Punjab State Board PSEB 12th Class History Book Solutions Chapter 7 गुरु हरगोबिंद जी और सिख पंथ का रूपांतरण Textbook Exercise Questions and Answers.
PSEB Solutions for Class 12 History Chapter 7 गुरु हरगोबिंद जी और सिख पंथ का रूपांतरण
निबंधात्मक प्रश्न – (Essay Type Questions)
गुरु हरगोबिंद जी का जीवन (Life of Guru Hargobind Ji)
प्रश्न 1.
गुरु हरगोबिंद जी के जीवन के बारे में विस्तृत नोट लिखो। (Write a detailed note on the life of Guru Hargobind Ji.)
अथवा
गुरु हरगोबिंद जी के जीवन का वर्णन करें।
(Describe the life of Guru Hargobind Ji.)
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद जी सिखों के छठे गुरु थे। वे 1606 ई० से लेकर 1645 ई० तक गुरुगद्दी पर विराजमान रहे। इस काल का सिख पंथ के इतिहास में विशेष महत्त्व है। गुरु हरगोबिंद जी ने नई नीति अपना कर न केवल सिख लहर के स्वरूप को ही बदला अपितु सिखों में स्वाभिमान की भावना भी उत्पन्न की। परिणामस्वरूप उनके समय में सिख पंथ का न केवल रूपांतरण ही हुआ अपितु इसका अद्वितीय विकास भी हुआ। उनके जीवन का संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित अनुसार है—
1. जन्म तथा माता-पिता (Birth and Parentage)-गुरु हरगोबिंद जी का जन्म 14 जून, 1595 ई० को जिला अमृतसर के गाँव वडाली में हुआ था। वह गुरु अर्जन देव जी के एक मात्र पुत्र थे। आप की माता जी का नाम गंगा देवी था।
2. बाल्यकाल तथा विवाह (Childhood and Marriage)-गुरु हरगोबिंद जी बाल्यकाल से ही बहुत होनहार थे। आप ने पंजाबी, संस्कृत तथा प्राकृत भाषाओं के साहित्य का गहन अध्ययन किया था। बाबा बुड्डा जी ने आपको न केवल धार्मिक शिक्षाएँ ही दीं अपितु घुड़सवारी तथा शस्त्र-विद्या में भी प्रवीण कर दिया। इतिहासकारों का विचार है कि हरगोबिंद जी के तीन विवाह हुए थे। आप के घर पाँच पुत्रों-गुरदित्ता, अणि राय, सूरज मल, अटल राय तथा तेग बहादुर जी और एक पुत्री बीबी वीरो ने जन्म लिया।
3. गुरुगद्दी की प्राप्ति (Assumption of Guruship)-1606 ई० में गुरु अर्जन देव जी ने लाहौर जाने से पूर्व, जहाँ उन्होंने अपना बलिदान दिया था, हरगोबिंद जी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया। उस समय हरगोबिंद जी की आयु केवल 11 वर्ष थी। इस प्रकार हरगोबिंद जी सिखों के छठे गुरु बने। वह 1606 ई० से लेकर 1645 ई० तक गुरुगद्दी पर विराजमान रहे।
4. गुरु हरगोबिंद जी की नई नीति (New Policy of Guru Hargobind Ji)-नोट-इस भाग के उत्तर के लिए विद्यार्थी कृपया प्रश्न नं० 2 का उत्तर देखें।
5. गुरु हरगोबिंद जी के मुगलों के साथ संबंध (Relations of Guru Hargobind Ji with the Mughals)-नोट-इस भाग के उत्तर के लिए विद्यार्थी कृपया प्रश्न नं० 3 का उत्तर देखें।
गुरु हरगोबिंद जी की नई नीति (New Policy of Guru Hargobind Ji)
प्रश्न 2.
गुरु हरगोबिंद जी की नई नीति का निरीक्षण करें।
(Examine the New Policy of Guru Hargobind Ji.)
अथवा
गुरु हरगोबिंद जी की न वीन नीति के बारे में आप क्या जानते हैं ? इसकी मुख्य विशेषताओं तथा इसके सिख धर्म के रूपांतरण संबंधी महत्त्व का वर्णन करें।
(What do you know about the New Policy of Guru Hargobind ? Describe its main features and significance of the transformation of Sikhism.)
अथवा
गुरु हरगोबिंद जी की नई नीति के बारे में आप क्या जानते हैं ? इसकी मुख्य विशेषताओं का वर्णन करें।
(What do you know about New Policy of Guru Hargobind Ji ? Explain in brief its main features.)
अथवा
गुरु हरगोबिंद जी की नई नीति पर एक आलोचनात्मक टिप्पणी लिखिए। (Write a critical note on the New Policy of Guru Hargobind Ji.)
