Punjab State Board PSEB 12th Class Sociology Book Solutions Chapter 11 कन्या भ्रूण हत्या तथा घरेलू हिंसा Textbook Exercise Questions and Answers.
PSEB Solutions for Class 12 Sociology Chapter 11 कन्या भ्रूण हत्या तथा घरेलू हिंसा
पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न (TEXTUAL QUESTIONS)
I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न
A. बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1.
2011 की जनगणना के अनुसार भारत में लिंग अनुपात क्या है ?
(क) 939
(ख) 940
(ग) 943
(घ) 942.
उत्तर-
(ग) 943.
प्रश्न 2.
लिंग अनुपात को परिभाषित किया जा सकता है :
(क) 1000 पुरुषों के पीछे स्त्रियों की संख्या
(ख) 1000 स्त्रियों के पीछे पुरुष
(ग) 1000 पुरुषों के पीछे बच्चों की संख्या
(घ) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
उत्तर-
(क) 1000 पुरुषों के पीछे स्त्रियों की संख्या।
प्रश्न 3.
पंजाब में सबसे अधिक लिंग अनुपात जिस जिले में है वह है :
(क) फिरोज़पुर
(ख) बठिण्डा
(ग) होशियारपुर
(घ) लुधियाना।
उत्तर-
(ग) होशियारपुर।
प्रश्न 4.
कन्या भ्रूण हत्या की जाँच में शामिल है :
(क) अल्ट्रा साऊण्ड
(ख) एम० आर० आई०
(ग) एक्स-रे
(घ) भार तोलने वाली मशीन।
उत्तर-
(क) अल्ट्रा साऊण्ड।
प्रश्न 5.
कन्या भ्रूण हत्या का प्रमुख कारण क्या है ?
(क) बढ़ता हुआ लिंग अनुपात
(ख) पितृपक्ष की प्रबलता
(ग) लड़कियों के प्रति प्राथमिकता
(घ) कोई नहीं।
उत्तर-
(ख) पितृपक्ष की प्रबलता।
प्रश्न 6.
घरेलू हिंसा का कौन-सा प्रकार नहीं है :
(क) कानूनी
(ख) शारीरिक दुर्व्यवहार
(ग) समाज
(घ) आर्थिक।
उत्तर-
(घ) आर्थिक।
प्रश्न 7.
कौन-सा तत्त्व घरेलू हिंसा के लिए दोषी नहीं है ?
(क) सांस्कृतिक
(ख) आर्थिक
(ग) सामाजिक
(घ) बाल मनोवैज्ञानिक।
उत्तर-
(घ) बाल मनोवैज्ञानिक।
प्रश्न 8.
वह अधिनियम जिसके अन्तर्गत एक बेटी को पिता की सम्पत्ति में समान हिस्से का अधिकार है :
(क) कानूनी सम्पत्ति अधिनियम
(ख) हिन्दू सम्पत्ति अधिनियम
(ग) सिविल अधिनियम
(घ) दैविक अधिनियम।
उत्तर-
(ख) हिन्दू सम्पत्ति अधिनियम।
B. रिक्त स्थान भरें-
1. लिंग जाँच सम्बन्धी टैस्ट में .. ……………… शामिल है।
2. …………….. कन्या भ्रूण हत्या के कारणों में एक प्रमुख कारण हैं।
3. भारतीय समाज में कन्या भ्रूण हत्या के लिए …………………… जैसी गलत प्रथा का चलना ज़िम्मेदार है।
4. …………….. भारत में लगातार कम हो रहा है, जबकि थोड़ा सुधार ……………… राज्य में है।
5. …………………… को समुचित रूप से लागू किया जाए ताकि कन्या भ्रूण हत्या का मुकाबला हो सके।
6. …………………… दुर्व्यवहार के अन्तर्गत कई प्रकार से सज़ा या दण्ड देना जैसे मारना, तमाचा लगाना, चूंसा लगाना, धकेलना एवं अन्य प्रकार का शारीरिक सम्पर्क शामिल हैं जिसके परिणामस्वरूप पीड़ित के शरीर को चोट पहँचे।
7. वो दम्पति जो अकेले अथवा बच्चों के साथ रहते हैं अथवा एक व्यक्तिगत अभिभावक बच्चों के साथ रहते हैं, उसे ………….. परिवार कहते हैं।
8. ……………… को स्कूल, कॉलेज एवं विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम का ज़रूरी अंग बनाना चाहिए।
9. ………………….. को सामाजिक तौर पर अस्वीकृत व दुर्व्यवहारपूर्ण व्यवहार के रूप में परिभाषित किया जाता है एक या दूसरे या दोनों सदस्यों द्वारा विवाह घनिष्ठ सम्बन्ध में बंधे हो, पाया जाता है।
उत्तर-
- अल्ट्रा साऊंड,
- पितृ पक्ष प्रबलता,
- दहेज,
- लिंगानुपात, पंजाब,
- कानून,
- शारीरिक,
- केन्द्रीय,
- लैंगिक तथा मानवीय अधिकार,
- घरेलू हिंसा।
C. सही/ग़लत पर निशान लगाएं-
1. अल्ट्रा साऊंड लिंग निर्धारण के लिए पूर्व निदानात्मक जाँच है।
2. कन्या भ्रूण हत्या के विषय में जनचेतना के लिए कानून सहायता नहीं करता है।
3. जनगणना 2011 के अनुसार, भारत में लिंग अनुपात में सुधार हुआ है।
4. कन्या भ्रूण हत्या के दुष्प्रभावों को चेतना कार्यक्रमों द्वारा समझाया जा सकता है।
5. सांस्कृतिक व परम्परागत रूढ़ियों का कन्या भ्रूण हत्या पर कोई प्रभाव नहीं है।
6. नवविवाहित दम्पत्ति को जागरूक होना चाहिए कि एक छोटे परिवार में मात्र लड़कों का होना ही ज़रूरी नहीं है।
7. दहेज का लालच, लड़के के जन्म की इच्छा व पति द्वारा मदिरा सेवन करना गाँव में महिलाओं के विरुद्ध हिंसा के प्रमुख कारण हैं।
8. पत्नी को पीटना घरेलू हिंसा को नहीं दर्शाता। 9. घरेलू हिंसा का इतिहास पूर्व ऐतिहासिक युग से पीछे देखा जा सकता है।
10. पति-पत्नी द्वारा घरेलू हिंसा परिवार के बच्चों पर कुप्रभाव डालती है।
उत्तर-
- सही
- गलत
- सही
- सही
- गलत
- सही
- सही
- गलत
- सही
- सही।
D. निम्नलिखित शब्दों का मिलान करें-
कॉलम ‘ए’ — कॉलम ‘बी’
कन्या भ्रूण हत्या — लड़कियों की हत्या
लिंग अनुपात — विवाहित बलात्कार
पितृपक्ष की प्रबलता — कन्या भ्रूण की माँ के गर्भ में हत्या
कन्या शिशु वध — 1000 पुरुषों के पीछे स्त्रियों की संख्या
घरेलू हिंसा का प्रकार — पुरुषों का हावी प्रभाव।
उत्तर-
कॉलम ‘ए’–कॉलम ‘बी’
कन्या भ्रूण हत्या –कन्या भ्रूण की माँ के गर्भ में हत्या
लिंग अनुपात — 1000 पुरुषों के पीछे स्त्रियों की संख्या
पितृपक्ष की प्रबलता — पुरुषों का हावी प्रभाव
कन्या शिशु वध — लड़कियों की हत्या
घरेलू हिंसा का प्रकार — विवाहित बलात्कार।
II. अति लघु उत्तरों वाले प्रश्न-
प्रश्न 1. भारत की 2011 की जनसंख्या के अनुसार लिंग अनुपात क्या है ?
उत्तर-1000 : 943
प्रश्न 2. पंजाब की 2011 की जनसंख्या के अनुसार लिंग अनुपात क्या है ?
उत्तर-1000 : 895
प्रश्न 3. पंजाब के किस जिले में लिंग अनुपात सर्वाधिक व किस जिले में न्यूनतम है ?
उत्तर-होशियारपुर (961) में सबसे अधिक तथा बठिण्डा (869) में सबसे कम लिंग अनुपात है।
प्रश्न 4. पी०एन०डी०टी० का पूरा नाम क्या है ?
अथवा P.N.D.T. का पूरा अनुवाद लिखो।
उत्तर-Pre-Natal Diagnostic Techniques.
प्रश्न 5. घरेलू हिंसा से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-घरेलू हिंसा सामाजिक रूप से अमान्य व ग़लत व्यवहार है जो व्यक्ति अपने सबसे नज़दीकी रिश्तेदारों से करता है जैसे कि पत्नी या परिवार।
प्रश्न 6. घरेलू हिंसा के किन्हीं दो कारणों का उल्लेख करें।
उत्तर-स्त्रियों की पुरुषों पर आर्थिक निर्भरता तथा स्त्रियों की निम्न आर्थिक स्थिति घरेलू हिंसा के मुख्य कारण हैं।
प्रश्न 7. कन्या भ्रूण हत्या से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-लिंग निर्धारण परीक्षण के बाद माँ के गर्भ में ही लड़की को मार देने को कन्या भ्रूण हत्या कहते हैं।
प्रश्न 8. पत्नी को पीटने के कारणों का उल्लेख करें।
उत्तर-पुरुष प्रधान समाज, पुरुषों का स्त्रियों से शक्तिशाली होना, स्त्रियों की पुरुषों पर आर्थिक निर्भरता, नशा करना, स्त्रियों की अनपढ़ता, मर्दानगी दिखाना इत्यादि।
III. लघु उत्तरों वाले प्रश्न
प्रश्न 1.
कन्या भ्रूण हत्या की परिभाषा दें।
उत्तर-
स्त्री के गर्भवती होने पर बच्चे का लिंग निर्धारण टैस्ट माँ के गर्भ में ही करवा लिया जाता है तथा लड़की होने की स्थिति में गर्भपात करवा दिया जाता है। इसे ही कन्या भ्रूण हत्या कहते हैं। लिंग निर्धारण टैस्ट गर्भधारण के 18 हफ्ते के पश्चात् करवाया जाता है।
प्रश्न 2.
लिंग अनुपात की परिभाषा दें।
उत्तर-
स्त्रियों व पुरुषों के बीच समानता को देखने के लिए किसी स्थान का लिंग अनुपात देखना आवश्यक है। एक विशेष समय पर एक विशेष क्षेत्र में 1000 पुरुषों के पीछे स्त्रियों की संख्या को लिंग अनुपात कहते हैं। भारत में 2011 में यह 1000 : 943 था।
प्रश्न 3.
कन्या भ्रूण हत्या के दो कारण कौन-से हैं ?
उत्तर-
- दहेज-लड़की के विवाह के समय उसके ससुराल वालों को काफी दहेज देना पड़ता है तथा इससे बचने के लिए लोग कन्या भ्रूण हत्या करते हैं।
- लड़के की इच्छा-लोगों में लड़का प्राप्त करने की इच्छा होती है क्योंकि वह सोचते हैं कि लड़का बुढ़ापे . का सहारा बनेगा तथा मृत्यु के बाद चिता को आग देगा।
प्रश्न 4.
स्त्रियों का भारत में क्या स्थान है ?
उत्तर-
भारत में स्त्रियों की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। केवल 65% स्त्रियां ही साक्षर हैं। देश की अधिकतर बुराइयां स्त्रियों से जुड़ी हुई हैं जैसे कि बलात्कार, अपहरण, दहेज प्रथा, कन्या भ्रूण हत्या इत्यादि। इन सब बुराइयों के कारण आज भी स्त्रियों की स्थिति निम्न बनी हुई है।
प्रश्न 5.
भारत में लड़कों को क्यों प्राथमिकता दी जाती है ?
उत्तर-
लोगों में लड़का प्राप्त करने की इच्छा होती है। वह सोचते हैं कि उनके बुढ़ापे में लड़का उनका सहारा बनेगा तथा उनका ध्यान रखेगा। साथ ही उनकी मृत्यु के पश्चात् लड़का ही उनका अंतिम संस्कार करेगा। इसके साथ वह खानदान को भी आगे बढ़ाएगा।
प्रश्न 6.
घरेलू हिंसा के तीन कारणों का उल्लेख करें।
अथवा घरेलू हिंसा के दो कारण लिखें।
उत्तर-
- पुरुष स्त्रियों से अधिक शक्तिशाली होते हैं।
- स्त्रियां पुरुषों पर आर्थिक रूप से निर्भर होती हैं।
- स्त्रियों तथा बच्चों की स्थिति बढ़िया नहीं होती है।
प्रश्न 7.
घरेलू हिंसा व हिंसा के बीच के अन्तर को स्पष्ट करो।
उत्तर-
घरेलू हिंसा घर में पति-पत्नी, बच्चों, भाइयों की बीच होने वाली हिंसा को कहा जाता है तथा इस व्यवहार को समाज में मान्यता प्राप्त नहीं होती। हिंसा दो व्यक्तियों या समूहों के बीच होती है तथा वह अजनबी होते हैं। साम्प्रदायिक हिंसा इसकी काफ़ी महत्त्वपूर्ण उदाहरण है।
प्रश्न 8.
पत्नी को पीटने से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
पत्नी को पीटने का अर्थ है पति की तरफ से पत्नी के विरुद्ध शारीरिक हिंसा का प्रयोग करना। पति-पत्नी के ऊपर अपना अधिकार समझते हैं तथा सोचते हैं कि जो वह कहेंगे पत्नी को वह सब कुछ करना पड़ेगा। अगर वह मना करती है तो उसे पीटा जाता है जिसे पत्नी की पिटाई कहते हैं।
प्रश्न 9.
कन्या भ्रूण हत्या के लिए जिम्मेदार कारण कौन-कौन से हैं ?
उत्तर-
- दहेज-लड़की के विवाह के समय उसके ससुराल वालों को काफी दहेज देना पड़ता है तथा इससे बचने के लिए लोग कन्या भ्रूण हत्या करते हैं।
- लड़के की इच्छा-लोगों में लड़का प्राप्त करने की इच्छा होती है क्योंकि वह सोचते हैं कि लड़का बुढ़ापे . का सहारा बनेगा तथा मृत्यु के बाद चिता को आग देगा।
प्रश्न 10.
घरेलू हिंसा के परम्परागत सांस्कृतिक कारणों की सूची दें।
उत्तर-
घरेलू हिंसा के कई सांस्कृतिक कारण होते हैं जैसे कि लिंग आधारित समाजीकरण, लिंग आधारित भूमिका का विभाजन, सम्पत्ति पर लड़कों का अधिकार समझा जाता है। परिवारों में पुरुषों की भूमिका को महत्त्व देना, विवाह तथा दहेज प्रथा, संघर्ष खत्म करने के लिए हिंसा का प्रयोग इत्यादि।
IV. दीर्घ उत्तरों वाले प्रश्न
प्रश्न 1.
कन्या भ्रूण हत्या पर एक लघु निबन्ध लिखें।
उत्तर–
पिछले कुछ समय से विपरीत लिंग अनुपात का सबसे बड़ा कारण कन्या भ्रूण हत्या ही रहा है। इसका अर्थ है कि गर्भ में पल रही अजन्मी लड़की को गर्भ में ही मार देना। लोगों में लड़का प्राप्त करने की इच्छा होती है जिस कारण वह गर्भधारण के कुछ समय पश्चात् ही लिंग निर्धारण का टेस्ट करवाते हैं। अगर लड़का है तो ठीक है अगर लड़की है तो उसका गर्भपात करवा दिया जाता है। इस प्रकार लड़की को जन्म से पहले ही मार दिया जाता है। इसे ही कन्या भ्रूण हत्या कहा जाता है। इस प्रकार लड़कियों की संख्या कम हो जाती है तथा लिंग अनुपात बिगड़ जाता है।
प्रश्न 2.
कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के दो प्रमुख उपायों की चर्चा करें।
उत्तर-
- भारत सरकार ने कई कानून पास किए हैं तथा भारतीय दण्ड संहिता के सैक्शन 312-316 में प्रावधान रखे गए कि किसी स्त्री का जबरदस्ती गर्भपात नहीं करवाया जाएगा।
- सरकार ने कन्या भ्रूण हत्या की बढ़ रही संख्या को रोकने के लिए 1994 में Pre-Natal Diagnostic Techniques (Regulation and Prevention of Misuse) Act, 1994 पास किया था जिसके अनुसार लिंग निर्धारण का टैस्ट करवाना गैर-कानूनी घोषित कर दिया गया। अगर कोई ऐसा टैस्ट करेगा तो उसके लिए सज़ा का प्रावधान भी रखा गया।
प्रश्न 3.
कन्या भ्रूण हत्या के दो दुष्परिणामों की चर्चा करें।
अथवा कन्या भ्रूण हत्या के प्रभाव बताइए।
उत्तर-
- स्त्रियों के स्वास्थ्य पर प्रभाव-उस स्त्री का लगातार गर्भपात करवाया जाता है जब तक कि उसके गर्भ में लड़का न आ जाए। इसका उसकी तथा होने वाले बच्चे के स्वास्थ्य पर काफ़ी बुरा प्रभाव पड़ता है।
- लिंग अनुपात पर प्रभाव-कन्या भ्रूण हत्या का लिंग अनुपात पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। इससे लड़कियों की संख्या कम हो जाती है तथा कई अन्य समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं जैसे कि लड़कियों से जबरदस्ती करना, बहुओं को जलाना, बहुविवाह, बलात्कार, वेश्यावृत्ति इत्यादि।
प्रश्न 4.
भारत में लिंग अनुपात कम क्यों हो रहा है ? वर्णन करें।
उत्तर-
- लोगों में लड़का प्राप्त करने की इच्छा होती है जिस कारण वह लड़का प्राप्त करने के प्रयास करते रहते हैं।
- देश में कन्या भ्रूण हत्या के बढ़ने से ही लिंग अनुपात कम हो रहा है।
- लड़कियों को जन्म के पश्चात् मार देने की प्रथा भी लिंग अनुपात के कम होने के लिए उत्तरदायी है।
- परम्परागत समाजों की प्रवृत्ति के कारण भी ऐसा होता है।
- लड़की को विवाह के समय दहेज देना पड़ता है जिस कारण लोग लड़की के स्थान पर लड़के की इच्छा रखते हैं।
- लोग सोचते हैं कि उनका बेटा खानदान आगे बढ़ाएगा जिस कारण लोग लड़कियों को पैदा होने से पहले ही मार देते हैं।
प्रश्न 5.
