Punjab State Board PSEB 12th Class Economics Book Solutions Chapter 8 कुल मांग Textbook Exercise Questions, and Answers.
PSEB Solutions for Class 12 Economics Chapter 8 कुल मांग
PSEB 12th Class Economics कुल मांग Textbook Questions, and Answers
I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)
प्रश्न 1.
‘से’ के बाज़ार नियम की परिभाषा दो।
उत्तर-
जे०बी० से के अनुसार, “वस्तुओं की पूर्ति अपनी माँग स्वयं उत्पन्न कर लेती है।” (Supply creates its own demand.)
प्रश्न 2.
कुल माँग से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
एक वर्ष में एक देश में उपभोग निवेश, सरकारी व्यय तथा शुद्ध निर्यात के जोड़ को कुल माँग कहा जाता है।
प्रश्न 3.
कुल माँग के अंश बताएं।
उत्तर-
कुल माँग के अंश हैं-
- उपभोग व्यय
- निवेश
- सरकारी व्यय
- शुद्ध निर्यात (निर्यात-आयात)
(AD = C + I + G + X – H)
प्रश्न 4.
कुल माँग के किसी एक अंश को स्पष्ट करें।
उत्तर-
उपभोग व्यय-इसमें परिवारों के उपभोग के लिए की गई माँग को शामिल किया जाता है।
प्रश्न 5.
निवेश से क्या अभिप्राय है ?
अथवा
स्थिर पूँजी निर्माण से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
निवेश में पूँजीगत पदार्थ जैसे कि मशीनें, कारखाने इत्यादि को शामिल किया जाता है। निवेश को स्थिर पूँजी निर्माण भी कहते हैं।
प्रश्न 6.
कुल पूर्ति से क्या अभिप्राय है ?
अथवा
समष्टि अर्थशास्त्र में कुल पूर्ति का क्या उद्देश्य है ?
उत्तर-
कुल पूर्ति से अभिप्राय एक अर्थव्यवस्था में वस्तुओं तथा सेवाओं की मूल्य वृद्धि का योग होता है। (AS = C + S)
प्रश्न 7.
एक अर्थव्यवस्था में पारिवारिक उपभोग माँग किस बात पर निर्भर करती है ?
उत्तर–
पारिवारिक उपभोग माँग का स्तर परिवार की आय पर निर्भर करता है।
प्रश्न 8.
प्रभावी माँग से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
जिस बिन्दु पर कुल माँग वक्र, कुल पूर्ति वक्र को काटता है, उस बिन्दु को प्रभावी माँग का बिन्दु कहते हैं।
प्रश्न 9.
कुल पूर्ति का कोई एक अंश बताएं।
उत्तर-
बचत पूर्ति का एक अंश होता है।
प्रश्न 10.
नियोजित निवेश (Planned or Ex-ante) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
नियोजित निवेश का अर्थ उस निवेश से है जो देश के लोग निवेश करने की इच्छा करते हैं।
प्रश्न 11.
वास्तविक निवेश से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
वास्तविक निवेश (Actual or Ex-Post) वह निवेश है जोकि लोगों द्वारा एक निश्चित अवधि में किया जाता है।
प्रश्न 12.
क्या वास्तविक बचत और वास्तविक निवेश बराबर होते हैं ?
उत्तर-
वास्तविक बचत और वास्तविक निवेश सदैव बराबर होते हैं।
प्रश्न 13.
प्रायोजित और वास्तविक निवेश का अन्तर क्या होता है ?
उत्तर-
इसका अन्तर अप्रायोजित निवेश कहलाता है।
प्रश्न 14.
यदि एक अर्थव्यवस्था में निवेश, बचत से अधिक होती है तो राष्ट्रीय आय पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर-
राष्ट्रीय आय का स्तर बढ़ता है।
प्रश्न 15.
यदि वास्तविक बचत, वास्तविक निवेश से अधिक है तो राष्ट्रीय आय पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर-
राष्ट्रीय आय में कमी हो जाती है।
प्रश्न 16.
निवेश माँग फलन से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
ब्याज की दर और निवेश माँग के सम्बन्ध को निवेश माँग फलन कहते हैं।
प्रश्न 17.
निवेश की सीमान्त कुशलता (Marginal Efficiency of Investment) को परिभाषित करो। ‘
उत्तर-
एक नया पूँजी पदार्थ लगाने से जो ज़्यादा से ज्यादा आय होने की संभावना है उसको निवेश की सीमान्त कुशलता कहते हैं।
प्रश्न 18.