अथवा
उन परिस्थितियों का उल्लेख करें जिनके कारण गुरु हरगोबिंद जी को नई नीति धारण करनी पड़ी। इस नीति की मुख्य विशेषताएँ क्या थी ?
(Describe the circumstances leading to the adoptation of New Policy by Guru Hargobind. What were the main features of this policy ?)
अथवा
मीरी और पीरी से आपका क्या तात्पर्य है ? इस नीति की मुख्य विशेषताओं का वर्णन करें।
(What do you understand by Miri and Piri ? Explain its main features.)
अथवा
मीरी तथा पीरी की मुख्य विशेषताओं का वर्णन करें। (Explain the main features of Miri and Piri.)
अथवा
गुरु हरगोबिंद जी की ‘मीरी’ और ‘पीरी’ की नीति की चर्चा करो। (Discuss the policy of ‘Miri’ and ‘Piri’ of Guru Hargobind Ji.)
अथवा
गुरु हरगोबिंद जी की नई नीति की क्या विशेषताएँ थीं ? (What were the features of New Policy of Guru Hargobind Ji ?)
अथवा
मीरी और पीरी से क्या अभिप्राय है? इसकी क्या विशेषताएँ थीं? (What is meant by Miri and Piri ? What was its importance ?)
अथवा
गुरु हरगोबिंद जी ने सिखों को संत सिपाही के रूप में कैसे बदला ? (How Guru Hargobind Ji changed the Sikhs into Sant Sipahis ?)
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद जी द्वारा 1606 ई० में गुरुगद्दी पर बैठने के साथ ही सिख पंथ में एक नए युग का सूत्रपात हुआ। गुरु अर्जन देव जी के बलिदान के कारण सिखों तथा मुग़लों के मध्य संबंध तनावपूर्ण हो गए थे। ऐसी स्थिति में गुरु हरगोबिंद जी ने यह निष्कर्ष निकाला कि सम्मानपूर्वक जीवन व्यतीत करने तथा अपने धर्म की रक्षा के लिए सिखों को शस्त्र उठाने होंगे। अतः गुरु साहिब ने सिखों को संत सिपाही बनाने की नवीन नीति धारण की। इस नीति को अपनाने के प्रमुख कारण निम्न प्रकार थे—
1. मुग़लों की धार्मिक नीति में परिवर्तन (Change in the Religious Policy of the Mughals)जहाँगीर से पूर्व के शासकों के साथ सिखों के संबंध मधुर थे। बाबर ने गुरु नानक देव जी के प्रति सम्मान प्रकट किया था। हुमायूँ ने राज-गद्दी की. पुनः प्राप्ति के लिए गुरु अंगद देव जी से आशीर्वाद प्राप्त किया। मुग़ल बादशाह अकबर ने गुरु अमरदास जी के समय स्वयं गोइंदवाल साहिब में आकर लंगर छका था। उसने गुरु रामदास जी को 500 बीघे भूमि दान में दी तथा पंजाब के किसानों का एक वर्ष का लगान माफ कर दिया था। परंतु 1605 ई० में बादशाह बना जहाँगीर बहुत कट्टर सुन्नी मुसलमान था। वह इस्लाम के सिवाय किसी अन्य धर्म को विकसित होते नहीं देख सकता था। अतः इन बदली हुई परिस्थितियों में गुरु साहिब को भी नई नीति अपनानी पड़ी।
2. गुरु अर्जन देव जी का बलिदान (Martyrdom of Guru Arjan Dev Ji)-जहाँगीर के लिए सिखों की बढ़ती लोकप्रियता असहनीय थी। इस लहर के दमन के लिए उसने 1606 ई० में गुरु अर्जन देव जी को शहीद कर दिया। गुरु अर्जन देव जी के बलिदान ने सिखों को स्पष्ट कर दिया था यदि वे जीवित रहना चाहते हैं तो उन्हें शस्त्रधारी बनकर मुग़लों से टक्कर लेनी होगी। इस प्रकार गुरु अर्जन देव जी का बलिदान गुरु हरगोबिंद जी द्वारा नई नीति धारण करने के लिए काफी सीमा तक उत्तरदायी था।
3. गुरु अर्जन देव जी का अंतिम संदेश (Last Message of Guru Arjan Dev Ji)-गुरु अर्जन देव जी ने अपने बलिदान से पूर्व अपने पुत्र हरगोबिंद जी को यह संदेश भेजा कि, “उसे पूरी तरह शस्त्रों से सुसज्जित होकर गद्दी पर बैठना चाहिए। अपनी पूर्ण योग्यता के अनुसार सेना रखनी चाहिए।” अतः गुरु साहिब के इन शब्दों को व्यावहारिक रूप देने का गुरु हरगोबिंद जी ने निश्चय किया।
AKAL TAKHT SAHIB : AMRITSAR
नई नीति की मुख्य विशेषताएँ (Main Features of the New Policy)
1. मीरी तथा पीरी तलवारें धारण करना (Wearing of Miri and Piri Swords)-गुरु हरगोबिंद जी ने गुरुगद्दी पर विराजमान होते समय मीरी तथा पीरी नामक दो तलवारें धारण की। मीरी तलवार सांसारिक सत्ता की प्रतीक थी और पीरी तलवार धार्मिक नेतृत्व की प्रतीक थी। गुरु हरगोबिंद जी ने एक ओर सिखों को सतनाम का जाप करने तथा दूसरी ओर शस्त्र धारण करने का संदेश दिया। इस प्रकार गुरु साहिब ने सिखों को संत सिपाही बना दिया। गुरु हरगोबिंद जी द्वारा अपनाई गई इस मीरी तथा पीरी नीति का सिख इतिहास पर बहुत गहन प्रभाव पड़ा।
