Punjab State Board PSEB 8th Class Agriculture Book Solutions Chapter 1 भूमि एवम् भूमि सुधार Textbook Exercise Questions and Answers.
PSEB Solutions for Class 8 Agriculture Chapter 1 भूमि एवम् भूमि सुधार
PSEB 8th Class Agriculture Guide भूमि एवम् भूमि सुधार Textbook Questions and Answers
(अ) एक-दो शब्दों में उत्तर दें—
प्रश्न 1.
कृषि की दृष्टि से भूमि का pH कितना होना चाहिए?
उत्तर-
6.5 से
8.7 तक pH होना चाहिए।
प्रश्न 2.
भूमि के दो मुख्य भौतिक गुण बताएँ।
उत्तर-
कणों का आकार, भूमि घनत्व, कणों के मध्य खाली जगह, पानी रोकने की ताकत और पानी विलय करने की ताकत आदि।
प्रश्न 3.
किस भूमि में पानी लगाने के फौरन बाद ही विलय हो जाता है?
उत्तर-
रेतली भूमि।
प्रश्न 4.
चिकनी मिट्टी में चिकने कणों की मात्रा बताएँ।
उत्तर-
कम-से-कम 40% चिकने कण होते हैं।
प्रश्न 5.
क्षारीय एवं अम्लीय को मापने का पैमाना बतलाएँ।
उत्तर-
क्षारीय और तेज़ाबीपन (अम्लीयता) को मापने का पैमाना pH है।
प्रश्न 6.
लवणी भूमि में किन लवणों की प्रचुरता (अधिकता) होती है ?
उत्तर-
इन भूमियों में कैल्शियम, मैग्नीशियम और पोटाशियम के क्लोराइड और सल्फेट लवणों की अधिकता होती है।
प्रश्न 7.
जिस भूमि में सोडियम के कार्बोनेट व बाइकार्बोनेट अत्यधिक मात्रा में हो, उस भूमि को किस श्रेणी में रखा जाता है ?
उत्तर-
क्षारीय भूमि।
प्रश्न 8.
हरी खाद के लिए दो फसलों के नाम बताएँ।
उत्तर-
सन अथवा लैंचा, जंतर।
प्रश्न 9.
चिकनी धरती किस फसल के लिए श्रेष्ठ है?
उत्तर-
धान की बुवाई के लिए।
प्रश्न 10.
क्षारीय धरती के सुधार के लिए कौन-सा पदार्थ प्रयोग किया जाता है ?
उत्तर-
जिप्सम।
(आ) एक-दो वाक्यों में उत्तर दें
प्रश्न 1.
भू-विज्ञान के अनुसार मिट्टी से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
वैज्ञानिक दृष्टिकोण के अनुसार भूमि प्राकृतिक शक्तियों के प्रभाव के अधीन प्राकृतिक मादे से पैदा हुई एक प्राकृतिक वस्तु है।
प्रश्न 2.
भूमि के प्रमुख भौतिक गुण कौन-कौन से हैं ?
उत्तर-
कणों के आकार, भूमि घनत्व, कणों के मध्य खाली स्थान, पानी संजोए रखने की ताकत और पानी विलय करने की ताकत आदि।
प्रश्न 3.
चिकनी व रेतली मिट्टी की तुलना करें।
उत्तर-
रेतीली मिट्टी | चिकनी मिट्टी |
(1) उंगलियों में मिट्टी को रगड़ने से कणों का आकार खटकता है। | (1) कण बहुत बारीक होते हैं। |
(2) पानी बहुत जल्दी अवशोषित हो जाता है। | (2) पानी बहुत देर तक खड़ा रहता है। |
(3) दो कणों के मध्य खाली स्थान होता है। | (3) दो कणों के मध्य खाली स्थान कम ज़्यादा होता है। |
प्रश्न 4.
अम्लीय भूमि होने से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
जिन भूमियों में तेज़ाबी (अम्लीय) मादा ज़्यादा होता है उनको अम्लीय भूमि कहते हैं। इन भूमियों में ज्यादा बारिश होने के कारण क्षारीय लवण बह जाते हैं और पौधों आदि के पत्तों के गलने-सड़ने से तेज़ाबी मादा पैदा होता है।
प्रश्न 5.
कल्लर वाली भूमि किसे कहते हैं ?
उत्तर-
जिस भूमि में लवण की मात्रा बढ़ जाती है उनको कल्लर वाली भूमि कहते हैं। यह तीन तरह की होती है–लवणीय, क्षारीय और लवणीय-क्षारीय।
प्रश्न 6.
सेम वाली भूमि से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
उन भूमियों को जिन भूमियों के नीचे पानी का स्तर शून्य से लेकर 1.5 मीटर नीचे ही मिल जाए, उसको सेम वाली भूमि कहते हैं।
प्रश्न 7.
लवणीय भूमि का सुधार कैसे किया जा सकता है?
उत्तर-
- जिंदरा या ट्रैक्टर वाले कराहे के साथ भूमि की ऊपर वाली सतह खुरच कर किसी अन्य स्थान पर गहरे गड्ढे में दबा देनी चाहिए।
- भूमि को पानी के साथ भर कर इसमें हल चला दिया जाता है और फिर पानी बाहर निकाल दिया जाता है। इसके साथ लवण पानी में घुल कर बाहर निकल जाते हैं।
प्रश्न 8.
कल्लर भूमि को सुधारने के लिए अभीष्ट जानकारी दें।
उत्तर–
कल्लर भूमि को सुधारने के लिए कुछ जानकारी प्राप्त करनी ज़रूरी है, जैसे—
- भूमि के नीचे पानी की सतह।
- पानी की सिंचाई के लिए योग्यता किस तरह की है।
- नहर का पानी उपलब्ध है या नहीं।
- धरती में कंकर या अन्य सख्त परतें हैं या नहीं।
- ज्यादा पानी निकालने के लिए खालों का योग्य प्रबंध है कि नहीं।
- कल्लर की कौन-सी किस्म है।
प्रश्न 9.
मैरा भूमि के प्रमुख गुण बताएँ।
उत्तर-
मैरा भूमि के गुण रेतीले और चिकनी भूमियों के बीच में होते हैं। हाथों में डालने पर इसके कण पाउडर की तरह फिसलते हैं।
प्रश्न 10.
लवणीय क्षारीय भूमि से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
इन भूमियों में क्षारत्व और लवणों की मात्रा ज्यादा होती है। इनमें चिकने कणों के साथ जुड़ा सोडियम ज्यादा मात्रा में होता है और भूमि में अच्छे लवण भी बहुत ज़्यादा मात्रा में होते हैं।
(इ) पाँच-छ: वाक्यों में उत्तर दें—
प्रश्न 1.