वास्तविक बचत तथा निवेश सदैव बराबर होते हैं। कैसे ?
उत्तर-
Y = C + S और Y = C + I
∴ C + S = C +I
S = I
प्रश्न 19.
पूर्ति अपनी माँग स्वयं पैदा कर लेती है किस अर्थशास्त्री का कथन है ?
(a) एडम स्मिथ
(b) मार्शल
(c) रोबिन्ज़
(d) जे० बी से।
उत्तर-
(d) जे० बी से।
प्रश्न 20.
जो निवेश एक देश के लोग करने की इच्छा रखते हैं उसको ……….. कहा जाता है।
(a) वास्तविक निवेश
(b) नियोजित निवेश
(c) सरकारी निवेश
(d) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(b) नियोजित निवेश।
प्रश्न 21.
जिस बिन्दु पर कुल माँग तथा कुल पूर्ति बराबर होते हैं उस बिन्दु को ………. का बिन्दु कहा जाता है।
(a) पूर्ण रोज़गार
(b) छुपी बेरोज़गारी
(c) कुल माँग
(d) प्रभावी माँग।
उत्तर-
(d) प्रभावी माँग।
प्रश्न 22.
वह निवेश जो एक देश के लोगों द्वारा निश्चित समय में किया जाता है उसको वास्तविक निवेश कहते हैं।
उत्तर-
सही।
प्रश्न 23.
नया निवेश करने से जो अधिक से अधिक आय होने की सम्भावना होती है उसको निवेश की सीमान्त कार्य कुशलता कहा जाता है।
उत्तर-
सही।
प्रश्न 24.
नया निवेश करने से जो अधिक से अधिक आय होने की सम्भावना होती है उसको निवेश की सीमान्त उत्पादकता कहा जाता है।
उत्तर-
सही।
प्रश्न 25.
पूर्ण रोज़गार की स्थिति में किसी किस्म की बेरोज़गारी नहीं होती।
उत्तर-
ग़लत।
प्रश्न 26.
कुल माँग = C + I
उत्तर-
ग़लत।
प्रश्न 27.
कुल पूर्ति = C + S
उत्तर-
सही।
प्रश्न 28.
नियोजित निवेश तथा वास्तविक निवेश का अन्तर अनियोजित निवेश होता है।
उत्तर-
सही।
प्रश्न 29.
यदि वास्तविक बचत, वास्तविक निवेश से अधिक हो तो राष्ट्रीय आय में वृद्धि होती है।
उत्तर-
ग़लत।
II. अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)
प्रश्न 1.
‘से’ के बाज़ार नियम की परिभाषा दो।
उत्तर-
जे० बी० ‘से’ ने 1803 में बाज़ार का नियम दिया, इसको ‘से’ का बाजार नियम कहा जाता है। इस नियम अनुसार, “वस्तुओं की पूर्ति अपनी मांग स्वयं उत्पन्न कर लेती है।” (Supply creates its own demand.) उनके अनुसार पूंजीगत अर्थव्यवस्था में कुल पूर्ति हमेशा कुल मांग के समान होती है।
प्रश्न 2.
कुल मांग के अर्थ बताओ।
उत्तर-
कुल मांग का अर्थ है एक वर्ष में एक देश में वस्तुओं तथा सेवाओं पर किया गया कुल व्यय। इसके मुख्य अंश हैं।
- उपभोग व्यय
- निवेश
- सरकारी व्यय
- शुद्ध निर्यात (निर्यात-आयात)।
यदि हम इन मदों को जोड़ कर लेते हैं। तो इसको कुल मांग कहा जाता है।
AD = C + I + G + X – M
प्रश्न 3.
कुल मांग के अंश बताओ। इन में से किसी एक-अंश की व्याख्या करो।
उत्तर-
कुल मांग के अंश हैं:-
- उपभोग व्यय
- निवेश
- सरकारी व्यय
- शुद्ध निर्यात।
उपभोग व्यय-इसमें परिवारों के उपभोग के लिए की गई मांग को स्पष्ट किया जाता है, जोकि परिवारों की आय पर निर्भर करती है। आय अधिक होने की स्थिति में उपभोग व्यय अधिक होता है।
प्रश्न 4.
