Punjab State Board PSEB 12th Class Political Science Book Solutions Chapter 5 उदारवाद Textbook Exercise Questions and Answers.
PSEB Solutions for Class 12 Political Science Chapter 5 उदारवाद
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न-
प्रश्न 1.
उदारवाद क्या है ? इसके मुख्य सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए। (What is Liberalism ? Discuss its main principles.)
अथवा
उदारवाद की परिभाषा दीजिए तथा इसके मुख्य सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए। (Define Liberalism and Explain its basic principles.)
अथवा
उदारवाद की परिभाषा बताइए और इसकी मुख्य विशेषताओं की व्याख्या कीजिए। (Define Liberalism and discuss its main characteristics.)
उत्तर-
उदारवाद आधुनिक युग की एक महत्त्वपूर्ण विचारधारा है। यूरोपीय देशों पर इस विचारधारा का बहुत गहरा प्रभाव पड़ा है। परन्तु उदारवाद की एक निश्चित परिभाषा देना अति कठिन कार्य है। इसका कारण यह है कि उदारवाद एक निश्चित और क्रमबद्ध विचारधारा नहीं है। उदारवाद किसी एक विचारक की देन नहीं है और न ही इसका किसी एक युग के साथ सम्बन्ध है। यह एक ऐसी व्यापक विचारधारा है जिसमें अनेक विद्वानों के विचार और आदर्श शामिल हैं और जो समय के साथ-साथ परिवर्तित होते रहे हैं। लॉक और लॉस्की तक और आगे भी इसका क्रम चलता जा रहा है तथा इसका कोई अन्त नहीं है। अत: उदारवाद को सीमाओं में बांधना एक कठिन कार्य है। लॉस्की (Laski) ने ठीक ही कहा है, “उदारवाद की व्याख्या करना या परिभाषा देना सरल कार्य नहीं है क्योंकि यह कुछ सिद्धान्तों का समूहमात्र ही नहीं है बल्कि मस्तिष्क में रहने वाला विचार भी है।”
उदारवाद से सम्बन्धित गलत धारणाएं-उदारवाद के अर्थ को समझने के लिए यह जानना अति आवश्यक है कि उदारवाद क्या नहीं है ?
1. उदारवाद अनुदारवाद का उल्टा नहीं है-कुछ लोग उदारवाद को अनुदारवाद (Conservatism) का उल्टा मानते हैं। अनुदारवाद परिवर्तनों और सुधार का विरोध करने वाली विचारधारा है। परन्तु उदारवाद ने 19वीं शताब्दी तक उन सभी संस्थाओं, कानूनों और प्रथाओं का विरोध किया जिनमें राजा, सामन्तों और वर्ग के विशेषाधिकारों की रक्षा होती थी। इस प्रकार उदारवादियों ने क्रान्तिकारी परिवर्तनों का जोरों से समर्थन किया। किन्तु आज जब साम्यवादी पूंजीवाद को समाप्त करने की बाद करते हैं तो उदारवादी उनका विरोध करते हैं। एल्बर्ट बिजबोर्ड (Albert Weisbord) ने ठीक ही कहा है, “विरोधात्मक रूप में पूरे इतिहास में उदारवादियों ने क्रान्ति को प्रारम्भ किया है और फिर इसके विरोध में संघर्ष किया है।”
2. उदारवाद व्यक्तिवाद नहीं है-कुछ व्यक्ति उदारवाद को व्यक्तिवाद का पर्यायवाची मानते हैं जोकि पूर्णतः सत्य नहीं है। निःसन्देह व्यक्तिवाद उदारवाद की आधारशिला है परन्तु दोनों एक ही चीज़ नहीं है। सेबाइन (Sabine) ने इन दोनों में भिन्नता को स्पष्ट करते हुए कहा है, “19वीं शताब्दी के तीसरे चरण के अन्त तक इन दोनों में कोई विशेष भेद नहीं था, क्योंकि उस समय तक ये दोनों विचारधाराएं व्यक्ति के जीवन में राज्य के हस्तक्षेप की विरोधी थीं, लेकिन बाद
में स्थिति बदल गई और उदारवाद में काफ़ी परिवर्तन आ गया। इसका रूप सकारात्मक हो गया है। उदारवाद व्यक्ति के स्थान पर सामाजिक हित को महत्त्व देने लगा है। यहां तक कि जन-कल्याण के लक्ष्य को पूरा करने के लिए व्यक्तियों के जीवन में हस्तक्षेप करना या उस पर नियन्त्रण करना राज्य का आवश्यक कार्य बन गया है।”
3. उदारवाद और लोकतन्त्र एक नहीं है-कुछ विद्वान् लोकतन्त्र को ही उदारवाद मानते हैं जो कि ठीक नहीं है। यद्यपि उदारवाद और लोकतन्त्र में गहरा सम्बन्ध है, परन्तु दोनों एक ही नहीं है। उदारवाद व्यक्ति की स्वतन्त्रता पर जोर देता है जबकि लोकतन्त्र समानता को महत्त्व देता है। उदारवाद वास्तव में लोकतन्त्र से कुछ अधिक है।
उदारवाद का सही अर्थ-उदारवाद को अंग्रेजी में ‘लिबरलिज्म’ (Liberalism) कहते हैं। इस शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के शब्द ‘लिबरलिस’ (Liberalis) से हुई है जिसका शाब्दिक अर्थ है-स्वतन्त्र व्यक्ति (Free man) । इस सिद्धान्त का सार यही है कि व्यक्ति को स्वतन्त्रता मिले जिससे वह अपने व्यक्तित्व का विकास तथा उसकी अभिव्यक्ति कर सके। इनसाइक्लोपीडिया ब्रिटेनिका (Encyclopaedia Britainica) के अनुसार, “उदारवाद के सारे विचार का सार स्वतन्त्रता का सिद्धान्त है, इसके अतिरिक्त स्वतन्त्रता का विचार इसका समूल है।” मैकगवर्न (Macgovern) के शब्दों में, “एक राजनीतिक सिद्धान्त के रूप में उदारवाद दो पृथक् तत्त्वों का मिश्रण है। इनमें से एक तत्त्व लोकतन्त्र है और दूसरा है व्यक्तिवाद।” (“Liberalism as a political creed is compound of two separate elements. One of these is democracy, the other is individualism.”) उदारवाद एक तरफ लोकतन्त्रीय व्यवस्था का समर्थन करता है और दूसरी ओर व्यक्ति को अपने व्यक्तित्व के विकास के लिए पूर्ण अवसर देना चाहता है। उदारवाद व्यक्ति को ही समस्त मानवीय व्यवस्था का केन्द्र मानता है। सारटोरी (Sartori) ने उदारवाद की सरल परिभाषा दी है। उसके शब्दों में, “साधारण शब्दों में उदारवाद व्यक्तिगत स्वतन्त्रता, न्यायिक सुरक्षा तथा संवैधानिक राज्य का सिद्धान्त व व्यवहार है।” (“In simple words liberalism is the theory. and practice of individual liberty, Judicial defence and constitutional state.”)
