Punjab State Board PSEB 9th Class Hindi Book Solutions Chapter 1 कबीर दोहावली Textbook Exercise Questions and Answers.
PSEB Solutions for Class 9 Hindi Chapter 1 कबीर दोहावली
Hindi Guide for Class 9 PSEB कबीर दोहावली Textbook Questions and Answers
(क) विषय-बोध
1. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-दो पंक्तियों में दीजिए
प्रश्न 1.
कबीर के अनुसार ईश्वर किसके हृदय में वास करता है?
उत्तर:
कबीर के अनुसार ईश्वर सच्चे व्यक्ति के हृदय में वास करता है।
प्रश्न 2.
कबीर ने सच्चा साधु किसे कहा है?
उत्तर:
कबीर ने सच्चा साधु उसे कहा है जो भावों का भूखा होता है और उसे धन-दौलत का लालच नहीं होता है।
प्रश्न 3.
संतों के स्वभाव के बारे में कबीर ने क्या कहा है?
उत्तर:
संत अपनी सजनता कभी नहीं छोड़ते चाहे उन्हें कितने भी बुरे स्वभाव के व्यक्तियों से मिलना पड़े अथवा उन के साथ रहना पड़ा। उन पर बुराई का प्रभाव नहीं होता।
प्रश्न 4.
कबीर ने वास्तविक रूप से पंडित/विद्वान किसे कहा है?
उत्तर:
कबीर के अनुसार जिसे व्यक्ति ने प्रेम के ढाई अक्षर पढ़ लिए हैं वही वास्तविक रूप से पंडित/विद्वान् है।
प्रश्न 5.
धीरज का संदेश देते हुए कबीर ने क्या कहा है?
उत्तर:
कबीर जी ने कहा है कि सभी कार्य धैर्य धारण करने से होते हैं, इसलिए मनुष्य को धीरज रखना चाहिए, जैसे ऋतु आने पर वृक्ष पर फल अपने आप आ जाते हैं उसी प्रकार समय आने पर मनुष्य के सभी कार्य भी सिद्ध हो जाते हैं।
प्रश्न 6.
कबीर ने सांसारिक व्यक्ति की तुलना पक्षी से क्यों की है?
उत्तर:
कबीर ने सांसारिक व्यक्ति की तुलना पक्षी से इसलिए की है क्योंकि जैसे पक्षी आकाश में इधर-उधर उड़ता रहता है वैसे मनुष्य चंचल मन भी उसके शरीर को कहीं भी भटकाता रहता है।
प्रश्न 7.
कबीर ने समय के सदुपयोग पर क्या संदेश किया है?
उत्तर:
कबीर जी का कहना है कि मनुष्य को अपना काम कल पर नहीं टालना चाहिए बल्कि तुरंत कर लेना चाहिए क्योंकि कल का पता नहीं होता कि कल क्या होगा।
2. निम्नलिखित पद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए
(i) जैसा भोजन खाइये, तैसा ही मन होय।
जैसा पानी पीजिये, तैसी वाणी होय।।
(ii) बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय।
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।
(iii) जाति ना पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान।
मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान।।
(iv) अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप।
अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप।।
(v) माला तो कर में फिरै, जीभ फिरै मुख मांहि।
मनुवा तौ चहुँ दिशि फिरै, यह तो सुमिरन नांहि॥
उत्तर:
(i) कबीरदास जी कहते हैं कि जो व्यक्ति जैसा भोजन खाता है, उसका मन भी वैसा ही हो जाता है तथा जैसा वह पानी पीता है वैसे ही उसकी वाणी से शब्द निकलते हैं। भाव यह है कि कि सात्विक खान-पान के व्यक्ति का मन-वाणी शुद्ध होती तथा तामसिक भोजन-जल का पान करने वाले व्यक्ति का मन और वाणी भी अशुद्ध होगी।
(ii) कबीरदास जी कहते हैं कि मैं जब इस संसार में किसी बुरे व्यक्ति को तलाश करने के लिए निकला तो ढूंढने पर भी मुझे कोई भी बुरा नहीं मिला। जब मैंने अपने दिल को टटोल कर देखा तो मुझे पता चला कि इस संसार में मुझ से बुरा कोई भी नहीं है।
(iii) कबीरदास जी कहते हैं कि मैं जब इस संसार में किसी बुरे व्यक्ति को तलाश करने के लिए निकला तो ढूंढने पर भी मुझे कोई भी बुरा नहीं मिला। जब मैंने अपने दिल को टटोल कर देखा तो मुझे पता चला कि इस संसार में मुझ से बुरा कोई भी नहीं है।
(iv) कबीरदास जी कहते हैं कि हमें किसी साधु की जाति नहीं पूछनी चाहिए बल्कि उसका ज्ञान जानना चाहिए क्योंकि उसके ज्ञान से ही हमें लाभ हो सकता है। जैसे तलवार लेते समय तलवार का मूल्य किया जाता है, म्यान का नहीं-उसी प्रकार से ज्ञानी साधु का सम्मान होता है, उसकी जाति का नहीं।
(v) कबीर जी कहते हैं कि ईश्वर का भजन या स्मरण करते समय हाथ में माला फिरती रहती है और जीभ मुँह में घूमती रहती है लेकिन व्यक्ति का मन चारों दिशाओं में भटकता रहता है। यह तो किसी भी प्रकार से प्रभु का स्मरण नहीं है।
(ख) भाषा-बोध
निम्नलिखित शब्दों का वर्ण-विच्छेद कीजिए-
प्रश्न 1.
