Punjab State Board PSEB 10th Class Hindi Book Solutions Chapter 1 दोहावली Textbook Exercise Questions and Answers.
PSEB Solutions for Class 10 Hindi Chapter 1 दोहावली
Hindi Guide for Class 10 PSEB दोहावली Textbook Questions and Answers
(क) विषय-बोध
I. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक या दो पंक्तियों में दीजिए
प्रश्न 1.
तुलसीदास जी के अनुसार राम जी के निर्मल यश का गान करने से कौन-से चार फल मिलते हैं ?
उत्तर:
तुलसीदास जी के अनुसार राम जी के निर्मल यश का गान करने से धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष नामक चार फल मिलते हैं।
प्रश्न 2.
मन के भीतर और बाहर उजाला करने के लिए तुलसी कौन-सा दीपक हृदय में रखने की बात करते हैं?
उत्तर:
तुलसी हृदय में श्रीराम नाम रूपी मणियों के दीपक को रखने की बात करते हैं।
प्रश्न 3.
संत किस की भाँति नीर-क्षीर विवेक करते हैं?
उत्तर:
संत हंस की भाँति नीर-क्षीर विवेक करते हैं।
प्रश्न 4.
तुलसीदास के अनुसार भव सागर को कैसे पार किया जा सकता है?
उत्तर:
तुलसीदास के अनुसार श्रीराम से स्नेह, सांसारिक प्राणियों से समता तथा राग, रोष, दोष, दुःख आदि का त्याग करने से भव सागर को पार किया जा सकता है।
प्रश्न 5.
जो व्यक्ति दूसरों के सुख और समृद्धि को देखकर ईर्ष्या से जलता है, उसे भाग्य में क्या मिलता है?
उत्तर:
जो व्यक्ति दूसरों की सुख-समृद्धि से ईर्ष्या में जलता है उसे अपने जीवन में कभी सुख की प्राप्ति नहीं होती।
प्रश्न 6.
रामभक्ति के लिए गोस्वामी तुलसीदास किसकी आवश्यकता बतलाते हैं?
उत्तर:
गोस्वामी तुलसीदास रामभक्त के लिए ईश्वर की भक्ति, नीर-क्षीर विवेकी होने और परम आस्तिकता के भावों की आवश्यकता बतलाते हैं। रामभक्ति के लिए संत समागम और हृदय की पवित्रता आवश्यक है।
II. निम्नलिखित पद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए
(1) प्रभु तरुतर कपि डार पर, ते किए आपु समान।
तुलसी कहुँ न राम से, साहिब सील निधान।
(2) सचिव, वैद, गुरु तीनि जो, प्रिय बोलहिं भयु आस।
राज, धर्म, तन तीनि कर, होइ बेगिही नास।
उत्तर:
(1) कवि कहता है कि प्रभु श्री राम जी तो वृक्षों के नीचे और बंदर वृक्षों की डालियों पर रहते थे, परंतु ऐसे बंदरों को भी उन्होंने अपने समान बना लिया। तुलसीदास जी कहते हैं कि श्रीरामजी जैसे शीलनिधान स्वामी अन्य किसी स्थान पर कहीं भी नहीं हैं।
(2) कवि कहता है कि स्वामी से तो वह सेवक बड़ा होता है जो अपने धर्म के पालन को करने में निपुण होता है। इसीलिए स्वामी श्रीराम तो सागर पर पुल बंधने के बाद ही समुद्र पार कर सके परंतु उनका सेवक हनुमान तो बिना पुल के ही समुद्र लांघ गया था।
(ख) भाषा-बोध
निम्नलिखित शब्दों के विपरीत शब्द बनाएं-
शब्द = विपरीत शब्द
संपत्ति = ——–
सेवक = ——–
भलाई = ——–
लाभ = ———-
उत्तर:
शब्द = विपरीत शब्द
संपत्ति = विपत्ति।
सेवक = स्वामी।
भलाई = बुराई।
लाभ = हानि।
2. निम्नलिखित शब्दों की भाववाचक संज्ञा बनाएं-
दास = ——–
निज = ——–
गुरु = ——–
जड़। = ———
उत्तर:
शब्द . विपरीत शब्द
दास = दासता।
निज = निजता।
गुरु = गुरुत्व।
जड़ = जड़ता।
3. निम्नलिखित के विशेषण बनाएँ-
धर्म = ——–
मन = ———
भय = ———
दोष। = ———
उत्तर:
शब्द – विशेषण शब्द
धर्म = धार्मिक।
मन = मानसिक।
भय = भयनक।
दोष = दोषी।
(ग) पाठ्येतर सक्रियता
प्रश्न 1.
