Punjab State Board PSEB 10th Class Social Science Book Solutions Geography Chapter 4 प्राकृतिक वनस्पति, जीव-जन्तु तथा मिट्टियां Exercise Questions and Answers.
PSEB Solutions for Class 10 Social Science Geography Chapter 4 प्राकृतिक वनस्पति, जीव-जन्तु तथा मिट्टियां
SST Guide for Class 10 PSEB प्राकृतिक वनस्पति, जीव-जन्तु तथा मिट्टियां Textbook Questions and Answers
I. नीचे दिये गये प्रत्येक प्रश्न का एक शब्द या एक वाक्य में उत्तर दीजिए
(अ) प्राकृतिक वनस्पति
प्रश्न 1.
देश में मौजूद विदेशी वनस्पति जातियों के नाम व मात्रा बताइए।
उत्तर-
- देश में मौजूद विदेशी वनस्पति जातियों को बोरिअल (Boreal) और पेलियो-उष्ण खण्डीय (PaleoTropical) के नाम से पुकारते हैं।
- भारत की वनस्पति में विदेशी वनस्पति की मात्रा 40% है।
प्रश्न 2.
‘बंगाल का डर’ किस वनस्पति को कहा जाता है?
उत्तर-
जल हायसिंथ (Water-Hyacinth) नामक पौधे को ‘बंगाल का डर’ (Terror of Bengal) कहा जाता है।
प्रश्न 3.
देश में वन भूमि का प्रतिशत कितना है।
उत्तर-
हमारे देश के कुल वन क्षेत्र का 57% भाग प्रायद्वीपीय पठार और इसके साथ लगी पर्वत श्रृंखलाओं में फैला
प्रश्न 4.
देश के सबसे कम और सबसे अधिक वन क्षेत्रफल वाले राज्यों का नाम बताओ।
उत्तर-
भारत में सबसे कम वन क्षेत्रफल पंजाब में और सबसे अधिक वन क्षेत्रफल त्रिपुरा में है।
प्रश्न 5.
राज्य वन (State Forests) किसको कहते हैं?
उत्तर-
राज्य वन (State Forests) वे वन हैं जिन पर किसी राज्य सरकार का एकाधिकार होता है।
प्रश्न 6.
उष्ण सदाबहार वनस्पति के वृक्षों के नाम बताओ।
उत्तर-
उष्ण सदाबहार वनस्पति क्षेत्र में पाये जाने वाले वृक्षों में महोगनी, बांस, रबड़, आम, मैचीलश और कदम्ब आदि मुख्य हैं।
प्रश्न 7.
अर्द्ध-शुष्क पतझड़ी वनस्पति का विनाश कौन-कौन से तत्त्व करते हैं?
उत्तर-
अर्द्ध-शुष्क पतझड़ी वनस्पति के विनाश का मुख्य कारण कृषि क्षेत्र का विस्तार है।
प्रश्न 8.
शुष्क क्षेत्रों में मिलने वाली वनस्पति के नाम बताओ।
उत्तर-
(i) शुष्क क्षेत्रों में मिलने वाली वनस्पति में मुख्यत: कीकर, बबूल, जण्ड, तमारिक्श, रामबांस, बेर, नीम, कैक्टस और मंजु घास आदि शामिल है।
प्रश्न 9.
ज्वारीय वनस्पति को दूसरे किस नाम से पुकारा जाता है?
उत्तर-
ज्वारीय वनस्पति को मैंग्रोव, दलदली (Swamps), समुद्री किनारे वाली अथवा सुन्दर-वन (Sundervan) जैसे नामों से भी पुकारा जाता है।
प्रश्न 10.
पूर्वी हिमालय क्षेत्र में 2500 मीटर से अधिक ऊंचाई पर मिलने वाले वृक्षों के नाम बताओ।
उत्तर-
पूर्वी हिमालय क्षेत्र में 2500 मीटर से अधिक ऊंचाई पर मिलने वाले वृक्षों में मुख्यतः सिलवर फर, पाईन, स्पूस, देवदार, नीला पाईन आदि शामिल हैं।
प्रश्न 11.
दक्षिणी पठार में पर्वतीय वनस्पति किन स्थानों पर पैदा होती है ?
उत्तर-
दक्षिणी पठार में पर्वतीय वनस्पति बस्तर, पंचमढ़ी, महाबलेश्वर, नीलगिरि, पलनी शिवराय और अन्नामलाई के पहाड़ी क्षेत्रों में पाई जाती है।
प्रश्न 12.
किन-किन वनस्पतियों से हमें औषधियां प्राप्त होती हैं?
उत्तर-
खैर, सिनकोना, नीम, सृपगम्पा झाड़ी, बहेड़ा, आंवला आदि वनस्पतियों से हमें औषधियां प्राप्त होती हैं।
प्रश्न 13.
चमड़ा रंगने के लिए किन-किन वृक्षों से सामग्री प्राप्त की जाती है?
उत्तर-
चमड़ा रंगने के लिए मैंग्रोव कंच, गैम्बीअर, हरड़, बहेड़ा, आंवला और कीकर के वृक्षों से सामग्री प्राप्त की जाती है।
(आ) जीव-जन्तु
प्रश्न 1.
जीव-जन्तु कितने प्रकार के होते हैं?
उत्तर-
जीव-जन्तु हज़ारों प्रकार के होते हैं।
प्रश्न 2.
हाथी किस तरह के क्षेत्र में रहना पसन्द करता है?
उत्तर-
हाथी अधिक वर्षा और घने जंगल वाले क्षेत्र में रहना पसन्द करता है।
प्रश्न 3.
भारत में हिरणों की कौन-कौन सी किस्में पाई जाती हैं?
उत्तर-
भारत में पाई जाने वाली हिरणों की जातियों में चौसिंघा, काला हिरण, चिंकारा तथा सामान्य हिरण प्रमुख हैं।
प्रश्न 4.
देश में शेर किन स्थानों पर मिलते हैं?
उत्तर-
भारतीय शेर का प्राकृतिक निवास स्थान गुजरात में सौराष्ट्र के गिर वन हैं।
प्रश्न 5.
हिमालय में मिलने वाले जीवों के नाम बताओ।
उत्तर-
हिमालय में जंगली भेड़, पहाड़ी बकरी, साकिन (एक लम्बे सींग वाली जंगली बकरी) तथा टैपीर आदि जीव-जन्तु पाये जाते हैं, जबकि उच्च पहाड़ी क्षेत्रों में पांडा तथा हिमतेंदुआ नामक जन्तु मिलते हैं।
प्रश्न 6.
हमारे देश के राष्ट्रीय पशु व पक्षी का नाम बताओ।
उत्तर-
हमारे देश का राष्ट्रीय पशु बाघ और राष्ट्रीय पक्षी मोर है।
प्रश्न 7.
देश में किन जीवों के समाप्त हो जाने का डर है?
उत्तर-
भारत में बाघ, गैंडा, सोहन चिड़िया, सिंह आदि जीवों के विलुप्त होने का डर है।
(इ) मिट्टी
प्रश्न 1.
मिट्टी की परिभाषा बताइए।
उत्तर-
पृथ्वी के धरातल पर पाये जाने वाले हल्के, ढीले तथा असंगठित चट्टानी चूरे (शैल चूर्ण) तथा बारीक जीवांश के संयुक्त मिश्रण को मिट्टी अथवा मृदा कहा जाता है।
प्रश्न 2.
मिट्टी कैसे बनती है?
उत्तर-
मिट्टी मौसमी क्रियाओं द्वारा चट्टानों की तोड़-फोड़ से बनती है।
प्रश्न 3.
मिट्टी के मूल तत्त्व कौन-कौन से हैं?
उत्तर-
मिट्टी के मूल तत्त्व हैं-
- प्रारम्भिक चट्टान,
- जलवायु,
- क्षेत्रीय ढलान,
- प्राकृतिक वनस्पति और
- अवधि।
प्रश्न 4.
काली मिट्टी में कौन-कौन से रासायनिक तत्त्व पाये जाते हैं?
उत्तर-
काली मिट्टी में मुख्य रूप से लोहा, पोटाश, एल्यूमीनियम, चूना तथा मैग्नीशियम आदि तत्त्व पाये जाते हैं।
प्रश्न 5.
लैटराइट मिट्टी देश के किन भागों में मिलती है?
उत्तर-
लैटराइट मिट्टी विन्ध्याचल, सतपुड़ा के साथ लगे मध्य प्रदेश, उड़ीसा, पश्चिमी बंगाल की बेसाल्टिक पर्वत चोटियां, दक्षिणी महाराष्ट्र, कर्नाटक की पश्चिमी घाट की पहाड़ियां, केरल में मालाबार तथा शिलांग के पठार के उत्तर एवं पूर्वी भाग में पाई जाती हैं।
प्रश्न 6.
‘भूड़’ मिट्टी कहां पाई जाती है?
उत्तर-
पंजाब तथा हरियाणा के सीमावर्ती जिलों में।
प्रश्न 7.
खारी या नमकीन मिट्टी देश के किन भागों में मिलती है?
उत्तर-
खारी मिट्टी उत्तर प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा तथा पंजाब के दक्षिणी भागों में छोटे-छोटे टुकड़ों में मिलती है।
प्रश्न 8.
चाय उत्पादन के लिए उपयुक्त मिट्टी देश के किन भागों में मिलती है?
उत्तर-
चाय उत्पादन के लिए उपयुक्त मिट्टी असम, हिमाचल प्रदेश (लाहौल-स्पीति, किन्नौर), पश्चिमी बंगाल, उत्तराखण्ड तथा दक्षिण में नीलगिरि के पर्वतीय क्षेत्र में पाई जाती है।
प्रश्न 9.
मिट्टी के कटाव से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
भौतिक तत्वों द्वारा धरातल की ऊपरी परत का हटा दिया जाना मिट्टी का कटाव कहलाता है।
प्रश्न 10.
मरुस्थल को बढ़ने से रोकने के लिए क्या-क्या उपाय किये जाते हैं?
उत्तर-
वृक्षों की कतारें लगाना तथा घास उगाना।
II. प्रत्येक प्रश्न का संक्षिप्त उत्तर दीजिए
(अ) प्राकृतिक वनस्पति
प्रश्न 1.
दूसरे देशों से आयी वनस्पति से हमारे देश में किस प्रकार की समस्याएं बन गयी हैं? उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
भारतीय वनस्पति का 40 प्रतिशत भाग विदेशी जातियों का है, जिन्हें बोरिअल तथा पेलियो-उष्ण खण्डीय जातियां कहा जाता है। इनमें से अधिकतर पौधे सजावट के लिए (डैकोरेटिव प्लांट) हैं। हमारे देश में आयी इस विदेशी वनस्पति से निम्नलिखित समस्याएं उत्पन्न हो गई हैं —
- यहां के गर्म-शुष्क मौसम के कारण देश की नदियों, तालाबों, नहरों आदि में इन पौधों की संख्या इतनी अधिक बढ़ गई है कि इनको फलने-फूलने से रोक पाना असम्भव सा हो गया है।
- ये विदेशी पौधे स्थानीय लाभकारी वनस्पति के विकास में रुकावट बन गए हैं। ये उपयोगी भूमि को कम करने तथा खतरनाक रोगों को फैलाने में भी अपना प्रभाव दिखा रहे हैं।
- जल हयास्थि (Water-Hyacinth) पौधे के जल-स्रोतों में फैल जाने के कारण इसको ‘बंगाल का डर’ कहा जाता है। इसी प्रकार लेनटाना’ नामक पौधे ने देश के हरे-भरे चरागाहों तथा वनों में तेजी से फैलकर अपना प्रभाव जमा लिया है।
- पारथेनियम घास अथवा कांग्रेसी घास ने भी तेजी से देश के अन्दर फैलकर लोगों में सांस तथा त्वचा के रोगों में भारी मात्रा में वृद्धि की है।
- खाद्यान्नों की कमी के दौरान आयात किये गये गेहूँ के दानों के साथ आए अवांछनीय बीज भी तेजी से फैले हैं। इन्हें समाप्त करने के लिए विदेशी दवाइयों पर काफ़ी धन व्यय होता है।
प्रश्न 2.
विदेशी पौधों से हमें क्या नुक्सान हो सकते हैं?
उत्तर-
विदेशी पौधों से हमें निम्नलिखित हानियां हो सकती हैं —
- हमारी स्थानीय लाभकारी वनस्पति नष्ट हो सकती है।
- विदेशी वनस्पति को नष्ट करने में हमारा बहुत-सा धन व्यय होगा।
- विदेशी वनस्पति से सांस तथा त्वचा सम्बन्धी खतरनाक रोग फैल सकते हैं।
- हमारे जल-भण्डार विदेशी वनस्पति से प्रदूषित हो सकते हैं।
- हमारी उपयोगी भूमि कम हो सकती है, चरागाहों में कमी आ सकती हैं तथा वन्य क्षेत्र नष्ट हो सकते हैं।
प्रश्न 3.
हमारी प्राकृतिक वनस्पति का असल में प्राकृतिक न रहने के क्या कारण हैं?
उत्तर-
हमारी प्राकृतिक वनस्पति वास्तव में प्राकृतिक नहीं रही। यह केवल देश के कुछ ही भागों में दिखाई पड़ती है। अन्य भागों में इसका बहुत बड़ा भाग या तो नष्ट हो गया है या फिर नष्ट हो रहा है। इसके निम्नलिखित कारण हैं —
- तेजी से बढ़ती हुई हमारी जनसंख्या
- परम्परागत कृषि विकास की प्रथा
- चरागाहों का विनाश या अति चराई
- ईंधन व इमारती लकड़ी के लिए वनों का अन्धाधुन्ध कटाव
- विदेशी पौधों में बढ़ती हुई संख्या।
प्रश्न 4.
पतझड़ या मानसूनी वनस्पति पर संक्षेप में टिप्पणी लिखें।
उत्तर-
वह वनस्पति जो ग्रीष्म ऋतु के शुरू होने से पहले अधिक वाष्पीकरण को रोकने के लिए अपने पत्ते गिरा देती है, पतझड़ या मानसून की वनस्पति कहलाती है। इस वनस्पति को वर्षा के आधार पर आई व आर्द्र-शुष्क दो उपभागों में बाँटा जा सकता है।
- आर्द्र पतझड़ वन-इस तरह की वनस्पति उन चार बड़े क्षेत्रों में पाई जाती है, जहाँ पर वार्षिक वर्षा 100 से 200 सें. मी. तक होती है।
इन क्षेत्रों में पेड़ कम सघन होते हैं परन्तु इनकी ऊँचाई 30 मीटर तक पहुंच जाती है। साल, शीशम, सागौन, टीक, चन्दन, जामुन, अमलतास, हलदू, महुआ, शारबू, ऐबोनी, शहतूत इन वनों के प्रमुख वृक्ष हैं। - शुष्क पतझड़ी वनस्पति-इस प्रकार की वनस्पति 50 से 100 सें. मी० से कम वर्षा वाले क्षेत्रों में मिलती है।
इसकी लम्बी पट्टी पंजाब से आरम्भ होकर दक्षिण के पठार के मध्यवर्ती भाग के आस-पास के क्षेत्रों तक फैली हुई है। कीकर, बबूल, बरगद, हलदू यहां के मुख्य वृक्ष हैं।
प्रश्न 5.
पूर्वी हिमालय में किस प्रकार की वनस्पति मिलती है?
उत्तर-
पूर्वी हिमालय में 4000 किस्म के फूल और 250 किस्म की फर्न मिलती है। यहां की वनस्पति पर ऊँचाई के बढ़ने से तापमान और वर्षा में आए अन्तर का गहरा प्रभाव पड़ता है।
- यहां 1200 मीटर की ऊँचाई तक पतझड़ी वनस्पति के मिश्रित वृक्ष अधिक मिलते हैं।
- यहां 1200 से लेकर 2000 मीटर की ऊँचाई तक घने सदाबहार वन मिलते हैं। साल और मैंगनोलिया इन वनों के प्रमुख वृक्ष हैं। इनमें दालचीनी, अमूरा, चिनोली तथा दिलेनीआ के वृक्ष भी मिलते हैं।
- यहां पर 2000 से 2500 मीटर की ऊँचाई तक तापमान कम हो जाने के कारण शीतोष्ण प्रकार (Temperate type) की वनस्पति पाई जाती है। इसमें ओक, चेस्टनट, लॉरेल, बर्च, मैपल तथा ओलढर जैसे चौड़ी पत्ती वाले वृक्ष मिलते हैं।
- इस क्षेत्र में 2500 से लेकर 3500 मीटर तक तीखे पत्ते वाले कोणधारी तथा शंकुधारी वृक्ष दिखाई देते हैं। इनमें सिलवर फर, पाईन, स्यूस, देवदार, रोडोढेन्ढरोन, नीला पाईन जैसे कम ऊँचाई वाले वृक्ष पाए जाते हैं।
- यहां इससे अधिक ऊँचाई पर छोटी-छोटी प्राकृतिक घास तथा फूल आदि के पौधे ही उगते हैं।
प्रश्न 6.
प्राकृतिक वनस्पति किस प्रकार उद्योगों के लिए जीवन दान का कार्य करती है?
उत्तर-
प्राकृतिक वनस्पति अनेक प्रकार से उद्योगों का आधार है। वनों पर आधारित कुछ महत्त्वपूर्ण उद्योग निम्नलिखित हैं —
- दियासलाई उद्योग-वनों से प्राप्त नर्म प्रकार की लकड़ी दियासलाई बनाने के काम आती है।
- लाख उद्योग-लाख एक प्रकार के कीड़े से प्राप्त होती है। इसे रिकार्ड, बूट पॉलिश, बिजली का सामान आदि बनाने में प्रयोग किया जाता है।
- कागज़ उद्योग-कागज़ उद्योग में बांस, सफेदा तथा कई प्रकार की घास प्रयोग की जाती है। बांस तराई प्रदेश में बहुत अधिक मिलता है।
- वार्निश तथा रंग-वार्निश तथा रंग गन्दे बिरोजे से तैयार होते हैं जो वनों से प्राप्त होता है।
- औषधि-निर्माण-वनों से प्राप्त कुछ वृक्षों से उपयोगी औषधियां भी बनाई जाती हैं। उदाहरण के लिए सिनकोना से कुनीन बनती है।
- अन्य उद्योग-वनों पर पैंसिल, डिब्बे बनाना, रबड़, तारपीन, चन्दन का तेल, फ़र्नीचर तथा खेलों का सामान बनाने के उद्योग भी आधारित हैं।
प्रश्न 7.
प्राकृतिक वनस्पति के अन्धाधुन्ध कटाव से होने वाली हानियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
प्राकृतिक वनस्पति का हमारे जीवन में बहुत महत्त्व है। परंतु पिछले कुछ वर्षों में प्राकृतिक वनस्पति की अन्धाधुन्ध कटाई की गई है। इस कटाई से हमें निम्नलिखित हानियां हुई हैं —
- प्राकृतिक वनस्पति की कटाई से वातावरण का सन्तुलन बिगड़ गया है।
- पहाड़ी ढलानों और मैदानी क्षेत्रों के वनस्पति विहीन होने के कारण बाढ़ व मृदा अपरदन की समस्याएं उत्पन्न हो गई हैं।
- पंजाब के उत्तरी भागों में शिवालिक पर्वतमालाओं के निचले भाग में बहने वाले बरसाती नालों के क्षेत्रों में वनकटाव से भूमि कटाव की समस्या के कारण बंजर जमीन में वृद्धि हुई है।
- मैदानी क्षेत्रों का जल-स्तर भी प्रभावित हुआ है जिससे कृषि को सिंचाई की समस्या से जूझना पड़ रहा है।
(आ) जीव-जन्तु
प्रश्न 1.
देश में जीव-जन्तुओं की देख-रेख के लिए कौन-कौन से कार्य किये जा रहे हैं?
उत्तर-
- 1972 में भारतीय वन्य जीवन सुरक्षा अधिनियम बनाया गया। इसके अन्तर्गत देश के विभिन्न भागों में 1,50,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र (देश का 2.7 प्रतिशत तथा कुल वन क्षेत्र का 12 प्रतिशत भाग) को राष्ट्रीय उद्यान तथा वन्य प्राणी अभ्यारण्य घोषित कर दिया गया।
- संकटापन्न (Near Extinction) वन्य जीवों पर विशेष ध्यान दिया जाने लगा है।
- पशु-पक्षियों की गणना का कार्य राष्ट्रीय स्तर पर आरम्भ किया गया है।
- देश के विभिन्न भागों में इस समय बाघों के 16 आरक्षित क्षेत्र हैं।
- असम में गैंडे के संरक्षण की एक विशेष योजना चलायी जा रही है।
सच तो यह है कि देश में अब तक 18 जीव आरक्षित क्षेत्र (Biosphere Reserves) स्थापित किये जा चुके हैं। योजना के अधीन सबसे पहला जीव आरक्षण क्षेत्र नीलगिरि में बनाया गया था। इस योजना के अन्तर्गत प्रत्येक जन्तु का – संरक्षण अनिवार्य है। यह प्राकृतिक धरोहर (Natural heritage) भावी पीढ़ियों के लिए है।
(इ) मिट्टियां
प्रश्न 1.
मिट्टियों के जन्म में प्राथमिक चट्टानों का क्या योगदान है?
उत्तर-
देश में प्राथमिक चट्टानों में उत्तरी मैदानों की तहदार चट्टाने अथवा पठारी भाग की लावा निर्मित चट्टानें आती हैं। इनमें विभिन्न प्रकार के खनिज होते हैं। इसलिए इनसे अच्छी किस्म की मिट्टी बनती है। प्राथमिक चट्टानों से बनने वाली मिट्टी का रंग, गठन, बनावट आदि इस बात पर निर्भर करता है कि चट्टानें कितने समय से तथा किस तरह की जलवायु द्वारा प्रभावित हो रही हैं। पश्चिमी बंगाल जैसे प्रदेश में, जलवायु में रासायनिक क्रियाओं के प्रभाव तथा ह्यूमस के कारण मृदा अति विकसित होती है। परन्तु राजस्थान जैसे शुष्क क्षेत्र में वनस्पति के अभाव के कारण मिट्टी की उपजाऊ शक्ति कम हो जाती है। इसी तरह अधिक वर्षा तथा तेज़ पवनों वाले क्षेत्र में मिट्टी का कटाव अधिक होता है। परिणामस्वरूप उपजाऊपन कम हो जाता है।
प्रश्न 2.
मिट्टी की उपजाऊ शक्ति बढ़ाने के लिए क्या उपाय करने चाहिएं?
उत्तर-
मिट्टी बहुमूल्य संसाधन है। इसके संरक्षण तथा उपजाऊपन को बनाये रखने के लिए आज हमारी सबकी नैतिक ज़िम्मेदारी है।
- पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, गुजरात में पवनों की गति को कम करने के लिए वृक्षों की कतारें लगाई जानी चाहिएं। साथ ही रेतीले टीलों पर घास उगाई जानी चाहिये।
- पर्वतीय क्षेत्रों में सीढ़ीनुमा खेत, ढाल के विपरीत दिशा में मेड़ें (Contour Bending) बनानी तथा छोटे-छोटे जल भण्डार बनाये जाने चाहिये।
- मैदानी भागों में भूमि पर वनस्पति उगानी चाहिये।
- इसके अतिरिक्त, फसल-चक्र, ढाल के विपरीत खेतों को जोतना तथा गोबर की खाद का प्रयोग करना चाहिये। इससे मिट्टी के उपजाऊपन में वृद्धि की जा सकती है।
प्रश्न 3.
पीट तथा दलदली मिट्टी पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर-
पीट तथा दलदली मिट्टी केवल 1500 वर्ग कि० मी० के क्षेत्र में मिलती है। इसका विस्तार सुन्दरवन डेल्टा, उड़ीसा के तटवर्ती क्षेत्र, तमिलनाडु के दक्षिण-पूर्वी तटवर्ती भाग, मध्यवर्ती बिहार तथा उत्तराखंड के अल्मोड़ा में है। जैविक पदार्थों की अधिकता के कारण इसका रंग काला तथा स्वभाव तेजाबी होता है। इस रंग के कारण इसे केरल में ‘काली मिट्टी’ (Black Soil) के नाम से भी जाना जाता है। जैविक पदार्थों की अधिकता के कारण यह नीले रंग वाली मिट्टी भी बन जाती है।
प्रश्न 4.
मिट्टी का कटाव कितने प्रकार का होता है?
उत्तर-
धरातल के ऊपर मिलने वाली मिट्टी की सतह का भौतिक व गैर-भौतिक तत्त्वों द्वारा टूटना अथवा हटना मिट्टी का कटाव कहलाता है। यह कटाव तीन प्रकार का हो सकता है —
- सतहदार कटाव-इस तरह के कटाव में पवनों के तथा नदी जल के लम्बे समय तक बहने के बाद धरातल की ऊपरी सतह बह जाती है या उड़ाकर ले जाती है।
- नालीदार कटाव-मूसलाधार वर्षा के समय अधिक जल कम चौड़ाई वाली नालियों में बहने लगता है। इससे धरातल पर लम्बी-लम्बी खाइयां व खड्डे बन जाते हैं। इन्हें नालीदार कटाव कहते हैं।
- खड्डेदार कटाव-पवनें तथा जल धरातल के विशिष्ट स्थानों पर मिट्टी के उड़ने या धुलने के पश्चात् गहरे खड्डे बना देते हैं। धीरे-धीरे ये खड्डे बहुत बड़े हो जाते हैं।
प्रश्न 5.
मिट्टी कटाव के कारणों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
मिट्टी का कटाव मुख्य रूप से दो कारणों से होता है-भौतिक क्रियाओं द्वारा तथा मानव क्रियाओं द्वारा। आज के समय में मानव क्रियाओं से मिट्टियों के कटाव की प्रक्रिया बढ़ती जा रही है।
भौतिक तत्त्वों में उच्च तापमान, बर्फीले तूफान, तेज़ हवाएं, मूसलाधार वर्षा तथा तीव्र ढलानों की गणना होती है। ये मिट्टियों के कटाव के प्रमुख कारक हैं। मानवीय क्रियाओं में जंगलों की कटाई, पशुओं की बेरोकटोक चराई, स्थानांतरी कृषि की दोषपूर्ण पद्धति, खानों की खुदाई आदि तत्त्व आते हैं।
III. निम्नलिखित का उत्तर दीजिए
प्रश्न 1.
भारतीय वनस्पति के वर्गीकरण का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
भारतीय वनस्पति का कई आधारों पर वर्गीकरण किया जा सकता है। इनमें मुख्य आधार निम्नलिखित हैं —
- पहुंच के आधार पर इस दृष्टि से वन दो प्रकार के हैं-दुर्गम वन तथा अगम्य वम। देश में 18% वन क्षेत्र ऐसे हैं जोकि हिमालय की ऊंची ढलानों पर स्थित हैं। इस कारण यह मानव पहुंच से बाहर हैं अर्थात् अगम्य है। हम केवल 82% वन क्षेत्र का ही प्रयोग कर पाते हैं।
- पत्तियों के आधार पर-देश में कुल उपलब्ध वनों के 5% क्षेत्र केवल नुकीली पत्तियों वाले हैं। ये बहुमूल्य शंकुधारी वन हिमालय की ऊबड़-खाबड़ ढलानों पर स्थित होने के कारण लगभग अछूते ही रह जाते हैं। इसके विपरीत हम चौड़े पत्ती वाले साल व टीक जैसे 95% वनों का प्रयोग कर सकते हैं।
- प्रशासनिक अथवा प्रबन्ध के आधार पर वनों के प्रबन्धन को ध्यान में रखते हुए इन्हें तीन भागों में विभाजित किया गया है। इसके अनुसार 95% (717 लाख हेक्टेयर) वन क्षेत्र राज्य के अधीन हैं। इन पर राज्य सरकार का एकाधिकार होता है। दूसरे प्रकार के वन स्थानीय नगरपालिका अथवा जिला परिषद् की देख-रेख के अधीन होते हैं। ये सामूहिक वन भी कहलाते हैं। शेष वन क्षेत्र लोगों के निजी अधिकार (Private Forest) में आता है।
- वन कानून के आधार पर-वनों के कानूनी नियंत्रण तथा सुरक्षा की दृष्टि से वनों को तीन वर्गों में बांटा जाता है-सुरक्षित वन, संरक्षित वन तथा अवर्गीकृत वन। सुरक्षित वनों में 52% वन क्षेत्र आता है। इन्हें देश में भूमि कटाव को रोकने, वातावरण की सम्भाल तथा लकड़ी की पूर्ति के लिए सुरक्षित रखा गया है। इन वनों में पशुओं को चराना तथा लकड़ी काटना मना है। दूसरे 32% (233 लाख हेक्टेयर) वन संरक्षित वन क्षेत्र हैं। सरकारी कानून के अनुसार
इन्हें नष्ट नहीं किया जा सकता। परन्तु यहां पर पशु चराना, लकड़ी काटना आदि सुविधाएं मिल जाती हैं। अवर्गीकृत वन 16% हैं। इनमें भी लोगों को सुविधाएं प्राप्त हैं। - भौगोलिक तत्त्वों के आधार पर-भौगोलिक तत्त्वों के आधार पर देश की प्राकृतिक वनस्पति को निम्नलिखित खण्डों में विभाजित किया जा सकता है —
- उष्ण सदाबहार वनस्पति
- पतझड़ या मानसूनी वनस्पति
- शुष्क वनस्पति
- ज्वारीय या मैंग्रोव वनस्पति
- पर्वतीय वनस्पति।
प्रश्न 2.
देश में भौगोलिक तत्त्वों के आधार पर प्राकृतिक वनस्पति का वर्गीकरण कीजिए।
उत्तर-
भौगोलिक तत्त्वों के आधार पर भारत की वनस्पति को निम्नलिखित पाँच भागों में बांटा जा सकता है —
- उष्ण सदाबहार वन-इस प्रकार के वन मुख्य रूप से अधिक वर्षा (200 सें० मी० से अधिक) वाले भागों में मिलते हैं। इसलिए इन्हें बरसाती वन भी कहते हैं। ये वन अधिकतर पूर्वी हिमालय के तराई प्रदेश, पश्चिमी घाट, पश्चिमी अण्डमान, असम, बंगाल तथा उड़ीसा के कुछ भागों में पाए जाते हैं। इन वनों में पाए जाने वाले मुख्य वृक्ष महोगनी, ताड़, बांस, बैंत, रबड़, चपलांस, मैचीलश तथा कदम्ब हैं। .
- पतझड़ी अथवा मानसूनी वन-पतझड़ी या मानसूनी वन भारत के उन प्रदेशों में मिलते हैं जहां 100 से 200 सें. मी. तक वार्षिक वर्षा होती है। भारत में ये मुख्य रूप से हिमालय के निचले भाग, छोटा नागपुर, गंगा की घाटी, पश्चिमी घाट की पूर्वी ढलानों तथा तमिलनाडु क्षेत्र में पाए जाते हैं। इन वनों में पाए जाने वाले मुख्य वृक्ष सागवान, साल, शीशम, आम, चन्दन, महुआ, ऐबोनी, शहतूत तथा सेमल हैं। गर्मियों में ये वृक्ष अपनी पत्तियां गिरा देते हैं, इसलिए इन्हें पतझड़ी वन भी कहते हैं।
- मरुस्थलीय वन-इस प्रकार के वन उन क्षेत्रों में पाए जाते हैं जहां वार्षिक वर्षा का मध्यमान 20 से 60 सें. मी० तक होता है। भारत में ये वन राजस्थान, पश्चिमी हरियाणा, दक्षिण-पश्चिमी पंजाब और गुजरात में पाए जाते हैं। इन वनों में रामबांस, खैर, पीपल और खजूर के वृक्ष प्रमुख हैं।
- ज्वारीय वन-ज्वारीय वन नदियों के डेल्टाओं में पाए जाते हैं। यहां की मिट्टी भी उपजाऊ होती है और पानी भी अधिक मात्रा में मिल जाता है। भारत में इस प्रकार के वन महानदी, गोदावरी, कृष्णा, कावेरी आदि के डेल्टाई प्रदेशों में मिलते हैं। यहां की वनस्पति को मैंग्रोव अथवा सुन्दर वन भी कहा जाता है। कुछ क्षेत्रों में ताड़, कैंस, नारियल आदि के वृक्ष भी मिलते हैं।
- पर्वतीय वन-इस प्रकार की वनस्पति हिमालय पर्वतीय क्षेत्रों तथा दक्षिण में नीलगिरि की पहाड़ियों पर पायी जाती है। इस वनस्पति में वर्षा की मात्रा तथा ऊंचाई बढ़ने के साथ-साथ अन्तर आता है। कम ऊंचाई पर सदाबहार वन पाये जाते हैं, तो अधिक ऊंचाई पर केवल घास तथा कुछ फूलदार पौधे ही मिलते हैं।
प्रश्न 3.
प्राकृतिक बनस्पति के लाभों का वर्णन करो।
उत्तर-
प्राकृतिक वनस्पति से हमें कई प्रत्यक्ष तथा परोक्ष लाभ होते हैं। प्रत्यक्ष लाभ-प्राकृतिक वनस्पति से होने वाले प्रत्यक्ष लाभों का वर्णन इस प्रकार है —
- वनों से हमें कई प्रकार की लकड़ी प्राप्त होती है। जिसका प्रयोग इमारतें, फ़र्नीचर, लकड़ी-कोयला आदि बनाने में होता है। इसका प्रयोग ईंधन के रूप में भी होता है।
- खैर, सिनकोना, कुनीन, बहेड़ा व आंवले से कई प्रकार की औषधियां तैयार की जाती हैं।
- मैंग्रोव, कंच, गैम्बीअर, हरड़, बहेड़ा, आंवला और कीकर आदि के पत्ते, छिलके व फलों को सुखाकर चमड़ा रंगने का पदार्थ तैयार किया जाता है।
- पलाश व पीपल से लाख, शहतूत से रेशम, चंदन से तुंग व तेल और साल से धूपबत्ती व बिरोजा तैयार किया जाता है।
परोक्ष लाभ-प्राकृतिक वनस्पति से हमें निम्नलिखित परोक्ष लाभ होते हैं
- वन जलवायु पर नियन्त्रण रखते हैं। सघन वन गर्मियों में तापमान को बढ़ने से रोकते हैं तथा सर्दियों में तापमान को बढ़ा देते हैं।
- सघन वनस्पति की जड़ें बहते हुए पानी की गति को कम करने में सहायता करती हैं। इससे बाढ़ का प्रकोप कम हो जाता है। दूसरे जड़ों द्वारा रोका गया पानी भूमि के अन्दर समा लिए जाने से भूमिगत जल-स्तर (Water-table) ऊंचा उठ जाता है। वहीं दूसरी ओर धरातल पर पानी की मात्रा कम हो जाने से पानी नदियों में आसानी से बहता रहता है।
- वृक्षों की जड़ें मिट्टी की जकड़न को मज़बूत किए रहती हैं और मिट्टी के कटाव को रोकती हैं।
- वनस्पति के सूखकर गिरने से जीवांश के रूप में मिट्टी को हरी खाद मिलती है।
- हरी-भरी वनस्पति बहुत ही मनोरम दृश्य प्रस्तुत करती है। इससे आकर्षित होकर लोग सघन वन क्षेत्रों में यात्रा, शिकार तथा मानसिक शान्ति के लिए जाते हैं। कई विदेशी पर्यटक भी वन-क्षेत्रों में बने पर्यटन केन्द्रों पर आते हैं। इससे सरकार को विदेशी मुद्रा प्राप्त होती है।
- सघन वन अनेक उद्योगों के आधार हैं। इनमें से कागज़, लाख, दियासिलाई, रेशम, खेलों का सामान, प्लाईवुड, गोंद, बिरोज़ा आदि उद्योग प्रमुख हैं।
प्रश्न 4.
मिट्टी की बनावट किन-किन तत्त्वों पर निर्भर करती है?
उत्तर-
मिट्टी की बनावट निम्नलिखित तत्त्वों पर निर्भर करती है —
- प्रारम्भिक चट्टान-देश के उत्तरी मैदानों की मोड़दार चट्टानें भिन्न-भिन्न खनिजों की बनी होने के कारण अच्छी किस्म की मिट्टी प्रदान करती है। दूसरी ओर देश के पठारी भाग की लावा निर्मित चट्टानें ज़ोनल मिट्टियों को जन्म देती हैं। इनमें कई प्रकार के खनिज पदार्थ मिलते हैं जिसके कारण ये सभी मिट्टियां उपजाऊ होती हैं।
- जलवायु-प्राथमिक चट्टानों से बनने वाली मिट्टी का रंग, गठन, बनावट आदि इस बात पर निर्भर करती है कि चट्टानें कितने समय से तथा किस तरह की जलवायु द्वारा प्रभावित हो रही हैं। पश्चिमी बंगाल जैसे प्रदेश में जलवायु, रासायनिक क्रियाओं के प्रभाव व ह्यमस के कारण मृदा बहुत ही विकसित होती है। इसके विपरीत राजस्थान जैसे शुष्क क्षेत्र में वनस्पति के अभाव के कारण मिट्टी की उपजाऊ शक्ति कम होती है। इसी प्रकार अधिक वर्षा व तेज़ पवनों वाले क्षेत्रों में मिट्टी का कटाव अधिक होने से मिट्टी की ऊपजाऊ शक्ति कम हो जाती है।
- ढलान-जलवायु के अलावा क्षेत्रीय ढलान भी मृदा के विकास को प्रभावित करती है। देश के तीव्र ढलान वाले पहाड़ी क्षेत्रों में पानी के तेज बहाव तथा गुरुत्वाकर्षण के कारण मिट्टी खिसकती रहती है। यही कारण है कि पर्वतीय क्षेत्रों की ढलानों की बजाय गंगा, सिन्धु एवं ब्रह्मपुत्र जैसी नदियों की घाटियों में मिट्टी ज्यादा उपजाऊ होती है।
- प्राकृतिक वनस्पति-प्राकृतिक वनस्पति जैविक चूरे की पूर्ति करके मिट्टी का विकास करने वाला मुख्य तत्त्व है। परन्तु हमारे देश की अधिकतर भूमि कृषि के अधीन होने के कारण प्राकृतिक वनस्पति की कमी है। देश के लावे वाली मिट्टियों में व सुरक्षित वन क्षेत्र की मिट्टियों में 5-10% तक जैविक अंश मिलता है।
- अवधि-इन सभी तत्त्वों के अतिरिक्त मिट्टी के विकास में अवधि अर्थात् समय का भी अपना महत्त्व होता है। मिट्टियों में प्रत्येक वर्ष ह्यमस व जीवांश प्राप्त हो जाती है तथा लाखों वर्ष निर्विघ्न क्रिया द्वारा ही बढ़िया मिट्टी का निर्माण होता है।
प्रश्न 5.
भारतीय मिट्टियों की किस्मों एवं विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
भारत में कई प्रकार की मिट्टियां पाई जाती हैं। इनके गुणों के आधार पर इन्हें निम्नलिखित वर्गों में बांटा जा सकता है —
- जलोढ़ मिट्टी (Alluvial Soil)-भारत में जलोढ़ मिट्टी उत्तरी मैदान, राजस्थान, गुजरात तथा दक्षिण के तटीय मैदानों में सामान्य रूप से मिलती है। इसमें रेत, गाद तथा मृत्तिका मिली होती है। जलोढ़ मिट्टी दो प्रकार की होती हैखादर तथा बांगर। जलोढ़ मिट्टियां सामान्यतः सबसे अधिक उपजाऊ होती हैं। इन मिट्टियों में पोटाश, फॉस्फोरस अम्ल तथा चूना पर्याप्त मात्रा में होता है। परन्तु इनमें नाइट्रोजन तथा जैविक पदार्थों की कमी होती है।
- काली अथवा रेगड़ मिट्टी (Black Soil)-इस मिट्टी का निर्माण लावा के प्रवाह से हुआ है। यह मिट्टी कपास की फसल के लिए बहुत लाभदायक है। अतः इसे कपास वाली मिट्टी भी कहा जाता है। इस मिट्टी का स्थानीय नाम ‘रेगड़’ है। यह मिट्टी दक्कन ट्रैप प्रदेश की प्रमुख मिट्टी है। यह पश्चिम में मुंबई से लेकर पूर्व में अमरकंटक पठार, उत्तर में गुना (मध्य प्रदेश) और दक्षिण में बेलगाम तक त्रिभुजाकार क्षेत्र में फैली हुई है। काली मिट्टी नमी को अधिक समय तक धारण कर सकती है। इस मृदा में लौह, पोटाश, चूना, एल्यूमीनियम तथा मैगनीशियम की मात्रा अधिक होती है। परन्तु नाइट्रोजन, फॉस्फोरस तथा जीवांश की मात्रा कम होती है।
- लाल मिट्टी (Red Soil)-इस मिट्टी का लाल रंग लोहे के रवेदार तथा परिवर्तित चट्टानों में बदल जाने के कारण होता है। इसका विस्तार तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, उड़ीसा, दक्षिणी बिहार, झारखंड, पूर्वी मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ तथा उत्तरी-पूर्वी पर्वतीय राज्यों में हैं। लाल मिट्टी में नाइट्रोजन तथा चूने की कमी, परन्तु मैग्नीशियम, एल्यूमीनियम तथा लोहे की मात्रा अधिक होती है।
- लैटराइट मिट्टी (Laterite Soil)-इस मिट्टी में नाइट्रोजन, चूना तथा पोटाश की कमी होती है। इसमें लोहे तथा एल्यूमीनियम ऑक्साइड की मात्रा अधिक होने के कारण इसका स्वभाव तेज़ाबी हो जाता है। इसका विस्तार विन्ध्याचल, सतपुड़ा के साथ लगे मध्य प्रदेश, उड़ीसा, पश्चिमी बंगाल की बैसाल्टिक पर्वतीय चोटियों, दक्षिणी महाराष्ट्र तथा उत्तर-पूर्व में शिलांग के पठार के उत्तरी तथा पूर्वी भाग में है।
- मरुस्थलीय मिट्टी (Desert Soil)-इस मिट्टी का विस्तार पश्चिम में सिन्धु नदी से लेकर पूर्व में अरावली पर्वतों तक है। यह राजस्थान, दक्षिणी पंजाब व दक्षिणी हरियाणा में फैली हुई है। इसमें घुलनशील नमक की मात्रा अधिक होती है। परन्तु इसमें नाइट्रोजन तथा ह्यूमस की बहुत कमी होती है। इसमें 92% रेत व 8% चिकनी मिट्टी का अंश होता है। इसमें सिंचाई की सहायता से बाजरा, ज्वार, कपास, गेहूँ, सब्जियां आदि उगाई जा रही हैं।
- खारी व तेजाबी मिट्टी (Saline & Alkaline Soil)-यह उत्तर प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा व पंजाब के दक्षिणी भागों में छोटे-छोटे टुकड़ों में मिलती है। खारी मिट्टियों से सोडियम भरपूर मात्रा में मिलता है। तेज़ाबी मिट्टी में कैल्शियम व नाइट्रोजन की कमी होती है। इसी लवणीय मिट्टी को उत्तर प्रदेश में औसढ़’ या ‘रेह’, पंजाब में ‘कल्लर’ या ‘थुड़’ तथा अन्य भागों में ‘रक्कड़’ कार्ल और. ‘छोपां’ मिट्टी भी कहा जाता है।
- पीट एवं दलदली मिट्टी (Peat & Marshy Soil)-इसका विस्तार सुन्दरवन डेल्टा, उड़ीसा के तटवर्ती क्षेत्र, तमिलनाडु के दक्षिण-पूर्वी तटवर्ती भाग, मध्यवर्ती बिहार तथा उत्तराखंड के अल्मोड़ा में है। इसका रंग जैविक पदार्थों की अधिकता के कारण काला तथा तेजाबी स्वभाव वाला होता है। जैविक पदार्थों की अधिकता के कारण कहीं-कहीं इसका रंग नीला भी है।
- पर्वतीय मिट्टी (Mountain Soil)-इस मिट्टी में रेत, पत्थर तथा बजरी की मात्रा अधिक होती है। इसमें चूना कम लेकिन लोहे की मात्रा अधिक होती है। यह चाय की खेती के लिए अनुकूल होती है। इसका विस्तार असम, लद्दाख, लाहौल-स्पीति, किन्नौर, दार्जिलिंग, देहरादून, अल्मोड़ा, गढ़वाल व दक्षिण में नीलगिरि के पर्वतीय क्षेत्र में है।
प्रश्न 6.
मिट्टी का कटाव क्या होता है? इसके क्षेत्रीय प्रारूप का वर्णन कीजिए तथा मिट्टी संरक्षण के उपायों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
धरातल पर मिलने वाली 15 से 30 सें० मी० मोटी सतह का भौतिक व गैर-भौतिक तत्त्वों द्वारा अपने मूल स्थान से टूट जाना या हट जाना मिट्टी का कटाव कहलाता है।
क्षेत्रीय प्रारूप-मिट्टी के कटाव का देश के अग्रलिखित भागों पर प्रभाव पड़ा है —
- बाह्य हिमालय (शिवालिक) क्षेत्रों में प्राकृतिक वनस्पति का अत्यधिक कटाव हुआ है। इसने उपजाऊ भूमि को गारे (कीचड़) से लादकर कृषि विहीन कर दिया है।
- पंजाब के होशियारपुर, रोपड़ जिले, यमुना, चम्बल, माही व साबरमती नदियों के अपवाह क्षेत्र में नालियों व ‘चोअ’ ने वनस्पति की कमी के कारण भूमि को बंजर बना दिया है।
- दक्षिणी पंजाब, हरियाणा व पूर्वी राजस्थान, पश्चिमी उत्तर प्रदेश व उत्तर-पूर्वी गुजरात के शुष्क क्षेत्रों में पवनों के द्वारा कटाव हुआ है।
- देश के उत्तर-पूर्वी राज्यों में पश्चिमी बंगाल, समेत भारी वर्षा, बाढ़ व नदी-किनारों की कटाई से सैंकड़ों टन मिट्टी बंगाल की खाड़ी में चली जाती है।
- दक्षिण व दक्षिणी पूर्वी भारत में मिट्टी का कटाव तीव्र ढलानों, भारी वर्षा व कृषि की दोषपूर्ण पद्धति अपनाने से हुआ है। मिट्टी का संरक्षण-
मिट्टी के संरक्षण के लिए निम्नलिखित उपाय किये जा रहे हैं —
- पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, गुजरात में पवनों के वेग को कम करने के लिए वृक्षों की कतारें लगाई जा रही हैं।
- रेतीले टीलों पर घास उगाई जा रही है।
- पर्वतीय क्षेत्रों में सीढ़ीनुमा खेत, ढाल के विपरीत दिशा में मेडें बनाकर छोटे-छोटे जल भण्डार बनाये जाते हैं।
- मैदानी भागों में भूमि पर वनस्पति उगाकर, फसल चक्र, ढाल के विपरीत खेतों को जोतकर तथा गोबर की खाद प्रयोग करके मिट्टी का कटाव कम किया जा सकता है और मिट्टी की उपजाऊ शक्ति बढ़ाई जा सकती है।
- झारखण्ड सरकार ने छोटा नागपुर के पठारी भाग में स्थानान्तरी कृषि के लिए कठोर नियम बनाये हैं।
IV. भारत के मानचित्र में निम्न को दर्शाएं:
- शुष्क वनस्पति क्षेत्र।
- मैंग्रोव वनस्पति क्षेत्र।
- काली एवं जलोढ़ मिट्टी क्षेत्र।
उत्तर-विद्यार्थी अध्यापक की सहायता से स्वयं करें।
PSEB 10th Class Social Science Guide प्राकृतिक वनस्पति, जीव-जन्तु तथा मिट्टियां Important Questions and Answers
वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)
I. उत्तर एक शब्द अथवा एक लाइन में
प्रश्न 1.
भारत में कई प्रकार की वनस्पति पाए जाने का क्या कारण है?
उत्तर-
भारत की प्राकृतिक दशा, इसकी जलवायु और इसकी मिट्टी में भिन्नता के कारण यहां कई प्रकार की वनस्पति पाई जाती है।
प्रश्न 2.
उष्ण सदाबहार वन भारत के किन भागों में पाए जाते हैं?
उत्तर-
उष्ण सदाबहार वन भारत के पश्चिमी तट, पश्चिमी घाट, असम, नागालैंड, त्रिपुरा और पश्चिमी बंगाल में पाए जाते हैं।
प्रश्न 3.
मानसूनी वन भारत के किन भागों में पाए जाते हैं?
उत्तर-
मानसूनी वन महाराष्ट्र, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश, बिहार तथा उड़ीसा में पाये जाते हैं।
प्रश्न 4.
मानसूनी वनों में पाए जाने वाले चार मुख्यं वृक्षों के नाम बताएं।
उत्तर-
साल, सागवान, शीशम तथा ऐबोनी।
प्रश्न 5.
डैल्टाई वनों में पाए जाने वाले एक प्रमुख वृक्ष का नाम बताएं।
उत्तर-
सुन्दरी।
प्रश्न 6.
फर्नीचर, समुद्री जहाज तथा रेलों के डिब्बों के लिए कौन-सी लकड़ी सबसे अच्छी रहती है?
उत्तर-
इनके लिए सागवान की लकड़ी सबसे अच्छी रहती है।
प्रश्न 7.
उष्ण कटिबन्धीय वर्षा वनों की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता बताइए।
उत्तर-
उष्ण कटिबन्धीय वर्षा वन सदा हरित रहते हैं।
प्रश्न 8.
उष्ण कटिबन्धीय वर्षा वाले वनों के व्यापारिक उपयोग में क्यों कठिनाई आती है?
उत्तर-
उष्ण कटिबन्धीय वर्षा वाले वनों में एक साथ मिले हुए अनेक जातियों के वृक्ष पाए जाते हैं।
प्रश्न 9.
उष्ण कटिबन्धीय पर्णपाती वन किस जलवायु प्रदेश के विशिष्ट वन हैं?
उत्तर-
उष्ण कटिबन्धीय पर्णपाती वन मानसून प्रदेश के विशिष्ट वन हैं।
प्रश्न 10.
मानसूनी (उष्ण कटिबन्धीय पर्णपाती) वनों के कौन-कौन से दो उप वर्ग हैं?
उत्तर-
मानसूनी वनों के दो उप वर्ग हैं-
- आई पर्णपाती वन
- शुष्क पर्णपाती वन।
प्रश्न 11.
(i) मेनग्रोव के वृक्ष कहां पाये जाते हैं?
(ii) इनकी मुख्य विशेषता क्या है?
उत्तर-
(i) मेनग्रोव के वृक्ष समुद्र तट के साथ-साथ तथा नदियों के ज्वारीय क्षेत्रों में पाये जाते हैं।
(ii) इन वृक्षों की विशेषता यह है कि ये खारे पानी तथा ताजे पानी दोनों में ही पनप सकते हैं।
प्रश्न 12.
मरुस्थलों में वृक्षों की जड़ें लम्बी क्यों होती हैं?
उत्तर-
प्रकृति ने उन्हें लम्बी जड़ें इसलिए प्रदान की हैं ताकि ये गहराई से नमी प्राप्त कर सकें।
प्रश्न 13.
क्या कारण है कि.वनों से बाढ़ की भयंकरता कम हो जाती है?
उत्तर-
वनों की रोक के कारण बाढ़ का बहाव धीमा हो जाता है।
प्रश्न 14.
मरुस्थलीय मृदा के उपजाऊ होने पर भी इसमें कृषि कम होती है, क्यों?
उत्तर-
वर्षा की कमी के कारण इस मृदा में नाइट्रोजन तथा जीवांश का अभाव रहता है।
प्रश्न 15.
जलोढ़ मृदा से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
जलोढ़ मृदा से हमारा अभिप्राय ऐसी मृदा से है जिसका निर्माण नदियों द्वारा होता है।
प्रश्न 16.
जलोढ़ मृदा के चार प्रकार कौन-से हैं?
उत्तर-
जलोढ़ मृदा के चार प्रकार हैं-बांगर मृदा, खादर मृदा, डेल्टाई मृदा और तटवर्ती जलोढ़ मृदा।
प्रश्न 17.
काली मृदा का कोई एक गुण बताओ।
उत्तर-
काली मृदा में नमी सोखने की क्षमता अधिक होती है।
प्रश्न 18.
काली मृदा किस उपज के लिए आदर्श मानी जाती है?
उत्तर-
कपास।
प्रश्न 19.
लैटराइट मृदा में किन तत्त्वों की मात्रा अधिक होती है?
उत्तर-
लैटराइट मृदा में लोहा और एल्यूमीनियम की मात्रा अधिक होती है।
प्रश्न 20.
भारत में पाई जाने वाली सम्पूर्ण वनस्पति जाति का कितने प्रतिशत भाग विदेशी जातियों का है?
उत्तर-
40%
प्रश्न 21.
किस विदेशी वनस्पति ने लोगों में त्वचा तथा सांस सम्बन्धी रोगों में वृद्धि की है?
उत्तर-
पारथेनियम अथवा कांग्रेसी घास।
प्रश्न 22.
भारत में पहली बार वन नीति (राष्ट्रीय वन नीति) की घोषणा कब की गई थी?
उत्तर-
1951 में।
प्रश्न 23.
भारत में प्रति व्यक्ति वन क्षेत्र कितना है?
उत्तर-
0.14 हेक्टेयर।
प्रश्न 24.
किस केन्द्र शासित प्रदेश में सबसे अधिक वन क्षेत्र है?
उत्तर-
अण्दमान व निकोबार द्वीप समूह।
प्रश्न 25.
केन्द्रीय शासित प्रदेशों में सबसे कम वन क्षेत्र किस प्रदेश का है?
उत्तर-
राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली का।
प्रश्न 26.
हम अपने कितने प्रतिशत वन क्षेत्र का प्रयोग कर पाते हैं?
उत्तर-
82 प्रतिशत का।
प्रश्न 27.
कीकर और बबूल किस प्रकार की वनस्पति के वृक्ष हैं?
उत्तर-
मरुस्थलीय अथवा शुष्क वनस्पति।
प्रश्न 28.
स्तनधारियों में राजसी ठाठ-बाठ वाला शाकाहारी पशु किसे माना जाता है?
उत्तर-
हाथी।
प्रश्न 29.
थार मरुस्थल का सामान्य पशु कौन-सा है?
उत्तर-
ऊंट।
प्रश्न 30.
भारत में जंगली गधे कहां पाये जाते हैं?
उत्तर-
कच्छ के रण में।
प्रश्न 31.
भारत में एक सींग वाला गेंडा कहां मिलता है?
उत्तर-
असम तथा पश्चिमी बंगाल के उत्तरी भागों में।
प्रश्न 32.
जंगली जीवों में सबसे शक्तिशाली पश कौन-सा है?
उत्तर-
शेर।
प्रश्न 33.
प्रसिद्ध बंगाली शेर अथवा बंगाल टाईगर का प्राकृतिक आवास कौन-सा है?
उत्तर-
गंगा डेल्टा के सुन्दर वन।
प्रश्न 34.
गुजरात में सौराष्ट्र के गिर वन किस विशिष्ट पशु का प्राकृतिक आवास है?
उत्तर-
भारतीय सिंह का।
प्रश्न 35.
हिमालय के उच्च क्षेत्रों में पाये जाने वाले दो जानवरों के नाम लिखिए।
उत्तर-
लामचिता तथा हिम-तेन्दुआ।
प्रश्न 36.
भारत का सबसे पहला वन आरक्षित क्षेत्र कब और कहां बनाया गया था?
उत्तर-
भारत का पहला वन आरक्षित क्षेत्र 1986 में नीलगिरी में बनाया गया था।
प्रश्न 37.
दरियाई जलोढ़ मिट्टी को कौन-कौन से दो उपभागों में बांटा जाता है?
उत्तर-
खादर तथा बांगर।
प्रश्न 38.
आग्नेय चट्टानों के टूटने से बनी मिट्टी क्या कहलाती है?
उत्तर-
काली मिट्टी।
प्रश्न 39.
केन्द्रीय मृदा रक्षा बोर्ड की स्थापना कब हुई?
उत्तर-
1953 में।
प्रश्न 40.
किस प्रकार के वनों को बरसाती वन कहा जाता है?
उत्तर-
उष्ण सदाबहार वनों को।
प्रश्न 41.
भारत में संकटापन्न वन्य जीवों के नाम बताइए।
उत्तर-
भारत में दो संकटापन्न वन्य जीव बाघ तथा गैंडा हैं।
प्रश्न 42.
(i) राष्ट्रीय उद्यान किसे कहते हैं ?
(ii) इसके दो उदाहरण भारत से दीजिए।
उत्तर-
(i) राष्ट्रीय उद्यान से अभिप्राय उन सुरक्षित स्थलों से है जहां पर जानवरों को उनकी नस्लें सुरक्षित रखने के लिए रखा जाता है।
(ii) कार्बेट नेशनल पार्क तथा काजीरंगा नेशनल पार्क।
II. रिक्त स्थानों की पूर्ति
- फर्नीचर, समुद्री जहाज़ तथा रेल के डिब्बे बनाने के लिए ……………. की लकड़ी सबसे अच्छी रहती है।
- …………………………..वर्षा वन सदा हरे-भरे रहते हैं।
- भारत में पाई जाने वाली सम्पूर्ण वनस्पति जाति का ………….प्रतिशत भाग विदेशी जातियों का है।
- विदेशी वनस्पति की ……….. घास ने लोगों में त्वचा तथा सांस सम्बन्धी रोगों में वृद्धि की है।
- थार मरुस्थल का सामान्य पशु ……………….. है।
- भारत में जंगली गधे ………………… में पाए जाते हैं।
- जंगली जीवों में ……………………. सबसे शक्तिशाली पशु है।
- भारत का पहला वन आरक्षित क्षेत्र ……………… में बनाया गया।
- आग्नेय चट्टानों के टूटने से बनी मिट्टी …………….. मिट्टी कहलाती है।
- केन्द्रीय मृदा रक्षा बोर्ड की स्थापना ………………….. ई० में की गई।
उत्तर-
- सागवान,
- उष्ण कटिबंधीय,
- 40,
- कांग्रेसी,
- ऊंट,
- रण के कच्छ,
- शेर,
- नीलगिरी,
- काली,
- 1953
III. बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1.
डेल्टाई वनों में पाया जाने वाला मुख्य वृक्ष है —
(A) साल
(B) शीशम
(C) सुन्दरी
(D) सागवान।
उत्तर-
(C) सुन्दरी
प्रश्न 2.
काली मृदा किस उपज के लिए आदर्श मानी जाती है?
(A) कपास
(B) गेहूं
(C) चावल
(D) गन्ना।
उत्तर-
(A) कपास
प्रश्न 3.
किस मृदा में लोहे तथा एल्यूमीनियम की मात्रा अधिक होती है?
(A) काली मृदा
(B) लैटराइट मृदा
(C) मरूस्थलीय मृदा
(D) जलोढ़ मृदा।
उत्तर-
(B) लैटराइट मृदा
प्रश्न 4.
भारत में पहली बार वन नीति (राष्ट्रीय वन नीति) की घोषणा की गई.
(A) 1947 ई० में
(B) 1950 ई० में
(C) 1937 ई० में
(D) 1951 ई० में
उत्तर-
(D) 1951 ई० में
प्रश्न 5.
भारत में प्रति व्यक्ति वन क्षेत्र है —
(A) 0.14 हेक्टेयर
(B) 1.4 हेक्टेयर
(C) 14.0 हेक्टेयर
(D) 4.1 हेक्टेयर।
उत्तर-
(A) 0.14 हेक्टेयर
प्रश्न 6.
किस केन्द्र शासित प्रदेश में सबसे अधिक वन क्षेत्र है?
(A) चण्डीगढ़ में
(B) अण्डेमान तथा निकोबार द्वीप समूह में
(C) दादरा तथा नगर हवेली में
(D) पाण्डिचेरी (पुड्डूचेरी) में।
उत्तर-
(B) अण्डेमान तथा निकोबार द्वीप समूह में
प्रश्न 7.
निम्न केन्द्र शासित प्रदेश में सबसे कम वन क्षेत्र है —
(A) चण्डीगढ़
(B) लक्षद्वीप
(C) दिल्ली
(D) दमन-द्वीप।
उत्तर-
(C) दिल्ली
प्रश्न 8.
स्तनधारियों में राजसी ठाठ-बाठ वाला शाकाहारी पशु माना जाता है —
(A) बन्दर
(B) हाथी
(C) लंगूर
(D) भैंस।
उत्तर-
(B) हाथी
प्रश्न 9.
भारत में एक सींग वाला गेंडा मिलता है —
(A) तमिलनाडु में
(B) असम तथा उत्तर प्रदेश में ।
(C) असम तथा पश्चिमी बंगाल में
(D) उत्तराखण्ड तथा उत्तर प्रदेश में।
उत्तर-
(C) असम तथा पश्चिमी बंगाल में
प्रश्न 10.
भारत में पहला वन आरक्षित क्षेत्र बनाया गया
(A) 1986 ई० में
(B) 1976 ई० में
(C) 1971 ई० में
(D) 1981 ई० में।
उत्तर-
(A) 1986 ई० में
IV. सत्य-असत्य कथन
प्रश्न-सत्य/सही कथनों पर (✓) तथा असत्य/गलत कथनों पर (✗) का निशान लगाएं.
- सुंदरवन का जीव आरक्षित क्षेत्र मध्य प्रदेश में स्थित है।
- राष्ट्रीय वन नीति 1951 के अनुसार देश के कुल क्षेत्रफल के एक तिहाई (33.3 प्रतिशत) भाग पर वन होने चाहिए।
- बबूल, कीकर आदि वृक्ष आर्द्र पतझड़ी वनों के वृक्ष हैं।
- सघन वन गर्मियों में तापमान बढ़ने से रोकते हैं।
- पर्वतीय मिट्टी चाय उत्पादन के अनुकूल होती है।
उत्तर-
- (✗),
- (✓),
- (✗),
- (✓),
- (✓).
V. उचित मिलान
- जल हायसिंध (Water-Hyacinth) — सुन्दर वन
- भारत में सबसे अधिक वन क्षेत्रफल — पंजाब तथा हरियाणा
- ज्वारीय वनस्पति — बंगाल का डर
- भूड़ मिट्टी — त्रिपुरा।
उत्तर-
- जल हायसिंध (Water-Hyacinth) — बंगाल का डर,
- भारत में सबसे अधिक वन क्षेत्रफल — त्रिपुरा,
- ज्वारीय वनस्पति — सुन्दर वन,
- भूड़ मिट्टी — पंजाब तथा हरियाणा।
छोटे उत्तर वाले प्रश्न (Short Answer Type Questions)
प्रश्न 1.
शुष्क पतझड़ी वनस्पति पर संक्षिप्त नोट लिखो।
उत्तर-
इस प्रकार की वनस्पति 50 से 100 सें० मी० से कम वर्षा वाले क्षेत्रों में मिलती है।
क्षेत्र-इसकी एक लम्बी पट्टी पंजाब से लेकर हरियाणा, दक्षिण-पश्चिमी उत्तर प्रदेश, पूर्वी राजस्थान, काठियावाड़, दक्षिण के पठार के मध्यवर्ती भाग के आस-पास के क्षेत्रों में फैली हुई है।
प्रमुख वृक्ष-इस वनस्पति में शीशम या टाहली, कीकर, बबूल, बरगद, हलदू जैसे वृक्ष प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। इसमें चन्दन, महुआ, सीरस तथा सागवान जैसे कीमती वृक्ष भी मिलते हैं। ये वृक्ष प्रायः गर्मियां शुरू होते ही अपने पत्ते गिरा देते हैं। घास-इन क्षेत्रों में दूर-दूर तक काँटेदार झाड़ियाँ व कई प्रकार की घास नजर आती हैं जोकि घास के मैदान की तरह नज़र आती है। इस घास को मंजु, कांस व सवाई कहा जाता है।
प्रश्न 2.
निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणियां लिखिए
(i) वन्य जीवों का संरक्षण।
(ii) मिट्टी का संरक्षण।
उत्तर-
(i) वन्य जीवों का संरक्षण-भारत में विभिन्न प्रकार के वन्य जीव पाए जाते हैं। उनकी उचित देखभाल न होने से जीवों की कई एक जातियाँ या तो लुप्त हो गई हैं या लुप्त होने वाली हैं। इन जीवों के महत्त्व को देखते हुए अब इनकी सुरक्षा और संरक्षण के उपाय किये जा रहे हैं। नीलगिरि में भारत का पहला जीव आरक्षित क्षेत्र स्थापित किया गया। यह कर्नाटक, तमिलनाडु तथा केरल के सीमावती क्षेत्रों में फैला हुआ है। इसकी स्थापना 1986 में की गई थी। नीलगिरि के पश्चात् 1988 ई० में उत्तराखंड (वर्तमान) में नन्दा देवी का जीव आरक्षित क्षेत्र बनाया गया। उसी वर्ष मेघालय में तीसरा ऐसा ही क्षेत्र स्थापित किया गया। एक और जीव आरक्षित क्षेत्र अण्दमान तथा निकोबार द्वीप समूह में स्थापित किया गया है। इन जीव आरक्षित क्षेत्रों के अतिरिक्त भारत सरकार द्वारा अरुणाचल प्रदेश, तमिलनाडु, राजस्थान, गुजरात तथा असम में भी जीव आरक्षित क्षेत्र स्थापित किए गए हैं।
(ii) मिट्टी का संरक्षण-भारत में विभिन्न प्रकार की मिट्टियां मिलती हैं। इन मिट्टियों में कई प्रकार की फ़सलें पैदा की जा सकती हैं। देश में पाई जाने वाली उपजाऊ मिट्टियों के कारण ही भारत कृषि उत्पादों में आत्म-निर्भर हो सका है। परन्तु मिट्टी की उर्वरता बनाए रखने के लिए यह आवश्यक है कि वैज्ञानिक तरीके अपनाए जाएं। हमें मिट्टियों का उचित संरक्षण करना चाहिए तथा उन्हें अपरदन से बचाना चाहिए। मिट्टी की उर्वरता बनाए रखने के लिए रासायनिक उर्वरकों के साथ-साथ जैविक खादों की सहायता भी लेनी चाहिए। अतः स्पष्ट है कि भूमि की उत्पादकता को निरन्तर बनाए रखने के लिए मिट्टी का संरक्षण बहुत आवश्यक है।
प्रश्न 3.
रेगड़ मिट्टी तथा लैटराइट मिट्टी में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
रेगड मिट्टी तथा लैटराइट मिट्टी में निम्नलिखित अन्तर है
रेगड़ मिट्टी (काली मिट्टी) | लैटराइट मिट्टी |
(1) इस मिट्टी का निर्माण लावा के प्रवाह से हुआ है। | (1) इस मिट्टी का निर्माण भारी वर्षा से होने वाली निक्षालन क्रिया से हुआ है। |
(2) इसमें मिट्टी के पोषक तत्त्व काफ़ी मात्रा में पाए जाते हैं। इसलिए यह मिट्टी उपजाऊ होती है। | (2) इस मिट्टी के अधिकतर पोषक तत्त्व वर्षा में बह जाते हैं। इसलिए यह मिट्टी कम उपजाऊ होती है। |
(3) यह मिट्टी कपास की उपज के लिए आदर्श होती है। | (3) इस मिट्टी में केवल घास और झाड़ियां ही उग पाती हैं। |
(4) इस मिट्टी में अधिक समय तक नमी. धारण करने की क्षमता होती है। | (4) इस मिट्टी में अधिक समय तक नमी धारण करने की क्षमता नहीं होती है। |
प्रश्न 4.
हमारी मदा की उर्वरा शक्ति कम होती जा रही है। इसे दूर करने के लिए आप क्या सुझाव देंगे?
उत्तर-
भारत की मृदा की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने के लिए निम्नलिखित सुझाव दिए जा सकते हैं
- रासायनिक खादों का प्रयोग-हमारे देश के किसान अधिकतर गोबर की खाद का प्रयोग करते हैं जिससे उपज कम होती है। रासायनिक खाद का प्रयोग करने से आवश्यक तत्त्वों की कमी को पूरा किया जा सकता है। इसलिए किसानों को गोबर की खाद के साथ-साथ रासायनिक खादों का भी प्रयोग करना चाहिए।
- भूमि को खाली छोड़ना-यदि भूमि को कुछ समय के लिए खाली छोड़ दिया जाए तो वह उर्वरा शक्ति में आई कमी को पूरा कर लेती है। इसलिए भूमि को कुछ समय के लिए खाली छोड़ देना चाहिए।
- फसलों की फेर-बदल-पौधे अपना भोजन भूमि से प्राप्त करते हैं। प्रत्येक पौधा भूमि से अलग-अलग प्रकार के तत्त्व प्राप्त करता है। यदि एक फसल को बार-बार बोया जाए तो भूमि में एक विशेष तत्त्व की कमी हो जाती है। इसलिए फसलों को अदल-बदल कर बोना चाहिए।
प्रश्न 5.
भारत में पाई जाने वाली काली तथा लाल मृदा की तुलना करो।
उत्तर-
भारत में पाई जाने वाली काली मृदा तथा लाल मृदा की तुलना अग्र प्रकार है
काली मृदा | लाल मृदा |
(1) यह मृदा लावा से बनी हुई चट्टानों के टूटने से बनती है। | (1) यह मृदा उन चट्टानों के टूटने से बनती है जिनमें लोहे की मात्रा अधिक होती है। |
(2) इस मृदा में पोटाशियम, मैग्नीशियम, लोहा और जीवांश मिले हुए होते हैं। | (2) इस मृदा में मैग्नीशियम, फॉस्फोरस, चूना और नाइट्रोजन नहीं होता। इसमें लोहे का ऑक्साइड अधिक मात्रा में होता है। |
(3) काली मृदा पानी को बहुत देर तक सोख सकती है। अतः इसे अधिक सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है। | (3) लाल मृदा बहुत देर तक पानी नहीं सोख सकती। र इसमें वर्षा के समय ही कृषि हो सकती है। |
(4) यह मृदा बहुत उपजाऊ होती है। | (4) यह मृदा अधिक उपजाऊ नहीं होती। |
प्रश्न 6.
जलोढ़ मृदा से क्या अभिप्राय है? यह भारत के किन-किन भागों में पाई जाती है? इस मृदा के गुण तथा लक्षणों का वर्णन करो।
उत्तर-
नदियां अपने साथ लाई हुई मृदा और मृत्तिका के बारीक कणों को मैदान में बिछा देती हैं। इस प्रकार से जो मृदा बनती है, उसे जलोढ़ मृदा कहते हैं। जलोढ़ मृदा बड़ी उपजाऊ होती है।
जलोढ़ मृदा के क्षेत्र-भारत में जलोढ़ मृदा गंगा-सतलुज के मैदान, महानदी, कृष्णा तथा कावेरी नदियों के डेल्टाओं, ब्रह्मपुत्र की घाटी और पूर्वी तथा पश्चिमी तटीय मैदानों में पाई जाती है।
गुण तथा लक्षण-
- यह मृदा बहुत उपजाऊ होती है।
- यह मृदा कठोर नहीं होती। इसलिए इसमें आसानी से हल चलाया जा सकता है।
- वर्षा कम होने पर इस मृदा में नाइट्रोजन तथा जीवांश की मात्रा कम हो जाती है और पोटाश तथा फॉस्फोरस की मात्रा बढ़ जाती है और तब यह कृषि योग्य नहीं रहती।
प्रश्न 7.
जलोढ़ मृदा कितने प्रकार की होती है? वर्णन करो।
उत्तर-
जलोढ़ मृदा में वर्षा की भिन्नता के कारण क्षार, बालू और चीका की मात्रा अलग-अलग होती है। इसी आधार पर इसको चार भागों में बांटा जा सकता है
- बांगर मृदा-यह प्राचीन जलोढ़ मृदा है। जहां ऐसी मृदा पाई जाती है वहां बाढ़ का पानी नहीं पहुंच पाता। इसमें बालू और चीका की मात्रा लगभग बराबर होती है। इसमें कहीं-कहीं कंकड़ और चूने की डलियां भी मिलती हैं।
- खादर मृदा-इसे नवीन जलोढ़ भी कहते हैं। इस प्रकार की मृदा के क्षेत्र नदियों के समीप पाए जाते हैं। इन क्षेत्रों में बाढ़ का पानी प्रति वर्ष पहुंच जाता है जिससे नई जलोढ़ का जमाव होता रहता है।
- डैल्टाई मृदा-इसे नवीनतम कछारी मृदा भी कहते हैं। यह नदियों के डेल्टाओं के आस-पास पाई जाती है। इसमें चीका की मात्रा अधिक होती है।
- तटवर्ती जलोढ़ मिट्टी-इस प्रकार की मृदा का निर्माण तटों के साथ समुद्री लहरों के निक्षेप से प्राप्त चूरे से होता है।
प्रश्न 8.
वन्य प्राणियों की रक्षा करना प्रत्येक नागरिक का कर्त्तव्य क्यों है?
उत्तर-
हमारे वनों में बहुत-से महत्त्वपूर्ण पशु-पक्षी पाए जाते हैं। परन्तु खेद की बात यह है कि पक्षियों और जानवरों की अनेक जातियां हमारे देश से लुप्त हो चुकी हैं। अतः वन्य प्राणियों की रक्षा करना हमारे लिए बहुत आवश्यक है। मनुष्य ने अपने व्यक्तिगत लाभ के लिए वनों को काटकर तथा जानवरों का शिकार करके दुःखदायी स्थिति उत्पन्न कर दी है। आज गैंडा, चीता, बन्दर, शेर और सारंग नामक पशु-पक्षी बहुत ही कम संख्या में मिलते हैं। इसलिए प्रत्येक नागरिक का यह कर्त्तव्य है कि वह वन्य प्राणियों की रक्षा करे।
प्रश्न 9.
किसान के लिए पशुधन/पशुपालन का क्या महत्त्व है?
उत्तर-
हमारे देश में विशाल पशु धन पाया जाता है, जिन्हें किसान अपने खेतों पर पालते हैं। पशुओं से किसान को गोबर प्राप्त होता है, जो मृदा की उर्वरता को बनाए रखने में उसकी सहायता करता है। पहले किसान गोबर को ईंधन के रूप में प्रयोग करते थे, परन्तु अब प्रगतिशील किसान गोबर को ईंधन और खाद दोनों रूपों में प्रयोग करते हैं। खेत में गोबर को खाद के रूप में प्रयोग करने से पहले वे उससे गैस बनाते हैं जिस पर वे खाना बनाते हैं और रोशनी प्राप्त करते हैं। पशुओं की खालें बड़े पैमाने पर निर्यात की जाती हैं। पशुओं से उन्हें ऊन प्राप्त होती है। सच तो यह है कि पशुधन भारतीय किसान के लिए अतिरिक्त आय का साधन है।
प्रश्न 10.
मृदा के प्रमुख पांच उपयोग बताओ।
उत्तर-
मृदा एक अत्यन्त उपयोगी प्राकृतिक उपहार है। इससे हमें भिन्न-भिन्न उत्पाद प्राप्त होते हैं। इसके मुख्य पांच उपयोग निम्नलिखित हैं
- इससे गेहूं, चावल, बाजरा, ज्वार आदि अनाज प्राप्त होता है।
- इसमें पशुओं के लिए घास और चारा उगता है।
- इससे कपास, पटसन, सीसल आदि रेशेदार पदार्थ मिलते हैं।
- इससे हमें दालें मिलती हैं।
- इससे उपयोगी लकड़ी प्राप्त होती है।
बड़े उत्तर वाला प्रश्न (Long Answer Type Question)
प्रश्न
भारत में पाये जाने वाले वन्य प्राणियों का वर्णन करो।
उत्तर-
वनस्पति की भान्ति ही हमारे देश के जीव-जन्तुओं में भी बड़ी विविधता है। भारत में इनकी 81,000 जातियां पाई जाती हैं। देश के ताजे और खारे पानी में 2500 जातियों की मछलियां मिलती हैं। इसी प्रकार यहां पर पक्षियों की भी 2000 जातियां पाई जाती हैं। मुख्य रूप से भारत के वन्य प्राणियों का वर्णन इस प्रकार है
- हाथी-हाथी राजसी ठाठ-बाठ वाला पशु है। यह ऊष्ण आर्द्र वनों का पशु है। यह असम, केरल तथा कर्नाटक के जंगलों में पाया जाता है। इन स्थानों पर भारी वर्षा के कारण बहुत घने वन मिलते हैं।
- ऊँट-ऊँट गर्म तथा शुष्क मरुस्थलों में पाया जाता है।
- जंगली गधा-जंगली गधे कच्छ के रण में मिलते हैं।
- एक सींग वाला गैंडा-एक सींग वाले गैंडे असम और पश्चिमी बंगाल के उत्तरी भागों के दलदली क्षेत्रों में पाए जाते हैं।
- बन्दर-भारत में बन्दरों की अनेक जातियां मिलती हैं। इनमें से लंगूर सामान्य रूप से पाया जाता है। पूंछ वाला बन्दर (मकाक) बड़ा ही विचित्र जीव है। इसके मुंह पर चारों ओर बाल उगे होते हैं जो एक प्रभामण्डल के समान दिखाई देते हैं।
- हिरण-भारत में हिरणों की अनेक जातियां पाई जाती हैं। इनमें चौसिंघा, काला हिरण, चिंकारा तथा सामान्य हिरण प्रमुख हैं। यहां हिरणों की कुछ अन्य जातियां भी मिलती हैं। इनमें कश्मीरी बारहसिंघा, दलदली मृग, चित्तीदार मृग, कस्तूरी मृग तथा मूषक मृग उल्लेखनीय हैं।
- शिकारी जन्तु–शिकारी जन्तुओं में भारतीय सिंह का विशिष्ट स्थान है। अफ्रीका के अतिरिक्त यह केवल भारत में ही मिलता है। इसका प्राकृतिक आवास गुजरात में सौराष्ट्र के गिर वनों में है। अन्य शिकारी पशुओं में शेर, तेंदुआ, लामचिता (क्लाउडेड लियोपार्ड) तथा हिम तेन्दुआ प्रमुख हैं।
- अन्य जीव-जन्तु-हिमालय की श्रृंखलाओं में भी अनेक प्रकार के जीव-जन्तु रहते हैं। इनमें जंगली भेडें तथा पहाड़ी बकरियां विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। भारतीय जन्तुओं में भारतीय मोर, भारतीय भैंसा तथा नील गाय प्रमुख हैं। भारत सरकार कुछ जातियों के जीव-जन्तुओं के संरक्षण के लिए विशेष प्रयत्न कर रही है।
प्राकृतिक वनस्पति, जीव-जन्तु तथा मिट्टियां PSEB 10th Class Geography Notes
- प्राकृतिक वनस्पति–बिना. मानव हस्तक्षेप से उगने वाली वनस्पति प्राकृतिक वनस्पति कहलाती है। इसके विकास में किसी प्रदेश की जलवायु तथा मिट्टी की मुख्य भूमिका होती है।
- वनस्पति की विविधता-भारत की प्राकृतिक वनस्पति में वन, घास-भूमियां तथा झाड़ियां सम्मिलित हैं। इस देश में पेड़-पौधों की 45,000 जातियां पाई जाती हैं।
- वनस्पति प्रदेश-हिमालय प्रदेश को छोड़कर भारत के चार प्रमुख वनस्पति क्षेत्र हैं-उष्ण कटिबन्धीय वर्षा वन, उष्ण कटिबंधीय पर्णपाती वन, कंटीले वन और झाड़ियां तथा ज्वारीय वन।
- पर्वतीय प्रदेशों में वनस्पति की पेटियां-पर्वतीय प्रदेशों में उष्णकटिबंधीय वनस्पति से लेकर ध्रुवीय वनस्पति तक सभी प्रकार की वनस्पति बारी-बारी से मिलती है। ये सभी पेटियां केवल छः किलोमीटर की ऊंचाई में ही समाई हुई हैं।
- जीव-जन्तु-हमारे देश में जीव-जन्तुओं की लगभग 81,000 जातियां मिलती हैं। देश के ताज़े और खारे पानी में 2,500 प्रकार की मछलियां पाई जाती हैं। यहां पक्षियों की भी 2,000 जातियां हैं।
- जैव विविधता की सुरक्षा और संरक्षण-जैव सुरक्षा के उद्देश्य से देश में 89 राष्ट्रीय उद्यान, 497 वन्य प्राणी अभ्यारण्य तथा 177 प्राणी उद्यान (चिड़ियाघर) बनाए गए हैं।
- मृदा (मिट्टी)-मूल शैलों के विखण्डित पदार्थों से मिट्टी बनती है। तापमान, प्रवाहित जल, पवन आदि तत्त्व इसके विकास में सहायता करते हैं।
- मिट्टियों के सामान्य वर्ग- भारत की मिट्टियों के मुख्य वर्ग हैं-जलोढ़ मिट्टी, काली मिट्टी, लाल मिट्टी तथा लैटराइट मिट्टी इत्यादि। – इन मिट्टियों की विशेषताएं हैं:
- जलोढ़ मिट्टी-गाद तथा मृत्तिका का मिश्रण-पोटाश, फॉस्फोरिक अम्ल तथा चूना-सबसे उपजाऊ मिट्टी।
- काली अथवा रेगड़ मिट्टी-रंग काला, निर्माण लावा-प्रवाह से-मुख्य तत्त्व कैल्शियम कार्बोनेट, मैग्नीशियम कार्बोनेट, पोटाश तथा चूना। कपास के लिए आदर्श।
- लाल मिट्टी-फॉस्फोरिक अम्ल, जैविक पदार्थों तथा नाइट्रोजन पदार्थों का अभाव।
- लैटराइट मिट्टी-कम उपजाऊ मिट्टी।
- मिट्टी का संरक्षण-मिट्टी का संरक्षण बड़ा आवश्यक है। इसी से मिट्टी की उत्पादकता बनी रह सकती है।