निवेश से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
निवेश में पूंजीगत पदार्थ जैसे कि मशीनें, कारखाने, मकान इत्यादि को शामिल किया जाता है। इसको स्थिर पूंजी निर्माण (Fixed Capital Formation) भी कहते हैं। इसमें उत्पादकों के भण्डार में परिवर्तन को भी शामिल किया जाता है।
प्रश्न 5.
कुल पूर्ति से क्या अभिप्राय है ?
अथवा
समष्टि अर्थशास्त्र में कुल पूर्ति से क्या उद्देश्य है ?
उत्तर-
कुल पूर्ति से अभिप्राय एक अर्थव्यवस्था में वस्तुओं तथा सेवाओं की मूल्य वृद्धि का योग होता है। इसका अनुमान लगाने के लिए उपभोग तथा बचत का योग किया जाता है। इसको आय का सृजन भी कहा जाता है।
प्रश्न 6.
उपभोग फलन से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
उपभोग फलन एक सूची पत्र होता है, जिसमें आय के विभिन्न स्तर पर उपभोग की विभिन्न मात्राओं को प्रकट किया जाता है। इसलिए एक सूची पत्र जोकि अर्थव्यवस्था में आय के विभिन्न स्तर पर उपभोग के विभिन्न स्तरों को प्रकट करता है, उसको उपभोग फलन कहते हैं। इसको उपभोग प्रवृत्ति (Propensity to Consume) भी कहा जाता है।
C = f (Y)
प्रश्न 7.
सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति को परिभाषित करो।
उत्तर-
किसी अर्थव्यवस्था में जब आय में परिवर्तन होने से उपभोग में परिवर्तन होता है तो इनके अनुपात को सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति कहा जाता है। यदि आय 100 करोड़ से बढ़कर 110 करोड़ हो जाती है तथा उपभोग ₹ 60 करोड़ से 65 करोड़ हो जाता है तो आय में परिवर्तन (110-100) = ₹ 10 करोड़ है तथा उपभोग में परिवर्तन (65-60) = ₹ 5 करोड़ है।
प्रश्न 8.
औसत उपभोग प्रवृत्ति से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
कुल उपभोग तथा कुल आय के अनुपात को औसत उपभोग प्रवृत्ति कहा जाता है। उदाहरणस्वरूप राष्ट्रीय आय ₹ 100 करोड़ है तथा उपभोग पर 60 करोड़ व्यय किए जाते हैं तो
प्रश्न 9.
बचत फलन से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
आय के विभिन्न स्तर पर लोग कितने-कितने पैसे बचत करते हैं, उसके सूचीपत्र को बचत फलन अथवा बचत प्रवृत्ति कहा जाता है।
S = f (Y)
प्रश्न 10.
औसत बचत प्रवृत्ति से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
औसत बचत प्रवृत्ति किसी देश में आय के निश्चित स्तर पर कुल बचत तथा कुल आय का अनुपात होती है। यदि ₹ 100 करोड़ आय में से ₹ 20 करोड़ बचत की जाती है तो
प्रश्न 11.
सीमान्त बचत प्रवृत्ति से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
एक देश में जब आय में परिवर्तन होता है तो बचत में परिवर्तन हो जाता है। आय में परिवर्तन के कारण बचत में होने वाले परिवर्तन के अनुपात (Ratio) को सीमान्त बचत प्रवृत्ति कहा जाता है। यदि आय ₹ 100 करोड़ से बढ़कर ₹ 110 करोड़ हो जाती है तथा बचत ₹ 20 करोड़ से बढ़कर ₹ 21 करोड़ हो जाती है तो
प्रश्न 12.
एक अर्थव्यवस्था में सीमान्त बचत प्रवृत्ति कितनी होगी, यदि सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति 0.8 है ?,
उत्तर-
सीमान्त बचत प्रवृत्ति (MPS) तथा सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति (MPC) का योग इकाई के समान होता है।
MPC + MPS = 1
यदि MPC = 0.8 है तो MPS का माप निम्नलिखित अनुसार किया जा सकता है –
MPC + MPS = 1
0.8 + MPS = 1
MPS = 1-0.8
MPS = 0.2 Ans
प्रश्न 13.
यदि व्यय योग्य आय ₹ 1000 है तथा उपभोग व्यय ₹ 700 है तो औसत बचत प्रवृत्ति का माप करो।
उत्तर-
यदि व्यय योग्य आय ₹ 1000 है, जिसमें से ₹ 750 उपभोग व्यय हैं तो बचत 1000-750 = ₹ 250 होगी। औसत बचत प्रवृत्ति बचत पर राष्ट्रीय आय की अनुपात होती है, इसलिए
प्रश्न 14.
