Punjab State Board PSEB 7th Class Hindi Book Solutions Hindi Rachana Kahani Lekhan कहानी-लेखन Exercise Questions and Answers, Notes.
PSEB 7th Class Hindi Rachana कहानी-लेखन (2nd Language)
कहानी – रचना
1. प्यासा कौआ
गर्मियों के दिन थे। दोपहर के समय बहुत सख्त गर्मी पड़ रही थी। एक कौआ पानी की तलाश में इधर – उधर भटकता रहा लेकिन कहीं भी पानी न मिला। अन्त में वह थका हुआ एक बाग में पहुँचा। वह पेड़ की शाखा पर बैठा हुआ था कि अचानक उसकी नज़र वृक्ष के नीचे पड़े एक घड़े पर गई। वह उड़कर वहाँ गया उसने देखा कि घड़े में पानी है। वह पानी पीने के लिए नीचे झुका लेकिन उसकी चोंच पानी तक न पहुँच सकी, क्योंकि घड़े में पानी बहुत कम था।
वह हताश नहीं हुआ बल्कि पानी पीने के लिए उपाय सोचने लगा। तभी उसे एक उपाय सूझा। उसने आस – पास बिखरे हुए कंकर उठाकर घड़े में डालने शुरू कर दिये। कंकड़ पड़ने से पानी ऊपर आ गया। उसने पानी पिया और उड़ गया।
शिक्षा – जहाँ चाह वहाँ राह।
अथवा
आवश्यकता आविष्कार की जननी है।
2. चालाक लोमड़ी
एक लोमड़ी बहुत भूखी थी। वह भोजन की खोज में इधर – उधर घूमने लगी। जब उसे सारे जंगल में भटकने के बाद भी कुछ न मिला तो वह गर्मी और भूख से परेशान होकर एक पेड़ के नीचे बैठ गई। अचानक उसकी नज़र ऊपर गई। वृक्ष पर एक कौआ बैठा हुआ था। उसके मुँह में रोटी का टुकड़ा था। लोमड़ी के मुँह में पानी भर आया। वह कौए से रोटी छीनने का उपाय सोचने लगी।
तभी उसने कौए को कहा, “क्यों भई कौआ भैया ! सुना है तुम गीत बहुत अच्छे गाते हो। क्या मुझे गीत नहीं सुनाओगे ?’ कौआ अपनी प्रशंसा को सुनकर बहुत खुश हुआ। वह उसकी बातों में आ गया। गाना गाने के लिए उसने जैसे ही मुँह खोला, रोटी का टुकड़ा नीचे गिर गया। लोमड़ी ने झट से वह टुकड़ा उठाया और नौ दो ग्यारह हो गई। अब कौआ अपनी मूर्खता पर पछताने लगा।
शिक्षा – झूठी प्रशंसा से बचो।
3. दो बिल्लियाँ और बन्दर
किसी नगर में दो बिल्लियाँ रहती थीं। एक दिन उन्हें रोटी का टुकड़ा मिला। वे आपस में लड़ने लगीं। वे उसे आपस में समान भागों में बाँटना चाहती थीं लेकिन उन्हें कोई ढंग न मिला।
उसी समय एक बन्दर उधर आ निकला। वह बहुत चालाक था। उसने बिल्लियों से लड़ने का कारण पूछा। बिल्लियों ने उसे सारी बात सुनाई। वह तराजू ले आया और बोला, “लाओ, मैं तुम्हारी रोटी को बराबर बाँट देता हूँ।” उसने रोटी के दो टुकड़े लेकर एक – एक पलड़े में रख दिये। जिस पलड़े में रोटी अधिक होती, बन्दर उसे थोड़ी – सी तोड़ कर खा लेता।
इस प्रकार थोड़ी – सी रोटी रह गई। बिल्लियों ने अपनी रोटी वापस मांगी। लेकिन बन्दर ने शेष बची रोटी भी मुँह में डाल ली। बिल्लियाँ मुँह देखती रह गईं।
शिक्षा – आपस में लड़ना – झगड़ना अच्छा नहीं।
4. एकता में बल
किसी गाँव में एक बूढा किसान रहता था। उसके चार पुत्र थे। वे चारों बहुत आलसी थे। आपस में लड़ते – झगड़ते रहते थे। किसान ने उन्हें बहुत समझाया लेकिन व्यर्थ । एक दिन उसने अपने चारों पुत्रों को अपने पास बुलाया तथा एक लकड़ियों का गट्ठा लाने को कहा। वे . लकड़ियों का गट्ठा ले आए। उसने हर एक लड़के को वह गट्ठा तोड़ने के लिए दिया लेकिन कोई भी उसे न तोड़ सका । तब उसने गट्ठा खोलकर एक – एक लकड़ी सभी को तोड़ने को दी। अब सभी ने तोड़ दी। तब उसने उन्हें समझाया कि “अगर तुम इन लकड़ियों की तरह इकटे रहोगे तो तुम्हारा कोई कुछ बिगाड़ नहीं सकता। अगर तुम अकेले – अकेले रहोगे तो लोग तुम्हें नष्ट कर देंगे। अतः तुम सब इकट्ठे रहो। लड़ना, झगड़ना नहीं। एकता में ही बल है।” यह सुनकर वे सब मिल – जुल कर रहने लगे।
शिक्षा – मिल – जुल कर रहना चाहिए
अथवा
एकता में बल है।
5. अंगूर खट्टे हैं
एक बार एक लोमड़ी बहुत भूखी थी। वह भोजन की तलाश में इधर – उधर भटकती रही लेकिन कहीं से भी उसे कुछ भी खाने को नहीं मिला। अन्त में थक हार कर वह एक बाग में गई। वहाँ उसने अंगूर की बेल पर कुछ अंगूरों के गुच्छे देखे। वह उन्हें देखकर बहुत प्रसन्न हुई। वह अंगूरों को खाना चाहती थी। अंगूर बहुत ऊँचे थे। वह उन्हें पाने के लिए ऊँची – ऊँची छलांगें लगाने लगी। किन्तु वह उन तक पहुँच न सकी। वह बहुत थक चुकी थी। आखिर वह बाग से बाहर जाती हुई कहने लगी कि अंगूर खट्टे हैं। यदि मैं इन्हें खाऊँगी तो बीमार हो जाऊँगी।
शिक्षा – जो चीज़ प्राप्त न कर सको, उसे बुरा मत कहो।
6. लालची कुत्ता
एक कुत्ता था। वह बहुत लालची था। वह भोजन की खोज में इधर – उधर गया। परन्तु कहीं भी उसे भोजन न मिला। अन्त में उसे एक होटल में से मांस का एक टुकड़ा मिला। वह उसे अकेले में बैठकर खाना चाहता था। वह उसे लेकर भाग गया। एकान्त स्थान की खोज करते – करते वह एक नदी के किनारे पहुँचा। अचानक उसने अपनी परछाईं नदी में देखी। उसने समझा कि कोई दूसरा कुत्ता है जिसके मुँह में भी मांस का टुकड़ा है। उसने सोचा क्यों न इसका टुकड़ा भी छीन लिया जाए। वह ज़ोर से भौंका। भौंकने से उसका अपना मांस का टुकड़ा भी नदी में गिर पड़ा। अब वह अपना टुकड़ा भी खो बैठा। अब वह बहुत पछताया तथा मुंह लटकाता गाँव को वापस आ गया।
शिक्षा – लालच बुरी बला है,
अथवा
लालच अच्छा नहीं होता।
7. शेर और चुहिया
एक जंगल में एक शेर रहता था। एक दिन वह एक वक्ष के नीचे सो रहा था। पास ही एक चुहिया का बिल था। अचानक चुहिया बाहर निकली और शेर को सोया देखकर उस पर कूदने लगी। शेर की नींद उचट गई। वह जाग पड़ा। उसने चुहिया को अपने पंजे में पकड़ लिया। वह उसे मारने लगा था कि चुहिया ने विनय की कि मुझे क्षमा कर दो। मैं भी कभी आपके काम आऊँगी। शेर ने हँसकर उसे छोड़ दिया।
एक दिन जंगल में एक शिकारी आया। उसने वहाँ जाल बिछा दिया। अचानक शेर उस जाल में फँस गया। शेर ने वहाँ से छूटने का बहुत प्रयत्न किया परन्तु वह अपने आपको छुड़ा न पाया और ज़ोर – ज़ोर से गरजने लगा। शेर की गरज को सुनकर चुहिया बिल से निकल कर उसकी सहायता के लिए दौड़ी। चुहिया ने अपने मित्र को जाल में फँसा देखकर सारा जाल काट दिया और शेर आज़ाद हो गया। उसने चुहिया का धन्यवाद किया और चला गया।
शिक्षा – किसी को छोटा मत समझो।
8. हाथी और दर्जी
किसी राजा के पास एक हाथी था। हाथी प्रतिदिन स्नान करने के लिए नदी पर जाया करता था। रास्ते में एक दर्जी की दुकान पड़ती थी। दर्जी बहुत दयालु तथा उदार था। उसकी हाथी से मित्रता हो गई। वह हाथी को प्रतिदिन कुछ – न – कुछ खाने के लिए देता था।
एक दिन दर्जी क्रोध में बैठा हुआ था। हाथी आया और कुछ प्राप्त करने के लिए अपनी सूंड आगे की। दर्जी ने उसे कुछ खाने के लिए नहीं दिया, परन्तु उसकी सूंड में सूई चुभो दी। हाथी को क्रोध आ गया। वह नदी पर गया। उसने स्नान किया और लौटते समय अपनी सूंड में गन्दा पानी भर लिया। दर्जी की दुकान पर पहुँच कर उसने सारा गन्दा पानी उसके कपड़ों पर फेंक दिया। दर्जी के सारे कपड़े खराब हो गए। इस तरह हाथी ने दर्जी से बदला लिया।
शिक्षा – जैसे को तैसा।
9. नकलची बन्दर और सौदागर
एक सौदागर था। वह टोपियाँ बेचकर अपना पेट पाला करता था। एक दिन वह टोपियाँ बेचने दूसरे गाँव में गया। गर्मी से व्याकुल होकर वह वृक्ष के नीचे बैठ गया। बैठते ही उसे नींद आने लगी। वह टोपियों से भरा सन्दूक पास रखकर सो गया। उसी वृक्ष पर कुछ बन्दर बैठे थे। वे झट नीचे उतरे, सौदागर के सन्दूक से टोपियाँ निकाल कर उन्होंने अपने सिर पर पहन लीं और छलांगें लगाते हुए वृक्ष पर चढ़ गए। नींद तथा रचना भाग खुलने पर सौदागर ने सन्दूक खुला देखा और टोपियाँ उसमें से गुम पाईं। क्या मेरी टोपियाँ कोई चुरा ले गया है ? वह यह सोच ही रहा था कि तभी उसकी निगाह वृक्ष के ऊपर टोपियाँ पहने बन्दरों पर पड़ी।
सौदागर ने बन्दरों को बहुत डराया लेकिन टोपियाँ प्राप्त करने में उसे सफलता न मिली। अन्त में उसने एक उपाय सोचा और सोचते ही अपने सिर से टोपी उतार कर नीचे फेंक दी। इस पर बन्दरों ने भी अपनी – अपनी टोपियाँ सिर से उतार कर ज़मीन पर फेंक दी। सौदागर ने टोपियाँ इकट्ठी की और अपने घर की ओर चल पड़ा।
शिक्षा – जो काम बुद्धि से हो सकता है, वह ताकत से नहीं।
10. झूठा गडरिया
किसी गाँव में एक गडरिया रहता था। वह प्रतिदिन भेड़ों को चराने के लिए जंगल में ले जाता था। सायँकाल को वह सब भेड़ों के साथ गाँव को लौट आता था। एक दिन गडरिया बालक को गाँव वालों से मज़ाक करने की सूझी। उसने भेड़िया ! भेड़िया ! की आवाज़ दी। गाँव वाले हाथ में लाठियाँ लिए दौड़े आए। उनको देखकर गडरिया बालक हँस पड़ा। उसने कहा, मैंने तो मज़ाक किया था। वे नाराज होकर चले गए। एक – दो बार उसने फिर वैसा ही किया।
एक दिन सचमुच भेड़िया वहाँ आ गया। बालक ने बड़ा शोर मचाया। पर उसकी सहायता के लिए कोई नहीं आया। भेड़िये ने बहुत – सी भेड़ें मार दी। गडरिये ने वृक्ष पर चढ़कर अपनी जान बचाई।
शिक्षा – झूठे व्यक्ति पर कोई विश्वास नहीं करता।
11. ईमानदार लकड़हारा
एक गाँव में एक गरीब लकड़हारा रहता था। वह जंगल से लकड़ियाँ काट कर लाता और उन्हें बेचकर अपना गुजारा करता था।
एक दिन वह नदी के किनारे वृक्ष पर चढ़कर लकड़ियाँ काट रहा था। अचानक उसके हाथ से कुल्हाड़ा छूटकर नदी में गिर पड़ा। लकड़हारा सोचने लगा कि अब मैं अपना निर्वाह कैसे करूंगा ? सोचते – सोचते उसकी आँखों में आँसू आ गए। वह कुछ देर तक रोता रहा। इतने में वहाँ एक देवता प्रकट हुआ। उसने लकड़हारे से पूछा तुम रो क्यों रहे हो ? लकड़हारे ने सारी बात बताई। देवता पानी में कूद पड़ा और सोने का कुल्हाड़ा निकाल कर बाहर लाया। उसने लकड़हारे से पूछा क्या यही तुम्हारा कुल्हाड़ा है ? लकड़हारे ने कहा – नहीं श्रीमान् जी, यह कुल्हाड़ा मेरा नहीं है। देवता ने फिर पानी में डुबकी लगाई और एक चाँदी का कुल्हाड़ा निकाल लाया। परन्तु लकड़हारे ने वह भी नहीं लिया। अन्त में देवता ने लोहे का कुल्हाड़ा बाहर निकाला। इसे देखकर लकड़हारे ने कहा – श्रीमान् जी, यही मेरा कुल्हाड़ा है। देवता उसकी ईमानदारी पर बहुत प्रसन्न हुआ और उसे तीनों कुल्हाड़े दे दिए।
शिक्षा –
- मनुष्य को ईमानदार बनना चाहिए।
- ईमानदारी सबसे अच्छी नीति है।
12. दो मित्र और रीछ
एक बार दो मित्र इकटे व्यापार करने घर से चले। दोनों ने एक – दूसरे को वचन दिया कि वे मुसीबत के समय एक – दूसरे की सहायता करेंगे। चलते – चलते दोनों एक भयंकर जंगल में जा पहँचे।
जंगल बहुत विशाल तथा घना था। दोनों मित्र सावधानी से जंगल में से गुजर रहे थे। एकाएक उन्हें सामने से एक रीछ आता हुआ दिखाई दिया। दोनों मित्र भयभीत हो गए। उस रीछ को पास आता देखकर एक मित्र जल्दी से वृक्ष पर चढ़कर पत्तों में छिप कर बैठ गया। दूसरे मित्र को वृक्ष पर चढ़ना नहीं आता था। वह घबरा गया, परन्तु उसने सुना था कि रीछ मरे हुए आदमी को नहीं खाता। वह झट अपना साँस रोक कर भूमि पर लेट गया। – रीछ ने पास आकर उसे सूंघा और मरा हुआ समझकर वहाँ से चला गया। कुछ देर बाद पहला मित्र वृक्ष से नीचे उतरा। उसने दूसरे मित्र से कहा – “उठो, रीछ चला गया। यह तो बताओ कि उसने तुम्हारे कान में क्या कहा था ?” भूमि पर लेटने वाले मित्र ने कहा कि रीछ केवल यही कह रहा था कि स्वार्थी मित्र पर विश्वास मत करो।
शिक्षा –
- मित्र वह है जो विपत्ति में काम आए।
- स्वार्थी मित्र से हमेशा दूर रहो।
13. खरगोश और कछुआ
किसी वन में खरगोश और कछुआ पक्के मित्र रहते थे। खरगोश अपनी तेज़ दौड़ का अभिमान करता था। एक दिन दोनों सैर को निकले। खरगोश तेज़ चलता तो कछुआ धीरे धीरे। खरगोश ने कछुए से कहा – भाई कछुए तुम तो बहुत सुस्त हो। यदि मेरे साथ दौड़ लगाओ तो मैं तुम्हें बुरी तरह हरा सकता हूँ। कछुआ भी अपनी बुराई सहन न कर सका। उसने दौड़ लगाना स्वीकार कर लिया।
दोनों की दौड़ शुरू हो गई। खरगोश इतना तेज़ भागा कि कछुआ बहुत पीछे रह गया। रास्ते में एक सुन्दर बगीचे को देखकर खरगोश ने सोचा क्यों न कुछ देर यहाँ आराम कर लिया जाए। जब कछुआ यहाँ आएगा फिर दौड़ लगा लूँगा और उससे पहले तालाब पर पहुँच जाऊँगा। यह सोचकर खरगोश वहाँ लेट गया। ठण्डी – ठण्डी वायु चल रही थी। लेटते ही उसे नींद आ गई। थोड़ी देर के बाद कछुआ भी वहाँ आ गया। खरगोश को सोता देखकर वह चुपके से आगे निकल गया। धीरे – धीरे वह तालाब पर पहले पहुँच गया।
खरगोश की जब नींद खुली तो उसने सोचा कछुआ अभी पीछे ही होगा। उसने फिर दौड़ना शुरू कर दिया। जब वह तालाब पर पहुँचा तो कछुआ पहले ही वहाँ पहुँचा हुआ था। यह देखकर वह बहुत लज्जित हुआ।
शिक्षा –
- सहज पके सो मीठा होय।
- घमण्डी का सिर नीचा।