बट्रेण्ड रसल (Bertand Russel) के अनुसार, “उदारवादी विचारधारा व्यवहार में जियो और जीने दो, सहनशील तथा स्वतन्त्रता जिस सीमा तक सार्वजनिक व्यवस्था आज्ञा दे तथा राजनीतिक मामलों में कट्टरता का अभाव है।”
हैलोवेल (Hallowell) ने उदारवाद का अर्थ निम्नलिखित विश्वासों में अंकित किया है-
- मनुष्य के व्यक्तित्व का सर्वोच्च मूल तथा सभी व्यक्तियों की आध्यात्मिक समानता।
- व्यक्ति की इच्छा की स्वतन्त्रता।
- व्यक्ति की भलाई व दृढ़ विवेकशीलता।
- जीवन, स्वतन्त्रता तथा सम्पत्ति के अधिकारों का अस्तित्व।
- व्यक्ति के प्राकृतिक अधिकारों को सुरक्षित बनाए रखने के उद्देश्य से पारस्परिक सहमति द्वारा राज्य की रचना।
- व्यक्ति तथा राज्य के बीच प्रसंविदापूर्ण सम्बन्ध ; आदि समझौते की शर्तों का उल्लंघन हो तो व्यक्ति को राज्य के विरुद्ध विद्रोह करने का अधिकार है।
- सामाजिक नियन्त्रण के यन्त्र के रूप में कानून का प्रशासकीय आदेश से ऊपर होना।
- व्यक्ति को राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, मानसिक और धार्मिक आदि सभी क्षेत्रों में स्वतन्त्रता है और उसे स्वतन्त्र होना चाहिए।
- विवेक पर आश्रित एक सर्वोच्च यथार्थ का अस्तित्व जिसे व्यक्ति के अन्त:करण व चिन्तन द्वारा प्राप्त किया जा सके।
उदारवाद के मुख्य सिद्धान्त या विशेषताएं-
यद्यपि उदारवाद अनेक विचारधाराओं का सम्मिश्रिण है, फिर भी इसके कुछ सर्वमान्य मौलिक सिद्धान्त हैं, जिनमें मुख्य निम्नलिखित हैं-
1. मानवीय विवेक में आस्था (Faith in Human Reason)-उदारवाद का मूल सिद्धान्त मानवीय बुद्धि और विवेक में आस्था है। मध्य युग में यूरोप के अनेक देशों में ईसाइयत ने मनुष्य की बुद्धि को कठोर बन्धनों में जकड़ रखा था और वह धर्म, ईश्वर तथा पोप को ही सब कुछ मानता था। परन्तु नवजागरण ने इन बन्धनों को तोड़ दिया और मनुष्य को विवेक द्वारा विश्व की संस्थाओं को समझने के लिए कहा। 17वीं तथा 18वीं शताब्दी में जॉन लॉक और टॉमस पेन जैसे उदारवादियों ने इस बात पर बल दिया कि मनुष्य को किसी भी ऐसे सिद्धान्त, कानून या परम्परा को नहीं मानना चाहिए जिसकी उपयोगिता बुद्धि से सिद्ध न होती हो। टॉमस पेन ने रूढ़िवादी परम्पराओं को चुनौती देते हुए कहा है, “मेरा अपना मन ही मेरा चर्च है।” इस प्रकार उदारवाद भावना के स्थान पर विवेक को महत्त्व देता है।
2. इतिहास तथा परम्परा का विरोध (Opposition of History and Tradition)—मध्य युग में अन्धविश्वास और रूढ़िवादी परम्पराओं का बोलबाला था। उदारवाद अन्धविश्वासों और रूढ़ियों के विरुद्ध विद्रोह था। उदारवादियों ने इस बात पर जोर दिया कि उन्हीं संस्थाओं, सिद्धान्तों तथा कानूनों इत्यादि को स्वीकार किया जाए तो विवेक के साथ संगत हों। इंग्लैण्ड के उपयोगितावादी उदारवादियों ने उँपयोगिता के आधार पर पहले से चली आ रही व्यवस्था और परम्पराओं का खण्डन किया। उदारवाद के प्रभाव के कारण ही इंग्लैण्ड, अमेरिका और फ्रांस में क्रान्तियां हुईं। परन्तु उदारवाद सदा ही विद्यमान व्यवस्था का विरोधी नहीं रहा है और आज तो वह व्यवस्था को समाप्त करने के बिल्कुल पक्ष में नहीं है।
3. मानवीय स्वतन्त्रता का पोषक (Supporter of Human Freedom)-उदारवाद का मूल सिद्धान्त है कि मनुष्य जन्म से ही स्वतन्त्र है और स्वतन्त्रता उसका प्राकृतिक एवं जन्मसिद्ध अधिकार है। स्वतन्त्रता का अभिप्राय यह है कि मनुष्य के जीवन पर किसी स्वेच्छाचारी सत्ता का नियन्त्रण न हो और उसे अपने विवेक के अनुसार आचरण करने की स्वतन्त्रता हो। लॉस्की (Laski) के अनुसार, “उदारवाद का स्वतन्त्रता से सीधा सम्बन्ध है क्योंकि इसका जन्म समाज के किसी वर्ग के द्वारा जन्म अथवा धर्म पर आधारित विशेषाधिकारों का विरोध करने के लिए हुआ है।”
4. राज्य का उद्देश्य मनुष्य के व्यक्तित्व का विकास करना है (The purpose of the State is to develop the personality of the individual)-उदारवादियों के अनुसार, व्यक्ति के विकास में ही राज्य व समाज का विकास है और व्यक्ति की भलाई में राज्य की भलाई है। इसलिए राज्य का उद्देश्य मनुष्य के व्यक्तित्व का विकास करना है।
5. व्यक्ति साध्य तथा राज्य साधन (Man is the End, State is the Mean)-उदारवादी व्यक्ति को साध्य और राज्य को साधन मानते हैं। मानवीय संस्थाएं और समुदाय व्यक्ति के लिए बने हैं। इसलिए राज्य का कार्य व्यक्ति की सेवा करना है। वह सेवक है, स्वामी नहीं। व्यक्ति के उद्देश्य की पूर्ति करना ही राज्य का उद्देश्य है। उदारवादी आदर्शवादियों के इस कथन में विश्वास नहीं करते कि समाज व्यक्तियों की एक उच्च नैतिक संस्था है। आधुनिक उदारवादी व्यक्ति और समाज के हित में सामंजस्य स्थापित करते हैं और दोनों को एक-दूसरे का पूरक मानते हैं न कि विरोधी।
6. राज्य कृत्रिम संस्था है (State is an Artificial institution)-उदारवादी राज्य को ईश्वरीय या प्राकृतिक संस्था नहीं मानते बल्कि वे राज्य को कृत्रिम संस्था मानते हैं। उनके मतानुसार राज्य का निर्माण व्यक्तियों ने अपने विशेष आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए किया है। यदि राज्य व्यक्तियों की आवश्यकताओं को पूरा नहीं करता तो व्यक्तियों को यह अधिकार प्राप्त है कि वह राज्य और समाज के संगठन में आवश्यकतानुसार परिवर्तन कर सके।
7. व्यक्ति के प्राकृतिक अधिकारों की धारणा में विश्वास (Belief in the concept of Natural Rights of Man)-उदारवाद व्यक्ति के प्राकृतिक अधिकारों में विश्वास करता है। प्राकृतिक अधिकार वह अधिकार है जो व्यक्ति को जन्म से प्राप्त होते हैं। लॉक के अनुसार, जीवन, स्वतन्त्रता और सम्पत्ति के अधिकार प्रमुख प्राकृतिक अधिकार हैं। राज्य एवं समाज प्राकृतिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं कर सकते। राज्य का परम कर्तव्य प्राकृतिक अधिकारों की रक्षा करना है।
