PSEB 12th Class Sociology Solutions Chapter 7 पश्चिमीकरण एवं संस्कृतिकरण

Punjab State Board PSEB 12th Class Sociology Book Solutions Chapter 7 पश्चिमीकरण एवं संस्कृतिकरण Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Sociology Chapter 7 पश्चिमीकरण एवं संस्कृतिकरण

पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न (TEXTUAL QUESTIONS)

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

A. बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
विश्वास में परिवर्तन कहलाता है:
(क) संरचनात्मक परिवर्तन
(ख) सांस्कृतिक परिवर्तन
(ग) दोनों
(घ) कोई भी नहीं।
उत्तर-
(क) संरचनात्मक परिवर्तन।

प्रश्न 2.
परिवर्तन की सांस्कृतिक प्रक्रियाएँ हैं:
अथवा
इनमें से कौन-सा सांस्कृतिक परिवर्तन का संसाधक है ?
अथवा
इनमें से कौन-सी परिवर्तन की सांस्कृतिक प्रक्रियाएं हैं ?
(क) पश्चिमीकरण
(ख) संस्कृतिकरण
(ग) दोनों
(घ) कोई भी नहीं।
उत्तर-
(ग) दोनों।

प्रश्न 3.
वह कौन-सी प्रक्रिया है जिसके द्वारा जातीय पदक्रमानुसार व्यवस्था में परम्परागत रूप से निम्न पद प्राप्त जाति उच्च पद प्राप्त करने का प्रयास करती है:
(क) पश्चिमीकरण
(ख) सांस्कृतिकरण
(ग) आधुनिकीकरण
(घ) वैश्वीकरण।
उत्तर-
(ख) सांस्कृतिकरण।

प्रश्न 4.
यह कथन किसने दिया है “पश्चिमीकरण ब्रिटिश शासन के 150 वर्षों से अधिक राज्य के परिणामस्वरूप भारतीय समाज व संस्कृति में धीरे-धीरे आए परिवर्तन हैं और ये वे परिणाम हैं जो विभिन्न क्षेत्रों, तकनीक, संस्थाओं, विचारधाराओं व मूल्यों में हुए हैं।”
(क) योगेन्द्र सिंह
(ख) एम० एन० श्रीनिवास
(ग) के० एल० शर्मा
(घ) उपर्युक्त में कोई नहीं।
उत्तर-
(ख) एम० एन० श्रीनिवास।

B. रिक्त स्थान भरें-

1. ब्रिटिश व भारतीय को ……………….. के वाहक माना जाता है।
2. ………… का अर्थ जाति, धर्म, आर्थिक स्तर, आयु व लिंग का भेदभाव किए बिना सबका कल्याण करना है।
3. जाति के प्रबल होने के लिए इसमें ………………….. और ……………….. शामिल हैं।
4. केवल ………………… अनुकरणीय का विषय नहीं है।
उत्तर-

  1. पश्चिमीकरण
  2. सुधार आंदोलन
  3. अधिक भूमि, अधिक संख्या, उच्च स्थिति
  4. ब्राह्मण।

C. सही/ग़लत पर निशान लगाएं-

1. भारत में पश्चिमीकरण का रूप व स्थान एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र व जनसंख्या के एक भाग से दूसरे भाग तक एक जैसा है।
2. संस्कृतिकरण की प्रक्रिया में संरचनात्मक परिवर्तन होते हैं।
3. संस्कृतिकरण ऐसी प्रक्रिया है जहाँ ऊर्ध्वगामी गतिशीलता होती है जिसमें व्यक्ति निम्न स्तर की ओर जाता है।
4. एक जाति को प्रबल होने के लिए इसके पास स्थानीय स्तर पर हल चलने योग्य उचित आकार की कमी है।
उत्तर-

  1. गलत
  2. सही
  3. गलत
  4. गलत।

D. निम्नलिखित शब्दों का मिलान करें-

कॉलम ‘ए’ —कॉलम ‘बी’
पदक्रमानुसार — संदर्भ समूह
उच्च जाति — पद परिवर्तन
संस्कृतिकरण — दर्जों की श्रेणी बद्धता
पश्चिमीकरण — सर्वकल्याण
मानवतावाद — मूल्यों की प्राथमिकता।
उत्तर-
कॉलम ‘ए’ —कॉलम ‘बी’
पदक्रमानुसार — दर्जों की श्रेणी बद्धता
उच्च जाति — संदर्भ समूह
संस्कृतिकरण — पद परिवर्तन
पश्चिमीकरण — मूल्यों की प्राथमिकता।
मानवतावाद — सर्वकल्याण

अति लघु उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1. किसी जाति द्वारा पदानुसार व्यवस्था में उच्च पद प्राप्त करने की प्रक्रिया क्या कहलाती है ?
उत्तर-इस प्रक्रिया को संस्कृतिकरण कहते हैं।

प्रश्न 2. किसी एक ऐसी प्रक्रिया का नाम लिखें, जिसके द्वारा सांस्कृतिक परिवर्तन होते हैं।
उत्तर-पश्चिमीकरण।

प्रश्न 3. किस काल को पश्चिमीकरण के आरम्भ का सूचक माना जा सकता है ?
उत्तर-ब्रिटिश काल को।

प्रश्न 4. अनुसरण की प्रक्रिया द्वारा किस प्रकार की उर्धगामी गतिशीलता संभव होती है ?
उत्तर-संस्कृतिकरण।

प्रश्न 5. कौन-सी सांस्कृतिक प्रक्रिया जाति संरचना के बाहर कार्य करती है ?
उत्तर-ब्राह्मणीकरण।

प्रश्न 6. किस समय से पश्चिमीकरण के उद्भव का पता लगाया गया ?
उत्तर-मुग़लों के बाद ब्रिटिश काल से पश्चिमीकरण के उद्भव का पता लगाया गया।

प्रश्न 7. पश्चिमीकरण प्रक्रिया के वाहक किसे कहा गया है ?
उत्तर-सिपाही तथा वह लोग जो उच्च पदों पर बैठे थे, व्यापारी, बागों के मालिक, ईसाई मिशनरी इत्यादि।

प्रश्न 8. ब्राह्मणीकरण की अपेक्षा संस्कृतिकरण शब्द का प्रयोग किसने किया ?
उत्तर-ब्राह्मणीकरण की अपेक्षा संस्कृतिकरण शब्द का प्रयोग एम० एन० श्रीनिवास ने किया था।

प्रश्न 9. ब्रिटिश काल के कोई दो समूहों के नाम लिखें जो पश्चिमीकरण के प्रसार के कार्य में सहायक हुए ?
उत्तर-पढ़े-लिखे भारतीय, समाज सुधारक, ईसाई मिशनरी इत्यादि।

प्रश्न 10. एम० एन० श्रीनिवास द्वारा प्रबल जाति की पहचान का कोई एक मापदण्ड लिखें।
उत्तर-अधिक जनसंख्या, कृषि योग्य अधिक भूमि की मल्कीयत इत्यादि।

III. लघु उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
पश्चिमीकरण से आपका क्या अभिप्राय है ?
अथवा
पश्चिमीकरण।
उत्तर-
एम० एन० श्रीनिवास ने पश्चिमीकरण शब्द का प्रयोग ब्रिटिश राज्य के दौरान भारतीय समाज व संस्कृति में आए परिवर्तनों के लिए किया। उनके अनुसार पश्चिमी देशों की संस्कृति, रहने-सहने के ढंग, खाने-पीने तथा पहरावे इत्यादि के प्रभाव से भारतीय लोगों में बहुत से परिवर्तन आए।

प्रश्न 2.
क्या पश्चिमीकरण सामाजिक सुधार की ओर अग्रसर है ?
उत्तर-
जी हाँ, पश्चिमीकरण सामाजिक सुधार की ओर अग्रसर है क्योंकि यह प्राचीन परम्पराओं को छोड़ कर नई परम्पराओं, मूल्यों इत्यादि को अपनाने को प्रेरित करता है। साथ में यह समाज में व्याप्त कुरीतियों को छोड़ कर नए समाज के निर्माण के भी प्रयास करता है।

प्रश्न 3.
‘संस्कृतिकरण’ से आप क्या समझते हैं ?
अथवा
संस्कृतिकरण।
उत्तर-
संस्कृतिकरण की प्रक्रिया वह सामाजिक प्रक्रिया है जिसके साथ सामूहिक रूप से निम्न जाति उच्च पद प्राप्त करने के लिए मुख्य रूप से उच्च जाति के रीति-रिवाजों, परम्पराओं तथा जीवन के ढंगों को अपना लेती है। इससे एक दो पीढ़ियों के बाद उनकी स्थिति स्वयं ही ऊपर उठ जाती है।

प्रश्न 4.
मानवतावाद से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
मानवतावाद का अर्थ है सबका कल्याण चाहे वे किसी भी जाति, आयु, लिंग, धर्म, आर्थिक स्थिति इत्यादि से सम्बन्ध रखते हों। 19वीं शताब्दी के प्रथम उत्तरार्ध में मानवतावाद अंग्रेजों द्वारा लाए गए बहुत से सुधारों का आधार बन गया।

प्रश्न 5.
पश्चिमीकरण के कारण होने वाले परिवर्तनों के विभिन्न स्तरों को दर्शाइए।
उत्तर-
पश्चिमीकरण की प्रक्रिया के साथ कई प्रकार के परिवर्तन आए जैसे कि जातिगत अंतर कम हो गए, लोग पढ़ने-लिखने लग गए, लोगों के खाने-पीने तथा रहने-सहने के ढंगों में परिवर्तन आ गया, स्त्रियों की स्थिति ऊँची हो गई, सामाजिक संस्थाओं में परिवर्तन आ गए इत्यादि।

IV. दीर्घ उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
संस्कृतिकरण की प्रक्रिया के लिए विभिन्न पूर्व अपेक्षित धारणाएँ कौन-सी हैं ?
उत्तर-

  • संस्कृतिकरण की प्रक्रिया में स्थिति परिवर्तन तो होता है परन्तु संरचनात्मक परिवर्तन नहीं होता। समाज की संरचना उस प्रकार बनी रहती है।
  • संस्कृतिकरण में अनुकरण एक आवश्यक तत्त्व है। इसका अर्थ है कि लोग जिस प्रकार अपनी आदर्श जाति को करते हुए देखते हैं, उस प्रकार स्वयं भी करना शुरू कर देते हैं।
  • संस्कृतिकरण ऊर्ध्वगामी गतिशीलता है क्योंकि जब लोग उच्च जाति की जीवन शैली अपना लेते हैं तो एक दो पीढ़ियों के पश्चात् उनकी स्थिति में परिवर्तन आ जाता है।
  • संस्कृतिकरण की प्रक्रिया से व्यक्ति की सामाजिक स्थिति में परिवर्तन तो आ जाता है परन्तु उसकी जाति में नहीं। उसकी जाति वह ही रहती है।

प्रश्न 2.
संस्कृतिकरण की प्रक्रिया की व्याख्या करें।
उत्तर-
भारतीय समाजशास्त्री एम० एन० श्रीनिवास ने परम्परागत सामाजिक संरचना में सामाजिक गतिशीलता की प्रक्रिया का वर्णन करने के लिए संस्कृतिकरण संकल्प का प्रयोग किया। यह वह सामाजिक प्रक्रिया है जिसके द्वारा सामूहिक रूप से निम्न जाति उच्च पद प्राप्त करने के लिए मुख्य रूप से उच्च जाति के रीति-रिवाजों, परम्पराओं, रिवाजों इत्यादि को अपना लेती है। इस प्रक्रिया के द्वारा निम्न जाति के व्यक्ति अपनी स्वयं की परम्पराओं, रिवाजों इत्यादि का भी त्याग कर देते हैं।

प्रश्न 3.
ब्राह्मणीकरण की अपेक्षा संस्कृतिकरण को प्राथमिकता क्यों दी जाती है ?
उत्तर-
संस्कृतिकरण को ब्राह्मणीकरण पर प्राथमिकता देने का एक कारण था। वास्तव में ब्राह्मणीकरण में निम्न जाति के लोग ब्राह्मण जाति के लोगों के रहने-सहने के तरीकों, खाने-पीने के तरीकों इत्यादि को अपना लेते थे। परन्तु संस्कृतिकरण में ऐसा नहीं है। संस्कृतिकरण में निम्न जाति के लोग अपने क्षेत्र में रहने वाली उच्च जाति के लोगों के रहने-सहने तथा खाने-पीने के तरीकों को अपना लेते हैं तथा यह उच्च जाति ब्राह्मण, क्षत्रिय तथा वैश्य तीनों में से कोई भी जाति हो सकती थी। इस प्रकार संदर्भ समूह प्रथम तीन जातियों में से कोई भी हो सकती थी। इस तरह संस्कृतिकरण एक खुला तथा बड़ा संकल्प है जबकि ब्राह्मणीकरण एक तंग घेरे वाला संकल्प है।

प्रश्न 4.
पश्चिमीकरण की प्रक्रिया के वाहकों/साधनों की विस्तार से चर्चा करें।
उत्तर-
अंग्रेजों के साथ-साथ भारतीयों को भी पश्चिमीकरण के वाहक के रूप में माना जाता है। अंग्रेज़ों के तीन समूह थे जिन्होंने पश्चिमीकरण के विस्तार में सहायता की तथा वे थे-

  • सिपाही तथा वह अफ़सर जो उच्च पदों पर तैनात थे।
  • व्यापारी तथा बागों के मालिक।
  • ईसाई मिशनरी/इनके अतिरिक्त दूसरी तरफ भारतीय भी थे जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से अंग्रेजों के सम्पर्क में थे। वह थे
    • वे भारतीय जो अंग्रेज़ों के रहने-सहने के प्रत्यक्ष सम्पर्क में आए। इन्होंने या तो अंग्रेज़ों के घरों में कार्य किया या फिर हिंदू धर्म छोड़ कर ईसाई धर्म अपना लिया।
    • वह भारतीय जो अंग्रेजों के साथ अप्रत्यक्ष रूप से संबंधित हो गए। यह वह थे जिन्होंने पश्चिमी शिक्षा ग्रहण की, व्यापार करने लग गए या फिर सरकारी नौकरियां करने लगे।

प्रश्न 5.
संस्कृतिकरण व्यवस्था में मात्र परिवर्तन लाती है एवं कोई संरचनात्मक परिवर्तन नहीं करती। चर्चा करें।
उत्तर-
यह सत्य है कि इस प्रक्रिया से व्यक्ति की स्थिति में परिवर्तन होता है परन्तु संरचनात्मक परिवर्तन नहीं होता। संस्कृतिकरण की प्रक्रिया में व्यक्ति की सामाजिक स्थिति तो परिवर्तित हो जाती है परन्तु जाति नहीं। इसका अर्थ यह है कि व्यक्ति चाहे किसी अन्य जाति के रहने-सहने, खाने-पीने के ढंगों को तो अपना लेता है परन्तु अपनी जाति को छोड़ कर दूसरी जाति में शामिल नहीं हो सकता। व्यक्ति को तमाम आयु उस जाति में रहना पड़ता है जिसमें उसने जन्म लिया है। चाहे किसी जनजाति का व्यक्ति किसी जाति के व्यक्ति के जीवन जीने के ढंगों को तो अपना लेता है परन्तु वह जाति का सदस्य नहीं बन सकता।

प्रश्न 6.
पश्चिमीकरण व संस्कृतिकरण में अन्तर स्पष्ट करें।
उत्तर-

  • पश्चिमीकरण की प्रक्रिया का दृष्टिकोण धर्म निष्पक्ष होता है जबकि संस्कृतिकरण में पवित्र अपवित्र का दृष्टिकोण प्रधान होता है।
  • पश्चिमीकरण की प्रक्रिया में विकास होता है तथा ऊपर की तरफ गतिशीलता होती है जबकि संस्कृतिकरण की प्रक्रिया में अनुकरण (नकल) की वजह से ऊपर की तरफ गतिशीलता होती है।
  • पश्चिमीकरण की प्रक्रिया जाति की संरचना से बाहर अपना कार्य करती है जबकि संस्कृतिकरण की प्रक्रिया जाति की संरचना के अंदर कार्य करती है।
  • पश्चिमीकरण से सम्पूर्ण समाज की स्थिति में परिवर्तन आ जाता है। जबकि संस्कृतिकरण से व्यक्ति की सामाजिक स्थिति में परिवर्तन आ जाता है।

V. अति दीर्घ उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
पश्चिमीकरण एवं इसकी विशेषताओं पर विस्तारपूर्वक निबन्ध लिखें।
अथवा
पश्चिमीकरण पर नोट लिखो।
अथवा
पश्चिमीकरण की विशेषताओं को विस्तृत रूप में लिखो।
उत्तर-
अंग्रेजों के भारत आने से पहले यहां राजाओं-महाराजाओं का राज्य था। अंग्रेजों ने भारत को राजनीतिक तौर पर एक सूत्र में बांध दिया जिससे भारतीय समाज तथा भारतीय संस्कृति में बहुत से परिवर्तन आए। अंग्रेज़ों ने अपनी सहूलियत के लिए भारतीय सामाजिक संस्थाओं तथा संस्कृति में बहुत से परिवर्तन किए जिससे हमारा सामाजिक जीवन काफ़ी प्रभावित हुआ। चाहे अंग्रेजों से पहले भी बहुत से हमलावर, जैसे कि तुर्क, मुग़ल, मंगोल, इत्यादि भारत में आए
और यहीं पर रह गए। उन्होंने भी भारतीय संस्कृति में अपने अनुसार परिवर्तन किए जैसे कि मुसलमानों की संस्कृति ने भारतीय समाज की संस्कृति को गहरे रूप से प्रभावित किया। परन्तु ब्रिटिश सरकार के प्रयत्नों से भारतीय समाज में तेजी से परिवर्तन आए। अंग्रेजों ने यहां पर पश्चिमी संस्कृति के अनुसार परिवर्तन किए। इस तरह पश्चिमीकरण का अर्थ है पश्चिमी देशों के प्रभाव के अन्दर आने से है।

जब पूर्व के देशों जैसे भारत, वर्मा, श्रीलंका इत्यादि, पर पश्चिमी देशों जैसे कि ब्रिटेन, जर्मनी, फ्रांस इत्यादि का प्रभाव पड़ता है तो उस प्रक्रिया को पश्चिमीकरण कहते हैं। पश्चिमी देशों के प्रभाव के अन्तर्गत पूर्वी देशों के रहने-सहने के ढंगों, आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक जीवन में परिवर्तन आ जाता है। पूर्वी देशों के लोग अपनी संस्कृति, सभ्यता को छोड़ कर पश्चिमी देशों की संस्कृति को अपनाने लग जाते हैं। इस प्रक्रिया को पश्चिमीकरण कहते हैं।

परिभाषाएं (Definitions)-

1. श्रीनिवास (Srinivas) के अनुसार, “मैंने पश्चिमीकरण शब्द को अंग्रेजी राज्य के 150 साल के शासन के परिणामस्वरूप भारतीय समाज में तथा संस्कृति में हुए परिवर्तनों के लिए प्रयोग किया है तथा इस शब्द के अन्तर्गत विभिन्न स्तरों जैसे तकनीक, संस्थाओं, विचारधाराओं तथा कीमतों इत्यादि में होने वाले परिवर्तन शामिल हैं।”

2. लिंच (Lynch) के अनुसार, “पश्चिमीकरण में पश्चिमी पोशाक” खाने-पीने के तौर तरीके, शैक्षिक विधियां तथा खेलों, कद्रों-कीमतों इत्यादि को शामिल किया जाता है।”