अपने विद्यालय के पुस्तकालय से गोस्वामी तुलसीदास से संबंधित पुस्तकों से उनके जीवन की अन्य घटनाओं के बारे में जानकारी प्राप्त करें।
उत्तर:
(विद्यार्थी स्वयं करें।)
प्रश्न 2.
तुलसीदास द्वारा रचित दोहों की ऑडियो या वीडियो सी०डी० लेकर अथवा इंटरनेट से इन दोहों को सुनकर आनंद लें और स्वयं भी इन को याद कर लय में गाने का अभ्यास करें।
उत्तर:
(विद्यार्थी स्वयं करें।)
प्रश्न 3.
इंटरनेट के माध्यम से राष्ट्रीय दूरदर्शन पर दिखाए ‘तुलसीदास’ के जीवन पर आधारित सीरियल को ग्रीष्म अवकाश में देखें। उत्तर:
(विद्यार्थी स्वयं करें।)
(घ) ज्ञान विस्तार
रामभक्त गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित हनुमान चालीसा का प्रथम दोहा ‘श्री गुरु चरन सरोज रज’ कवि की हनुमान जी के प्रति श्रद्धा-भक्ति का प्रतीक है। हनुमान जी को केसरी नंदन तथा अंजनि पुत्र भी कहते हैं। केसरी इनके पिता तथा अंजना माता थी। लंका में सीता का समाचार लाते समय ये एक ही छलांग में समुद्र लांघ गए थे और जब इनकी पूंछ में आग लगा दी गई थी तब इन्होंने रावण की सारी लंका ही जला दी थी। लक्ष्मण मूर्छा के समय ये ही लंका से सुषेण वैद्य को तथा उसके कहने पर संजीवनी बूटी को लाए थे। इन्होंने ही सुग्रीव की श्रीराम जी के साथ मित्रता करवा कर उसे उसका राज्य दिलवाया था। इस प्रकार हनुमान महाबली तथा श्री राम जी के अनन्य सेवक माने जाते हैं।
PSEB 10th Class Hindi Guide दोहावली Important Questions and Answers
प्रश्न 1.
कवि के अनुसार श्रीराम जी जैसा शीलनिधान अन्य कोई क्यों नहीं है?
उत्तर:
श्रीराम जैसा शील निधान अन्य कोई भी नहीं था क्योंकि श्रीराम ने वानरों को भी पूरा सम्मान दिया था।
प्रश्न 2.
बिना हरि कृपा के क्या प्राप्त नहीं हो सकता?
उत्तर:
हरि कृपा के बिना संत-समागम नहीं प्राप्त हो सकता।
प्रश्न 3.
ईर्ष्यालु व्यक्ति की क्या दशा होती है?
उत्तर:
ईर्ष्यालु व्यक्ति सदा ईर्ष्या की आग में जलता रहता है तथा उसका कभी भी भला नहीं होता है।
प्रश्न 4.
भगवान् से भक्त को बड़ा बताने के लिए तुलसीदास ने कौन-सा उदाहरण दिया है?