शब्द – वर्ण-विच्छेद बराबर
बराबर – ब् + अ + र् + आ + ब् + अ + र् + अ
भोजन – ————
पंडित – ————
ग्यान – ————
बरसना – ————
उत्तर:
शब्द – वर्ण-विच्छेद बराबर
बराबर – ब् + अ + र् + आ + ब् + अ + र् + अ
भोजन – भ् + ओ + ज् + अ + न् + अ
पंडित – प् + अं+ ड् + इ + त् + अ म्यान
ग्यान – म् + य् + आ + न् + अ बरसना
बरसना – ब् + अ + र् + अ + स् + अ + न् + आ
(ग) पाठेत्तर सक्रियता
प्रश्न 1.
पुस्तकालय से कबीर के दोहों की पुस्तक लेकर प्रेरणादायक दोहों का संकलन कीजिए।
उत्तर:
- बोली एक अमोल है, जो कोई बोले जानि
हिय तराजू तोल के, तब मुख बाहर आनि॥ - निंदक नियरे राखिए, आँगन कुटी छवाय।
बिन पानी साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय। - दोस पराये देखि करि, चला हँसत-हँसत।
अपने याद न आवई, जिनका आदि न अंत ॥ - जग में बैरी कोई नहीं, जो मन सीतल होय।
या आपको डारि दे, दया करै सब कोय॥ - आवत गारी एक है, उलटत होइ अनेक।
कह कबीर नहिं उलटिए, वही एक की एक॥
प्रश्न 2.
कबीर के दोहों की ऑडियो या वीडियो सी० डी० लेकर अथवा इंटरनेट से प्रात:काल/संध्या के समय दोहों का श्रवण कर रसास्वादन कीजिए।
उत्तर:
विद्यार्थी अपने अध्यापक की सहायता से स्वयं करें।
प्रश्न 3.
कैलेण्डर से देखें कि इस बार कबीर-जयंती कब है। स्कूल की प्रातः कालीन सभा में कबीर-जयंती के अवसर पर कबीर साहिब के बारे में अपने विचार प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
विद्यार्थी अपने अध्यापक की सहायता से स्वयं करें।
प्रश्न 4.
एन० सी० ई० आर० टी० द्वारा कबीर पर निर्मित फ़िल्म देखिए।
उत्तर:
विद्यार्थी अपने अध्यापक की सहायता से स्वयं करें।
प्रश्न 5.
मेरी नज़र में : सच्ची भक्ति’ इस विषय पर कक्षा में चर्चा कीजिए।
उत्तर:
विद्यार्थी अपने अध्यापक की सहायता से स्वयं करें।
(घ) ज्ञान-विस्तार
कबीर के अतिरिक्त रहीम, बिहारी तथा वृन्द ने भी इनके दोहों की रचना की है जो कि बहुत ही प्रेरणादायक हैं। इनके द्वारा रचित नीति के दोहे तो विश्व प्रसिद्ध हैं और हमारे लिए मार्गदर्शक का काम करते हैं। इन्हें पढ़ने से एक ओर जहाँ मन को शांति मिलती है वहीं दूसरी ओर हमारी बुद्धि भी प्रखर होती है।
उत्तर:
रहीम :
- रहिमन धागा प्रेम का मत तोर्यो चटकाय।
टूटे से फिरि न जुड़े, जुड़े गांठ परि जाई॥ - छमा बड़न को चाहिए, छोटन को उत्पात।
का रहीम हरि को घट्यो, जो भृगु मारी लात ।।
बिहारी :
- दीरघ सांस न लेहि दुख, सुख साईंहि न भूलि।
दई-दई क्यों करतु है, दई-दई सो कबूलि।। - नर की अरु नल नीर की गति एकै करि जोइ।
जेतौ नीचो वै चले, तैतो ऊँचो होइ॥
वंद :
- बड़े न हजै गुनन बिन, बिरद बड़ाई पाय।
कहत धतूरे सौ कनक, गहनों घड़ो न जाय।। - सुरसती के भंडार की बड़ी अपूरव बात।
ज्यों खरचें त्यों-त्यों बड़े बिन खरचे घटि जात॥
PSEB 9th Class Hindi Guide कबीर दोहावली Important Questions and Answers
प्रश्न 1.