2. सेना का संगठन (Organisation of Army)-गुरु हरगोबिंद जी द्वारा सिख पंथ की रक्षा के लिए सेना का संगठन करने का भी निर्णय किया गया। उन्होंने सिखों को यह आदेश दिया कि वे गुरु साहिब की सेना में भर्ती हों। फलस्वरूप 500 योद्धा आपकी सेना में भर्ती हुए। इन सैनिकों को सौ-सौ के पाँच जत्थों में विभाजित किया मया। प्रत्येक जत्था एक जत्थेदार के अधीन रखा गया था। इनके अतिरिक्त गुरु साहिब ने 52 अंगरक्षक भी भर्ती किए। धीरे-धीरे गुरु साहिब की सेना की संख्या बढ़कर 2500 हो गई। गुरु जी की सेना में पठानों की एक अलग रैजमैंट बनाई गई। इसका सेनापति पँदा खाँ को नियुक्त किया गया।
3. शस्त्र तथा घोड़े एकत्र करना (Collection of Arms and Horses)—गुरु हरगोबिंद जी ने मसंदों को यह आदेश दिया कि वे सिखों से धन की अपेक्षा शस्त्र एवं घोड़े एकत्रित करें। सिखों से भी कहा कि वे मसंदों को शस्त्र एवं घोड़े भेंट करें। गुरु जी के इस आदेश का मसंदों और सिखों ने बड़े उत्साह से स्वागत किया। फलस्वरूप गुरु जी की सैन्य-शक्ति अधिक दृढ़ हो गई।
4. अकाल तख्त साहिब का निर्माण (Construction of Akal Takhat Sahib)-गुरु हरगोबिंद जी द्वारा अकाल तख्त साहिब का निर्माण उनकी नई नीति का ही महत्त्वपूर्ण भाग था। अकाल तख्त साहिब का निर्माण गुरु हरगोबिंद जी ने हरिमंदिर साहिब के सामने करवाया था। इसके भीतर एक 12 फीट ऊँचे चबूतरे का निर्माण किया जो एक तख्त के समान था। इस तख्त पर बैठकर गुरु हरगोबिंद जी सिखों को सैनिक प्रशिक्षण देते, उनके सैनिक कारनामे देखते, मसंदों से घोड़े और शस्त्र स्वीकार करते, ढाडी वीर-रस की वारें सुनाते तथा सिखों के परस्पर झगड़ों का भी निपटारा करते थे। एच० एस० भाटिया एवं एस० आर० बख्शी के अनुसार,
“अकाल तख्त सिखों की सबसे पवित्र संस्था है। इसने सिख समुदाय के सामाजिक-राजनीतिक परिवर्तन में ऐतिहासिक भूमिका निभाई।”1
5. राजनीतिक प्रतीकों को अपनाना (Adoption of Royal Symbols)—गुरु हरगोबिंद जी अपनी नई नीति के अंतर्गत राजसी ठाठ-बाठ से रहने लगे। उन्होंने अब सेली (ऊन की माला) के स्थान पर कमर में दो तलवारें धारण कीं। एक शानदार दरबार की स्थापना की गई। उन्होंने अब राजाओं की भाँति दस्तार के ऊपर कल्गी सुशोभित करनी आरंभ कर दी। उन्होंने ‘सच्चा पातशाह’ की उपाधि धारण की। गुरु हरगोबिंद साहिब जी ने अब बहुमूल्य वस्त्र धारण करने आरंभ कर दिए। वे अपने अंगरक्षकों के साथ चलते थे।
6. अमृतसर की किलाबंदी (Fortification of Amritsar)-अमृतसर न केवल सिखों का सर्वाधिक पावन धार्मिक स्थान ही था, अपितु यह उनका विख्यात सैनिक प्रशिक्षण केंद्र भी था। इसलिए गुरु जी ने इस महत्त्वपूर्ण स्थान की सुरक्षा के लिए अमृतसर शहर के चारों ओर एक दीवार बनवा दी। इसके अतिरिक्त यहाँ पर एक दुर्ग का निर्माण भी करवाया गया जिसका नाम लोहगढ़ रखा गया।
7. गुरु जी के प्रतिदिन के जीवन में परिवर्तन (Changes in the daily life of the Guru)—अपनी नवीन नीति के कारण गुरु हरगोबिंद जी के प्रतिदिन के जीवन में भी कई परिवर्तन आ गए थे। उन्होंने अपने दरबार में अब्दुला तथा नत्था मल को वीर-रस से परिपूर्ण वारें गाने के लिए भर्ती किया। एक विशेष संगीत मंडली की स्थापना की गई जो रात्रि को ऊँची आवाज़ में जोशीले शब्द माती हुई हरिमंदिर साहिब की परिक्रमा करती थी। गुरु साहिब ने अपने जीवन में ये परिवर्तन केवल सिखों में वीरता की भावना उत्पन्न करने के लिए किए थे।
1. “Sri Akal Takhat is one of the most sacred institutions of Sikhism. It has played historic role in the socio-political transformation of the Sikh community.” H.S. Bhatia and S.R. Bakshi, Encyclopaedic History of the Sikhs and Sikhism (New Delhi : 1999) Vol. 1, p. 140.