श्रीनिवास का कहना था कि पश्चिमीकरण की प्रक्रिया वह प्रक्रिया होती है जिसमें अंग्रेज़ी शासकों ने भारतीय लोगों के सामाजिक जीवन के अलग-अलग क्षेत्रों में अपने अनुसार परिवर्तन किए। इस प्रक्रिया के कारण भारतीय समाज में मिलने वाली सभी प्रकार की संस्थाओं में परिवर्तन आ गए। अगर हम किसी भी क्षेत्र को देखें जैसे कि शिक्षा तो प्राचीन समय में शिक्षा धर्म पर आधारित होती थी परन्तु पश्चिमीकरण के प्रभाव के अन्तर्गत अब यह विज्ञान तथा तर्क पर आधारित है।

इस तरह इन परिभाषाओं से स्पष्ट है कि पश्चिमीकरण की धारणा में भारत में होने वाले सभी सामाजिक परिवर्तनों तथा संस्थाओं में नवीनता आ जाती है। यह परिवर्तन पश्चिमी देशों के साथ राजनीतिक तथा सांस्कृतिक सम्पर्क के कारण आए हैं। पश्चिमीकरण के कई आदर्श हो सकते हैं जैसे कि ब्रिटेन, अमेरिका या कोई और यूरोपियन देश। यूरोपियन देशों तथा अमेरिका, कैनेडा इत्यादि देशों में भी पश्चिमीकरण जैसे तत्त्व पाए जाते हैं परन्तु इन देशों की संस्कृतियों की अपनी ही खास विशेषता होती है।

पश्चिमीकरण की विशेषताएं (Characteristics of Westernization) –

1. पश्चिमीकरण एक जटिल प्रक्रिया है (Westernization is a Complex Process)—पश्चिमीकरण की प्रक्रिया ने भारतीय संस्कृति के हरेक पक्ष को गहरे रूप से प्रभावित किया है जिससे हमारी जाति व्यवस्था, धर्म, संस्कृति, आदर्शों इत्यादि में काफ़ी परिवर्तन आया है। उदाहरण के लिए पहले लोग ज़मीन पर बैठ कर खाना खाया करते थे परन्तु पश्चिमीकरण के प्रभाव में लोग Dinning table पर बैठ कर चम्मच से खाना खाने लग गए हैं। पश्चिमीकरण की प्रक्रिया एक जटिल प्रक्रिया है क्योंकि किसी भी संस्कृति के आदर्श, विचार इत्यादि आसानी से अपनाए नहीं जा सकते। उनको अपनाने के लिए बहुत-सा समय तथा अपनी ही संस्कृति का विरोध भी जरूरी होता है। इस कारण यह एक जटिल प्रक्रिया है।

2. पश्चिमीकरण की प्रक्रिया अंग्रेजों द्वारा लाई गई संस्कृति है (The process of westernization is the Culture brought by Britishers)-पश्चिमी देशों की प्रक्रिया के प्रभाव से पश्चिमीकरण की प्रक्रिया हमारे देश में आई। अंग्रेज़ों ने अपनी सहूलियत के लिए अपनी संस्कृति को भारत में फैलाना शुरू कर दिया। भारतीय संस्कृति पर पश्चिमी संस्कृति का बहुत ही प्रभाव पड़ा क्योंकि अंग्रेजों ने लगभग 200 साल तक भारत पर राज किया था। प्राचीन समय में भारत में धार्मिक शिक्षा दी जाती थी परन्तु अंग्रेजों ने उसे बदल कर विज्ञान पर आधारित कर दिया। उन्होंने स्कूलों में समानता की शैक्षिक नीति को अपनाया। उन्होंने शिक्षा में लिंग के आधार पर भेदभाव ख़त्म करने की कोशिश की। उनकी नीतियों के कारण ही उच्च तथा निम्न जातियों ने इकट्ठे मिलकर शिक्षा लेनी शुरू कर दी।

3. यह एक चेतन तथा अचेतन प्रक्रिया है (It is a conscious and unconscious process)-पश्चिमीकरण की प्रक्रिया चेतन होने के साथ-साथ अचेतन प्रक्रिया भी है। यह अचेतन प्रक्रिया इस तरह है कि व्यक्ति न चाहते हुए भी पश्चिमी प्रभाव के अन्दर आ जाता है क्योकि हम बहुत सी चीज़ों की तरफ अचेतन रूप से आकर्षित हो जाते हैं। पश्चिमी देशों की संस्कृति में बहुत से ऐसे तत्त्व है जिनकी तरफ हम न चाहते हुए भी खिंचे चले जाते हैं। इसी तरह यह एक चेतन प्रक्रिया है क्योंकि बहुत बारी व्यक्ति अपनी इच्छा से ही पश्चिमी संस्कृति को अपनाना शुरू कर देता है क्योंकि व्यक्ति कुछ चीज़ों की तरफ आकर्षित हो जाता है। उदाहरण के लिए हमें विदेशी कपड़े डालना अच्छा लगता है तथा हम अपनी इच्छा से ही उन पोशाकों को डालते हैं।

4. पश्चिमीकरण तथा आधुनिकीकरण में अन्तर होता है (There is some difference between westernization and modernization)—चाहे बहुत से लोग इन दोनों प्रक्रियाओं का अर्थ एक सा ही लेते हैं परन्तु असल में यह दोनों प्रक्रियाएं अलग-अलग है। इनमें बहुत से अन्तर हैं जैसे कि आधुनिकीकरण की प्रक्रिया से जो भी परिवर्तन आए हैं उन्हें ठीक माना जाता है अर्थात् इस प्रक्रिया को किसी कीमत के साथ जोड़ा जाता है। परन्तु पश्चिमीकरण की प्रक्रिया से जो भी परिवर्तन आए हैं उनके बारे में हम यह नहीं कह सकते कि वह ठीक है या ग़लत अर्थात् यह एक कीमत रहित प्रक्रिया है।

5. पश्चिमीकरण एक जटिल तथा बहुस्तरीय धारणा है (Westernization is a complex and many layered concept)-पश्चिमीकरण की प्रक्रिया में एक तरफ पश्चिमी तकनीक से लेकर तथा दूसरी तरफ आधुनिक विज्ञान की प्रयोगात्मक विधि तथा आधुनिक इतिहास लिखने तक काफ़ी बड़ा क्षेत्र शामिल है। पश्चिमीकरण का प्रभाव जीवन के हरेक क्षेत्र पर पड़ा है। इसके कारण जाति संरचना के सभी स्तरों पर परिवर्तन आए हैं। यहां तक कि आदर्श, विचार, धर्म, कला, कद्रों-कीमतें भी इसके प्रभाव के अन्तर्गत आ कर बदल गए हैं। श्रीनिवास के अनुसार यहां तक कि भोजन करने के ढंगों में भी परिवर्तन आ गए हैं। पहले भारत में लोग भूमि पर बैठकर खाना खाते थे तथा भोजन के सम्बन्ध में कई विचार तथा परम्पराएं प्रचलित थी। परन्तु अब लोग कुर्सी, मेज़ पर बैठ कर स्टील के बर्तनों में चम्मच, छुरी, कांटे से खाना खाते हैं। इस तरह जीवन के हरेक पक्ष में परिवर्तन आ गया है।

प्रश्न 2.
‘प्रबल जाति’ पर टिप्पणी लिखें।
उत्तर-
प्रबल जाति का संकल्प एम० एन० श्रीनिवास ने दिया था। यह शब्द उन्होंने पहली बार लिखे Essay on the Social System of a Mysore Village में प्रयोग किया था। श्रीनिवास ने इस संकल्प को उस समय बताया जब वह कर्नाटक के मैसूर शहर के नज़दीक रामपुर गाँव का अध्ययन कर रहे थे। प्रबल जाति का अर्थ है गाँव की वह जाति जिसके पास-

  • काफ़ी अधिक कृषि योग्य भूमि स्थानीय स्तर पर मौजूद हो।
  • जनसंख्या काफ़ी अधिक हो तथा।
  • स्थानीय संस्तरण में उच्च स्थान हो। इनके अतिरिक्त कुछ नए कारण भी सामने आ रहे हैं, जैसे कि
  • पश्चिमी शिक्षा।
  • प्रशासन में नौकरियां।
  • नगरीय आय के स्रोत। .

श्रीनिवास का कहना था कि प्रबल जाति केवल रामपुर गाँव तक ही सीमित नहीं थी। यह देश के अन्य गाँवों में भी मौजूद है। परम्परागत रूप से वह जातियां जिनकी जनसंख्या कम होती है, जिनके पास पैसा, अधिक भूमि तथा राजनीतिक सत्ता होती है, गाँव की प्रबल जाति बन जाती है। उनके अनुसार परम्परागत रूप से उच्च जातियों का प्रभाव भी होता है क्योंकि उन्हें तो पश्चिमी शिक्षा तथा उनसे मिलने वाली सुविधाएं भी मिल जाती हैं। पहले जातियों की जनसंख्या का महत्त्व नहीं था परन्तु वयस्क मताधिकार के आने से कई जातियां प्रबल जातियां बन जाती हैं।

श्रीनिवास का कहना था कि चाहे प्रबल जाति के होने के लिए आधार सामने आ रहे हैं परन्तु परम्परागत आधार अभी पूर्णतया खत्म नहीं हुए हैं तथा न ही अधिक जनसंख्या वाली जातियां प्रबल जातियां बन जाती हैं परन्तु मुख्य रूप से प्रबल जाति होने के लिए ऊपर दिए गए आधार ही काफ़ी होते हैं।

प्रश्न 3.
आप सांस्कृतिक परिवर्तन से क्या समझते हैं ? परिवर्तन की दो सांस्कृतिक प्रक्रियाओं का विस्तारपूर्वक उल्लेख करें।
उत्तर-
संस्कृति का अर्थ उस सब से है जो व्यक्ति अपने व्यक्तिगत तथा सामाजिक जीवन के मानसिक तथा बौद्धिक क्षेत्र में से प्राप्त करता है। इस तरह संस्कृति एक सीखा हुआ व्यवहार है। सबसे पहले हम सांस्कृतिक पिछड़ेपन के बारे में जानेंगे कि यह क्या होता है।

सांस्कृतिक पिछड़ापन शब्द का प्रयोग कई विद्वानों जैसे कि समनर, आगबर्न, लेयर इत्यादि ने अपनी पुस्तकों में किया है। असल में शब्द सांस्कृतिक पिछड़ेपन का प्रयोग आगबर्न ने अपनी किताब Social Change में किया है। आगबर्न के अनुसार, संस्कृति के दो हिस्से हैं— भौतिक तथा अभौतिक। आजकल के समय में संस्कृति में परिवर्तन की गति प्रत्येक जगह अलग-अलग पाई जाती है। जहां कहीं भी भौतिक संस्कृति का बोलबाला है वहां पर परिवर्तन भी बहुत तेज़ गति से होता है। उदाहरणतः मशीनों, बर्तनों, औज़ारों इत्यादि से भौतिक संस्कृति का पता चलता है तथा धर्म, परिवार, शिक्षा इत्यादि अभौतिक संस्कृति से जुड़े हुए हैं। समाज में नए आविष्कारों के कारण भौतिक संस्कृति में तेजी से परिवर्तन आता है परन्तु अभौतिक संस्कृति इस परिवर्तन की दौड़ में पीछे रह जाती है। इस प्रकार दोनों संस्कृतियों में जब एक में तेज़ी से परिवर्तन आ जाता है तथा दूसरी संस्कृति पहले वाली से पीछे रह जाती है। इस पीछे रह जाने की प्रक्रिया को सांस्कृतिक पिछड़ापन कहते हैं। यह सांस्कृतिक पिछड़ापन हमें आजकल कई जगह पर नज़र आता है। पिछड़ने का मुख्य कारण परिवर्तन की अलग-अलग गति का होना है।

भौतिक तथा अभौतिक संस्कृति में परिवर्तन की गति का कम या तेज़ होने का एक कारण यह है कि हमारी अभौतिक संस्कृति का समाज में ज़्यादा सम्मान होता है। जब भी आविष्कारों के द्वारा समाज के भौतिक हिस्से में तेजी से परिवर्तन आता है तो अभौतिक संस्कृति का हिस्सा अपने आप को इन परिवर्तनों की तेज़ गति में शामिल नहीं कर सकता तथा पीछे रह जाता है। इस तरह सांस्कृतिक पिछड़ेपन का अर्थ संस्कृति के एक हिस्से का दूसरे हिस्से से आगे निकल जाना होता है। आगबर्न के अनुसार, “जबकि विश्लेषण के लिए भौतिक तथा अभौतिक संस्कृति में अन्तर करना ज़रूरी होता है परन्तु यह ध्यान देना भी ज़रूरी होता है कि वह विस्तृत इकाई सामाजिक संस्थाओं के अन्तर्सम्बन्धित भाग होते हैं।”

आगबर्न ने सांस्कृतिक पिछड़ेपन की परिभाषा अपने शब्दों में दी है तथा कहा है कि, “आधुनिक संस्कृति के अलगअलग भागों में परिवर्तन समान गति से नहीं होता। एक भाग में दूसरे भाग से परिवर्तन ज़्यादा तेज़ गति से होता है। परन्तु संस्कृति एक व्यवस्था है जो अलग-अलग अंगों से मिलकर बनती है तथा इन अलग-अलग अंगों में आपसी निर्भरता तथा सम्बन्धता होती है। संस्कृति की यह व्यवस्था तभी बनी रह सकती है जब इसके सभी हिस्सों में समान गति से परिवर्तन आए। वास्तव में होता यह है कि जब संस्कृति का एक हिस्सा किसी आविष्कार के प्रभाव से बदल जाता है तो उससे सम्बन्धित या उस पर निर्भर भागों में भी परिवर्तन होता है परन्तु दूसरे भाग में परिवर्तन होने में काफ़ी समय लग जाता है। दूसरे भाग में परिवर्तन होने में कितना समय लगेगा यह उस दूसरे भाग की प्रकृति पर निर्भर करता है। यह पिछड़ापन कई साल तक चल सकता है। संस्कृति के दो सम्बन्धित या अन्तर्निर्भर भागों के परिवर्तन में पिछड़ापन ही सांस्कृतिक पिछड़ापन होता है।

इस तरह दिए गए विवरण के आधार पर हम कह सकते हैं कि आगबन के अनुसार भौतिक संस्कृति में परिवर्तन आसानी से इसलिए आता है क्योंकि भौतिक संस्कृति के तत्त्वों की कुछ निश्चित उपयोगिता होती है। जब भी व्यक्ति ने भौतिक संस्कृति के तत्त्वों को अपनाना हो उसे अपने विश्वासों, कीमतों, भावनाओं इत्यादि को छोड़ना नहीं पड़ता। इसके विपरीत व्यक्ति साधारणतः प्राचीन परम्पराओं को छोड़ने को तैयार नहीं होता। इस कारण भौतिक संस्कृति में परिवर्तन तेज़ गति से आता है तथा अभौतिक संस्कृति पीछे रह जाती है। इसको ही सांस्कृतिक पिछड़ापन कहते हैं। हमारे भारतीय समाज में भी भौतिक तथा अभौतिक संस्कृति के परिवर्तनों की गति अलग-अलग होती है। आधुनिक समय में व्यक्ति ने नई तकनीक को तो अपना लिया है परन्तु वह अपने रीति-रिवाजों या परम्पराओं से पीछे नहीं हटा है। इस तरह संस्कृति के अलग-अलग हिस्सों में परिवर्तन अलग-अलग गति से आता है। परिवर्तन की दो सांस्कृतिक प्रक्रियाएं-संस्कृतिकरण तथा पश्चिमीकरण-

अंग्रेजों के भारत आने से पहले यहां राजाओं-महाराजाओं का राज्य था। अंग्रेजों ने भारत को राजनीतिक तौर पर एक सूत्र में बांध दिया जिससे भारतीय समाज तथा भारतीय संस्कृति में बहुत से परिवर्तन आए। अंग्रेज़ों ने अपनी सहूलियत के लिए भारतीय सामाजिक संस्थाओं तथा संस्कृति में बहुत से परिवर्तन किए जिससे हमारा सामाजिक जीवन काफ़ी प्रभावित हुआ। चाहे अंग्रेजों से पहले भी बहुत से हमलावर, जैसे कि तुर्क, मुग़ल, मंगोल, इत्यादि भारत में आए
और यहीं पर रह गए। उन्होंने भी भारतीय संस्कृति में अपने अनुसार परिवर्तन किए जैसे कि मुसलमानों की संस्कृति ने भारतीय समाज की संस्कृति को गहरे रूप से प्रभावित किया। परन्तु ब्रिटिश सरकार के प्रयत्नों से भारतीय समाज में तेजी से परिवर्तन आए। अंग्रेजों ने यहां पर पश्चिमी संस्कृति के अनुसार परिवर्तन किए। इस तरह पश्चिमीकरण का अर्थ है पश्चिमी देशों के प्रभाव के अन्दर आने से है।

जब पूर्व के देशों जैसे भारत, वर्मा, श्रीलंका इत्यादि, पर पश्चिमी देशों जैसे कि ब्रिटेन, जर्मनी, फ्रांस इत्यादि का प्रभाव पड़ता है तो उस प्रक्रिया को पश्चिमीकरण कहते हैं। पश्चिमी देशों के प्रभाव के अन्तर्गत पूर्वी देशों के रहने-सहने के ढंगों, आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक जीवन में परिवर्तन आ जाता है। पूर्वी देशों के लोग अपनी संस्कृति, सभ्यता को छोड़ कर पश्चिमी देशों की संस्कृति को अपनाने लग जाते हैं। इस प्रक्रिया को पश्चिमीकरण कहते हैं।

परिभाषाएं (Definitions)-

1. श्रीनिवास (Srinivas) के अनुसार, “मैंने पश्चिमीकरण शब्द को अंग्रेजी राज्य के 150 साल के शासन के परिणामस्वरूप भारतीय समाज में तथा संस्कृति में हुए परिवर्तनों के लिए प्रयोग किया है तथा इस शब्द के अन्तर्गत विभिन्न स्तरों जैसे तकनीक, संस्थाओं, विचारधाराओं तथा कीमतों इत्यादि में होने वाले परिवर्तन शामिल हैं।”

2. लिंच (Lynch) के अनुसार, “पश्चिमीकरण में पश्चिमी पोशाक” खाने-पीने के तौर तरीके, शैक्षिक विधियां तथा खेलों, कद्रों-कीमतों इत्यादि को शामिल किया जाता है।”

श्रीनिवास का कहना था कि पश्चिमीकरण की प्रक्रिया वह प्रक्रिया होती है जिसमें अंग्रेज़ी शासकों ने भारतीय लोगों के सामाजिक जीवन के अलग-अलग क्षेत्रों में अपने अनुसार परिवर्तन किए। इस प्रक्रिया के कारण भारतीय समाज में मिलने वाली सभी प्रकार की संस्थाओं में परिवर्तन आ गए। अगर हम किसी भी क्षेत्र को देखें जैसे कि शिक्षा तो प्राचीन समय में शिक्षा धर्म पर आधारित होती थी परन्तु पश्चिमीकरण के प्रभाव के अन्तर्गत अब यह विज्ञान तथा तर्क पर आधारित है।

इस तरह इन परिभाषाओं से स्पष्ट है कि पश्चिमीकरण की धारणा में भारत में होने वाले सभी सामाजिक परिवर्तनों तथा संस्थाओं में नवीनता आ जाती है। यह परिवर्तन पश्चिमी देशों के साथ राजनीतिक तथा सांस्कृतिक सम्पर्क के कारण आए हैं। पश्चिमीकरण के कई आदर्श हो सकते हैं जैसे कि ब्रिटेन, अमेरिका या कोई और यूरोपियन देश। यूरोपियन देशों तथा अमेरिका, कैनेडा इत्यादि देशों में भी पश्चिमीकरण जैसे तत्त्व पाए जाते हैं परन्तु इन देशों की संस्कृतियों की अपनी ही खास विशेषता होती है।

पश्चिमीकरण की विशेषताएं (Characteristics of Westernization) –

1. पश्चिमीकरण एक जटिल प्रक्रिया है (Westernization is a Complex Process)—पश्चिमीकरण की प्रक्रिया ने भारतीय संस्कृति के हरेक पक्ष को गहरे रूप से प्रभावित किया है जिससे हमारी जाति व्यवस्था, धर्म, संस्कृति, आदर्शों इत्यादि में काफ़ी परिवर्तन आया है। उदाहरण के लिए पहले लोग ज़मीन पर बैठ कर खाना खाया करते थे परन्तु पश्चिमीकरण के प्रभाव में लोग Dinning table पर बैठ कर चम्मच से खाना खाने लग गए हैं। पश्चिमीकरण की प्रक्रिया एक जटिल प्रक्रिया है क्योंकि किसी भी संस्कृति के आदर्श, विचार इत्यादि आसानी से अपनाए नहीं जा सकते। उनको अपनाने के लिए बहुत-सा समय तथा अपनी ही संस्कृति का विरोध भी जरूरी होता है। इस कारण यह एक जटिल प्रक्रिया है।

2. पश्चिमीकरण की प्रक्रिया अंग्रेजों द्वारा लाई गई संस्कृति है (The process of westernization is the Culture brought by Britishers)-पश्चिमी देशों की प्रक्रिया के प्रभाव से पश्चिमीकरण की प्रक्रिया हमारे देश में आई। अंग्रेज़ों ने अपनी सहूलियत के लिए अपनी संस्कृति को भारत में फैलाना शुरू कर दिया। भारतीय संस्कृति पर पश्चिमी संस्कृति का बहुत ही प्रभाव पड़ा क्योंकि अंग्रेजों ने लगभग 200 साल तक भारत पर राज किया था। प्राचीन समय में भारत में धार्मिक शिक्षा दी जाती थी परन्तु अंग्रेजों ने उसे बदल कर विज्ञान पर आधारित कर दिया। उन्होंने स्कूलों में समानता की शैक्षिक नीति को अपनाया। उन्होंने शिक्षा में लिंग के आधार पर भेदभाव ख़त्म करने की कोशिश की। उनकी नीतियों के कारण ही उच्च तथा निम्न जातियों ने इकट्ठे मिलकर शिक्षा लेनी शुरू कर दी।

3. यह एक चेतन तथा अचेतन प्रक्रिया है (It is a conscious and unconscious process)-पश्चिमीकरण की प्रक्रिया चेतन होने के साथ-साथ अचेतन प्रक्रिया भी है। यह अचेतन प्रक्रिया इस तरह है कि व्यक्ति न चाहते हुए भी पश्चिमी प्रभाव के अन्दर आ जाता है क्योकि हम बहुत सी चीज़ों की तरफ अचेतन रूप से आकर्षित हो जाते हैं। पश्चिमी देशों की संस्कृति में बहुत से ऐसे तत्त्व है जिनकी तरफ हम न चाहते हुए भी खिंचे चले जाते हैं। इसी तरह यह एक चेतन प्रक्रिया है क्योंकि बहुत बारी व्यक्ति अपनी इच्छा से ही पश्चिमी संस्कृति को अपनाना शुरू कर देता है क्योंकि व्यक्ति कुछ चीज़ों की तरफ आकर्षित हो जाता है। उदाहरण के लिए हमें विदेशी कपड़े डालना अच्छा लगता है तथा हम अपनी इच्छा से ही उन पोशाकों को डालते हैं।

4. पश्चिमीकरण तथा आधुनिकीकरण में अन्तर होता है (There is some difference between westernization and modernization)—चाहे बहुत से लोग इन दोनों प्रक्रियाओं का अर्थ एक सा ही लेते हैं परन्तु असल में यह दोनों प्रक्रियाएं अलग-अलग है। इनमें बहुत से अन्तर हैं जैसे कि आधुनिकीकरण की प्रक्रिया से जो भी परिवर्तन आए हैं उन्हें ठीक माना जाता है अर्थात् इस प्रक्रिया को किसी कीमत के साथ जोड़ा जाता है। परन्तु पश्चिमीकरण की प्रक्रिया से जो भी परिवर्तन आए हैं उनके बारे में हम यह नहीं कह सकते कि वह ठीक है या ग़लत अर्थात् यह एक कीमत रहित प्रक्रिया है।

5. पश्चिमीकरण एक जटिल तथा बहुस्तरीय धारणा है (Westernization is a complex and many layered concept)-पश्चिमीकरण की प्रक्रिया में एक तरफ पश्चिमी तकनीक से लेकर तथा दूसरी तरफ आधुनिक विज्ञान की प्रयोगात्मक विधि तथा आधुनिक इतिहास लिखने तक काफ़ी बड़ा क्षेत्र शामिल है। पश्चिमीकरण का प्रभाव जीवन के हरेक क्षेत्र पर पड़ा है। इसके कारण जाति संरचना के सभी स्तरों पर परिवर्तन आए हैं। यहां तक कि आदर्श, विचार, धर्म, कला, कद्रों-कीमतें भी इसके प्रभाव के अन्तर्गत आ कर बदल गए हैं। श्रीनिवास के अनुसार यहां तक कि भोजन करने के ढंगों में भी परिवर्तन आ गए हैं। पहले भारत में लोग भूमि पर बैठकर खाना खाते थे तथा भोजन के सम्बन्ध में कई विचार तथा परम्पराएं प्रचलित थी। परन्तु अब लोग कुर्सी, मेज़ पर बैठ कर स्टील के बर्तनों में चम्मच, छुरी, कांटे से खाना खाते हैं। इस तरह जीवन के हरेक पक्ष में परिवर्तन आ गया है।

सामाजिक परिवर्तन की प्रक्रियाओं के बारे में प्रसिद्ध भारतीय समाजशास्त्री एम० एन० श्रीनिवास (M.N. Srinivas) ने अपनी पुस्तक Social Change in Modern India में विस्तार से वर्णन किया है। सबसे पहले उन्होंने संस्कृतिकरण की प्रक्रिया का वर्णन किया है जिसमें उन्होंने कहा है कि इस प्रक्रिया के साथ जातीय संस्तरण में निम्न स्थानों पर मौजूद जातियों के लोग इस संस्तरण में ऊँचा उठने का प्रयास करते हैं। इस प्रक्रिया में उन्होंने निम्न जातियों के लोगों में आए परिवर्तनों के बारे में भी बताया है। वास्तव में श्रीनिवास ने संस्कृतिकरण की धारणा का प्रयोग परंपरागत भारतीय सामाजिक संरचना में गतिशीलता की प्रक्रिया को बताने के लिए किया है। उनका कहना था कि केवल संस्कृतिकरण की प्रक्रिया के कारण ही जाति व्यवस्था में गतिशीलता आनी शुरू हुई है। उनके अनुसार जाति व्यवस्था में गतिशीलता हमेशा ही मुमकिन थी तथा वह भी निम्न तथा मध्य जातियों के बीच । जाति व्यवस्था में इतनी कठोरता नहीं थी कि व्यक्ति की सामाजिक स्थिति हमेशा के लिए निश्चित कर दी जाए। इसे बदला भी जा सकता था।

संस्कृतिकरण का अर्थ (Meaning of Sanskritization) सबसे पहले संस्कृतिकरण शब्द का प्रयोग श्रीनिवास ने अपनी पुस्तक में किया था जिसका नाम Society Among the Coorgs था। उन्होंने मैसूर के कुर्ग लोगों का अध्ययन किया तथा यह पुस्तक लिखी थी। इस पुस्तक में उन्होंने लिखा था कि निम्न जातियों के लोग उच्च जातियों के लोगों के जीवन जीने के ढंगों को अपनाने लग गए हैं ताकि वह अपनी स्थिति को ऊँचा उठा सके। इस प्रक्रिया की व्याख्या के लिए पहले श्रीनिवास ने ब्राह्मणीकरण शब्द का प्रयोग किया, परन्तु बाद में उन्होंने इस शब्द के स्थान पर संस्कृतिकरण शब्द का प्रयोग किया। श्रीनिवास का कहना था कि जातीय संस्तरण में निम्न स्थानों पर मौजूद जातियां उच्च जातियों के जीवन ढंगों को अपनाना शुरू कर देते हैं जिससे एक-दो पीढ़ियों के बाद उनके बच्चों की स्थिति स्वयं ही ऊँची हो जाती है। इस प्रकार जब निम्न स्थानों पर मौजूद जातियों के लोग उच्च जातियों के लोगों के जीवन ढंगों को अपनाना शुरू कर देते हैं तो उसे संस्कृतिकरण की प्रक्रिया कहते हैं। इसमें वह सबसे पहले अपनी जाति की प्रथाएं, कीमतें, परम्पराएं इत्यादि को छोड़ देते हैं तथा आदर्श जाति की प्रथाओं, परम्पराओं को अपनाना शुरू कर देते हैं।

परिभाषाएं (Definitions)

1. एम० एन० श्रीनिवास (M.N. Srinivas) के अनुसार, “संस्कृतिकरण वह प्रक्रिया होती है जिसके साथ एक निम्न हिन्दू जाति तथा कोई कबाइली अथवा कोई अन्य समूह अपने रीति-रिवाजों, संस्कारों, विचारधारा तथा जीवन जीने के ढंगों को एक उच्च अधिकतर द्विज की दिशा में बदलता है।”

2. एक अन्य स्थान पर एम० एन० श्रीनिवास (M.N. Srinivas) दोबारा लिखते हैं कि, “संस्कृतिकरण का अर्थ केवल नई आदतों तथा प्रथाओं को ग्रहण करना ही नहीं बल्कि पवित्र तथा रोज़ाना जीवन से संबंधित विचारों तथा कीमतों को दर्शाना होता है जिनका प्रक्टन संस्कृति के साहित्य में देखने को मिलता है। कर्म, धर्म, पाप, माया, संसार, मुक्ति संस्कृति के कुछ साधारण आध्यात्मिक विचार हैं तथा जब व्यक्ति का संस्कृतिकरण हो जाता है तो वह इन शब्दों का अक्सर प्रयोग होता है।”

3. डॉ० योगेन्द्र सिंह (Dr. Yogendra Singh) के अनुसार, “हिन्दू सामाजिक व्यवस्था के सापेक्ष रूप से बंद होने के समय के दौरान सांस्कृतिक तथा सामाजिक गतिशीलता की प्रक्रिया सांस्कृतिकरण है। इस सामाजिक परिवर्तन का स्रोत जाति के अन्दर होता है। मनोवैज्ञानिक पक्ष से संस्कृतिकरण सर्वव्यापक प्रेरणा का सांस्कृतिक तौर पर एक विशेष उदाहरण है जो उच्च समूह की संस्कृति को इस आशा में कि भविष्य में उसे इसकी स्थिति प्राप्त होगी, के पूर्व आभासी समाजीकरण की तरफ क्रियाशील है। संस्कृतिकरण का विशेष अर्थ हिन्दू परम्परा पर आधारित इसके अर्थ की ऐतिहासिकता में मौजूद है। इस पक्ष से संस्कृतिकरण समूहों की लम्बकार गतिशीलता में साधन के तौर पर समाजीकरण की प्रक्रिया का प्रक्टन है।”

4. एफ० सी० बैली (F.C. Bealy) के अनुसार, “संस्कृतिकरण एक सामूहिक गतिविधि है तथा जातीय पदक्रम के ऊपर हमला है। इस प्रकार यह एक प्रक्रिया है जो संस्कृति की आम समानता की तरफ उन्मुख होती है।” ।
इस प्रकार श्रीनिवास का कहना था कि यह ठीक है कि जातीय पदक्रम में निम्न स्थानों पर मौजूद जातियों के लोग उच्च जातियों के जीवन जीने के ढंगों तथा रहने-सहने के ढंगों को अपना लेते हैं, परन्तु इसका अर्थ यह नहीं है कि वह जातियों का संस्तरण भी बदल देते हैं। चाहे वह उच्च जातियों के उपनाम रख लेते हैं तथा उनके जीवन ढंगों को अपना लेते हैं, परन्तु वह आदर्श जातियां नहीं बन सकते। श्रीनिवास के अनुसार संस्कृतिकरण की प्रक्रिया केवल हिन्दुओं की जातियों में ही मौजूद नहीं थी बल्कि यह तो कबीलों में भी मौजूद थी। कई कबीलों ने इस प्रक्रिया को अपनाने के प्रयास किए थे।
इस प्रक्रिया से जातीय संस्तरण में निम्न स्थानों पर मौजूद जातियों के लोग उच्च जातियों के लोगों के जीवन ढंगों को अपनाते हैं तथा उच्च स्थिति प्राप्त कर लेते हैं। इस प्रकार इस प्रक्रिया की सहायता से कुछ जातियों के लोगों ने ऊँचा उठने का प्रयास किया है।

प्रश्न 4.
आप पश्चिमीकरण से क्या समझते हैं ? इसके भारतीय समाज पर पड़ने वाले प्रभावों की विस्तृत व्याख्या करें।
अथवा पश्चिमीकरण के प्रभावों पर प्रकाश डालो।
उत्तर-
पश्चिमीकरण का अर्थ-

अंग्रेजों के भारत आने से पहले यहां राजाओं-महाराजाओं का राज्य था। अंग्रेजों ने भारत को राजनीतिक तौर पर एक सूत्र में बांध दिया जिससे भारतीय समाज तथा भारतीय संस्कृति में बहुत से परिवर्तन आए। अंग्रेज़ों ने अपनी सहूलियत के लिए भारतीय सामाजिक संस्थाओं तथा संस्कृति में बहुत से परिवर्तन किए जिससे हमारा सामाजिक जीवन काफ़ी प्रभावित हुआ। चाहे अंग्रेजों से पहले भी बहुत से हमलावर, जैसे कि तुर्क, मुग़ल, मंगोल, इत्यादि भारत में आए
और यहीं पर रह गए। उन्होंने भी भारतीय संस्कृति में अपने अनुसार परिवर्तन किए जैसे कि मुसलमानों की संस्कृति ने भारतीय समाज की संस्कृति को गहरे रूप से प्रभावित किया। परन्तु ब्रिटिश सरकार के प्रयत्नों से भारतीय समाज में तेजी से परिवर्तन आए। अंग्रेजों ने यहां पर पश्चिमी संस्कृति के अनुसार परिवर्तन किए। इस तरह पश्चिमीकरण का अर्थ है पश्चिमी देशों के प्रभाव के अन्दर आने से है।

जब पूर्व के देशों जैसे भारत, वर्मा, श्रीलंका इत्यादि, पर पश्चिमी देशों जैसे कि ब्रिटेन, जर्मनी, फ्रांस इत्यादि का प्रभाव पड़ता है तो उस प्रक्रिया को पश्चिमीकरण कहते हैं। पश्चिमी देशों के प्रभाव के अन्तर्गत पूर्वी देशों के रहने-सहने के ढंगों, आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक जीवन में परिवर्तन आ जाता है। पूर्वी देशों के लोग अपनी संस्कृति, सभ्यता को छोड़ कर पश्चिमी देशों की संस्कृति को अपनाने लग जाते हैं। इस प्रक्रिया को पश्चिमीकरण कहते हैं।

परिभाषाएं (Definitions)-

1. श्रीनिवास (Srinivas) के अनुसार, “मैंने पश्चिमीकरण शब्द को अंग्रेजी राज्य के 150 साल के शासन के परिणामस्वरूप भारतीय समाज में तथा संस्कृति में हुए परिवर्तनों के लिए प्रयोग किया है तथा इस शब्द के अन्तर्गत विभिन्न स्तरों जैसे तकनीक, संस्थाओं, विचारधाराओं तथा कीमतों इत्यादि में होने वाले परिवर्तन शामिल हैं।”

2. लिंच (Lynch) के अनुसार, “पश्चिमीकरण में पश्चिमी पोशाक” खाने-पीने के तौर तरीके, शैक्षिक विधियां तथा खेलों, कद्रों-कीमतों इत्यादि को शामिल किया जाता है।”

श्रीनिवास का कहना था कि पश्चिमीकरण की प्रक्रिया वह प्रक्रिया होती है जिसमें अंग्रेज़ी शासकों ने भारतीय लोगों के सामाजिक जीवन के अलग-अलग क्षेत्रों में अपने अनुसार परिवर्तन किए। इस प्रक्रिया के कारण भारतीय समाज में मिलने वाली सभी प्रकार की संस्थाओं में परिवर्तन आ गए। अगर हम किसी भी क्षेत्र को देखें जैसे कि शिक्षा तो प्राचीन समय में शिक्षा धर्म पर आधारित होती थी परन्तु पश्चिमीकरण के प्रभाव के अन्तर्गत अब यह विज्ञान तथा तर्क पर आधारित है।

इस तरह इन परिभाषाओं से स्पष्ट है कि पश्चिमीकरण की धारणा में भारत में होने वाले सभी सामाजिक परिवर्तनों तथा संस्थाओं में नवीनता आ जाती है। यह परिवर्तन पश्चिमी देशों के साथ राजनीतिक तथा सांस्कृतिक सम्पर्क के कारण आए हैं। पश्चिमीकरण के कई आदर्श हो सकते हैं जैसे कि ब्रिटेन, अमेरिका या कोई और यूरोपियन देश। यूरोपियन देशों तथा अमेरिका, कैनेडा इत्यादि देशों में भी पश्चिमीकरण जैसे तत्त्व पाए जाते हैं परन्तु इन देशों की संस्कृतियों की अपनी ही खास विशेषता होती है।

पश्चिमीकरण की विशेषताएं (Characteristics of Westernization) –

1. पश्चिमीकरण एक जटिल प्रक्रिया है (Westernization is a Complex Process)—पश्चिमीकरण की प्रक्रिया ने भारतीय संस्कृति के हरेक पक्ष को गहरे रूप से प्रभावित किया है जिससे हमारी जाति व्यवस्था, धर्म, संस्कृति, आदर्शों इत्यादि में काफ़ी परिवर्तन आया है। उदाहरण के लिए पहले लोग ज़मीन पर बैठ कर खाना खाया करते थे परन्तु पश्चिमीकरण के प्रभाव में लोग Dinning table पर बैठ कर चम्मच से खाना खाने लग गए हैं। पश्चिमीकरण की प्रक्रिया एक जटिल प्रक्रिया है क्योंकि किसी भी संस्कृति के आदर्श, विचार इत्यादि आसानी से अपनाए नहीं जा सकते। उनको अपनाने के लिए बहुत-सा समय तथा अपनी ही संस्कृति का विरोध भी जरूरी होता है। इस कारण यह एक जटिल प्रक्रिया है।

2. पश्चिमीकरण की प्रक्रिया अंग्रेजों द्वारा लाई गई संस्कृति है (The process of westernization is the Culture brought by Britishers)-पश्चिमी देशों की प्रक्रिया के प्रभाव से पश्चिमीकरण की प्रक्रिया हमारे देश में आई। अंग्रेज़ों ने अपनी सहूलियत के लिए अपनी संस्कृति को भारत में फैलाना शुरू कर दिया। भारतीय संस्कृति पर पश्चिमी संस्कृति का बहुत ही प्रभाव पड़ा क्योंकि अंग्रेजों ने लगभग 200 साल तक भारत पर राज किया था। प्राचीन समय में भारत में धार्मिक शिक्षा दी जाती थी परन्तु अंग्रेजों ने उसे बदल कर विज्ञान पर आधारित कर दिया। उन्होंने स्कूलों में समानता की शैक्षिक नीति को अपनाया। उन्होंने शिक्षा में लिंग के आधार पर भेदभाव ख़त्म करने की कोशिश की। उनकी नीतियों के कारण ही उच्च तथा निम्न जातियों ने इकट्ठे मिलकर शिक्षा लेनी शुरू कर दी।