रेतीली भूमि (धरती) के सुधार के लिए समुचित प्रबंध का वर्णन करें।
उत्तर-
रेतीली भूमियों के सुधार के लिए योग्य प्रबंध निम्नलिखित अनुसार हैं—
- हरी खाद को फूल पड़ने से पहले या दो महीने की फ़सल को ज़मीन में दबा दें। हरी खाद के लिए सन या ढेंचे की बुवाई की जा सकती है।
- अच्छी तरह गली-सड़ी रूड़ी को प्रयोग कर खेत में जुताई के द्वारा खेत में मिला देना चाहिए।
- मुर्गियों की खाद, सूअर की खाद, कंपोस्ट खाद आदि के प्रयोग से भी सुधारा जा सकता है।
- मई-जून के महीने में खेतों को खाली नहीं रखना चाहिए। कोई न कोई फसल बोकर रखें ताकि इनके जीवांश मादे को बचाया जा सके।
- फ़ली वाली फसलों की कृषि करनी चाहिए।
- सिंचाई के लिए छोटी क्यारियां बनाओ।
- ऊपर वाली रेतीली सतह को कराहे के साथ एक तरफ कर दो और नीचे की अच्छी मैरा मिट्टी की सतह का इस्तेमाल करें।
- तालाबों की चिकनी मिट्टी भी खेतों में डालकर लाभ मिलता है।
प्रश्न 2.
कणों के आकार के अनुपात भूमि के तीन प्रमुख प्रकारों का वर्णन करें।
उत्तर-
कणों के आकार के अनुपात अनुसार भूमि की तीन श्रेणियां हैं—
1. रेतीली भूमि
2. चिकनी भूमि
3. मैरा (दोमट) भूमि।।
- रेतीली भूमि-गीली मिट्टी का लड्डू बनाते तुरन्त ही टूट जाता है। इसके कण उंगलियों में रख कर महसूस किए जा सकते हैं। सिंचाई का पानी लगाते ही सोख लिया जाता है। इसके कणों में मध्य खाली स्थान अधिक होता है। इस मिट्टी की जुताई आसान है तथा इसको हल्की भूमि कहा जाता है। इसमें हवा तथा पानी का आवागमन सरल है।
- चिकनी भूमि-गीली मिट्टी का लड्डू सरलता से बन जाता है तथा टूटता नहीं है। इसके कणों का आकार रेत के कणों की तुलना में बहुत कम होता है। इसमें कम-सेकम 40% चिकने कण होते हैं। इसमें कई दिनों तक पानी रुका रहता है। जब नमी कम हो जाती है तो जुताई के समय मिट्टी ढीम बनके निकलती है। सूख जाने पर इसमें दरारें पड़ जाती हैं। भूमि जैसे फट जाती है। इनमें पानी रखने की शक्ति रेतीली भूमि से कहीं अधिक होती है।
- मैरा (दोमट) भूमि-यह भूमि रेतीली से चिकनी भूमि के बीच होती है। इसके कणों का आकार भी चिकनी तथा रेतीली भूमियों के कणों के मध्य होता है। इनमें रोगों की संरचना हवा तथा पानी का संचालन, पानी सम्भाल समर्था आहारीय तत्त्व की मात्रा आदि गुण अच्छी फसल की प्राप्ति के लिए उपयुक्त तथा उपजाऊ हैं। इस भूमि को कृषि के लिए उत्तम माना गया है। इसके कण हाथों में पाऊडर जैसे फिसलते हैं।
प्रश्न 3.
एक आँकड़ा आकृति के द्वारा भूमि के मुख्य भाग दर्शाएं।
उत्तर-
भूमि एक मिश्रण है जिसमें खनिज पदार्थ, जैविक पदार्थ, पानी तथा हवा होती है। इनकी मात्रा को नीचे दिए गए चित्र के अनुसार दर्शाया गया है। हवा तथा पानी की मात्रा आपस में कम अधिक हो सकती है।
चित्र-भूमि के मुख्य भाग
प्रश्न 4.
रेतीली धरती के सुधार का उपाय विस्तारपूर्वक वर्णन करें।
उत्तर-
रेतीली भूमियों के सुधार के लिए योग्य प्रबंध निम्नलिखित अनुसार हैं—
- हरी खाद को फूल पड़ने से पहले या दो महीने की फ़सल को ज़मीन में दबा दें। हरी खाद के लिए सन या ढेंचे की बुवाई की जा सकती है।
- अच्छी तरह गली-सड़ी रूड़ी को प्रयोग कर खेत में जुताई के द्वारा खेत में मिला देना चाहिए।
- मुर्गियों की खाद, सूअर की खाद, कंपोस्ट खाद आदि के प्रयोग से भी सुधारा जा सकता है।
- मई-जून के महीने में खेतों को खाली नहीं रखना चाहिए। कोई न कोई फसल बोकर रखें ताकि इनके जीवांश मादे को बचाया जा सके।
- फ़ली वाली फसलों की कृषि करनी चाहिए।
- सिंचाई के लिए छोटी क्यारियां बनाओ।
- ऊपर वाली रेतीली सतह को कराहे के साथ एक तरफ कर दो और नीचे अच्छी मैरा मिट्टी की सतह का इस्तेमाल करें।
- तालाबों की चिकनी मिट्टी भी खेतों में डालकर लाभ मिलता है।
प्रश्न 5.
सेम वाली धरती में फसलों की प्रमुख समस्याएँ एवम् सेम की धरती को सधारने की विधि बतलाएँ।
उत्तर-
ऐसी भूमियाँ जिनमें भूमि के नीचे पानी की सतह ज़ीरो से 1.5 मीटर तक की गहराई पर हो तो उनको सेम वाली भूमियाँ कहा जाता है। यह पानी इतनी नज़दीक आ जाता है कि पौधों की जड़ों वाली स्थान पर भूमि के सुराख पानी के साथ भरे रहते हैं और भूमि एवम् भूमि सुधार भूमि हमेशा ही गीली रहती है। पौधे की जड़ों को हवा नहीं मिलती और हवा का आवागमन भी कम हो जाता है। भूमि में ऑक्सीजन कम हो जाती है और कार्बनडाइऑक्साइड ज़्यादा हो जाती है।
सेम की समस्या सुलझाने के लिए कई उपाय किए जाते हैं, जैसे-रुके हुए पानी का सेम नालियों द्वारा निकास, बहुत ट्यूबवैल लगा कर पानी का ज़्यादा प्रयोग, धान और गन्ने जैसी फसलों की कृषि करनी चाहिए, जंगलों के अधीन क्षेत्रफल बढ़ाना चाहिए।
Agriculture Guide for Class 8 PSEB भूमि एवम् भूमि सुधार Important Questions and Answers
बहुत छोटे उत्तरों वाले प्रश्न
प्रश्न 1.
