Punjab State Board PSEB 7th Class Hindi Book Solutions Chapter 17 अन्याय के विरोध में Textbook Exercise Questions and Answers.
PSEB Solutions for Class 7 Hindi Chapter 17 अन्याय के विरोध में (2nd Language)
Hindi Guide for Class 8 PSEB अन्याय के विरोध में Textbook Questions and Answers
अन्याय के विरोध में अभ्यास
1. नीचे गुरुमुखी और देवनागरी लिपि में दिये गये शब्दों को पढ़ें और हिन्दी शब्दों को लिखने का अभ्यास करें :
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।
2. नीचे एक ही अर्थ के लिए पंजाबी और हिंदी भाषा में शब्द दिये गये हैं। इन्हें ध्यान से पढ़ें और हिंदी शब्दों को लिखें :
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।
3. इन प्रश्नों के उत्तर एक या दो वाक्यों में लिखें :
(क) जूलिया कौन थी? लेखक ने उसे अपने कमरे में क्यों बुलाया?
उत्तर :
जूलिया लेखक के बच्चों की गवर्नेस थी। लेखक ने उसे अपने कमरे में उसकी तनख्वाह का हिसाब करने के लिए बुलाया।
(ख) लेखक ने जूलिया को किस काम के लिए रखा था?
उत्तर :
लेखक ने जूलिया को अपने बच्चों की देखभाल करने के लिए रखा था।
(ग) जूलिया को लेखक ने कितने रूबल दिये?
उत्तर :
जूलिया को लेखक ने ग्यारह रूबल दिए।
(घ) तनख्वाह प्राप्त करने पर जूलिया ने लेखक का धन्यवाद क्यों किया?
उत्तर :
तनख्वाह प्राप्त करने पर जूलिया ने लेखक को धन्यवाद इसलिए दिया क्योंकि वह पहला मालिक था जिसने उसे तनख्वाह के रूप में पैसे दिए थे। अन्य किसी ने उसे कोई पैसा नहीं दिया था।
4. इन प्रश्नों के उत्तर चार या पाँच वाक्यों में लिखें :
(क) लेखक जूलिया को क्या सबक सिखाना चाहता था ?
उत्तर :
जूलिया बहुत ही सीधी और दब्बू लड़की थी। लेखक उसे दुनियादारी और अन्याय के विरोध में स्वर उठाने की बात सिखाना चाहता था ताकि वह इस निर्मम, कठोर तथा हृदयहीन संसार का डटकर सामना कर सके। अपने ऊपर होने वाले अत्याचारों एवं अन्याय का विरोध कर सके। वह उसे बताना चाहता था कि इस संसार में दब्बू तथा बोदे लोगों के लिए कोई स्थान नहीं है। इसलिए उसे अपने अधिकारों के प्रति सचेत रहना होगा।
(ख) जूलिया द्वारा ‘धन्यवाद’ कहे जाने पर लेखक गुस्से से क्यों उबल पड़ा ?
उत्तर :
जूलिया द्वारा ‘धन्यवाद’ कहने पर लेखक गुस्से से इसलिए उबल पड़ा क्योंकि वह आश्चर्य चकित रह गया था कि उसने जूलिया की लगभग सारी तनख्वाह काट ली, उसे खरी – खोटी भी सुनाई। इस पर भी उसने विरोध न करके उसका धन्यवाद ही किया तो यह अपने आप में एक आश्चर्य की बात थी, जिसके कारण लेखक गुस्से से उबल पड़ा।
(ग) इस कहानी के द्वारा लेखक ने क्या संदेश दिया है ?
उत्तर :
इस कहानी के द्वारा लेखक ने संदेश दिया है कि हमें भला कहलाए जाने के लिए इतना दब्ब, भीरू तथा बोदा नहीं बन जाना चाहिए कि हमारे साथ जो अन्याय हो रहा है हम उसका विरोध न करें ? बस चुपचाप सारी ज्यादतियां सहते जाएं। हमें अपने अस्तित्व को बनाए रखने के लिए इस कठोर, निर्मम और हृदयहीन संसार से लड़ना होगा। अन्याय के विरुद्ध आवाज़ उठानी होगी। क्योंकि हमारे संसार में दब्बू तथा बोदे लोगों के लिए कोई स्थान नहीं है।
5. इन मुहावरों के अर्थ दे दिये हैं। अर्थ समझते हुए वाक्यों में प्रयोग करें :
- चेहरा पीला पड़ना = मायूस हो जाना = ………………………..
