती है।
  • रेखाचित्र 7 (c) में मांग पूर्ण अलोचशील है, इसलिए मांग की लोच (Ed = α) अनन्त होगी।

प्रश्न 5.
जब दो मांग वक्र एक-दूसरे को काटते हैं तो काटने वाले बिन्दु पर जो मांग वक्र अधिक चपटी होगी, उतनी ही उस वक्र पर मांग की लोच अधिक होगी। रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट करो।
उत्तर-
जब दो मांग वक्र D1D1 तथा D2D2 एक दूसरे को A बिन्दु पर काटते हैं तो OP कीमत पर मांग OQ हो जाती है। अब मान लो कीमत PP1 कम हो जाती है तो इस कीमत पर D1D1 द्वारा मांग OQ1 हो जाती है, जबकि D2D2 पर मांग OQ2 की जाती है :
D1D1 पर मांग की लोच –
Ed = \(\frac{\frac{\mathrm{QQ}_{1}}{\mathrm{OQ}}}{\frac{\mathrm{PP}_{1}}{\mathrm{OP}}}\)
D2D2 पर मांग की लोच
Ed = \(\frac{\frac{\mathrm{QQ}_{2}}{\mathrm{OQ}}}{\frac{\mathrm{PP}_{1}}{\mathrm{OP}}}\)
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 6 कीमत मांग की लोच 15
कीमत में परिवर्तन PP1 मौलिक कीमत OP1 मौलिक मांग OQ दोनों स्थितियों में समान है, परन्तु मांग में परिवर्तन QQ2 जोकि D2D 2 पर है, QQ1 के परिवर्तन से अधिक है। इसलिए D2D2, पर D1D1 से मांग की लोच अधिक है। स्पष्ट है कि जो मांग वक्र चपटी होगी, उस पर मांग की लोच अधिक होगी।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 6 कीमत मांग की लोच

IV. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
कीमत मांग की लोच से क्या अभिप्राय है ? कीमत मांग की लोच के माप की प्रतिशत विधि माप स्पष्ट करो ।
उत्तर-
कीमत मांग की लोच (Price Elasticity of Demand)-प्रो० मार्शल अनुसार, “कीमत मांग की लोच, कीमत में होने वाले प्रतिशत परिवर्तन तथा मांग में होने वाले प्रतिशत परिवर्तन की अनुपात होती है।” (“Price Elasticity of Demand is the ratio of percentage change in quantity demanded to a percentage change in Price.” – Marshall)

मांग की लोच से यह ज्ञात होता है कि वस्तु की प्रतिशत कीमत बढ़ने से मांग में कितने प्रतिशत कमी होगी। मांग की लोच से परिवर्तन की दर का पता चलता है, जबकि मांग का नियम कीमत तथा मांग की दिशा का ज्ञान होता है।
कीमत मांग की लोच का माप (Measurement of Price Elasticity of Demand)-मांग की लोच के माप की प्रतिशत विधि इस प्रकार है –
प्रतिशत विधि (Percentage Method)
अथवा
आनुपातिक विधि (Proportionate Method)-मांग की लोच का माप प्रतिशत अथवा आनुपातिक विधि द्वारा किया जा सकता है। इसको स्पष्ट करने के लिए मार्शल ने निम्नलिखित सूत्र का प्रयोग किया।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 6 कीमत मांग की लोच 16
= (-) \(\frac{\Delta \mathrm{Q}}{\mathrm{Q}} \times \frac{\mathrm{P}}{\Delta \mathrm{P}}=(-) \frac{\Delta \mathrm{Q}}{\Delta \mathrm{P}} \times \frac{\mathrm{P}}{\mathrm{Q}}\)
उदाहरणस्वरूप :
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 6 कीमत मांग की लोच 17
इसमें
ΔQ = 4-3 = 1 Q = 4 .
ΔP = 4-8 = -4
P = 4
Ed = –\( \) ==
मांग की लोच इकाई से कम है।
आवश्यक नोट-मांग की लोच के सूत्र के आगे (-) चिह्न लगाया जाता है। इसका कारण यह होता है कि कीमत अथवा मांग में से एक मद ऋणात्मक होती है। जब आगे ऋणात्मक चिह्न लगाया जाता है तो मांग की लोच धनात्मक हो जाती है।

प्रश्न 2.
मांग की कीमत लोच का अर्थ बताओ। कीमत मांग की लोच की मात्राएं स्पष्ट करो।
(Explain the meaning of Elasticity of demand. Discuss the degrees of Elasticity of demand.)
उत्तर-
मांग की लोच (Elasticity of Demand) परिभाषाएं- प्रो० मार्शल के अनुसार, “कीमत मांग की लोच, कीमत में होने वाले प्रतिशत परिवर्तन तथा मांग में होने वाले प्रतिशत परिवर्तन का अनुपात होता है।” (“Price Elasticity of Demand is the ratio or percentage change into quantity demanded to a percentage change in price.” – Marshall)

बोल्डिंग के अनुसार, “मांग की लोच वस्तु की कीमत में परिवर्तन के फलस्वरूप मांग में होने वाले परिवर्तन का अनुपात होता है।” इन परिभाषाओं के अध्ययन से हम यह कह सकते हैं कि कीमत मांग की लोच के अधीन कीमत तथा मांग में मात्रा वाले सम्बन्धों का अध्ययन किया जाता है। कीमत में परिवर्तन के कारण मांग में जिस दर से परिवर्तन होता है, उस दर को कीमत मांग की लोच कहा जाता है।

कीमत मांग की लोच की मात्राएं (Degrees of Price Elasticity of Demand)-मांग की लोच की पूर्ण लोचशील मांग पाँच मात्राएं होती हैं :
1. पूर्ण लोचशील मांग-जब कीमत में कोई परिवर्तन नहीं होता, परन्तु मांग में परिवर्तन बहुत अधिक होता है अर्थात् मांग असीमित गुणा बढ़ जाती है अथवा कई गुणा कम हो जाती है तो इस स्थिति में मांग को पूर्ण लोचशील कहा जाता है।
रेखाचित्र 9 में कीमत OP रहती है, जिस पर मांग शून्य की जाती है अथवा OM अथवा OM1 की जाती है अर्थात् इस कीमत पर मांग में कई गुणा (α) वृद्धि हो जाती है। इसको पूर्ण लोचशील मांग कहा जाता है।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 6 कीमत मांग की लोच 18

2. पूर्ण बेलोचशील मांग-मांग को पूर्ण बेलोचशील कहा जाता है, जब कीमत बहुत अधिक कम हो जाती है अथवा बहुत अधिक बढ़ जाती है, परन्तु वस्तु की मांग में कोई परिवर्तन नहीं होता। रेखाचित्र 10 में दिखाया है कि मांग रेखा DM पूर्ण बेलोचशील है अर्थात् जब कीमत OP से बढ़कर OP1 अथवा घटकर OP2 होती है तो मांग OM में कोई परिवर्तन नहीं होता। इस स्थिति को पूर्ण बेलोचशील मांग कहा जाता है तथा कीमत मांग की लोच शून्य (Zero) होती
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 6 कीमत मांग की लोच 19

3. अधिक लोचशील मांग-जब कीमत में थोड़ेसे परिवर्तन से मांग में परिवर्तन अधिक दर पर होता है तो इसको अधिक लोचशील मांग कहा जाता है। उदाहरण स्वरूप कीमत में परिवर्तन 10% होता है तथा मांग में परिवर्तन 50% हो जाए तो कीमत में परिवर्तन की दर से मांग में परिवर्तन की दर अधिक है। इसको अधिक लोचशील मांग कहा जाता है।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 6 कीमत मांग की लोच 21
रेखाचित्र 11 में दिखाया गया है कि जब कीमत में परिवर्तन PP1, 10% होता है तो मांग में परिवर्तन MM, 50% हो जाता है।
MM1 > PP1
मांग में परिवर्तन MM1 कीमत में परिवर्तन PP1 से अधिक है। इस स्थिति में मांग वक्र DD को अधिक लोचशील कहा जाता है।

4. समान लोचशील मांग-मांग की लोच इकाई के समान होती है, जब कीमत में परिवर्तन से मांग में परिवर्तन उसी दर पर हो जाता है, जैसे कि कीमत में 10% परिवर्तन होता है तथा मांग में भी 10% परिवर्तन हो जाता है तो इसको मांग की लोच इकाई के समान कहा जाता है।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 6 कीमत मांग की लोच 22
E= \(\frac{10 \%}{10 \%}\) = 1
E = 1 रेखाचित्र 12 में दिखाया गया है कि कीमत में परिवर्तन PP, 10% मांग में परिवर्तन MM, के समान है तो इस स्थिति को मांग की लोच इकाई के समान कहा जाता है।
कम लोचशील मांग MM1 = PP1
मांग में परिवर्तन MM,, कीमत में परिवर्तन PP, के समान है। इसको मांग की लोच इकाई के समान कहा जाता है।

5. कम लोचशील मांग-जिस समय मांग में परिवर्तन की दर, कीमत में परिवर्तन से कम होती है, इसको कम लोचशील मांग कहा जाता है। उदाहरण स्वरूप कीमत में 50% कमी हो जाती है, परन्तु मांग में वृद्धि होती है। इसको इकाई से कम लोचशील मांग कहा जाता है। MM1 < PP1 रेखाचित्र 13 मांग में परिवर्तन MM1 कीमत में परिवर्तन PP1 से कम है। इसलिए मांग कम लोचशील हैं। जैसा कि रेखाचित्र 13 में दिखाया गया है।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 6 कीमत मांग की लोच 23

6. रैकटेंगुलर हाइपरबोला-यह एक विशेष तरह की स्थिति होती है, जब मांग वक्र के सभी बिन्दुओं पर मांग की लोच इकाई के समान होती है। इस स्थिति में प्रत्येक बिन्दु पर चतुर्भुज का क्षेत्र एक-दूसरे के समान होता है। रेखाचित्र 14 में D1D1 मांग वक्र पर A, B, C, D बिन्दुओं पर सभी चतुर्भुजों का क्षेत्रफल एक-दूसरे के समान है। इसलिए D1D1 मांग वक्र के प्रत्येक बिन्दु पर मांग की लोच इकाई के समान है। इसलिए D1D1 वक्र को रैकटेंगुलर हाइपरबोला (Rectangular Hyperbola) कहा जाता है।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 6 कीमत मांग की लोच 24

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 6 कीमत मांग की लोच

प्रश्न 3.
कीमत मांग की लोच के निर्धारक तत्त्व बताओ। (Explain the determinants of Price Elasticity of Demand.)
अथवा
कीमत मांग की लोच को प्रभावित करने वाले तत्त्वों की व्याख्या करो। (Describe the factors affecting the magnitude of Price Elasticity of Demand.)
उत्तर-
मांग की लोच को प्रभावित करने वाले आर्थिक तथा अनआर्थिक तत्त्व होते हैं, परन्तु हम केवल आर्थिक तत्त्वों का ही अध्ययन करते हैं : –
1. वस्तु की प्रकृति-किसी वस्तु की मांग की लोच वस्तु की प्रकृति पर निर्भर करती है। अनिवार्य वस्तुओं की स्थिति की मांग की लोच इकाई से कम होगी। जैसे कि अनाज, कपड़ा, माचिस, अखबार इत्यादि अनिवार्य वस्तुओं की कीमत बहुत अधिक बढ़ जाए तो मांग में ज्यादा परिवर्तन नहीं होता। इसी तरह विलासिता वस्तुएं जैसे कि कार, हीरे, कीमती फर्नीचर इत्यादि वस्तुओं की स्थिति में भी मांग की लोच इकाई से कम होती है।

2. स्थानापन्न वस्तुओं का भाव-यदि वस्तु का स्थानापन्न हो तो वस्तु की मांग की लोच इकाई से अधिक होगी। इसके विपरीत यदि वस्तु का स्थानापन्न न हो तो मांग की लोच इकाई से कम होगी। जिन वस्तुओं का स्थानापन्न नहीं होता, जैसे कि पेट्रोल, शराब, अफीम, बिजली इत्यादि उन वस्तुओं की मांग कम लोचशील होती है।

3. वस्तु के कई प्रयोग-यदि वस्तु के एक से अधिक प्रयोग हों तो उस वस्तु की मांग की लोच इकाई से अधिक होगी। उदाहरणस्वरूप दूध के एक से अधिक प्रयोग हो सकते हैं। दूध की कीमत थोड़ी-सी घटने से इसकी मांग बहुत बढ़ जाती है। क्योंकि लोग दूध का प्रयोग दही, पनीर, मक्खन, खीर, मिठाई इत्यादि वस्तुओं के लिए करने लगते हैं।

4. उपभोग का स्थगन-कुछ वस्तुएं ऐसी होती हैं, जिनके उपभोग को स्थगित किया जा सकता है अर्थात् आगे पाया जा सकता है। जैसे कि घड़ी, टेलीविज़न, जूते इत्यादि। ऐसी वस्तुओं की स्थिति में मांग कम लोचशील होती है।

5. आदतें-कुछ वस्तुएं उपभोक्ता की आदत बन जाती हैं। उन वस्तुओं की मांग इकाई से कम लोचशील होती है। जैसे कि शराब, अफीम, चाय, सिगरेट इत्यादि वस्तुओं की स्थिति में मांग कम लोचशील होगी। यदि इन वस्तुओं की कीमत बहुत बढ़ जाती है तो मांग में अधिक कमी नहीं होती।

6. कीमत का स्तर-जिन वस्तुओं की कीमत बहुत ऊंची अथवा बहुत नीची होती है तो कीमत में परिवर्तन होने से मांग में परिवर्तन अधिक नहीं होता। जैसे कि हीरे की कीमत ₹ 1 करोड़ है। यदि हीरे की कीमत बढ़कर ₹ 2 करोड़ हो जाए तो मांग में बहुत कमी नहीं होती, क्योंकि हीरा सिर्फ अमीर लोगों द्वारा ही खरीदा जाता है।

7. आय-जिन वस्तुओं का प्रयोग अमीर मनुष्य करते हैं, उन वस्तुओं की कीमत घटने से मांग में अधिक परिवर्तन नहीं होता। यदि अमीर लोगों द्वारा खरीदी जाने वाली वस्तुओं की कीमत बहुत बढ़ जाती है तो मांग में अधिक कमी नहीं होती।

8. दिखावे की वस्तुएं-दिखावे की वस्तुओं की मांग की लोच इकाई से कम होती है, जैसे कि महंगी कार, महंगे कालीन, महंगे टेलीविज़न इत्यादि वस्तुओं की खरीद साधारण तौर पर अमीर ही करते हैं। यदि इन वस्तुओं की कीमत बढ़ जाए तो भी इन वस्तुओं की मांग में कोई विशेष परिवर्तन नहीं होता।

9. समय-समय भी मांग की लोच को निर्धारित करता है। अल्पकाल में साधारण तौर पर वस्तुओं की मांग की लोच इकाई से कम होती है। इसके विपरीत दीर्घकाल में मांग की लोच इकाई से अधिक होती है। क्योंकि दीर्घकाल में उपभोग वस्तु के प्रति अपनी आदत को परिवर्तित कर लेता है तथा वस्तु का नया स्थानापन्न ढूंढ़ा जा सकता है।

10. संयुक्त मांग-जिन वस्तुओं की मांग दूसरी वस्तुओं की मांग से सम्बन्धित होती है, उन वस्तुओं की मांग लोच साधारण तौर पर इकाई से कम होती है, जैसे कि कार की कीमत घटने से कार की मांग में बहुत वृद्धि नहीं होगी, यदि पेट्रोल की कीमत में कोई परिवर्तन न हो।

V. संरव्यात्मक प्रश्न (Numericals)

प्रश्न 1.
प्रतिशत विधि द्वारा मांग की लोच का सूत्र लिखो। मांग की लोच इकाई से अधिक, समान तथा कम की उदाहरणे दीजिए।
उत्तर-
प्रतिशत विधि द्वारा मांग की लोच का सूत्र निम्नलिखित अनुसार है-
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 6 कीमत मांग की लोच 25
= –\(\left\{\frac{\Delta Q}{\Delta P} \times \frac{P}{Q}\right\}\)
उदाहरण :
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 6 कीमत मांग की लोच 26

प्रश्न 2.
आरम्भ में वस्तु की कीमत ₹ 10 थी तथा 1000 वस्तुओं की मांग थी। वस्तु की कीमत बदलकर ₹ 14 की गई तो वस्तु की मांग घटकर 500 वस्तुएं ही रह गईं। कीमत मांग की लोच का माप करो।
उत्तर-
Ed = (-) \(\frac{\Delta Q}{\Delta P} \times \frac{P}{Q}\)
P = 10, Q = 1000, P1 = 14, Q1 = 500
ΔP = 14-10 = 4, ΔQ = 500-1000 = – 500
फार्मूले में रकमें भरने से Ed = (-) \(\frac{-500}{4} \times \frac{10}{1000}=-(-125) \times \frac{1}{100}=\frac{125}{100} \)
= 1.25 Ed > 1

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 6 कीमत मांग की लोच

प्रश्न 3.
एक वस्तु की कीमत ₹8 प्रति इकाई पर मांग 600 इकाइयां की जाती हैं। इसकी कीमत 25% कम हो जाती है तथा मांग में वृद्धि 120 इकाइयां हो जाती है। मांग की लोच का माप करो।
उत्तर –
मौलिक कीमत = ₹8 (P = 8)
कीमत में कमी = 25%
∴ 8 x \(\frac{25}{100}\) = ₹ 2 (ΔP = -2)
नई कीमत = 8 – 2 = ₹ 6
मौलिक मांग = 600 इकाइयां (Q = 600)
मांग में परिवर्तन = 120 इकाइयां (ΔQ = 120)
Ed = –\(\frac{\Delta \mathrm{Q}}{\Delta \mathrm{P}} \times \frac{\mathrm{P}}{\mathrm{d}}\)
= – \(\frac{120}{-2} \times \frac{8}{600}\) = 0.8
∴ Ed <1

प्रश्न 4.
एक वस्तु की कीमत ₹ 15 प्रति वस्तु है तथा मांग 500 वस्तुओं की, की जाती है। जब कीमत 20% कम हो जाती है तो मांग 80 इकाइयां बढ़ जाती हैं। कीमत मांग की लोच का माप करो। क्या मांग कम लोचशील है ? उत्तर की पुष्टि करो।
उत्तर-
मांग की मात्रा में प्रतिशत परिवर्तन = \(\frac{80}{500}\) x 100 =16%
कीमत में प्रतिशत परिवर्तन = 20%
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 6 कीमत मांग की लोच 27
= \(\frac{16 \%}{20 \%}\) = 0.8
Ed < 1
उत्तर की पुष्टि- मांग की लोच को कम लोचशील कहा जाता है। यदि मांग की लोच इकाई (1) से कम होती है।

प्रश्न 5.
जब वस्तु की कीमत ₹ 20 प्रति इकाई से घटकर ₹ 16 प्रति इकाई हो जाती है तो इसकी मांग 1000 इकाइयों से बढ़कर 1160 इकाइयां हो जाती हैं। कीमत मांग की लोच का माप करो तथा उत्तर की पुष्टि करो।
उत्तर
Ed = (-) \(\frac{\Delta Q}{\Delta P} \times \frac{P}{Q}\)
ΔQ = 1160-1000 = 160 ; ΔP = 16 – 20 = -4; Q = 1000 ; P = 20.
Ed = (-) \(\frac{160}{-4} \times \frac{20}{1000}\) = 0.8
Ed <1
उत्तर की पुष्टि-मांग की लोच इकाई से कम है, क्योंकि मांग की लोच इकाई (1) से कम है। .

प्रश्न 6.
वस्तु की कीमत ₹ 5 है तथा उपभोक्ता वस्तु की 10 इकाइयों की खरीद करता है। कीमत मांग की लोच = 2 है। यदि वस्तु की कीमत ₹ 4 प्रति वस्तु रह जाती है तो उपभोक्ता एक कीमत पर वस्तु की कितनी इकाइयों की खरीद करेगा ?
उत्तर-
Ed = \(\frac{(-) \Delta Q}{\Delta P} \times \frac{P}{Q} \) अथवा \(\frac{Q_{1}-Q}{P_{1}-P} \times \frac{P}{Q}\)
दिया है : Ed = 2; Q1 = ? ; Q = 10 ; P = 5, P1 = 4
फार्मूले में मूल्य भरने पर :
2 = \(\frac{(-) Q_{1}-10}{4-5} \times \frac{5}{10}\)
2 = \(\frac{(-) Q_{1}-10}{-1} \times \frac{1}{2}=(-) \frac{Q_{1}-10}{2}\)
4 = – Q1 + 10
Q1 = 10 + 4 = 14 Units

प्रश्न 7.
कीमत मांग की लोच 2 है। कीमत में प्रतिशत परिवर्तन 5 है। मांग में प्रतिशत परिवर्तन का माप करो।
उत्तर-
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 6 कीमत मांग की लोच 28

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 6 कीमत मांग की लोच 29
मांग में प्रतिशत परिवर्तन = 2×5% = 10%

प्रश्न 8.
निम्नलिखित मांग वक्र पर कीमत मांग की लोच कितनी होगी?
(i) सीधी रेखा OX के समान्तर।
(ii) सीधी रेखा OY के समान्तर।
(iii) सीधी रेखा बाईं ओर से दाईं ओर नीचे की ओर जाती के मध्य बिन्दु पर।
उत्तर-
(i) Ed = α
(ii) Ed = 0
(iii) Ed = 1.

प्रश्न 9.
निम्नलिखित तालिका से कीमत मांग की लोच ज्ञात कीजिए।

प्रति इकाई कीमत (₹) मांगी गई मात्रा
10 200
8 150

उत्तर –

प्रति इकाई कीमत (₹) मांगी गई मात्रा कुल व्यय
8 200 1600
10 150 1500

∴ Ed>1 उत्तर

प्रश्न 10.
₹ 8 प्रति इकाई वस्तु की कीमत होने पर एक उपभोक्ता वस्तु की 40 इकाइयां क्रय करता है। मांग की कीमत लचक (-) 1 है । किस कीमत पर उपभोक्ता वस्तुओं की 60 इकाइयों का क्रय करेगा ?
हल P = 8, P1 = ? Q= 40, Q1 = 60, Ed = (-)।
Ed = \(\frac{\Delta Q}{\Delta P} \times \frac{P}{Q}\) (-)1
= \(\frac{\mathrm{Q}_{1}-\mathrm{Q}}{\mathrm{P}_{1}-\mathrm{P}} \times \frac{\mathrm{P}}{\mathrm{Q}}=-1\)
= \(\frac{60-40}{P_{1}-8} \times \frac{8}{40}=-1\)
= \(\frac{20}{P_{1}-8} \times \frac{8}{40}=-1\)
= \(\frac{4}{P_{1}-8}=-1\)
= 4 = -1 (P1-8)
= 4 = – P1+8
= 4 – 8 = -P1
= -4 = -P1
= P1 = 4

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 6 कीमत मांग की लोच

प्रश्न 11.
₹ 6 प्रति इकाई वस्तु की कीमत होने पर एक उपभोक्ता एक वस्तु की 50 इकाइयों का क्रय करता है। मांग की कीमत लोच (-) 2 है । किस कीमत पर उपभोक्ता वस्तुओं की 100 इकाइयों का क्रय करेगा ?
हल
P= 6 P1 = ? Q = 50 Q1 = 100 Ed = (-) 2
Ed = \(\frac{Q_{1}-Q}{P_{1}-P} \times \frac{P}{Q}\) = -2
= \(\frac{100-50}{P_{1}-6} \times \frac{6}{50}\) = -2
= \(\frac{50}{P_{1}-6} \times \frac{6}{50}\) = -2
= \(\frac{6}{P_{1}-6}\) = -2
= 6 = – 2(P1 -6)
= 6 = -2P1+12
= 6 -12 = -2P1
= 2P1 = 6
=P1 = 3 Ans.

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 5 मांग

Punjab State Board PSEB 11th Class Economics Book Solutions Chapter 5 मांग Textbook Exercise Questions, and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Economics Chapter 5 मांग

PSEB 11th Class Economics उपभोगी का सन्तुलन Textbook Questions and Answers

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

प्रश्न 1.
माँग का अर्थ बताएँ।
उत्तर-
किसी वस्तु की वह मात्रा जो निश्चित समय, निश्चित स्थान पर वस्तु की विशेष कीमत पर खरीदी जाती है, वह वस्तु की माँग होती है।

प्रश्न 2.
माँग के कोई दो निर्धारक तत्व बताएँ।
उत्तर-

  • वस्तु की कीमत
  • उपभोक्ता की आय।

प्रश्न 3.
माँग का नियम क्या है ?
उत्तर-
माँग का नियम वस्तु की कीमत तथा इसकी माँगी गई मात्रा के बीच विपरीत सम्बन्ध को व्यक्त करता है यदि अन्य बातें समान रहें।

प्रश्न 4.
माँग तालिका क्या होती है ?
उत्तर-
किसी निश्चित समय पर, किसी वस्तु की विभिन्न कीमतों पर माँग की गई मात्रा की तालिका को माँग तालिका कहते हैं।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 5 मांग

प्रश्न 5.
उपभोक्ता की आय तथा उसके द्वारा उपभोग की गई वस्तु में क्या सम्बन्ध है ?
उत्तर-
आय में वृद्धि की स्थिति में एक सामान्य वस्तु की माँग में वृद्धि होती है और आय में कमी से माँग में कमी होती है।

प्रश्न 6.
माँग वक्र की ढलान कैसी होती है ?
उत्तर-
माँग वक्र की ढलान ऋणात्मक होती है।

प्रश्न 7.
घटिया वस्तु की परिभाषा दें।
उत्तर-
उन वस्तुओं को घटिया वस्तु कहते हैं जिनकी माँग आय के बढ़ने पर घटती है।

प्रश्न 8.
सामान्य वस्तु की परिभाषा दें।
उत्तर-
उन वस्तुओं को सामान्य वस्तु कहते हैं जिनकी माँग आय के बढ़ने से बढ़ती है और आय के कम होने से घटती है।

प्रश्न 9.
माँग के विस्तार का क्या अर्थ है ?
उत्तर-
अन्य बातें समान रहने पर किसी वस्तु की कीमत में कमी होने के कारण उसकी माँग बढ़ जाती है तो इसको माँग का विस्तार कहा जाता है।

प्रश्न 10.
माँग के संकुचन से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
अन्य बातें समान रहने पर किसी वस्तु की कीमत में वस्तु होने के कारण उसकी माँग कम हो जाती है तो इसको माँग में संकुचन कहा जाता है।

प्रश्न 11.
माँग में वृद्धि की परिभाषा दें।
उत्तर-
वर्तमान प्रचलित कीमत आय के बढ़ने से किसी वस्तु की अधिक मात्रा खरीदी जाती है तो इसको माँग में वृद्धि कहते हैं।

प्रश्न 12.
माँग में कमी की परिभाषा दें।
उत्तर-
वर्तमान प्रचलित कीमत पर आय की कमी के कारण किसी वस्तु की कम मात्रा खरीदी जाती है तो इसको माँग की कमी कहते हैं।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 5 मांग

प्रश्न 13.
पूरक वस्तुओं से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
पूरक वस्तुएँ वे वस्तुएँ हैं जोकि संयुक्त रूप से किसी आवश्यकता को सन्तुष्ट करती हैं जैसे कार और पेट्रोल।

प्रश्न 14.
स्थानापन्न वस्तुओं से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
जो वस्तुएँ एक-दूसरे के स्थान पर प्रयोग की जा सकती हैं, उसको स्थानापन्न वस्तुएँ कहा जाता है। जैसे कोका-कोला और पैप्सी कोला।

प्रश्न 15.
सम्बन्धित वस्तुओं से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
पूरक तथा स्थानापन्न वस्तुओं को सम्बन्धित वस्तुएँ कहा जाता है।

प्रश्न 16.
किसी वस्तु की माँग का कीमत से अलग कोई एक निर्धारक तत्त्व बताएँ।
उत्तर-
उपभोक्ता की आय।

प्रश्न 17.
निश्चित कीमत पर एक उपभोक्ता वस्तु की अधिक मात्रा कब खरीदेंगे ?
उत्तर-
आय में वृद्धि होने पर।

प्रश्न 18.
निश्चित कीमत पर एक उपभोक्ता वस्तु की कम मात्रा कब खरीदेगा ?
उत्तर-
आय में कमी होने पर।

प्रश्न 19.
कोई दो कारण बताएं जिसमें वस्तु की कीमत बढ़ने पर एक उपभोक्ता वस्तु की अधिक मात्रा की खरीद करता है।
उत्तर-

  • क्रेताओं की संख्या में वृद्धि
  • उपभोक्ता की आय में वृद्धि।

प्रश्न 20.
यदि एक परिवार की आय में वृद्धि होने से x वस्तु की माँग कम हो जाती है तो वस्तु x किस प्रकार की वस्तु है ?
उत्तर-
घटिया वस्तु।

प्रश्न 21.
वस्तु X की कीमत में वृद्धि से यदि वस्तु Y की माँग बढ़ जाती है तो दोनों वस्तुओं में क्या सम्बन्ध है ?
उत्तर-
X तथा Y स्थानापन्न वस्तुएँ हैं।

प्रश्न 22.
किसी वस्तु की कीमत घटने/बढ़ने से उसकी स्थानापन्न वस्तु की माँग पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर-
किसी वस्तु की कीमत घटने/बढ़ने से स्थानापन्न वस्तु की माँग विपरीत दिशा में बदल जाती है।

प्रश्न 23.
काफी की कीमत बढ़ने का चाय की माँग पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर-
चाय की माँग बढ़ जाएगी।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 5 मांग

प्रश्न 24.
पेन की कीमत में वृद्धि होने का स्याही की माँग पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर-
स्याही की माँग कम हो जाएगी।

प्रश्न 25.
माँग वक्र का खिसकाव क्या प्रकट करता है ?
उत्तर-
माँग में वृद्धि अथवा माँग में कमी।

प्रश्न 26.
माँग वक्र पर संचालन क्या प्रकट करता है ?
उत्तर-
माँग का विस्तार तथा माँग का. संकुचन।

प्रश्न 27.
बाज़ार माँग की परिभाषा दें।
उत्तर-
बाजार मांग किसी वस्तु की विभिन्न मात्राओं को दिखाती है, जिन्हें-बाज़ार में सभी उपभोक्ता एक निश्चित समय पर वस्तु की विभिन्न कीमतों पर खरीदने के लिए तैयार होते हैं।

प्रश्न 28.
व्यक्तिगत माँग तालिका से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
एक व्यक्ति किसी निश्चित समय पर, किसी वस्तु की विभिन्न कीमतों पर उसकी जितनी मात्रा की माँग करता है, उसकी सूची को व्यक्तिगत माँग तालिका कहा जाता है।

प्रश्न 29.
व्यक्तिगत माँग वक्र से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
वह वक्र जो किसी वस्तु की विभिन्न कीमतों पर उपभोक्ता द्वारा की गई माँग को वक्र द्वारा प्रकट करता है, उसे व्यक्तिगत माँग वक्र कहा जाता है।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 5 मांग

प्रश्न 30.
घटिया वस्तु तथा सामान्य वस्तु का माँग वक्र कैसा होता है ?
उत्तर-
घटिया वस्तु तथा सामान्य वस्तु का माँग वक्र ऋणात्मक ढलान वाला होता है।

प्रश्न 31.
गिफ्फन वस्तुओं की मांग वक्र का ढलान कैसा होता है ?
उत्तर-
धनात्मक ढलान।

प्रश्न 32.
वस्तुओं की मांग ………. पर निर्भर करती है।
(a) आय
(b) वस्तु की कीमत |
(c) सम्बन्धित वस्तुओं की कीमत
(d) उपरोक्त सभी पर।
उत्तर-
(d) उपरोक्त सभी पर।

प्रश्न 33.
मांग सूची के रेखाचित्र को …… कहते हैं।
(a) व्यक्तिगत माँग
(b) माँग वक्र
(c) बाज़ार माँग
(d) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(b) माँग वक्र।

प्रश्न 34.
माँग का नियम निम्नलिखित में से किस पर लागू होता है ?
(a) निम्न कोटि वस्तुएँ
(b) साधारण वस्तुएँ
(c) विलास वस्तुएँ
(d) उपरोक्त सभी पर ।
उत्तर-
(b) साधारण वस्तुएँ।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 5 मांग

प्रश्न 35.
साधारण तौर पर माँग वक्र की ढलान कैसी होती है ?
(a) धनात्मक
(b) ऋणात्मक
(c) गोलाकार
(d) उपरोक्त सभी प्रकार की।
उत्तर-
(b) ऋणात्मक।

प्रश्न 36.
जो वस्तुएँ एक दूसरे के स्थान पर प्रयोग की जा सकती हैं उनको कहा जाता है –
(a) पूरक वस्तुएँ
(b) स्थानापन्न वस्तुएँ
(c) निम्न कोटि वस्तुएँ
(d) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(b) स्थानापन्न वस्तुएँ।

प्रश्न 37.
पूरक वस्तु की कीमत कम होने से दूसरी पूरक वस्तु की मांग …. .
(a) बढ़ जाएगी।
(b) कम हो जाएगी
(c) सामान्य रहेगी
(d) इनमें कोई परिवर्तन नहीं होता।
उत्तर-
(a) बढ़ जाएगी।

प्रश्न 38.
अन्य बातें सामान्य रहने पर किसी वस्तु की कीमत में कमी होने पर जब वस्तु की मांग बढ़ जाती है तो इसको ………….. कहा जाता है।
(a) माँग में वृद्धि
(b) माँग का विस्तार
(c) मांग में कमी
(d) मांग में संकुचन।
उत्तर-
(b) माँग का विस्तार ।

प्रश्न 39.
जो वस्तुएं एक-दूसरे के बिना प्रयोग नहीं की जाती हैं उनको ……… कहते हैं।
(a) पूरक वस्तुएं
(b) स्थानापन्न वस्तुएं
(c) घटिया वस्तुएं
(d) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(a) पूरक वस्तुएं।

प्रश्न 40.
यदि एक परिवार की आय में वृद्धि होने से वस्तु की मांग कम हो जाती है तो इस को घटिया वस्तु कहते हैं।
उत्तर-
सही।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 5 मांग

प्रश्न 41.
किसी वस्तु की वह मात्रा जो निश्चित समय और निश्चित स्थान पर वस्तु की विशेष कीमत पर खरीदी जाती है उसको मांग कहते हैं।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 42.
वह वस्तु जिसकी मांग, आय में वृद्धि कम हो जाती है उसको निम्न कोटि (घटिया) वस्तु कहते
उत्तर-
सही।

प्रश्न 43.
वह वस्तु जो संयुक्त रूप में मांग की पूर्ति करती है उसको स्थानापन्न वस्तु कहते हैं।
उत्तर-
ग़लत।

प्रश्न 44.
जो वस्तु एक-दूसरे के स्थान पर प्रयोग की जाती है उसको स्थानापन्न वस्तु कहते हैं।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 45.
निम्न कोटि (घटिया) वस्तु वक्र वस्तु है जिसकी मांग, आय के बढ़ने से बढ़ जाती है। .
उत्तर-
ग़लत।

प्रश्न 46.
घटिया वस्तु को गिफ्फन वस्तु क्यों कहा जाता है ?
उत्तर-
घटिया वस्तुओं की व्याख्या सबसे पहले प्रो० गिफ्फन ने की थी इसलिए बटिया वस्तुओं को गिफ्फन वस्तुएं भी कहा जाता है।

प्रश्न 47.
माँग का नियम ………….. दर्शाता है।
(a) उपयोगिता और कीमत में सम्बन्ध
(b) वस्तु की माँग की गई मात्रा और कीमत में विपरीत सम्बन्ध
(c) आय तथा माँग में विपरीत सम्बन्ध
(d) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(b) वस्तु की माँग की गई मात्रा और कीमत में विपरीत सम्बन्ध ।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 5 मांग

II. अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
मांग से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
मांग का अर्थ एक निश्चित समय निश्चित कीमत पर वस्तु की जो मात्रा खरीदी जाती है, उसको मांग कहा जाता है। मांग का सम्बन्ध वस्तु को प्राप्त करने की इच्छा, इच्छा को पूरा करने के लिए धन का होना, धन व्यय करने के लिए तैयार होना, निश्चित कीमत पर निश्चित समय, जब वस्तु खरीदी जाती है तो इसको मांग कहा जाता है।

प्रश्न 2.
कीमत के बगैर मांग के तीन निर्धारक बताओ।
अथवा
वह तत्त्व बताओ जो मांग में परिवर्तन पैदा करते हैं।
उत्तर-
कीमत के बगैर मांग के मुख्य निर्धारक निम्नलिखित हैं-

  1. सम्बन्धित वस्तुओं की कीमतें (स्थानापन्न तथा पूरक वस्तुओं की कीमतें)
  2. उपभोगी का स्वाद, आदतें, फैशनं इत्यादि में परिवर्तन।
  3. उपभोगी की आय में परिवर्तन।

प्रश्न 3.
व्यक्तिगत मांग सूची का अर्थ बताओ।
उत्तर-
यदि एक सूची में एक मनुष्य द्वारा विभिन्न कीमतों पर खरीदी जाने वाली वस्तु की विभिन्न मात्रा को दिखाया जाता है तो इसको व्यक्तिगत मांग सूची कहा जाता है।

प्रश्न 4.
बाज़ार मांग सूची से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
बाज़ार में वस्तु की विभिन्न कीमत पर विभिन्न उपभोगियों द्वारा दी गई मांग की मात्रा के जोड़ को बाज़ार मांग सूची कहा जाता है। बाज़ार में वस्तु के बहुत से खरीददार होते हैं। यदि बाज़ार में सभी ग्राहकों.की मांग को जोड़कर मांग सूची बनाई जाए तो इसको बाज़ार मांग सूची कहा जाता है।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 5 मांग

प्रश्न 5.
मांग का नियम क्या है ?
उत्तर-
मांग का नियम मनुष्य की मनोवैज्ञानिक स्थिति को प्रकट करता है। इस नियम के अनुसार, “शेष बातें समान रहती हैं, जब एक वस्तु की कीमत कम हो जाती है तो उस वस्तु की मांग में वृद्धि होती है।”

प्रश्न 6.
स्थानापन्न वस्तुओं तथा पूरक वस्तुओं से क्या अभिप्राय है ? इनको उदाहरणों द्वारा स्पष्ट करें।
उत्तर-
स्थानापन्न वस्तुएं-स्थानापन्न वस्तुएं वह वस्तुएं हैं, जो एक-दूसरे की जगह पर प्रयोग हो सकती हैं। जैसे कि चाय तथा कॉफी, लस्सी तथा सकजवीं। पूरक वस्तुएं-पूरक वस्तुएं वह वस्तुएं हैं जो एक-दूसरे के बगैर प्रयोग नहीं की जा सकती। जैसे कि कार तथा पेट्रोल, पैन तथा स्याही।

प्रश्न 7.
साधारण वस्तुएं तथा घटिया अथवा गिफ्फन वस्तुओं से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
साधारण वस्तुएं-साधारण वस्तुएं वह वस्तुएं हैं, जिनकी मांग, आय के बढ़ने से बढ़ जाती है तथा आय के घटने से कम हो जाती है। जैसे कि गेहूँ, चावल, चीनी इत्यादि। घटिया अथवा गिफ्फन वस्तुएं-घटिया वस्तुओं को गिफ्फन वस्तुएं भी कहा जाता है। घटिया वस्तुएं वह हैं, जिनकी मांग आय के बढ़ने से कम हो जाती है। इसमें आय प्रभाव ऋणात्मक होता है। जैसे कि गले-सड़े केले, घुन लगा हुआ अनाज इत्यादि।

प्रश्न 8.
(i) जब स्थानापन्न वस्तु की कीमत कम हो जाती है तो वस्तु की मांग पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
(ii) जब पूरक वस्तु की कीमत कम हो जाती है तो वस्तु की मांग पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर-
(i) जब स्थानापन्न वस्तु की कीमत कम हो जाती है तो वस्तु की मांग कम हो जाएगी तथा मांग वक्र बाईं ओर खिसक जाता है।
(ii) जब पूरक वस्तु की कीमत कम हो जाती है तो वस्तु की मांग बढ़ जाएगी तथा मांग वक्र दाईं ओर खिसक जाता है।

प्रश्न 9.
जब एक मनुष्य की आय बढ़ जाती है तथा X वस्तु की मांग कम हो जाती है तो x वस्तु को क्या कहा जाता है ?
उत्तर-
जब मनुष्य की आय बढ़ जाती है तथा X वस्तु की कम मांग की जाती है तो X वस्तु को गिफ्फन वस्तु अथवा घटिया वस्तु कहा जाता है।

प्रश्न 10.
मांग का फैलना तथा मांग का संकुचन क्या होता है ?
उत्तर-
मांग का फैलना-जब एक वस्तु की कीमत के घटने से मांग में वृद्धि होती है तो इसको मांग का फैलना कहा जाता है। मांग का संकुचन-जब एक वस्तु की कीमत के बढ़ने से मांग में कमी होती है तो इसको मांग का संकुचन कहा जाता है।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 5 मांग

प्रश्न 11.
मांग की वृद्धि तथा मांग की कमी से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
मांग की वृद्धि-जब मांग में वृद्धि कीमत के बिना अन्य तत्त्वों के कारण होती है, जैसे कि-

  • सम्बन्धित वस्तुओं की कीमतें
  • उपभोगी की आय
  • स्वाद इत्यादि के कारण मांग बढ़ जाती है तो इसको मांग की वृद्धि कहा जाता है।

मांग की कमी-जब मांग में कमी कीमत के बिना अन्य तत्त्वों-

  • सम्बन्धित वस्तुओं की कीमतें
  • आय
  • स्वाद इत्यादि कारण होती है तो इसको मांग की कमी कहते हैं।

प्रश्न 12.
(i) एक मांग वक्र पर परिवर्तन से क्या अभिप्राय है ?
(ii) मांग वक्र में परिवर्तन से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
(i) एक मांग वक्र पर परिवर्तन का अर्थ है मांग का विस्तार अथवा मांग का संकुचन।
(ii) मांग में परिवर्तन का अर्थ है मांग की वृद्धि अथवा मांग की कमी।

प्रश्न 13.
क्या मांग वक्र धनात्मक ढलान वाली हो सकती है ? |
उत्तर-
मांग वक्र की धनात्मक ढलान (Positive Slope of Demand Curve)-मांग के नियम के अपवादों के कारण मांग, मांग वक्र 1 की ढलान धनात्मक हो सकती है। इसके मुख्य अपवाद हैं-

  1. मान प्रतिष्ठा वाली वस्तुओं की स्थिति में।
  2. उपभोगी की अज्ञानता कारण।
  3. घटिया अथवा गिफ्फन वस्तुओं की स्थिति में मांग वक्र रेखाचित्र 1 की तरह ढलान धनात्मक हो सकती है।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 5 मांग 1

प्रश्न 14.
मांग के नियम के अपवाद बताइए।
उत्तर-
मांग के नियम के अपवाद इस प्रकार हैं-
1. घटिया वस्तुएं-यह नियम घटियाँ वस्तुओं पर लागू नहीं होता। जब घटिया वस्तु की कीमत घटती है तो इसकी मांग कम हो जाती है। (गले हुए केले)
2. मान प्रतिष्ठा वस्तुएं-हीरे-जवाहरात की कीमत बढ़ने से इनकी मांग बढ़ जाती है और नियम लागू नहीं होता। 3. उपभोक्ता की अज्ञानता- उपभोक्ता की अज्ञानता के कारण भी यह नियम लागू नहीं होता।

III. लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
मांग की परिभाषा दीजिए, एक उपभोगी की मांग को प्रभावित करने वाले तत्त्व बताओ।
उत्तर-
मांग का अर्थ-

  • वस्तु को प्राप्त करने की इच्छा
  • उस इच्छा को पूरा करने के लिए धन होना
  • धन व्यय करने के लिए तैयार होना होता है।
  • मांग का सम्बन्ध कीमत
  • तथा समय से भी होता है।

मांग को प्रभावित करने वाले तत्त्व (Factors Affecting Demand)-

  1. वस्तु की कीमत-वस्तु की कीमत तथा मांग का विपरीत सम्बन्ध होता है।
  2. सम्बन्धित वस्तुओं की कीमत-स्थानापन्न वस्तुएं जैसे कि चाय की कीमत बढ़ जाए तो कॉफी की मांग बढ़ जाती है तथा पूरक वस्तुएं जैसे कि कार की कीमत बढ़ जाए तो पेट्रोल की मांग घट जाती है। इसी तरह सम्बन्धित वस्तुओं की कीमत मांग को प्रभावित करती है।
  3. उपभोगी का स्वाद-किसी वस्तु के स्वाद में वृद्धि होने से मांग बढ़ जाती है।
  4. आय-आय में वृद्धि से साधारण वस्तुओं की मांग बढ़ जाती है तथा घटिया वस्तुओं की मांग घट जाती है।
  5. सम्भावित कीमत- भविष्य में कीमत बढ़ने की सम्भावना हो तो वर्तमान में मांग बढ़ जाती है।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 5 मांग

प्रश्न 2.
सम्बन्धित वस्तुओं की कीमत में परिवर्तन से वस्तु की मांग में परिवर्तन कैसे होता है ? रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट करो।
अथवा
स्थानापन्न वस्तुओं तथा पूरक वस्तुओं में अन्तर बताओ। इनका मांग पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
अथवा
तिरछे कीमत प्रभाव से क्या अभिप्राय है ?
इसको स्पष्ट जब स्थानापन्न वस्तु (कॉफी) करने के लिए दो उदाहरणे दीजिए।
उत्तर-
सम्बन्धित वस्तुओं में स्थानापन्न तथा पूरक वस्तुओं को | शामिल किया जाता है। सम्बन्धित तथा पूरक वस्तुओं की कीमत में परिवर्तन से मांग में परिवर्तन को तिरछा कीमत प्रभाव कहते हैं।

स्थानापन्न वस्तुएं (Substitute Goods)-चाय तथा कॉफी को स्थानापन्न वस्तुएं कहा जाता है। जब स्थानापन्न वस्तु की कीमत बढ़ जाती है तो वस्तु की मांग बढ़ जाएगी तथा मांग वक्र दाईं ओर खिसक जाता है। OP कीमत पर चाय की मांग OK है। यदि कॉफी की कीमत अधिक हो जाए तथा चाय की कीमत समान रहती रेखाचित्र 2 है तो चाय की मांग OK1 हो जाएगी तथा मांग वक्र DD से D1D1 पर चला जाता है।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 5 मांग 2

पूरक वस्तुएं (Complementary Goods)-कारें तथा पेट्रोल पूरक वस्तुएं हैं। यदि कार की कीमत बढ़ जाती है तो पेट्रोल | की कीमत में कोई परिवर्तन नहीं होता परन्तु इसकी मांग कम हो जाएगी। रेखाचित्र 3 में पेट्रोल की मांग DD पर OP कीमत पर OK है। जब कार की कीमत बढ़ जाती है परन्तु पेट्रोल की कीमत में परिवर्तन नहीं होता तो पेट्रोल की मांग OK से कम होकर OK1 हो जाएगी।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 5 मांग 3

प्रश्न 3.
स्पष्ट करो कि वस्तु की कीमत तथा मांग की गई मात्रा में विपरीत सम्बन्ध होता है।
अथवा
मांग अनुसूची तथा रेखाचित्र द्वारा मांग के नियम की व्याख्या करो।
उत्तर-

मांग का नियम (Law of Demand)-मांग का नियम यह बताता है कि वस्तु की कीमत तथा मांग में क्या सम्बन्ध है। वस्तु की कीमत में परिवर्तन आने से वस्तु की मांग में परिवर्तन हो जाता है। यदि दसरी बातें समान रहें तो कीमत घटने से मांग बढ़ जाती है तथा कीमत बढ़ने से मांग कम हो जाती है अर्थात् कीमत तथा मांग में विपरीत सम्बन्ध होता है। कीमत में परिवर्तन होना मुख्य कारण है। मांग में परिवर्तन होना प्रभाव (effect) है। इस कारण कीमत तथा मांग के विपरीत सम्बन्ध को स्पष्ट करने वाले नियम को मांग का नियम कहा जाता है।

परिभाषाएं (Definitions)- प्रो० मार्शल के अनुसार, “यदि बाकी बातें समान रहें तो कीमत घटने से मांग बढ़ती है तथा कीमत बढ़ने से मांग घटती है।” प्रो० सैम्यूलसन के अनुसार, “मांग का नियम यह बताता है कि बाकी बातें समान रहें तो लोग कम कीमत पर अधिक खरीदेंगे तथा अधिक कीमत पर कम खरीदेंगे।” (“The Law of Demand states that other things remaining the same, people will buy more at lower prices and buy less at higher price.” -Samuelson)

मान्यताएं (Assumptions)-मांग का नियम ‘बाकी बातें समान रहें’ की स्थिति में ही लागू होता है। बाकी बातों का अर्थ कीमत के बिना उन तत्त्वों से होता है जोकि मांग को प्रभावित करते हैं। इसलिए इन तत्त्वों में परिवर्तन नहीं होना चाहिए जिनको अर्थशास्त्री मांग के नियम की मान्यताएं कहते हैं। मांग के नियम की मुख्य मान्यताएं अनलिखित हैं-

  1. उपभोक्ता की आय में कोई परिवर्तन नहीं आता।
  2. आदतें, फैशन तथा रीति-रिवाज़ों में कोई परिवर्तन नहीं होता।
  3. स्थानापन्न वस्तुओं की कीमत में कोई परिवर्तन नहीं होता।
  4. पूरक वस्तुओं की कीमत में कोई परिवर्तन नहीं होता।
  5. भविष्य में वस्तु की कीमत में परिवर्तन की सम्भावना नहीं होती।
  6. वस्तु साधारण होनी चाहिए।

नियम की व्याख्या (Explanation of the Law)-मांग के नियम की व्याख्या एक उदाहरण द्वारा की जा सकती है। एक उपभोक्ता कुलफी खरीदना चाहता है।कुलफी की विभिन्न कीमत पर उपभोक्ता कुलफियों की कितनी-कितनी मात्रा की खरीद की जाती है। इसको मांग सूची द्वारा दिखाया जा सकता है
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 5 मांग 14
मांग सूची तथा मांग वक्र 14 द्वारा मांग के नियम को स्पष्ट किया गया है। जैसे-जैसे कीमत ₹ 5, 4, 3, 2, 1 घटती है, मांग 1, 2, 3, 4, 5 वस्तुओं की बढ़ती जाती है। इससे DD मांग वक्र बनती है, जोकि ऋणात्मक ढलान वाली है। यह नियम साधारण वस्तुओं (Normal Goods) पर लागू है।

नियम के अपवाद (Exceptions of the Law)-यह नियम निम्नलिखित स्थितियों में लागू नहीं होता-

  1. घटिया वस्तुएं (Inferior Goods)-घटिया वस्तु (गले हुए केले) की कीमत घटती है तो इनकी मांग कम हो जाती है।
  2. मान प्रतिष्ठा वस्तुएं (Articles of Distinction) हीरे-जवाहरात की कीमत बढ़ने से इनकी मांग बढ़ती है।
  3. उपभोक्ता की अज्ञानता (Ignorance of Consumer)-जब उपभोक्ता अज्ञानी होता है तो नियम लागू नहीं होता।

नियम का महत्त्व (Importance of the Law)-

  1. मानवीय व्यवहार का ज्ञान (Knowledge of human behaviour)-इस नियम द्वारा मानवीय व्यवहार सम्बन्धी ज्ञान प्राप्त होता है कि वह बाज़ार में वस्तुओं की खरीद कैसे करता है।
  2. उत्पादक द्वारा कीमत निर्धारण (Price Determination by Producers)-इस नियम को ध्यान में रखकर उत्पादक वस्तु की कीमत निर्धारण करते हैं, जिससे उसको अधिकतम लाभ प्राप्त होता है।

प्रश्न 4.
मांग के नियम की मान्यताएं बताओ। मान्यताओं में परिवर्तन से मांग वक्र पर क्या प्रभाव पड़ता
उत्तर-
मांग के नियम की मान्यताएं (Assumptions)-

  1. आय-उपभोगी की आय में कोई परिवर्तन नहीं होता।
  2. सम्बन्धित वस्तुओं की कीमतें-सम्बन्धित वस्तुओं (स्थानापन्न वस्तुएं तथा पूरक वस्तुएं) की कीमतों में कोई परिवर्तन नहीं होता।
  3. सम्भावनाएं- भविष्य में वस्तु की कीमत के बढ़ने अथवा घटने की कोई सम्भावना नहीं है।
  4. स्वाद, फैशन, आदतें-उपभोगी की आदतें, फैशन, स्वाद तथा श्रेष्ठता में कोई परिवर्तन नहीं होता।
  5. साधारण वस्तु-वस्तु साधारण होनी चाहिए। घटिया वस्तुओं पर नियम लागू नहीं होता।

यदि इन मान्यताओं में परिवर्तन पैदा हो जाता है तो मांग वक्र आगे अथवा पीछे खिसक जाएगा। मांग वक्र आगे खिसकने का अर्थ है, समान कीमत पर अधिक मांग की जाएगी तथा पीछे खिसकने का अर्थ है, समान कीमत पर कम मांग की जाएगी।

प्रश्न 5.
‘मांग में परिवर्तन’ तथा ‘मांग की मात्रा में परिवर्तन’ में अन्तर स्पष्ट करो।
अथवा
मांग की वृद्धि तथा कमी तथा मांग के विस्तार तथा संकुचन में अन्तर बताओ।
उत्तर-
1. मांग में परिवर्तन (Change in Demand)- मांग में परिवर्तन का अर्थ है मांग में वृद्धि अथवा कमी (Increase or Decrease in Demand)। जब वस्तु की कीमत समान रहती है तथा उपभोगी की आय बढ़ जाती है तो मांग में वृद्धि होगी। यदि आय कम हो जाती है तो मांग में कमी होगी। इसको मांग में परिवर्तन कहा जाता है, जैसे कि रेखाचित्र 4 में दिखाया गया है। OA से OB तक मांग की वृद्धि है, जिस कारण मांग वक्र DD से बदलकर D1D1 बन जाता है तथा यदि मांग वक्र DD से D,D, बन जाता है तो मांग OA से OC तक कम हो जाती है।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 5 मांग 4

2. मांग की मात्रा में परिवर्तन (Change in Quantity Demanded)-मांग की मात्रा में परिवर्तन रेखाचित्र 4 का अर्थ है मांग का विरार अथवा संकुचन (Extension or Contraction in Dernand) कहा जाता है। जब वस्तु की कीमत घटने से मांग बढ़ जाती है तो इसको मांग का विस्तार कहते हैं तथा कीमत के बढ़ने से मांग कम हो जाती है तो इसको मांग का संकुचन कहते हैं। रेखाचित्र 5 के अनुसार कीमत PP1 कम हो जाती है तो मांग बढ़ जाती है। इसलिए A तथा B तक मांग का विस्तार है तथा कीमत PP2 बढ़ जाती है तो मांग KK2 कम हो जाती है, इसको मांग का संकुचन कहा जाता है।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 5 मांग 5

प्रश्न 6.
एक उपभोगी की आय में परिवर्तन से साधारण वस्तुओं तथा घटिया वस्तुओं अथवा गिफ्फन वस्तुओं पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर-
उपभोगी की आय में परिवर्तन का प्रभाव साधारण वस्तुओं तथा घटिया वस्तुओं पर भिन्न-भिन्न प्रभाव डालता है।
1. साधारण वस्तुएं (Normal Goods)-साधारण वस्तुएं जैसे कि दूध, घी, फल, सब्जियों इत्यादि की कीमत समान रहे, परन्तु उपभोगी की आय बढ़ जाए तो वस्तुओं की मांग बढ़ जाएगी। मांग वक्र DD से बदल कर D1D1 हो जाएगा। मांग में वृद्धि KK1 है।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 5 मांग 6
2. घटिया वस्तुएं (Inferior Goods)-घटिया वस्तुओं को गिफ्फन वस्तुएं (Giffen Goods) भी कहा जाता है। जैसे कि बासी सब्जी, गले हुए फल, बहुत सस्ता कपड़ा इत्यादि वस्तुओं की कीमत समान रहे परन्तु उपभोगी की आय बढ़ जाती है तो वस्तुओं की मांग कम हो जाएगी। जैसे कि OP कीमत पर मांग OK थी। परन्तु आय बढ़ने के पश्चात् OK1 हो जाएगी। मांग वक्र DD से बदलकर D1D1 हो जाएगा।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 5 मांग 7

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 5 मांग

प्रश्न 7.
व्यक्तिगत मांग वक्र तथा बाज़ार मांग वक्र में अन्तर स्पष्ट करो।
अथवा
व्यक्तिगत मांग वक्र द्वारा बाज़ार मांग वक्र का निर्माण कैसे किया जाता है ?
उत्तर-
1. व्यक्तिगत मांग वक्र-एक उपभोगी वस्तु की कीमत के घटने से वस्तु की कितनी-कितनी मात्रा अधिक खरीदता है इससे प्राप्त मांग वक्र को व्यक्तिगत मांग वक्र कहते हैं जैसे कि मनुष्य A की मांग वक्र DDA को रेखाचित्र 8 में दिखाया गया है।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 5 मांग 8
2. बाज़ार मांग वक्र-मान लो बाज़ार में A तथा B दो व्यक्ति हैं। इन दोनों की मांग के जोड़ को बाज़ार मांग वक्र कहा जाता है।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 5 मांग 9
मनुष्य A तथा मनुष्य B की मांग के जोड़ से Dm Dm बाज़ार मांग वक्र बन जाता है। व्यक्ति मांग वक्र DDA, DDB के जोड़ से बाज़ार मांग वक्र Dm Dm बन जाता है। इस प्रकार व्यक्तिगत मांग वक्र द्वारा बाज़ार मांग वक्र का निर्माण किया जा सकता है।

प्रश्न 8.
स्पष्ट करो कि निम्नलिखित परिवर्तनों का खिसकना वस्तु की बाजार मांग वक्र पर क्या प्रभाव डालेगा ?
(a) झारखण्ड में एक नया स्टील प्लांट स्थापित होता है। जो लोग पहले बेरोज़गार थे, अब रोज़गार पर लग जाएंगे। इससे सफ़ेद तथा काले तथा रंगीन टेलीविज़नों की मांग पर क्या प्रभाव पड़ेगा ?
(b) गोआ में सैर-सपाटे को उत्साहित करने के लिए सरकार का सुझाव है कि बड़े चार नगरों चेन्नई, कोलकत्ता (कोलकाता), मुम्बई तथा नई दिल्ली से गोआ तक इंडियन एयरलाइन का किराया घटा दिया जाए। इससे गोआ को जाने वाली हवाई यात्रा की बाज़ार मांग पर क्या प्रभाव पड़ेगा।
(c) दिल्ली तथा जयपुर के बीच रेल तथा बस यातायात सुविधा है, यदि रेल किराया घटा दिया जाए तो इसका मांग वक्र पर क्या प्रभाव पड़ेगा ?
उत्तर-
(a) लोहा तथा स्टील के प्लांट स्थापित होने से लोगों की आय बढ़ जाएगी तथा बाज़ार मांग वक्र ऊपर की ओर खिसक (Shift) जाएगा तथा मांग की वृद्धि (Increase in demand) होगी।
(b) हवाई किराया घटने से गोआ जाने वाली मांग का विस्तार होगा। उसी मांग वक्र पर किराए घटने के कारण मांग फैल (Expansion) जाएगी।
(c) बस किराए की तुलना में रेल किराए घटने से, बस यात्रा पर बुरा प्रभाव पड़ेगा तथा मांग वक्र पीछे की ओर खिसक जाएगा। समान कीमत पर मांग कम हो जाएगी।

प्रश्न 9.
रेखाचित्र तथा सूची-पत्र द्वारा, मांग के विस्तार तथा मांग की वृद्धि में अन्तर स्पष्ट करो।
उत्तर-
(A) मांग का विस्तार-वस्तु की कीमत घटने से मांग बढ़ जाती है तो इसको मांग का विस्तार कहा जाता है-
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 5 मांग 10
कीमत ₹ 2 पर मांग पाँच वस्तुओं तथा एक रु० पर 10 वस्तुएं हैं। A से B तक मांग का विस्तार है। मांग की वृद्धि-वस्तु की कीमत समान रहती है, परन्तु आय के बढ़ने के कारण मांग बढ़ जाती है तो इसको मांग की वृद्धि कहा जाता है।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 5 मांग 11
सूची-पत्र तथा रेखाचित्र 11 में ₹ 2 कीमत पर मांग 5 वस्तुओं की है। आय बढ़ने के कारण ₹ 2 कीमत पर मांग 10 वस्तुओं की जाती है। मांग वक्र DD से बदलकर D1D1 बन जाएगी। A से B तक वृद्धि को मांग की वृद्धि कहा जाता है।

प्रश्न 10.
मांग का संकुचन तथा मांग की कमी में अन्तर स्पष्ट करो।
उत्तर-
मांग का संकुचन-शेष बातें समान रहें, जब वस्तु की कीमत बढ़ जाती है तथा मांग कम हो जाती है तो इसको मांग का संकचन कहते हैं।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 5 मांग 12
कीमत ₹ 1 पर 10 वस्तुओं की मांग है तथा ₹ 2 पर 5 वस्तुओं की मांग है। इसको मांग का संकुचन कहते हैं, जिसको A तथा B तक दिखाया गया है। मांग की कमी-जब कीमत समान रहती है, परन्तु अन्य तत्त्वों आय, जनसंख्या, आदतें, स्वाद में परिवर्तन के कारण मांग कम हो जाती है तो इसको मांग की कमी कहते हैं।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 5 मांग 13
सूची-पत्र तथा रेखाचित्र 13 में कीमत ₹ 1. पर मांग 10 वस्तुओं की है। मनुष्य की आय घटने से मांग 5 वस्तुओं की रह जाती है तो इसको मांग की कमी कहते हैं, जिसको A से B तक दिखाया गया है।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 5 मांग

प्रश्न 11.
वह कारण बताओ जो वस्तु की मांग वक्र को दाईं ओर खिसका देते हैं ?
अथवा
मांग की वृद्धि से क्या अभिप्राय है ? मांग की वृद्धि कौन-से कारणों पर निर्भर करती है ?
उत्तर-
जब वस्तुओं की मांग प्रचलित कीमत पर अधिक की जाती है, जिसका मुख्य कारण आय, जनसंख्या इत्यादि में वृद्धि करना होता है तो इसको मांग की वृद्धि कहा जाता है।
मांग की वृद्धि के कारण-

  1. उपभोक्ता की आय में वृद्धि हो जाती है।
  2. देश में जनसंख्या पहले से बढ़ जाती है।
  3. भविष्य में वस्तु की कीमत बढ़ने की सम्भावना होती है।
  4. स्थानापन्न वस्तुओं की कीमतें बढ़ जाती हैं।
  5. पूरक वस्तुओं की कीमतें कम हो जाती हैं।
  6. उपभोगी के स्वाद, फैशन, आदतें बदल जाती हैं।

प्रश्न 12.
वह कारण बताओ जो वस्तु की मांग वक्र को बाईं ओर धकेल देते हैं ?
अथवा
मांग की कमी से क्या अभिप्राय है ? मांग की कमी कौन-से कारणों पर निर्भर करती है ?
उत्तर-
जब वस्तु की मांग प्रचलित कीमत पर कम हो जाती है, जिसका कारण आय, जनसंख्या इत्यादि में कमी होती है तो इसको मांग की कमी कहा जाता है।
मांग की कमी के कारण-

  1. उपभोक्ता की आय कम हो जाती है।
  2. जनसंख्या कम हो जाती है।
  3. भविष्य में वस्तु की कीमत कम होने की सम्भावना है।
  4. स्थानापन्न वस्तुओं की कीमतें कम हो जाती हैं।
  5. पूरक वस्तुओं की कीमतें बढ़ जाती हैं।
  6. उपभोक्ता के स्वाद, फैशन, आदतों में परिवर्तन हो जाता है।

प्रश्न 13.
मांग के संकुचन तथा विस्तार, वृद्धि तथा कमी में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
मांग के संकुचन तथा विस्तार, वृद्धि तथा कमी में अन्तर –

अन्तर का आधार मांग का संकुचन तथा विस्तार मांग की वृद्धि तथा कमी
(1) कीमत में परिवर्तन इसमें परिवर्तन का मुख्य कारण कीमत में परिवर्तन होता है। मांग में वृद्धि अथवा कमी का सम्बन्ध कीमत में परिवर्तन से नहीं होता।
(2) दूसरे तत्त्वों का प्रभाव इसमें दूसरे तत्त्वों जैसे कि आय, फैशन, स्वाद इत्यादि को स्थिर माना जाता है अर्थात् दूसरे तत्त्वों में कोई परिवर्तन नहीं होता। इसमें दूसरे तत्त्वों के प्रभाव के कारण ही मांग में वृद्धि अथवा कमी होती है अर्थात् आय, जनसंख्या, फैशन इत्यादि में परिवर्तन का मुख्य कारण होते हैं।
(3) मांग वक्र की स्थिति इसमें उस मांग रेखा पर उपभोक्ता रहता है और उपभोक्ता का चलन (movement) एक ही मांग रेखा पर होता है। इसमें मांग रेखा खिसक (shift) जाती है। मांग बढ़ने से मांग वक्र ऊपर चला जाता है तथा मांग घटने से मांग वक्र नीचे खिसक जाता है।

प्रश्न 14.
वस्तु की मांग पर आय के प्रभाव का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
वस्तु की मांग पर आय का प्रभाव निम्नलिखित अनुसार होता है

  1. जब उपभोगी की आय बढ़ जाती है तो सामान्य वस्तुओं की मांग बढ़ जाती है और आय कम होने से सामान्य वस्तुओं की मांग कम हो जाती है।
  2. जब उपभोगी की आय बढ़ जाती है तो घटिया वस्तुओं की मांग कम हो जाती है और आय कम होने से घटिया वस्तुओं की मांग बढ़ जाती है।

IV. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
मांग के नियम को स्पष्ट करो। इस नियम के अपवाद तथा महत्त्व की व्याख्या करो। (Explain the Law of Demand. Discuss its Exceptions & Importance.)
उत्तर-
मांग का नियम (Law of Demand)-मांग का नियम यह बताता है कि वस्तु की कीमत तथा मांग में क्या सम्बन्ध है। वस्तु की कीमत में परिवर्तन आने से वस्तु की मांग में परिवर्तन हो जाता है। यदि दसरी बातें समान रहें तो कीमत घटने से मांग बढ़ जाती है तथा कीमत बढ़ने से मांग कम हो जाती है अर्थात् कीमत तथा मांग में विपरीत सम्बन्ध होता है। कीमत में परिवर्तन होना मुख्य कारण है। मांग में परिवर्तन होना प्रभाव (effect) है। इस कारण कीमत तथा मांग के विपरीत सम्बन्ध को स्पष्ट करने वाले नियम को मांग का नियम कहा जाता है।

परिभाषाएं (Definitions)- प्रो० मार्शल के अनुसार, “यदि बाकी बातें समान रहें तो कीमत घटने से मांग बढ़ती है तथा कीमत बढ़ने से मांग घटती है।” प्रो० सैम्यूलसन के अनुसार, “मांग का नियम यह बताता है कि बाकी बातें समान रहें तो लोग कम कीमत पर अधिक खरीदेंगे तथा अधिक कीमत पर कम खरीदेंगे।” (“The Law of Demand states that other things remaining the same, people will buy more at lower prices and buy less at higher price.” -Samuelson)

मान्यताएं (Assumptions)-मांग का नियम ‘बाकी बातें समान रहें’ की स्थिति में ही लागू होता है। बाकी बातों का अर्थ कीमत के बिना उन तत्त्वों से होता है जोकि मांग को प्रभावित करते हैं। इसलिए इन तत्त्वों में परिवर्तन नहीं होना चाहिए जिनको अर्थशास्त्री मांग के नियम की मान्यताएं कहते हैं। मांग के नियम की मुख्य मान्यताएं अनलिखित हैं-

  1. उपभोक्ता की आय में कोई परिवर्तन नहीं आता।
  2. आदतें, फैशन तथा रीति-रिवाज़ों में कोई परिवर्तन नहीं होता।
  3. स्थानापन्न वस्तुओं की कीमत में कोई परिवर्तन नहीं होता।
  4. पूरक वस्तुओं की कीमत में कोई परिवर्तन नहीं होता।
  5. भविष्य में वस्तु की कीमत में परिवर्तन की सम्भावना नहीं होती।
  6. वस्तु साधारण होनी चाहिए।

नियम की व्याख्या (Explanation of the Law)-मांग के नियम की व्याख्या एक उदाहरण द्वारा की जा सकती है। एक उपभोक्ता कुलफी खरीदना चाहता है।कुलफी की विभिन्न कीमत पर उपभोक्ता कुलफियों की कितनी-कितनी मात्रा की खरीद की जाती है। इसको मांग सूची द्वारा दिखाया जा सकता है
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 5 मांग 14
मांग सूची तथा मांग वक्र 14 द्वारा मांग के नियम को स्पष्ट किया गया है। जैसे-जैसे कीमत ₹ 5, 4, 3, 2, 1 घटती है, मांग 1, 2, 3, 4, 5 वस्तुओं की बढ़ती जाती है। इससे DD मांग वक्र बनती है, जोकि ऋणात्मक ढलान वाली है। यह नियम साधारण वस्तुओं (Normal Goods) पर लागू है।

नियम के अपवाद (Exceptions of the Law)-यह नियम निम्नलिखित स्थितियों में लागू नहीं होता-

  1. घटिया वस्तुएं (Inferior Goods)-घटिया वस्तु (गले हुए केले) की कीमत घटती है तो इनकी मांग कम हो जाती है।
  2. मान प्रतिष्ठा वस्तुएं (Articles of Distinction) हीरे-जवाहरात की कीमत बढ़ने से इनकी मांग बढ़ती है।
  3. उपभोक्ता की अज्ञानता (Ignorance of Consumer)-जब उपभोक्ता अज्ञानी होता है तो नियम लागू नहीं होता।

नियम का महत्त्व (Importance of the Law)-

  1. मानवीय व्यवहार का ज्ञान (Knowledge of human behaviour)-इस नियम द्वारा मानवीय व्यवहार सम्बन्धी ज्ञान प्राप्त होता है कि वह बाज़ार में वस्तुओं की खरीद कैसे करता है।
  2. उत्पादक द्वारा कीमत निर्धारण (Price Determination by Producers)-इस नियम को ध्यान में रखकर उत्पादक वस्तु की कीमत निर्धारण करते हैं, जिससे उसको अधिकतम लाभ प्राप्त होता है।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 5 मांग

प्रश्न 2.
मांग वक्र का निर्माण मांग सूची से कैसे किया जाता है ? मांग के निर्धारक तत्त्वों की व्याख्या करो।
(How is Demand Curve Derived From Demand Schedule ? Explain the determinants of Demand.)
उत्तर-
मांग सूची का अर्थ (Meaning of Demand Schedule)-एक सूची जिसमें कीमत तथा मांग के सम्बन्ध को स्पष्ट किया जाता है, उसको मांग सूची कहा जाता है। यदि बाकी बातें समान रहें, वस्तु की कीमत घटने से मांग अधिक की जाती है तथा वस्तु की कीमत बढ़ने से मांग कम की जाती है। कीमत तथा मांग के परस्पर सम्बन्ध को प्रकट करने वाली सूची अथवा मांग सारणी कहा जाता है। प्रो० सैम्यूलसन के शब्दों में, “वह सूची जिसमें कीमत तथा खरीदी गई मात्रा का सम्बन्ध वर्णन किया जाए, मांग सूची कहलाती है।” (“A Table relating demand and price is called demand schedule.’ – Samuelson)

मांग सूची की किस्में (Types of Demand Schedule) मांग सूची मुख्य तौर पर दो प्रकार की होती है –
1. व्यक्तिगत मांग सूची तथा वक्र (Individual Demand Schedule & Curve)
2. बाज़ार मांग सूची तथा वक्र (Market Demand Schedule and Curve)

1. व्यक्तिगत मांग सूची (Individual Demand Schedule) यदि एक सूची में एक मनुष्य द्वारा विभिन्न कीमतों पर खरीदी जाने वाली वस्तु की विभिन्न मात्रा को दिखाया जाता है तो इसको व्यक्तिगत मांग सूची कहा जाता है। इसको उदाहरण द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है। विभिन्न कीमत पर कुलफी की गई मांग की मात्रा को निम्नलिखित सूची-पत्र द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है-
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 5 मांग 15
सूची-पत्र के अनुसार जब कुलफी की कीमत ₹ 5 है तो उपभोक्ता केवल एक कुलफी की मांग करता है। जैसेजैसे कुलफी की कीमत घटकर ₹ 4, 3, 2, 1 हो जाती है तो उपभोक्ता 2, 3, 4, 5 कुलफियों की मांग करता है। इस सूचीपत्र को व्यक्तिगत सूची-पत्र कहा जाता है। रेखाचित्र 15 में दिखाया है कि जैसे-जैसे कुलफियों की कीमत घटती है, मांग में वृद्धि होती है। इससे DD मांग वक्र बन जाती है, इसको व्यक्तिगत मांग वक्र कहा जाता है।

2. बाज़ार मांग सूची (Market Demand Schedule) – बाज़ार में वस्तु के बहुत से खरीददार होते हैं। यदि बाज़ार में सभी ग्राहकों की मांग को जोड़कर मांग सूची बनाई जाए तो इसको बाज़ार मांग सूची कहा जाता है। मान लो बाज़ार में लोग कुलफी की खरीद करते हैं, जिसकी विभिन्न कीमत पर मनुष्य A तथा मनुष्य B द्वारा की गई मांग इस प्रकार है-
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 5 मांग 16
सूची-पत्र में A मनुष्य तथा मनुष्य B की मांग के जोड़ से बाज़ार मांग दिखाई गई है। इसको रेखाचित्र द्वारा भी स्पष्ट किया जा सकता है।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 5 मांग 17
रेखाचित्र 16 में DDA मनुष्य A की मांग वक्र है। जब कीमत ₹ 5 है तो मनुष्य A एक कुलफी की मांग करता है तथा एक रु० कीमत पर 5 कुलफियों की मांग की जाती है। DAD मनुष्य B की मांग वक्र है, ₹ 5 कीमत पर 2 कुलफियों की मांग तथा एक रु० कीमत पर 6 कुलफियों की मांग है। A + B द्वारा बाज़ार मांग वक्र बन जाती है। ₹5 कीमत पर 3 कुलफियों की मांग तथा एक रु० पर 11 कुलफियों की मांग है, इसको बाज़ार मांग वक्र Dm Dm द्वारा दिखाया है।

मांग के निर्धारक तत्व (Determinants of Demand)-

  1. वस्तु की कीमत-वस्तु की मांग उस वस्तु की अपनी कीमत द्वारा निर्धारण होती है। कीमत तथा मांग का विपरीत सम्बन्ध होता है।
  2. सम्बन्धित वस्तुओं की कीमत-स्थानापन्न वस्तुओं की स्थिति में जब स्थानापन्न वस्तुओं की कीमत कम हो जाती है तो इस वस्तु की मांग कम हो जाएगी। पूरक वस्तुओं की स्थिति में इस वस्तु की मांग कम हो जाएगी, यदि पूरक वस्तुओं की कीमत बढ़ जाती है।
  3. 3. आय-जब उपभोक्ता की आय बढ़ जाती है तो वस्तुओं की मांग बढ़ जाएगी।
  4. 4. स्वाद, आदतें, फैशन-जब उपभोक्ता के स्वाद, आदतें तथा फैशन में परिवर्तन होता है तो मांग में परिवर्तन हो जाता है।
  5. 5. जनसंख्या-जनसंख्या के आकार में वृद्धि हो जाए तो मांग में वृद्धि हो जाती है।
  6. 6. आय का वितरण-देश में समान आय का वितरण हो तो मांग बढ़ जाती है।

प्रश्न 3.
मांग वक्र की ढलान नीचे की ओर क्यों होती है ? क्या मांग वक्र की ढलान धनात्मक हो सकती (Why does Demand curves slopes downwards ? Can Demand Curve slope positively ?)
अथवा
मांग का नियम क्यों लागू होता है ? स्पष्ट करो। (Why does the Law of Demand operate ? Explain.)
उत्तर-
मांग के नियम में इस बात का अध्ययन किया जाता है कि कीमत बढ़ने से मांग कम हो जाती है तथा घटने से मांग में वृद्धि होती है अर्थात् कीमत तथा मांग में विपरीत सम्बन्ध होता है। ऐसे सम्बन्ध से ही मांग रेखा की ऋणात्मक ढलान होती है। कीमत तथा मांग में विपरीत सम्बन्ध के निम्नलिखित कारण होते हैं, जिसके परिणामस्वरूप मांग वक्र 17 की ढलान बाएं से दाएं ओर नीचे की ओर चली जाती है।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 5 मांग 18
1. घटते सीमान्त उपयोगिता का नियम (Law of Diminishing Marginal Utility)-मांग का नियम, घटते सीमान्त उपयोगिता के नियम पर निर्भर करता है। घटते सीमान्त उपयोगिता के नियम अनुसार, जैसे-जैसे एक उपभोगी वस्तु का अधिक उपभोग करता है, उसका सीमान्त उपयोगिता निरन्तर घटती जाती है। उपभोगी की अधिकसे-अधिक सन्तुष्टि उस स्थिति में होती है, जहां वस्तु की कीमत, उस वस्तु से प्राप्त होने वाले सीमान्त उपयोगिता के समान हो जाती है। वस्तु की अधिक मात्रा खरीदने से सीमान्त उपयोगिता घटती जाती है। इसलिए वस्तुओं की अधिक मात्रा तो ही खरीदी जाएगी, यदि कीमत कम हो जाती है। इसलिए घटते सीमान्त उपयोगिता का नियम स्पष्ट करता है कि कम कीमत पर वस्तु की अधिक मात्रा तथा अधिक वस्तु पर वस्तु की कम मात्रा क्यों खरीदी जाती है।

2. आय प्रभाव (Income Effect) – मांग का नियम लागू होने का दूसरा कारण आय प्रभाव है। किसी वस्तु . की कीमत घटने से उपभोगी की वास्तविक आय (Real Income) बढ़ जाती है। जब वास्तविक आय में वृद्धि होती है तो उस वस्तु की अधिक मात्रा की खरीद की जाएगी। उदाहरणस्वरूप दूध की कीमत ₹ 10 प्रति किलोग्राम है। परिवार में 10 किलोग्राम दूध का प्रयोग किया जाता है। इससे 10 x 10 = ₹ 100 व्यय किए जाते हैं। यदि दूध की कीमत ₹ 8 प्रति किलोग्राम हो जाए तथा उपभोगी पहले वाली मात्रा 10 किलोग्राम दूध की खरीद करता है तो उसको 8 x 10 = ₹ 80 व्यय करने पड़ेंगे। इस प्रकार उपभोगी की आय ₹ 20 बढ़ जाती है, जिस कारण दूध की अधिक मात्रा खरीदी जाती है।

3. स्थानापन्न प्रभाव (Substitution Effect)-स्थानापन्न वस्तुएं चाय तथा कॉफी हैं। यदि चाय की कीमत कम हो जाती है, परन्तु कॉफी की कीमत में कोई परिवर्तन नहीं होता तो लोग कॉफी की जगह पर चाय अधिक मात्रा में खरीदने लगते हैं। चाय की जितनी मात्रा अधिक खरीदी जाएगी. उसको स्थानापन्न प्रभाव कहा जाता है। इस प्रकार जब दो स्थानापन्न वस्तुओं में से किसी एक वस्तु की कीमत कम हो जाती है तथा उस वस्तु की अधिक मात्रा इस कारण की जाती है कि लोग दूसरी स्थानापन्न वस्तु की जगह पर तथा इस वस्तु की अधिक मांग करते हैं, जिसकी कीमत कम हो गई है। इस कारण मांग वक्र ऋणात्मक ढलान वाला बनता है तथा मांग का नियम लागू होता है।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 5 मांग

4. नए उपभोगी (New Consumers)-जब एक वस्तु की कीमत कम हो जाती है जो उपभोगी इस वस्तु की पहले खरीद नहीं कर सकते हैं, अब इस वस्तु को खरीदने लग जाते हैं, जैसे कि मटरों की कीमत ₹ 40 प्रति किलो है तो बहुत कम लोग मटरों की खरीद करते हैं। जब मटरों की कीमत ₹ 10 प्रति किलोग्राम हो जाती है तो बहुत से नए उपभोगी मटर खरीदने लगते हैं तथा पुराने उपभोगी अधिक मात्रा खरीदने लग जाते हैं। इस कारण मांग में बहुत वृद्धि हो जाती है तथा मांग वक्र ऋणात्मक ढलान वाली बनती है।

5. विभिन्न प्रयोग (Different Uses)-बहुत-सी वस्तुओं का प्रयोग किया जाता है। दूध का प्रयोग चाय, दही, पनीर, मिठाई इत्यादि विभिन्न प्रयोगों में किया जा सकता है। यदि दूध की कीमत बहुत अधिक हो तो इसका प्रयोग केवल चाय के लिए किया जाता है। यदि दूध की कीमत कम हो जाती है तो दूध का प्रयोग दही, मक्खन, पनीर, खीर इत्यादि के लिए भी होने लगता है। इसीलिए ऐसी वस्तुओं की कीमत घटने से मांग में वृद्धि होती है तथा मांग वक्र की ढलान बाईं ओर से दाईं और नीचे की ओर झुकी होती है।

मांग वक्र की धनात्मक ढलान (Positive Slope of Demand Curve)-मांग के नियम के अपवादों के कारण मांग, मांग वक्र 18 की ढलान धनात्मक हो सकती है। इसके मुख्य अपवाद हैं-

  1. मान प्रतिष्ठा वाली वस्तुओं की स्थिति में जैसा कि हीरे आदि।
  2. उपभोगी की अज्ञानता कारण।
  3. घटिया अथवा गिफ्फन वस्तुओं की स्थिति में मांग वक्र 18 की तरह ढलान धनात्मक हो सकती है।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 5 मांग 19

प्रश्न 4.
मांगी गई मात्रा में परिवर्तन तथा मांग में परिवर्तन में अन्तर बताओ। (Explain the difference between change in quantity demanded and change in demand.)
अथवा
मांग की रेखा तथा संचालन तथा मांग की रेखा में परिवर्तन में अन्तर बताओ। (Explain the difference between movement along demand curve and shift in Demand Curve.)
अथवा
मांग के विस्तार तथा संकुचन तथा मांग में वृद्धि तथा कमी के अन्तर को स्पष्ट करो। (Distinguish between Extension and Contraction in Demand & Increase and decrease in demand.)
उत्तर-
मांग में परिवर्तन को मांग की रेखा द्वारा दो तरह से स्पष्ट किया जाता है-
1. एक ही मांग रेखा पर संचालन (Movement Alongwith a Demand)-जब किसी वस्तु की मांग में परिवर्तन केवल कीमत में परिवर्तन कारण होता है तो मांग में परिवर्तन को एक मांग रेखा पर प्रकट किया जाता है। इसको मांग की मात्रा में परिवर्तन कहा जाता है। एक वस्तु की कीमत में कमी होने से मांग में वृद्धि को मांग का विस्तार (Extension in Demand) कहा जाता है। इसके विपरीत जब कीमत में वृद्धि हो जाती है तथा मांग में कमी उत्पन्न होती है तो मांग में इस घाटे को मांग का संकुचन (Contraction in Demand) कहा जाता है। इसको मांगी गई मात्रा में परिवर्तन भी कहा जाता है।

2. मांग वक्र का खिसकना (Shifting in Demand Curve)-जब मांग में परिवर्तन कीमत में परिवर्तन कारण नहीं, बल्कि किसी अन्य तत्त्वों जैसे कि आय, फैशन, स्वाद, जनसंख्या इत्यादि कारण होता है तो इसको मांग का खिसकना कहा जाता है। इस स्थिति में मांग वक्र प्राथमिक मांग वक्र के ऊपर की ओर अथवा नीचे की ओर खिसक कर नई मांग वक्र बन जाती है। यदि मांग वक्र की ओर खिसक जाती है तो इसको मांग की वृद्धि (Increase in Demand) कहा जाता है तथा यदि मांग वक्र नीचे की ओर खिसक जाती है तो इसको मांग का घाटा (Decrease in Demand) कहा जाता है। इसको मांग में परिवर्तन भी कहा जाता है।
(i) मांग का विस्तार तथा संकुचन (Extension and Contraction in Demand)-मांग में परिवर्तन का मुख्य कारण केवल कीमत में परिवर्तन हो तो इसको मांग का विस्तार अथवा संकुचन भी कहा जाता है।
1. मांग का विस्तार (Extension in Demand)- बाकी बातें समान रहें, वस्तु की कीमत में कमी होने से मांग में वृद्धि हो जाती है। इसको मांग का विस्तार कहा जाता है।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 5 मांग 20
सूची-पत्र में जब एक कुलफी की कीमत ₹ 5 दी है तो उपभोगी एक कुलफी की खरीद करता है, यदि कुलफी की कीमत घटकर एक रुपया हो जाती है तथा मांग 5 कुलफियों की जाती है तो इसको मांग का विस्तार कहा जाता है। रेखाचित्र 19 में मांग वक्र पर a बिन्दु से b बिन्दु तक परिवर्तन को मांग का विस्तार कहा जाता है।
(ii) मांग का संकुचन (Contraction in Demand) बाकी बातें समान रहें अर्थात् आय, फैशन, मौसम में कोई परिवर्तन न हो, वस्तु की कीमत बढ़ने से मांग घट जाती है तो इसको मांग का संकुचन कहा जाता है।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 5 मांग 22
सूची-पत्र अनुसार जब कुलफी की कीमत एक रुपया है तो उपभोगी 5 कुलफियों की खरीद करता है। कीमत बढ़कर ₹ 5 प्रति कुलफी हो जाती है तो बाकी बातें समान रहें तो कुलफियों की मांग घटकर एक कुलफी रह जाएगी। इस मांग की कमी को मांग का संकुचन कहा जाता है। इसमें a से b तक परिवर्तन को मांग का संकुचन कहा जाता है।

2. मांग में वृद्धि तथा कमी (Increase and Decrease in Demand)-मांग में परिवर्तन, वस्तु की कीमत के बिना अन्य कारण आय, फैशन, स्वाद इत्यादि करके होती है तो मांग में इस परिवर्तन को मांग की वृद्धि अथवा कमी कहा जाता है। . .
(i) मांग की वृद्धि (Increase in Demand)-मांग की वृद्धि को दो तरह से स्पष्ट किया जा सकता है।
(क) समान कीमत पर अधिक मांग (Same Price More Demand) वस्तु की कीमत समान रहती है, परन्तु उपभोगी की आय ₹ 10,000 प्रति माह से बढ़कर ₹ 20,000 प्रति माह हो जाती है तो उपभोगी द्वारा वस्तु की अधिक मांग की जाएगी, इसको मांग की वृद्धि कहा जाता है।
(ख) अधिक कीमत पर समान मांग (More Price Same Demand) वस्तु की कीमत बढ़ जाती है, परन्तु उपभोगी पहले जितनी वस्तु की मांग करता है, क्योंकि उसकी आय में वृद्धि हो जाती है तो इसको भी मांग की वृद्धि कहा जाता है।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 5 मांग 24
सूची-पत्र अनुसार कीमत ₹ 5 समान रहती है, परन्तु आय बढ़ने के कारण मांग 2 कुलफियों की जगह पर 4 कुलफियों की हो जाती है तो इसको मांग की वृद्धि कहा जाता है।सूची-पत्र के भाग (2) में कीमत ₹ 5 से बढ़कर ₹ 7 हो जाती है, परन्तु मांग 2 कुलफियों की समान रहती है, क्योंकि उपभोगी की आय बढ़ गई है। इसको भी मांग की वृद्धि कहा जाता है।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 5 मांग

2. मांग की कमी (Decrease in Demand)-मांग की कमी को भी दो तरह से स्पष्ट किया जा सकता है।

  • समान कीमत कम मांग (Same Price Less Demand)-वस्तु की मांग में कमी का मुख्य कारण कीमत से कम होकर ₹ 5,000 प्रति माह रह जाती है तो कीमत समान रहे तो भी मांग कम हो जाएगी, इसको मांग की कमी कहा जाएगा।
  • कम कीमत समान मांग (Less Price Same Demand)-मान लो उपभोगी की आय कम हो जाती है। वस्तु की कीमत में कमी आ जाने के कारण भी उपभोगी पहले जितनी वस्तु की खरीद करता है, इस स्थिति को मांग की कमी कहा जाता है।
    PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 5 मांग 26

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 5 मांग 27
सूची-पत्र अनुसार कीमत ₹ 5 समान रहती है, परन्तु मांग दो कुलफियों से कम होकर एक कुलफी ही रह जाती है अथवा कुलफी की कीमत ₹ 5 से कम होकर ₹ 3 रह जाती है तथा मांग 2 कुलफियों की समान रहती है तो इसको मांग की कमी कहा जाता है।

V. संरख्यात्मक प्रश्न (Numericals)

प्रश्न 1.
तीन उपभोक्ताओं राम, शाम तथा सोहन की मांग अनुसूची में दी हुई है। बाज़ार मांग अनुसूची का निर्माण कीजिए।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 5 मांग 28
उत्तर-
बाज़ार मांग अनुसूची कीमत –
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 5 मांग 29

प्रश्न 2.
सूची-पत्र प्रश्न 1 में यदि सोहन को छोड़ दिया जाए तो नई बाज़ार अनुसूची क्या होगी ?
उत्तर –
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 5 मांग 30

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 5 मांग

प्रश्न 3.
मुस्कराहट (Smile) नाम के फल के चार उपभोगी हैं। यह उपभोगी ईशा, एफराह, ईला, ईबीमा हैं। मुस्कराहट फल की मांग सूची निम्नलिखित अनुसार है। बाजार मांग वक्र का निर्माण करो।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 5 मांग 31
उत्तर-
बाज़ार मांग सूची का निर्माण –
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 5 मांग 32

प्रश्न 4.
निम्नलिखित अनुसूची में C मनुष्य की मांग अनुसूची ज्ञात करो।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 5 मांग 34
उत्तर-
मनुष्य C की मांग अनुसूची –
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 5 मांग 35

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 4 उपभोगी का सन्तुलन

Punjab State Board PSEB 11th Class Economics Book Solutions Chapter 4 उपभोगी का सन्तुलन Textbook Exercise Questions, and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Economics Chapter 4 उपभोगी का सन्तुलन

PSEB 11th Class Economics उपभोगी का सन्तुलन Textbook Questions and Answers

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

प्रश्न 1.
कुल उपयोगिता की परिभाषा लिखें।
उत्तर-
एक वस्तु की सभी इकाइयों का उपभोग करने से प्राप्त होने वाली उपयोगिता के जोड़ को कुल उपयोगिता कहते हैं।

प्रश्न 2.
सीमान्त उपयोगिता की परिभाषा लिखें।
उत्तर-
एक वस्तु की एक और इकाई का उपयोग करने से प्राप्त होने वाली अतिरिक्त उपयोगिता को सीमान्त उपयोगिता कहते हैं।
अथवा
(MU = TUn TUn -1)

प्रश्न 3.
उपभोग से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
उपभोग वह प्रक्रिया है जिस द्वारा वस्तुओं तथा सेवाओं के प्रयोग से आवश्यकताओं की सन्तुष्टि की जाती है।

प्रश्न 4.
उपयोगिता से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
वस्तु या सेवा का वह गुण जिस द्वारा आवश्यकताएँ सन्तुष्ट होती हैं, उस गुण को उपयोगिता कहा जाता है।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 4 उपभोगी का सन्तुलन

प्रश्न 5.
सीमान्त उपयोगिता से कुल उपयोगिता का आंकलन कैसे किया जाता है ?
उत्तर-
सीमान्त उपयोगिता के जोड़ से कुल उपयोगिता प्राप्त हो जाती है।

प्रश्न 6.
जब कुल उपयोगिता अधिकतम होती है तो सीमान्त उपयोगिता कितनी होती है ?
उत्तर-
जब कुल उपयोगिता अधिकतम होती है तो सीमान्त उपयोगिता शून्य (Zero) होती है।

प्रश्न 7.
जब सीमान्त उपयोगिता ऋणात्मक होती है तो कुल उपयोगिता पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर-
जब सीमान्त उपयोगिता ऋणात्मक होती है तो कुल उपयोगिता गिरना शुरू हो जाती है।

प्रश्न 8.
जब सीमान्त उपयोगिता शून्य होती है तो कुल उपयोगिता की क्या स्थिति होती है ?
उत्तर-
जब सीमान्त उपयोगिता शून्य होती है तो कुल उपयोगिता अधिकतम होती है।

प्रश्न 9.
उपभोक्ता से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
उपभोक्ता एक व्यक्ति, परिवार या सरकार हो सकती है जिस द्वारा आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए वस्तुओं तथा सेवाओं का प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न 10.
उपभोक्ता सन्तुलन क्या है ?
उत्तर-
उपभोक्ता सन्तुलन वह अवस्था है जब वह अपने व्यवहार को वर्तमान परिस्थितियों में सबसे अच्छा मानता है और उसमें कोई परिवर्तन नहीं करना चाहता।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 4 उपभोगी का सन्तुलन

प्रश्न 11.
घटती सीमान्त उपयोगिता के नियम से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
घटती सीमान्त उपयोगिता के नियम अनुसार जब किसी वस्तु की इकाइयों का लगातार अधिक उपभोग किया जाता है तो प्रत्येक इकाई से प्राप्त होने वाली सीमान्त उपयोगिता घटती जाती है।

प्रश्न 12.
उपभोक्ता सन्तुलन की शर्त क्या होती है ?
उत्तर-
उपभोक्ता सन्तुलन = MUx = Price of X. MU of Money.

प्रश्न 13.
एक वस्तु के लिए उपभोक्ता सन्तुलन कैसे प्राप्त होता है ?
उत्तर–
प्राप्त उपयोगिता (MU) = त्यागी गई उपयोगिता (Price).

प्रश्न 14.
दो वस्तुओं के लिए उपभोक्ता सन्तुलन कैसे प्राप्त होता है ?
उत्तर-
X वस्तु की सीमान्त उपयोगिता (MU.) = Y वस्तु की सीमान्त उपयोगिता (MUy).

प्रश्न 15.
सीमान्त उपयोगिता (MU) = ………
उत्तर-
सीमान्त उपयोगिता (MU) = (TUn – TUn-1) Or \(\frac{\Delta \mathrm{TU}}{\Delta \mathrm{Q}}\)

प्रश्न 16.
MU1 + MU2 + MU3 = ……………….. + MUn = ……..
उत्तर-
Total Utility (T.U.)

प्रश्न 17.
जब कुल उपयोगिता अधिकतम होती है तो सीमान्त उपयोगिता ……. होती है।
(a) 1
(b) 2
(c) 3
(d) 0 (शून्य)
उत्तर-
(d) 0 (शून्य)।

प्रश्न 18.
एक वस्तु की स्थिति में उपभोगी का सन्तुलन तब होता है जब
(a) MUm
(b) MUr
(c) MUp
(d) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(a) MUm

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 4 उपभोगी का सन्तुलन

प्रश्न 19.
दो वस्तुओं की खरीद में उपभोक्ता सन्तुलन उस समय होता है जब \(\frac{\mathbf{M U _ { x }}}{\mathbf{P}_{x}}=\frac{\mathbf{M U _ { y }}}{\mathbf{P}_{y}}\) ……………………… होती है।
(a) \(\frac{\mathrm{P}_{x}}{\mathrm{P}_{y}}\)
(b) \(\frac{P_{y}}{P_{x}}\)
(c) \(\frac{\mathrm{MU}_{x}}{\mathrm{MU}_{y}}\)
(d) MUm.
उत्तर-
(d) MUm.

प्रश्न 20.
किसी वस्तु की एक और इकाई का उपभोग करने से प्राप्त होने वाली अतिरिक्त उपयोगिता को …………….. कहते हैं।
उत्तर-
सीमान्त उपयोगिता।

प्रश्न 21.
जब सीमान्त उपयोगिता ऋणात्मक होती है तो कुल उपयोगिता अधिकतम होती है।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 22.
एक वस्तु की स्थिति में उपभोगी को प्राप्त होने वाली सीमान्त उपयोगिता वस्तु की कीमत के बराबर हो जाती है तो इस को उपभोगी का सन्तुलन कहते हैं।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 23.
जब एक मनुष्य के वस्तु भण्डार में वृद्धि होती है तो प्रत्येक वृद्धि के साथ प्राप्त होने वाला अतिरिक्त लाभ घटता जाता है। इस को घटती सीमान्त उपयोगिता का नियम कहते हैं।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 24.
निम्नलिखित सारणी को पूरा करें-

उपभोग की गई इकाइयाँ: 1 2 3 4 5 6 7
सीमान्त उपयोगिता : 8 10 8 6 4 2 0
कुल उपयोगिता :

उत्तर-

उपभोग की गई इकाइयाँ : 1 2 3 4 5 6 7
सीमान्त उपयोगिता : 8 10 8 6 4 2 0
कुल उपयोगिता : 8 18 26 32 36 38 38

प्रश्न 25.
घटती सीमान्त उपयोगिता का नियम ……. ने दिया।
(a) मार्शल
(b) एड्म स्मिथ
(c) गोसन
(d) कोई भी नहीं।
उत्तर-
(c) गोसन।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 4 उपभोगी का सन्तुलन

प्रश्न 26.
घटती सीमान्त उपयोगिता का नियम ………..से सम्बन्धित है।
(a) उपभोग
(b) विनिमय
(c) उत्पादन
(a) कोई भी नहीं।
उत्तर-
(a) उपभोग।

प्रश्न 27.
घटती सीमान्त उपयोगिता के नियम को ……….. भी कहा जाता है।
(a) अधिकतम सन्तुष्टि का नियम
(b) सन्तुष्टि का नियम
(c) गोसन का पहला नियम
(d) कोई भी नहीं।
उत्तर-
(c) गोसन का पहला नियम।

II. अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
उपभोगी से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
उपभोगी उस व्यक्ति को कहा जाता है जोकि अपनी आवश्यकताओं की सन्तुष्टि के लिए वस्तुओं तथा सेवाओं का प्रयोग करता है। उपभोगी परिवार, सरकार अथवा फ़र्म भी हो सकती है। सरकार लोगों के लिए वस्तुओं तथा सेवाओं की खरीद करती है ताकि सामाजिक भलाई में वृद्धि हो सके।

प्रश्न 2.
उपभोगी के सन्तुलन से क्या अभिप्राय है ? ‘
उत्तर-
उपभोगी का सन्तुलन एक ऐसी अवस्था होती है, जब वह अपने वर्तमान व्यवहार को कुछ विशेष स्थितियों में सबसे अच्छा अनुभव करता है तथा उसमें कोई परिवर्तन नहीं करता, जब तक स्थितियों में कोई परिवर्तन नहीं होता।

प्रश्न 3.
उपयोगिता से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
उपयोगिता का अर्थ वस्तु अथवा सेवा में उस गुण से होता है जिस द्वारा मानवीय आवश्यकताएं पूरी होती हैं अथवा हम यह कह सकते हैं कि किसी वस्तु में वह शक्ति जो आवश्यकताओं की पूर्ति करती है, उसको उपयोगिता कहा जाता है।(“’Utility is the want satisfying power of a good.”)

प्रश्न 4.
सीमान्त उपयोगिता को पारिभाषित करो।
उत्तर-
सीमान्त उपयोगिता किसी वस्तु की एक अन्य इकाई का उपभोग करने से जो अधिक तुष्टिगुण प्राप्त होता है उसको सीमान्त उपयोगिता कहा जाता है। उदाहरणस्वरूप एक वस्तु की पाँच इकाइयों का उपभोग करने से 100 युटिलज़ सन्तुष्टि प्राप्त होती है तथा छः इकाइयों का उपभोग करने से 110 युटिलज़ सन्तुष्टि मिलती है तो छठी इकाई का उपभोग करने से 110 – 100 = 10 युटिलज़ को सीमान्त उपयोगिता कहा जाता है।
MU = TUn – TUn-1) = 110 – 100 = 10 Utils.

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 4 उपभोगी का सन्तुलन

प्रश्न 5.
कुल उपयोगिता से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
किसी वस्तु की सभी इकाइयों के उपभोग से प्राप्त होने वाली उपयोगिता को कुल उपयोगिता कहा जाता है। मान लो एक उपभोगी तीन सेबों का उपभोग करता है। प्रथम सेब से 10 युटिल, द्वितीय सेब से 8 युटिल तथा तीसरे सेब से 6 युटिल उपयोगिता प्राप्त होती है तो कुल उपयोगिता 10 + 8 + 6 = 24 युटिल प्राप्त होगी।

प्रश्न 6.
टेबल की सहायता से बताइए कि जब सीमान्त तुष्टिगुण शून्य होता है तो कुल तुष्टिगुण अधिकतम होता है ?
उत्तर-
जब सीमान्त तुष्टिगुण शून्य होता है तो कुल तुष्टिगुण अधिकतम होता है। जैसा कि निम्नलिखित टेबल से स्पष्ट है –
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 4 उपभोगी का सन्तुलन 1
चार सेबों का उपभोग करने से सीमान्त तुष्टिगुण शून्य है और कुल तुष्टिगुण 12 अधिकतम है।

प्रश्न 7.
घटते सीमान्त तुष्टिगुण के नियम से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
घटते सीमान्त तुष्टिगुण का नियम प्रोफैसर मार्शल की देन है। उनके अनुसार, “यदि अन्य बातें समान रहें जब एक निश्चित समय में एक उपभोगी किसी वस्तु का अधिक उपभोग करता है उस वस्तु की सीमान्त उपयोगिता घटती जाती है।” इसको घटते सीमान्त तुष्टिगुण का नियम कहते हैं।

III. लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
घटते सीमान्त उपयोगिता के नियम का संक्षेप में वर्णन करो।
उत्तर-
गोसन पहले अर्थशास्त्री थे जिन्होंने यह नियम दिया। इसलिए इस नियम को गोसन का पहला नियम भी कहते हैं। यह नियम लोगों की व्यावहारिक तथा मनोवैज्ञानिक स्थिति को ध्यान में रखकर बनाया गया है। प्रो० मार्शल के अनुसार, “जब किसी मनुष्य के वस्तु के भण्डार में वृद्धि होती है तो प्रत्येक वृद्धि से प्राप्त होने वाला लाभ घटता जाता है।” (“The additional benefit which a person derives from an increase of a stock of a thing diminishes with every increase in the stock that he already has.”) इस नियम को उपभोग का आधारपूर्वक नियम (Fundamental Law of Consumption) अथवा आधारपूर्वक मनोवैज्ञानिक नियम (Fundamental Psychological Law) भी कहा जाता है।

इस नियम अनुसार जब एक मनुष्य एक वस्तु की अधिक इकाइयों का उपभोग करता है तो उसको वस्तु से प्राप्त होने वाली सीमान्त उपयोगिता घटती जाती है अथवा कुल उपयोगिता में वृद्धि तो होती है परन्तु जिस अनुपात पर वृद्धि होती है, वह अनुपात घटता जाता है। उदाहरण-एक उपभोगी सेबों का उपभोग करता है, उसको प्राप्त M.U. तथा T.U. इस प्रकार है-
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 4 उपभोगी का सन्तुलन 2
सूची-पत्र में तथा रेखाचित्र 1 में-

  • सेबों का उपभोग करने से सीमान्त उपयोगिता 4, 3, 2, 1, 0 युटिलज़ घटता जाता है।
  • जब सीमान्त उपयोगिता शून्य है तो. कुल उपयोगिता अधिकतम है।
  • जब सीमान्त उपयोगिता ऋणात्मक है तो कुल उपयोगिता घटने लगता है, इसको घटते सीमान्त उपयोगिता का नियम कहते हैं।

प्रश्न 2.
उपयोगिता, सीमान्त उपयोगिता तथा कुल उपयोगिता के सम्बन्ध को स्पष्ट करें। कुल उपयोगिता तथा सीमान्त उपयोगिता के सम्बन्ध को स्पष्ट करें।
उत्तर-
उपयोगिता का अर्थ (Meaning of Utility)-अर्थशास्त्र में ‘उपयोगिता’ एक महत्त्वपूर्ण धारणा है। उपयोगिता का अर्थ किसी वस्तु या सेवा में उस गुण से होता है जो हमारी ज़रूरतों की पूर्ति करता है। इसीलिए किसी वस्तु में उस गुण या शक्ति को उपयोगिता कहा जाता है जिसके द्वारा मानवीय ज़रूरतों की सन्तुष्टि होती है। (Utility is the want satisfying power of a commodity.) उपयोगिता का माप संख्याओं 1, 2, 3, 4, 5 आदि द्वारा किया जाता है जिनको युटिल कहा जाता है।

सीमान्त उपयोगिता (Marginal Utility)-किसी वस्तु का एक बार और उपभोग करने से जिन कुल उपयोगिता में वृद्धि होती है उस वृद्धि को सीमान्त उपयोगिता कहा जाता है। उदाहरण के तौर पर एक वस्तु की 5 इकाइयों का उपभोग करने के साथ 100 युटिल प्राप्त होती है और छठी इकाई का उपभोग करने के साथ कुल उपयोगिता में वृद्धि 110 युटिल हो जाती है। तो छठी इकाई के उपभोग के साथ 110 -100 = 10 युटिल उपयोगिता की वृद्धि हुई है। इसीलिए सीमान्त उपयोगिता 10 युटिल होगी। इसका माप निम्नलिखित अनुसार किया जाता है।
MU = TUn – TUn-1
= TU6th Unit – TU5th Unit (110 – 100 = 10 युटिलज़)
कल उपयोगिता (Total Utility) किसी वस्तु की सभी इकाइयों के उपभोग से प्राप्त होने वाले उपयोगिता को कुल उपयोगिता कहा जाता है। मान लो एक आदमी ने तीन सेबों का उपभोग किया। पहले सेब से 10 युटिल, दूसरे सेब से 8 युटिल और तीसरे सेब से 6 युटिल उपयोगिता प्राप्त हुआ तो कुल उपयोगिता 10 + 8 + 6 = 24 युटिलज़ हुआ।

कुल उपयोगिता और सीमान्त उपयोगिता का सम्बन्ध (Relationship Between T.U. & M.U.)-
कुल उपयोगिता (T.U.) और सीमान्त उपयोगिता (M.U.) के सम्बन्ध को सूची-पत्र और रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट करते हैं –
कुल उपयोगिता तथा सीमान्त उपयोगिता का सम्बन्ध –
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 4 उपभोगी का सन्तुलन 4
सूची-पत्र तथा रेखाचित्र 2 अनुसार –

  • जब सेबों की इकाइयों का अधिक प्रयोग किया जाता है तो सीमान्त तुष्टिकरण (M.U.) घटता जाता है तथा कुल उपयोगिता में वृद्धि घटती दर पर होती है।
  • जब सीमान्त उपयोगिता शून्य (zero) हो जाती है तो कुल उपयोगिता अधिकतम होती है, जैसे चौथे सेब के उपभोग में दिखाया गया है।
  • जब पांचवें सेब का उपभोग किया जाता है तो सीमान्त उपयोगिता ऋणात्मक हो जाती है तो कुल उपयोगिता घटने लगती है, जैसे Mu द्वारा दिखाया गया है।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 4 उपभोगी का सन्तुलन 5

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 4 उपभोगी का सन्तुलन

IV. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
घटती सीमान्त उपयोगिता के नियम की व्याख्या करो। इस नियम के अपवाद तथा महत्त्व को स्पष्ट करो।
(Explain the Law of Diminishing Marginals Utility. Give its Exceptions and Importance.)
उत्तर-
घटती सीमान्त उपयोगिता का नियम, उपयोगिता विश्लेषण का आधारपूर्वक नियम है। इस नियम को सबसे पहले एच० एच० गोसन (H.H. Gossen) ने 1854 में दिया था, परन्तु इस नियम की ठीक रूप में व्याख्या प्रो० मार्शल ने 1890 में अपनी पुस्तक “अर्थशास्त्र के सिद्धान्त” में की। प्रो० मार्शल के शब्दों में, “मनुष्य के पास किसी वस्तु की जितनी मात्रा होती है, उस वस्तु की मात्रा में जैसे-जैसे वृद्धि होती है, उसकी सीमान्त उपयोगिता घटती जाती है।” (“The additional benefit which a person dervies from a given stock of a thing, diminishes, with every increase in the stock that he already has.”-Marshall)

प्रो० चैपमैन के अनुसार, “जितनी कोई वस्तु हमारे पास अधिक मात्रा में होती है, उतनी ही कम मात्रा में हम अन्य प्राप्त करना चाहते हैं।” (“The more we have of a thing the less we want additional increament of it.”-Chapman) -उदाहरणस्वरूप एक मनुष्य को प्यास लगी है। पानी का पहला गिलास उस मनुष्य को बहुत उपयोगिता देगा। परन्तु दूसरे तथा तीसरे गिलास से प्राप्त होने वाली उपयोगिता घटती जाएगी। अन्य पानी पीने से उसको तकलीफ भी हो सकती है, अर्थात् वस्तु की वृद्धि से उपयोगिता घटती जाती है, परन्तु एक सीमा के पश्चात् यह उपयोगिता शून्य अथवा ऋणात्मक हो जाती है। इसको घटती उपयोगिता का नियम कहा जाता है।

मान्यताएं (Assumptions) –

  1. उपयोगिता का गणनावाचक माप हो सकता है।
  2. मुद्रा की सीमान्त उपयोगिता स्थिर रहती है।
  3. वस्तुओं की इकाइयां समान आकार तथा गुण वाली हैं।
  4. वस्तु का उपभोग एक समय तथा निरन्तर किया जाता है।
  5. उपभोगी की आय दी हुई है तथा यह स्थिर रहती है।
  6. वस्तु की कीमत तथा स्थानान्तरण वस्तुओं की कीमत स्थिर रहती है।
  7. उपभोक्ता की रुचि, फैशन, आदतें, रीति-रिवाज इत्यादि में कोई परिवर्तन नहीं होता।

नियम की व्याख्या (Explanation of the Law)-
सीमान्त उपभोक्ता का नियम उपभोग का महत्त्वपूर्ण नियम है। एक मनुष्य के पास ₹ 7 हैं। इन पैसों से उपभोक्ता केले खरीदता है। जब यह पैसे केलों पर व्यय किए जाते हैं तो प्राप्त होने वाली सीमान्त उपयोगिता घटती जाती है। इसको सूचीपत्र तथा रेखाचित्र द्वारा दिखाया जा सकता है।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 4 उपभोगी का सन्तुलन 7
सूचीपत्र के अनुसार जब उपभोक्ता केलों पर व्यय करता है, तो प्राप्त होने वाली सीमान्त उपयोगिता 5, 4, 3, 2, 1 घटती जाती है। छठे केले से शून्य तथा सातवें केले से ऋणात्मक उपयोगिता प्राप्त होती है। रेखाचित्र 3 में दिखाया है कि उपभोक्ता को केलों से प्राप्त होने वाली सीमान्त उपयोगिता कम होती जाती है। छठी इकाई से शून्य तथा. सातवीं इकाई से ऋणात्मक उपयोगिता प्राप्त होती है। जिसको MU द्वारा दिखाया गया है। इसको घटती सीमान्त उपयोगिता का नियम कहा जाता है।

नियम के अपवाद (Exceptions of the Law)-घटती सीमान्त उपयोगिता का नियम निम्नलिखित स्थितियों में लागू नहीं होता है-

  1. दुर्लभ तथा अद्भुत वस्तुएं-दुर्लभ तथा अद्भुत वस्तुओं की मात्रा के बढ़ने से उपभोक्ता की उपयोगिता घटने की जगह पर बढ़ती जाती है।
  2. कंजूस मनुष्य-कंजूस मनुष्य के पास किसी वस्तु की मात्रा बढ़ने से वह मनुष्य उस वस्तु की अन्य मात्रा प्राप्त करना चाहता है।
  3. नशीले पदार्थ-यह नियम नशीले पदार्थों शराब, अफीम, तम्बाकू इत्यादि पर लागू नहीं होता। शराबी मनुष्य अधिक शराब पीकर अधिक उपयोगिता महसूस करता है।
  4. आरम्भिक इकाइयां-किसी वस्तु की आरम्भिक इकाइयों पर भी नियम लागू नहीं होता।
  5. अच्छी पुस्तकें-यह नियम अच्छी पुस्तकों, कविताओं, पुराने गानों के भण्डार पर भी लागू नहीं होता। .

नियम का महत्त्व (Importance of the Laws)-प्रो० टॉज़िग अनुसार, “घटती सीमान्त उपभोक्ता का नियम इतना व्यापक है कि इसको सर्वव्यापक कहना गलत नहीं होगा।” इसका महत्त्व इस प्रकार है –
1. नियमों का आधार-उपभोग के बहुत से नियम जैसे कि सम-सीमान्त उपयोगिता का नियम, मांग का नियम, उपभोक्ता की बचत का नियम इत्यादि इस नियम पर आधारित हैं।

2. उपभोक्ता के लिए लाभदायक-यह नियम उपभोक्ता के लिए महत्त्वपूर्ण है। एक उपभोक्ता अपनी सारी आय एक वस्तु पर ही व्यय नहीं करता; बल्कि विभिन्न प्रकार की वस्तुओं की खरीद करता है। इससे उस उपभोक्ता को अधिक उपभोक्ता प्राप्त होती है।

3. उत्पादकों के लिए लाभदायक-यह नियम उत्पादकों के लिए भी सहायक है। उत्पादक जब वस्तुओं का उत्पादन नहीं करते हैं तो एक प्रकार की वस्तुओं का ही उत्पादन नहीं किया जाता, बल्कि विभिन्न प्रकार की वस्तुएं विभिन्न वर्ग के लोगों के लिए बनाई जाती हैं। इससे उत्पादक को अधिकतम लाभ प्राप्त होता है।

4. मूल्य निर्धारण-यह नियम मूल्य निर्धारण में भी लाभदायक है। किसी वस्तु की मांग उस वस्तु से प्राप्त होने वाली सी :न्ति उपयोगिता पर निर्भर करती है, जब वस्तु की अधिक मात्रा की मांग की जाती है तो सीमान्त उपयोगिता कम होने के कारण वस्तु की कीमत कम दी जाती है। परन्तु कीमत के घटने से वस्तु की कम मात्रा बेची जाएगी। इसलिए कीमत निर्धारण उस बिन्दु पर होगा, जहां वस्तु की मांग, वस्तु की पूर्ति के समान होती है।

5. वित्त मंत्री के लिए लाभदायक-यह नियम वित्त मंत्री के लिए भी लाभदायक है। कर लगाते समय वित्त मंत्री इस नियम की सहायता लेता है। जब एक मनुष्य की आय बढ़ जाती है तो मुद्रा का सीमान्त उपयोगिता घटता जाता है, इस कारण अमीर मनुष्यों पर कर की अधिक मात्रा लगाई जाती है।

6. समाजवाद का आधार-समाजवाद वह आर्थिक प्रणाली है, जिसमें देश की सरकार आय तथा धन का समान विभाजन करना चाहती है, जबकि अमीर लोगों के पास अधिक धन होता है तो उन पर अधिक कर लगाया जाता है, जिससे समाजवाद आर्थिक प्रणाली जन्म लेती है। देश में साधनों का समान विभाजन होने के कारण प्रत्येक मनुष्य को लाभ प्राप्त होता है।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 4 उपभोगी का सन्तुलन

प्रश्न 2.
उपभोगी के सन्तुलन से क्या अभिप्राय है ?.एक वस्तु की स्थिति में उपभोगी सन्तुलन कैसे प्राप्त करता है ? (What is Consumer’s Equilibrium ? How does a consumer reach state of equilibrium in case of one commodity and two commodities ?)
उत्तर-
उपभोगी का सन्तुलन (Consumer’s Equilibrium)-उपभोगी का सन्तुलन उस स्थिति को कहा जाता है, जब एक उपभोगी अपनी आय तथा वस्तुओं की कीमतों अनुसार, अपना व्यय इस ढंग से करता है, जिससे उसको प्राप्त होने वाली सन्तुष्टि अधिक-से-अधिक होती है तथा इसमें वह कोई परिवर्तन नहीं करना चाहता, जब तक उपभोगी की आय, वस्तुओं की कीमतों, देश में फैशन, रीति-रिवाज इत्यादि में कोई परिवर्तन नहीं होता।

मान्यताएं (Assumptions) –

  1. विचारशील उपभोगी (Rational Consumer)-उपभोगी विचारशील है तथा अपनी आय से अधिक-सेअधिक सन्तुष्टि प्राप्त करना चाहता है।
  2. संख्यावाचक उपयोगिता (Cardinal Utility) -उपयोगिता का माप संख्यावाचक संख्याओं 1, 2, 3, 4 इत्यादि रूप में किया जा सकता है, जिनको युटिलज़ (Utils) कहा जाता है।
  3. मुद्रा का सीमान्त उपयोगिता स्थिर रहता है (Constant M.U. of money) – जब उपभोगी अपनी आय को व्यय करता है तो मुद्रा के सीमान्त उपयोगिता में कोई परिवर्तन नहीं होता।
  4. उपयोगिता स्वतन्त्र होती है (Utility is Independent)-वस्तु की उपयोगिता स्वतन्त्र होती है तथा अन्य वस्तुओं की उपयोगिता का इस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
  5. अन्य बातें समान रहती हैं (Other things being equal) – देश में फैशन, रीति-रिवाज, आदतें, दूसरी वस्तुओं की कीमतें स्थिर रहती हैं।

एक वस्तु की स्थिति में उपभोगी का सन्तुलन (Consumer’s Equilibrium in case of one Commodity)-मान लो एक उपभोगी ऐसी वस्तु की खरीद करता है, जिसका इस तरह से प्रयोग किया जा सकता है जब उपभोगी ऐसी वस्तु का उपभोग करता है तो घटते सीमान्त उपयोगिता का नियम (Law of Diminishing Marginal Utility) लागू होता है। इस नियम अनुसार जब एक उपभोगी एक वस्तु का निरन्तर उपभोग करता है तो अधिक उपभोग करने से प्राप्त होने वाली सीमान्त उपयोगिता घटती जाती है।

इसलिए विचारशील मनुष्य ऐसी वस्तु का उपभोग उस सीमा तक करेगा, जहां कि उस वस्तु की अन्तिम इकाई से प्राप्त सीमान्त उपयोगिता तथा उस इकाई के लिए दी जाने वाली कीमत के रूप में मुद्रा की उपयोगिता एक-दूसरे के समान हों अर्थात् उपभोगी का सन्तुलन निम्नलिखित स्थिति में होगा –
\(\frac{\mathrm{MU}_{x}}{\mathrm{MU}_{m}}=\mathrm{P}_{x}\)
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 4 उपभोगी का सन्तुलन 8
इसको सूची-पत्र द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है –
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 4 उपभोगी का सन्तुलन 9
मान लो X वस्तु की कीमत 1 रुपया प्रति वस्तु दी हुई है। मुद्रा ₹ 1 की सीमान्त उपभोक्ता 10 युटिल के समान है (मुद्रा की सीमान्त उपभोक्ता का कोई विशेष मापदण्ड नहीं होता। यह तो लोगों की वस्तु सम्बन्धी पसन्द पर निर्भर करती है, जो स्थिर रहती है।) उपभोगी चार इकाइयों की खरीद करता है तो वस्तु की सीमान्त उपयोगिता तथा मुद्रा कीमत की सीमान्त उपयोगिता एक-दूसरे के समान है। इसको उपभोगी का सन्तुलन कहा जाता है।

रेखाचित्र 4 में दिखाया है कि जब उपभोगी X वस्तु की अधिक इकाइयों का उपभोग करता है तो वस्तु से प्राप्त सीमान्त उपयोगिता (M.U.) घटती जाती है। ₹ 1 वस्तु की कीमत समान रहती है। एक रुपए की सीमान्त उपयोगिता 10 युटिल मानी गई है। सन्तुलन E बिन्दु पर स्थापित होगा, जिसको सन्तुलन का बिन्दु कहा जाता है।
उपभोगी का सन्तुलन = वस्तु से प्राप्त उपयोगिता = वस्तु की कीमत के रूप में उपयोगिता का त्याग।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 4 उपभोगी का सन्तुलन 10

V. संख्यात्मक प्रश्न (Numericals)

प्रश्न 1.
एक मनुष्य A की कुल उपयोगिता अनुसूची दी गई है। सीमान्त उपयोगिता अनुसूची ज्ञात करो।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 4 उपभोगी का सन्तुलन 11
उत्तर-
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 4 उपभोगी का सन्तुलन 12

प्रश्न 2.
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 4 उपभोगी का सन्तुलन 13
उत्तर
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 4 उपभोगी का सन्तुलन 14

प्रश्न 3.
निम्नलिखित सारणी पूरी कीजिए :

प्रयोग की गई इकाइयां : 1 2 3 4
कुल उपयोगिता : 7 17 25 31
सीमान्त उपयोगिता :

उत्तर –
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 4 उपभोगी का सन्तुलन 15

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 4 उपभोगी का सन्तुलन

प्रश्न 4.
निम्नलिखित सारणी पूरी कीजिए :

प्रयोग की गई इकाइयां : 1 2 3 4 5 6 7
कुल उपयोगिता 10 25 38 48 55 60 63
सीमान्त उपयोगिता :

उत्तर –
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 4 उपभोगी का सन्तुलन 16

प्रश्न 5.
निम्नलिखित सारणी पूरी कीजिए :

प्रयोग की गई इकाइयां : 1 2 3 4 5 6 7
कुल उपयोगिता : 12 22 30 36 40 42 42
सीमान्त उपयोगिता :

उत्तर –
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 4 उपभोगी का सन्तुलन 17

प्रश्न 6.
निम्नलिखित सारणी को पूरा करें :

प्रयोग की गई इकाइयां : 0 1 2 3 4 5
कुल उपयोगिता : 1 15 30 42 52 61
सीमान्त उपयोगिता :

उत्तर-
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 4 उपभोगी का सन्तुलन 18

प्रश्न 7.
निम्नलिखित सारणी को पूरा करें :

उपयोग की गई इकाइयां : 0 1 2 3 4 5
कुल उपयोगिता : 0 10 25 38 48 55
सीमान्त उपयोगिता :

उत्तर –
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 4 उपभोगी का सन्तुलन 19

प्रश्न 8.
निम्नलिखित सारणी को पूरा करें :

उपयोग की गई इकाइयां : 0 1 2 3 4 5
कुल उपयोगिता : 0 20 35 47 57 65
सीमान्त उपयोगिता :

उत्तर-
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 4 उपभोगी का सन्तुलन 20

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 4 उपभोगी का सन्तुलन

प्रश्न 9.
नीचे दिये हुए आंकड़ों से सीमान्त उपयोगिता मालूम करें :

उपभोग की गई इकाइयां: 1 2 3 4 5
कुल उपयोगिता : 10 25 38 48 55

उत्तर-
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 4 उपभोगी का सन्तुलन 21

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 3 अर्थव्यवस्था की केन्द्रीय समस्याएँ

Punjab State Board PSEB 11th Class Economics Book Solutions Chapter 3 अर्थव्यवस्था की केन्द्रीय समस्याएँ Textbook Exercise Questions, and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Economics Chapter 3 अर्थव्यवस्था की केन्द्रीय समस्याएँ

PSEB 11th Class Economics अर्थव्यवस्था की केन्द्रीय समस्याएँ Textbook Questions and Answers

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

प्रश्न 1.
आर्थिक समस्या से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर–
साधन सीमित होने के कारण, दुर्लभता की स्थिति में चयन करना ही आर्थिक समस्या है।

प्रश्न 2.
सभी आर्थिक समस्याओं की जननी क्या है ?
उत्तर-
दुर्लभता।

प्रश्न 3.
आर्थिक समस्या क्यों उत्पन्न होती है ?
अथवा
चयन की समस्या क्यों उत्पन्न होती है ?
उत्तर-
आवश्यकताएँ असीमित हैं और साधन सीमित होने के कारण आर्थिक समस्या (चयन की समस्या) उत्पन्न होती है।

प्रश्न 4.
दुर्लभता से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
दुर्लभता वह स्थिति है जिसमें साधनों की माँग, साधनों की पूर्ति से अधिक होती है।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 3 अर्थव्यवस्था की केन्द्रीय समस्याएँ

प्रश्न 5.
चुनाव से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
चुनाव से अभिप्राय है विभिन्न विकल्पों में से चयन की प्रक्रिया।

प्रश्न 6.
आर्थिक क्रिया से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
आर्थिक क्रिया से अभिप्राय उस क्रिया से है जिसमें दुर्लभ साधनों के प्रयोग के लिए कीमत देनी पड़ती है।

प्रश्न 7.
दुर्लभता के कारण कौन-सी मूल समस्या उत्पन्न होती है ?
उत्तर-
चयन की समस्या।

प्रश्न 8.
साधनों के आर्थिक प्रयोग से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
सीमित साधनों से अधिकतम उत्पादन को साधनों का आर्थिक प्रयोग कहते हैं।

प्रश्न 9.
साधनों के आर्थिक प्रयोग की आवश्यकता क्यों होती है ?
उत्तर-
आवश्यकताओं की तुलना में साधन सीमित हैं इसलिए साधनों के आर्थिक प्रयोग की आवश्यकता होती है।

प्रश्न 10.
एक अर्थव्यवस्था की केन्द्रीय समस्याएं क्या हैं ?
उत्तर-
एक अर्थव्यवस्था की तीन केन्द्रीय समस्याएं हैं-

  • किन वस्तुओं तथा सेवाओं का उत्पादन किया जाए ?
  • उत्पादन किस प्रकार किया जाए ?
  • उत्पादन किसके लिए किया जाए ?