3. यह एक चेतन तथा अचेतन प्रक्रिया है (It is a conscious and unconscious process)-पश्चिमीकरण की प्रक्रिया चेतन होने के साथ-साथ अचेतन प्रक्रिया भी है। यह अचेतन प्रक्रिया इस तरह है कि व्यक्ति न चाहते हुए भी पश्चिमी प्रभाव के अन्दर आ जाता है क्योकि हम बहुत सी चीज़ों की तरफ अचेतन रूप से आकर्षित हो जाते हैं। पश्चिमी देशों की संस्कृति में बहुत से ऐसे तत्त्व है जिनकी तरफ हम न चाहते हुए भी खिंचे चले जाते हैं। इसी तरह यह एक चेतन प्रक्रिया है क्योंकि बहुत बारी व्यक्ति अपनी इच्छा से ही पश्चिमी संस्कृति को अपनाना शुरू कर देता है क्योंकि व्यक्ति कुछ चीज़ों की तरफ आकर्षित हो जाता है। उदाहरण के लिए हमें विदेशी कपड़े डालना अच्छा लगता है तथा हम अपनी इच्छा से ही उन पोशाकों को डालते हैं।

4. पश्चिमीकरण तथा आधुनिकीकरण में अन्तर होता है (There is some difference between westernization and modernization)—चाहे बहुत से लोग इन दोनों प्रक्रियाओं का अर्थ एक सा ही लेते हैं परन्तु असल में यह दोनों प्रक्रियाएं अलग-अलग है। इनमें बहुत से अन्तर हैं जैसे कि आधुनिकीकरण की प्रक्रिया से जो भी परिवर्तन आए हैं उन्हें ठीक माना जाता है अर्थात् इस प्रक्रिया को किसी कीमत के साथ जोड़ा जाता है। परन्तु पश्चिमीकरण की प्रक्रिया से जो भी परिवर्तन आए हैं उनके बारे में हम यह नहीं कह सकते कि वह ठीक है या ग़लत अर्थात् यह एक कीमत रहित प्रक्रिया है।

5. पश्चिमीकरण एक जटिल तथा बहुस्तरीय धारणा है (Westernization is a complex and many layered concept)-पश्चिमीकरण की प्रक्रिया में एक तरफ पश्चिमी तकनीक से लेकर तथा दूसरी तरफ आधुनिक विज्ञान की प्रयोगात्मक विधि तथा आधुनिक इतिहास लिखने तक काफ़ी बड़ा क्षेत्र शामिल है। पश्चिमीकरण का प्रभाव जीवन के हरेक क्षेत्र पर पड़ा है। इसके कारण जाति संरचना के सभी स्तरों पर परिवर्तन आए हैं। यहां तक कि आदर्श, विचार, धर्म, कला, कद्रों-कीमतें भी इसके प्रभाव के अन्तर्गत आ कर बदल गए हैं। श्रीनिवास के अनुसार यहां तक कि भोजन करने के ढंगों में भी परिवर्तन आ गए हैं। पहले भारत में लोग भूमि पर बैठकर खाना खाते थे तथा भोजन के सम्बन्ध में कई विचार तथा परम्पराएं प्रचलित थी। परन्तु अब लोग कुर्सी, मेज़ पर बैठ कर स्टील के बर्तनों में चम्मच, छुरी, कांटे से खाना खाते हैं। इस तरह जीवन के हरेक पक्ष में परिवर्तन आ गया है।

पश्चिमीकरण का प्रभाव-पश्चिमीकरण की प्रक्रिया ने हमारे भारतीय समाज को गहरे रूप से प्रभावित किया तथा इस प्रक्रिया से हमारे समाज में बहुत से परिवर्तन आए। इस तरह पश्चिमीकरण की प्रक्रिया की मदद से आए परिवर्तनों का वर्णन इस प्रकार है-

1. जाति प्रथा में परिवर्तन (Changes in Caste System)-भारतीय सामाजिक व्यवस्था का एक महत्त्वपूर्ण आधार रहा है जाति व्यवस्था। पश्चिमीकरण की प्रक्रिया ने जाति प्रथा पर गहरा प्रभाव डाला। इस प्रक्रिया की मदद से लोगों में भौतिकवाद, व्यक्तिवाद इत्यादि जैसी भावनाओं का विकास हुआ। पहले उत्पादन घरों में होता था जिस कारण लोग घरों से बाहर नहीं निकलते थे। पश्चिमीकरण के प्रभाव से लोग पेशे की तलाश में घरों से बाहर निकल आए जिस कारण परम्परागत पेशे का महत्त्व कम हो गया। लोगों के घरों से बाहर निकलने से जाति प्रथा के बंधन अपने आप ही टूटने लग गए। लोगों के लिए पैसे का महत्त्व बढ़ना शुरू हो गया। अब व्यक्ति वह ही कार्य करता है जिसमें उसे अधिक लाभ प्राप्त होता है। धनवान व्यक्ति को समाज में उच्च स्थिति प्राप्त होती है। अब व्यक्ति को पैसे के आधार पर स्थिति प्राप्त होती है।

इस प्रक्रिया ने तो जाति प्रथा को बिल्कुल ही कमज़ोर कर दिया है। जाति प्रथा के हरेक प्रकार के बंधन खत्म हो गए। अब व्यक्ति अपनी ही मर्जी से किसी भी जाति में विवाह करवा लेता है। इस तरह पश्चिमीकरण की प्रक्रिया ने जाति प्रथा के बन्धनों को तोड़ कर इसे बिल्कुल ही कमज़ोर कर दिया है।

2. शिक्षा के क्षेत्र में परिवर्तन (Changes in the field of education)—प्राचीन समय में लोगों को शिक्षा धर्म के आधार पर दी जाती थी तथा शिक्षा देने का कार्य ब्राह्मण लोग करते थे। जाति व्यवस्था के नियमों के अनुसार सिर्फ उच्च जाति के लोग ही शिक्षा ले सकते थे। निम्न जाति का कोई भी व्यक्ति शिक्षा प्राप्त नहीं कर सकता था। सिर्फ धार्मिक शिक्षा ही दी जाती थी। अगर निम्न जाति का व्यक्ति किसी भी प्रकार की शिक्षा प्राप्त करता था तो वह सिर्फ अपने परिवार से ही प्राप्त करता था। अंग्रेजों ने भारत आने के बाद शिक्षा तन्त्र में दोष देखे तथा अपने तरीके से शिक्षण संस्थाओं का विकास किया। उनके सामने सभी भारतीय समान थे जिस कारण उन्होंने हरेक जाति के व्यक्ति को शिक्षा प्राप्त करने के समान मौके प्रदान किए। उन्होंने विज्ञान तथा तर्क पर आधारित शिक्षा देनी शुरू की। शिक्षा का माध्यम अंग्रेज़ी रख दिया गया। स्कूल, कॉलेज, विश्वविद्यालय खोले गए। स्त्रियों को शिक्षित करने के लिए उनके लिए अलग स्कूल, कॉलेज खोले गए। इन शिक्षण संस्थाओं में हरेक जाति का व्यक्ति शिक्षा प्राप्त कर सकता था। – इस तरह अंग्रेज़ी सरकार ने शिक्षा का स्वरूप ही बदल दिया। अब शिक्षा धर्म की जगह आधुनिक लीकों पर विकसित हो गई। इस शिक्षा से लोगों का ज्ञान भी बढ़ा तथा समाज में मिलने वाले बहुत से वहम-भ्रम भी ख़त्म हो गए। लोगों में चेतनता विकसित हो गई।

अंग्रेजों ने सभी जातियों के लोगों को उच्च शिक्षा प्राप्त करने के समान अवसर प्रदान किए। उन्होंने स्त्रियों को शिक्षा देकर उनकी सामाजिक स्थिति को ऊंचा उठाने के बहुत से प्रयत्न किए। उनके ही प्रयासों से स्त्रियां घरों की चारदिवारी से बाहर निकल आई तथा उन्होंने नौकरियां करनी शुरू कर दी। बहुत से स्कूल, कॉलेज, विश्वविद्यालय, पेशेवर कॉलेज खोले गए। इस तरह शिक्षा के क्षेत्र में तेजी से परिवर्तन आए। इस कारण लोगों में चेतनता का विकास हुआ तथा उन्होंने इकट्ठे होकर आज़ादी के आन्दोलन में अंग्रेजों के विरुद्ध बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया। यहां तक कि स्त्रियां भी पीछे न रही।

3. विवाह की संस्था में परिवर्तन (Changes in the institution of marriage)—पश्चिमीकरण की प्रक्रिया से विवाह की संस्था में भी बहुत से परिवर्तन आए। अंग्रेज़ों ने पश्चिमी संस्कृति की कद्रों कीमतों को भारत में फैलाना शुरू कर दिया जिससे शिक्षा के क्षेत्र में क्रान्तिकारी परिवर्तन आ गए। औरतों के लिए शिक्षा के अलग से संस्थान खुल गए जिस कारण स्त्रियों को घर की चारदिवारी से स्वतन्त्रता प्राप्त हुई। विवाह के सम्बन्ध में उन्होंने विचार प्रकट करने शुरू कर दिए। उन्होंने जाति प्रथा के अन्तर्विवाह के बन्धन को नकार दिया। अब वह अपनी मर्जी से विवाह करवाती है। बाल विवाह की प्रथा खत्म हो गई। विधवा पुनर्विवाह शुरू हो गए। अन्तर्जातीय विवाह शुरू हो गए तथा उन्हें कानूनी मान्यता प्राप्त हो गई। इस तरह पश्चिमीकरण की प्रक्रिया ने विवाह की संस्था को पूरी तरह परिवर्तित कर दिया।

4. परिवार में परिवर्तन (Changes in the family) अगर हम ध्यान से देखें तो हमारी सभी गतिविधियां परिवार के इर्द-गिर्द ही घूमती है। प्राचीन समय में तो परिवार सामाजिक नियन्त्रण का बहुत बड़ा साधन होता था। परिवार अपने सदस्यों के लिए कुछ नियम बनाता था तथा सभी व्यक्ति इन नियमों के अनुसार ही जीवन जीते थे। प्राचीन समय में तो व्यक्ति को परिवार के पेशे को ही अपनाना पड़ता था। परन्तु पश्चिमीकरण की प्रक्रिया के हमारे देश में आने के बाद इसने सभी महत्त्वपूर्ण संस्थाओं को प्रभावित करना शुरू कर दिया जिसमें परिवार सबसे महत्त्वपूर्ण संस्था है। पश्चिमीकरण के कारण बड़े-बड़े उद्योग शुरू हो गए जिस कारण लोगों को अपने घरों से बाहर निकलना पड़ा। पश्चिमीकरण के प्रभाव के कारण स्त्रियों ने शिक्षा प्राप्त करनी शुरू की। इससे उनकी स्थिति में परिवर्तन आना शुरू हो गया। स्त्रियों ने पढ़ लिखकर नौकरी करना शुरू कर दिया जिस कारण उन्हें अपने घरों से बाहर निकलना पड़ा। इस कारण संयुक्त परिवार टूटने शुरू हो गए। केन्द्रीय परिवार आगे आ गए। स्त्रियां नौकरी करने लग गई जिस कारण उनकी स्थिति मर्दो के समान हो गई। उनके सम्बन्ध उच्च निम्न के नहीं बल्कि समानता से भरपूर हो गए। पारिवारिक नियन्त्रण कम हो गया। प्रेम विवाह, अन्तर्जातीय विवाह भी बढ़ गए।

प्राचीन समय में लोग अपने परम्परागत पेशे अपनाते थे तथा यह पेशा तो व्यक्ति के जन्म के साथ ही निश्चित हो जाता था। परन्तु पश्चिमीकरण के कारण परिवार का यह कार्य भी खत्म हो गया। अब लोग अपने परिवार का परम्परागत पेशा नहीं अपनाते परन्तु अब लोग अपनी योग्यता के अनुसार पेशा अपनाते हैं। समाज में असंख्य पेशे उपलब्ध हैं तथा व्यक्ति अपनी योग्यता तथा शिक्षा के अनुसार ही पेशा अपनाता है।

पश्चिमीकरण के प्रभाव के कारण संयुक्त परिवार की तानाशाही की कीमतों का खात्मा हो गया है तथा लोकतान्त्रिक कीमतें जैसे कि स्वतन्त्रता, समानता तथा भाईचारा सामने आ गए हैं। पश्चिमीकरण के कारण लोगों में व्यक्तिवादी भावनाएं विकसित हुई जिस कारण लोग व्यक्तिवादी हो गए। उन्होंने परिवार की जगह अपने हितों की तरफ देखना शुरू कर दिया। संयुक्त परिवार तो बिल्कुल ही विघटित हो गए। संयुक्त परिवारों की जगह केन्द्रीय परिवार सामने आ गए। पश्चिमी शिक्षा ग्रहण करने के कारण पुरानी तथा नई पीढ़ी के विचारों में टकराव होना शुरू हो गया। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि पश्चिमीकरण के कारण परिवार नाम की संस्था गहरे रूप से प्रभावित हुई।

5. राजनीतिक प्रभाव (Political Effect) जब अंग्रेज़ भारत में आए तो उस समय भारत सैंकड़ों छोटे-बड़े राज्यों में बंटा हुआ था। उन्होंने भारत के इन छोटे-बड़े राज्यों को तेज़ी से जीता तथा भारत का राजनीतिक एकीकरण किया। उस समय शासन व्यवस्था प्राचीन ढंग से चलती थी। उन्होंने इसमें परिवर्तन किए तथा यहां पर पाई जाने वाली अलग-अलग शासन व्यवस्थाओं को ख़त्म कर दिया। उन्होंने देश में एक ही शासन व्यवस्था शुरू की जोकि पश्चिमी संस्कृति पर आधारित थी। इसमें उन्होंने धर्म अथवा जाति की जगह योग्यता को महत्त्व दिया। उन्होंने भारत में यातायात तथा संचार के साधन विकसित करने शुरू कर दिए। इससे भारत के लोग एक-दूसरे के सम्पर्क में आना शुरू हो गए।

अंग्रेज़ों ने भारत में पश्चिमी ढंगों के अनुसार कई प्रकार की लोकतान्त्रिक संस्थाएं विकसित की जिससे राजनीतिक रूप से देश प्रगति करने लगा। इस कारण देश में उन्होंने बहुत से स्कूल कॉलेज खोले, स्वास्थ्य सुविधाओं को विकसित किया। पढ़ने-लिखने के कारण भारत के लोगों में राष्ट्रवाद की भावना विकसित हुई तथा लोग देश की आज़ादी की लड़ाई में जुट गए।

6. संस्कृति पर प्रभाव (Effect on Culture)-जब अंग्रेज़ हमारे देश में आए तो वह अकेले नहीं आए बल्कि अपने साथ अपनी संस्कृति भी साथ लाए। जब भारतीय लोग अंग्रेजों की संस्कृति के सम्पर्क में आए तो उन्होने भी धीरेधीरे इसे अपनाना शुरू कर दिया। उन्होंने देखा कि पश्चिम की संस्कृति उनकी संस्कृति से बिल्कुल ही अलग है। उन्होंने इस अलग संस्कृति को अपनी संस्कृति में मिश्रित करना शुरू कर दिया। प्राचीन समय में हमारे देश में बहुत से अन्धविश्वास वहम-भ्रम इत्यादि प्रचलित थे। परन्तु पश्चिमीकरण तथा पश्चिमी संस्कृति के कारण उन्होंने इन वहमों, अन्धविश्वासों को छोड़ना शुरू कर दिया तथा अब वह हरेक बात को तर्क की कसौटी पर तोलने लगे। उन्होंने अपने जीवन जीने के ढंगों को छोड़कर पश्चिमी संस्कृति के जीवन जीने के ढंगों को अपनाना शुरू कर दिया। पश्चिमीकरण के कारण भारतीय लोगों की परम्पराएं, रीति-रिवाज, मूल्य इत्यादि पूर्णतया बदल गए। पहले लोग नीचे बैठ कर खाना खाते थे अब वह मेज़ कुर्सी पर बैठकर खाने लग गए। उनके कपड़े पहनने, घर बनाने तथा उसकी सजावट करने के ढंग भी बदल गए। इस प्रकार पश्चिमीकरण के कारण हमारी संस्कृति पर काफ़ी गहरा प्रभाव पड़ा।

7. आर्थिक संस्थाओं पर प्रभाव (Effect on Economic Institutions)-प्राचीन समय में हमारे देश में जीवन निर्वाह अर्थव्यवस्था (subsistence economy) चलती थी। इसका अर्थ है कि लोग केवल अपनी आवश्यकताओं को पूर्ण करने के लिए ही उत्पादन करते थे तथा उन्हें मण्डी व्यवस्था के बारे में कुछ भी पता नहीं होता था परन्तु पश्चिमी संस्कृति के आने से उन्हें मण्डी आर्थिकता का पता चलना शुरू हो गया। लोगों ने अब मण्डी के लिए उत्पादन करना शुरू कर दिया। श्रम विभाजन में भी परिवर्तन आना शुरू हो गया। प्राचीन समय में श्रम-विभाजन जाति व्यवस्था पर आधारित था परन्तु पश्चिमीकरण के कारण अब यह योग्यता पर आधारित हो गया। लोग अपनी आवश्यकताओं से अधिक उत्पादन करने लग गए ताकि अधिक उत्पादन को मण्डी में बेचकर पैसा कमाया जा सके। उस पैसे से वह अपने जीवन स्तर को सधारने लग गए।

अंग्रेजों ने भारतीय कृषि का व्यापारीकरण करना शुरू कर दिया। कृषि के उत्पाद को मण्डी से खरीद कर यातायात के माध्यमों से दूर क्षेत्रों में भेजा जाने लग गया तथा इससे किसानों तथा सरकार को अधिक लाभ होने लग गया। गेहूं, चावल इत्यादि के अतिरिक्त किसान और चीजें भी उगाने लग गए जैसे कि गन्ना, कपास, फल, फूल इत्यादि। यह सब पश्चिमी तकनीक के हमारे देश में आने के कारण ही हुआ था।
अंग्रेजों ने भूमि सुधारों पर भी विशेष ध्यान दिया। उन्होंने ज़मींदारी, महलवाड़ी प्रथाओं की जगह सीधा किसानों से सम्पर्क करना शुरू कर दिया ताकि बिचौलियों को खत्म किया जा सके। इस प्रकार पश्चिमीकरण के प्रभाव से हमारे देश की अर्थव्यवस्था तथा आर्थिक संस्थाओं में बहुत से परिवर्तन आ गए।

8. धर्म पर प्रभाव (Effect on Religion)-प्राचीन समय से ही भारतीय लोगों के जीवन पर धर्म का बहुत प्रभाव रहा है। जीवन का हरेक क्षेत्र धर्म से प्रभावित था तथा लोग सभी कार्य धर्म के अनुसार ही किया करते थे। धर्म के बिना तो लोग जीवन जीने के बारे में सोच भी नहीं सकते थे। धर्म तो सामाजिक नियन्त्रण का एक प्रमुख साधन था।