परमात्मा के संबंध में कबीर की क्या विचारधारा थी?
उत्तर:
कबीर निर्गुणी थे। वे मानते थे कि परमात्मा सब जगह है। वह जन्म-मरण से परे है। उसे प्राप्त नहीं किया जा सकता। वह चाहे हर जगह है पर उसे देखा नहीं जा सकता। उसका कोई रंग-रूप नहीं है।
प्रश्न 2.
कबीर ने सच बोलने के विषय में क्या कहा है?
उत्तर:
कबीर ने सच बोलने के विषय में कहा है कि उससे बढ़ कर कोई तप नहीं है। जिस प्राणी के हृदय में सच बसता है उसी के भीतर परमात्मा का वास होता है।
प्रश्न 3.
कबीर के अनुसार जो व्यक्ति धन का लोभी होता है उसमें किस जैसे गुण नहीं होते?
उत्तर:
कबीर जी के अनुसार जो व्यक्ति लालची होता है वह किसी भी स्थिति में साधु कहलाने के योग्य नहीं होता। साधु भाव के भूखे होते हैं, न कि धन दौलत के।
प्रश्न 4.
कबीर जी के अनुसार हमारा खान-पान हमें कैसे प्रभावित करता है?
उत्तर:
हम जैसा खाते या पीते हैं वैसा ही हमारा मन बन जाता है। बुरा खाने-पीने वाले का मन बुरा बन जाता है तो सात्विक खाने-पीने वाले का स्वभाव भी वैसा ही सात्विक हो जाता है।
प्रश्न 5.
कबीर जी के अनुसार कैसी पढ़ाई इन्सान को पंडित बनाने के योग्य होती है?
उत्तर:
कबीर जी के अनुसार धार्मिक ग्रंथों के पढ़ने से ही इन्सान पंडित बन सकता है। वे ग्रंथ ही इन्सान को परमात्मा को प्राप्त करने की राह दिखाते हैं और उसे संसार के छल-कपट से दूर करते हैं।
प्रश्न 6.
कबीर जी के अनुसार संतों पर किस का कोई प्रभाव नहीं पड़ता?
उत्तर:
कबीर जी के अनुसार संतों पर बुरे लोगों का भी प्रभाव नहीं पड़ता। वे सदा अच्छे बने रहते हैं-ठीक वैसे ही जैसे चंदन के पेड़ पर चाहे साँप लिपटे रहें पर उनके ज़हर का चंदन के पेड़ पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
प्रश्न 7.
कबीर जी ने धैर्य के महत्त्व को किस प्रकार व्यक्त किया है?
उत्तर:
कबीर जी धैर्य को महत्त्व देते हुए मानते हैं कि समय से पहले कभी कुछ नहीं होता। जैसे कोई माली सैंकड़ों पानी से भरे घड़ों से पेड़-पौधों को सींचता रहे लेकिन उन पर फल तो मौसम आने पर ही लगेगा। इसी प्रकार मनुष्य चाहे कितनी भी कोशिश कर ले पर उसके कार्य तो उचित समय आने पर ही होते हैं ; समय से पहले नहीं।
प्रश्न 8.
कबीर जी ने साधुओं की जाति के विषय में क्या विचार व्यक्त किया है?
उत्तर:
कबीर जी ने माना है कि साधुओं की जाति कभी नहीं पूछनी चाहिए। उनकी पहचान उनकी भक्ति और ज्ञान होता है। जिस प्रकार तलवार खरीदते समय उसी का दाम पूछा जाता है न कि उस म्यान का-जिस में रखी जाती है, उसी प्रकार साधु की महत्ता उसकी भक्ति और ज्ञान से होती है, न कि उस की जाति-पाति और रंग-रूप से।
प्रश्न 9.
कबीर जी ने इन्सान के मन की चंचलता को किस प्रकार व्यक्त किया है?
उत्तर:
कबीर जी ने इन्सान के मन को अति चंचल मानते हुए कहा है कि वह जो चाहता है उसका शरीर वैसा ही करता है। सब अच्छे-बुरे काम इन्सान के द्वारा अपने मन की इच्छा के कारण किए जाते हैं। जो व्यक्ति जैसी अच्छी या बुरी संगति करता है उसे वैसे ही. फल की प्राप्ति होती है।
प्रश्न 10.