नई नीति का आलोचनात्मक मूल्याँकन (Critical Estimate of the New Policy)
आरंभ में जब गरु हरगोबिंद जी ने नई नीति अपनाई तो इस नीति ने कई संदेह उत्पन्न कर दिए। वास्तव में गुरु हरगोबिंद जी की नई नीति का गलत आँकलन किया गया है। गुरु साहिब ने पुरानी सिख परंपरा का त्याग नहीं किया था। उन्होंने सिख धर्म के प्रचार के लिए पंजाब के भिन्न-भिन्न स्थानों में अपने प्रचारक भेजे। यदि गुरु साहिब ने अपने प्रतिदिन के जीवन में कुछ परिवर्तन किए तो उसका उद्देश्य केवल सिखों में एक नया जोश उत्पन्न करना था। समय के साथ-साथ गुरु साहिब की सिखों की नई नीति के संबंध में उत्पन्न हुई शंकाएँ दूर होनी आरंभ हो गई थीं। भाई गुरदास जी गुरु हरगोबिंद जी की नई नीति की प्रशंसा करते हैं। उनका कथन है कि जिस प्रकार मणि को प्राप्त करने के लिए साँप को मारना आवश्यक है। कस्तूरी प्राप्त करने के लिए हिरन को मारना ज़रूरी है। गिरी को प्राप्त करने के लिए नारियल को तोड़ना पड़ता है। बाग़ की सुरक्षा के लिए काँटेदार झाड़ियाँ लगाने की आवश्यकता होती है। ठीक इसी प्रकार गुरु नानक देव जी द्वारा स्थापित सिख पंथ की सुरक्षा के लिए गुरु हरगोबिंद जी द्वारा नई नीति को अपनाना बहुत जरूरी था। वास्तव में गुरु हरगोबिंद जी ने गुरु नानक देव जी के उपदेशों को ही वास्तविक रूप दिया। प्रसिद्ध इतिहासकार एच० एस० भाटिया एवं एस० आर० बक्शी के शब्दों में,
“यद्यपि बाहरी रूप में ऐसा लगता था कि गुरु हरगोबिंद जी ने गुरु नानक जी के उद्देश्यों को परिपूर्ण करने में भिन्न मार्ग अपनाया, किंतु यह मुख्य तौर पर गुरु नानक जी के आदर्शों पर ही आधारित था।”2
नई नीति का महत्त्व (Importance of the New Policy).
गुरु हरगोबिंद जी द्वारा अपनाई गई नई नीति के महत्त्वपूर्ण परिणाम निकले। सिख अब संत सिपाही बन गए। वे ईश्वर की भक्ति के साथ-साथ शस्त्रों का भी प्रयोग करने लग पड़े। इस नीति के अभाव में सिखों का पावन भ्रातृत्व समाप्त हो गया होता अथवा फिर वे फकीरों और संतों की एक श्रेणी बनकर रह जाते। गुरु हरगोबिंद जी की नई नीति के परिणामस्वरूप पंजाब के जाट अधिक संख्या में सिख पंथ में सम्मिलित हुए। इस नई नीति के कारण सिखों एवं मुग़लों के संबंधों में आपसी तनाव और बढ़ गया। शाहजहाँ के समय गुरु साहिब को मुग़लों के साथ चार युद्ध लड़ने पड़े। इन युद्धों में सिखों की विजय से मुग़ल साम्राज्य के गौरव को धक्का लगा। अंत में हम के० एस० दुग्गल के इन शब्दों से सहमत हैं,
“गुरु हरगोबिंद जी का सबसे महान् योगदान सिखों के जीवन मार्ग को एक नई दिशा देना था। उसने संतों को सिपाही बना दिया किंतु फिर भी परमात्मा के भक्त रहे।”3
2. “Though outwardly, it may appear that Guru Hargobind persued a slightly different course for fulfilling the mission of Guru Nanak, yet basically, it was Guru Nanak’s ideals that he preached.” H.S. Bhatia and S.R. Bakshi op. cit. Vol. 1, p. 24.