प्रश्न 11.
एक अर्थव्यवस्था में केन्द्रीय समस्याएँ क्यों उत्पन्न होती हैं ?
उत्तर-
असीमित आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए सीमित साधन हैं, जिनके वैकल्पिक प्रयोग हो सकते हैं, जिस कारण केन्द्रीय समस्याएँ उत्पन्न होती हैं।

प्रश्न 12.
एक अर्थव्यवस्था की किन्हीं दो समस्याओं का नाम लिखें।
उत्तर-

  • किन वस्तुओं तथा सेवाओं का उत्पादन किया जाए
  • उत्पादन किस प्रकार किया जाए, आर्थिक समस्याएँ हैं।

प्रश्न 13.
सभी आर्थिक समस्याओं के उत्पन्न होने का मूल कारण दुर्लभता है।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 14.
आर्थिक समस्याओं के विश्लेषण को सबसे पहले प्रो. सेम्यूलसन अर्थशास्त्री ने स्पष्ट किया।
उत्तर-
सही।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 3 अर्थव्यवस्था की केन्द्रीय समस्याएँ

प्रश्न 15.
(i) क्या उत्पादन किया जाए ?
(ii) कैसे उत्पादन किया जाए ?
(iii) किसी अर्थव्यवस्था की दो …….. समस्याएँ हैं।
उत्तर-
केंद्रीय।

प्रश्न 16.
आर्थिक समस्याओं की जननी कौन है ?
(a) चुनाव
(b) दुर्लभता
(c) असीमित आवश्यकताएँ
(d) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(b) दुर्लभता।

प्रश्न 17.
दुर्लभता एक ऐसी स्थिति है जब साधनों की पूर्ति ……. हो।
(a) माँग के बराबर
(b) माँग से अधिक
(c) माँग से कम
(d) कोई भी नहीं।
उत्तर-
(c) माँग से कम।।

II. अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
आर्थिक समस्या से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
आर्थिक समस्या से अभिप्राय मनुष्य की असीमित आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए सीमित होते हैं। इन साधनों का प्रयोग विभिन्न ढंगों से किया जाता है। इस प्रकार चयन की समस्या उत्पन्न होती है। चयन की समस्या को आर्थिक समस्या कहा जाता है। लैफ्टविच के अनुसार, “आर्थिक समस्या का सम्बन्ध मनुष्य की वैकल्पिक आवश्यकताओं के लिए सीमित साधनों का विभाजन तथा इन साधनों का अधिक-से-अधिक आवश्यकताओं को सन्तुष्ट करने के लिए प्रयोग करना होता है।”

प्रश्न 2.
आर्थिक समस्या उत्पन्न होने के कारण बताओ।
अथवा
आर्थिक समस्याएं उत्पन्न होने के कारण कौन-कौन से हैं ? स्पष्ट करो।
उत्तर-
रॉबिन्ज़ के अनुसार, “आर्थिक समस्याओं के दो आधारपूर्वक कारण, असीमित आवश्यकताएं तथा साधनों की दुर्लभता है।”
1. असीमित आवश्यकताएँ-साधारण तौर पर मनुष्य की आवश्यकताएँ असीमित हैं। जब एक आवश्यकता पूरी हो जाती है तो दूसरी आवश्यकता उसका स्थान ले लेती है। बचपन से बुढ़ापे तक सुबह से शाम तक आवश्यकताओं का कभी अन्त नहीं होता।

2. साधनों की दुर्लभता-यदि साधन दुर्लभ न होते तो शायद कोई आर्थिक समस्या उत्पन्न न होती। इसलिए साधनों की मांग साधनों की पूर्ति से अधिक है। आर्थिक समस्याएँ इन दो कारणों से उत्पन्न होती है।

प्रश्न 3.
एक अर्थव्यवस्था की केन्द्रीय समस्याएँ लिखो।
उत्तर-
एक अर्थव्यवस्था की मुख्य केन्द्रीय समस्याएँ निम्नलिखित हैं –

  1. किन वस्तुओं का उत्पादन किया जाए तथा कितनी मात्रा में किया जाए।
  2. उत्पादन कैसे किया जाए।
  3. उत्पादन किन लोगों के लिए किया जाए।
  4. साधनों का पूर्ण प्रयोग कैसे किया जाए।
  5. आर्थिक उन्नति कैसे प्राप्त की जाए।

III. लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
दुर्लभता तथा चयन साथ-साथ कैसे चलते हैं ? स्पष्ट करो।
उत्तर-
मानवीय आवश्यकताएं असीमित हैं। आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए साधन सीमित होते हैं। इन साधनों को दुर्लभ इसलिए कहा जाता है, क्योंकि इनकी पूर्ति से मांग अधिक होती है। प्रत्येक साधन अथवा वस्तु के वैकल्पिक प्रयोग किए जा सकते हैं। इसलिए प्रत्येक मनुष्य तथा सारे समाज को चयन करना पड़ता है कि सीमित साधनों से कौन-सी आवश्यकताओं को पूरा किया जाए। उदाहरणस्वरूप भूमि पर अनाज की आवश्यकताएं पूरी करने के लिए गेहूँ की पैदावार की जा सकती है अथवा रहने के लिए मकान बनाए जा सकते हैं अथवा भूमि पर फैक्टरी लगाकर उत्पादन किया जा सकता है। इसलिए चयन की समस्या उत्पन्न होती है। यदि साधन सीमित न होते तो चयन की कोई समस्या उत्पन्न न होती। इसीलिए दुर्लभता तथा चयन साथ-साथ चलते हैं।

प्रश्न 2.
“अर्थशास्त्र का सम्बन्ध दुर्लभित कारण चयन की समस्या से है।” स्पष्ट करो।
उत्तर-
अर्थशास्त्र का सम्बन्ध मुख्य तौर पर कमी (Scarcity) से है। कमी का अर्थ है वस्तुओं तथा साधनों की प्राप्ति से इनकी .मांग अधिक है। यदि विश्व में वस्तुओं तथा साधनों की कमी न होती तो मनुष्य अपनी असीमित आवश्यकताओं की पूर्ति सरलता से कर लेता तथा चयन की समस्या का सामना न करना पड़ता। इस प्रकार विश्व में कोई समस्या न होती तथा अर्थशास्त्र के अभाव में आता। परन्तु साधनों की कमी है। इसलिए चयन की समस्या उत्पन्न होती है। अर्थशास्त्र में हम पढ़ते हैं कि सीमित साधनों से अधिक-से-अधिक आवश्यकताओं की पूर्ति कैसे की जा सकती है।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 3 अर्थव्यवस्था की केन्द्रीय समस्याएँ

प्रश्न 3.
एक अर्थव्यवस्था की केन्द्रीय समस्याएँ क्या हैं तथा यह कैसे उत्पन्न होती हैं ?
उत्तर-
एक अर्थव्यवस्था की केन्द्रीय समस्याएँ (Central Problems of an Economy)-

  1. क्या उत्पादन किया जाए ? विभिन्न वस्तुओं में से कौन-सी वस्तुओं का उत्पादन किया जाए। इस कारण चयन की समस्या उत्पन्न होती है।
  2. उत्पादन कैसे किया जाए ? उत्पादन श्रम सघन अथवा पूंजी सघन तकनीक से किया जाए। इस कारण तकनीक का चयन करना पड़ता है।
  3. किन लोगों के लिए उत्पादन किया जाए ? उत्पादन किस प्रकार किया जाए ताकि उत्पादन का वितरण उचित ढंग से हो सके।

समस्याएँ क्यों उत्पन्न होती हैं ? (Why do they arise ?)

  • मानवीय आवश्यकताएं असीमित हैं; परन्तु इन आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए साधन कम हैं।
  • साधनों के विकल्प प्रयोग किए जा सकते हैं। इसलिए केन्द्रीय समस्याएं उत्पन्न होती हैं।

प्रश्न 4.
किन वस्तुओं का उत्पादन किया जाए? केन्द्रीय समस्या को उदाहरण द्वारा अथवा उत्पादन सम्भावना वक्र द्वारा स्पष्ट करो।
उत्तर-
प्रत्येक अर्थव्यवस्था में साधनों की दुर्लभता पाई जाती है। प्रत्येक वस्तु का उत्पादन असीमित मात्रा में नहीं किया जा सकता। इसलिए यह समस्या उत्पन्न होती है कि कौन-सी वस्तुओं का उत्पादन किया जाए तथा कौन-सी वस्तुओं का उत्पादन न किया जाए। उदाहरण-एक देश में 10 करोड़ रुपए हैं; जिनसे गेहूँ तथा टेलीविज़न का उत्पादन करना है। दोनों वस्तुओं के उत्पादन की सम्भावनाएँ इस प्रकार हैं|
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 3 अर्थव्यवस्था की केन्द्रीय समस्याएँ 1

तालिका तथा रेखाचित्र अनुसार यदि सभी साधनों का प्रयोग गेहूँ की पैदावार के लिए किया जाता है तो 3 टन गेहूँ उत्पन्न की जा सकती है। दूसरी ओर यदि सभी साधनों का प्रयोग टेलीविज़न बनाने के लिए किया जाता है तो 6 टेलीविज़न बनाए जा सकते हैं। A, D रेखा को उत्पादन सम्भावना वक्र कहा जाता है, जो बताती है कि गेहूँ तथा टेलीविज़न का कितना उत्पादन किया जा सकता है। बिन्दु B पर 5 टेलीविज़न तथा एक टन गेहूँ, C बिन्दु पर 3 टेलीविज़न तथा 2 टन गेहूँ की पैदावार हो सकती है। इसलिए अर्थव्यवस्था की प्रथम समस्या यह है कि किस वस्तु का उत्पादन किया जाए तथा कितनी मात्रा में
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 3 अर्थव्यवस्था की केन्द्रीय समस्याएँ 2
उत्पादन किया जाए।

प्रश्न 5.
उत्पादन किन लोगों के लिए किया जाए? केन्द्रीय समस्या को उदाहरण द्वारा स्पष्ट करो।
उत्तर-
उत्पादन किन लोगों के लिए किया जाए ? यह समस्या वस्तुओं तथा सेवाओं के चयन से सम्बन्धित है। यदि एक देश निर्धन, जैसे कि भारत तो ऐसे देश में रोटी, कपड़ा तथा मकान से सम्बन्धित वस्तुओं का उत्पादन करना चाहिए। यह लोग अधिक कीमत वाली वस्तुएँ नहीं खरीद सकते। अमेरिका तथा इंग्लैंड जैसे देशों में लोग अमीर हैं। इसलिए कारें, फ्रिज, टेलीविज़न इत्यादि वस्तुओं का उत्पादन करना चाहिए। इसलिए किसी देश में अमीर अथवा निर्धन किस वर्ग के लोग अधिक हैं इसको ध्यान में रखकर वस्तुओं तथा सेवाओं से सम्बन्धित चयन की समस्या का हल किया जा सकता है।

IV. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
एक अर्थव्यवस्था की केन्द्रीय समस्याओं को स्पष्ट करो। यह क्यों उत्पन्न होती हैं ? (Explain the Central Problems of an Economy. Why do they arise ?)
उत्तर-
अर्थव्यवस्था की केन्द्रीय समस्याएँ (Central Problems of an Economy) अर्थव्यवस्था की केन्द्रीय समस्याओं को पाँच भागों में विभाजित कर स्पष्ट करते हैं-

  1. किन वस्तुओं का उत्पादन किया जाए तथा कितनी मात्रा में उत्पादन किया जाए?
  2. कैसे उत्पादन किया जाए?
  3. उत्पादन किस लिए किया जाए?
  4. साधनों का पूर्ण प्रयोग कैसे हो?
  5. आर्थिक उन्नति कैसे प्राप्त की जाए?

अर्थव्यवस्था की केन्द्रीय समस्याओं की विस्तारपूर्वक व्याख्या इस प्रकार की जा सकती है-
1. किन वस्तुओं का उत्पादन किया जाए तथा कितनी मात्रा में उत्पादन किया जाए? (What to produce and how much to Produce ?)-प्रत्येक अर्थव्यवस्था में लोगों की आवश्यकताएं असीमित होती हैं परन्तु इन आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए साधन सीमित होते हैं। यह चयन की समस्या उत्पन्न होती है। यह निर्णय किया जाता है कि किन वस्तुओं तथा सेवाओं का उत्पादन किया जाए तथा कितनी मात्रा में उत्पादन किया जाए।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 3 अर्थव्यवस्था की केन्द्रीय समस्याएँ

  • किन वस्तुओं का उत्पादन किया जाए ? प्रत्येक अर्थव्यवस्था में प्रथम समस्या यह होती है कि किन वस्तुओं तथा सेवाओं की पैदावार की जाए। देश में उपभोगी वस्तुएं (Consumers goods) जैसे कि गेहूँ, चावल, चीनी, फ्रिज, टी० वी० इत्यादि का उत्पादन किया जाए अथवा पूंजीगत वस्तुएँ (Capital goods) जैसे कि मशीनों, औज़ारों, इमारतों इत्यादि का उत्पादन किया जाए।
  • कितनी मात्रा में उत्पादन किया जाए? वस्तुएँ कितनी-कितनी मात्रा में उत्पन्न की जाएं? क्योंकि साधनों की कमी के कारण सभी वस्तुओं का उत्पादन आवश्यकताओं के अनुसार नहीं किया जा सकता। इसलिए अनिवार्य वस्तुओं, आरामदायक वस्तुओं तथा विलास वस्तुओं की मात्रा सम्बन्धी निर्णय किया जाता है।

2. कैसे उत्पादन किया जाए ? (How to Produce ?)-अर्थव्यवस्था की दूसरी महत्त्वपूर्ण समस्या यह है कि उत्पादकता कैसे की जाए? पैदावार के ढंग निश्चित करते समय इस बात को ध्यान में रखा जाता है कि उत्पादकता करने से कुल लागत कम-से-कम हो तथा कुल उत्पादन अधिक-से-अधिक हो। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए यह निर्णय लिया गया है कि तकनीकी क्या होनी चाहिए अर्थात् श्रम प्रधान तकनीक (Labour Intensive Technique) का प्रयोग किया जाए, जिसमें मजदूरों की मात्रा पूंजी से अधिक लगाई जाती है अथवा पूंजी प्रधान तकनीक (Capital Intensive Technique) का प्रयोग किया जाए जिसमें मजदूरों से अधिक मशीनों का प्रयोग किया जाए।

3. उत्पादन किन लोगों के लिए किया जाए? (For Whom to Produce ?)-अर्थव्यवस्था की तीसरी महत्त्वपूर्ण समस्या यह है कि उत्पादन किन लोगों के लिए किया जाए? इससे अभिप्राय है कि उत्पादन की वस्तुओं का विभाजन कैसे किया जाए। इस समस्या का दो पक्षों से अध्ययन किया जाता है। प्रथम पक्ष में व्यक्तिगत वितरण (Micro Distribution) का अध्ययन करते हैं। इसमें ज्ञात होता है कि समाज के विभिन्न मनुष्य तथा परिवार जब कार्य करते हैं तो कितना मेहनताना प्राप्त होता है।

दूसरा पक्ष कार्यकारी वितरण (Functional Distribution) है। इसमें ज्ञात किया जाता है कि उत्पादन के साधनों भूमि, श्रम, पूंजी तथा उद्यमी में उत्पादन का वितरण कितना-कितना होता है। प्रो० सेम्यूलसन ने पीछे दी गई तीन समस्याओं के वितरण (Allocation of Resources) की समस्या का नाम दिया था।

4. साधनों का पूर्ण प्रयोग कैसे हो ? (How to achieve full utilization of resources ?)-एक अर्थव्यवस्था की मुख्य आर्थिक समस्या देश के सभी साधनों का पूर्ण प्रयोग है। उत्पादन के साधनों का पूर्ण प्रयोग कैसे किया जाए? यह निर्णय देश में उत्पादन के साधनों की मात्रा तथा देश में साधनों को प्रयोग सम्बन्धी शक्ति पर निर्भर करता है। इसलिए साधनों का प्रयोग इस ढंग से करना चाहिए ताकि वर्तमान में पूर्ण रोज़गार (Full Employment) की स्थिति को प्राप्त किया जा सके।

5. आर्थिक विकास कैसे प्राप्त किया जाए ? (How to achieve Economic Growth ?)-आर्थिक समस्याओं में एक समस्या आर्थिक विकास की समस्या है। आर्थिक विकास का अर्थ देश में प्रति व्यक्ति वास्तव आय में वृद्धि से होता है। आर्थिक विकास प्राप्त करने के लिए यह निर्णय करना पड़ता है कि देश में पूंजी निर्माण की दर में वृद्धि कैसे की जाए। पूंजी निर्माण का अर्थ देश में नई फैक्टरियाँ, मशीनें, औज़ारों तथा मानवीय पूंजी में वृद्धि करने से होता है।

प्रश्न 2.
उत्पादन सम्भावना वक्र से क्या अभिप्राय है? उत्पादन सम्भावना वक्र को तालिका तथा रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट करो। उत्पादन सम्भावना वक्र क्यों खिसक जाती है ?
(What is meant by Production Curve? Show Production Possibility Curve with the help of a schedule and diagram. Why does the Production Possibility Curve shift?)
उत्तर-
असीमित आवश्यकताओं तथा सीमित साधनों के कारण कमी की आर्थिक समस्या उत्पन्न होती है। वस्तुओं तथा सेवाओं की कमी के कारण हम सभी आवश्यकताओं को पूरा नहीं कर सकते। इसलिए वस्तुओं में चयन करना पड़ता है। इसलिए कमी तथा चयन की समस्या को उत्पादन सम्भावना वक्र द्वारा भी स्पष्ट किया जा सकता है।

उत्पादन सम्भावना वक्र का अर्थ (Meaning of Production Possibility Curve)-उत्पादन सम्भावना वक्र वह वक्र होता है, जो स्पष्ट करता है कि अर्थव्यवस्था में भूमि, श्रम, पूंजी की मात्रा तथा वर्तमान तकनीक से कितना उत्पादन किया जा सकता है। “उत्पादन सम्भावना वक्र की परिभाषा इस प्रकार की जा सकती है। उत्पादन सम्भावना वक्र दो वस्तुओं के उन संयोगों को दर्शाता है जोकि एक अर्थव्यवस्था में साधनों के पूर्ण प्रयोग से उत्पादन किए जा सकते हैं तथा तकनीक समान रहती है।” (“A Production Possibility Curve shows all the possible combinations of two different goods that can be produced by an economy when all its natural resources are fully employed and technique remains constant.”’)

उत्पादन सम्भावना वक्र का निर्माण (Formation of Production Possibility Curve)-उत्पादन सम्भावना वक्र के निर्माण के लिए एक उदाहरण लेते हैं। एक अर्थव्यवस्था में उपभोगी वस्तु (गेहूँ) तथा पूंजीगत वस्तु (टेलीविज़न) का उत्पादन किया जाता है। देश के साधनों के प्रयोग से इन दो वस्तुओं की उत्पादकता को उत्पादन निम्न तालिका द्वारा स्पष्ट करते हैं-
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 3 अर्थव्यवस्था की केन्द्रीय समस्याएँ 3
तालिका में जब गेहूँ की पैदावार में A, B, C, D संयोगों में वृद्धि की जाती है तो गेहूँ की उत्पादकता 0, 1, 2, 3 टन दिखाई गई है। परन्तु इससे टेलीविज़न की मात्रा 6, 5, 3, 0 कम हो जाती है। इन संयोगों को रेखाचित्र 2 द्वारा दिखाया जा सकता है। रेखाचित्र 2 से ज्ञात होता है कि अर्थव्यवस्था में 6 टेलीविज़न बनाए जाएं तथा गेहूँ (0) टन उत्पन्न की जाए; जिसको बिन्दु A द्वारा दिखाया गया है। यदि गेहूँ 1 टन उत्पन्न की जाती है तो टेलीविज़न 5 बनाए जा सकते हैं जोकि B बिन्दु द्वारा पता चलता है।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 3 अर्थव्यवस्था की केन्द्रीय समस्याएँ

C बिन्दु पर 3 टेलीविज़न तथा 2 टन गेहूँ का उत्पादन होता है। D बिन्दु पर गेहूँ तीन टन तथा 0 टेलीविज़न का उत्पादन होता है। इस प्रकार A, B, C, D बिन्दुओं को मिलाने से उत्पादन सम्भावना वक्र (Production Possibility Curve) बन जाता है। जब टेलीविज़न की जगह पर अधिक गेहूँ उत्पन्न की जाती है तो पहले एक टेलीविज़न का त्याग करके एक टन गेहूँ पैदा की जाती है। फिर 2 टेलीविज़न का त्याग करके एक टन गेहूँ उत्पन्न की जाती है। बिन्दु रेखाचित्र 2 E यह बताता है कि साधनों का उचित प्रयोग नहीं किया जाता। बिन्दु F ऐसा संयोग है, जिसको प्राप्त नहीं किया जा सकता।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 3 अर्थव्यवस्था की केन्द्रीय समस्याएँ 4

उत्पादन सम्भावना वक्र का खिसकना (Shifting of Production Possibility Curve)-उत्पादन सम्भावना वक्र ऊपर की ओर अथवा नीचे की ओर खिसक सकता है। इसके मुख्य दो कारण होते हैं-
1. साधनों में परिवर्तन (Change in Resources)-साधनों के बढ़ने के कारण उत्पादन सम्भावना वक्र ऊपर की ओर तथा साधनों की कमी के कारण उत्पादन सम्भावना वक्र नीचे की ओर खिसक जाता है। रेखाचित्र 3 में दिखाया है कि यदि आरम्भ में उत्पादन सम्भावना वक्र P1P1 है तथा साधनों में वृद्धि हो जाती है तो PPC (उत्पादन सम्भावना वक्र) खिसक कर P2P2 हो जाएगी। साधनों की कमी हो जाए तो PPC (उत्पादन सम्भावना वक्र) P2P2 खिसककर P1P1 हो जाता है।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 3 अर्थव्यवस्था की केन्द्रीय समस्याएँ 5
2. तकनीक में परिवर्तन (Change in Technique)-यदि x वस्तु तथा Y वस्तु में से किसी एक वस्तु में कुशल तकनीक का प्रयोग रेखाचित्र 3 किया जाता है तो PPC (उत्पादन सम्भावना वक्र) में परिवर्तन हो जाता है।
(A) यदि वस्तु Y की तकनीक में कुशलता उत्पन्न हो जाती है तो PPC वक्र P1P1 से बदलकर P1P2 हो जैसे – रेखाचित्र 4 भाग A में दिखाया गया है।
(B) यदि वस्तु X में कुशल तकनीक का प्रयोग किया जाता है तो उत्पादन सम्भावना वक्र P1P1 से बदल कर P1P2 बन जाता है, जैसे रेखाचित्र 4 भाग B में दिखाया गया है।
(C) यदि वस्तु X तथा वस्तु Y दोनों वस्तुओं की तकनीक में कुशलता उत्पन्न हो जाती है तो PPC का आकार रेखाचित्र 4 जैसा होगा।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 3 अर्थव्यवस्था की केन्द्रीय समस्याएँ 6

V. संरव्यात्मक प्रश्न (Numericals)

प्रश्न 1.
एक अर्थव्यवस्था दो वस्तुएं कमीज़ों तथा सैलफोन का उत्पादन करती है। सूची पत्र में उत्पादन सम्भावनाएँ दिखाई गई हैं। इन संयोगों में कमीज़ों के लिए सीमान्त अवसर लागत ज्ञात करो।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 3 अर्थव्यवस्था की केन्द्रीय समस्याएँ 7
उत्तर-
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 3 अर्थव्यवस्था की केन्द्रीय समस्याएँ 8

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 3 अर्थव्यवस्था की केन्द्रीय समस्याएँ 9

प्रश्न 2.
एक देश दो वस्तुओं गेहूँ तथा चीनी का उत्पादन करता है, उसका उत्पादन सम्भावना वक्र सूचीपत्र में दिखाया है। इसका उत्पादन सम्भावना वक्र बनाओ तथा सीमान्त अवसर लागत ज्ञात करो।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 3 अर्थव्यवस्था की केन्द्रीय समस्याएँ 10
उत्तर-
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 3 अर्थव्यवस्था की केन्द्रीय समस्याएँ 11
सीमान्त अवसर लागत का माप
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 3 अर्थव्यवस्था की केन्द्रीय समस्याएँ 12

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 2 व्यष्टि तथा समष्टि अर्थशास्त्र

Punjab State Board PSEB 11th Class Economics Book Solutions Chapter 2 व्यष्टि तथा समष्टि अर्थशास्त्र Textbook Exercise Questions, and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Economics Chapter 2 व्यष्टि तथा समष्टि अर्थशास्त्र

PSEB 11th Class Economics व्यष्टि तथा समष्टि अर्थशास्त्र Textbook Questions and Answers

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

प्रश्न 1.
अर्थशास्त्र का सम्बन्ध किससे है ?
उत्तर-
अर्थशास्त्र का सम्बन्ध दुर्लभता की स्थिति में चुनाव से होता है।

प्रश्न 2.
चुनाव की समस्या क्यों उत्पन्न होती है ?
उत्तर-
चुनाव की समस्या दुर्लभता के कारण उत्पन्न होती है।

प्रश्न 3.
दुर्लभता से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
दुर्लभता वह स्थिति है जिसमें मानवीय आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए पर्याप्त साधन नहीं होते।

प्रश्न 4.
पदार्थों की माँग जब पूर्ति से अधिक होती है तो इस स्थिति को क्या कहा जाता है ?
अथवा
सभी आर्थिक समस्याओं की जननी क्या है ?
उत्तर-
दुर्लभता।

प्रश्न 5.
व्यष्टि अर्थशास्त्र से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
व्यष्टि अर्थशास्त्र एक गृहस्थी, एक फ़र्म तथा एक उद्योग से सम्बन्धित आर्थिक समस्याओं का अध्ययन करता है।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 2 व्यष्टि तथा समष्टि अर्थशास्त्र

प्रश्न 6.
समष्टि अर्थशास्त्र से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
समष्टि अर्थशास्त्र सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था से सम्बन्धित आर्थिक समस्याओं का अध्ययन करता है।

प्रश्न 7.
आर्थिक समस्या से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
सीमित साधनों के वैकल्पिक प्रयोगों में से चुनाव करने की समस्या को आर्थिक समस्या कहते हैं।

प्रश्न 8.
एक गृहस्थी की आर्थिक समस्याओं के अध्ययन को कौन-सा अर्थशास्त्र कहा जाता है ?
उत्तर-
व्यष्टि अर्थशास्त्र।

प्रश्न 9.
सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था के स्तर पर चुनाव अथवा साधन के बंटवारे की समस्याओं का अध्ययन किस अर्थशास्त्र में किया जाता है ?
उत्तर-
समष्टि अर्थ शास्त्र।

प्रश्न 10.
अर्थशास्त्र से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
अर्थशास्त्र मानवीय व्यवहार का विज्ञान है, जिसका सम्बन्ध दुर्लभता के कारण, चयन की समस्या से होता है, जिस द्वारा व्यक्तिगत तथा सामाजिक कल्याण को अधिकतम किया जा सके।

प्रश्न 11.
दुर्लभता तथा चयन साथ-साथ चलते हैं। कैसे ?
उत्तर-
साधनों की दुर्लभता के वैकल्पिक प्रयोगों के कारण प्रत्येक व्यक्ति तथा समाज को चयन करना पड़ता है, जिस द्वारा अधिकतम सन्तुष्टि प्राप्त की जा सके, इसलिए दुर्लभता तथा चयन साथ-साथ चलते हैं।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 2 व्यष्टि तथा समष्टि अर्थशास्त्र

प्रश्न 12.
क्या अर्थशास्त्र विज्ञान है ?
उत्तर-
अर्थशास्त्र एक सामाजिक विज्ञान है।

प्रश्न 13.
क्या अर्थशास्त्र विज्ञान है या कला है ?
उत्तर-
दोनों है।

प्रश्न 14.
आधुनिक अर्थशास्त्र के जनक कौन हैं ?
उत्तर-
आधुनिक अर्थशास्त्र के जनक प्रो० एडम स्मिथ हैं।

प्रश्न 15.
व्यष्टि अर्थशास्त्र का दूसरा नाम क्या है ?
उत्तर-
कीमत सिद्धान्त।

प्रश्न 16.
समष्टि अर्थशास्त्र को और क्या कहा जाता है ?
उत्तर-
रोज़गार सिद्धान्त।

प्रश्न 17.
पूंजीवाद से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
पूंजीवाद वह आर्थिक प्रणाली है जिसमें उत्पादन के साधन निजी लोगों के हाथ में होते हैं और उत्पादन लाभ प्राप्ति के लिए किया जाता है।

प्रश्न 18.
समाजवाद अर्थव्यवस्था से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
समाजवाद में उत्पादन के साधन सरकार के हाथ में होते हैं और उत्पादन सामाजिक भलाई के उद्देश्य से किया जाता है।

प्रश्न 19.
समष्टि आर्थिक चरों की उदाहरण दीजिए।
उत्तर-
सकल उत्पादन, कुल निवेश, समग्र रोज़गार आदि समष्टि अर्थशास्त्र के चर हैं।

प्रश्न 20.
व्यष्टि अर्थशास्त्र और समष्टि अर्थशास्त्र में भेद स्पष्ट करें।
उत्तर-
व्यष्टि अर्थशास्त्र, व्यक्तिगत इकाइयों का अध्ययन करता है और समष्टि अर्थशास्त्र सामूहिक इकाइयों का अध्ययन करता है।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 2 व्यष्टि तथा समष्टि अर्थशास्त्र

प्रश्न 21.
सूती कपड़ा उद्योग का अध्ययन, समष्टि आर्थिक अध्ययन है या व्यष्टि आर्थिक अध्ययन है ?
उत्तर-
सूती कपड़ा उद्योग का अध्ययन व्यष्टि आर्थिक अध्ययन है।

प्रश्न 22.
समष्टि अर्थशास्त्र का चिन्तन कहां केन्द्रित रहता है ?
उत्तर-
समष्टि अर्थशास्त्र का चिन्तन, आय तथा रोजगार निर्धारण पर केंन्द्रित रहता है।

प्रश्न 23.
समष्टि स्तरीय आर्थिक चिन्तन में अर्थशास्त्रियों की रुचि वास्तव में कब जागृत हुई है ?
उत्तर-
समष्टि स्तरीय आर्थिक चिन्तन में अर्थशास्त्रियों की रुचि वास्तव में केन्जीय क्रान्ति (Keynesian Revolution) के बाद ही जागृत हुई है।

प्रश्न 24.
आर्थिक सिद्धान्त का कौन-सा भाग राष्ट्रीय आय तथा रोजगार की समस्याओं से सम्बन्धित है ?
उत्तर-
समष्टि अर्थशास्त्र।

प्रश्न 25.
जे० एम० केन्ज़ की महत्त्वपूर्ण पुस्तक का क्या नाम है ? वह कौन-से वर्ष में प्रकाशित हुई ?
उत्तर-
“जनरल थ्यौरी ऑफ एंपलायमैंट इंटरैस्ट एंड मनी” जोकि 1936 में प्रकाशित हुई।

प्रश्न 26.
विश्व में पहली महामंदी (Great Depression) कब आई थी ?
उत्तर-
पहली महामंदी 1929-30 में आई थी।

प्रश्न 27.
मानवीय आवश्यकताएँ ………… हैं।
(a) सीमित
(b) असीमित
(c) दुर्लभ
(d) कोई भी नहीं।
उत्तर-
(b) असीमित।

प्रश्न 28.
अर्थशास्त्र शब्द किस भाषा से लिया गया है ?
(a) फ्रेंच
(b) लैटिन
(c) ग्रीक
(d) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(c) ग्रीक।

प्रश्न 29.
अर्थशास्त्र के पितामह कौन है ?
(a) मार्शल
(b) रोबिन्ज़
(c) एडम स्मिथ
(d) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(c) एडम स्मिथ।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 2 व्यष्टि तथा समष्टि अर्थशास्त्र

प्रश्न 30.
अर्थशास्त्र प्रबन्ध का विज्ञान है ?
(a) सीमित साधन
(b) असीमित आवश्यकताओं
(c) विकल्प प्रयोगों
(d) ऊपर दिये हुए सभी का।
उत्तर-
(d) ऊपर दिये हुए सभी का।

प्रश्न 31.
अर्थशास्त्र का विषय ……………. है।
(a) विज्ञान
(b) कला
(c) विज्ञान और कला
(d) न विज्ञान और न कला।
उत्तर-
(c) विज्ञान और कला।

प्रश्न 32.
व्यष्टि अर्थशास्त्र को …………. भी कहा जाता है।
(a) कीमत सिद्धान्त
(b) रोज़गार सिद्धान्त
(c) आय सिद्धान्त
(d) कृषि सिद्धान्त।
उत्तर-
(a) कीमत सिद्धान्त।।

प्रश्न 33.
समष्टि अर्थशास्त्र को …….. भी कहा जाता है।
(a) कीमत सिद्धान्त
(b) आर्थिक विकास सिद्धान्त
(c) आय तथा रोजगार सिद्धान्त
(d) उपरोक्त में से कोई नहीं।
उत्तर-
(c) आय तथा रोजगार सिद्धान्त।

प्रश्न 34.
एक व्यक्ति की आर्थिक समस्याओं का अध्ययन करने को ………. कहा जाता है ।
(a) पारिवारिक अर्थशास्त्र
(b) समष्टि अर्थशास्त्र
(c) व्यष्टि अर्थशास्त्र
(d) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(c) व्यष्टि अर्थशास्त्र।

प्रश्न 35.
सामूहिक अर्थव्यवस्था से सम्बन्धित समस्याओं के अध्ययन को ………. अर्थशास्त्र कहा जाता है।
(a) व्यष्टि
(b) समष्टि
(c) अन्तर्राष्ट्रीय
(d) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(b) समष्टि।

प्रश्न 36.
दुर्लभता से अभिप्राय उस अवस्था से होता है जब साधनों की पूर्ति माँग से कम होती है।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 37.
समष्टि अर्थशास्त्र में एक व्यक्ति की समस्याओं का अध्ययन किया जाता है।
उत्तर-
ग़लत।

प्रश्न 38.
अर्थशास्त्र की वह शाखा जिसका सम्बन्ध राष्ट्रीय आय तथा रोजगार से होता है उसको समष्टि अर्थशास्त्र कहते हैं?
उत्तर-
सही।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 2 व्यष्टि तथा समष्टि अर्थशास्त्र

प्रश्न 39. अर्थशास्त्र केवल शुद्ध विज्ञान है ?
उत्तर-
ग़लत।

प्रश्न 40.
व्यष्टि अर्थशास्त्र तथा समष्टि अर्थशास्त्र का नाम रैगनर फरिस्च ने दिया।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 41.
जिस क्रिया में मौद्रिक प्रवाह तथा वास्तविक प्रवाह दोनों होते हैं उसको आर्थिक क्रिया कहते
उत्तर-
सही।

प्रश्न 42.
दुर्लभता और चुनाव साथ-साथ चलते हैं; कैसे ?
उत्तर-
साधनों की दुर्लभता के वैकल्पिक प्रयोगों के कारण दुर्लभता और चुनाव साथ-साथ चलते हैं।

प्रश्न 43.
ग़रीबी तथा दुर्लभता में क्या अन्तर है ?
उत्तर-
ग़रीबी का अर्थ है बहुत कम वस्तुओं का होना, दुर्लभता का अर्थ है वस्तुओं की मात्रा की तुलना में वस्तुओं की आवश्यकताओं का अधिक होना।

प्रश्न 44.
वह क्रिया जिसका सम्बन्ध दुर्लभ साधनों का प्रयोग करके मनुष्य की इच्छाओं की सन्तुष्टि करना होता है को ……… कहते हैं।
(a) आर्थिक क्रिया
(b) अनार्थिक क्रिया
(c) सोचने की क्रिया
(d) कोई भी नहीं।
उत्तर-
(a) आर्थिक क्रिया।।

प्रश्न 45.
वह क्रिया जिसका सम्बन्ध बस्तुओं की खरीद-बेच से होता है को …….. कहते हैं।
(a) उपभोग
(b) विनिमय
(c) उत्पादन
(d) कोई भी नहीं।
उत्तर-
(b) विनिमय।

प्रश्न 46.
वह अर्थव्यवस्था जिस ऊपर सरकार का लगभग पूर्ण नियन्त्रण होता है को ……..अर्थव्यवस्था कहते हैं।
उत्तर-
समाजवादी।

प्रश्न 47.
निम्नलिखित में से कौन-सा आर्थिक प्रणाली का रूप नहीं है ?
(a) लोकतन्त्र
(b) पूंजीवाद
(c) समाजवाद
(d) मिश्रित अर्थव्यवस्था।
उत्तर-
(a) लोकतन्त्र।

प्रश्न 48.
दुर्लभता से संबंधित अर्थशास्त्र की परिभाषा किसने दी ?
उत्तर-
राबिन्ज़।

II. अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
अर्थशास्त्र का सम्बन्ध किससे है?
उत्तर-
साधारण लोगों में यह धारणा पाई जाती है कि अर्थशास्त्र का सम्बन्ध रुपये-पैसे (Money) कमाने तथा उसका प्रबन्ध करने से होता है। परन्तु यह धारणा ग़लत है। अर्थशास्त्र का सम्बन्ध दुर्लभता की स्थिति में चुनाव से होता है। (Economics is about making choice due to scarcity.)

प्रश्न 2.
व्यष्टि अथवा व्यक्तिगत अर्थशास्त्र से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
व्यष्टि अर्थशास्त्र का सम्बन्ध आर्थिक समस्या की लघु इकाइयों से होता है, जब हम आर्थिक समस्या को छोटे-छोटे भागों में विभाजित कर एक-एक भाग का अध्ययन करते हैं तो इस विधि को व्यष्टि आर्थिक विश्लेषण कहा जाता है।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 2 व्यष्टि तथा समष्टि अर्थशास्त्र

प्रश्न 3.
समष्टि अर्थशास्त्र से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
समष्टि अर्थशास्त्र में अर्थव्यवस्था तथा उसके समूहों अथवा औसतों का अध्ययन किया जाता है। समष्टि अर्थशास्त्र में राष्ट्रीय आय, रोजगार, साधारण कीमत स्तर, कुल उपभोग, कुल बचत इत्यादि सामूहिक समस्याओं का हल किया जाता है।

प्रश्न 4.
व्यष्टि तथा समष्टि अर्थशास्त्र में अन्तर बताओ।
उत्तर-
व्यष्टि अर्थशास्त्र में आर्थिक समस्याओं को छोटे-छोटे भागों में विभाजित कर एक-एक भाग का अध्ययन किया जाता है। समष्टि अर्थशास्त्र में आर्थिक समस्याओं के समुच्चयों तथा औसतों का विशेष तौर पर अध्ययन किया जाता है। अर्थशास्त्र के अध्ययन की दो विधियां हैं।

प्रश्न 5.
अर्थशास्त्र की परिभाषा दीजिए।
उत्तर-
अर्थशास्त्र मानवीय व्यवहार का विज्ञान है, जिसका सम्बन्ध कमी के कारण चयन की समस्या से होता है ताकि व्यक्तिगत तथा सामाजिक कल्याण को अधिकतम किया जा सके।

प्रश्न 6.
आर्थिक क्रिया से क्या अभिप्राय है ? आर्थिक क्रियाओं का वर्णन करें।
उत्तर-
जिस क्रिया का सम्बन्ध मानवीय आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए दुर्लभ साधनों के उपयोग से होता है उसको आर्थिक क्रिया कहते हैं। इस क्रिया में मुद्रा प्रवाह तथा सेवाओं का प्रवाह होता है। अर्थशास्त्र की मुख्य आर्थिक क्रियाएं हैं-

  1. उत्पादन (Production)
  2. उपभोग (Consumption)
  3. निवेश (Investment)
  4. विनिमय (Exchange)
  5. वितरण (Distribution)
  6. वित्त (Finance).

प्रश्न 7.
दुर्लभता और चुनाव अर्थशास्त्र के सार हैं। स्पष्ट करें।
अथवा
चुनाव की समस्या क्यों उत्पन्न होती है ?
उत्तर-
दुर्लभता के कारण चुनाव होता है। चुनाव से अभिप्राय है निर्णय लेने की प्रक्रिया जिसका सम्बन्ध सीमित साधनों का इस प्रकार से प्रयोग होता है जिससे उपभोगी को अधिकतम सन्तुष्टि प्राप्त हो, उत्पादक को अधिकतम लाभ तथा राष्ट्र का अधिकतम विकास हो। इसलिए दुर्लभता और चुनाव को अलग नहीं किया जा सकता।

प्रश्न 8.
आर्थिक संगठन या प्रणालियों की किस्मों का वर्णन करो।
उत्तर-
आर्थिक संगठन या प्रणालियां तीन प्रकार की हैं –

  1. पूंजीवाद-इस प्रणाली में लोगों को उपभोग, उत्पादन, विनिमय करने की स्वतन्त्रता होती है। आर्थिक क्रियाओं का संचालन कीमत यंत्र द्वारा होता है।
  2. समाजवाद-इस प्रणाली में उपभोग उत्पादन, विनिमय का संचालन सरकार द्वारा किया जाता है। कीमत सरकार द्वारा निर्धारित की जाती है।
  3. मिश्रित अर्थव्यवस्था-इस प्रणाली में कुछ आर्थिक क्रियाएं निजी लोगों द्वारा तथा कुछ आर्थिक क्रियाएं सरकार द्वारा संचालन की जाती हैं। इसमें निजी क्षेत्र तथा सरकारी क्षेत्र मिलकर काम करते हैं। भारत में मिश्रित अर्थव्यवस्था पाई जाती है।

प्रश्न 9.
अर्थशास्त्र की प्रकृति स्पष्ट करें।
अथवा
क्या अर्थशास्त्र विज्ञान है या कला है ?
उत्तर-
अर्थशास्त्र की प्रकृति से अभिप्राय है कि अर्थशास्त्र विज्ञान है या कला है। अर्थशास्त्र वास्तविक तथा आदर्शात्मक विज्ञान है और कला भी है। अर्थशास्त्र वास्तविक विज्ञान है क्योंकि इसमें विज्ञान के नियम हैं। अर्थशास्त्र आदर्शात्मक विज्ञान है क्योंकि इसमें हम देखते हैं कि क्या होना चाहिए। अर्थशास्त्र कला है जो इस प्रकार के उपाय और साधन ढूंढता है जिनसे इच्छित लक्ष्य प्राप्त किये जा सकें। अर्थशास्त्र विज्ञान तथा कला दोनों ही है।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 2 व्यष्टि तथा समष्टि अर्थशास्त्र

III. लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
व्यक्तिगत तथा सामूहिक अर्थशास्त्र में कोई चार अन्तर स्पष्ट करो।
उत्तर-
व्यक्तिगत तथा सामूहिक अर्थशास्त्र में अन्तर को नीचे दिए सूची पत्र द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है –

अन्तर का आधार व्यक्तिगत अर्थशास्त्र, सामूहिक अर्थशास्त्र
(1) क्षेत्र (Scope) व्यक्तिगत अर्थशास्त्र में व्यक्तिगत आर्थिक समस्याओं का अध्ययन किया जाता है। सामूहिक अर्थशास्त्र में अर्थव्यवस्था की सामूहिक समस्याओं का अध्ययन किया जाता है।
(2) उद्देश्य (Objective) व्यक्तिगत अर्थशास्त्र का उद्देश्य वस्तुओं तथा साधनों की कीमत निर्धारण करना होता है। सामूहिक अर्थशास्त्र का उद्देश्य राष्ट्रीय आय तथा रोज़गार निर्धारण करना है।
(3) मान्यताएँ (Assumptions) व्यक्तिगत अर्थशास्त्र में सामूहिक चरों जैसे कि उत्पादन तथा कीमत स्तर को स्थिर माना जाता समान माना जाता है। सामूहिक अर्थशास्त्र में व्यक्तिगत चरों जैसे कि एक मनुष्य की आय तथा धन को है।
(4) प्रभाव  (Effects) व्यक्तिगत निर्णयों का प्रभाव सामूहिक स्तर पर पड़ता है, जैसे बचत का प्रभाव अर्थव्यवस्था पर पड़ता है। सामूहिक निर्णयों का प्रभाव व्यक्तिगत निर्णयों पर पड़ता है, जैसे कि सरकार द्वारा लगाए कर, व्यक्ति उपभोग को प्रभावित करते हैं।

प्रश्न 2.
व्यष्टि अर्थशास्त्र के महत्त्व को स्पष्ट करो।
उत्तर-
व्यष्टि अर्थशास्त्र का महत्त्व –

  1. अर्थव्यवस्था की कार्यशीलता-व्यक्तिगत अर्थशास्त्र का सबसे महत्त्वपूर्ण प्रयोग यह समझाना है कि अर्थव्यवस्था कार्य करती है।
  2. आर्थिक नीतियों का निर्माण-व्यक्तिगत अर्थशास्त्र आर्थिक नीतियों के निर्माण में भी सहायक होता है। साधनों के उचित विभाजन के लिए पूंजीवादी अर्थव्यवस्था महत्त्वपूर्ण योगदान डालती है।
  3. आर्थिक निर्णय-व्यक्तिगत अर्थशास्त्र द्वारा आर्थिक निर्णय लिए जाते हैं; जैसे कि एक वस्तु की कीमत का निर्धारण, फ़र्म की लागत तथा लाभ का ज्ञान प्राप्त होता है।
  4. आर्थिक कल्याण-व्यक्तिगत अर्थशास्त्र आर्थिक कल्याण का आधार है। इससे उपभोग तथा उत्पादन की स्थिति का ज्ञान प्राप्त होता है।
  5. भविष्यवाणी-व्यक्तिगत अर्थशास्त्र द्वारा भविष्यवाणियां की जाती हैं, जैसे कि एक वस्तु की मांग बढ़ जाती है तो उस वस्तु की कीमत बढ़ जाएगी।

प्रश्न 3.
समष्टि अर्थशास्त्र का महत्त्व बताओ।
उत्तर –

  • अर्थव्यवस्था का अध्ययन–समष्टि अर्थशास्त्र से समूची अर्थव्यवस्था का ज्ञान होता है।
  • आर्थिक विकास-समष्टि अर्थशास्त्र द्वारा एक देश के आर्थिक विकास के निर्धारक तत्त्वों का ज्ञान प्राप्त होता
  • कीमत स्तर का अध्ययन-एक देश में कीमत स्थिरता प्राप्त करना प्रत्येक सरकार का एक उद्देश्य होता है। इसलिए मुद्रा स्फीति तथा अस्फीति को कैसे कन्ट्रोल में रखा जाए, इसकी जानकारी समष्टि अर्थशास्त्र द्वारा होती है।
  • आर्थिक नीतियों का निर्माण-समष्टि अर्थशास्त्र की सहायता से आर्थिक नीतियों का निर्माण किया जाता है, जोकि देश में निर्धनता, बेरोज़गारी, आय का विभाजन इत्यादि समस्याओं के समाधान के लिए महत्त्वपूर्ण होती
  • भुगतान सन्तुलन-समष्टि अर्थशास्त्र उन तत्त्वों को स्पष्ट करता है, जोकि भुगतान सन्तुलन स्थापित करने में लाभदायक योगदान डालते हैं। इससे समूची अर्थव्यवस्था को सन्तुलन में रखने के लिए सहायता मिलती है।

प्रश्न 4.
समष्टि अर्थशास्त्र के क्षेत्र का वर्णन करें।
अथवा
समष्टि अर्थशास्त्र की मुख्य शाखाओं के नाम बताइए।
उत्तर-
समष्टि अर्थशास्त्र के क्षेत्र को निम्नलिखित भागों में बांट कर अध्ययन किया जाता है-
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 2 व्यष्टि तथा समष्टि अर्थशास्त्र 1
1. राष्ट्रीय आय का सिद्धान्त (Theory of National Income)-समष्टि अर्थशास्त्र में राष्ट्रीय आय, इसके माप तथा धारणाओं का अध्ययन किया जाता है।

2. रोज़गार का सिद्धान्त (Theory of Employment)-समष्टि अर्थशास्त्र में रोजगार निर्धारण तथा बेरोजगारी की समस्याओं का अध्ययन किया जाता है।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 2 व्यष्टि तथा समष्टि अर्थशास्त्र

3. मुद्रा का सिद्धान्त (Theory of Money)-मुद्रा का अर्थ, मुद्रा के प्रभाव तथा कार्यों का अध्ययन किया जाता है। इसमें मुद्रा बाज़ार तथा पूँजी बाज़ार के बारे में जानकारी प्राप्त की जाती है।

4. आर्थिक विकास का सिद्धान्त (Theory of Economic Development) आर्थिक विकास का अर्थ किसी देश की प्रति व्यक्ति आय में होने वाली वृद्धि से होता है। यह भी समष्टि अर्थशास्त्र का एक भाग माना जाता है।

5. कीमत स्तर का सिद्धान्त (Theory of Price Level)-एक देश में कीमत स्तर बढ़ने के क्या कारण होते हैं तथा मुद्रा स्फीति को कैसे रोका जा सकता है, यह भी समष्टि अर्थशास्त्र के क्षेत्र में शामिल है।

6. अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का सिद्धान्त (Theory of International Trade)–विभिन्न देशों में होने वाले व्यापार का भी अध्ययन समष्टि अर्थशास्त्र के क्षेत्र में आता है।

IV. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
अर्थशास्त्र क्या है? इसका क्षेत्र स्पष्ट करो। (What is Economics ? Discuss its Scope.)
उत्तर-
अर्थशास्त्र क्या है ? (What is Economics ?)-अर्थशास्त्र दूसरे समाज शास्त्रों से एक नया विज्ञान है। एडम स्मिथ (Adam Smith) को अर्थशास्त्र का पिता माना जाता है; जिन्होंने 1776 में अपनी पुस्तक (Wealth of Nations) लिखी। इसमें उन्होंने कहा ‘अर्थशास्त्र धन का विज्ञान है। परन्तु इस परिभाषा से अर्थशास्त्र बदनाम हो गया। प्रो० मार्शल (Marshall) ने कहा कि अर्थशास्त्र मनुष्यों का विज्ञान है, जिसमें मानवीय भलाई को अधिकतम करने का अध्ययन किया जाता है। प्रो० रोबिन्ज़ (Robbins) ने अर्थशास्त्र की वैज्ञानिक परिभाषा दी। उनके अनुसार, “अर्थशास्त्र वह विज्ञान है, जो मानवीय व्यवहार का अध्ययन करता है, जिसका सम्बन्ध अधिक आवश्यकताओं तथा वैकल्पिक प्रयोगों वाले सीमित साधनों से होता है। प्रो० सेम्यूलसन (Samuelson) के अनुसार, अर्थशास्त्र व्यक्तिगत सन्तुष्टि तथा सामाजिक कल्याण से सम्बन्धित है।

अर्थशास्त्र के सम्बन्ध में हम यह कह सकते हैं, “अर्थशास्त्र मानवीय व्यवहार का विज्ञान है, जिसका सम्बन्ध कमी के कारण चयन की समस्या से होता है ताकि व्यक्तिगत तथा सामाजिक कल्याण को अधिकतम किया जा सके।” (“Economics is a science of human behaviour which studies problems of choice arising out of scarcity, so the individuals and society can maximise their social welfare.”)

अर्थशास्त्र का क्षेत्र (Scope of Economics)-अर्थशास्त्र के क्षेत्र को दो भागों में विभाजित कर स्पष्ट किया जा सकता है –
1. अर्थशास्त्र की विषय सामग्री (Subject Matter of Economics)-अर्थशास्त्र की विषय सामग्री अर्थव्यवस्था की प्रकृति तथा व्यवहार की व्याख्या से सम्बन्धित है। देश में बेरोज़गारी, कीमत वृद्धि, निर्धनता, असमानता इत्यादि बहुत-सी समस्याएँ उत्पन्न होती हैं। इन समस्याओं को हल करने के लिए दो तरह की विधियों का प्रयोग किया जाता है। व्यक्तिगत आर्थिक विश्लेषण तथा सामूहिक आर्थिक विश्लेषण की सहायता से कीमत नीति, मौद्रिक नीति, राजकोषीय नीति तथा आर्थिक नियोजन आदि का अध्ययन किया जाता है। इसी तरह अर्थशास्त्र का मुख्य विषय आर्थिक समस्याओं की जांच पड़ताल करके इन समस्याओं के हल के लिए सुझाव देना है। __

2. अर्थशास्त्र की प्रकृति (Nature of Economics)-अर्थशास्त्र की प्रकृति में हम देखते हैं कि अर्थशास्त्र विज्ञान है अथवा कला।

अर्थशास्त्र विज्ञान है (Economics is a Science)-अर्थशास्त्र एक सामाजिक विज्ञान है, जबकि फिजिक्स, कैमिस्ट्री आदि प्राकृतिक विज्ञान हैं। अर्थशास्त्र का क्रमवार अध्ययन किया जाता है, इसके वैज्ञानिक नियम हैं तथा ये नियम सर्वव्यापी हैं। इस कारण अर्थशास्त्र विज्ञान है। विज्ञान दो प्रकार के होते हैं-

(a) वास्तविक विज्ञान (Positive Science)-वास्तविक विज्ञान का सम्बन्ध क्या है? (What is Positive Science) से होता है। मानवीय आवश्यकताएँ असीमित हैं। आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए साधन सीमित हैं। यह वास्तविक सच्चाई है कि साधनों के वैकल्पिक प्रयोग किए जा सकते हैं, जिस कारण चयन की समस्या उत्पन्न होती है। इसलिए अर्थशास्त्र वास्तविक विज्ञान है।

(b) आदर्शमय विज्ञान (Normative Science)-आदर्शमय विज्ञान वह विज्ञान होता है, जिसका सम्बन्ध “क्या होना चाहिए” (What ought to be) से होता है। अर्थशास्त्र आदर्शमय विज्ञान भी है, क्योंकि इसमें हम देखते हैं कि कीमत में स्थिरता होनी चाहिए। निर्धन लोगों पर कम कर लगाए जाएं। इसलिए अर्थशास्त्र आदर्शमय विज्ञान भी है।

अर्थशास्त्र कला है (Economics is an Art)-किसी विशेष उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए सिद्धान्तिक ज्ञान के व्यावहारिक प्रयोग को कला कहा जाता है। भारत में कीमतें निरन्तर तीव्रता से बढ़ रही हैं। इन कीमतों की वृद्धि को रोकने के लिए सरकार आर्थिक नीति तथा राजकोषीय नीति का प्रयोग करके कीमतों को नियन्त्रण में रखने का प्रयत्न करती है।
इससे स्पष्ट है कि अर्थशास्त्र विज्ञान भी है और कला भी है।

प्रश्न 2.
व्यष्टि अर्थशास्त्र से क्या अभिप्राय है? व्यष्टि अर्थशास्त्र का महत्त्व तथा सीमाएं बताएं। (What is Micro Economics ? Discuss the Importance and Limitations of Micro Economics.)
उत्तर-
व्यष्टि अर्थशास्त्र का अर्थ (Meaning of Micro Economics)-अंग्रेजी भाषा का शब्द माइक्रो (Micro) ग्रीक भाषा के शब्द माईक्रोज़ (Mikros) से लिया गया है, जिसका अर्थ है लघु (Small)। जब हम आर्थिक समस्याओं को छोटे-छोटे भागों में विभाजित करके एक-एक हिस्से का अध्ययन करते हैं तो इसको व्यष्टि आर्थिक विश्लेषण कहा जाता है। प्रो० शेपीरो के अनुसार, “व्यष्टि अर्थशास्त्र का संबंध अर्थव्यवस्था के छोटे भागों से है।” (Micro Economics deals with the small parts of the economy-Shapiro) व्यष्टि अर्थशास्त्र को कीमत सिद्धान्त (Price Theory) भी कहा जाता है। व्यष्टि अर्थशास्त्र का क्षेत्र (Scope of Micro Economics)-व्यष्टि अर्थशास्त्र के क्षेत्र को एक चार्ट द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 2 व्यष्टि तथा समष्टि अर्थशास्त्र 2
1. मांग का सिद्धान्त (Theory of Demand)-व्यक्तिगत अर्थशास्त्र में मांग के सिद्धान्त का अध्ययन किया जाता है। उपभोक्ता की मांग तथा उसकी अधिक-से-अधिक सन्तुष्टि से सम्बन्धित सिद्धान्त को मांग का सिद्धान्त कहा जाता है।

2. उत्पादन का सिद्धान्त (Theory of Production)-उपभोक्ता की मांग को पूरा करने के लिए एक फ़र्म उत्पादन करती है। उत्पादन से सम्बन्धित नियमों के अध्ययन को उत्पादन का सिद्धान्त कहा जाता है।

3. कीमत निर्धारण का सिद्धान्त (Theory of Price Determination)-उत्पादन की वस्तुओं को बाज़ार में बेचा जाता है। इन वस्तुओं की मांग तथा पूर्ति द्वारा वस्तुओं की कीमत निर्धारित होती है, इसको कीमत निर्धारण का सिद्धान्त कहा जाता है।

4. साधन कीमत का सिद्धान्त (Theory of Factor Pricing)-बाज़ार में वस्तुएँ बेचने से जो आय प्राप्त होती है, वह उत्पादन के साधनों में विभाजित की जाती है। इसको साधन कीमत सिद्धान्त कहा जाता है।

5. आर्थिक कल्याण का सिद्धान्त (Theory of Economic Welfare)-अर्थशास्त्र का मुख्य उद्देश्य व्यक्ति तथा समाज के कल्याण में वृद्धि करना होता है। इसलिए व्यष्टि अर्थशास्त्र के क्षेत्र में आर्थिक कल्याण का अध्ययन किया जाता है।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 2 व्यष्टि तथा समष्टि अर्थशास्त्र

व्यष्टि अर्थशास्त्र का महत्त्व (Importance of Micro Economics)-व्यक्तिगत अर्थशास्त्र के महत्त्व को निम्नलिखित अनुसार स्पष्ट किया जा सकता है-
1. अर्थव्यवस्था की कार्यशीलता (Functioning of an Economy)-प्रो० वाटसन ने ठीक कहा है, “व्यक्तिगत अर्थशास्त्र के कई प्रयोग हैं। इसका सबसे महत्त्वपूर्ण प्रयोग यह समझना है कि अर्थव्यवस्था कैसे कार्य करती है।” व्यष्टि अर्थशास्त्र द्वारा एक अर्थव्यवस्था की कार्य प्रणाली का ज्ञान प्राप्त होता है।

2. भविष्यवाणी का आधार (Basis of Prodictions)-व्यक्तिगत अर्थशास्त्र भविष्यवाणी का आधार है। उदाहरणस्वरूप किसी वस्तु की कीमत बढ़ जाती है तो उस वस्तु की मांग कम हो जाएगी।

3. आर्थिक नीतियां (Economic Policies)-व्यक्तिगत अर्थशास्त्र द्वारा आर्थिक नीतियों का निर्माण किया जाता है। निजी क्षेत्र में उत्पादन अधिक होने के कारण सरकार निजी क्षेत्र को उत्साहित कर रही है।

4. आर्थिक निर्णय (Economic Decisions)-प्रत्येक फ़र्म वस्तुओं की लागत तथा मांग को देखकर उत्पादन करने सम्बन्धी निर्णय करती है।

5. आर्थिक कल्याण (Economic Welfare)-व्यक्तिगत अर्थशास्त्र का मुख्य उद्देश्य कल्याण में वृद्धि करना है। उपभोक्ता अधिक-से-अधिक सन्तुष्टि, उत्पादक अधिक-से-अधिक लाभ तथा समाज अधिक-से-अधिक आर्थिक कल्याण प्राप्त करने का प्रयत्न करता है।

व्यष्टि अर्थशास्त्र की सीमाएँ (Limitations of Micro Economics)
1. अवास्तविक मान्यताएँ (Unrealistic Assumptions)-व्यक्तिगत अर्थशास्त्र में पूर्ण प्रतियोगिता, पूर्ण रोजगार इत्यादि अवास्तविक मान्यताएँ लेकर विश्लेषण किया जाता है, जोकि व्यावहारिक नहीं है।

2. गतिहीन विश्लेषण (Static Analysis)–व्यक्तिगत विश्लेषण में बहुत से तत्त्वों को स्थिर मान कर व्याख्या की जाती है जिस कारण इसको गतिहीन विश्लेषण कहा जाता है।

3. ग़लत परिणाम (Wrong Results)-व्यक्तिगत अर्थशास्त्र के परिणाम कई बार ग़लत सिद्ध होते हैं। उदाहरणस्वरूप एक मनुष्य बचत करके अमीर बन सकता है। परन्तु यदि सारा देश बचत करने लगता है तो उनका उपभोग व्यय कम हो जाएगा। एक मनुष्य का व्यय दूसरे मनुष्यों की आय होता है। इसलिए आय कम हो जाएगी तथा राष्ट्र अमीर होने की जगह पर निर्धन हो जाएगा।

प्रश्न 3.
व्यक्तिगत तथा सामूहिक अर्थशास्त्र में अन्तर स्पष्ट करो। (Explain the difference between Micro and Macro Economics.)
उत्तर-
व्यक्तिगत अर्थशास्त्र (Micro Economics)-व्यक्तिगत अर्थशास्त्र का सम्बन्ध व्यक्तिगत आर्थिक समस्याओं से होता है। जैसे कि एक मनुष्य, एक फ़र्म, एक उद्योग
अथवा
एक बाज़ार की समस्याएँ। सामूहिक अर्थशास्त्र (Macro Economics)-सामूहिक अर्थशास्त्र का सम्बन्ध अर्थव्यवस्था की आर्थिक समस्याओं से होता है। जैसे कि बेरोज़गारी, राष्ट्रीय आय, राष्ट्रीय उपभोग तथा साधारण कीमत स्तर का अध्ययन सामूहिक अर्थशास्त्र द्वारा किया जाता है। प्रो० शेपीरो के शब्दों में, “सामूहिक अर्थशास्त्र समूची अर्थव्यवस्था की कार्यशीलता से सम्बन्धित होता है।” (“Macro Economics deals with the functioning of the economy as a Whole.” -Shapiro)

व्यक्तिगत तथा सामूहिक अर्थशास्त्र में अन्तर
(Difference between Micro & Macro Economics)
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 2 व्यष्टि तथा समष्टि अर्थशास्त्र 3

व्यक्तिगत तथा सामूहिक अर्थशास्त्र में अन्तर्निर्भरता (Inter-dependence of Micro and Macro Economics) –
चाहे व्यक्तिगत अर्थशास्त्र में व्यक्तिगत स्तर पर कमी तथा चयन की समस्याओं का अध्ययन किया जाता है तथा सामूहिक अर्थशास्त्र में समूची अर्थव्यवस्था के स्तर पर इन समस्याओं सम्बन्धी अध्ययन करते हैं, परन्तु यह दोनों एकदूसरे पर अन्तर्निर्भर हैं।
1. व्यक्तिगत अर्थशास्त्र सामूहिक अर्थशास्त्र पर निर्भर है (Micro depends on Macro Economics)यदि हम व्यक्तिगत अर्थशास्त्र की किसी आर्थिक समस्या का हल करना चाहते हैं तो सामूहिक अर्थशास्त्र के बगैर यह संभव नहीं होता। जैसे कि एक फ़र्म द्वारा वस्तु की कीमत निर्धारण करते समय ध्यान में रखना पड़ेगा कि बाकी की वस्तुओं की कीमतों में कितना परिवर्तन हुआ है। यदि बाकी वस्तुओं की कीमतें दो गुणा बढ़ गई हैं तो फ़र्म अपनी वस्तु की कीमत दो गुणा कर देगी।

2. सामहिक अर्थशास्त्र व्यक्तिगत अर्थशास्त्र पर निर्भर है (Macro depends on Micro Economics)यदि हम राष्ट्रीय आय का माप करना चाहते हैं तो यह सामूहिक अर्थशास्त्र की समस्या है। इस उद्देश्य के लिए देश में रहने वाले प्रत्येक नागरिक की आय का पता किया जाएगा। जब एक मनुष्य की आय का अध्ययन करते हैं तो यह व्यक्तिगत अर्थशास्त्र की समस्या बन जाती है।

इस प्रकार यह दोनों विधियाँ एक-दूसरे पर निर्भर हैं। प्रो० सैम्यूलसन ने ठीक कहा है, “व्यक्तिगत तथा सामूहिक अर्थशास्त्र में कोई अंतर नहीं। दोनों ही महत्त्वपूर्ण हैं। आप पूरी तरह शिक्षित नहीं होंगे यदि आपको एक का ज्ञान है तथा दूसरी विधि सम्बन्धी अज्ञानी हों।”

प्रश्न 4.
अर्थशास्त्र के महत्त्व और आर्थिक प्रणाली की किस्मों का वर्णन कीजिये। (Describe the Importance of Economics and types of economic system.)
उत्तर-
अर्थशास्त्र का महत्त्व बहुत अधिक हो गया है। इसके महत्त्व को निम्नलिखित अनुसार स्पष्ट किया जा सकता है-
1. अर्थशास्त्र का अध्ययन-अर्थशास्त्र एक सामाजिक विज्ञान है जिसका सम्बन्ध एक अर्थवयवस्था में दुर्लभ संसाधनों का इस प्रकार बंटवारा करना है कि समाज को अधिकतम सामाजिक कल्याण पूर्ण ज्ञान प्राप्त होता है।।

2. आर्थिक नीतियों का निर्माण-अर्थशास्त्र का महत्त्व आर्थिक नीतियों के निर्माण में भी देखा जा सकता है। देश में क्या उत्पादन किया जाए? कैसे उत्पादन किया जाए ? किसके लिये उत्पादन किया जाए ? वस्तुओं की कितनी कीमत होनी चाहिये। जोकि अर्थशास्त्र की सहायता से निर्माण को जाती हैं।

3. आर्थिक कल्याण में सहायक-अर्थशास्त्र का मुख्य उद्देश्य एक अर्थव्यवस्था में आर्थिक कल्याण में वृद्धि करने में सहायक होते हैं।

4. आर्थिक प्रबन्ध में सहायक-अर्थशास्त्र विभिन्न फ़र्मों के लिये आर्थिक प्रबन्ध में सहायक होता है। वस्तु की . लागत, बिक्री, कीमत आदि प्रबन्धक निर्णय लेने के लिए अर्थशास्त्र सहायक होता है।

5. भविष्यवाणियों में सहायक-अर्थशास्त्र का ज्ञान भविष्यवाणी करने के लिये भी सहायक होता है। देश का उत्पादन देश में ही प्रयोग किया जाए अथवा इसको विदेशों में बेचा जाए। विदेशों में बेचने से लाभ होगा अथवा हानि होगी। अर्थशास्त्र आर्थिक कल्याण के आदर्श की प्राप्ति के लिये भी महत्त्वपूर्ण होता है। . अर्थशास्त्र एक ऐसा विज्ञान है जिसका महत्त्व प्रत्येक क्षेत्र में नज़र आता है और यह प्रत्येक के लिये अनिवार्य है।

आर्थिक प्रणाली की किस्में (Types of Economic Systems) आर्थिक प्रणाली की मुख्य तीन किस्में हैं_-
1. पूंजीवादी अर्थव्यवस्था (Capitalistic Economy) अर्थव्यवस्था वह प्रणाली है जिसमें उत्पादन के साधनभूमि, श्रम, पूँजी, संगठन-निजी लोगों के अधिकार में होते हैं और उत्पादन लाभ प्राप्ति के उद्देश्य से किया जाता है। इस अर्थव्यवस्था में सभी मुख्य आर्थिक निर्णय लोगों द्वारा लिए जाते हैं और जो बिना सरकारी हस्तक्षेप के बाज़ारी दशाओं द्वारा निर्धारित और नियन्त्रित किये जाते हैं। बाज़ारी दशाओं से हमारा अभिप्राय पदार्थों, सेवाओं की मांग व पूर्ति की दशाओं, उनकी कीमतों व उत्पादन लागतों, लाभ व हानि आदि से है। ये बाज़ारी दशाएं कीमत प्रणाली को जन्म . देती हैं जिनके संकेत पर पूँजीवादी अर्थव्यवस्था संचालित होती है।

2. समाजवादी अर्थवयवस्था (Socialistic Economy) समाजवाद से अभिप्राय है उत्पादन के साधनों पर सरकार का स्वामित्व, सरकार द्वारा नियोजन तथा आय का पुनर्वितरण। अर्थात् समाजवाद वह आर्थिक व्यवस्था है जिसमें उत्पादन के साथन समाज के अधिकार में होते हैं और जिसमें धन का उत्पादन, थोड़े से व्यक्तियों के निजी लाभ के लिए नहीं बल्कि सामाजिक भलाई के विचार से किया जाता है। बाज़ार में कीमतें सरकार द्वारा ही निर्धारित की जाती हैं।

3. मिश्रित अर्थव्यवस्था (Mixed Economy)-मिश्रित अर्थव्यवस्था एक ऐसी अर्थव्यवस्था होती है जिसमें कुछ आर्थिक निर्णय पूंजीवादी अर्थव्यवस्था की भांति लोगों द्वारा निजी लाभ के लिये जाते हैं और कुछ आर्थिक निर्णय समाजवादी अर्थव्यवस्था की भांति राज्य द्वारा लिए जाते हैं। इसमें पूँजीवादी तथा समाजवादी आर्थिक प्रणाली, दोनों प्रकार की अर्थव्यवस्था के लक्षण पाए जाते हैं। इस प्रकार इस अर्थव्यवस्था को पूँजीवाद और समाजवाद के बीच सुनहरी रास्ता (Mixed Mean) कहा जाता है।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 2 व्यष्टि तथा समष्टि अर्थशास्त्र

प्रश्न 5.
समष्टि अर्थशास्त्र का महत्त्व बताएँ। (Explain the Importance of Macro Economics.)
उत्तर-
समष्टि अर्थशास्त्र का महत्त्व (Importance of Macro Economics)-समष्टि अर्थशास्त्र का अध्ययन मुख्य रूप से निम्नलिखित क्षेत्रों में किया जाता है-
1. अर्थव्यवस्था का अध्ययन (Study of Economy)-समष्टि अर्थशास्त्र से समूची अर्थव्यवस्था की कार्यप्रणाली का ज्ञान प्राप्त होता है।

2. राष्ट्रीय आय का अध्ययन (Study of National Income)-राष्ट्रीय आय से ही विभिन्न देशों की आर्थिक स्थितियों की तुलना की जा सकती है। इसलिए समष्टि अर्थशास्त्र द्वारा राष्ट्रीय आय का अध्ययन करके विश्व में एक देश की आर्थिक प्रगति का ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है।

3. आर्थिक नीतियों का निर्माण (Formulation of Economic Policies)-समष्टि अर्थशास्त्र की सहायता से आर्थिक नीतियों का निर्माण किया जाता है जोकि देश में निर्धनता, बेरोज़गारी, आय का विभाजन इत्यादि समस्याओं का हल करने के लिए महत्त्वपूर्ण होता है।

4. कीमत स्तर का अध्ययन (Study of Price Level)-एक देश में कीमत स्थिरता प्राप्त करना प्रत्येक सरकार का एक उद्देश्य होता है, इसलिए मुद्रा स्फीति तथा अस्फीति को कैसे कन्ट्रोल में रखा जाए, इसकी जानकारी समष्टि अर्थशास्त्र द्वारा प्राप्त होती है।

5. भुगतान सन्तुलन (Balance of Payment) समष्टि अर्थशास्त्र उन तत्त्वों को स्पष्ट करता है जोकि भुगतान सन्तुलन स्थापित करने में लाभदायक योगदान डालते हैं।

6. व्यापार चक्रों का अध्ययन (Study of Trade Cycles) व्यापार चक्र अर्थव्यवस्था पर बुरा प्रभाव डालते हैं। इनका अध्ययन भी समष्टि अर्थशास्त्र में ही सम्भव है।

7. आर्थिक विकास (Economic Development) आर्थिक विकास प्राप्त करना प्रत्येक देश का मुख्य लक्ष्य बन गया है। इस महत्त्व के लिए आर्थिक नीतियों का निर्माण करके आर्थिक विकास तेजी से प्राप्त किया जा सकता है।

प्रश्न 6.
समष्टि अर्थशास्त्र की सीमाएं बताएं। (Explain the limitations of Macro Economics.)
उत्तर-
समष्टि अर्थशास्त्र की सीमाएँ(Limitations of Macro Economics)-समष्टि अर्थशास्त्र की सीमाएँ निम्नलिखित-
1. समष्टि विरोधाभास (Macro Paradoxes) समष्टि अर्थशास्त्र का सबसे बड़ा दोष यह है कि व्यक्तिगत निष्कर्ष जब समूहों में लागू किए जाते हैं तो वह गलत सिद्ध होते हैं। इसे ही समष्टि विरोधाभास कहते हैं। कीमतों में वृद्धि अमीर लोगों के लिए इतनी कष्टमय नहीं होती जितनी के गरीब लोगों के लिए होती है।

2. समष्टि अर्थशास्त्र की अवास्तविक मान्यताएँ (Unrealistic Assumptions of Macro Economics)समष्टि अर्थशास्त्र की पाँच मुख्य मान्यताएँ हैं-

  • अल्पकाल
  • बंद अर्थव्यवस्था
  • पूर्ण प्रतियोगिता
  • अल्परोज़गार सन्तुलन
  • मुद्रा संचय का कार्य भी करती है।

यह मान्यताएँ अर्थव्यवस्था के सभी समूहों पर लागू नहीं होतों क्योंकि अर्थव्यवस्था में सभी समूह एक समान होते और उनमें विभिन्नता भी पाई जाती है।

3. गलत नीतियाँ (Wrong Policies)-समष्टि अर्थव्यवस्था के अध्ययन से कई बार हम इस निष्कर्ष पर पहुंच जाते हैं कि अर्थव्यवस्था में किसी प्रकार का कोई परिवर्तन नहीं हुआ है। इसलिए आर्थिक नीति में किसी परिवर्तन की आवश्यकता नहीं है। इस प्रकार बहुत-सी नीतियाँ गलत बनाई जा सकती हैं।

4. माप में कठिनाई (Difficulty in Measurment)-समष्टि अर्थशास्त्र की एक सीमा यह भी है कि इसके चरों जैसा कि कुल उपभोग, कुल निवेश, कुल आय आदि का माप करना आसान नहीं होता।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 2 व्यष्टि तथा समष्टि अर्थशास्त्र

5. व्यक्तिगत इकाइयों पर निर्भर (Dependence on Individual Units)-समष्टि अर्थशास्त्र के बहुत-से नतीजे व्यक्तिगत इकाइयों पर आधारित होते हैं, परन्तु वह ठीक नहीं। जो नतीजे व्यक्तियों पर लागू होते हैं, ज़रूरी नहीं कि वह समूहों पर भी ठीक लागू हों। इसको संरचना का भुलेखा (Fallacy of Composition) भी कहा जाता है।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 1 अर्थशास्त्र क्या है?

Punjab State Board PSEB 11th Class Economics Book Solutions Chapter 1 अर्थशास्त्र क्या है? Textbook Exercise Questions, and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Economics Chapter 1 अर्थशास्त्र क्या है?

PSEB 11th Class Economics अर्थशास्त्र क्या है? Textbook Questions and Answers

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

प्रश्न 1.
एडम स्मिथ द्वारा दी गई अर्थशास्त्र की परिभाषा दो।
अथवा
अर्थशास्त्र की धन सम्बन्धी परिभाषा लिखो।
उत्तर-
एडम स्मिथ को अर्थशास्त्र का पितामह कहा जाता है। एडम स्मिथ के अनुसार, “अर्थशास्त्र धन का विज्ञान है।” (“Economics is a Science of wealth.’Adam Smith)

प्रश्न 2.
मार्शल द्वारा दी गई अर्थशास्त्र की परिभाषा दें।
अथवा
अर्थशास्त्र की भौतिक कल्याण सम्बन्धी परिभाषा दें।
उत्तर-
डॉक्टर मार्शल के अनुसार, “अर्थशास्त्र जीवन के साधारण कारोबार में मानवीय जाति की क्रियाओं का अध्ययन है। यह इस बात की पूछताछ करता है कि वह अपनी आय कैसे प्राप्त करता है तथा कैसे खर्च करता है। ऐसे एक ओर तो यह धन का विज्ञान है तथा दूसरी ओर जो अधिक महत्त्वपूर्ण है यह मनुष्य के अध्ययन का विषय है।”

प्रश्न 3.
अर्थशास्त्र के पिता कौन है ?
(a) एडम स्मिथ
(b) मार्शल
(c) रोबिन्स
(d) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(a) एडम स्मिथ।

प्रश्न 4.
अर्थशास्त्र शब्द किस भाषा में से लिया गया है ?
(a) फ्रैंच
(b) लैटिन
(c) ग्रीक
(d) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(c) ग्रीक।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 1 अर्थशास्त्र क्या है?

प्रश्न 5.
एडम स्मिथ की परिभाषा को ………… से सम्बन्धित परिभाषा कहा जाता है।
उत्तर-
धन।

प्रश्न 6.
मार्शल की परिभाषा धन से सम्बन्धित परिभाषा है।
उत्तर-
ग़लत।

प्रश्न 7.
रॉबिन्स की परिभाषा दुर्लभता सम्बन्धी परिभाषा है।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 8.
अर्थशास्त्र के अध्ययन की वह विधि जिसका सम्बन्ध परिवार तथा फ़र्म की समस्याओं के साथ होता है को …………… अर्थशास्त्र कहा जाता है।
उत्तर-
व्यष्टि।

प्रश्न 9.
अर्थशास्त्र के अध्ययन की वह विधि जिसका सम्बन्ध सामूहिक समस्याओं से होता है को …. अर्थशास्त्र कहा जाता है।
उत्तर-
समष्टि।

प्रश्न 10.
अर्थशास्त्र ……………….
(a) विज्ञान
(b) कला
(c) विज्ञान और कला
(d) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(c) विज्ञान और कला।

प्रश्न 11.
अर्थशास्त्र में उपभोग, उत्पादन, विनिमय और वितरण के अध्ययन को अर्थशास्त्र की ….. कहा जाता है।
उत्तर-
विषय सामग्री।

प्रश्न 12.
आर्थिक क्रिया वह क्रिया है जिसका सम्बन्ध सभी प्रकार की वस्तुओं के उत्पादन, उपभोग तथा निवेश से होता है जो सीमित साधनों द्वारा असीमित आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए की जाती है।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 13.
व्यष्टि अर्थशास्त्र से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
व्यष्टि अर्थशास्त्र व्यक्तिगत अध्ययन से सम्बन्धित है।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 1 अर्थशास्त्र क्या है?

प्रश्न 14.
समष्टि अर्थशास्त्र से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
राष्ट्र की समूची आर्थिक समस्याओं के अध्ययन को समष्टि अर्थशास्त्र कहते हैं।

प्रश्न 15.
अर्थशास्त्र का सम्बन्ध केवल धन से सम्बन्धित समस्याओं से होता है।
उत्तर-
ग़लत।

प्रश्न 16.
अर्थशास्त्र का सम्बन्ध असीमित आवश्यकताओं और वैकलिप्क प्रयोग वाले सीमित साधनों से होता है।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 17.
अर्थशास्त्र विज्ञान भी है और कला भी है।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 18.
शुद्ध विज्ञान से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
शुद्ध विज्ञान में कारण तथा परिणाम का अध्ययन किया जाता है।

प्रश्न 19.
आदर्शमयी विज्ञान से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
आदर्शमयी विज्ञान यह बताता है कि क्या होना चाहिए।

प्रश्न 20.
कला से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
कला से अभिप्राय सैद्धान्तिक ज्ञान को व्यावहारिक रूप देना होता है।

II. अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
व्यष्टिगत अर्थशास्त्र से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
व्यष्टिगत अर्थशास्त्र (Micro Economics)-व्यष्टिगत अर्थशास्त्र में व्यक्तिगत आर्थिक क्रियाओं का अध्ययन किया जाता है। जैसे व्यक्तिगत उपभोगी की मांग, उपभोगी का सन्तुलन, एक फ़र्म तथा उद्योग का सन्तुलन, एक वस्तु तथा साधन का मूल्य निर्धारण आदि समस्याओं का अध्ययन व्यक्तिगत अर्थशास्त्र में किया जाता है। “Micro Economics deals with the parts of the problems.”

प्रश्न 2.
समष्टि अर्थशास्त्र से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
समष्टिगत अर्थशास्त्र (Macro Economics)-समष्टिगत अर्थशास्त्र में समूची अर्थ-व्यवस्था से सम्बन्धित आर्थिक क्रियाओं का सामूहिक रूप से अध्ययन किया जाता है। राष्ट्रीय आय, कुल रोज़गार, कुल उत्पादन को निर्धारित करने वाले तत्त्वों, कुल मांग, कुल पूर्ति, उपभोग, कुल बचत, कुल निवेश आदि का अध्ययन समष्टिगत अर्थशास्त्र में किया जाता है। “Macro Economics deals with the averages and aggregates of the problems.”

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 1 अर्थशास्त्र क्या है?

प्रश्न 3.
अर्थशास्त्र की धन सम्बन्धी परिभाषा लिखें।
उत्तर-
अठारहवीं शताब्दी से पहले अर्थशास्त्र का अध्ययन राजनीतिक अर्थव्यवस्था नामक विषय में होता था। एडम स्मिथ ने सर्वप्रथम ‘वैल्थ ऑफ नेशन्स’ नाम की पुस्तक में कहा कि अर्थशास्त्र धन का अध्ययन करता है। एडम स्मिथ ने कहा कि अर्थशास्त्र धन का विज्ञान है। (Economics is a science of wealth.) इसलिए एडम स्मिथ को अर्थशास्त्र का पिता कहा जाता है।

प्रश्न 4.
मार्शल द्वारा दी गई अर्थशास्त्र की परिभाषा दें।
उत्तर-
अर्थशास्त्र को कटु आलोचनाओं से बचाने के लिए, मार्शल ने कहा कि अर्थशास्त्र के अध्ययन का विषय मनुष्य है न कि धन। मनुष्य प्रधान है तथा धन गौण । मार्शल ने अर्थशास्त्र की परिभाषा इस प्रकार दी, “अर्थशास्त्र जीवन के साधारण व्यवसाय के सम्बन्ध में मानव जाति का अध्ययन है। यह व्यक्तिगत तथा सामाजिक कार्यों के उस भाग का अध्ययन करता है जिसका घनिष्ठ सम्बन्ध कल्याण प्रदान करने वाले भौतिक पदार्थों की प्राप्ति तथा उनका उपयोग करने से है।”

प्रश्न 5.
रॉबिन्स द्वारा दी गई अर्थशास्त्र की परिभाषा दें।
उत्तर-
मार्शल की परिभाषा काफ़ी देर तक चलती रही परन्तु 1932 में प्रो० रॉबिन्स ने अपनी पुस्तक ‘Principles of Economics’ में मार्शल की परिभाषा की आलोचना करते हुए एक नई परिभाषा को जन्म दिया जो अग्रलिखित प्रकार से है – “अर्थशास्त्र वह विज्ञान है जो मानवीय व्यवहार का अध्ययन करता है जिसका सम्बन्ध असीम आवश्यकताओं तथा वैकल्पिक प्रयोग वाले सीमित साधनों से है।”

प्रश्न 6.
क्या अर्थशास्त्र विज्ञान है अथवा कला है ?
उत्तर-
1. अर्थशास्त्र विज्ञान है-विज्ञान किसी भी विषय के सिलसिलेवार अध्ययन को कहा जाता है। अर्थशास्त्र में हम उपभोग, उत्पादन, विनिमय तथा विभाजन का अध्ययन करते हैं जोकि एक सिलसिलेवार अध्ययन है इसलिए अर्थशास्त्र एक विज्ञान है। विज्ञान दो प्रकार का होता है
2. क्या अर्थशास्त्र कला है-कला का अर्थ है हम विज्ञान के नियमों को व्यावहारिक रूप दे सकें। अर्थशास्त्र के नियमों का प्रयोग जीवन की समस्याओं को हल करने के लिए किया जा सकता है। इसलिए अर्थशास्त्र कला है।

III. लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
अर्थशास्त्र की विकास सम्बन्धी परिभाषा दो।
उत्तर-
प्रो० रॉबिन्स द्वारा दी गई परिभाषा को विज्ञान की उपाधि मिल गई थी इसलिए अर्थशास्त्र को विज्ञान कहा जाता है। किन्तु यह परिभाषा अर्थशास्त्र का स्वरूप प्रकट नहीं करती। इसलिए अर्थशास्त्र की परिभाषा में विकास सिद्धान्त, राष्ट्रीय आय और रोज़गार को प्रभावित करने वाले तत्त्वों की व्याख्या नहीं की गई। इसलिए बेनहम, जे० एम० केन्ज़ ने विकास से सम्बन्धित परिभाषा दी है। प्रो० जे० एम० केन्ज़ के अनुसार, “अर्थशास्त्र में दुर्लभ साधनों के प्रबन्ध के बारे में और रोज़गार व आय के निर्धारक तत्त्वों के सम्बन्ध में अध्ययन करते हैं।”
(“’In Economics we study.the administration of scarce resources and the determinants of employment and income.”—J.M. Keynes)

प्रश्न 2.
व्यष्टिगत अर्थशास्त्र तथा समष्टिगत अर्थशास्त्र पर नोट लिखें।
उत्तर-
आधुनिक अर्थशास्त्रियों ने अर्थशास्त्र के विषय-वस्तु से सम्बन्धित आर्थिक क्रियाओं को दो भागों में बांटा है-

  1. व्यष्टिगत अर्थशास्त्र (Micro Economics)-व्यष्टिगत अर्थशास्त्र में व्यक्तिगत आर्थिक क्रियाओं का अध्ययन किया जाता है। जैसे व्यक्तिगत उपभोगी की मांग, उपभोगी का सन्तुलन, एक फ़र्म तथा उद्योग का सन्तुलन, एक वस्तु तथा साधन का मूल्य निर्धारण आदि समस्याओं का अध्ययन व्यक्तिगत अर्थशास्त्र में किया जाता है।
  2. समष्टिगत अर्थशास्त्र (Macro Economics)-समष्टिगत अर्थशास्त्र में समूची अर्थव्यवस्था से सम्बन्धित आर्थिक क्रियाओं का सामूहिक रूप से अध्ययन किया जाता है। राष्ट्रीय आय, कुल रोज़गार, कुल उत्पादन को निर्धारित करने वाले तत्त्वों, कुल मांग, कुल पूर्ति, उपभोग, कुल बचत, कुल निवेश आदि का अध्ययन समष्टिगत अर्थशास्त्र में किया जाता है।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 1 अर्थशास्त्र क्या है?

IV. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
अर्थशास्त्र की धन सम्बन्धी परिभाषा की आलोचना सहित व्याख्या करें। (Critically examine wealth definition of Economics.)
उत्तर-
अठारहवीं शताब्दी से पहले अर्थशास्त्र का अध्ययन राजनीतिक अर्थव्यवस्था नामक विषय में होता था। एडम स्मिथ ने सर्वप्रथम वैल्थ ऑफ नेशन्स’ नाम की पुस्तक में कहा कि अर्थशास्त्र धन का अध्ययन करता है। एडम स्मिथ ने कहा कि अर्थशास्त्र धन का विज्ञान है। (Economics is a science of wealth.) इसलिए एडम स्मिथ को अर्थशास्त्र का पिता कहा जाता है।

मुख्य तत्त्व (Main Features)-

  1. धन अर्थशास्त्र का केन्द्र बिन्दु है।
  2. आर्थिक मनुष्य की कल्पना।
  3. धन की क्रियाओं से सम्बन्धित मनुष्य का अध्ययन।
  4. धन को प्रथम स्थान दिया गया।

आलोचना (Criticism)-इस परिभाषा की कटु आलोचना की गई। लोगों ने धन प्राप्ति को अपना उद्देश्य मान लिया और धन ही उसका माध्य हो गया। धन की प्रधानता के कारण मनुष्य का स्थान गौण हो गया। धन प्राप्त करना ही एकमात्र लक्ष्य हो गया तथा इसके परिणामस्वरूप सारे समाज में निराशा तथा असन्तोष फैलने लगा। कार्लाइल तथा रस्किन आदि विद्वानों ने अर्थशास्त्र की कटु आलोचना की और इसे निकृष्ट व दुखदायी विज्ञान, कुबेर विज्ञान और सामाजिक अहित का विज्ञान कहा।

प्रश्न 2.
मार्शल की परिभाषा की समीक्षा कीजिए। (Evaluate Marshalls definition of Economics.)
उत्तर-
अर्थशास्त्र को कटु आलोचनाओं से बचाने के लिए, मार्शल ने कहा कि अर्थशास्त्र के अध्ययन का विषय मनुष्य है न कि धन। मनुष्य प्रधान है तथा धन गौण। मार्शल ने अर्थशास्त्र की परिभाषा इस प्रकार दी, “अर्थशास्त्र जीवन के साधारण व्यवसाय के सम्बन्ध में मानव जाति का अध्ययन है। यह व्यक्तिगत तथा सामाजिक कार्यों के उस भाग का अध्ययन करता है जिसका घनिष्ठ सम्बन्ध कल्याण प्रदान करने वाले भौतिक पदार्थों की प्राप्ति तथा उनका उपयोग करने से है।” (“‘Economics is a study of making in the ordinary business of life, it examines that part of the individual and social action which is most closely connected with the attainment and with the use of material requisites of well being.”-Marshall)

मुख्य विशेषताएं (Main Features)

  1. मनुष्य के अध्ययन को महत्त्व।
  2. सामाजिक मनुष्य का अध्ययन।
  3. जीवन के साधारण व्यवसाय का सम्बन्ध मनुष्य के आर्थिक कार्यों से है।
  4. अर्थशास्त्र में केवल उन्हीं साधनों का अध्ययन किया जाता है जिनसे मनुष्य के कल्याण में वृद्धि होती है।
  5. अर्थशास्त्र में मनुष्य के भौतिक वस्तुओं से सम्बन्धित कार्यों का अध्ययन किया जाता है।
  6. अर्थशास्त्र विज्ञान तथा कला दोनों है।
  7. इस शास्त्र में सिर्फ वास्तविक मनुष्य का अध्ययन किया जाता है।

आलोचना (Criticism)-प्रो० रॉबिन्स ने भौतिक कल्याण सम्बन्धी परिभाषा की कड़ी आलोचना की, जैसे –

  • अर्थशास्त्र एक शुद्ध विज्ञान है तथा कल्याण से कोई सम्बन्ध नहीं।
  • अर्थशास्त्र मानव विज्ञान है केवल समाज में रहने वाले मनुष्यों का अध्ययन नहीं।
  • कल्याण की धारणा अनिश्चित है।
  • यह परिभाषा वर्गकारिणी तथा दोषपूर्ण है।
  • इस परिभाषा ने अर्थशास्त्र का क्षेत्र सीमित कर दिया है।

प्रश्न 3.
रॉबिन्स की परिभाषा की आलोचनात्मक व्याख्या करें। (Critically discuss Robbins definition of Economics.)
उत्तर-
मार्शल की परिभाषा काफ़ी देर तक चलती रही परन्तु 1932 में प्रो० रॉबिन्स ने अपनी पुस्तक ‘Principles of Economics, में मार्शल की परिभाषा की आलोचना करते हुए एक नई परिभाषा को जन्म दिया जो निम्नलिखित प्रकार से है :
“अर्थशास्त्र वह विज्ञान है जो मानवीय व्यवहार का अध्ययन करता है जिसका सम्बन्ध असीम आवश्यकताओं तथा वैकल्पिक प्रयोग वाले सीमित साधनों से है।” (“Economics is a science which studies human behaviour as a relationship between ends and scarce means which have alternative uses.”-Robbins)

मुख्य विशेषताएं (Main Features)-

  1. असीमित आवश्यकताएं
  2. सीमित साधन
  3. साधनों के वैकल्पिक उपयोग
  4. निर्णय की समस्या।

यह परिभाषा वैज्ञानिक है। इससे अर्थशास्त्र का क्षेत्र व्यापक बन गया है। यह परिभाषा विश्लेषणात्मक मानी गई है। इस प्रकार रॉबिन्स की परिभाषा में बहुत गुण हैं।

आलोचना (Criticism)-

  • अर्थशास्त्र साधनों के साथ-साथ उद्देश्य से भी सम्बन्धित है।
  • अर्थशास्त्र केवल विज्ञान ही नहीं कला भी है।
  • यह परिभाषा जटिल है।
  • यह परिभाषा बेकारी, विकास, निर्धनता जैसी समस्याओं की ओर ध्यान नहीं देती।
  • इस परिभाषा से अर्थशास्त्र का क्षेत्र अनिश्चित बन गया है।
  • इसमें कल्याण तथा मानवीय तत्त्वों की कमी है।

प्रश्न 4.
अर्थशास्त्र के क्षेत्र को स्पष्ट करो। (Explain the scope of Economics.)
उत्तर-
अर्थशास्त्र के क्षेत्र को दो हिस्सों में बांट कर स्पष्ट किया जा सकता है:
(A) अर्थशास्त्र का विषय-वस्तु (Subject-Matter of Economics) – अर्थशास्त्र के विषय-वस्तु के बारे में अर्थशास्त्रियों के अलग-अलग विचार हैं। विचारधारा के मतभेद के आधार पर श्रीमती वूटन ने कहा है, “जहां छ: अर्थशास्त्री इकट्ठे होते हैं वहां सात विचारधाराएं होती हैं।” (“Whenever Six Economist gather, there are Seven opinion.”)
अर्थशास्त्र के विषय का अर्थ यह है कि इसके अध्ययन की सामग्री (Matter) क्या है? अर्थात् किन बातों का अध्ययन किया जाता है।
अर्थशास्त्र के पिता एडम स्मिथ (Adam Smith) के अनुसार, “अर्थशास्त्र का विषय-वस्तु धन से सम्बन्धित क्रियाओं से है।” अर्थात् धन की प्रकृति और कारणों की जांच से है।

डॉ० मार्शल (Dr. Marshall) और उनके समर्थकों के अनुसार अर्थशास्त्र में हम मनुष्य के भौतिक कल्याण (Material Welfare) का अध्ययन करते हैं। प्रो० रॉबिन्स (Prof. Robbins) के अनुसार, “हम अर्थशास्त्र में इस बात का अध्ययन करते हैं कि मनुष्य अपने सीमित साधनों से अपनी असीमित आवश्यकताओं को कैसे पूरा करता है।”

प्रो०-“बिन्स के अनुसार अर्थशास्त्र के विषय-वस्तु का सम्बन्ध मनुष्यों के उन यत्नों से है जो अपनी असीमित आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए साधनों की प्राप्ति के लिए यत्न करते हैं। प्रो० चैपमैन के अनुसार, “अर्थशास्त्र का विषय वस्तु धन के उपभोग, उत्पादन, विनिमय और विभाजन का अध्ययन है।”
(“’Economics is that branch of knowledge which studies the consumption, production, exchange and distribution of wealth.”)
1. उपभोग (Consumption)-उपभोग का अर्थ आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए वस्तुओं तथा सेवाओं के प्रयोग से होता है। अर्थशास्त्र का वह भाग जिसमें आवश्यकताओं और उन्हें पूरा करने का यत्न किया जाता है, उपभोग कहलाता है। इसमें उपभोग और उससे सम्बन्धित नियमों का अध्ययन किया जाता है।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 1 अर्थशास्त्र क्या है?

2. उत्पादन (Production)-उत्पादन का अर्थ वस्तु या सेवा में तुष्टिगुण या मूल्य को पैदा करना है। इस भाग में उत्पादन के साधनों, भूमि, श्रम, पूंजी, उद्यमी तथा उत्पादन के नियमों का अध्ययन किया जाता है।

3. विनिमय (Exchange)-विनिमय का अर्थ वस्तुओं तथा सेवाओं द्वारा विनिमय (Barter Exchange) या इसका मुद्रा द्वारा विनिमय (Money Exchange) से है। इस भाग में बाज़ार की किस्में, अलग-अलग बाजार स्थितियों में कीमत निर्धारण, मुद्रा, बैंकिंग, साख, व्यापार आदि विषयों का अध्ययन किया जाता है।

4. विभाजन (Distribution)-उत्पादन, विभिन्न उत्पादन के साधनों के सुमेल का परिणाम है। इस प्रकार विभाजन है राष्ट्रीय आय का उत्पादन के साधनों में सेवाओं के बदले में दिया गया इनाम। इस भाग में भूमि के किराए, मज़दूरों की मज़दूरी, पूंजी का ब्याज, उद्यमी के लाभ के निर्धारण से सम्बन्धित नियमों का अध्ययन किया जाता है।

(B) अर्थशास्त्र की प्रकृति (Nature of Economics) –
अर्थशास्त्र की प्रकृति को स्पष्ट करने के लिए इस बात का अध्ययन किया जाता है कि अर्थशास्त्र विज्ञान है अथवा कला?
1. अर्थशास्त्र विज्ञान है-विज्ञान किसी भी विषय के सिलसिलेवार अध्ययन को कहा जाता है। अर्थशास्त्र में हम उपभोग, उत्पादन, विनिमय तथा विभाजन का अध्ययन करते हैं जोकि एक सिलसिलेवार अध्ययन है इसलिए अर्थशास्त्र एक विज्ञान है। विज्ञान दो प्रकार का होता है

  • वास्तविक विज्ञान (Positive Science)-अर्थशास्त्र के नियम शुद्ध विज्ञानों की तरह हैं जिनमें कारण तथा परिणाम का सम्बन्ध स्पष्ट किया जाता है जैसे किसी वस्तु की कीमत में वृद्धि होती है तो उसकी माँग कम हो जाती है, यह एक वैज्ञानिक नियम है। प्रो० रॉबिन्स के अनुसार, “अर्थशास्त्र का काम खोज करना और व्यवस्था करना है, समर्थन करना या आलोचना करना नहीं।”
  • अर्थशास्त्र आदर्शमयी विज्ञान है-आदर्शमयी विज्ञान के अधीन इस बात का अध्ययन किया जाता है कि क्या होना चाहिए ? (What ought to be ?) अर्थशास्त्र में हम केवल बेरोज़गारी, ग़रीबी, कीमतों आदि समस्याओं का अध्ययन ही नहीं करते। इस बात का अध्ययन भी करते हैं कि इन समस्याओं को कैसे हल किया जाना चाहिए। 2. क्या अर्थशास्त्र कला है-कला का अर्थ है हम विज्ञान के नियमों को व्यावहारिक रूप दे सकें। अर्थशास्त्र के नियमों का प्रयोग जीवन की समस्याओं को हल करने के लिए किया जा सकता है। इसलिए अर्थशास्त्र कला है।

प्रश्न 5.
अर्थशास्त्र का महत्त्व स्पष्ट करें। (Explain the importance of Economics.)
उत्तर-
प्रत्येक व्यक्ति को आर्थिक समस्या का सामना करना पड़ता है। सीमित साधनों द्वारा अधिकतम सन्तुष्टि प्राप्त करने के लिए अर्थशास्त्र के सिद्धान्तों का पालन न केवल व्यक्ति कर के लिए एवं समाज के लिए भी लाभकारी होता है। अर्थशास्त्र से प्राप्त होने वाले लाभ इस प्रकार हैं –
1. उपभोगियों के लिए महत्त्व (Importance for Consumers)-प्रत्येक व्यक्ति वस्तुओं तथा सेवाओं की खरीद करते समय अर्थशास्त्र के सिद्धान्तों का पालन करके अपनी सीमित आय द्वारा अधिकतम सन्तुष्टि प्राप्त कर सकता है। इसलिए अर्थशास्त्र का अध्ययन हर व्यक्ति तथा गृहस्थ के लिए ज़रूरी है।

2. उत्पादकों के लिए महत्त्व (Importance for Producers)-प्रत्येक उत्पादक अपने लाभ को अधिकतम करने की चेष्टा करता है। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए अर्थशास्त्र का ज्ञान आवश्यक है। अर्थशास्त्र के सिद्धान्त स्पष्ट करते हैं कि आय को अधिकतम करके तथा लागत को कैसे कम करके अधिकतम लाभ प्राप्त किया जा सकता है।

3. व्यापार में महत्त्व (Importance in Trade)- अर्थशास्त्र का अध्ययन व्यापार के लिए भी महत्त्वपूर्ण होता है। अर्थशास्त्र के सिद्धान्त स्पष्ट करते हैं कि देश के अन्दर तथा विदेशों के साथ व्यापार करना किन हालतों में लाभदायक होता है। इस प्रकार अर्थशास्त्र विश्व के सारे देशों के लिए तुलनात्मक लागत लाभ के सिद्धान्त अनुसार उत्पादन करने के लिए प्रेरित करता है।

4. सरकार के लिए महत्त्व (Importance for the Government)-अर्थशास्त्र में ऐसे सिद्धान्त हैं जिन के द्वारा प्रत्येक देश की सरकार अपनी आय तथा व्यय को निर्धारण करती है। कर कैसे लगाए जाएं, करों से प्राप्त और किस प्रकार खर्च किया जाए जिस द्वारा सामाजिक कल्याण में वृद्धि हो। इस प्रकार अर्थशास्त्र देश की सरकार के लिए भी महत्त्वपूर्ण होता है।

5. कीमत निर्धारण में महत्त्व (Importance in Price Determination) – अर्थशास्त्र द्वारा प्रत्येक वस्तु की कीमत निर्धारण करने के लिए सिद्धान्त दिए गए हैं। वस्तु की माँग तथा पूर्ति द्वारा कीमत निर्धारण होती है। जब कभी वस्तु की माँग में वृद्धि होती है तो उस वस्तु की कीमत बढ़ जाती है। इस प्रकार वस्तुओं तथा सेवाओं की कीमत निर्धारण में भी अर्थशास्त्र लाभकारी होता है।

6. अधिकतम कल्याण (Maximum Welfare) – अर्थशास्त्र का मुख्य उद्देश्य व्यक्ति तथा समाज के कल्याण को अधिकतम करना होता है। प्रत्येक व्यक्ति तथा समाज सीमित साधनों का प्रयोग इस प्रकार करना चाहता है जिसके द्वारा अधिकतम सामाजिक कल्याण प्राप्त किया जा सके। इस प्रकार अर्थशास्त्र असीमित आवश्यकताओं को पूरा करने वाले, सीमित साधनों जिनके विभिन्न उपयोग होते हैं, के चुनाव का अध्ययन है।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 1 अर्थशास्त्र क्या है?

7. विद्यार्थियों के लिए महत्त्व (Importance for Students)-अर्थशास्त्र विद्यार्थियों के लिए भी महत्त्वपूर्ण है। एक अर्थव्यवस्था में बहुत-सी आर्थिक समस्याएँ होती हैं जैसा कि बेरोज़गारी, निर्धनता तथा ग्रामीण क्षेत्र की समस्याएँ होती हैं। इन समस्याओं को समझ कर अर्थशास्त्र के विद्यार्थी उनका उचित हल देने में सफल हो जाते हैं। अर्थशास्त्र का अध्ययन व्यावहारिक जीवन में प्रत्येक व्यक्ति के लिए महत्त्वपूर्ण है।

PSEB 11th Class Sociology Source Based Questions

Punjab State Board PSEB 11th Class Sociology Book Solutions Source Based Questions and Answers.

