Punjab State Board PSEB 12th Class Hindi Book Solutions Chapter 9 सच्चिदानन्द हीरानन्द, वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ Textbook Exercise Questions and Answers.
PSEB Solutions for Class 12 Hindi Chapter 9 सच्चिदानन्द हीरानन्द, वात्स्यायन ‘अज्ञेय’
Hindi Guide for Class 12 PSEB सच्चिदानन्द हीरानन्द, वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ Textbook Questions and Answers
(क) लगभग 40 शब्दों में उत्तर दें:
प्रश्न 1.
‘साँप’ कविता का उद्देश्य स्पष्ट करें।
उत्तर:
प्रस्तुत कविता आधुनिक नागरिक सभ्यता पर एक तीखा व्यंग्य है। कवि के अनुसार आज का सभ्य नगर निवासी पूरी तरह आत्म केन्द्रित हो चुका है। स्वार्थपरता उस पर इस सीमा तक हावी हो चुकी है कि उसकी सहज मानवीयता पूरी तरह लुप्त हो गई है। यही नहीं उसे दूसरों को पीड़ित करने और यातना देने में विशेष सुख प्राप्त होने लगा है।
प्रश्न 2.
‘साँप’ कविता तथाकथित सभ्य व नगर समाज पर एक करारी चोट है। आप इससे कहाँ तक सहमत हैं ?
उत्तर:
हम कवि से पूर्णतः सहमत हैं क्योंकि नगर में रहने वाला तथाकथित सभ्य समाज आज इतना स्वार्थी और आत्म केन्द्रित हो गया है कि उसे किसी दुःख दर्द की परवाह ही नहीं। भौतिकवाद और नकली चेहरे का मुखौटा ओढ़े हुए वह भीतर से इतना विषैला हो गया है जितना जंगल में रहने वाला साँप वह दूसरों को उसमें से चोट पहुँचाने में जरा भी नहीं हिचकता।
प्रश्न 3.
‘जो पुल बनाएँगे’ कविता में कवि ने प्राचीन प्रतीकों के माध्यम से आज के युग सत्य को प्रकट किया है। स्पष्ट करें।
उत्तर:
कवि ने प्राचीन प्रतीकों नल-नील, श्रीराम और रावण के प्रतीकों द्वारा आज के इस सत्य का उद्घाटन किया है कि पुल बनाने वाले मजदूरों का नाम नहीं होता, नाम होता है इंजीनियर का। लड़ती सेना है नाम सरदार का होता है। वास्तविक निर्माता इतिहास के पन्नों में मिट कर रह जाता है। इतिहास में उसका कोई उल्लेख नहीं होता। नींव की ईंट की भूमिका को नज़रअंदाज कर दिया जाता है और उस नींव पर खड़े भवन को याद किया जाता है। लोग ताजमहल को याद करते हैं उसे बनाने वाले मजदूरों, कारीगरों को नहीं, बस यही कहते हैं कि इसे शाहजहाँ ने बनवाया है।
प्रश्न 4.
‘साँप’ कविता का केन्द्रीय भाव लिखें।
उत्तर:
प्रस्तुत कविता में आधुनिक सभ्यता से ध्वस्त होते हुए मानव मूल्यों पर खेद व्यक्त किया गया है। आधुनिक सभ्यता में व्यक्ति स्वार्थी हो गया है जिसके कारण वह जंगली साँप की तरह एक-दूसरे को काटने और निगल जाने पर उतारू हो गया है। कवि के अनुसार इस प्रवृत्ति का आधार वर्तमान पूँजी व्यवस्था है और शोषण उसे सुरक्षित रखता है।
प्रश्न 5.
‘जो पुल बनाएँगे’ कविता का भाव अपने शब्दों में लिखो।
उत्तर:
प्रस्तुत कविता में इतिहास के एक सत्य का उद्घाटन किया है कि इतिहास का वास्तविक निर्माता अनाम ही रह जाता है। नींव की ईंट की भूमिका को इतिहास नज़रअन्दाज कर देता है। ‘लड़े फौज नाम हो सरदार का’ वाली बात हो जाती
(ख) सप्रसंग व्याख्या करें:
प्रश्न 6.
साँप ! तुम सभ्य तो हुए नहीं……विष कहाँ पाया ?”