- आँसू छलक आना = रोने को होना = ………………………..
- गुस्से से उबलना = बहुत अधिक क्रोध आना = ………………………..
- क्रोध पर ठंडे पानी के छींटे मारना = क्रोध को शांत करना = ………………………..
- दाँतों और पंजों के साथ लड़ना = पूरी ताकत और साधनों के साथ लड़ना = ………………………..
उत्तर :
- चेहरा पीला पड़ना = मायूस हो जाना।
वाक्य = तनख्वाह काट लिए जाने की बात सुनकर जूलिया का चेहरा पीला पड़ गया। - ऑसू छलक आना = रोने को होना।
वाक्य = बहन की विदाई का समय आते ही भाई की आँखों में आँसू छलक आए। - गुस्से से उबलना = बहुत अधिक क्रोध आना।
वाक्य = रमेश के बैंच तोड़ने पर अध्यापक गुस्से से उबल पड़े। - क्रोध पर ठण्डे पानी के छींटे मारना = क्रोध को शांत करना।
वाक्य = छोटे बच्चे की मुस्कान बड़ों के क्रोध पर ठंडे पानी के छींटे मारने का काम करती है। - दाँतों और पंजों के साथ लड़ना = पूरी ताकत और साधनों के साथ लड़ना।
वाक्य = प्रत्येक व्यक्ति को अन्याय के विरोध में दाँतों और पंजों के साथ लड़ना होगा।
6. विपरीत शब्द लिखें :
- नुकसान = ………………………
- अन्याय = ………………………
- झूठ = ………………………
- भीरु = ………………………
- विरोध = ………………………
- बीमार = ………………………
उत्तर :
- नुकसान = फ़ायदा
- अन्याय = न्याय
- झूठ = सच
- भीरू = साहसी
- विरोध = पक्ष
- बीमार = स्वस्थ
7. समानार्थक शब्द लिखें :
- तनख्वाह = ………………………
- छुट्टी = ………………………
- इतवार = ………………………
- हफ्ता = ………………………
- अचरज = ………………………
- नुकसान = ………………………
- मालकिन = ………………………
- माफ़ = ………………………
उत्तर :
- तनख्वाह = वेतन
- छुट्टी = अवकाश
- इतवार = रविवार
- हफ्ता = सप्ताह
- अचरज = हैरानी
- नुकसान = हानि
- मालकिन = स्वामिनी
- माफ़ = क्षमा
8. ‘अन्याय को चुपचाप सहना भी गलत है।’ लेखक के इस विचार से क्या आप सहमत हैं ? समाज में रहते हुए यदि आपके साथ किसी भी क्षेत्र में अन्याय हो रहा हो तो आप उसे स्वीकार कर लेंगे या विरोध करेंगे? अपने विचार लिखें।
उत्तर :
अन्याय को चुपचाप सहन भी गलत है।’ लेखक की इस बात से हम ए सहमत हैं। अन्याय को चुपचाप सहन करना अपने आपको दबा देने वाली बात है। इससे हमारा व्यक्तित्व उठने की बजाए दबता जाता है। हमारे अन्दर दब्बू तथा बोदापन आ जाता है, जो हमें अन्याय के विरोध में आवाज़ नहीं उठाने देता। समाज में यदि हमारे साथ कभी कोई अन्याय होगा तो हम उसके खिलाफ खुलकर सामने आएँगे।
अपने अधिकारों के लिए आवाज़ उठाएँगे तथा अपने ऊपर हो रहे अन्याय का विरोध करते हुए न्याय की माँग करेंगे। लेकिन इसके लिए आवश्यक है कि हमें अपने कर्त्तव्य तथा अधिकारों के प्रति सचेत रहना होगा।
प्रयोगात्मक व्याकरण
अरे! मैं क्या झूठ बोल रहा हूँ ?