8. धर्म-निरपेक्षता में विश्वास (Faith in Secularism) मध्य युग में चर्च का व्यक्ति के जीवन पर पूरा नियन्त्रण था। उदारवादियों ने धर्म के विशेषाधिकारों का विरोध किया तथा व्यक्ति की धार्मिक स्वतन्त्रता पर बल दिया। उदारवादियों ने धार्मिक संस्थाओं को राज्य से अलग रखने की बात कही और सभी व्यक्तियों को समान रूप से धर्म की स्वतन्त्रता देने पर बल दिया। उदारवाद के अनुसार, धर्म व्यक्ति का व्यक्तिगत मामला है और राज्य को व्यक्तिगत धर्म में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।
9. लोकतन्त्र का समर्थन (Support of Democracy)-लोकतन्त्र उदारवाद का अभिन्न अंग है। उदारवाद का जन्म ही स्वेच्छाचारी शासन के विरुद्ध प्रतिक्रिया के रूप में हुआ और लोकतन्त्र उदारवाद का मूल तत्त्व है। उदारवाद लोक प्रभुसत्ता में विश्वास रखता है। उदारवाद के अनुसार मनुष्य स्वतन्त्र पैदा हुआ है, इसलिए उस पर शासन उसकी सहमति से होना चाहिए। व्यक्ति को अधिकार तभी प्राप्त हो सकते हैं यदि ‘लोकतान्त्रिक शासन प्रणाली हो और व्यक्ति को शासन के निर्माण में अधिकार प्राप्त हों। इसलिए उदारवाद का निर्वाचित संसद्, वयस्क मताधिकार, प्रेस की स्वतन्त्रता एवं निष्पक्ष न्यायालय में पूर्ण विश्वास है।
10. संवैधानिक शासन (Constitutional Government)-उदारवाद का उदय निरंकुश एवं स्वेच्छाचारी शासन की प्रतिक्रिया के रूप में हुआ। इसलिए उदारवाद निरंकुश शासन का विरोधी है। उदारवाद सीमित सरकार अर्थात् सरकार की सीमित शक्तियों का समर्थन करता है। यदि शासक मनमानी करता है या अपनी शक्तियों का दुरुपयोग करता है तो जनता को ऐसे शासक के विरुद्ध विद्रोह करने का अधिकार है। लॉक ने इंग्लैण्ड की 1688 की क्रान्ति का समर्थन किया।
11.बहसमुदाय समाज में विश्वास (Belief in Pluralistic Society)-उदारवादियों के अनुसार, मनुष्य अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए अनेक समुदायों की स्थापना करता है। समाज में अनेक समुदाय होते हैं और राज्य भी एक समुदाय है। राज्य विभिन्न समुदायों में सामंजस्य स्थापित करते है। व्यक्ति के जीवन के कई पहलू हैं जो राज्य के कार्य-क्षेत्र से बाहर हैं। कई समुदाय जैसे परिवार राज्य से अधिक प्राकृतिक और मौलिक है। लॉस्की और मैकाइवर ने बहु-समुदाय समाज की धारणा पर विशेष बल दिया।
12. अन्तर्राष्ट्रीय और विश्व-शान्ति में विश्वास (Faith in Internationalism and World Peace)उदारवाद ‘जियो और जीने दो’ के सिद्धान्त पर आधारित है। यह विश्व-शान्ति तथा विश्व-बन्धुत्व के आदर्श में विश्वास करता है। प्रत्येक राष्ट्र को धीरे-धीरे शान्तिपूर्वक प्रगति करनी चाहिए और उसे अन्य राष्ट्रों की प्रगति में सहायता करनी चाहिए। प्रत्येक राष्ट्र को दूसरे राष्ट्र की अखण्डता एवं सीमा का आदर करना चाहिए और किसी राष्ट्र को दूसरे के विरुद्ध शक्ति का प्रयोग नहीं करना चाहिए। अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं का हल अन्तर्राष्ट्रीय कानून और शान्तिपूर्वक साधनों द्वारा होना चाहिए।
प्रश्न 2.
उदारवाद के मुख्य सिद्धान्तों का वर्णन करो। (Explain the main Principles of Liberalism.)
अथवा
उदारवाद के मूल सिद्धान्तों की विवेचना करो। (Discuss the Fundamental Principles of Liberalism.)
उत्तर-
यद्यपि उदारवाद अनेक विचारधाराओं का सम्मिश्रिण है, फिर भी इसके कुछ सर्वमान्य मौलिक सिद्धान्त हैं, जिनमें मुख्य निम्नलिखित हैं-
1. मानवीय विवेक में आस्था (Faith in Human Reason)-उदारवाद का मूल सिद्धान्त मानवीय बुद्धि और विवेक में आस्था है। मध्य युग में यूरोप के अनेक देशों में ईसाइयत ने मनुष्य की बुद्धि को कठोर बन्धनों में जकड़ रखा था और वह धर्म, ईश्वर तथा पोप को ही सब कुछ मानता था। परन्तु नवजागरण ने इन बन्धनों को तोड़ दिया और मनुष्य को विवेक द्वारा विश्व की संस्थाओं को समझने के लिए कहा। 17वीं तथा 18वीं शताब्दी में जॉन लॉक और टॉमस पेन जैसे उदारवादियों ने इस बात पर बल दिया कि मनुष्य को किसी भी ऐसे सिद्धान्त, कानून या परम्परा को नहीं मानना चाहिए जिसकी उपयोगिता बुद्धि से सिद्ध न होती हो। टॉमस पेन ने रूढ़िवादी परम्पराओं को चुनौती देते हुए कहा है, “मेरा अपना मन ही मेरा चर्च है।” इस प्रकार उदारवाद भावना के स्थान पर विवेक को महत्त्व देता है।
2. इतिहास तथा परम्परा का विरोध (Opposition of History and Tradition)—मध्य युग में अन्धविश्वास और रूढ़िवादी परम्पराओं का बोलबाला था। उदारवाद अन्धविश्वासों और रूढ़ियों के विरुद्ध विद्रोह था। उदारवादियों ने इस बात पर जोर दिया कि उन्हीं संस्थाओं, सिद्धान्तों तथा कानूनों इत्यादि को स्वीकार किया जाए तो विवेक के साथ संगत हों। इंग्लैण्ड के उपयोगितावादी उदारवादियों ने उँपयोगिता के आधार पर पहले से चली आ रही व्यवस्था और परम्पराओं का खण्डन किया। उदारवाद के प्रभाव के कारण ही इंग्लैण्ड, अमेरिका और फ्रांस में क्रान्तियां हुईं। परन्तु उदारवाद सदा ही विद्यमान व्यवस्था का विरोधी नहीं रहा है और आज तो वह व्यवस्था को समाप्त करने के बिल्कुल पक्ष में नहीं है।
3. मानवीय स्वतन्त्रता का पोषक (Supporter of Human Freedom)-उदारवाद का मूल सिद्धान्त है कि मनुष्य जन्म से ही स्वतन्त्र है और स्वतन्त्रता उसका प्राकृतिक एवं जन्मसिद्ध अधिकार है। स्वतन्त्रता का अभिप्राय यह है कि मनुष्य के जीवन पर किसी स्वेच्छाचारी सत्ता का नियन्त्रण न हो और उसे अपने विवेक के अनुसार आचरण करने की स्वतन्त्रता हो। लॉस्की (Laski) के अनुसार, “उदारवाद का स्वतन्त्रता से सीधा सम्बन्ध है क्योंकि इसका जन्म समाज के किसी वर्ग के द्वारा जन्म अथवा धर्म पर आधारित विशेषाधिकारों का विरोध करने के लिए हुआ है।”