परन्तु पश्चिमीकरण के प्रभाव के कारण धर्म-निष्पक्षता हमारे देश में आनी शुरू हो गई। लोगों के जीवन में से धर्म का प्रभाव कम होना शुरू हो गया। अन्धविश्वास, वहम इत्यादि खत्म होने लग गए तथा लोग हरेक बात को तर्क की कसौटी पर तोलने लग गए। पश्चिमी शिक्षा के कारण लोगों ने और पेशे अपनाने शुरू कर दिए तथा उनके पास धर्म के लिए समय कम होना शुरू हो गया। धार्मिक कर्म काण्ड छोटे होने शुरू हो गए। लोग अपनी सुविधा के अनुसार धर्म को मानने लग गए। धार्मिक कट्टड़वाद ख़त्म हो गया तथा धार्मिक सहनशीलता बढ़नी शुरू हो गई। अलग-अलग धर्मों, जातियों के लोग इकट्ठे रहना शुरू हो गए। लोगों ने धर्म की जगह मनोरंजन को समय देना शुरू कर दिया।

प्राचीन समय में शिक्षा धर्म पर आधारित होती थी तथा धार्मिक ग्रन्थों की शिक्षा दी जाती थी। परन्तु पश्चिमी शिक्षा के कारण धार्मिक शिक्षा खत्म हो गई तथा लोगों की धार्मिक मनोवृत्ति धर्म निष्पक्ष होनी शुरू हो गई। धर्म की जगह पैसे का महत्त्व भी बढ़ गया।

9. स्त्रियों की स्थिति पर प्रभाव (Impact on the status of women)-पश्चिमीकरण ने भारतीय स्त्रियों की स्थिति में काफी सुधार किया है। प्राचीन समय में स्त्रियों को मर्दो की दासी समझा जाता था। परन्तु अब पश्चिमीकरण के कारण शिक्षा लेकर स्त्रियां मर्दो की दासी नहीं बल्कि उनकी मित्र तथा जीवन साथी बन गई हैं। अब वह घर की स्वामिनी बन गई है। स्त्रियों में शिक्षा का प्रसार हो रहा है जिस कारण उन्हें अपने महत्त्व का पता लग गया है। 19वीं तथा 20वीं शताब्दी के समाज सुधारकों के प्रयासों से तथा औद्योगिकीकरण और नगरीकरण के कारण स्त्रियों ने बहुत अधिक प्रगति की है। अपनी दुर्दशा जैसी स्थिति से ऊपर उठ कर वह अब शिक्षा प्राप्त करती रही है। वह दफ्तरों में नौकरियां कर रही हैं तथा बड़े-बड़े व्यापारिक संगठन चला रही है। वह मर्दो के कन्धे से कन्धे मिलाकर कार्य कर रही है। अगर हम शिक्षा के परिणामों की तरफ देखें तो पता चलेगा कि लड़कियां लड़कों से अधिक पढ़-लिख रही हैं तथा अधिक अंक प्राप्त कर रही हैं। इस प्रकार यह सब कुछ केवल पश्चिमीकरण के प्रभाव के कारण ही हो रहा है।

10. यातायात तथा संचार के साधनों का विकास (Development of means of transport and communication)-पश्चिमीकरण के परिणामस्वरूप हमारे देश में बड़े-बड़े उद्योग लगे हुए हैं। उद्योगों के कारण व्यापार बढ़ा है तथा विकास हुआ है। व्यापार के बढ़ने से सामान एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने की आवश्यकता पड़ी। इसलिए ट्रकों, मोटरों, जहाज़ों, रेलगाड़ियों, डाक तार का जाल भारत में बिछ गया। टेलीफोन, मोबाइल इत्यादि का विकास हुआ। आजकल कोई भी मोबाइल फोन रख सकता है। इस प्रकार पश्चिमीकरण के कारण यातायात तथा संचार के साधनों का काफ़ी विकास हुआ है।

प्रश्न 5.
संस्कृतिकरण पर निबन्ध लिखें।
अथवा
संस्कृतिकरण क्या है ?
अथवा
संस्कृतिकरण से आपका क्या भाव है ? ।
उत्तर-
सामाजिक परिवर्तन की प्रक्रियाओं के बारे में प्रसिद्ध भारतीय समाजशास्त्री एम० एन० श्रीनिवास (M.N. Srinivas) ने अपनी पुस्तक Social Change in Modern India में विस्तार से वर्णन किया है। सबसे पहले उन्होंने संस्कृतिकरण की प्रक्रिया का वर्णन किया है जिसमें उन्होंने कहा है कि इस प्रक्रिया के साथ जातीय संस्तरण में निम्न स्थानों पर मौजूद जातियों के लोग इस संस्तरण में ऊँचा उठने का प्रयास करते हैं। इस प्रक्रिया में उन्होंने निम्न जातियों के लोगों में आए परिवर्तनों के बारे में भी बताया है। वास्तव में श्रीनिवास ने संस्कृतिकरण की धारणा का प्रयोग परंपरागत भारतीय सामाजिक संरचना में गतिशीलता की प्रक्रिया को बताने के लिए किया है। उनका कहना था कि केवल संस्कृतिकरण की प्रक्रिया के कारण ही जाति व्यवस्था में गतिशीलता आनी शुरू हुई है। उनके अनुसार जाति व्यवस्था में गतिशीलता हमेशा ही मुमकिन थी तथा वह भी निम्न तथा मध्य जातियों के बीच । जाति व्यवस्था में इतनी कठोरता नहीं थी कि व्यक्ति की सामाजिक स्थिति हमेशा के लिए निश्चित कर दी जाए। इसे बदला भी जा सकता था।

संस्कृतिकरण का अर्थ (Meaning of Sanskritization) सबसे पहले संस्कृतिकरण शब्द का प्रयोग श्रीनिवास ने अपनी पुस्तक में किया था जिसका नाम Society Among the Coorgs था। उन्होंने मैसूर के कुर्ग लोगों का अध्ययन किया तथा यह पुस्तक लिखी थी। इस पुस्तक में उन्होंने लिखा था कि निम्न जातियों के लोग उच्च जातियों के लोगों के जीवन जीने के ढंगों को अपनाने लग गए हैं ताकि वह अपनी स्थिति को ऊँचा उठा सके। इस प्रक्रिया की व्याख्या के लिए पहले श्रीनिवास ने ब्राह्मणीकरण शब्द का प्रयोग किया, परन्तु बाद में उन्होंने इस शब्द के स्थान पर संस्कृतिकरण शब्द का प्रयोग किया। श्रीनिवास का कहना था कि जातीय संस्तरण में निम्न स्थानों पर मौजूद जातियां उच्च जातियों के जीवन ढंगों को अपनाना शुरू कर देते हैं जिससे एक-दो पीढ़ियों के बाद उनके बच्चों की स्थिति स्वयं ही ऊँची हो जाती है। इस प्रकार जब निम्न स्थानों पर मौजूद जातियों के लोग उच्च जातियों के लोगों के जीवन ढंगों को अपनाना शुरू कर देते हैं तो उसे संस्कृतिकरण की प्रक्रिया कहते हैं। इसमें वह सबसे पहले अपनी जाति की प्रथाएं, कीमतें, परम्पराएं इत्यादि को छोड़ देते हैं तथा आदर्श जाति की प्रथाओं, परम्पराओं को अपनाना शुरू कर देते हैं।

परिभाषाएं (Definitions)

1. एम० एन० श्रीनिवास (M.N. Srinivas) के अनुसार, “संस्कृतिकरण वह प्रक्रिया होती है जिसके साथ एक निम्न हिन्दू जाति तथा कोई कबाइली अथवा कोई अन्य समूह अपने रीति-रिवाजों, संस्कारों, विचारधारा तथा जीवन जीने के ढंगों को एक उच्च अधिकतर द्विज की दिशा में बदलता है।”

2. एक अन्य स्थान पर एम० एन० श्रीनिवास (M.N. Srinivas) दोबारा लिखते हैं कि, “संस्कृतिकरण का अर्थ केवल नई आदतों तथा प्रथाओं को ग्रहण करना ही नहीं बल्कि पवित्र तथा रोज़ाना जीवन से संबंधित विचारों तथा कीमतों को दर्शाना होता है जिनका प्रक्टन संस्कृति के साहित्य में देखने को मिलता है। कर्म, धर्म, पाप, माया, संसार, मुक्ति संस्कृति के कुछ साधारण आध्यात्मिक विचार हैं तथा जब व्यक्ति का संस्कृतिकरण हो जाता है तो वह इन शब्दों का अक्सर प्रयोग होता है।”

3. डॉ० योगेन्द्र सिंह (Dr. Yogendra Singh) के अनुसार, “हिन्दू सामाजिक व्यवस्था के सापेक्ष रूप से बंद होने के समय के दौरान सांस्कृतिक तथा सामाजिक गतिशीलता की प्रक्रिया सांस्कृतिकरण है। इस सामाजिक परिवर्तन का स्रोत जाति के अन्दर होता है। मनोवैज्ञानिक पक्ष से संस्कृतिकरण सर्वव्यापक प्रेरणा का सांस्कृतिक तौर पर एक विशेष उदाहरण है जो उच्च समूह की संस्कृति को इस आशा में कि भविष्य में उसे इसकी स्थिति प्राप्त होगी, के पूर्व आभासी समाजीकरण की तरफ क्रियाशील है। संस्कृतिकरण का विशेष अर्थ हिन्दू परम्परा पर आधारित इसके अर्थ की ऐतिहासिकता में मौजूद है। इस पक्ष से संस्कृतिकरण समूहों की लम्बकार गतिशीलता में साधन के तौर पर समाजीकरण की प्रक्रिया का प्रक्टन है।”

4. एफ० सी० बैली (F.C. Bealy) के अनुसार, “संस्कृतिकरण एक सामूहिक गतिविधि है तथा जातीय पदक्रम के ऊपर हमला है। इस प्रकार यह एक प्रक्रिया है जो संस्कृति की आम समानता की तरफ उन्मुख होती है।” ।
इस प्रकार श्रीनिवास का कहना था कि यह ठीक है कि जातीय पदक्रम में निम्न स्थानों पर मौजूद जातियों के लोग उच्च जातियों के जीवन जीने के ढंगों तथा रहने-सहने के ढंगों को अपना लेते हैं, परन्तु इसका अर्थ यह नहीं है कि वह जातियों का संस्तरण भी बदल देते हैं। चाहे वह उच्च जातियों के उपनाम रख लेते हैं तथा उनके जीवन ढंगों को अपना लेते हैं, परन्तु वह आदर्श जातियां नहीं बन सकते। श्रीनिवास के अनुसार संस्कृतिकरण की प्रक्रिया केवल हिन्दुओं की जातियों में ही मौजूद नहीं थी बल्कि यह तो कबीलों में भी मौजूद थी। कई कबीलों ने इस प्रक्रिया को अपनाने के प्रयास किए थे।
इस प्रक्रिया से जातीय संस्तरण में निम्न स्थानों पर मौजूद जातियों के लोग उच्च जातियों के लोगों के जीवन ढंगों को अपनाते हैं तथा उच्च स्थिति प्राप्त कर लेते हैं। इस प्रकार इस प्रक्रिया की सहायता से कुछ जातियों के लोगों ने ऊँचा उठने का प्रयास किया है।

प्रश्न 6.
आपका संस्कृतिकरण से क्या अभिप्राय है ? इसके प्रभावों की विस्तारपूर्वक व्याख्या करें।
अथवा
समाज पर संस्कृतिकरण के प्रभावों को बताइए।
अथवा
संस्कृतिकरण के प्रभावों की चर्चा कीजिए।
उत्तर-
संस्कृतिकरण का अर्थ-
सामाजिक परिवर्तन की प्रक्रियाओं के बारे में प्रसिद्ध भारतीय समाजशास्त्री एम० एन० श्रीनिवास (M.N. Srinivas) ने अपनी पुस्तक Social Change in Modern India में विस्तार से वर्णन किया है। सबसे पहले उन्होंने संस्कृतिकरण की प्रक्रिया का वर्णन किया है जिसमें उन्होंने कहा है कि इस प्रक्रिया के साथ जातीय संस्तरण में निम्न स्थानों पर मौजूद जातियों के लोग इस संस्तरण में ऊँचा उठने का प्रयास करते हैं। इस प्रक्रिया में उन्होंने निम्न जातियों के लोगों में आए परिवर्तनों के बारे में भी बताया है। वास्तव में श्रीनिवास ने संस्कृतिकरण की धारणा का प्रयोग परंपरागत भारतीय सामाजिक संरचना में गतिशीलता की प्रक्रिया को बताने के लिए किया है। उनका कहना था कि केवल संस्कृतिकरण की प्रक्रिया के कारण ही जाति व्यवस्था में गतिशीलता आनी शुरू हुई है। उनके अनुसार जाति व्यवस्था में गतिशीलता हमेशा ही मुमकिन थी तथा वह भी निम्न तथा मध्य जातियों के बीच । जाति व्यवस्था में इतनी कठोरता नहीं थी कि व्यक्ति की सामाजिक स्थिति हमेशा के लिए निश्चित कर दी जाए। इसे बदला भी जा सकता था।

संस्कृतिकरण का अर्थ (Meaning of Sanskritization) सबसे पहले संस्कृतिकरण शब्द का प्रयोग श्रीनिवास ने अपनी पुस्तक में किया था जिसका नाम Society Among the Coorgs था। उन्होंने मैसूर के कुर्ग लोगों का अध्ययन किया तथा यह पुस्तक लिखी थी। इस पुस्तक में उन्होंने लिखा था कि निम्न जातियों के लोग उच्च जातियों के लोगों के जीवन जीने के ढंगों को अपनाने लग गए हैं ताकि वह अपनी स्थिति को ऊँचा उठा सके। इस प्रक्रिया की व्याख्या के लिए पहले श्रीनिवास ने ब्राह्मणीकरण शब्द का प्रयोग किया, परन्तु बाद में उन्होंने इस शब्द के स्थान पर संस्कृतिकरण शब्द का प्रयोग किया। श्रीनिवास का कहना था कि जातीय संस्तरण में निम्न स्थानों पर मौजूद जातियां उच्च जातियों के जीवन ढंगों को अपनाना शुरू कर देते हैं जिससे एक-दो पीढ़ियों के बाद उनके बच्चों की स्थिति स्वयं ही ऊँची हो जाती है। इस प्रकार जब निम्न स्थानों पर मौजूद जातियों के लोग उच्च जातियों के लोगों के जीवन ढंगों को अपनाना शुरू कर देते हैं तो उसे संस्कृतिकरण की प्रक्रिया कहते हैं। इसमें वह सबसे पहले अपनी जाति की प्रथाएं, कीमतें, परम्पराएं इत्यादि को छोड़ देते हैं तथा आदर्श जाति की प्रथाओं, परम्पराओं को अपनाना शुरू कर देते हैं।

परिभाषाएं (Definitions)

1. एम० एन० श्रीनिवास (M.N. Srinivas) के अनुसार, “संस्कृतिकरण वह प्रक्रिया होती है जिसके साथ एक निम्न हिन्दू जाति तथा कोई कबाइली अथवा कोई अन्य समूह अपने रीति-रिवाजों, संस्कारों, विचारधारा तथा जीवन जीने के ढंगों को एक उच्च अधिकतर द्विज की दिशा में बदलता है।”

2. एक अन्य स्थान पर एम० एन० श्रीनिवास (M.N. Srinivas) दोबारा लिखते हैं कि, “संस्कृतिकरण का अर्थ केवल नई आदतों तथा प्रथाओं को ग्रहण करना ही नहीं बल्कि पवित्र तथा रोज़ाना जीवन से संबंधित विचारों तथा कीमतों को दर्शाना होता है जिनका प्रक्टन संस्कृति के साहित्य में देखने को मिलता है। कर्म, धर्म, पाप, माया, संसार, मुक्ति संस्कृति के कुछ साधारण आध्यात्मिक विचार हैं तथा जब व्यक्ति का संस्कृतिकरण हो जाता है तो वह इन शब्दों का अक्सर प्रयोग होता है।”

3. डॉ० योगेन्द्र सिंह (Dr. Yogendra Singh) के अनुसार, “हिन्दू सामाजिक व्यवस्था के सापेक्ष रूप से बंद होने के समय के दौरान सांस्कृतिक तथा सामाजिक गतिशीलता की प्रक्रिया सांस्कृतिकरण है। इस सामाजिक परिवर्तन का स्रोत जाति के अन्दर होता है। मनोवैज्ञानिक पक्ष से संस्कृतिकरण सर्वव्यापक प्रेरणा का सांस्कृतिक तौर पर एक विशेष उदाहरण है जो उच्च समूह की संस्कृति को इस आशा में कि भविष्य में उसे इसकी स्थिति प्राप्त होगी, के पूर्व आभासी समाजीकरण की तरफ क्रियाशील है। संस्कृतिकरण का विशेष अर्थ हिन्दू परम्परा पर आधारित इसके अर्थ की ऐतिहासिकता में मौजूद है। इस पक्ष से संस्कृतिकरण समूहों की लम्बकार गतिशीलता में साधन के तौर पर समाजीकरण की प्रक्रिया का प्रक्टन है।”

4. एफ० सी० बैली (F.C. Bealy) के अनुसार, “संस्कृतिकरण एक सामूहिक गतिविधि है तथा जातीय पदक्रम के ऊपर हमला है। इस प्रकार यह एक प्रक्रिया है जो संस्कृति की आम समानता की तरफ उन्मुख होती है।” ।
इस प्रकार श्रीनिवास का कहना था कि यह ठीक है कि जातीय पदक्रम में निम्न स्थानों पर मौजूद जातियों के लोग उच्च जातियों के जीवन जीने के ढंगों तथा रहने-सहने के ढंगों को अपना लेते हैं, परन्तु इसका अर्थ यह नहीं है कि वह जातियों का संस्तरण भी बदल देते हैं। चाहे वह उच्च जातियों के उपनाम रख लेते हैं तथा उनके जीवन ढंगों को अपना लेते हैं, परन्तु वह आदर्श जातियां नहीं बन सकते। श्रीनिवास के अनुसार संस्कृतिकरण की प्रक्रिया केवल हिन्दुओं की जातियों में ही मौजूद नहीं थी बल्कि यह तो कबीलों में भी मौजूद थी। कई कबीलों ने इस प्रक्रिया को अपनाने के प्रयास किए थे।

इस प्रक्रिया से जातीय संस्तरण में निम्न स्थानों पर मौजूद जातियों के लोग उच्च जातियों के लोगों के जीवन ढंगों को अपनाते हैं तथा उच्च स्थिति प्राप्त कर लेते हैं। इस प्रकार इस प्रक्रिया की सहायता से कुछ जातियों के लोगों ने ऊँचा उठने का प्रयास किया है।

संस्कृतिकरण के प्रभाव-संस्कृतिकरण सामाजिक परिवर्तन लाने में काफ़ी सहायक होता है जिसका वर्णन निम्नलिखित है-