शाबाश! मुझे आपसे यही आशा थी।
ना-ना! मैं स्त्री-वध नहीं करूंगा।
आह! मेरी प्रजा पर अत्याचार हो रहा है।
उपर्युक्त वाक्यों में ‘अरे’, ‘शाबाश’, ‘ना-ना’ तथा ‘आह’ शब्द क्रमशः विस्मय, हर्ष, घृणा तथा शोक मनोभावों को व्यक्त कर रहे हैं। ये विस्मयादिबोधक शब्द हैं। इनका प्रयोग प्रायः वाक्य के शुरू में होता है तथा इन शब्दों के बाद जो चिह्न (!) लगता है, उसे विस्मयादिबोधक चिह्न कहते हैं।
अतएव जिन शब्दों से विस्मय, हर्ष, घृणा तथा शोक आदि मन के भाव प्रकट हों वे शब्द विस्मयादिबोधक कहलाते हैं।
कुछ मुख्य विस्मयादिबोधक शब्द इस प्रकार हैं:
- हर्ष बोधक = अहा! वाह-वाह ! धन्य आदि।
- घृणा बोधक = धिक् ! धत् ! थू-थू ! आदि।
- शोकबोधक = उफ! बाप रे! राम-राम! सी त्राहि-त्राहि आदि।
- विस्मयादिबोधक = क्या! ओहो ! हैं ! अरे !
- स्वीकारबोधक = हाँ-हाँ! अच्छा ! ठीक! जी हाँ!
- चेतावनी बोधक = सावधान! होशियार ! खबरदार !
- भयबोधक = हाय ! हाय राम ! उइ माँ ! बाप रे!
- आशीर्वादबोधक = दीर्घायु हो! जीते रहो ! खुश रहो!
अन्याय के विरोध में Summary in Hindi
अन्याय के विरोध में पाठ का सार
‘अन्याय के विरोध में’ एंतन चेखव द्वारा रचित एक शिक्षाप्रद कहानी है। इस कहानी के माध्यम से लेखक ने समाज में व्याप्त दब्बू, भीरू तथा बोदा बन गए लोगों को अन्याय के विरुद्ध उठ खड़े होने को कहा है। लेखक का मानना है कि अपने अस्तित्व को बनाए रखने के लिए उन्हें इस कठोर, निर्मम और हृदयहीन संसार से लड़ना होगा।
कुछ दिन पहले की बात थी कि लेखक ने अपने बच्चों को गवर्नेस जूलिया को उसकी तनख्वाह का हिसाब करने के लिए अपने पढ़ने के कमरे में बुलाया। लेखक ने जूलिया से कहा कि तुम्हारी तनख्वाह तीस रूबल तय हुई थी। इस पर जूलिया ने दबे स्वर में कहा नहीं चालीस रूबल थी। लेखक ने कहा नहीं वह तो बच्चों की गवर्नेस को हमेशा तीस रूबल ही देता आया था। उसे यहाँ काम करते हुए दो महीने हुए थे।
जूलिया ने कहा नहीं दो महीने पांच दिन हुए थे। लेखक ने जूलिया से कहा कि उसके दो महीने ही हुए थे। जिसके हिसाब से उसकी तनख्वाह साठ रूबल बनती थी लेकिन यह उसे तब मिलेगी यदि उसने महीने में कोई छड़ी नहीं की होगी। लेखक ने कुछ ही क्षणों में जूलिया से कहा कि उसने नौ रविवार तथा तीन छुट्टियां और की थी। कुल मिला कर बारह दिन उसने काम नही किया इसलिए उसके बारह रूबल कट गए। कोल्या चार दिन बीमार था।
उस ने मात्र वान्या को ही पढ़ाया। उसकी मालकिन ने उसे तीन दिन दोपहर के बाद छुट्टी दे दी थी। इस तरह बारह और सात मिलाकर कुल उन्नीस छुट्टी तुम्हारी हो चुकी थी। इतना सुनते ही जूलिया की आँखों में आँसू छलक आए। उसने एक शब्द भी नहीं बोला, बस धीरे से खांसते हुए उसने अपनी नाक साफ की। कुछ ही पल बाद लेखक ने जूलिया द्वारा तोड़ी गई प्लेट और प्याली के नुकसान की भरपाई के रूप में दो रूबल काटने की बात कही।
