Punjab State Board PSEB 8th Class Hindi Book Solutions Chapter 13 माँ Textbook Exercise Questions and Answers.
PSEB Solutions for Class 8 Hindi Chapter 13 माँ (2nd Language)
Hindi Guide for Class 8 PSEB माँ Textbook Questions and Answers
माँ अभ्यास
1. नीचे गुरुमुखी और देवनागरी लिपि में दिये गये शब्दों को पढ़ें और हिंदी शब्दों को लिखने mका अभ्यास करें:
उत्तर :
छात्र स्वयं पढ़ें और लिखने का अभ्यास करें।
2. नदी नीचे एक ही अर्थ के लिए पंजाबी और हिंदी भाषा में शब्द दिये गये हैं। इन्हें ध्यान से पढ़ें और हिंदी शब्दों को लिखें :
उत्तर :
छात्र अध्यापक की सहायता से स्वयं करें।
3. शब्दार्थ :
- कथनी = कही हुई बात, कथन
- शिष्टाचार = शिष्टता पूर्ण आचरण एवं व्यवहार
- संस्कार = व्यवस्थित करना, सजाना
- विपदा = संकट
- बाती = दीपक
- मर्यादित = प्रतिष्ठित
- सहनशीलता – सहनशील (सहन करने वाला) होना
- नि:स्वार्थ = बिना किसी स्वार्थ के
- उत्सव = मंगल कार्य
उत्तर :
सप्रसंग व्याख्या के साथ दे दिए गए हैं।
4. इन प्रश्नों के उत्तर एक या दो वाक्यों में लिखें :
(क) माँ किसका वरदान है ?
उत्तर :
माँ ईश्वर का वरदान है।
(ख) माँ समय के रूप में क्या करती है ?
उत्तर :
माँ समय के रूप में हर क्षण का एहसास कराती है।
(ग) हर विपदा को हराने पर माँ को क्या कहा गया है?
उत्तर :
हर विपदा को हराने पर माँ को हिमालय कहा गया है।
(घ) माँ का हथियार क्या है?
उत्तर :
माँ का हथियार साहस है।
(ङ) माँ बाती के रूप में क्या करती है ?
उत्तर :
माँ बाती के रूप में ममता का प्रकाश फैलाती है।
(च) खुशी के आँसू बहाने पर माँ को क्या कहा गया है?
उत्तर :
खुशी के आँसू बहाने पर माँ को उत्सव कहा गया है।
(छ) माँ गौरैया कब बन जाती है?
उत्तर :
जब खुद कम खाकर बच्चों को ज्यादा खिलाती है तब माँ गौरेया बन जाती है।
(ज) आगे बढ़ने का गीत सुनाने पर माँ को क्या पुकारा गया है ?
उत्तर :
आगे बढ़ने का गीत सुनाने पर माँ को नदी पुकारा गया है।
(झ) इस कविता में माँ का उपहार क्या बताया गया है?
उत्तर :
इस कविता में माँ का उपहार सहनशीलता बताया गया है।
(ञ) माँ के चरणों में किसका द्वार है ?
उत्तर :
माँ के चरणों में स्वर्ग का द्वार है।
5. इन प्रश्नों के उत्तर चार या पाँच वाक्यों में लिखें :
(क) इस कविता में माँ की कथनी और करनी में किसके दर्शन होते हैं ?
उत्तर :
इस कथन में माँ की कथनी में शिष्टाचार और करनी में संस्कार के दर्शन होते हैं। वह जैसा कहती है वैसा ही करती है। वह शिष्टाचार भरा व्यवहार करती है और वैसा ही करने की शिक्षा देती है। वह स्वयं दुख झेलकर सुख प्रदान करती है।
(ख) दुख और सुख में माँ की क्या भूमिका है ?
उत्तर :
माँ दुख को खुशी से स्वीकार कर लेती है तथा सुख देना उसका सदाचार है। वह सबको सुख देती है। दुख – सुख में वह अपने बच्चों के साथ रहती है। वह उनकी हर प्रकार से सहायता करती है। वह स्वयं कष्ट झेल कर भी अपनों को सुख देती है।
(ग) माँ की दुआओं और प्रोत्साहन से क्या होता है?
उत्तर :
माँ की दुआओं से चमत्कार तथा प्रोत्साहन से जय जयकार होती है। माँ की दुआएँ किसी चमत्कार से कम नहीं होती। इसका प्रोत्साहन मिलते ही सर्वत्र जय जयकार हो जाती है। माँ की दुआएँ और प्रोत्साहन बच्चों को आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है। बच्चे उसी से अपने जीवन में परिश्रमपूर्वक आगे बढ़ते हैं।
(घ) धरती के रूप में माँ क्या करती है ?
उत्तर :
धरती के रूप में माँ नि – स्वार्थ भावना से सेवा करती है। वह सबका कल्याण करती है। सबको समान भाव से देखती है। वह सभी को बढ़ावा देता है। वह मर्यादित रहकर सबका पालन – पोषण करती है।
6. पर्यायवाची शब्द लिखें :
- ईश्वर = ______________________
- प्रभात = ______________________
- रात = ______________________
- नदी = ______________________
- चरण = ______________________
- धरती = ______________________
- किताब = ______________________
उत्तर :
- ईश्वर = प्रभु, परमात्मा
- प्रभात = सुबह, सवेरा
- रात = रात्रि, विभावरी
- नदी = तरणि, सरिता
- चरण = पैर, पाँव
- धरती = धरा, पृथ्वी
- किताब = पुस्तक, पोथी।
7. विपरीत शब्द लिखें :
- वरदान = ………………………
- जीवन = ………………………
- स्वीकार = ………………………
- प्रेम = ………………………
- विस्तार = ………………………
- सदाचार = ………………………
- जय = ………………………
उत्तर :
- वरदान = अभिशाप
- जीवन = मरण
- स्वीकार = अस्वीकार
- प्रेम = घृणा
- विस्तार = संक्षेप
- सदाचार = दुराचार
- जय = पराजय।
8. अनेक शब्दों के लिए एक शब्द लिखें :
- जिसका पार न हो _________________
- किसी का उत्साह बढ़ाना _________________
- बिना स्वार्थ के _________________
- माँ का बच्चे के प्रति प्यार _________________
- अच्छा व्यवहार _________________
उत्तर :
- जिसका पार न हो = अपार
- किसी का उत्साह बढ़ाना = उत्साहवर्धन
- बिना स्वार्थ के = नि:स्वार्थ
- माँ का बच्चे के प्रति प्यार = वात्सल्य
- अच्छा व्यवहार = सद्व्यवहार
9. निम्नलिखित अशुद्ध शब्दों को शुद्ध करके लिखें:
- शिश्टाचार _________________
- पड़ाती _________________
- कीताब _________________
- हीमालय _________________
- सविकार _________________
- चमतकार _________________
- आँसु _________________
- सुभाव _________________
- विवहार _________________
- वातसतय _________________
उत्तर :
- शिश्टाचार = शिष्टाचार
- पड़ाती = पढ़ाती
- कीताब = किताब
- हीमालय = हिमालय
- सविकार = स्वीकार
- चमतकार = चमत्कार
- आँसु = आँसू
- सुभाव = स्वभाव
- विवहार = व्यवहार
- वातसलय = वातसल्य
10. रचनात्मक अभिव्यक्ति :
(क) मौखिक अभिव्यक्ति – अपनी माँ पर कविता सुनायें।
उत्तर :
माँ विधाता का उपहार है।
देती सबको असीम प्यार है।
चरणों में इसके स्वर्ग बसा,
आँचल में दुलार अपार है।
आँचल में इसके ब्रह्माण्ड समाया,
आँखों में ममता का भंडार है।
सारे जहाँ का करती पालन
पोषण, महिमा इसकी अपरम्पार है॥
नोट – ऐसी अन्य कविताएँ कक्षा में सुनाएँ एवं अभ्यास करें।
(ख) लिखित अभिव्यक्ति – अपनी माता पर चार-पाँच वाक्य लिखें।
उत्तर :
- मेरी माता जी का नाम श्रीमती सरस्वती देवी है।
- वह सबसे बहुत स्नेह करती है।
- वह ज्ञान की देवी हैं।
- वह बहुत सुंदर हैं।
- वह बहुत पढ़ी – लिखी हैं।
- वह एक कुशल अध्यापिका हैं।
परीक्षोपयोगी अन्य प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
‘माँ’ कविता का मूलभाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
‘माँ’ कविता डॉ० मीनाक्षी वर्मा द्वारा रचित है। इसमें कवयित्री ने माँ की महिमा का गुणगान किया है। माँ ईश्वर का वरदान है। वह सब रिश्तों में महान् है। उसकी कथनी में शिष्टाचार तथा करनी में संस्कार है। उसके जागने – सोने से ही रात – दिन है। विपत्ति में हिमालय बन जाती है। साहस उसका हथियार है। वह बाती के समान जलकर सब कहीं ममता का प्रकाश फैलाती है। दुख लेती है तथा सुख देती है। उसकी खुशी से उत्सव हो जाता है।
उसकी दुआएँ चमत्कार से भरी हैं। वह खुद कम खाकर बच्चों को खिलाती है। उसमें वात्सल्य, प्रेम तथा समर्पण भाव निहित हैं। वह नदी की तरह आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है। सहनशीलता उसका उपहार है। वह धरती बनकर नि:स्वार्थ भाव से सेवा करती है। उसके चरणों में स्वर्ग का द्वार है।
प्रश्न 2.
माँ की धरती से तुलना क्यों की गई है?
उत्तर :
माँ की धरती से तुलना इसलिए की गई है क्योंकि माँ धरती के समान नि:स्वार्थ भाव से सेवा करती है। वह संसार का कल्याण करती है। सबका पालन – पोषण करती है।
प्रश्न 3.
नदी से क्या प्रेरणा मिलती है?
उत्तर :
नदी से जीवन में निरन्तर आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलती है। उससे उन्नति पथ पर आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलती है।
प्रश्न 4.
माँ के गुण कौन – कौन से हैं?
उत्तर :
माँ के गुण इस प्रकार हैं –
- माँ जीवन की शिक्षा देती है।
- उस की कथनी में शिष्टाचार है।
- उस के जागने से प्रभात हो जाता है।
- वह हर विपत्ति का सामना कर हरा देती है।
- वह स्वयं दीपक की बाती की तरह जलकर ममता का प्रकाश फैलाती है।
- वह सुख देकर दुःख ग्रहण करती है।
- वह खुद कम खाकर बच्चों को खिलाती है।
- वह धरती की तरह सबका पालन – पोषण करती है।
बहुविकल्पीय प्रश्न
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर सही विकल्प चुनकर लिखें :
प्रश्न 1.
माँ किसका वरदान है?
(क) ईश्वर
(ख) प्रकृति
(ग) धरती
(घ) समाज।
उत्तर :
(क) ईश्वर
प्रश्न 2.
माँ किस का पाठ पढ़ाती है?
(क) रसोई का
(ख) गृहस्थी का
(ग) रिश्तों का
(घ) जीवन का।
उत्तर :
(घ) जीवन का।
प्रश्न 3.
माँ जब हर विपदा को हर लेती है तो क्या बन जाती है?
(क) हिमालय
(ख) सागर
(ग) दीवार
(घ) आकाश।
उत्तर :
(क) हिमालय
प्रश्न 4.
माँ का हथियार क्या है?
(क) दया
(ख) ममता
(ग) करूणा
(घ) साहस।
उत्तर :
(घ) साहस।
प्रश्न 5.
माँ धरती कब बन जाती है?
(क) सेवा करने पर
(ख) सो जाने पर
(ग) भोजन बनाने पर
(घ) घर संभालने पर।
उत्तर :
(क) सेवा करने पर
प्रश्न 6.
माँ का उपहार क्या है?
(क) उग्रता
(ख) सहनशीलता
(ग) दयालुता
(घ) करूणा।
उत्तर :
(ख) सहनशीलता
माँ Summary in Hindi
माँ कविता का सार
‘माँ’ नामक कविता डॉ० मीनाक्षी वर्मा द्वारा रचित है। इसमें कवयित्री ने ममतामयी माँ के वात्सल्य और त्याग का वर्णन किया है। माँ ईश्वर का अनूठा वरदान है। वह संसार के सब रिश्तों में महान् है। जीवन की परीक्षा देते हुए माँ किताब बन जाती है। उसकी कथनी में शिष्टाचार और करनी में संस्कार है।
हर क्षण का अहसास कराते हुए माँ समय बन जाती है। उसके जागने से ही सुबह होती है और सोने से रात हो जाती है। माँ जब हर मुसीबत को हरा देती है तब वह हिमालय बन जाती है। साहस उसका हथियार है। उसमें अपार ऊर्जा है। ममता का प्रकाश फैलाते हुए माँ दीये की बत्ती बन जाती है।
वह दुःखों को स्वीकार करती है और सुख देने को सदाचार मानती है। उसके खुशी के आँसुओं से उत्सव बन जाता है। उसकी दुआओं में चमत्कार है। उसके प्रोत्साहन में जय – जयकार है। वह खुद कम खाकर जब अपने बच्चों को खिलाती है तब वह गौरेया बन जाती है।
उसमें वात्सल्य तथा प्रेमभाव समाया है। समर्पण उसका स्वभाव है। वह नदी की तरह आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है। मर्यादित रहना उसका व्यवहार है। सहनशीलता अच्छा उपहार है। वह धरती के समान निःस्वार्थ सेवा भाव जगाती है। उसका विस्तार केवल देने में है। उसके चरणों में ये स्वर्ग का द्वार है।
माँ सप्रसंग व्याख्या
1. ईश्वर का वरदान है माँ
सब रिश्तों में महान् है माँ।
जब जीवन का पाठ पढ़ाती माँ
तब किताब बन जाती माँ।
कथनी में उसकी शिष्टाचार है।
करनी में उसकी संस्कार है।
प्रसंग – यह पद्यांश डॉ० मीनाक्षी वर्मा द्वारा रचित है। इसे ‘माँ’ शीर्षक कविता से लिया गया है। कवयित्री ने यहाँ माँ की महिमा का गुणगान किया है।
व्याख्या – कवयित्री कहती है कि माँ ईश्वर का अनुपम वरदान है। वह सभी रिश्तों में सबसे महान् है। माँ जब जीवन की शिक्षा देती है तो वह किताब बन जाती है। उसकी कथनी में शिष्टाचार झलकता है तथा उसकी करनी में संस्कार होता है।
भावार्थ – माँ की महिमा का गुणगान किया है।
2. जब हर क्षण का अहसास कराती माँ
तब समय बन जाती माँ।
जगने में उसके प्रभाव है
सोने में उसके रात है।
प्रसंग – यह पद्यांश डॉ० मीनाक्षी वर्मा द्वारा रचित ‘माँ’ कविता से लिया गया है। इनमें माँ का गुणगान किया गया है।
व्याख्या – कवयित्री कहती है कि जब माँ हर क्षण का अहसास कराती है। तब वह समय बन जाती है। उसके जाग जाने में ही सवेरा होता है और उसके सो जाने से ही रात हो जाती है। माँ से मानों ही दिन – रात चलते हैं।
भावार्थ – माँ की महिमा का गुणगान किया है।
3. जब हर विपदा को हराती माँ
तब हिमालय बन जाती माँ।
साहस उसका हथियार है
ऊर्जा उसमें अपार है।
शब्यार्थ :
- विपदा – विपत्ति।
- हथियार – अस्त्र – शस्त्र।
- अपार – जिसका पार न हो।
प्रसंग – यह काव्य पंक्तियाँ डॉ० मीनाक्षी वर्मा द्वारा रचित ‘माँ’ शीर्षक कविता से ली गई हैं। यहाँ माँ के साहस का वर्णन किया गया है।
व्याख्या – कवयित्री कहती है कि जब माँ जीवन में प्रत्येक विपत्ति को हरा देती है तब वह हिमालय के समान महान् बन जाती है। साहस उसका हथियार है। उसमें अपार ऊर्जा एवं शक्ति है।
भावार्थ – माँ के साहस एवं शक्ति को दर्शाया है।