कन्या भ्रूण हत्या को बढ़ावा देने वाली दो सामाजिक समस्याओं के नाम लिखें।
उत्तर-
- दहेज-लड़की के विवाह के समय दहेज देना पड़ता है जो हमारे समाज की एक बहुत बड़ी समस्या है। दहेज न देना पड़े इस कारण लोग कन्या भ्रूण हत्या करते हैं ताकि लड़के के विवाह के समय दहेज घर में आए।
- स्त्रियों के प्रति हिंसा-सम्पूर्ण विश्व के लगभग सभी समाजों में स्त्रियों को कई प्रकार की हिंसा का सामना करना पड़ता है; जैसे कि बलात्कार, अपहरण, दहेज हत्या, वेश्यावृत्ति, पत्नी की पिटाई इत्यादि। इनसे बचने के लिए भी लोग भ्रूण हत्या करते हैं।
प्रश्न 6.
घरेलू हिंसा के कारणों का वर्णन करें।
अथवा
घरेलू हिंसा के दो कारण लिखें।
उत्तर-
- लोग परेशानी से दूर होने के लिए मद्यपान करते हैं। जब पत्नी तथा बच्चे उसे मद्यपान करने से रोकते हैं तो वह उन्हें पीटता है तथा घरेलू हिंसा को बढ़ाता है।
- कई लोग प्राकृतिक रूप से ही गुस्से वाले होते हैं तथा छोटी-छोटी बात पर गुस्सा करके बच्चों को पीट देते हैं।
- कई लोग नशीले पदार्थों का प्रयोग करते हैं। अगर उन्हें नशीले पदार्थ खरीदने के लिए पैसा नहीं मिलता तो वे घर वालों के साथ मार-पीट करते हैं। (iv) निर्धनता के कारण लोग गुस्से में रहते हैं तथा गुस्से में कई बार पत्नी व बच्चों को पीट देते हैं।
प्रश्न 7.
पत्नी के उत्पीड़न को रोकने के लिए क्या उपाय हैं ? वर्णन करें।
उत्तर-
- सरकार ने कानून तो बनाए हैं परन्तु वह सही ढंग से लागू नहीं हो सके हैं। इन कानूनों को ठीक ढंग से लागू करना चाहिए ताकि ऐसा करने वालों से ठीक ढंग से निपटा जा सके।
- पुलिस को घरेलू हिंसा के मामलों को ध्यान से देखना चाहिए। पुलिस वालों को ऐसे केसों से निपटने के लिए विशेष ट्रेनिंग दी जानी चाहिए।
- बच्चों को, नौजवानों को घरेलू हिंसा के विरुद्ध शिक्षा देनी चाहिए ताकि लोगों को मानसिक रूप से तैयार किया जाए तथा वह घरेलू हिंसा न करें।
प्रश्न 8.
कन्या भ्रूण हत्या के उन्मूलन के लिए कानूनी सुधारों की सूची बनाएं।
उत्तर-
- भारतीय दण्ड संहिता के सैक्शन 312-316 के अनुसार गर्भपात करवाना गैर-कानूनी है। अगर कोई जबरदस्ती गर्भपात करवाता है तो उसके लिए सज़ा का प्रावधान भी है।
- The Medical Termination of Pregnancy Act 1971 के अनुसार कानून को थोड़ा नर्म किया गया तथा मैडीकल आधार पर, मानवता या किसी अन्य आधार पर गर्भपात की आज्ञा दी गई।
- कन्या भ्रूण हत्या का मुख्य आधार बच्चे का लिंग निर्धारण है। इसलिए Pre-Natal Diagnostic Techniques (Regulation and Prevention of Misuse) Act, 1994 पास किया गया तथा लिंग निर्धारण करना गैर-कानूनी घोषित कर दिया गया। अगर कोई अल्ट्रा साऊंड सैटर लिंग निर्धारण करेगा तो उसे बंद करने तथा सजा का भी प्रावधान रखा गया।
प्रश्न 9.
घरेलू हिंसा के कुप्रभाव क्या हैं ?
उत्तर-
- इसका स्त्री के स्वास्थ्य पर काफ़ी गलत प्रभाव पड़ता है। स्त्री को शारीरिक व मानसिक परेशानी झेलनी पड़ती है। इसका पारिवारिक वातावरण पर भी गलत प्रभाव पड़ता है।
- पत्नी की पिटाई का बच्चों पर भी गलत प्रभाव पड़ता है। बच्चों का रोज़ाना काम-काज प्रभावित होता है, उनकी शिक्षा प्रभावित होती है। घर में माँ से होती हिंसा देखकर वे पिता से नफ़रत करने लग जाते हैं तथा उनमें नकारात्मक व्यवहार जुड़ जाता है।
- जिस स्त्री के साथ घरेलू हिंसा होती है वह हमेशा मानसिक तनाव में रहती है जिस से घर के सभी पक्ष प्रभावित होते हैं। इस मानसिक तनाव से उन्हें कई प्रकार की बीमारियां लग जाती हैं।
प्रश्न 10.
भारत में महिलाओं के विरुद्ध हिंसा की दिशा पर संक्षेप नोट लिखें।
उत्तर-
भारत में स्त्रियों के विरुद्ध घरेलू हिंसा अन्य प्रकार की घरेलू हिंसा में सबसे आम है। इसका सबसे आम कारण लोगों के दिमाग में बैठी विचारधारा है कि स्त्रियां पुरुषों से शारीरिक व मानसिक रूस से कमज़ोर होती हैं। चाहे आजकल स्त्रियां साबित कर रही हैं कि वे पुरुषों से किसी भी क्षेत्र में कम नहीं हैं परन्तु फिर भी उनके विरुद्ध हिंसा के मामले काफ़ी अधिक हैं। इसके कारण देश के प्रत्येक कोने में अलग-अलग हैं। संयुक्त राष्ट्र की Population Fund Report के अनुसार भारत को दो तिहाई स्त्रियां घरेलू हिंसा का शिकार हैं। 70% वैवाहिक स्त्रियां मारपीट, बलात्कार का शिकार हैं। इनमें से घरेलू हिंसा का 55% हिस्सा बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश तथा अन्य उत्तर भारत के प्रदेश में आता है।
V. अति दीर्घ उत्तरों वाले प्रश्न
प्रश्न 1.
लिंग अनुपात पर विस्तृत टिप्पणी लिखें।
उत्तर-
अगर हम साधारण शब्दों में देखें तो 1000 पुरुषों के पीछे स्त्रियों की संख्या को लिंग अनुपात का नाम दिया जाता है। इसका अर्थ यह है कि विशेष क्षेत्र में 1000 पुरुषों के पीछे कितनी स्त्रियां हैं। इसको ही लिंग अनुपात का नाम दिया जाता है। लिंग अनुपात शब्द का सम्बन्ध किसी भी देश की जनसंख्या से सम्बन्धित जनसंख्यात्मक लक्षणों में से एक है तथा देश की जनसंख्या के बारे में पता करने के लिए लिंग अनुपात का पता होना आवश्यक है। 2011 में भारत में लिंग अनुपात 1000 पुरुषों के पीछे 943 स्त्रियां थीं।
अगर हमें किसी भी समाज में स्त्रियों की स्थिति के बारे में पता करना है तो इस बारे में हम लिंग अनुपात को देखकर ही पता कर सकते हैं। इससे ही पता चलता है कि समाज ने स्त्रियों को किस प्रकार की स्थिति प्रदान की है। अगर लिंग अनुपात कम है स्त्रियों की स्थिति निम्न है, परन्तु अगर लिंग अनुपात अधिक है तो निश्चय ही स्त्रियों की स्थिति ऊंची है। इस प्रकार लिंग अनुपात का अर्थ है किसी विशेष क्षेत्र में एक हजार पुरुषों की तुलना में स्त्रियों की संख्या। अगर हमें किसी भी देश के बीच पुरुषों तथा स्त्रियों की संख्या के बारे में पता हो तो हम उस देश के लिंग अनुपात के बारे में आसानी से पता कर सकते हैं। यहां लिंग अनुपात के साथ-साथ बाल लिंग, अनुपात भी महत्त्वपूर्ण है। बाल लिंग अनुपात का अर्थ है कि देश की जनसंख्या में 1000 लड़कों की तुलना में 0-6 वर्ष की कितनी लड़कियां हैं।
अगर हम सम्पूर्ण संसार में तथा विशेषतया कुछ मुख्य देशों के लिंग अनुपात की तरफ देखें तो वर्ष 2000 में संसार में 1000 पुरुषों की तुलना में 986 स्त्रियां थीं। यह लिंग अनुपात अमेरिका में 1000 : 1029, चीन में 1000 : 944, ब्राज़ील में 1000 : 1025, जापान में 1000 : 1025, भारत में 1000 : 933, पाकिस्तान में 1000 में 938, बांग्लादेश में 1000 : 953 तथा इंडोनेशिया में 1000 : 1004 था। इन आंकड़ों को देखने से पता चलता है कि विकसित देशों में लड़कियों की संख्या लड़कों की तुलना में अधिक है परन्तु पिछड़े हुए देशों में यह कम है। इसका कारण यह है कि पिछड़े हुए देशों में लैंगिक अन्तर बहुत अधिक है परन्तु विकसित देशों में लैंगिक भेदभाव काफ़ी कम है।
भारत में लिंग अनुपात की स्थिति (Situation of Sex Ratio in India)-
हमारे देश में लिंग अनुपात की स्थिति काफ़ी चिन्ताजनक बनी हुई है। वर्ष 2001 के Census के अनुसार देश में 1000 पुरुषों की तुलना में केवल 933 स्त्रियां ही थीं। निम्नलिखित तालिका से हमें लिंग अनुपात की चिन्ताजनक स्थिति के बारे में पता चलेगा :
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इस तालिका से पता चलता है कि 1901-2001 के 100 वर्षों में आम लिंग अनुपात में कमी आई है। 1971 से 1981 में तथा 1991 से 2001 के दशकों में स्त्रियों की संख्या में चाहे बढ़ोत्तरी हुई है परन्तु बाकी सभी दशकों में स्त्रियों की संख्या में कमी ही आई है। अगर हम 1901 से 2001 के दशकों की तुलना करें तो स्त्रियों की संख्या अथवा लिंग अनुपात काफ़ी कम हुआ है। देश में केरल ही केवल एक ऐसा राज्य है जहां यह अनुपात स्त्रियों के अनुकूल है। केरल में 1000 पुरुषों के लिए 1084 स्त्रियां हैं। पांडिचेरी में यह अनुपात 1000 : 1038 है परन्तु हरियाणा में 877, चण्डीगढ़ में 818 तथा पंजाब में यह 895 है। इस प्रकार हम देख सकते हैं कि हमारे देश में यह कम होता लिंग अनुपात चिन्ता का विषय बना हुआ है।
प्रश्न 2.
कन्या भ्रूण हत्या से आपका क्या अभिप्राय है ? इसके कारण व परिणामों का विस्तार सहित वर्णन करें।
अथवा
कन्या भ्रूण हत्या से क्या अभिप्राय है ? इसके कारणों की व्याख्या करें। (P.S.E.B. 2017)
अथवा
कन्या भ्रूण हत्या क्या है ? इसके प्रभावों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
शब्द कन्या भ्रूण हत्या तीन अलग-अलग शब्दों से मिलकर बना है तथा वह तीन शब्द हैं-कन्या, भ्रूण तथा हत्या। कन्या का अर्थ है स्त्री अथवा लड़की, भ्रूण का अर्थ है माँ के पेट में पल रहा बच्चा जोकि तीन या चार माह का हो तथा हत्या का अर्थ है मारना। इस प्रकार अगर हम कन्या भ्रूण हत्या के शाब्दिक अर्थ को देखें तो इसका अर्थ है माता के गर्भ में ही लड़की को मार देना। असल में कन्या भ्रूण हत्या का संकल्प कुछ समय पहले ही हमारे सामने आया है जब से देश में लिंग अनुपात में चिन्ताजनक कमी आयी है।
कन्या भ्रूण हत्या का अर्थ (Meaning of Female Foeticide) लोगों में कई कारणों के कारण लड़की के स्थान पर लड़के को प्राप्त करने की इच्छा होती है। वह कई प्रकार के ढंग प्रयोग करते हैं ताकि लड़की के स्थान पर लड़के को प्राप्त किया जा सके। जब कोई स्त्री गर्भवती होती है तो पहले तीन-चार माह तक माँ के गर्भ में बच्चा पूर्णतया विकसित नहीं हुआ होता है। इसे अभी भ्रूण का नाम ही दिया जाता है। आजकल ऐसी तकनीकें आ गई हैं जिनसे माता के पेट में ही टेस्ट करके ही पता कर लिया जाता है कि होने वाला बच्चा लड़का है या लड़की। इस टेस्ट को लिंग निर्धारण टेस्ट (Sex Determination Test) कहा जाता है। अगर गर्भ में पल रहा बच्चा लड़का है तो ठीक है परन्तु अगर वह लड़की है तो उसका गर्भपात करवा दिया जाता है अर्थात् माता की कोख में ही लड़की को मार दिया जाता है। इस माता की कोख में लड़की को मारने को ही कन्या भ्रूण हत्या कहते हैं। इस कन्या भ्रूण हत्या के कारण ही देश में लिंग अनुपात दिन-प्रतिदिन कम हो रहा है। सन् 2011 में देश में 1000 लड़कों की तुलना में केवल 943 लड़कियां ही थीं।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि (Historical Background) हमारे देश में लिंग अनुपात की स्थिति काफ़ी चिन्ताजनक बनी हुई है। सन् 2011 के census के अनुसार देश में 1000 लड़कों की तुलना में केवल 943 लड़कियां ही थीं।
प्राचीन समय से ही यह स्थिति बनी हुई है। प्राचीन समय से ही लड़कियों के जन्म को अच्छा नहीं समझा जाता था। माता-पिता को लगता था कि अगर लड़की पैदा हुई तो उसे बड़ा करने के बाद उसका विवाह करना पड़ेगा तथा बहुत-सा दहेज़ देना पड़ेगा। विवाह के बाद भी बहुत कुछ देना पड़ेगा तथा लड़के वालों के कई प्रकार के नखरे सहन करने पड़ेंगे। इसलिए लड़की पैदा ही न हो परन्तु उस समय प्रौद्योगिकी इतनी विकसित नहीं थी कि जन्म से पहले ही बच्चे का लिंग पता चल जाता। इस कारण लोग बच्चे के जन्म का इन्तज़ार करते थे। बहुत-से स्थानों पर लड़की के पैदा होने की स्थिति में उसे जन्म के समय ही मार दिया जाता था। इस प्रकार शुरू से ही लड़कियों की संख्या कम थी। _
परन्तु आधुनिक समय में बहुत-सी तकनीकें विकसित हो गईं। चाहे यह तकनीकें, जैसे कि अल्ट्रासाऊंड (Ultrasound) विकसित की गई थी ताकि माँ के गर्भ में बच्चे की ठीक स्थिति, उसके विकास का पता चल सके परन्तु लोगों ने इसका ग़लत प्रयोग करना शुरू कर दिया। उन्होंने मां के गर्भ में ही बच्चे के लिंग का पता करना शुरू कर दिया। अगर लड़का हुआ तो ठीक है, परन्तु अगर लड़की है तो गर्भ में ही उसकी हत्या करने के ढंग ढूंढ़ना शुरू कर देते। ठीक इस समय हज़ारों क्लीनिक सामने आए जो कि गर्भपात (Abortion) जैसे ग़लत कार्यों को अन्जाम देते थे। इस प्रकार माता के पेट में ही कन्या भ्रूण हत्या होनी शुरू हो गई। जब सरकार को कम होते लिंग अनुपात की चिंता हुई तो उसने इसके विरुद्ध कानून बनाकर इसे ठीक करने के प्रयास करने शुरू कर दिए।
सरकार की तरफ़ से लिंग निर्धारण का टेस्ट करना गैर-कानूनी करार दे दिया गया तथा गर्भपात को भी गैर-कानूनी करार दे दिया गया। सरकार ने 1994 में Pre-Natal Diagnostic Techniques (Regulation and Prevention of Misuse) Act, 1994 पास किया जिसके अनुसार लिंग निर्धारण का टेस्ट करने वाले को तीन वर्ष कैद के साथ-साथ दस हज़ार रुपये जुर्माना करने का प्रावधान रखा गया। सरकार ने सरकारी डॉक्टरों की टीमें भी बनाईं ताकि वह समयसमय पर अल्ट्रासाऊंड सैंटरों पर छापे मारें ताकि ऐसे ग़लत कार्य करने वालों को सामने लाया जा सके। चाहे इन कठोर प्रयासों के कारण टेस्ट करने तथा गर्भपात करने के केसों में कमी आई है परन्तु चोरी छुपे यह लगातार जारी है। लिंग निर्धारण के टेस्ट भी होते हैं तथा गर्भपात भी होते हैं। यही कारण है कि देश में लिंग अनुपात में कोई बहुत सकारात्मक प्रभाव देखने को नहीं मिला है।
कन्या भ्रूण हत्या के कारण (Causes of Female Foeticide)-जब माता के गर्भ में लिंग निर्धारण करके कन्या भ्रूण को खत्म कर दिया जाता है तो उसे कन्या भ्रूण हत्या का नाम दिया जाता है। यह एक प्रकार की सामाजिक समस्या है जो काफ़ी समय से चली आ रही है। इसके पीछे कोई एक या दो कारण नहीं हैं बल्कि बहुत-से कारण हैं जिनका वर्णन इस प्रकार है-
1. परम्परागत समाज (Traditional Society) कन्या भ्रूण हत्या जैसी समस्या परम्परागत समाजों में अधिक होती है। अगर किसी विकसित देश जैसे कि अमेरिका जापान की परम्परागत समाजों जैसे कि भारत, चीन, पाकिस्तान से तुलना करें तो हम देखेंगे कि लिंग अनुपात परम्परागत समाजों में कम है। इसका कारण यह है कि परम्परागत समाजों में यह प्रवृत्ति होती है कि लोगों को लड़की के स्थान पर लड़के की इच्छा होती है ताकि खानदान आगे बढ़ सके तथा मरने के बाद लड़का चिता को आग दे सके। परम्परागत समाजों की अलग-अलग प्रवृत्तियों के कारण लड़कों की संख्या बढ़ जाती है क्योंकि लोग लड़कियों के ऊपर लड़कों को अधिक महत्त्व देते हैं।
