Punjab State Board PSEB 8th Class Hindi Book Solutions Hindi Grammar Samas समास Exercise Questions and Answers, Notes.
PSEB 8th Class Hindi Grammar समास
प्रश्न 1.
समास किसे कहते हैं ? इसके भेदों का वर्णन करें।
उत्तर:
परस्पर सम्बन्ध रखने वाले दो या दो से अधिक पदों के मेल को समास कहते हैं; जैसे-माता-पिता = माता और पिता।
विग्रह : समस्त पदों में विभिन्न चिहनों को जोड़कर अलग-अलग पद करने की क्रिया को विग्रह कहते हैं; जैसे-‘माता-पिता’ समस्त पद का विग्रह होगा-माता और पिता।
समास के भेद : समास में दो पद होते हैं, एक पूर्व पद दूसरा उत्तर पद। इन पदों की प्रधानता के आधार पर समास के चार भेद होते हैं –
1. अव्ययीभाव समास
2. द्वन्द्व समास
3. बहुब्रीहि समास
4. तत्पुरुष समास।
1. अव्ययीभाव समास : जिस समास में पूर्व (पहला) पद प्रधान होता है उसे अव्ययी भाव समास कहते हैं। जैसे-
यथाशक्ति – शक्ति के अनुसार
भरपेट – पेट भरकर
यथाविधि – विधि के अनुसार
आजीवन – जीवन भर
प्रतिदिन – दिन-दिन
आमरण – मरने तक।
2. द्वन्द्व समास : जिस समास में पूर्व और उत्तर दोनों पद प्रधान होते हैं, उसे द्वन्द्व समास कहते हैं। जैसे
माता-पिता – माता और पिता
सुख-दुख – सुख और दुख
नर-नारी – नर और नारी
देवासुर – देव और असुर
राम-लक्ष्मण – राम और लक्ष्मण
दिन-रात – दिन और रात।
3. बहुव्रीहि समास : जिस समास में पूर्व और उत्तर पद प्रधान न होकर कोई अन्य पद प्रधान हो उसे बहुव्रीहि समास कहते हैं। जैसे
दशानन – दश हैं आनन(मुख) जिसके (रावण), लंबोदर – लंबा है उदर (पेट) जिसका (गनेश)।
त्रिनेत्र – तीन नेत्र (आंख) हैं जिसके (शिव), पीतांबर – पीले हैं वस्त्र जिसके (श्रीराम, कृष्ण)।
4. तत्पुरुष समास : जिस समास में उत्तर (दूसरा) पद प्रधान होता है, उसे तत्पुरुष समास कहते हैं। जैसे-विद्यालय-विद्या के लिए आलय, देवालय-देव के लिए आलय।
तत्पुरुष समास के भेद-
तत्पुरुष समास के भेद इस प्रकार हैं
(i) कर्म तत्पुरुष – यशप्राप्त-यश को प्राप्त, ग्रामगत-ग्राम को जाना
(ii) करण तत्पुरुष – तुलसीकृत-तुलसी द्वारा कृत, हस्तलिखित-हाथ के द्वारा लिखित।
(iii) सम्प्रदान तत्पुरुष – रसोईघर-रसोई के लिए घर, विद्यार्थी-विद्या के लिए अर्थी।
(iv) अपादान तत्पुरुष – विद्याहीन-विद्या से हीन, धनहीन-धन से हीन।
(v) सम्बन्ध तत्पुरुष – राजपुरुष-राजा का पुरुष, गंगाजल-गंगा का जल
(vi) अधिकरण तत्पुरुष – घुड़सवार-घोड़े पर सवार, ग्रहप्रवेश-गृह (घर) में प्रवेश।
तत्पुरुष समास के अन्य भेद-
तत्पुरुष समास के कुछ अन्य भेद भी होते हैं
(i) कर्मधारय : जिस समास में उत्तर पद प्रधान होता है। जिस समास में पहले और दूसरे पद में विशेष्य-विशेषण का सम्बन्ध हो, उसे कर्मधारय समास कहते हैं। जैसे
महात्मा – महान है जो आत्मा
लाल मिर्च – लाल है जो मिर्च।
कमल नयन – कमल के समान नयन (आँख)
चंद्रमुख – चन्द्रमा के समान मुख।।
(ii) द्विगु समास : जिस समास में पूर्व पद संख्या का बोध कराए उसे द्विगु समास कहते हैं। जैसे
पंचवटी – पांच वृक्षों का समूह
सप्ताह – सात दिनों का समूह
नवरत्न – नौ रत्नों का समूह
शताब्दी – सौ वर्षों का समूह ।
(iii) नञ् समास : जिस समास में पहला पद निषेधवाचक हो, उसे नञ् समास कहते हैं। जैसे
अजर – न जर
अमर – न मर
अन्याय – न न्याय
अनीति – न नीति
असत्य – न सत्य
अस्थिर – न स्थिर।
प्रश्न 2.