कोल्या की जैकेट फटने के दस रूबल तथा वान्या के जूते चोरी हो जाने की लापरवाही के पाँच रूबल काट लिए जाते हैं। दस जनवरी को जो दस रूबल मैंने तुम्हें दिए थे वे भी काट लिए जाते थे। जूलिया ने दबी आवाज़ में कहना चाहा कि उन्होंने उसे कोई रूबल नहीं दिए थे। मालिक के कहने पर कि उसने अपनी डायरी में लिख रखा था तो जूलिया मान गई कि जो वे कह रहे थे वह ठीक कह रहे थे। मालिक ने कठोरता भरे स्वरों में कहा कि सत्ताईस रूबल उसके बाकी बचे इकतालीस रूबल काट लिए जाएँ तो उसके हिसाब में मात्र चौदह रूबल बचते थे।
इतना सुनते ही जूलिया के नेत्र आँसुओं से भर गए। उसका सारा शरीर पसीने से तर – ब – तर हो गया। उसने कांपते हुए स्वरों में कहा कि उसे अभी तक उनकी पत्नी से मात्र तीन रूबल के आज तक और कोई पैसा नहीं मिला। मालिक ने कहा चलो चौदह रूबल में से ये तीन रूबल और कम कर दो तो ये ग्यारह रूबल तुम्हारी तनख्वाह बनती थी। जूलिया ने अपने कांपते हाथों में ग्यारह रूबल लिए और अपनी जेब टटोल कर उसमें उन्हें ढूंस लिए।
उसने बड़ी धीमी आवाज़ में मालिक का धन्यवाद किया। ‘धन्यवाद’ का स्वर सुनते ही मालिक को गुस्सा आ गया और वह क्रुद्ध स्वर में बोला “धन्यवाद किस बात का ?” जूलिया ने उत्तर देते हुए कहा कि जो आपने उसे पैसे दिए थे उसी के लिए यह धन्यवाद था। मालिक ने चिल्लाते हुए कहा कि मैंने तो तुम्हें ठगा है फिर भी तुम धन्यवाद दे रही हो ! जूलिया ने धीमे स्वर में कहा जहाँ – जहाँ उसने पहले काम किया है उन्होंने उसे कोई पैसा नहीं दिया।
आप तो कुछ दे ही रहे हैं। जूलिया की इस बात ने मालिक के क्रोध पर ठण्डा पानी मार दिया। उसने धीमे स्वर में जूलिया से कहा, “जूलिया, मुझे इस बात के लिए माफ कर देना कि मैंने तुम्हारे साथ एक छोटा – सा क्रूर मजाक किया।” यह तुम्हें सबक सिखाने के लिए किया था। तुम बहुत भोली हो।
तुम्हारा कोई पैसा नहीं काटा जाएगा। तुम्हारी पूरी तनख्वाह मिलेगी। लेकिन उससे पहले तुम्हें एक प्रश्न का उत्तर देना होगा – कि इन्सान भला कहलाने के लिए दब्बू, भीरू तथा बोदा बनता जाए। प्रत्येक अन्याय को चुपचाप सहता जाए, उसका विरोध न करे ?
जूलिया इस तरह खामोश रहने से काम नहीं चलेगा। तुम्हें इस कठोर, निर्मम और हृदयहीन संसार से लड़ना होगा।
अन्याय के विरोध में कठिन शब्दों के अर्थ
- गवर्नेस = बच्चों की देखभाल करने वाली।
- तनख्वाह = महीने भर का मेहनताना।
- खुद = स्वयं।
- दबा स्वर = कम आवाज़।
- नोट करना = लिखना।
- अलावा = अतिरिक्त।
- चेहरा पीला पड़ना = मायूस होना।
- इतवार = रविवार,
- बीवी = पत्नी।
- आँसू छलकना = रोने को होना।
- काम में ढील देना = लापरवाही करना।
- यकीन = विश्वास।
- खामोश = चुपचाप।
- निर्मम = दयाहीन।
- हृदयहीन = बिन दिल के, जो दयालु न हो।
अन्याय के विरोध में गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या
1. कुछ दिन पहले की बात है। मैंने अपने बच्चों की गवर्नेस जूलिया को अपने पढ़ने के कमरे में बुलाया और कहा, “बैठो जूलिया। मैं तुम्हारी तनख्वाह का हिसाब करना चाहता हूँ। मेरे ख्याल से तुम्हें पैसों की ज़रूरत होगी और जितना मैं तुम्हें अब तक जान सका हूं, मुझे लगता है, तुम अपने आप कभी अपने पैसे नहीं मांगोगी। इसलिए मैं खुद ही तुम्हें पैसे देना चाहता हूं। हां, तो तुम्हारी तनख्वाह तीस रूबल महीना तय हुई थी न ?”