निवेश की सीमान्त कार्यकुशलता से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
ब्याज की दर के बिना शेष तत्त्वों के प्रभाव के कारण निवेश की एक अन्य इकाई को लगाने से जितनी उच्चतम प्राप्ति की दर होती है, जिसको देखकर निवेश किया जाता है, उस दर को निवेश की सीमान्त कार्य-कुशलता कहा जाता है।
प्रश्न 15.
एक अर्थव्यवस्था में सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति 0.65 है। सीमान्त बचत प्रवृत्ति ज्ञात कीजिए।
उत्तर-
दिया है : सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति (MPC) = 0.65
सीमान्त बचत प्रवृत्ति (MPS) = 1 – MPC
= 1 – 0.65
= 0. 35 उत्तर
प्रश्न 16.
एक अर्थव्यवस्था में सीमान्त बचत प्रवृत्ति 0.25 है तो सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति कितनी होगी।
उत्तर-
दिया है : सीमान्त बचत प्रवृत्ति (MPS) = 0.25
सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति (MPC) = 1- MPS
= 1 – 0.25
= 0.75 उत्तर
प्रश्न 17.
औसत उपभोग प्रवृत्ति और औसत बचत प्रवृत्ति में सम्बन्ध की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
औसत उपभोग प्रवृत्ति एक समय विशेष पर कुल आय और कुल उपभोग के बीच अनुपातिक सम्बन्ध को व्यक्त करती है जबकि औसत बचत प्रवृत्ति कुल आय और कुल बचत के बीच अनुपातिक सम्बन्ध को प्रकट करती है। इन दोनों का योग इकाई के बराबर होता है।
APC + APS = 1
III. लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)
प्रश्न 1.
कुल मांग से आपका क्या उद्देश्य है ?
अथवा
कुल मांग के अंश बताओ। किसी एक अंश की व्याख्या करो।
उत्तर-
किसी अर्थव्यवस्था में वस्तुओं तथा सेवाओं के लिए समूची मांग को कुल मांग कहा जाता है। (Aggregate demand is the total demand for goods and services in the economy.) कीमत स्तर के सम्बन्ध में कुल माँग ऋणात्मक ढलान वाली होती है। कुल माँग वह व्यय है, जोकि एक देश के लोग वस्तुओं तथा सेवाओं पर व्यय करते हैं। कुल माँग के अंश हैं। AD = C+I+ X – M
- उपभोग व्यय-इसमें परिवारों तथा सरकार के उपभोग व्यय को शामिल किया जाता है।
- निवेश व्यय-इसमें मशीनों, फैक्टरियों इत्यादि स्थाई निवेश तथा वर्ष सूची निवेश (Inventory Investment) को शामिल किया जाता है।
- सरकारी व्यय-सरकार के उपभोग व्यय को शामिल किया जाता है।
- शुद्ध निर्यात (X – M)-इसमें निर्यात-आयात का मूल्य जोड़ा जाता है। इस प्रकार एक अर्थव्यवस्था में वस्तुओं तथा सेवाओं पर किए गए कुल व्यय को जोड़कर कुल माँग का माप किया जाता है।
आय स्तर के सम्बन्ध में-कुल मांग वक्र आय के सम्बन्ध में बाएँ से दाएँ ऊपर को जाती रेखा होती है। रेखाचित्र 1 में कुल माँग वक्र बाएँ से दाएँ ऊपर को जाती रेखा है क्योंकि आय तथा माँग में प्रत्यक्ष सम्बन्ध होता है।
प्रश्न 2.
निवेश माँग फलन से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
किसी देश में ब्याज की दर तथा निवेश माँग में सम्बन्ध को निवेश माँग फलन कहा जाता है। निवेश मुख्य तौर पर दो तत्त्वों पर निर्भर करता है-
ब्याज की दर
पूँजी की सीमान्त उत्पादकता अथवा लाभ होने की सम्भावना।
- ब्याज की दर-ब्याज की दर तथा निवेश माँग का विपरीत सम्बन्ध होता है। जैसे ब्याज की दर घटती है तो निवेश माँग में वृद्धि होती है जैसे कि निवेश माँग सूची तथा रेखाचित्र 2 में दिखाया है।
- लाभ होने की सम्भावना-MEC दूसरा महत्त्वपूर्ण तत्त्व है, जोकि निवेश माँग को निर्धारण करता है, जब निवेश में वृद्धि होती है तो लाभ होने की सम्भावना (MEC) घटती जाती है। सन्तुलन उस बिन्दु पर होगा जहां ब्याज की दर तथा लाभ होने की सम्भावना समान हो जाएगी।
प्रश्न 3.