2. लड़का प्राप्त करने की इच्छा (Wish to have a male child)-लोगों में साधारणतया यह इच्छा होती है कि उनके घर में लड़का हो जो वंश को आगे बढ़ा सके तथा मृत्यु के बाद उनकी चिता को आग दे सके। वैसे भी लोगों में लड़का प्राप्त करने की इच्छा होती हैं क्योंकि लड़की के बड़ा होने के बाद उसके विवाह के समय काफ़ी दहेज देना पड़ेगा। विवाह के बाद भी तमाम आयु लड़की के ससुराल वालों को कुछ न कुछ देते रहना ही पड़ता है। इसलिए लोग लड़की नहीं बल्कि लड़का चाहते हैं तथा इसके लिए प्रयास भी करते हैं। वह गर्भपात अर्थात् कन्या भ्रूण हत्या करवाने से भी पीछे नहीं हटते। इस प्रकार लड़का प्राप्त करने की इच्छा कन्या भ्रूण हत्या को बढ़ावा देती है।
3. प्रौद्योगिक विकास (Technological Advances)-प्राचीन समय में लोगों के पास प्रौद्योगिकी की सुविधा उपलब्ध नहीं थी जिस कारण वह लिंग निर्धारण का टैस्ट नहीं करवा सकते थे। उन्हें बच्चे के जन्म तक इन्तज़ार करना ही पड़ता था लड़का है तो ठीक है परन्तु अगर लड़की पैदा होती थी तो उसे जन्म के समय ही मार दिया जाता था। परन्तु समय के साथ-साथ प्रौद्योगिकी विकसित हुई जिससे लिंग निर्धारण करना आसान हो गया। अल्ट्रासाऊंड जैसी मशीनें आ गईं जिससे माँ के गर्भ में तीन-चार माह के बाद ही पता चल जाता है कि गर्भ में पल रहा बच्चा लड़का है अथवा लड़की। इसके साथ ही हज़ारों क्लीनिक तथा नर्सिंग होम सामने आ गए जहाँ गर्भपात होते हैं। वे थोड़े से पैसों के लिए कन्या भ्रूण की माँ के गर्भ में ही हत्या कर देते हैं। नए-नए औज़ार सामने आ गए हैं जिनसे गर्भपात करने का कार्य काफ़ी आसान हो गया है। इस प्रकार प्रौद्योगिक विकास भी कन्या भ्रूण हत्या के लिए काफी हद तक उत्तरदायी है।
4. दहेज (Dowry)-दहेज वह सामान होता है जो लड़की के विवाह के समय उसके माता-पिता, रिश्तेदार इत्यादि उसे देते हैं। प्राचीन समय में लड़की के माता-पिता जो कुछ भी उसे प्यार से देते थे, लड़के वाले उसे विनम्रता से स्वीकार कर लेते थे, परन्तु समय के साथ-साथ इस प्रथा में भी कुरीतियां आ गईं। लड़के वाले अपनी इच्छा से दहेज मांगने लग गए तथा कई प्रकार की मांगें रखने लग गए। कई बार तो लड़की वाले इन मांगों को पूर्ण कर देते हैं, परन्तु बहुत बार वे मांगों को पूर्ण नहीं कर पाते हैं। ऐसी स्थिति में ससुराल वाले लड़की को तंग करते हैं, मारते-पीटते हैं तथा कई केसों में तो मार भी देते हैं। ऐसी स्थिति से डरकर तथा दहेज देने से डर कर लोग यह चाहते हैं कि लड़की हो ही न बल्कि लड़का हो। इस स्थिति में वह कन्या भ्रूण हत्या से भी पीछे नहीं हटते। इस प्रकार दहेज प्रथा भी कई बार कन्या भ्रूण हत्या के लिए उत्तरदायी है।
5. मृत्यु के बाद के संस्कार (Rituals After Death)-हमारे समाज में बहुत-से धर्मों के लोग रहते हैं तथा इन धर्मों में से अधिकतर धर्मों में व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसे जलाने की प्रथा है। धार्मिक शास्त्र यह कहते हैं कि व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसकी चिता को अग्नि उसका बेटा देगा। अगर बेटा चिता को अग्नि नहीं देगा तो उस मरे हुए व्यक्ति को मुक्ति नहीं मिलेगी तथा उसकी आत्मा भटकती ही रहेगी। इसके साथ ही मृत्यु के पश्चात् उसके रिश्तेदारों को बहुतसे संस्कार पूर्ण करने पड़ते हैं जैसे कि श्राद्ध, सालाना इत्यादि। इन सभी संस्कारों को पूर्ण करने के लिए धर्म शास्त्रों के अनुसार पुत्र का होना आवश्यक है। इस कारण ही लोग पुत्रों को अधिक प्राथमिकता देते हैं तथा पुत्र प्राप्त करने के लिए वह माता के गर्भ में ही लड़की को खत्म करवा देते हैं। इस प्रकार संस्कार पूर्ण करने के लिए भी कन्या भ्रूण हत्या को प्रोत्साहन मिलता है।
6. सामाजिक सुरक्षा (Social Protection)-भारतीय समाज एक विकासशील समाज है। यहां चाहे लोगों ने नई तकनीक अपना ली हैं परन्तु उन्होंने नए-नए विचारों को ग्रहण नहीं किया है। उनके विचार वहीं पुराने हैं तथा इन पुराने विचारों के अनुसार बुढ़ापे में पुत्र ही माता-पिता का रखवाला होता है। वह ही माता-पिता की अन्तिम समय तक देखभाल करता है तथा उनकी मृत्यु के पश्चात् वह ही सभी कर्मकाण्ड पूर्ण करता है। अगर व्यक्ति की केवल लड़कियां हों तो वह तो विवाह के पश्चात् अपने ससुराल चली जाएंगी। फिर बुढ़ापे में माता-पिता की देखभाल कौन करेगा तथा मृत्यु के पश्चात् वाले संस्कार कौन पूर्ण करेगा। लोगों को लगता है कि पुत्र के होने से उन्हें सामाजिक सुरक्षा हासिल हो जाएगी। चाहे आजकल के समय में पुत्र दूर-दूर के शहरों में नौकरी करते हैं तथा माता-पिता की मुश्किल के समय उनके साथ नहीं होते परन्तु फिर भी लोगों को पुत्र की इच्छा होती है। इस कारण ही वे कन्या भ्रूण हत्या जैसा ग़लत कार्य भी कर देते हैं।
7. पितृसत्तात्मक समाज (Patriarchal Society) हमारा समाज मुख्यतः पितृ प्रधान समाज है जहाँ घर में पिता की सत्ता ही चलती है। वह ही घर का सारा ध्यान रखता है तथा घर के महत्त्वपूर्ण निर्णय लेता है। इस प्रकार के समाजों में स्त्रियों की स्थिति काफ़ी निम्न होती है तथा सभी कुछ पुरुषों की इच्छा से ही चलता है। इस प्रकार के समाज में अगर स्त्री चाहे भी तो भी कुछ नहीं कर सकती है। पुरुष भी यही चाहते हैं कि घर में बेटा ही हो तथा इस कारण ही वे मादा भ्रूण हत्या करने से भी पीछे नहीं हटते। स्त्रियों को भी पुरुषों की इच्छानुसार ही चलना पड़ता है तथा इस प्रकार का ग़लत कार्य करने के लिए बाध्य होना पड़ता है।
8. स्त्रियों की सहायता (Help by Females)-अगर हम ध्यान से देखें तो कन्या भ्रूण हत्या को आगे बढ़ाने में स्त्रियां भी कम दोषी नहीं हैं। घर की बड़ी बुजुर्ग बेटा होने पर जोर देती है तथा गर्भ में ही कन्या भ्रूण हत्या के लिए दबाव डालती हैं। वह कहती है कि वंश चलाने के लिए पुत्र की आवश्यकता है पुत्री की नहीं। वह इस कार्य के लिए व्यक्ति को प्रोत्साहित करती है। वह यह भूल जाती है कि वह स्वयं भी स्त्री है तथा वह स्वयं ही लड़की को संसार में आने से रोक रही है। बहुत-सी दाईयां, नर्से, डॉक्टर इत्यादि केवल पैसे के लिए इस कार्य में सहायता करते हैं। अगर स्त्रियां अपना यह व्यवहार छोड़ दें तो यह समस्या कम हो सकती है। इस प्रकार स्त्रियों की सहायता भी इस कार्य के लिए उत्तरदायी है।
9. समाज में स्त्रियों की स्थिति (Status of Women in Society) हमारा समाज पितृ प्रधान समाज है जहां स्त्रियों की स्थिति प्राचीन काल से ही निम्न रही थी। शुरू से ही स्त्रियों को पुरुषों की गुलाम समझा जाता था। उनका अपना कोई अस्तित्व नहीं होता था। चाहे आजकल स्त्रियां पढ़-लिख रही हैं, नौकरी कर रही हैं, अपने व्यापार चला रही हैं परन्तु फिर भी उनकी सामाजिक स्थिति पुरुषों से निम्न ही रहती है। उन्हें न चाहते हुए भी पुरुषों का निर्णय मानना ही पड़ता है तथा कन्या भ्रूण हत्या के लिए बाध्य होना ही पड़ता है।
10. धार्मिक संस्कार (Religious Ceremonies) हमारे समाज में धर्म को काफ़ी अधिक महत्त्व दिया जाता है तथा धार्मिक संस्कार पूर्ण करने को भी काफ़ी महत्त्व दिया जाता है। वैसे भी व्यक्ति को अपने जीवन में कई प्रकार के ऋण उतारने पड़ते हैं जैसे कि देव ऋण, ऋषि ऋण, पितृ ऋण इत्यादि। इसके साथ ही उसे अपने जीवन में कई प्रकार के यज्ञ करने आवश्यक होते हैं। धार्मिक ग्रन्थों में लिखा है कि व्यक्ति के ऋण उसका पुत्र उतारेगा तथा यज्ञ भी पुत्र ही करेगा पुत्री नहीं। अगर पुत्र होगा ही नहीं तो उसे जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्ति कौन दिलाएगा। इन सभी धार्मिक संस्कारों के लिए पुत्र का होना आवश्यक है। इस कारण ही वे कन्या भ्रूण हत्या भी कर देते हैं।
कन्या भ्रूण हत्या के परिणाम (Consequences of Female Foeticide) कन्या भ्रूण हत्या की समस्या के कारण हमारे समाज में कई प्रकार के गम्भीर परिणाम सामने आ रहे हैं जिनका वर्णन इस प्रकार है-
1. कम होता लिंग अनुपात (Declining Sex Ratio)-अगर हम पिछले 100 वर्षों के रिकार्ड पर दृष्टि डालें तो हमें पता चलता है कि 1901-2011 के 100 वर्षों में आम लिंग अनुपात में काफ़ी कमी आई है। चाहे 1971-1981 तथा 1991-2001 के दशकों में स्त्रियों की संख्या बढ़ी है परन्तु बाकी सभी दशकों में स्त्रियों की संख्या में कमी आई है। अगर हम 1901 से 2011 के दशकों की तुलना करें स्त्रियों की संख्या या लिंग अनुपात काफ़ी कम हुआ है। देश में केवल केरल ही एक ऐसा राज्य है जहां यह अनुपात स्त्रियों के अनुकूल है। सन् 2011 में केरल में 1000 पुरुषों के पीछे 1084 स्त्रियां थीं। पांडिचेरी में यह अनुपात 1000 : 1038 था परन्तु हरियाणा में यह 1000 : 877, चंडीगढ़ में 1000 : 818 तथा पंजाब में 1000 : 895 था। इस प्रकार हम देख सकते हैं कि कन्या भ्रूण हत्या के कारण कम होता लिंग अनुपात चिंता का विषय बना हुआ है।
2. समाज में असन्तुलन (Imbalance in Society) किसी भी स्थान पर सन्तुलन उस समय कायम रहता है जब दो चीजें समान हों। अगर दोनों चीज़ों में से एक भी कम या अधिक हो तो असन्तुलन उत्पन्न हो जाता है। यह सिद्धान्त यहां पर भी लागू होता है कि अगर समाज में पुरुषों की संख्या बढ़ गई तथा स्त्रियों की संख्या कम हो गई तो समाज में असन्तुलन उत्पन्न हो जाएगा। इस असन्तुलन से समाज में कई प्रकार की समस्याएं जैसे कि स्त्रियों के विरुद्ध अत्याचार इत्यादि बढ़ जाएंगी तथा समाज के विघटित होने का खतरा बढ़ जाएगा। इस प्रकार कन्या भ्रूण हत्या से समाज में असन्तुलन उत्पन्न हो जाएगा।
3. स्त्रियों से हिंसा (Violence against women)-कन्या भ्रूण हत्या से देश में लिंग अनुपात कम हो जाता है जिस कारण स्त्रियों से होने वाली हिंसा बढ़ जाती है। लड़कियों को जन्म से पहले ही मार दिया जाता है, नयी जन्मी बच्चियों को या तो मार दिया जाता है या फिर गाड़ियों, बसों में छोड़ दिया जाता है। बड़ी आयु की स्त्रियों को इसलिए हिंसा का सामना करना पड़ता है क्योंकि उन्होंने पुत्र को नहीं बल्कि पुत्री को जन्म दिया है। लिंग संबंधी हिंसा जैसे कि बलात्कार, अपहरण, वेश्यावृत्ति इत्यादि भी बढ़ जाते हैं तथा स्त्रियों को इनका शिकार होना पड़ता है।
4. बहुपति विवाह (Polyandry)-कन्या भ्रूण हत्या से लिंग अनुपात कम हो जाता है जिससे समाज में असन्तुलन उत्पन्न हो जाता है। स्त्रियों की संख्या कम हो जाती है तथा बहुपति विवाह को प्रोत्साहन मिलता है। समाज में स्त्रियों की संख्या पुरुषों से कम हो जाती है तथा एक स्त्री को दो या दो से अधिक पुरुषों से विवाह करवाना पड़ता है। विशेषतया बहुपति विवाह बढ़ जाते हैं। सभी भाई एक स्त्री के पति बन जाते हैं। इसका स्त्री के स्वास्थ्य पर ग़लत प्रभाव पड़ता है। समाज में नैतिकता की कमी हो जाती है। स्त्रियों की सामाजिक स्थिति निम्न हो जाती है।
5. स्त्रियों की निम्न सामाजिक स्थिति (Lower Social Status of Women)-कम होते लिंग अनुपात से स्त्रियों की सामाजिक स्थिति निम्न हो जाती है। अगर किसी स्त्री को बेटा पैदा नहीं होता केवल लड़कियां ही हो रही हैं तो उसे गर्भपात के लिए बाध्य किया जाता है। इसके बाद उसे पुत्र न पैदा करने के ताने दिए जाते हैं। सामाजिक कुरीतियां तथा सामाजिक संस्थाएं भी इसके लिए कम उत्तरदायी नहीं हैं तथा उनके कारण ही स्त्रियों की सामाजिक स्थिति पर ग़लत प्रभाव पड़ता है।
6. स्वास्थ्य पर ग़लत प्रभाव (Bad Impact on Health)-अगर किसी स्त्री को पुत्र पैदा नहीं होता तो उसे ताने दिए जाते हैं, मारा-पीटा जाता है। गर्भ धारण करने के कुछ समय के पश्चात् लिंग निर्धारण का टैस्ट करवाया जाता है। लड़की होने की स्थिति में उसे गर्भपात के लिए बाध्य किया जाता है। इसका उसके शरीर पर तो ग़लत प्रभाव पड़ता है बल्कि उसकी मानसिक स्थिति पर भी ग़लत प्रभाव पड़ता है।
7. स्त्रियों का व्यापार (Trade of Women)-लिंग अनुपात कम होने की स्थिति में स्त्रियों की खरीद-फरोख्त का कार्य शुरू हो जाता है। स्त्री को विवाह के लिए तथा अपनी वासना को शान्त करने के लिए खरीदा जाता है। स्त्री को तो केवल एक वस्तु ही समझा जाता है।
8. लड़कों का कुँवारे रह जाना (Boys become Unmarried)-अगर समाज में लड़कियां कम हों तथा लड़के बढ़ जाएं तो इसका सबसे ग़लत परिणाम यह निकलता है कि बहुत-से लड़के कुँवारे रह जाते हैं। वह कुँवारे लड़के अपनी जैविक इच्छाओं की पूर्ति के लिए ग़लत कार्य करने को बाध्य हो जाते हैं तथा अपहरण, बलात्कार इत्यादि जैसी घटनाएं हमारे सामने आती हैं।
प्रश्न 3.
कन्या भ्रूण हत्या की समस्या के समाधान के लिए सरकार का क्या योगदान है ?
उत्तर-
- भारतीय दण्ड संहिता के सैक्शन 312-316 के अनुसार गर्भपात करवाना गैर-कानूनी है। अगर कोई जबरदस्ती गर्भपात करवाता है तो उसके लिए सज़ा का प्रावधान भी है।
- The Medical Termination of Pregnancy Act 1971 के अनुसार कानून को थोड़ा नर्म किया गया तथा मैडीकल आधार पर, मानवता या किसी अन्य आधार पर गर्भपात की आज्ञा दी गई।
- कन्या भ्रूण हत्या का मुख्य आधार बच्चे का लिंग निर्धारण है। इसलिए Pre-Natal Diagnostic Techniques (Regulation and Prevention of Misuse) Act, 1994 पास किया गया तथा लिंग निर्धारण करना गैर-कानूनी घोषित कर दिया गया। अगर कोई अल्ट्रा साऊंड सैटर लिंग निर्धारण करेगा तो उसे बंद करने तथा सजा का भी प्रावधान रखा गया।
प्रश्न 4.