PSEB 11th Class Sociology Source Based Questions

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਹੇਠਾਂ ਦਿੱਤੇ ਸਰੋਤ ਨੂੰ ਪੜ੍ਹੋ ਅਤੇ ਨਾਲ ਦਿੱਤੇ ਪ੍ਰਸ਼ਨਾਂ ਦੇ ਉੱਤਰ ਦਿਓ-
19ਵੀਂ ਸ਼ਤਾਬਦੀ ਦਾ ਸਮਾਂ ਹੀ ਉਹ ਸਮਾਂ ਹੈ ਜਿਸ ਵਿੱਚ ਪ੍ਰਾਕਿਰਤਿਕ ਵਿਗਿਆਨ ਨੇ ਬਹੁਤ ਜ਼ਿਆਦਾ ਤਰੱਕੀ ਕੀਤੀ। ਪਾਕਿਰਤਿਕ ਵਿਗਿਆਨ ਦੇ ਖੇਤਰ ਵਿੱਚ ਕੰਮ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਲੋਕਾਂ ਦੀ ਸਫਲਤਾ ਨੇ ਸਮਾਜਿਕ ਵਿਚਾਰਕਾਂ ਨੂੰ ਪ੍ਰੇਰਿਤ ਕੀਤਾ। ਇਹ ਵਿਸ਼ਵਾਸ ਸੀ ਕਿ ਜੇ ਭੌਤਿਕ ਦੁਨੀਆਂ ਵਿੱਚ ਪ੍ਰਕਿਰਤਿਕ ਵਿਗਿਆਨ ਦੀਆਂ ਵਿਧੀਆਂ ਨਾਲ ਭੌਤਿਕ ਵਿਗਿਆਨ ਨੂੰ ਸਫਲਤਾ ਪੂਰਵਕ ਸਮਝਿਆ ਜਾ ਸਕਦਾ ਹੈ ਤਾਂ ਉਹਨਾਂ ਵਿਧੀਆਂ ਨੂੰ ਹੀ ਸਮਾਜਿਕ ਜੀਵਨ ਦੀਆਂ ਸਮਾਜਿਕ ਘਟਨਾਵਾਂ ਨੂੰ ਸਮਝਣ ਵਿੱਚ ਸਫਲਤਾ ਪੂਰਵਕ ਪ੍ਰਯੋਗ ਕੀਤਾ ਜਾ ਸਕਦਾ ਹੈ। ਕਈ ਵਿਚਾਰਕ, ਜਿਵੇਂ ਅਗਸਤ ਮਤੇ, ਹਰਬਰਟ ਸਪੈਂਸਰ, ਇਮਾਈਲ ਦੁਰਘੀਮ, ਮੈਕਸ ਵੈਬਰ ਅਤੇ ਹੋਰ ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰੀਆਂ ਨੇ ਸਮਾਜ ਦੇ ਅਧਿਐਨ ਲਈ ਵਿਗਿਆਨਕ ਅਧਿਐਨ ਦੀ ਪ੍ਰੋੜਤਾ ਕੀਤੀ, ਜਿਵੇਂ ਕਿ ਉਹ ਪਾਕਿਰਤਿਕ ਵਿਗਿਆਨ ਦੇ ਆਵਿਸ਼ਕਾਰਾਂ ਤੋਂ ਉਤਸਾਹਿਤ ਸਨ ਅਤੇ ਸਮਾਜ ਦਾ ਵੀ ਉਸੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਅਧਿਐਨ ਕਰਨਾ ਚਾਹੁੰਦੇ ਸਨ।

(i) ਕਿਸ ਕਾਰਨ ਸਮਾਜਿਕ ਵਿਚਾਰਕ ਪ੍ਰਕਿਰਤਿਕ ਵਿਗਿਆਨਾਂ ਦਾ ਅਨੁਕਰਣ ਕਰਨ ਲਈ ਪ੍ਰੇਰਿਤ ਹੋਏ ?
(ii) ਕਿਹੜੇ ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰੀਆਂ ਨੇ ਸਮਾਜ ਦਾ ਅਧਿਐਨ ਕੀਤਾ ?
(iii) ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰੀਆਂ ਦਾ ਪ੍ਰਕਿਰਤਿਕ ਵਿਗਿਆਨਾਂ ਦੀਆਂ ਪੱਤੀਆਂ ਬਾਰੇ ਕੀ ਵਿਚਾਰ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
(i) 19ਵੀਂ ਸਦੀ ਵਿੱਚ ਪ੍ਰਾਕਿਰਤਿਕ ਵਿਗਿਆਨਾਂ ਦੇ ਖੇਤਰ ਵਿੱਚ ਕੰਮ ਕਰ ਰਹੇ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਕਾਫ਼ੀ ਸਫ਼ਲਤਾ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੋਈ। ਇਸ ਕਾਰਨ ਸਮਾਜਿਕ ਵਿਚਾਰਕ ਪ੍ਰਕਿਰਤਿਕ ਵਿਗਿਆਨਾਂ ਦਾ ਅਨੁਕਰਣ ਕਰਨ ਲਈ ਪ੍ਰੇਰਿਤ ਹੋਏ।

(ii) ਅਗਸਤੇ ਕਾਮਤੇ, ਹਰਬਰਟ ਸਪੈਂਸਰ, ਇਮਾਈਲ ਦੁਰਘੀਮ, ਮੈਕਸ ਵੈਬਰ ਵਰਗੇ ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰੀਆਂ ਨੇ ਸਮਾਜ ਦਾ ਕਾਫ਼ੀ ਡੂੰਘਾਈ ਨਾਲ ਅਧਿਐਨ ਕੀਤਾ।

(iii) ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰੀਆਂ ਦਾ ਮੰਨਣਾ ਸੀ ਕਿ ਜਿਵੇਂ ਪ੍ਰਾਕਿਰਤਿਕ ਵਿਗਿਆਨ ਦੀਆਂ ਪੱਧਤੀਆਂ ਨਾਲ ਭੌਤਿਕ ਘਟਨਾਵਾਂ ਨੂੰ ਅਸਾਨੀ ਨਾਲ ਸਮਝਿਆ ਜਾ ਸਕਦਾ ਹੈ, ਉਸੇ ਤਰ੍ਹਾਂ ਇਹਨਾਂ ਪੱਧਤੀਆਂ ਦੀ ਮਦਦ ਨਾਲ ਸਮਾਜਿਕ ਸੰਸਾਰ ਦੀਆਂ ਸਮਾਜਿਕ ਘਟਨਾਵਾਂ ਨੂੰ ਵੀ ਸਫ਼ਲਤਾ ਪੂਰਵਕ ਸਮਝਿਆ ਜਾ ਸਕਦਾ ਹੈ ।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Source Based Questions

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਹੇਠਾਂ ਦਿੱਤੇ ਸਰੋਤ ਨੂੰ ਪੜ੍ਹੋ ਅਤੇ ਨਾਲ ਦਿੱਤੇ ਪ੍ਰਸ਼ਨਾਂ ਦੇ ਉੱਤਰ ਦਿਓ-
ਯੂਰਪ ਅਤੇ ਅਮਰੀਕਾ ਵਿੱਚ ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਵਿਸ਼ੇ ਦਾ ਵਿਕਾਸ 19ਵੀਂ ਸ਼ਤਾਬਦੀ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਹੋਇਆ, ਜਦੋਂ ਕਿ ਭਾਰਤ ਵਿੱਚ ਇਸ ਦੀ ਉਤਪਤੀ ਕੁਝ ਸਮੇਂ ਬਾਅਦ ਹੋਈ ਅਤੇ ਇਸ ਵਿਸ਼ੇ ਨੂੰ ਅਧਿਐਨ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਦੂਜੇ ਪੱਧਰ ‘ਤੇ ਮਹੱਤਤਾ ਦਿੱਤੀ ਗਈ। ਭਾਰਤ ਦੀ ਸੁਤੰਤਰਤਾ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਦਾ ਪੱਧਰ ਉੱਚਾ ਹੋਇਆ ਅਤੇ ਦੇਸ਼ ਦੀਆਂ ਸਾਰੀਆਂ ਯੂਨੀਵਰਸਿਟੀਆਂ ਵਿੱਚ ਇਹ ਸੁਤੰਤਰ ਵਿਸ਼ੇ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਪਾਠਕ੍ਰਮ ਦਾ ਹਿੱਸਾ ਬਣਿਆ, ਨਾਲ ਹੀ ਪ੍ਰਤੀਯੋਗੀ ਪ੍ਰੀਖਿਆਵਾਂ ਵਿੱਚ ਇਸ ਵਿਸ਼ੇ ਨੂੰ ਮਾਨਤਾ ਮਿਲੀ। ਰਾਧਾ ਕਮਲ ਮੁਖਰਜੀ, ਜੀ. ਐੱਸ. ਏ, ਡੀ. ਪੀ. ਮੁਖਰਜੀ, ਡੀ. ਐੱਨ ਮਜੂਮਦਾਰ, ਕੇ. ਐੱਮ. ਕਪਾਡੀਆ, ਐੱਮ. ਐੱਨ. ਸੀਨਿਵਾਸ, ਪੀ, ਐੱਨ. ਪ੍ਰਭੁ, ਏ. ਆਰ. ਦਿਸਾਈ, ਕੁਝ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਨਾਮ ਹਨ, ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਭਾਰਤ ਵਿੱਚ ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਵਿੱਚ ਯੋਗਦਾਨ ਦਿੱਤਾ।

(i) ਇੱਕ ਵਿਸ਼ੇ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਯੂਰਪ ਵਿੱਚ ਕਦੋਂ ਵਿਕਸਿਤ ਹੋਇਆ ?
(ii) ਕੁੱਝ ਭਾਰਤੀ ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰੀਆਂ ਦੇ ਨਾਮ ਦੱਸੋ ਜਿਹਨਾਂ ਨੇ ਭਾਰਤੀ ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਵਿੱਚ ਯੋਗਦਾਨ ਦਿੱਤਾ ?
(iii) ਭਾਰਤ ਵਿੱਚ ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਕਿਵੇਂ ਵਿਕਸਿਤ ਹੋਇਆ ?
ਉੱਤਰ-
(i) ਯੂਰਪ ਅਤੇ ਅਮਰੀਕਾ ਵਿੱਚ ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਇੱਕ ਵਿਸ਼ੇ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ 19ਵੀਂ ਸਦੀ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਕਾਫ਼ੀ ਤੇਜ਼ੀ ਨਾਲ ਵਿਕਸਿਤ ਹੋਇਆ ।

(ii) ਰਾਧਾ ਕਮਲ ਮੁਖਰਜੀ, ਜੀ. ਐਸ. ਘੂਰੀਏ, ਡੀ. ਪੀ. ਮੁਖਰਜੀ, ਡੀ. ਐੱਨ. ਮਜੂਮਦਾਰ, ਕੇ. ਐੱਮ. ਕਪਾਡੀਆ, ਐੱਮ. ਐੱਨ. ਸ੍ਰੀਨਿਵਾਸ, ਪੀ, ਐੱਨ. ਪ੍ਰਭੂ, ਏ. ਆਰ ਦਿਸਾਈ, ਕੁਝ ਭਾਰਤੀ ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰੀ ਹਨ, ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਭਾਰਤੀ ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਵਿੱਚ ਯੋਗਦਾਨ ਦਿੱਤਾ।

(iii) 1947 ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਭਾਰਤ ਵਿੱਚ ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਦਾ ਵਿਕਾਸ ਤੇਜ਼ੀ ਨਾਲ ਨਾ ਹੋ ਸਕਿਆ ਕਿਉਂਕਿ ਭਾਰਤ ਉੱਤੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦਾ ਕਬਜ਼ਾ ਸੀ। ਪਰ ਸੁਤੰਤਰਤਾ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਭਾਰਤ ਵਿੱਚ ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਤੇਜ਼ੀ ਨਾਲ ਵਿਕਸਿਤ ਹੋਇਆ ਅਤੇ ਦੇਸ਼ ਦੀਆਂ ਲਗਭਗ ਸਾਰੀਆਂ ਯੂਨੀਵਰਸਿਟੀਆਂ ਵਿੱਚ ਇਸ ਨੂੰ ਇੱਕ ਸੁਤੰਤਰ ਵਿਸ਼ੇ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਪੜ੍ਹਾਇਆ ਜਾਣ ਲੱਗ ਪਿਆ। ਇਸ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਅੱਡ-ਅੱਡ ਪ੍ਰਤਿਯੋਗੀ ਪ੍ਰੀਖਿਆਵਾਂ ਵਿੱਚ ਵੀ ਇਸ ਦਾ ਪ੍ਰਯੋਗ ਕੀਤਾ ਜਾਣ ਲੱਗ ਪਿਆ ਜਿਸ ਕਾਰਨ ਇਹ ਤੇਜ਼ੀ ਨਾਲ ਵਿਕਸਿਤ ਹੋਇਆ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 3.
ਹੇਠਾਂ ਦਿੱਤੇ ਸਰੋਤ ਨੂੰ ਪੜ੍ਹੋ ਅਤੇ ਨਾਲ ਦਿੱਤੇ ਪ੍ਰਸ਼ਨਾਂ ਦੇ ਉੱਤਰ ਦਿਓ-
ਮੌਰਿਸ ਜਿਨਸਬਰਗ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਇਤਿਹਾਸਿਕ ਤੌਰ ਤੇ ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਦੀਆਂ ਜੜ੍ਹਾਂ ਰਾਜਨੀਤੀ ਅਤੇ ਇਤਿਹਾਸ ਦੇ ਦਰਸ਼ਨ (ਫਿਲਾਸਫੀ) ਵਿੱਚ ਹਨ। ਇਸ ਕਾਰਨ ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ, ਰਾਜਨੀਤੀ ਸ਼ਾਸਤਰ ‘ਤੇ ਨਿਰਭਰ ਕਰਦਾ ਹੈ, ਹਰ ਸਮਾਜਿਕ ਸਮੱਸਿਆ ਦਾ ਕਾਰਨ ਰਾਜਨੀਤਿਕ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦਾ, ਪਰ ਰਾਜਨੀਤੀ ਵਿਵਸਥਾ ਜਾਂ ਸੰਰਚਨਾ ਦੀ ਪ੍ਰਕਿਰਤੀ ਵਿਚ ਕਿਸੇ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦਾ ਕੋਈ ਵੀ ਪਰਿਵਰਤਨ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਪਰਿਵਰਤਨ ਲਿਆਉਂਦਾ ਹੈ। ਕਈ ਰਾਜਨੀਤਿਕ ਘਟਨਾਵਾਂ ਨੂੰ ਸਮਝਣ ਲਈ ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਰਾਜਨੀਤੀ ਸ਼ਾਸਤਰ ਦੀ ਮਦਦ ਲੈਂਦਾ ਹੈ। ਇਸੇ ਤਰ੍ਹਾਂ ਰਾਜਨੀਤੀ ਵਿਗਿਆਨ ਵੀ ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਤੇ ਨਿਰਭਰ ਕਰਦਾ ਹੈ। ਰਾਜ ਆਪਣੇ ਨਿਯਮ, ’ਤੇ ਕਾਨੂੰਨ ਬਣਾਉਂਦਾ ਹੈ ਜੋ ਸਮਾਜਿਕ ਰੀਤੀ-ਰਿਵਾਜ, ਪ੍ਰਥਾਵਾਂ ਅਤੇ ਕਦਰਾਂ-ਕੀਮਤਾਂ ‘ਤੇ ਆਧਾਰਿਤ ਹੁੰਦੇ ਹਨ। ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਸਮਾਜਿਕ ਪਿਛੋਕੜ ਤੋਂ ਬਿਨਾਂ ਰਾਜਨੀਤੀ ਵਿਗਿਆਨ ਦਾ ਅਧਿਐਨ ਅਧੂਰਾ ਹੈ। ਸਾਰੀਆਂ ਰਾਜਨੀਤਿਕ ਸਮੱਸਿਆਵਾਂ ਦਾ ਸਮਾਜਿਕ ਕਾਰਨ ਹੈ ਤੇ ਅਤੇ ਇਹਨਾਂ ਰਾਜਨੀਤਿਕ ਸਮੱਸਿਆਵਾਂ ਦਾ ਹੱਲ ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਰਾਜਨੀਤੀ ਵਿਗਿਆਨ ਦੀ ਮਦਦ ਨਾਲ ਕਰਦਾ ਹੈ।

(i) ਮੌਰਿਸ ਜਿਨਸਬਰਗ ਅਨੁਸਾਰ ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਰਾਜਨੀਤੀ ਵਿਗਿਆਨ ਉੱਤੇ ਕਿਉਂ ਨਿਰਭਰ ਹੈ ?
(ii) ਜਿਨਸਬਰਗ ਅਨੁਸਾਰ ਬਿਨਾਂ ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰੀ ਪਿਛੋਕੜ ਦੇ ਰਾਜਨੀਤੀ ਵਿਗਿਆਨ ਦਾ ਅਧਿਐਨ ਕਿਉਂ ਅਧੂਰਾ ਹੈ ?
(iii) ਕਿਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਰਾਜਨੀਤੀ ਵਿਗਿਆਨ ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਦੀ ਮਦਦ ਲੈਂਦਾ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
(i) ਜਿਨਸਬਰਗ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਇਤਿਹਾਸਿਕ ਰੂਪ ਨਾਲ ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਦੀਆਂ ਜੜ੍ਹਾਂ ਰਾਜਨੀਤੀ ਅਤੇ ਇਤਿਹਾਸ ਦੇ ਦਰਸ਼ਨ ਵਿੱਚ ਮੌਜੂਦ ਹਨ। ਇਸ ਲਈ ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਰਾਜਨੀਤੀ ਵਿਗਿਆਨ ਉੱਤੇ ਨਿਰਭਰ ਹੈ ।

(ii) ਜਿਨਸਬਰਗ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਰਾਜ ਜਦੋਂ ਵੀ ਆਪਣੇ ਨਿਯਮ ਜਾਂ ਕਾਨੂੰਨ ਬਣਾਉਂਦਾ ਹੈ। ਉਸ ਨੂੰ ਸਮਾਜਿਕ ਮੁੱਲਾਂ, ਪ੍ਰਥਾਵਾਂ, ਪਰੰਪਰਾਵਾਂ ਦਾ ਧਿਆਨ ਰੱਖਣਾ ਪੈਂਦਾ ਹੈ। ਇਸ ਕਾਰਨ ਬਿਨਾਂ ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰੀ ਪਿਛੋਕੜ ਦੇ ਰਾਜਨੀਤੀ ਵਿਗਿਆਨ ਦਾ ਅਧਿਐਨ ਅਧੂਰਾ ਹੈ ।

(iii) ਜਿਨਸਬਰਗ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ, ਲਗਭਗ ਸਾਰੀਆਂ ਰਾਜਨੀਤਿਕ ਸਮੱਸਿਆਵਾਂ ਦੀ ਉੱਤਪਤੀ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚੋਂ ਹੀ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ਅਤੇ ਸਮਾਜ ਦਾ ਅਧਿਐਨ ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਕਰਦਾ ਹੈ। ਇਸ ਲਈ ਜਦੋਂ ਵੀ ਰਾਜਨੀਤੀ ਵਿਗਿਆਨ ਨੇ ਸਮਾਜ ਦਾ ਅਧਿਐਨ ਕਰਨਾ ਹੁੰਦਾ ਹੈ, ਉਸ ਨੂੰ ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਦੀ ਮਦਦ ਲੈਣੀ ਪੈਂਦੀ ਹੈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 4.
ਹੇਠਾਂ ਦਿੱਤੇ ਸਰੋਤ ਨੂੰ ਪੜੋ ਅਤੇ ਨਾਲ ਦਿੱਤੇ ਪ੍ਰਸ਼ਨਾਂ ਦੇ ਉੱਤਰ ਦਿਓ-.
ਵੱਖ-ਵੱਖ ਸਮਾਜ ਵਿਗਿਆਨਾਂ ਵਿੱਚ ਸਮਾਜ ਦੇ ਅਰਥ ਵੱਖੋ-ਵੱਖਰੇ ਹਨ। ਪ੍ਰੰਤੂ ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਵਿੱਚ ਇਸਦਾ ਪ੍ਰਯੋਗ ਵਿਭਿੰਨ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦੀਆਂ ਸਮਾਜਿਕ ਇਕਾਈਆਂ ਦੇ ਸੰਦਰਭ ਵਿੱਚ ਹੁੰਦਾ ਹੈ। ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਦਾ ਮੁੱਖ ਕੇਂਦਰ ਬਿੰਦੂ ਮਨੁੱਖੀ ਸਮਾਜ ਹੈ ਅਤੇ ਇਸ ਵਿੱਚ ਪਾਏ ਜਾਣ ਵਾਲੇ ਸੰਬੰਧਾਂ ਦਾ ਵਿਗਿਆਨਕ ਅਧਿਐਨ ਹੈ। ਇਕ ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰੀ ਸਮਾਜਿਕ ਪ੍ਰਾਣੀਆਂ ਦੇ ਅੰਤਰ ਸੰਬੰਧਾਂ ਦਾ ਅਧਿਐਨ ਕਰਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਇਹ ਖੋਜਦਾ ਹੈ ਕਿ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਸਥਿਤੀ ਵਿੱਚ ਇਕ ਵਿਅਕਤੀ ਕਿਹੋ ਜਿਹਾ ਵਿਵਹਾਰ ਕਰਦਾ ਹੈ। ਉਸ ਨੂੰ ਦੂਸਰੇ ਵਿਅਕਤੀਆਂ ਤੋਂ ਕਿਹੋ ਜਿਹੀ ਉਮੀਦ ਕਰਨੀ ਚਾਹੀਦੀ ਹੈ ਅਤੇ ਦੂਸਰੇ ਲੋਕ ਉਸ ਤੋਂ ਕੀ ਉਮੀਦਾਂ ਰੱਖਦੇ ਹਨ।

(i) ਸਮਾਜ ਸ਼ਬਦ ਦਾ ਅਰਥ ਅੱਡ-ਅੱਡ ਸਮਾਜ ਵਿਗਿਆਨਾਂ ਵਿੱਚ ਅੱਡ-ਅੱਡ ਕਿਉਂ ਹੈ ?
(ii) ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਵਿੱਚ ਸਮਾਜ ਦਾ ਕੀ ਅਰਥ ਹੈ ?
(iii) ਸਮਾਜ ਅਤੇ ਇੱਕ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਕੀ ਅੰਤਰ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
(i) ਅੱਡ-ਅੱਡ ਸਮਾਜ ਵਿਗਿਆਨ ਸਮਾਜ ਦੇ ਇੱਕ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਭਾਗ ਦਾ ਅਧਿਐਨ ਕਰਦੇ ਹਨ, ਜਿਵੇਂ ਅਰਥ ਵਿਵਸਥਾ, ਪੈਸੇ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧਿਤ ਵਿਸ਼ੇ ਦਾ ਅਧਿਐਨ ਕਰਦਾ ਹੈ। ਇਸ ਕਾਰਨ ਉਹ ਸਮਾਜ ਸ਼ਬਦ ਦਾ ਅਰਥ ਵੀ ਅੱਡ-ਅੱਡ ਹੀ ਲੈਂਦੇ ਹਨ ।

(ii) ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਵਿਚ ਸੰਬੰਧਾਂ ਦੇ ਜਾਲ ਨੂੰ ਸਮਾਜ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ। ਜਦੋਂ ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਵਿੱਚ ਸੰਬੰਧ ਸਥਾਪਿਤ ਹੋ ਜਾਂਦੇ ਹਨ ਤਾਂ ਸਮਾਜ ਦਾ ਨਿਰਮਾਣ ਹੋਣਾ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਹੈ। ਇਸੇ ਤਰ੍ਹਾਂ ਸਮਾਜਿਕ ਸੰਬੰਧਾਂ ਦੇ ਜਾਲ ਨੂੰ ਸਮਾਜ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

(iii) ਜਦੋਂ ਅਸੀਂ ਸਮਾਜ ਦੀ ਗੱਲ ਕਰਦੇ ਹਾਂ ਤਾਂ ਇਹ ਸਾਰੇ ਸਮਾਜਾਂ ਦੀ ਇਕੱਠੇ ਗੱਲ ਕਰਦੇ ਹਾਂ ਅਤੇ ਅਮੂਰਤ ਰੂਪ ਨਾਲ ਇਸਦਾ ਅਧਿਐਨ ਕਰਦੇ ਹਾਂ। ਪਰ ਇੱਕ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਅਸੀਂ ਕਿਸੇ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਸਮਾਜ ਦੀ ਗੱਲ ਕਰ ਰਹੇ ਹੁੰਦੇ ਹਾਂ, ਜਿਵੇਂ ਕਿ ਭਾਰਤੀ ਸਮਾਜ ਜਾਂ ਅਮਰੀਕੀ ਸਮਾਜ। ਇਸ ਕਾਰਨ ਇਹ ਮੂਰਤ ਸਮਾਜ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Source Based Questions

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 5.
ਹੇਠਾਂ ਦਿੱਤੇ ਸਰੋਤ ਨੂੰ ਪੜੋ ਅਤੇ ਨਾਲ ਦਿੱਤੇ ਪ੍ਰਸ਼ਨਾਂ ਦੇ ਉੱਤਰ ਦਿਓ-
ਸਮੁਦਾਇ ਕਿਸੇ ਵੀ ਅਕਾਰ ਦਾ ਇੱਕ ਸਮਾਜਿਕ ਸਮੂਹ ਹੈ ਜਿਸਦੇ ਮੈਂਬਰ ਇੱਕ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਭੂਗੋਲਿਕ ਖੇਤਰ ਵਿੱਚ ਨਿਵਾਸ ਕਰਦੇ ਹਨ। ਆਮ ਤੌਰ ‘ਤੇ ਇਕ ਸਰਕਾਰ, ਇੱਕ ਸੱਭਿਆਚਾਰਕ ਅਤੇ ਇਤਿਹਾਸਿਕ ਵਿਰਾਸਤ ਨੂੰ ਸਾਂਝਾ ਕਰਦੇ ਹਨ। ਸਮੁਦਾਇ ਤੋਂ ਭਾਵ ਉਹਨਾਂ ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਇੱਕ ਸਮੂਹ ਤੋਂ ਵੀ ਲਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ, ਜੋ ਇੱਕ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦੇ ਕਾਰਜ ਜਾਂ ਗਤੀਵਿਧੀਆਂ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਿਲ ਰਹਿੰਦੇ ਹਨ ਜਿਵੇਂ ਨਸਲਵਾਦੀ ਸਮੁਦਾਇ, ਧਾਰਮਿਕ ਸਮੁਦਾਇ, ਇੱਕ ਰਾਸ਼ਟਰੀ ਸਮੁਦਾਇ, ਇੱਕ ਜਾਤੀ ਸਮੁਦਾਇ ਜਾਂ ਇੱਕ ਭਾਸ਼ਾਈ ਸਮੁਦਾਇ ਆਦਿ। ਇਸ ਅਰਥ ਵਿੱਚ ਇਹ ਸਮਾਨ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾਵਾਂ ਜਾਂ ਪੱਖਾਂ ਵਾਲੇ ਇੱਕ ਸਮਾਜਿਕ, ਧਾਰਮਿਕ ਜਾਂ ਵਿਵਸਾਇਕ ਸਮੂਹ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਕਰਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਵਿਸ਼ਾਲ ਸਮਾਜ, ਜਿਸ ਵਿੱਚ ਉਹ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ, ਤੋਂ ਆਪਣੇ ਆਪ ਨੂੰ ਕੁੱਝ ਵੱਖਰਾ ਪ੍ਰਦਰਸ਼ਿਤ ਕਰਦਾ ਹੈ। ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਸਮੁਦਾਇ ਦਾ ਅਰਥ ਇਕ ਵਿਸ਼ਾਲ ਖੇਤਰ ਵਿੱਚ ਫੈਲੇ ਲੋਕਾਂ ਤੋਂ ਹੈ ਜੋ ਇੱਕ ਜਾਂ ਦੂਜੇ ਢੰਗ ਦੀਆਂ ਸਮਾਨਤਾਵਾਂ ਦੀ ਸਾਂਝ ਰੱਖਦੇ ਹਨ। ਉਦਾਹਰਨ ਦੇ ਲਈ ਅੰਤਰ ਰਾਸ਼ਟਰੀ ਸਮੁਦਾਇ ਜਾਂ ਐੱਨ. ਆਰ. ਆਈ. ਸਮੁਦਾਇ ਵਰਗੇ ਸ਼ਬਦ ਸਮਾਨ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾਵਾਂ ਤੋਂ ਬਣੇ ਕੁੱਝ ਸਪੱਸ਼ਟ ਸਮੂਹਾਂ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਸਾਹਿਤ ਵਿੱਚ ਵਰਤੇ ਜਾਂਦੇ ਹਨ।

(1) ਸਮੁਦਾਇ ਦਾ ਕੀ ਅਰਥ ਹੈ ?
(ii) ਸਮੁਦਾਇ ਦੀਆਂ ਕੁਝ ਉਦਾਹਰਨਾਂ ਦਿਉ ।
(ii) ਸਮੁਦਾਇ ਅਤੇ ਸਮਿਤੀ ਵਿੱਚ ਅੰਤਰ ਦੱਸੋ ।
ਉੱਤਰ-
(i) ਸਮੁਦਾਇ ਕਿਸੇ ਵੀ ਆਕਾਰ ਦਾ ਇੱਕ ਸਮਾਜਿਕ ਸਮੂਹ ਹੈ ਜਿਸ ਦੇ ਮੈਂਬਰ ਕਿਸੇ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਭੂਗੋਲਿਕ ਖੇਤਰ ਵਿੱਚ ਰਹਿੰਦੇ ਹਨ, ਆਮ ਤੌਰ ਉੱਤੇ ਇੱਕ ਸਰਕਾਰ ਅਤੇ ਇੱਕ ਸੰਸਕ੍ਰਿਤਿਕ ਤੇ ਇਤਿਹਾਸਿਕ ਵਿਰਾਸਤ ਨੂੰ ਸਾਂਝਾ ਕਰਦੇ ਹਨ ।

(ii) ਅੰਤਰਰਾਸ਼ਟਰੀ ਸਮੁਦਾਇ, ਭਾਰਤੀ ਸਮੁਦਾਇ, ਪੰਜਾਬੀ ਸਮੁਦਾਇ ਆਦਿ ਸਮੁਦਾਇ ਦੀਆਂ ਕੁਝ ਉਦਾਹਰਨਾਂ ਹਨ।

(iii)
(a) ਸਮੁਦਾਇ ਆਪਣੇ ਆਪ ਹੀ ਬਣ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਪਰ ਸਮਿਤੀ ਨੂੰ ਜਾਣ ਬੁੱਝ ਕੇ ਕਿਸੇ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਉਦੇਸ਼ ਲਈ ਬਣਾਇਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ।
(b) ਸਾਰੇ ਲੋਕ ਆਪਣੇ ਆਪ ਹੀ ਕਿਸੇ ਨਾ ਕਿਸੇ ਸਮੁਦਾਇ ਦੇ ਮੈਂਬਰ ਬਣ ਜਾਂਦੇ ਹਨ, ਪਰ ਸਮਿਤੀ ਦੀ
ਮੈਂਬਰਸ਼ਿਪ ਇੱਛੁਕ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ਅਰਥਾਤ ਵਿਅਕਤੀ ਜਦੋਂ ਚਾਹੇ ਕਿਸੇ ਸਮਿਤੀ ਦੀ ਮੈਂਬਰਸ਼ਿਪ ਲੈ ਅਤੇ ਛੱਡ ਸਕਦਾ ਹੈ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 6.
ਹੇਠਾਂ ਦਿੱਤੇ ਸਰੋਤ ਨੂੰ ਪੜ੍ਹੋ ਅਤੇ ਨਾਲ ਦਿੱਤੇ ਪ੍ਰਸ਼ਨਾਂ ਦੇ ਉੱਤਰ ਦਿਓਸਮਾਜਿਕ ਸਮੂਹ ਵਿਅਕਤੀਆਂ ਦਾ ਸੰਗਠਨ ਹੈ, ਜਿਸ ਵਿੱਚ ਦੋ ਜਾਂ ਦੋ ਤੋਂ ਜ਼ਿਆਦਾ ਵਿਅਕਤੀਆਂ ਦੇ ਵਿਚਕਾਰ ਅੰਤਰਕਿਰਿਆ ਪਾਈ ਜਾਂਦੀ ਹੈ। ਇਸ ਵਿੱਚ ਉਹ ਵਿਅਕਤੀ ਆਉਂਦੇ ਹਨ ਜੋ ਇਕ-ਦੂਜੇ ਦੇ ਨਾਲ ਅੰਤਰ-ਕਿਰਿਆ ਕਰਦੇ ਹਨ ਅਤੇ ਆਪਣੇ-ਆਪ ਨੂੰ ਵੱਖਰੀਂ ਸਮਾਜਿਕ ਇਕਾਈ ਮੰਨਦੇ ਹਨ। ਸਮੂਹ ਵਿੱਚ ਮੈਂਬਰਾਂ ਦੀ ਵੱਖਰੀ ਸੰਖਿਆ ਨੂੰ ਦੋ ਤੋਂ ਸੌ ਵਿਅਕਤੀਆਂ ਦੀ ਸ਼੍ਰੇਣੀ ਵਿੱਚ ਰੱਖਿਆ ਜਾ ਸਕਦਾ ਹੈ। ਇਸਦੇ ਨਾਲ, ਸਮਾਜਿਕ ਸਮੂਹ ਦੀ ਪ੍ਰਕਿਰਤੀ ਗਤੀਸ਼ੀਲ ਹੁੰਦੀ ਹੈ। ਇਸਦੀਆਂ ਗਤੀਵਿਧੀਆਂ ਵਿੱਚ ਸਮੇਂ-ਸਮੇਂ ਤੇ ਪਰਿਵਰਤਨ ਆਉਂਦਾ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ। ਸਮਾਜਿਕ ਸਮੂਹ ਦੇ ਅੰਤਰਗਤ ਵਿਅਕਤੀਆਂ ਵਿਚਕਾਰ ਅੰਤਰ-ਕਿਰਿਆਵਾਂ ਵਿਅਕਤੀਆਂ ਨੂੰ ਦੂਜਿਆਂ ਨਾਲ ਪਹਿਚਾਣ ਬਣਾਉਣ ਲਈ ਪ੍ਰੇਰਿਤ ਕਰਦੀਆਂ ਹਨ। ਸਮੁਹ ਆਮ ਤੌਰ ਤੇ ਸਥਿਰ ਅਤੇ ਸਮਾਜਿਕ ਇਕਾਈ ਹੈ। ਉਦਾਹਰਨ ਦੇ ਲਈ ਪਰਿਵਾਰ, ਸਮੁਦਾਇ, ਪਿੰਡ ਆਦਿ ਸਮੂਹ ਭਿੰਨ-ਭਿੰਨ ਮੰਗਠਿਤ ਕਿਰਿਆਵਾਂ ਕਰਦੇ ਹਨ ਜੋ ਕਿ ਸਮਾਜ ਦੇ ਲਈ ਬਹੁਤ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਹਨ ।

(i) ਸਮਾਜਿਕ ਸਮੂਹ ਦਾ ਕੀ ਅਰਥ ਹੈ ?
(ii) ਕੀ ਭੀੜ ਨੂੰ ਸਮਾਜਿਕ ਸਮੂਹ ਕਿਹਾ ਜਾ ਸਕਦਾ ਹੈ ? ਜੇ ਨਹੀਂ ਤਾਂ ਕਿਉਂ ?
(iii) ਪ੍ਰਾਥਮਿਕ ਅਤੇ ਦੂਤੀਆਂ ਸਮੂਹ ਦਾ ਕੀ ਅਰਥ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
(i) ਵਿਅਕਤੀਆਂ ਦੇ ਉਸ ਸੰਗਠਨ ਨੂੰ ਸਮਾਜਿਕ ਸਮੂਹ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਜਿਸ ਵਿੱਚ ਵਿਅਕਤੀਆਂ ਵਿਚਕਾਰ
ਅੰਤਰਕਿਰਿਆਵਾਂ ਪਾਈਆਂ ਜਾਂਦੀਆਂ ਹਨ। ਜਦੋਂ ਲੋਕ ਇੱਕ-ਦੂਜੇ ਨਾਲ ਅੰਤਰ ਕਿਰਿਆਵਾਂ ਕਰਦੇ ਹਨ ਤਾਂ ਉਹਨਾਂ ਦੇ ਵਿੱਚ ਸਮੁਹ ਬਣ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

(ii) ਜੀ ਨਹੀਂ, ਭੀੜ ਨੂੰ ਸਮੂਹ ਨਹੀਂ ਕਿਹਾ ਜਾ ਸਕਦਾ ਕਿਉਂਕਿ ਭੀੜ ਵਿੱਚ ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਵਿਚਕਾਰ ਅੰਤਰ-ਕਿਰਿਆ ਨਹੀਂ ਹੋਵੇਗੀ। ਜੇਕਰ ਅੰਤਰ-ਕਿਰਿਆ ਨਹੀਂ ਹੋਵੇਗੀ ਤਾਂ ਉਹਨਾਂ ਵਿੱਚ ਸੰਬੰਧ ਵੀ ਨਹੀਂ ਬਣ ਸਕਣਗੇ ਜਿਸ ਕਾਰਨ ਸਮੂਹ ਨਹੀਂ ਬਣ ਪਾਏਗਾ।

(iii)
(a) ਪ੍ਰਾਥਮਿਕ ਸਮੂਹ-ਉਹ ਸਮੂਹ ਜਿਸ ਦੇ ਨਾਲ ਸਾਡਾ ਸਿੱਧਾ, ਪ੍ਰਤੱਖ ਅਤੇ ਰੋਜ਼ਾਨਾਂ ਦਾ ਸੰਬੰਧ ਹੁੰਦਾ ਹੈ, ਉਸ ਨੂੰ ਅਸੀਂ ਪ੍ਰਾਥਮਿਕ ਸਮੂਹ ਕਹਿੰਦੇ ਹਾਂ। ਜਿਵੇਂ ਕਿ ਪਰਿਵਾਰ, ਮਿੱਤਰ ਸਮੂਹ, ਸਕੂਲ ਆਦਿ ।
(b) ਦੂਤੀਆਂ ਸਮੂਹ-ਉਹ ਸਮੂਹ ਜਿਸ ਨਾਲ ਸਾਡਾ ਪ੍ਰਤੱਖ ਅਤੇ ਰੋਜ਼ਾਨਾ ਦਾ ਸੰਬੰਧ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦਾ, ਉਸ ਨੂੰ ਅਸੀਂ ਦੂਤੀਆ ਸਮੂਹ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ, ਜਿਵੇਂ ਕਿ ਮੇਰੇ ਪਿਤਾ ਦਾ ਦਫ਼ਤਰ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 7.
ਹੇਠਾਂ ਦਿੱਤੇ ਸਰੋਤ ਨੂੰ ਪੜ੍ਹੋ ਅਤੇ ਨਾਲ ਦਿੱਤੇ ਪ੍ਰਸ਼ਨਾਂ ਦੇ ਉੱਤਰ ਦਿਓ-
ਗੌਣ ਸਮੂਹ ਲਗਭਗ ਮੁੱਢਲੇ ਸਮੂਹਾਂ ਤੋਂ ਉਲਟ ਹੁੰਦੇ ਹਨ। ਕੂਲੇ ਨੇ ਗੌਣ ਸਮੂਹਾਂ ਦੇ ਬਾਰੇ ਵਿੱਚ ਨਹੀਂ ਦੱਸਿਆ ਜਦੋਂ ਕਿ ਉਹ ਮੁੱਢਲੇ ਸਮੂਹ ਦੇ ਸੰਬੰਧ ਵਿੱਚ ਦੱਸਦਾ ਹੈ, ਬਾਅਦ ਵਿੱਚ ਵਿਚਾਰਕਾਂ ਨੇ ਮੁੱਢਲੇ ਸਮੂਹ ਦੇ ਨਾਲ ਸੌਣ ਸਮੂਹ ਦੇ ਵਿਚਾਰ ਨੂੰ ਸਮਝਿਆ। ਗੌਣ ਸਮੂਹ ਉਹ ਸਮੂਹ ਹੈ, ਜੋ ਆਕਾਰ ਵਿੱਚ ਵੱਡਾ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਥੋੜ੍ਹੇ ਸਮੇਂ ਲਈ ਹੁੰਦਾ ਹੈ। ਮੈਂਬਰਾਂ ਵਿੱਚ ਵਿਚਾਰਾਂ ਦਾ ਆਦਾਨ ਪ੍ਰਦਾਨ ਰਸਮੀ ਉਪਯੋਗ ‘ਤੇ ਆਧਾਰਿਤ, ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਅਤੇ ਅਸਥਾਈ ਹੁੰਦਾ ਹੈ, ਕਿਉਂਕਿ ਇਸਦੇ ਮੈਂਬਰ ਆਪਣੀਆਂ ਭੂਮਿਕਾਵਾਂ ਅਤੇ ਕੀਤੇ ਜਾਣ ਵਾਲੇ ਕੰਮਾਂ ਦੇ ਕਾਰਨ ਆਪਸ ਵਿੱਚ ਜੁੜੇ ਹੁੰਦੇ ਹਨ। ਵਿਕ੍ਰੇਤਾ ਅਤੇ ਖਰੀਦਦਾਰ, ਕ੍ਰਿਕੇਟ ਮੈਚ ਵਿੱਚ ਇਕੱਠੇ ਹੋਏ ਲੋਕ ਅਤੇ ਉਦਯੋਗਿਕ ਸੰਗਠਨ ਇਸਦੇ ਉਦਾਹਰਨ ਹਨ। ਕਾਰਖ਼ਾਨੇ ਦੇ ਮਜ਼ਦੂਰ, ਸੈਨਾ, ਕਾਲਜ ਦੇ ਵਿਦਿਆਰਥੀਆਂ ਦਾ ਸੰਗਠਨ, ਵਿਸ਼ਵ ਵਿਦਿਆਲੇ ਦੇ ਵਿਦਿਆਰਥੀਆਂ ਦੇ ਸੰਗਠਨ, ਇਕ ਰਾਜਨੀਤਿਕ ਦਲ ਆਦਿ ਵੀ ਸੌਣ ਸਮੂਹ ਦੇ ਉਦਾਹਰਨ ਹਨ ।

(i) ਗੌਣ ਸਮੂਹ ਦਾ ਕੀ ਅਰਥ ਹੈ ?
(ii) ਗੌਣ ਸਮੂਹ ਦੀਆਂ ਕੁੱਝ ਉਦਾਹਰਨਾਂ ਦਿਉ ।
(ii) ਮੁੱਢਲੇ ਅਤੇ ਗੌਣ ਸਮੂਹਾਂ ਵਿੱਚ ਦੋ ਅੰਤਰ ਦਿਉ।
ਉੱਤਰ-
(i) ਉਹ ਸਮੂਹ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਨਾਲ ਸਾਡਾ ਸਿੱਧਾ ਅਤੇ ਪ੍ਰਤੱਖ ਸੰਬੰਧ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦਾ, ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਮੈਂਬਰਸ਼ਿਪ ਅਸੀਂ ਆਪਣੀ ਇੱਛਾ ਨਾਲ ਹਿਣ ਕਰ ਸਕਦੇ ਹਾਂ ਅਤੇ ਕਦੇ ਵੀ ਛੱਡ ਸਕਦਾ ਹੈ, ਉਸ ਨੂੰ ਗੌਣ ਸਮੂਹ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

(ii) ਪਿਤਾ ਦਾ ਦਫ਼ਤਰ, ਮਾਂ ਦਾ ਆਫ਼ਿਸ, ਪਿਤਾ ਦਾ ਮਿੱਤਰ ਸਮੂਹ, ਰਾਜਨੀਤਿਕ ਦਲ, ਕਾਰਖ਼ਾਨੇ ਦੇ ਮਜ਼ਦੂਰ ਆਦਿ ਗੌਣ ਸਮੂਹ ਦੀਆਂ ਉਦਾਹਰਨਾਂ ਹਨ ।

(iii)
(a) ਪ੍ਰਾਥਮਿਕ ਸਮੂਹ ਆਕਾਰ ਵਿੱਚ ਕਾਫ਼ੀ ਛੋਟੇ ਹੁੰਦੇ ਹਨ, ਪਰ ਗੌਣ ਸਮੂਹ ਆਕਾਰ ਵਿੱਚ ਕਾਫ਼ੀ ਵੱਡੇ ਹੁੰਦੇ ਹਨ।
(b) ਮੁੱਢਲੇ ਸਮੂਹ ਦੇ ਮੈਂਬਰਾਂ ਵਿਚਕਾਰ ਗੈਰ-ਰਸਮੀ ਅਤੇ ਪ੍ਰਤੱਖ ਸੰਬੰਧ ਹੁੰਦੇ ਹਨ, ਪਰ ਗੌਣ ਸਮੂਹਾਂ ਦੇ ਮੈਂਬਰਾਂ ਵਿਚਕਾਰ ਰਸਮੀ ਅਤੇ ਅਖ ਸੰਬੰਧ ਹੁੰਦੇ ਹਨ ।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Source Based Questions

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 8.
ਹੇਠਾਂ ਦਿੱਤੇ ਸਰੋਤ ਨੂੰ ਪੜੋ ਅਤੇ ਨਾਲ ਦਿੱਤੇ ਪ੍ਰਸ਼ਨਾਂ ਦੇ ਉੱਤਰ ਦਿਓ-
ਇੱਕ ਸਮਾਜ ਦਾ ਸੱਭਿਆਚਾਰ, ਦੂਜੇ ਸਮਾਜ ਦੇ ਸੱਭਿਆਚਾਰ ਨਾਲੋਂ ਭਿੰਨ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਹਰ ਸੱਭਿਆਚਾਰ ਦੀਆਂ ਆਪਣੀਆਂ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾਵਾਂ, ਕਦਰਾਂ-ਕੀਮਤਾਂ ਅਤੇ ਆਪਣੇ ਪਰਿਮਾਪ ਹੁੰਦੇ ਹਨ। ਸਮਾਜਿਕ ਪਰਿਮਾਪ ਸਮਾਜ ਦੁਆਰਾ ਪ੍ਰਮਾਣਿਤ ਵਿਵਹਾਰ ਦੇ ਉਹ ਢੰਗ ਹਨ ਜਦੋਂ ਕਿ ਸਮਾਜਿਕ ਕਦਰਾਂ-ਕੀਮਤਾਂ ਦਾ ਭਾਵ “ਕੀ ਕਰਨਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ ਤੇ ਕੀ ਨਹੀਂ ਕਰਨਾ ਚਾਹੀਦਾ”, ਦੀ ਮਾਨਤਾ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧਿਤ ਹੈ। ਉਦਾਹਰਨ ਦੇ ਤੌਰ ‘ਤੇ, ਇੱਕ ਸੱਭਿਆਚਾਰ/ਸਮਾਜ ਦੇ ਵਿੱਚ ਮਹਿਮਾਨ ਨਿਵਾਜ਼ੀ ਉੱਚ ਸਮਾਜਿਕ ਕੀਮਤ ਹੈ, ਜਦੋਂ ਕਿ ਦੂਸਰੇ ਸਮਾਜ/ਸੱਭਿਆਚਾਰ ਵਿੱਚ ਅਜਿਹਾ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦਾ। ਇਸੇ ਤਰ੍ਹਾਂ ਕਈ ਸਮਾਜਾਂ ਵਿਚ ਬਹੁ-ਵਿਆਹ, ਸੱਭਿਅ ਰੂਪ ਹੈ ਜਦੋਂ ਕਿ ਕਈ ਸਮਾਜਾਂ ਵਿੱਚ ਇਸਨੂੰ ਉੱਚਿਤ ਪ੍ਰਥਾ ਨਹੀਂ ਸਮਝਿਆ ਜਾਂਦਾ।

(i) ਸੰਸਕ੍ਰਿਤੀ ਦਾ ਕੀ ਅਰਥ ਹੈ ?
(ii) ਕੀ ਦੋ ਦੇਸ਼ਾਂ ਦੀ ਸੰਸਕ੍ਰਿਤੀ ਇੱਕੋ ਜਿਹੀ ਹੋ ਸਕਦੀ ਹੈ ?
(ii) ਸੰਸਕ੍ਰਿਤੀ ਦੇ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦੱਸੋ ।
ਉੱਤਰ-
(i) ਆਦਿਕਾਲ ਤੋਂ ਲੈ ਕੇ ਅੱਜ ਤੱਕ ਜੋ ਕੁੱਝ ਵੀ ਮਨੁੱਖ ਨੇ ਆਪਣੇ ਅਨੁਭਵ ਤੋਂ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕੀਤਾ ਹੈ, ਉਸ ਨੂੰ ਸੰਸਕ੍ਰਿਤੀ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ। ਸਾਡੇ ਵਿਚਾਰ, ਅਨੁਭਵ, ਵਿਗਿਆਨ, ਤਕਨੀਕ, ਵਸਤੂਆਂ, ਮੁੱਲ, ਪਰੰਪਰਾਵਾਂ ਆਦਿ ਸਭ ਕੁੱਝ ਸੰਸਕ੍ਰਿਤੀ ਦਾ ਹੀ ਹਿੱਸਾ ਹੈ ।

(ii) ਜੀ ਨਹੀਂ, ਦੋ ਦੇਸ਼ਾਂ ਦੀ ਸੰਸਕ੍ਰਿਤੀ ਇੱਕੋ ਜਿਹੀ ਨਹੀਂ ਹੋ ਸਕਦੀ। ਚਾਹੇ ਦੋਹਾਂ ਦੇਸ਼ਾਂ ਦੇ ਲੋਕ ਇੱਕ ਹੀ ਧਰਮ ਨਾਲ ਕਿਉਂ ਨਾਂ ਸੰਬੰਧਿਤ ਹੋਣ, ਉਹਨਾਂ ਦੇ ਵਿਚਾਰਾਂ, ਆਦਰਸ਼ਾਂ, ਮੁੱਲਾਂ ਆਦਿ ਵਿੱਚ ਕੁੱਝ ਨਾਂ ਕੁੱਝ ਅੰਤਰ ਜ਼ਰੂਰ ਹੁੰਦਾ ਹੈ। ਇਸ ਕਾਰਨ ਉਹਨਾਂ ਦੀ ਸੰਸਕ੍ਰਿਤੀ ਵੀ ਅੱਡ ਹੁੰਦੀ ਹੈ।

(iii) ਸੰਸਕ੍ਰਿਤੀ ਦੇ ਦੋ ਪ੍ਰਕਾਰ ਹੁੰਦੇ ਹਨ-
(a) ਭੌਤਿਕ ਸੰਸਕ੍ਰਿਤੀ – ਸੰਸਕ੍ਰਿਤੀ ਦਾ ਉਹ ਭਾਗ ਜਿਸ ਨੂੰ ਅਸੀਂ ਦੇਖ ਜਾਂ ਛੂ ਸਕਦੇ ਹਾਂ, ਭੌਤਿਕ ਸੰਸਕ੍ਰਿਤੀ ਕਹਾਉਂਦਾ ਹੈ। ਉਦਾਹਰਨ ਦੇ ਲਈ-ਕਾਰ, ਮੇਜ, ਕੁਰਸੀ, ਕਿਤਾਬਾਂ, ਪੈੱਨ, ਇਮਾਰਤ ਆਦਿ।
(b) ਅਭੌਤਿਕ ਸੰਸਕ੍ਰਿਤੀ-ਸੰਸਕ੍ਰਿਤੀ ਦਾ ਉਹ ਭਾਗ ਜਿਸ ਨੂੰ ਅਸੀਂ ਦੇਖ ਜਾਂ ਛੂ ਨਹੀਂ ਸਕਦੇ, ਉਸ ਨੂੰ ਅਭੌਤਿਕ ਸੰਸਕ੍ਰਿਤੀ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ। ਉਦਾਹਰਨ ਦੇ ਲਈ ਸਾਡੇ ਮੁੱਲ, ਪਰੰਪਰਾਵਾਂ, ਵਿਚਾਰ, ਆਦਰਸ਼ ਆਦਿ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 9.
ਹੇਠਾਂ ਦਿੱਤੇ ਸਰੋਤ ਨੂੰ ਪੜੋ ਅਤੇ ਨਾਲ ਦਿੱਤੇ ਪ੍ਰਸ਼ਨਾਂ ਦੇ ਉੱਤਰ ਦਿਓ-
ਮਨੁੱਖੀ ਜੀਵਨ ਦੇ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਪੜਾਵਾਂ ਵਿੱਚ ਮਨੁੱਖ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਵਿਅਕਤੀਆਂ, ਸਮੂਹਾਂ, ਸੰਸਥਾਵਾਂ ਅਤੇ ਸਮੁਦਾਵਾਂ ਦੇ ਸੰਪਰਕ ਵਿੱਚ ਆਉਂਦਾ ਹੈ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਤੋਂ ਉਹ ਬਹੁਤ ਕੁਝ ਸਿੱਖਦਾ ਹੈ। ਵੱਖ-ਵੱਖ ਸਮੂਹ ਅਤੇ ਸੰਸਥਾਵਾਂ ਮਨੁੱਖ ਦੇ ਵਿਵਹਾਰ ਨੂੰ ਸੰਵਾਰਨ ਵਿੱਚ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਭੂਮਿਕਾਵਾਂ ਨਿਭਾਉਂਦੀਆਂ ਹਨ। ਇਸ ਦੇ ਨਾਲ ਹੀ ਮਨੁੱਖ ਸੱਭਿਆਚਾਰ ਦੇ ਕਈ ਤੱਤਾਂ ਨੂੰ ਆਤਮਸਾਤ ਕਰਦਾ ਹੈ। ਹਰ ਸਮਾਜ ਦੇ ਸਮਾਜੀਕਰਨ ਦੇ ਆਪਣੇ ਸਾਧਨ-ਵਿਅਕਤੀ, ਸਮੂਹ ਅਤੇ ਸੰਸਥਾਵਾਂ ਜੋ ਜੀਵਨ ਭਰ ਸਮਾਜੀਕਰਨ ਲਈ ਉੱਚਿਤ ਮਾਤਰਾ ਪ੍ਰਦਾਨ ਕਰਦੇ ਹਨ। ਸਮਾਜੀਕਰਨ ਦੇ ਸਾਧਨ ਉਸ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਦਾ ਹਿੱਸਾ ਹਨ ਜਿਸ ਅਧੀਨ ਵਿਅਕਤੀ ਸੱਭਿਆਚਾਰ ਦੇ ਵਿਸ਼ਵਾਸ, ਕੀਮਤਾਂ ਅਤੇ ਵਿਵਹਾਰਕ ਢੰਗ-ਤਰੀਕਿਆਂ ਨੂੰ ਸਿੱਖਦਾ ਹੈ, ਇਹ ਨਵੇਂ ਮੈਂਬਰਾਂ ਨੂੰ ਆਪਣਾ ਸਥਾਨ ਬਣਾਉਣ ਵਿੱਚ ਮਦਦ ਕਰਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਪੁਰਾਣੇ ਮੈਂਬਰਾਂ ਨੂੰ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਨਵੀਆਂ ਜੁੰਮੇਵਾਰੀਆਂ ਨਿਭਾਉਣ ਲਈ ਤਿਆਰ ਕਰਦਾ ਹੈ ।

(i) ਸਮਾਜੀਕਰਨ ਦਾ ਕੀ ਅਰਥ ਹੈ ?
(ii) ਸਮਾਜੀਕਰਨੇ ਦੇ ਸਾਧਨਾਂ ਦੇ ਨਾਮ ਦੱਸੋ ।
(ii) ਸਮਾਜੀਕਰਨ ਦੇ ਸਾਧਨ ਕੀ ਹਨ ?
ਉੱਤਰ-
(i) ਸਮਾਜੀਕਰਣ ਇੱਕ ਸਿੱਖਣ ਦੀ ਪ੍ਰਕ੍ਰਿਆ ਹੈ। ਜੰਮਣ ਤੋਂ ਲੈ ਕੇ ਮਰਨ ਤੱਕ ਮਨੁੱਖ ਕੁੱਝ ਨਾ ਕੁੱਝ ਸਿੱਖਦਾ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ। ਜਿਸ ਵਿੱਚ ਜੀਵਨਜੀਣ ਦੇ ਅਤੇ ਵਿਵਹਾਰ ਕਰਨ ਦੇ ਤਰੀਕੇ ਸ਼ਾਮਿਲ ਹੁੰਦੇ ਹਨ। ਇਸ ਸਿੱਖਣ ਦੀ ਪ੍ਰਕ੍ਰਿਆ ਨੂੰ ਅਸੀਂ ਸਮਾਜੀਕਰਨ ਕਹਿੰਦੇ ਹਾਂ।

(ii) ਪਰਿਵਾਰ, ਸਕੂਲ, ਖੇਡ ਸਮੂਹ, ਰਾਜਨੀਤਿਕ ਸੰਸਥਾਵਾਂ, ਮੁੱਲ, ਪਰੰਪਰਾਵਾਂ ਆਦਿ ਸਮਾਜੀਕਰਨ ਦੇ ਸਾਧਨਾਂ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਕੰਮ ਕਰਦੇ ਹਨ ।

(iii) ਸਮਾਜੀਕਰਨ ਦੇ ਸਾਧਨ ਉਸ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਦਾ ਭਾਗ ਹਨ ਜਿਸ ਵਿੱਚ ਵਿਅਕਤੀ ਸੰਸਕ੍ਰਿਤੀ ਦੀਆਂ ਕੀਮਤਾਂ, ਵਿਸ਼ਵਾਸਾਂ ਅਤੇ ਵਿਵਹਾਰ ਕਰਨ ਦੇ ਢੰਗਾਂ ਨੂੰ ਸਿੱਖਦਾ ਹੈ। ਇਹ ਨਵੇਂ ਮੈਂਬਰਾਂ ਨੂੰ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਆਪਣਾ ਸਥਾਨ ਬਣਾਉਣ ਵਿੱਚ ਮਦਦ ਕਰਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਪੁਰਾਣੇ ਮੈਂਬਰਾਂ ਨੂੰ ਵੀ ਆਪਣੀਆਂ ਜ਼ਿੰਮੇਵਾਰੀਆਂ ਸਾਂਭਣ ਲਈ
ਤਿਆਰ ਕਰਦਾ ਹੈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 10.
ਹੇਠਾਂ ਦਿੱਤੇ ਸਰੋਤ ਨੂੰ ਪੜੋ ਅਤੇ ਨਾਲ ਦਿੱਤੇ ਪ੍ਰਸ਼ਨਾਂ ਦੇ ਉੱਤਰ ਦਿਓ-
ਹੁਣ ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਜੀਵਨ ਵਿੱਚ ਧਰਮ ਦਾ ਓਨਾ ਪ੍ਰਭਾਵ ਨਹੀਂ ਹੈ, ਜਿੰਨਾਂ ਕੁੱਝ ਪੀੜ੍ਹੀਆਂ ਪਹਿਲਾਂ ਸੀ, ਪਰ ਇਸਦੇ ਬਾਵਜੂਦ ਧਰਮ ਸਾਡੀ ਜ਼ਿੰਦਗੀ, ਕਦਰਾਂ-ਕੀਮਤਾਂ, ਵਿਸ਼ਵਾਸ਼ ਨੂੰ ਅੱਜ ਵੀ ਪ੍ਰਭਾਵਿਤ ਕਰਦਾ ਹੈ। ਭਾਰਤ ਵਰਗੇ ਦੇਸ਼ ਵਿਚ ਧਰਮ ਸਾਡੇ ਜੀਵਨ ਦੇ ਹਰ ਇਕ ਪਹਿਲੂ ਨੂੰ ਪ੍ਰਭਾਵਿਤ ਕਰਦਾ ਹੈ। ਇਸ ਲਈ ਇਸ ਨੂੰ ਸਮਾਜੀਕਰਨ ਦਾ ਇੱਕ ਸ਼ਕਤੀਸ਼ਾਲੀ ਸਾਧਨ ਮੰਨਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ।

ਕਈ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦੇ ਵਿਵਹਾਰ, ਕਰਮਕਾਂਡ, ਕਦਰਾਂ-ਕੀਮਤਾਂ-ਪਰਿਮਾਪ ਇਕ ਪੀੜ੍ਹੀ ਤੋਂ ਦੂਜੀ ਪੀੜ੍ਹੀ ਨੂੰ ਪ੍ਰਵਾਹਿਤ ਕੀਤੇ ਜਾਂਦੇ ਹਨ। ਧਾਰਮਿਕ ਤਿਉਹਾਰ ਆਮ ਤੌਰ ‘ਤੇ ਇਕੱਠੇ ਮਨਾਏ ਜਾਂਦੇ ਹਨ, ਜਿਸ ਨਾਲ ਸਮਾਜੀਕਰਨ ਦੀ ਪ੍ਰਕਿਰਿਆ ਨੂੰ ਬਹੁਤ ਮਦਦ ਮਿਲਦੀ ਹੈ। ਧਰਮ ਤੋਂ ਬੱਚੇ ਨੂੰ ਇਹ ਪਤਾ ਚੱਲਦਾ ਹੈ ਕਿ ਰੱਬ ਜਿਹੜੀ ਕਿ ਅਪਾਰ ਸ਼ਕਤੀ ਹੈ, ਉਸ ਕਿਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਸਾਡੇ ਵਿਵਹਾਰਾਂ ਨੂੰ ਪ੍ਰਭਾਵਿਤ ਕਰਦੀ ਹੈ ਅਤੇ ਸਾਡੀ ਰੱਖਿਆ ਕਰਦੀ ਹੈ। ਜਿਹੜੇ ਮਾਤਾ-ਪਿਤਾ ਧਾਰਮਿਕ ਹੁੰਦੇ ਹਨ, ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਬੱਚੇ ਵੀ ਧਾਰਮਿਕ ਹੋ ਸਕਦੇ ਹਨ ।

(i). ਧਰਮ ਕੀ ਹੈ ?
(ii) ਧਰਮ ਦੀ ਸਮਾਜੀਕਰਨ ਵਿੱਚ ਕੀ ਭੂਮਿਕਾ ਹੈ ?
(iii) ਕੀ ਅੱਜ ਧਰਮ ਦਾ ਮਹੱਤਵ ਘੱਟ ਰਿਹਾ ਹੈ ? ਜੇਕਰ ਹਾਂ ਤਾਂ ਕਿਉਂ ?
ਉੱਤਰ-
(i) ਧਰਮ ਹੋਰ ਕੁੱਝ ਨਹੀਂ ਬਲਕਿ ਅਲੌਕਿਕ ਸ਼ਕਤੀ ਵਿੱਚ ਵਿਸ਼ਵਾਸ ਹੈ ਜੋ ਸਾਡੀ ਪਹੁੰਚ ਤੋਂ ਬਹੁਤ ਦੂਰ ਹੈ। ਇਹ ਵਿਸ਼ਵਾਸਾਂ, ਮੁੱਲਾਂ, ਪਰੰਪਰਾਵਾਂ ਆਦਿ ਦੀ ਵਿਵਸਥਾ ਹੈ। ਜਿਸ ਵਿੱਚ ਉਸ ਧਰਮ ਨੂੰ ਮੰਨਣ ਵਾਲੇ ਵਿਸ਼ਵਾਸ ਕਰਦੇ ਹਨ।

(ii) ਧਰਮ ਦਾ ਸਮਾਜੀਕਰਨ ਵਿੱਚ ਕਾਫ਼ੀ ਮਹੱਤਵ ਹੈ ਕਿਉਂਕਿ ਵਿਅਕਤੀ ਧਰਮ ਦੇ ਮੁੱਲਾਂ, ਪਰੰਪਰਾਵਾਂ ਦੇ ਵਿਰੁੱਧ ਕੋਈ ਕੰਮ ਨਹੀਂ ਕਰਦਾ। ਬਚਪਨ ਤੋਂ ਹੀ ਬੱਚਿਆਂ ਨੂੰ ਧਾਰਮਿਕ ਮੁੱਲਾਂ ਬਾਰੇ ਦੱਸਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ। ਜਿਸ ਕਾਰਨ ਵਿਅਕਤੀ ਸ਼ੁਰੂ ਤੋਂ ਹੀ ਆਪਣੇ ਧਰਮ ਨਾਲ ਜੁੜ ਜਾਂਦਾ ਹੈ।ਉਹ ਕੋਈ ਵੀ ਅਜਿਹਾ ਕੰਮ ਨਹੀਂ ਕਰਦਾ ਜਿਹੜਾ ਧਾਰਮਿਕ ਪਰੰਪਰਾਵਾਂ ਦੇ ਵਿਰੁੱਧ ਹੋਵੇ। ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਧਰਮ ਵਿਅਕਤੀ ਉੱਤੇ ਨਿਯੰਤਰਨ ਵੀ ਰੱਖਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਉਸਦਾ ਸਮਾਜੀਕਰਨ ਵੀ ਕਰਦਾ ਹੈ।

(iii) ਇਹ ਸੱਚ ਹੈ ਕਿ ਅੱਜ-ਕੱਲ੍ਹ ਧਰਮ ਦਾ ਮਹੱਤਵ ਘੱਟ ਹੋ ਰਿਹਾ ਹੈ। ਲੋਕ ਅੱਜ-ਕੱਲ੍ਹ ਵੱਧ ਸਿੱਖਿਆ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰ ਰਹੇ ਹਨ ਅਤੇ ਵਿਗਿਆਨ ਦੇ ਵੱਲ ਉਹਨਾਂ ਦਾ ਝੁਕਾਵ ਵੱਧਦਾ ਜਾ ਰਿਹਾ ਹੈ। ਪਰ ਧਰਮ ਵਿੱਚ ਤਰਕ ਦੀ ਕੋਈ ਥਾਂ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦੀ ਜੋ ਵਿਗਿਆਨ ਵਿੱਚ ਸਭ ਤੋਂ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਹੈ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਲੋਕ ਹੁਣ ਧਰਮ ਦੀ ਥਾਂ ਵਿਗਿਆਨ ਨੂੰ ਮਹੱਤਵ ਦੇ ਰਹੇ ਹਨ ।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Source Based Questions

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 11.
ਹੇਠਾਂ ਦਿੱਤੇ ਸਰੋਤ ਨੂੰ ਪੜ੍ਹੋ ਅਤੇ ਨਾਲ ਦਿੱਤੇ ਪ੍ਰਸ਼ਨਾਂ ਦੇ ਉੱਤਰ ਦਿਓ-
ਵਿਆਹ ਇਸਤਰੀ ਅਤੇ ਪੁਰਸ਼ਾਂ ਦੀਆਂ ਸਰੀਰਕ, ਸਮਾਜਿਕ, ਮਨੋਵਿਗਿਆਨਿਕ, ਸੱਭਿਆਚਾਰਕ ਅਤੇ ਆਰਥਿਕ ਜ਼ਰੂਰਤਾਂ ਨੂੰ ਸੰਤੁਸ਼ਟ ਕਰਨ ਦੇ ਲਈ ਬਣਾਈ ਗਈ ਸੰਸਥਾ ਹੈ। ਇਹ ਪੁਰਸ਼ ਅਤੇ ਇਸਤਰੀ ਨੂੰ ਪਰਿਵਾਰ ਦਾ ਨਿਰਮਾਣ ਕਰਨ ਦੇ ਲਈ ਇਕ ਦੂਜੇ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧ ਸਥਾਪਿਤ ਕਰਨ ਦੀ ਆਗਿਆ ਦਿੰਦਾ ਹੈ। ਵਿਆਹ ਦਾ ਮੁੱਢਲਾ ਉਦੇਸ਼ ਸਥਾਈ ਸੰਬੰਧਾਂ ਦੁਆਰਾ ਲਿੰਗਕ ਕਿਰਿਆਵਾਂ ਨੂੰ ਨਿਯਮਤ ਕਰਨਾ ਹੈ। ਸੌਖੇ ਜਾਂ ਸਾਧਾਰਨ ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ, ਵਿਆਹ ਨੂੰ ਇੱਕ ਅਜਿਹੀ ਸੰਸਥਾ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਪਰਿਭਾਸ਼ਿਤ ਕੀਤਾ ਜਾ ਸਕਦਾ ਹੈ ਜੋ ਪੁਰਸ਼ਾਂ ਅਤੇ ਔਰਤਾਂ ਨੂੰ ਪਰਿਵਾਰਿਕ ਜੀਵਨ ਦੇ ਵਿੱਚ ਪ੍ਰਵੇਸ਼ ਕਰਨ, ਸੰਤਾਨ ਉਤਪਤੀ, ਪਤੀ-ਪਤਨੀ, ਬੱਚਿਆਂ ਦੇ ਵਿਭਿੰਨ ਅਧਿਕਾਰਾਂ ਅਤੇ ਜ਼ਿੰਮੇਵਾਰੀਆਂ ਨੂੰ ਨਿਭਾਉਣ ਦੀ ਪ੍ਰਵਾਨਗੀ ਦਿੰਦੀ ਹੈ। ਸਮਾਜ ਇੱਕ ਪੁਰਸ਼ ਅਤੇ ਇਸਤਰੀ ਵਿਚਕਾਰ ਸੰਬੰਧਾਂ ਨੂੰ ਇੱਕ ਧਾਰਮਿਕ ਸੰਸਕਾਰ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਆਪਣੀ ਪ੍ਰਵਾਨਗੀ ਪ੍ਰਦਾਨ ਕਰਦਾ ਹੈ। ਪਤੀ-ਪਤਨੀ ਇੱਕ-ਦੂਜੇ ਅਤੇ ਸਮਾਜ ਦੇ ਪ੍ਰਤੀ ਅਨੇਕਾਂ ਜ਼ਿੰਮੇਵਾਰੀਆਂ ਦਾ ਪਾਲਣ ਕਰਦੇ ਹਨ। ਵਿਆਹ ਇੱਕ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਆਰਥਿਕ ਉਦੇਸ਼ ਨੂੰ ਵੀ ਪੂਰਾ ਕਰਦਾ ਹੈ। ਇਹ ਵਿਰਾਸਤ ਨਾਲ਼ ਸੰਬੰਧਿਤ ਸੰਪਤੀ ਅਧਿਕਾਰ ਨੂੰ ਪਰਿਭਾਸ਼ਿਤ ਕਰਦਾ ਹੈ। ਇਸ ਪ੍ਰਕਾਰ ਅਸੀਂ ਸਮਝ ਸਕਦੇ ਹਾਂ ਕਿ ਵਿਆਹ ਇੱਕ ਪੁਰਸ਼ ਅਤੇ ਇਸਤਰੀ ਦੇ ਵਿਚਕਾਰ ਬਹੁਮੁਖੀ ਸੰਬੰਧਾਂ ਨੂੰ ਪ੍ਰਦਰਸ਼ਿਤ ਕਰਦਾ ਹੈ।

(i) ਵਿਆਹ ਦਾ ਕੀ ਅਰਥ ਹੈ ?
(ii) ਹਿੰਦੂ ਧਰਮ ਵਿੱਚ ਵਿਆਹ ਨੂੰ ਕੀ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ?
(iii) ਕੀ ਅੱਜ-ਕੱਲ੍ਹ ਵਿਆਹ ਦਾ ਮਹੱਤਵ ਘੱਟ ਹੋ ਰਿਹਾ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
(i) ਵਿਆਹ ਇੱਕ ਅਜਿਹੀ ਸੰਸਥਾ ਹੈ ਜੋ ਆਦਮੀ ਅਤੇ ਔਰਤ ਨੂੰ ਪਰਿਵਾਰਿਕ ਜੀਵਨ ਵਿੱਚ ਪ੍ਰਵੇਸ਼ ਕਰਨ, ਬੱਚਿਆਂ ਨੂੰ ਜਨਮ ਦੇਣ ਅਤੇ ਪਤੀ, ਪਤਨੀ ਅਤੇ ਬੱਚਿਆਂ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧਿਤ ਅੱਡ-ਅੱਡ ਅਧਿਕਾਰਾਂ, ਜ਼ਿੰਮੇਦਾਰੀਆਂ ਨੂੰ ਪੂਰਾ ਕਰਨ ਦੀ ਮੰਜੂਰੀ ਦਿੰਦਾ ਹੈ ।

(ii) ਹਿੰਦੂ ਧਰਮ ਵਿੱਚ ਵਿਆਹ ਨੂੰ ਧਾਰਮਿਕ ਸੰਸਕਾਰ ਮੰਨਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਕਿਉਂਕਿ ਵਿਆਹ ਨੂੰ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਧਾਰਮਿਕ ਕਰਮਕਾਂਡਾਂ ਨੂੰ ਪੂਰਾ ਕਰਕੇ ਪੂਰਾ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

(iii) ਜੀ ਹਾਂ, ਅੱਜ-ਕੱਲ੍ਹ ਵਿਆਹ ਦਾ ਮਹੱਤਵ ਘੱਟ ਹੋ ਰਿਹਾ ਹੈ। ਅੱਜ-ਕੱਲ੍ਹ ਵਿਆਹ ਨੂੰ ਧਾਰਮਿਕ ਸੰਸਕਾਰ ਨਾ ਮੰਨ ਕੇ ਸਮਝੌਤਾ ਮੰਨਿਆ ਜਾਣ ਲੱਗ ਪਿਆ ਹੈ ਜਿਸ ਨੂੰ ਕਦੇ ਵੀ ਤੋੜਿਆ ਜਾ ਸਕਦਾ ਹੈ। ਅੱਜ-ਕੱਲ੍ਹ ਤਾਂ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਮੁੰਡੇ ਅਤੇ ਕੁੜੀਆਂ ਬਿਨਾਂ ਵਿਆਹ ਕੀਤੇ ਹੀ ਇਕੱਠੇ ਰਹਿਣਾ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋ ਗਏ ਹਨ ਜਿਸ ਨਾਲ
ਵਿਆਹ ਦਾ ਮਹੱਤਵ ਘੱਟ ਹੋ ਗਿਆ ਹੈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 12.
ਹੇਠਾਂ ਦਿੱਤੇ ਸਰੋਤ ਨੂੰ ਪੜੋ ਅਤੇ ਨਾਲ ਦਿੱਤੇ ਪ੍ਰਸ਼ਨਾਂ ਦੇ ਉੱਤਰ ਦਿਓਪਰਿਵਾਰ ਦਾ ਅਧਿਐਨ ਇਸ ਲਈ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਹੈ ਕਿਉਂਕਿ ਇਹ ਪੁਰਸ਼, ਇਸਤਰੀ ਅਤੇ ਬੱਚਿਆਂ ਨੂੰ ਇੱਕ ਸਥਾਈ ਸੰਬੰਧ ਵਿਚ ਬੰਨ੍ਹ ਕੇ ਮਨੁੱਖੀ ਸਮਾਜ ਦੇ ਨਿਰਮਾਣ ਵਿੱਚ ਇੱਕ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਭੂਮਿਕਾ ਨਿਭਾਉਂਦਾ ਹੈ। ਸੱਭਿਆਚਾਰ ਦਾ ਸੰਚਾਰ ਪਰਿਵਾਰ ਵਿੱਚ ਹੀ ਹੁੰਦਾ ਹੈ। ਸਮਾਜਿਕ ਪਰਿਮਾਪ, ਪ੍ਰਥਾਵਾਂ, ਰੀਤੀ-ਰਿਵਾਜ ਅਤੇ ਕਦਰਾਂ-ਕੀਮਤਾਂ ਦੇ ਸੰਬੰਧ ਵਿੱਚ ਸੱਭਿਆਚਾਰ ਦੀ ਸਮਝ ਇੱਕ ਪੀੜ੍ਹੀ ਤੋਂ ਦੂਜੀ ਪੀੜ੍ਹੀ ਤੱਕ ਸੰਚਾਰਿਤ ਹੁੰਦੀ ਹੈ। ਇੱਕ ਪਰਿਵਾਰ ਜਿਸ ਵਿੱਚ ਬੱਚਾ ਜਨਮ ਲੈਂਦਾ ਹੈ। ਉਸ ਨੂੰ ਜਨਮ ਦਾ ਪਰਿਵਾਰ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ। ਅਜਿਹੇ ਪਰਿਵਾਰ ਨੂੰ ਖੂਨ ਸੰਬੰਧ ਪਰਿਵਾਰ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ। ਜਿਸਦੇ ਮੈਂਬਰ ਖੂਨ ਦੇ ਸੰਬੰਧਾਂ ਦੇ ਆਧਾਰ ‘ਤੇ ਇੱਕ-ਦੂਜੇ ਨਾਲ ਜੁੜੇ ਹੁੰਦੇ ਹਨ। ਜਿਵੇਂ ਭਰਾ-ਭੈਣ, ਪਿਤਾ-ਪੁੱਤਰ ਆਦਿ।ਉਹ ਪਰਿਵਾਰ ਜੋ ਵਿਆਹ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਹੋਂਦ ਵਿੱਚ ਆਉਂਦਾ ਹੈ। ਉਸਨੂੰ ਪ੍ਰਜਨਨ ਵਾਰ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ। ਜੋ ਬਾਲਗ ਮੈਂਬਰਾਂ ਤੋਂ ਨਿਰਮਿਤ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਵਿੱਚ ਆਪਸੀ ਯੌਨ ਸੰਬੰਧ ਹੁੰਦੇ ਹਨ।

(i) ਪਰਿਵਾਰ ਕਿਸ ਨੂੰ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ?
(i) ਜਨਮ ਦਾ ਪਰਿਵਾਰ ਅਤੇ ਪ੍ਰਜਨਨ ਪਰਿਵਾਰ ਕਿਸ ਨੂੰ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ?
(ii) ਪਰਿਵਾਰ ਦਾ ਅਧਿਐਨ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਕਿਉਂ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
(i) ਪਰਿਵਾਰ ਆਦਮੀ ਅਤੇ ਔਰਤ ਦੇ ਮੇਲ ਨਾਲ ਬਣੀ ਇੱਕ ਅਜਿਹੀ ਸੰਸਥਾ ਹੈ ਜਿਸ ਵਿੱਚ ਉਹਨਾਂ ਨੂੰ ਲਿੰਗ
ਸੰਬੰਧ ਸਥਾਪਿਤ ਕਰਨ, ਬੱਚੇ ਪੈਦਾ ਕਰਨ ਅਤੇ ਉਹਨਾਂ ਨੂੰ ਵੱਡਾ ਕਰਨ ਦੀ ਆਗਿਆ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ।

(ii) ਇੱਕ ਪਰਿਵਾਰ ਜਿਸ ਵਿੱਚ ਬੱਚਾ ਜਨਮ ਲੈਂਦਾ ਹੈ ਉਸ ਨੂੰ ਜਨਮ ਦਾ ਪਰਿਵਾਰ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ। ਉਹ ਪਰਿਵਾਰ ਜਿਹੜਾ ਵਿਆਹ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਬਣਦਾ ਹੈ, ਉਸਨੂੰ ਪ੍ਰਜਨਨ ਪਰਿਵਾਰ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

(iii) ਪਰਿਵਾਰ ਦਾ ਅਧਿਐਨ ਕਾਫ਼ੀ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਹੈ ਕਿਉਂਕਿ ਇਹ ਆਦਮੀ ਔਰਤ ਅਤੇ ਉਹਨਾਂ ਦੇ ਬੱਚਿਆਂ ਨੂੰ ਇੱਕ ਸਥਾਈ ਬੰਧਨ ਵਿੱਚ ਬੰਨ੍ਹ ਕੇ ਰੱਖਦਾ ਹੈ। ਇਸ ਨਾਲ ਪਰਿਵਾਰ ਸਮਾਜ ਨਿਰਮਾਣ ਵਿੱਚ ਯੋਗਦਾਨ ਦਿੰਦਾ ਹਨ। ਪਰਿਵਾਰ ਹੀ ਸੰਸਕ੍ਰਿਤੀ ਦੇ ਵਾਹਕ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਕੰਮ ਕਰਦਾ ਹੈ। ਸਮਾਜਿਕ ਪ੍ਰਥਾਵਾਂ ਪ੍ਰਤਿਮਾਨਾਂ, ਵਿਵਹਾਰ ਕਰਨ ਦੇ ਤਰੀਕਿਆਂ ਨੂੰ ਇੱਕ ਪੀੜ੍ਹੀ ਤੋਂ ਦੂਜੀ ਪੀੜ੍ਹੀ ਤੱਕ ਪਹੁੰਚਾਉਂਦਾ ਹੈ। ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਪਰਿਵਾਰ ਸਾਡੇ ਜੀਵਨ ਵਿੱਚ ਅਤੇ ਸਮਾਜ ਨਿਰਮਾਣ ਵਿੱਚ ਸਹਾਇਕ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 12 ਪੱਛਮੀ-ਸਮਾਜ ਵਿਗਿਆਨ ਦੇ ਵਿਚਾਰਕ

Punjab State Board PSEB 11th Class Sociology Book Solutions Chapter 12 ਪੱਛਮੀ-ਸਮਾਜ ਵਿਗਿਆਨ ਦੇ ਵਿਚਾਰਕ Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Sociology Chapter 12 ਪੱਛਮੀ-ਸਮਾਜ ਵਿਗਿਆਨ ਦੇ ਵਿਚਾਰਕ

Sociology Guide for Class 11 PSEB ਪੱਛਮੀ-ਸਮਾਜ ਵਿਗਿਆਨ ਦੇ ਵਿਚਾਰਕ Textbook Questions and Answers

I. ਨਿਮਨਲਿਖਤ ਪ੍ਰਸ਼ਨਾਂ ਦੇ ਉੱਤਰ 1-15 ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਦਿਓ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਇੱਕ ਅਕਾਦਮਿਕ ਅਨੁਸ਼ਾਸਨ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਸਮਾਜ ਦਾ ਰਸਮੀ ਅਧਿਐਨ ਕਿਸ ਦੇਸ਼ ਅਤੇ ਕਿਸ ਸ਼ਤਾਬਦੀ ਵਿੱਚ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋਇਆ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਇੱਕ ਅਕਾਦਮਿਕ ਅਨੁਸ਼ਾਸਨ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਸਮਾਜ ਦਾ ਰਸਮੀ ਅਧਿਐਨ ਫਰਾਂਸ ਯੂਰੋਪ ਵਿੱਚ 19ਵੀਂ ਸ਼ਤਾਬਦੀ ਵਿੱਚ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋਇਆ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਉਹਨਾਂ ਤਿੰਨ ਕਾਰਕਾਂ ਦੇ ਨਾਮ ਦੱਸੋ ਜਿਹੜੇ ਕਿ ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਦੇ ਸੁਤੰਤਰ ਰੂਪ ਨੂੰ ਉਭਾਰਨ ਵਿੱਚ ਸਹਾਈ ਹੋਏ ।
ਉੱਤਰ-
ਉਦਯੋਗਿਕ ਕ੍ਰਾਂਤੀ, ਫਰਾਂਸੀਸੀ ਕ੍ਰਾਂਤੀ ਅਤੇ ਨਵਜਾਗਰਣ ਦੇ ਵਿਚਾਰਾਂ ਦੇ ਫੈਲਾਅ ਨਾਲ ਸਮਾਜ ਵਿਗਿਆਨ ਦਾ ਵਿਕਾਸ ਇੱਕ ਸੁਤੰਤਰ ਵਿਸ਼ੇ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਹੋਇਆ ।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 12 ਪੱਛਮੀ-ਸਮਾਜ ਵਿਗਿਆਨ ਦੇ ਵਿਚਾਰਕ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 3.
ਗਿਆਨ ਨਾਲ ਜੁੜੇ ਹੋਏ ਦੋ ਚਿੰਤਕਾਂ ਦੇ ਨਾਂ ਦੱਸੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਚਾਰਲਸ ਮਾਂਟੇਸਕਿਯੂ (Charles Montesquieu) ਅਤੇ ਜੀਨ ਜੈਕਸ ਰੂਸੋ (Jean Jacques Rousseau) Enlightenment ਨਾਲ ਜੁੜੇ ਦੋ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਵਿਚਾਰਕ ਸਨ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 4.
ਫਰਾਂਸੀਸੀ ਕ੍ਰਾਂਤੀ ਕਿਹੜੇ ਸੰਨ ਵਿੱਚ ਹੋਈ ?
ਉੱਤਰ-
ਫਰਾਂਸੀਸੀ ਕ੍ਰਾਂਤੀ 1789 ਈ: ਵਿੱਚ ਹੋਈ ਸੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 5.
ਸਕਾਰਾਤਮਕ ਸ਼ਬਦ ਦਾ ਪ੍ਰਯੋਗ ਕਿਸ ਲਈ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਇਹ ਮੰਨਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਕਿ ਸਮਾਜ ਕੁੱਝ ਸਥਿਰ ਨਿਯਮਾਂ ਅਨੁਸਾਰ ਕੰਮ ਕਰਦਾ ਹੈ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਲੱਭਿਆ ਜਾ ਸਕਦਾ ਹੈ । ਇਸਨੂੰ ਹੀ ਸਕਾਰਾਤਮਕਵਾਦ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 6.
ਸਮਾਜਿਕ ਸਟੈਟਿਕਸ ਅਤੇ ਸਮਾਜਿਕ ਡਾਇਨਿਮਿਕਸ ਦੀਆਂ ਦੋ ਸ਼ਾਖਾਵਾਂ ਕਿਸ ਨੇ ਦਿੱਤੀਆਂ ਹਨ ? .
ਉੱਤਰ-
ਅਗਸਤੇ ਕਾਮਤੇ (Auguste Comte) ਨੇ ਸਮਾਜ ਵਿਗਿਆਨ ਦੇ ਦੋ ਭਾਗਾਂ ਨੂੰ ਸਮਾਜਿਕ ਸਥੈਤਿਕੀ ਅਤੇ ਸਮਾਜਿਕ ਗਤੀਆਤਮਕਤਾ ਦਾ ਨਾਮ ਦਿੱਤਾ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 7.
ਅਗਸਤੇ ਕਾਮਤੇ ਦੇ ਤਿੰਨ ਪੜਾਵਾਂ ਦੇ ਸਿਧਾਂਤ ਦਾ ਚਾਰਟ ਬਣਾਉ ॥
ਉੱਤਰ-
PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 12 ਪੱਛਮੀ-ਸਮਾਜ ਵਿਗਿਆਨ ਦੇ ਵਿਚਾਰਕ 1

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 8.
ਕਾਰਲ ਮਾਰਕਸ ਦਾ ਵਰਗ ਦਾ ਸਿਧਾਂਤ ਕਿਸ ਉੱਪਰ ਨਿਰਭਰ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਕਾਰਲ ਮਾਰਕਸ ਦਾ ਵਰਗ ਦਾ ਸਿਧਾਂਤ ਉਤਪਾਦਨ ਦੇ ਸਾਧਨਾਂ ਦੀ ਮਲਕੀਅਤ ਉੱਤੇ ਆਧਾਰਿਤ ਹੈ ਕਿ ਇੱਕ ਸਮੂਹ ਕੋਲ ਉਤਪਾਦਨ ਦੇ ਸਾਧਨ ਹੁੰਦੇ ਹਨ ਅਤੇ ਇੱਕ ਸਮੂਹ ਕੋਲ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦੇ ਹਨ ।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 12 ਪੱਛਮੀ-ਸਮਾਜ ਵਿਗਿਆਨ ਦੇ ਵਿਚਾਰਕ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 9.
‘ਕਮਿਊਨਿਸਟ ਮੈਨੀਫੈਸਟੋ’ ਕਿਤਾਬ ਕਿਸਨੇ ਲਿਖੀ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਕਿਤਾਬ ‘ਕਮਿਊਨਿਸਟ ਮੈਨੀਫੈਸਟੋ’ ਕਾਰਲ ਮਾਰਕਸ ਨੇ ਲਿਖੀ ਸੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 10.
ਕਾਰਲ ਮਾਰਕਸ ਦੁਆਰਾ ਸਮਾਜਿਕ ਪਰਿਵਰਤਨ ਦੇ ਕਿਹੜੇ ਪੜਾਅ ਹਨ ?
ਉੱਤਰ-
ਕਾਰਲ ਮਾਰਕਸ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਸਮਾਜਿਕ ਪਰਿਵਰਤਨ ਦੇ ਚਾਰ ਮੁੱਖ ਪੱਧਰ ਹਨ-ਆਦਿਮ ਸਮੁਦਾਇਕ ਸਮਾਜ, ਦਾਸਮੂਲਕ ਸਮਾਜ, ਸਾਮੰਤੀ ਸਮਾਜ ਅਤੇ ਪੂੰਜੀਵਾਦੀ ਸਮਾਜ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 11.
ਕਿਸਨੇ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਮੌਜੂਦ ਏਕਤਾ ਦੀ ਪ੍ਰਕਿਰਤੀ ਦੇ ਆਧਾਰ ਉੱਤੇ ਸਮਾਜ ਨੂੰ ਵਰਗੀਕ੍ਰਿਤ ਕੀਤਾ ?
ਉੱਤਰ-
ਇਮਾਈਲ ਦੁਰਮ ਨੇ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਮੌਜੂਦ ਏਕਤਾ ਦੀ ਪ੍ਰਕਿਰਤੀ ਦੇ ਆਧਾਰ ਉੱਤੇ ਸਮਾਜ ਨੂੰ ਵੰਡਿਆ ਹੈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 12.
ਇਮਾਈਲ ਦੁਰਖੀਮ ਦੁਆਰਾ ਦਿੱਤੀਆਂ ਗਈਆਂ ਦੋ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦੀਆਂ ਏਕਤਾਵਾਂ ਬਾਰੇ ਦੱਸੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਇਮਾਈਲ ਦੁਰਖੀਮ ਨੇ ਦੋ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦੀ ਏਕਤਾ ਬਾਰੇ ਦੱਸਿਆ ਹੈ ਅਤੇ ਉਹ ਹਨ-ਯਾਂਤਰਿਕ ਏਕਤਾ (Mechanical Solidarity) ਅਤੇ ਆਂਗਿਕ ਏਕਤਾ (Organic Solidarity) ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 13.
ਮੈਕਸ ਵੈਬਰ ਅਨੁਸਾਰ ਸਮਾਜਿਕ ਕਿਰਿਆ ਦੀਆਂ ਕਿਸਮਾਂ ਦੱਸੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਮੈਕਸ ਵੈਬਰ ਨੇ ਚਾਰ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦੀ ਸਮਾਜਿਕ ਕ੍ਰਿਆ ਬਾਰੇ ਦੱਸਿਆ ਹੈ ਅਤੇ ਉਹ ਹਨ Zweckrational, Wertrational, affective font s traditional ਕਿਰਿਆ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 14.
ਮੈਕਸ ਵੈਬਰ ਦੁਆਰਾ ਦਰਸ਼ਾਈਆਂ ਗਈਆਂ ਸੱਤਾ ਦੀਆਂ ਕਿਸਮਾਂ ਦੱਸੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਮੈਕਸ ਵੈਬਰ ਨੇ ਸੱਤਾ ਦੇ ਤਿੰਨ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦਿੱਤੇ ਹਨ ਅਤੇ ਉਹ ਹਨ-ਪਰੰਪਰਾਗਤ ਸੱਤਾ (Traditional Authroity), ਵਿਧਾਨਿਕ ਸੱਤਾ (Legal Authority) ਅਤੇ ਕਰਿਸ਼ਮਈ ਸੱਤਾ (Charismatic Authority) ।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 12 ਪੱਛਮੀ-ਸਮਾਜ ਵਿਗਿਆਨ ਦੇ ਵਿਚਾਰਕ

II. ਨਿਮਨਲਿਖਤ ਪ੍ਰਸ਼ਨਾਂ ਦੇ ਉੱਤਰ 30-35 ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਦਿਓ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਗਿਆਨ ਕੀ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਗਿਆਨ ਉਹ ਸਮਾਂ ਸੀ ਜਦੋਂ ਬਹੁਤ ਜ਼ਿਆਦਾ ਬੌਧਿਕ ਵਿਕਾਸ ਹੋਇਆ ਅਤੇ ਦਾਰਸ਼ਨਿਕ ਵਿਚਾਰਾਂ ਵਿੱਚ ਬਹੁਤ ਪਰਿਵਰਤਨ ਆਏ । ਇਹ ਸਮਾਂ 17ਵੀਂ-18ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਵਿੱਚ ਸੀ । ਇਸ ਸਮੇਂ ਦੇ ਮਸ਼ਹੂਰ ਵਿਚਾਰਕ ਸਨ ਚਾਰਲਸ ਮਾਨਟੇਸਕਿਯੂ ਅਤੇ ਜੀਨ ਜੈਕਸ ਰੂਸੋ । ਇਹ ਵਿਚਾਰਕ ਵਿਗਿਆਨ ਦੀ ਸਰਵਉੱਚਤਾ (Supemacy) ਅਤੇ ਵਿਸ਼ਵਾਸ ਉੱਪਰ ਤਰਕ ਨੂੰ ਉੱਚਾ ਮੰਨਦੇ ਸਨ । ਇਹਨਾਂ ਵਿਚਾਰਕਾਂ ਕਾਰਨ ਹੀ ਸਮਾਜਿਕ ਪ੍ਰਕਟਨਾਵਾਂ ਵਿੱਚ ਵਿਗਿਆਨਿਕ ਵਿਧੀ ਦੇ ਯੋਗ ਉੱਤੇ ਜ਼ੋਰ ਦਿੱਤਾ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਧਾਰਮਿਕ ਅਤੇ ਅਧਿਆਤਮਿਕ ਪੜਾਅ ਉੱਤੇ ਛੋਟਾ ਨੋਟ ਲਿਖੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਕਾਮਤੇ ਅਨੁਸਾਰ ਅਧਿਆਤਮਿਕ ਪੜਾਅ ਵਿੱਚ ਮਨੁੱਖ ਦੇ ਵਿਚਾਰ ਕਾਲਪਨਿਕ ਸਨ । ਉਹ ਸਾਰੀਆਂ ਚੀਜ਼ਾਂ ਨੂੰ ਪਰਮਾਤਮਾ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਸਮਝਦਾ ਸੀ । ਧਾਰਨਾ ਇਹ ਸੀ ਕਿ ਚਾਹੇ ਸਾਰੀਆਂ ਚੀਜ਼ਾਂ ਨਿਰਜੀਵ ਹਨ ਪਰ ਉਹਨਾਂ ਵਿੱਚ ਸਰਵਸ਼ਕਤੀ ਵਿਆਪਕ ਹੈ । ਅਧਿਭੌਤਿਕ ਪੜਾਅ 14ਵੀਂ ਤੋਂ 16ਵੀਂ ਸਦੀ ਤੱਕ ਚੱਲਿਆ । ਇਸ ਸਮੇਂ ਬੇਰੋਕ ਨਿਰੀਖਣ ਦਾ ਅਧਿਕਾਰ ਸਾਹਮਣੇ ਆਇਆ ਜਿਸਦੀ ਕੋਈ ਸੀਮਾ ਨਹੀਂ ਸੀ । ਇਸ ਕਰਕੇ ਆਤਮਿਕਤਾ ਦਾ ਪਤਨ ਹੋਇਆ ਜਿਸਦਾ ਦੁਨਿਆਵੀ ਪੱਖ ਉੱਤੇ ਵੀ ਅਸਰ ਹੋਇਆ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 3.
ਜੀਵਵਾਦ (Animism) ਤੋਂ ਤੁਸੀਂ ਕੀ ਸਮਝਦੇ ਹੋ ?
ਉੱਤਰ-
ਜੀਵਵਾਦ ਇੱਕ ਵਿਚਾਰਧਾਰਾ ਹੈ ਜਿਸ ਵਿੱਚ ਲੋਕ ਵਿਸ਼ਵਾਸ ਕਰਦੇ ਹਨ ਕਿ ਪਰਮਾਤਮਾ ਸਿਰਫ਼ ਚਲਣ ਵਾਲੀਆਂ ਜਾਂ ਜੀਣ ਵਾਲੀਆਂ ਚੀਜ਼ਾਂ ਵਿੱਚ ਮੌਜੂਦ ਹੈ । ਸ਼ਬਦ Anima ਦਾ ਅਰਥ ਹੈ ਆਤਮਾ (Soul) ਜਾਂ ਚਾਲ (Movement) । ਲੋਕਾਂ ਨੇ ਜਾਨਵਰਾਂ, ਪੰਛੀਆਂ, ਧਰਤੀ ਅਤੇ ਹਵਾ ਦੀ ਵੀ ਪੂਜਾ ਕਰਨੀ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰ ਦਿੱਤੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 4.
ਮਾਰਕਸਵਾਦ ਦੁਆਰਾ ਦਿੱਤੇ ਗਏ ਵਰਗ ਦੇ ਸਿਧਾਂਤ ਦੀ ਚਰਚਾ ਕਰੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਕਾਰਲ ਮਾਰਕਸ ਅਨੁਸਾਰ ਵਿਅਕਤੀਆਂ ਦਾ ਉਹ ਸਮੂਹ ਜਿਹੜਾ ਸਮਾਨ ਉਤਪਾਦਨ ਦੇ ਸਾਧਨਾਂ ਨੂੰ ਸਾਂਝਾ ਕਰਦਾ ਹੈ, ਉਸ ਨੂੰ ਵਰਗ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਮਾਰਕਸ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਸਮਾਜ ਵਿਚ ਦੋ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦੇ ਸਮੂਹ ਹੁੰਦੇ ਹਨ-ਪੂੰਜੀਪਤੀ ਸਮੂਹ ਅਤੇ ਮਜ਼ਦੂਰਾਂ ਦਾ ਸਮੂਹ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 5.
ਵਰਗ ਚੇਤਨਾ ਤੋਂ ਤੁਸੀਂ ਕੀ ਸਮਝਦੇ ਹੋ ?
ਉੱਤਰ-
ਇਕ ਵਰਗ ਦੇ ਮੈਂਬਰਾਂ ਵਿੱਚ ਆਪਣੇ ਸਮਾਨ ਹਿੱਤਾਂ ਦੇ ਪ੍ਰਤੀ ਜਾਗਰੁਕਤਾ ਹੁੰਦੀ ਹੈ । ਇਸੇ ਜਾਗਰੁਕਤਾ ਨੂੰ ਹੀ ਅਸੀਂ ਵਰਗ ਚੇਤਨਾ ਕਹਿੰਦੇ ਹਾਂ | ਵਰਗ ਚੇਤਨਾ ਦੇ ਆਧਾਰ ਉੱਤੇ ਹੀ ਅੱਡ-ਅੱਡ ਵਰਗਾਂ ਨੂੰ ਇਕ-ਦੂਜੇ ਤੋਂ ਅੱਡ ਕੀਤਾ। ਜਾ ਸਕਦਾ ਹੈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 6.
ਇਤਿਹਾਸਿਕ ਪਦਾਰਥਵਾਦ ਨੂੰ ਪਰਿਭਾਸ਼ਿਤ ਕਰੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਇਤਿਹਾਸਿਕ ਭੌਤਿਕਵਾਦ ਉਹ ਦਾਰਸ਼ਨਿਕ ਵਿੱਦਿਆ ਹੈ ਜੋ ਇੱਕ ਅਖੰਡ ਵਿਵਸਥਾ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਸਮਾਜ ਦਾ ਅਤੇ ਉਸ ਵਿਵਸਥਾ ਦੇ ਕੰਮ ਅਤੇ ਵਿਕਾਸ ਨੂੰ ਸ਼ਾਮਲ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਮੁੱਖ ਨਿਯਮਾਂ ਦਾ ਅਧਿਐਨ ਕਰਦੀ ਹੈ । ਸੰਖੇਪ ਵਿੱਚ ਇਤਿਹਾਸਿਕ, ਭੌਤਿਕਵਾਦ, ਸਮਾਜਿਕ ਵਿਕਾਸ ਦਾ ਦਾਰਸ਼ਨਿਕ ਸਿਧਾਂਤ ਹੈ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਇਹ ਮਾਰਕਸ ਦਾ ਸਮਾਜਿਕ ਅਤੇ ਇਤਿਹਾਸਿਕ ਸਿਧਾਂਤ ਹੈ ।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 12 ਪੱਛਮੀ-ਸਮਾਜ ਵਿਗਿਆਨ ਦੇ ਵਿਚਾਰਕ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 7.
ਸਮਾਜਿਕ ਤੱਥਾਂ ‘ਤੇ ਸੰਖੇਪ ਨੋਟ ਲਿਖੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਦੁਰਖੀਮ ਨੇ ਸਮਾਜਿਕ ਤੱਥ ਦਾ ਸਿਧਾਂਤ ਦਿੱਤਾ ਸੀ ਅਤੇ ਆਪਣੀ ਕਿਤਾਬ ਦੇ ਪਹਿਲੇ Chapter ਦੇ ਅੰਤ ਵਿੱਚ ਇਸਦੀ ਪਰਿਭਾਸ਼ਾ ਦਿੱਤੀ । ਦੁਰਖੀਮ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ, “ਇੱਕ ਸਮਾਜਿਕ ਤੱਥ ਕ੍ਰਿਆ ਕਰਨ ਦਾ ਹਰੇਕ ਸਥਾਈ, ਅਸਥਾਈ ਤਰੀਕਾ ਹੈ, ਜੋ ਆਦਮੀ ਉੱਪਰ ਬਾਹਰੀ ਦਬਾਅ ਪਾਉਣ ਵਿੱਚ ਸਮਰੱਥ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਜਾਂ ਦੁਬਾਰਾ ਕਿਆ ਕਰਨ ਦਾ ਹਰੇਕ ਤਰੀਕਾ ਜੋ ਕਿਸੇ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਆਮ ਰੂਪ ਨਾਲ ਪਾਇਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ, ਪਰ ਨਾਲ ਹੀ ਵਿਅਕਤੀਗਤ ਵਿਚਾਰਾਂ ਤੋਂ ਸੁਤੰਤਰ ਹੋਂਦ ਰੱਖਦਾ ਹੈ ।”

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 8.
ਸਮਾਜਿਕ ਏਕਤਾ (Organic Solidarity) ਕੀ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਸਮਾਜਿਕ ਏਕਤਾ ਆਧੁਨਿਕ ਸਮਾਜਾਂ ਵਿੱਚ ਪਾਈ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ਅਤੇ ਇਹ ਮੈਂਬਰਾਂ ਵਿਚਕਾਰ ਮੌਜੂਦ ਅੰਤਰਾਂ ਉੱਤੇ ਆਧਾਰਿਤ ਹੈ । ਇਹ ਵੱਧ ਜਨਸੰਖਿਆ ਵਾਲੇ ਸਮਾਜਾਂ ਵਿੱਚ ਪਾਈ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ਜਿੱਥੇ ਲੋਕਾਂ ਵਿਚਕਾਰ ਅਵਿਅਕਤੀਗਤ ਸਮਾਜਿਕ ਸੰਬੰਧ ਪਾਏ ਜਾਂਦੇ ਹਨ । ਇਹਨਾਂ ਸਮਾਜਾਂ ਵਿੱਚ ਪ੍ਰਤੀਕਾਰੀ ਕਾਨੂੰਨ ਪਾਏ ਜਾਂਦੇ ਹਨ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 9.
ਜੈਕਰੈਸ਼ਨਲ ਕ੍ਰਿਆ ਤੋਂ ਤੁਸੀਂ ਕੀ ਸਮਝਦੇ ਹੋ ?
ਉੱਤਰ-
ਜੈਕਰੈਸ਼ਨਲ ਕ੍ਰਿਆ ਦਾ ਅਰਥ ਅਜਿਹੇ ਸਮਾਜਿਕ ਵਿਵਹਾਰ ਤੋਂ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਜੋ ਉਪਯੋਗਤਾ ਨੂੰ ਧਿਆਨ ਵਿੱਚ ਰੱਖਦੇ ਹੋਏ ਅਨੇਕਾਂ ਉਦੇਸ਼ਾਂ ਦੀ ਵੱਧ ਤੋਂ ਵੱਧ ਪ੍ਰਾਪਤੀ ਦੇ ਲਈ ਤਾਰਕਿਕ ਰੂਪ ਨਾਲ ਨਿਰਦੇਸ਼ਿਤ ਹੋਵੇ । ਇਸ ਵਿੱਚ ਸਾਧਨਾਂ ਦੀ ਚੋਣ ਵਿੱਚ ਸਿਰਫ ਉਹਨਾਂ ਦੀ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਕਾਰਜਕੁਸ਼ਲਤਾ ਵੱਲ ਹੀ ਧਿਆਨ ਨਹੀਂ ਦਿੱਤਾ ਜਾਂਦਾ ਬਲਕਿ ਮੁੱਲ ਤੇ ਵੀ ਧਿਆਨ ਦਿੱਤਾ ਹੈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 10.
ਭਾਵਨਾਤਮਕ ਕ੍ਰਿਆ (Affective Action) ਕੀ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਇਹ ਉਹ ਕ੍ਰਿਆਵਾਂ ਹਨ ਜੋ ਮਨੁੱਖੀ ਭਾਵਨਾਵਾਂ, ਸੰਵੇਗਾਂ ਅਤੇ ਸਥਾਈ ਭਾਵਾਂ ਦੇ ਕਾਰਨ ਹੁੰਦੀਆਂ ਹਨ । ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਰਹਿੰਦੇ ਹੋਏ ਸਾਨੂੰ ਪੇਮ, ਨਫ਼ਰਤ, ਗੁੱਸਾ ਆਦਿ ਭਾਵਨਾਵਾਂ ਦਾ ਸ਼ਿਕਾਰ ਹੋਣਾ ਪੈਂਦਾ ਹੈ । ਇਸਦੇ ਕਾਰਨ ਹੀ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਤੀ ਜਾਂ ਅਸ਼ਾਂਤੀ ਦੀ ਅਵਸਥਾ ਪੈਦਾ ਹੋ ਜਾਂਦੀ ਹੈ । ਇਹਨਾਂ ਵਿਵਹਾਰਾਂ ਦੇ ਕਾਰਨ ਪਰੰਪਰਾ ਅਤੇ ਤਰਕ ਦਾ ਥੋੜ੍ਹਾ ਜਿਹਾ ਵੀਂ ਸਹਾਰਾ ਨਹੀਂ ਲਿਆ ਜਾਂਦਾ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 11.
ਸੱਤਾ (Authority) ਕੀ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਵੈਬਰ ਅਨੁਸਾਰ ਹੇਰਕ ਸੰਗਠਿਤ ਸਮੂਹ ਵਿੱਚ ਸੱਤਾ ਦੇ ਤੱਤ ਮੂਲ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਮੌਜੂਦ ਹੁੰਦੇ ਹਨ । ਸੰਗਠਿਤ ਸਮੂਹ ਵਿੱਚ ਕੁੱਝ ਤਾਂ ਸਾਧਾਰਨ ਮੈਂਬਰ ਹੁੰਦੇ ਹਨ ਅਤੇ ਕੁੱਝ ਅਜਿਹੇ ਵਿਅਕਤੀ ਹੁੰਦੇ ਹਨ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਕੋਲ ਜ਼ਿੰਮੇਵਾਰੀ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ਅਤੇ ਉਹ ਹੋਰ ਲੋਕਾਂ ਤੋਂ ਵਿਧਾਨਿਕ ਤੌਰ ਉੱਤੇ ਆਦੇਸ਼ ਦੇ ਕੇ ਆਪਣੀ ਗੱਲ ਮੰਨਵਾਉਂਦੇ ਹਨ । ਇਸ ਗੱਲ ਮੰਨਵਾਉਣ ਦੀ ਵਿਵਸਥਾ ਨੂੰ ਹੀ ਸੱਤਾ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 12 ਪੱਛਮੀ-ਸਮਾਜ ਵਿਗਿਆਨ ਦੇ ਵਿਚਾਰਕ

III. ਨਿਮਨਲਿਖਤ ਪ੍ਰਸ਼ਨਾਂ ਦੇ ਉੱਤਰ 75-85 ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਦਿਓ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਅਗਸਤੇ ਕਾਮਤੇ ਦੇ ‘ਤਿੰਨ ਪੜਾਵਾਂ ਦੇ ਸਿਧਾਂਤ’ ਬਾਰੇ ਵਿਆਖਿਆ ਕਰੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਅਗਸਤੇ ਕਾਮਤੇ ਨੇ ਸਮਾਜ ਦੇ ਉਦਵਿਕਾਸ ਦਾ ਸਿਧਾਂਤ ਦਿੱਤਾ ਅਤੇ ਦੱਸਿਆ ਕਿ ਸਮਾਜ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਦੇ ਤਿੰਨ ਪੜਾਅ ਹਨ-ਅਧਿਆਤਮਿਕ ਪੜਾਅ, ਅਧਿਭੌਤਿਕ ਪੜਾਅ ਅਤੇ ਸਕਾਰਾਤਮਕ ਪੜਾਅ | ਅਧਿਆਤਮਿਕ ਪੜਾਅ ਵਿੱਚ ਮਨੁੱਖ ਦੇ ਸਾਰੇ ਵਿਚਾਰ ਕਾਲਪਨਿਕ ਸੀ ਅਤੇ ਉਹ ਸਭ ਚੀਜ਼ਾਂ ਨੂੰ ਕਿਸੇ ਅਲੌਕਿਕ ਜੀਵ ਦੀਆਂ ਕ੍ਰਿਆਵਾਂ ਦੇ ਨਤੀਜੇ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਮੰਨਦਾ ਸੀ । ਧਾਰਨਾ ਇਹ ਸੀ ਕਿ ਭਾਵੇਂ ਸਭ ਚੀਜ਼ਾਂ ਨਿਰਜੀਵ ਹਨ ਪਰ ਉਹਨਾਂ ਵਿੱਚ ਉਹੀ ਸ਼ਕਤੀ ਵਿਆਪਕ ਹੈ । ਦੂਜਾ ਪੜਾਅ ਅਧਿਭੌਤਿਕ ਪੜਾਅ ਸੀ ਜੋ 14ਵੀਂ ਤੋਂ 19ਵੀਂ ਸਦੀ ਤੱਕ ਚੱਲਿਆ । ਇਸ ਪੜਾਅ ਵਿੱਚ ਕ੍ਰਾਂਤਿਕ ਅੰਦੋਲਨ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋਇਆ ਅਤੇ ਪ੍ਰੋਟੈਸਟੈਂਟਵਾਦ ਸਾਹਮਣੇ ਆਇਆ । 16ਵੀਂ ਸਦੀ ਵਿੱਚ ਨਕਾਰਾਤਮਕ ਸਿਧਾਂਤ ਸਾਹਮਣੇ ਆਇਆ ਜਿਸ ਦਾ ਮੁੱਖ ਮੰਤਵ ਸਮਾਜਿਕ ਤਬਦੀਲੀ ਸੀ । ਇਸ ਵਿੱਚ ਬੇਰੋਕ ਨਿਰੀਖਣ ਦਾ ਅਧਿਕਾਰ ਸੀ ਅਤੇ ਨਿਰੀਖਣ ਦੀ ਕੋਈ ਸੀਮਾ ਨਹੀਂ ਸੀ । ਸਕਾਰਾਤਮਕ ਪੜਾਅ ਵਿੱਚ ਉਦਯੋਗਿਕ ਸਮਾਜ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋਇਆ ਅਤੇ ਵਿਗਿਆਨ ਸਾਹਮਣੇ ਆਇਆ । ਇਸ ਵਿੱਚ ਸਮਾਜਿਕ ਵਿਵਸਥਾ ਅਤੇ ਤਰੱਕੀ ਵਿੱਚ ਕੋਈ ਦਵੰਦ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਯਾਤ੍ਰਿਕ ਏਕਤਾ ਦੀਆਂ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾਵਾਂ ਦੱਸੋ ।
ਉੱਤਰ-

  1. ਏਕਤਾ ਵਾਲੇ ਸਮਾਜ ਦੇ ਮੈਂਬਰਾਂ ਦੇ ਵਿਵਹਾਰਾਂ ਵਿੱਚ ਸਮਰੂਪਤਾ ਮਿਲਦੀ ਹੈ ਅਤੇ ਉਹਨਾਂ ਦੇ ਵਿਵਹਾਰ ਇੱਕੋ ਜਿਹੇ ਹੁੰਦੇ ਹਨ ।
  2. ਸਾਂਝੇ ਵਿਸ਼ਵਾਸ ਅਤੇ ਭਾਵਨਾਵਾਂ ਏਕਤਾ ਦੇ ਪ੍ਰਤੀਕ ਹਨ । ਇਸ ਸਮਾਜ ਦੇ ਮੈਂਬਰਾਂ ਵਿੱਚ ਸਮੂਹਿਕ ਚੇਤਨਾ ਮੌਜੂਦ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ।
  3. ਯਾਤ੍ਰਿਕ ਸਮਾਜਾਂ ਵਿੱਚ ਦਮਨਕਾਰੀ ਕਾਨੂੰਨ ਮਿਲਦੇ ਹਨ ਜਿਨਾਂ ਵਿੱਚ ਅਪਰਾਧੀ ਨੂੰ ਪੂਰੇ ਦੰਡ ਦੀ ਵਿਵਸਥਾ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ।
  4. ਨੈਤਿਕਤਾ ਯਾਤਿਕ ਸਮਾਜਾਂ ਦਾ ਮੂਲ ਆਧਾਰ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ਜਿਸ ਕਰਕੇ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਏਕਤਾ ਬਣੀ ਰਹਿੰਦੀ ਹੈ ।
  5. ਧਰਮ ਯਾਤ੍ਰਿਕ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਏਕਤਾ ਦਾ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਆਧਾਰ ਹੈ ਅਤੇ ਧਰਮ ਅਨੁਸਾਰ ਹੀ ਆਚਰਨ ਤੇ ਵਿਵਹਾਰ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 3.
ਆਂਗਿਕ ਜਾਂ ਸਜੀਵ ਏਕਤਾ ਦੀਆਂ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾਵਾਂ ਦੱਸੋ ।
ਉੱਤਰ-

  1. ਆਂਗਿਕ ਜਾਂ ਆਂਗਿਕ ਏਕਤਾ ਵਾਲੇ ਸਮਾਜਾਂ ਵਿੱਚ ਵਿਭੇਦੀਕਰਨ ਅਤੇ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ੀਕਰਨ ਪਾਇਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਵਰਗ ਮਿਲਦੇ ਹਨ ।
  2. ਇਹਨਾਂ ਸਮਾਜਾਂ ਵਿੱਚ ਕਿਰਤ ਵੰਡ ਦਾ ਬੋਲਬਾਲਾ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਲੋਕ ਆਪਣੀਆਂ ਜ਼ਰੂਰਤਾਂ ਦੀ ਪੂਰਤੀ ਲਈ ਇੱਕਦੂਜੇ ਉੱਤੇ ਨਿਰਭਰ ਹੁੰਦੇ ਹਨ ।
  3. ਇਹਨਾਂ ਸਮਾਜਾਂ ਵਿੱਚ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਸੰਗਠਨ ਅਤੇ ਸਮੂਹ ਮਿਲਦੇ ਹਨ ਜਿਸ ਕਰਕੇ ਇਹਨਾਂ ਵਿੱਚ ਪ੍ਰਤੀਕਾਰੀ ਕਾਨੂੰਨਾਂ ਦੀ ਪ੍ਰਧਾਨਤਾ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ।
  4. ਆਂਗਿਕ ਸਮਾਜਾਂ ਵਿੱਚ ਸਮਝੌਤਿਆਂ ਉੱਤੇ ਆਧਾਰਿਤ ਸੰਬੰਧ ਸਮਾਜਿਕ ਏਕਤਾ ਦਾ ਸਰੋਤ ਹੁੰਦੇ ਹਨ ਅਤੇ ਨੌਕਰੀਆਂ ਵਿੱਚ ਵਿਅਕਤੀਆਂ ਨੂੰ ਅਨੁਬੰਧ (Contract) ਉੱਤੇ ਰੱਖਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।
  5. ਆਂਗਿਕ ਏਕਤਾ ਵਾਲੇ ਸਮਾਜਾਂ ਵਿੱਚ ਧਰਮ ਦਾ ਪ੍ਰਭਾਵ ਕਾਫੀ ਘੱਟ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ।
  6. ਇਸ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦੇ ਸਮਾਜ ਆਧੁਨਿਕ ਸਮਾਜ ਹੁੰਦੇ ਹਨ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 4.
ਧਰਮ ਸ਼ਾਸਤਰੀ ਅਤੇ ਪਰਾਭੌਤਿਕ ਪੜਾਅ ਵਿੱਚ ਭਿੰਨਤਾ ਕਰੋ ।
ਉੱਤਰ-
(i) ਧਰਮ-ਸ਼ਾਸਤਰੀ – ਇਹ ਪੜਾਅ ਮਨੁੱਖਤਾ ਦੇ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋਣ ਵੇਲੇ ਸ਼ੁਰੂ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਜਦੋਂ ਮਨੁੱਖ ਪ੍ਰਕ੍ਰਿਤਕ ਸ਼ਕਤੀਆਂ ਤੋਂ ਡਰਦਾ ਹੁੰਦਾ ਸੀ ਉਹ ਸਾਰੀਆਂ ਚੀਜ਼ਾਂ ਨੂੰ ਕਿਸੇ ਅਲੌਕਿਕ ਸ਼ਕਤੀ ਦੀਆਂ ਕ੍ਰਿਆਵਾਂ ਦੇ ਨਤੀਜੇ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਵੇਖਦਾ ਸੀ । ਉਹ ਸੋਚਦਾ ਸੀ ਕਿ ਚਾਹੇ ਸਾਰੀਆਂ ਚੀਜ਼ਾਂ ਨਿਰਜੀਵ ਹਨ ਪਰ ਸਭ ਵਿੱਚ ਪਰਮਾਤਮਾ ਮੌਜੂਦ ਹੈ । ਇਹ ਪੜਾਅ ਅੱਗੇ ਤਿੰਨ ਉਪ-ਪੜਾਵਾਂ-ਪ੍ਰਤੀਕ ਪੂਜਨ, ਬਹੁ-ਦੇਵਤਾਵਾਦ ਅਤੇ ਇੱਕ-ਈਸ਼ਵਰਵਾਦ ਵਿੱਚ ਵੰਡਿਆ ਹੈ ।

(ii) ਪਰਾ ਭੌਤਿਕ ਪੜਾਅ – ਇਸ ਪੜਾਅ ਨੂੰ ਕਾਮਤੇ ਆਧੁਨਿਕ ਸਮਾਜ ਦਾ ਭਾਂਤਿਕ ਸਮਾਂ ਵੀ ਕਹਿੰਦਾ ਹੈ । ਇਹ ਪੜਾਅ 5 ਸਦੀਆਂ ਤੱਕ 14ਵੀਂ ਤੋਂ 19ਵੀਂ ਸਦੀ ਤੱਕ ਚੱਲਿਆ । ਇਸ ਨੂੰ ਦੋ ਭਾਗਾਂ ਵਿੱਚ ਵੰਡਿਆ ਗਿਆ ਪਹਿਲੇ ਭਾਗ ਵਿੱਚ ਕ੍ਰਾਂਤਿਕ ਅੰਦੋਲਨ ਆਪਣੇ ਆਪ ਹੀ ਚਲ ਪਿਆ ਅਤੇ ਭਾਂਤਿਕ ਫਿਲਾਸਫ਼ੀ 16ਵੀਂ ਸਦੀ ਵਿੱਚ ਪ੍ਰੋਟੇਸਟੈਂਟਵਾਦ ਦੇ ਆਉਣ ਨਾਲ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋਈ । ਦੂਜਾ ਭਾਗ 16ਵੀਂ ਸਦੀ ਤੋਂ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋਇਆ । ਇਸ ਵਿੱਚ ਨਕਾਰਾਤਮਕ ਸਿਧਾਂਤ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋਇਆ ਜਿਸਦਾ ਮੁੱਖ ਮੰਤਵ ਸਮਾਜਿਕ ਤਬਦੀਲੀ ਸੀ । ਇਸ ਵਿੱਚ ਬੇਰੋਕ ਨਿਰੀਖਣ ਦਾ ਅਧਿਕਾਰ ਸੀ ।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 12 ਪੱਛਮੀ-ਸਮਾਜ ਵਿਗਿਆਨ ਦੇ ਵਿਚਾਰਕ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 5.
ਕੀ ਤੁਸੀਂ ਸੋਚਦੇ ਹੋ ਕਿ ਆਉਣ ਵਾਲੇ ਸਮੇਂ ਵਿੱਚ ਪੂੰਜੀਵਾਦ ਕਮਿਊਨਿਸਟ ਸਮਾਜਾਂ ਵਿੱਚੋਂ ਖ਼ਤਮ ਹੋ ਜਾਏਗਾ ?
ਉੱਤਰ-
ਜੀ ਨਹੀਂ, ਅਸੀਂ ਨਹੀਂ ਸੋਚਦੇ ਹਾਂ ਕਿ ਆਉਣ ਵਾਲੇ ਭਵਿੱਖ ਵਿੱਚ ਪੂੰਜੀਵਾਦੀ ਵਿਵਸਥਾ ਨੂੰ ਸਾਮਵਾਦੀ ਵਿਵਸਥਾ ਬਦਲ ਦੇਵੇਗੀ । ਅਸਲ ਵਿੱਚ ਪੂੰਜੀਵਾਦੀ ਵਿਵਸਥਾ ਸੁਤੰਤਰ ਮਾਰਕੀਟ ਦੇ ਸਿਧਾਂਤ ਉੱਤੇ ਆਧਾਰਿਤ ਹੈ ਜਦਕਿ ਸਾਮਵਾਦੀ ਅਰਥ-ਵਿਵਸਥਾ ਸਰਕਾਰੀ ਨਿਯੰਤਰਨ ਦੇ ਅਧੀਨ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ਅਤੇ ਅੱਜ-ਕਲ੍ਹ ਦੇ ਸਮੇਂ ਵਿੱਚ ਕੋਈ ਵੀ ਸਰਕਾਰੀ ਨਿਯੰਤਰਨ ਨੂੰ ਪਸੰਦ ਨਹੀਂ ਕਰਦਾ 1917 ਵਿੱਚ ਰੂਸ ਵਿੱਚ ਵੀ ਰਾਜਸ਼ਾਹੀ ਨੂੰ ਸਾਮਵਾਦੀ ਵਿਵਸਥਾ ਨੇ ਬਦਲ ਦਿੱਤਾ ਸੀ ਪਰ ਉੱਥੇ ਦੀ ਅਰਥ-ਵਿਵਸਥਾ ਦਾ ਕੁੱਝ ਸਮੇਂ ਵਿੱਚ ਹੀ ਬੁਰਾ ਹਾਲ ਹੋ ਗਿਆ ਸੀ । ਇਸ ਕਰਕੇ ਹੀ 1990 ਵਿੱਚ ਉੱਥੇ ਯੂ. ਐੱਸ. ਐੱਸ. ਆਰ. (U.S.S.R.) ਦੇ ਟੁਕੜੇ-ਟੁਕੜੇ ਹੋ ਗਏ ਅਤੇ ਉਹ ਕਈ ਦੇਸ਼ਾਂ ਵਿੱਚ ਵੰਡਿਆ ਗਿਆ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਅਸੀਂ ਕਹਿ ਸਕਦੇ ਹਾਂ ਕਿ ਸਾਮਵਾਦੀ ਅਰਥ-ਵਿਵਸਥਾ ਪੂੰਜੀਵਾਦੀ ਵਿਵਸਥਾ ਨੂੰ ਬਦਲ ਨਹੀਂ ਸਕਦੀ ।

IV. ਨਿਮਨਲਿਖਤ ਪ੍ਰਸ਼ਨਾਂ ਦੇ ਉੱਤਰ 250-300 ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਦਿਓ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਕੀ ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ, ਵਿਚਾਰਕ ਆਗਸਤ ਕਾਮਤੇ ਦੀ ਧਾਰਨਾ ਅਨੁਸਾਰ ਪੂਰਨ ਤੌਰ ਤੇ ਵਿਕਸਿਤ ਹੋ ਗਿਆ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਸ਼ਬਦ ਸਮਾਜ ਵਿਗਿਆਨ (Sociology) ਦਾ ਪਹਿਲੀ ਵਾਰ ਪ੍ਰਯੋਗ ਅਗਸਤੇ ਕਾਮਤੇ ਨੇ 1839 ਵਿੱਚ ਕੀਤਾ ਸੀ । ਕਾਮਤੇ ਨੇ ਇੱਕ ਕਿਤਾਬ ਲਿਖੀ “The Course on Positive Philosophy’ ਜਿਹੜੀ ਕਿ 6 ਭਾਗਾਂ ਵਿੱਚ ਛਪੀ ਸੀ । ਇਸ ਕਿਤਾਬ ਵਿੱਚ ਉਹਨਾਂ ਨੇ ਕਿਹਾ ਸੀ ਸਮਾਜ ਦੇ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਭਾਗਾਂ ਦਾ ਅਧਿਐਨ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਸਮਾਜਿਕ ਵਿਗਿਆਨ ਕਰਦੇ ਹਨ, ਉਦਾਹਰਨ ਦੇ ਲਈ ਸਮਾਜ ਦੇ ਰਾਜਨੀਤਿਕ ਹਿੱਸੇ ਦਾ ਅਧਿਐਨ ਰਾਜਨੀਤੀ ਵਿਗਿਆਨ ਕਰਦਾ ਹੈ, ਆਰਥਿਕ ਹਿੱਸੇ ਦਾ ਅਧਿਐਨ ਅਰਥ-ਸ਼ਾਸਤਰ ਕਰਦਾ ਹੈ । ਉਸੇ ਤਰ੍ਹਾਂ ਇੱਕ ਅਜਿਹਾ ਵਿਗਿਆਨ ਵੀ ਹੋਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ ਜੋ ਸਮਾਜ ਦਾ ਅਧਿਐਨ ਕਰੇ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਉਹਨਾਂ ਨੇ ਸਮਾਜ, ਸਮਾਜਿਕ ਸੰਬੰਧਾਂ ਦੇ ਅਧਿਐਨ ਦੀ ਕਲਪਨਾ ਕੀਤੀ ਅਤੇ ਉਹਨਾਂ ਦੀ ਕਲਪਨਾ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਇੱਕ ਨਵਾਂ ਵਿਗਿਆਨ ਸਾਹਮਣੇ ਆਇਆ ਜਿਸਨੂੰ ਸਮਾਜ ਵਿਗਿਆਨ ਦਾ ਨਾਮ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ ।”

ਕਾਮਤੇ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਹਰਬਰਟ ਸਪੈਂਸਰ ਨੇ ਕਈ ਸੰਕਲਪ ਦਿੱਤੇ ਜਿਸ ਨਾਲ ਸਮਾਜ ਵਿਗਿਆਨ ਦੇ ਵਿਸ਼ੇ ਖੇਤਰ ਵਿੱਚ ਵਾਧਾ ਹੋਣਾ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋਇਆ । ਇਮਾਈਲ ਦੁਰਖੀਮ ਪਹਿਲਾ ਸਮਾਜ ਵਿਗਿਆਨੀ ਸੀ ਜਿਸ ਨੇ ਸਮਾਜ ਵਿਗਿਆਨ ਨੂੰ ਇੱਕ ਵਿਗਿਆਨ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਸਥਾਪਿਤ ਕਰਨ ਦੀ ਕੋਸ਼ਿਸ਼ ਕੀਤੀ । ਉਸਨੇ ਆਪਣੇ ਅਧਿਐਨਾਂ ਵਿੱਚ ਵਿਗਿਆਨਿਕ ਵਿਧੀ ਦਾ ਪ੍ਰਯੋਗ ਕੀਤਾ ਅਤੇ ਕਿਹਾ ਕਿ ਸਮਾਜ ਦਾ ਵਿਗਿਆਨਿਕ ਵਿਧੀਆਂ ਜਿਵੇਂ ਕਿ ਨਿਰੀਖਣ ਆਦਿ ਦੀ ਮੱਦਦ ਨਾਲ ਅਧਿਐਨ ਕੀਤਾ ਜਾ ਸਕਦਾ ਹੈ । ਉਹਨਾਂ ਵਲੋਂ ਸਮਾਜ ਵਿਗਿਆਨ ਨੂੰ ਦਿੱਤੇ ਸੰਕਲਪਾਂ ਜਿਵੇਂ ਕਿ ਸਮਾਜਿਕ ਤੱਥ, ਆਤਮ ਹੱਤਿਆ ਦਾ ਸਿਧਾਂਤ, ਕਿਰਤ ਵੰਡ ਦਾ ਸਿਧਾਂਤ, ਧਰਮ ਦਾ ਸਿਧਾਂਤ ਆਦਿ ਵਿੱਚ ਵਿਗਿਆਨਿਕ ਵਿਧੀਆਂ ਦਾ ਪ੍ਰਯੋਗ ਸਾਫ਼ ਝਲਕਦਾ ਹੈ । ਸਮਾਜ ਵਿਗਿਆਨ ਦੇ ਇਤਿਹਾਸ ਵਿੱਚ ਦੁਰਖੀਮ ਪਹਿਲੇ ਪ੍ਰੋਫੈਸਰ ਸਨ ।

ਸਮਾਜ ਵਿਗਿਆਨ ਨੂੰ ਵਿਗਿਆਨ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਸਥਾਪਿਤ ਕਰਨ ਵਿੱਚ ਕਾਰਲ ਮਾਰਕਸ ਅਤੇ ਮੈਕਸ ਵੈਬਰ ਨੇ ਵੀ ਬਹੁਤ ਵੱਡਾ ਯੋਗਦਾਨ ਦਿੱਤਾ । ਕਾਰਲ ਮਾਰਕਸ ਨੇ ਸੰਘਰਸ਼ ਦਾ ਸਿਧਾਂਤ ਦਿੱਤਾ ਅਤੇ ਸੰਪੂਰਨ ਸਮਾਜ ਵਿਗਿਆਨ ਸੰਘਰਸ਼ ਸਿਧਾਂਤ ਦੇ ਆਲੇ-ਦੁਆਲੇ ਘੁੰਮਦਾ ਹੈ । ਮਾਰਕਸ ਨੇ ਸਮਾਜ ਦਾ ਆਰਥਿਕ ਪੱਖ ਤੋਂ ਅਧਿਐਨ ਕੀਤਾ ਅਤੇ ਦੱਸਿਆ ਕਿ ਸਮਾਜ ਦਾ ਇਤਿਹਾਸ ਵਰਗ ਸੰਘਰਸ਼ ਦਾ ਇਤਿਹਾਸ ਹੈ । ਉਹਨਾਂ ਨੇ ਦੋ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦੇ ਵਰਗਾਂ ਅਤੇ ਉਹਨਾਂ ਵਿਚਕਾਰ ਹਮੇਸ਼ਾਂ ਚਲਦੇ ਸੰਘਰਸ਼ ਦਾ ਵਿਸਤ੍ਰਿਤ ਵਰਣਨ ਕੀਤਾ । ਉਹਨਾਂ ਨੇ ਇਤਿਹਾਸਿਕ ਭੌਤਿਕਵਾਦ, ਦਵੰਦਾਤਮਕ ਭੌਤਿਕਵਾਦ, ਵਰਗ ਅਤੇ ਵਰਗ ਸੰਘਰਸ਼ ਦਾ ਸਿਧਾਂਤ, ਅਲਗਾਵ ਦਾ ਸਿਧਾਂਤ ਵਰਗੇ ਸੰਕਲਪ ਸਮਾਜ ਵਿਗਿਆਨ ਨੂੰ ਦਿੱਤੇ । ਮੈਕਸ ਵੈਬਰ ਨੇ ਵੀ ਸਮਾਜ ਵਿਗਿਆਨ ਨੂੰ ਵਿਗਿਆਨ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਸਥਾਪਿਤ ਕਰਨ ਦੀ ਕੋਸ਼ਿਸ਼ ਕੀਤੀ ਅਤੇ ਸਮਾਜਿਕ ਕ੍ਰਿਆ ਦਾ ਸਿਧਾਂਤ ਦਿੱਤਾ । ਉਹਨਾਂ ਨੇ ਸਮਾਜ ਵਿਗਿਆਨ ਦੀ ਵਿਆਖਿਆ ਦਿੱਤੀ, ਸਮਾਜਿਕ ਕ੍ਰਿਆ ਦਾ ਸਿਧਾਂਤ ਦਿੱਤਾ, ਸੱਤਾ ਅਤੇ ਕੁੱਤਾ ਦਾ ਸਿਧਾਂਤ ਦਿੱਤਾ, ਧਰਮ ਦੀ ਵਿਆਖਿਆ ਦਿੱਤੀ ਅਤੇ ਕਰਮਚਾਰੀਤੰਤਰ (Bureaucracy) ਦਾ ਸਿਧਾਂਤ ਦਿੱਤਾ ।