नियोजित निवेश तथा वास्तविक निवेश में अन्तर बताओ।
उत्तर-
नियोजित निवेश-किसी अवधि के आरम्भ में देश की फ़र्मों तथा नियोजन निर्माण अधिकारी द्वारा जितना निवेश करने की इच्छा (Desire) होती है, उसको नियोजित निवेश कहा जाता है। वास्तविक निवेश-वास्तविक निवेश वह निवेश है, जोकि नियोजित निवेश तथा अनियोजित निवेश के योग से प्राप्त होता है। इसको वास्तविक निवेश (Realised Investment) कहा जाता है।
नियोजित निवेश तथा वास्तविक निवेश में अन्तर-
नियोजित निवेश | वास्तविक निवेश |
1. नियोजित निवेश किसी अवधि के आरम्भ में निवेश करने की इच्छा होती है। | 1. वास्तविक निवेश किसी अवधि के अन्त में वास्तव में किए गए निवेश की मात्रा होती है। |
2. उत्पादन के स्तर अनुसार नियोजित निवेश, नियोजित बचतों के समान हो भी सकता है, परन्तु अनिवार्य नहीं कि समान हो। | 2. राष्ट्रीय आय के लेखे में वास्तविक निवेश, वास्तविक बचतों के हमेशा समान होता है। |
3. जैसे नियोजित निवेश तथा नियोजित बचत समान होते हैं, इस बिन्दु पर आय का स्तर निर्धारण हो जाता है। | 3. वास्तविक निवेश का आय स्तर के सन्तुलन से सम्बन्ध नहीं होता। |
4. इसमें केवल नियोजित निवेश को शामिल करते है। | 4. इसमें नियोजित निवेश तथा अनियोजित निवेश को शामिल किया जाता है। |
प्रश्न 4.
पूर्ण रोज़गार से क्या अभिप्राय है ? पूर्ण रोज़गार में किस प्रकार की बेरोज़गारी हो सकती है ?
अथवा
संघर्षात्मक बेरोज़गारी तथा संरचनात्मक बेरोज़गारी से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
पूर्ण रोजगार से अभिप्राय उस स्थिति से है जिसमें वह सभी लोग जो वर्तमान मज़दूरी की दर पर काम करना चाहते हैं उनको आसानी से काम मिल जाता है। पूर्ण रोज़गार में निम्नलिखित प्रकार की बेरोज़गारी की स्थिति पाई जाती है।
- ऐच्छिक बेरोज़गारी (Voluntary Unemployment)-यदि कोई मज़दूर वर्तमान मज़दूरी की दर पर रोज़गार उपलब्ध होने पर भी काम करने को तैयार नहीं होता तो इसको ऐच्छिक बेरोज़गारी कहा जाता है।
- संघर्षात्मक बेरोज़गारी (Frictional Unemployment)-जब बाज़ार का पूर्ण ज्ञान नहीं होता और मजदूर अस्थायी तौर पर बेरोज़गार हो जाते हैं तो यह अस्थायी बेरोज़गारी संघर्षात्मक बेरोज़गारी कहलाती है। जैसे कि कच्चे माल की कमी, मशीनों की टूट-फूट के कारण बेरोज़गारी हो जाती है तो इसको संघर्षात्मक बेरोज़गारी कहा जाता है।
- संरचनात्मक बेरोज़गारी (Structual Unemployment)-जब किसी देश में नई तकनीकों के विकास के कारण पुरानी मशीनें बन्द हो जाती हैं तो नई तकनीकों के अनुसार मज़दूर उपलब्ध नहीं होते। इस प्रकार की बेरोज़गारी को संरचनात्मक बेरोज़गारी कहा जाता है।
प्रश्न 5.
