Punjab State Board PSEB 7th Class Hindi Book Solutions Chapter 7 आ री बरखा Textbook Exercise Questions and Answers.
PSEB Solutions for Class 7 Hindi Chapter 7 आ री बरखा (2nd Language)
Hindi Guide for Class 8 PSEB आ री बरखा Textbook Questions and Answers
आ री बरखा अभ्यास
1. नीचे गुरुमुखी और देवनागरी लिपि में दिये गये शब्दों को पढ़ें और हिंदी शब्दों को लिखने का अभ्यास करें :
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।
2. नीचे एक ही अर्थ के लिए पंजाबी और हिंदी भाषा में शब्द दिये गये हैं। इन्हें ध्यान से पढ़ें और हिंदी शब्दों को लिखें :
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।
3. इन प्रश्नों के उत्तर एक या दो वाक्यों में लिखें :
(क) वर्षा ऋतु से पूर्व कौन-सी ऋतु होती है ?
उत्तर :
वर्षा ऋतु से पहले ग्रीष्म ऋतु आती है।
(ख) गर्मी के कारण प्रकृति कैसी दिखाई देती है ?
उत्तर :
गर्मी के कारण प्रकृति अत्यंत दुःखी एवं पीड़ित दिखाई देती है। पेड़ दूंठ हो जाते हैं, मुरझा जाते हैं तथा धरती भयंकर ताप से तपने लगती है।
(ग) नदियों में सूखे पत्थर क्यों दिखाई देने लगे हैं ?
उत्तर :
भयंकर गर्मी पड़ने के कारण तथा वर्षा न होने के कारण नदियों का जल सूख जाता है और इसी कारण नदियों के तल में पड़े पत्थर सूखे हुए दिखाई देते हैं।
(घ) सागर की दुर्बलता का क्या कारण था?
उत्तर :
नदियों के जल का सागर में न मिल पाना ही सागर की दुर्बलता का कारण था।
(ङ) बच्चे वर्षा की प्रतीक्षा क्यों करते हैं ?
उत्तर :
बच्चे वर्षा के जल में अपनी किश्तियां तैराने के लिए तथा उसमें स्नान करने के लिए वर्षा की प्रतीक्षा करते हैं।
(च) किसान वर्षा से क्या माँग रहे हैं ?
उत्तर :
किसान वर्षा से उम्मीद-भरी नज़रों से अपनी खाली पड़ी कोठरियों में अनाज के दाने भरने के लिए उससे बरसने की माँग कर रहे हैं।
4. इन पंक्तियों की सप्रसंग व्याख्या करें :
जहाँ कभी बहती थी नदियाँ
सूखे पत्थर दिख रहे,
सिंधु दुर्बल हो चला
वियोग तेरा कैसे सहे।
उत्तर :
प्रसंग- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिन्दी की पाठ्य पुस्तक में संकलित कविता ‘आ री बरखा’ नामक कविता में से ली गई हैं जिसके रचयिता डॉ० राकेश कुमार बब्बर हैं। कवि ने यहाँ वर्षा के अभाव में सागर और नदी का मिलन न हो पाने की बात कही
व्याख्या-कवि वर्षा के अभाव में तड़पती हुई पृथ्वी को देखकर कहता है कि जहाँ कभी नदियाँ बहती थीं वहाँ वर्षा के अभाव में वे नदियाँ सूख गई हैं और वहाँ अब मात्र सूखे पत्थर ही दिखाई दे रहे हैं। नदियों का सागर में न मिल पाने के कारण अब सागर उसके वियोग में कमजोर हो गया है। सागर को समझ नहीं आ रहा कि वह नदी का वियोग कैसे सहे।
5. पर्यायवाची शब्द लिखें :
- बरखा = ……………………………….
- धरा = ……………………………….
- पेड़ = ……………………………….
- जल = ……………………………….
- पंछी = ……………………………….
- पुष्प = ……………………………….
- बादल = ……………………………….
- नदी = ……………………………….
- सिंधु = ……………………………….
- पत्थर = ……………………………….
- किश्ती = ……………………………….
उत्तर :
- बरखा – वर्षा, बारिश, वृष्टि
- धरा – धरती, पृथ्वी, धरणी
- पेड़ – वृक्ष, तरू, पादप
- जल – पानी, नीर, वारी, आब
- पंछी – पक्षी, खग, नभचर
- पुष्प – फूल, सुमन, कुसुम
- बादल – मेघ, जलद, नीरद
- नदी – नद, सरिता, जलमाता
- सिंधु – सागर, समुद्र, रत्नाकर
- पत्थर – पाषाण, शिला, वज्र
- किश्ती – नौका, नाव, तरिणी
6. विपरीत शब्द लिखें :
- शीतल = ……………………………….
- कुम्हलाना = ……………………………….
- बिखराना = ……………………………….
- दुर्बल = ……………………………….
- वियोग = ……………………………….
- मिलन = ……………………………….
उत्तर :
- शीतल – उष्ण
- कुम्हलाना – खिलना
- बिखराना – संभालना, बटोरना
- दुर्बल – ताकतवर
- वियोग – संयोग
- मिलन – बिछोह
7. नीचे दिये गए बॉक्स में बरखा’ के समानार्थक शब्द दिये गये हैं, उन्हें ढूंढ़िए और लिखिये।
- मेह
- ……………………..
- ……………………..
- ……………………..
- ……………………..
- ……………………..
- ……………………..
- ……………………..
- ……………………..
- ……………………..
उत्तर :
- मेंह
- बूंदाबांदी
- बारिश
- पावस
- बरखा
- वर्षा
- जल
- जल वृष्टि
- झड़ी
- मेह
8. (क) वर्षा ऋतु का प्रकृति और मानव पर क्या प्रभाव पड़ता है।दस वाक्यों में लिखें।
उत्तर :
(क) वर्षा ऋतु का प्रकृति और मानव पर अत्यधिक प्रभाव पड़ता है। जब वर्षा का आगमन होता है तो चारों ओर हरियाली छा जाती है। वर्षा आषाढ़ मास में शुरू हो जाती है। इस ऋतु में किसानों की उम्मीदें लहलहा उठती हैं। नई-नई सब्जियाँ एवं फल बाज़ार में आ जाते हैं। लहलहाते धान के खेत हृदय को आनन्द प्रदान करते हैं। नदियों, सरोवरों एवं नालों के सूखे हृदय प्रसन्नता के जल से भर जाते हैं। वर्षा ऋतु में प्रकृति मोहक रूप धारण कर लेती है। इस ऋतु में मोर नाचते हैं। औषधियाँ-वनस्पतियाँ लहलहा उठती हैं। खेती हरी-भरी हो जाती है। किसान खुशी से झूमने लग जाते हैं। पशु-पक्षी आनन्द मग्न हो उठते हैं। वर्षा प्रत्येक प्राणी के लिए जीवन लेकर आती है। वर्षा की पहली बूंदों का स्वागत होता है। स्त्री-पुरुष वर्षा के आगमन पर खुश हो जाते हैं। बच्चे किलकारियाँ मारते हुए इधर से उधर दौड़ते-भागते हैं।
(ख) वर्षा ऋतु पर कोई गीत लिखने का प्रयास करें।
उत्तर :
वर्षा रानी
छम छम करती वर्षा आती
संग अपने ये खुशियाँ लाती
खेत हरे-भरे हो जाते हैं
दुःख सबके मिट जाते हैं
खलिहानों में छाई खुशहाली
चारों ओर फैली हरियाली
रंग बिरंगे फूल खिले हैं
देख जिन्हें सब दौड़ पड़े हैं।
खुशबू है छाई सारे जग में
लोग हैं खुश अपने मन में
ऐसा यह वातावरण है छाया।
जिसे देख दिल ये हरषाया।
हर दिल में एक कली खिली है
बाहर बरखा की झड़ी लगी है।
छम-छम करती अनन्या मेरी
बूंदों में है लगाती फेरी
खेल अनेक वह जो करती
जिसे देख माँ भी है हँसती
किश्ती कभी है वह चलाती
तो कभी पों-पी गाड़ी चलाती
बूंदों को वह मोती समझे
नन्हें हाथों में पल-पल पकड़े
वर्षा का यूँ ही चले आना
उसे लगता है बड़ा सुहाना
जब-जब वर्षा आती है
खिल-सी वह जाती है
खेल खिलौने छोड़ वह अपने
वर्षा में है, भीग-सी जाती
छम-छम करती वर्षा आती
संग अपने ये खुशियाँ लाती। (विनोद पाण्डेय)
(ग) कविता को पढ़कर वर्षा से संबंधित चित्र बनायें।
उत्तर :
विद्यार्थी अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से स्वयं करें।
(घ) आप कभी वर्षा में नहाये हैं ? यदि हाँ तो अपने अनुभव को पाँच वाक्यों में लिखें।
उत्तर :
गर्मी का मौसम था। सभी पशु-पक्षी तथा मानव गर्मी से बेहाल थे तभी अचानक वर्षा होने लगी। हमारी खुशी का ठिकाना न रहा। हम वर्षा के जल में नहाने सरपट दौड़े। दौड़ते हुए पैर फिसलने से मैं ज़मीन पर धड़ाम से गिरा। फिर झट से उठकर बारिश में खूब नहाया। हम सभी बच्चे हाथ पकड़ कर गोल-गोल घूमने लगे तथा कहने लगे ‘पानी दे गुड़गानी दे’। इस तरह हम लगभग एक घण्टे तक बारिश के पानी में नहाते रहे। घर वाले हमें बुलाते रहे लेकिन हमें तो नहाने में और किसी का ध्यान ही नहीं था।
9. (क) जानिये : छः ऋतुओं की सूची
क्रम – ऋतु – महीना
1. – बसंत ऋतु – (चैत्र -वैशाख)
2. – ग्रीष्म ऋतु – (ज्येष्ठ -आषाढ़)
3. – वर्षा ऋतु – (श्रावण-भाद्रपद)
4. – शरद ऋतु – (आश्विन -कार्तिक)
5. – हेमंत ऋतु – (मार्गशीर्ष -पौष)
6. – शिशिर ऋतु – (माघ -फाल्गुन)
(ख) वर्षा के सम्बन्ध में यह भी जानिये :
वर्षा काल – बहार, मानसून, सावन का महीना, सावन भादो
वर्षा हीनता – अकाल, अनावृष्टि, सूखा
अनवरत (लगातार) वर्षा झड़ी, मूसलाधार
तीव्र वर्षा – धुआँधार वर्षा, घनघोर वर्षा
प्रथम वर्षा दिन – आषाढ़ का प्रथम दिवस
ओला वर्षा – ओलावृष्टि
हिम वर्षा – हिम पात
क्षीण वर्षा – फुहार, रिमझिम, बूंदाबांदी
आ री बरखा Summary in Hindi
आ री बरखा! कविता का सार
‘आ री बरखा’ नामक कविता में कवि डॉ० राकेश कुमार बब्बर ने वर्षा का आह्वान करते हुए उसे धरती पर जल बरसाने के लिए कहा है। जो धरती सूर्य की भयंकर गर्मी से तप रही है, उसे वर्षा के जल से ठण्डक मिले। सूर्य की भयंकर गर्मी से सभी पेड़ों से पत्ते झड़ गए हैं और वे दूंठ बन गए हैं। पक्षी चहचहाना भूल गए हैं। गर्मी की अधिकता के कारण फूल मुरझा गए हैं। हे बरखा रानी, तुम काले बादलों को आकाश में बिखरा दो।
कवि वर्षा से इस सौन्दर्य-विहीन प्रकृति का श्रृंगार बनने के लिए कहता है और बार-बार वर्षा के आने का आह्वान करता है। कवि कहता है कि जहाँ कभी नदियां बहती थीं वहाँ सूखे के कारण सूखे पत्थर दिखाई दे रहे हैं। बिना नदियों के सागर भी कमजोर पड़ गया है। उससे अब नदियों का वियोग सहा नहीं जाता। इसलिए बरखा रानी तू अपने प्रिय के जीवन के लिए मिलन के गीत गा और इस तपती हुई धरती पर अपना शीतल जल बरसा।
छोटे-छोटे बच्चों की उम्मीदें तुमसे हैं। उनके द्वारा बनाई गई कागज़ की किश्तियाँ बारिश के जल में तैरने के लिए प्रतीक्षा में हैं। किसान भी उम्मीद-भरी दृष्टि से तुम्हें ही देख रहे हैं। हे वर्षा रानी! अब तू उनके खाली कोठरियों में अनाज भर दे। तू अब इस तपती धरती पर अपना शीतल जल बरसा, जिससे सबको जीवन प्रदान हो। तुम अपने जल से संसार को आनन्द प्रदान कर दो।
आ री बरखा काव्यांशों की सप्रसंग सरलार्थ
1. आ री बरखा !
आ री बरखा !
इस तपती धरा पर
अपना शीतल जल बरसा।
पेड़ सब दूँठ भए,
पंछी चहकना भूल गए।
कुम्लाह गए हैं पुष्प सारे,
बिखरा दो तुम बादल कारे।
सौंदर्य रहित इस प्रकृति का
श्रृंगार बन के तू आ,
आ री बरखा! आ री बरखा!
इस तपती धरा पर
अपना शीतल जल बरसा।
शब्दार्थ :
- आ री = आ जा।
- बरखा = वर्षा।
- तपती = सूर्य की गर्मी से तपी हुई।
- धरा = धरती।
- शीतल = ठण्डी।
- ट्रॅठ = बिना पत्तों के।
- पंछी = पक्षी।
- चहकना = चहचहाना।
- कुम्लाह गए = मुरझा गए।
- पुष्प = फूल।
- कांटे = काले।।
प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हमारी हिन्दी की पाठ्य पुस्तक में संकलित कविता ‘आ री बरखा’ से लिया गया है, जिसके कवि डॉ० राकेश कुमार बब्बर हैं। कवि ने यहाँ वर्षा के अभाव में तपती धरती तथा सौन्दर्य-रहित प्रकृति का वर्णन करते हुए वर्षा का आह्वान किया है।
सरलार्थ-कवि वर्षा का आह्वान करते हुए कहता है कि हे वर्षा ! तू आ जा। हे वर्षा ! तू आ जा। सूर्य की भयंकर गर्मी से तपती हुई इस धरती पर तू अपना ठंडा पानी बरसा दे। बिना वर्षा के सभी पेड़ पत्तों एवं फलों के बिना लूंठ हो गए हैं। पक्षी जो कभी मधुर आवाज़ में चहचहाते थे वे भी अपना चहचहाना भूल गए हैं। बिन वर्षा के सभी फूल मुरझा गए हैं।
इसलिए हे वर्षा रानी! तुम काले बादलों को आकाशों में बिखरा दो जिनसे वर्षा हो सके। तुम्हारे बिना इस प्रकृति का श्रृंगार अधूरा है अतः तुम प्रकृति का श्रृंगार बनकर आ जाओ और भयंकर गर्मी से तपती हुई इस धरती पर अपना ठंडा जल बरसा दो। हे वर्षा ! तुम आ जाओ।
विशेष-
- कवि ने वर्षा के अभाव में सौन्दर्य-रहित प्रकृति का वर्णन किया है।
- भाषा सरल, सहज तथा भावानुकूल है।
2. जहाँ कभी बहती थी नदियाँ
सूखे पत्थर दिख रहे
सिंधु दुर्बल हो चला
वियोग तेरा कैसे सहे।
अपने प्रिय के जीवन-हेत
गीत मिलन के तू गा,
आ री बरखा !
आ री बरखा !
इस तपती धरा पर
अपना शीतल जल बरसा।
शब्दार्थ :
- सिंधु = सागर।
- दुर्बल = कमज़ोर।
- वियोग = बिछोह,
- तपती = भयंकर गर्मी से तपी हुई।
- शीतल = ठंडा।
प्रसंग-प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी हिन्दी की पाठ्य पुस्तक में संकलित कविता ‘आ री बरखा’ से ली गई हैं जिसके कवि डॉ. राकेश कुमार बब्बर हैं। कवि ने यहाँ वर्षा के अभाव में सारी प्रकृति को दुःखी एवं पीड़ित दिखाते हुए उस के आगमन का आह्वान किया है।
सरलार्थ- कवि वर्षा के अभाव में पीड़ित प्रकृति की दशा का चित्रण करते हुए कहता है कि जिन स्थानों पर कभी नदियाँ बहती थीं वहाँ अब मात्र सूखे पत्थर ही दिखाई दे रहे हैं। अब तो नदियों का समुद्र में मिलन न हो पाने से वह भी कमज़ोर पड़ गया है। उससे अब नदियों का वियोग सहा नहीं जाता।
इसलिए हे वर्षा रानी! तू अपने प्रिय समुद्र से मिलने के लिए मिलन के गीत गा और जल की बूंदों के रूप में बरस कर इस तपती हुई धरती को शीतल कर दो जिससे चारों ओर भयंकर गर्मी के स्थान पर शीतलता छा जाए।
विशेष –
- कवि ने नदियों का जल सूख जाने के कारण उसके वियोग में समुद्र को दुर्बल बताया है।
- भाषा भावानुकूल है।
3. कश्तियाँ सब बच्चों की
तैरने को हैं खड़ी हुईं
उधर किसानों की भी आँखें
बस तुझ पर ही हैं गड़ी हुईं
खाली पड़ी कोठरियों में
अन्न के दाने तू भर जा,
आ री बरखा !
आ री बरखा !
इस तपती धरा पर
अपना शीतल जल बरसा।
शब्दार्थ :
- कश्तियाँ = नौकाएँ।
- गड़ी हुई = टिकी हुई।
- कोठरियों में = गोदामों में।
- अन्न = अनाज।
- बरखा = वर्षा।
- शीतल = ठंडा।
प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हमारी हिन्दी की पाठ्य पुस्तक में संकलित कविता ‘आ री बरखा’ से लिया गया है, जिसके कवि डॉ० राकेश कुमार बब्बर हैं। कवि ने यहाँ वर्षा के अभाव में सम्पूर्ण पृथ्वीवासियों को परेशान दिखाया है।
सरलार्थ-कवि वर्षा को सम्बोधित करते हुए कहता है कि बालकों द्वारा बनाई गईं छोटी-छोटी किश्तियाँ तुम्हारे आने की प्रतीक्षा में तैरने के लिए खड़ी हुई हैं। दूसरी ओर किसान भी तेरी तरफ उम्मीद-भरी आँखों से देख रहे हैं। उनके घर के कमरे अनाज के दानों के बिना खाली हैं। इसलिए हे वर्षा रानी! तू आ जा और किसानों के इन खाली कमरों में अनाज भर जा।
हे वर्षा रानी! जब तुम आओगी तो किसानों की फसलें फिर से लहलहा उठेंगी, उनके खाली गोदाम और कमरे पुन: अनाज से भर जाएँगे। इसलिए हे वर्षा रानी! तुम अपना शीतल जल इस तपती हुई धरती पर बरसा कर इसे ठण्डक दो। इसकी गर्मी को शान्त कर इसे नवजीवन दो।
विशेष-
- कवि ने वर्षा से धरती पर बरसने की प्रार्थना की है।
- भाषा सरल और सरस है।