भूमि-विज्ञान के अनुसार धरती को निर्जीव वस्तु या जानदार वस्तु माना गया?
उत्तर-
जानदार वस्तु।
प्रश्न 2.
भूमि में कितने प्रतिशत खनिज तथा जैविक पदार्थ होता है?
उत्तर-
खनिज 45% और जैविक पदार्थ 0-5% है।
प्रश्न 3.
हल्की भूमि किसको कहा जाता है?
उत्तर-
रेतीली भूमि को।
प्रश्न 4.
पानी सम्भालने की शक्ति सबसे ज्यादा किस भूमि में है?
उत्तर-
चिकनी मिट्टी में।
प्रश्न 5.
खेती के लिए कौन-सी भूमि उत्तम मानी गई है?
उत्तर-
मैरा भूमि।
प्रश्न 6.
तेज़ाबी भूमियों की समस्या किस इलाके में ज्यादा है ?
उत्तर-
बारिश वाले इलाकों में।
प्रश्न 7.
कितने पी० एच० वाली भूमियाँ तेज़ाबी होती हैं ?
उत्तर-
पी० एच० 7 से कम वाली।
प्रश्न 8.
कितनी पी० एच० वाली भूमि खेती के लिए ठीक मानी जाती है?
उत्तर-
6.5 से 8.7 तक पी० एच० वाली।
प्रश्न 9.
लवणी भूमियों की पी० एच० कितनी होती है?
उत्तर-
8.7 से कम।
प्रश्न 10.
रेह, थूर या शोरे वाली भूमियाँ कौन-सी हैं ?
उत्तर-
लवणी भूमियाँ।
प्रश्न 11.
क्षारीय भूमियों में पानी समाने की क्षमता कितनी है?
उत्तर-
बहुत कम।
प्रश्न 12.
हरी खाद की फ़सल बताओ।
उत्तर-
सन जंतर।
प्रश्न 13.
रेतीली भूमियों में सिंचाई के लिए कैसा क्यारा बनाया जाता है ?
उत्तर-
छोटे आकार का।
प्रश्न 14.
तेज़ाबी भूमि में चूना डालने का सही समय बताओ।
उत्तर-
फसल बोने से 3-6 महीने पहले।
प्रश्न 15.
पंजाब में तेज़ाबी भूमियों की कितनी गम्भीर समस्या है ?
उत्तर-
पंजाब में तेज़ाबी भूमियों की समस्या नहीं है।
प्रश्न 16.
लवणीय भूमियों में कौन-से लवण अधिक होते हैं ?
उत्तर-
कैल्शियम, मैग्नीशियम तथा पोटाशियम के क्लोराइड।
प्रश्न 17.
सेम वाली भूमि में धरती के नीचे पानी का स्तर क्या है ?
उत्तर-
धरती के नीचे पानी का स्तर शून्य से डेढ़ मीटर तक होता है।
छोटे उत्तरों वाले प्रश्न
प्रश्न 1.
रेतीली भूमि की पहचान के लिए दो तरीके बताएँ।
उत्तर-
रेतीली भूमि में पानी सिंचाई करने के साथ ही पानी समा जाता है। उँगलियों में इसके कण महसूस किए जा सकते हैं।
प्रश्न 2.
चिकनी मिट्टी में पानी सोखने और सम्भालने की शक्ति कैसे बढ़ाई जा सकती है?
उत्तर-
प्राकृतिक खादों का प्रयोग करना, जुताई करना और गोडी करने के साथ चिकनी मिट्टी की पानी सोख और सम्भालने की शक्ति बढ़ाई जा सकती है।
प्रश्न 3.
भूमि में तेज़ाबीपन बढ़ने का कारण बताएँ।
उत्तर-
बहुत बारिश कारण ज़्यादा हरियाली रहती है। पौधों आदि के पत्ते भूमि पर गिर कर गलते-सड़ते रहते हैं और वर्षा के पानी के बहाव से क्षारीय लवण बह जाते हैं, जिसके कारण भूमि में तेज़ाबीपन बढ़ जाता है।
प्रश्न 4.
लवणी भूमियों के दो गुण बताएँ।
उत्तर-
- इन भूमियों में कैल्शियम, मैग्नीशियम और पोटाशियम के क्लोराइड और सल्फेट लवणों की मात्रा बढ़ जाती है।
- इनमें पानी समाने की समर्था काफ़ी होती है और जुताई के लिए नर्म होती हैं।
प्रश्न 5.
क्षारीय भूमियों के दो गुण बताएँ।
उत्तर-
- इन भूमियों में सोडियम के कार्बोनेट और बाइकार्बोनेट वाले लवण बहुत मात्रा में होते हैं।
- waq पानी समाने की समर्था कम होती है। जुताई बहुत कठिन होती है।
प्रश्न 6.
तेज़ाबी भूमियों के सुधार के लिए दो तरीके बताएँ।
उत्तर-
चूने का प्रयोग करके और गन्ना मिल की मैल और लकड़ी की राख का प्रयोग किया जा सकता है। चूने के लिए कैल्शियम कार्बोनेट का प्रयोग होता है।
प्रश्न 7.
तेज़ाबी भूमि में चूना डालने के तरीके के बारे में बताएँ।
उत्तर-
चूना डालने का सही समय बुवाई से 3-6 महीने डाल कर जुताई कर देनी चाहिए।
बड़े उत्तरों वाले प्रश्न
प्रश्न 1.
मलहड़ किसे कहते हैं? यह कैसे बनता है ?
