PSEB 8th Class Agriculture Solutions Chapter 6 मधु-मक्खी पालन

Punjab State Board PSEB 8th Class Agriculture Book Solutions Chapter 6 मधु-मक्खी पालन Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 8 Agriculture Chapter 6 मधु-मक्खी पालन

PSEB 8th Class Agriculture Guide मधु-मक्खी पालन Textbook Questions and Answers

(अ) एक-दो शब्दों में उत्तर दें—

प्रश्न 1.
मधु-मक्खी की दो पालतू किस्मों के नाम बताएँ।
उत्तर-
हिन्दुस्तानी मक्खी, यूरोपियन मक्खी।

प्रश्न 2.
मधु-मक्खी की कितनी टांगें होती हैं ?
उत्तर–
तीन जोड़ी टांगें।

प्रश्न 3.
मधु-मक्खी की दो जंगली प्रकारों के नाम बताएँ।
उत्तर-
डूमना तथा छोटी मक्खी।

प्रश्न 4.
पंजाब में मधु-मक्खी पालने का उचित समय कौन-सा है?
उत्तर-
फरवरी-मार्च तथा नवम्बर।।

प्रश्न 5.
नर मक्खियों का और कौन-सा नाम प्रचलित है?
उत्तर-
ड्रोन मक्खी

प्रश्न 6.
क्या पंजाब में मधु-मक्खी पालने के लिए कोई शुल्क देना पड़ता है ?
उत्तर-
नहीं।

प्रश्न 7.
अतिरिक्त लाभ के लिए कितने छत्ते मधुमक्खियों के प्रति कुटुम्ब के साथ व्यवसाय आरम्भ किया जाना चाहिए?
उत्तर-
आठ फ्रेम मक्खी के साथ।

प्रश्न 8.
मधु मक्खियां पक्के हुए मधु (शहद) को किस पदार्थ से बन्द (सील) करती हैं ?
उत्तर-
मोम के साथ।

PSEB 8th Class Agriculture Solutions Chapter 6 मधु-मक्खी पालन

प्रश्न 9.
कुटुम्ब की रानी मक्खी को कितने समय बाद नई रानी से बदल देना चाहिए?
उत्तर-
प्रत्येक वर्ष के बाद।

प्रश्न 10.
कर्मी मक्खियां नर होती हैं या मादा ?
उत्तर-
मादा मक्खियां।

(आ) एक-दो वाक्यों में उत्तर दें—

प्रश्न 1.
डूमना मक्खियां अपने छत्ते कहां लगाती हैं ?
उत्तर-
डूमना मक्खी अपने छत्ते पानी वाली टंकियों, चट्टानों, वृक्षों की शाखाओं, ऊँची इमारतों के बनेरों या सीढ़ियों के नीचे बनाती हैं।

प्रश्न 2.
नई व पुरानी रानी मक्खी की क्या पहचान है?
उत्तर-
नई रानी मक्खी गठीले शरीर वाली, सुनहरी भूरे रंग की, चमकीली तथा लम्बे पेट वाली होती है।
पुरानी रानी मक्खी का रंग गहरा भूरा तथा फिर काला भूरा हो जाता है।

प्रश्न 3.
मधु-मक्खी पालन का आधारभूत प्रशिक्षण कहां से लिया जा सकता है?
उत्तर-
मधु-मक्खी पालन का प्रशिक्षण पी० ए० यू० लुधियाना, कृषि विज्ञान केन्द्र या कृषि विभाग से प्राप्त किया जा सकता है।

प्रश्न 4.
ग्रीष्म-ऋतु के आरम्भ में बक्सों को धूप से छाया में किस प्रकार ले जाया जाता है?
उत्तर-
गर्मी से बचाने के लिए कुटुम्बों को प्रतिदिन 2-3 फुट खिसका कर घनी छाया के नीचे कर देना चाहिए तथा वक्सों को हवादार होना चाहिए। पानी का भी उचित प्रबन्ध होना चाहिए।

प्रश्न 5.
मधु-मक्खी फार्म पर कुटुम्ब से कुटुम्ब तथा पंक्ति से पंक्ति कितना अन्तर होना चाहिए?
उत्तर-
कुटुम्ब से कुटुम्ब तक की दूरी 6-8 फुट तथा पंक्ति से पंक्ति की दूरी 10 फुट होनी चाहिए।

प्रश्न 6.
मधु-मक्खी कुटुम्बों में मधु के अतिरिक्त और कौन-कौन से पदार्थ प्राप्त किए जा सकते हैं?
उत्तर-
मधु-मक्खी कुटुम्बों से शहद के अलावा मोम, प्रोपोलिस, पोलन, मधु मक्खी से ज़हर तथा रायल जैली भी प्राप्त की जा सकती है।

प्रश्न 7.
कच्चा मधु क्यों नहीं निकालना चाहिए?
उत्तर-
कच्चा मधु जल्दी ही खट्टा हो जाता है। इसलिए कच्चा मधु नहीं निकालना चाहिए।

प्रश्न 8.
मधु (शहद) को किस प्रकार छान सकते हैं?
उत्तर-
मधु (शहद) निकालने के बाद इस के ऊपर इकट्ठी हुई अशुद्धियां ; जैसे-मोम, मधु-मक्खियां तथा उनके पंख आदि को छान कर निकाल दें। मधु (शहद) को मलमल के दोहरे कपड़े या स्टील के फिल्टर द्वारा छान लिया जाता है।

प्रश्न 9.
मधु मक्खियां पालन व्यवसाय में कौन-सा सामान अत्यंत आवश्यक है?
उत्तर-
मधु-मक्खी पालन के लिए मधु मक्खियों के अलावा बक्सा फ्रेम को हिलाने के लिए पत्ती, धुआं देने के लिए स्मोकर, मोम की बुनियादी शीटों आदि की आवश्यकता होती है।
PSEB 8th Class Agriculture Solutions Chapter 6 मधु-मक्खी पालन 1

प्रश्न 10.
मधु के मण्डीकरण पर नोट लिखें।
उत्तर-
मधु की खरीद कई व्यापारी तथा निर्यातक करते हैं। मधु मक्खी पालकों के सैल्फ हैल्प ग्रुप (SHG) भी मधु के मण्डीकरण में योगदान डाल रहे हैं। मधु को भिन्न-भिन्न आकार की आकर्षक बोतलों में भर कर बेचने से भी लाभ लिया जा सकता है।

PSEB 8th Class Agriculture Solutions Chapter 6 मधु-मक्खी पालन

(इ) पाँच-छः वाक्यों में उत्तर दें—

प्रश्न 1.
मधु-मक्खियों को खरीदते समय किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
उत्तर-

  1. मधु की मक्खियां खरीदते समय उचित समय का ध्यान रखना चाहिए। यह काम शुरू करने के लिए पंजाब में उचित समय फरवरी से मार्च तथा नवम्बर है।
  2. नया कुटुम्ब, आठ फ्रेम मक्खी से शुरू करना चाहिए। इस से लाभ अधिक मिल जाता है।
  3. नए खरीदे कुटुम्ब में नई गर्भित रानी मक्खी, बंद तथा खुला ब्रुड, मधु तथा पराग तो होने ही चाहिएं, परन्तु ड्रोन मक्खियां तथा ड्रोन ब्रूड कम-से-कम होने चाहिएं।
  4. खरीदे गए कुटुम्बों के गेट बंद कर के इन को हमेशा देर रात या सुबह-सुबह उठा कर चुनी हुई जगह पर ले जाना चाहिए।

प्रश्न 2.
मधु-मक्खी कुटुम्बों में मधु निकालने की विधि का वर्णन करो।
उत्तर-
पंजाब में मधु निकालने के दो मुख्य समय अप्रैल-जून तथा नवम्बर होते हैं।
मधु-मक्खी पालन अप्रैल से जून के महीनों से ज़्यादा तथा बरसीम से तथा नवम्बर में कपास, अरहर तथा तोरिये के स्रोतों से निकाला जाता है। मधु निकालने का समय आ गया है इसका पता तब लगता है जब फ्रेमों के खानों में मधु को मक्खी सील बन्द कर देती हैं। यदि फ्रेम के लगभग 75 फीसदी खाने सील बन्द हों तो ऐसे फ्रेम में शहद निकाला जा सकता है। यदि मधु कच्चा निकाला जाए तो यह कुछ समय बाद खट्टा हो जाता है। फ्रेम निकालते समय फ्रेम को धीरे से झटका देकर ब्रुश के साथ मक्खियां झाड़ देनी चाहिएं। यह कार्य मक्खियां हटाने वाले रासायनिक पदार्थ या प्रैशर से हवा मारकर भी किया जा सकता है। मधु वाले फ्रेम मधु निकालने वाले कमरे में रखने चाहिएं जिसको जालीदार दरवाज़ा लगा हो। मधु निकालने के लिए हाथ तथा मशीनों का प्रयोग किया जा सकता है। फ्रेम में मधु निकालने से पहले सैलों की टोपियां तोड़नी ज़रूरी हैं। यह कार्य एक विशेष किस्म के चाकू से किया जाता है। मधु निकालने से पहले की लापरवाही मक्खियों के लिए काफ़ी नुक्सानदायक हो सकती है। मधु निकालने के बाद यह ज़रूरी है कि खाली हुए फ्रेम वापस कुटुम्ब को दिए जाएं। जिस कुटुम्ब में से जितने फ्रेम निकालने हों उतने ही उसमें ज़रूर वापस कर दें।

प्रश्न 3.
शुद्ध मधु-मोम प्राप्त करने का क्या ढंग है?
उत्तर-
मधु निकालते समय छत्ते से मोम उतार ली जाती है। इस मोम, टूटे हुए छत्ते, पुराने बेकार छत्ते या जंगली मक्खी के छत्ते आदि को गर्म पानी में डाल कर कपड़े द्वारा छान लिया जाता है। छानते समय फालतू पदार्थ इस कपड़े के ऊपर रह जाएंगे जब कि पिघली हुई मोम तथा पानी कपड़े के नीचे रखे खुले मुंह वाले बर्तन में आ जाएगी। ठण्डी हो कर मोम पानी के ऊपर टिक्की के रूप में इकट्टी हो जाएगी।

प्रश्न 4.
मधु-मक्खी पालन में अनुदान सुविधाएं कौन-सी हैं ?
उत्तर-
मधु-मक्खी के कार्य को प्रफुल्लित करने के लिए सरकार द्वारा राष्ट्रीय बागवानी मिशन के अन्तर्गत अनुदान दिया जाता है। इस के अलावा मधु निकालने वाली मशीन, सैल टोपियां उतारने वाला चाकू, ड्रिप ट्रे अनुदान तथा मधु डालने के लिए फ्रूड ग्रेड प्लास्टिक की बाल्टियों पर भी अनुदान दिया जाता है।

प्रश्न 5.
मधु-मक्खी पालन के महत्त्व के विषय में प्रकाश डालें।
उत्तर-
मधु-मक्खी पालना एक लाभदायक तथा महत्त्वपूर्ण कृषि सहायक व्यवसाय है। इस व्यवसाय द्वारा अच्छी आय हो सकती है। इसे कोई भी स्त्री, पुरुष, विद्यार्थी मुख्य व्यवसाय या सहायक व्यवसाय के रूप में अपना सकते हैं।
इटालियन मधु मक्खियों के पालने के लिए 20 किलो तथा प्रवासी मक्खी पालन में 60 किलो मधु प्रति कुटुम्ब मिल जाता है। मधु मक्खियों से मधु के अलावा मोम, प्रोपलिस, पोलन, मधु मक्खी ज़हर तथा रायल जैली भी प्राप्त होती है। इनसे आय भी हो जाती है और रानी मक्खियां तैयार करके तथा मधु मक्खियों के कुटुम्ब बेच कर और भी आय बढ़ाई जा सकती है।
मधु मक्खियां कृषि में फसलों, फलदार पौधों तथा सब्जियों आदि का पर-परागण करके कृषि उपज तथा गुणवत्ता बढ़ाने में बहुत योगदान डालती हैं।

Agriculture Guide for Class 8 PSEB मधु-मक्खी पालन Important Questions and Answers

बहुत छोटे उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
पुराने समय में भारत में कौन-सी मक्खी पाली जाती थी?
उत्तर-
केवल हिन्दुस्तानी मक्खी।

PSEB 8th Class Agriculture Solutions Chapter 6 मधु-मक्खी पालन

प्रश्न 2.
पुराने समय में मधुमक्खी पालन भारत के कौन-से राज्यों तक सीमित था?
उत्तर–
पहाड़ी तथा दक्षिणी।

प्रश्न 3.
इटालियन मधु मक्खियों के स्थाई मक्खी पालन से प्रति कुटुम्ब कितना मधु मिल जाता है?
उत्तर-
20 किलो।

प्रश्न 4.
इटालियन मधुमक्खियां हिज़रती मक्खी पालन से प्रति कुटुम्ब कितना मधु मिल जाता है?
उत्तर-
60 किलो।

प्रश्न 5.
मधु मक्खी के शरीर के कितने भाग हैं ?
उत्तर-
सिर, छाती, पेट।।

प्रश्न 6.
नर मक्खियों को क्या कहते हैं ? क्या इनमें डंक होता है ?
उत्तर-
ड्रोन मक्खी, इनमें डंक नहीं होता।

प्रश्न 7.
क्या रानी मक्खी में डंक होता है ?
उत्तर-
होता है।

प्रश्न 8.
रानी मक्खी डंक कब प्रयोग करती है ?
उत्तर-
विरोधी रानी मक्खी से लड़ाई के समय।

प्रश्न 9.
पंजाब कृषि विश्वविद्यालय में इटालियन मक्खी को पालने का कार्य किस ने किया था ?
उत्तर-
डॉ० अटवाल जो पी० ए० यू० में प्रोफैसर थे।

प्रश्न 10.
मधु मक्खियों की एक कलोनी में कर्मी मक्खियों की संख्या कितनी हो सकती है ?
उत्तर-
8000 से 80,000 तक तथा कई बार अधिक भी हो सकती है।

प्रश्न 11.
मधु मक्खियों की सबसे बड़ी तथा गुस्से वाली किस्म कौन-सी है ?
उत्तर-
डूमना मक्खी

प्रश्न 12.
हिन्दुस्तानी मक्खी का आकार कितना होता है ?
उत्तर-
मध्यम आकार का।

प्रश्न 13.
अनगर्भित अण्डों से कौन-सी मधु मक्खियां पैदा होती हैं ?
उत्तर-
नर मक्खियां।

प्रश्न 14.
कर्मी मक्खियों की अधिक-से-अधिक आयु कितनी हो सकती है ?
उत्तर-
एक से डेढ़ माह।

प्रश्न 15.
मधु मक्खी पालन के लिए सबसे बढ़िया मौसम कौन-सा माना जाता
उत्तर-
बसंत (फरवरी-अप्रैल) का।

प्रश्न 16.
मधु की मक्खियों की मुख्य किस्मों के नाम बताओ।
उत्तर-
छोटी मक्खी, डूमना मक्खी, हिन्दुस्तानी मक्खी, इटालियन मक्खी।

प्रश्न 17.
एपीस फ्लोरिया कौन-सी मक्खी है ?
उत्तर-
छोटी मक्खी।

प्रश्न 18.
एपीस मैलीफेरा कौन-सी मक्खी है ?
उत्तर-
इटालियन मक्खी।

प्रश्न 19.
पंजाब में यूरोपियन मक्खी की कौन-सी किस्म पाली जाती है ?
उत्तर-
इटालियन मधु मक्खी।

प्रश्न 20.
रानी मक्खी की आयु कितनी होती है ?
उत्तर-
2 से 5 वर्ष।

प्रश्न 21.
नर मक्खी का क्या काम है ?
उत्तर-
रानी मक्खी से भोग करना।

प्रश्न 22.
गर्भित अण्डों से कौन-सी मक्खियां पैदा होती हैं ?
उत्तर-
कर्मी मक्खियां।

प्रश्न 23.
बक्सों का मुँह किस तरफ रखना चाहिए ?
उत्तर-
सूर्य की तरफ

प्रश्न 24.
मधु पैदा करने वाले राज्यों में पंजाब का क्या दर्जा है ?
उत्तर-
यह प्रथम पंक्तियों में है।

PSEB 8th Class Agriculture Solutions Chapter 6 मधु-मक्खी पालन

प्रश्न 25.
मधु मक्खियां हमारी सहायता कैसे करती हैं ?
उत्तर-
फलदार पौधों, सब्जियों तथा वृक्षों का पर-परागन करके कृषि उपज बढ़ाने में सहायता करती हैं।

प्रश्न 26.
मधु मक्खी की जंगली किस्मों के नाम बताओ।
उत्तर-
डूमना तथा छोटी मक्खी।

प्रश्न 27.
ड्रमना मक्खी अपने छत्ते कहां बनाती है ?
उत्तर-
पुरानी इमारतों के नीचे, पानी की ऊंची टंकियों के नीचे तथा वृक्षों की बड़ी शाखाओं पर।

प्रश्न 28.
छोटी मक्खी अपने छत्ते कहां बनाती है ?
उत्तर-
इमारतों के आलों (झरोखों) में, छटियों के ढेरों में, झाड़ियों में।

प्रश्न 29.
पालतू मक्खियां कौन-सी हैं ?
उत्तर-
हिन्दुस्तानी तथा इटालियन मक्खी।

प्रश्न 30.
मधु मक्खियों के एक कुटुम्ब में कितनी जातियां होती हैं ?
उत्तर-
तीन-रानी, कर्मी तथा नर मक्खियां।

प्रश्न 31.
रानी मक्खी कैसी होती है ?
उत्तर-
यह सबसे लम्बी, हल्के, भूरे रंग की तथा चमकदार होती है।

प्रश्न 32.
कर्मी तथा नर मक्खी के पेट की बनावट में क्या अन्तर है ?
उत्तर-
कर्मी मक्खी का पेट पिछली तरफ से तिकोना परन्तु नर मक्खी का गोलाई वाला होता है।

प्रश्न 33.
कौन-सी फसलें मधु मक्खियों के लिए लाभदायक हैं ?
उत्तर-
शीशम, खैर, लीची, बेर, आड़, कद्दू जाति की फसलें आदि।

प्रश्न 34.
मक्खियां पालने का दूसरा अच्छा मौसम कौन-सा है ?
उत्तर-
अक्तूबर-नवम्बर (पतझड़ ऋतु)।।

प्रश्न 35.
कौन-से मौसम में मधु मक्खियों के काम करने की रफ्तार में कमी आ जाती है ?
उत्तर-
सर्दी ऋतु (दिसम्बर से जनवरी) में।

प्रश्न 36.
मधु मक्खियों के नजदीक साफ पानी का प्रबंध क्यों होना चाहिए ?
उत्तर-
मक्खियां पानी का प्रयोग छत्ते को ठण्डा करने के लिए करती हैं।

प्रश्न 37.
बक्से से बक्से में कितनी दूरी होनी चाहिए ?
उत्तर-
10 फुट।

प्रश्न 38.
प्रोपलिस क्या होता है ?
उत्तर-
मधु गोंद।

छोटे उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
रानी मक्खी के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर-
रानी मक्खी अण्डे देने का कार्य करती है तथा कुटुम्ब के प्रबन्ध की जिम्मेदारी भी इसके सिर पर होती है। रानी मक्खी एक दिन में 1500 से 2000 तक अण्डे दे सकती है। रानी मक्खी कई वर्षों तक जीवित रह सकती है, परन्तु अण्डे देने की इसकी समर्था पहले वर्ष के बाद कम होना शुरू हो जाती है। यह कुटुम्ब में सबसे लम्बी, हल्के रंग की तथा चमकीली होती है। इसके पंख पेट के पिछले भाग को पूरा ढकते हैं। छत्ते में रानी मक्खी बहुत भटकीली चाल से चलती-फिरती आसानी से देखी जा सकती है।

प्रश्न 2.
इटालियन मक्खी, मधु मक्खियों की अन्य किस्मों से श्रेष्ठ कैसे है ?
उत्तर-
इसका मधु अधिक होता है तथा इसका स्वभाव शांत होता है।

प्रश्न 3.
मक्खी फार्म पर धूप-छाया के उचित प्रबंध के लिए क्या करना चाहिए ?
उत्तर-
सर्दी में धूप तथा गर्मी में छाया का प्रबंध करने के लिए पतझड़ वाले पौधे लगाने चाहिएं।

प्रश्न 4.
मधु की मक्खी के जीवन चक्र की चार अवस्थाएं कौन-कौन सी हैं ?
उत्तर-
अण्डा, लारवा (सुंडी), प्यूपा तथा पूरी मक्खी।

प्रश्न 5.
रानी की आयु तथा इसको बदल देने पर टिप्पणी करें।
उत्तर-
रानी मक्खी की आयु 2 से 5 वर्ष तक की होती है परन्तु अधिक मधु प्राप्त करने के लिए प्रत्येक वर्ष रानी मक्खी बदल लेनी चाहिए।

प्रश्न 6.
कर्मी मक्खी की आयु के बारे में टिप्पणी करें।
उत्तर-
कर्मी मक्खी की आयु साधारणतः एक से डेढ माह होती है, परन्तु सर्दियों में छ: माह भी हो सकती है।

प्रश्न 7.
नर मक्खी की शारीरिक बनावट का विवरण दो ?
उत्तर-
ये कर्मी मक्खियों से मोटे और काले होते हैं। इनकी आँखें दोनों तरफ से सिर के ऊपर बीच में आकर जुड़ी होती हैं। इसका पेट गोलाई में होता है और इसके ऊपर लूई भी होती है।

PSEB 8th Class Agriculture Solutions Chapter 6 मधु-मक्खी पालन

प्रश्न 8.
मधु की मक्खियां पालने के लिए किस सामान की आवश्यकता होती है ?
उत्तर-
मधु की मक्खियां और बक्से, घूमने वाली जाली, दस्ताने, मक्खी ब्रुश, धुआँ यन्त्र, रानी के लिए जाली पर्दा, रानी पिंजरा, रानी कोष का कवच, चाश्नी बर्तन, मक्खियां निकालने का यन्त्र, मधु निकालने वाली मशीन, टोपी उतारने वाला चाकू आदि।

प्रश्न 9.
मधु का मानव के लिए क्या महत्त्व है ?
उत्तर-
मधु एक अच्छा भोजन है। हमें प्रतिदिन 50 ग्राम मधु खाना चाहिए। मधु में मीठा, खनिज पदार्थ और विटामिन आदि होते हैं। इसमें कई एंटीबायोटिक दवाइयां भी होती हैं। इसके प्रयोग से खांसी और बलगम से राहत मिलती है। यह आँखों और मस्तिष्क के लिए भी अच्छी खुराक है।

बड़े उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
मधु की मक्खियां कितने किस्म की होती हैं ? इनके आकार और स्वभाव की तुलना करो ?
उत्तर-
मधु की मक्खियां चार किस्म की होती हैं। छोटी मक्खी, डूमना मक्खी, हिन्दुस्तानी मक्खी, यूरोपियन मक्खी।
डूमना मक्खी सबसे बड़ी और बहुत गुस्से वाली होती है। छोटी मक्खी सबसे छोटी होती है। डूमना और छोटी मक्खी दोनों जंगली किस्में हैं।
हिन्दुस्तानी और यूरोपियन मक्खियां पालतू और मध्यम आकार की होती हैं। यूरोपियन मक्खी सबसे अधिक अच्छी होती है।

प्रश्न 2.
मधु की मक्खी के जीवन चक्र और कुटुम्ब की योजना के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर-
मधु की मक्खी के जीवन चक्र की परिस्थितियां हैं-अण्डा, लारवा (सुंडी), प्यूपा और पूरी मक्खी। अण्डे से पूरी मक्खी बनने के लिए रानी मक्खी को 16, कर्मी और नर मक्खी को 24 दिन का समय लगता है।
Class 8 Agriculture Solutions Chapter 6 मधु-मक्खी पालन 2
मधु की मक्खियां अलग-अलग परिवारों में रहती हैं। मक्खियों के परिवारों में तीन जातियां होती हैं। रानी, कर्मी और नर (ड्रोन) मक्खियां। रानी एक होती है। कर्मी मक्खियां हज़ारों की गिनती में और नर सैंकड़ों की गिनती में होते हैं। मक्खियां मिल कर छत्ता बनाती हैं, बच्चों की बड़ी लगन और मेहनत से देखभाल करती हैं, और छत्ते की भलाई के लिए बांट कर काम करती हैं और आपस में तालमेल और बांट कर काम करने की क्षमता रखती

प्रश्न 3.
एक कुटुम्ब में कितनी कर्मी मक्खियां होती हैं ? इनके द्वारा किए जाने वाले कार्यों का वर्णन करो ?
उत्तर-
एक कुटुम्ब में किस्म और क्षमता के अनुसार 8,000 से लेकर 80,000 तक या अधिक कर्मी मक्खियां हो सकती हैं। ये अण्डे नहीं देतीं लेकिन अन्य सभी काम जैसे कि बक्से को साफ़ सुथरा रखना आयु के अनुसार ब्रूड पालना, छत्ते बनाना, काम करके आई मक्खियों से पोलन और नैक्टर लेकर कोष्ठों में भरना, कुटुम्ब की रखवाली करना, अधिक पानी को उड़ा कर मधु में बदलना, रानी मक्खी को खुराक देना आदि। जब कर्मी मक्खियां तीन सप्ताह के बाद अधिक आयु की हो जाती हैं तब वह छत्ते से बाहर के काम जैसे नैक्टर, पोलन, पानी आदि लाने और नई जगह बनाने के लिए उचित स्थान चुनने का काम करती हैं।

प्रश्न 4.
मधु की मक्खियां पालने का व्यवसाय आरम्भ करने से पहले किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए ?
उत्तर-
मधु की मक्खियां पालने का धन्धा आरम्भ करने से पहले नीचे लिखी बातों को ध्यान में रखो

  1. इस धन्धे में प्रारम्भिक लिखित और हाथों के द्वारा काम करने की जानकारी पंजाब कृषि विश्वविद्यालय लुधियाना से प्राप्त करें।
  2. मधु मक्खियों को पालने के लिए बसन्त (फरवरी-अप्रैल) का समय अच्छा होता है इसलिए धन्धा इन दिनों में शुरू करें।
  3. मक्खियां पालने के लिए ऐसे स्थान का चुनाव करें जहां सारा वर्ष कोई-न-कोई फूल मिल जाते हों।
  4. धूप-छाया का सही प्रबन्ध करने के लिए पतझड़ वाले पेड़ लगाएं।
  5. रानी मक्खी नई और गर्भवती होनी चाहिए।
  6. बक्सों के निकट साफ़ पानी का प्रबन्ध करें।
  7. बक्सों को 8-8 फुट की दूरी पर सूर्य की तरफ मुंह करके रखो।

ठीक/गलत

  1. श्रमिक मक्खी का जीवन चक्र 21 दिन का है।
  2. डूमना मक्खी तथा छोटी मक्खी जंगली किस्म है।
  3. डूमना मक्खी का स्वभाव शांत होता है।

उत्तर-

बहुविकल्पीय

प्रश्न 1.
मक्खी की पालतु किस्म है—
(क) हिन्दुस्तानी
(ख) डूमना
(ग) छोटी
(घ) कोई नहीं।
उत्तर-
(क) हिन्दुस्तानी

प्रश्न 2.
ड्रोन मक्खी कितने दिनों में जीवन चक्र पूरा करती है ?
(क) 24
(ख) 15
(ग) 10
(घ) 50
उत्तर-
(क) 24

प्रश्न 3.
मधु मक्खी की किस्में हैं—
(क) रानी मक्खी
(ख) श्रमिक मक्खी
(ग) ड्रोन मक्खी
(घ) सभी ठीक
उत्तर-
(घ) सभी ठीक

PSEB 8th Class Agriculture Solutions Chapter 6 मधु-मक्खी पालन

रिक्त स्थान भरें

  1. कच्चा शहद जल्दी ही ………….. हो जाता है।
  2. शहद की मक्खी के शरीर के …………. भाग हैं।
  3. नर मक्खियों को …………… मक्खी भी कहा जाता है।

उत्तर-

  1. खट्टा
  2. तीन
  3. ड्रोन

मधु-मक्खी पालन PSEB 8th Class Agriculture Notes

  • भारत में पुराने समय से ही मधु-मक्खियों को पालने का कार्य किया जा रहा है।
  • पुराने समय में भारत में हिन्दुस्तानी मक्खी पाली जाती थी जो केवल पहाड़ी तथा दक्षिणी राज्यों तक ही सीमित था।
  • वर्ष 1965 में डॉ० अवतार सिंह अटवाल की अगुवाई में पी० ए० यू० लुधियाना द्वारा इटालियन मधु मक्खी पालन का कार्य सफलतापूर्वक शुरू किया गया।
  • इटालियन मधु मक्खियों के स्थायी मक्खी पालन में 20 किलो तथा प्रवासी मक्खी पालन में 60 किलो मधु प्रति कुटुम्ब प्राप्त हो जाता है।
  • मधुमक्खियों से मोम, प्रोपोलिस, पोलन, मक्खी दूध (रायल जैली) और मक्खी ज़हर (वी वैनम) भी मिलते हैं।
  • मधु मक्खी के शरीर के तीन भाग होते हैं-सिर, छाती तथा पेट।
  • मधु मक्खियां चार किस्मों की होती हैं । डूमना (एपिसडोरसेटा), छोटी मक्खी (एपिस फ्लोरिया), हिन्दुस्तानी मक्खी (एपिस सिराना इण्डिका) और यूरोपियन मक्खी (एपिस मैलीफेरा)।
  • डूमना और छोटी मक्खी दोनों किस्में जंगली हैं।
  • हिन्दुस्तानी तथा यूरोपियन मक्खी पालतू किस्म की है।
  • डूमना मक्खी गुस्से वाली होती है।
  • हिन्दुस्तानी मक्खी तथा यूरोपियन मक्खी को बक्से में पाला जाता है।
  • मधु मक्खी की तीन जातियाँ हैं-रानी मक्खी, कर्मी मक्खी, ड्रोन मक्खी।
  • मधु मक्खी के जीवन चक्र की चार अवस्थाएं हैं-अण्डा, लारवा, प्यूपा, मक्खी।
  • रानी मक्खी का जीवन चक्र 16, कर्मी का 21 और नर मक्खी (ड्रोन) का 24 दिनों में पूरा हो जाता है।
  • एक कुटुम्ब में 8000 से 80,000 तक कर्मी मक्खियां होती हैं।
  • ज़्यादा शहद इकट्ठा करने के मुख्य स्रोत हैं—बारसीम, तोरिया, सरसों, अरहर, सफैदा, टाहली, नाशपाती, कपास आदि।
  • मधु मक्खियां पालन शुरू करने के लिए उपयुक्त समय फरवरी-मार्च तथा नवम्बर है।
  • मधु मक्खियां पके हुए शहद को मोम की तह से सील कर देती हैं।
  • कच्चा शहद नहीं निकालना चाहिए, सील किया हुआ शहद ही निकालना चाहिए।
  • मधु मक्खी के व्यवसाय को प्रफुल्लित करने के लिए सरकार की तरफ से राष्ट्रीय बागवानी मिशन के अन्तर्गत अनुदान दिया जा रहा है।
  • मधु मक्खी पालन के लिए मधु मक्खियों के अलावा, मधु मक्खियों का बक्सा, फ्रेम को हिलाने के लिए पत्ती, धुआं देने के लिए स्मोकर, मोम की शीटों की आवश्यकता होती है।

PSEB 8th Class Agriculture Solutions Chapter 10 फलों एवम् सब्जियों का प्रबन्धन

Punjab State Board PSEB 8th Class Agriculture Book Solutions Chapter 10 फलों एवम् सब्जियों का प्रबन्धन Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 8 Agriculture Chapter 10 फलों एवम् सब्जियों का प्रबन्धन

PSEB 8th Class Agriculture Guide फलों एवम् सब्जियों का प्रबन्धन Textbook Questions and Answers

(अ) एक-दो शब्दों में उत्तर दें—

प्रश्न 1.
फल एवम् सब्जियों की सघनता किस यंत्र से मापी जाती है ?
उत्तर-
सघनता नापने के लिए यंत्र पैनटरोमीटर है।

प्रश्न 2.
रिफरैक्ट्रोमीटर यंत्र किस मापदंड को मापने के लिए प्रयोग किया जाता है ?
उत्तर-
मिठास की मात्रा का पता लगाने के लिए।

प्रश्न 3.
कितने प्रतिशत फलों की पैदावार मण्डियों में पहुंचने से पहले ही खराब (नष्ट) हो जाती है ?
उत्तर-
25-30%.

PSEB 8th Class Agriculture Solutions Chapter 10 भूमि एवम् भूमि सुधार PSEB 8th Class Agriculture Notes

प्रश्न 4.
मोम की पर्त किस फल पर चढ़ाना लाभदायक है ?
उत्तर-
नींबू जाति के फल (किन्नू), सेब और नाशपत्ती।

प्रश्न 5.
शीत भंडारण करने के लिए आलू, किन्नू को कितने तापमान की आवश्यकता होती है ?
उत्तर-
आलू के लिए 1 से 2 डिग्री सेंटीग्रेड और किन्नू के लिए 4 से 6 डिग्री सैंटीग्रेड।

प्रश्न 6.
प्याज़ को शीत भंडारण के लिए कितनी नमी की आवश्यकता होती है ?
उत्तर-
65-70%.

प्रश्न 7.
किन फलों में मिठास/खट्टास अनुपात के आधार पर पकने की अवस्था को पहचाना जाता है ?
उत्तर-
अंगूर और नींबू जाति के फल, जैसे-संगतरा, किन्न आदि।

प्रश्न 8.
उपज की ढोआ-ढुलाई समय किन बातों का ध्यान रखना चाहिए ?
उत्तर-
ट्रक की ज़मीन पर पराली की मोटी पर्त बिछानी चाहिए। उपज के ऊपर किसी तरह का भार नहीं डालना चाहिए।

प्रश्न 9.
फलों को पकाने के लिए प्रयुक्त होने वाले हानिकारक रसायनों के क्या नाम है ?
उत्तर-
कैल्शियम कार्बायड।

प्रश्न 10.
फलों को पकाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर की प्रमाणीकृत पद्धति का नाम लिखें।
उत्तर-
इथीलीन गैस के साथ पकाना।

(आ) एक-दो वाक्य में उत्तर दें—

प्रश्न 1.
फल एवम् सब्जियों की श्रेणीकरण किस आधार पर की जाती है ?
उत्तर-
श्रेणीकरण प्रचलित मण्डियों की आवश्यकता अनुसार की जाती है। फलों तथा सब्जियों की श्रेणीकरण आकार, भार, रंग आदि के अनुसार की जाती है। इस तरह लाभ अधिक लिया जाता है।

प्रश्न 2.
उपज को तोड़ने के उपरांत एकदम ठण्डा क्यों करना चाहिए ?
उत्तर-
उपज को तोड़ने के उपरांत अच्छी तरह ठण्डा करने से इसकी आयु में वृद्धि होती है। उपज को ठण्डे पानी, ठण्डी हवा से ठण्डा किया जाता है।

प्रश्न 3.
फल एवम् सब्जियों के भण्डारण के क्या लाभ हैं ?
उत्तर-
जब फसल की आमद अधिक होती है तो आय कम होती है। इसलिए फसल को स्टोर करने के बाद में बेचने पर बहुत लाभ लिया जा सकता है।

प्रश्न 4.
पेनट्रोमीटर एवम् रिफरैक्ट्रोमीटर किस काम आते हैं?
उत्तर-
फल की सघनता मापने वाला यन्त्र पेनट्रोमीटर होता है तथा रिफरैक्ट्रोमीटर नाम का यन्त्र फल की मिठास की मात्रा को मालूम करने के लिए होता है।

प्रश्न 5.
व्यापारिक स्तर पर फल व सब्जियों को श्रेणीबद्ध किस प्रकार किया जाता है?
उत्तर-
व्यापारिक स्तर पर फलों और सब्जियों का आकार और भार नापने के लिए मशीनरी का प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न 6.
उपज को तुड़वाई के पश्चात् ठण्डा करना क्यों आवश्यक है ?
उत्तर-
उपज को तुड़वाई के बाद इसको अच्छी तरह ठण्डा करना चाहिए। इससे उपज की आयु में वृद्धि होती है। उपज के अनुसार इसको ठण्डे पानी या ठण्डी हवा से ठण्डा किया जाता है।

प्रश्न 7.
फलों एवम् सब्जियों का श्रेणीकरण किस आधार पर किया जा सकता
उत्तर-
श्रेणीकरण प्रचलित मण्डियों की आवश्यकता अनुसार की जाती है। फलों तथा सब्जियों की श्रेणीकरण आकार, भार, रंग आदि के अनुसार की जाती है। इस तरह लाभ अधिक लिया जाता है।

PSEB 8th Class Agriculture Solutions Chapter 10 भूमि एवम् भूमि सुधार PSEB 8th Class Agriculture Notes

प्रश्न 8.
किन फलों को इथीलीन गैस से पकाया जा सकता है ?
उत्तर-
इथलीन गैस से फलों को पकाना व्यापारिक स्तर पर पकाने की अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त तकनीक है। इससे कई फलों को पकाया जाता है। जैसे-केला, नाशपाती, टमाटर आदि।

प्रश्न 9.
टमाटर को तोड़ने के लिए कौन-से मापदण्ड प्रयोग किए जाते हैं ?
उत्तर-
इस काम के लिए रंग चार्ट का प्रयोग किया जाता है। नज़दीक की मण्डी के लिए टमाटर लाल पके हुए, मध्यम दूरी वाली मण्डी के लिए गुलाबी रंग के, दूर वाली मण्डी के लिए पूरे आकार के परन्तु हरे रंग से पीले रंग में बदलना शुरू होने पर ही तोड़ने चाहिए।

प्रश्न 10.
अधिक महंगी उपजों के लिए किन डिब्बों का प्रयोग किया जाता है ?
उत्तर-
अधिक महंगी उपज जैसे-सेब, आम, अंगूर, किन्नू, आड़, लीची, अलूचा, आदि को गत्ते के डिब्बे में पैक किया जाता है।

(इ) पाँच-छः वाक्यों में उत्तर दें—

प्रश्न 1.
मोम चढ़ाने से क्या अभिप्राय है ? इसका क्या महत्त्व है ?
उत्तर-
तुड़वाई के बाद संभालने तथा मण्डीकरण दौरान उपज में से पानी उड़ता है। इसका प्रभाव यह होता है कि फसलों की प्राकृतिक चमक तथा गुणवत्ता कम होती है। इसको कम करने के लिए उपज पर मोम चढ़ाई जाती है। फल जैसे कि नींबू जाति के फल, किन्नू, आड़, सेब, नाशपाती आदि तथा सब्जियां-जैसे कि बैंगन, शिमला मिर्च, टमाटर, खीरा आदि पर तुड़वाई के बाद मोम चढ़ाना एक आम प्रक्रिया है। इन फसलों की दर्जाबंदी, धुलाई या अन्य कोई संभाल करते समय प्राकृतिक मोम उतर जाती है। इसके स्थान पर भोजन दर्जा मोम चढ़ाई जाती है। इसके साथ तुडाई के बाद संभाल तथा मण्डीकरण के समय उपज में से पानी कम उड़ता है।
मोम चढ़ाने के बाद इसको अच्छी तरह सुखा लें। भोजन दर्जा मोम जो कि भारत सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त हैं वो हैं-शैलाक मोम, कारनौब मोम, मधुमक्खी के छत्तों से निकाला मोम।

प्रश्न 2.
इथीलीन गैस से फल पकाने के विषय में संक्षेप नोट लिखें।
उत्तर-
फलों को व्यापारिक स्तर पर पकाने के लिए इथलीन गैस से पकाना एक अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त तकनीक है। इस तकनीक में फलों को 100-150 पी०पी०एम० इथलीन की मात्रा वाले कमरे में 24 घण्टे के लिए रखा जाता है। इस तरह पकाई क्रिया शुरू हो जाती है। इस तकनीक की सफलता के लिए तापमान 15 से 25° सैल्सियस तथा नमी की मात्रा 90-95% होनी चाहिए। इथलीन गैस को पैदा करने के लिए इथलीन जनरेटर का प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न 3.
सरिक एवम् कलिंग फिल्म के प्रयोग पर नोट लिखें।
उत्तर-
फल तथा सब्जियों को एक विशेष तरह की ट्रे में डालकर ट्रे को सरिक तथा
Class 8 Agriculture Solutions Chapter 10 फलों एवम् सब्जियों का प्रबन्धन 1im 1
चित्र-सरिक फिल्म पैक करने वाली मशीन
कलिंग चढ़ा कर पैक कर दिया जाता है। इस तरह फल तथा सब्जियां पूरी तरह नज़र आती रहती हैं तथा इनकी गुणवता भी बनी रहती है। महंगे फल तथा सब्जियों जैसे कि किन्नू, टमाटर, बीज रहित खीरा आदि को इसी तरह पैक करके मण्डीकरण किया जाता है। इस तरह अधिक कमाई की जा सकती है।

प्रश्न 4.
गत्तों के डिब्बों में फल और सब्जियों को पैक करने का क्या महत्त्व है ?
उत्तर-
फलों तथा सब्जियों की ढुलाई में सुरक्षित रखने के लिए डिब्बाबंदी बहुत लाभदायक रहती है। इस काम के लिए लकड़ी, बांस तथा गत्ते आदि में डिब्बाबंदी की जाती है।
Class 8 Agriculture Solutions Chapter 10 फलों एवम् सब्जियों का प्रबन्धन 2im 2
चित्र-पैकिंग के लिए गत्ते के डिब्बों का प्रयोग महंगे उत्पादों, जैसे-सेब, आम, अंगूर, किन्नू, लीची, अलूचा, आड़ आदि को गत्ते के डिब्बों में बंद करके दूर की मण्डियों में सुरक्षित ढंग से भेजा जाता है तथा अच्छी आय प्राप्त की जा सकती है।

प्रश्न 5.
फल एवम् सब्जियों की तुड़वाई समय किन बातों की ओर ध्यान देना चाहिए ?
उत्तर-

  1. फलों तथा सब्जियों की तुड़ाई इस तरह करो कि हानि कम से कम हो।
  2. नम्रता से तोड़ने, खोदने तथा हाथ से निकालने से फसल को कम हानि होती है।
  3. तुड़वाई के समय दोनों तरफ से खुले मुंह वाले कपड़े की झोलियों का प्रयोग करना चाहिए।
  4. फलों को तोड़ने के लिए कलिप, चाकू और कैंची आदि का प्रयोग किया जाता है। ध्यान रखें कि क्लीपर तथा चाकू सदा साफ तथा तीखी धार वाले हों।
  5. किन्नू जैसे फल की डंडी को जितना हो सके फल के पास से ही काटना चाहिए। यदि डंडी लम्बी होगी तो ढुलाई दौरान यह साथ वाले फलों में चुभ कर जख्मी कर देती
  6. तीन पैरों वाली सीढ़ी से किन्नू, नाख, आड़, अलूचा, बेर, आम आदि की तुड़ाई करने से तुड़ाई करते समय यदि शाख टूट भी जाए तो हानि नहीं होती तथा ऊंचाई पर लगे फल तोड़ने आसान हो जाते हैं।
  7. तुड़वाई के समय फल को खींच कर नहीं तोड़ना चाहिए, इस तरह फल ऊपर डंडी वाली जगह पर ज़ख्म हो जाता है और फसल को कई तरह की बीमारियाँ लग सकती हैं।
  8. मज़दूरों को फलों और सब्जियों को तोड़ने के मापदण्डों के बारे जानकारी ज़रूर देनी चाहिए।

Agriculture Guide for Class 8 PSEB फलों एवम् सब्जियों का प्रबन्धन Important Questions and Answers

बहुत छोटे उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
भारतीय मैडीकल खोज संस्था के अनुसार प्रति व्यक्ति को हर रोज़ कितने फल और सब्जियां खानी चाहिए ?
उत्तर-
300 ग्राम सब्जियां और 80 ग्राम फल।

PSEB 8th Class Agriculture Solutions Chapter 10 भूमि एवम् भूमि सुधार PSEB 8th Class Agriculture Notes

प्रश्न 2.
भारत में प्रति व्यक्ति प्रतिदिन कितने फल और सब्जियां हिस्से आते हैं ?
उत्तर-
30 ग्राम फल और 80 ग्राम सब्जियां।

प्रश्न 3.
टमाटर, आम, आड़ आदि तुड़वाई योग्य अवस्था में पहुंच गया है। किसकी सहायता के साथ पता लगाया जा सकता है ?
उत्तर-
रंग चार्ट की।

प्रश्न 4.
आड़ के पकने के मापदण्ड के बारे में बताओ।
उत्तर-
हरे रंग से पीला होना।

प्रश्न 5.
अमरूद के पकने का मापदण्ड बताओ।
उत्तर-
रंग गहरे हरे से हल्के हरे में बदल जाना।

प्रश्न 6.
आलू के पकने का मापदण्ड बताओ।
उत्तर-
जब बेलें सुखने लग जाएं।

प्रश्न 7.
अलूचे के पकने का मापदण्ड बताओ।
उत्तर-
छील का रंग हिरमची जामुनी रंग में बदल जाना।

प्रश्न 8.
शिमला मिर्च के पकने का मापदण्ड बताएं।
उत्तर-
फल पूरा विकसित तथा हरा चमकदार होना।

प्रश्न 9.
मटर के पकने का मापदण्ड बताएं।
उत्तर-
फलियां पूरी भरी हुईं परन्तु रंग फीका होने से पहले।

प्रश्न 10.
फलों पर किस तरह का मोम चढ़ाया जाता है ?
उत्तर-
भोजन दर्जा मोम जैसे मधु मक्खियों के छत्ते का मोम।

प्रश्न 11.
आलू, प्याज़ की पैकिंग किस तरह की जाती है ?
उत्तर-
बोरियों में डाल कर।

प्रश्न 12.
शीत भंडारण में किन्नू को कितने समय के लिए भंडार किया जा सकता है ?
उत्तर-
डेढ से दो माह।

प्रश्न 13.
शीत भंडारण के समय आलू तथा किन्नू में कितनी नमी होनी चाहिए ?
उत्तर-
90-95%.

प्रश्न 14.
कैल्शियम कार्बाइड मसाले से पकाए फलों को खाने से क्या हो सकता है ?
उत्तर-
मुँह में फफोले, अलसर, पेट में जलन पैदा हो सकती है।

प्रश्न 15.
फलों को पकाने के लिए इथलीन वाली गैस के कमरे में कितने घण्टे के लिए रखा जाता है ?
उत्तर-
24 घण्टे के लिए।

प्रश्न 16.
दो फलों के नाम बताओ जिन पर मोम चढ़ाई जाती है ?
उत्तर-
किन्नू, आड़।

प्रश्न 17.
फल तथा सब्जियों के पकने का मापदण्ड क्या है ?
उत्तर-
फल तथा सब्जियों का आकार इनके पकने का मापदण्ड है।

प्रश्न 18.
फलों की कठोरता (सघनता) मापने के लिए कौन-से यन्त्र का प्रयोग होता है ?
उत्तर-
पैनेट्रोमीटर।

प्रश्न 19.
फल के पकने से इसकी कठोरता का क्या सम्बन्ध है ?
उत्तर-
फल के पकने से उसकी कठोरता घटती है।

प्रश्न 20.
फलों को घरों में जीवाणु रहित करने के लिए किस घोल में डुबो लेना चाहिए ?
उत्तर-
ब्लीच के घोल में।

PSEB 8th Class Agriculture Solutions Chapter 10 भूमि एवम् भूमि सुधार PSEB 8th Class Agriculture Notes

प्रश्न 21.
फलों के संरक्षण के लिए कैसे बर्तनों का प्रयोग करना चाहिए ?
उत्तर-
ऐसे बर्तन जो अन्दर से समतल हों।

प्रश्न 22.
उपज को ज़ख्मों से बचाने के लिए क्या करना चाहिए ?
उत्तर-
उपज को कागज़ अथवा गत्ते की परतों में रखना चाहिए।

प्रश्न 23.
डिब्बाबन्दी का मूल उद्देश्य क्या है ?
उत्तर-
डिब्बाबन्दी का मूल उद्देश्य फसल को लम्बे समय तक सम्भाल कर रखना है।

प्रश्न 24.
अंगूर तथा आलूचे को कैसे साफ़ करना चाहिए ?
उत्तर-
इन्हें 100-150 पी० पी० एम० क्लोरीन की मात्रा वाले पानी से साफ़ करना चाहिए। इस तरह उपज को बीमारी रहित किया जा सकता है।

प्रश्न 25.
गोल आकार की उपज की दर्जाबन्दी कैसे की जाती है ?
उत्तर-
इनकी दर्जाबन्दी विभिन्न आकार के कड़ों से की जा सकती है।

प्रश्न 26.
तुड़वाई के पश्चात् उपज को सुधारने के लिए कौन-कौन से रासायनिक पदार्थ सुरक्षित समझे जाते हैं ?
उत्तर-
कैल्शियम क्लोराइड, सोडियम बाइसल्फाइट, पोटाशियम सल्फेट आदि रासायनिक पदार्थों का प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न 27.
जल सहनशील फसलों के नाम बताओ।
उत्तर-
गाजर, टमाटर तथा शलगम।

प्रश्न 28.
पैकिंग से पहले कौन-सी सब्जियों को धोना नहीं चाहिए ?
उत्तर-
बन्द गोभी, भिण्डी, मटर।

प्रश्न 29.
पकने के आधार पर कौन-से फलों की दर्जाबंदी की जाती है ?
उत्तर-
टमाटर, केला, आम आदि।

छोटे उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
फलों के पकने के बारे में कैसे पता चलता है ? विस्तार सहित लिखें।
उत्तर-
फल तथा सब्जियां पकने का मापदण्ड इनका आकार होता है। आम की तुड़ाई योग्य निशानी इसकी चोंच बनना तथा फल कन्धे से ऊपर उभरना है। टमाटर, आड, आलूचा आदि फसलों की तुड़वाई के लिए तैयार होने की निशानी का पता लगाने के लिए रंगदार चार्टों का प्रयोग किया जाता है। टमाटर नज़दीकी मण्डी में ले जाने के लिए लाल पके हुए, मध्यम दूरी वाली मण्डी में गुलाबी रंग के तथा दूर स्थित मण्डी में ले जाने के लिए जब यह पूर्ण आकार ग्रहण कर लें, परन्तु अभी हरे ही हों अथवा हरे से पीले रंग में बदलना आरम्भ हों तब तोड़ने चाहिएं।

प्रश्न 2.
फलों का कठोरता अंक कैसे मापा जाता है ?
उत्तर-
कठोरता अंक ढूंढ़ने के लिए निम्नलिखित तरीका है—
एक तेज़ चाकू से फल के ऊपर से पतले आकार का एक टुकड़ा काटो, इस टुकड़े में गूदा तथा छील दोनों इकट्ठे ही हों। फिर फल मुताबिक सही आकार के प्लंजर का प्रयोग करके फल की कठोरता मापो। इसके लिए फल को किसी कठोर तल से लगाकर एकसार रफ्तार से प्लंजर पर लगे निशान वाली तरफ को अन्दर घुसाना आरम्भ करो तथा फिर कठोरता का माप अंक नोट कर लेना चाहिए।

प्रश्न 3.
रिफरैक्ट्रोमीटर क्या है ? इसका प्रयोग किन फलों के लिए किया जाता है ?
उत्तर-
रिफरैक्ट्रोमीटर फलों के जूस से मिठास की मात्रा का पता लगाने के लिए प्रयोग किया जाता है। इसे अंगूर तथा खरबूजे आदि जैसी कई फसलों की मिठास की मात्रा का पता लगाने के लिए प्रयोग किया जाता है।

PSEB 8th Class Agriculture Solutions Chapter 10 भूमि एवम् भूमि सुधार PSEB 8th Class Agriculture Notes

प्रश्न 4.
फलों में तेज़ाबीपन कैसे मापा जाता है ?
उत्तर-
नींबू जाति तथा कुछ अन्य फलों के पकने पर इनमें खटाई की मात्रा कम हो जाती है। तेज़ाबीपन का पता लगाने के लिए जूस की निश्चित मात्रा में फिनोलपथलीन मिश्रण की एक-दो बूंदें डालकर ().IN सोडियम हाइड्रोक्साइड का घोल तब तक डाला जाता है जब तक रंग गुलाबी न हो जाए। प्रयोग किए गए सोडियम हाइड्रोक्साइड मिश्रण की मात्रा से जूस का तेज़ाबीपन मापा जा सकता है।

प्रश्न 5.
प्रतिशत मिठास तथा खटाई का अनुपात कैसे लिया जाता है ?
उत्तर-
अंगूर तथा नींबू जाति के फलों में मिठास तथा खटाई के अनुपात से उपज की गुणवत्ता का अन्दाज़ा लगाया जाता है। प्रतिशत मिठास तथा खटाई का माप करने के पश्चात् मिठास को खटाई से भाग करके अनुपात प्राप्त किया जाता है।

प्रश्न 6.
फलों की सम्भाल के बारे में आप क्या जानते हो ?
उत्तर–
प्रत्येक फल का अपना एक खास मौसम होता है तब यह बाज़ार में बहुतायत में मिलते हैं तथा सस्ते होते हैं। इन दिनों में फलों को खरीदकर सम्भाल लेना चाहिए तथा इन्हें दूर की मण्डी अथवा बे-मौसम बेचकर अधिक लाभ कमाया जा सकता है। फलों को अचार, मुरब्बा, जैम, चट्टनी, जैली आदि के रूप में लम्बे समय तक संभाल कर रखा जा सकता है।

प्रश्न 7.
सब्ज़ियों की सम्भाल क्यों ज़रूरी है ?
उत्तर-
यदि सब्जियों को सम्भालकर नहीं रखा जायेगा तो अच्छा मुनाफा नहीं लिया जा सकता। इसलिए सब्जियां जब भरे मौसम में सस्ती होती हैं तो इन्हें सम्भाल कर बे-मौसम बेचकर अतिरिक्त लाभ कमाया जा सकता है।

प्रश्न 8.
डिब्बाबन्दी के दो लाभ बताओ।।
उत्तर-
डिब्बाबन्दी अथवा पैकिंग करने से तुड़वाई के पश्चात् होने वाले नुकसान से बचा जा सकता है। इस तरह अधिक मुनाफा भी लिया जा सकता है।

प्रश्न 9.
किन्नू तोड़ते समय डंडी को छोटा रखना क्यों ज़रूरी है ?
उत्तर-
किन्नू की डण्डी लम्बी होगी तो लाते-ले जाते समय इससे दूसरे फलों में ज़ख्म हो जाएंगे। इसलिए डण्डी छोटी काटनी चाहिए।

प्रश्न 10.
फसलों की गुणवत्ता का क्या महत्त्व है ?
उत्तर-
गुणवत्ता का ख्याल रखा जाये तो लाने-ले जाने का काम, भण्डारण तथा मण्डीकरण लम्बे समय तक किया जा सकता है तथा बिक्री मुनाफे में वृद्धि होती है। इससे निर्यातकार, व्यापारी तथा खपतकार की सन्तुष्टि होती है।

बड़े उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
प्लास्टिक की ट्रेओं का फलों और सब्जियों की सम्भाल में क्या महत्त्व है ?
उत्तर–
प्लास्टिक की ट्रेएं कुछ महंगी होती हैं, पर इन्हें साफ करना आसान है तथा इन्हें लम्बे समय तक बार-बार प्रयोग किया जा सकता है। इनमें गलियां होने के कारण हवा आर-पार होती रहती है तथा इन्हें एक-दूसरे पर रखा जा सकता है।
इनका तुड़वाई के समय प्रयोग काफ़ी लाभकारी सिद्ध होता है। यह तुड़वाई, भण्डारण, लाने-ले जाने तथा प्रचून मण्डी में उपज को बेचने के लिए तथा सम्भालकर रखने के लिए काम आती हैं। इनका प्रयोग किन्नू, अंगूर, टमाटर आदि की तुड़ाई, भण्डारण तथा ढुलाई में सामान्यतः होता है।

प्रश्न 2.
उत्तम गुणवत्ता वाली फसल से क्या लाभ हैं ?
उत्तर-
उत्तम गुणवत्ता वाली फसल के निम्नलिखित लाभ है—

  1. ऐसी उपज का यातायात, मण्डीकरण तथा भण्डारण लम्बे समय तक किया जा सकता है।
  2. ऐसी उपज से सारे निर्यातकार, व्यापारी तथा खपतकार सन्तुष्ट होते हैं।
  3. तुड़ाई के पश्चात् इसकी आयु लम्बी होती है।
  4. इससे मण्डीकरण का दायरा बड़ा हो जाता है।
  5. इसकी बिक्री से अच्छा मुनाफा लिया जा सकता है।

प्रश्न 3.
तुड़वाई के पश्चात् उपज को ठण्डा करना तथा छंटाई तथा साफ करने के बारे में आप क्या जानते हैं ? ।
उत्तर-
1. ठण्डा करना-उपज की आयु बढ़ाने के लिए तुड़ाई से तुरन्त पश्चात् इसको ठण्डा किया जाता है। ठण्डा करने का तरीका फसल की किस्म पर निर्भर करता है। ठण्डा करने के लिए कई ढंग हैं। जैसे-तेज़ ठण्डी हवा से ठण्डा करना, कमरे में ठण्डा करना, शीतल जल से ठण्डा करना आदि। इनमें से किसी एक ढंग का प्रयोग किया जा सकता है।

2. उपज की छंटाई तथा साफ़-सफ़ाई-ठण्डा करने से पहले उपज की छंटाई की जाती है। छंटाई करके साधारणतः ज़ख्मी, बीमारी वाले बेढंगे आकार की अथवा खराब उपज को अलग कर दिया जाता है। छंटाई करने के पश्चात् उपज को साफ किया जाता है। साफ करने का ढंग उपज की किस्म के अनुसार होता है। सेब आदि को सूखे ब्रुशों से ही साफ करना चाहिए, जबकि नींबू जाति के फल, गाजरों आदि को पानी से धोकर साफ किया जाता है। फसल की सफ़ाई सूखे ब्रुशों से करनी है अथवा धोकर, उपज की किस्म तथा गन्दगी पर निर्भर करता है। उदाहरणतया अंगूर तथा अलूचे आदि को कभी धोकर साफ नहीं करना चाहिए। इन फलों के लिए 1000-150 पी० पी० एम० (P.P.M.-Part Per Mission) क्लोरीन की पात्रा वाले पानी का प्रयोग करके उपज को बीमारी रहित किया जाता है तथा बीमारियों को फैलने से भी रोका जा सकता है। कुछ फसलें जैसे कि फूल तथा बन्द गोभी की डिब्बाबन्दी करने से पहले बाहरी पत्ते अथवा न खाने योग्य हिस्से उतार देने चाहिएं।

प्रश्न 4.
फलों, सब्जियों की दर्जाबन्दी तथा मण्डीकरण के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर-
दर्जाबन्दी करने के लिए फलों अथवा सब्जियों का आकार, भार, रंग आदि को आधार बनाया जाता है। दर्जाबन्दी करके उत्पादक फसल बेचकर अधिक मुनाफा कमा सकता है। गोल आकार की उपज जैसे टमाटर, टिण्डे, सेब आदि की दर्जाबन्दी विभिन्न आकार के कड़ों से की जाती है। कुछ फसलें जैसे टमाटर, केला, आम आदि की दर्जाबन्दी उनके पकने के आधार पर करके अधिक मुनाफा लिया जा सकता है। छोटे स्तर पर कई प्रकार की मशीनें भी दर्जाबन्दी करने के लिए प्रयोग की जाती हैं।
पूर्ण आकार के तथा हरे फल जैसे कि टमाटर, आम आदि को थोड़े समय के लिए भण्डार किया जा सकता है तथा बाद में मण्डी में महंगे होने पर पका कर बेचा जा सकता है। हरे प्याज़, पुदीना, धनिया आदि उपजों को छोटे-छोटे 100 ग्राम से 500 ग्राम तक के बण्डलों अथवा गुच्छों में बांध लिया जाता है। इस तरह इनका रख-रखाव तथा इन्हें हाथ से पकड़ना आसान हो जाता है।

PSEB 8th Class Agriculture Solutions Chapter 10 भूमि एवम् भूमि सुधार PSEB 8th Class Agriculture Notes

प्रश्न 5.
तुड़वाई करके उपज को सुधारने के बारे में क्या जानते हो ?
उत्तर-
तुड़वाई के पश्चात् उपज को सुधारने से इसको कई तरह की फफूंदी तथा फंगस से होने वाली बीमारियों तथा अन्य रोगों से बचाया जा सकता है। इस कार्य के लिए कई रासायनिक पदार्थ जैसे कि सोडियम बाइसल्फाइट, कैल्शियम क्लोराइड, पोटाशियम सल्फेट को फल तथा सब्जियों पर प्रयोग के लिए सुरक्षित समझा गया है। कई बार गर्म पानी में डुबो कर अथवा गर्म हवा भर कर भी उपज को सुधारा जाता है। ऐसा करने से जीवाणु या तो मर जाते हैं या कमज़ोर हो जाते हैं, इस तरह उपज बीमारी कारण गलने से बच सकती है। यह ध्यान रखें कि उपज को पानी अथवा हवा से सुधारने के तुरन्त पश्चात् जितनी जल्दी हो सके ठण्डे पानी के फव्वारों अथवा ठण्डी हवा से साधारण तापमान पर लाना चाहिए।

प्रश्न 6.
फलों तथा सब्जियों की डिब्बाबन्दी के लिए कौन-सी सावधानियां बरतनी चाहिएं ?
उत्तर-
डिब्बाबन्दी के लिए प्रयोग की जाने वाली सावधानियां निम्नानुसार हैं—

  1. उपज पर ज़ख्म न होने दें।
  2. कच्ची अथवा अधिक पक्की उपज को छंटाई करके अलग कर दें।
  3. हरी सब्जियां, बन्द गोभी, भिण्डी, मटर आदि को पैकिंग (डिब्बाबन्दी) से पहले कभी भी धोना नहीं चाहिए।
  4. पानी में क्लोरीन की मात्रा 100-150 पी० पी० एम० होनी चाहिए।
  5. पानी सघनशील फसलें जैसे कि टमाटर, गाजर तथा शलगम आदि को पानी से भरे जलाशय में इकट्ठा करो।
  6. जिस मेज़ पर छंटाई, दर्जाबन्दी, धुलाई तथा डिब्बाबन्दी करनी होती हैं उसकी तीखी जगहों तथा ऊबड़-खाबड़ धरातल पर स्पंज आदि लगाकर रखना चाहिए।
  7. वह रसायन जिनकी उपज के लिए सिफ़ारिश न की हो, को बिल्कुल प्रयोग नहीं करना चाहिए।
  8. तुड़ाई के पश्चात् सही ढंग से मोम चढ़ाना, गर्म पानी तथा हवा, सल्फर डाइऑक्साइड आदि से सुधार कर लेना चाहिए।
  9. तुड़ाई के पश्चात् सम्भाल के समय नुकसान को घटाने के लिए जहां तक हो सके खेत में ही डिब्बाबन्दी (पैकिंग) कर लेनी चाहिए।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

ठीक, गलत

  1. प्रत्येक व्यक्ति को प्रतिदिन 300 ग्राम सब्जियों की आवश्यकता है।
  2. कैल्शियम कार्बाइड से पकाये फल स्वास्थ्य के लिए लाभदायक हैं।
  3. उत्पाद को तुड़ाई के बाद ठण्डा करना आवश्यक नहीं है।

उत्तर-

बहुविकल्पीय

प्रश्न 1.
अमरूद के पकने का मापदण्ड है
(क) रंग हल्का हरा हो जाता है
(ख) रंग गहरा हरा होना
(ग) रंग नीला होना
(घ) कोई नहीं।
उत्तर-
(क) रंग हल्का हरा हो जाता है

प्रश्न 2.
फलों को घरों में जीवाणु रहित करने का घोल है
(क) ब्लीच का घोल
(ख) चीनी का घोल
(ग) तेज़ाब का घोल
(घ) क्षार का घोल।
उत्तर-
(क) ब्लीच का घोल

प्रश्न 3.
मोम की पर्त किस फल पर चढ़ाई जाती है ?
(क) किन्नू
(ख) सेब
(ग) नाशपाती
(घ) सभी ठीक
उत्तर-
(घ) सभी ठीक

रिक्त स्थान भरें

  1. फल की निगरता को मापने के लिए …………… का प्रयोग होता है।
  2. व्यापारिक स्तर पर फलों को ………… गैस से पकाया जाता है।
  3. …………….. यन्त्र फलों में मिठास की मात्रा का पता लगाने के लिए प्रयोग किया जाता है।

उत्तर-

  1. पैनट्रोमीटर,
  2. इथीलीन,
  3. रिफरैक्ट्रोमीटर

PSEB 8th Class Agriculture Solutions Chapter 10 भूमि एवम् भूमि सुधार PSEB 8th Class Agriculture Notes

फलों एवम् सब्जियों का प्रबन्धन PSEB 8th Class Agriculture Notes

  • भारतीय चिकित्सा अनुसन्धान समिति के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को प्रतिदिन 300 ग्राम सब्जियों तथा 80 ग्राम फलों की आवश्यकता है।
  • भारत में प्रत्येक व्यक्ति को प्रतिदिन केवल 30 ग्राम फल तथा 80 ग्राम सब्जियां ही उपलब्ध होती हैं।
  • फलों तथा सब्जियों की सही तरीके से संभाल के निम्नलिखित बिन्दु हैं–फलों तथा सब्जियों की तुड़वाई, डिब्बाबंदी, फल तथा सब्जियों को स्टोर करना, ढोकर लाना ले जाना।
  • फल तथा सब्जियों की तुड़वाई के लिए मापदण्ड हैं–रंग, सघनता (निगरता या कठोरता), आकार तथा भार, मिठास/खट्टास का अनुपात आदि।
  • उपज को तोड़ने के बाद अच्छी तरह एकदम ठंडा कर लेना चाहिए।
  • उपज में से पानी को उड़ने से रोकने के लिए फलों और सब्जियों पर भोजन दर्जा मोम चढ़ाई जाती है।
  • फल और सब्जियों पर चढ़ाई जाने वाली तीन तरह के मोम हैं जोकि भारत सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त है।
  • यह मोम है शैलाक मोम, कारनौबा मोम और मधु मक्खियों के छत्ते से निकाला मोम।
  • मण्डीकरण के लिए उपज की दर्जाबंदी (श्रेणीकरण) करना बहुत ज़रूरी है।
  • डिब्बाबंदी के लिए लकड़ी की पेटियाँ, बांस की टोकरियां, बोरियां, पलास्टिक के क्रेट, गत्ते के डिब्बे आदि का प्रयोग किया जाता है।
  • ढो कर लाने ले जाने के समय ट्रक के फर्श पर घास-फूस या पराली की मोटी पर्त बिछा लेनी चाहिए।
  • केला, पपीता आदि फलों को कैल्शियम कार्बाइड के साथ पकाया जाता है। ऐसे फल स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होते हैं।
  • इथीलीन गैस के साथ फलों को व्यापारिक स्तर पर पकाना अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त तकनीक है।

PSEB 8th Class Agriculture Solutions Chapter 9 कृषि संयंत्र एवम् उनकी देखभाल

Punjab State Board PSEB 8th Class Agriculture Book Solutions Chapter 9 कृषि संयंत्र एवम् उनकी देखभाल Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 8 Agriculture Chapter 9 कृषि संयंत्र एवम् उनकी देखभाल

PSEB 8th Class Agriculture Guide कृषि संयंत्र एवम् उनकी देखभाल Textbook Questions and Answers

(अ) एक-दो शब्दों में उत्तर दें—

प्रश्न 1.
भूमि के पश्चात् किसान की सबसे अधिक पूँजी किस वस्तु में लगी होती
उत्तर-
कृषि सम्बन्धित मशीनरी में।

प्रश्न 2.
हमारी कृषि मशीनरी (संयंत्रों) का प्रधान किसे माना जाता है ?
उत्तर-
ट्रैक्टर को।

प्रश्न 3.
ट्रैक्टर के साथ चलने वाली तीन मशीनों के नाम बताएँ।
उत्तर-
कल्टीवेटर, तवियां, सीड ड्रिल।

प्रश्न 4.
वे कौन-सी मशीनें हैं जिनमें शक्ति स्रोत मशीन का ही भाग हो ?
उत्तर-
ट्रैक्टर, ईंजन, मोटर आदि।

प्रश्न 5.
ट्रैक्टर की ओवरहालिंग कब की जानी चाहिए ?
उत्तर-
4000 घण्टे काम लेने के बाद।

प्रश्न 6.
ट्रैक्टर को स्टोर करते समय हमेशा कौन-से गेयर में खड़ा करना चाहिए ?
उत्तर-
न्यूट्रल गियर में।

प्रश्न 7.
ट्रैक्टर के बैटरी टर्मिनल को साफ़ करके किस चीज़ का लेप करना चाहिए ?
उत्तर-
पैट्रोलियम जैली का।

प्रश्न 8.
बोआई वाली मशीनों में बीज़/खाद निकाल कर एवम् अच्छी तरह सफाई करके किस वस्तु का लेप करना चाहिए ?
उत्तर-
पुराने तेल का लेप कर देना चाहिए।

प्रश्न 9.
मिट्टी में चलने वाली मशीनों के पुों को जंग लगने से बचाने के लिए क्या करेंगे ?
उत्तर-
ग्रीस या पुराने तेल का लेप करना चाहिए।

PSEB 8th Class Agriculture Solutions Chapter 9

प्रश्न 10.
स्प्रे पम्प को प्रयोग करने के पश्चात् पम्प को खाली करके क्यों चलाना चाहिए ?
उत्तर-
इस तरह पाइपों में रह गया पानी निकल जाता है।

(आ) एक-दो वाक्यों में उत्तर दें—

प्रश्न 1.
कृषि संयंत्र मुख्यतः कितने प्रकार के होते हैं ?
उत्तर-
कृषि संयंत्र मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं-चलाने वाले; जैसे- ट्रैक्टर, कृषि यन्त्र; जैसे-तवियां, स्व:चालित मशीनें; जैसे-कम्बाइन हार्वेस्टर आदि।

प्रश्न 2.
ट्रैक्टर की संभाल के लिए कितने घण्टे बाद सर्विस करनी चाहिए ?
उत्तर-
ट्रैक्टर की संभाल के लिए 10 घण्टे, 50 घण्टे, 125 घण्टे, 250 घण्टे, 500 घण्टे तथा 1000 घण्टे बाद सर्विस करनी चाहिए तथा 4000 घण्टे काम कर लेने के बाद ओवरहालिंग करवाना चाहिए।

प्रश्न 3.
यदि ट्रैक्टर को दीर्घ काल के लिए स्टोर करना है तो टायरों की संभाल के लिए क्या करना चाहिए ?
उत्तर-
ट्रैक्टर को लकड़ी के गुटकों के ऊपर उठा देना चाहिए तथा टायरों में हवा कम कर देनी चाहिए।

प्रश्न 4.
ट्रैक्टर को दीर्घ काल के लिए स्टोर करने के लिए बैटरी की संभाल के लिए क्या करना चाहिए ?
उत्तर-
यदि ट्रैक्टर को लम्बे समय तक खड़ा करना हो तो बैटरी की तार को अलग कर देना चाहिए तथा समय-समय पर बैटरी को चार्ज करते रहना चाहिए।

प्रश्न 5.
ट्रैक्टर की धूम्र नली एवम् करेंक केस ब्रीदर की संभाल के लिए क्या करना चाहिए ?
उत्तर-
यदि धूम्र नली एवम् करेंक केस ब्रीदर के मुँह पर ढक्कन न हो तो किसी कपड़े से बंद कर देना चाहिए। इस तरह नमी अन्दर नहीं जा सकती।

प्रश्न 6.
काम के दिनों में मशीन के ध्रुवों की संभाल के लिए क्या करना चाहिए ?
उत्तर-
काम के दिनों में हर 4-6 घण्टे मशीन चलाने के बाद घुरियों के सिरों पर वुशों में तेल या ग्रीस देनी चाहिए। यदि बाल वैरिंग फिट हो तो तीन-चार दिनों बाद ग्रीस देनी चाहिए।

प्रश्न 7.
बोआई वाली मशीनों के बीज एवम् खाद के डिब्बे प्रतिदिन साफ़ क्यों करने चाहिए ?
उत्तर-
खादें रासायनिक पदार्थ होती हैं जो डिब्बे के साथ क्रिया करके उसको खा जाती हैं। इसलिए बीज़ तथा खाद के डिब्बे को रोज़ साफ़ करना चाहिए।

प्रश्न 8.
कम्बाइन में दानों वाले टैंक, कन्वेयर, पुआलवाकर (स्टावाकर) एवम् छानने आदि को अच्छी तरह साफ़ क्यों करना चाहिए ?
उत्तर-
कम्बाइन में बीज़ वाले टैंक, कन्वेयर स्टावाकर तथा छननी आदि को अच्छी तरह साफ़ इसलिए किया जाता है ताकि चूहे यहां अपना घर न बना लें। चूहे कम्बाइन में बिजली की तारों आदि को तथा पाइपों को हानि पहुंचा सकते हैं।

प्रश्न 9.
कम्बाइन को जंग लगने से बचाने के लिए क्या करना चाहिए ?
उत्तर-
कम्बाइन को नमी के कारण जंग लगता है इसलिए यह आवश्यक है कि इसको किसी शैड के अन्दर खड़ा किया जाए तथा इसको प्लास्टिक की शीट से ढक देना चाहिए। यदि किसी स्थान से रंग उतर गया हो तो वहां रंग कर देना चाहिए।

PSEB 8th Class Agriculture Solutions Chapter 9

प्रश्न 10.
स्टोर करते समय मशीन का मिट्टी से सम्पर्क न रहे, इसके लिए क्या करना चाहिए ?
उत्तर-
मिट्टी में चलने वाली मशीनों को स्टोर करने से पहले इनको धोकर साफ़ कर लेना चाहिए तथा जंग न लगे इसलिए ग्रीस या पुराने तेल का लेप ज़रूर कर देना चाहिए।

(इ) पाँच-छः वाक्यों में उत्तर दें—

प्रश्न 1.
कृषि संयंत्र एवम् देखभाल की आवश्यकता क्यों है ?
उत्तर-
कृषि से अधिक उपज लेने के लिए तथा अधिक आय प्राप्त करने के लिए कृषि मशीनरी का बहुत योगदान है। भूमि के बाद सबसे अधिक पूंजी कृषि से सम्बन्धित मशीनरी पर लगी होती है। यदि इतनी महंगी मशीनरी की अच्छी तरह देखभाल न की जाए तो समय पर पूरा लाभ नहीं मिल सकेगा। अच्छी तथा उपयुक्त देखभाल तथा संभाल की जाए तो मशीनरी की आयु में वृद्धि की जा सकती है। मशीनरी के खराब होने से इसकी मुरम्मत पर अधिक खर्चा होगा। अगले सीजन में मशीन तैयार-वर-तैयार मिले इसलिए पहले सीजन के अंत में मशीन की अच्छी तरह सफ़ाई करके संभाल करनी चाहिए।

