Punjab State Board PSEB 9th Class Hindi Book Solutions Hindi Grammar vartane वर्तनी Exercise Questions and Answers, Notes.
PSEB 9th Class Hindi Grammar वर्तनी
निम्नलिखित शब्दों के शुद्ध रूप लिखिए:
उत्तर:
नीचे लिखे शब्दों के शुद्ध रूप लिखिए
रूची, पइसा, साधारन, ढूढना, आर्शीवाद, समाजिक, विध्या, विषेश, रूपया, स्वस्थ, उज्जवल, विपलव, कवित्री, क्रमश, अहिल्या, उन्होने, जन्माध, पेड़, टेड़ी, कृप्या, उपगृह, आर्दश, जजमान, मिष्ठान्न, विषद।
उत्तर:
रुचि, पैसा, साधारण, ढूँढ़ना, आशीर्वाद, सामाजिक, विद्या, विशेष, रुपया, स्वास्थ्य, उज्वल, विप्लव, कवयित्री, क्रमशः, अहल्या, उन्होंने, जन्मांध, पेड़, टेढ़ी, कृपया, उपग्रह, आदर्श, यजमान, मिष्ठान, विषाद।
एक वाक्य में उत्तर दीजिए
प्रश्न 1.
वर्तनी शब्द का क्या अर्थ होता है?
उत्तर:
वर्तनी शब्द का अर्थ होता है-अनुकरण करना; पीछे-पीछे चलना।
प्रश्न 2.
वर्तनी संबंधी अशुद्धियों से बचने के लिए क्या किया जाना चाहिए?
उत्तर:
शब्दों का शुद्ध उच्चारण करना चाहिए।
प्रश्न 3.
य, व, ह के पहले पंचमाक्षर हो तो वहाँ ………. लिखा जाता है।
उत्तर:
पंचमाक्षर ही।
निम्नलिखित शब्दों के शुद्ध रूप लिखिए
प्रश्न 1.
वर्तनी से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
‘वर्तनी’ शब्द का अर्थ है-अनुकरण करना अथवा पीछे-पीछे चलना। लेखन व्यवस्था में वर्तनी शब्द स्तर पर शब्द की ध्वनियों के पीछे-पीछे चलती है। हिंदी भाषा जिस प्रकार बोली जाती है, वैसे ही लिखी भी जाती है। इस प्रकार उच्चरित शब्द के लेखन में प्रयोग होने वाले लिपि चिह्नों के व्यवस्थित क्रम को वर्तनी कहते हैं; जैसे-‘उ प का र’- इस उदाहरण में पहले स्थान पर ‘उ’, दूसरे स्थान पर ‘प’, तीसरे स्थान पर ‘का’ और चौथे स्थान पर ‘र’ बोलने से इसे इसी क्रम में लिखने पर शब्द ‘उपकार’ बनता है।
प्रश्न 2.
वर्तनी की परिभाषा लिखिए।
उत्तर:
लेखन में प्रयोग किए जाने वाले लिपि चिह्नों के व्यवस्थित क्रम को वर्तनी कहते हैं।
प्रश्न 3.
वर्तनी संबंधी अशुद्धियों से बचने के लिए किन बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए?
उत्तर:
वर्तनी संबंधी अशुद्धियों से बचने के लिए शब्दों का शुद्ध उचारण करना चाहिए क्योंकि शब्दों में ध्वनियों की एक निश्चित व्यवस्था होती है। इस व्यवस्था के अनुसार लिखने से वर्तनी की अशुद्धियाँ नहीं होती। लिखते समय शब्दों के मानक रूपों का प्रयोग करना चाहिए।
प्रश्न 4.
शुद्ध वर्तनी लेखन की नियमों का वर्णन कीजिए।
उत्तर;
शुद्ध वर्तनी लेखन के प्रमुख नियम निम्नलिखित हैं-
- जिन व्यंजनों के अंत में खड़ी पाई जाती है, उन्हें जब दूसरे व्यंजन के साथ जोड़ते हैं तो यह हटा दी जाती है; जैसे-तथ्य में ‘थ’ को ‘४’ के रूप में प्रयोग किया है।
- स्वर रहित पंचमाक्षर जब अपने वर्ग के व्यंजन के पहले प्रयुक्त होता है तो उसे अनुस्वार (.) के रूप में लिखा जाता है; जैसे-पंकच, दंड, पंजाब, प्रारंभ।
- जब किसी शब्द में श, ष, स में से सभी अथवा दो का एक साथ प्रयोग हो तो उनका प्रयोग वर्णमाला क्रम से होता है; जैसे-शासन, शेषनाग।
- जब कोई पंचमाक्षर अन्य पंचमाक्षर के साथ संयुक्त होता है तो पंचमाक्षर ही लिखा जाता है; जैसे-जन्म, निम्न, अन्न।
- यदि य, व, ह के पहले पंचमाक्षर हो तो वहाँ पंचमाक्षर ही लिखा जाता है; जैसे-पुण्य, कन्हैया, अन्य।
- जब य, र, ल, व और श, ष, स, ह से पहले ‘सम्’ उपसर्ग लगता है तो वहाँ ‘म्’ के स्थान पर अनुस्वार लगता है; जैसे-सम् + वाद = संवाद, सम् + सार = संसार।
- जब किसी शब्द के अंत में ‘ई’ अथवा इसकी मात्रा पी’ हो तो उस शब्द का बहुवचन बनाते समय ‘ई’ अथवा “‘ को “f हो जाता है; जैसे-दवाई = दवाइयाँ, लड़की = लड़कियाँ।
- जब किसी शब्द के अंत में ‘ऊ’ अथवा ‘ . ‘ हो तो बहुवचन बनाते समय उसे ‘उ’ अथवा ‘ . ‘ हो जाता है; जैसे-लटू = लट्टुओं, आलू = आलुओं।
- ‘ट’ वर्ग के पहले तथा ‘ऋ’ के बाद ‘ष’ का प्रयोग होता है; जैसे-नष्ट, कृषि।
- ऋ र, ष् के बाद ‘न्’ के आने पर उसे ‘ण’ हो जाता है। ‘न्’ के बीच में कोई स्वर, कवर्ग, पवर्ग, अन्तःस्थ आने पर भी ‘न्’ को ‘ण’ होता है।
- अल्पप्राण और महाप्राण वर्गों के उच्चारण में ग़लती होने से भी अशुद्धियाँ हो जाती हैं, अत: इनके उच्चारण पर विशेष ध्यान देना चाहिए।
- संधि के शब्दों के शुद्ध रूप संधि के नियमों के अनुसार होने चाहिए।
- रेफ (‘) स्वर सहित र् अपने से अगले व्यंजन पर रेफ (‘) के रूप में लगता है और पदेन ‘स’ (घ) व्यंजन के नीचे तिरछा (प्र) होकर लगता है; जैसे- ध् + अ + र् + म् + अ = धर्म;
प् + अ + र् + ध् + आ + न् + अ = प्रधान।
वर्तनी की कुछ सामान्य अशुद्धियों के शद्ध रूप यहाँ दिए जा रहे
(1) ‘अ’ की जगह ‘आ’ का प्रयोग करने से होने वाली अशुद्धियां
(2) ‘आ’ की जगह ‘अ’ का प्रयोग करने से होने वाली अशुद्धियाँ
(3) ‘इ’ की जगह ‘ई’ का प्रयोग करने से होने वाली अशुद्धियाँ
(4) ‘ई’ की जगह ‘इ’ का प्रयोग करने से होने वाली अशुद्धियाँ
(5) ‘उ’ की जगह ‘ऊ’ का प्रयोग करने से होने वाली अशुद्धियाँ
(6) ‘ऊ’ की जगह ‘उ’ का प्रयोग करने से होने वाली अशुद्धियाँ
(7) ‘ए’ की जगह ‘ऐ’ के प्रयोग से होने वाली अशुद्धियाँ
(8) ऐ की जगह ‘ए’ के प्रयोग से होने वाली अशुद्धियाँ
(9) ‘ओ’ की जगह ‘औ’ के प्रयोग से होने वाली अशुद्धियाँ
(10) ‘औ’ की जगह ‘ओ’ के प्रयोग से होने वाली अशुद्धियाँ
(11) ‘ऋ’ सम्बन्धी अशुद्धियाँ
(12) नासिक्य व्यंजन सम्बन्धी अशुद्धियाँ
(13) अनुस्वार एवं अनुनासिक सम्बन्धी अशुद्धियाँ
(14) महाप्राण की जगह अल्पप्राण के प्रयोग से होने वाली अशुद्धियाँ
(15) अल्पप्राण की जगह महाप्राण के प्रयोग से होने वाली अशुद्धियाँ
(16) अक्षर लोप सम्बन्धी अशुद्धियाँ
(17) व और ब सम्बन्धी अशुद्धियाँ
(18) ‘ष’ के स्थान पर ‘श’ के प्रयोग से होने वाली अशुद्धियाँ
(19) ‘श’ के स्थान पर ‘स’ के प्रयोग करने से होने वाली अशुद्धियाँ
(20) ‘स’ के स्थान पर ‘श्’ के प्रयोग करने से होने वाली अशुद्धियाँ :
(21) ऑ’ के स्थान पर ‘आ’, ‘ओ’ के प्रयोग करने से होने वाली अशुद्धियाँ
(22) अनावश्यक स्वर जोड़ने की अशुद्धियाँ
(23) अनावश्यक व्यंजन जोड़ने की अशुद्धियाँ
(24) अक्षरों के स्थान-परिवर्तन सम्बन्धी अशुद्धियाँ
(25) ‘छ’ और ‘क्ष’ के सम्बन्ध में अशुद्धियाँ
(26) ग्य और ‘ज्ञ’ के सम्बन्ध में अशुद्धियाँ
(27) प्रत्यय संबंधी अशुद्धियाँ
(28) संधि संबंधी अशुद्धियाँ
(29) द्वित्व व्यंजन संबंधी अशुद्धियाँ
(30) विसर्ग (:) संबंधी अशुद्धियाँ
(31) रेफ (‘) अर्थात् स्वर रहित ‘र’ संबंधी अशुद्धियाँ :
(32) पदेन ‘र’ संबंधी अशुद्धियाँ
(33) व्यंजन गुच्छों की अशुद्धियाँ:
(34) विकसित ध्वनियों की अशुद्धियाँ
(35) ‘य’ और ‘ज’ संबंधी अशुद्धियाँ :
(36) ‘ज’ और ‘ज़’ संबंधी अशुद्धियाँ :
(37) समास की अशुद्धियाँ
(38) संयुक्ताक्षरों की अशुद्धियाँ