3. “Guru Hargobind’s greatest contribution is that he gave a new turn to the Sikh way of life. He turned saints into soldiers and yet remained a man of God.” K.S. Duggal, Sikh Gurus : Their Lives and Teachings (New Delhi : 1993) p. 164.
गुरु हरगोबिंद जी के मुग़लों के साथ संबंध (Guru Hargobind Ji’s Relations with the Mughals)
प्रश्न 3.
गुरु हरगोबिंद जी के जहाँगीर तथा शाहजहाँ के साथ संबंधों का संक्षिप्त विवरण दें।
(Describe briefly the relationship of Guru Hargobind Ji with Jahangir and Shah Jahan.)
अथवा
गुरु हरगोबिंद जी एवं मुगलों के संबंधों पर एक विस्तृत लेख लिखो। (Write a detailed note on relations between Guru Hargobind Ji and the Mughals.)
अथवा
गुरु हरगोबिंद जी के मुग़लों के साथ संबंधों की चर्चा करें। (Explain the relations of Guru Hargobind Ji with the Mughals.)
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद जी 1606 ई० से 1645 ई० तक गुरुगद्दी पर रहे। उनके गुरुगद्दी के काल के दौरान उनके मुग़लों के साथ संबंधों को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है
I. प्रथम काल 1606-27 ई०
(First Period 1606—27 A.D.)
1. गरु हरगोबिंद जी ग्वालियर में बंदी (Imprisonment of Guru Hargobind Ji at Gwalior)गुरु हरगोबिंद जी के गुरुगद्दी पर बैठने के कुछ समय बाद ही वह मुग़ल सम्राट् जहाँगीर द्वारा बंदी बनाकर ग्वालियर के दुर्ग में भेज दिए गए। गुरु साहिब को बंदी क्यों बनाया गया, इस संबंध में इतिहासकारों में मतभेद हैं। कुछ इतिहासकारों का विचार है कि इसके लिए चंदू शाह का षड्यंत्र उत्तरदायी था। गुरु जी द्वारा उसकी पुत्री के साथ विवाह करने से पुनः इंकार करने पर उसने जहाँगीर को गुरु साहिब के विरुद्ध भड़काया। परिणामस्वरूप जहाँगीर ने उन्हें बंदी बना लिया। दूसरी ओर अधिकाँश इतिहासकार इस मत से सहमत हैं कि जहाँगीर ने गुरु साहिब को उनके द्वारा अपनाई गई नई नीति के कारण बंदी बनाया। इस नीति से उसके मन में अनेक शंकाएँ उत्पन्न हो गई थीं तथा गुरु साहिब के विरोधियों ने भी जहाँगीर के कान भरे कि गुरु जी विद्रोह करने की तैयारियाँ कर रहे हैं।
2. कारावास की अवधि (Period of Imprisonment)—इस संबंध में इतिहासकारों में मतभेद हैं कि गुरु हरगोबिंद जी ग्वालियर के दुर्ग में कितना समय बंदी रहे। दाबिस्तान-ए-मजाहिब के लेखक के अनुसार गुरु साहिब 12 वर्ष कारागृह में रहे। डॉक्टर इंदू भूषण बैनर्जी यह समय पाँच वर्ष, तेजा सिंह एवं गंडा सिंह दो वर्ष और सिख साखीकार यह समय चालीस दिन बताते हैं। अधिकाँश इतिहासकारों का कहना है कि गुरु साहिब 1606 ई० से 1608 ई० तक दो वर्ष ग्वालियर में बंदी रहे।
3. गुरु हरगोबिंद जी की रिहाई (Release of the Guru Hargobind Ji)-गुरु हरगोबिंद जी की रिहाई के संबंध में भी इतिहासकारों ने कई मत प्रकट किए हैं। सिख साखीकारों का कहना है कि गुरु जी को बंदी बनाने के बाद जहाँगीर बहुत बेचैन रहने लग पड़ा था। भाई जेठा जी ने जहाँगीर को पूर्णतः ठीक कर दिया। उनके ही निवेदन पर जहाँगीर ने गुरु साहिब को रिहा कर दिया। कुछ इतिहासकारों का विचार है कि जहाँगीर ने यह निर्णय सूफी संत मीयाँ मीर के निवेदन पर लिया था। कुछ अन्य इतिहासकारों के विचारानुसार जहाँगीर गुरु साहिब के बंदी काल के दौरान सिखों की गुरु जी के प्रति श्रद्धा देखकर बहुत प्रभावित हुआ। फलस्वरूप जहाँगीर ने गुरु साहिब की रिहाई का आदेश दिया। गुरु जी की जिद्द पर ग्वालियर के दुर्ग में ही बंदी 52 अन्य राजाओं को भी रिहा करना पड़ा। इसके कारण गुरु हरगोबिंद जी को ‘बंदी छोड़ बाबा’ भी कहा जाने लगा।