उत्तर:
श्रीराम को लंका जाने के लिए समुद्र पर पुल बंधवा कर जाना पड़ा जबकि उनके भक्त हनुमान छलांग लगा कर ही समुद्र पार कर लंका पहुँच गए थे।
प्रश्न 5.
चापलूस दरबारियों से क्या हानि होती है?
उत्तर:
चापलूस दरबारी सदा राजा की हाँ में हाँ मिलाते हैं, उसकी आलोचना कभी भूलकर भी नहीं करते जिससे राजा अपने राज्य, धर्म और अपने शरीर का भी नाश झूठे अभिमान के कारण कर देता है।
प्रश्न 6.
कैसी भक्ति के बिना श्रीराम अपने भक्तों पर कृपा नहीं करते?
उत्तर:
जिस भक्ति में श्रीराम के प्रति विश्वास नहीं होता उन भक्तों पर श्रीराम कृपा नहीं करते।
(क) एक पंक्ति में उत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
तुलसी ने हृदय में कैसे दीपक को रखने की बात कही है?
उत्तर:
तुलसी ने हृदय में श्रीराम नाम रूपी मणियों के दीपक के रखने की बात कही है।
प्रश्न 2.
राम की कृपा के बिना स्वप्न में भी क्या नहीं मिलता ?
उत्तर:
राम की कृपा के बिना स्वप्न में भी जीवन में चैन नहीं मिलता।
प्रश्न 3.
श्रीराम ने सागर कैसे पार किया था ?
उत्तर:
श्रीराम ने सागर पर बने पुल से सागर पार किया था।
प्रश्न 4.
हंस की भांति नीर-क्षीर विवेक कौन करते हैं?
उत्तर:
संत हंस की भांति नीर-क्षीर विवेक करते हैं।
(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक सही विकल्प चुनकर लिखें
प्रश्न 1.
‘श्री गुरु चरन सरोज रज’ में सरोज है
(क) सरोवर
(ख) कमल
(ग) सरिता
(घ) धूल।
उत्तर:
(ख) कमल
प्रश्न 2.
‘निज मन मुकुरु सुधारि’ में मुकुरु है
(क) मुकरना
(ख) मौसम
(ग) शीशा
(घ) सुधरना।
उत्तर:
(ग) शीशा
प्रश्न 3.
भगवान् पर क्या किए बिना भक्ति नहीं हो सकती
(क) दया
(ख) विश्वास
(ग) प्रार्थना
(घ) समझौता।
उत्तर:
(ख) विश्वास
प्रश्न 4.
‘दोहावली’ किसकी रचना है
(क) तुलसीदास
(ख) वृन्द
(ग) बिहारी
(घ) रहीम।
उत्तर:
(क) तुलसीदास
(ग) एक शब्द/हाँ या नहीं/सही-गलत/रिक्त स्थानों की पूर्ति के प्रश्न
प्रश्न 1.
संत किस की भाँति नीर-क्षीर विवेक करते हैं? (एक शब्द में उत्तर दीजिए)
उत्तर:
हँस
प्रश्न 2.
राम जी का निर्मल यशगान करने से चार फल मिलते हैं। (हाँ या नहीं में उत्तर लिखें)
उत्तर:
हाँ
प्रश्न 3.
अपने धर्म में निपुण सेवक साहब से बड़ा नहीं होता। (सही या गलत लिख कर उत्तर दें)
उत्तर:
गलत
प्रश्न 4.
तुलसीदास राम के भक्त थे। (सही या गलत लिख कर उत्तर दें)
उत्तर:
सही
प्रश्न 5.
बरनऊं रघुबर ……. जसु।
उत्तर:
बिमल
प्रश्न 6.
गिरिजा संत ……….. सम।
उत्तर:
समागम
प्रश्न 7.