4. राज्य का उद्देश्य मनुष्य के व्यक्तित्व का विकास करना है (The purpose of the State is to develop the personality of the individual)-उदारवादियों के अनुसार, व्यक्ति के विकास में ही राज्य व समाज का विकास है और व्यक्ति की भलाई में राज्य की भलाई है। इसलिए राज्य का उद्देश्य मनुष्य के व्यक्तित्व का विकास करना है।
5. व्यक्ति साध्य तथा राज्य साधन (Man is the End, State is the Mean)-उदारवादी व्यक्ति को साध्य और राज्य को साधन मानते हैं। मानवीय संस्थाएं और समुदाय व्यक्ति के लिए बने हैं। इसलिए राज्य का कार्य व्यक्ति की सेवा करना है। वह सेवक है, स्वामी नहीं। व्यक्ति के उद्देश्य की पूर्ति करना ही राज्य का उद्देश्य है। उदारवादी आदर्शवादियों के इस कथन में विश्वास नहीं करते कि समाज व्यक्तियों की एक उच्च नैतिक संस्था है। आधुनिक उदारवादी व्यक्ति और समाज के हित में सामंजस्य स्थापित करते हैं और दोनों को एक-दूसरे का पूरक मानते हैं न कि विरोधी।
6. राज्य कृत्रिम संस्था है (State is an Artificial institution)-उदारवादी राज्य को ईश्वरीय या प्राकृतिक संस्था नहीं मानते बल्कि वे राज्य को कृत्रिम संस्था मानते हैं। उनके मतानुसार राज्य का निर्माण व्यक्तियों ने अपने विशेष आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए किया है। यदि राज्य व्यक्तियों की आवश्यकताओं को पूरा नहीं करता तो व्यक्तियों को यह अधिकार प्राप्त है कि वह राज्य और समाज के संगठन में आवश्यकतानुसार परिवर्तन कर सके।
7. व्यक्ति के प्राकृतिक अधिकारों की धारणा में विश्वास (Belief in the concept of Natural Rights of Man)-उदारवाद व्यक्ति के प्राकृतिक अधिकारों में विश्वास करता है। प्राकृतिक अधिकार वह अधिकार है जो व्यक्ति को जन्म से प्राप्त होते हैं। लॉक के अनुसार, जीवन, स्वतन्त्रता और सम्पत्ति के अधिकार प्रमुख प्राकृतिक अधिकार हैं। राज्य एवं समाज प्राकृतिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं कर सकते। राज्य का परम कर्तव्य प्राकृतिक अधिकारों की रक्षा करना है।
8. धर्म-निरपेक्षता में विश्वास (Faith in Secularism) मध्य युग में चर्च का व्यक्ति के जीवन पर पूरा नियन्त्रण था। उदारवादियों ने धर्म के विशेषाधिकारों का विरोध किया तथा व्यक्ति की धार्मिक स्वतन्त्रता पर बल दिया। उदारवादियों ने धार्मिक संस्थाओं को राज्य से अलग रखने की बात कही और सभी व्यक्तियों को समान रूप से धर्म की स्वतन्त्रता देने पर बल दिया। उदारवाद के अनुसार, धर्म व्यक्ति का व्यक्तिगत मामला है और राज्य को व्यक्तिगत धर्म में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।
9. लोकतन्त्र का समर्थन (Support of Democracy)-लोकतन्त्र उदारवाद का अभिन्न अंग है। उदारवाद का जन्म ही स्वेच्छाचारी शासन के विरुद्ध प्रतिक्रिया के रूप में हुआ और लोकतन्त्र उदारवाद का मूल तत्त्व है। उदारवाद लोक प्रभुसत्ता में विश्वास रखता है। उदारवाद के अनुसार मनुष्य स्वतन्त्र पैदा हुआ है, इसलिए उस पर शासन उसकी सहमति से होना चाहिए। व्यक्ति को अधिकार तभी प्राप्त हो सकते हैं यदि ‘लोकतान्त्रिक शासन प्रणाली हो और व्यक्ति को शासन के निर्माण में अधिकार प्राप्त हों। इसलिए उदारवाद का निर्वाचित संसद्, वयस्क मताधिकार, प्रेस की स्वतन्त्रता एवं निष्पक्ष न्यायालय में पूर्ण विश्वास है।
10. संवैधानिक शासन (Constitutional Government)-उदारवाद का उदय निरंकुश एवं स्वेच्छाचारी शासन की प्रतिक्रिया के रूप में हुआ। इसलिए उदारवाद निरंकुश शासन का विरोधी है। उदारवाद सीमित सरकार अर्थात् सरकार की सीमित शक्तियों का समर्थन करता है। यदि शासक मनमानी करता है या अपनी शक्तियों का दुरुपयोग करता है तो जनता को ऐसे शासक के विरुद्ध विद्रोह करने का अधिकार है। लॉक ने इंग्लैण्ड की 1688 की क्रान्ति का समर्थन किया।
11.बहसमुदाय समाज में विश्वास (Belief in Pluralistic Society)-उदारवादियों के अनुसार, मनुष्य अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए अनेक समुदायों की स्थापना करता है। समाज में अनेक समुदाय होते हैं और राज्य भी एक समुदाय है। राज्य विभिन्न समुदायों में सामंजस्य स्थापित करते है। व्यक्ति के जीवन के कई पहलू हैं जो राज्य के कार्य-क्षेत्र से बाहर हैं। कई समुदाय जैसे परिवार राज्य से अधिक प्राकृतिक और मौलिक है। लॉस्की और मैकाइवर ने बहु-समुदाय समाज की धारणा पर विशेष बल दिया।
12. अन्तर्राष्ट्रीय और विश्व-शान्ति में विश्वास (Faith in Internationalism and World Peace)उदारवाद ‘जियो और जीने दो’ के सिद्धान्त पर आधारित है। यह विश्व-शान्ति तथा विश्व-बन्धुत्व के आदर्श में विश्वास करता है। प्रत्येक राष्ट्र को धीरे-धीरे शान्तिपूर्वक प्रगति करनी चाहिए और उसे अन्य राष्ट्रों की प्रगति में सहायता करनी चाहिए। प्रत्येक राष्ट्र को दूसरे राष्ट्र की अखण्डता एवं सीमा का आदर करना चाहिए और किसी राष्ट्र को दूसरे के विरुद्ध शक्ति का प्रयोग नहीं करना चाहिए। अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं का हल अन्तर्राष्ट्रीय कानून और शान्तिपूर्वक साधनों द्वारा होना चाहिए।
प्रश्न 3.
पुरातन उदारवाद तथा समकालीन उदारवाद में मुख्य अन्तर बताइए।
(Distinguish between Classical Liberalism and Contemporary Liberalism)
अथवा
परम्परावादी उदारवाद तथा समकालीन उदारवाद में अन्तर की व्याख्या कीजिए।
(Explain differences between Classical Liberalism and Modern Liberalism.)