कन्या भ्रूण हत्या पर विस्तृत निबंध लिखें।
उत्तर-
शब्द कन्या भ्रूण हत्या तीन अलग-अलग शब्दों से मिलकर बना है तथा वह तीन शब्द हैं-कन्या, भ्रूण तथा हत्या। कन्या का अर्थ है स्त्री अथवा लड़की, भ्रूण का अर्थ है माँ के पेट में पल रहा बच्चा जोकि तीन या चार माह का हो तथा हत्या का अर्थ है मारना। इस प्रकार अगर हम कन्या भ्रूण हत्या के शाब्दिक अर्थ को देखें तो इसका अर्थ है माता के गर्भ में ही लड़की को मार देना। असल में कन्या भ्रूण हत्या का संकल्प कुछ समय पहले ही हमारे सामने आया है जब से देश में लिंग अनुपात में चिन्ताजनक कमी आयी है।
कन्या भ्रूण हत्या का अर्थ (Meaning of Female Foeticide) लोगों में कई कारणों के कारण लड़की के स्थान पर लड़के को प्राप्त करने की इच्छा होती है। वह कई प्रकार के ढंग प्रयोग करते हैं ताकि लड़की के स्थान पर लड़के को प्राप्त किया जा सके। जब कोई स्त्री गर्भवती होती है तो पहले तीन-चार माह तक माँ के गर्भ में बच्चा पूर्णतया विकसित नहीं हुआ होता है। इसे अभी भ्रूण का नाम ही दिया जाता है। आजकल ऐसी तकनीकें आ गई हैं जिनसे माता के पेट में ही टेस्ट करके ही पता कर लिया जाता है कि होने वाला बच्चा लड़का है या लड़की। इस टेस्ट को लिंग निर्धारण टेस्ट (Sex Determination Test) कहा जाता है। अगर गर्भ में पल रहा बच्चा लड़का है तो ठीक है परन्तु अगर वह लड़की है तो उसका गर्भपात करवा दिया जाता है अर्थात् माता की कोख में ही लड़की को मार दिया जाता है। इस माता की कोख में लड़की को मारने को ही कन्या भ्रूण हत्या कहते हैं। इस कन्या भ्रूण हत्या के कारण ही देश में लिंग अनुपात दिन-प्रतिदिन कम हो रहा है। सन् 2011 में देश में 1000 लड़कों की तुलना में केवल 943 लड़कियां ही थीं।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि (Historical Background) हमारे देश में लिंग अनुपात की स्थिति काफ़ी चिन्ताजनक बनी हुई है। सन् 2011 के census के अनुसार देश में 1000 लड़कों की तुलना में केवल 943 लड़कियां ही थीं।
प्राचीन समय से ही यह स्थिति बनी हुई है। प्राचीन समय से ही लड़कियों के जन्म को अच्छा नहीं समझा जाता था। माता-पिता को लगता था कि अगर लड़की पैदा हुई तो उसे बड़ा करने के बाद उसका विवाह करना पड़ेगा तथा बहुत-सा दहेज़ देना पड़ेगा। विवाह के बाद भी बहुत कुछ देना पड़ेगा तथा लड़के वालों के कई प्रकार के नखरे सहन करने पड़ेंगे। इसलिए लड़की पैदा ही न हो परन्तु उस समय प्रौद्योगिकी इतनी विकसित नहीं थी कि जन्म से पहले ही बच्चे का लिंग पता चल जाता। इस कारण लोग बच्चे के जन्म का इन्तज़ार करते थे। बहुत-से स्थानों पर लड़की के पैदा होने की स्थिति में उसे जन्म के समय ही मार दिया जाता था। इस प्रकार शुरू से ही लड़कियों की संख्या कम थी।
परन्तु आधुनिक समय में बहुत-सी तकनीकें विकसित हो गईं। चाहे यह तकनीकें, जैसे कि अल्ट्रासाऊंड (Ultrasound) विकसित की गई थी ताकि माँ के गर्भ में बच्चे की ठीक स्थिति, उसके विकास का पता चल सके परन्तु लोगों ने इसका ग़लत प्रयोग करना शुरू कर दिया। उन्होंने मां के गर्भ में ही बच्चे के लिंग का पता करना शुरू कर दिया। अगर लड़का हुआ तो ठीक है, परन्तु अगर लड़की है तो गर्भ में ही उसकी हत्या करने के ढंग ढूंढ़ना शुरू कर देते। ठीक इस समय हज़ारों क्लीनिक सामने आए जो कि गर्भपात (Abortion) जैसे ग़लत कार्यों को अन्जाम देते थे। इस प्रकार माता के पेट में ही कन्या भ्रूण हत्या होनी शुरू हो गई। जब सरकार को कम होते लिंग अनुपात की चिंता हुई तो उसने इसके विरुद्ध कानून बनाकर इसे ठीक करने के प्रयास करने शुरू कर दिए।
सरकार की तरफ़ से लिंग निर्धारण का टेस्ट करना गैर-कानूनी करार दे दिया गया तथा गर्भपात को भी गैर-कानूनी करार दे दिया गया। सरकार ने 1994 में Pre-Natal Diagnostic Techniques (Regulation and Prevention of Misuse) Act, 1994 पास किया जिसके अनुसार लिंग निर्धारण का टेस्ट करने वाले को तीन वर्ष कैद के साथ-साथ दस हज़ार रुपये जुर्माना करने का प्रावधान रखा गया। सरकार ने सरकारी डॉक्टरों की टीमें भी बनाईं ताकि वह समयसमय पर अल्ट्रासाऊंड सैंटरों पर छापे मारें ताकि ऐसे ग़लत कार्य करने वालों को सामने लाया जा सके। चाहे इन कठोर प्रयासों के कारण टेस्ट करने तथा गर्भपात करने के केसों में कमी आई है परन्तु चोरी छुपे यह लगातार जारी है। लिंग निर्धारण के टेस्ट भी होते हैं तथा गर्भपात भी होते हैं। यही कारण है कि देश में लिंग अनुपात में कोई बहुत सकारात्मक प्रभाव देखने को नहीं मिला है।
कन्या भ्रूण हत्या के कारण (Causes of Female Foeticide)-जब माता के गर्भ में लिंग निर्धारण करके कन्या भ्रूण को खत्म कर दिया जाता है तो उसे कन्या भ्रूण हत्या का नाम दिया जाता है। यह एक प्रकार की सामाजिक समस्या है जो काफ़ी समय से चली आ रही है। इसके पीछे कोई एक या दो कारण नहीं हैं बल्कि बहुत-से कारण हैं जिनका वर्णन इस प्रकार है-
1. परम्परागत समाज (Traditional Society) कन्या भ्रूण हत्या जैसी समस्या परम्परागत समाजों में अधिक होती है। अगर किसी विकसित देश जैसे कि अमेरिका जापान की परम्परागत समाजों जैसे कि भारत, चीन, पाकिस्तान से तुलना करें तो हम देखेंगे कि लिंग अनुपात परम्परागत समाजों में कम है। इसका कारण यह है कि परम्परागत समाजों में यह प्रवृत्ति होती है कि लोगों को लड़की के स्थान पर लड़के की इच्छा होती है ताकि खानदान आगे बढ़ सके तथा मरने के बाद लड़का चिता को आग दे सके। परम्परागत समाजों की अलग-अलग प्रवृत्तियों के कारण लड़कों की संख्या बढ़ जाती है क्योंकि लोग लड़कियों के ऊपर लड़कों को अधिक महत्त्व देते हैं।
2. लड़का प्राप्त करने की इच्छा (Wish to have a male child)-लोगों में साधारणतया यह इच्छा होती है कि उनके घर में लड़का हो जो वंश को आगे बढ़ा सके तथा मृत्यु के बाद उनकी चिता को आग दे सके। वैसे भी लोगों में लड़का प्राप्त करने की इच्छा होती हैं क्योंकि लड़की के बड़ा होने के बाद उसके विवाह के समय काफ़ी दहेज देना पड़ेगा। विवाह के बाद भी तमाम आयु लड़की के ससुराल वालों को कुछ न कुछ देते रहना ही पड़ता है। इसलिए लोग लड़की नहीं बल्कि लड़का चाहते हैं तथा इसके लिए प्रयास भी करते हैं। वह गर्भपात अर्थात् कन्या भ्रूण हत्या करवाने से भी पीछे नहीं हटते। इस प्रकार लड़का प्राप्त करने की इच्छा कन्या भ्रूण हत्या को बढ़ावा देती है।
3. प्रौद्योगिक विकास (Technological Advances)-प्राचीन समय में लोगों के पास प्रौद्योगिकी की सुविधा उपलब्ध नहीं थी जिस कारण वह लिंग निर्धारण का टैस्ट नहीं करवा सकते थे। उन्हें बच्चे के जन्म तक इन्तज़ार करना ही पड़ता था लड़का है तो ठीक है परन्तु अगर लड़की पैदा होती थी तो उसे जन्म के समय ही मार दिया जाता था। परन्तु समय के साथ-साथ प्रौद्योगिकी विकसित हुई जिससे लिंग निर्धारण करना आसान हो गया। अल्ट्रासाऊंड जैसी मशीनें आ गईं जिससे माँ के गर्भ में तीन-चार माह के बाद ही पता चल जाता है कि गर्भ में पल रहा बच्चा लड़का है अथवा लड़की। इसके साथ ही हज़ारों क्लीनिक तथा नर्सिंग होम सामने आ गए जहाँ गर्भपात होते हैं। वे थोड़े से पैसों के लिए कन्या भ्रूण की माँ के गर्भ में ही हत्या कर देते हैं। नए-नए औज़ार सामने आ गए हैं जिनसे गर्भपात करने का कार्य काफ़ी आसान हो गया है। इस प्रकार प्रौद्योगिक विकास भी कन्या भ्रूण हत्या के लिए काफी हद तक उत्तरदायी है।
4. दहेज (Dowry)-दहेज वह सामान होता है जो लड़की के विवाह के समय उसके माता-पिता, रिश्तेदार इत्यादि उसे देते हैं। प्राचीन समय में लड़की के माता-पिता जो कुछ भी उसे प्यार से देते थे, लड़के वाले उसे विनम्रता से स्वीकार कर लेते थे, परन्तु समय के साथ-साथ इस प्रथा में भी कुरीतियां आ गईं। लड़के वाले अपनी इच्छा से दहेज मांगने लग गए तथा कई प्रकार की मांगें रखने लग गए। कई बार तो लड़की वाले इन मांगों को पूर्ण कर देते हैं, परन्तु बहुत बार वे मांगों को पूर्ण नहीं कर पाते हैं। ऐसी स्थिति में ससुराल वाले लड़की को तंग करते हैं, मारते-पीटते हैं तथा कई केसों में तो मार भी देते हैं। ऐसी स्थिति से डरकर तथा दहेज देने से डर कर लोग यह चाहते हैं कि लड़की हो ही न बल्कि लड़का हो। इस स्थिति में वह कन्या भ्रूण हत्या से भी पीछे नहीं हटते। इस प्रकार दहेज प्रथा भी कई बार कन्या भ्रूण हत्या के लिए उत्तरदायी है।
5. मृत्यु के बाद के संस्कार (Rituals After Death)-हमारे समाज में बहुत-से धर्मों के लोग रहते हैं तथा इन धर्मों में से अधिकतर धर्मों में व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसे जलाने की प्रथा है। धार्मिक शास्त्र यह कहते हैं कि व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसकी चिता को अग्नि उसका बेटा देगा। अगर बेटा चिता को अग्नि नहीं देगा तो उस मरे हुए व्यक्ति को मुक्ति नहीं मिलेगी तथा उसकी आत्मा भटकती ही रहेगी। इसके साथ ही मृत्यु के पश्चात् उसके रिश्तेदारों को बहुतसे संस्कार पूर्ण करने पड़ते हैं जैसे कि श्राद्ध, सालाना इत्यादि। इन सभी संस्कारों को पूर्ण करने के लिए धर्म शास्त्रों के अनुसार पुत्र का होना आवश्यक है। इस कारण ही लोग पुत्रों को अधिक प्राथमिकता देते हैं तथा पुत्र प्राप्त करने के लिए वह माता के गर्भ में ही लड़की को खत्म करवा देते हैं। इस प्रकार संस्कार पूर्ण करने के लिए भी कन्या भ्रूण हत्या को प्रोत्साहन मिलता है।
6. सामाजिक सुरक्षा (Social Protection)-भारतीय समाज एक विकासशील समाज है। यहां चाहे लोगों ने नई तकनीक अपना ली हैं परन्तु उन्होंने नए-नए विचारों को ग्रहण नहीं किया है। उनके विचार वहीं पुराने हैं तथा इन पुराने विचारों के अनुसार बुढ़ापे में पुत्र ही माता-पिता का रखवाला होता है। वह ही माता-पिता की अन्तिम समय तक देखभाल करता है तथा उनकी मृत्यु के पश्चात् वह ही सभी कर्मकाण्ड पूर्ण करता है। अगर व्यक्ति की केवल लड़कियां हों तो वह तो विवाह के पश्चात् अपने ससुराल चली जाएंगी। फिर बुढ़ापे में माता-पिता की देखभाल कौन करेगा तथा मृत्यु के पश्चात् वाले संस्कार कौन पूर्ण करेगा। लोगों को लगता है कि पुत्र के होने से उन्हें सामाजिक सुरक्षा हासिल हो जाएगी। चाहे आजकल के समय में पुत्र दूर-दूर के शहरों में नौकरी करते हैं तथा माता-पिता की मुश्किल के समय उनके साथ नहीं होते परन्तु फिर भी लोगों को पुत्र की इच्छा होती है। इस कारण ही वे कन्या भ्रूण हत्या जैसा ग़लत कार्य भी कर देते हैं।
7. पितृसत्तात्मक समाज (Patriarchal Society) हमारा समाज मुख्यतः पितृ प्रधान समाज है जहाँ घर में पिता की सत्ता ही चलती है। वह ही घर का सारा ध्यान रखता है तथा घर के महत्त्वपूर्ण निर्णय लेता है। इस प्रकार के समाजों में स्त्रियों की स्थिति काफ़ी निम्न होती है तथा सभी कुछ पुरुषों की इच्छा से ही चलता है। इस प्रकार के समाज में अगर स्त्री चाहे भी तो भी कुछ नहीं कर सकती है। पुरुष भी यही चाहते हैं कि घर में बेटा ही हो तथा इस कारण ही वे मादा भ्रूण हत्या करने से भी पीछे नहीं हटते। स्त्रियों को भी पुरुषों की इच्छानुसार ही चलना पड़ता है तथा इस प्रकार का ग़लत कार्य करने के लिए बाध्य होना पड़ता है।
8. स्त्रियों की सहायता (Help by Females)-अगर हम ध्यान से देखें तो कन्या भ्रूण हत्या को आगे बढ़ाने में स्त्रियां भी कम दोषी नहीं हैं। घर की बड़ी बुजुर्ग बेटा होने पर जोर देती है तथा गर्भ में ही कन्या भ्रूण हत्या के लिए दबाव डालती हैं। वह कहती है कि वंश चलाने के लिए पुत्र की आवश्यकता है पुत्री की नहीं। वह इस कार्य के लिए व्यक्ति को प्रोत्साहित करती है। वह यह भूल जाती है कि वह स्वयं भी स्त्री है तथा वह स्वयं ही लड़की को संसार में आने से रोक रही है। बहुत-सी दाईयां, नर्से, डॉक्टर इत्यादि केवल पैसे के लिए इस कार्य में सहायता करते हैं। अगर स्त्रियां अपना यह व्यवहार छोड़ दें तो यह समस्या कम हो सकती है। इस प्रकार स्त्रियों की सहायता भी इस कार्य के लिए उत्तरदायी है।
9. समाज में स्त्रियों की स्थिति (Status of Women in Society) हमारा समाज पितृ प्रधान समाज है जहां स्त्रियों की स्थिति प्राचीन काल से ही निम्न रही थी। शुरू से ही स्त्रियों को पुरुषों की गुलाम समझा जाता था। उनका अपना कोई अस्तित्व नहीं होता था। चाहे आजकल स्त्रियां पढ़-लिख रही हैं, नौकरी कर रही हैं, अपने व्यापार चला रही हैं परन्तु फिर भी उनकी सामाजिक स्थिति पुरुषों से निम्न ही रहती है। उन्हें न चाहते हुए भी पुरुषों का निर्णय मानना ही पड़ता है तथा कन्या भ्रूण हत्या के लिए बाध्य होना ही पड़ता है।
10. धार्मिक संस्कार (Religious Ceremonies) हमारे समाज में धर्म को काफ़ी अधिक महत्त्व दिया जाता है तथा धार्मिक संस्कार पूर्ण करने को भी काफ़ी महत्त्व दिया जाता है। वैसे भी व्यक्ति को अपने जीवन में कई प्रकार के ऋण उतारने पड़ते हैं जैसे कि देव ऋण, ऋषि ऋण, पितृ ऋण इत्यादि। इसके साथ ही उसे अपने जीवन में कई प्रकार के यज्ञ करने आवश्यक होते हैं। धार्मिक ग्रन्थों में लिखा है कि व्यक्ति के ऋण उसका पुत्र उतारेगा तथा यज्ञ भी पुत्र ही करेगा पुत्री नहीं। अगर पुत्र होगा ही नहीं तो उसे जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्ति कौन दिलाएगा। इन सभी धार्मिक संस्कारों के लिए पुत्र का होना आवश्यक है। इस कारण ही वे कन्या भ्रूण हत्या भी कर देते हैं।
कन्या भ्रूण हत्या के परिणाम (Consequences of Female Foeticide) कन्या भ्रूण हत्या की समस्या के कारण हमारे समाज में कई प्रकार के गम्भीर परिणाम सामने आ रहे हैं जिनका वर्णन इस प्रकार है-
1. कम होता लिंग अनुपात (Declining Sex Ratio)-अगर हम पिछले 100 वर्षों के रिकार्ड पर दृष्टि डालें तो हमें पता चलता है कि 1901-2011 के 100 वर्षों में आम लिंग अनुपात में काफ़ी कमी आई है। चाहे 1971-1981 तथा 1991-2001 के दशकों में स्त्रियों की संख्या बढ़ी है परन्तु बाकी सभी दशकों में स्त्रियों की संख्या में कमी आई है। अगर हम 1901 से 2011 के दशकों की तुलना करें स्त्रियों की संख्या या लिंग अनुपात काफ़ी कम हुआ है। देश में केवल केरल ही एक ऐसा राज्य है जहां यह अनुपात स्त्रियों के अनुकूल है। सन् 2011 में केरल में 1000 पुरुषों के पीछे 1084 स्त्रियां थीं। पांडिचेरी में यह अनुपात 1000 : 1038 था परन्तु हरियाणा में यह 1000 : 877, चंडीगढ़ में 1000 : 818 तथा पंजाब में 1000 : 895 था। इस प्रकार हम देख सकते हैं कि कन्या भ्रूण हत्या के कारण कम होता लिंग अनुपात चिंता का विषय बना हुआ है।
2. समाज में असन्तुलन (Imbalance in Society) किसी भी स्थान पर सन्तुलन उस समय कायम रहता है जब दो चीजें समान हों। अगर दोनों चीज़ों में से एक भी कम या अधिक हो तो असन्तुलन उत्पन्न हो जाता है। यह सिद्धान्त यहां पर भी लागू होता है कि अगर समाज में पुरुषों की संख्या बढ़ गई तथा स्त्रियों की संख्या कम हो गई तो समाज में असन्तुलन उत्पन्न हो जाएगा। इस असन्तुलन से समाज में कई प्रकार की समस्याएं जैसे कि स्त्रियों के विरुद्ध अत्याचार इत्यादि बढ़ जाएंगी तथा समाज के विघटित होने का खतरा बढ़ जाएगा। इस प्रकार कन्या भ्रूण हत्या से समाज में असन्तुलन उत्पन्न हो जाएगा।
3. स्त्रियों से हिंसा (Violence against women)-कन्या भ्रूण हत्या से देश में लिंग अनुपात कम हो जाता है जिस कारण स्त्रियों से होने वाली हिंसा बढ़ जाती है। लड़कियों को जन्म से पहले ही मार दिया जाता है, नयी जन्मी बच्चियों को या तो मार दिया जाता है या फिर गाड़ियों, बसों में छोड़ दिया जाता है। बड़ी आयु की स्त्रियों को इसलिए हिंसा का सामना करना पड़ता है क्योंकि उन्होंने पुत्र को नहीं बल्कि पुत्री को जन्म दिया है। लिंग संबंधी हिंसा जैसे कि बलात्कार, अपहरण, वेश्यावृत्ति इत्यादि भी बढ़ जाते हैं तथा स्त्रियों को इनका शिकार होना पड़ता है।
4. बहुपति विवाह (Polyandry)-कन्या भ्रूण हत्या से लिंग अनुपात कम हो जाता है जिससे समाज में असन्तुलन उत्पन्न हो जाता है। स्त्रियों की संख्या कम हो जाती है तथा बहुपति विवाह को प्रोत्साहन मिलता है। समाज में स्त्रियों की संख्या पुरुषों से कम हो जाती है तथा एक स्त्री को दो या दो से अधिक पुरुषों से विवाह करवाना पड़ता है। विशेषतया बहुपति विवाह बढ़ जाते हैं। सभी भाई एक स्त्री के पति बन जाते हैं। इसका स्त्री के स्वास्थ्य पर ग़लत प्रभाव पड़ता है। समाज में नैतिकता की कमी हो जाती है। स्त्रियों की सामाजिक स्थिति निम्न हो जाती है।
5. स्त्रियों की निम्न सामाजिक स्थिति (Lower Social Status of Women)-कम होते लिंग अनुपात से स्त्रियों की सामाजिक स्थिति निम्न हो जाती है। अगर किसी स्त्री को बेटा पैदा नहीं होता केवल लड़कियां ही हो रही हैं तो उसे गर्भपात के लिए बाध्य किया जाता है। इसके बाद उसे पुत्र न पैदा करने के ताने दिए जाते हैं। सामाजिक कुरीतियां तथा सामाजिक संस्थाएं भी इसके लिए कम उत्तरदायी नहीं हैं तथा उनके कारण ही स्त्रियों की सामाजिक स्थिति पर ग़लत प्रभाव पड़ता है।
6. स्वास्थ्य पर ग़लत प्रभाव (Bad Impact on Health)-अगर किसी स्त्री को पुत्र पैदा नहीं होता तो उसे ताने दिए जाते हैं, मारा-पीटा जाता है। गर्भ धारण करने के कुछ समय के पश्चात् लिंग निर्धारण का टैस्ट करवाया जाता है। लड़की होने की स्थिति में उसे गर्भपात के लिए बाध्य किया जाता है। इसका उसके शरीर पर तो ग़लत प्रभाव पड़ता है बल्कि उसकी मानसिक स्थिति पर भी ग़लत प्रभाव पड़ता है।
7. स्त्रियों का व्यापार (Trade of Women)-लिंग अनुपात कम होने की स्थिति में स्त्रियों की खरीद-फरोख्त का कार्य शुरू हो जाता है। स्त्री को विवाह के लिए तथा अपनी वासना को शान्त करने के लिए खरीदा जाता है। स्त्री को तो केवल एक वस्तु ही समझा जाता है।
8. लड़कों का कुँवारे रह जाना (Boys become Unmarried)-अगर समाज में लड़कियां कम हों तथा लड़के बढ़ जाएं तो इसका सबसे ग़लत परिणाम यह निकलता है कि बहुत-से लड़के कुँवारे रह जाते हैं। वह कुँवारे लड़के अपनी जैविक इच्छाओं की पूर्ति के लिए ग़लत कार्य करने को बाध्य हो जाते हैं तथा अपहरण, बलात्कार इत्यादि जैसी घटनाएं हमारे सामने आती हैं।
प्रश्न 5.
