Punjab State Board PSEB 9th Class Social Science Book Solutions History Chapter 3 सिक्ख धर्म का विकास Textbook Exercise Questions and Answers.
PSEB Solutions for Class 9 Social Science History Chapter 3 सिक्ख धर्म का विकास
SST Guide for Class 9 PSEB सिक्ख धर्म का विकास Textbook Questions and Answers
(क) बहुविकल्पीय प्रश्न :
प्रश्न 1.
किस गुरु जी ने गोइंदवाल में बाउली का निर्माण शुरू करवाया ?
(क) श्री गुरु अंगद देव जी
(ख) श्री गुरु अमरदास जी
(ग) श्री गुरु रामदास जी
(घ) श्री गुरु नानक देव जी।
उत्तर-
(क) श्री गुरु अंगद देव जी
प्रश्न 2.
मंजीदारों की कुल संख्या कितनी थी ?
(क) 20
(ख) 21
(ग) 22
(घ) 23
उत्तर-
(ग) 22
प्रश्न 3.
मुग़ल सम्राट अकबर कौन-से गुरु साहिब के दर्शन के लिए गोइंदवाल आए ?
(क) गुरु नानक देव जी
(ख) गुरु अंगद देव जी
(ग) गुरु अमरदास जी
(घ) गुरु रामदास जी।
उत्तर-
(ग) गुरु अमरदास जी
प्रश्न 4.
भाई लहणा जी गुरु नानक देव जी के दर्शन करने के लिए कहां गए ?
(क) श्री अमृतसर साहिब
(ख) करतारपुर
(ग) गोइंदवाल
(घ) लाहौर।
उत्तर-
(ख) करतारपुर
प्रश्न 5.
गुरु रामदास जी ने अपने पुत्रों में से गुरुगद्दी किसको दी ?
(क) पृथीचंद
(ख) महादेव
(ग) अर्जन देव
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(ग) अर्जन देव
(ख) रिक्त स्थान भरें :
- गुरु अंगद देव जी ने गुरुमुखी लिपि में ……………… लिखा।
- ……… जी हर साल हरिद्वार में गंगा स्नान के लिए जाते थे।
- …………. ने गोईंदवाल में बाउली का निर्माण पूरा करवाया।
- गुरु रामदास जी ने ………….. नगर की स्थापना की।
- ‘लावां’ बाणी ……….. जी की प्रसिद्ध रचना है।
उत्तर-
- ‘बाल बोध’
- गुरु अमरदास
- गुरु अमरदास जी
- रामदासपुर (अमृतसर)
- गुरु रामदास जी।
(ग) सही मिलान करें:
(क) – (ख)
1. बाबा बुड्ढा जी – (अ) अमृत सरोवर
2. मसंद प्रथा – (आ) श्री गुरु रामदास जी
3. भाई लहणा – (इ) श्री गुरु अंगद देव जी
4. मंजी प्रथा – (ई) श्री गुरु अमरदास जी।
उत्तर-
- अमृत सरोवर
- श्री गुरु रामदास जी
- श्री गुरु अंगद देव जी
- श्री गुरु अमरदास जी।
(घ) अंतर बताओ :
प्रश्न -संगत और पंगत।
उत्तर-संगत-संगत से अभिप्राय गुरु शिष्यों के उस समूह से है जो एक साथ बैठकर गुरु जी के उपदेशों पर अमल करते थे।
पंगत-पंगत के अनुसार गुरु के शिष्य इकट्ठे मिल-बैठकर एक ही रसोई में पका खाना खाते थे।
अति लघु उत्तरों वाले प्रश्न
प्रश्न 1.
गुरु अंगद देव जी का पहला नाम क्या था ?
उत्तर-
गुरु अंगद देव जी का पहला नाम भाई लहणा था।
प्रश्न 2.
‘गुरुमुखी’ से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
गुरुमुखी का अर्थ है गुरुओं के मुख से निकलने वाली।
प्रश्न 3.
मंजीदार किसे कहा जाता था ?
उत्तर-
मंजियों के प्रमुख को मंजीदार कहा जाता था जो गुरु साहिब व संगत के मध्य एक कड़ी का कार्य करते थे।
प्रश्न 4.
अमृतसर का पुराना नाम क्या था ?
उत्तर-
अमृतसर का पुराना नाम रामदासपुर था।
प्रश्न 5.
गुरु रामदास जी का मूल नाम क्या था ?
उत्तर-
भाई जेठा जी।
प्रश्न 6.
मसंद प्रथा से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
मसंद प्रथा के अनुसार गुरु के मसंद स्थानीय सिख संगत के लिए गुरु के प्रतिनिधि होते थे।
लघु उत्तरों वाले प्रश्न।
प्रश्न 1.
मंजी प्रथा पर नोट लिखो।
उत्तर-
मंजी प्रथा की स्थापना गुरु अमरदास जी ने की थी। उनके समय में सिक्खों की संख्या काफ़ी बढ चकी थी। परंतु गुरु जी की आयु अधिक होने के कारण उनके लिए एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाकर अपनी शिक्षाओं का प्रचार करना कठिन हो गया। अतः उन्होंने अपने सारे आध्यात्मिक प्रदेश को 22 भागों में बांट दिया। इनमें से प्रत्येक भाग को ‘मंजी’ कहा जाता था। इसके प्रमुख को मंजीदार। प्रत्येक मंजी छोटे-छोटे स्थानीय केंद्रों में बंटी हुई थी जिन्हें पीड़ियां (Piris) कहते थे। सिख संगत इनके द्वारा अपनी भेंट गुरु साहिब तक पहुंचाती थी। मंजी प्रणाली का सिक्ख धर्म के इतिहास में विशेष महत्त्व है। डॉ० गोकुल चंद नारंग के शब्दों में, “गुरु जी के इस कार्य ने सिक्ख धर्म की नींव सुदृढ़ करने तथा देश के सभी भागों में प्रचार कार्य को बढ़ाने में विशेष योगदान दिया।”
प्रश्न 2.
गुरु अंगद देव जी का गुरुमुखी लिपि के विकास में क्या योगदान है ?
उत्तर-
गुरुमुखी लिपि गुरु अंगद देव जी से पहले प्रचलित थी। गुरु जी ने इसें गुरुमुखी का नाम देकर इसका मानकीकरण किया। कहते हैं कि गुरु अंगद देव जी ने गुरुमुखी के प्रचार के लिए गुरुमुखी वर्णमाला में बच्चों के लिए ‘बाल बोध’ की रचना की। जनसाधारण की भाषा होने के कारण इससे सिक्ख धर्म के प्रचार के कार्य को बढ़ावा मिला। आज सिक्खों के सभी धार्मिक ग्रंथ इसी भाषा में हैं।
प्रश्न 3.
गुरु अमरदास जी के द्वारा किये गए समाज सुधार के कार्यों पर नोट लिखो।
उत्तर-
गुरु अमरदास जी ने अनेक महत्त्वपूर्ण सामाजिक सुधार किए-
- गुरु अमरदास जी ने जाति मतभेद का खंडन किया। गुरु जी का विश्वास था कि जाति मतभेद परमात्मा की इच्छा के विरुद्ध है। इसलिए गुरु जी के लंगर में जाति-पाति तथा छुआछूत को कोई स्थान नहीं दिया था।
- उस समय सती प्रथा जोरों से प्रचलित थी। गुरु जी ने इस प्रथा के विरुद्ध ज़ोरदार आवाज़ उठाई।
- गुरु जी ने स्त्रियों में प्रचलित पर्दे की प्रथा की भी घोर निंदा की। वे पर्दे की प्रथा को समाज की उन्नति के मार्ग में एक बहुत बड़ी बाधा मानते थे।
- गुरु अमरदास जी नशीली वस्तुओं के सेवन के भी घोर विरोधी थे। उन्होंने अपने अनुयायियों को सभी नशीली
वस्तुओं से दूर रहने का निर्देश दिया।
इन सब कार्यों से स्पष्ट है कि गुरु अमरदास जी निःसंदेह एक महान् सुधारक थे।
प्रश्न 4.
अमृतसर की स्थापना पर नोट लिखो।
उत्तर-
गुरु रामदास जी ने रामदासपुर की नींव रखी। आजकल इस नगर को अमृतसर कहते हैं। गुरु साहिब ने 1577 ई० में यहां अमृतसर तथा संतोखसर नामक दो सरोवरों की खुदाई आरंभ की, परंतु उन्होंने देखा कि गोइंदवाल में रहकर खुदाई के कार्य का निरीक्षण करना कठिन है। अतः उन्होंने यहीं डेरा डाल दिया। कई श्रद्धालु लोग भी यहीं आ कर बस गए और कुछ ही समय में सरोवर के चारों ओर एक छोटा-सा नगर बस गया। इसे रामदासपुर का नाम दिया गया। गुरु जी ने इस नगर को हर प्रकार से आत्मनिर्भर बनाने के लिए एक बाज़ार की स्थापना की जिसे आजकल ‘गुरु का बाज़ार’ कहते हैं। इस नगर के निर्माण से सिक्खों को एक महत्त्वपूर्ण तीर्थ स्थान मिल गया जिससे सिक्ख धर्म के विकास में सहायता मिली।
दीर्घ उत्तरों वाले प्रश्न
प्रश्न 1.
श्री गुरु अंगद देव जी ने सिक्ख पंथ के विकास के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण कार्य किए। वर्णन करो।
उत्तर-
श्री गुरु नानक देव जी (1539 ई०) के पश्चात् गुरु अंगद देव जी गुरुगद्दी पर आसीन हुए। उनका नेतृत्व सिक्ख धर्म के लिए वरदान सिद्ध हुआ। उन्होंने निम्नलिखित ढंग से सिक्ख धर्म के विकास में योगदान दिया
- गुरुमुखी लिपि में सुधार-गुरु अंगद देव जी ने गुरुमुखी लिपि को मानक रूप दिया। कहते हैं कि गुरु अंगद देव जी ने गुरुमुखी के प्रचार के लिए गुरुमुखी वर्णमाला में बच्चों के लिए ‘बाल बोध’ की रचना की। उन्होंने अपनी वाणी की रचना भी इसी लिपि में की। जनसाधारण की भाषा (लिपि) होने के कारण इससे सिक्ख धर्म के प्रचार के कार्य को बढ़ावा मिला। आज सिक्खों के सभी धार्मिक ग्रंथ इसी लिपि में हैं।
- गुरु नानक देव जी की जन्म-साखी-श्री गुरु अंगद देव जी ने श्री गुरु नानक देव जी की सारी बाणी को एकत्रित करके भाई बाला से गुरु जी की जन्म-साखी (जीवन-चरित्र) लिखवाई। इससे सिक्ख गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं का पालन करने लगे।
- लंगर प्रथा-श्री गुरु अंगद देव जी ने लंगर प्रथा जारी की। उन्होंने यह आज्ञा दी कि जो कोई उनके दर्शन को आए, उसे पहले लंगर में भोजन कराया जाए। यहां प्रत्येक व्यक्ति बिना किसी भेद-भाव के भोजन करता था। इससे जाति-पाति की भावनाओं को धक्का लगा और सिक्ख धर्म के प्रसार में सहायता मिली।.
- उदासियों से सिक्ख धर्म को अलग करना-गुरु नानक देव जी के बड़े पुत्र श्रीचंद जी ने उदासी संप्रदाय की स्थापना की थी। उन्होंने संन्यास का प्रचार किया। यह बात गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं के विरुद्ध थी। गुरु अंगद देव जी ने सिक्खों को स्पष्ट किया कि सिक्ख धर्म महारथियों का धर्म है। इसमें संन्यास का कोई स्थान नहीं है। उन्होंने यह भी घोषणा की कि वह सिक्ख जो संन्यास में विश्वास रखता है, सच्चा सिक्ख नहीं है। इस प्रकार उदासियों को सिक्ख संप्रदाय से अलग करके गुरु अंगद देव जी ने सिक्ख धर्म को ठोस आधार प्रदान किया।
- गोइंदवाल साहिब का निर्माण-गुरु अंगद देव जी ने 1596 ई० में गोइंदवाल साहिब नामक नगर की स्थापना की। गुरु अमरदास के समय में यह नगर एक प्रसिद्ध धार्मिक केंद्र बन गया। आज भी यह सिक्खों का एक पवित्र धार्मिक स्थान है।
- अनुशासन को बढ़ावा-गुरु जी बड़े ही अनुशासन प्रिय थे। उन्होंने सत्ता और बलवंड नामक दो प्रसिद्ध रबाबियों को अनुशासन भंग करने के कारण दरबार से निकाल दिया, परंतु बाद में भाई लद्धा के प्रार्थना करने पर गुरु जी ने उन्हें क्षमा कर दिया। इस घटना से सिक्खों में अनुशासन की भावना को बल मिला।
- उत्तराधिकारी की नियुक्ति-गुरु अंगद देव जी ने.13 वर्ष तक निष्काम भाव से सिक्ख धर्म की सेवा की। 1552 ई० में ज्योति-जोत समाये से पूर्व उन्होंने अपने पुत्रों की बजाय भाई अमरदास जी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया। उनका यह कार्य सिख इतिहास में बहुत ही महत्त्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि इससे सिक्ख धर्म का प्रचार कार्य जारी रहा।
- सच तो यह है कि गुरु अंगद देव जी ने सिक्ख धर्म को पृथक् पहचान प्रदान की। गुरुमुखी लिपि के प्रसार के कारण नानक पंथियों को नवीन बाणी मिली। लंगर प्रथा के कारण वे जाति-बंधनों से मुक्त हुए। इस प्रकार सिक्ख धर्म हिंदू धर्म से अलग रूप धारण करने लगा। इन सबका श्रेय गुरु अंगद देव जी को ही जाता है।
प्रश्न 2.
श्री गुरु अमरदास जी का सिक्ख धर्म के विकास में क्या योगदान है ?
उत्तर-
गुरु अमरदास जी को सिक्ख धर्म में विशिष्ट स्थान प्राप्त है। गुरु नानक देव जी ने धर्म का जो बीज बोया था, वह गुरु अंगद देव जी के काल में अंकुरित हो गया। गुरु अमरदास जी ने इस नवीन खिले अंकुर के गिर्द बाड़ लगा दी, ताकि हिंदू धर्म इसे अपने में ही न समा ले। कहने का अभिप्राय यह है कि उन्होंने सिक्खों को सामाजिक जीवन व्यतीत करने के लिए नवीन रीति-रिवाज़ प्रदान किए जिससे सिक्ख धर्म हिंदू धर्म से अलग राह पर चल पड़ा। निःसंदेह वह एक महान् व्यक्ति थे। पेन (Payne) ने उन्हें उत्साही प्रचारक बताया है। एक अन्य इतिहासकार ने उन्हें बुद्धिमान तथा न्यायप्रिय गुरु कहा है। कुछ भी हो उनके गुरु काल में सिक्ख धर्म नवीन दिशाओं में प्रवाहित हुआ। संक्षेप में गुरु अमरदास जी के कार्यों का वर्णन इस प्रकार है–
1. गोइंदवाल साहिब की बावली का निर्माण-गुरु अमरदास जी ने सर्वप्रथम गोइंदवाल साहिब के स्थान पर एक बावली (जल-स्रोत) का निर्माण कार्य पूरा किया जिसका शिलान्यास गुरु अंगद देव जी के समय रखा गया था। गुरु अमरदास जी ने इस बावली की तह तक पहुंचने के लिए 84 सीढ़ियां बनवाईं। गुरु जी के अनुसार प्रत्येक सीढ़ी पर जपुजी साहिब का पाठ करने से ही जन्म-मरण की चौरासी लाख योनियों के चक्कर से मुक्ति मिलेगी। गोइंदवाल साहिब की बावली सिक्ख धर्म का एक प्रसिद्ध तीर्थ-स्थान बन गई।
2. लंगर प्रथा-गुरु अमरदास जी ने लंगर प्रथा का विस्तार करके सिक्ख धर्म के विकास की ओर एक और महत्त्वपूर्ण कदम उठाया। उन्होंने लंगर के लिए कुछ विशेष नियम बनाए। अब कोई भी व्यक्ति लंगर में भोजन किए बिना गुरु जी से नहीं मिल सकता था। लंगर में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा शूद्र सभी जातियों के लोग एक ही पंक्ति में बैठकर एक ही रसोई में बना भोजन करते थे।
लंगर प्रथा सिक्ख धर्म के प्रचार में बड़ी सहायक सिद्ध हुई। इससे जाति-पाति तथा रंग-रूप के भेद भावों को बड़ा धक्का लगा और लोगों में समानता की भावना का विकास हुआ। परिणामस्वरूप सिक्ख एकता के सूत्र में बंधने लगे।
3. सिक्ख गुरु साहिबान के शब्दों को एकत्रित करना-गुरु नानक देव जी के शब्दों तथा श्लोकों को गुरु अंगद देव जी ने एकत्रित करके उनके साथ अपने रचे हुए शब्द भी जोड़ दिए थे। यह सारी सामग्री गुरु अंगद देव जी ने गुरु अमरदास जी को सौंप दी थी। गुरु अमरदास जी ने भी कुछ-एक नए श्लोकों की रचना की और उन्हें पहले वाले संकलन (collection) के साथ मिला दिया। इस प्रकार विभिन्न गुरु साहिबान के श्लोकों तथा उपदेशों के एकत्रित हो जाने से एक ऐसी सामग्री तैयार की गई जो आदि ग्रंथ साहिब के संकलन का आधार बनी। इस कार्य में उनके पोते ने इनकी बड़ी सहायता की।
4. मंजी प्रथा-गुरु अमरदास जी के समय में सिक्खों की संख्या काफी बढ़ चुकी थी। परंतु वृद्धावस्था के कारण गुरु साहिब जी के लिए एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाकर अपनी शिक्षाओं का प्रचार करना कठिन हो गया था। अतः उन्होंने अपने पूरे आध्यात्मिक साम्राज्य को 22 प्रांतों में बांट दिया। इनमें से प्रत्येक प्रांत को मंजी’ कहा जाता था। प्रत्येक मंजी सिक्ख धर्म के प्रचार का एक केंद्र थी जिसके संचालन का कार्यभार गुरु जी ने अपने किसी विद्वान् श्रद्धालु शिष्य को सौंप रखा था। गुरु अमरदास जी द्वारा स्थापित मंजी प्रणाली का सिक्ख धर्म के इतिहास में विशेष महत्त्व है। डॉ० गोकुल चंद नारंग के शब्दों में, “गुरु जी के इस कार्य ने सिक्ख धर्म की नींव सुदृढ़ करने तथा देश के सभी भागों में प्रचार कार्य बढ़ाने में विशेष योगदान दिया।”
5. उदासियों से सिक्खों को पृथक् करना-गुरु अमरदास जी के गुरुकाल के आरंभिक वर्षों में उदासी संप्रदाय काफी लोकप्रिय हो चुका था। इस बात का भय होने लगा कि कहीं सिक्ख धर्म उदासी संप्रदाय में ही विलीन न हो जाए। इसलिए गुरु साहिब ने जोरदार शब्दों में उदासी संप्रदाय के सिद्धांतों का खंडन किया। उन्होंने अपने अनुयायियों को समझाया कि कोई भी व्यक्ति, जो उदासी नियमों का पालन करता है, सच्चा सिक्ख नहीं हो सकता। गुरु जी के इन प्रयत्नों से सिक्ख उदासियों से पृथक् हो गए और सिक्ख धर्म का अस्तित्व मिटने से बच गया।
6. मुगल सम्राट अकबर का गोइंदवाल आना-गुरु अमरदास जी के व्यक्तित्व से प्रभावित होकर मुग़ल सम्राट अकबर गोइंदवाल आया। गुरु जी के दर्शन से पहले उसने पंक्ति में बैठ कर लंगर खाया। लंगर की व्यवस्था से अकबर बहुत प्रभावित हुआ। कहते हैं उसी वर्ष पंजाब में अकाल पड़ा था। गुरु जी के आग्रह पर अकबर ने पंजाब के किसानों का लगान माफ़ कर दिया था।
7. नई परंपराएं-गुरु अमरदास जी ने सिक्खों को व्यर्थ के रीति-रिवाजों का त्याग करने का उपदेश दिया। हिंदुओं में किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाने पर खूब रोया-पीटा जाता था। परंतु गुरु अमरदास जी ने सिक्खों को रोने-पीटने के स्थान पर ईश्वर का नाम लेने का उपदेश दिया। उन्होंने विवाह की भी नई विधि आरंभ की जिसे आनंद कारज कहते हैं।
8. अनंदु साहिब की रचना-गुरु अमरदास जी ने एक नई बाणी की रचना की जिसे अनंदु साहिब कहा जाता है। इस राग के प्रवचन से सिक्खों में वेद-मंत्रों के उच्चारण का महत्त्व बिल्कुल समाप्त हो गया।
सच तो यह है कि गुरु अमरदास जी का गुरुकाल (1552 ई०-1574 ई०) सिक्ख धर्म के इतिहास में विशेष महत्त्व रखता है। गुरु जी के द्वारा बावली का निर्माण, मंजी प्रथा के आरंभ, लंगर प्रथा के विस्तार तथा नए रीति-रिवाजों ने सिक्ख धर्म के संगठन में बड़ी सहायता की।
प्रश्न 3.
श्री गुरु रामदास जी ने सिख पंथ के विकास के लिए कौन-से महत्त्वपूर्ण कार्य किए ? वर्णन करो।
उत्तर-
श्री गुरु रामदास जी सिक्खों के चौथे गुरु थे। इनके बचपन का नाम भाई जेठा था। उनके सेवाभाव से प्रसन्न होकर गुरु अमरदास जी ने उन्हें गुरुगद्दी सौंपी थी। उन्होंने 1574 ई० से 1581 ई० तक गुरुगद्दी का संचालन किया और उन्होंने निम्नलिखित कार्यों द्वारा सिख धर्म की मर्यादा को बढ़ाया।
1. अमृतसर का शिलान्यास-गुरु रामदास जी ने रामदासपुर की नींव रखी। आजकल इस नगर को अमृतसर कहते हैं। 1577 ई० में गुरु जी ने यहां अमृतसर तथा संतोखसर नामक दो सरोवरों की खुदाई आरंभ की। परंतु उन्होंने देखा कि गोइंदवाल में रहकर खुदाई के कार्य का निरीक्षण करना कठिन है, अतः उन्होंने यहीं डेरा डाल दिया। कई श्रद्धालु लोग भी यहीं आ बसे। कुछ ही समय में सरोवर के चारों ओर एक छोटा-सा नगर बस गया। इसे रामदासपुर का नाम दिया गया। गुरु जी इस नगर को हर प्रकार से आत्म-निर्भर बनाना चाहते थे। अत: उन्होंने 52 अलग-अलग प्रकार के व्यापारियों को आमंत्रित किया। उन्होंने एक बाज़ार की स्थापना की जिसे आजकल ‘गुरु का बाज़ार’ कहते हैं। इस नगर के निर्माण से सिक्खों को एक महत्त्वपूर्ण तीर्थ स्थान मिल गया और उन्होंने हिंदुओं के तीर्थस्थानों की यात्रा करनी बंद कर दी।
2. मसंद प्रथा का आरंभ-गुरु रामदास जी को अमृतसर तथा संतोखसर नामक सरोवरों की खुदाई के लिए काफ़ी धन की आवश्यकता थी। अतः उन्होंने मसंद प्रथा का आरंभ किया। उन्होंने अपने शिष्यों को दूर देशों में धर्म प्रचार करने तथा वहां से धन एकत्रित करने के लिए भेजा। इन मसंदों ने विभिन्न प्रदेशों में सिक्ख धर्म का खूब प्रचार किया तथा काफ़ी धन राशि एकत्रित की। वास्तव में इस प्रथा ने सिक्ख धर्म के प्रसार में काफी योगदान दिया। इससे सिक्ख एक लड़ी में पिरोए गए तथा उनमें भावनात्मक एकता आ गई।
3. उदासियों के मतभेद की समाप्ति-गुरु अंगद देव जी तथा गुरु अमरदास जी ने सिक्खों को उदासी संप्रदाय से अलग कर दिया था। परंतु गुरु रामदास जी ने उदासियों से बड़ा विनम्रतापूर्ण व्यवहार किया। कहा जाता है कि उदासी संप्रदाय का नेता बाबा श्रीचंद एक बार गुरु रामदास जी से मिलने आए। उसने गुरु जी का मज़ाक उड़ाते हुए गुरु जी से यह प्रश्न किया- “सुनाओ दाढ़ा इतना लंबी क्यों है ?” गुरु जी ने बड़े विनम्र भाव से उत्तर दिया, “आप जैसे सत्य पुरुषों के चरण झाड़ने के लिए।” यह बात सुन कर श्रीचंद जी बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने गुरु जी की श्रेष्ठता को स्वीकार कर लिया। इस प्रकार उदासी संप्रदाय तथा सिक्ख गुरु साहिबान का काफी समय से चला आ रहा द्वेष-भाव समाप्त हो गया। यह बात सिक्ख मत के प्रसार में बहुत सहायक सिद्ध हुई।
सच तो यह कि गुरु रामदास जी ने भी गुरु अमरदास जी की भांति सिक्ख मत को इसका अलग अस्तित्व प्रदान करने का हर सभव प्रयास किया।
प्रश्न 4.
गुरुओं द्वारा नये नगरों की स्थापना और नई परंपराओं की शुरुआत ने सिख धर्म के विकास में क्या योगदान दिया ?
उत्तर-
गुरु साहिबान ने सिख धर्म के प्रचार तथा सिखों की समृद्धि के लिए अनेक नगर बसाये। नए नगर बसाने का एक उद्देश्य यह भी था कि सिक्खों को अपने अलग तीर्थ-स्थान दिए जाएं ताकि उनमें एकता एवं संगठन की भावना मज़बूत हो। गुरु साहिबान ने समाज में प्रचलित परम्पराओं से हट कर कुछ नई परम्पराएं भी आरंभ की। इनसे सिख समाज में सरलता आई और सिख धर्म का विकास तेज़ी से हुआ।
I. नये नगरों का योगदान
- गोइंदवाल साहिब-गोइंदवाल साहिब नामक नगर की स्थापना गुरु अंगद देव जी ने की। इस नगर का निर्माण 1546 ई० में आरंभ हुआ था। इसका निर्माण कार्य उन्होंने अपने शिष्य अमरदास जी को सौंप दिया। गुरु अमरदास जी ने अपने गुरुकाल में यहां बाऊली साहब का निर्माण करवाया। इस प्रकार गोइंदवाल साहिब सिक्खों का एक प्रसिद्ध धार्मिक केंद्र बन गया।
- रामदासपुर-गुरु रामदास जी ने रामदासपुर की नींव रखी। आजकल इस नगर को अमृतसर कहते हैं। 1577 ई० में गुरु जी ने यहां अमृतसर तथा संतोखसर नामक दो तालाबों की खुदाई आरंभ की। कुछ ही समय में तालाब के चारों ओर एक छोटा-सा नगर बस गया। इसे रामदासपुर का नाम दिया गया। गुरु जी इस नगर को हर प्रकार से आत्मनिर्भर बनाना चाहते थे। अतः उन्होंने 52 अलग-अलग प्रकार के व्यापारियों को आमंत्रित किया। उन्होंने एक बाजार की स्थापना की जिसे आजकल ‘गुरु का बाज़ार’ कहते हैं। इस नगर के निर्माण से सिक्खों को एक महत्त्वपूर्ण तीर्थ-स्थान मिल गया।
- तरनतारन-तरनतारन का निर्माण गुरु अर्जन देव जी ने ब्यास तथा रावी नदियों के मध्य करवाया। इसका निर्माण 1590 ई० में हुआ। अमृतसर की भांति तरनतारन भी सिक्खों का प्रसिद्ध तीर्थ स्थान बन गया। हजारों की संख्या में यहां सिक्ख यात्री स्नान करने के लिए आने लगे।
- करतारपुर-गुरु अर्जन देव जी ने 1593 ई० में जालंधर दोआब में एक नगर की स्थापना की जिसका नाम करतारपुर अर्थात् ‘ईश्वर का शहर’ रखा गया। यहां उन्होंने एक कुआं भी खुदवाया जो गंगसर के नाम से प्रसिद्ध है। यह नगर जालंधर दोआब में सिक्ख धर्म के प्रचार का केंद्र बन गया।
- हरगोबिंदपुर तथा छहरटा-गुरु अर्जन देव जी ने अपने पुत्र हरगोबिंद के जन्म की खुशी में ब्यास नदी के तट पर हरगोबिंदपुर नगर की स्थापना की। इसके अतिरिक्त उन्होंने अमृतसर के निकट पानी की कमी को दूर करने के लिए एक कुएं का निर्माण करवाया। इस कुएं पर छः रहट चलते थे। इसलिए इसको छहरटा के नाम से पुकारा जाने लगा। धीरे-धीरे यहां एक नगर बस गया जो आज भी विद्यमान है।
- चक नानकी-चक नानकी की नींव कीरतपुर के निकट गुरु तेग बहादुर साहिब ने रखी। इस नगर की भूमि गुरु साहिब ने 19 जून, 1665 ई० को 500 रुपये में खरीदी थी।
II. नयी परम्पराओं का योगदान
- गुरु नानक देव जी ने ‘संगत’ तथा ‘पंगत’ प्रथा की परंपरा चलाई। इससे सिखों में एक साथ बैठ कर नाम सिमरण करने की भावना का विकास हुआ। परिणामस्वरूप सिख भाईचारा मज़बूत हुआ।
- आनंद कारज से विवाह की व्यर्थ रस्मों से सिखों को छुटकारा मिला और विवाह सरल रीति से होने लगे। इस परंपरा के कारण और भी बहुत से लोग सिख धर्म से जुड़ गए। .
- मृत्यु के अवसर पर रोने-पीटने की परंपरा को छोड़ प्रभु सिमरण पर बल देने से सिखों में गुरु भक्ति की भावना मजबूत हुई।
PSEB 9th Class Social Science Guide पंजाब : सिक्ख धर्म का विकास Important Questions and Answers
I. बहुविकल्पीय प्रश्न :
प्रश्न 1.
गोइंदवाल साहिब में बाऊली (जल-स्रोत) की नींव रखी
(क) गुरु अर्जन देव जी ने
(ख) गुरु नानक देव जी ने
(ग) गुरु अंगद देव जी ने
(घ) गुरु तेग़ बहादुर जी ने।
उत्तर-
(ग) गुरु अंगद देव जी ने
प्रश्न 2.
गुरु रामदास जी ने नगर बसाया
(क) अमृतसर
(ख) जालंधर
(ग) कीरतपुर साहिब
(घ) गोइंदवाल साहिब।
उत्तर-
(क) अमृतसर
प्रश्न 3.
गुरु अर्जन देव जी ने रावी तथा व्यास के बीच किस नगर की नींव रखी ?
(क) जालंधर
(ख) गोइंदवाल साहिब
(ग) अमृतसर
(घ) तरनतारन।
उत्तर-
(घ) तरनतारन।
प्रश्न 4.
गुरु अंगद देव जी को गुरुगद्दी मिली-
(क) 1479 ई० में
(ख) 1539 ई० में
(ग) 1546 ई० में
(घ) 1670 ई० में।
उत्तर-
(ख) 1539 ई० में
प्रश्न 5.
गुरु अंगद देव जी ज्योति-जोत समाये
(क) 1552 ई० में
(ख) 1538 ई० में
(ग) 1546 ई० में
(घ) 1479 ई० में।
उत्तर-
(क) 1552 ई० में
प्रश्न 6.
‘बाबा बकाला’ वास्तव में थे-
(क) गुरु तेग़ बहादुर जी
(ख) गुरु हरकृष्ण जी
(ग) गुरु गोबिंद सिंह जी
(घ) गुरु अमरदास जी।
उत्तर-
(क) गुरु तेग़ बहादुर जी
प्रश्न 7.
गुरु गोबिंद सिंह जी का जन्म हुआ
(क) कीरतपुर साहिब में
(ख) पटना में
(ग) दिल्ली में
(घ) तरनतारन में।
उत्तर-
(ख) पटना में
प्रश्न 8.
गुरु अमरदास जी ज्योति-जोत समाए
(क) 1564 ई० में
(ख) 1538 ई० में
(ग) 1546 ई० में
(घ) 1574 ई० में।
उत्तर-
(घ) 1574 ई० में।
प्रश्न 9.
गुरुगद्दी को पैतृक रूप दिया
(क) गुरु अमरदास जी ने
(ख) गुरु रामदास जी ने
(ग) गुरु गोबिंद सिंह जी ने
(घ) गुरु तेग़ बहादुर जी ने।
उत्तर-
(क) गुरु अमरदास जी ने
रिक्त स्थान भरें :
- गुरु ………… का पहला नाम भाई लहना था।
- …………….. सिक्खों के चौथे गुरु थे।
- …………. नामक नगर की स्थापना गुरु अंगद देव जी ने की।
- गुरु हरगोबिंद साहिब ने अपने जीवन के अंतिम दस वर्ष ……….. में धर्म प्रचार में व्यतीत किए।
- गुरु अंगद देव जी के पिता का नाम श्री ………….. और माता का नाम ………….. था।
- ‘उदासी’ मत गुरु नानक देव जी के बड़े पुत्र …………….. जी ने स्थापित किया।
- मंजियों की स्थापना गुरु ………… ने की।
उत्तर-
- अंगद साहिब
- गुरु रामदास जी
- गोइंदवाल साहिब
- फेरूमल, सभराई देवी
- कीरतपुर साहि
- बाबा श्रीचंद
- अमर दास जी।
सही मिलान करो :
(क) – (ख)
1. भाई लहना – (i) श्री गुरु नानक देव जी
2. अकबर – (ii) बाबा श्री चंद
3. लंगर प्रथा – (iii) अमृतसर
4. उदासी मत – (iv) श्री गुरु अंगद देव जी
5. रामदासपुर – (v) श्री गुरु अमरदास जी
उत्तर-
- श्री गुरु अंगद देव जी
- श्री गुरु अमरदास जी
- श्री गुरु नानक देव जी
- बाबा श्री चंद
- अमृतसर
अति लघु उत्तरों वाले प्रश्न
उत्तर एक लाइन अथवा एक शब्द में :
(I)
प्रश्न 1.
भाई लहना किस गुरु साहिब का पहला नाम था ?
उत्तर-
गुरु अंगद साहिब का।
प्रश्न 2.
लंगर प्रथा से क्या भाव है ?
उत्तर-
लंगर प्रथा अथवा पंगत से भाव उस प्रथा से है जिसके अनुसार सभी जातियों के लोग बिना किसी भेदभाव के एक ही पंक्ति में बैठकर खाना खाते थे।
प्रश्न 3.
गोइंदवाल साहिब में बाऊली (जल स्रोत) की नींव किस गुरु साहिब ने रखी थी ?
उत्तर-
गोइंदवाल साहिब में बाऊली की नींव गुरु अंगद देव जी ने रखी थी।
प्रश्न 4.
अकबर कौन-से गुरु साहिब को मिलने गोइंदवाल साहिब आया ?
उत्तर-
अकबर गुरु अमरदास जी से मिलने गोइंदवाल साहिब आया था।
प्रश्न 5.
मसंद प्रथा के दो उद्देश्य लिखिए।
उत्तर-
मसंद प्रथा के दो मुख्य उद्देश्य थे- सिक्ख धर्म के विकास कार्यों के लिए धन एकत्रित करना तथा सिक्खों को संगठित करना।
प्रश्न 6.
सिक्खों के चौथे गुरु कौन थे तथा उन्होंने कौन-सा शहर बसाया ?
उत्तर-
गुरु रामदास जी सिक्खों के चौथे गुरु थे जिन्होंने रामदासपुर (अमृतसर) नामक नगर बसाया।
प्रश्न 7.
लंगर प्रथा के बारे में आप क्या जानते हो ?
उत्तर-
लंगर प्रथा का आरंभ गुरु नानक साहिब ने सामाजिक भाईचारे के लिए किया।
प्रश्न 8.
गुरु अंगद देव जी संगत प्रथा के द्वारा सिक्खों को क्या उपदेश देते थे ?
उत्तर-
गुरु अंगद देव जी संगत प्रथा के द्वारा सिक्खों को ऊंच-नीच के भेदभाव को भूल कर प्रेमपूर्वक रहने की शिक्षा देते थे।
प्रश्न 9.
गुरु अंगद देव जी की पंगत-प्रथा के बारे में जानकारी दो ।
उत्तर-
गुरु अंगद देव जी ने गुरु नानक देव जी के द्वारा चलाई गई पंगत-प्रथा को आगे बढ़ाया जिसका खर्च सिक्खों की कार सेवा से चलता था।
प्रश्न 10.
गुरु अंगद देव जी द्वारा स्थापित अखाड़े के बारे में लिखिए।
उत्तर-
गुरु अंगद देव जी ने सिक्खों को शारीरिक रूप से स्वस्थ रखने के लिए खडूर साहिब के स्थान पर एक अखाड़ा बनवाया।
प्रश्न 11.
गोइंदवाल साहिब के बारे में आप क्या जानते हो ?
उत्तर-
गोइंदवाल साहिब नामक नगर की स्थापना गुरु अंगद देव जी ने की जो सिक्खों का एक प्रसिद्ध धार्मिक केंद्र बन गया।
प्रश्न 12.
गुरु अमरदास जी के जाति-पाति के बारे में विचार बताओ।
उत्तर-
गुरु अमरदास जी जातीय भेदभाव तथा छुआछूत के विरोधी थे।
प्रश्न 13.
सती प्रथा के बारे में गुरु अमरदास जी के क्या विचार थे ?
उत्तर-
गुरु अमरदास जी ने सती प्रथा का खंडन किया।
प्रश्न 14.
गुरु अमरदास जी द्वारा निर्मित शहर गोइंदवाल साहिब दूसरे धार्मिक स्थानों से कैसे अलग था ?
उत्तर-
गोइंदवाल साहिब सिक्खों के सामूहिक परिश्रम से बना था जिसमें न तो किसी देवी-देवता की पूजा की जाती थी और न ही इसमें किसी पुजारी की आवश्यकता थी।
प्रश्न 15.
गुरु अमरदास जी ने जन्म, विवाह तथा मृत्यु संबंधी क्या सुधार किए ? ।
उत्तर-
गुरु अमरदास जी ने जन्म तथा विवाह के अवसर पर ‘आनंद’ बाणी का पाठ करने की प्रथा चलाई और सिक्खों को आदेश दिया कि वे मृत्यु के अवसर पर ईश्वर की स्तुति तथा भक्ति के शब्दों का गायन करें।
प्रश्न 16.
रामदासपुर या अमृतसर की स्थापना की महत्ता बताइए।
उत्तर-
रामदासपुर की स्थापना से सिक्खों को एक अलग तीर्थ-स्थान तथा महत्त्वपूर्ण व्यापारिक केंद्र मिल गया।
प्रश्न 17.
गुरु रामदास जी तथा अकबर बादशाह की मुलाकात का महत्त्व बताइए।
उत्तर-
गुरु रामदास जी की अकबर से मुलाकात से दोनों में मैत्रीपूर्ण संबंध स्थापित हुए।
प्रश्न 18.
गुरु अंगद देव जी का नाम अंगद देव कैसे पड़ा ?
उत्तर-
गुरु अंगद देव जी गुरु नानक देव जी के लिए सर्दी की रात में दीवार बना सकते थे तथा कीचड़ से भरी घास की गठरी उठा सकते थे, इसलिए गुरु जी ने उनका नाम अंगद अर्थात् शरीर का एक अंग रख दिया।
प्रश्न 19.
भाई लहना (गुरु अंगद साहिब) के माता-पिता का नाम क्या था ?
उत्तर-
भाई लहना (गुरु अंगद साहिब) के पिता का नाम फेरूमल और माता का नाम सभराई देवी था।
प्रश्न 20.
गुरु अंगद साहिब का बचपन किन दो स्थानों पर बीता ?
उत्तर-
गुरु अंगद साहिब का बचपन हरिके तथा खडूर साहिब में बीता।
(II)
प्रश्न 1.
सिक्खों के दसरे गुरु कौन थे ?
उत्तर-
गुरु अंगद देव जी।
प्रश्न 2.
गुरु अंगद देव जी का पहला नाम क्या था ?
उत्तर-
भाई लहना जी।
प्रश्न 3.
गुरु अंगद देव जी को गुरुगद्दी कब सौंपी गई ?
उत्तर-
1539 ई० में।
प्रश्न 4.
लहना जी का विवाह किसके साथ हुआ और उस समय उनकी आयु कितनी थी ?
उत्तर-
लहना जी का विवाह 15 वर्ष की आयु में श्री देवीचंद जी की सुपुत्री बीबी खीवी से हुआ।
प्रश्न 5.
लहना जी के कितने पुत्र और पुत्रियां थीं ? उनके नाम भी लिखो।
उत्तर-
लहना जी के दो पुत्र दातू तथा दासू तथा दो पुत्रियां बीबी अमरो तथा बीबी अनोखी थीं।
प्रश्न 6.
‘उदासी’ मत किसने स्थापित किया ?
उत्तर-
‘उदासी’ मत गुरु नानक देव जी के बड़े पुत्रं बाबा श्रीचंद जी ने स्थापित किया।
प्रश्न 7.
गुरु अंगद साहिब ने ‘उदासी’ मत के प्रति क्या रुख अपनाया ?
उत्तर-
गुरु अंगद साहिब ने उदासी मत को गुरु नानक साहिब के उद्देश्यों के प्रतिकूल बताया और इस मत का विरोध किया।
प्रश्न 8.
गुरु अंगद देव जी की धार्मिक गतिविधियों का केंद्र कौन-सा स्थान था ?
उत्तर-
गुरु अंगद देव जी की धार्मिक गतिविधियों का केंद्र अमृतसर जिले में खडूर साहिब था।
प्रश्न 9.
लंगर प्रथा किसने चलाई ?
उत्तर-
लंगर प्रथा गुरु नानक देव जी ने चलाई।
प्रश्न 10.
उदासी संप्रदाय किसने चलाया ?
उत्तर-
बाबा श्रीचंद जी ने।
प्रश्न 11.
गोइंदवाल साहिब की स्थापना (1546 ई०) किसने की ?
उत्तर-
गुरु अंगद देव जी ने।
प्रश्न 12.
गुरु अंगद देव जी ने अखाड़े का निर्माण कहां करवाया ?
उत्तर-
खडूर साहिब में।
प्रश्न 13.
गुरु अंगद देव जी ज्योति-जोत कब समाये ?
उत्तर-
1552 ई० में।
प्रश्न 14.
गुरु अमरदास जी का जन्म कब और कहां हुआ था ?
उत्तर-
गुरु अमरदास जी का जन्म 1479 ई० में जिला अमृतसर में स्थित बासरके नामक गांव में हुआ था।
प्रश्न 15.
गुरु अमरदास जी को गद्दी संभालते समय किस कठिनाई का सामना करना पड़ा ?
उत्तर-
गुरु अमरदास जी को गुरु अंगद देव जी के पुत्रों दासू और दातू के विरोध का सामना करना पड़ा ।
अथवा
गुरु जी को गुरु नानक देव जी के बड़े पुत्र बाबा श्रीचंद के विरोध का भी सामना करना पड़ा।
प्रश्न 16.
गोइंदवाल साहिब में बाऊली का निर्माण कार्य किसने पूरा करवाया ?
उत्तर-
गुरु अमरदास जी ने।
प्रश्न 17.
मंजी प्रथा किस गुरु जी ने आरंभ करवाई ?
उत्तर-
गुरु अमरदास जी ने।
प्रश्न 18.
‘आनंद’ नामक बाणी की रचना किसने की ?
उत्तर-
गुरु अमरदास जी ने।
प्रश्न 19.
गुरु अमरदास जी ने किन दो अवसरों के लिए सिक्खों के लिए विशिष्ट रीतियां निश्चित की ?
उत्तर-
गुरु अमरदास जी ने आनंद विवाह की पद्धति आरंभ की जिसमें जन्म तथा मरण के अवसरों पर सिक्खों के लिए विशिष्ट रीतियां निश्चित की गईं।
प्रश्न 20.
गुरु अमरदास जी द्वारा सिक्ख मत के प्रसार के लिए किया गया कोई एक कार्य लिखो।।
उत्तर-
गुरु अमरदास जी ने गोइंदवाल साहिब में बाउली का निर्माण किया।
अथवा
उन्होंने मंजी प्रथा की स्थापना की तथा लंगर प्रथा का विस्तार किया।
(III)
प्रश्न 1.
गुरु अमरदास जी ने सिक्खों को कौन-कौन से तीन त्योहार मनाने का आदेश दिया ?
उत्तर-
उन्होंने सिक्खों को वैशाखी, माघी तथा दीवाली के त्योहार मनाने का आदेश किया।
प्रश्न 2.
गुरु अमरदास जी के काल में सिक्ख अपने त्योहार मनाने के लिए कहां एकत्रित होते थे ?
उत्तर-
सिक्ख अपने त्योहार मनाने के लिए गुरु अमरदास जी के पास गोइंदवाल साहिब में एकत्रित होते थे।
प्रश्न 3.
गुरु अमरदास जी ज्योति-जोत कब समाए ?
उत्तर-
गुरु अमरदास जी 1574 ई० में ज्योति-जोत समाए।
प्रश्न 4.
गुरुगद्दी को पैतृक रूप किसने दिया ?
उत्तर-
गुरुगदी को पैतृक रूप गुरु अमरदास जी ने दिया।
प्रश्न 5.
सिक्खों के चौथे गुरु कौन थे ?
उत्तर-
श्री गुरु रामदास जी।
प्रश्न 6.
अमृतसर शहर की नींव किसने रखी ?
उत्तर-
गुरु रामदास जी ने।
प्रश्न 7.
मसंद प्रथा का आरंभ सिक्खों के किस गुरु ने आरंभ किया ?
उत्तर-
श्री गुरु रामदास जी ने।
प्रश्न 8.
गुरु रामदास जी की पत्नी का क्या नाम था ?
उत्तर-
गुरु रामदास जी की पत्नी का नाम बीबी भानी जी था।
प्रश्न 9.
गुरु रामदास जी के कितने पुत्र थे ? पुत्रों के नाम भी बताओ।
उत्तर-
गुरु रामदास जी के तीन पुत्र थे-पृथी चंद, महादेव तथा अर्जन देव।
प्रश्न 10.
गुरु रामदास जी द्वारा सिक्ख धर्म के विस्तार के लिए किया गया कोई एक कार्य बताओ।
उत्तर-
गुरु रामदास जी ने अमृतसर नगर बसाया। इस नगर के निर्माण से सिक्खों को एक महत्त्वपूर्ण तीर्थ स्थान मिल गया।
अथवा
उन्होंने मसंद प्रथा को आरंभ किया। मसंदों ने सिक्ख धर्म का खूब प्रचार किया।
प्रश्न 11.
अमृतसर नगर का प्रारंभिक नाम क्या था ?
उत्तर-
अमृतसर नगर की प्रारंभिक नाम रामदासपुर था।
प्रश्न 12.
गुरु रामदास जी द्वारा खुदवाए गए दो सरोवरों के नाम लिखो।
उत्तर-
गुरु रामदास जी द्वारा खुदवाए गए दो सरोवर संतोखसर तथा अमृतसर हैं।
प्रश्न 13.
गुरु रामदास जी ने अमृतसर सरोवर के चारों ओर जो ब्राज़ार बसाया वह किस नाम से प्रसिद्ध हुआ ?
उत्तर-
‘गुरु का बाज़ार’।
प्रश्न 14.
गुरु रामदास जी ने ‘गुरु का बाज़ार’ की स्थापना किस उद्देश्य से की ?
उत्तर-
गुरु रामदास जी अमृतसर नगर को हर प्रकार से आत्म-निर्भर बनाना चाहते थे। इसी कारण उन्होंने 52 अलग-अलग प्रकार के व्यापारियों को आमंत्रित किया और इस बाज़ार की स्थापना की।
प्रश्न 15.
गुरु रामदास जी ने महादेव को गुरुगद्दी के अयोग्य क्यों समझा ?
उत्तर-
महादेव फ़कीर स्वभाव का था तथा उसे सांसारिक विषयों से कोई लगाव नहीं था।
प्रश्न 16.
गुरु रामदास जी ने पृथी चंद को गुरुगद्दी के अयोग्य क्यों समझा ?
उत्तर-
गुरु रामदास जी ने पृथी चंद को गुरुपद के अयोग्य इसलिए समझा क्योंकि वह धोखेबाज़ और षड्यंत्रकारी था।
लघु उत्तरों वाले प्रश्न
प्रश्न 1.
गुरु अमरदास जी ने सिक्खों को उदासी मत से कैसे अलग किया ?
उत्तर-
उदासी संप्रदाय की स्थापना गुरु नानक देव जी के बड़े पुत्र श्रीचंद जी ने की थी। उसने संन्यास का प्रचार किया। यह बात गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं के विरुद्ध थी। गुरु अंगद देव जी ने सिक्खों को स्पष्ट किया कि सिक्ख धर्म गृहस्थियों का धर्म है। इसमें संन्यास का कोई स्थान नहीं है। उन्होंने यह भी घोषणा की कि वह सिक्ख जो संन्यास में विश्वास रखता है, सच्चा सिक्ख नहीं है। इस प्रकार उदासियों को सिक्ख संप्रदाय से अलग करके गुरु अंगद देव जी ने सिक्ख धर्म को ठोस आधार प्रदान किया।
प्रश्न 2.
गुरु अमरदास जी ने ब्याह की रस्मों में क्या सुधार किए ?
उत्तर-
गुरु अमरदास जी के समय समाज में जाति मतभेद का रोग इतना बढ़ चुका था कि लोग अपनी जाति से बाहर विवाह करना धर्म के विरुद्ध मानने लगे थे। गुरु जी का विश्वास था कि ऐसे रीति-रिवाज लोगों में फूट डालते हैं। इसीलिए उन्होंने सिक्खों को जाति-मतभेद भूल कर अंतर्जातीय विवाह करने का आदेश दिया। उन्होंने विवाह की रीतियों में भी सुधार किया। उन्होंने विवाह के समय रस्मों, फेरों के स्थान पर ‘लावां’ की प्रथा आरंभ की।
प्रश्न 3.
गोइंदवाल साहिब की बाऊली (जल स्रोत) का वर्णन करो।
उत्तर-
गुर अमरदास जी ने गोइंदवाल साहिब नामक स्थान पर बाऊली (जल स्रोत) का निर्माण कार्य पूरा किया जिसका शिलान्यास गुरु अंगद देव जी के समय में किया गया था। गुरु अमरदास जी ने इस बावली में 84 सीढ़ियां बनवाई। उन्होंने अपने शिष्यों को बताया कि जो सिक्ख प्रत्येक सीढ़ी पर श्रद्धा और सच्चे मन से ‘जपुजी साहिब’ का पाठ करके स्नान करेगा वह जन्म-मरण के चक्कर से मुक्त हो जाएगा और मोक्ष को प्राप्त करेगा। डॉ. इंदू भूषण बनर्जी लिखते हैं, “इस बाऊली की स्थापना सिक्ख धर्म के इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण कार्य था।” गोइंदवाल साहिब की बाऊली सिक्ख धर्म का प्रसिद्ध तीर्थ स्थान बन गई। इस बाऊली पर एकत्रित होने से सिक्खों में आपसी मेलजोल की भावना भी बढ़ी और वे परस्पर संगठित होने लगे।
प्रश्न 4.
आनंद साहिब बारे लिखो।
उत्तर-
गुरु अमरदास जी ने एक नई बाणी की रचना की जिसे आनंद साहिब कहा जाता है। गुरु साहिब ने अपने सिक्खों को आदेश दिया कि जन्म, विवाह तथा खुशी के अन्य अवसरों पर ‘आनंद’ साहिब का पाठ करें। इस बाणी से सिक्खों में वेद-मंत्रों के उच्चारण का महत्त्व बिल्कुल समाप्त हो गया। आज भी सभी सिक्ख जन्म, विवाह तथा खुशी के अन्य अवसरों पर इसी बाणी को गाते हैं।
प्रश्न 5.
सिक्खों तथा उदासियों में हुए समझौते के बारे में जानकारी दीजिए।
उत्तर-
गुरु अंगद देव जी तथा गुरु अमरदास जी ने सिक्खों को उदासी संप्रदाय से अलग कर दिया था, परंतु गुर रामदास जी ने उदासियों से बड़ा विनम्रतापूर्ण व्यवहार किया। उदासी संप्रदाय के संचालक बाबा श्रीचंद जी एक बार गुरु रामदास जी से मिलने गए। उनके बीच एक महत्त्वपूर्ण वार्तालाप भी हुआ। श्रीचंद जी गुरु साहिब की विनम्रता से बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने गुरु जी की श्रेष्ठता को स्वीकार कर लिया। इस प्रकार उदासियों ने सिक्ख गुरु साहिबान का विरोध करना छोड़ दिया।
प्रश्न 6.
गुरु साहिबान के समय के दौरान बनी बाऊलियों (जल स्रोतों) का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
गुरु साहिबान के समय में निम्नलिखित बाऊलियों का निर्माण हुआ
- गोइंदवाल साहिब की बाऊली-गोइंदवाल साहिब की बाऊली का शिलान्यास गुरु अंगद देव जी के समय में हुआ था। गुरु अमदास जी ने इस बाऊली को पूर्ण करवाया। उन्होंने इसके जल तक पहुंचने के लिए 84 सीढ़ियाँ बनवाईं। उन्होंने अपने शिष्यों को बताया कि जो सिक्ख प्रत्येक सीढ़ी पर श्रद्धा और सच्चे मन से जपुजी साहिब का पाठ करेगा वह जन्म-मरण की चौरासी लाख योनियों के चक्कर से मुक्त हो जाएगा।
- लाहौर की बाऊली-लाहौर के डब्बी बाज़ार में स्थित इस बाऊली का निर्माण गुरु अर्जन साहिब ने करवाया। यह बाऊली सिक्खों का एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थान बन गई।
प्रश्न 7.
गुरु अंगद
देव जी द्वारा सिक्ख संस्था (पंथ) के विकास के लिए किए गए किन्हीं चार कार्यों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
श्री गुरु नानक देव जी (1539 ई०) के पश्चात् गुरु अंगद देव जी गुरुगद्दी पर आसीन हुए। उनका नेतृत्व सिक्ख धर्म के लिए वरदान सिद्ध हुआ। उन्होंने निम्नलिखित कार्यों द्वारा सिक्ख धर्म के विकास में योगदान दिया-
- गुरुमुखी लिपि का मानकीकरण-गुरु अंगद देव जी ने गुरुमुखी लिपि को मानक रूप दिया। कहते हैं कि गुरु अंगद देव जी ने गुरुमुखी के प्रचार के लिए गुरुमुखी वर्णमाला में ‘बाल बोध’ की रचना की।
- गुरु नानक देव जी की जन्म-साखी-श्री गुरु अंगद देव जी ने श्री गुरु नानक देव जी की सारी बाणी को एकत्रित करके भाई बाला से गुरु जी की जन्म साखी (जीवन-चरित्र) लिखवाई। इससे सिक्ख गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं का पालन करने लगे।
- लंगर प्रथा-श्री गुरु अंगद देव जी ने लंगर प्रथा जारी रखी। इस प्रथा से जाति-पाति की भावनाओं को धक्का लगा और सिक्ख धर्म के प्रसार में सहायता मिली।
- गोइंदवाल साहिब का निर्माण-गुरु अंगद देव जी ने गोइंदवाल साहिब नामक नगर की स्थापना की। गुरु अमरदास के समय में यह नगर एक प्रसिद्ध धार्मिक केंद्र बन गया। आज भी यह सिक्खों का एक पवित्र धार्मिक स्थान है।
प्रश्न 8.
सिक्ख पंथ में गुरु और सिक्ख (शिष्य) की परंपरा कैसे स्थापित हुई ?
उत्तर-
गुरु नानक साहिब के 1539 में ज्योति-जोत समाने से पूर्व एक विशेष धार्मिक भाई-चारा अस्तित्व में आ चुका था। गुरु नानक देव जी इसे जारी रखना चाहते थे। इसीलिए उन्होंने अपने जीवन काल में ही अपने शिष्य भाई लहना जी को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया। भाई लहना जी ने गुरु नानक साहिब के ज्योति-जोत समाने के पश्चात् गुरु अंगद देव जी के नाम से गुरुगद्दी संभाली। इस प्रकार गुरु और सिक्ख (शिष्यों) की परंपरा स्थापित हुई और सिक्ख इतिहास में यह विचार गुरु पंथ के सिद्धांत के रूप में विकसित हुआ ।
प्रश्न 9.
गुरु नानक साहिब ने अपने पुत्रों के होते हुए भाई लहना जी को अपना उत्तराधिकारी क्यों बनाया ?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी ने अपने दो पुत्रों श्री चंद तथा लखमी दास (चंद) के होते हुए भी भाई लहना को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया था। उसके पीछे कुछ विशेष कारण थे-
- आदर्श गृहस्थ जीवन का पालन गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं का मुख्य सिद्धांत था, परंतु उनके दोनों पुत्र गुरु जी के इस सिद्धांत का पालन नहीं कर रहे थे। इसके विपरीत भाई लहना गुरु नानक देव जी के सिद्धांत का पालन सच्चे मन से कर रहे थे।
- नम्रता तथा सेवा-भाव भी गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं का मूल मंत्र था, परंतु बाबा श्रीचंद नम्रता तथा सेवा-भाव दोनों ही गुणों से खाली थे। दूसरी ओर, भाई लहना इन गुणों की साक्षात मूर्ति थे।
- गुरु नानक देव जी को वेद-शास्त्रों तथा ब्राह्मण वर्ग की सर्वोच्चता में विश्वास नहीं था। वे संस्कृत को भी पवित्र भाषा स्वीकार नहीं करते थे, परंतु उनके पुत्र श्रीचंद जी को संस्कृत भाषा तथा वेद-शास्त्रों में गूढ विश्वास था।
प्रश्न 10.
गुरु अंगद देव जी के समय में लंगर प्रथा तथा उसके महत्त्व का वर्णन करो।
उत्तर-
लंगर में सभी सिक्ख एक साथ बैठ कर भोजन करते थे। गुरु अंगद देव जी ने इस प्रथा को काफ़ी प्रोत्साहन दिया। लंगर प्रथा के विस्तार तथा प्रोत्साहन के कई महत्त्वपूर्ण परिणाम निकले। यह प्रथा धर्म प्रचार कार्य का एक शक्तिशाली साधन बन गई। निर्धनों के लिए एक सहारा बनने के अतिरिक्त यह प्रचार तथा विस्तार का एक महान् यंत्र बनी। गुरु जी के अनुयायियों द्वारा दिए गए अनुदानों, चढ़ावे इत्यादि को इसने निश्चित रूप दिया। हिंदुओं द्वारा स्थापित की गई दान संस्थाएं अनेक थीं, परंतु गुरु जी का लंगर संभवत: पहली संस्था थी जिसका खर्च समस्त सिक्खों के संयुक्त दान तथा भेंटों से चलाया जाता था। इस बात ने सिक्खों में ऊंच-नीच की भावना को समाप्त करके एकता की भावना जागृत की।
प्रश्न 11.
गुरु अंगद देव जी के जीवन की किस घटना से उनके अनुशासनप्रिय होने का प्रमाण मिलता है ?
उत्तर-
गुरु अंगद देव जी ने सिक्खों के समक्ष अनुशासन का एक बहुत बड़ा उदाहरण प्रस्तुत किया। कहा जाता है कि सत्ता और बलवंड नामक दो प्रसिद्ध रबाबी उनके दरबार में रहते थे। उन्हें अपनी कला पर इतना अभिमान हो गया कि वे गुरु जी के आदेशों का उल्लंघन करने लगे। वे इस बात का प्रचार करने लगे कि गुरु जी की प्रसिद्धि केवल हमारे ही मधुर रागों और शब्दों के कारण है। इतना ही नहीं उन्होंने तो गुरु नानक देव जी की महत्ता का कारण भी मरदाना का मधुर संगीत बताया। गुरु जी ने इस अनुशासनहीनता के कारण सत्ता और बलवंड को दरबार से निकाल दिया। अंत में श्रद्धालु भाई लद्धा जी की प्रार्थना पर ही उन्हें क्षमा किया गया। इस घटना का सिक्खों पर गहरा प्रभाव पड़ा। परिणामस्वरूप सिक्ख धर्म में अनुशासन का महत्त्व बढ़ गया।
प्रश्न 12.
गुरु अमरदास जी गुरु अंगद देव जी के शिष्य कैसे बने ? उन्हें गुरुगद्दी कैसे मिली ?
उत्तर-
गुरु अमरदास जी ने एक दिन गुरु अंगद देव जी की पुत्री बीबी अमरो के मुंह से गुरु नानक देव जी की बाणी सुनी। वे बाणी से इतने प्रभावित हुए कि तुरंत गुरु अंगद देव जी के पास पहुंचे और उनके शिष्य बन गये। इसके पश्चात् गुरु अमरदास जी ने 1541 से 1552 ई० तक (गुरुगद्दी मिलने तक) खडूर साहिब में रह कर गुरु अंगद देव जी की खूब सेवा की। एक दिन कड़ाके की ठंड में अमरदास जी गुरु अंगद देव जी के स्नान के लिए पानी का घड़ा लेकर आ रहे थे। मार्ग में ठोकर लगने से वह गिर पडे। यह देख कर एक बनकर की पत्नी ने कहा कि यह अवश्य निथावां (जिसके पास कोई स्थान न हो) अमरू ही होगा। इस घटना की सूचना जब गुरु अंगद देव जी को मिली तो उन्होंने अमरदास को अपने पास बुलाकर घोषणा की कि, “अब से अमरदास निथावां नहीं होगा, बल्कि अनेक निथावों का सहारा होगा।” मार्च, 1552 ई० में गुरु अंगद देव जी ने अमरदास जी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त कर दिया। इस प्रकार गुरु अमरदास जी सिक्खों के तीसरे गुरु बने।
प्रश्न 13.
गुरु अमरदास जी के समय में लंगर प्रथा के विकास का वर्णन करो।
उत्तर-
गुरु अमरदास जी ने लंगर के लिए कुछ विशेष नियम बनाये। अब कोई भी व्यक्ति लंगर में भोजन किए बिना गुरु जी से नहीं मिल सकता था। कहा जाता है कि सम्राट अकबर को गुरु जी के दर्शन करने से पहले लंगर में भोजन करना पड़ा था। गुरु जी का लंगर प्रत्येक जाति, धर्म और वर्ग के लोगों के लिए खुला था। लंगर में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा शूद्र सभी जातियों के लोग एक ही पंक्ति में बैठकर भोजन करते थे। इससे जाति-पाति तथा रंग-रूप के भेदभावों को बड़ा धक्का लगा और लोगों में समानता की भावना का विकास हुआ। परिणामस्वरूप सिक्ख एकता के सूत्र में बंधने लगे।
प्रश्न 14.
गुरु अमरदास जी के समय में मंजी प्रथा के विकास पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
मंजी प्रथा की स्थापना गुरु अमरदास जी ने की थी। उनके समय में सिक्खों की संख्या काफ़ी बढ़ चुकी थी। परंतु गुरु जी की आयु अधिक होने के कारण यह बहुत कठिन हो गया कि वे एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाकर अपनी शिक्षाओं का प्रचार करें। अतः उन्होंने अपने सारे आध्यात्मिक प्रदेश को 22 भागों में बांट दिया। इनमें से प्रत्येक भाग को ‘मंजी’ तथा उसके मुखिया को मंजीदार कहा जाता था। प्रत्येक मंजी छोटे-छोटे स्थानीय केंद्रों में बंटी हुई थी जिन्हें पीढ़ियाँ (Piris) कहते थे। मंजी प्रणाली का सिक्ख धर्म के इतिहास में विशेष महत्त्व है। डॉ० गोकुल चंद नारंग के शब्दों में, “गुरु जी के इस कार्य ने सिक्ख धर्म की नींव सुदृढ़ करने तथा देश के सभी भागों में प्रचार कार्य को बढ़ाने में विशेष योगदान दिया होगा।”
प्रश्न 15.
“गुरु अमरदास जी एक महान् समाज सुधारक थे।” इस कथन के पक्ष में कोई चार तर्क दीजिए।
उत्तर-
गुरु अमरदास जी ने निम्नलिखित महत्त्वपूर्ण सामाजिक सुधार किए-
- गुरु अमरदास जी ने जाति मतभेद का खंडन किया। गुरु जी का विश्वास था कि जाति मतभेद परमात्मा की इच्छा के विरुद्ध है। इसलिए गुरु जी के लंगर में जाति-पाति का कोई भेद-भाव नहीं रखा जाता था।
- उस समय सती प्रथा जोरों से प्रचलित थी। गुरु जी ने इस प्रथा के विरुद्ध जोरदार आवाज़ उठाई। .
- गुरु जी ने स्त्रियों में प्रचलित पर्दे की प्रथा की भी घोर निंदा की। वे पर्दे की प्रथा को समाज की उन्नति के मार्ग में एक बहुत बड़ी बाधा मानते थे।
- गुरु अमरदास जी नशीली वस्तुओं के सेवन के भी घोर विरोधी थे। उन्होंने अपने अनुयायियों को सभी नशीली वस्तुओं से दूर रहने का निर्देश दिया।
दीर्घ उत्तरों वाले प्रश्न
प्रश्न 1.
गुरु अंगद साहिब ने सिक्ख धर्म के विकास के लिए क्या योगदान दिया?
उत्तर-
श्री गुरु नानक देव जी (1539 ई०) के पश्चात् गुरु अंगद देव जी गुरुगद्दी पर आसीन हुए। उनका नेतृत्व सिक्ख धर्म के लिए वरदान सिद्ध हुआ। उन्होंने अग्रलिखित ढंग से सिक्ख धर्म के विकास में योगदान दिया
- गुरुमुखी लिपि में सुधार-गुरु अंगद देव जी ने गुरुमुखी लिपि में सुधार किया। कहते हैं कि गुरु अंगद देव जी ने गुरुमुखी के प्रचार के लिए गुरुमुखी वर्णमाला में बाल बोध’ की रचना की। जनसाधारण की भाषा होने के कारण इससे सिक्ख धर्म के प्रचार के कार्य को बढ़ावा मिला। आज सिक्खों के सभी धार्मिक ग्रंथ इसी भाषा में हैं।
- गुरु नानक देव जी की जन्म-साखी-श्री गुरु अंगद देव जी ने श्री गुरु नानक देव जी की सारी बाणी को एकत्रित करके भाई बाला से गुरु जी की जन्म-साखी (जीवन-चरित्र) लिखवाई। इससे सिक्ख गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं का पालन करने लगे।
- लंगर प्रथा-श्री गुर अंगद देव जी ने लंगर प्रथा जारी रखी। उन्होंने यह आज्ञा दी कि जो कोई उनके दर्शन को आए, उसे पहले लंगर में भोजन कराया जाए। यहां प्रत्येक व्यक्ति बिना किसी भेद-भाव के भोजन करता था। इससे जाति-पाति की भावनाओं को धक्का लगा और सिक्ख धर्म के प्रसार में सहायता मिली।
- उदासियों से सिक्ख धर्म को अलग करना-गुरु नानक देव जी के बड़े पुत्र श्रीचंद जी ने उदासी संप्रदाय की स्थापना की थी। उन्होंने संन्यास का प्रचार किया। यह बात गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं के विरुद्ध थी। अतः गुरु अंगद देव जी ने उदासियों से नाता तोड़ लिया।
- गोइंदवाल का निर्माण-गुरु अंगद देव जी ने गोइंदवाल नामक नगर की स्थापना की। गुरु अमरदास जी के समय में यह नगर सिक्खों का एक प्रसिद्ध धार्मिक केंद्र बन गया। आज भी यह सिक्खों का एक पवित्र धार्मिक स्थान
- अनुशासन को बढ़ावा-गुरु जी बड़े ही अनुशासन प्रिय थे। उन्होंने सत्ता और बलवंड नामक दो प्रसिद्ध रबाबियों को अनुशासन भंग कराने के कारण दरबार से निकाल दिया, परंतु बाद में भाई लद्धा के प्रार्थना करने पर गुरु जी ने उन्हें क्षमा कर दिया।
सच तो यह है कि गुरु अंगद देव जी ने सिक्ख धर्म को पृथक् पहचान प्रदान की।
प्रश्न 2.
गुरु अमरदास जी ने सिक्ख धर्म के विकास के लिए क्या-क्या कार्य किए ?
उत्तर-
गुरु अमरदास जी को सिक्ख धर्म में विशिष्ट स्थान प्राप्त है। गुरु नानक देव जी ने धर्म का जो बीज बोया था वह गुरु अंगद देव जी के काल में अंकुरित हो गया। गुरु अमरदास जी ने अपने कार्यों से इस नये पौधे की रक्षा की। संक्षेप में, गुरु अमरदास जी के कार्यों का वर्णन इस प्रकार है
- गोइंदवाल साहिब की बावली का निर्माण-गुरु अमरदास जी ने सर्वप्रथम गोइंदवाल साहिब के स्थान पर एक बावली (जल-स्रोत) का निर्माण कार्य पूरा किया जिसका शिलान्यास गुरु अंगद देव जी के समय रखा गया था। गुरु अमरदास जी ने इस बावली की तह तक पहुंचने के लिए 84 सीढ़ियां बनवाईं। गुरु जी के अनुसार प्रत्येक सीढ़ी पर जपुजी साहिब का पाठ करने से जन्म-मरण की चौरासी लाख योनियों के चक्कर से मुक्ति मिलेगी। गोइंदवाल साहिब की बावली सिक्ख धर्म का एक प्रसिद्ध तीर्थ-स्थान बन गई।
- लंगर प्रथा-गुरु अमरदास जी ने लंगर प्रथा का विस्तार करके सिक्ख धर्म के विकास की ओर एक और महत्त्वपूर्ण कदम उठाया। उन्होंने लंगर के लिए कुछ विशेष नियम बनाए। अब कोई भी व्यक्ति लंगर में भोजन किए बिना गुरु जी से नहीं मिल सकता था। लंगर प्रथा से जाति-पाति तथा रंग-रूप के भेदभावों को बड़ा धक्का लगा और लोगों में समानता की भावना का विकास हुआ। परिणामस्वरूप सिक्ख एकता के सूत्र में बंधने लगे।
- सिक्ख गुरु साहिबान के शब्दों को एकत्रित करना-गुरु नानक देव जी के शब्दों तथा श्लोकों को गुरु अंगद देव जी ने एकत्रित करके उनके साथ अपने रचे हुए शब्द भी जोड़ दिए थे। यह सारी सामग्री गुरु अंगद देव जी ने गुरु अमरदास जी को सौंप दी थी। गुरु अमरदास जी ने कुछ-एक नए श्लोकों की रचना की और उन्हें पहले वाले संकलन (collection) के साथ मिला दिया। इस प्रकार विभिन्न गुरु साहिबान के शब्दों तथा उपदेशों के एकत्र हो जाने से ऐसी सामग्री तैयार हो गई जो आदि ग्रंथ साहिब के संकलन का आधार बनी।
- मंजी प्रथा-वृद्धावस्था के कारण गुरु साहिब जी के लिए एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाकर अपनी शिक्षाओं का प्रचार करना कठिन हो गया था। अतः उन्होंने अपने पूरे आध्यात्मिक साम्राज्य को 22 प्रांतों में बांट दिया। इनमें से प्रत्येक प्रांत को ‘मंजी’ कहा जाता था। प्रत्येक मंजी सिक्ख धर्म के प्रचार का एक केंद्र थी। गुरु अमरदास जी द्वारा स्थापित मंजी प्रणाली का सिक्ख धर्म के इतिहास में विशेष महत्त्व है। डॉ० गोकुल चंद नारंग के शब्दों में, “गुरु जी के इस कार्य ने सिक्ख धर्म की नींव सुदृढ़ करने तथा देश के सभी भागों में प्रचार कार्य बढ़ाने में विशेष योगदान दिया।”
- उदासियों से सिक्खों को पृथक् करना-गुरु साहिब ने उदासी संप्रदाय के सिद्धांतों का जोरदार शब्दों में खंडन किया। उन्होंने अपने अनुयायियों को समझाया कि कोई भी व्यक्ति, जो उदासी नियमों का पालन करता है, सच्चा सिक्ख नहीं हो सकता। गुरु जी के इन प्रयत्नों से सिक्ख उदासियों से पृथक् हो गए और सिक्ख धर्म का अस्तित्व मिटने से बच गया।
- नई परंपराएं-गुरु अमरदास जी ने सिक्खों को व्यर्थ के रीति-रिवाजों का त्याग करने का उपदेश दिया। हिंदुओं में किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाने पर खूब रोया-पीटा जाता था। परंतु गुरु अमरदास जी ने सिक्खों को रोने-पीटने के स्थान पर ईश्वर का नाम लेने का उपदेश दिया। उन्होंने विवाह की भी नई विधि आरंभ की जिसे आनंद कारज कहते हैं।
- आनंद साहिब की रचना-गुरु अमरदास जी ने एक नई बाणी की रचना की जिसे आनंद साहिब कहा जाता सच तो यह है कि गुरु अमरदास जी का गुरु काल सिक्ख धर्म के इतिहास में विशेष महत्त्व रखता है। गुरु जी के द्वारा बाऊली का निर्माण, मंजी प्रथा के आरंभ, लंगर प्रथा के विस्तार तथा नए रीति-रिवाजों ने सिख धर्म के संगठन में बड़ी सहायता की।
प्रश्न 3.
गुरु अमरदास जी के द्वारा किए गए सुधारों का वर्णन करो। .
उत्तर-
गुरु अमरदास जी के समय में समाज अनेकों बुराइयों का शिकार हो चुका था। गुरु जी इस बात को भली-भांति समझते थे, इसलिए उन्होंने कई महत्त्वपूर्ण सामाजिक सुधार किए। सामाजिक क्षेत्र में गुरु जी के कार्यों का वर्णन निम्नलिखित है-
- जाति-पाति का विरोध-गुरु अमरदास जी ने जाति-मतभेद का खंडन किया। उनका विश्वास था कि जातीय मतभेद परमात्मा की इच्छा के विरुद्ध है। .
- छुआछूत की निंदा-गुरु अमरदास जी ने छुआछूत को समाप्त करने के लिए महत्त्वपूर्ण कार्य किया। उनके लंगर में जाति-पाति का कोई भेदभाव नहीं था। वहां सभी लोग एक साथ बैठकर भोजन करते थे।
- विधवा विवाह-गुरु अमरदास के समय में विधवा विवाह निषेध था। किसी स्त्री को पति की मृत्यु के पश्चात् सारा जीवन विधवा के रूप में व्यतीत करना पड़ता था। गुरु जी ने विधवा विवाह को उचित बताया और इस प्रकार स्त्री जाति को समाज में योग्य स्थान दिलाने का प्रयत्न किया।
- सती-प्रथा की भर्त्सना-उस काल के समाज में एक और बड़ी बुराई सती-प्रथा की थी। जी० वी० स्टॉक के अनुसार, गुरु अमरदास जी ने सती-प्रथा की सबसे पहले निंदा की। उनका कहना था कि वह स्त्री सती नहीं कही जा सकती जो अपने पति के मृत शरीर के साथ जल जाती है। वास्तव में वही स्त्री सती है जो अपने पति के वियोग की पीड़ा को सहन करे।
- पर्दे की प्रथा का विरोध-गुरु जी ने स्त्रियों में प्रचलित पर्दे की प्रथा की भी घोर निंदा की। वह पर्दे की प्रथा को समाज की उन्नति के मार्ग में एक बहुत बड़ी बाधा मानते थे। इसलिए उन्होंने स्त्रियों को बिना पर्दा किए लंगर की सेवा करने तथा संगत में बैठने का आदेश दिया।
- नशीली वस्तुओं की निंदा-गुरु अमरदास जी ने अपने अनुयायियों को नशीली वस्तुओं से दूर रहने का उपदेश दिया। उन्होंने अपने एक ‘शब्द’ में शराब सेवन की खूब निंदा की है।
- सिक्खों में भ्रातृत्व की भावना-गुरु जी ने सिक्खों को यह आदेश दिया कि वे माघी, दीपावली और वैशाखी आदि त्योहारों को एक साथ मिलकर नई परंपरा के अनुसार मनायें। इस प्रकार उन्होंने सिक्खों में भ्रातृत्व की भावना जागृत करने का प्रयास किया।
- जन्म तथा मृत्यु के संबंध में नये नियम-गुरु अमरदास जी ने सिक्खों को जन्म-मृत्यु तथा विवाह के अवसरों पर नये रिवाजों का पालन करने को कहा। ये रिवाज हिंदुओं के रीति-रिवाजों से बिल्कुल भिन्न थे। इनके लिए ब्राह्मण वर्ग को बुलाने की कोई आवश्यकता न थी। इस प्रकार गुरु साहिब ने सिक्ख धर्म को पृथक् पहचान प्रदान की।
सच तो यह है कि गुरु अमरदास जी ने अपने कार्यों से सिक्ख धर्म को नया बल दिया।
प्रश्न 4.
गुरु रामदास जी ने सिक्ख धर्म के विकास के लिए क्या यत्न किए ?
उत्तर-
गुरु रामदास जी सिक्खों के चौथे गुरु थे। उन्होंने सिक्ख पंथ के विकास में निम्नलिखित योगदान दिया
- अमृतसर का शिलान्यास-गुरु रामदास जी ने रामदासपुर की नींव रखी। आजकल इस नगर को अमृतसर कहते हैं। 1577 ई० में गुरु जी ने यहां अमृतसर तथा संतोखसर नामक दो सरोवरों की खुदाई आरंभ की। कुछ ही समय में सरोवर के चारों ओर एक छोटा-सा नगर बस गया। इसे रामदासपुर का नाम दिया गया। गुरु जी इस नगर को हर प्रकार से आत्म-निर्भर बनाना चाहते थे। अत: उन्होंने 52 अलग-अलग प्रकार के व्यापारियों को आमंत्रित किया। उन्होंने एक बाज़ार की स्थापना की जिसे आजकल ‘गुरु का बाज़ार’ कहते हैं।
- मसंद प्रथा का आरंभ-गुरु रामदास जी को अमृतसर तथा संतोखसर नामक सरोवरों की खुदाई के लिए काफ़ी धन की आवश्यकता थी। अत: उन्होंने मसंद प्रथा का आरंभ किया। इसके अनुसार गुरु के मसंद स्थानीय सिख संगत के लिए गुरु के प्रतिनिधि के रूप में कार्य करते थे। वे संगत को गुरु घर से जोड़ते थे और उनकी साझा समस्याओं का समाधान भी करते थे। इन मसंदों ने विभिन्न प्रदेशों में सिक्ख धर्म का खूब प्रचार किया तथा काफ़ी धन राशि एकत्रित की।
- उदासियों से मत-भेद की समाप्ति-गुरु अंगद देव जी तथा गुरु अमरदास जी ने सिक्खों को उदासी संप्रदाय से अलग कर दिया था। परंतु गुरु रामदास जी ने उदासियों से बड़ा विनम्रतापूर्ण व्यवहार किया। उदासी संप्रदाय के संचालक बाबा श्रीचंद जी एक बार गुरु रामदास जी से मिलने आए। दोनों के बीच एक महत्त्वपूर्ण वार्तालाप हुआ। श्रीचंद जी गुरु साहिब की विनम्रता से बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने गुरु जी की श्रेष्ठता को स्वीकार कर लिया।
- सामाजिक सुधार-गुरु रामदास जी ने गुरु अमरदास जी द्वारा आरंभ किए गए नए सामाजिक रीति-रिवाजों को जारी रखा। उन्होंने सती प्रथा की घोर निंदा की, विधवा पुनर्विवाह की अनुमति दी तथा विवाह और मृत्यु संबंधी कुछ नए नियम जारी किए।
- अकबर के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध -मुग़ल सम्राट अकबर सभी धर्मों के प्रति सहनशील था। वह गुरु रामदास जी का बड़ा सम्मान करता था। कहा जाता है कि गुरु रामदास जी के समय में एक बार पंजाब बुरी तरह अकाल की चपेट में आ गया जिससे किसानों की दशा बहुत खराब हो गई, परंतु गुरु जी के कहने पर अकबर ने पंजाब के कृषकों का पूरे वर्ष का लगान माफ कर दिया।
- गुरुगद्दी का पैतृक सिद्धांत-गुरु रामदास जी ने गुरुगद्दी को पैतृक रूप प्रदान किया। उन्होंने ज्योति जोत समाने से कुछ समय पूर्व गुरुगद्दी अपने छोटे, परंतु सबसे योग्य पुत्र अर्जन देव जी को सौंप दी। गुरु रामदास जी ने गुरुगद्दी को पैतृक बनाकर सिक्ख इतिहास में एक नवीन अध्याय का श्रीगणेश किया। परंतु एक बात ध्यान देने योग्य है कि गुरु पद का आधार गुण तथा योग्यता ही रहा।
सच तो यह है कि गुरु रामदास जी ने बहुत ही कम समय तक सिक्ख मत का मार्ग-दर्शन किया। परंतु इस थोड़े समय में ही उनके प्रयत्नों से सिक्ख धर्म के रूप में विशेष निखार आया।
सिक्ख धर्म का विकास PSEB 9th Class History Notes
- गुरु अंगद देव जी – दूसरे सिक्ख गुरु अंगद देव जी ने गुरु नानक साहिब की बाणी एकत्रित की और इसे गुरुमुखी लिपि में लिखा। उनका यह कार्य गुरु अर्जन साहिब द्वारा संकलित ‘ग्रंथ साहिब’ की तैयारी का पहला चरण सिद्ध हुआ। गुरु अंगद देव जी ने स्वयं भी गुरु नानक देव जी के नाम से बाणी की रचना की। इस प्रकार उन्होंने गुरु पद की एकता को दृढ़ किया। संगत और पंगत की संस्थाएं गुरु अंगद साहिब के अधीन भी जारी रहीं।
- गुरु अमरदास जी – गुरु अमरदास जी सिक्खों के तीसरे गुरु थे। वह 22 वर्ष तक गुरुगद्दी पर रहे। वह खडूर साहिब से गोइंदवाल साहिब चले गए। वहां उन्होंने एक बाउली बनवाई जिसमें उनके सिक्ख (शिष्य) धार्मिक अवसरों पर स्नान करते थे। गुरु अमरदास जी. ने विवाह की एक सरल विधि प्रचलित की और उसे आनंद-कारज का नाम दिया। उनके समय में सिक्खों की संख्या काफ़ी बढ़ गई।
- गुरु रामदास जी – चौथे गुरु रामदास जी ने रामदासपुर (आधुनिक अमृतसर) में रह कर प्रचार कार्य आरंभ किया। इसकी नींव गुरु अमरदास जी के जीवन-काल के अंतिम वर्षों में रखी गई थी। श्री रामदास जी ने रामदासपुर में एक बहुत बड़ा सरोवर बनवाया जो अमृतसर अर्थात् अमृत के सरोवर के नाम से प्रसिद्ध हुआ। उन्हें अमृतसर तथा संतोखसर नामक तालाबों की खुदाई के लिए काफ़ी धन की आवश्यकता थी। इसलिए उन्होंने मसंद प्रथा का श्रीगणेश किया। उन्होंने गुरुगद्दी को पैतृक रूप भी प्रदान किया।
- गुरुमुखी लिपि को मानकीकरण – गुरु अंगद देव जी ने गुरुमुखी लिपि का मानकीकरण किया। कहते हैं कि गुरु अंगद देव जी ने गुरुमुखी के प्रचार के लिए गुरुमुखी वर्णमाला में बच्चों के लिए ‘बाल बोध’ की रचना की। आम लोगों की बोली होने के कारण इससे सिक्ख धर्म के प्रचार के कार्य को बढ़ावा मिला। आज सिक्खों के सभी धार्मिक ग्रंथ इसी भाषा में हैं।
- मंजी प्रथा – गुरु अमरदास जी के समय में सिक्खों की संख्या काफी बढ़ चुकी थी। परंतु वृद्धावस्था के कारण गुरु साहिब जी के लिए एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाकर अपनी शिक्षाओं का प्रचार करना कठिन हो गया था। अत: उन्होंने अपने सारे आध्यात्मिक साम्राज्य को 22 प्रांतों में बांट दिया। इनमें से प्रत्येक प्रांत को ‘मंजी’ कहा जाता था। प्रत्येक मंजी सिक्ख धर्म के प्रचार का एक केंद्र थी जिसके संचालन का कार्यभार गुरु जी ने अपने किसी विद्वान् श्रद्धालु शिष्य को सौंप रखा था।
- अनंदु साहिब की रचना – गुरु अमरदास जी ने एक नई बाणी की रचना की जिसे ‘अनंदु साहिब’ कहा जाता है। इस बाणी से सिक्खों में वेद-मंत्रों के उच्चारण का महत्त्व बिल्कुल समाप्त हो गया।
- गोइंदवाल साहिब का निर्माण – गुरु अंगद देव जी ने गोइंदवाल साहिब नामक नगर की स्थापना की। गुरु अमरदास जी के समय में यह नगर एक प्रसिद्ध धार्मिक केंद्र बन गया। आज भी यह सिक्खों का एक पवित्र धार्मिक स्थान है।
- लंगर प्रथा का विस्तार – श्री गुरु अंगद देव जी ने श्री गुरु नानक देव जी द्वारा आरम्भ की गई लंगर प्रथा का विस्तार किया। उन्होंने यह आज्ञा दी कि जो कोई उनके दर्शन को आए, वह पहले लंगर में भोजन करे। यहां प्रत्येक व्यक्ति बिना किसी भेद-भाव के भोजन करता था। इससे जाति-पाति की भावनाओं को धक्का लगा और सिक्ख धर्म के प्रसार में सहायता मिली।
- 31 मार्च, 1504-श्री गुरु अंगद देव जी का जन्म।
- 2 सितंबर, 1539 ई० से 29 मार्च 1552 ई०-गुरु अंगद देव जी गुरुगद्दी पर विराजमान रहे।
- 1546 ई०-श्री गुरु अंगद देव जी द्वारा गोइंदवाल साहिब नगर की स्थापना।
- 29 मार्च, 1552-श्री गुरु अंगद देव जी ज्योति-जोत समाए।
- 5 मई, 1479 ई०-श्री गुरु अमरदास जी का जन्म।
- मार्च 1552 ई०-श्री गुरु अमरदास जी गुरुगद्दी पर विराजमान।
- मार्च 1559 ई०- श्री गुरु अमरदास जी ने गोइंदवाल साहिब में बाउली का निर्माण कार्य पूरा किया।
- 1574 ई०- श्री गुरु अमरदास जी ज्योति-जोत समाए।
- 24 सितंबर, 1534 ई०-श्री गुरु रामदास जी का जन्म।
- 1574 ई० से 1581 ई०-श्री गुरु रामदास जी गुरुगद्दी पर विराजमान रहे।
- 1 सितंबर, 1581 ई०-श्री गुरु रामदास जी ज्योति-जोत समाए।