Punjab State Board PSEB 12th Class Economics Book Solutions Chapter 13 अभावी तथा अधिक मांग को ठीक करने के लिए उपाय Textbook Exercise Questions, and Answers.
PSEB Solutions for Class 12 Economics Chapter 13 अभावी तथा अधिक मांग को ठीक करने के लिए उपाय
PSEB 12th Class Economics अभावी तथा अधिक मांग को ठीक करने के लिए उपाय Textbook Questions, and Answers
I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)
प्रश्न 1.
राजकोषीय नीति से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
राजकोषीय नीति से अभिप्राय सरकार की आय तथा व्यय नीति से होता है।
प्रश्न 2.
राजकोषीय नीति के मुख्य औज़ार (Instruments) कौन-कौन से हैं ?
उत्तर-
सरकार की आय के मुख्य औज़ार-
(A) सरकार की आय के मुख्य औज़ार हैं-
- कर
- सार्वजनिक ऋण
- घाटे की वित्त व्यवस्था।
(B) सरकार के व्यय से सम्बन्धित औज़ार हैं-
- सार्वजनिक निर्माण जैसे कि सड़कें, नहरें इत्यादि
- सार्वजनिक कल्याण (शिक्षा)
- देश की सुरक्षा तथा अनुशासन
- आर्थिक सहायता
प्रश्न 3.
अधिक मांग में कमी के लिए राजकोषीय नीति का प्रयोग कैसे किया जाता है ? कोई एक उपाय बताओ।
अथवा
स्फीतिक अन्तराल को घटाने के लिए कोई दो राजकोषीय उपाय बताओ।
उत्तर-
करों में वृद्धि-सरकार को प्रत्यक्ष कर अधिक लगाने चाहिए इससे देश के नागरिकों की आय तथा खरीद शक्ति कम हो जाती है तथा अधिक मांग अथवा स्फीतिक अन्तराल की समस्या का हल होता है।
प्रश्न 4.
अभावी मांग में वृद्धि के लिए राजकोषीय नीति के कोई एक उपाय बताओ।
अथवा
अस्फीतिक अन्तराल में कमी के लिए कोई एक राजकोषीय उपाय बताओ।
उत्तर-
करों में कमी-अभावी मांग की वृद्धि के लिए, करों में कमी करनी चाहिए। इससे मांग में वृद्धि होगी तथा अस्फीतिक अन्तराल में कमी होगी।
प्रश्न 5.
मौद्रिक नीति से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
मौद्रिक नीति वह नीति है, जिसका सम्बन्ध मौद्रिक अधिकारियों द्वारा
(a) मुद्रा की पूर्ति
(b) ब्याज की दर
(c) मुद्रा की उपलब्धता को प्रभावित करना है अर्थात् मुद्रा नीति से अभिप्राय वह उपाय है जो अर्थव्यवस्था में नकद मुद्रा तथा उधार मुद्रा को नियन्त्रण करते हैं।
प्रश्न 6.
मौद्रिक नीति के कोई एक उपायों को स्पष्ट करो।
उत्तर-
- बैंक दर-बैंक दर वह दर होती है, जिस पर किसी देश का केन्द्रीय बैंक, व्यापारिक बैंकों को उधार देता
- खुले बाजार की नीति-खुले बाज़ार की नीति का अर्थ है बाज़ार में केन्द्रीय बैंक द्वारा प्रतिभूतियों को खरीदना तथा बेचना।
प्रश्न 7.
अधिक मांग के लिए मौद्रिक नीति का कोई एक उपाय बताओ।
अथवा
स्फीतिक अन्तराल में कमी के लिए मौद्रिक नीति का कोई एक उपकरण बताओ।
उत्तर-
बैंक दर में वृद्धि-बैंक दर में वृद्धि की जाती है ताकि ब्याज की दर बाज़ार में बढ़ जाए तथा लोग कम उधार लें।
प्रश्न 8.
अभावी मांग तथा मौद्रिक नीति का कोई एक उपाय बताओ।
अथवा
अस्फीतिक अन्तर समय मौद्रिक नीति का कोई एक उपकरण बताओ।
उत्तर-
बैंक दर में कमी-अभावी मांग समय बैंक दर में कमी की जाती है।
प्रश्न 9.
नकद रिज़र्व अनुपात (Cash Reserve Ratio) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
नकद रिज़र्व अनुपात से अभिप्राय उस राशि से होता है जोकि व्यापारिक बैंकों को अपनी जमा राशि का निश्चित प्रतिशत हिस्सा केन्द्रीय बैंक के पास नकदी के रूप में रखना पड़ता है।
प्रश्न 10.
उधार की सीमान्त शर्ते (Marginal Requirements of Laws) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
उधार की सीमान्त शर्तों का अर्थ है उधार लेने के लिए गिरवी रखी जाने वाली वस्तु का प्रचलित कीमत तथा दिए जाने वाले ऋण की मात्रा का अन्तर होता है।
प्रश्न 11.
सस्ती मुद्रा नीति से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
सस्ती मुद्रा नीति वह स्थिति होती है, जिसमें लोगों को कम ब्याज की दर पर आसानी से मुद्रा प्राप्त हो जाती है।
प्रश्न 12.