आप कन्या भ्रूण हत्या से क्या समझते हैं ? इस समस्या के हल के विभिन्न कदमों की चर्चा करें।
उत्तर-
कन्या भ्रूण हत्या का अर्थ :
कन्या भ्रूण हत्या के परिणाम (Consequences of Female Foeticide) कन्या भ्रूण हत्या की समस्या के कारण हमारे समाज में कई प्रकार के गम्भीर परिणाम सामने आ रहे हैं जिनका वर्णन इस प्रकार है-
1. कम होता लिंग अनुपात (Declining Sex Ratio)-अगर हम पिछले 100 वर्षों के रिकार्ड पर दृष्टि डालें तो हमें पता चलता है कि 1901-2011 के 100 वर्षों में आम लिंग अनुपात में काफ़ी कमी आई है। चाहे 1971-1981 तथा 1991-2001 के दशकों में स्त्रियों की संख्या बढ़ी है परन्तु बाकी सभी दशकों में स्त्रियों की संख्या में कमी आई है। अगर हम 1901 से 2011 के दशकों की तुलना करें स्त्रियों की संख्या या लिंग अनुपात काफ़ी कम हुआ है। देश में केवल केरल ही एक ऐसा राज्य है जहां यह अनुपात स्त्रियों के अनुकूल है। सन् 2011 में केरल में 1000 पुरुषों के पीछे 1084 स्त्रियां थीं। पांडिचेरी में यह अनुपात 1000 : 1038 था परन्तु हरियाणा में यह 1000 : 877, चंडीगढ़ में 1000 : 818 तथा पंजाब में 1000 : 895 था। इस प्रकार हम देख सकते हैं कि कन्या भ्रूण हत्या के कारण कम होता लिंग अनुपात चिंता का विषय बना हुआ है।
2. समाज में असन्तुलन (Imbalance in Society) किसी भी स्थान पर सन्तुलन उस समय कायम रहता है जब दो चीजें समान हों। अगर दोनों चीज़ों में से एक भी कम या अधिक हो तो असन्तुलन उत्पन्न हो जाता है। यह सिद्धान्त यहां पर भी लागू होता है कि अगर समाज में पुरुषों की संख्या बढ़ गई तथा स्त्रियों की संख्या कम हो गई तो समाज में असन्तुलन उत्पन्न हो जाएगा। इस असन्तुलन से समाज में कई प्रकार की समस्याएं जैसे कि स्त्रियों के विरुद्ध अत्याचार इत्यादि बढ़ जाएंगी तथा समाज के विघटित होने का खतरा बढ़ जाएगा। इस प्रकार कन्या भ्रूण हत्या से समाज में असन्तुलन उत्पन्न हो जाएगा।
3. स्त्रियों से हिंसा (Violence against women)-कन्या भ्रूण हत्या से देश में लिंग अनुपात कम हो जाता है जिस कारण स्त्रियों से होने वाली हिंसा बढ़ जाती है। लड़कियों को जन्म से पहले ही मार दिया जाता है, नयी जन्मी बच्चियों को या तो मार दिया जाता है या फिर गाड़ियों, बसों में छोड़ दिया जाता है। बड़ी आयु की स्त्रियों को इसलिए हिंसा का सामना करना पड़ता है क्योंकि उन्होंने पुत्र को नहीं बल्कि पुत्री को जन्म दिया है। लिंग संबंधी हिंसा जैसे कि बलात्कार, अपहरण, वेश्यावृत्ति इत्यादि भी बढ़ जाते हैं तथा स्त्रियों को इनका शिकार होना पड़ता है।
4. बहुपति विवाह (Polyandry)-कन्या भ्रूण हत्या से लिंग अनुपात कम हो जाता है जिससे समाज में असन्तुलन उत्पन्न हो जाता है। स्त्रियों की संख्या कम हो जाती है तथा बहुपति विवाह को प्रोत्साहन मिलता है। समाज में स्त्रियों की संख्या पुरुषों से कम हो जाती है तथा एक स्त्री को दो या दो से अधिक पुरुषों से विवाह करवाना पड़ता है। विशेषतया बहुपति विवाह बढ़ जाते हैं। सभी भाई एक स्त्री के पति बन जाते हैं। इसका स्त्री के स्वास्थ्य पर ग़लत प्रभाव पड़ता है। समाज में नैतिकता की कमी हो जाती है। स्त्रियों की सामाजिक स्थिति निम्न हो जाती है।
5. स्त्रियों की निम्न सामाजिक स्थिति (Lower Social Status of Women)-कम होते लिंग अनुपात से स्त्रियों की सामाजिक स्थिति निम्न हो जाती है। अगर किसी स्त्री को बेटा पैदा नहीं होता केवल लड़कियां ही हो रही हैं तो उसे गर्भपात के लिए बाध्य किया जाता है। इसके बाद उसे पुत्र न पैदा करने के ताने दिए जाते हैं। सामाजिक कुरीतियां तथा सामाजिक संस्थाएं भी इसके लिए कम उत्तरदायी नहीं हैं तथा उनके कारण ही स्त्रियों की सामाजिक स्थिति पर ग़लत प्रभाव पड़ता है।
6. स्वास्थ्य पर ग़लत प्रभाव (Bad Impact on Health)-अगर किसी स्त्री को पुत्र पैदा नहीं होता तो उसे ताने दिए जाते हैं, मारा-पीटा जाता है। गर्भ धारण करने के कुछ समय के पश्चात् लिंग निर्धारण का टैस्ट करवाया जाता है। लड़की होने की स्थिति में उसे गर्भपात के लिए बाध्य किया जाता है। इसका उसके शरीर पर तो ग़लत प्रभाव पड़ता है बल्कि उसकी मानसिक स्थिति पर भी ग़लत प्रभाव पड़ता है।
7. स्त्रियों का व्यापार (Trade of Women)-लिंग अनुपात कम होने की स्थिति में स्त्रियों की खरीद-फरोख्त का कार्य शुरू हो जाता है। स्त्री को विवाह के लिए तथा अपनी वासना को शान्त करने के लिए खरीदा जाता है। स्त्री को तो केवल एक वस्तु ही समझा जाता है।
8. लड़कों का कुँवारे रह जाना (Boys become Unmarried)-अगर समाज में लड़कियां कम हों तथा लड़के बढ़ जाएं तो इसका सबसे ग़लत परिणाम यह निकलता है कि बहुत-से लड़के कुँवारे रह जाते हैं। वह कुँवारे लड़के अपनी जैविक इच्छाओं की पूर्ति के लिए ग़लत कार्य करने को बाध्य हो जाते हैं तथा अपहरण, बलात्कार इत्यादि जैसी घटनाएं हमारे सामने आती हैं।
समस्या के हल के विभिन्न कदम :
- भारतीय दण्ड संहिता के सैक्शन 312-316 के अनुसार गर्भपात करवाना गैर-कानूनी है। अगर कोई जबरदस्ती गर्भपात करवाता है तो उसके लिए सज़ा का प्रावधान भी है।
- The Medical Termination of Pregnancy Act 1971 के अनुसार कानून को थोड़ा नर्म किया गया तथा मैडीकल आधार पर, मानवता या किसी अन्य आधार पर गर्भपात की आज्ञा दी गई।
- कन्या भ्रूण हत्या का मुख्य आधार बच्चे का लिंग निर्धारण है। इसलिए Pre-Natal Diagnostic Techniques (Regulation and Prevention of Misuse) Act, 1994 पास किया गया तथा लिंग निर्धारण करना गैर-कानूनी घोषित कर दिया गया। अगर कोई अल्ट्रा साऊंड सैटर लिंग निर्धारण करेगा तो उसे बंद करने तथा सजा का भी प्रावधान रखा गया।
प्रश्न 6.
घरेलू हिंसा पर विस्तार सहित टिप्पणी करें।
अथवा
घरेलू हिंसा क्या है ?
उत्तर-
20वीं शताब्दी के अन्तिम दशकों में पारिवारिक हिंसा की तरफ समाजशास्त्रीय आकर्षित हुए हैं। भारतीय समाज में पारिवारिक हिंसा की धारणा कोई नई धारणा नहीं है। यह तो सदियों पुरानी धारणा है जिसकी तरफ समाजशास्त्रियों का ध्यान अब गया है। ऐसा नहीं है कि प्राचीन समाजों में पारिवारिक हिंसा नहीं होती थी। पारिवारिक हिंसा तो प्रत्येक प्रकार के समाज में मौजूद रही है। इसके साथ हिंसक घटनाएं यहां तक कि मौतें भी होती रही हैं। परन्तु इस संकल्प के बारे में हमारे पास काफ़ी कम जानकारी इसलिए है क्योंकि घरेलू हिंसा के आंकड़े हमारे पास बहुत ही कम हैं तथा इसके बारे में बहुत ही कम अनुसन्धान हुए हैं। इन अनुसन्धानों से कोई भी निष्कर्ष निकालने भी बहुत मुश्किल हैं क्योंकि पारिवारिक हिंसा के बारे में लोग साधारणतया जानकारी देना पसन्द नहीं करते। इस प्रकार पारिवारिक हिंसा के बारे में हमारे पास बहुत कम जानकारी है। इसका एक और कारण यह भी है कि भारत में परिवार से सम्बन्धित जितने भी अनुसन्धान हुए हैं, वह संयुक्त परिवार की संरचना या ढांचे या फिर केन्द्रीय परिवार की संरचना और ढांचे के सम्बन्ध में हुए हैं। पारिवारिक हिंसा की तरफ किसी ने भी ध्यान नहीं दिया है।
इसका एक और कारण यह भी है कि लोग यह सोचते हैं कि घरेलू हिंसा के बारे में किसी अजनबी को बताने से परिवार टूट जाएगा या फिर परिवार में टकराव बढ़ जाएगा। इस कारण लोग पारिवारिक हिंसा के बारे में किसी को कुछ नहीं बताते हैं। पारिवारिक हिंसा के बारे में अनुसन्धान इस कारण भी कम हुए हैं क्योंकि परिवार के जिस वर्ग पर हिंसा हो रही होती है उसका समाज में अभी भी महत्त्व काफ़ी कम है तथा वह वर्ग है स्त्रियां तथा बच्चे। चाहे जितना मर्जी हमारा शहरी समाज आगे बढ़ रहा है परन्तु ग्रामीण समाज अभी भी वहीं पर खड़ा है जहां पर आज से 50 साल पहले था। स्त्रियों तथा बच्चों को अभी भी समाज में वह स्थान प्राप्त नहीं है जोकि होना चाहिए। यहां तक कि समाज भी इसे समस्या नहीं मानता है। समाज इस समस्या के अस्तित्व से ही इन्कार करता है तथा कहता है कि यह तो समस्या ही नहीं है। पारिवारिक हिंसा को केवल व्यक्तिगत मनोरोग का लक्षण माना जाता है। बहुत-से इतिहासकार भी इसको समस्या नहीं मानते क्योंकि उनके अनुसार पारिवारिक हिंसा परिवार का एक व्यक्तिगत मामला है। इसलिए इसको परिवार अथवा घर के लिए छोड़ देना चाहिए।
यह ठीक है कि स्वतन्त्रता के पश्चात् पारिवारिक हिंसा को रोकने के लिए कम-से-कम सरकार ने कुछ कानूनों का निर्माण किया है ताकि परिवार में प्यार, सहयोग, हमदर्दी तथा आपसी समझ को बढ़ाया जा सके। बच्चों तथा स्त्रियों के विरुद्ध हिंसा करने वाले के विरुद्ध हमारे कानूनों में कठोर सज़ा का प्रावधान है। परन्तु यह विषय समाजशास्त्र के लिए एक महत्त्वपूर्ण विषय है क्योंकि समाजशास्त्र ने तो परिवार अथवा पारिवारिक जीवन के अच्छे और सकारात्मक पक्ष को ही पेश किया है परन्तु उसने पारिवारिक हिंसा के नकारात्मक पक्ष को पेश नहीं किया है।
यदि किसी भी सामाजिक प्रणाली का निर्माण होता है तो वह जोड़ने तथा तोड़ने वाली प्रक्रियाओं का परिणाम होता है। इस प्रकार पारिवारिक जीवन में भी नकारात्मक तथा सकारात्मक पहलुओं का मिश्रण होता है। पारिवारिक जीवन के दो व्यक्तियों के अनुभव अलग-अलग भी हो सकते हैं तथा साधारणतया होते भी हैं। जिस व्यक्ति के पारिवारिक जीवन में कोई समस्या नहीं होती उसका पारिवारिक जीवन खुशियों से भरपूर होता है। परन्तु जिस व्यक्ति के पारिवारिक जीवन में समस्याएं होती हैं उसके पारिवारिक जीवन में काफ़ी दुःख होते हैं। घरेलू जीवन में परिवार के सदस्यों में नज़दीकी होती है तथा यह नज़दीकी आपसी निर्भरता के कारण भी होती है। इस निर्भरता के कारण ही सदस्यों के विचारों में विरोध तथा विलक्षणता पैदा होती है। इस विलक्षणता के कारण आपसी टकराव भी पैदा होता है। एक लेखक के अनुसार जिन परिवारों में टकराव अधिक होते हैं तथा टकराव को दूर करने के लिए अधिक तर्क प्रयोग किए जाते हैं उन परिवारों में हिंसा भी अधिक होती है। परिवार में हमेशा एक जैसी स्थिति नहीं होती है। पारिवारिक जीवन हमेशा खुशियों तथा दुःखों में लटकता रहता है। पारिवारिक जीवन में आम राय तथा टकराव चलते रहते हैं। इस टकराव के कारण कई बार हिंसा भी हो जाती है तथा कई बार इस हिंसा के कारण मृत्यु भी हो जाती है.।
हमारे देश में पारिवारिक हिंसा के बहुत ही कम आंकड़े मौजूद हैं। साधारणतया अनुसन्धानकर्ता घर में होने वाली शारीरिक हिंसा की तरफ ही ध्यान देते हैं। वह मानसिक हिंसा की तरफ तो देखते ही नहीं हैं। मानसिक हिंसा अधिक खतरनाक होती है क्योंकि इसका प्रभाव तमाम उम्र रहता है। परन्तु फिर भी पारिवारिक हिंसा की व्याख्या सही ढंग से नहीं की गई है। इस कारण इसके प्रति हमारा ज्ञान काफ़ी सीमित है।
पारिवारिक हिंसा की परिभाषाएं (Definitions of Domestic Violence)–
पारिवारिक हिंसा एक जटिल धारणा है। इसको परिभाषित करना काफी मुश्किल है क्योंकि हिंसा एक विस्तृत शब्द है जिसमें गाली-गलौच से लेकर चांटा तथा कत्ल तक के संकल्प शामिल हो जाते हैं। इसके अतिरिक्त हिंसा तथा धक्के के अर्थ एक जैसे ही लिए जाते हैं। हिंसा साधारणतया एक शारीरिक कार्यवाही है जबकि धक्का घृणा से भरपूर क्रिया है जिसमें दूसरे व्यक्ति को नुकसान पहुंचाया जाता है। यह नुकसान न केवल शारीरिक बल्कि मानसिक भी हो सकता है। पारिवारिक हिंसा के बारे में हुए अनुसन्धानों से हमें यह पता चला है कि हम जायज़ तथा नाजायज़ कार्यवाही को अलग नहीं कर सकते क्योंकि हिंसा का शिकार होने वाले लोग इन नाजायज़ कार्यों को स्वीकार करके जायज़ बना देते हैं।
जैलज़ (Gelles) के अनुसार, “धक्का मारना, चांटा मारना, मुक्का मारना, चाकू मारना, गोली मारना तथा परिवार के एक सदस्य की तरफ से दूसरे की तरफ चीजें फेंकना जैसी रोज़, बेरोज़ की एक प्रकार की बार-बार की जाने वाली हिंसा पारिवारिक हिंसा है।” पेजलो (Pagelow) के अनुसार, “परिवार के सदस्यों द्वारा की जाने वाली अथवा नज़रअन्दाज़ करने की कोई ऐसी कार्यवाही है तथा ऐसी कार्यवाहियों के परिणामस्वरूप पैदा होने वाली कोई भी ऐसी स्थिति है जो परिवार के बाकी सदस्यों को समान अधिकारों तथा स्वतन्त्रताओं से वंचित करती है या उनके सम्पूर्ण विकास तथा चुनाव की स्वतन्त्रता में विघ्न डालती है।”
इस प्रकार पारिवारिक हिंसा शारीरिक हमले तक ही सीमित नहीं होती बल्कि मानसिक तौर पर प्रताड़ित करने से लेकर स्वतन्त्रता छीनने तक फैली होती है। यह पारिवारिक रिश्तों में बार-बार होती है। पारिवारिक हिंसा का दायरा परिवार में गाली-गलौच से लेकर बल के प्रयोग तक फैला हुआ है। इसमें पति-पत्नी, बहन-भाई, चाचे-ताये, दादा-पोत्र इत्यादि का टकराव शामिल है। इस प्रकार पारिवारिक हिंसा ऐसी कार्यवाही है जिसमें परिवार का कोई सदस्य परिवार के दूसरे सदस्य को चोट पहुंचाने के इरादे से करे अथवा उसका इस तरह करने का इरादा हो। चाहे हमारे समाजों में हिंसा आमतौर पर होती रहती है तथा हिंसा अपने आप में कोई विशेष चीज़ नहीं है परन्तु जब हिंसा को परिवार के सदस्यों के विरुद्ध प्रयोग किया जाता है तो इसका विश्लेषण तथा व्याख्या आवश्यक हो जाते हैं। पारिवारिक हिंसा के बहुत से प्रकार हो सकते हैं जैसे पति अथवा पत्नी का एक-दूसरे से दुर्व्यवहार, वैवाहिक बलात्कार, भाई का बहन-से या पिता का पुत्री से बलात्कार, बहन-भाई में हिंसा, पिता-पुत्र में झगड़ा, देवरानी-जेठानी में झगड़ा, सास तथा पुत्र-वधु में हिंसा, सास द्वारा पुत्रवधु को मारना, ननद द्वारा भाभी से हिंसा इत्यादि। यह बात साधारणतया मानी जाती है कि यदि हिंसा अथवा हमला किसी और स्थिति में होता है तो ऐसे हमले को गम्भीर माना जाता है। परन्तु यदि वह हिंसा पारिवारिक स्तर पर हो तो उसको पारिवारिक गड़बड़ (Family problem) अथवा छोटा मोटा अपराध मान लिया जाता है।
प्रश्न 7.