उत्तर-
शास्त्रीय उदारवाद तथा समकालीन उदारवाद में भेद का निम्नलिखित प्रकार से वर्णन किया जाता है-
1. व्यक्तिवाद के सम्बन्ध में अन्तर-शास्त्रीय उदारवाद व्यक्तिवाद का समर्थन करता है, और कई विद्वान् उदारवाद और व्यक्तिवाद को एक ही मानते हैं, परन्तु समकालीन उदारवाद व्यक्तिवाद का खण्डन करता है। शास्त्रीय उदारवाद का आरम्भ ‘व्यक्ति’ से होता है, परन्तु समकालीन उदारवाद का आरम्भ ‘समूह’ तथा ‘संस्था’ से होता है।
2. प्राकृतिक अधिकारों के सम्बन्ध में अन्तर–शास्त्रीय उदारवाद व्यक्ति को प्राप्त प्राकृतिक अधिकारों का समर्थन करता है। शास्त्रीय उदारवाद के अनुसार जीवन, स्वतन्त्रता तथा सम्पत्ति के आधार प्राकृतिक अधिकार हैं। समकालीन उदारवाद व्यक्ति के अधिकारों को समाज की देन मानते हैं तथा उसे वह अधिकार देने का समर्थन करता है जो व्यक्तिगत तथा सामाजिक हित में है।
3. स्वतन्त्रता के सम्बन्ध में अन्तर-शास्त्रीय उदारवाद स्वतन्त्रता के नकारात्मक रूप पर बल देता है जबकि समकालीन उदारवाद स्वतन्त्रता के सकारात्मक रूप पर बल देता है। अत: जहां शास्त्रीय उदारवाद स्वतन्त्रता और राज्य के कार्य करने की शक्ति को परस्पर विरोधी मानता है, वहीं समकालीन उदारवाद स्वतन्त्रता और राज्य के कार्य करने की शक्ति को परस्पर विरोधी न मानकर सहयोगी मानता है।
4. राज्य के कार्यों के सम्बन्ध में अन्तर-शास्त्रीय उदारवाद इस बात पर बल देता है कि राज्य को कम-से-कम कार्य करने चाहिएं जबकि समकालीन उदारवाद इस बात पर बल देता है कि राज्य को सार्वजनिक कल्याण के लिए काम करने चाहिएं। शास्त्रीय उदारवाद राज्य को सीमित कार्य करने के लिए कहता है जबकि समकालीन उदारवाद राज्य को सभी तरह के कल्याणकारी कार्य करने के लिए कहता है। समकालीन उदारवाद व्यक्ति के विकास के लिए सभी तरह के कार्यों को करने के लिए राज्य को कहता है।
5. राज्य के सम्बन्ध में अन्तर-शास्त्रीय उदारवाद राज्य को एक आवश्यक बुराई मानता है। इसके अनुसार मनुष्य के सर्वांगीण विकास में मुख्य बाधा राज्य ही है, और राज्य के रहते व्यक्ति अपना पूर्ण विकास नहीं कर सकता। इसके विपरीत समकालीन उदारवाद राज्य को एक आवश्यक बुराई न मानकर प्राकृतिक और नैतिक संस्था मानता है। समकालीन उदारवादियों के अळुसार राज्य समस्त वर्गों के हितों को ध्यान में रखकर ही कार्य करता है।
6. दृष्टिकोण के सम्बन्ध में अन्तर-शास्त्रीय उदारवाद अपने दृष्टिकोण में सुधारवादी है जबकि समकालीन उदारवादी यथास्थिति को बनाए रखने के समर्थक हैं।
7. स्वतन्त्र व्यापार एवं पूंजीवाद के सम्बन्ध में अन्तर-शास्त्रीय उदारवाद स्वतन्त्र व्यापार तथा पूंजीवाद का समर्थन करता है जबकि समकालीन उदारवाद पूंजीवाद पर अंकुश लगाए जाने का समर्थन करता है। शास्त्रीय उदारवाद, राज्य को अर्थ-व्यवस्था को नियमित करने की शक्ति देने के विरुद्ध है जबकि समकालीन उदारवाद राज्य की हस्तक्षेप की नीति का समर्थन करता है। समकालीन उदारवाद श्रमिकों के हितों के लिए और सामाजिक कल्याण के लिए व्यापार और उद्योगों को नियन्त्रित करने के पक्ष में है। इसके अनुसार स्वतन्त्र व्यापार एवं अनियन्त्रित प्रतियोगिता ग़रीब को और ग़रीब एवं अमीर को और अमीर बना देती है।
8. विचारधारा के आधार पर अन्तर–शास्त्रीय उदारवाद मध्य वर्ग की एक राजनीतिक विचारधारा है जबकि समकालीन उदारवाद शक्ति-सम्पन्न पूंजीवादी वर्ग की विचारधारा है।
9. राज्य के हस्तक्षेप की नीति के सम्बन्ध में अन्तर-शास्त्रीय उदारवाद आर्थिक क्षेत्र में राज्य के हस्तक्षेप के विरुद्ध है। शास्त्रीय उदारवाद आर्थिक क्षेत्र में व्यक्ति को पूर्ण स्वतन्त्रता देने के पक्ष में है, परन्तु समकालीन उदारवाद । आर्थिक क्षेत्र में राज्य के हस्तक्षेप का समर्थन करता है।
प्रश्न 4.
उदारवाद का शाब्दिक अर्थ बताते हुए, समकालीन (आधुनिक) उदारवाद की चार विशेषताएं बताओ।
(Give the verbal meaning of the word Liberalism and explain four features of contemporary Liberalism.).
उत्तर-
उदारवाद का अर्थ-इसके लिए प्रश्न नं. 1 देखें।
समकालीन (आधुनिक) उदारवाद की विशेषताएं-जे० एस० मिल, ग्रीन, लॉस्की आदि विद्वान् समकालीन उदारवाद के मुख्य समर्थक माने जाते हैं। इसकी मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं-
1. प्राकृतिक अधिकारों का खण्डन-समकालीन उदारवादियों ने प्राकृतिक अधिकारों का खण्डन किया है और अधिकारों को समाज की देन माना है। समकालीन उदारवाद उन अधिकारों का समर्थन करता है जो व्यक्तिगत तथा सामूहिक हित में हों।.
2. राज्य के कल्याणकारी कार्य-समकालीन उदारवाद राज्य के कार्यों को सीमित नहीं करता है। समकालीन उदारवाद के अनुसार राज्य को सार्वजनिक कल्याण के लिए सभी कार्य करने चाहिए। लॉस्की ने राज्य को अधिकतम भलाई करने वाली सामाजिक संस्था माना जाता है। जो राज्य जनता की भलाई का जितना अधिक कार्य करता है वह उतना ही अच्छा होता है।
3. स्वतन्त्रता के सकारात्मक रूप का समर्थन-समकालीन उदारवाद स्वतन्त्रता के सकारात्मक रूप पर बल देता है। स्वतन्त्रता का अर्थ है-बन्धनों का अभाव। राज्य लोगों के कल्याण के लिए व्यक्तिगत स्वतन्त्रता पर प्रतिबन्ध लगा सकता है। समकालीन उदारवाद के अनुसार स्वतन्त्रता का अर्थ उन कार्यों को करने की स्वतन्त्रता है जो कार्य करने योग्य हैं।
4. मानवीय स्वतन्त्रता का पोषक-उदारवाद का मूल सिद्धान्त है कि मनुष्य जन्म से ही स्वतन्त्र है और.स्वतन्त्रता उसका प्राकृतिक एवं जन्म सिद्ध अधिकार है। स्वतन्त्रता का अभिप्राय यह है कि मनुष्य के जीवन पर किसे स्वेच्छाचारी सत्ता का नियन्त्रण न हो और उसे अपने विवेक के अनुसार आचरण करने की स्वतन्त्रता हो।
लघु उत्तरीय प्रश्न-
प्रश्न 1.
