Punjab State Board PSEB 10th Class Hindi Book Solutions Chapter 4 हम राज्य लिए मरते हैं Textbook Exercise Questions and Answers.
PSEB Solutions for Class 10 Hindi Chapter 4 हम राज्य लिए मरते हैं
Hindi Guide for Class 10 PSEB हम राज्य लिए मरते हैं Textbook Questions and Answers
(क) विषय-बोध
I. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-दो पंक्तियों में दीजिए
प्रश्न 1.
प्रस्तुत गीत में उर्मिला किस की प्रशंसा कर रही है?
उत्तर:
प्रस्तुत गीत में उर्मिला किसानों के सरल एवं शांतिपूर्ण जीवन की प्रशंसा कर रही है।
प्रश्न 2.
किसान संसार को समृद्ध कैसे बनाते हैं?
उत्तर:
किसान अन्न पैदा कर के संसार को समृद्ध करते हैं।
प्रश्न 3.
किसान किस प्रकार परिश्रम रूपी समुद्र को धीरज से तैर कर पार करते हैं?
उत्तर:
किसान सहनशील हैं। वे परिश्रम रूपी समुद्र को अपने परिश्रम और धैर्य से तैर कर पार करते हैं।
प्रश्न 4.
किसान का अपने पर गर्व करना कैसे उचित है?
उत्तर:
किसान का अपने पर गर्व करना इसलिए उचित है क्योंकि वह समस्त संसार का अन्नदाता होता है।
प्रश्न 5.
किसान व्यर्थ के वाद-विवाद को छोड़कर किस धर्म का पालन करते हैं?
उत्तर:
किसान व्यर्थ के वाद-विवाद को छोड़कर धर्म की मूल बात को समझकर उसका पालन करते हैं।
प्रश्न 6.
‘हम राज्य लिए मरते हैं’ में उर्मिला राज्य के कारण होने वाले किस कलह की बात कहना चाहती है?
उत्तर:
उर्मिला राज्य के लिए श्री राम को वनवास दिए जाने तथा भरत को राज्य देने से उत्पन्न कलह की बात कहना चाहती है।
II. निम्नलिखित पद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या करें:
1. यदि वे करें, उचित है गर्व,
बात बात में उत्सव पर्व, हम से प्रहरी रक्षक जिनके,
वे किससे डरते हैं ?
हम राज्य लिए मरते हैं।
उत्तर:
उर्मिला कहती है कि यदि वे किसान अपने ऊपर गर्व करते हैं तो उनका ऐसा करना बिलकुल ठीक भी है। वे हर अवसर पर समारोह करते हैं तथा त्योहार मनाते हैं। जब हमारे जैसे पहरेदार उनके रक्षक हों तो भला वे किसी से क्यों डरेंगे ? वे निडरतापूर्वक अपने समारोह तथा पर्व मनाते हैं। इसके विपरीत हम लोग तो सदा राज्य के लिए ही मरते रहते हैं।
2. करके मीन मेख सब ओर,
किया करें बुध वाद कठोर,
शाखामयी बुद्धि तजकर वे मूल धर्म धरते हैं।
हम राज्य लिए मरते हैं।
उत्तर:
उर्मिला कहती है कि विद्वान् लोग हर बात में दोष निकाल कर व्यर्थ में बहस करते रहते हैं, चाहे उस से कुछ प्राप्त हो या न हो परंतु किसान इन व्यर्थ की बातों को त्यागकर सहज धर्म को अपनाते हैं। वे विद्वानों के चक्कर में न पड़कर धर्म के वास्तविक स्वरूप को सहज रूप से अपनाते हैं जबकि हम राज्य के लिए आपस में ही लड़ते-मरते रहते हैं।
3. होते कहीं वही हम लोग,
कौन भोगता फिर ये भोग?