प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश हमारी हिन्दी की पाठ्य पुस्तक में संकलित कहानी ‘अन्याय के विरोध में से लिया गया है, जिसके लेखक एंतन चेखव हैं। लेखक ने यहाँ अन्याय को सहना कायरता बताया है तथा उसका विरोध करने की बात कही है।
व्याख्या – लेखक कहता है कि कुछ दिन पहले उसने अपने बच्चों की देखभाल करने वाली गवर्नेस जूलिया की तनख्वाह का हिसाब करने के लिए उसे अपने पढ़ने वाले कमरे में बुलाया। जब जूलिया कमरे में आई तो लेखक ने उसे बैठने को कहते हुए कहा कि वह उसकी तनख्वाह का हिसाब करना चाहते हैं। जूलिया से लेखक कहता है कि जितना वह उसे जानता और समझता है उसके अनुसार वह उससे अपने कभी पैसे नहीं माँगेगी।
लेकिन मेरा अनुमान है कि तुम्हें पैसे की आवश्यकता होगी। इसलिए स्वयं ही सोचा कि तुम्हें पैसे क्यों न दे दिए जाएं। तब लेखक जूलिया से कहता है कि तुम्हारी तनख्वाह तीस रूबल प्रति महीना तय हुई थी। तुम सहमत हो।
विशेष –
- लेखक ने गवर्नेस जूलिया के भोलेपन का चित्रण किया है।
- भाषा सरल, सहज है।
2. “हाँ, याद आया,” मैंने डायरी देखते हुए कहा, “पहली जनवरी को तुमने चाय की प्लेट और प्याली तोड़ी थी। प्याली बहुत कीमती थी। मगर मेरे भाग्य में तो हमेशा नुकसान उठाना ही बदा है। चलो, मैं उसके दो रूबल ही काढूँगा। अब देखो, उस दिन तुमने ध्यान नहीं रखा और तुम्हारी नज़र बचाकर कोल्या पेड़ पर चढ़ गया और वहाँ खरोंच लगकर उसकी जैकेट फट गई। दस रूबल उसके कट गए। इसी तरह तुम्हारी लापरवाही के कारण नौकरानी ने वान्या के नए जूते चुरा लिए अब देखो भाई, तुम्हारा काम बच्चों की देखभाल है। तुम्हें इसी के पैसे मिलते हैं। तुम अपने काम में ढील दोगी, तो पैसे कटेंगे या नहीं ? मैं ठीक कह रहा हूँ न ?”
प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश हमारी हिन्दी की पाठ्य पुस्तक में संकलित कहानी ‘अन्याय के विरोध में से लिया गया है जिसके लेखक एंतन चेखव हैं। लेखक ने यहाँ अन्याय को सहने वाली एक युवा लड़की का चित्रण किया है।
व्याख्या – लेखक अपनी डायरी को देखते हुए अपनी गवर्नेस जूलिया से कहता है कि उसे याद आ गया कि उसने पहली जनवरी को चाय की प्याली और प्लेट तोड़ी थी। वह प्याली बहुत कीमती थी। किन्तु क्या करूँ नुकसान सदैव तुम्हारे इस मालिक के हिस्से ही आता है चलो ज्यादा इसके दो रूबल तुम्हारी तनख्वाह से काट लेता हूँ।
लेखक जूलिया की लापरवाही बताते हुए कहता है कि एक दिन उसका पुत्र कोल्या किसी तरह उससे छुपछुपाकर पेड़ पर चढ़ गया था और वहाँ खरोंच लगने से उसकी जैकेट फट गई थी तो इसका नुकसान जूलिया तुम्हारे कारण ही हुआ अत: इसके दस रूबल काट लेता हूँ। जूलिया की और लापरवाही बताते हुए लेखक कहता है कि एक दिन नौकरानी ने वान्या के जूते चुरा लिए थे जिसका दण्ड उसे ही भरना होगा।
क्योंकि बच्चों की देखभाल करना ही उसका काम है। काम में किसी प्रकार की ढील का दण्ड तो उसे ही सहना होगा। इसके लिए उसके पैसे भी काटेंगे। वह जूलिया से कहता है कि वह ठीक कह रहा है न।
विशेष –
- लेखक ने जूलिया के भोलेपन का फायदा उठाते हुए उसे ठगने का चित्रण किया है।
- भाषा सरल है।
3. “अच्छा!” मैंने स्वर में आश्चर्य भरकर कहा, “और इतनी बड़ी बात तुम्हारी मालकिन ने मुझे बताई तक नहीं। देखो, हो जाता न अनर्थ ! खैर, मैं इसे भी डायरी में नोट कर लेता हूँ। हाँ, तो चौदह में से तीन और घटा दो। बचते हैं ग्यारह रूबल। तो लो भाई, ये रही तुम्हारी तनख्वाह ये ग्यारह रूबल। देख लो, ठीक है न ?”