उत्तर:
कवि साँप को सम्बोधित करता हुआ कहता है कि तुम तो जंगली हो अर्थात् जंगलों में रहने वाले प्राणी हो अतः तुम अभी तक अपने को सभ्य नहीं कह सकते क्योंकि तुम्हें नगरों में बसना नहीं आया और नगरों में बसने वाले ही अपने आप को सभ्य कहलाते हैं। कवि के कहने का तात्पर्य यह है आधुनिक सभ्यता और संस्कृति के केन्द्र नगर में साँप पूरी तरह सभ्य नहीं हो सका अर्थात् साँप ने अभी तक नागरिक सभ्यता को स्वीकार नहीं किया। .. कवि साँप से पूछता है तुम सभ्य भी नहीं हुए, नगरों में बसना भी तुम्हें नहीं आया। फिर तुमने विष कहाँ से पाया है और कहाँ से दूसरों को काटने की कला सीखी ? क्योंकि ये गुण तो सभ्य कहलाने वाले शहरियों में हैं। तात्पर्य यह है कि नागरिक सभ्यता को स्वीकार किये बिना उसने कैसे शहरी जीवन की पूंजीवादी शोषण की प्रवृत्ति को पहचान लिया।
प्रश्न 7.
जो पुल बनाएँगे……..बन्दर कहलाएँगे।
उत्तर:
कवि कहते हैं कि जो लोग पुल बनाएँगे वे अवश्य ही पीछे रह जाएँगे। सेनाएँ उस पुल से पार हो जाएँगी और रावण मारे जाएँगे तथा श्रीराम विजयी होंगे। परन्तु पुल का निर्माण करने वाले नल और नील इतिहास में बन्दर ही कहलाएँगे। कवि का संकेत रामेश्वरम् में समुद्र पर बनाए गए पुल की ओर है जिसको पार कर श्रीराम की सेना ने रावण पर विजय प्राप्त की। किन्तु इतिहास में पुल निर्माता अनाम ही रह गए।
PSEB 12th Class Hindi Guide सच्चिदानन्द हीरानन्द, वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ Additional Questions and Answers
अति लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
अज्ञेय जी का जन्म कब और कहाँ हुआ था?
उत्तर:
7 मार्च, सन् 1911 ई० को बिहार के जिला देवरिया के ‘कसया’ में।
प्रश्न 2.
अज्ञेय जी का देहावसान कब हुआ था?
उत्तर:
4 अप्रैल, सन् 1987 में।
प्रश्न 3.
अज्ञेय का पूरा नाम लिखिए।
उत्तर:
सच्चिदानन्द हीरानंन्द वात्स्यायन ‘अज्ञेय’।
प्रश्न 4.
अज्ञेय के द्वारा रचित चार रचनाओं के नाम लिखिए।
उत्तर:
कितनी नावों में कितनी बार, हरी घास पर क्षणभर, बावरा अहेरी, पूर्वा।
प्रश्न 5.
अज्ञेय के दो उपन्यासों के नाम लिखिए।
उत्तर:
नदी के द्वीप, शेखर एक जीवनी।
प्रश्न 6.
‘साँप’ कविता कैसी है?
उत्तर:
प्रयोगवादी-छोटी कविता।
प्रश्न 7.
‘साँप’ कविता की दो विशेषताएं लिखिए।
उत्तर:
प्रतीकात्मक भाषा, व्यंग्यात्मक शैली।
प्रश्न 8.
कवि ने साँप के प्रतीक से क्या व्यक्त करने की कोशिश की है?
उत्तर:
आधुनिक सभ्यता से ध्वस्त होते हुए मानव-मूल्यों पर खेद की अभिव्यक्ति।
प्रश्न 9.
कवि ने व्यंग्य से किसे पहचानने की तरफ संकेत किया है?
उत्तर:
कवि ने शहरी जीवन की पूँजीवादी शोषण प्रवृत्ति को पहचानने की तरफ संकेत किया है।
प्रश्न 10.
अपने आप को सभ्य कौन कहलाना चाहता है?
उत्तर:
नगरवासी।
प्रश्न 11.
पूर्ण रूप से आत्मकेंद्रित कौन हो चुके हैं ?
उत्तर:
स्वार्थ भावों से भरे हुए नगरवासी।
प्रश्न 12.
कवि ने ‘साँप’ कविता में किस शैली का प्रयोग किया है?
उत्तर:
व्यंग्यात्मक शैली।
प्रश्न 13.
‘जो पुल बनायेंगे’ के रचयिता कौन हैं?
उत्तर:
अज्ञेय जी।
प्रश्न 14.
कवि ने ‘जो पुल बनायेंगे’ कविता में किन के प्रति अपने हृदय की पीड़ा को व्यक्त किया है?
उत्तर:
मज़दूरों और शोषितों के प्रति।
वाक्य पूरे कीजिए
प्रश्न 15.
तब कैसे सीखा डसना…………
उत्तर:
विष कहां पाया?
प्रश्न 16.
सेनाएं हो जाएंगी पार………….
उत्तर:
मारे जायेंगे रावन।
प्रश्न 17.
जो निर्माता रहे………….
