Punjab State Board PSEB 12th Class Economics Book Solutions Chapter 16 विदेशी विनिमय दर Textbook Exercise Questions, and Answers.
PSEB Solutions for Class 12 Economics Chapter 16 विदेशी विनिमय दर
PSEB 12th Class Economics विदेशी विनिमय दर Textbook Questions, and Answers
I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)
प्रश्न 1.
विदेशी विनिमय भण्डार से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
विदेशी मुद्रा तथा सोने के भण्डार को विदेशी विनिमय कहते हैं।
प्रश्न 2.
विदेशी विनिमय दर से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
प्रो० क्राऊथर के शब्दों में, “विदेशी विनिमय दर उस दर का माप है कि एक मुद्रा की इकाई के बदले दूसरी मुद्रा की कितनी इकाइयाँ मिलती हैं।”
प्रश्न 3.
सन्तुलन विनिमय दर से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
सन्तुलन विनिमय दर दो मुद्राओं में वह विनिमय दर है, जहां पर विदेशी मुद्रा की माँग और विदेशी मुद्रा की पूर्ति एक-दूसरे के बराबर हो जाती है।
प्रश्न 4.
विदेशी मुद्रा बाजार की परिभाषा दें।
उत्तर-
विदेशी मुद्रा बाज़ार वह बाज़ार है, जिसमें विभिन्न देशों की मुद्राओं को बेचा-खरीदा जाता है।
प्रश्न 5.
विदेशी मुद्रा बाज़ार की भूमिकाएँ बताएँ।
उत्तर-
यह बाज़ार क्रय शक्ति के अंतरण, साख सुविधा और जोखिम से बचाव आदि भूमिकाएं निभाता है।
प्रश्न 6.
विदेशी मुद्रा बाज़ार में सन्तुलन कैसे स्थापित होता है ?
उत्तर-
स्वतन्त्र रूप से उच्चावचन कर रहे मुद्रा बाज़ार में विदेशी मुद्राओं की माँग तथा पूर्ति से सन्तुलन स्थापित होता है।
प्रश्न 7.
स्थिर विनिमय दर से क्या भाव है ?
उत्तर-
स्थिर विनिमय दर वह दर होती है, जो देश की सरकार द्वारा निर्धारित की जाती है।
प्रश्न 8.
समता मान क्या है ?
उत्तर-
मुद्रा की इकाई में स्वर्ण मान की समानता के आधार पर निर्धारित होने वाली विदेशी विनिमय दर को समता मान कहा जाता है।
प्रश्न 9.
विनिमय दर की ब्रैनवुड प्रणाली से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
1945 में ब्रैनवुड के स्थान पर अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (I.M.F.) की स्थापना के साथ हर एक देश की करंसी का मूल्य सोने के रूप में निर्धारण किया गया। इसे स्थिर विनिमय दर प्रणाली कहते हैं।
प्रश्न 10.
I.M.F. द्वारा स्थिर विनिमय दर कब तक प्रचलित रही ?
उत्तर-
स्थिर विनिमय दर 1946 से 1971 तक प्रचलित रही।
प्रश्न 11.
विश्व में 1972 के बाद विनिमय दर कैसे निर्धारण होती है ?
उत्तर-
विनिमय दर 1972 के बाद करंसी की माँग तथा पूर्ति द्वारा विदेशी विनिमय बाज़ार में निर्धारण होती है।
प्रश्न 12.
विदेशी मुद्रा में चालू बाज़ार (Spot Market) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
यदि विदेशी मुद्रा की प्रकृति दैनिक किस्म की हो तो इसको चालू बाज़ार कहते हैं।
प्रश्न 13.
बढ़ोत्तरी बाज़ार से क्या अभिप्राय है ? ।
उत्तर-
यदि विदेशी मुद्रा का भुगतान भविष्य में करना होता है तो इसको बढ़ौत्तरी बाज़ार (Forward Market) कहा जाता है।
प्रश्न 14.
चलत सीमा बन्ध (Crawling Peg) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
चलत सीमा बन्ध एक ऐसी स्थिति है, जिसमें देश की करंसी के मूल्य में 1% तक परिवर्तन किया जा सकता है।
प्रश्न 15.
प्रबन्धित तरल चलिता (Managed Floting) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
प्रबन्धित तरल चलिता ऐसी स्थिति है, जिसमें करंसी का मूल्य नियमों तथा अधिनियमों के अनुसार ही निर्धारण किया जा सकता है और परिवर्तन सीमा नहीं होती।
प्रश्न 16.
NEER (Nominal Effective Exchange Rate) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
किसी मुद्रा की औसत सापेक्ष शक्ति का मान प्रभावी विनिमय दर कहा जाता है।
प्रश्न 17.
REER (Real Effective Exchange Rate) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
वास्तविक प्रभावी विनिमय दर (REER) वास्तविक विनिमय दर होती है। यह प्रचलित कीमतों पर आधारित होती है।
प्रश्न 18.
RER (Real Exchange Rate) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
वास्तविक विनिमय दर (RER) का अर्थ स्थिर कीमतों पर आधारित विनिमय दर से होता है। इसमें कीमत परिवर्तन के प्रभाव को दूर किया जाता है।
प्रश्न 19.
अवमूल्यन क्या है ?
उत्तर-
सरकार द्वारा अपने देश की मुद्रा का मूल्य विदेशी मुद्रा के मुकाबले कम करना ही अवमूल्यन होता है।
प्रश्न 20.
वह विनिमय दर जो देश की सरकार द्वारा निर्धारण की जाती है इसको ………….. कहते हैं।
(क) स्थिर विनिमय दर
(ख) परिवर्तनशील विनिमय दर
(ग) अनुमानित विनिमय दर
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(क) स्थिर विनिमय दर।
प्रश्न 21.
विनिमय दर का सन्तुलन ………………. द्वारा स्थापित होता है।
(क) सरकार
(ख) विश्व बैंक
(ग) केन्द्रीय बैंक
(घ) मांग तथा पूर्ति।
उत्तर-
(घ) मांग तथा पूर्ति।
प्रश्न 22.
विदेशी मुद्रा और सोने के भंडार को विदेशी मुद्रा कहा जाता है।
उत्तर-
सही।
प्रश्न 23. मुद्रा की एक इकाई में सोने की समानता के आधार पर निर्धारण होने वाली विदेशी विनिमय दर को समता मान कहा जाता है।
उत्तर-
सही।
प्रश्न 24.
जब विदेशी मुद्रा की प्रकृति दैनिक किस्म की हो तो इस को चालू बाज़ार कहा जाता है।
उत्तर-
सही।
प्रश्न 25.
सरकार द्वारा अपने देश की मुद्रा का मूल्य विदेशी मुद्रा की तुलना में बढ़ाने को अवमूल्यन कहते ङ्केहैं।
उत्तर-
ग़लत।
प्रश्न 26.
विनिमय दर से अभिप्राय अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा बाजार में एक करंसी की बाकी करंसियों के रूप में
(क) कीमत से है
(ख) विनिमय के अनुपात से है
(ग) दोनों (क) और (ख)
(घ) वस्तु विनिमय से है।
उत्तर-
(क) कीमत से है।
II. अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)
प्रश्न 1.
विदेशी विनिमय दर से क्या भाव है ?
उत्तर-
प्रो० क्राऊघर के शब्दों में, “विनिमय दर इसका माप है कि एक मुद्रा की इकाई के बदले में दूसरी मुद्रा की कितनी और इकाइयां मिलती हैं। विनिमय दर उस दर को कहते हैं जिससे एक देश की करेन्सी की एक इकाई के बदले विदेशी मुद्रा की कितनी और इकाइयां मिल सकती हैं।”
प्रश्न 2.
विदेशी मुद्रा बाज़ार को परिभाषित करो।
उत्तर-
विदेशी मुद्रा बाज़ार वह बाज़ार है जहां भिन्न-भिन्न राष्ट्रों की मुद्रा का व्यापार होता है। हर एक देश अपनी मुद्रा को बेचकर दूसरे देश की मुद्रा की खरीद करता है ताकि विदेशों से वस्तुएं और सेवाएं आयात की जा सकें। जिस बाज़ार में अलग-अलग देशों की मुद्रा का विनिमय किया जाता है उस बाज़ार को विदेशी मुद्रा बाज़ार कहा जाता है।
प्रश्न 3.
सन्तुलन विनिमय दर से क्या भाव है ?
उत्तर-
सन्तुलन विनिमय दर दो मुद्रा में वह विनिमय दर है जहां पर विदेशी मुद्रा की मांग और विदेशी मुद्रा की पूर्ति एक-दूसरे के बराबर होती है। विनिमय दर वह दर होती है जिससे एक देश की मुद्रा का विनिमय दूसरे देश की मुद्रा के साथ किया जाता है।
प्रश्न 4.
बढ़ौत्तरी बाज़ार (Forward Market) से क्या भाव है ?
उत्तर-
बढ़ौत्तरी बाज़ार वह बाज़ार है जिसमें विदेशी मुद्रा की खरीद-बेच की वृद्धि तो आज की जाती है परन्तु खरीद बेच निश्चित पहले निर्धारित समय के बाद की जाती है। इस बाज़ार में भविष्य की विनिमय दर का उल्लेख आज fabell GIII (A forward market is that in which the foreign exchange is promised to be delivered in future.)
प्रश्न 5.
विदेशी मुद्रा के चालू बाज़ार और वृद्धि बाज़ार में अन्तर करो।
उत्तर-
विदेशी मुद्रा का चालू बाज़ार वह बाज़ार होता है जहां दैनिक स्वभाव की खरीद बेच रोज़ाना की है। बढ़ौत्तरी बाज़ार में समझौता आज किया जाता है। परन्तु विदेशी मुद्रा की खरीद-बेच भविष्य में निश्चित समय के बाद होती है।
प्रश्न 6.
चलत सीमा बन्ध (Crawling Peg) और पबंदित तरलचलिता (Manged Float) में अन्तर बताएँ।
उत्तर-
चलत सीमा बन्ध एक ऐसी स्थिति होती है जिसमें देश की करेन्सी का मूल्य 1% परिवर्तन किया जा सकता है। पबंधित तरलचलिता एक ऐसी स्थिति होती है जिसमें करेन्सी का मूल्य नियमों तथा अर्धनियमों के अनुसार ही किया जा सकता है तथा परिवर्तन सीमा नहीं होती।
प्रश्न 7.
विदेशी मुद्रा की मांग क्यों की जाती है ?
उत्तर-
विदेशी मुद्रा की मांग निम्नलिखित कारणों से की जाती है-
- बाकी विश्व से वस्तुएं तथा सेवाएं आयात करने के लिए।
- बाकी विश्व को अनुदान देने के लिए।
- बाकी विश्व में निवेश करने के लिए।
- अन्तर्राष्ट्रीय ऋण का भुगतान करने के लिए।
प्रश्न 8.
विदेशी मुद्रा की पूर्ति के स्त्रोत बताएं।
उत्तर-
- घरेलू वस्तुओं की विदेशों में मांग हो तो वस्तुओं का निर्यात करके विदेशी मुद्रा प्राप्त होती है।
- विदेशी निवेशकों द्वारा देश में किया गया प्रत्यक्ष विदेशी निवेश।
- देश के नागरिकों द्वारा विदेशों में काम करके विदेशी मुद्रा का हस्तांतरण।
प्रश्न 9.
विदेशी विनिमय दर का सन्तुलन कैसे निर्धारित होता है ?
उत्तर-
विदेशी विनिमय दर का सन्तुलन दर को विदेशी मुद्रा की मांग तथा पूर्ति निर्धारण करती है।
प्रश्न 10.
स्थिर विनिमय दर से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
स्थिर विनिमय दर वह दर है जो कि देश की सरकार द्वारा निर्धारण की जाती है और विनिमय दर में परिवर्तन भी सरकार द्वारा ही किया जाता है। करेंसी का मूल्य, उसमें छुपी हुई सोने की मात्रा के अनुसार निश्चित किया जाता है।
प्रश्न 11.
लोचशील विनिमय दर से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
लोचशील विनिमय दर वह दर है जो कि देश मुद्रा की मांग तथा पूर्ति द्वारा निर्धारण होती है। जिस बाज़ार में करेंसी की विनिमय दर निर्धारण होती है उस को विनिमय दर बाज़ार कहा जाता है। जिस प्रकार एक वस्तु की कीमत खुले बाज़ार में मांग तथा पूर्ति द्वारा निर्धारण होती है वैसे ही देश की करेंसी का मूल्य मांग तथा पूर्ति द्वारा निर्धारण होता है।
प्रश्न 12.
स्थिर विनिमय दर तथा लोचशील विनिमय दर में अन्तर बताएं।
उत्तर-
स्थिर विनिमय दर-स्थिर विनिमय दर वह दर है जो कि किसी देश की सरकार द्वारा निर्धारण की जाती है और इसमें परिवर्तन भी सरकार द्वारा ही किया जाता है। लोचशील विनिमय दर-लोचशील विनिमय दर वह दर है जो कि करेंसी की मांग तथा पूर्ति द्वारा निर्धारित होती है और इसमें परिवर्तन मांग तथा पूर्ति में तबदीली कारण होता है।
III. लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)
प्रश्न 1.
विदेशी मुद्रा बाजार से क्या भाव है ? विदेशी मुद्रा बाज़ार के मुख्य कार्य बताओ।
उत्तर-
विदेशी मुद्रा बाज़ार वह बाज़ार है जिसमें विदेशी मुद्रा का व्यापार किया जाता है। हर देश की मुद्रा की विनिमय दर उस मुद्रा की माँग और पूर्ति द्वारा निर्धारित होती है। विदेशी मुद्रा के मुख्य कार्य-
- हस्तांतरण कार्य-विदेशी मुद्रा बाज़ार का मुख्य कार्य भिन्न-भिन्न देशों की करन्सी के व्यापार द्वारा खरीद शक्ति का हस्तांतरण करना होता है।
- साख कार्य-विदेशी व्यापार करने के लिए विदेशी मुद्रा के रूप में साख मुद्रा का प्रबन्ध करना ही विदेशी ङ्के मुद्रा का मुख्य कार्य होता है।
- जोखिम से बचाव का कार्य-विदेशी मुद्रा के मूल्य में उतार-चढ़ाव के जोखिम के बाद का काम ही विदेशी मुद्रा बाज़ार करता है, जहां माँग तथा पूर्ति द्वारा विदेशी मुद्रा का मूल्य निश्चित हो जाता है।
प्रश्न 2.
विदेशी मुद्रा की माँग तथा पूर्ति के चार स्त्रोत बताओ।
अथवा
विदेशी मुद्रा की मांग क्यों की जाती है ? इसकी पूर्ति कैसे होती है ?
उत्तर-
विदेशी मुद्रा की माँग (Demand for Foreign Exchange)
- विदेशों के साथ आयात तथा निर्यात करने के लिए।
- विदेशों को तोहफे तथा ग्रांट भेजने के लिए।
- विदेशों में परिसम्पत्तियां (Assets) खरीदने के लिए।
- विदेशी मुद्रा के मूल्य में परिवर्तन के कारण लाभ कमाने के लिए।
विदेशी मुद्रा की पूर्ति (Supply of Foreign Exchange)
- विदेशी जब देश की वस्तुओं और सेवाओं की खरीद निर्यात के लिए करते हैं तो विदेशी मुद्रा की पूर्ति होती
- विदेशों द्वारा देश में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश करने के साथ विदेशी मुद्रा की पूर्ति होती है।
- विदेशी मुद्रा के व्यापारी लाभ कमाने के लिए विदेशी मुद्रा की पूर्ति में वृद्धि करते हैं।
- देश के नागरिक जो विदेशों में रहते हैं उस परिवार को विदेशी मुद्रा के रूप में पैसे बेचते हैं ताकि विदेशी मुद्रा की पूर्ति हो सके।
प्रश्न 3.
स्थिर विनिमय दर प्रणाली में विनिमय दर कैसे निर्धारित होती है ?
अथवा
स्थिर विनिमय दर कैसे निर्धारित होती है?
उत्तर-
स्थिर विनिमय दर सरकार द्वारा निश्चित की जाती है। विश्व में 1880 से 1914 ई० तक स्वर्ण मान प्रणाली अपनाई जाती थी। इस प्रणाली में विदेशी मुद्रा में विनिमय करने के लिए करन्सी का मूल्य सोने के रूप में मापते थे। हर एक देश की मुद्रा विनिमय मूल्य सोने के मूल्य की तुलना द्वारा किया जाता था।
इस प्रकार सोने को विभिन्न-विभिन्न देशों की करन्सी में एक सांझी इकाई माना जाता था। उदाहरण के तौर पर अगर भारत में 1 ग्राम सोने का मूल्य ₹ 50 है और अमेरिका में सोने का मूल्य 1 डॉलर है तो भारत के रुपये का विनिमय मूल्य 50 होगा। डॉलर के रूप में इस विनिमय प्रणाली को स्वर्ण मान प्रणाली कहा जाता था| दूसरे महायुद्ध के बाद ब्रटनवुड प्रणाली अपनाई गई है जिसमें हर एक मुद्रा का मूल्य अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा सोने के रूप में व्यक्त किया जाता था। हर एक मुद्रा के सोने के मूल्य की तुलना के साथ विनिमय दर निश्चित की जाती है।
प्रश्न 4.
विदेशी मुद्रा बाजार में सन्तुलन को स्पष्ट करो।
अथवा
विनिमय दर के सन्तुलन को स्पष्ट करो।
उत्तर-
विदेशी मुद्रा बाज़ार में विनिमय दर उस बिन्दु पर होती है जहां विदेशी मुद्रा की माँग और पूर्ति बराबर होती है। रेखाचित्र 1 अनुसार अमेरिका के डॉलर की माँग DD और SS है। सन्तुलन E बिन्दु पर होता है। इसलिए विनिमय दर निर्धारित हो जाती है। अगर विनिमय दर OR1, हो जाए तो रुपये के रूप में डॉलर ज्यादा मात्रा में पैसे देने पड़ेंगे तो डॉलर की माँग R1D1 हो जाएगी। OR पूर्ति R1S1 हो जाएगी। इसलिए विनिमय दर OR1 से कम होकर OR निश्चित हो जाएगी।
अगर किसी समय विनिमय दर OR1 निश्चित होती है तो पूर्ति R2S2 कम है और माँग R2D2 ज्यादा है। इसलिए विनिमय रेखाचित्र 1 दर बढ़कर OR हो जाएगी। विनिमय दर का सन्तुलन माँग और पूर्ति द्वारा विदेशी मुद्रा बाज़ार में निर्धारित होता है।
प्रश्न 5.
स्थिर विनिमय दर कैसे निर्धारित होती है ?
उत्तर-
स्थिर विनिमय दर देश की सरकार द्वारा निर्धारित की जाती है और यह वह स्थिर दर रहती है। स्थिर विनिमय दर माँग और पूर्ति की शक्तियों द्वारा निर्धारित नहीं होती बल्कि विनिमय दर 1920 से पहले स्वर्णमान प्रणाली द्वारा निर्धारित की जाती थी। इस प्रणाली में हर एक देश की मुद्रा का मूल्य सोने के रूप में परिभाषित किया जाता था। हर देश की मुद्रा के स्वर्ण मुद्रा मूल्य की तुलना करके विनिमय दर निर्धारित की जाती थी। उदाहरण के लिए रुपये का मूल्य = 2 ग्राम सोना और डॉलर का मूल्य 100 ग्राम सोना तो 1 डॉलर = 100/2 = ₹ 50 निर्धारित होता था। ब्रैटनवुड कुछ सुधार करके समान योजक सीमा प्रणाली अपनाई गई।
प्रश्न 6.
लोचशील विनिमय दर कैसे निर्धारित होती है ?
उत्तर-
लोचशील विनिमय दर किसी देश की माँग और पूर्ति की शक्तियों द्वारा निर्धारित होती है। अन्तर्राष्ट्रीय बाज़ार में हर एक देश की मुद्रा की माँग और पूर्ति उस देश की करंसी के विनिमय मूल्य को निर्धारित करती है।
जैसा कि रेखाचित्र में विदेशी करन्सी की माँग और पर्ति द्वारा सन्तुलन E बिन्दु पर स्थापित होता है। जहां OR विनिमय दर निर्धारित हो जाती है। अगर विदेशी करन्सी की माँग बढ़ जाती है तो विनिमय दर में वृद्धि हो जाएगी अर्थात् विदेशी मुद्रा प्राप्त करने के लिए ज्यादा देशी मुद्रा देनी पड़ेगी। अगर विदेशी मुद्रा की पूर्ति बढ़ जाती है तो विनिमय दर कम हो जाएगी। इससे यह नतीजा प्राप्त होता है कि विदेशी मुद्रा की जितनी माँग बढ़ जाएगी विनिमय मूल्य उतना अधिक हो जाएगा और विदेशी मुद्रा की पूर्ति जितनी ज्यादा होगी विनिमय मूल्य उतना कम हो जाएगा।
प्रश्न 7.
स्थिर विनिमय दर के लाभ और हानियां बताओ।
उत्तर-
स्थिर विनिमय दर वह दर होती है जोकि देश की सरकार द्वारा निश्चित होती है और इसके मुख्य लाभ निम्नलिखित हैं-
मुख्य लाभ (Merits)
- इसके साथ अन्तर्राष्ट्रीय विदेशी मुद्रा बाज़ार में स्थिरता स्थापित होती है।
- इसके साथ अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में वृद्धि होती है।
- इसके साथ बड़े पैमाने के उतार-चढ़ाव उत्पन्न नहीं होते।
हानियां (Demerits)-
- इसके साथ व्यापक रूप में अन्तर्राष्ट्रीय नीतियां रखनी पड़ती हैं क्योंकि मुद्रा सोने में परिवर्तनशील होती है।
- इसके साथ पूँजी का विदेशों में आना-जाना कम हो जाता है क्योंकि स्वर्ण भण्डार ज़्यादा रुपये पड़ते हैं।
- यह जोखिम पूँजी को उत्साहित करती है।
प्रश्न 8.
लोचशील विनिमय दर के लाभ और हानियां बताओ।
उत्तर-
लोचशील विनिमय दर बाज़ार में माँग और पूर्ति की शक्तियों द्वारा निर्धारित होती है।
मुख्य लाभ (Merits)-
- इसके साथ अन्तर्राष्ट्रीय नीतियां रखने की कोई जरूरत नहीं पड़ती।
- इसके साथ पूँजी का निवेश करना आसान होता है।
- यह जोखिम पूँजी को उत्साहित करती है।
हानियां (Demerits)
- इसके साथ अन्तर्राष्ट्रीय बाज़ार में अस्थिरता पैदा हो जाती है।
- इसके साथ अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
- इसके साथ बड़े पैमाने पर उतार-चढ़ाव पैदा होता है।
IV. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Type Questions)
प्रश्न 1.
स्थिर विनिमय दर से क्या भाव है ? स्थिर विनिमय दर कैसे निर्धारित की जाती है ? इसके गुण और . अवगुण बताओ।
(What is Fixed Exchange Rate ? How is fixed exchange rate determined ? Give its merits and demerits ?)
उत्तर-
स्थिर विनिमय दर का अर्थ (Meaning of Fixed Exchange Rate)-स्थिर विनिमय दर विनिमय की वह दर है जोकि सरकार द्वारा निर्धारित की जाती है। इस प्रणाली में विनिमय दर सरकार निश्चित करती है और यह दर स्थिर होती है। (Fixed Exchange rate is that exchange rate which is fixed by the government and it is fixed) स्थिर विनिमय दर में सरकार अपनी इच्छा अनुसार थोड़ा परिवर्तन कर सकती है।
स्थिर विनिमय दर का निर्धारण (Determination of Fixed Exchange Rate)-इसके निर्धारण के लिए दो प्रणालियां अपनाई गई हैं-
1. स्वर्ण मान प्रणाली (Gold Standard System)-स्थिर विनिमय दर प्रणाली का सम्बन्ध 1880-1914 तक स्वर्ण मान प्रणाली के साथ था। इस प्रणाली में हर एक देश को अपनी करन्सी का मूल्य सोने के रूप में बताना पड़ता था। एक करन्सी का मूल्य दूसरी करन्सी में निर्धारित करने के लिए हर एक करन्सी के सोने के रूप में मूल्य की तुलना दूसरी करन्सी के सोने के रूप में मूल्य के साथ की जाती थी। इस प्रकार स्थिर विनिमय दर निर्धारित होती थी जिसको विनिमय का टक्साली समता मूल्य (What for value of exchange) कहा जाता था। उदाहरण के लिए भारत के एक रुपये के साथ 100 ग्राम सोना तथा अमेरिका के एक डॉलर के साथ 20 ग्राम सोने का विनिमय किया जा सकता है तो भारत के रुपये का विनिमय मूल्य \(\frac{100}{20}\) = 5 अमेरिकन डॉलर निर्धारित किया जाता था या विनिमय दर 1 : 5 थी।
2. समानयोजक सीमा प्रणाली (Adjustable Peg System)-बैटनवुड प्रणाली (Bretton Wood System) दूसरे महायुद्ध के बाद ब्रैटनवुड के स्थान पर विश्व के देशों ने समानयोजक सीमा प्रणाली को अपनाया था। यह प्रणाली स्थिर विनिमय दर को सोने के रूप में ही परिभाषित करके निश्चित की जाती थी। परन्तु इसमें कुछ समानयोजक या परिवर्तनशील की सम्भावना रखी गई। हर एक करन्सी का मूल्य अमेरिका के डॉलर के रूप में ही परिभाषित किया गया। कोई करन्सी के मूल्य में समानयोजक या तबदीली अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष की स्वीकृति के साथ ही की जा सकती थी।
स्थिर विनिमय दर के लाभ (Merits of Fixed Exchange System)-
1. आर्थिक स्थिरता (Economic Stability)-इस प्रणाली का मुख्य लाभ यह था कि सभी देशों में आर्थिक उतार-चढ़ाव की सम्भावना नहीं होती थी। व्यापारिक चक्रों पर नियन्त्रण करने के लिए यह प्रणाली लाभदायक सिद्ध हुई है। इसके साथ आर्थिक नीतियों का निर्माण अच्छे ढंग के साथ किया जाने लगा।
2. विश्व आधार का विस्तार (Expansion of World Trade)-स्थिर दर के साथ विश्व व्यापार का विस्तार हो गया क्योंकि इस के साथ विनिमय पर अनिश्चित परिवर्तन नहीं होता है। इसलिए अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार को उत्साह प्राप्त हो गया।
3. समष्टि नीतियों का तालमेल (Co-ordination of Macro Policies)-स्थिर विनिमय दर समष्टि नीतियों में तालमेल उत्पन्न करने में सहायक हुई है। इसके साथ अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के समझौते ज़्यादा समय तक किये जा सकते हैं। इस प्रकार विश्व अर्थव्यवस्था में विनिमय दर नीतियों में सहायता करती है।
हानियां (Demerits)-स्थिर विनिमय दर के दोष निम्नलिखित हैं-
1. विशाल अन्तर्राष्ट्रीय निधियां (International Reserved)-स्थिर विनिमय प्रणाली का प्रतिपादन करने के लिए अधिक मात्रा में अन्तर्राष्ट्रीय निधियों की ज़रूरत पड़ती थी। हर एक देश को बहुत सारा धन सोने के रूप में सम्भालना पड़ता था क्योंकि देश की करन्सी सीधे या उल्टे रूप में सोने में बदली जा सकती थी।
2. पूँजी की कम गति (Less movement of Capital)—स्थिर विनिमय दर प्रणाली में विनिमय दर को स्थिर रखने के लिए सरकार को सोने के रूप में भण्डार स्थापित करने पड़ते थे। इसलिए पूँजी में गतिशीलता बहुत कम थी। पूँजी का निवेश विदेशों में कम मात्रा में किया जाता था।
3. साधनों की अनुकूल बांट (Inefficient Resource Allocation)-स्थिर विनिमय दर में साधनों की बांट कुशल ढंग के साथ नहीं की जा सकती थी। उत्पादन के साधनों के उत्तम प्रयोग के लिए हर एक देश में पूँजी की ज़रूरत होती है। पूँजी निर्माण की कम प्राप्ति के कारण साधनों की अनुकूल बाँट सम्भव थी। स्थिर विनिमय दर के साथ जोखिम पूँजी को ही उत्साह प्राप्त नहीं होता। जिन कार्यों में पूँजी लगानी जोखिम का कार्य होता है उनके कार्य में कोई देश पूँजी लगाने को तैयार नहीं होता था क्योंकि विनिमय दर स्थिर रहती थी।
प्रश्न 2.
लोचशील विनिमय दर से क्या भाव है ? लोचशील विनिमय दर कैसे निर्धारित होती है ? इस प्रणाली के गुण और अवगुण बताओ।
(What is Flexible Exchange Rate? How is Flexible Exchange Rate determined? Explain the merits and demerits of this system.)
उत्तर-
लोचशील विनिमय दर का अर्थ (Meaning of Flexible Exchange Rate)-लोचशील विनिमय दर वह दर होती है जो कि किसी करन्सी की माँग तथा पूर्ति द्वारा निर्धारित होती है। इस दर का निर्धारित करने के लिए कोई सरकारी हस्तक्षेप नहीं होता। इस हालत में करन्सी को बाजार में खुला छोड़ दिया जाता है जो कि विदेशी मुद्रा की मांग तथा पूर्ति द्वारा बाज़ार शक्तियां निर्धारित होती हैं। विनिमय दर में लगातार परिवर्तन होता रहता है जहाँ विदेशी मुद्रा की माँग तथा पूर्ति बराबर हो जाती है। इसको विनिमय दर की समता दर (Per Rate of Exchange) कहते हैं। इस को सन्तुलन दर भी कहा जाता है।
लोचशील विनिमय दर का निर्धारण (Determination of Flexible Exchange Rate)-प्रो० के० के० कुरीहारा के अनुसार, “मुफ्त विनिमय दर उस जगह पर निश्चित होगी जहां विदेशी मुद्रा की माँग तथा पूर्ति बराबर हो जाएगी।” लोचशील विनिमय दर दो तत्त्वों द्वारा निर्धारित होती है-
(A) विदेशी मुद्रा की माँग (Demand for Foreign Exchange)-विदेशी मुद्रा का जब भुगतान किया जाता है तो इस महत्त्व के लिए विदेशी मुद्रा की मांग उत्पन्न होती है। एक देश में विदेशी मुद्रा की माँग निम्नलिखित कारणों से उत्पन्न होती है-
- विदेशों में वस्तुएं तथा सेवाएं आयात करने के लिए।
- अन्तर्राष्ट्रीय कर्जे का भुगतान करने के लिए।
- विश्व के दूसरे देशों में निवेश करने के लिए।
- बाकी विश्व को तोहफे तथा ग्रांट देने के लिए।
- विदेशी मुद्रा के सट्टा उद्देश्य के साथ लाभ कमाने के लिए।
अगर हम भारत के रुपये तथा अमेरिका के डॉलर के सम्बन्ध में डॉलर की माँग और विनिमय मूल्य का प्रतिपादन करना चाहते हैं तो विदेशी मुद्रा की माँग और विनिमय मूल्य का उल्ट सम्बन्ध होता है अर्थात् अमेरिका के डॉलर की कीमत जो रुपये के रूप में की जाती है इसका उल्ट सम्बन्ध होता है। इसके लिए जब विनिमय मूल्य कम होता जाता है तो डॉलर की माँग में वृद्धि होती है। इस प्रकार माँग वक्र ऋणात्मक ढलान की तरफ़ होता है।
विदेशी मुद्रा की पूर्ति (Supply of foreign exchange)–विदेशी मुद्रा की प्राप्ति द्वारा इसकी पूर्ति निश्चित होती है। विदेशी मुद्रा की पूर्ति निम्नलिखित तत्त्वों पर निर्भर करती है-
- वस्तुओं तथा सेवाओं के निर्यात के साथ अर्थात् जब विदेशी भारत में वस्तुओं तथा सेवाओं की खरीद करते
- प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के साथ।
- विदेशी मुद्रा के दलाल या सट्टा खेलने वालों के द्वारा भारत में भेजी गई विदेशी मुद्रा के साथ। ‘
- विदेशों में काम कर रहे भारतीयों द्वारा देश में भेजी गई बचतों के साथ।
- विदेशी राजदूत द्वारा भारत में सैर-सपाटे के साथ।
विनिमय दर और विदेशी मुद्रा की पूर्ति का सीधा सम्बन्ध होता है। जब विनिमय दर बढ़ती है तो विदेशी मुद्रा की पूर्ति में वृद्धि होती है। जब विनिमय दर कम हो जाती है तो विदेशी मुद्रा की पूर्ति कम हो जाती है। इस प्रकार पूर्ति वक्र धनात्मक ढलान वाली हो जाती है।
विनिमय की सन्तुलन दर (Equilibrium Exchange Rate)-विनिमय की सन्तुलन दर उस बिन्दु पर निर्धारित होती है जहां विदेशी मुद्रा की मांग तथा पूर्ति एक-दूसरे के बराबर होते हैं। इसको रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट किया जा सकता रेखाचित्र 3 में विनिमय दर निर्धारण को स्पष्ट किया गया है। विदेशी मुद्रा (डॉलर) की माँग तथा पूर्ति को OX रेखा पर और रुपये की तुलना में डॉलर के विनिमय मूल्य को OY रेखा पर दिखाया गया है।
विदेशी मुद्रा की मांग DD और पूर्ति SS एक-दूसरे को E बिन्दु पर काटते हैं। इसके साथ OR विनिमय दर निश्चित हो जाती है। अगर कोई समय विनिमय दर OR1 हो जाती है तो विदेशी मुद्रा की माँग R1d1 कम हो जाएगी और पूर्ति R2S2 बढ़ जाएगी। इसके साथ विनिमय दर कम होकर OR रह जाएगी। इसके विपरीत अगर विनिमय दर कम होकर OR2 रह जाती है तो विदेशी मुद्रा की माँग R2d2 ज़्यादा है और पूर्ति R2S2 कम है। इसलिए विनिमय दर OR2 से बढ़कर OR हो जाएगी। इस प्रकार विनिमय दर विदेशी मुद्रा की माँग तथा पूर्ति द्वारा निर्धारित होती है।
लोचशील विनिमय दर के गुण (Merits of Flexible Rate of Exchange)लोचशील विनिमय दर के गुण इस प्रकार हैं –
- अन्तर्राष्ट्रीय निधियों की ज़रूरत न होना-इस प्रणाली में देश के केन्द्रीय बैंक को अन्तर्राष्ट्रीय भंडारे की कोई ज़रूरत नहीं होती।
- पूँजी में वृद्धि (More Capital Movement)-लोचशील विनिमय दर प्रणाली में देश विदेशों में पूँजी निवेश करते हैं क्योंकि देश के केन्द्रीय बैंक को अन्तर्राष्ट्रीय नीतियां रखने की ज़रूरत नहीं होती। इसलिए पूँजी गतिशीलता का लाभ सारे देशों को होता है।
- व्यापार में वृद्धि (Increase in Trade)-विनिमय प्रणाली में व्यापार पर पाबन्दियां लगाने की ज़रूरत नहीं होती है। हर एक देश स्वतन्त्रता के साथ अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार कर सकता है।
- साधनों की उत्तम बांट-लोचशील विनिमय दर में देश के साधनों की उत्तम बाँट सम्भव होती है। इसके साथ साधनों की कागज़ सुविधा में वृद्धि होती है और देश के विकास के अनुकूल प्रभाव पड़ता है।
लोचशील विनिमय दर के दोष (Demerits of Flexible Exchange Rate)-लोचशील विनिमय दर के मुख्य दोष निम्नलिखित हैं –
- विनिमय दर में अस्थिरता (Instability of Exchange Rate)-विनिमय दर में परिवर्तन लोचशील विनिमय दर प्रणाली में निरन्तर होता रहता है। इसके साथ अन्तर्राष्ट्रीय बाज़ार में विदेशी मुद्रा की कीमत में अस्थिरता पैदा हो जाती है।
- अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में अस्थिरता (Instability in International Trade)-लोचशील विनिमय दर में अस्थिरता होने के कारण अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में भी अस्थिरता पाई जाती है। हर एक अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के राह में रुकावटें खड़ी कर देता है।
- समष्टि नीतियों में समस्या (Problems in Macro Policies)-समष्टि आर्थिक नीतियों के निर्माण में बहुत सारी समस्याएं उत्पन्न होती हैं। विनिमय दर दिन-प्रतिदिन परिवर्तित होती है। इसलिए समय की नीतियों का न्याय करना मुश्किल हो जाता है। अमेरिका के डॉलर, इंग्लैण्ड के पौंड और यूरोप के यूरो को मज़बूत और सख्य करन्सियां कहा जाता है। क्योंकि करन्सी की माँग विश्व भर में है और लोगों का विश्वास अधिक है।
दूसरी तरफ भारत, पाकिस्तान के रुपये और विकासशील देशों की करन्सियों को कमज़ोर तथा नर्म (Weak and Soft) करन्सी कहा जाता है क्योंकि इनकी मांग कम है और इनका मूल्य लगातार कम होने का कारण इनकी विनिमय दर कम है।