4. जब ममता का प्रकाश फैलाती माँ
तब बाती बन जाती माँ।
दुख लेना उसको स्वीकार है
सख देना उसका सदाचार है।
शब्दार्थ :
- सदाचार – अच्छा आचरण।
प्रसंग – यह काव्य पंक्तियाँ डॉ० मीनाक्षी वर्मा द्वारा रचित है। यह ‘माँ’ शीर्षक कविता से लिया गया है। इसमें माँ की ममता का वर्णन है।
व्याख्या – कवयित्री कहती है कि जब माँ अपनी ममता का प्रकाश चारों तरफ फैला देती है तब माँ दीपक की जलने वाली बत्ती बन जाती है। उसे दूसरों का दुख लेना और दूसरों को सुख देना अच्छा लगता है।
भावार्थ – माँ की ममता तथा त्याग का चित्रण हुआ है।
5. जब खुशी के आँसू बहाती माँ
तब उत्सव बन जाती माँ।
दुआओं में उसकी चमत्कार है
प्रोत्साहन में उसके जय – जयकार है।
कठिन शब्दों के अर्थ :
- उत्सव = त्योहार।
प्रसंग – प्रस्तुत पंक्तियाँ डॉ० मीनाक्षी वर्मा द्वारा लिखित ‘माँ’ नामक कविता में से ली . गई हैं। माँ की दुआएँ बहुमूल्य होती हैं। कवयित्री ने इसी को दर्शाया है।
व्याख्या – कवयित्री कहती है कि जब माँ खुश होकर आँसू बहाती है तब उत्सव के समान बन जाती है। चारों तरफ खुशी छा जाती है। उसके आशीर्वादों में बहुत बड़ा चमत्कार होता है। उसके प्रोत्साहन में जय – जयकार छिपा होता है।
भावार्थ – माँ की महिमा का गुणगान किया गया है।
6. जब खुद कम खाकर बच्चों को खिलाती माँ
तब गौरैया बन जाती माँ।
वात्सल्य प्रेम के उसमें भाव हैं
समर्पण उसका स्वभाव है।
शब्दार्थ :
- गौरेया = चिड़िया की एक जाति।
- वात्सल्य = स्नेह।
प्रसंग – ये पंक्तियाँ डॉ० मीनाक्षी वर्मा द्वारा रचित कविता ‘माँ’ से ली गई हैं। इन में माँ के वात्सल्य का वर्णन किया गया है।
व्याख्या – कवयित्री कहती है कि जब माँ अपने आप कम खाकर अपने बच्चों को खिलाती है तब माँ गौरैया की तरह बन जाती है। उसमें वात्सल्य और प्रेम के भाव हैं। समर्पण उसका स्वभाव है अर्थात् वह दूसरों के प्रति सदा समर्पित रहती है।
भावार्थ – माँ के वात्सल्य भाव का वर्णन किया गया है।
7. जब आगे बढ़ने का गीत सुनाती माँ
तब नदी बन जाती माँ।।
मर्यादित रहना उसका व्यवहार है
सहनशीलता उसका उपहार है।
प्रसंग – यह पद्यांश डॉ० मीनाक्षी वर्मा द्वारा रचित ‘माँ’ नामक कविता से लिया गया है। कवयित्री ने माँ को नदी की तरह दर्शाया है।
व्याख्या – कवयित्री कहती है कि जब माँ अपने बच्चों को जीवन में आगे बढ़ने का गीत सुनाती है तब वह नदी बन जाती है। मर्यादा में रहना उसका व्यवहार है अर्थात् माँ सदा मर्यादाओं में रहती है। सहनशीलता उसका उपहार है।
भावार्थ – सहनशीलता और मर्यादा में रहना माँ के गुण हैं।
8. जब निःस्वार्थ सेवा भाव जगाती माँ
तब धरती बन जाती माँ
केवल देने में उसका विस्तार है
चरणों में उसके स्वर्गद्वार है।
प्रसंग – ये काव्य पंक्तियाँ डॉ० मीनाक्षी वर्मा द्वारा रचित ‘माँ’ नामक कविता से ली गई हैं। इनमें माँ को धरती की संज्ञा दी गई है।
व्याख्या – कवयित्री कहती है कि जब माँ बिना किसी स्वार्थ के सेवा भावना जगाती है तब वह धरती बन जाती है। उसका विस्तार केवल देने में है। माँ सदा ही सबको वात्सल्य प्रेम देती है। उसके चरणों में ही स्वर्ग का द्वार है। भाव है कि माँ के चरणों में आकर स्वर्ग मिल जाता है।
भावार्थ – माँ धरती के समान सेवा करती है।