उदारवाद के शाब्दिक अर्थों की व्याख्या कीजिए।
अथवा
उदारवाद से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
उदारवाद आधुनिक युग की एक महत्त्वपूर्ण विचारधारा है। उदारवाद को अंग्रेज़ी में लिबरलिज्म’ (Liberalism) कहते हैं। इस शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के शब्द ‘लिबरलिस’ से हुई है जिसका शाब्दिक अर्थ है-स्वतन्त्र व्यक्ति। इस सिद्धान्त का सार यही है कि व्यक्ति को स्वतन्त्रता मिले जिससे वह अपने व्यक्तित्व का विकास तथा उसकी अभिव्यक्ति कर सके। उदारवाद एक ऐसी व्यापक विचारधारा है जिसमें अनेक विद्वानों के विचार और आदर्श शामिल हैं और जो समय के साथ-साथ परिवर्तित होते रहते हैं। उदारवाद एक तरफ लोकतान्त्रिक व्यवस्था का समर्थन करता है और दूसरी तरफ व्यक्ति को अपने व्यक्तित्व के विकास के लिए पूरे अवसर देना चाहता है। उदारवाद व्यक्ति को ही समस्त मानवीय व्यवस्था का केन्द्र मानता है।
प्रश्न 2.
उदारवाद की कोई चार परिभाषाएं दें।
अथवा उदारवाद की कोई भी दो परिभाषाएं लिखें।
उत्तर-
- इन्साइक्लोपीडिया ब्रिटेनिका के अनुसार, “उदारवाद के सारे विचार का सार स्वतन्त्रता का सिद्धान्त है। इसके अतिरिक्त स्वतन्त्रता का विचार इसका मूल है।”
- मैकगर्वन के शब्दों में, “एक राजनीतिक सिद्धान्त के रूप में उदारवाद दो पृथक् तत्त्वों का मिश्रण है। इनमें से एक तत्त्व लोकतन्त्र है और दूसरा व्यक्तिवाद है।”..
- सारटोरी के अनुसार, “साधारण शब्दों में उदारवाद व्यक्तिगत स्वतन्त्रता, न्यायिक सुरक्षा तथा संवैधानिक राज्य का सिद्धान्त व व्यवहार है।”
- बट्रेण्ड रसल के अनुसार, “उदारवादी विचारधारा व्यवहार में जियो और जीने दो, सहनशील तथा स्वतन्त्रता जिस सीमा तक सार्वजनिक व्यवस्था आज्ञा दे तथा राजनीतिक मामलों में कट्टरता का अभाव है।”
प्रश्न 3.
परम्परागत उदारवाद किसे कहते हैं ?
अथवा
परम्परावादी उदारवाद क्या है ?
उत्तर-
शास्त्रीय उदारवाद (परम्परावादी उदारवाद) अपने प्रारम्भिक रूप में व्यक्तिवाद के निकट रहा है। शास्त्रीय उदारवाद को व्यक्तिवाद का दूसरा नाम कहा जा सकता है। लॉक ने व्यक्तिगत स्वतन्त्रता तथा सीमित राज्य के सिद्धान्त पर बल दिया है। लॉक द्वारा प्रस्तुत यह सिद्धान्त शास्त्रीय उदारवाद की आधारशिला माना जाता है। शास्त्रीय उदारवाद मानव व्यक्तित्व के असीम मूल्य तथा व्यक्तियों की आध्यात्मिक समानता में विश्वास रखता है। शास्त्रीय उदारवाद व्यक्ति के प्राकृतिक अधिकारों का समर्थन करता है। शास्त्रीय उदारवाद ने विशेषकर जीवन, स्वतन्त्रता तथा सम्पत्ति के अधिकार पर बल दिया है। शास्त्रीय उदारवाद राज्य को एक आवश्यक बुराई मानता है। इसके अनुसार वह सरकार सबसे अच्छी है जो कम-से-कम शासन करे। शास्त्रीय उदारवाद राज्य के कार्यों को सीमित करने पर बल देता है। शास्त्रीय उदारवादियों के मतानुसार राज्य का अधिक हस्तक्षेप व्यक्ति की स्वतन्त्रता को कम कर देता है। शास्त्रीय उदारवाद खुली प्रतियोगिता, स्वतन्त्र व्यापार तथा पूंजीवाद का समर्थन करता है।
प्रश्न 4.
परम्परावादी उदारवाद की कोई चार विशेषताएं लिखें।
उत्तर-
परम्परावादी उदारवाद की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं-
- राज्य एक आवश्यक बुराई है-परम्परावादी उदारवाद राज्य को एक आवश्यक बुराई मानता है। इसके अनुसार वह सरकार सबसे अच्छी है जो कम-से-कम शासन करे।
- राज्य के न्यूनतम कार्य-परम्परावादी उदारवाद राज्य को कम-से-कम कार्य देने के पक्ष में है। परम्परावादी उदारवादियों के मतानुसार राज्य का कार्य केवल जीवन तथा सम्पत्ति की रक्षा करना और अपराधियों को दण्ड देना ही है। राज्य की शिक्षा, कृषि, व्यापार इत्यादि कार्य नहीं करने चाहिए।
- मानव की स्वतन्त्रता-परम्परावादी उदारवाद मानव की स्वतन्त्रता का महान् समर्थक है। इसके अनुसार व्यक्ति को जीवन के हर क्षेत्र में स्वतन्त्रता प्राप्त होनी चाहिए। स्वतन्त्रता का अर्थ बन्धनों का अभाव माना गया है।
- परम्परागत उदारवाद खुली प्रतियोगिता का समर्थन करता है।
प्रश्न 5.
समकालीन उदारवाद किसे कहते हैं ?
अथवा
समकालीन उदारवाद क्या है ?
उत्तर-
जे० एस० मिल, ग्रीन, लॉस्की आदि विद्वान् समकालीन उदारवाद के मुख्य समर्थक माने जाते हैं। समकालीन उदारवाद ने प्राकृतिक अधिकारों का खण्डन किया और अधिकारों को समाज की देन माना है। समकालीन उदारवाद उन अधिकारों का समर्थन करता है जो व्यक्तिगत तथा सामूहिक हित में हों। समकालीन उदारवाद ने खुली प्रतियोगिता का विरोध किया है। समकालीन उदारवाद राज्य को अधिक कार्य देने के पक्ष में है ताकि समस्त जनता का कल्याण हो सके। समकालीन उदारवाद स्वतन्त्रता और कानून में विरोध नहीं मानता बल्कि कानून को स्वतन्त्रता का संरक्षक मानता है। समकालीन उदारवाद ने सकारात्मक स्वतन्त्रता का समर्थन किया है।
प्रश्न 6.
समकालीन उदारवाद की कोई चार विशेषताएं लिखें।
उत्तर-
जे० एस० मिल, ग्रीन, लॉस्की आदि विद्वान् समकालीन उदारवाद के मुख्य समर्थक माने जाते हैं। इसकी मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं
1. प्राकृतिक अधिकारों का खण्डन-समकालीन उदारवादियों ने प्राकृतिक अधिकारों का खण्डन किया है और अधिकारों को समाज की देन माना है। समकालीन उदारवाद उन अधिकारों का समर्थन करता है जो व्यक्तिगत तथा सामूहिक हित में हों।
2. राज्य के कल्याणकारी कार्य-समकालीन उदारवाद राज्य के कार्यों को सीमित नहीं करता है। समकालीन उदारवाद के अनुसार राज्य को सार्वजनिक कल्याण के लिए सभी कार्य करने चाहिए। लॉस्की ने राज्य को अधिकतम भलाई करने वाली सामाजिक संस्था माना है। जो राज्य जनता की भलाई का जितना अधिक कार्य करता है वह उतना ही अच्छा होता है।
3. स्वतन्त्रता के सकारात्मक रूप का समर्थन–समकालीन उदारवाद स्वतन्त्रता के सकारात्मक रूप पर बल देता है। स्वतन्त्रता का अर्थ है-बन्धनों का अभाव। राज्य लोगों के कल्याण के लिए व्यक्तिगत स्वतन्त्रता पर प्रतिबन्ध लगा सकता है। समकालीन उदारवाद के अनुसार स्वतन्त्रता का अर्थ उन कार्यों को करने की स्वतन्त्रता है जो कार्य करने योग्य है।
4. समकालीन उदारवाद आर्थिक क्षेत्र में राज्य के हस्तक्षेप का समर्थन करता है।
प्रश्न 7.