  • संस्कृतिकरण से जातीय संस्तरण में निम्न स्थानों पर मौजूद जातियां ऊपर वाले स्थानों पर मौजूद जातियों की नकल करके अपने जीवन स्तर को ऊँचा उठाने का प्रयास करती हैं। इससे सम्पूर्ण समाज का जीवन स्तर ऊँचा हो जाता है।
  • संस्कृतिकरण के कारण सामाजिक गतिशीलता उत्पन्न होती है जोकि समाज के विकास के लिए आवश्यक है। जितनी अधिक गतिशीलता समाज में होगी, उतना अधिक समाज ऊपर उठेगा।
  • इस प्रक्रिया में शोषित जातियों के व्यक्तियों को अपने आपको ऊँचा उठाने के मौके मिल जाते हैं जिस कारण वह निराशा का शिकार नहीं होते तथा कई प्रकार की समस्याओं से बच जाते हैं।
  • इससे व्यक्ति की अन्दरूनी निराशाएं तथा विवाद खत्म हो जाते हैं तथा व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास होता है। व्यक्ति अपने आप को ऊँचा उठाकर निराशाओं से बच सकता है।
  • संस्कृतिकरण के कारण व्यक्ति को समाज में उसकी वर्तमान स्थिति से उच्च स्थिति प्राप्त हो जाती है। प्रत्येक व्यक्ति इस प्रयास में लगा होता है कि किस प्रकार उसे ऊँचा दर्जा प्राप्त हो।
  • संस्कृतिकरण के कारण समाज में कई प्रकार के परिवर्तन आ जाते हैं जोकि आज के नियमित रूप से चलने के लिए बहुत आवश्यक है।
  • संस्कृतिकरण के कारण व्यक्ति के जीवन स्तर तथा रहने-सहने के स्तर में काफ़ी अन्तर आ जाता है क्योंकि वह अपने आप को ऊँचा साबित करने के प्रयास में लगा होता है। इस कारण वह अपने जीवन स्तर को भी ऊँचा उठाने के प्रयास करता है तथा साधारणतया वह सफल भी हो जाता है।
  • इस संस्कृतिकरण के कारण सामाजिक दर्जेबन्दी में भी कई तरह के परिवर्तन आ जाते हैं तथा विशेष जातियां अथवा आदर्श जातियों में भी परिवर्तन आ जाते हैं। जातियों के बीच ही कई उपजातियां बन जाती हैं तथा उपजातियां में भी संस्तरण उत्पन्न हो जाता है।
  • इस प्रक्रिया में शोषित जातियां आदर्श जातियों में ही मिल जाती हैं जिस कारण उन्हें अन्य जातियों की तरफ से सम्मान मिलना शुरू हो जाता है। इससे बराबरी तथा समानता वाली भावनाएं आनी शुरू हो जाती हैं।
  • क्योंकि अलग-अलग जातियां आपस में मिल जाती हैं इसलिए उन सभी में एकता आ जाती है जो देश के लिए काफ़ी लाभदायक सिद्ध होती है।

अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न (OTHER IMPORTANT QUESTIONS)

I वस्तुनिष्ठ प्रश्न

A. बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
उस प्रक्रिया को क्या कहते हैं जिसमें निम्न जतियों के लोग उच्च जातियों का अनुकरण करना शुरू कर
देते हैं ?
(क) पश्चिमीकरण
(ख) संस्कृतिकरण
(ग) धर्म निष्पक्षता
(घ) आधुनिकीकरण।
उत्तर-
(ख) संस्कृतिकरण।

प्रश्न 2.
जब किसी देश के समाज या संस्कृति में परिवर्तन होना शुरू हो जाए तो उसे क्या कहते हैं ?
(क) सामाजिक परिवर्तन
(ख) धार्मिक परिवर्तन
(ग) सांस्कृतिक परिवर्तन
(घ) उद्विकासीय परिवर्तन।
उत्तर-
(ग) सांस्कृतिक परिवर्तन।

प्रश्न 3.
इनमें से कौन-सी पुस्तक एम० एन० श्रीनिवास ने लिखी थी ?
(क) Cultural Change in India
(ख) Social Change in Modern India
(ग) Geographical Change in Modern India
(घ) Regional Change in Modern India.
उत्तर-
(ख) Social Change in Modern India.

प्रश्न 4.
पश्चिमीकरण का सिद्धान्त किसने दिया था ?
(क) श्रीनिवास
(ख) मजूमदार
(ग) घूर्ये
(घ) मुखर्जी।
उत्तर-
(क) श्रीनिवास।

प्रश्न 5.
पश्चिमीकरण का हमारे देश पर क्या प्रभाव पड़ा ?
(क) जाति प्रथा कमजोर हो गई
(ख) तलाक बढ़ गए
(ग) केंद्रीय परिवार सामने आए
(घ) उपर्युक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 6.
प्रबल जाति के लिए क्या आवश्यक है ?
(क) अधिक जनसंख्या
(ख) कृषि योग्य अधिक भूमि
(ग) जातीय संस्तरण में ऊँचा स्थान
(घ) उपर्युक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपर्युक्त सभी।

B. रिक्त स्थान भरें-

1. पश्चिमीकरण का सिद्धान्त ……… …. ने दिया था।
2. पश्चिमीकरण में …………………… को मॉडल माना जाता है।
3. …………………… तथा ……………… ने भारतीय समाज में बहुत से परिवर्तन ला दिए।
4. प्रथम तीन जातियों को …………………… संस्कार से गुजरना पड़ता था।
5. श्रीनिवास ने …………………… के स्थान पर संस्कृतिकरण शब्द का प्रयोग किया।
6. श्रीनिवास ने …………………… लोगों का अध्ययन किया था।
उत्तर-

  1. श्रीनिवास,
  2. ब्रिटिश,
  3. राजा राम मोहन राए, रविन्द्र नाथ टैगोर,
  4. उपनयन,
  5. ब्राह्मणीकरण,
  6. कुर्ग।

C. सही/ग़लत पर निशान लगाएं-

1. श्रीनिवास घूर्ये के विद्यार्थी थे।
2. पढ़े-लिखे भारतीय पश्चिमीकरण के वाहक थे।
3. पश्चिमीकरण ने भारतीय समाज में बहुत परिवर्तन लाए।
4. संस्कृतिकरण में उच्च जाति के रहन-सहन के ढंग अपनाए जाते हैं।
5. प्रबल जाति के लिए अधिक भूमि का होना आवश्यक है।
6. श्रीनिवास ने दक्षिण भारत के कुर्ग लोगों का अध्ययन किया।
उत्तर-

  1. सही
  2. सही
  3. सही
  4. सही
  5. सही
  6. सही।

II. एक शब्द/एक पंक्ति वाले प्रश्न उत्तर ।

प्रश्न 1. संस्कृतिकरण की धारणा किसने दी थी ?
उत्तर-एम० एन० श्रीनिवास ने।

प्रश्न 2. पश्चिमीकरण की धारणा किसने दी थी ?
उत्तर-एम० एन० श्रीनिवास ने।

प्रश्न 3. संस्कृतिकरण के दो सहायक कारक बताएं।
उत्तर-औद्योगीकरण तथा नगरीकरण।

प्रश्न 4. श्रीनिवास ने किस पुस्तक में संस्कृतिकरण की व्याख्या की है ?
उत्तर-Social Change in Modern India.

प्रश्न 5. सांस्कृतिक परिवर्तन क्या होता है ?
उत्तर-जब किसी समाज या देश की संस्कृति में परिवर्तन होने लग जाए तो उसे सांस्कृतिक परिवर्तन कहते हैं।

प्रश्न 6. पश्चिमीकरण का क्या अर्थ है ?
उत्तर-जब हमारे देश में पश्चिमी देशों के विचारों, तौर-तरीकों को अपनाया जाता है तो उसे पश्चिमीकरण कहते हैं।

प्रश्न 7. संस्कृतिकरण क्या होता है ?
उत्तर-जब निम्न जाति के लोग उच्च जाति की नकल करके उनके तौर-तरीकों को अपना कर अपनी स्थिति को ऊँचा कर लें तो उसे संस्कृतिकरण कहते हैं ?

प्रश्न 8. पश्चिमीकरण में किस देश को मॉडल माना जाता है ?
उत्तर-पश्चिमीकरण में ब्रिटेन को मॉडल माना जाता है।

प्रश्न 9. कौन-से समाज सुधारक भारतीय समाज में कई सुधार लाए ?
उत्तर- राजा राम मोहन राय, दयानंद सरस्वती, ज्योतिबा फूले, विवेकानंद इत्यादि।

प्रश्न 10. गुरुकुल क्या होता है ?
उत्तर-पुराने समय में बच्चों को गुरूकुल में शिक्षा दी जाती थी।

प्रश्न 11. किन जातियों को द्विज कहा जाता है ?
उत्तर-ब्राह्मण, क्षत्रिय तथा वैश्य।

प्रश्न 12. कुर्ग लोग कहां रहते हैं ?
उत्तर-कुर्ग लोग मैसूर (कर्नाटक) के नज़दीक रहते हैं।

प्रश्न 13. मैसूर की निम्न जातियों ने किसके जीवन जीने के ढंगों को अपनाया था ?
उत्तर- उन्होंने लिंगायत लोगों के ढंगों को अपनाया था।

प्रश्न 14. श्रीनिवास ने किस गाँव के अध्ययन के समय प्रबल जाति शब्द का जिक्र किया था ?
उत्तर-रामपुरा गाँव जोकि मैसूर (कर्नाटक) के पास स्थित है।

III. अति लघु उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
संस्कृतिकरण का क्या अर्थ है ?
उत्तर-
जब निम्न जातियों के लोग उच्च जातियों के लोगों का अनुकरण करना शुरू कर दें अर्थात् उनके जीवन जीने, रहने-सहने के ढंगों को अपनाना शुरू कर दें ताकि वह अपनी सामाजिक स्थिति को ऊँचा कर सकें तो इसे संस्कृतिकरण कहते हैं।

प्रश्न 2.
संस्कृतिकरण की कोई दो विशेषताएं बताएं।
उत्तर-

  1. संस्कृतिकरण में निम्न जातियों के लोग उच्च जातियों के लोगों के जीवन जीने के ढंगों को अपना लेते हैं। इस प्रकार इसमें अनुकरण एक आवश्यक तत्त्व है।
  2. संस्कृतिकरण की प्रक्रिया एक लगातार चलने वाली प्रक्रिया है जिसमें निम्न जातियों की सामाजिक स्थिति में परिवर्तन आ जाता है।

प्रश्न 3.
पश्चिमीकरण का क्या अर्थ है ?
उत्तर-
श्रीनिवास के अनुसार, “पश्चिमीकरण शब्द को अंग्रेजों के 150 वर्ष के शासन के परिणामस्वरूप भारतीय समाज व संस्कृति में उत्पन्न हुए परिवर्तनों के लिए प्रयोग किया है तथा यह शब्द कई स्तरों-तकनीक, संस्थाओं, विचारधाराओं तथा मूल्यों इत्यादि में परिवर्तनों से संबंधित है।”

प्रश्न 4.
पश्चिमीकरण के हमारे समाज पर क्या प्रभाव पड़े ?
उत्तर-

  1. पश्चिमीकरण ने जाति प्रथा के बंधनों को तोड़ दिया जिस कारण वह कमज़ोर हो गई।
  2. पश्चिमीकरण के कारण स्त्रियों ने पढ़ना-लिखना शुरू कर दिया तथा वे घरों से बाहर निकल कर नौकरी करने लग गईं।

प्रश्न 5.
प्रबल जाति क्या होती है ?
उत्तर-
श्रीनिवास के अनुसार गांवों में प्रबल जाति मौजूद होती हैं तथा यह वह जाति होती है जिसके पास गाँव के स्तर पर कृषि करने योग्य काफ़ी भूमि होती है, जनसंख्या अधिक होती है तथा स्थानीय संस्तरण में उनकी स्थिति ऊंची होती है।

प्रश्न 6.
उपनयन संस्कार क्या होता है ?
उत्तर-
प्रथम तीन जातियों के बच्चों को जनेऊ धारण करना पड़ता था जिसे उपनयन संस्कार कहा जाता था। यह संस्कार पूर्ण होने के पश्चात् इनके बच्चे गुरुकुल में पढ़ने के लिए जा सकते थे। यह हिंदू धर्म का प्रमुख संस्कार था जिसे निम्न जातियां नहीं कर सकती थीं।

IV. लघु उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
संस्कृतिकरण।
उत्तर-
शब्द संस्कृतिकरण का प्रयोग सबसे पहले श्रीनिवास ने किया था तथा इस शब्द का प्रयोग उन्होंने निम्न जातियों के लोगों द्वारा उच्च जातियों के लोगों के जीवन जीने के ढंग अपनाने के लिए किया था। इस प्रकार संस्कृतिकरण की प्रक्रिया का अर्थ है जब निम्न जातियों के लोग उच्च जातियों के लोगों के जीवन जीने के ढंगों को अपनाना शुरू कर देते हैं तो उसे संस्कृतिकरण की प्रक्रिया कहते हैं। इस प्रक्रिया से उनकी स्थिति ऊँची हो जाती है। इसमें सबसे पहले वह अपनी जाति की प्रथाओं, मूल्यों, परम्पराओं को त्याग देते हैं तथा उच्च जातियों की प्रथाओं, परम्पराओं को अपनाना शुरू कर देते हैं।

प्रश्न 2.
संस्कृतिकरण की विशेषताएं।
उत्तर-

  • संस्कृतिकरण की प्रक्रिया एक सर्वव्यापक प्रक्रिया है क्योंकि यह केवल एक ही जाति से सम्बन्धित नहीं थी बल्कि इस का प्रभाव तो सम्पूर्ण भारतीय समाज पर था।
  • संस्कृतिकरण में स्थिति परिवर्तन तो होता है परन्तु संरचनात्मक परिवर्तन नहीं होता अर्थात् जाति का पदक्रम उसी प्रकार बना रहता है।
  • संस्कृतिकरण में नकल अथवा अनुकरण आवश्यक तत्त्व है क्योंकि इस प्रक्रिया में निम्न जातियों के लोग शुरू से ही उच्च जातियों के लोगों की जीवन शैली का अनुकरण करने लग जाते हैं।
  • इस प्रक्रिया में सामूहिक गतिशीलता होती है क्योंकि यह एक व्यक्ति अथवा समाज को प्रभावित नहीं करती बल्कि सम्पूर्ण समूह को प्रभावित करती है।

प्रश्न 3.
संस्कृतिकरण के स्रोत।
उत्तर-

  • संचार तथा यातायात के साधनों के विकसित होने से लोग एक-दूसरे के सम्पर्क में आना शुरू हो गए तथा यह प्रक्रिया बढ़ने लग गई।
  • नगरीकरण के बढ़ने से अलग-अलग जातियों के लोगों नगरों में इकट्ठे रहने लगे तथा एक-दूसरे के रीतिरिवाजों, परम्पराओं इत्यादि को अपनाने लग गए।
  • पश्चिमी शिक्षा के बढ़ने से सभी जातियों के लोग इकट्ठे मिल कर शिक्षा ग्रहण करने लग गए तथा इससे भी संस्कृतिकरण की प्रक्रिया प्रभावित हुई।

प्रश्न 4.
सामाजिक कानून तथा संस्कृतिकरण।
उत्तर-
स्वतन्त्रता के बाद नई कानून व्यवस्था शुरू हुई तथा नया संविधान बना जिससे संस्कृतिकरण की प्रक्रिया को बल मिला। सरकार ने निम्न जातियों को आरक्षण दिया तथा बहुत से कानून बनाए जिससे जाति व्यवस्था प्रभावित हुई। 1955 में अस्पृश्यता अपराध अधिनियम बना जिससे अस्पृश्यता को अपराध घोषित किया गया। 1954 में विशेष विवाह अधिनियम पास हुआ तथा अन्तर्जातीय विवाह को मान्यता प्राप्त हुई। संविधान ने किसी भी व्यक्ति के साथ लिंग, धर्म, जाति के आधार पर भेदभाव करने से मनाही कर दी। निम्न जातियों को बहुत-सी सुविधाएं दी। इस प्रकार सामाजिक कानूनों से संस्कृतिकरण की प्रक्रिया प्रभावित हुई।

प्रश्न 5.
अनुकरण-संस्कृतिकरण का आवश्यक तत्त्व।
उत्तर-
संस्कृतिकरण की प्रक्रिया में निम्न जातियों के लोग उच्च जातियों के लोगों को जिस प्रकार जीवन जीता हुआ देखते हैं उसी प्रकार स्वयं भी करना शुरू कर देते हैं। इस प्रकार नकल अथवा अनुकरण संस्कृतिकरण का आवश्यक तत्त्व है। इसका अर्थ है कि निम्न जाति के लोग उच्च जाति के लोगों के रहने-सहने, जीवन जीने के ढंगों को अपनाना शुरू कर देते हैं। यह प्रक्रिया तो शुरू ही नकल से होती है जिसमें निम्न जातियों के लोग उच्च जाति के लोगों की जीवन शैली की नकल करना शुरू कर देते हैं। इस कारण धीरे-धीरे निम्न जातियों के लोगों की स्थिति ऊँची होनी शुरू हो जाती है।

प्रश्न 6.
नए पेशों का प्रभाव तथा संस्कृतिकरण।
उत्तर-
अंग्रेजों के भारत आने के बाद देश के बड़े-बड़े उद्योग शुरू हो गए। उत्पादन घरों से निकलकर कारखानों में चला गया जिससे बहुत से नए देशों का जन्म हुआ। कारखानों में श्रम विभाजन तथा विशेषीकरण को महत्त्व प्राप्त हुआ। लोग अपनी इच्छा तथा योग्यता के अनुसार शिक्षा प्राप्त करके पेशा अपनाने लगे जिससे समाज में बहुत से पेशे सामने आए। इस प्रकार बहुत से पेशों के आगे आने से जाति प्रथा का पेशे का बन्धन कमज़ोर पड़ गया जिससे संस्कृतिकरण की प्रक्रिया को बढ़ावा मिला।

प्रश्न 7.
यातायात के साधन तथा संस्कृतिकरण।
उत्तर-
औद्योगिकीकरण के विकास के साथ-साथ यातायात के साधनों का भी विकास होने लगा। इस प्रकार नए पैमाने के उद्योग स्थापित होने लग गए। एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाना आसान हो गया था। इस प्रकार यातायात तथा संचार के साधनों के विकास ने अलग-अलग जातियों के लोगों के बीच सम्पर्क स्थापित किया। वह एक-दूसरे से मिलकर बसों, रेलगाड़ियों में सफर करने लग गए। उच्च तथा निम्न जातियों के लोगों में संस्कृति का आदान-प्रदान होने लग गया। पवित्रता तथा अपवित्रता के संकल्प में कमी आ गई। रेल गाड़ियों तथा बसों में मिलकर सफर करना पड़ता था जिस कारण अस्पृश्यता के भेदभाव को कायम रखना असम्भव हो गया। इस प्रकार संस्कृतिकरण के बढ़ने में यातायात के साधनों का काफ़ी बड़ा हाथ था।

प्रश्न 8.
धार्मिक और सामाजिक आंदोलन तथा संस्कृतिकरण।
उत्तर-
प्राचीन भारतीय समाज में पाई जाने वाली जाति प्रथा से बहुत से लोग तंग थे। कोई भी जाति के बंधनों को तोड़ता नहीं था। नियमों को तोड़ने वाले को जाति से बाहर निकाल दिया जाता था। निम्न जाति के लोगों के साथ बहुत बुरा व्यवहार होता था तथा वह तरक्की नहीं कर सकते थे। इस जाति प्रथा का विरोध करने के लिए कई समाज सुधारक उठ खड़े हुए। राजा राम मोहन राए, स्वामी दयानन्द जैसे सुधारकों ने कई आंदोलन शुरू कर दिए। इन आन्दोलनों का मुख्य उद्देश्य जाति प्रथा के प्रभाव को कमज़ोर करना था। उन्होंने स्त्रियों की दशा को सुधारने के प्रयत्न किए। महात्मा गांधी ने भी इस भेदभाव को खत्म करने के प्रयास किए। आर्य समाज तथा ब्रह्म समाज के आन्दोलनों ने जाति प्रथा के भेदभाव का सख्त विरोध किया। उन्होंने स्थान-स्थान पर जाकर लोगों को उपदेश दिए तथा लोगों में जागृति उत्पन्न की। अन्तर्जातीय विवाह का नियम भी आंदोलन के प्रभाव के कारण ही पड़ा है। इस कारण इन आन्दोलनों के प्रभाव के कारण निम्न जातियों के लोगों ने उच्च जातियों के लोगों की आदतें अपना ली तथा संस्कृतिकरण को आगे बढ़ाया।