4. जहाँगीर के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध (Friendly Relations with Jahangir)-शीघ्र ही जहाँगीर को यह विश्वास हो गया था कि गुरु साहिब निर्दोष थे और गुरु साहिब के कष्टों के पीछे चंदू शाह का बड़ा हाथ था। इसलिए जहाँगीर ने चंदू शाह को दंड देने के लिए सिखों के सुपुर्द कर दिया। यहाँ तक कि जहाँगीर ने अकाल तख्त साहिब के निर्माण कार्य के लिए सारा खर्चा देने की पेशकश की, परंतु गुरु जी ने इंकार कर दिया। इस प्रकार गुरु जी की ग्वालियर की रिहाई के पश्चात् तथा जहाँगीर की मृत्यु तक जहाँगीर एवं गुरु जी के बीच मैत्रीपूर्ण संबंध रहे।
II. द्वितीय काल 1628-35 ई०
(Second Period 1628-35 A.D.)
1628 ई० में शाहजहाँ मग़लों का नया बादशाह बना। उसके शासनकाल में एक बार फिर सिखों और मुग़लों में निम्नलिखित कारणों से संबंध बिगड़ गए—
1. शाहजहाँ की धार्मिक कट्टरता (Shah Jahan’s Fanaticism)—शाहजहाँ बड़ा कट्टर सुन्नी मुसलमान था। उसने हिंदुओं के कई मंदिरों को नष्ट करवा दिया। उसने गुरु अर्जन देव जी द्वारा लाहौर में बनवाई गई बाऊली के स्थान पर एक मस्जिद का निर्माण करवा दिया था। फलस्वरूप सिखों में उसके प्रति अत्यधिक रोष उत्पन्न हो गया था।
2. नक्शबंदियों का विरोध (Opposition of Naqashbandis)-नक्शबंदी कट्टर सुन्नी मुसलमानों का एक संप्रदाय था। गुरु अर्जन देव जी को शहीद करवाने में उनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका थी। शाहजहाँ के सिंहासन पर बैठने के पश्चात् एक बार फिर नक्शबंदियों ने शाहजहाँ को गुरु जी के विरुद्ध भड़काया। परिणामस्वरूप शाहजहाँ गुरु साहिब के विरुद्ध हो गया।
3. गुरु हरगोबिंद जी की नई नीति (New Policy of Guru Hargobind Ji)-गुरु हरगोबिंद जी की नई नीति भी सिखों तथा मुग़लों के मध्य संबंधों को बिगाड़ने का एक प्रमुख कारण बनी। इस नीति के कारण गुरु साहिब ने सैन्य शक्ति का संगठन कर लिया था। सिख श्रद्धालुओं ने उन्हें ‘सच्चा.पातशाह’ कहकर संबोधित करना आरंभ कर दिया था। शाहजहाँ इस नीति को मुग़ल साम्राज्य के लिए गंभीर खतरा समझता था। इसलिए उसने गुरु साहिब के विरुद्ध कार्यवाही करने का निर्णय किया।
4. कौलाँ का मामला (Kaulan’s Affair)-गुरु साहिब और शाहजहाँ के बीच कौलाँ के मामले के कारण तनाव में और वृद्धि हुई। कौलाँ लाहौर के काज़ी रुस्तम खाँ की पुत्री थी। वह गुरु अर्जन देव जी की वाणी को बहुत चाव से पढ़ती थी। काज़ी भला यह कैसे सहन कर सकता था। फलस्वरूप उसने अपनी बेटी पर अनेक प्रतिबंध लगा दिए। कौला तंग आकर गुरु साहिब की शरण में चली गई। जब काजी को इस संबंध में ज्ञात हुआ तो उसने गुरु साहिब के विरुद्ध शाहजहाँ के खूब कान भरे।
सिखों और मुग़लों की लड़ाइयाँ
(Battles Between the Sikhs and Mughals)
मुग़लों और सिखों के बीच 1634-35 ई० में हुई चार लड़ाइयों का संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित है—