राज, धर्म, तन तीनि कर, होइ ……. नास।
उत्तर:
बेगिही।
दोहावली दोहों की सप्रसंग व्याख्या
1. श्री गुरु चरन सरोज रज, निज मन मुकुरु सुधारि।
बरनऊँ रघुबर विमल जसु, जो दायकु फल चारि॥
शब्दार्थ:
चरन = पैर। सरोज = कमल। रज = धूल। मकरु = दर्पण। बरनऊँ = वर्णन करूँ। विमल = निर्मल, उज्ज्वल। जसु = यश। दायकु = देने वाले। फल चारि = चार फल-धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष।
प्रसंग:
प्रस्तुत दोहा तुलसीदास द्वारा रचित ‘दोहावली’ से लिया गया है। यह दोहा हनुमान चालीसा का प्रारंभिक दोहा है। इस दोहे में गुरु वंदना के बाद श्रीराम के पवित्र चरित्र के गुणगान करने की कवि ने कामना की है।
व्याख्या:
कवि कहता है कि मैं श्री गुरु महाराज के चरण कमलों की धूल से अपने मनरूपी दर्पण को स्वच्छ और पवित्र करके श्री रघुवीर रामजी के निर्मल पवित्र यश का वर्णन करता हूँ, जो चारों फलों धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को देने वाला है।
विशेष:
- कवि अपने सद्गुरु की कृपा प्राप्त कर श्रीराम के उज्ज्वल चरित्र का गुणगान करने की कामना कर रहा है।
- भाषा ब्रज मिश्रित अवधी, दोहा छंद, अनुप्रास, उपमा तथा रूपक अलंकार हैं।
2. राम नाम मनी दीप धरु, जीह देहरी द्वार।
तुलसी भीतर बाहरु हुँ, जौ चाहसि उजियार॥
शब्दार्थ:
मनी = मणियाँ। दीप = दीपक। जीह = जीभ । देहरी = दहलीज। चाहसि = चाहता है। उजियार = उजाला।
प्रसंग:
प्रस्तुत दोहा तुलसीदास द्वारा रचित ‘दोहावली’ से लिया गया है, जिसमें कवि ने श्रीराम के नाम स्मरण की महिमा का वर्णन किया है।
व्याख्या:
तुलसीदास जी कहते हैं कि हे मानव, तू राम नाम रूपी मणि-दीपक को मुखरूपी द्वार की जीभरूपी दहलीज पर रख। यदि तू भीतर और बाहर दोनों ओर उजाला चाहता है। भाव यह है कि राम नाम रूपी मणियों से बने दीपक को हृदय में धारण करने से अज्ञान रूपी अंधेरा नष्ट हो जाता है तथा ज्ञान रूपी उजाला हो जाता है।
विशेष:
- राम नाम के स्मरण से समस्त दोषों का नाश हो जाता है तथा हृदय के बाहर और भीतर उजाला हो जाता है।
- ब्रज भाषा में अवधी के शब्दों का मिश्रण है। दोहा छंद, रूपक अलंकार है।
3. जड़ चेतन गुन दोषभय, बिस्व कीन्ह करतार।
संत हंस गुन गहहिं पय, परिहरि बारि विकार॥
शब्दार्थ:
जड़ = निर्जीव। चेतन = सजीव। बिस्व = संसार। करतार = ईश्वर, परमात्मा। गहहिं = लेकर। पय = दूध। परिहरि = छोड़कर। बारि = पानी। विकार = बुराई।
प्रसंग:
प्रस्तुत दोहा तुलसीदास द्वारा रचित ‘दोहावली’ में से लिया गया है, जिसमें कवि ने संतों की विशेषता का वर्णन किया है।
व्याख्या:
तुलसीदास कहते हैं कि परमात्मा ने इस जड़-चेतन संसार को गुण और दोष से युक्त बनाया है, परंतु संत हँसों के समान नीर-क्षीर विवेकी होने के कारण दोष रूपी जल को त्याग कर गुण रूपी दूध को ग्रहण करते हैं।