ਇਹਨਾਂ ਸਾਰੇ ਸਮਾਜ ਵਿਗਿਆਨ ਦੇ ਸੰਸਥਾਪਕਾਂ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਸਮਾਜ ਵਿਗਿਆਨੀ ਹੋਏ ਅਤੇ ਸਮਾਜ ਵਿਗਿਆਨ ਨੂੰ ਵਿਗਿਆਨ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਸਥਾਪਿਤ ਕਰਨ ਵਿੱਚ ਉਹਨਾਂ ਦੇ ਯੋਗਦਾਨ ਨੂੰ ਨਕਾਰਿਆ ਨਹੀਂ ਜਾ ਸਕਦਾ । ਟਾਲਕਟ ਪਾਰਸੰਸ਼, ਜੇ. ਐੱਸ. ਮਿਲ, ਮੈਲਿਨੋਵਸਕੀ, ਰਾਬਰਟ ਮਰਟਨ, ਗਿਲਿਨ ਅਤੇ ਗਿਲਿਨ, ਜੀ. ਐੱਸ. ਘੁਰੀਏ ਆਦਿ ਵਰਗੇ ਸਮਾਜ ਵਿਗਿਆਨੀ ਇਹਨਾਂ ਵਿੱਚੋਂ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਹਨ ।

ਹੁਣ ਪਿਛਲੇ ਕਾਫੀ ਸਮੇਂ ਤੋਂ ਸਮਾਜ ਵਿਗਿਆਨ ਵਿੱਚ ਵਿਗਿਆਨਿਕ ਵਿਧੀਆਂ ਦਾ ਪ੍ਰਯੋਗ ਕਾਫੀ ਹੱਦ ਤੱਕ ਕੀਤਾ ਜਾ ਰਿਹਾ ਹੈ ਤਾਂ ਕਿ ਅਧਿਐਨ ਨੂੰ ਵੱਧ ਤੋਂ ਵੱਧ ਵਸਤੂਨਿਸ਼ਠ (Objective) ਅਤੇ ਨਿਰਪੱਖ ਰੱਖਿਆ ਜਾ ਸਕੇ । ਇਸ ਨਾਲ ਇੱਕ ਖੇਤਰ ਵਿੱਚ ਕੀਤੇ ਅਧਿਐਨਾਂ ਨੂੰ ਦੂਜੇ ਖੇਤਰਾਂ ਵਿੱਚ ਵੀ ਲਾਗੂ ਕੀਤਾ ਜਾ ਸਕੇਗਾ । ਉਪਕਲਪਨਾ, ਨਿਰੀਖਣ, ਸੈਂਪਲ ਵਿਧੀ, ਇੰਟਰਵਿਉ, ਅਨੁਸੂਚੀ, ਪ੍ਰਸ਼ਨਾਵਲੀ, ਕੇਸ ਸਟੱਡੀ, ਵਰਗੀਕਰਣ, ਸਾਰਣੀਕਰਣ, ਅੰਕੜਿਆਂ ਦੇ ਪ੍ਰਯੋਗ ਆਦਿ ਨਾਲ ਸਮਾਜ ਵਿਗਿਆਨ ਨਿਸ਼ਚਿਤ ਰੂਪ ਨਾਲ ਇੱਕ ਵਿਗਿਆਨ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਸਥਾਪਿਤ ਹੋ ਗਿਆ ਹੈ ।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 12 ਪੱਛਮੀ-ਸਮਾਜ ਵਿਗਿਆਨ ਦੇ ਵਿਚਾਰਕ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਮਾਰਕਸ ਦਾ ਵਰਗ ਸੰਘਰਸ਼ ਦਾ ਸਿਧਾਂਤ ਕੀ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਮਾਰਕਸ ਦੀ ਉੱਨਤ ਵਿਗਿਆਨਿਕ ਪ੍ਰਸਥਾਪਨਾ ਵਿੱਚ ਇਹ ਗੱਲ ਵੀ ਸ਼ਾਮਲ ਹੈ ਕਿ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਅਲੱਗ ਸਮਾਜਿਕ ਸਮੂਹਾਂ ਦੇ ਸਭ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਵਰਗਾਂ ਦੇ ਹੋਂਦ ਦੀ ਵਿਆਖਿਆ ਕੀਤੀ | ਸਭ ਤੋਂ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਗੱਲ ਹੈ ਕਿ ਮਾਰਕਸ ਨੇ ਵਰਗਾਂ ਦੀ ਚੰਗੀ ਵਿਆਖਿਆ ਪੇਸ਼ ਕੀਤੀ | ਮਾਰਕਸ ਦੀ ਵਿਚਾਰਕ ਖੋਜ ਦਾ ਇੱਕ ਉਦੇਸ਼ ਇਹ ਪਤਾ ਲਾਉਣਾ ਸੀ ਕਿ ਇਹ ਮਾਨਵ ਸਮਾਜ ਜਿਸ ਵਿੱਚ ਅਸੀਂ ਰਹਿ ਰਹੇ ਹਾਂ ਤੇ ਇਸ ਦਾ ਜੋ ਰੁਪ ਅੱਜ ਦਿੱਸਦਾ ਹੈ, ਉਹ ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਕਿਉਂ ਹੈ, ਉਸ ਵਿੱਚ ਪਰਿਵਰਤਨ ਕਿਉਂ ਤੇ ਕਿਹੜੀਆਂ ਸ਼ਕਤੀਆਂ ਦੁਆਰਾ ਹੁੰਦੇ ਹਨ ? ਨਾਲ ਹੀ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਇਸਦਾ ਵੀ ਸਪੱਸ਼ਟ ਵਿਸ਼ਲੇਸ਼ਣ ਤੇ ਡੂੰਘਾ ਵਿਵੇਚਨ ਕੀਤਾ ਸੀ ਕਿ ਅੱਗੇ ਚੱਲ ਕੇ ਇਸ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਕਿਵੇਂ ਪਰਿਵਰਤਨ ਹੋਣਗੇ ? ਆਪਣੀ ਖੋਜ ਨਾਲ ਮਾਰਕਸ ਤੇ ਉਸਦੇ ਗੁੜੇ ਸਹਿਯੋਗੀ ਏਂਜਲਸ ਇਸ ਨਤੀਜੇ ਤੇ ਪਹੁੰਚੇ ਕਿ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਘੋਰ ਅਮਾਨਵੀ ਸ਼ੋਸ਼ਣ ਫੈਲਿਆ ਹੈ । ਇਸ ਲਈ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਆਪਣੀ ਖੋਜ ਦਾ ਦੂਜਾ ਉਦੇਸ਼ ਇਸ ਬਗੈਰ ਸ਼ੋਸ਼ਣ ਦੇ ਸਮਾਜ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕਰਨ ਦਾ ਸਿਧਾਂਤਕ ਰਸਤਾ ਲੱਭ ਲੈਣਾ ਦੱਸਿਆ ।

ਮਾਰਕਸ ਨੇ ਆਪਣੇ ਅਧਿਐਨ ਦੇ ਆਧਾਰ ਉੱਤੇ ਇਹ ਦੱਸਿਆ ਕਿ ਬਾਹਰੀ ਪ੍ਰਕਿਰਤੀ ਤੇ ਮਾਨਵੀ ਸਮਾਜ ਦੋਨਾਂ ਵਿੱਚ ਹੋਣ ਵਾਲੇ ਪਰਿਵਰਤਨ ਇਕਦਮ ਨਹੀਂ ਹੋ ਜਾਂਦੇ । ਪ੍ਰਕਿਰਤੀ ਅਤੇ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਇੱਕ ਅੰਦਰਲਾ ਮੁਸ਼ਕਲ ਸੰਘਰਸ਼ ਚਲਦਾ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ । ਇਸ ਸੰਘਰਸ਼ ਤੋਂ ਹੀ ਘਟਨਾਵਾਂ ਦੀ ਪ੍ਰਗਤੀ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ਪ੍ਰਾਕ੍ਰਿਤਕ ਅਤੇ ਸਮਾਜਿਕ ਵਿਕਾਸ ਦਾ ਚੱਕਰ ਚਲਦਾ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ । ਮਾਰਕਸ ਦਾ ਮੁਲ ਦਾਰਸ਼ਨਿਕ ਸਿਧਾਂਤ ਦਵੰਦਾਤਮਕ ਭੌਤਿਕਵਾਦ ਕਹਾਉਂਦਾ ਹੈ । ਇਸ ਦਵੰਦਾਤਮਕ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਦੁਆਰਾ ਕੀਤੀ ਗਈ ਸਮਾਜ ਦੀ ਵਿਆਖਿਆ ਇਤਿਹਾਸਿਕ ਭੌਤਿਕਵਾਦ ਕਹਿਲਾਉਂਦਾ ਹੈ । ਇਸਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਸਮਾਜ ਵਿਚ ਵਿਕਾਸ ਤੇ ਪਰਿਵਰਤਨ ਕਿਸੇ ਦੇਵਤਾ, ਸਮਰਾਟ ਜਾਂ ਨੇਤਾ ਦੀ ਬੁੱਧੀਮਾਨੀ ਜਾਂ ਵੀਰਤਾ ਦੇ ਕਾਰਨ ਨਹੀਂ ਬਲਕਿ ਕਿਸੇ ਖ਼ਾਸ ਸਮਾਜਿਕ, ਆਰਥਿਕ ਕਾਰਨਾਂ ਨਾਲ ਹੁੰਦੇ ਹਨ ।

ਮਨੁੱਖਾਂ ਦੇ ਸੋਚਣ, ਸਮਝਣ ਤੇ ਕੰਮ ਕਰਨ ਦਾ ਰੂਪ ਤੇ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਸਮੇਂ ਦੇ ਉਤਪਾਦਨ ਦੇ ਸਾਧਨਾਂ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਸਤਰ ਤੇ ਲੈਣ-ਦੇਣ ਦੇ ਤਰੀਕੇ ਤੋਂ ਪੈਦਾ ਹੁੰਦੇ ਹਨ । ਮਨੁੱਖ ਲਗਾਤਾਰ ਆਪਣੀ ਮਿਹਨਤ ਨੂੰ ਘੱਟ ਦੁੱਖਦਾਇਕ ਤੇ ਜ਼ਿਆਦਾ ਉਤਪਾਦਕ ਬਣਾਉਣ ਦੀ ਕੋਸ਼ਿਸ਼ ਕਰਦਾ ਹੈ । ਮਨੁੱਖੀ ਸਮਾਜ ਦੇ ਅੰਦਰ ਤੇ ਪ੍ਰਕਿਰਤੀ ਵਿੱਚ ਵਿਰੋਧੀ ਤੱਤਾਂ ਤੇ ਸ਼ਕਤੀਆਂ ਦਾ ਸੰਘਰਸ਼ ਵੀ ਚਲਦਾ ਹੈ । ਇਸੇ ਪ੍ਰਕ੍ਰਿਆ ਵਿੱਚ ਮਨੁੱਖ ਨਵਾਂ ਪ੍ਰਾਕ੍ਰਿਤਕ ਤੇ ਸਮਾਜਿਕ ਗਿਆਨ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਕੇ ਪੁਰਾਣੀ ਉਤਪਾਦਨ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਨੂੰ ਬਦਲ ਦੇਂਦਾ ਹੈ ਤੇ ਇਸ ਦੇ ਨਾਲ ਹੀ ਆਰਥਿਕ ਢਾਂਚੇ ਉੱਪਰ ਖੜ੍ਹਾ ਹੋਇਆ ਸਮਾਜਿਕ ਢਾਂਚਾ ਵੀ ਬਦਲ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਇਸ ਲਈ ਕਿਸੇ ਵੀ ਯੁੱਗ ਦੇ ਸਮਾਜ ਦੀਆਂ ਮੁਸ਼ਕਿਲਾਂ ਨੂੰ ਸਮਝਣ ਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਹੱਲ ਕਰਨ ਲਈ ਸਾਨੂੰ ਉਸ ਯੁੱਗ ਦੇ ਸਮਾਜਿਕ-ਆਰਥਿਕ ਢਾਂਚੇ ਦੇ ਅੰਦਰਲੇ ਦਵੰਦਾਂ ਤੇ ਵਿਰੋਧਾਂ ਦਾ ਅਧਿਐਨ ਕਰਨਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ ।

ਵਰਗ ਕਿਸ ਨੂੰ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ? (What is Class ?) – ਮਾਰਕਸ ਦੇ ਵਰਗ ਸੰਘਰਸ਼ ਦੇ ਸਿਧਾਂਤ ਨੂੰ ਸਮਝਣ ਲਈ ਇਹ ਜ਼ਰੂਰੀ ਹੈ ਕਿ ਪਹਿਲਾਂ ਇਹ ਸਮਝ ਲਈਏ ਕਿ ਵਰਗ ਕੀ ਹੈ ? ਕਾਰਲ ਮਾਰਕਸ ਨੇ ਇਤਿਹਾਸ ਦਾ ਅਧਿਐਨ ਕਰਨ ਦੇ ਲਈ ਇਸ ਗੱਲ ਦੀ ਜ਼ੋਰਦਾਰ ਵਕਾਲਤ ਕੀਤੀ ਕਿ ਸਾਨੂੰ ਇਹ ਅਧਿਐਨ ਉਸ ਦ੍ਰਿਸ਼ਟੀਕੋਣ ਤੋਂ ਕਰਨਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ ਜਿਸ ਨਾਲ ਅਸੀਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਪ੍ਰਾਕ੍ਰਿਤਕ ਨਿਯਮਾਂ ਦਾ ਪਤਾ ਲਾ ਸਕੀਏ ਜੋ ਪੂਰੇ ਮਨੁੱਖੀ ਇਤਿਹਾਸ ਦਾ ਸੰਚਾਲਨ ਕਰਦੇ ਹਨ ਅਤੇ ਅਜਿਹਾ ਕਰਨ ਲਈ ਸਾਨੂੰ ਕੁੱਝ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਵਿਅਕਤੀਆਂ ਦੇ ਕੰਮਾਂ ਦੀ ਥਾਂ ਉੱਤੇ ਆਮ ਜਨਤਾ, ਉਸਦੇ ਕੰਮਾਂ ਅਤੇ ਵਿਵਹਾਰਾਂ ਵੱਲ ਧਿਆਨ ਦੇਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ । ਆਮ ਸਮਾਜ ਦੀ ਗੱਲ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਲਗਪਗ ਹਰ ਸਮਾਜ ਕਈ ਜਨ-ਸਮੂਹਾਂ ਵਿੱਚ ਵੰਡੇ ਹੋਏ ਹਨ । ਇਸ ਪ੍ਰਕਾਰ ਅਲੱਗ ਵਰਗ ਇੱਕ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਸਮਾਜਿਕ, ਆਰਥਿਕ ਇਕਾਈ ਦਾ ਨਿਰਮਾਣ ਕਰਦੇ ਸੀ । ਇਸ ਇਕਾਈ ਨੂੰ ਅਸੀਂ ‘ਵਰਗ’ ਦੇ ਨਾਂ ਨਾਲ ਜਾਣਦੇ ਹਾਂ ।

ਮਾਰਕਸ ਨੇ ਆਪਣੇ ‘ਕਮਿਊਨਿਸਟ ਮੈਨੀਫੈਸਟੋ’ ਦੇ ਪਹਿਲੇ ਅਧਿਆਇ ਦਾ ਸ਼ੁਭਾਰੰਭ ਹੀ ਇਨ੍ਹਾਂ ਸ਼ਬਦਾਂ ਨਾਲ ਕੀਤਾ ਸੀ ਕਿ, “ਹਾਲੇ ਤੱਕ ਸਮਾਜ ਦਾ ਇਤਿਹਾਸ ਵਰਗ ਸੰਘਰਸ਼ ਦਾ ਇਤਿਹਾਸ ਰਿਹਾ ਹੈ ।” ਇਤਿਹਾਸ ਦੇ ਵਿਗਤ ਸਮਾਜਾਂ ਵਿੱਚ ਅਸੀਂ ਹਮੇਸ਼ਾਂ ਹਰ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਅਲੱਗ ਸ਼੍ਰੇਣੀਆਂ ਦੇਖਦੇ ਹਾਂ । ਸਮਾਜਿਕ ਸ਼੍ਰੇਣੀਆਂ ਦੀ ਬਹੁ-ਰੂਪੀ ਦਰਜਾਬੰਦੀ ਪ੍ਰਾਚੀਨ ਰੋਮ ਵਿੱਚ ਪ੍ਰੋਟੀਸ਼ੀਅਨ, ਨਾਈ ਪਲੇਬੀਅਨ ਤੇ ਦਾਸ ਮਿਲਦੇ ਹਨ | ਮੱਧ ਯੁੱਗ ਵਿੱਚ ਸਾਨੂੰ ਸਾਮੰਤੀ ਪ੍ਰਭੁ, ਅਧੀਨ ਜਗੀਰਦਾਰ, ਉਸਤਾਦ-ਕਾਰੀਗਰ, ਮਜ਼ਦੂਰ ਕਾਰੀਗਰ, ਜ਼ਮੀਨੀ ਦਾਸ ਆਦਿ ਦਿੱਖਦੇ ਹਨ ਅਤੇ ਲਗਪਗ ਇਨ੍ਹਾਂ ਸਾਰਿਆਂ ਵਿੱਚ ਦੁਤੀਆ ਵਰਗ ਪਾਏ ਜਾਂਦੇ ਹਨ ।

ਮਾਰਕਸ ਦੇ ਵਰਗ ਦੀ ਵਿਆਖਿਆ ਦੇ ਆਧਾਰ ਤੇ ਲੈਨਿਨ ਨੇ ਵਰਗਾਂ ਦੀ ਪਰਿਭਾਸ਼ਾ ਪੇਸ਼ ਕੀਤੀ ਹੈ । ਲੇਨਿਨ ਨੇ ਲਿਖਿਆ ਹੈ ਕਿ, “ਵਰਗ ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਅਜਿਹੇ ਵੱਡੇ-ਵੱਡੇ ਸਮੂਹਾਂ ਨੂੰ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ਜੋ ਸਮਾਜਿਕ ਉਤਪਾਦਨ ਦੀ ਇਤਿਹਾਸ ਵਲੋਂ ਨਿਰਧਾਰਿਤ ਕਿਸੇ ਪੱਦਤੀ ਵਿੱਚ, ਆਪਣੀ-ਆਪਣੀ ਜਗ੍ਹਾ ਦੀ ਨਜ਼ਰ ਤੋਂ, ਉਤਪਾਦਨ ਦੇ ਸਾਧਨਾਂ ਦੇ ਨਾਲ ਆਪਣੇ ਸੰਬੰਧ (ਜੋ ਜ਼ਿਆਦਾਤਰ ਮਾਮਲਿਆਂ ਵਿੱਚ ਕਾਨੂੰਨ ਦੁਆਰਾ ਨਿਸਚਿਤ ਤੇ ਨਿਰੂਪਿਤ ਹੁੰਦੇ ਹਨ) ਦੀ ਨਜ਼ਰ ਤੋਂ, ਮਿਹਨਤ ਦੇ ਸਮਾਜਿਕ ਸੰਗਠਨ ਵਿੱਚ ਭੂਮਿਕਾ ਦੀ ਨਜ਼ਰ ਤੋਂ ਅਤੇ ਫਲਸਰੂਪ ਸਮਾਜਿਕ ਸੰਪੱਤੀ ਦੇ ਜਿੰਨੇ ਹਿੱਸੇ ਦੇ ਉਹ ਮਾਲਕ ਹੁੰਦੇ ਹਨ, ਉਸਦੇ ਪਰਿਮਾਣ ਤੇ ਉਸਨੂੰ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਨ ਦੇ ਤੌਰ-ਤਰੀਕੇ ਦੀ ਨਜ਼ਰ ਤੋਂ ਇੱਕ-ਦੂਜੇ ਤੋਂ ਅਲੱਗ ਹੁੰਦੇ ਹਨ ।”

ਮਾਰਕਸ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਇਤਿਹਾਸ ਦੀ ਭੌਤਿਕਵਾਦੀ ਧਾਰਨਾ ਵਿੱਚ ਇਹ ਕਿਹਾ ਗਿਆ ਹੈ ਕਿ ਮਾਨਵ ਜੀਵਨ ਦੇ ਪੋਸ਼ਣ ਦੇ ਲਈ ਜ਼ਰੂਰੀ ਸਾਧਨਾਂ ਦਾ ਉਤਪਾਦਨ ਤੇ ਉਤਪਾਦਨ ਦੇ ਬਾਅਦ ਬਣੀਆਂ ਚੀਜ਼ਾਂ ਦਾ ਵਟਾਂਦਰਾ ਹਰ ਸਮਾਜਿਕ ਵਿਵਸਥਾ ਦਾ ਅਧਾਰ ਹੈ ਕਿ ਇਤਿਹਾਸ ਵਿੱਚ ਜਿੰਨੀਆਂ ਸਮਾਜਿਕ ਵਿਵਸਥਾ ਹੋਈਆਂ ਹਨ, ਉਨ੍ਹਾਂ ਵਿੱਚ ਜਿਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਧਨ ਦੀ ਵੰਡ ਹੋਈ ਹੈ ਤੇ ਸਮਾਜ ਦਾ ਵਰਗਾਂ ਤੇ ਸ਼੍ਰੇਣੀਆਂ ਵਿੱਚ ਬਟਵਾਰਾ ਹੋਇਆ ਹੈ ਉਹ ਇਸ ਗੱਲ ਉੱਤੇ ਨਿਰਭਰ ਰਿਹਾ ਹੈ ਕਿ ਇਸ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਕੀ ਉਤਪਾਦਨ ਹੋਇਆ ਹੈ ਤੇ ਕਿਵੇਂ ਹੋਇਆ ਹੈ ਅਤੇ ਫੇਰ ਉਪਜ ਦਾ ਵਟਾਂਦਰਾ ਕਿਵੇਂ ਹੋਇਆ ।

ਮਾਰਕਸ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਕਿਸੇ ਵੀ ਯੁੱਗ ਵਿੱਚ ਮਿਹਨਤ ਦੀ ਵੰਡ ਅਤੇ ਜੀਵਨ ਜੀਉਣ ਦੇ ਸਾਧਨਾਂ ਦੀ ਪ੍ਰਾਪਤੀ ਦੇ ਅਲੱਗਅਲੱਗ ਸਾਧਨਾਂ ਦੇ ਕਾਰਨ ਮਨੁੱਖ ਅਲੱਗ-ਅਲੱਗ ਵਰਗਾਂ ਵਿੱਚ ਵੰਡਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਹਰ ਵਰਗ ਦੀ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਚੇਤਨਤਾ ਹੁੰਦੀ ਹੈ । ਵਰਗ ਤੋਂ ਮਾਰਕਸ ਦਾ ਮਤਲਬ ਭਾਰਤ ਦੀ ਜਾਤ ਵਿਵਸਥਾ ਜਿਹੀ ਕੋਈ ਧਾਰਨਾ ਨਾਲ ਨਹੀਂ ਹੈ । ਵਰਗ ਤੋਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਅਰਥ ਉਨ੍ਹਾਂ ਜਨ-ਸਮੂਹਾਂ ਤੋਂ ਹੈ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਪਰਿਭਾਸ਼ਾ ਉਤਪਾਦਨ ਦੀ ਪ੍ਰਕ੍ਰਿਆ ਵਿੱਚ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਭੂਮਿਕਾ ਦੇ ਨਾਲ ਕੀਤੀ ਜਾ ਸਕਦੀ ਹੈ | ਆਮ ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਕਿਹਾ ਜਾਵੇ ਤਾਂ, “ਵਰਗ ਅਜਿਹੇ ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਸਮੂਹ ਨੂੰ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ਜੋ ਆਪਣੀ ਜੀਵਿਕਾ ਇੱਕ ਹੀ ਢੰਗ ਨਾਲ ਕਮਾਉਂਦੇ ਹਨ ।” ਵਰਗ ਦਾ ਜਨਮ ਉਤਪਾਦਨ ਦੇ ਤਰੀਕਿਆਂ ਦੇ ਆਧਾਰ ਉੱਤੇ ਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਜਿਵੇਂ-ਜਿਵੇਂ ਉਤਪਾਦਨ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਵਿੱਚ ਪਰਿਵਰਤਨ ਆਉਂਦਾ ਹੈ ਪੁਰਾਣੇ ਵਰਗਾਂ ਦੀ ਜਗ੍ਹਾ ਨਵੇਂ ਵਰਗ ਲੈ ਲੈਂਦੇ ਹਨ ।

ਅਲੱਗ ਸਮਾਜਾਂ ਵਿੱਚ ਵਰਗ (Class in various Societies) – ਮਾਰਕਸ ਨੇ ਆਪਣੇ ਵਰਗ ਦੇ ਸਿਧਾਂਤ ਦੀ ਸੱਚਾਈ ਨੂੰ ਸਥਾਪਿਤ ਕਰਨ ਲਈ ਇਤਿਹਾਸ ਵਿੱਚ ਮਿਲਣ ਵਾਲੇ ਅਲੱਗ-ਅਲੱਗ ਸਮਾਜਾਂ ਵਿੱਚ ਵਰਗ ਵਿਵਸਥਾ ਦਾ ਸਹਾਰਾ ਲਿਆ ਹੈ । ਮਾਰਕਸ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਆਦਮ-ਸਮੁਦਾਇਕ ਸਮਾਜ ਤੋਂ ਲੈ ਕੇ ਹੁਣ ਤਕ ਦੇ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਅਰਥਾਤ ਹਰ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਕੁਝ ਨਿਸਚਿਤ ਵਰਗ ਰਹੇ ਹਨ । ਮਾਰਕਸ ਦੀ ਇਸ ਵਿਵੇਚਨਾ ਨੂੰ ਇੱਥੇ ਥੋੜ੍ਹਾ ਵਿਸਤਾਰ ਨਾਲ ਸਮਝਣਾ ਹੋਵੇਗਾ ।

1. ਆਮ ਸਮੁਦਾਇਕ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਵਰਗ (Class in Primitive Communal Society) – ਅਸੀਂ ਸਭ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਇਤਿਹਾਸ ਦੀ ਨਜ਼ਰ ਤੋਂ ਆਦਮ ਸਮੁਦਾਇਕ ਸਮਾਜ ਨੂੰ ਲਈਏ । ਇਸ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਰਹਿਣ ਵਾਲੇ ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਵੱਡੇ-ਵੱਡੇ ਸਮੂਹ ਗੋਤਰ ਤੇ ਆਧਾਰਿਤ ਸਮੁਦਾਇ ਅਤੇ ਕਬੀਲੇ ਸਨ ਉਹ ਆਪਣੇ ਨਿਵਾਸ ਖੇਤਰ, ਸੰਖਿਆ ਤੇ ਭਾਸ਼ਾ ਦੀ ਨਜ਼ਰ ਤੋਂ ਇੱਕ-ਦੂਜੇ ਤੋਂ ਅਲੱਗ-ਅਲੱਗ ਹੁੰਦੇ ਸਨ । ਸਮਾਜਿਕ ਉਤਪਾਦਨ ਵਿੱਚ ਜਗ੍ਹਾ ਦੀ ਨਜ਼ਰ ਤੋਂ ਇਨ੍ਹਾਂ ਵਰਗਾਂ ਦੇ ਅਲੱਗ ਮੈਂਬਰਾਂ ਵਿੱਚ ਕੋਈ ਖ਼ਾਸ ਫ਼ਰਕ ਨਹੀਂ ਹੋਇਆ ਕਰਦਾ ਸੀ । ਪਹਿਲਾਂ ਕਿਰਤ ਵੰਡ ਔਰਤਾਂ, ਆਦਮੀਆਂ ਤੇ ਅਲੱਗ ਉਮਰ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਵਿੱਚ ਹੋਈ ਤੇ ਬਾਅਦ ਵਿੱਚ ਜ਼ਮੀਨ ਜੋਤਣ ਵਾਲੇ, ਪਸ਼ੂ ਪਾਲਣ ਵਾਲੇ ਤੇ ਸ਼ਿਕਾਰ ਤੇ ਜੀਵ ਵਾਲੇ ਕਬੀਲਿਆਂ ਵਿੱਚ ਹੋਇਆ । ਇਸ ਆਦਮ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਉਤਪਾਦਨ ਦੇ ਸਾਧਨਾਂ ਅਤੇ ਸਮਾਜਿਕ ਮਲਕੀਅਤ ਸੀ, ਇਸ ਲਈ ਕਿਸੇ ਵੀ ਗੋਤ ਜਾਂ ਕਬੀਲੇ ਦੇ ਸਾਰੇ ਮੈਂਬਰ ਬਰਾਬਰ ਸਨ । .

2. ‘ ਗੁਲਾਮੀ ਵਾਲੇ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਵਰਗ (Class in Slave Society) – ਪਰ ਹੌਲੀ-ਹੌਲੀ ਗੁਲਾਮੀ ਵਾਲੇ ਸਮਾਜ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਹੋਈ । ਸਮਾਜਿਕ ਉਤਪਾਦਨ ਦੇ ਸਾਧਨਾਂ ਤੇ ਕੁਝ ਲੋਕਾਂ ਦੀ ਮਲਕੀਅਤ ਹੋਣ ਲੱਗੀ ਤੇ ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਇੱਕ ਅਜਿਹੀ ਸਮਾਜਿਕ ਵਿਵਸਥਾ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਹੋਈ ਜੋ ਆਪਣੇ ਪਹਿਲੇ ਸਮਾਜ ਤੋਂ ਬਿਲਕੁਲ ਅਲੱਗ ਸੀ ।

ਇਸ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਗੁਲਾਮ ਮਲਕੀਅਤ ਦੇ ਵੱਡੇ ਪੈਮਾਨੇ ਦੇ ਪ੍ਰਚਲਨ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਤੇ ਦਾਸ ਮੁਲਕ ਸਮਾਜ ਦੀ ਸ਼ੁਰੂਆਤੀ ਅਵਸਥਾ ਵਿੱਚ ਜ਼ਿਆਦਾ ਲੋਕ ਸਮੁਦਾਇ ਵਿੱਚ ਰਹਿਣ ਵਾਲੇ ਕਿਸਾਨ ਸਨ । ਉਹ ਸਮੁਦਾਇ ਅਤੇ ਨਵੇਂ ਉਭਰ ਰਹੇ ਰਾਜਾਂ ਤੇ ਨਿਰਭਰ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਲਘੂ ਉਤਪਾਦਕ ਸਨ । ਉਹ ਕਿਰਤ ਦੇ ਔਜ਼ਾਰਾਂ, ਮਵੇਸ਼ੀ, ਰਹਿਣ ਵਾਲੇ ਘਰਾਂ, ਬੀਜਾਂ ਆਦਿ ਦੇ ਮਾਲਕ ਸਨ, ਸਮੁਦਾਇ ਮੈਂਬਰਾਂ ਦੀ ਹੈਸੀਅਤ ਨਾਲ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਜ਼ਮੀਨ ਜੋਤਣ ਦਾ ਅਧਿਕਾਰ ਸੀ ਤੇ ਉਹ ਸਮੁਦਾਇਕ ਚਰਾਗਾਹਾਂ ਆਦਿ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਕਰਦੇ ਸਨ | ਸੁਤੰਤਰ ਕਿਸਾਨ ਆਪਣੀ ਵੰਡ ਦੀਆਂ ਸੀਮਾਵਾਂ ਦੇ ਅੰਦਰ ਆਪ ਆਪਣੀ ਕਿਰਤ ਦਾ ਸੰਗਠਨਕਰਤਾ ਸੀ । ਉਹ ਸਾਰਿਆਂ ਉਤਪਾਦਾਂ ਦਾ ਮਾਲਕ ਸੀ ਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਖ਼ਰਚ ਕਰਨ ਵਾਲਾ ਸੀ, ਜਿਸ ਵਿੱਚੋਂ ਜ਼ਿਆਦਾਤਰ ਦੀ ਉਹ ਆਪ ਤੇ ਉਸਦਾ ਪਰਿਵਾਰ ਉਪਯੋਗ ਕਰਦਾ ਸੀ । ਉਸਦੇ ਕੋਲ ਅਨਾਜ, ਮਾਸ ਤੇ ਹੋਰ ਖਾਣ ਦਾ ਸਮਾਨ ਐਨਾ ਹੁੰਦਾ ਸੀ ਜਿਹੜਾ ਅਗਲੀ ਫਸਲ ਤਕ ਦੀਆਂ ਜ਼ਰੂਰਤਾਂ ਦੇ ਲਈ ਬਹੁਤ ਸੀ । ਉਤਪਾਦਾਂ ਦਾ ਕੁੱਝ ਹਿੱਸਾ ਰਾਜ ਨੂੰ ਦੇਣਾ ਪੈਂਦਾ ਸੀ ਅਤੇ ਉਸਦਾ ਇੱਕ ਭਾਗ, ਬਹੁਤ ਛੋਟਾ ਜਿਹਾ ਭਾਗ ਉਨ੍ਹਾਂ ਜ਼ਰੂਰੀ-ਜ਼ਰੂਰੀ ਵਸਤਾਂ ਤੇ ਲੈਣ-ਦੇਣ ਲਈ ਅਲੱਗ ਰੱਖ ਲਿਆ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ਜਿਸਦਾ ਉਤਪਾਦਨ ਉਹ ਸੁਤੰਤਰ ਕਿਸਾਨ ਆਪ ਨਹੀਂ ਕਰ ਸਕਦਾ ਸੀ । ਇਸ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦੇ ਲੱਛਣਾਂ ਨਾਲ ਭਰਪੂਰ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਸਮੂਹਿਕ ਤੌਰ ਤੇ ਇੱਕ ਵਰਗ ਕਿਹਾ ਜਾ ਸਕਦਾ ਹੈ ।

ਹੌਲੀ-ਹੌਲੀ ਜਿਵੇਂ ਸਮਾਜ ਦਾ ਵਿਕਾਸ ਹੁੰਦਾ ਗਿਆ, ਕੁੱਝ ਲੋਕਾਂ ਨੇ ਧਨ ਇਕੱਠਾ ਕੀਤਾ ਤੇ ਦੂਜਿਆਂ ਦੇ ਕੋਲ ਧਨ ਇਕੱਠਾ ਨਹੀਂ ਹੋਇਆ । ਇਸਦੇ ਨਾਲ-ਨਾਲ ਗੁਲਾਮਾਂ ਦਾ ਵੀ ਇੱਕ ਵਰਗ ਪੈਦਾ ਹੋ ਗਿਆ । ਗੁਲਾਮਾਂ ਦਾ ਉਪਯੋਗ ਆਰਥਿਕ ਸਮਾਜ ਦੇ ਅਲੱਗ ਖੇਤਰਾਂ ਵਿੱਚ ਕੀਤਾ ਜਾਣ ਲੱਗਾ । ਉਹ ਗੁਲਾਮ ਪੂਰੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਆਪਣੇ ਮਾਲਕ ਦੀ ਸੰਪੱਤੀ ਬਣ ਗਏ ਤੇ ਮਾਲਕ ਆਮ ਤੌਰ ਤੇ ਕੋਈ ਆਦਮੀ ਹੀ ਹੁੰਦਾ ਸੀ ਪਰ ਕੁੱਝ ਦੇਸ਼ਾਂ ਵਿੱਚ, ਜਿਵੇਂ ਪ੍ਰਾਚੀਨ ਭਾਰਤ ਵਿੱਚ ਜਿੱਥੇ ਸਮੁਦਾਇਕ ਸੰਬੰਧ ਸੂਤਰ ਮਜਬੂਤ ਸਨ, ਪੁਰਾ ਸਮੁਦਾਇ ਹੀ ਗੁਲਾਮਾਂ ਦਾ ਮਾਲਕ ਸੀ । ਗੁਲਾਮਾਂ ਕੋਲ ਕਿਰਤ ਦੇ ਔਜ਼ਾਰ ਜਾਂ ਉਤਪਾਦਨ ਦੇ ਹੋਰ ਸਾਧਨ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦੇ ਸਨ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਕੋਲ ਸਿਰਫ਼ ਵਿਅਕਤੀਗਤ ਉਪਯੋਗ ਦੀਆਂ ਕੁੱਝ ਚੀਜ਼ਾਂ ਹੁੰਦੀਆਂ ਸਨ, ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਮਾਲਕ ਕਦੇ ਵੀ ਖਿੱਚ ਸਕਦਾ ਸੀ । ਗੁਲਾਮ ਆਪਣੀ ਕਿਰਤ ਦਾ ਸੰਗਠਨ ਆਪ ਨਹੀਂ ਕਰਦੇ ਸਨ, ਉਹ ਸਿਰਫ਼ ਆਪਣੇ ਮਾਲਕ ਦਾ ਹੁਕਮ ਪੂਰਾ ਕਰਦੇ ਸਨ ।

ਉਹ ਵਰਗ ਜੋ ਗੁਲਾਮ ਵਰਗ ਨਾਲ ਸਿੱਧੇ ਰੂਪ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧਤ ਸਨ ਤੇ ਸਿੱਧੇ ਗੁਲਾਮ ਵਰਗ ਦਾ ਵਿਰੋਧੀ ਸੀ, ਉਹ ਦਾਸਾਂ ਦੇ ਮਾਲਕਾਂ ਦਾ ਵਰਗ ਸੀ । ਦਾਸ ਸੁਆਮੀ ਦੂਜੇ ਵਰਗ ਦੇ ਸਨ । ਉਹ ਉਤਪਾਦਨ ਦੇ ਬੁਨਿਆਦੀ ਸਾਧਨਾਂ ਜ਼ਮੀਨ, ਮਵੇਸ਼ੀ ਤੇ ਕਿਰਤ ਦੇ ਔਜ਼ਾਰ), ਮਕਾਨਾਂ, ਅਤੇ ਧਨ ਦੇ ਮਾਲਕ ਵੀ ਸਨ, ਜਿਸ ਨਾਲ ਉਨ੍ਹਾਂ ਲਈ ਗੁਲਾਮਾਂ ਨੂੰ ਖਰੀਦਣਾ ਸੰਭਵ ਸੀ । ਦਾਸ-ਸਵਾਮੀ ਹੀ ਉਤਪਾਦਨ ਦੇ ਸੰਗਠਨ ਕਰਤਾ ਸਨ-ਆਦਮੀਆਂ ਦੀ ਹੈਸੀਅਤ ਨਾਲ ਅਤੇ ਰਾਜ ਦੇ ਪ੍ਰਤੀਨਿਧੀਆਂ ਦੀ ਹੈਸੀਅਤ ਨਾਲ ਵੀ । ਆਪਣੇ ਦਾਸਾਂ ਦੁਆਰਾ ਉਤਪੰਨ ਫ਼ਾਲਤੂ ਉਤਪਾਦਨ ਦਾਸ-ਸੁਆਮੀਆਂ ਦੀ ਸੰਪੱਤੀ ਦਾ ਮੁੱਖ ਸਰੋਤ ਸੀ ।

ਦਾਸ ਮੂਲਕ ਸਮਾਜ ਨੇ ਕਾਫ਼ੀ ਮਾਤਰਾ ਵਿੱਚ ਆਰਥਿਕ ਉੱਨਤੀ ਕੀਤੀ । ਉਸਨੇ ਸ਼ਹਿਰਾਂ ਦਾ ਨਿਰਮਾਣ ਕੀਤਾ, ਵਪਾਰ ਦਾ ਵਿਕਾਸ ਕੀਤਾ, ਲੋਹੇ ਦੇ ਹਥਿਆਰਾਂ ਅਤੇ ਹੋਰ ਤਕਨੀਕੀ ਸੁਵਿਧਾਵਾਂ ਨਾਲ ਵੱਡੀਆਂ-ਵੱਡੀਆਂ ਸੈਨਾਵਾਂ ਖੜੀਆਂ ਕੀਤੀਆਂ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਸਾਰੀਆਂ ਚੀਜ਼ਾਂ ਦੇ ਫਲਸਰੂਪ ਹੀ, ਦਾਸ ਸੁਆਮੀਆਂ ਦੁਆਰਾ ਵਾਧੂ ਧਨ ਜਮਾਂ ਕੀਤੇ ਜਾਣ ਦੇ ਫਲਸਰੂਪ ਉਤਪੰਨ ਵਿਲਾਸ ਦੀਆਂ ਚੀਜ਼ਾਂ ਦੀ ਮੰਗ ਦਾ ਇਹ ਤਕਾਜ਼ਾ ਸੀ ਕਿ ਹਸਤਸ਼ਿਲਪ ਦਾ ਕਾਫ਼ੀ ਵਿਸਤਾਰ ਹੋਵੇ । ਇਸ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦਾਸ ਮੁਲਕ ਸਮਾਜ ਦੇ ਅੰਦਰ ਹਸਤ ਸ਼ਿਲਪੀਆਂ, ਛੋਟੇ ਤੇ ਸੁਤੰਤਰ ਉਤਪਾਦਕਾਂ ਦਾ ਇੱਕ ਵਰਗ ਖੜਾ ਹੋ ਗਿਆ ।

3. ਸਾਮੰਤੀ ਸਮਾਜ ਵਿਚ ਵਰਗ (Class in Feudal Society) – ਹੁਣ ਅਸੀਂ ਸਾਮੰਤੀ ਸਮਾਜ ਦੀ ‘ਵਰਗ-ਬਣਤਰ’ ਉੱਤੇ ਵਿਚਾਰ ਕਰੀਏ । ਉਸ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਕੰਮ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਆਮ ਲੋਕ ਸਾਮੰਤੀ ਜ਼ੰਜੀਰਾਂ ਵਿੱਚ ਜਕੜੇ ਕਿਸਾਨ ਸਨ । ਸਾਮੰਤੀ ਸਮਾਜ ਦੀ ਜ਼ਿਆਦਾ ਉੱਨਤ ਅਵਸਥਾ ਵਿੱਚ ਇਸ ਵਰਗ ਨੇ ਜ਼ਮੀਨੀ ਗੁਲਾਮਾਂ ਦਾ ਰੂਪ ਧਾਰਨ ਕਰ ਲਿਆ ।ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਜ਼ਮੀਨੀ ਗੁਲਾਮਾਂ ਦੇ ਮਾਲਕ ਜਗੀਰਦਾਰਾਂ ਤੇ ਜ਼ਮੀਨੀ ਗੁਲਾਮਾਂ ਦੇ ਮੁੱਖ ਵਰਗ ਬਣ ਗਏ ।

ਜਗੀਰਦਾਰ ਕੰਮ ਨਾ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਸੰਪੱਤੀ ਦੇ ਮਾਲਕ ਲੋਕ ਸਨ ।ਉਨ੍ਹਾਂ ਕੋਲ ਵੱਡੀਆਂ-ਵੱਡੀਆਂ ਜਗੀਰਾਂ ਸਨ ਅਤੇ ਆਪਣੇ ਜ਼ਮੀਨੀ ਗੁਲਾਮਾਂ ਉੱਪਰ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਪੂਰਾ ਨਹੀਂ ਤਾਂ ਥੋੜ੍ਹਾ ਜਿਹਾ ਸੰਪੱਤੀ ਅਧਿਕਾਰ ਜ਼ਰੂਰ ਸੀ । ਜ਼ਮੀਨੀ ਗੁਲਾਮ ਜਗੀਰਦਾਰਾਂ ਦੇ ਲਈ ਕੰਮ ਕਰਨ ਨੂੰ ਮਜਬੂਰ ਸਨ ਤੇ ਜ਼ਮੀਨੀ ਦਾਸ ਪ੍ਰਥਾ ਦੇ ਸੰਸਥਾਤਮਕ ਬਣ ਜਾਣ ਦੇ ਬਾਅਦ ਵੀ ਜ਼ਮੀਨੀ ਗੁਲਾਮਾਂ ਦੀ ਜ਼ਮੀਨ ਦੇ ਨਾਲ ਖਰੀਦ ਫਰੋਖਤ ਹੋਣ ਲੱਗੀ । ਜ਼ਮੀਨਾਂ ਦੇ ਮਾਲਕ ਕਿਸਾਨਾਂ ਦੇ ਕਿਰਤ ਦੇ ਸੰਗਠਨ ਕਰਤਾ ਦੀ ਭੂਮਿਕਾ ਨਿਭਾਉਣ ਲੱਗੇ ਤੇ ਦੂਜੇ ਪਾਸੇ ਜ਼ਮੀਨੀ ਗੁਲਾਮ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਜ਼ਮੀਨ ਤੇ ਜਾਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਘਰਾਂ ਤੇ ਕੰਮ ਕਰਦੇ ਸਨ । ਜ਼ਮੀਨਾਂ ਦੇ ਮਾਲਕ ਕਿਸਾਨਾਂ ਵੱਲੋਂ ਪੈਦਾ ਕੀਤੇ ਜਾਣ ਵਾਲੇ ਵਾਧੂ ਉਤਪਾਦਨ ਦਾ ਜ਼ਿਆਦਾ ਹਿੱਸਾ ਆਪ ਹੜੱਪ ਕਰ ਜਾਂਦੇ ਸਨ ।

4. ਪੂੰਜੀਵਾਦੀ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਵਰਗ (Class in Capitalistic Society) – ਜਗੀਰਦਾਰੀ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਦੇ ਨਾਲ-ਨਾਲ ਉਸਦੇ ਅੰਦਰ ਪੂੰਜੀਪਤੀਆਂ ਦਾ ਇੱਕ ਨਵਾਂ ਵਰਗ ਵੀ ਵਿਕਸਿਤ ਹੁੰਦਾ ਗਿਆ । ਇਹੀ ਉਹ ਵਰਗ ਸੀ ਜਿਸਨੇ ਸਾਮੰਤੀ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਹੀ ਆਪਣੀਆਂ ਜੜਾਂ ਜਮਾਉਣੀਆਂ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰ ਦਿੱਤੀਆਂ | ਪੂੰਜੀਪਤੀ ਵਰਗ ਉਦਯੋਗ ਤੇ ਖੇਤੀ ਵਿੱਚ ਉਤਪਾਦਨ ਦੇ ਸਾਧਨਾਂ ਦੇ ਮਾਲਕ ਤੇ ਕੰਮ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਧਨੀ ਸੰਪੱਤੀਧਾਰੀਆਂ ਨੂੰ ਲੈ ਕੇ ਗਠਿਤ ਹੁੰਦਾ ਹੈ, ਜੋ ਆਪਣੀਆਂ ਕੰਮ ਕਰਨ ਵਾਲੀਆਂ ਥਾਂਵਾਂ ਤੇ ਕਿਰਤ ਕ੍ਰਿਆ ਦਾ ਸੰਗਠਨ ਕਰਦੇ ਹਨ ਤੇ ਮਜ਼ਦੂਰਾਂ ਦੇ ਸ਼ੋਸ਼ਣ ਦੇ ਫਲਸਰੂਪ ਮੁਨਾਫ਼ੇ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਫਾਲਤੂ ਉਤਪਾਦਨ ਨੂੰ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਦੇ ਹਨ । ਪੂੰਜੀਵਾਦੀ ਸਮਾਜ ਦਾ ਦੂਜਾ ਪ੍ਰਧਾਨ ਵਰਗ ਹੁੰਦਾ ਹੈ-ਮਜ਼ਦੂਰ । ਮਜ਼ਦੂਰ ਪੂੰਜੀਪਤੀ ਵਰਗ ਦਾ ਵਿਰੋਧੀ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਤੇ ਇਹ ਨਾਲ-ਨਾਲ ਉਸਦੇ ਹੋਂਦ ਦੀ ਇੱਕ ਜ਼ਰੂਰੀ ਸ਼ਰਤ ਵੀ ਹੁੰਦੀ ਹੈ । ਮਜ਼ਦੂਰ ਵਰਗ ਦਾ ਗਠਨ ਭਾੜੇ ਦੇ ਮਜ਼ਦੂਰਾਂ ਨੂੰ ਲੈ ਕੇ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਜੋ ਉਤਪਾਦਨ ਦੇ ਸਾਧਨਾਂ ਦੀ ਮਲਕੀਅਤ ਤੋਂ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਹਾਸਲ ਕਰਨ ਦੇ ਮੌਕੇ ਤੋਂ ਵੰਚਿਤ ਹੁੰਦੇ ਹਨ । ਪੂੰਜੀਪਤੀ ਵਰਗ ਜ਼ਿਆਦਾਤਰ ਆਰਥਿਕ ਜ਼ੋਰ ਜ਼ਬਰਦਸਤੀ ਦੇ ਸਹਾਰੇ ਮਜ਼ਦੂਰ ਵਰਗ ਦਾ ਸ਼ੋਸ਼ਣ ਕਰਦਾ ਹੈ ।ਵਰਗ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਮਜ਼ਦੂਰ ਦੇ ਕੋਲ ਉਤਪਾਦਨ ਦੇ ਸਾਧਨ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦੇ ਅਤੇ ਉਹ ਆਪਣੀ ਕਿਰਤ ਵੇਚ ਕੇ ਹੀ ਆਪਣੀ ਜੀਵਿਕਾ ਕਮਾਉਣ ਲਈ ਪੂੰਜੀਪਤੀਆਂ ਦੇ ਕੋਲ ਕੰਮ ਕਰਨ ਨੂੰ ਮਜਬੂਰ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ।

ਪੂੰਜੀਵਾਦ ਦੇ ਸ਼ੁਰੂਆਤੀ ਸਮੇਂ ਵਿੱਚ ਪੂੰਜੀਪਤੀ ਵਰਗ ਇੱਕ ਪ੍ਰਤੀਸ਼ੀਲ ਵਰਗ ਸੀ । ਆਪਣੇ ਥੋੜੇ ਜਿਹੇ ਸਮੇਂ ਵਿੱਚ ਹੀ ਬਹੁਤ ਸ਼ਕਤੀਸ਼ਾਲੀ ਉਤਪਾਦਨ ਸ਼ਕਤੀਆਂ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਦੇ ਕਾਰਨ ਇਹ ਵਰਗ ਹੋਰ ਜ਼ਿਆਦਾ ਸ਼ਕਤੀਸ਼ਾਲੀ ਹੋ ਗਿਆ ਪਰ ਇਸਨੇ ਆਪਣੀ ਸਾਰਥਕਤਾ ਖੋਹ ਦਿੱਤੀ । ਹੁਣ ਇਹ ਵਰਗ ਬਜਾਇ ਉਤਪਾਦਨ ਨੂੰ ਸੰਗਠਿਤ ਕਰਨ ਦੇ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਕੰਮ ਦੇ ਆਮ ਤੌਰ ‘ਤੇ ਸਮਾਜਿਕ ਉੱਨਤੀ ਨੂੰ ਰੋਕਦੇ ਹਨ ਅਤੇ ਮਜ਼ਦੂਰਾਂ ਦਾ ਸ਼ੋਸ਼ਣ ਕਰਦੇ ਹਨ ।

ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਕਾਰਲ ਮਾਰਕਸ ਨੇ ਹਰ ਸਮਾਜ ਵਿਚ ਦੋ-ਦੋ ਵਰਗਾਂ ਦੀ ਵਿਵੇਚਨਾ ਕੀਤੀ ਹੈ | ਮਾਰਕਸ ਦੀ ਵਰਗ ਦੀ ਧਾਰਨਾ ਨੂੰ ਹਰ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਖੁੱਲ੍ਹ ਕੇ ਸਮਝ ਲੈਣ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਹੁਣ ਅਸੀਂ ਇਸ ਸਥਿਤੀ ਵਿੱਚ ਹਾਂ ਕਿ ਉਸਦੀ ਵਰਗ ਸੰਘਰਸ਼ ਦੀ ਧਾਰਨਾ ਨੂੰ ਸਮਝੀਏ | ਮਾਰਕਸ ਨੇ ਦੱਸਿਆ ਕਿ ਹਰ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਦੋ ਵਿਰੋਧੀ ਵਰਗ-ਇੱਕ ਸ਼ੋਸ਼ਣ ਕਰਨ ਵਾਲਾ’ ਤੇ ਦੁਜਾ ‘ਸ਼ੋਸ਼ਿਤ ਹੋਣ ਵਾਲਾ’ ਵਰਗ ਹੁੰਦੇ ਹਨ, ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਵਿੱਚ ਸੰਘਰਸ਼ ਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਇਸੇ ਨੂੰ ਮਾਰਕਸ ‘ਵਰਗ-ਸੰਘਰਸ਼’ ਕਹਿੰਦਾ ਹੈ । ਕਮਿਊਨਿਸਟ ਘੋਸ਼ਣਾ-ਪੱਤਰ ਵਿੱਚ ਉਹ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ਕਿ ਸਮਾਜ ਦੀ ਹੋਂਦ ਦੇ ਨਾਲ ਹੀ ਨਾਲ ਵਰਗ-ਸੰਘਰਸ਼ ਦਾ ਜਨਮ ਹੋਇਆ ਸੀ । ਮਾਰਕਸ ਦਾ ਇਹ ਵਰਗ-ਸੰਘਰਸ਼ ਦਾ ਸਿਧਾਂਤ ਉਸਦੇ ਵਿਚਾਰਾਂ ਵਿੱਚ ਤੇ ਸੰਸਾਰ ਵਿੱਚ ਬਹੁਤ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਹੈ । ਇਸੇ ਪ੍ਰਭਾਵ ਦੇ ਕਾਰਨ ‘ਸਮਾਲ ਥਾਸਟਰੀਨ ਬੇਵਲੀਨ’ ਅਤੇ ‘ਕੁਲੇ” ਆਦਿ ਨੇ ਵੀ ਵਰਗ ਸੰਘਰਸ਼ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਚਿੰਤਨ ਦਾ ਇੱਕ ਅੰਗ ਮੰਨਿਆ ਹੈ ।

ਮਾਰਕਸ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਉਤਪਾਦਨ ਦੀਆਂ ਕ੍ਰਿਆਵਾਂ ਵਿੱਚ ਅਲੱਗ ਵਰਗਾਂ ਦੀਆਂ ਭੂਮਿਕਾਵਾਂ ਅਲੱਗ ਹੁੰਦੀਆਂ ਹਨ । ਅੰਤ ਵਰਗਾਂ ਦੀਆਂ ਜ਼ਰੂਰਤਾਂ ਤੇ ਹਿੱਤਾਂ ਦੇ ਵਿੱਚ ਸੰਘਰਸ਼ ਦੀ ਸਥਿਤੀ ਦਾ ਪੈਦਾ ਹੋਣਾ ਬਹੁਤ ਜ਼ਰੂਰੀ ਹੈ ਤੇ ਇਹੀ ਸੰਘਰਸ਼ ਵਿਰੋਧੀ ਵਿਚਾਰਧਾਰਾਵਾਂ ਲਈ ਇੱਕ ਧਰਾਤਲ ਪੇਸ਼ ਕਰਦਾ ਹੈ । ਵਿਕਾਸਸ਼ੀਲ ਉਤਪਾਦਨ ਦੀਆਂ ਸ਼ਕਤੀਆਂ ਤੇ ਪ੍ਰਕ੍ਰਿਆਵਾਦੀ ਅਤੇ ਸਥਿਰ ਸੰਪੱਤੀ ਦੇ ਸੰਬੰਧਾਂ ਵਿੱਚ ਟਕਰਾਓ ਪੈਦਾ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਸੰਘਰਸ਼ ਦੀ ਗਤੀ ਤੇਜ਼ ਹੁੰਦੀ ਹੈ । ਇਤਿਹਾਸ ਦੀ ਗਤੀ ਵਰਗਾਂ ਦੀ ਭੂਮਿਕਾ ਦੇ ਦੁਆਰਾ ਨਿਰਧਾਰਤ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ਤੇ ਸਮਾਜਿਕ ਆਰਥਿਕ ਵਰਗ ਉਨ੍ਹਾਂ ਸਾਰੇ ਸਮਾਜਾਂ ਵਿੱਚ ਪਾਏ ਜਾਂਦੇ ਹਨ ਜਿੱਥੇ ਕਿਰਤ ਦੀ ਵੰਡ ਦਾ ਆਮ ਸਿਧਾਂਤ ਲਾਗੂ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ।

ਮਾਰਕਸ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਵਰਗ-ਸੰਘਰਸ਼ ਇੱਕ ਅਜਿਹੀ ਉਤਪਾਦਨ ਵਿਵਸਥਾ ਤੋਂ ਪੈਦਾ ਹੁੰਦਾ ਹੈ, ਜੋ ਸਮਾਜ ਨੂੰ ਅਲੱਗਅਲੱਗ ਵਰਗਾਂ ਵਿੱਚ ਵੰਡ ਦਿੰਦੀ ਹੈ । ਇਸ ਵਿੱਚ ਇੱਕ ਵਰਗ ਮੁਸ਼ਕਿਲ ਕਿਰਤ ਕਰਕੇ ਉਤਪਾਦਨ ਕਰਦਾ ਹੈ ਜਿਵੇਂ ਦਾਸ, ਅੱਧੇ ਦਾਸ, ਕਿਸਾਨ, ਮਜ਼ਦੂਰ ਆਦਿ ਤੇ ਦੂਜਾ ਵਰਗ ਉਤਪਾਦਨ ਲਈ ਬਗੈਰ ਕੋਈ ਮਿਹਨਤ ਕੀਤੇ, ਬਿਨਾਂ ਕੋਈ ਕੰਮ ਕੀਤੇ, ਉਤਪਾਦਨ ਦੇ ਬਹੁਤ ਵੱਡੇ ਭਾਗ ਦਾ ਉਪਯੋਗ ਕਰਦਾ ਹੈ ਜਿਵੇਂ ਦਾਸਾਂ ਦੇ ਮਾਲਕ, ਜਾਗੀਰਦਾਰ, ਜ਼ਮੀਨਾਂ ਦੇ ਮਾਲਕ, ਪੂੰਜੀਪਤੀ ਆਦਿ । ਮਾਰਕਸ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਇਸ ਵਰਗ-ਸੰਘਰਸ਼ ਨੂੰ ਮਨੁੱਖ ਦੇ ਉਤਪਾਦਨ ਦੀ ਪਹਿਲੀ ਅਤੇ ਉੱਚੀ ਅਵਸਥਾ ਤਕ ਪਹੁੰਚਣ ਵਿਚ ਇਹ ਮੱਦਦ ਕਰਦਾ ਹੈ । ਉਹ ਮੰਨਦੇ ਹਨ ਕਿ ਕੋਈ ਵੀ ਕਾਂਤੀ ਜਦੋਂ ਸਫਲ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ਤਾਂ ਉਸ ਨਾਲ ਇੱਕ ਨਵੀਂ ਆਰਥਿਕ-ਸਮਾਜਿਕ ਵਿਵਸਥਾ ਉਭਰਦੀ ਹੈ ।

ਮਾਰਕਸ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਨਿੱਜੀ ਸੰਪੱਤੀ ਹੀ ਸ਼ੋਸ਼ਣ ਦੀ ਜੜ੍ਹ ਹੈ ਅਤੇ ਇਸ ਦੇ ਕਾਰਨ ਹੀ ਮੂਲ ਰੂਪ ਨਾਲ ਆਰਥਿਕ ਉਤਪਾਦਨ ਦੇ ਹਰ ਖੇਤਰ ਵਿੱਚ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਦੋ ਮੁੱਖ-ਵਰਗ ਹੁੰਦੇ ਹਨ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਵਿਚੋਂ ਇਕ ਵਰਗ ਦੇ ਹੱਥਾਂ ਵਿੱਚ ਆਰਥਿਕ ਉਤਪਾਦਨ ਦੇ ਸਾਰੇ ਸਾਧਨ ਕੇਂਦਰਿਤ ਹੋ ਜਾਂਦੇ ਹਨ, ਜਿਸਦੇ ਕਾਰਨ ਉਹ ਵਰਗ ਸ਼ੋਸ਼ਿਤ ਤੇ ਕਮਜ਼ੋਰ ਵਰਗ ਦਾ ਸ਼ੋਸ਼ਣ ਕਰਦਾ ਆਇਆ ਹੈ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਵਰਗਾਂ ਵਿੱਚ ਸਮਾਜ ਦੀ ਹੁਣ ਤਕ ਦੀ ਹਰ ਅਵਸਥਾ ਵਿੱਚ (ਆਦਿਮ ਸਾਮਵਾਦ ਨੂੰ ਛੱਡ ਕੇ) ਲਗਾਤਾਰ ਸੰਘਰਸ਼ ਚਲਦਾ ਰਿਹਾ ਹੈ ।

ਮਾਰਕਸ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਉਤਪਾਦਨ ਦੇ ਸਾਧਨਾਂ ਉੱਤੇ ਅਧਿਕਾਰ ਕਰਕੇ ਸ਼ੋਸ਼ਕ ਵਰਗ ਬਲ ਨਾਲ ਆਪਣੇ ਸਿਧਾਂਤਕ ਵਿਚਾਰਾਂ ਤੇ ਜੀਵਨ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਨੂੰ ਸਾਰੇ ਸਮਾਜ ਤੇ ਥੋਪਦਾ ਹੈ । ਮਾਰਕਸ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ, “ਉਹ ਵਰਗ ਜੋ ਸਮਾਜ ਦੀ ਸ਼ੋਸ਼ਕ ਭੌਤਿਕ ਸ਼ਕਤੀ ਹੁੰਦਾ ਹੈ, ਨਾਲ ਹੀ ਸਮਾਜ ਦੀ ਸ਼ਾਸਕ ਬੌਧਿਕ ਸ਼ਕਤੀ ਵੀ ਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਉਹ ਵਰਗ ਜਿਸ ਕੋਲ ਭੌਤਿਕ ਉਤਪਾਦਨ ਦੇ ਸਾਧਨ ਹੁੰਦੇ ਹਨ, ਮਾਨਸਿਕ ਉਤਪਾਦਨ ਦੇ ਸਾਧਨਾਂ ਉੱਤੇ ਵੀ ਨਿਯੰਤਰਨ ਕਰਦਾ ਹੈ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦੇ ਨਿਯੰਤਰਨ ਲਈ ਸ਼ੋਸ਼ਕ ਵਰਗ ਬਲ ਦਾ ਪੂਰਾ ਪ੍ਰਯੋਗ ਕਰਦਾ ਹੈ ।ਉਸਦੇ ਦੁਆਰਾ ਸਮਾਜ ਉੱਤੇ ਥੋਪੇ ਗਏ ਧਰਮ, ਦਰਸ਼ਨ, ਰਾਜਨੀਤੀ, ਅਰਥ-ਸ਼ਾਸਤਰ ਤੇ ਨੈਤਿਕਤਾ ਦੇ ਵਿਚਾਰ ਉਸਦੇ ਇਸ ਕੰਟਰੋਲ ਨੂੰ ਮਜਬੂਤ ਕਰਨ ਲਈ ਸ਼ੋਸ਼ਕ ਵਰਗ ਦੇ ਦਾਸ ਬਣ ਜਾਂਦੇ ਹਨ । ਸ਼ੋਸ਼ਣ ਦੀ ਇਸ ਸੰਪੱਤੀ ਨੂੰ ਬਣਾਏ ਰੱਖਣ ਲਈ ਨਵੇਂ ਉਭਰਦੇ ਸ਼ੋਸ਼ਿਤ ਵਰਗ ਨੂੰ ਬਲ ਨਾਲ ਦਬਾਉਣਾ ਜ਼ਰੂਰੀ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਇਸ ਲਈ ਮਾਰਕਸ ਨੇ ਕਿਹਾ ਹੈ-ਬਲ ਨਵੇਂ ਸਮਾਜ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਗਰਭ ਵਿੱਚ ਧਾਰਨ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਹਰ ਪੁਰਾਣੇ ਸਮਾਜ ਦੀ ਦਾਈ (Midwife) ਹੈ ।

ਸਮਾਜਿਕ ਵਿਕਾਸ ਅਲੱਗ ਅਵਸਥਾਵਾਂ ਦੀ ਦੇਣ ਹੈ । ਕਿਸੇ ਵੀ ਸਮਾਜ ਵਿਵਸਥਾ ਜਾਂ ਇਤਿਹਾਸਕ ਯੁੱਗ ਦਾ ਮੁੱਲਾਂਕਣ, ਪਰਿਸਥਿਤੀਆਂ, ਦੇਸ਼ ਤੇ ਕਾਲ ਉੱਪਰ ਨਿਰਭਰ ਕਰਦਾ ਹੈ । ਕੋਈ ਵੀ ਸਮਾਜਿਕ ਵਿਵਸਥਾ ਅਜਰ-ਅਮਰ ਨਹੀਂ ਹੈ । ਸਾਰੀਆਂ ਪ੍ਰਕ੍ਰਿਆਵਾਂ ਦਵੰਦਾਤਮਕ ਹੁੰਦੀਆਂ ਹਨ । ਉਤਪਾਦਨ ਦੀ ਨਵੀਂ ਵਿਕਾਸਸ਼ੀਲ ਪ੍ਰਕ੍ਰਿਆ (ਵਾਦ) ਅਤੇ ਪੁਰਾਣੀ ਪ੍ਰਕ੍ਰਿਆ (ਸੰਵਾਦ) ਦੇ ਵਿੱਚ ਜੋ ਅੰਦਰਲਾ ਸੰਘਰਸ਼ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਉਹੀ ਇਸ ਦੀ ਪ੍ਰੇਰਕ ਸ਼ਕਤੀ ਹੁੰਦੀ ਹੈ । ਪੁਰਾਣੀ ਦੀ ਜਗ੍ਹਾ ਤੇ ਨਵੀਂ ਪੱਦਤੀ ਨੂੰ ਅਪਨਾਉਣਾ ਜ਼ਰੂਰੀ ਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਹੌਲੀ-ਹੌਲੀ ਹੋਣ ਵਾਲੇ ਪਰਿਮਾਣਕ ਪਰਿਵਰਤਨ ਤੇਜ਼ੀ ਨਾਲ ਇਕਦਮ ਹੋਣ ਵਾਲੇ ਗੁਣਾਤਮਕ ਪਰਿਵਰਤਨ ਵਿੱਚ ਬਦਲ ਜਾਂਦੇ ਹਨ । ਇਸ ਲਈ ਵਿਕਾਸ ਦੇ ਨਿਯਮ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਕ੍ਰਾਂਤੀਕਾਰੀ ਪਰਿਵਰਤਨ ਸੁਭਾਵਿਕ ਅਤੇ ਜ਼ਰੂਰੀ ਹੁੰਦੇ ਹਨ ।

ਇਹ ਪਰਿਵਰਤਨ ਬਲ (Force) ਉੱਤੇ ਆਧਾਰਿਤ ਹੁੰਦੇ ਹਨ । ਵਿਕਾਸ ਦੇ ਸਿਲਸਿਲੇ ਵਿੱਚ ਅਸੰਗਤੀਆਂ ਦੇ ਆਧਾਰ ਉੱਤੇ ਵਿਰੋਧੀ ਸ਼ਕਤੀਆਂ ਵਿੱਚ ਟਕਰਾਓ ਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਅੰਤ ਵਰਗ-ਸੰਘਰਸ਼ ਦਾ ਤੇਜ਼ ਹੋਣਾ ਅਤੇ ਉਭਰਦੇ ਹੋਏ ਸ਼ੋਸ਼ਿਤ ਵਰਗ ਮਜ਼ਦੂਰ ਦਾ ਅੰਤਮ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਜਿੱਤਣਾ ਜ਼ਰੂਰੀ ਹੈ । ਮਾਰਕਸ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਇਨ੍ਹਾਂ ਵਿਰੋਧਾਂ ਦੇ ਕਾਰਨ ‘ਪੂੰਜੀਵਾਦ’ ਆਪ ਆਪਣੇ ਵਿਨਾਸ਼ ਦਾ ਬੀਜ ਬੀਜਦਾ ਹੈ ।

ਪੂੰਜੀਵਾਦੀ ਵਿਵਸਥਾ ਵਿਚ ਦਿਨ-ਪ੍ਰਤੀ-ਦਿਨ ਗ਼ਰੀਬੀ, ਭੁੱਖਮਰੀ ਤੇ ਬੇਰੁਜ਼ਗਾਰੀ ਵੱਧਦੀ ਜਾਵੇਗੀ । ਸਹਿਣ ਕਰਨ ਦੀ ਇੱਕ ਸੀਮਾ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਮਜ਼ਦੂਰ ਵਰਗ ਆਪਣੀਆਂ ਸਾਰੀਆਂ ਜੰਜ਼ੀਰਾਂ ਨੂੰ ਤੋੜ ਦੇਵੇਗਾ ਅਤੇ ਕ੍ਰਾਂਤੀ ਦਾ ਯੁੱਗ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋ ਜਾਵੇਗਾ । ਮਾਰਕਸ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਪੂੰਜੀਵਾਦ ਸ਼ੋਸ਼ਣ ਉੱਤੇ ਆਧਾਰਿਤ ਆਖ਼ਰੀ ਸਮਾਜਿਕ ਵਿਵਸਥਾ ਹੋਵੇਗੀ । ਆਪਣੇ ਸਵਾਰਥਾਂ ਨਾਲ ਘਿਰੇ ਪੂੰਜੀਪਤੀ ਸੰਸਦੀ ਨਿਯਮਾਂ ਨਾਲ ਆਪਣੇ ਏਕਾਧਿਕਾਰ ਦਾ ਕਦੇ ਤਿਆਗ ਨਹੀਂ ਕਰਨਗੇ ਜਿਵੇਂ ਕਿ ਮਹਾਤਮਾ ਗਾਂਧੀ ਨੇ ਆਪਣੇ ਟਰੱਸਟੀਸ਼ਿਪ ਦੇ ਸਿਧਾਂਤ ਦੀ ਵਿਆਖਿਆ ਵਿੱਚ ਕਿਹਾ ਸੀ । ਸ਼ਾਂਤੀਪੂਰਨ ਢੰਗ ਨਾਲ ਸ਼ੋਸ਼ਣ ਨੂੰ ਮਿਟਾਇਆ ਨਹੀਂ ਜਾ ਸਕਦਾ । ਇਸਦੇ ਲਈ ਕ੍ਰਾਂਤੀ ਜ਼ਰੂਰੀ ਹੈ । ਸਮਾਜ ਦਾ ਇੱਕ ਵੱਡਾ ਭਾਗ ਮਜ਼ਦੂਰ ਬਣਦਾ ਜਾਵੇਗਾ ਤੇ ਇਹੀ ਕ੍ਰਾਂਤੀਕਾਰੀ ਪਰਿਵਰਤਨ ਦਾ ਹਰਿਆਲਾ ਦਸਤਾ ਹੋਵੇਗਾ ।

ਮਜ਼ਦੂਰ ਵਰਗ ਦੀ ਲੀਡਰਸ਼ਿਪ ਵਿੱਚ ਵਰਗ ਸੰਘਰਸ਼ ਦੇ ਦੁਆਰਾ ਰਾਜ ਦੇ ਯੰਤਰ ਉੱਤੇ ਅਧਿਕਾਰ ਹੋ ਜਾਣ ਦੇ ਬਾਅਦ ਸਮਾਜਵਾਦ ਦੇ ਯੁੱਗ ਦੀ ਸ਼ੁਰੂਆਤ ਹੋਵੇਗੀ । ਮਾਰਕਸ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਰਾਜ ਸ਼ੋਸ਼ਕ ਵਰਗ ਦੇ ਹੱਥਾਂ ਵਿੱਚ ਦਮਨ ਦਾ ਬਹੁਤ ਵੱਡਾ ਹਥਿਆਰ ਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਕ੍ਰਾਂਤੀ ਦੇ ਬਾਅਦ ਵੀ ਸਾਮੰਤਵਾਦ ਤੇ ਪੂੰਜੀਵਾਦ ਦੇ ਦਲਾਲ ਪ੍ਰਤੀ-ਕ੍ਰਾਂਤੀ ਦੀ ਕੋਸ਼ਿਸ਼ ਕਰਦੇ ਹਨ । ਇਸ ਲਈ ਪੂੰਜੀਵਾਦ ਦੇ ਸਮਾਜਵਾਦ ਵਿੱਚ ਜਾਣ ਦੇ ਸਮੇਂ ਵਿੱਚ ਮਜ਼ਦੂਰ ਦੀ ਸੱਤਾ ਦੀ ਅਸਥਾਈ ਅਵਸਥਾ ਹੋਵੇਗੀ । ਸਮਾਜਵਾਦ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਦੇ ਬਾਅਦ, ਸ਼ੋਸ਼ਣ ਦਾ ਅੰਤ ਹੋ ਜਾਣ ਤੇ ਵਰਗ ਖ਼ਤਮ ਹੋ ਜਾਣਗੇ ਅਤੇ ਹਰ ਵਿਅਕਤੀ ਨੂੰ ਆਪਣੀ ਕਿਰਤ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਉਤਪਾਦਨ ਦਾ ਭਾਗ ਮਿਲੇਗਾ, ਪਰ ਸਾਮਵਾਦ ਦੀ ਜ਼ਿਆਦਾ ਉੱਨਤ ਅਵਸਥਾ ਵਿੱਚ ‘ਹਰ ਇੱਕ ਨੂੰ ਉਸ ਦੀ ਜ਼ਰੂਰਤ ਅਨੁਸਾਰ’ ਹੀ ਮਿਲਣ ਲੱਗ ਜਾਵੇਗਾ । ਹੌਲੀ-ਹੌਲੀ ਰਾਜ ਜੋ ਸ਼ੋਸ਼ਕ ਵਰਗ ਦਾ ਹਥਿਆਰ ਰਿਹਾ ਹੈ, ਬਿਖਰ ਜਾਵੇਗਾ ਤੇ ਇਸ ਦੀ ਥਾਂ ਆਪਸੀ ਸਹਿਯੋਗ ਤੇ ਸਹਿਕਾਰਤਾ ਦੇ ਅਧਾਰ ਤੇ ਬਣੀਆਂ ਸੰਸਥਾਵਾਂ ਲੈ ਲੈਣਗੀਆਂ । ਵਰਗ ਅਤੇ ਵਰਗ ਸੰਘਰਸ਼ ਦਾ ਅੰਤ ਹੋ ਜਾਵੇਗਾ ।

ਮਜ਼ਦੂਰ ਅਤੇ ਪੂੰਜੀਪਤੀ ਦੇ ਵਿੱਚ ਛਿੜੇ ਵਰਗ-ਸੰਘਰਸ਼ ਦਾ ਅੰਤ ਪੂੰਜੀਵਾਦ ਦੇ ਖਾਤਮੇ ਤੇ ਹੋਵੇਗਾ । ਉਤਪਾਦਨ ਦੇ ਸਾਧਨਾਂ ਉੱਤੇ ਸਮਾਜ ਦਾ ਅਧਿਕਾਰ ਹੋ ਜਾਣ ਨਾਲ ਉਤਪਾਦਨ ਤੇ ਲੱਗੇ ਪ੍ਰਤੀਬੰਧ ਹਟ ਜਾਣਗੇ, ਉਤਪਾਦਨ ਸ਼ਕਤੀਆਂ ਅਤੇ ਉਪਜ ਦੀ ਬਰਬਾਦੀ ਬੰਦ ਹੋ ਜਾਵੇਗੀ । ਵਰਗ ਸੰਘਰਸ਼ ਦੁਆਰਾ ਵਰਗਾਂ ਦਾ ਖ਼ਾਤਮਾ ਅੱਜ ਸਿਰਫ਼ ਇੱਕ ਸੁਪਨੇ ਦੀ ਗੱਲ ਬਣ ਕੇ ਨਹੀਂ ਰਹਿ ਗਈ ਹੈ । ਸੰਸਾਰ ਬੜੀ ਤੇਜ਼ੀ ਨਾਲ ਵਰਗਹੀਨ ਸਮਾਜਵਾਦੀ ਸਮਾਜ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਵੱਲ ਵੱਧ ਰਿਹਾ ਹੈ । ਏਂਜਲਸ ਨੇ ਬਹੁਤ ਪਹਿਲਾਂ ਹੀ ਕਿਹਾ ਸੀ, “ਅੱਜ ਇਤਿਹਾਸ ਵਿੱਚ ਪਹਿਲੀ ਵਾਰ ਇਸਦੀ ਸੰਭਾਵਨਾ ਪੈਦਾ ਹੋ ਗਈ ਹੈ ਕਿ ਸਮਾਜਿਕ ਉਤਪਾਦਨ ਦੇ ਦੁਆਰਾ ਸਮਾਜ ਦੇ ਹਰ ਮੈਂਬਰ ਨੂੰ ਅਜਿਹਾ ਜੀਵਨ ਮਿਲ ਸਕੇ, ਜੋ ਭੌਤਿਕ ਨਜ਼ਰ ਤੋਂ ਵਧੀਆ ਹੋ ਜਾਵੇ ਤੇ ਦਿਨ-ਪ੍ਰਤੀ-ਦਿਨ ਜ਼ਿਆਦਾ ਸੰਪੰਨ ਹੋ ਜਾਏ, ਇਹੀ ਨਹੀਂ ਇੱਕ ਅਜਿਹਾ ਜੀਵਨ ਉਪਲੱਬਧ ਹੋਵੇ, ਜਿਸ ਵਿੱਚ ਹਰ ਵਿਅਕਤੀ ਦੀ ਸਰੀਰਕ ਤੇ ਮਾਨਸਿਕ ਸ਼ਕਤੀਆਂ ਦਾ ਉਨਮੁੱਖ ਵਿਕਾਸ ਸੁਨਿਸਚਿਤ ਹੋਵੇ । ਇਸ ਗੱਲ ਦੀ ਸੰਭਾਵਨਾ ਪਹਿਲੀ ਵਾਰ ਪੈਦਾ ਹੋਈ ਹੈ, ਪਰ ਹੋਈ ਜ਼ਰੂਰ ਹੈ ।”

ਮਜ਼ਦੂਰ ਕ੍ਰਾਂਤੀ ਦੇ ਦੁਆਰਾ ਹੀ ਇਨ੍ਹਾਂ ਵਿਰੋਧਾਂ ਅਤੇ ਹੋਰ ਵਿਰੋਧਾਂ ਦਾ ਹੱਲ ਹੋਵੇਗਾ | ਮਜ਼ਦੂਰ ਮੁਕਤੀ ਦੇ ਇਸ ਕੰਮ ਨੂੰ ਪੂਰਾ ਕਰਨਾ ਆਧੁਨਿਕ ਮਜ਼ਦੂਰ ਵਰਗ ਦਾ ਇਤਿਹਾਸਿਕ ਫ਼ਰਜ਼ ਹੈ । ਇਸ ਦੇ ਬਾਅਦ ਮਨੁੱਖ ਆਪ ਮਜ਼ਦੂਰ ਸਚੇਤ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਆਪਣੇ ਇਤਿਹਾਸ ਦਾ ਆਪ ਨਿਰਮਾਣ ਕਰੇਗਾ | ਏਂਜਲਸ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ, “ਇਸੇ ਸਮੇਂ ਤੋਂ ਮਨੁੱਖ ਵਲੋਂ ਚਲਦੀਆਂ ਸਮਾਜਿਕ ਕਿਰਿਆਵਾਂ ਦੇ ਸਿੱਟੇ ਮੁੱਖ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਲਗਾਤਾਰ ਵੱਧਦੀ ਹੋਈ ਮਾਤਰਾ ਵਿੱਚ ਉਸਦੀ ਇੱਛਾ ਦੇ ਮੁਤਾਬਿਕ ਹੋਣਗੇ । ਇਹ ਮਨੁੱਖ ਦੀ ਮਜਬੂਰੀ ਦੇ ਰਾਜ ਤੋਂ ਸੁਤੰਤਰਤਾ ਦੇ ਰਾਜ ਵਿੱਚ ਛਲਾਂਗ ਹੈ ।”

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 12 ਪੱਛਮੀ-ਸਮਾਜ ਵਿਗਿਆਨ ਦੇ ਵਿਚਾਰਕ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 3.
ਰੂਸ ਅਤੇ ਚੀਨ ਦੀਆਂ ਸਮਾਜਵਾਦੀ ਕ੍ਰਾਂਤੀਆਂ ਉੱਪਰ ਨੋਟ ਲਿਖੋ ।
ਉਤੱਰ-
(i) ਰੂਸੀ ਕ੍ਰਾਂਤੀ (Russian Revolution) – ਰੂਸ ਉੱਤੇ ਰੋਮਾਨੋਵ (Romany) ਪਰਿਵਾਰ ਦਾ ਰਾਜ ਸੀ । ਪਹਿਲੇ ਵਿਸ਼ਵ ਯੁੱਧ (1914) ਦੇ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋਣ ਵੇਲੇ ਜ਼ਾਰ ਨਿਕੋਲਸ 11 ਦਾ ਉਸ ਉੱਤੇ ਸਾਮਰਾਜ ਸੀ । ਮਾਸਕੋ ਦੇ ਆਲੇ ਦੁਆਲੇ ਦੇ ਖੇਤਰ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਉਸ ਸਮੇਂ ਦੇ ਰੂਸੀ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਅੱਜ ਦੇ ਮੌਜੂਦਾ ਦੇਸ਼ ਫਿਨਲੈਂਡ, ਲਾਟਵੀਆ, ਲਿਥੂਆਨੀਆਂ, ਐਸਟੋਨੀਆਂ, ਪੋਲੈਂਡ ਦਾ ਹਿੱਸਾ, ਯੂਕਰੇਨ ਅਤੇ ਬੇਲਾਰੂਸ ਵੀ ਸ਼ਾਮਲ ਸਨ । ਜਾਰਜੀਆ, ਆਰਮੀਨੀਆ ਅਤੇ ਅਜ਼ਰਬਾਈਜਾਨ ਵੀ ਇਸਦਾ ਹਿੱਸਾ ਸਨ ।

1914 ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਰੂਸ ਵਿੱਚ ਰਾਜਨੀਤਿਕ ਦਲਾਂ ਦੀ ਮਨਾਹੀ ਸੀ । 1898 ਵਿੱਚ ਸਮਾਜ ਵਾਦੀਆਂ ਨੇ ਰਸੀ ਲੋਕਤੰਤਰੀ ਵਰਕਰਜ਼ ਪਾਰਟੀ ਸ਼ੁਰੂ ਕੀਤੀ ਅਤੇ ਉਹ ਕਾਰਲ ਮਾਰਕਸ ਦੇ ਵਿਚਾਰਾਂ ਦਾ ਸਮਰਥਨ ਕਰਦੇ ਸਨ । ਪਰ ਸਰਕਾਰੀ ਨੀਤੀਆਂ ਅਨੁਸਾਰ, ਇਸਨੂੰ ਗੈਰ-ਕਾਨੂੰਨੀ ਤਰੀਕੇ ਨਾਲ ਆਪਣਾ ਕੰਮ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰਨਾ ਪਿਆ । ਇਸਨੇ ਆਪਣਾ ਅਖ਼ਬਾਰ ਸ਼ੁਰੂ ਕੀਤਾ, ਮਜ਼ਦੂਰਾਂ ਨੂੰ ਇਕੱਠਾ ਕਰਨਾ ਸ਼ੁਰੂ ਕੀਤਾ ਅਤੇ ਹੜਤਾਲਾਂ ਕਰਨੀਆਂ ਸ਼ੁਰੂ ਕੀਤੀਆਂ ।

ਰੂਸ ਵਿੱਚ ਤਾਨਾਸ਼ਾਹੀ ਸ਼ਾਸਨ ਸੀ । ਹੋਰ ਯੂਰਪੀ ਦੇਸ਼ਾਂ ਦੇ ਉਲਟ, ਜ਼ਾਰ ਉੱਥੇ ਦੀ ਸੰਸਦ ਦੇ ਪ੍ਰਤੀ ਜਵਾਬਦੇਹ ਨਹੀਂ ਸੀ । ਉਦਾਰਵਾਦੀਆਂ ਨੇ ਇੱਕ ਅੰਦੋਲਨ ਚਲਾਇਆ ਤਾਂਕਿ ਇਸ ਗ਼ਲਤ ਪ੍ਰਥਾ ਨੂੰ ਖ਼ਤਮ ਕੀਤਾ ਜਾ ਸਕੇ । ਉਦਾਰਵਾਦੀਆਂ ਨੇ ਸਮਾਜਵਾਦੀ ਲੋਕਤੰਤਰੀ ਅਤੇ ਸਮਾਜਿਕ ਕ੍ਰਾਂਤੀਕਾਰੀਆਂ ਨਾਲ ਮਿਲ ਕੇ ਕਿਸਾਨਾਂ ਅਤੇ ਮਜ਼ਦੂਰਾਂ ਨੂੰ ਇਕੱਠੇ ਕੀਤਾ ਅਤੇ 1905 ਦੀ ਕ੍ਰਾਂਤੀ ਦੌਰਾਨ ਸੰਵਿਧਾਨ ਦੀ ਮੰਗ ਕੀਤੀ । ਉਹਨਾਂ ਦੀਆਂ ਇਹਨਾਂ ਕੋਸ਼ਿਸ਼ਾਂ ਤੋਂ ਪ੍ਰਭਾਵਿਤ ਹੋ ਕੇ ਰੂਸ ਦੇ ਵਰਕਰ ਵੀ ਚੇਤਨ ਹੋ ਗਏ ਅਤੇ ਉਹਨਾਂ ਨੇ ਕੰਮ ਦੇ ਘੰਟੇ ਘਟਾਉਣ ਅਤੇ ਵੱਧ ਤਨਖਾਹ ਦੀ ਮੰਗ ਕੀਤੀ । ਜਦੋਂ ਉਹ ਕ੍ਰਾਂਤੀ ਲਈ ਤਿਆਰੀ ਕਰ ਰਹੇ ਸਨ, ਪੁਲਿਸ ਨੇ ਉਹਨਾਂ ਉੱਤੇ ਹਮਲਾ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । 100 ਤੋਂ ਵੱਧ ਵਰਕਰ ਮਰ ਗਏ ਅਤੇ 300 ਤੋਂ ਵੱਧ ਜ਼ਖ਼ਮੀ ਹੋ ਗਏ । ਕਿਉਂਕਿ ਇਹ ਘਟਨਾ ਐਤਵਾਰ ਨੂੰ ਹੋਈ ਸੀ, ਇਸ ਲਈ ਇਸਨੂੰ Bloody Sunday ਦੇ ਨਾਮ ਨਾਲ ਵੀ ਜਾਣਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

1914 ਵਿੱਚ ਪਹਿਲਾ ਵਿਸ਼ਵ ਯੁੱਧ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋਇਆ ਅਤੇ ਜ਼ਾਰ ਨੇ ਰੁਸ ਨੂੰ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਧੱਕ ਦਿੱਤਾ । ਰੂਸ ਦੀ ਹਾਲਤ ਜਿਹੜੀ ਕਿ ਪਹਿਲਾਂ ਹੀ ਖ਼ਰਾਬ ਚਲ ਰਹੀ ਸੀ, ਹੋਰ ਵੀ ਜ਼ਿਆਦਾ ਖ਼ਰਾਬ ਹੋ ਗਈ । ਰੂਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਬੁਰੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਉਲਝ ਗਿਆ ਸੀ । ਇੱਕ ਪਾਸੇ ਜ਼ਾਰ ਸੰਸਦ ਡੁਮਾ ਨੂੰ ਭੰਗ ਕਰਨ ਦੀ ਕੋਸ਼ਿਸ਼ ਕਰ ਰਿਹਾ ਸੀ ਅਤੇ ਦੂਜੇ ਪਾਸੇ ਸੰਸਦ ਦੇ ਮੈਂਬਰ ਇਸ ਸਥਿਤੀ ਤੋਂ ਬਚਣ ਦੀ ਕੋਸ਼ਿਸ਼ ਕਰ ਰਹੇ ਸਨ । ਇਸ ਸਥਿਤੀ ਵਿੱਚ ਪੈਟਰੋਗਰਾਡ (Petrograd) ਵਿੱਚ 22 ਫਰਵਰੀ, 1917 ਵਿੱਚ ਇੱਕ ਫੈਕਟਰੀ ਬੰਦ ਹੋ ਗਈ ਅਤੇ ਸਾਰੇ ਵਰਕਰ ਬੇਰੋਜ਼ਗਾਰ ਹੋ ਗਏ । ਹਮਦਰਦੀ ਦੇ ਕਾਰਨ ਉੱਥੋਂ ਦੀਆਂ 50 ਫੈਕਟਰੀਆਂ ਦੇ ਵਰਕਰਾਂ ਨੇ ਵੀ ਹੜਤਾਲ ਕਰ ਦਿੱਤੀ । ਇਸ ਸਮੇਂ ਤੱਕ ਕੋਈ ਵੀ ਰਾਜਨੀਤਿਕ ਦਲ ਇਸ ਅੰਦੋਲਨ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਨਹੀਂ ਕਰ ਰਿਹਾ ਸੀ । ਸਰਕਾਰੀ ਇਮਾਰਤਾਂ ਨੂੰ ਵਰਕਰਾਂ ਨੇ ਘੇਰ ਲਿਆ ਅਤੇ ਸਰਕਾਰ ਨੇ ਕਰਫਿਊ (Curfew) ਲਗਾ ਦਿੱਤਾ । ਸ਼ਾਮ ਤੱਕ ਵਰਕਰ ਖਿੰਡ ਗਏ ਪਰ ਉਹ 24 ਅਤੇ 25 ਤਰੀਕ ਨੂੰ ਫੇਰ ਇਕੱਠੇ ਹੋ ਗਏ । ਸਰਕਾਰ ਨੇ ਫ਼ੌਜ ਨੂੰ ਸੱਦ ਲਿਆ ਅਤੇ ਪੁਲਿਸ ਨੂੰ ਉਹਨਾਂ ਉੱਤੇ ਨਿਗਰਾਨੀ ਰੱਖਣ ਲਈ ਕਿਹਾ ਗਿਆ ।

25 ਫਰਵਰੀ, ਐਤਵਾਰ ਨੂੰ ਸਰਕਾਰ ਨੇ ਸੰਸਦ (ਡੁਮਾ) ਨੂੰ ਭੰਗ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਨੇਤਾਵਾਂ ਨੇ ਇਸ ਦੇ ਵਿਰੁੱਧ ਬੋਲਣਾ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਪ੍ਰਦਰਸ਼ਨਕਾਰੀ ਪੂਰੀ ਤਾਕਤ ਨਾਲ 26 ਤਰੀਕ ਨੂੰ ਸੜਕਾਂ ਉੱਤੇ ਵਾਪਸ ਆ ਗਏ । 27 ਤਰੀਕ ਨੂੰ ਪੁਲਿਸ ਦਾ ਹੈਡਆਫਿਸ ਤਬਾਹ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ । ਸੜਕਾਂ ਉੱਤੇ ਲੋਕ ਬਾਹਰ ਆ ਗਏ ਅਤੇ ਉਹਨਾਂ ਨੇ ਬੈਡ, ਤਨਖਾਹ, ਕੰਮ ਦੇ ਘੱਟ ਘੰਟੇ ਅਤੇ ਲੋਕਤੰਤਰ ਦੇ ਨਾਅਰੇ ਲਾਉਣੇ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰ ਦਿੱਤੇ । ਸਰਕਾਰ ਨੇ ਫ਼ੌਜ ਨੂੰ ਫਿਰ ਵਾਪਸ ਬੁਲਾ ਲਿਆ ਪਰ ਫ਼ੌਜ ਲੋਕਾਂ ਉੱਤੇ ਗੋਲੀ ਚਲਾਉਣ ਤੋਂ ਮਨਾ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਜਿਸ ਅਫਸਰ ਨੇ ਗੋਲੀ ਚਲਾਉਣ ਦਾ ਹੁਕਮ ਦਿੱਤਾ ਉਸਨੂੰ ਮਾਰ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ । ਫ਼ੌਜੀ ਵੀ ਹੜਤਾਲੀਆਂ ਨਾਲ ਮਿਲ ਗਏ ਅਤੇ ਸੋਵੀਅਤ ਨੂੰ ਬਣਾਉਣ ਲਈ ਉਸ ਇਮਾਰਤ ਵਿੱਚ ਇਕੱਠੇ ਹੋ ਗਏ ਜਿੱਥੇ ਡੁਮਾ ਪਿਛਲੀ ਵਾਰੀ ਇਕੱਠੀ ਹੋਈ ਸੀ ।

ਅਗਲੇ ਦਿਨ ਵਰਕਰਾਂ ਦਾ ਪ੍ਰਤੀਨਿਧੀ ਮੰਡਲ ਜ਼ਾਰ ਨੂੰ ਮਿਲਣ ਲਈ ਗਿਆ । ਫ਼ੌਜੀ ਜਰਨੈਲਾਂ ਨੇ ਜ਼ਾਰ ਨੂੰ ਪ੍ਰਦਰਸ਼ਨਕਾਰੀਆਂ ਦੀ ਗੱਲ ਮੰਨਣ ਦੀ ਸਲਾਹ ਦਿੱਤੀ | ਅੰਤ 2 ਮਾਰਚ ਨੂੰ ਜ਼ਾਰ ਨੇ ਉਹਨਾਂ ਦੀ ਗੱਲ ਮੰਨ ਲਈ ਅਤੇ ਜ਼ਾਰ ਦਾ ਸ਼ਾਸਨ ਖ਼ਤਮ ਹੋ ਗਿਆ । ਅਕਤੂਬਰ ਵਿੱਚ ਲੈਨਿਨ ਨੇ ਰੂਸ ਦਾ ਸ਼ਾਸਨ ਸਾਂਭ ਲਿਆ ਅਤੇ ਰੂਸੀ ਕ੍ਰਾਂਤੀ ਪੂਰੀ ਹੋ ਗਈ ।

(ii) ਚੀਨੀ ਕ੍ਰਾਂਤੀ (Chinese Revolution) – 1 ਅਕਤੂਬਰ, 1949, ਚੀਨੀ ਕਮਿਉਨਿਸਟ ਨੇਤਾ ਮਾਉ-ਤਸੇ-ਤੁੰਗ ਨੇ People’s Republic of China ਨੂੰ ਬਣਾਉਣ ਦੀ ਘੋਸ਼ਣਾ ਕੀਤੀ । ਇਸ ਘੋਸ਼ਣਾ ਨਾਲ ਚੀਨੀ ਕਮਿਊਨਿਸਟ ਪਾਰਟੀ ਅਤੇ ਰਾਸ਼ਟਰਵਾਦੀ ਪਾਰਟੀ ਵਿੱਚ ਚਲ ਰਹੀ ਲੜਾਈ ਖ਼ਤਮ ਹੋ ਗਈ ਜਿਹੜੀ ਦੂਜੇ ਵਿਸ਼ਵ ਯੁੱਧ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋ ਗਈ ਸੀ । PRC ਦੇ ਬਣਨ ਨਾਲ ਚੀਨ ਵਿੱਚ ਲੰਬੇ ਸਮੇਂ ਤੋਂ (1911 ਦੀ ਚੀਨੀ ਕ੍ਰਾਂਤੀ ਚੱਲਿਆ ਆ ਰਿਹਾ ਸਰਕਾਰੀ ਉਥਲ-ਪੁਥਲ ਦਾ ਕੰਮ ਵੀ ਖ਼ਤਮ ਹੋ ਗਿਆ । ਰਾਸ਼ਟਰਵਾਦੀ ਪਾਰਟੀ ਦੇ ਹਾਰਨ ਨਾਲ ਅਮਰੀਕਾ ਨੇ ਚੀਨ ਨਾਲ ਸਾਰੇ ਰਾਜਨੀਤਿਕ ਸੰਬੰਧ ਖ਼ਤਮ ਕਰ ਲਏ ।

ਚੀਨੀ ਕਮਿਊਨਿਸਟ ਪਾਰਟੀ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ 1921 ਵਿੱਚ ਸੰਘਾਈ ਵਿੱਚ ਹੋਈ ਸੀ । ਚੀਨੀ ਕਮਿਊਨਿਸਟਾਂ ਨੇ 1926-27 ਦੇ ਉੱਤਰੀ ਹਮਲੇ ਸਮੇਂ ਰਾਸ਼ਟਰਵਾਦੀ ਪਾਰਟੀ ਦਾ ਸਮਰਥਨ ਕੀਤਾ । ਇਹ ਸਮਰਥਨ 1927 ਦੇ White Terrees ਤੱਕ ਚੱਲਿਆ ਜਦੋਂ ਰਾਸ਼ਟਰਵਾਦੀਆਂ ਨੇ ਕਮਿਊਨਿਸਟਾਂ ਨੂੰ ਮਾਰਨਾ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ।

1931 ਵਿੱਚ ਜਾਪਾਨ ਨੇ ਮੰਰੀਆ ਉੱਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰ ਲਿਆ । ਇਸ ਸਮੇਂ Republic of China ਦੀ ਸਰਕਾਰ ਨੂੰ ਤਿੰਨ ਪਾਸਿਓਂ ਹਮਲੇ ਦਾ ਡਰ ਸੀ ਅਤੇ ਉਹ ਸਨ-ਜਾਪਾਨੀ ਹਮਲਾ, ਕਮਿਊਨਿਸਟ ਵਿਦਰੋਹ ਅਤੇ ਉੱਤਰ ਵਾਲੇ ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਹਮਲੇ ਦਾ ਡਰ | ਚੀਨ ਦੀ ਫ਼ੌਜ ਦੇ ਕੁੱਝ ਜਰਨੈਲ ਰਾਸ਼ਟਰਵਾਦੀ ਲੀਡਰ ਚਿਆਂਗ-ਕਾਈ-ਸ਼ੇਕ (Chiang-kai-Shek) ਦੇ ਇਸ ਵਿਵਹਾਰ ਤੋਂ ਦੁੱਖੀ ਹੋ ਗਏ ਕਿ ਉਹ ਅੰਦਰੂਨੀ ਖਤਰਿਆਂ ਉੱਤੇ ਵੱਧ ਧਿਆਨ ਦੇ ਰਿਹਾ ਸੀ ਨਾ ਕਿ ਜਪਾਨੀ ਹਮਲੇ ਉੱਤੇ । ਉਹਨਾਂ ਨੇ ਸ਼ੇਕ ਨੂੰ ਪਕੜ ਲਿਆ ਅਤੇ ਉਸ ਨੂੰ ਕਮਿਉਨਿਸਟ ਫ਼ੌਜ ਨਾਲ ਸਹਿਯੋਗ ਕਰਨ ਲਈ ਕਿਹਾ । ਇਹ ਰਾਸ਼ਟਰਵਾਦੀ ਸਰਕਾਰ ਅਤੇ ਚੀਨੀ ਕਮਿਊਨਿਸਟ ਪਾਰਟੀ (CCP) ਵਿੱਚ ਸਹਿਯੋਗ ਕਰਨ ਵਾਸਤੇ ਪਹਿਲੀ ਕੋਸ਼ਿਸ਼ ਸੀ ਪਰ ਇਹ ਕੋਸ਼ਿਸ਼ ਘੱਟ ਸਮੇਂ ਲਈ ਹੀ ਰਹੀ । ਰਾਸ਼ਟਰਵਾਦੀਆਂ ਨੇ ਜਾਪਾਨ ਦੇ ਉੱਪਰ ਧਿਆਨ ਕਰਨ ਲਈ ਕਮਿਊਨਿਸਟਾਂ ਨੂੰ ਦਬਾਉਣ ਵੱਲ ਧਿਆਨ ਦਿੱਤਾ ਜਦਕਿ ਕਮਿਊਨਿਸਟ ਪੇਂਡੂ ਖੇਤਰਾਂ ਵਿੱਚ ਆਪਣਾ ਪ੍ਰਭਾਵ ਵਧਾਉਣ ਵਿੱਚ ਲੱਗੇ ਰਹੇ ।

ਦੂਜੇ ਵਿਸ਼ਵ ਯੁੱਧ ਦੌਰਾਨ ਕਮਿਉਨਿਸਟਾਂ ਲਈ ਸਮਰਥਨ ਕਾਫ਼ੀ ਵੱਧ ਗਿਆ | ਚੀਨ ਵਿੱਚ ਅਮਰੀਕੀ ਅਧਿਕਾਰੀਆਂ ਨੇ ਰਾਸ਼ਟਰਵਾਦੀਆਂ ਅਧੀਨ ਖੇਤਰ ਵਿੱਚ ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਸਮਰਥਨ ਨੂੰ ਦਬਾਉਣ ਦੀ ਕੋਸ਼ਿਸ਼ ਕੀਤੀ । ਇਹਨਾਂ ਅਲੋਕਤੰਤਰਿਕ ਨੀਤੀਆਂ ਅਤੇ ਯੁੱਧ ਦੇ ਦੌਰਾਨ ਹੋ ਰਹੇ ਭ੍ਰਿਸ਼ਟਾਚਾਰ ਨੇ ਚੀਨ ਦੀ ਸਰਕਾਰ ਨੂੰ ਕਮਿਊਨਿਸਟਾਂ ਵਿਰੁੱਧ ਕਾਫੀ ਕਮਜ਼ੋਰ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਕਮਿਉਨਿਸਟ ਪਾਰਟੀ ਨੇ ਪੇਂਡੂ ਖੇਤਰਾਂ ਵਿੱਚ ਭੂਮੀ ਸੁਧਾਰ ਕਰਨੇ ਸ਼ੁਰੂ ਕੀਤੇ ਜਿਸ ਨਾਲ ਉਹਨਾਂ ਦਾ ਸਮਰਥਨ ਵੱਧ ਗਿਆ ।

1945 ਵਿੱਚ ਜਾਪਾਨ ਯੁੱਧ ਹਾਰ ਗਿਆ ਜਿਸ ਨਾਲ ਚੀਨ ਵਿੱਚ ਗ੍ਰਹਿ ਯੁੱਧ (Civil war) ਦਾ ਖਤਰਾ ਵੱਧ ਗਿਆ | ਚਿਆਂਗ-ਕਾਈ-ਸ਼ੇਕ ਦੀ ਸਰਕਾਰ ਨੂੰ ਅਮਰੀਕੀ ਸਮਰਥਨ ਮਿਲਣਾ ਜਾਰੀ ਰਿਹਾ ਕਿਉਂਕਿ ਕਮਿਉਨਿਸਟਾਂ ਦੇ ਵੱਧਦੇ ਖਤਰੇ ਨੂੰ ਚੀਨ ਵਿੱਚ ਸਿਰਫ ਉਹ ਹੀ ਰੋਕ ਸਕਦਾ ਸੀ । 1945 ਵਿੱਚ ਚਿਆਂਗ-ਕਾਈ-ਸ਼ੇਕ ਅਤੇ ਮਾਉ-ਤਸੇ-ਤੁੰਗ ਮਿਲੇ ਤਾਂ ਕਿ ਲੜਾਈ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਦੀ ਸਰਕਾਰ ਦੇ ਗਠਨ ਉੱਪਰ ਚਰਚਾ ਕੀਤੀ ਜਾ ਸਕੇ । ਦੋਵੇਂ, ਲੋਕਤੰਤਰ ਦੀ ਬਹਾਲੀ, ਇਕੱਠੀ ਸੈਨਾ ਅਤੇ ਚੀਨ ਦੇ ਰਾਜਨੀਤਿਕ ਦਲਾਂ ਦੀ ਸੁਤੰਤਰਤਾ ਉੱਤੇ ਹਾਮੀ ਭਰ ਚੁੱਕੇ ਸਨ । ਸੰਧੀ ਹੋਣ ਵਾਲੀ ਸੀ ਪਰ ਅਮਰੀਕੀਆਂ ਦੇ ਦਖਲ ਕਾਰਨ ਉਹ ਨਾ ਹੋ ਸਕੀ ਅਤੇ 1946 ਵਿੱਚ ਗ੍ਰਹਿ ਯੁੱਧ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋ ਗਿਆ ।

ਹਿ ਯੁੱਧ ਵਿੱਚ 1947 ਤੋਂ 1949 ਵਿੱਚ ਕਮਿਉਨਿਸਟਾਂ ਦੀ ਜਿੱਤ ਯਕੀਨੀ ਲੱਗ ਰਹੀ ਸੀ ਕਿਉਂਕਿ ਉਹਨਾਂ ਨੂੰ ਜਨਸਮਰਥਨ ਹਾਸਲ ਸੀ, ਉੱਚ ਦਰਜੇ ਦੀ ਫ਼ੌਜ ਸੀ ਅਤੇ ਮੰਚੁਰੀਆ ਵਿੱਚ ਜਾਪਾਨੀਆਂ ਤੋਂ ਖੋਏ ਹਥਿਆਰ ਵੀ ਸਨ । ਅਕਤੂਬਰ, 1949 ਵਿੱਚ ਕਈ ਫ਼ੌਜੀ ਜਿੱਤਾਂ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਮਾਉ-ਤਸੇ-ਤੁੰਗ ਨੇ People’s Republic of China ਦੇ ਗਠਨ ਦੀ ਘੋਸ਼ਣਾ ਕੀਤੀ । ਚਿਆਂਗ-ਕਾਈ-ਸ਼ੇਕ ਆਪਣੀਆਂ ਫ਼ੌਜਾਂ ਦੇ ਪੁਨਰਗਠਨ ਲਈ ਤਾਈਵਾਨ ਭੱਜ ਗਿਆ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ 1949 ਵਿੱਚ ਚੀਨੀ ਭਾਂਤੀ ਪੂਰੀ ਹੋ ਗਈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 4.
ਦੁਰਖੀਮ ਦੀ ਸਮਾਜ ਵਿਗਿਆਨ ਵਿੱਚ ਦੇਣ ਦਾ ਉਲੇਖ ਕਰੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰੀ ਅਤੇ ਦਾਰਸ਼ਨਿਕ ਇਮਾਈਲ ਦੁਰਖੀਮ ਦਾ ਜਨਮ 15 ਅਪਰੈਲ, 1858 ਨੂੰ ਉੱਤਰ ਪੂਰਬੀ ਫਰਾਂਸ ਦੇ ਲਾਰੇਨ (Loraine) ਖੇਤਰ ਦੇ ਵਿੱਚ ਏਪੀਨਲ (Epinal) ਨਾਮਕ ਥਾਂ ਉੱਤੇ ਹੋਇਆ ਸੀ । ਦੁਰਖੀਮ ਦੀ ਸ਼ੁਰੂਆਤੀ ਸਿੱਖਿਆ ਏਪੀਨਲ ਦੀ ਇੱਕ ਸਿੱਖਿਆ ਸੰਸਥਾ ਵਿੱਚ ਹੀ ਹੋਈ । ਬਚਪਨ ਤੋਂ ਹੀ ਦੁਰਖੀਮ ਇੱਕ ਹੋਣਹਾਰ, ਪ੍ਰਤਿਭਾਵਾਨ ਅਤੇ ਦਿਮਾਗ ਵਾਲੇ ਵਿਦਿਆਰਥੀ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਜਾਣੇ ਜਾਂਦੇ ਸਨ । ਦੁਰਖੀਮ ਦੇ ਪੂਰਵਜ ‘ਰੈਬੀ ਸ਼ਾਸਤਰਕਾਰ’ਦੇ ਰੂਪ ਵਿਚ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਸਨ । ਇਸ ਲਈ ਪ੍ਰਤਿਭਾ ਤਾਂ ਦੁਰਖੀਮ ਨੂੰ ਵਿਰਾਸਤ ਤੋਂ ਹੀ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੋ ਗਈ ਸੀ । ਏਪੀਨਲ ਵਿੱਚ ਹੀ ਗਰੈਜੂਏਟ ਤਕ ਦੀ ਸਿੱਖਿਆ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਨ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਉੱਚੀ ਸਿੱਖਿਆ ਲਈ ਦਰਖੀਮ ਫਰਾਂਸ ਦੀ ਰਾਜਧਾਨੀ ਪੈਰਿਸ ਚਲੇ ਗਏ ।

ਪੈਰਿਸ ਵਿੱਚ ਦੁਰਖੀਮ ਦੀ ਉੱਚ ਸਿੱਖਿਆ ਦੀ ਸ਼ੁਰੂਆਤ ਹੋਈ । ਇੱਥੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਵਿਸ਼ਵ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਸੰਸਥਾ “ਇਕੋਲ ਨਾਰਮੇਲ ਅਕਾਦਮੀ (Ecole Normale Superieure) ਵਿੱਚ ਦਾਖ਼ਲਾ ਲੈਣ ਦੀ ਕੋਸ਼ਿਸ਼ ਕੀਤੀ । ਇੱਥੇ ਇਹ ਕਹਿਣਾ ਜ਼ਰੂਰੀ ਹੈ ਕਿ ਇਸ ਸੰਸਥਾ ਵਿਚ ਬਹੁਤ ਵਧੀਆ ਵਿਦਿਆਰਥੀਆਂ ਨੂੰ ਹੀ ਦਾਖ਼ਲਾ ਮਿਲਦਾ ਸੀ ।ਦੋ ਅਸਫਲ ਕੋਸ਼ਿਸ਼ਾਂ ਤੋਂ ਬਾਅਦ 1879 ਵਿੱਚ ਦੁਰਖੀਮ ਨੂੰ ਇਸ ਸੰਸਥਾ ਵਿਚ ਦਾਖ਼ਲਾ ਮਿਲ ਹੀ ਗਿਆ । ਇਹ ਸੰਸਥਾ ਫਰਾਂਸੀਸੀ, ਲੈਟਿਨ ਅਤੇ ਸ਼੍ਰੀਕ ਦਰਸ਼ਨ ਵਿਸ਼ਿਆਂ ਉੱਤੇ ਸਿੱਖਿਆ ਪ੍ਰਦਾਨ ਕਰਦੀ ਸੀ ਅਤੇ ਉੱਥੋਂ ਦੇ ਪੂਰੇ ਪਾਠਕ੍ਰਮ ਵਿੱਚ ਇਹੀ ਵਿਸ਼ੇ ਸ਼ਾਮਲ ਸਨ ਪਰ ਪ੍ਰਤੱਖਵਾਦੀ ਅਤੇ ਵਿਗਿਆਨਿਕ ਵਿਤੀ ਵਾਲੇ ਦੁਰਖੀਮ ਇਨ੍ਹਾਂ ਵਿਸ਼ਿਆਂ ਵਿੱਚ ਜ਼ਿਆਦਾ ਰੁਚੀ ਨਾ ਲੈ ਸਕੇ ਕਿਉਂਕਿ ਉਹ ਤਾਂ ਸਮਾਜ ਦੀ ਅਸਲੀ, ਰਾਜਨੀਤਿਕ, ਬੌਧਿਕ ਅਤੇ ਸਮਾਜਿਕ ਆਦਿ ਦਸ਼ਾਵਾਂ ਦੇ ਅਧਿਐਨ ਵਿੱਚ ਦਿਲਚਸਪੀ ਰੱਖਦੇ ਸਨ ।

ਦੁਰਖੀਮ ਦਾ ਇਹ ਪੱਕਾ ਵਿਸ਼ਵਾਸ ਸੀ ਕਿ ਗਿਆਨ ਵਿੱਚ ਪ੍ਰਤੱਖਵਾਦ (Positivism) ਜ਼ਰੂਰ ਹੋਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ । ਆਪਦਾ ਮੰਨਣਾ ਸੀ ਕਿ ਕਿਸੇ ਵੀ ਗਿਆਨ ਜਾਂ ਦਰਸ਼ਨ ਦਾ ਅਧਿਐਨ ਕਰਦੇ ਸਮੇਂ ਵਰਤਮਾਨ ਰਾਜਨੀਤਿਕ, ਬੌਧਿਕ ਅਤੇ ਸਮਾਜਿਕ ਮੁਸ਼ਕਲਾਂ ਦਾ ਅਧਿਐਨ ਨਹੀਂ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਤਾਂ ਉਸ ਗਿਆਨ ਦਾ ਕੋਈ ਫਾਇਦਾ ਨਹੀਂ ਹੈ । ਆਪਣੇ ਇਨ੍ਹਾਂ ਵਿਚਾਰਾਂ ਦੇ ਕਾਰਨ ਦੁਰਖੀਮ ਇਸ ਵਿਸ਼ਵ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਸੰਸਥਾ ਦੇ ਵਾਤਾਵਰਨ ਤੋਂ ਇੰਨੇ ਅਸੰਤੁਸ਼ਟ ਸਨ ਕਿ ਉਹ ਕਦੀ-ਕਦੀ ਤਾਂ ਆਪਣੇ ਅਧਿਆਪਕਾਂ ਦੇ ਵਿਰੁੱਧ ਵੀ ਹੋ ਜਾਇਆ ਕਰਦੇ ਸਨ । ਪਰ ਫਿਰ ਵੀ ਦੁਰਖੀਮ ਨੇ ਇਕੋਲ ਨਾਰਮੇਲ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਅੰਦਰ ਇੰਨਾ ਵਸਾ ਲਿਆ ਕਿ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਆਪਣੇ ਪੁੱਤਰ ਆਂਦਰੇ ਨੂੰ ਇੱਥੇ ਦਾਖ਼ਲਾ ਦਿਵਾਇਆ ।

ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਪ੍ਰਤੱਖਵਾਦੀ ਅਤੇ ਮਹਾਨ ਇਤਿਹਾਸਕਾਰ ਪ੍ਰੋਫ਼ੈਸਰ ਕੁਲਾਂਜ (Prof. Fustel de Coulanges) 1880 ਵਿਚ ਇਸ ਸੰਸਥਾ ਦੇ ਨਿਰਦੇਸ਼ਕ ਬਣੇ ।ਉਹ ਦੁਰਖੀਮ ਦੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਅਧਿਆਪਕਾਂ ਵਿੱਚੋਂ ਇੱਕ ਸਨ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਦੁਰਖੀਮ ਨਾਲ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਪਿਆਰ ਸੀ । ਕੁਲਾਂਜ ਨੇ ਉੱਥੋਂ ਦੇ ਪਾਠਕ੍ਰਮ ਵਿੱਚ ਬਦਲਾਵ ਕੀਤਾ ਜਿਸ ਨਾਲ ਦੁਰਖੀਮ ਬਹੁਤ ਖ਼ੁਸ਼ ਹੋਏ । ਦੁਰਖੀਮ ਕੁਲਾਂਜ ਦਾ ਇੰਨਾ ਆਦਰ ਕਰਦੇ ਸਨ ਕਿ ਲੈਟਿਨ ਭਾਸ਼ਾ ਵਿੱਚ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਮਾਨਟੇਸਕਿਉ (Montesquieu) ਨਾਮਕ ਕਿਤਾਬ ਲਿਖੀ ਜਿਹੜੀ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਕੁਲਾਂਜ ਨੂੰ ਸਮਰਪਿਤ ਕੀਤੀ । ਇੱਥੇ ਹੀ ਦੁਰਖੀਮ ਇਮਾਈਲ ਬੋਟਰੋਕਸ (Emile Boutroux) ਨੂੰ ਵੀ ਮਿਲੇ । ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਤੋਂ ਦੁਰਖੀਮ ਬਹੁਤ ਪ੍ਰਭਾਵਿਤ ਹੋਏ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਨਿਰਦੇਸ਼ਨ ਵਿਚ ਡਾਕਟਰੇਟ ਦਾ ਸ਼ੋਧ ਪ੍ਰਬੰਧ ਲਿਖਿਆ । ਇੱਥੇ ਹੀ ਦੁਰਖੀਮ ਹੋਰ ਵਿਸ਼ਵ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਵਿਦਵਾਨਾਂ ਨੂੰ ਮਿਲੇ ਅਤੇ ਹੋਰ ਪ੍ਰਤਿਭਾਵਾਨ ਵਿਦਿਆਥੀਆ ਨੂੰ ਮਿਲੇ ਜਿਹੜੇ ਬਾਅਦ ਵਿਚ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰੀ ਬਣੇ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਵਿਸ਼ਵ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਵਿਦਵਾਨਾਂ ਦੇ ਸੰਪਰਕ ਵਿੱਚ ਆਉਣ ਨਾਲ ਦੁਰਖੀਮ ਦੇ ਬੌਧਿਕ ਅਤੇ ਮਾਨਸਿਕ ਚਿੰਤਨ ਵਿਚ ਬਹੁਤ ਵਾਧਾ ਹੋਇਆ ।

1882 ਵਿਚ ਉਹ ਇਕੋਲ ਨਾਰਮੇਲ ਨੂੰ ਛੱਡ ਕੇ 5 ਸਾਲਾਂ ਤਕ ਪੈਰਿਸ ਦੇ ਕੋਲ ਸਥਿਤ ਹਾਈ ਸਕੂਲਾਂ-ਸੇਂਸ, ਸੇਂਟ, ਕਯੂਟਿੰਨ ਅਤੇ ਇਜ਼ ਵਿੱਚ ਦਰਸ਼ਨ ਸ਼ਾਸਤਰ ਪੜ੍ਹਾਉਂਦੇ ਰਹੇ । ਨਾਲ ਹੀ ਨਾਲ ਆਪਣੇ ਪ੍ਰਭਾਵ ਨਾਲ ਇਨ੍ਹਾਂ ਸਕੂਲਾਂ ਵਿੱਚ ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਦਾ ਨਵਾਂ ਪਾਠਕ੍ਰਮ ਵੀ ਸ਼ੁਰੂ ਕੀਤਾ । ਦੁਰਖੀਮ ਬਹੁਤ ਵਧੀਆ ਅਧਿਆਪਕ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਹੋ ਗਏ । ਇਸ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਵੀ ਦੁਰਖੀਮ ਦਾ ਮਨ ਇੱਥੇ ਨਾ ਲੱਗਿਆ । 1885-86 ਵਿੱਚ ਉਹ ਉੱਚ ਅਧਿਐਨ ਦੇ ਲਈ ਨੌਕਰੀ ਤੋਂ ਇੱਕ ਸਾਲ ਦੀ ਛੁੱਟੀ ਲੈ ਕੇ ਸਾਲ ਦੇ ਅੰਤ ਵਿਚ ਜਰਮਨੀ ਚਲੇ ਗਏ ।

ਜਰਮਨੀ ਵਿੱਚ ਦੁਰਖੀਮ ਨੇ ਅਰਥ ਸ਼ਾਸਤਰ, ਲੋਕ ਮਨੋਵਿਗਿਆਨ, ਸੰਸਕ੍ਰਿਤਕ ਮਾਨਵਵਿਗਿਆਨ ਆਦਿ ਦਾ ਕਾਫੀ ਡੂੰਘਾਈ ਨਾਲ ਅਧਿਐਨ ਕੀਤਾ। ਇੱਥੇ ਹੀ ਦੁਰਖੀਮ ਨੇ ਕਾਮਟੇ (Comte) ਦੇ ਲੇਖਾਂ ਦਾ ਬਰੀਕੀ ਨਾਲ ਅਧਿਐਨ ਕੀਤਾ ਅਤੇ ਸ਼ਾਇਦ ਉਸ ਤੋਂ ਪ੍ਰਭਾਵਿਤ ਹੋ ਕੇ ਸਮਾਜਸ਼ਾਸਤਰੀ ਪ੍ਰਤੱਖਵਾਦ (Sociological Positivism) ਨੂੰ ਜਨਮ ਦਿੱਤਾ ।

1887 ਵਿਚ ਦੁਰਖੀਮ ਜਰਮਨੀ ਆ ਗਏ ਅਤੇ ਬੋਰਡਿਅਕਸ ਯੂਨੀਵਰਸਿਟੀ ਵਿੱਚ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਰੂਪ ਨਾਲ ਸਮਾਜਿਕ ਵਿਗਿਆਨ ਦਾ ਇੱਕ ਵੱਖ ਨਵਾਂ ਵਿਭਾਗ ਖੋਲਿਆ ਅਤੇ ਆਪ ਨੂੰ ਇੱਥੇ ਅਧਿਐਨ ਲਈ ਸੱਦਿਆ ਗਿਆ । ਲਗਭਗ 9 ਸਾਲ ਦੇ ਅਧਿਐਨ ਤੋਂ ਬਾਅਦ 1896 ਵਿਚ ਉਹ ਇਸੇ ਵਿਭਾਗ ਵਿੱਚ ਪ੍ਰੋਫ਼ੈਸਰ ਬਣ ਗਏ । ਇਸੇ ਦੌਰਾਨ ਪੈਰਿਸ ਵਿਸ਼ਵਵਿਦਿਆਲੇ ਦੁਆਰਾ ਦੁਰਖੀਮ ਨੂੰ 1893 ਵਿਚ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਫਰਾਂਸੀਸੀ ਭਾਸ਼ਾ ਵਿਚ ਲਿਖੇ ਸ਼ੋਧ ਗੰਥ De la Division du Travail Social (Division of Labour in Society) ਉੱਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਡਾਕਟਰੇਟ ਦੀ ਉਪਾਧੀ ਦਿੱਤੀ ਗਈ । ਦੁਰਖੀਮ ਦਾ ਇਹ ਗੰਥ ਜਲਦੀ ਹੀ ਛੱਪ ਗਿਆ ਅਤੇ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਹੋ ਗਿਆ । ਇਸ ਤੋਂ 2 ਸਾਲ ਬਾਅਦ ਹੀ 1895 ਵਿਚ ਦੁਰਖੀਮ ਨੇ ਆਪਣੇ ਦੁਜੇ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਗੰਥ Les Regles de ea Methode Sociologique (The rules of Sociological Method) ਦੇ ਨਾਮ ਨਾਲ ਰਚਨਾ ਕੀਤੀ । 1897 ਵਿੱਚ ਦੁਰਖੀਮ ਨੇ ਤੀਜੇ ਮਹਾਨ ਗ੍ਰੰਥ Le Suicide : Etude de Sociologie (Suicide-A study of Sociology) ਦੀ ਰਚਨਾ ਕੀਤੀ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਮਹਾਨ ਗ੍ਰੰਥਾਂ ਦੀ ਰਚਨਾ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਦੁਰਖੀਮ ਦਾ ਨਾਮ ਦੁਨੀਆਂ ਦੇ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਦਾਰਸ਼ਨਿਕ, ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰੀ ਤੇ ਮਹਾਨ ਲੇਖਕ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਜਾਣਿਆਂ ਜਾਣ ਲਗ ਪਿਆ ।