प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश हमारी हिन्दी की पाठ्य पुस्तक में संकलित पाठ ‘अन्याय के विरोध में’ से लिया गया है जिसके लेखक एतन चेखव हैं। लेखक ने अपने इस पाठ में अन्याय को न सहने का संदेश दिया है।
व्याख्या – लेखक कहता है कि जब जूलिया ने उससे कहा कि बस एक बार उसकी मालकिन ने मात्र तीन रूबल दिए थे, उसके अतिरिक्त आज तक उसे कोई पैसा नहीं मिला तो लेखक ने आश्चर्य भरे स्वर में कहा कि इतनी बड़ी बात तुम्हारी मालकिन ने छुपाई। मुझे बताना तक ठीक नहीं समझा।
अच्छा हुआ तुमने बता दिया नहीं तो अभी बहुत बड़ा नुकसान हो जाता। खैर इन तीन रूबल को भी डायरी में लिख लेता हूँ। जूलिया अब बचे हुए चौदह रूबल में से ये तीन रूबल घटा दो तो ये ग्यारह रूबल बचते हैं। ये तुम्हारी तनख्वाह है ग्यारह रूबल इसे ठीक से ले लो।
विशेष –
- लेखक ने समाज में जूलिया जैसे भोले – भाले लोगों को अन्याय सहते हुए दर्शाया है।
- भाषा प्रवाहमयी है।
4. देखो जूलिया, मैं तुम्हारा एक पैसा भी नहीं मारूँगा। देखो, यह तुम्हारे अस्सी रूबल रखे हैं। मैं अभी इन्हें तुम्हें दूंगा। लेकिन उससे पहले मैं तुमसे कुछ पूछना चाहूंगा। जूलिया, क्या ज़रूरी है कि इन्सान भला कहलाए जाने के लिए इतना दब्बू, भीरू और बोदा बन जाए कि उसके साथ जो अन्याय हो रहा है, उसका विरोध तक न करे ? बस, खामोश रहे और सारी ज्यादतियां सहता जाए ? नहीं जूलिया, नहीं। इस तरह खामोश रहने से काम नहीं चलेगा। अपने अस्तित्व को बनाए रखने के लिए तुम्हें इस कठोर, निर्मम और हृदयहीन संसार से लड़ना होगा। अपने दाँतों और पंजों के साथ लड़ना होगा – पूरी ताकत के साथ। मत भूलो जूलिया कि इस संसार में दब्बू और बोदे लोगों के लिए कोई जगह नहीं हैकोई जगह नहीं है-
प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश हमारी हिन्दी की पाठ्य पुस्तक में संकलित पाठ ‘अन्याय के विरोध में’ से अवतरित है जिसके लेखक एंतन चेखव हैं। लेखक ने यहाँ बताया है कि हमें समाज में अन्याय का विरोध करना होगा। अपने अधिकारों के प्रति जागरूक बनना होगा।
व्याख्या – लेखक जूलिया को उसके भोलेपन से उभारते हुए उससे कहता है कि वह उसकी तनख्वाह का एक भी पैसा नहीं रखेगा। वह उसे अस्सी रूबल दिखाते हुए कहता है कि ये उसे वह अभी दे देगा लेकिन इससे पहले वह जूलिया से कुछ पूछना चाहता है। वह जूलिया से कहता है कि व्यक्ति समाज में भला बनने के लिए अन्याय को सहता रहे, उसका विरोध न करे और दब्बू, भीरू तथा बोदा बन जाए।
बस अपने ऊपर हो रहे अत्याचारों को चुपचाप सहन करता रहे। नहीं जूलिया यह ठीक नहीं है। चुप रहने से जीवन नहीं चलेगा। अपने आपको समाज में बनाए रखने के लिए तुम्हें इस दयाहीन, कठोर तथा पापी संसार से लड़ना होगा। तुम्हें अपनी पूरी क्षमता और ताकत से लड़ना होगा। तुम्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि इस संसार में दबकर तथा झुककर रहने वालों के लिए कोई स्थान नहीं है।
विशेष –
- लेखक ने जूलिया को अन्याय का सामना करने की सलाह दी है।
- भाषा सरल, सहज है।