पूँजी की सीमान्त उत्पादकता (Marginal Effeciency of Capital) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
पूँजी की सीमान्त उत्पादकता का अर्थ किसी मशीन को काम पर लगाने से उससे प्राप्त होने वाली लाभ की सम्भावना से होता है। निवेश दो तत्त्वों पर निर्भर करता है-(i) ब्याज की दर (ii) पूँजी की सीमान्त उत्पादकता (MFC)
I = f (r, MEC)
MEC से अभिप्राय निवेश की एक और इकाई लगाने से उससे प्राप्त होने वाली लाभ की सम्भावना से होता है।
जब ब्याज की दर कम होती है तो लाभ होने की सम्भावना भी कम हो जाती है। इसके दो कारण होते हैं-
- वस्तुएँ तथा सेवाएँ बढ़ जाती हैं तो इनकी कीमत कम हो जाती है। इससे लाभ कम हो जाता है।
- उत्पादन के बढ़ने से लागत में वृद्धि हो जाती है।
IV. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Type Questions)
प्रश्न 1.
कुल माँग से क्या अभिप्राय है ? कुल माँग के अंश बताएं। कुल माँग फलन को तालिका तथा रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट करें।
(What is Aggregate Demand ? Discuss the components of Aggregate Demand. Explain Aggregate Demand Function with the help of a schedule and diagram.)
उत्तर-
कुल माँग से अभिप्राय एक देश में एक वित्तीय वर्ष में की गई वस्तुओं तथा सेवाओं की कुल माँग से है। (Aggregate demand means the total demand of goods and services in an economy during a accounting year.) कुल माँग मुद्रा की वह मात्रा है जोकि एक देश के सारे उद्यमी मिलकर मज़दूरों की निश्चित संख्या को काम पर लगाते हैं तो उन मज़दूरों द्वारा वस्तुओं तथा सेवाओं का उत्पादन किया जाता है। इन वस्तुओं तथा सेवाओं को बेचने से देश के सभी उद्यमियों को जो आय प्राप्त होने की सम्भावना होती है, उसको कुल माँग कहा जाता है। कुल माँग दो तत्त्वों पर निर्भर करती है-
- कुल उपभोग खर्च
- कुल निवेश खर्च। कुल माँग के अंश (Components of Aggregate Demand)-कुल माँग के मुख्य अंश इस प्रकार हैं –
(a) उपभोग खर्च
(b) निवेश खर्च।
(a) उपभोग खर्च (Consumption Expenditure)-इसमें (a) निजी उपभोग खर्च (C) और सरकारी उपभोग खर्च (G) को शामिल किया जाता है। आय का जो भाग उपभोग पर खर्च नहीं किया जाता, उसको (b) निवेश किया जाता है। इसलिए बन्द अर्थव्यवस्था में कुल माँग का अर्थ उपभोग + निवेश (C + I) से होता है। यदि खुली अर्थव्यवस्था होती है तो एक देश विदेशों को निर्यात (X) करता है तथा आयात (M) की जाती है इसलिए खुली अर्थव्यवस्था में कुल माँग = उपभोग + निवेश + निर्यात – आयात (C + I + X – M) के बराबर होता है। केन्ज़ ने कुल माँग की व्याख्या बन्द अर्थव्यवस्था में की है। इसलिए कुल माँग में उपभोग तथा निवेश को शामिल किया जाता है।
(b) निवेश खर्च (Investment Expenditure)-उपभोग में निवेश खर्च शामिल कर के कुल माँग का माप किया जाता है। (C + I)
कुल माँग फलन (Aggregate Demand Function)- कुल माँग फलन एक सूची पत्र होता है जिसमें आय या रोज़गार के विभिन्न स्तर पर देश के उद्यमियों को कितनी-कितनी आय प्राप्त होने की सम्भावना है उस सूची-पत्र को कुल माँग फलन कहा जाता है। जब आय शून्य (0) होती है तो भी कुछ रकम उपभोग पर ज़रूर खर्च की जाती है। यह रकम उपभोगी पुरानी बचतों को खर्च करके या उधार रकम लेकर पूरी करते हैं। जब उनको आय होती है तो खर्च आय के समान हो जाता है परन्तु जैसे-जैसे आय में वृद्धि होती है तो माँग में भी वृद्धि होती है जोकि आय की वृद्धि से कम होती है। इसे एक सूची-पत्र तथा रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है।
तालिका में दिखाया है कि जब आय 0 (शून्य) है तो लोग ₹ 150 करोड़ उपभोग पर खर्च करते हैं। जब आय बढ़ जाती है जैसा कि ₹ 100, 200, 300, 400, 500 करोड़ दिखाई है तो कुल माँग ₹ 50, 100, 150, 200, 250, 300 करोड़ है। ₹ 100 करोड़ की आय 100 करोड़ माँग के बराबर हो जाती है। इसके बाद आय में वृद्धि होती है तो कुल माँग में वृद्धि कम दर पर होती है।
रेखाचित्र 3 में 45° पर Y = (C + S) रेखा दिखाई गई है। AD कुल माँग रेखा है, कुल माँग रेखा (AD), OY (45°) रेखा को E बिन्दु पर काटती है। अर्थात् ₹ 100 करोड़ आय, ₹ 100 करोड़ खर्च के समान है। E बिन्दु को कुल माँग का बिन्दु कहा जाता है।
प्रश्न 2.