विशेष:
- संत सदा सद्गुणों से युक्त होते हैं। वे विकारों से रहित होते हैं।
- अवधी भाषा, दोहा छंद, अनुप्रास तथा रूपक अलंकार का प्रयोग सराहनीय है।
4. प्रभु तरुतर कपि डार पर, ते किए आपु समान।
तुलसी कहुँ न राम से, साहिब सील निधान।
शब्दार्थ:
तरुतर = वृक्ष के नीचे। कपि = वानर। आयु = अपने।
प्रसंग:
प्रस्तुत दोहा तुलसीदास के द्वारा रचित ‘दोहावली’ से लिया गया है। इस दोहे में कवि ने श्रीराम द्वारा वानरों को दिए गए सम्मान का वर्णन किया है।
व्याख्या:
कवि कहता है कि प्रभु श्री राम जी तो वृक्षों के नीचे और बंदर वृक्षों की डालियों पर रहते थे, परंतु ऐसे बंदरों को भी उन्होंने अपने समान बना लिया। तुलसीदास जी कहते हैं कि श्रीरामजी जैसे शीलनिधान स्वामी अन्य किसी स्थान पर कहीं भी नहीं हैं।
विशेष:
- श्रीराम की सबके प्रति समतावादी दृष्टि का उल्लेख किया गया है। वे कोई भी भेदभाव न करते हुए सबको अपने समान बना लेते थे।
- अवधी भाषा, दोहा छंद, अनुप्रास अलंकार है।
5. तुलसी ममता राम सो, समता सब संसार।
राग न रोष न दोष दुःख, दास भए भव पार॥
शब्दार्थ:
ममता = स्नेह, प्रेम। समता = बराबर। राग = प्रेम। रोष = क्रोध। भव = संसार।
प्रसंग:
प्रस्तुत दोहा तुलसीदास द्वारा रचित ‘दोहावली’ से लिया गया है। इस दोहे में कवि ने श्रीराम के प्रति आस्था रखने तथा सांसारिक प्राणियों से समभाव रखने की प्रेरणा दी है।
व्याख्या:
तुलसीदास जी कहते हैं कि श्रीराम से ममता रखो तथा संसार के प्राणियों के प्रति समभाव रखो, इससे मनुष्य राग, रोष, दोष, दुःख से मुक्त हो जाता है तथा श्रीराम का दास होने के कारण इस संसार रूपी सागर से पार हो जाता है।
विशेष:
- सांसारिक माया-मोह के बंधनों से मुक्त होकर भव-सागर पार करने के लिए श्रीराम के प्रति ममता होनी आवश्यक है।
- अवधी भाषा, दोहा छंद, अनुप्रास तथा रूपक अलंकार हैं।
6. गिरिजा संत समागम सम, न लाभ कछु आन।
बिनु हरि कृपा न होइ सो, गावहिं वेद पुरान॥
शब्दार्थ:
गिरिजा = पार्वती। सम = समान। आन = अन्य, दूसरा।
प्रसंग:
प्रस्तुत दोहा तुलसीदास द्वारा रचित ‘दोहावली’ से लिया गया है। इस दोहे में कवि ने संत-समागम की महिमा का वर्णन किया है।_
व्याख्या:
कवि कहता है कि शिव जी पार्वती को संतों के सम्मेलन की महिमा का वर्णन करते हुए कहते हैं कि हे पार्वती, संतों के साथ मिल बैठकर उनके विचार सुनने के समान संसार में अन्य कुछ भी लाभकारी नहीं है तथा संत-समागम भी श्रीराम की कृपा के बिना नहीं मिलता। ऐसा वेद-पुराणों में भी कहा गया है।
विशेष:
- संत-समागम प्रभु कृपा से प्राप्त होता है तथा इसके समान लाभदायक संसार में और कुछ भी नहीं है।
- भाषा अवधी, दोहा छंद तथा अनुप्रास अलंकार हैं।
7. पर सुख संपत्ति देखि सुनि, जरहिं जे जड़ बिनु आगि।
तुलसी तिन के भाग ते, चलै भलाई भागि॥
शब्दार्थ:
पर = पराया, दूसरे का। जरहिं = जलना, ईर्ष्या करना। जड़ = मूर्ख भाग = भाग्य। भागि = भाग जाना, चले जाना।
प्रसंग:
प्रस्तुत दोहा तुलसीदास द्वारा रचित ‘दोहावली’ से लिया गया है, जिसमें कवि ने ईर्ष्यालु व्यक्ति की दुर्दशा का वर्णन किया है।
व्याख्या:
गोस्वामी तुलसी दास कहते हैं कि दूसरे के सुख और संपत्ति को देख-सुन कर जो मूर्ख बिना आग के ही जलते रहते हैं, उन लोगों के भाग्य से भलाई स्वयं ही भाग जाती है। भाव यह है कि दूसरों की उन्नति को देखकर ईर्ष्या करने वाले व्यक्ति का कभी भी भला नहीं होता है।
विशेष:
- ईर्ष्यालु व्यक्ति का कभी भी भला नहीं होता है और न ही सुख की प्राप्ति होती है।
- भाषा अवधी-ब्रज का मिश्रण, दोहा छंद, अनुप्रास अलंकार हैं।
8. सचिव वैद गुरु तीनि जो, प्रिय बोलहिं भयु आस।
राज, धर्म, तन तीनि कर, होइ बेगिही नास॥
शब्दार्थ:
सचिव = मंत्री। वैद = वैद्य। प्रिय बोलहिं = मीठा बोलना, मुँह देखी बोलना। भयु = डर से। तीनि = तीनों। बेगिही = शीघ्र ही। नास = नाश, विनाश।
प्रसंग:
प्रस्तुत दोहा तुलसीदास द्वारा रचित ‘दोहावली’ से लिया गया है, जिसमें कवि ने राजा के भय से उसकी हाँ में हाँ मिलाने वाले चापलूसों के परिणाम का वर्णन किया है।
व्याख्या:
कवि कहता है कि यदि किसी राजा का मंत्री, वैद्य और गुरु–ये तीनों राज-भय से अथवा किसी लोभलालच से उसकी बात जैसी है वैसी ही मान लेते हैं अथवा उसकी हाँ में हाँ मिलाते हैं तो उसके राज्य, धर्म और शरीर तीनों का शीघ्र ही विनाश हो जाता है।
विशेष:
- तुलसी दास का मानना है कि रावण के भय से उसके सभासद सदा उसकी हाँ में हाँ मिलाते थे, इसलिए उसका विनाश हो गया था। इसलिए ऐसे चापलूसों से बचना चाहिए।
- भाषा अवधी और ब्रज है। दोहा छंद तथा अनुप्रास अलंकार है।
9. साहब ते सेवक बड़ो, जो निज धरम सुजान।
राम बाँध उतरै उद्धि, लांघि गए हनुमान॥
शब्दार्थ:
साहब = स्वामी। उद्धि = समुद्र। बाँध = पुल। सुजान = निपुण।
प्रसंग:
प्रस्तुत दोहा तुलसीदास द्वारा रचित दोहावली से लिया गया है, जिसमें कवि ने भगवान् से अधिक उनके भक्त की प्रशंसा की है।
व्याख्या:
कवि कहता है कि स्वामी से तो वह सेवक बड़ा होता है जो अपने धर्म के पालन को करने में निपुण होता है। इसीलिए स्वामी श्रीराम तो सागर पर पुल बंधने के बाद ही समुद्र पार कर सके परंतु उनका सेवक हनुमान तो बिना पुल के ही समुद्र लांघ गया था।
विशेष:
- स्वामी की कृपा से सेवक स्वामी से भी बड़ा काम कर सकता है।
- भाषा अवधी, ब्रज, दोहा छंद, अनुप्रास अलंकार हैं।
10. बिनु बिस्वास भगति नहिं, तेहि बिनु द्रवहिं न राम।
राम कृपा बिनु सपनेहुँ, जीवन नहिं विश्राम।
शब्दार्थ:
द्रवहिं = द्रवित होना, पिघलना, दया करना। लह = प्राप्त करना, लेना।
प्रसंग:
प्रस्तुत दोहा तुलसीदास द्वारा रचित ‘दोहावली’ से लिया गया है। इस दोहे में कवि ने अपने आराध्य पर पूर्ण विश्वास रखते हुए भक्ति करने का संदेश दिया है।
व्याख्या:
कवि कहता है कि बिना भगवान् पर विश्वास किए उनकी भक्ति नहीं हो सकती। विश्वास से रहित भक्ति से श्रीराम अपने भक्त पर दया नहीं करते और राम की कृपा के बिना स्वप्न में भी जीवन में चैन नहीं मिलता है। भाव यह है कि विश्वासपूर्वक भक्ति करने से ही परमात्मा की प्राप्ति होती है।
विशेष:
- ईश्वर की भक्ति उस पर पूर्ण विश्वास रख कर ही करनी चाहिए तभी ईश्वर की कृपा होती है।
- भाषा अवधी, ब्रज हैं। दोहा छंद और अनुप्रास अलंकार है।
दोहावली Summary
दोहावली कवि परिचय।
राम-भक्त कवियों में तुलसीदास का नाम विशेष आदर से लिया जाता है। उनका जन्म सन् 1532 ई० में राजापुर, ज़िला बाँदा में हुआ था। कुछ विद्वान् उत्तर प्रदेश के एटा जिले में सोरों नामक ग्राम को उनका जन्म स्थान मानते हैं। इनके पिता का नाम आत्मा राम तथा माता का नाम हुलसी था। मूल नक्षत्र में उत्पन्न होने के कारण माता-पिता ने इन्हें त्याग दिया था। इनका बचपन दर-दर की ठोकरें खाते हुए अनेक कष्टों में बीता। बाद में बाबा नरहरिदास ने उन्हें सहारा दिया। उनके पास रहकर उन्होंने शिक्षा प्राप्त की थी। बाद में काशी के महान् विद्वान शेष सनातन से उन्होंने वेद-शास्त्रों और इतिहास-पुराण का ज्ञान प्राप्त किया। विद्वान बनकर वे वापस राजपुर लौटे थे। तब दीनबंधु पाठक ने अपनी पुत्री रत्नावली से इनका विवाह करवा दिया था। वे अपनी पत्नी रत्नावली से बहुत प्यार करते थे। एक दिन वह इनको बताए बिना अपने मायके चली गई। तुलसीदास जी को जब पता चला तो अन्धेरी रात तथा मूसलाधार वर्षा में रत्नावली के पास पहुँच गए। इस पर रत्नावली ने उन्हें फटकार सुनाई और राम के चरणों में स्नेह लगाने की प्रेरणा दी।
लाज न लागत आपको दौरे आयह साथ,
धिक धिक ऐसे प्रेम को कहां कहौ हौं, नाथ।
इस घटना से तुलसीदास का हृदय ग्लानि से भर गया। उन्होंने संसार को त्याग कर अपना सारा जीवन भगवान राम की आराधना तथा भक्तिपरक साहित्य लिखने में लगा दिया। सन् 1623 ई० में तुलसीदास जी का स्वर्गवास हुआ।
रचनाएँ-तुलसीदास के नाम से 37 पुस्तकें स्वीकार की जाती हैं। लेकिन इनमें से तुलसी के प्रामाणिक ग्रन्थ बारह ही हैं, वे हैं–रामचरितमानस, वैराग्य संदीपनी, रामललानहछू, बरवै रामायण, पार्वती मंगल, जानकी मंगल, रामाज्ञा-प्रश्न, दोहावली, कवितावली, गीतावली, कृष्ण गीतावली और विनय पत्रिका।