पुरातन उदारवाद और समकालीन उदारवाद में चार अन्तर लिखो।
उत्तर-
शास्त्रीय उदारवाद तथा समकालीन उदारवाद में निम्नलिखित अन्तर पाए जाते हैं-
- शास्त्रीय उदारवाद का आरम्भ ‘व्यक्ति’ से होता है, परन्तु समकालीन उदारवाद का आरम्भ ‘समूह’ तथा ‘संस्था’ से होता है।
- शास्त्रीय उदारवाद व्यक्ति को प्राप्त प्राकृतिक अधिकारों का समर्थन करता है। समकालीन उदारवाद व्यक्ति के
अधिकारों को समाज की देन मानता है तथा उसे वह अधिकार देने का समर्थन करता है है जो व्यक्तिगत तथा सामाजिक हित में हैं। - शास्त्रीय उदारवाद स्वतन्त्रता के नकारात्मक रूप पर बल देता है जबकि समकालीन उदारवाद स्वतन्त्रता के सकारात्मक रूप पर बल देता है।
- शास्त्रीय उदारवाद राज्य को एक आवश्यक बुराई मानता है जबकि समकालीन उदारवाद राज्य को एक आवश्यक बुराई न मानकर प्राकृतिक और नैतिक संस्था मानता है।
प्रश्न 8.
उदारवाद के चार सिद्धान्तों का वर्णन करो।
उत्तर-
उदारवाद आधुनिक युग की एक महत्त्वपूर्ण विचारधारा है। उदारवाद के मूल सिद्धान्त निम्नलिखित हैं-
- मानवीय स्वतन्त्रता का पोषक-उदारवाद का मूल सिद्धान्त है कि मनुष्य जन्म से ही स्वतन्त्र है और स्वतन्त्रता उसका प्राकृतिक एवं जन्मसिद्ध अधिकार है। स्वतन्त्रता का अभिप्राय यह है कि मनुष्य के जीवन पर किसी स्वेच्छाचारी सत्ता का नियन्त्रण न हो और उसे अपने विवेक के अनुसार आचरण करने की स्वतन्त्रता हो।
- राज्य का उद्देश्य मनुष्य के व्यक्तित्व का विकास करना है-उदारवादियों के अनुसार व्यक्ति के विकास में राज्य व समाज का विकास है और व्यक्ति की भलाई में राज्य की भलाई है। इसलिए राज्य का उद्देश्य मनुष्य के व्यक्तित्व का विकास करना है।
- व्यक्ति साध्य तथा राज्य साधन-उदारवादी व्यक्ति को साध्य और राज्य को साधन मानते हैं। मानवीय संस्थाएं और समुदाय व्यक्ति के लिए बने हैं। इसलिए राज्य का कार्य व्यक्ति की सेवा करना है। वह सेवक है, स्वामी नहीं। व्यक्ति के उद्देश्य की पूर्ति करना ही राज्य का उद्देश्य है।
- उदारवाद का निर्वाचित संसद, वयस्क मताधिकार, प्रैस की स्वतन्त्रता एवं निष्पक्ष न्यायालय में पूर्ण विश्वास है।
प्रश्न 9.
उदारवाद के विरोध में चार तर्क लिखो।
उत्तर-
- मनुष्य केवल स्वार्थी नहीं है- उदारवादी विशेषकर बैन्थम जैसे उदारवादियों ने मनुष्य को स्वार्थी माना है। परन्तु यह धारणा ग़लत है। कोई भी व्यक्ति पूरी तरह न तो स्वार्थी है और न ही परमार्थी।
- राज्य एक आवश्यक बुराई नहीं है-अनेक उदारवादियों ने राज्य को एक आवश्यक बुराई माना है, जोकि ठीक नहीं है। राज्य बुराई नहीं है। यह मनुष्य की सामाजिक चेतना की स्वाभाविक अभिव्यक्ति है।
- अस्पष्ट धारणा-उदारवाद की विचारधारा स्पष्ट नहीं है। इसकी निश्चित परिभाषा नहीं की जा सकती और न ही इसके सिद्धान्तों पर सभी उदारवादी सहमत हैं।
- राज्य की अयोग्यता का तर्क उचित नहीं है।
अति लघु उत्तरीय प्रश्न-
प्रश्न 1.
उदारवाद के शाब्दिक अर्थ का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
उदारवाद आधुनिक युग की एक महत्त्वपूर्ण विचारधारा है। उदारवाद को अंग्रेजी में ‘लिबरलिज्म’ (Liberalism) कहते हैं। इस शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के शब्द ‘लिबरलिस’ से हुई है जिसका शाब्दिक अर्थ है-स्वतन्त्र व्यक्ति। इस सिद्धान्त का सार यही है कि व्यक्ति को स्वतन्त्रता मिले जिससे वह अपने व्यक्तित्व का विकास तथा उसकी अभिव्यक्ति कर सके।
प्रश्न 2.
उदारवाद की दो परिभाषाएं दें।
उत्तर-
- इन्साइक्लोपीडिया ब्रिटेनिका के अनुसार, उदारवाद के सारे विचार का सार स्वतन्त्रता का सिद्धान्त है। इसके अतिरिक्त स्वतन्त्रता का विचार इसका मूल है।
- मैकग्वन के शब्दों में, “एक राजनीतिक सिद्धान्त के रूप में उदारवाद दो पृथक् तत्त्वों का मिश्रण है। इसमें से एक तत्त्व लोकतन्त्र है दूसरा व्यक्तिवाद है।”
प्रश्न 3.
परम्परावादी उद्गारवाद क्या है ?
उत्तर-
परम्परागत (शास्त्रीय) उदारवाद मानव व्यक्तित्व के असीम मूल्य तथा व्यक्तियों की आध्यात्मिक समानता में विश्वास रखता है। शास्त्रीय उदारवाद व्यक्ति के प्राकृतिक अधिकारों का समर्थन करता है। शास्त्रीय उदारवाद ने विशेषकर जीवन, स्वतन्त्रता तथा सम्पत्ति के अधिकार पर बल दिया है। शास्त्रीय उदारवाद राज्य को एक आवश्यक बुराई मानता है।
प्रश्न 4.
समकालीन उदारवाद क्या है ?
उत्तर-
समकालीन उदारवाद उन अधिकारों का समर्थन करता है जो व्यक्तिगत तथा सामूहिक हित में हों। समकालीन उदारवाद ने खुली प्रतियोगिता का विरोध किया है। समकालीन उदारवाद राज्य को अधिक कार्य देने के पक्ष में है ताकि समस्त जनता का कल्याण हो सके।
प्रश्न 5.