उत्तर-
जीव-जन्तुओं तथा वनस्पति के अवशेष, मल-मूत्र तथा उनके गले सड़े अंग जो कि मिट्टी में समय-समय पर मिलते रहते हैं, को मलहड़ अथवा ह्यमस कहते हैं। घास-फूस, फसलें, वृक्ष, सुंडियां केंचुए, जीवाणु, कीटाणु ढेरों की रूढ़ि तथा घर का कूड़ा-कर्कट भी मलहड़ के हिस्से हो सकते हैं। इन पदार्थों के ज़मीन में मिलने से भूमि के गुणों में बहुत सुधार होता है। इससे प्राप्त होने वाली उपज पर भी अच्छा प्रभाव पड़ता है।
जब भी जैविक पदार्थ अथवा कार्बनिक चीजें मिट्टी में मिलाई जाती हैं, सूक्ष्म जीवाणुओं तथा बैक्टीरिया की क्रियाओं से इन पदार्थों का विघटन आरम्भ हो जाता है तथा यह पदार्थ गलना-सड़ना आरम्भ कर देते हैं। इनमें से कई प्रकार की गैसें पैदा होती हैं जो हवा में मिल जाती हैं। इसलिए गल-सड़ रही चीज़ों से हमें कई बार दुर्गन्ध भी आने लग जाती है। कार्बनिक पदार्थ टूट कर अकार्बनिक तत्त्वों जैसे कार्बन, हाइड्रोजन, नाइट्रोजन, ऑक्सीजन, फॉस्फोरस तथा गन्धक में बदल जाते हैं। पानी, भू-ताप तथा भू-जीवों की क्रिया से यह तत्त्व पौधों के लिए प्राप्त योग्य रूप में परिवर्तित हो जाते हैं तथा यह दुबारा पौधों से शरीरों के अंग बनकर कार्बनिक पदार्थों में बदल जाते हैं तथा इस तरह यह बनने तथा टूटने का चक्र चलता रहता है इस तरह यह कहा जा सकता है कि मलहड़ जैविक पदार्थों की पौधों के लिए प्राप्ति योग्य अवस्था है।
प्रश्न 2.
भूमि-बनावट की कौन-सी किस्म कृषि के लिए सबसे अच्छी है तथा क्यों ? उदाहरण सहित बताओ।
उत्तर-
फसलें जड़ों द्वारा भूमि में से अपना भोजन प्राप्त करती हैं। फसलें आसानी से यह भोजन तभी प्राप्त कर सकती हैं यदि भूमि के टुकड़ों के आकार छोटे हों तथा यह बहुत कम शक्ति से टूट जाएं। ऐसी बनावट उसी हालत में सम्भव है अगर भूमि में मलहड़ अथवा जैविक पदार्थ की मात्रा काफ़ी अधिक हो। भूमि की ऐसी उचित तथा आवश्यक बनावट को भुरभुरी बनावट कहा जाता है। भुरभुरी बनावट वाली भूमि में ढेले नर्म तथा बहुत छोटे आकार के होते हैं। इन ढेलों को हाथों में मलकर आसानी से तोड़ा जा सकता है। ढेलों के कणों में आपस में जुड़कर रहने की शक्ति बहुत कम होती है। इसलिए वह टूट कर छोटे-छोटे कणों के रूप में भूमि का अंग बन जाती हैं। कणों के बीच जुड़ने की शक्ति का कम होना पानी तथा हवा के लिए काफ़ी स्थान उपलब्ध होने के कारण बनता है। जुड़ने की शक्ति कम होने से जीवाणुओं के लिए विघटन का कार्य करना काफ़ी आसान रहता है तथा उन्हें सांस लेने के लिए आवश्यक हवा भी मिल जाती है। भूमि नर्म होने से जड़ों को फैलने में कोई कठिनाई नहीं आती तथा वह अच्छी तरह फैलकर आवश्यक पौष्टिक तत्त्व प्राप्त कर सकती हैं।
प्रश्न 3.
भूमि के भौतिक गुणों की सूची बनाओ। इनमें से किसी एक गुण के बारे में तीन-चार लाइनें लिखो।
उत्तर-
विभिन्न भूमियों के भौतिक गुण भी अलग-अलग होते हैं। इसका कारण भूमियों में कणों के आकार, क्रम, जैविक पदार्थों की मात्रा तथा मुसामों में अन्तर होना है। भूमि में पानी का संचार तथा बहाव कैसे होता है, पौधों को खुराक देने की शक्ति तथा हवा की गति, यह बातें भूमि के भौतिक गुणों पर निर्भर करती हैं।
भूमि के भौतिक गुण निम्नलिखित हैं—
- कण-आकार
- प्रवेशता
- गहराई
- रंग
- घनत्व
- नमी सम्भालने की योग्यता
- तापमान।
कण-आकार- भूमि विभिन्न मोटाई के खनिज कणों की बनी होती है। भूमि का कण आकार इसमें मौजूद अलग-अलग मोटाई के कणों के आपसी अनुपात पर निर्भर करता है। भूमि की उर्वरा शक्ति कण-आकार पर निर्भर करती है। कण-आकार का प्रभाव भूमि की जल ग्रहण शक्ति तथा हवा के यातायात की मात्रा तथा गति पर भी पड़ता है।
प्रश्न 4.
पी० एच० अंक से क्या अभिप्राय है ? भूमि के पी० एच० अंक का उसकी तासीर पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर-
पी० एच० अंक-भूमि अम्लीय है, क्षारीय अथवा उदासीन है बताने के लिए एक अंक प्रणाली उपयोग की जाती है जिसे भूमि की पी० एच० मूल्य अथवा मात्रा कहा जाता है। वास्तव में पी० एच० मात्रा किसी घोल में हाइड्रोजन (H+) तथा हाइड्राक्सल (OH–) आयनों के आपसी अनुपात को बताती है।
भूमि की पी० एच० मात्रा | गुण |
8.7 से अधिक | क्षारीय भूमि |
8.7 – 7 | हल्का खारापन |
7 | उदासीन |
7.5 – 5 तक | हल्की अम्लीय |
6.5 से कम | अम्लीय भूमि |
अधिकतर फसलें 6.5 से 7.5 पी० एच० तक वाली भूमियों में अच्छी तरह फलफूल सकती हैं। खाद्य तत्त्वों का पौधों को उचित रूप में प्राप्त होना भूमि को पी० एच० मात्रा पर निर्भर करता है। 6.5 से 7.5 पी० एच० मात्रा वाली भूमियों में से पौधे बहुत सारे खाद्य तत्त्वों को आसानी से उचित रूप में प्राप्त कर लेते हैं। कुछ सूक्ष्म तत्त्व जैसे मैंगनीज़, लोहा, तांबा, जिस्त आदि अधिक अम्लीय भूमियों में से अधिक मात्रा में पौधों को प्राप्त हो जाते हैं पर कई बार इनकी अधिक मात्रा पौधों के लिए जहर का कार्य भी करती है।
प्रश्न 5.
भूमि में नमी कैसे आ जाती है ? नमी का फसलों पर क्या प्रभाव पड़ता है तथा कैसे ?