महंगी मौद्रिक नीति से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
महंगी मौद्रिक नीति वह स्थिति होती है, जिसमें ब्याज की दर अधिक होती है तथा आसानी से ऋण प्राप्त नहीं किया जा सकता। इस नीति का उद्देश्य लोगों के व्यय को घटाना होता है ताकि मुद्रा स्फीति की समस्या का हल किया जा सके।
प्रश्न 13.
प्रत्यक्ष कर से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
प्रत्यक्ष कर वह कर होते हैं जोकि जिन मनुष्यों पर लगाए जाते हैं, उन मनुष्यों को ही कर का भार सहन करना पड़ता है।
प्रश्न 14.
अप्रत्यक्ष कर से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
अप्रत्यक्ष कर वह कर है जो लगाया एक मनुष्य पर जाता है, परन्तु उसका भार किसी अन्य मनुष्य को सहन करना पड़ता है।
प्रश्न 15.
वह कर जो जिन व्यक्तियों पर लगाए जाते हैं उनको ही कर का भार सहन करना पड़ता है को …………….. कहते हैं।
(क) प्रत्यक्ष कर
(ख) अप्रत्यक्ष कर
(ग) प्रगतिशील कर
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(क) प्रत्यक्ष कर।
प्रश्न 16.
वह कर जो लगाए एक व्यक्ति पर जाते हैं परन्तु कर का भार और व्यक्तियों को सहन करना पड़ता है को ………………… कहते हैं।
(क) प्रत्यक्ष कर
(ख) अप्रत्यक्ष कर
(ग) प्रगतिशील कर
(घ) प्रतिगामी कर।
उत्तर-
(ख) अप्रत्यक्ष कर।
प्रश्न 17.
व्यापारिक चक्रों की चार अवस्थाएं
(क) खुशहाली,
(ख) सुस्ति,
(ग) मन्दी,
(घ)……. हैं।
उत्तर-
पूर्ण चेतना।
प्रश्न 18.
वह दर जो केंद्रीय बैंक, व्यापारिक बैंकों को उधार देते समय प्राप्त करता है को कहते हैं।
उत्तर-
बैंक दर।
प्रश्न 19.
घाटे की वित्त व्यवस्था से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
जब सरकार उदार मुद्रा लेकर अथवा नए नोट छुपा कर सार्वजनिक व्यय करती है तो इस को घाटे की वित्त व्यवस्था कहते हैं।
प्रश्न 20.
किसी व्यापारिक बैंक की जमा राशि का वह न्यूनतम भाग जो केन्द्रीय बैंक के पास जमा रखना पड़ता है को ……………….. कहते हैं।
उत्तर-
न्यूनतम नकद निधि अनुपात।
प्रश्न 21.
वह नीति जिस द्वारा देश की सरकार और केंद्रीय बैंक अर्थव्यवस्था में आर्थिक स्थिरता लाने के लिए मुद्रा और ब्याज दर को नियंत्रित करते हैं को …………. कहते हैं।
उत्तर-
मौद्रिक नीति।
प्रश्न 22.
निश्चित उद्देश्यों को प्राप्ति करने के लिए आमदन, व्यय और ऋण संबंधी नीति को ……………. कहते हैं।
(क) मौद्रिक नीति
(ख) राजकोषीय नीति
(ग) वित्त नीति
(घ) कोई भी नहीं।
उत्तर-
(ख) राजकोषीय नीति।
प्रश्न 23.
मंदीकाल और तेज़ीकाल की स्थिति को व्यापारिक चक्र कहा जाता है।
उत्तर-
सही।
प्रश्न 24.
देश का केंद्रीय बैंक, व्यापारिक बैंकों को उधार देते समय जो ब्याज की दर प्राप्त करता है उसको बैंक दर कहते हैं।
उत्तर-
सही।
II. अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)
प्रश्न 1.
राजकोषीय नीति से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
राजकोषीय नीति से अभिप्राय सरकार की आय तथा व्यय नीति से होता है। यह नीति अधिक मांग तथा अभावी मांग की समस्याओं का हल करने के लिए अपनाई जाती है। इसलिए सरकार के निश्चित उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए आमदन (कर) तथा व्यय नीति को राजकोषीय नीति कहा जाता है।
प्रश्न 2.
राजकोषीय नीति के मुख्य औज़ार (Instruments) कौन-कौन से हैं ?
उत्तर-
सरकार की आय के मुख्य औज़ार-
(A) सरकार की आय के मुख्य औज़ार हैं-
- कर
- सार्वजनिक ऋण
- घाटे की वित्त व्यवस्था
(B) सरकार के व्यय से सम्बन्धित औज़ार हैं-
- सार्वजनिक निर्माण जैसे कि सड़कें, नहरें इत्यादि
- सार्वजनिक कल्याण (शिक्षा)
- देश की सुरक्षा तथा अनुशासन
- आर्थिक सहायता।
प्रश्न 3.
