PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 7 बैंकिंग

Punjab State Board PSEB 12th Class Economics Book Solutions Chapter 7 बैंकिंग Textbook Exercise Questions, and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Economics Chapter 7 बैंकिंग

PSEB 12th Class Economics बैंकिंग Textbook Questions, and Answers

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

प्रश्न 1.
बैंक से क्या अभिप्राय है ? अथवा बैंक को परिभाषित करो।
उत्तर-
बैंक वह संस्था है जो मुद्रा जमा करवाती है तथा मुद्रा उधार देती है। कैरनकरॉस अनुसार, “बैंक एक वित्तीय विचोला है जो कि ऋण तथा उधार का कार्य करता है।”
(“A Bank is a financial intermediary, a dealer in loans and debts.” -Carincross)

प्रश्न 2.
बैंकिंग से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
बैंकिंग से अभिप्राय जमा स्वीकार करना होता है ताकि उधार दिया जा सके अथवा निवेश किया जा सके।

प्रश्न 3.
व्यापारिक बैंकों से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
व्यापारिक बैंक वह संस्था है जोकि उधार देने के उद्देश्य से जनता की बचतों को एकत्रित करती है।

प्रश्न 4.
व्यापारिक बैंकों के कोई दो कार्य बताओ।
उत्तर-

  • जमा राशि प्राप्त करना
  • उधार देना।

प्रश्न 5.
केन्द्रीय बैंक से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
केन्द्रीय बैंक प्रत्येक देश में चोटी की संस्था होती है, जोकि देश के मौद्रिक तथा वित्तीय ढाँचे का संचालन करती है।

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प्रश्न 6.
केन्द्रीय बैंक के कोई दो कार्य बताओ।
उत्तर-

  1. करन्सी जारी करना
  2. साख नियन्त्रण।

प्रश्न 7.
भारतीय बैंकिंग प्रणाली में हाल ही में किए दो सुधार बताओ।
उत्तर-

  • सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का विस्तार-श्री एम० नरसिमहम ने 1992 तथा 1998 में आधुनिकीकरण तथा निजीकरण सम्बन्धी विचार दिए तथा कहा कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का विस्तार करना चाहिए तथा इनको कार्य में स्वतन्त्रता प्रदान करनी चाहिए।
  • निजी क्षेत्र में नए बैंक-बैंकों को निजी क्षेत्र में कार्य करने की आज्ञा देनी चाहिए। भारत में इस समय 10 बैंक निजी क्षेत्र में कार्य कर रहे हैं।

प्रश्न 8.
जो संस्था लोगों की मुद्रा जमा करती है और मुद्रा उधार देती है को …………… कहते हैं।
(क) केन्द्रीय बैंक
(ख) व्यापारिक बैंक
(ग) आहड़तियां
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(ख) व्यापारिक बैंक।

प्रश्न 9.
जो संस्था देश के मौद्रिक तथा वित्तीय ढांचे का संचालन करती है को …………. कहते हैं।
(क) सरकार
(ख) वित्त मंत्रालय
(ग) केन्द्रीय बैंक
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(ग) केन्द्रीय बैंक।

प्रश्न 10.
देश का केन्द्रीय बैंक सरकार का बैंक होता है और करंसी जारी करता है।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 11.
बैंकिंग से अभिप्राय जमा स्वीकार करना ताकि उधार दिया जा सके।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 12.
करंसी को छापने का काम भारत सरकार करती है।
उत्तर-
ग़लत।

प्रश्न 13.
किस बैंक को करंसी जारी करने का अधिकार है ?
अथवा
देश में सरकार का बैंक कौन सा होता है ?
(क) केन्द्रीय बैंक
(ख) व्यापारिक बैंक
(ग) सहकारी बैंक
(घ) उपरोक्त में से कोई नहीं।
उत्तर-
(क) केन्द्रीय बैंक।

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II. अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
बैंकिंग से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
बैंकिंग से अभिप्राय जमा स्वीकार करना होता है ताकि उधार दिया जा सके अथवा निवेश किया जा सके। जो राशि बैंकों में जमा करवाती है, उसको चैक, ड्राफ्ट अथवा आदेश अनुसार वापिस लिया जा सकता है। इससे स्पष्ट है कि बैंकिंग के दो मुख्य कार्य पैसा जमा करवाना तथा उधार देना है।

प्रश्न 2.
व्यापारिक बैंकों से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
व्यापारिक बैंक वह संस्था है जोकि उधार देने के उद्देश्य से जनता की बचतों को एकत्रित करती है। यह राशि व्यापारियों को निवेश करने के लिए उधार दी जाती है। जमाकर्ता अपनी राशि बैंक में से चैक, ड्राफ्ट अथवा आदेश अनुसार जब मर्जी वापिस कर सकते हैं।

प्रश्न 3.
व्यापारिक बैंकों के कोई दो कार्य बताओ।
उत्तर-
व्यापारिक बैंकों के दो महत्त्वपूर्ण कार्य निम्नलिखित हैं

  1. जमा राशि प्राप्त करना-व्यापारिक बैंक लोगों से जमा राशि प्राप्त करते हैं। लोगों की बचतों को एकत्रित करके इनकी सम्भाल करते हैं तथा कुछ ब्याज भी देते हैं।
  2. उधार देना-व्यापारिक बैंक अपने पास जनता की जमा राशि को व्यापारियों तथा उद्यमियों को निवेश करने के लिए उधार देते हैं।

प्रश्न 4.
केन्द्रीय बैंक से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
केन्द्रीय बैंक प्रत्येक देश में चोटी की संस्था होती है, जोकि देश के मौद्रिक तथा वित्तीय ढाँचे का संचालन करती है। केन्द्रीय बैंक, बैंकों का बैंक तथा सरकार का बैंक होता है। यह संस्था देश में करेन्सी का संचालन करती है तथा अन्तिम ऋणदाता माना जाता है, जोकि बैंकों तथा सरकार को आवश्यकतानुसार उधार देता है।

प्रश्न 5.
केन्द्रीय बैंक के कोई दो कार्य बताओ।
उत्तर-

  • करेन्सी जारी करना-केन्द्रीय बैंक प्रत्येक देश में करेन्सी, नोट तथा सिक्के जारी करता है। मुद्रा के मूल्य को स्थिर रखने का भी प्रयत्न करता है।
  • साख नियन्त्रण-व्यापारिक बैंक उधार निर्माण करते हैं। केन्द्रीय बैंक देश में व्यापारिक बैंकों के उधार देने पर नियन्त्रण रखता है।

प्रश्न 6.
ई-बैंकिंग से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
बैंकों के इन्टरनैट द्वारा संचालन को ई-बैंकिंग कहा जाता है।

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III. लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
व्यापारिक बैंक के कोई चार कार्य बताओ।
अथवा
व्यापारिक बैंकों के लाभ बताओ।
उत्तर-
व्यापारिक बैंक के चार मुख्य कार्य हैं

  1. राशि जमा करना तथा उधार देना-व्यापारिक बैंकों का प्राथमिक कार्य जनता की बचतों को जमा करना तथा उस राशि को आगे व्यापारियों को उधार देना होता है। जमा राशि का कुछ हिस्सा नकद रखकर शेष राशि बैंक उधार दे देता है।
  2. एजेन्सी कार्य-व्यापारिक बैंक अपने ग्राहकों के लिए प्रतिनिधि तौर पर बहुत-से कार्य करते हैं, जैसे कि चैक अथवा ड्राफ्ट दूसरे बैंकों से एकत्रित करना, ग्राहकों की जायदाद का ट्रस्टी दूसरे स्थानों पर पैसे भेजना, किश्तें जमा करवाना इत्यादि एजेन्सी कार्य किए जाते हैं।
  3. विकासवादी कार्य-व्यापारिक बैंक पूंजी निर्माण, उधार देना, ग्रामीण क्षेत्र के विकास के लिए उधार देना तथा मौद्रिक नीति को लागू करने में सहयोग देता है।
  4. साधारण सेवाओं के कार्य-व्यापारिक बैंक अपने ग्राहकों को लेकर सुविधाएं, ट्रैवल्ज़ चैक, यातायात की सुविधाएं इत्यादि सेवाओं के कार्य भी करते हैं। इस प्रकार व्यापारिक बैंक लाभदायक हैं।

प्रश्न 2.
केन्द्रीय बैंक के कोई चार कार्य बताओ।
उत्तर-

  1. करन्सी जारी करना-व्यापारिक बैंकों का महत्त्वपूर्ण कार्य देश में करन्सी जारी करना होता है। विश्व के सभी देशों में नोट तथा सिक्के केन्द्रीय बैंकों द्वारा जारी किए जाते हैं।
  2. सरकार का बैंक केन्द्रीय बैंक सरकार का बैंक होता है। सरकार की प्राप्तियां केन्द्रीय बैंक में जमा करवाई जा सकती हैं। यह बैंक सरकार के सभी भुगतान भी करता है। जब सरकार को मुद्रा का संकट सहन करना पडता है तो अल्पकालीन ऋण की सुविधा केन्द्रीय बैंक द्वारा प्रदान की जाती है।
  3. बैंकों का बैंक-केन्द्रीय बैंक, व्यापारिक बैंकों का बैंक भी होता है। व्यापारिक बैंकों को आवश्यक तौर पर जमा खाते की निश्चित प्रतिशत राशि केन्द्रीय बैंक के पास प्रतिभूतियां प्राप्त करके रखनी पड़ती है। जब किसी समय व्यापारिक बैंक को मुश्किल का सामना करना पड़ता है तो केन्द्रीय बैंक व्यापारिक बैंकों को अल्पकालीन उधार की सुविधा प्रदान करता है।
  4. उधार नियन्त्रण-केन्द्रीय बैंक का सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य उधार नियन्त्रण करना होता है। देश में उधार मुद्रा के प्रसार तथा संकुचन के लिए केन्द्रीय बैंक द्वारा नीति बनाई जाती है। इससे देश में आर्थिक स्थिरता का उद्देश्य पूरा किया जाता है।

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प्रश्न 3.
केन्द्रीय बैंक तथा व्यापारिक बैंकों में अन्तर स्पष्ट करो।
उत्तर-
केन्द्रीय बैंक तथा व्यापारिक बैंक में अन्तर-प्रो० शेयरज़ (Seyers) ने केन्द्रीय बैंक तथा व्यापारिक बैंक में मुख्य अन्तर इस प्रकार स्पष्ट किए हैं-

अन्तर का आधार केन्द्रीय बैंक व्यापारिक बैंक
1. मालकी केन्द्रीय बैंक की मालकी तथा संचालन सरकार के अधीन होती है। व्यापारिक बैंक सरकारी अथवा निजी मालकी वाले हो सकते हैं।
2. उद्देश्य केन्द्रीय बैंक का उद्देश्य लाभ कमाना नहीं होता। व्यापारिक बैंकों का उद्देश्य लाभ कमाना होता है।
3. संख्या देश में केन्द्रीय बैंक एक होता है। व्यापारिक बैंकों की संख्या अधिक होती है।
4. तालमेल केन्द्रीय बैंक का जनता से सीधा तालमेल नहीं होता। व्यापारिक बैंकों का सीधा जनता से तालमेल  होता है।
5. करन्सी केन्द्रीय बैंक देश की करन्सी का निर्माता तथा संचालक होता है। व्यापारिक बैंक नकद करन्सी का निर्माण नहीं करते, बल्कि उधार निर्माण करते हैं।

प्रश्न 4.
भारत में हाल ही में किए गए कोई चार बैंकिंग सुधार बताओ।
उत्तर-
श्री एम० नरसिहम ने 1991 तथा 1998 में बैंकिंग सुधार करने के लिए निम्नलिखित सिफ़ारिशें की, जिनको सरकार ने तुरन्त लागू किया है।

  1. निजी क्षेत्र में व्यापारिक बैंक-निजी क्षेत्र में व्यापारिक बैंक खोलने की सिफारिश की गई। यह बैंक विदेशों में बसे भारतीयों से पूँजी प्राप्त करके आरम्भ करने के लिए कहा गया। इस समय 10 व्यापारिक बैंक निजी क्षेत्र में चल रहे हैं।
  2. आधुनिकीकरण-व्यापारिक बैंकों में कम्प्यूटर द्वारा खातों का संचालन किया जाता है। देश में कुछ बैंक जिनका कम्प्यूटर द्वारा तालमेल है, अपने ग्राहकों को देश में उस बैंक की किसी शाखा में से पैसे निकलवाने अथवा जमा करवाने की सुविधा प्रदान करते हैं।
  3. व्यापारिक बैंकों की निगरानी-प्रतिभूतियों के घोटाले के पश्चात् केन्द्रीय बैंक ने व्यापारिक बैंकों की निगरानी के लिए एक अलग विभाग स्थापित किया है, जो व्यापारिक बैंकों के ग़लत लेन-देन पर रोक लगाता
  4. वास्तविक स्वायत्तता-व्यापारिक बैंकों के संचालन के लिए वास्तविक स्वायत्तता के लिए विचार कर रहा है। इससे व्यापारिक बैंक अन्य कार्य सुचारु ढंग से कर सकेंगे।

V. दीर्य उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
व्यापारिक बैंकों से क्या अभिप्राय है ? व्या शरिक बैंकों के मुख्य कार्य बताओ।
(What is meant by Commercial Banks ? Discuss the main functions of Commercial Banks.)
उत्तर-
व्यापारिक बैंक का अर्थ (Meaning of Commercial Bank) व्यापारिक बैंक वह बैंक है जोकि लाभ कमाने के उद्देश्य के साथ जनता से जमा राशि प्राप्त करते हैं तथा उधार देते हैं। व्यापारिक बैंक एक व्यावसायिक संस्था है जोकि उधार मुद्रा का लेन-देन करती है। प्रो० रीड तथा गिल के अनुसार, ‘पारिक बैंक ऐसी वित्तीय संस्था होती है, जोकि मांग जमा स्वीकार करती है तथा व्यापारिक उधार देती है।” (“A Commercial ial Bank is a financial institution that accepts demand deposits and makes Commercial Leas.” . Keed and

व्यापारिक बैंकों के मुख्य कार्य (Main Functions of Commercial Banks) – स्यापारिक बैंकों के मुख्य कार्य निम्नलिखित अनुसार हैं –
1. जमा राशि प्राप्त करना (Accepting Deposits)- व्यापारिक बैंक ने मोह जना शि प्राप्त करते हैं। यह लोगों की बचतों को एकत्रित करते हैं। इस उद्देश्य के लिए व्यापारिक कलीन प्रकार के खाने बोलते हैं ।

  • चालू जमा खाता (Current Deposit Account) – चाल जाने में जमा राशि को माँग जमा कहा जाता है। इस खाते में से राशि किसी भी समय वैक हार मालवाई जा सकती है परे खाते पर कोई ब्याज नहीं दिया जाता, बल्कि चालू खाते के प्रबन्ध सम्बन्धी व्यय व्यापारियो साप्त किया जाता है। यह खाते व्यापारिक उद्देश्य के लिए खोले जाते हैं।
  • निश्चितकालीन खाता (Fixed Deposit Account)-इस खाते में निश्चित समय के लिए गशि जमा करवाई जाती है। यह खाता कुछ दिनों का अथवा कुछ वर्षों का हो सकता है। इन खातों में से निश्चित समय के पश्चात् राशि निकलवाई जा सकती है। इस खाते में जमा राशि पर ब्याज की दर साधारण तौर पर अधिक होती है।
  • बचत जमा खाता (Saving Deposit Account)-यह खाते बचतों को एकत्रित करने के लिए खोले जाते हैं। इन खातों में चालू जमा खाते तथा निश्चितकालीन खाते की विशेषताएं होती हैं। इन खातों में से जब मर्जी हो राशि निकलवाई जा सकती है तथा इन खातों पर ब्याज भी दिया जाता है, परन्तु ब्याज की दर निश्चितकालीन खाते से कम होती है।

2. उधार देना (Giving Loans)-व्यापारिक बैंकों में जो राशि जमा हो जाती है, उसको बेकार नहीं रखते, बल्कि इसका कुछ भाग नकदी के रूप में रखकर शेष राशि उधार दे देते हैं। बैंकों द्वारा अग्रलिखित प्रकार के ऋण दिए जाते हैं-

  • नकद उधार (Cash Credit)-नकद रूप में उधार देने वाले उधार लेने वाले ग्राहक की उधार सीमा निश्चित की जाती है। उधार सीमा निश्चित करते समय उधार लेने वाले के भण्डार, सम्पत्ति इत्यादि गिरवी रखकर उधार दिया जाता है। इसमें से जितनी राशि उधार ली जाती है, उस राशि का ब्याज प्राप्त किया जाता है।
  • माँग उधार (Demand Credit)-माँग उधार वह उधार होता है जो कि माँगना तथा वापिस करना आवश्यक होता है। उधार की सभी राशि, उधार लेने वाले के खाते में जमा की जाती है। इसलिए सभी राशि पर ही ब्याज प्राप्त किया जाता है। यह उधार प्रतिभूतियों के दलालों अथवा उन लोगों द्वारा लिया जाता है, जिनकी दिन प्रतिदिन आवश्यकताओं में परिवर्तन होता रहता है।
  • अल्पकाल ऋण (Short Term Loans) अल्पकालीन ऋण साधारण तौर पर निजी ऋण के रूप में होते हैं। यह ऋण कार्यशील पूँजी के लिए दिए जाते हैं। यह ऋण जमानत रखकर दिए जाते हैं। ऐसे ऋण उधार लेने वाले के खाते में जमा किए जाते हैं तथा सारी राशि पर ब्याज़ लगता है। यह ऋण किश्तों में

अथवा एक बार ही वापिस किया जा सकता है।

अन्य कार्य अथवा सुविधाएं (Other Functions or Facilities)-ऊपर दिए दो प्राथमिक कार्यों (Primary Functions) के बिना व्यापारिक बैंकों द्वारा ग्राहकों को कुछ अन्य सुविधाएं भी प्रदान की जाती हैं। व्यापारिक बैंकों के यह अन्य कार्य इस प्रकार हैं –

3. ओवर ड्राफ्ट (Over Draft)-बैंकों में चालू खाता रखने वाले ग्राहक बैंक से किए समझौते अनुसार जमा राशि से अधिक राशि निकलवाने की आज्ञा भी लेते हैं। इसको ओवर ड्राफ्ट कहा जाता है, जैसे कि एक व्यापारी के बैंक में ₹ 10 लाख जमा हैं, वह व्यापारी ₹ 15 लाख की राशि निकाल लेता है तो ₹5 लाख को ओवर ड्राफ्ट कहा जाएगा।

4. विनिमय बिलों की कटौती (Discounting Bills of Exchange)-विनिमय बिल एक लिखित होता है, जोकि वस्तुएं प्राप्त करने वाला वस्तुओं के मालिक को लिखकर देता है कि उन वस्तुओं की राशि, कुछ समय पश्चात् दे देगा। उदाहरणस्वरूप X मनुष्य ने Y मनुष्य से वस्तुएं खरीदी परन्तु उसका तुरन्त भुगतान नहीं कर सकता।

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वह मनुष्य Y मनुष्य को विनिमय बिल दे देता है जिसमें वापसी की राशि तथा समय लिखा होता है। यदि Y मनुष्य को पैसे की आवश्यकता पड़ जाती है तो यह मनुष्य बैंक के पास कटौती के लिए विनिमय बिल पेश करता है। बैंक कुछ कमीशन काटकर शेष की राशि Y मनुष्य को दे देता है। जब विनिमय बिल का समय पूरा हो जाता है तो बैंक X मनुष्य से राशि प्राप्त कर लेता है। विनिमय बिलों को हुंडी भी कहा जाता है।

5. बैंक के एजेन्ट के रूप में कार्य (Agency Functions of the Bank)-व्यापारिक बैंक अपने ग्राहकों के लिए कई तरह से एजेन्ट के रूप में कार्य करता है।

  • मुद्रा का हस्तांतरण (Transfer of Funds)-व्यापारिक बैंक मुद्रा को एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजने का कार्य भी करते हैं।
  • विभिन्न मदों का एकत्रीकरण तथा भुगतान (Collection and Payment of various Items) बैंक ग्राहकों के लिए फण्ड एकत्रित करते हैं जोकि चैक, ड्राफ्ट, हुंडी इत्यादि के रूप में होते हैं तथा किश्तों का भुगतान भी किया जाता है।
  • भागीदारियों तथा प्रतिभूतियों की खरीद-बेच (Purchase and sale of shares and securities) बैंक भागीदारियों तथा प्रतिभूतियों की खरीद बेच का कार्य भी करते हैं तथा इनको सम्भाल कर रखते हैं।
  • विदेशी मुद्रा की खरीद-बेच (Purchase and Sale of Foreign Exchange)-बैंक विदेशी मुद्रा की खरीद बेच भी करते हैं। इससे ग्राहकों को सुविधा मिलती है।
  • ट्रस्टी तथा प्रबन्धक (Trustee and Executor) ग्राहकों के निवेदन पर बैंक उनकी जायदाद के ट्रस्टी तथा प्रबन्धक का कार्य भी करते हैं।
  • सन्दर्भ पत्र (Letter of Reference)-व्यापारिक बैंक अपने ग्राहकों की आर्थिक स्थिति की सूचना दूसरे व्यापारियों को देते हैं।

6. साधारण उपयोगिता की सेवाएं (General Utility Services)-व्यापारिक बैंक कुछ साधारण उपयोगिताओं की सेवाएं भी प्रदान करते हैं।

  • लॉकर की सुविधाएं (Locker Facilities)-बैंक द्वारा लॉकर की सुविधा दी जाती है, जिसमें ग्राहक कीमती सामान रखते हैं।
  • विदेशी मुद्रा की खरीद-बेच (Purchase and Sale of Foreign Exchange)-बैंकों द्वारा विदेशी व्यापार के विकास के लिए विदेशी मुद्रा की खरीद-बेच भी की जाती है।
  • यात्री चैक तथा गिफ्ट चैक (Traveller’s cheques and Gift cheques)-बैंकों द्वारा यात्री चैक तथा गिफ्ट चैक की सुविधा प्रदान की जाती है।
  • वस्तुओं के यातायात की सहायता (Help in Transport of Goods) वस्तुएं भेजने के लिए व्यापारी, ग्राहकों को माल भेजकर बिलटी बैंक को भेज देते हैं। ग्राहक पैसे देकर बिलटी ले लेते हैं तथा माल प्राप्त करते हैं।
  • नए शेयरों के अनबिकाऊ भाग को खरीदना (Under writing)-नए अनबिकाऊ शेयरों को खरीदने का बैंक विश्वास देते हैं।
  • आय कर की वसूली (Income Tax Receipt)-ग्राहकों से आय कर प्राप्त करके सरकारी खज़ाने में जमा करवाते हैं।

7. उधार निर्माण (Credit Creation)-व्यापारिक बैंक जमा राशि की सहायता से कई गुणा अधिक उधार निर्माण करते हैं। यदि बैंक में ₹ 100 करोड़ की राशि जमा है तथा केन्द्रीय बैंक ने नकद रिज़र्व अनुपात (CRR) 10% निश्चित की है तो उधार गुणक = \(\frac{1}{\mathrm{CRR}}=\frac{1}{10 / 100}=\frac{1 \times 100}{10}\) = 10 होगा अर्थात् ₹ 100 करोड़ से बैंक 10 गुणा अर्थात् ₹ 1000 करोड़ का उधार निर्माण कर सकते हैं।

8. आर्थिक विकास के कार्य (Role of Banks in Economic Development)-व्यापारिक बैंक पूंजी निर्माण, निवेश तथा रोजगार में वृद्धि, ग्रामीण विकास तथा मौद्रिक नीति का संचालन करके आर्थिक विकास में सहायता करते हैं।

प्रश्न 2.
केन्द्रीय बैंक को परिभाषित करो। केन्द्रीय बैंक के मुख्य कार्य बताओ।
(Define a Central Bank. Explain main functions of a Central Bank.)
उत्तर-
केन्द्रीय बैंक का अर्थ (Meaning of Central Bank)-केन्द्रीय बैंक देश की सबसे महत्त्वपूर्ण संस्था है, जोकि मौद्रिक प्रणाली का संचालन करता है। यह बैंकिंग प्रणाली को नियन्त्रण में रखकर आर्थिक विकास के लिए उपाय करता है। प्रो० डीकाक के शब्दों में, “केन्द्रीय बैंक ऐसा बैंक है, जो कि देश में मौद्रिक तथा बैंकिंग ढाँचे की चोटी कहा जा सकता है।” (“A Central Bank is the Bank which constitutes the apex of the monetary and banking structure.”-Dekock) प्रो० सैम्यूलसन अनुसार प्रत्येक केन्द्रीय बैंक का एक प्रमुख कार्य है। यह अर्थव्यवस्था, मुद्रा की पूर्ति तथा साख मुद्रा पर नियन्त्रण का कार्य करता है। यह अन्तिम ऋणदाता होता है।

केन्द्रीय बैंक के कार्य (Functions of the Central Bank) केन्द्रीय बैंक के मुख्य कार्य निम्नलिखित हैं –
1. करन्सी जारी करना (Issuing of Currency) केन्द्रीय बैंक को करन्सी जारी करने का अधिकार होता है, जो नोट तथा सिक्के केन्द्रीय बैंक द्वारा जारी किए जाते हैं। विश्व के सभी देशों में करन्सी छापने का एकाधिकार केन्द्रीय बैंक के पास होता है। भारत में एक रुपये के नोट वित्त मन्त्रालय द्वारा जारी किए जाते हैं, जबकि शेष सभी नोट तथा सिक्के देश का केन्द्रीय बैंक (रिज़र्व बैंक ऑफ इण्डिया) जारी करता है।

2. सरकार का बैंक (Banker to the Government)-साधारण तौर पर केन्द्रीय बैंक, केन्द्र तथा राज्य सरकारों को व्यापारिक बैंकों वाली सुविधाएं प्रदान करता है। केन्द्र तथा राज्य सरकारों की मुद्रा लेने देने का कार्य केन्द्रीय बैंक द्वारा किया जाता है। आवश्यकता पड़ने पर सरकार को अल्पकालीन ऋण की सुविधा भी प्रदान करता है। इस प्रकार केन्द्रीय बैंक सभी देशों की सरकारों के बैंकर, एजेन्ट तथा सलाहकार के रूप में कार्य करते हैं।

3. बैंकों का बैंक (Banker’s Bank) केन्द्रीय बैंक व्यापारिक बैंकों का बैंक होता है। सभी व्यापारिक बैंकों को कानूनी तौर पर जमा खाते में राशि का कुछ भाग केन्द्रीय बैंक के पास रखना पड़ता है। इसका मुख्य कारण है कि केन्द्रीय बैंक को व्यापारिक बैंकों की आर्थिक स्थिति का ज्ञान रहता है। देश में उधार निर्माण तथा केन्द्रीय बैंक नियन्त्रण रख सकता है। संकट समय बैंक, केन्द्रीय बैंक से उधार प्राप्त करते हैं। इस प्रकार देश की अर्थव्यवस्था को मजबूती तथा दृढ़ता प्रदान करने में सहायक होता है।

4. अन्तिम ऋणदाता (Lender of the Last Resort) केन्द्रीय बैंक व्यापारिक बैंकों का भी बैंक होता है। व्यापारिक बैंक अपनी अधिक जमा राशि केन्द्रीय बैंक के पास जमा करवाते हैं तथा आवश्यकता पड़ने पर केन्द्रीय बैंक से उधार प्राप्त करते हैं। इस प्रकार केन्द्रीय बैंक देश की बैंकिंग प्रणाली को मज़बूती प्रदान करता है तथा इसको अन्तिम ऋणदाता कहा जाता है। सदस्य बैंकों के गिरवी योग्य बिलों की कटौती करके व्यापारिक बैंकों को अस्थाई वित्तीय सहायता दी जाती है।

5. बैंकों का निरीक्षण (Supervision of Banks) केन्द्रीय बैंक व्यापारिक बैंकों का बैंक होने के कारण बैंकिंग प्रणाली का संचालन तथा निरीक्षण करता है। नए बैंकों को लाइसैंस देना, बैंकों की ब्रांचों में विस्तार करने की आज्ञा देना, व्यापारिक बैंकों में परिस्थापन (Liquidation) तथा दूसरे बैंक में एक बैंक का मिलन (Merger) इत्यादि कार्य केन्द्रीय बैंक द्वारा किए जाते हैं।

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6. देश के विदेशी मुद्रा कोष का रक्षक (Custodian of the Foreign exchange reserves of the country)-केन्द्रीय बैंक का महत्त्वपूर्ण कार्य देश के विदेशी मुद्रा कोष की रक्षा करना होता है। देश की मुद्रा का मूल्य विदेशी मुद्राओं की तुलना में स्थिर रखने के लिए केन्द्रीय बैंक सोने तथा विदेशी मुद्रा के भण्डार को
अधिक मात्रा में संचय करके रखता है। इससे भुगतान सन्तुलन को अनुकूल बनाने में सहायता मिलती है।

7. समयशोधन गृह का कार्य (Clearing House Functions)-बैंकों द्वारा दूसरे बैंकों के ग्राहकों के चैक प्राप्त होते हैं तथा दूसरे बैंकों के पास इस बैंक के ग्राहकों के चैक होते हैं। यदि बैंक एक-दूसरे से प्रत्येक चैक का लेन-देन करेंगे तो बहुत समय चाहिए। केन्द्रीय बैंक इस समस्या के हल के लिए समयशोधन गृह के रूप में कार्य करता है। केन्द्रीय बैंक द्वारा प्रत्येक बैंक का खाता होता है। इसमें प्रत्येक बैंक के प्रतिनिधि प्रतिदिन चैक एक-दूसरे के खातों में जमा करवा देते हैं। इसी तरह नकदी की मांग बहुत कम हो जाती है।

8. साख मुद्रा पर नियन्त्रण (Control over Credit)-वर्तमान युग में केन्द्रीय बैंक का सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य उधार मुद्रा पर नियन्त्रण होता है। देश की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर तथा विशेष उद्देश्य की प्राप्ति के लिए उधार मुद्रा का विस्तार तथा संकुचन किया जाता है। इससे देश की कीमत स्तर, रोज़गार, मुद्रा-स्फीति, आय का समान विभाजन तथा स्थिरता इत्यादि उद्देश्यों की पूर्ति होती है। इस कारण नकद मुद्रा तथा साख मुद्रा का संचालन केन्द्रीय बैंक का विशेष कार्य होता है।

9. समंकों का संग्रहण तथा प्रकाशन (Collection and Publication of Data) केन्द्रीय बैंक द्वारा आंकड़े एकत्रित करना तथा प्रकाशन का कार्य भी किया जाता है। समय-समय पर केन्द्रीय बैंक देश की बैंकिंग प्रणाली, वित्तीय अवस्था, कीमतों की प्रवृत्ति, उधार निर्माण इत्यादि सम्बन्धी समंकों का संग्रहण तथा प्रकाशन करती है। इस द्वारा देश की आर्थिक स्थिति का ज्ञान प्राप्त होता है।

10. अन्य कार्य (Other Functions)-इसके बिना केन्द्रीय बैंक अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाएं जैसे कि अन्तर्राष्ट्रीय मुद्राकोष (I.M.F.) तथा विश्व बैंक से तालमेल रखता है तथा अपने प्रतिनिधि भेजकर विदेशी पूंजी का प्रबन्ध करता है। देश में मुद्रा बाज़ार जिसमें अल्पकाल ऋण दिए जाते हैं, इसका संचालन करता है। कृषि विकास तथा औद्योगिक उन्नति के लिए साख सुविधाएं प्रदान करता है। पुरानी करन्सी वापिस लेकर नोट परिवर्तन का कार्य भी केन्द्रीय बैंक द्वारा किया जाता है। इस प्रकार केन्द्रीय बैंक के कार्यों को ध्यान में रखकर इसको चोटी की संस्था (Apex organisation) कहा जाता है।

प्रश्न 3.
भारतीय बैंकिंग प्रणाली में हाल ही में किए गए सुधारों का वर्णन करो। (Explain the receni significant reforms in India Banking System.)
उत्तर-
भारतीय बैंकि प्रणाली में सुधार करने के लिए श्री एम० नरसिहमह ने 17 दिसम्बर, 1991 में अपनी रिपोर्ट पेश की। उस समय के भूतपूर्व वित्त मन्त्री डॉक्टर मनमोहन सिंह ने आर्थिक नियोजन द्वारा आधुनिकीकरण (Modernisation) तथा निजीकरण (Privatisation) के उद्देश्य को पूरा करने के लिए बैंकिंग प्रणाली में सुधारों पर जोर दिया।

इसके पश्चात् भारतीय बैंकिंग प्रणाली में जो सुधार किए गए हैं, उनका विवरण इस प्रकार है-
1. सार्वजनिक क्षेत्र में बैंकों का विकास (Development of Banking in Public Sector)-सार्वजनिक क्षेत्र में बैंकों का विस्तार किया गया। इस सम्बन्ध में 1969 में 14 बैंकों तथा 1980 में 6 बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया। इसी समय सार्वजनिक क्षेत्र में 27 बैंक कार्य कर रहे हैं।

2. निजी क्षेत्र में नए बैंक (New Private Sector Banks)-निजी क्षेत्र में बैंक स्थापित करने की आज्ञा दी गई है। इसी समय 10 निजी क्षेत्र में बैंक कार्य कर रहे हैं। इन बैंकों को विदेशों में बसे भारतीयों (N.R.I.) से पूँजी एकत्रित करने की आज्ञा दी गई है। विदेशी भारतीयों से कुल निवेश पूँजी का 40% भाग एकत्रित किया जा सकता है तथा संस्थागत विदेशी संस्थाओं से 20% हिस्सा निवेश में लगवाया जा सकता है।

3. संचालन की स्वतन्त्रता (Freedom of Operation)-शैड्यूल्ड व्यापारिक बैंकों को शाखाएं खोलने की स्वतन्त्रता दी गई है तथा जो शाखाएं ठीक तरह से कार्य नहीं कर रहीं, उनको बन्द करने की आज्ञा भी प्रदान की गई है। बैंकों द्वारा दिए जाने वाले उधार सम्बन्धी भी स्वतन्त्रता दी गई है ताकि बैंकों का संचालन ठीक ढंग से हो सके।

4. क्षेत्रीय बैंक (Local Area Banks)-भारत सरकार ने 1996-97 में क्षेत्रीय बैंकों की स्थापना करने की योजना को स्वीकृति दी। यह बैंक ग्रामीण क्षेत्र के लिए विशेष करके स्थापित किए गए हैं। इन बैंकों में ग्रामीण क्षेत्र में से बचतों को उत्साहित किया जाएगा तथा जमा राशि को ग्रामीण क्षेत्र में ही निवेश किया जाएगा।

5. पूंजी बाज़ार तक पहुँच (Access to Capital Market)-केन्द्रीय सरकार ने बैंकिंग कम्पनी एक्ट में संशोधन करके राष्ट्रीयकृत बैंकों को यह अधिकार दिया है कि पूंजी बाज़ार में जाकर वह पूंजी एकत्रित कर सकते हैं। इस उद्देश्य के लिए बाज़ार में जनता को भागीदारियां बेची जा सकती हैं, परन्तु इस पूँजी में केन्द्र सरकार का हिस्सा 51% से कम नहीं होना चाहिए।

6. ब्याज दर सम्बन्धी नीति (Policy regarding Interest Rate)-ब्याज दर सम्बन्धी नीति में संशोधन किया गया। प्रथम ब्याज दरों की 20 स्लैबें थीं, जोकि 1994-95 में घटाकर 2 स्लैबें की गई हैं। ब्याज तथा पूँजी उधार देने पर कोई नियन्त्रण नहीं। ₹2 लाख से अधिक उधार पूंजी तथा ब्याज की दर कम रखने के लिए कहा गया है। इससे व्यापारिक बैंक अधिक अथवा कम ब्याज की दर रख सकते हैं। इस उद्देश्य के लिए जोखिम को ध्यान में रखा जाता है।

7. नकद रिज़र्व अनुपात (Cash Reserve Ratio) केन्द्रीय बैंक के पास प्रतिभूतियों के रूप में व्यापारिक बैंकों को जो राशि रखनी पड़ती है, उसको नकद रिज़र्व अनुपात कहा जाता है। प्रथम नकद रिज़र्व अनुपात 10% होती थी। जनवरी 2009 में नकद रिज़र्व अनुपात घटाकर 5% किया गया है। इससे व्यापारिक बैंक अधिक उधार दे सकते हैं।

8. वैधानिक तरल अनुपात (Statutory Liquidity Ratio) केन्द्रीय बैंक द्वारा वैधानिक तरल अनुपात निश्चित किया जाता, जोकि व्यापारिक बैंक को अपने पास नकदी के रूप में रखना पड़ता है। 1997 से पहले कानूनी तरल अनुपात 38.5% था, जोकि घटाकर 25% किया गया है। इसके परिणामस्वरूप व्यापारिक बैंक अधिक उधार मुद्रा दे सकते हैं तथा व्यापरिक बैंकों की आय बढ़ सकती है।

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9. विवेकपूर्ण प्रणाली (Prudential System)-रिज़र्व बैंक ने देश में विवेकपूर्ण प्रणाली द्वारा बैंक प्रणाली में सुधार करने का प्रयत्न किया है। प्रत्येक बैंक को दिए गए उधार का वर्गीकरण स्पष्ट करना होगा, जिसमें प्रत्येक बैंक अपनी किताबों में बुरे ऋण (Bad Debt) का विवरण देगा। 1992-93 तक दिए गए ऋण में से 30% बुरे ऋण माफ़ करने तथा 1993-94 में शेष के 70 प्रतिशत बुरे ऋण माफ़ करने के लिए ₹ 10,000 करोड़ की राशि प्रदान की गई।

10. व्यापारिक बैंकों की निगरानी (Supervision-or Commercial Banks)-भारत में 1992 में प्रतिभूतियों का घोटाला (Securities Scan) हुआ, जिसमें दिसम्बर, 1993 में रिज़र्व बैंक ऑफ इण्डिया ने अलग निगरानी विभाग स्थापित किया है, जोकि व्यापारिक बैंकों पर निगरानी रखता है, ताकि बैंक जमा राशि का दुरुपयोग न कर सकें। सन् 1998 में वित्त मन्त्रालयों ने श्री एम० नरसिम्हा के नेतृत्व अधीन एक कमेटी की स्थापना की ताकि बैंकिंग प्रणाली में अन्य सुधार किया जा सके।
इस कमेटी ने निम्नलिखित सिफ़ारिशें की |

11. मज़बूत बैंकिंग प्रणाली (Strong Banking System)-भारत में बैंकिंग प्रणाली को मजबूत करने के लिए बैंकों की विलीनता (Merger) का सुझाव दिया ताकि देश में बैंक अधिक कुशलता से कार्य कर सकें। 200405 में वित्त मन्त्री पी. चिदम्बरम ने भी इस सुझाव से सहमति प्रकट की है। इससे बड़े पैमाने के लाभ प्राप्त किए जा सकते हैं।

12. स्थानीय बैंक (Local Banks)-नरसिम्हा कमेटी ने यह सुझाव दिया है कि स्थानीय छोटे बैंक स्थापित किए जाएं ताकि स्थानीय कृषि, छोटे पैमाने के उद्योगों तथा व्यापारियों की आवश्यकता को पूरा किया जा सके।

13. बैंक नियमों सम्बन्धी पुनर्विचार (Review of Banking Laws)-बैंकिंग प्रणाली के बढ़ते योगदान को ध्यान में रखकर बैंक नियमों सम्बन्धी पुनर्विचार करने का सुझाव भी दिया गया है। इस सम्बन्धी RBI एक्ट, SBI एक्ट बैंक राष्ट्रीयकरण सम्बन्धी एक्ट में संशोधन करने की आवश्यकता है।

14. वास्तविक स्वायत्तता (Real Autonomy)-सरकार नियन्त्रण से बैंकों को स्वायत्तता प्राप्त नहीं होती। बैंक के संचालक बोर्ड को वास्तविक स्वायत्तता प्रदान करनी चाहिए।

15. ऋण वसूली (Recovery of Debt)-सरकार ने ऋण वसूली सम्बन्धी 6 विशेष वसूली ट्रिब्यूनल स्थापित किए हैं जोकि बैंगलौर, चेन्नई, कलकत्ता (कोलकाता), नई दिल्ली, जयपुर तथा अहमदाबाद में स्थित हैं। बुरे ऋण की माफ़ी के लिए यह ट्रिब्यूनल सिफ़ारिशें देते हैं।

प्रश्न 4.
आधुनिक बैंकिंग/e-बैंकिंग द्वारा प्राप्त मुख्य सहूलियतों का संक्षिप्त वर्णन करें।
(Describe briefly main facilities provided by Modern Banking/e-Banking.)
उत्तर-
इन्टरनैट ने समूह विश्व को एक गाँव अथवा शहर का रूप दे दिया है। इसकी सहायता से विश्व की बैंकिंग प्रणाली e-बैंकिंग का रूप धारण कर गई है। विकसित देशों की बैंकिंग प्रणाली का प्रभाव भारत की बैंकिंग प्रणाली पर भी नज़र आ रहा है। भारत की बैंक प्रणाली में इतना सुधार हुआ है कि इसका बहुपक्षीय प्रभाव पड़ा है।

आधुनिक बैंकिंग अथवा e-बैंकिंग द्वारा बहुत-सी सहूलियतें प्रदान की जाती हैं जिनका वर्णन इस प्रकार किया जा सकता है –
1. बैंकिंग सेवाओं का कम्प्यूटरीकरण (Computerization of Banking Services)-बैंकिंग प्रणाली का भारत में भी कम्प्यूटरीकरण हो गया है। इससे बैंकों में कार्य करने वाले कर्मचारियों की संख्या में बहुत कमी हो गई है। अब कम गिनती में कर्मचारी कम्प्यूटर की सहायता से सभी काम-काज आसानी से कर लेते हैं। कम्प्यूटरीकरण से सभी खाताधारकों का हिसाब-किताब, ब्याज की गणना शुद्ध और ठीक की जाती है जिसमें गलती की सम्भावना नहीं होती।

2. बैंकिंग आन लाइन (Banking On Line) कम्प्यूटर की सहायता से बैंकिंग आन लाइन की सुविधा प्रदान की जाती है। अब ग्राहक को बैंक में जा कर लेन-देन करने की ज़रूरत नहीं पड़ती बल्कि प्रत्येक बैंक की एक वैबसाइट होती है जिसको खाताधारक खोल कर अपने खाते की जानकारी घर बैठे ही प्राप्त कर सकता है। घर बैठे ही वह बहुत से भुगतान कर सकता है जैसे कि बिजली का बिल, पानी, सीवरेज, टेलीफोन का बिल, घर पर लिए गए ऋण की किश्त, कार की किश्त अथवा और किसी किस्म का भुगतान कर सकता है। इससे न केवल समय की बचत होती है बल्कि लोगों को भौतिक रूप में किसी दफ्तर अथवा बैंक में जाने की ज़रूरत नहीं पड़ती।

3. ए.टी.एम. सुविधा (ATM Facility)-ए.टी.एम. (Automatic Teller Machine) की सुविधा ने लोगों के जीवन को और आसान बना दिया है। पहले लोगों को बैंक में निजी रूप में जाकर पैसे का लेन-देन करना पड़ता था। परन्तु ए.टी.एम. की सहायता से किसी भी समय खाताधारक अपने खाते की पूर्ण जानकारी प्राप्त कर सकता है। खाताधारक के खाते में शेष कितने पैसे हैं, उनमें से वह कितने पैसे प्राप्त करना चाहता है अथवा खाते में पैसे डालना चाहता है यह सभी कार्य ए.टी.एम. की सहायता से संभव हो गये हैं। यह सुविधा लोगों में प्रिय हो रही है। अब कोई व्यक्ति अपने साथ स्थानीय अथवा दूसरे शहरों में यात्रा के समय नकद पैसे लेकर नहीं चलता बल्कि ज़रूरत के अनुसार किसी भी शहर में पैसे निकलवा सकता है। ए.टी.एम. को डैबिट कार्ड (Debit Card) भी कहते हैं।

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4. आर.टी.जी.एस. सुविधा (RTGS Facility)-आर.टी.जी.एस. (Real Time Gross Settlement) की सुविधा भी e-बैंकिंग द्वारा प्रदान की जाती है। इस सुविधा में कोई व्यक्ति किसी और व्यक्ति अथवा फर्म को भुगतान करना चाहता है तो ड्राफ्ट, चैक अथवा नकद पैसे भेजने की आवश्यकता नहीं है बल्कि जिस व्यक्ति को भुगतान करना चाहता है जो कि देश में किसी स्थान पर रहता है तो उससे उस व्यक्ति अथवा फर्म का खाता क्रमांक और बैंक का कोड नंबर पूछ कर उसमें आर.टी.जी.एस. द्वारा पैसों का भुगतान कर सकता है। इससे बहुत ही कम समय में उस व्यक्ति अथवा फर्म के खाते में पैसे पहुँच जाते हैं और इसमें खर्च भी बहुत कम आता है।

5. मोबाइल सूचना सुविधा (Mobile Information Facility)-आधुनिक e-बैंकिंग द्वारा खाताधारक को मोबाइल पर उसके खाते के लेन-देन की प्रत्येक सुविधा प्रदान की जाती है। इस सुविधा में जब भी कोई खाताधारक अपने खाते में पैसे जमा करवाता है अथवा कोई व्यक्ति उसके खाते में पैसे भेजता है अथवा उस खाते में से किसी व्यक्ति को भुगतान किया जाता है, इसकी सूचना खाताधारक को मोबाइल पर सन्देश के रूप में प्राप्त हो जाती है। यदि कोई व्यक्ति धोखे से खाताधारक के खाते से पैसे निकलवा लेता है तो इसकी सूचना मोबाइल पर प्राप्त होते ही वह व्यक्ति अपने बैंक को सूचित कर सकता है।

6. डैबिट कार्ड द्वारा भुगतान (Payment with Debit Card) अब किसी काम के लिए व्यक्तियों को नकद पैसे ले जाने की ज़रूरत नहीं बल्कि किसी भी वस्तु की खरीद का भुगतान डैबिट कार्ड द्वारा किया जा सकता है। डैबिट कार्ड द्वारा किसी भी वस्तु का भुगतान इलैक्ट्रिक मशीन द्वारा फौरन दुकानदार के खाते में पहुँच जाता है। इस द्वारा बाज़ार में वस्तुओं और सेवाओं की माँग में वृद्धि हुई है।

7. क्रैडिट कार्ड सुविधा (Credit Card Facility)-आधुनिक बैंकों अथवा e-बैंकिंग द्वारा क्रेडिट कार्ड की सुविधा भी प्रदान की जाती है। बैंक अपने खाताधारकों को उधार सुविधा भी प्रदान करते हैं। इन कार्डों पर ऋण पर वस्तुएं खरीदने की भिन्न-भिन्न शक्ति होती है। इनमें साधारण क्रैडिट कार्ड, सिलवर क्रैडिट कार्ड, गोल्ड क्रैडिट कार्ड पर उधार लेने की भिन्न-भिन्न शक्ति होती है। उधार की गई खरीददारी का भुगतान बैंक को बिना ब्याज 40 दिन के भीतर करना

अनिवार्य होता है अथवा उसके पश्चात् बैंक उस व्यक्ति पर उच्च ब्याज की दर प्राप्त करता है। क्रैडिट कार्ड पर की गई खरीददारी पर बैंक 2% कमीशन लेता है। क्रैडिट कार्ड के धारक की ऋण इतिहास (Credit History) देख कर ही क्रेडिट कार्ड की सीमा में वृद्धि अथवा कमी की जाती है। विश्व में क्रेडिट कार्ड का प्रयोग बहुत अधिक किया जाता है। इससे व्यापार में बहत वृद्धि होती है।

8. ऋण सुविधाएं (Loan Facilities)-आधुनिक बैंकों द्वारा लोगों को देने वाला ऋण बहुत से कार्यों के लिए दिया जाता है। लोगों को कार, घर अथवा और किसी काम में निवेश करना हो तो बैंक अनेक कार्यों के लिए ऋण देता है। इससे लोगों की खरीद शक्ति में वृद्धि होती है। अब लोग आसानी से ऋण लेकर कार, घर अथवा व्यापार में निवेश कर सकते हैं। विद्यार्थियों के लिए भी बैंकों द्वारा शिक्षा के लिए ऋण दिया जाता है। भविष्य में आधुनिक बैंकिंग/e-बैंकिंग द्वारा लोगों को अधिक सुविधाएं प्रदान की जा रही हैं। इससे लोगों की व्यापार करने की शक्ति में वृद्धि हो रही है।

प्रश्न 5.
रिज़र्व बैंक ऑफ इण्डिया के मुख्य कार्य बताएं। (Discuss the main functions of Reserve Bank of India.)
उत्तर-
रिज़र्व बैंक ऑफ इण्डिया भारत का केंद्रीय बैंक है। यह देश में मुद्रा का संचालन करता है तथा व्यापारिक बैकों पर नियंत्रण रखता है। इसकी स्थापना 1 अप्रैल 1935 में हुई थी। रिज़र्व बैंक देश के आर्थिक विकास से संबंधित निर्णय लेता है। इसके मुख्य कार्य इस प्रकार हैं-
1. मौद्रिक नीति का निर्माण (Formulation of Monetary Policy)-आर०बी०आई० देश में मौद्रिक नीति का निर्माण करता है। इस नीति के संचालन तथा बदलाव सम्बन्धी सभी निर्णय केंद्रीय बैंक द्वारा लिए जाते हैं।

2. करंसी का प्रकाशन (Issue of Currency)-रिज़र्व बैंक का सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य करंसी को छाप कर देश में प्रचलित करना होता है। जब करंसी चलने योग्य नहीं रहती तो उसके स्थान पर नई करंसी को छाप कर देश में चलाया जाता है।

3. बैंकों का बैंक (Bankers Bank)-भारत में रिज़र्व बैंक व्यापारिक बैंकों का बैंक होता है। यह व्यापारिक बैंकों की अधिक जमा रकम को अपने पास जमा करता है और जरूरत पड़ने पर बैंकों को उधार भी देता है। व्यापारिक बैंकों का मुख्य कार्य उधार निर्माण (Credit Creation) द्वारा लाभ प्राप्त करना होता है। इसलिए केंद्रीय बैंक व्यापारिक बैंकों के उधार निर्माण के लिए नकद राखवीं अनुपात (Cash Reserve Ratio), रैपो रेट (Rapo-Rate) और खुले बाजार की नीति (Open Market Operation) द्वारा उधार पर नियंत्रण रखता है।

4. वित्त प्रणाली की देखभाल (Supervision of Financial System) देश में वित्त प्रणाली की निगरानी करना भी रिज़र्व बैंक का ही कार्य है। इस प्रकार देश में सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में वृद्धि का यत्न किया जाता है।

5. सरकार का बैंक (Bank of the Government)-सरकार के वित्तीय निर्णय केंद्रीय बैंक द्वारा ही लिए जाते हैं। सरकार की आय को एकत्रित करना, व्यय करना, उधार देना आदि मुख्य कार्य रिज़र्व बैंक ही करता है।

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6. विदेशी पूंजी का संचालक (Controller of Foreign Exchange)-विदेशी पूँजी का संचालन भी – रिज़र्व बैंक द्वारा किया जाता है। विदेशों से जो मुद्रा प्राप्त होती है उसको रिज़र्व बैंक में ही रखा जाता है। विदेशों को विदेशी मुद्रा के रूप में भुगतान भी रिज़र्व बैंक ही करता है।

प्रश्न 6.
रिज़र्व बैंक उधार नियंत्रण कैसे करता है ? (How Does Reserve Bank Control Credit ?)
उत्तर-
रिज़र्व बैंक देश में उधार नियंत्रण करता है। इस उद्देश्य की पूर्ति हेतू निम्नलिखित ढंगों का प्रयोग किया जाता है।
1. रैपो रेट (Rapo-Rate)-रैपो रेट वह ब्याज की दर है जो कि व्यापारिक बैंकों को उधार देते समय प्राप्त की जाती है। जब रैपों रेट कम किया जाता है तो व्यापारिक बैंक भी उधार देने के लिए ब्याज की दर कम कर देते हैं। इससे उधार का प्रसार होता है। यदि रिज़र्व बैंक यह चाहता है कि उधार निर्माण कम हो तो रैपो रेट बढ़ा दिया जाता है। इससे व्यापारिक बैंक भी ब्याज की दर बढ़ा देते हैं और निवेशक कम उधार लेना शुरू कर देते हैं। 27 मार्च, 2020 को रेपो रेट 4.4% था। परन्तु करोना बिमारी फैलने के बाद 17 अप्रैल को रैपो रेट और घटा कर 4% की गई ताकि निवेशक अधिक निवेश करें। यह कम अवधि के लिए होता है। 6 फरवरी, 2021 को मौद्रिक नीति में रैपो रेट 4% ही रखी गई है।

2. रिवर्स रेपो रेट (Reverse Rapo Rate)-जब व्यापारिक बैंक अपना अधिक धन रिज़र्व बैंक के पास रखते हो तो जो ब्याज की दर रिज़र्व बैंक जमा रकम पर देता है उसे रिवर्स रेपो रेट कहते हैं। व्यापारिक बैंक अधिक उधार बाज़ार में देने के स्थान पर रिज़र्व बैंक को देते हैं क्योंकि वहां धन सुरक्षित होता है। यह भी कम अवधि के लिए होता है। 6 फरवरी, 2021 को मौद्रिक नीति की घोषणा में रिवर्स रेपो रेट 3.35% रखी गई है।

3. सट्रैचुटरी लिकुअड़ रेशो (Stratutory Liquid Ratio)-व्यापारिक बैंकों को अपनी जमा राशि का कुछ भाग तरल रूप सोना, चांदी, नकद और प्रतिभूतियों के रूप में भी रखना होता है, जिसको S.L.R. कहा जाता है। यदि रिज़र्व बैंक SLR में वृद्धि कर देता है तो व्यापारिक बैंकों की उधार शक्ति कम हो जाती है।

4. बैंक दर (Bank Rate)-इसको बट्टा दर (Discount Rate) भी कहा जाता है। यदि व्यापारिक बैंकों को दीर्घकाल के लिए धन की आवश्यकता होती है तो अपनी पहले दर्जे की प्रतिभूतियों को रिज़र्व बैंक के पास गिर्वी रखकर उधार ले सकते हैं। जो ब्याज की दर दीर्घकाल उधार पर ली जाती है उस को बैंक दर कहा जाता है। यदि रिज़र्व बैंक यह चाहता है कि उधार कम प्रचलन हो तो बैंक दर बढ़ा दी जाती है। यदि बैंक दर कम की जाती है तो इससे उधार निर्माण अधिक होता है।

5. नकद राखवी अनुपात (Cash Reserve Ratio) व्यापारिक बैंकों के पास जो बचत जमा होती है उस का एक निश्चित भाग रिज़र्व बैंक के पास नकदी के रूप में रखना ज़रूरी होता है। जिसको नकद राखवीं अनुपात (C.R.R.) कहते हैं। यदि रिज़र्व बैंक उधार निर्माण अधिक करना चाहता है तो नकद राखवीं अनुपात कम कर दी जाती है इससे बैकों के पास अधिक नकदी पहुंच जाती है और अधिक उधार निर्माण होता है।

6. तरल अनुकूलता सहूलत (Liquid Adjustment Facility)-यह विधि 2000 से प्रचलित की गई है। इस विधि के अनुसार रिज़र्व बैंक 5 करोड़ या 5 करोड़ की दर से 10, 15, 20, 25 करोड़ रुपए उधार दे सकता है। यदि बैंक को अचानक नकदी की ज़रूरत होती है। जोकि 15 दिन की सीमित होती है तो तरल अनुकूलता की विधि का प्रयोग किया जाता है।

7. खुले बाज़ार की नीति (Open Market Operation)-जब देश में उधार को नियंत्रण करना होता है तो रिज़र्व बैंक खुले बाजार की नीति का प्रयोग करता है। इस नीति के अनुसार जब बाज़ार में धन अधिक हो जाता है तो रिज़र्व बैंक अपनी प्रतिभूतियाँ खुले बाजार में बेचना शुरू कर देता है। जिस पर अच्छा ब्याज दिया जाता है। लोग रिज़र्व बैंक की प्रतिभूतियां (Securities) खरीद लेते हैं और बाज़ार में धन कम होता है। यदि उधार अधिक करना हो तो प्रतिभूतियां खरीदनी शुरू कर देता है।

8. सीमान्त ज़रूरतें (Marginal Requirements)-इस नीति के अनुसार रिज़र्व बैंक व्यापारिक बैंकों को आदेश देता है कि निश्चित वस्तुओं को गिर्वी रखकर उधार नहीं दिया जा सकता। जैसा कि गेहूँ, चावल आदि वस्तुओं को गिर्वी रख कर उधार नहीं दिया जा सकता। इस को उधार की सीमान्त शर्ते कहा जाता है।

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9. नैतिक प्रेरणा (Moral Suration)-रिज़र्व बैंक द्वारा समय-समय पर व्यापारिक बैंकों को निर्देश दिए जाते हैं और प्रेरित किया जाता है कि देश की स्थिति को देखते हुए अधिक उधार दें अथवा न दें। जब देश में मुद्रा स्फीति की स्थिति उत्पन्न हो जाती है तो रिज़र्व बैंक व्यापारिक बैंकों को कम उधार देने की प्रेरणा देता है। यदि कोई बैंक रिज़र्व बैंक के आदेश को नहीं मानता तो प्रत्यक्ष क्रिया (Direct Action) की जाती है। जैसा कि 2019 में महाराष्ट्र में पंजाब महाराष्ट्र कोप्रेटिव बैंक पर प्रतिबन्ध लगाया गया और 2020 में यैस बैंक (Yes Bank) पर प्रतिबन्ध लगाया गया था।

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