तुलसीदास ने अपने काव्य में राम को विष्णु का अवतार मान कर उन्हें ईश्वर पद प्रदान किया है-‘सोई दशरथ सुत हित, कौसलपति भगवान्।’ उन्होंने माना है कि राम ही धर्म का उद्धार करने वाले हैं तथा उनमें शील, शक्ति और सौंदर्य के गुण विद्यमान हैं। राम के माध्यम से कवि ने अपने काव्य में आदर्श समाज की कल्पना की है। उन्होंने राम, सीता, भरत, लक्ष्मण, कौशल्या, हनुमान आदि के द्वारा आदर्श गृहस्थ, आदर्श समाज और आदर्श राज्य की कल्पना को साकार रूप दिया है। इनकी रचनाओं का मूल रस शांत है। लेकिन स्थान-स्थान पर अन्य सभी रसों का सुंदर प्रयोग दिखाई दे जाता है। कवितावली के बालकांड में वात्सल्य रस के सुंदर उदाहरण दिए गए हैं। तुलसीदास एक श्रेष्ठ कवि और सच्चे लोकनायक हैं।
इन्होंने अपने काव्य में जीवन के विविध रूपों को प्रस्तुत किया है। इन्होंने अवधी और ब्रज भाषाओं का संदर प्रयोग किया है। इनकी अधिकांश रचनाएँ अवधी में हैं। लेकिन ‘विनय पत्रिका’ में ब्रज भाषा का प्रयोग किया गया है। इनके प्रबंध काव्य में दोहाचौपाई छंदों का प्रयोग अधिक है तो मुक्तक काव्यों में गीति शैली’ की प्रधानता है। इन्होंने आवश्यकतानुसार उर्दू, फ़ारसी, बुंदेली, भोजपुरी आदि शब्दों का प्रयोग किया है। तुलसीदास वास्तव में ही उत्कृष्ट कोटि के भक्त कवि हैं।
दोहावली दोहों का सार
पाठ्यपुस्तक में तुलसीदास द्वारा रचित दस दोहे संकलित हैं, जिनमें कवि की भक्ति एवं नीति से संबंधित भावनाएँ व्यक्त हुई हैं। पहले दोहे में कवि अपने गुरु की वंदना कर अपने पवित्र मन से चारों फलों को देने वाला श्रीराम के पावन चरित्र के गुणगान करने की कामना करता है। दूसरे दोहे में श्रीराम रूपी मणियों के दीपक के प्रकाश से मन के अंधकार को दूर करने तथा तीसरे दोहे में संतों को नीर-क्षीर विवेकी हँसों के समान बताया गया है जो गुणों को अपना कर समस्त विकार त्याग देते हैं। चौथे दोहे में श्री राम की वानरों को सम्मान देने, पांचवें दोहे में श्रीराम के प्रति ममता तथा संसार के सभी लोगों से समता का व्यवहार रखने और छठे दोहे में संतों के समागम के लाभ का वर्णन किया गया है।
सातवें दोहे में दूसरों की संपत्ति को देखकर ईर्ष्या करने वालों की दुर्दशा का वर्णन है। आठवें दोहे में कवि ने राम भक्त हनुमान की प्रशंसा की है। नौवें दोहे में चापलूस सभासदों से राजा को सावधान रहने के लिए कहा गया है क्योंकि जी हजूरी करने वालों से धर्म, शरीर और राज्य का नाश हो जाता है। दसवें दोहे में कवि ने स्पष्ट किया है कि पूर्ण आस्था से भक्ति करने पर ही श्रीराम अपने भक्तों पर कृपा करते हैं तथा श्रीराम की कृपा के बिना स्वप्न में भी शांति नहीं मिलती है।