अधिक मांग में कमी के लिए राजकोषीय नीति का प्रयोग कैसे किया जाता है ? कोई दो उपाय बताओ।
अथवा
स्फीतिक अन्तराल को घटाने के लिए कोई दो राजकोषीय उपाय बताओ।
उत्तर-
- करों में वृद्धि-सरकार को प्रत्यक्ष कर अधिक लगाने चाहिए इससे देश के नागरिकों की आय तथा खरीद शक्ति कम हो जाती है तथा अधिक मांग अथवा स्फीतिक अन्तराल की समस्या का हल होता है।
- सार्वजनिक व्यय में कमी-सरकार को सेहत, शिक्षा तथा आर्थिक सहायता के रूप में दी जाने वाली सहायता तथा कम व्यय करना चाहिए। इससे स्फीतिक अन्तर कम हो जाता है।
प्रश्न 4.
मौद्रिक नीति से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
मौद्रिक नीति वह नीति है, जिसका सम्बन्ध मौद्रिक अधिकारियों द्वारा –
(a) मुद्रा की पूर्ति
(b) ब्याज की दर
(c) मुद्रा की उपलब्धता को प्रभावित करना है अर्थात् मुद्रा नीति से अभिप्राय वह उपाय है जो अर्थव्यवस्था में नकद मुद्रा तथा उधार मुद्रा को नियन्त्रण करते हैं।
प्रश्न 5.
मौद्रिक नीति के कोई दो उपायों को स्पष्ट करो।
उत्तर-
- बैंक दर-बैंक दर वह दर होती है, जिस पर किसी देश का केन्द्रीय बैंक, व्यापारिक बैंकों को उधार देता है। बैंक दर के बढ़ने से ब्याज की दर बढ़ जाती है तथा उधार निर्माण कम हो जाता है।
- खुले बाजार की नीति-खुले बाज़ार की नीति का अर्थ है बाज़ार में केन्द्रीय बैंक द्वारा प्रतिभूतियों को खरीदना तथा बेचना। जब साख निर्माण करना होता है तो केन्द्रीय बैंक प्रतिभूतियाँ खरीदता है।
प्रश्न 6.
अधिक मांग के लिए मौद्रिक नीति के कोई दो उपाय बताओ।
अथवा
स्फीतिक अन्तराल में कमी के लिए मौद्रिक नीति के कोई दो उपकरण बताओ।
उत्तर-
- बैंक दर में वृद्धि-बैंक दर में वृद्धि की जाती है ताकि ब्याज की दर बाज़ार में बढ़ जाए तथा लोग कम उधार लें।
- खुले बाज़ार की नीति-खुले बाज़ार में सरकार प्रतिभूतियाँ बेचती है। इसे लोग बैंकों में से पैसे लेकर केन्द्रीय बैंक की प्रतिभूतियाँ खरीद लेते हैं तथा स्फीतिक अन्तर तथा अधिक मांग कम हो जाती है।
प्रश्न 7.
अभावी मांग तथा मौद्रिक नीति के कोई दो उपाय बताओ।
अथवा
अस्फीतिक अन्तर समय मौद्रिक नीति के कोई दो उपकरण बताओ।
उत्तर-
- बैंक दर में कमी-अभावी मांग समय बैंक दर में कमी की जाती है। ब्याज की दर कम हो जाती है तथा उधार मुद्रा की मांग में वृद्धि होती है।
- खुले बाज़ार की नीति-केन्द्रीय बैंक खुले बाज़ार में प्रतिभूतियाँ खरीदता है। इससे अर्थव्यवस्था की कार्य शक्ति में वृद्धि होती है।
प्रश्न 8.
नकद रिज़र्व अनुपात (Cash Reserve Ratio) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
नकद रिज़र्व अनुपात से अभिप्राय उस राशि से होता है जोकि व्यापारिक बैंकों को अपनी जमा राशि का निश्चित प्रतिशत हिस्सा केन्द्रीय बैंक के पास नकदी के रूप में रखना पड़ता है। नकद रिज़र्व अनुपात देश के केन्द्रीय बैंक द्वारा निश्चित किया जाता है।
III. लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)
प्रश्न 1.
व्यापारिक चक्रों से क्या अभिप्राय है ? व्यापारिक चक्रों की मुख्य अवस्थाएं बताओ। ..
अथवा
चक्रीय परिवर्तनों की अवस्थाओं को स्पष्ट करो।
उत्तर-
व्यापारिक चक्र एक अर्थव्यवस्था में अच्छे समय तथा बुरे समय की स्थिति में होता है। अभावी मांग तथा अधिक मांग के परिणामस्वरूप किसी देश में आमदन, उत्पादन तथा रोज़गार में जो उतार-चढ़ाव आते हैं, उनको चक्रीय परिवर्तन अथवा व्यापारिक चक्र कहते हैं। व्यापारिक चक्रों की चार अवस्थाएं होती हैं।
- प्रथम अवस्था (खुशहाली)-इस स्थिति में आमदन, रोज़गार, व्यय, बचत, निवेश, लाभ में वृद्धि होती है।
- द्वितीय अवस्था (सुस्ती)-कुछ उद्योगों में आय रोज़गार उत्पादन घटता है, जिसका प्रभाव अन्य क्षेत्रों में पड़ता है।
- तीसरी अवस्था (मन्दी)-इस स्थिति में आमदन तथा रोज़गार बहुत कम हो जाते हैं तथा बुरी स्थिति होती है।
- चौथी अवस्था (पुनः चेतना)-इस स्थिति में रोज़गार बढ़ने लगता है तथा आर्थिक गति में वृद्धि होने लगती है।
प्रश्न 2.
सरकारी क्षेत्र से अर्थव्यवस्था ( अधिक मांग की समस्या) पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर-
सरकारी क्षेत्र का महत्त्व प्रो० केन्ज़ ने स्पष्ट किया था। जब सरकार व्यय करती है तो इससे अभावी मांग को दूर किया जा सकता है तथा कर लगाकर सरकार अधिक मांग की समस्या का हल करती है। सरकार के योगदान के कारण अर्थव्यवस्था पर निम्नलिखित प्रभाव पड़ते हैं –
- कर (Taxes)-सरकार लोगों पर कर लगाती है। प्रत्यक्ष कर लगाने से लोगों की व्यय योग्य आय कम हो जाती है तथा अप्रत्यक्ष करों से लोगों की खरीद शक्ति पर बुरा प्रभाव पड़ता है। इस प्रकार करों में वृद्धि तथा कमी करके सरकार अभावी मांग तथा अधिक मांग की समस्या का हल करती है।
- सार्वजनिक व्यय (Public Expenditure)-सरकार द्वारा जो आय प्राप्त की जाती है, इसको लोगों की भलाई पर व्यय किया जाता है। सरकार द्वारा लोक निर्माण कार्यों, सड़कों, नहरों, पुलों इत्यादि पर व्यय किया जाता है तथा सरकार हस्तांतरण भुगतान, बुढ़ापा पैन्शन इत्यादि देती है। इससे लोगों की खरीद शक्ति पर वृद्धि होती है।
- सार्वजनिक ऋण (Public Debt)-जब देश में अधिक मांग की स्थिति होती है तो सरकार लोगों से ऋण लेती है। इससे लोगों की खरीद शक्ति कम हो जाती है।
- घाटे की वित्त व्यवस्था (Deficit Financing) अभावी मांग के समय सरकार घाटे की वित्त व्यवस्था का प्रयोग करती है। इससे लोगों की मौद्रिक आय में वृद्धि होती है तथा मांग बढ़ जाती है।
प्रश्न 3.
उधार नियन्त्रण के विभिन्न ढंगों का संक्षेप में वर्णन करो।
अथवा
बैंक दर नीति तथा खुले बाज़ार की नीति उधार की उपलब्धता को कैसे प्रभावित करती है ?
उत्तर-
मौद्रिक नीति वह नीति होती है, जिसमें-
- मुद्रा की पूर्ति
- मुद्रा की लागत (ब्याज की दर) तथा
- मुद्रा की उपलब्धता उधार (नियन्त्रण) द्वारा आवश्यक उद्देश्यों की पूर्ति की जाती है।
मौद्रिक नीति के मुख्य औज़ार निम्नलिखित अनुसार हैं –
- बैंक दर (Bank Rate)-बैंक दर वह दर होती है, जिस पर देश का केन्द्रीय बैंक, व्यापारिक बैंकों को उधार देते समय ब्याज की दर प्राप्त करता है।
- खुले बाजार की नीति (Open Market Operations)-इस नीति में देश का केन्द्रीय बैंक खुले बाज़ार में प्रतिभूतियों की खरीद-बेच करता है। जब प्रतिभूतियां बेची जाती हैं तो लोगों के पास पैसा केन्द्रीय बैंक के पास चला जाता है तथा लोगों की खरीद शक्ति कम हो जाती है। व्यापारिक बैंकों की उधार देने की शक्ति भी कम हो जाती है।
- नकद रिज़र्व अनुपात (Cash Reserve Ratio)-केन्द्रीय बैंक के आदेश अनुसार व्यापारिक बैंकों को अपने पास जमा राशि का कुछ भाग केन्द्रीय बैंक के पास नकद रखना पड़ता है, जिसको नकद रिज़र्व अनुपात कहते हैं। इसमें वृद्धि करके उधार घटाया जाता है तथा नकद रिज़र्व अनुपात घटाकर उधार बढ़ाया जाता है।
- तरलता अनुपात (Liquidity Ratio)-केन्द्रीय बैंक के आदेश अनुसार व्यापारिक बैंकों को जमा राशि का कुछ भाग अपने पास नकद रखना पड़ता है, जिसको तरलता अनुपात कहा जाता है। इसमें वृद्धि करके उधार निर्माण को घटाया जाता है।
- सीमान्त आवश्यकता (Marginal Requirement) केन्द्रीय बैंक द्वारा दिए जाने वाले उधार की कटौती निर्धारण की जाती है। ₹ 100 की वस्तु गहने रखकर बैंक ₹ 80 का उधार दे सकते हैं तो 100 – 80 = ₹ 20 अथवा 20% सीमान्त आवश्यकता होगी। इसमें परिवर्तन करके उधार को प्रभावित किया जा सकता है।
प्रश्न 4.
राजकोषीय नीति से क्या अभिप्राय है ? राजकोषीय नीति में सार्वजनिक व्यय तथा आय द्वारा (i) अधिक मांग (ii) अभावी मांग को कैसे नियन्त्रित किया जाता है ?
उत्तर-
राजकोषीय नीति का अर्थ सरकार की आय तथा व्यय की नीति से होता है। प्रो० डाल्टन के अनुसार, “सरकार के निश्चित उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए, व्यय तथा उधार सम्बन्धी नीति को राजकोषीय नीति कहते हैं।” इस नीति से अधिक मांग तथा अभावी मांग की स्थिति का हल किया जाता है।
1. अधिक मांग दौरान राजकोषीय नीति-
- कर नीति-करों में वृद्धि करनी चाहिए ताकि लोगों की मांग में कमी हो सके।
- व्यय नीति-सरकार को सार्वजनिक कार्यों, भलाई कार्यों तथा हस्तान्तरण भुगतान पर कम व्यय करना चाहिए।
- घाटे की वित्त व्यवस्था-ऐसे समय घाटे की वित्त व्यवस्था को घटाकर मुद्रा की पूर्ति में कमी करनी चाहिए।
- ऋण नीति-सरकार को लोगों से उधार लेना चाहिए जिससे मांग में कमी हो जाएगी।
2. अभावी मांग दौरान राजकोषीय नीति –
- करों में कमी-अभावी मांग (Deficient Demand) समय सरकार को कर घटा देने चाहिए इससे लोगों की मांग में वृद्धि हो जाती है।
- व्यय में वृद्धि-अभावी मांग समय सरकार को व्यय अधिक करना चाहिए।
- घाटे की वित्त व्यवस्था-सरकार को घाटे की वित्त व्यवस्था अपनाकर मुद्रा की पूर्ति में वृद्धि करनी चाहिए।
- सार्वजनिक ऋण की वापसी-सरकार को ऋण वापस करने चाहिए। इससे मांग में वृद्धि हो जाएगी।
प्रश्न 5.
अधिक मांग से क्या अभिप्राय है ? अधिक मांग को ठीक करने के लिए दो राजकोषीय उपाय बताओ।
उत्तर-
अधिक मांग वह स्थिति होती है, जोकि पूर्ण रोज़गार की स्थिति में कुल पूर्ति से कुल मांग की वृद्धि के कारण उत्पन्न होती है। इस स्थिति में कुल मांग का स्तर पूर्ण रोज़गार के लिए कुल पूर्ति से अधिक हो जाता है। इस स्थिति को ठीक करने के लिए राजकोषीय नीति के दो उपाय निम्नलिखित अनुसार हैं-
- करों में वृद्धि-ऐसे समय जब अधिक मांग की स्थिति होती है, सरकार को करों में वृद्धि करनी चाहिए। नए कर लगाने चाहिए तथा पुराने करों की दर में वृद्धि करनी चाहिए। इसके परिणामस्वरूप देश के लोगों की व्यय योग्य आय कम हो जाएगी तथा मांग में कमी होने से अधिक मांग की समस्या का हल हो जाएगा।
- सार्वजनिक व्यय में कमी-सरकार को अधिक मांग की समस्या का हल करने के लिए सार्वजनिक व्यय में कमी करनी चाहिए। इसके परिणामस्वरूप लोगों की आय कम हो जाएगी। लोगों की मांग में कमी होगी।
प्रश्न 6.
अधिक मांग तथा अभावी मांग का हल कैसे किया जाता है ?
उत्तर-
अधिक मांग (Excess Demand)-यह ऐसी स्थिति है जोकि पूर्ण रोज़गार के स्तर पर कुल पूर्ति से अधिक मांग को प्रकट करती है। इस स्थिति का हल इस प्रकार किया जा सकता है-
1. राजकोषीय नीति-
- सरकार को करों में वृद्धि करनी चाहिए
- सार्वजनिक व्यय को सार्वजनिक कार्यों तथा हस्तान्तरण भुगतान के रूप में घटा देना चाहिए
- सार्वजनिक ऋण अधिक लेना चाहिए।
2. मौद्रिक नीति-
- बैंक दर में वृद्धि करके ब्याज की दर बढ़ानी चाहिए ताकि उधार निर्माण कम हों।
- खुले बाज़ार में प्रतिभूतियाँ बेचनी चाहिए।
- नकद रिज़र्व अनुपात में वृद्धि करनी चाहिए।
- उधार की सीमान्त शतों में वृद्धि करनी चाहिए।
अभावी मांग (Deficient Demand)-यह स्थिति ऐसी होती हैं, जिसमें पूर्ण रोज़गार के स्तर पर कुल पूर्ति से कुल मांग कम होती है। इसका हल इस प्रकार करना चाहिए –
1. राजकोषीय नीति- इसका प्रयोग अधिक मांग के विपरीत करना चाहिए-
- कर घटाने चाहिए
- सार्वजनिक व्यय बढ़ाना चाहिए
- ऋण की वापसी करनी चाहिए।
2. मौद्रिक नीति-
- बैंक दर घटानी चाहिए
- खुले बाजार में प्रतिभूतियां खरीदनी चाहिए
- नकद रिज़र्व अनुपात घटा देना चाहिए
- उधार की शर्ते नरम करनी चाहिए।
प्रश्न 7.
कोई चार उपाय बताओ जिनके द्वारा अभावी मांग की स्थिति को ठीक किया जा सकता है ?
अथवा
अस्फीतिक अन्तर का हल करने के लिए कोई चार उपाय बताओ।
उत्तर-
अभावी मांग वह स्थिति होती है, जिसमें पूर्ण रोज़गार के स्तर पर कुल पूर्ति से कुल मांग कम होती है। इस स्थिति को अस्फीतिक अन्तर कहा जाता है। इसका हल करने के लिए चार उपाय इस प्रकार हैं-
- करों में कमी-प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष करों में कमी करनी चाहिए । इससे लोगों की खरीद शक्ति में वृद्धि होगी।
- सार्वजनिक व्यय में वृद्धि-सरकार को सार्वजनिक कार्यों पर अधिक व्यय करना चाहिए। सरकार को निवेश में वृद्धि करके रोजगार बढ़ाना चाहिए ।
- बैंक दर में कमी-सरकार को बैंक दर घटानी चाहिए। इससे ब्याज़ की दर घट जाती है तथा लोग अधिक उधार लेते हैं। इससे मांग में वृद्धि होती है।
- नकद रिज़र्व अनुपात में कमी-केन्द्रीय बैंक को नकद रिज़र्व अनुपात घटा देना चाहिए। इसके परिणामस्वरूप व्यापारिक बैंक, अधिक उधार देने में सफल होते हैं तथा मांग में वृद्धि होती है।
प्रश्न 8.
कोई चार उपाय बताओ, जिसके द्वारा अधिक मांग की समस्या का हल किया जा सकता है ?
अथवा
स्फीतिक अन्तर को हल करने के लिए कोई चार उपाय बताओ।
उत्तर-
अधिक मांग वह स्थिति होती है, जिसमें पूर्ण रोजगार के स्तर पर कुल पूर्ति से कुल मांग अधिक होती है। इस स्थिति को स्फीतिक अन्तर की स्थिति कहा जाता है। इस स्थिति का हल इस प्रकार किया जा सकता है-
- करों में वृद्धि-सरकार को प्रत्यक्ष कर तथा अप्रत्यक्ष कर बढ़ाने चाहिए।
- सार्वजनिक व्यय में कमी-सरकार को सार्वजनिक कार्यों सड़कों, नहरों, बिजली इत्यादि पर व्यय कम करना चाहिए।
- बैंक दर में वृद्धि-केन्द्रीय बैंक व्यापारिक बैंक को उधार देते समय जो ब्याज प्राप्त करता है उसको बैंक दर कहते हैं। इसमें वृद्धि करनी चाहिए।
- नकद रिज़र्व अनुपात में वृद्धि-केन्द्रीय बैंक को नकद रिज़र्व अनुपात में वृद्धि करनी चाहिए। इससे व्यापारिक बैंक कम उधार दे सकते हैं तथा मांग में कमी हो जाती है।
IV. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न । (Long Answer Type Questions)
प्रश्न 1.
राजकोषीय नीति से क्या अभिप्राय है ? राजकोषीय नीति के औज़ार बताओ। अभावी मांग तथा अधिक मांग के समय राजकोषीय नीति को स्पष्ट करो।
(What is Fiscal Policy ? Discuss the instruments of Fiscal Policy. Explain Fiscal Policy during deficient and Excess Demand.)
अथवा
राजकोषीय नीति द्वारा अस्फीतिक अन्तर तथा स्फीतिक अन्तर का हल कैसे किया जाता है ?
(How is the problem of Deflationary Gap and the Inflationary Gap be solved with Fiscal Policy ?)
उत्तर-
राजकोषीय नीति का अर्थ (Meaning of Fiscal Policy)-एक देश में निश्चित उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए सरकार की आय, व्यय तथा ऋण सम्बन्धी नीति को राजकोषीय नीति कहा जाता है। इसलिए राजकोषीय नीति सरकार की आय तथा व्यय की नीति होती है, जिस द्वारा अभावी मांग अथवा अधिक मांग की समस्याओं का हल किया जाता है।
राजकोषीय नीति के औज़ार (Instruments of Fiscal Policy)-राजकोषीय नीति के औज़ारों का वर्गीकरण इस प्रकार है-
(A) सरकारी व्यय से सम्बन्धित औज़ार (Instrument related to Government Expenditure)सरकारी व्यय से सम्बन्धित औज़ार हैं
- सार्वजनिक निर्माण के कार्य जैसे कि सड़कें, नहरें, पुल इत्यादि का निर्माण करवाना।
- लोक सेवाएं जैसे कि शिक्षा, सेहत, बुढ़ापे में सहायता इत्यादि पर व्यय।
- उत्पादकों को उत्पादन बढ़ाने के लिए सबसिडी देना।
- देश की आन्तरिक तथा बाहरी सुरक्षा पर व्यय करना।
(B) सरकारी आय से सम्बन्धित औज़ार (Instruments related to Public Revenue)-इस सम्बन्ध में मुख्य औज़ार निम्नलिखित हैं
- कर-प्रत्येक देश की सरकार की आय का मुख्य स्रोत कर होते हैं। सरकार प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष कर लगाती है।
- उधार-सरकार अपने व्यय को पूरा करने के लिए लोगों से उधार भी लेती है।
- बजट नीति-सरकार द्वारा व्यय को पूरा करने के लिए घाटे की वित्त व्यवस्था अपनाई जाती है।
अभावी मांग अथवा अस्फीतिक अन्तराल समय राजकोषीय नीति (Fiscal Policy during Deficient Demand or Deflationary Gap)-अभावी मांग तथा अस्फीतिक अन्तराल को ठीक करने के लिए राजकोषीय नीति इस प्रकार की अपनानी चाहिए –
- करों में कमी-अभावी मांग अथवा अस्फीतिक अन्तराल को ठीक करने के लिए करों में कमी की जाए तो मांग में वृद्धि होगी तथा अस्फीतिक अन्तराल समाप्त हो जाएगा।
- सरकारी व्यय में वृद्धि-सरकार को सार्वजनिक कार्यों पर व्यय बढ़ा देना चाहिए। इससे लोगों की आय में वृद्धि होगी तथा मांग बढ़ जाएगी।
- घाटे की वित्त व्यवस्था-सरकार को घाटे की वित्त व्यवस्था अपनानी चाहिए। इससे कुल मांग में वृद्धि होगी।
- सार्वजनिक ऋण-सरकार को नया ऋण नहीं लेना चाहिए, बल्कि पुराने ऋण वापस करने चाहिए। इससे मांग में वृद्धि की जा सकती है।
अधिक मांग अथवा स्फीतिक अन्तराल समय राजकोषीय नीति (Fiscal Policy during Excess Demand & Inflationary Gap)-अधिक मांग तथा मुद्रा स्फीति समय सरकार को निम्नलिखित अनुसार राजकोषीय नीति अपनानी चाहिए-
- करों में वृद्धि-सरकार को लोगों पर कर अधिक लगाने चाहिए। इससे लोगों की मांग में कमी हो जाएगी।
- सरकारी व्यय में कमी-सरकार को मुद्रा स्फीति समय अपना व्यय घटा देना चाहिए।
- घाटे की वित्त व्यवस्था में कमी-सरकार को ऐसी स्थिति में घाटे की वित्त व्यवस्था को अपनाना नहीं चाहिए।
- सार्वजनिक ऋण-सरकार को लोगों से अधिक ऋण लेना चाहिए ताकि अधिक मांग में कमी आए तथा स्फीतिक अन्तर समाप्त हो सके।
प्रश्न 2.
मौद्रिक नीति से क्या अभिप्राय है ? मौद्रिक नीति के औज़ार बताओ। अभावी मांग तथा अधिक मांग की समस्या को हल करने के लिए मौद्रिक नीति के योगदान को स्पष्ट करो।
(What is Monetary Policy ? Explain the instruments of Monetary Policy. How can Monetary Policy be used during Excess Demand & Deficient Demand ?)
अथवा
मौद्रिक नीति द्वारा अस्फीतिक अन्तराल तथा स्फीति अन्तराल का हल कैसे किया जा सकता है ?
(How can the problem of Deflationary Gap & Inflationary Gap be solved with Monetary Policy ?)
उत्तर-
मौद्रिक नीति का अर्थ (Meaning of Monetary Policy)-मौद्रिक नीति वह नीति होती है, जिस द्वारा एक देश की सरकार केन्द्रीय बैंक द्वारा
- मुद्रा की पूर्ति
- मुद्रा की लागत अथवा ब्याज की दर तथा
- मुद्रा की उपलब्धि द्वारा स्थिरता प्राप्त करने का प्रयत्न करती है।
मौद्रिक नीति के औज़ार (Instruments of Monetary Policy)-मौद्रिक नीति के औज़ारों का वर्गीकरण अग्रलिखित अनुसार किया जा सकता है
(A) मात्रात्मक औजार (Quantitative Instruments) मौद्रिक नीति के मात्रात्मक औज़ार वे औज़ार हैं, जिन के द्वारा उधार मुद्रा को नियन्त्रित किया जाता है। इस उद्देश्य के लिए केन्द्रीय बैंक निम्नलिखित ढंगों का प्रयोग करता है-
1. बैंक दर (Bank Rate)- बैंक दर वह दर होती है, जोकि केन्द्रीय बैंक द्वारा व्यापारिक बैंकों को उधार देते समय ब्याज की दर प्राप्त की जाती है। बैंक दर बढ़ने से देश में ब्याज दर बढ़ जाती है। इसलिए उधार मुद्रा की मांग कम हो जाती है। जब केन्द्रीय बैंक द्वारा बैंक दर घटा दी जाती है तो बाज़ार में ब्याज की दर कम हो जाएगी तथा उधार मुद्रा विस्तार हो जाता है।
2. खुले बाजार की नीति (Open Market Operations)- उधार मिया के लिए केन्द्रीय बैंक खुले बाज़ार में प्रतिभूतियों (Securities) की खरीद बेच करता है। जब केन्द्रीय प्रतिभूतियाँ बेचता है तो लोग केन्द्र की प्रतिभूतियां खरीद लेते हैं तथा व्यापारिक बैंकों को उधार देन को शक्ति का ही जागो है। अब केन्द्रीय बैंक प्रतिभूतियाँ खरीदने लगता है तो बाज़ार में पैसे चले जाते हैं, इससे ज्यादा का अधिक उधार देने लगते
3. न्यूनतम नकद रिज़र्व अनुपात (Minimum Cash Reserve Ratio)- नाना नकद रिजाव अनुपात वह दर होती है, जो कि व्यापारिक बैंकों को अपनी जमा राशि का कुछ ‘हे ? बैंक के पास नत्र के रूप में रखना आवश्यक होता है। यदि रिज़र्व अनुपात 10% से बढ़ाकर मा. काया जाता है तो व्यापारिक बैंक कम उधार दे सकते हैं। पहले वह ₹ 100 में से ₹ 90 परन्तु अन् मारो
4. तरलता अनुपात (Liquidity Ratio)-प्रत्येक व्यापारिक बैंक को अपनी जमा छ प्रतिशत हिस्सा अपने पास नकदी अथवा प्रतिभूतियों के रूप में रखना अनिवार्य होता है। इसको तरलता अनुपात कहा जाता है। जब केन्द्रीय बैंक तरलता अनुपात में वृद्धि कर देता है तो उधार मुद्रा का कम निर्माण होता है।
(B) गुणात्मक औज़ार (Quantitative Instruments)-यह औज़ार विशेष प्रकार के उधार को नियंत्रित करते हैं
1. सीमान्त आवश्यकता (Marginal Requirements)-जब उधार लेते समय किसी वस्तु को गिरवी रखा
जाता है, उसको गिरवी रखकर कितना उधार दिया जाता है। इसके अन्तर को सीमान्त आवश्यकता कहा जाता है, जैसे कि ₹ 100 की वस्तु गिरवी रखकर ₹ 80 का उधार प्राप्त हुआ तो उधार की सीमान्त आवश्यकता 20% है। इसमें वृद्धि करके उधार घटाया जा सकता है।
2. उधार का राशन (Rationing of Credit) केन्द्रीय बैंक स्टेट के लिए उधार दी जाने वाली राशि का कोटा निर्धारण कर देता है, इसको उधार का राशन कहा जाता है।
3. नैतिक दबाव (Moral Pressure) केन्द्रीय बैंक व्यापारिक बैंकों पर दबाव डालकर अधिक अथवा कम देने के लिए निवेदन करता है जोकि व्यापारिक बैंकों के लिए आदेश होता है।
अस्फीतिक अन्तर अथवा अभावी मांग के लिए मौद्रिक नीति (Monetary Policy for Deficient Demand or Deflationary Gap)-अभावी मांग अथवा अस्फीतिक अन्तराल समय निम्नलिखित अनुसार मौद्रिक नीति अपनाई जाती है-
- बैंक दर घटा दी जाती है। इससे ब्याज की दर कम हो जाती है तथा उधार निर्माण में वृद्धि होती है।
- खुले बाज़ार में केन्द्रीय बैंक प्रतिभूतियों की खरीद करता है। लोगों की खरीद शक्ति में वृद्धि होती है।
- नकद रिज़र्व अनुपात को घटा दिया जाता है, इससे व्यापारिक बैंक अधिक उधार देने लगते हैं।
- तरलता अनुपात को घटाया जाता है, व्यापारिक बैंक की उधार देने की शक्ति बढ़ जाती है।
- उधार की सीमान्त शर्ते नर्म की जाती हैं।
- उधार अधिक देने के लिए नैतिक प्रभाव का प्रयोग किया जाता है।
इस नीति को सस्ती मौद्रिक नीति (Cheap Monetary Policy) कहा जाता है। स्फीतिक अन्तराल अथवा अधिक मांग के लिए मौद्रिक नीति (Monetary Policy for Excess Demand or Inflationary Gap)-मुद्रा स्फीति अथवा अधिक मांग के समय निम्नलिखित मौद्रिक नीति अपनाई जाती है-
- बैंक दर बढ़ा दी जाती है। इससे ब्याज की दर बढ़ जाती है।
- खुले बाज़ार में केन्द्रीय बैंक प्रतिभूतियों को बेचने लगता है।
- नकद रिज़र्व अनुपात में वृद्धि की जाती है। व्यापारिक बैंक कम उधार दे सकते हैं।
- तरलता अनुपात में वृद्धि की जाती है। बैंक कम उधार देने लगते हैं।
- सीमान्त शर्ते सख्त की जाती हैं।
- उधार का राशन किया जाता है। इस नीति को महंगी मौद्रिक नीति (Dear Monetary Policy) कहा जाता है।