प्रश्न 9.
पश्चिमीकरण।
उत्तर-
जब पूर्व के देशों जैसे कि भारत, बर्मा, श्रीलंका इत्यादि पर पश्चिमी देशों जैसे कि ब्रिटेन, जर्मनी, फ्रांस इत्यादि का प्रभाव पड़ता है तो उस प्रक्रिया को पश्चिमीकरण कहते हैं। पश्चिमी देशों के प्रभाव के अन्तर्गत पूर्वी देशों के रहनेसहने के ढंगों, आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक जीवन में परिवर्तन आ जाता है। पूर्वी देशों के लोग अपनी संस्कृति, सभ्यता को छोड़ कर पश्चिमी देशों की संस्कृति को अपनाने लग जाते हैं। इस प्रक्रिया को पश्चिमीकरण कहते हैं।

प्रश्न 10.
पश्चिमीकरण की दो परिभाषाएं।
उत्तर-

  • श्रीनिवास (Srinivas) के अनुसार, “मैं पश्चिमीकरण शब्द को अंग्रेज़ी राज्य के 150 साल के शासन के परिणामस्वरूप भारतीय समाज में तथा संस्कृति में हुए परिवर्तनों के लिए प्रयोग करता हैं तथा इस शब्द के अन्तर्गत विभिन्न स्तरों जैसे तकनीक, संस्थाएं, विचारधाराएं तथा कीमतों इत्यादि में होने वाले परिवर्तन शामिल हैं।”
  • लिंच (Lynch) के अनुसार, “पश्चिमीकरण में पश्चिमी पोशाक, खाने-पीने के ढंग, शिक्षा विधियां तथा खेल, कदरों-कीमतों इत्यादि को शामिल किया जाता है।”

प्रश्न 11.
पश्चिमीकरण की विशेषताएं।
उत्तर-

  • पश्चिमीकरण की प्रक्रिया अंग्रेजों द्वारा लायी गयी संस्कृति है तथा पश्चिमी देशों की प्रक्रिया के प्रभाव से पश्चिमीकरण की प्रक्रिया हमारे देश में आयी।
  • पश्चिमीकरण की प्रक्रिया एक चेतन तथा अचेतन प्रक्रिया है। व्यक्ति कई बार न चाहते हुए भी बहुत-सी चीज़ों को अपना लेता है तथा कई बार अपने-आप ही बहुत-सी चीजें अपना लेता है।
  • पश्चिमीकरण एक जटिल तथा बहु-स्तरीय धारणा है। इस प्रक्रिया में एक तरफ पश्चिमी तकनीक से लेकर तथा दूसरी तरफ आधुनिक विज्ञान की प्रयोगात्मक विधि तथा आधुनिक इतिहास लिखने तक काफ़ी बड़ा क्षेत्र शामिल है।

प्रश्न 12.
पश्चिमीकरण तथा आधुनिकीकरण में अन्तर।
उत्तर-
पश्चिमीकरण वह प्रक्रिया थी जिसे अंग्रेज़ अपने साथ भारत लाए तथा जिसने भारतीय लोगों को सामाजिक जीवन के अलग-अलग पक्षों पर काफ़ी गहरा प्रभाव डाला था। परन्तु, आधुनिकीकरण की प्रक्रिया पश्चिमी देशों के लोगों से सम्पर्क से शुरू हुई तथा इस में केवल मौलिक दिशा के परिवर्तनों को स्वीकार किया गया। आधुनिकीकरण पश्चिमीकरण के बिना भी हो सकता है तथा इसके परिणाम हमेशा ही अच्छे होते हैं।

प्रश्न 13.
पश्चिमीकरण के परिणाम।
उत्तर-

  • पश्चिमीकरण के कारण जाति प्रथा, परिवार, विवाह की संस्था में बहुत से परिवर्तन आए।
  • पश्चिमीकरण के आने से आधुनिक शिक्षा का प्रसार हुआ तथा स्कूल, कॉलेज, विश्वविद्यालय इत्यादि खोले गए।
  • पश्चिमीकरण के कारण विवाह की संस्था में परिवर्तन आए। पहले विवाह को धार्मिक संस्कार माना जाता था परन्तु पश्चिमीकरण के कारण अब उसे समझौता समझा जाता है।
  • पश्चिमीकरण के कारण देश की शासन व्यवस्था में भी परिवर्तन आया तथा देश में एक ही शासन व्यवस्था लागू की गई।

प्रश्न 14.
जाति प्रथा तथा पश्चिमीकरण।
उत्तर-
पश्चिमीकरण के कारण उत्पादन घरों से निकलकर उद्योगों में चला गया तथा लोगों को पैसे कमाने के लिए अपने घरों से बाहर निकलना पड़ा। इसलिए परम्परागत पेशे का महत्त्व कम हो गया। लोगों के घरों से बाहर निकलने के कारण जाति प्रथा के बंधन टूटने लगे तथा पैसे का महत्त्व बढ़ना शुरू हो गया। पश्चिमीकरण ने जाति प्रथा को बिल्कुल ही कमज़ोर कर दिया तथा इसके हरेक प्रकार के बंधन खत्म हो गए। अब व्यक्ति अपनी मर्जी से किसी भी जाति में विवाह कर सकता है।

प्रश्न 15.
आर्थिक संस्थाओं पर पश्चिमीकरण का प्रभाव।
उत्तर-

  • प्राचीन समय में हमारे देश में जीवन निर्वाह अर्थव्यवस्था (subsistence economy) चलती थी परन्तु पश्चिमीकरण के कारण लोगों ने केवल अपनी जगह मण्डी के लिए उत्पादन करना शुरू कर दिया।
  • पश्चिमीकरण के कारण भारतीय कृषि का व्यापारीकरण होना शुरू हो गया तथा कृषि के उत्पाद दूर-दूर स्थानों पर भेजे जाने लग गई। इससे किसानों को अधिक लाभ होने लग गया।
  • पश्चिमीकरण के कारण भूमि सुधारों पर विशेष ध्यान दिया गया तथा उन्होंने जमींदारी, महलवारी इत्यादि प्रथाओं को खत्म करके किसानों से सीधा सम्पर्क करना शुरू कर दिया।

प्रश्न 16.
पश्चिमीकरण एक चेतन तथा अचेतन प्रक्रिया है।
उत्तर-
पश्चिमीकरण की प्रक्रिया चेतन भी है तथा अचेतन भी। यह चेतन प्रक्रिया इस प्रकार होती है कि व्यक्ति अपनी इच्छा के अनुसार पश्चिमी संस्कृति को अपनाना शुरू कर देते हैं क्योंकि कुछ चीजें उन्हें अपनी तरफ आकर्षित करती हैं। जैसे वह अंग्रेज़ी कपड़ों का प्रयोग अपनी इच्छा से करते हैं। पश्चिमीकरण की प्रक्रिया अचेतन इस प्रकार होती है कि व्यक्ति अपनी इच्छा के बिना भी पश्चिमी संस्कृति के प्रभाव में आ जाता है। इसका कारण यह है कि कुछ चीजों को हम देखते रहते हैं तो अचानक ही हम उनकी तरफ आकर्षित हो जाते हैं। इस प्रकार पश्चिमीकरण की संस्कृति में भी ऐसा आकर्षण है कि हम स्वयं उसकी तरफ खींचे चले जाते हैं।

प्रश्न 17.
पश्चिमीकरण एक जटिल तथा बह-स्तरीय धारणा है।
उत्तर-
पश्चिमीकरण की प्रक्रिया में एक तरफ तो पश्चिमी तकनीक से लेकर तथा दूसरी तरफ आधुनिक विज्ञान की प्रयोगात्मक विधि तथा आधुनिक इतिहास लेखक तक का काफ़ी बड़ा क्षेत्र शामिल है। पश्चिमीकरण का प्रभाव जीवन के हरेक क्षेत्र पर पाया गया है। इस कारण जाति संरचना के सभी स्तरों पर परिवर्तन आए हैं। यहां तकनीक आदर्श, विचार, धर्म, कला, कदरें-कीमतें भी इसके प्रभाव में आकर परिवर्तित हो गए हैं। श्रीनिवास के अनुसार यहां तक कि भोजन करने के ढंग भी बदल गए हैं। पहले भारत में लोग भूमि पर बैठ कर पत्तलों में भोजन किया करते थे तथा भोजन सम्बन्धी कई विचार प्रचलित थे। परन्तु अब यह सभी रिवाज़ बदल गए हैं। अब लोग मेज़ कुर्सी पर बैठ कर स्टील के बर्तनों में खाना खाते हैं। इस प्रकार जीवन के हरेक पक्ष में परिवर्तन आ गया है।

प्रश्न 18.
पश्चिमीकरण तथा शिक्षा के क्षेत्र में परिवर्तन।
उत्तर-
प्राचीन भारतीय समाज में शैक्षिक संस्थाओं पर ब्राह्मणों का प्रभुत्व था, क्योंकि जाति प्रथा के नियमों के अनुसार शिक्षा केवल उच्च जातियों के व्यक्तियों तक ही सीमित थी। केवल धार्मिक शिक्षा ही प्रदान की जाती थी। निम्न जाति के व्यक्तियों को शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार नहीं था। अंग्रेजों के आने से शिक्षा का पश्चिमीकरण हो गया। अंग्रेजी सरकार ने शैक्षिक संस्थाओं का लोकतान्त्रिकरण कर दिया। हरेक जाति के व्यक्ति को शिक्षा प्राप्त करने के मौके दिए गए। वह धर्म निष्पक्ष शिक्षा प्रदान करते थे। अंग्रेज़ों ने शिक्षा का माध्यम भी अंग्रेज़ी कर दिया। बड़े-बड़े शहरों में विश्वविद्यालय खोले गए। स्त्रियों के स्तर को ऊँचा उठाने तथा उन्हें शिक्षित करने के पूर्ण प्रयत्न किए गए। उच्च तथा निम्न जातियों के लोग मिलकर शिक्षा प्राप्त करने लगे। इस प्रकार पश्चिमीकरण के कारण भारतीय शिक्षा का स्वरूप बदल गया तथा आधुनिक और पश्चिमी शिक्षा का विकास हुआ।

प्रश्न 19.
पश्चिमीकरण तथा विवाह की संस्था में परिवर्तन।
उत्तर-
पश्चिमीकरण की प्रक्रिया ने अपनी पश्चिमी सामाजिक कदरों-कीमतों को फैलाना शुरू कर दिया। सबसे पहले उन्होंने परम्परागत शिक्षा में परिवर्तन किया। लड़के तथा लड़कियों के लिए शिक्षा के केन्द्र खोले गए जिससे स्त्रियों को स्वतन्त्रता प्राप्त हुई। वह विवाह के सम्बन्ध में अपने विचार प्रकट करने लग गई। बाल-विवाह की प्रथा के कारण विधवा पुनर्विवाह शुरू किया गया। अन्तर्विवाह के नियम के अनुसार व्यक्ति केवल अपनी ही उपजाति में विवाह कर सकता था। परन्तु पश्चिमीकरण की प्रक्रिया ने स्त्रियों की स्थिति में परिवर्तन ला दिया तथा अन्तर्विवाह के नियम में परिवर्तन आ गया। अन्तर्जातीय विवाह को अधिक महत्त्व प्राप्त होने लग गया। इस प्रकार पश्चिमी कद्रों-कीमतों ने विवाह की संस्था में परिवर्तन ला दिया।

V. बड़े उत्तरों वाले प्रश्न –

प्रश्न 1.
संस्कृतिकरण की विशेषताओं का वर्णन करें।
उत्तर-
1. संस्कृतिकरण की प्रक्रिया सर्वव्यापक प्रक्रिया है (The process of Sanskritization is a universal process)-संस्कृतिकरण की प्रक्रिया केवल एक ही जाति अथवा जाति प्रथा से ही सम्बन्धित नहीं थी बल्कि इस प्रक्रिया का प्रभाव तो सम्पूर्ण भारतीय समाज पर भी था। यह प्रक्रिया तो अन्य धर्मों में भी पाई जाती थी। यह प्रक्रिया सम्पूर्ण देश के प्रत्येक हिस्से में पाई जाती थी तथा भारतीय इतिहास की एक प्रमुख प्रक्रिया है। यह ठीक है कि यह प्रक्रिया किसी युग में अधिक प्रबल रही हो तथा किसी में कम तथा लोगों का संस्कृतिकरण भी हुआ हो, परन्तु बिना किसी शक के हम कह सकते हैं कि यह प्रक्रिया सर्वव्यापक प्रक्रिया है। यह प्रक्रिया तो कबीलों तथा अर्धकबीलों में भी पाई जाती है। साधारणतया जनजातियां मुख्य धारा तथा हिन्दू समाजों से अलग रहती थीं तथा इन्हें जातीय संस्तरण में निम्न स्थानों पर मौजूद जातियों से भी निम्न स्थान दिया जाता था। परन्तु कबाइली लोग स्वयं को हिन्दू समाज से ऊँचा समझते थे। कई जनजातियों ने तो अपने नज़दीक की हिन्दू जाति के रहने-सहने, खाने-पीने इत्यादि के तौर तरीके तथा जीवन शैलियाँ अपना ली थीं। इस प्रकार न केवल मध्य तथा निम्न जातियों के लोग बल्कि जनजातियों के लोग भी इस प्रक्रिया को अपना रहे हैं।

2. इसमें स्थिति परिवर्तन होता है परन्तु संरचनात्मक परिवर्तन नहीं होता (Positional change does happen in it but not the structural change)-संस्कृतिकरण में कुछ जातियों के लोग उच्च जातियों के जीवन जीने के ढंगों को अपना लेते हैं तथा उनकी स्थिति में परिवर्तन आ जाता है। इससे उनकी स्थिति अपनी जाति के लोगों से तो ऊँची हो जाती है, परन्तु इससे जाति व्यवस्था अथवा इसकी संरचना में कोई परिवर्तन नहीं आता है। जातियों का पदक्रम नहीं बदलता बल्कि इसी प्रकार बना रहता है। दूसरे शब्दों में, हम कह सकते हैं कि लोग अपनी आदर्श जाति की जीवन-शैली, रीति-रिवाजों को तो ग्रहण कर लेते हैं, परन्तु वह आदर्श जाति के सदस्य नहीं बन सकते। इसका कारण यह है कि जाति तो जन्म पर आधारित होती है तथा व्यक्ति इसे परिवर्तित नहीं कर सकता।

3. संस्कृतिकरण में नकल अथवा अनुकरण आवश्यक तत्व है (Imitation is a necessary element of Sanskritization)—संस्कृतिकरण में लोग जिस तरह अपनी आदर्श जाति को करता हुआ देखते हैं स्वयं भी वैसा ही करना शुरू कर देते हैं। इसका अर्थ यह है कि जातीय संस्तरण में निम्न स्थानों पर मौजूद जातियां अपनी आदर्श जाति के लोगों की जीवन शैली की नकल करना शुरू कर देते हैं। इसके कारण धीरे-धीरे उनकी स्थिति ऊँची होनी शुरू हो जाती है। दूसरे शब्दों में, जाति के आधार पर परिवर्तन आता है तथा जाति में गतिशीलता सम्भव होती है।

4. संस्कृतिकरण सापेक्ष परिवर्तन की प्रक्रिया है (Sanskritization is a process of relative change)संस्कृतिकरण की प्रक्रिया में तो यह भी देखा गया है कि उच्च जातियों के लोग कबीलों के लोगों की नकल करते हैं। वास्तव में समाज में मौजूद अलग-अलग सामाजिक समूहों की संस्कृतियों में काफ़ी अन्तर होता है। इसलिए अगर एक समूह को दूसरे समूह की संस्कृति में से कुछ भी पसंद आता है तो वह उसे अपना लेता है। इस बात से कोई अन्तर नहीं पड़ता कि आदर्श समूह किस जाति से सम्बन्ध रखता है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि संस्कृतिकरण की प्रक्रिया एक सापेक्ष प्रक्रिया है।

5. ब्राह्मणों की स्थिति में परिवर्तन (Change in the status of Brahmins)-संस्कृतिकरण की प्रक्रिया में न केवल जातीय संस्तरण में निम्न स्थानों पर मौजूद जातियों की स्थिति बल्कि ब्राह्मणों की स्थिति में भी परिवर्तन आता है। ब्राह्मणों ने भी अपने आपको पश्चिमी सभ्यता के अनुसार बदलना शुरू कर दिया। प्राचीन समय में उच्च जातियों के लोगों पर भी कई प्रकार के प्रतिबंध थे जैसे कि मदिरा तथा माँस का प्रयोग न करना, ब्लेड का प्रयोग न करना, तड़कभड़क वाले कपड़े न पहनना इत्यादि। परन्तु जब उन्होंने अपने आप को पश्चिमी शिक्षा तथा सभ्यता के अनुसार बदलना शुरू कर दिया तो उनकी स्थिति में भी परिवर्तन आना शुरू हो गया।

6. ऊपर की तरफ गतिशीलता (Upward Mobility)-संस्कृतिकरण की प्रक्रिया में कुछ जातियों के लोग अपनी आदर्श जातियों के लोगों की जीवन शैली को अपनाना शुरू कर देते हैं तथा उनकी स्थिति उच्च होनी शुरू हो जाती है तथा यह ही संस्कृतिकरण की मुख्य विशेषता है। इस प्रक्रिया में निम्न स्थानों पर मौजूद जातियों अथवा कबीलों के लोग अपनी आदर्श जाति के लोगों के ढंगों के अनुसार अपने आप को बदलते हैं। परन्तु फिर भी उनकी स्थिति आदर्श जाति के बराबर नहीं होती। इस प्रकार यह ऊपर की तरफ गतिशीलता होती है।

7. सामाजिक स्थिति में परिवर्तन परन्तु जाति में नहीं (Change in social status but not in caste)संस्कृतिकरण की प्रक्रिया में व्यक्ति की सामाजिक स्थिति तो बदल जाती है, परन्तु जाति नहीं। इसका अर्थ यह है कि व्यक्ति चाहे किसी अन्य जाति के ढंगों को तो अपना लेता है, परन्तु वह अपनी जाति को छोड़कर दूसरी जाति में शामिल नहीं हो सकता। व्यक्ति को उस जाति में तमाम आयु रहना पड़ता है जिसमें उसने जन्म लिया है। चाहे किसी कबीले का व्यक्ति किसी जाति के व्यक्ति के जीवन जीने के ढंगों को अपना ले, परन्तु वह उस जाति का सदस्य नहीं बन सकता।

8. संस्कृतिकरण सामहिक गतिशीलता है (Sanskritization is a group mobility)-संस्कृतिकरण की प्रक्रिया एक व्यक्ति अथवा परिवार से सम्बन्धित नहीं होती बल्कि एक समूह अथवा जाति से सम्बन्धित होती है। इस प्रक्रिया की सहायता से सामूहिक तौर पर कोई जाति, जनजाति अथवा समूह जातीय संस्तरण के पदक्रम में अपनी वर्तमान स्थिति से ऊँचा उठ कर ऊँची स्थिति को प्राप्त करने का प्रयास करते हैं। इस प्रकार यह एक व्यक्तिगत प्रक्रिया नहीं बल्कि सामूहिक प्रक्रिया है।