उन्हीं अन्नदाताओं के सुख आज दुःख हरते हैं।
हम राज्य लिए मरते हैं।
उत्तर:
उर्मिला कहती है कि यदि कहीं हम भी किसान होते तो फिर राज्य की गृह-कलह के कारण उत्पन्न कष्टों को कौन सहन करता? यदि हम भी किसान होते तो राज्य की उलझनों को सहज करने वाला भी तो कोई होना चाहिए। उन्हीं अन्नदाता किसानों के सुखों को देखकर ही आज हमारे दुःख दूर हो रहे हैं फिर भी हम राज्य के लिए लड़ते-मरते रहते हैं।
(ख) भाषा-बोध
I. निम्नलिखित शब्दों के विपरीत शब्द लिखें:
संपन्न = ————
सुलभ = ————
धनी = ————
उचित = ————
उदार = ————
कठोर = ————
रक्षक = ————
धर्म। = ————
उत्तर:
शब्द – विपरीत शब्द
संपन्न – विपन्न
सुलभ – दुर्लभ
धनी – निर्धन
उचित – अनुचित
उदार – अनुदार
कठोर – कोमल
रक्षक – भक्षक
धर्म – अधर्म
II. निम्नलिखित शब्दों के दो-दो पयार्यवाची शब्द लिखें:
पत्नी = ————
कर्षक = ————
सागर = ————
उत्सव। = ————
उत्तर:
शब्द – पर्यायवाची शब्द
पत्नी – भार्या, अर्धांगिनी, गृहिणी, वधू।
कर्षक – किसान, कृषक, खेतीहर, हलवाहा, कृषिजीवी।
सागर – समुद्र, सिंधु, जलधि, रत्नाकर।
उत्सव – समारोह, पर्व, त्योहार, धूमधाम।
III. निम्नलिखित भिन्नार्थक शब्दों के अर्थ लिखकर वाक्य बनाइएँ:
अन्न = ————
अन्य = ————
उदार = ————
उधार। = ————
उत्तर:
अन्न – अनाज-किसान अन्न पैदा करने के कारण अन्नदाता कहलाता है।
अन्य – दूसरा-इस पर नहीं किसी अन्य विषय पर बात करें।
उदार – दानी-कर्ण बहुत ही उदार राजा था।
उधार – ऋण-क्या आप मुझे एक सौ रुपए उधार दे सकते हैं?
(ग) पाठ्येतर सक्रियता
प्रश्न 1.
किसान की दिनचर्या की जो बातें आपको अच्छी लगती हैं उनकी सूची बनाएँ।
उत्तर:
(विद्यार्थी स्वयं करें।)
प्रश्न 2.
पंजाब के किसान के जीवन से संबंधित बैशाखी’ त्योहार के कुछ चित्र संकलित करके अपने स्कूल की भित्त पत्रिका पर लगाएँ। उत्तर:
(विद्यार्थी स्वयं करें।)
प्रश्न 3.
किसान को अन्नदाता कहा जाता है। हरित क्रांति में किसानों के योगदान के विषय में जानकारी हासिल करें।
उत्तर:
(विद्यार्थी स्वयं करें।)
प्रश्न 4.
कविता को कंठस्थ करके उसका सस्वर वाचन करें।
उत्तर:
(विद्यार्थी स्वयं करें)
(घ) ज्ञान-विस्तार
द्विवेदी युगीन कवियों में मैथिलीशरण गुप्त द्वारा रचित ‘साकेत’ महाकाव्य खड़ी बोली हिंदी का श्रेष्ठ महाकाव्य है। इसका कथानक उर्मिला के माध्यम से रामकथा को प्रस्तुत करना है। उर्मिला लक्ष्मण की पत्नी थी। श्रीराम के साथ लक्ष्मण वन चले जाते हैं तो उनके विरह में व्याकुल उर्मिला की दशा का वर्णन भी साकेत के नौवें सर्ग में किया गया है। ‘साकेत’ अयोध्या का दूसरा नाम है। ‘साकेत’ का रेडियो रूपांतरण डॉ० प्रेम जनमेजय ने किया था, जो इंटरनेट पर भी मिलता है। किसान के जीवन पर अन्य कवियों की रचनाएँ भी मिलती हैं, जैसे-
फसल क्या है
लाख-लाख कोटि-कोटि हाथों के स्पर्श की गरिमा:
एक की नहीं, दो की नहीं,
हज़ार-हज़ार खेतों की मिट्टी का गुण धर्मः
उत्तर:
विद्यार्थी स्वयं अन्य कवियों की रचनाओं का संग्रह करें।
PSEB 10th Class Hindi Guide हम राज्य लिए मरते हैं Important Questions and Answers
प्रश्न 1.
‘हम राज्य लिए मरते हैं’ कविता कवि की किस मूल रचना और सर्ग से ली गई है?
उत्तर:
‘हम राज्य लिए मरते हैं’ शीर्षक कविता मैथिलीशरण गुप्त के द्वारा रचित ‘साकेत’ के नवम् सर्ग से ली गई है
प्रश्न 2.
‘हम राज्य लिए मरते हैं’ कविता का मूलभाव क्या है?
उत्तर:
इस कविता का मूल भाव यह है कि राजा तो गृह-कलह से दु:खी रहता है परंतु किसान अपने सरल, सहज, शांतिपूर्ण तथा परिश्रमी जीवन से सदा सुखी रहता है।
प्रश्न 3.
‘किसानों के पास गोधन है’-यहाँ गोधन से तात्पर्य है?
उत्तर:
गोधन से तात्पर्य गायों रूपी धन है। किसान के पास गायें होती हैं, वे ही उनका धन हैं।
प्रश्न 4.
राज्य में उत्पन्न उलझनों से कौन निपटता है?
उत्तर:
राज्य में उत्पन्न उलझनों से राज्य को ही निपटना पड़ता है।
प्रश्न 5.
राज्य का दुःख कैसे दूर हो सकता है?
उत्तर:
राज्य का दु:ख अन्नदाता किसान को देखकर दूर हो सकता है।
प्रश्न 6.
‘साकेत’ में किस की विरह-पीड़ा का सजीव चित्रण किया है?
उत्तर:
‘साकेत’ के ‘नवम् सर्ग’ में लक्ष्मण की पत्नी उर्मिला की विरह-पीड़ा का सजीव चित्रण किया गया है क्योंकि वह अपने पति के साथ वनवास के लिए नहीं जा सकी थी और अपने महल में रहकर निरंतर चौदह वर्ष तक विरह-वियोग में आँसू बहाती रही थी।
एक पंक्ति में उत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
कवि के अनुसार सच्चा राज्य कौन करते हैं ?
उत्तर:
सच्चा राज्य किसान करते हैं।
प्रश्न 2.
किसान के पास कौन-सा धन है ?
उत्तर:
किसान के पास गाय रूपी धन है।
प्रश्न 3.
किसानों के रक्षक कौन हैं ?
उत्तर:
अयोध्या नरेश किसानों के रक्षक हैं।
प्रश्न 4.
विद्वान् क्या करते हैं?
उत्तर:
विद्वान् हर बात में दोष निकाल कर व्यर्थ में तर्क-वितर्क करते हैं।
बहुवैकल्पिक प्रश्नोत्तरनिम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक सही विकल्प चुनकर लिखें
प्रश्न 1.
‘सहनशीलता के आगार’ कौन हैं
(क) विद्वान्।
(ख) किसान
(ग) राजा
(घ) प्रहरी।
उत्तर:
(ख) किसान
प्रश्न 2.
‘शाखामयी बुद्धि’ कैसी बातें होती हैं
(क) तर्क पूर्ण
(ख) आध्यात्मिक
(ग) व्यर्थ की
(घ) पारलौकिक।
उत्तर:
(ग) व्यर्थ की
प्रश्न 3.
राजघराने की अपेक्षा किसका जीवन सहज है
(क) प्रहरी का
(ख) विद्वान् का
(ग) किसान का
(घ) न्यायाधीश का।
उत्तर:
(ग) किसान का
एक शब्द/हाँ-नहीं/सही-गलत/रिक्त स्थानों की पूर्ति के प्रश्न
प्रश्न 1.
हर अवसर पर समारोह तथा उत्सव कौन मनाते हैं? (एक शब्द में उत्तर दें)
उत्तर:
किसान
प्रश्न 2.
किसानों को अमृत के समान गाय का दूध सुलभ नहीं है। (हाँ या नहीं में उत्तर)
उत्तर:
नहीं
प्रश्न 3.
राज्य का दुःख अन्नदाता किसान को देख कर दूर हो जाता है। (हाँ या नहीं में उत्तर दें)
उत्तर:
हाँ
प्रश्न 4.
राजघराने के लोग राज्य के लिए नहीं मरते हैं। (सही या गलत में उत्तर दें)
उत्तर:
गलत
प्रश्न 5.
किसान निरंतर श्रम करते रहते हैं। (सही या गलत में उत्तर दें)
उत्तर:
सही
प्रश्न 6.
पत्नी सहित ……….. हैं वे, भव ………. भरते हैं।
उत्तर:
विचरते, वैभव
प्रश्न 7.
किया करें …………. वाद कठोर।
उत्तर:
बुध
प्रश्न 8.
उन्हीं ……….. के सुख …….. दुःख हरते हैं।
उत्तर:
अन्नदाताओं, आज।
हम राज्य लिए मरते हैं पद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या
1. हम राज्य लिए मरते हैं।
सच्चा राज्य परन्तु हमारे कर्षक ही करते हैं।
जिनके खेतों में है अन्न,
कौन अधिक उनसे सम्पन्न ?
पत्नी-सहित विचरते हैं वे, भव वैभव भरते हैं,
हम राज्य लिए मरते हैं।
शब्दार्थ:
मरते हैं = झगड़ते हैं, दुःखी होते हैं। कर्षक = कृषक, किसान। सम्पन्न = धनी। विचरते = चलतेफिरते। भव = संसार। वैभव = धन-संपत्ति, ऐश्वर्य।
प्रसंग:
प्रस्तुत पंक्तियाँ मैथिलीशरण गुप्त द्वारा रचित कविता ‘हम राज्य लिए मरते हैं’ से ली गई हैं, जिसमें उर्मिला राज्य में व्याप्त गृह-कलह से दुःखी हो कर किसानों के शांतिपूर्ण जीवन की प्रशंसा कर रही है। .
व्याख्या:
उर्मिला कहती है कि हम तो राज्य के कारण गृह कलह से दुःखी हैं जबकि सच्चा राज्य तो हमारे राज्य के वे किसान करते हैं जिन के खेतों में अन्न पैदा होता है। उन से अधिक धनवान भला और कौन हो सकता है? अर्थात् सबसे दुखी तथा सम्पन्न अन्न उत्पन्न करने वाले किसान ही हैं। वे अपनी पत्नी के साथ घूमते-फिरते हुए संसार के ऐश्वर्य का उपभोग करते हैं, जबकि हम राज्य के लिए आपसी कलह से मर रहे हैं।
विशेष:
- किसानों को सबसे सुखी माना है क्योंकि वे स्वयं अन्न पैदा कर स्वतंत्रतापूर्वक अपना जीवन व्यतीत करते हैं जबकि राजवंशी राज्य के कलह से ही त्रस्त हैं।
- भाषा तत्सम प्रधान, भावपूर्ण है।
2. वे गोधन के धनी उदार,
उनको सुलभ सुधा की धार,
सहनशीलता के आगर वे श्रम सागर तरते हैं।
हम राज्य लिए मरते हैं।
शब्दार्थ:
गोधन = गायों रूपी धन। उदार = सरल, दानी। सुधा = अमृत। आगर = भंडार, खजाना। श्रम = मेहनत, परिश्रम। सागर = समुद्र।
प्रसंग:
प्रस्तुत पंक्तियाँ मैथिलीशरण गुप्त द्वारा रचित कविता ‘हम राज्य लिए मरते हैं’ से ली गई हैं, जिसमें उर्मिला राज्य के लिए गृह कलह से दुःखी होकर किसानों के संपन्न जीवन की प्रशंसा करती है।
व्याख्या:
उर्मिला किसानों की प्रशंसा करते हुए कहती हैं कि किसान के पास गायों रूपी धन है, जिसके कारण वे धनवान और उदार बने रहते हैं। उन्हें अमृत की धारा के समान गाय के दूध की धारा आसानी से मिल जाती है। वे सहनशीलता के भंडार हैं तथा निरंतर परिश्रम रूपी सागर में तैरते रहते हैं अर्थात् वे सदा मेहनत करते रहते हैं, जबकि हम लोग राज्य के लिए परस्पर लड़ते-मरते रहते हैं।
विशेष:
- किसान गायों रूपी धन से अमीर हैं तथा निरंतर परिश्रम करते रहते हैं।
- भाषा तत्सम प्रधान, अनुप्रास तथा रूपक अलंकार हैं।
3. यदि वे करें, उचित है गर्व,
बात बात में उत्सव-पर्व,
हम से प्रहरी रक्षक जिनके, वे किससे डरते हैं?
हम राज्य लिए मरते हैं।
शब्दार्थ:
उचित = सही है। गर्व = घमंड। उत्सव = समारोह। पर्व = त्योहार। प्रहरी = पहरेदार। रक्षक = रखवाले।
प्रसंग:
यह काव्यांश कविवर ‘मैथिलीशरण गुप्त द्वारा रचित ‘हम राज्य लिए मरते हैं’ नामक कविता से लिया गया है। इसमें उर्मिला ने किसानों के जीवन को अपने राज्य के लिए कलह ग्रस्त जीवन से श्रेष्ठ माना है।
व्याख्या:
उर्मिला कहती है कि यदि वे किसान अपने ऊपर गर्व करते हैं तो उनका ऐसा करना बिलकुल ठीक भी है। वे हर अवसर पर समारोह करते हैं तथा त्योहार मनाते हैं। जब हमारे जैसे पहरेदार उनके रक्षक हों तो भला वे किसी से क्यों डरेंगे ? वे निडरतापूर्वक अपने समारोह तथा पर्व मनाते हैं। इसके विपरीत हम लोग तो सदा राज्य के लिए ही मरते रहते हैं।
विशेष:
- किसानों के आनंद एवं उल्लासमय जीवन की झलक प्रस्तुत की गई है।
- भाषा तत्सम प्रधान, पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
4. करके मीन मेख सब ओर,
किया करें बुध वाद कठोर,
शाखामयी बुद्धि तजकर वे मूल धर्म धरते हैं।
हम राज्य लिए मरते हैं।
शब्दार्थ:
मीन मेख = दोष निकालना, तर्क-वितर्क करना, बहस करना। बुधं = बुद्धिमान, विद्वान्। वाद = वादविवाद, बहस। शाखामयी बुद्धि = व्यर्थ की बातें। तजकर = त्यागकर, छोड़कर। मूल धर्म = वास्तविक धर्म, सहज धर्म। धरते = धारण करना, पालन करना।
प्रसंग:
प्रस्तुत पंक्तियाँ मैथिलीशरण गुप्त द्वारा रचित कविता ‘हम राज्य लिए मरते हैं’ से ली गई हैं, जिसमें उर्मिला ने किसानों के सहज जीवन की प्रशंसा करते हुए राज्य के लिए व्यर्थ ही लड़ने-मरने वालों के जीवन को व्यर्थ माना है।
व्याख्या:
उर्मिला कहती है कि विद्वान् लोग हर बात में दोष निकाल कर व्यर्थ में बहस करते रहते हैं, चाहे उस से कुछ प्राप्त हो या न हो परंतु किसान इन व्यर्थ की बातों को त्यागकर सहज धर्म को अपनाते हैं। वे विद्वानों के चक्कर में न पड़कर धर्म के वास्तविक स्वरूप को सहज रूप से अपनाते हैं जबकि हम राज्य के लिए आपस में ही लड़ते-मरते रहते हैं।
विशेष:
- आडंबरपूर्ण धर्म के स्थान पर धर्म के सहज स्वरूप को अपनाना श्रेष्ठ है।
- भाषा तत्सम प्रधान और अनुप्रास अलंकार है।
5. होते कहीं वही हम लोग,
कौन भोगता फिर ये भोग?
उन्हीं अन्नदाताओं के सुख आज दुःख हरते हैं।
हम राज्य लिए मरते हैं।
शब्दार्थ:
भोगता = उपभोग करना। भोग = सुख। अन्नदाताओं = किसानों। हरते हैं = दूर करते हैं।
प्रसंग:
प्रस्तुत पंक्तियाँ मैथिलीशरण गुप्त द्वारा रचित कविता ‘हम राज्य लिए मरते हैं’ से ली गई हैं, जिसमें उर्मिला के राज्य के लिए गृह कलह करने वाले राज घराने से किसान के सहज जीवन को श्रेष्ठ माना है।
व्याख्या:
उर्मिला कहती है कि यदि कहीं हम भी किसान होते तो फिर राज्य की गृह-कलह के कारण उत्पन्न कष्टों को कौन सहन करता? यदि हम भी किसान होते तो राज्य की उलझनों को सहज करने वाला भी तो कोई होना चाहिए। उन्हीं अन्नदाता किसानों के सुखों को देखकर ही आज हमारे दुःख दूर हो रहे हैं फिर भी हम राज्य के लिए लड़ते-मरते रहते हैं।
विशेष:
- वास्तविक सुख किसान के सरल जीवन में है, यह न समझ कर हम इस अभिमान में लड़-मर रहे हैं कि राज्य हमारा है।
- भाषा तत्सम प्रधान और भावपूर्ण है।
हम राज्य लिए मरते हैं Summary
हम राज्य लिए मरते हैं कवि परिचय
राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त भारतीयता के अमर गायक के रूप में प्रसिद्ध हैं। उनका जन्म सन् 1886 ई० में चिरगाँव जिला झांसी में हुआ था। उनके पिता श्री रामचरण गुप्त भगवान् राम के परम भक्त थे। माता दयालु स्वभाव की थीं। इनके गुणों का प्रभाव उन पर भी पड़ना स्वाभाविक था। वे भी राम के अनन्य उपासक बन गए। उनकी प्रारंभिक शिक्षा गाँव में ही हुई। बाद में इन्होंने झांसी के मेकडॉनल स्कूल से शिक्षा प्राप्त की थी। उन्होंने संस्कृत, हिंदी और बंगला के साहित्य का अध्ययन किया था और आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी की प्रेरणा से इन्होंने काव्य-रचनाएँ की थीं जो ‘सरस्वती’ पत्रिका में छपने लगी थीं। गुप्त जी पर गाँधी जी के व्यक्तित्व का भी प्रभाव था। वे अपने जीवन काल में बारह वर्षों तक राज्यसभा के सदस्य भी रहे। आगरा विश्वविद्यालय ने डी० लिट् की उपाधि से तथा भारत सरकार ने पद्मभूषण अलंकार से इन्हें सम्मानित किया था। सन् 1964 ई० में गुप्त जी का देहावसान हुआ।
रचनाएँ-भारत भारती, रंग में भंग, नहुष, साकेत, यशोधरा, द्वापर, जयद्रथ वध, जय भारत, सिद्धराज, पंचवटी आदि इनकी प्रमुख रचनाएँ हैं। ‘झंकार’ उनके गीतों का संग्रह है। ‘साकेत’ नामक महाकाव्य पर गुप्त जी को हिंदी-साहित्य सम्मेलन, प्रयाग का मंगला प्रसाद पारितोषिक प्राप्त हुआ था। मानवतावादी दृष्टिकोण, राष्ट्रीयता की भावना, प्रकृति के विविध रूपों का चित्रण, भारतीय नारी का त्याग-भावना, संस्कृति प्रेम तथा नवीनता के प्रति आस्था आदि गुप्त जी के काव्य की प्रमुख विशेषताएँ हैं। अपनी प्रारंभिक रचना ‘भारत भारती’ में उन्होंने राष्ट्र के अतीत, वर्तमान और भविष्य पर अपने विचार प्रकट किए हैं।
हम राज्य लिए मरते हैं कविता का सार
‘हम राज्य लिए मरते हैं’ शीर्षक कविता श्री मैथिलीशरण गुप्त की रचना ‘साकेत’ के नवम् सर्ग से ली गई है, जिसमें उर्मिला राज्य के कारण उत्पन्न गृह-कलह से दुःखी होकर किसानों के सुखमय जीवन की प्रशंसा करती है। उर्मिला के अनुसार हम लोग तो राज्य के लिए लड़ते-झगड़ते रहते हैं जबकि सच्चा राज्य तो किसान करते हैं। उनके खेतों में अन्न है, वे संपन्न हैं, पत्नी सहित घूमते-फिरते हैं और संसार का सुख भोगते हैं। उनके पास गाय, उदारता, सहनशीलता, परिश्रम करने की शक्ति है। उनका अपने ऊपर गर्व करना, उत्सव-त्योहार मनाना, निडरतापूर्वक विचरण करना अत्यंत सहज कार्य है। विद्वान् चाहे व्यर्थ में धर्म पर तर्क-वितर्क करते रहें परन्तु किसान तर्क-वितर्क छोड़ कर धर्म के मूल को समझते हैं। उर्मिला सोचती है कि यदि हम किसान होते तो राज्य की उलझनों से उत्पन्न मुसीबतों को कौन सहन करता? उन्हीं किसानों के सुख देखकर आज हमारे दुःख दूर हो सकते हैं हम राज्य के लिए ही परस्पर लड़-मर रहे हैं।