परम्परागत कुल पूर्ति की धारणा, केन्ज़ की कुल पूर्ति की धारणा से कैसे भिन्न है ?
(How is classical concept of aggregate supply different from Keynesian concept of aggregate supply ?)
उत्तर-
कुल पूर्ति से अभिप्राय अर्थव्यवस्था में वस्तुओं तथा सेवाओं की कुल पूर्ति से है। (Aggregate supply is the total supply of goods and services in an economy.) कुल पूर्ति को भी कीमत स्तर से सम्बन्धित किया जाता है। इस सम्बन्धी दो दृष्टिकोण हैं-
(A) परम्परागत कुल पूर्ति की धारणा (Classical concept of Aggregate Supply)
(B) केन्ज़ीयन कुल पूर्ति की धारणा (Keynesian concept of Aggregate Supply)
(A) परम्परागत कुल पूर्ति की धारणा (Classical concept of Aggregate Supply)-परम्परागत अर्थशास्त्रियों का विचार था कि पूँजीगत अर्थव्यवस्था में पूर्ण रोज़गार एक साधारण स्थिति होती है। इस अर्थव्यवस्था में कीमत स्तर की अवस्था चाहे कोई भी हो, देश में कुल उत्पादन स्थिर रहता है। कीमत की वृद्धि अथवा कमी से कुल उत्पादन अथवा कुल पूर्ति में कोई परिवर्तन नहीं होता। इसलिए कुल पूर्ति रेखा पूर्ण अलोचशील OY रेखा के समानान्तर होती है।
जैसे कि रेखाचित्र में दिखाया गया है। रेखाचित्र 4 में दिखाया गया है कि कीमत स्तर में परिवर्तन होने से कुल पूर्ति में कोई परिवर्तन नहीं होता, OQ उत्पादन किया जाता है। इस स्थिति में पूर्ण रोजगार की स्थिति पाई जाती है। परम्परागत ङ्केकुला पूर्ति वक्र AS सीधी रेखा OY के समानान्तर होती है । इसका मुख्य कारण से’ का बाजार नियम है तथा मज़दूरी कीमत लोचशीलता का पाया जाना है।
(B) केन्जीयन कुल पूर्ति की धारणा (Keynesian concept of Aggregate Supply)-केन्ज़ की कुल पूर्ति वक्र कीमत स्तर के संदर्भ में पूर्ण लोचशील होती है अर्थात् उत्पादक स्थिर कीमत स्तर पर वस्तुओं की कोई मात्रा का उत्पादन करने के लिए तैयार होते हैं। जब तक पूर्ण रोजगार की स्थिति उत्पन्न नहीं हो जाती। जैसे कि रेखाचित्र में AS वक्र पहले OX रेखा के समानान्तर है जोकि पूर्ण लोचशील है। इसके दो कारण होते हैं।
- मज़दूरी कीमत स्थिरता (Wage Price Rigidity)
- मजदूरों की स्थिर सीमान्त उत्पादकता (Constant Marginal Product of Labour) यह विचार परम्परागत विचार के बिल्कुल विपरीत है। पूर्ण रोजगार से पहले मजदूरी स्थिर रहती है तथा मज़दूरी की सीमान्त उत्पादकता स्थिर रहती है, परन्तु जब पूर्ण रोज़गार की स्थिति उत्पन्न हो जाती है, जिसको F बिन्दु द्वारा दिखाया है तो उसके पश्चात् AS वक्र पूर्ण बेलोचशील OY के समान्तर हो जाती है। जैसे कि परम्परागत कुल पूर्ति वक्र है। F बिन्दु के पश्चात् कीमत स्तर में परिवर्तन से उत्पादन OQ स्थिर रहता है। इसको पूर्ण रोज़गार उत्पादन का स्तर कहा जाता है।