घरेलू हिंसा के कारणों की विस्तार सहित टिप्पणी करें।
अथवा
घरेलू हिंसा के क्या कारण हैं? चर्चा करें।
उत्तर–
पारिवारिक हिंसा केवल एक कारण के कारण नहीं होती बल्कि कई कारणों के कारण होती है जिनका वर्णन निम्नलिखित है_-
1. सामाजिक परिवर्तन (Social Change)-परिवर्तन प्रकृति का नियम है तथा परिवार और समाज भी इस अछूते नहीं हैं। परिवार, घर तथा समाज में भी भौगोलिक तथा सांस्कृतिक प्रभावों के कारण परिवर्तन आते रहते हैं। शहरीकरण, औद्योगिकीकरण, नई तथा औपचारिक शिक्षा व्यवस्था, यातायात तथा संचार के साधनों ने प्राचीन प्रकार के रिश्तों में बहुत बड़ा परिवर्तन ला दिया है। व्यक्ति को कार्य प्राप्त करने के नए मौके प्राप्त हुए जिस कारण परिवार के सदस्य रिश्तों के पुराने जाल को छोड़ने के लिए बाध्य हुए। नई पीढ़ी ने संयुक्त परिवारों के स्थान पर केन्द्रीय परिवारों को महत्त्व दिया जो एक जगह से दूसरी जगह पर जा सकें। अकेले रहने के कारण उन पर किसी प्रकार के बुजुर्ग का नियन्त्रण न रहा। दफ़्तर की परेशानियां, घर चलाने की परेशानियां जब व्यक्ति से सहन नहीं होती हैं तो वह अपना गुस्सा अपने परिवार में पत्नी तथा बच्चों पर निकालता है जिस कारण पारिवारिक हिंसा बढ़ती है।
2. मद्यपान (Alcoholism)—साधारणतया यह देखने में आया है कि व्यक्ति अपनी परेशानियों को दूर करने के लिए अथवा मौज-मस्ती के लिए शराब पीते हैं। वह जब बाहर से मद्यपान करके घर पहुंचते हैं तो उसकी पत्नी, बच्चे, माता-पिता, बहन-भाई उसको शराब न पीने के लिए कहते हैं तथा उसको मद्यपान की हानियों के बारे में बताते हैं। कई बार तो व्यक्ति चुप करके उनकी बात सुन लेता है। परन्तु कई बार परेशानी के कारण वह गुस्से में आ जाता है तथा घर के सदस्यों पर हाथ उठा देता है। गालियां निकालता है तथा यहां तक कि मारपीट भी करता है। उसको लगता है कि उसके घर वाले उसकी परेशानी और बढ़ा रहे हैं। इस प्रकार मद्यपान करने के बाद उसे होश ही नहीं रहता कि वह क्या कर रहा है। उसका दिमाग बुरी तरह नशे में चूर होता है तथा उसको इस बात का ध्यान ही नहीं होता कि वह क्या कर रहा है। इस प्रकार मद्यपान से भी पारिवारिक हिंसा बढ़ती है।
3. बचपन का दुर्व्यवहार (Misbehaviour of Childhood)-कई विद्वान् यह कहते हैं कि कई व्यक्तियों से बचपन में उनके माता-पिता ने काफ़ी दुर्व्यवहार किया होता है। उनका सारा बचपन दुर्व्यवहार, माता-पिता की डांट, बिना प्यार के ही व्यतीत होता है। कई व्यक्तियों का स्वभाव इस कारण ही बेरुखा हो जाता है तथा बालिग होने पर वह अपने माता-पिता, पत्नी तथा बच्चों से दुर्व्यवहार करते हैं। कई व्यक्ति तो अपने बचपन की बातें अपने दिल में पालकर रखते हैं तथा बड़े होने पर अपने माता-पिता तथा बच्चों से दुर्व्यवहार (शारीरिक तथा मानसिक) करते हैं। इस प्रकार व्यक्ति का बचपन भी कई बार घरेलू हिंसा के लिए उत्तरदायी होता है।
4. मादक द्रव्यों का व्यसन (Drug Abuse)-आजकल बाज़ार में ऐसी दवाएं मौजूद हैं जिनके सेवन करने से व्यक्ति को नशा हो जाता है जैसे कि कैप्सूल, टीके, पीने की दवा इत्यादि। चाहे डॉक्टर उन्हें बीमारी से ठीक होने के लिए दवा देता है परन्तु कई बार व्यक्ति उनका सेवन नशे के लिए करने लग जाता है। जब व्यक्ति इनका सेवन कर लेता है तो उसको इस बात का ध्यान ही नहीं रहता कि वह क्या कर रहा है। वह घर वालों से जाकर दुर्व्यवहार करता है। यहां तक कि मारता भी है। इस तरह यदि उसके पास दवा खरीदने के लिए पैसे न हों तो वह घर वालों से पैसे प्राप्त करने के लिए गाली-गलौच करता है, मार पिटाई करता है ताकि उसको नशा करने के लिए पैसे मिल जाएं। इस तरह नशे के लिए पैसे प्राप्त करने के लिए भी वह पारिवारिक हिंसा करता है।
5. व्यक्तित्व में समस्या (Problem of Personality)-कई बार व्यक्तित्व में समस्या या नुक्स भी पारिवारिक हिंसा का कारण बनता है। कई व्यक्ति प्राकृतिक तौर पर ही गुस्से वाले होते हैं तथा घर में हुई छोटी-छोटी बात पर भी गुस्सा कर देते हैं। उदाहरण के तौर पर किसी परिवार में भतीजे की छोटी-सी गलती पर चाचा, ताया ही उसे पीट देते हैं। इसके अतिरिक्त कुछ लोग शक्की स्वभाव के होते हैं। पत्नी के व्यवहार, बच्चों के व्यवहार, बहन के व्यवहार पर शक करके उनको पीट देते हैं। उदाहरण के तौर पर यदि बच्चे, भाई, बहन, भतीजा किसी से टेलीफोन पर बात करते हैं तो वे पूछते हैं कि किससे बात कर रहे हो ? क्यों कर रहो हो इत्यादि। ठीक उत्तर न मिलने पर वे उनको पीटते हैं। इस प्रकार व्यक्तित्व का नुक्स भी पारिवारिक हिंसा का कारण बनता है।
6. कम आय (Less Income)-आजकल महंगाई का समय है परन्तु प्रत्येक व्यक्ति की आय लगभग बंधी हुई होती है। घर का खर्च अधिक होता है परन्तु आय कम होती है। व्यक्ति के ऊपर हमेशा आर्थिक तंगी रहती है। इस कारण वह घर का खर्च ठीक प्रकार से नहीं चला सकता है तथा हमेशा तनाव में रहता है। पत्नी, बच्चे तथा घर के और सदस्य उससे चीज़ों की मांग करते हैं परन्तु वह दे नहीं सकता है। इस कारण वह तनाव अथवा गुस्से में आकर उन पर हाथ उठा देता है तथा हिंसा अपने आप ही हो जाती है। इस प्रकार व्यक्ति की कम आय भी पारिवारिक हिंसा का कारण बनती है।
7. बेरोज़गारी (Unemployment)-कई बार बेरोज़गारी भी पारिवारिक हिंसा का कारण बनती है। कई बार ऐसा होता है कि व्यक्ति का व्यापार ठप्प हो जाता है, नौकरी चली जाती है या काम काफ़ी कम हो जाता है। इस स्थिति में या तो वह बेरोजगार हो जाता है या फिर अर्द्ध बेरोज़गार हो जाता है। इस समय व्यक्ति खिन्न हो जाता है या दुःखी रहने लग जाता है। वह अपनी खिन्नता अथवा गुस्सा परिवार के सदस्यों पर निकालता है जिस कारण पारिवारिक हिंसा बढ़ जाती है।
8. हिंसा करने का सामर्थ्य (Capacity to do Violence)-कई बार परिवार के सदस्य हिंसा उस समय करते हैं जब व्यक्ति के हिंसक होने की कीमत उसके परिणाम से कम देनी पड़ती है। दूसरे शब्दों में लोग अपने परिवार के बाकी सदस्यों को इसलिए मारते हैं क्योंकि वे ऐसा कर सकते हैं। मर्द साधारणतया अपनी पत्नी तथा बच्चों से ताकतवर होता है। इसलिए वह उन पर हिंसक गतिविधियों का प्रयोग करता है। आमतौर पर घर के बाहर सामाजिक नियन्त्रण को कम करने के लिए तथा निजीपन, असमानता तथा असली मनुष्य के अक्स जैसे हिंसक होने के परिणामों को बढ़ाने के लिए तीन मुख्य कारण उत्तरदायी होते हैं। समाज तथा परिवार में आमतौर पर लैंगिक आधार पर तथा आयु के आधार पर असमानता होती है। इस कारण परिवार में असमानता बढ़ जाती है। लैंगिक तौर पर शक्तिशाली लिंग तथा बड़ी आयु होने के कारण व्यक्ति हिंसा करता है तथा घरेलू हिंसा में बढ़ोत्तरी होती है।
9. हितों का टकराव (Clash of Interests)-भगवान ने प्रत्येक व्यक्ति की प्रकृति को अलग-अलग बनाया है तथा उसके अनुसार प्रत्येक व्यक्ति के हित भी अलग-अलग होते हैं। कोई व्यक्ति अधिक पढ़ना चाहता है, कोई अधिक पैसे कमाना चाहता है। इस प्रकार परिवार के प्रत्येक सदस्य का हित अलग-अलग होता है। पिता-पुत्र, चाचा-भतीजा, बहन-भाई, चाचा-ताया, दादा-पोत्र इत्यादि प्रत्येक व्यक्ति के हित अलग-अलग होते हैं। इस कारण ही प्रत्येक के हितों का टकराव भी होता है। परिवार का प्रत्येक सदस्य चाहता है कि उसके पास पारिवारिक सम्पत्ति का अधिक-से-अधिक हिस्सा आ जाए। इस कारण उनमें विरोध तथा गतिरोध पैदा हो जाते हैं। एक ही घर में रहते हए भाई-भाई से बोलना बंद कर देता है, पिता-पुत्र में तकरार पैदा हो जाती है। यहां तक कि सम्पत्ति के कारण एक-दूसरे को मारने तक की नौबत आ जाती है। हर रोज़ समाचार-पत्रों में सम्पत्ति के कारण पारिवारिक हिंसा की खबरें पढ़ने को मिलती हैं जैसे पुत्र ने पिता को मार दिया, भाई ने भाई को मार दिया, भतीजे ने चाचा को मार दिया इत्यादि। इस प्रकार व्यक्तिगत हित भी पारिवारिक हिंसा के कारण बनते हैं।
10. पुरुष प्रधान समाज (Male Dominated Society) हमारा समाज पुरुष प्रधान समाज है जिस कारण स्त्रियों को परिवार तथा समाज में काफ़ी निम्न दर्जा दिया गया है। इस प्रकार स्त्रियों के ऊपर हिंसा का कारण पुरुषों की तुलना में उनकी निम्न स्थिति में से निकलता है। किसी भी पुरुष प्रधान पारिवारिक व्यवस्था में नज़दीक के सम्बन्धों में शक्ति का विभाजन पुरुष के हाथों में होता है। समाजीकरण की प्रक्रिया भी स्त्रियों को पुरुषों के अधीन बनाती है। दोनों में यह असमानता सदियों से चलती आ रही है। जितनी अधिक असमानता होगी उतनी अधिक निम्न व्यक्ति के विरुद्ध हिंसा होगी। इसके अतिरिक्त यदि निम्न व्यक्ति (स्त्री) अपने विरोधी की सत्ता को चुनौती देगा तो उस चुनौती को दबाने के लिए और हिंसा का प्रयोग किया जाएगा। ___ 11. निर्भरता (Dependency) साधारणतया परिवार में पुरुष पैसे कमाते हैं तथा बाकी सभी व्यक्ति जीवन जीने के लिए उस पर निर्भर होते हैं। इसलिए पुरुष को लगता है कि जो जीवन बाकी लोग जी रहे हैं उस पर उसका अधिकार है। इसलिए वह जैसे चाहे उनके जीवन को बदल सकता है। यदि परिवार के सदस्य (माता-पिता, पत्नी, बच्चे) उसके विचारों के अनुसार जीवन जीते हैं तो ठीक है नहीं तो हिंसा का प्रयोग करके उनको वह जीवन जीने के लिए बाध्य किया जाता है जोकि वह व्यक्ति चाहता है। इस प्रकार निर्भरता भी पारिवारिक हिंसा को बढ़ाती है।
प्रश्न 8.
घरेलू हिंसा पर नियंत्रण पर विस्तार से टिप्पणी करें।
अथवा
घरेलू हिंसा की समस्या के सुधार के समाधान के लिए उपाय बताएं।
उत्तर–
पारिवारिक हिंसा कोई नई क्रिया नहीं है। यह प्राचीन समाजों में भी होती थी। उस समय परिवार अपने यदि सदस्य को मानसिक, शारीरिक तथा सामाजिक सुरक्षा प्रदान करता था। परन्तु अब परिवार विशेषतया संयुक्त परिवार में परिवर्तन आ रहे हैं। यह परिवर्तन परिवार के बड़े बुजुर्गों की भूमिका में हुआ है। पति-पत्नी के सम्बन्धों में तनाव पैदा हो रहा है, छोटे सदस्यों को अधिक अधिकार प्राप्त हो रहे हैं। अब बड़ों का सम्मान कम हो गया है। उनको अब लाभदायक नहीं बल्कि बेकार समझा जाता है तथा इस कारण उनसे दुर्व्यवहार के केस बढ़ रहे हैं। इस कारण ही मातापिता के बच्चों से सम्बन्ध कमज़ोर पड़ रहे हैं। बढ़ रहे तलाकों की संख्या से पता चलता है कि पति-पत्नी के सम्बन्ध कमज़ोर हो रहे हैं तथा पारिवारिक संरचना धीरे-धीरे खत्म हो रही है। संयुक्त परिवार की धारणा तो आने वाले समय में बिल्कुल ही खत्म हो जाएगी।
इस प्रकार पारिवारिक हिंसा को खत्म करने के लिए तथा हिंसा के शिकार लोगों का जीवन बचाने के लिए यह आवश्यक है कि इसको रोका जाए तथा इसका इलाज किया जाए परन्तु इसके इलाज में हम अपनी संस्कृति को नहीं बदल सकते। इसलिए इसका इलाज रोकथाम है। रोकथाम की नीतियों का मुख्य उद्देश्य पारिवारिक हिंसा को रोकना है। सबसे पहले हमें हमारी कद्रों-कीमतों, व्यवहार, प्रकृति को परिवर्तित करना आवश्यक है जिससे हमारा अन्य लोगों को देखने का दृष्टिकोण ही बदल जाएगा।
लैंगिक असमानता, आर्थिक असमानता तथा निर्भरता भी पारिवारिक हिंसा को बढ़ाती है। यदि नौकरी पेशा स्त्रियों तथा पुरुषों के बीच का अन्तर खत्म कर दिया जाए तो पारिवारिक हिंसा को काफ़ी हद तक खत्म किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त बच्चों को मार से नहीं बल्कि प्यार से समझाना चाहिए। हिंसा प्रतिहिंसा को जन्म देती है। जो व्यवस्था हिंसा से स्थापित की जाएगी उसका अन्त भी हिंसा से ही होगा। यदि हम बच्चे को मार से समझाएंगे तो इससे उसके शरीर पर नहीं बल्कि मन पर असर पड़ेगा। वह उस मार को भूलेगा नहीं तथा समय आने पर माता-पिता को वही रूप दिखाएगा जो माता-पिता ने उसे दिखाया था। यदि हम बच्चों को प्यार से शिक्षा देंगे तो शायद यह पारिवारिक हिंसा को खत्म करने की तरफ एक महत्त्वपूर्ण कदम होगा क्योंकि प्यार से ही प्यार का जन्म होता है।
प्रश्न 9.
पत्नी की मारपीट (प्रताड़ना) से क्या अभिप्राय है ? इसके रोकने के लिए क्या उपाय हैं ?
उत्तर-
पत्नी की मारपीट केवल हमारे देश में ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण विश्व में चल रही एक बहुत बड़ी समस्या है। वास्तव में हमारे समाज पुरुष प्रधान समाज हैं तथा ऐसे समाजों की सबसे बड़ी कमी है कि यहां पत्नी के साथ मारपीट होती है। पत्नी को मारपीट का अर्थ है पत्नी की तरफ से पत्नी के विरुद्ध हिंसा का प्रयोग करना। वास्तव में पति समझते हैं कि उनकी पत्नी उनकी गुलाम है तथा वे जो भी कहेंगे पत्नी को वह सब कुछ करना पड़ेगा।
हमारा समाज पुरुष प्रधान समाज है तथा पुरुष यह सोचते हैं कि उनका अपनी पत्नी पर पूर्ण अधिकार है। वह पत्नी के साथ जैसा चाहे व्यवहार कर सकता है। पुरुष साधारणतया स्त्री से शक्तिशाली होते हैं जिस कारण भी वे पत्नी के विरुद्ध हिंसक हो जाते हैं। समाज तथा परिवार में लिंग के आधार पर असमानता होती है जिस कारण परिवार में असमानता बढ़ जाती है तथा लैंगिक तौर पर ताकतवर लिंग हिंसा करता है तथा पत्नी को पीटता है।
अब समय बदल रहा है तथा स्त्रियां पढ़-लिख रही हैं। वे नौकरियां कर रही हैं, व्यापार कर रही हैं तथा अपने पति के कार्य में साथ देती हैं। वे पुरुषों के कंधे से कंधा मिला कर चलती हैं। इस कारण वे पुरुषों के समान सामाजिक स्थिति की माँग करती हैं। परन्तु पुरुष प्रधान मानसिकता होने के कारण पुरुष इसके लिए तैयार नहीं होते तथा दोनों में अंतर आना शुरू हो जाता है। छोटी-छोटी बातों पर लड़ाई होती है तथा बात हाथापाई तक पहुँच जाती है। पुरुष शक्तिशाली होने के कारण पत्नी की पिटाई कर देते हैं जिसे पत्नी की मारपीट कहा जाता है।
पत्नी की मारपीट आजकल हमारे समाज में एक बड़ी समस्या बन कर उभर रही है। पति का शराब पीना, पत्नी पर शक करना, पत्नी का आर्थिक तौर पर निर्भर होना, पतियों की ग़लत हरकतों को नज़र-अंदाज न करना इत्यादि ऐसे कारण हैं जिनकी वजह से दोनों के बीच गलतफ़हमी हो जाती है तथा पति-पत्नी पर हाथ उठा देते हैं। इन बातों को आजकल की पढ़ी-लिखी स्त्री बर्दाश्त नहीं करती जिस कारण बात तलाक तक पहुँच जाती है। पति के हाथों पिटाई खाकर जीवन जीने से वह तलाक लेकर अलग रहना पसंद करती हैं।
रोकने के उपाय :-
- इस समस्या का समाधान उस समय तक नहीं हो सकता जब तक लोग अपनी मानसिकता नहीं बदलते। अब वह समय नहीं रहा कि पति अपनी पत्नी को गुलाम समझें। अब पढ़ी-लिखी तथा आर्थिक तौर पर आत्म निर्भर पत्नी समान अधिकारों की माँग करती है तथा न मिलने की स्थिति में तलाक लेकर रहना पसंद करती हैं। अब वह पिटाई बर्दाश्त नहीं करती तथा अलग हो जाती हैं। इसलिए सबसे पहले यह आवश्यक है कि लोग अपनी मानसिकता बदलें तथा स्त्रियों को समान अधिकार दें।
- सरकार ने स्त्रियों के लिए कई कानून बनाए हुए हैं परन्तु वह कानून ठीक ढंग से लागू नहीं हुए हैं। अगर हम इस समस्या को खत्म करना चाहते हैं तो इन कानूनों को कठोरता से लागू करना पड़ेगा तथा पत्नी से मारपीट करने वालों को कठोर सज़ा दी जाए ताकि यह लोगों के लिए मिसाल बन सके।
- स्वयं सेवी संस्थाएं इसमें महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं। इस मुद्दे को लेकर नुक्कड़ नाटक करवाए जा सकते हैं, सैमीनार करवाए जा सकते हैं ताकि लोगों को वह कार्य न करने के लिए प्रेरित किया जा सके।
अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न : (OTHER IMPORTANT QUESTIONS)
I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न
A. बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1.
कन्या भ्रूण हत्या क्यों की जाती है ?
(क) लड़का प्राप्त करने की इच्छा
(ख). दहेज बचाने के लिए
(ग) खानदान आगे बढ़ाने के लिए
(घ) उपर्युक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपर्युक्त सभी।।
प्रश्न 2.
गर्भधारण के कितने हफ्ते बाद लिंग निर्धारण परीक्षण करवाया जाता है ?
(क) 10 हफ्ते
(ख) 14 हफ्ते
(ग) 18 हफ्ते
(घ) 22 हफ्ते।
उत्तर-
(ग) 18 हफ्ते।
प्रश्न 3.
भारत का लिंग अनुपात कितना है ?
(क) 1000 : 943
(ख) 1000 : 956
(ग) 1000 : 896
(घ) 1000 : 933.
उत्तर-
(क) 1000 : 943.
प्रश्न 4.
2011 की जनगणना के अनुसार पंजाब का लिंग अनुपात कितना था ?
(क) 1000 : 846
(ख) 1000 : 895
(ग) 1000 : 876
(घ) 1000 : 882.
उत्तर-
(ख) 1000 : 895.
प्रश्न 5.
पंजाब के किस जिले का लिंग अनुपात सबसे अधिक है ?
(क) लुधियाना
(ख) पटियाला
(ग) अमृतसर
(घ) होशियारपुर।
उत्तर-
(घ) होशियारपुर।
प्रश्न 6.
पंजाब के किस जिले का लिंग अनुपात सबसे कम है ?
(क) पटियाला
(ख) बठिण्डा
(ग) अमृतसर
(घ) लुधियाना।
उत्तर-
(ख) बठिण्डा।
प्रश्न 7.
Pre-Natal Diagnostic Techniques (Prohibition of Sex Selection) अधिनियम कब पास हुआ था ?
(क) 1994
(ख) 1995
(ग) 1996
(घ) 1997.
उत्तर-
(क) 1994.
प्रश्न 8.
लिंग अनुपात से भाव है :
(क) 1000 स्त्रियों के पीछे पुरुषों की संख्या
(ख) 1000 पुरुषों के पीछे स्त्रियों की संख्या
(ग) 100 स्त्रियों के पीछे पुरुषों की संख्या
(घ) उपर्युक्त से कोई नहीं।
उत्तर-
(ख) 1000 पुरुषों के पीछे स्त्रियों की संख्या।
B. रिक्त स्थान भरें-
1. कन्या भ्रूण हत्या में लड़की को माँ की में ही मार दिया जाता है।
2. ……………….. प्राप्त करने की इच्छा कन्या भ्रूण हत्या का सबसे बड़ा कारण है।
3. कन्या भ्रूण हत्या से …………………… बिगड़ जाता है।
4. भारतीय दण्ड संहिता के सैक्शन ………………… से ……………… गर्भपात करना गैर-कानूनी है।
5. …………………… में घर के सदस्यों से मारपीट की जाती है।
उत्तर-
- कोख
- लड़का
- लिंग अनुपात
- 316, 320
- घरेलू हिंसा।
C. सही/ग़लत पर निशान लगाएं
1. भारत में पंजाब का लिंग अनुपात सबसे अधिक है।
2. पंजाब के बठिण्डा जिले का लिंग अनुपात सबसे कम है।
3. बच्चे का जन्म से पहले लिंग निर्धारण करना गैर-कानूनी है।
4. स्त्रियों के विरुद्ध सबसे अधिक घरेलू हिंसा होती है।
5. स्त्रियों के विरुद्ध मानसिक हिंसा नहीं होती है।
उत्तर-
- सही
- ग़लत
- सही
- सही
- ग़लत।
II. एक शब्द/एक पंक्ति वाले प्रश्न उत्तर
प्रश्न 1. स्त्रियों के विरुद्ध अपराध का क्या अर्थ है ?
उत्तर- इसका अर्थ है कि स्त्रियों पर शारीरिक व मानसिक अत्याचार।
प्रश्न 2. स्त्रियों के विरुद्ध अपराध की कुछ उदाहरण दें।
उत्तर-बलात्कार, यौन अपराध, अपहरण, मारना-पीटना, वेश्यावृत्ति इत्यादि।
प्रश्न 3. कन्या भ्रूण हत्या का क्या अर्थ है ?
उत्तर- बच्चे का लिंग पता करके लड़की को माँ की कोख में ही मार देना कन्या भ्रूण हत्या होता है।
प्रश्न 4. गर्भधारण के कितने हफ्ते बाद गर्भपात करवा दिया जाता है ?
उत्तर-18 हफ्ते बाद।
प्रश्न 5. लिंग अनुपात का क्या अर्थ है ?
उत्तर-किसी क्षेत्र में 1000 पुरुषों के पीछे स्त्रियों की संख्या।
प्रश्न 6. 2011 में भारत का लिंग अनुपात कितना था ?
उत्तर-2011 में भारत का लिंग अनुपात 1000 : 943 था।
प्रश्न 7. 2011 में पंजाब का लिंग अनुपात कितना था ?
उत्तर-2011 में पंजाब का लिंग अनुपात 1000 : 895 था।
प्रश्न 8. पंजाब के कौन-से जिलों में लिंग अनुपात सबसे कम व अधिक है ?
उत्तर-बठिण्डा (869) तथा होशियारपुर (961)।
प्रश्न 9. कन्या भ्रूण हत्या का एक कारण बताएं।
उत्तर-लड़का प्राप्त करने की इच्छा तथा दहेज का इंतजाम करना।
प्रश्न 10. कन्या भ्रूण हत्या का एक परिणाम बताएं।
उत्तर-स्त्री के स्वास्थ्य पर गलत प्रभाव तथा लिंग अनुपात में कमी आना।
प्रश्न 11. घरेलू हिंसा का क्या अर्थ है ?
उत्तर-पत्नी या बच्चों को मारना घरेलू हिंसा है।
प्रश्न 12. घरेलू हिंसा के प्रकार बताएं।
उत्तर-शारीरिक हिंसा, यौन हिंसा, भावनात्मक हिंसा तथा जुबानी बदसलूकी।
प्रश्न 13. पत्नी की पिटाई का सबसे आम कारण क्या है ?
उत्तर-दहेज के सामान से असंतुष्टि तथा पत्नी से झगड़ा।
प्रश्न 14. घरेलू हिंसा का सबसे आम प्रकार कौन-सा है ?
उत्तर-पत्नी को पीटना व स्त्रियों के विरुद्ध हिंसा।
III. अति लघु उत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
कन्या भ्रूण हत्या।
उत्तर-
लोगों में लड़का प्राप्त करने की इच्छा होती है जिस कारण वे अपनी पत्नी के गर्भवती होने पर उसका लिंग निर्धारण परीक्षण करवाते हैं। लड़की होने की स्थिति में उसे माँ की कोख में ही मार दिया जाता है तथा इसे ही कन्या भ्रूण हत्या कहते हैं।
प्रश्न 2.
लिंग अनुपात।
उत्तर-
किसी विशेष क्षेत्र में किसी विशेष समय पर 1000 पुरुषों के पीछे स्त्रियों की संख्या को लिंग अनुपात का नाम दिया जाता है। लिंग अनुपात देख कर ही देश में स्त्रियों की स्थिति का पता चल जाता है। भारत में 2011 में लिंग अनुपात 1000 : 943 था।
प्रश्न 3.
कन्या भ्रूण हत्या के कारण।
उत्तर-
- लोगों में लड़का प्राप्त करने की इच्छा होती है जिस कारण वे कन्या भ्रूण हत्या करते हैं।
- लड़की को विवाह के समय दहेज देना पड़ता है। इससे बचने के लिए भी लोग यह काम करते हैं।
प्रश्न 4.
कन्या भ्रूण हत्या के परिणाम।
उत्तर-
- इससे लिंग अनुपात बिगड़ जाता है व लड़कियों की कमी हो जाती है।
- इस कारण स्त्रियों के विरुद्ध अपराध बढ़ जाते हैं।
- समाज में स्त्रियों की स्थिति निम्न हो जाती है।
IV. लघु उत्तरात्मक प्रश्न-
प्रश्न 1.
कन्या भ्रूण हत्या।
उत्तर-
लोगों में कई कारणों के कारण लड़की के स्थान पर लड़के को प्राप्त करने की इच्छा होती है। वे कई ढंगों का प्रयोग करते हैं ताकि लड़की के स्थान पर लड़के को प्राप्त किया जा सके। जब कोई स्त्री गर्भवती होती है तो पहले तीन-चार माह तक माँ के गर्भ में बच्चा पूर्णतया विकसित नहीं हुआ होता है। इसे अभी भी भ्रूण ही कहा जाता है। आजकल ऐसी मशीनें आ गई हैं जिनसे माता के पेट में ही टैस्ट करके पता कर लिया जाता है कि होने वाला बच्चा लड़का है या लड़की। अगर गर्भ में पल रहा बच्चा लड़का है तो ठीक है परन्तु लड़की है तो उसका गर्भपात करवा दिया जाता है अर्थात् माता की कोख में ही लड़की को मार दिया जाता है। इसे ही कन्या भ्रूण हत्या कहते हैं।
प्रश्न 2.
कन्या भ्रूण हत्या के कारण।
उत्तर-
- लड़का प्राप्त करने की इच्छा कन्या भ्रूण हत्या को जन्म देती है।
- तकनीकी सुविधाओं के बढ़ने के कारण अब गर्भ में ही बच्चे के लिंग का पता कर लिया जाता है जिस कारण लोग कन्या भ्रूण हत्या की तरफ़ बढ़े हैं।
- लड़की के बड़े होने पर उसे दहेज देना पड़ता है तथा लड़का होने पर दहेज लाता है। यह कारण भी लोगों को कन्या भ्रूण हत्या करने के लिए प्रेरित करता है।
- यह कहा जाता है कि मृत्यु के बाद व्यक्ति का दाह संस्कार तथा और संस्कार बेटा ही पूर्ण करता है। इस कारण भी लोग लड़का प्राप्त करना चाहते हैं।
- लड़कों से यह आशा की जाती है कि वे बुढ़ापे में अपने माता-पिता की देखभाल करेंगे तथा लडकियां विवाह के बाद अपने ससुराल चली जाएंगी। इस सामाजिक सुरक्षा की इच्छा के कारण भी लोग लड़का चाहते हैं।
प्रश्न 3.
कन्या भ्रूण हत्या के परिणाम।
उत्तर-
- कन्या भ्रूण हत्या के कारण समाज में लिंग अनुपात कम होना शुरू हो जाता है। भारत में यह 1000 : 940
- कम होते लिंग अनुपात के कारण समाज में असन्तुलन बढ़ जाता है क्योंकि पुरुषों की संख्या बढ़ जाती है तथा स्त्रियों की संख्या कम हो जाती है।
- इस कारण स्त्रियों के विरुद्ध हिंसा भी बढ़ जाती है। अपहरण, बलात्कार, छेड़छाड़ इत्यादि जैसी घटनाएं भी बढ़ जाती हैं।
- कन्या भ्रूण हत्या के कारण स्त्रियों की सामाजिक स्थिति और निम्न हो जाती है क्योंकि स्त्री ही स्त्री की दुश्मन हो जाती है।
- कन्या भ्रूण हत्या का स्त्री के स्वास्थ्य पर ग़लत प्रभाव पड़ता है क्योंकि गर्भपात का उसके स्वास्थ्य पर असर तो पड़ेगा ही।
प्रश्न 4.
लिंग अनुपात।
उत्तर-
अगर हम साधारण शब्दों में देखें तो 1000 पुरुषों के पीछे स्त्रियों की संख्या को लिंग अनुपात कहा जाता है। इसका अर्थ यह है कि किसी विशेष क्षेत्र में 1000 पुरुषों के पीछे कितनी स्त्रियां हैं, इसे ही लिंग अनुपात कहते हैं। लिंग अनुपात शब्द का संबंध किसी भी देश की जनसंख्या से संबंधित जनसंख्यात्मक लक्षणों से हैं तथा देश की जनसंख्या के बारे में पता करने के लिए लिंग अनुपात का पता होना आवश्यक है। 2011 में भारत में लिंग अनुपात 1000 : 943 था।
प्रश्न 5.