शास्त्रीय उदारवाद तथा समकालीन उदारवाद में दो अन्तर करें।
उत्तर-
- शास्त्रीय उदारवाद का आरम्भ ‘व्यक्ति’ से होता है, परन्तु समकालीन उदारवाद का आरम्भ ‘समूह’ तथा ‘संस्था’ से होता है।
- शास्त्रीय उदारवाद व्यक्ति को प्राप्त प्राकृतिक अधिकारों का समर्थन करता है। समकालीन उदारवाद व्यक्ति के अधिकारों को समाज की देन मानता है तथा उसे वह अधिकार देने का समर्थन करता है जो व्यक्तिगत तथा सामाजिक हित में हैं।
प्रश्न 6.
उदारवाद के कोई दो सिद्धान्त लिखो।
उत्तर-
- मानवीय स्वतन्त्रता का पोषक-उदारवाद का मूल सिद्धान्त है कि मनुष्य जन्म से ही स्वतन्त्र है और स्वतन्त्रता उसका प्राकृतिक एवं जन्मसिद्ध अधिकार है।
- राज्य का उद्देश्य मनुष्य के व्यक्तित्व का विकास करना है-उदारवादियों के अनुसार व्यक्ति के विकास में राज्य व समाज का विकास है और व्यक्ति की भलाई में राज्य की भलाई है। इसलिए राज्य का उद्देश्य मनुष्य के व्यक्तित्व का विकास करना है।
वस्तुनिष्ठ प्रश्न-
प्रश्न I. एक शब्द/वाक्य वाले प्रश्न उत्तर
प्रश्न 1.
Liberalism शब्द की उत्पत्ति किस भाषा से हुई है ?
उत्तर-
Liberalism शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा से हुई है।
प्रश्न 2.
किस विद्वान ने ‘स्वतन्त्रता पर निबन्ध’ पस्तक लिखी ?
उत्तर-
‘स्वतन्त्रता पर निबन्ध’ पुस्तक जे० एस० मिल ने लिखी।
प्रश्न 3.
उदारवाद का अंग्रेज़ी रूप क्या है ?
उत्तर-
उदारवाद का अंग्रेज़ी रूप Liberalism है।
प्रश्न 4.
Liberalism शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के किस शब्द से हुई है ?
उत्तर-
Liberalism शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के लिबरलिस शब्द से हुई है।
प्रश्न 5.
उदारवाद शब्द का मूल क्या है?
उत्तर-
उदारवाद शब्द का मूल स्वतन्त्र व्यक्ति है।
प्रश्न 6.
उदारवाद के कितने रूप हैं ?
उत्तर-
उदारवाद के दो रूप हैं।
प्रश्न 7.
उदारवाद के कोई दो रूपों के नाम लिखें।
अथवा
उदारवाद के दो रूप लिखें।
उत्तर-
(1) शास्त्रीय उदारवाद
(2) समकालीन उदारवाद।
प्रश्न 8.
उदारवाद के कोई एक व्याख्याकार का नाम लिखो।
उत्तर-
लॉस्की।
प्रश्न 9.
उदारवाद की एक परिभाषा लिखें।
उत्तर-
सारटोरी के अनुसार, “सामान्य शब्दों में उदारवाद व्यक्तिगत स्वतन्त्रता, न्यायिक सुरक्षा तथा संवैधानिक राज्य का सिद्धान्त तथा व्यवहार है।”
प्रश्न 10.
उदारवाद के अर्थ लिखो।
उत्तर-
उदरवाद का अर्थ है, कि व्यक्ति को स्वतन्त्रता मिले, जिससे वह अपने व्यक्तित्व का विकास तथा उसकी अभिव्यक्ति कर सके।
प्रश्न 11.
समकालीन या आधुनिक उदारवाद से आपका क्या अभिप्राय है ?
अथवा
समकालीन उदारवाद से क्या भाव है ?
उत्तर-
समकालीन उदारवाद उन अधिकारों का समर्थन करता है, जो व्यक्तिगत तथा सामूहिक हित में हो, यह सकारात्मक स्वतन्त्रता का समर्थन करता है।
प्रश्न 12.
परम्परावादी उदारवाद से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
परम्परावादी उदारवाद मानव व्यक्तित्व के असीम मूल्यों तथा व्यक्तियों की आध्यात्मिक समानता में विश्वास रखता है, यह व्यक्ति के प्राकृतिक अधिकारों का समर्थन करता है।
प्रश्न II. खाली स्थान भरें-
1. उदारवाद ………… का उल्टा नहीं है।
2. उदारवाद ………… नहीं है।
3. उदारवाद व्यक्ति की स्वतन्त्रता पर जोर देता है, जबकि लोकतन्त्र ……….. को महत्त्व देता है।
4. उदारवाद को अंग्रेजी में ………… कहते हैं। ।
5. Liberalism शब्द की उत्पत्ति ………… भाषा के शब्द से हुई है।
उत्तर-
- अनुदारवाद
- व्यक्तिवाद
- समानता
- Liberalism
- लैटिन।
प्रश्न III. निम्नलिखित वाक्यों में से सही एवं ग़लत का चुनाव करें-
1. शास्त्रीय उदारवाद व्यक्तिवाद का दूसरा नाम कहा जा सकता है।
2. जॉन लॉक एक प्रसिद्ध अमेरिकन राजनीतिक विद्वान् थे।
3. जॉन लॉक ने लेवियाथान नामक पुस्तक लिखी।
4. लॉक के अनुसार जीवन का अधिकार, स्वतन्त्रता का अधिकार एवं सम्पत्ति का अधिकार मनुष्य के प्राकृतिक अधिकार हैं।
5. एडम स्मिथ ने आर्थिक आधार पर राज्य के कार्यों को सीमित किया और व्यक्ति के कार्यों में राज्य के हस्तक्षेप को अनुचित माना।
उत्तर-
- सही
- ग़लत
- ग़लत
- सही
- सही।
प्रश्न IV. बहुविकल्पीय प्रश्न-
प्रश्न 1.
यह कथन किसका है कि, “उदारवाद की व्याख्या करना या परिभाषा देना सरल कार्य नहीं है, क्योंकि यह कुछ सिद्धान्तों का समूह नहीं है, बल्कि मस्तिष्क में रहने वाला विचार है।”
(क) लॉस्की
(ख) विलोबी
(ग) टी० एच० ग्रीन
(घ) लासवैल।
उत्तर-
(क) लॉस्की
प्रश्न 2.
हेलोवेल ने उदारवाद का अर्थ किस प्रकार प्रकट किया है ?
(क) व्यक्ति की इच्छा की स्वतन्त्रता
(ख) व्यक्ति की भलाई एवं दृढ़ विवेकशीलता
(ग) जीवन, स्वतन्त्रता तथा सम्पत्ति के अधिकारों का अस्तित्व
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी।
प्रश्न 3.
निम्न में से उदारवाद का सिद्धान्त है-
(क) मानवीय विवेक में आस्था
(ख) इतिहास एवं परम्परा का विरोध
(ग) मानवीय स्वतन्त्रता का पोषक
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी।
प्रश्न 4.
जॉन लॉक किस देश का राजनीतिक विद्वान् था ?
(क) भारत
(ख) अमेरिका
(ग) इंग्लैण्ड
(घ) जर्मनी।
उत्तर-
(ग) इंग्लैण्ड
प्रश्न 5.
शास्त्रीय उदारवाद की विशेषता है-
(क) व्यक्ति की सर्वोच्च महानता
(ख) व्यक्ति साध्य और राज्य साधन
(ग) राज्य एक आवश्यक बुराई है
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी।