PSEB 12th Class History Solutions Chapter 18 ऐंग्लो-सिख संबंध : 1800-1839

Punjab State Board PSEB 12th Class History Book Solutions Chapter 18 ऐंग्लो-सिख संबंध : 1800-1839 Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 History Chapter 18 ऐंग्लो-सिख संबंध : 1800-1839

निबंधात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

प्रथम चरण 1800-09 ई० (First Stage 1800-09 A.D.)

प्रश्न 1.
आलोचनात्मक दृष्टिकोण से 1800 से 1809 तक के अंग्रेज़-सिख संबंधों का अध्ययन कीजिए।
(Study the Anglo-Sikh relations from 1800 to 1809 from a critical point of view.)
अथवा
रणजीत सिंह के अंग्रेज़ों के साथ 1800 से 1809 ई० तक संबंधों का आलोचनात्मक विवरण दीजिए। (Critically examine Ranjit Singh’s relations with the British from 1800 to 1809.)
अथवा
अमृतसर की संधि जिन परिस्थितियों में हुई उनकी पड़ताल कीजिए। इसकी क्या धाराएँ.थीं तथा इससे महाराजा रणजीत सिंह और अंग्रेजों को क्या लाभ हुए ?
(Examine the circumstances leading to the Treaty of Amritsar in 1809. What were its terms and respective advantages derived from it by the Maharaja Ranjit Singh and the British from it ?)
अथवा
किन परिस्थितियों के कारण 1809 ई० में अमृतसर की संधि हुई ? इस संधि का महत्त्व बताइए।
(Discuss the circumstances leading to the Treaty of Amritsar (1809). Examine the significance of this treaty.)
अथवा
अमृतसर की संधि के बारे में आप क्या जानते हैं ? इस संधि के कारण महाराजा रणजीत सिंह तथा अंग्रेज़ों को क्या लाभ प्राप्त हुए ?
(What do you know about the Treaty of Amritsar ? What was gained by Maharaja Ranjit Singh and the English by this Treaty ?)
उत्तर-
अंग्रेज़ दीर्घकाल से पंजाब की ओर ललचाई दृष्टि से देख रहे थे। दूसरी ओर रणजीत सिंह भी समस्त पंजाब पर अपना एक-छत्र राज कायम करना चाहता था। दोनों धड़ों की साम्राज्यवादी महत्त्वाकाँक्षाओं ने परस्पर संबंधों को महत्त्वपूर्ण ढंग से प्रभावित किया। 1800-09 ई० तक महाराजा रणजीत सिंह और अंग्रेज़ों के मध्य संबंधों का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है—

1. यूसुफ अली का मिशन 1800 ई० (Mission of Yusuf Ali 1800 A.D.)-महाराजा रणजीत सिंह ने अफ़गानिस्तान के शासक शाह जमान से मित्रतापूर्ण संबंध स्थापित कर लिये थे। इस कारण अंग्रेज़ी सरकार को यह ख़तरा हो गया कि कहीं शाह जमान तथा महाराजा रणजीत सिंह मिलकर अंग्रेज़ों पर आक्रमण न कर दें। अंग्रेज़ों ने 1800 ई० में यूसुफ अली को अपना प्रतिनिधि बनाकर महाराजा रणजीत सिंह के दरबार में भेजा। परंतु यह मिशन अभी मार्ग में ही था कि अफ़गानिस्तान में राजगद्दी के लिये गृह युद्ध शुरू हो गया। शाह जमान के आक्रमण की संभावना समाप्त हो जाने के कारण यूसुफ अली को वापस बुला लिया गया। इस कारण यह मिशन केवल एक सद्भावना मिशन तक ही सीमित रहा।

2. होलकर का पंजाब आना 1805 ई० (Holkar’s visit to Punjab 1805 A.D.)-1805 ई० में अंग्रेजों से पराजित होकर मराठा सरदार जसवंत राव होलकर महाराजा रणजीत सिंह से अंग्रेजों के विरुद्ध सहायता लेने के लिये पंजाब आया। ऐसी स्थिति में महाराजा ने बहुत सूझ-बूझ से काम किया। उसने होलकर को सहायता देने से इंकार कर दिया। वह एक पराजित शासक की सहायता करके अंग्रेजों से टक्कर मोल नहीं लेना चाहता था।

3. लाहौर की संधि 1806 ई० (Treaty of Lahore 1806 A.D.)-क्योंकि महाराजा रणजीत सिंह ने होलकर की कोई सहायता नहीं की थी इस कारण अंग्रेज़ महाराजा रणजीत सिंह पर बहुत प्रसन्न हुए । उन्होंने 1 जनवरी, 1806 ई० को लाहौर में महाराजा रणजीत सिंह के साथ एक संधि की। इस संधि के अनुसार महाराजा रणजीत सिंह ने यह स्वीकार किया कि वह होलकर की कोई सहायता नहीं करेगा तथा उसको अमृतसर में से शांतिपूर्वक निकल जाने की अनुमति देगा। अंग्रेज़ों ने यह माना कि वे महाराजा रणजीत सिंह के राज्य में कोई हस्तक्षेप नहीं करेंगे।

4. नेपोलियन का ख़तरा (Napoleonic Danger)-इस समय अंतर्राष्ट्रीय परिस्थितियों में एक महत्त्वपूर्ण परिवर्तन आया। 1807 ई० में नेपोलियन ने रूस के साथ टिलसिट की संधि पर हस्ताक्षर किये। इस संधि के अनुसार रूस ने नेपोलियन को भारत पर आक्रमण करने के समय पूरा सहयोग देने का वचन दिया। नेपोलियन के बढ़ते हुए प्रभाव के कारण भारत में अंग्रेज़ी सरकार घबरा गई। उसने स्थिति का सामना करने के लिए महाराजा रणजीत सिंह के साथ मित्रता करने का निर्णय किया।

5. मैटकॉफ का प्रथम मिशन (Matcalfe’s First Mission)-अंग्रेज़ों ने महाराजा रणजीत सिंह के साथ संधि करने के लिये चार्ल्स मैटकॉफ को भेजा। वह 11 सितंबर, 1808 ई० को महाराजा को खेमकरण में मिला। यहाँ उसने अंग्रेजी सरकार के प्रस्ताव महाराजा रणजीत सिंह के समक्ष रखे। संधि के बदले महाराजा रणजीत सिंह ने अंग्रेजों के समक्ष ये शर्त रखीं—

  • उसको सभी सिख रियासतों का शासक माना जाये।
  • काबुल के शासक के साथ युद्ध के समय अंग्रेज़ तटस्थ रहेंगे परंतु यह बातचीत स्थगित कर दी गई।

6. मैटकॉफ का द्वितीय मिशन (Metcalfe’s Second Mission)–नेपोलियन स्पेन की लड़ाई में उलझ गया था। इस कारण उसका भारत पर आक्रमण का ख़तरा टल गया। अब अंग्रेजों ने महाराजा रणजीत सिंह के बढ़ते हुए प्रभाव को रोकने का निर्णय किया। इस संबंध में चार्ल्स मैटकॉफ 10 दिसंबर, 1808 ई० को महाराजा रणजीत सिंह को अमृतसर में मिला। परंतु इस बातचीत का भी कोई परिणाम न निकला।

7. लड़ाई की तैयारियाँ (Warfare Preparations)-अंग्रेज़ों ने अपनी शर्ते मनवाने के लिए लड़ाई की तैयारियां शुरू कर दी। उन्होंने फरवरी, 1809 ई० में सर डेविड आक्टरलोनी के नेतृत्व में एक सेना लुधियाना में भेजी। महाराजा रणजीत सिंह ने भी दीवान मोहकम चंद को फिल्लौर में नियुक्त किया। किसी समय भी लड़ाई शुरू हो सकती थी परंतु अंतिम क्षणों में महाराजा रणजीत सिंह ने अंग्रेज़ों की शर्तों को स्वीकार कर लिया।

8. अमृतसर की संधि 1809 ई० (Treaty of Amritsar 1809 A.D.)-महाराजा रणजीत सिंह तथा अंग्रेजों में 25 अप्रैल, 1809 ई० को अमृतसर की संधि हुई। इस संधि के अनुसार सतलुज नदी को महाराजा रणजीत सिंह के राज्य की पूर्वी सीमा स्वीकार कर लिया गया। अब वह सतलुज पार के प्रदेशों पर कोई आक्रमण नहीं करेगा। अंग्रेजों ने महाराजा को सतलुज के इस ओर का स्वतंत्र शासक स्वीकार कर लिया। दोनों ने एक दूसरे के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करने का निर्णय किया। ऐसा करने की स्थिति में संधि को रद्द समझा जायेगा।

9. अमृतसर की संधि की रणजीत सिंह को हानियाँ (Disadvantages of Treaty of Amritsar to Ranjit Singh)-1809 ई० में हुई अमृतसर की संधि की रणजीत सिंह को निम्नलिखित हानियाँ हुईं–

  • इस संधि के चलते महाराजा रणजीत सिंह का संपूर्ण सिख कौम के महाराजा बनने का स्वप्न. धूल में मिल गया।
  • इस संधि के कारण महाराजा रणजीत सिंह की प्रतिष्ठा को एक गहरा आघात लगा।
  • इस संधि के कारण अंग्रेजों के लिए पंजाब को हड़पना सुगम हो गया।
  • इस संधि के कारण महाराजा रणजीत सिंह सतलुज पार के क्षेत्रों पर अधिकार न कर सका। इस कारण उसे भारी क्षेत्रीय एवं आर्थिक हानि हुई।

10. अमृतसर की संधि के रणजीत सिंह को लाभ (Advantages of Treaty of Amritsar to Ranjit Singh)-1809 ई० में हुई अमृतसर की संधि के रणजीत सिंह को निम्नलिखित लाभ हुए—

  • महाराजा ने अंग्रेज़ों के साथ संधि करके पंजाब राज्य को नष्ट होने से बचा लिया। रणजीत सिंह अगर अंग्रेजों के साथ टक्कर लेता तो उसे अपना राज्य गंवाना पड़ता।
  • अमृतसर की संधि से महाराजा रणजीत सिंह के राज्य की पूर्वी सीमा सुरक्षित हो गई। परिणामस्वरूप महाराजा उत्तर पश्चिम के महत्त्वपूर्ण प्रदेशों जैसे अटक, मुलतान, कश्मीर तथा पेशावर को पंजाब राज्य में सम्मिलित करने में सफल रहा।

11. अमृतसर की संधि से अंग्रेजों को लाभ (Advantages of Treaty of Amritsar to the British)अमृतसर की संधि से अंग्रेज़ों को निम्नलिखित लाभ हुए–

  • अंग्रेज़ों ने बिना किसी नुकसान के ही रणजीत सिंह को पूर्व की ओर बढ़ने से रोक दिया।
  • अंग्रेजों को काफ़ी प्रादेशिक लाभ हुआ। उनका साम्राज्य जमुना नदी से लेकर सतलुज नदी तक फैल गया।
  • अंग्रेज़ अपना ध्यान भारत की अन्य शक्तियों का दमन करने में लगा सके।
  • पंजाब अफ़गानिस्तान तथा अंग्रेज़ों के मध्य एक मध्यवर्ती राज्य बन गया।
  • अंग्रेज़ी ईस्ट इंडिया के सम्मान में काफ़ी वृद्धि हुई।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 18 ऐंग्लो-सिख संबंध : 1800-1839

दूसरा चरण 1809-39 ई० (Second Stage 1809-39 A.D.)

प्रश्न 2.
1809 से 1839 तक ऐंग्लो-सिख संबंधों का वर्णन करो।
(Describe the Anglo-Sikh relations during 1809-1839.)
अथवा
1809 से 1839 तक महाराजा रणजीत सिंह तथा अंग्रेजों के संबंधों की मुख्य विशेषताएँ बताएँ । (Give the main features of the relations between Maharaja Ranjit Singh and the British during 1809 to 1839 A.D.)
अथवा 1809 से 1839 ई० तक महाराजा रणजीत सिंह के संबंधों का आलोचनात्मक वर्णन करें। (Critically discuss the Anglo-Sikh relations from 1809 to 1839 A.D.)
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह तथा अंग्रेज़ों के मध्य 25 अप्रैल, 1809 ई० को अमृतसर की संधि हुई। इससे अंग्रेज़-सिख संबंधों में नए युग का सूत्रपात हुआ। इस संधि के बाद महाराजा रणजीत सिंह और अंग्रेज़ों के मध्य रहे संबंधों का आलोचनात्मक वर्णन निम्नलिखित है—

1. कुछ संदेह तथा अविश्वास का समय (Period of some Distrust and Suspicion)-अमृतसर की संधि के बावजूद अंग्रेज़ों तथा महाराजा के बीच 1809 ई० से 1812 ई० तक परस्पर संदेह तथा अविश्वास का वातावरण बना रहा। दोनों ही पक्षों ने एक-दूसरे की सैनिक तथा कूटनीतिक योजनाओं के बारे जानकारी प्राप्त करने के लिए अपने जासूस छोड़े हुए थे। अंग्रेजों ने लुधियाना में एक शक्तिशाली सैनिक छावनी स्थापित कर ली। दूसरी ओर महाराजा रणजीत सिंह ने भी फिल्लौर में एक किले का निर्माण करवाया।

2. संबंधों में सुधार (Improvement in the Relations)-धीरे-धीरे महाराजा रणजीत सिंह तथा अंग्रेजों के बीच संदेह दूर होने शुरू हो गए। 1812 ई० में महाराजा रणजीत सिंह ने डेविड आक्टरलोनी को कुंवर खड़क सिंह के विवाह पर निमंत्रण दिया। लाहौर दरबार में पहुँचने पर उसका हार्दिक अभिनंदन किया गया। 1812 ई० से लेकर 1821 ई० तक के समय दौरान अंग्रेज़ों तथा महाराजा रणजीत सिंह ने एक दूसरे के मामलों में कोई हस्तक्षेप नहीं किया।

3. वदनी की समस्या (Problem of Wadni)-1822 ई० में वदनी गाँव के स्वामित्व के बारे अंग्रेज़ों तथा महाराजा रणजीत सिंह के परस्पर संबंधों में कुछ समय के लिये तनाव पैदा हो गया। अंग्रेजों ने वदनी में से महाराजा रणजीत सिंह की सेना को निकाल दिया। इस कारण महाराजा रणजीत सिंह को बहुत क्रोध आया परंतु उसने लड़ाई नहीं की।

4. संबंधों में सुधार (Cordiality Restored)-1823 ई० में वेड जो कि लुधियाना में अंग्रेजों का पुलीटीकल एजेंट था, के हस्तक्षेप करने पर वदनी का क्षेत्र महाराजा रणजीत सिंह को वापस सौंप दिया गया। महाराजा रणजीत सिंह ने भी 1824 ई० में जब नेपाल सरकार ने अंग्रेजों के विरुद्ध महाराजा रणजीत सिंह से सहायता माँगी तो उसने इंकार कर दिया। इसी तरह 1825 ई० में महाराजा ने भरतपुर के राजा को अंग्रेजों के विरुद्ध सहयोग न दिया। 1826 ई० में जब महाराजा रणजीत सिंह बीमार पड़ा तो अंग्रेज़ों ने इलाज के लिये डॉक्टर मरे को भेजा। इस तरह दोनों के संबंधों में पुनः सुधार होना शुरू हो गया।

5. सिंध का प्रश्न (Question of Sind)-सिंध का क्षेत्र व्यापारिक तथा भौगोलिक पक्ष से बहुत महत्त्वपूर्ण था। 1831 ई० में अंग्रेजों ने अलैग्जेंडर बर्नज को संधि के बारे जानकारी प्राप्त करने के लिये भेजा। महाराजा रणजीत सिंह को कोई संदेह न हो इसलिये उसको रोपड़ में गवर्नर-जनरल लॉर्ड बैंटिंक के साथ एक मुलाकात के लिये निमंत्रण भेजा गया। यह मुलाकात 26 अक्तूबर, 1831 ई० को हुई। अंग्रेजों ने बड़ी चतुराई से महाराजा रणजीत सिंह को बातचीत में लगाये रखा। दूसरी ओर अंग्रेज़ सिंध के साथ एक व्यापारिक संधि करने में सफल हुए। इस कारण महाराजा रणजीत सिंह तथा अंग्रेजों के बीच पुनः तनाव उत्पन्न हो गया।

6. शिकारपुर का प्रश्न (Question of Shikarpur)-शिकारपुर के प्रश्न पर महाराजा रणजीत सिंह तथा अंग्रेजों के बीच तनाव बढ़ गया। 1836 ई० में जब मजारिस नामक एक कबीले. को महाराजा रणजीत सिंह ने पराजित किया तथा शिकारपुर पर अधिकार कर लिया उस समय वेड के नेतृत्व में एक अंग्रेज़ी सेना भी वहाँ पहुँच गई। महाराजा रणजीत सिंह पीछे हट गया क्योंकि वह अंग्रेजों के साथ लड़ाई मोल नहीं लेना चाहता था।

7. फिरोजपुर का प्रश्न (Question of Ferozepur)-फिरोजपुर शहर पर महाराजा रणजीत सिंह का अधिकार था परंतु 1835 ई० में अंग्रेजों ने इस पर कब्जा कर लिया था। 1838 ई० में अंग्रेजों ने यहाँ एक शक्तिशाली सैनिक छावनी बना ली। यद्यपि महाराजा को इस बात पर क्रोध आया परंतु अंग्रेजों ने उसकी कोई परवाह न की। .

8. त्रिपक्षीय संधि (Tripartite Treaty)-1837 ई० में रूस बहुत तीव्रता के साथ एशिया की ओर बढ़ रहा था। अंग्रेजों को यह ख़तरा हो गया कि कहीं रूस अफ़गानिस्तान के मार्ग से भारत पर आक्रमण न कर दे। इस आक्रमण को रोकने के लिए तथा अफ़गानिस्तान के शासक दोस्त मुहम्मद खाँ को गद्दी से उतारने के लिए अंग्रेजों ने अफ़गानिस्तान के भूतपूर्व शासक शाह शुजा तथा महाराजा रणजीत सिंह के साथ 26 जून, 1838 ई० को एक त्रिपक्षीय समझौता किया। अंग्रेज़ों ने महाराजा रणजीत सिंह से इस समझौते पर जबरन हस्ताक्षर करवाये।
त्रिपक्षीय संधि की मुख्य शर्ते थीं-

  • शाह शुजा को अंग्रेज़ों एवं महाराजा रणजीत सिंह के सहयोग से अफ़गानिस्तान का सम्राट् बनाया जाएगा।
  • शाह शुजा ने महाराजा रणजीत सिंह द्वारा विजित किए समस्त अफ़गान क्षेत्रों पर उसका अधिकार मान लिया।
  • सिंध के संबंध में अंग्रेज़ों व महाराजा रणजीत सिंह के मध्य जो निर्णय होंगे, शाह शुज़ा ने उन्हें मानने का वचन दिया।
  • शाह शुज़ा अंग्रेज़ों एवं सिखों की आज्ञा लिए बिना विश्व की किसी अन्य शक्ति के साथ संबंध स्थापित नहीं करेगा।
  • एक देश का शत्रु दूसरे दो देशों का भी शत्रु माना जाएगा।
  • शाह शुजा को सिंहासन पर बिठाने के लिए महाराजा रणजीत सिंह 5,000 सैनिकों सहित सहायता 2करेगा तथा शाह शुजा इसके स्थान पर महाराजा को 2 लाख रुपए देगा।

त्रिपक्षीय संधि रणजीत सिंह की एक और कूटनीतिक पराजय थी। इस संधि ने रणजीत सिंह की सिंध एवं शिकारपुर पर अधिकार करने की सभी इच्छाओं पर पानी फेर दिया था। महाराजा रणजीत सिंह की 27 जून, 1839 ई० को मृत्यु हो गई।

महाराजा रणजीत सिंह की अंग्रेजों के प्रति नीति की समीक्षा (An Estimate of Maharaja Ranjit Singh’s Policy towards the British)
महाराजा रणजीत सिंह के अंग्रेजों के साथ कैसे संबंध थे इस बारे में इतिहासकारों में मतभेद पाये जाते हैं। कछ इतिहासकारों का विचार है कि महाराजा रणजीत सिंह ने अंग्रेजों के साथ लड़ाई न करके अपनी सूझ-बूझ तथा दूरदर्शिता का परिचय दिया। महाराजा रणजीत सिंह अंग्रेजों की शक्ति से अच्छी तरह अवगत था। वह अपने से कई गुना शक्तिशाली शत्रु के साथ टक्कर लेकर उभरते हुए खालसा राज्य को नष्ट होते नहीं देखना चाहता था। दूसरे, अंग्रेजों के साथ मित्रता के कारण ही महाराजा रणजीत सिंह उत्तर-पश्चिम की ओर सिख साम्राज्य का विस्तार कर सका।

दूसरी ओर कुछ अन्य इतिहासकारों ने इस नीति की कड़ी आलोचना की है। उनका विचार है कि महाराजा रणजीत सिंह ने अंग्रेजों के समक्ष सदैव झुकने की नीति अपनाई। 1809 ई० की अमृतसर की संधि द्वारा महाराजा रणजीत सिंह को सतलुज पार के प्रदेशों में से अपनी सेनाएँ निकालने के लिये विवश कर दिया गया था। सिंध, शिकारपुर तथा फिरोज़पुर के मामलों में महाराजा रणजीत सिंह का भारी अपमान किया गया था। त्रि-पक्षीय संधि भी महाराजा रणजीत सिंह पर जबरन थोपी गई थी। अत्याचारी के समक्ष सदैव झुकते रहना कभी उचित या योग्य नहीं कहा जा सकता। डॉक्टर एन०. के० सिन्हा के अनुसार,
“उसके हृदय के अंदर भी शायद वही चिंता थी जो प्रत्येक निर्माता को उत्तराधिकार में मिलती है । अपने हाथों से निर्मित साम्राज्य को वह युद्ध के ख़तरों के समक्ष नंगा करने से घबराता था तथा इसलिए उसने झुक जाने, झुक जाने तथा झुक जाने की नीति अपनाई।”1

1. “Perhaps with the solicitude inherent in all builders, he feared to expose the kingdom, he had created, to the risks of war and chose instead the policy of yielding, yielding and yielding.” Dr. N.K. Sinha, Ranjit Singh (Calcutta : 1975) p. 137.

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प्रश्न 3.
1800 से 1839 ई० तक रणजीत सिंह के अंग्रेजों के साथ संबंधों का विवरण दीजिए।
(Discuss the relations of Ranjit Singh with the British from 1800 to 1839.)
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह तथा अंग्रेज़ों के मध्य 25 अप्रैल, 1809 ई० को अमृतसर की संधि हुई। इससे अंग्रेज़-सिख संबंधों में नए युग का सूत्रपात हुआ। इस संधि के बाद महाराजा रणजीत सिंह और अंग्रेज़ों के मध्य रहे संबंधों का आलोचनात्मक वर्णन निम्नलिखित है—

1. कुछ संदेह तथा अविश्वास का समय (Period of some Distrust and Suspicion)-अमृतसर की संधि के बावजूद अंग्रेज़ों तथा महाराजा के बीच 1809 ई० से 1812 ई० तक परस्पर संदेह तथा अविश्वास का वातावरण बना रहा। दोनों ही पक्षों ने एक-दूसरे की सैनिक तथा कूटनीतिक योजनाओं के बारे जानकारी प्राप्त करने के लिए अपने जासूस छोड़े हुए थे। अंग्रेजों ने लुधियाना में एक शक्तिशाली सैनिक छावनी स्थापित कर ली। दूसरी ओर महाराजा रणजीत सिंह ने भी फिल्लौर में एक किले का निर्माण करवाया।

2. संबंधों में सुधार (Improvement in the Relations)-धीरे-धीरे महाराजा रणजीत सिंह तथा अंग्रेजों के बीच संदेह दूर होने शुरू हो गए। 1812 ई० में महाराजा रणजीत सिंह ने डेविड आक्टरलोनी को कुंवर खड़क सिंह के विवाह पर निमंत्रण दिया। लाहौर दरबार में पहुँचने पर उसका हार्दिक अभिनंदन किया गया। 1812 ई० से लेकर 1821 ई० तक के समय दौरान अंग्रेज़ों तथा महाराजा रणजीत सिंह ने एक दूसरे के मामलों में कोई हस्तक्षेप नहीं किया।

3. वदनी की समस्या (Problem of Wadni)-1822 ई० में वदनी गाँव के स्वामित्व के बारे अंग्रेज़ों तथा महाराजा रणजीत सिंह के परस्पर संबंधों में कुछ समय के लिये तनाव पैदा हो गया। अंग्रेजों ने वदनी में से महाराजा रणजीत सिंह की सेना को निकाल दिया। इस कारण महाराजा रणजीत सिंह को बहुत क्रोध आया परंतु उसने लड़ाई नहीं की।

4. संबंधों में सुधार (Cordiality Restored)-1823 ई० में वेड जो कि लुधियाना में अंग्रेजों का पुलीटीकल एजेंट था, के हस्तक्षेप करने पर वदनी का क्षेत्र महाराजा रणजीत सिंह को वापस सौंप दिया गया। महाराजा रणजीत सिंह ने भी 1824 ई० में जब नेपाल सरकार ने अंग्रेजों के विरुद्ध महाराजा रणजीत सिंह से सहायता माँगी तो उसने इंकार कर दिया। इसी तरह 1825 ई० में महाराजा ने भरतपुर के राजा को अंग्रेजों के विरुद्ध सहयोग न दिया। 1826 ई० में जब महाराजा रणजीत सिंह बीमार पड़ा तो अंग्रेज़ों ने इलाज के लिये डॉक्टर मरे को भेजा। इस तरह दोनों के संबंधों में पुनः सुधार होना शुरू हो गया।

5. सिंध का प्रश्न (Question of Sind)-सिंध का क्षेत्र व्यापारिक तथा भौगोलिक पक्ष से बहुत महत्त्वपूर्ण था। 1831 ई० में अंग्रेजों ने अलैग्जेंडर बर्नज को संधि के बारे जानकारी प्राप्त करने के लिये भेजा। महाराजा रणजीत सिंह को कोई संदेह न हो इसलिये उसको रोपड़ में गवर्नर-जनरल लॉर्ड बैंटिंक के साथ एक मुलाकात के लिये निमंत्रण भेजा गया। यह मुलाकात 26 अक्तूबर, 1831 ई० को हुई। अंग्रेजों ने बड़ी चतुराई से महाराजा रणजीत सिंह को बातचीत में लगाये रखा। दूसरी ओर अंग्रेज़ सिंध के साथ एक व्यापारिक संधि करने में सफल हुए। इस कारण महाराजा रणजीत सिंह तथा अंग्रेजों के बीच पुनः तनाव उत्पन्न हो गया।

6. शिकारपुर का प्रश्न (Question of Shikarpur)-शिकारपुर के प्रश्न पर महाराजा रणजीत सिंह तथा अंग्रेजों के बीच तनाव बढ़ गया। 1836 ई० में जब मजारिस नामक एक कबीले. को महाराजा रणजीत सिंह ने पराजित किया तथा शिकारपुर पर अधिकार कर लिया उस समय वेड के नेतृत्व में एक अंग्रेज़ी सेना भी वहाँ पहुँच गई। महाराजा रणजीत सिंह पीछे हट गया क्योंकि वह अंग्रेजों के साथ लड़ाई मोल नहीं लेना चाहता था।

7. फिरोजपुर का प्रश्न (Question of Ferozepur)-फिरोजपुर शहर पर महाराजा रणजीत सिंह का अधिकार था परंतु 1835 ई० में अंग्रेजों ने इस पर कब्जा कर लिया था। 1838 ई० में अंग्रेजों ने यहाँ एक शक्तिशाली सैनिक छावनी बना ली। यद्यपि महाराजा को इस बात पर क्रोध आया परंतु अंग्रेजों ने उसकी कोई परवाह न की। .

8. त्रिपक्षीय संधि (Tripartite Treaty)-1837 ई० में रूस बहुत तीव्रता के साथ एशिया की ओर बढ़ रहा था। अंग्रेजों को यह ख़तरा हो गया कि कहीं रूस अफ़गानिस्तान के मार्ग से भारत पर आक्रमण न कर दे। इस आक्रमण को रोकने के लिए तथा अफ़गानिस्तान के शासक दोस्त मुहम्मद खाँ को गद्दी से उतारने के लिए अंग्रेजों ने अफ़गानिस्तान के भूतपूर्व शासक शाह शुजा तथा महाराजा रणजीत सिंह के साथ 26 जून, 1838 ई० को एक त्रिपक्षीय समझौता किया। अंग्रेज़ों ने महाराजा रणजीत सिंह से इस समझौते पर जबरन हस्ताक्षर करवाये।
त्रिपक्षीय संधि की मुख्य शर्ते थीं-

  • शाह शुजा को अंग्रेज़ों एवं महाराजा रणजीत सिंह के सहयोग से अफ़गानिस्तान का सम्राट् बनाया जाएगा।
  • शाह शुजा ने महाराजा रणजीत सिंह द्वारा विजित किए समस्त अफ़गान क्षेत्रों पर उसका अधिकार मान लिया।
  • सिंध के संबंध में अंग्रेज़ों व महाराजा रणजीत सिंह के मध्य जो निर्णय होंगे, शाह शुज़ा ने उन्हें मानने का वचन दिया।
  • शाह शुज़ा अंग्रेज़ों एवं सिखों की आज्ञा लिए बिना विश्व की किसी अन्य शक्ति के साथ संबंध स्थापित नहीं करेगा।
  • एक देश का शत्रु दूसरे दो देशों का भी शत्रु माना जाएगा।
  • शाह शुजा को सिंहासन पर बिठाने के लिए महाराजा रणजीत सिंह 5,000 सैनिकों सहित सहायता 2करेगा तथा शाह शुजा इसके स्थान पर महाराजा को 2 लाख रुपए देगा।

त्रिपक्षीय संधि रणजीत सिंह की एक और कूटनीतिक पराजय थी। इस संधि ने रणजीत सिंह की सिंध एवं शिकारपुर पर अधिकार करने की सभी इच्छाओं पर पानी फेर दिया था। महाराजा रणजीत सिंह की 27 जून, 1839 ई० को मृत्यु हो गई।

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संक्षिप्त उत्तरों वाले प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
जसवंत राव होल्कर कौन था ? महाराजा रणजीत सिंह ने उसकी सहायता क्यों न की ? (Who was Jaswant Rao Holkar ? Why Maharaja Ranjit Singh did not help him ?)
उत्तर-
जसवंत राव होल्कर मराठा सरदार था। वह 1805 ई० में महाराजा रणजीत सिंह से अंग्रेजों के विरुद्ध सहायता लेने के लिए अमृतसर पहुँचा। महाराजा रणजीत सिंह ने होल्कर की निम्नलिखित कारणों से कोई सहायतान की-प्रथम, महाराजा रणजीत सिंह अंग्रेज़ी सेना के अनुशासन को देखकर चकित रह गया था। द्वितीय, अमृतसर में हुए गुरमत्ता में निर्णय लिया गया कि जसवंत राव होल्कर की सहायता लाहौर राज्य के लिए विनाशकारी सिद्ध हो सकती है। तृतीय, महाराजा रणजीत सिंह पंजाब को युद्ध का क्षेत्र नहीं बनाना चाहता था। उसका राज्य अभी बहुत छोटा था तथा यह युद्ध नए उदय हो रहे सिख साम्राज्य के लिए हानिप्रद प्रमाणित हो सकता था।

प्रश्न 2.
अमृतसर की संधि की परिस्थितियों का वर्णन करें।
(Describe the circumstances leading to the Treaty of Amritsar.)
अथवा
अमृतसर की संधि की परिस्थितियों का अध्ययन करें।
(Study the circumstances leading to the Treaty of Amritsar.)
अथवा
1800 से 1809 ई० तक के अंग्रेज़-सिख संबंधों का विवरण दीजिए।
(Give an account of Anglo-Sikh relations from 1800 to 1809.)
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह पंजाब की सभी सिख रियासतों पर अपना अधिकार करना चाहता था। इस उद्देश्य से उसने 1806 ई० और 1807 ई० में मालवा प्रदेश पर आक्रमण किए। उसने कई क्षेत्रों पर अधिकार कर लिया। सितंबर, 1808 ई० में रणजीत सिंह तथा चार्ल्स मैटकॉफ के मध्य वार्ता असफल रही। रणजीत सिंह ने दिसंबर, 1808 ई० में मालवा पर तीसरी बार आक्रमण किया। अब अंग्रेजों ने रणजीत सिंह से अपनी शर्ते मनवाने के लिए युद्ध की तैयारियाँ आरंभ कर दी। परिणामस्वरूप 25 अप्रैल, 1809 ई० को रणजीत सिंह तथा अंग्रेजों के मध्य अमृतसर की संधि पर हस्ताक्षर हो गए।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 18 ऐंग्लो-सिख संबंध : 1800-1839

प्रश्न 3.
महाराजा रणजीत सिंह तथा अंग्रेजों के बीच हुई अमृतसर की संधि की महत्ता बताएँ।
(Describe the significance of the Treaty of Amritsar signed between Maharaja Ranjit Singh and the English.) .
अथवा
अमृतसर की संधि (1809) का ऐतिहासिक महत्त्व क्या था ? (What was the historical significance of the Treaty of Amritsar (1809)?]
अथवा
अमृतसर संधि की शर्ते एवं महत्त्व लिखें। (Write the main clauses and importance of the Treaty of Amritsar.)
अथवा
अमृतसर की संधि का क्या महत्त्व था?
(What was the significance of the Treaty of Amritsar ?)
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह तथा अंग्रेज़ों के मध्य हुई 25 अप्रैल, 1809 ई० को अमृतसर की संधि का पंजाब के इतिहास में महत्त्वपूर्ण स्थान है। इस संधि द्वारा रणजीत सिंह ने सतलुज नदी को राज्य की पूर्वी सीमा मान लिया। परिणामस्वरूप महाराजा रणजीत सिंह का सभी सिख रियासतों का महाराजा बनने का स्वप्न सदा के लिए टूट गया। रणजीत सिंह को न केवल राजनीतिक अपितु आर्थिक क्षति भी हुई। परंतु इस संधि द्वारा महाराजा अपने नव-निर्मित राज्य को अंग्रेजों से बचाने में सफल हो गया। यह संधि अंग्रेजों की एक बड़ी कूटनीतिक विजय थी।

प्रश्न 4.
अमृतसर की संधि की तीन शर्ते लिखें।
(What were the three conditions of the Treaty of Amritsar ?)
उत्तर-

  1. अंग्रेजी सरकार और लाहौर दरबार के मध्य मित्रता रहेगी।
  2. अंग्रेज़ी सरकार का सतलुज दरिया के उत्तर और महाराजा के प्रदेशों और प्रजा के साथ कोई संबंध नहीं रखेगी।
  3. महाराजा सतलुज दरिया के बाएँ तरफ के क्षेत्र जोकि उसके अधिकार में है उतनी ही सेना रखेगा जोकि उसके आंतरिक प्रबंध के लिए अनिवार्य है।

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प्रश्न 5.
सिंध के प्रश्न पर महाराजा रणजीत सिंह तथा अंग्रेजों के मध्य तनाव क्यों उत्पन्न हो गया ?
(Why was tension created between Maharaja Ranjit Singh and the English over Sind tangle ?)
उत्तर-
सिंध का क्षेत्र व्यापारिक तथा भौगोलिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण था। इसलिए महाराजा रणजीत सिंह तथा अंग्रेज़ दोनों इस क्षेत्र पर अधिकार करना चाहते थे। अंग्रेजों ने सिंध के साथ संधि करने के लिए कर्नल पोटिंगर को भेजा। वह 1832 ई० में सिंध के साथ एक व्यापारिक संधि करने में सफल रहा। इस कारण यह संधि अंग्रेज़ों के लिए बड़ी लाभदायक सिद्ध हुई। इस कारण अंग्रेजों तथा रणजीत सिंह के मध्य पुनः तनाव उत्पन्न हो गया। 1838 ई० में अंग्रेजों ने सिंध के अमीरों के साथ एक अन्य संधि कर ली। महाराजा रणजीत सिंह यह सहन करने को तैयार न था किंतु उसने अंग्रेजों के विरुद्ध कोई कदम उठाने का साहस न किया।

प्रश्न 6.
फिरोजपुर के प्रश्न पर महाराजा रणजीत सिंह तथा अंग्रेजों के मध्य तनाव क्यों उत्पन्न हो गया ?
(Why was tension created between Maharaja Ranjit Singh and the English over Ferozepur tangle ?)
उत्तर-
अंग्रेज़ फिरोज़पुर जैसे महत्त्वपूर्ण नगर को अपने अधिकार में लेना चाहते थे। यहाँ से अंग्रेज़ रणजीत सिंह के राज्य की गतिविधियों के संबंध में काफ़ी जानकारी प्राप्त कर सकते थे। इसके अतिरिक्त पंजाब में घेराव डालने के लिए फिरोज़पुर पर अधिकार करना आवश्यक था। इसलिए 1835 ई० में अंग्रेजों ने बलपूर्वक फिरोजपुर पर अधिकार कर लिया। रणजीत सिंह ने अंग्रेजों द्वारा फिरोजपुर पर अधिकार करने तथा यहाँ छावनी बनाए जाने के कारण चाहे बहुत क्रोध किया, किंतु अंग्रेजों ने इसकी कोई परवाह न की।

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प्रश्न 7.
त्रिपक्षीय संधि पर अपने विचार व्यक्त करो।
(Give your own opinion on Tri-partite Treaty.)
अथवा
त्रिपक्षीय संधि तथा इसके महत्त्व पर एक टिप्पणी लिखें।
(Write a brief note on Tri-partite Treaty and its significance.)
उत्तर-
1837 ई० में रूस बड़ी तेजी से भारत की ओर बढ़ रहा था। अफ़गानिस्तान का शासक दोस्त मुहम्मद खाँ यह चाहता था कि अंग्रेज़ पेशावर का क्षेत्र रणजीत सिंह से लेकर उसे दे दें। अंग्रेज़ ऐसा नहीं कर सकते थे। परिणामस्वरूप उन्होंने अफ़गानिस्तान के भूतपूर्व शासक शाह शुजा से वार्ता आरंभ कर दी। 26 जून, 1838 ई० को अंग्रेजों, शाह शुजा तथा महाराजा रणजीत सिंह के मध्य एक त्रिपक्षीय संधि पर हस्ताक्षर किए। इस संधि के अनुसार शाह शुजा को अफ़गानिस्तान का शासक बनाने का निर्णय किया गया। महाराजा रणजीत सिंह इस संधि में शामिल नहीं होना चाहता था, किंतु अंग्रेजों ने उसे ऐसा करने पर बाध्य किया।

प्रश्न 8.
1809 से 1839 ई० तक के अंग्रेज़-सिख संबंधों का विवरण दीजिए।
(Give an account of Agnlo-Sikh relations from 1809 to 1839.)
उत्तर-
1809 से 1839 ई० तक का काल अंग्रेज़-सिख संबंधों में विशेष स्थान रखता है। 1809 ई० में महाराजा रणजीत सिंह एवं अंग्रेजों के मध्य अमृतसर की संधि हुई। यह महाराजा रणजीत सिंह की अपेक्षा अंग्रेजों के लिए अधिक लाभकारी सिद्ध हुई। इस संधि के कारण महाराजा रणजीत सिंह का सभी सिख रियासतों का महाराजा बनने का स्वप्न चकनाचूर हो गया, किंतु उसने खालसा राज्य को नष्ट होने से बचा लिया। 1809 से 1830 ई० तक दोनों शक्तियों के मध्य कभी मित्रता तथा कभी तनाव स्थापित हो जाता। 1830 से 1839 ई० में दोनों शक्तियों के संबंधों में पुनः तनाव उत्पन्न हो गया।

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प्रश्न 9.
महाराजा रणजीत सिंह के अंग्रेजों के साथ संबंधों के स्वरूप का वर्णन करें। (Discuss the nature of Maharaja Ranjit Singh’s relation with the British.)
अथवा
महाराजा रणजीत सिंह की अंग्रेजों के सामने झुकने की नीति के बारे में अपने विचार लिखो। (Comment on Maharaja Ranjit Singh’s policy of yielding towards the British.)
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह ने सदैव अंग्रेजों के सामने झुकने की नीति अपनाई। अंग्रेजों ने उसे 1809 ई० में अमृतसर की संधि के लिए बाध्य किया। इस संधि के साथ महाराजा रणजीत सिंह के सभी सिखों का महाराजा बनने की आशा मिट्टी में मिल गई। 1822 ई० अंग्रेजों ने सदा कौर के कहने पर वदनी से रणजीत सिंह की सेनाओं को वहाँ से निकाल दिया। 1832 ई० में अंग्रेजों ने रणजीत सिंह को धोखे में रख कर संधि से व्यापारिक संधि कर ली। 1838 ई० में अंग्रेजों ने फिरोजपुर में एक छावनी स्थापित करके महाराजा रणजीत सिंह की शक्ति को एक बार फिर ललकारा।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न – (Objective Type Questions)

(i) एक शब्द से एक पंक्ति तक के उत्तर (Answer in One Word to One Sentence)

प्रश्न 1.
अंग्रेज़ों तथा रणजीत सिंह का पहला संपर्क कब हुआ ?
उत्तर-
1800 ई०।

प्रश्न 2.
यूसफ अली कौन था ?
उत्तर-
अंग्रेजों ने यूसफ अली को 1800 ई० में लाहौर दरबार में अपना दूत बनाकर भेजा था।

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प्रश्न 3.
मराठों का नेता जसवंत राव होल्कर कब पंजाब आया था ?
उत्तर-
1805 ई०।

प्रश्न 4.
महाराजा रणजीत सिंह तथा अंग्रेजों के मध्य प्रथम मित्रतापूर्वक सन्धि कब हुई ?
उत्तर-
1806 ई०।

प्रश्न 5.
1806 ई० की लाहौर की संधि की कोई एक मुख्य शर्त बताओ।
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह होल्कर की कोई सहायता नहीं करेगा।

प्रश्न 6.
चार्ल्स मैटकॉफ कौन था ?
उत्तर-
वह एक अंग्रेज अधिकारी था।

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प्रश्न 7.
चार्ल्स मैटकॉफ तथा महाराजा रणजीत सिंह के मध्य कितनी बार भेंट हुई ?
उत्तर-
दो।

प्रश्न 8.
महाराजा रणजीत सिंह ने मालवा प्रदेश पर कितनी बार आक्रमण किए ?
उत्तर-
तीन बार।

प्रश्न 9.
महाराजा रणजीत सिंह ने मालवा प्रदेश पर कब प्रथम आक्रमण किया ?
उत्तर-
1806 ई०।

प्रश्न 10.
कोई एक कारण बताएँ जिस कारण महाराजा रणजीत सिंह अंग्रेजों से संधि करने के लिए बाध्य हुआ।
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह के दरबारियों ने उसे अंग्रेजों के साथ संघर्ष न करने की सलाह दी।

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प्रश्न 11.
अमृतसर की संधि कब हुई ?
अथवा
अमृतसर की संधि पर कब हस्ताक्षर हुए ?
उत्तर-
25 अप्रैल, 1809 ई०।

प्रश्न 12.
अमृतसर की संधि (1809) की कोई एक मुख्य धारा लिखें।
उत्तर-
अंग्रेजी सरकार और लाहौर दरबार के मध्य स्थायी मित्रता रहेगी।

प्रश्न 13.
1809 ई० की अमृतसर की संधि के अनुसार कौन-सी नदी महाराजा रणजीत सिंह और अंग्रेजों के मध्य सीमा बनी ?
उत्तर-
सतलुज नदी।

प्रश्न 14.
अमृतसर की संधि से महाराजा रणजीत सिंह को क्या हानि हुई ?
उत्तर-
इसने महाराजा रणजीत सिंह के सब सिख शासकों के महाराजा बनने के स्वप्न को भंग कर दिया।

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प्रश्न 15.
अमृतसर की संधि से महाराजा रणजीत सिंह को क्या लाभ हुआ ?
उत्तर-
इस संधि के कारण महाराजा रणजीत सिंह का राज्य समय से पूर्व नष्ट होने से बच गया।

प्रश्न 16.
अमृतसर की संधि से अंग्रेज़ों को हुआ कोई एक मुख्य लाभ बताएँ।
उत्तर-
इस संधि से अंग्रेजों की प्रतिष्ठा में काफ़ी वृद्धि हुई।

प्रश्न 17.
महाराजा रणजीत सिंह तथा अंग्रेजों के मध्य वदनी का तनाव कब हुआ ?
उत्तर-
1822. ई० में।

प्रश्न 18.
1823 ई० में कौन लुधियाना का पुलिटिकल ऐंजट नियुक्त हुआ ?
उत्तर-
कैप्टन वेड।

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प्रश्न 19.
1826 ई० में किस अंग्रेज़ डॉक्टर ने महाराजा रणजीत सिंह का इलाज किया ?
उत्तर-
डॉक्टर मरे ने

प्रश्न 20.
महाराजा रणजीत सिंह तथा लॉर्ड विलियम बैंटिंक के मध्य मुलाकात कब हुई ?
उत्तर-
26 अक्तूबर, 1831 ई०।।

प्रश्न 21.
महाराजा रणजीत सिंह तथा लॉर्ड विलियम बैंटिंक के मध्य मुलाकात कहाँ हुई थी ?
उत्तर-
रोपड़।

प्रश्न 22.
अंग्रेजों ने सिंध के अमीरों से संधि कब की ?
उत्तर-
1832 ई०।

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प्रश्न 23.
अंग्रेजों ने फिरोज़पुर पर कब अधिकार कर लिया था ?
उत्तर-
1835 ई०।

प्रश्न 24.
त्रिपक्षीय संधि कब हुई ?
उत्तर-
26 जून, 1838 ई०।

(ii) रिक्त स्थान भरें (Fill in the Blanks)

प्रश्न 1.
यूसुफ अली मिशन ……… में पंजाब आया।
उत्तर-
(1800 ई०)

प्रश्न 2.
जसवंत राव होल्कर ………… में पंजाब आया।
उत्तर-
(1805 ई०)

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प्रश्न 3.
महाराजा रणजीत सिंह व अंग्रेजों के मध्य लाहौर की संधि………में हुई।
उत्तर-
(1806 ई०)

प्रश्न 4.
महाराजा रणजीत सिंह ने मालवा पर पहली बार ……में आक्रमण किया था।
उत्तर-
(1806 ई०)

प्रश्न 5.
महाराजा रणजीत सिंह ने मालवा पर तीसरी बार ………..में आक्रमण किया था।
उत्तर-
(1808 ई०)

प्रश्न 6.
चार्ल्स मैटकॉफ महाराजा रणजीत को दूसरी बार …….में मिला।।
उत्तर-
(अमृतसर)

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प्रश्न 7.
महाराजा रणजीत सिंह व अंग्रेज़ों के मध्य अमृतसर की संधि ……………..को हुई।
उत्तर-
(25 अप्रैल, 1809 ई०)

प्रश्न 8.
अमृतसर की संधि के अनुसार………दरिया को महाराजा रणजीत सिंह व अंग्रेजों के मध्य साम्राज्य की – सीमा माना गया था।
उत्तर-
(सतलुज)

प्रश्न 9.
1831 ई० में………में महाराजा रणजीत सिंह और लॉर्ड विलियम बैंटिंक की बैठक हुई।
उत्तर-
(रोपड़)

प्रश्न 10.
महाराजा रणजीत सिंह, शाह शुज़ा और अंग्रेजों के मध्य त्रिपक्षीय संधि……………..में हुई।
उत्तर-
(1838. ई०)

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(ii) ठीक अथवा गलत (True or False)

नोट-निम्नलिखित में से ठीक अथवा गलत चुनें—

प्रश्न 1.
यूसुफ अली मिशन 1800 ई० में पंजाब आया।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 2.
1805 ई० में मराठा नेता जसवंत राव होल्कर पंजाब आया।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 3.
जसवंत राव होल्कर 1805 ई० में पंजाब आया था।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 4.
महाराजा रणजीत सिंह और अंग्रेजों के मध्य लाहौर की संधि 1805 ई० में हुई।
उत्तर-
गलत

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प्रश्न 5.
महाराजा रणजीत सिंह ने मालवा पर प्रथम बार 1806 ई० में आक्रमण किया।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 6.
चार्ल्स मैटकॉफ 1808 ई० में महाराजा रणजीत सिंह को पहली बार खेमकरण में मिला था।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 7.
महाराजा रणजीत सिंह और अंग्रेजों के मध्य अमृतसर की संधि 25 अप्रैल, 1809 ई० को हुई।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 8.
अमृतसर की संधि के कारण महाराजा रणजीत सिंह के गौरव को भारी धक्का लगा था।
उत्तर-
ठीक

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प्रश्न 9.
1826 ई० में अंग्रेजों ने डॉक्टर मर्रे को महाराजा रणजीत के इलाज के लिए भेजा था।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 10.
लार्ड विलियम बैंटिंक महाराजा रणजीत सिंह को 1831 ई० में रोपड़ में मिला था।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 11.
अंग्रेज़ों ने 1835 ई० में फिरोजपुर पर कब्जा कर लिया था।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 12.
महाराजा रणजीत सिंह, शाह शुज़ा और अंग्रेजों के मध्य त्रि-पक्षीय संधि 26 जून, 1838 ई० को हुई थी।
उत्तर-
ठीक

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(iv) बहु-विकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions)

नोट-निम्नलिखित में से ठीक उत्तर का चयन कीजिए—

प्रश्न 1.
मराठों का नेता जसवंत राव होल्कर पंजाब कब आया था ?
(i) 1801 ई० में
(ii) 1802 ई० में
(iii) 1805 ई० में
(iv) 1809 ई० में।
उत्तर-
(iii)

प्रश्न 2.
महाराजा रणजीत सिंह और अंग्रेजों के मध्य पहली संधि कब हुई ?
(i) 1805 ई० में
(ii) 1806 ई० में
(iii) 1807 ई० में
(iv) 1809 ई० में।
उत्तर-
(ii)

प्रश्न 3.
महाराजा रणजीत सिंह ने मालवा पर कितनी बार आक्रमण किये ?
(i) दो बार
(ii) तीन बार
(iii) चार बार
(iv) पाँच बार।
उत्तर-
(ii)

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प्रश्न 4.
महाराजा रणजीत सिंह ने मालवा पर प्रथम आक्रमण कब किया ?
(i) 1805 ई० में
(ii) 1806 ई० में
(iii) 1807 ई० में
(iv) 1809 ई० में।
उत्तर-
(ii)

प्रश्न 5.
चार्ल्स मैटकॉफ महाराजा रणजीत सिंह को पहली बार कहाँ मिला था ?
(i) लुधियाना में
(ii) अमृतसर में
(iii) लाहौर में
(iv) खेमकरण में।
उत्तर-
(iv)

प्रश्न 6.
महाराजा रणजीत सिंह और अंग्रेजों में अमृतसर की संधि कब हुई ?
(i) 1805 ई० में
(ii) 1809 ई० में
(iii) 1812 ई० में
(iv) 1821 ई० में।
उत्तर-
(i)

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प्रश्न 7.
1809 ई० की अमृतसर की संधि के अनुसार कौन-सी नदी महाराजा रणजीत सिंह और अंग्रेज़ों के मध्य सीमा बनी ?
(i) ब्यास नदी
(ii) सतलुज नदी
(iii) रावी नदी
(iv) जेहलम नदी।
उत्तर-
(ii)

प्रश्न 8.
महाराजा रणजीत सिंह और लॉर्ड विलियम बैंटिंक में मुलाकात कब हुई थी ?
(i) 1809 ई० में
(ii) 1811 ई० में
(ii) 1821 ई० में
(iv) 1831 ई० में।
उत्तर-
(iv)

प्रश्न 9.
महाराजा रणजीत सिंह और लॉर्ड विलियम बैंटिंक में मुलाकात कहाँ हुई थी ?
(i) अमृतसर में
(ii) लुधियाना में
(iii) रोपड़ में
(iv) लाहौर में।
उत्तर-
(iii)

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प्रश्न 10.
अंग्रेजों ने सिंध के अमीरों से व्यापारिक संधि कब की थी ?
(i) 1829 ई० में
(ii) 1830 ई० में
(iii) 1831 ई० में
(iv) 1832 ई० में।
उत्तर-
(iv)

प्रश्न 11.
त्रिपक्षीय संधि कब हुई ?
(i) 1839 ई०
(ii) 1845 ई०
(iii) 1838 ई०
(iv) 1809 ई०।
उत्तर-
(iii)

Long Answer Type Question

प्रश्न 1.
जसवंत राव होल्कर कौन था ? महाराजा रणजीत सिंह ने उसकी सहायता क्यों न की ? (Who was Jaswant Rao Holkar ? Why Ranjit Singh did not help him ?)
उत्तर-
जसवंत राव होल्कर मराठा सरदार था। वह 1805 ई० में अंग्रेजों से पराजित हो गया था। परिणामस्वरूप वह महाराजा रणजीत सिंह से अंग्रेजों के विरुद्ध सहायता लेने के लिए अमृतसर पहुँचा। महाराजा रणजीत सिंह ने होल्कर का यद्यपि गर्मजोशी से स्वागत किया, परंतु निम्नलिखित कारणों से कोई सहायता न की-प्रथम, महाराजा रणजीत सिंह अंग्रेज़ी सेना के अनुशासन को देखकर चकित रह गया था। दूसरा, अंग्रेजों की थोड़ी-सी सेना ने मराठों की विशाल सेना को युद्ध-भूमि से भागने के लिए विवश कर दिया था। इस कारण महाराजा रणजीत सिंह द्वारा यह परिणाम निकालना स्वाभाविक था कि थोड़ी-सी सिख सेना के शामिल होने से स्थिति में कोई विशेष अंतर नहीं पड़ना था। तीसरा, होल्कर के संबंध में कोई निर्णय लेने के लिए महाराजा रणजीत सिंह ने अमृतसर में सिख सरदारों का एक सम्मेलन बुलाया। इसमें काफ़ी सोचने-विचारने के पश्चात् यह निर्णय लिया गया कि जसवंत राव होल्कर की सहायता लाहौर राज्य के लिए विनाशकारी सिद्ध हो सकती है। चौथा, महाराजा रणजीत सिंह पंजाब को युद्ध का क्षेत्र नहीं बनाना चाहता था। उसका राज्य अभी बहुत छोटा था तथा यह युद्ध नए उदय हो रहे सिख साम्राज्य के लिए हानिप्रद प्रमाणित हो सकता था।

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प्रश्न 2.
महाराजा रणजीत सिंह और अंग्रेजों के पहले पड़ाव के संबंधों का विश्लेषण कीजिए।
(Analyse the relationship of Ranjit Singh and Britishers in the first phase.)
अथवा
अमृतसर की संधि की परिस्थितियों का अध्ययन करें। (Study the circumstances leading to the Treaty of Amritsar.)
अथवा
1800 से 1809 ई० तक के अंग्रेज़-सिख संबंधों का विवरण दीजिए। (Give an account of Anglo-Sikh relations from 1800 to 1809.)
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह सभी सिख रियासतों को अपने अधिकार में लेना चाहता था। इस उद्देश्य से उसने 1806 ई० और 1807 ई० में दो बार मालवा प्रदेश पर आक्रमण किए। उसने कई क्षेत्रों पर अधिकार कर लिया और कई शासकों से नज़राना प्राप्त किया। इन आक्रमणों से घबरा कर मालवा रियासतों के सरदारों ने अंग्रेजों से सहायता की याचना की। क्योंकि इस समय नेपोलियन के भारत पर आक्रमण का खतरा बढ़ गया था इसलिए अंग्रेज़ मालवा के सरदारों को सहयोग देने की अपेक्षा महाराजा रणजीत सिंह से संधि करना चाहते थे। परंतु सितंबर, 1808 ई० में रणजीत सिंह तथा चार्ल्स मैटकाफ के मध्य वार्ता असफल रही। रणजीत सिंह ने दिसंबर, 1808 ई० में मालवा पर तीसरी बार आक्रमण करके कुछ क्षेत्रों पर अधिकार कर लिया। इसी मध्य नेपोलियन का भारत पर हमले का ख़तरा टल गया। अब अंग्रेजों ने रणजीत सिंह से अपनी शर्ते मनवाने के लिए युद्ध की तैयारियाँ आरंभ कर दी। परिणामस्वरूप 25 अप्रैल, 1809 ई० को रणजीत सिंह तथा अंग्रेजों के मध्य अमृतसर की संधि पर हस्ताक्षर हो गए।

प्रश्न 3.
महाराजा रणजीत सिंह तथा अंग्रेजों के बीच हुई अमृतसर की संधि की महत्ता बताएँ।
(Describe the significance of the Treaty of Amritsar signed between Ranjit Singh and the English.)
अथवा
अमृतसर की संधि ( 1809) का ऐतिहासिक महत्त्व क्या था ? (P.S.E.B. Mar. 2017, Sept. 17) (Describe the historical significance of the Treaty of Amritsar.)
अथवा
अमृतसर संधि की शर्ते एवं महत्त्व लिखें। (Write the main clauses and importance of Amritsar Treaty.)
अथवा
महाराजा रणजीत सिंह एवं अंग्रेजों के बीच हुई अमृतसर की संधि की मुख्य शर्तों एवं महत्त्व के बारे में बताएँ।
(Describe the main clauses and importance of Treaty of Amritsar between Maharaja Ranjit Singh and the English.)
उत्तर-
25 अप्रैल, 1809.ई० को महाराजा रणजीत सिंह तथा अंग्रेज़ों के मध्य अमृतसर में संधि हई थी। ऐतिहासिक दृष्टि से यह संधि बहुत महत्त्वपूर्ण थी। इस संधि द्वारा रणजीत सिंह ने सतलुज दरिया को राज्य की पूर्वी सीमा मान लिया। इस कारण महाराजा रणजीत सिंह का सभी सिख रियासतों का महाराजा बनने का स्वप्न सदा के लिए टूट गया। इस कारण रणजीत सिंह को न केवल राजनीतिक, अपितु आर्थिक क्षति भी हुई, परंतु यह संधि कुछ पक्षों से रणजीत सिंह के लिए लाभप्रद भी सिद्ध हुई। वह अपने नव-निर्मित राज्य को अंग्रेजों की सुदृढ़ शक्ति से बचाने में सफल हो सका। उसे उत्तर-पश्चिम की ओर अपने राज्य की सीमा बढ़ाने का अवसर मिला। दूसरी ओर. यह संधि अंग्रेजों के लिए बड़ी लाभदायक सिद्ध हुई। इस कारण अंग्रेज़ों का सतलुज नदी तक प्रभाव बढ़ गया। पंजाब की ओर से निश्चित हो जाने से अंग्रेज़ भारत के अन्य राज्यों में अपनी स्थिति सुदृढ़ कर सके। इस संधि ने अंग्रेज़ों की प्रतिष्ठा में पर्याप्त वृद्धि की।

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प्रश्न 4.
सिंध के प्रश्न पर महाराजा रणजीत सिंह तथा अंग्रेजों के मध्य तनाव क्यों उत्पन्न हो गया ?
(Why was tension created between Maharaja Ranjit Singh and the English over Sind tangle ?)
उत्तर-
सिंध का क्षेत्र व्यापारिक तथा भौगोलिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण था। इसलिए महाराजा रणजीत सिंह तथा अंग्रेज़ दोनों इस क्षेत्र पर अधिकार करना चाहते थे। 1831 ई० में अंग्रेजों ने अलैग्जेंडर बर्नज को सिंध के संबंध में जानकारी प्राप्त करने के लिए भेजा। महाराजा रणजीत सिंह को कोई संदेह न हो, इसलिए उसे रोपड़ में गवर्नरजनरल लार्ड विलियम बैंटिंक से भेंट के लिए निमंत्रण भेजा। यह भेंट 26 अक्तूबर, 1831 ई० को हुई। अंग्रेजों ने बड़ी चालाकी से रणजीत सिंह को बातों में लगाए रखा। दूसरी ओर अंग्रेजों ने सिंध के साथ संधि करने के लिए कर्नल पोटिंगर को भेजा। वह 1832 ई० में सिंध के साथ एक व्यापारिक संधि करने में सफल रहा। इस कारण यह संधि अंग्रेजों के लिए बड़ी लाभदायक सिद्ध हुई। इस कारण अंग्रेजों तथा रणजीत सिंह के मध्य पुनः तनाव उत्पन्न हो गया। 1838 ई० में अंग्रेजों ने सिंध के अमीरों के साथ एक अन्य संधि कर ली। इस कारण सिंध पूर्णतया अंग्रेज़ों के प्रभाव में आ गया। महाराजा रणजीत सिंह यह सहन करने को तैयार न था किंतु उसने अंग्रेजों के विरुद्ध कोई कदम उठाने का साहस न किया।

प्रश्न 5.
फिरोजपुर के प्रश्न पर महाराजा रणजीत सिंह तथा अंग्रेज़ों के मध्य तनाव क्यों उत्पन्न हो गया?
(Why was tension created between Maharaja Ranjit Singh and the English over Ferozepur tangle ?)
उत्तर-
अंग्रेज़ फिरोज़पुर जैसे महत्त्वपूर्ण नगर को अपने अधिकार में लेना चाहते थे। यह नगर लाहौर से केवल 40 मील की दूरी पर स्थित था। यहाँ से अंग्रेज़ रणजीत सिंह के राज्य की गतिविधियों के संबंध में काफ़ी जानकारी प्राप्त कर सकते थे। इसके अतिरिक्त पंजाब में घेराव डालने के लिए फिरोज़पुर पर अधिकार करना आवश्यक था। यद्यपि अंग्रेज़ फिरोज़पुर की ओर काफ़ी समय से ललचाई दृष्टि से देख रहे थे, किंतु वे इस पर अपने अधिकार को स्थगित करते हुए आ रहे थे ताकि रणजीत सिंह उनसे नाराज़ न हो जाए। इसी कारण अंग्रेज़ 1835 ई० तक फिरोजपुर पर रणजीत सिंह का अधिकार मानते आए थे, किंतु अब स्थिति परिवर्तित हो चुकी थी। अंग्रेज़ों को रणजीत सिंह की मैत्री की कोई विशेष आवश्यकता नहीं थी। इसलिए 1835 ई० में अंग्रेजों ने बलपूर्वक फिरोजपुर पर अधिकार कर लिया। 1838 ई० में अंग्रेजों ने यहाँ एक शक्तिशाली सैनिक छावनी बना ली। रणजीत सिंह ने अंग्रेज़ों द्वारा फिरोज़पुर पर अधिकार करने तथा यहाँ छावनी बनाए जाने के कारण चाहे बहुत क्रोध किया, किंतु अंग्रेजों ने इसकी कोई परवाह न की। महाराजा को मात्र क्रोध का चूंट पीकर रह जाना पड़ा।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 18 ऐंग्लो-सिख संबंध : 1800-1839

प्रश्न 6.
त्रिपक्षीय (तीन-पक्षीय) संधि पर नोट लिखें। (Write a brief note on Tri-partite Treaty and its significance.)
अथवा
तीन पक्षीय संधि के बारे में चर्चा करें।
(Discuss about Tri-partite Treaty.)
अथवा
त्रिपक्षीय संधि एवं उसके महत्त्व के बारे में आप क्या जानते हैं ?
(Write a note about Tri-partite Treaty and its importance.)
उत्तर-
1837 ई० में रूस बड़ी तेजी से भारत की ओर बढ़ रहा था। इस आक्रमण को रोकने के लिए अंग्रेजों ने अफ़गानिस्तान के शासक दोस्त मुहम्मद खाँ से मित्रता करनी चाही, परंतु दोस्त मुहम्मद खाँ यह चाहता था कि अंग्रेज़ पेशावर का क्षेत्र रणजीत सिंह से लेकर उसे दे दें। अंग्रेज़ ऐसे अवसर पर रणजीत सिंह से अपने संबंध बिगाड़ना नहीं चाहते थे। इसलिए उन्होंने अफ़गानिस्तान के भूतपूर्व शासक शाह शुजा से वार्ता आरंभ कर दी। 26 जून, 1838 ई० को अंग्रेजों, शाह शुजा तथा महाराजा रणजीत सिंह के मध्य एक त्रिपक्षीय संधि पर हस्ताक्षर किए गए। इस संधि के अनुसार शाह शुजा को अफ़गानिस्तान के सिंहासन पर बैठाने का निर्णय किया गया। शाह शुजा ने रणजीत सिंह द्वारा विजित किए समस्त अफ़गान क्षेत्रों पर उसका अधिकार मान लिया। महाराजा रणजीत सिंह को कहा गया कि वह शाह शुजा को 5,000 सैनिक सहायता के लिए भेजे। इसके बदले शाह शुजा रणजीत सिंह को 2 लाख रुपये देगा। महाराजा रणजीत सिंह इस संधि पर हस्ताक्षर करने को तैयार न था। किंतु अंग्रेजों ने उसे ऐसा करने पर बाध्य कर दिया। इस संधि ने महाराजा रणजीत सिंह की सिंध तथा शिकारपुर पर अधिकार करने की सभी इच्छाओं पर तुषारापात कर दिया।

प्रश्न 7.
1809 से 1839 ई० तक के अंग्रेज़-सिख संबंधों का विवरण दीजिए। (Give an account of Anglo-Sikh relations from 1809 to 1839.)
उत्तर-
1809 ई० में महाराजा रणजीत सिंह एवं अंग्रेजों के मध्य अमृतसर की प्रसिद्ध संधि हुई। यह संधि महाराजा रणजीत सिंह की अपेक्षा अंग्रेजों के लिए अधिक लाभकारी सिद्ध हुई। इस संधि के कारण यद्यपि महाराजा रणजीत सिंह का सभी सिख रियासतों का महाराजा बनने का स्वप्न पूरा न हो सका, किंतु उसने खालसा राज्य को नष्ट होने से बचा लिया। 1809 ई० से 1830 ई० तक दोनों शक्तियों के मध्य कभी मित्रता स्थापित हो जाती तथा कभी उनमें तनाव स्थापित हो जाता। 1830 से 1839 ई० में दोनों शक्तियों के संबंधों में आपसी तनाव अधिक बढ़ गया। इसका कारण यह था कि अंग्रेजों ने सिंध, शिकारपुर तथा फिरोजपुर पर अकारण ही कब्जा कर लिया था। इसके अतिरिक्त अंग्रेजों ने महाराजा रणजीत सिंह को 1838 ई० में त्रिपक्षीय संधि पर हस्ताक्षर करने के लिए बाध्य किया। इन कारणों से महाराजा रणजीत सिंह ने अपने को बहुत अपमानित महसूस किया। परिणामस्वरूप उसने इस अपमान का बदला लेने के लिए अंग्रेजों के विरुद्ध कोई पग उठाने का निर्णय किया। दुर्भाग्यवश 1839 ई० में महाराजा रणजीत सिंह की मृत्यु हो गई।

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प्रश्न 8.
रणजीत सिंह के अंग्रेजों के साथ संबंधों के स्वरूप का वर्णन करें। (Discuss the nature of Ranjit Singh’s relation with the British.)
अथवा
महाराजा रणजीत सिंह की अंग्रेजों के सामने झुकने की नीति के बारे में अपने विचार लिखो।’ (Comment on Maharaja Ranjit Singh’s policy of yielding towards the British.)
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह ने सदैव अंग्रेजों के समक्ष झुकने की नीति अपनाई। 1809 ई० में अंग्रेजों ने उसे अमृतसर की संधि करने के लिए बाध्य किया। इससे महाराजा रणजीत सिंह की समस्त सिखों का महाराजा बनने की आशाएँ धूल में मिल गईं। 1822 ई० में अंग्रेजों ने सदा कौर के कहने पर रणजीत सिंह की सेनाओं से वदनी खाली करवा लिया। 1832 ई० में अंग्रेज़ों ने रणजीत सिंह को धोखे में रख कर सिंध के अमीरों से एक व्यापारिक संधि कर ली। इस संबंधी जब महाराजा रणजीत सिंह को ज्ञात हुआ तो वह केवल छटपटा कर रह गया। 1835 ई० में अंग्रेजों ने महाराजा रणजीत सिंह को शिकारपुर खाली करने के लिए विवश किया। इसी वर्ष अंग्रेजों ने फिरोजपुर पर अधिकार कर महाराजा रणजीत सिंह की शक्ति को एक और चुनौती दी। महाराजा केवल गुस्से के चूंट पी कर रह गया। अंग्रेज़ों ने रणजीत सिंह से 26 जून, 1838 ई० को त्रिपक्षीय समझौते पर बलपूर्वक हस्ताक्षर करवाए। ये घटनाएँ इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण थीं कि महाराजा रणजीत सिंह सदा अंग्रेजों के आगे झुकता रहा।

Source Based Questions

नोट-निम्नलिखित अनुच्छेदों को ध्यानपूर्वक पढ़िए और उनके अंत में पूछे गए प्रश्नों का उत्तर दीजिए।

1
महाराजा रणजीत सिंह सभी सिख रियासतों को अपने अधिकार में लेना चाहता था। इस उद्देश्य से उसने 1806 ई० और 1807 ई० में दो बार मालवा प्रदेश पर आक्रमण किए। उसने कई क्षेत्रों पर अधिकार कर लिया और कई शासकों से नज़राना प्राप्त किया। इन आक्रमणों से घबरा कर मालवा रियासतों के सरदारो ने अंग्रेजों से सहायता की याचना की। क्योंकि इस समय नेपोलियन के भारत पर आक्रमण का खतरा बढ़ गया था इसलिए अंग्रेज़ मालवा के सरदारों को सहयोग देने की अपेक्षा महाराजा रणजीत सिंह से संधि करना चाहते थे। परंतु सितंबर, 1808 ई० में रणजीत सिंह तथा चार्ल्स मैटकाफ के मध्य वार्ता असफल रही। रणजीत सिंह ने दिसंबर, 1808 ई० में मालवा पर तीसरी बार आक्रमण करके कुछ क्षेत्रों पर अधिकार कर लिया। इसी मध्य नेपोलियन का भारत पर हमले का खतरा टल गया। अब अंग्रेजों ने रणजीत सिंह से अपनी शर्ते मनवाने के लिए युद्ध की तैयारियाँ आरंभ कर दीं। परिणामस्वरूप 25 अप्रैल, 1809 ई० को रणजीत सिंह तथा अंग्रेजों के मध्य अमृतसर की संधि पर हस्ताक्षर हो गए।

  1. महाराजा रणजीत सिंह ने मालवा पर प्रथम बार आक्रमण कब किया ?
    • 1805 ई०
    • 1806 ई०
    • 1807 ई०
    • 1808 ई०।
  2. महाराजा रणजीत सिंह ने मालवा पर आक्रमण क्यों किया ?
  3. नज़राना से क्या भाव है ?
  4. मालवा रियासतों के सरदारों ने अंग्रेजों से सहायता की माँग क्यों की ?
  5. महाराजा रणजीत सिंह तथा अंग्रेजों के मध्य अमृतसर की संधि कब हुई ?

उत्तर-

  1. 1806 ई०।
  2. इन आक्रमणों का उद्देश्य महाराजा रणजीत सिंह सभी सिख रियासतों को अपने अधीन लाना चाहता था।
  3. नज़राना से भाव है महाराजा को दिए जाने वाले उपहार।
  4. मालवा रियासतों के सरदारों ने अंग्रेजों से सहायता इसलिए मांगी थी क्योंकि उनको खतरा था कि महाराजा रणजीत सिंह उनकी रियासतों पर अधिकार कर लेगा।
  5. महाराजा रणजीत सिंह तथा अंग्रेजों के मध्य अमृतसर की संधि 25 अप्रैल, 1809 ई० को हुई।

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2
सिंध का प्रदेश व्यापारिक एवं भौगोलिक पक्ष से बहुत महत्त्वपूर्ण था। इसलिए महाराजा रणजीत सिंह तथा अंग्रेज़ दोनों इस क्षेत्र को अपने अधिकार में लेना चाहते थे। 1831 ई० में अंग्रेजों ने अलैग्जेंडर बर्नस को सिंध के संबंध में जानकारी प्राप्त करने के लिए भेजा। महाराजा रणजीत सिंह को कोई संदेह न हो, इसलिए उसको रोपड़ में गवर्नरजनरल लॉर्ड विलियम बैंटिंक के साथ एक मुलाकात के लिए निमंत्रण भेजा। यह मुलाकात 26 अक्तूबर, 1831 ई० को हुई। अंग्रेजों ने बहुत चालाकी के साथ रणजीत सिंह को बातों में लगाए रखा। दूसरी ओर अंग्रेजों ने सिंध के साथ संधि करने के लिए कर्नल पोटिजर को भेजा। वह 1832 ई० में सिंध के साथ एक व्यापारिक संधि करने में सफल हुआ। जब रणजीत सिंह को इस संधि के विषय में ज्ञात हुआ तो वह कई रातों तक सुख की नींद न सो पाया, किंतु उसने अंग्रेज़ों के इस पग के विरुद्ध एक भी शब्द बोलने का साहस न किया।

  1. महाराजा रणजीत सिंह सिंध पर अधिकार क्यों करना चाहता था ?
  2. अलैग्जेंडर बर्नस कौन था ?
  3. महाराजा रणजीत सिंह तथा लार्ड विलियम बैंटिंक के मध्य मुलाकात कब हुई ?
  4. महाराजा रणजीत सिंह तथा लार्ड विलियम बैंटिंक के मध्य मुलाकात कहाँ हुई थी ?
    • रोपड़ में
    • अमृतसर में
    • लाहौर में
    • दिल्ली में।
  5. अंग्रेज़ों तथा सिंध के मध्य एक व्यापारिक संधि करने में कौन सफल हुआ ?

उत्तर-

  1. महाराजा रणजीत सिंह सिंध पर अधिकार इसलिए करना चाहता था क्योंकि इसका भौगोलिक तथा व्यापारिक पक्ष से बहुत महत्त्व था।
  2. अलैग्जेंडर बर्नस एक अंग्रेज़ अधिकारी था जिसे अग्रेज़ों ने सिंध के बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिए भेजा था।
  3. महाराजा रणजीत सिंह तथा लार्ड विलियम बैंटिक के मध्य मुलाकात 26 अक्तूबर, 1831 ई० को हुई।
  4. रोपड़ में।
  5. अंग्रेजों तथा सिंध के मध्य एक व्यापारिक संधि करने में कर्नल पोटिजर सफल हुआ।

3
अंग्रेज़ फिरोज़पुर जैसे महत्त्वपूर्ण नगर को अपने अधिकार में लेना चाहते थे। यह नगर लाहौर से केवल 40 मील की दूरी पर स्थित था। यहाँ से अंग्रेज़ रणजीत सिंह के राज्य की गतिविधियों के संबंध में काफ़ी जानकारी प्राप्त कर सकते थे। इसके अतिरिक्त पंजाब में घेराव डालने के लिए फिरोज़पुर पर अधिकार करना आवश्यक था। यद्यपि अंग्रेज़ फिरोज़पुर की ओर काफ़ी समय से ललचाई दृष्टि से देख रहे थे, किंतु वे इस पर अपने अधिकार को स्थगित करते हुए आ रहे थे ताकि रणजीत सिंह उनसे नाराज़ न हो जाए। इसी कारण अंग्रेज़ 1835 ई० तक फिरोजपुर पर रणजीत सिंह का अधिकार मानते आए थे, किंतु अब स्थिति परिवर्तित हो चुकी थी। अंग्रेजों को रणजीत सिंह की मैत्री की कोई विशेष आवश्यकता नहीं थी। इसलिए 1835 ई० में अंग्रेजों ने बलपूर्वक फिरोजपुर पर अधिकार कर लिया। 1838 ई० में अंग्रेजों ने यहाँ एक शक्तिशाली सैनिक छावनी बना ली। रणजीत सिंह ने अंग्रेजों द्वारा फिरोज़पुर पर अधिकार करने तथा यहाँ छावनी बनाए जाने के कारण चाहे बहुत क्रोध किया, किंतु अंग्रेजों ने इसकी कोई परवाह न की।

  1. अंग्रेज़ फिरोजपुर पर क्यों अधिकार करना चाहते थे ?
  2. पंजाब में घेराव डालने के लिए ……………. पर अधिकार करना आवश्यक था।
  3. अंग्रेजों ने फिरोजपुर पर कब अधिकार कर लिया था ?
  4. अंग्रेजों ने फिरोज़पुर में कब एक सैनिक छावनी स्थापित की थी ?
  5. क्या महाराजा रणजीत सिंह फिरोजपुर के प्रश्न पर अंग्रेजों के आगे झुक गया था ?

उत्तर-

  1. अंग्रेज़ फिरोजपुर पर अधिकार करके महाराजा रणजीत सिंह के राज्य की गतिविधियों को पास से देख सकते थे।
  2. फिरोजपुर।
  3. अंग्रेजों ने 1835 ई० में फिरोजपुर पर अधिकार कर लिया था।
  4. अंग्रेजों ने 1838 ई० में फिरोज़पुर में एक सैनिक छावनी स्थापित कर ली थी।
  5. महाराजा रणजीत सिंह फिरोज़पुर के प्रश्न पर निःसन्देह अंग्रेजों के आगे झुक गया था।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 18 ऐंग्लो-सिख संबंध : 1800-1839

ऐंग्लो-सिख संबंध : 1800-1839 PSEB 12th Class History Notes

  • प्रथम चरण (First Stage)-महाराजा रणजीत सिंह और अंग्रेजों के मध्य संबंधों का प्रथम चरण 1800 से 1809 ई० तक चला-1800 ई० में अंग्रेजों ने यूसुफ अली के अधीन एक सद्भावना मिशन रणजीत सिंह के दरबार में भेजा-1805 में मराठा सरदार जसवंत राव होल्कर ने महाराजा से अंग्रेजों के विरुद्ध सहायता माँगी परंतु महाराजा ने इंकार कर दिया–प्रसन्न होकर अंग्रेजों ने महाराजा रणजीत सिंह के साथ 1 जनवरी, 1806 ई० को लाहौर की संधि की-महाराजा रणजीत सिंह की बढ़ती हुई शक्ति को रोकने के लिए अंग्रेजों ने चार्ल्स मैटकॉफ को 1808 ई० में बातचीत के लिए भेजा-बातचीत असफल रहने पर दोनों ओर से युद्ध की तैयारियाँ आरंभ हो गईं-अंतिम क्षणों में महाराजा अंग्रेज़ों के साथ संधि करने के लिए तैयार हो गया।
  • अमतृसर की संधि (Treaty of Amritsar)-अमृतसर की संधि महाराजा रणजीत सिंह तथा अंग्रेजों के मध्य 25 अप्रैल, 1809 ई० को हुई-इस संधि के अनुसार सतलुज नदी को लाहौर दरबार और अंग्रेजों के मध्य सीमा रेखा मान लिया गया-इस संधि से महाराजा रणजीत सिंह का समस्त सिख कौम को एक झंडे तले एकत्रित करने का सपना धूल में मिल गया-परंतु इस संधि से उसने अपने राज्य को पूर्णत: नष्ट होने से बचा लिया-अमृतसर की संधि अंग्रेजों की बड़ी कूटनीतिक विजय थी।
  • द्वितीय चरण (Second Stage)-महाराजा रणजीत सिंह और अंग्रेजों के मध्य संबंधों का दूसरा चरण 1809 से 1839 ई० तक चला-1809 से 1812 ई० तक दोनों पक्षों के मध्य संदेह और अविश्वास का वातावरण बना रहा-1812 से 1821 ई० तक का काल दोनों पक्षों के मध्य शांतिपूर्ण सहअस्तित्व का काल रहा-1832 में अंग्रेज़ों तथा सिंध में हुई व्यापारिक संधि से महाराजा रणजीत सिंह को गहरा आघात लगा- अंग्रेज़ों द्वारा 1835 ई० में शिकारपुर और फ़िरोज़पुर पर अधिकार करने पर भी महाराजा रणजीत सिंह खामोश रहा-अंग्रेज़ों ने 26 जून, 1838 ई० को महाराजा को त्रिपक्षीय संधि पर हस्ताक्षर करने के लिए बाध्य किया- महाराजा रणजीत सिंह ने अंग्रेजों के प्रति जो नीति अपनाई उसकी कुछ इतिहासकारों ने निंदा की है जबकि कुछ ने प्रशंसा।

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