कर्मधारय और बहुब्रीहि समास में क्या अन्तर है ? उदाहरण देकर स्पष्ट करो।
उत्तर:
(1) कर्मधारय तत्पुरुष समास में दूसरा पद प्रधान होता है, परन्तु बहुब्रीहि समास में दोनों पदों में कोई भी पद प्रधान नहीं होता। वरन् एक तीसरा अन्य पद प्रधान होता है।
(2) कर्मधारय में एक पद दूसरे पद का विशेषण या उपमान होता है, किन्तु बहुब्रीहि का ‘समस्त पद’ अनावश्यक रूप से किसी अन्य तीसरे पद का सूचक (विशेषण) होता है। जैसे-नीलकण्ठ और पीताम्बर शब्दों का यदि विग्रह किया जाए–नीला जो कण्ठ’ तथा ‘पीत जो अम्बर’ तो ये दोनों कर्मधारय समास के उदाहरण होंगे। परन्तु जब इनका विग्रह हो–नीला है कण्ठ जिसका’ तथा ‘पीत है अम्बर जिसका’, तो ये दोनों शब्द क्रमशः ‘शिवजी’ तथा ‘श्रीकृष्ण’ के विशेषण होने के कारण बहुब्रीहि समाज के उदाहरण कहे जाएंगे।
प्रश्न 3.
सन्धि और समास में क्या अन्तर है ? उदाहरण देकर स्पष्ट करें।
उत्तर:
सन्धि | समास |
1. अति समीप आए हुए दो वर्गों में होती है। | 1. समास आपस में सम्बन्ध रखने वाले दो या दो से अधिक शब्दों में होता है। |
2. दो वर्गों में सन्धि होती है। अतः ये आपस में इस तरह घुल-मिल जाते हैं कि इनको अलग करना कठिन होता है। | 2. दो शब्दों के मेल होने के कारण ही पद इकट्ठे रखे जाते हैं। प्रायः घुल-मिल नहीं जाते। |
3. सन्धि में कारक का लोप होना ज़रूरी नहीं है। | 3. समास में कारक का लोप होना प्रायः ज़रूरी है। |
उदाहरण –
सन्धि :
इति + आदि = इत्यादि।
सत् + जन = सज्जन।
समास :
राजा का पुरुष = राजपुरुष।
घन की तरह श्याम = घनश्याम।
समास :
परस्पर सम्बन्ध रखने वाले दो अथवा दो से अधिक पदों के मेल का नाम समास है ; जैसे-राजा का पुत्र = राजपुत्र। समास के भेद-
(i) अव्ययी भाव
(ii) तत्पुरुष
(iii) द्वन्द्व
(iv) बहुब्रीहि।
1. अव्ययी भाव :
जिस समास का पहला पद प्रधान हो, वह अव्ययी भाव समास होता है। पहला खण्ड अव्यय होता है।
जैसे- क्षण-क्षण = प्रति क्षण
यथाक्रम = क्रम के अनुसार
अनपढ़ = बिना पढ़ा-लिखा
आजन्म = जन्म भर
यथाशक्ति = शक्ति के अनुसार
भरपेट = पेटभर कर
हाथों हाथ = हाथ-हाथ में
आमरण = मरण तक
आजीवन = जीवन-पर्यन्त
हर समय = हर समय में
प्रतिक्षण = क्षण-क्षण
बीचों बीच = बीच-बीच में
प्रतिदिन = दिन-दिन के प्रति
साफ़-साफ़ = बिल्कुल साफ़
2. तत्पुरुष जिस समास में दूसरा पद प्रधान होता है। जैसे राजा का महल = राजमहल। तत्पुरुष के भेद इस प्रकार हैं
(i) कर्म तत्पुरुष :
स्वर्गगत = स्वर्ग को गत (गया हुआ)
शरणापन्न = शरण में आपन्न
ग्रामगत = ग्राम (गाँव) को गत
सुख प्राप्त = सुख को प्राप्त
(गया हुआ) फल प्राप्त = फल को प्राप्त
शरणागत = शरण को आगत (गया हुआ)
(ii) करण तत्पुरुष :
रेखांकित = रेखा से अंकित
दई मारा = दैव से मारा
तुलसीकृत = तुलसी द्वारा कृत
मुँहमाँगा = मुँह से माँगा
हस्तलिखित = हाथ से लिखित
हृदयहीन = हृदय से हीन
रेलयात्रा = रेल द्वारा यात्रा
मनमानी = मन से मानी
भाग्यहीन = भाग्य से हीन
विचारहीन = विचार से हीन
(iii) सम्प्रदान तत्पुरुष :
हवन सामग्री = हवन के लिए सामग्री
देश भक्ति = देश के लिए भक्ति
रसोईघर = रसोई के लिए घर
हथकड़ी = हाथों के लिए कड़ी
सत्याग्रह = सत्य के लिए आग्रह
राहखर्च = राह के लिए खर्च
(iv) अपादान तत्पुरुष :