1898 ਵਿਚ ਦੁਰਖੀਮ ਨੇ 1 Annee Sociologique ਨਾਮ ਦੀ ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਸੰਬੰਧੀ ਮੈਗਜ਼ੀਨ ਦੀ ਸ਼ੁਰੂਆਤ ਕੀਤੀ ਜਿਸਦੇ ਉਹ ਆਪ 1910 ਤਕ ਸੰਪਾਦਕ ਕਰੇ । ਦੁਰਖੀਮ ਦੀ ਇਹ ਮੈਗਜੀਨ ਫਰਾਂਸ ਦੇ ਬੌਧਿਕ ਵਾਤਾਵਰਣ ਵਿੱਚ ਬਹੁਤ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਹੋਈ । ਇਸ ਵਿੱਚ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਉੱਚ-ਕੋਟੀ ਦੇ ਵਿਚਾਰਕਾਂ; ਜਿਵੇਂ ਜਾਰਜਸ ਡੈਵੀ, ਸਾਈਮੰਡ, ਲੈਵੀ ਸਟਰਾਸ ਆਦਿ ਨੇ ਆਪਣੇ ਪੱਤਰ ਛਪਵਾਏ ।

ਇਸ ਵਿਸ਼ਵਵਿਦਿਆਲੇ ਵਿੱਚ ਬਹੁਤ ਜ਼ਿਆਦਾ ਪ੍ਰਸਿੱਧੀ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਨ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਦੁਰਖੀਮ ਨੂੰ 1902 ਵਿਚ ਪੈਰਿਸ ਵਿਸ਼ਵਵਿਦਿਆਲੇ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖਿਆ ਸ਼ਾਸਤਰ ਦੇ ਪ੍ਰੋਫ਼ੈਸਰ ਪਦ ਦੇ ਲਈ ਬੁਲਾਇਆ ਗਿਆ ਅਤੇ ਦੁਰਖੀਮ ਨੇ ਇਸ ਕੰਮ ਨੂੰ ਸੰਭਾਲਿਆ । ਇੱਥੇ ਇਹ ਗੱਲ ਧਿਆਨ ਰੱਖਣਯੋਗ ਹੈ ਕਿ ਇਸ ਸਮੇਂ ਤਕ ਦੁਨੀਆਂ ਵਿੱਚ ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਦਾ ਕੋਈ ਵੱਖ ਵਿਭਾਗ ਨਹੀਂ ਸੀ । ਦੁਰਖੀਮ ਦੀਆਂ ਕੋਸ਼ਿਸ਼ਾਂ ਤੋਂ ਬਾਅਦ 1913 ਵਿਚ ਸਿੱਖਿਆ-ਸ਼ਾਸਤਰ ਵਿਭਾਗ ਦਾ ਨਾਮ ਬਦਲ ਕੇ ਸਿੱਖਿਆ ਸ਼ਾਸਤਰ ਅਤੇ ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਵਿਭਾਗ ਰੱਖ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ । ਇੱਥੇ ਦੁਰਖੀਮ ਨੇ ਹੋਰ ਵਿਸ਼ਿਆਂ ਦੇ ਨਾਲ ਨੈਤਿਕ ਸਿੱਖਿਆ, ਧਰਮ ਦੀ ਉਤਪੱਤੀ, ਵਿਕਾਸ ਤੇ ਪਰਿਵਾਰ ਦੀ ਸ਼ੁਰੂਆਤ, ਕਾਮਤੇ ਅਤੇ ਸੇਂਟਸਾਈਮਨ ਦੇ ਸਮਾਜਿਕ ਦਰਸ਼ਨ ਨੂੰ ਬੜੀ ਲਗਨ ਨਾਲ ਪੜ੍ਹਾਇਆ । ਜਿਹੜੇ ਵਿਦਿਆਰਥੀ ਦੁਰਖੀਮ ਤੋਂ ਪੜ੍ਹੇ ਉਹ ਉਨ੍ਹਾਂ ਤੋਂ ਪ੍ਰਭਾਵਿਤ ਹੋਏ । 1912 ਵਿਚ ਦੁਰਖੀਮ ਨੇ ਹੋਰ ਕਿਤਾਬ Les Formes Elementairs delavie Religiouse (Elementary forms of Religious Life) ਦੀ ਰਚਨਾ ਕੀਤੀ ।

ਦੁਰਖੀਮ ਜਦੋਂ ਬੋਰਡਿਅਕਸ ਵਿਸ਼ਵਵਿਦਿਆਲੇ ਵਿੱਚ ਨਿਯੁਕਤ ਹੋਏ ਉਸ ਸਮੇਂ ਹੀ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਵਿਆਹ ਕਰ ਲਿਆ ਸੀ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਪਤਨੀ ਦਾ ਨਾਮ ਲੁਇਸ ਡਰੇਣੁ (Louise Drefus) ਸੀ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਦੋ ਬੱਚੇ, ਕੁੜੀ ਮੈਰੀ (Marie) ਅਤੇ ਪੁੱਤਰ ਆਂਦਰੇ (Andre) ਸਨ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਪਤਨੀ ਨੇ ਦੁਰਖੀਮ ਦੀ ਬਹੁਤ ਮੱਦਦ ਕੀਤੀ ਸੀ । ਸੰਪਾਦਨ ਦੇ ਕੰਮ ਤੋਂ ਲੈ ਕੇ ਸਾਰਾ ਕੰਮ ਚੈਕ ਕਰਨਾ, ਉਸਨੂੰ ਸੰਸ਼ੋਧਿਤ ਕਰਨਾ, ਪੱਤਰ ਵਿਵਹਾਰ ਕਰਨੇ ਅਜਿਹੇ ਕੰਮ ਸਨ ਜਿਹੜੇ ਉਹ ਬਹੁਤ ਮਿਹਨਤ ਨਾਲ ਕਰਦੀ ਸੀ ।

1914 ਵਿਚ ਪਹਿਲਾ ਵਿਸ਼ਵ ਯੁੱਧ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋ ਗਿਆ । ਦੁਰਖੀਮ ਨੇ ਆਪਣੇ ਪੁੱਤਰ ਨੂੰ ਸਮਾਜ ਸੇਵਾ ਲਈ ਪੇਸ਼ ਕੀਤਾ ਅਤੇ ਉਹ ਆਪ ਆਪਣੇ ਲੇਖਾਂ ਅਤੇ ਭਾਸ਼ਾਵਾਂ ਨਾਲ ਜਨਤਾ ਦਾ ਮਨੋਬਲ ਬਣਾਏ ਰੱਖਣ ਵਿੱਚ ਲਗ ਗਏ । ਕਿਉਂਕਿ ਦੁਰਖੀਮ ਸ਼ਾਂਤੀ ਦੇ ਸਮਰਥਕ ਸਨ ਇਸ ਲਈ ਯੁੱਧ ਨੇ ਦੁਰਖੀਮ ਨੂੰ ਮਾਨਸਿਕ ਤੌਰ ਤੇ ਕਾਫੀ ਕਮਜ਼ੋਰ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਜਦੋਂ ਦਰਖੀਮ ਯੁੱਧ ਵਿੱਚ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਭੂਮਿਕਾ ਨਿਭਾ ਰਹੇ ਸਨ ਤਾਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਯੁੱਧ ਵਿਚ ਆਪਣੇ ਪੁੱਤਰ ਆਂਦਰੇ ਦੀ ਮੌਤ ਦਾ ਸਮਾਚਾਰ ਮਿਲਿਆ ਜਿਸ ਦੀ ਮੌਤ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਬੁਰੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਫੱਟੜ ਹੋ ਜਾਣ ਤੇ ਬੁਲਗਾਰੀਆ ਦੇ ਹਸਪਤਾਲ ਵਿੱਚ ਹੋਈ ਸੀ । ਆਂਦਰੇ ਦੀ ਮੌਤ ਨੇ ਦੁਰਖੀਮ ਨੂੰ ਅੰਦਰੋਂ ਤੋੜ ਦਿੱਤਾ । ਆਂਦਰੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਪੁੱਤਰ ਹੀ ਨਹੀਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਸਭ ਤੋਂ ਵਧੀਆ ਵਿਦਿਆਰਥੀ ਵੀ ਸੀ ।

1916 ਦੇ ਅੰਤ ਵਿਚ ਦੁਰਖੀਮ ਇਕਦਮ ਬਹੁਤ ਜ਼ਿਆਦਾ ਬਿਮਾਰ ਹੋ ਗਏ । ਇਸ ਬਿਮਾਰੀ ਦੇ ਬਾਵਜੂਦ ਵੀ ਆਪ 1917 ਦੀ ਗਰਮੀ ਵਿੱਚ ਨੀਤੀਸ਼ਾਸਤਰ ਉੱਤੇ ਕਿਤਾਬ ਲਿਖਣ ਲਈ ਫਾਊਂਟਨਬਲਿਊ ਨਾਮਕ ਥਾਂ ਉੱਤੇ ਗਏ ਪਰ ਰੱਬ ਨੂੰ ਕੁੱਝ ਹੋਰ ਹੀ ਮਨਜ਼ੂਰ ਸੀ । 15 ਨਵੰਬਰ, 1917 ਨੂੰ ਇਸ ਅਸਾਧਾਰਨ ਪ੍ਰਤਿਭਾ ਵਾਲੇ ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰੀ ਦੀ 59 ਸਾਲ ਦੀ ਉਮਰ ਵਿੱਚ ਮੌਤ ਹੋ ਗਈ ।

ਦੁਰਖੀਮ ਦੀਆਂ ਲਿਖਤਾਂ (Writings of Durkheim)

ਦੁਰਖੀਮ ਨੇ ਆਪਣੇ ਜੀਵਨਕਾਲ ਵਿੱਚ ਕਈ ਮਹਾਨ ਗ੍ਰੰਥਾਂ ਦੀ ਰਚਨਾ ਕੀਤੀ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਨਾਮ ਹੇਠਾਂ ਲਿਖੇ ਹਨ-

  1. The Division of Labour in Society – 1893
  2. The Rules of Sociological Method – 1895
  3. Suicide – 1897
  4. Elementary Forms of Religious Life – 1912
  5. Education and Sociology (After death) – 1922
  6. Sociology and Philosophy (After death) – 1924
  7. Moral Education (After death) – 1925
  8. Sociology and Saint Simon (After death) – 1925
  9. Pragmatism and Sociology (After death) – 1955

ਦੁਰਖੀਮ ਦੀ ਮੌਤ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਪਤਨੀ ਅਤੇ ਦੋਸਤਾਂ ਨੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਲੇਖਾਂ ਅਤੇ ਭਾਸ਼ਣਾਂ ਨੂੰ ਕਿਤਾਬਾਂ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਛਪਵਾਇਆ ਜਿਸ ਨਾਲ ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰੀ ਸਾਹਿਤ ਦੇ ਭੰਡਾਰ ਵਿੱਚ ਵਾਧਾ ਹੋਇਆ ।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 12 ਪੱਛਮੀ-ਸਮਾਜ ਵਿਗਿਆਨ ਦੇ ਵਿਚਾਰਕ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 5.
ਵੈਬਰ ਦੁਆਰਾ ‘ਸਮਾਜਿਕ ਕਿਰਿਆ ਦੀਆਂ ਕਿਸਮਾਂ ਦੀ ਚਰਚਾ ਕਰੋ ।
ਉੱਤਰ-
Types – ਸਮਾਜਿਕ ਵਿਵਹਾਰ ਦੀ ਪੂਰੀ ਵਿਆਖਿਆ ਪੇਸ਼ ਕਰਦੇ ਹੋਏ ਵੈਬਰ ਨੇ ਚਾਰ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦੇ ਸਮਾਜਿਕ ਕਿਰਿਆ ਦੀ ਵਿਆਖਿਆ ਦੀ ਗੱਲ ਦੱਸੀ ਹੈ-

1. ਤਾਰਕਿਕ ਉਦੇਸ਼ ਪੂਰਨ ਵਿਵਹਾਰ (Zweckrational) – ਵੈਬਰ ਦੱਸਦਾ ਹੈ ਕਿ ਤਾਰਕਿਕ ਉਦੇਸ਼ ਪੂਰਨ ਸਮਾਜਿਕ ਵਿਵਹਾਰ ਤੋਂ ਮਤਲਬ ਅਜਿਹੇ ਸਮਾਜਿਕ ਵਿਵਹਾਰ ਤੋਂ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਜੋ ਉਪਯੋਗਿਤਾ ਨੂੰ ਧਿਆਨ ਵਿਚ ਰੱਖਦੇ ਹੋਏ ਅਨੇਕਾਂ ਉਦੇਸ਼ਾਂ ਦੀ ਵੱਧ ਤੋਂ ਵੱਧ ਪ੍ਰਾਪਤੀ ਦੇ ਲਈ ਤਾਰਕਿਕ ਰੂਪ ਨਾਲ ਨਿਰਦੇਸ਼ਿਤ ਹੋਵੇ । ਇਸ ਵਿਚ ਸਾਧਨਾਂ ਦੀ ਚੋਣ ਵਿਚ ਸਿਰਫ਼ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦੀ ਕਾਰਜਕੁਸ਼ਲਤਾ ਦੇ ਵੱਲ ਹੀ ਧਿਆਨ ਨਹੀਂ ਦਿੱਤਾ ਜਾਂਦਾ ਬਲਕਿ ਮੁੱਲ ਤੇ ਵੀ ਧਿਆਨ ਦਿੱਤਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਟੀਚੇ ਤੇ ਸਾਧਨਾਂ ਦੀ ਪੂਰੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਜਾਂਚ ਕੀਤੀ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ਤੇ ਉਸੇ ਦੇ ਆਧਾਰ ਤੇ ਕਿਰਿਆ ਸੰਪਾਦਿਤ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ।

2. ਮੁੱਲਾਤਮਕ ਵਿਵਹਾਰ (Wertrational) – ਮੁੱਲਾਤਮਕ ਵਿਵਹਾਰ ਦੇ ਵਿਚ ਕਿਸੇ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਤੇ ਸੱਪਸ਼ਟ ਮੁੱਲ ਨੂੰ ਬਹੁਤ ਜ਼ਿਆਦਾ ਪ੍ਰਭਾਵਸ਼ਾਲੀ ਉਪਲੱਬਧ ਸਾਧਨ ਦੁਆਰਾ ਸਥਾਨ ਦਿੱਤਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਤੇ ਦੂਜੇ ਮੁੱਲਾਂ ਦੀ ਕੀਮਤ ਤੇ ਕੋਈ ਧਿਆਨ ਨਹੀਂ ਦਿੱਤਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਇਸ ਵਿਚ ਤਾਰਕਿਕ ਆਧਾਰ ਨਹੀਂ ਹੋ ਸਕਦਾ ਬਲਕਿ ਨੈਤਿਕ, ਧਾਰਮਿਕ ਜਾਂ ਸੁੰਦਰਤਾ ਦੇ ਆਧਾਰ ਤੇ ਹੀ ਮੰਨ ਲਈ ਜਾਂਦੀ ਹੈ । ਨੈਤਿਕ ਤੇ ਧਾਰਮਿਕ ਮਾਨਤਾਵਾਂ ਨੂੰ ਬਣਾਈ ਰੱਖਣ ਲਈ ਮੁੱਲਾਤਮਕ ਕ੍ਰਿਆਵਾਂ ਕੀਤੀਆਂ ਜਾਂਦੀਆਂ ਹਨ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਕਿਰਿਆਵਾਂ ਦੇ ਮੰਨਣ ਵਿਚ ਕਿਸੇ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦੇ ਤਰਕ ਦੀ ਸਹਾਇਤਾ ਨਹੀਂ ਲਈ ਜਾਂਦੀ ਹੈ । ਬੱਸ ਇਸੇ ਤਰ੍ਹਾਂ ਹੀ ਮੰਨ ਲਈਆਂ ਜਾਂਦੀਆਂ ਹਨ ਕਿਉਂਕਿ ਇਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਕਰਨ ਵਿਚ ਸਮਾਜਿਕ ਮਾਣ ਵੀ ਵੱਧਦਾ ਹੈ ਤੇ ਆਤਮਿਕ ਸੰਤੋਸ਼ ਵੀ ਮਿਲਦਾ ਹੈ ।

3. ਸੰਵੇਦਾਤਮਕ ਵਿਵਹਾਰ (Affectual behaviour) – ਅਜਿਹੀਆਂ ਕਿਰਿਆਵਾਂ ਮਨੁੱਖੀ ਭਾਵਨਾਵਾਂ, ਸੰਵੇਗਾਂ ਅਤੇ ਸਥਾਈ ਭਾਵਾਂ ਦੇ ਕਾਰਨ ਹੁੰਦੀਆਂ ਹਨ । ਸਮਾਜ ਵਿਚ ਰਹਿੰਦੇ ਹੋਏ ਸਾਨੂੰ ਪ੍ਰੇਮ, ਨਫ਼ਰਤ, ਗੁੱਸਾ ਆਦਿ ਭਾਵਨਾਵਾਂ ਦਾ ਸ਼ਿਕਾਰ ਹੋਣਾ ਪੈਂਦਾ ਹੈ । ਇਸ ਦੇ ਕਾਰਨ ਹੀ ਸਮਾਜ ਵਿਚ ਸ਼ਾਂਤੀ ਜਾਂ ਅਸ਼ਾਂਤੀ ਦੀ ਅਵਸਥਾ ਪੈਦਾ ਹੋ ਜਾਂਦੀ ਹੈ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਵਿਵਹਾਰਾਂ ਦੇ ਕਰਨ ਵਿਚ ਪਰੰਪਰਾ ਤੇ ਤਰਕ ਦਾ ਥੋੜ੍ਹਾ ਜਿਹਾ ਵੀ ਸਹਾਰਾ ਨਹੀਂ ਲਿਆ ਜਾਂਦਾ ।

4. ਪਰੰਪਰਾਗਤ ਵਿਵਹਾਰ (Traditional behaviour) – ਪਰੰਪਰਾਗਤ ਕਿਰਿਆਵਾਂ ਪਹਿਲਾਂ ਤੋਂ ਨਿਸ਼ਚਿਤ ਪ੍ਰਤੀਮਾਨਾਂ ਦੇ ਆਧਾਰ ਉੱਤੇ ਕੀਤੀਆਂ ਜਾਂਦੀਆਂ ਹਨ । ਸਮਾਜਿਕ ਜੀਵਨ ਨੂੰ ਸਰਲ ਤੇ ਸ਼ਾਂਤੀ ਵਾਲਾ ਰੱਖਣ ਲਈ ਪਰੰਪਰਾਗਤ ਕਿਰਿਆਵਾਂ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਮੰਨੀਆਂ ਜਾਂਦੀਆਂ ਹਨ । ਸੰਭਵ ਹੈ ਕਦੀ ਉਹ ਸਥਿਤੀ ਪੈਦਾ ਹੋ ਜਾਵੇ ਕਿ ਇਨ੍ਹਾਂ ਕਿਰਿਆਵਾਂ ਦੁਆਰਾ ਸਮਾਜ ਵਿਚ ਸੰਘਰਸ਼ ਪੈਦਾ ਹੋ ਜਾਵੇ ਪਰ ਵੈਸੇ ਇਨ੍ਹਾਂ ਕਿਰਿਆਵਾਂ ਵਿਚ ਤਰਕ, ਕਾਰਜਕੁਸ਼ਲਤਾ ਤੇ ਕਿਸੇ ਹੋਰ ਪ੍ਰਭਾਵ ਦਾ ਸਹਾਰਾ ਲੈਣ ਦੀ ਜ਼ਰੂਰਤ ਨਹੀਂ ਰਹਿੰਦੀ ਹੈ । ਸਮਾਜ ਦੀਆਂ ਪ੍ਰਥਾਵਾਂ ਹੀ ਇਨ੍ਹਾਂ ਕਿਰਿਆਵਾਂ ਨੂੰ ਸੰਚਾਲਿਤ ਤੇ ਨਿਯੰਤਰਿਤ ਕਰਦੀਆਂ ਹਨ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 6.
ਵੈਬਰ ਅਨੁਸਾਰ ਧਰਮ ਦਾ ਆਰਥਿਕ ਕਿਰਿਆ ਨਾਲ ਕੀ ਸੰਬੰਧ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਵੈਬਰ ਦਾ ਸ਼ੁਰੂਆਤੀ ਅਧਿਐਨ ਇਕ ਅਜਿਹੀ ਪ੍ਰਵਿਰਤੀ ਉੱਤੇ ਕੇਂਦਰਿਤ ਹੈ ਜੋ ਆਧੁਨਿਕ ਸਮਾਜ ਵਿਚ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਰੂਪ ਵਿਚ ਦਿਖਾਈ ਦਿੰਦੀ ਹੈ । ਆਰਥਿਕ ਵਿਵਹਾਰਾਂ ਉੱਤੇ ਧਾਰਮਿਕ ਪ੍ਰਭਾਵਾਂ ਨੂੰ ਸਪੱਸ਼ਟ ਕਰਨ ਦੇ ਲਈ 1904 ਤੇ 1905 ਵਿਚ ਜਿਹੜੇ ਲੇਖ ਲਿਖੇ ਸਨ, ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਆਧਾਰ ਤੇ ਉਸਦੀ ਸਭ ਤੋਂ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਕਿਤਾਬ The Protestant Ethic and the Spirit of Capitalism ਦੇ ਨਾਮ ਨਾਲ ਛਪੀ । ਇਸ ਕਿਤਾਬ ਦੇ ਜ਼ਿਆਦਾਤਰ ਭਾਗ ਵਿਚ ਵੈਬਰ ਨੇ ਇਸ ਸਮੱਸਿਆ ਤੇ ਪ੍ਰਕਾਸ਼ ਪਾਇਆ ਹੈ ਕਿ ਪੋਟੈਸਟੈਂਟ ਧਰਮ ਦੇ ਵਿਚਾਰਾਂ ਜਾਂ ਨੀਤੀਆਂ ਨੇ ਕਿਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਪੂੰਜੀਵਾਦ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਨੂੰ ਪ੍ਰਭਾਵਿਤ ਕੀਤਾ ਹੈ । ਇਹ ਵਿਚਾਰ ਮਾਰਕਸ ਦੇ ਇਸ ਸਿਧਾਂਤ ਦੇ ਲਈ ਇਕ ਖੁੱਲੀ ਚੁਣੌਤੀ ਸੀ ਕਿ ਮਨੁੱਖ ਦੀ ਸਮਾਜਿਕ ਅਤੇ ਧਾਰਮਿਕ ਚੇਤਨਾ, ਉਸਦੇ ਸਮਾਜਿਕ ਵਰਗ ਦੁਆਰਾ ਨਿਰਧਾਰਿਤ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ।

ਵੈਬਰ ਦੇ ਵਿਚਾਰ ਨਾਲ ਆਧੁਨਿਕ ਉਦਯੋਗਿਕ ਜਗਤ ਦੇ ਮਨੁੱਖ ਦੀ ਇੱਕ ਗੱਲ ਸਪੱਸ਼ਟ ਹੈ ਕਿ ਉਸਨੂੰ ਸਖ਼ਤ ਮਿਹਨਤ ਕਰਨੀ ਚਾਹੀਦੀ ਹੈ । ਵੈਬਰ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ, “ਸਖ਼ਤ ਕੰਮ ਇੱਕ ਕਰਤੱਵ ਹੈ ਅਤੇ ਇਸਦਾ ਨਤੀਜਾ ਇਸੇ ਦੇ ਵਿਚ ਸ਼ਾਮਲ ਹੈ ।” ਇਹ ਵਿਚਾਰ ਵੈਬਰ ਦੇ ਦ੍ਰਿਸ਼ਟੀਕੋਣ ਨਾਲ ਆਧੁਨਿਕ ਉਦਯੋਗਿਕ ਜਗਤ ਦੇ ਮਨੁੱਖ ਦਾ ਖ਼ਾਸ ਗੁਣ ਹੈ । ਮਨੁੱਖ ਆਪਣੇ ਕੰਮ ਵਿਚ ਚੰਗੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਕੰਮ ਕਰਨ ਇਸ ਲਈ ਨਹੀਂ ਕਿ ਉਸਨੂੰ ਕੰਮ ਕਰਨਾ ਪਵੇਗਾ ਬਲਕਿ ਇਸ ਲਈ ਕਿ ਉਹ ਅਜਿਹਾ ਕਰਨਾ ਚਾਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਵੈਬਰ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਇਹ ਉਸਦੀ ਵਿਅਕਤਿਕ ਸੰਤੁਸ਼ਟੀ ਦਾ ਆਧਾਰ ਹੈ । ਵੈਬਰ ਨੇ ਆਪ ਲਿਖਿਆ ਹੈ ਕਿ ਇਕ ਵਿਅਕਤੀ ਤੋਂ ਆਪਣੀ ਉਪਜੀਵਿਕਾ ਦੇ ਮੂਲ ਦੇ ਪ੍ਰਤੀ ਹੋਣ ਵਾਲੇ ਕਰਤੱਵ ਦਾ ਅਨੁਭਵ ਕਰਨ ਦੀ ਆਸ ਕੀਤੀ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ਅਤੇ ਉਹ ਅਜਿਹਾ ਕਰਦਾ ਵੀ ਹੈ, ਚਾਹੇ ਉਹ ਕਿਸੇ ਵੀ ਖੇਤਰ ਵਿਚ ਕਿਉਂ ਨਾ ਹੋਵੇ । ਅਮਰੀਕਾ ਦੀ ਇਕ ਕਹਾਵਤ ਹੈ ਕਿ, “ਜੇਕਰ ਕੋਈ ਵਿਅਕਤੀ ਕੰਮ ਕਰਨ ਦੇ ਯੋਗ ਹੈ ਤਾਂ ਉਸਨੂੰ ਸਭ ਤੋਂ ਵਧੀਆ ਢੰਗ ਨਾਲ ਪੂਰਾ ਕਰਨਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ ।” ਇਹ ਕਹਾਵਤ ਵੈਬਰ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਪੂੰਜੀਵਾਦ ਦਾ ਸਾਰ ਵੀ ਹੈ ਕਿਉਂਕਿ ਇਸ ਧਾਰਨਾ ਦਾ ਸੰਬੰਧ ਕਿਸੇ ਅਲੌਕਿਕ ਉਦੇਸ਼ ਤੋਂ ਨਹੀਂ ਬਲਕਿ ਆਰਥਿਕ ਜੀਵਨ ਵਿਚ ਵਿਅਕਤੀ ਨੂੰ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੋਣ ਵਾਲੀ ਸਫਲਤਾ ਤੋਂ ਹੈ, ਚਾਹੇ ਕਿਸੇ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਸਮੇਂ ਵਿਚ ਇਹ ਧਾਰਨਾ ਧਾਰਮਿਕ ਨੈਤਿਕਤਾ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧਿਤ ਰਹੀ ਹੈ ।

ਪੂੰਜੀਵਾਦ ਦੇ ਸਾਰ ਨੂੰ ਸਪੱਸ਼ਟ ਕਰਨ ਦੇ ਲਈ ਵੈਬਰ ਨੇ ਇਸਦੀ ਤੁਲਨਾ ਇਕ ਹੋਰ ਆਰਥਿਕ ਕ੍ਰਿਆ ਨਾਲ ਕੀਤੀ ਹੈ ਜਿਸਦਾ ਨਾਮ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਪਰੰਪਰਾਵਾਦ ਰੱਖਿਆ ਹੈ | ਆਰਥਿਕ ਆਵਾਂ ਵਿਚ ਪਰੰਪਰਾਵਾਦ ਉਹ ਸਥਿਤੀ ਹੈ ਜਿਸ ਵਿਚ ਵਿਅਕਤੀ ਜ਼ਿਆਦਾ ਲਾਭ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਵੀ ਘੱਟ ਤੋਂ ਘੱਟ ਕੰਮ ਕਰਨਾ ਚਾਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਉਹ ਕੰਮ ਦੇ ਦੌਰਾਨ ਜ਼ਿਆਦਾ ਤੋਂ ਜ਼ਿਆਦਾ ਆਰਾਮ ਕਰਨਾ ਪਸੰਦ ਕਰਨਾ ਚਾਹੁੰਦੇ ਹਨ ਅਤੇ ਕੰਮ ਦੇ ਨਵੇਂ ਤਰੀਕਿਆਂ ਨਾਲ ਅਨੁਕੂਲਨ ਕਰਨ ਦੀ ਇੱਛਾ ਨਹੀਂ ਕਰਦੇ ਹਨ । ਉਹ ਜੀਵਨ ਜਿਉਣ ਦੇ ਲਈ ਸਾਧਾਰਨ ਤਰੀਕਿਆਂ ਨਾਲ ਹੀ ਸੰਤੁਸ਼ਟ ਹੋ ਜਾਂਦੇ ਹਨ ਅਤੇ ਇਕਦਮ ਲਾਭ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਨ ਦੀ ਕੋਸ਼ਿਸ਼ ਕਰਦੇ ਹਨ । ਸਿਧਾਂਤਹੀਨ ਰੂਪ ਨਾਲ ਧਨ ਦਾ ਇਕੱਠਾ ਕਰਨਾ ਆਰਥਿਕ ਪਰੰਪਰਾਵਾਦ ਦਾ ਹੀ ਇਕ ਪਾਸਾ ਹੈ । ਇਹ ਸਾਰੀਆਂ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾਵਾਂ ਪੂੰਜੀਵਾਦ ਦੇ ਸਾਰ ਦੇ ਪੂਰੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਉਲਟ ਹਨ ।

ਅਸਲ ਵਿਚ ਆਧੁਨਿਕ ਪੂੰਜੀਵਾਦ ਅੰਤਰ-ਸੰਬੰਧਿਤ ਸੰਸਥਾਵਾਂ ਦਾ ਇੱਕ ਅਜਿਹਾ ਵੱਡਾ ਇਕੱਠ (Complex) ਹੈ, ਜਿਸਦਾ ਆਧਾਰ ਆਰਥਿਕ ਕੋਸ਼ਿਸ਼ਾਂ ਹਨ ਨਾ ਕਿ ਸਟੋਰੀਆਂ ਦੀਆਂ ਕੋਸ਼ਿਸ਼ਾਂ ਨੂੰ ਪੂੰਜੀਵਾਦ ਦੇ ਅੰਤਰਗਤ ਵਪਾਰੀ ਨਿਗਮਾਂ ਦਾ ਕਾਨੂੰਨੀ ਰੂਪ, ਸੰਗਠਿਤ ਲੈਣ-ਦੇਣ ਦਾ ਕੇਂਦਰ, ਸਰਕਾਰੀ ਕਰਜ਼ਾ ਪੱਤਰਾਂ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿਚ ਸਰਵਜਨਿਕ ਕਰਜ਼ਾ ਦੇਣ ਦੀ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਅਤੇ ਅਜਿਹੇ ਉਦਯੋਗਾਂ ਦੇ ਸੰਗਠਨਾਂ ਦਾ ਇਕੱਠ ਹੈ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਉਦੇਸ਼ ਵਸਤਾਂ ਦੇ ਤਾਰਕਿਕ ਆਧਾਰ ਉੱਤੇ ਉਤਪਾਦਨ ਕਰਨਾ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਨਾ ਕਿ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਵਪਾਰ ਕਰਨਾ । ਵੈਬਰ ਦਾ ਵਿਚਾਰ ਸੀ ਕਿ ਦੱਖਣੀ ਯੂਰਪ, ਰੋਮ ਦੇ ਅਭਿਜਾਤ ਵਰਗ ਅਤੇ ਐਲਬ ਨਦੀ ਦੇ ਪੂਰਬ ਦੇ ਜ਼ਿਮੀਂਦਾਰਾਂ ਦੀਆਂ ਆਰਥਿਕ ਕ੍ਰਿਆਵਾਂ ਇਕਦਮ ਲਾਭ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਨ ਦੇ ਲਈ ਕੀਤੀਆਂ ਗਈਆਂ, ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਵਿਚ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਸਾਰੇ ਨੈਤਿਕ ਵਿਚਾਰਾਂ ਦਾ ਤਿਆਗ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀਆਂ ਕ੍ਰਿਆਵਾਂ ਵਿਚ ਆਰਥਿਕ ਲਾਭ ਦੀਆਂ ਤਾਰਕਿਕ ਕੋਸ਼ਿਸ਼ਾਂ ਦੀ ਘਾਟ ਸੀ । ਜਿਸ ਕਾਰਨ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਪੂੰਜੀਵਾਦ ਦੇ ਬਰਾਬਰ ਨਹੀਂ ਰੱਖਿਆ ਜਾ ਸਕਦਾ ।

ਵੈਬਰ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਪੂੰਜੀਵਾਦ ਦੇ ਸਾਰ ਦਾ ਗੁਣ ਸਿਰਫ਼ ਪੱਛਮੀ ਸਮਾਜ ਦਾ ਹੀ ਗੁਣ ਨਹੀਂ ਹੈ । ਅਨੇਕਾਂ ਸਮਾਜਾਂ ਵਿਚ ਅਜਿਹੇ ਵਿਅਕਤੀ ਹੋਏ ਹਨ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਆਪਣੇ ਵਪਾਰ ਨੂੰ ਵਧੀਆ ਢੰਗ ਨਾਲ ਚਲਾਇਆ, ਜੋ ਨੌਕਰਾਂ ਤੋਂ ਵੀ ਜ਼ਿਆਦਾ ਮਿਹਨਤ ਕਰਦੇ ਸਨ, ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਜੀਵਨ ਸਾਦਾ ਸੀ ਅਤੇ ਜਿਹੜੇ ਆਪਣੀ ਬੱਚਤ ਨੂੰ ਵੀ ਵਪਾਰ ਨੂੰ ਵਧਾਉਣ ਵਿਚ ਲਾ ਦਿੰਦੇ ਸਨ । ਪਰ ਇਸ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਵੀ ਇਨ੍ਹਾਂ ਪੂੰਜੀਵਾਦੀ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾਵਾਂ ਦਾ ਪ੍ਰਭਾਵ ਪੱਛਮੀ ਸਮਾਜਾਂ ਵਿਚ ਕਿਤੇ ਜ਼ਿਆਦਾ ਮਿਲਦਾ ਰਿਹਾ ਹੈ । ਇਸਦਾ ਕਾਰਨ ਇਹ ਸੀ ਕਿ ਪੱਛਮ ਵਿਚ ਇਹ ਗੁਣ ਇਕ ਵਿਅਕਤਿਕ ਗੁਣ ਨਾ ਰਹਿ ਕੇ ਜੀਵਨ ਜੀਣ ਦੇ ਆਮ ਤਰੀਕੇ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿਚ ਵਿਕਸਿਤ ਹੋਇਆ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਲੋਕਾਂ ਵਿਚ ਫੈਲੀ ਸਖ਼ਤ ਮਿਹਨਤ, ਵਪਾਰਿਕ ਵਿਵਹਾਰ, ਸਰਵਜਨਿਕ ਕਰਜ਼ਾ ਵਿਵਸਥਾ, ਪੂੰਜੀ ਦਾ ਲਗਾਤਾਰ ਵਪਾਰ ਵਿਚ ਲਗਦੇ ਰਹਿਣਾ ਅਤੇ ਮਿਹਨਤ ਪ੍ਰਤੀ ਇੱਛਾ ਹੀ ਪੂੰਜੀਵਾਦ ਦਾ ਸਾਰ ਹੈ। ਇਸਦੇ ਉਲਟ ਇਕਦਮ ਲਾਭ ਪਾਉਣ ਦੀ ਕੋਸ਼ਿਸ਼, ਮਿਹਨਤ ਨੂੰ ਬੋਝ ਅਤੇ ਸਰਾਪ ਸਮਝ ਕੇ ਉਸ ਨੂੰ ਨਾ ਕਰਨਾ, ਧਨ ਨੂੰ ਇਕੱਠਾ ਕਰਨਾ ਅਤੇ ਜੀਵਨ ਜੀਣ ਦੇ ਸਾਧਾਰਨ ਪੱਧਰ ਤੋਂ ਹੀ ਸੰਤੁਸ਼ਟ ਹੋ ਜਾਣਾ ਆਮ ਆਰਥਿਕ ਆਦਤਾਂ ਹਨ ।

ਟੈਸਟੈਂਟ ਨੀਤੀ (Protestant Ethic) – ਇਹ ਸਪੱਸ਼ਟ ਕਰਨ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਕਿ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਅਧਿਐਨ ਦਾ ਉਦੇਸ਼ ਪੂੰਜੀਵਾਦ ਦਾ ਸਾਰ ਹੈ, ਵੈਬਰ ਨੇ ਅਜਿਹੇ ਅਨੇਕਾਂ ਕਾਰਨ ਦੱਸੇ ਹਨ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਆਧਾਰ ਉੱਤੇ ਸੁਧਾਰ ਅੰਦੋਲਨ ਦੇ ਧਾਰਮਿਕ ਵਿਚਾਰਾਂ ਵਿਚ ਇਸਦੀ ਉਤਪੱਤੀ ਨੂੰ ਲੱਭਣਾ ਹੈ । ਵੈਬਰ ਨੇ ਆਪਣੇ ਇਕ ਵਿਦਿਆਰਥੀ ਬਾਡੋਨ (Baden) ਨੂੰ ਰਾਜ ਵਿਚ ਧਾਰਮਿਕ ਸੰਬੰਧਾਂ ਅਤੇ ਸਿੱਖਿਆ ਦੀ ਚੋਣ ਦਾ ਅਧਿਐਨ ਕਰਨ ਦੇ ਲਈ ਕਿਹਾ | ਬਾਡੇਨ ਨੇ ਇਕ ਨਤੀਜਾ ਇਹ ਪੇਸ਼ ਕੀਤਾ ਕਿ ਕੈਥੋਲਿਕ ਵਿਦਿਆਰਥੀਆਂ ਦੀ ਤੁਲਨਾ ਵਿਚ ਪ੍ਰੋਟੈਸਟੈਂਟ ਵਿਦਿਆਰਥੀ ਉਨ੍ਹਾਂ ਸਿੱਖਿਆ ਸੰਸਥਾਵਾਂ ਵਿਚ ਜ਼ਿਆਦਾ ਦਾਖਲਾ ਲੈਂਦੇ ਹਨ ਜੋ ਉਦਯੋਗਿਕ ਜੀਵਨ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧਿਤ ਸਨ । ਇਕ ਹੋਰ ਕਾਰਨ ਇਹ ਵੀ ਸੀ ਕਿ ਯੂਰਪ ਵਿਚ ਸਮੇਂ-ਸਮੇਂ ਤੇ ਘੱਟ ਗਿਣਤੀ ਸਮੂਹਾਂ ਨੇ ਆਪਣੀ ਸਮਾਜਿਕ ਅਤੇ ਰਾਜਨੀਤਿਕ ਹਾਨੀ ਨੂੰ ਸਖ਼ਤ ਆਰਥਿਕ ਮਿਹਨਤ ਨਾਲ ਪੂਰਾ ਕਰ ਲਿਆ ਜਦਕਿ ਕੈਥੋਲਿਕ ਅਜਿਹਾ ਨਾ ਕਰ ਸਕੇ ।

ਇਨ੍ਹਾਂ ਹਾਲਾਤਾਂ ਦੇ ਪ੍ਰਭਾਵ ਨਾਲ ਵੈਬਰ ਦੀ ਇਸ ਧਾਰਨਾ ਨੂੰ ਬਲ ਮਿਲਿਆ ਕਿ ਧਾਰਮਿਕ ਨੀਤੀ ਅਤੇ ਆਰਥਿਕ ਕ੍ਰਿਆਵਾਂ ਵਿਚ ਕੋਈ ਸੰਬੰਧ ਜ਼ਰੂਰ ਹੈ । ਇਸ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਵੈਬਰ ਨੇ ਇਹ ਵੀ ਵੇਖਿਆ ਕਿ 16ਵੀਂ ਸਦੀ ਵਿਚ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਅਮੀਰ ਦੇਸ਼ਾਂ ਅਤੇ ਸ਼ਹਿਰਾਂ ਨੇ ਪੋਟੈਸਟੈਂਟ ਧਰਮ ਸਵੀਕਾਰ ਕਰ ਲਿਆ ਕਿਉਂਕਿ ਪੋਟੈਸਟੈਂਟ ਧਰਮ ਆਪਣੀਆਂ ਅਨੇਕਾਂ ਨੀਤੀਆਂ ਦੇ ਕਾਰਨ ਆਰਥਿਕ ਲਾਭ ਦੀਆਂ ਕੋਸ਼ਿਸ਼ਾਂ ਨੂੰ ਅੱਗੇ ਵਧਾ ਰਿਹਾ ਹੈ । ਇਸੇ ਆਧਾਰ ਉੱਤੇ ਵੈਬਰ ਨੇ ਇਹ ਪਤਾ ਕਰਨ ਦੀ ਕੋਸ਼ਿਸ਼ ਕੀਤੀ ਕਿ ਕੀ ਪੋਟੈਸਟੈਂਟ ਧਰਮ ਦਾ ਪ੍ਰਚਾਰ ਆਰਥਿਕ ਨਜ਼ਰ ਤੋਂ ਪਿਛੜੇ ਹੋਏ ਦੇਸ਼ਾਂ ਵਿਚ ਹੋਇਆ ਅਤੇ ਕੀ ਉੱਨਤ ਪੂੰਜੀਵਾਦੀ ਅਰਥ-ਵਿਵਸਥਾ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਵੀ ਕਿਸੇ ਖੇਤਰ ਵਿਚ ਕੈਥੋਲਿਕ ਧਰਮ ਪ੍ਰਭਾਵਸ਼ਾਲੀ ਬਣਿਆ ਰਿਹਾ ।

The Protestant Ethic and the Spirit of Capitalism ਲਿਖਣ ਵਿਚ ਵੈਬਰ ਦਾ ਉਦੇਸ਼ ਬਹੁਤ ਕੁੱਝ ਇਸ ਵਿਰੋਧ ਦੀ ਵਿਆਖਿਆ ਕਰ ਕੇ ਆਰਥਿਕ ਜੀਵਨ ਉੱਤੇ ਧਾਰਮਿਕ ਨੀਤੀਆਂ ਦੇ ਪ੍ਰਭਾਵ ਨੂੰ ਸਪੱਸ਼ਟ ਕਰਨਾ ਸੀ । ਵੈਬਰ ਇਹ ਸਪੱਸ਼ਟ ਕਰਨਾ ਚਾਹੁੰਦੇ ਸਨ ਕਿ ਪੋਟੈਸਟੈਂਟ ਧਰਮ ਦੀਆਂ ਨੀਤੀਆਂ ਕਿਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਲਈ ਪ੍ਰੇਰਣਾ ਦਾ ਸਰੋਤ ਬਣ ਗਈਆਂ ਜੋ ਆਰਥਿਕ ਲਾਭਾਂ ਨੂੰ ਤਾਰਕਿਕ ਨਜ਼ਰ ਤੋਂ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਨ ਦੇ ਹੱਕ ਵਿਚ ਸਨ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਵੈਬਰ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਕਿਸੇ ਵੀ ਧਰਮ ਦੇ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧਿਤ ਸਿਧਾਂਤਾਂ ਉੱਤੇ ਇਸ ਨਜ਼ਰ ਨਾਲ ਵਿਚਾਰ ਕਰਨਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ ਕਿ ਇਹ ਸਿਧਾਂਤ ਆਪਣੇ ਚੇਲਿਆਂ ਨੂੰ ਕਿਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦੇ ਵਿਵਹਾਰਾਂ ਦਾ ਪ੍ਰੋਤਸਾਹਨ ਦਿੰਦਾ ਹੈ । ਇਸ ਪ੍ਰਸ਼ਨ ਨੂੰ ਧਿਆਨ ਵਿਚ ਰੱਖਦੇ ਹੋਏ ਵੈਬਰ ਨੇ ਟੈਸਟੈਂਟ ਧਰਮ ਦੇ ਸ਼ੁੱਧ ਵਿਚਾਰਵਾਦੀ ਪਾਦਰੀਆਂ ਦੇ ਲੇਖਾਂ ਨੂੰ ਪਰਖਿਆ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੁਆਰਾ ਬਣਾਏ ਕਾਲਵਿਨਵਾਦੀ ਸਿਧਾਂਤਾਂ ਦਾ ਸਮੁਦਾਇ ਦੇ ਦੈਨਿਕ ਵਿਵਹਾਰ ਉੱਤੇ ਪ੍ਰਭਾਵ ਸਪੱਸ਼ਟ ਕੀਤਾ ।

ਪ੍ਰੋਟੈਸਟੈਂਟ ਧਰਮ ਦੀ ਨੀਤੀ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿਚ ਸੇਂਟ ਪਾਲ ਦੇ ਇਸ ਆਦੇਸ਼ ਨੂੰ ਵਿਆਪਕ ਰੂਪ ਨਾਲ ਹਿਣ ਕੀਤਾ ਜਾਣ ਲੱਗਾ ਕਿ, “ਜਿਹੜਾ ਵਿਅਕਤੀ ਕੰਮ ਨਹੀਂ ਕਰੇਗਾ ਉਹ ਰੋਟੀ ਨਹੀਂ ਖਾਵੇਗਾ ਅਤੇ ਗਰੀਬ ਦੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਅਮੀਰ ਵੀ ਰੱਬ ਦੇ ਗੌਰਵ ਨੂੰ ਵਧਾਉਣ ਲਈ ਕਿਸੇ ਨਾ ਕਿਸੇ ਕੰਮ ਜਾਂ ਵਪਾਰ ਨੂੰ ਜ਼ਰੂਰ ਕਰਨ।” ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਮਿਹਨਤੀ ਜੀਵਨ ਹੀ ਪ੍ਰੋਟੈਸਟੈਂਟ ਧਰਮ ਦੀ ਸ਼ੁੱਧ ਵਿਚਾਰਵਾਦੀ ਧਾਰਮਿਕ ਭਗਤੀ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਹੈ । ਰਿਚਰਡ ਬੈਂਕਸਟਰ (Richard Baxter) ਨੇ ਕਿਹਾ ਕਿ, ‘ਸਿਰਫ਼ ਕਰਨ ਦੇ ਲਈ ਹੀ ਰੱਬ ਸਾਡੀ ਅਤੇ ਸਾਡੀਆਂ ਕ੍ਰਿਆਵਾਂ ਦੀ ਰੱਖਿਆ ਕਰਦਾ ਹੈ । ਮਿਹਨਤ ਹੀ ਸ਼ਕਤੀ ਦਾ ਨੈਤਿਕ ਅਤੇ ਪ੍ਰਾਕ੍ਰਿਤਕ ਉਦੇਸ਼ ਹੈ, ਸਿਰਫ਼ ਮਿਹਨਤ ਨਾਲ ਹੀ ਰੱਬ ਦੀ ਸਭ ਤੋਂ ਜ਼ਿਆਦਾ ਸੇਵਾ ਹੋ ਸਕਦੀ ਹੈ ।” ਇਕ ਹੋਰ ਸੰਤ ਜਾਨ ਬਨਿਅਨ ਨੇ ਕਿਹਾ ਸੀ ਕਿ, “ਇਹ ਨਹੀਂ ਕਿਹਾ ਜਾਵੇਗਾ ਕਿ ਤੁਸੀਂ ਕੀ ਵਿਸ਼ਵਾਸ ਕਰਦੇ ਸੀ, ਸਿਰਫ਼ ਇਹ ਕਿਹਾ ਜਾਵੇਗਾ ਕਿ ਤੁਸੀਂ ਕੁਝ ਮਿਹਨਤ ਵੀ ਕਰਦੇ ਸੀ ਜਾਂ ਸਿਰਫ਼ ਗੱਲਾਂ ਹੀ ਮਾਰਦੇ ਸੀ ।”

ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਪੋਟੈਸਟੈਂਟ ਧਰਮ ਦੀ ਨੀਤੀ ਵਿਚ ਕੰਮ ਕਰਦੇ ਜੀਵਨ ਨੂੰ ਹੀ ਰੱਬ ਦੀ ਭਗਤੀ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿਚ ਮੰਨ ਲਿਆ ਗਿਆ । ਪ੍ਰੋਟੈਸਟੈਂਟ ਧਰਮ ਵਿਚ ਮਿਹਨਤ ਦੀ ਪਸੰਸਾ ਨੇ ਨਵੇਂ ਨਿਯਮਾਂ ਨੂੰ ਜਨਮ ਦਿੱਤਾ । ਇਸਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਸਮੇਂ ਨੂੰ ਵਿਅਰਥ ਨਸ਼ਟ ਕਰਨਾ ਪਾਪ ਹੈ । ਜੀਵਨ ਛੋਟਾ ਅਤੇ ਮੁੱਲਵਾਨ ਹੈ, ਇਸ ਲਈ ਮਨੁੱਖ ਨੂੰ ਹਰੇਕ ਸਮੇਂ ਰੱਬ ਦਾ ਗੌਰਵ ਵਧਾਉਣ ਦੇ ਲਈ ਆਪਣਾ ਸਮਾਂ ਆਪਣੇ ਉਪਯੋਗੀ ਕੰਮ ਵਿਚ ਲਗਾਉਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ । ਵਿਅਰਥ ਦੀ ਗੱਲ-ਬਾਤ, ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਜ਼ਿਆਦਾ ਮਿਲਣਾ, ਜ਼ਰੂਰਤ ਤੋਂ ਜ਼ਿਆਦਾ ਸੇਵਾ ਅਤੇ ਦੈਨਿਕ ਕੰਮਾਂ ਨੂੰ ਹਾਨੀ ਪਹੁੰਚਾ ਕੇ ਧਾਰਮਿਕ ਕੰਮਾਂ ਵਿਚ ਲੱਗੇ ਰਹਿਣਾ ਪਾਪ ਹੈ ਕਿਉਂਕਿ ਇਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਕਾਰਨ ਰੱਬ ਦੁਆਰਾ ਦਿੱਤੇ ਉਪਜੀਵਿਕਾ ਕੰਮ ਨੂੰ ਰੱਬ ਦੀ ਇੱਛਾ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਪੂਰਾ ਨਹੀਂ ਕੀਤਾ ਜਾ ਸਕਦਾ । ਇਸ ਦ੍ਰਿਸ਼ਟੀਕੋਣ ਨਾਲ ਪੋਟੈਸਟੈਂਟ ਧਰਮ ਦੀਆਂ ਨੀਤੀਆਂ ਵਿਅਕਤੀਗਤ ਨੀਤੀ ਦੇ ਇਸ ਆਦਰਸ਼ ਦੇ ਵਿਰੁੱਧ ਹਨ ਕਿ, “ਅਮੀਰ ਵਿਅਕਤੀ ਕੋਈ ਕੰਮ ਨਾ ਕਰੇ ਜਾਂ ਇਹ ਕਿ ਧਾਰਮਿਕ ਧਿਆਨ ਸੰਸਾਰਿਕ ਕੰਮਾਂ ਤੋਂ ਜ਼ਿਆਦਾ ਮੁੱਲਵਾ੩੩ਨ ਹੈ ।’ ਇਹੀ ਪੋਟੈਸਟੈਂਟ ਨੀਤੀ ਹੈ ।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 12 ਪੱਛਮੀ-ਸਮਾਜ ਵਿਗਿਆਨ ਦੇ ਵਿਚਾਰਕ

ਪੰਜੀਵਾਦ ਅਤੇ ਪੋਟੈਸਟੈਂਟ ਨੀਤੀ ਦਾ ਸੰਬੰਧ (Relationship of Capitalism and Protestant Ethic) – ਪੂੰਜੀਵਾਦ ਦੇ ਸਾਰ ਅਤੇ ਪ੍ਰੋਟੈਸਟੈਂਟ ਨੀਤੀਆਂ ਦੇ ਅਧਿਐਨ ਨਾਲ ਵੈਬਰ ਨੂੰ ਇਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਅਨੇਕਾਂ ਆਧਾਰਾਂ ਵਿਚ ਸਮਾਨਤਾ ਮਿਲਦੀ ਹੈ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਸਮਾਨਤਾਵਾਂ ਨੇ ਵੈਬਰ ਨੂੰ ਇਸ ਤੱਥ ਉੱਤੇ ਵਿਚਾਰ ਕਰਨ ਦੀ ਪ੍ਰੇਰਣਾ ਦਿੱਤੀ ਕਿ ਆਰਥਿਕ ਵਿਵਹਾਰਾਂ ਅਤੇ ਧਾਰਮਿਕ ਨੀਤੀਆਂ ਵਿਚ ਕਿਹੜੇ ਹਾਲਾਤ ਕਾਰਨ ਹਨ ਅਤੇ ਕਿਹੜੇ ਹਾਲਾਤ ਨਤੀਜੇ ਹਨ । ਵੈਬਰ ਨੇ ਪਹਿਲਾਂ 16ਵੀਂ ਅਤੇ 17ਵੀਂ ਸਦੀ ਵਿਚ ਧਰਮ ਸੰਘਾਂ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀਆਂ ਮਾਨਤਾਵਾਂ ਵਿਚ ਹੋਣ ਵਾਲੇ ਪਰਿਵਰਤਨਾਂ ਦਾ ਮਨੁੱਖੀ ਵਿਵਹਾਰਾਂ ਉੱਤੇ ਪ੍ਰਭਾਵਾਂ ਦਾ ਅਧਿਐਨ ਕੀਤਾ । ਸ਼ੁਰੂ ਵਿਚ ਅਨੇਕਾਂ ਧਰਮ ਸੰਘਾਂ ਨੇ ਭੌਤਿਕ ਚੀਜ਼ਾਂ ਦੀ ਪ੍ਰਾਪਤੀ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਇਕੱਠ ਉੱਤੇ ਜ਼ੋਰ ਦਿੱਤਾ ਅਤੇ ਕੁਝ ਸਮੇਂ ਬਾਅਦ ਧਨ ਦੇ ਇਕੱਠ ਨੂੰ ਅਧਾਰਮਿਕਤਾ ਦੀ ਸ਼੍ਰੇਣੀ ਵਿਚ ਰੱਖਿਆ ਜਾਣ ਲੱਗਿਆ ਜਿਸ ਵਿਚ ਮਿਹਨਤ ਦੇ ਸਾਹਮਣੇ ਸਾਰੀਆਂ ਇੱਛਾਵਾਂ ਨੂੰ ਖਤਮ ਕਰ ਲੈਣਾ ਠੀਕ ਸੀ ।

ਇਸ ਧਰਮ ਸਿੰਘ ਨੇ ਇੱਛਾਵਾਂ ਨੂੰ ਖਤਮ ਕਰਨ ਨੂੰ ਧਰਮ ਨਿਰਪੱਖਤਾ ਦੇ ਖਤਮ ਕਰਨ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿਚ ਨਾ ਲੈ ਕੇ ਕਿਰਤ ਦੇ ਰਸਤੇ ਵਿਚ ਆਉਣ ਵਾਲੀ ਰੁਕਾਵਟ ਨੂੰ ਇੱਛਾ ਖਤਮ ਕਰਨ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿਚ ਸਪੱਸ਼ਟ ਕੀਤਾ | ਵੈਬਰ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ, ਜਦੋਂ ਇੱਛਾ ਖਤਮ ਕਰ ਲੈਣ ਦੀ ਧਾਰਨਾ ਧਰਮ ਕੇਂਦਰਾਂ ਦੀ ਸੀਮਾ ਤੋਂ ਬਾਹਰ ਨਿਕਲ ਕੇ ਸੰਸਾਰਿਕ ਨੈਤਿਕਤਾ ਨੂੰ ਪ੍ਰਭਾਵਿਤ ਕਰਨ ਲੱਗੀ ਤਾਂ ਇਸਨੇ ਆਧੁਨਿਕ ਅਰਥ-ਵਿਵਸਥਾ ਪੂੰਜੀਵਾਦ ਦੀ ਰਚਨਾ ਵਿਚ ਵੀ ਆਪਣਾ ਯੋਗਦਾਨ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਇਸ ਪਰਿਵਰਤਨ ਨੇ ਵੈਬਰ ਨੂੰ ਅਧਿਐਨ ਦੀ ਇਕ ਦਿਸ਼ਾ ਪ੍ਰਦਾਨ ਕੀਤੀ ਕਿ ਧਰਮ ਦੀਆਂ ਨੀਤੀਆਂ ਹੀ ਉਹ ਮੂਲ ਕਾਰਨ ਹਨ ਜੋ ਵਿਅਕਤੀ ਦੇ ਆਰਥਿਕ ਅਤੇ ਧਰਮ ਨਿਰਪੱਖ ਵਿਵਹਾਰਾਂ ਨੂੰ ਪ੍ਰਭਾਵਿਤ ਕਰਦਾ ਹੈ ।

ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਵੈਬਰ ਨੇ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਇਤਿਹਾਸਿਕ ਸਬੂਤਾਂ ਦੁਆਰਾ ਇਹ ਸਪੱਸ਼ਟ ਕਰਨ ਦੀ ਕੋਸ਼ਿਸ਼ ਕੀਤੀ ਕਿ ਕਿਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਟੈਸਟੈਂਟ ਧਰਮ ਦੀਆਂ ਨੀਤੀਆਂ ਯੂਰਪ ਦੇ ਅਨੇਕਾਂ ਦੇਸ਼ਾਂ ਵਿਚ ਸ਼ੁਰੂਆਤੀ ਪੂੰਜੀਵਾਦ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਲਈ ਠੀਕ ਸਨ । ਪੋਟੈਸਟੈਂਟ ਧਰਮ ਦੇ ਸੁਧਾਰ ਅੰਦੋਲਨ ਨੇ ਸ਼ੁਰੂ ਤੋਂ ਹੀ ਧਾਰਮਿਕ ਸਮਾਰੋਹਾਂ ਵਿਚ ਪ੍ਰਵੇਸ਼ ਕਰਨ ਦਾ ਅਧਿਕਾਰ ਉਨ੍ਹਾਂ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਦਿੱਤਾ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਇਸ ਧਰਮ ਦੀਆਂ ਨੀਤੀਆਂ ਵਿਚ ਬਹੁਤ ਜ਼ਿਆਦਾ ਸ਼ਰਧਾ ਸੀ । ਧਾਰਮਿਕ ਪਰਿਸ਼ਦਾਂ ਦੇ ਮੈਂਬਰਾਂ ਨੂੰ ਇਹ ਸਿੱਧ ਕਰਨਾ ਪੈਂਦਾ ਸੀ ਕਿ ਉਨ੍ਹਾਂ ਵਿਚ ਆਪਣੇ ਧਰਮ ਦੀਆਂ ਨੀਤੀਆਂ ਨੂੰ ਵਿਵਹਾਰਿਕ ਰੂਪ ਦੇਣ ਦੀ ਪੂਰੀ ਸਮਰੱਥਾ ਹੈ । ਇਹ ਪਰੰਪਰਾ ਵੈਬਰ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਸਾਧਨਾਂ ਨਾਲ ਸੰਪੰਨ ਉਪਜੀਵਿਕਾ ਨੂੰ ਮਹੱਤਵ ਦੇ ਕੇ ਆਧੁਨਿਕ ਪੂੰਜੀਵਾਦ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਵਿਚ ਬਹੁਤ ਜ਼ਿਆਦਾ ਸਹਾਇਕ ਸਿੱਧ ਹੋਈ । ਹੌਲੀ-ਹੌਲੀ ਪ੍ਰੋਟੈਸਟੈਂਟ ਧਰਮ ਦੀਆਂ ਨੈਤਿਕ ਸਿੱਖਿਆਵਾਂ ਇਸਦੇ ਸਾਰੇ ਮੰਨਣ ਵਾਲਿਆਂ ਦੇ ਜੀਵਨ ਦੀ ਇਕ ਵਿਵਸਥਿਤ ਸ਼ੈਲੀ ਵਿਚ ਬਦਲ ਗਈ । ਵੈਬਰ ਨੇ ਇਸ ਸਥਿਤੀ ਨੂੰ ਇਕ ਅਜਿਹੀ ਘਟਨਾ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿਚ ਸਵੀਕਾਰ ਕੀਤਾ ਕਿ ਜਿਸ ਨਾਲ ਪੱਛਮੀ ਜੀਵਨ ਦੇ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਪਹਿਲੂਆਂ ਵਿਚ ਤਰਕਵਾਦ ਵਧਿਆ । ਇਹ ਤਰਕਵਾਦ ਪੱਛਮੀ ਸੱਭਿਅਤਾ ਦੇ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਰੂਪਾਂ ਵਿਚ ਸਪੱਸ਼ਟ ਹੋਇਆ ਅਤੇ ਪੂੰਜੀਵਾਦ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਨਾਲ ਇਸਦਾ ਪ੍ਰਤੱਖ ਸੰਬੰਧ ਹੈ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਪੂੰਜੀਵਾਦ ਦੇ ਸਾਰ ਅਤੇ ਪ੍ਰੋਟੈਸਟੈਂਟ ਨੀਤੀ ਦੇ ਸੰਬੰਧ ਦੀ ਵਿਆਖਿਆ ਦੇ ਆਧਾਰ ਉੱਤੇ ਧਰਮ ਨੂੰ ਸਮਝਾਇਆ ਹੈ ।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 11 ਸਮਾਜਿਕ ਪਰਿਵਰਤਨ

Punjab State Board PSEB 11th Class Sociology Book Solutions Chapter 11 ਸਮਾਜਿਕ ਪਰਿਵਰਤਨ Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Sociology Chapter 11 ਸਮਾਜਿਕ ਪਰਿਵਰਤਨ

Sociology Guide for Class 11 PSEB ਸਮਾਜਿਕ ਪਰਿਵਰਤਨ Textbook Questions and Answers

I. ਨਿਮਨਲਿਖਤ ਪ੍ਰਸ਼ਨਾਂ ਦੇ ਉੱਤਰ 1-15 ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਦਿਓ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਸਮਾਜਿਕ ਪਰਿਵਰਤਨ ਨੂੰ ਪਰਿਭਾਸ਼ਿਤ ਕਰੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਸਮਾਜਿਕ ਸੰਬੰਧਾਂ ਵਿੱਚ ਕਈ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦੇ ਪਰਿਵਰਤਨ ਆਉਂਦੇ ਰਹਿੰਦੇ ਹਨ ਅਤੇ ਇਸਨੂੰ ਹੀ ਸਮਾਜਿਕ ਪਰਿਵਰਤਨ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਸਮਾਜਿਕ ਪਰਿਵਰਤਨ ਦੇ ਮੁੱਢਲੇ ਸੋਮੇ ਦੱਸੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਸਮਾਜਿਕ ਪਰਿਵਤਰਨ ਦੇ ਤਿੰਨ ਮੁੱਢਲੇ ਸੋਮੇ ਹਨ-ਕਾਢ (Innovation), ਖੋਜ (Discovery) ਅਤੇ ਪ੍ਰਸਾਰ (Diffusion) ।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 11 ਸਮਾਜਿਕ ਪਰਿਵਰਤਨ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 3.
ਸਮਾਜਿਕ ਪਰਿਵਰਤਨ ਦੀਆਂ ਦੋ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾਵਾਂ ਦੱਸੋ ।
ਉੱਤਰ-

  1. ਸਮਾਜਿਕ ਪਰਿਵਰਤਨ ਸਰਵਵਿਆਪਕ ਪ੍ਰਕ੍ਰਿਆ ਹੈ ਜੋ ਹਰੇਕ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਆਉਂਦਾ ਹੈ ।
  2. ਸਮਾਜਿਕ ਪਰਿਵਰਤਨ ਵਿੱਚ ਤੁਲਨਾ ਜ਼ਰੂਰੀ ਹੈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 4.
ਅੰਦਰੂਨੀ ਪਰਿਵਰਤਨ ਕੀ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਜਿਹੜਾ ਪਰਿਵਰਤਨ ਸਮਾਜ ਦੇ ਅੰਦਰੂਨੀ ਕਾਰਕਾਂ ਕਰਕੇ ਆਉਂਦਾ ਹੋਵੇ ਉਸ ਨੂੰ ਅੰਦਰੂਨੀ ਪਰਿਵਰਤਨ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 5.
ਸਮਾਜਿਕ ਪਰਿਵਰਤਨ ਦੇ ਕਾਰਨ ਦੱਸੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਪ੍ਰਾਕ੍ਰਿਤਕ ਕਾਰਕ, ਵਿਸ਼ਵਾਸਾਂ ਅਤੇ ਮੁੱਲ, ਸਮਾਜ ਸੁਧਾਰਕ, ਜਨਸੰਖਿਆਤਮਿਕ ਕਾਰਕ, ਤਕਨੀਕੀ ਕਾਰਕ, ਸਿੱਖਿਆਤਮਕ ਕਾਰਕ ਆਦਿ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 6.
ਪ੍ਰਤੀ ਕੀ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਜਦੋਂ ਅਸੀਂ ਆਪਣੇ ਕਿਸੇ ਇੱਛਤ ਉਦੇਸ਼ ਦੀ ਪ੍ਰਾਪਤੀ ਦੇ ਰਸਤੇ ਵੱਲ ਵੱਧਦੇ ਹਾਂ, ਤਾਂ ਇਸ ਪਰਿਵਰਤਨ ਨੂੰ ਪ੍ਰਤੀ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 7.
ਯੋਜਨਾਬੱਧ ਪਰਿਵਰਤਨ ਦੀ ਉਦਾਹਰਨ ਦਿਓ ।
ਉੱਤਰ-
ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਪੜ੍ਹਾਉਣਾ-ਲਿਖਾਉਣਾ, ਟ੍ਰੇਨਿੰਗ ਦੇਣਾ ਨਿਯੋਜਿਤ ਪਰਿਵਰਤਨ ਦੀ ਉਦਾਹਰਨ ਹੈ ।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 11 ਸਮਾਜਿਕ ਪਰਿਵਰਤਨ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 8.
ਅਯੋਜਨਾਬੱਧ ਪਰਿਵਰਤਨ ਦੀਆਂ ਦੋ ਉਦਾਹਰਨਾਂ ਦਿਓ ।
ਉੱਤਰ-
ਪ੍ਰਾਕ੍ਰਿਤਕ ਆਪਦਾ; ਜਿਵੇਂ ਕਿ ਹੜ੍ਹ, ਭੁਚਾਲ ਆਦਿ ਨਾਲ ਸਮਾਜ ਪੂਰੀ ਤਰਾਂ ਬਦਲ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

II. ਨਿਮਨਲਿਖਤ ਪ੍ਰਸ਼ਨਾਂ ਦੇ ਉੱਤਰ 30-35 ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਦਿਓ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਸਮਾਜਿਕ ਪਰਿਵਰਤਨ ਦਾ ਅਰਥ ਲਿਖੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਜਦੋਂ ਸਮਾਜ ਦੇ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਭਾਗਾਂ ਵਿੱਚ ਪਰਿਵਰਤਨ ਆਵੇ ਅਤੇ ਉਹ ਪਰਿਵਰਤਨ ਜੇਕਰ ਸਾਰੇ ਨਹੀਂ ਤਾਂ ਸਮਾਜ ਦੇ ਜ਼ਿਆਦਾਤਰ ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਜੀਵਨ ਨੂੰ ਪ੍ਰਭਾਵਿਤ ਕਰੇ ਤਾਂ ਉਸ ਨੂੰ ਸਮਾਜਿਕ ਪਰਿਵਰਤਨ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਇਸ ਦਾ ਅਰਥ ਹੈ ਕਿ ਸਮਾਜ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਜੀਵਨ ਜੀਣ ਦੇ ਤਰੀਕਿਆ ਵਿੱਚ ਸੰਰਚਨਾਤਮਕ ਪਰਿਵਰਤਨ ਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਪ੍ਰਸਾਰ (Diffusion) ਕੀ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਪ੍ਰਸਾਰ ਦਾ ਅਰਥ ਹੈ ਕਿਸੇ ਚੀਜ਼ ਨੂੰ ਬਹੁਤ ਜ਼ਿਆਦਾ ਫੈਲਾਉਣਾ ।ਉਦਾਹਰਨ ਦੇ ਲਈ ਜਦੋਂ ਸੰਸਕ੍ਰਿਤਕ ਵਿਚਾਰ ਇੱਕ ਸਮੂਹ ਤੋਂ ਦੂਜੇ ਸਮੂਹ ਤੱਕ ਫੈਲ ਜਾਂਦੇ ਹਨ ਤਾਂ ਇਸਨੂੰ ਪ੍ਰਸਾਰ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਸਾਰੇ ਸਮਾਜਾਂ ਵਿੱਚ ਸਮਾਜਿਕ ਪਰਿਵਰਤਨ ਆਮ ਤੌਰ ਉੱਤੇ ਪ੍ਰਸਾਰ ਦੇ ਕਾਰਨ ਹੀ ਆਉਂਦਾ ਹੈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 3.
ਕੁਮਵਿਕਾਸ ਅਤੇ ਕ੍ਰਾਂਤੀ ਬਾਰੇ ਸੰਖੇਪ ਵਿੱਚ ਲਿਖੋ ।
ਉੱਤਰ-

  1. ਕ੍ਰਮਵਿਕਾਸ – ਜਦੋਂ ਪਰਿਵਰਤਨ ਇੱਕ ਨਿਸ਼ਚਿਤ ਦਿਸ਼ਾ ਵਿੱਚ ਹੋਵੇ ਅਤੇ ਤੱਥ ਦੇ ਗੁਣਾਂ ਅਤੇ ਰਚਨਾ ਵਿੱਚ ਪਰਿਵਰਤਨ ਹੋਵੇ ਤਾਂ ਉਸ ਨੂੰ ਕੁਵਿਕਾਸ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।
  2. ਕ੍ਰਾਂਤੀ – ਉਹ ਪਰਿਵਰਤਨ ਜਿਹੜਾ ਅਚਨਚੇਤ ਅਤੇ ਅਚਾਨਕ ਹੋ ਜਾਵੇ, ਕ੍ਰਾਂਤੀ ਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਇਸ ਨਾਲ ਮੌਜੂਦਾ ਵਿਵਸਥਾ ਖਤਮ ਹੋ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ਅਤੇ ਨਵੀਂ ਵਿਵਸਥਾ ਕਾਇਮ ਹੋ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 4.
ਸਮਾਜਿਕ ਪਰਿਵਰਤਨ ਦੇ ਤਿੰਨ ਮੁੱਖ ਕਾਰਨ ਕਿਹੜੇ ਹਨ ?
ਉੱਤਰ-
ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਤਿੰਨ ਮੁਲ ਚੀਜ਼ਾਂ ਵਿੱਚ ਪਰਿਵਰਤਨ ਨਾਲ ਪਰਿਵਰਤਨ ਆਉਂਦਾ ਹੈ-

  1. ਸਮੂਹ ਦਾ ਵਿਵਹਾਰ
  2. ਸਮਾਜਿਕ ਸੰਰਚਨਾ
  3. ਸੰਸਕ੍ਰਿਤਕ ਗੁਣ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 5.
ਪਰਿਵਰਤਨ ਦੇ ਤਿੰਨ ਸੋਮੇ ਕੀ ਹਨ ?
ਉੱਤਰ-

  1. ਕਾਢ – ਮੌਜੂਦਾ ਚੀਜ਼ਾਂ ਦੀ ਮੱਦਦ ਨਾਲ ਕੁੱਝ ਨਵਾਂ ਤਿਆਰ ਕਰਨਾ ਕਾਢ ਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਇਸ ਵਿੱਚ ਮੌਜੂਦਾ ਤਕਨੀਕਾਂ ਦਾ ਇਸਤੇਮਾਲ ਕਰਕੇ ਨਵੀਂ ਤਕਨੀਕ ਖੋਜੀ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ।
  2. ਖੋਜ – ਖੋਜ ਦਾ ਅਰਥ ਹੈ ਕੁੱਝ ਨਵਾਂ ਪਹਿਲੀ ਵਾਰ ਕੱਢਣਾ ਜਾਂ ਸਿੱਖਣਾ । ਇਸ ਦਾ ਅਰਥ ਹੈ ਕਿ ਕੁੱਝ ਨਵਾਂ ਇਜ਼ਾਦ ਕਰਨਾ ਜਿਸ ਬਾਰੇ ਸਾਨੂੰ ਕੁੱਝ ਪਤਾ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦਾ ।
  3. ਫੈਲਾਵ – ਫੈਲਾਵ ਦਾ ਅਰਥ ਹੈ ਕਿਸੇ ਚੀਜ਼ ਦਾ ਜ਼ਿਆਦਾ ਫੈਲਾਉਣਾ; ਜਿਵੇਂ ਜੇਕਰ ਸੰਸਕ੍ਰਿਤਕ ਵਿਚਾਰ ਇੱਕ ਸਮੂਹ ਤੋਂ ਦੂਜੇ ਤੱਕ ਫੈਲ ਜਾਣ ਤਾਂ ਇਹ ਫੈਲਾਵ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 11 ਸਮਾਜਿਕ ਪਰਿਵਰਤਨ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 6.
ਸਮਾਜਿਕ ਅਤੇ ਸੱਭਿਆਚਾਰਕ ਪਰਿਵਰਤਨ ਕਿਹੜੇ ਹਨ ? ਸੰਖੇਪ ਵਿੱਚ ਦੱਸੋ ।
ਉੱਤਰ-

  1. ਸਮਾਜਿਕ ਪਰਿਵਰਤਨ ਚੇਤਨ ਜਾਂ ਅਚੇਤਨ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਆ ਸਕਦਾ ਹੈ ਪਰ ਸੰਸਕ੍ਰਿਤਕ ਪਰਿਵਰਤਨ ਹਮੇਸ਼ਾਂ ਚੇਤਨ ਰੂਪ ਨਾਲ ਆਉਂਦਾ ਹੈ ।
  2. ਸਮਾਜਿਕ ਪਰਿਵਰਤਨ ਉਹ ਪਰਿਵਰਤਨ ਹੈ ਜੋ ਸਿਰਫ਼ ਸਮਾਜਿਕ ਸੰਬੰਧਾਂ ਵਿੱਚ ਆਉਂਦਾ ਹੈ ਪਰ ਸੰਸਕ੍ਰਿਤਕ ਪਰਿਵਰਤਨ ਉਹ ਪਰਿਵਰਤਨ ਹੈ ਜੋ ਧਰਮ, ਵਿਚਾਰਾਂ, ਮੁੱਲਾਂ, ਵਿਗਿਆਨ ਆਦਿ ਵਿੱਚ ਆਉਂਦਾ ਹੈ ।

III. ਨਿਮਨਲਿਖਤ ਪ੍ਰਸ਼ਨਾਂ ਦੇ ਉੱਤਰ 75-85 ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਦਿਓ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਸਮਾਜਿਕ ਪਰਿਵਰਤਨ ਦੀਆਂ ਖਾਸ ਕਿਸਮਾਂ ਸੰਖੇਪ ਵਿੱਚ ਦੱਸੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਉਦਵਿਕਾਸ, ਪ੍ਰਗਤੀ, ਵਿਕਾਸ ਅਤੇ ਸ਼ਾਂਤੀ ਸਮਾਜਿਕ ਪਰਿਵਰਤਨ ਦੇ ਮੁੱਖ ਪ੍ਰਕਾਰ ਹਨ । ਜਦੋਂ ਪਰਿਵਰਤਨ ਅੰਦਰੂਨੀ ਤੌਰ ਉੱਤੇ ਕੁਮਵਾਰ, ਹੌਲੀ-ਹੌਲੀ ਹੋਵੇ ਅਤੇ ਸਮਾਜਿਕ ਸੰਸਥਾਵਾਂ ਸਧਾਰਨ ਤੋਂ ਜਟਿਲ ਹੋ ਜਾਣ ਤਾਂ ਉਹ ਉਦਵਿਕਾਸ ਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਜਦੋਂ ਕਿਸੇ ਚੀਜ਼ ਵਿੱਚ ਪਰਿਵਰਤਨ ਆਵੇ ਅਤੇ ਪਰਿਵਰਤਨ ਕਿਸੇ ਇੱਛੁਕ ਦਿਸ਼ਾ ਵਿੱਚ ਆਵੇ ਤਾਂ ਇਸ ਨੂੰ ਵਿਕਾਸ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ । ਜਦੋਂ ਲੋਕ ਕਿਸੇ ਨਿਸ਼ਚਿਤ ਉਦੇਸ਼ ਨੂੰ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਨ ਦੇ ਅਤੇ ਵੱਲ ਵੱਧਣ ਅਤੇ ਉਦੇਸ਼ ਨੂੰ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰ ਲੈਣ ਤਾਂ ਇਸ ਨੂੰ ਪ੍ਰਗਤੀ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ । ਜਦੋਂ ਪਰਿਵਰਤਨ ਅਚਨਚੇਤ ਅਤੇ ਅਚਾਨਕ ਆਵੇ ਅਤੇ ਮੌਜੂਦਾ ਵਿਵਸਥਾ ਬਦਲ ਜਾਵੇ ਤਾਂ ਇਸ ਨੂੰ ਸ਼ਾਂਤੀ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਸੰਖੇਪ ਵਿੱਚ ਜਨਸੰਖਿਆਤਮਕ ਕਾਰਕਾਂ ਬਾਰੇ ਨੋਟ ਲਿਖੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਜਨਸੰਖਿਆਤਮਕ ਪਰਿਵਰਤਨ ਦਾ ਵੀ ਸਮਾਜਿਕ ਪਰਿਵਰਤਨ ਦੇ ਉੱਪਰ ਅਸਰ ਪੈਂਦਾ ਹੈ । ਸਮਾਜਿਕ ਸੰਗਠਨ, ਪਰੰਪਰਾਵਾਂ, ਸੰਸਥਾਵਾਂ, ਪ੍ਰਥਾਵਾਂ ਆਦਿ ਉੱਪਰ ਜਨਸੰਖਿਆਤਮਕ ਕਾਰਕਾਂ ਦਾ ਪ੍ਰਭਾਵ ਪੈਂਦਾ ਹੈ । ਜਨਸੰਖਿਆ ਦਾ ਵੱਧਣਾ, ਘੱਟਣਾ, ਆਦਮੀ ਅਤੇ ਔਰਤ ਦੇ ਅਨੁਪਾਤ ਵਿੱਚ ਪਾਏ ਗਏ ਪਰਿਵਰਤਨ ਦਾ ਸਮਾਜਿਕ ਸੰਬੰਧਾਂ ਉੱਪਰ ਪ੍ਰਭਾਵ ਪੈਂਦਾ ਹੈ । ਜਨਸੰਖਿਆ ਵਿੱਚ ਆਇਆ ਪਰਿਵਰਤਨ ਸਮਾਜ ਦੀ ਆਰਥਿਕ ਪ੍ਰਗਤੀ ਵਿੱਚ ਰੁਕਾਵਟ ਦਾ ਕਾਰਨ ਵੀ ਬਣਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਕਈ ਤਰਾਂ ਦੀਆਂ ਸਮਾਜਿਕ ਸਮੱਸਿਆਵਾਂ ਦਾ ਕਾਰਨ ਬਣਦਾ ਹੈ । ਵੱਧ ਰਹੀ ਜਨਸੰਖਿਆ, ਬੇਰੁਜ਼ਗਾਰੀ, ਭੁੱਖਮਰੀ ਦੀ ਸਥਿਤੀ ਪੈਂਦਾ ਕਰਦੀ ਹੈ ਜਿਸ ਨਾਲ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਅਸ਼ਾਂਤੀ, ਭ੍ਰਿਸ਼ਟਾਚਾਰ ਆਦਿ ਵਿੱਚ ਵਾਧਾ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 3.
ਸਮਾਜਿਕ ਪਰਿਵਰਤਨ ਦੇ ਚਾਰ ਕਾਰਨਾਂ ਬਾਰੇ ਨੋਟ ਲਿਖੋ ।
ਉੱਤਰ-

  1. ਪ੍ਰਾਕ੍ਰਿਤਕ ਕਾਰਕ – ਪ੍ਰਾਕ੍ਰਿਤਕ ਕਾਰਕ ਜਿਵੇਂ-ਹੜ੍ਹ, ਭੂਚਾਲ ਆਦਿ ਕਰਕੇ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਪੂਰੀ ਤਰਾਂ ਪਰਿਵਰਤਨ ਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਸਮਾਜ ਦਾ ਸਰੂਪ ਹੀ ਬਦਲ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।
  2. ਜਨਸੰਖਿਆਤਮਕ ਕਾਰਕ – ਜਨਸੰਖਿਆ ਦੇ ਘੱਟਣ-ਵੱਧਣ ਕਾਰਨ, ਆਦਮੀ ਔਰਤ ਦੇ ਅਨੁਪਾਤ ਵਿੱਚ ਘਾਟੇ-ਵਾਧੇ ਕਾਰਨ ਵੀ ਸਮਾਜਿਕ ਪਰਿਵਰਤਨ ਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।
  3. ਤਕਨੀਕੀ ਕਾਰਕ – ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਜੇਕਰ ਮੌਜੂਦਾ ਤਕਨੀਕਾਂ ਵਿੱਚ ਬਹੁਤ ਜ਼ਿਆਦਾ ਪਰਿਵਰਤਨ ਆ ਜਾਵੇ ਤਾਂ ਵੀ ਸਮਾਜਿਕ ਪਰਿਵਰਤਨ ਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।
  4. ਸਿੱਖਿਆਤਮਕ ਕਾਰਕ – ਜਦੋਂ ਸਮਾਜ ਦੀ ਜ਼ਿਆਦਾਤਰ ਜਨਸੰਖਿਆ ਸਿੱਖਿਆ ਗ੍ਰਹਿਣ ਕਰਨ ਲੱਗ ਜਾਵੇ ਤਾਂ ਵੀ ਸਮਾਜਿਕ ਪਰਿਵਰਤਨ ਆਉਣਾ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 4.
ਤਕਨੀਕੀ ਅਤੇ ਸਿੱਖਿਆਤਮਕ ਕਾਰਕ ਵਿੱਚ ਸੰਖੇਪ ਵਿੱਚ ਅੰਤਰ ਦੱਸੋ ।
ਉੱਤਰ-

  1. ਸਿੱਖਿਆਤਮਕ ਕਾਰਕ ਤਕਨੀਕੀ ਕਾਰਕ ਦਾ ਕਾਰਨ ਬਣ ਸਕਦੇ ਹਨ ਪਰ ਤਕਨੀਕੀ ਕਾਰਕਾਂ ਕਰਕੇ ਸਿੱਖਿਆਤਮਕ ਕਾਰਕ ਪ੍ਰਭਾਵਿਤ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦਾ ।
  2. ਸਿੱਖਿਆ ਦੇ ਵੱਧਣ ਨਾਲ ਜਨਤਾ ਦਾ ਹਰੇਕ ਮੈਂਬਰ ਪ੍ਰਭਾਵਿਤ ਹੋ ਸਕਦਾ ਹੈ ਪਰ ਤਕਨੀਕੀ ਕਾਰਕਾਂ ਕਾਰਨ ਜਨਤਾ ਉੱਤੇ ਪ੍ਰਭਾਵ ਹੌਲੀ-ਹੌਲੀ ਪੈਂਦਾ ਹੈ ।
  3. ਸਿੱਖਿਆ ਨਾਲ ਨਿਯੋਜਿਤ ਪਰਿਵਰਤਨ ਲਿਆਇਆ ਜਾ ਸਕਦਾ ਹੈ ਪਰ ਤਕਨੀਕੀ ਕਾਰਕਾਂ ਕਰਕੇ ਨਿਯੋਜਿਤ ਅਤੇ ਅਨਿਯੋਜਿਤ ਪਰਿਵਰਤਨ ਆ ਸਕਦੇ ਹਨ ।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 11 ਸਮਾਜਿਕ ਪਰਿਵਰਤਨ

IV. ਨਿਮਨਲਿਖਤ ਪ੍ਰਸ਼ਨਾਂ ਦੇ ਉੱਤਰ 250-300 ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਦਿਓ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਸਮਾਜਿਕ ਪਰਿਵਰਤਨ ਨੂੰ ਪਰਿਭਾਸ਼ਿਤ ਕਰੋ । ਇਸ ਦੀਆਂ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾਵਾਂ ਵਿਸਤਾਰਪੂਰਵਕ ਲਿਖੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਜੇਕਰ ਅਸੀਂ ਧਿਆਨ ਨਾਲ ਦੇਖੀਏ ਤਾਂ ਸਾਨੂੰ ਪਤਾ ਚਲਦਾ ਹੈ ਕਿ ਪਰਿਵਰਤਨ ਸ਼ਬਦ ਸਾਨੂੰ ਕਿਸੇ ਚੰਗੇ ਜਾਂ ਮਾੜੇ ਦੇ ਬਾਰੇ ਵਿਚ ਨਹੀਂ ਦੱਸਦਾ ਹੈ ਬਲਕਿ ਇਹ ਤਾਂ ਇਕ ਕੀਮਤ ਰਹਿਤ ਸ਼ਬਦ ਹੈ । ਜੇਕਰ ਅਸੀਂ ਸਾਧਾਰਨ ਵਿਅਕਤੀ ਦੀ ਨਜ਼ਰ ਨਾਲ ਇਸਦਾ ਅਰਥ ਵੇਖੀਏ ਤਾਂ ਪਰਿਵਰਤਨ ਕਿਸੇ ਵੀ ਚੀਜ਼ ਦੀ ਪਿਛਲੀ ਸਥਿਤੀ ਅਤੇ ਵਰਤਮਾਨ ਸਥਿਤੀ ਵਿਚ ਅੰਤਰ ਨੂੰ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ । ਜਿਵੇਂ ਕਿ ਕੱਲ੍ਹ ਕੋਈ ਵਿਅਕਤੀ ਗ਼ਰੀਬ ਸੀ ਅਤੇ ਅੱਜ ਉਹ ਅਮੀਰ ਹੈ । ਉਸਦੀ ਆਰਥਿਕ ਸਥਿਤੀ ਵਿਚ ਪਰਿਵਰਤਨ ਆਇਆ ਹੈ ਅਤੇ ਇਹ ਪਰਿਵਰਤਨ ਪੈਸੇ ਦੇ ਕਾਰਨ ਆਇਆ ਹੈ । ਜੇਕਰ ਅਸੀਂ ਕਿਸੇ ਵੀ ਪਰਿਵਰਤਨ ਨੂੰ ਸਪੱਸ਼ਟ ਰੂਪ ਵਿਚ ਦਰਸਾਉਣਾ ਹੈ ਤਾਂ ਉਸ ਚੀਜ਼ ਦੀ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਸਮੇਂ ਵਿਚ ਤੁਲਨਾ ਜ਼ਰੂਰੀ ਹੈ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਜੇਕਰ ਸਮਾਜ, ਸਮਾਜਿਕ ਸੰਸਥਾਵਾਂ, ਸਮਾਜਿਕ ਸੰਬੰਧਾਂ ਵਿਚ ਕਿਸੇ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦਾ ਪਰਿਵਰਤਨ ਆਉਂਦਾ ਹੈ ਤਾਂ ਉਸਨੂੰ ਸਮਾਜਿਕ ਪਰਿਵਰਤਨ ਦਾ ਨਾਮ ਦਿੱਤਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

  • ਗਿਲਿਨ ਅਤੇ ਗਿਲਿਨ (Gillin and Gillin) ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ, “ਸਮਾਜਿਕ ਪਰਿਵਰਤਨ ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਦੇ ਪ੍ਰਚਲਿਤ ਤਰੀਕਿਆਂ ਵਿਚ ਪਾਏ ਗਏ ਅੰਤਰ ਨੂੰ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ, ਭਾਵੇਂ ਇਹ ਪਰਿਵਰਤਨ ਭੂਗੋਲਿਕ ਹਾਲਤਾਂ ਦੇ ਪਰਿਵਰਤਨ ਨਾਲ ਹੋਣ ਜਾਂ ਸੰਸਕ੍ਰਿਤਕ ਸਾਧਨਾਂ, ਜਨਸੰਖਿਆ ਦੀ ਬਣਤਰ ਜਾਂ ਵਿਚਾਰਧਾਰਾਵਾਂ ਦੇ ਪਰਿਵਰਤਨ ਨਾਲ ਅਤੇ ਭਾਵੇਂ ਪਸਾਰ ਰਾਹੀਂ ਸੰਭਵ ਹੋ ਸਕਦੇ ਹੋਣ ਜਾਂ ਸਮੂਹ ਅੰਦਰ ਹੋਈਆਂ ਨਵੀਆਂ ਕਾਢਾਂ ਦੇ ਨਤੀਜੇ ਵਜੋਂ ਹੋਣ ।”
  • ਕਿੰਗਸਲੇ ਡੇਵਿਸ (Kingsley Davis) ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ, “ਸਮਾਜਿਕ ਪਰਿਵਰਤਨ ਤੋਂ ਅਰਥ ਕੇਵਲ ਉਨ੍ਹਾਂ ਪਰਿਵਰਤਨਾਂ ਤੋਂ ਹੈ ਜਿਹੜੇ ਸਮਾਜਿਕ ਸੰਗਠਨ ਭਾਵ ਸਮਾਜ ਦੇ ਢਾਂਚੇ ਅਤੇ ਕੰਮਾਂ ਵਿਚ ਹੁੰਦੇ ਹਨ ।”
  • ਜੌਨਸ (Jones) ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ, “ਸਮਾਜਿਕ ਪਰਿਵਰਤਨ, ਉਹ ਸ਼ਬਦ ਹੈ ਜਿਸ ਨੂੰ ਅਸੀਂ ਸਮਾਜਿਕ ਕ੍ਰਿਆਵਾਂ, ਸਮਾਜਿਕ ਤਰੀਕਿਆਂ, ਸਮਾਜਿਕ ਅੰਤਰ-ਕ੍ਰਿਆਵਾਂ ਜਾਂ ਸਮਾਜਿਕ ਸੰਗਠਨ ਆਦਿ ਵਿਚ ਪਾਈਆਂ ਗਈਆਂ ਤਬਦੀਲੀਆਂ ਦੇ ਵਰਣਨ ਕਰਨ ਲਈ ਵਰਤਦੇ ਹਾਂ ।”

ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਇਨ੍ਹਾਂ ਪਰਿਭਾਸ਼ਾਵਾਂ ਦੇ ਆਧਾਰ ਉੱਤੇ ਅਸੀਂ ਕਹਿ ਸਕਦੇ ਹਾਂ ਕਿ ਸਮਾਜਿਕ ਸੰਬੰਧਾਂ, ਸੰਗਠਨ, ਸੰਰਚਨਾ, ਸਮਾਜਿਕ ਅੰਤਰਕ੍ਰਿਆਵਾਂ ਵਿਚ ਹੋਣ ਵਾਲੇ ਕਿਸੇ ਵੀ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦੇ ਪਰਿਵਰਤਨ ਨੂੰ ਸਮਾਜਿਕ ਪਰਿਵਰਤਨ ਦਾ ਨਾਮ ਦਿੱਤਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਸਮਾਜ ਵਿਚ ਹੋਣ ਵਾਲਾ ਹਰੇਕ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦਾ ਪਰਿਵਰਤਨ ਸਮਾਜਿਕ ਪਰਿਵਰਤਨ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦਾ । ਸਿਰਫ਼ ਸਮਾਜਿਕ ਸੰਬੰਧਾਂ, ਸਮਾਜਿਕ ਕ੍ਰਿਆਵਾਂ ਆਦਿ ਵਿਚ ਮਿਲਣ ਵਾਲਾ ਪਰਿਵਰਤਨ ਹੀ ਸਮਾਜਿਕ ਪਰਿਵਰਤਨ ਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਸੰਖੇਪ ਵਿਚ ਅਸੀਂ ਕਹਿ ਸਕਦੇ ਹਾਂ ਕਿ ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਜੀਵਨ ਜੀਣ ਦੇ ਢੰਗਾਂ ਵਿਚ ਹੋਣ ਵਾਲਾ ਪਰਿਵਰਤਨ ਹੀ ਸਮਾਜਿਕ ਪਰਿਵਰਤਨ ਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਇਹ ਹਮੇਸ਼ਾ ਸਮੂਹਿਕ ਅਤੇ ਸੰਸਕ੍ਰਿਤਕ ਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਸਮਾਜਿਕ ਪਰਿਵਰਤਨ ਕੁੱਝ ਕੁ ਵਿਅਕਤੀਆਂ ਦੇ ਜੀਵਨ ਵਿਚ ਹੋਣ ਵਾਲਾ ਪਰਿਵਰਤਨ ਨਹੀਂ ਬਲਕਿ ਪੂਰੇ ਨਹੀਂ ਤਾਂ ਜ਼ਿਆਦਾਤਾਰ ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਜੀਵਨ ਵਿਚ ਹੋਣ ਵਾਲਾ ਪਰਿਵਰਤਨ ਹੈ । ਜਦੋਂ ਵੀ ਮਨੁੱਖਾਂ ਦੇ ਵਿਵਹਾਰ ਵਿਚ ਪਰਿਵਰਤਨ ਆਉਂਦਾ ਹੈ ਤਾਂ ਅਸੀਂ ਕਹਿ ਸਕਦੇ ਹਾਂ ਕਿ ਸਮਾਜਿਕ ਪਰਿਵਰਤਨ ਹੋ ਰਿਹਾ ਹੈ ।

ਸਮਾਜਿਕ ਪਰਿਵਰਤਨ ਦੀ ਪ੍ਰਕ੍ਰਿਤੀ ਜਾਂ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾਵਾਂ (Nature or Characteristics of Social Change)

1. ਸਮਾਜਿਕ ਪਰਿਵਰਤਨ ਸਰਬਵਿਆਪਕ ਹੁੰਦਾ ਹੈ (Social Change is Universal) – ਪਰਿਵਰਤਨ ਕ੍ਰਿਤੀ ਦਾ ਨਿਯਮ ਹੈ ਅਤੇ ਇਹ ਹਰੇਕ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦੇ ਸਮਾਜ ਅਤੇ ਹਰੇਕ ਸਮੇਂ ਵਿਚ ਆਉਂਦਾ ਹੈ । ਇਸੇ ਤਰ੍ਹਾਂ ਹੀ ਕੋਈ ਵੀ ਸਮਾਜ ਸਥਿਰ ਨਹੀਂ ਹੈ । ਸਮਾਜ ਦੇ ਕਿਸੇ ਨਾ ਕਿਸੇ ਹਿੱਸੇ ਵਿਚ ਪਰਿਵਰਤਨ ਆਉਂਦਾ ਹੀ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ । ਸਮਾਜ ਚਾਹੇ ਆਦਿਮ ਸੀ ਜਾਂ ਆਧੁਨਿਕ ਹੈ, ਸਮਾਜਿਕ ਪਰਿਵਰਤਨ ਹਰੇਕ ਸਮਾਜ ਵਿਚ ਆਉਂਦਾ ਹੀ ਰਿਹਾ ਹੈ । ਇਸ ਦਾ ਕਾਰਨ ਇਹ ਹੈ ਕਿ ਪ੍ਰਾਚੀਨ ਸਮੇਂ ਤੋਂ ਹੀ ਮਨੁੱਖ ਵਿਚ ਕੁੱਝ ਨਾ ਕੁੱਝ ਨਵੀਂ ਖੋਜ ਕਰਨ ਦੀ ਪ੍ਰਕਿਰਤੀ ਰਹੀ ਹੈ । ਇਸ ਕਾਰਨ ਹੀ ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਆਦਰਸ਼ਾਂ, ਨਿਯਮਾਂ, ਮੁੱਲਾਂ ਆਦਿ ਵਿਚ ਪਰਿਵਰਤਨ ਆਉਂਦਾ ਹੀ ਰਿਹਾ ਹੈ । ਚਾਹੇ ਸਮਾਜਿਕ ਪਰਿਵਰਤਨ ਦੀ ਗਤੀ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਸਮਾਜਾਂ ਵਿਚ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਰਹੀ ਹੈ ਪਰ ਫਿਰ ਵੀ ਕੋਈ ਵੀ ਸਮਾਜ ਇਸ ਤੋਂ ਬਚ ਨਹੀਂ ਸਕਿਆ ਹੈ ।

2. ਸਮਾਜਿਕ ਪਰਿਵਰਤਨ ਵਿਚ ਨਿਸ਼ਚਿਤ ਭਵਿੱਖਵਾਣੀ ਨਹੀਂ ਹੋ ਸਕਦੀ (Definite prediction is not possible in Social Change) – ਅਸੀਂ ਕਿਸੇ ਵੀ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦੇ ਸਮਾਜਿਕ ਪਰਿਵਰਤਨ ਦੇ ਬਾਰੇ ਵਿਚ ਨਿਸ਼ਚਿਤ ਤੌਰ ਉੱਤੇ ਕੁੱਝ ਨਹੀਂ ਕਹਿ ਸਕਦੇ ਕਿ ਇਹ ਕਦੋਂ ਅਤੇ ਕਿਵੇਂ ਹੋਵੇਗਾ ਕਿਉਂਕਿ ਵਿਅਕਤੀਆਂ ਦੇ ਵਿਚ ਮਿਲਣ ਵਾਲੇ ਸਮਾਜਿਕ ਸੰਬੰਧ ਨਿਸ਼ਚਿਤ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦੇ । ਸੰਬੰਧਾਂ ਵਿਚ ਹਮੇਸ਼ਾਂ ਪਰਿਵਰਤਨ ਆਉਂਦੇ ਹੀ ਰਹਿੰਦੇ ਹਨ ਜਿਸ ਕਾਰਨ ਇਹਨਾਂ ਦੇ ਬਾਰੇ ਵਿਚ ਨਿਸ਼ਚਿਤ ਰੂਪ ਨਾਲ ਕੁੱਝ ਨਹੀਂ ਕਿਹਾ ਜਾ ਸਕਦਾ ।

3. ਸਮਾਜਿਕ ਪਰਿਵਰਤਨ ਦੀ ਗਤੀ ਇੱਕੋ ਜਿਹੀ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦੀ (Speed of Social Change is not uniform) – ਚਾਹੇ ਸਮਾਜਿਕ ਪਰਿਵਰਤਨ ਸਾਰੇ ਸਮਾਜਾਂ ਵਿਚ ਸਮਾਨ ਰੂਪ ਨਾਲ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਪਰ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਸਮਾਜਾਂ ਵਿਚ ਇਸ ਦੀ ਗਤੀ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਹੁੰਦੀ ਹੈ । ਕਈ ਸਮਾਜਾਂ ਵਿਚ ਤਾਂ ਇਸਦੀ ਗਤੀ ਕਾਫ਼ੀ ਘੱਟ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ਜਿਵੇਂ ਕਿ ਭਾਰਤੀ ਸਮਾਜ ਅਤੇ ਕਈ ਸਮਾਜਾਂ ਵਿਚ ਇਸਦੀ ਗਤੀ ਕਾਫ਼ੀ ਤੇਜ਼ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ਜਿਵੇਂ ਕਿ ਪੱਛਮੀ ਸਮਾਜ । ਜੇਕਰ ਅਸੀਂ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਸਮਾਜਾਂ ਦੀ ਤੁਲਨਾ ਕਰੀਏ ਤਾਂ ਸਾਨੂੰ ਪਤਾ ਚਲਦਾ ਹੈ ਕਿ ਆਧੁਨਿਕ ਸਮਾਜਾਂ ਜਾਂ ਪਰੰਪਰਾਗਤ ਸਮਾਜਾਂ ਵਿਚ ਇਸਦੀ ਗਤੀ ਕਾਫ਼ੀ ਘੱਟ ਹੁੰਦੀ ਹੈ । ਇਸੇ ਤਰ੍ਹਾਂ ਪਿੰਡਾਂ ਵਿਚ ਪਰਿਵਰਤਨ ਦੀ ਗਤੀ ਘੱਟ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ਅਤੇ ਸ਼ਹਿਰਾਂ ਵਿਚ ਇਸ ਦੀ ਗਤੀ ਕਾਫ਼ੀ ਜ਼ਿਆਦਾ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ।

4. ਸਮਾਜਿਕ ਪਰਿਵਰਤਨ ਸਮੁਦਾਇਕ ਪਰਿਵਰਤਨ ਹੁੰਦਾ ਹੈ (Social change is Community Change) – ਸਮਾਜਿਕ ਪਰਿਵਰਤਨ ਹਮੇਸ਼ਾ ਸਮੁਦਾਇਕ ਪਰਿਵਰਤਨ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਕਿਉਂਕਿ ਇਹ ਸਿਰਫ਼ ਇਕ ਜਾਂ ਦੋ ਵਿਅਕਤੀਆਂ ਦੇ ਜੀਵਨ ਵਿਚ ਆਇਆ ਪਰਿਵਰਤਨ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦਾ ਬਲਕਿ ਇਹ ਤਾਂ ਪੂਰੇ ਸਮੁਦਾਇ ਵਿਚ ਆਇਆ ਪਰਿਵਰਤਨ ਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਜੇਕਰ ਪਰਿਵਰਤਨ ਕੁੱਝ ਕੁ ਵਿਅਕਤੀਆਂ ਦੇ ਜੀਵਨ ਵਿਚ ਆਇਆ ਹੋਵੇ ਤਾਂ ਉਸ ਨੂੰ ਸਮਾਜਿਕ ਪਰਿਵਰਤਨ ਨਹੀਂ ਕਹਿੰਦੇ ਬਲਕਿ ਵਿਅਕਤੀਗਤ ਪਰਿਵਰਤਨ ਹੀ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ । ਸਮਾਜਿਕ ਪਰਿਵਰਤਨ ਤਾਂ ਉਹ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਜੋ ਪੂਰੇ ਸਮੁਦਾਇ ਨਹੀਂ ਤਾਂ ਸਮੁਦਾਇ ਦੇ ਜ਼ਿਆਦਾਤਰ ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਜੀਵਨ ਵਿਚ ਆਉਂਦਾ ਹੈ ।

5. ਸਮਾਜਿਕ ਪਰਿਵਰਤਨ ਕਈ ਕਾਰਕਾਂ ਦੀਆਂ ਅੰਤਰਕ੍ਰਿਆਵਾਂ ਦੇ ਕਾਰਨ ਹੁੰਦਾ ਹੈ (Social change comes due to result of interaction of many factors) – ਸਾਡੇ ਸਮਾਜ ਦੀ ਪ੍ਰਕ੍ਰਿਤੀ ਕਾਫ਼ੀ ਜਟਿਲ ਹੈ । ਇਸ ਵਿਚ ਕਿਸੇ ਵੀ ਕੰਮ ਦਾ ਸਿਰਫ਼ ਇਕ ਹੀ ਕਾਰਨ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦਾ ਬਲਿਕ ਕਈ ਕਾਰਨ ਹੁੰਦੇ ਹਨ । ਇਸੇ ਤਰ੍ਹਾਂ ਸਮਾਜਿਕ ਪਰਿਵਰਤਨ ਦੇ ਹੋਣ ਦੇ ਲਈ ਸਿਰਫ਼ ਇਕ ਹੀ ਕਾਰਕ ਜ਼ਿੰਮੇਵਾਰ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦਾ ਬਲਕਿ ਕਈ ਕਾਰਕ ਹੁੰਦੇ ਹਨ । ਸਮਾਜ ਵਿਚ ਕਈ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦੇ ਪਰਿਵਰਤਨ ਹੁੰਦੇ ਰਹਿੰਦੇ ਹਨ, ਜਿਵੇਂ ਕਿ-ਜਨਸੰਖਿਆ ਦਾ ਵੱਧਣਾ, ਤਕਨੀਕੀ ਖੋਜਾਂ, ਵਾਤਾਵਰਨ ਵਿਚ ਪਰਿਵਰਤਨ ਆਉਣਾ, ਸਮਾਜ ਦੀ ਆਰਥਿਕ ਪ੍ਰਤੀ ਹੋਣਾ ਆਦਿ । ਚਾਹੇ ਕੋਈ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਕਾਰਕ ਵੀ ਪਰਿਵਰਤਨ ਦੇ ਲਈ ਜ਼ਿੰਮੇਵਾਰ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਪਰ ਉਸ ਕਾਰਕ ਦੇ ਨਾਲ ਹੋਰ ਕਾਰਕਾਂ ਦਾ ਵੀ ਪ੍ਰਭਾਵ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ।

6. ਸਮਾਜਿਕ ਪਰਿਵਰਤਨ ਪ੍ਰਕਿਰਤੀ ਦਾ ਨਿਯਮ ਹੈ (Change is law of nature) – ਇਸ ਸਮਾਜ ਵਿਚ ਕੋਈ ਵੀ ਚੀਜ਼ ਸਥਿਰ ਨਹੀਂ ਹੈ ਅਤੇ ਕੋਈ ਵੀ ਚੀਜ਼ ਅਜਿਹੀ ਨਹੀਂ ਹੈ ਜਿਸ ਵਿਚ ਪਰਿਵਰਤਨ ਨਾ ਆਇਆ ਹੋਵੇ । ਜੇਕਰ ਮਨੁੱਖ ਨਾ ਵੀ ਚਾਹੇ ਤਾਂ ਵੀ ਪਰਿਵਰਤਨ ਤਾਂ ਆਏਗਾ ਹੀ । ਜੇਕਰ ਮਨੁੱਖ ਪਰਿਵਰਤਨ ਉੱਤੇ ਨਿਯੰਤਰਨ ਕਰ ਲਵੇ ਤਾਂ ਇਹ ਪ੍ਰਾਕ੍ਰਿਤਕ ਸ਼ਕਤੀਆਂ ਕਾਰਨ ਆ ਜਾਵੇਗਾ । ਵੈਸੇ ਵੀ ਮਨੁੱਖ ਦੇ ਸੁਭਾਅ ਵਿਚ ਪਰਿਵਰਤਨ ਵਸਿਆ ਹੋਇਆ ਹੈ । ਸਮਾਜ ਵਿਚ ਲੋਕਾਂ ਦੀਆਂ ਇੱਛਾਵਾਂ, ਜ਼ਰੂਰਤਾਂ ਸਮੇਂ ਦੇ ਨਾਲ-ਨਾਲ ਬਦਲਦੀਆਂ ਰਹਿੰਦੀਆਂ ਹਨ । ਲੋਕ ਹਮੇਸ਼ਾ ਪੁਰਾਣੀ ਚੀਜ਼ ਨੂੰ ਛੱਡ ਕੇ ਨਵੀਂ ਚੀਜ਼ ਦੀ ਇੱਛਾ ਕਰਦੇ ਹਨ ਅਤੇ ਉਸਨੂੰ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਨ ਦੀ ਕੋਸ਼ਿਸ਼ ਕਰਦੇ ਰਹਿੰਦੇ ਹਨ । ਇਸ ਕਾਰਨ ਹੀ ਮਨੁੱਖ ਦੀ ਪਰਿਵਰਤਨ ਲਿਆਉਣ ਦੀ ਆਦਤ ਹੀ ਸਮਾਜਿਕ ਪਰਿਵਰਤਨ ਨੂੰ ਪ੍ਰੇਰਿਤ ਕਰਦੀ ਹੈ ।

7. ਸਮਾਜਿਕ ਪਰਿਵਰਤਨ ਦੀ ਗਤੀ ਇਕ ਸਾਰ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦੀ (Speed of Social change is not the same) – ਸਮਾਜਿਕ ਪਰਿਵਰਤਨ ਚਾਹੇ ਹਰੇਕ ਸਮਾਜ ਵਿਚ ਮੌਜੂਦ ਹੈ ਅਤੇ ਹਰੇਕ ਕਾਲ ਵਿਚ ਇਹ ਹੁੰਦਾ ਰਿਹਾ ਹੈ ਪਰ ਇਸ ਦੀ ਗਤੀ ਹਰੇਕ ਸਮਾਜ ਤੇ ਹਰੇਕ ਸਮੇਂ ਵਿਚ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਹੁੰਦੀ ਹੈ | ਕਈ ਸਮਾਜਾਂ ਵਿਚ ਤਾਂ ਇਸਦੀ ਗਤੀ ਬਹੁਤ ਘੱਟ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ਜਿਵੇਂ ਕਿ ਆਦਿਮ ਸਮਾਜ ਅਤੇ ਪ੍ਰਾਚੀਨ ਸਮਾਜ ਤੇ ਕਈ ਸਮਾਜਾਂ ਵਿਚ ਇਸਦੀ ਗਤੀ ਕਾਫ਼ੀ ਤੇਜ਼ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ਜਿਵੇਂਕਿ ਆਧੁਨਿਕ ਸਮਾਜ । ਹਰੇਕ ਵਿਅਕਤੀ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਸਮਾਜ ਵਿਚ ਆ ਰਹੇ ਪਰਿਵਰਤਨਾਂ ਅਤੇ ਉਹਨਾਂ ਦੀ ਗਤੀ ਦੇ ਬਾਰੇ ਵਿਚ ਪਤਾ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਕਿ ਪਰਿਵਰਤਨ ਘੱਟ ਗਤੀ ਨਾਲ ਆ ਰਹੇ ਹਨ ਕਿ ਤੇਜ਼ ਗਤੀ ਨਾਲ ।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 11 ਸਮਾਜਿਕ ਪਰਿਵਰਤਨ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਸਮਾਜਿਕ ਪਰਿਵਰਤਨ ਦੇ ਸੋਮਿਆਂ ‘ਤੇ ਵਿਸਤਾਰਪੂਰਵਕ ਨੋਟ ਲਿਖੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਸਮਾਜਿਕ ਪਰਿਵਰਤਨ ਦੇ ਸਰੋਤਾਂ ਬਾਰੇ ਡਬਲਯੂ. ਜੀ. ਆਗਬਰਨ (W.G.Ogburn) ਨੇ ਵਿਸਤਾਰ ਨਾਲ ਵਰਣਨ ਕੀਤਾ ਹੈ । ਆਗਬਰਨ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਸਮਾਜਿਕ ਪਰਿਵਰਤਨ ਮੁੱਖ ਤੌਰ ਉੱਤੇ ਹੇਠਾਂ ਲਿਖੇ ਤਿੰਨ ਸਰੋਤਾਂ ਵਿੱਚੋਂ ਇੱਕ ਜਾਂ ਵੱਧ ਸੋਮਿਆਂ ਅਨੁਸਾਰ ਆਉਂਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਉਹ ਤਿੰਨ ਸੋਮੇ ਹਨ-
(i) ਕਾਢ (Innovation)
(ii) ਖੋਜ (Discovery)
(iii) ਫੈਲਾਵ (Diffusion) ।

(i) ਕਾਢ (Innovation) – ਕਾਢ ਦਾ ਅਰਥ ਹੈ ਮੌਜੂਦਾ ਤੱਤਾਂ ਨੂੰ ਵਰਤ ਕੇ ਕੁੱਝ ਨਵਾਂ ਤਿਆਰ ਕਰਨਾ । ਇਸ ਦਾ ਅਰਥ ਹੈ ਕਿ ਮੌਜੂਦਾ ਗਿਆਨ ਦੀ ਮੱਦਦ ਨਾਲ ਨਵੇਂ ਗਿਆਨ ਦੀ ਵਿਵਸਥਾ ਤਿਆਰ ਕਰਨਾ । ਉਦਾਹਰਨ ਦੇ ਲਈ ਪੁਰਾਣੀ ਕਾਰ ਦੀ ਤਕਨੀਕ ਦਾ ਪ੍ਰਯੋਗ ਕਰਕੇ ਕਾਰ ਦੀ ਨਵੀਂ ਤਕਨੀਕ ਤਿਆਰ ਕਰਕੇ, ਉਸਦੇ ਤੇਜ਼ ਭੱਜਣ ਦੀ ਤਕਨੀਕ ਲੱਭਣਾ ਅਤੇ ਉਸਦੀ ਪੈਟਰੋਲ ਦੀ ਖਪਤ ਨੂੰ ਘੱਟ ਕਰਨ ਦੇ ਤਰੀਕੇ ਲੱਭਣੇ । ਕਾਢ ਭੌਤਿਕ ਤਕਨੀਕੀ) ਅਤੇ ਸਮਾਜਿਕ ਵੀ ਹੋ ਸਕਦੀ ਹੈ। ਇਹ ਰੂਪ (Form) ਵਿੱਚ, ਕੰਮ (Function) ਵਿੱਚ, ਅਰਥ (Meaning) ਜਾਂ ਸਿਧਾਂਤ (Principle) ਵਿੱਚ ਵੀ ਪਰਿਵਰਤਨ ਆ ਜਾਂਦੇ ਹਨ ਜਿਸ ਕਾਰਨ ਪੂਰਾ ਸਮਾਜ ਹੀ ਬਦਲ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

(ii) ਖੋਜ (Discovery) – ਜਦੋਂ ਕਿਸੇ ਚੀਜ਼ ਨੂੰ ਪਹਿਲੀ ਵਾਰ ਲੱਭਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਜਾਂ ਕਿਸੇ ਚੀਜ਼ ਬਾਰੇ ਪਹਿਲੀ ਵਾਰ ਪਤਾ ਚਲਦਾ ਹੈ ਤਾਂ ਇਸ ਨੂੰ ਖੋਜ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਉਦਾਹਰਨ ਦੇ ਲਈ ਕਿਸੇ ਨੇ ਪਹਿਲੀ ਵਾਰ ਕਾਰ ਬਣਾਈ ਹੋਣੀ ਜਾਂ ਸਕੂਟਰ ਬਣਾਇਆ ਹੋਣਾ ਜਾਂ ਕਿਸੇ ਵਿਗਿਆਨੀ ਨੇ ਕੋਈ ਨਵਾਂ ਪੌਦਾ ਲੱਭਿਆ ਹੋਣਾ । ਇਸ ਨੂੰ ਅਸੀਂ ਖੋਜ ਕਹਿ ਸਕਦੇ ਹਾਂ । ਇਸ ਦਾ ਅਰਥ ਹੈ ਕਿ ਚੀਜ਼ਾਂ ਤਾਂ ਦੁਨੀਆ ਵਿੱਚ ਪਹਿਲਾਂ ਹੀ ਮੌਜੂਦ ਹਨ ਪਰ ਸਾਨੂੰ ਉਹਨਾਂ ਬਾਰੇ ਪਤਾ ਨਹੀਂ ਹੈ । ਇਸ ਨਾਲ ਸੰਸਕ੍ਰਿਤੀ ਵਿੱਚ ਕਾਫੀ ਕੁੱਝ ਜੁੜ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਚਾਹੇ ਇਸ ਨੂੰ ਬਣਾਉਣ ਵਾਲੀਆਂ ਚੀਜ਼ਾਂ ਪਹਿਲਾਂ ਹੀ ਸੰਸਾਰ ਵਿੱਚ ਮੌਜੂਦ ਸਨ ਪਰ ਇਸਦੀ ਖੋਜ ਹੋਣ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਹੀ ਇਹ ਸਾਡੀ ਸੰਸਕ੍ਰਿਤੀ ਦਾ ਹਿੱਸਾ ਬਣਦਾ ਹੈ । ਪਰ ਇਹ ਸਮਾਜਿਕ ਪਰਿਵਰਤਨ ਦਾ ਕਾਰਕ ਉਸ ਸਮੇਂ ਬਣਦਾ ਹੈ ਜਦੋਂ ਇਸਨੂੰ ਪ੍ਰਯੋਗ ਵਿੱਚ ਲਿਆਇਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਨਾ ਕਿ ਜਦੋਂ ਇਸ ਬਾਰੇ ਪਤਾ ਚਲਦਾ ਹੈ । ਸਮਾਜਿਕ ਅਤੇ ਸੰਸਕ੍ਰਿਤਕ ਹਾਲਤਾਂ ਖੋਜ ਦੀ ਸਮਰੱਥਾ ਨੂੰ ਵਧਾ ਦਿੰਦੇ ਹਨ ਜਾਂ ਫਿਰ ਘਟਾ ਦਿੰਦੇ ਹਨ ।

(iii) ਫੈਲਾਵ (Diffusion) – ਫੈਲਾਵ ਦਾ ਅਰਥ ਹੈ ਕਿਸੇ ਚੀਜ਼ ਦਾ ਜ਼ਿਆਦਾ ਤੋਂ ਜ਼ਿਆਦਾ ਫੈਲਣਾ । ਉਦਾਹਰਨ ਦੇ ਲਈ ਜਦੋਂ ਇੱਕ ਸਮੂਹ ਦੇ ਸੰਸਕ੍ਰਿਤਕ ਵਿਚਾਰ ਦੂਜੇ ਸਮੂਹ ਤੱਕ ਫੈਲ ਜਾਂਦੇ ਹਨ ਤਾਂ ਇਸ ਨੂੰ ਫੈਲਾਵ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਲਗਭਗ ਸਾਰੇ ਸਮਾਜਾਂ ਵਿੱਚ ਸਮਾਜਿਕ ਪਰਿਵਰਤਨ ਫੈਲਾਵ ਦੇ ਕਾਰਨ ਹੀ ਆਉਂਦਾ ਹੈ । ਇਹ ਸਮਾਜ ਦੇ ਵਿੱਚ ਅਤੇ ਸਮਾਜਾਂ ਦੇ ਵਿੱਚ ਕੰਮ ਕਰਦਾ ਹੈ । ਜਦੋਂ ਸਮਾਜਾਂ ਵਿਚਕਾਰ ਸੰਬੰਧ ਬਣਦੇ ਹਨ ਤਾਂ ਫੈਲਾਵ ਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਇਹ ਦੋ ਤਰਫ਼ੀ ਪ੍ਰਕਿਰਿਆ ਹੈ । ਫੈਲਾਵ ਕਾਰਨ ਜਦੋਂ ਇੱਕ ਸੰਸਕ੍ਰਿਤੀ ਦੇ ਤੱਤ ਦੂਜੇ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਜਾਂਦੇ ਹਨ ਤਾਂ ਉਸ ਵਿੱਚ ਪਰਿਵਰਤਨ ਆ ਜਾਂਦੇ ਹਨ ਅਤੇ ਫਿਰ ਦੁਜੀ ਸੰਸਕ੍ਰਿਤੀ ਉਹਨਾਂ ਨੂੰ ਅਪਣਾ ਲੈਂਦੀ ਹੈ । ਉਦਾਹਰਨ ਦੇ ਲਈ ਇੰਗਲੈਂਡ ਦੀ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਅਤੇ ਭਾਰਤੀਆਂ ਦੀ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਵਿੱਚ ਕਾਫੀ ਅੰਤਰ ਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਜਦੋਂ ਭਾਰਤ ਉੱਤੇ ਬ੍ਰਿਟਿਸ਼ ਕਬਜ਼ਾ ਸੀ ਤਾਂ ਬ੍ਰਿਟਿਸ਼ ਤੱਤ ਭਾਰਤੀ ਸੰਸਕ੍ਰਿਤੀ ਵਿੱਚ ਮਿਲ ਗਏ ਪਰ ਉਹਨਾਂ ਦੇ ਸਾਰੇ ਤੱਤਾਂ ਨੂੰ ਭਾਰਤੀਆਂ ਨੇ ਨਹੀਂ ਅਪਣਾਇਆ । ਇਸ ਤਰਾਂ ਫੈਲਾਵ ਹੁੰਦੇ ਸਮੇਂ ਤੱਤਾਂ ਵਿੱਚ ਪਰਿਵਰਤਨ ਵੀ ਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 3.
ਸਮਾਜਿਕ ਪਰਿਵਰਤਨ ਦੇ ਕਾਰਨਾਂ ਉੱਤੇ ਵਿਸਤਾਰਪੂਰਵਕ ਨੋਟ ਲਿਖੋ ।
ਉੱਤਰ-
1. ਭੌਤਿਕ ਵਾਤਾਵਰਨ (Physical Environment) – ਭੌਤਿਕ ਵਾਤਾਵਰਨ ਵਿਚ ਉਨ੍ਹਾਂ ਕ੍ਰਿਆਵਾਂ ਦੁਆਰਾ ਪਰਿਵਰਤਨ ਹੁੰਦੇ ਹਨ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਉੱਤੇ ਮਨੁੱਖਾਂ ਦਾ ਕੋਈ ਨਿਯੰਤਰਨ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦਾ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਪਰਿਵਰਤਨਾਂ ਕਰਕੇ ਮਨੁੱਖ ਲਈ ਨਵੀਆਂ ਦਿਸ਼ਾਵਾਂ ਪੈਦਾ ਹੁੰਦੀਆਂ ਹਨ ਜੋ ਮਨੁੱਖੀ ਸੰਸਕ੍ਰਿਤੀ ਨੂੰ ਅਪ੍ਰਤੱਖ ਰੂਪ ਵਿਚ ਪ੍ਰਭਾਵਿਤ ਕਰਦੀਆਂ ਹਨ । ਭੂਗੋਲਿਕ ਵਾਤਾਵਰਨ ਵਿਚ ਉਹ ਸਾਰੀਆਂ ਨਿਰਜੀਵ ਘਟਨਾਵਾਂ ਆਉਂਦੀਆਂ ਹਨ ਜਿਹੜੀਆਂ ਕਿਸੇ ਨਾ ਕਿਸੇ ਤਰੀਕੇ ਸਮਾਜਿਕ ਜੀਵਨ ਨੂੰ ਪ੍ਰਭਾਵਿਤ ਕਰਦੀਆਂ ਹਨ | ਮੌਸਮ ਵਿਚ ਪਰਿਵਰਤਨ ; ਜਿਵੇਂ-ਮੀਂਹ, ਗਰਮੀ, ਸਰਦੀ, ਰੁੱਤ ਦਾ ਬਦਲਣਾ, ਭੂਚਾਲ, ਬਿਜਲੀ ਡਿੱਗਣਾ ਅਤੇ ਟੋਪੋਗਰਾਫ਼ੀ ਸੰਬੰਧੀ ਪਰਿਵਰਤਨ ਜਿਵੇਂ ਮਿੱਟੀ ਵਿਚ ਖਣਿਜ ਪਦਾਰਥਾਂ ਦਾ ਹੋਣਾ, ਨਹਿਰਾਂ ਦਾ ਹੋਣਾ, ਚੱਟਾਨਾਂ ਦਾ ਹੋਣਾ ਆਦਿ ਡੂੰਘੇ ਰੂਪ ਵਿਚ ਸਮਾਜਿਕ ਜੀਵਨ ਨੂੰ ਪ੍ਰਭਾਵਿਤ ਕਰਦੇ ਹਨ । ਭੌਤਿਕ ਪਰਿਵਰਤਨ ਵਿਅਕਤੀ ਦੇ ਸਰੀਰ ਦੀ ਕੰਮ ਕਰਨ ਦੀ ਯੋਗਤਾ ਨੂੰ ਪ੍ਰਭਾਵਿਤ ਕਰਦੇ ਹਨ । ਵਿਅਕਤੀ ਦਾ ਵਿਵਹਾਰ ਗਰਮੀ ਤੇ ਸਰਦੀ ਦੇ ਦਿਨਾਂ ਵਿਚ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਮੌਸਮ ਦੇ ਬਦਲਣ ਨਾਲ ਸਰੀਰ ਦੇ ਕੰਮ ਦੇ ਤਰੀਕੇ ਵਿਚ ਵੀ ਫਰਕ ਪੈਂਦਾ ਹੈ । ਸਰਦੀ ਵਿਚ ਲੋਕ ਤੇਜ਼ੀ ਨਾਲ ਕੰਮ ਕਰਦੇ ਹਨ । ਗਰਮੀਆਂ ਵਿਚ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਜ਼ਿਆਦਾ ਗੁੱਸਾ ਆਉਂਦਾ ਹੈ ।

ਵਿਅਕਤੀ ਉਨ੍ਹਾਂ ਭੂਗੋਲਿਕ ਹਾਲਾਤਾਂ ਵਿਚ ਰਹਿਣਾ ਪਸੰਦ ਕਰਦਾ ਹੈ ਜਿੱਥੇ ਜੀਵਨ ਆਸਾਨੀ ਨਾਲ ਜੀਆ ਜਾ ਸਕਦਾ ਹੈ । ਵਿਅਕਤੀ ਉੱਥੇ ਰਹਿਣਾ ਪਸੰਦ ਨਹੀਂ ਕਰੇਗਾ ਜਿੱਥੇ ਕੁਦਰਤੀ ਆਫਤਾਂ ; ਜਿਵੇਂ-ਹੜ੍ਹ, ਭੂਚਾਲ ਆਦਿ ਹਮੇਸ਼ਾ ਆਉਂਦੇ ਰਹਿੰਦੇ ਹਨ । ਇਸ ਦੇ ਉਲਟ ਵਿਅਕਤੀ ਉੱਥੇ ਰਹਿਣ ਲੱਗਦੇ ਹਨ ਜਿੱਥੇ ਜੀਵਨ ਜੀਣ ਦੀਆਂ ਸਾਰੀਆਂ ਸੁਵਿਧਾਵਾਂ ਉਪਲੱਬਧ ਹਨ । ਭੂਗੋਲਿਕ ਵਾਤਾਵਰਨ ਵਿਚ ਪਰਿਵਰਤਨਾਂ ਕਾਰਨ ਜਨਸੰਖਿਆ ਦਾ ਸੰਤੁਲਨ ਵਿਗੜ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਜਿਸ ਕਰਕੇ ਕਈ ਸਮੱਸਿਆਵਾਂ ਪੈਦਾ ਹੋ ਜਾਂਦੀਆਂ ਹਨ । ਭੂਗੋਲਿਕ ਵਾਤਾਵਰਨ ਸੰਸਕ੍ਰਿਤੀ ਨੂੰ ਵੀ ਪ੍ਰਭਾਵਿਤ ਕਰਦਾ ਹੈ । ਜਿੱਥੇ ਭੂਮੀ ਉਪਜਾਊ ਹੋਵੇਗੀ, ਉੱਥੇ ਲੋਕ ਜ਼ਿਆਦਾਤਰ ਖੇਤੀ ਕਰਨਗੇ ਅਤੇ ਸਮੁੰਦਰ ਦੇ ਨੇੜੇ ਰਹਿਣ ਵਾਲੇ ਲੋਕ ਮੱਛੀਆਂ ਫੜ ਕੇ ਗੁਜ਼ਾਰਾ ਕਰਦੇ ਹਨ ।

2. ਜੈਵਿਕ ਕਾਰਕ (Biological Factor) – ਕਈ ਸਮਾਜ ਵਿਗਿਆਨੀਆਂ ਅਨੁਸਾਰ ਜੈਵਿਕ ਕਾਰਕ ਸਮਾਜਿਕ ਪਰਿਵਰਤਨ ਦਾ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਕਾਰਨ ਹੈ । ਜੈਵਿਕ ਕਾਰਕ ਦਾ ਅਰਥ ਹੈ ਜਨਸੰਖਿਆ ਦੇ ਉਹ ਗੁਣਾਤਮਕ ਪੱਖ ਜੋ ਕਿ ਵੰਸ਼ ਪਰੰਪਰਾ (Heredity) ਦੇ ਕਾਰਨ ਪੈਦਾ ਹੁੰਦੇ ਹਨ । ਜਿਵੇਂ ਮਨੁੱਖ ਦਾ ਲਿੰਗ ਜਨਮ ਸਮੇਂ ਹੀ ਨਿਸਚਿਤ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਇਸੇ ਆਧਾਰ ਉੱਤੇ ਹੀ ਆਦਮੀ ਤੇ ਔਰਤ ਵਿਚਕਾਰ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਸਰੀਰਕ ਅੰਤਰ ਮਿਲਦੇ ਹਨ । ਇਸ ਅੰਤਰ ਕਰਕੇ ਹੀ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਸਮਾਜਿਕ ਵਿਵਹਾਰ ਵੀ ਵੱਖਰਾ ਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਔਰਤਾਂ ਘਰ ਸਾਂਭਦੀਆਂ ਹਨ, ਬੱਚੇ ਪਾਲਦੀਆਂ ਹਨ ਜਦਕਿ ਆਦਮੀ ਪੈਸੇ ਕਮਾਉਣ ਦੇ ਕੰਮ ਕਰਦਾ ਹੈ । ਜੇਕਰ ਕਿਸੇ ਸਮਾਜ ਵਿਚ ਆਦਮੀ ਤੇ ਔਰਤਾਂ ਵਿਚ ਸਮਾਨ ਅਨੁਪਾਤ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦਾ ਤਾਂ ਕਈ ਸਮਾਜਿਕ ਮੁਸ਼ਕਲਾਂ ਪੈਦਾ ਹੋ ਜਾਂਦੀਆਂ ਹਨ ।

ਸਰੀਰਕ ਲੱਛਣ ਪਿੱਤਰਤਾ ਦੁਆਰਾ ਨਿਸਚਿਤ ਹੁੰਦੇ ਹਨ ਅਤੇ ਇਹ ਲੱਛਣ ਸਮਾਨਤਾ ਤੇ ਭਿੰਨਤਾ ਨੂੰ ਪੈਦਾ ਕਰਦੇ ਹਨ । ਜਿਵੇਂ ਜੇ ਕੋਈ ਗੋਰਾ ਹੈ ਜਾਂ ਕਾਲਾ ਹੈ । ਅਮਰੀਕਾ ਵਿਚ ਇਹ ਗੋਰੇ ਕਾਲੇ ਦਾ ਅੰਤਰ ਈਰਖਾ ਦਾ ਕਾਰਨ ਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਗੋਰੀ ਇਸਤਰੀ ਨੂੰ ਸੁੰਦਰ ਸਮਝਦੇ ਹਨ ਅਤੇ ਕਾਲੀ ਔਰਤ ਨੂੰ ਉਹ ਸਤਿਕਾਰ ਨਹੀਂ ਮਿਲਦਾ ਜੋ ਗੋਰੀ ਔਰਤ ਨੂੰ ਮਿਲਦਾ ਹੈ । ਵਿਅਕਤੀ ਦਾ ਸੁਭਾਅ ਵੀ ਪਿੱਤਰਤਾ ਦੇ ਲੱਛਣਾਂ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧਿਤ ਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਬੱਚੇ ਦਾ ਸੁਭਾਅ ਮਾਤਾ-ਪਿਤਾ ਦੇ ਸੁਭਾਅ ਅਨੁਸਾਰ ਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਵਿਅਕਤੀਆਂ ਵਿਚ ਘੱਟ-ਵੱਧ ਗੁੱਸਾ ਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਗ੍ਰੰਥੀਆਂ ਵਿਚ ਦੋਸ਼ ਵਿਅਕਤੀ ਨੂੰ ਸੰਤੁਲਨ ਸਥਾਪਿਤ ਨਹੀਂ ਕਰਨ ਦਿੰਦਾ । ਪਿੱਤਰਤਾ ਤੇ ਬੁੱਧੀ ਦਾ ਸੰਬੰਧ ਵੀ ਮੰਨਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਮਨੁੱਖ ਦਾ ਸੁਭਾਅ ਅਤੇ ਦਿਮਾਗ਼ ਸਮਾਜਿਕ ਜੀਵਨ ਵਿਚ ਬਹੁਤ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਹੁੰਦੇ ਹਨ । ਸੰਖੇਪ ਵਿਚ ਅਸੀਂ ਕਹਿ ਸਕਦੇ ਹਾਂ ਕਿ ਮਨੁੱਖ ਨੂੰ ਵਿਰਾਸਤ ਵਿਚ ਮਿਲੇ ਗੁਣ ਉਸਦੇ ਵਿਅਕਤੀਗਤ ਗੁਣਾਂ ਨੂੰ ਨਿਰਧਾਰਿਤ ਕਰਦੇ ਹਨ । ਇਹ ਗੁਣ ਮਨੁੱਖੀ ਅੰਤਰ-ਛਿਆਵਾਂ ਨੂੰ ਪ੍ਰਭਾਵਿਤ ਕਰਦੇ ਹਨ । ਅੰਤ-ਕ੍ਰਿਆਵਾਂ ਕਰਕੇ ਮਾਨਵੀ ਸੰਬੰਧ ਪੈਦਾ ਹੁੰਦੇ ਹਨ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਆਧਾਰ ਉੱਤੇ ਸਮਾਜਿਕ ਵਿਵਸਥਾ ਅਤੇ ਬਣਤਰ ਨਿਰਧਾਰਿਤ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ਅਤੇ ਜੇਕਰ ਇਨ੍ਹਾਂ ਵਿਚ ਕੋਈ ਪਰਿਵਰਤਨ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਤਾਂ ਉਹ ਸਮਾਜਿਕ ਪਰਿਵਰਤਨ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ।

3. ਜਨਸੰਖਿਆਤਮਕ ਕਾਰਕ (Demographic Factor) – ਜਨਸੰਖਿਆ ਦੀ ਬਣਾਵਟ, ਆਕਾਰ, ਵਿਤਰਨ ਆਦਿ ਵਿਚ ਪਰਿਵਰਤਨ ਵੀ ਸਮਾਜਿਕ ਸੰਗਠਨ ਉੱਤੇ ਪ੍ਰਭਾਵ ਪਾਉਂਦੇ ਹਨ । ਜਿਹੜੇ ਦੇਸ਼ਾਂ ਦੀ ਜਨਸੰਖਿਆ ਜ਼ਿਆਦਾ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ਉੱਥੇ ਕਈ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦੀਆਂ ਸਮਾਜਿਕ ਸਮੱਸਿਆਵਾਂ ; ਜਿਵੇਂ-ਗ਼ਰੀਬੀ, ਅਨਪੜ੍ਹਤਾ, ਬੇਰੁਜ਼ਗਾਰੀ, ਨੀਵਾਂ ਜੀਵਨ ਪੱਧਰ ਆਦਿ ਪੈਦਾ ਹੋ ਜਾਂਦੀਆਂ ਹਨ । ਜਿਵੇਂ ਭਾਰਤ ਅਤੇ ਚੀਨ ਜਿੱਥੇ ਜ਼ਿਆਦਾ ਜਨਸੰਖਿਆ ਹੈ ਉੱਥੇ ਕਈ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦੀਆਂ ਸਮੱਸਿਆਵਾਂ ਤੇ ਨੀਵਾਂ ਜੀਵਨ ਪੱਧਰ ਪਾਇਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਉਹ ਦੇਸ਼ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਜਨਸੰਖਿਆ ਘੱਟ ਹੈ; ਜਿਵੇਂ-ਇੰਗਲੈਂਡ, ਅਮਰੀਕਾ, ਆਸਟਰੇਲੀਆ ਆਦਿ ਉੱਥੇ ਸਮੱਸਿਆਵਾਂ ਵੀ ਘੱਟ ਹਨ ਅਤੇ ਜੀਵਨ ਪੱਧਰ ਵੀ ਉੱਚਾ ਹੈ । ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਦੇਸ਼ਾਂ ਦੀ ਜਨਸੰਖਿਆ ਜ਼ਿਆਦਾ ਹੁੰਦੀ ਹੈ, ਉੱਥੇ ਜਨਮ ਦਰ ਘੱਟ ਕਰਨ ਦੀਆਂ ਕਈ ਪ੍ਰਥਾਵਾਂ ਪ੍ਰਚਲਿਤ ਹੁੰਦੀਆਂ ਹਨ । ਉਦਾਹਰਨ ਦੇ ਤੌਰ ‘ਤੇ ਭਾਰਤ ਵਿਚ ਪਰਿਵਾਰ ਨਿਯੋਜਨ ਦਾ ਪ੍ਰਚਾਰ ਕੀਤਾ ਜਾ ਰਿਹਾ ਹੈ ਪਰਿਵਾਰ ਨਿਯੋਜਨ ਕਰਕੇ ਛੋਟੇ ਪਰਿਵਾਰ ਸਾਹਮਣੇ ਆਉਂਦੇ ਹਨ ਅਤੇ ਛੋਟੇ ਪਰਿਵਾਰਾਂ ਕਰਕੇ ਸਮਾਜਿਕ ਸੰਬੰਧਾਂ ਵਿਚ ਪਰਿਵਰਤਨ ਆ ਜਾਂਦੇ ਹਨ । ਜਿਹੜੇ ਦੇਸ਼ਾਂ ਦੀ ਜਨਸੰਖਿਆ ਘੱਟ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ਉੱਥੇ ਵੱਖ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦੇ ਸੰਬੰਧ ਪਾਏ ਜਾਂਦੇ ਹਨ । ਔਰਤਾਂ ਦੀ ਸਥਿਤੀ ਉੱਚੀ ਹੁੰਦੀ ਹੈ । ਪਰਿਵਾਰ ਨਿਯੋਜਨ ਦੀ ਕੋਈ ਧਾਰਨਾ ਨਹੀਂ ਪਾਈ ਜਾਂਦੀ । ਸੰਖੇਪ ਵਿਚ ਜਨਸੰਖਿਆ ਦੇ ਆਕਾਰ ਕਰਕੇ ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਵਿਚਕਾਰ ਦੀ ਅੰਤਰਕ੍ਰਿਆ ਦੇ ਪ੍ਰਤਿਮਾਨਾਂ ਵਿਚ ਪਰਿਵਰਤਨ ਨਿਸ਼ਚਿਤ ਤੌਰ ਤੇ ਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਜਨਸੰਖਿਆ ਦੀ ਬਨਾਵਟ ਕਰਕੇ ਵੀ ਪਰਿਵਰਤਨ ਆ ਜਾਂਦੇ ਹਨ । ਜਨਸੰਖਿਆ ਦੀ ਬਨਾਵਟ ਵਿਚ ਆਮ ਉਮਰ ਵਿਭਾਜਨ, ਜਨਸੰਖਿਆ ਦੇ ਖੇਤਰੀ ਵੰਡ, ਲਿੰਗ ਅਨੁਪਾਤ, ਨਸਲੀ ਬਨਾਵਟ, ਪੇਂਡੂ ਸ਼ਹਿਰੀ ਅਨੁਪਾਤ, ਤਕਨੀਕੀ ਪੱਧਰ ਤੇ ਜਨਸੰਖਿਆ ਅਨੁਪਾਤ, ਆਵਾਸ ਅਤੇ ਪ੍ਰਵਾਸ ਆਦਿ ਕਰਕੇ ਵੀ ਪਰਿਵਰਤਨ ਆਉਂਦਾ ਹੈ । ਜਨਸੰਖਿਆ ਦੇ ਇਹ ਗੁਣ ਸਮਾਜਿਕ ਢਾਂਚੇ ਉੱਤੇ ਬਹੁਤ ਅਸਰ ਪਾਉਂਦੇ ਹਨ ਤੇ ਇਨ੍ਹਾਂ ਤੱਥਾਂ ਨੂੰ ਧਿਆਨ ਵਿਚ ਰੱਖੇ ਬਿਨਾਂ ਕੋਈ ਸਮੱਸਿਆ ਹੱਲ ਨਹੀਂ ਹੋ ਸਕਦੀ ।

4. ਸੰਸਕ੍ਰਿਤਕ ਕਾਰਕ (Cultural Factors) – ਸੰਸਕ੍ਰਿਤੀ ਦੇ ਭੌਤਿਕ ਅਤੇ ਅਭੌਤਿਕ ਹਿੱਸੇ ਵਿਚ ਪਰਿਵਰਤਨ ਸਮਾਜਿਕ ਸੰਬੰਧਾਂ ਉੱਤੇ ਗੂੜਾ ਪ੍ਰਭਾਵ ਪਾਉਂਦੇ ਹਨ । ਪਰਿਵਾਰ ਨਿਯੋਜਨ ਦੀ ਧਾਰਨਾ ਨੇ ਪਰਿਵਾਰਿਕ ਸੰਸਥਾ ਉੱਤੇ ਡੂੰਘਾ ਅਸਰ ਪਾਇਆ ਹੈ । ਘੱਟ ਬੱਚਿਆਂ ਕਰਕੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਚੰਗੀ ਦੇਖ-ਭਾਲ, ਉੱਚੀ ਸਿੱਖਿਆ ਤੇ ਚੰਗੇ ਤੇ ਉੱਚੇ ਵਿਅਕਤਿੱਤਵ ਦਾ ਵਿਕਾਸ ਹੋਇਆ ਹੈ । ਸੰਸਕ੍ਰਿਤਕ ਕਾਰਨਾਂ ਕਰਕੇ ਸਮਾਜਿਕ ਪਰਿਵਰਤਨ ਦੀ ਦਿਸ਼ਾ ਵੀ ਨਿਸਚਿਤ ਹੋ ਜਾਂਦੀ ਹੈ । ਇਹ ਨਾ ਸਿਰਫ਼ ਸਮਾਜਿਕ ਪਰਿਵਰਤਨ ਦੀ ਦਿਸ਼ਾ ਨਿਸਚਿਤ ਕਰਦੀ ਹੈ ਬਲਕਿ ਗਤੀ ਪ੍ਰਦਾਨ ਕਰਕੇ ਉਸਦੀ ਸੀਮਾ ਵੀ ਨਿਰਧਾਰਿਤ ਕਰਦੀ ਹੈ ।

5. ਤਕਨੀਕੀ ਕਾਰਕ (Technological Factor) – ਚਾਹੇ ਤਕਨੀਕੀ ਕਾਰਕ ਸੰਸਕ੍ਰਿਤੀ ਦੇ ਭੌਤਿਕ ਹਿੱਸੇ ਦਾ ਅੰਗ ਹਨ ਪਰ ਇਸ ਦਾ ਆਪਣਾ ਹੀ ਬਹੁਤ ਜ਼ਿਆਦਾ ਮਹੱਤਵ ਹੈ । ਸਮਾਜਿਕ ਪਰਿਵਰਤਨ ਵਿਚ ਤਕਨੀਕੀ ਕਾਰਕ ਬਹੁਤ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਹਿੱਸਾ ਪਾਉਂਦੇ ਹਨ । ਤਕਨੀਕ ਸਾਡੇ ਸਮਾਜ ਨੂੰ ਪਰਿਵਰਤਿਤ ਕਰ ਦਿੰਦੀ ਹੈ । ਇਹ ਪਰਿਵਰਤਨ ਚਾਹੇ ਭੌਤਿਕ ਵਾਤਾਵਰਨ ਵਿਚ ਹੁੰਦਾ ਹੈ, ਪਰ ਇਸ ਨਾਲ ਸਾਡੇ ਸਮਾਜ ਦੀਆਂ ਪ੍ਰਥਾਵਾਂ, ਪਰੰਪਰਾਵਾਂ, ਸੰਸਥਾਵਾਂ ਵਿਚ ਪਰਿਵਰਤਨ ਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ, ਬਿਜਲੀ ਨਾਲ ਚਲਣ ਵਾਲੇ ਯੰਤਰ, Communication ਦੇ ਸਾਧਨ, ਰੋਜ਼ਾਨਾ ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਵਿਚ ਪ੍ਰਯੋਗ ਹੋਣ ਵਾਲੀਆਂ ਸੈਂਕੜਿਆਂ ਦੀ ਤਾਦਾਦ ਵਿਚ ਮਸ਼ੀਨਾਂ ਨੇ ਸਾਡੇ ਜੀਵਨ ਅਤੇ ਸਾਡੇ ਸਮਾਜ ਨੂੰ ਬਦਲ ਕੇ ਰੱਖ ਦਿੱਤਾ ਹੈ । ਮਸ਼ੀਨਾਂ ਦੀ ਖੋਜ ਨਾਲ ਉਤਪਾਦਨ ਵੱਡੇ ਪੈਮਾਨੇ ‘ਤੇ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋ ਗਿਆ, ਕਿਰਤ ਵੰਡ ਤੇ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ੀਕਰਨ ਵਿਚ ਵਾਧਾ ਹੋਇਆ, ਵਪਾਰ ਵਧਿਆ, ਸ਼ਹਿਰਾਂ ਦਾ ਤੇਜ਼ੀ ਨਾਲ ਵਿਕਾਸ ਹੋਇਆ, ਜੀਵਨ ਪੱਧਰ ਉੱਚਾ ਹੋਇਆ, ਉਦਯੋਗ ਵਧੇ ਪਰ ਨਾਲ ਹੀ ਝਗੜੇ, ਬਿਮਾਰੀਆਂ, ਦੁਰਘਟਨਾਵਾਂ ਵਧੀਆਂ | ਪਿੰਡ ਸ਼ਹਿਰਾਂ ਜਾਂ ਕਸਬਿਆਂ ਵਿਚ ਬਦਲਣ ਲੱਗ ਪਏ, ਧਰਮ ਦਾ ਪ੍ਰਭਾਵ ਘਟਿਆ, ਸੰਘਰਸ਼ ਵੱਧ ਗਿਆ ਆਦਿ ਕੁਝ ਅਜਿਹੇ ਸਾਡੇ ਸਮਾਜਿਕ ਜੀਵਨ ਦੇ ਪੱਖ ਹਨ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਉੱਤੇ ਤਕਨੀਕ ਦਾ ਬਹੁਤ ਅਸਰ ਹੋਇਆ ਹੈ । ਅੱਜਕਲ੍ਹ ਦੇ ਸਮੇਂ ਵਿਚ ਤਕਨੀਕੀ ਕਾਰਕ ਸਮਾਜਿਕ ਪਰਿਵਰਤਨ ਦਾ ਬਹੁਤ ਵੱਡਾ ਕਾਰਕ ਹੈ ।

6. ਮਨੋਵਿਗਿਆਨਿਕ ਕਾਰਕ (Psychological Factors) – ਗਿਲਿਨ ਅਤੇ ਗਿਲਿਨ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਲੋਕ ਸਮਾਜ ਵਿਚ ਸਥਿਰਤਾ ਚਾਹੁੰਦੇ ਹਨ ਤੇ ਇਸ ਕਰਕੇ ਉਹ ਪੁਰਾਣੇ ਰੀਤੀ-ਰਿਵਾਜਾਂ ਨੂੰ ਛੱਡਣਾ ਨਹੀਂ ਚਾਹੁੰਦੇ । ਇਸ ਦੇ ਨਾਲ ਉਹ ਦੇਸ਼ ਦੀ ਤਰੱਕੀ ਤੇ ਨਵੀਂ ਵਿਚਾਰਧਾਰਾ ਵੀ ਵੇਖਣਾ ਚਾਹੁੰਦੇ ਹਨ । ਇਸੇ ਗੱਲ ਕਰਕੇ ਹੀ ਸਮਾਜ ਵਿਚ ਕਈ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦੇ ਪਰਿਵਰਤਨ ਆ ਜਾਂਦੇ ਹਨ । ਪੁਰਾਣੀ ਸੋਚ ਵੀ ਬਚੀ ਰਹਿੰਦੀ ਹੈ ਅਤੇ ਲੋਕ ਪੁਰਾਣੀ ਸੋਚ ਦੇ ਨਾਲ-ਨਾਲ ਬਦਲਦੇ ਵੀ ਰਹਿੰਦੇ ਹਨ । ਪਰ ਇਹ ਗੱਲ ਜੀਵਨ ਦੇ ਸੁਭਾ ਦੇ ਵਿਰੁੱਧ ਹੈ । ਜਦੋਂ ਸਮਾਂ ਆਉਣ ਉੱਤੇ ਪਰਿਵਰਤਨ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦਾ, ਤਾਂ ਕ੍ਰਾਂਤੀ ਆ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ਅਤੇ ਪਰਿਵਰਤਨ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

7. ਵਿਚਾਰਾਤਮਕ ਕਾਰਕ (Ideological Factor) – ਇਨ੍ਹਾਂ ਕਾਰਕਾਂ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਵਿਚਾਰਧਾਰਾਵਾਂ ਦਾ ਅੱਗੇ ਆਉਣਾ ਵੀ ਪਰਿਵਰਤਨ ਦਾ ਕਾਰਨ ਬਣਦਾ ਹੈ । ਜਿਵੇਂ ਪਰਿਵਾਰ ਦੀ ਸੰਸਥਾ ਵਿਚ ਪਰਿਵਰਤਨ, ਦਹੇਜ ਪ੍ਰਥਾ ਦਾ ਅੱਗੇ ਆਉਣਾ, ਔਰਤਾਂ ਦੀ ਸਿੱਖਿਆ ਦਾ ਵੱਧਣਾ, ਜਾਤ ਪ੍ਰਥਾ ਦਾ ਪ੍ਰਭਾਵ ਘਟਣਾ, ਲੈਂਗਿਕ ਸੰਬੰਧਾਂ ਵਿਚ ਬਦਲਾਓ ਆਉਣ ਨਾਲ ਸਮਾਜਿਕ ਪਰਿਵਰਤਨ ਆਏ ਹਨ । ਨਵੀਆਂ ਵਿਚਾਰਧਾਰਾਵਾਂ ਕਰਕੇ ਵਿਅਕਤੀਗਤ ਸੰਬੰਧਾਂ ਤੇ ਸਮਾਜਿਕ ਸੰਬੰਧਾਂ ਵਿਚ ਬਹੁਤ ਪਰਿਵਰਤਨ ਆਏ ਹਨ ।

ਸੰਖੇਪ ਵਿਚ ਨਵੇਂ ਵਿਚਾਰਾਂ ਤੇ ਸਿਧਾਂਤਾਂ, ਖੋਜਾਂ ਤੇ ਆਰਥਿਕ ਦਸ਼ਾਵਾਂ ਨੂੰ ਪ੍ਰਭਾਵਿਤ ਕਰਦੇ ਹਨ । ਉਹ ਸਿੱਧੇ ਰੂਪ ਵਿਚ ਪੁਰਾਣੀਆਂ ਪਰੰਪਰਾਵਾਂ, ਵਿਸ਼ਵਾਸਾਂ, ਵਿਵਹਾਰਾਂ, ਆਦਰਸ਼ਾਂ ਵਿਰੁੱਧ ਖੜ੍ਹੇ ਹੁੰਦੇ ਹਨ | ਅਸਲ ਵਿਚ ਸਮਾਜ ਵਿਚ ਸ਼ਾਂਤੀ ਹੀ ਨਵੀਂ ਵਿਚਾਰਧਾਰਾ ਕਰਕੇ ਆਉਂਦੀ ਹੈ ।

ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਅਸੀਂ ਉੱਪਰ ਸਮਾਜਿਕ ਪਰਿਵਰਤਨ ਦੇ ਕਈ ਕਾਰਨਾਂ ਦਾ ਜਿਕਰ ਹੈ । ਚਾਹੇ ਇਨ੍ਹਾਂ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਹੋਰ ਵੀ ਕਈ ਕਾਰਨ ਹੋ ਸਕਦੇ ਹਨ ਪਰ ਇੱਕ ਗੱਲ ਧਿਆਨ ਰੱਖਣ ਵਾਲੀ ਹੈ ਤੇ ਉਹ ਇਹ ਹੈ ਕਿ ਕੋਈ ਵੀ ਪਰਿਵਰਤਨ ਇੱਕ ਕਾਰਕ ਕਰਕੇ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦਾ । ਉਸ ਵਿਚ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਕਾਰਕਾਂ ਦਾ ਯੋਗ ਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਅਸਲ ਵਿਚ ਸਮਾਜਿਕ ਪਰਿਵਰਤਨ ਦੀ ਪ੍ਰਕ੍ਰਿਆ ਇਕ ਜਟਿਲ ਪ੍ਰਕ੍ਰਿਆ ਹੈ ਤੇ ਇਸ ਨੂੰ ਸਿਰਫ਼ ਇਕ ਕਾਰਕ ਦੇ ਆਧਾਰ ਉੱਤੇ ਨਹੀਂ ਸਮਝਿਆ ਜਾ ਸਕਦਾ । ਇਸ ਲਈ ਸਾਨੂੰ ਸਾਰੇ ਕਾਰਕਾਂ ਨੂੰ ਧਿਆਨ ਵਿਚ ਰੱਖਣਾ ਪੈਂਦਾ ਹੈ ।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 11 ਸਮਾਜਿਕ ਪਰਿਵਰਤਨ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 4.
ਸਮਾਜਿਕ ਪਰਿਵਰਤਨ ਤੋਂ ਤੁਸੀਂ ਕੀ ਸਮਝਦੇ ਹੋ ਅਤੇ ਇਸਦੇ ਜਨਸੰਖਿਆਤਮਕ ਕਾਰਨ ਲਿਖੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਜੇਕਰ ਅਸੀਂ ਧਿਆਨ ਨਾਲ ਦੇਖੀਏ ਤਾਂ ਸਾਨੂੰ ਪਤਾ ਚਲਦਾ ਹੈ ਕਿ ਪਰਿਵਰਤਨ ਸ਼ਬਦ ਸਾਨੂੰ ਕਿਸੇ ਚੰਗੇ ਜਾਂ ਮਾੜੇ ਦੇ ਬਾਰੇ ਵਿਚ ਨਹੀਂ ਦੱਸਦਾ ਹੈ ਬਲਕਿ ਇਹ ਤਾਂ ਇਕ ਕੀਮਤ ਰਹਿਤ ਸ਼ਬਦ ਹੈ । ਜੇਕਰ ਅਸੀਂ ਸਾਧਾਰਨ ਵਿਅਕਤੀ ਦੀ ਨਜ਼ਰ ਨਾਲ ਇਸਦਾ ਅਰਥ ਵੇਖੀਏ ਤਾਂ ਪਰਿਵਰਤਨ ਕਿਸੇ ਵੀ ਚੀਜ਼ ਦੀ ਪਿਛਲੀ ਸਥਿਤੀ ਅਤੇ ਵਰਤਮਾਨ ਸਥਿਤੀ ਵਿਚ ਅੰਤਰ ਨੂੰ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ । ਜਿਵੇਂ ਕਿ ਕੱਲ੍ਹ ਕੋਈ ਵਿਅਕਤੀ ਗ਼ਰੀਬ ਸੀ ਅਤੇ ਅੱਜ ਉਹ ਅਮੀਰ ਹੈ । ਉਸਦੀ ਆਰਥਿਕ ਸਥਿਤੀ ਵਿਚ ਪਰਿਵਰਤਨ ਆਇਆ ਹੈ ਅਤੇ ਇਹ ਪਰਿਵਰਤਨ ਪੈਸੇ ਦੇ ਕਾਰਨ ਆਇਆ ਹੈ । ਜੇਕਰ ਅਸੀਂ ਕਿਸੇ ਵੀ ਪਰਿਵਰਤਨ ਨੂੰ ਸਪੱਸ਼ਟ ਰੂਪ ਵਿਚ ਦਰਸਾਉਣਾ ਹੈ ਤਾਂ ਉਸ ਚੀਜ਼ ਦੀ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਸਮੇਂ ਵਿਚ ਤੁਲਨਾ ਜ਼ਰੂਰੀ ਹੈ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਜੇਕਰ ਸਮਾਜ, ਸਮਾਜਿਕ ਸੰਸਥਾਵਾਂ, ਸਮਾਜਿਕ ਸੰਬੰਧਾਂ ਵਿਚ ਕਿਸੇ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦਾ ਪਰਿਵਰਤਨ ਆਉਂਦਾ ਹੈ ਤਾਂ ਉਸਨੂੰ ਸਮਾਜਿਕ ਪਰਿਵਰਤਨ ਦਾ ਨਾਮ ਦਿੱਤਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

  • ਗਿਲਿਨ ਅਤੇ ਗਿਲਿਨ (Gillin and Gillin) ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ, “ਸਮਾਜਿਕ ਪਰਿਵਰਤਨ ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਦੇ ਪ੍ਰਚਲਿਤ ਤਰੀਕਿਆਂ ਵਿਚ ਪਾਏ ਗਏ ਅੰਤਰ ਨੂੰ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ, ਭਾਵੇਂ ਇਹ ਪਰਿਵਰਤਨ ਭੂਗੋਲਿਕ ਹਾਲਤਾਂ ਦੇ ਪਰਿਵਰਤਨ ਨਾਲ ਹੋਣ ਜਾਂ ਸੰਸਕ੍ਰਿਤਕ ਸਾਧਨਾਂ, ਜਨਸੰਖਿਆ ਦੀ ਬਣਤਰ ਜਾਂ ਵਿਚਾਰਧਾਰਾਵਾਂ ਦੇ ਪਰਿਵਰਤਨ ਨਾਲ ਅਤੇ ਭਾਵੇਂ ਪਸਾਰ ਰਾਹੀਂ ਸੰਭਵ ਹੋ ਸਕਦੇ ਹੋਣ ਜਾਂ ਸਮੂਹ ਅੰਦਰ ਹੋਈਆਂ ਨਵੀਆਂ ਕਾਢਾਂ ਦੇ ਨਤੀਜੇ ਵਜੋਂ ਹੋਣ ।”
  • ਕਿੰਗਸਲੇ ਡੇਵਿਸ (Kingsley Davis) ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ, “ਸਮਾਜਿਕ ਪਰਿਵਰਤਨ ਤੋਂ ਅਰਥ ਕੇਵਲ ਉਨ੍ਹਾਂ ਪਰਿਵਰਤਨਾਂ ਤੋਂ ਹੈ ਜਿਹੜੇ ਸਮਾਜਿਕ ਸੰਗਠਨ ਭਾਵ ਸਮਾਜ ਦੇ ਢਾਂਚੇ ਅਤੇ ਕੰਮਾਂ ਵਿਚ ਹੁੰਦੇ ਹਨ ।”
  • ਜੌਨਸ (Jones) ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ, “ਸਮਾਜਿਕ ਪਰਿਵਰਤਨ, ਉਹ ਸ਼ਬਦ ਹੈ ਜਿਸ ਨੂੰ ਅਸੀਂ ਸਮਾਜਿਕ ਕ੍ਰਿਆਵਾਂ, ਸਮਾਜਿਕ ਤਰੀਕਿਆਂ, ਸਮਾਜਿਕ ਅੰਤਰ-ਕ੍ਰਿਆਵਾਂ ਜਾਂ ਸਮਾਜਿਕ ਸੰਗਠਨ ਆਦਿ ਵਿਚ ਪਾਈਆਂ ਗਈਆਂ ਤਬਦੀਲੀਆਂ ਦੇ ਵਰਣਨ ਕਰਨ ਲਈ ਵਰਤਦੇ ਹਾਂ ।”

ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਇਨ੍ਹਾਂ ਪਰਿਭਾਸ਼ਾਵਾਂ ਦੇ ਆਧਾਰ ਉੱਤੇ ਅਸੀਂ ਕਹਿ ਸਕਦੇ ਹਾਂ ਕਿ ਸਮਾਜਿਕ ਸੰਬੰਧਾਂ, ਸੰਗਠਨ, ਸੰਰਚਨਾ, ਸਮਾਜਿਕ ਅੰਤਰਕ੍ਰਿਆਵਾਂ ਵਿਚ ਹੋਣ ਵਾਲੇ ਕਿਸੇ ਵੀ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦੇ ਪਰਿਵਰਤਨ ਨੂੰ ਸਮਾਜਿਕ ਪਰਿਵਰਤਨ ਦਾ ਨਾਮ ਦਿੱਤਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਸਮਾਜ ਵਿਚ ਹੋਣ ਵਾਲਾ ਹਰੇਕ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦਾ ਪਰਿਵਰਤਨ ਸਮਾਜਿਕ ਪਰਿਵਰਤਨ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦਾ । ਸਿਰਫ਼ ਸਮਾਜਿਕ ਸੰਬੰਧਾਂ, ਸਮਾਜਿਕ ਕ੍ਰਿਆਵਾਂ ਆਦਿ ਵਿਚ ਮਿਲਣ ਵਾਲਾ ਪਰਿਵਰਤਨ ਹੀ ਸਮਾਜਿਕ ਪਰਿਵਰਤਨ ਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਸੰਖੇਪ ਵਿਚ ਅਸੀਂ ਕਹਿ ਸਕਦੇ ਹਾਂ ਕਿ ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਜੀਵਨ ਜੀਣ ਦੇ ਢੰਗਾਂ ਵਿਚ ਹੋਣ ਵਾਲਾ ਪਰਿਵਰਤਨ ਹੀ ਸਮਾਜਿਕ ਪਰਿਵਰਤਨ ਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਇਹ ਹਮੇਸ਼ਾ ਸਮੂਹਿਕ ਅਤੇ ਸੰਸਕ੍ਰਿਤਕ ਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਸਮਾਜਿਕ ਪਰਿਵਰਤਨ ਕੁੱਝ ਕੁ ਵਿਅਕਤੀਆਂ ਦੇ ਜੀਵਨ ਵਿਚ ਹੋਣ ਵਾਲਾ ਪਰਿਵਰਤਨ ਨਹੀਂ ਬਲਕਿ ਪੂਰੇ ਨਹੀਂ ਤਾਂ ਜ਼ਿਆਦਾਤਾਰ ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਜੀਵਨ ਵਿਚ ਹੋਣ ਵਾਲਾ ਪਰਿਵਰਤਨ ਹੈ । ਜਦੋਂ ਵੀ ਮਨੁੱਖਾਂ ਦੇ ਵਿਵਹਾਰ ਵਿਚ ਪਰਿਵਰਤਨ ਆਉਂਦਾ ਹੈ ਤਾਂ ਅਸੀਂ ਕਹਿ ਸਕਦੇ ਹਾਂ ਕਿ ਸਮਾਜਿਕ ਪਰਿਵਰਤਨ ਹੋ ਰਿਹਾ ਹੈ ।

ਸਮਾਜਿਕ ਪਰਿਵਰਤਨ ਦੀ ਪ੍ਰਕ੍ਰਿਤੀ ਜਾਂ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾਵਾਂ (Nature or Characteristics of Social Change)

1. ਸਮਾਜਿਕ ਪਰਿਵਰਤਨ ਸਰਬਵਿਆਪਕ ਹੁੰਦਾ ਹੈ (Social Change is Universal) – ਪਰਿਵਰਤਨ ਕ੍ਰਿਤੀ ਦਾ ਨਿਯਮ ਹੈ ਅਤੇ ਇਹ ਹਰੇਕ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦੇ ਸਮਾਜ ਅਤੇ ਹਰੇਕ ਸਮੇਂ ਵਿਚ ਆਉਂਦਾ ਹੈ । ਇਸੇ ਤਰ੍ਹਾਂ ਹੀ ਕੋਈ ਵੀ ਸਮਾਜ ਸਥਿਰ ਨਹੀਂ ਹੈ । ਸਮਾਜ ਦੇ ਕਿਸੇ ਨਾ ਕਿਸੇ ਹਿੱਸੇ ਵਿਚ ਪਰਿਵਰਤਨ ਆਉਂਦਾ ਹੀ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ । ਸਮਾਜ ਚਾਹੇ ਆਦਿਮ ਸੀ ਜਾਂ ਆਧੁਨਿਕ ਹੈ, ਸਮਾਜਿਕ ਪਰਿਵਰਤਨ ਹਰੇਕ ਸਮਾਜ ਵਿਚ ਆਉਂਦਾ ਹੀ ਰਿਹਾ ਹੈ । ਇਸ ਦਾ ਕਾਰਨ ਇਹ ਹੈ ਕਿ ਪ੍ਰਾਚੀਨ ਸਮੇਂ ਤੋਂ ਹੀ ਮਨੁੱਖ ਵਿਚ ਕੁੱਝ ਨਾ ਕੁੱਝ ਨਵੀਂ ਖੋਜ ਕਰਨ ਦੀ ਪ੍ਰਕਿਰਤੀ ਰਹੀ ਹੈ । ਇਸ ਕਾਰਨ ਹੀ ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਆਦਰਸ਼ਾਂ, ਨਿਯਮਾਂ, ਮੁੱਲਾਂ ਆਦਿ ਵਿਚ ਪਰਿਵਰਤਨ ਆਉਂਦਾ ਹੀ ਰਿਹਾ ਹੈ । ਚਾਹੇ ਸਮਾਜਿਕ ਪਰਿਵਰਤਨ ਦੀ ਗਤੀ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਸਮਾਜਾਂ ਵਿਚ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਰਹੀ ਹੈ ਪਰ ਫਿਰ ਵੀ ਕੋਈ ਵੀ ਸਮਾਜ ਇਸ ਤੋਂ ਬਚ ਨਹੀਂ ਸਕਿਆ ਹੈ ।

2. ਸਮਾਜਿਕ ਪਰਿਵਰਤਨ ਵਿਚ ਨਿਸ਼ਚਿਤ ਭਵਿੱਖਵਾਣੀ ਨਹੀਂ ਹੋ ਸਕਦੀ (Definite prediction is not possible in Social Change) – ਅਸੀਂ ਕਿਸੇ ਵੀ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦੇ ਸਮਾਜਿਕ ਪਰਿਵਰਤਨ ਦੇ ਬਾਰੇ ਵਿਚ ਨਿਸ਼ਚਿਤ ਤੌਰ ਉੱਤੇ ਕੁੱਝ ਨਹੀਂ ਕਹਿ ਸਕਦੇ ਕਿ ਇਹ ਕਦੋਂ ਅਤੇ ਕਿਵੇਂ ਹੋਵੇਗਾ ਕਿਉਂਕਿ ਵਿਅਕਤੀਆਂ ਦੇ ਵਿਚ ਮਿਲਣ ਵਾਲੇ ਸਮਾਜਿਕ ਸੰਬੰਧ ਨਿਸ਼ਚਿਤ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦੇ । ਸੰਬੰਧਾਂ ਵਿਚ ਹਮੇਸ਼ਾਂ ਪਰਿਵਰਤਨ ਆਉਂਦੇ ਹੀ ਰਹਿੰਦੇ ਹਨ ਜਿਸ ਕਾਰਨ ਇਹਨਾਂ ਦੇ ਬਾਰੇ ਵਿਚ ਨਿਸ਼ਚਿਤ ਰੂਪ ਨਾਲ ਕੁੱਝ ਨਹੀਂ ਕਿਹਾ ਜਾ ਸਕਦਾ ।

3. ਸਮਾਜਿਕ ਪਰਿਵਰਤਨ ਦੀ ਗਤੀ ਇੱਕੋ ਜਿਹੀ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦੀ (Speed of Social Change is not uniform) – ਚਾਹੇ ਸਮਾਜਿਕ ਪਰਿਵਰਤਨ ਸਾਰੇ ਸਮਾਜਾਂ ਵਿਚ ਸਮਾਨ ਰੂਪ ਨਾਲ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਪਰ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਸਮਾਜਾਂ ਵਿਚ ਇਸ ਦੀ ਗਤੀ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਹੁੰਦੀ ਹੈ । ਕਈ ਸਮਾਜਾਂ ਵਿਚ ਤਾਂ ਇਸਦੀ ਗਤੀ ਕਾਫ਼ੀ ਘੱਟ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ਜਿਵੇਂ ਕਿ ਭਾਰਤੀ ਸਮਾਜ ਅਤੇ ਕਈ ਸਮਾਜਾਂ ਵਿਚ ਇਸਦੀ ਗਤੀ ਕਾਫ਼ੀ ਤੇਜ਼ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ਜਿਵੇਂ ਕਿ ਪੱਛਮੀ ਸਮਾਜ । ਜੇਕਰ ਅਸੀਂ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਸਮਾਜਾਂ ਦੀ ਤੁਲਨਾ ਕਰੀਏ ਤਾਂ ਸਾਨੂੰ ਪਤਾ ਚਲਦਾ ਹੈ ਕਿ ਆਧੁਨਿਕ ਸਮਾਜਾਂ ਜਾਂ ਪਰੰਪਰਾਗਤ ਸਮਾਜਾਂ ਵਿਚ ਇਸਦੀ ਗਤੀ ਕਾਫ਼ੀ ਘੱਟ ਹੁੰਦੀ ਹੈ । ਇਸੇ ਤਰ੍ਹਾਂ ਪਿੰਡਾਂ ਵਿਚ ਪਰਿਵਰਤਨ ਦੀ ਗਤੀ ਘੱਟ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ਅਤੇ ਸ਼ਹਿਰਾਂ ਵਿਚ ਇਸ ਦੀ ਗਤੀ ਕਾਫ਼ੀ ਜ਼ਿਆਦਾ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ।

4. ਸਮਾਜਿਕ ਪਰਿਵਰਤਨ ਸਮੁਦਾਇਕ ਪਰਿਵਰਤਨ ਹੁੰਦਾ ਹੈ (Social change is Community Change) – ਸਮਾਜਿਕ ਪਰਿਵਰਤਨ ਹਮੇਸ਼ਾ ਸਮੁਦਾਇਕ ਪਰਿਵਰਤਨ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਕਿਉਂਕਿ ਇਹ ਸਿਰਫ਼ ਇਕ ਜਾਂ ਦੋ ਵਿਅਕਤੀਆਂ ਦੇ ਜੀਵਨ ਵਿਚ ਆਇਆ ਪਰਿਵਰਤਨ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦਾ ਬਲਕਿ ਇਹ ਤਾਂ ਪੂਰੇ ਸਮੁਦਾਇ ਵਿਚ ਆਇਆ ਪਰਿਵਰਤਨ ਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਜੇਕਰ ਪਰਿਵਰਤਨ ਕੁੱਝ ਕੁ ਵਿਅਕਤੀਆਂ ਦੇ ਜੀਵਨ ਵਿਚ ਆਇਆ ਹੋਵੇ ਤਾਂ ਉਸ ਨੂੰ ਸਮਾਜਿਕ ਪਰਿਵਰਤਨ ਨਹੀਂ ਕਹਿੰਦੇ ਬਲਕਿ ਵਿਅਕਤੀਗਤ ਪਰਿਵਰਤਨ ਹੀ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ । ਸਮਾਜਿਕ ਪਰਿਵਰਤਨ ਤਾਂ ਉਹ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਜੋ ਪੂਰੇ ਸਮੁਦਾਇ ਨਹੀਂ ਤਾਂ ਸਮੁਦਾਇ ਦੇ ਜ਼ਿਆਦਾਤਰ ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਜੀਵਨ ਵਿਚ ਆਉਂਦਾ ਹੈ ।

5. ਸਮਾਜਿਕ ਪਰਿਵਰਤਨ ਕਈ ਕਾਰਕਾਂ ਦੀਆਂ ਅੰਤਰਕ੍ਰਿਆਵਾਂ ਦੇ ਕਾਰਨ ਹੁੰਦਾ ਹੈ (Social change comes due to result of interaction of many factors) – ਸਾਡੇ ਸਮਾਜ ਦੀ ਪ੍ਰਕ੍ਰਿਤੀ ਕਾਫ਼ੀ ਜਟਿਲ ਹੈ । ਇਸ ਵਿਚ ਕਿਸੇ ਵੀ ਕੰਮ ਦਾ ਸਿਰਫ਼ ਇਕ ਹੀ ਕਾਰਨ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦਾ ਬਲਿਕ ਕਈ ਕਾਰਨ ਹੁੰਦੇ ਹਨ । ਇਸੇ ਤਰ੍ਹਾਂ ਸਮਾਜਿਕ ਪਰਿਵਰਤਨ ਦੇ ਹੋਣ ਦੇ ਲਈ ਸਿਰਫ਼ ਇਕ ਹੀ ਕਾਰਕ ਜ਼ਿੰਮੇਵਾਰ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦਾ ਬਲਕਿ ਕਈ ਕਾਰਕ ਹੁੰਦੇ ਹਨ । ਸਮਾਜ ਵਿਚ ਕਈ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦੇ ਪਰਿਵਰਤਨ ਹੁੰਦੇ ਰਹਿੰਦੇ ਹਨ, ਜਿਵੇਂ ਕਿ-ਜਨਸੰਖਿਆ ਦਾ ਵੱਧਣਾ, ਤਕਨੀਕੀ ਖੋਜਾਂ, ਵਾਤਾਵਰਨ ਵਿਚ ਪਰਿਵਰਤਨ ਆਉਣਾ, ਸਮਾਜ ਦੀ ਆਰਥਿਕ ਪ੍ਰਤੀ ਹੋਣਾ ਆਦਿ । ਚਾਹੇ ਕੋਈ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਕਾਰਕ ਵੀ ਪਰਿਵਰਤਨ ਦੇ ਲਈ ਜ਼ਿੰਮੇਵਾਰ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਪਰ ਉਸ ਕਾਰਕ ਦੇ ਨਾਲ ਹੋਰ ਕਾਰਕਾਂ ਦਾ ਵੀ ਪ੍ਰਭਾਵ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ।

6. ਸਮਾਜਿਕ ਪਰਿਵਰਤਨ ਪ੍ਰਕਿਰਤੀ ਦਾ ਨਿਯਮ ਹੈ (Change is law of nature) – ਇਸ ਸਮਾਜ ਵਿਚ ਕੋਈ ਵੀ ਚੀਜ਼ ਸਥਿਰ ਨਹੀਂ ਹੈ ਅਤੇ ਕੋਈ ਵੀ ਚੀਜ਼ ਅਜਿਹੀ ਨਹੀਂ ਹੈ ਜਿਸ ਵਿਚ ਪਰਿਵਰਤਨ ਨਾ ਆਇਆ ਹੋਵੇ । ਜੇਕਰ ਮਨੁੱਖ ਨਾ ਵੀ ਚਾਹੇ ਤਾਂ ਵੀ ਪਰਿਵਰਤਨ ਤਾਂ ਆਏਗਾ ਹੀ । ਜੇਕਰ ਮਨੁੱਖ ਪਰਿਵਰਤਨ ਉੱਤੇ ਨਿਯੰਤਰਨ ਕਰ ਲਵੇ ਤਾਂ ਇਹ ਪ੍ਰਾਕ੍ਰਿਤਕ ਸ਼ਕਤੀਆਂ ਕਾਰਨ ਆ ਜਾਵੇਗਾ । ਵੈਸੇ ਵੀ ਮਨੁੱਖ ਦੇ ਸੁਭਾਅ ਵਿਚ ਪਰਿਵਰਤਨ ਵਸਿਆ ਹੋਇਆ ਹੈ । ਸਮਾਜ ਵਿਚ ਲੋਕਾਂ ਦੀਆਂ ਇੱਛਾਵਾਂ, ਜ਼ਰੂਰਤਾਂ ਸਮੇਂ ਦੇ ਨਾਲ-ਨਾਲ ਬਦਲਦੀਆਂ ਰਹਿੰਦੀਆਂ ਹਨ । ਲੋਕ ਹਮੇਸ਼ਾ ਪੁਰਾਣੀ ਚੀਜ਼ ਨੂੰ ਛੱਡ ਕੇ ਨਵੀਂ ਚੀਜ਼ ਦੀ ਇੱਛਾ ਕਰਦੇ ਹਨ ਅਤੇ ਉਸਨੂੰ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਨ ਦੀ ਕੋਸ਼ਿਸ਼ ਕਰਦੇ ਰਹਿੰਦੇ ਹਨ । ਇਸ ਕਾਰਨ ਹੀ ਮਨੁੱਖ ਦੀ ਪਰਿਵਰਤਨ ਲਿਆਉਣ ਦੀ ਆਦਤ ਹੀ ਸਮਾਜਿਕ ਪਰਿਵਰਤਨ ਨੂੰ ਪ੍ਰੇਰਿਤ ਕਰਦੀ ਹੈ ।

7. ਸਮਾਜਿਕ ਪਰਿਵਰਤਨ ਦੀ ਗਤੀ ਇਕ ਸਾਰ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦੀ (Speed of Social change is not the same) – ਸਮਾਜਿਕ ਪਰਿਵਰਤਨ ਚਾਹੇ ਹਰੇਕ ਸਮਾਜ ਵਿਚ ਮੌਜੂਦ ਹੈ ਅਤੇ ਹਰੇਕ ਕਾਲ ਵਿਚ ਇਹ ਹੁੰਦਾ ਰਿਹਾ ਹੈ ਪਰ ਇਸ ਦੀ ਗਤੀ ਹਰੇਕ ਸਮਾਜ ਤੇ ਹਰੇਕ ਸਮੇਂ ਵਿਚ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਹੁੰਦੀ ਹੈ | ਕਈ ਸਮਾਜਾਂ ਵਿਚ ਤਾਂ ਇਸਦੀ ਗਤੀ ਬਹੁਤ ਘੱਟ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ਜਿਵੇਂ ਕਿ ਆਦਿਮ ਸਮਾਜ ਅਤੇ ਪ੍ਰਾਚੀਨ ਸਮਾਜ ਤੇ ਕਈ ਸਮਾਜਾਂ ਵਿਚ ਇਸਦੀ ਗਤੀ ਕਾਫ਼ੀ ਤੇਜ਼ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ਜਿਵੇਂਕਿ ਆਧੁਨਿਕ ਸਮਾਜ । ਹਰੇਕ ਵਿਅਕਤੀ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਸਮਾਜ ਵਿਚ ਆ ਰਹੇ ਪਰਿਵਰਤਨਾਂ ਅਤੇ ਉਹਨਾਂ ਦੀ ਗਤੀ ਦੇ ਬਾਰੇ ਵਿਚ ਪਤਾ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਕਿ ਪਰਿਵਰਤਨ ਘੱਟ ਗਤੀ ਨਾਲ ਆ ਰਹੇ ਹਨ ਕਿ ਤੇਜ਼ ਗਤੀ ਨਾਲ ।

ਜੇਕਰ ਅਸੀਂ ਸਮਾਜ ਨੂੰ ਧਿਆਨ ਨਾਲ ਵੇਖੀਏ ਤਾਂ ਅਸੀਂ ਵੇਖਦੇ ਹਾਂ ਕਿ ਜਨਸੰਖਿਆ ਸਾਡੇ ਸਮਾਜ ਦੇ ਵਿਚ ਘੱਟਦੀ-ਵੱਧਦੀ ਰਹਿੰਦੀ ਹੈ । ਸਮਾਜ ਦੇ ਵਿਚ ਬਹੁਤੀਆਂ ਸਮੱਸਿਆਵਾਂ ਤਾਂ ਕੇਵਲ ਜਨਸੰਖਿਆ ਦੇ ਵੱਧਣ-ਘੱਟਣ ਨਾਲ ਹੀ ਸੰਬੰਧਿਤ ਹੁੰਦੀਆਂ ਹਨ । ਜੇਕਰ ਅਸੀਂ ਉਨੀਵੀਂ ਸਦੀ ਉੱਪਰ ਝਾਤ ਮਾਰੀਏ ਤਾਂ ਅਸੀਂ ਕੀ ਵੇਖਦੇ ਹਾਂ ਕਿ ਜਨਸੰਖਿਆਤਮਕ ਕਾਰਕ ਕਾਫ਼ੀ ਹੱਦ ਤਕ ਸਮਾਜਿਕ ਪਰਿਵਰਤਨ ਲਿਆਉਣ ਲਈ ਜ਼ਿੰਮੇਵਾਰ ਰਿਹਾ ਹੈ । ਜਨਸੰਖਿਆਤਮਕ ਕਾਰਕ ਦਾ ਪ੍ਰਭਾਵ ਕੇਵਲ ਭਾਰਤ ਦੇਸ਼ ਨਾਲ ਹੀ ਸੰਬੰਧਿਤ ਨਹੀਂ ਰਿਹਾ ਬਲਕਿ ਸਮੁੱਚੇ ਸੰਸਾਰ ਵਿਚ ਸਮਾਜਿਕ ਜੀਵਨ ਇਸੇ ਨਾਲ ਪ੍ਰਭਾਵਿਤ ਰਿਹਾ ਹੈ । ਇਹ ਠੀਕ ਹੈ ਕਿ ਸਾਡੇ ਭਾਰਤ ਦੇਸ਼ ਵਿੱਚ ਵੀ ਵੱਧਦੀ ਹੋਈ ਜਨਸੰਖਿਆ ਕਈ ਸਮੱਸਿਆਵਾਂ ਪੈਦਾ ਕਰ ਰਹੀ ਹੈ ਜਿਵੇਂ ਆਰਥਿਕ ਪੱਖੋਂ ਦੇਸ਼ ਨੂੰ ਕਮਜ਼ੋਰ ਕਰਨਾ, ਸਮਾਜਿਕ ਬੁਰਾਈਆਂ ਪੈਦਾ ਕਰਨੀਆਂ ਆਦਿ ਪਰੰਤੁ ਇਸ ਦਾ ਪ੍ਰਭਾਵ ਵੱਖੋ-ਵੱਖਰੇ ਦੇਸ਼ਾਂ ਵਿਚ ਵੱਖੋਵੱਖਰਾ ਹੀ ਰਿਹਾ ਹੈ ।

ਇਸ ਪ੍ਰਕਾਰ ਅਸੀਂ ਵੇਖਦੇ ਹਾਂ ਕਿ ਜਨਸੰਖਿਆਤਮਕ ਕਾਰਕ ਸਾਡੇ ਸਮਾਜ ਦੇ ਢਾਂਚੇ, ਸੰਗਠਨ, ਕੰਮਾਂ, ਕਿਰਿਆਵਾਂ, ਆਦਰਸ਼ਾਂ ਆਦਿ ਵਿਚ ਕਾਫ਼ੀ ਤਬਦੀਲੀਆਂ ਲਿਆਉਂਦਾ ਹੈ | ਸਮਾਜਿਕ ਪਰਿਵਰਤਨ ਵੀ ਇਸ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧਿਤ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ । ਜਨਸੰਖਿਆਤਮਕ ਕਾਰਕ ਬਾਰੇ ਵਿਸਤ੍ਰਿਤ ਵਿਚਾਰ ਪੇਸ਼ ਕਰਨ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਸਾਡੇ ਲਈ ਇਹ ਸਮਝਣਾ ਜ਼ਰੂਰੀ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਕਿ ਜਨਸੰਖਿਆਤਮਕ ਕਾਰਕ ਦਾ ਕੀ ਅਰਥ ਹੈ ।

ਜਨਸੰਖਿਆਤਮਕ ਕਾਰਕ ਦਾ ਅਰਥ (Meaning of Demographic Factor) – ਜਨਸੰਖਿਆਤਮਕ ਕਾਰਕ ਦਾ ਸੰਬੰਧ ਜਨਸੰਖਿਆ ਦੇ ਵੱਧਣ-ਘੱਟਣ ਨਾਲ ਹੁੰਦਾ ਹੈ | ਅਰਥਾਤ ਇਸ ਵਿਚ ਅਸੀਂ ਜਨਸੰਖਿਆ ਦਾ ਆਕਾਰ, ਘਣਤਾ ਅਤੇ ਵੰਡ ਆਦਿ ਨੂੰ ਸ਼ਾਮਲ ਕਰਦੇ ਹਾਂ । ਜਨਸੰਖਿਆਤਮਕ ਕਾਰਕ ਸਮਾਜਿਕ ਪਰਿਵਰਤਨ ਦਾ ਅਜਿਹਾ ਕਾਰਕ ਹੈ ਜਿਹੜਾ ਸਾਡੇ ਸਮਾਜ ਦੇ ਉੱਪਰ ਸਿੱਧਾ ਪ੍ਰਭਾਵ ਪਾਉਂਦਾ ਹੈ । ਕਿਸੇ ਸਮਾਜ ਦਾ ਅਮੀਰ ਜਾਂ ਗਰੀਬ ਹੋਣਾ ਵੀ ਜਨਸੰਖਿਆਤਮਕ ਕਾਰਕ ਉੱਪਰ ਹੀ ਨਿਰਭਰ ਕਰਦਾ ਹੈ ਅਰਥਾਤ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਦੇਸ਼ਾਂ ਦੇ ਵਿਚ ਜਨਸੰਖਿਆ ਵਧੇਰੇ ਹੁੰਦੀ ਹੈ, ਉੱਥੋਂ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਦਾ ਰਹਿਣ-ਸਹਿਣ ਦਾ ਪੱਧਰ ਨੀਵਾਂ ਹੁੰਦਾ ਹੈ। ਅਤੇ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਦੇਸ਼ਾਂ ਦੀ ਜਨਸੰਖਿਆ ਘੱਟ ਹੁੰਦੀ ਹੈ, ਉਨ੍ਹਾਂ ਸਮਾਜਾਂ ਜਾਂ ਦੇਸ਼ਾਂ ਦੇ ਵਿਚ ਰਹਿਣ-ਸਹਿਣ ਦਾ ਪੱਧਰ ਕਾਫ਼ੀ ਉੱਚਾ ਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਉਦਾਹਰਨ ਦੇ ਤੌਰ ‘ਤੇ ਅਸੀਂ ਵੇਖਦੇ ਹਾਂ ਕਿ ਚੀਨ ਅਤੇ ਭਾਰਤ ਵਰਗੇ ਦੇਸ਼ਾਂ ਦੀ ਜਨਸੰਖਿਆ ਇੰਨੀ ਜ਼ਿਆਦਾ ਹੈ ਕਿ ਜਿਸ ਕਰਕੇ ਗਰੀਬੀ, ਬੇਰੁਜ਼ਗਾਰੀ ਆਦਿ ਵਰਗੀਆਂ ਸਮੱਸਿਆਵਾਂ ਦਿਨ-ਬ-ਦਿਨ ਵੱਧਦੀਆਂ ਹੀ ਰਹਿੰਦੀਆਂ ਹਨ ਅਤੇ ਦੂਸਰੇ ਪਾਸੇ ਕੈਨੇਡਾ, ਆਸਟਰੇਲੀਆ ਤੇ ਅਮਰੀਕਾ ਆਦਿ ਵਰਗੇ ਦੇਸ਼ਾਂ ਦੀ ਜਨਸੰਖਿਆ ਕਾਫ਼ੀ ਘੱਟ ਹੈ ਜਿਸ ਕਰਕੇ ਇਨ੍ਹਾਂ ਦੇਸ਼ਾਂ ਵਿਚ ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਰਹਿਣ-ਸਹਿਣ ਦਾ ਦਰਜਾ ਵੀ ਕਾਫ਼ੀ ਉੱਚਾ ਹੈ । ਇਸ ਪ੍ਰਕਾਰ ਉਪਰੋਕਤ ਉਦਾਹਰਨਾਂ ਤੋਂ ਅਸੀਂ ਇਹ ਅੰਦਾਜ਼ਾ ਲਗਾ ਲੈਂਦੇ ਹਾਂ ਕਿ ਜਨਸੰਖਿਆ ਦਾ ਸਾਡੇ ਸਮਾਜ ਵਿਚ ਸਮਾਜਿਕ ਪਰਿਵਰਤਨ ਲਈ ਬਹੁਤ ਵੱਡਾ ਹੱਥ ਹੈ ।

ਜਨਸੰਖਿਆਤਮਕ ਕਾਰਕ ਵਿਚ ਜਨਮ-ਦਰ ਅਤੇ ਮੌਤ-ਦਰ ਦੇ ਵੱਧਣ-ਘੱਟਣ ਦਾ ਪ੍ਰਭਾਵ ਵੀ ਸਾਡੇ ਸਮਾਜ ਤੇ ਪੈਂਦਾ ਹੈ । ਉਪਰੋਕਤ ਵਿਵਰਣ ਤੋਂ ਅਸੀਂ ਇਸ ਨਤੀਜੇ ਤੇ ਪਹੁੰਚਦੇ ਹਾਂ ਕਿ ਸਮਾਜ ਦੇ ਵਿਚ ਕਈ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦੇ ਪਰਿਵਰਤਨ ਕੇਵਲ ਜਨਸੰਖਿਆ ਦੇ ਵਧਣ-ਘਟਣ ਨਾਲ ਹੀ ਸੰਬੰਧਿਤ ਹੁੰਦੇ ਹਨ । ਕਿਸੇ ਵੀ ਦੇਸ਼ ਦੀ ਵੱਧਦੀ ਜਨਸੰਖਿਆ, ਉਸ ਲਈ ਕਈ ਸਮੱਸਿਆਵਾਂ ਖੜੀਆਂ ਕਰ ਦਿੰਦੀ ਹੈ ।

1. ਗਰੀਬੀ (Poverty) – ਤੇਜ਼ੀ ਨਾਲ ਵੱਧਦੀ ਹੋਈ ਜਨਸੰਖਿਆ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀਆਂ ਰੋਜ਼ਾਨਾ ਦੀਆਂ ਰੋਟੀ ਦੀਆਂ ਜ਼ਰੂਰਤਾਂ ਪੂਰੀਆਂ ਕਰਨ ਤੋਂ ਵੀ ਵਾਂਝਿਆਂ ਕਰ ਦਿੰਦੀ ਹੈ । ਮਾਲਥਸ ਦੇ ਸਿਧਾਂਤ ਅਨੁਸਾਰ ਜਨਸੰਖਿਆ ਦੇ ਵਿਚ ਵਾਧਾ ਰੇਖਾ ਗਣਿਤ (Geometrically) ਦੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਭਾਵ 6 × 6 = 36 ਪਰੰਤੁ ਆਰਥਿਕ ਸੋਮਿਆਂ ਜਾਂ ਉਤਪਾਦਨ ਦੇ ਵਿਚ ਵਾਧਾ ਅੰਕ ਗਣਿਤ (Arithmetically) ਵਾਂਗ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਭਾਵ 6 + 6 = 12 । ਕਹਿਣ ਦਾ ਅਰਥ ਇਹ ਹੈ ਕਿ ਜੇਕਰ ਦੇਸ਼ ਵਿਚ 36 ਵਿਅਕਤੀ ਅਨਾਜ ਖਾਣ ਵਾਲੇ ਹੁੰਦੇ ਹਨ ਤਾਂ ਉਤਪਾਦਨ ਕੇਵਲ 12 ਵਿਅਕਤੀਆਂ ਦੀਆਂ ਜ਼ਰੂਰਤਾਂ ਨੂੰ ਪੂਰਾ ਕਰ ਸਕਦਾ ਹੈ । ਇਸੇ ਕਰਕੇ ਗ਼ਰੀਬੀ ਜਾਂ ਭੁੱਖਮਰੀ ਵਰਗੀਆਂ ਸਮੱਸਿਆਵਾਂ ਵਿਚ ਵਾਧਾ ਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਕਹਿਣ ਤੋਂ ਭਾਵ ਇਹ ਕਿ ਆਰਥਿਕ ਸੋਮਿਆਂ ਵਿਚ ਵਿਕਾਸ ਕਾਫ਼ੀ ਧੀਮੀ ਗਤੀ ਨਾਲ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਜਦੋਂ ਵੀ ਜਨਮ-ਦਰ ਵਿਚ ਵਾਧਾ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਤਾਂ ਉਸ ਦਾ ਪ੍ਰਭਾਵ ਦੇਸ਼ ਦੀ ਆਰਥਿਕਤਾ ਉੱਪਰ ਤਾਂ ਪੈਦਾ ਹੀ ਹੈ ।

2. ਜੱਦੀ ਕਿੱਤਾ ਜਾਂ ਖੇਤੀਬਾੜੀ (Hereditary occupation or agriculture) – ਭਾਰਤ ਖੇਤੀ ਪ੍ਰਧਾਨ ਦੇਸ਼ ਹੈ, ਇਸ ਦੀ ਵਧੇਰੇ ਜਨਸੰਖਿਆ ਇਸੇ ਕਿੱਤੇ ਨਾਲ ਹੀ ਸੰਬੰਧਿਤ ਹੈ । ਅਸਲ ਵਿਚ ਖੇਤੀਬਾੜੀ ਅਜਿਹਾ ਕਿੱਤਾ ਹੈ ਜਿਸ ਵਿੱਚ ਵਧੇਰੇ ਗਿਣਤੀ ਸੰਬੰਧਿਤ ਹੁੰਦੀ ਹੈ । ਇਹ ਇਕੱਲੇ ਇਕ ਵਿਅਕਤੀ ਦਾ ਕੰਮ ਨਹੀਂ ਬਲਕਿ ਕਈ ਵਿਅਕਤੀਆਂ ਦਾ ਇਕੱਲੇ ਮਿਲ ਕੇ ਕਰਨ ਨਾਲ ਹੀ ਸੰਬੰਧਿਤ ਹੈ । ਇਸੇ ਕਰਕੇ ਬੱਚਿਆਂ ਦੀ ਜ਼ਿਆਦਾ ਗਿਣਤੀ ਵੀ ਜ਼ਰੂਰੀ ਹੋ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ਕਿਉਂਕਿ ਜੇਕਰ ਪਰਿਵਾਰ ਵੱਡਾ ਹੋਵੇਗਾ ਤਾਂ ਹੀ ਖੇਤੀਬਾੜੀ ਸੰਭਵ ਹੋਵੇਗੀ ।

3. ਅਨਪੜ੍ਹਤਾ (Illiteracy) – ਭਾਰਤ ਵਰਗੇ ਦੇਸ਼ ਵਿਚ ਅਨਪੜ੍ਹਤਾ ਵੀ ਜਨਸੰਖਿਆ ਦੇ ਵਧਣ ਲਈ ਇਕ ਕਾਰਨ ਹੈ । ਇਸ ਵਿਚ ਵਧੇਰੇ ਜਨਸੰਖਿਆ ਅਨਪੜ੍ਹ ਹੈ । ਅਨਪੜ੍ਹ ਲੋਕ ਕੁੱਝ ਤਾਂ ਵਹਿਮਾਂ-ਭਰਮਾਂ ਵਿਚ ਫਸੇ ਰਹਿੰਦੇ ਹਨ ਜਿਵੇਂ ਪੁੱਤਰ ਦਾ ਹੋਣਾ ਜ਼ਰੂਰੀ ਸਮਝਣਾ, ਬੱਚੇ ਪਰਮਾਤਮਾ ਦੀ ਦੇਣ ਆਦਿ ਜਾਂ ਫਿਰ ਉਨ੍ਹਾਂ ਵਿਚ ਛੋਟੇ ਪਰਿਵਾਰ ਪ੍ਰਤੀ ਚੇਤਨਤਾ ਹੀ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦੀ ।ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਛੋਟੇ ਪਰਿਵਾਰ ਦੇ ਕੋਈ ਲਾਭ ਵੀ ਨਜ਼ਰ ਨਹੀਂ ਆਉਂਦੇ। ਇਸ ਕਰਕੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਰਹਿਣ-ਸਹਿਣ ਦਾ ਪੱਧਰ ਵੀ ਬਿਲਕੁਲ ਨੀਂਵਾ ਹੀ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ । ਉਹ ਸਿੱਖਿਆ ਲੈਣ ਸੰਬੰਧੀ, ਆਪਣਾ ਜੀਵਨ ਪੱਧਰ ਉੱਚਾ ਕਰਨ ਸੰਬੰਧੀ, ਬੱਚਿਆਂ ਦੇ ਸਿਹਤਮੰਦ ਹੋਣ ਸੰਬੰਧੀ ਬਿਲਕੁਲ ਹੀ ਚੇਤੰਨ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦੇ । ਇਹ ਸਭ ਅਨਪੜ੍ਹਤਾ ਦੇ ਕਾਰਨ ਹੀ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ।

4. ਸੰਸਕ੍ਰਿਤਕ ਪਾਬੰਦੀਆਂ (Cultural restrictions) – ਭਾਰਤੀ ਦੀ ਸੰਸਕ੍ਰਿਤੀ ਦਾ ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਜੀਵਨ ਉੱਪਰ ਇੰਨਾ ਗਹਿਰਾ ਪ੍ਰਭਾਵ ਹੈ ਕਿ ਉਹ ਇਸ ਸੰਸਕ੍ਰਿਤੀ ਦੀਆਂ ਪਾਬੰਦੀਆਂ ਤੋਂ ਆਪਣੇ ਆਪ ਨੂੰ ਮੁਕਤ ਨਹੀਂ ਕਰ ਸਕਦੇ ਅਤੇ ਜੇਕਰ ਕੋਈ ਵਿਅਕਤੀ ਇਨ੍ਹਾਂ ਪਾਬੰਦੀਆਂ ਨੂੰ ਤੋੜਦਾ ਵੀ ਹੈ ਤਾਂ ਸਮਾਜ ਦੇ ਲੋਕ ਉਸ ਨਾਲ ਗੱਲਬਾਤ ਤੱਕ ਕਰਨੀ ਬੰਦ ਕਰ ਦਿੰਦੇ ਹਨ । ਉਦਾਹਰਨ ਦੇ ਤੌਰ ‘ਤੇ ਭਾਰਤ ਦੇ ਵਿਚ ਵੇਦਾਂ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਪਿਤਾ ਨੂੰ ਮਰਨ ਉਪਰੰਤ ਮੁਕਤੀ ਤਾਂ ਹੀ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੋਵੇਗੀ ਜੇਕਰ ਉਸ ਦਾ ਪੁੱਤਰ ਉਸ ਨੂੰ ਅਗਨੀ ਦੇਵੇਗਾ । ਇਸੇ ਕਰਕੇ ਪੁੱਤਰ ਦੀ ਪ੍ਰਾਪਤੀ ਉਸ ਲਈ ਜ਼ਰੂਰੀ ਹੋ ਜਾਂਦੀ ਹੈ । ਉੱਥੋਂ ਤਕ ਕਿ ਸਮਾਜ ਦੇ ਵਿਚ ਵੀ ਪੁੱਤਰ ਪੈਦਾ ਹੋਣ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਹੀ ਉਸ ਨੂੰ ਵਧੇਰੇ ਇੱਜ਼ਤ ਮਿਲਦੀ ਹੈ । ਇਸ ਪ੍ਰਕਾਰ ਸੰਸਕ੍ਰਿਤਕ ਪਾਬੰਦੀਆਂ ਵੀ ਵਿਅਕਤੀ ਨੂੰ ਮਜਬੂਰ ਕਰ ਦਿੰਦੀਆਂ ਹਨ ਜਿਸ ਕਰਕੇ ਉਹ ਪ੍ਰਗਤੀ ਕਰਨ ਦੇ ਬਾਰੇ ਸੋਚ ਹੀ ਨਹੀਂ ਸਕਦਾ ।

5. ਸੁਰੱਖਿਆ (Protection) – ਅਸਲ ਦੇ ਵਿਚ ਹਰ ਇਕ ਵਿਅਕਤੀ ਇਹ ਸੋਚਣਾ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰ ਦਿੰਦਾ ਹੈ ਕਿ ਜਦੋਂ ਉਹ ਬੁੱਢਾ ਹੋ ਜਾਵੇਗਾ ਅਤੇ ਉਸਦੇ ਜੇਕਰ ਬੱਚੇ ਹੋਣਗੇ ਤਦ ਹੀ ਉਹ ਸੁਰੱਖਿਅਤ ਰਹਿ ਸਕੇਗਾ । ਬੱਚਿਆਂ ਦੀ ਵਧੇਰੇ ਗਿਣਤੀ ਹੀ ਉਸ ਨੂੰ ਇਹ ਤਸੱਲੀ ਦੇ ਦਿੰਦੀ ਹੈ ਕਿ ਉਸ ਦੇ ਬੁਢਾਪੇ ਦਾ ਸਹਾਰਾ ਰਹੇਗਾ ।

ਉਪਰੋਕਤ ਕੁੱਝ ਕਾਰਨਾਂ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਵੱਡੇ ਪਰਿਵਾਰ ਦਾ ਪਾਏ ਜਾਣ ਪ੍ਰਤੀ ਪਰੰਪਰਾਵਾਦੀ ਦ੍ਰਿਸ਼ਟੀਕੋਣ ਦਾ ਹੋਣਾ, ਪੁੱਤਰ ਦੀ ਮਹੱਤਤਾ ਨੂੰ ਜ਼ਰੂਰੀ ਸਮਝਣਾ ਜਾਂ ਫਿਰ ਸਿੱਖਿਆ ਦੀ ਕਮੀ ਆਦਿ ਵਰਗੇ ਅਨੇਕਾਂ ਕਾਰਨ ਹਨ ਜਿਹੜੇ ਜਨਸੰਖਿਆ ਦੇ ਵਾਧੇ ਲਈ ਜ਼ਿੰਮੇਵਾਰ ਹੁੰਦੇ ਹਨ । ਦੇਸ਼ ਦੀ ਤਰੱਕੀ ਜਾਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਲਈ ਵੱਧਦੀ ਜਨਸੰਖਿਆ ਉੱਪਰ ਨਿਯੰਤਰਨ ਰੱਖਣਾ ਵੀ ਕਾਫ਼ੀ ਜ਼ਰੂਰੀ ਹੋ ਗਿਆ ਹੈ । ਇਸ ਸਮੱਸਿਆ ਦਾ ਹੱਲ ਲੱਭਣ ਦੇ ਲਈ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਸਿੱਖਿਅਤ ਕਰਨਾ ਸਭ ਤੋਂ ਜ਼ਰੂਰੀ ਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਗਿਆਨ ਦੇ ਵਿਚ ਵਾਧਾ ਹੋਣ ਦੇ ਨਾਲ ਵੀ ਲੋਕ ਇਸ ਪ੍ਰਤੀ ਜਾਗਰੂਕ ਹੋਣਗੇ ਕਈ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦੀਆਂ ਸਮੱਸਿਆਵਾਂ ਦਾ ਹੱਲ ਵੀ ਲੱਭਿਆ ਜਾ ਸਕੇਗਾ ।

6. ਬੇਰੁਜ਼ਗਾਰੀ (Unemployment) – ਜਿਵੇਂ-ਜਿਵੇਂ ਸਮਾਜ ਵਿਚ ਉਦਯੋਗੀਕਰਨ ਤੇ ਸ਼ਹਿਰੀਕਰਨ ਦਾ ਵਿਕਾਸ ਹੋਇਆ ਤਾਂ ਉਸ ਨਾਲ ਬੇਰੁਜ਼ਗਾਰੀ ਵਿਚ ਵੀ ਵਾਧਾ ਹੋਇਆ । ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਰੁਜ਼ਗਾਰ ਦੇਣ ਲੱਭਣ ਲਈ ਘਰ ਤੋਂ ਬਾਹਰ ਨਿਕਲਣਾ ਪਿਆ । ਪਿੰਡਾਂ ਦੇ ਲੋਕ ਵਧੇਰੇ ਕਰ ਕੇ ਸ਼ਹਿਰਾਂ ਵਿਚ ਜਾ ਕੇ ਵੱਸਣ ਲੱਗ ਪਏ । ਇਸੇ ਕਰਕੇ ਸ਼ਹਿਰਾਂ ਦੇ ਵਿਚ ਜਨਸੰਖਿਆ ਵਧੇਰੇ ਹੋ ਗਈ ਜਿਸ ਕਾਰਨ ਰਹਿਣ-ਸਹਿਣ ਦੇ ਲਈ ਮਕਾਨਾਂ ਦੀ ਕਮੀ ਹੋ ਗਈ ਅਤੇ ਮਹਿੰਗਾਈ ਵੱਧੀ । ਘਰੇਲੂ ਉਤਪਾਦਨ ਦਾ ਕੰਮ ਕਾਰਖ਼ਾਨਿਆਂ ਕੋਲ ਚਲਾ ਗਿਆ | ਮਸ਼ੀਨਾਂ ਦੇ ਨਾਲ ਕੰਮ ਪਹਿਲਾਂ ਨਾਲੋਂ ਵਧੀਆਂ ਅਤੇ ਘੱਟ ਸਮੇਂ ਦੇ ਵਿਚ ਹੋਣ ਲੱਗ ਪਿਆ । ਇਸੇ ਕਰਕੇ ਜਦੋਂ ਮਸ਼ੀਨਾਂ ਨੇ ਕਈ ਆਦਮੀਆਂ ਦੀ ਜਗਾ-ਲੈ ਲਈ ਤਾਂ ਬੇਰੁਜ਼ਗਾਰੀ ਦਾ ਹੋਣਾ ਵੀ ਸੁਭਾਵਿਕ ਹੀ ਹੈ ।

7. ਰਹਿਣ-ਸਹਿਣ ਦਾ ਨੀਵਾਂ ਪੱਧਰ (Low standard of living) – ਜਨਸੰਖਿਆ ਦੇ ਵਧਣ ਨਾਲ ਜਦੋਂ ਗ਼ਰੀਬੀ ਅਤੇ ਬੇਰੁਜ਼ਗਾਰੀ ਵੀ ਉਸੇ ਰਫ਼ਤਾਰ ਵਿਚ ਵਧਣ ਲੱਗ ਪਈ ਤਾਂ ਉਸ ਨਾਲ ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਰਹਿਣ-ਸਹਿਣ ਦਾ ਪੱਧਰ ਵੀ ਨੀਵਾਂ ਹੋਇਆ । ਕਮਾਉਣ ਵਾਲੇ ਮੈਂਬਰਾਂ ਦੀ ਗਿਣਤੀ ਘੱਟਣ ਲੱਗ ਪਈ ਅਤੇ ਖਾਣ ਵਾਲੇ ਮੈਂਬਰਾਂ ਦੀ ਗਿਣਤੀ ਵੱਧੀ । ਦਿਨਬ-ਦਿਨ ਮਹਿੰਗਾਈ ਦੇ ਵੱਧਣ ਨਾਲ ਲੋਕਾਂ ਲਈ ਇਹ ਮੁਸ਼ਕਿਲ ਹੋ ਗਿਆ ਕਿ ਉਹ ਆਪਣੇ ਬੱਚਿਆਂ ਨੂੰ ਪੂਰੀਆਂ ਸਹੂਲਤਾਂ ਦੇ ਸਕਣ । ਰਹਿਣ-ਸਹਿਣ ਦੀ ਕੀਮਤ ਵਿਚ ਵਾਧਾ ਹੋਣ ਦੇ ਨਾਲ ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਰਹਿਣ-ਸਹਿਣ ਦਾ ਪੱਧਰ ਵੀ ਨੀਵਾਂ ਹੋਇਆ ।

ਜਨਸੰਖਿਆ ਸੰਬੰਧੀ ਆਈਆਂ ਸਮੱਸਿਆਵਾਂ ਨੂੰ ਵੇਖਦੇ ਹੋਏ ਭਾਰਤੀ ਸਰਕਾਰ ਨੇ ਵੀ ਕਈ ਕਦਮ-ਚੁੱਕੇ । ਸਭ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਗਰੀਬੀ ਦੀ ਸਮੱਸਿਆ ਦੇ ਪਿੱਛੇ ਵੱਧਦੀ ਜਨਸੰਖਿਆ ਨੂੰ ਹੀ ਦੋਸ਼ੀ ਪਾਇਆ । ਇਸ ਦਾ ਹੱਲ ਲੱਭਣ ਲਈ ਪਰਿਵਾਰ ਨਿਯੋਜਨ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧਿਤ ਪ੍ਰੋਗਰਾਮਾਂ ਨੂੰ ਸ਼ੁਰੂ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਅਧੀਨ ਕਾਪਰ-ਟੀ, ਗਰਭ-ਨਿਰੋਧਕ ਗੋਲੀਆਂ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਤੇ ਨਸਬੰਦੀ ਆਪੇਸ਼ਨ ਆਦਿ ਵਰਗੇ ਨਵੇਂ ਢੰਗਾਂ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਕੀਤੀ ਗਈ । ਇਸ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਲੜਕਾ ਪੈਦਾ ਹੋਣ ਸੰਬੰਧੀ ਦ੍ਰਿਸ਼ਟੀਕੋਣ ਵਿਚ ਤਬਦੀਲੀ ਲਿਆਉਣ ਲਈ ਫਿਲਮਾਂ, ਟੀ. ਵੀ. ਆਦਿ ਦੀ ਮੱਦਦ ਲਈ ਗਈ ਤਾਂ ਕਿ ਵਿਅਕਤੀ ਲੜਕੀ ਅਤੇ ਲੜਕੇ ਦੇ ਵਿਚ ਫ਼ਰਕ ਨਾ ਸਮਝਣ, ਇਸ ਨਾਲ ਵੀ ਵੱਧਦੀ ਜਨਸੰਖਿਆ ਤੇ ਕਾਬੂ ਪਾਇਆ ਜਾਵੇਗਾ । ਵੱਡੇ ਪਰਿਵਾਰਾਂ ਦੀ ਜਗਾ ਛੋਟੇ ਪਰਿਵਾਰਾਂ ਨੂੰ ਸਰਕਾਰ ਵਲੋਂ ਵੀ ਮਾਨਤਾ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੋਈ । ਇਸ ਪ੍ਰਕਾਰ ਉਪਰੋਕਤ ਵਿਵਰਨ ਤੋਂ ਇਹ ਸਪੱਸ਼ਟ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਕਿ ਵੱਧਦੀ ਜਨਸੰਖਿਆ ਨਾਲ ਪਾਈਆਂ ਗਈਆਂ ਸਮੱਸਿਆਵਾਂ ਦਾ ਹੱਲ ਪਰਿਵਾਰ ਨਿਯੋਜਨ ਦੇ ਤਰੀਕਿਆਂ ਨੂੰ ਅਪਣਾ ਕੇ ਵੀ ਕੀਤਾ ਜਾ ਸਕਦਾ ਹੈ ।

8. ਆਵਾਸ (Immigration) – ਜਨਸੰਖਿਆ ਦੇ ਉੱਪਰ ਆਵਾਸ ਤੇ ਪ੍ਰਵਾਸ ਦਾ ਵੀ ਕਾਫ਼ੀ ਪ੍ਰਭਾਵ ਪੈਂਦਾ ਹੈ । ਉਦਾਹਰਨ ਦੇ ਤੌਰ ‘ਤੇ ਅਸੀਂ ਵੇਖਦੇ ਹਾਂ ਕਿ ਭਾਰਤ ਵਿਚ ਬਾਹਰਲੇ ਦੇਸ਼ਾਂ ਜਿਵੇਂ ਬੰਗਲਾਦੇਸ਼, ਤਿੱਬਤ, ਨੇਪਾਲ ਅਤੇ ਸ੍ਰੀਲੰਕਾ ਆਦਿ ਦੇ ਲੋਕ ਵਧੇਰੇ ਗਿਣਤੀ ਵਿਚ ਆ ਕੇ ਰਹਿਣ ਲੱਗ ਪੈਂਦੇ ਹਨ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਆਵਾਸ ਨਾਲ ਸਾਡੀ ਜਨਸੰਖਿਆ ਵਿਚ ਬਹੁਤ ਹੀ ਵਾਧਾ ਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਗਰੀਬੀ, ਭੁੱਖਮਰੀ, ਮਹਿੰਗਾਈ ਅਤੇ ਹੋਰ ਕਈ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦੀਆਂ ਸਮੱਸਿਆਵਾਂ ਇਸ ਦੇ ਨਤੀਜੇ ਵਜੋਂ ਹੀ ਪੈਦਾ ਹੁੰਦੀਆਂ ਹਨ ।

9. ਪ੍ਰਵਾਸ (Emigration) – ਜਿਵੇਂ ਅਸੀਂ ਵੇਖਦੇ ਹਾਂ ਕਿ ਭਾਰਤ ਵਿਚ ਆਵਾਸ ਪਾਇਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਉਸੇ ਤਰ੍ਹਾਂ ਪ੍ਰਵਾਸ ਵੀ ਪਾਇਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਪ੍ਰਵਾਸ ਦਾ ਅਰਥ ਹੈ ਕਿ ਸਾਡੇ ਦੇਸ਼ ਦੇ ਲੋਕ ਬਾਹਰਲੇ ਦੇਸ਼ਾਂ ਵਿਚ ਜਾ ਕੇ ਵੱਸਣ ਲੱਗ ਪਏ ਹਨ । ਵੱਡੀ ਗੱਲ ਤਾਂ ਇਸ ਸੰਬੰਧ ਵਿਚ ਇਹ ਹੈ ਕਿ ਭਾਰਤ ਦੇਸ਼ ਤੋਂ ਚੰਗੀ ਸਿੱਖਿਆ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਜਿਵੇਂ ਡਾਕਟਰ, ਇੰਜੀਨੀਅਰ ਵਗੈਰਾ ਲੋਕ ਬਾਹਰਲੇ ਦੇਸ਼ਾਂ ਵਿਚ ਜਾ ਕੇ ਵੱਸਣਾ ਪਸੰਦ ਕਰਨ ਲੱਗ ਪੈਂਦੇ ਹਨ । ਭਾਰਤ ਦੇਸ਼ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਸਿੱਖਿਅਤ ਕਰਨ ਲਈ ਕਾਫ਼ੀ ਧਨ ਵੀ ਖਰਚ ਕਰਦਾ ਹੈ ਪਰੰਤੂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੁਆਰਾ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕੀਤੀ ਸਿੱਖਿਆ ਦਾ ਲਾਭ ਦੂਸਰੇ ਮੁਲਕ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਨ ਲੱਗ ਜਾਂਦੇ ਹਨ । ਇਕ ਕਾਰਨ ਤਾਂ ਇਹ ਵੀ ਹੈ ਕਿ ਸਾਡਾ ਦੇਸ਼ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਯੋਗਤਾ ਦੇ ਮੁਤਾਬਿਕ ਪੈਸਾ ਨਹੀਂ ਦਿੰਦਾ ਇੱਥੋਂ ਤਕ ਕਿ ਕਈ ਵਾਰੀ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਬੇਰੁਜ਼ਗਾਰੀ ਦਾ ਸਾਹਮਣਾ ਵੀ ਕਰਨਾ ਪੈਂਦਾ ਹੈ । ਕਿਉਂਕਿ ਪੜੇਲਿਖੇ ਲੋਕ ਜੋ ਦੇਸ਼ ਨੂੰ ਸੁਧਾਰਨ ਵਿਚ ਮਦਦ ਕਰ ਸਕਦੇ ਹਨ ਉਹ ਆਪਣੀ ਯੋਗਤਾ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਦੂਸਰੇ ਦੇਸ਼ਾਂ ਲਈ ਕਰਦੇ ਹਨ । ਇੱਥੋਂ ਤਕ ਕਿ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਵਿਦੇਸ਼ ਜਾਣ ਦੇ ਨਾਲ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਆਪਣਾ ਪਰਿਵਾਰ ਵੀ ਟੁੱਟ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਦੇਖਭਾਲ ਕਰਨ ਵਾਲਾ ਵੀ ਕੋਈ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦਾ । ਇਸ ਦਾ ਪ੍ਰਭਾਵ ਵੀ ਸਾਡੀ ਸਮੁੱਚੀ ਸਮਾਜਿਕ ਸੰਰਚਨਾ ਉੱਪਰ ਹੀ ਪੈਂਦਾ ਹੈ ।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 11 ਸਮਾਜਿਕ ਪਰਿਵਰਤਨ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 5.
ਸਿੱਖਿਆ ਦੀ ਸਮਾਜਿਕ ਪਰਿਵਰਤਨ ਵਿੱਚ ਭੂਮਿਕਾ ਦਰਸਾਓ ।
ਉੱਤਰ-
ਸਮਾਜਿਕ ਪਰਿਵਰਤਨ ਲਿਆਉਣ ਦੇ ਲਈ ਸਿੱਖਿਆ ਵੀ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਕਾਰਕਾਂ ਵਿਚੋਂ ਇਕ ਹੈ | ਅਸਲ ਵਿਚ ਸਿੱਖਿਆ ਪ੍ਰਗਤੀ ਦਾ ਮੁੱਖ ਆਧਾਰ ਹੈ । ਇਸ ਨੂੰ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਕੇ ਵਿਅਕਤੀ ਦੇ ਗਿਆਨ ਵਿਚ ਵੀ ਵਾਧਾ ਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਇਸੇ ਕਰਕੇ ਇਸ ਨੂੰ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਕੇ ਹੀ ਵਿਅਕਤੀ ਮਨੁੱਖੀ ਸਮਾਜ ਵਿਚ ਪਾਈਆਂ ਜਾਣ ਵਾਲੀਆਂ ਸਮੱਸਿਆਵਾਂ ਦਾ ਵੀ ਹੱਲ ਲੱਭ ਲੈਂਦਾ ਹੈ । ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਦੇਸ਼ਾਂ ਵਿਚ ਪੜ੍ਹੇ-ਲਿਖੇ ਵਿਅਕਤੀਆਂ ਦੀ ਗਿਣਤੀ ਵਧੇਰੇ ਹੁੰਦੀ ਹੈ, ਉਹ ਦੇਸ਼ ਦੂਸਰੇ ਦੇਸ਼ਾਂ ਦੇ ਮੁਕਾਬਲੇ ਤਰੱਕੀ ਵੀ ਵਧੇਰੇ ਕਰਦੇ ਹਨ । ਇਸ ਦਾ ਕਾਰਨ ਇਹ ਹੈ ਕਿ ਪੜ੍ਹਿਆ-ਲਿਖਿਆ ਵਿਅਕਤੀ ਸਮਾਜ ਵਿਚ ਪਾਈਆਂ ਗਈਆਂ ਬੁਰਾਈਆਂ ਨੂੰ ਦੂਰ ਕਰਨ ਵਿਚ ਆਪਣਾ ਸਹਿਯੋਗ ਦਿੰਦਾ ਹੈ । ਭਾਰਤੀ ਸਮਾਜ ਦੇ ਵਿਚ ਅਨਪੜ੍ਹ ਲੋਕਾਂ ਦੀ ਪ੍ਰਤੀਸ਼ਤ ਵਧੇਰੇ ਪਾਈ ਜਾਂਦੀ ਹੈ । ਇਸੇ ਕਰਕੇ ਵਧੇਰੇ ਲੋਕ ਅੰਧਵਿਸ਼ਵਾਸੀ, ਵਹਿਮਾਂ-ਭਰਮਾਂ ਵਿਚ ਫਸੇ ਅਤੇ ਭੈੜੀਆਂ ਪਰੰਪਰਾਵਾਂ ਆਦਿ ਨਾਲ ਜੁੜੇ ਹੋਏ ਹਨ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਤੋਂ ਬਾਹਰ ਨਿਕਲਣ ਲਈ ਵਿਅਕਤੀ ਲਈ ਜ਼ਰੂਰੀ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਕਿ ਉਸ ਦੇ ਮਨ ਨੂੰ ਉੱਚਿਤ ਰੂਪ ਵਿਚ ਸਿੱਖਿਅਤ ਕੀਤਾ ਜਾਵੇ । ਸਿੱਖਿਅਕ ਕਾਰਕ ਦੇ ਸਮਾਜ ਉੱਪਰ ਪਏ ਪ੍ਰਭਾਵਾਂ ਨੂੰ ਜਾਣਨ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਅਸੀਂ ਸਿੱਖਿਆ ਦੇ ਅਰਥ ਬਾਰੇ ਜਾਣਕਾਰੀ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਾਂਗੇ ।

ਸ਼ਬਦ ‘education’ ਲਾਤੀਨੀ ਭਾਸ਼ਾ ਦੇ ਸ਼ਬਦ ‘educere’ ਤੋਂ ਨਿਕਲਿਆ ਹੈ ਜਿਸਦਾ ਅਰਥ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ‘to bring up’ । ਸਿੱਖਿਆ ਦਾ ਅਰਥ ਵਿਅਕਤੀ ਨੂੰ ਕੇਵਲ ਕਿਤਾਬੀ ਗਿਆਨ ਦੇਣ ਨਾਲ ਹੀ ਸੰਬੰਧਿਤ ਨਹੀਂ ਬਲਕਿ ਵਿਅਕਤੀ ਵਿਚ ਚੰਗੀਆਂ ਆਦਤਾਂ ਦਾ ਨਿਰਮਾਣ ਕਰਕੇ ਉਸ ਨੂੰ ਭਵਿੱਖ ਲਈ ਤਿਆਰ ਕਰਨ ਤੋਂ ਵੀ ਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਐਂਡਰਸਨ (Anderson) ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ, “ਸਿੱਖਿਆ ਇਕ ਸਮਾਜਿਕ ਪ੍ਰਕ੍ਰਿਆ ਹੈ ਜਿਸ ਦੇ ਦੁਆਰਾ ਵਿਅਕਤੀ ਉਨ੍ਹਾਂ ਚੀਜ਼ਾਂ ਦੀ ਸਿਖਲਾਈ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਦਾ ਹੈ ਜਿਹੜੀਆਂ ਉਸ ਨੂੰ ਸਮਾਜ ਵਿਚ ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਬਿਤਾਉਣ ਲਈ ਤਿਆਰ ਕਰਦੀਆਂ ਹਨ ।”

ਇਸ ਪ੍ਰਕਾਰ ਅਸੀਂ ਉਪਰੋਕਤ ਵਿਵਰਨ ਦੇ ਆਧਾਰ ਤੇ ਇਹ ਕਹਿ ਸਕਦੇ ਹਾਂ ਕਿ ਸਿੱਖਿਆ ਦੇ ਦੁਆਰਾ ਸਮਾਜ ਦੀਆਂ ਰੁੜੀਆਂ, ਰੀਤੀ-ਰਿਵਾਜਾਂ, ਪਰੰਪਰਾਵਾਂ ਆਦਿ ਨੂੰ ਅਗਲੀ ਪੀੜ੍ਹੀ ਤੱਕ ਪਹੁੰਚਾਇਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਇਹ ਰਸਮੀ ਅਤੇ ਗ਼ੈਰ-ਰਸਮੀ ਦੋਨੋਂ ਤਰੀਕਿਆਂ ਨਾਲ ਪ੍ਰਦਾਨ ਕੀਤੀ ਜਾਂਦੀ ਹੈ । ਰਸਮੀ ਸਿੱਖਿਆ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਵਿਅਕਤੀ ਸਿੱਖਿਅਕ ਸੰਸਥਾਵਾਂ : ਜਿਵੇਂ-ਸਕੂਲ, ਕਾਲਜ ਤੇ ਯੂਨੀਵਰਸਿਟੀਆਂ ਵਿਚੋਂ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਦਾ ਹੈ ।

ਸਿੱਖਿਅਕ ਕਾਰਕ ਅਤੇ ਸਮਾਜਿਕ ਪਰਿਵਰਤਨ (Educational Factor and Social Change)

1. ਸਿੱਖਿਅਕ ਕਾਰਕ ਅਤੇ ਪਰਿਵਾਰ (Educational factor and family) – ਸਿੱਖਿਅਕ ਕਾਰਕ ਦਾ ਪਰਿਵਾਰ ਦੀ ਸੰਸਥਾ ਦੇ ਉੱਪਰ ਗਹਿਰਾ ਪ੍ਰਭਾਵ ਪਿਆ ਹੈ । ਪ੍ਰਾਚੀਨ ਸਮਾਜਾਂ ਦੇ ਵਿਚ ਵਿਅਕਤੀ ਕੇਵਲ ਜਿਉਂਦੇ ਰਹਿਣ ਲਈ ਆਪਣੀ ਰੋਜ਼ੀ-ਰੋਟੀ ਦਾ ਪ੍ਰਬੰਧ ਕਰਦਾ ਹੁੰਦਾ ਸੀ । ਪਰਿਵਾਰ ਦੇ ਸਾਰੇ ਹੀ ਮੈਂਬਰ ਇੱਕੋ ਹੀ ਕਿੱਤੇ ਵਿਚ ਰੁੱਝੇ ਰਹਿੰਦੇ ਸਨ । ਰਹਿਣਸਹਿਣ ਦਾ ਪੱਧਰ ਕਾਫ਼ੀ ਨੀਵਾਂ ਸੀ ਕਿਉਂਕਿ ਲੋਕਾਂ ਵਿਚ ਚੇਤਨਤਾ ਹੀ ਨਹੀਂ ਸੀ ਕਿ ਉਹ ਪ੍ਰਗਤੀ ਕਰਨ । ਜਿਵੇਂ-ਜਿਵੇਂ ਸਿੱਖਿਆ ਸੰਬੰਧੀ ਵਿਅਕਤੀਆਂ ਵਿਚ ਜਾਗ੍ਰਿਤੀ ਆਈ ਤਾਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਆਪਣੇ ਆਪ ਨੂੰ ਨਵੀਆਂ ਕਦਰਾਂ-ਕੀਮਤਾਂ ਦੇ ਮੁਤਾਬਿਕ ਰਹਿਣਾ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਜਿੱਥੇ ਪਹਿਲਾਂ ਪਰਿਵਾਰ ਦੇ ਸਾਰੇ ਮੈਂਬਰ ਇੱਕੋ ਹੀ ਕਿੱਤੇ ਵਿਚ ਰੁੱਝੇ ਰਹਿੰਦੇ ਸਨ, ਉੱਥੇ ਉਹ ਆਪਣੀ ਇੱਛਾ ਤੇ ਯੋਗਤਾ ਮੁਤਾਬਿਕ ਵੱਖੋ-ਵੱਖਰੇ ਕਿੱਤਿਆਂ ਨੂੰ ਅਪਣਾਉਣ ਲੱਗ ਪਏ । ਇਸ ਦੇ ਨਾਲ ਪ੍ਰਾਚੀਨ ਸਮਾਜ ਤੋਂ ਚਲੀ ਆ ਰਹੀ ਸੰਯੁਕਤ ਪਰਿਵਾਰਕ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਦੀ ਜਗਾ ਕੇਂਦਰੀ ਪਰਿਵਾਰ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਹੋਈ ।

ਆਧੁਨਿਕ ਪਰਿਵਾਰਾਂ ਦੇ ਵਿਚ ਜੇਕਰ ਵਿਅਕਤੀ ਆਪ ਮਿਹਨਤ ਕਰਦਾ ਹੈ ਤਾਂ ਹੀ ਉਹ ਆਪਣਾ ਗੁਜ਼ਾਰਾ ਚਲਾ ਸਕਦਾ ਹੈ ਤੇ ਆਪਣੇ ਰਹਿਣ-ਸਹਿਣ ਦਾ ਪੱਧਰ ਵੀ ਉੱਚਾ ਕਰ ਸਕਦਾ ਹੈ । ਹੁਣ ਉਸ ਨੂੰ ਸਥਿਤੀ ਆਪਣੀ ਯੋਗਤਾ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ਨਾ ਕਿ ਉਸਨੂੰ ਵਿਰਸੇ ਵਿਚ ਮਿਲਦੀ ਹੈ । ਇਸ ਪ੍ਰਕਾਰ ਸਿੱਖਿਅਕ ਕਾਰਕਾਂ ਦੇ ਪ੍ਰਭਾਵ ਨਾਲ ਪਰਿਵਾਰ ਦੀ ਬਣਤਰ ਤੇ ਕੰਮਾਂ ਵਿਚ ਵੀ ਪਰਿਵਰਤਨ ਆਇਆ | ਅਜੋਕੇ ਪਰਿਵਾਰਾਂ ਦੇ ਵਿਚ ਜਿੱਥੇ ਪਤੀ-ਪਤਨੀ ਦੋਵੇਂ ਕੰਮਾਂ-ਕਾਰਾਂ ਵਿਚ ਰੁੱਝੇ ਹੁੰਦੇ ਹਨ ਉੱਥੇ ਬੱਚਿਆਂ ਦੀ ਪਰਵਰਿਸ਼ ਵੀ ਕਰੈਚਾਂ ਵਿਚ ਹੁੰਦੀ ਹੈ । ਇਸੇ ਕਰਕੇ ਪਰਿਵਾਰ ਦਾ ਆਪਣੇ ਮੈਂਬਰਾਂ ਉੱਪਰ ਨਿਯੰਤਰਨ ਵੀ ਘੱਟ ਗਿਆ ਹੈ ।

2. ਸਿੱਖਿਅਕ ਕਾਰਕ ਦਾ ਜਾਤੀ ਪ੍ਰਥਾ ਉੱਪਰ ਪ੍ਰਭਾਵ (Effect of educational factor on caste system) – ਭਾਰਤੀ ਸਮਾਜ ਦੇ ਵਿਚ ਜਾਤੀ ਪ੍ਰਥਾ ਇਕ ਅਜਿਹੀ ਸਮਾਜਿਕ ਬੁਰਾਈ ਰਹੀ ਹੈ ਜਿਸ ਨੇ ਪ੍ਰਤੀ ਦੇ ਰਸਤੇ ਵਿਚ ਰੁਕਾਵਟ ਪੈਦਾ ਕੀਤੀ ਸੀ । ਜਾਤੀ ਪ੍ਰਥਾ ਦੇ ਵਿਚ ਸਿੱਖਿਆ ਕੇਵਲ ਉੱਪਰਲੀਆਂ ਜਾਤਾਂ ਦੇ ਮੈਂਬਰਾਂ ਤਕ ਹੀ ਸੀਮਿਤ ਸੀ ਅਤੇ ਸਿੱਖਿਆ ਦੀ ਕਿਸਮ ਵੀ ਧਾਰਮਿਕ ਸੀ । ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਹਕੂਮਤ ਦੇ ਆਉਣ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਜਾਤੀ ਪ੍ਰਥਾ ਕਮਜ਼ੋਰ ਹੋਣੀ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋ ਗਈ ਕਿਉਂਕਿ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੇ ਲਈ ਸਾਰੇ ਹੀ ਵਿਅਕਤੀ ਭਾਰਤੀ ਸਨ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਸਭ ਜਾਤਾਂ ਦੇ ਵਿਅਕਤੀਆਂ ਨਾਲ ਬਰਾਬਰੀ ਦਾ ਸਲੂਕ ਕੀਤਾ । ਸਿੱਖਿਆ ਦੇ ਖੇਤਰ ਵਿਚ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਪੱਛਮੀ ਸਿੱਖਿਆ ਨੂੰ ਮਹੱਤਵ ਦਿੱਤਾ । ਇਸੇ ਕਰਕੇ ਸਿੱਖਿਆ ਧਰਮ ਨਿਰਪੱਖ ਹੋ ਗਈ । ਆਧੁਨਿਕ ਸਿੱਖਿਆ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਨੇ ਸਮਾਨਤਾ, ਸੁਤੰਤਰਤਾ ਅਤੇ ਭਾਈਚਾਰੇ ਵਾਲੀਆਂ ਕੀਮਤਾਂ ਉੱਪਰ ਜ਼ੋਰ ਦਿੱਤਾ । ਰਸਮੀ ਸਿੱਖਿਆ ਲਈ ਸਕੂਲ, ਕਾਲਜ ਆਦਿ ਖੋਲ੍ਹੇ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਵਿਚ ਹਰ ਜਾਤ ਦਾ ਵਿਅਕਤੀ ਸਿੱਖਿਆ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰ ਸਕਣ ਲੱਗਾ । ਸਾਰੇ ਵਿਅਕਤੀ ਇੱਕੋ ਸਕੂਲ ਵਿਚ ਪੜ੍ਹਨ ਲੱਗ ਪਏ, ਜਿਸ ਨਾਲ ਛੂਤ-ਛਾਤ ਦਾ ਭੇਦ-ਭਾਵ ਵੀ ਖ਼ਤਮ ਹੋਇਆ ।

3. ਸਿੱਖਿਅਕ ਕਾਰਕ ਦਾ ਵਿਆਹ ਉੱਪਰ ਪ੍ਰਭਾਵ (Effects of educational factor on marriage) – ਵਿਆਹ ਦੀ ਸੰਸਥਾ ਵੀ ਸਿੱਖਿਅਕ ਕਾਰਕ ਦੇ ਪ੍ਰਭਾਵ ਹੇਠ ਆ ਕੇ ਕਾਫ਼ੀ ਬਦਲ ਗਈ ਹੈ । ਪੜ੍ਹੇ-ਲਿਖੇ ਲੋਕਾਂ ਦਾ ਵਿਆਹ ਸੰਬੰਧੀ ਨਜ਼ਰੀਆ ਹੀ ਬਦਲ ਗਿਆ । ਸ਼ੁਰੂ ਵਿਚ ਵਿਆਹ ਪਰਿਵਾਰ ਦੀ ਸਹਿਮਤੀ ਤੋਂ ਬਗੈਰ ਨਹੀਂ ਸਨ ਹੋ ਸਕਦੇ । ਪਰਿਵਾਰ ਦੇ ਵੱਡੇ ਬਜ਼ੁਰਗ ਆਪ ਲੜਕੀ ਤੇ ਲੜਕੇ ਦਾ ਵਿਆਹ ਤੈਅ ਕਰਦੇ ਸਨ ਅਤੇ ਵਿਆਹ ਸੰਬੰਧੀ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਵਿਚਾਰ ਸੀ ਕਿ ਆਪਣੇ ਬਰਾਬਰ ਦੇ ਪਰਿਵਾਰ ਵਿਚ ਕੀਤਾ ਜਾਵੇ । ਉਹ ਲੜਕੀ ਅਤੇ ਲੜਕੇ ਦੇ ਗੁਣਾਂ ਵੱਲ ਇੰਨਾ ਧਿਆਨ ਨਹੀਂ ਸਨ ਦਿੰਦੇ ਜਿੰਨਾ ਕਿ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਖਾਨਦਾਨ ਵਲ ਦਿੰਦੇ ਸਨ ।

ਇਸ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਪਤੀ-ਪਤਨੀ ਦੇ ਸੰਬੰਧਾਂ ਦੇ ਵਿਚ ਸਮਝੌਤੇ ਦਾ ਤੱਤ ਮੌਜੂਦ ਹੈ ਨਾ ਕਿ ਧਾਰਮਿਕ ਬੰਧਨ ਦਾ । ਹੁਣਪੜ੍ਹੀ-ਲਿਖੀ ਔਰਤ, ਆਦਮੀ ਦੀ ਗੁਲਾਮ ਨਹੀਂ । ਜੇਕਰ ਉਸ ਦਾ ਪਤੀ ਉਸ ਨਾਲ ਬੁਰਾ ਸਲੂਕ ਕਰਦਾ ਹੈ ਤਾਂ ਉਹ ਕਾਨੂੰਨ ਦੀ ਮਦਦ ਨਾਲ ਉਸ ਤੋਂ ਵੱਖ ਹੋ ਜਾਂਦੀ ਹੈ । ਪੜੇ-ਲਿਖੇ ਨੌਜਵਾਨ ਵਿਆਹ ਕਰਵਾਉਣ ਲਈ ਬਿਲਕੁਲ ਕਾਹਲੇ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦੇ, ਬਲਕਿ ਉਹ ਆਪਣਾ ਕੈਰੀਅਰ ਬਣਾਉਣਾ ਜ਼ਰੂਰੀ ਸਮਝਦੇ ਸਨ । ਇਸ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਪ੍ਰੇਮ ਵਿਆਹ ਤੇ ਕੋਰਟ ਦੁਆਰਾ ਵਿਆਹ ਵਧੇਰੇ ਪ੍ਰਚਲਿਤ ਹੈ ।

4. ਸਿੱਖਿਆ ਦਾ ਸਮਾਜਿਕ ਦਰਜਾਬੰਦੀ ਉੱਪਰ ਪ੍ਰਭਾਵ (Effect of education on social stratification) – ਸਿੱਖਿਆ, ਸਮਾਜਿਕ ਦਰਜਾਬੰਦੀ ਦੇ ਆਧਾਰਾਂ ਵਿਚੋਂ ਇਕ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਆਧਾਰ ਹੈ । ਇਸ ਨੇ ਸਾਡੇ ਸਮਾਜ ਨੂੰ ਦੋ ਹਿੱਸਿਆਂ ਵਿਚ ਵੰਡਿਆ ਹੈ-
(i) ਪੜ੍ਹੇ-ਲਿਖੇ (Literate)
(ii) ਅਨਪੜ੍ਹ (Illiterate) ।

ਵਿਅਕਤੀ ਨੂੰ ਸਮਾਜ ਦੇ ਵਿਚ ਸਥਿਤੀ ਸਿੱਖਿਆ ਦੇ ਦੁਆਰਾ ਵੀ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੁੰਦੀ ਹੈ । ਵਿਅਕਤੀ ਸਮਾਜ ਦੇ ਵਿਚ ਉੱਚਾ ਅਹੁਦਾ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਨ ਦੇ ਲਈ ਉਚੇਰੀ ਸਿੱਖਿਆ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਦਾ ਹੈ । ਜਿਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦੀ ਸਿੱਖਿਅਕ ਯੋਗਤਾ ਵਿਅਕਤੀ ਕੋਲ ਹੁੰਦੀ ਹੈ, ਉਹ ਉਸੇ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦੀ ਸਮਾਜ ਵਿਚ ਪਦਵੀ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਨ ਦੇ ਯੋਗ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਇਸ ਪ੍ਰਕਾਰ ਆਧੁਨਿਕ ਸਮਾਜ ਦੀ ਜਨਸੰਖਿਆ ਦੀ ਸਿੱਖਿਆ ਦੇ ਆਧਾਰ ਤੇ ਦਰਜਾਬੰਦੀ ਕੀਤੀ ਜਾਂਦੀ ਹੈ । ਪੜੇ-ਲਿਖੇ ਵਿਅਕਤੀ ਨੂੰ ਸਮਾਜ ਦੇ ਵਿਚ ਆਦਰ ਸਨਮਾਨ ਵੀ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ।

ਪ੍ਰਾਚੀਨ ਸਮਾਜ ਦੇ ਵਿਚ ਵਿਅਕਤੀ ਦੀ ਸਥਿਤੀ ਪ੍ਰਦਤ (ascribed) ਹੁੰਦੀ ਸੀ | ਅਰਥਾਤ ਉਹ ਜਿਸ ਪਰਿਵਾਰ ਵਿਚ ਜਨਮ ਲੈਂਦਾ ਸੀ ਉਸ ਨੂੰ ਸਥਿਤੀ ਵੀ ਉਸੇ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦੀ ਮਿਲਦੀ ਸੀ, ਲੇਕਿਨ ਸਿੱਖਿਆ ਦੇ ਖੇਤਰ ਵਿਚ ਪ੍ਰਤੀ ਹੋਣ ਦੇ ਨਾਲ ਵਿਅਕਤੀ ਦੀ ਸਥਿਤੀ ਅਰਜਿਤ ਪਦ ਦੀ (achieved) ਹੁੰਦੀ ਹੈ । ਅਰਥਾਤ ਵਰਤਮਾਨ ਸਮਾਜ ਦੇ ਵਿਚ ਵਿਅਕਤੀ ਨੂੰ ਆਪਣੀ ਸਥਿਤੀ ਨਿੱਜੀ ਯੋਗਤਾ ਤੇ ਗੁਣਾਂ ਦੇ ਆਧਾਰ ਤੇ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੁੰਦੀ ਹੈ । ਵਿਅਕਤੀ ਆਪਣੀ ਇੱਛਾ ਅਨੁਸਾਰ, ਆਪਣੀ ਮਿਹਨਤ ਅਤੇ ਯੋਗਤਾ ਨਾਲ ਉੱਚੇ ਤੋਂ ਉੱਚਾ ਪਦ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰ ਸਕਦਾ ਹੈ ।

5. ਸਿੱਖਿਆਤਮਕ ਕਾਰਕ ਦੇ ਕੁੱਝ ਹੋਰ ਪ੍ਰਭਾਵ (Some other effects of educational factor) – ਸਿੱਖਿਆਤਮਕ ਕਾਰਕ ਦੇ ਪ੍ਰਭਾਵ ਨਾਲ ਔਰਤਾਂ ਦੀ ਸਥਿਤੀ ਵਿਚ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਪਰਿਵਰਤਨ ਪਾਇਆ ਗਿਆ । ਆਧੁਨਿਕ ਸਮਾਜ ਦੀ ਸਿੱਖਿਅਤੇ ਔਰਤ ਦੇਸ਼ ਦੇ ਹਰ ਖੇਤਰ ਵਿਚ ਵੱਧ-ਚੜ੍ਹ ਕੇ ਹਿੱਸਾ ਲੈ ਰਹੀ ਹੈ | ਭਾਰਤ ਦੀ ਪ੍ਰਧਾਨ ਮੰਤਰੀ ਸ੍ਰੀਮਤੀ ਇੰਦਰਾ ਗਾਂਧੀ ਨੇ ਬਹੁਤ ਲੰਬਾ ਸਮਾਂ ਰਾਜਨੀਤੀ ਵਿਚ ਗੁਜ਼ਾਰਿਆ ਤੇ ਦੇਸ਼ ਉੱਪਰ ਰਾਜ ਕੀਤਾ । ਸਿੱਖਿਆ ਦੇ ਪ੍ਰਸਾਰ ਨਾਲ ਔਰਤਾਂ ਵਿਚ ਵਿਆਹ ਦੀ ਉਮਰ ਵਿਚ ਵਾਧਾ ਹੋ ਰਿਹਾ ਹੈ । ਉਹ ਆਪਣਾ ਜੀਵਨ ਸਾਥੀ ਚੁਣਨ ਦੇ ਲਈ ਪੂਰੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਆਜ਼ਾਦ ਹੋ ਗਈਆਂ ਹਨ । ਪ੍ਰੇਮ ਵਿਆਹ ਨੂੰ ਤਰਜੀਹ ਦਿੱਤੀ ਗਈ ਹੈ ਅਤੇ ਤਲਾਕਾਂ ਦੀ ਦਰ ਵਿਚ ਵੀ ਵਾਧਾ ਹੋਇਆ ਹੈ । ਸਿੱਖਿਆ ਦੇ ਪ੍ਰਭਾਵ ਨੇ ਔਰਤ ਦੀ ਹਾਲਤ ਵਿਚ ਸੁਧਾਰ ਲਿਆਂਦਾ ਹੈ ।

ਇਸੇ ਕਰਕੇ ਪਰਿਵਾਰ ਦਾ ਆਕਾਰ ਵੀ ਛੋਟਾ ਹੋ ਗਿਆ ਹੈ । ਪੜੀ-ਲਿਖੀ ਔਰਤ ਜਦੋਂ ਨੌਕਰੀ ਕਰਨ ਲੱਗ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ਤਾਂ ਉਹ ਵਧੇਰੇ ਸੰਤਾਨ ਪੈਦਾ ਕਰਨ ਦੀ ਨੀਤੀ ਨੂੰ ਠੀਕ ਨਹੀਂ ਸਮਝਦੀ । ਬੱਚਿਆਂ ਦੀ ਪਰਵਰਿਸ਼ ਤਾਂ ਪਹਿਲਾਂ ਹੀ ਘਰੋਂ ਬਾਹਰ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ਤੇ ਦੂਸਰਾ ਰਹਿਣ-ਸਹਿਣ ਦਾ ਪੱਧਰ ਉੱਚਾ ਚਾਹੁਣ ਦੀ ਇੱਛਾ ਨੇ ਆਰਥਿਕ ਦਬਾਅ ਵੀ ਪਾ ਦਿੱਤਾ ਹੈ । ਇਕ ਜਾਂ ਦੋ ਬੱਚਿਆਂ ਨੂੰ ਪੜ੍ਹਾਉਣਾ-ਲਿਖਾਉਣਾ ਸੰਭਵ ਹੈ । ਭਾਰਤੀ ਸਮਾਜ ਦੇ ਵਿੱਚ ਔਰਤ ਆਰਥਿਕ, ਰਾਜਨੀਤਿਕ ਤੇ ਸਮਾਜਿਕ ਆਦਿ ਖੇਤਰਾਂ ਵਿਚ ਪੁਰਸ਼ਾਂ ਦੀ ਬਰਾਬਰੀ ਕਰ ਰਹੀ ਹੈ । ਹੁਣ ਉਹ ਆਦਮੀ ਦੀ ਗੁਲਾਮ ਬਣ ਕੇ ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਬਤੀਤ ਨਹੀਂ ਕਰ ਰਹੀ ਬਲਕਿ ਉਸ ਦੀ ਮਿੱਤਰ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿਚ ਖੜੀ ਹੋਈ ਹੈ ।

6. ਸਮਾਜਿਕ ਕਦਰਾਂ-ਕੀਮਤਾਂ ਉੱਤੇ ਪ੍ਰਭਾਵ (Effect on Social Values) – ਵਿੱਦਿਆ ਨਾ ਸਿਰਫ਼ ਵਿਅਕਤੀਗਤ ਕਦਰਾਂ-ਕੀਮਤਾਂ ਨੂੰ ਉਤਪੰਨ ਕਰਦੀ ਹੈ ਬਲਕਿ ਸਮਾਜਿਕ ਕਦਰਾਂ-ਕੀਮਤਾਂ ; ਜਿਵੇਂ-ਲੋਕਤੰਤਰ, ਸਮਾਨਤਾ ਆਦਿ ਨੂੰ ਵੀ ਵਧਾਉਂਦੀ ਹੈ । ਇਹ ਸਿੱਖਿਆ ਕਰਕੇ ਹੀ ਹੈ ਜਿਸ ਕਾਰਨ ਕਾਨੂੰਨ ਦੇ ਸਾਹਮਣੇ ਸਾਰੇ ਵਿਅਕਤੀ ਬਰਾਬਰ ਸਮਝੇ ਜਾਂਦੇ ਹਨ । ਸਿੱਖਿਆ ਦੇ ਪ੍ਰਭਾਵ ਅਧੀਨ ਹੀ ਸਾਡੇ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚੋਂ ਕਈ ਗ਼ਲਤ ਪ੍ਰਥਾਵਾਂ ਜਿਵੇਂ ਸਤੀ ਪ੍ਰਥਾ, ਜਾਤ ਪ੍ਰਥਾ, ਬਾਲ ਵਿਆਹ, ਵਿਧਵਾ ਵਿਆਹ ਨਾ ਹੋਣਾ ਆਦਿ ਖ਼ਤਮ ਹੋ ਗਈਆਂ ਹਨ ਜਾਂ ਫਿਰ ਖਤਮ ਹੋ ਰਹੀਆਂ ਹਨ । ਵਿੱਦਿਆ ਨਾਲ ਹੀ ਕਈ ਚੰਗੀਆਂ ਪਥਾਵਾਂ ਜਿਵੇਂ ਵਿਧਵਾ ਵਿਆਹ, ਅੰਤਰ-ਜਾਤੀ ਵਿਆਹ ਆਦਿ ਅੱਗੇ ਆ ਗਏ ਹਨ । ਹੁਣ ਸਿੱਖਿਆ ਦੇ ਪ੍ਰਭਾਵ ਅਧੀਨ ਹੀ ਭੇਦ-ਭਾਵ ਖਤਮ ਹੋ ਗਿਆ ਹੈ, ਔਰਤਾਂ ਦੀ ਦਸ਼ਾ ਵਿੱਚ ਬਹੁਤ ਸੁਧਾਰ ਹੋ ਗਿਆ ਹੈ ਤੇ ਹੋ ਵੀ ਰਿਹਾ ਹੈ । ਆਧੁਨਿਕ ਸਮਾਜ ਤੇ ਆਧੁਨਿਕ ਸਮਾਜ ਦੀਆਂ ਕਦਰਾਂ-ਕੀਮਤਾਂ ਸਿੱਖਿਆ ਦੀ ਹੀ ਦੇਣ ਹਨ ।

7. ਸਿੱਖਿਆ ਦਾ ਕਿੱਤਿਆਂ ਉੱਤੇ ਪ੍ਰਭਾਵ (Effect of Education on occupations) – ਪੁਰਾਣੇ ਸਮਿਆਂ ਵਿਚ ਕਿੱਤਿਆਂ ਦਾ ਆਧਾਰ ਸਿੱਖਿਆ ਨਾ ਹੋ ਕੇ ਜਾਤ ਵਿਵਸਥਾ ਹੁੰਦਾ ਸੀ । ਵਿਅਕਤੀ ਜਿਸ ਜਾਤ ਵਿੱਚ ਜਨਮ ਲੈਂਦਾ ਸੀ ਉਸ ਨੂੰ ਉਸ ਜਾਤ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧਿਤ ਕਿੱਤਾ ਹੀ ਅਪਣਾਉਣਾ ਪੈਂਦਾ ਸੀ । ਜਿਵੇਂ ਲੁਹਾਰ ਦਾ ਪੁੱਤਰ ਲੁਹਾਰ ਦਾ ਹੀ ਕੰਮ ਕਰੇਗਾ, ਸੁਨਿਆਰੇ ਦਾ ਪੁੱਤਰ ਸੁਨਿਆਰੇ ਦਾ ਹੀ ਕੰਮ ਕਰੇਗਾ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਸਿੱਖਿਆ ਦਾ ਕੋਈ ਪ੍ਰਭਾਵ ਨਹੀਂ ਸੀ । ਪਰ ਆਧੁਨਿਕ ਸਿੱਖਿਆ ਦੇ ਅਧੀਨ ਹੁਣ ਜਾਤ ਦੀ ਥਾਂ ਉੱਤੇ ਵਿਅਕਤੀਗਤ ਯੋਗਤਾ ਨੂੰ ਮਹੱਤਵ ਦਿੱਤਾ ਜਾਣ ਲੱਗ ਪਿਆ ਹੈ । ਹੁਣ ਵਿਅਕਤੀ ਦਾ ਕਿੱਤਾ ਇਸ ਗੱਲ ਉੱਤੇ ਨਿਰਭਰ ਨਹੀਂ ਕਰਦਾ ਹੈ ਕਿ ਵਿਅਕਤੀ ਨੇ ਕਿਸ ਜਾਤ ਵਿੱਚ ਜਨਮ ਲਿਆ ਹੈ ਬਲਕਿ ਇਸ ਗੱਲ ਉੱਤੇ ਨਿਰਭਰ ਕਰਦਾ ਹੈ ਕਿ ਉਹ ਕੀ ਹੈ ? ਉਸ ਦੀ ਸਿੱਖਿਅਕ ਯੋਗਤਾ ਕੀ ਹੈ ? ਅੱਜ-ਕਲ੍ਹ ਜੇਕਰ ਵਿਅਕਤੀ ਨੇ ਆਪਣੀ ਯੋਗਤਾ ਵਿੱਚ ਵਾਧਾ ਕਰਨਾ ਹੈ ਤਾਂ ਉਸ ਲਈ ਸਿੱਖਿਆ ਲੈਣੀ ਬਹੁਤ ਜ਼ਰੂਰੀ ਹੈ । ਜੇਕਰ ਵਿਅਕਤੀ ਨੇ ਉੱਚੀ ਪਦਵੀ ਲੈਣੀ ਹੈ ਤਾਂ ਉਸ ਲਈ ਪੜ੍ਹਨਾ-ਲਿਖਣਾ ਬਹੁਤ ਜ਼ਰੂਰੀ ਹੈ । ਪੜ੍ਹਾਈ-ਲਿਖਾਈ ਨੇ ਜਾਤ ਦੀ ਮਹੱਤਤਾ ਨੂੰ ਬਹੁਤ ਘਟਾ ਦਿੱਤਾ ਹੈ । ਸਿੱਖਿਆ ਕਾਰਨ ਹੀ ਜਾਤ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧਿਤ ਸਮਾਨਤਾ ਕਾਫੀ ਘੱਟ ਗਈ ਹੈ । ਹੁਣ ਕੋਈ ਵੀ ਸਿੱਖਿਆ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਕੇ ਕਿਸੇ ਵੀ ਪਦਵੀ ਨੂੰ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰ ਸਕਦਾ ਹੈ ।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 11 ਸਮਾਜਿਕ ਪਰਿਵਰਤਨ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 6.
‘ਤਕਨੀਕੀ ਕਾਰਨ’ ਉੱਤੇ ਵਿਸਤਾਰਪੂਰਵਕ ਨੋਟ ਲਿਖੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਸਮਾਜਿਕ ਪਰਿਵਰਤਨ ਲਿਆਉਣ ਦੇ ਲਈ ਤਕਨੀਕੀ ਕਾਰਕ ਵੀ ਭਾਰਤੀ ਸਮਾਜ ਵਿਚ ਵਧੇਰੇ ਪ੍ਰਬਲ ਹੈ ਅਤੇ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਹੈ । ਸਮਾਜ ਦੇ ਵਿਚ ਨਿੱਤ ਨਵੀਆਂ ਕਾਢਾਂ ਅਤੇ ਨਵੇਂ ਆਵਿਸ਼ਕਾਰ ਹੁੰਦੇ ਰਹਿੰਦੇ ਹਨ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਪ੍ਰਭਾਵ ਸਮੁੱਚੇ ਸਮਾਜ ਉੱਪਰ ਵੀ ਪੈਂਦਾ ਹੈ । ਆਧੁਨਿਕ ਸਮੇਂ ਵਿਚ ਤਾਂ ਕਾਢਾਂ ਅਤੇ ਖੋਜਾਂ ਦੀ ਰਫ਼ਤਾਰ ਵਿਚ ਵੀ ਤੇਜ਼ੀ ਆਈ ਹੈ ਜਿਸ ਕਰਕੇ ਆਧੁਨਿਕ ਸਦੀ ਨੂੰ ਵਿਗਿਆਨ ਦਾ ਯੁੱਗ ਵੀ ਕਿਹਾ ਗਿਆ ਹੈ । ਤਕਨੀਕ ਵਿਚ ਲਗਾਤਾਰ ਵਿਕਾਸ ਹੁੰਦਾ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ ਜਿਸ ਕਰਕੇ ਸਮਾਜ ਦੇ ਵਿਚ ਪਰਿਵਰਤਨ ਵੀ ਆਉਂਦਾ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ । ਕਿਸੇ ਵੀ ਸਮਾਜ ਦੀ ਪ੍ਰਤੀ ਵੀ ਉੱਥੋਂ ਦੀ ਤਕਨੀਕ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧਿਤ ਹੁੰਦੀ ਹੈ । ਅੱਜ-ਕਲ੍ਹ ਆਵਾਜਾਈ ਦੇ ਸਾਧਨ, ਸੰਚਾਰ ਦੇ ਸਾਧਨ, ਡਾਕ-ਤਾਰ ਵਿਭਾਗ ਆਦਿ ਵਿਚ ਤਕਨੀਕੀ ਪੱਖੋਂ ਬਹੁਤ ਹੀ ਤਰੱਕੀ ਹੋਈ ਹੈ ।

ਅਜੋਕਾ ਯੁੱਗ ਮਸ਼ੀਨੀ ਯੁੱਗ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਜਿਸ ਵਿਚ ਸਮਾਜ ਦੇ ਹਰ ਖੇਤਰ ਵਿਚ ਮਸ਼ੀਨਾਂ ਦਾ ਪ੍ਰਭਾਵ ਵੇਖਣ ਨੂੰ ਮਿਲਦਾ ਹੈ । ਕਈ ਸਮਾਜ ਵਿਗਿਆਨੀਆਂ ਨੇ ਤਾਂ ਤਕਨੀਕੀ ਕਾਰਕ ਨੂੰ ਹੀ ਸਮਾਜਿਕ ਪਰਿਵਰਤਨ ਦਾ ਮੁੱਖ ਕਾਰਕ ਦੱਸਿਆ ਹੈ ।

ਅਸਲ ਵਿਚ ਤਕਨੀਕੀ ਕਾਰਕ ਦੇ ਵਿਚ ਮਸ਼ੀਨਾਂ, ਸੰਦ ਅਤੇ ਉਹ ਸਭ ਚੀਜ਼ਾਂ ਨੂੰ ਸ਼ਾਮਿਲ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਜਿਸ ਵਿਚ ਮਨੁੱਖੀ ਸ਼ਕਤੀ ਦਾ ਇਸਤੇਮਾਲ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

ਤਕਨੀਕ ਅਤੇ ਸਮਾਜਿਕ ਪਰਿਵਰਤਨ (Technology and Social Change) – ਇੱਥੇ ਹੁਣ ਅਸੀਂ ਦੇਖਾਂਗੇ ਕਿ ਕਿਵੇਂ ਤਕਨੀਕੀ ਕਾਰਕਾਂ ਨੇ ਸਮਾਜਿਕ ਪਰਿਵਰਤਨ ਕੀਤਾ ਹੈ ਅਤੇ ਜੀਵਨ ਦੇ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਖੇਤਰਾਂ ਵਿਚ ਪਰਿਵਰਤਨ ਲਿਆਉਣ ਵਿਚ ਯੋਗਦਾਨ ਪਾਇਆ ਹੈ-
1. ਉਤਪਾਦਨ ਦੇ ਖੇਤਰ ਵਿਚ ਪਰਿਵਰਤਨ (Changes in the area of production) – ਤਕਨੀਕ ਨੇ ਉਤਪਾਦਨ ਦੇ ਖੇਤਰ ਨੂੰ ਤਾਂ ਆਪਣੇ ਕਬਜ਼ੇ ਵਿਚ ਹੀ ਕਰ ਲਿਆ ਹੈ । ਕਾਰਖ਼ਾਨਿਆਂ ਦੇ ਖੁੱਲ੍ਹਣ ਨਾਲ ਘਰੇਲੂ ਉਤਪਾਦਨ ਪ੍ਰਭਾਵਿਤ ਹੋਏ । ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਡੀ ਤਬਦੀਲੀ ਤਾਂ ਇਹ ਆਈ ਕਿ ਮਸ਼ੀਨਾਂ ਦੇ ਆਉਣ ਨਾਲ ਘਰੇਲੂ ਜਾਂ ਵਿਅਕਤੀਗਤ ਉਤਪਾਦਨ ਫੈਕਟਰੀਆਂ ਵਿਚ ਚਲਾ ਗਿਆ । ਵੱਡੇ-ਵੱਡੇ ਕਾਰਖ਼ਾਨਿਆਂ ਦੇ ਵਿਚ ਕਈ ਲੋਕ ਕੰਮ ਕਰਨ ਲੱਗ ਪਏ । ਹਰ ਖੇਤਰ ਵਿਚ ਨਵੀਆਂ ਮਸ਼ੀਨਾਂ ਦਾ ਇਸਤੇਮਾਲ ਕੀਤਾ ਜਾਣ ਲੱਗ ਪਿਆ । ਇਸ ਦੇ ਨਾਲ ਹੀ ਉਦਯੋਗੀਕਰਨ ਦਾ ਵਿਕਾਸ ਵੀ ਹੋਇਆ । ਘਰੇਲੂ ਉਤਪਾਦਨ ਦੇ ਖ਼ਤਮ ਹੋਣ ਦੇ ਨਾਲ ਔਰਤਾਂ ਵੀ ਘਰ ਤੋਂ ਬਾਹਰ ਨਿਕਲ ਆਈਆਂ । ਇਸ ਨਾਲ ਔਰਤ ਦੀ ਸਮਾਜਿਕ ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਵਿਚ ਵੀ ਬਿਲਕੁਲ ਪਰਿਵਰਤਨ ਆ ਗਿਆ ਹੈ ।

ਆਧੁਨਿਕ ਤਕਨੀਕ ਦਾ ਬੋਲ-ਬਾਲਾ ਹੋਣ ਲੱਗ ਪਿਆ ਕਿਉਂਕਿ ਇਸ ਨਾਲ ਉਤਪਾਦਨ ‘ਤੇ ਵੀ ਘੱਟ ਖਰਚ ਹੋਣ ਲੱਗਾ ਅਤੇ ਕੰਮ ਵੀ ਪਹਿਲਾਂ ਨਾਲੋਂ ਜਲਦੀ ਅਤੇ ਵਧੀਆ ਪਾਇਆ ਜਾਣ ਲੱਗ ਪਿਆ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਵੱਡੇ-ਵੱਡੇ ਕਾਰਖ਼ਾਨਿਆਂ ਦੇ ਵਿਚ ਔਰਤਾਂ ਵੀ ਰੁਜ਼ਗਾਰ ਵਿਚ ਆ ਗਈਆਂ । ਭਾਰਤੀ ਸਮਾਜ ਦੇ ਵਿਚ ਪ੍ਰਾਚੀਨ ਸਮੇਂ ਵਿਚ ਕੱਪੜਾ ਘਰੇਲੂ ਉਤਪਾਦਨ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧਿਤ ਸੀ । ਇਸ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਚੀਨੀ ਵੀ ਲੋਕ ਘਰਾਂ ਦੇ ਵਿਚ ਹੀ ਰਹਿ ਕੇ ਬਣਾ ਲੈਂਦੇ ਸਨ । ਪਰੰਤੁ ਕਾਰਖ਼ਾਨਿਆਂ ਦੇ ਖੁੱਲਣ ਨਾਲ ਇਹ ਉਤਪਾਦਨ ਵੀ ਕਾਰਖ਼ਾਨਿਆਂ ਦੇ ਘੇਰੇ ਵਿਚ ਆ ਗਏ ਹਨ । ਅਜੋਕੇ ਸਮੇਂ ਵਿਚ ਭਾਰਤ ਵਿਚ ਕੱਪੜਾ, ਚੀਨੀ ਆਦਿ ਦੇ ਕਈ ਕਾਰਖ਼ਾਨੇ ਖੁੱਲ ਚੁੱਕੇ ਹਨ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਵਿਚ ਕਾਫ਼ੀ ਗਿਣਤੀ ਵਿਚ ਲੋਕ ਕੰਮ ਕਰ ਰਹੇ ਹਨ ।

2. ਸੰਚਾਰ ਦੇ ਸਾਧਨਾਂ ਵਿਚ ਵਿਕਾਸ (Development in means of communication) – ਕਾਰਖ਼ਾਨਿਆਂ ਦੇ ਵਿਚ ਮਸ਼ੀਨੀਕਰਨ ਹੋਣ ਦੇ ਨਾਲ ਵੱਡੇ ਪੈਮਾਨੇ ਉੱਤੇ ਉਤਪਾਦਨ ਦਾ ਵਿਕਾਸ ਜਿਸ ਨਾਲ ਸੰਚਾਰਕ ਵਿਕਾਸ ਹੋਣਾ ਵੀ ਜ਼ਰੂਰੀ ਹੋ ਗਿਆ ਸੀ । ਸੰਚਾਰ ਦੇ ਸਾਧਨਾਂ ਵਿਚ ਹੋਏ ਵਿਕਾਸ ਦੇ ਨਾਲ ਸਮੇਂ ਅਤੇ ਸਥਾਨ ਵਿਚ ਸੰਬੰਧ ਸਥਾਪਤ ਹੋਇਆ । ਆਧੁਨਿਕ ਸੰਚਾਰ ਦੀਆਂ ਤਕਨੀਕਾਂ ਨੂੰ ਜਿਵੇਂ-ਟੈਲੀਫ਼ੋਨ, ਰੇਡੀਓ, ਟੈਲੀਵਿਜ਼ਨ, ਰਸਾਲੇ, ਪ੍ਰਿੰਟਿੰਗ ਪ੍ਰੈਸ ਆਦਿ ਦੀ ਮਦਦ ਦੇ ਨਾਲ ਆਪਸੀ ਸੰਬੰਧਾਂ ਵਿਚ ਨਿਰਭਰਤਾ ਪੈਦਾ ਹੋਈ ।

ਸੰਚਾਰ ਦੇ ਸਾਧਨਾਂ ਵਿਚ ਪਾਏ ਗਏ ਵਿਕਾਸ ਦੇ ਨਤੀਜੇ ਵਜੋਂ ਹੀ ਅਲੱਗ-ਅਲੱਗ ਸੰਸਕ੍ਰਿਤੀਆਂ ਦੇ ਵਿਚ ਆਦਾਨ-ਪ੍ਰਦਾਨ ਹੋਇਆ, ਜਿਸ ਨਾਲ ਵਿਅਕਤੀ ਵਿਚ ਨੇੜਤਾ ਵੀ ਪੈਦਾ ਹੋਈ ।

ਸ਼ੁਰੂ ਦੇ ਸਮਾਜ ਵਿਚ ਸੰਚਾਰ ਕੇਵਲ ਬੋਲ-ਚਾਲ ਜਾਂ ਸੰਕੇਤਾਂ ਦੀ ਮੱਦਦ ਨਾਲ ਹੀ ਪਾਇਆ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ਪਰ ਜਦੋਂ ਬੋਲਚਾਲ ਸਮੇਂ ਲਿਖਤ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਕੀਤੀ ਜਾਣ ਲੱਗੀ ਤਾਂ ਉਸ ਨਾਲ ਵਿਅਕਤੀਆਂ ਵਿਚ ਨਿੱਜੀਪਣ ਆ ਗਿਆ ਅਤੇ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਸਮੂਹ ਦੇ ਲੋਕ ਇਕ-ਦੂਸਰੇ ਨੂੰ ਸਮਝਣ ਵੀ ਲੱਗ ਪਏ । ਇਸ ਨਾਲ ਸਾਡੀ ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਦੇ ਰੋਜ਼ਾਨਾ ਦੇ ਸਮੇਂ ਵਿਚ ਬਹੁਤ ਹੀ ਤੇਜ਼ੀ ਆਈ । ਅਸੀਂ ਦੁਰ ਵਿਦੇਸ਼ਾਂ ਵਿਚ ਬੈਠੇ ਵਿਅਕਤੀਆਂ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧ ਸਥਾਪਿਤ ਕਰਨ ਵਿਚ ਵੀ ਸਫਲ ਹੋਏ । ਅੱਜ-ਕਲ੍ਹ ਦੇ ਸਮੇਂ ਵਿਚ ਵਿਅਕਤੀ ਆਪਣੇ ਕੰਮ ਨੂੰ ਯੋਗਤਾ ਅਨੁਸਾਰ ਫੈਲਾ ਰਿਹਾ ਹੈ ਜਿਸ ਨਾਲ ਉਸ ਦੀ ਪ੍ਰਤੀ ਵੀ ਹੋਈ ਹੈ ਅਤੇ ਰਹਿਣ-ਸਹਿਣ ਦੇ ਪੱਧਰ ਵਿਚ ਵੀ ਵਾਧਾ ਹੋਇਆ ਹੈ ।

3. ਖੇਤੀਬਾੜੀ ਦੀਆਂ ਨਵੀਆਂ ਤਕਨੀਕਾਂ (New techniques of agriculture) – ਅਜੋਕੇ ਯੁੱਗ ਦੇ ਵਿਚ ਖੇਤੀਬਾੜੀ ਕਿੱਤੇ ਦੇ ਖੇਤਰ ਵਿਚ ਕਈ ਨਵੀਆਂ ਤਕਨੀਕਾਂ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਹੋਣ ਲੱਗ ਪਈ ਹੈ । ਜਿਵੇਂ ਖੇਤੀਬਾੜੀ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧਿਤ ਔਜ਼ਾਰਾਂ ਵਿਚ, ਰਸਾਇਣਿਕ ਖਾਦਾਂ ਦਾ ਪ੍ਰਯੋਗ, ਨਵੀਆਂ ਮਸ਼ੀਨਾਂ ਆਦਿ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਨਾਲ ਪਿੰਡ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਦਾ ਰਹਿਣ-ਸਹਿਣ ਦਾ ਪੱਧਰ ਵੀ ਬਦਲਿਆ | ਰਸਾਇਣਿਕ ਖਾਦਾਂ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਕਰਨ ਦੇ ਨਾਲ ਖੇਤੀਬਾੜੀ ਦੇ ਉਤਪਾਦਨ ਵਿਚ ਵਧੇਰੇ ਵਾਧਾ ਹੋਇਆ । ਨਵੀਂ ਕਿਸਮ ਦੇ ਬੀਜਾਂ ਦਾ ਇਸਤੇਮਾਲ ਹੋਣ ਲੱਗ ਪਿਆ । ਪੁਰਾਣੇ ਸਮੇਂ ਵਿਚ ਸਾਰਾ ਟੱਬਰ ਹੀ ਖੇਤੀਬਾੜੀ ਦੇ ਕਿੱਤੇ ਨਾਲ ਜੁੜਿਆ ਰਹਿੰਦਾ ਸੀ । ਮਸ਼ੀਨਾਂ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਨਾਲ ਘੱਟ ਵਿਅਕਤੀ ਵੀ ਕਾਫ਼ੀ ਕੰਮ ਕਰਨ ਦੇ ਕਾਬਲ ਹੋ ਗਏ ! ਭਾਰਤ ਦੇ ਵਪਾਰ ਵਿਚ ਵੀ ਵਾਧਾ ਖੇਤੀਬਾੜੀ ਦੇ ਉਤਪਾਦਨ ਵਿਚ ਪਾਏ ਗਏ ਵਾਧੇ ਕਾਰਨ ਹੀ ਹੋਇਆ । ਇਸ ਨਾਲ ਸਮੁੱਚੇ ਭਾਰਤ ਦੀ ਪ੍ਰਗਤੀ ਹੋਈ । ਘੱਟ ਵਿਅਕਤੀ ਖੇਤੀ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧਿਤ ਹੋਣ ਕਾਰਨ ਬਾਕੀ ਦੇ ਵਿਅਕਤੀ ਕਾਰਖ਼ਾਨਿਆਂ ਵਿਚ ਜਾਂ ਹੋਰ ਛੋਟੇ ਪੈਮਾਨੇ ਦੇ ਉਦਯੋਗਾਂ ਵਿਚ ਸ਼ਾਮਲ ਹੋ ਗਏ ।

4. ਆਵਾਜਾਈ ਦੇ ਸਾਧਨਾਂ ਦਾ ਵਿਕਾਸ (Development of means of transportation) – ਸੰਚਾਰ ਦੇ ਸਾਧਨਾਂ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਦੇ ਨਾਲ-ਨਾਲ ਆਵਾਜਾਈ ਦੇ ਸਾਧਨਾਂ ਦਾ ਵਿਕਾਸ ਵੀ ਹੋਇਆ । ਇਸ ਦਾ ਵਿਕਾਸ ਵੀ ਵਿਅਕਤੀ ਦੇ ਇਕ-ਦੁਸਰੇ ਦੇ ਸੰਪਰਕ ਵਿਚ ਆਉਣ ਦੇ ਨਤੀਜੇ ਵਜੋਂ ਹੀ ਹੋਇਆ । ਹਵਾਈ ਜਹਾਜ਼, ਬੱਸਾਂ, ਕਾਰਾਂ, ਸਾਈਕਲਾਂ, ਰੇਲ ਗੱਡੀਆਂ, ਸਮੁੰਦਰੀ ਜ਼ਹਾਜ਼ਾਂ ਆਦਿ ਦੀਆਂ ਕਾਢਾਂ ਦੇ ਨਾਲ ਇਕ ਦੇਸ਼ ਤੋਂ ਦੂਸਰੇ ਦੇਸ਼ ਤੱਕ ਜਾਣ ਵਿਚ ਬਹੁਤ ਹੀ ਆਸਾਨੀ ਹੋਈ । ਵਿਅਕਤੀ ਆਪਣੇ ਘਰ ਤੋਂ ਦੂਰ ਜਾ ਕੇ ਵੀ ਕੰਮ ਕਰਨ ਲੱਗ ਪਿਆ ਕਿਉਂਕਿ ਇਕ ਥਾਂ ਤੋਂ ਦੂਸਰੀ ਥਾਂ ‘ਤੇ ਜਾਣ ਲਈ ਉਸ ਨੂੰ ਹਰ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦੀਆਂ ਸਹੂਲਤਾਂ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੋਈਆਂ । ਇਸੇ ਕਰਕੇ ਵਿਅਕਤੀ ਦੀ ਗਤੀਸ਼ੀਲਤਾ ਵਿਚ ਵੀ ਵਾਧਾ ਹੋਇਆ ।

ਭਾਰਤ ਦੇ ਵਿਚ ਪੁਰਾਣੇ ਸਮੇਂ ਤੋਂ ਚਲਿਆ ਆ ਰਿਹਾ ਛੂਤਛਾਤ ਦਾ ਭੇਦ-ਭਾਵ ਵੀ ਆਵਾਜਾਈ ਦੇ ਸਾਧਨਾਂ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਦੇ ਨਤੀਜੇ ਵਜੋਂ ਖ਼ਤਮ ਹੋ ਗਿਆ | ਬੱਸਾਂ, ਰੇਲ ਗੱਡੀਆਂ ਆਦਿ ਵਿਚ ਹਰ ਜਾਤ ਦੇ ਵਿਅਕਤੀ ਮਿਲ ਕੇ ਸਫਰ ਕਰਨ ਲੱਗ ਪਏ । ਇਸ ਨਾਲ ਵਿਭਿੰਨ ਜਾਤਾਂ ਦੇ ਵਿਅਕਤੀਆਂ ਦੇ ਵਿਚ ਸਮਾਨਤਾ ਵਾਲੇ ਸੰਬੰਧ ਵੀ ਸਥਾਪਤ ਹੋਏ

5. ਤਕਨੀਕੀ ਕਾਰਕ ਦਾ ਪਰਿਵਾਰ ਦੀ ਸੰਸਥਾ ‘ਤੇ ਪਿਆ ਪ੍ਰਭਾਵ (Impact of technological factor on the institution of marriage) – ਸਭ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਅਸੀਂ ਇਹ ਵੇਖਦੇ ਹਾਂ ਕਿ ਤਕਨੀਕੀ ਕਾਰਕਾਂ ਦੇ ਪ੍ਰਭਾਵ ਨੇ ਪਰਿਵਾਰ ਦੀ ਸੰਸਥਾ ਨੂੰ ਤਾਂ ਬਿਲਕੁਲ ਹੀ ਬਦਲ ਦਿੱਤਾ ਹੈ ।

ਆਧੁਨਿਕ ਪਰਿਵਾਰ ਦਾ ਤਾਂ ਨਕਸ਼ਾ ਹੀ ਬਦਲ ਗਿਆ ਹੈ । ਪਰਿਵਾਰ ਦੇ ਮੈਂਬਰਾਂ ਨੂੰ ਰੋਜ਼ੀ-ਰੋਟੀ ਕਮਾਉਣ ਦੇ ਲਈ ਘਰ ਤੋਂ ਬਾਹਰ ਨਿਕਲਣਾ ਪੈਂਦਾ ਹੈ । ਇਸੇ ਕਰਕੇ ਜੋ ਕੰਮ ਪਰਿਵਾਰ ਪੁਰਾਣੇ ਸਮੇਂ ਵਿਚ ਖ਼ੁਦ ਕਰਦਾ ਸੀ ਉਹ ਸਭ ਕੰਮ ਹੁਣ ਦੂਸਰੀਆਂ ਸੰਸਥਾਵਾਂ ਕੋਲ ਚਲੇ ਗਏ ਹਨ । ਬੱਚਿਆਂ ਦੀ ਪਰਵਰਿਸ਼ ਦੀ ਘਰ ਤੋਂ ਬਾਹਰ ਕਰੈਚਾਂ ਵਿਚ ਹੋਣ ਲੱਗ ਪਈ ਹੈ । ਸਿਹਤ ਸੰਬੰਧੀ ਕੰਮ ਹਸਪਤਾਲਾਂ ਆਦਿ ਕੋਲ ਚਲੇ ਗਏ ਹਨ । ਵਿਅਕਤੀ ਆਪਣਾ ਮਨੋਰੰਜਨ ਵੀ ਘਰ ਤੋਂ ਬਾਹਰ ਜਾਂ ਵੇਖਣ-ਸੁਣਨ ਵਾਲੇ ਸਾਧਨਾਂ ਦੀ ਮੱਦਦ ਨਾਲ ਹੀ ਕਰਦਾ ਹੈ । ਉਸ ਦਾ ਨਜ਼ਰੀਆ ਵੀ ਵਿਅਕਤੀਗਤ ਹੋ ਗਿਆ ਹੈ । ਪਰਿਵਾਰਿਕ ਬਣਤਰ ਦਾ ਸਰੂਪ ਹੀ ਬਦਲ ਗਿਆ ਹੈ । ਵੱਡੇ ਪਰਿਵਾਰਾਂ ਦੀ ਜਗ੍ਹਾ ਛੋਟੇ ਤੇ ਸੀਮਿਤ ਪਰਿਵਾਰ ਵਿਕਸਿਤ ਹੋ ਗਏ ਹਨ । ਪਰਿਵਾਰ ਨੂੰ ਪ੍ਰਾਚੀਨ ਸਮੇਂ ਵਿਚ ਪ੍ਰਾਇਮਰੀ ਸਮੂਹ ਦੀ ਏਜੰਸੀ ਵਜੋਂ ਜੋ ਮਾਨਤਾ ਪ੍ਰਾਪਤ ਸੀ, ਉਹ ਹੁਣ ਨਹੀਂ ਰਹੀ ।

6. ਤਕਨੀਕੀ ਕਾਰਕ ਦਾ ਵਿਆਹ ਦੀ ਸੰਸਥਾ ਦੇ ਉੱਪਰ ਪ੍ਰਭਾਵ (Impact of technological factor on the Institution of Marriage) – ਪ੍ਰਾਚੀਨ ਸਮਾਜ ਦੇ ਵਿਚ ਵਿਆਹ ਨੂੰ ਇਕ ਧਾਰਮਿਕ ਬੰਧਨ ਦਾ ਨਾਮ ਦਿੱਤਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਵਿਅਕਤੀ ਦਾ ਵਿਆਹ ਉਸ ਦੇ ਪੁਰਵਜ਼ਾਂ ਦੀ ਸਹਿਮਤੀ ਨਾਲ ਹੀ ਹੁੰਦਾ ਸੀ । ਇਸ ਸੰਸਥਾ ਦੇ ਵਿਚ ਪ੍ਰਵੇਸ਼ ਕਰਕੇ ਵਿਅਕਤੀ ਹਿਸਥ ਆਸ਼ਰਮ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧਿਤ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਲੇਕਿਨ ਤਕਨੀਕੀ ਕਾਰਕਾਂ ਦੇ ਪ੍ਰਭਾਵ ਨਾਲ ਵਿਆਹ ਦੀ ਸੰਸਥਾ ਦੇ ਪ੍ਰਤੀ ਲੋਕਾਂ ਦਾ ਨਜ਼ਰੀਆ ਹੀ ਬਦਲ ਗਿਆ ਹੈ ।

ਸਭ ਤੋਂ ਪਹਿਲੀ ਗੱਲ ਤਾਂ ਇਹ ਕਿ ਵਿਆਹ ਦੀ ਸੰਸਥਾ ਹੁਣ ਅਜੋਕੇ ਸਮਾਜ ਦੇ ਵਿਚ ਧਾਰਮਿਕ ਬੰਧਨ ਨਾ ਰਹਿ ਕੇ ਇਕ ਸਮਾਜਿਕ ਸਮਝੌਤੇ (Social Contract) ਦੇ ਰੂਪ ਵਿਚ ਸਵੀਕਾਰੀ ਜਾਣ ਲੱਗ ਪਈ ਹੈ । ਵਿਆਹ ਦੀ ਨੀਂਹ ਸਮਝੌਤੇ ਦੇ ਉੱਪਰ ਆਧਾਰਿਤ ਹੈ ਅਤੇ ਸਮਝੌਤਾ ਨਾ ਹੋਣ ਦੀ ਸੂਰਤ ਵਿਚ ਟੁੱਟ ਵੀ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ।

ਹੁਣ ਵਿਆਹ ਦੀ ਸੰਸਥਾ ਦਾ ਨਕਸ਼ਾ ਹੀ ਬਦਲ ਗਿਆ ਹੈ । ਵਿਆਹ ਦੀ ਚੋਣ ਦਾ ਖੇਤਰ ਵੀ ਵੱਧ ਗਿਆ ਹੈ । ਵਿਅਕਤੀ ਆਪਣੀ ਮਰਜ਼ੀ ਨਾਲ ਕਿਸੇ ਵੀ ਜਾਤ ਵਿਚ ਵਿਆਹ ਕਰਵਾ ਸਕਦਾ ਹੈ । ਪਤੀ-ਪਤਨੀ ਦੇ ਜੇਕਰ ਵਿਚਾਰ ਨਹੀਂ ਮਿਲਦੇ ਤਾਂ ਇਹ ਇਕ-ਦੂਸਰੇ ਤੋਂ ਅਲੱਗ ਵੀ ਹੋ ਸਕਦੇ ਹਨ । ਔਰਤਾਂ ਨੇ ਜਦੋਂ ਦਾ ਉਤਪਾਦਨ ਦੇ ਖੇਤਰ ਵਿਚ ਹਿੱਸਾ ਲਿਆ ਹੈ ਉਦੋਂ ਤੋਂ ਉਹ ਆਪਣੇ ਆਪ ਨੂੰ ਆਦਮੀਆਂ ਤੋਂ ਘੱਟ ਨਹੀਂ ਸਮਝਦੀਆਂ । ਆਰਥਿਕ ਪੱਖੋਂ ਉਹ ਬਿਲਕੁਲ ਆਦਮੀ ‘ਤੇ ਨਿਰਭਰ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦੀਆਂ । ਇਸੇ ਕਰਕੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਸਥਿਤੀ ਵੀ ਆਦਮੀ ਦੇ ਬਰਾਬਰ ਸਮਝੀ ਜਾਣ ਲੱਗ ਪਈ ਹੈ । .

7. ਤਕਨੀਕੀ ਕਾਰਕਾਂ ਦੁਆਰਾ ਜਾਤੀ ਵਿਵਸਥਾ ਵਿਚ ਆਏ ਪਰਿਵਰਤਨ (Changes in Caste System) – ਪ੍ਰਾਚੀਨ ਭਾਰਤ ਦੇ ਵਿਚ ਜਾਤ ਦਾ ਪ੍ਰਭਾਵ ਇੰਨਾ ਜ਼ਿਆਦਾ ਸੀ ਕਿ ਵਿਅਕਤੀ ਆਪਣੀ ਜਾਤ ਤੋਂ ਬਾਹਰ ਨਿਕਲ ਕੇ ਨਾ ਤਾਂ ਕੋਈ ਕੰਮ ਕਰ ਸਕਦਾ ਸੀ ਤੇ ਨਾ ਹੀ ਦੁਸਰੀਆਂ ਜਾਤਾਂ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਨਾਲ ਮੇਲ-ਜੋਲ ਸਥਾਪਤ ਕਰ ਸਕਦਾ ਸੀ । ਸਮਾਜ ਕਈ ਜਾਤੀਆਂ ਦੇ ਆਧਾਰ ‘ਤੇ ਵੰਡਿਆ ਹੋਇਆ ਸੀ । ਵਿਅਕਤੀ ਨੂੰ ਸਮਾਜ ਵਿਚ ਸਥਿਤੀ ਵੀ ਜਾਤੀ ਦੇ ਆਧਾਰ ਤੇ ਹੀ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੁੰਦੀ ਸੀ । ਲੇਕਿਨ ਤਕਨੀਕੀ ਖੇਤਰ ਵਿਚ ਪਾਈ ਗਈ ਪ੍ਰਤੀ ਨੇ ਜਾਤੀ-ਵਿਵਸਥਾ ਨੂੰ ਬਿਲਕੁਲ ਹੀ ਕਮਜ਼ੋਰ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਹੈ । ਸਮਾਜ ਦੀ ਵੰਡ ਜਾਤ ਦੇ ਆਧਾਰ ‘ਤੇ ਨਾ ਹੋ ਕੇ ਵਰਗ ਦੇ ਆਧਾਰ ‘ਤੇ ਹੋ ਗਈ ਹੈ । ਸਮਾਜ ਦੇ ਵਿਚ ਕਾਰਖ਼ਾਨਿਆਂ ਦੇ ਵਿਚ ਮਸ਼ੀਨਾਂ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਹੋਣ ਦੇ ਨਾਲ ਘਰੇਲੂ ਉਤਪਾਦਨ ਕਾਰਖ਼ਾਨਿਆਂ ਦੇ ਕੋਲ ਚਲਾ ਗਿਆ ਹੈ । ਵਿਅਕਤੀ ਨੂੰ ਆਪਣੀ ਰੋਜ਼ੀ-ਰੋਟੀ ਕਮਾਉਣ ਲਈ ਘਰ ਤੋਂ ਬਾਹਰ ਨਿਕਲਣਾ ਪਿਆ । ਸਾਰੀਆਂ ਜਾਤਾਂ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਮਿਲ ਕੇ ਕੰਮ ਕਰਨਾ ਪਿਆ, ਜਿਸ ਨਾਲ ਛੂਤ-ਛਾਤ ਦਾ ਭੇਦ-ਭਾਵ ਵੀ ਖਤਮ ਹੋ ਗਿਆ । ਵਿਅਕਤੀ ਨੂੰ ਕਿਸੇ ਵੀ ਜਗਾ ਤੇ ਕੰਮ ਯੋਗਤਾ ਦੇ ਦੁਆਰਾ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੋਣ ਲੱਗ ਪਿਆ । ਸਭ ਧਰਮਾਂ ਅਤੇ ਜਾਤਾਂ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਵਿਚ ਬਰਾਬਰੀ ਵਾਲੇ ਸੰਬੰਧ ਸਥਾਪਤ ਹੋਏ ।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 10 ਸਮਾਜਿਕ ਸਤਰੀਕਰਨ

Punjab State Board PSEB 11th Class Sociology Book Solutions Chapter 10 ਸਮਾਜਿਕ ਸਤਰੀਕਰਨ Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Sociology Chapter 10 ਸਮਾਜਿਕ ਸਤਰੀਕਰਨ

Sociology Guide for Class 11 PSEB ਸਮਾਜਿਕ ਸਤਰੀਕਰਨ Textbook Questions and Answers

I. ਨਿਮਨਲਿਖਤ ਪ੍ਰਸ਼ਨਾਂ ਦੇ ਉੱਤਰ 1-15 ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਦਿਓ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਸਮਾਜਿਕ ਸਤਰੀਕਰਨ ਤੋਂ ਤੁਸੀਂ ਕੀ ਸਮਝਦੇ ਹੋ ?
ਉੱਤਰ-
ਸਮਾਜ ਨੂੰ ਅਲੱਗ-ਅਲੱਗ ਆਧਾਰਾਂ ਉੱਤੇ ਅਲੱਗ-ਅਲੱਗ ਸਤਰਾਂ ਵਿਚ ਵੰਡਣ ਦੀ ਪ੍ਰਕ੍ਰਿਆ ਨੂੰ ਸਮਾਜਿਕ ਸਤਰੀਕਰਨ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਸਮਾਜਿਕ ਸਤਰੀਕਰਨ ਦੀਆਂ ਕਿਸਮਾਂ ਦੱਸੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਸਮਾਜਿਕ ਸਤਰੀਕਰਨ ਦੇ ਚਾਰ ਰੂਪ ਹਨ ਅਤੇ ਉਹ ਹਨ-ਜਾਤੀ, ਵਰਗ, ਜਾਗੀਰਦਾਰੀ ਅਤੇ ਗੁਲਾਮੀ ।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 10 ਸਮਾਜਿਕ ਸਤਰੀਕਰਨ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 3.
ਸਮਾਜਿਕ ਸਤਰੀਕਰਨ ਦੇ ਤੱਤਾਂ ਦੇ ਨਾਮ ਲਿਖੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਇਹ ਸਰਵਵਿਆਪਕ ਹੈ, ਇਹ ਸਮਾਜਿਕ ਹੈ, ਇਸ ਵਿਚ ਅਸਮਾਨਤਾ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ਅਤੇ ਹਰੇਕ ਸਮਾਜ ਵਿਚ ਇਸ ਦਾ ਅਲੱਗ ਆਧਾਰ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 4.
ਜਾਗੀਰਦਾਰੀ ਵਿਵਸਥਾ ਕੀ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਮੱਧਕਾਲੀਨ ਯੂਰਪ ਦੀ ਉਹ ਵਿਵਸਥਾ ਜਿਸ ਵਿਚ ਇਕ ਵਿਅਕਤੀ ਨੂੰ ਬਹੁਤ ਸਾਰੀ ਜ਼ਮੀਨ ਦੇ ਕੇ ਜਾਗੀਰਦਾਰ ਬਣਾ ਕੇ ਉਸਨੂੰ ਉਸ ਜ਼ਮੀਨ ਤੋਂ ਲਗਾਨ ਇਕੱਠਾ ਕਰਨ ਦੀ ਆਗਿਆ ਦਿੱਤੀ ਜਾਂਦੀ ਸੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 5.
‘ਕਾਸਟ’ ਸ਼ਬਦ ਦੀ ਉਤਪੱਤੀ ਕਿੱਥੋਂ ਹੋਈ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਸ਼ਬਦ Caste (ਜਾਤੀ) ਸਪੈਨਿਸ਼ ਅਤੇ ਪੁਰਤਗਾਲੀ ਸ਼ਬਦ Caste ਤੋਂ ਨਿਕਲਿਆ ਹੈ ਜਿਸ ਦਾ ਅਰਥ ਹੈ ਪ੍ਰਜਾਤੀ, ਵੰਸ਼ ਜਾਂ ਨਸਲ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 6.
ਵਰਨ ਵਿਵਸਥਾ ਕੀ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਪ੍ਰਾਚੀਨ ਭਾਰਤੀ ਸਮਾਜ ਦੀ ਉਹ ਵਿਵਸਥਾ ਜਿਸ ਵਿਚ ਸਮਾਜ ਨੂੰ ਪੇਸ਼ੇ ਦੇ ਆਧਾਰ ਉੱਤੇ ਚਾਰ ਭਾਗਾਂ ਵਿਚ ਵੰਡ ਦਿੱਤਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 7.
ਹਿੰਦੂ ਸਮਾਜ ਵਿਚ ਪੱਦਮਾਤਮਕ ਸਥਿਤੀ ਦੇ ਤਿੰਨ ਨਾਮ ਦੱਸੋ 1
ਉੱਤਰ-
ਪ੍ਰਾਚੀਨ ਸਮੇਂ ਦੇ ਹਿੰਦੂ ਸਮਾਜ ਵਿਚ ਚਾਰ ਵਰਣ ਸਨ-ਬ੍ਰਾਹਮਣ, ਕਸ਼ੱਤਰੀ, ਵੈਸ਼ ਅਤੇ ਨਿਮਨ ਵਰਣ ।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 10 ਸਮਾਜਿਕ ਸਤਰੀਕਰਨ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 8.
ਛੂਤਛਾਤ (Untouchability) ਤੋਂ ਤੁਸੀਂ ਕੀ ਸਮਝਦੇ ਹੋ ?
ਉੱਤਰ-
ਜਾਤੀ ਵਿਵਸਥਾ ਦੇ ਸਮੇਂ ਅਲੱਗ-ਅਲੱਗ ਜਾਤਾਂ ਨੂੰ ਇਕ-ਦੂਜੇ ਨੂੰ ਛੂਹਣ ਦੀ ਮਨਾਹੀ ਸੀ ਜਿਸ ਨੂੰ ਛੂਤਛਾਤ ਕਹਿੰਦੇ ਸਨ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 9.
ਕੁੱਝ ਸੁਧਾਰਕਾਂ ਦੇ ਨਾਮ ਲਿਖੋ, ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਛੂਤਛਾਤ ਦੇ ਖਿਲਾਫ ਵਿਰੋਧ ਕੀਤਾ ਹੈ ।
ਉੱਤਰ-
ਰਾਜਾ ਰਾਮ ਮੋਹਨ ਰਾਏ, ਜਯੋਤੀਬਾ ਫੁਲੇ, ਮਹਾਤਮਾ ਗਾਂਧੀ, ਡਾ: ਬੀ. ਆਰ. ਅੰਬੇਦਕਰ ਆਦਿ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 10.
ਵਰਗ ਕੀ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਵਰਗ ਲੋਕਾਂ ਦਾ ਉਹ ਸਮੂਹ ਹੈ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਵਿਚ ਕਿਸੇ ਨਾ ਕਿਸੇ ਆਧਾਰ ਉੱਤੇ ਸਮਾਨਤਾ ਹੁੰਦੀ ਹੈ; ਜਿਵੇਂ ਕਿਪੈਸਾ, ਪੇਸ਼ਾ, ਸੰਪੱਤੀ ਆਦਿ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 11.
ਵਰਗ ਵਿਵਸਥਾ ਦੀਆਂ ਕਿਸਮਾਂ ਦੇ ਨਾਂ ਲਿਖੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਮੁੱਖ ਤੌਰ ਉੱਤੇ ਤਿੰਨ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦੇ ਵਰਗ ਪਾਏ ਜਾਂਦੇ ਹਨ-ਉੱਚ ਵਰਗ, ਮੱਧ ਵਰਗ ਅਤੇ ਨਿਮਨ ਵਰਗ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 12.
ਮਾਰਕਸ ਦੁਆਰਾ ਦਿੱਤੇ ਗਏ ਦੋ ਵਰਗਾਂ ਦੇ ਨਾਂ ਲਿਖੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਪੂੰਜੀਪਤੀ ਵਰਗ ਅਤੇ ਮਜ਼ਦੂਰ ਵਰਗ ।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 10 ਸਮਾਜਿਕ ਸਤਰੀਕਰਨ

II. ਨਿਮਨਲਿਖਤ ਪ੍ਰਸ਼ਨਾਂ ਦੇ ਉੱਤਰ 30-35 ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਦਿਓ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਸਮਾਜਿਕ ਅਸਮਾਨਤਾ ਕੀ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਜਦੋਂ ਸਮਾਜ ਦੇ ਸਾਰੇ ਵਿਅਕਤੀਆਂ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਵਿਅਕਤਿੱਤਵ ਦੇ ਪੂਰੇ ਵਿਕਾਸ ਦੇ ਮੌਕੇ ਪ੍ਰਾਪਤ ਨਾ ਹੋਣ ਉਹਨਾਂ ਵਿਚ ਜਾਤ, ਜਨਮ, ਨਸਲ, ਰੰਗ, ਪੈਸਾ, ਪੇਸ਼ੇ ਦੇ ਆਧਾਰ ਉੱਤੇ ਅੰਤਰ ਹੋਵੇ ਅਤੇ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਸਮੂਹਾਂ ਵਿਚ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਆਧਾਰਾਂ ਉੱਤੇ ਅੰਤਰ ਪਾਇਆ ਜਾਂਦਾ ਹੋਵੇ ਤਾਂ ਇਸਨੂੰ ਅਸਮਾਨਤਾ ਦਾ ਨਾਮ ਦਿੱਤਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਸਮਾਜਿਕ ਸਤਰੀਕਰਨ ਦੀਆਂ ਦੋ ਕਿਸਮਾਂ ਲਿਖੋ ।
ਉੱਤਰ-

  1. ਜਾਤੀ-ਜਾਤੀ ਸਤਰੀਕਰਨ ਦਾ ਇਕ ਰੂਪ ਹੈ ਜਿਸ ਵਿਚ ਅਲੱਗ-ਅਲੱਗ ਜਾਤਾਂ ਦੇ ਵਿਚਕਾਰ ਸਤਰੀਕਰਨ ਪਾਇਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।
  2. ਵਰਗ-ਸਮਾਜ ਵਿਚ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਵਰਗ ਪਾਏ ਜਾਂਦੇ ਹਨ ਅਤੇ ਉਹਨਾਂ ਵਿਚ ਅਲੱਗ-ਅਲੱਗ ਆਧਾਰਾਂ ਉੱਤੇ ਅੰਤਰ ਪਾਇਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 3.
ਜਾਤੀ ਵਿਵਸਥਾ ਦੀਆਂ ਦੋ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾਵਾਂ ਦੱਸੋ
ਉੱਤਰ-

  1. ਜਾਤੀ ਦੀ ਮੈਂਬਰਸ਼ਿਪ ਜਨਮ ਉੱਤੇ ਆਧਾਰਿਤ ਹੁੰਦੀ ਸੀ ਅਤੇ ਵਿਅਕਤੀ ਯੋਗਤਾ ਹੋਣ ਦੇ ਬਾਵਜੂਦ ਵੀ ਇਸ ਨੂੰ ਬਦਲ ਨਹੀਂ ਸਕਦਾ ।
  2. ਜਾਤੀ ਇਕ ਅੰਤਰ-ਵਿਆਹੀ ਸਮੂਹ ਹੁੰਦਾ ਸੀ ਅਤੇ ਅਲੱਗ-ਅਲੱਗ ਜਾਤਾਂ ਵਿਚਕਾਰ ਵਿਆਹ ਕਰਵਾਉਣ ਦੀ ਮਨਾਹੀ ਹੁੰਦੀ ਸੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 4.
ਅੰਤਰ ਜਾਤੀ ਵਿਆਹ ਕੀ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਅੰਤਰ-ਵਿਆਹ ਕਰਵਾਉਣ ਦਾ ਹੀ ਇਕ ਪ੍ਰਕਾਰ ਹੈ ਜਿਸ ਅਨੁਸਾਰ ਵਿਅਕਤੀ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਸਮੂਹ ਅਰਥਾਤ ਜਾਤੀ ਜਾਂ ਉਪਜਾਤੀ ਵਿਚ ਹੀ ਵਿਆਹ ਕਰਵਾਉਣਾ ਪੈਂਦਾ ਸੀ । ਜੇਕਰ ਕੋਈ ਇਸ ਨਿਯਮ ਦੀ ਉਲੰਘਣਾ ਕਰਦਾ ਸੀ ਤਾਂ ਉਸ ਨੂੰ ਜਾਤੀ ਵਿਚੋਂ ਬਾਹਰ ਕੱਢ ਦਿੱਤਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਇਸ ਕਰਕੇ ਸਾਰੇ ਆਪਣੇ ਸਮੂਹ ਵਿਚ ਹੀ ਵਿਆਹ ਕਰਵਾਉਂਦੇ ਸਨ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 5.
ਸ਼ੁੱਧਤਾ ਅਤੇ ਅਸ਼ੁੱਧਤਾ (Pollution and Purity) ਤੋਂ ਤੁਸੀਂ ਕੀ ਸਮਝਦੇ ਹੋ ?
ਉੱਤਰ-
ਜਾਤੀ ਵਿਵਸਥਾ ਦਾ ਕੂਮ ਪਵਿੱਤਰਤਾ ਅਤੇ ਅਪਵਿੱਤਰਤਾ ਦੇ ਸੰਕਲਪ ਨਾਲ ਜੁੜਿਆ ਹੋਇਆ ਸੀ । ਇਸਦਾ ਅਰਥ ਹੈ ਕਿ ਕੁੱਝ ਜਾਤਾਂ ਨੂੰ ਪਰੰਪਰਾਗਤ ਰੂਪ ਨਾਲ ਸ਼ੁੱਧ ਸਮਝਿਆ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ਅਤੇ ਉਹਨਾਂ ਨੂੰ ਸਮਾਜ ਵਿਚ ਉੱਚਾ ਦਰਜਾ ਹਾਸਲ ਸੀ । ਕੁੱਝ ਜਾਤਾਂ ਨੂੰ ਅਸ਼ੁੱਧ ਸਮਝਿਆ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ਅਤੇ ਉਹਨਾਂ ਨੂੰ ਸਮਾਜਿਕ ਵਿਵਸਥਾ ਵਿਚ ਨੀਵਾਂ ਦਰਜਾ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆਂ ਸੀ ।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 10 ਸਮਾਜਿਕ ਸਤਰੀਕਰਨ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 6.
ਉਦਯੋਗੀਕਰਨ ਅਤੇ ਸ਼ਹਿਰੀਕਰਨ ਤੇ ਛੋਟਾ ਨੋਟ ਲਿਖੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਉਦਯੋਗੀਕਰਨ ਦਾ ਅਰਥ ਹੈ ਦੇਸ਼ ਵਿਚ ਵੱਡੇ-ਵੱਡੇ ਉਦਯੋਗਾਂ ਦਾ ਵੱਧਣਾ । ਜਦੋਂ ਪਿੰਡਾਂ ਤੋਂ ਲੋਕ ਸ਼ਹਿਰਾਂ ਵੱਲ ਨੂੰ ਜਾਣ ਅਤੇ ਉੱਥੇ ਰਹਿਣ ਲਗ ਜਾਣ ਤਾਂ ਇਸ ਪ੍ਰਕ੍ਰਿਆ ਨੂੰ ਸ਼ਹਿਰੀਕਰਨ ਦਾ ਨਾਮ ਦਿੱਤਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਉਦਯੋਗੀਕਰਨ ਅਤੇ ਸ਼ਹਿਰੀਕਰਨ ਦੀ ਪ੍ਰਕ੍ਰਿਆ ਨੇ ਜਾਤੀ ਵਿਵਸਥਾ ਨੂੰ ਖ਼ਤਮ ਕਰਨ ਵਿਚ ਬਹੁਤ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਭੂਮਿਕਾ ਨਿਭਾਈ ਹੈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 7.
ਵਰਗ ਵਿਵਸਥਾ ਦੀਆਂ ਦੋ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾਵਾਂ ਦੱਸੋ ।
ਉੱਤਰ-

  1. ਹਰੇਕ ਵਰਗ ਵਿਚ ਇਸ ਗੱਲ ਦੀ ਚੇਤਨਤਾ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ਕਿ ਉਸਦਾ ਪਦ ਜਾਂ ਸਨਮਾਨ ਦੂਜੀ ਸ਼੍ਰੇਣੀ ਦੀ ਤੁਲਨਾ ਵਿਚ ਵੱਧ ਹੈ ।
  2. ਇਸ ਵਿਚ ਲੋਕ ਆਪਣੀ ਹੀ ਸ਼੍ਰੇਣੀ ਦੇ ਮੈਂਬਰਾਂ ਨਾਲ ਗੂੜੇ ਸੰਬੰਧ ਰੱਖਦੇ ਹਨ ਅਤੇ ਦੂਜੀ ਸ਼੍ਰੇਣੀ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਨਾਲ ਉਹਨਾਂ ਦੇ ਸੰਬੰਧ ਸੀਮਿਤ ਹੁੰਦੇ ਹਨ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 8.
ਨਵੇਂ ਮੱਧ ਵਰਗ ਤੇ ਛੋਟਾ ਨੋਟ ਲਿਖੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਪਿਛਲੇ ਕੁੱਝ ਸਮੇਂ ਤੋਂ ਸਮਾਜ ਵਿਚ ਇਕ ਨਵਾਂ ਮੱਧ ਵਰਗ ਸਾਹਮਣੇ ਆਇਆ ਹੈ । ਇਸ ਵਰਗ ਵਿਚ ਡਾਕਟਰ, ਇੰਜੀਨੀਅਰ, ਮੈਨੇਜਰ, ਟੀਚਰ, ਛੋਟੇ-ਮੋਟੇ ਵਪਾਰੀ, ਨੌਕਰੀ ਪੇਸ਼ਾ ਲੋਕ ਹੁੰਦੇ ਹਨ । ਉੱਚ ਵਰਗ ਇਸ ਮੱਧ ਵਰਗ ਦੀ ਮੱਦਦ ਨਾਲ ਹੇਠਲੇ ਵਰਗ ਦਾ ਸ਼ੋਸ਼ਣ ਕਰਦਾ ਹੈ ।

III. ਨਿਮਨਲਿਖਤ ਪ੍ਰਸ਼ਨਾਂ ਦੇ ਉੱਤਰ 75-85 ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਦਿਓ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਸਮਾਜਿਕ ਸਤਰੀਕਰਨ ਦੀਆਂ ਚਾਰ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾਵਾਂ ਲਿਖੋ ।
ਉੱਤਰ-

  1. ਸਤਰੀਕਰਨ ਇਕ ਸਰਵਵਿਆਪਕ ਪ੍ਰਕ੍ਰਿਆ ਹੈ । ਕੋਈ ਵੀ ਮਨੁੱਖੀ ਸਮਾਜ ਅਜਿਹਾ ਨਹੀਂ ਹੈ ਜਿੱਥੇ ਸਤਰੀਕਰਨ ਦੀ ਪ੍ਰਕ੍ਰਿਆ ਨਾ ਪਾਈ ਜਾਂਦੀ ਹੋਵੇ ।
  2. ਸਤਰੀਕਰਨ ਵਿਚ ਸਮਾਜ ਦੇ ਹਰੇਕ ਮੈਂਬਰ ਦੀ ਸਥਿਤੀ ਸਮਾਨ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦੀ । ਕਿਸੇ ਦੀ ਸਥਿਤੀ ਉੱਚੀ ਅਤੇ ਕਿਸੇ ਦੀ ਸਥਿਤੀ ਨੀਵੀਂ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ।
  3. ਸਤਰੀਕਰਨ ਵਿਚ ਸਮਾਜ ਦੀ ਵੰਡ ਵਿਭਿੰਨ ਸਤਰਾਂ ਵਿਚ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ਜਿਹੜੀ ਵਿਅਕਤੀ ਦੀ ਸਥਿਤੀ ਨੂੰ ਨਿਰਧਾਰਿਤ ਕਰਦੀ ਹੈ । ਅਲੱਗ-ਅਲੱਗ ਵਰਗਾਂ ਵਿਚ ਉੱਚ-ਨੀਚ ਦੇ ਸੰਬੰਧ ਹੁੰਦੇ ਹਨ ।
  4. ਚਾਹੇ ਇਸ ਵਿਚ ਅਲੱਗ-ਅਲੱਗ ਸਤਰਾਂ ਹੁੰਦੀਆਂ ਹਨ, ਪਰ ਉਹਨਾਂ ਸਤਰਾਂ ਵਿਚ ਆਪਸੀ ਨਿਰਭਰਤਾ ਵੀ ਪਾਈ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਕਿਸ ਪ੍ਰਕਾਰ ਵਰਗ ਸਮਾਜਿਕ ਸਤਰੀਕਰਨ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧਿਤ ਹੈ ? ਸੰਖੇਪ ਵਿੱਚ ਨੋਟ ਲਿਖੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਸਮਾਜਿਕ ਸਤਰੀਕਰਨ ਨਾਲ ਵਰਗ ਹਮੇਸ਼ਾਂ ਹੀ ਸੰਬੰਧਿਤ ਰਿਹਾ ਹੈ । ਅਸੀਂ ਦੇਖਦੇ ਹਾਂ ਕਿ ਅਲੱਗ-ਅਲੱਗ ਹਮੇਸ਼ਾਂ ਹੀ ਕਈ ਵਰਗ ਪਾਏ ਜਾਂਦੇ ਹਨ । ਚਾਹੇ ਪ੍ਰਾਚੀਨ ਸਮਾਜ ਹੋਣ ਜਾਂ ਆਧੁਨਿਕ ਸਮਾਜ, ਇਹਨਾਂ ਵਿਚ ਅਲੱਗ-ਅਲੱਗ ਆਧਾਰਾਂ ਉੱਤੇ ਵਰਗ ਪਾਏ ਜਾਂਦੇ ਹਨ । ਇਹ ਆਧਾਰ ਪੇਸ਼ਾ, ਪੈਸਾ, ਜਾਤ, ਧਰਮ, ਜਾਤੀ, ਜ਼ਮੀਨ ਆਦਿ ਹੁੰਦੇ ਹਨ । ਇਹਨਾਂ ਆਧਾਰਾਂ ਉੱਤੇ ਕਈ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦੇ ਵਰਗ ਮਿਲਦੇ ਸਨ ।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 10 ਸਮਾਜਿਕ ਸਤਰੀਕਰਨ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 3.
ਜਾਤੀ ਅਤੇ ਵਰਗ ਵਿਵਸਥਾ ਵਿਚ ਅੰਤਰ ਦੱਸੋ ।
ਉੱਤਰ-

ਵਰਗ ਜਾਤੀ
(i) ਵਰਗ ਦੇ ਮੈਂਬਰਾਂ ਦੀ ਵਿਅਕਤੀਗਤ ਯੋਗਤਾ ਨਾਲ ਵਿਅਕਤੀ ਦੀ ਸਮਾਜਿਕ ਸਥਿਤੀ ਬਣਦੀ ਹੈ । (i) ਜਾਤੀ ਵਿਚ ਵਿਅਕਤੀਗਤ ਯੋਗਤਾ ਦੀ ਕੋਈ ਥਾਂ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦੀ ਸੀ ਅਤੇ ਸਮਾਜਿਕ ਸਥਿਤੀ ਜਨਮ ਉੱਤੇ ਆਧਾਰਿਤ ਹੁੰਦੀ ਸੀ ।
(ii) ਵਰਗ ਦੀ ਮੈਂਬਰਸ਼ਿਪ, ਹੈਸੀਅਤ, ਪੇਸ਼ੇ ਆਦਿ ਉੱਤੇ ਆਧਾਰਿਤ ਹੁੰਦੀ ਹੈ । (ii) ਜਾਤੀ ਦੀ ਮੈਂਬਰਸ਼ਿਪ ਜਨਮ ਉੱਤੇ ਆਧਾਰਿਤ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ।
(iii) ਵਰਗ ਵਿਚ ਵਿਅਕਤੀ ਨੂੰ ਵਧੇਰੇ ਸੁਤੰਤਰਤਾ ਹੁੰਦੀ ਹੈ । (iii) ਜਾਤ ਵਿਚ ਵਿਅਕਤੀ ਉੱਪਰ ਖਾਣ-ਪੀਣ ਸੰਬੰਧੀ ਆਦਿ ਦੀਆਂ ਬਹੁਤ ਪਾਬੰਦੀਆ ਹੁੰਦੀਆਂ ਸਨ ।
(iv) ਵਰਗਾਂ ਵਿਚ ਆਪਸੀ ਦੂਰੀ ਕਾਫ਼ੀ ਘੱਟ ਹੁੰਦੀ ਹੈ । (iv) ਜਾਤਾਂ ਵਿਚ ਆਪਸੀ ਦੂਰੀ ਕਾਫ਼ੀ ਜ਼ਿਆਦਾ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ।
(v) ਵਰਗ ਵਿਵਵਥਾ ਪ੍ਰਜਾਤੰਤਰ ਦੇ ਸਿਧਾਂਤ ਉੱਪਰ ਆਧਾਰਿਤ ਹੈ । (v) ਜਾਤ ਵਿਵਵਥਾ ਜਾਤੰਤਰ ਦੇ ਸਿਧਾਂਤ ਦੇ ਵਿਰੁੱਧ ਹੈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 4.
ਜਾਤੀ ਵਿਵਸਥਾ ਵਿਚ ਪਰਿਵਰਤਨ ਦੇ ਚਾਰ ਕਾਰਕ ਲਿਖੋ ।
ਉੱਤਰ-

  • ਭਾਰਤ ਵਿਚ 19ਵੀਂ ਸਦੀ ਅਤੇ 20ਵੀਂ ਸਦੀ ਵਿਚਕਾਰ ਸਮਾਜਿਕ, ਧਾਰਮਿਕ ਸੁਧਾਰ ਲਹਿਰਾਂ ਚਲੀਆਂ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਕਾਰਨ ਜਾਤੀ ਪ੍ਰਥਾ ਨੂੰ ਬਹੁਤ ਡੂੰਘੀ ਸੱਟ ਵੱਜੀ ।
  • ਭਾਰਤ ਸਰਕਾਰ ਨੇ ਸੁਤੰਤਰਤਾ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਕਾਨੂੰਨ ਪਾਸ ਕੀਤੇ ਅਤੇ ਸੰਵਿਧਾਨ ਵਿਚ ਕਈ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦੇ ਪ੍ਰਾਵਧਾਨ ਰੱਖੇ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਨਾਲ ਜਾਤੀ ਵਿਵਸਥਾ ਵਿਚ ਪਰਿਵਰਤਨ ਆ ਗਏ ।
  • ਦੇਸ਼ ਵਿਚ ਉਦਯੋਗਾਂ ਦੇ ਵੱਧਣ ਨਾਲ ਅਲੱਗ-ਅਲੱਗ ਜਾਤਾਂ ਦੇ ਲੋਕ ਇਕੱਠੇ ਮਿਲ ਕੇ ਇਹਨਾਂ ਵਿਚ ਕੰਮ ਕਰਨ ਲੱਗ ਪਏ ਅਤੇ ਜਾਤੀ ਵਿਵਸਥਾ ਦੇ ਪ੍ਰਤਿਬੰਧਾਂ ਉੱਤੇ ਸੱਟ ਵੱਜੀ ।
  • ਸ਼ਹਿਰਾਂ ਵਿਚ ਅਲੱਗ-ਅਲੱਗ ਜਾਤਾਂ ਦੇ ਲੋਕ ਇਕੱਠੇ ਮਿਲ ਕੇ ਰਹਿੰਦੇ ਹਨ ਜਿਸ ਕਾਰਨ ਜਾਤੀ ਪ੍ਰਥਾ ਦੇ ਮੇਲ-ਜੋਲ ਦੀ ਪਾਬੰਦੀ ਵਾਲਾ ਨਿਯਮ ਵੀ ਖ਼ਤਮ ਹੋ ਗਿਆ ।
  • ਸਿੱਖਿਆ ਦੇ ਪ੍ਰਸਾਰ ਨੇ ਵੀ ਜਾਤੀ ਵਿਵਸਥਾ ਨੂੰ ਖ਼ਤਮ ਕਰਨ ਵਿਚ ਬਹੁਤ ਵੱਡਾ ਯੋਗਦਾਨ ਦਿੱਤਾ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 5.
ਸਮਾਜਿਕ ਸਤਰੀਕਰਨ ਦੇ ਦੋ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਰੂਪਾਂ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਜਾਤੀ ਅਤੇ ਵਰਗ ਦੇ ਵਿਚ ਅੰਤਰ ਦੱਸੋ ।
ਉੱਤਰ-

ਵਰਗ ਜਾਤੀ
(i) ਵਰਗ ਦੇ ਮੈਂਬਰਾਂ ਦੀ ਵਿਅਕਤੀਗਤ ਯੋਗਤਾ ਨਾਲ ਵਿਅਕਤੀ ਦੀ ਸਮਾਜਿਕ ਸਥਿਤੀ ਬਣਦੀ ਹੈ । (i) ਜਾਤੀ ਵਿਚ ਵਿਅਕਤੀਗਤ ਯੋਗਤਾ ਦੀ ਕੋਈ ਥਾਂ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦੀ ਸੀ ਅਤੇ ਸਮਾਜਿਕ ਸਥਿਤੀ ਜਨਮ ਉੱਤੇ ਆਧਾਰਿਤ ਹੁੰਦੀ ਸੀ ।
(ii) ਵਰਗ ਦੀ ਮੈਂਬਰਸ਼ਿਪ, ਹੈਸੀਅਤ, ਪੇਸ਼ੇ ਆਦਿ ਉੱਤੇ ਆਧਾਰਿਤ ਹੁੰਦੀ ਹੈ । (ii) ਜਾਤੀ ਦੀ ਮੈਂਬਰਸ਼ਿਪ ਜਨਮ ਉੱਤੇ ਆਧਾਰਿਤ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ।
(iii) ਵਰਗ ਵਿਚ ਵਿਅਕਤੀ ਨੂੰ ਵਧੇਰੇ ਸੁਤੰਤਰਤਾ ਹੁੰਦੀ ਹੈ । (iii) ਜਾਤ ਵਿਚ ਵਿਅਕਤੀ ਉੱਪਰ ਖਾਣ-ਪੀਣ ਸੰਬੰਧੀ ਆਦਿ ਦੀਆਂ ਬਹੁਤ ਪਾਬੰਦੀਆ ਹੁੰਦੀਆਂ ਸਨ ।
(iv) ਵਰਗਾਂ ਵਿਚ ਆਪਸੀ ਦੂਰੀ ਕਾਫ਼ੀ ਘੱਟ ਹੁੰਦੀ ਹੈ । (iv) ਜਾਤਾਂ ਵਿਚ ਆਪਸੀ ਦੂਰੀ ਕਾਫ਼ੀ ਜ਼ਿਆਦਾ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ।
(v) ਵਰਗ ਵਿਵਵਥਾ ਪ੍ਰਜਾਤੰਤਰ ਦੇ ਸਿਧਾਂਤ ਉੱਪਰ ਆਧਾਰਿਤ ਹੈ । (v) ਜਾਤ ਵਿਵਵਥਾ ਜਾਤੰਤਰ ਦੇ ਸਿਧਾਂਤ ਦੇ ਵਿਰੁੱਧ ਹੈ ।

IV. ਨਿਮਨਲਿਖਤ ਪ੍ਰਸ਼ਨਾਂ ਦੇ ਉੱਤਰ 25-300 ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਦਿਓ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਸਤਰੀਕਰਨ ਨੂੰ ਪਰਿਭਾਸ਼ਿਤ ਕਰੋ ? ਇਸ ਦੀਆਂ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾਵਾਂ ਕੀ ਹਨ ?
ਉੱਤਰ-
ਜਿਹੜੀ ਪ੍ਰਕਿਰਿਆ ਦੇ ਦੁਆਰਾ ਅਸੀਂ ਵਿਅਕਤੀਆਂ ਦੇ ਸਮੂਹਾਂ ਨੂੰ ਸਥਿਤੀ ਪਦਮ ਅਨੁਸਾਰ ਸਤਰੀਕ੍ਰਿਤ ਕਰਦੇ ਹਾਂ, ਉਸ ਨੂੰ ..ਸਤਰੀਕਰਨ ਦਾ ਨਾਮ ਦਿੱਤਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਸ਼ਬਦ ‘ਸਤਰੀਕਰਨ’ ਦਾ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸ਼ਬਦ ‘Stratification’ ਵਿਚ Strata ਦਾ ਅਰਥ ਹੈ ਸਤਰਾਂ (layers) । ਇਸ ਸ਼ਬਦ ਦੀ ਉਤਪੱਤੀ ਲਾਤੀਨੀ ਭਾਸ਼ਾ ਦੇ ਸ਼ਬਦ ‘Stratum’ ਤੋਂ ਹੋਈ ਹੈ । ਇਸ ਵਿਵਸਥਾ ਦੇ ਦੁਆਰਾ ਸਮਾਜਿਕ ਜੀਵਨ ਨੂੰ ਤਰਤੀਬ ਵਿੱਚ ਕਰਨ ਲਈ ਸਮਾਜ ਨੂੰ ਵਿਭਿੰਨ ਸਤਰਾਂ ਵਿਚ ਵੰਡਿਆ ਹੋਇਆ ਹੈ । ਕੋਈ ਵੀ ਦੋ ਵਿਅਕਤੀ ਭਾਵੇਂ ਇਕੋ ਪਰਿਵਾਰ ਵਿਚ ਜਨਮੇ ਹੁੰਦੇ ਹਨ ਪਰੰਤੁ ਸੁਭਾਅ ਵਜੋਂ ਜਾਂ ਕਿਸੇ ਹੋਰ ਪੱਖੋਂ ਉਹ ਇਕ ਦੂਸਰੇ ਤੋਂ ਵੱਖ ਹੁੰਦੇ ਹਨ । ਇਸੇ ਵਖਰੇਵੇਂ ਕਰਕੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਵਿਚ ਕੰਮ ਕਰਨ ਦੀ ਸਮਰੱਥਾ ਜਾਂ ਯੋਗਤਾ ਦਾ ਗੁਣ ਵੀ ਵੱਖਰਾ ਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਇਸੇ ਕਰਕੇ ਅਸਮਾਨ ਗੁਣਾਂ ਵਾਲੇ ਵਿਅਕਤੀਆਂ ਨੂੰ ਵਿਭਿੰਨ ਵਰਗਾਂ ਵਿਚ ਵੰਡਣ ਨਾਲ ਸਾਡਾ ਸਮਾਜ ਵਿਵਸਥਿਤ ਰੂਪ ਵਿਚ ਕੰਮ ਕਰਨ ਲੱਗ ਪੈਂਦਾ ਹੈ । ਵਿਅਕਤੀ ਨੂੰ ਵਿਭਿੰਨ ਸਤਰਾਂ ਵਿਚ ਵੰਡ ਕੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਵਿਚਲੇ ਉੱਚੇ ਤੇ ਨੀਵੇਂ ਸੰਬੰਧਾਂ ਦਾ ਵਰਣਨ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਭਾਵੇਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਵਿਚ ਸਥਿਤੀ ਦੇ ਆਧਾਰ ‘ਤੇ ਉੱਚੇ ਤੇ ਨੀਵੇਂ ਸੰਬੰਧ ਹੁੰਦੇ ਹਨ ਪਰੰਤੂ ਉਹ ਫਿਰ ਵੀ ਇਕ ਦੂਸਰੇ ਤੇ ਆਧਾਰਿਤ ਹੁੰਦੇ ਹਨ । ਅਰਸਤੂ (Aristotal) ਨੇ ਤਾਂ ਹੀ ਕਿਹਾ ਸੀ ਕਿ ਮਨੁੱਖ ਇਕ ਸਮਾਜਿਕ ਪਸ਼ੂ ਹੈ ।

ਵੱਖ-ਵੱਖ ਸਮਾਜਾਂ ਦੇ ਵਿਚ ਸਤਰੀਕਰਨ ਵੀ ਵੱਖੋ-ਵੱਖਰਾ ਪਾਇਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਵਧੇਰੇ ਕਰਕੇ ਵਿਅਕਤੀਆਂ ਨੂੰ ਪੈਸੇ, ਸ਼ਕਤੀ, ਸੱਤਾ ਆਦਿ ਦੇ ਆਧਾਰ ‘ਤੇ ਵੱਖਰਾ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਸੰਖੇਪ ਵਿਚ ਅਸੀਂ ਇਹ ਕਹਿ ਸਕਦੇ ਹਾਂ ਕਿ ਸਮਾਜਿਕ ਸਤਰੀਕਰਨ ਦਾ ਭਾਵ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਸਮਾਜਿਕ ਸਮੂਹਾਂ ਨੂੰ ਵਿਭਿੰਨ ਭਾਗਾਂ ਵਿੱਚ ਵੰਡਣ ਤੋਂ ਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਸਮਾਜਿਕ ਸਤਰੀਕਰਨ ਦੀ ਪਰਿਭਾਸ਼ਾ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਸਮਾਜ ਵਿਗਿਆਨੀਆਂ ਨੇ ਦਿੱਤੀ ਹੈ ਜਿਸ ਦਾ ਵਰਣਨ ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਅਨੁਸਾਰ ਹੈ-

1. ਪੀ. ਏ. ਸੋਰੋਕਿਨ (P.A. Sorokin) ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ, “ਸਮਾਜਿਕ ਸਤਰੀਕਰਨ ਤੋਂ ਭਾਵ ਸਮਾਜ ਦੀ ਜਨਸੰਖਿਆ ਦਾ ਉੱਚੇ ਤੇ ਨੀਵੇਂ ਪਦਮਾਤਮਕ ਤੌਰ ਤੇ ਉੱਪਰ ਆਰੋਪਿਤ ਵਰਗਾਂ ਵਿੱਚ ਵਿਭੇਦੀਕਰਣ ਤੋਂ ਹੈ । ਇਸ ਦਾ ਪ੍ਰਗਟਾਵਾ ਉੱਚਤਮ ਤੇ ਨਿਮਨਤਮ ਸਮਾਜਿਕ ਸਤਰਾਂ ਦੇ ਵਿਦਮਾਨ ਹੋਣ ਦੇ ਮਾਧਿਅਮ ਰਾਹੀਂ ਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਇਸ ਸਮਾਜਿਕ ਸਤਰੀਕਰਨ ਦਾ ਸਾਰ ਅਤੇ ਆਧਾਰ ਸਮਾਜ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਦੇ ਮੈਂਬਰਾਂ ਵਿਚ ਅਧਿਕਾਰ ਅਤੇ ਰਿਆਇਤਾਂ, ਕਰਤੱਵਾਂ ਅਤੇ ਜ਼ਿੰਮੇਵਾਰੀਆਂ, ਸਮਾਜਿਕ ਕੀਮਤਾਂ ਅਤੇ ਅਭਾਵਾਂ, ਸਮਾਜਿਕ ਸ਼ਕਤੀਆਂ ਅਤੇ ਪ੍ਰਭਾਵਾਂ ਦੀ ਅਸਮਾਨ ਵੰਡ ਤੋਂ ਹੁੰਦਾ ਹੈ । ”

2. ਕਿੰਗਸਲੇ ਡੇਵਿਸ (Kingsley Davis) ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ, “ਸਮਾਜਿਕ ਅਸਮਾਨਤਾ ਅਚੇਤਨ ਰੂਪ ਨਾਲ ਅਪਣਾਇਆ ਇਕ ਇਹੋ ਜਿਹਾ ਢੰਗ ਹੈ ਜਿਸ ਦੇ ਦੁਆਰਾ ਵਿਭਿੰਨ ਸਮਾਜ ਇਹ ਵਿਸ਼ਵਾਸ ਦਿੰਦੇ ਹਨ ਕਿ ਸਭ ਤੋਂ ਵਧੇਰੇ ਅਹੁਦਿਆਂ ਤੇ ਚੇਤੰਨ ਰੂਪ ਨਾਲ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਧ ਯੋਗ ਵਿਅਕਤੀਆਂ ਨੂੰ ਰੱਖਿਆ ਗਿਆ ਹੈ । ਇਸ ਲਈ ਹਰ ਇਕ ਸਮਾਜ ਵਿਚ ਜ਼ਰੂਰੀ ਰੂਪ ਨਾਲ ਅਸਮਾਨਤਾ ਅਤੇ ਸਮਾਜਿਕ ਸਤਰੀਕਰਨ ਰਹਿਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ ।”

3. ਕਰਟ ਬੀ. ਮੇਅਰ (Kurt B. Mayer) ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ, “ਸਮਾਜਿਕ ਸਤਰੀਕਰਨ ਵਿਭੇਦੀਕਰਣ ਦੀ ਵਿਵਸਥਾ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ਜਿਸ ਵਿਚ ਸਮਾਜਿਕ ਪਦ ਦਾ ਪਦਮ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਪਦਾਂ ਨੂੰ ਧਾਰਣ ਕਰਨ ਵਾਲਿਆਂ ਨੂੰ ਸਮਾਜਿਕ ਤੌਰ ਤੇ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਪੱਖਾਂ ਤੋਂ ਇਕ ਦੂਸਰੇ ਦੇ ਟਾਕਰੇ ਤੇ ਉੱਤਮ, ਸਮਾਨ ਜਾਂ ਘਟੀਆ ਸਮਝਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।”

ਉਪਰੋਕਤ ਪਰਿਭਾਸ਼ਾਵਾਂ ਦੇ ਆਧਾਰ ਤੇ ਅਸੀਂ ਇਸ ਨਤੀਜੇ ਤੇ ਪਹੁੰਚਦੇ ਹਾਂ ਕਿ ਸਮਾਜਿਕ ਸਤਰੀਕਰਨ ਸਮਾਜ ਨੂੰ ਉੱਚੇ ਅਤੇ ਨੀਵੇਂ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਸਮੂਹਾਂ ਅਤੇ ਵਿਅਕਤੀਆਂ ਦੀਆਂ ਭੂਮਿਕਾਵਾਂ ਅਤੇ ਪਦਾਂ ਨੂੰ ਨਿਰਧਾਰਿਤ ਕਰਦਾ ਹੈ । ਇਸ ਵਿਚ ਜਨਮ, ਜਾਤ, ਕਿੱਤਾ, ਲਿੰਗ, ਪੈਸਾ, ਸ਼ਕਤੀ ਆਦਿ ਦੇ ਆਧਾਰ ਉੱਤੇ ਵਿਅਕਤੀਆਂ ਵਿਚ ਪਾਏ ਜਾਣ ਵਾਲੇ ਪਦਰੂਮ ਨੂੰ ਦਰਸਾਇਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਵਿਭਿੰਨ ਸਮੂਹਾਂ ਵਿਚ ਉੱਚਤਾ ਅਤੇ ਅਧੀਨਤਾ ਵਾਲੇ ਸੰਬੰਧ ਪਾਏ ਜਾਂਦੇ ਹਨ ਅਤੇ ਵਿਅਕਤੀ ਦੀ ਸਥਿਤੀ ਦਾ ਸਮਾਜ ਦੇ ਵਿਚ ਨਿਸ਼ਚਿਤ ਸਥਾਨ ਵੀ ਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਇਸੀ ਦੇ ਆਧਾਰ ਉੱਤੇ ਵਿਅਕਤੀ ਨੂੰ ਸਮਾਜ ਵਿਚ ਆਦਰ ਸਨਮਾਨ ਵੀ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ।

ਸਤਰੀਕਰਨ ਦੀਆਂ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾਵਾਂ ਜਾਂ ਲੱਛਣ (Features or characteristics of Stratification)

1. ਸਤਰੀਕਰਨ ਸਮਾਜਿਕ ਹੁੰਦਾ ਹੈ (Stratification is Social) – ਅੱਡ-ਅੱਡ ਸਮਾਜਾਂ ਵਿਚ ਸਤਰੀਕਰਨ ਦੇ ਆਧਾਰਾਂ ਵਿਚ ਵੀ ਭਿੰਨਤਾ ਪਾਈ ਜਾਂਦੀ ਹੈ । ਜਦੋਂ ਵੀ ਅਸੀਂ ਸਮਾਜ ਵਿਚ ਪਾਈ ਜਾਣ ਵਾਲੀ ਕਿਸੇ ਚੀਜ਼ ਨੂੰ ਦੁਸਰੇ ਨਾਲੋਂ ਵੱਖਰਾ ਕਰਦੇ ਹਾਂ ਤਾਂ ਜਦੋਂ ਤਕ ਉਸ ਵੱਖਰੇਵੇਂ ਬਾਰੇ ਸਮਾਜ ਦੇ ਬਾਕੀ ਮੈਂਬਰ ਨਾ ਸਵੀਕਾਰ ਕਰ ਲੈਣ ਉਦੋਂ ਤੱਕ ਉਸ ਵਿਭਿੰਨਤਾ ਨੂੰ ਸਤਰੀਕਰਨ ਦਾ ਆਧਾਰ ਨਹੀਂ ਮੰਨਿਆ ਜਾਂਦਾ ।

2. ਸਤਰੀਕਰਨ ਸਰਬਵਿਆਪਕ ਪ੍ਰਕਿਰਿਆ ਹੈ (Stratification is a Universal Process) – ਸਮਾਜਿਕ ਸਤਰੀਕਰਨ ਦੀ ਪ੍ਰਕਿਰਿਆ ਹਰੇਕ ਸਮਾਜ ਵਿਚ ਪਾਈ ਜਾਂਦੀ ਹੈ । ਜੇਕਰ ਅਸੀਂ ਪ੍ਰਾਚੀਨ ਭਾਰਤੀ ਕਬਾਇਲੀ ਜਾਂ ਕਿਸੇ ਵੀ ਹੋਰ ਸਮਾਜ ਦੇ ਵਿਚ ਝਾਤ ਮਾਰੀਏ ਤਾਂ ਅਸੀਂ ਕੀ ਮਹਿਸੂਸ ਕਰਦੇ ਹਾਂ ਕਿ ਕੁਝ ਨਾ ਕੁਝ ਭਿੰਨਤਾ ਤਾਂ ਉਦੋਂ ਵੀ ਪਾਈ ਜਾਂਦੀ ਸੀ । ਲਿੰਗ ਦੀ ਭਿੰਨਤਾ ਤਾਂ ਪ੍ਰਕਿਰਤਕ ਦੇਣ ਹੈ ਜਿਸ ਦੇ ਆਧਾਰ ਤੇ ਵਿਅਕਤੀ ਵੰਡ ਕਰ ਸਕਦਾ ਹੈ । ਆਧੁਨਿਕ ਗੁੰਝਲਦਾਰ ਸਮਾਜ ਦੇ ਵਿਚ ਸਤਰੀਕਰਨ ਦੇ ਕਈ ਆਧਾਰ ਹਨ ।

3. ਵੱਖ-ਵੱਖ ਵਰਗਾਂ ਦੀ, ਅਸਮਾਨ ਸਥਿਤੀ (Inequality of Status of different Classe) – ਸਮਾਜਿਕ ਸਤਰੀਕਰਨ ਦੇ ਵਿਚ ਵਿਅਕਤੀਆਂ ਦੀ ਸਥਿਤੀ ਜਾਂ ਭੂਮਿਕਾ ਸਮਾਨ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦੀ ਹੈ । ਕਿਸੇ ਦੀ ਸਭ ਤੋਂ ਉੱਚੀ, ਕਿਸੇ ਦੀ ਉਸ ਤੋਂ ਘੱਟ, ਕਿਸੀ ਦੀ ਬਹੁਤ ਨੀਵੀਂ ਆਦਿ । ਦੂਸਰਾ ਇਹ ਕਿ ਵਿਅਕਤੀ ਦੀ ਸਥਿਤੀ ਦਾ ਇਕ ਸਮਾਨ ਨਹੀਂ ਰਹਿੰਦੀ । ਉਸ ਵਿਚ ਬਦਲਾਅ ਆਉਂਦੇ ਰਹਿੰਦੇ ਹਨ । ਕਦੇ ਉਹ ਉੱਚੀ ਸਥਿਤੀ ਤੇ ਪਹੁੰਚ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਤੇ ਕਦੀ ਨੀਵੀਂ ਸਥਿਤੀ ਤੇ ।

4. ਊਚ ਤੇ ਨੀਚ ਦਾ ਸੰਬੰਧ (Relation of upper and lower class) – ਸਤਰੀਕਰਨ ਦੇ ਵਿਚ ਸਮਾਜ ਦੀ ਵੰਡ ਵਿਭਿੰਨ ਸਤਰਾਂ ਵਿਚ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ਜਿਹੜੀ ਵਿਅਕਤੀ ਦੀ ਸਥਿਤੀ ਨੂੰ ਨਿਰਧਾਰਿਤ ਕਰਦੀ ਹੈ । ਮੁੱਖ ਤੌਰ ਤੇ ਸਮਾਜ ਨੂੰ ਦੋ ਹਿੱਸਿਆਂ ਵਿਚ ਵੰਡਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਉੱਚਤਮ ਤੇ ਨਿਮਨਤਮ ਭਾਵ ਉੱਚਾ ਅਤੇ ਨੀਵਾਂ । ਸਮਾਜ ਦੇ ਵਿਚ ਇਕ ਪਾਸੇ ਉਹ ਲੋਕ ਹੁੰਦੇ ਹਨ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਸਥਿਤੀ ਉੱਚੀ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ਤੇ ਇਕ ਪਾਸੇ ਉਹ ਲੋਕ ਹੁੰਦੇ ਹਨ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਸਥਿਤੀ ਨੀਵੀਂ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ਇਸ ਦੇ ਵਿਚਕਾਰ ਵੀ ਕਈ ਵਰਗ ਸਥਾਪਿਤ ਹੁੰਦੇ ਹਨ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਵਰਗਾਂ ਵਿਚ ਵੀ ਕਈ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦੇ ਵਰਗ ਸਥਾਪਿਤ ਹੋ ਜਾਂਦੇ ਹਨ ਜਿਵੇਂ ਮੱਧ ਉੱਚ ਵਰਗ, ਮੱਧ ਨਿਮਨ ਵਰਗ । ਪਰ ਇਨ੍ਹਾਂ ਵਿੱਚ ਉੱਚ ਤੇ ਨੀਚ ਦਾ ਸੰਬੰਧ ਜ਼ਰੂਰ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ।

5. ਸਤਰੀਕਰਨ ਅੰਤਰ ਕਿਰਿਆਵਾਂ ਨੂੰ ਸੀਮਿਤ ਕਰਦੀ ਹੈ (Stratification restricts interaction) – ਸਤਰੀਕਰਨ ਦੀ ਪ੍ਰਕਿਰਿਆ ਵਿਚ ਅੰਦਰਲੀਆਂ ਕਿਰਿਆਵਾਂ ਸਤਰ-ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਤੱਕ ਹੀ ਸੀਮਿਤ ਹੁੰਦੀਆਂ ਹਨ | ਆਮ ਤੌਰ ਤੇ ਅਸੀਂ ਵੇਖਦੇ ਹਾਂ ਕਿ ਹਰ ਇੱਕ ਵਿਅਕਤੀ ਆਪਣੇ ਸਤਰ ਦੇ ਮੈਂਬਰਾਂ ਨਾਲ ਹੀ ਸੰਬੰਧ ਸਥਾਪਿਤ ਕਰਦਾ ਹੈ । ਇਸ ਕਰਕੇ ਉਹ ਆਪਣੇ ਦਿਲ ਦੀਆਂ ਗੱਲਾਂ ਵੀ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨਾਲ ਹੀ ਸਾਂਝੀਆਂ ਕਰਦਾ ਹੈ । ਵਿਅਕਤੀ ਦੀ ਦੋਸਤੀ ਵੀ ਉਸ ਦੀ ਆਪਣੀ ਹੀ ਸ਼੍ਰੇਣੀ ਦੇ ਮੈਂਬਰਾਂ ਨਾਲ ਹੁੰਦੀ ਹੈ । ਇਸ ਪ੍ਰਕਾਰ ਵਿਅਕਤੀ ਦੀ ਅੰਤਰ ਕਿਰਿਆ ਵੀ ਵਿਭਿੰਨ ਸਤਰਾਂ ਦੇ ਵਿਅਕਤੀਆਂ ਨਾਲ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦੀ ਬਲਕਿ ਆਪਣੀ ਸਤਰ ਨਾਲ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ।

6. ਸਤਰੀਕਰਨ ਪ੍ਰਤੀਯੋਗਤਾ ਦੀ ਭਾਵਨਾ ਨੂੰ ਵਿਕਸਿਤ ਕਰਦੀ ਹੈ (It develops the feeling of competition) – ਸਤਰੀਕਰਨ ਦੀ ਪ੍ਰਕਿਰਿਆ ਵਿਅਕਤੀ ਵਿਚ ਮਿਹਨਤ ਅਤੇ ਲਗਨ ਪੈਦਾ ਕਰਦੀ ਹੈ । ਇਸ ਵਿੱਚ ਹਰ ਇੱਕ ਵਿਅਕਤੀ ਆਪਣੀ ਸਮਾਜਿਕ ਸਥਿਤੀ ਬਾਰੇ ਚੇਤੰਨ ਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਉਹ ਹਮੇਸ਼ਾ ਅੱਗੇ ਵਧਣ ਦੀ ਕੋਸ਼ਿਸ਼ ਕਰਨੀ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰ ਦਿੰਦਾ ਹੈ ਕਿਉਂਕਿ ਉਸ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਤੋਂ ਉੱਚੀ ਸਥਿਤੀ ਵਾਲੇ ਵਿਅਕਤੀ ਨਜ਼ਰ ਆਉਂਦੇ ਹਨ । ਵਿਅਕਤੀ ਆਪਣੀ ਯੋਗਤਾ ਦਾ ਇਸਤੇਮਾਲ ਕਰਕੇ ਮੁਕਾਬਲੇ ਵਿੱਚੋਂ ਅੱਗੇ ਲੰਘਣਾ ਚਾਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਇਸ ਪ੍ਰਕਾਰ ਵਿਅਕਤੀ ਦੀ ਉੱਚੇ ਪੱਧਰ ਲਈ ਪਾਈ ਗਈ ਚੇਤਨਤਾ ਵਿਅਕਤੀ ਵਿੱਚ ਪ੍ਰਤੀਯੋਗਤਾ ਦੀ ਭਾਵਨਾ ਪੈਦਾ ਕਰਦੀ ਹੈ । ਹਰੇਕ ਵਿਅਕਤੀ ਵਿੱਚ ਆਪਣੇ ਆਪ ਨੂੰ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਉੱਚਾ ਚੁੱਕਣ ਦੀ ਇੱਛਾ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ਅਤੇ ਉਹ ਆਪਣੇ ਆਪ ਨੂੰ ਉੱਚਾ ਚੁੱਕ ਸਕਦਾ ਹੈ ਆਪਣੀ ਮਿਹਨਤ ਨਾਲ ਉਹ ਮਿਹਨਤ ਕਰਦਾ ਹੈ ਤੇ ਹੋਰ ਵਰਗਾਂ ਦੇ ਵਿਅਕਤੀਆਂ ਨਾਲ ਪ੍ਰਤੀਯੋਗਤਾ ਕਰਦਾ ਹੈ ਤੇ ਉਸ ਨੂੰ ਵੇਖ ਕੇ ਆਪਣੇ ਆਪ ਨੂੰ ਉੱਪਰ ਚੁੱਕਦਾ ਹੈ ।

7. ਪ੍ਰਤਿਸ਼ਠਾ ਦੀ ਨਾ ਬਰਾਬਰ ਵੰਡ (Unequal division of prestige) – ਸਮਾਜਿਕ ਸਤਰੀਕਰਨ ਦੀ ਵਿਵਸਥਾ ਵਿਚ ਹਰ ਇੱਕ ਵਿਅਕਤੀ ਦੀ ਸਥਿਤੀ ਨਾਲ ਪ੍ਰਤਿਸ਼ਠਾ ਸੰਬੰਧਿਤ ਹੁੰਦੀ ਹੈ । ਸਮਾਜ ਵਿਚ ਵਿਅਕਤੀ ਨੂੰ ਸਹੂਲਤਾਂ ਵੀ ਉਸ ਦੀ ਸਥਿਤੀ ਦੇ ਆਧਾਰ ਤੇ ਹੀ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੁੰਦੀਆਂ ਹਨ । ਉੱਚੇ ਵਰਗ ਵਾਲਿਆਂ ਕੋਲ ਐਸ਼ੋ ਆਰਾਮ ਦੀਆਂ ਵਧੇਰੇ ਸਹੂਲਤਾਂ ਹੁੰਦੀਆਂ ਹਨ ਜਦੋਂ ਕਿ ਨੀਵੀਂ ਸਥਿਤੀ ਵਾਲੇ ਵਿਅਕਤੀ ਕੋਲ ਖਾਣ ਲਈ ਦੋ ਸਮੇਂ ਦੀ ਰੋਟੀ ਵੀ ਨਹੀਂ । ਸਮਾਜ ਦੇ ਵਿੱਚ ਆਂਦਰ, ਸਨਮਾਨ ਵੀ ਉੱਚੀ ਸਥਿਤੀ ਵਾਲਿਆਂ ਨਾਲ ਹੀ ਜੁੜਿਆ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 10 ਸਮਾਜਿਕ ਸਤਰੀਕਰਨ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਸਤਰੀਕਰਨ ਦੀਆਂ ਕਿਸਮਾਂ ਤੇ ਵਿਸਤਾਰਪੂਰਵਕ ਨੋਟ ਲਿਖੋ ।
ਉੱਤਰ-
1. ਵਰਣ ਸਤਰੀਕਰਨ (Varna Stratification) – ਵਰਣ ਸਤਰੀਕਰਨ ਵਿੱਚ ਜਾਤੀਗਤ ਭਿੰਨਤਾ ਅਤੇ ਵਿਅਕਤੀ ਦੀ ਯੋਗਤਾ ਦੇ ਸੁਭਾਅ ਕਾਫ਼ੀ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਆਧਾਰ ਸੀ ! ਭਾਰਤ ਵਿੱਚ ਆਰੀਆ ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਆਉਣ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਸਮਾਜ ਦੋ ਭਾਗਾਂ ਆਰੀਆ ਲੋਕਾਂ ਤੇ Original inhabitants ਵਿੱਚ ਵੰਡਿਆ ਗਿਆ । ਬਾਅਦ ਵਿੱਚ ਆਰੀਆ ਲੋਕ, ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਵਿਜ ਵੀ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ, ਆਪਣੇ ਗੁਣਾਂ ਅਤੇ ਸੁਭਾਅ ਦੇ ਆਧਾਰ ਉੱਤੇ ਬਾਹਮਣ, ਖੱਤਰੀ, ਵੈਸ਼ ਅਤੇ ਚੌਥੇ ਵਰਣ ਵਿੱਚ ਵੰਡੇ ਗਏ । ਇਸ ਤਰਾਂ ਸਮਾਜ ਚਾਰ ਵਰਣਾਂ ਜਾਂ ਚਾਰ ਭਾਗਾਂ ਵਿੱਚ ਵੰਡਿਆਂ ਗਿਆ ਅਤੇ ਸਤਰੀਕਰਨ ਦਾ ਇਹ ਸਰੂਪ ਸਾਹਮਣੇ ਆਇਆ ਸੀ । ਇਸ ਪਦਮ ਵਿੱਚ ਬਾਹਮਣ ਦੀ ਸਥਿਤੀ ਸਭ ਤੋਂ ਉੱਚੀ ਹੁੰਦੀ ਸੀ ਤੇ ਫਿਰ ਖੱਤਰੀ, ਵੈਸ਼ ਅਤੇ ਅੰਤ ਵਿੱਚ ਚੌਥੇ ਵਰਣ ਦੇ ਲੋਕ ਆਉਂਦੇ ਸਨ । ਇਸ ਵਿਵਸਥਾ ਵਿੱਚ ਹਰੇਕ ਵਰਣ ਦਾ ਕੰਮ ਨਿਸ਼ਚਿਤ ਅਤੇ ਇੱਕ ਦੂਜੇ ਤੋਂ ਅੱਡ ਸੀ । ਵਰਣ ਵਿਵਸਥਾ ਦਾ ਸ਼ੁਰੂਆਤੀ ਰੂਪ ਜਨਮ ਉੱਤੇ ਆਧਾਰਿਤ ਨਹੀਂ ਸੀ ਬਲਕਿ ਵਿਅਕਤੀ ਦੇ ਗੁਣਾਂ ਉੱਤੇ ਆਧਾਰਿਤ ਸੀ ਜਿਸ ਵਿੱਚ ਵਿਅਕਤੀ ਆਪਣੇ ਗੁਣਾਂ ਤੇ ਆਦਤਾਂ ਨੂੰ ਬਦਲ ਕੇ ਵਰਣ ਬਦਲ ਸਕਦਾ ਸੀ । ਪਰ ਵਰਣ ਬਦਲਨਾ ਇੱਕ ਮੁਸ਼ਕਿਲ ਕੰਮ ਸੀ ਜਿਸ ਨੂੰ ਆਸਾਨੀ ਨਾਲ ਬਦਲਿਆ ਨਹੀਂ ਜਾ ਸਕਦਾ ਸੀ ।

2. ਦਾਸਤਾ ਜਾਂ ਗੁਲਾਮੀ ਦਾ ਸਤਰੀਕਰਨ (Slavery Stratification) – ਦਾਸ ਜਾਂ ਗੁਲਾਮ ਇੱਕ ਮਨੁੱਖ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਜਿਹੜਾ ਕਿਸੇ ਹੋਰ ਮਨੁੱਖ ਦੇ ਪੂਰੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਨਿਯੰਤਰਣ ਵਿੱਚ ਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਉਹ ਆਪਣੇ ਮਾਲਕ ਦੀ ਦਇਆ ਉੱਤੇ ਜਿਉਂਦਾ ਹੈ ਜਿਸ ਨੂੰ ਕੋਈ ਵੀ ਅਧਿਕਾਰ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਮਾਲਕ ਕੁਝ ਮਾਮਲਿਆਂ ਵਿੱਚ ਉਸਦੀ ਸੁਰੱਖਿਆ ਕਰਦਾ ਹੈ ਜਿਵੇਂ ਕਿ ਉਸ ਨੂੰ ਕਿਸੇ ਹੋਰ ਦਾ ਗੁਲਾਮ ਬਣਨ ਤੋਂ ਰੋਕਣਾ । ਪਰ ਉਹ ਬਿਨਾਂ ਅਧਿਕਾਰ ਵਾਲਾ ਵਿਅਕਤੀ ਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਉਹ ਪੂਰੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਆਪਣੇ ਮਾਲਕ ਦੀ ਸੰਪਤੀ ਮੰਨਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦਾਸ ਪ੍ਰਥਾ ਵਾਲੇ ਸਮਾਜਾਂ ਵਿੱਚ ਬਹੁਤ ਜ਼ਿਆਦਾ ਅਸਮਾਨਤਾ ਪਾਈ ਜਾਂਦੀ ਹੈ । ਅਮਰੀਕਾ, ਅਫਰੀਕਾ ਆਦਿ ਮਹਾਂਦੀਪਾਂ ਵਿੱਚ ਇਹ ਪ੍ਰਥਾ 19ਵੀਂ ਸਦੀ ਵਿੱਚ ਪਾਈ ਜਾਂਦੀ ਸੀ । ਇਸ ਵਿੱਚ ਦਾਸ ਆਪਣੇ ਮਾਲਕ ਦੇ ਅਧੀਨ ਹੁੰਦਾ ਸੀ ਅਤੇ ਮਾਲਕ ਉਸਨੂੰ ਵੇਚ ਵੀ ਸਕਦਾ ਸੀ । ਦਾਸ ਦੀ ਇਸ ਨੀਵੀਂ ਸਥਿਤੀ ਦੇ ਕਾਰਨ ਉਸਨੂੰ ਕੋਈ ਅਧਿਕਾਰ ਪ੍ਰਾਪਤ ਨਹੀਂ ਸਨ । ਉਸ ਦਾ ਮਾਲਕ ਉਸ ਤੋਂ ਸਖ਼ਤ ਮਿਹਨਤ ਕਰਵਾਉਂਦਾ ਸੀ ਤੇ ਉਹਨਾਂ ਨੂੰ ਖਰੀਦਿਆ ਅਤੇ ਵੇਚਿਆ ਵੀ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਆਧੁਨਿਕ ਸਮਾਂ ਆਉਂਦੇ-ਆਉਂਦੇ ਦਾਸ ਪ੍ਰਥਾ ਦਾ ਵਿਰੋਧ ਹੋਣ ਲੱਗ ਗਿਆ ਜਿਸ ਨਾਲ ਇਹ ਪ੍ਰਥਾ ਹੌਲੀ-ਹੌਲੀ ਖ਼ਤਮ ਹੋ ਗਈ ਤੇ ਦਾਸਾਂ ਨੇ ਕਿਸਾਨਾਂ ਦਾ ਰੂਪ ਲੈ ਲਿਆ ਪਰ ਇਹਨਾਂ ਵਿੱਚ ਗੁਲਾਮ ਅਤੇ ਮਾਲਕ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਸਤਰੀਕਰਨ ਪਾਇਆ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ।

3. ਸਾਮੰਤਵਾਦ (Feudalism) – ਦਾਸ ਪ੍ਰਥਾ ਦੇ ਨਾਲ-ਨਾਲ ਸਾਮੰਤਵਾਦ ਵੀ ਸਾਹਮਣੇ ਆਇਆ । ਸਾਮੰਤ ਲੋਕ ਬਹੁਤ ਵੱਡੇ ਜ਼ਮੀਨ ਦੇ ਟੁਕੜੇ ਦੇ ਮਾਲਕ ਹੁੰਦੇ ਸਨ ਅਤੇ ਉਹ ਆਪਣੀ ਜ਼ਮੀਨ ਖੇਤੀ ਕਰਨ ਦੇ ਲਈ ਹੋਰ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਤਾਂ ਕਿਰਾਏ ਉੱਤੇ ਦਿੰਦੇ ਸਨ ਜਾਂ ਪੈਦਾਵਾਰ ਨੂੰ ਵੰਡਦੇ ਸਨ । ਮੱਧ-ਕਾਲ ਵਿੱਚ ਤਾਂ ਸਾਮੰਤ ਪ੍ਰਥਾ ਨੂੰ ਯੂਰਪ ਵਿੱਚ ਕਾਨੂੰਨੀ ਮਾਨਤਾ ਪ੍ਰਾਪਤ ਸੀ ! ਹਰੇਕ ਸਾਮੰਤ ਜਾਂ ਜਗੀਰਦਾਰ ਦੀ ਇੱਕ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਸਥਿਤੀ, ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਅਧਿਕਾਰ ਅਤੇ ਕਰਤੱਵ ਹੁੰਦੇ ਸਨ । ਉਸ ਸਮੇਂ ਜ਼ਮੀਨ ਉੱਤੇ ਖੇਤੀ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਅਧਿਕਾਰ ਕਾਫੀ ਘੱਟ ਹੁੰਦੇ ਸਨ । ਉਹ ਨਿਆਂ ਪ੍ਰਾਪਤ ਨਹੀਂ ਕਰ ਸਕਦੇ ਸਨ ਤੇ ਉਹਨਾਂ ਨੂੰ ਜਗੀਰਦਾਰਾਂ ਦੇ ਰਹਿਮ ਉੱਤੇ ਨਿਰਭਰ ਰਹਿਣਾ ਪੈਂਦਾ ਸੀ । ਉਸ ਸਮੇਂ ਕਿਰਤ ਵੰਡ ਵੀ ਹੁੰਦਾ ਸੀ । ਇਸ ਪ੍ਰਥਾ ਵਿੱਚ ਸ਼ਕਤੀ ਸਰਦਾਰਾਂ ਅਤੇ ਪੁਜਾਰੀਆਂ ਦੇ ਹੱਥਾਂ ਵਿੱਚ ਹੁੰਦੀ ਸੀ । ਭਾਰਤ ਵਿੱਚ ਜ਼ਮੀਂਦਾਰ ਤਾਂ ਸਨ ਪਰ ਸਾਮੰਤ ਪ੍ਰਥਾ ਦੇ ਲੱਛਣ ਜਾਤੀ ਪ੍ਰਥਾ ਦੇ ਕਾਰਨ ਨਹੀਂ ਸਨ । ਭਾਰਤ ਵਿੱਚ ਮਿਲਣ ਵਾਲੇ ਜਮੀਂਦਾਰ ਯੂਰਪ ਵਿੱਚ ਮਿਲਣ ਵਾਲੇ ਜਗੀਰਦਾਰਾਂ ਤੋਂ ਅੱਡ ਸਨ । ਭਾਰਤ ਵਿੱਚ ਜ਼ਿਮੀਂਦਾਰ ਰਾਜੇ ਲਈ ਪ੍ਰਜਾ ਤੋਂ ਟੈਕਸ ਇਕੱਠਾ ਕਰਨ ਦਾ ਕੰਮ ਕਰਦੇ ਸਨ ਅਤੇ ਜ਼ਰੂਰਤ ਪੈਣ ਉੱਤੇ ਰਾਜੇ ਨੂੰ ਆਪਣੀ ਸੈਨਾ ਵੀ ਦਿੰਦੇ ਸਨ । ਜਦੋਂ ਰਾਜੇ ਕਮਜ਼ੋਰ ਹੋ ਗਏ ਤਾਂ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਜ਼ਮੀਂਦਾਰ ਤੇ ਜਗੀਰਦਾਰਾਂ ਨੇ ਆਪਣੇ ਰਾਜ ਸਥਾਪਿਤ ਕਰ ਲਏ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਜ਼ਮੀਂਦਾਰੀ ਪ੍ਰਥਾ ਜਾਂ ਸਾਮੰਤਵਾਦ ਦੇ ਸਮੇਂ ਵੀ ਸਮਾਜਿਕ ਸਤਰੀਕਰਨ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਮਿਲਦਾ ਸੀ ।

4. ਨਸਲੀ ਸਤਰੀਕਰਨ (Racial stratification) – ਅੱਡ-ਅੱਡ ਸਮਾਜਾਂ ਵਿੱਚ ਨਸਲ ਦੇ ਆਧਾਰ ਉੱਤੇ ਸਤਰੀਕਰਨ ਪਾਇਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਨਸਲ ਦੇ ਆਧਾਰ ਉੱਤੇ ਸਮਾਜ ਨੂੰ ਅੱਡ-ਅੱਡ ਸਮੂਹਾਂ ਵਿੱਚ ਵੰਡਿਆ ਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਮੁੱਖ ਤੌਰ ਉੱਤੇ ਮਨੁੱਖ ਜਾਤੀ ਦੀਆਂ ਤਿੰਨ ਨਸਲਾਂ ਪਾਈਆਂ ਜਾਂਦੀਆਂ ਹਨ – ਕਾਕੇਸ਼ੀਅਨ (ਸਫ਼ੇਦ ਮੰਗੋਲਾਈਡ (ਪੀਲੇ ਅਤੇ ਨੀਗਰੋਆਈਡ ਕਾਲੇ) ਲੋਕ । ਇਹਨਾਂ ਸਾਰੀਆਂ ਨਸਲਾਂ ਵਿੱਚ ਪਦਮ ਦੀ ਵਿਵਸਥਾ ਪਾਈ ਜਾਂਦੀ ਹੈ । ਸਫ਼ੇਦ ਨਸਲ ਨੂੰ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਉੱਚਾ ਸਥਾਨ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੁੰਦਾ ਸੀ । ਪੀਲੀ ਨਸਲ ਨੂੰ ਵਿਚਲਾ ਸਥਾਨ ਅਤੇ ਕਾਲੀ ਨਸਲ ਨੂੰ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਸਭ ਤੋਂ ਨੀਵਾਂ ਸਥਾਨ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੁੰਦਾ ਸੀ । ਅਮਰੀਕਾ ਵਿੱਚ ਅੱਜ ਵੀ ਨਸਲੀ ਆਧਾਰ ਉੱਤੇ ਭੇਦਭਾਵ ਪਾਇਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਅੱਡ-ਅੱਡ ਨਸਲਾਂ ਦੇ ਲੋਕ ਆਪਸ ਵਿੱਚ ਵਿਆਹ ਵੀ ਨਹੀਂ ਕਰਦੇ । ਚਾਹੇ ਆਧੁਨਿਕ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਇਸ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦੇ ਸਰੂਪ ਵਿੱਚ ਕੁਝ ਪਰਿਵਰਤਨ ਆਇਆ ਹੈ। ਪਰ ਫਿਰ ਵੀ ਇਹ ਸਤਰੀਕਰਨ ਮਿਲਦਾ ਜ਼ਰੂਰ ਹੈ ।

5. ਜਾਤੀਗਤ ਸਤਰੀਕਰਨ (Caste Stratification) – ਜਿਹੜਾ ਸਤਰੀਕਰਨ ਜਨਮ ਦੇ ਆਧਾਰ ਉੱਤੇ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਉਸਨੂੰ ਜਾਤੀਗਤ ਸਤਰੀਕਰਨ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ਕਿਉਂਕਿ ਬੱਚੇ ਦੀ ਸਥਿਤੀ ਉਸਦੇ ਜਨਮ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਹੀ ਨਿਸ਼ਚਿਤ ਹੋ ਜਾਂਦੀ ਸੀ । ਪ੍ਰਾਚੀਨ ਅਤੇ ਪਰੰਪਰਾਗਤ ਭਾਰਤੀ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਅਸੀਂ ਜਾਤੀਗਤ ਸਤਰੀਕਰਨ ਦੇ ਸਰੂਪ ਦੀ ਉਦਾਹਰਣ ਦੇਖ ਸਕਦੇ ਹਾਂ। ਇਸਦਾ ਭਾਰਤੀ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਜ਼ਿਆਦਾ ਪ੍ਰਭਾਵ ਸੀ ਕਿਉਂਕਿ ਭਾਰਤ ਵਿੱਚ ਵਿਦੇਸ਼ਾਂ ਤੋਂ ਆ ਕੇ ਲੋਕ ਰਹਿਣ ਲੱਗ ਪਏ ਅਤੇ ਇਹਨਾਂ ਲੋਕਾਂ ਵਿੱਚ ਵੀ ਜਾਤੀ ਉੱਤੇ ਆਧਾਰਿਤ ਸਤਰੀਕਰਨ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋ ਗਿਆ ਸੀ । ਉਦਾਹਰਣ ਦੇ ਲਈ ਮੁਸਲਮਾਨਾਂ ਵਿੱਚ ਵੀ ਕਈ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦੇ ਸਮੂਹ ਪਾਏ ਜਾਂਦੇ ਹਨ । ਜਾਤੀਗਤ ਸਤਰੀਕਰਨ ਵਿੱਚ ਮੁੱਖ ਤੌਰ ਉੱਤੇ ਚਾਰ ਜਾਤਾਂ ਪਾਈਆਂ ਜਾਂਦੀਆ ਸਨ ਪਰ ਇਨ੍ਹਾਂ ਚਾਰ ਜਾਤਾਂ ਅੱਗੇ ਬਹੁਤ ਸਾਰੀਆਂ ਉਪਜਾਤਾਂ ਵਿੱਚ ਵੰਡੀਆਂ ਹੁੰਦੀਆਂ ਸਨ । ਇਹਨਾਂ ਉਪਜਾਤਾਂ ਵਿੱਚ ਵੀ ਸਤਰੀਕਰਨ ਹੁੰਦਾ ਸੀ । ਸਤਰੀਕਰਨ ਦਾ ਇਹ ਸਰੂਪ ਹੋਰਾਂ ਸਰੂਪਾਂ ਨਾਲੋਂ ਸਥਿਰ ਸੀ ਕਿਉਂਕਿ ਵਿਅਕਤੀ ਆਪਣੀ ਜਾਤੀ ਨੂੰ ਬਦਲ ਨਹੀਂ ਸਕਦਾ ।

