Punjab State Board PSEB 9th Class Hindi Book Solutions Chapter 6 पाँच मरजीवे Textbook Exercise Questions and Answers.
PSEB Solutions for Class 9 Hindi Chapter 6 पाँच मरजीवे
Hindi Guide for Class 9 PSEB पाँच मरजीवे Textbook Questions and Answers
(क) विषय-बोध
1. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-दो पंक्तियों में दीजिए :
प्रश्न 1.
कवि ने गुरु गोबिन्द सिंह जी के लिए किन-किन विशेषणों का प्रयोग इस कविता में किया है ?
उत्तर:
प्रस्तुत कविता में कवि ने गुरु गोबिन्द सिंह जी के लिए खालस महामानव, युग-द्रष्टा तथा युग-स्रष्टा विशेषणों का प्रयोग किया है। कवि ने दशमेश को तेज का पुंज भी कहा है।
प्रश्न 2.
कविता में ‘दशम् नानक’ किसे कहा गया है ?
उत्तर:
प्रस्तुत कविता में सिक्खों के दशम् गुरु श्री गुरु गोबिन्द सिंह जी को ‘दशम् नानक’ कहा गया है।
प्रश्न 3.
सन् 1699 ई० में विशाल मेला कहाँ लगा था ?
उत्तर:
सन् 1699 ई० में विशाल मेला आनन्दपुर साहिब में लगा था।
प्रश्न 4.
‘मरजीवा’ शब्द का क्या अर्थ है ?
उत्तर:
मरजीवा का अर्थ है मरने को तैयार। मरजीवा का एक अर्थ मर कर जीवित अर्थात् अमर होने वाले को भी कहते हैं।
प्रश्न 5.
अकाल पुरुष का फ़रमान क्या था ?
उत्तर:
अकाल पुरुष का फ़रमान था कि अन्याय से मुक्ति दिलाने के लिए तथा धर्म की रक्षा करने के लिए एक व्यक्ति का बलिदान चाहिए।
प्रश्न 6.
पाँचों मरजीवों के नाम लिखिए।
उत्तर:
पाँचों मरजीवों के नाम हैं-लाहौर का दयाराम (भाई दया सिंह), हस्तिनापुर का धर्मराय (भाई धर्म सिंह), द्वारिका का मोहकम चंद (भाई मोहकम सिंह), बिदर का साहब चंद (भाई साहिब सिंह) तथा पुरी का हिम्मत राय (भाई हिम्मत सिंह)।
प्रश्न 7.
जो व्यक्ति न्याय के लिए बलिदान देता है, धर्म की रक्षा के लिए शीश कटा लेता है, उसे हम क्या कह कर पुकारते हैं ?
उत्तर:
जो व्यक्ति न्याय के लिए बलिदान देता है, धर्म की रक्षा के लिए शीश कटा कर बलिदान देता है, उसे हम मरजीवा कहते हैं।
प्रश्न 8.
गुरु जी ने वीरों की पहचान क्या बताई ?
उत्तर:
गुरु जी के अनुसार शुभाचरण करते हुए जीवन पथ पर निर्भय होकर बलिदान देना ही वीरों की पहचान है।
प्रश्न 9.
‘धर्म-अधर्म के संघर्ष की रात’ का क्या अर्थ है ?
उत्तर:
प्रस्तुत पंक्ति का अर्थ यह है कि वह रात धर्म की रक्षा और अधर्म अर्थात् अन्याय से मुक्ति के उपाय सोचने की रात थी।
2. निम्नलिखित पद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए
प्रश्न 1.
तेज पुंज गुरु गोबिन्द के हाथों में
है नंगी तलवार
लहराती हवा में बारम्बार
“अकाल पुरुष का है फरमान
अभी तुरन्त चाहिये एक बलिदान
अन्याय से मुक्ति दिलाने को
धर्म बचाने, शीश कटाने को
मरजीवा क्या कोई है तैयार ?
मुझे चाहिये शीश एक उपहार !
जिसका अद्भुत त्याग देश की
मरणासन्न चेतना में कर दे नवरक्त संचार।”
उत्तर:
कवि कहता है कि दिव्य ज्योति से प्रकाशमान गुरु गोबिन्द सिंह जी के हाथों में नंगी तलवार थी, जिसे बार-बार हवा में लहराते हुए उन्होंने कहा’अकाल पुरुष की यह आज्ञा है कि अभी तुरन्त एक व्यक्ति का बलिदान चाहिए, जो अन्याय से मुक्ति दिलाने के लिए, धर्म की रक्षा करने के लिए अपना सिर कटाने को तैयार हो। है कोई ऐसा व्यक्ति जो मरने को तैयार हो ? मुझे एक सिर भेंट स्वरूप चाहिए जिसका अनोखा त्याग देश की दयनीय दशा में नया खून भर दे।’
प्रश्न 2.
लीला से पर्दा हटा गुरु प्रकट हुए
चकित देखते सब पांचों बलिदानी संग खड़े
गुरुवर बोले “मेरे पांच प्यारे सिंघ
साहस, रूप, वेश, नाम में न्यारे सिंघ
दया सिंघ, धर्म सिंघ और मोहकम सिंघ
खालिस जाति खालसा के साहब सिंघ व हिम्मत सिंघ
शुभाचरण पथ पर निर्भय देंगे बलिदान ।
अब से पंथ “खालसा” मेरा ऐसे वीरों की पहचान।”
उत्तर:
कवि कहते हैं कि पाँचों मरजीवों को भीतर ले जाकर उनके सिर काटने की लीला करने के बाद गुरु जी इस लीला से पर्दा हटा कर बाहर आए। उनके साथ पाँचों मरजीवों को खड़ा देख कर सभी हैरान रह गये। तब गुरु जी बोले-‘ये मेरे पाँच प्यारे सिंह हैं। ये सिंह साहस, रूप, वेश और नाम से अलग ही सिंह हैं अर्थात् विशेष सिंह हैं। गुरु जी ने उनके नामों के साथ सिंह शब्द जोड़ते हुए कहा कि खालिस जाति खालसा पंथ से सम्बन्धित ये दया सिंह, धर्म सिंह, मोहकम सिंह, साहब सिंह एवं हिम्मत सिंह हैं, जो अपने अच्छे आचरण के रास्ते पर चलते हुए निडर होकर बलिदान देंगे। आज से मेरा खालसा पंथ ऐसे वीरों द्वारा ही पहचाना जाएगा।’
(ख) भाषा-बोध
1. शब्दांश + मूल शब्द (अर्थ) – नवीन शब्द (अर्थ)
अ + न्याय (इन्साफ़) – अन्याय (इन्साफ़ के विरुद्ध कार्य)
वि + श्वास (साँस) – विश्वास (भरोसा)
उपर्युक्त मूल शब्द (न्याय) में ‘अ’ शब्दांश लगाने से ‘अन्याय’ तथा ‘श्वास में ‘वि’ शब्दांश लगाने से ‘विश्वास’ नवीन शब्द बने हैं तथा उनके अर्थ में भी परिवर्तन आ गया है। ये ‘अ’ तथा ‘वि’ उपसर्ग हैं। अतएव जो शब्दांश किसी शब्द के शुरू में जुड़कर उसके अर्थ में परिवर्तन ला देते हैं, वे उपसर्ग कहलाते हैं।
निम्नलिखित शब्दों में से उपसर्ग तथा मूल शब्द अलग-अलग करके लिखिए
प्रश्न 1.
शब्द – उपसर्ग – मूल शब्द
अधर्म – अ – धर्म
अतिरिक्त – ………. – ……..
उपहार – ………….. – ………….
प्रकट – ………….. – ………….
उत्तर:
शब्द – उपसर्ग – मूल शब्द
अतिरिक्त – अति – रिक्त
उपहार – उप – हार
प्रकट – प्र – कट
प्रश्न 2.
मूल शब्द (अर्थ) + शब्दांश = नवीन शब्द (अर्थ)
सन्न (स्तब्ध, चुप) + आटा. = सन्नाटा (स्तब्धता, चुप्पी)
कायर (डरपोक) + ता = कायरता (डरपोकपन)
उपर्युक्त मूल शब्द ‘सन्न’ में ‘आटा’ लगाने से ‘सन्नाटा’ तथा ‘कायर’ शब्द में ‘ता’ लगाने से ‘कायरता’ नवीन शब्द बने हैं तथा उनके अर्थ में भी परिवर्तन आ गया है। ये ‘आटा’ तथा ‘ता’ प्रत्यय हैं। अतएव जो शब्दांश किसी शब्द के अंत में जुड़कर उनके अर्थ में परिवर्तन ला देते हैं, वे प्रत्यय कहलाते हैं।
निम्नलिखित शब्दों में से प्रत्यय तथा मूल शब्द अलग-अलग करके लिखिए
शब्द – मूल शब्द – प्रत्यय
वैशाखी – ………. – …………
निवासी – ………. – …………
बलिदानी – ………… – ………….
बलिहारी – …………. – …………..
उत्तर:
शब्द – मूल शब्द – प्रत्यय
वैशाखी – वैशाख – ई
निवासी – निवास – ई
बलिदानी – बलिदान – ई
बलिहारी – बलिहार – ई
(ग) पाठेत्तर सक्रियता
1. स्कूल की प्रार्थना सभा में खालसा पंथ की साजना, वैसाखी पर्व तथा श्री गुरु गोबिन्द सिंह जी के जन्म दिवस के अवसर पर प्रेरणादायक विचार प्रस्तुत कीजिए।
2. श्री आनन्दपुर साहिब के ऐतिहासिक महत्त्व के बारे में अपने पुस्तकालय से पुस्तक लेकर पढ़िए अथवा इंटरनेट से जानकारी प्राप्त कीजिए।
3. अपने माता-पिता के साथ श्री आनन्दपुर साहिब के ऐतिहासिक गुरुद्वारे के दर्शन कीजिए और अन्य स्थलों का भ्रमण कीजिए।
4. श्री आनन्दपुर साहिब के ऐतिहासिक स्थलों के चित्र एकत्रित कीजिए। उत्तर-विद्यार्थी स्वयं करें।
(घ) ज्ञान-विस्तार
1. आनन्दपुर साहिब : आनन्दपुर साहिब पंजाब प्रदेश के रूपनगर जिले में स्थित है। यह स्थान चंडीगढ़ से 85 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इसकी स्थापना सन् 1664 ई० में सिक्खों के नौवें गुरु तेग़ बहादुर ने की थी। आनन्दपुर साहिब में स्थित प्रसिद्ध गुरुद्वारे तख्त श्री केसगढ़ साहिब की बहुत महानता है। ऐसा माना जाता है कि यहाँ पर श्रद्धालुओं की हर मुराद पूरी होती है।
2. अन्य प्रसिद्ध ऐतिहासिक स्थल : सेंट्रल किला श्री आनन्दगढ़ साहिब, लोहगढ़ किला, होलगढ़ किला, फतेहगढ़ किला एवं तारागढ़ किला। इसके अतिरिक्त आनन्दपुर साहिब में बना ‘विरासत-ए-खालसा’ संग्रहालय भी बहुत महत्त्वपूर्ण स्थल है। इसमें श्री गुरु नानक देव जी से लेकर श्री गुरु ग्रंथ साहिब की स्थापना तक सिक्ख धर्म के विकास को बखूबी दर्शाया गया है।
PSEB 9th Class Hindi Guide पाँच मरजीवे Important Questions and Answers
प्रश्न 1.
गुरु जी ने संगत के सम्मुख मरजीवे की माँग क्यों रखी ?
उत्तर:
गुरु जी ने संगत के सम्मुख किसी मरजीवे के बलिदान की भारत के लोगों को मुग़ल शासकों के अत्याचार और अन्याय से मुक्ति दिलाने के लिए माँग की। वे धर्म की रक्षा करना चाहते थे। उनका मानना था कि मरजीवे के त्याग और बलिदान से मरणासन्न हिन्दू लोगों में नए खून का संचार होगा।
प्रश्न 2.
गुरु जी ने पाँच सिंहों की किन विशेषताओं पर प्रकाश डाला है ?
उत्तर:
गुरु जी ने पाँच सिंह साहिबान को साहस, रूप, वेश और नाम से न्यारे सिंह कहा। ये पाँचों सिंह शुभाचरण के मार्ग पर चलते हुए निर्भय होकर बलिदान देंगे।
प्रश्न 3.
‘जूझना ही जीवन है-जीवन से मत भागो’ इस पंक्ति का अर्थ स्पष्ट करें।
उत्तर:
प्रस्तुत पंक्ति का अर्थ है कि संघर्ष करना ही जीवन की निशानी है। अत: हमें जीवन सुखपूर्वक बिताने के लिए संघर्ष करना चाहिए और संघर्ष करने से कभी भी मुँह नहीं मोड़ना चाहिए। संघर्ष करने से जी चुराना जीवन से भागने के बराबर होगा।
प्रश्न 4.
सन् सोलह सौ निन्यानवे की वैशाखी का ऐतिहासिक महत्त्व क्या है ?
उत्तर:
सन् सोलह सौ निन्यानवे की वैशाखी का ऐतिहासिक महत्त्व यह है कि इस दिन गुरु गोबिन्द सिंह जी ने आनन्दपुर साहिब में अपने शिष्यों का एक विशाल मेला आयोजित किया और हाथ में नंगी तलवार लेकर पाँच बार एक-एक मरजीवे के शीश की माँग की । बलिदान के लिए तैयार पाँच शिष्यों ने आपकी माँग पूरी की। इस तरह गुरु जी ने पाँच बलिदानियों की तलवार पर परीक्षा करके खालसा पंथ की नींव रखी और उसको निराला रूप देते हुए कहा कि उनके सिंह अच्छे आचरण पर चलते हुए निडर होकर बलिदान देंगे। इसके बाद गुरु जी के सारे शिष्य सिंह बन गये और उन्होंने कुर्बानियाँ देकर ज़ालिम मुग़ल शासकों और अधर्म का नाश कर दिया। सन् 1699 ई० की वैशाखी के पवित्र पर्व पर ‘खालसा’ का सृजन पाँच प्यारों के रूप में किया। यह घटना धर्म की रक्षा और गरीब को अभयदान देने का कारण बनी। इसी दिन से गुरु जी ने अपने शिष्यों को अपने नाम के साथ ‘सिंह’ शब्द लगाने का आदेश दिया और उन्हें शुद्ध आचरण करते सदा निर्भय होकर बलिदान देने के लिए तैयार रहने का आदेश भी दिया।
प्रश्न 5.
पाँच प्यारों के चुनाव की घटना का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर:
सन् 1699 की वैशाखी का दिन था। आनन्दपुर साहिब नामक स्थान पर गुरु गोबिन्द सिंह जी के शिष्य और भक्त बहुत बड़ी संख्या में एकत्रित हुए थे। गुरु जी ने संगत से धर्म की रक्षा तथा अन्याय से मुक्ति पाने के लिए अपने शीश का बलिदान देने वाले एक मरजीवे की माँग की। संगत में चुप्पी छा गयी। तभी लाहौर के खत्री दया राम ने अपने आप को बलिदान के लिए प्रस्तुत किया। गुरु जी उसे एक तम्बू में ले गए और लोगों ने सिर कटने की आवाज़ सुनी। थोडी देर बाद गुरु जी ने और बलिदान की माँग की। इस बार हस्तिनापुर का जाट धर्मराय आगे बढ़ा। गुरु जी उसे भी भीतर ले गये। इसी तरह द्वारिका के मोहकम चन्द धोबी, बिदर के साहब चंद नाई और पुरी के हिम्मतराय ने भी स्वयं को बलिदान के लिए प्रस्तुत किया। थोड़ी देर बाद लोगों ने उन पाँचों को गुरु जी के साथ तम्बू के बाहर जीवित खड़े देखा तो लोग हैरान रह गए। लोग गुरु जी की लीला को समझ न सके।
एक शब्द/एक पंक्ति में उत्तर दीजिए
प्रश्न 1.
‘पाँच मरजीवे’ किस कवि की रचना है ?
उत्तर:
योगेन्द्र बख्शी की।
प्रश्न 2.
‘सप्तसिन्धु’ किस प्रदेश का वैदिक काल में नाम था ?
उत्तर:
पंजाब का।
प्रश्न 3.
‘दशम नानक’ किन्हें कहते हैं ?
उत्तर:
श्री गुरु गोबिन्द सिंह जी को दशम गुरु कहते हैं।
प्रश्न 4.
श्री गुरु गोबिन्द सिंह जी के हाथ में क्या लहरा रही थी ?
उत्तर:
नंगी तलवार।
प्रश्न 5.
‘मरजीवा’ कौन होता है ?
उत्तर:
जो मरने के लिए तैयार हो।
हाँ-नहीं में उत्तर दीजिए
प्रश्न 6.
धर्मराय लाहौर का निवासी था।
उत्तर:
नहीं।
प्रश्न 7.
द्वारिका का बलिदानी मोहकम चंद धोबी था।
उत्तर;
हाँ।
सही-गलत में उत्तर दीजिए
प्रश्न 8.
श्री गुरु गोबिन्द सिंह जी ने पाँच मरजीवों को पांच प्यारे’ कहा।
उत्तर:
सही।
प्रश्न 9.
लोहड़ी के अवसर पर आनन्दपुर साहिब में खालसा पंथ की नींव रखी गई।
उत्तर:
गलत।
रिक्त स्थानों की पूर्ति करें
प्रश्न 10.
……. जब …….. की ….. से भागी।
उत्तर:
कायरता जब सप्तसिन्धु की धरती से भागी।
प्रश्न 11.
अब से पंथ …….. मेरा ऐसे …… की पहचान।
उत्तर:
अब से पंथ खालसा मेरा ऐसे वीरों की पहचान।
बहुविकल्पी प्रश्नों में से सही विकल्प चुनकर उत्तर लिखें
प्रश्न 12.
साहब चंद नाई कहाँ का निवासी था
(क) पुरी
(ख) द्वारिका
(ग) लाहौर
(घ) बिदर।
उत्तर:
(घ) बिदर।
प्रश्न 13.
आनन्दपुर साहिब में किस वर्ष खालसा पंथ की नींव रखी गई ?
(क) 1691
(ख) 1695
(ग) 1699
(घ) 1697.
उत्तर:
(ग) 1699 में।
प्रश्न 14.
अन्याय से मुक्ति दिलाने के लिए गुरु जी ने किसकी मांग की ?
(क) तलवार की
(ख) बलिदानियों की
(ग) सेना की
(घ) गोला-बारूद की।
उत्तर:
(ख) बलिदानियों की।
प्रश्न 15.
किसकी बांह थाम कर “दशमेश खिल उठे” ?
(क) दयाराम की
(ख) धर्मराय की
(ग) साहब चंद की
(घ) मोहकम चंद की।
उत्तर:
(क) दयाराम की।
‘पाँच मरजीवे सप्रसंग व्याख्या
1. एक सुबह आनन्दपुर साहिब में जागी,
कायरता जब सप्तसिन्धु की धरती से भागी।
धर्म-अधर्म के संघर्ष की रात।
एक खालस महामानव।
युग द्रष्टा-युग स्रष्टा।
साहस का ज्वलन्त सूर्य ले हाथ
आह्वान कर रहा
जागो वीरो जागो
जूझना ही जीवन है-जीवन से मत भागो।
शब्दार्थ:
सुबह = प्रातः । सप्तसिन्धु = सात नदियाँ (वैदिक काल में पंजाब को सप्त सिन्धु कहा जाता था, क्योंकि यहाँ सात नदियाँ बहती थीं।)। खालस = शुद्ध। महामानव = महापुरुष। युग द्रष्टा = ज़माने को देखने वाला। युग स्रष्टा = ज़माने का निर्माण करने वाला। ज्वलन्त = जलता हुआ, प्रकाशमान। आह्वान करना = बुलाना। जूझना = संघर्ष करना।
प्रसंग:
प्रस्तुत पद्यांश डॉ० योगेन्द्र बख्शी द्वारा रचित कविता ‘पाँच मरजीवे’ में से लिया गया है। प्रस्तुत कविता में कवि ने सन् 1699 ई० में आनन्दपुर साहिब में गुरु गोबिन्द सिंह जी द्वारा खालसा पंथ की नींव रखे जाने के समय पंच प्यारों के साहस और आत्मबलिदान का वर्णन किया है।
व्याख्या:
कवि कहता है कि आनन्दपुर साहिब में एक दिन सूर्योदय के साथ ही सात नदियों की धरती से कायरता भाग गई। बीती रात धर्म और अधर्म के संघर्ष की रात थी। उस दिन एक शुद्ध महापुरुष ने, जो युग को देखने वाला अर्थात् युग की चिन्ता करने वाला तथा युग का निर्माण करने वाला था, साहस का प्रकाशमान सूर्य हाथ में लेकर बुला रहा था और कह रहा था हे वीरो, जागो। संघर्ष करना ही जीवन है इसलिए तुम संघर्ष से कभी नहीं घबराओ और जीवन से मत भागो।
विशेष:
- गुरु गोबिन्द सिंह जी द्वारा आनन्दपुर साहिब में संगत को आत्म-बलिदान के लिए प्रेरित करने का वर्णन किया गया है।
- भाषा तत्सम प्रधान, भावपूर्ण तथा ओज गुण से युक्त है।
2. सन् सोलह सौ निन्यानवे की
वैशाखी की पावन बेला है
दशम नानक के द्वारे-आनन्दपुर में
दूर-दूर से उमड़े भक्तों-शिष्यों का
विशाल मेला है।
शब्दार्थ:
पावन = पवित्र। दशम नानक = सिक्खों के दसवें गुरु गोबिन्द सिंह जी। द्वारे = घर पर, पास। विशाल = बहुत बड़ा।
प्रसंग:
प्रस्तुत पद्यांश डॉ० योगेन्द्र बख्शी द्वारा रंचित कविता ‘पाँच मरजीवे’ में से लिया गया है। प्रस्तुत कविता में कवि ने सन् 1699 ई० में आनन्दपुर साहिब में गुरु गोबिन्द सिंह जी द्वारा खालसा पंथ की नींव रखे जाने के समय पंच प्यारों के साहस और आत्मबलिदान का वर्णन किया है।
व्याख्या:
कवि कहता है कि सन् 1699 की वैशाखी के पवित्र समय दशम नानक गुरु गोबिन्द सिंह जी के द्वार पर आनन्दपुर साहिब में दूर-दूर से गुरु जी के भक्त और शिष्य एकत्र हुए और वहाँ एक बहुत बड़ा मेला सज गया।
विशेष:
- वैशाखी पर आनन्दपुर साहिब में लगे मेले का वर्णन है।
- भाषा सहज, सरल है। अनुप्रास और पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार हैं।
3. तेज पुंज गुरु गोबिन्द के हाथों में
है नंगी तलवार
लहराती हवा में बारम्बार
“अकाल पुरुष का है फरमान
अभी तुरन्त चाहिये एक बलिदान
अन्याय से मुक्ति दिलाने को
धर्म बचाने, शीश कटाने को
मरजीवा क्या कोई है तैयार ?
मुझे चाहिये शीश एक उपहार !
जिसका अद्भुत त्याग देश की
मरणासन्न चेतना में कर दे नवरक्त संचार।”
शब्दार्थ:
तेज पुंज = दिव्य ज्योति का समूह। फरमान = आज्ञा। अकाल पुरुष = ईश्वर, वाहेगुरु। मरजीवा = बलिदानी, मर कर भी जीवित होने वाला, मरने को तैयार । शीश = सिर। उपहार = भेंट, सौगात। अद्भुत = विचित्र, अनोखा। मरणासन्न = मरने के निकट, जो मर रहा हो। चेतना = बुद्धि-विवेक से काम लेना, सोच-विचार। नवरक्त = नया खून। संचार = बहा देना।।
प्रसंग:
प्रस्तुत पद्यांश डॉ० योगेन्द्र बख्शी द्वारा रचित कविता ‘पाँच मरजीवे’ में से लिया गया है। इस कविता में कवि ने सन् 1699 में आनन्दपुर साहिब में गुरु गोबिन्द सिंह जी द्वारा खालसा पंथ की स्थापना का वर्णन किया है।
व्याख्या:
कवि कहता है कि दिव्य ज्योति से प्रकाशमान गुरु गोबिन्द सिंह जी के हाथों में नंगी तलवार थी, जिसे बार-बार हवा में लहराते हुए उन्होंने कहा’अकाल पुरुष की यह आज्ञा है कि अभी तुरन्त एक व्यक्ति का बलिदान चाहिए, जो अन्याय से मुक्ति दिलाने के लिए, धर्म की रक्षा करने के लिए अपना सिर कटाने को तैयार हो। है कोई ऐसा व्यक्ति जो मरने को तैयार हो ? मुझे एक सिर भेंट स्वरूप चाहिए जिसका अनोखा त्याग देश की दयनीय दशा में नया खून भर दे।’
विशेष:
- गुरु जी द्वारा संगत को बलिदान के लिए प्रेरित करने का वर्णन किया गया है।
- भाषा तत्सम प्रधान, भावपूर्ण तथा ओज गुण से युक्त है। अनुप्रास तथा प्रश्न अलंकार हैं। वीर रस है।
4. सन्नाटा छा गया मौन हो रही सभा
सब भयभीत नहीं कोई हिला
फिर लाहौर निवासी खत्री दयाराम आगे बढ़ा
“कृपाकर सौभाग्य मुझे दीजिए
धर्म-रक्षा के लिए-भेंट है शीश गुरुवर !
प्राण मेरे लीजिए।”
शब्दार्थ:
सन्नाटा = चुप्पी, खामोशी, निस्तब्धता। मौन = चुप। भयभीत = डरे हुए। गुरुवर = हे गुरु श्रेष्ठ।
प्रसंग:
प्रस्तुत पद्यांश डॉ. योगेन्द्र बख्शी द्वारा रचित कविता ‘पाँच मरजीवे’ में से लिया गया है। प्रस्तुत कविता में कवि ने सन् 1699 ई० में आनन्दपुर साहिब में गुरु गोबिन्द सिंह जी द्वारा खालसा पंथ की स्थापना का वर्णन किया है।
व्याख्या:
कवि कहता है कि गुरु जी द्वारा एक व्यक्ति के सिर का बलिदान माँगने की बात सुन कर सारी सभा में खामोशी छा गयी और सभी भयभीत और चुप रह गये। सभी डरे हुए थे। कोई भी अपनी जगह से न हिला। तभी लाहौर निवासी खत्री दयाराम आगे बढ़ा और उसने गुरु जी से निवेदन किया कि हे गुरु श्रेष्ठ! धर्म की रक्षा के लिए अपना सिर भेंट करने का सौभाग्य कृपा करके मुझे मेरे प्राण ले लीजिए।
विशेष:
- दयाराम द्वारा अपना बलिदान देने का वर्णन किया है।
- भाषा सहज तथा भावपूर्ण है।
5. खिल उठे दशमेश उसकी बांह थाम
ले गये भीतर, बन गया काम
उभरा स्वर शीश कटने का और फिर गहरा विराम !
भयाकुल चकित चेहरे सभा के
रह गये दिल थाम !
शब्दार्थ:
खिल उठना = प्रसन्न हो जाना। दशमेश = दशम् गुरु गोबिन्द सिंह जी। थाम = पकड़कर। काम बन जाना = काम पूरा होना। विराम = मौन, चुप्पी। भयाकुल = डर से घबराये हुए। चकित = हैरान। दिल थाम कर रह जाना = धैर्य धारण करना।
प्रसंग:
प्रस्तुत पद्यांश डॉ. योगेन्द्र बख्शी द्वारा रचित कविता ‘पाँच मरजीवे’ में से लिया गया है। प्रस्तुत कविता में कवि ने सन् 1699 ई० में आनन्दपुर साहिब में गुरु गोबिन्द सिंह जी द्वारा खालसा पंथ की स्थापना का वर्णन किया है।
व्याख्या:
कवि कहता है कि लाहौर के खत्री दयाराम द्वारा बलिदान के लिए अपने आप को प्रस्तुत करने की बात सुन दशम् पातशाह गुरु गोबिन्द सिंह जी प्रसन्न हो उठे। वे दयाराम की बाँह पकड़ कर भीतर ले गये। उन्होंने जान लिया कि वे जो चाहते थे वह हो गया है। तभी भीतर से सिर कटने का स्वर उभरा और फिर एक गहरी खामोशी छा गई। सभा में मौजूद लोगों के चेहरे हैरान होकर डर से घबरा गये। उन्होंने बड़ी कठिनता से धैर्य धारण किया।
विशेष:
- दयाराम के बलिदान देने का वर्णन है।
- भाषा सहज, सरल तथा भावपूर्ण है। मुहावरों का सहज रूप से प्रयोग किया गया है।
6. रक्त रंजित फिर लिये तलवार
आ गये गुरुवर पुकारे बारम्बार
एक मरजीवा अपेक्षित और है
बढ़े आगे कौन है तैयार !
शब्दार्थ:
रक्त-रंजित = खून से लथपथ, खून से भीगी। मरजीवा = मरने को तैयार। अपेक्षित = चाहिए, जिसकी आवश्यकता हो।
प्रसंग:
प्रस्तुत पद्यांश डॉ० योगेन्द्र बख्शी द्वारा रचित कविता ‘पाँच मरजीवे’ में से लिया गया है। प्रस्तुत कविता में कवि ने सन् 1699 ई० में आनन्दपुर साहिब में गुरु गोबिन्द सिंह जी द्वारा खालसा पंथ की स्थापना का वर्णन किया है।
व्याख्या:
कवि कहता है कि दयाराम खत्री के बलिदान के बाद गुरु जी हाथ में खून से लथपथ तलवार लिए हुए बाहर आये और उन्होंने बार-बार यह पुकारा कि अभी एक और मरने को तैयार व्यक्ति की आवश्यकता है। जो इस बलिदान के लिए तैयार हो, वह आगे बढ़े।
विशेष:
- गुरु जी द्वारा एक और बलिदानी की आवश्यकता का वर्णन किया गया है।
- भाषा सरल, सहज और भावपूर्ण है।
7. प्राण के लाले पड़े हैं
सभी के मन स्तब्ध से मानो जड़े हैं।
किन्तु फिर धर्मराय बलिदान-व्रत-धारी
जाट हस्तिनापुर का खड़ा करबद्ध
गुरुचरण बलिहारी !
हर्षित गुरु ले गये भीतर उसे भी
लीला विस्मयकारी !
शब्दार्थ:
प्राण के लाले पड़ना = जीना कठिन हो जाना, अपनी जान की चिंता होना। स्तब्ध से = संज्ञाहीन, हैरान। जड़े = जड़, निर्जीव, बेजान, स्तब्ध। करबद्ध = हाथ जोड़ कर। बलिहारी = न्यौछावर। हर्षित = प्रसन्न। विस्मयकारी = हैरान कर देने वाली।
प्रसंग:
प्रस्तुत पद्यांश डॉ० योगेन्द्र बख्शी द्वारा रचित कविता ‘पाँच मरजीवे’ में से लिया गया है। प्रस्तुत कविता में कवि ने सन् 1699 ई० में आनन्दपुर साहिब में गुरु गोबिन्द सिंह जी द्वारा खालसा पंथ की स्थापना का वर्णन किया है।
व्याख्या:
कवि कहते हैं कि गुरु जी द्वारा दूसरी बार एक और व्यक्ति के बलिदान की आवश्यकता की बात सुन कर वहाँ उपस्थित लोगों को अपने प्राणों की चिंता होने लगी अर्थात् वे घबरा गये और सारी सभा के लोगों के मन हैरान होकर जड़वत अर्थात् स्तब्ध से हो गये। किन्तु तभी बलिदान के व्रत को धारण करने वाला हस्तिनापुर का जाट धर्मराय हाथ जोड़कर खड़ा हो गया। उसने कहा मैं गुरु चरणों पर न्यौछावर होने को तैयार हूँ। उसकी बात सुनकर गुरु जी प्रसन्न होकर उसे भीतर ले गये। उनकी यह लीला हैरान कर देने वाली थी।
विशेष:
- गुरु जी के आह्वान पर धर्मराय अपना बलिदान देने के लिए तैयार हो गया।
- भाषा सहज तथा भावपूर्ण है। मुहावरे का प्रयोग है।
8. टप टप टपक रहे रक्त बिन्दु
गहरी लाल हुई चम चम तलवार-
मांग रही बलि बारम्बार ।
गुरुवर की लीला अपरम्पार।
शब्दार्थ:
रक्त बिन्दु = खून की बूंदें। चम चम = चमकती हुई। अपरम्पार = जिसका कोई पार न हो, जिसकी कोई सीमा न हो-असीम। . प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश डॉ. योगेन्द्र बख्शी द्वारा रचित कविता ‘पाँच मरजीवे’ में से लिया गया है। इस कविता में कवि ने सन् 1699 ई० में आनन्दपुर साहिब में गुरु गोबिन्द सिंह जी द्वारा खालसा पंथ की स्थापना का वर्णन किया है।
व्याख्या:
कवि कहते हैं कि दो मरजीवों को बलिदान के लिए तम्बू के भीतर ले जाने के बाद गुरु जी जब बाहर आए तो उनकी चमकती हुई तलवार गहरी लाल हो गई थी और उनसे खून की बूंदें टप-टप टपक रही थीं। गुरु जी की तलवार बार-बार बलिदान माँग रही थी अर्थात् अभी और बलिदान के लिए मरजीवों का आह्वान कर रही थी। कवि कहते हैं कि गुरु जी की लीला का कोई पार नहीं पाया जा सकता।
विशेष:
- गुरु जी द्वारा लिए गए. बलिदानों के बाद उनकी तलवार से टपकती रक्त बूंदों का सजीव वर्णन है।
- भाषा सरल, सहज एवं चित्रात्मक है। अनुप्रास तथा पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
9. बलिदानों के क्रम में एक एक कर शीश कटाने
बढ़ा आ रहा द्वारिका का मोहकम चन्द धोबी
बिदर का साहब चन्द नाई, पुरी का हिम्मतराय कहार
पांच ये बलिदान अद्भुत चमत्कार !
शब्दार्थ:
क्रम = सिलसिला, कार्य, कृत्य। अदभुत चमत्कार = अनोखी बात, विचित्र करामात।
प्रसंग:
प्रस्तुत पद्यांश डॉ० योगेन्द्र बख्शी द्वारा रचित कविता ‘पाँच मरजीवे’ में से लिया गया है। इस कविता में कवि ने सन् 1699 ई० में आनन्दपुर साहिब में गुरु गोबिन्द सिंह जी द्वारा खालसा पंथ की स्थापना का वर्णन किया है।
व्याख्या:
कवि कहता है कि बलिदानों का सिलसिला चलता रहा। दयाराम और धर्मराय के बाद गुरु जी की माँग पर एक-एक कर अपना सिर कटवाने के लिए क्रमशः द्वारिका का मोहकम चन्द धोबी, बिदर का साहब चंद नाई और जगन्नाथ पुरी का हिम्मतराय कहार आगे आए। इस तरह पाँच बलिदानियों ने अपना बलिदान दिया। इन पाँचों का बलिदान एक अनोखी करामात थी । यह तो अद्भुत चमत्कार के समान था; करिश्मा था।
विशेष:
- पाँच पियारों के अद्भुत बलिदान का वर्णन है।
- भाषा सहज, सरल तथा भावपूर्ण है।
10. लीला से पर्दा हटा गुरु प्रकट हुए
चकित देखते सब पांचों बलिदानी संग खड़े
गुरुवर बोले “मेरे पांच प्यारे सिंघ
साहस, रूप, वेश, नाम में न्यारे सिंघ
दया सिंघ, धर्म सिंघ और मोहकम सिंघ
खालिस जाति खालसा के साहस सिंघ व हिम्मत सिंघ
शुभाचरण पथ पर निर्भय देंगे बलिदान
अब से पंथ “खालसा” मेरा ऐसे वीरों की पहचान।” ।
शब्दार्थ:
चकित = हैरान। संग = साथ। न्यारे = अलग, अनोखे। खालिस = शुद्ध। खालसा = सिक्ख पंथ। शुभाचरण = अच्छा व्यवहार। पथ = रास्ता। निर्भय = निडर।
प्रसंग:
प्रस्तुत पद्यांश डॉ० योगेन्द्र बख्शी द्वारा रचित कविता ‘पाँच मरजीवे’ में से लिया गया है। इस कविता में कवि ने सन् 1699 ई० में आनन्दपुर साहिब में गुरु गोबिन्द सिंह जी द्वारा खालसा पंथ की स्थापना का वर्णन किया है।
व्याख्या:
कवि कहते हैं कि पाँचों मरजीवों को भीतर ले जाकर उनके सिर काटने की लीला करने के बाद गुरु जी इस लीला से पर्दा हटा कर बाहर आए। उनके साथ पाँचों मरजीवों को खड़ा देख कर सभी हैरान रह गये। तब गुरु जी बोले-‘ये मेरे पाँच प्यारे सिंह हैं। ये सिंह साहस, रूप, वेश और नाम से अलग ही सिंह हैं अर्थात् विशेष सिंह हैं। गुरु जी ने उनके नामों के साथ सिंह शब्द जोड़ते हुए कहा कि खालिस जाति खालसा पंथ से सम्बन्धित ये दया सिंह, धर्म सिंह, मोहकम सिंह, साहब सिंह एवं हिम्मत सिंह हैं, जो अपने अच्छे आचरण के रास्ते पर चलते हुए निडर होकर बलिदान देंगे। आज से मेरा खालसा पंथ ऐसे वीरों द्वारा ही पहचाना जाएगा।’
विशेष:
- खालसा पंथ की स्थापना का अति प्रभावशाली वर्णन है।
- भाषा भावपूर्ण है। संवादात्मक शैली है।
‘पाँच मरजीवे Summary
योगेन्द्र बख्शी कवि-परिचय
जीवन परिचय:
डॉ. योगेन्द्र बख्शी का जन्म सन् 1939 ई० में जम्मू तवी में हुआ था। इन्होंने हिन्दी-साहित्य में एम०ए० करने के बाद पीएच०डी० की उपाधि प्राप्त की थी। अध्यापक के साथ-साथ इनका लेखन कार्य भी चलता रहा। राजकीय महेन्द्रा कॉलेज, पटियाला के स्नातकोत्तर हिन्दी-विभाग के अध्यक्ष के पद से सेवानिवृत्त होकर भी ये साहित्यसाधना में लीन हैं।
रचनाएँ:
काव्य रचनाएँ-सड़क का रोग, खुली हुई खिड़कियाँ, कि सनद रहे, आदमीनामा : सतसई, गज़ल के .. रूबरू।
आलोचना:
प्रसाद का काव्य तथा कामायनी, हिन्दी तथा पंजाबी उपन्यास का तुलनात्मक अध्ययन। संपादित पुस्तकें-निबंध परिवेश, काव्य विहार, गैल गैल, आओ हिन्दी सीखें : आठ । बाल साहित्य-बंदा बहादुर, मैथिलीशरण गुप्त। अनुवाद-पैरिस में एक भारतीय- एस०एस० अमोल के यात्रा वृत्तांत का अनुवाद । विशेषताएँ-इनके काव्य में आस-पास के जीवन की घटनाओं का अत्यंत यथार्थ चित्रण प्राप्त होता है। ‘पाँच मरजीवे’ कविता में कवि ने खालसा पंथ की नींव की ऐतिहासिक घटना का अत्यंत स्वाभाविक चित्रण किया है।
‘पाँच मरजीवे कविता का सार
कविता का सार कवि ‘योगेन्द्र बख्शी’ जी ने ‘पाँच मरजीवे’ कविता में खालसा पंथ की नींव की ऐतिहासिक घटना का प्रभावशाली ढंग से चित्रण किया है। औरंगज़ेब के जुल्मों से दुःखी हिन्दुओं में नई चेतना जागृत करने के लिए गुरु गोबिन्द सिंह जी ने आन्नदपुर साहिब में सन् 1699 ई० में बैसाखी वाले दिन लोगों से धर्म की रक्षा के लिए एक ऐसे पुरुष की मांग जो धर्म के लिए अपना सर्वस्व बलिदान कर सके। उनकी यह मांग सुनकर चारों ओर सन्नाटा छा गया। अचानक भीड़ में से लाहौर निवासी खत्री दयाराम आगे आया और धर्म की बेदी पर बलिदान होने के लिए गुरु गोबिन्द सिंह जी के पास चला गया। गुरु गोबिन्द सिंह जी उसे लेकर अन्दर गए और बाहर खड़े लोगों ने सिर कटने की आवाज़ सुनी। इस प्रकार गुरु गोबिन्द सिंह ने बारी-बारी और चार व्यक्ति मांगे। हस्तिनापुर का जाट धर्मराय, द्वारिका के मोहकम चन्द धोबी, बिदर के साहब चन्द नाई और पुरी के हिम्मतराय ने भी अपने को बलिदान के लिए प्रस्तुत किया। थोड़ी देर बाद लोगों ने उन पाँचों को गुरु जी के साथ तम्बू के बाहर जीवित खड़े देखा तो लोग हैरान रह गए। उस दिन उन पाँच लोगों के आत्मबलिदान की मांग करके उन्होंने खालसा पंथ की नींव डाली। उस खालसा पंथ ने हिन्दुओं के लिए औरंगजेब के अत्याचारों का विरोध किया। बाद में इसी खालसा पंथ ने सिक्ख सम्प्रदाय रूप में अपनी पहचान भी स्थापित की।