कबीर जी किसी भी काम की अधिकता को कैसा मानते हैं?
उत्तर:
कबीर जी का मानना है कि किसी भी काम की अधिकता बुरी होती है। न तो आवश्यकता से अधिक बोलना चाहिए और न ही चुप रहना चाहिए। न अधिक वर्षा अच्छी होती है और न ही अत्यधिक गर्मी-हर वस्तु और काम संतुलित-सा होना चाहिए। किसी की भी अति अच्छी नहीं होती।
प्रश्न 11.
कबीर जी ने मन की चंचलता के विषय में क्या विचार व्यक्त किया है?
उत्तर:
कबीर मानते हैं कि इन्सान का मन बहुत चंचल होता है। वह पल भर भी कहीं टिकता नहीं है। जब वह भक्ति करने लगता है तो माला उस के हाथ में घूमती रहती है और जीभ मुँह में हिल-हिल कर ईश्वर का नाम लेती है लेकिन उसका मन दुनिया भर की अच्छी-बुरी बातें सोचता है। मन की चंचलता उसे ईश्वर के नाम में डूबने ही नहीं देती। चंचलता से भरा मन तो इन्सान से भक्ति करने का नाटक ही कराता है।
प्रश्न 12.
कबीर जी ने इन्सान को अपना काम सदा समय पर करने की शिक्षा कैसे दी है?
उत्तर:
कबीर जी ने इन्सान को शिक्षा देते हुए कहा है कि उसे सदा अपने काम को समय से करना चाहिए। जो काम कल करना है उसे आज ही करो और आज का काम अभी करो। यह संसार तो नाशवान है। यदि अगले ही पल प्रलय हो गई अर्थात् तुम नहीं रहे तो अपना काम फिर कैसे करोगे। अपने काम को अगले दिन पर मत छोड़ो।
एक शब्द/एक पंक्ति में उत्तर दीजिए
प्रश्न 1.
कबीर ने किस के बराबर ‘तप नहीं’ बताया है?
उत्तर:
सत्य के।
प्रश्न 2.
कबीर के अनुसार कौन साधु नहीं होता?
उत्तर:
जो धन का भूखा होता है।
प्रश्न 3.
कबीर के अनुसार कौन ‘संतई’ नहीं छोड़ता?
उत्तर:
संत।
प्रश्न 4.
कबीर के अनुसार क्या पढ़ने से कोई विद्वान् हो जाता है?
उत्तर:
ढाई आखर प्रेम का पढ़ने से विद्वान् हो जाते हैं।
प्रश्न 5.
कबीर ने सबसे बुरा किसे कहा है?
उत्तर:
स्वयं को।
हाँ-नहीं में उत्तर दीजिए
प्रश्न 6.
धैर्य रखने से धीरे-धीरे सब कार्य सफल होते हैं।
उत्तर:
हाँ।
प्रश्न 7.
साधु की जात पूछनी चाहिए, ज्ञान नहीं पूछना चाहिए।
उत्तर:
नहीं।
सही-गलत में उत्तर दीजिए
प्रश्न 8.
जो जैसी संगति करता है, उसे वैसा फल नहीं मिलता।
उत्तर:
गलत।
प्रश्न 9.
किसी भी कार्य की ‘अति’ ठीक नहीं होती।
उत्तर:
सही।
रिक्त स्थानों की पूर्ति करें-
प्रश्न 10.
(i) मोल करो ……………. का, पड़ा ……………. दो म्यान।
उत्तर:
मोल करो तलवार का, पड़ा रहन दो म्यान।
(ii) पोथी पढ़ि पढ़ि ……………. मुवा ……………. हुआ न कोय।
उत्तर:
पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुवा पंडित हुआ न कोय।
बहुविकल्पी प्रश्नों में से सही विकल्प चुनकर उत्तर लिखें
प्रश्न 11.
माला किस में फिरती है
(क) मन में
(ख) कर में
(ग) तन में
(घ) मुख में।
उत्तर:
(ख) कर में।
प्रश्न 12.
आज का काम कब करना चाहिए
(क) आज
(ख) कल
(ग) परसों
(घ) कभी भी।
उत्तर:
(क) आज।
प्रश्न 13.
कैसे व्यक्ति के हृदय में ईश्वर निवास करता है
(क) तपस्वी
(ख) वाचाल
(ग) सच्चे
(घ) पोथियों का ज्ञानी।
उत्तर:
(ग) सच्चे।
प्रश्न 14.
कबीर ने सांसारिक व्यक्ति की तुलना किससे की है
(क) पशु से
(ख) पक्षी से
(ग) जलचर से
(घ) सागर से।
उत्तर:
(ख) पक्षी से।
प्रश्न 15.
संत अपनी क्या नहीं छोड़ते
(क) आन
(ख) बान
(ग) शान
(घ) संतई।
उत्तर:
(घ) संतई।
कबीर दोहावली सप्रसंग व्याख्या
1. साच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप।
जाके हिरदे साच है, ताके हिरदे आप॥
शब्दार्थ:
साच = सत्य। हिरदे = हृदय। आप = परमात्मा।
प्रसंग:
प्रस्तुत दोहा ‘कबीर दोहावली’ से लिया गया है, जिसे कबीरदास जी ने रचा है। इस दोहे में कवि ने सत्य की महिमा का वर्णन किया है।
व्याख्या:
कबीरदास जी कहते हैं कि सत्य के समान संसार में कोई तपस्या नहीं है तथा झूठ के बराबर कोई पाप नहीं है। जिनके हृदय में सत्य का निवास होता है उनके हृदय में आप अर्थात् स्वयं परमात्मा का निवास होता है।
विशेष:
- कवि के अनुसार सत्यवादी व्यक्ति के मन में सदा परमात्मा का निवास होता है।
- भाषा सरल, सहज तथा भावपूर्ण सधुक्कड़ी है। दोहा छंद है।
2. साधु भूखा भाव का, धन का भूखा नाहिं।
धन का भूखा जी फिरै, सो तो साधू नाहिं।
शब्दार्थ:
भाव = भावना, सत्कार। भूखा = लालची, कुछ चाहने की इच्छा करने वाला।
प्रसंग:
प्रस्तुत दोहा कबीरदास द्वारा रचित ‘कबीर दोहावली’ से लिया गया है, जिसमें कवि ने सच्चे साधु के गुणों का वर्णन किया है।
व्याख्या:
कबीरदास जी कहते हैं कि साधु तो केवल भावनाओं का भूखा होता है, वह धन का भूखा कभी नहीं होता। यदि कोई साधु धन के लालच में मारा-मारा फिरता है तो वह साधु कहलाने के योग्य नहीं है।
विशेष:
- सच्चा साधु भावनाओं का भूखा होता है, धन का नहीं।
- सधुक्कड़ी, भाषा दोहा छंद तथा अनुप्रास अलंकार का प्रयोग हुआ है।
3. जैसा भोजन खाइये, तैसा ही मन होय।
जैसा पानी पीजिये, तैसी वाणी होय॥
शब्दार्थ:
वाणी = बोलना, बोल। होय = होता है।
प्रसंग:
प्रस्तुत दोहा ‘कबीर दोहावली’ से लिया गया है, जिसके कवि कबीरदास हैं। इस दोहे में अन्न-जल का मानव मन और तन पर प्रभाव चित्रित किया गया है।
व्याख्या:
कबीरदास जी कहते हैं कि जो व्यक्ति जैसा भोजन खाता है, उसका मन भी वैसा ही हो जाता है तथा जैसा वह पानी पीता है वैसे ही उसकी वाणी से शब्द निकलते हैं। भाव यह है कि कि सात्विक खान-पान के व्यक्ति का मन-वाणी शुद्ध होती तथा तामसिक भोजन-जल का पान करने वाले व्यक्ति का मन और वाणी भी अशुद्ध होगी।
विशेष:
- कवि के अनुसार मनुष्य के जीवन पर उसके खान-पान का बहुत प्रभाव पड़ता है।
- भाषा सधुक्कड़ी, दोहा छंद तथा अनुप्रास अलंकार है।
4. संत न छाडै संतई, जो कोटिक मिलैं असंत।
चंदन भुवँगा बैठिया, तउ सीतलता न तजंत॥
शब्दार्थ:
संत = साधु, सज्जन पुरुष। संतई = साधु-स्वभाव, सज्जनता। कोटिक = करोड़ों। असंत = दुष्ट या बुरे स्वभाव वाले व्यक्ति। भुवँगा = साँप। बैठिया = बैठना, लिपटे रहना। तउ = फिर भी।।
प्रसंग:
यह दोहा संत कबीरदास’ द्वारा रचित ‘कबीर दोहावली’ से लिया गया है। इसमें कबीर जी ने साधु-स्वभाव के विषय में कहा है कि किसी भी अवस्था में अपने साधु-स्वभाव अर्थात् सज्जनता को नहीं छोड़ते हैं। व्याख्या-कबीर जी कहते हैं कि साधु अर्थात् कोई भी सज्जन कभी अपने साधु स्वभाव अर्थात् सज्जनता को नहीं छोड़ता है, चाहे उसे कितने ही बहुत बुरे स्वभाव वाले व्यक्ति मिलें अथवा उनके साथ रहना पड़े। जिस प्रकार चंदन कबीर दोहावली के वृक्ष से अनेक विष भरे साँप लिपटे रहने पर भी चंदन का वृक्ष अपनी शीतलता का परित्याग कभी नहीं करता। उसके गुण ज्यों के त्यों बने रहते हैं।
विशेष:
- साधु लोगों पर बुरे लोगों की संगति का कभी भी कोई असर नहीं पड़ता। वे सदा अपने साधु-स्वभाव को बनाए रखते हैं।
- उदाहरण अलंकार, सरल भावपूर्ण भाषा तथा दोहा छंद विद्यमान है।
5. पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुवा पंडित हुआ न कोय।
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सु पंडित होय।
शब्दार्थ:
पोथी = पुस्तक, ग्रंथ। पंडित = विद्वान्। मुवा = मर गए। आखर = अक्षर।
प्रसंग:
प्रस्तुत दोहा कबीर दास द्वारा रचित ‘कबीर दोहावली’ से लिया गया है, जिसमें कवि ने ईश्वरीय प्रेम की महिमा का वर्णन किया है। व्याख्या-कबीरदास जी कहते हैं कि संसार के लोग अनेक धर्म ग्रंथों को पढ़-पढ़ कर मर गए परंतु कोई भी विद्वान् न बन सका। कवि का मानना है कि यदि कोई व्यक्ति प्रभु-प्रेम के ढाई अक्षर पढ़ कर समझ लेगा तो वह विद्वान् अथवा ज्ञानी हो जाएगा।
विशेष:
- कवि के अनुसार केवल पुस्तकीय ज्ञान से कोई विद्वान् नहीं बन सकता, उसे तो परमात्मा से प्रेम करना आना चाहिए तभी ज्ञानी बन सकता है।
- भाषा सहज, सरल, सधुक्कड़ी, दोहा छंद, अनुप्रास तथा पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार का प्रयोग किया गया है।
6. बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय।
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।
शब्दार्थ:
मिलिया = मिला। खोजा = ढूँढ़ा, तलाश किया।
प्रसंग:
प्रस्तुत दोहा कबीरदास द्वारा रचित ‘कबीर दोहावली’ से लिया गया है, जिसमें कवि ने बताया है कि दूसरों में बुराई देखने से पहले अपने अंदर झाँक कर देखो।
व्याख्या:
कबीरदास जी कहते हैं कि मैं जब इस संसार में किसी बुरे व्यक्ति को तलाश करने के लिए निकला तो ढूंढने पर भी मुझे कोई भी बुरा नहीं मिला। जब मैंने अपने दिल को टटोल कर देखा तो मुझे पता चला कि इस संसार में मुझ से बुरा कोई भी नहीं है।
विशेष:
- कवि का मानना है कि बुराई मनुष्य के अपने अंदर होती है। उसे बाहर कहीं खोजने की आवश्यकता नहीं है।
- भाषा सधुक्कड़ी और दोहा छंद है।
7. धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय।
माली सींचे सौ घड़ा, ऋतु आए फल होय॥
शब्दार्थ:
मना = मन। सींचे = सींचना। सौ = सैंकड़ा। ऋतु = मौसम। प्रसंग-प्रस्तुत दोहा कबीरदास द्वारा रचित ‘कबीर दोहावली’ से लिया गया है, जिसमें कवि ने इन्सान को अपने मन में धैर्य रखने पर बल दिया है।
व्याख्या:
कबीरदास जी कहते हैं कि हे मेरे मन। धैर्य रखो क्योंकि धीरे-धीरे सब काम हो जाते हैं। जिस प्रकार माली सैंकड़ों घड़ों पानी से वृक्षों को सींचता है और उस वृक्ष पर फल मौसम के आने पर ही आते हैं उससे पहले नहीं, इसी प्रकार से मनुष्य के कार्य भी समय आने पर होते हैं।
विशेष:
- यहाँ कवि ने ‘सहज पके सो मीठा’ के अनुसार ‘सब्र का फल मीठा’ माना है और सदा धैर्य से कार्य करने का उपदेश दिया है।
- सधुक्कड़ी भाषा, दोहा छंद, अनुप्रास तथा पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार का प्रयोग किया गया है।
8. जाति ना पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान।
मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान॥
शब्दार्थ:
ज्ञान = विद्वता। तरवार = तलवार। म्यान = तलवार का खोल।
प्रसंग:
प्रस्तुत दोहा कबीरदास द्वारा रचित ‘कबीर दोहावली’ से लिया गया है, जिसमें कवि ने ज्ञानी साधु का सम्मान करने के लिए कहा है न कि उसकी जाति का।
व्याख्या:
कबीरदास जी कहते हैं कि हमें किसी साधु की जाति नहीं पूछनी चाहिए बल्कि उसका ज्ञान जानना चाहिए क्योंकि उसके ज्ञान से ही हमें लाभ हो सकता है। जैसे तलवार लेते समय तलवार का मूल्य किया जाता है, म्यान का नहीं-उसी प्रकार से ज्ञानी साधु का सम्मान होता है, उसकी जाति का नहीं।
विशेष:
- कवि ने साधु का सम्मान उसके ज्ञान से करने के लिए कहा है न कि जाति से।
- भाषा सधुक्कड़ी, दोहा छंद है।
9. कबीर तन पंछी भया, जहाँ मन तहां उड़ी जाइ।
जो जैसी संगती कर, सो तैसा ही फल पाइ।
शब्दार्थ:
तन = शरीर। पंछी = पक्षी। प्रसंग-प्रस्तुत दोहा कबीरदास द्वारा रचित ‘कबीर दोहावली’ से लिया गया है, जिसमें कवि ने मन की चंचलता का वर्णन किया है।
व्याख्या:
कबीरदास जी कहते हैं कि यह शरीर पक्षी हो गया है, जिसे मन जहाँ चाहे वहीं उड़ा कर ले जाता है, अर्थात् शरीर मन के वश में होकर उसके अनुसार आचरण करता है। वास्तव में, जो जिस संगति में रहता है, उसे उसी प्रकार का फल भी मिलता है।
विशेष:
- मन की चंचलता के कारण शरीर भी उसी के इशारों पर चलता है, अत: मन को वश में करना चाहिए।
- भाषा सधुक्कड़ी है और दोहा छंद, अनुप्रास अलंकार का प्रयोग किया गया है।
10. अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप।
अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप॥
शब्दार्थ:
अति = बहुत अधिक। चूप = खामोशी, मौन । बरसना = वर्षा, बारिश।
प्रसंग:
प्रस्तुत दोहा कबीरदास द्वारा रचित ‘कबीर दोहावली’ से लिया गया है, जिसमें कवि ने ‘अति सर्वत्र वर्जते के अनुसार किसी भी कार्य में अति को निंदनीय माना है।
व्याख्या:
कबीरदास जी कहते हैं कि बहुत अधिक बोलना अथवा बहुत अधिक मौन रहना अच्छा नहीं होता है। बहुत बारिश का होना और बहुत अधिक गर्मी का पड़ना भी अच्छा नहीं होता। इस प्रकार किसी भी कार्य में अति हानिकारक होती है।
विशेष:
- कवि के अनुसार किसी भी कार्य में अति नहीं करनी चाहिए।
- भाषा सधुक्कड़ी और दोहा छंद है।
11. माला तौ कर में फिरै, जीभ फिरै मुख मांहि।
मनुवा तौ चहुँ दिशि फिरै, यह तो सुमिरन नांहि॥
शब्दार्थ:
कर = हाथ। मनुवा = मन । सुमिरन = ईश्वर का भजन करना, स्मरण करना।।
प्रसंग:
प्रस्तुत दोहा कबीर जी द्वारा लिखित ‘साखी’ है। प्रस्तुत दोहे में कबीर जी ने ईश्वर भजन में किसी प्रकार के आडम्बर या दिखावे से बचने की बात कही है। व्याख्या-कबीर जी कहते हैं कि ईश्वर का भजन या स्मरण करते समय हाथ में माला फिरती रहती है और जीभ मुँह में घूमती रहती है लेकिन व्यक्ति का मन चारों दिशाओं में भटकता रहता है। यह तो किसी भी प्रकार से प्रभु का स्मरण नहीं है।
विशेष:
- भाव है कि ईश्वर का स्मरण करते समय मनुष्य का मन एकाग्र होना चाहिए तभी सही ढंग से ईश्वर का स्मरण होगा।
- अनुप्रास अलंकार, सरल भाषा, दोहा छंद तथा उपदेशात्मक शैली है।
12. काल्ह करै सो आज कर, आज करै सौ अब्ब।
पल में परलै होयगी, बहुरि करैगो कब्ब।
शब्दार्थ:
काल्ह = कल। अब्ब = अभी। परलै = विनाश, मृत्यु। बहुरि = फिर। कब्ब = कब।
प्रसंग:
प्रस्तुत दोहा कबीरदास द्वारा रचित ‘कबीर दोहावली’ से लिया गया है, जिसमें कवि ने किसी कार्य को टालने की निंदा की है।
व्याख्या:
कबीरदास जी कहते हैं कि हे मनुष्य ! तुमने जो कार्य कल करना है उसे आज ही कर लो और जो आज करना है उसे अभी कर लो क्योंकि पता नहीं कभी भी पलभर में विनाश अथवा मृत्यु हो सकती है, यदि ऐसा हो गया तो फिर अपना कार्य कब करोगे।
विशेष:
- आज का कार्य कल पर नहीं टालना चाहिए क्योंकि कभी भी कुछ भी हो सकता है।
- भाषा सधुक्कड़ी, दोहा छंद, अनुप्रास अलंकार है।
कबीर दोहावली Summary
कबीर दोहावली कवि परिचय।
कवि-परिचय संत कबीर हिंदी-साहित्य के भक्तिकाल की महान् विभूति थे। उन्होंने अपने बारे में कुछ न कह कर भक्त, सुधारक और साधक का कार्य किया था। उनका जन्म सन् 1398 ई० में काशी में हुआ था तथा उनकी मृत्यु सन् 1518 में काशी के निकट मगहर नामक स्थान पर हुई थी। उनका पालन-पोषण नीरु और नीमा नामक एक जुलाहा दंपति ने किया था। कबीर विवाहित थे। उनकी पत्नी का नाम लोई था। उनका एक पुत्र कमाल और एक पुत्री कमाली थे।।
रचनाएँ:
कबीर निरक्षर थे पर उनका ज्ञान किसी विद्वान् से कम नहीं था। वे मस्तमौला, फक्कड़ और लापरवाह फकीर थे। वे जन्मजात विद्रोही, निर्भीक, परम संतोषी और क्रांतिकारक सुधारक थे। कबीर की एकमात्र प्रामाणिक रचना ‘बीजक’ है, जिसके तीन भाग-साखी, सबद और रमैणी हैं। उनकी इस रचना को उनके शिष्यों ने संकलित किया था।
विशेषताएँ:
कबीर निर्गुणी थे। उनका मानना था कि ईश्वर इस विश्व के कण-कण में विद्यमान है। वह फूलों की सुगंध से भी पतला, अजन्मा और निर्विकार है। कबीर ने गुरु को परमात्मा से भी अधिक महत्त्व दिया है क्योंकि परमात्मा की कृपा होने से पहले गुरु की कृपा का होना आवश्यक है। कबीर ने विभिन्न अंधविश्वासों, रूढ़ियों और आडंबरों का कड़ा विरोध किया था। उन्होंने जाति-पाति और वर्ग-भेद का विरोध किया। वे शासन, समाज, धर्म आदि समस्त क्षेत्रों में क्रांतिकारी परिवर्तन चाहते थे।
कबीर की भाषा जन-भाषा के बहुत निकट थी। उन्होंने साखी, दोहा, चौपाई की शैली में अपनी वाणी प्रस्तुत की थी। उनकी भाषा में अवधी, ब्रज, खड़ी बोली, पूर्वी हिंदी, फारसी, अरबी, राजस्थानी, पंजाबी आदि के शब्द बहुत अधिक हैं। इसलिए इनकी भाषा को खिचड़ी या सधुक्कड़ी भी कहते हैं।
कबीर दोहावली दोहों का सार
कबीरदास द्वारा रचित ‘कबीर दोहावली’ के बारह दोहों में नीति से संबंधित बात कही गई है। इनमें संत कवि ने सत्य-आचरण, सच्चे साधु की पहचान तथा अन्न-जल के मानव जीवन पर पड़ने वाले प्रभाव आदि का वर्णन किया है। कवि के अनुसार सच्चे व्यक्ति के हृदय में प्रभु निवास करते हैं। सच्चा साधु भाव का भूखा होता है तथा जैसा हम अन्नजल ग्रहण करते हैं वैसा ही हमारा आचरण होता है। सज्जन व्यक्ति बुरे लोगों के साथ रहकर भी अपनी अच्छाई नहीं छोड़ता। संसार में अपने अतिरिक्त कोई बुरा नहीं होता। धैर्य से ही सब कार्य होते हैं। साधु की जाति नहीं ज्ञान देखना चाहिए। सभी इन्सानों को अपने मन की चंचलता को वश में करना चाहिए। किसी भी बात की अति सदा हानिकारक होती है तथा ईश्वर का स्मरण एकाग्र भाव से करना चाहिए। कभी भी आज का काम कल पर नहीं टालना चाहिए क्योंकि मृत्यु के बाद तो वह काम हमारे द्वारा फिर कभी भी नहीं हो सकेगा।।