9. संस्कृतिकरण सामाजिक गतिशीलता से सम्बन्धित होती है (Sanskritization is related with social mobility)-संस्कृतिकरण का सम्बन्ध सामाजिक गतिशीलता से होता है। संस्कृतिकरण की प्रक्रिया गतिशीलता को जन्म देती है। गतिशीलता प्रत्येक प्रकार के समाजों, बंद समाजों जैसे कि भारत तथा खुले समाजों जैसे कि अमेरिका, में भी मिलती है। इसके परिणामस्वरूप कई बार व्यक्ति समाज में अपनी वर्तमान स्थिति से ऊपर की स्थिति की तरफ अधिकार जताने लग जाता है। वह होते तो किसी जाति के हैं तथा लिखते किसी अन्य जाति के हैं।

प्रश्न 2.
संस्कृतिकरण के स्रोतों का वर्णन करें।।
उत्तर-
श्रीनिवास के अनुसार संस्कृतिकरण की प्रक्रिया के कई स्रोत हैं जिनका वर्णन इस प्रकार है

1. संचार तथा यातायात के साधनों का विकास (Development of means of communication and transport)-भारतीय समाज में औद्योगीकरण के बढ़ने से यातायात तथा संचार के साधन भी विकसित होने शुरू हो गए जिस कारण देश के अलग-अलग भागों में उद्योगों का विकास होना शुरू हो गया। उद्योगों के विकास से यातायात के साधन विकसित होने शुरू हो गए जिससे लोग एक स्थान से दूसरे स्थान पर आसानी से जाना शुरू हो गए। इससे अलग-अलग जातियों में सम्पर्क शुरू हो गए तथा वह इकट्ठे मिल कर रेलगाड़ियों, बसों में सफर करने लग गए। इस प्रकार अलग-अलग जातियों की संस्कृतियों के बीच विचारों, ढंगों का लेनदेन शुरू हुआ जिससे जातियों के सात्मीकरण की प्रक्रिया शुरू हो गई। क्योंकि लोग इकट्ठे सफर करने लग गए इसलिए जाति प्रथा की पवित्रता अपवित्रता के संकल्प को कायम रखना मुश्किल हो गया।

इस प्रकार यातायात तथा संचार के साधनों के विकास ने संस्कृतिकरण की प्रक्रिया के साथ-साथ सम्पूर्ण देश में इस प्रक्रिया को प्रभावित किया। इन साधनों की सहायता से संस्कृतिकरण की प्रक्रिया सम्पूर्ण देश में फैल गई। अब हम कोई भी चीज़ खरीदने से पहले दुकानदार से यह नहीं पूछते कि वह किस जाति का है। इन साधनों की सहायता से लोग अपने घरों से बाहर निकल आए तथा दूर-दूर के लोगों से सम्पर्क रखने लग गए। इस प्रकार संस्कृतिकरण की प्रक्रिया को फैलाने में इन साधनों की काफ़ी बड़ी भूमिका रही है।

2. शहरीकरण का बढ़ना (Increasing Urbanization)-1947 के बाद भारत में उद्योगों का विकास तेज़ी से हुआ जिस कारण कई शहर अस्तित्व में आए। शहरों में बहुत-सी जातियों, धर्मों के लोग रहते हैं तथा वहां की जनसंख्या भी काफ़ी अधिक होती है। शहरों में रहने वाले लोगों को यह तक पता नहीं होता कि उनका पड़ौसी कौन है तथा वह किस जाति का है। इन स्थितियों का फायदा उन्होंने उठाया जो जातीय संस्तरण में निम्न स्थानों पर थे। वह जब शहरों की तरफ गए तो उन्होंने अपने आप को आदर्श जाति का सदस्य बताना शुरू कर दिया। उन्होंने आदर्श जाति के लोगों के जीवन ढंगों को अपनाना शुरू कर दिया। शहरों में वर्ग व्यवस्था का अधिक महत्त्व होता है तथा लोग व्यक्ति की जाति नहीं बल्कि उसकी सामाजिक स्थिति को देखकर उसका सम्मान करते हैं। इस प्रकार शहरीकरण की प्रक्रिया के बढ़ने से संस्कृतिकरण की प्रक्रिया काफ़ी प्रभावित हुई है।

3. धार्मिक तथा सामाजिक सुधार आन्दोलन (Socio-religious reform movements)—जाति प्रथा ने भारतीय समाज को हजारों वर्षों से जकड़ा हुआ था। इसके बंधन इतने मज़बूत थे कि कोई भी इस व्यवस्था के विरुद्ध नहीं जा सकता था। अगर कोई इसके विरुद्ध जाता था तो उसे जाति से बाहर निकाल दिया जाता था। वह जातियां तो बहुत ही तंग थीं जिनका सदियों से शोषण होता आया था। जाति व्यवस्था के प्रतिबंधों के कारण ही यह लोग सामाजिक व्यवस्था में भी ऊपर नहीं उठ सकते थे। इसलिए जाति प्रथा के विरुद्ध कई सामाजिक तथा धार्मिक आन्दोलन शुरू हुए तथा बहुत से समाज सुधारकों ने इनका विरोध किया। राजा राम मोहन राए, स्वामी दयानंद सरस्वती, ज्योतिबा फूले इत्यादि ने भी कई सामाजिक आन्दोलन शुरू किए। यह सभी सामाजिक आन्दोलन जाति प्रथा को कमजोर करना चाहते थे।
उन्होंने शोषित जातियों तथा स्त्रियों की स्थिति को ऊपर उठाने के बहुत प्रयास किए। महात्मा गांधी तथा डॉ० बी० आर० अंबेदकर ने भी इस कार्य में काफ़ी योगदान दिया। महात्मा गांधी ने शोषित जातियों को ‘हरिजन’ का नया नाम दिया। आर्य समाज तथा ब्रह्मों समाज ने जाति प्रथा तथा भेदभाव का काफ़ी विरोध किया। उन्होंने उच्च जातियों की सर्वोच्चता खत्म करने के प्रयास किए। इन समाज सुधारकों ने लोगों को जागृत करने के प्रयास किए। अन्तर्जातीय विवाह भी इन आन्दोलनों के कारण शुरू हुए। इस प्रकार जाति प्रथा के बंधनों में कमी आई तथा संस्कृतिकरण की प्रक्रिया को उत्साह प्राप्त हुआ।

4. पश्चिमी शिक्षा (Western Education) अंग्रेजों के भारत आने से पहले शिक्षा धर्म पर आधारित होती थी। परन्तु अंग्रेजों ने भारत आने के बाद सबसे पहले भारत में अपनी संस्कृति को लागू करने का प्रयास किया। उन्होंने सभी जातियों के लोगों के साथ समानता का व्यवहार करना शुरू किया। उन्होंने स्कूल, कॉलेज खोले तथा प्रत्येक जाति के व्यक्तियों के लिए शिक्षा का प्रबन्ध किया। अंग्रेज़ों से पहले भारत में धार्मिक शिक्षा दी जाती थी, परन्तु उन्होंने पश्चिमी शिक्षा देनी शुरू की जो कि विज्ञान तथा तर्क के ऊपर आधारित थी। उन्होंने बहुत-सी शैक्षिक संस्थाएं शुरू की जहां प्रत्येक जाति का व्यक्ति शिक्षा प्राप्त कर सकता था। उनसे पहले स्त्रियों को शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार नहीं था, परन्तु अंग्रेज़ों ने लड़कियों के लिए स्कूल, कॉलेज शुरू किए। बहुत से स्कूलों, कालेजों में लड़के, लड़कियाँ इकट्ठे शिक्षा प्राप्त करते थे। इस प्रकार पश्चिमी शिक्षा व्यवस्था ने जाति प्रथा के भेदभाव तथा उच्चता निम्नता की भावना को खत्म किया। इससे संस्कृतिकरण की प्रक्रिया को उत्साह प्राप्त हुआ तथा प्राचीन भारतीय सामाजिक कीमतों में परिवर्तन आया।

5. अलग-अलग पेशे (Different Occupations)-जाति व्यवस्था की एक अन्य महत्त्वपूर्ण विशेषता थी कि इसमें व्यक्ति को अपनी जाति का ही पेशा अपनाना पड़ता था। उसका पेशा उसकी इच्छा पर नहीं बल्कि उसकी जाति पर निर्भर करता था। वह तमाम आयु उस पेशे को बदल नहीं सकता था। परन्तु अंग्रेज़ों के आने के पश्चात् भारत में बड़े-बड़े उद्योग शुरू हुए। उत्पादन घरों से निकल कर कारखानों में चला गया। इससे समाज में पूंजीवादी व्यवस्था शुरू हुई तथा बहुत से पेशे अस्तित्व में आ गए। उद्योगों में श्रम विभाजन तथा विशेषीकरण को महत्त्व हुआ। अब प्रत्येक व्यक्ति अपनी योग्यता तथा इच्छा के अनुसार पेशे को अपना सकता है। व्यक्ति अपनी इच्छा के अनुसार शिक्षा लेकर तथा उसके अनुसार पेशे को अपना सकता है। समाज में बहुत से पेशे सामने आए। इस प्रकार बहुत से पेशों के आगे आने के कारण जाति प्रथा में बंधन कमज़ोर पड़ गए जिससे संस्कृतिकरण की प्रक्रिया को बल मिला।

6. नयी आर्थिक व्यवस्था (New Economic System)-भारतीय समाज को बदलने में अंग्रेज़ी सरकार की बहुत बड़ी भूमिका रही है। अंग्रेजों से पहले व्यक्ति को अपनी जाति का पेशा अपनाना पड़ता था। व्यक्ति ने जिस जाति में जन्म लिया है, उसे उस जाति का ही पेशा अपनाना पड़ता था। परन्तु अंग्रेजों के भारत आने के पश्चात् यहां बहुत से उद्योग स्थापित हुए। उत्पादन बड़े पैमाने पर होने लगा। उद्योगों के कारण घरेलू उत्पादन खत्म हो गया जिस कारण उन्हें घरों से बाहर निकलकर अन्य पेशों को अपनाना पड़ गया।

इससे समाज में पैसे का महत्त्व बढ़ गया। व्यक्ति अब पैसा कमाने के लिए कोई भी कार्य कर लेता है। व्यक्ति को अब पैसे के आधार पर सामाजिक स्थिति प्राप्त होती है। इस प्रकार व्यक्ति की स्थिति पैसे से जुड़ गई है। जिस व्यक्ति के पास अधिक पैसा होता है उसकी स्थिति तथा सम्मान समाज में अधिक होता है। व्यक्ति को पैसा कमाने के बहुत से मौके प्राप्त हुए। इससे लोगों के रहने-सहने के स्तर में काफ़ी अन्तर आ गया। इस नई आर्थिक व्यवस्था से अस्पृश्यता जैसी समस्या तो बिल्कुल ही खत्म हो गई। अलग-अलग जातियों के बीच में से अन्तर भी खत्म हो गया। नई आर्थिक व्यवस्था ने संस्कृतिकरण की प्रक्रिया को बल दिया तथा इसका प्रभाव बढ़ गया।

7. नई कानून व्यवस्था (New Legal System)-भारत में आने के पश्चात् अंग्रेजों ने नई कानून व्यवस्था शुरू की तथा प्रत्येक जाति के लोगों से समानता का व्यवहार करना शुरू किया। प्राचीन भारतीय समाज में एक ही अपराध के लिए अलग-अलग जातियों के लोगों को अलग-अलग सज़ा मिलती थी। अंग्रेजों ने इस व्यवस्था को खत्म कर दिया। 1947 के बाद तो इस व्यवस्था को पूर्ण रूप से खत्म कर दिया। भारत का नया संविधान बनाया गया जिससे संस्कृतिकरण की प्रक्रिया को बल मिला। सरकार ने शोषित वर्गों को ऊँचा उठाने के बहुत प्रयास किए। उनके लिए सरकारी नौकरियों तथा शैक्षिक संस्थाओं में स्थान आरक्षित रखे गए तथा उन्हें नौकरियां भी दी गईं।

बहुत से कानून बनाए गए जिससे जाति व्यवस्था प्रभावित हुई। 1955 में Untouchability Offence Act पास हुआ जिसके अनुसार अस्पृश्यता को कानूनी तौर पर अपराध घोषित कर दिया गया। 1954 में Special Marriage Act के पास होने से अन्तर्जातीय विवाह को मान्यता प्राप्त हुई तथा अन्तर्विवाह के नियम को खत्म करने का प्रयास किया गया। 1937 में Arya Marriage Validation Act पास हुआ जिसके अनुसार दो आर्य समाजियों को आपस में विवाह करवाने की मंजूरी मिल गई। संविधान ने किसी भी व्यक्ति के साथ लिंग, धर्म, जाति के आधार पर भेदभाव करने की पाबंदी लगा दी। शोषित जातियों के लोगों को बहुत-सी सुविधाएं दी गईं। इस प्रकार नई कानून व्यवस्था ने संस्कृतिकरण की प्रक्रिया को प्रभावित किया।

8. राजनीतिक प्रभाव (Political Effect) स्वतन्त्रता के बाद भारत में नई लोकतान्त्रिक कद्रों-कीमतों का विकास हआ। संविधान ने देश के प्रत्येक नागरिक को कई प्रकार के राजनीतिक अधिकार दिए। पिछड़ी जातियों के लोगों को आगे बढ़ने के बहुत से मौके प्राप्त हुए। जाति प्रथा के भेदभावों को खत्म करने के लिए राजनीतिक जागति को लाया गया। स्वतन्त्रता प्राप्त करने के लिए कई राजनीतिक दल बनाए गए जिनमें सभी जातियों के लोगों ने मिलजुल कर भाग लिया। लोग इकट्ठे मिल कर जेलों में गए तथा इकट्ठे ही रहे। इस स्थिति में जाति व्यवस्था के भेदभावों का खात्मा होना शुरू हो गया। अब पिछड़े वर्ग की राजनीतिक तौर पर बहुत महत्ता है। इतनी संख्या काफी अधिक है जिस कारण इन्हें काफ़ी महत्त्व दिया जाता है। इनके लिए संसद् तथा राज्य विधान सभाओं में स्थान आरक्षित रखे गए हैं। यही कारण था कि पिछड़े तथा शोषित वर्गों के लिए अपने आदर्श वर्गों के जीवन ढंगों को अपनाना आसान हो गया तथा संस्कृतिकरण की प्रक्रिया काफ़ी बढ़ गई।

9. आधुनिक शिक्षा (Modern Education)-प्राचीन समय में शिक्षा धर्म के आधार पर दी जाती थी। अंग्रेज़ों ने भारत आने के पश्चात् पश्चिमी शिक्षा के ऊपर काफ़ी बल दिया तथा बहुत से स्कूल, कॉलेज शुरू किए। स्वतन्त्रता के बाद संविधान में भी कहा गया कि शिक्षा धर्म के आधार पर नहीं बल्कि सैकुलर आधार पर दी जाएगी। इस कारण अब शिक्षा सैकुलर आधार पर दी जाती है। नई शिक्षा का सबसे पहला मूल मन्त्र यह है कि सभी व्यक्ति समान हैं। शिक्षा से ही व्यक्ति जाति प्रथा के बन्धनों को तोड़ कर बाहर निकलता है। शिक्षा से व्यक्ति उच्च पद प्राप्त कर लेता है तथा अपनी स्थिति भी बदल लेता है। शिक्षा लेकर व्यक्ति धीरे-धीरे समाज में अपनी स्थिति तथा जाति को सुधार लेता है। इस प्रकार आधुनिक शिक्षा भी संस्कृतिकरण का स्रोत है।

पश्चिमीकरण एवं संस्कृतिकरण PSEB 12th Class Sociology Notes

  • संस्कृति स्वयं उत्पन्न नहीं होती बल्कि यह सीखा हुआ व्यवहार है। पश्चिमीकरण तथा संस्कृतिकरण ऐसी दो सांस्कृतिक प्रक्रियाएं हैं जिन्होंने भारतीय समाज को काफ़ी अधिक प्रभावित किया है।
  • पश्चिमीकरण का सिद्धांत एम० एन० श्रीनिवास (M. N. Srinivas) ने दिया था। उनके अनुसार पश्चिमीकरण वह प्रक्रिया है जिसने पिछले 150 वर्षों के दौरान अंग्रेज़ी शासन के समय भारतीय समाज के अलग-अलग क्षेत्रों जैसे कि तकनीक, संस्थाएं, विचारधारा, मूल्यों इत्यादि में परिवर्तन ला दिया था।
  • पश्चिमीकरण की प्रक्रिया जनसंख्या के किसी विशेष समूह तक ही सीमित नहीं थी। जिन लोगों ने पश्चिमी शिक्षा प्राप्त की तथा जिन्होंने सरकारी नौकरियां करनी शुरू कर दी, वह इस प्रक्रिया से काफ़ी अधिक प्रभावित हुए।
  • पश्चिमीकरण की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने में बहुत-से समाज-सुधारकों ने काफ़ी बड़ी भूमिका अदा की। उन्होंने कई समाज सुधार आंदोलन चलाए तथा समाज में बहुत से परिवर्तन आए।
  • पश्चिमीकरण का भारतीय समाज पर काफ़ी प्रभाव पड़ा जैसे कि जातिगत अंतरों की कमी, शिक्षा का बढ़ना, रहने-सहने तथा खाने-पीने में परिवर्तन, यातायात व संचार के साधनों का विकास, स्त्रियों की स्थिति में परिवर्तन इत्यादि।
  • संस्कृतिकरण की प्रक्रिया जाति व्यवस्था से जुड़ी हुई है तथा यह संकल्प भी एम० एन० श्रीनिवास ने दिया था। उनके अनुसार जब निम्न जातियों के लोग उच्च जातियों के रहने सहने, खाने-पीने के ढंगों को अपनाकर अपनी जाति परिवर्तन करने का प्रयास करती है तो इस प्रक्रिया को संस्कृतिकरण कहते हैं।
  • श्रीनिवास ने ब्राह्मणीकरण के स्थान पर संस्कृतिकरण शब्द का प्रयोग किया क्योंकि यह आवश्यक नहीं है कि जिस जाति की नकल की जा रही है, वह ब्राह्मण ही हो। वह क्षत्रिय या वैश्य भी हो सकते हैं।
  • भारतीय ग्रामीण समाज में एक अन्य संकल्प सामने आता है जिसे प्रबल जाति कहते हैं। श्रीनिवास के अनुसार
    प्रबल जाति वह है जिसके पास गाँव की सबसे अधिक भूमि होती है, जिसकी जनसंख्या अधिक होती है तथा जो स्थानीय संस्तरण में ऊँचा स्थान रखती है।
  • संदर्भ समूह (Reference Group)—वह समूह जिसके अनुसार व्यक्ति अपने व्यवहार के तौर-तरीकों, खाने-पीने के ढंग, रहने के ढंग इत्यादि के अनुसार ढालता है।
  • द्विज (Twice Born)-हिंदू समाज की प्रथम तीन जातियों को द्विज कहा जाता है। उन्हें जनेऊ संस्कार पूर्ण करना पड़ता था।
  • ऊर्ध्वगामी सामाजिक गतिशीलता (Vertical Social Mobility) ऊर्ध्वगामी सामाजिक गतिशीलता का अर्थ है व्यक्तियों अथवा समूहों का एक स्थिति से दूसरी स्थिति में जाना। इसमें वर्ग, व्यवसाय तथा स्थिति में परिवर्तन शामिल है।
  • पदक्रम (Hierarchy)—समूह में स्थितियों की वह व्यवस्था जिससे व्यक्तियों की स्थिति निश्चित होती थी।

Leave a Comment