1. अमृतसर की लड़ाई 1634 ई० (Battle of Amritsar 1634 A.D.)-1634 ई० में अमृतसर में मुग़लों और सिखों के बीच प्रथम लड़ाई हुई। शाहजहाँ अपने सैनिकों सहित अमृतसर के निकट शिकार खेल रहा था। शिकार खेलते समय शाहजहाँ का एक विशेष बाज़ उड़ गया। सिखों ने इस बाज़ को पकड़ लिया। मुग़ल सैनिकों ने बाज़ वापस करने की माँग की। सिखों के इंकार करने पर दोनों पक्षों में लड़ाई हो गई। इसमें कुछ मुग़ल सैनिक मारे गए। क्रोधित होकर शाहजहाँ ने लाहौर से मुखलिस खाँ के नेतृत्व में 7,000 सैनिकों की एक टुकड़ी अमृतसर भेजी। इस लड़ाई में गुरु साहिब के अतिरिक्त पैंदे खाँ ने अपनी वीरता प्रदर्शित की। मुखलिस खाँ गुरु साहिब से लड़ता हुआ मारा गया। परिणामस्वरूप मुग़ल सैनिकों में भगदड़ मच गई। इस लड़ाई में विजय के कारण सिख सेनाओं का साहस बहुत बढ़ गया। इस लड़ाई के संबंध में लिखते हुए प्रो० हरबंस सिंह का कहना है,
“अमृतसर की लड़ाई यद्यपि एक छोटी घटना थी किंतु इसके दूरगामी परिणाम निकले।”4
2. लहरा की लड़ाई 1634 ई० (Battle of Lahira 1634 A.D.)-शीघ्र ही मुग़लों तथा सिखों के मध्य लहरा (भटिंडा के निकट) नामक स्थान पर दूसरी लड़ाई हुई। इस लड़ाई के कारण दो घोड़े थे जिनके नाम दिलबाग तथा गुलबाग थे। इन दोनों घोड़ों को बखत मल और तारा चंद नामक दो मसंद काबुल से गुरु साहिब को भेंट करने के लिए ला रहे थे। मार्ग में ये दोनों घोड़े मुग़लों ने छीन लिए। गुरु साहिब का एक सिख भाई बिधी चंद भेष बदलकर दोनों घोड़े शाही घुड़साल से निकाल लाया। शाहजहाँ ने क्रोधित होकर तुरंत लल्ला बेग तथा कमर बेग के नेतृत्व में एक भारी सेना सिखों के दमन के लिए भेजी। लहरा नामक स्थान पर भयंकर लड़ाई हुई। इस लड़ाई में मुग़लों के दोनों सेनापति लल्ला बेग तथा कमर बेग मारे गए। इस लड़ाई में भाई जेठा जी भी शहीद हो गए। अंत में सिख विजयी रहे।
3. करतारपुर की लड़ाई 1635 ई० (Battle of Kartarpur 1635 A.D.)-मुग़लों तथा सिखों के मध्य तीसरी लड़ाई 1635 ई० में करतारपुर में हुई। यह लड़ाई पैंदा खाँ के कारण हुई। वह हरगोबिंद जी की सेना में पठान टुकड़ी का सेनापति था। उसने गुरु साहिब का एक बाज़ चोरी करके अपने दामाद को दे दिया। गुरु साहिब के पूछने पर उसने इस बात से इंकार कर दिया। जब गुरु जी को पैंदा खाँ के झूठ का पता चला तो उन्होंने उसे नौकरी से निकाल दिया। पैंदा खाँ मुग़ल बादशाह शाहजहाँ की शरण में चला गया। पैंदा खाँ के उकसाने पर शाहजहाँ ने पैंदा खाँ और काले खाँ के नेतृत्व में एक विशाल सेना सिखों के विरुद्ध भेजी। करतारपुर में दोनों सेनाओं के मध्य भयंकर लड़ाई हुई। इस लड़ाई में तेग़ बहादुर जी ने अपने शौर्य का खूब प्रदर्शन किया। इस लड़ाई में गुरु साहिब से लड़ते हुए काले खाँ, पैंदा खाँ और उसका पुत्र कुतब खाँ मारे गए। इस प्रकार गुरु जी को एक शानदार विजय प्राप्त हुई।
4. फगवाड़ा की लड़ाई 1635 ई० (Battle of Phagwara 1635 A.D.)-करतारपुर की लड़ाई के पश्चात् गुरु हरगोबिंद जी कुछ समय के लिए फगवाड़ा आ गए। यहाँ अहमद खाँ के नेतृत्व में कुछ मुग़ल सैनिकों ने गुरु जी पर आक्रमण कर दिया। चूंकि मुग़ल सैनिकों की संख्या बहुत कम थी इसलिए फगवाड़ा में दोनों सेनाओं में मामूली झड़प हुई। फगवाड़ा की लड़ाई गुरु हरगोबिंद जी के समय में मुग़लों तथा सिखों के मध्य लड़ी गई अंतिम लड़ाई थी।
III. लड़ाइयों का महत्त्व (Importance of the Battles)