6. ਵਰਗ ਸਤਰੀਕਰਨ (Class Stratification) – ਇਸ ਨੂੰ ਸਰਵਵਿਆਪਕ ਸਤਰੀਕਰਨ ਵੀ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ । ਕਿਉਂਕਿ ਇਸ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦਾ ਸਤਰੀਕਰਨ ਹਰੇਕ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਵੇਖਣ ਨੂੰ ਮਿਲ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਇਸ ਨੂੰ ਖੁੱਲਾ ਸਤਰੀਕਰਨ ਵੀ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ । ਇਸ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦਾ ਸਤਰੀਕਰਨ ਸਮਾਜਿਕ ਸੰਸਕ੍ਰਿਤਕ ਆਧਾਰਾਂ ਜਿਵੇਂ ਕਿ ਆਮਦਨੀ, ਪੇਸ਼ਾ, ਸੱਤਾ, ਸੰਪਤੀ, ਧਰਮ, ਸਿੱਖਿਆ, ਕੰਮ ਆਦਿ ਦੇ ਆਧਾਰ ਉੱਤੇ ਵੇਖਣ ਨੂੰ ਮਿਲਦਾ ਹੈ । ਇਸ ਵਿੱਚ ਵਿਅਕਤੀ ਨੂੰ ਇੱਕ ਨਿਸ਼ਚਿਤ ਸਥਾਨ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਸਮਾਨ ਸਥਿਤੀ ਵਾਲੇ ਵਿਅਕਤੀ ਇਕੱਠੇ ਹੋ ਕੇ ਇੱਕ ਵਰਗ ਦਾ ਨਿਰਮਾਣ ਕਰਦੇ ਹਨ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਅੱਡ-ਅੱਡ ਵਰਗ ਬਣ ਜਾਂਦੇ ਹਨ ਅਤੇ ਉਹਨਾਂ ਵਿੱਚ ਉੱਚੇ ਨੀਵੇਂ ਸੰਬੰਧ ਸਥਾਪਿਤ ਹੋ ਜਾਂਦੇ ਹਨ । ਇਸੇ ਕਾਰਨ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਸਤਰੀਕਰਨ ਪਾਇਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਇਸ ਵਿੱਚ ਵਿਅਕਤੀ ਦੀ ਸਥਿਤੀ ਕਿਸੇ ਵੀ ਸਮੇਂ ਬਦਲ ਸਕਦੀ ਹੈ ।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 10 ਸਮਾਜਿਕ ਸਤਰੀਕਰਨ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 3.
ਜਾਤੀ ਵਿਵਸਥਾ ਵਿੱਚ ਬਦਲਾਵ ਲਿਆ ਰਹੇ ਕਾਰਨਾਂ ਉੱਪਰ ਨੋਟ ਲਿਖੋ ।
ਉੱਤਰ-
1. ਸਮਾਜਿਕ ਧਾਰਮਿਕ ਸੁਧਾਰ ਲਹਿਰਾਂ (Socio-religious reform movement) – ਭਾਰਤ ਵਿਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਾਮਰਾਜ ਦੇ ਸਥਾਪਿਤ ਹੋਣ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਵੀ ਕੁਝ ਧਾਰਮਿਕ ਲਹਿਰਾਂ ਨੇ ਜਾਤੀ ਪ੍ਰਥਾ ਦੀ ਨਿਖੇਧੀ ਕੀਤੀ ਸੀ । ਬੁੱਧ ਮਤ ਅਤੇ ਜੈਨ ਮਤ ਤੋਂ ਲੈ ਕੇ ਇਸਲਾਮ ਅਤੇ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਨੇ ਵੀ ਜਾਤੀ ਪ੍ਰਥਾ ਦਾ ਖੰਡਨ ਕੀਤਾ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਨਾਲ-ਨਾਲ ਇਸਲਾਮ ਅਤੇ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਨੇ ਤਾਂ ਜਾਤੀ ਪ੍ਰਥਾ ਦੀ ਜੰਮ ਕੇ ਨਿਖੇਧੀ ਕੀਤੀ । 19ਵੀਂ ਸਦੀ ਵਿਚ ਕੁਝ ਹੋਰ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਸਮਾਜ ਸੁਧਾਰਕ ਲਹਿਰਾਂ ਨੇ ਵੀ ਜਾਤੀ ਪ੍ਰਥਾ ਦੇ ਵਿਰੁੱਧ ਅੰਦੋਲਨ ਚਲਾਇਆ । ਰਾਜਾ ਰਾਮ ਮੋਹਨ ਰਾਇ ਵਲੋਂ ਚਲਾਏ ਮੋ ਸਮਾਜ, ਦਯਾਨੰਦ ਸਰਸਵਤੀ ਵਲੋਂ ਚਲਾਇਆ ਆਰੀਆ ਸਮਾਜ, ਰਾਮ ਕ੍ਰਿਸ਼ਨ ਮਿਸ਼ਨ ਆਦਿ ਇਨ੍ਹਾਂ ਵਿਚੋਂ ਕੁੱਝ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਸਮਾਜ ਸੁਧਾਰਕ ਲਹਿਰਾਂ ਸਨ ।

ਇਨ੍ਹਾਂ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਜਯੋਤੀ ਰਾਉ ਫੂਲੇ ਨੇ 1873 ਵਿਚ ਸਤਿਆ ਸ਼ੋਧਨ ਸਮਾਜ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕੀਤੀ ਜਿਸ ਦਾ ਮੁੱਖ ਮੰਤਵੇਂ ਸਮਾਜ ਵਿਚ ਸਾਰਿਆਂ ਨੂੰ ਬਰਾਬਰੀ ਦਾ ਦਰਜਾ ਦਿਵਾਉਣਾ ਸੀ । ਜਾਤੀ ਪ੍ਰਥਾ ਦੀ ਵਿਰੋਧਤਾ ਮਹਾਤਮਾ ਗਾਂਧੀ ਅਤੇ ਡਾ: ਬੀ. ਆਰ. ਅੰਬੇਦਕਰ ਨੇ ਵੀ ਕੀਤੀ ਸੀ । ਮਹਾਤਮਾ ਗਾਂਧੀ ਨੇ ਹੇਠਲੀਆਂ ਜਾਤਾਂ ਨੂੰ ਹਰੀਜਨ ਦਾ ਨਾਮ ਦਿੱਤਾ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਹੋਰ ਜਾਤੀਆਂ ਦੇ ਵਾਂਗ ਸਮਾਨ ਅਧਿਕਾਰ ਦਿਵਾਉਣ ਦੀ ਕੋਸ਼ਿਸ਼ ਕੀਤੀ । ਆਰੀਆ ਸਮਾਜ ਨੇ ਮਨੁੱਖ ਦੇ ਜਨਮ ਦੀ ਥਾਂ ਉਸਦੇ ਗੁਣਾਂ ਨੂੰ ਜ਼ਿਆਦਾ ਮਹੱਤਵ ਦਿੱਤਾ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਸਾਰੇ ਲੋਕਾਂ ਦੀਆਂ ਕੋਸ਼ਿਸ਼ਾਂ ਨਾਲ ਇਹ ਸਪੱਸ਼ਟ ਹੋ ਗਿਆ ਕਿ ਮਨੁੱਖ ਦੀ ਸਮਾਜ ਵਿਚ ਪਛਾਣ ਉਸਦੇ ਗੁਣਾਂ ਨਾਲ ਹੋਣੀ ਚਾਹੀਦੀ ਹੈ ਨਾ ਕਿ ਉਸਦੇ ਜਨਮ ਨਾਲ ।

2. ਭਾਰਤ ਸਰਕਾਰ ਦੀਆਂ ਕੋਸ਼ਿਸ਼ਾਂ (Efforts of Indian Government) – ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਰਾਜ ਸਮੇਂ ਅਤੇ ਭਾਰਤ ਦੀ ਆਜ਼ਾਦੀ ਪਿੱਛੋਂ ਕਈ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਕਾਨੂੰਨ ਪਾਸ ਕੀਤੇ ਗਏ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਜਾਤੀ ਪ੍ਰਥਾ ਨੂੰ ਕਮਜ਼ੋਰ ਕਰਨ ਵਿਚ ਡੂੰਘਾ ਅਸਰ ਪਾਇਆ । ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਰਾਜ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਜਾਤੀ ਅਤੇ ਪੇਂਡੂ ਪੰਚਾਇਤਾਂ ਬਹੁਤ ਸ਼ਕਤੀਸ਼ਾਲੀ ਸਨ । ਇਹ ਪੰਚਾਇਤਾਂ ਅਪਰਾਧੀਆਂ ਨੂੰ ਸਜ਼ਾਵਾਂ ਵੀ ਦੇ ਸਕਦੀਆਂ ਸਨ ਅਤੇ ਜ਼ੁਰਮਾਨੇ ਵੀ ਕਰ ਸਕਦੀਆਂ ਸਨ | ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸ਼ਾਸਨ ਦੌਰਾਨ ਜਾਤ ਅਸਰਥਾਵਾਂ ਦੂਰ ਕਰਨ ਦਾ ਕਾਨੂੰਨ (Caste Disabilities Removal Act, 1850) ਪਾਸ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਜਿਸ ਨੇ ਜਾਤੀ ਪੰਚਾਇਤਾਂ ਨੂੰ ਕਾਫ਼ੀ ਕਮਜ਼ੋਰ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਇਸੇ ਤਰ੍ਹਾਂ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਵਿਆਹ ਕਾਨੂੰਨ (Special Marriage Act, 1872) ਨੇ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਜਾਤਾਂ ਵਿਚ ਵਿਆਹ ਨੂੰ ਮਾਨਤਾ ਦਿੱਤੀ ਜਿਸ ਨਾਲ ਪਰੰਪਰਾਗਤ ਜਾਤੀ ਪ੍ਰਥਾ ਉੱਤੇ ਕਾਫ਼ੀ ਡੂੰਘਾ ਪ੍ਰਭਾਵ ਪਿਆ । ਭਾਰਤ ਦੀ ਆਜ਼ਾਦੀ ਤੋਂ ਬਾਅਦ Untouchability Offence Act, 1955 ਅਤੇ Hindu Marriage Act, 1955 ਨੇ ਵੀ ਜਾਤੀ ਪ੍ਰਥਾ ਉੱਪਰ ਕਾਫ਼ੀ ਸੱਟ ਮਾਰੀ | Hindu Marriage Validation Act, ਪਾਸ ਹੋਇਆ ਜਿਸ ਨਾਲ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਧਰਮਾਂ, ਜਾਤਾਂ, ਉਪਜਾਤਾਂ ਆਦਿ ਦੇ ਵਿਅਕਤੀਆਂ ਵਿਚ ਹੋਣ ਵਾਲੇ ਵਿਆਹ ਨੂੰ ਕਾਨੂੰਨੀ ਘੋਸ਼ਿਤ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ।

3. ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦਾ ਯੋਗਦਾਨ (Contribution of Britishers) – ਜਾਤੀ ਪ੍ਰਤਾ ਦੇ ਵਿਰੁੱਧ ਇੱਕ ਖੁੱਲ੍ਹਾ ਸੰਘਰਸ਼ ਬ੍ਰਿਟਿਸ਼ . ਕਾਲ ਵਿਚ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋਇਆ | ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਭਾਰਤ ਵਿਚ ਕਾਨੂੰਨ ਦੇ ਸਾਹਮਣੇ ਸਭ ਦੀ ਸਮਾਨਤਾ ਦਾ ਸਿਧਾਂਤ ਲਾਗੂ ਕੀਤਾ | ਜਾਤੀ ਆਧਾਰਿਤ ਪੰਚਾਇਤਾਂ ਤੋਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਨਿਆਂ ਕਰਨ ਦੇ ਅਧਿਕਾਰ ਵਾਪਿਸ ਲੈ ਲਏ ਗਏ । ਸਰਕਾਰੀ ਨੌਕਰੀਆਂ ਹਰੇਕ ਜਾਤੀ ਲਈ ਖੋਲ੍ਹ ਦਿੱਤੀਆਂ ਗਈਆਂ । ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੀ ਸਿੱਖਿਆ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਧਰਮ ਨਿਰਪੱਖ ਸੀ । ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਭਾਰਤ ਵਿਚ ਆਧੁਨਿਕ ਉਦਯੋਗਾਂ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕਰਕੇ ਅਤੇ ਰੇਲਾਂ, ਬੱਸਾਂ ਆਦਿ ਦੀ ਸ਼ੁਰੂਆਤ ਕਰਕੇ ਜਾਤੀ ਪ੍ਰਥਾ ਨੂੰ ਕਰਾਰਾ ਝਟਕਾ ਦਿੱਤਾ । ਉਦਯੋਗਾਂ ਵਿਚ ਸਾਰੇ ਮਿਲ ਕੇ ਕੰਮ ਕਰਦੇ ਸਨ ਅਤੇ ਰੇਲਾਂ, ਬੱਸਾਂ ਦੇ ਸਫ਼ਰ ਨੇ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਜਾਂਤਾ ਦੇ ਵਿਚ ਸੰਪਰਕ ਸਥਾਪਿਤ ਕੀਤਾ । ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਵਲੋਂ ਜ਼ਮੀਨ ਦੀ ਖੁੱਲ੍ਹੀ ਖ਼ਰੀਦ-ਫਰੋਖਤ ਦੇ ਅਧਿਕਾਰ ਨੇ ਪਿੰਡਾਂ ਵਿਚ ਜਾਤੀ ਸੰਤੁਲਨ ਨੂੰ ਬਹੁਤ ਮੁਸ਼ਕਿਲ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ।

4. ਉਦਯੋਗੀਕਰਨ (Industrialization) – ਉਦਯੋਗੀਕਰਨ ਨੇ ਅਜਿਹੇ ਹਾਲਾਤ ਪੈਦਾ ਕੀਤੇ ਜੋ ਜਾਤੀ ਵਿਵਸਥਾ ਦੇ ਵਿਰੁੱਧ ਸਨ । ਇਸ ਕਾਰਨ ਫ਼ੈਕਟਰੀਆਂ ਵਿਚ ਕਈ ਨਵੇਂ ਕੰਮ ਪੈਦਾ ਹੋ ਗਏ ਜਿਹੜੇ ਤਕਨੀਕੀ ਸਨ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਕਰਨ ਲਈ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਯੋਗਤਾ ਅਤੇ ਸਿਖਲਾਈ ਦੀ ਲੋੜ ਸੀ । ਅਜਿਹੇ ਕੰਮ ਯੋਗਤਾ ਦੇ ਆਧਾਰ ਉੱਤੇ ਮਿਲਦੇ ਸਨ । ਇਸ ਨਾਲ ਸਮਾਜਿਕ ਸੰਸਤਰਣ ਵਿਚ ਮੌਜੂਦ ਹੇਠਲੀਆਂ ਜਾਤਾਂ ਨੂੰ ਉੱਪਰ ਆਉਣ ਦਾ ਮੌਕਾ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੋਇਆ । ਉਦਯੋਗੀਕਰਨ ਨੇ ਭੌਤਿਕਤਾ ਵਿਚ ਵਾਧਾ ਕਰਕੇ ਪੈਸੇ ਦੇ ਮਹੱਤਵ ਨੂੰ ਵਧਾਇਆ । ਪੈਸੇ ਦੇ ਆਧਾਰ ਉੱਤੇ ਤਿੰਨ ਵਰਗ ਪੈਦਾ ਹੋਏ-ਧਨੀ ਵਰਗ, ਮੱਧ ਵਰਗ ਅਤੇ ਗ਼ਰੀਬ ਵਰਗ । ਹਰੇਕ ਵਰਗ ਵਿਚ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਜਾਤਾਂ ਦੇ ਲੋਕ ਪਾਏ ਜਾਂਦੇ ਸਨ । ਉਦਯੋਗੀਕਰਨ ਨਾਲ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਜਾਤਾਂ ਦੇ ਲੋਕ ਇਕੱਠੇ ਫੈਕਟਰੀਆਂ ਵਿਚ ਕੰਮ ਕਰਨ ਲੱਗੇ, ਇਕੱਠੇ ਸਫ਼ਰ ਕਰਨ ਲੱਗੇ ਤੇ ਇਕੱਠੇ ਹੀ ਰੋਟੀ ਖਾਣ ਲੱਗੇ ਜਿਸ ਨਾਲ

ਛੂਤਛਾਤ ਦੀ ਭਾਵਨਾ ਖ਼ਤਮ ਹੋਣੀ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋ ਗਈ । ਆਵਾਜਾਈ ਦੇ ਸਾਧਨਾਂ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਦੇ ਕਾਰਨ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਧਰਮਾਂ ਅਤੇ ਜਾਤਾਂ ਵਿਚਕਾਰ ਉਦਾਰ ਦ੍ਰਿਸ਼ਟੀਕੋਣ ਦਾ ਵਿਕਾਸ ਹੋਇਆ ਜੋ ਕਿ ਜਾਤੀ ਵਿਵਸਥਾ ਦੇ ਲਈ ਖ਼ਤਰਨਾਕ ਸੀ । ਉਦਯੋਗੀਕਰਨ ਨੇ ਦੂਤੀਆ ਸੰਬੰਧਾਂ ਨੂੰ ਵਧਾਇਆ ਅਤੇ ਵਿਅਕਤੀਵਾਦਿਤਾ ਨੂੰ ਜਨਮ ਦਿੱਤਾ ਜਿਸ ਨਾਲ ਸਮੁਦਾਇਕ ਨਿਯਮਾਂ ਦਾ ਪ੍ਰਭਾਵ ਬਿਲਕੁਲ ਹੀ ਖ਼ਤਮ ਹੋ ਗਿਆ | ਸਮਾਜਿਕ ਪ੍ਰਥਾਵਾਂ ਅਤੇ ਪਰੰਪਰਾਵਾਂ ਦਾ ਮਹੱਤਵ ਖ਼ਤਮ ਹੋ ਗਿਆ ! ਸੰਬੰਧ ਕਾਨੂੰਨ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਹੋਣ ਲੱਗ ਪਏ 1 ਹੁਣ ਸੰਬੰਧ ਆਰਥਿਕ ਸਥਿਤੀ ਦੇ ਆਧਾਰ ਉੱਤੇ ਹੁੰਦੇ ਸਨ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਉਦਯੋਗੀਕਰਨ ਨੇ ਜਾਤੀ ਵਿਵਸਥਾ ਉੱਪਰ ਕਾਫ਼ੀ ਡੂੰਘੀ ਸੱਟ ਮਾਰੀ ।

5. ਸ਼ਹਿਰੀਕਰਨ (Urbanization) – ਸ਼ਹਿਰੀਕਰਨ ਦੇ ਕਾਰਨ ਵੀ ਜਾਤੀ ਪ੍ਰਥਾ ਵਿਚ ਕਾਫ਼ੀ ਬਦਲਾਵ ਆਏ । ਸੰਘਣੀ ਆਬਾਦੀ, ਨਿਜੀ ਭਾਵਨਾ, ਸਮਾਜਿਕ ਗਤੀਸ਼ੀਲਤਾ ਅਤੇ ਜ਼ਿਆਦਾ ਕੰਮ ਵਰਗੀਆਂ ਸ਼ਹਿਰੀ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾਵਾਂ ਨੇ ਜਾਤੀ ਪ੍ਰਥਾ ਨੂੰ ਕਾਫ਼ੀ ਕਮਜ਼ੋਰ ਕੀਤਾ । ਵੱਡੇ-ਵੱਡੇ ਸ਼ਹਿਰਾਂ ਵਿਚ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਇੱਕ-ਦੂਜੇ ਦੇ ਨਾਲ ਮਿਲ ਕੇ ਰਹਿਣਾ ਪੈਂਦਾ ਹੈ । ਉਹ ਇਹ ਨਹੀਂ ਦੇਖਦੇ ਕਿ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਪੜੋਸੀ ਕਿਸ ਜਾਤੀ ਦਾ ਹੈ । ਇਸ ਨਾਲ ਉਚ-ਨੀਚ ਦੀ ਭਾਵਨਾ ਖ਼ਤਮ ਹੋ ਗਈ । ਸ਼ਹਿਰੀਕਰਨ ਦੇ ਕਾਰਨ ਜਦੋਂ ਲੋਕ ਇੱਕ-ਦੂਜੇ ਦੇ ਸੰਪਰਕ ਵਿਚ ਆਏ ਤਾਂ ਅੰਤਰ ਜਾਤੀ ਵਿਆਹ ਹੋਣ ਲੱਗ ਪਏ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਸ਼ਹਿਰੀਕਰਨ ਨੇ ਛੂਤ-ਛਾਤ ਦੇ ਭੇਦਾਂ ਨੂੰ ਕਾਫ਼ੀ ਹੱਦ ਤੱਕ ਦੂਰ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ।

6. ਸਿੱਖਿਆ ਦਾ ਪ੍ਰਸਾਰ (Spread of Education) – ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਭਾਰਤ ਵਿਚ ਪੱਛਮੀ ਸਿੱਖਿਆ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਨੂੰ ਲਾਗੂ ਕੀਤਾ ਜਿਸ ਵਿਚ ਵਿਗਿਆਨ ਅਤੇ ਤਕਨੀਕ ਉੱਪਰ ਵਧੇਰੇ ਜ਼ੋਰ ਦਿੱਤਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਸਿੱਖਿਆ ਦੇ ਪ੍ਰਸਾਰ ਨਾਲ ਲੋਕਾਂ ਵਿਚ ਜਾਗ੍ਰਿਤੀ ਆਈ ਅਤੇ ਇਸਦੇ ਨਾਲ ਪਰੰਪਰਾਗਤ ਕਦਰਾਂ ਕੀਮਤਾਂ ਵਿਚ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਪਰਿਵਰਤਨ ਵੀ ਆਏ । ਜਨਮ ਉੱਪਰ ਆਧਾਰਿਤ ਦਰਜੇ ਦੀ ਥਾਂ ਮੁਕਾਬਲੇ ਵਿਚ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕੀਤੇ ਦਰਜ਼ੇ ਦਾ ਮਹੱਤਵ ਵੱਧ ਗਿਆ | ਸਕੂਲ, ਕਾਲਜ ਆਦਿ ਪੱਛਮੀ ਤਰੀਕੇ ਨਾਲ ਖੁੱਲ੍ਹ ਗਏ ਜਿੱਥੇ ਸਾਰੀਆਂ ਜਾਤਾਂ ਦੇ ਬੱਚੇ ਇਕੱਠੇ ਮਿਲ ਕੇ ਸਿੱਖਿਆ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਦੇ ਹਨ । ਇਸ ਨਾਲ ਵੀ ਜਾਤੀ ਵਿਵਸਥਾ ਨੂੰ ਕਾਫ਼ੀ ਸੱਟ ਵੱਜੀ ।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 10 ਸਮਾਜਿਕ ਸਤਰੀਕਰਨ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 4.
ਵਰਗ ਵਿਵਸਥਾ ਕੀ ਹੈ ? ਇਸ ਦੀਆਂ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾਵਾਂ ਕੀ ਹਨ ?
ਉੱਤਰ-
ਹਰੇਕ ਸਮਾਜ ਕਈ ਵਰਗਾਂ ਵਿਚ ਵੰਡਿਆ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਹਰ-ਇਕ ਵਰਗ ਦੀ ਸਮਾਜ ਵਿਚ ਵੱਖੋ-ਵੱਖਰੀ ਸਥਿਤੀ ਹੁੰਦੀ ਹੈ । ਇਸ ਸਥਿਤੀ ਦੇ ਆਧਾਰ ‘ਤੇ ਹੀ ਵਿਅਕਤੀ ਨੂੰ ਉੱਚਾ ਨੀਵਾਂ ਜਾਣਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਵਰਗ ਦੀ ਮੁੱਖ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾ ਵਰਗ ਚੇਤੰਨਤਾ ਹੁੰਦੀ ਹੈ । ਇਸ ਪ੍ਰਕਾਰ ਸਮਾਜ ਵਿਚ ਜਦੋਂ ਵਿਭਿੰਨ ਵਿਅਕਤੀਆਂ ਨੂੰ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਸਮਾਜਿਕ ਸਥਿਤੀ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ਤਾਂ ਉਸ ਨੂੰ ਵਰਗ ਵਿਵਸਥਾ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ । ਹਰ ਇਕ ਵਰਗ ਆਰਥਿਕ ਪੱਖੋਂ ਇਕ ਦੂਸਰੇ ਨਾਲੋਂ ਵੱਖ ਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਵਰਗ ਦੇ ਅਰਥ ਬਾਰੇ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਸਮਾਜ ਵਿਗਿਆਨੀਆਂ ਨੇ ਆਪਣੇ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਵਿਚਾਰ ਦਿੱਤੇ ਹਨ ਜੋ ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਅਨੁਸਾਰ ਹਨ-

  • ਮੈਕਾਈਵਰ (MacIver) ਨੇ ਵਰਗ ਨੂੰ ਸਮਾਜਿਕ ਆਧਾਰ ਉੱਪਰ ਬਿਆਨ ਕੀਤਾ ਹੈ । ਉਸ ਅਨੁਸਾਰ, “ਸਮਾਜਿਕ ਵਰਗ ਇਕੱਠ ਦਾ ਉਹ ਹਿੱਸਾ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਜਿਸਨੂੰ ਸਮਾਜਿਕ ਸਥਿਤੀ ਦੇ ਆਧਾਰ ‘ਤੇ ਬਚੇ ਹਿੱਸਿਆਂ ਨਾਲੋਂ ਵੱਖ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।
  • ਮੌਰਿਸ ਜਿਨਜ਼ਬਰਗ (Morris Ginsberg) ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ, ਵਰਗ ਵਿਅਕਤੀਆਂ ਦਾ ਅਜਿਹਾ ਸਮੂਹ ਹੈ ਜਿਹੜੇ ਸਾਂਝੇ · ਸ਼ਕੂਮ, ਕਿੱਤਾ, ਸੰਪੱਤੀ ਅਤੇ ਸਿੱਖਿਆ ਦੇ ਦੁਆਰਾ ਇਕੋ ਜਿਹਾ ਜੀਵਨ ਢੰਗ, ਇੱਕੋ ਜਿਹੇ ਵਿਚਾਰਾਂ ਦਾ ਸਟਾਕ, ਭਾਵਨਾਵਾਂ, ਰਵੱਈਏ ਅਤੇ ਵਿਵਹਾਰ ਦੇ ਰੂਪ ਰੱਖਦੇ ਹੋਣ ਅਤੇ ਜੋ ਇਨ੍ਹਾਂ ਵਿਚੋਂ ਕੁੱਝ ਜਾਂ ਸਾਰੇ ਆਧਾਰ ਉੱਤੇ ਇੱਕ ਦੂਸਰੇ ਨਾਲ ਸਮਾਨ ਰੂਪ ਵਿਚ ਮਿਲਦੇ ਹੋਣ ਅਤੇ ਆਪਣੇ ਆਪ ਨੂੰ ਇੱਕ ਸਮੂਹ ਦਾ ਮੈਂਬਰ ਸਮਝਦੇ ਹੋਣ । ਭਾਵੇਂ ਇਸ ਸੰਬੰਧ ਵਿਚ ਚੇਤਨਾ ਉਨ੍ਹਾਂ ਵਿਚ ਭਿੰਨ-ਭਿੰਨ ਮਾਤਰਾ ਵਿਚ ਪਾਈ ਜਾਂਦੀ ਹੋਵੇ ।”
  • ਗਿਲਬਰਟ (Gilbert) ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ, “ਇਕ ਸਮਾਜਿਕ ਵਰਗ ਵਿਅਕਤੀਆਂ ਦਾ ਇਕੱਠ ਅਤੇ ਖ਼ਾਸ ਸ਼੍ਰੇਣੀ ਹੈ ਜਿਸ ਦੀ ਸਮਾਜ ਵਿਚ ਇਕ ਖ਼ਾਸ ਸਥਿਤੀ ਹੁੰਦੀ ਹੈ । ਇਹ ਖ਼ਾਸ ਸਥਿਤੀ ਹੀ ਦੂਸਰੇ ਸਮੂਹਾਂ ਤੋਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਸੰਬੰਧ ਨਿਰਧਾਰਿਤ ਕਰਦੀ ਹੈ ।’

ਉਪਰੋਕਤ ਵਿਵਰਣ ਦੇ ਆਧਾਰ ‘ਤੇ ਅਸੀਂ ਇਹ ਕਹਿ ਸਕਦੇ ਹਾਂ ਕਿ ਸਮਾਜਿਕ ਵਰਗ ਕਈ ਵਿਅਕਤੀਆਂ ਦਾ ਵਰਗ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਜਿਸਨੂੰ ਸਮਾਂ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਵਿਚ ਇੱਕ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਸਥਿਤੀ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੁੰਦੀ ਹੈ । ਇਸੇ ਕਰਕੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਕੁੱਝ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਸ਼ਕਤੀ, ਅਧਿਕਾਰ ਅਤੇ ਜ਼ਿੰਮੇਵਾਰੀਆਂ ਵੀ ਮਿਲੀਆਂ ਹੁੰਦੀਆਂ ਹਨ । ਵਰਗ ਵਿਵਸਥਾ ਵਿਚ ਵਿਅਕਤੀ ਦੀ ਯੋਗਤਾ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਹੁੰਦੀ ਹੈ । ਇਸੇ ਕਰਕੇ ਹਰ ਵਿਅਕਤੀ ਮਿਹਨਤ ਕਰਕੇ ਸਮਾਜਿਕ ਵਰਗ ਵਿਚ ਆਪਣੀ ਸਥਿਤੀ ਨੂੰ ਉੱਚੀ ਕਰਨਾ ਚਾਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਹਰ ਇਕ ਸਮਾਜ ਵਿਭਿੰਨ ਵਰਗਾਂ ਵਿਚ ਵੰਡਿਆ ਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਵਰਗ ਵਿਵਸਥਾ ਵਿਚ ਵਿਅਕਤੀ ਦੀ ਸਥਿਤੀ ਨਿਸ਼ਚਿਤ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦੀ । ਉਸ ਦੀ ਸਥਿਤੀ ਵਿਚ ਗਤੀਸ਼ੀਲਤਾ ਪਾਈ ਜਾਂਦੀ ਹੈ । ਇਸੇ ਕਰਕੇ ਇਹ ਖੁੱਲਾ ਸਤਰੀਕਰਨ ਵੀ ਕਹਾਇਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਵਿਅਕਤੀ ਆਪਣੀ ਵਰਗ ਸਥਿਤੀ ਨੂੰ ਆਪ ਨਿਰਧਾਰਿਤ ਕਰਦਾ ਹੈ । ਇਹ ਜਨਮ ਉੱਪਰ ਆਧਾਰਿਤ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦਾ ।

ਵਰਗ ਦੀਆਂ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾਵਾਂ (Characteristics of Class)

1. ਸ਼ੇਸ਼ਟਤਾ ਤੇ ਹੀਣਤਾ ਦੀ ਭਾਵਨਾ (Feeling of superiority and inferiority) – ਵਰਗ ਵਿਵਸਥਾ ਦੇ ਵਿਚ ਵੀ ਉੱਚਤਾ ਅਤੇ ਨੀਚਤਾ ਦੇ ਸੰਬੰਧ ਪਾਏ ਜਾਂਦੇ ਹਨ । ਉਦਾਹਰਨ ਦੇ ਤੌਰ ਤੇ ਉੱਚੇ ਵਰਗ ਦੇ ਲੋਕ, ਨੀਵੇਂ ਵਰਗ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਤੋਂ ਆਪਣੇ ਆਪ ਨੂੰ ਅਲੱਗ ਅਤੇ ਉੱਚਾ ਮਹਿਸੂਸ ਕਰਦੇ ਹਨ । ਉੱਚੇ ਵਰਗ ਵਿਚ ਅਮੀਰ ਲੋਕ ਆ ਜਾਂਦੇ ਹਨ ਤੇ ਨੀਵੇਂ ਵਰਗ ਦੇ ਵਿਚ ਗਰੀਬ ਲੋਕ | ਅਮੀਰ ਲੋਕਾਂ ਦੀ ਸਮਾਜ ਵਿਚ ਉੱਚੀ ਸਥਿਤੀ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ਤੇ ਗ਼ਰੀਬ ਲੋਕ ਵੱਖੋ-ਵੱਖਰੇ ਨਿਵਾਸ ਸਥਾਨ ਤੇ ਰਹਿੰਦੇ ਹਨ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨਿਵਾਸ ਸਥਾਨਾਂ ਨੂੰ ਵੇਖ ਕੇ ਹੀ ਪਤਾ ਲੱਗ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਕਿ ਉਹ ਅਮੀਰ ਵਰਗ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧਿਤ ਹਨ ਜਾਂ ਗਰੀਬ ਵਰਗ ਦੇ ਨਾਲ ।

2. ਸਮਾਜਿਕ ਗਤੀਸ਼ੀਲਤਾ (Social mobility) – ਵਰਗ ਵਿਵਸਥਾ ਕਿਸੀ ਵੀ ਵਿਅਕਤੀ ਲਈ ਨਿਸ਼ਚਿਤ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦੀ । ਉਹ ਬਦਲਦੀ ਰਹਿੰਦੀ ਹੈ । ਵਿਅਕਤੀ ਆਪਣੀ ਮਿਹਨਤ ਨਾਲ ਨੀਵੀਂ ਤੋਂ ਉੱਚੀ ਸਥਿਤੀ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰ ਲੈਂਦਾ ਹੈ ਤੇ ਆਪਣੇ ਗਲਤ ਕੰਮਾਂ ਦੇ ਨਤੀਜੇ ਵਜੋਂ ਉੱਚੀ ਤੋਂ ਨੀਵੀਂ ਸਥਿਤੀ ਤੇ ਵੀ ਪਹੁੰਚ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।ਹਰ ਵਿਅਕਤੀ ਕਿਸੇ ਨਾ ਕਿਸੇ ਆਧਾਰ ਤੇ ਸਮਾਜ ਵਿਚ ਆਪਣੀ ਇੱਜ਼ਤ ਵਧਾਉਣੀ ਚਾਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਇਸੀ ਕਰਕੇ ਵਰਗ ਵਿਵਸਥਾ ਵਿਅਕਤੀ ਨੂੰ ਕਿਰਿਆਸ਼ੀਲ ਵੀ ਰੱਖਦੀ ਹੈ ।

3. ਖੁੱਲਾਪਣ (Openness) – ਵਰਗ ਵਿਵਸਥਾ ਵਿਚ ਖੁੱਲ੍ਹਾਪਣ ਪਾਇਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਕਿਉਂਕਿ ਇਸ ਵਿਚ ਵਿਅਕਤੀ ਨੂੰ ਪੂਰੀ ਆਜ਼ਾਦੀ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ਕਿ ਉਹ ਕੁੱਝ ਵੀ ਕਰ ਸਕੇ । ਉਹ ਆਪਣੀ ਇੱਛਾ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਕਿਸੇ ਵੀ ਕਿੱਤੇ ਨੂੰ ਅਪਣਾ ਸਕਦਾ ਹੈ । ਕਿਸੇ ਵੀ ਜਾਤ ਦਾ ਵਿਅਕਤੀ ਕਿਸੇ ਵੀ ਵਰਗ ਦਾ ਮੈਂਬਰ ਆਪਣੀ ਯੋਗਤਾ ਦੇ ਆਧਾਰ ਤੇ ਬਣ ਸਕਦਾ ਹੈ । ਨਿਮਨ ਵਰਗ ਦੇ ਲੋਕ ਮਿਹਨਤ ਕਰਕੇ ਉੱਚੇ ਵਰਗ ਵਿਚ ਆ ਸਕਦੇ ਹਨ । ਇਸ ਵਿਚ ਵਿਅਕਤੀ ਦੇ ਜਨਮ ਦੀ ਕੋਈ ਮਹੱਤਤਾ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦੀ । ਵਿਅਕਤੀ ਦੀ ਸਥਿਤੀ ਉਸ ਦੀ ਯੋਗਤਾ ਤੇ ਨਿਰਭਰ ਕਰਦੀ ਹੈ ।

4. ਸੀਮਿਤ ਸਮਾਜਿਕ ਸੰਬੰਧ (Limited social relations) – ਵਰਗ ਵਿਵਸਥਾ ਵਿਚ ਵਿਅਕਤੀ ਦੇ ਸਮਾਜਿਕ ਸੰਬੰਧ ਸੀਮਿਤ ਹੁੰਦੇ ਹਨ | ਹਰ ਵਰਗ ਦੇ ਲੋਕ ਆਪਣੇ ਬਰਾਬਰ ਦੇ ਵਰਗ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧ ਰੱਖਣਾ ਵਧੇਰੇ ਠੀਕ ਸਮਝਦੇ ਹਨ । ਹਰ ਵਰਗ ਆਪਣੇ ਹੀ ਵਰਗ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧ ਸਥਾਪਿਤ ਕਰਨਾ ਚਾਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਉਹ ਦੁਸਰੇ ਵਰਗਾਂ ਦੇ ਨਾਲ ਵਧੇਰੇ ਨਜ਼ਦੀਕਤਾ ਨਹੀਂ ਰੱਖਦੇ ।

5. ਉਪ ਵਰਗਾਂ ਦਾ ਵਿਕਾਸ (Development of sub-classes) – ਭਾਵੇਂ ਆਰਥਿਕ ਦ੍ਰਿਸ਼ਟੀਕੋਣ ਤੋਂ ਅਸੀਂ ਵਰਗ ਵਿਵਸਥਾ ਨੂੰ ਤਿੰਨ ਹਿੱਸਿਆਂ ਵਿਚ ਵੰਡਦੇ ਹਾਂ-

  • ਉੱਚਾ ਵਰਗ (Upper Class)
  • ਮੱਧ ਵਰਗ (Middle Class)
  • ਨੀਵਾਂ ਵਰਗ (Lower Class) ।

ਪਰੰਤੂ ਅੱਗੋਂ ਹਰ ਵਰਗ ਕਈ ਹੋਰ ਉਪ-ਵਰਗਾਂ ਵਿਚ ਵੰਡਿਆ ਹੁੰਦਾ ਹੈ, ਜਿਵੇਂ ਇਕ ਅਮੀਰ ਵਰਗ ਦੇ ਵਿਚ ਵੀ ਭਿੰਨਤਾ ਨਜ਼ਰ ਆਉਂਦੀ ਹੈ, ਕੁੱਝ ਲੋਕ ਬਹੁਤ ਅਮੀਰ ਹਨ, ਕੁੱਝ ਉਸ ਤੋਂ ਘੱਟ ਤੇ ਕੁੱਝ ਸਭ ਤੋਂ ਘੱਟ । ਇਸੇ ਪ੍ਰਕਾਰ ਮੱਧ ਵਰਗ ਤੇ ਨੀਵੇਂ ਵਰਗ ਵਿਚ ਵੀ ਉਪ-ਵਰਗ ਪਾਏ ਜਾਂਦੇ ਹਨ । ਹਰ ਵਰਗ ਦੇ ਉਪ ਵਰਗਾਂ ਵਿਚ ਵੀ ਅੰਤਰ ਪਾਇਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਇਸ ਪ੍ਰਕਾਰ ਵਰਗ, ਉਪ-ਵਰਗਾਂ ਤੋਂ ਮਿਲ ਕੇ ਹੀ ਬਣਦਾ ਹੈ ।

6. ਵਿਭਿੰਨ ਆਧਾਰ (Different basis) – ਜਿਵੇਂ ਅਸੀਂ ਸ਼ੁਰੂ ਵਿਚ ਹੀ ਵਿਭਿੰਨ ਸਮਾਜ ਵਿਗਿਆਨੀਆਂ ਦੇ ਵਿਚਾਰਾਂ ਤੋਂ ਇਹ ਨਤੀਜਾ ਕੱਢ ਚੁੱਕੇ ਹਾਂ ਕਿ ਵਰਗ ਦੇ ਵੱਖੋ-ਵੱਖਰੇ ਆਧਾਰ ਹਨ | ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਸਮਾਜ ਵਿਗਿਆਨੀ ਕਾਰਲ ਮਾਰਕਸ ਨੇ ਆਰਥਿਕ ਆਧਾਰ ਨੂੰ ਵਰਗ ਵਿਵਸਥਾ ਦਾ ਮੁੱਖ ਆਧਾਰ ਮੰਨਿਆ ਹੈ । ਉਸ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਸਮਾਜ ਵਿਚ ਕੇਵਲ ਦੋ ਹੀ ਵਰਗ ਪਾਏ ਗਏ ਹਨ । ਇਕ ਤਾਂ ਪੂੰਜੀਪਤੀ ਵਰਗ, ਦੂਸਰਾ ਕਿਰਤੀ ਵਰਗ । ਹਰਟਨ ਅਤੇ ਹੰਟ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ, “ਸਾਨੂੰ ਯਾਦ ਰੱਖਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ ਕਿ ਵਰਗ ਮੂਲ ਵਿਚ, ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਜੀਵਨ ਢੰਗ ਹੈ ।” ਔਗਬਰਨ ਅਤੇ ਨਿਮਕੌਫ਼, ਮੈਕਾਈਵਰ ਅਤੇ ਗਿਲਬਰਟ ਨੇ ਵਰਗ ਦੇ ਲਈ ਸਮਾਜਿਕ ਆਧਾਰ ਨੂੰ ਮੁੱਖ ਮੰਨਿਆ ਹੈ । ਜਿਨਜ਼ਬਰਗ, ਲੇਪਿਅਰ ਵਰਗੇ ਵਿਗਿਆਨੀਆਂ ਨੇ ਸੰਸਕ੍ਰਿਤਕ ਆਧਾਰ ਨੂੰ ਹੀ ਵਰਗ ਵਿਵਸਥਾ ਦਾ ਮੁੱਖ ਆਧਾਰ ਮੰਨਿਆ ਹੈ ।

7. ਵਰਗ ਪਹਿਚਾਣ (Identification of class) – ਵਰਗ ਵਿਵਸਥਾ ਵਿਚ ਬਾਹਰੀ ਦਿਸ਼ਟੀਕੋਣ ਵੀ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਕਈ ਵਾਰੀ ਅਸੀਂ ਵੇਖ ਕੇ ਹੀ ਇਹ ਅਨੁਮਾਨ ਲਗਾ ਲੈਂਦੇ ਹਾਂ ਕਿ ਇਹ ਵਿਅਕਤੀ ਉੱਚੇ ਵਰਗ ਦਾ ਹੈ ਜਾਂ ਨੀਵੇਂ ਵਰਗ ਦਾ । ਸਾਡੇ ਆਧੁਨਿਕ ਸਮਾਜ ਦੇ ਵਿਚ ਕੋਠੀ, ਕਾਰ, ਸਕੂਟਰ, ਟੀ.ਵੀ., ਵੀ. ਸੀ.ਆਰ., ਫਰਿੱਜ਼ ਆਦਿ ਵਿਅਕਤੀ ਦੇ ਸਥਿਤੀ ਚਿੰਨ੍ਹ ਨੂੰ ਨਿਰਧਾਰਿਤ ਕਰਦੇ ਹਨ । ਇਸ ਪ੍ਰਕਾਰ ਬਾਹਰੀ ਸੰਕੇਤਾਂ ਤੋਂ ਸਾਨੂੰ ਵਰਗ ਭਿੰਨਤਾ ਦਾ ਪਤਾ ਲੱਗ ਜਾਂਦਾ
ਹੈ ।

8. ਵਰਗ ਚੇਤਨਤਾ (Class consciousness) – ਹਰ ਇਕ ਮੈਂਬਰ ਆਪਣੀ ਵਰਗ ਸਥਿਤੀ ਪ੍ਰਤੀ ਪੂਰਾ ਚੇਤੰਨ ਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਇਸੀ ਕਰਕੇ ਵਰਗ ਚੇਤਨਾ, ਵਰਗ ਵਿਵਸਥਾ ਦੀ ਮੁੱਖ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾ ਹੈ । ਵਰਗ ਚੇਤਨਾ ਵਿਅਕਤੀ ਨੂੰ ਅੱਗੇ ਵੱਧਣ ਦੇ ਮੌਕੇ ਪ੍ਰਦਾਨ ਕਰਦੀ ਹੈ ਕਿਉਂਕਿ ਚੇਤਨਾ ਦੇ ਆਧਾਰ ‘ਤੇ ਹੀ ਅਸੀਂ ਇਕ ਵਰਗ ਨੂੰ ਦੂਸਰੇ ਵਰਗ ਤੋਂ ਵੱਖਰਾ ਕਰਦੇ ਹਾਂ । ਵਿਅਕਤੀ ਦਾ ਵਿਵਹਾਰ ਵੀ ਇਸ ਦੇ ਦੁਆਰਾ ਹੀ ਨਿਸ਼ਚਿਤ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ।

9. ਉਤਾਰ-ਚੜਾਅ ਦਾ ਕੂਮ (Hierarchical order) – ਹਰ ਇੱਕ ਸਮਾਜ ਵਿਚ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਸਥਿਤੀ ਰੱਖਣ ਵਾਲੇ · ਵਰਗ ਪਾਏ ਜਾਂਦੇ ਹਨ । ਸਥਿਤੀ ਦਾ ਉਤਾਰ-ਚੜਾਅ ਚਲੱਦਾ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ ਤੇ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਵਰਗਾਂ ਦਾ ਨਿਰਮਾਣ ਹੁੰਦਾ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ । ਆਮ ਤੌਰ ‘ਤੇ ਇਹ ਦੱਖਣ ਵਿਚ ਆਇਆ ਹੈ ਕਿ ਸਮਾਜ ਵਿਚ ਉੱਚ ਵਰਗ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਦੀ ਗਿਣਤੀ ਘੱਟ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ਅਤੇ ਮੱਧ ਤੇ ਨੀਵੇਂ ਵਰਗਾਂ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਦੀ ਗਿਣਤੀ ਜ਼ਿਆਦਾ ਹੁੰਦੀ ਹੈ । ਹਰ ਵਰਗ ਦੇ ਲੋਕ ਆਪਣੀ ਮਿਹਨਤ ਤੇ ਯੋਗਤਾ ਨਾਲ ਆਪਣੇ ਤੋਂ ਉੱਚੇ ਵਰਗ ਵਿੱਚ ਜਾਣ ਦੀ ਕੋਸ਼ਿਸ਼ ਕਰਦੇ ਰਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 10 ਸਮਾਜਿਕ ਸਤਰੀਕਰਨ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 5.
ਭਾਰਤ ਵਿਚ ਕਿਹੜੇ ਨਵੇਂ ਵਰਗ ਉਭਰੇ ਹਨ ?
ਉੱਤਰ-
ਪਿਛਲੇ ਕੁੱਝ ਸਮੇਂ ਤੋਂ ਦੇਸ਼ ਵਿਚ ਜਾਤੀ ਵਿਵਸਥਾ ਦੀ ਥਾਂ ਵਰਗ ਵਿਵਸਥਾ ਸਾਹਮਣੇ ਆ ਰਹੀ ਹੈ । ਸੁਤੰਤਰਤਾ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਸਾਰੇ ਕਾਨੂੰਨ ਪਾਸ ਹੋਏ, ਲੋਕਾਂ ਨੇ ਪੜ੍ਹਨਾ-ਲਿਖਣਾ ਸ਼ੁਰੂ ਕੀਤਾ ਜਿਸ ਕਾਰਨ ਜਾਤੀ ਵਿਵਸਥਾ ਹੌਲੀ-ਹੌਲੀ ਖ਼ਤਮ ਹੋ ਰਹੀ ਹੈ ਅਤੇ ਵਰਗ ਵਿਵਸਥਾ ਦਾ ਦਾਇਰਾ ਵੱਧ ਰਿਹਾ ਹੈ । ਹੁਣ ਵਰਗ ਵਿਵਸਥਾ ਕੋਈ ਸਾਧਾਰਨ ਸੰਕਲਪ ਨਹੀਂ ਰਿਹਾ । ਆਧੁਨਿਕ ਸਮੇਂ ਵਿਚ ਅਲੱਗ-ਅਲੱਗ ਆਧਾਰਾਂ ਉੱਤੇ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਵਰਗ ਸਾਹਮਣੇ ਆ ਰਹੇ ਹਨ ਅਤੇ ਆ ਵੀ ਰਹੇ ਹਨ । ਉਦਾਹਰਨ ਦੇ ਲਈ ਆਜ਼ਾਦੀ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਦੇਸ਼ ਵਿਚ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਭੂਮੀ ਸੁਧਾਰ ਆਏ ਜਿਸ ਨਾਲ ਪੇਂਡੂ ਅਰਥਵਿਵਸਥਾ ਵਿਚ ਬਹੁਤ ਵੱਡੇ ਪਰਿਵਰਤਨ ਆਏ । ਹਰੀ ਕ੍ਰਾਂਤੀ ਨੇ ਇਸ ਪ੍ਰਕ੍ਰਿਆ ਵਿਚ ਹੋਰ ਯੋਗਦਾਨ ਦਿੱਤਾ | ਪੁਰਾਣੇ ਕਿਸਾਨਾਂ, ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਕੋਲ ਬਹੁਤ ਸਾਰੀ ਜ਼ਮੀਨ ਸੀ, ਦੇ ਨਾਲ ਇਕ ਅਜਿਹਾ ਨਵਾਂ ਕਿਸਾਨੀ ਵਰਗ ਸਾਹਮਣੇ ਆਇਆ ਜਿਸ ਕੋਲ ਖੇਤੀ ਕਰਨ ਦੀਆਂ ਤਕਨੀਕਾਂ ਦੀ ਕਲਾ ਅਤੇ ਤਜਰਬਾ ਹੈ । ਇਹ ਉਹ ਲੋਕ ਹਨ ਜਿਹੜੇ ਫ਼ੌਜ ਜਾਂ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨਿਕ ਸੇਵਾਵਾਂ ਤੋਂ ਰਿਟਾਇਰ ਹੋ ਕੇ ਆਪਣਾ ਪੈਸਾ ਖੇਤੀ ਦੇ ਕੰਮ ਵਿਚ ਲਗਾ ਰਹੇ ਹਨ ਅਤੇ ਬਹੁਤ ਜ਼ਿਆਦਾ ਪੈਸਾ ਕਮਾ ਰਹੇ ਹਨ । ਇਹ ਪਰੰਪਰਾਗਤ ਕਿਸਾਨੀ ਦਾ ਉੱਚ ਵਰਗ ਨਹੀਂ ਹਨ ਪਰ ਇਹਨਾਂ ਨੂੰ ਜੈਂਟਲਮੈਨ ਕਿਸਾਨੇ (Gentlemen Famers) ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

ਇਸ ਦੇ ਨਾਲ-ਨਾਲ ਇਕ ਹੋਰ ਕਿਸਾਨੀ ਵਰਗ ਸਾਹਮਣੇ ਆ ਰਿਹਾ ਹੈ ਜਿਸ ਨੂੰ ‘ਪੂੰਜੀਪਤੀ ਕਿਸਾਨ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਇਹ ਉਹ ਕਿਸਾਨ ਹਨ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਨਵੀਆਂ ਤਕਨੀਕਾਂ, ਵੱਧ ਫ਼ਸਲ ਦੇਣ ਵਾਲੇ ਬੀਜਾਂ, ਨਵੀਆਂ ਖੇਤੀ ਦੀਆਂ ਤਕਨੀਕਾਂ, ਚੰਗੀਆਂ ਸਿੰਚਾਈ ਸੁਵਿਧਾਵਾਂ, ਬੈਂਕਾਂ ਤੋਂ ਉਧਾਰ ਲੈ ਕੇ ਅਤੇ ਆਵਾਜਾਈ ਅਤੇ ਸੰਚਾਰ ਦੇ ਸਾਧਨਾਂ ਦਾ ਲਾਭ ਚੁੱਕ ਕੇ ਚੰਗਾ ਪੈਸਾ ਕਮਾ ਲਿਆ ਹੈ । ਪਰ ਛੋਟੇ ਕਿਸਾਨ ਇਹਨਾਂ ਸਭ ਦਾ ਫਾਇਦਾ ਨਹੀਂ ਚੁੱਕ ਸਕੇ ਹਨ ਅਤੇ ਗ਼ਰੀਬ ਹੀ ਰਹੇ ਹਨ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਭੂਮੀ ਸੁਧਾਰਾਂ ਅਤੇ ਨਵੀਆਂ ਤਕਨੀਕਾਂ ਦਾ ਫਾਇਦਾ ਸਾਰੇ ਕਿਸਾਂਨ ਸਮਾਨ ਰੂਪ ਨਾਲ ਨਹੀਂ ਚੁੱਕ ਸਕੇ ਹਨ । ਇਹ ਤਾਂ ਮੱਧ ਵਰਗੀ ਕਿਸਾਨ ਹਨ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਸਰਕਾਰ ਵਲੋਂ ਖੇਤੀ ਨੂੰ ਉਤਸ਼ਾਹਿਤ ਕਰਨ ਵਾਲੀਆਂ ਸੁਵਿਧਾਵਾਂ ਦਾ ਲਾਭ ਚੁੱਕਿਆ ਹੈ । ਅਲੱਗ-ਅਲੱਗ ਰਾਜਾਂ ਵਿਚ ਅਲੱਗ-ਅਲੱਗ ਜਾਤਾਂ ਦੇ ਕਿਸਾਨਾਂ ਨੇ ਖੇਤੀ ਦੀਆਂ ਆਧੁਨਿਕ ਸੁਵਿਧਾਵਾਂ ਦਾ ਲਾਭ ਚੁੱਕਿਆ ਹੈ ।

ਇਸ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਮੱਧ ਵਰਗ ਵੀ ਸਾਡੇ ਸਾਹਮਣੇ ਆਇਆ ਜਿਸ ਨੂੰ ਉਪਭੋਗਤਾਵਾਦ ਦੀ ਸੰਸਕ੍ਰਿਤੀ ਨੇ ਜਨਮ ਦਿੱਤਾ ਹੈ । ਇਸ ਮੱਧ ਵਰਗ ਨੂੰ ਸੰਭਾਵੀ ਮਾਰਕੀਟ (Potential Market) ਦੇ ਰੂਪ ਵਿਚ ਦੇਖਿਆ ਗਿਆ ਜਿਸ ਨੇ ਬਹੁਤ ਸਾਰੀਆਂ ਬਹੁਰਾਸ਼ਟਰੀ ਕੰਪਨੀਆਂ (Multinational Companies) ਇਸ ਵਰਗ ਵੱਲ ਆਕਰਸ਼ਿਤ ਹੋਈਆਂ । ਅਲੱਗ-ਅਲੱਗ ਕੰਪਨੀਆਂ ਦੀਆਂ ਮਸ਼ਹੂਰੀਆਂ (Advertisements) ਵਿਚ ਉੱਚ ਮੱਧ ਵਰਗ ਨੂੰ ਇਕ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਉਪਭੋਗਤਾ ਵਜੋਂ ਦੇਖਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਅੱਜ-ਕਲ ਇਹ ਅਜਿਹਾ ਮੱਧ ਵਰਗ ਸਾਹਮਣੇ ਆ ਰਿਹਾ ਹੈ ਜਿਹੜਾ ਆਪਣੇ ਸਵਾਦ ਅਤੇ ਉਪਭੋਗ ਨੂੰ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਧ ਮਹੱਤਵ ਦਿੰਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਇਹ ਇਕ ਸੰਸਕ੍ਰਿਤਕ ਆਦਰਸ਼ ਬਣ ਰਿਹਾ ਹੈ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਨਵੇਂ ਮੱਧ ਵਰਗ ਦੇ ਉਭਾਰ ਨੇ ਦੇਸ਼ ਵਿਚ ਆਰਥਿਕ ਉਦਾਰਵਾਦ ਦੇ ਸੰਕਲਪ ਨੂੰ ਸਾਹਮਣੇ ਲਿਆਂਦਾ ਹੈ ।

ਆਧੁਨਿਕ ਭਾਰਤ ਵਿਚ ਮੌਜੂਦ ਵਰਗ ਵਿਵਸਥਾ ਦੀ ਇਕ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾ ਇਹ ਹੈ ਕਿ ਸਾਰੇ ਵਰਗਾਂ ਨੇ ਇਕ ਦੇਸ਼ ਦੇ ਵਿਚ ਇਕ ਰਾਸ਼ਟਰੀ ਆਰਥਿਕਤਾ, ਬਣਾਉਣ ਵਿਚ ਬਹੁਤ ਮੱਦਦ ਕੀਤੀ ਹੈ । ਹੁਣ ਮੱਧ ਵਰਗ ਵਿਚ ਦੂਰ ਦੁਰਾਡੇ ਖੇਤਰਾਂ ਦੇ ਪਿੰਡਾਂ ਦੇ ਲੋਕ ਵੀ ਸ਼ਾਮਲ ਚੌ ਰਹੇ ਹਨ। ਹੁਣ ਪਿੰਡਾਂ ਵਿਚ ਰਹਿਣ ਵਾਲੇ ਅਲੱਗ-ਅਲੱਗ ਕੰਮ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਲੋਕ ਅਲੱਗ (isolated) ਨਹੀਂ ਰਹਿ ਗਏ ਹੁਣ ਜਾਤੀ ਆਧਾਰਿਤ ਪ੍ਰਤੀਬੰਧਾਂ ਦਾ ਖ਼ਾਤਮਾ ਹੋ ਗਿਆ ਹੈ ਅਤੇ ਵਰਗ ਆਧਾਰਿਤ ਚੇਤਨਾ ਸਾਹਮਣੇ ਆ ਰਹੀ ਹੈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 6.
ਭਾਰਤ ਵਿਚ ਵਰੰਗ ਵਿਵਸਥੋਂ ਦੀਆਂ ਮੁੱਖ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾਵਾਂ ਕੀ ਹਨ ?
ਉੱਤਰ-

  1. ਭਾਰਤ ਵਿਚ 19ਵੀਂ ਸਦੀ ਅਤੇ 20ਵੀਂ ਸਦੀ ਵਿਚਕਾਰ ਸਮਾਜਿਕ, ਧਾਰਮਿਕ ਸੁਧਾਰ ਲਹਿਰਾਂ ਚਲੀਆਂ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਕਾਰਨ ਜਾਤੀ ਪ੍ਰਥਾ ਨੂੰ ਬਹੁਤ ਡੂੰਘੀ ਸੱਟ ਵੱਜੀ ।
  2. ਭਾਰਤ ਸਰਕਾਰ ਨੇ ਸੁਤੰਤਰਤਾ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਕਾਨੂੰਨ ਪਾਸ ਕੀਤੇ ਅਤੇ ਸੰਵਿਧਾਨ ਵਿਚ ਕਈ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦੇ ਪ੍ਰਾਵਧਾਨ ਰੱਖੇ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਨਾਲ ਜਾਤੀ ਵਿਵਸਥਾ ਵਿਚ ਪਰਿਵਰਤਨ ਆ ਗਏ ।
  3. ਦੇਸ਼ ਵਿਚ ਉਦਯੋਗਾਂ ਦੇ ਵੱਧਣ ਨਾਲ ਅਲੱਗ-ਅਲੱਗ ਜਾਤਾਂ ਦੇ ਲੋਕ ਇਕੱਠੇ ਮਿਲ ਕੇ ਇਹਨਾਂ ਵਿਚ ਕੰਮ ਕਰਨ ਲੱਗ ਪਏ ਅਤੇ ਜਾਤੀ ਵਿਵਸਥਾ ਦੇ ਪ੍ਰਤਿਬੰਧਾਂ ਉੱਤੇ ਸੱਟ ਵੱਜੀ ।
  4. ਸ਼ਹਿਰਾਂ ਵਿਚ ਅਲੱਗ-ਅਲੱਗ ਜਾਤਾਂ ਦੇ ਲੋਕ ਇਕੱਠੇ ਮਿਲ ਕੇ ਰਹਿੰਦੇ ਹਨ ਜਿਸ ਕਾਰਨ ਜਾਤੀ ਪ੍ਰਥਾ ਦੇ ਮੇਲ-ਜੋਲ ਦੀ ਪਾਬੰਦੀ ਵਾਲਾ ਨਿਯਮ ਵੀ ਖ਼ਤਮ ਹੋ ਗਿਆ ।
  5. ਸਿੱਖਿਆ ਦੇ ਪ੍ਰਸਾਰ ਨੇ ਵੀ ਜਾਤੀ ਵਿਵਸਥਾ ਨੂੰ ਖ਼ਤਮ ਕਰਨ ਵਿਚ ਬਹੁਤ ਵੱਡਾ ਯੋਗਦਾਨ ਦਿੱਤਾ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 7.
ਮਾਰਕਸ ਅਤੇ ਵੈਬਰ ਢੇ-ਵਰਗ ਦੇ ਸਿਧਾਂਤ ਬਾਰੇ ਲਿਖੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਕਾਰਲ ਮਾਰਕਸ ਨੇ ਸਮਾਜਿਕ ਸਤਰੀਕਰਨ ਦਾ ਸੰਘਰਸ਼ਵਾਦੀ ਸਿਧਾਂਤ ਦਿੱਤਾ ਹੈ ਤੇ ਇਹ ਸਿਧਾਂਤ 19ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਰਾਜਨੀਤਿਕ ਤੇ ਸਮਾਜਿਕ ਸੰਘਰਸ਼ਾਂ ਕਰਕੇ ਹੀ ਅੱਗੇ ਆਇਆ ਹੈ । ਮਾਰਕਸ ਨੇ ਸਿਰਫ ਆਰਥਿਕ ਕਾਰਨ ਨੂੰ ਹੀ ਸਮਾਜਿਕ ਸਤਰੀਕਰਨ ਤੇ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਵਰਗਾਂ ਵਿਚ ਸ਼ੰਘਰਸ਼ ਦਾ ਆਧਾਰ ਮੰਨਿਆ ਹੈ ।

ਮਾਰਕਸ ਨੇ ਇਹ ਸਿਧਾਂਤ ਕਿਰਤ ਵੰਡੇ ਦੇ ਆਧਾਰ ਉੱਤੇ ਦਿੱਤਾ ਹੈ । ਉਸ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਕਿਰਤ ਦੋ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦੀ ਹੁੰਦੀ ਹੈ-ਸਰੀਰਕ ਅਤੇ ਬੌਧਿਕ ਕਿਰਤ ਅਤੇ ਇਹੀ ਅੰਤਰ ਹੀ ਸਮਾਜਿਕ ਵਰਗਾਂ ਦੇ ਵਿਚ ਫਰਕ ਦਾ ਕਾਰਨ ਹੈ ।

ਮਾਰਕਸ ਦਾ ਕਹਿਣਾ ਹੈ ਕਿ ਸਮਾਜ ਵਿਚ ਦੋ ਵਰਗ ਹੁੰਦੇ ਹਨ । ਪਹਿਲਾ ਵਰਗ ਉਤਪਾਦਨ ਦੇ ਸਾਧਨਾਂ ਦਾ ਮਾਲਕ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਤੇ ਦੂਜਾ ਵਰਗ ਉਤਪਾਦਨ ਦੇ ਸਾਧਨਾਂ ਦਾ ਮਾਲਕ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦਾ । ਇਸ ਮਾਲਕੀ ਦੇ ਆਧਾਰ ਉੱਤੇ ਹੀ ਮਾਲਕ ਵਰਗ ਦੀ ਸਥਿਤੀ ਉੱਚੀ ਤੇ ਗੈਰ ਮਾਲਕ ਵਰਗ ਦੀ ਸਥਿਤੀ ਨੀਵੀਂ ਹੁੰਦੀ ਹੈ । ਮਾਲਕ ਵਰਗ ਨੂੰ ਮਾਰਕਸ ਪੂੰਜੀਪਤੀ ਵਰਗ ਕਹਿੰਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਗੈਰ ਮਾਲਕ ਵਰਗ ਨੂੰ ਮਜ਼ਦੂਰ ਵਰਗ ਕਹਿੰਦਾ ਹੈ । ਪੂੰਜੀਪਤੀ ਵਰਗ ਮਜ਼ਦੂਰ ਵਰਗ ਦਾ ਆਰਥਿਕ ਰੂਪ ਨਾਲ । ਸ਼ੋਸ਼ਣ ਕਰਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਮਜ਼ਦੂਰ ਵਰਗ ਆਪਣੇ ਅਧਿਕਾਰ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਨ ਲਈ ਪੂੰਜੀਪਤੀ ਵਰਗ ਨਾਲ ਸੰਘਰਸ਼ ਕਰਦਾ ਹੈ । ਇਹ ਹੀ ਸਤਰੀਕਰਨ ਦਾ ਨਤੀਜਾ ਹੈ ।

ਮਾਰਕਸ ਦਾ ਕਹਿਣਾ ਹੈ ਕਿ ਸਤਰੀਕਰਨ ਦੇ ਆਉਣ ਦਾ ਕਾਰਨ ਹੀ ਸੰਪੱਤੀ ਦੀ ਨਾ ਬਰਾਬਰ ਵੰਡ ਹੈ । ਸਤਰੀਕਰਨ ਦੀ ਪ੍ਰਕ੍ਰਿਤੀ ਉਸ ਸਮਾਜ ਦੇ ਵਰਗਾਂ ਉੱਤੇ ਨਿਰਭਰ ਕਰਦੀ ਹੈ ਤੇ ਵਰਗਾਂ ਦੀ ਪ੍ਰਕ੍ਰਿਤੀ ਉਤਪਾਦਨ ਦੇ ਤਰੀਕਿਆਂ ਉੱਤੇ । ਉਤਪਾਦਨ ਦਾ ਤਰੀਕਾ ਤਕਨੀਕ ਉੱਤੇ ਨਿਰਭਰ ਕਰਦਾ ਹੈ । ਵਰਗ ਇਕ ਸਮੂਹ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਜਿਸ ਦੇ ਮੈਂਬਰਾਂ ਦੇ ਸੰਬੰਧ ਉਤਪਾਦਨ ਦੀਆਂ ਸ਼ਕਤੀਆਂ ਨਾਲ ਸਮਾਨ ਹੁੰਦੇ ਹਨ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਉਹ ਸਾਰੇ ਵਿਅਕਤੀ ਜਿਹੜੇ ਉਤਪਾਦਨ ਦੀਆਂ ਸ਼ਕਤੀਆਂ ਉੱਤੇ ਨਿਯੰਤਰਣ ਰੱਖਦੇ ਹਨ ਉਹ ਪਹਿਲਾ ਵਰਗ ਭਾਵ ਕਿ ਪੂੰਜੀਪਤੀ ਵਰਗ ਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਦੂਜਾ ਵਰਗ ਉਹ ਹੈ ਜਿਹੜਾ ਉਤਪਾਦਨ ਦੀਆਂ ਸ਼ਕਤੀਆਂ ਦਾ ਮਾਲਕ ਨਹੀਂ ਹੈ ਬਲਕਿ ਆਪਣੀ ਮਜ਼ਦੂਰੀ ਜਾਂ ਕਿਰਤ ਵੇਚ ਕੇ ਆਪਣਾ ਗੁਜ਼ਾਰਾ ਕਰਦਾ ਹੈ ਭਾਵ ਕਿ ਮਜ਼ਦੂਰ ਵਰਗ । ਵੱਖ-ਵੱਖ ਸਮਾਜਾਂ ਵਿਚ ਇਹਨਾਂ ਦੇ ਨਾਮ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਸਨ ਜਿਵੇਂ ਜਗੀਰਦਾਰੀ ਸਮਾਜ ਵਿਚ ਜਗੀਰਦਾਰ ਅਤੇ ਖੇਤੀ ਮਜ਼ਦੂਰ ਅਤੇ ਪੂੰਜੀਪਤੀ ਸਮਾਜ ਵਿਚ ਪੂੰਜੀਪਤੀ ਤੇ ਮਜ਼ਦੂਰ । ਪੂੰਜੀਪਤੀ ਵਰਗ ਕੋਲ ਉਤਪਾਦਨ ਦੀਆਂ ਸ਼ਕਤੀਆਂ ਹੁੰਦੀਆਂ ਹਨ ਤੇ ਮਜ਼ਦੂਰ ਵਰਗ ਕੋਲ ਸਿਰਫ ਮਜ਼ਦੂਰੀ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ਜਿਸ ਦੀ ਮੱਦਦ ਨਾਲ ਉਹ ਆਪਣਾ ਗੁਜ਼ਾਰਾ ਕਰਦਾ ਹੈ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਉਤਪਾਦਨ ਦੇ ਤਰੀਕਿਆਂ ਅਤੇ ਸੰਪੱਤੀ ਦੀ ਨਾ ਬਰਾਬਰ ਵੰਡ ਦੇ ਅਧਾਰ ਉੱਤੇ ਬਣੇ ਵਰਗ ਨੂੰ ਮਾਰਕਸ ਨੇ ਸਮਾਜਿਕ ਵਰਗ ਦਾ ਨਾਮ ਦਿੱਤਾ ਹੈ ।

ਮਾਰਕਸ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਅੱਜ ਜਾਂ ਸਮਾਜ ਚਾਰ ਯੁੱਗਾਂ ਵਿਚੋਂ ਲੰਘ ਕੇ ਸਾਡੇ ਸਾਹਮਣੇ ਆਇਆ ਹੈ ।
(a) ਪ੍ਰਾਚੀਨ ਸਾਮਵਾਦੀ ਯੁੱਗ (Primitive Ancient Society or Communism)
(b) ਪ੍ਰਾਚੀਨ ਸਮਾਜ (Ancient Society)
(c) ਸਾਮੰਤਵਾਦੀ ਯੁੱਗ (Feudal Society)
(d) ਪੂੰਜੀਵਾਦੀ ਯੁੱਗ (Capitalist Society) ।

ਮਾਰਕਸ ਅਨੁਸਾਰ ਪਹਿਲੇ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦੇ ਸਮਾਜ ਵਿਚ ਵਰਗ ਹੋਂਦ ਵਿਚ ਨਹੀਂ ਆਏ ਸਨ ਪਰ ਉਸ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਦੇ ਸਮਾਜਾਂ ਵਿਚ ਦੋ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਵਰਗ ਸਾਡੇ ਸਾਹਮਣੇ ਆਏ । ਪ੍ਰਾਚੀਨ ਸਮਾਜ ਵਿਚ ਮਾਲਕ ਤੇ ਦਾਸ, ਸਾਮੰਤਵਾਦੀ ਸਮਾਜ ਵਿਚ ਜਗੀਰਦਾਰ ਤੇ ਖੇਤੀ ਮਜ਼ਦੂਰ ਅਤੇ ਪੂੰਜੀਵਾਦੀ ਸਮਾਜ ਵਿਚ ਪੂੰਜੀਪਤੀ ਤੇ ਮਜ਼ਦੂਰ ਵਰਗ । ਹਰ ਇਕ ਸਮਾਜ ਵਿਚ ਮਜ਼ਦੂਰੀ ਦੂਜੇ ਵਰਗ ਦੁਆਰਾ ਹੀ ਕੀਤੀ ਗਈ । ਮਜ਼ਦੂਰ ਵਰਗ ਬਹੁਸੰਖਿਅਕ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਤੇ ਪੂੰਜੀਪਤੀ ਵਰਗ ਘੱਟ ਗਿਣਤੀ ਵਾਲਾ ।

ਮਾਰਕਸ ਨੇ ਹਰ ਇਕ ਸਮਾਜ ਵਿਚ ਦੋ ਵਰਗਾਂ ਦਾ ਜ਼ਿਕਰ ਕੀਤਾ ਹੈ ਪਰ ਮਾਰਕਸ ਦੇ ਫਿਰ ਵੀ ਇਸ ਮਾਮਲੇ ਉੱਤੇ ਵਿਚਾਰ ਇਕਸਾਰ ਨਹੀਂ ਸਨ । ਮਾਰਕਸ ਕਹਿੰਦਾ ਹੈ ਕਿ ਪੂੰਜੀਵਾਦੀ ਸਮਾਜ ਵਿਚ ਤਿੰਨ ਵਰਗ ਹੁੰਦੇ ਹਨ ਮਜ਼ਦੂਰ, ਪੂੰਜੀਪਤੀ ਤੇ ਜ਼ਮੀਨ ਦੇ ਮਾਲਕ (Land owners) । ਮਾਰਕਸ ਨੇ ਇਹਨਾਂ ਤਿੰਨਾਂ ਵਿਚ ਅੰਤਰ ਆਮਦਨ ਦੇ ਸਾਧਨਾਂ, ਲਾਭ ਤੇ ਜ਼ਮੀਨ ਦੇ ਕਿਰਾਏ ਦੇ ਆਧਾਰ ਉੱਤੇ ਕੀਤਾ ਹੈ । ਮਾਰਕਸ ਦੇ ਇੰਗਲੈਂਡ ਵਿਚ ਇਹ ਤਿੰਨ ਵਰਗੀ ਵਿਵਸਥਾ ਕਦੇ ਵੀ ਸਾਹਮਣੇ ਨਹੀਂ ਆਈ ਹੈ ।

ਮਾਰਕਸ ਨੇ ਕਿਹਾ ਸੀ ਕਿ ਪੂੰਜੀਵਾਦ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਦੇ ਨਾਲ ਨਾਲ ਤਿੰਨ ਵਰਗੀ ਵਿਵਸਥਾ ਦੋ ਵਰਗੀ ਵਿਵਸਥਾ ਵਿਚ ਬਦਲ ਜਾਵੇਗੀ ਤੇ ਮੱਧ ਵਰਗ ਖ਼ਤਮ ਹੋ ਜਾਵੇਗਾ । ਇਸ ਬਾਰੇ ਉਸ ਨੇ ਕਮਿਉਨਿਸਟ ਘੋਸ਼ਣਾ-ਪੱਤਰ ਵਿਚ ਕਿਹਾ ਹੈ । ਮਾਰਕਸ ਨੇ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਸਮਾਜ ਵਿਚ ਹੋਰ ਵਰਗਾਂ ਬਾਰੇ ਵੀ ਦੱਸਿਆ ਹੈ । ਜਿਵੇਂ ਬੁਰਜੂਆ ਜਾਂ ਪੂੰਜੀਪਤੀ ਵਰਗ ਨੂੰ ਉਸ ਨੇ ਦੋ ਉਪਵਰਗਾਂ-ਪ੍ਰਭਾਵੀ ਬੁਰਜੂਆ ਤੇ ਛੋਟੇ ਬੁਰਜੁਆ ਵਰਗਾਂ ਵਿਚ ਵੰਡਿਆ ਹੈ । ਪ੍ਰਭਾਵੀ ਬੁਰਜੂਆ ਉਹ ਹੁੰਦੇ ਹਨ ਜਿਹੜੇ ਵੱਡੇਵੱਡੇ ਪੂੰਜੀਪਤੀ ਤੇ ਉਦਯੋਗਪਤੀ ਹੁੰਦੇ ਹਨ ਤੇ ਜਿਹੜੇ ਹਜ਼ਾਰਾਂ ਦੀ ਗਿਣਤੀ ਵਿਚ ਮਜ਼ਦੂਰਾਂ ਨੂੰ ਕੰਮ ਦਿੰਦੇ ਹਨ । ਛੋਟੇ ਬੁਰਜੂਆ ਉਹ ਛੋਟੇ ਉਦਯੋਗਪਤੀ ਜਾਂ ਦੁਕਾਨਦਾਰ ਹੁੰਦੇ ਹਨ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਵਪਾਰ ਛੋਟੇ ਪੱਧਰ ਦੇ ਹੁੰਦੇ ਹਨ ਤੇ ਉਹ ਬਹੁਤ ਜ਼ਿਆਦਾ ਮਜ਼ਦੂਰਾਂ ਨੂੰ ਕੰਮ ਨਹੀਂ ਦਿੰਦੇ । ਉਹ ਕਾਫੀ ਹੱਦ ਤੱਕ ਆਪ ਹੀ ਕੰਮ ਕਰਦੇ ਹਨ । ਮਾਰਕਸ ਇੱਥੇ ਫਿਰ ਕਹਿੰਦਾ ਹੈ ਪੂੰਜੀਵਾਦ ਦੇ ਵਿਕਸਿਤ ਹੋਣ ਦੇ ਨਾਲ ਨਾਲ ਮੱਧਵਰਗੀ ਅਤੇ ਛੋਟੇ ਬੁਰਜੂਆਂ ਜਾਤਾਂ ਖ਼ਤਮ ਹੋ ਜਾਣਗੀਆਂ ਜਾਂ ਫਿਰ ਮਜ਼ਦੂਰ ਵਰਗ ਵਿਚ ਮਿਲ ਜਾਣਗੇ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਸਮਾਜ ਵਿਚ ਪੂੰਜੀਪਤੀ ਤੇ ਮਜ਼ਦੂਰ ਵਰਗ ਰਹਿ ਜਾਣਗੇ ।

ਵਰਗਾਂ ਵਿਚਕਾਰ ਸੰਬੰਧ (Relations between Classes) – ਮਾਰਕਸ ਅਨੁਸਾਰ ਪੂੰਜੀਪਤੀ ਵਰਗ ਮਜ਼ਦੂਰ ਵਰਗ ਦਾ ਆਰਥਿਕ ਸ਼ੋਸ਼ਣ ਕਰਦਾ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਮਜ਼ਦੂਰ ਵਰਗ ਆਪਣੇ ਅਧਿਕਾਰਾਂ ਲਈ ਸੰਘਰਸ਼ ਕਰਦਾ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ । ਇਸ ਕਰਕੇ ਦੋਹਾਂ ਵਰਗਾਂ ਵਿਚਕਾਰ ਸੰਬੰਧ ਵਿਰੋਧ ਵਾਲੇ ਹੁੰਦੇ ਹਨ । ਚਾਹੇ ਕੁਝ ਸਮੇਂ ਲਈ ਆਪਣੇ ਆਪਣੇ ਹਿੱਤਾਂ ਕਰਕੇ ਦੋਹਾਂ ਵਰਗਾਂ ਵਿਚਕਾਰ ਵਿਰੋਧ ਛੱਪ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਪਰ ਇਹ ਵਿਰੋਧ ਚਲਦਾ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ । ਇਹ ਜ਼ਰੂਰੀ ਨਹੀਂ ਕਿ ਇਹ ਵਿਰੋਧ ਉੱਪਰੀ ਤੌਰ ਉੱਤੇ ਦਿਖਾਈ ਦੇਵੇ ਪਰ ਉਹਨਾਂ ਨੂੰ ਇਸ ਵੈਰ-ਵਿਰੋਧ ਦਾ ਅਹਿਸਾਸ ਜ਼ਰੂਰ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ।

ਮਾਰਕਸ ਅਨੁਸਾਰ ਵਰਗਾਂ ਵਿਚ ਆਪਸੀ ਸੰਬੰਧ ਆਪਸੀ ਨਿਰਭਰਤਾ ਅਤੇ ਸੰਘਰਸ਼ ਉੱਤੇ ਆਧਾਰਿਤ ਹੁੰਦੇ ਹਨ । ਅਸੀਂ ਉਦਾਹਰਣ ਲੈ ਸਕਦੇ ਹਾਂ ਪੂੰਜੀਵਾਦੀ ਸਮਾਜ ਦੇ ਦੋ ਵਰਗਾਂ ਦੀ । ਇਕ ਵਰਗ ਪੂੰਜੀਪਤੀ ਦਾ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਦੂਜਾ ਵਰਗ ਕਿਰਤੀਆਂ ਦਾ ਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਇਸ ਦੋਵੇਂ ਵਰਗ ਆਪਣੀ ਹੋਂਦ ਲਈ ਇਕ ਦੂਜੇ ਉੱਤੇ ਨਿਰਭਰ ਹੁੰਦੇ ਹਨ । ਕਿਰਤੀ ਵਰਗ ਕੋਲ ਉਤਪਾਦਨ ਦੀਆਂ ਤਾਕਤਾਂ ਉੱਤੇ ਮਲਕੀਅਤ ਨਹੀਂ ਹੈ । ਉਸ ਕੋਲ ਰੋਟੀ ਕਮਾਉਣ ਲਈ ਆਪਣੀ ਕਿਰਤ ਵੇਚਣ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਕੋਈ ਸਾਧਨ ਨਹੀਂ ਹੈ । ਉਹ ਰੋਟੀ ਕਮਾਉਣ ਲਈ ਪੂੰਜੀਪਤੀਆਂ ਦੇ ਹੱਥ ਆਪਣੀ ਮਜ਼ਦੂਰੀ ਵੇਚਦੇ ਹਨ ਤੇ ਉਹਨਾਂ ਉੱਤੇ ਨਿਰਭਰ ਹੁੰਦੇ ਹਨ । ਉਹ ਆਪਣੀ ਮਜ਼ਦੂਰੀ ਪੂੰਜੀਪਤੀ ਨੂੰ ਦਿੰਦੇ ਹਨ ਜਿਸ ਦੇ ਬਦਲੇ ਵਿਚ ਪੂੰਜੀਪਤੀ ਮਜ਼ਦੂਰਾਂ ਨੂੰ ਉਹਨਾਂ ਦੀ ਮਜ਼ਦੂਰੀ ਦਾ ਕਿਰਾਇਆ ਦਿੰਦਾ ਹੈ । ਇਸ ਕਿਰਾਏ ਨਾਲ ਮਜ਼ਦੂਰ ਆਪਣਾ ਪੇਟ ਪਾਲਦਾ ਹੈ । ਪੂੰਜੀਪਤੀ ਵੀ ਮਜ਼ਦੂਰਾਂ ਦੀ ਕਿਰਤ ਉੱਤੇ ਨਿਰਭਰ ਹੈ ਕਿਉਂਕਿ ਮਜ਼ਦੂਰਾਂ ਦੇ ਕੰਮ ਕੀਤੇ ਬਗੈਰ ਉਸ ਦਾ ਨਾ ਤਾਂ ਉਤਪਾਦਨ ਹੋ ਸਕਦਾ ਹੈ ਤੇ ਨਾ ਹੀ ਉਸ ਕੋਲ ਪੂੰਜੀ ਇਕੱਠੀ ਹੋ ਸਕਦੀ ਹੈ ।

ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦੋਵੇਂ ਵਰਗ ਇਕ ਦੂਜੇ ਉੱਤੇ ਨਿਰਭਰ ਹਨ ਪਰ ਇਸ ਨਿਰਭਰਤਾ ਦਾ ਅਰਥ ਇਹ ਨਹੀਂ ਹੈ ਕਿ ਉਹਨਾਂ ਵਿਚ ਸੰਬੰਧ ਬਰਾਬਰੀ ਦੇ ਹੁੰਦੇ ਹਨ । ਪੂੰਜੀਪਤੀ ਵਰਗ ਮਜ਼ਦੂਰ ਵਰਗ ਦਾ ਸ਼ੋਸ਼ਣ ਕਰਦਾ ਹੈ । ਉਹ ਚੀਜ਼ਾਂ ਦਾ ਉਤਪਾਦਨ ਘੱਟ ਪੈਸੇ ਦੇ ਕੇ ਕਰਵਾਉਣਾ ਚਾਹੁੰਦਾ ਹੈ ਤਾਂ ਕਿ ਉਸ ਦਾ ਲਾਭ ਵੱਧ ਸਕੇ । ਮਜ਼ਦੂਰ ਜ਼ਿਆਦਾ ਮਜ਼ਦੂਰੀ ਮੰਗਦਾ ਹੈ ਤਾਂ ਕਿ ਉਹ ਆਪਣੇ ਪਰਿਵਾਰ ਦਾ ਪੇਟ ਪਾਲ ਸਕੇ । ਪੂੰਜੀਪਤੀ ਘੱਟ ਮਜ਼ਦੂਰੀ ਦੇ ਕੇ ਚੀਜ਼ ਨੂੰ ਵੱਧ ਕੀਮਤ ਉੱਤੇ ਵੇਚਣ ਦੀ ਕੋਸ਼ਿਸ਼ ਕਰਦਾ ਹੈ ਤਾਂ ਕਿ ਵੱਧ ਲਾਭ ਹੋ ਸਕੇ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦੋਹਾਂ ਵਰਗਾਂ ਵਿਚਕਾਰ ਆਪਣੇ ਆਪਣੇ ਹਿੱਤਾਂ ਦਾ ਸੰਘਰਸ਼ (Conflict of interest) ਚਲਦਾ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ । ਇਹ ਸੰਘਰਸ਼ ਅੰਤ ਵਿਚ ਸਮਤਾਵਾਦੀ ਵਿਵਸਥਾ (Communism) ਨੂੰ ਜਨਮ ਦੇਵੇਗਾ ਜਿਸ ਵਿਚ ਨਾ ਤਾਂ ਵਿਰੋਧ ਹੋਣਗੇ ਨਾ ਕਿਸੇ ਦਾ ਸ਼ੋਸ਼ਣ ਹੋਵੇਗਾ, ਨਾ ਕਿਸੇ ਉੱਤੇ ਅੱਤਿਆਚਾਰ ਹੋਵੇਗਾ ਤੇ ਨਾ ਹੀ ਹਿੱਤਾਂ ਦਾ ਸੰਘਰਸ਼ ਹੋਵੇਗਾ । ਇਹ ਸਮਾਜ ਵਰਗ ਰਹਿਤ ਸਮਾਜ ਹੋਵੇਗਾ ।

ਮਨੁੱਖੀ ਇਤਿਹਾਸ-ਵਰਗ ਸੰਘਰਸ਼ ਦਾ ਇਤਿਹਾਸ (Human History-History of class struggleਮਾਰਕਸ ਦਾ ਕਹਿਣਾ ਹੈ ਕਿ ਮਨੁੱਖੀ ਇਤਿਹਾਸ ਵਰਗ ਸੰਘਰਸ਼ ਦਾ ਇਤਿਹਾਸ ਰਿਹਾ ਹੈ । ਅਸੀਂ ਕਿਸੇ ਵੀ ਸਮਾਜ ਦੀ ਉਦਾਹਰਣ ਲੈ ਸਕਦੇ ਹਾਂ ਹਰੇਕ ਸਮਾਜ ਵਿਚ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਵਰਗਾਂ ਵਿਚ ਕਿਸੇ ਨਾ ਕਿਸੇ ਰੂਪ ਵਿਚ ਸੰਘਰਸ਼ ਤਾਂ ਚਲਦਾ ਹੀ ਰਿਹਾ ਹੈ ।

ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਮਾਰਕਸ ਦਾ ਕਹਿਣਾ ਸੀ ਕਿ ਸਾਰੇ ਸਮਾਜਾਂ ਵਿਚ ਆਮ ਤੌਰ ਉੱਤੇ ਦੋ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦੇ ਵਰਗ ਰਹੇ ਹਨ-ਮਜ਼ਦੂਰ ਤੇ ਪੂੰਜੀਪਤੀ 1 ਦੋਹਾਂ ਵਿਚ ਵਰਗ ਸੰਘਰਸ਼ ਚਲਦਾ ਹੀ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ । ਇਹਨਾਂ ਵਿਚ ਵਰਗ ਸੰਘਰਸ਼ ਦੇ ਕਈ ਕਾਰਨ ਹੁੰਦੇ ਹਨ, ਜਿਵੇਂ ਕਿ ਦੋਹਾਂ ਵਰਗਾਂ ਵਿਚ ਬਹੁਤ ਜ਼ਿਆਦਾ ਆਰਥਿਕ ਅੰਤਰ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਜਿਸ ਕਾਰਨ ਉਹ ਇਕ ਦੂਜੇ ਦੀ ਵਿਰੋਧਤਾ ਕਰਦੇ ਹਨ । ਪੂੰਜੀਪਤੀ ਵਰਗ ਬਿਨਾਂ ਮਿਹਨਤ ਕੀਤੇ ਹੀ ਅਮੀਰ ਬਣਦਾ ਚਲਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਤੇ ਮਜ਼ਦੂਰ ਵਰਗ ਸਾਰਾ ਦਿਨ ਮਿਹਨਤ ਕਰਨ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਵੀ ਗਰੀਬ ਹੀ ਬਣਿਆ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ । ਸਮੇਂ ਦੇ ਨਾਲ-ਨਾਲ ਮਜ਼ਦੂਰ ਵਰਗ ਆਪਣੇ ਹਿੱਤਾਂ ਦੀ ਰਾਖੀ ਲਈ ਸੰਗਠਨ ਬਣਾ ਲੈਂਦਾ ਹੈ ਤੇ ਇਹ ਸੰਗਠਨ ਪੂੰਜੀਪਤੀਆਂ ਤੋਂ ਆਪਣੇ ਅਧਿਕਾਰ ਲੈਣ ਲਈ ਸੰਘਰਸ਼ ਕਰਦੇ ਹਨ ।

ਇਸ ਸੰਘਰਸ਼ ਦਾ ਨਤੀਜਾ ਇਹ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਕਿ ਸਮਾਂ ਆਉਣ ਉੱਤੇ ਮਜ਼ਦੂਰ ਵਰਗ ਪੂੰਜੀਪਤੀ ਵਰਗ ਦੇ ਵਿਰੁੱਧ ਕ੍ਰਾਂਤੀ ਕਰ ਦਿੰਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਕ੍ਰਾਂਤੀ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਪੂੰਜੀਪਤੀਆਂ ਦਾ ਖਾਤਮਾ ਕਰਕੇ ਆਪਣੀ ਸੱਤਾ ਸਥਾਪਿਤ ਕਰ ਲੈਂਦਾ ਹੈ । ਪੂੰਜੀਪਤੀ ਆਪਣੇ ਪੈਸੇ ਦੀ ਮਦਦ ਨਾਲ ਪ੍ਰਤੀ ਕ੍ਰਾਂਤੀ ਕਰਨ ਦੀ ਕੋਸ਼ਿਸ਼ ਕਰਨਗੇ ਪਰ ਉਹਨਾਂ ਦੀ ਪ੍ਰਤੀ ਕ੍ਰਾਂਤੀ ਨੂੰ ਦਬਾ ਦਿੱਤਾ ਜਾਵੇਗਾ ਤੇ ਮਜ਼ਦੂਰਾਂ ਦੀ ਸੱਤਾ ਸਥਾਪਿਤ ਹੋ ਜਾਵੇਗੀ । ਪਹਿਲਾਂ ਸਾਮਵਾਦ ਤੇ ਫਿਰ ਸਮਾਜਵਾਦ ਦੀ ਸਥਿਤੀ ਆਵੇਗੀ ਜਿਸ ਵਿਚ ਹਰੇਕ ਵਿਅਕਤੀ ਨੂੰ ਉਸ ਦੀ ਜ਼ਰੂਰਤ ਮੁਤਾਬਿਕ ਤੇ ਉਸਦੀ ਯੋਗਤਾ ਮੁਤਾਬਿਕ ਮੇਹਨਤਾਨਾ ਮਿਲੇਗਾ । ਸਮਾਜ ਵਿਚ ਕੋਈ ਵਰਗ ਨਹੀਂ ਹੋਵੇਗਾ ਤੇ ਇਹ ਵਰਗਹੀਣ ਸਮਾਜ ਹੋਵੇਗਾ ਜਿਸ ਵਿਚ ਸਾਰਿਆਂ ਨੂੰ ਬਰਾਬਰ ਦਾ ਹਿੱਸਾ ਮਿਲੇਗਾ | ਕੋਈ ਉੱਚਾ ਨੀਵਾਂ ਨਹੀਂ ਹੋਵੇਗਾ ਤੇ ਮਜ਼ਦੂਰ ਵਰਗ ਦੀ ਸੱਤਾ ਸਥਾਪਿਤ ਰਹੇਗੀ । ਮਾਰਕਸ ਦਾ ਕਹਿਣਾ ਸੀ ਕਿ ਚਾਹੇ ਇਹ ਸਥਿਤੀ ਹਾਲੇ ਤੱਕ ਆਈ ਨਹੀਂ ਹੈ ਪਰ ਜਲਦੀ ਹੀ ਇਹ ਸਥਿਤੀ ਆ ਜਾਵੇਗੀ ਤੇ ਸਮਾਜ ਵਿਚ ਸਤਰੀਕਰਨ ਦਾ ਖਾਤਮਾ ਹੋ ਜਾਵੇਗਾ ।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 10 ਸਮਾਜਿਕ ਸਤਰੀਕਰਨ

ਮੈਕਸ ਵੈਬਰ ਦਾ ਵਰਗ ਦਾ ਸਿਧਾਂਤ (Max Weber’s Theory of Class)

ਮੈਕਸ ਵੈਬਰ ਨੇ ਸਤਰੀਕਰਨ ਦਾ ਸਿਧਾਂਤ ਦਿੱਤਾ ਸੀ ਜਿਸ ਵਿੱਚ ਉਸਨੇ ਵਰਗ, ਰੁਤਬਾ ਸਮੂਹ ਅਤੇ ਦਲ ਦੀ ਅੱਡ-ਅੱਡ ਵਿਆਖਿਆ ਕੀਤੀ ਸੀ । ਵੈਬਰ ਦਾ ਸਤਰੀਕਰਨ ਦਾ ਸਿਧਾਂਤ ਤਰਕਸੰਗਤ ਅਤੇ ਵਿਹਾਰਕ ਮੰਨਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਇਸੇ ਕਰਕੇ ਇਸ ਸਿਧਾਂਤ ਨੂੰ ਅਮਰੀਕੀ ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰੀਆਂ ਨੇ ਕਾਫ਼ੀ ਮਹੱਤਵ ਪ੍ਰਦਾਨ ਕੀਤਾ । ਵੈਬਰ ਨੇ ਸਤਰੀਕਰਨ ਨੂੰ ਤਿੰਨ ਪੱਖਾਂ ਤੋਂ ਸਮਝਾਇਆ ਹੈ ਅਤੇ ਉਹ ਹਨ ਵਰਗ, ਸਥਿਤੀ ਅਤੇ ਦਲ ! ਇਹਨਾਂ ਤਿੰਨੋਂ ਹੀ ਸਮੂਹਾਂ ਨੂੰ ਇਕ ਤਰੀਕੇ ਨਾਲ ਹਿੱਤ ਸਹ ਕਿਹਾ ਜਾ ਸਕਦਾ ਹੈ ਜਿਹੜੇ ਨਾ ਕੇਵਲ ਆਪਣੇ ਅੰਦਰ ਲੜ ਸਕਦੇ ਹਨ ਬਲਕਿ ਇਹ ਇੱਕ ਦੂਜੇ ਦੇ ਵਿਰੁੱਧ ਵੀ ਲੜ ਸਕਦੇ ਹਨ । ਇਹ ਇੱਕ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਸੱਤਾ ਬਾਰੇ ਦੱਸਦੇ ਹਨ ਅਤੇ ਆਪਸ ਵਿੱਚ ਇੱਕ-ਦੂਜੇ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧਿਤ ਵੀ ਹੁੰਦੇ ਹਨ । ਹੁਣ ਅਸੀਂ ਤਿੰਨਾਂ ਦਾ ਵਰਣਨ ਅੱਡ-ਅੱਡ ਅਤੇ ਵਿਸਤਾਰ ਨਾਲ ਕਰਾਂਗੇ-

ਵਰਗ (Class) – ਕਾਰਲ ਮਾਰਕਸ ਨੇ ਵਰਗ ਦੀ ਪਰਿਭਾਸ਼ਾ ਆਰਥਿਕ ਆਧਾਰ ਉੱਤੇ ਦਿੱਤੀ ਸੀ ਅਤੇ ਉਸੇ ਤਰਾਂ ਵੈਬਰ ਨੇ ਵੀ ਵਰਗ ਦੀ ਧਾਰਨਾ ਆਰਥਿਕ ਆਧਾਰ ਉੱਤੇ ਦਿੱਤੀ ਹੈ । ਵੈਬਰ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ, “ਵਰਗ ਅਜਿਹੇ ਲੋਕਾਂ ਦਾ ਸਮੂਹ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਜਿਹੜੇ ਕਿਸੇ ਸਮਾਜ ਦੇ ਆਰਥਿਕ ਮੌਕਿਆਂ ਦੀ ਸੰਰਚਨਾ ਵਿੱਚ ਸਮਾਨ ਸਥਿਤੀ ਵਿੱਚ ਹੁੰਦੇ ਹਨ ਅਤੇ ਜਿਹੜੇ ਸਮਾਨ ਸਥਿਤੀਆਂ ਵਿੱਚ ਰਹਿੰਦੇ ਹਨ । ਇਹ ਸਥਿਤੀਆਂ ਉਹਨਾਂ ਦੀ ਆਰਥਿਕ ਸ਼ਕਤੀ ਦੇ ਰੂਪ ਅਤੇ ਮਾਤਰਾ ਉੱਤੇ ਨਿਰਭਰ ਕਰਦੀਆਂ ਹਨ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਵੈਬਰ ਇੱਕ ਅਜਿਹੇ ਵਰਗ ਦੀ ਗੱਲ ਕਰਦਾ ਹੈ ਜਿਸ ਵਿੱਚ ਲੋਕਾਂ ਦੀ ਇੱਕ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਸੰਖਿਆ ਦੇ ਲਈ ਜੀਵਨ ਦੇ ਮੌਕੇ ਇੱਕ ਸਮਾਨ ਹੁੰਦੇ ਹਨ । ਚਾਹੇ ਵੈਬਰ ਇਹ ਧਾਰਣਾ ਮਾਰਕਸ ਦੀ ਵਰਗ ਦੀ ਧਾਰਣਾ ਤੋਂ ਅੱਡ ਨਹੀਂ ਹੈ ਪਰ ਵੈਬਰ ਨੇ ਵਰਗ ਦੀ ਕਲਪਨਾ ਸਮਾਨ ਆਰਥਿਕ ਸਥਿਤੀਆਂ ਵਿੱਚ ਰਹਿਣ ਵਾਲੇ ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਕੀਤੀ ਹੈ ਆਤਮ ਚੇਤੰਨਤਾ ਸਮੂਹ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਨਹੀਂ ਵੈਬਰ ਨੇ ਵਰਗ ਦੇ ਤਿੰਨ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦੱਸੇ ਹਨ ਜਿਹੜੇ ਕਿ ਹੇਠਾਂ ਲਿਖੇ ਹਨ

  1. ਸੰਪੱਤੀ ਵਰਗ (A property class)
  2. ਅਧਿਗ੍ਰਹਿਣ ਵਰਗ (An Acquisition class)
  3. ਸਮਾਜਿਕ ਵਰਗ (A Social class) ।

(1) ਸੰਪੱਤੀ ਵਰਗ (A Property class) – ਸੰਪੱਤੀ ਵਰਗ ਉਹ ਵਰਗ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਜਿਸ ਦੀ ਸਥਿਤੀ ਇਸ ਗੱਲ ਉੱਤੇ ਨਿਰਭਰ ਕਰਦੀ ਹੈ ਕਿ ਉਹਨਾਂ ਦੇ ਕੋਲ ਕਿੰਨੀ ਸੰਪੱਤੀ ਜਾਂ ਜਾਇਦਾਦ ਹੈ । ਇਹ ਵਰਗ ਅੱਗੇ ਦੋ ਭਾਗਾਂ ਵਿੱਚ ਵੰਡਿਆ ਗਿਆ ਹੈ-
(i) ਸਕਾਰਾਤਮਕ ਰੂਪ ਨਾਲ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਅਧਿਕਾਰ ਪ੍ਰਾਪਤ ਸੰਪੱਤੀ ਵਰਗ (The Positively Privileged Property Class) – ਇਸ ਵਰਗ ਕੋਲ ਕਾਫ਼ੀ ਸੰਪੱਤੀ ਜਾਂ ਜਾਇਦਾਦ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ਅਤੇ ਇਹ ਇਸ ਜਾਇਦਾਦ ਤੋਂ ਹੋਈ ਆਮਦਨੀ ਉੱਤੇ ਆਪਣਾ ਗੁਜ਼ਾਰਾ ਕਰਦਾ ਹੈ । ਇਹ ਵਰਗ ਉਪਭੋਗ ਕਰਨ ਵਾਲੀਆਂ ਚੀਜ਼ਾਂ ਦੇ ਖਰੀਦਣ ਜਾਂ ਵੇਚਣ, ਜਾਇਦਾਦ ਇਕੱਠੀ ਕਰਕੇ ਜਾਂ ਫਿਰ ਸਿੱਖਿਆ ਲੈਣ ਉੱਤੇ ਆਪਣਾ ਏਕਾਧਿਕਾਰ ਕਰ ਸਕਦਾ ਹੈ ।

(ii) ਨਕਾਰਾਤਮਕ ਰੂਪ ਨਾਲ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਅਧਿਕਾਰ ਪ੍ਰਾਪਤ ਸੰਪੱਤੀ ਵਰਗ (The Negatively Privileged Property Class) – ਇਸ ਵਰਗ ਦੇ ਮੁੱਖ ਮੈਂਬਰ ਅਨਪੜ੍ਹ, ਗਰੀਬ, ਸੰਪੱਤੀਹੀਨ ਅਤੇ ਕਰਜ਼ੇ ਦੇ ਬੋਝ ਥੱਲੇ ਦੱਬੇ ਹੋਏ ਲੋਕ ਹੁੰਦੇ ਹਨ । ਇਹਨਾਂ ਦੋਹਾਂ ਸਮੂਹਾਂ ਦੇ ਨਾਲ ਇੱਕ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਅਧਿਕਾਰ ਪ੍ਰਾਪਤ ਮੱਧ ਵਰਗ ਵੀ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਜਿਸ ਵਿੱਚ ਉੱਪਰਲੇ ਦੋਹਾਂ ਵਰਗਾਂ ਦੇ ਲੋਕ ਸ਼ਾਮਲ ਹੁੰਦੇ ਹਨ । ਵੈਬਰ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਪੂੰਜੀਪਤੀ ਆਪਣੀ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਸਥਿਤੀ ਹੋਣ ਕਰਕੇ ਅਤੇ ਮਜ਼ਦੂਰ ਆਪਣੀ ਨਕਾਰਾਤਮਕ ਰੂਪ ਨਾਲ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਸਥਿਤੀ ਹੋਣ ਕਰਕੇ ਇਸ ਸਮੂਹ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ।

(2) ਅਧਿਨ੍ਹਣ ਵਰਗਾ (An Acquisition Class) – ਇਹ ਉਸ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦਾ ਸਮੂਹ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਜਿਸ ਦੀ ਸਥਿਤੀ ਬਜ਼ਾਰ ਵਿੱਚ ਮੌਜੂਦ ਸੇਵਾਵਾਂ ਦਾ ਲਾਭ ਚੁੱਕਣ ਦੇ ਮੌਕਿਆਂ ਨਾਲ ਨਿਰਧਾਰਿਤ ਹੁੰਦੀ ਹੈ । ਇਹ ਸਮੂਹ ਅੱਗੇ ਤਿੰਨ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦਾ ਹੁੰਦਾ ਹੈ-
(i) ਸਕਾਰਾਤਮਕ ਰੂਪ ਨਾਲ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਅਧਿਕਾਰ ਪ੍ਰਾਪਤ ਅਧਿਨ੍ਹਣ ਵਰਗ (The Positively Privileged Acquisition Class) – ਇਸ ਵਰਗ ਦਾ ਉਤਪਾਦਕ ਫੈਕਟਰੀ ਵਾਲਿਆਂ ਦੇ ਪ੍ਰਬੰਧ ਉੱਤੇ ਏਕਾਧਿਕਾਰ ਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਇਹ ਫੈਕਟਰੀਆਂ ਵਾਲੇ ਬੈਂਕਰ, ਉਦਯੋਗਪਤੀ, ਫਾਈਨੈਂਸਰ ਆਦਿ ਹੁੰਦੇ ਹਨ । ਇਹ ਲੋਕ ਪ੍ਰਬੰਧਕ ਵਿਵਸਥਾ ਨੂੰ ਨਿਯੰਤਰਣ ਵਿੱਚ ਰੱਖਣ ਦੇ ਨਾਲਨਾਲ ਸਰਕਾਰੀ ਆਰਥਿਕ ਨੀਤੀਆਂ ਉੱਤੇ ਵੀ ਪੂਰਾ ਪ੍ਰਭਾਵ ਪਾਉਂਦੇ ਹਨ ।

(ii) ਵਿਸ਼ੇਧਿਕਾਰ ਪ੍ਰਾਪਤ ਮੱਧ ਅਧਿਹਿਣ ਵਰਗ (The Middle Privileged Acquisition Class-ਇਹ ਵਰਗ ਮੱਧ ਵਰਗ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਦਾ ਵਰਗ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਜਿਸ ਵਿੱਚ ਛੋਟੇ ਪੇਸ਼ੇਵਰ ਲੋਕ, ਕਾਰੀਗਰ, ਆਜ਼ਾਦ ਕਿਸਾਨ ਆਦਿ ਸ਼ਾਮਲ ਹੁੰਦੇ ਹਨ।

(iii) ਨਕਾਰਾਤਮਕ ਰੂਪ ਨਾਲ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਅਧਿਕਾਰ ਪ੍ਰਾਪਤ ਅਧਿਹਿਣ ਵਰਗ (The Negatively Privileged Acquisition Class-ਇਸ ਵਰਗ ਵਿੱਚ ਛੋਟੇ ਵਰਗਾਂ ਦੇ ਲੋਕ ਖਾਸ ਕਰ ਕੁਸ਼ਲ, ਅਰਧ ਕੁਸ਼ਲ ਅਤੇ ਅਕੁਸ਼ਲ ਮਜ਼ਦੂਰ ਸ਼ਾਮਲ ਹੁੰਦੇ ਹਨ ।

(3) ਸਮਾਜਿਕ ਵਰਗ (Social Class) – ਇਸ ਵਰਗ ਦੀ ਸੰਖਿਆ ਕਾਫੀ ਜ਼ਿਆਦਾ ਹੁੰਦੀ ਹੈ । ਇਸ ਵਿੱਚ ਅੱਡ-ਅੱਡ ਪੀੜੀਆਂ ਦੀ ਤਰੱਕੀ ਦੇ ਕਾਰਨ ਨਿਸ਼ਚਿਤ ਰੂਪ ਨਾਲ ਪਰਿਵਰਤਨ ਦਿਖਾਈ ਦਿੰਦਾ ਹੈ । ਪਰ ਵੈਬਰ ਸਮਾਜਿਕ ਵਰਗ ਦੀ ਵਿਆਖਿਆ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਅਧਿਕਾਰਾਂ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਨਹੀਂ ਕਰਦਾ । ਉਸ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਮਜ਼ਦੂਰ ਵਰਗ, ਨੀਵਾਂ ਮੱਧ ਵਰਗ, ਬੁੱਧੀਜੀਵੀ ਵਰਗ, ਸੰਪੱਤੀ ਵਾਲੇ ਲੋਕ ਆਦਿ ਇਸ ਵਿੱਚ ਆਉਂਦੇ ਹਨ ।

ਵੈਬਰ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਕਿਸੇ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਹਾਲਾਤਾਂ ਵਿੱਚ ਵਰਗ ਦੇ ਲੋਕ ਮਿਲ-ਜੁਲ ਕੇ ਕੰਮ ਕਰਦੇ ਹਨ ਤੇ ਇਸ ਕੰਮ ਕਰਨ ਦੀ ਪ੍ਰਕ੍ਰਿਆ ਨੂੰ ਵੈਬਰ ਨੇ ਵਰਗ ਕਿਰਿਆ ਦਾ ਨਾਮ ਦਿੱਤਾ ਹੈ । ਵੈਬਰ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਆਪਣੀ ਸੰਬੰਧਿਤ ਹੋਣ ਦੀ ਭਾਵਨਾ ਨਾਲ ਵਰਗ ਕਿਆ ਪੈਦਾ ਹੁੰਦੀ ਹੈ । ਵੈਬਰ ਨੇ ਇਸ ਗੱਲ ਉੱਤੇ ਵਿਸ਼ਵਾਸ ਨਹੀਂ ਕੀਤਾ ਕਿ ਵਰਗ ਕਿਆ ਵਰਗੀ ਗੱਲ ਅਕਸਰ ਹੋ ਸਕਦੀ ਹੈ । ਵੈਬਰ ਦਾ ਕਹਿਣਾ ਸੀ ਕਿ ਵਰਗ ਵਿੱਚ ਆਤਮ ਚੇਤੰਨਤਾ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦੀ ਬਲਕਿ ਉਹਨਾਂ ਦੀ ਪ੍ਰਕਿਰਤੀ ਪੂਰੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਆਰਥਿਕ ਹੁੰਦੀ ਹੈ । ਉਹਨਾਂ ਵਿੱਚ ਇਸ ਗੱਲ ਦੀ ਵੀ ਸੰਭਾਵਨਾ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦੀ ਕਿ ਉਹ ਆਪਣੇ ਹਿੱਤਾਂ ਨੂੰ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਨ ਲਈ ਇਕੱਠੇ ਹੋ ਕੇ ਸੰਘਰਸ਼ ਕਰਨਗੇ । ਇੱਕ ਵਰਗ ਲੋਕਾਂ ਦਾ ਸਿਰਫ਼ ਇੱਕ ਸਮੂਹ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਆਰਥਿਕ ਸਥਿਤੀ ਬਾਜ਼ਾਰ ਵਿੱਚ ਇੱਕੋ ਜਿਹੀ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ।ਉਹ ਉਹਨਾਂ ਚੀਜ਼ਾਂ ਨੂੰ ਇਕੱਠੇ ਕਰਨ ਵਿੱਚ ਜੀਵਨ ਦੇ ਇੱਕੋ ਜਿਹੇ ਪਰਿਵਰਤਨਾਂ ਨੂੰ ਮਹਿਸੂਸ ਕਰਦੇ ਹਨ, ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਕੋਈ ਇੱਜ਼ਤ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ਅਤੇ ਉਹਨਾਂ ਵਿੱਚ ਕਿਸੇ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਸਥਿਤੀ ਵਿੱਚ ਵਰਗ ਚੇਤਨਾ ਵਿਕਸਿਤ ਹੋਣ ਦੀ ਅਤੇ ਇਕੱਠੇ ਹੋ ਕੇ ਕਿਰਿਆ ਕਰਨ ਦੀ ਸੰਭਾਵਨਾ ਹੁੰਦੀ ਹੈ । ਵੈਬਰ ਦਾ ਕਹਿਣਾ ਸੀ ਕਿ ਜੇਕਰ ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਤਾਂ ਵਰਗ ਇੱਕ ਸਮੁਦਾਇ ਦਾ ਰੂਪ ਲੈ ਲੈਂਦਾ ਹੈ ।

ਰੁਤਬਾ ਸਮੂਹ (Status Group) – ਰੁਤਬਾ ਸਮੂਹ ਨੂੰ ਆਮ ਤੌਰ ਉੱਤੇ ਆਰਥਿਕ ਵਰਗ ਸਤਰੀਕਰਨ ਦੇ ਵਿਪਰੀਤ ਸਮਝਿਆਂ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਵਰਗ ਸਿਰਫ਼ ਆਰਥਿਕ ਮਾਨਤਾਵਾਂ ਉੱਤੇ ਆਧਾਰਿਤ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਜੋ ਕਿ ਸਮਾਨ ਬਜ਼ਾਰੀ ਸਥਿਤੀਆਂ ਦੇ ਕਾਰਨ ਸਮਾਨ ਹਿੱਤਾਂ ਵਾਲਾ ਸਮੂਹ ਹੈ । ਪਰ ਦੂਜੇ ਪਾਸੇ ਰੁਤਬਾ ਸਮੁਹ ਸੰਸਕ੍ਰਿਤਕ ਖੇਤਰ ਵਿੱਚ ਪਾਇਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਇਹ ਸਿਰਫ ਸੰਖਿਅਕ ਸ਼੍ਰੇਣੀਆਂ ਦੇ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦੇ ਬਲਕਿ ਇਹ ਅਸਲ ਵਿੱਚ ਉਹ ਸਮੁਹ ਹੁੰਦੇ ਹਨ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਸਮਾਨ ਜੀਵਨ ਸ਼ੈਲੀ ਹੁੰਦੀ ਹੈ, ਸੰਸਾਰ ਪ੍ਰਤੀ ਸਮਾਨ ਦ੍ਰਿਸ਼ਟੀਕੋਣ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਇਹ ਲੋਕ ਆਪਸ ਵਿੱਚ ਏਕਤਾ ਵੀ ਰੱਖਦੇ ਹਨ ।

ਵੈਬਰ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਵਰਗ ਅਤੇ ਰੁਤਬਾ ਸਮੂਹ ਵਿੱਚ ਅੰਤਰ ਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਹਰੇਕ ਦਾ ਆਪਣਾ ਢੰਗ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਇਹਨਾਂ ਵਿੱਚ ਲੋਕ ਅਸਮਾਨ ਹੋ ਸਕਦੇ ਹਨ । ਉਦਾਹਰਨ ਦੇ ਲਈ ਕਿਸੇ ਸਕੂਲ ਦਾ ਅਧਿਆਪਕ । ਚਾਹੇ ਉਸਦੀ ਆਮਦਨੀ 8-10 ਹਜ਼ਾਰ ਰੁਪਏ ਮਹੀਨਾ ਹੋਵੇਗੀ ਜੋ ਕਿ ਅੱਜ ਦੇ ਸਮੇਂ ਵਿੱਚ ਘੱਟ ਹੈ ਪਰ ਉਸਦਾ ਰੁਤਬਾ ਉੱਚਾ ਹੈ ਕਿਉਂਕਿ ਉਸਦਾ ਪੇਸ਼ਾ ਇੱਕ ਪਵਿੱਤਰ ਪੇਸ਼ਾ ਹੈ । ਪਰ ਇੱਕ ਸਮੱਗਲਰ ਜਾਂ ਵੇਸ਼ਯਾ ਚਾਹੇ ਮਹੀਨੇ ਦਾ ਲੱਖਾਂ ਰੁਪਏ ਕਮਾ ਲਵੇ ਪਰ ਉਸਦਾ ਰੁਤਬਾ ਸਮਰ ਨੀਵਾਂ ਹੀ ਰਹੇਗਾ ਕਿਉਂਕਿ ਉਸਦੇ ਪੇਸ਼ੇ ਨੂੰ ਸਮਾਜ ਮਾਨਤਾ ਨਹੀਂ ਦਿੰਦਾ। ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦੋਹਾਂ ਦੇ ਸਮੂਹਾਂ ਵਿੱਚ ਅੰਤਰ ਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਕਿਸੇ ਪੇਸ਼ੇ ਸਮੂਹ ਨੂੰ ਵੀ ਸਥਿਤੀ ਸਮੂਹ ਦਾ ਨਾਮ ਦਿੱਤਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਕਿਉਂਕਿ ਹਰੇਕ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦੇ ਪੇਸ਼ੇ ਵਿੱਚ ਉਸ ਪੇਸ਼ੇ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧਿਤ ਲੋਕਾਂ ਲਈ ਕਮਾਈ ਕਰਨ ਦੇ ਸਮਾਨ ਮੌਕੇ ਹੁੰਦੇ ਹਨ । ਇਹੀ ਸਮੂਹ ਉਹਨਾਂ ਦੀ ਜੀਵਨ ਸ਼ੈਲੀ ਨੂੰ ਸਮਾਨ ਵੀ ਬਣਾਉਂਦਾ ਹੈ । ਇੱਕ ਪੇਸ਼ਾ ਸਮੂਹ ਦੇ ਮੈਂਬਰ ਇੱਕ-ਦੂਜੇ ਦੇ ਨੇੜੇ ਰਹਿੰਦੇ ਹਨ, ਇੱਕ ਹੀ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦੇ ਕੱਪੜੇ ਪਾਉਂਦੇ ਹਨ ਅਤੇ ਉਹਨਾਂ ਦੀਆਂ ਕਦਰਾਂ-ਕੀਮਤਾਂ ਵੀ ਇੱਕੋ ਜਿਹੀਆਂ ਹੁੰਦੀਆਂ ਹਨ । ਇਸੇ ਕਾਰਨ ਇਸਦੇ ਮੈਂਬਰਾਂ ਦਾ ਦਾਇਰਾ ਵਿਸ਼ਾਲ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

ਦਲ (Party) – ਵੈਬਰ ਅਨੁਸਾਰ ਦਲ ਵਰਗ ਸਥਿਤੀ ਜਾਂ ਰੁਤਬਾ ਸਥਿਤੀ ਦੇ ਨਾਲ ਨਿਰਧਾਰਿਤ ਹਿੱਤਾਂ ਦਾ ਪ੍ਰਤੀਨਿਧੀਤਵ ਕਰਦਾ ਹੈ । ਇਹ ਦਲ ਕਿਸੇ ਨਾ ਕਿਸੇ ਸਥਿਤੀ ਵਿੱਚ ਉਹਨਾਂ ਮੈਂਬਰਾਂ ਦੀ ਭਰਤੀ ਕਰਦਾ ਹੈ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਵਿਚਾਰਧਾਰਾ ਦਲ ਦੀ ਵਿਚਾਰਧਾਰਾ ਨਾਲ ਮਿਲਦੀ ਹੈ । ਪਰ ਇਹ ਜ਼ਰੂਰੀ ਨਹੀਂ ਹੈ ਕਿ ਉਹਨਾਂ ਲਈ ਦਲ ਰੁਤਬਾ ਦਲ ਹੀ ਬਣੇ । ਵੈਬਰ ਦਾ ਕਹਿਣਾ ਹੈ ਕਿ ਦਲ ਹਮੇਸ਼ਾਂ ਇਸ ਤਾਕ ਵਿੱਚ ਰਹਿੰਦੇ ਹਨ ਕਿ ਸੱਤਾ ਉਹਨਾਂ ਦੇ ਹੱਥ ਵਿੱਚ ਆਵੇ ਅਰਥਾਤ ਰਾਜ ਜਾਂ ਸਰਕਾਰ ਦੀ ਸ਼ਕਤੀ ਉਹਨਾਂ ਦੇ ਹੱਥਾਂ ਵਿੱਚ ਹੋਵੇ । ਵੈਬਰ ਦਾ ਕਹਿਣਾ ਹੈ ਕਿ ਚਾਹੇ ਦਲ ਰਾਜਨੀਤਿਕ ਸੱਤਾ ਦਾ ਇੱਕ ਹਿੱਸਾ ਹੁੰਦੇ ਹਨ ਪਰ ਫਿਰ ਵੀ ਸੱਤਾ ਕਈ ਤਰੀਕਿਆਂ ਨਾਲ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕੀਤੀ ਜਾ ਸਕਦੀ ਹੈ ਜਿਵੇਂ ਕਿ ਪੈਸਾ, ਅਧਿਕਾਰ, ਪ੍ਰਭਾਵ, ਦਬਾਓ ਆਦਿ ।

ਦਲ ਰਾਜ ਦੀ ਸੱਤਾ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਨਾ ਚਾਹੁੰਦੇ ਹਨ ਅਤੇ ਰਾਜ ਇੱਕ ਸੰਗਠਨ ਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਦਲ ਦੀ ਹਰੇਕ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦੀ ਕਿਰਿਆ ਇਸ ਗੱਲ ਵੱਲ ਧਿਆਨ ਦਿੰਦੀ ਹੈ ਕਿ ਸੱਤਾ ਕਿਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕੀਤੀ ਜਾਵੇ । ਵੈਬਰ ਨੇ ਰਾਜ ਦਾ ਵਿਸ਼ਲੇਸ਼ਣ ਕੀਤਾ ਅਤੇ ਇੱਥੋਂ ਹੀ ਉਸਨੇ ਨੌਕਰਸ਼ਾਹੀ ਦਾ ਸਿਧਾਂਤ ਪੇਸ਼ ਕੀਤਾ । ਵੈਬਰ ਅਨੁਸਾਰ ਦਲ ਦੋ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦੇ ਹੁੰਦੇ ਹਨ । ਪਹਿਲਾ ਹੈ ਸਰਪ੍ਰਸਤੀ ਦਾ ਦਲ (Patronage Party) ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਕੋਈ ਸਪੱਸ਼ਟ ਨਿਯਮ, ਸੰਕਲਪ ਆਦਿ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦੇ । ਇਹ ਕਿਸੇ ਮੌਕੇ ਲਈ ਬਣਾਏ ਜਾਂਦੇ ਹਨ ਤੇ ਹਿੱਤਾਂ ਦੀ ਪੂਰਤੀ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਇਹਨਾਂ ਨੂੰ ਛੱਡ ਦਿੱਤਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਦੂਜੀ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦਾ ਦਲ ਹੈ ਸਿਧਾਂਤਾਂ ਦਾ ਦਲ (Party of Principles) ਜਿਸ ਦੇ ਸਪੱਸ਼ਟ ਤੇ ਮਜ਼ਬੂਤ ਸਿਧਾਂਤ ਜਾਂ ਨਿਯਮ ਹੁੰਦੇ ਹਨ । ਇਹ ਦਲ ਕਿਸੇ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਅਵਸਰ ਲਈ ਨਹੀਂ ਬਣਾਏ ਜਾਂਦੇ ਹਨ । ਵੈਬਰ ਅਨੁਸਾਰ ਚਾਹੇ ਇਹਨਾਂ ਤਿੰਨਾਂ ਵਰਗ, ਰੁਤਬਾ ਸਮੂਹ ਅਤੇ ਦਲ ਵਿੱਚ ਕਾਫੀ ਅੰਤਰ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਪਰ ਫਿਰ ਵੀ ਇਹਨਾਂ ਵਿੱਚ ਆਪਸੀ ਸੰਬੰਧ ਵੀ ਮੌਜੂਦ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ।