PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 17 स्वतन्त्रता के समय भारतीय अर्थव्यवस्था

Punjab State Board PSEB 12th Class Economics Book Solutions Chapter 17 स्वतन्त्रता के समय भारतीय अर्थव्यवस्था Textbook Exercise Questions, and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Economics Chapter 17 स्वतन्त्रता के समय भारतीय अर्थव्यवस्था

PSEB 12th Class Economics स्वतन्त्रता के समय भारतीय अर्थव्यवस्था Textbook Questions, and Answers

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

प्रश्न 1.
स्वतन्त्रता के समय भारतीय अर्थव्यवस्था की प्रकृति क्या थी ?
उत्तर-
डॉ० करम सिंह गिल के अनुसार, “स्वतन्त्रता के समय भारतीय अर्थव्यवस्था एक अल्पविकसित, गतिहीन, अर्द्ध-सामन्तवादी, घिसी हुई तथा खण्डित अर्थव्यवस्था थी।”

प्रश्न 2.
अर्थव्यवस्था की संरचना (Structive) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
अर्थव्यवस्था की आर्थिक स्थिति का ज्ञान उस अर्थव्यवस्था की संरचना से होता है। अर्थव्यवस्था की संरचना का अर्थ उसको उत्पादन के आधार पर क्षेत्रों में विभाजित करने से होता है।

प्रश्न 3.
स्वतन्त्रता के समय भारतीय कृषि की क्या दशा थी ?
अथवा
स्वतन्त्रता के समय प्राथमिक क्षेत्र की क्या अवस्था थी ?
उत्तर-
स्वतन्त्रता के समय कृषि देश का प्रमुख व्यवसाय बन गई परन्तु इसकी उत्पादकता इतनी कम थी कि भारत एक निर्धन देश बनकर रह गया।

प्रश्न 4.
स्वतन्त्रता के समय भारत का संरचनात्मक ढांचा अथवा मुख्य आर्थिक क्रियाएं क्या थी ?
उत्तर-
कृषि का महत्त्व बहुत अधिक था, जबकि उद्योगों का महत्त्व कम या तरश्री क्षेत्र अर्थात् सेवाएं यातायात, संचार, बैंकिंग, व्यापार इत्यादि का राष्ट्रीय आय में हिस्सा बहुत कम था।

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प्रश्न 5.
स्वतन्त्रता के समय प्राथमिक, द्वितीयक तथा तरश्री क्षेत्र के महत्त्व अनुसार भारतीय अर्थव्यवस्था का संरचनात्मक ढांचा किस तरह का था ?
उत्तर-
स्वतन्त्रता के समय प्राथमिक क्षेत्र द्वारा 1947 में राष्ट्रीय आय का 58.7% भाग उत्पादन किया गया। द्वितीयक क्षेत्रों द्वारा 14.3 प्रतिशत तथा तरश्री क्षेत्र द्वारा 27 प्रति भाग योगदान पाया गया।

प्रश्न 6.
प्राथमिक क्षेत्र से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
प्राथमिक क्षेत्र में

  • कृषि
  • जंगलात तथा छतरियां बनाना।
  • मछली पालन
  • खाने तथा खनन को शामिल किया जाता है।

इन चार प्रकार की क्रियाओं को प्राथमिक क्षेत्र कहते हैं। स्वतन्त्रता समय 72.7% लोग इस क्षेत्र में लगे हुए थे।

प्रश्न 7.
द्वितीयक क्षेत्र से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
द्वितीयक क्षेत्र में-

  • निर्माण उद्योग
  • बिजली तथा जल पूर्ति को शामिल किया जाता है।

इस क्षेत्र में स्वतन्त्रता के समय 10% लोग कार्य में लगे हुए थे।

प्रश्न 8.
तरश्री क्षेत्र से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
तरश्री क्षेत्र सेवाओं का क्षेत्र होता है। इस क्षेत्र में-

  • व्यापार
  • संचार
  • यातायात
  • स्टोर सुविधाएं
  • अन्य सेवाओं को शामिल किया जाता है।

स्वतन्त्रता के समय भारत में 2 प्रतिशत लोग तरश्री क्षेत्र में कार्य करते थे।

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प्रश्न 9.
प्राथमिक क्षेत्र में उद्योगों को शामिल किया जाता है।
उत्तर-
ग़लत।

प्रश्न 10.
स्वतन्त्रता के समय भारतीय अर्थव्यवस्था ………….
(a) अल्पविकसित और गतिहीन
(b) सामन्तवादी और घिसी हुई
(c) खण्डित
(d) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(d) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 11.
अर्थव्यवस्था की संरचना में ………………. क्षेत्र शामिल होता है।
(a) प्राथमिक क्षेत्र
(b) गौण क्षेत्र
(c) टरश्री क्षेत्र
(d) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(d) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 12.
स्वतन्त्रता के समय भारत में मुख्य पेशा …………. था।
उत्तर-
कृषि।

प्रश्न 13. स्वतन्त्रता के समय भारतीय अर्थव्यवस्था विकसित अर्थव्यवस्था थी।
उत्तर-
ग़लत।

प्रश्न 14.
प्राथमिक क्षेत्र में ………. को शामिल किया जाता है।
(a) कृषि
(b) जंगलात तथा छत्तरियाँ बनाना
(c) मछली पालन
(d) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(d) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 15.
द्वितीयक क्षेत्र में कृषि को शामिल किया जाता है।
उत्तर-
ग़लत।

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प्रश्न 16.
टरश्री क्षेत्र सेवाओं से सम्बन्धित क्षेत्र होता है।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 17.
अल्प-विकसित अर्थव्यवस्था वह अर्थव्यवस्था होती है जिसमें जीवन स्तर नीचा होता है, ग़रीबी है और प्रति व्यक्ति आय कम होती है।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 18.
गतिहीन अर्थव्यवस्था वह अर्थव्यवस्था होती है जिसमें आय में परिवर्तन की दर में बहुत कम परिवर्तन होता है।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 19.
स्वतन्त्रता के समय भारतीय अर्थव्यवस्था न तो पूर्ण सामन्तवादी थी और न ही पूर्ण पूंजीवादी थी बल्कि यह तो अर्द्ध-सामन्तवादी अर्थव्यवस्था थी।
उत्तर-
सही।

II. अति लप उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
स्वतन्त्रता के समय भारतीय अर्थव्यवस्था की कोई दो विशेषताएँ बताएं।
उत्तर-
1. पिछड़ी हुई, गतिहीन, अल्पविकसित अर्थव्यवस्था-डॉक्टर करम सिंह गिल के अनुसार, स्वतन्त्रता के समय भारतीय अर्थव्यवस्था पिछड़ी हुई, गतिहीन तथा अल्पविकसित अर्थव्यवस्था थी। 1947-48 में प्रति व्यक्ति आय 250 रु० के लगभग थी। ब्रिटिश शासन काल के सौ वर्षों में प्रति व्यक्ति आय की औसत वार्षिक वृद्धि दर 0.5 प्रतिशत के लगभग थी।

2. पिछड़ी हुई खेती-स्वतन्त्रता के समय भारत में 72% जनसंख्या कृषि पर कार्य करती थी। राष्ट्रीय आय का 57% भाग खेती द्वारा प्राप्त किया जाता था। कृषि की उत्पादकता बहुत कम थी। इसके कई कारण थे जैसे कि ज़मींदारी प्रथा, वर्षा पर निर्भरता, कृषि के पुराने ढंग तथा सिंचाई की कम सुविधाएं।

प्रश्न 2.
अल्पविकसित अर्थव्यवस्था से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
पिछड़ी हुई अर्थव्यवस्था (Underdeveloped Economy) स्वतन्त्रता के समय भारतीय अर्थव्यवस्था एक पिछड़ी हुई अर्थव्यवस्था थी। एक पिछड़ी हुई अर्थव्यवस्था वह अर्थव्यवस्था है जिसमें प्रति व्यक्ति आय बहुत कम होती थी। 1947-48 में भारत की प्रति व्यक्ति आय 230 रुपये के लगभग थी। देश की अधिकतर जनसंख्या बहुत अधिक निर्धन थी। लोगों को पेट भर भोजन नहीं मिलता था। रहने के लिए मकानों और पहनने के लिए कपड़ों का अभाव था। देश में अधिकतर लोग बेरोज़गार थे।

प्रश्न 3.
अर्द्ध सामन्तवादी अर्थव्यवस्था से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
अर्द्ध-सामन्तवादी अर्थव्यवस्था (Semi Feudal Economy)-कृषि में पूरी तरह अंग्रेज़ों ने ज़मींदारी प्रथा प्रारंभ करके भूमि के स्वामित्व के अधिकार ज़मींदार को दे दिए। वास्तविक काश्तकार का भूमि पर कोई कानूनी अधिकार नहीं रह गया। स्थायी बन्दोबस्त वाले क्षेत्रों में लगान हमेशा के लिए निश्चित था परन्तु भूमि का किराया बढ़ता जा रहा था। इसलिए काश्तकारों ने भूमि उपकाश्तकारों को लगान पर देनी आरंभ कर दी।

सरकार तथा वास्तविक काश्तकार के बीच बहुत-से बिचौलिए उत्पन्न हो गए। ये बिचौलिए बिना कोई परिश्रम किए किसान से उसके उत्पादन का काफ़ी भाग प्राप्त कर लिया करते थे। किसानों की अवस्था बहुत खराब थी। भारत के जिन भागों में रैयतवाड़ी तथा मेंहलवाड़ी प्रथा थी वहां भी बड़े-बड़े किसानों ने भूमि काश्त के लिए काश्तकारों को दे दी थी। इस प्रकार इन क्षेत्रों सभी बहुत-से बिचौलिए उत्पन्न हो गए थे। इस प्रकार सारे भारत में ही भूमिपति तथा काश्तकार के सामन्तवादी सम्बन्ध पापित हो गए।

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प्रश्न 4.
स्थिर अर्थव्यवस्था का क्या अर्थ है ?
उत्तर-
स्थिर अर्थव्यवस्था (Stagnent Economy)-अंग्रेज़ी शासन काल में भारतीय अर्थव्यवस्था लगभग स्थिरता की अवस्था में थी। प्रति व्यक्ति वार्षिक आय वृद्धि की दर 0.5% थी। जनसंख्या में वृद्धि दर काफ़ी ऊंची थी। समस्यापूर्ण अर्थव्यवस्था-स्वतन्त्रता के समय भारतीय अर्थव्यवस्था अनेक समस्याओं से घिरी हुई थी-जैसे शरणार्थियों के पुनः विस्थापन की समस्या, निर्धनता की समस्या, ऊँची कीमतों की समस्या, बेरोज़गारी की समस्या, खाद्यान्न की समस्या इत्यादि।

III. लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
स्वतन्त्रता के समय भारतीय अर्थव्यवस्था की प्रकृति को स्पष्ट करो।
उत्तर-
स्वतन्त्रता के समय भारतीय अर्थव्यवस्था की प्रकृति को डॉक्टर करम सिंह गिल ने निम्नलिखित अनुसार, स्पष्ट किया है-

  1. अल्पविकसित अर्थव्यवस्था-अल्पविकसित अर्थव्यवस्था वह अर्थव्यवस्था होती है जिसमें जीवन स्तर नीचा है, ग़रीबी है, प्रति व्यक्ति आय कम है, आर्थिक विकास की दर नीची है।
  2. गतिहीन अर्थव्यवस्था गतिहीन अर्थव्यवस्था वह अर्थव्यवस्था होती है, जिसमें प्रति व्यक्ति आय की दर में परिवर्तन बहुत कम होता है। भारत में बर्तानवी शासन दौरान प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि लगभग 0.5% वार्षिक दर पर हुई।
  3. अर्द्ध-सामन्तवादी अर्थव्यवस्था-अंग्रेजों ने भारत में जागीरदारी प्रथा द्वारा इसको अर्द्ध-सामन्तवादी अर्थव्यवस्था बना दिया।
  4. घिसी हुई अर्थव्यवस्था-एक अर्थव्यवस्था में साधनों का अधिक प्रयोग होने के कारण उनमें घिसावट तथा टूट-फूट हो जाती है। भारत में साधनों का प्रयोग दूसरे महायुद्ध समय किया गया।
  5. खण्डित अर्थव्यवस्था-स्वतन्त्रता समय भारत के दो भाग हो गए। भारत तथा दूसरा पाकिस्तान। इसको बिखरी हुई अर्थव्यवस्था कहा जाता है।

प्रश्न 2.
स्वतन्त्रता समय भारतीय कृषि की क्या दशा थी?
उत्तर-
स्वतन्त्रता समय भारत की कृषि पिछड़ी हुई दशा में थी। 1947 में भारत की केवल 13 करोड़ हेक्टेयर भूमि पर कृषि की जाती थी। इससे 527 लाख टन अनाज का उत्पादन किया जाता था। भारत में सिंचाई, बीज, खाद्य, आधुनिक तकनीकें, साख इत्यादि का कम प्रयोग किया जाता था। कृषि का व्यापारीकरण हो गया था अर्थात् कृषि जीवन निर्वाह की जगह पर बाज़ार में बिक्री के लिए की जाती थी। भूमि पर जनसंख्या का बहुत भार था। किसानों पर लगान का भार बहुत अधिक होने के कारण ऋण में फंसे हुए थे। देश की 70% जनसंख्या कृषि पर निर्भर थी।

प्रश्न 3.
स्वतन्त्रता के समय भारतीय उद्योगों की क्या दशा थी?
उत्तर-
स्वतन्त्रता के समय भारतीय उद्योग पिछड़ी हुई दशा में थे। ब्रिटिश पूंजी की मदद से कुछ उपभोक्ता वस्तुओं के उद्योग स्थापित किए गए। इनमें कपड़ा, उद्योग, चीनी उद्योग, माचिस उद्योग, जूट उद्योग इत्यादि महत्त्वपूर्ण हैं। स्वतन्त्रता के समय कपड़े का उत्पादन 428 करोड़ वर्गमीटर, चीनी का 10 लाख टन तथा सीमेंट का उत्पादन 26 लाख टन हुआ।

कुछ नियति प्रोत्साहन उद्योग स्थापित हो चुके थे, क्योंकि बागान तथा खानों के उद्योगों का विकास किया गया। इन उद्योगों से प्राप्त लाभ बर्तानियों को भेजा जाता था। स्वतन्त्रता समय भारत में 12.5% जनसंख्या उद्योगों में लगी हुई थी। जबकि अमरीका में 32% तथा इंग्लैंड में 42% लोग उद्योगों के कार्य करते थे। अंग्रेज़ी शासन से पहले भारत के कुटीर उद्योग कलात्मक उत्पादन के लिए विश्वभर में प्रसिद्ध थे, परन्तु अंग्रेज़ी नीति के परिणामस्वरूप उनका पतन हो गया।

प्रश्न 4.
स्वतन्त्रता के समय भारतीय अर्थव्यवस्था में उत्पादन तथा व्यावसायिक ढांचे की व्याख्या करो।
उत्तर-
स्वतन्त्रता के समय भारत में उत्पादन (Output) का विवरण इस प्रकार है-

  1. प्राथमिक क्षेत्र (Primary Sector)-प्रथमिक क्षेत्र द्वारा 1947 में राष्ट्रीय आय में 58.7 प्रतिशत योगदान पाया गया। इस क्षेत्र में कृषि, जंगलात तथा लंठा बनाना, मछली पालन तथा खानों को शामिल किया जाता है। राष्ट्रीय आय में इस क्षेत्र का अधिक योगदान इस बात का प्रतीक है कि भारतीय अर्थव्यवस्था पिछड़ी हुई थी।
  2. द्वितीयक क्षेत्र (Secondary Sector)-स्वतन्त्रता समय द्वितीयक क्षेत्र द्वारा राष्ट्रीय उत्पादन में 14.3% योगदान था। इसमें उद्योग बिजली तथा जल पूर्ति को शामिल किया जाता है।
  3. तरी क्षेत्र (Territary Sector)-इस क्षेत्र में बैंक, बीमा कम्पनियों इत्यादि सेवाओं को शामिल किया जाता है, जिसके द्वारा राष्ट्रीय आय अथवा उत्पादन में 27% योगदान पाया गया। व्यावसायिक वितरण (Occupational Distribution) भारत में 72.7 प्रति जनसंख्या प्राथमिक क्षेत्र में और 10.1 प्रतिशत जनसंख्या सेवा क्षेत्रों में लगी हुई थी।

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प्रश्न 5.
स्वतन्त्रता के समय बर्तानवी राज्य द्वारा बस्तीवादी लूट-खसूट के रूपों का वर्णन करो।
अथवा
स्वतन्त्रता के समय भारतीय अर्थव्यवस्था के पिछड़ेपन का मुख्य कारण बताओ।
उत्तर-
स्वतन्त्रता के समय भारतीय अर्थव्यवस्था के पिछड़ेपन का मुख्य कारण देश में अंग्रेजों का लगभग 200 वर्ष का शासन तथा बस्तीवादी लूट-खसूट तथा शोषण था। भारतीय अर्थव्यवस्था की लूट-खसूट तथा शोषण निम्नलिखित अनुसार किया गया-

  1. विदेशी व्यापार द्वारा शोषण-ब्रिटिश सरकार ने विदेशी व्यापार की ऐसी नीति अपनाई, जिस द्वारा कच्चा माल भारत से प्राप्त किया जाता था तथा तैयार माल भारत में बेचा जाता था। इस कारण इंग्लैंड तथा उद्योग विकसित हुए।
  2. हस्तशिल्प तथा लघु उद्योगों का विनाश-अंग्रेज़ी शासन से पहले भारत में हस्तशिल्पकला तथा लघु उद्योग बहुत विकसित थे। अंग्रेजों ने इंग्लैण्ड में बने तैयार माल को कम मूल्य पर बेचकर भारत के हस्तशिल्प तथा लघु उद्योगों का विनाश किया।
  3. लगान का दुरुपयोग- भारत में ज़मींदारी प्रथा आरम्भ की गई। इससे ब्रिटिश शासन को लगान के रूप में बहुत सी राशि प्राप्त हो जाती थी। उसका प्रयोग भारत में किए जाने वाले माल पर खर्च किया गया।
  4. प्रबन्ध पर फिजूलखर्च-अंग्रेजी सरकार ने अंग्रेजों को भारत के प्रशासन तथा सेना पर बहुत खर्च किया। उपनिवेश के रूप में भारत को पहले विश्व युद्ध (1914-18) तथा दूसरे विश्वयुद्ध (1939-45) दोनों में भाग लेना पड़ा तथा भार भी भारत का सहन करना पड़ा। भारतीय अर्थव्यवस्था के पिछड़ेपन का मुख्य कारण भारत की लूट-खसूट थी, जिसको दादा भाई नौरोजी ने निकास सिद्धान्त का नाम दिया है।

IV. दीर्य उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
स्वतन्त्रता के समय भारतीय अर्थव्यवस्था की क्या विशेषताएं थीं?
(What were the features of Indian Economy on the eve of Independence ?)
उत्तर-
स्वतन्त्रता के समय भारतीय अर्थव्यवस्था की विशेषताएँ-स्वतन्त्रता के समय भारतीय अर्थव्यवस्था की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखितानुसार थीं
1. पिछड़ी हुई, गतिहीन, अल्पविकसित अर्थव्यवस्था-डॉक्टर करम सिंह गिल के अनुसार, स्वतन्त्रता के समय भारतीय अर्थव्यवस्था पिछड़ी हुई, गतिहीन तथा अल्पविकसित अर्थव्यवस्था थी। 1947-48 में प्रति व्यक्ति आय 250 रु० के लगभग थी। ब्रिटिश शासन काल के सौ वर्षों में प्रति व्यक्ति आय की औसत वार्षिक वृद्धि दर 0.5 प्रतिशत के लगभग थी।

2. पिछड़ी हुई खेती-स्वतन्त्रता के समय भारत में 72% जनसंख्या कृषि पर कार्य करती थी। राष्ट्रीय आय का 57% भाग खेती द्वारा योगदान पाया जाता था। कृषि की उत्पादकता बहुत कम थी। इसके कई कारण थे जैसे कि ज़मींदारी प्रथा, वर्षा पर निर्भरता, कृषि के पुराने ढंग तथा सिंचाई की कम सुविधाएं।

3. औद्योगिक पिछड़ापन-स्वतन्त्रता के समय औद्योगिक दृष्टिकोण से भारतीय अर्थव्यवस्था बहुत पिछड़ी हुई थी। देश में बुनियादी तथा आधारभूत उद्योगों की कमी थी। देश में उपभोक्ता उद्योग जैसे कि सूती कपड़ा, चीनी, पटसन, सीमेंट इत्यादि मुख्य थे, परन्तु इन उद्योगों में उत्पादन कम किया जाता था।

4. घरेलू तथा छोटे पैमाने के उद्योगों का पतन-ब्रिटिश शासन से पहले भारत में घरेलू तथा छोटे पैमाने के उद्योग विकसित थे, जिन द्वारा कलात्मक वस्तुओं का उत्पादन किया जाता था। इन वस्तुओं की विश्वभर में मांग की जाती थी। अंग्रेजों को बड़े पैमाने पर तैयार सामान भारत में भेजकर भारत के घरेलू तथा छोटे पैमाने के उद्योगों को नष्ट कर दिया।

5. सामाजिक ऊपरी पूंजी का कम विकास-सामाजिक ऊपरी पूंजी का अर्थ रेलवे, यातायात के अन्य साधन, सड़कों, बैंकों इत्यादि के विकास से होता है, उस समय 97500 मील पक्की सड़कें 33.86 मीटर लम्बी रेलवे लाइन थी। बिजली का उत्पादन 20 लाख किलोवाट था तथा सिर्फ 3000 गांवों में बिजली की सुविधा थी। इस प्रकार सामाजिक ऊपरी पूंजी की कमी थी।

6. सीमित विदेशी व्यापार-1947-48 में 792 करोड़ रु० का विदेशी व्यापार किया गया। भारत में से कच्चा माल तथा कृषि पैदावार की वस्तुओं का निर्यात किया जाता था। निर्यातों में सूती कपड़ा, कपास, अनाज, पटसन, चाय इत्यादि वस्तुएं शामिल थीं। भारत का विदेशी व्यापार अनुकूल था। इंग्लैंड तथा राष्ट्र मण्डल के अन्य देशों से भारत मुख्य तौर पर व्यापार करता था।

7. व्यावसायिक रचना-भारत में स्वतन्त्रता के समय 72.7 प्रतिशत जनसंख्या प्राथमिक क्षेत्र 10.1%, द्वितीयक क्षेत्र तथा 17.2% जनसंख्या सेवा क्षेत्रों में कार्य करती थी। इससे पता चलता है कि स्वतन्त्रता के समय कृषि लोगों का मुख्य पेशा था तथा उद्योग कम विकसित थे।

8. उत्पादन संरचना-स्वतन्त्रता के समय भारत में प्राथमिक क्षेत्र का योगदान 58.7% था। इसमें कृषि, जंगल, मछली पालन तथा खनिज शामिल थे। द्वितीयक क्षेत्र का योगदान 14.3% तथा सेवा क्षेत्र का योगदान 27 प्रतिशत था। इस संरचना से पता चलता है कि प्राथमिक क्षेत्र का योगदान अधिकतम था जोकि भारत के पिछड़ेपन का सूचक है।

9. जनसंख्या की समस्या-स्वतन्त्रता के समय भारत की जनसंख्या लगभग 36 करोड़ थी। देश में 83% जनसंख्या अनपढ़ थी। जन्म दर 40 प्रति हज़ार तथा मृत्यु दर 27 थी। अधिक जन्मदर तथा मृत्युदर पिछडेपन का सचक थी।

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10. पूंजी निर्माण की कम दर-स्वतन्त्रता के समय भारत में बचत तथा निवेश दर 7% थी इस कारण भी भारतीय अर्थव्यवस्था आर्थिक तौर पर पिछड़ी हुई थी।

प्रश्न 2.
स्वतन्त्रता के समय भारतीय अर्थव्यवस्था की प्रकृति को स्पष्ट करें। (Discuss the nature of Indian Economy on the eve of Independence.)
उत्तर-
भारत में स्वतन्त्रता के समय अर्थव्यवस्था की हालत का वर्णन करते हुए डॉक्टर करम सिंह गिल ने कहा है, “स्वतन्त्रता के समय भारतीय अर्थव्यवस्था एक अल्पविकसित, गतिहीन, अर्द्धसामन्ती अर्थव्यवस्था थी।”
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 17 स्वतन्त्रता के समय भारतीय अर्थव्यवस्था 1
1. पिछड़ी हुई अर्थव्यवस्था (Underdeveloped Economy) स्वतन्त्रता के समय भारतीय अर्थव्यवस्था एक पिछड़ी हुई अर्थव्यवस्था थी। एक पिछड़ी हुई अर्थव्यवस्था वह अर्थव्यवस्था है जिसमें प्रति व्यक्ति आय बहुत कम होती थी। 1947-48 में भारत की प्रति व्यक्ति आय 230 रुपये के लगभग थी। देश की अधिकतर जनसंख्या बहुत अधिक निर्धन थी। लोगों को पेट भर भोजन नहीं मिलता था। रहने के लिए मकानों और पहनने के लिए कपड़ों का अभाव था। देश में अधिकतर लोग बेरोज़गार थे।

2. अर्द्ध-सामन्तवादी अर्थव्यवस्था (Semi Feudal Economy)-कृषि में पूरी तरह अंग्रेजों ने जमींदारी प्रथा प्रारंभ करके भूमि के स्वामित्व के अधिकार ज़मींदार को दे दिए। वास्तविक काश्तकार का भूमि पर कोई कानूनी अधिकार नहीं रह गया। स्थायी बन्दोबस्त वाले क्षेत्रों में लगान हमेशा के लिए निश्चित था परन्तु भूमि का किराया बढ़ता जा रहा था। इसलिए काश्तकारों ने भूमि उपकाश्तकारों को लगान पर देनी आरंभ कर दी। सरकार तथा वास्तविक काश्तकार के बीच बहुत-से बिचौलिए उत्पन्न हो गए।

ये बिचौलिए बिना कोई परिश्रम किए किसान से उसके उत्पादन का काफ़ी भाग प्राप्त कर लिया करते थे। किसानों की अवस्था बहुत खराब थी। भारत के जिन भागों में रैयतवाड़ी तथा महलवाड़ी प्रथा थी वहां भी बड़े-बड़े किसानों ने भूमि काश्त के लिए काश्तकारों को दे दी थी। इस प्रकार इन क्षेत्रों में भी बहुतसे बिचौलिए उत्पन्न हो गए थे। इस प्रकार सारे भारत में ही भूमिपति तथा काश्तकार के सामन्तवादी सम्बन्ध स्थापित हो गए।

3. विच्छेदित अर्थव्यवस्था (Disintegrated Economy)-स्वतन्त्रता के समय भारतीय अर्थव्यवस्था एक विच्छेदित अर्थव्यवस्था थी। 1947 में जब ब्रिटिश शासन का अन्त हुआ तो इस देश की अर्थव्यवस्था का भारतीय अर्थव्यवस्था तथा पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था में विभाजन कर दिया गया था। विभाजन ने देश की अर्थव्यवस्था को अस्त-व्यस्त कर दिया था। अविभाजित भारत का 77 प्रतिशत क्षेत्रफल तथा 81 प्रतिशत जनसंख्या भारत के हिस्से में आई।

इसके विपरीत 23 प्रतिशत क्षेत्रफल तथा 19 प्रतिशत जनसंख्या पाकिस्तान के हिस्से में आई। देश का गेहूं, कपास तथा जूट पैदा करने वाला अधिकतर भाग पाकिस्तान के हिस्से में चला गया। परन्तु अधिकतर कारखाने भारत के हिस्से में रह गये। विभाजन का एक प्रभाव तो यह हुआ कि कपड़े बनाने वाले कारखाने तो भारत में रह गये, परन्तु कपास पैदा करने वाले पश्चिमी पंजाब तथा सिंध के क्षेत्र पाकिस्तान के हिस्से में आये। जूट के कारखाने कलकत्ता (कोलकाता) में थे परन्तु पटसन पैदा करने वाले खेत पूर्वी बंगाल में थे जो पाकिस्तान का एक भाग बन गया था। इस प्रकार भारत को अपने कारखानों के लिए कच्चा माल आयात करने के लिए पाकिस्तान पर निर्भर रहना पड़ा।

4. विहसित अर्थव्यवस्था (Deprecrated Economy) स्वतन्त्रता के अवसर पर भारतीय अर्थव्यवस्था एक विह्रसित अर्थव्यवस्था थी। प्रत्येक अर्थव्यवस्था के साधनों का अधिक प्रयोग करने से उनमें घिसावट तथा टूट-फूट हो जाती है। परन्तु यदि किसी अर्थव्यवस्था के साधनों की घिसावट को दूर करने का कोई प्रबन्ध नहीं किया जाता तो अर्थव्यवस्था में पूंजी निर्माण की मात्रा कम हो जाती है। इसके फलस्वरूप उत्पादन क्षमता भी कम हो जाती है।

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ऐसी अर्थव्यवस्था को विह्रसित अर्थव्यवस्था कहा जाता है। दूसरे महायुद्ध के पश्चात् भारतीय अर्थव्यवस्था एक विह्रसित अर्थव्यवस्था बन गई थी। महायुद्ध के दौरान मशीनरी तथा अन्य औज़ारों का बहुत अधिक उपयोग किया गया। इसके फलस्वरूप इनमें घिसाई तथा टूट-फूट बहुत अधिक हुई। इन मशीनों को बदलने के लिए नयी मशीनें विदेशों से आयात की जानी थीं क्योंकि भारत में मशीनों का उत्पादन नहीं था। परन्तु युद्ध के कारण विदेशों से मशीनों का आयात करना सम्भव नहीं था, इसलिए भारत से काफ़ी उद्योगों की मशीनें बेकार हो गईं, इन उद्योगों की उत्पादन क्षमता कम हो गई।

5. स्थिर अर्थव्यवस्था (Stagnent Economy)-अंग्रेजी शासन काल में भारतीय अर्थव्यवस्था लगभग स्थिरता की अवस्था में थी। प्रति व्यक्ति वार्षिक आय वृद्धि की दर 0.5% थी। जनसंख्या में वृद्धि दर काफ़ी ऊंची थी। समस्यापूर्ण अर्थव्यवस्था-स्वतन्त्रता के समय भारतीय अर्थव्यवस्था अनेक समस्याओं से घिरी हुई थी-जैसे शरणार्थियों के पुनः विस्थापन की समस्या, निर्धनता की समस्या, ऊँची कीमतों की समस्या, बेरोज़गारी की समस्या, खाद्यान्न की समस्या इत्यादि।

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