प्रश्न 2.
ट्रैक्टर की देखभाल के लिए किन बातों को ध्यान में रखना चाहिए ?
उत्तर-
ट्रैक्टर की संभाल के लिए निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखना चाहिए—

  1. ट्रैक्टर को अच्छी तरह धोकर, साफ़ करके शैड के अन्दर खड़ा करना चाहिए।
  2. यदि कोई छोटी-मोटी मुरम्मत होने वाली हो या किसी पाईप आदि से तेल लीक करता हो तो इसको ठीक कर लेना चाहिए। इंजन में बताई गई निशानी तक मुबाईल आयल का लेवल होना चाहिए।
  3. सारे ग्रीस वाले प्वाईंट अच्छी तरह डीजल से साफ करने चाहिए। पुरानी ग्रीस निकाल देनी चाहिए तथा नई ग्रीस से भर देनी चाहिए।
  4. बैटरी को गर्म पानी से अच्छी तरह साफ करके इसके टर्मीनलों को साफ करके पेट्रोलियम जैली का लेप लगा देना चाहिए। इस तरह लम्बे समय तक ट्रैक्टर का प्रयोग न करना हो तो बैटरी की तार अलग कर देनी चाहिए, परन्तु समय-समय पर बैटरी को चार्ज करते रहना चाहिए।
  5. टायरों तथा बैटरी की संभाल के लिए ट्रैक्टर को महीने में एक-दो बार स्टार्ट करके थोड़ा चला लेना चाहिए।
  6. लम्बे समय तक ट्रैक्टर को खड़ा रखना हो तो ट्रैक्टर को लकड़ी के गुटखों पर उठा देना चाहिए तथा टायरों की हवा कम कर देनी चाहिए।
  7. ट्रैक्टर को न्यूट्रल गियर में ही खड़ा रखना चाहिए, स्विच को बंद करके तथा पार्किंग ब्रेक लगा कर खड़ा करना चाहिए।
  8. धुएँ वाली पाइप तथा करैंक केस ब्रीदर के मुँह में ढक्कन न लगा हो तो कपड़े से बंद कर देना चाहिए। इस तरह नमी अन्दर नहीं जाती।
  9. ऐअर क्लीनर को कुछ समय बाद साफ करते रहना चाहिए।

प्रश्न 3.
मशीन की मुरम्मत मौसम समाप्त होने के पश्चात् ही क्यों कर लेनी चाहिए ?
उत्तर-
मशीन की मुरम्मत मौसम समाप्त होने के पश्चात्, स्टोर करने से पहले ही कर लेनी चाहिए। इस तरह मशीन अगले सीजन के शुरू में तैयार-वर-तैयार मिलती है तथा समय नष्ट नहीं होता तथा परेशानी भी नहीं होती। मौसम के खत्म होने पर हमें कौन-से पुर्जे या हिस्से में खराबी होने की संभावना है, पता होता है। यदि मुरम्मत न की जाए तो अगले मौसम के शुरू होने पर हमें यह कई बार याद भी नहीं रहता कि कौन-से पुर्जे या हिस्से मुरम्मत करने वाले हैं। इसलिए मौसम के समाप्त होते ही मुरम्मत करके मशीन को स्टोर करना चाहिए।

प्रश्न 4.
बैटरी की देख-भाल के लिए किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
उत्तर-
बैटरी की संभाल के लिए ट्रैक्टर को महीने में एक-दो बार स्टार्ट करके चला लेना चाहिए। बैटरी को गर्म पानी से साफ करके बैटरी के टर्मिनलों पर पेट्रौलियम जैली का लेप कर लेना चाहिए। लम्बे समय तक बैटरी का प्रयोग न करना हो तो बैटरी की तार को अलग कर देना चाहिए पर बैटरी को कभी-कभी चार्ज करते रहना चाहिए।

प्रश्न 5.
कम्बाइन हारवैस्टर की देखभाल के लिए किन बातों को ध्यान में रखना चाहिए?
उत्तर-
कम्बाइन की देखभाल भी ट्रैक्टर की तरह ही की जाती है, परन्तु इसमें कुछ अन्य बातों का ध्यान भी रखना पड़ता है, जो निम्नलिखित है—

  1. कम्बाइन में बीज़ वाले टैंक, कन्वेयर, स्ट्रावाकरों तथा छननी आदि को अच्छी तरह साफ इसलिए किया जाता है ताकि चूहे यहां अपना घर न बना लें, चूहे कम्बाइन में बिजली की तारों आदि को तथा पाइपों को हानि पहुंचा सकते हैं।
  2. कम्बाइन को नमी के कारण जंग लगता है। इसलिए यह ज़रूरी है कि इसको किसी शैड के अन्दर खड़ा किया जाए तथा इसको किसी प्लास्टिक शीट से ढक देना चाहिए। यदि किसी जगह से रंग उतर गया हो तो कर देना चाहिए।
  3. मशीन की रिपेयर सीजन खत्म होने के बाद स्टोर करने से पहले ही कर लेनी चाहिए। इस तरह मशीन अगले सीजन के शुरू में तैयार-वर-तैयार मिलती है तथा समय नष्ट नहीं होता तथा परेशानी भी नहीं होती। सीजन के समाप्त होने पर हमें उसके कौनसे पुर्जे या हिस्से में खराबी की संभावना है, पता होता है। यदि मुरम्मत नहीं की जाएगी तो अगले सीजन के शुरू होने पर हमें यह कई बार याद भी नहीं रहता कि कौन-से पुर्जे या हिस्से मुरम्मत करने वाले हैं। इसलिए सीजन के समाप्त होते ही मुरम्मत करके ही मशीन स्टोर करनी चाहिए।
    यदि उस समय संभव न हो तो पुों की लिस्ट बना लेनी चाहिए तथा जब समय मिले मुरम्मत करवा लेनी चाहिए।
  4. सारी बैल्टों को उतार कर निशान चिन्ह लगा कर संभाल लें ताकि दुबारा प्रयोग आसान हो जाए।
  5. चैन को भी डीज़ल से साफ करके ग्रीस लगा देनी चाहिए।
  6. रगड़ लगने वाले भाग को तेल देना चाहिए तथा ग्रीस वाले भागों को साफ करके नई ग्रीस भर देनी चाहिए।

Agriculture Guide for Class 8 PSEB कृषि संयंत्र एवम् उनकी देखभाल Important Questions and Answers

बहुत छोटे उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
पट्टे कुतरने वाली मशीन को क्या कहते हैं ?
उत्तर-
टोका।

प्रश्न 2.
डिस्क हैरो को देसी भाषा में क्या कहते हैं ?
उत्तर-
तवियां।

प्रश्न 3.
भूमि को समतल तथा भुरभुरा किससे करते हैं ?
उत्तर-
सुहागे से।

PSEB 8th Class Agriculture Solutions Chapter 9

प्रश्न 4.
खेतों में मेढ़ बनाने के लिए कौन-से यन्त्र का प्रयोग किया जाता है ?
उत्तर-
ज़िदरे का।

प्रश्न 5.
गोड़ाई के लिए प्रयोग होने वाले यन्त्रों के नाम लिखें।
उत्तर-
खुरपा तथा त्रिफाली।

प्रश्न 6.
फसलों पर कीड़े मार दवाई का छिड़काव करने वाले यन्त्रों के नाम बताओ।
उत्तर-
ढोलकी पम्प या ट्रैक्टर स्प्रे।

प्रश्न 7.
बीज़ बोने के लिए प्रयोग की जाने वाली मशीन का नाम बताओ।
उत्तर-
बीज़ ड्रिल मशीन।

प्रश्न 8.
कृषि कार्यों के लिए प्रयोग होने वाली दो मशीनों के नाम बताओ।
उत्तर-
पठे कुतरने वाली मशीन, डीज़ल इंजन, ट्रैक्टर।

प्रश्न 9.
ट्रैक्टर के टायरों में हवा का दबाव कितना होता है ?
उत्तर-
अगले टायरों में 24-26 पौंड तथा पिछले टायरों में 12-18 पौंड हवा होती है

प्रश्न 10.
बीज बीजने वाली मशीन को क्या कहा जाता है ?
उत्तर-
इसको सीड ड्रिल कहते हैं।

प्रश्न 11.
स्प्रे पम्प को प्रयोग करने के बाद किसके साथ धोएंगे ?
उत्तर-
स्प्रे पम्प को साफ़ पानी से धोना चाहिए।

प्रश्न 12.
सीड ड्रिल को कितने दिनों के बाद ग्रीस देनी चाहिए ?
उत्तर-
इसमें यदि बाल फिट हो तो तीन या चार दिन के बाद ग्रीस देनी चाहिये।

प्रश्न 13.
बिजली की मोटर क्या ढीला होने पर कांपती है ?
उत्तर-
फाऊंडेशन बोल्टों के ढीले होने के कारण मशीन कांपती है।

प्रश्न 14.
ट्रैक्टर को कितने घण्टों के प्रयोग के पश्चात् ग्रीस देंगे ?
उत्तर-
60 घण्टे काम लेने के पश्चात् ग्रीस गन से सभी जगह पर ग्रीस देनी चाहिए।

प्रश्न 15.
ट्रैक्टर के गियर बॉक्स का तेल कितने घण्टे काम लेने के बाद बदलना चाहिए ?
उत्तर-
1000 घण्टे काम लेने के पश्चात् ट्रैक्टर के गियर बॉक्स का तेल बदल दें।

प्रश्न 16.
ट्रैक्टर को ओवरहालिंग कब करवाया जाना चाहिए ?
उत्तर-
4000 घण्टे काम लेने के पश्चात् ट्रैक्टर की ओवरहालिंग की जानी चाहिए।

प्रश्न 17.
तवियों के फ्रेम को कितने समय के बाद दोबारा रंग करेंगे ?
उत्तर-
तवियों के फ्रेम को 2-3 वर्ष बाद रंग करो।

छोटे उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
डीज़ल इंजन का कृषि में क्या महत्त्व है ?
उत्तर-
डीज़ल इंजन ट्रैक्टर से छोटी मशीन है, इससे ट्यूबवैल चलाने, पढें कुतरने वाला टोका, दाने आदि निकालने के लिए मशीनें चलाई जाती हैं। इसको चलाने के लिए तेल तथा मुरम्मत का खर्चा ट्रैक्टर से काफी कम आता है। जहां कम शक्ति की आवश्यकता हो वहां ट्रैक्टर की जगह डीज़ल इंजन को पहल देनी चाहिए।

प्रश्न 2.
टिल्लर किस काम आता है ?
उत्तर-
इसका प्रयोग भूमि की जुताई के लिए होता है। इसको ट्रैक्टर के साथ जोड़ कर भूमि की जुताई का काम किया जाता है।

प्रश्न 3.
डिस्क हैरों किस काम आता है ?
उत्तर-
इसको खेत की प्राथमिक जुताई के लिए प्रयोग किया जाता है। इसको तवियां भी कहते हैं।

प्रश्न 4.
कृषि मशीनों का आधुनिक युग में क्या महत्त्व है ?
उत्तर-

  1. फसल की बुवाई जल्दी तथा सस्ती हो जाती है।
  2. पौधों तथा पौधों की पंक्तियों का फासला बिल्कुल ठीक तरह रखा जाता है।
  3. पंक्तियों में बुवाई करके फसल की गुड़ाई सरलता से हो जाती है।
  4. बीज तथा खाद निश्चित गहराई तथा योग्य फासले पर केरे जाते हैं।
  5. ड्रिल से बीजी हुई फसल से 10% से 15% तक अधिक उपज प्राप्त हो जाता है।

PSEB 8th Class Agriculture Solutions Chapter 9

प्रश्न 5.
सीड ड्रिल मशीन को धूप में क्यों नहीं खड़ा करना चाहिए।
उत्तर-
सीड ड्रिल मशीन को धूप में खड़े रखने से रबड़ की पाइपें तथा गरारियां खराब हो जाती हैं। पाइपों की पिचक निकालने के लिये पाइप को एक मिनट तक उबलते पानी में डालें तथा किसी सरिये या छड़ी को बीच में घुमाकर पिचक निकालें।

प्रश्न 6.
बिजली की मोटर पर पड़ रहे अधिक भार का कैसे पता लगता है ? यदि भार अधिक पड़ रहा हो तो क्या करना चाहिए ?
उत्तर-
मोटर पर पड़ रहे अधिक भार का पता करंट मीटर से लगता है जो कि स्टारटरों से लगे होते हैं। करंट अधिक जाता है तो यह ओवर लोडिंग होने का चिन्ह है। इसलिए मशीन पर भार घटाएं।

प्रश्न 7.
बीजाई के बाद सीड ड्रिल की सफ़ाई कैसे करोगे ?
उत्तर-
बीजाई के बाद रबड़ पाइपें साफ़ कर दें। मशीन के सभी खोलने वाले भाग खोलकर, सोडे के पानी के साथ अच्छी तरह सुखाकर सभी भागों को ग्रीस लगाकर किसी स्टोर में रख दें।

प्रश्न 8.
मोटर के स्टारटर तथा स्विच को अर्थ क्यों करना चाहिए ?
उत्तर-
मोटर के स्टारटर तथा स्विच को कई जगहों पर अर्थ किया जाता है ताकि यदि कोई खराबी पड़ने पर अधिक करंट आ जाए तो यह ज़मीन में चला जाये तथा फ्यूज़ वगैरा उड़ जाने पर हमें झटका न लग सके।

प्रश्न 9.
ट्रैक्टर के पहियों की स्लिप घटाने के लिये क्या करना चाहिए ?
उत्तर-
इसके लिए पीछे के पहियों में हवा का दबाव कम करें।

प्रश्न 10.
ट्रैक्टर का खिंचाव बढ़ाने के लिये क्या किया जा सकता है ?
उत्तर-
खिंचाव बढ़ाने के लिये पहिये की ट्यूबों में पानी भरा जा सकता है।

प्रश्न 11.
बैटरी टर्मिनलों तथा तारों को कितने ट्रैक्टर चलाने के पश्चात् साफ़ करना चाहिये ?
उत्तर-
120 घण्टे के काम के बाद।

प्रश्न 12.
बैटरी की प्लेटों से पानी कितना ऊंचा होना चाहिये ?
उत्तर-
बैटरी की प्लेटों से पानी 9 इंच ऊपर होना चाहिए।

प्रश्न 13.
ट्रैक्टर की ब्रेकों के पटे, पिस्टन तथा रिंग की घिसावट को कितने घण्टे काम के बाद चैक करना चाहिए ?
उत्तर-
1000 घण्टे काम करने के बाद।

प्रश्न 14.
मोटर गर्म होने के क्या कारण हो सकते हैं ?
उत्तर-
फेज़ पूरे नहीं हैं तथा जिन छेदों में से हवा जाती है वह गन्दगी या धूल से बन्द हो गये हों तो मोटर गर्म हो जाती है।

प्रश्न 15.
यदि बार-बार स्टार्टर ट्रिप करता हो तो क्या करना चाहिए ?
उत्तर-
यदि स्टार्टर बार-बार ट्रिप करता हो तो जबरदस्ती न करें तथा इलैक्ट्रीशन से मोटर चैक करवाएं।

प्रश्न 16.
यदि तीन फेज़ वाली मोटर का चक्र बदलना हो तो क्या करना चाहिए ?
उत्तर-
यदि मोटर का चक्र बदलना हो तो किसी भी दो फेज़ों को आपस में बदल दें चक्कर बदल जाएगा।

प्रश्न 17.
यदि तवियां न घूमें तो मशीन की सफ़ाई कैसे करेंगे ?
उत्तर-
कई बार बहुत देर तक मशीन पड़ी रहे तो ग्रीस जम जाती है तथा तवियां नहीं घूमतीं। इसलिए इनको खोलकर सोडे वाले पानी के साथ ओवरहाल करना चाहिए।

प्रश्न 18.
यदि पम्प लीक कर जाये तो क्या करना चाहिए ?
उत्तर-
पम्प लीक कर जाये तो इसमें लगी सभी पेकिंगों तथा वाशलों को चैक करें तथा गली तथा घिसी पेकिंगों तथा वाशलों को बदल दें।

प्रश्न 19.
ट्रैक्टर के पहियों तथा रबड़ के अन्य पुों को मोबिल आयल तथा ग्रीस से कैसे बचाना चाहिए ?
उत्तर-
मोबिल आयल तथा ग्रीस पहियों तथा रबड़ के पुों को बहुत हानि पहुंचा सकते हैं। इसके बचाव के लिये डीज़ल के साथ कपड़े का टुकड़ा भिगो कर ग्रीस तथा मोबिल आयल को साफ़ करना चाहिए। कीटनाशक दवाई के छिड़काव के बाद ट्रैक्टर के पहियों को साफ पानी के साथ धो देना चाहिए।

PSEB 8th Class Agriculture Solutions Chapter 9

प्रश्न 20.
बीज ड्रिल के डिब्बे को रोज़ क्यों साफ़ करना चाहिए।
उत्तर-
बीज तथा खाद के डिब्बे रोज़ इसलिए साफ़ करने चाहिएं क्योंकि खाद बहुत जल्दी डिब्बे को खा जाती है। खाद की प्रति एकड़ बदलने वाली पत्ती को जंग लग जाता है। प्रत्येक दो एकड़ बीज देने के पश्चात् डिब्बे के नीचे तथा एल्यूमीनियम की गरारियों पर जमी हुई खाद अच्छी तरह साफ़ कर देनी चाहिए। अन्यथा मशीन जल्दी खराब हो जायेगी तथा काम नहीं करेगी।

बड़े उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
कृषि के कार्यों में प्रयोग की जाती मशीनरी तथा यन्त्रों की सम्भाल का क्या महत्त्व है ?
उत्तर-
आज के युग में कृषि के साथ सम्बन्धित सभी कार्य बीजाई, कटाई, गुड़ाई, गुहाई आदि मशीनों द्वारा किये जाते हैं। मशीनरी पर बहुत पैसे खर्च आते हैं तथा कई बार मशीनों के लिये कर्ज भी लेना पड़ता है। इसलिए यह जरूरी हो जाता है कि जिस मशीनरी पर इतने पैसे खर्च किये हों, उसकी सम्भाल का पूरा ध्यान रखा जाये ताकि मशीन लम्बे समय तक बिना रुके काम करती रहे। इसलिए ट्रैक्टर, सीड ड्रिल, स्प्रे पम्प, तवियों आदि मशीनों तथा यन्त्रों की पूरी-पूरी देखभाल करनी चाहिए।

प्रश्न 2.
ट्रैक्टर से 60 घण्टे काम लेने के बाद सम्भाल सम्बन्धी की जाने वाली कार्यवाही का वितरण दें।।
उत्तर-
60 घण्टे काम लेने के बाद निम्नलिखित कार्य करने चाहिएं—

  1. चैक करो कि फैन बैल्ट ढीली तो नहीं। आवश्यकता अनुसार बैल्टों को कसें या बदल दें। इसका महत्त्व इंजन को ठण्डा करने तथा बिजली पैदा करने में हैं।
  2. ऐयर क्लीनर के आयल बाथ में तेल की सतह देखें।
  3. ग्रीस गन की सहायता से सभी जगह पर ग्रीस करो। अधिक समय तक कार्य के लिये निप्पलों को रोज ग्रीस करें।
  4. आयल फिल्टर को अच्छी तरह साफ़ करें।
  5. रेडियेटर की ट्यूबों को साफ़ करें।
  6. पहियों में हवा का दबाव चैक करें।

प्रश्न 3.
तवियों की सम्भाल कैसे की जाती है ?
उत्तर-
तवियों की सम्भाल के लिये निम्नलिखित कार्य करें—

  1. तवियों को हर दो तीन सप्ताह पश्चात् ट्रैक्टर में से निकाला हुआ ट्रेंड मोबिल आयल किसी कपड़े के टुकड़े से लगाते रहना चाहिए। इस प्रकार तवियों को जंग लगने से बचाया जा सकता है।
  2. तवियों के फ्रेम को दो तीन वर्ष बाद रंग कर देना चाहिए।
  3. हर 4 घण्टे के पश्चात् मशीन को ग्रीस दे देनी चाहिए।
  4. बुशों आदि पर तेल देते रहना चाहिए।
  5. यदि मशीन बहुत देर तक न प्रयोग की जाये, तो इसके अन्दर ग्रीस जम सकती है तथा इस प्रकार तवियां घूमेंगी नहीं। इसलिए इनको खोल कर सोडे वाले पानी के साथ ओवरहाल करें तथा इसके सभी पुों को खोलकर साफ़ करके फिट करें।

प्रश्न 4.
ट्रैक्टर से 120 घण्टे काम लेने के बाद क्या करोगे ?
उत्तर-
120 घण्टे वाली देखभाल शुरू करने से पहले इससे कम घण्टे काम लेने के बाद वाली कार्यवाही कर लेनी चाहिये तथा 120 घण्टे के बाद निम्नलिखित कार्य करें

  1. गेयर बॉक्स के तेल की सतह को चैक करें तथा ठीक करें।
  2. कनैक्शन ठीक रखने के लिये बैटरी टर्मिनल तथा तारें साफ़ करें।
  3. बैटरी के पानी की सतह चैक करें। प्लेटों पर पानी का लैवल 9 इंच ऊपर होना चाहिए। यदि पानी कम हो तो और पानी डाल दें।

प्रश्न 5.
ट्रैक्टर से 1000 घण्टे तथा 4000 घण्टे काम लेने के बाद की गई कार्यवाही के बारे में लिखें।
उत्तर-
1000 घण्टे वाली देखभाल शुरू करने से पहले कम समय वाली देखभाल करने के बाद निम्नलिखित कार्य करें

  1. गियर बॉक्स का तेल बदल देना चाहिए।
  2. ब्रेकों के पटे, पिस्टन तथा रिंग की घिसावट को चैक करके आवश्यकता अनुसार मरम्मत करनी चाहिये या बदल देने चाहिये।
  3. किसी अच्छे ट्रैक्टर मकैनिक से ट्रैक्टर को चैक करवाएं।
  4. ट्रैक्टर से 4000 घण्टे काम लेने के बाद पूरे ट्रैक्टर को किसी अच्छी वर्कशाप में से ओवरहाल करवाना चाहिए।

PSEB 8th Class Agriculture Solutions Chapter 9

प्रश्न 6.
बिजली की मोटर के लिये ध्यान रखने योग्य बातें कौन-सी हैं ?
उत्तर-

  1. मोटर की बॉडी पर हाथ रखें तथा देखें कि यह गर्म तो नहीं होती, देखें कोई बदबू आदि तो नहीं आती।
  2. मोटर पर ज्यादा भार नहीं पड़ा होना चाहिए। इसका पता करंट मीटर से लग जाता है, जोकि कई स्टारटरों के साथ लगा होता है। यदि आवश्यकता से अधिक करंट जाता हो तो यह ओवरलोडिंग की निशानी है। इसलिए भार घटाएं।
  3. यदि तीनों फेज़ पूरे नहीं आ रहे तो मोटर को तुरन्त बन्द कर देना चाहिए।
  4. फ्यूज़ उड़ जाने के कारण मोटर सिंगल फेज़ पर न चलती हो तथा बिजली पूरी आनी चाहिये।
  5. जिन छेदों में से हवा जाती है, वह गन्दगी या धूल से बन्द हो गये हों या बन्द हों तो मोटर गर्म हो जायेगी।
  6. यदि बाहर से आपको कोई नुक्स नज़र नहीं आता तो नुक्स मोटर के अन्दर है। बिजली के कारीगर को मोटर दिखाएं। वह सभी कुवाइलों की जांच करेगा।

प्रश्न 7.
ट्रैक्टर के पहियों की देखभाल कैसे की जाती है ?
उत्तर-

  1. पहियों की लम्बी आयु के लिये इनमें हवा का दबाव ट्रैक्टर के साथ मिली हुई पुस्तक में बताए के अनुसार रखें। आगे के पहियों में 24-26 पौंड तथा पीछे के पहियों में 12–18 पौंड हवा होनी चाहिए।
    पहियों को मोबिल आयल तथा ग्रीस बिल्कुल न लगने दें। यदि लग जाये तो डीज़ल से कपड़ा भिगो कर उनको साफ़ कर दें।
  2. पत्थरों तथा पौंधों की जड़ों पर ट्रैक्टर चलाने से पहिये जल्दी घिस जाते हैं।
  3. पहिये क्रैक हो जायें तो समय पर मुरम्मत करवा लें।
  4. ध्यान रखें कि पहिये एक सार घिसावट या भार सहन करें।

प्रश्न 8.
बिजली की मोटर की देखभाल के बारे में मुख्य बातें क्या हैं ?
उत्तर-

  1. मोटर के स्टारटर तथा स्विच को कई जगहों से अर्थ तार के साथ जोड़ना चाहिए, ताकि यदि कोई खराबी पड़े तो बिजली ज़मीन में चली जाये तथा फयूज वगैरा उड़ जाएं तथा झटके से बचा जाये।
  2. यदि स्टारटर बार-बार ट्रिप करता हो तो कोई जबरदस्ती न करें तथा नुक्स ढूंढ़े या इलैक्ट्रीशियन से मोटर चैक करवाएं।
  3. मोटर पर भार उसके हार्स पावर अनुसार ही डालें।
  4. यदि बेरिंग आवाज़ करते हों या ज्यादा ढीले हों, तो उनको तुरन्त बदल दें।
  5. कभी-कभी मोटर, स्विच तथा स्टारटर के सभी कनैक्शन की जांच करते रहें।
  6. वर्ष में दो बार मोटर को ग्रीस देनी चाहिये।
  7. ध्यान रखें कि मोटर की बैल्ट बहुत कसी न हो क्योंकि कसी हुई बैल्ट मोटर के बेरिंग को काट देती है।
  8. यदि मोटर बहुत कांपती हो तो बेरिंग घिसे हुए हो सकते हैं या फाउंडेशन बोल्ट ढीले हो सकते हैं। खराबी ढूंढे तथा ठीक करें।
  9. कभी-कभी मोटर को हाथ से घुमाकर चैक करें कि रोटर अन्दर से कहीं लगता तो नहीं या कोई बेरिंग जाम तो नहीं।
  10. मोटर से गन्दगी तथा धूल वगैरा साइकिल वाले पम्प या अन्य हवा के प्रैशर से दूर करें।
  11. कभी-कभी मोटर की इन्सुलेशन रजिस्टेंस चैक करवाते रहना चाहिये। यदि तीन फेज़ों वाली मोटर का चक्कर बदलना हो तो किसी भी दो फेज़ों को आपस में बदल दें, चक्कर बदल जाएगा।

प्रश्न 9.
सीड ड्रिल मशीन की सम्भाल कैसे की जा सकती है ?
उत्तर-
सीड ड्रिल मशीन की सम्भाल के लिये कुछ बातें निम्नलिखित हैं—

  1. प्रत्येक चार घण्टे मशीन चलने के पश्चात् किनारों तथा बुशों में तेल या ग्रीस देनी चाहिये। यदि बाल फिट हों तो तीन या चार दिन पश्चात् ग्रीस दी जा सकती है।
  2. बीजाई समाप्त होने के पश्चात् रबड़ पाइपों को साफ़ करके रखें।
  3. मशीन को कभी-कभी रंग करवा लेना चाहिये, इस प्रकार मौसम का प्रभाव इस पर कम हो जायेगा। इसको आंगन या शैड में रखना चाहिए।
  4. मशीन को धूप तथा बरसात में न रखें, क्योंकि इस प्रकार रबड़ की पाइपें तथा गरारियां खराब हो जाती हैं। यदि पाइपें पिचक जायें तो उनको उबलते पानी में एक मिनट के लिये डालें तथा कोई सरीया या छड़ी पानी में घुमा कर पिचक निकाल दें।
  5. बीजाई समाप्त होने के पश्चात् इसके खोलने वाले पुों को खोलकर, सोडे के पानी से धो दें, अच्छी तरह सुखा कर तथा ग्रीस वगैरा लगाकर, किसी स्टोर में रख देना चाहिए।

PSEB 8th Class Agriculture Solutions Chapter 9

प्रश्न 10.
स्प्रे पम्पों की सम्भाल के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर-
स्प्रे पम्प की सम्भाल के लिये कुछ बातें निम्नलिखित हैं—

  1. स्प्रे पम्प को प्रयोग से पहले तथा बाद में साफ़ पानी से अच्छी तरह धो लेना चाहिए।
  2. कभी-भी बिना पौनी से टैंकी में घोल न डालें।
  3. स्प्रे पम्प का प्रयोग करने के बाद कभी भी स्प्रे पम्प में रात भर दवाई नहीं पड़ी रहनी चाहिये।
  4. हमेशा प्रयोग से पहले स्प्रे पम्प के फिल्टरों को अच्छी तरह साफ़ कर लेना चाहिये। हो सकता है कि पम्प के पड़े रहने के कारण इसमें मिट्टी की धूल जम चुकी हो इसलिये इस कारण बाद में यह पूरा दबाव नहीं डाल सकेगा।
  5. स्प्रे पम्प बनाने वालों के निर्देशों अनुसार पम्प के चलने वाले सभी पुों को तेल या ग्रीस देनी चाहिये। हो सकता है कि इसके पड़े रहने के कारण इसमें मिट्टी की धूल जम चुकी हो, जिस कारण बाद में पूरा दबाव नहीं डाल सके।
  6. यदि पम्प लीक करता हो तो उसमें लगी सभी पेकिंग तथा वाशलों की जांच करने के पश्चात् घिसी या गली हुई पेकिंग तथा वाशलों को बदल दें।
  7. जब पम्प को लम्बे समय के लिये रखना हो इसके प्रत्येक पों को खोलकर उसकी ओवरहालिंग कर देनी चाहिए तथा खराब पुों को बदल देना चाहिए। मशीन को रंग कर रख दें।

प्रश्न 11.
ट्रैक्टर की सम्भाल के लिये कितने-कितने समय के बाद सर्विस करवानी चाहिये ? इस पर दस घण्टे काम लेने के पश्चात् सर्विस करवाते समय कौन-सी बातों का ध्यान रखेंगे ?
उत्तर-
ट्रैक्टर की सम्भाल के लिये 10 घण्टे काम लेने के बाद, 60 घण्टे बाद, 120 घण्टे बाद 1000 घण्टे बाद तथा 4000 घण्टे बाद सर्विस करनी चाहिये।

  1. प्रे ट्रैक्टर को अच्छी तरह किसी कपड़े से साफ़ करें।
  2. एयर क्लीनर के कप तथा ऐलिमेंट को साफ़ करें।
  3. ट्रैक्टर की टैंकी हमेशा भरी होनी चाहिये ताकि सारे सिस्टम में कमी न आ जाये।
  4. रेडियेटर को ओवरफलों पाइप तक शुद्ध पानी के साथ भरकर रखें।
  5. फ्रेक केस का तेल चैक करें, यदि कम हो तो और डालें।
  6. यदि कोई लीकेज हो, उसको भी ठीक करें।
  7. यदि कोई और नुक्स पड़ जाए, तो उसको ठीक करें।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

ठीक/गलत

  1. कृषि मशीनें प्राथमिक रूप से तीन प्रकार की होती हैं।
  2. ट्रैक्टर को स्टोर करते समय हमेशा न्यूट्रल गियर में खड़ा करना चाहिए।
  3. ट्रैक्टर को कृषि मशीनरी का प्रधान कहा जाता है।

उत्तर-

बहुविकल्पीय

प्रश्न 1.
ट्रैक्टर की सहायता से चलने वाली मशीनें हैं—
(क) कल्टीवेटर
(ख) तवियां
(ग) सीड ड्रिल
(घ) सभी ठीक
उत्तर-
(घ) सभी ठीक

PSEB 8th Class Agriculture Solutions Chapter 9

प्रश्न 2.
ट्रैक्टर की ओवरहालिंग कब की जाती है ?
(क) 2000 घण्टे काम करने के बाद
(ख) 4000 घण्टे काम करने के बाद
(ग) 8000 घण्टे काम करने के बाद
(घ) कभी नहीं।
उत्तर-
(ख) 4000 घण्टे काम करने के बाद

प्रश्न 3.
तवियों के फ्रेम को कितने समय के बाद दोबारा रंग किया जाता है ?
(क) 2-3 वर्ष बाद
(ख) 6 वर्ष बाद
(ग) 1 वर्ष बाद
(घ) 10 वर्ष बाद।
उत्तर-
(क) 2-3 वर्ष बाद

रिक्त स्थान भरें

  1. डिस्क हैरों का प्राथमिक …………….. के लिए प्रयोग होता है।
  2. कम्बाइन को ……….. के कारण जंग लगता है।
  3. ……………. को कृषि मशीनरी का प्रधान माना जाता है।

उत्तर-

  1. जुताई,
  2. नमी,
  3. ट्रैक्टर

कृषि संयंत्र एवम् उनकी देखभाल PSEB 8th Class Agriculture Notes

  • भूमि के बाद किसान की सबसे अधिक पूंजी कृषि से सम्बन्धित मशीनरी (संयंत्रों) में लगी रहती है।
  • मशीन की अच्छी तरह देखभाल की जाए तो मशीन की आयु में वृद्धि की जा सकती है।
  • कृषि मशीनें मुख्यतः तीन प्रकार की होती हैं।
  • चलाने वाली मशीनें संयंत्र हैं-ट्रैक्टर, ईंजन, मोटर आदि।
  • कृषि उपकरण; जैसे-कल्टीवेटर, तवियां, बीज खाद ड्रिल, हैपी सीडर आदि।
  • स्व:चालित मशीनें हैं-कम्बाइन, हार्वेस्टर, धान का ट्रांसप्लांटर आदि।
  • ट्रैक्टर को कृषि मशीनरी का प्रधान कहा जाता है।
  • ट्रैक्टर की सर्विस 10 घण्टे, 50 घण्टे, 125 घण्टे, 250 घण्टे, 500 घण्टे तथा 1000 घण्टे बाद करनी आवश्यक है।
  • ट्रैक्टर को 4000 घण्टे काम लेने के बाद किसी अच्छी वर्कशाप में ओवरहाल करवा लेना चाहिए।
  • जब ट्रैक्टर की लम्बे समय तक आवश्यकता न हो तो ट्रैक्टर को संभाल कर रख देना चाहिए।
  • कम्बाइन हार्वेस्टर की संभाल भी ट्रैक्टर के जैसे ही की जाती है।
  • कल्टीवेटर, तवियां तथा सीज ड्रिल आदि ट्रैक्टर की सहायता से चलने वाली मशीनें

PSEB 8th Class Agriculture Solutions Chapter 7 फ़सली विभिन्नता

Punjab State Board PSEB 8th Class Agriculture Book Solutions Chapter 7 फ़सली विभिन्नता Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 8 Agriculture Chapter 7 फ़सली विभिन्नता

PSEB 8th Class Agriculture Guide फ़सली विभिन्नता Textbook Questions and Answers

(अ) एक-दो शब्दों में उत्तर दें—

प्रश्न 1.
अर्द्ध पहाड़ी क्षेत्रों में कौन-सा फ़सली चक्र अपनाया जाता है ?
उत्तर-
धान-गेहूँ।

प्रश्न 2.
दक्षिण-पश्चिमी क्षेत्र में प्रमुख फ़सली चक्र कौन-सा है ?
उत्तर-
नरमा-कपास-गेहूँ।

प्रश्न 3.
दो-तीन फ़सली चक्रों की एक उदाहरण दें।
उत्तर-
मक्की-आलू-मूंगी, मूंगफली-आलू-बाजरा।

प्रश्न 4.
धान बोने से केन्द्रीय पंजाब में पानी का स्तर कितना गहरा हो रहा है ?
उत्तर-
लगभग 74 सैं० मी० प्रति वर्ष

प्रश्न 5.
वायु में विद्यमान नाइट्रोजन को पौधे की जड़ों में एकत्र करने के लिए कौन-सा बैक्टीरिया कार्य करता है ?
उत्तर-
राईजोबियम।

प्रश्न 6.
जंत्र-बासमती गेहूँ फ़सली चक्र में किस खाद की बचत होती है ?
उत्तर-
नाइट्रोजन खाद की।

प्रश्न 7.
भारत को कौन-सी फ़सलें आयात करनी पड़ रही हैं?
उत्तर-
दालें, तेल बीज की।

प्रश्न 8.
बासमती में कितने दिन पूर्व हरी खाद दबानी चाहिए ?
उत्तर-
पनीरी लगाने से एक दिन पूर्व।

प्रश्न 9.
पंजाब में कितने प्रतिशत क्षेत्रफल सिंचाई के अन्तर्गत है ?
उत्तर-
98 प्रतिशत।

PSEB 8th Class Agriculture Solutions Chapter 7 फ़सली विभिन्नता

प्रश्न 10.
पंजाब में ट्यूबवैल की संख्या कितनी है ?
उत्तर-
14 लाख के लगभग।

(आ) एक-दो वाक्यों में उत्तर दें—

प्रश्न 1.
फ़सली विभिन्नता से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
बहु-भांति कृषि से भाव है कि मौजूदा फ़सलों के नीचे क्षेत्रफल कम करके अन्य फ़सलों ; जैसे-मक्का, दालें, बासमती, कमाद, आलू, तेल बीज फ़सलें आदि के नीचे ले कर आना।

प्रश्न 2.
पानी के अभाव वाली भूमि पर कौन-सी फ़सलें बोनी चाहिए ?
उत्तर–
पानी की कमी वाली भूमि में तेल बीज फ़सलें बोई जानी चाहिए।

प्रश्न 3.
मक्की आधारित फ़सली चक्रों के नाम लिखो।
उत्तर-
मक्की आधारित फ़सल चक्र हैं-मक्की-आलू-मूंग या सूरजमुखी, मक्कीआलू या तोरिया-सूरजमुखी, मक्की-आलू-प्याज या मेंथा तथा मक्की-गोभी सरसों-गर्म ऋतु की मूंग।

प्रश्न 4.
चारे आधारित फ़सली चक्रों के नाम लिखो।
उत्तर-
मक्की-बरसीम-बाजरा, मक्की-बरसीम-मक्की या रवांह।

प्रश्न 5.
बहु-फ़सली प्रणाली की विशेषताएं लिखो।
उत्तर-

  1. कम भूमि से अधिक पैदावार मिल जाती है।
  2. मौसमी बदलाव का सामना किया जा सकता है।
  3. रसायनिक खादों का प्रयोग कम होता है।
  4. संतुलित भोजन की मांग पूरी होती है तथा रोजगार के अवसर बढ़ते हैं।
  5. वातावरण की सुरक्षा होती है तथा प्राकृतिक स्रोतों की बचत होती है।

प्रश्न 6.
संयुक्त कृषि प्रणाली में कौन-कौन से सहायक व्यवसाय अपनाए जा सकते हैं ?
उत्तर-
संयुक्त कृषि प्रणाली में निम्नलिखित में से कोई एक या दो सहायक व्यवसाय अपनाए जा सकते हैं—

  1. मछली पालन
  2. फलों की कृषि
  3. सब्जी की कृषि
  4. डेयरी फार्मिंग
  5. खरगोश पालना
  6. सूअर पालना
  7. बकरी पालना
  8. मधु मक्खी पालना
  9. पोल्ट्री फार्मिंग
  10. वन कृषि फसलें जैसे पापलर।

प्रश्न 7.
पंजाब के जल स्रोतों के विषय में लिखो।
उत्तर-
पंजाब में 98% क्षेत्रफल सिंचाई के अधीन है तथा लगभग 14 लाख ट्यूबवैल लगे हुए है। पंजाब में सिंचाई के लिए नहरी पानी का भी जाल फैला हुआ है।

PSEB 8th Class Agriculture Solutions Chapter 7 फ़सली विभिन्नता

प्रश्न 8.
केन्द्रीय पंजाब में धान व गेहूँ के अतिरिक्त कौन-कौन सी फ़सलें बोई जाती हैं ?
उत्तर-
मक्की, धान, गेहूँ, आलू, मटर, गन्ना, वासमती, सूरजमुखी, खरबूजा, मिर्च तथा अन्य सब्जियां।

प्रश्न 9.
अर्द्ध पर्वतीय क्षेत्रों की प्रमुख फ़सलों के नाम बताएँ।
उत्तर-
अर्द्ध पर्वतीय क्षेत्रों की प्रमुख फ़सलें हैं-गेहूँ, मक्की, धान, वासमती, आलू, तेल बीज फ़सलें तथा मटर।

प्रश्न 10.
हल्की ज़मीनों में कौन-कौन से फ़सली चक्र अपनाने चाहिए ?
उत्तर-
हल्की भूमियों में मूंगफली आधारित फ़सल चक्र अपनाए जा सकते हैं जैसेगर्मी ऋतु की मूंगफली-आलू या तोरिया या मटर या गेहूँ, मूंगफली-आलू-बाजरा, मूंगफलीतोरिया या गोभी सरसो।

(इ) पाँच-छः वाक्यों में उत्तर दें—

प्रश्न 1.
फ़सली विभिन्नता से क्या अभिप्राय है ? फ़सली विभिन्नता का क्या उद्देश्य है एवम् इसकी आवश्यकता क्यों पड़ी ?
उत्तर-
फ़सली विभिन्नता-बहु-भांति कृषि से भाव है मौजूदा फ़सलों के अन्तर्गत क्षेत्रफल कम करके कुछ अन्य फ़सलों ; जैसे-मक्की, दालें, बासमती, कमाद, आलू, तेल बीज फ़सलें आदि के नीचे लेकर आना।
उद्देश्य-फ़सली विभिन्नता के मुख्य उद्देश्य इस तरह हैं—

  1. गेहूँ प्राकृतिक स्रोतों का संयमित प्रयोग करना तथा इन्हें लम्बे समय तक बचाना।
  2. फसलों से कम लागत से अधिक आय प्राप्त करना।
  3. बार-बार एक ही फसली चक्कर से बाहर निकलना ताकि मिट्टी-पानी की बचत की जा सके।

फ़सली विभिन्नता की आवश्यकता-धान-गेहूँ फसल चक्र को वर्ष में लगभग 215 सैं०मी० पानी की आवश्यकता पड़ती है जिसमें से 80% पानी केवल धान की फसल में ही खपत हो जाता है। धान की कृषि से भूमि की भौतिक तथा रसायनिक बनावट में खराबी आ रही है। पिछले 50 वर्षों के दौरान मूंगफली, तेल बीज फसलों, कमाद तथा दाल वाली फ़सलों के अन्तर्गत क्षेत्रफल कम होकर धान के अधीन आ गया है। इसलिए फ़सली विभिन्नता से भूमि के नीचे पानी की बचत हो जाएगी तथा भूमि का स्वास्थ्य भी ठीक रहेगा।

प्रश्न 2.
बहु-फ़सली प्रणाली अपनाने की आवश्यकता क्यों है ? विस्तारपूर्वक उदाहरण सहित लिखें।
उत्तर-
बहु-फ़सली कृषि प्रणाली से भाव है कि एक वर्ष में खेत में दो से अधिक फसलें उगाना। इसका उद्देश्य मुख्य फ़सलों के बीच जो खाली समय बचता है इसमें एक या दो से अधिक फ़सलें उगाना है।
बहु-फ़सली प्रणाली की आवश्यकता—

  1. कम भूमि में से अधिक पैदावार मिल जाती है।
  2. मौसमी बदलाव का सामना किया जा सकता है।
  3. रसायनिक खादों का प्रयोग कम होता है।
  4. संतुलित भोजन की मांग पूरी होती है तथा रोज़गार के अधिक अवसर मिलते हैं।
  5. वातावरण की सुरक्षा होती है तथा प्राकृतिक स्रोतों की बचत होती है।
  6. बहु-फ़सली कृषि में फलीदार फ़सलें उगाने से भूमि में राईज़ोवियम वैक्टीरिया की सहायता से नाइट्रोजन जमा की जाती है। इससे नाइट्रोजन वाली खाद की बचत होती है।

इसलिए बहु-फ़सली चक्र अपनाया जाता है; जैसे—

  1. हरी खाद आधारित; जैसे-जंतर-मक्की आदि।
  2. मक्का आधारित; जैसे-मक्का-आलू-मूंग या सूरजमुखी।
  3. सोयाबीन आधारित; जैसे-सोयाबीन-गेहूँ-रवांह।।
  4. मूंगफली आधारित; जैसे–मूंगफली-आलू, तोरिया, मटर आदि।
  5. हरे चारे आधारित; जैसे-मक्का, बरसीम, बाजरा इस प्रकार मिली-जुली फसलों पर आधारित तथा सब्जी आधारित फसली चक्र भी अपनाया जा सकता है।

PSEB 8th Class Agriculture Solutions Chapter 7 फ़सली विभिन्नता

प्रश्न 3.
पंजाब में कृषि से सम्बन्धित समस्याओं के विषय में लिखो।
उत्तर-
पंजाब में कृषि से सम्बन्धित समस्याएं निम्नलिखित अनुसार हैं—

  1. हरित क्रान्ति के बाद पंजाब गेहूँ-चावल के फ़सली चक्र में फंस कर रह गया। केवल दो ही फ़सलों पर ज़ोर देने से पंजाब में भूमि के नीचे पानी के स्तर की गहराई बढ़ती जा रही है तथा रसायनिक दवाइयों; जैसे-नदीननाशक, कीटनाशक तथा खादों के प्रयोग से भूमि की भौतिक तथा रसायनिक बनावट तथा स्वास्थ्य में खराबी आ रही है।
  2. तेल बीज फ़सलों तथा दालों की कृषि कम हो रही है।
  3. पंजाब में दक्षिण-पश्चिमी क्षेत्र में अधिक वर्षा के कारण मिट्टी क्षरण की समस्या अधिक है।
  4. पानी का स्तर प्रत्येक वर्ष 74 सैं०मी० नीचे जा रहा है जिस कारण किसानों को सबमर्सीवल मोटर लगाकर पानी निकालना पड़ रहा है जिससे खर्चा बढ़ गया है।
  5. कीड़े-मकौड़े तथा नदीनों की नई किस्में पैदा हो रही हैं।
  6. जैविक विभिन्नता कम होती जा रही है।
  7. कई तरह के मौसम परिवर्तन हो रहे हैं।

प्रश्न 4.
संयक्त कृषि प्रणाली (Integrated Farming System) क्या है ? उदाहरण सहित विस्तारपूर्वक लिखो।
उत्तर-
संयुक्त फ़सल प्रणाली-संयुक्त फ़सल प्रणाली में किसान कृषि के अलावा एक-दो कृषि सहायक धन्धे अपनाकर अपनी आय में वृद्धि करते हैं। इस तरह किसान अपनी कमाई में वृद्धि तो करता ही है उसके घर के सदस्य भी इन कार्यों में सहायता कर सकते हैं। परिवार के सदस्यों को पौष्टिक आहार भी प्राप्त हो जाता है। किसान अपने फार्म के साधनों के अनुसार अपनी शुद्ध आमदन बढ़ा सकता है। आगे कुछ सहायक धन्धे हैं जिनमें से कोई एक या दो सहायक धन्धे अपनाए जा सकते हैं—

  1. मछली पालन
  2. फलों की कृषि
  3. सब्जी की कृषि
  4. डेयरी फार्मिंग
  5. खरगोश पालना
  6. सूअर पालना
  7. बकरी पालना
  8. मधु मक्खी पालना
  9. पोल्ट्री फार्मिंग
  10. वन कृषि फ़सलें जैसे पापलर।

प्रश्न 5.
मिश्रित फ़सल प्रणाली (Mixed Cropping) क्या है ? उदाहरण सहित लिखें।
उत्तर-
मिश्रित फ़सल प्रणाली-कम भूमि से अधिक-से-अधिक पैदावार लेने, अधिक आय लेने तथा आवश्यकताएं पूरी करने के लिए मिश्रत फ़सलों की कृषि की जाती है। इसको मिश्रत फ़सल प्रणाली कहा जाता है।
पंजाब में जुताई योग्य क्षेत्रफल कम होता जा रहा है। इसके कई कारण हैं; जैसेकारखाने, नई कलोनियों का अस्तित्व में आना। इसलिए मौजूदा उपलब्ध भूमि से अधिक पैदावार लेने के लिए, अपनी आय बढ़ाने के लिए लोगों की आवश्यकताएं पूरी करने के लिए मिश्रत फ़सलों की कृषि करनी चाहिए; जैसे-मक्की या मूंगी, अरहर या मूंगी, सोयाबीन या मूंग, मक्की या सोयाबीन, मक्की या हरे चारे के लिए मक्की या मूंगफली, नर्मा या मक्की आदि। मिश्रत फ़सलों की कृषि के कारण मुख्य फ़सल की पैदावार पर कोई असर नहीं पड़ता। इस प्रकार अधिक पैदावार तो प्राप्त होती ही है भूमि की उपजाऊ शक्ति भी बनी रहती है। इससे नदीनों की समस्या को काफी हद तक कम करने में सहायता मिलती है।

Agriculture Guide for Class 8 PSEB फ़सली विभिन्नता Important Questions and Answers

बहुत छोटे उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
पंजाब में धान की कृषि के अधीन कितना क्षेत्रफल है ?
उत्तर-
लगभग 28.3 लाख हैक्टेयर।

प्रश्न 2.
पंजाब में गेहूँ की कृषि के अधीन कितना क्षेत्रफल है ?
उत्तर-
लगभग 35.1 लाख हैक्टेयर।

प्रश्न 3.
पिछले 50 वर्ष में कौन-सी फ़सलों का क्षेत्रफल धान के अधीन आ गया है ?
उत्तर-
मूंगफली, तेल बीज फसलें, कमाद तथा दालें।

प्रश्न 4.
धान-गेहूँ फ़सली चक्र को वर्ष में लगभग कितना पानी चाहिए ?
उत्तर-
215 सैं०मी०।

प्रश्न 5.
सारे वर्ष में कुल पानी की लागत में धान कितना पानी पी जाता है ?
उत्तर-
80%.

प्रश्न 6.
पंजाब में कृषि के अधीन कितना क्षेत्रफल है ?
उत्तर-
41.58 लाख हैक्टेयर।

प्रश्न 7.
कृषि तथा जलवायु के आधार पर पंजाब को कितने भागों में बांटा गया
उत्तर-
तीन-अर्द्ध पर्वतीय क्षेत्र, केन्द्रीय भाग, दक्षिण-पश्चिमी क्षेत्र।

प्रश्न 8.
अर्द्ध पर्वतीय क्षेत्र कौन-सी पहाड़ियों के पैरों में है ?
उत्तर-
शिवालिक पहाड़ियों के।

प्रश्न 9.
सीमावर्ती (कंडी) क्षेत्र, अर्द्ध पर्वतीय क्षेत्र का कितने प्रतिशत है ?
उत्तर-
लगभग 9%।

PSEB 8th Class Agriculture Solutions Chapter 7 फ़सली विभिन्नता

प्रश्न 10.
पंजाब में प्रमुख फ़सली चक्र क्या है ?
उत्तर-
धान-गेहूँ।

प्रश्न 11.
दक्षिण-पश्चिमी क्षेत्र में कौन-सा फ़सली चक्र अपनाया जाता है ?
उत्तर-
नर्मा-कपास-गेहूँ।

प्रश्न 12.
दक्षिण-पश्चिमी क्षेत्र में नीचे का पानी कैसा है ?
उत्तर-
खारा।

प्रश्न 13.
हरी खाद वाली फ़सल कौन-सी है ?
उत्तर-
जंतर, रवाह या सन्न।

प्रश्न 14.
यदि मक्की बोई जानी हो तो हरी खाद को कितने दिन पहले खेत में जोत देना चाहिए ?
उत्तर-
8-10 दिन पहले।

प्रश्न 15.
कौन-सी फ़सल के टांगरों को हरी खाद के रूप में प्रयोग किया जा सकता है ?
उत्तर-
सट्ठी मूंग।

प्रश्न 16.
सोयाबीन में कितने प्रतिशत प्रोटीन होता है ?
उत्तर-
35-40%.

प्रश्न 17.
पंजाब में ‘सफेद क्रान्ति’ का सेहरा कौन-सी फ़सल के सिर है ?
उत्तर-
हरे चारे की फ़सल।

प्रश्न 18.
अधिक दूध प्राप्त करने के लिए गाय तथा भैंस को कितना चारा खिलाया जाना चाहिए?
उत्तर-
40 किलो हरा चारा।

प्रश्न 19.
नगर से दूर फार्मों के लिए सब्जी आधारित फ़सली चक्र लिखें।
उत्तर-
आलू-भिण्डी-अग्रिम फूलगोभी।

प्रश्न 20.
नगर के निकटतम गांवों के फार्मों के लिए एक सब्जी आधारित फ़सली चक्र लिखें।
उत्तर-
फूलगोभी-टमाटर-भिण्डी।

छोटे उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
सीमावर्ती क्षेत्र बारे में आप क्या जानते हो ?
उत्तर-
सीमावर्ती क्षेत्र अर्द्ध पर्वतीय क्षेत्र का 9% भाग है।

प्रश्न 2.
केन्द्रीय पंजाब में मुख्य समस्या क्या है ?
उत्तर-
गेहूँ-धान फ़सली चक़ होने के कारण इस क्षेत्र में धरती के नीचे पानी का स्तर प्रत्येक वर्ष लगभग 74 मैं०मी० की दर से नीचे जा रहा है।

प्रश्न 3.
धान के स्थान पर सोयाबीन की कृषि का क्या कारण है ?
उत्तर-
धान को कीड़े-मकौड़े तथा बीमारियां अधिक लगती हैं, इसलिए इसकी पैदावार कम हो जाती है। इसलिए धान के स्थान सोयाबीन की कृषि की जा सकती है।

प्रश्न 4.
मिश्रत फ़सलों की कृषि का लाभ बताओ।
उत्तर-
मिश्रत फ़सलों की कृषि के कारण भूमि की उपजाऊ शक्ति बनी रहती है। इससे नदीन की समस्या को बहुत हद तक कम करने में सहायता मिलती है।

प्रश्न 5.
नगर के निकटतम फार्मों के लिए सब्जी आधारित फ़सली चक्र बताओ।
उत्तर-

  1. बैंगन (लम्बे)- पिछेती फूलगोभी-घीया।
  2. आलू-खरबूजा।
  3. पालक-गांठ गोभी, प्याज, हरी मिर्च, मूली।
  4. फूलगोभी-टमाटर-भिण्डी।

बड़े उत्तर वाला प्रश्न

प्रश्न-मक्की आधारित फ़सली चक्र तथा सोयाबीन आधारित फ़सली चक्र के बारे में बताओ।
उत्तर-

  1. मक्की आधारति फ़सली चक्र-मक्की आधारित फ़सली चक्र निम्नलिखित अनुसार है—
    • मक्की-आलू-मूंग या सूरजमुखी।
    • मक्की -आलू या तोरिया-सूरजमुखी।
    • मक्की-आलू-प्याज या मैंथा आदि। इन फ़सली चक्रों को अपनाकर प्राकृतिक स्रोतों की बचत की जा सकती है।
  2. सोयाबीन आधारित फ़सली चक्र-सोयाबीन आधारित फ़सली चक्र हैसोयाबीन-गेहूँ-रवाह (हरा चारा)।

इस फ़सली चक्र का प्रयोग धान के स्थान पर किया जा सकता है क्योंकि धान को कीड़े तथा बीमारियां लग जाती हैं तथा इसका उत्पाद कम हो जाता है। सोयाबीन फलीदार फ़सल है। इसलिए इसकी कृषि से भूमि की उपजाऊ शक्ति बनी रहती है। सोयाबीन प्रोटीन का एक बहुत बढ़िया स्रोत है। इसमें 35-40% प्रोटीन तत्त्व होता है। सोयाबीन का प्रयोग लघु उद्योगों में करके लाभ भी लिया जा सकता है।

PSEB 8th Class Agriculture Solutions Chapter 7 फ़सली विभिन्नता

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

ठीक/गलत

  1. पंजाब में प्रमुख फ़सली चक्र है-धान गेहूँ।
  2. पंजाब में 5 लाख ट्यूबवैल हैं।
  3. कृषि विभिन्नता से प्राकृतिक स्रोतों पर कम भार पड़ता है।

उत्तर-

बहुविकल्पीय

प्रश्न 1.
पंजाब में कितने प्रतिशत क्षेत्रफल सिंचाई के अधीन हैं ?
(क) 98%
(ख) 50%
(ग) 70%
(घ) 100%
उत्तर-
(क) 98%

प्रश्न 2.
चारा आधारित फ़सली चक्र है
(क) मक्की -बरसीम-बाजरा
(ख) गेहूँ-धान
(ग) मक्की -आलू-मुंगी
(घ) सभी ठीक।
उत्तर-
(क) मक्की -बरसीम-बाजरा

प्रश्न 3.
सोयाबीन में कितनी प्रतिशत प्रोटीन है ?
(क) 10-20%
(ख) 35-40%
(ग) 50-60%
(घ) 80%
उत्तर-
(ख) 35-40%

(ख) रिक्त स्थान भरें

  1. जंतर …………. खाद वाली फ़सल है।
  2. नीम पहाड़ी क्षेत्र में बहुत ………… होती है।
  3. ………. भूमि में मूंगफली आधारित फ़सली चक्र अपनाया जाता है।

उत्तर-

  1. हरी,
  2. वर्षा,
  3. हल्की

PSEB 8th Class Agriculture Solutions Chapter 7 फ़सली विभिन्नता

फ़सली विभिन्नता PSEB 8th Class Agriculture Notes

  • फ़सली विभिन्नता को बहु-भांति कृषि भी कहा जाता है।
  • फ़सली विभिन्नता में कुछ वर्तमान फ़सलों के नीचे क्षेत्रफल कम करके कुछ अन्य फ़सलें ; जैसे-मक्की, दालें, तेल बीज, कमाद (गन्ना), आलू आदि के अन्तर्गत क्षेत्रफल बढ़ाना है।
  • फ़सली विभिन्नता के साथ प्राकृतिक स्रोतों पर भार कम पड़ता है।
  • पंजाब में प्रमुख फ़सल चक्र है-धान, गेहूँ।
  • पंजाब में धान, गेहूँ फ़सल चक्र को साल में लगभग 215 सैं० मी० पानी लगता है पर इसका 80% से ज़्यादा धान ही पी जाता है।
  • कृषि और जलवायु के आधार पर पंजाब को तीन भागों में बाँटा गया है। अर्द्ध पर्वतीय, केंद्रीय भाग, दक्षिण-पश्चिम क्षेत्र। कंडी क्षेत्र भी अर्द्ध पर्वतीय क्षेत्र में आता है।
  • अर्द्ध पर्वतीय क्षेत्र में बहुत वर्षा होती है और इस क्षेत्र में भू-स्खलन की समस्या रहती है।
  • अर्द्ध पर्वतीय क्षेत्र की प्रमुख फसलें हैं-गेहूँ, मक्की, धान, बासमती, आलू, तेल बीज और मटर।
  • केंद्रीय पंजाब में धान-गेहूँ प्रमुख फ़सली चक्र है।
  • दक्षिण-पश्चिम क्षेत्र में नरमा-कपास-गेहूँ फ़सल चक्र अपनाया जाता है।
  • साल में एक खेत में दो से ज्यादा फसलें उगाने को बहु-फ़सली प्रणाली कहा जाता है।
  • सावनी (खरीफ) की फ़सलें जैसे बासमती और मक्की से पहले हरी खाद का उपयोग ज़रूर करना चाहिए।
  • मक्की आधारित फ़सल चक्र है-मक्की-आलू-मूंगी या सूरजमुखी, मक्की-आलू या तोरिया-सूरजमुखी आदि।
  • सोयाबीन-गेहूँ-रवाह फ़सल चक्र का प्रयोग करके उपजाऊ शक्ति बरकरार रखी जा सकती है।
  • गर्मी की ऋतु में रेतीली भूमियों में मूंगफली आधारित फ़सल चक्र है मूंगफली आलू या तोरिया या मटर या गेहूँ, मूंगफली-आलू-बाजरा, मूंगफली-तोरिया या गोभी-सरसों।
  • चारे वाले फ़सली चक्र हैं-मक्की-बरसीम-बाजरा, मक्की-बरसीम, मक्की या रवांह।
  • नगर से दूर फार्मों के लिए सब्जी आधारित फ़सली चक्र है-आलू-प्याज-हरी खाद, आलू-भिंडी-अग्रिम फूलगोभी, आलू (बीज)-मूली गाजर (बीज)-भिंडी (बीज)।

PSEB 8th Class Agriculture Solutions Chapter 8 जैविक कृषि

Punjab State Board PSEB 8th Class Agriculture Book Solutions Chapter 8 जैविक कृषि Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 8 Agriculture Chapter 8 जैविक कृषि

PSEB 8th Class Agriculture Guide जैविक कृषि Textbook Questions and Answers

(अ) एक-दो शब्दों में उत्तर —

प्रश्न 1.
प्राचीन कहावत के अनुसार खेत में किस चीज़ के प्रयोग को भूलना नहीं चाहिए ?
उत्तर-
कनक, कमाद ते छल्लियां, बाकी फसलां कुल, रूड़ी बाझ न हुंदीयां, वेखीं न जावीं भुल।

प्रश्न 2.
राष्ट्रीय जैविक कृषि केन्द्र कहां है?
उत्तर-
गाज़ियाबाद में।

प्रश्न 3.
जैविक कृषि को अंग्रेज़ी में क्या कहते हैं ?
उत्तर-
आर्गेनिक फार्मिंग (Organic Farming).

प्रश्न 4.
जैविक कृषि में फसल के बचे-खुचे को जलाया जा सकता है अथवा नहीं ?
उत्तर-
नहीं जलाया जा सकता।

प्रश्न 5.
जैविक कृषि में बी०टी० फसलों को लाया जा सकता है अथवा नहीं ?
उत्तर-
बी०टी० किस्मों की मनाही (वर्जित) है।

प्रश्न 6.
जैविक कृषि में किस प्रकार की फसलों को अन्तर्फसलों के रूप में प्रयोग किया जाता है ?
उत्तर-
फलीदार फसलों को।

प्रश्न 7.
किसी एक जैविक फफूंदीनाशक का नाम बताओ।
उत्तर-
ट्राइकोडरमा।

प्रश्न 8.
किसी एक जैविक कीटनाशक का नाम बताओ।
उत्तर-
बी०टी० ट्राइकोग्रामा।

प्रश्न 9.
जैविक कृषि के सम्बन्ध में इंटरनैट की किस साइट से जानकारी ली जा सकती है ?
उत्तर-
apeda.gov.in साइट से।

प्रश्न 10.
भारत की ओर से जैविक स्तर किस वर्ष से बनाए गए थे ?
उत्तर-
वर्ष 2004 में।

PSEB 8th Class Agriculture Solutions Chapter 8 जैविक कृषि

(आ) एक-दो वाक्यों में उत्तर —

प्रश्न 1.
किस प्रकार की फसलों की खेत में अदला-बदली (स्थानांतरण) करनी अनिवार्य होती है ?
उत्तर-
गहरी जड़ों वाली तथा कम गहरी जड़ों वाली तथा फलीदार तथा गैर फलीदार फसलों की अदला-बदली करनी चाहिए।

प्रश्न 2.
जैविक पदार्थों की बढ़ रही मांग के प्रमुख कारण क्या हैं?
उत्तर-
आधुनिक कृषि के वातावरण पर पड़ रहे बुरे प्रभावों संबंधी जागरूकता तथा लोगों की क्रय शक्ति में बढ़ौतरी होने के कारण जैविक खाद्य पदार्थों की मांग बढ़ी है।

प्रश्न 3.
कौन-से राष्ट्र जैविक पदार्थों की मुख्य मण्डी हैं ?
उत्तर-
अमेरिका, जापान तथा यूरोपियन देश जैविक खाद्य पदार्थों की मुख्य मण्डी हैं।

प्रश्न 4.
जैविक कृषि किसे कहते हैं ?
उत्तर-
जैविक कृषि ऐसी कृषि है जिसमें प्राकृतिक स्रोतों; जैसे-हवा, पानी, मिट्टी आदि को कम-से-कम हानि पहुंचाए तथा रासायनिक खादों, कृषि ज़हरों उल्लीनाशक आदि का प्रयोग किए बिना कृषि उत्पादन करना।

प्रश्न 5.
जैविक स्तर क्या है ?
उत्तर-
जैविक स्तर किसी कृषि उत्पाद को जैविक कहलाने योग्य बनाते हैं। हमारे देश में 2004 में इन्हें बनाया गया।

प्रश्न 6.
भारत में जैविक कृषि के लिए कौन-से क्षेत्र अधिक समुचित हैं ? ।
उत्तर-
ऐसे क्षेत्र जहां प्राकृतिक रूप से ही जैविक हो या उसके बहुत नज़दीक हो, में जैविक कृषि को उत्साहित किया जाना चाहिए।

प्रश्न 7.
कौन-कौन से जैविक पदार्थों की विश्व बाज़ार में अधिक मांग है ?
उत्तर-
चाय, बासमती चावल, सब्जियां, फल, दालें तथा कपास; जैसे-जैविक उत्पादों की विश्व मण्डी में बहुत मांग है।

प्रश्न 8.
जैविक खाद पदार्थों की मांग किन राष्ट्रों में अधिक है ?
उत्तर-
जैविक खाद पदार्थों की अमेरिका, जापान तथा यूरोपियन देशों में अधिक मांग है।

प्रश्न 9.
जैविक कृषि में बीज़ प्रयोग के क्या स्तर हैं ?
उत्तर-
बीज पिछली जैविक फसल में से लिया गया हो, परन्तु यदि यह बीज उपलब्ध हो तो बिना सुधाई किया परम्परागत बीज़ शुरू में प्रयोग किया जा सकता है।

प्रश्न 10.
मक्की में जैविक पद्धति से खरपतवार की रोकथाम कैसे की जा सकती है ?
उत्तर-
मक्की की फसल के साथ रवांह की बुवाई करके 35-40 दिनों बाद काट कर चारे के रूप में प्रयोग किया जा सकता है। इस प्रकार नदीनों की रोकथाम की जा सकती है तथा हरा चारा भी मिल जाता है।

PSEB 8th Class Agriculture Solutions Chapter 8 जैविक कृषि

(इ) पाँच-छः वाक्यों में उत्तर —

प्रश्न 1.
जैविक कृषि की आवश्यकता क्यों पड़ रही है ?
उत्तर-
हरित क्रान्ति आने से देश अनाज के मामले में आत्मनिर्भर हो गया, परन्तु कृषि ज़हरों, रासायनिक खादों के अधिक प्रयोग के कारण भूमि, हवा, पानी का बड़े स्तर पर नुकसान हुआ। गेहूँ-धान की कृषि अधिक होने से पारम्परिक दालें, तेल बीजों की कृषि के अधीन क्षेत्रफल कम हो गया। धान-गेहूँ के फ़सल चक्र के बीच पड़ कर हम अपने कृषि के प्राथमिक सिद्धान्त गहरी जड़ों तथा कम गहरी जड़ों वाली फसलों तथा फलीदार तथा गैर फलीदार फसलों की अदला-बदली को भूल गए। अनावश्यक तथा असमय डाला गया यूरिया वर्षा के पानी में मिलकर भूमि के पानी में जाना शुरू हो गया। कृषि ज़हरों का प्रभाव हमारे खाद्य पदार्थों में आने लग गया है। प्रत्येक खाने-पीने वाली वस्तु; जैसे-दूध, गेहूँ, चावल, चारे आदि में जहरीले अंश मिलने शुरू हो गए हैं।
हमारी आधुनिक कृषि के वातावरण पर बुरे प्रभाव संबंधी जागरूकता तथा लोगों की क्रय शक्ति के बढ़ने के कारण लोगों द्वारा जैविक खाद्य पदार्थों की मांग उठने लगी तथा इस मांग को पूरा करने के लिए जैविक कृषि की आवश्यकता पड़ गई है।

प्रश्न 2.
जैविक कृषि में खेत की उर्वरा शक्ति को किस प्रकार बनाए रखा जा सकता है ?
उत्तर-
जैविक कृषि में वातावरण का प्राकृतिक संतुलन तथा प्राकृतिक स्रोतों को बनाए रखते हुए कृषि की जाती है। जैविक कृषि में उर्वरा शक्ति को बनाए रखने के लिए निम्न कार्य किए जाते है—

  1. जैविक कृषि में किसी भी तरह के कृषि ज़हर, रासायनिक खाद, कीटनाशक आदि के प्रयोग की सख्त मनाही है।
  2. फसल चक्र में भूमि के स्वास्थ्य के लिए फलीदार फसल बोई जानी अत्यन्त आवश्यक है।
  3. जैविक कृषि में फसलों के खेत में बचे हुए भाग को आग लगाने की आज्ञा नहीं है।
  4. कृषि में प्रदूषित पानी जैसे सीवरेज के पानी से सिंचाई नहीं की जा सकती।
  5. कीड़े-मकौड़े समाप्त करने के लिए मित्र पक्षियों तथा कीड़ों का प्रयोग किया जाता है।
  6. जैविक कृषि में जैनेटीकली बदली फसलें जैसे-बी०टी० किस्मों की मनाही है।

प्रश्न 3.
जैविक कृषि में कीटों एवम् रोगों का प्रतिरोध कैसे किया जाता है ?
उत्तर-
जैविक कृषि में कृषि ज़हरों के प्रयोग की पूर्ण रूप से मनाही है। इसके लिए जैविक कृषि जैविक कृषि में कीड़ों तथा बीमारियों का मुकाबला करने के लिए प्राकृतिक ढंगों का प्रयोग किया जाता है। कीड़ों की रोकथाम के लिए भिन्न कीड़ों तथा पक्षियों की सहायता ली जाती है। नीम की निमोलियों के अर्क या जैविक कीटनाशक (बी०टी० ट्राइकोग्राम) आदि का प्रयोग किया जाता है। जैविक उल्लीनाशक जैसे कि ट्राइकोडरमा आदि का प्रयोग किया जाता,है। फसलों की मिली-जुली कृषि; जैसे-गेहूँ तथा चने भी कीड़ों तथा बीमारियों की रोकथाम में सहायक हैं।

प्रश्न 4.
जैविक प्रमाणीकरण क्या है एवम् यह कौन करता है ?
उत्तर-
जैविक कृषि के उत्पादों को यदि हमें लेबल करके मण्डी में बेचना हो या अन्य देशों में भेजना हो तो इन उत्पादों का प्रमाणीकरण आवश्यक होता है। प्रमाणीकरण में यह गारंटी दी जाती है कि जैविक उत्पादों को जैविक स्तरों के अनुसार ही पैदा किया गया है।
प्रमाणीकरण के लिए भारत सरकार द्वारा 24 एजेंसियों को मान्यता दी गई है। इन एजेंसियों में से किसी एक एजेंसी में किसान को फार्म भर कर रजिस्ट्रर्ड करवाना पड़ता है। कम्पनी के निरीक्षक किसान के खेत में अक्सर निरीक्षण करते रहते हैं तथा देखते हैं कि किसान द्वारा जैविक मानकों का पूरी तरह पालन किया जा रहा है या नहीं। इस निरीक्षण में पास होने पर ही उपज को जैविक करार दिया जाता है। जैविक स्तरों के बारे में अधिक जानकारी apeda.gov.in साइट से ली जा सकती है।

प्रश्न 5.
जैविक कृषि के क्या लाभ हैं ?
उत्तर-
जैविक कृषि के लाभ निम्नलिखित अनुसार हैं—

  1. भूमि की उपजाऊ (उर्वरा) शक्ति बढ़ती है।
  2. कृषि के खर्च कम होते हैं।
  3. जैविक कृषि में उत्पादों की अधिक कीमत मिलती है।
  4. यह टिकाऊ कृषि है।
  5. इससे रोज़गार बढ़ता है।
  6. खाद्य पदार्थ तथा वातावरण में ज़हरीले अंशों से बचाव हो जाता है।

Agriculture Guide for Class 8 PSEB जैविक कृषि Important Questions and Answers

बहुत छोटे उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
जैविक कृषि में गुड़ाई किस प्रकार की जाती है ?
उत्तर-
हाथों से, व्हील हो से या ट्रैक्टर से।

प्रश्न 2.
जैविक कृषि में कौन-सी फसलों को अंतर्फसलों के रूप में बोया जाता
उत्तर-
फलीदार फसलें।

PSEB 8th Class Agriculture Solutions Chapter 8 जैविक कृषि

प्रश्न 3.
जैविक कृषि में आहारीय तत्वों के लिए कौन-सी न खाने योग्य खलों का प्रयोग होता है ?
उत्तर-
अरिंड की खल्ल।

प्रश्न 4.
जैविक उत्पादों के प्रमाणीकरण के लिए भारत सरकार द्वारा कितनी एजेंसियां हैं ?
उत्तर-
24.

प्रश्न 5.
हमें वर्ष 2020 तक कितने अनाज की आवश्यकता है ?
उत्तर-
276 मिलियन टन अनाज की। राम नाम

छोटे उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
जैविक कृषि के दो लाभ बताएं।
उत्तर-

  1. भूमि की उपजाऊ (उर्वरा) शक्ति बनी रहना तथा इसमें वृद्धि होना।
  2. जैविक पदार्थों से अधिक लाभ।

प्रश्न 2.
हरित क्रान्ति के कारण कौन-सी फसलों की कृषि कम हुई ?
उत्तर-
हरित क्रान्ति के कारण धान-गेहूँ के फ़सल चक्र में पड़कर पारम्परिक दालें तथा तेल बीज फसलों की कृषि कम हो गई है।

प्रश्न 3.
कौन-से जैविक उत्पादों की विश्व मण्डी में बहुत मांग है तथा कौन-से देश इन उत्पादों की बड़ी मण्डियां हैं ?
उत्तर-
बासमती चावल, सब्जियां, फल, चाय, दालें तथा कपास जैसे जैविक उत्पादों की अमेरिका, जापान तथा यूरोपियन देशों की मण्डियों में बहुत मांग है।

बड़े उत्तर वाला प्रश्न

प्रश्न-
जैविक फसल उत्पादन के ढंग पर नोट लिखो।
उत्तर-
जैविक फसल उत्पादन में बीज किस्में तथा बुवाई के ढंग साधारण कृषि जैसे ही हैं। जैविक फसल उत्पादन में कीटनाशक, खरपतवारनाशक आदि दवाइयों के प्रयोग की मनाही है। खरपतवारों की रोकथाम के लिए फसलों की अदला-बदली की जाती है या अन्य कृषि ढंगों का प्रयोग किया जाता है। जैसे मक्की की फसल की पंक्तियों में रवांह की बुवाई की जाती है तथा रवांह को हरे चारे के रूप में प्रयोग कर लिया जाता है। इस प्रकार मक्की में खरपतवार नहीं उगते हैं। हल्दी की फसल में धान की पराली बिछा कर नदीनों की रोकथाम की जाती है। फलीदार फसलों की कृषि धरती की उपजाऊ (उर्वरा) शक्ति बनाए रखती है तथा धरती में नाइट्रोजन तत्व की कमी से बचाती है। फसलों के आहारीय तत्वों की पूर्ति कम्पोस्ट, रूड़ी की खाद आदि के प्रयोग से की जाती है। कीड़ों की रोकथाम के लिए मित्र कीटों तथा पक्षियों का प्रयोग किया जाता है। फसलों की मिश्रत कृषि भी कीड़ों तथा रोगों की रोकथाम में सहायक है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

ठीक/गलत

  1. जैविक कृषि में बी.टी.फसलों की मनाही है।
  2. जैविक कृषि में भूमि की उपजाऊ शक्ति कम हो जाती है।
  3. नैशनल सेंटर फॉर आर्गेनिक फार्मिंग गाज़ियाबाद में स्थित है।

उत्तर-

बहुविकल्पीय

प्रश्न 1.
जैविक कृषि को इंग्लश में क्या कहते हैं ?
(क) इनआर्गेनिक फार्मिंग
(ख) आर्गेनिक फार्मिंग
(ग) नार्मल फार्मिंग
(घ) कोई नहीं।
उत्तर-
(ख) आर्गेनिक फार्मिंग

प्रश्न 2.
भारत में जैविक कृषि के लिए जैविक स्तर कब तय किए गए ?
(क) 2000
(ख) 2004
(ग) 2008
(घ) 2012
उत्तर-
(ख) 2004

PSEB 8th Class Agriculture Solutions Chapter 8 जैविक कृषि

रिक्त स्थान भरें

  1. ………… कृषि में बी.टी. किस्मों की मनाही है।
  2. हमें वर्ष 2020 तक …………….. मिलियन टन अनाज की आवश्यकता है।

उत्तर-

  1. जैविक
  2. 276

जैविक कृषि PSEB 8th Class Agriculture Notes

  • जैविक कृषि करने से वातावरण का प्राकृतिक संतुलन तथा प्राकृतिक स्रोतों को बनाए रखा जाता है।
  • जैविक कृषि में रासायनिक खादों, खरपतवार नाशकों, फफूंदीनाशकों का प्रयोग नहीं किया जाता।
  • जैविक कृषि में फसल को खाद देने की जगह भूमि को उपजाऊ बनाने पर बल दिया जाता है।
  • जैविक कृषि के लाभ इस प्रकार हैं- भूमि की उपजाऊ (उर्वरा) शक्ति का बढ़ना, कम कृषि खर्चा (व्यय), जैविक उपज (कृषि) से अधिक आय, ज़हर (विषैले) वाले अंशों से रहित खाद्य पदार्थ आदि।
  • रासायनिक खादों का प्रयोग, कृषि ज़हरों (विषैले रसायनों) का प्रयोग, कृषि में पराली को आग लगाना आदि जैसी क्रियाओं ने वातावरण तथा भूमि को बहुत हानि पहुंचाई है।
  • गेहूँ-धान फसल चक्र के कारण परम्परागत दालों तथा तेल बीज वाली फसलों के अन्तर्गत क्षेत्रफल कम हुआ है।
  • चाय, बासमती चावल, सब्जियां, फल, दालें, कपास जैसे जैविक उत्पादों की वैश्विक मण्डी में बहुत मांग है।
  • भारत सरकार द्वारा जैविक कृषि को उत्साहित करने के लिए गाज़ियाबाद में एक नैशनल सेंटर फॉर आर्गेनिक फार्मिंग (NCOF) खोला गया है। उत्तरी भारत में इसकी शाखा पंचकूला में है।
  • वर्ष 2004 में अपने देश में जैविक उत्पादों के लिए कुछ जैविक स्तर तय किए गए हैं। जिन्हें अन्य देशों द्वारा भी मान्यता मिली है।
  • जैविक कृषि में बीज, किस्मों तथा बुवाई के ढंग/तरीके साधारण कृषि जैसे ही है।
  • फसलों के आहारीय तत्त्वों की पूर्ति के लिए रूड़ी की खाद, केंचुआ खाद, कम्पोस्ट, जैविक खाद, अरिंड की खल्ल आदि का प्रयोग किया जाता है।
  • जैविक कृषि में कीड़ों की रोकथाम के लिए मित्र कीड़ों तथा पक्षियों की सहायता ली जाती है।
  • नीम की निमोलियों के अर्क को जैविक कीटनाशकों के रूप में प्रयोग किया जाता
  • जैविक प्रमाणीकरण में यह गारंटी दी जाती है कि जैविक उत्पाद को जैविक मानकों (स्तर) के अनुसार ही पैदा किया गया है।
  • जैविक मानकों (स्तर) तथा प्रमाणीकरण सम्बन्धी जानकारी के लिए अपीडा की वैबसाइट apeda.gov.in से ली जा सकती है।

PSEB 9th Class SST Solutions Civics Chapter 2 लोकतंत्र का अर्थ एवं महत्त्व

Punjab State Board PSEB 9th Class Social Science Book Solutions Civics Chapter 2 लोकतंत्र का अर्थ एवं महत्त्व Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 9 Social Science Civics Chapter 2 लोकतंत्र का अर्थ एवं महत्त्व

SST Guide for Class 9 PSEB लोकतंत्र का अर्थ एवं महत्त्व Textbook Questions and Answers

(क) रिक्त स्थान भरें :

  1. ……….. के अनुसार लोकतंत्र ऐसी प्रणाली है जिसमें प्रत्येक व्यक्ति की भागीदारी होती है।
  2. डेमोक्रेसी यूनानी भाषा के दो शब्दों ………. व ……… से मिलकर बना है।

उत्तर-

  1. सीले
  2. Demos, Crati

(ख) बहुविकल्पी प्रश्न :

प्रश्न 1.
लोकतंत्र की सफलता के लिए निम्नलिखित में से कौन-सी शर्त अनिवार्य है :
(अ) साक्षर नागरिक
(आ) चेतन नागरिक
(इ) वयस्क मताधिकार
(ई) उपर्युक्त सभी।
उत्तर-
(ई) उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 2.
लोकतंत्र का शाब्दिक अर्थ है-
(अ) एक व्यक्ति का शासन
(आ) नौकरशाही का शासन
(इ) सैनिक तानाशाही
(ई) लोगों का शासन।
उत्तर-
(ई) लोगों का शासन।

PSEB 9th Class SST Solutions Civics Chapter 2 लोकतंत्र का अर्थ एवं महत्त्व

(ग) निम्नलिखित कथनों में सही के लिए तथा गलत के लिए चिन्ह लगाए :

  1. लोकतंत्र में भिन्न-भिन्न विचार रखने की स्वतंत्रता नहीं होती।
  2. लोकतंत्र स्पष्ट रूप में हिंसात्मक साधनों के विरुद्ध है भले ही ये समाज की भलाई के लिए ही क्यों न अपनाए जाएं।
  3. लोकतंत्र में व्यक्तियों को कई प्रकार के अधिकार दिए जाते हैं।
  4. नागरिकों का चेतन होना लोकतंत्र के लिए अनिवार्य है।

उत्तर-

  1. (✗)
  2. (✓)
  3. (✓)
  4. (✓)

अति लघु उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
डेमोक्रेसी किन दो शब्दों से बना है ? उनके शाब्दिक अर्थ लिखें।
उत्तर-
डेमोक्रेसी यूनानी भाषा के दो शब्दों Demos तथा Cratia से मिलकर बना है। Demos का अर्थ है, जनता तथा Cratia का अर्थ है, शासन। इस प्रकार इसका शाब्दिक अर्थ हुआ जनता का शासन।

प्रश्न 2.
लोकतंत्र शासन प्रणाली के सर्वप्रिय होने के दो कारण लिखें।
उत्तर-

  1. इसमें जनता को अभिव्यक्ति का अधिकार होता है।
  2. इसमें सरकार चुनने में जनता की भागीदारी होती है।

प्रश्न 3.
लोकतंत्र के मार्ग में आने वाली दो बाधाएं लिखें।
उत्तर-
क्षेत्रवाद, जातिवाद तथा क्षेत्रवाद लोकतंत्र के मार्ग में आने वाली बाधाएं हैं।

प्रश्न 4.
लोकतंत्र की कोई एक परिभाषा लिखें।
उत्तर-
डाईसी के अनुसार, “लोकतंत्र सरकार का एक ऐसा रूप है जिसमें शासक दल समस्त राष्ट्र का तुलनात्मक रूप में एक बहुत बड़ा भाग होता है।”

प्रश्न 5.
लोकतंत्र के लिए कोई दो आवश्यक शर्ते (दशाएं) लिखें।
उत्तर-
राजनीतिक स्वतंत्रता तथा आर्थिक समानता लोकतंत्र की सफलता के लिए आवश्यक शर्ते हैं।

प्रश्न 6.
लोकतंत्र के कोई दो सिद्धांत लिखें।
उत्तर-

  1. लोकतंत्र सहिष्णुता के सिद्धांतों पर आधारित है।
  2. लोकतंत्र में सभी को अपने विचार व्यक्त करने का अधिकार होता है।

प्रश्न 7.
लोकतंत्र में शासन की शक्ति का स्रोत कौन होते हैं ?
उत्तर-
लोकतंत्र में शासन की शक्ति का स्रोत लोग होते हैं।

PSEB 9th Class SST Solutions Civics Chapter 2 लोकतंत्र का अर्थ एवं महत्त्व

प्रश्न 8.
लोकतंत्र के दो प्रकार कौन-कौन से हैं ?
उत्तर-
लोकतंत्र दो प्रकार का होता है-प्रत्यक्ष लोकतंत्र तथा अप्रत्यक्ष लोकतंत्र ।

लघु उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
लोकतंत्र की सफलता के लिए कोई दो अनिवार्य शर्तों का वर्णन करें।
उत्तर-

  1. राजनीतिक स्वतंत्रता-लोकतंत्र की सफलता के लिए जनता को राजनीतिक स्वतंत्रता होनी चाहिए। उन्हें भाषण देने, संघ बनाने, विचार व्यक्त करने तथा सरकार की अनुचित नीतियों की आलोचना करने का अधिकार होना चाहिए।
  2. नैतिक आचरण-लोकतंत्र को सफल बनाने के लिए लोगों का आचरण भी उच्च होना चाहिए। अगर लोग व नेता भ्रष्ट होंगे तो लोकतंत्र ठीक ढंग से कार्य नहीं कर पाएगा।

प्रश्न 2.
निर्धनता लोकतंत्र के मार्ग में बाधा कैसे बनती है ? वर्णन करें।
उत्तर-
इसमें कोई शक नहीं है कि निर्धनता लोकतंत्र के मार्ग में बाधा है। सबसे पहले तो निर्धन व्यक्ति अपने मत का प्रयोग ही नहीं करता क्योंकि उसके लिए मत का प्रयोग करने से अधिक आवश्यक है अपने परिवार के लिए पैसा कमाना। इसके साथ-साथ कई बार निर्धन व्यक्ति अपने मत को बेचने पर भी मजबूर हो जाता है। अमीर लोग निर्धन लोगों के मत खरीद कर चुनाव जीत लेते हैं। निर्धन व्यक्ति अपने विचारों को खुल कर अभिव्यक्त भी नहीं कर सकते।

प्रश्न 3.
निरक्षरता लोकतंत्र के मार्ग में बाधा कैसे बनती है। स्पष्ट करें।
उत्तर-
लोकतंत्र का सबसे बड़ा शत्रु तो निरक्षरता ही है। एक अनपढ़ व्यक्ति, जिसे लोकतंत्र का अर्थ भी नहीं पता होता, लोकतंत्र में कोई भूमिका नहीं निभा सकता। इस कारण लोकतांत्रिक मूल्यों का पतन होता है कि सभी लोग इसमें भाग लेते हैं। अनपढ़ व्यक्ति को देश की राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक समस्याओं के बारे में भी पता नहीं होता। इस कारण वह नेताओं के झूठे वायदों का शिकार बनकर अपने मत का ठीक ढंग से प्रयोग भी नहीं कर पाते।

प्रश्न 4.
“राजनीतिक समानता लोकतंत्र की सफलता के लिए ज़रूरी है।” इस कथन की व्याख्या करें।
उत्तर-
यह सत्य है कि राजनीतिक समानता लोकतंत्र की सफलता के लिए आवश्यक है। लोकतंत्र की सफलता के लिए यह आवश्यक है कि लोगों को भाषण देने की स्वतंत्रता होनी चाहिए, उन्हें एकत्र होने तथा संघ बनाने की भी स्वतंत्रता होनी चाहिए। इसके साथ-साथ उन्हें सरकार की गलत नीतियों की आलोचना करने तथा अपने विचारों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता भी होनी चाहिए। ये सब स्वतंत्रताएं केवल लोकतंत्र में ही प्राप्त होती है जिस कारण लोकतंत्र सफल हो पाता है।

PSEB 9th Class SST Solutions Civics Chapter 2 लोकतंत्र का अर्थ एवं महत्त्व

प्रश्न 5.
“राजनीतिक दलों का अस्तित्व लोकतंत्र के लिए जरूरी है।” इस कथन की व्याख्या करें।
अथवा
राजनीतिक दल लोकतंत्र की गाड़ी के पहिए होते हैं। इस कथन की व्याख्या करें।
उत्तर-
लोकतंत्र के लिए राजनीतिक दलों का अस्तित्व काफी आवश्यक है। वास्तव में राजनीतिक दल एक विशेष विचारधारा के यंत्र होते हैं तथा विचारों के अंतरों के कारण ही अलग-अलग राजनीतिक दल सामने आते है। अलगअलग विचारों को राजनीतिक दलों के द्वारा ही सामने लाया जाता है। इन विचारों को सरकार के सामने राजनीतिक दलों द्वारा ही रखा जाता है। इस प्रकार राजनीतिक दल जनता तथा सरकार के बीच एक सेतु का कार्य करते हैं। इसके अतिरिक्त चुनाव लड़ने के लिए भी राजनीतिक दलों की आवश्यकता होती है तथा चुनाव के लिए लोकतंत्र मुमकिन ही नहीं है।

प्रश्न 6.
शक्तियों का विकेंद्रीकरण लोकतंत्र के लिए क्यों जरूरी है ?
उत्तर-
लोकतंत्र का एक आधारभूत सिद्धांत है शक्तियों का विभाजन तथा विकेंद्रीकरण का अर्थ है शक्तियों का सरकार के सभी स्तरों में विभाजन। अगर शक्तियों का विकेंद्रीकरण नहीं होगा तो शक्तियां कुछेक हाथों या किसी एक समूह के हाथों में केंद्रित होकर रह जाएंगी। इससे देश में तानाशाही उत्पन्न होने का खतरा उत्पन्न हो जाएगा तथा लोकतंत्र खत्म हो जाएगा। अगर शक्तियों का विभाजन हो जाएगा तो तानाशाही नहीं हो पाएगी तथा व्यवस्था सुचारू रूप से कार्य कर पाएगी। इसलिए शक्तियों का विकेंद्रीकरण लोकतंत्र के लिए आवश्यक है।

प्रश्न 7.
लोकतंत्र के किन्हीं दो सिद्धांतों की व्याख्या करें।
उत्तर-

  1. लोकतंत्र सहिष्णुता के सिद्धांत पर आधारित है। लोकतंत्र में सभी को अपने विचार व्यक्त करने की स्वतंत्रता होती है।
  2. लोकतंत्र व्यक्ति के व्यक्तित्व के गौरव को विश्वसनीय बनाता है। इस वजह से ही लगभग लोकतांत्रिक देशों ने अपने नागरिकों को समानता प्रदान करने के लिए कई प्रकार के अधिकार दिए हैं।

PSEB 9th Class SST Solutions Civics Chapter 2 लोकतंत्र का अर्थ एवं महत्त्व

दीर्घ उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों का संक्षेप में वर्णन करें।
उत्तर-

  1. लोकतंत्र में सभी व्यक्तियों को अपने विचार प्रकट करने, आलोचना करने तथा अन्य लोगों से असहमत होने का अधिकार होता है।
  2. लोकतंत्र सहिष्णुता के सिद्धांत पर आधारित है। लोकतंत्र में सभी को अपने विचार व्यक्त करने की स्वतंत्रता होती है।
  3. लोकतंत्र व्यक्ति के व्यक्तित्व के गौरव को विश्वसनीय बनाता है। इस वजह से लगभग सभी लोकतांत्रिक देशों ने अपने नागरिकों को समानता प्रदान करने के लिए कई प्रकार के अधिकार दिए हैं।
  4. किसी भी लोकतंत्र में आंतरिक तथा अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों को सुलझाने के लिए शांतिपूर्ण तरीकों पर बल दिया जाता है।
  5. लोकतंत्र हिंसात्मक साधनों के प्रयोग पर बल नहीं देता भले ही यह समाज के हितों के लिए ही क्यों न किए जाएं।
  6. लोकतंत्र एक ऐसी प्रकार की सरकार है जिसके पास प्रभुसत्ता अर्थात् स्वयं निर्णय लेने की शक्ति होती है।
  7. लोकतंत्र बहुसंख्यकों का शासन होता है परंतु इसमें अल्पसंख्यकों को भी समान अधिकार दिए जाते हैं।
  8. लोकतांत्रिक ढंग से चुनी गई सरकार हमेशा संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार कार्य करती है।
  9. लोकतंत्र में सरकार एक जनप्रतिनिधित्व वाली सरकार होती है। जिसे जनता द्वारा चुना जाता है। जनता को अपने प्रतिनिधि को चुनने का अधिकार होता है।
  10. लोकतंत्र में चुनी गई सरकार को संवैधानिक प्रक्रिया द्वारा ही बदला जा सकता है। सरकार बदलने के लिए हम हिंसा का प्रयोग नहीं कर सकते।

प्रश्न 2.
लोकतंत्र के मार्ग में बाधाओं का संक्षेप में वर्णन करें।
उत्तर-
संपूर्ण विश्व में लोकतंत्र एक सर्वप्रचलित शासन व्यवस्था है परंतु इसके सफलतापूर्वक चलने के रास्ते में कुछ बाधाएं हैं जिनका वर्णन इस प्रकार है-

  1. जातिवाद तथा सांप्रदायिकता-अपनी जाति को बढ़ावा देना या अपने धर्म को अन्य धर्मों से ऊंचा समझना देश को तोड़ने का कार्य करता है जो लोकतंत्र के रास्ते में बाधा बनता है।
  2. क्षेत्रवाद-क्षेत्रवाद का अर्थ है अन्य क्षेत्रों या संपूर्ण देश की तुलना में अपने क्षेत्र को प्राथमिकता देना। इससे लोगों की मानसिकता संकीर्ण हो जाती है तथा वह राष्ट्रीय हितों को महत्त्व नहीं देते। इससे राष्ट्रीय एकता को खतरा उत्पन्न हो जाता है।
  3. अनपढ़ता-अनपढ़ता भी लोकतंत्र के रास्ते में एक बाधा है। एक अनपढ़ व्यक्ति को लोकतांत्रिक मूल्यों तथा अपनी वोट के महत्त्व का पता नहीं होता। अनपढ़ व्यक्ति या तो वोट देने नहीं जाते या फिर अपना वोट बेच देते हैं। इससे लोकतंत्र की सफलता पर संदेह होना शुरू हो जाता है।
  4. अस्वस्थ व्यक्ति-अगर देश की जनता अस्वस्थ अथवा बीमार होगी तो वह देश की प्रगति में कोई योगदान नहीं दे पाएगी। ऐसे व्यक्ति सार्वजनिक व राजनीतिक कार्यों में भी रुचि नहीं रखते।
  5. उदासीन जनता-अगर जनता उदासीन है तथा वह सामाजिक व राजनीतिक दायित्वों के प्रति कोई ध्यान नहीं देते तो वह निश्चय ही लोकतंत्र के रास्ते में बाधक हैं। वह अपने मताधिकार का भी ठीक ढंग से प्रयोग नहीं कर पाते। उनकी नेताओं का भाषण सुनने में भी कोई रुचि नहीं होती तथा यह बात ही लोकतंत्र के विरोध में जाती है।

प्रश्न 3.
लोकतंत्र की सफलता के लिए किन्हीं पांच शर्तों का वर्णन करें।
उत्तर-
लोकतंत्र में सफलतापूर्वक काम करने के लिए निम्नलिखित परिस्थितियों का होना आवश्यक समझा जाता

  1. जागरूक नागरिकता-जागरूक नागरिक प्रजातंत्र की सफलता की पहली शर्त है। निरंतर देख रेख ही स्वतंत्रता की कीमत है। नागरिक अपने अधिकार और कर्तव्यों के प्रति जागरूक होने चाहिए। सार्वजनिक मामलों पर हर नागरिक को सक्रिय भाग लेना चाहिए। राजनीतिक समस्याओं और घटनाओं के प्रति सचेत रहना चाहिए। राजनीतिक चुनाव में बढ़-चढ़ कर भाग लेना चाहिए आदि-आदि।
  2. प्रजातंत्र से प्रेम-प्रजातंत्र की सफलता के लिए यह आवश्यक है कि नागरिकों के दिलों में प्रजातंत्र के लिए प्रेम होना चाहिए। बिना प्रजातंत्र से प्रेम के प्रजातंत्र कभी सफल नहीं हो सकता।
  3. शिक्षित नागरिक-प्रजातंत्र की सफलता के लिए शिक्षित नागरिकों का होना आवश्यक है। शिक्षित नागरिक प्रजातंत्र शासन की आधारशिला है। शिक्षा से ही नागरिकों को अपने अधिकारों तथा कर्तव्यों का ज्ञान होता है। शिक्षित नागरिक शासन की जटिल समस्याओं को समझ सकते हैं और उनको सुलझाने के लिए सुझाव दे सकते हैं।
  4. प्रैस की स्वतंत्रता-प्रजातंत्र की सफलता के लिए प्रेस की स्वतंत्रता आवश्यक है। 5. सामाजिक समानता-प्रजातंत्र की सफलता के लिए सामाजिक समानता की भावना का होना आवश्यक है।

PSEB 9th Class SST Solutions Civics Chapter 2 लोकतंत्र का अर्थ एवं महत्त्व

प्रश्न 4.
लोकतांत्रिक शासन प्रणाली की एक परिभाषा दें तथा लोकतंत्र के महत्त्व का संक्षेप में वर्णन करें।
उत्तर-
साधारण शब्दों में लोकतंत्र ऐसी शासन प्रणाली है जिसमें शासकों का चुनाव लोगों द्वारा किया जाता है।

  1. प्रो० डायसी के अनुसार, “प्रजातंत्र ऐसी शासन प्रणाली है, जिसमें शासक वर्ग समाज का अधिकांश भाग हो।”
  2. लोकतंत्र की बहुत सुंदर, सरल तथा लोकप्रिय परिभाषा अमेरिका के भूतपूर्व राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन ने दी है”प्रजातंत्र जनता की, जनता के लिए और जनता द्वारा सरकार है।”

लोकतंत्र का महत्त्व-आजकल के समय में लगभग सभी देशों में लोकतांत्रिक सरकार है तथा इस कारण ही लोकतंत्र का महत्त्व काफी बढ़ जाता है। लोकतंत्र का महत्त्व इस प्रकार है-

  1. समानता-लोकतंत्र में किसी प्रकार का भेदभाव नहीं किया जाता क्योंकि यह समानता पर आधारित होता है। इसके अमीर, गरीब सभी को एक समान अधिकार दिए जाते हैं तथा सभी के वोट का मूल्य एक समान होता है।
  2. जनमत का प्रतिनिधित्व-लोकतंत्र वास्तव में सम्पूर्ण जनता का प्रतिनिधित्व करता है। लोकतांत्रिक सरकार जनता द्वारा चुनी जाती है तथा सरकार लोगों की इच्छा के अनुसार ही कानून बनाती है। अगर सरकार जनमत के अनुसार कार्य नहीं करती तो जनता उसे बदल भी सकती है।
  3. व्यक्तिगत स्वतंत्रता का रक्षक-केवल लोकतंत्र ही ऐसी सरकार है जिसमें जनता की व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा की जाती है। लोकतंत्र में सभी को अपने विचार व्यक्त करने, आलोचना करने तथा संघ बनाने की पूर्ण स्वतंत्रता होती है। लोकतंत्र में तो प्रेस की स्वतंत्रता को भी संभाल कर रखा जाता है जिसे लोकतंत्र का पहरेदार माना जाता है।
  4. राजनीतिक शिक्षा-लोकतंत्र में लगातार चुनाव होते रहते हैं, जिससे जनता को समय-समय पर राजनीतिक शिक्षा मिलती रहती है। अलग-अलग राजनीतिक दल जनमत का निर्माण करते हैं, जनता को सरकार के कार्यों के बारे में बताते है तथा सरकार का मूल्यांकन करते रहते हैं। इससे जनता में राजनीतिक चेतना का भी विकास होता है।
  5. नैतिक गुणों का विकास-शासन की सभी व्यवस्थाओं में से केवल लोकतंत्र ही है जो जनता में नैतिक गुणों का विकास करता है तथा उनके आचरण के उत्थान में सहायता करता है। यह व्यवस्था ही जनता में सहयोग, सहनशीलता जैसे गुणों का विकास करती है।

PSEB 9th Class Social Science Guide लोकतंत्र का अर्थ एवं महत्त्व Important Questions and Answers

बहुविकल्पीय प्रश्न :

प्रश्न 1.
तानाशाही सरकार निम्नलिखित में से किस देश में पाई जाती है?
(क) उत्तरी कोरिया
(ख) भारत।
(ग) रूस
(घ) नेपाल।
उत्तर-
(क) उत्तरी कोरिया

प्रश्न 2.
प्रजातंत्र में निर्णय लिए जाते हैं-
(क) सर्वसम्मति से
(ख) दो-तिहाई बहुमत से
(ग) गुणों के आधार पर
(घ) बहुमत से।
उत्तर-
(घ) बहुमत से।

प्रश्न 3.
यह किसने कहा है, “प्रजातंत्र ऐसा शासन है जिसमें प्रत्येक व्यक्ति भाग लेता है।”
(क) लॉर्ड ब्राइस
(ख) डॉ० गार्नर
(ग) प्रो० सीले
(घ) प्रो० लॉस्की।
उत्तर-
(ग) प्रो० सीले

प्रश्न 4.
यह किसने कहा है, “प्रजातंत्र जनता की, जनता के लिए और जनता द्वारा सरकार है।”
(क) अब्राहम लिंकन
(ख) वाशिंगटन
(ग) जैफरसन
(घ) प्रो० डायसी।
उत्तर-
(क) अब्राहम लिंकन

PSEB 9th Class SST Solutions Civics Chapter 2 लोकतंत्र का अर्थ एवं महत्त्व

प्रश्न 5.
जिस शासन प्रणाली में शासकों का चुनाव जनता द्वारा किया जाता है, उसे क्या कहा जाता है ?
(क) अधिनायकतंत्र
(ख) राजतंत्र
(ग) लोकतंत्र
(घ) कुलीनतंत्र।
उत्तर-
(ग) लोकतंत्र

प्रश्न 6.
निम्न में से कौन-सी लोकतंत्र की विशेषता नहीं है ?
(क) लोकतंत्र जनता का राज है
(ख) संसद् सेना के अधीन होती है
(ग) लोकतंत्र में शासक जनता द्वारा चुने जाते हैं
(घ) लोकतंत्र में चुनाव स्वतंत्र एवं निष्पक्ष होते हैं।
उत्तर-
(ख) संसद् सेना के अधीन होती है

प्रश्न 7.
निम्न में से किस देश में लोकतंत्र है ?
(क) उत्तरी कोरिया
(ख) चीन
(ग) साऊदी अरब
(घ) स्विट्ज़रलैंड।
उत्तर-
(घ) स्विट्ज़रलैंड।

प्रश्न 8.
लोकतंत्र के लिए निम्न में से किस तत्त्व का होना अनिवार्य है?
(क) एक दलीय प्रणाली
(ख) स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव
(ग) अनियमित चुनाव
(घ) प्रैस पर सरकारी नियंत्रण।
उत्तर-
(घ) प्रैस पर सरकारी नियंत्रण।

प्रश्न 9.
निम्न में से कौन-सी लोकतंत्र की विशेषता नहीं है ?
(क) स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव
(ख) वयस्क मताधिकार
(ग) निर्णय लेने की अंतिम शक्ति जनता के निर्वाचित प्रतिनिधियों के पास
(घ) सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग।
उत्तर-
(घ) सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग।

रिक्त स्थान भरें :

  1. Demos तथा Cratia …………. भाषा के शब्द हैं।
  2. ……… में शासक जनता के प्रतिनिधि के रूप में शासन चलाते हैं।
  3. राजनीतिक दल ………. के यंत्र हैं।
  4. व्यावहारिक रूप में लोकतंत्र ………. का शासन होता है।
  5. सन् ……….. में भारत में महिलाओं को पुरुषों के समान अधिकार प्राप्त हो गए।
  6. चीन में प्रत्येक …….. वर्ष के बाद चुनाव होते हैं।
  7. मैक्सिको ……… में स्वतंत्र हुआ।

उत्तर-

  1. यूनानी
  2. लोकतंत्र
  3. विचारधारा
  4. बहुसंख्यक
  5. 1950
  6. पांच
  7. 19301

सही/गलत:

  1. तानाशाही में शासक जनता द्वारा निर्वाचित किए जाते हैं।
  2. चुनाव करने की स्वतंत्रता ही लोकतंत्र का मूल आधार है।
  3. लोकतांत्रिक सरकार संविधान के अनुसार कार्य नहीं करती है।
  4. तानाशाही में व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा की जाती है।।
  5. परवेज मुशर्रफ ने 1999 ई० में पाकिस्तान में सत्ता संभाल ली थी।
  6. चीन में केवल एक राजनीतिक दल साम्यवादी दल है।
  7. PRI चीन का राजनीतिक दल है। ।

उत्तर-

  1. (✗)
  2. (✓)
  3. (✗)
  4. (✗)
  5. (✓)
  6. (✓)
  7. (✗).

PSEB 9th Class SST Solutions Civics Chapter 2 लोकतंत्र का अर्थ एवं महत्त्व

अति लघु उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
डेमोक्रेसी शब्द किस भाषा से लिया गया है?
उत्तर-
यूनानी भाषा से।

प्रश्न 2.
ग्रीक भाषा के शब्द डिमोस (Demos) का अर्थ लिखें।
उत्तर-
डिमोस का अर्थ है लोग।

प्रश्न 3.
ग्रीक भाषा के शब्द ‘क्रेटिया’ का अर्थ लिखें।
उत्तर-
क्रेटिया का अर्थ है शासन।

प्रश्न 4.
‘डैमोक्रेसी’ का शाब्दिक अर्थ लिखें।
उत्तर-
जनता का शासन।

प्रश्न 5.
लोकतंत्र की साधारण परिभाषा लिखें।
उत्तर-
लोकतंत्र एक ऐसी शासन प्रणाली है जिसमें शासकों का चुनाव जनता द्वारा किया जाता है।

प्रश्न 6.
क्या नेपाल में लोकतंत्र है? अपने उत्तर के पक्ष में एक तर्क लिखें।
उत्तर-
नेपाल में लोकतंत्र है क्योंकि लोगों को अपनी सरकार चुनने का अधिकार है।

प्रश्न 7.
लोकतंत्र की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता लिखें।
उत्तर-
लोकतंत्र, स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव पर आधारित होना चाहिए।

प्रश्न 8.
सऊदी अरब में लोकतंत्र न होने का कारण लिखें।
उत्तर-
सऊदी अरब का राजा जनता द्वारा निर्वाचित नहीं है।

प्रश्न 9.
लोकतांत्रिक शासन प्रणाली का एक गुण लिखें।
उत्तर-
लोकतंत्र में नागरिकों को अधिकार एवं स्वतंत्रताएं प्राप्त होती हैं।

प्रश्न 10.
लोकतंत्र का एक दोष लिखें।
उत्तर-
लोकतंत्र में गुणों की अपेक्षा संख्या को अधिक महत्त्व दिया जाता है।

प्रश्न 11.
लोकतंत्र की एक परिभाषा लिखें।
उत्तर-
प्रो० सीले के अनुसार, “प्रजातंत्र ऐसा शासन है जिसमें प्रत्येक व्यक्ति भाग लेता है।”

PSEB 9th Class SST Solutions Civics Chapter 2 लोकतंत्र का अर्थ एवं महत्त्व

प्रश्न 12.
लोकतंत्र की सफलता के लिए दो आवश्यक शर्ते लिखें।
उत्तर-

  1. जागरूक नागरिकता प्रजातंत्र की सफलता की प्रथम शर्त है।
  2. प्रजातंत्र की सफलता के लिए यह आवश्यक है कि नागरिकों के दिलों में प्रजातंत्र के लिए प्रेम होना चाहिए।

प्रश्न 13.
जब शासन की सभी शक्तियां एक व्यक्ति में केंद्रित हों तो उस शासन प्रणाली को क्या कहा जाता है?
उत्तर-
तानाशाही।

प्रश्न 14.
वर्तमान युग में लोकतंत्र का कौन-सा रूप प्रचलित है?
उत्तर-
प्रतिनिधित्व लोकतंत्र अथवा अप्रत्यक्ष लोकतंत्र।

प्रश्न 15.
प्रतिनिधित्व लोकतंत्र की एक विशेषता लिखें।
उत्तर-
प्रतिनिधित्व लोकतंत्र में लोगों के निर्वाचित प्रतिनिधि शासन चलाते हैं।

प्रश्न 16.
तानाशाही की एक विशेषता लिखें।
उत्तर-
तानाशाही में एक व्यक्ति या एक पार्टी का शासन होता है। सभी नागरिकों को शासन में भाग लेने का अधिकार प्राप्त नहीं होता।

प्रश्न 17.
“लोकतंत्र अन्य सभी शासन प्रणालियों से उत्तम है।” एक कारण बताओ।
उत्तर-
लोकतंत्र अन्य शासन प्रणालियों से श्रेष्ठ है क्योंकि यह अधिक उत्तरदायी शासन प्रणाली है और लोगों की आवश्यकताओं एवं हितों का भी ध्यान रखा जाता है।

प्रश्न 18.
क्या मैक्सिको (Mexico) में लोकतंत्र है? अपने उत्तर के पक्ष में एक तर्क लिखें।
उत्तर-
मैक्सिको में लोकतंत्र नहीं है क्योंकि वहां पर चुनाव स्वतंत्र एवं निष्पक्ष नहीं होते।

प्रश्न 19.
किन्हीं दो देशों का नाम लिखें जहाँ पर लोकतंत्र नहीं पाया जाता।
उत्तर-

  1. चीन
  2. उत्तरी कोरिया।

प्रश्न 20.
चीन में सदैव किस पार्टी की सरकार बनती है ?
उत्तर-
चीन में सदैव साम्यवादी पार्टी की सरकार बनती है।

प्रश्न 21.
मैक्सिको में 1930 से 2000 तक किस पार्टी को जीत मिलती रही ?
उत्तर-
मैक्सिको में 1930 से 2000 तक पी० आर० आई० (इंस्टीट्यूशनल रिवोल्यूशनरी पार्टी) को ही जीत मिलती रही।

प्रश्न 22.
फिजी के लोकतंत्र में क्या कमी है ?
उत्तर-
फिजी में फिजीअन लोगों के वोट की कीमत भारतीय लोगों के वोट की कीमत से अधिक होती है।

लघु उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
लोकतंत्र का अर्थ बताओ।
उत्तर-
लोकतंत्र (Democracy) ग्रीक भाषा के दो शब्दों डिमोस (Demos) और क्रेटिया (Cratia) से मिल कर बना है। डिमोस का अर्थ है ‘लोग’ और ‘क्रेटिया’ का अर्थ है ‘शासन’ या सत्ता। इस प्रकार डेमोक्रेसी का शाब्दिक अर्थ है वह शासन जिसमें शासन या सत्ता लोगों के हाथों में हो। दूसरे शब्दों में, लोकतंत्र का अर्थ है प्रजा का शासन।

प्रश्न 2.
प्रत्यक्ष प्रजातंत्र किसे कहते हैं?
उत्तर-
प्रत्यक्ष प्रजातंत्र ही प्रजातंत्र का वास्तविक रूप है। जब जनता स्वयं कानून बनाए, राजनीति को निश्चित करे तथा सरकारी कर्मचारियों पर नियंत्रण रखे, उस व्यवस्था को प्रत्यक्ष प्रजातंत्र कहते हैं। समय-समय पर समस्त नागरिकों की सभा एक स्थान पर बुलाई जाती है और उनमें सार्वजनिक मामलों पर विचार होता है। गांव की ग्राम सभा प्रत्यक्ष प्रजातंत्र का सरल उदाहरण है।

प्रश्न 3.
तानाशाही का अर्थ एवं परिभाषा लिखें।
उत्तर-
तानाशाही में शासन की सत्ता एक व्यक्ति में निहित होती है। तानाशाह अपनी शक्तियों का प्रयोग अपनी इच्छानुसार करता है और वह किसी के प्रति उत्तरदायी नहीं होता। वह तब तक अपने पद पर बना रहता है जब तक शासन की शक्ति उसके हाथों में रहती है। फोर्ड ने तानाशाही की परिभाषा देते हुए कहा है, “तानाशाही राज्य के अध्यक्ष द्वारा गैर-कानूनी शक्ति प्राप्त करना है।”

प्रश्न 4.
तानाशाही की चार विशेषताएँ लिखें।
उत्तर-

  1. राज्य की निरंकुशता-राज्य निरंकुश होता है। तानाशाह की शक्तियां असीमित होती हैं।
  2. एक नेता का गुण-गान-तानाशाही में नेता का गुण-गान किया जाता है। नेता में पूर्ण विश्वास किया जाता है और उसे राष्ट्रीय एकता का प्रतीक माना जाता है।
  3. राजनीतिक दल का अभाव या एक-दलीय व्यवस्था-तानाशाही शासन व्यवस्था में या तो कोई राजनीतिक दल नहीं होता या एक ही दल होता है।
  4. अधिकारों और स्वतंत्रताओं का न होना-तानाशाही में नागरिकों को अधिकारों तथा स्वतंत्रताओं से वंचित कर दिया जाता है।

प्रश्न 5.
लोकतांत्रिक शासन प्रणाली और अलोकतांत्रिक शासन प्रणाली में दो अंतर लिखें।
उत्तर-

  1. लोकतांत्रिक शासन प्रणाली में शासन जनता के निर्वाचित प्रतिनिधियों द्वारा चलाया है। अलोकतांत्रिक शासन में शासन एक व्यक्ति या एक पार्टी द्वारा चलाया जाता है।
  2. लोकतांत्रिक शासन प्रणाली में चुनाव नियमित, स्वतंत्र व निष्पक्ष होना अनिवार्य है। अलोकतांत्रिक शासन प्रणाली में चुनावों का होना आवश्यक नहीं है। यदि चुनाव होते हैं तो स्वतंत्र व निष्पक्ष नहीं होते।

PSEB 9th Class SST Solutions Civics Chapter 2 लोकतंत्र का अर्थ एवं महत्त्व

प्रश्न 6.
लोकतंत्र के मार्ग में आने वाली किन्हीं दो बाधाओं का वर्णन करें।
उत्तर-

  1. अनपढ़ता-लोकतंत्र के मार्ग की सबसे बड़ी बाधा अनपढ़ता है। अनपढ़ता के कारण स्वस्थ जनमत का निर्माण नहीं हो पाता। अशिक्षित व्यक्ति को न तो अधिकारों का ज्ञान होता है और न कर्त्तव्यों का। वह मताधिकार का महत्त्व नहीं समझ पाता।
  2. सामाजिक असमानता-लोकतंत्र की दूसरी गंभीर बाधा सामाजिक असमानता है। सामाजिक असमानता ने लोगों में निराशा तथा असंतोष को बढ़ावा दिया है। राजनीतिक दल सामाजिक असमानता का लाभ उठाने का प्रयास करते हैं।

प्रश्न 7.
“एक व्यक्ति एक वोट’ से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
‘एक व्यक्ति एक वोट’ से अभिप्राय जाति, धर्म, वर्ग, लिंग तथा वंश के भेदभाव के बिना सभी को मताधिकार का समान अधिकार प्रदान करना। वास्तव में एक व्यक्ति एक वोट राजनीतिक समानता का ही दूसरा नाम हैं। राष्ट्र निर्माण एवं राष्ट्रीय एकता के लिए एक व्यक्ति एक वोट का अधिकार आवश्यक है।

प्रश्न 8.
पाकिस्तान में लोकतंत्र को कैसे खत्म किया गया ?
उत्तर-
1999 में पाकिस्तान के सेना प्रमुख परवेज मुशर्रफ ने सैनिक षड्यंत्र करके लोकतांत्रिक सरकार को खत्म करके सत्ता हथिया ली। संसद् द्वारा प्रांतों की असैंबलियों की शक्तियां भी कम कर दी गई। एक कानून पास करके स्वयं को राष्ट्रपति घोषित कर दिया तथा व्यवस्था कर दी कि राष्ट्रपति जब चाहे संसद् को भंग कर सकता है। इस प्रकार वहां पर मुशर्रफ ने पाकिस्तान में लोकतंत्र को खत्म कर दिया।

प्रश्न 9.
चीन में लोकतंत्र क्यों नहीं है ?
उत्तर-चाहे चीन में प्रत्येक पांच वर्ष के पश्चात् चुनाव होते हैं परंतु वहां पर केवल एक राजनीतिक दल साम्यवादी दल है। लोगों को केवल उस दल को ही वोट देना पड़ता है। साम्यवादी दल द्वारा मनोनीत उम्मीदवार ही चुनाव लड़ सकते हैं। संसद् के कुछ सदस्य सेना से भी लिए जाते हैं। जिस देश में कोई विरोधी दल या चुनाव लड़ने के लिए दूसरा दल न हो वहां पर लोकतंत्र हो ही नहीं सकता है।

दीर्घ उत्तरों वाले प्रश्

प्रश्न 1.
लोकतंत्र की मुख्य विशेषताएं लिखें।
उत्तर-
लोकतंत्र की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं-

  1. जनता की प्रभुसत्ता-प्रजातंत्र में प्रभुसत्ता जनता में निहित होती है और जनता ही शक्ति का स्रोत होती है।
  2. जनता का शासन-प्रजातंत्र में शासन जनता द्वारा प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष तौर पर चलाया जाता है। प्रजातंत्र में प्रत्येक निर्णय बहुमत से लिया जाता है।
  3. जनता का हित-प्रजातंत्र में शासन जनता के हित के लिए चलाया जाता है।
  4. समानता-समानता प्रजातंत्र का मूल आधार है। प्रजातंत्र में प्रत्येक मनुष्य को समान समझा जाता है। जन्म, जाति, शिक्षा, धन आदि के आधार पर मनुष्यों में भेद-भाव नहीं किया जाता। सभी मनुष्यों को समान राजनीतिक अधिकार प्राप्त होता है। कानून के सामने सभी व्यक्ति समान होते हैं।
  5. वयस्क मताधिकार-प्रत्येक वयस्क नागरिक को एक वोट डालने का अधिकार होना चाहिए। प्रत्येक वोट का मूल्य एक ही होना चाहिए।
  6. निर्णय लेने की शक्ति-निर्णय लेने की अंतिम शक्ति जनता के निर्वाचित प्रतिनिधियों के पास होनी चाहिए।
  7. स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव-लोकतंत्र में चुनाव स्वतंत्र एवं निष्पक्ष होने चाहिए ताकि सत्ता में बैठे लोग भी चुनाव हार सकें।
  8. कानून का शासन-लोकतंत्र में कानून का शासन होता है। सभी कानून के सामने समान होते हैं। कानून सर्वोत्तम होता है।

प्रश्न 2.
लोकतंत्र के गुण लिखें।
उत्तर-
प्रजातंत्र में निम्नलिखित गुण पाये जाते हैं-

  1. यह सर्वसाधारण के हितों की रक्षा करता है-प्रजातंत्र की यह सबसे बड़ी विशेषता है कि इसमें राज्य के किसी विशेष वर्ग के हितों की रक्षा न करके समस्त जनता के हितों की रक्षा की जाती है। प्रजातंत्र में शासक सत्ता को एक अमानत मानते हैं और उसका प्रयोग सार्वजनिक कल्याण के लिए किया जाता है।
  2. यह जनमत पर आधारित है-प्रजातंत्र शासन जनमत पर आधारित है अर्थात् शासन जनता की इच्छानुसार चलाया जाता है। जनता अपने प्रतिनिधियों को निश्चित अवधि के लिए चुनकर भेजती है। यदि प्रतिनिधि जनता की इच्छानुसार शासन नहीं चलाते तो उन्हें दोबारा नहीं चुना जाता है। इस शासन प्रणाली में सरकार जनता की इच्छाओं की ओर विशेष ध्यान देती है।
  3. यह समानता के सिद्धांत पर आधारित है-प्रजातंत्र में सभी नागरिकों को समान माना जाता है। किसी भी व्यक्ति को जाति, धर्म, लिंग के आधार पर कोई विशेष अधिकार नहीं दिये जाते। प्रत्येक वयस्क को बिना भेदभाव के मतदान, चुनाव लड़ने तथा सार्वजनिक पद प्राप्त करने का समान अधिकार प्राप्त है। सभी मनुष्यों को कानून के सामने समान माना जाता है।
  4. राजनीतिक शिक्षा-लोकतंत्र में नागरिकों को अन्य शासन प्रणालियों की अपेक्षा अधिक राजनीतिक शिक्षा मिलती है।
  5. क्रांति का डर नहीं-लोकतंत्र में क्रांति की संभावना बहुत कम होती है।
  6. नागरिकों के गौरव में वृद्धि-लोकतंत्र में नागरिकों के गौरव में वृद्धि होती है।
  7. विवादों एवं मतभेदों का हल-लोकतंत्र में विवादों और मतभेदों को दूर किया जाता है। सभी समस्याओं का हल शांतिपूर्ण तरीकों से किया जाता है।

प्रश्न 3.
लोकतंत्र के मुख्य दोष लिखें।
उत्तर-
जहां एक ओर लोकतंत्र में इतने गुण पाए जाते हैं वहीं दूसरी ओर इसमें निम्नलिखित अवगुण भी पाए जाते

  1. यह अज्ञानियों, अयोग्य तथा मूल् का शासन है-प्रजातंत्र को अयोग्यता की पूजा बताया जाता है। इसका कारण यह है कि जनता में अधिकांश व्यक्ति अयोग्य, मूर्ख, अज्ञानी तथा अनपढ़ होते हैं।
  2. यह गुणों के स्थान पर संख्या को अधिक महत्त्व देता है-प्रजातंत्र में गुणों की अपेक्षा संख्या को अधिक महत्त्व दिया जाता है। यदि किसी विषय को 60 मूर्ख ठीक कहें और 59 बुद्धिमान गलत कहें तो मूल् की ही बात को माना जाएगा। इस प्रकार लोकतंत्र में मूों का शासन होता है।
  3. यह उत्तरदायी शासन नहीं है-वास्तव में प्रजातंत्र अनुत्तरदायी शासन है। इसमें नागरिक केवल चुनाव वाले दिन ही संप्रभु होते हैं। परंतु चुनावों के पश्चात् नेता जानते हैं कि जनता उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकती अतः अपनी मनमानी करते हैं।
  4. यह बहुत खर्चीला है-लोकतंत्र में आम चुनावों का प्रबंध पर बहुत धन खर्च हो जाता है।
  5. अमीरों का शासन-लोकतंत्र कहने को तो प्रजा का शासन है परंतु वास्तव में यह अमीरों का शासन है।
  6. अस्थायी तथा कमजोर शासन-लोकतंत्र में नेतृत्व में शीघ्र परिवर्तन होने के कारण सरकार अस्थायी तथा कमज़ोर होती है। बहु-दलीय प्रणाली के अंतर्गत किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत प्राप्त न होने के कारण मिली-जुली सरकार बनाई जाती है। मिली-जुली सरकार अस्थायी और कमजोर होती है।
  7. भ्रष्टाचार-लोकतंत्र में भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता है।
  8. नैतिक स्तर में गिरावट-चुनाव में विजयी होने के लिए सभी तरह के साधनों का प्रयोग किया जाता है जिससे नैतिक स्तर में गिरावट आती है।

प्रश्न 4.
क्या आप इस विचार से सहमत हैं कि लोकतंत्र सर्वश्रेष्ठ शासन प्रणाली है? अपने उत्तर के पक्ष में तर्क दें।
उत्तर-
वर्तमान युग में संसार के अधिकांश देशों में लोकतंत्र पाया जाता है। लोकतंत्र को स्वतंत्र, कुलीनतंत्र, तानाशाही इत्यादि शासन प्रणालियों से निम्नलिखित कारणों से उत्तम माना जाता है।

  1. लोगों के हितों की रक्षा-लोकतंत्र अन्य शासन प्रणालियों से उत्तम है क्योंकि इसमें जनता की आवश्यकताओं की पूर्ति की जाती है। लोकतंत्र में किसी विशेष वर्ग के हितों की रक्षा न करके समस्त जनता के हितों की रक्षा की जाती है।
  2. जनमत पर आधारित-लोकतंत्र ही एक ऐसी शासन प्रणाली है जो जनमत पर आधारित है। शासन जनता की इच्छानुसार चलाया जाता है।
  3. उत्तरदायी शासन-लोकतंत्र श्रेष्ठ है क्योंकि लोकतंत्र में सरकार अपने समस्त कार्यों के लिए जनता के प्रति उत्तरदायी होती है। जो सरकार लोगों के हितों की रक्षा नहीं करती उसे बदल दिया जाता है।
  4. नागरिकों के गौरव में वृद्धि-लोकतंत्र ही एक ऐसी शासन प्रणाली है जिसमें नागरिकों के गौरव में वृद्धि होती है। सभी नागरिकों को समान राजनीतिक अधिकार प्राप्त होते हैं। जब एक आम नागरिक के घर बड़े-बड़े नेता वोट मांगने आते हैं तो उससे उसके गौरव की वृद्धि होती है।
  5. समानता पर आधारित-सभी नागरिकों को शासन में भाग लेने का समान अधिकार प्राप्त होता है और कानून के सामने भी सभी नागरिकों को समान माना जाता है।
  6. विचार-विमर्श एवं वाद-विवाद-लोकतंत्र में अच्छे निर्णय लिए जाते हैं, क्योंकि सभी निर्णय विचारविमर्श और वाद-विवाद से लिए जाते हैं।
  7. आलोचना का अधिकार-प्रजातंत्र में सरकार की आलोचना करने का अधिकार प्राप्त होता है।
  8. निर्णयों पर पुनर्विचार-लोकतंत्र अन्य शासन प्रणालियों से उत्तम है क्योंकि इसमें गलत निर्णयों को बदलना आसान है। लोकतंत्र में भी गलत निर्णय हो सकते हैं पर सार्वजनिक वाद-विवाद के बाद उन्हें बदला जा सकता है।

प्रश्न 5.
मैक्सिको में कैसे लोकतंत्र का दमन किया जाता रहा है ?
उत्तर-
मैक्सिको को 1930 में स्वतंत्रता प्राप्त हुई तथा वहां प्रत्येक 6 वर्ष के पश्चात् राष्ट्रपति के चुनाव होते थे। परंतु सन् 2000 तक वहां केवल PRI (संस्थागत क्रांतिकारी दल) ही चुनाव जीतती आई है। इसके कुछ कारण हैं जैसे कि

  1. PRI शासित दल होने के कारण कुछ अनुचित साधनों का प्रयोग करती थी ताकि चुनाव जीते जा सकें।
  2. सरकारी अधिकारियों व कर्मचारियों को पार्टी की सभाओं में मौजूद रहने के लिए बाध्य किया जाता था।
  3. सरकारी अध्यापकों को अपने विद्यार्थियों के माता-पिता को PRI के पक्ष में वोट देने के लिए कहने को कहा जाता था।
  4. अंतिम क्षणों में मतदान वाले दिन मतदान केंद्र ही बदल दिया जाता था ताकि लोग वोट ही न दे पाएं। इस प्रकार वहां पर निष्पक्ष मतदान नहीं हो पाते थे तथा लोकतंत्र का दमन किया जाता था।

PSEB 9th Class SST Solutions Civics Chapter 2 लोकतंत्र का अर्थ एवं महत्त्व

लोकतंत्र का अर्थ एवं महत्त्व PSEB 9th Class Civics Notes

  • लोकतंत्र एक प्रकार की सरकार है जिसे जनता द्वारा एक निश्चित समय के लिए सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार से चुना जाता है।
  • लोकतंत्र अंग्रेजी के शब्द Democracy का हिंदी अनुवाद है। (Democracy) Damos तथा cratia दो यूनानी शब्दों से बना है । (Demos) का अर्थ है, जनता तथा Cratia का अर्थ है, शासन। इस प्रकार Democracy का अर्थ है, जनता का शासन।
  • लोकतंत्र एक ऐसी संगठनात्मक व्यवस्था है जिसमें राजनीतिक शक्ति प्राप्त करने के लिए लोगों की स्वतंत्र प्रतिभागिता को विश्वसनीय बनाया जाता है।
  • लोकतंत्र की सबसे उपयुक्त परिभाषा अमेरिका के 16वें राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन ने दी थी। उनके अनुसार लोकतंत्र जनता की, जनता के लिए तथा जनता द्वारा निर्वाचित सरकार है।
  • लोकतंत्र का सबसे प्रथम आधारभूत सिद्धांत यह है कि इसमें सभी को अपने विचार प्रकट करने तथा आलोचना करने की स्वतंत्रता होती है।
  • लोकतंत्र का आजकल के समय में काफी अंतर है क्योंकि यह व्यक्तिगत स्वतंत्रता का लक्ष्य है, यह शक्ति व प्रगति का सूचक है, यह संपूर्ण जनता का प्रतिनिधित्व करती है इत्यादि।
  • आजकल के समय में लोकतंत्र के रास्ते में कई बाधाएं आ रही हैं जैसे कि जातिवाद, सांप्रदायिकता, क्षेत्रवाद निर्धनता, समाज के विकास के प्रति उदासीनता इत्यादि।
  • लोकतंत्र की स्वतंत्रता के लिए कुछेक आवश्यक शर्ते हैं जैसे कि इसमें राजनीतिक स्वतंत्रता होनी चाहिए, आर्थिक तथा सामाजिक समानता होनी चाहिए, लोग साक्षर तथा चेतन होने चाहिए, उनका नैतिक व्यवहार उच्च कोटि का होना चाहिए इत्यादि।
  • बहुत से देश ऐसे हैं जहां पर लोकतंत्र के नाम पर जनता से धोखा होता है। उदाहरण के लिए पाकिस्तान, चीन, फिजी, मैक्सिको इत्यादि। पाकिस्तान में लोकतंत्र पर हमेशा सेना का पहरा होता है। चीन में केवल एक ही राजनीतिक दल है, फिजी में वोट की शक्ति का अंतर है तथा मैक्सिकों में सरकार चुनाव जीतने के लिए गलत हथकंडे अपनाती है।
  • लोकतंत्र दो प्रकार का होता है-प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष। अप्रत्यक्ष लोकतंत्र को प्रतिनिधि लोकतंत्र भी कहा जाता है जिसमें जनता प्रत्यक्ष रूप से अपने प्रतिनिधि चुनती है।
  • आजकल के समय में जनसंख्या के काफी बढ़ने के कारण प्रत्यक्ष लोकतंत्र मुमकिन नहीं है। यह तो प्राचीन समय के यूनान जैसे नगर राज्यों में होता था जहां पर जनसंख्या हजारों में होती थी।

PSEB 12th Class Sociology Solutions Chapter 6 लिंग असमानता

Punjab State Board PSEB 12th Class Sociology Book Solutions Chapter 6 लिंग असमानता Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Sociology Chapter 6 लिंग असमानता

पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न (TEXTUAL QUESTIONS)

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न-

A. बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
लिंग वर्ग संबंध व्याख्या करता है-
(क) पुरुष व स्त्री में असमानता
(ख) पुरुष शक्ति व स्त्री शक्ति के मध्य संबंध
(ग) पुरुष शक्ति व स्त्री शक्ति पर प्रबलता
(घ) उपर्युक्त सभी।
उत्तर-
(ख) पुरुष शक्ति व स्त्री शक्ति के मध्य संबंध।

प्रश्न 2.
ट्रांसजेंडर का अर्थ है-
(क) पुरुष
(ख) स्त्री
(ग) तीसरा लिंग वर्ग
(घ) कोई भी नहीं।
उत्तर-
(ग) तीसरा लिंग वर्ग।

प्रश्न 3.
नारीवाद के सिद्धान्त दिए गए हैं-
(क) कार्ल मार्क्स द्वारा
(ख) अगस्त काम्टे द्वारा
(ग) वैबर द्वारा
(घ) इमाइल दुर्थीम द्वारा।
उत्तर-
(क) कार्ल मार्क्स द्वारा।

प्रश्न 4.
लिंग भेदभाव क्या है ?
(क) व्यावहारिक अधीनता
(ख) निष्कासन
(ग) अप्रतिभागिता
(घ) उपर्युक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 5.
लिंग अनुपात का अभिप्राय है
(क) 1000 पुरुषों पर स्त्रियों की संख्या
(ख) 1000 स्त्रियों पर पुरुषों की संख्या
(ग) 1000 स्त्रियों पर बच्चों की संख्या
(घ) स्त्रियों व पुरुषों की संख्या।
उत्तर-
(क) 1000 पुरुषों पर स्त्रियों की संख्या।

PSEB 12th Class Sociology Solutions Chapter 6 लिंग असमानता

B. रिक्त स्थान भरें-

1. …………. से भाव पुरुष प्रधान परिवार में पिता की अहम् भूमिका है।
2. ………….. स्त्रियों की अधीनता से जुड़ा हुआ मौलिक मुद्दा है।
3. ………. नारीवाद पितृवाद के सार्वभौमिक स्वभाव को केन्द्रीय मानते हैं।
4. …………. परिवार पैतृक प्रधान होते हैं।
5. भारत की जनगणना 2011 दर्शाती है कि 1000 पुरुषों पर …….. स्त्रियां हैं।
उत्तर-

  1. पितृपक्ष की प्रबलता
  2. नारीवाद
  3. प्रगतिशील
  4. पितृसत्तात्मक
  5. 943.

C. सही/ग़लत पर निशान लगाएं-

1. लिंग वर्ग समाजीकरण ने नारी अधीनता को संस्थागत किया है।
2. लिंग अनुपात का अर्थ है 1000 स्त्रियों पर पुरुषों की संख्या।
3. तीसरा लिंग का अर्थ उन व्यक्तियों से है जिनमें पुरुष व स्त्री दोनों प्रकार के लक्षण हों।
4. उदार नारीवाद विश्वास रखता है कि सभी व्यक्ति समान व महत्त्वपूर्ण हैं।
उत्तर-

  1. सही
  2. गलत
  3. सही
  4. सही।

D. निम्नलिखित शब्दों का मिलान करें-

कॉलम ‘ए’ — कॉलम ‘बी’
लिंग स्थिति — पिता की अहम् भूमिका
पैतृक प्रधानता — अपेक्षित दृष्टिकोण व व्यवहार
साइमन डे० व्योवर — जैविकीय श्रेणी
लिंग वर्ग भूमिका — विण्डीकेशन ऑफ द राइटस ऑफ वुमन
वाल्स्टोन क्राफ्ट– द सैकण्ड सैक्स
उत्तर-
कॉलम ‘ए’ — कॉलम ‘बी’
लिंग स्थिति — जैविकीय श्रेणी
पैतृक प्रधानता — पिता की अहम् भूमिका
साइमन डे० व्योवर — द सैकण्ड सैक्स
लिंग वर्ग भूमिका — अपेक्षित दृष्टिकोण व व्यवहार
वाल्स्टोन क्राफ्ट– विण्डीकेशन ऑफ द राइटस ऑफ वुमन

II. अति लघु उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1. लिंग वर्ग सम्बन्ध से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-लिंग वर्ग सम्बन्ध का अर्थ है पुरुष व स्त्री के सम्बन्ध जो विचारधारा, सांस्कृतिक, राजनीतिक व आर्थिक मुद्दों पर आधारित है।

प्रश्न 2. लिंग स्थिति की परिभाषा दें।
उत्तर-लिंग स्थिति एक जैविक श्रेणी है जिसमें उन जैविक या मनोवैज्ञानिक विशेषताओं को शामिल किया गया है जिसमें स्त्रियों व पुरुषों के बीच अंतरों को दर्शाया गया है।

प्रश्न 3. 0-6 वर्ष के 1000 लड़कों के पीछे लड़कियों की संख्या क्या कहलाती है ?
उत्तर-इसे बाल लिंग अनुपात कहते हैं।

PSEB 12th Class Sociology Solutions Chapter 6 लिंग असमानता

प्रश्न 4. 1000 पुरुषों पर स्त्रियों की संख्या क्या कहलाती है ?
उत्तर-इसे लिंग अनुपात कहते हैं।

प्रश्न 5. पुरुष प्रधान परिवारों को क्या कहते हैं ?
उत्तर- यह वह परिवार होते हैं जिनमें पिता की प्रधानता होती है तथा घर में पिता की सत्ता चलती है।

प्रश्न 6. लिंग वर्ग की परिभाषा दें।
उत्तर- शब्द लिंग वर्ग समाज की तरफ से बनाया गया है। इस शब्द का अर्थ है वह व्यवहार जो सामाजिक प्रथाओं से बनता है।

प्रश्न 7. लिंग वर्ग सम्बन्ध से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-देखें प्रश्न 1.

प्रश्न 8. पैतृक प्रधानता क्या है ?
उत्तर- यह वह सामाजिक व्यवस्था है जिसमें पिता की सत्ता चलती है, उसकी आज्ञा मानी जाती है तथा वंश का नाम भी पिता के नाम से ही चलता है।

III. लघु उत्तरों वाले प्रश्न मन

प्रश्न 1.
लिंग (Sex) तथा लिंग वर्ग (Gender) भेदभाव में जाति की क्या भूमिका है ?
उत्तर-
लिंग तथा लिंग वर्ग भेदभाव में जाति की बहुत बड़ी भूमिका है। जाति ने अपने प्रबल समय में स्त्रियों पर बहुत से प्रतिबन्ध लगा दिए। वह शिक्षा नहीं ले सकती थी, घर से बाहर नहीं जा सकती थी, सम्पत्ति नहीं रख सकती थी। इस प्रकार उनकी स्थिति निम्न हो गई तथा लिंग आधारित भेदभाव शुरू हो गया।

प्रश्न 2.
लिंग वर्ग समानता से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
लिंग वर्ग समानता का अर्थ है समाज में लिंग आधारित भेदभाव न हो तथा सभी को समान अधिकार प्राप्त हों। स्त्रियों को भी वह अधिकार प्राप्त हों जो पुरुषों को प्राप्त होते हैं। चाहे संविधान ने सभी को समान अधिकार दिए हैं परन्तु आज भी स्त्रियां समान अधिकारों के लिए जूझ रही हैं।

प्रश्न 3.
क्या लिंग वर्ग समाजीकरण लिंग भेदभाव का संकेत है ? संक्षेप में बताएं।
उत्तर-
जी हां, लिंग वर्ग समाजीकरण वास्तव में भेदभाव का प्रतीक है क्योंकि बचपन से ही बच्चों को लिंग के अनुसार रहने की शिक्षा दी जाती है। उनसे यह आशा की जाती है कि वह अपने लिंग अनुसार स्थापित नियमों के अनुसार व्यवहार करें जिसमें साफ भेदभाव झलकता है।

प्रश्न 4.
क्या पैतृक प्रधानता स्त्रियों के विरुद्ध हिंसा का कारण है ? संक्षेप में टिप्पणी करें।
उत्तर-
हमारा समाज प्रकृति से ही पैतृक प्रधान है जिसमें पुरुषों की प्रधानता होती है तथा घर के महत्त्वपूर्ण निर्णय पुरुष ही करते हैं। इसमें लड़कियों को सिखाया जाता है कि वह लड़कों से कमज़ोर है जिसका फायदा पुरुष उठाते हैं तथा स्त्रियों के विरुद्ध हिंसा करते हैं।

PSEB 12th Class Sociology Solutions Chapter 6 लिंग असमानता

IV. दीर्य उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
नारीवाद के सिद्धान्त से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
नारीवाद आन्दोलनों तथा विचारधाराओं का एक संग्रह है जिनका उद्देश्य स्त्रियों के लिए समान राजनीतिक, आर्थिक तथा सामाजिक अधिकारों को परिभाषित करना, उन्हें स्थापित तथा उनकी रक्षा करना है। इसमें शिक्षा तथा रोज़गार के क्षेत्र में स्त्रियों के लिए समान अवसरों की स्थापना करने की मांग करना शामिल है। नारीवादी सिद्धान्तों का उद्देश्य लिंग आधारित असमानता की प्रकृति तथा कारणों को समझना व इसके परिणामस्वरूप उत्पन्न होने वाले लिंग वर्ग भेदभाव की राजनीति तथा शक्ति संतुलन के सिद्धान्तों पर इसके प्रभाव की व्याख्या करना है।

प्रश्न 2.
सार्वजनिक क्षेत्र में लिंग वर्ग भेदभाव के उदाहरण दें।
उत्तर-
इसमें कोई शक नहीं है कि जनतक क्षेत्र में लिंग आधारित भेदभाव होता है। जनतक क्षेत्र का अर्थ है राजनीतिक। अगर हम देश की राजनीति में स्त्रियों की भागीदारी का प्रतिशत देखें तो यह काफ़ी कम है। देश की संसद् में चुनी जाने वाली स्त्रियों की संख्या कभी भी 15% से अधिक नहीं हुई है। 2009-14 वाली 15वीं लोकसभा में यह संख्या 10% थी जो 2014-19 वाली 16वीं लोकसभा में 12% ही रह गई। इससे हमें लैंगिक भेदभाव का पता चलता है। हमारी वैधानिक संस्थाओं में स्त्रियों के लिए 33% स्थान आरक्षित करने का बिल अभी तक पास नहीं हुआ है जिससे पता चलता है कि लैंगिक भेदभाव चल रहा है। स्थानीय स्वैः संस्थाओं में चाहे स्त्रियों के लिए 33% स्थान आरक्षित हैं परन्तु वास्तव में सारा कार्य उनके पति ही करते हैं जो जनतक क्षेत्र में लिंग वर्ग भेदभाव दर्शाता है।

प्रश्न 3.
लिंग वर्ग भेदभाव में जाति की क्या भूमिका है ?
उत्तर-
अगर हम भारतीय समाज के इतिहास को देखें तो हमें पता चलता है कि लिंग वर्ग भेदभाव का सबसे बड़ा कारण ही जाति प्रथा है। जब हमारे समाज में जाति नहीं थी, उस समय स्त्रियों को बहुत से अधिकार प्राप्त थे तथा समाज में उन्हें ऊँचा दर्जा प्राप्त था। परन्तु जाति प्रथा के आने के पश्चात् यह स्थिति निम्न होनी शुरू हो गई। जाति प्रथा में स्त्रियों को अपवित्र समझा जाता था जिस कारण उनके साथ कई निर्योग्यताएं जोड़ दी गईं। बाल विवाह, दहेज प्रथा जैसी बुराइयों ने स्थिति को और खराब कर दिया। मध्य काल में जाति प्रथा ने स्त्रियों पर और कठोर प्रतिबन्ध लगा दिए ताकि मुसलमान उनसे विवाह न कर पाएं। इससे स्थिति और खराब हो गई। सती प्रथा तथा बहुविवाह जैसी प्रथाओं ने आग में घी डालने का कार्य किया। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि लिंग वर्ग भेदभाव में जाति प्रथा की काफ़ी बड़ी भूमिका है।

प्रश्न 4.
लिंग वर्ग भेदभाव में धर्म की क्या भूमिका है ?
उत्तर-
लिंग वर्ग भेदभाव में हम धर्म की भूमिका को नकार नहीं सकते। धर्म ने भी स्त्रियों के प्रति भेदभाव सामने लाने में काफ़ी बड़ी भूमिका अदा की है। धर्म तथा जाति के कारण स्त्रियों को अपवित्र कहा गया। महीने के कुछ दिनों में उनके मंदिर जाने तथा धार्मिक कार्य करने पर पाबंदी लगा दी गई। आज भी इन प्रथाओं का पालन किया जाता है। देश के कई मंदिरों में आज भी स्त्रियां नहीं जा सकती क्योंकि उन्हें अपवित्र समझा जाता है। जब भारत पर दूसरे धर्म के लोगों ने हमला किया तो अलग-अलग धर्मों ने स्त्रियों पर बहुत-सी पाबंदियां लगा दी। ये पाबंदियां आज भी जारी हैं। चाहे आजकल लोगों में पढ़ने-लिखने के कारण धर्म का प्रभाव कम हो गया है परन्तु फिर भी लोग धर्म के विरुद्ध कोई कार्य नहीं करते तथा धर्म भी लिंग वर्ग भेदभाव का एक कारण बन जाता है।

प्रश्न 5.
नगरीय भारत तथा ग्रामीण भारत में लिंग वर्ग के समाजीकरण पर टिप्पणी लिखें।
उत्तर-
लिंग वर्ग समाजीकरण में बच्चों को यह सिखाया जाता है कि उन्होंने अपने लिंग के अनुसार किस प्रकार व्यवहार करना है। लड़कियों को ठीक कपड़े डालने के बारे में बताया जाता है, उन्हें ठीक ढंग से उठने-बैठने के बारे में कहा जाता है, उन्हें एक दायरे में रहना सिखाया जाता है तथा पारिवारिक प्रतिष्ठा का ध्यान रखने के लिए कहा जाता है। लिंग वर्ग समाजीकरण में ही लिंग वर्ग भेदभाव छुपा हुआ है। ग्रामीण भारत में तो यह काफ़ी अधिक होता है क्योंकि लोग कम पढ़े-लिखे होते हैं तथा पुरानी प्रथाओं से जुड़े होते हैं। चाहे नगरीय भारत की शिक्षा दर काफ़ी बढ़ गई है परन्तु फिर भी लड़कियों को एक विशेष ढंग से रहना सिखाया जाता है ताकि वे अपनी सीमा से बाहर न जाएं। यह सब कुछ लिंग वर्ग भेदभाव को ही बढ़ाता है।

V. अति दीर्घ उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
नारीवाद के महत्त्वपूर्ण सिद्धान्तों का वर्णन करें।
अथवा
मार्क्सवादी नारीवाद पर चर्चा कीजिए।
अथवा
नारीवाद के उदारवादी सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए।
अथवा
प्रगतिशील नारीवाद और उदारवादी नारीवाद पर नोट लिखिए।
उत्तर-
नारीवाद आंदोलन तथा विचारधाराओं का एक संग्रह है, जिनका उद्देश्य स्त्रियों के लिए समान राजनीतिक, आर्थिक तथा सामाजिक अधिकारों को परिभाषित करना, उनकी स्थापना व रक्षा करना है। इसमें शिक्षा तथा रोज़गार के क्षेत्र में स्त्रियों के लिए समान मौकों की स्थापना करने की मांग शामिल है। नारीवादी सिद्धान्तों का उद्देश्य लिंग वर्ग असमानता की प्रकृति तथा कारणों को समझना तथा इसके परिणामस्वरूप उत्पन्न होने वाले लिंग वर्ग भेदभाव की राजनीति व शक्ति संतुलन के सिद्धान्तों पर इसके प्रभाव की व्याख्या करना है।

नारीवाद एक विचारधारा है जिसमें कई प्रकार के विचारों को शामिल करते हैं जैसे कि मार्क्सवादी नारीवाद, प्रगतिशील नारीवाद, उदारवादी नारीवाद इत्यादि। यह सिद्धान्त वास्तव में पितृ सत्ता के विचार पर बल देते हुए स्त्रियों के आंदोलन के तर्क का निर्माण करते हैं। नारीवाद का मुख्य मुद्दा स्त्रियों की अधीनता से जुड़ा हुआ है। नारीवाद से संबंधित प्रमुख सिद्धान्तों का वर्णन इस प्रकार हैं-

1. मार्क्सवादी नारीवाद (Marxist Feminism)—यह सिद्धान्त कार्ल मार्क्स के समाजवादी सिद्धान्त में से निकला है। यह सिद्धान्त बताता है कि किस प्रकार स्त्रियों के शोषण को समाज की संरचना में योजनाबद्ध ढंग से बुना गया। उन्होंने पितृ सत्ता तथा पूँजीवाद के सम्बन्धों पर ध्यान केन्द्रित किया। उनके अनुसार स्त्रियों पर अत्याचार विचारधारक प्रभुत्व का परिणाम है जोकि आर्थिक क्रियाओं में से निकला है। फ्रेडरिक एंजल्स के अनुसार पूँजीवाद के विकास तथा व्यक्तिगत सम्पत्ति के सामने आने से समाज में स्त्रियों की स्थिति में काफ़ी परिवर्तन आया है। उनका मानना था कि स्त्रियों की क्रियाएं परिवार में ही सीमित थी जबकि बुर्जुआ परिवार पितृ सत्तात्मक तथा शोषण पर आधारित थे क्योंकि पुरुष हमेशा ध्यान रखते थे कि जायदाद उनके पुत्र के पास ही जाए।

PSEB 12th Class Sociology Solutions Chapter 6 लिंग असमानता

2. प्रगतिशील नारीवाद (Radical Feminism)-उग्र नारीवाद पितृसत्ता की सर्वव्यापक प्रकृति पर ध्यान केंद्रित करता है तथा बताता है कि पुरुष स्त्रियों को दबाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। Simonede Beauvoir ने एक पुस्तक लिखी ‘The Second Sex’ जिसमें उन्होंने कहा कि, “स्त्रियां पैदा नहीं हुई बल्कि बनाई गई हैं।” उनका कहना था कि गर्भपात अधिकार की मौजूदगी, प्रभावशाली जन्म दर पर नियन्त्रण तथा एक विवाह के खत्म होने से उन्हें अपने शरीर पर अधिक अधिकार होगा। इस विचारधारा के समर्थक विश्वास करते हैं कि स्त्रियों के शोषण का आधार उनका प्रजनन सामर्थ्य है जिस पर पुरुषों का नियन्त्रण होता है। उनका कहना था कि पितृसत्तात्मक प्राकृतिक अथवा आवश्यक नहीं है बल्कि इसकी जड़ें जैविकता से जुड़ी हैं। इससे परिवार में प्राकृतिक श्रम विभाजन हो गया तथा स्त्रियों की स्वतन्त्रता उस समय ही मुमकिन है जब लिंग वर्ग अंतरों को खत्म कर दिया जाए।

3. उदारवादी नारीवाद (Liberal Feminism)–उदारवादी नारीवाद के समर्थकों का विश्वास है कि सभी व्यक्ति महत्त्वपूर्ण हैं तथा सभी के साथ समानता वाला व्यवहार होना चाहिए। Mary Wollstone Craft ने 1972 में एक पुस्तक लिखी ‘Vindication of the Rights of Women’ । आधुनिक नारीवाद की यह प्रथम पुस्तक थी जिसने स्त्रियों के लिए वोट के अधिकार का समर्थन किया। उनका मानना था कि अगर स्त्रियों को प्राकृतिक अधिकारों के अनुसार शिक्षा प्राप्त हो जाए तो राजनीतिक व सामाजिक क्षेत्र में लिंग के अंतर का कोई महत्त्व ही नहीं रहेगा।

प्रश्न 2.
‘स्त्री पैदा नहीं हुई-बनाई गई है’ इस विषय पर अपने विचार विस्तार में दें।
उत्तर-
अस्तित्ववादी कहते हैं कि व्यक्ति पैदा नहीं होता बल्कि वह हमारे विकल्पों का परिणाम है क्योंकि हम स्वयं को अपने साधनों तथा समाज की तरफ से दिए साधनों से बनाते हैं। Simonde Beauvoir ने एक पुस्तक लिखी The Second Sex’ जिसमें उन्होंने मानवीय स्वतन्त्रता की एक अस्पष्ट तस्वीर पेश की कि स्त्रियां अपने शरीर के कारण कौन-सी असुविधाओं के साथ जी रही हैं। इस पुस्तक में उन्होंने बताया कि किस प्रकार स्त्रियां अपने शरीर तथा समय के साथ उसमें आने वाले परिवर्तनों को देखती हैं। यहां वह स्त्री के शरीर को सुविधा व असुविधा के रूप में देखती है तथा स्त्री को स्वतन्त्र तथा दबे हुए व्यक्ति के रूप में देखती है। वास्तव में यह स्त्री पर निर्भर करता है कि वह किस हद तक स्वयं को स्वतन्त्र वस्तु के रूप में देखती है या समाज की तरफ से घूरे जाने वाली वस्तु के रूप में देखती है।

कुछ व्यक्तियों के अनुसार स्त्री एक घूरने वाली वस्तु है जिसकी परिभाषा हम लिखते हैं। De Beauvoir इस विचार को उठाती हैं तथा इसे पुरुषों के स्त्रियों के बारे में विचार पर लागू करती हैं। स्त्री के बारे में यह विचार एक पुरुषों द्वारा परिभाषित संकल्प है जिसमें स्त्री को वस्तु समझा जाता है तथा पुरुष स्वयं को एक Subject समझता है। इस प्रकार शब्द ‘स्त्री’ का वह अर्थ है जो पुरुषों द्वारा दिया गया है। De Beauvoir कहती हैं कि स्त्रियों की जैविक स्थिति उनके विरुद्ध नहीं है बल्कि वह स्थिति है जो सकारात्मक या नकारात्मक बन जाती है। स्त्रियों के जैविक अनुभव जैसे कि गर्भवती होना, माहवारी, शारीरिक अंगों का उभार इत्यादि का स्वयं में कोई अर्थ नहीं है परन्तु विरोधी समाज में इन्हें एक बोझ समझा जाता है तथा पितृ सत्तात्मक समाज में इन्हें स्त्रियों के लिए एक असुविधा के रूप में देखा जाता है।

इस प्रकार चाहे स्त्री प्राकृतिक रूप से पैदा होती है परन्तु उसके बारे में अलग-अलग प्रकार के विचार अलग-अलग समाजों में अलग-अलग ही बनते हैं। कई समाजों में स्त्रियों को उपभोग करने वाली वस्तु समझा जाता है तथा उन पर कई प्रकार के अत्याचार होते हैं जैसे कि बलात्कार, छेड़छाड़, मारना पीटना, घरेलू हिंसा, दहेज, हत्या इत्यादि। यह सब कुछ समाज की मानसिकता के कारण होता है जो स्त्रियों के प्रति बनी हुई है। इस कारण ही राजनीति में स्त्रियों की भागीदारी कम होती है। परन्तु कई समाज ऐसे भी हैं जहाँ स्त्रियों का काफ़ी सम्मान होता है तथा उनके विरुद्ध कोई अत्याचार नहीं किए जाते। वहां राजनीतिक क्षेत्र में उनकी भागीदारी काफ़ी अधिक होती है तथा वे समाज के प्रत्येक क्षेत्र में भाग लेती हैं।

इस प्रकार हम कह सकते हैं कि यह सब कुछ समाज पर निर्भर करता है कि वह स्त्री को किस रूप में देखता है। अगर उन्हें ऊँचा दर्जा नहीं दिया जाएगा तथा घूरने वाली वस्तु समझा जाएगा तो समाज कभी भी प्रगति नहीं कर पाएगा। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि स्त्रियां पैदा नहीं होती बल्कि उन्हें बनाया जाता है।

प्रश्न 3.
क्या लिंग वर्ग असमानता भारत के लोकतांत्रिक समाज में वाद-विवाद का विषय है ?
उत्तर-
भारत एक लोकतांत्रिक देश है जहाँ देश के सभी नागरिकों को बिना किसी भेदभाव के बहुत से अधिकार समान रूप से दिए गए हैं। हमारा एक मूलभूत अधिकार है कि सम्पूर्ण देश में समानता मौजूद है अर्थात् व्यक्ति किसी भी जाति, लिंग, धर्म, रंग इत्यादि का हो, सब के साथ समान व्यवहार किया जाएगा। परन्तु अगर हम देश में वास्तविकता देखें तो समानता मौजूद नहीं है। बहुत से क्षेत्रों में स्त्रियों के साथ भेदभाव किया जाता है। हम अलग-अलग क्षेत्रों में लैंगिक असमानता की मौजूदगी देख सकते हैं तथा यह ही देश में लोकतांत्रिक समाज के होने पर प्रश्न खड़ा करती है। इसकी कई उदाहरणें हम दे सकते हैं जैसे कि-

(i) देश के निर्णय लेने की प्रक्रिया में स्त्रियों की भागीदारी अधिक नहीं है। ग्रामीण तथा नगरीय समाजों में स्त्रियों के पास अपनी इच्छा से कुछ करने की स्वतन्त्रता नहीं होती। उन्हें वह ही करना पड़ता है जो उनके परिवार की इच्छा होती है। परिवार की इच्छा के बिना वह कुछ नहीं कर सकती।

(ii) जब भी जाति, रिश्तेदारी या धर्म का सवाल होता है तो स्त्रियों को ही निशाना बनाया जाता है। अगर हम ध्यान से देखें तो हम कह सकते हैं कि स्त्रियां पितृसत्ता की कैदी हैं। उनकी जब भी पुरुषों से तुलना की जाती है तो हमेशा ही उनके साथ भेदभाव होता है जो लोकतन्त्र की आत्मा के विरुद्ध है।

(iii) स्त्रियां सरकारी नौकरियां कर रही हैं तथा प्राइवेट भी। चाहे सरकारी क्षेत्र में स्त्री तथा पुरुष को एक जैसे कार्य के लिए समान वेतन मिलता है परन्तु प्राइवेट क्षेत्र में ऐसा नहीं होता। वहां पर स्त्रियों को पुरुषों से कम वेतन मिलता है तथा उनका काफ़ी शोषण भी किया जाता है जो हमारे मूलभूत अधिकारों के विरुद्ध है।

(iv) कम होता लिंग अनुपात भी हमें लिंग वर्ग भेदभाव के बारे में बताता है। स्त्रियों को एक निशाने के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। राजनीतिक क्षेत्र में उनकी भागीदारी को कोई महत्त्व नहीं दिया जाता।

(v) संविधान ने स्त्रियों को समान अधिकार दिए हैं तथा कई कानूनों से उन्हें अपने पिता की सम्पत्ति में अपना हिस्सा लेने का अधिकार दिया गया है। परन्तु अगर वह अपने भाइयों से पिता की सम्पत्ति में हिस्सा मांगती हैं तो उनकी हमेशा आलोचना की जाती है तथा बात न्यायालय तक पहुँच जाती है।

(vi) इन उदाहरणों को देख कर हम कह सकते हैं कि भारतीय समाज के लोकतांत्रिक होने पर प्रश्न चिह्न खड़ा होता है। जब तक हम स्त्रियों की राजनीतिक, सामाजिक तथा आर्थिक क्षेत्र में समानता सुनिश्चित नहीं करते, उस समय तक हम अपने देश को सच्चे अर्थों में लोकतांत्रिक नहीं कह सकते।

प्रश्न 4.
भारत के राजनीतिक क्षेत्र में लिंग वर्ग भेदभाव की महत्त्वपूर्ण विशेषताओं का वर्णन करें।
उत्तर-
अगर हम भारतीय राजनीति की तरफ देखें तो हमें कुछ ऐसे लक्षण मिल जाएंगे जो लिंग वर्ग भेदभाव को दर्शाते हैं। इनमें से कुछ का वर्णन इस प्रकार है
(i) भारत की राजनीति में स्त्रियों की भागीदारी काफ़ी कम है। अगर हम 1952 में गठित हुई प्रथम लोकसभा से लेकर 2014 में गठित हुई 16वीं लोकसभा की तरफ देखें तो हमें पता चलता है कि लोक सभा में उनकी भागीदारी काफ़ी कम है। प्रथम लोकसभा में केवल 22 स्त्रियां ही चुनकर आई थीं जो कि 5% के करीब बैठता है। परन्तु 2014 में बनी 16वीं लोकसभा में यह बढ़ कर 66 हो गया जो 12.2% बैठता है। इससे पता चलता है कि लोकसभा में उनकी भागीदारी कितनी कम है। यह सब कुछ नीचे दी गई सूची से स्पष्ट हो जाएगा :
im
इस सूची को देखकर पता चलता है कि इस क्षेत्र में कितनी लिंग वर्ग असमानता मौजूद है।

(ii) राजनीतिक दल भी अधिक स्त्रियों के राजनीतिक क्षेत्र में आने के पक्ष में नहीं हैं। शायद इसका कारण यह है कि हमारा समाज पितृ प्रधान है तथा पुरुष स्त्रियों की आज्ञा मानने को तैयार नहीं होते। हमारी संसद् में एक बिल पेश किया गया था जिसके अनुसार देश की सभी वैधानिक संस्थाओं में स्त्रियों के लिए 33% स्थान आरक्षित रखने का प्रावधान था परन्तु वह बिल कई वर्ष बाद भी पास नहीं हो पाया है। इससे हमें पता चलता है कि राजनीति में किस प्रकार लिंग वर्ग भेदभाव जारी है।

(iii) यह भी देखा गया है कि चाहे स्त्रियां किसी राजनीतिक दल के बड़े नेताओं में शामिल हो जाती हैं परन्तु दल के निर्णय लेने की प्रक्रिया में उनकी भूमिका काफ़ी कम होती है। अगर उन्हें अपनी योग्यता साबित करने का मौका दिया जाता है तो उन्हें दल की महिला विंग का प्रधान बना दिया जाता है ताकि वह स्त्रियों से संबंधित मुद्दों को संभाल सकें। इस प्रकार लिंग वर्ग भेदभाव राजनीतिक दलों में साफ झलकता है।

(iv) हमारे देश में तीन प्रकार की सरकारें मिलती हैं—केंद्र सरकार, राज्य सरकारें तथा स्थानीय स्वैः संस्थाएं। स्थानीय स्वैः संस्थाओं में गांवों तथा नगरों दोनों संस्थाओं में स्त्रियों के लिए एक तिहाई स्थान आरक्षित रखे गए हैं जहां से केवल स्त्रियां ही चुनाव लड़ेंगी। उस स्थान पर स्त्री के चुनाव जीतने के पश्चात् सारा कार्य उनके पति करते हैं वह नहीं। बहुत ही कम स्त्रियां हैं जो अपना कार्य स्वयं करती हैं तथा अपने क्षेत्र का विकास करती हैं।

यहां आकर मुख्य मुद्दा सामने आता है कि राजनीतिक क्षेत्र तथा निर्णय लेने की प्रक्रिया में स्त्रियों की भागीदारी काफ़ी कम है। वह तो स्वयं को मुक्त रूप से प्रकट कर नहीं सकती हैं तथा विकास की प्रक्रिया से दूर हो जाती हैं।

PSEB 12th Class Sociology Solutions Chapter 6 लिंग असमानता

प्रश्न 5.
लिंग वर्ग भेदभाव किस प्रकार सर्वपक्षीय विकास में रुकावट है ? (P.S.E.B. 2017)
उत्तर-
इसमें कोई शक नहीं है कि लिंग वर्ग भेदभाव सर्वपक्षीय विकास के रास्ते में एक रुकावट है। हमारा समाज दो लिंगों के आपसी सहयोग पर टिका हुआ है तथा वह हैं पुरुष तथा स्त्री। समाज को चलाने व आगे बढ़ाने के लिए भी दोनों के सहयोग की आवश्यकता होती है। एक के न होने की स्थिति में समाज न तो आगे बढ़ सकेगा व न ही चल सकेगा। लिंग वर्ग भेदभाव तथा सर्वपक्षीय विकास को हम कुछ प्रमुख बिंदुओं पर रख सकते हैं जिनका वर्णन इस प्रकार है

(i) पुराने समय में श्रम विभाजन लिंग के आधार पर होता था। पुरुष खाने का प्रबन्ध करते थे तथा स्त्रियां घर संभालती थीं व बच्चों का पालन-पोषण करती थीं। इस सहयोग के कारण ही समाज ठीक ढंग से आगे बढ़ सका है।

(ii) आजकल के समय में भी पुरुष व स्त्री का सहयोग सर्वपक्षीय विकास के लिए बहुत आवश्यक है क्योंकि अगर दोनों का सहयोग नहीं होगा तो एक घर का विकास नहीं हो सकता, समाज तो बहुत दूर की बात है।

(iii) यह कहा जाता है कि समाज की आधी जनसंख्या स्त्रियां ही हैं। अगर इस आधी जनसंख्या को विकास के क्षेत्र में भागीदार नहीं बनाया जाएगा तथा घर की चारदीवारी में बंद रखा जाएगा तो उस समाज की आय भी आधी ही रह जाएगी। वह आय आवश्यकताओं को ही मुश्किल से पूरा करेगी। परन्तु अगर वह आधी जनसंख्या आय बढ़ाने में भागीदार बनेगी तो परिवार, समाज तथा देश की प्रगति अवश्य हो जाएगी।

यहां हम एक उदाहरण ले सकते हैं भारतीय समाज व पश्चिमी समाजों की। भारतीय समाज में लिंग वर्ग भेदभाव काफ़ी अधिक है जिस कारण कई क्षेत्रों में स्त्रियां अपने मूलभूत अधिकारों का प्रयोग नहीं कर पाती हैं तथा उन्हें सम्पूर्ण जीवन ही घर की चारदीवारी में व्यतीत करना पड़ता है। वह आर्थिक, राजनीतिक क्षेत्र में भाग नहीं ले सकतीं जिस कारण देश का सर्वपक्षीय विकास नहीं हो सका है। इसके विपरीत अगर हम पश्चिमी देशों की तरफ देखें तो उनके आर्थिक तथा राजनीतिक क्षेत्र में स्त्रियों की भागीदारी काफ़ी अधिक है। वे पुरुषों के कंधे से कंधा मिलाकर कार्य करती हैं, पढ़ती हैं तथा पैसे कमाती हैं। इस कारण परिवार, समाज तथा देश का सर्वपक्षीय विकास हुआ है। दोनों समाजों की तुलना करके ही हमें अंतर पता चल जाता है। जहां पर लिंग वर्ग भेदभाव होता है, वहां विकास कम है तथा जहां लैंगिक भेदभाव नहीं होता वहां विकास ही विकास होता है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि लैंगिक भेदभाव समावेशी विकास के रास्ते में एक रुकावट है।

अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न (OTHER IMPORTANT QUESTIONS)

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न-

A. बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
लिंग के आधार पर समाज में कितने वर्ग मिलते हैं ?
(क) एक
(ख) दो
(ग) तीन
(घ) चार।
उत्तर-
(ख) दो।

प्रश्न 2.
लिंग शब्द एक ………. शब्द है।
(क) सामाजिक
(ख) जैविक
(ग) सामाजिक सांस्कृतिक
(घ) राजनीतिक।
उत्तर-
(ख) जैविक।

प्रश्न 3.
शब्द लिंग वर्ग कहां पर तैयार होता है ?
(क) घर
(ख) समाज
(ग) देश
(घ) संसार।
उत्तर-
(ख) समाज।

प्रश्न 4.
जब लिंग के आधार पर अंतर रखा जाता है तो उसे ……. कहते हैं।
(क) लिंग वर्ग समाजीकरण
(ख) लिंग वर्ग समानता
(ग) लिंग वर्ग भेदभाव
(घ) लिंग वर्ग संबंध।
उत्तर-
(ग) लिंग वर्ग भेदभाव।

PSEB 12th Class Sociology Solutions Chapter 6 लिंग असमानता

प्रश्न 5.
Simone de Beauvoir ने कौन-सी पुस्तक लिखी थी ?
(क) The Second Sex
(ख) The Third Sex
(ग) The Second Job
(घ) The Third Job.
उत्तर-
(क) The Second Sex.

प्रश्न 6.
प्रगतिशील नारीवाद किस चीज़ पर बल देता है ?
(क) पितृसत्ता
(ख) मातृसत्ता
(ग) लोकतन्त्र
(घ) राजशाही।
उत्तर-
(क) पितृसत्ता।

B. रिक्त स्थान भरें-

1. संसार में दो प्रकार के लिंग …… तथा ………. पाए जाते हैं।
2. लिंग वर्ग असमानता का मुख्य कारण ……………… है।
3. …………. का अर्थ है घर में पिता की सत्ता।
4. मार्क्सवादी नारीवाद पितृ सत्ता तथा …………. के बीच संबंधों पर ध्यान देते हैं।
5. ………… ने किताब The Second Sex लिखी थी।
6. ………… का अर्थ पुरुष प्रधान समाज में पिता का शासन है।
उत्तर-

  1. स्त्री, पुरुष
  2. पितृसत्ता
  3. पितृसत्ता
  4. पूँजीवाद
  5. Simone de Beauvoir
  6. पैतृकता।

PSEB 12th Class Sociology Solutions Chapter 6 लिंग असमानता

C. सही/ग़लत पर निशान लगाएं-

1. प्रगतिशील नारीवाद कहता है कि सभी व्यक्ति महत्त्वपूर्ण है।
2. प्रगतिशील नारीवाद कहता है कि स्त्रियों को दबाने में पुरुषों की काफ़ी महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है।
3. बच्चों को लिंग अनुसार शिक्षा देने को लिंग वर्ग समाजीकरण कहते हैं।
4. लिंग वर्ग समाजीकरण भेदभाव बढ़ाने वाली प्रक्रिया है।
5. 2011 में 1000 पुरुषों के पीछे 914 स्त्रियां (0-6 वर्ष) थीं।
उत्तर-

  1. सही
  2. सही
  3. सही
  4. सही
  5. सही।

II. एक शब्द/एक पंक्ति वाले प्रश्न उत्तर

प्रश्न 1. क्या समाज में स्त्रियों के साथ भेदभाव होता है ?
उत्तर-जी हां, समाज में स्त्रियों के साथ भेदभाव होता है।

प्रश्न 2. करवाचौथ क्या होता है ?
उत्तर-पत्नी अपने पति की लंबी आयु के लिए व्रत रखती है जिसे करवाचौथ कहते हैं।

प्रश्न 3. पितृसत्ता में किसकी आज्ञा मानी जाती है ?
उत्तर-पितृसत्ता में घर के पुरुषों की आज्ञा मानी जाती है।

प्रश्न 4. लिंग क्या है ?
उत्तर-लिंग एक जैविक शब्द है जो पुरुष तथा स्त्री के बीच शारीरिक अंतरों के बारे में बताता है।

प्रश्न 5. लिंग वर्ग क्या है ?
उत्तर-लिंग वर्ग समाज की तरफ से बनाया गया शब्द है जिसमें बहुत सारे हालात आ जाते हैं जिनमें पुरुष व स्त्री के संबंध चलते हैं।

प्रश्न 6. लिंग वर्ग संबंधों में हम किस वस्तु का अध्ययन करते हैं ?
उत्तर-लिंग वर्ग संबंधों में हम लिंग वर्ग अधीनता का अध्ययन करते हैं।

प्रश्न 7. लिंग वर्ग समाजीकरण की नींव किस पर टिकी हई है ?
उत्तर-लिंग वर्ग समाजीकरण की नींव क्या, क्यों तथा क्या नहीं करना है पर टिकी हुई है।

प्रश्न 8. लिंग वर्ग समाजीकरण क्या है ?
उत्तर-जब समाज अपने बच्चों को लिंग के अनुसार व्यवहार करना सिखाता है, उसे लिंग वर्ग समाजीकरण कहते हैं।

प्रश्न 9. लिंग वर्ग भेदभाव क्या है ?
उत्तर-जब समाज के अलग-अलग क्षेत्रों में लिंग के आधार पर भेदभाव किया जाता है तो उसे लिंग वर्ग भेदभाव कहते हैं।

PSEB 12th Class Sociology Solutions Chapter 6 लिंग असमानता

प्रश्न 10. लिंग अनुपात क्या होता है ?
उत्तर-एक विशेष क्षेत्र में 1000 पुरुषों के पीछे स्त्रियों की संख्या को लिंग अनुपात कहते हैं।

प्रश्न 11. कम होते लिंग अनुपात का मुख्य कारण क्या है ?
उत्तर-कम होते लिंग अनुपात का मुख्य कारण है लिंग आधारित गर्भपात तथा लड़का प्राप्त करने की इच्छा।

III. अति लघु उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
जब हम लिंग वर्ग संबंधों की बात करते हैं तो किसके बारे में सोचते हैं ?
उत्तर-
जब हम लिंग वर्ग संबंधों की बात करते हैं तो चार बातों के बारे में सोचते हैं-

  • पुरुष व स्त्री के बीच असमानताएं।
  • पुरुष शक्ति व स्त्री शक्ति के बीच संबंध।
  • पुरुष शक्ति का स्त्रियों पर प्रभुत्व का अध्ययन करना।
  • आर्थिक तथा राजनीतिक क्षेत्र में स्त्रियों की भागीदारी।

प्रश्न 2.
लिंग तथा लिंग वर्ग में क्या अंतर है ?
उत्तर-
लिंग एक जैविक धारणा है जो पुरुष तथा स्त्री के बीच शारीरिक अंतरों को दर्शाता है जबकि लिंग वर्ग समाज द्वारा बनाई गई एक धारणा है जिसमें वे राजनीतिक, सांस्कृतिक, सामाजिक, मनोवैज्ञानिक तथा आर्थिक प्रस्थापनाएं होती हैं जिनमें स्त्री व पुरुष कार्य करते हैं।

प्रश्न 3.
लिंग वर्ग संबंध का क्या अर्थ है ?
उत्तर-
लिंग वर्ग संबंध का अर्थ है स्त्रियों व पुरुषों के वह संबंध जो विचारधारक, सांस्कृतिक, राजनीतिक तथा आर्थिक मुद्दों पर आधारित होते हैं। इसमें हम लिंग वर्ग प्रभुत्व, स्त्रियों की स्थिति को ऊँचा करने के मुद्दे तथा स्त्रियों से संबंधित समस्या को देखा जाता है।

प्रश्न 4.
लिंग वर्ग संबंधों में हम किन मुद्दों की बात करते हैं ?
उत्तर-
लिंग वर्ग संबंधों में हम कई मुद्दों की बात करते हैं जैसे कि विवाह तथा परिवार की संस्था, विवाह से पहले संबंध, वैवाहिक संबंध, विवाह के बाद बनने वाले संबंध, समलैंगिकता का मुद्दा, तीसरे लिंग का मुद्दा इत्यादि।

प्रश्न 5.
अलग-अलग समाजों में स्त्रियों की अधीनता किस पर निर्भर करती है ?
उत्तर-
अलग-अलग समाजों में स्त्रियों की अधीनता कई मुद्दों पर निर्भर करती है : जैसे कि वर्ग, जाति, धर्म, शिक्षा, सामाजिक-सांस्कृतिक पृष्ठभूमि जिस प्रकार की समाज की प्रकृति होगी उस प्रकार की स्त्रियों की अधीनता होगी।

प्रश्न 6.
लिंग वर्ग समाजीकरण का क्या अर्थ है ?
उत्तर-
लिंग वर्ग समाजीकरण का अर्थ है वह ढंग जिनसे समाज ध्यान रखता है कि बच्चे अपने लिंग से संबंधित ठीक व्यवहार सीखें। यह बच्चों को उनके लिंग अनुसार अलग-अलग समूहों में विभाजित कर देता है। इस प्रकार इससे समाज मानवीय व्यवहार को नियन्त्रित करता है।

प्रश्न 7.
लिंग वर्ग भेदभाव का क्या अर्थ है ?
उत्तर-
सम्पूर्ण जनसंख्या के बड़े हिस्से अर्थात् स्त्रियों से अधीनता, निष्काषन तथा गैर-भागीदारी वाला व्यवहार किया जाता है तथा उन्हें दरकिनार व नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है। इस प्रकार के व्यवहार को लिंग वर्ग भेदभाव कहा जाता है।

प्रश्न 8.
लिंग अनुपात का क्या अर्थ है ?
उत्तर-
एक विशेष क्षेत्र में 1000 पुरुषों की तुलना में मौजूद स्त्रियों की संख्या को लिंग अनुपात का नाम दिया जाता है। 2011 की जनगणना के अनुसार भारत का लिंग अनुपात 1000 : 914 (0-6 वर्ष) था।

IV. लघु उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
अलग-अलग कालों में स्त्रियों की स्थिति।
उत्तर-
वैदिक काल में स्त्रियों की स्थिति काफ़ी अच्छी तथा ऊंची थी। इस काल में स्त्री को धार्मिक तथा सामाजिक कार्यों को पूर्ण करने के लिए आवश्यक माना जाता है। उत्तर वैदिक काल में स्त्रियों का आदर सम्मान कम हो गया।

बाल-विवाह शुरू हो गए जिससे उसे शिक्षा प्राप्त करनी मुश्किल हो गई। स्मृति काल में स्त्री की स्थिति और निम्न हो गई। उसे हर समय निगरानी में रखा जाता था तथा उसका सम्मान केवल मां के रूप में ही रह गया था। मध्य काल में तो जाति प्रथा के कारण उसे कई प्रकार के प्रतिबन्धों के बीच रखा जाता था परन्तु आधुनिक काल में उसकी स्थिति को ऊंचा उठाने के लिए कई प्रकार की आवाजें उठीं तथा आज उसकी स्थिति मर्दो के समान हो गई है।

PSEB 12th Class Sociology Solutions Chapter 6 लिंग असमानता

प्रश्न 2.
स्त्रियों की निम्न स्थिति के कारण।
उत्तर-

  • संयुक्त परिवार प्रथा में स्त्री को घर की चारदीवारी तथा कई प्रकार के प्रतिबन्धों में रहना पड़ता था जिस कारण उसकी स्थिति निम्न हो गई।
  • समाज में मर्दो की प्रधानता तथा पितृ सत्तात्मक परिवार होने के कारण स्त्रियों की स्थिति काफ़ी निम्न हो गई।
  • बाल विवाह के कारण स्त्रियों को शिक्षा ग्रहण करने का मौका प्राप्त नहीं होता था जिससे उनकी स्थिति निम्न हो गई।
  • स्त्रियों के अनपढ़ होने के कारण वे अपने अधिकारों के प्रति जागरूक नहीं थीं तथा उनकी स्थिति निम्न ही रही।
  • स्त्रियां मर्दो पर आर्थिक तौर पर निर्भर होती थीं जिस कारण उन्हें अपनी निम्न स्थिति को स्वीकार करना पड़ता था।

प्रश्न 3.
स्त्रियों की धार्मिक निर्योग्यताएं।
उत्तर-
वैदिक काल में स्त्रियों को धार्मिक कर्म-काण्डों के लिए आवश्यक माना जाता था परन्तु बाल विवाह के शुरू होने से उनका धार्मिक ज्ञान ख़त्म होना शुरू हो गया जिस कारण उन्हें यज्ञों से दूर किया जाने लगा। शिक्षा प्राप्त न कर सकने के कारण उनका धर्म सम्बन्धी ज्ञान ख़त्म हो गया तथा वह यज्ञ तथा धार्मिक कर्मकाण्ड नहीं कर सकती थी। आदमी के प्रभुत्व के कारण स्त्रियों के धार्मिक कार्यों को बिल्कुल ही ख़त्म कर दिया गया। उसको मासिक धर्म के कारण अपवित्र समझा जाने लगा तथा धार्मिक कार्यों से दूर कर दिया गया।

प्रश्न 4.
स्त्रियों की आर्थिक निर्योग्यताएं।
उत्तर-
स्त्रियों को बहुत-सी आर्थिक निर्योग्यताओं का सामना करना पड़ता था। वैदिक काल में तो स्त्रियों को सम्पत्ति रखने का अधिकार प्राप्त था परन्तु समय के साथ-साथ यह अधिकार ख़त्म हो गया। मध्य काल में वह न तो सम्पत्ति रख सकती थी तथा न ही पिता की सम्पत्ति में से हिस्सा ले सकती थी। वह कोई कार्य नहीं कर सकती थी जिस कारण उसे पैसे के सम्बन्ध में स्वतन्त्रता हासिल नहीं थी। आर्थिक तौर पर वह पिता, पति तथा बेटों पर निर्भर थी।

प्रश्न 5.
स्त्रियों की स्थिति में आ रहे परिवर्तन।
उत्तर-

  • पढ़ने-लिखने के कारण स्त्रियां पढ़-लिख रही हैं।
  • औद्योगिकीकरण के कारण स्त्रियां अब उद्योगों तथा दफ्तरों में कार्य कर रही हैं।
  • पश्चिमी संस्कृति के विकास के कारण उनकी मानसिकता बदल रही है तथा उन्हें अपने अधिकारों का पता चल रहा है।
  • भारत सरकार ने उन्हें ऊपर उठाने के लिए कई प्रकार के कानूनों का निर्माण किया है जिस कारण उनकी स्थिति ऊंची हो रही है।

प्रश्न 6.
लिंग।
उत्तर-
साधारणतया शब्द लिंग को पुरुष तथा स्त्री के बीच के शारीरिक तथा सामाजिक अंतरों को बताने के लिए प्रयोग किया जाता है। इसका अर्थ यह है कि मर्द तथा स्त्री में कौन-से शारीरिक अंतर है जोकि प्रकृति से ही प्राप्त होते हैं तथा कौन-से सामाजिक अंतर हैं जोकि दोनों को समाज में रहते हुए प्राप्त होते हैं। इन अंतरों को बताने के लिए शब्द लिंग का प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न 7.
लैंगिक भेदभाव।
उत्तर-
साधारण शब्दों में पुरुष तथा स्त्री में मिलने वाले अंतरों को लैंगिक भेदभाव अथवा अंतर का नाम दिया जाता है। संसार में दो तरह के मनुष्य मर्द तथा स्त्री रहते हैं। किसी भी मनुष्य को उसके शारीरिक लक्षणों के आधार पर देख कर ही पहचाना जा सकता है कि वह पुरुष है अथवा स्त्री। प्रकृति ने भी इनमें कुछ अन्तर किया है। पुरुष तथा स्त्री के अपने-अपने अलग ही शारीरिक लक्षण हैं। इन लक्षणों के आधार पर मर्द तथा स्त्री में अंतर तथा भेदभाव किया जा सकता है। इस प्रकार पुरुष तथा स्त्री में जो अंतर पाया जाता है उसे ही लैंगिक अंतर अथवा भेदभाव का नाम दिया जाता है।

प्रश्न 8.
लैंगिक अंतर का प्राकृतिक कारण।
उत्तर-
लैंगिक अंतर की शुरुआत तो प्रकृति ने ही की है। मनुष्य को भी प्रकृति ने ही बनाया है। प्रकृति ने दो प्रकार के मनुष्यों-पुरुष तथा स्त्री को बनाया है। पुरुषों को प्रकृति ने दाढ़ी, मूंछे, शरीर पर बाल, कठोरता इत्यादि दिए हैं परन्तु स्त्रियों को सुन्दरता, कोमल स्वभाव, प्यार से भरपूर बनाया है। प्रकृति ने ही मनुष्यों को कठोर कार्य, पैसे तथा रोटी कमाने का कार्य दिया है जबकि स्त्रियों को आसान कार्य दिए हैं। इस प्रकार प्रकृति ने ही लैंगिक अंतर उत्पन्न किए हैं।

प्रश्न 9.
लैंगिक भेदभाव का सामाजिक कारक।
उत्तर-
प्रकृति ने तो लैंगिक अंतर उत्पन्न किए हैं परन्तु मनुष्य ने भी सामाजिक तौर पर अंतर उत्पन्न किए हैं। समाज में बहुत से ऐसे कार्य हैं जो पुरुषों के लिए रखे गए हैं स्त्रियों के लिए नहीं। प्राचीन समय से ही स्त्रियों से भेदभाव किया जाता रहा है तथा अंतर रखा जाता रहा है। स्त्रियों को प्राचीन समय से ही शिक्षा तथा सम्पत्ति से दूर रखा गया है। उन्हें केवल घर तक ही सीमित रखा गया है। स्त्रियों से सम्बन्धित निर्णय भी पुरुषों द्वारा लिए जाते हैं तथा उनका स्त्रियों पर पूर्ण नियन्त्रण होता है। चाहे आधुनिक समाजों में यह अंतर कम हो रहा है। परन्तु परम्परागत समाजों में यह अभी भी कायम है।

PSEB 12th Class Sociology Solutions Chapter 6 लिंग असमानता

V. बड़े उत्तरो वाले प्रश्न-

प्रश्न 1.
लिंग का क्या अर्थ है ? समाज का निर्माण करने के रूप में इस की व्याख्या करो।
अथवा
सामाजिक रचना के रूप में लिंग-रूप के ऊपर नोट लिखें।
उत्तर-
साधारणतया शब्द लिंग को आदमी तथा औरत के बीच शारीरिक तथा सामाजिक अन्तर को बताने के लिए प्रयोग किया जाता है। इस का अर्थ यह है कि आदमी तथा औरत के बीच कौन-से शारीरिक अन्तर हैं जोकि प्रकृति से ही प्राप्त होते हैं तथा कौन से सामाजिक अन्तर हैं जोकि दोनों को समाज में रहते हुए प्राप्त होते हैं। इन अन्तरों को बताने के लिए शब्द लिंग का प्रयोग किया जाता है। यदि हम जैविक पक्ष से इसे देखें तो हमें पता चलता है कि आदमी तथा औरत में बहुत से जैविक अन्तर हैं जैसे कि कामुक अंग तथा और अंगों का उभार इत्यादि अथवा आदमी का औरत से अधिक परिश्रम वाले कार्य कर सकना।

इस तरह यदि हम सामाजिक रूप से देखेंगे हमें पता चलता है कि समाज में रहते हुए भी आदमी तथा औरत में बहुत से सामाजिक अन्तर होते हैं। उदाहरणतः पितृसत्तात्मक समाज तथा मातृसत्तात्मक समाज पितृसत्तात्मक समाज में पुरुष का हुक्म चलता है, सभी को पुरुष का कहना मानना पड़ता है, पिता पैसे कमाता है तथा औरत घर की देखभाल करती है पितृसत्तात्मक समाजों में स्त्री की स्थिति बहुत ही निम्न होती है। उस को बच्चों की मां या घर की नौकरानी से बढ़कर स्थिति प्राप्त नहीं होती है। इस तरह पितृसत्तात्मकता समाजों में पिता की स्थिति सबसे उच्च होती है, वही समाज का कर्ताधर्ता होता है तथा वंश भी उस के नाम पर ही चलता है। जायदाद भी पिता के बाद उसके पुत्र को ही प्राप्त होती है। दूसरी तरफ मातृसत्तात्मक समाजों में आदमी की स्थिति औरत से निम्न होती है। समाज तथा परिवार को औरतें चलाती हैं। औरतों को प्रत्येक प्रकार की शक्ति प्राप्त होती है। औरतें ही परिवार को कर्ता-धर्ता होती हैं। वंश मां के नाम पर चलता है। विवाह के बाद आदमी औरत के घर रहने जाता है तथा जायदाद मां के बाद बेटी को या भानजे को प्राप्त होती है।

इस उदाहरण से यह पता चलता है कि सिर्फ जैविक रूप से ही लैंगिक अन्तर नहीं होता बल्कि सामाजिक रूप से भी लिंग अन्तर देखने को मिलता है। हमें समाज में रहते हुए ऐसी बहुत सी उदाहरणें मिल जाएंगी जिनसे हमें लिंग अन्तर के बारे में पता चलेगा। परन्तु समाजशास्त्रियों के अनुसार लिंग का अर्थ कुछ अलग ही है। समाजशास्त्री इस शब्द की सम्पूर्ण व्याख्या करने के पक्ष में हैं तथा इस बात का पता लगाना चाहते हैं कि किस हद तक लैंगिक व्यवहार प्राकृतिक है, सामाजिक है या मनुष्यों द्वारा निर्मित है। समाजशास्त्री लिंग शब्द को दो अर्थों में लेते हैं-

(1) पहला अर्थ है आदमी तथा औरत के बीच कौन-से जैविक तथा शारीरिक अन्तर हैं। इस का अर्थ यह है कि कौन-से जैविक तथा शारीरिक अन्तरों के कारण हम आदमी तथा औरत को एक-दूसरे से अलग कर सकते हैं। यह अन्तर प्राकृतिक होते हैं तथा मनुष्य का इन पर कोई वश नहीं चलता है।

(2) लिंग शब्द का दूसरा अर्थ मनुष्य के व्यवहार तथा भूमिकाओं में सामाजिक तथा सांस्कृतिक अन्तर से है। इस का अर्थ यह है कि समाज में रहते हुए मनुष्यों के व्यवहार में कौन-सा अन्तर होता है जिस से हमें लैंगिक अन्तर (आदमी तथा औरत) का पता चलता है। यह अन्तर समाज में ही निर्मित होते हैं तथा मनुष्य इनका निर्माण करता है।

इस तरह समाजशास्त्री लिंग शब्द का अर्थ दो हिस्सों में लेते हैं। पहले हिस्से में जैविक अन्तर आते हैं जो प्रकृति पर निर्भर करते हैं। दूसरे हिस्से में सामाजिक तथा सांस्कृतिक अन्तर आते हैं जोकि मनुष्य द्वारा ही निर्मित होते हैं जैसे कि प्राचीन समय में स्त्री को उपनयान संस्कार नहीं करने दिया जाता था। परन्तु यहां महत्त्वपूर्ण प्रश्न यह आगे आता है कि समाज में रहते हुए आदमी तथा औरत का व्यवहार जैविक कारणों की तरफ से निर्धारित होता है या सामाजिक सांस्कृतिक कारणों से ? उन दोनों का व्यवहार कौन से कारणों से प्रभावित होता है ? क्या आदमी तथा औरत प्राकृतिक रूप से ही एक-दूसरे से अलग हैं या फिर उनके बीच के अन्तर समाज में ही निर्मित होते हैं ? क्या आदमी जन्म से ही तार्किक तथा तेज़ हैं और औरतें प्राकृतिक रूप से ही शांत तथा सहनशील है क्या सिर्फ आदमी ही घर से बाहर जाकर कार्य करेंगे तथा पैसा कमाएंगे तथा औरतें घर तथा बच्चों की देखभाल करेंगी। क्या औरतें घरों से बाहर जाकर पैसा नहीं कमा सकतीं तथा आदमी घर की देखभाल नहीं कर सकते ? इस तरह के प्रश्न बहुत ही गम्भीर हैं तथा इस प्रकार के प्रश्नों पर गौर करना बहुत ज़रूरी है । इस तरह के प्रश्नों को देखते हुए हमारे सामने इन प्रश्नों को हल करने के लिए दो विचार हमारे सामने आते हैं। पहला विचार प्रकृतिवादियों (Naturists) ने दिया है तथा दूसरा विचार समाजशास्त्रियों (Sociologists) ने दिया है। इन दोनों के विचारों का वर्णन इस प्रकार हैं

(1) प्रकृतिवादी यह विचार देते हैं कि समाज में दोनों ही लिंगों में जो भी सामाजिक सांस्कृतिक अन्तर हैं वह सिर्फ जैविक अन्तरों के कारण है। इसका अर्थ यह है कि दोनों लिंगों के बीच सामाजिक सांस्कृतिक अन्तरों का आधार सामाजिक नहीं बल्कि जैविक है। जो भी अन्तर प्रकृति ने मनुष्यों को दिए हैं उन के कारण ही सामाजिक सांस्कृतिक अन्तर पैदा होते हैं। आदमी को औरत से ज्यादा शक्तिशाली माना जाता है तथा होते भी हैं तथा इस कारण ही वह समाज की व्यवस्था रखते हैं। औरतों को प्रकृति ने बच्चे पैदा करने तथा पालने का कार्य दिया है क्योंकि उनको प्यार, सहनशीलता तथा ध्यान रखने के गुण जन्म से ही प्राप्त होते हैं। उनको सहनशीलता तथा प्यार करना सिखाना नहीं पड़ता बल्कि यह गुण तो प्रत्येक औरत में जन्मजात ही होते हैं। इस तरह आदमी तथा औरत में प्राचीन समाज से ही श्रम विभाजन की व्यवस्था चली आ रही है कि आदमी घर से बाहर जाकर कार्य करेगा या परिश्रम करेगा तथा औरतें घर की देखभाल करेंगी तथा बच्चों का पालन-पोषण करेंगी। इसका कारण यह है कि प्रत्येक मनुष्य को जन्म से ही कुछ कार्य करने के गुण प्राप्त हो जाते हैं तथा वह करता भी है।

प्रकृतिशास्त्रियों का यह विचार डार्विन के उद्विकास के सिद्धान्त का ही एक हिस्सा है। परन्तु यह विचार डार्विन के विचार से भी आगे निकल गया है। प्रकृतिशास्त्रियों का कहना है कि प्रत्येक प्राणी उद्विकास की प्रक्रिया से होकर निकलता है अर्थात् वह छोटे से बड़ा तथा साधारण से जटिल की तरफ बढ़ता है। उदाहरणतः आदमी तथा औरत के संभोग से भ्रूण पैदा होता है तथा उस से धीरे-धीरे वह भ्रूण एक बच्चा बन जाता है। इस तरह प्रत्येक प्राणी निम्न स्तर से शुरू होकर उच्च स्तर की तरफ बढ़ता है। प्राणिशास्त्रियों का कहना है कि जैविक स्तर पर स्त्री तथा पुरुष एक-दूसरे से अलग हैं तथा दोनों ही अलग-अलग प्रकार से जीवन जीते हैं। परन्तु आदमी औरत से अधिक शक्तिशाली हैं इस कारण समाज में उनकी उच्च स्थिति है, उनकी सत्ता चलती है तथा फैसले लेने में उनका सबसे बड़ा हाथ होता है।

परन्तु यहां आकार सामाजिक मानवशास्त्रियों का कहना है कि आदमी तथा औरत में शारीरिक अन्तर हैं परन्तु इन्होंने इन शारीरिक अन्तरों को सामाजिक भूमिकाओं के साथ जोड़ दिया है। मोंक के अनुसार आदमी तथा औरत के बीच शारीरिक अन्तर समाज में लैंगिक श्रम विभाजन का आधार है। इस का अर्थ यह है कि चाहे आदमी तथा औरत के बीच शारीरिक अन्तर हैं परन्तु यह शारीरिक अन्तर ही समाज में आदमी तथा औरत के बीच श्रम विभाजन का आधार भी हैं। इसका कहना था कि आदमी क्योंकि शक्तिशाली होते हैं तथा औरतें बच्चों को पालने में सामर्थ्य होती हैं इस कारण यह श्रम विभाजन ही लैंगिक भूमिकाओं को निर्धारित करता है। इसी तरह पारसंज़ के अनुसार औरतें ही आदमी को प्यार, हमदर्दी, भावनात्मक मज़बूती इत्यादि देती हैं क्योंकि यह गुण उन्हें जन्म से ही प्राप्त हो जाते हैं तथा यही गुण किसी भी बच्चे के समाजीकरण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। आदमी बाहर के कार्य करते हैं तथा औरतें घर के कार्य करती हैं। उसके अनुसार समाज में आदमी तथा औरत के बीच साफ़ तथा स्पष्ट श्रम विभाजन होना चाहिए ताकि सामाजिक व्यवस्था ठीक प्रकार से कार्य कर सके।

परन्तु मर्डोक तथा पारसंज़ के विचारों की भी आलोचना हुई है। कई प्रकृतिशास्त्रियों ने इस विचार का खण्डन किया है कि सामाजिक भूमिका का निर्धारण जैविक अन्तरों के कारण होता है। उन का कहना है कि माता तथा पिता दोनों ही बच्चों का ध्यान रखते हैं तथा ज़रूरत पड़ने पर एक-दूसरे की भूमिका भी निभाते हैं। उनके अनुसार आजकल औरतें भी मर्दो के शक्ति के प्रयोग करने वाले कार्य करने लग गई हैं जैसे सेना में भर्ती होना, खदानों में तथा बड़ी-बड़ी इमारतों के निर्माण के कार्य करना इत्यादि। इस तरह उनका कहना है कि सामाजिक भूमिकाओं का निर्धारण जैविक अन्तरों के . कारण नहीं होता है तथा जैविक अन्तर ही लिंग भूमिका के निर्धारण में महत्त्वपूर्ण है।

PSEB 12th Class Sociology Solutions Chapter 6 लिंग असमानता

(2) समाजशास्त्रीय विचार (Sociological view)—दूसरी तरफ समाजशास्त्रीय विचार प्रकृतिशास्त्रियों के विचार के बिल्कुल ही विपरीत है। वह प्रकृतिशास्त्रियों के इस विचार को बिल्कुल ही नकारते हैं कि जैविक अन्तर ही लिंग भूमिका का निर्धारण करते हैं। वह कहते हैं कि लैंगिक भूमिका जैविक कारणों का कारण निर्धारित नहीं होती बल्कि यह तो समाज में ही निर्मित होती है तथा संस्कृति द्वारा निर्धारित होती है। व्यक्ति को समाज में रहते हुए बहुत-सी भूमिकाएँ निभानी पड़ती हैं। चाहे कई बार यह भूमिका लिंग के आधार पर प्राप्त होती है जैसे कि माता या पिता। परन्तु बहुत-सी भूमिकाएं समाज की संस्कृति के अनुसार व्यक्ति को प्राप्त होती है। उनका कहना है कि हमारे अलग-अलग समाजों में बहुत-सी उदाहरणों से पता चलता है कि बच्चे पैदा करने को छोड़कर समाज में कोई भी कार्य औरतों के लिए आरक्षित नहीं है। इस का अर्थ यह है कि औरतें किसी भी कार्य को कर सकती हैं, उनके लिए कोई विशेष कार्य निर्धारित नहीं है। औरतों का लैंगिक आधार उन को किसी भी कार्य को करने से रोक नहीं सकता वह प्रत्येक प्रकार का कार्य कर सकती हैं। यहां तक कि मां की भूमिका भी समाज तथा संस्कृति द्वारा बनाई गई होती है। हमारे पास बहुतसी उदाहरणें मौजूद हैं जिन से पता चलता है कि जिन बच्चों की मां नहीं होती उन के पिता ही मां की भूमिका भी निभाते हैं। इस तरह समाजशास्त्रियों का विचार है कि लैंगिक भूमिका में निर्धारण में सामाजिक कारकों का बहुत बड़ा हाथ है।

समाज निर्माण में लिंग की भूमिका (Role of Gender in Social Construct)-

लैंगिक भूमिकाएँ जैविक कारणों के कारण नहीं सांस्कृतिक कारणों के कारण पैदा होती हैं। हम दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि मनुष्य समाज में रह कर ही आदमी तथा औरत की भूमिका निभाना सीखते हैं। उनको जन्म के बाद ही पता नहीं लग जाता कि वह लड़का है या लड़की। समाज में रहते-रहते, लोगों के व्यवहार करने के ढंगों से उसको अपने लिंग के बारे में पता चल जाता है। अब हम इसको समाजीकरण के रूप में देखेंगे। व्यक्ति को जंगली से इन्सान बनाने में समाजीकरण का बहुत बड़ा हाथ होता है। समाजीकरण करने में दोनों लिंगों का हिस्सा होता है। इस को लैंगिक समाजीकरण का नाम दिया जाता है।

समाजीकरण (Socialization)—समाजशास्त्र में एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण संकल्प आता है समाजीकरण। समाजीकरण की प्रक्रिया वह प्रक्रिया है जिससे मनुष्य समाज में रहने के तौर-तरीके तथा व्यवहार करने के तरीके सीखता है। इस प्रक्रिया में व्यक्ति समाजिक भूमिकाओं को निभाना सीखता है। इस प्रकार से लैंगिक समाजीकरण वह प्रक्रिया है जिसमें आदमी तथा औरत अपने लिंग के अनुसार व्यवहार करना सीखते हैं। यह वह प्रक्रिया है जो बच्चे के जन्म के बाद ही शुरू हो जाती है तथा व्यक्ति के मरने तक चलती रहती है। हमारी लैंगिक भूमिका बहुत ही जल्दी शुरू हो जाती है तथा बच्चे को ही अपने लिंग के अनुसार भूमिका निभाने का पता चल जाता है। इस प्रक्रिया के कई स्तर हैं तथा यह स्तर इस प्रकार हैं

PSEB 12th Class Sociology Solutions Chapter 6 लिंग असमानता

(1) लिंग सम्बन्धी भूमिका का निर्धारण जन्म के कुछ समय बाद ही शुरू हो जाता है। 1-2 साल के बच्चे को भी इस बारे में पता चल जाता है क्योंकि परिवार के सदस्य उसके साथ उसके लिंग के अनुसार ही व्यवहार करते हैं तथा उसका सम्बोधन भी उसी के अनुसार ही होता है। लड़की के साथ लड़के की तुलना में कुछ कोमल व्यवहार होता है। लड़के को शक्तिशाली तथा लड़कियों से ज्यादा तेज़ समझा जाता है। मां-बाप भी बच्चे के लिंग के अनुसार उस से व्यवहार करते हैं चाहे व्यवहार में अन्तर बहुत कम होता है। दोनों लिंगों के बच्चों को अलग-अलग प्रकार के कपड़े पहनाए जाते हैं, अलग-अलग रंग के कपड़े पहनाए जाते हैं, उनके साथ बोलने का, सम्बोधन का, व्यवहार करने का तरीका भी अलग होता है। यहां तक कि यदि बच्चे को सज़ा देनी होती है तो वह भी उसके लिंग के अनुसार ही दी जाती है। इस तरह जन्म के कुछ समय बाद ही लैंगिक समाजीकरण शुरू हो जाता है तथा सारी उम्र चलता रहता है।

(2) लैंगिक समाजीकरण का दूसरा स्तर बचपन में शुरू हो जाता है जब बच्चा खेल समूह में तथा खेलों में भाग लेता है। बच्चा अपने लिंग के अनुसार ही खेल समूह में भाग लेता है। लड़की, लड़कियों के साथ खेलती है तथा लड़कालड़कों के साथ खेलता है। इस समय पर आकर दोनों लिंगों की खेलों में भी अन्तर आ जाता है। लड़के अधिक परिश्रम वाली खेलें खेलते हैं तथा लड़कियां कम परिश्रम वाली खेलें खेलती हैं। यहां तक कि लड़के को अधिक परिश्रम वाली खेल खेलने के लिए प्रेरित किया जाता है। लड़कों तथा लड़कियों के खेलने वाले खिलौनों में भी अन्तर होता है। लड़के को पिस्तौलैं, बसों, कारों, Outdoor sports की चीजें लेकर दी जाती हैं। इस तरह लड़के तथा लड़कियां अपने समूह के अनुसार व्यवहार करना सीखना शुरू कर देते हैं जिससे उनको समाज में रहने के तरीकों का पता चलना शुरू हो जाता है।

(3) लैंगिक समाजीकरण की प्रक्रिया का तीसरा स्तर है स्कूल जहां बच्चा जीवन के बहुत-से महत्त्वपूर्ण साल व्यतीत करता है। यही समय है जिस में बच्चा या तो बिगड़ जाता है या कुछ सीख जाता है। यह प्रक्रिया परिवार में ही नहीं चलती बल्कि स्कूल में भी पूरे जोर-शोर से चलती रहती है। जितना प्रभाव स्कूल का लैंगिक व्यवहार पर पड़ता है, और किसी भी साधन का नहीं पड़ता है। बच्चे अपने लिंग के अनुसार क्लास में बैठते हैं, एक-दूसरे से व्यवहार करते हैं। लड़कियां, लड़कों से दूर रहती हैं तथा उन से बात भी दूर से ही करती हैं क्योंकि उन को इस बारे में बताया जाता है। लड़के Female अध्यापकों से प्रभावित होते हैं तथा लड़कियां male अध्यापकों से प्रभावित होती हैं। यहां आकर दोनों के बिल्कुल ही अलग समूह बन जाते हैं जिससे समाज के निर्माण में बहुत मदद मिलती है। दोनों अपने लिंग के अनुसार कार्य करना सीख जाते हैं। लड़कों को घर से बाहर के कार्य करने भेजा जाता है तथा लड़कियों को घर के कार्य करने सिखाया जाता है। लड़कियों को साधारणतया Home Science जैसे विषय लेकर दिए जाते हैं तथा लड़कों को Science, Math, Commerce इत्यादि जैसे विषय लेकर दिए जाते हैं। इस तरह समाज निर्माण के मुख्य तत्त्वों का निर्माण इस स्तर पर आकर शुरू हो जाता है।

(4) लैंगिक समाजीकरण का अगला तथा अन्तिम स्तर होता है बालिग लैंगिक समाजीकरण जिस में लड़के तथा लड़कियां एक-दूसरे से बिल्कुल ही अलग हो जाते हैं। बालिग होने पर लड़के अधिक शक्तिशाली कार्य करते हैं तथा लड़कियां साधारणतया औरतों वाले कम परिश्रम वाले कार्य करना ही पसंद करती हैं जैसे पढ़ाना, क्लर्क के कार्य इत्यादि। औरतों को बहुत ही कम उच्च स्थितियां प्राप्त होती हैं, औरतों को कम वेतन तथा कम उन्नति मिलती है। औरतें जल्दी-जल्दी अपनी नौकरी बदलना पसन्द नहीं करती हैं।

इस प्रकार से लिंग के आधार पर दोनों समूह अलग-अलग कार्य करने लग जाते हैं जिससे समाज की व्यवस्था बनी रहती है तथा समाज सही प्रकार से कार्य करता है। यदि दोनों समूहों में कार्य के आधार पर अन्तर न हो तो दोनों लिंगों के कार्य एक-दूसरे में मिल जाएंगे तथा कोई अपना कार्य सही प्रकार से नहीं कर पाएगा। सामाजिक व्यवस्था तथा ढांचा बिल्कुल ही खत्म हो जाएगा। प्रत्येक व्यक्ति अपनी मर्जी के अनुसार कार्य करेगा तथा लैंगिक आधार पर श्रम विभाजन बिल्कुल ही खत्म हो जाएगा। आदमी तथा औरत अपनी ज़िम्मेदारियां तथा भूमिकाएं एक-दूसरे के ऊपर फेंक देंगे तथा कोई भी अपनी ज़िम्मेदारी लेने को तैयार नहीं होगा। इस तरह हम कह सकते हैं कि लिंग का समाज निर्माण के रूप में बहुत बड़ा हाथ है तथा समाज इसी कारण अच्छी प्रकार से कार्य कर रहा है।

प्रश्न 2.
महिलाओं की निम्न स्थिति के क्या कारण हैं ?
उत्तर-
विभिन्न युगों या कालों में स्त्रियों की स्थिति कभी अच्छी या कभी निम्न रही है। वैदिक काल में तो यह बहुत अच्छी थी पर धीरे-धीरे काफ़ी निम्न होती चली गई। वैदिक काल के बाद तो विशेषकर मध्यकाल से लेकर ब्रिटिश काल अर्थात् आज़ादी से पहले तक स्त्रियों की स्थिति निम्न रही है। स्त्रियों की निम्न स्थिति का सिर्फ कोई एक कारण नहीं है बल्कि अनेकों कारण हैं जिनका वर्णन निम्नलिखित है-

1. संयुक्त परिवार प्रणाली (Joint Family System) भारतीय समाज में संयुक्त परिवार प्रथा मिलती है। स्त्रियों की दयनीय स्थिति बनाने में इस प्रणाली की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। इस प्रथा में स्त्रियों को सम्पत्ति रखने या किसी
और प्रकार के सामाजिक अधिकार नहीं होते हैं। स्त्रियों को घर की चारदीवारी में कैद रखना पारिवारिक सम्मान की बात समझी जाती थी। परिवार में बाल विवाह को तथा सती प्रथा को महत्त्व दिया जाता था जिस वजह से स्त्रियों की स्थिति काफ़ी निम्न होती थी।

2. पितृसत्तात्मक परिवार (Patriarchal Family) भारतीय समाज में ज्यादातर पितृसत्तात्मक परिवार देखने को मिल जाते हैं। इस प्रकार के परिवार में परिवार का प्रत्येक कार्य पिता की इच्छा के अनुसार ही होता है। बच्चों के नाम के साथ पिता के वंश का नाम जोड़ा जाता है। विवाह के बाद स्त्री को पति के घर जाकर रहना होता है। पारिवारिक मामलों तथा संपत्ति पर अधिकार पिता का ही होता है। इस प्रकार के परिवार में स्त्री की स्थिति काफ़ी निम्न होती है क्योंकि घर के किसी काम में स्त्री की सलाह नहीं ली जाती है।

3. कन्यादान का आदर्श (Ideal of Kanyadan)-पुराने समय से ही हिन्दू विवाह में कन्यादान का आदर्श प्रचलित रहा है। पिता अपनी इच्छानुसार अपनी लड़की के लिए अच्छा-सा वर ढूंढ़ता है तथा उसे अपनी लड़की दान के रूप में दे देता है। पिता द्वारा किया गया कन्या का यह दान इस बात का प्रतीक है कि पत्नी के ऊपर पति का पूरा अधिकार होता है। इस तरह दान के आदर्श के आधार पर भी स्त्रियों की स्थिति समाज में निम्न ही रही है।

4. बाल विवाह (Child Marriage) बाल विवाह की प्रथा के कारण भी स्त्रियों की स्थिति निम्न रही है। इस प्रथा के कारण छोटी उम्र में ही लड़कियों का विवाह हो जाता है जिस वजह से न तो वह शिक्षा ग्रहण कर पाती हैं तथा न ही उन्हें अपने अधिकारों का पता लगता है। पति भी उन पर आसानी से अपनी प्रभुता जमा लेते हैं जिस वजह से स्त्रियों को हमेशा पति के अधीन रहना पड़ता है।

5. कुलीन विवाह (Hypergamy)-कुलीन विवाह प्रथा के अन्तर्गत लड़की का विवाह या तो बराबर के कुल में या फिर अपने से ऊँचे कुल में करना होता है, जबकि लड़कों को अपने से नीचे कुलों में विवाह करने की छूट होती है। इसलिए लड़की के माता-पिता छोटी उम्र में ही लड़की का विवाह कर देते हैं ताकि किसी किस्म की उन्हें तथा लड़की को परेशानी न उठानी पड़े। इस वजह से स्त्रियों में अशिक्षा की समस्या हो जाती है तथा उनकी स्थिति निम्न ही रह जाती है।

6. स्त्रियों की अशिक्षा (Illiteracy) शिक्षा में अभाव के कारण भी हिन्दू स्त्री की स्थिति दयनीय रही है। बालविवाह के कारण शिक्षा न प्राप्त कर पाना जिसकी वजह से अपने अधिकारों के प्रति जागरूक न होना स्त्रियों की निम्न स्थिति का महत्त्वपूर्ण कारण रहा है। अज्ञान के कारण अनेक अन्धविश्वासों, कुरीतियों, कुसंस्कारों तथा सामाजिक परम्पराओं के बीच स्त्री इस प्रकार जकड़ती गई कि उनसे पीछा छुड़ाना एक समस्या बन गई। स्त्रियों को चारदीवारी के अन्दर रखकर पति को परमेश्वर मानने का उपदेश उसे बचपन से ही पढाया जाता था तथा पूर्ण जीवन सबके बीच में रहते हुए सबकी सेवा करते हुए बिता देना स्त्री का धर्म समझा जाता रहा है। इन सब चीज़ों के चलते स्त्री अपने अधिकारों के प्रति जागरूक नहीं हो पाई तथा उसका स्तर दिन-प्रतिदिन गिरता ही चला गया।

7. स्त्रियों की आर्थिक निर्भरता (Economic Dependency of Women)—पुराने समय से ही परिवार का कर्ता पिता या पुरुष रहा है। इसलिए परिवार के भरण-पोषण या पालन-पोषण का भार उसके कंधों पर ही होता है। स्त्रियों का घर से बाहर जाना परिवार के सम्मान के विरुद्ध समझा जाता था। इसलिए आर्थिक मामलों में हमेशा स्त्री को पुरुष के ऊपर निर्भर रहना पड़ता था। परिणामस्वरूप स्त्रियों की स्थिति निम्न से निम्नतम होती गई।

8. ब्राह्मणवाद (Brahmanism)-कुछ विचारकों का यह मानना है कि हिन्दू धर्म या ब्राह्मणवाद स्त्रियों की निम्न स्थिति का मुख्य कारण है क्योंकि ब्राह्मणों ने जो सामाजिक तथा धार्मिक नियम बनाए थे उनमें पुरुषों को उच्च स्थिति तथा स्त्रियों को निम्न स्थिति दी गई थी। मनु के अनुसार भी स्त्री का मुख्य धर्म पति की सेवा करना है। मुसलमानों ने जब भारत में अपना राज्य बनाया तो उनके पास स्त्रियों की कमी थी क्योंकि वह बाहर से आए थे तथा उन्हें हिन्दू स्त्रियों से विवाह पर कोई आपत्ति नहीं थी। इस वजह से हिंदू स्त्रियों को मुसलमानों से बचाने के लिए हिन्दुओं ने विवाह सम्बन्धी नियम और कठोर कर दिए। बाल विवाह को बढ़ावा दिया गया तथा विधवा पुनर्विवाह पर प्रतिबन्ध लगा दिए गए। सती प्रथा तथा पर्दा प्रथा को बढ़ावा दिया गया जिस वजह से स्त्रियों की स्थिति और निम्न होती चली गई।

PSEB 12th Class Sociology Solutions Chapter 6 लिंग असमानता

प्रश्न 3.
स्त्रियों को जीवन में कौन-सी निर्योग्यताओं का सामना करना पड़ता था ?
उत्तर-
यह माना जाता है कि मर्दो तथा स्त्रियों की स्थिति और संख्या लगभग समान है तथा इस कारण वैदिक काल में दोनों को बराबर अधिकार प्राप्त थे। परन्तु समय के साथ-साथ युग बदलते गए तथा स्त्रियों की स्थिति में परिवर्तन आता गया। स्त्रियों की स्थिति निम्न होती गई तथा उन पर कई प्रकार के प्रतिबन्ध लगा कर कई प्रकार की निर्योग्यताएं थोप दी गईं। स्त्री का सम्मान केवल माता के रूप में ही रह गया। स्त्रियों से सम्बन्धित कुछ निर्योग्यताओं का वर्णन इस प्रकार है-

1. धार्मिक निर्योग्यताएं (Religious disabilities)-वैदिक काल में स्त्रियों की स्थिति बहुत ही अच्छी थी तथा उन्हें किसी भी प्रकार की निर्योग्यता का सामना नहीं करना पड़ता था। स्त्रियों को धार्मिक कार्य के लिए काफ़ी महत्त्वपूर्ण समझा जाता था क्योंकि यह माना जाता था कि धार्मिक यज्ञों तथा और कई प्रकार के कर्मकाण्डों को पूर्ण करने के लिए स्त्री आवश्यक है। स्त्रियों के बिना यज्ञ तथा और कर्मकाण्ड पूर्ण नहीं हो सकते। इसके साथ ही स्त्रियां शिक्षा प्राप्त करती थी तथा शिक्षा धर्म के आधार पर होती थी। इसलिए उन्हें धार्मिक ग्रन्थों का पूर्ण ज्ञान होता था।

परन्तु समय के साथ-साथ स्त्रियों की स्थिति में परिवर्तन आया तथा उनकी सामाजिक स्थिति निम्न होने लगी। बाल विवाह होने के कारण उनका धार्मिक ज्ञान खत्म होना शुरू हो गया जिस कारण उनको यज्ञ से दूर किया जाने लग गया। क्योंकि वह शिक्षा प्राप्त नहीं कर सकती थी इस कारण धर्म के सम्बन्ध में उनकी जानकारी खत्म हो गई। अब वह यज्ञ नहीं कर सकती थी तथा धार्मिक कर्मकाण्ड भी पूर्ण नहीं कर सकती थी। मर्द के प्रभुत्व के कारण स्त्रियों के धार्मिक कार्यों को बिल्कुल ही खत्म कर दिया गया। उसका धर्म केवल परिवार तथा पति की सेवा करना ही रह गया। इस प्रकार स्त्रियों को धार्मिक शिक्षा से भी अलग कर दिया गया क्योंकि उसको मासिक धर्म के कारण अपवित्र समझा जाने लग गया। इस ढंग से यह धार्मक निर्योग्यताएं स्त्रियों के ऊपर थोपी गईं। .

2. सामाजिक निर्योग्यताएं (Social disabilities) धार्मिक निर्योग्यताओं के साथ-साथ स्त्रियों के लिए सामाजिक निर्योग्यताओं की शुरुआत भी हुई। काफ़ी प्राचीन समय से स्त्रियों को बाल विवाह के कारण शिक्षा प्राप्त नहीं होती थी। शिक्षाप्राप्त न करने की स्थिति में वह किसी प्रकार की नौकरी भी नहीं कर सकती थी, क्योंकि नौकरी प्राप्त करने के लिए शिक्षा ज़रूरी समझी जाती है। बाल विवाह के कारण शिक्षा प्राप्त करने के समय तो लड़की का विवाह हो जाता था। इसलिए वह शिक्षा भी प्राप्त नहीं कर सकती थी।

समाज में स्त्रियों से सम्बन्धित कई प्रकार की सामाजिक कुरीतियां भी प्रचलित थीं। सबसे पहली कुरीति थी बाल विवाह । छोटी आयु में ही लड़की का विवाह कर दिया जाता था जिस कारण वह न तो पढ़ सकती थी तथा न ही बाहर के कार्य कर सकती थी। इस कारण वह घर की चारदीवारी में ही सिमट के रह गई थी।
बाल विवाह के साथ-साथ पर्दा प्रथा भी प्रचलित थी। स्त्रियां सभी मर्दो के सामने नहीं आ सकती थीं। यदि किसी कारण आना भी पड़ता था तो उसे लम्बा सा पर्दा करके आना पड़ता था। सती प्रथा तो काफ़ी प्राचीन समय से चली आ रही थी। यदि किसी स्त्री का पति मर जाता था तो उस स्त्री के लिए अकेले ही जीवन जीना नर्क समान समझा जाता था। इसलिए स्त्री अपने पति की चिता पर ही बैठ जाती थी तथा वह सती हो जाती थी। विधवा पुनर्विवाह वैदिक काल में तो होते थे परन्तु वह बाद में बन्द हो गए। विधवा होने के कारण स्त्रियों के लिए सती प्रथा भी 19वीं सदी तक चलती रही। मुसलमानों के भारत में राज्य करने के बाद उन्होंने हिन्दू स्त्रियों से विवाह करने शुरू कर दिए। हिन्दू स्त्रियों को मुसलमानों से बचाने के लिए ब्राह्मणों ने स्त्रियों पर कई प्रकार के प्रतिबन्ध लगा दिए। इस तरह स्त्रियों पर सामाजिक तौर पर कई प्रकार की निर्योग्यताएं थोप दी गई थीं।

3. पारिवारिक निर्योग्यताएं (Familial disabilities) स्त्रियों को परिवार से सम्बन्धित कई प्रकार की निर्योग्यताओं का सामना करना पड़ता था। चाहे अमीर परिवारों में तो स्त्रियों की स्थिति अच्छी थी परन्तु ग़रीब परिवार में तो स्त्रियों की स्थिति काफ़ी निम्न थी। विधवा स्त्री को परिवार के किसी भी उत्सव में भाग लेने नहीं दिया जाता था। पत्नी को दासी समझा जाता था। छोटी-सी गलती पर पत्नी को पीटा जाता था। पत्नी का धर्म पति तथा परिवार की सेवा करना होता था। सास तथा ससुर भी बह पर काफ़ी अत्याचार करते थे। स्त्री हमेशा ही पुरुष पर निर्भर करती थी। विवाह से पहले पिता पर, विवाह के बाद पति पर तथा बुढ़ापे के समय वह बच्चों पर निर्भर होती थी। परिवार पितृ प्रधान होते थे जिस कारण परिवार के किसी भी निर्णय में उसकी सलाह नहीं ली जाती थी। यहां तक कि उसके विवाह के निर्णय भी पिता ही लेता था। इस तरह औरत को दासी या पैर की जूती समझा जाता था।

4. आर्थिक निर्योग्यताएं (Economic disabilities)-स्त्रियों को बहुत-सी आर्थिक निर्योग्यताओं का भी सामना करना पड़ता था। वैदिक काल में तो स्त्रियों को सम्पत्ति रखने का अधिकार प्राप्त था परन्तु समय के साथ ही यह अधिकार खत्म हो गया। मध्य काल में तो वह न तो सम्पत्ति रख सकती थी तथा न ही पिता की सम्पत्ति में से हिस्सा ले सकती थी। संयुक्त परिवार में सम्पत्ति पर सभी मर्दो का अधिकार होता था। बँटवारे के समय स्त्रियों तथा लड़कियों को कोई हिस्सा नहीं दिया जाता था। वह कोई कार्य नहीं करती थी केवल परिवार में ही रहकर परिवार की देखभाल करती थी। इस कारण उसे पैसे से सम्बन्धित कोई स्वतन्त्रता नहीं थी। आर्थिक तौर पर वह पिता, पति तथा लड़कों पर ही निर्भर थी।

इस प्रकार हम देख सकते हैं कि स्त्रियों को समाज में कई प्रकार की निर्योग्यताओं का सामना करना पड़ता था चाहे वैदिक काल में स्त्रियों पर कोई निर्योग्यता नहीं थी तथा उसको बहुत-से अधिकार प्राप्त थे, परन्तु समय के साथ-साथ यह सभी अधिकार खत्म हो गए तथा अधिकारों की जगह उन पर निर्योग्यताएं थोप दी गई।

PSEB 12th Class Sociology Solutions Chapter 6 लिंग असमानता

प्रश्न 4.
स्वतन्त्रता के बाद स्त्रियों की स्थिति सुधारने के क्या प्रयास किए गए ?
उत्तर-
देश की आधी जनसंख्या स्त्रियों की है। इसलिए देश के विकास के लिए यह भी ज़रूरी है कि उनकी स्थिति में सुधार लाया जाये। उनसे संबंधित कुप्रथाओं तथा अन्धविश्वासों को समाप्त किया जाए। स्वतन्त्रता के बाद भारत के संविधान में कई ऐसे प्रावधान किये गये जिनसे महिलाओं की स्थिति में सुधार हो। उनकी सामाजिक स्थिति बेहतर बनाने के लिए अलग-अलग कानून बनाए गए। आजादी के बाद देश की महिलाओं के उत्थान, कल्याण तथा स्थिति में सुधार के लिए निम्नलिखित प्रयास किए गए हैं-

1. संवैधानिक प्रावधान (Constitutional Provisions) महिलाओं की स्थिति सुधारने के लिए संविधान में निम्नलिखित प्रावधान है-

  • अनुच्छेद 14 के अनुसार कानून के सामने सभी समान हैं।
  • अनुच्छेद 15 (1) द्वारा धर्म, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर किसी भारतीय से भेदभाव की मनाही है।
  • अनुच्छेद 15 (3) के अनुसार राज्य महिलाओं तथा बच्चों के लिए विशेष प्रावधान करें।
  • अनुच्छेद 16 के अनुसार राज्य रोजगार तथा नियुक्ति के मामलों में सभी भारतीयों को समान अवसर प्रदान करें।
  • अनुच्छेद 39 (A) के अनुसार राज्य पुरुषों तथा महिलाओं को आजीविका के समान अवसर उपलब्ध करवाए।
  • अनुच्छेद 39 (D) के अनुसार पुरुषों तथा महिलाओं को समान कार्य के लिए समान वेतन दिया जाए।
  • अनुच्छेद 42 के अनुसार राज्य कार्य की न्यायपूर्ण स्थिति उत्पन्न करें तथा अधिक-से-अधिक प्रसूति सहायता प्रदान करें।
  • अनुच्छेद 51 (A) (E) के अनुसार स्त्रियों के गौरव का अपमान करने वाली प्रथाओं का त्याग किया जाए।
  • अनुच्छेद 243 के अनुसार स्थानीय निकायों-पंचायतों तथा नगरपालिकाओं में एक तिहाई स्थानों को महिलाओं के लिए आरक्षित करने का प्रावधान है।

2. कानून (Legislations)-महिलाओं के हितों की सुरक्षा तथा उनकी सामाजिक स्थिति सुधारने के लिए कई कानूनों का निर्माण किया गया जिनका वर्णन निम्नलिखित है-

  • सती प्रथा निवारण अधिनियम, 1829, 1987 (The Sati Prohibition Act)
  • हिन्दू विधवा पुनर्विवाह अधिनियम 1856 (The Hindu Widow Remarriage Act)
  • बाल विवाह अवरोध अधिनियम (The Child Marriage Restraint Act)
  • हिन्दू स्त्रियों का सम्पत्ति पर अधिकार (The Hindu Women’s Right to Property Act) 1937.
  • विशेष विवाह अधिनियम (Special Marriage Act) 1954.
  • हिन्दू विवाह तथा विवाह विच्छेद अधिनियम (The Hindu Marriage and Divorce Act) 1955 & 1967.
  • हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम (The Hindu Succession Act) 1956.
  • दहेज प्रतिबन्ध अधिनियम (Dowry Prohibition Act) 1961, 1984, 1986.
  • मातृत्व हित लाभ अधिनियम (Maternity Relief Act) 1961, 1976.
  • मुस्लिम महिला तलाक के अधिकारों का संरक्षण अधिनियम (Muslim Women Protection of Rights of Divorce) 1986.

पीछे दिए कानूनों में से चाहे कुछ आज़ादी से पहले बनाए गए थे पर उनमें आज़ादी के बाद संशोधन कर लिए गए हैं। इन सभी विधानों से महिलाओं की सभी प्रकार की समस्याओं जैसे दहेज, बाल विवाह, सती प्रथा, सम्पत्ति का उत्तराधिकार इत्यादि का समाधान हो गया है तथा इनसे महिलाओं की स्थिति सुधारने में मदद मिली है।

3. महिला कल्याण कार्यक्रम (Women Welfare Programmes)-स्त्रियों के उत्थान के लिए आज़ादी के बाद कई कार्यक्रम चलाए गए जिनका वर्णन निम्नलिखित है-

  • 1975 में अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया गया तथा उनके कल्याण के कई कार्यक्रम चलाए गए।
  • 1982-83 में ग्रामीण महिलाओं को आर्थिक तौर पर मज़बूत करने के लिए डवाकरा कार्यक्रम चलाया जा रहा है।
  • 1986-87 में महिला विकास निगम की स्थापना की गई ताकि अधिक-से-अधिक महिलाओं को रोज़गार के अवसर प्राप्त हों।
  • 1992 में राष्ट्रीय महिला आयोग का पुनर्गठन किया गया ताकि महिलाओं के ऊपर बढ़ रहे अत्याचारों को रोका जा सके।

4. देश में महिला मंडलों की स्थापना की गई। यह महिलाओं के वे संगठन हैं जो ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं के कल्याण के लिए कार्यक्रम चलाते हैं। इन कार्यक्रमों पर होने वाले खर्च का 75% पैसा केन्द्रीय समाज कल्याण बोर्ड देता है।

5. शहरों में कामकाजी महिलाओं को समस्या न आए इसीलिए सही दर पर रहने की व्यवस्था की गई है। केन्द्रीय समाज कल्याण बोर्ड ने होस्टल स्थापित किए हैं ताकि कामकाजी महिलाएं उनमें रह सकें।

6. केन्द्रीय समाज कल्याण मण्डल ने सामाजिक आर्थिक कार्यक्रम देश में 1958 के बाद से चलाने शुरू किए ताकि ज़रूरतमंद, अनाथ तथा विकलांग महिलाओं को रोजगार उपलब्ध करवाया जा सके। इसमें डेयरी कार्यक्रम भी शामिल हैं।
इस तरह आजादी के पश्चात् बहुत सारे कार्यक्रम चलाए गए हैं ताकि महिलाओं की सामाजिक स्थिति को ऊपर उठाया जा सके। अब महिला सशक्तिकरण में चल रहे प्रयासों की वजह से भारतीय महिलाओं का बेहतर भविष्य दृष्टिगोचर होता है।

प्रश्न 5.
भारतीय स्त्रियों की स्थिति में आए परिवर्तनों के कारणों तथा स्त्रियों की वर्तमान स्थिति का वर्णन करो।
अथवा
क्या आधुनिक समयों में औरत की स्थिति में कुछ सुधार हुआ है ?
उत्तर-
आज के समय में भारतीय महिलाओं की स्थिति में काफ़ी परिवर्तन आए हैं। महिलाओं की जो स्थिति आज से 50 साल पहले थी उसमें तथा आज की महिला की स्थिति में काफ़ी फर्क है। आज महिलाएं घर की चारदीवारी से बाहर निकल कर बाहर दफ्तरों में काम कर रही हैं। पर यह परिवर्तन किसी एक कारण की वजह से नहीं आया है। इसके कई कारण हैं जिनका वर्णन निम्नलिखित है-

1. स्त्रियों की साक्षरता दर में वृद्धि (Improvement in the literacy rate of women)-आज़ादी से पहले स्त्रियों की शिक्षा की तरफ कोई ध्यान नहीं देता था पर आज़ादी के पश्चात् भारत सरकार की तरफ से स्त्रियों की शिक्षा के स्तर को बढ़ाने के लिए कई उपाय किए गए जिस वजह से स्त्रियों की शिक्षा के स्तर में काफ़ी वृद्धि हुई। सरकार ने लड़कियों को पढ़ाने के लिए मुफ्त शिक्षा, छात्रवृत्तियां प्रदान की, मुफ़्त किताबों का प्रबन्ध किया ताकि लोग अपनी लड़कियों को स्कूल भेजें। इस तरह धीरे-धीरे स्त्रियों में शिक्षा का प्रसार हुआ तथा उनका शिक्षा स्तर बढ़ने लगा। आजकल हर क्षेत्र में लड़कियाँ उच्च शिक्षा प्राप्त कर रही हैं। शिक्षा की वजह से उनके विवाह भी देर से होने लगे जिस वजह से उनका जीवन स्तर ऊंचा उठने लगा। आज लड़कियां भी लड़कों की तरह बढ़-चढ़ कर शिक्षा ग्रहण करती हैं। इस तरह स्त्रियों की स्थिति में परिवर्तन का सबसे बड़ा कारण उनमें शिक्षा का प्रसार है।

2. औद्योगीकरण (Industrialization)-आज़ादी के बाद औद्योगीकरण का बहुत तेज़ी से विकास हुआ। शिक्षा प्राप्त करने की वजह से औरतें भी घर की चारदीवारी से बाहर निकल कर नौकरियां करने लगीं जिस वजह से उनके ऊपर से पाबंदियां हटने लगीं। औरतें दफ्तरों में और पुरुषों के साथ मिलकर काम करने लगीं जिस वजह से जाति प्रथा की पाबंदियां खत्म होनी शुरू हो गईं। औरों के साथ मेल-जोल से प्रेम विवाह के प्रचलन बढ़ने लगे। दफ्तरों में काम करने की वजह से उनकी पुरुषों पर से आर्थिक निर्भरता कम हो गई जिस वजह से स्त्रियों की स्थिति में काफ़ी सुधार हुआ। इस तरह औरतों की स्थिति सुधारने में औद्योगीकरण की भी महत्त्वपूर्ण भूमिका है।

PSEB 12th Class Sociology Solutions Chapter 6 लिंग असमानता

3. पश्चिमी संस्कृति (Western Culture)-आजादी के बाद भारत पश्चिमी देशों के संपर्क में आया जिस वजह से वहां के विचार, वहां की संस्कृति हमारे देश में भी आयी। महिलाओं को उनके अधिकारों, उनकी आजादी के बारे में पता चला जिस वजह से उनकी विचारधारा में परिवर्तन आना शुरू हो गया। इस संस्कृति की वजह से अब महिलाएं पुरुषों के साथ कंधे-से-कंधा मिला कर खड़ी होनी शुरू हो गईं। दफ्तरों में काम करने की वजह से औरतें आर्थिक तौर पर आत्मनिर्भर हो गईं तथा उनमें मर्दो के साथ समानता का भाव आने लगा। कुछ महिला आन्दोलन भी चले जिस वजह से महिलाओं में जागरूकता आ गई तथा उनकी स्थिति में परिवर्तन आना शुरू हो गया।

4. अंतर्जातीय विवाह (Inter Caste Marriage)-आज़ादी के बाद 1955 में हिन्दू विवाह कानून पास हुआ जिससे अन्तर्जातीय विवाह को कानूनी मंजूरी मिल गई। शिक्षा के प्रसार की वजह से औरतें दफ्तरों में काम करने लग गईं, घर से बाहर निकलीं जिस वजह से वह और जातियों के संपर्क में आईं। प्रेम विवाह, अन्तर्जातीय विवाह होने लगे जिस वजह से लोगों की विचारधारा में परिवर्तन आने लग गए। इस वजह से अब लोगों की नजरों में औरतों की स्थिति ऊँची होनी शुरू हो गई। औरतों की आत्मनिर्भरता की वजह से उन्हें और सम्मान मिलने लगा। इस तरह अन्तर्जातीय विवाह की वजह से दहेज प्रथा या वर मूल्य में कमी होनी शुरू हो गई तथा स्त्रियों की स्थिति में परिवर्तन आना शुरू हो गया।

5. संचार तथा यातायात के साधनों का विकास (Development in the means of communication and transport)-आजादी के बाद यातायात तथा संचार के साधनों में विकास होना शुरू हुआ। लोग एक-दूसरे के सम्पर्क में आने शुरू हो गए। लोग गांव छोड़कर दूर-दूर शहरों में जाकर रहने लगे जिस वजह से वे और जातियों के सम्पर्क में आए। इसके साथ ही कुछ नारी आन्दोलन चले तथा सरकारी कानून भी बने ताकि महिलाओं का शोषण न हो सके। इन साधनों के विकास की वजह से स्त्रियां पढ़ने लगीं, नौकरियां करने लगी तथा लोगों की विचारधारा में धीरे-धीरे परिवर्तन होने शुरू हो गए।

6. विधानों का निर्माण (Formation of Laws)-चाहे आजादी से पहले भी महिलाओं के उत्थान के लिए कई कानूनों का निर्माण हुआ था पर वह पूरी तरह लागू नहीं हुए थे क्योंकि हमारे देश में विदेशी सरकार थी। पर 1947 के पश्चात् भारत सरकार ने इन कानूनों में संशोधन किए तथा उन्हें सख्ती से लागू किया। इसके अलावा कुछ और नए कानून भी बने जैसे कि हिन्दू विवाह कानून, हिन्दू उत्तराधिकार कानून, दहेज प्रतिबन्ध कानून इत्यादि ताकि स्त्रियों का शोषण होने से रोका जा सके। इन कानूनों की वजह से स्त्रियों का शोषण कम होना शुरू हो गया तथा स्त्रियां अपने आपको सुरक्षित महसूस करने लग गईं। अब कोई भी स्त्रियों का शोषण करने से पहले दस बार सोचता है क्योंकि अब कानून स्त्रियों के साथ है। इस तरह कानूनों की वजह से भी स्त्रियों की स्थिति में काफ़ी परिवर्तन आए हैं।

7. संयुक्त परिवार का विघटन (Disintegration of Joint Family) यातायात तथा संचार के साधनों के विकास, शिक्षा, नौकरी, दफ्तरों में काम, अपने घर या गांव या शहर से दूर काम मिलना तथा औद्योगीकरण की वजह से संयुक्त परिवारों में विघटन आने शुरू हो गए। पहले संयुक्त परिवारों में स्त्री घर में ही घुट-घुट कर मर जाती थी पर शिक्षा के प्रसार तथा दफ्तरों में नौकरी करने की वजह से हर कोई संयुक्त परिवार छोड़कर अपना केन्द्रीय परिवार बसाने लगा जो कि समानता पर आधारित होता है। संयुक्त परिवार में स्त्री को पैर की जूती समझा जाता है पर केंद्रीय परिवारों में स्त्री की स्थिति पुरुषों के समान होती है जहां स्त्री आर्थिक या हर किसी क्षेत्र में पुरुषों के साथ कंधे-से-कंधा मिलाकर खड़ी होती है। इस तरह संयुक्त परिवारों के विघटन ने भी स्त्रियों की स्थिति में परिवर्तन करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की है।

लिंग असमानता PSEB 12th Class Sociology Notes

  • हम सभी समाज, परिवार व सम्बन्धों में रहते हैं तथा हमने परिवार में रहते हुए पुरुषों को स्त्रियों से बातें करते हुए सुना होगा। इस बातचीत में शायद हमें कभी लगा होगा कि घर की स्त्रियों के साथ भेदभाव हो रहा है। यह लिंग आधारित भेदभाव ही लैंगिक भेदभाव है।
  • शब्द लिंग वर्ग (Gender) समाज की तरफ से बनाया गया है तथा यह संस्कृति का योगदान है। लिंग वर्ग एक समाजशास्त्रीय शब्द है जिसमें राजनीतिक, सांस्कृतिक, सामाजिक, मनोवैज्ञानिक तथा आर्थिक रूप से स्त्री तथा पुरुष के बीच रिश्तों की नींव रखी जाती है। इसका अर्थ है कि जब हम सामाजिक सांस्कृतिक रूप से पुरुष स्त्री के संबंधों की बात करते हैं तो लिंग वर्ग शब्द सामने आता है।
  • लिंग तथा लिंग वर्ग शब्दों में अंतर होता है। शब्द लिंग एक जैविक शब्द है जो बताता है कि कौन पुरुष है या कौन स्त्री। परन्तु लिंग अंतर वह व्यवहार है जो सामाजिक प्रथाओं से बनता है।
  • जब हम लिंग संबंधों की बात करते हैं इसका अर्थ है स्त्री-पुरुष के वह रिश्ते जो विचारधारा, संस्कृति, राजनीतिक तथा आर्थिक मुद्दों पर आधारित होते हैं। लिंग संबंधों में हम लिंग अधीनता का अध्ययन करते हैं कि कौन-सा लिंग दूसरे पर हावी होता है।
  • हमारा समाज पुरुष प्रधान समाज है जिसमें स्त्रियों के साथ कई प्रकार से भेदभाव किया जाता है। चाहे हमारे संविधान ने हमें समानता का अधिकार दिया है परन्तु आज भी बहुत से अधिकार हैं जो स्त्रियों को नहीं दिए जाते।
  • पितृप्रधान परिवार वह परिवार होता है जिसमें पिता की प्रधानता होती है तथा उसकी ही आज्ञा चलती है। परिवार
    के सभी निर्णय पिता लेता है तथा पुरुषों को स्त्रियों से ऊँचा समझा जाता है।
  • लिंग वर्ग समाजीकरण का वह तरीका है जिसमें समाज यह ध्यान रखता है कि बच्चे अपने लिंग के अनुसार सही व्यवहार करना सीख जाएं। यह बच्चों को भी अलग-अलग वर्गों में विभाजित करते हैं कि वह लड़का है या लड़की। इस प्रकार समाज लिंग वर्ग समाजीकरण के साथ व्यक्ति के व्यवहार को नियन्त्रित करता है।
  • लिंग वर्ग भेदभाव हमारे समाज के लिए कोई नई बात नहीं है। यह सदियों से चलता आ रहा है। स्त्रियों के साथ कई ढंगों से भेदभाव किया जाता है जिससे स्त्रियों को काफ़ी कुछ सहना पड़ता है। अगर बच्चों के लिंग अनुपात (0-6 वर्ष) की बात करें तो 2011 में यह 1000 : 914 था अर्थात् 1000 लड़कों के पीछे 914 लड़कियां थीं।
  • यह भेदभाव हम शिक्षा के क्षेत्र में भी देख सकते हैं। 2011 में देश की साक्षरता दर 74% थी जिसमें 82% पुरुष तथा 65% स्त्रियां शिक्षित थीं। आज भी देश के अंदरूनी भागों में लोग लड़कियों को पढ़ने के लिए स्कूल नहीं भेजते।
  • हमारे देश में स्त्रियों को बहुत सी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। बलात्कार, अपहरण, वेश्यावृत्ति, बेच देना, छेड़छाड़, घरेलू हिंसा, दहेज, तंग करना इत्यादि कुछ ऐसी समस्याएं हैं जिनसे स्त्रियों को रोजाना दो-चार होना पड़ता है।
  • लिंग वर्ग भूमिका (Gender Role) लिंग वर्ग भूमिका का अर्थ है वह व्यवहार जो प्रत्येक समाज में लिंग ‘ वर्ग से संबंधित होता है।
  • लिंग वर्ग भेदभाव (Gender Discrimination)-जनसंख्या के एक हिस्से से अधीनता, निष्कासन तथा भाग न लेने वाला व्यवहार विशेषतया स्त्रियां तथा उन्हें दरकिनार एवं नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है।
  • ट्रांसजेंडर (Transgender)-व्यक्तियों का वह वर्ग जिनमें पुरुषों व स्त्रियों दोनों के गुण मौजूद होते हैं।
  • समाजीकरण (Socialization) तमाम आयु चलने वाली व सीखने वाली वह प्रक्रिया जिसमें व्यक्ति समाज में जीवन जीने के तरीके, संस्कृति इत्यादि सीखते हैं तथा उन्हें अगली पीढ़ी को सौंप देते हैं।
  • पितृपक्ष की प्रबलता (Patriarchy) समाज का वह प्रकार जिसमें पुरुषों के हाथों में सत्ता होती है तथा स्त्रियों को इससे बाहर रखा जाता है। घर के सबसे बड़े पुरुष के हाथों में सत्ता होती है तथा परिवार का वंश
    सत्ता के नाम से चलता है।
  • शिशु लिंग अनुपात (Child Sex Ratio)-इसका अर्थ है 1000 लड़कों (0-6 वर्ष) के पीछे लड़कियों (0-6 वर्ष) की संख्या । 2011 में यह 1000 : 914 था।
  • लिंग अनुपात (Sex Ratio)- इसका अर्थ है 1000 पुरुषों के पीछे स्त्रियों की संख्या। 2011 में यह 1000 : 943 था।

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 27 संघीय कार्यपालिका-राष्ट्रपति

Punjab State Board PSEB 11th Class Political Science Book Solutions Chapter 27 संघीय कार्यपालिका-राष्ट्रपति Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Political Science Chapter 27 संघीय कार्यपालिका-राष्ट्रपति

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
भारत के राष्ट्रपति का निर्वाचन किस प्रकार किया जाता है ?
(How is the President of India elected ?)
उत्तर-
भारतीय संविधान के अन्तर्गत भारतीय संघ की समस्त कार्यपालिका शक्तियां राष्ट्रपति को दी गई हैं। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 52 के अधीन भारतीय राज्य संगठन में राष्ट्रपति का पद निश्चित किया गया है। वह राज्य का अध्यक्ष है और भारत का समस्त शासन उसी के नाम पर चलता है। वह देश का सर्वोच्च अधिकारी तथा भारत का प्रथम नागरिक भी कहलाता है।

योग्यताएं (Qualifications)—राष्ट्रपति के पद के लिए के पद के लिए चुनाव लड़ सकता है जिसमें निम्नलिखित योग्यताएं हों

  1. वह भारत का नागरिक हो।
  2. वह 35 वर्ष की आयु पूरी कर चुका हो।
  3. वह सभी योग्यताएं रखता हो जो संसद् का सदस्य बनने के लिए आवश्यक हैं।
  4. वह भारत सरकार या किसी राज्य सरकार या किसी स्थानीय सरकार के अधीन किसी लाभदायक पद पर आसीन न हो।M
  5. विधानमण्डल का सदस्य नहीं होना चाहिए।

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 27 संघीय कार्यपालिका-राष्ट्रपति (1)

5 जून, 1997 को राष्ट्रपति ने एक अध्यादेश जारी करके राष्ट्रपति का चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवार के लिए जमानत .. की राशि 2500 से बढ़ा कर 15 हज़ार रुपये कर दी है।
इस अध्यादेश के अनुसार राष्ट्रपति के पद के लिए उम्मीदवार का नाम 50 मतदाताओं द्वारा प्रस्तावित तथा 50 मतदाताओं द्वारा अनुमोदित होना अनिवार्य है।

चुनाव (Election)-भारत के राष्ट्रपति का चुनाव एक चुनाव मण्डल द्वारा होता है जिसमें लोकसभा के निर्वाचित सदस्य, राज्यसभा के निर्वाचित सदस्य तथा राज्य की विधान सभाओं के निर्वाचित सदस्य भाग लेते हैं। चुनाव एकल संक्रमणीय मत प्रणाली द्वारा आनुपातिक प्रतिनिधित्व (Proportional Representation Single Transferable Vote System) के आधार पर होता है। संविधान के अनुसार, जहां तक सम्भव हो सकेगा, राष्ट्रपति के चुनाव में भिन्नभिन्न राज्यों को समान प्रतिनिधित्व दिया जाएगा। इसी तरह जहां तक हो सकेगा, संसद् के सदस्यों तथा राज्यों को समान प्रतिनिधित्व दिया जाएगा तथा संसद् के सदस्यों तथा राज्य की विधानसभाओं के सदस्यों की वोटों में समानता होगी। दूसरे शब्दों में, राष्ट्रपति के चुनाव में एक सदस्य एक मत’ (One Member One Vote) M गई, न ही अपनाई जा सकती थी। वैसे एक मतदाता को केवल एक ही मत मिलता है, परन्तु इसके मत की गणना नहीं होती, बल्कि उसका मूल्यांकन होता है। मतों की संख्या निम्न वर्णित तरीकों से ज्ञात की जाती है-

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 27 संघीय कार्यपालिका-राष्ट्रपति (2)

पहले राज्य की सारी जनसंख्या को विधानसभा में कुल चुने हुए सदस्यों की संख्या से भाग देकर भजनफल (Quotient) को 1000 से बांट दिया जाए।

(1) राज्य की विधानसभा के प्रत्येक निर्वाचित सदस्य के मतों की संख्या
PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 27 संघीय कार्यपालिका-राष्ट्रपति (3) यदि शेष 500 से अधिक हो तो पूरा गिन लिया जाता है और 500 से कम हो तो उसकी गिनती नहीं होती।
उदाहरण के लिए 2017 में पंजाब की जनसंख्या 1,35,51,060 थी और विधानसभा के निर्वाचित सदस्य 117 थे जिस कारण प्रत्येक सदस्य को 117 मत डालने का अधिकार प्राप्त था।

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 27 संघीय कार्यपालिका-राष्ट्रपति (4) लोकसभा तथा राज्यसभा के प्रत्येक सदस्य के राष्ट्रपति के चुनाव में वोट निकालने के लिए दोनों सदनों में चुने हुए सदस्यों की कुल संख्या में राज्यों की विधानसभाओं की सारी वोटों को बांट दिया जाता है।

(2) संसद् के प्रत्येक निर्वाचित सदस्य के मतों की संख्या =
PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 27 संघीय कार्यपालिका-राष्ट्रपति (5)समस्त राज्यों की विधानसभाओं के समस्त मतों की संज्या संसद् के दोनों सदनों के निर्वाचित सदस्यों की संज्या

उदाहरणस्वरूप, यदि समस्त राज्यों की विधानसभाओं के सदस्यों द्वारा कुल 4,24,856 मत डाले गए हैं और संसद् के निर्वाचित सदस्यों की संख्या 705 हो तो संसद् के प्रत्येक निर्वाचित सदस्य को \(\frac{424856}{705}=602 \frac{446}{705}=603\) मत देने का अधिकार होगा।

2017 के राष्ट्रपति के चुनाव में राज्यों की विधानसभाओं में सदस्यों के कुल मतों की संख्या 5,49,495 थी। संसद् के निर्वाचित सदस्यों की संख्या = 776 (लोकसभा 543 + राज्यसभा 233)
प्रत्येक सदस्य के मत =\(\frac{5,49,511}{776}\) = 708
संसद् के कुल सदस्यों के मत = 5,49,408
राष्ट्रपति के निर्वाचन मण्डलों के सदस्यों के कुल मत = 10,98,903
जुलाई 2017 में हुए राष्ट्रपति के चुनाव में कुल मतों की संख्या 10,98,903 थी।

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 27 संघीय कार्यपालिका-राष्ट्रपति

राष्ट्रपति के चुनाव की प्रक्रिया (Procedure of Electing President)-राष्ट्रपति के चुनाव की प्रक्रिया का वर्णन संविधान में नहीं किया गया है बल्कि इस सम्बन्ध में कानून बनाने का अधिकार संसद् को दिया गया। भारतीय संसद् ने 1952 में राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति निर्वाचन एक्ट पास किया, जिसे 1974 में संशोधित किया गया। राष्ट्रपति के चुनाव की विधि निम्नलिखित हैं-

  • राष्ट्रपति के चुनाव की अधिसूचना (Notification regarding the election of President) राष्ट्रपति का चुनाव कराने की शक्ति निर्वाचन आयोग के पास है। निर्वाचन आयोग राष्ट्रपति के चुनाव के बारे में अधिसूचना जारी करता है जिसमें नामांकन-पत्रों के भरने, उनकी जांच-पड़ताल करने, उन्हें वापस लेने तथा चुनाव की तिथि इत्यादि निर्धारित करने का वर्णन किया जाता है।
  • निर्वाचन अधिकारी की नियुक्ति (Appointment of Returning Officer)—निर्वाचन आयोग केन्द्रीय सरकार से सलाह करके निर्वाचन अधिकारी की नियुक्ति करता है और निर्वाचन अधिकारी की सहायता के लिए सहायक निर्वाचन अधिकारी नियुक्त करता है।
  • नामांकन-पत्रों का प्रवेश करना, उनकी जांच-पड़ताल और उन्हें वापस लेना (Filling of Nomination Papers, their Scrutiny and Withdrawal)—निश्चित तिथि से पहले उम्मीदवार नामांकन-पत्र भरने शुरू कर देते हैं और प्रवेश-पत्रों को भरने की तिथि समाप्त होने के बाद नामांकन-पत्रों की जांच-पड़ताल की जाती है कि उम्मीदवार निश्चित योग्यताओं को पूरा करते हैं या नहीं। जिस उम्मीदवार का नामांकन-पत्र ठीक नहीं होता उसे रद्द कर दिया जाता है।
  • मतदान (Polling)—निश्चित तिथि को राष्ट्रपति के चुनाव के लिए मतदान दिल्ली और राज्यों की राजधानियों में होता है। संसद् के सदस्य दिल्ली में मतदान करते हैं और विधानसभाओं के सदस्य राज्यों की राजधानियों में मतदान करते हैं। संसद् के सदस्य अपने राज्य की राजधानियों में मतदान कर सकते हैं। 1974 के कानून के अनुसार संसद् के सदस्य को अपने राज्य के मतदान केन्द्र पर वोट डालने के लिए कम-से-कम 10 दिन पहले चुनाव आयोग को सूचना देनी पड़ती है। मतदान के पश्चात् मतों की पेटियों को सील करके दिल्ली निर्वाचन अधिकारी के पास भेज दिया जाता है।
  • मतगणना और चुनाव परिणाम (Counting of Votes and Declaration of Results) निश्चित तिथि को निर्वाचन अधिकारी के ऑफिस में मतों की गिनती की जाती है। मतों की गिनती के पश्चात् चुनाव परिणाम घोषित किया जाता है।
    आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के कारण चुनाव जीतने वाले उम्मीदवारों को मतों का निश्चित कोटा प्राप्त करना पड़ता है। कोटा निश्चित करने के लिए अग्रलिखित विधि अपनाई जाती है।

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 27 संघीय कार्यपालिका-राष्ट्रपति (6)

यदि किसी चुनाव में कुल 8,40,000 मत डाले जाएं तो एक उम्मीदवार को चुनाव जीतने के लिए कम-से-कम \(\frac{8,40,000}{1+1}+1=4,20,001\) अवश्य मिलने चाहिए अर्थात् राष्ट्रपति पद पर चुने जाने के लिए यह आवश्यक है कि उम्मीदवार को मतों का पूर्ण बहुमत अवश्य प्राप्त होना चाहिए।

सबसे पहले उम्मीदवारों को प्रथम पसन्द (First Preference) वाले मतों को गिना जाता है। यदि पहले गिनती में किसी उम्मीदवार को कोटा प्राप्त नहीं होता तो सबसे कम वोटों वाले उम्मीदवार को पराजित घोषित कर दिया जाता है और उसकी वोटों को दूसरी पसन्द के अनुसार हस्तांतरित (Transfer) कर दिया जाता है। यदि फिर भी किसी को कोटा प्राप्त न हो सके तो फिर जो सबसे कम वोटों वाला उम्मीदवार होगा उसे पराजित घोषित कर दिया जाएगा और उसकी वोटों को दूसरी पसन्द के अनुसार हस्तांतरित कर दिया जाएगा। यह क्रिया तब तक चलती रहेगी जब तक किसी एक उम्मीदवार को पूर्ण बहुमत प्राप्त नहीं हो जाता।।

अब तक हुए राष्ट्रपति के चुनाव-अब तक राष्ट्रपति सम्बन्धी कुल 15 चुनाव हुए हैं। इनका ब्योरा इस प्रकार है। दो बार डॉ० राजेन्द्र प्रसाद जी का, एक बार डॉ० राधाकृष्णन जी का, एक बार डॉ० जाकिर हुसैन जी का, एक बार डॉ० वी० वी० गिरी जी का, एक बार फखरुद्दीन अली अहमद का, एक बार श्री संजीवा रेड्डी का, एक बार ज्ञानी जैल सिंह का, एक बार डॉ० आर० वेंकटरमण का, एक बार डॉ० शंकर दयाल शर्मा और एक बार श्री के० आर० नारायणन का चुनाव हुआ। पहले चारों चुनावों में पहली मतगणना में ही सफल उम्मीदवार को कोटा प्राप्त हो गया था, परन्तु श्री वी० वी० गिरि के चुनाव के समय उन्हें कोटा दूसरी गणना (Second Count) में ही प्राप्त हो सका। 17 अगस्त, 1974 को हुए राष्ट्रपति चुनाव में श्री फखरुद्दीन अली अहमद को 765587 मत प्राप्त हुए जबकि उनके निकटतम विरोधी श्री त्रिविद कुमार चौधरी को 189196 मत प्राप्त हुए। जुलाई 1977 में श्री संजीवा रेड्डी को सर्वसम्मति से राष्ट्रपति बनाया गया। यह पहला अवसर था जब राष्ट्रपति के पद के लिए चुनाव नहीं हुआ।

जुलाई, 1982 में कांग्रेस (आई) के उम्मीदवार ज्ञानी जैल सिंह अपने एकमात्र प्रतिद्वन्द्वी विपक्ष के संयुक्त उम्मीदवार श्री हंस राज खन्ना को 4,71,428 मूल्य के मतों से पराजित कर देश के सातवें राष्ट्रपति निर्वाचित हुए। ज्ञानी जैल सिंह को 8,54,113 मूल्य के मत तथा श्री खन्ना को 2,82,685 मूल्य के मत मिले। जुलाई, 1987 में कांग्रेस (इ) के उम्मीदवार आर० वेंकटरमण ने विपक्षी उम्मीदवार न्यायाधीश अय्यर को हराया। जुलाई, 1992 में कांग्रेस (इ) के उम्मीदवार उप-राष्ट्रपति डॉ० शंकर दयाल शर्मा भारत के नौवें राष्ट्रपति चुने गए। उन्होंने विपक्ष के उम्मीदवार जी० जी० स्वैल को 3,29,379 मतों से पराजित किया। जुलाई, 1997 में, राष्ट्रपति के पद के लिए 11वीं बार चुनाव हुआ। संयुक्त मोर्चा, कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी के सांझा उम्मीदवार उप-राष्ट्रपति के० आर० नारायणन ने शिव सेना के उम्मीदवार भूतपूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त टी० एन० शेषण को 9 लाख से अधिक मतों से पराजित किया। श्री के० आर० नारायणन प्रथम दलित हैं, जो राष्ट्रपति पद के लिए चुने गए। राष्ट्रपति के लिए 12वां चुनाव जुलाई, 2002 में हुआ।

राष्ट्रीय जनतान्त्रिक गठबन्धन, कांग्रेस एवं समाजवादी पार्टी के सांझा उम्मीदवार डॉ० पी० जे० अब्दुल कलाम ने वाम दलों की उम्मीदवार कैप्टन लक्ष्मी सहगल को हराया। इस चुनाव में डॉ० कलाम को निर्वाचक मण्डल के 4152 मत प्राप्त हुए जबकि श्रीमति सहगल को 459 मत प्राप्त हुए। जुलाई, 2007 में राष्ट्रपति के लिए 13वीं बार चुनाव हुआ। इस चुनाव में संयुक्त प्रगतिशील गठबन्धन की उम्मीदवार श्रीमती प्रतिभा देवी सिंह पाटिल ने स्वतन्त्र उम्मीदवार श्री भैरों सिंह शेखावत को हराया। राष्ट्रपति के पद के लिए 14वां चुनाव जुलाई, 2012 में हुआ। इस चुनाव में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन के उम्मीदवार श्री प्रणव मुखर्जी ने, जिन्हें समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, शिवसेना एवं जनता दल (यू) का भी समर्थन प्राप्त था, श्री पी० ए० संगमा को हराया। श्री प्रणव मुखर्जी को 713763 (60%) मत प्राप्त हुए, जबकि श्री पी० ए० संगमा को 315987 (31%) मत प्राप्त हुए। राष्ट्रपति के पद के लिए 15वां चुनाव जुलाई, 2017 में हुआ। इस चुनाव में राष्ट्रीय जनतान्त्रिक गठबन्धन के उम्मीदवार श्री रामनाथ कोविंद राष्ट्रपति चुने गए। उन्होंने संयुक्त प्रगतिशील गठबन्धन की उम्मीदवार श्रीमती मीरा कुमार को हराया।

चुनाव प्रणाली की आलोचना (Criticism of the Electoral System) –
राष्ट्रपति की चुनाव प्रणाली की निम्नलिखित आधारों पर आलोचना की गई है–

1. अप्रजातन्त्रात्मक विधि (Undemocratic Method)-आलोचकों का कहना है कि राष्ट्रपति की चुनाव विधि अप्रजातन्त्रात्मक है क्योंकि राष्ट्रपति का चुनाव प्रत्यक्ष जनता द्वारा नहीं होता, परन्तु हमें यह बात नहीं भूलनी चाहिए कि भारत जैसे विशाल देश के लिए राष्ट्रपति का प्रत्यक्ष जनता द्वारा चुनाव कराना आसान नहीं है।

2. जटिल विधि (Complex Method)-राष्ट्रपति के चुनाव की विधि बड़ी जटिल है, जिसे समझना आसान नहीं है।

3. यह आनुपातिक प्रतिनिधित्व एकल संक्रमणीय प्रणाली नहीं है (It is not Proportional Representation and Single Transferable Vote System)-आलोचकों का कहना है कि राष्ट्रपति की चुनाव विधि को आनुपातिक प्रतिनिधित्व तथा एकल संक्रमणीय प्रणाली का नाम देना उचित नहीं है क्योंकि आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के लिए चुनाव क्षेत्र बहुसदस्यीय होना चाहिए, परन्तु राष्ट्रपति के चुनाव में में सीट एक होती है। अतः आनुपातिक प्रणाली की एक अनिवार्य आवश्यकता राष्ट्रपति चुनाव प्रणाली पूर्ण नहीं करती।

4. अस्पष्टता (Not Clear)-राष्ट्रपति की चुनाव प्रणाली में कई बातें अस्पष्ट हैं। उदाहरणस्वरूप, यदि उम्मीदवारों की संख्या दो से अधिक हो तथा किसी को भी पहली गिनती में पूर्ण बहुमत न मिले और साथ ही यदि मतदाताओं ने अपनी दूसरी पसन्द न दी हो तो उस अवस्था में चुनाव का निर्णय किस प्रकार किया जाएगा इस विषय में संविधान में कुछ नहीं लिखा गया है।

राष्ट्रपति के चुनाव सम्बन्धी विवाद (Dispute regarding Election of the President)-राष्ट्रपति का चुनाव सम्बन्धी विवाद केवल सुप्रीम कोर्ट द्वारा सुना जा सकता है। चुनाव में खड़ा कोई भी उम्मीदवार या कम-से-कम दस निर्वाचकों द्वारा सुप्रीम कोर्ट में राष्ट्रपति के चुनाव को चुनौती दी जा सकती है। रिट का आधार सफल उम्मीदवार द्वारा रिश्वतखोरी, निर्वाचकों पर अनुचित प्रभाव, संविधान और राष्ट्रपति निर्वाचन सम्बन्धी कानून का उल्लंघन हो सकता है। डॉ० जाकिर हुसैन तथा श्री वी० वी० गिरि के चुनाव को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी परन्तु सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव सम्बन्धी रिटों को रद्द कर दिया।

कार्यकाल (Term of Office)-राष्ट्रपति अपने पद पर पांच वर्ष के लिए चुना जाता है और यह समय उस दिन से आरम्भ होता है जिस दिन राष्ट्रपति अपने पद पर आसीन होता है। उसे दोबारा चुने जाने का अधिकार है। भारत में डॉ० राजेन्द्र प्रसाद ने तीसरी बार चुनाव लड़ने से इन्कार कर दिया तो यह आशा की गई थी कि कोई भी राष्ट्रपति तीसरी क्योंकि डॉ० राधाकृष्णन दूसरी बार खड़े नहीं हुए।

पांच वर्ष की अवधि से पहले केवल तीन कारणों से ही उसका पद खाली हो सकता है-(1) यदि वह स्वयं त्यागपत्र दे दे, (2) यदि उसकी मृत्यु हो जाए तथा (3) यदि उसे महाभियोग द्वारा पद से हटा दिया जाए।

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 27 संघीय कार्यपालिका-राष्ट्रपति

वेतन तथा भत्ते (Salary and Allowances)-राष्ट्रपति को 5,00,000 रु० मासिक वेतन मिलता है। राष्ट्रपति को मिलने वाले वेतन पर आय कर देना पड़ता है। राष्ट्रपति को रहने के लिए बिना किराए के निवास स्थान मिलता है। इसके अतिरिक्त राष्ट्रपति को कई अन्य भत्ते मिलते हैं। सेवानिवृत्ति के बाद उसे 2,50,000 रुपये मासिक पेंशन मिलती है।

राष्ट्रपति को वेतन तथा भत्ते भारत की संचित निधि (Consolidated Fund of India) से मिलते हैं। उनका वेतन, भत्ते तथा दूसरी सुविधाएं उनके कार्यकाल में घटाई नहीं जा सकती।

प्रश्न 2.
भारतीय राष्ट्रपति के अधिकारों और कार्यों का उल्लेख कीजिए।
(Describe the powers and duties of the President of India.)
अथवा
संकटकालीन शक्तियों को छोड़ कर भारत के राष्ट्रपति की शक्तियों का उल्लेख करें।
(Explain the powers of the President of India, other than emergency.)
उत्तर-
भारत में संसदीय शासन-प्रणाली की व्यवस्था है । संघ की सभी कार्यपालिका शक्तियां संविधान की धारा 53 के अनुसार राष्ट्रपति को दी गई हैं, जिनका प्रयोग वह स्वयं या अपने अधीनस्थ अधिकारियों की सहायता से कर सकता है। परन्तु वास्तव में संसदीय शासन व्यवस्था होने के कारण वह अपनी शक्तियों का प्रयोग अपनी इच्छानुसार न करके मन्त्रिमण्डल की सहायता से ही करता है ।

राष्ट्रपति की शक्तियां (Powers of the President)-राष्ट्रपति को मुख्य रूप से संघ की सभी कार्यपालिका शक्तियां मिली हुई हैं। इनके अतिरिक्त अन्य प्रकार की शक्तियां भी उसके पास हैं । वास्तव में भारत का समस्त शासन उसी ने नाम पर चलता है। उसकी शक्तियां को हम दो भागों में बांट सकते हैं-(क) शान्तिकालीन शक्तियां, तथा (ख) संकटकालीन शक्तियां।

(क) शान्तिकालीन शक्तियां (Powers in Normal Times)-राष्ट्रपति को शान्ति के समय जो शक्तियां मिली हुई हैं, वे भी कई प्रकार की हैं :

(1) कार्यपालिका शक्तियां (Executive Powers)
(2) विधायनी शक्तियां (Legislative Powers)
(3) वित्तीय शक्तियां (Financial Powers)
(4) न्यायिक शक्तियां (Judicial Powers) ।

1. कार्यपालिका शक्तियां (Executive Powers)-राष्ट्रपति को निम्नलिखित कार्यपालिका शक्तियां प्राप्त हैं :

(i) प्रशासकीय शक्तियां (Administrative Powers)-भारत का समस्त प्रशासन उसी के नाम पर चलाया जाता है और भारत सरकार के सभी निर्णय औपचारिक रूप से उसी के नाम पर लिए जाते हैं । देश का सर्वोच्च शासक होने के नाते वह नियम तथा अधिनियम भी बनाता है ।
(ii) मन्त्रिपरिषद् से सम्बन्धित शक्तियां (Powers relating to Council of Ministers)-राष्ट्रपति प्रधानमन्त्री को नियुक्त करता है और उसके परामर्श से मन्त्रिमण्डल के अन्य मन्त्रियों को नियुक्त करता है । वह मन्त्रियों को पदच्युत कर सकता है परन्तु प्रधानमन्त्री की सलाह पर ही वह यह कार्य कर सकता है ।
(iii) नियुक्तियां करने की शक्तियां (Powers of making Appointments)—सभी महत्त्वपूर्ण नियुक्तियां राष्ट्रपति द्वारा की जाती हैं । अटॉर्नी जनरल, चुनाव कमिश्नर, महालेखा परीक्षक, (Auditor and Comptroller General), संघीय लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष तथा दूसरे सदस्य, यदि राज्यों का सांझा लोक सेवा आयोग हो तो उनका प्रधान तथा दूसरे सदस्य, सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश तथा अन्य न्यायाधीशों तथा उच्च न्यायाधीशों तथा अन्य न्यायाधीशों, विदेशों को भेजे जाने वाले राजदूतों, राज्य के राज्यपालों तथा संघीय क्षेत्रों का राज्य-प्रबन्ध चलाने के लिए चीफ कमिश्नर तथा उप राज्यपाल आदि की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है । राष्ट्रपति को कई प्रकार के आयोगों जैसे कि भाषा आयोग, वित्त आयोग, चुनाव आयोग, अनुसूचित जातियों, कबीलों तथा पिछड़े हुए वर्गों के सम्बन्ध में आयोग आदि निर्माण करने का भी अधिकार है ।
(iv) सैनिक शक्तियां (Military Powers)-राष्ट्रपति राष्ट्र की सशस्त्र सेनाओं का सर्वोच्च सेनापति है । वह स्थल सेना, जल सेना और वायु सेनाध्यक्षों को नियुक्त करता है । वह फील्ड मार्शल की उपाधि भी प्रदान करता है । वह राष्ट्रीय रक्षा समिति का अध्यक्ष है ।

(v) विदेशी सम्बन्धों की शक्तियां (Powers relating to Foreign Affairs)-राष्ट्रपति को विदेशी मामलों में भी बहुत-से-अधिकार प्राप्त हैं । अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में वह भारत का प्रतिनिधित्व करता है । दूसरे देशों को भेजे जाने वाले राजदूत उसी के द्वारा नियुक्त किए जाते हैं और अन्य देशों के राजदूतों को भारत में वही स्वीकार करता है। राष्ट्रपति युद्ध और शान्ति की घोषणा कर सकता है ।

(vi) राज्य सरकारों को निर्देश देने की शक्ति (Powers of issuing directions to State Governments)राष्ट्रपति को राज्यों के आपसी सम्बन्धों के बारे में कुछ निर्देश जारी करने और उन पर नियन्त्रण रखने तथा उनमें सहयोग उत्पन्न करने के भी कुछ अधिकार हैं। वह राज्य सरकारों को संघीय कानून के उचित पालन के लिए आदेश दे सकता है । आदिम जन-जाति क्षेत्रों के प्रशासन के लिए असम और नागालैंड के राज्यपाल राष्ट्रपति के एजेन्ट के रूप में काम करते हैं।

(vii) संघीय प्रदेशों का प्रशासन (Administration of Union Territories) केन्द्रीय प्रदेशों (Union Territories) का प्रशासन राष्ट्रपति के नाम पर ही चलता है ।

2. विधायिनी शक्तियां (Legislative Powers)-यद्यपि राष्ट्रपति संसद् का सदस्य नहीं होता फिर भी उसे संसद् का अभिन्न अंग होने के कारण वैधानिक शक्तियां प्राप्त हैं ।
राष्ट्रपति की विधायिनी शक्तियों का उल्लेख निम्नलिखित प्रकार से किया जा सकता है :

(i) राष्ट्रपति की संसद् के अधिवेशन बुलाने और सत्रावसान सम्बन्धी शक्तियां-राष्ट्रपति ही संसद् के दोनों सदनों का अधिवेशन बुला सकता है, अधिवेशन का समय बढ़ा सकता है तथा उसे स्थगित कर सकता है । राष्ट्रपति ही अधिवेशन के स्थान और समय को निश्चित करता है। वह जब चाहे अधिवेशन बुला सकता है, परन्तु यह आवश्यक है कि पिछले अधिवेशन की अन्तिम बैठक और अगले अधिवेशन की पहली बैठक में छ: महीने से अधिक अन्तर नहीं होना चाहिए।

(ii) राष्ट्रपति द्वारा संसद् में भाषण-राष्ट्रपति संसद् के दोनों सदनों में अलग-अलग या दोनों के सम्मिलित अधिवेशन को सम्बोधित कर सकता है । नई संसद् का पहला तथा वर्ष का पहला अधिवेशन राष्ट्रपति के भाषण से ही आरम्भ होता है जिसमें राष्ट्रपति संसद् को उन उद्देश्यों की सूचना देता है जिनके लिए कि अधिवेशन बुलाया गया है राष्ट्रपति अपने भाषण में सरकार की गृह-नीति, विदेश-नीति तथा अन्य नीतियों पर प्रकाश डालता है ।

(iii) राज्यसभा के 12 सदस्य मनोनीत करना-राष्ट्रपति राज्यसभा के लिए ऐसे 12 सदस्यों को मनोनीत करता है । जिन्हें साहित्य, विज्ञान, कला या सामाजिक सेवा के बारे में विशेष ज्ञान या व्यावहारिक अनुभव होता है ।

(iv) लोकसभा में एंग्लो-इण्डियन को मनोनीत करना-राष्ट्रपति को 2 एंग्लो इण्डियन को लोकसभा का सदस्य मनोनीत करने के अधिकार प्राप्त है बशर्ते कि इस समुदाय को निर्वाचन द्वारा समुचित प्रतिनिधित्व प्राप्त नहीं हो पाया हो ।

(v) संसद् द्वारा पास किए गए बिलों पर स्वीकृति-दोनों सदनों के पास होने के बाद बिल राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए आता है तथा उसकी स्वीकृति के बिना कानून नहीं बन सकता । धन विधेयक (Money Bill) पर उसे स्वीकृति देनी पड़ती है क्योंकि धन-बिल राष्ट्रपति की सिफ़ारिश पर ही पेश होते हैं । साधारण बिलों पर उसे निषेधाधिकार (Veto Power) का अधिकार प्राप्त है अर्थात् वह साधारण बिल पर अपनी स्वीकृति देने से इन्कार कर सकता है, स्वीकृति रोक सकता है तथा बिल को संसद् में वापस भेज सकता है। परन्तु यदि दूसरी बार संसद् साधारण बहुमत से बिल को पास कर देती है तो राष्ट्रपति को अपनी स्वीकृति देनी पड़ती है । 1987 में राष्ट्रपति ज्ञानी जैन सिंह ने भारतीय डाकघर (संशोधन) विधेयक को न तो स्वीकृति दी और न ही संसद् को वापस भेजा ।

(vi) कुछ बिल राष्ट्रपति की पूर्व अनुमति से संसद् में पेश किए जा सकते हैं-धन बिल और कुछ बिल जैसे कि नए राज्यों को बनाने तथा वर्तमान राज्यों के नाम और सीमा में परिवर्तन करने से सम्बन्ध रखने वाले बिल राष्ट्रपति की सिफ़ारिश के बिना संसद् में पेश नहीं किए जा सकते । व्यापार पर प्रतिबन्ध लगाने वाले विधेयक इसी प्रकार का विधेयक है।

(vii) लोकसभा को भंग करने की शक्ति-लोकसभा की अवधि पांच वर्ष है, परन्तु राष्ट्रपति निश्चित अवधि से पहले भी लोकसभा को भंग कर सकता है । राष्ट्रपति अपनी इस शक्ति का प्रयोग प्रधानमन्त्री की सलाह से करता है । 26 अप्रैल, 1999 को राष्ट्रपति के० आर० नारायणन ने प्रधानमन्त्री अटल बिहारी वाजपेयी की सलाह पर लोक सभा को भंग किया था।

(vii) राज्य विधानमण्डलों द्वारा पास कुछ बिल राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए सुरक्षित रखे जाते हैं-गवर्नर राज्य विधानमण्डल द्वारा पास किए गए ऐसे बिलों के जिनका उद्देश्य निजी सम्पत्ति का अनिवार्य अर्जन हो या उच्च न्यायालय की शक्तियां को कम करना हो या संसद् द्वारा घोषित की गई आवश्यक वस्तुओं पर क्रय-विक्रय कर लगाना हो इत्यादि, राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए सुरक्षित रख सकता है ।

(ix) अध्यादेश जारी करना-जब संसद् का अधिवेशन न हो रहा हो और परिस्थितियां इस बात को बाध्य करती हों तो राष्ट्रपति को अध्यादेश (Ordinance) जारी करने का अधिकार है । यह अध्यादेश उसी शक्ति और प्रभाव के साथ लागू होते हैं जिस प्रकार कि संसद् द्वारा बनाए गए अधिनियम । परन्तु संसद् का अधिवेशन आरम्भ होते ही ये उसके सामने रखे जाने आवश्यक हैं और अधिवेशन आरम्भ होने की तिथि से लेकर 6 सप्ताह तक वह अध्यादेश जारी रह सकता है । 6 सप्ताह पश्चात् अध्यादेश समाप्त हो जाएगा । इसके पहले भी संसद् अध्यादेश को रद्द कर सकती है और राष्ट्रपति भी जब चाहे उसे वापस ले सकता है। यदि संविधान की धाराओं को अच्छी तरह पढ़ा जाए तो इसका भाव निकलता है कि राष्ट्रपति द्वारा जारी किया गया अध्यादेश पूरे 772 मास तक चल सकता है । राष्ट्रपति को अध्यादेश जारी करने की पूर्ण छूट है तथा उसके निर्णय को किसी न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती ।

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 27 संघीय कार्यपालिका-राष्ट्रपति

(x) सन्देश भेजने का अधिकार-राष्ट्रपति संसद् के किसी भी सदन को सन्देश भेज सकता है । जिस सदन को राष्ट्रपति द्वारा सन्देश भेजा जा सकता है । वह शीघ्र ही उस सन्देश पर विचार करता है । सन्देश किसी ऐसे विधेयक के साथ जो या तो संसद् के समक्ष विचाराधीन हो अथवा जो महत्त्वपूर्ण हो, भेजा जाता है ।

3. वित्तीय शक्तियां (Financial Powers)—राष्ट्रपति को काफ़ी महत्त्वपूर्ण वित्तीय अधिकार प्रदान किए गए हैं:-

  • बजट पेश करना-सरकारी आय-व्यय का वार्षिक बजट राष्ट्रपति ओर से संसद् के समक्ष प्रस्तुत किया जाता
  • वित्त बिल प्रस्तुत करने की अनुमति देता है-राष्ट्रपति की स्वीकृति के बिना कोई वित्त बिल संसद में पेश नहीं किया जा सकता । उसकी अनुमति के बिना किसी वित्तीय अनुदान की मांग नहीं की जा सकती ।
  • आकस्मिक निधि पर नियन्त्रण-भारत की आकस्मिक निधि (Contingency Fund of India) राष्ट्रपति के अधीन है । इस निधि से वह किसी भी आकस्मिक खर्च के लिए संसद् की स्वीकृति से पूर्व ही धनराशि खर्च कर सकता है।
  • आयकर से होने वाली आय तथा पटसन के निर्यात कर से हुई आय का वितरण-राष्ट्रपति आय कर से होने वाली आय में विभिन्न राज्यों के भाग को निर्धारित करता है तथा यह भी निश्चित करता है कि पटसन के निर्यात कर की आय में से कुछ राज्यों को बदले में क्या धनराशि मिलनी चाहिए ।
  • राष्ट्रपति वित्त आयोग की नियुक्ति करता है ।

4. न्यायिक शक्तियां (Judicial Powers)-राष्ट्रपति को बहुत-सी न्यायिक शक्तियां भी प्राप्त हैं-

  • राष्ट्रपति को न्यायालयों द्वारा दण्डित व्यक्तियों के सम्बन्ध में क्षमा प्रदान (Pardon) करने और उनकी सज़ा को कम करने का अधिकार प्राप्त है अर्थात् राष्ट्रपति किसी अपराधी की सज़ा न केवल पूर्ण रूप से क्षमा कर सकता है बल्कि उसे कुछ दिनों के लिए लागू होने से रोक सकता है या उसके स्वरूप को परिवर्तित कर सकता है। 8 नवम्बर, 1997 को राष्ट्रपति के० आर० नारायणन ने निरंकारी संत बाबा गुरबचन सिंह की हत्या में अपराधी ठहराए गए अकाल तख्त के जत्थेदार भाई रणजीत सिंह को माफ़ी दी।
  • राष्ट्रपति राज्यों के उच्च न्यायालयों तथा सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्तियां करता है।
  • राष्ट्रपति किसी भी विषय में सर्वोच्च न्यायालय की सलाह ले सकता है । सर्वोच्च न्यायालय को ऐसे विषयों पर सलाह देनी पड़ती है, परन्तु राष्ट्रपति के लिए परामर्श लेना आवश्यक नहीं है ।

(ख) राष्ट्रपति की संकटकालीन शक्तियां (Emergency Powers)-राष्ट्रपति की संकटकालीन शक्तियों का वर्णन संविधान के 18वें भाग में किया गया है । अग्रलिखित तीन प्रकार की अवस्थाओं में राष्ट्रपति को संकटकाल की घोषणा करने का अधिकार प्राप्त हैं :

  1. युद्ध, विदेशी आक्रमण तथा सशस्त्र-विद्रोह से उत्पन्न संकट ।
  2. किसी राज्य में संवैधानिक मशीनरी के फेल हो जाने के कारण उत्पन्न संकट ।
  3. देश में आर्थिक अथवा वित्तीय संकट के कारण उत्पन्न परिस्थिति ।

1. युद्ध, विदेशी आक्रमण तथा सशस्त्र विद्रोह से उत्पन्न संकट (Emergency due to War, External aggression or Armed Rebellion-Act. 352)—संविधान की धारा 352 के अनुसार राष्ट्रपति राष्ट्रीय संकट (National Emergency) की घोषणा कर सकता है । यदि उसको विश्वास हो जाए कि गम्भीर संकट उत्पन्न हो गया है जैसे युद्ध, विदेशी आक्रमण अथवा सशस्त्र विद्रोह के कारण भारत अथवा उसके राज्य क्षेत्र के किसी भी भाग की सुरक्षा खतरे में है । 59वें संशोधन के अनुसार आन्तरिक गड़बड़ी की स्थिति में पंजाब में आपात्काल को लागू किया जा सकता है । परन्तु राष्ट्रपति राष्ट्रीय संकट की घोषणा मन्त्रिमण्डल की लिखित सलाह से ही कर सकता है ।

2. राज्य में संवैधानिक मशीनरी फेल होने से उत्पन्न संकट (Emergency due to the constitutional breakdown-Art. 356)-जब राष्ट्रपति के राज्यपाल अथवा किसी अन्य स्त्रोत के आधार पर विश्वास हो जाए कि राज्य का शासन संविधान की धाराओं के अनुसार नहीं चलाया जा सकता तो वह इस आशय की घोषणा कर सकता है । संसद् की स्वीकृति के बिना यह घोषणा दो महीने तक लागू रह सकती है । संसद् की स्वीकृति मिलने पर यह घोषणा 6 महीने तक लागू रह सकती है और 6 महीने के बाद यदि संसद् दोबारा प्रस्ताव पास कर दे तो 6 महीने और लागू रह सकती है । 59वें संशोधन के अनुसार पंजाब में राष्ट्रपति शासन अधिकतम 3 वर्षों तक लागू रह सकता है। परन्तु 64वें संशोधन के अनुसार यह अवधि 6 महीने और बढ़ा दी गई और 68वें संशोधन के अनुसार पंजाब में राष्ट्रपति शासन अधिकतम 5 वर्ष तक लागू रह सकता है ।

3. आर्थिक संकट के समय उत्पन्न स्थिति (Emergency due to Financial Crisis-Art. 360)—यदि राष्ट्रपति को विश्वास हो जाए कि भारत या उसके किसी राज्य क्षेत्र के किसी भाग का वित्तीय स्थायित्व संकट में है तो वह वित्तीय आपात् की घोषणा (अनुच्छेद 360) कर सकता है । ऐसी उद्घोषणा पर दो महीने के अन्दर संसद् की स्वीकृति प्राप्त हो जानी चाहिए । ऐसी उद्घोषणा अनिश्चित समय तक जारी रहती है ।

राष्ट्रपति की स्थिति (Position of the President)-भारत में राष्ट्रपति की उचित स्थिति क्या है, इसके बारे शक्तियों को देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि वह एक शक्तिशाली पद का स्वामी है। यदि वह चाहे तो अपनी इन शक्तियों का प्रयोग करके तानाशाह भी बन सकता है ।

राष्ट्रपति की शक्तियों की कानूनी व्याख्या के आधार पर हम राष्ट्रपति के बारे में कुछ भी कह लें, परन्तु उसकी वास्तविक और व्यावहारिक स्थिति कुछ और ही है । भारत में संसदीय शासन प्रणाली है और राष्ट्रपति राज्य का नाममात्र का संवैधानिक अध्यक्ष है। वह केवल शान्ति के समय में ही नहीं बल्कि संकट के समय भी अपनी शक्तियों का प्रयोग मन्त्रिमण्डल की सलाह के अनुसार ही कर सकता है। मन्त्रिमण्डल की सलाह के बिना और सलाह के विरुद्ध वह किसी शक्ति का प्रयोग नहीं करता । 44वें संशोधन के अन्तर्गत अनुच्छेद 74 में संशोधन करके यह व्यवस्था की गई है कि राष्ट्रपति को मन्त्रिमण्डल द्वारा जो भी सलाह दी जाती है, राष्ट्रपति मन्त्रिमण्डल को उस पर पुनः विचार करने के लिए कह सकता है और पुनर्विचार करने के बाद मन्त्रिमण्डल जो सलाह राष्ट्रपति को देता है, उसे वह सलाह माननी पड़ेगी । उसका पद आदर और सम्मान का पद तो है, परन्तु शक्ति सम्पन्न नहीं । यदि वह अपनी शक्ति का प्रयोग अपनी इच्छा के अनुसार करने का प्रयत्न करे तो एक संवैधानिक संकट उत्पन्न हो सकता है तथा इस बात को मन्त्रिमण्डल व संसद् दोनों में से कोई भी सहन नहीं करेगा और उस पर महाभियोग लगाकर संसद् द्वारा उसे अपदस्थ कर दिया जायगा । 29 अप्रैल, 1977 को मन्त्रिमण्डल ने कार्यवाहक राष्ट्रपति को 9 राज्यों की विधानसभाओं को भंग करके राष्ट्रपति शासन लागू करने की सलाह दी जिस पर कार्यवाहक राष्ट्रपति बी० डी० जत्ती ने 24 घण्टे पश्चात् अर्थात् 30 अप्रैल, 1977 को अमल किया । कार्यवाहक राष्ट्रपति के 24 घण्टे बाद हस्ताक्षर करने की सभी समाचार-पत्रों ने अपने-अपने सम्पादकीय लेख में कड़ी आलोचना की और इस बात पर जोर दिया कि राष्ट्रपति को मन्त्रिमण्डल की सलाह तुरन्त माननी चाहिए थी । डॉ० अम्बेदकर ने संविधान-सभा में भाषण देते हुए कहा था, “हमारे राष्ट्रपति की वही स्थिति है जो कि ब्रिटिश संविधान के अन्तर्गत वहां के सम्राट की। वह राज्य का अध्यक्ष है कार्यपालिका का नहीं। वह राष्ट्र का प्रतिनिधित्व करता है, शासन नहीं ।”

राष्ट्रपति निम्नलिखित शक्तियों का प्रयोग अपनी इच्छानुसार कर सकता है :-

  1. सलाह देने का अधिकार (Right to Advice)-राष्ट्रपति मन्त्रिमण्डल को किसी भी विषय पर सलाह दे सकता है । भूतपूर्व राष्ट्रपति डॉ० राजेन्द्र प्रसाद ने उस समय के प्रधानमन्त्री पं० जवाहरलाल नेहरू को कई बार कई महत्त्वपूर्ण विषयों पर सलाह दी । इसी प्रकार डॉ० राधाकृष्णन ने उस समय की प्रधानमन्त्री इन्दिरा गांधी को कई बार सलाह दी ।
  2. उत्साहित करने का अधिकार (Right to Encourage)-जब मन्त्रिमण्डल देश के हित में कार्य कर रहा हो तो राष्ट्रपति उसका उत्साह बढ़ाने के लिए उसकी प्रशंसा कर सकता है । भूतपूर्व राष्ट्रपति वी० वी० गिरी ने भूतपूर्व प्रधानमन्त्री इन्दिरा गांधी को उनकी नीतियों के लिए समय-समय पर प्रोत्साहित किया ।
  3. चेतावनी देने का अधिकार (Right to Warn)-यदि मन्त्रिमण्डल देश के हित में कार्य न कर रहा हो तो राष्ट्रपति उसको चेतावनी दे सकता है । .
  4. सूचना प्राप्त करने का अधिकार (Right to be Informed)-राष्ट्रपति मन्त्रिमण्डल व प्रधानमन्त्री से प्रशासन सम्बन्धी कोई भी सूचना प्राप्त कर सकता है ।
  5. संविधान की रक्षा का अधिकार (Right to Protect the Constitution)-राष्ट्रपति संविधान की रक्षा के लिए शपथ-बद्ध होता है । वह संविधान की रक्षा करने के लिए कई प्रकार के कदम उठा सकता है ।
  6. किसी बिल को पुनर्विचार के लिए भेजने का अधिकार (Right to send any bill for Reconsideration)-राष्ट्रपति किसी भी साधारण बिल को पुनर्विचार करने के लिए वापस भेज सकता है ।।

उपर्युक्त सभी कार्यों के लिए राष्ट्रपति को मन्त्रिमण्डल की सलाह लेने की आवश्यकता नहीं होती है । वास्तव में राष्ट्रपति की स्थिति उसके अपने व्यक्तित्व पर निर्भर करती है । यदि एक अच्छे व्यक्तित्व वाला व्यक्ति इस पद पर आसीन हो तो वह शासन पर भी अपना प्रभाव डाल सकता है । पं० जवाहरलाल नेहरू के शब्दों में, “हमने अपने राष्ट्रपति को वास्तविक शक्ति नहीं दी अपितु उसके पद को बड़ा शक्तिशाली तथा सम्मानजनक बनाया है ।” (“We have not given our President any real power but we have made his position one of great authority and dignity.”’)

प्रश्न 3.
भारतीय राष्ट्रपति की संकटकालीन शक्तियों की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए । क्या भारतीय राष्ट्रपति तानाशाह बन सकता है ?
(Critically examine the emergency powers of the Indian President. Can Indian President become a dictator ?)
उत्तर-
जिस प्रकार किसी व्यक्ति के जीवन में कठिनाइयां आ सकती हैं, उसी प्रकार राष्ट्र के जीवन में संकट आ सकते हैं । संकट का सामना करने के लिए सरकार के पास असाधारण शक्तियों का होना आवश्यक है । अतः संविधान के अन्तर्गत संकटकालीन धाराओं का वर्णन कर देना उचित होता है । भारतीय संविधान निर्माताओं ने संकटकाल का सामना करने के लिए संविधान के भाग 18 में संकटकालीन धाराओं का वर्णन किया है अर्थात् इस भाग में राष्ट्रपति की संकटकालीन शक्तियों का वर्णन किया गया है ताकि देश की सुरक्षा को सुरक्षित रखा जा सके ।
संविधान के अनुच्छेद 352, 356 तथा 360 में तीन प्रकार के संकट का वर्णन किया गया है :

  • युद्ध, विदेशी आक्रमण तथा सशस्त्र-विद्रोह से उत्पन्न संकट ।
  • किसी राज्य में संवैधानिक प्रणाली के फेल हो जाने के कारण बने आकस्मिक संकट।
  • देश में आर्थिक अथवा वित्तीय संकट के कारण उत्पन्न परिस्थिति ।

Mसंविधान की धारा 352 के अनुसार राष्ट्रपति राष्ट्रीय संकट (National Emergency) की घोषणा कर सकता है यदि उसको विश्वास हो जाए कि गम्भीर संकट उत्पन्न हो गया है जैसे युद्ध, विदेशी आक्रमण अथवा सशस्त्र विद्रोह के कारण भारत अथवा उसके राज्य क्षेत्र के किसी भी भाग की सुरक्षा खतरे में है। 59वें संशोधन के अनुसार पंजाब में आन्तरिक गड़बड़ी (Internal disturbance) के आधार पर भी आपात्काल की घोषणा की जा सकती है। परन्तु राष्ट्रपति संकटकालीन घोषणा तभी कर सकता है यदि मन्त्रिमण्डल संकटकालीन घोषणा करने की लिखित सलाह दे ।

राष्ट्रपति की राष्ट्रीय संकट की घोषणा एक महीने तक लागू रह सकती है । एक महीने के बाद संकटकालीन घोषणा समाप्त हो जाती है । यदि इससे पहले संसद् के दोनों सदन अलग-अलग इसको कुल संख्या के बहुमत और उपस्थित तथा मतदान के दो तिहाई सदस्यों ने पास न कर दिया हो । यह घोषणा 6 महीने तक लागू रह सकती है और संकटकाल की घोषणा को लागू रखने के लिए यह आवश्यक है कि 6 महीने के बाद संसद् के दोनों सदन संकटकाल की घोषणा के प्रस्ताव को पास करें । यदि लोकसभा संकटकाल की घोषणा लागू रहने के विरुद्ध प्रस्ताव को पास कर दे तो संकटकाल की घोषणा लागू नहीं रह सकती । लोकसभा के 10 प्रतिशत सदस्य अथवा अधिक सदस्य घोषणा के अस्वीकृति प्रस्ताव पर विचार करने के लिए लोकसभा की बैठक बुला सकते है ।

इस घोषणा के परिणाम (Effects of Proclamation)-राष्ट्रीय संकटकालीन घोषणा के समय शासन का संघीय रूप एकात्मक हो जाता है । समस्त देश का शासन संघीय सरकार के हाथ में आ जाता है ।

  1. केन्द्रीय सरकार राज्यों की सरकारों को निर्देश दे सकती है कि वे अपनी कार्यपालिका शक्तियों का प्रयोग किस प्रकार करें ? राज्यों के राज्यपाल राष्ट्रपति के आदेशानुसार कार्यकारी शक्ति का प्रयोग करते हैं।
  2. संसद् को राज्य-सूची में दिए गए विषयों पर कानून बनाने का अधिकार मिल जाता है ।
  3. राष्ट्रपति को संघीय सरकार तथा राज्यों में धन विभाजन सम्बन्धी योजना में अपनी इच्छानुसार परिवर्तन करने का अधिकार मिल जाता है ।
  4. संसद् को संकटकाल के समय कानून द्वारा अपनी अवधि को एक बार में एक वर्ष तक बढ़ाने का अधिकार मिल जाता है, परन्तु यह अवधि संकटकालीन घोषणा के समाप्त होने के 6 मास से अधिक नहीं बढ़ाई जा सकती ।
  5. धारा 19 के अन्तर्गत दी गई स्वतन्त्रताओं को स्थगित किया जा सकता है । परन्तु 44वें संशोधन के अनुसार अनुच्छेद 19 में दिए गए अधिकार तभी स्थगित किए जा सकते हैं यदि संकटकाल की घोषणा युद्ध अथवा बाहरी हमले के कारण हो न कि सशस्त्र विद्रोह पर । 59वें संशोधन के अनुसार पंजाब में 19 अनुच्छेद में दी गई स्वतन्त्रताएं सशस्त्र विद्रोह अथवा आन्तरिक गड़बड़ी के कारण घोषित आपात्काल में भी स्थगित की जा सकती है ।
  6. राष्ट्रपति राज्य सूची के विषयों पर भी अध्यादेश जारी कर सकता है ।

7 M का सहारा लेने के अधिकारों को समस्त भारत या उसके किसी भी भाग में स्थगित कर सकता था, परन्तु 44वें संशोधन के अनुसार अनुच्छेद 21 के अन्तर्गत जीवन तथा व्यक्तिगत स्वतन्त्रता के अधिकार को लागू कराने के अधिकार को स्थगित नहीं किया जा सकता । 59वें संशोधन के अन्तर्गत पंजाब में आन्तरिक गड़बड़ी के कारण घोषित आपात्काल में इस अधिकार को भी स्थगित किया जा सकता है ।

चीनी आक्रमण पर राष्ट्रपति ने 20 अक्तूबर, 1962 को संकटकाल की घोषणा की थी । दूसरी बार यह घोषणा 3 दिसम्बर, 1971 को की गई और तीसरी बार 26 जून, 1975 को राष्ट्रपति ने आन्तरिक अशान्ति के कारण आपात्कालीन घोषणा की और इस आन्तरिक आपात्कालीन स्थिति को 21 मार्च, 1977 को समाप्त किया गया और 1971 में लागू की गई आपात्कालीन स्थिति को 27 मार्च, 1977 को समाप्त किया गया ।

2. राज्यों में संवैधानिक मशीनरी फेल होने से पैदा हुए संकट (Emergency due to the Constitutional break down)-Art. (356)-जब राष्ट्रपति को गवर्नर की रिपोर्ट पर अथवा किसी अन्य स्रोत के आधार पर विश्वास हो जाए कि राज्य का शासन संविधान की धाराओं के अनुसार नहीं चलाया जा सकता तो वह इस आशय की संकटकाल की घोषणा कर सकता है। संसद् की स्वीकृति के बिना यह घोषणा 2 महीने तक लागू रह सकती है, संसद् की स्वीकृति मिलने पर यह घोषणा 6 महीने तक लागू रह सकती है और 6 महीने बाद यदि संसद् दोबारा प्रस्ताव पास कर दे तो 6 महीने और लागू रह सकती है। इस प्रकार की घोषणा साधारणतः अधिक-से-अधिक एक वर्ष तक लागू रह सकती है । एक वर्ष से अधिक तभी लागू रह सकती है यदि राष्ट्रीय संकटकालीन घोषणा लागू हो और चुनाव आयोग यह प्रमाण-पत्र दे कि विधानसभा के चुनाव करवाना कठिन है । 59वें संशोधन के अन्तर्गत पंजाब में राष्ट्रपति शासन की अधिकतम अवधि तीन वर्ष की गई और 68वें संशोधन के अनुसार पंजाब में राष्ट्रपति शासन अधिकतम 5 वर्ष तक लागू रह सकता है ।

प्रभाव (Effects) –

  1. राष्ट्रपति राज्य की सरकार के उच्च न्यायालय को छोड़ कर अन्य किसी अधिकारी के सब या कोई कार्य अपने हाथ में ले सकता है ।
  2. राष्ट्रपति घोषणा कर सकता है कि राज्य में विधानमण्डल की शक्तियां संसद् के अधिकार द्वारा या अधीन प्रयुक्त होंगी ।
  3. राज्य का मन्त्रिमण्डल तथा विधानमण्डल स्थगित अथवा भंग किया जा सकता है।
  4. राज्य का राज्यपाल राष्ट्रपति के एजेण्ट के रूप में कार्य करता है तथा उसके नियन्त्रण में रहते हुए उसकी सभी आज्ञाओं का पालन करता है ।
  5. संसद् उन वैधानिक शक्तियों को जो उसे राज्य विधानमण्डल के बदले में प्राप्त होती हैं, राष्ट्रपति को हस्तांतरित कर सकती है जो उसे अन्य किसी अधिकारी को सौंप सकता है ।
  6. जब लोकसभा का अधिवेशन न हो रहा हो तब राष्ट्रपति राज्य की संचित निधि में से संसद् की आज्ञा मिलने तक आवश्यक व्यय को प्राधिकृत कर सकता है ।

1951 मे पंजाब में प्रथम बार इस घोषणा को लागू किया गया था । 1952 में पेप्सू, 1954 में आन्ध्र प्रदेश, 1966 में पंजाब, नवम्बर, 1972 में उत्तर प्रदेश तथा 1976 में गुजरात में इस घोषणा को लागू किया गया । मार्च, 1977 में जम्मू-कश्मीर में भी इस प्रकार की घोषणा को लागू किया गया । 30 अप्रैल, 1977 को कार्यवाहक राष्ट्रपति बी० डी० जत्ती (B. D. Jatti) ने भी नौ राज्यों-उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, पश्चिमी बंगाल, बिहार और उड़ीसा के विधानसभाओं को भंग करके राष्ट्रपति शासन लागू किया। 17 फरवरी, 1980 को राष्ट्रपति संजीवा रेड्डी ने भी नौ राज्यों-उत्तर प्रदेश, बिहार, तमिलनाडू, राजस्थान, मध्य प्रदेश, पंजाब, महाराष्ट्र, उड़ीसा और गुजरात की विधानसभाओं को भंग करके राष्ट्रपति शासन लागू किया।

पंजाब के राज्यपाल सिद्धार्थ शंकर रे की सिफ़ारिश पर 11 मई, 1987 को पंजाब में राष्ट्रपति शासन लागू किया गया और 25 फरवरी, 1992 को समाप्त हुआ । 6 दिसम्बर, 1992 को उत्तर प्रदेश में तथा 15 दिसम्बर, 1992 को मध्य प्रदेश, राजस्थान तथा हिमाचल प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लागू किया गया ।

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 27 संघीय कार्यपालिका-राष्ट्रपति

3. आर्थिक संकट के समय उत्पन्न स्थिति (Emergency due to Financial Crisis, Art. 360) यदि राष्ट्रपति को विश्वास हो जाए कि भारत या उसके किसी राज्य क्षेत्र के किसी भाग का वित्तीय स्थायित्व संकट में है तो वह वित्तीय आपात् की घोषणा (अनुच्छेद 360) कर सकता है । ऐसी उद्घोषणा पर दो महीने के अन्दर-अन्दर संसद् की स्वीकृति प्राप्त हो जानी चाहिए । वित्तीय संकट की घोषणा भारत में अभी तक एक बार भी नहीं की गई । इस प्रकार की संकट की स्थिति में राष्ट्रपति को निम्नलिखित विशेष शक्तियां मिलती हैं :-

(क) वह राज्यों द्वारा पास किए गए धन बिलों को अपनी स्वीकृति के लिए मंगवा सकता है ।
(ख) वह राज्यों को धन-सम्बन्धी कोई भी आदेश दे सकता है ।
(ग) वह सब सरकारी कर्मचारियों के (केन्द्र और राज्य के जिनमें सर्वोच्च तथा उच्च न्यायालयों के जज भी सम्मिलित हैं), वेतन और भत्तों में कमी कर सकता है ।
(घ) राष्ट्रपति संघ तथा राज्यों के मध्य आय के साधारण विभाजन में परिवर्तन कर सकता है ।

संकटकालीन शक्तियों की आलोचना (Criticism of Emergency Powers) –

संविधान सभा के अन्दर तथा बाहर दोनों स्थानों पर राष्ट्रपति की संकटकालीन शक्तियों की बड़ी तीव्र आलोचना की गई थी । यह आलोचना बड़ी गम्भीर तथा आधारपूर्ण थी । संविधान सभा के कुछ सदस्यों ने यह विचार प्रकट किया कि एक ऐसे शासन अधिकारी को जो न तो जनता द्वारा प्रत्यक्ष रूप में चुना गया हो तथा न ही संसद् के सम्मुख उत्तरदायी हो, इतनी व्यापक शक्तियों का देना उचित नहीं लगता । कुछ अन्य सदस्यों का यह विचार था कि भारत का राष्ट्रपति इन शक्तियों के दुरुपयोग से लोकतन्त्र का अन्त कर सकता है । इसी विचारधारा को लेकर इस डर को प्रकट किया गया कि भारत का राष्ट्रपति अपनी संकटकालीन शक्तियों का सहारा लेकर उसी प्रकार की तानाशाही स्थापित कर सकता है। जैसे कि हिटलर ने वाइमर संविधान की धारा 48 का सहारा लेते हुए की थी । श्री एच० वी० कॉमथ (Shri H.V. Kamth) ने आलोचना करते हुए कहा था, “विश्व के लोकतन्त्रीय देशों के किसी भी संविधान की हमारे संविधान के संकटकाल सम्बन्धी अध्याय से तुलना नहीं की जा सकती ।”

श्री के० टी० शाह (K.T. Shah) ने इसको संविधान के सबसे अधिक अप्रगतिशील अध्याय की अन्तिम तथा सुन्दर झांकी कहा है ।
जिस समय संविधान सभा ने राष्ट्रपति द्वारा मौलिक अधिकारों को निलम्बित (Suspend) करने की व्याख्या को स्वीकार किया तब श्री० एच० वी० कॉमथ ने यह घोषणा की, “यह लज्जा तथा शोक का दिन है, परमात्मा भारतीयों की रक्षा करे ।” (“It is a day of Shame and sorrow, God save Indian people.”)
राष्ट्रपति की संकटकालीन शक्तियों के विरुद्ध कुछ और भी विचार दिए गए हैं जिस कारण इन शक्तियों की बहुत आलोचना की जाती है । वे विचार निम्नलिखित हैं-

1. आपात्काल की शक्तियों का दुरुपयोग होने की सम्भावना (Possibility of misuse of Emergency Powers)-राष्ट्रपति को यह पूर्ण अधिकार दिया गया है कि यदि वह अनुभव करे तो किसी युद्ध अथवा बाह्य आक्रमण अथवा सशस्त्र विद्रोह के उत्पन्न होने से पूर्व ही संकटकाल की घोषणा कर सकता है तथा उसकी शक्ति को किसी न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती। परन्तु 44वें संशोधन के अनुसार राष्ट्रपति संकटकाल की घोषणा तभी कर सकता है यदि ऐसा करने की मन्त्रिमण्डल लिखित सलाह दे ।।

2. मौलिक अधिकारों का स्थगन (Suspension of Fundamental Rights)—संकट के समय राष्ट्रपति लोगों के मौलिक अधिकारों और स्वतन्त्रताओं को भी नष्ट कर सकता है और इससे उसकी स्थिति और भी शक्तिशाली बन जाती है । वह सर्वोच्च न्यायालय तथा उच्च न्यायालयों के मौलिक अधिकारों से सम्बन्धित अधिकारों को भी समाप्त कर सकता है ।

3. यह संघात्मक सरकार के लिए खतरा है (Danger for Federation)—यह भी बड़े आश्चर्य की बात है कि संकटकाल की घोषणा के समय संघीय ढांचा एकात्मक सरकार में बदला जाता है तथा इकाइयों की सरकारें समाप्त कर दी जाती हैं । इसी कारण संविधान सभा में श्री टी० टी० कृष्णमाचारी (T.T. Krishanamahari) ने कहा था, “भारतीय संविधान साधारण काल में संघात्मक तथा युद्ध एवं अन्य संकटकालीन परिस्थतियों में एकात्मक रूप धारण कर लेता है ।”

4. राष्ट्रपति एक महीने के लिए तानाशाह बन सकता है (President can become despot for one month)—संकटकालीन स्थिति संसद् की स्वीकृति के बिना एक महीने तक लागू रह सकती है। उस समय राष्ट्रपति समस्त देश का शासन अपने हाथों में ले सकता है और अपनी स्थिति बहुत शक्तिशाली बना सकता है।

5. अनुच्छेद 356 का राजनीतिक उद्देश्य के लिए प्रयोग (Use of Article 356 for Political Purposes). केन्द्र में सत्तारूढ़ दल किसी ऐसे राज्य में भी जहां मन्त्रिमण्डल की स्थिति दृढ़ हो, संवैधानिक मशीनरी के फेल होने की घोषणा कर सकता है, केवल इसलिए कि वहां पर कोई अन्य पार्टी शासन चला रही है । अतः संघीय सरकार राष्ट्रपति के माध्यम से राज्य में विरोधी दलों द्वारा निर्मित सरकारों का दमन कर सकती है । व्यवहार में केन्द्र ने सत्तारूढ़ दल के अनुच्छेद 356 का कई बार दुरुपयोग किया है । 15 दिसम्बर, 1992 को केन्द्र की कांग्रेस सरकार ने मध्य प्रदेश, राजस्थान तथा हिमाचल प्रदेश की सरकारें भंग करके राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया क्योंकि इन राज्यों में भारतीय जनता पार्टी की सरकारें थीं । मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने राज्य की पूर्व भाजपा सरकार को भंग करने सम्बन्धी राष्ट्रपति की अधिसूचना अप्रैल 1993 को रद्द कर दी । उच्च न्यायालय ने निर्णय देते हुए कहा कि राष्ट्रपति की अधिसूचना संविधान के अनुच्छेद 356 के प्रावधानों की परिधि से बाहर है। सर्वोच्च न्यायालय ने अक्तूबर 1993 को एक फैसले में नागालैण्ड में (1987), कर्नाटक में (1989) को राष्ट्रपति शासन को लागू करने के फैसले को असंवैधानिक बताया ।।

राष्ट्रपति तानाशाह नहीं बन सकता (President cannot become dictator)-राष्ट्रपति को संकटकालीन शक्तियां काफ़ी सोच-विचार के बाद दी गई हैं और इनका प्रयोग करके उसके तानाशाह बनने की कोई सम्भावना नहीं है । राष्ट्रपति को ऐसा करने से रोकने के लिए मन्त्रिमण्डल है जो वास्तव में शक्तियों का प्रयोग करता है :-

  1. राष्ट्रपति संकटकाल की उद्घोषणा मन्त्रिमण्डल की सलाह से ही कर सकता है। 44वें संशोधन के अनुसार राष्ट्रपति संकटकाल की घोषणा तभी कर सकता है यदि ऐसा करने की मन्त्रिमण्डल लिखित सलाह दे।
  2. राष्ट्रपति को संकटकालीन घोषणा पर एक महीने के अन्दर संसद् की स्वीकृति प्राप्त करनी होती है । यदि संसद् स्वीकृति नहीं देती तो वह घोषणा लागू होनी बन्द हो जाती है । यदि लोकसभा भंग हो तो राज्यसभा की स्वीकृति आवश्यक है।
  3. संकट के समय भी राष्ट्रपति संसद् को भंग नहीं कर सकता। राष्ट्रपति लोकसभा को तो भंग कर सकता है, पर राज्यसभा को नहीं । लोकसभा को मन्त्रिमण्डल की सलाह से ही भंग किया जा सकता है।
  4. यदि राष्ट्रपति अपनी शक्तियों का उचित प्रयोग न करे या मनमानी करना चाहे तो संसद् उसके विरुद्ध महाभियोग लगाकर उसे पद से हटा सकती है।

संकटकालीन शक्तियों की औचित्यतता (Justification of Emergency Powers)-निःसन्देह संकटकालीन शक्तियां बहुत व्यापक हैं तथा इनके विरुद्ध दिए गए तर्क ठीक हैं, परन्तु इसके बावजूद भी हमें यह मानना पड़ता है कि इनका संविधान में देना औचित्यपूर्ण है। इनके निम्नलिखित कारण हैं-

  1. भारत ने सदा ही केन्द्रीय सरकार के निर्बल होने पर हानि उठाई है, इसलिए केन्द्रीय सरकार को शक्तिशाली बनाना देश की स्वतन्त्रता बनाए रखने के लिए अति आवश्यक है।
  2. भारत में संघीय सरकार ही देश की सुरक्षा के लिए उत्तरदायी है । संघीय रूप की इतनी महत्ता नहीं जितनी कि राष्ट्रीय सुरक्षा की।
  3. जब संकटकाल की घोषणा लागू होती है तब संविधान को 19वीं धारा द्वारा दी गई स्वतन्त्रताएं भंग की जा सकती हैं। श्री अलादी कृष्णास्वामी अय्यर तथा डॉ० अम्बेदकर ने इस व्यवस्था का बड़ी योग्यता से पक्ष पोषण किया है । श्री अल्लादी के अनुसार देश तथा राष्ट्र का व्यक्तिगत स्वतन्त्रता से पूर्व स्थान है। परन्तु 44वें संशोधन के अनुसार अनुच्छेद 19वें दिए गए अधिकार तभी स्थगित किए जा सकते हैं यदि संकटकाल की घोषणा युद्ध अथवा बाहरी हमले के कारण की हो न कि सशस्त्र विद्रोह पर।
  4. वित्तीय संकट सम्बन्धी उप-धाराओं का होना भी बहुत उचित है।

निष्कर्ष (Conclusion)-ऊपरलिखित तर्कों के आधार पर हम कह सकते हैं कि संविधान निर्माताओं ने संकटकालीन धाराओं का संविधान में वर्णन करके कोई गलती नहीं की। संकटकालीन धाराओं के उचित प्रयोग से नागरिकों की स्वतन्त्रता की रक्षा की जा सकती है। श्री अमर नन्दी (Amar Nandi) ने राष्ट्रपति की संकटकालीन शक्तियों की तुलना, “एक भरी हुई बन्दूक से की है जिससे नागरिकों की स्वतन्त्रता की रक्षा भी हो सकती है और नाश भी हो सकता है।”

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
राष्ट्रपति के चुनाव का ढंग बताएं। अभी तक राष्ट्रपति के कितने चुनाव हुए हैं ?
उत्तर-
राष्ट्रपति का चुनाव एक निर्वाचन मण्डल द्वारा किया जाता है। निर्वाचन मण्डल में संसद् के दोनों सदनोंराज्यसभा तथा लोकसभा के निर्वाचित सदस्य तथा राज्य-विधान मण्डलों के चुने हुए सदस्य सम्मिलित होते हैं। निर्वाचन मण्डल में संसद् तथा राज्य विधानसभाओं में मनोनीत किए गए सदस्यों को सम्मिलित नहीं किया जाता। राष्ट्रपति का चुनाव एकल संक्रमणीय मत प्रणाली द्वारा आनुपातिक प्रतिनिधित्व के अनुसार होता है। राष्ट्रपति के चुनाव में एक सदस्य एक मत वाली विधि नहीं अपनाई गई। वैसे एक मतदाता को केवल एक ही मत मिलता है। परन्तु उसके मत की गणना नहीं होती बल्कि उसका मूल्यांकन होता है। वर्तमान समय तक भारत में राष्ट्रपति पद के लिए पन्द्रह बार चुनाव हो चुके हैं।

प्रश्न 2.
‘राष्ट्रपति राज्य का नाममात्र मुखिया है।’ व्याख्या करें।
उत्तर-
समस्त शासन राष्ट्रपति के नाम पर चलता है, परन्तु वह नाममात्र का मुखिया है जबकि अमेरिका का राष्ट्रपति राज्य का वास्तविक मुखिया है। इसका कारण यह है कि अमेरिका में अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली है जबकि भारत में संसदीय शासन प्रणाली है। संसदीय शासन प्रणाली के कारण राष्ट्रपति संवैधानिक मुखिया है। राष्ट्रपति अपनी शक्तियों का प्रयोग मन्त्रिमण्डल की सलाह से करता है। व्यवहार में राष्ट्रपति की शक्तियों का प्रयोग मन्त्रिमण्डल द्वारा किया जाता है। वास्तविक कार्यपालिका मन्त्रिमण्डल है।

प्रश्न 3.
राष्ट्रपति की चुनाव प्रणाली की चार आधारों पर आलोचना करें।
उत्तर-
राष्ट्रपति की चुनाव प्रणाली की निम्नलिखित आधारों पर आलोचना की गई है-

  1. अप्रजातन्त्रात्मक विधि-आलोचना का कहना है कि राष्ट्रपति की चुनाव विधि अप्रजातन्त्रात्मक है क्योंकि राष्ट्रपति का चुनाव प्रत्यक्ष जनता द्वारा नहीं होता, परन्तु हमें यह बात नहीं भूलनी चाहिए कि भारत जैसे विशाल देश के लिए राष्ट्रपति का प्रत्यक्ष चुनाव जनता द्वारा करना आसान नहीं है।
  2. जटिल विधि-राष्ट्रपति के चुनाव की विधि बड़ी जटिल है जिसे समझना आसान नहीं है।
  3. यह आनुपातिक प्रतिनिधित्व एकल संक्रमणीय प्रणाली नहीं है-आलोचकों का कहना है कि राष्ट्रपति की चुनाव विधि को आनुपातिक प्रतिनिधित्व तथा एकल संक्रमणीय प्रणाली का नाम देना उचित नहीं है क्योंकि आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के लिए चुनाव क्षेत्र बहु-सदस्यीय होना चाहिए, परन्तु राष्ट्रपति के चुनाव में सीट एक होती है। अतः आनुपातिक प्रणाली की एक अनिवार्य आवश्यकता राष्ट्रपति चुनाव प्रणाली पूर्ण नहीं करती।
  4. राष्ट्रपति की चुनाव प्रणाली में कई बातें अस्पष्ट हैं।

प्रश्न 4.
राष्ट्रपति पर महाभियोग चलाने तथा उसे पद से हटाने के लिए संविधान में कौन-सी प्रक्रिया वर्णित है ?
उत्तर-
राष्ट्रपति को पांच वर्ष के लिए चुना जाता है परन्तु यदि कोई राष्ट्रपति अपनी शक्तियों के प्रयोग में संविधान का उल्लंघन करे तो पांच वर्ष से पहले भी उसे अपने पद से महाभियोग द्वारा अपदस्थ किया जा सकता है। एक सदन राष्ट्रपति के विरुद्ध आरोप लगाता है। आरोपों के प्रस्ताव पर सदन में उसी समय विचार हो सकता है जब सदन के 1/4 सदस्यों के हस्ताक्षरों द्वारा इस आशय का नोटिस कम-से-कम 14 दिन पहले दिया जा चुका हो। यदि एक सदन में प्रस्ताव 2/3 बहुमत से पास हो जाए तो दूसरा सदन उन आरोपों की जांच-पड़ताल करता है। दूसरे सदन में आरोपों की जांच-पड़ताल के समय राष्ट्रपति स्वयं उपस्थित होकर या किसी अन्य व्यक्ति द्वारा अपनी सफाई पेश कर सकता है। यदि दूसरा सदन 2/3 बहुमत से उन आरोपों की पुष्टि कर दे तो राष्ट्रपति को उसी दिन पद छोड़ना पड़ता है। जब तक दूसरा सदन राष्ट्रपति के हटाए जाने का प्रस्ताव पास नहीं करता, उस समय तक राष्ट्रपति अपने पद पर आसीन रहता है।

प्रश्न 5.
राष्ट्रपति की चार कार्यपालिका शक्तियां लिखें।
उत्तर-
राष्ट्रपति की मुख्य कार्यपालिका शक्तियां निम्नलिखित हैं-

  1. प्रशासकीय शक्तियां-भारत का समस्त प्रशासन राष्ट्रपति के नाम पर चलाया जाता है और भारत सरकार के सभी निर्णय औपचारिक रूप से उसी के नाम पर लिए जाते हैं। देश का सर्वोच्च शासक होने के नाते वह नियम तथा अधिनियम भी बनाता है।
  2. मन्त्रिपरिषद् से सम्बन्धित शक्तियां-राष्ट्रपति प्रधानमन्त्री की नियुक्ति करता है और उसके परामर्श से अन्य मन्त्रियों की नियुक्ति करता है। वह प्रधानमन्त्री की सलाह से मन्त्रियों को अपदस्थ कर सकता है।
  3. सैनिक शक्तियां-राष्ट्रपति राष्ट्र की सशस्त्र सेनाओं का सर्वोच्च सेनापति है। वह स्थल, जल तथा वायु सेनाध्यक्षों की नियुक्ति करता है। वह फील्ड मार्शल की उपाधि भी प्रदान करता है। वह राष्ट्रीय रक्षा समिति का अध्यक्ष है।
  4. नियुक्तियां करने की शक्ति-सभी महत्त्वपूर्ण नियुक्तियां राष्ट्रपति द्वारा की जाती हैं।

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 27 संघीय कार्यपालिका-राष्ट्रपति

प्रश्न 6.
राष्ट्रपति की चार विधायिनी शक्तियां लिखें।
उत्तर-
राष्ट्रपति की मुख्य विधायिनी शक्तियां निम्नलिखित हैं-

  1. राष्ट्रपति की संसद् के अधिवेशन बुलाने और सत्रावसान सम्बन्धी शक्तियां-राष्ट्रपति संसद् के दोनों सदनों का अधिवेशन बुला सकता है। अधिवेशन का समय बढ़ा सकता है तथा उसे स्थगित कर सकता है। राष्ट्रपति ही अधिवेशन का समय और स्थान निश्चित करता है।
  2. राष्ट्रपति द्वारा संसद् में भाषण-राष्ट्रपति संसद् के दोनों सदनों को अलग-अलग या दोनों के सम्मिलित अधिवेशन को सम्बोधित कर सकता है। नई संसद् का तथा वर्ष का पहला अधिवेशन राष्ट्रपति के भाषण से ही आरम्भ होता है।
  3. राज्यसभा के 12 सदस्य मनोनीत करना-राष्ट्रपति राज्यसभा के लिए ऐसे 12 सदस्यों को मनोनीत करता है जिन्हें साहित्य, कला, विज्ञान या सामाजिक सेवा के विषय में विशेष ज्ञान या अनुभव प्राप्त हो।
  4. लोकसभा को भंग करना-राष्ट्रपति मन्त्रिमण्डल की सिफ़ारिश पर लोकसभा को समय से पहले भी भंग कर सकता है

प्रश्न 7.
राष्ट्रपति बनने के लिए क्या योग्यताएं होनी चाहिएं ?
उत्तर-
राष्ट्रपति बनने के लिए निम्नलिखित योग्यताएं होनी चाहिएं-

  1. वह भारत का नागरिक हो।
  2. वह 35 वर्ष की आयु पूरी कर चुका हो।
  3. वह किसी सरकारी पद पर कार्यरत न हो।
  4. वह लोकसभा का सदस्य बनने की योग्यता रखता हो।
  5. अपने चुनाव के बाद राष्ट्रपति, संसद् या राज्य विधानमण्डल के किसी सदन का सदस्य नहीं रह सकता।
  6. 5 जून, 1997 को राष्ट्रपति ने एक अध्यादेश जारी करके राष्ट्रपति का चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवार के लिए ज़मानत की राशि 2500 रु० से बढ़ाकर 15000 रु० कर दी है। इस अध्यादेश के अनुसार राष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार का नाम 50 मतदाताओं द्वारा प्रस्तावित तथा 50 मतदाताओं द्वारा अनुमोदित होना अनिवार्य है।

प्रश्न 8.
राष्ट्रपति का वेतन तथा सुविधाएं बताएं।
उत्तर-
राष्ट्रपति को 5,00,000 रुपए मासिक वेतन मिलता है। इसके अतिरिक्त उसको कई प्रकार के भत्ते तथा विशेष अधिकार भी प्राप्त हैं। उसे रहने के लिए सरकारी निवास मिलता है, जिसे राष्ट्रपति भवन कहा जाता है। अवकाश प्राप्त करने के बाद राष्ट्रपति को 2,50,000 रुपए मासिक पेंशन मिलती है। राष्ट्रपति के कार्यकाल में उसके विरुद्ध कोई फ़ौजदारी मुकद्दमा नहीं चलाया जा सकता। वह अपने किसी भी कार्य के लिए किसी भी न्यायालय के सम्मुख उत्तरदायी नहीं है।

प्रश्न 9.
‘निर्वाचक मण्डल’ का अर्थ समझाइए।
उत्तर-
‘निर्वाचक मण्डल’ प्रतिनिधियों का एक ऐसा समूह होता है जिसका निर्माण किसी विशेष पद के चुनाव के लिए किया जाता है। अमेरिका और भारत में राष्ट्रपति का चुनाव निर्वाचक मण्डल के द्वारा किया जाता है। भारत में निर्वाचक मण्डल में संसद् के दोनों सदनों के चुने हुए सदस्य और प्रान्तीय विधानसभाओं के चुने हुए सदस्य सम्मिलित होते हैं। राष्ट्रपति के चुनाव के समय यदि निर्वाचक मण्डल में कुछ स्थान रिक्त हों तो उसका राष्ट्रपति के निर्वाचन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता।

प्रश्न 10.
‘अध्यादेश’ का अर्थ समझाइए।
उत्तर-
जब संसद् का अधिवेशन न हो रहा हो और राष्ट्रपति यह अनुभव करता हो कि परिस्थितियां ऐसी हैं जिनके अनुसार कार्यवाही करनी आवश्यक है तो राष्ट्रपति को अध्यादेश जारी करने की शक्ति प्राप्त है। इस अध्यादेश की शक्ति और प्रभाव वही होता है जो संसद् के द्वारा पास किए गए कानूनों का होता है और अधिवेशन आरम्भ होने की तिथि से लेकर 6 सप्ताह पश्चात् वह अध्यादेश जारी रह सकता है। 6 सप्ताह पश्चात् यह अध्यादेश समाप्त हो जाता है। इससे पहले भी संसद् अध्यादेश रद्द कर सकती है और राष्ट्रपति भी जब चाहे उसे वापस ले सकता है। राष्ट्रपति को अध्यादेश जारी करने का पूरा अधिकार है और उसके इस निर्णय को किसी न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती।

प्रश्न 11.
किन परिस्थितियों में राष्ट्रपति अपनी इच्छा से प्रधानमन्त्री को नियुक्त कर सकता है ?
उत्तर-
कुछ परिस्थितियों में राष्ट्रपति को अपनी इच्छा से प्रधानमन्त्री को नियुक्त करने का अवसर मिल जाता है। ये परिस्थितियां हैं-(1) जब लोकसभा में किसी भी राजनीतिक पार्टी की स्पष्ट बहुसंख्या न हो।
अथवा
(2) कुछ दल मिलकर संयुक्त सरकार (Coalition Ministry) का निर्माण न कर सकें।
अथवा
(3) लोकसभा में दोनों दलों को समान प्रतिनिधित्व प्राप्त हो। उपर्युक्त परिस्थितियों में राष्ट्रपति अपनी विवेक, बुद्धि तथा उच्च सूझ-बूझ से काम लेते हुए अपनी इच्छानुसार किसी भी दल के नेता को जिसे वह स्थायी सरकार बनाने के योग्य समझता हो, मन्त्रिमण्डल बनाने के लिए आमन्त्रित कर सकता है।

प्रश्न 12.
‘निषेधाधिकार’ का अर्थ समझाइए।
उत्तर-
निषेधाधिकार का अर्थ अपनी असहमति प्रकट करना अथवा प्रस्ताव के विरोध में मतदान कर उस प्रस्ताव को अस्वीकार करना है। भारतीय संसद् द्वारा पास किया गया बिल राष्ट्रपति की स्वीकृति मिलने पर ही कानून का रूप ले सकता है। राष्ट्रपति संसद् द्वारा पास किए गए बिल पर निषेधाधिकार का प्रयोग कर सकता है परन्तु यदि उस बिल को संसद् दुबारा पास कर दें तब राष्ट्रपति को अपनी स्वीकृति देनी पड़ती है।

प्रश्न 13.
किन परिस्थितियों में राष्ट्रपति मन्त्रिपरिषद् की सलाह मानने से इन्कार कर सकता है ?
उत्तर-
44वें संशोधन के अनुसार राष्ट्रपति को मन्त्रिपरिषद् द्वारा जो सलाह दी जाती है, राष्ट्रपति मन्त्रिपरिषद् को उस पर पुनः विचार करने के लिए कह सकता है परन्तु पुनर्विचार करने के बाद मन्त्रिमण्डल जो सलाह राष्ट्रपति को देता है वह सलाह उसे माननी पड़ेगी। राष्ट्रपति को मन्त्रिपरिषद् की सलाह, चेतावनी तथा उत्साह देने का अधिकार प्राप्त है। पद ग्रहण करते समय राष्ट्रपति को शपथ लेनी पड़ती है कि वह संविधान की रक्षा करेगा। इसलिए वह मन्त्रिपरिषद् की ऐसी कोई बात मानने के लिए बाध्य नहीं जो संविधान की रक्षा में रुकावट डालती हो। इसी प्रकार लोकसभा को भंग करने, ऐसे प्रधानमन्त्री तथा मन्त्रिमण्डल को पदच्युत करने में जो बहुमत का समर्थन खो बैठा हो, राष्ट्रपति अपने विवेक से काम ले सकता है।

प्रश्न 14.
राष्ट्रपति की संकटकालीन शक्तियों का संक्षेप में वर्णन करें।
उत्तर-
राष्ट्रपति की संकटकालीन शक्तियां तीन प्रकार की हैं-

(क) राष्ट्रपति युद्ध, बाहरी आक्रमण अथवा सशस्त्र विद्रोह की दशा में मन्त्रिमण्डल की लिखित सलाह पर संकटकाल की घोषणा कर सकता है।
(ख) जब राष्ट्रपति को राज्यपाल द्वारा दी गई सूचना से या किसी और सूत्र से यह विश्वास हो जाए कि राज्य का शासन संविधान के अनुसार नहीं चलाया जा सकता तो वह अनुच्छेद 356 के अन्तर्गत संकटकाल की उद्घोषणा कर सकता है। राष्ट्रपति राज्य के मन्त्रिमण्डल तथा विधान सभा को भंग करके राज्य का प्रशासन अपने हाथों में ले सकता है।
(ग) यदि राष्ट्रपति को विश्वास हो जाए कि देश की आर्थिक स्थिति डांवाडोल है या भारत की साख खतरे में है तो वह वित्तीय संकटकाल की उद्घोषणा जारी कर सकता है। ऐसे समय में राष्ट्रपति सभी कर्मचारियों के वेतन और भत्तों में कमी कर सकता है। वह राज्यों को धन सम्बन्धी कोई भी आदेश दे सकता है।

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 27 संघीय कार्यपालिका-राष्ट्रपति

प्रश्न 15.
राष्ट्रपति राष्ट्रीय संकटकाल की घोषणा कब कर सकता है ? इसके प्रभाव का वर्णन करें।
उत्तर-
निम्नलिखित परिस्थितियों में राष्ट्रपति राष्ट्रीय संकट की घोषणा कर सकता है-

  1. युद्ध, विदेशी आक्रमण अथवा सशस्त्र विद्रोह से उत्पन्न संकट।
  2. देश में आर्थिक अथवा वित्तीय संकट के कारण उत्पन्न परिस्थिति।

घोषणा के प्रभाव-राष्ट्रीय संकटकालीन घोषणा के समय शासन का संघीय रूप एकात्मक हो जाता है। समस्त देश का शासन सरकार के हाथ में आ जाता है।

  1. केन्द्रीय सरकार, राज्यों की सरकारों को निर्देश दे सकती है कि वे अपनी कार्यपालिका शक्तियों का प्रयोग किस प्रकार करें। राज्यों के राज्यपाल राष्ट्रपति के आदेशानुसार कार्यकारी शक्ति का प्रयोग करते हैं।
  2. संसद् को राज्य-सूची में दिए गए विषयों पर कानून बनाने का अधिकार मिल जाता है।
  3. राष्ट्रपति को संघीय सरकार तथा राज्यों में धन विभाजन सम्बन्धी योजना में अपनी इच्छानुसार परिवर्तन करने का अधिकार मिल जाता है।

प्रश्न 16.
राष्ट्रपति की संकटकालीन शक्तियों के गलत प्रयोग को रोकने के लिए क्या व्यवस्था की गई
उत्तर-
राष्ट्रपति की संकटकालीन शक्तियों के गलत प्रयोग को रोकने के लिए जनता पार्टी की सरकार ने 1979 में 44वां संवैधानिक संशोधन किया। इस संशोधन के अन्तर्गत निम्नलिखित प्रावधान किए गए-

  1. राष्ट्रपति संकटकाल की घोषणा मन्त्रिमण्डल की लिखित सलाह पर ही कर सकता है।
  2. राष्ट्रपति द्वारा लागू संकटकाल की घोषणा को लागू होने के एक महीने के भीतर संसद् के 2/3 बहुमत द्वारा स्वीकृति मिलनी आवश्यक है। यदि संकटकाल की घोषणा 6 महीने से ज्यादा लागू रखनी है तो उसे 6 महीने बाद पुनः संसद् की स्वीकृति लेनी आवश्यक है।
  3. संसद् कभी भी साधारण बहुमत द्वारा प्रस्ताव पास करके संकटकाल को खत्म कर सकती है।
  4. संविधान की धारा 21 में शामिल जीवन व व्यक्तिगत स्वतन्त्रता के अधिकारों को संकटकाल में स्थगित किया जा सकता है।
  5. संकटकाल की घोषणा न्याय संगत होगी।

प्रश्न 17.
क्या राष्ट्रपति तानाशाह बन सकता है ?
उत्तर-
राष्ट्रपति तानाशाह नहीं बन सकता और अगर संकटकाल में भी तानाशाह बनना चाहे तो भी नहीं बन सकता। इसका महत्त्वपूर्ण कारण यह है कि भारत में संसदीय शासन प्रणाली को अपनाया गया है और इसमें राष्ट्रपति नाममात्र का मुखिया होता है। राष्ट्रपति की शक्तियों का वास्तव में प्रयोग प्रधानमन्त्री और मन्त्रिमण्डल द्वारा किया जाता है। राष्ट्रपति यदि मनमानी करने की कोशिश करे तो उसे संसद् महाभियोग द्वारा हटा सकती है। राष्ट्रपति संकटकाल की घोषणा मन्त्रिपरिषद् की लिखित सलाह से ही कर सकता है। संसद् साधारण बहुमत से प्रस्ताव पास करके राष्ट्रपति को संकटकाल समाप्त करने को कह सकती है।

प्रश्न 18.
उप-राष्ट्रपति के लिए क्या योग्यताएं होनी चाहिएं ?
उत्तर-

  1. वह भारत का नागरिक हो।
  2. उसकी आयु 35 वर्ष से कम न हो।
  3. वह राज्यसभा का सदस्य होने की योग्यता रखता हो।
  4. वह किसी सरकारी पद पर आसीन न हो।
  5. वह संसद् का सदस्य न हो।
  6. वह विधानमण्डल का सदस्य न हो।

प्रश्न 19.
भारत के उप-राष्ट्रपति के कार्य बताएं।
उत्तर-
उप-राष्ट्रपति को दो प्रकार के कार्य करने पड़ते हैं-

(1) उप-राष्ट्रपति के रूप में तथा
(2) राज्यसभा के अध्यक्ष के रूप में।

  1. उप-राष्ट्रपति के रूप में जब राष्ट्रपति का पद उसकी अनुपस्थिति, बीमारी तथा अन्य किसी कारण से अस्थायी रूप से खाली हो जाए, तो उप-राष्ट्रपति को राष्ट्रपति पद पर काम करना पड़ता है। राष्ट्रपति पद पर काम करते समय उप-राष्ट्रपति को राष्ट्रपति जैसा वेतन, भत्ता, सुविधाएं तथा शक्तियां प्राप्त होती हैं।
  2. राज्यसभा के अध्यक्ष के रूप में उप-राष्ट्रपति राज्यसभा का सभापति होता है तथा वह अध्यक्ष के सभी कार्य करता है।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
राष्ट्रपति का चुनाव कैसे होता है ?
उत्तर-
राष्ट्रपति का चुनाव एक निर्वाचन मण्डल द्वारा किया जाता है। निर्वाचन मण्डल में संसद् के दोनों सदनों का चुनाव एकल संक्रमणीय मत प्रणाली द्वारा आनुपातिक प्रतिनिधित्व के अनुसार होता है। वैसे एक मतदाता को केवल एक ही मत मिलता है। परन्तु उसके मत की गणना नहीं होती बल्कि उसका मूल्यांकन होता है।

प्रश्न 2.
राष्ट्रपति की कोई दो कार्यपालिका शक्तियां लिखें।
उत्तर-

  1. प्रशासकीय शक्तियां-भारत का समस्त प्रशासन राष्ट्रपति के नाम पर चलाया जाता है और भारत सरकार के सभी निर्णय औपचारिक रूप से उसी के नाम पर लिए जाते हैं। देश का सर्वोच्च शासक होने के नाते वह नियम तथा अधिनियम भी बनाता है।
  2. मन्त्रिपरिषद् से सम्बन्धित शक्तियां-राष्ट्रपति प्रधानमन्त्री की नियुक्ति करता है और उसके परामर्श से अन्य मन्त्रियों की नियुक्ति करता है। वह प्रधानमन्त्री की सलाह से मन्त्रियों को अपदस्थ कर सकता है।

प्रश्न 3.
राष्ट्रपति की कोई दो विधायिनी शक्तियां लिखें।
उत्तर-

  1. राष्ट्रपति की संसद् के अधिवेशन बुलाने और सत्रावसान सम्बन्धी शक्तियां-राष्ट्रपति संसद् के दोनों सदनों का अधिवेशन बुला सकता है। अधिवेशन का समय बढ़ा सकता है तथा उसे स्थगित कर सकता है। राष्ट्रपति ही अधिवेशन का समय और स्थान निश्चित करता है।
  2. राष्ट्रपति द्वारा संसद में भाषण-राष्ट्रपति संसद् के दोनों सदनों को अलग-अलग या दोनों के सम्मिलित अधिवेशन को सम्बोधित कर सकता है। नई संसद् का तथा वर्ष का पहला अधिवेशन राष्ट्रपति के भाषण से ही आरम्भ होता है।

प्रश्न 4.
राष्ट्रपति बनने के लिए क्या योग्यताएं होनी चाहिएं ?
उत्तर-

  1. वह भारत का नागरिक हो।
  2. वह 35 वर्ष की आयु पूरी कर चुका हो।

प्रश्न 5.
क्या राष्ट्रपति तानाशाह बन सकता है ?
उत्तर-
राष्ट्रपति तानाशाह नहीं बन सकता और अगर संकटकाल में भी तानाशाह बनना चाहे तो भी नहीं बन सकता। इसका महत्त्वपूर्ण कारण यह है कि भारत में संसदीय शासन प्रणाली को अपनाया गया है और इसमें राष्ट्रपति नाममात्र का मुखिया होता है। राष्ट्रपति की शक्तियों का वास्तव में प्रयोग प्रधानमन्त्री और मन्त्रिमण्डल द्वारा किया जाता है। राष्ट्रपति यदि मनमानी करने की कोशिश करे तो उसे संसद् महाभियोग द्वारा हटा सकती है।

प्रश्न 6.
भारत के वर्तमान राष्ट्रपति, उप-राष्ट्रपति एवं प्रधानमन्त्री के नाम बताएं।
उत्तर-
पद का नाम — व्यक्ति का नाम
1. राष्ट्रपति – श्री रामनाथ कोविंद
2. उप-राष्ट्रपति – श्री वेंकैया नायडू
3. प्रधानमन्त्री – श्री नरेन्द्र मोदी

प्रश्न 7.
राष्ट्रपति एवं उप-राष्ट्रपति का वेतन बताएं।
उत्तर-
भारत के राष्ट्रपति का मासिक वेतन पांच लाख रुपये, जबकि उप-राष्ट्रपति का मासिक वेतन चार लाख रुपये है।

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 27 संघीय कार्यपालिका-राष्ट्रपति

 

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न I. एक शब्द/वाक्य वाले प्रश्न-उत्तर-

प्रश्न 1. राष्ट्रपति का कार्यकाल कितना है ? उसे क्या दोबारा चुना जा सकता है ?
उत्तर-राष्ट्रपति का कार्यकाल 5 वर्ष का है और उसे दोबारा चुने जाने का अधिकार है।

प्रश्न 2. राष्ट्रपति का मासिक वेतन और रिटायर होने पर कितनी पेंशन मिलती है ?
उत्तर-राष्ट्रपति को 5,00,000 रु० मासिक वेतन और रिटायर होने पर 2,50,000 रु० मासिक पेंशन मिलती है।

प्रश्न 3. राष्ट्रपति कब अध्यादेश जारी कर सकता है ?
उत्तर-जब संसद् का अधिवेशन न हो रहा हो और संकटकालीन परिस्थितियां बाध्य करती हों, तो राष्ट्रपति को अध्यादेश जारी करने का अधिकार है।

प्रश्न 4. राष्ट्रपति राज्यसभा और लोकसभा के कितने सदस्य मनोनीत कर सकता है?
उत्तर-राष्ट्रपति राज्यसभा के 12 सदस्य और लोकसभा के 2 एंग्लो इंडियन सदस्य नियुक्त कर सकता है।

प्रश्न 5. भारत के प्रथम राष्ट्रपति कौन थे ?
उत्तर-भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ० राजेन्द्र प्रसाद थे।

प्रश्न 6. राष्ट्रपति का चुनाव लड़ने हेतु कम-से-कम कितनी आयु होनी चाहिए?
उत्तर-राष्ट्रपति का चुनाव लड़ने हेतु कम-से-कम 35 वर्ष आयु होनी चाहिए।

प्रश्न 7. भारत के राष्ट्रपति को कौन निर्वाचित करता है?
उत्तर-भारत के राष्ट्रपति को निर्वाचक मण्डल निर्वाचित करता है।

प्रश्न 8. राष्ट्रपति को किस प्रकार हटाया जा सकता है?
उत्तर-राष्ट्रपति को महाभियोग द्वारा हटाया जा सकता है।

प्रश्न 9. राष्ट्रपति राष्ट्रीय संकट की घोषणा कब कर सकता है?
उत्तर-राष्ट्रपति राष्ट्रीय संकट की घोषणा तब करता है, जब मन्त्रिमण्डल संकटकालीन घोषणा करने की लिखित सलाह दे।

प्रश्न 10. जुलाई, 2017 में किसे भारत का राष्ट्रपति चुना गया ?
उत्तर-जुलाई, 2017 में श्री रामनाथ कोंविद को भारत का राष्ट्रपति चुना गया।

प्रश्न 11. भारत की सेनाओं का सर्वोच्च सेनापति कौन होता है?
उत्तर-भारत की सेनाओं का सर्वोच्च सेनापति राष्ट्रपति होता है।

प्रश्न 12. राष्ट्रपति किसे अपना त्याग-पत्र सौंपता है?
उत्तर-राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति को अपना त्याग-पत्र सौंपता है।

प्रश्न 13. राष्ट्रपति की अनुपस्थिति में उप-राष्ट्रपति कब तक राष्ट्रपति के पद पर रह सकता है?
उत्तर-छ: महीने तक।

प्रश्न 14. किस राष्ट्रपति का चुनाव सर्वसम्मति से हुआ?
उत्तर-नीलम संजीवा रेड्डी का चुनाव सर्वसम्मति से हुआ।

प्रश्न 15. राष्ट्रपति के पद का वर्णन संविधान के किस अनुच्छेद में किया गया है?
उत्तर-अनुच्छेद 52 में।

प्रश्न 16. अगस्त, 2017 में किसे भारत का उप-राष्ट्रपति चुना गया ?
उत्तर-अगस्त, 2017 में श्री वेंकैया नायडू को भारत का उप-राष्ट्रपति चुना गया।

प्रश्न 17. उप-राष्ट्रपति का मासिक वेतन कितना है ?
उत्तर-उप-राष्ट्रपति का मासिक वेतन चार लाख रु० है।

प्रश्न II. खाली स्थान भरें-

1. उपराष्ट्रपति ………….. की अध्यक्षता करता है।
2. राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवार को ………….. की राशि जमानत के रूप में जमा करवानी होती है।
3. राष्ट्रपति अनुच्छेद ……………. के अनुसार राष्ट्रीय आपात्काल की घोषणा कर सकता है।
4. राष्ट्रपति अनुच्छेद ……………….. के अनुसार किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू कर सकता है।
उत्तर-

  1. राज्यसभा
  2. 15000
  3. 352
  4. 356.

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 27 संघीय कार्यपालिका-राष्ट्रपति

प्रश्न III. निम्नलिखित कथनों में से सही एवं ग़लत का चुनाव करें-

1. पं० जवाहर लाल नेहरू भारत के पहले राष्ट्रपति थे।
2. भारत के तीसरे राष्ट्रपति डॉ. ज़ाकिर हुसैन थे।
3. राष्ट्रपति को शपथ प्रधानमन्त्री दिलाता है।
4. संसद द्वारा पास किए विधेयक राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए भेजे जाते हैं।
उत्तर-

  1. ग़लत
  2. सही
  3. ग़लत
  4. सही ।

प्रश्न IV. बहुविकल्पीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
भारत के राष्ट्रपति की वैसी ही स्थिति है जैसे कि-
(क) अमेरिका के राष्ट्रपति
(ख) चीन के प्रधानमंत्री
(ग) पाकिस्तान के राष्ट्रपति
(घ) इंग्लैंड की रानी।
उत्तर-
(घ) इंग्लैंड की रानी।

प्रश्न 2.
भारतीय राष्ट्रपति की अवधि कितनी है ?
(क) 4 वर्ष
(ख) 5 वर्ष
(ग) 6 वर्ष
(घ) 10 वर्ष।
उत्तर-
(ख) 5 वर्ष

प्रश्न 3.
भारत के वर्तमान राष्ट्रपति कौन है ?
(क) पं. जवाहर लाल नेहरू
(ख) पं० शंकर दयाल शर्मा
(ग) डॉ० राधाकृष्णन
(घ) श्री रामनाथ कोंविद।
उत्तर-
(घ) श्री रामनाथ कोंविद।

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 27 संघीय कार्यपालिका-राष्ट्रपति

प्रश्न 4.
भारत के राष्ट्रपति को कौन निर्वाचित करता है ?
( क) जनता
(ख) प्रधानमन्त्री
(ग) संसद्
(घ) निर्वाचक मंडल।
उत्तर-
(घ) निर्वाचक मंडल।

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 28 संघीय कार्यपालिका–प्रधानमन्त्री तथा मन्त्रिपरिषद्

Punjab State Board PSEB 11th Class Political Science Book Solutions Chapter 28 संघीय कार्यपालिका–प्रधानमन्त्री तथा मन्त्रिपरिषद् Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Political Science Chapter 28 संघीय कार्यपालिका–प्रधानमन्त्री तथा मन्त्रिपरिषद्

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
भारत के प्रधानमन्त्री की स्थिति की संक्षेप में विवेचना कीजिए।
(Describe in brief the position of the Prime Minister.)
अथवा
भारत के प्रधानमन्त्री की नियुक्ति कैसे होती है ? उसकी शक्तियों और स्थिति का वर्णन करो।
(How is Prime Minister of India appointed ? Discuss his powers and position.)
अथवा
भारत के प्रधानमन्त्री की नियुक्ति किस प्रकार होती है ? उसके मन्त्रिपरिषद् और राष्ट्रपति के साथ सम्बन्धों का वर्णन करो।
(How is the Prime Minister of India appointed ? Discuss his relations with the Council of Ministers and the President.)
उत्तर-
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 74 के अन्तर्गत राष्ट्रपति की सहायता के लिए एक मन्त्रिपरिषद् की व्यवस्था की गई है जिसकी अध्यक्षता प्रधानमन्त्री करता है। भारत के राज्य प्रबन्ध में प्रधानमन्त्री को बड़ा महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। चाहे संविधान द्वारा राष्ट्रपति को मुख्य कार्यपालक (Chief Executive Head of the State) नियुक्त किया गया है, किन्तु व्यावहारिक रूप में मुख्य कार्यपालिका के सब कार्य प्रधानमन्त्री ही करता है।

प्रधानमन्त्री की नियुक्ति (Appointment of the Prime Minister)-संविधान में कहा गया है कि प्रधानमन्त्री की नियुक्ति राष्ट्रपति करेगा, परन्तु वास्तव में ऐसा नहीं है। देश में संसदीय प्रणाली होने के कारण राष्ट्रपति अपनी इच्छानुसार किसी भी व्यक्ति को प्रधानमन्त्री नियुक्त नहीं कर सकता। वह केवल उसी व्यक्ति को प्रधानमन्त्री नियुक्त कर सकता है जो लोकसभा में बहुमत दल वाली पार्टी का नेता चुना गया हो। दिसम्बर, 1984 में लोकसभा के चुनाव में कांग्रेस (आई) को भारी बहुमत प्राप्त हुआ और राष्ट्रपति ने कांग्रेस (आई) के नेता श्री राजीव गांधी को प्रधानमन्त्री नियुक्त किया। परन्तु कुछ परिस्थितियों में राष्ट्रपति को अपनी इच्छा का प्रयोग करने का अवसर मिल जाता है। ये परिस्थितियां निम्नलिखित हैं-

  • जब लोकसभा में किसी भी राजनीतिक पार्टी को स्पष्ट बहुमत प्राप्त न हो, अथवा
  • कुछ दल मिलकर संयुक्त सरकार का निर्माण (Coalition Ministry) न कर सकें, अथवा
  • लोकसभा में दो दलों को समान प्रतिनिधित्व प्राप्त हो।
  • जब प्रधानमन्त्री की अचानक मृत्यु हो जाए।

उपर्युक्त परिस्थितियों में राष्ट्रपति अपने विवेक, बुद्धि तथा उच्च सूझ-बूझ से काम लेते हुए अपनी इच्छानुसार किसी भी दल के नेता को, जिसे वह स्थायी सरकार बनाने के योग्य समझता हो, मन्त्रिमण्डल बनाने के लिए निमन्त्रण दे सकता है। 15 जुलाई, 1979 को प्रधानमन्त्री मोरारजी देसाई के त्याग-पत्र देने पर किसी भी दल को लोकसभा में स्पष्ट बहुमत प्राप्त नहीं था। अतः राष्ट्रपति संजीवा रेड्डी ने अपनी सूझबूझ के अनुसार विपक्ष के नेता यशवन्तराय चह्वाण को सरकार बनाने का निमन्त्रण दिया। परन्तु उसने सरकार बनाने में असमर्थता जाहिर की। उसके बाद राष्ट्रपति ने चौधरी चरण सिंह और मोरारजी देसाई को अपने समर्थकों की सूची देने को कहा और अन्त में 26 जुलाई, 1979 को राष्ट्रपति ने चौधरी चरण सिंह को प्रधानमन्त्री नियुक्त किया और उसे सरकार बनाने को कहा। 31 अक्तूबर, 1984 को प्रधानमन्त्री इन्दिरा गांधी की हत्या होने के कुछ समय बाद राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ने अपनी इच्छा से श्री राजीव गांधी को प्रधानमन्त्री नियुक्त किया। 1 अप्रैल-मई, 1996 के लोकसभा के चुनाव में किसी भी पार्टी को बहुमत प्राप्त नहीं हुआ।

राष्ट्रपति ने लोकसभा में सबसे बड़ी पार्टी भारतीय जनता पार्टी के नेता अटल बिहारी वाजपेयी को प्रधानमन्त्री नियुक्त किया। प्रधानमन्त्री अटल बिहारी वाजपेयी ने 28 मई, 1996 को त्याग-पत्र दे दिया क्योंकि लोकसभा में उन्हें बहुमत का समर्थन प्राप्त नहीं था। 1 जून, 1996 को राष्ट्रपति ने संयुक्त मोर्चा के नेता एच० डी० देवेगौड़ा को प्रधानमन्त्री नियुक्त किया, क्योंकि कांग्रेस ने देवेगौड़ा को समर्थन देने का वायदा किया था। प्रधानमन्त्री देवेगौड़ा ने 12 जून, 1996 को लोकसभा में बहुमत का विश्वास प्राप्त किया। मार्च, 1998, में 12वीं लोकसभा के चुनाव में किसी भी पार्टी अथवा चुनावी गठबन्धन को स्पष्ट बहुमत न मिलने पर राष्ट्रपति ने लोकसभा में सबसे बड़ी पार्टी भारतीय जनता पार्टी तथा उसके सहयोगी दलों के नेता अटल बिहारी वाजपेयी को प्रधानमन्त्री नियुक्त किया। प्रधानमन्त्री अटल बिहारी वाजपेयी ने 28 मार्च, 1998 को लोकसभा में विश्वास मत प्राप्त किया। सितम्बर-अक्तूबर, 1999 में हुए 13वीं लोकसभा के चुनावों में 24 दलों वाले राष्ट्रीय जनतान्त्रिक गठबन्धन को बहुमत प्राप्त हुआ।

अतः राष्ट्रपति के० आर० नारायणन ने इस गठबन्धन के नेता श्री अटल बिहारी वाजपेयी को प्रधानमन्त्री नियुक्त किया। अप्रैल-मई, 2004 में हुए 14वीं लोकसभा के चुनाव में किसी भी दल को बहुमत प्राप्त नहीं हुआ। अतः राष्ट्रपति डॉ० ए० पी० जे० अब्दुल कलाम ने कांग्रेस के नेतृत्व में बने संयुक्त प्रगतिशील गठबन्धन के नेता डॉ मनमोहन सिंह को प्रधानमन्त्री नियुक्त किया। अप्रैल-मई, 2014 में हुए 16वीं लोक सभा के चुनावों के बाद भारतीय जनता पार्टी के नेता श्री नरेन्द्र मोदी को प्रधानमन्त्री नियुक्त किया गया।

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 28 संघीय कार्यपालिका–प्रधानमन्त्री तथा मन्त्रिपरिषद्

प्रधानमन्त्री की योग्यताएं (Qualifications of the Prime Minister)-प्रधानमन्त्री की योग्यताओं का वर्णन संविधान में नहीं किया गया है, क्योंकि प्रधानमन्त्री के लिए संसद् का सदस्य होना आवश्यक है। इसलिए संसद् सदस्यों की योग्यताएं तथा अयोग्यताएं उस पर लागू होती हैं। इसके अतिरिक्त मन्त्रिमण्डलीय उत्तरदायित्व के सिद्धान्त के अन्तर्गत उसे लोकसभा में बहुमत का विश्वास प्राप्त होना चाहिए अर्थात् उसे बहुमत पार्टी का नेता होना चाहिए। व्यावहारिक रूप में उसमें व्यक्तिगत गुणों का होना आवश्यक है। जिस प्रकार ब्रिटेन के वाल्डविन के व्यक्तित्व में पाइप (Pipe) तथा चर्चिल के व्यक्तित्व में सिगार (Cigar) ने निखार ला दिया था, उसी प्रकार भारत में श्री नेहरू की प्रतिभा में गुलाब का फूल, श्री लाल बहादुर शास्त्री के व्यक्तित्व में उनकी सादगी, श्रीमती इन्दिरा गांधी की लोकप्रियता में उनका मनमोहक व्यक्तित्व और राजीव गांधी के व्यक्तित्व में उनका भोलापन और अच्छा आचरण चार चांद लगा देता था।

अवधि (Term)-साधारण रूप में प्रधानमन्त्री के पद की अवधि राष्ट्रपति की कृपादृष्टि पर आधारित है तथा इसका कार्यकाल 5 वर्ष समझा जाता है, परन्तु वास्तव में यह बात नहीं है। इसकी अवधि लोकसभा के बहुमत के समर्थन पर निर्भर करती है। जब प्रधानमन्त्री के पक्ष में लोकसभा का बहुमत नहीं रहता तथा उसके विरुद्ध अविश्वास का मत स्वीकार हो जाता है, तब प्रधानमन्त्री को त्याग-पत्र देना पड़ता है। प्रधानमन्त्री का त्याग-पत्र सम्पूर्ण मन्त्रिमण्डल का त्याग-पत्र समझा जाता है। 28 मई, 1996 को प्रधानमन्त्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने पद से त्याग-पत्र दे दिया क्योंकि वे लोकसभा में बहुमत का समर्थन प्राप्त नहीं कर सके। वे केवल 13 दिन तक भारत के प्रधानमन्त्री रहे। प्रधानमन्त्री वाजपेयी ने 17 अप्रैल, 1999 को त्याग-पत्र दे दिया क्योंकि वे लोकसभा में बहुमत का समर्थन प्राप्त न कर सके।

वेतन (Salary)-प्रधानमन्त्री को 1987 के अधिनियम के अनुसार वही वेतन और भत्ते मिलते हैं जो संसद् के सदस्य को मिलते हैं।
प्रधानमन्त्री के कार्य तथा शक्तियां (Powers and Functions of the Prime Minister)—प्रधानमन्त्री की शक्तियां एवं कार्य निम्नलिखित हैं-

1. मन्त्रिमण्डल का नेता (Leader of the Cabinet)-प्रधानमन्त्री मन्त्रिमण्डल का नेता है। मन्त्रिमण्डल को बनाने वाला और नष्ट करने वाला प्रधानमन्त्री ही है। वास्तव में मन्त्रिमण्डल का प्रधानमन्त्री के बिना कोई अस्तित्व नहीं है। यही कारण है कि उसे “मन्त्रिमण्डल रूपी मेहराब की आधारशिला” (“Key-stone of the Cabinet arch.’) कहा गया है। प्रधानमन्त्री को मन्त्रिमण्डल से सम्बन्धित निम्नलिखित कार्य करने पड़ते हैं :-

(क) प्रधानमन्त्री मन्त्रिपरिषद् का निर्माण करता है (Formation of the Council of Ministers)राष्ट्रपति प्रधानमन्त्री के परामर्श से मन्त्रिपरिषद् के अन्य मन्त्रियों की नियुक्ति करता है। इस सम्बन्ध में प्रधानमन्त्री अपने साथी मन्त्रियों के नाम राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए प्रस्तुत करता है तथा उसकी स्वीकृति प्राप्त होने के पश्चात् वे मन्त्री बन जाते हैं। क्योंकि राष्ट्रपति की स्वीकृति एक औपचारिक कार्यवाही है, इसलिए मन्त्रियों की नियुक्ति की वास्तविक शक्ति प्रधानमन्त्री के पास ही है। 91वें संविधान संशोधन अधिनियम 2003 के अनुसार मन्त्रिपरिषद् में प्रधानमन्त्री सहित मन्त्रियों की कुल संख्या लोकसभा के सदस्यों की कुल संख्या के 15% से अधिक नहीं होनी चाहिए। सितम्बर, 2017 में मन्त्रिपरिषद् की सदस्य संख्या 75 थी।

(ख) विभागों का विभाजन (Allocation of Portfolios)-प्रधानमन्त्री अपने साथियों को चुनता ही नहीं अपितु उनमें विभागों का विभाजन भी करता है। वह किसी भी मन्त्री को कोई भी विभाग दे सकता है तथा इसमें परिवर्तन भी कर सकता है। सितम्बर, 2017 में प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने अपनी मंत्रिपरिषद् का विस्तार एवं पुनर्गठन किया, इससे मंत्रिपरिषद् की सदस्य संख्या 75 हो गई। इसमें 27 कैबिनेट मंत्री 37 राज्यमंत्री तथा 11 स्वतंत्र प्रभार वाले राज्यमंत्री शामिल थे।

(ग) प्रधानमन्त्री मन्त्रिमण्डल का सभापति (Chairman of the Cabinet)-प्रधानमन्त्री मन्त्रिमण्डल का सभापति होता है। वह कैबिनेट की बैठकों में सभापतित्व करता है। वह कार्यसूची तैयार करता है। बैठकों में होने वाले वाद-विवाद पर नियन्त्रण रखता है। मन्त्रिमण्डल के अधिकतर निर्णय वास्तव में प्रधानमन्त्री के ही निर्णय होते हैं।

(घ) मन्त्रियों की पदच्युति (Removal of the Ministers)-संविधान के अनुसार मन्त्री राष्ट्रपति की प्रसन्नता तक अपने पद पर रहते हैं, परन्तु वास्तव में मन्त्री तब तक अपने पद पर रह सकते हैं जब तक प्रधानमन्त्री चाहे । उसकी इच्छा के विरुद्ध कोई भी व्यक्ति मन्त्रिपरिषद् में नहीं रह सकता। यदि कोई मन्त्री प्रधानमन्त्री के कहने के अनुसार त्यागपत्र न दे तो वह राष्ट्रपति को कहकर उसे पदच्युत करवा सकता है और दोबारा मन्त्रिमण्डल का निर्माण करते समय अपने विरोधी व्यक्तियों को मन्त्रिमण्डल से बाहर रख सकता है।

1 अगस्त, 1990 को प्रधानमन्त्री वी० पी० सिंह की सलाह से राष्ट्रपति द्वारा उप प्रधानमन्त्री देवी लाल को केन्द्रीय मन्त्रिमण्डल की सलाह से हटा दिया गया। जुलाई, 1992 को वाणिज्य मन्त्री पी. चिदम्बरम ने प्रतिभूति घोटाले के आरोप में दोषी ठहराए जाने के कारण अपना त्याग-पत्र प्रधानमन्त्री को दे दिया। जनवरी-फरवरी, 1996 में 6 केन्द्रीय मन्त्रियों ने हवाला कांड में शामिल होने के कारण त्यागपत्र दे दिए। 20 अप्रैल, 1998 को प्रधानमन्त्री वाजपेयी ने त्याग-पत्र देने से इन्कार करने पर संचार मन्त्री बूटा सिंह को बर्खास्त कर दिया। इस प्रकार प्रधानमन्त्री को मन्त्रियों को हटाने का पूरा अधिकार प्राप्त है।

2. प्रधानमन्त्री का समन्वयकारी रूप (Prime Minister as a Co-ordinator)—प्रधानमन्त्री सरकार के भिन्न-भिन्न विभागों तथा उनके कार्यों में ताल-मेल रखता है। वह मन्त्रिमण्डल में एकता तथा सामूहिक उत्तरदायित्व स्थापित करता है। विभिन्न विभागों में जब मतभेद उत्पन्न हो जाते हैं तब प्रधानमन्त्री ही उनको हल करता है।

3. योग्य सरकार के लिए उत्तरदायी (Responsible for able Government)-प्रधानमन्त्री सरकार की योग्यता के लिए उत्तरदायी है। उसको सदा यह ध्यान रखना पड़ता है कि उसकी सरकार तथा पार्टी की देश में साख बनी रहे। इस उत्तरदायित्व को निभाने हेतु वह अपने मन्त्रिमण्डल में समय-समय पर परिवर्तन भी कर सकता है। नवीन मन्त्रियों को नियुक्त कर सकता है तथा यदि ऐसा अनुभव करे कि किसी विशेष मन्त्री का मन्त्रिमण्डल में होना सरकार के हित में अथवा मान में नहीं है तो वह ऐसे मन्त्री को पद से हटा भी सकता है।

4. राष्ट्रपति का मुख्य सलाहकार (Principle Adviser of the President)-प्रधानमन्त्री राष्ट्रपति का मुख्य सलाहकार है। राष्ट्रपति प्रशासन के प्रत्येक मामले पर प्रधानमन्त्री की सलाह लेता है। राष्ट्रपति को प्रधानमन्त्री की सलाह के अनुसार ही शासन चलाना पड़ता है। राष्ट्रपति सीधा मन्त्रियों से बात न करके प्रधानमन्त्री के माध्यम से ही मन्त्रिमण्डल की सलाह लेता है।

5. राष्ट्रपति तथा मन्त्रिमण्डल में एक महत्त्वपूर्ण कड़ी (Link between the President and the Cabinet)प्रधानमन्त्री, राष्ट्रपति तथा मन्त्रिमण्डल के मध्य एक कड़ी का कार्य करता है। वह राष्ट्रपति को मन्त्रिमण्डल के निर्णयों के विषय में सूचित करता है। मन्त्री, प्रधानमन्त्री की पूर्व स्वीकृति में राष्ट्रपति से मिल सकते हैं, परन्तु औपचारिक रूप में प्रधानमन्त्री ही राष्ट्रपति को मन्त्रिमण्डल के सभी निर्णयों से सूचित करता है।

6. सरकार का मुखिया (Head of the Govt.) सरकार का मुखिया होने के नाते प्रधानमन्त्री राज्य प्रबन्ध चलाता है। गृह तथा विदेश नीति का निर्माण करता है। वह समस्त महान् नीतियों की मन्त्रिमण्डल की ओर से घोषणा भी करता है। बजट भी उसकी देख-रेख में तैयार होता है। राष्ट्रपति प्रधानमन्त्री की सहमति के बिना न कोई नियुक्ति करता है तथा न ही कोई उपाधि देता है।

7. सरकार का प्रमुख प्रवक्ता (Chief Spokesman of the Government)-प्रधानमन्त्री ही सरकार का प्रमुख प्रवक्ता है। संसद् तथा जनता के सामने मन्त्रिमण्डल की नीति और निर्णयों की घोषणा प्रधानमन्त्री द्वारा की जाती है। वह सभी प्रशासकीय विभागों की जानकारी रखता है। जब कभी कोई मन्त्री संकट में हो तो उसकी सहायता करके मन्त्रिमण्डल-रूपी नौका को डूबने से बचाने का काम प्रधानमन्त्री ही करता है।

8. संसद् का नेता (Leader of the Parliament)—प्रधानमन्त्री को संसद् का नेता माना जाता है। सरकार की नीतियों की सभी महत्त्वपूर्ण घोषणाएं प्रधानमन्त्री द्वारा की जाती हैं। जब संसद् के सामने कोई समस्या आ खड़ी होती है तब वह प्रधानमन्त्री की ओर पथ-प्रदर्शन की आशा से देखती है और उसकी सलाह के अनुसार ही निर्णय करती है। सदन में अनुशासन बनाए रखने के लिए वह स्पीकर की सहायता करता है। प्रधानमन्त्री की सलाह पर ही राष्ट्रपति संसद् का अधिवेशन बुलाता है। संसद् का कार्यक्रम भी प्रधानमन्त्री की इच्छानुसार निश्चित किया जाता है।

9. लोकसभा को भंग करने का अधिकार (Right to get Lok Sabha dissolved)—प्रधानमन्त्री राष्ट्रपति को सलाह देकर लोकसभा को भंग करवा सकता है। 13 मार्च, 1991 को प्रधानमन्त्री चन्द्रशेखर की सलाह पर राष्ट्रपति आर० वेंकटरमण ने लोकसभा को भंग किया। 26 अप्रैल, 1999 को कैबिनेट की सिफ़ारिश पर राष्ट्रपति के० आर० नारायणन ने 12वीं लोकसभा को भंग कर दिया।

10. राष्ट्र का नेता (Leader of the Nation)-प्रधानमन्त्री राष्ट्र का नेता है। आम चुनाव प्रधानमन्त्री का चुनाव माना जाता है। जब देश पर कोई संकट आता है तब सारा देश प्रधानमन्त्री की ओर देखता है और जनता बड़े ध्यान से उसके विचारों को सुनती है। प्रधानमन्त्री जब भी किसी अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन में बोलता है तो वह समस्त राष्ट्र की तरफ से बोल रहा होता है।

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 28 संघीय कार्यपालिका–प्रधानमन्त्री तथा मन्त्रिपरिषद्

11. दल का नेता (Leader of the Party)-प्रधानमन्त्री अपनी पार्टी का नेता है। पार्टी को संगठित करना और पार्टी की नीतियों को निश्चित करने में प्रधानमन्त्री का बड़ा हाथ होता है। आम चुनाव के समय पार्टी के उम्मीदवारों का चुनाव करना प्रधानमन्त्री का ही काम है। अपनी पार्टी के उम्मीदवारों को विजयी बनाने के लिए वह ज़ोरदार भाषण देता है।

12. नियुक्तियां (Appointments)-शासन के सभी उच्च अधिकारियों की नियुक्ति राष्ट्रपति प्रधानमन्त्री की सिफ़ारिश पर करता है। राज्य के गवर्नर, विदेशों में भेजे जाने वाले राजदूत, संघीय लोक सेवा आयोग के सदस्य, सर्वोच्च न्यायालय तथा उच्च न्यायालयों के न्यायाधीश तथा विभिन्न आयोगों तथा शिष्टमण्डलों के सदस्य आदि प्रधानमन्त्री की इच्छानुसार ही नियुक्त किए जाते हैं।

13. गृह तथा विदेश नीति का निर्माण (Formation of the Internal and Foreign Policies)-गृह तथा विदेश नीति के निर्माण में प्रधानमन्त्री का ही हाथ है। भारत की विदेश नीति क्या होगी, इसका निर्णय प्रधानमन्त्री ही करता है। दूसरे देशों के साथ भारत के सम्बन्ध कैसे होंगे, इसका निर्णय भी प्रधानमन्त्री ही करता है। युद्ध और शान्ति की घोषणा का अधिकार भी वास्तव में प्रधानमन्त्री के पास ही है।

14. प्रधानमन्त्री राष्ट्रमण्डल के देशों से अच्छे सम्बन्ध स्थापित करता है (Establishes good relations with the Commonwealth Countries)-भारत राष्ट्रमण्डल का सदस्य है जिस कारण राष्ट्रमण्डल के देशों के साथ मैत्री के सम्बन्ध स्थापित करना प्रधानमन्त्री का कार्य है। प्रधानमन्त्री राष्ट्रमण्डल की बैठकों में भाग लेता है।

15. प्रधानमन्त्री की संकटकालीन शक्तियां (Emergency Powers of the Prime Minister)—संविधान के अनुच्छेद 352, 356 तथा 360 के अन्तर्गत राष्ट्रपति को विभिन्न संकटकालीन शक्तियां प्रदान की गई हैं, परन्तु इन शक्तियों का वास्तव में प्रयोग प्रधानमन्त्री द्वारा ही किया जाता है क्योंकि राष्ट्रपति इन शक्तियों का प्रयोग स्वेच्छा से नहीं कर सकता। राष्ट्रपति को इन शक्तियों का प्रयोग प्रधानमन्त्री की सलाह से करना होता है। 44वें संशोधन के द्वारा प्रधानमन्त्री की संकटकालीन शक्तियों पर एक प्रतिबन्ध लगाया गया है। इस संशोधन के अन्तर्गत राष्ट्रपति संकट की घोषणा तभी कर सकता है यदि मन्त्रिमण्डल राष्ट्रपति को संकटकालीन घोषणा करने की लिखित सलाह दे।

प्रधानमन्त्री की स्थिति (Position of the Prime Minister)-

प्रधानमन्त्री की ऊपरलिखित शक्तियों तथा कार्यों को देखकर यह स्पष्ट हो जाता है कि वह हमारे संविधान में सबसे अधिक शक्तिशाली अधिकारी है। डॉ० अम्बेदकर (Dr. Ambedkar) के शब्दों में, “यदि हमारे संविधान में किसी अधिकारी की तुलना अमेरिकन राष्ट्रपति से की जा सकती है तो वह हमारे देश का प्रधानमन्त्री ही है।” संविधान द्वारा कार्यकारी शक्तियां राष्ट्रपति को दी गई हैं परन्तु इसका प्रयोग प्रधानमन्त्री द्वारा ही किया जाता है। वह देश की वास्तविक मुख्य कार्यपालिका है। एक प्रसिद्ध लेखक के शब्दों में, “प्रधानमन्त्री की अन्य मन्त्रियों में वह स्थिति है जो सितारों में चन्द्रमा (Shining moon among the lesser stars) की होती है। वह एक धुरी है जिसके गिर्द राज्य प्रबन्ध की मशीनरी घूमती है अथवा हम उसे राज्यरूपी जहाज़ का कप्तान (Captain of the ship of the State) भी कहते हैं।”

प्रधानमन्त्री तानाशाह नहीं बन सकता (Prime Minister cannot become a dictator)-प्रधानमन्त्री की असाधारण शक्तियों को देखते हुए कई लोगों का विचार है कि वह इन शक्तियों के कारण तानाशाह बन सकता है। प्रो० के० टी० शाह (Prof. K.T. Shah) ने उसकी इन शक्तियों को दृष्टि में रखते हुए संविधान सभा में बोलते हुए ऐसा कहा था, “प्रधानमन्त्री की शक्तियों को देखकर मुझे ऐसा डर लगता है कि यदि वह चाहे तो किसी भी समय देश का तानाशाह बन सकता है।”

परन्तु दूसरी ओर कुछ लोगों का यह भी विचार है कि प्रधानमन्त्री, इन शक्तियों के होते हुए भी तानाशाह नहीं बन सकता है। उनके अनुसार प्रधानमन्त्री को मन्त्रिमण्डल का निर्माण करते समय कई बातों का ध्यान रखना पड़ता है। कई बार उसे दल के ऐसे सदस्यों को भी मन्त्रिमण्डल में लेना पड़ता है जिनको वह न चाहता हो तथा उनकी इच्छानुसार उनको विभाग भी देने पड़ते हैं। इनके अतिरिक्त मन्त्रिमण्डल का निर्माण करते समय उसे देश के भिन्न-भिन्न भागों तथा श्रेणियों को प्रतिनिधित्व देना पड़ता है। प्रधानमन्त्री की शक्तियों पर निम्नलिखित प्रतिबन्ध हैं-

  • संसद का नियन्त्रण-प्रधानमन्त्री संसद् के प्रति उत्तरदायी है और संसद् प्रधानमन्त्री को निरंकुश बनने से रोकती है। कई बार उसको संसद् की इच्छानुसार अपनी नीति में परिवर्तन भी करना पड़ता है।
  • जनमत–प्रधानमन्त्री जनमत के विरुद्ध नहीं जा सकता। प्रधानमन्त्री को जनमत को ध्यान में रखकर शासन चलाना होता है। यदि कोई प्रधानमन्त्री जनमत की परवाह नहीं करता तो जनता ऐसे प्रधानमन्त्री को अगले चुनाव में हटा देती है।
  • विरोधी दल-प्रधानमन्त्री कोई निरंकुश सीज़र (Ceasar) नहीं बन सकता। उनके शब्द कोई अन्तिम निर्णय नहीं। किसी भी समय उनको चुनौती दी जा सकती है। प्रधानमन्त्री को विरोधी दलों के होते हुए काम करना पड़ता है। विरोधी दल प्रधानमन्त्री की आलोचना करके उसे निरंकुश नहीं बनने देते।

अन्त में, हम कह सकते हैं कि प्रधानमन्त्री का पद उसके व्यक्तित्व तथा देश के वातावरण पर और उसकी अपनी पार्टी के समर्थन पर निर्भर करता है। स्वर्गीय प्रधानमन्त्री नेहरू और लाल बहादुर शास्त्री ने अपनी शक्तियों का प्रयोग लोकहित को मुख्य रखकर किया। 26 जून, 1975 को प्रधानमन्त्री इन्दिरा गांधी की सलाह पर राष्ट्रपति ने आन्तरिक आपात्कालीन स्थिति की घोषणा की। संकटकाल में इन्दिरा गांधी की स्थिति हिटलर तथा नेपोलियन जैसे तानाशाहों से कम नहीं थी। परन्तु मार्च, 1977 में लोकसभा के चुनाव में इन्दिरा गांधी की बुरी तरह हार हुई। जनता ने यह प्रमाणित कर दिया कि प्रधानमन्त्री, तानाशाह नहीं बन सकता और उसको अपनी शक्तियों का प्रयोग देश के हित में करना होगा।

मिली-जुली सरकार का प्रधानमन्त्री एक दल की सरकार के प्रधानमन्त्री की अपेक्षा कम शक्तिशाली होता है क्योंकि प्रधानमन्त्री को सहयोगी दलों के समर्थन का पूरा विश्वास नहीं होता। संयुक्त मोर्चा की सरकार के प्रधानमन्त्री एच० डी० देवगौड़ा श्रीमती इन्दिरा गांधी के मुकाबले में अत्यधिक कमज़ोर प्रधानमन्त्री थे। भारतीय जनता पार्टी व उसके सहयोगी दलों के प्रधानमन्त्री अटल बिहारी वाजपेयी की स्थिति सुदृढ़ व शक्तिशाली नहीं थी क्योंकि आए दिन कोई न कोई सहयोगी दल सरकार से समर्थन वापस लेने की धमकी देता रहता था। अक्तूबर, 1999 में 24 दलों के राष्ट्रीय जनतान्त्रिक गठबन्धन की सरकार बनी। परन्तु इस गठबन्धन के नेता अटल बिहारी वाजपेयी एक बार फिर अपने सहयोगी दलों की कृपा पर निर्भर हैं।
मौखिक रूप से देना पड़ता है। कई बार मन्त्री के द्वारा अपने विभाग के सम्बन्ध में लिए गए निर्णय गलत सिद्ध होते हैं।

प्रश्न 2.
मन्त्रिपरिषद् के निर्माण की प्रक्रिया का वर्णन करो। उनके कार्यों का भी उल्लेख करो।
(Describe the procedure for the formation of the Council of Minister. Also explain its functions.)
उत्तर-
संघ की सभी कार्यपालिका शक्तियां राष्ट्रपति को दी गई हैं, परन्तु वह उनका प्रयोग मन्त्रिमण्डल की सहायता से करता है। 44वें संशोधन के अन्तर्गत यह व्यवस्था की गई है कि राष्ट्रपति मन्त्रिमण्डल द्वारा दी गई सलाह पर मन्त्रिमण्डल को पुनः विचार करने के लिए कह सकता है परन्तु मन्त्रिमण्डल द्वारा पुनः दी गई सलाह को मानने के लिए राष्ट्रपति बाध्य है।

मन्त्रिपरिषद् का निर्माण (Formation of the Council of Ministers)—संविधान की धारा 75 के अन्तर्गत यह व्यवस्था की गई है कि राष्ट्रपति प्रधानमन्त्री की नियुक्ति करेगा और फिर उसकी सलाह से अन्य मन्त्रियों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाएगी। परन्तु राष्ट्रपति प्रधानमन्त्री की नियुक्ति अपनी इच्छा से नहीं कर सकता। जिस दल को लोकसभा में बहुमत प्राप्त होता है, उसी दल के नेता को राष्ट्रपति प्रधानमन्त्री नियुक्त करता है। अप्रैल-मई, 2004 में हुए 14वीं लोकसभा के चुनाव में किसी भी दल को बहुमत प्राप्त नहीं हुआ। अतः राष्ट्रपति ने कांग्रेस के नेतृत्व में बने संयुक्त प्रगतिशील गठबन्धन के नेता डॉ० मनमोहन सिंह को प्रधानमन्त्री नियुक्त किया। अप्रैल-मई, 2014 में हुए 16वीं लोकसभा के चुनावों के पश्चात् भारतीय जनता पार्टी के नेता श्री नरेन्द्र मोदी को प्रधानमन्त्री नियुक्त किया गया।

अपनी नियुक्ति के पश्चात् प्रधानमन्त्री अपने साथियों अर्थात् अन्य मन्त्रियों की सूची तैयार करता है और राष्ट्रपति उस सूची के अनुसार ही अन्य मन्त्रियों की नियुक्ति करता है। राष्ट्रपति प्रधानमन्त्री की इच्छा के विरुद्ध उस सूची में से किसी का नाम न काट सकता है और न ही उसमें कोई नया नाम सम्मिलित कर सकता है। मन्त्री बनने के लिए आवश्यक है कि वह संसद् के दोनों सदनों में से किसी का भी सदस्य हो। प्रधानमन्त्री किसी ऐसे व्यक्ति को भी मन्त्री नियुक्त करवा सकता है जो संसद् का सदस्य न हो, परन्तु नियुक्ति के छ: महीने के अन्दर-अन्दर उस मन्त्री को संसद् का सदस्य अवश्य बनना पड़ता है।

मन्त्रियों की संख्या (Number of Ministers)-91वें संविधान संशोधन अधिनियम 2003 के अनुसार मन्त्रिपरिषद् में प्रधानमन्त्री सहित मन्त्रियों की कुल संख्या लोकसभा के सदस्यों की कुल संख्या के 15% से अधिक नहीं होनी चाहिए। सितम्बर, 2017 में मन्त्रिपरिषद् की सदस्य संख्या 75 थी।

अवधि (Term of Office)-संविधान की धारा 75 के अन्तर्गत ही यह कहा गया है कि मन्त्री राष्ट्रपति के प्रसादपर्यन्त अपने पद पर रहेंगे। सैद्धान्तिक रूप में मन्त्रिपरिषद् राष्ट्रपति की इच्छा पर है परन्तु व्यवहार में मन्त्रिपरिषद् तब तक अपने पद पर रह सकती है जब तक उसे लोकसभा में बहुमत का विश्वास प्राप्त रहे। यदि लोकसभा अविश्वास प्रस्ताव पास कर दे तो मन्त्रिपरिषद् को त्याग-पत्र देना पड़ता है। नवम्बर, 1990 में प्रधानमन्त्री वी० पी० सिंह लोकसभा में विश्वास मत न प्राप्त कर सके जिस कारण मन्त्रिपरिषद् को त्याग-पत्र देना पड़ा। राष्ट्रपति नारायणन ने प्रधानमन्त्री वाजपेयी की सलाह पर संचार मन्त्री बूटा सिंह को 20 अप्रैल, 1998 को बर्खास्त किया। राष्ट्रपति किसी मन्त्री को प्रधानमन्त्री की सलाह पर ही हटा सकता है न कि अपनी इच्छा से। 17 अप्रैल, 1999 को प्रधानमन्त्री अटल बिहारी वाजपेयी लोकसभा में विश्वास मत प्राप्त न कर सके जिस कारण उन्हें और उनके मन्त्रिमण्डल को त्याग-पत्र देना पड़ा।

मन्त्रिपरिषद् की बैठकें (Meetings of the Cabinet)–मन्त्रिमण्डल की बैठक सप्ताह में एक बार या आवश्यकता पड़ने पर एक-से अधिक बार भी हो सकती है। मन्त्रिमण्डल की बैठकें प्रधानमन्त्री द्वारा बुलाई जाती हैं और ये बैठकें प्रधानमन्त्री के कार्यालय या निवास स्थान पर होती हैं। इन बैठकों की अध्यक्षता प्रधानमन्त्री करता है। मन्त्रिमण्डल के सभी निर्णय बहुमत से किए जाते हैं।

मन्त्रिपरिषद् के कार्य (Functions of Council Ministers)—मन्त्रिपरिषद् वैसे तो एक सलाहकार परिषद् बताई गई है, परन्तु वास्तव में वह देश का वास्तविक शासक है। राष्ट्रपति की समस्त कार्यपालिका शक्तियां उसके द्वारा ही प्रयोग की जाती हैं। मन्त्रिपरिषद् के मुख्य कार्य निम्नलिखित हैं-

1. राष्ट्रीय नीति का निर्माण (Determination of National Policy)-मन्त्रिमण्डल का सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य नीति निर्माण करना है। देश की आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक तथा अन्य समस्याओं को हल करने के लिए मन्त्रिमण्डल राष्ट्रीय नीति का निर्माण करता है। राष्ट्रीय नीतियों का निर्माण करते समय मन्त्रिमण्डल अपने दल के कार्यक्रम और सिद्धान्त को ध्यान में रखता है। मन्त्रिमण्डल राष्ट्रीय नीति ही नहीं बल्कि अन्तर्राष्ट्रीय नीति का भी निर्माण करता है।

2. विदेशी सम्बन्धों का संचालन (Conduct of Foreign Relations)-मन्त्रिमण्डल विदेश नीति का भी निर्माण करता है और विदेश सम्बन्धों का संचालन करना मन्त्रिमण्डल का कार्य है। मन्त्रिमण्डल दूसरे देशों के साथ कूटनीतिक और आर्थिक सम्बन्धों के बारे में निर्णय करता है, दूसरे देशों में राजदूतों को भेजता है। राजदूतों की नियुक्ति राष्ट्रपति मन्त्रिमण्डल की सलाह से करता है। दूसरे देशों के साथ सन्धि-समझौते करना, व्यापारिक व आर्थिक समझौते करना, युद्ध की घोषणा और शान्ति की स्थापना इत्यादि प्रश्नों पर मन्त्रिमण्डल ही निर्णय लेता है।

3. प्रशासन पर नियन्त्रण (Control over the Administration)—प्रशासन का प्रत्येक विभाग किसी-नकिसी मन्त्री के अधीन होता है और सम्बन्धित मन्त्रिमण्डल के द्वारा निर्धारित तथा संसद् द्वारा स्वीकृति के अनुसार अपने विभाग को सुचारु रूप से चलाने का प्रयत्न करता है। मन्त्रिपरिषद् प्रशासन के विभिन्न भागों में सहयोग तथा तालमेल उत्पन्न करने का प्रयत्न भी करता है ताकि विभिन्न विभाग एक निश्चित लक्ष्य की प्राप्ति के लिए कार्य कर सकें तथा एक-दूसरे के विरोधी न बनें। समस्त भारत के कानूनों को अच्छे प्रकार से लागू करना, शान्ति और सुरक्षा को बनाए रखना तथा जनता के सर्वोत्तम हित के लिए शासन चलाना मन्त्रिमण्डल का कर्त्तव्य है।

4. विधायिनी कार्य (Legislative Functions)-सैद्धान्तिक रूप में कानून बनाना संसद् का कार्य है परन्तु व्यावहारिक रूप में यदि कहा जाए कि मन्त्रिमण्डल संसद् की स्वीकृति से कानून बनाता है तो गलत नहीं है। मन्त्रिमण्डल के सभी सदस्य संसद् के सदस्य होते हैं और वे संसद् की बैठकों में भाग लेते हैं। संसद् में अधिकतर बिल मन्त्रिपरिषद् के द्वारा पेश किए जाते हैं। क्योंकि बहुमत मन्त्रिपरिषद् के साथ होता है, इसलिए मन्त्रिपरिषद् का पेश किया हुआ बिल आसानी से पास हो जाता है। मन्त्रिपरिषद् की इच्छा के विरुद्ध कोई भी बिल संसद् में पास नहीं हो सकता। मन्त्रिपरिषद् ही इस बात की सलाह राष्ट्रपति को देती है कि संसद् का अधिवेशन कब बुलाया जाए और उसे कब तक स्थापित किया जाए। संसद् का अधिकतम समय मन्त्रिपरिषद् के द्वारा पेश किए गए बिलों पर विचार करने में खर्च होता है। वास्तव में संसद् पर मन्त्रिपरिषद् का नियन्त्रण है और वह अपनी इच्छा के अनुसार जो भी कानून चाहे पास करवा सकती है।

5. प्रदत्त-कानून निर्माण (Delegated Legislation)–संसद् प्रायः कानून का केवल ढांचा निश्चित करती है और उसमें विस्तार करने का अधिकार मन्त्रिमण्डल को सौंप देती है। मन्त्रिमण्डल के उप-नियम बनाने के अधिकार को प्रदत्त-व्यवस्थापन कहा जाता है। मन्त्रिमण्डल के इस अधिकार से मन्त्रिमण्डल का शासन पर और नियन्त्रण बढ़ जाता है।

6. वित्तीय कार्य (Financial Functions)-मन्त्रिमण्डल का वित्त सम्बन्धी कार्य भी काफ़ी महत्त्वपूर्ण है। मन्त्रिमण्डल ही राज्य के समस्त व्यय के लिए उत्तरदायी है और उस समस्त व्यय की पूर्ति के लिए वित्त जुटाना उसी का काम है। वार्षिक बजट तैयार करना मन्त्रिमण्डल का कार्य है और वित्त मन्त्री बजट को लोकसभा में पेश करता है। मन्त्रिमण्डल ही इस बात का निर्णय करता है कि कौन-सा नया कर लगाना है, या पुराने करों में बढ़ोत्तरी करनी है या पुराने करों को समाप्त करना है।

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 28 संघीय कार्यपालिका–प्रधानमन्त्री तथा मन्त्रिपरिषद्

7. नियुक्तियां (Appointments)—महत्त्वपूर्ण नियुक्तियां राष्ट्रपति द्वारा की जाती हैं, परन्तु राष्ट्रपति अपनी इच्छा से नियुक्तियां न करके मन्त्रिमण्डल की सलाह के अनुसार करता है । राजदूतों, राज्य के राज्यपाल, अटॉरनी जनरल, संघ लोक सेवा आयोग, चुनाव आयोग तथा अन्य महत्त्वपूर्ण नियुक्तियां राष्ट्रपति मन्त्रिमण्डल की सलाह के अनुसार करता है।

8. मन्त्रिमण्डल का समन्यवकारी स्वरूप (The Cabinet as a Co-ordinator)-मन्त्रिमण्डल का एक महत्त्वपूर्ण कार्य मन्त्रियों के विभिन्न विभागों में समन्वय पैदा करना है। सारा शासन कई विभागों में बांटा जाता है। एक विभाग का दूसरे विभाग पर प्रभाव पड़ता है और कई बार एक महत्त्वपूर्ण समस्या का कई विभागों से सम्बन्ध होता है। इसलिए प्रत्येक विभाग का दूसरे विभाग के साथ समन्वय होना चाहिए और यह कार्य मन्त्रिमण्डल के द्वारा किया जाता है। विदेश नीति पर व्यापार नीति का प्रभाव पड़ता है। इस तरह शिक्षा सम्बन्धी नीति का दूसरे विभागों पर विशेषकर वित्त विभाग पर प्रभाव पड़ता है। इसलिए यह आवश्यक है कि एक विभाग का दूसरे विभाग के साथ समन्वय हो और यह महत्त्वपूर्ण कार्य मन्त्रिमण्डल द्वारा किया जाता है।

9. संकटकालीन शक्तियां (Emergency Powers) 44वें संशोधन के अन्तर्गत यह व्यवस्था की गई है कि राष्ट्रपति अनुच्छेद 352 के अन्तर्गत संकटकाल की घोषणा तभी कर सकता है यदि मन्त्रिमण्डल राष्ट्रपति को संकटकाल घोषित करने की लिखित सलाह दे।

10. जांच-पड़ताल की शक्ति (Power of Investigation) मन्त्रिमण्डल भूतपूर्व मन्त्रियों, मुख्यमन्त्रियों तथा अन्य अधिकारियों के विरुद्ध लगाए गए आरोपों की जांच करने के लिए आयोग नियुक्त कर सकता है।

निष्कर्ष (Conclusion)-मन्त्रिमण्डल की शक्तियों को देखते हुए यह कहा जा सकता है मन्त्रिमण्डल देश का वास्तविक शासक है। राष्ट्रपति नीति तथा अन्तर्राष्ट्रीय नीति का निर्माण करना, धन पर नियन्त्रण, कानून बनाना, महत्त्वपूर्ण नियुक्तियां करना इत्यादि सभी कार्य मन्त्रिमण्डल के द्वारा किए जाते हैं। श्री एम० वी० पायली (M.V. Pylee) का यह कहना सर्वथा उचित है, “संघीय मन्त्रिमण्डल राष्ट्रीय नीतियों का निर्माता, नियुक्तियां करने वाले सर्वोच्च अधिकारी, विभागों के आपसी झगड़ों का निर्णायक तथा सरकार के विभिन्न विभागों में तालमेल पैदा करने वाला सर्वोच्च अंग है।”

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
प्रधानमन्त्री कैसे नियुक्त होता है ?
उत्तर–
प्रधानमन्त्री की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा होती है, परन्तु ऐसा करने में वह अपनी इच्छा से काम नहीं ले सकता। प्रधानमन्त्री के पद पर उसी व्यक्ति को नियुक्त किया जाता है जो लोकसभा में बहुमत दल का नेता हो। आम चुनाव के बाद जिस राजनीतिक दल को सदस्यों का बहुमत प्राप्त होगा, उसी दल के नेता को राष्ट्रपति सरकार बनाने के लिए आमन्त्रित करता है। यदि किसी भी राजनीतिक दल को लोकसभा में स्पष्ट बहुमत प्राप्त हो तो भी राष्ट्रपति को इस बारे में पूर्ण स्वतन्त्रता नहीं मिलती बल्कि कठिनाई का सामना करना पड़ता है। ऐसी दशा में उसी व्यक्ति को प्रधानमन्त्री नियुक्त किया जाता है जो लोकसभा के बहुमत सदस्यों का सहयोग प्राप्त कर सकता हो।

प्रश्न 2.
संघीय मन्त्रिपरिषद् का निर्माण किस प्रकार होता है ?
उत्तर-
संघीय मन्त्रिपरिषद् का निर्माण-संविधान की धारा 75 के अन्तर्गत यह व्यवस्था की गई है कि राष्ट्रपति प्रधानमन्त्री की नियुक्ति करेगा और फिर उसकी सलाह से अन्य मन्त्रियों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाएगी। परन्तु राष्ट्रपति प्रधानमन्त्री की नियुक्ति अपनी इच्छा से नहीं कर सकता। जिस दल को लोकसभा में बहुमत प्राप्त होता है, उसी दल के नेता को राष्ट्रपति प्रधानमन्त्री नियुक्त करता है।
अपनी नियुक्ति के पश्चात् प्रधानमन्त्री अपने साथियों अर्थात् अन्य मन्त्रियों की सूची तैयार करता है और राष्ट्रपति उस सूची के अनुसार ही अन्य मन्त्रियों की नियुक्ति करता है। राष्ट्रपति प्रधानमन्त्री की इच्छा के विरुद्ध उस सूची में से किसी का नाम न काट सकता है और न ही उसमें कोई नया नाम सम्मिलित कर सकता है। मन्त्री बनने के लिए आवश्यक है कि वह संसद् के दोनों सदनों में से किसी का भी सदस्य हो। प्रधानमन्त्री किसी ऐसे व्यक्ति को भी मन्त्री नियुक्त करवा सकता है जो संसद् का सदस्य न हो, परन्तु नियुक्ति के छः महीने के अन्दर-अन्दर उस मन्त्री को संसद् का सदस्य अवश्य बनना पड़ता है।।

प्रश्न 3.
प्रधानमन्त्री, मन्त्रिमण्डल रूपी मेहराब की आधारशिला है। व्याख्या करें।
उत्तर-
प्रधानमन्त्री, मन्त्रिमण्डल का नेता है। प्रधानमन्त्री ही मन्त्रिमण्डल को बनाता एवं नष्ट करता है। बिना प्रधानमन्त्री के मन्त्रिमण्डल का कोई अस्तित्व नहीं है। अग्रलिखित कारणों से उसे “मन्त्रिमण्डल रूपी मेहराब की आधारशिला” कहा गया है(1) राष्ट्रपति प्रधानमन्त्री के परामर्श से मन्त्रियों की नियुक्ति करता है। (2) प्रधानमन्त्री अपने साथियों को चुनता ही नहीं, अपितु उनमें विभागों का विभाजन भी करता है। (3) प्रधानमन्त्री, मन्त्रिमण्डल का सभापति होता है। (4) प्रधानमन्त्री की सलाह पर राष्ट्रपति मन्त्रियों को अपदस्थ कर सकता है।

प्रश्न 4.
प्रधानमन्त्री की किन्हीं चार शक्तियों का वर्णन करें।
उत्तर-
प्रधानमन्त्री की निम्नलिखित मुख्य शक्तियां हैं-

  1. प्रधानमन्त्री मन्त्रिपरिषद् का निर्माण करता है-राष्ट्रपति, प्रधानमन्त्री की सलाह से अन्य मन्त्रियों की नियुक्ति करता है। इस सम्बन्ध में प्रधानमन्त्री अपने साथी मन्त्रियों की एक सूची तैयार कर स्वीकृति के लिए राष्ट्रपति के पास भेजता है। राष्ट्रपति की स्वीकृति के पश्चात् वे व्यक्ति मन्त्री बन जाते हैं।
  2. विभागों का विभाजन-प्रधानमन्त्री अपने साथियों को चुनता ही नहीं अपितु उनमें विभागों का विभाजन भी करता है। वह किसी भी मन्त्री को कोई भी विभाग दे सकता है और जब चाहे इसमें परिवर्तन कर सकता है।
  3. प्रधानमन्त्री मन्त्रिमण्डल का सभापति-प्रधानमन्त्री, मन्त्रिमण्डल का सभापति होता है। वह कैबिनेट की बैठकों में सभापतित्व करता है। वह कार्य सूची तैयार करता है। बैठकों में होने वाले वाद-विवाद पर नियन्त्रण रखता है। मन्त्रिमण्डल के अधिकतर निर्णय वास्तव में प्रधानमन्त्री के निर्णय होते हैं।
  4. राष्ट्रपति का मुख्य सलाहकार–प्रधानमन्त्री राष्ट्रपति का मुख्य सलाहकार है।

प्रश्न 5.
क्या प्रधानमन्त्री तानाशाह बन सकता है ?
उत्तर-
प्रधानमन्त्री की असाधारण शक्तियों को देखते हुए कई लोगों का विचार है कि वह इन शक्तियों के कारण तानाशाह बन सकता है। परन्तु विद्वानों का विचार है कि प्रधानमन्त्री इन शक्तियों के होते हुए भी तानाशाह नहीं बन सकता है क्योंकि प्रधानमन्त्री की शक्तियों पर निम्नलिखित प्रतिबन्ध हैं-

  • प्रधानमन्त्री संसद् के प्रति उत्तरदायी है और संसद् प्रधानमन्त्री को निरंकुश बनने से रोकती है।
  • प्रधानमन्त्री जनमत के विरुद्ध नहीं जा सकता। प्रधानमन्त्री को जनमत को ध्यान में रखकर शासन चलाना होता है।
  • प्रधानमन्त्री को सदैव विरोधी दल का ध्यान रखना पड़ता है। विरोधी दल प्रधानमन्त्री की आलोचना करके उसे निरंकुश नहीं बनने देते हैं।

प्रश्न 6.
प्रधानमन्त्री की स्थिति की चर्चा करो।
उत्तर-
प्रधानमन्त्री की शक्तियों तथा कार्यों को देखकर यह स्पष्ट हो जाता है कि वह हमारे संविधान में सबसे अधिक शक्तिशाली अधिकारी है। डॉ० अम्बेदकर (Dr. Ambedkar) के शब्दों में, “यदि हमारे संविधान में किसी अधिकार की तुलना अमेरिकन राष्ट्रपति से की जा सकती है तो वह हमारे देश का प्रधानमन्त्री ही है, राष्ट्रपति नहीं।” संविधान द्वारा कार्यकारी शक्तियां राष्ट्रपति को दी गई हैं, परन्तु इनका प्रयोग प्रधानमन्त्री द्वारा ही किया जाता है, वह देश की वास्तविक मुख्य कार्यपालिका है। एक प्रसिद्ध लेखक के शब्दों में, प्रधानमन्त्री की अन्य मन्त्रियों में वह स्थिति है जो सितारों में चन्द्रमा (Shining moon among the lesser stars) की होती है। वह एक धूरी है जिसके गिर्द राज्य की मशीनरी घूमती है अथवा हम उसे राज्यरूपी जहाज़ का कप्तान (Captain of the ship of the State) भी कहते हैं।

प्रश्न 7.
सामूहिक उत्तरदायित्व के सिद्धान्त से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
भारतीय संविधान की धारा 75 (3) में स्पष्ट किया गया है कि मन्त्रिपरिषद् सामूहिक रूप से लोकसभा के प्रति उत्तरदायी है। सामूहिक उत्तरदायित्व की बात हमने ब्रिटिश संविधान से ली है। भारतीय मन्त्रिमण्डल उस समय तक अपने पद पर रह सकता है जब तक कि उसे लोकसभा का विश्वास प्राप्त हो। यदि लोकसभा का बहुमत मन्त्रिमण्डल के विरुद्ध हो जाए तो उसे अपना त्याग-पत्र देना पड़ेगा। मन्त्रिमण्डल एक इकाई की तरह काम करता है और यदि लोकसभा किसी एक मन्त्री के विरुद्ध अविश्वास का प्रस्ताव पास कर दे तो सब मन्त्रियों को अपना पद छोड़ना पड़ता है। यह उस समय होता है जबकि किसी मन्त्री ने कोई कार्यवाही मन्त्रिमण्डल की स्वीकृति से की हो। यदि उसने व्यक्तिगत रूप में निर्णय लिया हो तो उस समय केवल उसी मन्त्री को ही त्याग-पत्र देना पड़ता है।

प्रश्न 8.
व्यक्तिगत उत्तरदायित्व का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
संसदीय शासन प्रणाली में कार्यपालिका अर्थात् मन्त्रियों तथा विधानपालिका में गहरा सम्बन्ध होता है। इस व्यवस्था में प्रत्येक मन्त्री अपने कार्यों और निर्णयों के लिए विधानपालिका के प्रति उत्तरदायी होता है। प्रत्येक मन्त्री किसी-न-किसी प्रशासकीय विभाग का अध्यक्ष होता है। उस विभाग के कुशल संचालन का उत्तरदायित्व उस मन्त्री का होता है। अतः प्रत्येक मन्त्री अपने विभाग को कुशलतापूर्वक चलाने के लिए विधानपालिका के प्रति उत्तरदायी होता है। विधानपालिका के सदस्य किसी भी मन्त्री से उसके विभाग के कार्यों के बारे में प्रश्न तथा पूरक प्रश्न पूछ सकते हैं। मन्त्री को उसका उत्तर लिखित अथवा मौखिक रूप से देना पड़ता है। कई बार मन्त्री के द्वारा अपने विभाग के सम्बन्ध में लिए गए निर्णय गलत सिद्ध होते हैं और इस कारण विधानपालिका में उसकी आलोचना की जाती है। यदि विधानपालिका में उस मन्त्री के विरुद्ध निन्दा प्रस्ताव पास कर दिया जाता है तो ऐसी स्थिति में केवल उस मन्त्री को ही त्याग-पत्र देना पड़ता है सारे मन्त्रिमण्डल को त्याग-पत्र देने की आवश्यकता नहीं होती। भारत में ऐसे कई उदाहरण मिलते हैं; जैसे- श्री लाल बहादुर शास्त्री, श्री टी० टी० कृष्णमाचारी और श्री वी० के० मेनन ने अपनी गलतियों के कारण केन्द्रीय मन्त्रिमण्डल से त्याग-पत्र दे दिए थे।

प्रश्न 9.
मन्त्रिपरिषद् के किन्हीं चार कार्यों का वर्णन करो।
उत्तर-
मन्त्रिपरिषद् के मुख्य कार्य निम्नलिखित हैं

  1. राष्ट्रीय नीति का निर्माण-मन्त्रिमण्डल का सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य नीति-निर्माण करना है। देश की आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक तथा अन्य समस्याओं को हल करने के लिए मन्त्रिमण्डल राष्ट्रीय नीति का निर्माण करता है।
  2. विदेशी सम्बन्धों का संचालन–मन्त्रिमण्डल विदेश नीति का निर्माण भी करता है और विदेशी सम्बन्धों का संचालन करता है । मन्त्रिमण्डल दूसरे देशों के साथ कूटनीतिक और आर्थिक सम्बन्ध स्थापित करता है तथा दूसरे देशों में राजदूत भेजता है।
  3. प्रशासन पर नियन्त्रण-प्रशासन का प्रत्येक विभाग किसी-न-किसी मन्त्री के अधीन होता है और सम्बन्धित मन्त्री अपने विभाग को सुचारू ढंग से चलाने का प्रयत्न करता है। समस्त भारत में कानूनों को लागू करता, शान्ति व्यवस्था बनाए रखना और शासन को सुचारू रूप से चलाना मन्त्रिमण्डल का ही कार्य है।
  4. विधायिनी कार्य-मन्त्रिमण्डल द्वारा बहुत से विधायिनी कार्य किए जाते हैं।

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 28 संघीय कार्यपालिका–प्रधानमन्त्री तथा मन्त्रिपरिषद्

प्रश्न 10.
भारतीय मन्त्रिमण्डल की चार विशेषताएं लिखें।
उत्तर-
भारतीय मन्त्रिमण्डल में निम्नलिखित विशेषताएं पाई जाती हैं

  1. नाममात्र का अध्यक्ष- भारतीय संविधान के अन्तर्गत संसदीय शासन प्रणाली की व्यवस्था की गई है। राष्ट्रपति राज्य का नाममात्र का अध्यक्ष है। देश का समस्त शासन राष्ट्रपति के नाम पर चलाया जाता है, परन्तु वास्तव में शासन मन्त्रिमण्डल द्वारा चलाया जाता है।
  2. कार्यपालिका तथा विधानपालिका में घनिष्ठता-संसदीय शासन प्रणाली में कार्यपालिका तथा विधानपालिका में घनिष्ठ सम्बन्ध पाया जाता है। भारत में भी संसदीय शासन प्रणाली को ही अपनाया गया है। अतः मन्त्रिपरिषद् के सभी सदस्य संसद् के सदस्य होते हैं।
  3. प्रधानमन्त्री का नेतृत्व-भारतीय मन्त्रिमण्डल अपने सभी कार्य प्रधानमन्त्री के नेतृत्व में करता है, राष्ट्रपति के नेतृत्व में नहीं। प्रधानमन्त्री मन्त्रिपरिषद् का ह्रदय एवं आत्मा है। वह इसकी आधारशिला है।
  4. मन्त्रिमण्डल का उत्तरदायित्व-मन्त्रिमण्डल अपने कार्यों के लिए संसद् के प्रति उत्तरदायी होती है।

प्रश्न 11.
केन्द्रीय मन्त्रिपरिषद् में कितने प्रकार के मन्त्री होते हैं ? व्याख्या करें।
उत्तर-
केन्द्रीय मन्त्रिपरिषद् में तीन प्रकार के मन्त्री होते हैं-कैबिनेट मन्त्री, राज्य मन्त्री तथा उपमन्त्री।

  • कैबिनेट मन्त्री-मन्त्रिपरिषद् के सबसे महत्त्वपूर्ण मन्त्रियों को कैबिनेट मन्त्री कहा जाता है और कैबिनेट मन्त्री किसी महत्त्वपूर्ण विभाग के अध्यक्ष होते हैं।
  • राज्य मन्त्री-राज्य मन्त्री कैबिनेट मन्त्री के सहायक के रूप में कार्य करते हैं। ये कैबिनेट के सदस्य नहीं होते तथा न ही ये कैबिनेट की बैठक में भाग लेते हैं।
  • उपमन्त्री-ये किसी विभाग के स्वतन्त्र रूप से अध्यक्ष नहीं होते। इसका कार्य केवल किसी दूसरे मन्त्री के कार्य में सहायता देना होता है।

प्रश्न 12.
मन्त्रिमण्डल और मन्त्रिपरिषद् में अन्तर बताएं।
उत्तर-
मन्त्रिपरिषद् एक विशाल संस्था है। हमारे संविधान में भी मन्त्रिपरिषद् शब्द का ही प्रयोग किया जाता है, मन्त्रिमण्डल का नहीं। मन्त्रिमण्डल मन्त्रिपरिषद् का हिस्सा होता है। मन्त्रिपरिषद् में लगभग 80 सदस्य होते हैं जबकि मन्त्रिमण्डल में लगभग 30 मन्त्री होते हैं। मन्त्रिपरिषद् के सभी सदस्य मन्त्रिमण्डल के सदस्य नहीं होते हैं । मन्त्रिपरिषद् में सभी मन्त्री होते हैं जबकि मन्त्रिमण्डल में केवल महत्त्वपूर्ण मन्त्री ही होते हैं। मन्त्रिपरिषद् की बैठकें बहुत कम होती हैं जबकि मन्त्रिमण्डल की बैठकें सप्ताह में प्रायः एक बार अवश्य होती हैं।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
प्रधानमन्त्री कैसे नियुक्त होता है ?
उत्तर-
प्रधानमन्त्री की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा होती है, परन्तु ऐसा करने में वह अपनी इच्छा से काम नहीं ले सकता। प्रधानमन्त्री के पद पर उसी व्यक्ति को नियुक्त किया जाता है जो लोकसभा में बहुमत दल का नेता हो। आम चुनाव के बाद जिस राजनीतिक दल को सदस्यों का बहुमत प्राप्त होगा, उसी दल के नेता को राष्ट्रपति सरकार बनाने के लिए आमन्त्रित करता है।

प्रश्न 2.
संघीय मन्त्रिपरिषद् का निर्माण किस प्रकार होता है ?
उत्तर-
संविधान की धारा 75 के अन्तर्गत यह व्यवस्था की गई है कि राष्ट्रपति प्रधानमन्त्री की नियुक्ति करेगा और फिर उसकी सलाह से अन्य मन्त्रियों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाएगी। अपनी नियुक्ति के पश्चात् प्रधानमन्त्री अपने साथियों अर्थात् अन्य मन्त्रियों की सूची तैयार करता है और राष्ट्रपति उस सूची के अनुसार ही अन्य मन्त्रियों की नियुक्ति करता है। राष्ट्रपति प्रधानमन्त्री की इच्छा के विरुद्ध उस सूची में से किसी का नाम न काट सकता है और न ही उसमें कोई नया नाम सम्मिलित कर सकता है।

प्रश्न 3.
प्रधानमन्त्री, मन्त्रिमण्डल रूपी मेहराब की आधारशिला है। व्याख्या करें।
उत्तर–
प्रधानमन्त्री, मन्त्रिमण्डल का नेता है। प्रधानमन्त्री ही मन्त्रिमण्डल को बनाता एवं नष्ट करता है। बिना प्रधानमन्त्री के मन्त्रिमण्डल का कोई अस्तित्व नहीं है। निम्नलिखित कारणों से उसे “मन्त्रिमण्डल रूपी मेहराब की आधारशिला” कहा गया है-

  • राष्ट्रपति प्रधानमन्त्री के परामर्श से मन्त्रियों की नियुक्ति करता है।
  • प्रधानमन्त्री अपने साथियों को चुनता ही नहीं, अपितु उनमें विभागों का विभाजन भी करता है।

प्रश्न 4.
प्रधानमन्त्री की किन्हीं दो शक्तियों का वर्णन करें।
उत्तर-

  1. प्रधानमन्त्री मन्त्रिपरिषद् का निर्माण करता है-राष्ट्रपति, प्रधानमन्त्री की सलाह से अन्य मन्त्रियों की नियुक्ति करता है। इस सम्बन्ध में प्रधानमन्त्री अपने साथी मन्त्रियों की एक सूची तैयार कर स्वीकृति के लिए राष्ट्रपति के पास भेजता है। राष्ट्रपति की स्वीकृति के पश्चात् वे व्यक्ति मन्त्री बन जाते हैं।
  2. विभागों का विभाजन-प्रधानमन्त्री अपने साथियों को चुनता ही नहीं अपितु उनमें विभागों का विभाजन भी करता है।

प्रश्न 5.
मन्त्रिपरिषद् के किन्हीं दो कार्यों का वर्णन करो।
उत्तर-

  1. राष्ट्रीय नीति का निर्माण-मन्त्रिमण्डल का सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य नीति-निर्माण करना है। देश की आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक तथा अन्य समस्याओं को हल करने के लिए मन्त्रिमण्डल राष्ट्रीय नीति का निर्माण करता है।
  2. विदेशी सम्बन्धों का संचालन-मन्त्रिमण्डल विदेश नीति का निर्माण भी करता है और विदेशी सम्बन्धों का संचालन करता है। मन्त्रिमण्डल दूसरे देशों के साथ कूटनीतिक और आर्थिक सम्बन्ध स्थापित करता है तथा दूसरे देशों में राजदूत भेजता है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न I. एक शब्द/वाक्य वाले प्रश्न-उत्तर-

प्रश्न 1. प्रधानमंत्री की नियुक्ति कौन करता है ?
उत्तर-प्रधानमंत्री की नियुक्ति राष्ट्रपति करता है।

प्रश्न 2. राष्ट्रपति का प्रमुख सलाहकार कौन है ?
उत्तर-राष्ट्रपति का प्रमुख सलाहकार प्रधानमंत्री है।

प्रश्न 3. भारत का वास्तविक प्रशासक कौन है ?
उत्तर-भारत का वास्तविक प्रशासक प्रधानमंत्री है।

प्रश्न 4. प्रधानमन्त्री किसकी अध्यक्षता करता है ?
उत्तर-प्रधानमन्त्री मन्त्रिमण्डल की अध्यक्षता करता है।

प्रश्न 5. मन्त्रिमण्डल किसके प्रति उत्तरदायी होता है ?
उत्तर-मन्त्रिमण्डल संसद् के प्रति उत्तरदायी होता है।

प्रश्न 6. भारत के वर्तमान प्रधानमन्त्री का नाम बताएं।
उत्तर-श्री नरेन्द्र मोदी।

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 28 संघीय कार्यपालिका–प्रधानमन्त्री तथा मन्त्रिपरिषद्

प्रश्न 7. भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री का नाम बताएं।
उत्तर-भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री पं० जवाहर लाल नेहरू थे।

प्रश्न 8. भारत के प्रथम गैर-कांग्रेसी प्रधानमन्त्री कौन थे?
उत्तर- श्री मोरार जी देसाई।

प्रश्न 9. भारतीय प्रधानमन्त्री की अवधि कितनी होती है?
उत्तर- भारतीय प्रधानमन्त्री की अवधि लोकसभा के समर्थन पर निर्भर करती है।

प्रश्न 10. 2004 में हुए 14वीं लोकसभा के चुनावों के पश्चात् किसने प्रधानमन्त्री बनने से इन्कार कर दिया?
उत्तर- श्रीमती सोनिया गांधी ने।

प्रश्न 11. मन्त्रिमण्डल में कौन-कौन शामिल होता है ?
उत्तर-मन्त्रिमण्डल में कैबिनेट मन्त्री, राज्य मन्त्री तथा उपमन्त्री शामिल होते हैं।

प्रश्न 12. किस प्रधानमन्त्री का विश्वास प्रस्ताव केवल एक मत से गिर गया था?
उत्तर-श्री अटल बिहारी वाजपेयी का।

प्रश्न 13. किस प्रधानमन्त्री का कार्यकाल केवल 13 दिन रहा?
उत्तर- श्री अटल बिहारी वाजपेयी का।

प्रश्न 14. मन्त्रिमण्डल के सदस्य किस सदन में से लिए जा सकते हैं?
उत्तर-मन्त्रिमण्डल के सदस्य लोकसभा एवं राज्यसभा दोनों सदनों में से लिए जा सकते हैं।

प्रश्न 15. मन्त्रिमण्डल की व्यवस्था संविधान के किस अनुच्छेद में दी गई ?
उत्तर-अनुच्छेद 74 में।

प्रश्न II. खाली स्थान भरें-

1. राष्ट्रपति मन्त्रियों की नियुक्ति ………….के कहने पर करता है।
2. राष्ट्रपति मन्त्रिपरिषद् की सिफ़ारिश पर ………….. को भंग कर सकता है।
3. भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री ………….. थे।
4. भारत के वर्तमान प्रधानमन्त्री …………… हैं।
5. श्री नरेन्द्र मोदी प्रधानमन्त्री बनते समय …………. के सदस्य थे।
उत्तर-

  1. प्रधानमन्त्री
  2. लोकसभा
  3. पं० जवाहर लाल नेहरू
  4. श्री नरेन्द्र मोदी
  5. लोकसभा।

प्रश्न III. निम्नलिखित कथनों में से सही एवं ग़लत का चुनाव करें-

1. पं० जवाहर लाल नेहरू ने लोकसभा का कभी सामना नहीं किया।
2. प्रधानमन्त्री संसद् का अभिन्न अंग होता है।
3. प्रधानमन्त्री तानाशाह नहीं बन सकता।
4. भारत में राष्ट्रपति की शक्तियों का प्रयोग प्रधानमन्त्री एवं मन्त्रिपरिषद् करता है।
5. भारत में संसद् मन्त्रियों से प्रश्न नहीं पूछ सकती।
उत्तर-

  1. ग़लत
  2. ग़लत
  3. सही
  4. सही
  5. ग़लत।

प्रश्न IV. बहुविकल्पीय प्रश

प्रश्न 1.
भारत के प्रथम गैर-कांग्रेसी प्रधानमंत्री थे-
(क) पं० जवाहर लाल नेहरू
(ख) डॉ० राजेन्द्र प्रसाद
(ग) डॉ० अम्बेडकर ।
(घ) मोरारजी देसाई।
उत्तर-
(घ) मोरारजी देसाई।

प्रश्न 2.
भारत का वास्तविक शासक है-
(क) राष्ट्रपति
(ख) प्रधानमन्त्री
(ग) सर्वोच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश
(घ) राज्यपाल।
उत्तर-
(ख)।

प्रश्न 3.
प्रशासन के लिए जिम्मेवार है-
(क) राष्ट्रपति
(ख) प्रधानमन्त्री
(ग) राज्यपाल
(घ) संसद्।
उत्तर-
(ख) प्रधानमन्त्री ।

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 28 संघीय कार्यपालिका–प्रधानमन्त्री तथा मन्त्रिपरिषद्

प्रश्न 4.
प्रधानमन्त्री को विश्वास प्राप्त होना चाहिए-
(क) राज्यसभा में
(ख) लोकसभा में
(ग) राज्य में विधानपालिका में
(घ) किसी में भी नहीं।
उत्तर-
(ख) लोकसभा में ।

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 29 संघीय व्यवस्थापिका–संसद्

Punjab State Board PSEB 11th Class Political Science Book Solutions Chapter 29 संघीय व्यवस्थापिका–संसद् Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Political Science Chapter 29 संघीय व्यवस्थापिका–संसद्

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
भारत में राज्यसभा की रचना, कार्यों तथा शक्तियों का वर्णन करो।
(Discuss the composition, functions and powers of Rajya Sabha in India.)
उत्तर-
भारत में संघात्मक शासन प्रणाली को अपनाया गया है। संघात्मक शासन प्रणाली में विधानमण्डल के दो सदन होते हैं। भारतीय संसद् के भी दो सदन हैं-लोकसभा तथा राज्यसभा। लोकसभा संसद् का निम्न सदन है और यह समस्त भारत का प्रतिनिधित्व करता है। राज्यसभा संसद् का द्वितीय सदन है और यह राज्यों तथा संघीय क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करता है।

रचना (Composition)—संविधान द्वारा राज्यसभा के सदस्यों की अधिक-से-अधिक संख्या 250 हो सकती है, जिनमें से 238 सदस्य राज्यों का प्रतिनिधित्व करने वाले होंगे, 12 सदस्य राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत किये जा सकते हैं जिन्हें समाज सेवा, कला तथा विज्ञान, शिक्षा आदि के क्षेत्र में विशेष ख्याति प्राप्त हो चुकी है। राज्यसभा की रचना में संघ की इकाइयों को समान प्रतिनिधित्व देने का वह सिद्धान्त जो अमेरिका की सीनेट की रचना में अपनाया गया है, भारत में नहीं अपनाया गया। हमारे देश में विभिन्न राज्यों की जनसंख्या के आधार पर उनके द्वारा भेजे जाने वाले सदस्यों की संख्या संविधान द्वारा निश्चित की गई है। उदाहरणस्वरूप जहां पंजाब से 7 तथा हरियाणा से 5 सदस्य निर्वाचित होते हैं वहां उत्तर प्रदेश 31 प्रतिनिधि भेजता है।

इस समय राज्यसभा में कुल सदस्य 245 हैं जिनमें से 233 राज्यों तथा केन्द्र प्रशासित प्रदेशों का प्रतिनिधित्व करते हैं और शेष 12 सदस्य राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत किए गए हैं।
राज्यसभा के सदस्यों की योग्यताएं (Qualifications of the Members of Rajya Sabha)-राज्यसभा का सदस्य बनने के लिए निम्नलिखित योग्यताएं निश्चित हैं-

  1. वह भारत का नागरिक हो।
  2. वह तीस वर्ष की आयु पूरी कर चुका हो।
  3. वह संसद् द्वारा निश्चित अन्य योग्यताएं रखता हो।
  4. वह पागल न हो, दिवालिया न हो।
  5. भारत सरकार या राज्य सरकार के अधीन किसी लाभदायक पद पर न हो।
  6. वह उस राज्य का रहने वाला हो जहां से वह निर्वाचित होना चाहता है।
  7. संसद् के किसी कानून या न्यायपालिका द्वारा राज्यसभा का सदस्य बनने के अयोग्य घोषित न किया गया हो। यदि चुने जाने के बाद भी उसमें कोई ऐसी अयोग्यता उत्पन्न हो जाए तो भी उसे अपना पद त्यागना पड़ेगा।

चुनाव (Election)—प्रत्येक राज्य की विधानसभा के निर्वाचित सदस्य अपने राज्य के लिए नियत सदस्य चुनते हैं। यह चुनाव आनुपातिक प्रणाली के अनुसार एकल हस्तान्तरण मतदान द्वारा किया जाता है। संघीय क्षेत्र के प्रतिनिधियों का चुनाव संसद् द्वारा निश्चित तरीके से होता है।

अवधि (Term)-अमेरिकन सीनेट की तरह राज्यसभा एक स्थायी सदन है। इसके सदस्य 6 वर्ष के लिए चुने जाते हैं और इसके 1/3 सदस्य प्रति दो वर्ष के पश्चात् अवकाश ग्रहण करते हैं। इस प्रकार दो वर्ष के पश्चात् राज्यसभा से 1/3 सदस्यों का चुनाव होता है। रिटायर होने वाले सदस्य दोबारा चुनाव लड़ सकते हैं। राष्ट्रपति इस सदन को भंग नहीं कर सकता।

अधिवेशन (Sessions)—राज्यसभा की बैठकें राष्ट्रपति द्वारा बुलाई जाती हैं। एक वर्ष में राज्यसभा के कम-सेकम दो अधिवेशन अवश्य होते हैं। संविधान में स्पष्ट लिखा हुआ है कि पहले अधिवेशन की अन्तिम तिथि तथा दूसरे अधिवेशन की पहली तिथि में 6 मास से अधिक समय का अन्तर नहीं होना चाहिए। इसके विशेष अधिवेशन राष्ट्रपति जब चाहे बुला सकता है।
राज्यसभा की गणपूर्ति (Quorum of Rajya Sabha) संविधान में राज्य सभा की गणपूर्ति कुल सदस्यों का 1/10 भाग था अर्थात् जब तक 1/10 सदस्य उपस्थित नहीं होते राज्यसभा अपना कार्य आरम्भ नहीं कर सकती थी। परन्तु 42वें संशोधन द्वारा राज्यसभा को अपनी गणपूर्ति संख्या स्वयं निश्चित करने का अधिकार दे दिया गया है।

राज्यसभा का अध्यक्ष (Chairman of the Rajya Sabha)-अमेरिका की तरह भारत का उप-राष्ट्रपति राज्यसभा का पदेन अध्यक्ष (Ex-officio chairman) होता है। वर्तमान समय में उप-राष्ट्रपति श्री वेंकैया नायडू राज्यसभा के सभापति हैं। राज्य सभा अपने सदस्यों में से किसी एक को 6 वर्ष के लिए उपसभापति भी निर्वाचत करती है। 9 अगस्त, 2018 को राष्ट्रपति जनतांत्रिक गठबंधन के उम्मीद्वार श्री हरिवंश नारायण सिंह राज्यसभा के उपसभापति चुने गए।

सभापति राज्यसभा की बैठकों की अध्यक्षता करता है। वह सदन में अनुशासन रखता है तथा राज्यसभा के कार्यों को नियमानुसार चलाता है। सभापति साधारणतः वोट नहीं डालता परन्तु जब किसी विषय पर दोनों पक्षों के समान वोट हों तो वह निर्णायक मत का प्रयोग करता है। सभापति की अनुपस्थिति में उप-सभापति राज्यसभा की बैठकों की अध्यक्षता करता है और अध्यक्ष के कर्तव्यों का पालना करता है। सभापति के वेतन तथा भत्ते संसद् द्वारा निर्धारित किए जाते हैं।

राज्यसभा के कार्य तथा शक्तियां (Powers and Functions of the Rajya Sabha)-राज्यसभा को कई प्रकार की शक्तियां प्राप्त हैं जो निम्नलिखित हैं-

1. विधायिनी शक्तियां (Legislative Powers)-धन विधेयकों को छोड़ कर कोई भी साधारण बिल राज्यसभा में पहले पेश हो सकता है। कोई भी बिल उस समय तक संसद् द्वारा पास नहीं समझा जा सकता और उसे राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए नहीं भेजा जा सकता जब तक कि वह दोनों सदनों द्वारा पास न हो जाए। यदि किसी बिल पर दोनों में मतभेद पैदा हो जाए तो राष्ट्रपति दोनों सदनों का संयुक्त अधिवेशन बुलाने का अधिकार रखता है और उस बिल को उसके सामने रखा जाता है। संयुक्त बैठक में बिल पर हुआ निर्णय दोनों सदनों का सामूहिक निर्णय समझा जाता है। दोनों सदनों की संयुक्त बैठक में लोकसभा का अध्यक्ष ही सभापति का आसन ग्रहण करता है।

2. वित्तीय शक्तियां (Financial Powers)-राज्यसभा की वित्तीय शक्तियां लोकसभा की अपेक्षा बहुत कम हैं। धन बिल इसमें पेश नहीं हो सकता। धन बिल या बजट लोकसभा में पास होने के बाद ही राज्यसभा के पास आते हैं। राज्यसभा धन बिल को 14 दिन तक पास होने से रोक सकती है।

भारतीय राज्यसभा चाहे धन बिल को रद्द कर दे या उसमें परिवर्तन कर दे या 14 दिन तक उस पर कोई कार्यवाही न करे, इन सभी दशाओं में वह बिल राज्य सभा के पास समझा जाएगा, जिस रूप में लोकसभा ने उसे पास किया था
और राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए भेज दिया जाएगा। लोकसभा की इच्छा है कि वह धन बिल पर राज्यसभा की सिफ़ारिश को माने या न माने।

3. कार्यपालिका पर नियन्त्रण (Control over the Executive)-राज्यसभा की कार्यकारी शक्तियां बहुत सीमित हैं। राज्यसभा के सदस्य मन्त्रिमण्डल में लिए जा सकते हैं। राज्यसभा के सदस्यों को मन्त्रियों से प्रश्न और पूरक प्रश्न पूछने का अधिकार है और प्रश्नों द्वारा वे प्रशासन के कार्यों की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। बजट पर विचार करते समय तथा काम रोको प्रस्ताव पेश करके भी राज्यसभा के सदस्य शासन की कड़ी आलोचना कर सकते हैं तथा मन्त्रिमण्डल पर प्रभाव डाल सकते हैं। परन्तु राज्यसभा अविश्वास प्रस्ताव द्वारा मन्त्रियों को नहीं हटा सकती।

4. न्यायिक शक्तियां (Judicial Powers)-राज्यसभा को कुछ न्यायिक शक्तियां भी प्राप्त हैं-

  • वह लोकसभा के साथ मिलकर राष्ट्रपति को महाभियोग द्वारा अपदस्थ कर सकती है।
  • उप-राष्ट्रपति के विरुद्ध महाभियोग आरम्भ करने का अधिकार राज्यसभा को ही है।
  • राज्यसभा लोकसभा के साथ मिलकर सर्वोच्च न्यायालय या किसी उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को पद से हटाए जाने का प्रस्ताव पास कर सकती है।
  • राज्यसभा लोकसभा के साथ मिलकर चुनाव आयोग, महान्यायवादी (Attorney General) तथा नियन्त्रण एवं महालेखा निरीक्षक के विरुद्ध दोषारोपण के प्रस्ताव पास कर सकती है। ऐसा प्रस्ताव पास होने पर राष्ट्रपति सम्बन्धित अधिकारी को हटा सकता है।
  • राज्यसभा अपने सदस्यों के व्यवहार तथा गतिविधियों की जांच-पड़ताल करने के लिए समिति नियुक्त कर सकती है और उसके विरुद्ध उचित कार्यवाही कर सकती है।
  • यदि कोई सदस्य, अन्य व्यक्ति अथवा संस्था राज्यसभा के विशेषाधिकार का उल्लंघन करती है तो राज्यसभा उसको दण्ड दे सकती है।
  • राज्यसभा लोकसभा के साथ मिलकर विशेष न्यायालयों (Special Courts) की स्थापना कर सकती है।

5. संवैधानिक शक्तियां (Constitutional Powers)—संवैधानिक मामलों में राज्य सभा को लोक सभा के समान अधिकार प्राप्त हैं। संविधान में संशोधन करने वाला बिल संसद् के किसी सदन में भी पेश हो सकता है अर्थात् संवैधानिक संशोधन का प्रस्ताव राज्यसभा में भी पेश किया जा सकता है। 59वां संशोधन बिल राज्यसभा में पेश किया गया था। संशोधन प्रस्ताव उस समय तक पास नहीं समझा जाता जब तक कि वह दोनों सदनों द्वारा बहुमत से पास न हो जाए।

6. संकटकालीन शक्तियां (Emergency Powers)-राज्यसभा लोकसभा के साथ मिल कर राष्ट्रपति द्वारा घोषित संकटकालीन उद्घोषणा को एक महीने से अधिक लागू रहने अथवा रद्द करने का प्रस्ताव करती है। यदि लोकसभा भंग हो तो केवल राज्यसभा का अनुमोदन ही आवश्यक है।

7. निर्वाचन सम्बन्धी शक्तियां (Electoral Powers)-राज्यसभा के निर्वाचित सदस्य राष्ट्रपति के चुनाव में भाग लेते हैं। उप-राष्ट्रपति के चुनाव में राज्यसभा के सभी सदस्य भाग लेते हैं। राज्यसभा अपना एक उप-सभापति चुनती है जिसे डिप्टी चेयरमैन कहते हैं।

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 29 संघीय व्यवस्थापिका–संसद्

8. राज्यसभा की विशिष्ट शक्तियां (Special Powers of the Rajya Sabha)-राज्यसभा को कुछ विशिष्ट शक्तियां भी प्राप्त हैं। ये शक्तियां निम्नलिखित हैं

  • राज्यसभा राज्य सूची के किसी विषय को राष्ट्रीय महत्त्व का घोषित करके संसद् को इस पर कानून बनाने का अधिकार दे सकती है।
  • 42वें संशोधन में यह व्यवस्था की गई है कि राज्यसभा अनुच्छेद 249 के अन्तर्गत प्रस्ताव पास करके अखिल भारतीय न्यायिक सेवाएं (All India Judicial Services) स्थापित करने के सम्बन्ध में संसद् को अधिकार दे सकती है।
  • राज्यसभा 2/3 बहुमत से प्रस्ताव पास करके नई अखिल भारतीय सेवाओं (All India Services) को स्थापित करने का अधिकार केन्द्रीय सरकार को दे सकती है।

9. अन्य कार्य (Other Functions)

  • जब राष्ट्रपति अपना आज्ञानुसार कोई भी मौलिक अधिकार छीनता है तो वह आज्ञा संसद् के दोनों सदनों में रखना ज़रूरी है।
  • जिन आयोगों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है, उन सभी की रिपोर्ट दोनों सदनों के आगे रखनी आवश्यक है। राज्यसभा को भी लोकसभा की तरह उन पर विचार करने का अधिकार है।

निष्कर्ष (Conclusion)-राज्यसभा की शक्तियों एवं कार्यों से स्पष्ट है कि राज्यसभा लोकसभा के मुकाबले में शक्तिहीन सदन है, परन्तु इस सदन के पास इतनी शक्तियां हैं कि यह आदर्श द्वितीय सदन बन सकता है।

प्रश्न 2.
राज्यसभा की स्थिति और उपयोगिता की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए। (Critically discuss the position and utility of the Rajya Sabha.)
उत्तर-
राज्यसभा की स्थिति लोकसभा के मुकाबले में बहुत महत्त्वहीन है। कानून निर्माण तथा वित्तीय मामलों में इसे कोई विशेष शक्ति प्राप्त नहीं और सभी साधारण तथा धन बिल लोकसभा की इच्छानुसार पास होते हैं। यह साधारण बिल को अधिक-से-अधिक 6 महीने तक पास होने से रोक सकती है तथा धन बिल को केवल 14 दिन के लिए रोक सकती है। मन्त्रिमण्डल पर इसका कोई नियन्त्रण नहीं है। राज्यसभा की उपयोगिता के बारे में डॉ० अम्बेदकर ने भी सन्देह प्रकट किया था। राज्यसभा की आलोचना मुख्यतः निम्नलिखित आधारों पर की जाती है-

  • असंघीय सिद्धान्त पर आधारित (Based on Non-federal Principle)-राज्यसभा का संगठन संघीय सिद्धान्त पर आधारित नहीं है। प्रान्तों को इसमें समान प्रतिनिधित्व नहीं दिया गया। प्रतिनिधि जनसंख्या के आधार पर भेजे जाते हैं।
  • दलगत प्रतिनिधित्व (Party-Representations)-राज्यसभा के सदस्य राज्यों का प्रतिनिधित्व न करके दलों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
  • मनोनीत सदस्य (Nominated Members)-राज्यसभा राज्यों का सही प्रतिनिधित्व नहीं करती क्योंकि 12 सदस्य राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किए जाते हैं।
  • चुनाव प्रणाली दोषपूर्ण (Defective Election System)-राज्यसभा के सदस्य अप्रत्यक्ष ढंग से चुने जाते हैं। अप्रत्यक्ष प्रणाली में भ्रष्टाचार का भय अधिक रहता है।
  • शक्तिहीन सदन (Powerless House)-राज्यसभा की शक्तियां लोकसभा से बहुत कम हैं। धन बिल को राज्यसभा केवल 14 दिन तक रोक सकती है और इसका कार्यपालिका पर कोई नियन्त्रण नहीं है।
  • बिलों को दोहराना लाभदायक नहीं है (Revision of Bills not Useful)-राज्यसभा का एक मुख्य कार्य बिलों को दोहराना है, ताकि बिल को जल्दी से पास किए जाने के कारण जो त्रुटियां रह गई हैं, उन्हें दूर किया जा सके। राज्यसभा को अपने इस कार्य में कोई विशेष सफलता नहीं मिलती है क्योंकि साधारणतः एक ही दल का दोनों सदनों में बहुमत होने के कारण राज्यसभा आंखें बन्द करके बिलों को पास कर देती है।
  • राज्यसभा में प्रादेशिकता की भावना का ज़ोर अधिक रहता है। 8. राज्यसभा के सदस्य इनकी बैठकों में अधिक दिलचस्पी नहीं दिखाते तथा अधिकांश सदस्य अनुपस्थित रहते हैं।
  • राज्यसभा के अधिकांश सदस्य इतने अधिक पूरक प्रश्न (Supplementary Questions) पूछते हैं, जिनसे न केवल समय बर्बाद होता है बल्कि कभी-कभी सदस्यों और मन्त्रियों के बीच छोटे-मोटे झगड़े भी उत्पन्न हो जाते हैं।
  • राज्यसभा के बहुत-से सदस्य वे होते हैं जो लोकसभा का चुनाव हार चुके होते हैं। इस प्रकार राज्यसभा संसद् में घुसने के लिए पिछले दरवाज़े का काम करती है।

राज्यसभा की भूमिका (Role of Rajya Sabha)
अथवा
राज्यसभा की उपयोगिता (Utility of Rajya Sabha)

इसमें कोई सन्देह नहीं कि राज्यसभा निचले सदन की भान्ति एक शक्तिशाली संस्था नहीं है, परन्तु राज्यसभा को हम एक व्यर्थ संस्था नहीं कह सकते बल्कि राज्यसभा एक बहुत उपयोगी संस्था है।

मौरिस जोन्स (Morris Jones) के अनुसार, “राज्यसभा के तीन भारी गुण हैं। यह अतिरिक्त राजनीतिक पद प्रदान करती है जिसके लिए मांग है। यह अतिरिक्त वाद-विवाद के लिए अवसर प्रदान करती है जिसके लिए कभी-कभी आवश्यकता होती है और यह वैधानिक समय सूची की समस्याओं को हल करने में सहायता देती है।”

राज्यसभा संघात्मक व्यवस्था में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है, जो इस प्रकार है-

  • योग्य व्यक्तियों का प्रतिनिधित्व (Representative of Able Persons)-इसमें देश के अनुभवी सज्जन राज्यों का प्रतिनिधित्व करते हैं। राज्यसभा के 12 सदस्य राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत किए जाते हैं। राष्ट्रपति उन्हीं व्यक्तियों की नियुक्ति करता है जिनकी विज्ञान, कला, साहित्य आदि में प्रसिद्धि होती है।
  • सरकारी कमजोरियों पर प्रकाश (Points out Shortcomings of the Govt.)-राज्यसभा के सदस्यों ने सार्वजनिक महत्त्व के प्रश्नों पर आधे घण्टे की बहस के दौरान सरकार की कमजोरियों पर प्रकाश डाला और सरकार को महत्त्वपूर्ण सुझाव प्रस्तुत किए हैं।
  • सभी पहलुओं पर वाद-विवाद (Debates on AII Aspects)-राज्यसभा में प्रस्तुत प्रस्तावों के माध्यम से देश के सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक जीवन के सम्बन्ध में वाद-विवाद होता रहता है। यद्यपि सरकार इन प्रस्तावों को प्रायः स्वीकार नहीं करती तथापि इसका सरकार पर पर्याप्त प्रभाव पड़ता है।
  • राज्यसभा अपने प्रस्ताव द्वारा राज्य सूची के किसी भी विषय को संसद् के अधिकार-क्षेत्र में ले जा सकती है।
  • केन्द्रीय सरकार राज्यसभा के परामर्श से किसी अखिल भारतीय सेवा की व्यवस्था कर सकती है।
  • संविधान में संशोधन करने वाला बिल राज्यसभा में प्रस्तुत हो सकता है और तब तक संशोधन नहीं हो सकता जब तक राज्यसभा भी पास न करे। 44वें संशोधन की पांच धाराओं को राज्यसभा ने रद्द कर दिया था।
  • राज्यसभा के सदस्य राष्ट्रपति तथा उप-राष्ट्रपति के चुनाव में भाग लेते है।
  • राज्यसभा लोकसभा के साथ मिल कर राष्ट्रपति को महाभियोग द्वारा हटा सकती है।
  • उप-राष्ट्रपति के विरुद्ध महाभियोग आरम्भ करने का अधिकार राज्यसभा को ही है।
  • राज्यसभा के सदस्य मन्त्रियों से प्रश्न पूछ सकते हैं और सरकार की आलोचना कर सकते हैं।
  • संकटकालीन घोषणा की स्वीकृति-जब राष्ट्रपति लोकसभा को भंग कर देता है तो राज्यसभा उस समय भी बनी रहती है तथा राष्ट्रपति को अपनी संकटकालीन घोषणा की स्वीकृति उससे लेनी पड़ती है।
  • बिलों का पुनर्निरीक्षण-राज्यसभा लोकसभा में शीघ्रतापूर्वक पास किए गए बिलों पर उचित ढंग से विचार करने के पश्चात् उसमें संशोधन के लिए सुझाव भी देती है। 1979 में राज्यसभा ने लोकसभा द्वारा विशेष न्यायालय विधेयक में महत्त्वपूर्ण संशोधन किए जिसे लोकसभा ने तुरन्त स्वीकार कर लिया।
  • विवादहीन बिलों का पेश होना-महत्त्वपूर्ण बिल प्रायः लोकसभा में प्रस्तुत किए जाते हैं, परन्तु अवित्तीय विवादहीन बिल राज्यसभा में प्रस्तुत करके लोकसभा के समय की बचत की जाती है क्योंकि राज्यसभा विवादहीन और विरोधहीन बिलों पर खूब सोच-विचार करके लोकसभा के पास भेजती है। लोकसभा ऐसे बिलों पर कम विवाद करती है और शीघ्रता से पास कर देती है। इस प्रकार लोकसभा का समय बच जाता है और इस समय का प्रयोग इसके महत्त्वपूर्ण बिलों पर किया जाता है।
  • राज्यसभा लोकसभा के साथ मिल कर मुख्य चुनाव आयुक्त, महान्यायवादी तथा नियन्त्रक एवं महालेखा निरीक्षक के विरुद्ध दोषारोपण के प्रस्ताव पास कर सकती है।
  • वाद-विवाद का उच्च स्तर-राज्यसभा में विचार का स्तर लोकसभा की अपेक्षा उच्च रहता है, वहां प्रत्येक बिल पर शान्तिपूर्वक विचार होता है। एक तो सदस्यों की संख्या लोकसभा की तुलना में कम है, दूसरे इसके मैम्बर अधिक अनुभवी और विद्वान् होते हैं।
  • लोकतन्त्रीय परम्परा का प्रतीक-राज्यसभा लोकतन्त्रीय परम्पराओं के अनुकूल है। संसार के कुछ देशों को छोड़ कर बाकी सब देशों में संसद् के दो सदन हैं।
  • भारतीय संवैधानिक परम्परा के अनुकूल-भारत में ब्रिटिश शासन काल से ही केन्द्रीय विधान मण्डल के दो सदन चले आ रहे हैं। अत: संविधान निर्माताओं ने इसी परम्परा का पालन किया।

यह संविधान का केवल एक शृंगारात्मक अंग ही नहीं, यह सदन कनाडा की सीनेट की अपेक्षा अधिक शक्तिशाली तथा उपयोगी है। यह अपने विवादों तथा सरकार की आलोचना द्वारा जनता पर अधिक प्रभाव डालता है। इसमें बहुतसे सुधारवादी बिल पेश हुए हैं और जिनसे राष्ट्र को बहुत-सा लाभ हुआ है। 1952 से 1956 के बीच राज्यसभा में 101 विधेयक प्रस्तुत किए गए थे। राज्यसभा के उप-सभापति श्री रामनिवास मिर्धा ने राज्यसभा की रजत जयन्ती के अपने स्वागत भाषण में राज्यसभा की उपलब्धियों की चर्चा करते हुए कहा था कि इन 25 वर्षों में राज्यसभा में विधान आरम्भ करने वाले सदन के रूप में 350 सरकारी विधेयक पुनः स्थापित किए गए जिनमें कुछ सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक और वैधानिक दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण थे। इसमें हिन्दू कानून में दूरव्यापी परिवर्तन करने वाले विधेयक सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण थे।

प्रश्न 3.
लोकसभा की रचना और शक्तियों का वर्णन करो।
[Describe the composition and powers of the Lok Sabha (House of People) in India.]
उत्तर-
लोकसभा भारतीय संसद् का निचला सदन है, परन्तु इसकी स्थिति ऊपरी सदन (राज्यसभा) से अधिक शक्तिशाली है। यह जनता का प्रतिनिधित्व करती है क्योंकि इसमें जनता के प्रत्यक्ष रूप से चुने हुए प्रतिनिधि होते हैं और यही इसके अधिक शक्तिशाली होने का कारण है।

रचना (Composition)—प्रारम्भ में लोकसभा के सदस्यों की अधिकतम संख्या 500 निश्चित की गई थी। 31वें संशोधन के अन्तर्गत इसके निर्वाचित सदस्यों की अधिकतम संख्या 545 निश्चित की गई। परन्तु अब ‘गोवा, दमन और दियू पुनर्गठन अधिनियम 1987’ द्वारा लोकसभा के निर्वाचित सदस्यों की अधिकतम संख्या 550 निश्चित की गई है। इस प्रकार लोकसभा के सदस्यों की कुल संख्या 552 हो सकती है। 552 सदस्यों का ब्यौरा इस प्रकार है-

(क) 530 सदस्य राज्यों में से चुने हुए, (ख) 20 सदस्य संघीय क्षेत्रों में से चुने हुए और (ग) 2 ऐंग्लो-इण्डियन जाति (Anglo-Indian Community) के सदस्य जिनको राष्ट्रपति मनोनीत करता है, यदि उसे विश्वास हो जाए कि इस जाति को लोकसभा में उचित प्रतिनिधित्व प्राप्त नहीं। आजकल लोकसभा की कुल सदस्य संख्या 545 है। इसमें 543 निर्वाचित सदस्य हैं और 2 सदस्य राष्ट्रपति द्वारा एंग्लो-इंडियन नियुक्त किए हुए हैं।

चुनाव की विधि (Method of Election)-लोकसभा के चुनाव प्रत्यक्ष निर्वाचित प्रणाली के आधार पर होते हैं। सभी नागरिकों को जिनकी आयु 18 वर्ष या इससे अधिक हो, चुनाव में वोट डालने का अधिकार है। चुनाव गुप्त मतदान प्रणाली के आधार पर होता है। 5 लाख से 772 लाख की जनसंख्या के आधार पर एक सदस्य चुना जाता है और समस्त देश को लगभग समान जनसंख्या वाले निर्वाचन क्षेत्रों में बांट दिया जाता है। कुछ स्थान अनुसूचित जातियों तथा कबीलों को प्रतिनिधित्व देने के लिए आरक्षित किए गए हैं। 2014 के लोकसभा के चुनाव में मतदाताओं की कुल संख्या 81 करोड़ 40 लाख थी।

अवधि (Term) लोकसभा के सदस्य पांच वर्ष के लिए चुने जाते हैं। संकट के समय इसकी अवधि को बढ़ाया जा सकता है, परन्तु एक समय में एक वर्ष से अधिक और संकटकालीन उद्घोषणा के समाप्त होने से छ: महीने से अधिक इसे नहीं बढ़ाया जा सकता। राष्ट्रपति पांच वर्ष की अवधि पूरी होने से पहले जब चाहे लोकसभा को भंग करके दोबारा चुनाव करवा सकता है। ऐसा कदम उसी समय उठाया जाएगा जब प्रधानमन्त्री राष्ट्रपति को इस प्रकार की सलाह दे। 6 फरवरी, 2004 को प्रधानमन्त्री अटल बिहारी वाजपेयी की सलाह पर राष्ट्रपति ए० पी० जे० अब्दुल कलाम ने 13वीं लोकसभा को भंग किया।

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 29 संघीय व्यवस्थापिका–संसद्

योग्यताएं (Qualifications)-लोकसभा का सदस्य बनने के लिए निम्नलिखित योग्यताएं होनी आवश्यक हैं-

  1. वह भारत का नागरिक हो।
  2. वह 25 वर्ष की आयु पूरी कर चुका हो।
  3. वह भारत सरकार या किसी राज्य सरकार के अन्तर्गत किसी लाभदायक पद पर आसीन व हो।
  4. वह संसद् द्वारा निश्चित की गई अन्य योग्यताएं रखता हो।
  5. वह पागल न हो, दिवालिया न हो।
  6. किसी न्यायालय द्वारा इस पद के लिए अयोग्य न घोषित किया गया हो। यदि चुने जाने के बाद भी किसी सदस्य में कोई अयोग्यता उत्पन्न हो जाए तो उसे अपना पद त्यागना पड़ेगा।
  7. उसे किसी गम्भीर अपराध में दण्ड न मिल चुका हो।
  8. उसका नाम वोटरों की सूची में अंकित हो।
  9. नवम्बर, 1976 को संसद् में छुआछूत के विरुद्ध एक कानून पास किया गया। इस कानून के अनुसार यह व्यवस्था की गई है कि यदि किसी व्यक्ति को इस कानून के अन्तर्गत दण्ड मिला है तो वह लोकसभा का चुनाव नहीं लड़ सकता।
  10. लोकसभा का चुनाव लड़ने वाले निर्दलीय उम्मीदवार के लिए यह आवश्यक है कि उसका नाम दस मतदाताओं द्वारा प्रस्तावित किया जाए।

गणपूर्ति (Ouorum)-लोकसभा की कार्यवाही आरम्भ होने के लिए उसके कुल सदस्यों की संख्या का 1/10 भाग गणपूर्ति के लिए निश्चित किया गया है, परन्तु 42वें संशोधन द्वारा गणपूर्ति निश्चित करने का अधिकार लोकसभा को दिया गया है।

अधिवेशन (Session)-राष्ट्रपति जब चाहे लोकसभा का अधिवेशन बुला सकता है, परन्तु एक वर्ष में दो अधिवेशन अवश्य बुलाए जाने चाहिए और राष्ट्रपति का यह विशेष उत्तरदायित्व है कि पहले अधिवेशन के आखिरी दिन और दूसरे अधिवेशन के पहले दिन के बीच छः मास से अधिक समय नहीं गुज़रना चाहिए। इसलिए अधिवेशन बुलाने का अधिकार राष्ट्रपति को दिया गया है।

अध्यक्ष (Speaker)—लोकसभा का एक अध्यक्ष और एक उपाध्यक्ष होता है जिस का काम लोकसभा की बैठकों की अध्यक्षता करना, अनुशासन बनाए रखना तथा सदन की कार्यवाही को ठीक प्रकार से चलाना है। अध्यक्ष तथा उपाध्यक्ष लोकसभा के सदस्यों द्वारा अपने में से ही चुने जाते हैं। नई लोकसभा अपना नया अध्यक्ष चुनती है। 6 जून, 2014 को भारतीय जनता पार्टी की नेता श्रीमती सुमित्रा महाजन को सर्वसम्मति से लोक सभा का अध्यक्ष चुना गया। लोकसभा अपने अध्यक्ष को जब चाहे प्रस्ताव पास करके अपने पद से हटा सकती है, यदि वे अपना काम ठीक प्रकार से न करे। अध्यक्ष की अनुपस्थिति में उपाध्यक्ष, अध्यक्ष के पद पर काम करता है।

विरोधी दल के नेता को सरकारी मान्यता (Official Recognition to the Leader of Opposition)मार्च 1977 में लोकसभा के चुनाव में जनता पार्टी को बहुमत प्राप्त हुआ। जनता सरकार ने लोकतन्त्र को दृढ़ बनाने के लिए लोकसभा के विरोधी दल के नेता को कैबिनेट स्तर के मन्त्री के समान मान्यता दी थी। विरोधी दल के नेता को वही वेतन, भत्ते और सुविधाएं प्राप्त होती हैं जो कैबिनेट स्तर के मन्त्री को मिलती हैं। नौवीं लोकसभा में राजीव गांधी विपक्ष के नेता थे। मई, 2009 में 15वीं लोकसभा में भारतीय जनता पार्टी के नेता श्री लाल कृष्ण आडवाणी को विपक्ष के नेता के रूप में मान्यता दी गई थी, परन्तु दिसम्बर, 2009 में भारतीय जनता पार्टी ने श्री लालकृष्ण आडवाणी के स्थान पर श्रीमती सुषमा स्वराज को लोकसभा में विपक्ष का नेता नियुक्त किया था। मई, 2014 में 16वीं लोकसभा में किसी भी दल को मान्यता प्राप्त विरोधी दल का दर्जा नहीं दिया गया।

लोकसभा की शक्तियां तथा कार्य (Powers and Functions of the Lok Sabha) लोकसभा को बहुतसी शक्तियां प्राप्त हैं जो कई प्रकार की हैं-

1. विधायिनी शक्तियां (Legislative Powers)-लोकसभा भारतीय संसद् का एक महत्त्वपूर्ण अंग है। वास्तव में संसद् की विधायिनी शक्तियां लोकसभा ही प्रयोग करती है। इसकी इच्छा के विरुद्ध कोई कानून नहीं बन सकता । कोई भी बिल लोकसभा में पेश हो सकता है। यदि राज्यसभा लोकसभा द्वारा पास किए गए बिल पर छ: महीने तक कोई कार्यवाही न करे या उसे रद्द कर दे या उसमें ऐसे संशोधन प्रस्ताव पास करके भेज दे जो लोकसभा को स्वीकृत न हो तो राष्ट्रपति दोनों सदनों की एक संयुक्त बैठक बुला सकता है। संयुक्त अधिवेशन में प्रायः वही निर्णय होता है जो लोकसभा के सदस्य चाहते हैं क्योंकि लोकसभा के सदस्यों की संख्या राज्यसभा की सदस्य संख्या से दुगुनी से भी अधिक है।

2. वित्तीय शक्तियां (Financial Powers) राष्ट्र के धन पर संसद् का नियन्त्रण है, परन्तु यह नियन्त्रण लोकसभा ही प्रयोग करती है। बजट तथा धन विधेयक सर्वप्रथम लोकसभा में ही पेश हो सकते हैं। लोकसभा के पास होने के बाद बजट या धन बिल राज्यसभा के पास सुझाव के लिए जाते हैं। राज्यसभा उस पर विचार करती है। राज्यसभा यदि धन विधेयक पर 14 दिन तक कोई कार्यवाही न करे या उसे रद्द कर दे या उसमें ऐसे संशोधन प्रस्ताव पास करके भेज दे जो लोकसभा को स्वीकृत न हों तो इन सभी दशाओं में वह बिल दोनों सदनों द्वारा उसी रूप में पास समझा जाएगा जिस रूप में लोकसभा ने पहले पास किया था और राष्ट्रपति को स्वीकृति के लिए भेजा जाएगा। इस प्रकार स्पष्ट है कि राष्ट्र के धन पर लोकसभा को अन्तिम निर्णय करने का अधिकार है।

3. कार्यपालिका पर नियन्त्रण (Control over the Executive)-मन्त्रिपरिषद् सामूहिक रूप से लोकसभा के प्रति उत्तरदायी है। लोकसभा के सदस्य मन्त्रियों से उनके कार्यों के सम्बन्ध में प्रश्न पूछ सकते हैं तथा सम्बन्धित मन्त्री को उसका उत्तर देना पड़ता है। लोकसभा के सदस्य सरकार की नीतियों की आलोचना भी कर सकते हैं तथा मन्त्रिपरिषद् के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव भी पास कर सकते हैं जिससे मन्त्रिपरिषद् को त्याग-पत्र देना पड़ता है। 10 जुलाई, 1979 को लोकसभा के विरोधी दल के नेता यशवंतराव चह्वाण ने प्रधानमन्त्री मोरारजी देसाई के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव पेश किया। अविश्वास प्रस्ताव पर मतदान होने से पूर्व ही प्रधानमन्त्री मोरारजी देसाई ने 15 जुलाई, 1979 को त्याग-पत्र दे दिया क्योंकि जनता पार्टी के कई सदस्यों ने जनता पार्टी को छोड़ दिया था। नवम्बर 1990 में प्रधानमन्त्री वी० पी० सिंह लोकसभा का विश्वास प्राप्त न कर सके जिस पर उन्हें त्याग-पत्र देना पड़ा। 17 अप्रैल, 1999 को प्रधानमन्त्री अटल बिहारी वाजपेयी ने लोकसभा में विश्वास मत का प्रस्ताव पास न होने पर त्याग-पत्र दिया था। विश्वास मत के प्रस्ताव के पक्ष में 269 और विपक्ष में 270 मत पड़े।

4. संवैधानिक शक्तियां (Constitutional Powers) लोकसभा को संविधान में संशोधन करने के लिए प्रस्ताव पास करने का अधिकार है, लोकसभा में संशोधन का प्रस्ताव आवश्यक बहुमत से पास होने के बाद राज्यसभा के पास जाता है। यदि राज्यसभा भी उसे आवश्यक बहुमत से पास कर दे, तभी संशोधन लागू हो सकता है।

5. न्यायिक शक्तियां (Judicial Powers)-लोकसभा को कुछ न्यायिक शक्तियां भी प्राप्त हैं, जिनका प्रयोग वह राज्यसभा के साथ मिलकर ही कर सकती है

  • लोकसभा राष्ट्रपति के विरुद्ध महाभियोग में भाग लेती है।
  • उपराष्ट्रपति के विरुद्ध आरोप लगाने का अधिकार केवल राज्यसभा को ही है, परन्तु उसमें निर्णय देने का अधिकार लोकसभा को है।
  • लोकसभा राज्यसभा के साथ मिलकर सर्वोच्च न्यायालय तथा उच्च न्यायालय के जजों को अपदस्थ किए जाने वाले प्रस्ताव पास कर सकती है।
  • लोकसभा के साथ मिल कर मुख्य चुनाव आयुक्त, महान्यायवादी (Attorney General) तथा नियन्त्रण एवं महालेखा निरीक्षक के विरुद्ध दोषारोपण के प्रस्ताव पास कर सकती है। ऐसा प्रस्ताव पास होने पर राष्ट्रपति सम्बन्धित अधिकारी को हटा सकता है।
  • यदि कोई सदस्य या व्यक्ति अथवा संस्था लोकसभा के विशेषाधिकार का उल्लंघन करती है तो लोकसभा इसको दण्ड दे सकती है।

6. चुनाव सम्बन्धी कार्य (Electoral Functions) लोकसभा स्पीकर तथा डिप्टी स्पीकर का चुनाव स्वयं करती है। लोकसभा के निर्वाचित सदस्य राष्ट्रपति के चुनाव में भाग लेते हैं। लोकसभा राज्यसभा के साथ मिलकर उपराष्ट्रपति का चुनाव करती है।

7. जनता की शिकायतों को दूर करना (Redressal of Public Grievances)—लोकसभा के सदस्य जनता के प्रतिनिधि हैं, अतः इनका कर्तव्य है जनता की शिकायतों को सरकार तक पहुंचाना। लोकसभा के सदस्य इस कार्य को प्रश्नों द्वारा, स्थगन प्रस्ताव द्वारा तथा वाद-विवाद के अन्तर्गत शासक वर्ग की आलोचना के जरिए पूरा करते हैं।

8. लोकसभा की संकटकालीन शक्तियां (Emergency Powers of the Lok Sabha)-लोकसभा राज्यसभा के साथ मिलकर राष्ट्रपति द्वारा जारी की गई संकटकालीन उद्घोषणा का समर्थन कर सकती है। 44वें संशोधन के अनुसार यदि लोकसभा संकटकाल की घोषणा के लागू रहने के विरुद्ध प्रस्ताव पास कर दे तो संकटकाल की घोषणा लागू नहीं रह सकती। लोकसभा के 10 प्रतिशत सदस्य अथवा अधिक सदस्य घोषणा के अस्वीकृत प्रस्ताव पर विचार करने के लिए लोकसभा की बैठक बुला सकते हैं।

9. विविध शक्तियां (Miscellaneous Powers) लोकसभा की अन्य शक्तियां निम्नलिखित हैं-

  • लोकसभा राज्यसभा के साथ मिलकर सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालयों के अधिकार क्षेत्रों में परिवर्तन कर सकती है।
  • लोकसभा राज्यसभा के साथ मिलकर अन्तर्राष्ट्रीय समझौतों को लागू करने के लिए कानून बनाती है।
  • राष्ट्रपति द्वारा जारी किए गए अध्यादेशों को लोकसभा राज्यसभा के साथ मिलकर स्वीकृत या अस्वीकृत करती है।
  • लोकसभा राज्यसभा के साथ मिलकर संघ में नए राज्यों को सम्मिलित करती है, राज्यों के क्षेत्रों, सीमाओं तथा नामों में परिवर्तन कर सकती है।
  • लोकसभा राज्यसभा के साथ मिलकर दो या दो से अधिक राज्यों के लिए संयुक्त लोक सेवा आयोग या उच्च न्यायालय स्थापित कर सकती है।

लोकसभा की स्थिति (Position of the Lok Sabha)-लोकसभा भारतीय संसद् का निम्न सदन है जिसके लगभग सभी सदस्य जनता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से वयस्क मताधिकार के आधार पर चुने जाते हैं। जनता का प्रतिनिधि सदन होने के कारण इसमें जनता का अधिक विश्वास है। यही कारण है कि लोकसभा संसद् का महत्त्वपूर्ण, प्रभावशाली, शक्तिशाली अंग है और संसद् की शक्तियों का वास्तविक प्रयोग करती है। इसे भारत की संसद् कहें तो कोई अतिशयोक्ति नहीं। लोकसभा की इच्छा के विरुद्ध कोई कानून नहीं बन सकता। इसकी तुलना में राज्यसभा एक अत्यन्त महत्त्वहीन सदन है। प्रधानमन्त्री भी लोकसभा के ही बहुमत दल का नेता होता है और लोकसभा के प्रति उत्तरदायी है। प्रो० एम० पी० शर्मा (M.P. Sharma) के अनुसार, “यदि संसद् देश का सर्वोच्च अंग है, तो लोकसभा संसद् का सर्वोच्च अंग है, वस्तुतः सभी व्यावहारिक उद्देश्यों के लिए लोकसभा ही संसद् है।”

प्रश्न 4.
भारतीय संसद् की रचना, उसकी शक्तियों तथा कार्यों का वर्णन करो।
(Describe the composition, powers and functions of the indian Parliament.)
अथवा
संसद् के कार्यों की विवेचना कीजिए।
(Discuss the functions of Parliament.)
उत्तर-
संविधान के अनुच्छेद 79 के अनुसार, “संघ के लिए एक संसद् होगी जो राष्ट्रपति और दोनों सदनोंराज्यसभा एवं लोकसभा से मिलकर बनेगी।”

लोकसभा (Lok Sabha) लोकसभा संसद् का निम्न सदन है और समस्त देश का प्रतिनिधित्व करता है। 1973 में 31वें संशोधन के अनुसार लोकसभा की अधिकतम सदस्य संख्या 547 निश्चित की गई। ‘गोवा, दमन और दियू पुनर्गठन अधिनियम 1987′ द्वारा लोकसभा के निर्वाचित सदस्यों की अधिकतम संख्या 550 निश्चित की गई है। इस प्रकार लोकसभा के सदस्यों की कुल संख्या 552 हो सकती है। आजकल लोकसभा में 545 सदस्य हैं। इनमें 543 निर्वाचित हैं और 2 सदस्य राष्ट्रपति द्वारा एंग्लो-इण्डियन नियुक्त किए गए हैं।

मनोनीत सदस्यों को छोड़कर शेष सभी सदस्य जनता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से चुने जाते हैं। लोकसभा की अवधि 5 वर्ष है। इसकी अवधि को बढ़ाया भी जा सकता है और 5 वर्ष से पूर्व राष्ट्रपति प्रधानमन्त्री की सलाह पर इसको भंग भी कर सकता है। लोकसभा के सदस्य अपने में से एक अध्यक्ष तथा एक उपाध्यक्ष चुनते हैं।

राज्यसभा (Rajya Sabha)-राज्यसभा भारतीय संसद् का ऊपरि सदन है जो जनता का प्रतिनिधित्व न करके राज्यों का प्रतिनिधित्व करता है। इसके सदस्यों की अधिक-से-अधिक संख्या 250 निश्चित की गई है जिसमें से 12 सदस्य राष्ट्रपति द्वारा ऐसे व्यक्तियों में से जिन्हें विज्ञान, कला, साहित्य, समाज-सेवा आदि क्षेत्र में विशेष ख्याति प्राप्त हो चुकी हो, मनोनीत किया जाता है। शेष सदस्य राज्यों की विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्यों द्वारा चुने जाते हैं। इस समय राज्यसभा के सदस्यों की कुल संख्या 245 है, जिसमें से 233 राज्यों तथा केन्द्रशासित प्रदेशों का प्रतिनिधित्व करते हैं और शेष 12 सदस्य राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किए गए हैं।

राज्यसभा के सदस्य 6 वर्ष के लिए चुने जाते हैं। एक-तिहाई सदस्य प्रति दो वर्ष बाद रिटायर होते हैं। भारत का उप-राष्ट्रपति राज्यसभा का पदेन अध्यक्ष होता है। राज्यसभा के सदस्य अपने में से एक उपाध्यक्ष भी चुनते हैं जो अध्यक्ष की अनुपस्थिति में उसके कार्यों को सम्पन्न करता है।

संसद सदस्यों के वेतन तथा भत्ते (Salary and Allowances of the Members of the Parliament)संसद् सदस्यों को समय-समय पर संसद् द्वारा निर्धारित वेतन, भत्ते तथा दूसरी सुविधायें प्राप्त होती हैं।

संसद की शक्तियां तथा कार्य (Powers and Functions of the Parliament)-

भारतीय संसद् संघ की विधानपालिका है और संघ की सभी विधायिनी शक्तियां उसे प्राप्त हैं। विधायिनी शक्तियों के अतिरिक्त और भी कई प्रकार की शक्तियां संसद् को दी गई हैं-

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 29 संघीय व्यवस्थापिका–संसद्

1. विधायिनी शक्तियां (Legislative Powers)-संसद् का मुख्य कार्य कानून-निर्माण करना है। संसद् की कानून बनाने की शक्तियां बड़ी व्यापक हैं। संघीय सूची में दिए गए सभी विषयों पर इसे कानून बनाने का अधिकार है। समवर्ती सूची पर संसद् और राज्यों की विधानपालिका दोनों को ही कानून बनाने का अधिकार है परन्तु यदि किसी विषय पर संसद् और राज्य की विधानपालिका के कानून में पारस्परिक विरोध हो तो संसद् का कानून लागू होता है। कुछ परिस्थितियों में राज्य सूची के 66 विषयों पर भी कानून बनाने का अधिकार संसद् को प्राप्त है।

2. वित्तीय शक्तियां (Financial Powers)—संसद् राष्ट्र के धन पर नियन्त्रण रखती है। वित्तीय वर्ष के आरम्भ होने से पहले बजट संसद् में पेश किया जाता है। संसद् इस पर विचार करके अपनी स्वीकृति देती है। संसद् की स्वीकृति के बिना सरकार जनता पर कोई टैक्स नहीं लगा सकती और न ही धन खर्च कर सकती है।

3. कार्यपालिका पर नियन्त्रण (Control over the Executive) हमारे देश में संसदीय शासन प्रणाली को अपनाया गया है। राष्ट्रपति संवैधानिक अध्यक्ष होने के नाते संसद् के प्रति उत्तरदायी नहीं है। जबकि मन्त्रिमण्डल अपने समस्त कार्यों के लिए संसद् के प्रति उत्तरदायी है। मन्त्रिमण्डल तब तक अपने पद पर रह सकता है जब तक उसे लोकसभा में बहुमत का समर्थन प्राप्त रहे।

4. राष्ट्रीय नीतियों को निर्धारित करना (Determination of National Policies)-भारतीय संसद् केवल कानून ही नहीं बनाती वह राष्ट्रीय नीतियां भी निर्धारित करती है। यदि मन्त्रिपरिषद् संसद् द्वारा निर्धारित की गई नीतियों का पालन न करे तो संसद् के सदस्य सरकार की तीव्र आलोचना करते हैं तथा बहुधा ऐसे भी हो सकता है कि संसद् के सदस्य मन्त्रिपरिषद् से असन्तुष्ट हो जाने के कारण उससे भी त्याग-पत्र देने की मांग कर सकते हैं।

5. न्यायिक जांच (Judicial Powers)–संसद् राष्ट्रपति और उप-राष्ट्रपति को यदि वे अपने कार्यों का ठीक प्रकार से पालन न करें तो महाभियोग लगाकर अपने पद से हटा सकती है। संसद् के दोनों सदन सर्वोच्च न्यायालय तथा उच्च न्यायालय के जजों को हटाने का प्रस्ताव पास करके राष्ट्रपति को भेज सकते हैं। कुछ अन्य पदाधिकारियों को पदों से हटाए जाने के प्रस्ताव भी संसद् द्वारा पास किए जा सकते हैं।

6. संवैधानिक शक्तियां (Constituent Powers)-भारतीय संसद् को संविधान में संशोधन करने का भी अधिकार प्राप्त है। संविधान की कुछ धाराएं तो ऐसी हैं जिन्हें संसद् साधारण बहुमत से संशोधित कर सकती है। कुछ धाराओं का संशोधन करने के लिए संशोधन प्रस्ताव दोनों सदनों में सदन के बहुमत तथा उपस्थित वोट दे रहे सदस्यों के 2/3 बहुमत से पास होना आवश्यक है। कुछ संशोधन ऐसे भी हैं जिन पर कम-से-कम आधे राज्यों के विधानमण्डलों का समर्थन प्राप्त करने के बाद ही वे लागू हो सकते हैं।

7. सार्वजनिक मामलों पर वाद-विवाद (Deliberation over Public Matters)-संसद में जनता के प्रतिनिधि होते हैं और इसलिए वह सार्वजनिक मामलों पर वाद-विवाद का सर्वोत्तम साधन है। संसद् में ही सरकार की नीतियों तथा निर्णयों पर वाद-विवाद होता है और उनकी विभिन्न दृष्टिकोणों से आलोचना की जाती है। संसद् को जनता की शिकायतों पर प्रकाश डालने तथा उन्हें दूर करने का साधन भी कहा जा सकता है। संसद् सदस्य विभिन्न मामलों पर विचार प्रकट करते हुए अपने मतदाताओं की शिकायतों व आवश्यकताओं को सरकार के सामने रखते हैं और उन्हें दूर करने का प्रयत्न करते हैं।

8. निर्वाचन सम्बन्धी अधिकार (Electoral Powers)–संसद् उप-राष्ट्रपति का चुनाव करती है। संसद् राष्ट्रपति के चुनाव में भी महत्त्वपूर्ण भाग लेती है। लोकसभा अपने स्पीकर तथा डिप्टी-स्पीकर का चुनाव करती है और राज्यसभा अपने उपाध्यक्ष का चुनाव करती है।

9. विविध शक्तियां (Miscellaneous Powers)-

  • संसद् सम्बन्धित राज्य सरकार की सलाह से नवीन राज्य बना सकती है। उदाहरणतया, अगस्त, 2000 में संसद् ने तीन नए राज्यों-छत्तीसगढ़, उत्तराँचल और झारखण्ड की स्थापना की। संसद् वर्तमान राज्यों के नाम परिवर्तन कर सकती है।
  • संसद् किसी राज्य की विधानपरिषद् का अन्त कर सकती है अथवा बना भी सकती है। यह किसी राज्य की सीमाएं भी परिवर्तित कर सकती है।
  • राष्ट्रपति द्वारा जारी की गई संकटकालीन उद्घोषणा पर एक महीने के अन्दर-अन्दर संसद् की स्वीकृति आवश्यक है। वह चाहे तो उसे अस्वीकृत भी कर सकती है।

भारतीय संसद् की स्थिति (Position of Indian Parliament) भारतीय संसद् को कानून निर्माण आदि के क्षेत्र में बहुत अधिक शक्तियां प्राप्त हैं, परन्तु भारतीय संसद् इंग्लैण्ड की संसद् की तरह प्रभुसत्ता सम्पन्न नहीं है।

ब्रिटिश संसद् द्वारा बनाए हुए कानूनों को संसद् के अतिरिक्त किसी अन्य शक्ति द्वारा सुधार अथवा रद्द नहीं किया जा सकता। न ही इंग्लैण्ड में किसी न्यायालय को संसद् के बनाए कानूनों पर पुनर्विचार (Judicial Review) करने का अधिकार है। भारतीय संसद् को ब्रिटिश संसद् की तुलना में सीमित अधिकार (Limited Powers) प्राप्त हैं। इसके मुख्य कारण ये हैं

  • लिखित संविधान की सर्वोच्चता-हमारे देश का संविधान लिखित है जो संसद् की शक्तियों को सीमित करता है। भारतीय संसद् संविधान के विरुद्ध कोई कानून नहीं बना सकती।
  • संघीय व्यवस्था- भारत में इंग्लैण्ड के विपरीत संघीय शासन प्रणाली को अपनाया गया है, जिस कारण केन्द्रीय सरकार तथा राज्यों की सरकारों में शक्तियों का बंटवारा किया गया है।
  • मौलिक अधिकार- भारतीय संसद् नागरिकों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करने वाला कोई कानून नहीं बना सकती।
  • संसद् द्वारा पास किए गए कानून राष्ट्रपति द्वारा अस्वीकृत किए जा सकते हैं।
  • सर्वोच्च न्यायालय की न्यायिक पुनर्निरीक्षण की शक्ति-संसद् द्वारा पास किए गए कानूनों को न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है और न्यायपालिका उसे असंवैधानिक घोषित करके रद्द कर सकती है।
  • संशोधन करने की शक्ति सीमित है–संसद् को समस्त संविधान में संशोधन करने का अधिकार नहीं बल्कि उसकी महत्त्वपूर्ण धाराओं में संशोधन करने के लिए वह आधे राज्यों के समर्थन पर निर्भर रहती है।
  • राष्ट्रपति की अध्यादेश जारी करने की शक्तियां-संसद् का जब अधिवेशन न हो रहा हो तो राष्ट्रपति अध्यादेश भी जारी कर सकता है। ये अध्यादेश भी कानून के समान शक्ति रखते हैं।
    इन सभी बातों के आधार पर कहा जा सकता है कि भारतीय संसद् ब्रिटिश संसद् का मुकाबला नहीं करती। प्रभुसत्ता सम्पन्न संसद् न होते हुए भी भारतीय संसद् को अपनी शक्तियों और कार्यों के कारण समस्त एशिया के विधानमण्डलों में एक महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है।

प्रश्न 5.
संसद् में साधारण विधेयक कैसे पारित होते हैं ? समझा कर लिखिए।
(Describe the Procedure through which an ordinary bill is passed by parliament.)
अथवा
भारतीय संसद् में एक बिल एक्ट कैसे बनता है ?
(How does a bill become an Act in the Indian Parliament ?)
उत्तर-
संसद् का मुख्य काम कानून बनाना है। संविधान की धारा 107 से 112 तक कानून निर्माण सम्बन्धी बातों से सम्बन्धित है। दोनों सदनों में समान विधायिनी पक्रिया (Legislative Procedure) की व्यवस्था की गई है। किसी भी विधेयक को प्रत्येक सदन में पास होने के लिए पांच सीढ़ियों में से गुजरना पड़ता है-(1) बिल की पुनः स्थापना तथा प्रथम वाचन, (2) दूसरा वाचन, (3) समिति अवस्था, (4) प्रतिवेदन अवस्था और (5) तीसरा वाचन । भारत में सरकारी बिल तथा निजी सदस्य बिल (Private Member’s Bill) के पास करने का ढंग एक-सा है। किसी भी साधारण बिल के कानून का रूप धारण करने से पहले निम्नलिखित अवस्थाओं से गुजरना पड़ता है-

1. पुनः स्थापना तथा प्रथम वाचन (Introduction and First Reading)—साधारण बिल संसद् के किसी भी सदन में पेश किया जा सकता है। जो भी सदस्य कोई बिल पेश करना चाहता है उसे महीना पहले इस आशय की सूचना सदन के अध्यक्ष को देनी पड़ती है। परन्तु मन्त्रियों के लिए एक महीने का नोटिस देना अनिवार्य है। निश्चित तिथि को सम्बन्धित सदस्य खड़ा होकर सदन से बिल पेश करने की आज्ञा मांगता है जोकि प्रायः दे दी जाती है। यदि इस अवस्था में बिल का विरोध हो जैसे कि नवम्बर, 1954 मे निवारक नजरबन्दी संशोधन बिल (Preventive Detention Bill) का विरोध हुआ था, तो अध्यक्ष बिल पेश करने वाले बिल का विरोध करने वाले सदस्यों का संक्षिप्त रूप में बिल सम्बन्धी बात करने का मौका देता है। सदन का अध्यक्ष सदस्यों का मत ले लेता है। उपस्थिति सदस्यों के साधारण बहुमत से उसका निर्णय हो जाता है। बिल को पेश करने की आज्ञा मिल जाने पर सदस्य बिल का शीर्षक पढ़ता है, इस समय बिल पर कोई वाद-विवाद नहीं होता। महत्त्वपूर्ण बिलों पर इस समय उनकी मुख्य बातों पर संक्षेप में प्रकाश डाला जा सकता है। इस प्रकार बिल की पुनः स्थापना (Introduction) भी हो जाती है और उसका प्रथम वाचन भी। इसके बाद बिल को सरकारी गज़ट में छाप दिया जाता है।

2. द्वितीय वाचन (Second Reading)—बिल की पुन:स्थापना के बाद द्वितीय वाचन किसी भी समय पर प्रारम्भ हो सकता है। साधारणतः पुनः स्थापना तथा द्वितीय वाचन में दो दिनों का अन्तर होता है, परन्तु यदि सदन का अध्यक्ष आवश्यक समझे तो द्वितीय वाचन को प्राय: दो चरणों में बांटा जाता है।
प्रथम चरण में बिल को पेश करने वाला सदस्य निश्चित तिथि और समय पर यह प्रस्ताव पेश करता है कि बिल पर विचार किया जाए अथवा सदन की सलाह से किसी अन्य समिति के पास भेजा जाए अथवा बिल पर जनमत जानने के लिए इसे प्रसारित किया जाए। यदि प्रस्तावक सदस्य तीन विकल्पों में कोई एक प्रस्ताव लाता है तो कोई अन्य दूसरा प्रस्ताव भी ला सकता है। यदि बिल को प्रसारित करने का प्रस्ताव हो जाता है तो सदन का सचिवालय राज्य सरकारों को आदेश देता है कि वे अपने गज़ट में बिल को प्रकाशित करें तथा स्वीकृत संस्थाओं, सम्बन्धित व्यक्तियों तथा स्थानीय संस्थाओं का विचार लें, परन्तु इस सम्बन्धी प्रस्ताव निर्धारित तिथि के अन्दर किसी सुझाव तथा विचार के साथ सदन के सचिवालय में अवश्य ही पहुंचना चाहिए।

द्वितीय चरण में, बिल के सम्बन्ध में प्राप्त विचारों व सुझावों का संक्षिप्त रूप सदन के सदस्यों के बीच बांट दिया जाता है। प्रस्तावक सदस्य यह प्रस्ताव पेश करता है कि प्रवर या संयुक्त समिति के पास भेजा जाए। कभी-कभी अध्यक्ष की आज्ञा से बिल को बिना प्रवर या संयुक्त समिति में भेजे ही उस पर विचार करना शुरू हो जाता है, परन्तु इस स्तर पर वाद-विवाद सामान्य प्रकृति का होता है। बिल की धाराओं पर बहस नहीं की जाती बल्कि बिल के मौलिक सिद्धान्तों तथा उद्देश्यों पर वाद-विवाद होता है अर्थात् इस समय बिल के आधारमूल सिद्धान्तों पर ही बहस की जाती है, इसके पश्चात् स्पीकर बिल पर मतदान करवाता है। यदि बहुमत बिल के पक्ष में हो तो बिल किसी समिति के पास भेजा जाता है परन्तु यदि बहुमत विपक्ष में हो तो बिल रद्द हो जाता है।

3. समिति अवस्था (Committee Stage)—यदि सदन का निर्णय उस बिल को किसी विशेष कमेटी को भेजने का हो तो फिर ऐसा किया जाता है। जिस प्रवर समिति को वह बिल भेजा जाता है, उसमें बिल पेश करने वाला सदस्य तथा कुछ अन्य सदस्य होते हैं। यदि सदन का उप-सभापति इस समिति में हो तो फिर उसे ही इस समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया जाता है। प्रवर समिति बिल की धाराओं पर विस्तारपूर्वक विचार करती है। समिति के प्रत्येक सदस्य को बिल की धाराओं, उपधाराओं, खण्डों तथा उपखण्डों आदि पर पूर्ण विस्तार से अपने विचार प्रकट करने और उनमें संशोधन प्रस्ताव पेश करने का अधिकार है। पूरी छानबीन करने के पश्चात् समिति अपनी रिपोर्ट तैयार करती है। यह सिफ़ारिश कर सकती है कि बिल रद्द कर दिया जाए या उसे मौलिक रूप में स्वीकर कर लिया जाए या उसे कुछ संशोधन सहित पास किया जाए। समिति अपनी रिपोर्ट निश्चित समय में सदन को भेज देती है।

4. प्रतिवेदन अवस्था (Report Stage)-समिति के लिए यह आवश्यक होता है कि वह बिल के सम्बन्ध में तीन महीने के अन्दर या सदन द्वारा निश्चित समय में अपनी रिपोर्ट सदन में पेश करे। रिपोर्ट तथा संशोधन बिल को छपवाकर सदन के सदस्यों में बांट दिया जाता है। समिति अपनी रिपोर्ट अवस्था पर बिल पर व्यापक रूप से विचार करती है। बिल की प्रत्येक धारा तथा समिति की रिपोर्ट तथा उसके द्वारा पेश किए संशोधन पर विस्तारपूर्वक वाद-विवाद होता है। वाद-विवाद के पश्चात् बिल की धाराओं पर अलग-अलग या सामूहिक रूप में मतदान करवाया जाता है। यदि बहुमत बिल के पक्ष में हो तो बिल पास कर दिया जाता है अथवा बिल रद्द हो जाता है।

5. तृतीय वाचन (Third Reading)-प्रवर समिति की रिपोर्ट पर विचार करने के पश्चात् बिल के तृतीय वाचन के लिए तिथि निश्चित कर दी जाती है। तृतीय वाचन किसी बिल की सदन में अन्तिम अवस्था होती है। इस अवस्था में प्रस्तावक यह प्रस्ताव पेश करता है कि बिल को पास किया जाए। इस अवस्था में बिल की प्रत्येक धारा पर विचार नहीं किया जाता। बिल के सामान्य सिद्धान्तों पर केवल बहस होती है और बिल की भाषा को अधिक-से-अधिक स्पष्ट बनाने के लिए यत्न किये जाते हैं। बिल में केवल मौखिक संशोधन किए जाते हैं। बिल की यह अवस्था औपचारिक है और बिल के रद्द होने की सम्भावना बहुत कम होती है।

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 29 संघीय व्यवस्थापिका–संसद्

बिल दूसरे सदन में (Bill in the Second House)-एक सदन में पास होने के बाद बिल दूसरे सदन में जाता है। दूसरे सदन में भी बिल को इसी प्रकार की पांचों अवस्थाओं में से गुजरना पड़ता है। यदि दूसरा सदन भी बिल को पास कर दे तो वह राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए भेज दिया जाता है। यदि दूसरा सदन उसे रद्द कर दे या छ: महीने तक उस पर कोई कार्यवाही न करे या उसमें ऐसे सुझाव देकर वापस कर दे जो पहले सदन को स्वीकृत न हों तो राष्ट्रपति द्वारा दोनों सदनों की संयुक्त बैठक बुलाई जाती है। बिल दोनों सदनों के उपस्थित तथा वोट देने वाले सभी सदस्यों के बहुमत से पास होता है, क्योंकि लोकसभा के सदस्यों की संख्या राज्य सभा की सदस्य संख्या के दुगने से भी अधिक है, इसलिए संयुक्त बैठक में लोकसभा की इच्छानुसार ही निर्णय होने की सम्भावना होती है।

राष्ट्रपति की स्वीकृति (Assent of the President)-दोनों सदनों से पास होने के बाद बिल राष्ट्र की स्वीकृति के लिए भेजा जाता है। राष्ट्रपति उस पर एक बार अपनी स्वीकृति देने से इन्कार कर सकता है, परन्तु यदि संसद् उस बिल को दोबारा साधारण बहुमत से पास करके राष्ट्रपति के पास भेज दे तो इस बार राष्ट्रपति को अपनी स्वीकृति देनी ही पड़ती है। स्वीकृति कितने समय में देनी आवश्यक है, इस विषय में संविधान चुप है। राष्ट्रपति की स्वीकृति मिलने के बाद बिल को सरकारी गजट में छाप दिया जाता है और वह कानून बन जाता है।

धन-बिल के पास होने की प्रक्रिया-धन-बिल केवल मन्त्रियों द्वारा राष्ट्रपति की स्वीकृति से लोकसभा में पेश किया जा सकता है। लोकसभा द्वारा पास होने के पश्चात् धन-बिल को राज्यसभा के पास भेज दिया जाता है। राज्यसभा धन-बिल को अस्वीकार नहीं कर सकती। राज्यसभा अधिक-से-अधिक बिल को 14 दिन तक रोक सकती है। राज्यसभा की सिफारिशों को मानना लोकसभा की इच्छा पर निर्भर करता है। इसके बाद बिल को राष्ट्रपति के पास भेज दिया जाता है और राष्ट्रपति हस्ताक्षर करने से इन्कार नहीं कर सकता।

प्रश्न 6.
लोकसभा के अध्यक्ष के चुनाव, शक्तियों तथा स्थिति की विवेचना कीजिए।
(Discuss the election, powers and position of the Speaker of Lok Sabha.)
उत्तर-
लोकसभा भारतीय संसद् का निम्न तथा जनता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित सदन है। संसद् की शक्तियां वास्तव में लोकसभा ही प्रयोग करती है। लोकसभा की अध्यक्षता उसके अध्यक्ष (Speaker) द्वारा की जाती है। लोकसभा अध्यक्ष के नेतृत्व में ही अपने समस्त कार्य करती है। लोकसभा के भंग होने पर भी अध्यक्ष का पद नई लोकसभा के कार्य तक बना रहता है। मुनरो (Munro) के अनुसार, “स्वीकर लोकसभा में प्रमुखतम व्यक्ति होता है।” (“The speaker is the most conspicuous figure in the house.”)

चुनाव (Election)-लोकसभा का अध्यक्ष सभा के सदस्यों द्वारा उनसे ही चुना जाता है। आम चुनाव के बाद लोकसभा अपनी प्रथम बैठक में अध्यक्ष का चुनाव करती है। उपाध्यक्ष का चुनाव भी उसी समय होता है। 6 जून, 2014 को भारतीय जनता पार्टी की नेता श्रीमती सुमित्रा महाजन को 16वीं लोकसभा का सर्वसम्मति से अध्यक्ष चुना गया। वास्तव में बहुमत दल की इच्छानुसार ही कोई व्यक्ति अध्यक्ष के पद पर चुना जाता है क्योंकि यदि स्पीकर के पद के लिए मुकाबला होता है तो बहुमत दल का उम्मीदवार ही विजयी होता है।

कार्यकाल (Term of Office)-लोकसभा के स्पीकर की अवधि 5 वर्ष है। यदि लोकसभा को भंग कर दिया जाए तो स्पीकर अपने पद का त्याग नहीं करता। वह उतनी देर तक अपने पद पर बना रहता है जब तक नई लोकसभा का चुनाव नहीं हो जाता तथा नई लोकसभा अपना स्पीकर नहीं चुन लेती । यदि स्पीकर तथा डिप्टी स्पीकर लोकसभा के सदस्य नहीं रहते तो उनको अपना पद त्यागना पड़ता है। स्पीकर तथा डिप्टी स्पीकर को 5 वर्ष की अवधि से पहले भी हटाया जा सकता है। यह तभी हो सकता है यदि लोकसभा के उपस्थित सदस्यों की बहसंख्या इसके लिए प्रस्ताव पास कर दे, परन्तु इस प्रकार का प्रस्ताव लोकसभा में तभी पेश हो सकता है यदि कम-से-कम 14 दिन पूर्व अध्यक्ष को ऐसे प्रस्ताव की सूचना दी गई हो। अभी तक स्पीकर के विरुद्ध चार-बार अविश्वास प्रस्ताव पेश किया गया है, परन्तु कभी भी प्रस्ताव पास नहीं हुआ। नौवीं लोकसभा के स्पीकर श्री रवि राय ने 18 महीने ही काम किया।

वेतन तथा भत्ता (Salary and Allowances)-लोकसभा अध्यक्ष को मासिक वेतन, अन्य भत्ते और रहने के लिए निःशुल्क स्थान आदि मिलता है। अध्यक्ष के वेतन, भत्ते तथा अन्य सुविधाएं भारत की संचित निधि से दी जाती हैं जिनको न तो अध्यक्ष के कार्य काल के दौरान घटाया जा सकता है और न ही संसद् इन पर मतदान कर सकती है।

अध्यक्ष की शक्तियां व कार्य (Powers and Functions of the Speaker)-अध्यक्ष को अपने पद से सम्बन्धित बहुत-सी शक्तियां तथा बहुत से कार्यों को करना पड़ता है जोकि मुख्य रूप से निम्नलिखित हैं-

(क) व्यवस्था सम्बन्धी शक्तियां (Regulatory Powers)-स्पीकर लोकसभा की बैठकों की अध्यक्षता करता है। सदन के सभी सदस्य उसी को सम्बोधित करते हैं। सदन के अध्यक्ष के नाते उसे अनेक व्यवस्था सम्बन्धी शक्तियां प्राप्त हैं जो कि इस प्रकार हैं-

  • सदन की कार्यवाही चलाने के लिए सदन में शान्ति और व्यवस्था बनाए रखना स्पीकर का कार्य है। (2) स्पीकर सदन के नेता से सलाह करके सदन का कार्यक्रम निर्धारित करता है।
  • स्पीकर सदन की कार्यवाही-नियमों की व्याख्या करता है। स्पीकर की कार्यवाही के नियमों पर की गई आपत्ति पर निर्णय देता है जोकि अन्तिम होता है।
  • जब किसी बिल पर या विषय पर वाद-विवाद समाप्त हो जाता है तो स्पीकर उस पर मतदान करवाता है। वोटों की गिनती करता है तथा परिणाम घोषित करता है।
  • साधारणतः स्पीकर अपना वोट नहीं डालता, परन्तु जब किसी विषय पर वोट समान हों तो अपना निर्णायक वोट दे सकता है।
  • प्रस्तावों व व्यवस्था सम्बन्धी मुद्दों को स्वीकार करना।
  • स्पीकर ही इस बात का निश्चय करता है कि सदन की गणपूर्ति के लिए आवश्यक सदस्य उपस्थित हैं अथवा नहीं।
  • स्पीकर सदन के सदस्यों की जानकारी के लिए या किसी विशेष महत्त्व के मामले पर सदन को सम्बोधित करता है।
  • स्पीकर सदन के नेता की सलाह पर सदन की गुप्त बैठक की आज्ञा देता है।
  • लोकसभा में सदस्यों को उनकी मातृभाषा में बोलने की आज्ञा देता है।
  • मन्त्री पद छोड़ने के पश्चात् किसी सदस्य को अपनी सफाई देने की आज्ञा देता है।

(ख) निरीक्षण व भर्त्सना सम्बन्धी शक्तियां (Supervisory and Censuring Powers)—स्पीकर की निरीक्षण व भर्त्सना सम्बन्धी शक्तियां निम्नलिखित हैं-

  • सदन की विभिन्न समितियों को नियुक्त करने में स्पीकर का हाथ होता है और ये समितियां स्पीकर के निरीक्षण में कार्य करती हैं।
  • स्पीकर स्वयं कुछ समितियों की अध्यक्षता करता है।
  • स्पीकर लोकसभा के सदस्यों के विशेषाधिकारों की रक्षा करता है।
  • स्पीकर सरकार को आदेश देता है कि वह लोकहित के लिए सदन को या उसकी समिति को अमुक सूचना भेजे।
  • स्पीकर की आज्ञा के बिना कोई सदस्य लोकसभा में नहीं बोल सकता।
  • यदि कोई सदस्य सदन में अनुचित शब्दों का प्रयोग करे तो स्पीकर अशिष्ट भाषा का प्रयोग करने वाले सदस्य को अपने शब्द वापस लेने के लिए कह सकता है और वह संसद् की कार्यवाही से ऐसे शब्दों को काट सकता है जो उसकी सम्मति में अनुचित तथा असभ्य हों।
  • यदि कोई सदस्य सदन में गड़बड़ करे तो स्पीकर उसको सदन से बाहर जाने के लिए कह सकता है।
  • यदि कोई सदस्य अध्यक्ष के आदेशों का उल्लंघन करे तथा सदन के कार्य में बाधा उत्पन्न करे तो स्पीकर उसे निलम्बित (Suspend) कर सकता है। यदि कोई सदस्य उसके आदेशानुसार सदन से बाहर न जाए तो वह मार्शल की सहायता से उसे बाहर निकलवा सकता है।
  • सदन की मीटिंग में गड़बड़ होने की दशा में स्पीकर को सदन का अधिवेशन स्थगित करने का अधिकार है।
  • यदि सदन किसी व्यक्ति को अपने विशेषाधिकारों का उल्लंघन करने के लिए दण्ड दे तो उसे लागू करना स्पीकर का काम है।
  • किसी कथित अपराधी को पकड़ने का आदेश जारी करना स्पीकर का कार्य है।

(ग) प्रशासन सम्बन्धी शक्तियां (Administrative Powers)-स्पीकर को प्रशासकीय शक्तियां भी प्राप्त हैं जो निम्नलिखित हैं

  • स्पीकर का अपना सचिवालय होता है जिसमें काम करने वाले कर्मचारी उसके नियन्त्रण में काम करते हैं।
  • प्रेस तथा जनता के लिए दर्शक गैलरी में व्यवस्था करना स्पीकर का काम है।
  • सदन की बैठकों के लिए विभिन्न समितियों के कार्य-संचालन के लिए सदन के सदस्यों के लिए उपयुक्त स्थानों की व्यवस्था करना।
  • स्पीकर सदन के सदस्यों के लिए निवास व अन्य सुविधाओं की व्यवस्था करता है।
  • स्पीकर संसदीय कार्यवाहियों और अभिलेखों को सुरक्षित रखने की व्यवस्था करता है।
  • स्पीकर सदन के सदस्यों तथा कर्मचारियों के जीवन व उनकी सम्पत्ति की सुरक्षा के लिए उचित प्रबन्ध करता है।
  • स्पीकर किसी गैर-सदस्य को सदन में प्रविष्ट नहीं होने देता।

(घ) विविध कार्य (Miscellaneous Powers)

  • कोई बिल वित्त बिल है या नहीं, इसका निर्णय स्पीकर करता है।
  • लोकसभा जब किसी बिल पर प्रस्ताव पास कर देती है तब उसे सदन अथवा राष्ट्रपति के पास स्पीकर ही हस्ताक्षर करके भेजता है।
  • दोनों सदनों की संयुक्त बैठक की अध्यक्षता स्पीकर करता है।
  • स्पीकर राष्ट्रपति तथा संसद् के बीच एक कड़ी का कार्य करता है। राष्ट्रपति और संसद् के बीच पत्र-व्यवहार स्पीकर के माध्यम से ही होता है।
  • स्पीकर लोकसभा तथा राज्यसभा के बीच एक कड़ी का काम करता है। दोनों सदनों में पत्र-व्यवहार स्पीकर के माध्यम से ही होता है।
  • संसदीय शिष्टमण्डलों के सदस्यों को मनोनीत करना स्पीकर का कार्य है।
  • अन्तर संसदीय संघ में भारतीय संसदीय शिष्टमण्डल में पदेन अध्यक्ष के रूप में कार्य करना।
  • स्पीकर यदि किसी सदस्य की मृत्यु हो जाए तो सदन को सूचना देता है।
  • सदन की अवधि पूर्ण होने पर स्पीकर विदाई भाषण देता है।

अध्यक्ष की स्थिति (Position of the Speaker) लोकसभा के अध्यक्ष का पद बड़ा महत्त्वपूर्ण तथा महान् आदर गौरव का है। मावलंकर (Mavlanker) ने एक स्थान पर कहा था, “सदन में अध्यक्ष की शक्तियां सबसे अधिक हैं।” (“His authority is supreme in the house.”) इसी प्रकार लोकसभा के भूतपूर्व अध्यक्ष श्री हुक्म सिंह (Hukam Singh) ने एक बार कहा था, “अध्यक्ष का पद राज्य के उच्च पदों में से एक है।” (“Speaker’s is one of highest office in the land.”) श्री एल० के० अडवाणी (L.K. Advani) ने मार्च 1977 में कहा था कि, “स्पीकर अथवा अध्यक्ष स्वयं में एक संस्था है।” इस पद पर बहुत-से योग्य, निष्पक्ष तथा विद्वान् व्यक्तियों ने कार्य किया है और उन्होंने इसके सम्मान को बढ़ाने में सहायता दी है। इसमें श्री वी० जे० पटेल जो केन्द्रीय विधानसभा के प्रथम स्पीकर थे और श्री जी० वी० मावलंकर (G.V. Mavlankar) का नाम जो लोकसभा के प्रथम स्पीकर थे, उल्लेखनीय हैं।

लोकसभा के अध्यक्ष का पद इंग्लैंड के कॉमन सदन के अध्यक्ष के समान सम्मानित तथा आदरपूर्ण न होते हुए भी काफ़ी प्रभावशाली, सम्मानित आदरपूर्ण है। स्वर्गीय श्री जवाहरलाल नेहरू ने लोकसभा के स्पीकर के महत्त्व को बताते हुए कहा था, “अध्यक्ष सदन का प्रतिनिधि है, वह सदन के गौरव, सदन की स्वतन्त्रता का प्रतिनिधित्व करता है और राष्ट्र की स्वतन्त्रता का प्रतीक है क्योंकि सदन राष्ट्र का प्रतिनिधित्व करता है इसलिए उचित ही है कि उसका पद सम्मानित तथा स्वतन्त्र होना चाहिए और उच्च योग्यता तथा निष्पक्षता वाले व्यक्तियों के द्वारा ही इसे सुशोभित किया जाना चाहिए।”

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 29 संघीय व्यवस्थापिका–संसद्

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
संघीय संसद् की रचना का वर्णन करें।
उत्तर-
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 79 के अनुसार, “संघ के लिए एक संसद् होगी जो राष्ट्रपति और दोनों सदनों-राज्यसभा और लोकसभा से मिलकर बनेगी।” राज्यसभा संसद् का ऊपरि सदन है जो जनता का प्रतिनिधित्व न करके राज्यों का प्रतिनिधित्व करता है। इसके 250 सदस्य हो सकते हैं जिनमें से 12 सदस्य राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किये जाते हैं। लोकसभा संसद् का निम्न सदन है। लोकसभा के सदस्यों की कुल संख्या 552 हो सकती है। इनमें से 550 निर्वाचित और 2 सदस्य राष्ट्रपति द्वारा ऐंग्लो-इण्डियन नियुक्त किए जाते हैं। इसके अतिरिक्त राष्ट्रपति संघीय संसद् का भाग अवश्य है परन्तु इसका सदस्य नहीं है।

प्रश्न 2.
राज्यसभा की रचना लिखें।
उत्तर-
संविधान द्वारा राज्यसभा के सदस्यों की अधिक-से-अधिक संख्या 250 हो सकती है जिनमें से 238 सदस्य राज्यों का प्रतिनिधित्व करने वाले होंगे। 12 सदस्य राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत किए जा सकते हैं, जिन्हें समाज सेवा, कला तथा विज्ञान, शिक्षा आदि के क्षेत्र में विशेष ख्याति प्राप्त हो चुकी है। आजकल राज्यसभा के कुल सदस्यों की संख्या 245 है। राज्यसभा की रचना में संघ की इकाइयों को समान प्रतिनिधित्व देने का वह सिद्धान्त जो अमेरिका की सीनेट की रचना में अपनाया गया है, भारत में नहीं अपनाया गया। हमारे देश में विभिन्न राज्यों की जनसंख्या के आधार पर उनके द्वारा भेजे जाने वाले सदस्यों की संख्या संविधान द्वारा निश्चित की गई है। उदाहरणस्वरूप जहां पंजाब से 7 तथा हरियाणा से 5 सदस्य निर्वाचित होते हैं वहां उत्तर प्रदेश से 31 प्रतिनिधि।

प्रश्न 3.
लोकसभा की रचना लिखें।
उत्तर-
प्रारम्भ में लोकसभा के सदस्यों की अधिकतम संख्या 500 निश्चित की गई थी। 31वें संशोधन के अन्तर्गत इसके निर्वाचित सदस्यों की अधिक संख्या 545 निश्चित की गई। ‘गोवा, दमन और दीयू पुनर्गठन अधिनियम 1987’ द्वारा लोकसभा के निर्वाचित सदस्यों की अधिकतम संख्या 550 निश्चित की गई। इस प्रकार लोकसभा की कुल अधिकतम संख्या 552 हो सकती है। 552 सदस्यों का ब्यौरा इस प्रकार है-

(क) 530 सदस्य राज्यों में से चुने हुए,
(ख) 20 सदस्य संघीय क्षेत्रों में से चुने हुए और
(ग) 2 ऐंग्लो-इण्डियन जाति (Anglo-Indian Community) के सदस्य जिनको राष्ट्रपति मनोनीत करता है, यदि उसे विश्वास हो जाए कि इस जाति को लोकसभा में उचित प्रतिनिधित्व प्राप्त नहीं है। आजकल लोकसभा की कुल सदस्य संख्या 545 है। इसमें 543 निर्वाचित सदस्य हैं और 2 सदस्य राष्ट्रपति द्वारा ऐंग्लो-इण्डियन नियुक्त किए हुए हैं।

प्रश्न 4.
लोकसभा का सदस्य बनने के लिए संविधान में लिखित योग्यताएं बताएं।
उत्तर-
लोकसभा का सदस्य वही व्यक्ति बन सकता है जिसमें निम्नलिखित योग्यताएं हों-

  • वह भारत का नागरिक हो,
  • वह 25 वर्ष की आयु पूरी कर चुका हो,
  • वह भारत सरकार या किसी राज्य सरकार के अन्तर्गत किसी लाभदायक पद पर आसीन न हो,
  • वह संसद् द्वारा निश्चित की गई अन्य योग्यताएं रखता हो,
  • वह पागल न हो, दिवालिया न हो,
  • किसी न्यायालय द्वारा इस पद के लिए अयोग्य न घोषित किया गया हो।
  • लोकसभा का चुनाव लड़ने वाले आज़ाद उम्मीदवार के लिए आवश्यक है कि उसका नाम दस प्रस्तावकों द्वारा प्रस्तावित किया गया हो।

प्रश्न 5.
राज्यसभा का सदस्य बनने के लिए क्या योग्यताएं होनी चाहिएं ?
उत्तर-
राज्यसभा का सदस्य बनने के लिए निम्नलिखित योग्यताएं निश्चित हैं-

  • वह भारत का नागरिक हो,
  • वह तीस वर्ष की आयु पूरी कर चुका हो,
  • वह संसद् द्वारा निश्चित अन्य योग्यताएं रखता हो,
  • वह पागल न हो, दिवालिया न हो,
  • भारत सरकार या राज्य सरकार के अधीन किसी लाभदायक पद पर आसीन न हो,
  • वह उस राज्य का रहने वाला हो जहां से वह निर्वाचित होना चाहता है,
  • संसद् के किसी कानून या न्यायपालिका द्वारा राज्यसभा का सदस्य बनने के अयोग्य घोषित न किया गया हो।

प्रश्न 6.
लोकसभा में प्रश्नोत्तर काल का वर्णन करें।
उत्तर-
लोकसभा के सदस्य मन्त्रियों से उनके विभागों के कार्यों के सम्बन्ध में प्रश्न पूछ सकते हैं जिनका मन्त्रियों को उत्तर देना पड़ता है। लोकसभा की दैनिक बैठकों का प्रथम घण्टा प्रश्नों का उत्तर देने के लिए निश्चित है। साधारणतया प्रशासकीय जानकारी प्राप्त करने के लिए प्रश्न पूछे जाते हैं, परन्तु विरोधी दल कई बार सरकार की कमियों और उसके द्वारा किये गये स्वेच्छाचारी कार्यों पर प्रकाश डालने के लिए भी प्रश्न पूछ लेते हैं और मन्त्रियों को बड़ी सतर्कता के साथ इनका उत्तर देना पड़ता है। इस प्रकार लोकसभा के सदस्य प्रश्न पूछने के द्वारा कार्यपालिका पर नियन्त्रण रखते हैं।

प्रश्न 7.
राज्यसभा के सदस्यों को कौन-से विशेषाधिकार प्राप्त हैं ?
उत्तर-
(क) राज्यसभा के सदस्यों को अपने विचार प्रकट करने की पूर्ण स्वतन्त्रता है। सदन में दिए गए भाषणों के कारण उसके विरुद्ध किसी भी न्यायालय में कोई कार्यवाही नहीं की जा सकती है।
(ख) अधिवेशन के दौरान और 40 दिन पहले और अधिवेशन समाप्त होने के 40 दिन बाद तक सदन के किसी भी सदस्य को दीवानी अभियोग के कारण गिरफ्तार नहीं किया जा सकता।
(ग) सदस्यों को वे सब विशेषाधिकार प्राप्त होते हैं जो संसद् द्वारा समय-समय पर निश्चित किए जाते हैं।

प्रश्न 8.
‘काम रोको प्रस्ताव’ किसे कहते हैं ?
उत्तर-
सांसद अपना दैनिक कार्य पूर्व निश्चित कार्यक्रम के अनुसार करते हैं। परन्तु कई बार देश में अचानक कोई विशेष और महत्त्वपूर्ण घटना घट जाती है, जैसे कि कोई रेल दुर्घटना हो जाए, कहीं पुलिस और जनता में झगड़ा होने से कुछ व्यक्तियों की जानें चली जाएं, ऐसे समय में संसद् का कोई भी सदस्य स्थगन (काम रोको) प्रस्ताव पेश कर सकता है। इस प्रस्ताव का यह अर्थ है कि सदन का निश्चित कार्यक्रम थोड़े समय के लिए रोक दिया जाए और उस घटना या समस्या पर विचार किया जाए। अध्यक्ष इस पर विचार करता है और यदि उचित समझे तो काम रोको प्रस्ताव स्वीकार करके सामने रख देता है। वह यदि ठीक न समझे तो उसे अस्वीकृत भी कर सकता है। प्रस्ताव की स्वीकृति दो चरणों में मिलती है, पहले अध्यक्ष के द्वारा और फिर सदन के द्वारा। अध्यक्ष अपनी स्वीकृति के बाद सदन से पूछता है और यदि सदस्यों की निश्चित संख्या उस प्रस्ताव के शुरू किए जाने के पक्ष में हो तो प्रस्ताव आगे चलता है वरन् नहीं। लोकसभा में यह संख्या पचास है। प्रस्ताव स्वीकार हो जाने पर सदन का निश्चित कार्यक्रम रोक दिया जाता है और उस विशेष घटना पर विचार होता है। संसद् सदस्यों को ऐसी दशा में सरकार की आलोचना का अवसर मिलता है। मन्त्रिमण्डल भी उस स्थिति पर विचार प्रकट करता है और सदस्यों को सन्तुष्ट करने का प्रयत्न करता है।

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 29 संघीय व्यवस्थापिका–संसद्

प्रश्न 9.
वित्त बिल किसे कहते हैं ?
उत्तर-
वित्त बिल उसको कहते हैं जिसका सम्बन्ध टैक्स लगाने, बढ़ाने से तथा कम करने, खर्च करने, ऋण लेने, ब्याज देने आदि की बातों से हो। यदि इस बात पर शंका हो कि अमुक बिल धन बिल है या नहीं, तो इस सम्बन्ध में लोकसभा के स्पीकर का निर्णय अंतिम समझा जाता है। उस बिल को केवल लोकसभा में ही पेश किया जा सकता है। धन बिल केवल मन्त्री ही पेश कर सकते हैं।

प्रश्न 10.
राज्यसभा के अध्यक्ष के कोई चार कार्य बताइए।
उत्तर-

  1. वह राज्यसभा के अधिवेशन में सभापतित्व करता है।
  2. वह राज्यसभा में शान्ति बनाए रखने तथा उसकी बैठकों को ठीक प्रकार से चलाने का जिम्मेदार है।
  3. वह सदस्यों को बोलने की आज्ञा देता है।
  4. उसे एक निर्णायक मत देने का अधिकार है।

प्रश्न 11.
किन परिस्थितियों में संसद् का संयुक्त अधिवेशन बुलाया जाता है ?
उत्तर-
राष्टपति निम्नलिखित परिस्थितियों में संसद् का संयुक्त अधिवेशन बुलाता है-

  1. संसद् के दोनों सदनों के विवादों को हल करने के लिए संसद् का संयुक्त अधिवेशन बुलाया जाता है।
  2. संयुक्त अधिवेशन तब बुलाया जाता है जब एक बिल को संसद् का एक सदन पास कर दे और दूसरा अस्वीकार कर दे।

प्रश्न 12.
राज्यसभा की विशेष शक्तियों का वर्णन करें।
उत्तर-
राज्यसभा को संविधान के अन्तर्गत कुछ विशेष शक्तियां दी गई हैं, जो कि इस प्रकार हैं-

  1. राज्यसभा राज्यसूची के किसी विषय को राष्ट्रीय महत्त्व का घोषित करके संसद् को इस पर कानून बनाने का अधिकार दे सकती है।
  2. 42वें संशोधन में यह व्यवस्था की गई है कि राज्यसभा अनुच्छेद 249 के अन्तर्गत प्रस्ताव पास करके अखिल भारतीय न्यायिक सेवाएं (All India Judicial Services) स्थापित करने के सम्बन्ध में संसद् को अधिकार दे सकती है।
  3. संविधान के अनुसार राज्यसभा ही 2/3 बहुमत से प्रस्ताव पास करके नई अखिल भारतीय न्यायिक सेवाओं (All India Judicial Services) को स्थापित करने का अधिकार केन्द्रीय सरकार को दे सकती है।

प्रश्न 13.
लोकसभा तथा राज्यसभा के सदस्यों के चुनाव में क्या अन्तर है ?
उत्तर-
लोकसभा के सदस्य जनता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से चुने जाते हैं और प्रत्येक नागरिक को जिसकी आयु 18 वर्ष हो, वोट डालने का अधिकार प्राप्त होता है। एक निर्वाचन क्षेत्र से एक ही उम्मीदवार का चुनाव होता है और जिस उम्मीदवार को सबसे अधिक मत प्राप्त होते हैं, उसे ही विजयी घोषित किया जाता है। राज्यसभा के सदस्यों का चुनाव राज्यों की विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्यों द्वारा किया जाता है। इस तरह राज्यसभा के सदस्यों का चुनाव अप्रत्यक्ष तौर पर जनता द्वारा ही होता है।

प्रश्न 14.
लोकसभा तथा राज्यसभा का क्या सम्बन्ध है ?
उत्तर-
लोकसभा संसद् का निम्न सदन और राज्यसभा संसद् का ऊपरी सदन है। दोनों सदनों को समान शक्तियां प्राप्त नहीं हैं। लोकसभा राज्यसभा की अपेक्षा अधिक शक्तिशाली है। राज्यसभा साधारण बिल को 6 महीने के लिए और धन बिल को केवल 14 दिन तक रोक सकती है। लोकसभा की इच्छा के विरुद्ध कोई कानून पास नहीं हो सकता और देश के वित्त पर लोकसभा का ही नियन्त्रण है। राज्यसभा मन्त्रियों से प्रश्न पूछ सकती है, आलोचना कर सकती है परन्तु अविश्वास प्रस्ताव पास करके मन्त्रिपरिषद् को नहीं हटा सकती। यह अधिकार लोकसभा के पास है। राष्ट्रपति के चुनाव में दोनों सदन भाग लेते हैं और महाभियोग में भी दोनों को समान अधिकार प्राप्त हैं।

प्रश्न 15.
संसद् के प्रमुख कार्य तथा शक्तियां क्या हैं ?
उत्तर-

  • संसद् का मुख्य कार्य कानून का निर्माण करना है।
  • संसद् का राष्ट्र के वित्त पर नियन्त्रण है और बजट पास करती है।
  • संसद् का मन्त्रिमण्डल पर नियन्त्रण है और मन्त्रिमण्डल संसद् के प्रति उत्तरदायी है।
  • संसद् राष्ट्रीय नीतियों को निर्धारित करती है।
  • संसद् को न्याय सम्बन्धी शक्तियां प्राप्त हैं।
  • संसद् निर्वाचन सम्बन्ध कार्य करती है और संविधान में संशोधन करती है।

प्रश्न 16.
भारतीय संसद् की शक्तियों पर कोई चार सीमाएं बताइए।
उत्तर-
भारतीय संसद् ब्रिटिश संसद् की तरह सर्वोच्च नहीं है। इस पर निम्नलिखित मुख्य सीमाएं हैं-

  1. भारतीय संसद् संविधान के विरुद्ध कोई कानून नहीं बना सकती।
  2. संसद् मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करने वाला कोई कानून नहीं बना सकती।
  3. संसद् द्वारा पास किए गए कानून राष्ट्रपति द्वारा अस्वीकृत किए जा सकते हैं।
  4. सर्वोच्च न्यायालय की न्यायिक पुनर्निरीक्षण की शक्ति संसद् की शक्तियों पर महत्त्वपूर्ण प्रतिबन्ध है।

प्रश्न 17.
साधारण विधेयक किस तरह कानून बनता है, समझाइए।
उत्तर–
संसद् का मुख्य कार्य कानून बनाना होता है। संविधान की धारा 107 से 112 तक कानून निर्माण प्रक्रिया से सम्बन्धित है। साधारण विधेयक को संसद् के किसी भी सदन में पेश किया जा सकता है। विधेयक को प्रत्येक सदन में पास होने के लिए पाँच अवस्थाओं से गुजरना पड़ता है-(1) बिल की पुनर्स्थापना तथा प्रथम वाचन, (2) दूसरा वाचन, (3) समिति अवस्था, (4) प्रतिवादन अवस्था और (5) तीसरा वाचन। भारत में सरकारी बिल तथा निजी सदस्य बिल (Private Member’s Bill) के पास करने का ढंग एक-सा है।

एक सदन में पास होने के बाद बिल दूसरे सदन में जाता है। दूसरे सदन में भी बिल को इसी प्रकार की पाँचों अवस्थाओं में से गुजरना पड़ता है। यदि दूसरा सदन भी बिल को पास कर दे तो वह राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए भेज दिया जाता है। राष्ट्रपति की स्वीकृति मिलने के बाद बिल को सरकारी गजट में छाप दिया जाता है और वह कानून बन जाता है।

प्रश्न 18.
लोकसभा के अध्यक्ष के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर-
लोकसभा का एक अध्यक्ष और उपाध्यक्ष होता है जिसका काम लोकसभा की बैठकों की अध्यक्षता करना, अनुशासन बनाए रखना तथा सदन की कार्यवाही को ठीक प्रकार से चलाना है। अध्यक्ष तथा उपाध्यक्ष लोकसभा के सदस्यों द्वारा अपने में से ही चुने जाते हैं। नई लोकसभा अपना नया अध्यक्ष चुनती है। लोकसभा अध्यक्ष तथा उपाध्यक्ष को जब चाहे प्रस्ताव पास करके अपने पद से हटा सकती है, यदि वे अपना कार्य ठीक प्रकार से न करें। परन्तु ऐसा प्रस्ताव उस समय तक लोकसभा में पेश नहीं किया जा सकता जब तक कि इस आशय की पूर्व सूचना कम-से-कम 14 दिन पहले अध्यक्ष या उपाध्यक्ष को न दी गई हो। अध्यक्ष की अनुपस्थिति में उपाध्यक्ष अध्यक्ष के पद पर काम करता है।

प्रश्न 19.
लोकसभा का अध्यक्ष कौन होता है ? इसके चार मुख्य काम लिखें। (P.B. 1988)
उत्तर-
लोकसभा का एक अध्यक्ष होता है, जिसे स्पीकर कहा जाता है और स्पीकर का चुनाव लोकसभा के सदस्य अपने में से करते हैं।

  • स्पीकर लोकसभा की बैठकों की अध्यक्षता करता है।
  • स्पीकर लोकसभा में अनुशासन बनाए रखता है। यदि कोई सदस्य सदन में गड़बड़ी पैदा करता है तो स्पीकर उस सदस्य को सदन से बाहर निकाल सकता है।
  • स्पीकर सदन की कार्यवाही चलाता है। वह सदस्यों को बिल पेश करने, काम रोकने का प्रस्ताव करने, स्थगन प्रस्ताव पेश करने आदि की स्वीकृति देता है।
  • स्पीकर सदस्यों को बोलने की स्वीकृति देता है। कोई भी सदस्य स्पीकर की स्वीकृति के बिना सदन में नहीं बोल सकता।

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 29 संघीय व्यवस्थापिका–संसद्

प्रश्न 20.
लोकसभा के अध्यक्ष को किस प्रकार चुना जाता है ?
उत्तर-
लोकसभा का अध्यक्ष सभा के सदस्यों द्वारा अपने में से ही चुना जाता है। आम चुनाव के बाद लोकसभा अपनी प्रथम बैठक में अध्यक्ष का चुनाव करती है। उपाध्यक्ष का चुनाव भी उसी प्रकार होता है। 6 जून, 2014 को भारतीय जनता पार्टी की नेता श्रीमती सुमित्रा महाजन को सर्वसम्मति से 16वीं लोकसभा का अध्यक्ष चुना गया। वास्तव में बहुमत दल की इच्छानुसार ही कोई व्यक्ति अध्यक्ष के पद पर चुना जाता है क्योंकि यदि स्पीकर के पद के लिए मुकाबला होता है तो बहुमत दल का उम्मीदवार ही विजयी होता है।

प्रश्न 21.
लोकसभा के अध्यक्ष की चार शक्तियों का वर्णन करें।
उत्तर-
अध्यक्ष को बहुत-सी शक्तियां प्राप्त हैं तथा उसे पद से सम्बन्धित अनेकों कार्य करने पड़ते हैं जोकि मुख्य रूप से निम्नलिखित हैं-

  1. सदन की कार्यवाही को चलाने के लिए शान्ति और व्यवस्था बनाए रखना स्पीकर का कार्य है।
  2. स्पीकर सदन के नेता से सलाह करके सदन का कार्यक्रम निश्चित करता है।
  3. स्पीकर सदन के कार्यकारी नियमों की व्याख्या करता है।
  4. बिल पर वाद-विवाद के पश्चात् मतदान करवा कर परिणाम घोषित करता है।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
संघीय संसद् की रचना का वर्णन करें।
उत्तर-
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 79 के अनुसार, “संघ के लिए एक संसद् होगी जो राष्ट्रपति और दोनों सदनों-राज्यसभा और लोकसभा से मिलकर बनेगी।””राज्यसभा संसद् का उपरि सदन है जो जनता का प्रतिनिधित्व न करके राज्यों का प्रतिनिधित्व करता है। इसके 250 सदस्य हो सकते हैं जिनमें से 12 सदस्य राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किये जाते हैं। लोकसभा संसद् का निम्न सदन है। लोकसभा के सदस्यों की कुल संख्या 552 हो सकती है।

प्रश्न 2.
राज्यसभा की रचना लिखें।
उत्तर-
संविधान द्वारा राज्यसभा के सदस्यों की अधिक-से-अधिक संख्या 250 हो सकती है जिनमें से 238 सदस्य राज्यों का प्रतिनिधित्व करने वाले होंगे। 12 सदस्य राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत किए जा सकते हैं, जिन्हें समाज सेवा, कला तथा विज्ञान, शिक्षा आदि के क्षेत्र में विशेष ख्याति प्राप्त हो चुकी है। आजकल राज्यसभा के कुल सदस्यों की संख्या 245 है।

प्रश्न 3.
लोकसभा की रचना लिखें।
उत्तर-
लोकसभा की कुल अधिकतम संख्या 552 हो सकती है। 552 सदस्यों का ब्यौरा इस प्रकार है-
(क) 530 सदस्य राज्यों में से चुने हुए,
(ख) 20 सदस्य संघीय क्षेत्रों में से चुने हुए और
(ग) 2 एंग्लो-इण्डियन जाति (Anglo-Indian Community) के सदस्य जिनको राष्ट्रपति मनोनीत करता है, यदि उसे विश्वास हो जाए कि इस जाति को लोकसभा में उचित प्रतिनिधित्व प्राप्त नहीं है। आजकल लोकसभा की कुल सदस्य संख्या 545 है। इसमें 543 निर्वाचित सदस्य हैं और 2 सदस्य राष्ट्रपति द्वारा ऐंग्लो-इण्डियन नियुक्त किए हुए हैं।

प्रश्न 4.
लोकसभा का सदस्य बनने के लिए संविधान में लिखित कोई दो योग्यताएं बताएं।
उत्तर-
लोकसभा का सदस्य वही व्यक्ति बन सकता है जिसमें निम्नलिखित योग्यताएं हों-

  1. वह भारत का नागरिक हो,
  2. वह 25 वर्ष की आयु पूरी कर चुका हो।

प्रश्न 5.
राज्यसभा का सदस्य बनने के लिए कौन-सी दो योग्यताएं होनी चाहिएं ?
उत्तर-
राज्यसभा का सदस्य बनने के लिए निम्नलिखित योग्यताएं निश्चित हैं-

  1. वह भारत का नागरिक हो
  2. वह तीस वर्ष की आयु पूरी कर चुका हो।

प्रश्न 6.
वित्त बिल किसे कहते हैं ?
उत्तर-
वित्त बिल उसको कहते हैं जिसका सम्बन्ध टैक्स लगाने, बढ़ाने से तथा कम करने, खर्च करने, ऋण लेने, ब्याज देने आदि की बातों से हो। यदि इस बात पर शंका हो कि अमुक बिल धन बिल है या नहीं, तो इस सम्बन्ध में लोकसभा के स्पीकर का निर्णय अंतिम समझा जाता है। उस बिल को केवल लोकसभा में ही पेश किया जा सकता है। धन बिल केवल मन्त्री ही पेश कर सकते हैं।

प्रश्न 7.
राज्यसभा के अध्यक्ष के कोई दो कार्य बताइए।
उत्तर-

  1. वह राज्यसभा के अधिवेशन में सभापतित्व करता है।
  2. वह राज्यसभा में शान्ति बनाए रखने तथा उसकी बैठकों को ठीक प्रकार से चलाने का ज़िम्मेदार है।

प्रश्न 8.
लोकसभा के अध्यक्ष को किस प्रकार चुना जाता है ?
उत्तर-
लोकसभा का अध्यक्ष सभा के सदस्यों द्वारा अपने में से ही चुना जाता है। आम चुनाव के बाद लोकसभा अपनी प्रथम बैठक में अध्यक्ष का चुनाव करती है। उपाध्यक्ष का चुनाव भी उसी प्रकार होता है। 6 जून, 2014 को भारतीय जनता पार्टी की नेता सुमित्रा महाजन को सर्वसम्मति से 16वीं लोकसभा का अध्यक्ष चुना गया।

प्रश्न 9.
लोकसभा स्पीकर, डिप्टी स्पीकर तथा राज्यसभा के सभापति एवं उप-सभापति का नाम बताएं।
उत्तर-
पद का नाम — व्यक्ति का नाम
1. लोकसभा स्पीकर — श्रीमती सुमित्रा महाजन
2. लोकसभा का डिप्टी स्पीकर — श्री थंबी दुरई
3. राज्य सभा का सभापति — वेंकैया नायडू
4. राज्य सभा का उप-सभापति — श्री हरिवंश नारायण सिंह

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 29 संघीय व्यवस्थापिका–संसद्

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न I. एक शब्द/वाक्य वाले प्रश्न-उत्तर-

प्रश्न 1. भारत की विधानपालिका को क्या कहते हैं ?
उत्तर-भारत की विधानपालिका को संसद् कहते हैं।

प्रश्न 2. भारतीय संसद् के कितने सदन हैं ?
उत्तर- भारतीय संसद् के दो सदन हैं-

  1. लोकसभा
  2. राज्यसभा।

प्रश्न 3. राज्यसभा की अवधि कितनी है ?
उत्तर-राज्यसभा एक स्थायी सदन है।

प्रश्न 4. राज्यसभा के सदस्यों की अवधि कितनी है ?
उत्तर-राज्यसभा के सदस्यों की अवधि 6 वर्ष है।

प्रश्न 5. राज्यसभा के कितने सदस्य प्रति दो वर्ष बाद सेवानिवृत्त होते हैं ?
उत्तर-एक तिहाई सदस्य।

प्रश्न 6. राज्यसभा की अध्यक्षता कौन करता है?
उत्तर-राज्यसभा की अध्यक्षता उप-राष्ट्रपति करता है।

प्रश्न 7. लोकसभा के सदस्यों का कार्यकाल कितना है?
उत्तर-लोकसभा के सदस्यों का कार्यकाल 5 वर्ष है।

प्रश्न 8. लोकसभा के निर्वाचित सदस्यों की अधिकतम संख्या कितनी हो सकती है?
उत्तर-लोकसभा के निर्वाचित सदस्यों की अधिकतम संख्या 550 हो सकती है।

प्रश्न 9. राज्यसभा के सदस्यों की अधिकतम संख्या कितनी हो सकती है?
उत्तर-राज्यसभा के सदस्यों की अधिकतम संख्या 250 हो सकती है।

प्रश्न 10. राज्यसभा धन बिल को कितने समय तक रोक सकती है?
उत्तर-राज्यसभा धन बिल को अधिकतम 14 दिनों तक रोक सकती है।

प्रश्न 11. संसद् के दोनों सदनों के संयुक्त अधिवेशन की अध्यक्षता कौन करता है?
उत्तर-लोकसभा का स्पीकर।

प्रश्न 12. संसद् का कोई एक कार्य लिखें।
उत्तर-संसद् कानूनों का निर्माण करती है।

प्रश्न 13. संविधान अनुसार संसद् में कौन-कौन शामिल है?
उत्तर-

  1. लोकसभा,
  2. राज्यसभा तथा
  3. राष्ट्रपति।

प्रश्न 14. लोकसभा में 2 एंग्लो इंडियन सदस्यों को कौन मनोनीत करता है?
उत्तर-राष्ट्रपति।

प्रश्न 15. राज्यसभा में 12 सदस्यों को कौन मनोनीत करता है?
उत्तर-राष्ट्रपति।

प्रश्न 16. लोकसभा का सदस्य बनने के लिए कम-से-कम कितनी आयु होनी चाहिए?
उत्तर-25 वर्ष।

प्रश्न 17. राज्यसभा का सदस्य बनने के लिए कम-से-कम कितनी आयु होनी चाहिए?
उत्तर-30 वर्ष।

प्रश्न 18. लोकसभा में सबसे अधिक सदस्य किस राज्य से आते हैं ?
उत्तर-उत्तर प्रदेश से।

प्रश्न II. खाली स्थान भरें-

1. संविधान के अनुच्छेद ………….. में संसद् का वर्णन किया गया है।
2. ……….. संसद् का निम्न सदन है।
3. लोकसभा में अनुसूचित जातियों के लिए …………… स्थान आरक्षित रखे गए हैं।
4. लोकसभा में अनुसूचित जनजातियों के लिए …………… स्थान आरक्षित रखे गए हैं।
उत्तर-

  1. 79
  2. लोकसभा
  3. 84
  4. 47.

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 29 संघीय व्यवस्थापिका–संसद्

प्रश्न III. निम्नलिखित कथनों में से सही एवं ग़लत का चुनाव करें-

1. लोकसभा का सदस्य बनने के लिए 25 वर्ष की आयु होनी चाहिए।
2. राज्यसभा का सदस्य बनने के लिए 35 वर्ष की आयु होनी चाहिए।
3. राष्ट्रपति राज्यसभा में 12 सदस्यों को नियुक्त कर सकता है।
4. प्रधानमन्त्री लोकसभा में 12 ऐंग्लो इंडियन सदस्यों को मनोनीत कर सकता है।
5. लोकसभा का चुनाव पांच वर्ष के लिए किया जाता है।
उत्तर-

  1. सही
  2. ग़लत
  3. सही
  4. ग़लत
  5. सही।

प्रश्न IV. बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
राज्यसभा के सदस्यों की अधिकतम संख्या हो सकती है
(क) 250
(ख) 400
(ग) 500
(घ) 545.
उत्तर-
(क) 250।

प्रश्न 2.
संसद् के दोनों सदनों के संयुक्त अधिवेशन की अध्यक्षता कौन करता है ?
(क) राज्यसभा का चेयरमैन
(ख) लोकसभा का स्पीकर
(ग) भारत का राष्ट्रपति
(घ) भारत का प्रधानमन्त्री।
उत्तर-
(ख) लोकसभा का स्पीकर।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित संसद का कार्य है-
(क) कानूनों का निर्माण करना
(ख) शासन करना
(ग) युद्ध की घोषणा करना
(घ) नियुक्तियां करना।
उत्तर-
(क) कानूनों का निर्माण करना।

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 29 संघीय व्यवस्थापिका–संसद्

प्रश्न 4.
संविधान के अनुसार संसद् में सम्मिलित है
(क) लोकसभा, राज्यसभा और मन्त्रिमंडल
(ख) लोकसभा, राज्यसभा और राष्ट्रपति
(ग) लोकसभा, राज्यसभा और प्रधानमन्त्री
(घ) लोकसभा, राज्यसभा और उप-राष्ट्रपति।
उत्तर-
(ख) लोकसभा, राज्यसभा और राष्ट्रपति।