उत्तर:
इतिहास में बंदर कहलायेंगे।]
हाँ-नहीं में उत्तर दीजिए
प्रश्न 18.
साँप ने डसना और विष प्राप्त करना सीख लिया है।
उत्तर:
हाँ।
प्रश्न 19.
पुल बनाने वाले अवश्य ही पीछे रह जाएंगे।
उत्तर:
हाँ।
बोर्ड परीक्षा में पूछे गए प्रश्न
प्रश्न 1.
साँप कविता के कवि का नाम लिखें।
उत्तर:
सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’।
प्रश्न 2.
कवि अज्ञेय का पूरा नाम क्या है ?
उत्तर:
सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’।
बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर
1. अज्ञेय को ‘कितनी नावों में कितनी बार’ कविता पर पुरस्कार मिला ?
(क) ज्ञानपीठ
(ख) साहित्य अकादमी
(ग) पद्मश्री
(घ) पद्मभूषण।
उत्तर:
(क) ज्ञानपीठ
2. अज्ञेय किस काल के कवि माने जाते हैं ?
(क) प्रयोगवाद के
(ख) प्रगतिवाद के
(ग) छायावाद के
(घ) निराशावाद के।
उत्तर:
(क) प्रयोगवाद के
3. ‘सांप’ किस भाषा पर आधारित कविता है ?
(क) आशावाद
(ख) निराशावाद
(ग) व्यंग्य
(घ) हास्य।
उत्तर:
(ग) व्यंग्य
4. अज्ञेय को किसका प्रवर्तक कवि माना जाता है ?
(क) प्रगतिवाद का
(ख) प्रयोगवाद का
(ग) तार सप्तक का
(घ) छायावाद का।
उत्तर:
(ग) तार सप्तक का
5. ‘नदी के द्वीप’ किस विधा की रचना है ?
(क) काव्य
(ख) गद्य
(ग) उपन्यास
(घ) कहानी।
उत्तर:
(ग) उपन्यास
सच्चिदानन्द हीरानन्द, वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ सप्रसंग व्याख्या
साँप
साँप !
तुम सभ्य तो हुए नहीं
नगर में बसना
भी तुम्हें नहीं आया
एक बात पूछू-(उत्तर दोगे?)
तब कैसे सीखा डसना
विष कहाँ पाया?
प्रसंग:
‘साँप’ कविता प्रयोगवादी कविता के प्रवर्तक अज्ञेय जी की एक छोटी कविता है जो उनके काव्य संग्रह ‘इन्द्र धनुष रौंदे हुए’ में संकलित है। इस कविता में अज्ञेय जी ने आधुनिक सभ्यता से ध्वस्त होते हुए मानव मूल्यों पर खेद व्यक्त किया है। शहरी जीवन में आधुनिकता की विकृति सभ्यता के नाम पर व्यक्ति को अकेला छोड़ती हुई, पछाड़ती हुई तेजी से फैल रही है। आज का समाज भी उसी को नवीन संस्कृति मान कर प्राचीन संस्कारों, मूल्यों और आदर्शों को नकार रहा है।
साँप का प्रतीक लेकर नये व्यक्ति की व्याख्या में अज्ञेय जी ने आधुनिक नागरिक सभ्यता की प्रवृत्ति को स्पष्ट किया है जिसका आधार पूँजीवादी व्यवस्था है और शोषण उसे सुरक्षित रखने का आधार।
व्याख्या:
कवि साँप को सम्बोधित करता हुआ कहता है कि तुम तो जंगली हो अर्थात् जंगलों में रहने वाले प्राणी हो अतः तुम अभी तक अपने को सभ्य नहीं कह सकते क्योंकि तुम्हें नगरों में बसना नहीं आया और नगरों में बसने वाले ही अपने आप को सभ्य कहलाते हैं। कवि के कहने का तात्पर्य यह है आधुनिक सभ्यता और संस्कृति के केन्द्र नगर में साँप पूरी तरह सभ्य नहीं हो सका अर्थात् साँप ने अभी तक नागरिक सभ्यता को स्वीकार नहीं किया। .. कवि साँप से पूछता है तुम सभ्य भी नहीं हुए, नगरों में बसना भी तुम्हें नहीं आया। फिर तुमने विष कहाँ से पाया है और कहाँ से दूसरों को काटने की कला सीखी ? क्योंकि ये गुण तो सभ्य कहलाने वाले शहरियों में हैं। तात्पर्य यह है कि नागरिक सभ्यता को स्वीकार किये बिना उसने कैसे शहरी जीवन की पूंजीवादी शोषण की प्रवृत्ति को पहचान लिया।
विशेष:
- कवि के कहने का भाव यह है कि अपने आप को सभ्य कहलाने वाला नगर निवासी पूरी तरह आत्म केन्द्रित हो चुका है। स्वार्थपरता उस पर इस सीमा तक हावी हो गयी है कि उसकी सहज मानवीयता पूर्ण रूप से लुप्त हो गई है। यही नहीं उसे तो दूसरों को पीड़ित करने और यातना देने में विशेष सुख प्राप्त होता है। इस तरह कवि ने आधुनिक सभ्यता के ध्वस्त होते हुए मानव मूल्यों पर खेद व्यक्त किया है।
- भाषा प्रतीकात्मक तथा भावपूर्ण है। शैली व्यंग्यात्मक है।
जो पुल बनायेंगे
जो पुल बनायेंगे
वे अनिवार्यतः
पीछे रह जायेंगे।
सेनाएं हो जायेंगी पार
मारे जायेंगे रावण
जयी होंगे राम,
जो निर्माता रहे,
इतिहास में
बन्दर कहलायेंगे।
कठिन शब्दों के अर्थ:
अनिवार्यतः = अवश्य ही, यकीनन। जयी = विजेता। निर्माता = बनाने वाले।
प्रसंग:
‘जो पुल बनायेंगे’ कविता प्रयोगवादी कवि अज्ञेय जी के काव्य संग्रह ‘पहले मैं सन्नाटा बुनता हूँ’ में संकलित है। प्रस्तुत कविता में कवि ने इतिहास के निर्माता अर्थात् नींव की ईंट के अनाम रह जाने की त्रासदी का उल्लेख किया है।
व्याख्या:
कवि कहते हैं कि जो लोग पुल बनाएँगे वे अवश्य ही पीछे रह जाएँगे। सेनाएँ उस पुल से पार हो जाएँगी और रावण मारे जाएँगे तथा श्रीराम विजयी होंगे। परन्तु पुल का निर्माण करने वाले नल और नील इतिहास में बन्दर ही कहलाएँगे। कवि का संकेत रामेश्वरम् में समुद्र पर बनाए गए पुल की ओर है जिसको पार कर श्रीराम की सेना ने रावण पर विजय प्राप्त की। किन्तु इतिहास में पुल निर्माता अनाम ही रह गए।
विशेष:
- आधुनिक युग की भी यही त्रासदी है कि नींव की ईंट अर्थात् इतिहास निर्माता अनाम ही रह जाता है। आधुनिक युग में पुल बनाने वाले मजदूरों का कहीं नाम नहीं होता, नाम होता है तो इंजीनियर का।
- भाषा प्रतीकात्मक तथा भावपूर्ण है।
सच्चिदानन्द हीरानन्द, वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ Summary
सच्चिदानन्द हीरानन्द, वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ जीवन परिचय
‘अज्ञेय’ जी का जीवन परिचय दीजिए।
करतारपुर के भणोत सारस्वत ब्राह्मण परिवार से सम्बन्ध रखने वाले सच्चिदानंद का जन्म 7 मार्च, सन् 1911 ई० को बिहार के जिला देवरिया के ‘कसया’ नामक स्थान पर हुआ। वहाँ इनके पिता हीरानन्द शास्त्री पुरातत्व विभाग में काम करते थे। पिता के साथ इन्होंने अनेक प्रदेशों का भ्रमण किया। इन्होंने सन् 1925 ई० में पंजाब विश्वविद्यालय से मैट्रिक पास करके यहीं से सन् 1929 में बी० एससी० की परीक्षा पास की। एम० ए० अंग्रेज़ी में दाखिला लिया किन्तु स्वतन्त्रता युद्ध में कूद पड़ने के कारण पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी और क्रान्तिकारी साथियों के साथ पकड़े गए।
इस अवधि में ये चार वर्ष तक जेल में भी रहे और यहीं से आपने अपना साहित्यिक जीवन आरम्भ किया। अपने जीवन में आपने अनेक पत्र-पत्रिकाओं का सम्पादन किया और अनेक नौकरियाँ की और छोड़ी तथा देश-विदेश की कई यात्राएँ कीं।
इन्हें इनकी काव्यकृति ‘आंगन के पार. द्वार’ पर साहित्य अकादमी पुरस्कार, ‘कितनी नावों में कितनी बार’ भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार तथा इंटरनेशनल पोएट्री एवार्ड से सम्मानित किया गया था। 4 अप्रैल, सन् 1987 को अज्ञेय जी का निधन हो गया। इनकी प्रमुख काव्य रचनाएँ, हरी घास पर क्षणभर, बाबरा अहेरी, पूर्वा इन्द्रधनुष रौंदे हुए तारसप्तक हैं। शेखर एक जीवनी तथा नदी के द्वीप उनके प्रमुख उपन्यास हैं।