उत्तर-
नमी का कारण स्थाई रूप से बहने वाली नहरों का पानी भूमि छिद्रों द्वारा आस-पास की भूमि में रिस-रिस कर पहुंच जाता है। पन्द्रह-बीस साल में धरती के खुले पानी का तट धरती की सतह के निकट आ जाता है, भूमि नमी की मार तले आ जाती है। इसके अतिरिक्त बाढ़ों का पानी, अच्छे जल निकास प्रबन्ध की कमी आदि भी नमी का कारण बन सकते हैं।
नमी का प्रभाव-पौधों के बढ़ने पर नमी के कई प्रभाव पड़ते हैं। बहुत सारे काश्त किये जाने वाले पौधों की जड़ें जल-तल के ऊपर वाली भूमि-तह में ही रह जाती हैं। पौधे अधिक समय पानी में खड़े रहकर मर जाते हैं। भूमि वायु की कमी हो जाती है। पानी की उच्च ताप योग्यता के कारण भूमि में तापमान परिवर्तन भी घट जाता है।
प्रश्न 6.
तेज़ाबी भूमियों में चूना डालने के लाभ बताओ।
उत्तर-
तेज़ाबी भूमियों में चूना डालने के लाभ—
- इससे भूमि का तेज़ाबीपन समाप्त हो जाता है।
- फॉस्फोरस पौधों को उचित रूप में प्राप्त होने वाले रूप में बदल जाती है।
- चूने में खाद्य तत्त्व मैग्नीशियम तथा कैल्शियम होते हैं।
- जैविक पदार्थों के गलने-सड़ने की क्रिया तेज़ हो जाती है तथा पौधों के लिए नाइट्रोजन योग्य रूप की मात्रा में बढ़ोत्तरी हो जाती है।
- सूक्ष्म जीव क्रियाएं तेज़ी से होने लगती हैं।
प्रश्न 7.
भू-आकार बांट पर विस्तारपूर्वक लिखें।
उत्तर-
मिट्टी के कणों का आकार एक-सा नहीं होता। कुछ बहुत मोटे तथा कुछ बहुत सूक्ष्म अथवा बारीक होते हैं। आकार के आधार पर मिट्टी के कणों की बांट को आकार बांट कहा जाता है। मिट्टी में साधारणतः तीन तरह के कण होते हैं—
रेत के कण, चिकनी मिट्टी के कण तथा भाल के कण।
इन कणों की मात्रा अनुसार भूमि के आकार की बांट की जाती है जिसे भू-आकार बांट कहा जाता है। भू-आकार बांट निम्नानुसार की गई है—
मात्रा | बांट |
40 से अधिक प्रतिशत चिकनी मिट्टी वाली भूमि | भारी चिकनी |
40-31 से अधिक प्रतिशत चिकनी मिट्टी वाली भूमि | चिकनी |
31-21 से अधिक प्रतिशत चिकनी मिट्टी वाली भूमि | मैरा चिकनी |
20-11 से अधिक प्रतिशत चिकनी मिट्टी वाली भूमि | मैरा |
10-06 से अधिक प्रतिशत चिकनी मिट्टी वाली भूमि | रेतीली मैरा |
05-00 से अधिक प्रतिशत चिकनी मिट्टी वाली भूमि | रेतीली |
अन्तर्राष्ट्रीय सोसाइटी अनुसार भूमि के कणों की आकार-बांट निम्नानुसार—
कण-आकार | कण-आकार मिली मीटरों में | देखना |
चिकनी मिट्टी | 0.002 से कम | माइक्रोस्कोप से |
भाल | 0.002 तथा 0.02 के बीच | माइक्रोस्कोप से |
बारीक रेत | 0.02 तथा 0.20 के बीच | नंगी आंख से |
मोटी रेत | 0.20 तथा 2.00 के बीच | नंगी आंख से |
पत्थर, रोड़े अथवा कंकड़ | 2.00 से अधिक | नंगी आंख से |
प्रश्न 8.
भूमि के मुख्य भौतिक गुणों के नाम लिखो तथा कोई दो की व्याख्या भी करो।
उत्तर-
विभिन्न भूमियों के भौतिक गुण भी अलग-अलग होते हैं। इसका कारण भमियों में कणों के आकार, क्रम, जैविक पदार्थों की मात्रा तथा मुसामों में अन्तर का होना है। भूमि में जल का संचार तथा बहाव कैसे होता है, पौधों को खुराक देने की शक्ति तथा हवा की गति यह बातें भूमि के भौतिक गुणों पर निर्भर करती हैं।
भूमि के भौतिक गुण निम्नलिखित हैं—
- कण-आकार
- प्रवेशता
- गहराई
- रंग
- घनत्व
- नमी सम्भालने की योग्यता
- तापमान
उपरोक्त गुणों की व्याख्या निम्नलिखित अनुसार है—
1. कण-आकार-भूमि विभिन्न मोटाई के खनिज कणों की बनी होती हैं। भूमि का कण-आकार इसमें मौजूद विभिन्न मूल कणों के आपसी अनुपात पर निर्भर करता है।
महत्त्व-भूमि की उर्वरा शक्ति कण के आकार पर निर्भर करती है। कण-आकार का प्रभाव भूमि की जल ग्रहण शक्ति तथा हवा के आवागमन की मात्रा तथा गति पर भी पड़ता है। अन्तर्राष्ट्रीय सोसाइटी अनुसार भूमि-कणों को निम्नलिखित भागों में बांटा गया है—
- पत्थर, रोड़े अथवा कंकड़
- मोटी रेत
- बारीक रेत
- भाल
- चिकनी मिट्टी।
कणों के आकार अनुसार भूमि को 12 श्रेणियों में बांटा जा सकता है। पर तीन मुख्य श्रेणियां हैं-रेतीली भूमियां, मैरा भूमियां तथा चिकनी भूमियां।
2. प्रवेशता-प्रवेशता से अभिप्राय है भूमि में पानी तथा हवा का संचार अथवा प्रवेश करना कितना आसान है। भूमि की जल अवशोषण की शक्ति, पानी सम्भालने की शक्ति तथा जड़ों की गहराई भूमि के इस गुण पर निर्भर है। प्रवेशता का गुण भूमि में मुसामों की मात्रा पर निर्भर करता है। बहुत ही बारीक छिद्रों को मुसाम कहा जाता है। मुसाम शरीर की त्वचा (चमड़ी) में भी होते हैं जिनके द्वारा हमें पसीना आता है। जिस भूमि में प्रवेशता गुण अधिक हो, वह भूमि फसलों के फलने-फूलने के लिए अच्छी रहती है। क्योंकि इस तरह की भूमि में जल तथा सम्भालने की शक्ति अधिक होती है तथा फसल की जड़ें भूमि में अधिक गहराई तक जाकर अधिक मात्रा में पौष्टिक तत्त्व तथा भोजन प्राप्त करने के समर्थ हो जाती हैं। कई बार तो भूमि के नीचे कठोर परत बन जाती है जिस कारण जड़ें नीचे नहीं जा सकतीं।
प्रश्न 9.