जन्मरोगी = जन्म से रोगी
धर्मभ्रष्ट = धर्म से भ्रष्ट
नरकभय = नरक से भय
पदच्युत = पद से च्युत
चोरभय = चोर से भय
धनहीन = धन से हीन
(v) सम्बन्ध तत्पुरुष :
विश्वासपात्र = विश्वास का पात्र
राष्ट्रपति = राष्ट्र का पति
घुड़दौड़ = घोड़ों की दौड़
जन्मभूमि = जन्म की भूमि
माखनचोर = माखन का चोर
राजपुत्र = राजा का पुत्र
रामकहानी = राम की कहानी
राजसभा = राजा की सभा
राजकन्या = राजा की कन्या
रामदरबार = राम का दरबार
बैलगाड़ी = बैलों की गाड़ी
विद्याप्रेमी = विद्या का प्रेमी
मंत्रिमंडल = मंत्रियों का मण्डल
राजमहल = राजा का महल
देशभक्त = देश का भक्त
नगरवधू = नगर की वधू
राजभवन = राजा का भवन
प्रजापति = प्रजा का पति
(vi) अधिकरण तत्पुरुष :
आत्मविश्वास = आत्मा पर विश्वास
आप-बीती = आप पर बीती
नराधम = नरों में अधम
धर्मवीर = धर्म में वीर
नीतिनिपुण = नीति में निपुण
ग्रामवास = ग्राम में वास
(vii) नञ् तत्पुरुष :
अछूत = जो छूत न हो
अपठित = जो पठित न हो
अनपढ़ = जो पढ़ा न हो
अनहोनी = जो न होनी हो
(viii) कर्मधारय :
वचनामृत = वचन रूपी अमृत
भलामानुस = भला जो मनुष्य
चन्द्रमुख = चन्द्र जैसा मुख
चरण कमल = कमल जैसे चरण
घनश्याम = घन जैसा श्याम
आशा किरण = आशा रूपी किरण
नीलकण्ठ = नील जैसा कण्ठ
भवसागर = भव रूपी किरण
कमलनयन = कमल जैसे नयन
परमानन्द = परम आनन्द
महादेव = महान् देव
परमात्मा = परम आत्मा
द्विगु :
पहला पद संख्यावाचक-
द्विग = दो गौओं का समूह
नवग्रह = नौ ग्रहों का समूह
सप्तसिन्धु = सात सिन्धुओं का समूह
त्रिलोकी = तीन लोकों का समूह
त्रिफला = तीनों फलों का समूह
दोपहर = दो पहरों का समूह
नवरत्न = नौ रत्नों का समूह
चौराहा = चार रास्तों का समूह
चौमासा = चार मासों का समूह
सतसई = सात सौ पदों का समूह
3. द्वन्द्व
जिसमें दोनों खण्ड प्रधान हों। विग्रह करने पर जिसमें ‘और’ ‘अथवा’ का प्रयोग होता है ; जैसे-
माता-पिता = माता और पिता
हाथी-घोड़े = हाथी और घोडे
सुख-दुःख = सुख और दुःख
दिन-रात = दिन और रात
अन्न-जल = अन्न और जल
पाप-पुण्य = पाप और पुण्य
जल-वायु = जल और वायु
खट्टा-मीठा = खट्टा और मीठा
गरीब-अमीर = गरीब और अमीर
दाल-रोटी = दाल और रोटी
हाथ-पाँव = हाथ और पाँव
धेला-पैसा = धेला और पैसा
खान-पान = खान और पान
राम-लक्ष्मण = राम और लक्ष्मण
ऋषि-मुनि = ऋषि और मुनि
देवी-देवता = देवी और देवता
भाई-बहन = भाई और बहन
तन-मन = तन और मन
दाल-भात = दाल और भात
राग-रंग = राग और रंग
माँ-बाप = माँ और बाप
चाय-पानी = चाय और पानी
4. बहुब्रीहि जिस समास का कोई भी पद प्रधान न हो बल्कि समस्त पद अपने पदों से भिन्न किसी अन्य पद का विशेषण हो ; जैसे-
दशानन = दश आननों वाला
पीताम्बर = पीले वस्त्रों वाला
विशाल हृदय = विशाल है हृदय जिसका
बारहसिंगा = बारह सींगों वाला
जितेन्द्रिय = इन्द्रियों को जीतने वाला
महात्मा = महान् आत्मा वाला।
कनफटा = फटे कानों वाला
पतझड़ = जिसमें पत्ते झड़ जाते हैं।
लालकुर्ती = लाल कुर्ती वाला
चन्द्रानन = चन्द्र जैसा आनन
चन्द्रामुखी = चन्द्र जैसे मुख वाली
बड़बोला = बड़े बोलों वाला
हँसमुख = हँसी है मुख पर जिसके
दशमुख = दश हैं मुख जिसके
अमूल्य = मूल्य नहीं है जिसका
विषयवासना = विषयों की वासना
आश्चर्यचकित = आश्चर्य से चकित
भाग्यहीन = हीन भाग्य वाला।