कम होते लिंग अनुपात के कारण।
उत्तर-
- लड़का प्राप्त करने की इच्छा का होना।
- कन्या भ्रूण हत्या का बढ़ना।
- लड़कियों को जन्म के बाद मार देने की प्रथा।
- पुरुषों का एक स्थान से प्रवास कर जाना।
- परम्परागत समाजों की प्रवृत्ति के कारण।
प्रश्न 6.
कम होते लिंग अनुपात के परिणाम।
उत्तर-
- स्त्रियों के साथ हिंसा का बढ़ना।
- बहुपति विवाह प्रथा का बढ़ना।
- स्त्रियों की सामाजिक स्थिति का निम्न होना।
- स्त्रियों के स्वास्थ्य पर ग़लत प्रभाव।
- स्त्रियों की खरीदारी का बढ़ाना।
प्रश्न 7.
पारिवारिक हिंसा।
अथवा घरेलू हिंसा।
उत्तर-
पारिवारिक हिंसा एक जटिल धारणा है। पारिवारिक हिंसा को परिभाषित करना मुश्किल है। जब परिवार के दो सदस्यों में झगड़ा हो जाता है तथा एक सदस्य द्वारा दूसरे सदस्य को शारीरिक तथा मानसिक रूप से प्रताड़ित किया जाता है तो इसे पारिवारिक हिंसा कहते हैं। इसमें धक्का मारना, चांटा मारना, मुक्का मारना, चाकू मारना, गोली मारना, चीजें फेंकना इत्यादि शामिल हैं। इससे दूसरे सदस्य को शारीरिक रूप से चोट पहुंचने के साथ-साथ मानसिक रूप से भी चोट पहुंचती है।
प्रश्न 8.
घरेलू हिंसा की परिभाषा।
उत्तर-
पेजलो (Pagelow) के अनुसार, “परिवार के सदस्यों द्वारा की जाने वाली अथवा नज़रअन्दाज करने की कोई ऐसी कार्यवाही है तथा ऐसी कार्यवाहियों के परिणामस्वरूप पैदा होने वाली कोई भी ऐसी स्थिति है जो परिवार के बाकी सदस्यों को समान अधिकारों तथा स्वतन्त्रताओं से वंचित करती है अथवा उनके सम्पूर्ण विकास तथा चुनाव की स्वतन्त्रता में विघ्न डालती है।”
प्रश्न 9.
घरेलू हिंसा के कारण।
उत्तर-
- लोग परेशानियों से मुक्ति पाने के लिए मद्यपान करते हैं। जब पत्नी या बच्चे उन्हें मद्यपान करने से मना करते हैं तो वे उन्हें पीटते हैं तथा पारिवारिक हिंसा को बढ़ाते हैं।
- कई लोग प्राकृतिक तौर पर गुस्से वाले होते हैं तथा छोटी-छोटी बात पर ही गुस्सा करते हैं तथा बच्चों को पीट देते हैं।
- कई लोग मादक द्रव्यों का व्यसन करते हैं। यदि उन्हें मादक द्रव्य खरीदने के लिए पैसा नहीं मिलता तो वे पैसा प्राप्त करने के लिए घर वालों से मारपीट करते हैं।
- निर्धनता के कारण वे हमेशा दुःखी रहते हैं तथा गुस्से में कई बार पत्नी या बच्चों को पीट देते हैं।
प्रश्न 10.
पत्नी की मार पिटाई।
उत्तर-
पुरुष प्रधान समाजों की यह सबसे बड़ी कमी है कि यहां पर पति द्वारा पत्नी की मार पिटाई होती है। पत्नी की मार पिटाई का अर्थ है कि पति की तरफ से पत्नी के विरुद्ध हिंसा का प्रयोग करना। वास्तव में पति यह समझते हैं कि उनकी पत्नी उनकी दासी है तथा जो वे कहेंगे पत्नी को वह सब कुछ करना पड़ेगा। परन्तु आजकल शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् स्त्रियों को अपने अधिकारों का पता चल रहा है तथा वे अपने पतियों की नाजायज़ बातों का विरोध करती हैं। इस कारण पति उनके विरुद्ध हिंसा का प्रयोग करते हैं।
V. बड़े उत्तरों वाले प्रश्न ।
प्रश्न-
कम होते लिंग अनुपात के कारणों तथा परिणामों का वर्णन करें।
उत्तर-
कम होते लिंग अनुपात के कारण-किसी भी समाज में बहुत-से कारण होते हैं जिनसे लिंग अनुपात प्रभावित होता है तथा इन कारणों का वर्णन इस प्रकार है
1. जैविक कारण (Biological Causes)-किसी भी देश में अगर लिंग अनुपात कम होता है तो उसका सबसे पहला कारण ही जैविक होता है। हो सकता है कि किसी विशेष समाज में लड़के ही अधिक पैदा होते हों जिस कारण लिंग अनुपात कम हो जाता है। कुछ अध्ययनों से यह पता चलता है कि हमारे देश में एक महीने की आयु तक लड़कों की अपेक्षा लड़कियों के मरने की दर अधिक है जिस कारण लिंग अनुपात कम होना शुरू हो जाता है। 1981-1990 के दशक के दौरान हमारे देश में 109.5 लड़कों की तुलना में केवल 100 लड़कियां ही थीं। इस प्रकार कम होते लिंग अनुपात का एक कारण जैविक माना जा सकता है।
2. प्रवास (Migration)-आवास अथवा प्रवास को भी लिंग अनुपात के कम होने अथवा बढ़ने का कारण माना जा सकता है। हो सकता है कि किसी विशेष राज्य अथवा देश के पुरुष रोज़गार की तलाश में दूसरे राज्यों अथवा देशों में चले गए हों। इससे उन दोनों राज्यों का लिंग अनुपात कम या बढ़ सकता है। साधारणतया यह देखा गया है कि जब भी पुरुष रोज़गार की तलाश में एक स्थान से दूसरे स्थान की तरफ जाते हैं, वे अपने साथ अपनी स्त्रियों तथा बच्चों को नहीं लेकर जाते हैं। वे दूसरे स्थानों पर सालों साल कमाने के लिए रहते हैं तथा कभी-कभी अपने मूल राज्य अथवा .देश की तरफ जाते हैं परन्तु जल्दी ही वापिस आ जाते हैं। हम उदाहरण ले सकते हैं पंजाब के लड़कों की जो पैसे कमाने
के लिए विदेश में चले जाते हैं अथवा उत्तर प्रदेश के निवासियों की जो पैसे कमाने के लिए पंजाब जैसे खुशहाल प्रदेशों में आते हैं। इससे पंजाब जैसे प्रदेशों में लिंग अनुपात का अन्तर उत्पन्न हो जाता है।
3. लड़की को जन्म के बाद मार देना (Female Infanticide)-हमारे देश में प्राचीन समय से ही ऐसा होता आया है कि कई समूह लड़की के जन्म के तुरन्त बाद उसे मार देते थे। देश के कई कबीलों में भी यह प्रथा प्रचलित थी। इस प्रथा के अनुसार कई समूहों में लड़की के जन्म के तुरन्त बाद उसे मार दिया जाता था। इस काम में दाई भी सहायता करती थी। इसका कारण यह था कि यह समूह सोचते थे कि लड़की को बड़ा करने के बाद उसका विवाह करना पड़ेगा तथा बहुत सा दहेज देना पड़ेगा। इसलिए इन सब खर्चों से बचने के लिए वे नई जन्मी बच्ची को मार देते थे। अंग्रेज़ी शासन में इसे खत्म करने के प्रयास किए गए परन्तु इसका अस्तित्व अभी भी बरकरार है। इस कारण ही लिंग अनुपात में अन्तर उत्पन्न हो जाता है।
4. भ्रूण हत्या (Female Foeticide)-पिछले कुछ समय से विपरीत लिंग अनुपात का सबसे बड़ा कारण मादा भ्रूण हत्या ही रहा है। इसका अर्थ है पेट में पल रही अजन्मी बच्ची को कोख में ही मार देना। लोगों में लड़का प्राप्त करने की इच्छा होती है जिस कारण वे गर्भधारण करने के कुछ समय बाद ही लिंग निर्धारण का टैस्ट करवाते हैं। अगर लड़का हो तो ठीक है परन्तु अगर लड़की है तो उसका गर्भपात ही करवा देते हैं। इस प्रकार लड़की को पैदा होने से पहले ही मार दिया जाता है। मादा भ्रूण हत्या के कारण लड़कियों की संख्या लड़कों की तुलना में कम हो जाती है तथा लिंग अनुपात कम होकर लड़कों की तरफ झुक जाता है। चाहे लिंग निर्धारण का टैस्ट करवाना तथा करना कानूनन अपराध समझा जाता है तथा गर्भपात करना भी कानूनन अपराध है तथा ऐसा करने वाले को सजा दी जाती है परन्तु फिर भी मादा भ्रूण हत्या लगातार जारी है।
5. परम्परागत समाज (Traditional Society)-कम होता लिंग अनुपात परम्परागत समाजों में अधिक होता है। अगर हम विकसित देशों जैसे कि अमेरिका, जापान तथा परम्परागत समाजों जैसे कि भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश इत्यादि से तुलना करें तो लिंग अनुपात परम्परागत समाजों में कम है। इसका कारण यह है कि परम्परागत समाजों में यह प्रवृत्ति होती है कि लोगों को लड़की के स्थान पर लड़का चाहिए होता है ताकि खानदान आगे बढ़ सके तथा मरने के बाद बेटा चिता को अग्नि दे सके। परम्परागत समाजों की अलग-अलग प्रवृत्तियों के कारण लड़कों की संख्या बढ़ जाती है। इस प्रकार परम्परागत समाजों में लिंग अनुपात कम होता है।
6. लड़का प्राप्त करने की इच्छा (Wish to have a boy)-लोगों में साधारणतया यह इच्छा होती है कि उनके घर लड़का हो ताकि वह खानदान को आगे बढ़ा सके तथा मरने के बाद चिता को अग्नि दे सके। वैसे भी लोगों में लड़का प्राप्त करने की इच्छा होती है नहीं तो लड़की के बड़ा होने पर उसे विवाह के समय बहुत सा दहेज देना पड़ेगा। विवाह के बाद भी तमाम आयु लड़की के ससुराल वालों को कुछ न कुछ देते ही रहना पड़ेगा। इसलिए लोग लड़की नहीं बल्कि लड़का चाहते हैं तथा इसके प्रयास भी करते हैं। वे तो गर्भपात करवाने से भी पीछे नहीं हटते। इस प्रकार लड़का प्राप्त करने की इच्छा भी लिंग अनुपात को कम करती है।
7. माता-पिता द्वारा नव जन्मी बच्ची को छोड़ देना (To give up the new born girl child by the parents)-आजकल लोगों में यह प्रवृत्ति सामने आ रही है कि नव जन्मी बच्ची को रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड, रेल अथवा किसी और स्थान पर छोड़ देना। वे ऐसा इसलिए करते हैं कि घर में पहले ही लड़कियां होती हैं तथा वे एक और लड़की नहीं बल्कि लड़का चाहते हैं। परन्तु जब लड़की पैदा हो जाती है तो वे उसे लावारिस मरने के लिए छोड़ देते हैं। लड़की को ठीक देखभाल न मिलने की स्थिति में वह मर जाती है। इस प्रकार इस कारण भी लिंग अनुपात कम होता है।
परिणाम (Consequences)-
कम होते लिंग अनुपात के परिणाम इस प्रकार हैं
1. स्त्रियों से हिंसा (Violence with Women)-कम होते लिंग अनुपात का सबसे पहला परिणाम यह निकला है कि स्त्रियों से होने वाली हिंसा बढ़ जाती है। लड़कियों को जन्म से पहले ही मार दिया जाता है, नई जन्मी बच्चियों को या तो मार दिया जाता है या फिर छोड़ दिया जाता है। बड़ी आयु की स्त्रियों को इसलिए हिंसा का सामना करना पड़ता है कि उसने पुत्र को नहीं बल्कि लड़की को जन्म दिया है। लिंग सम्बन्धी हिंसा जैसे कि बलात्कार, अपहरण, वेश्यावृत्ति इत्यादि भी बढ़ जाती है।
2. बहुपति विवाह (Polyandry)-कम होते लिंग अनुपात का एक और दुष्परिणाम यह होता है कि इससे बहुपति विवाह की प्रथा को उत्साह मिलता है। समाज में स्त्रियों की संख्या मर्दो से कम हो जाती है जिस कारण एक स्त्री को दो अथवा दो से अधिक पुरुषों से विवाह करवाना पड़ता है। विशेषतया भ्रातरी बहुपति विवाह बढ़ जाते हैं। सभी भाई एक स्त्री के पति बन जाते हैं। इससे स्त्री के स्वास्थ्य पर ग़लत प्रभाव पड़ता है। समाज में नैतिकता कम हो जाती है। स्त्रियों की सामाजिक स्थिति निम्न हो जाती है।
3. स्त्रियों की निम्न सामाजिक स्थिति (Lower Social Status of Women)-कम होते लिंग अनुपात से स्त्रियों की सामाजिक स्थिति निम्न हो जाती है। अगर कोई स्त्री पुत्र पैदा नहीं कर सकती तथा केवल लड़कियां ही हो रही हैं तो उसे गर्भपात के लिए बाध्य किया जाता है। उसके बाद उसे पुत्र पैदा न करने के ताने दिए जाते हैं। सामाजिक कुरीतियां तथा सामाजिक संस्थाएं भी इसके लिए कम उत्तरदायी नहीं हैं तथा उनके कारण भी स्त्रियों की सामाजिक स्थिति पर ग़लत प्रभाव पड़ता है।
4. स्वास्थ्य पर ग़लत प्रभाव (Bad effect on Health) अगर किसी स्त्री को पुत्र पैदा नहीं होता है तो उसे ताने दिए जाते हैं, मारा-पीटा जाता है। गर्भ धारण के कुछ समय बाद लिंग निर्धारण का टैस्ट करवाया जाता है। लड़की होने की स्थिति में उसे गर्भपात करवाने के लिए बाध्य किया जाता है। इस से उसके शरीर पर तो ग़लत प्रभाव पड़ता ही है बल्कि उसकी मानसिक स्थिति पर भी ग़लत प्रभाव पड़ता है।
5. स्त्रियों का व्यापार (Business of Women) लिंग अनुपात के कम होने की स्थिति में स्त्रियों की खरीदफरोख्त का कार्य शुरू हो जाता है। कोई पुरुष विवाह करने के लिए स्त्री को खरीदता है तो कोई अपनी वासना को शांत करने के लिए परन्तु स्त्री को वस्तु ही समझा जाता है। प्राचीन समय में तो दुल्हन का मूल्य देने की प्रथा भी प्रचलित थी।
इस प्रकार कम होते लिंग अनुपात के समाज पर काफ़ी ग़लत प्रभाव पड़ते हैं।
कन्या भ्रूण हत्या तथा घरेलू हिंसा PSEB 12th Class Sociology Notes
- संसार में स्त्रियों के विरुद्ध हिंसा एक साधारण बात है तथा सभी समाज इस समस्या से जूझ रहे हैं। स्त्रियों के विरुद्ध हिंसा में हम बलात्कार, लैंगिक हिंसा, अपहरण करना, वेश्यावृत्ति, दहेज से संबंधित हिंसा तथा कई अन्य प्रकार की समस्याओं को ले सकते हैं। कन्या भ्रूण हत्या तथा घरेलू हिंसा उनमें से एक है।
- स्त्री के गर्भवती होने पर बच्चे का लिंग निर्धारण परीक्षण माँ के गर्भ में करवा लिया जाता है। अगर होने वाला बच्चा लड़का है तो ठीक है परन्तु अगर लड़की है तो गर्भपात करवा दिया जाता है।
- कन्या भ्रूण हत्या का सीधा प्रभाव लिंग अनुपात पर पड़ता है तथा यह कम हो जाता है। हमारे देश में लिंग अनुपात काफी कम है। 2011 में यह 1000 : 943 था।
- दहेज, स्त्रियों की निम्न स्थिति, लड़का प्राप्त करने की इच्छा, आधुनिक तकनीक, परिवार नियोजन, पितृ प्रधान समाज इत्यादि कुछ ऐसे कारण है जिनकी वजह से लोग कन्या भ्रूण हत्या करते हैं।
- कन्या भ्रूण हत्या के काफ़ी गलत प्रभाव होते हैं जैसे कि स्त्रियों के स्वास्थ्य पर ग़लत प्रभाव, लिंग अनुपात का कम होना, स्त्रियों पर अत्याचार तथा अपराधों का बढ़ना, समाज में स्त्रियों से संबंधित बुराइयों का होना।
- हमारे समाज में घरेलू हिंसा भी एक बहुत बड़ी समस्या है। इसमें पत्नी या पति या बच्चों के प्रति ऐसा व्यवहार किया जाता है जो सामाजिक तौर पर बिल्कुल भी मान्य नहीं होता। इसमें शारीरिक चोट के साथ-साथ मानसिक चोट भी लगती है।
- घरेलू हिंसा के कई कारण हो सकते हैं जैसे कि सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, कानूनी, सामाजिक दबाव इत्यादि। पत्नी को पीटना भी घरेलू हिंसा का ही एक रूप है।
- घरेलू हिंसा को कानून बनाकर, सामाजिक शिक्षा देकर, सरकारी तथा गैर-सरकारी संस्थाओं की सहायता से रोका जा सकता है।
- लिंग अनुपात (Sex Ratio)-किसी विशेष क्षेत्र में 1000 पुरुषों के पीछे स्त्रियों की संख्या को लिंग अनुपात कहते हैं।
- पितृपक्ष प्रबलता (Patriarchy)—समाज की वह व्यवस्था जिसमें परुषों की स्त्रियों पर प्रधानता होती है।
- कन्या वध (Female Infanticide)-जन्म के तुरन्त बाद लड़की को मारने की प्रथा को कन्या वध कहते हैं।
- कन्या भ्रूण हत्या (Female Foeticide)-कन्या भ्रूण को माँ के गर्भ में ही मारने को कन्या भ्रूण हत्या कहा जाता है।