भूमि के कोई दो रासायनिक गुणों के नाम बारे विस्तार से लिखें।
उत्तर-
भूमि के रासायनिक गुणों का महत्त्व-भूमि के रासायनिक गुणों का पौधों के फलने-फूलने पर सीधा प्रभाव पड़ता है। खाद्य तत्त्व को पौधे प्रत्यक्ष रूप से प्राप्त नहीं कर सकते।
1. पी० एच०-भूमि तेजाबी है, क्षारीय अथवा उदासीन है बताने के लिए एक अंक प्रणाली उपयोग की जाती है जिसे भूमि की पी० एच० मूल्य अथवा मात्रा कहा जाता है। वास्तव में पी० एच० मात्रा किसी घोल में हाइड्रोजन (H+) अथवा हाइड्राक्सल (OH–) आयनों के आपसी अनुपात को बताती है।
भूमि की पी० एच० मात्रा | गुण |
8.7 से अधिक | क्षारीय भूमि |
8.7-7 | हल्का क्षारीयपन |
7 | उदासीन |
7-65 तक | हल्की तेज़ाबी |
6.5 से कम | तेजाबी भूमि |
अधिकतर फसलें 6.5 से 7.5 पी० एच० तक वाली भूमियों में ठीक तरह फल-फूल सकती है। खाद्य तत्त्वों का पौधों को उचित रूप में प्राप्त होना भी पी० एच० पर निर्भर करता है। 6.5 से 7.5 पी० एच० मात्रा वाली भूमियों में पौधे बहुत सारे खाद्य तत्त्वों को आसानी से उचित रूप में प्राप्त कर लेते हैं। कुछ सूक्ष्म तत्त्व जैसे मैगनीज़, लोहा, तांबा, जिस्त आदि अधिक तेज़ाबी भूमियों में से अधिक मात्रा में उचित रूप में पौधों को प्राप्त हो जाते हैं पर कई बार इनकी अधिक मात्रा पौधों के लिए ज़हर का कार्य भी करती है।
2. जैविक पदार्थ-ज़मीन में जैविक पदार्थ पौधों की जड़ों, पत्तों तथा घास-फूस के गलने-सड़ने से बनता है। भूमि में पाए जाते किसी भी जैविक पदार्थ पर बहत सारे सूक्ष्म जीव अपना असर करते हैं तथा जैविक पदार्थ विघटन करके उसको अच्छी तरह गला-सड़ा देते हैं। ऐसे पदार्थ को मलहड़ (ह्यूमस) का नाम दिया गया है। ह्यूमस खाद्य तत्त्वों फॉस्फोरस, गन्धक तथा नाइट्रोजन का विशेष स्रोत है। इसमें थोड़ी मात्रा में अन्य खाद्य तत्त्व भी हो सकते हैं। भूमि की जल ग्रहण योग्यता, हवा की गति तथा बनावट को ठीक रखने के लिए जैविक पदार्थ बहुत लाभदायक हैं। इससे भूमि की खाद्य तत्त्व सम्भालने की शक्ति भी बढ़ती है। पंजाब की जमीनों में जैविक पदार्थ की मात्रा साधारणत: 0.005 से 0.90 प्रतिशत है। जैविक तथा कम्पोस्ट डालने से भूमि में जैविक पदार्थों की मात्रा में बढ़ोत्तरी की जा सकती है।
प्रश्न 10.
मलहड़ की कृषि में महत्ता पर रोशनी डालो।
उत्तर-
मलहड़ की कृषि में महत्ता—
- शीघ्र गलने वाला मलहड़ डालने से मिट्टी के कण आपस में इस तरह जुड़ जाते हैं कि उनके छोटे तथा नर्म (भुरभुरी) ढेले बन जाते हैं। इस तरह का मलहड़ रेतीली तथा चिकनी किस्मों की भूमियों के लिए बढ़िया रहता है। मलहड़ रेतीली मिट्टी तथा खुरदरे कणों को आपस में जोड़ने में सहायता करता है तथा चिकनी मिट्टी को नर्म कर देता है जिससे इसका आयतन बढ़ जाता है। हवा का आवागमन आसान तथा तेज़ हो जाता है। इस तरह मलहड़ रेतीली तथा चिकनी दोनों प्रकार की भूमियों को अधिक भुरभुरी तथा उपजाऊ बना देता है।
- मलहड़ भूमि को नर्म कर देता है जिससे भूमि की पानी सोखने की शक्ति में बढ़ौत्तरी होती है तथा भूमि पानी को अधिक देर तक लम्बे समय तक अपने अन्दर सम्भाल कर रख सकती है।
- भूमि में मौजूद लाभदायक तथा उपयोगी जीवाणु मलहड़ से अपना भोजन भी प्राप्त करते हैं। मलहड़ के विघटन से जो कार्बन पैदा होती है वह इन जीवाणुओं के लिए भोजन का कार्य करती है। इससे यह अधिक शक्तिशाली रूप में क्रिया करने के योग्य हो जाते हैं।
- पौधों की जड़ें ज़मीन में छिद्र करके धरती को नर्म कर देती हैं। जड़ों के गलनेसड़ने के पश्चात् छिद्रों द्वारा पानी धरती के नीचे चला जाता है तथा ऑक्सीजन गैस के अन्दर जाने तथा कार्बन डाइऑक्साइड गैस के बाहर निकलने के लिए भी यह छिद्र मदद अथवा सहायता करते हैं।
- मलहड़ तथा कई पौष्टिक तत्त्व जैसे नाइट्रोजन, गन्धक, फॉस्फोरस आदि प्राप्त होते हैं। यह तत्त्व भूमि के कणों के साथ चिपके रहते हैं। आवश्यकता पड़ने पर पौधा इन तत्त्वों को प्रयोग कर सकता है।
- कई भूमियों की तासीर ऐसी होती है कि पौधे भूमि में मौजूद आवश्यक तत्त्व प्राप्त नहीं कर सकते। पर मलहड़ की मौजूदगी में तत्त्व पौधों के उपयोग लायक बन जाते हैं। उदाहरणतः अम्लीय ज़मीनों में फॉस्फोरस।
- मलहड़ के गलने-सड़ने से कई तरह के तेज़ाब पैदा होते हैं जो कि क्षारीय भूमियों का खारापन कम करते हैं। यह तेज़ाब तथा कार्बन गैसों (जो खुद भी अम्लीय गुण रखती हैं) पोटाशियम आदि से मिलकर भूमि के खारेपन को घटा कर उसके पौधों को बढ़ने तथा फलने-फूलने के अनुकूल तथा उचित बनाते हैं।
- मलहड़ भू-ताप को स्थिर रखने में मदद करता है। बाह्य तापमान में कमी या बढ़ौतरी मलहड़ वाली भूमि के तापमान पर बहुत प्रभाव नहीं डालता।
- कई तत्त्व पौधों को बहुत थोड़ी मात्रा में चाहिएं। ये तत्त्व रासायनिक खादों को प्राप्त नहीं होते। इनकी कमी से फसलों की पैदावार बहुत घट सकती है तथा किसान को काफी नुकसान हो सकता है। इनमें से काफ़ी तत्त्व मलहड़ से मिल जाते हैं।
प्रश्न 11.
मलहड़ कैसे समाप्त हो जाता है तथा भूमि में इसकी मात्रा बढ़ाने के लिए क्या करना चाहिए ?
उत्तर-
प्रत्येक फसल के साथ जड़ों, पत्तों, जीवाणुओं, कूड़ा-कर्कट, गोबर तथा हरी खाद द्वारा नया मलहड़ खेतों में मिलता रहता है। परन्तु साथ ही यह समाप्त भी होता
रहता है। पौधे तथा जीवाणु इसे प्रयोग कर लेते हैं। इसके कई तत्त्व गैसों के रूप में बदल जाते हैं तथा वायुमण्डल में मिल जाते हैं। कई स्थानों पर बहुत सख्त गर्मी पड़ती है जिससे मलहड़ के लाभदायक अंशों का नाश हो जाता है। इस तरह मलहड़ का फसल को कोई भी लाभ नहीं पहुंचता। जैसे कि पता ही है कि मलहड़ फसलों के लिए बहुत ‘लाभदायक होता है। इसलिए इसकी मात्रा भूमि में कम नहीं होने देनी चाहिए। इसलिए खेत में ऐसी फसल बो देनी चाहिए जिससे मलहड़ की मात्रा में बढ़ोत्तरी हो। इस मन्तव्य के लिए चने तथा अन्य फलीदार फसलें जिनकी जड़ों में नाइट्रोजन बांधने वाले बैक्टीरिया होते हैं, बो लेनी चाहिएं। इन फसलों की हरी खाद बनाकर जो उत्तम किस्म की मलहड़ होती है भूमि को अधिक उपजाऊ बनाया जा सकता है। इसके अतिरिक्त ढेर की रूड़ी तथा कूड़ा मलहड़ की मात्रा बढ़ाने के लिए उपयोग किए जा सकते हैं।
प्रश्न 12.
भूमि की उर्वरा शक्ति की सम्भाल तथा प्रतिपूर्ति के लिए कौन-सी मुख्य बातों की ओर ध्यान देना आवश्यक है ?
उत्तर-
इसके लिए निम्नलिखित बातों की ओर ध्यान देना आवश्यक है—
1. धरती की भौतिक हालत-धरती की उचित भौतिक स्थिति अच्छी बुआई पर निर्भर करती है। अच्छी बुआई से अभिप्राय है इस तरह की बुआई जिससे धरती के कणों की बनावट ठीक तरह कायम रह सके अर्थात् ज़मीन में मिट्टी के ढेले भुरभुरे तथा नर्म हों। गीली बोई भूमि में वतर से पहले भूमि-कण अधिक अच्छी तरह जुड़ कर सख्त ढेलों का रूप धारण कर लेते हैं तथा यदि वतर में देरी हो जाए तो भी ज़मीन सूख जाती है तथा सख्त हो जाती है। ज़मीन के बीच वाला पानी बहुत सारी केशका नालियों द्वारा बाहर निकल जाता है तथा भूमि में नमी की कमी हो जाती है। फसल की अच्छी पैदावार के लिए हवा तथा पानी का धरती-छिद्रों में चलते रहना बहुत आवश्यक होता है। इसलिए बुआई समय पर करनी चाहिए। क्योंकि न तो इससे ढेले बनते हैं तथा न ही धरती की नमी बाहर निकलती है। अच्छी बुआई से भूमि की पानी जज़ब (अवशोषण) करने की शक्ति भी बढ़ जाती है तथा भूमि क्षरण से भी बची रहती है। भूमि की बनावट को ठीक रखने के लिए मलहड़ का अच्छा तथा उचित प्रयोग सहायक होता है। इसके अतिरिक्त अच्छे तथा उचित फसल-चक्र, जिसमें समय-समय पर गुच्छेदार जड़ों वाली तथा फलीदार फसलें आती रहें, साथ ही धरती की भौतिक हालत को ठीक रखने में सहायता मिलती है।
2. खेतों के नदीनों को साफ़ रखना-भूमि की उर्वरा शक्ति को कायम रखने के लिए खेत नदीनों से मुक्त हों, यह भी बहुत आवश्यक है। नदीन, खेत में बोई फसल के लिए आवश्यक पौष्टिक तत्त्वों को खुद ही खा जाते हैं। कम पौष्टिकता मिलने के कारण फसल कमज़ोर हो जाती है तथा अच्छी तरह फल-फूल नहीं सकती। इससे पैदावार कम हो जाती है। कई बार यदि नदीन अधिक मात्रा में हों तो वह छोटी फसल भूमि एवम् भूमि सुधार को पूरी तरह दबा लेते हैं तथा सारी फसल को नष्ट कर देते हैं। यदि नदीन फसल को फूल, फल लगने से पहले, न नष्ट किए जाएं तो पक जाने पर उनके बीज भूमि में मिल जाते हैं तथा अगली फसल के समय वह फसल से पहले ही उग कर अथवा उसके साथ बढ़कर उसे छोटी आयु में ही दबा लेते हैं तथा उसकी वृद्धि रोक देते हैं। इसलिए खेत को नदीनों से साफ़ रखने के लिए गुड़ाई तथा कई बार बुआई भी करनी पड़ती है। पंजाबी की प्रसिद्ध कहावत है-‘उठता वैरी, रोग दबाइये, बढ़ जाए तां फेर पछताइये’। नदीन भी किसान, फसल तथा धरती की उर्वरा शक्ति के रोग तथा वैरी हैं। इसलिए इन्हें भी पैदा होते ही नष्ट कर देना चाहिए। नदीनों को मारने के लिए वैज्ञानिकों ने नदीननाशी दवाइयों की खोज भी की है। पर इन रासायनिक दवाइयों का उपयोग बहुत सावधानी से करना चाहिए। इन दवाइयों को बच्चों की पहुँच से बहुत दूर रखना चाहिए, क्योंकि यह ज़हरीली होती हैं। इन दवाइयों के अधिक प्रयोग से वातावरण में प्रदूषण फैलता है। इसलिए इनका प्रयोग इस पक्ष से भी सावधानी से करना चाहिए।
3. कीड़ों तथा रोगों की रोकथाम-फंगस, निमाटोड तथा अन्य हानिकारक कीड़ेमकौड़े की कटाई के बाद भी ज़मीन पर ही पलते हैं। इस समय उन्हें समाप्त कर देना आसान रहता है। उनके खात्मे से ही धरती की उर्वरा शक्ति को सम्भाल कर रखना सम्भव होता है। इसलिए फसल की कटाई के पश्चात् समय पर ज़मीन की जुआई, बदल-बदल कर फसलों की बिजाई, एक से दूसरी फसल के बीच में समय का अन्तर, पराली को जलाना तथा जमीन में कीट तथा फंगस नाशक दवाइयों का उपयोग कुछ ऐसे साधन हैं, जिनसे रोगों तथा हानिकारक फंगस तथा कीटों को नष्ट करके काबू किया जा सकता है। इन्हें काबू करके ही ज़मीन की उर्वरा शक्ति को कायम रखा जा सकता है।
4. उचित तथा योग्य फसल-चक्र-विभिन्न फसलों के लिए अलग-अलग भोजन तत्त्वों की ज़रूरत होती है। कुछ ऐसे तत्त्व होते हैं जो प्रत्येक फसल द्वारा प्रयोग किए जाते हैं। परन्तु इनकी खपत की गई मात्रा तथा दर का अन्तर तो फिर भी होता है। इसलिए यह ज़रूरी हो जाता है कि एक खेत में एक फसल के पश्चात् दूसरी फसल वह बोई जाए जिसको पहली फसल से अलग प्रकार के तत्त्वों की ज़रूरत हो अथवा यह पहली फसल द्वारा हुए उर्वरा शक्ति के घाटे को कुछ हद तक पूरा करती हो। इस तरह भूमि की उपजाऊ शक्ति लम्बे समय तक कायम रखी जा सकती है।
प्रश्न 13.
सेम वाली भूमि पर नोट लिखें।
उत्तर-
स्वयं करें।
वस्तुनिष्ठ प्रश्न
ठीक/गलत
प्रश्न 1.
- भूमि में 45% खणिज पदार्थ हैं।
- लवणी भूमियों का पी.एच.मान 8.7 से कम होता है।
- तेज़ाबी भूमियों में चूना डाला जाता है।
उत्तर-
- ✓
- ✓
- ✓
बहुविकल्पीय
प्रश्न 1.
तेज़ाबी भूमि का पी.एच. मान है—
(क) 7 के बराबर
(ख) 7 से कम
(ग) 7 से अधिक
(घ) 12.
उत्तर-
(ख) 7 से कम
प्रश्न 2.
कौन-सी भूमि में पानी देर तक खड़ा रहता है ?
(क) चिकनी
(ख) मैरा
(ग) रेतीली
(घ) सभी ठीक
उत्तर-
(क) चिकनी
रिक्त स्थान भरो
- ……….. भूमि की समस्या अधिक वर्षा वाले क्षेत्र में होती है।
- कृषि के लिए ……………… पी०एच०वाली भूमि ठीक मानी जाती है ।
- …………. भूमि के लिए जिपस्म का प्रयोग किया जाता है।
उत्तर-
- तेज़ाबी,
- 6.5 से 8.7,
- क्षारीय।
भूमि एवम् भूमि सुधार PSEB 8th Class Agriculture Notes
- भूमि धरती की ऊपर वाली मिट्टी की परत है, जिसमें फ़सल की जड़ें होती हैं और इसमें से फ़सल पानी और आहारीय तत्त्व प्राप्त करती है।
- भूमि पौधे को खड़ा रखने में मदद करती है।
- वैज्ञानिकों के अनुसार भूमि प्राकृतिक शक्तियों के प्रभाव से प्राकृतिक मादे से पैदा हुई एक प्राकृतिक वस्तु है।
- भू वैज्ञानिकों की दृष्टि से भूमि एक सजीव वस्तु है क्योंकि इसमें बहुत सारे असंख्य सूक्ष्मजीवों, कीटाणुओं, जीवाणुओं और छोटे-बड़े पौधों के पालन-पोषण की शक्ति है।
- भूमि में 45% खनिज, 25% हवा, 25% पानी, 0 से 5% जैविक पदार्थों का मिश्रण . है जिसमें हवा पानी कम ज्यादा हो सकते हैं।
- भूमि के मुख्य तौर पर दो तरह के गुण हैं-रासायनिक और भौतिक गुण।
- भूमि के मुख्य भौतिक गुण हैं-कणों का आकार, भूमि घनत्व कम होना, कणों के मध्य में खाली जगह, पानी संजोए रखने की ताकत और पानी विलय करने की , ताकत आदि।
- रेतीली भूमि के कण हाथों में रगड़ने पर खटकते हैं।
- चिकनी मिट्टी में 40% चीकने कण होते हैं।
- मैरा (दोमट) भूमि के लक्षण रेतीली और चिकनी भूमियों के बीच में होते हैं।
- बहुत बारिश होने वाले खेतों में तेज़ाबी भूमि देखने को मिलती है।
- pH का मूल्य 7 से कम होता है तो भूमि अम्लीय या तेज़ाबी होती है।
- लवणों की किस्म के आधार पर कल्लर वाली भूमियां तीन तरह की होती हैं।
- कल्लरी भूमियां हैं-लवणीय, क्षारीय और लवणीय-क्षारीय भूमि।
- अम्लीय (तेज़ाबी) भूमियों का सुधार चूना डाल कर किया जा सकता है।
- क्षारीय भूमियों में मिट्टी जांच के आधार पर जिप्सम का प्रयोग किया जा सकता है।
- रेतली भूमि के सुधार के लिए हरी खाद, गली-सड़ी रूडी, फलीदार फसलों आदि की सहायता ली जाती है।
- लवण वाली भूमि को पानी के साथ धोकर या फिर मिट्टी की ऊपर वाली परत को कराहे आदि के साथ खुरच कर साफ़ कर देते हैं।
- चिकनी भूमियों में धान की बुवाई करनी लाभदायक रहती है।
- सेम वाली भूमियों में भूमि के नीचे वाले पानी (भूमिगत जल) का स्तर बहुत ऊपर पौधों की जड़ों तक आ जाता है।
- आमतौर पर जब भूमि के नीचे वाला पानी शून्य से डेढ़ मीटर होता है तो उस भूमि को सेम वाली भूमि कहते हैं।