गुरु हरगोबिंद जी के काल में मुग़लों तथा सिखों के मध्य लड़ी गई विभिन्न लड़ाइयों का सिख इतिहास में विशेष महत्त्व है। इन लड़ाइयों में सिख विजयी रहे थे। इन लड़ाइयों में विजय के कारण सिखों का साहस बहुत बढ़ गया था। सिखों ने अपने सीमित साधनों के बलबूते पर इन लड़ाइयों में विजय प्राप्त की थी। अतः गुरु जी की ख्याति दूर-दूर तक फैल गई। बहुत-से लोग सिख धर्म में सम्मिलित हो गए। परिणामस्वरूप सिख पंथ का बड़ी तीव्रता से विकास होने लगा। प्रसिद्ध इतिहासकार पतवंत सिंह के अनुसार__ “इन लड़ाइयों का ऐतिहासिक महत्त्व इस बात में नहीं था कि ये कितनी बड़ी थीं अपितु इस बात में था कि इन्होंने आक्रमणकारियों के वेग को रोका तथा उनकी शक्ति को चुनौती दी। इसने मुग़लों के विरुद्ध चेतना का संचार किया तथा दूसरों के लिए एक उदाहरण प्रस्तुत की।”5
4. “This Amritsar action was a small incident but its implications were Far-reaching.” Prof. Harbans Singh, The Heritage of the Sikhs (Delhi : 1994)p.49.
5. “The historical importance of these battles did not lie in their scale, but in the fact that the aggressor’s writ was rejected and his power scorned. A mood of defience was generated agains the Mughals and an example set for others.” Patwant Singh, The Sikhs (New Delhi : 1999) p. 42.
संक्षिप्त उत्तरों वाले प्रश्न (Short Answer Type Questions)
प्रश्न 1.
सिख पंथ के रूपांतरण में गुरु हरगोबिंद साहिब ने क्या योगदान दिया ?
(What contribution was made by Guru Hargobind Sahib in transformation of Sikhism ?)
अथवा
गुरु हरगोबिंद जी के गुरु काल की सफलताओं का संक्षिप्त वर्णन करें। (Briefly describe the achievements of Guru Hargobind Ji’s pontificate.)
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद जी 1606 ई० से 1645 ई० तक गुरुगद्दी पर आसीन रहे। उन्होंने मीरी और पीरी नामक दो तलवारें धारण की। गुरु जी ने मुग़ल अत्याचारियों का सामना करने के लिए एक सेना का गठन किया। उन्होंने अमृतसर की रक्षा के लिए लोहगढ़ नामक एक दुर्ग का निर्माण करवाया। सिखों का सांसारिक मामलों में निर्देशन करने के लिए गुरु हरगोबिंद जी ने हरिमंदिर साहिब के सामने अकाल तख्त साहिब का निर्माण आरंभ करवाया। गुरु हरगोबिंद जी ने शाहजहाँ के समय में मुग़लों के साथ चार लड़ाइयाँ लड़ी जिनमें गुरु साहिब को विजय प्राप्त हुई।
प्रश्न 2.
गुरु हरगोबिंद जी ने नई नीति अथवा मीरी एवं पीरी नीति को क्यों धारण किया ?
(What were the main causes of the adoption of New Policy or Miri and Piri by Guru Hargobind Ji ?)
अथवा
गुरु हरगोबिंद जी ने नई नीति क्यों धारण की ? (Why did Guru Hargobind Ji adopt the ‘New Policy’ ?) ।
अथवा
गुरु हरगोबिंद जी ने नई नीति क्यों धारण की ? कोई तीन कारण बताएँ। (Why did Guru Hargobind Ji adopt the New Policy ? Give any three reasons.)
अथवा
गुरु हरगोबिंद जी द्वारा नई नीति अपनाने के कोई तीन कारण बताओ। (Describe any three causes of adoption of New Policy by Guru Hargobind Ji.)
उत्तर-
- मुग़ल बादशाह जहाँगीर बहुत कट्टर सुन्नी मुसलमान था। वह इस्लाम के अतिरिक्त किसी अन्य धर्म को नहीं देख सकता था। इस बदली हुई स्थिति में गुरु साहिब को नई नीति अपनानी पड़ी।
- 1606 ई० में जहाँगीर ने गुरु अर्जन देव जी को लाहौर में शहीद कर दिया। गुरु हरगोबिंद जी ने मुग़लों के अत्याचारों का सामना करने के उद्देश्य से सिखों को हथियार-बंद करने का फैसला किया।
- गुरु अर्जन देव जी ने अपनी शहीदी से पूर्व अपने पुत्र हरगोबिंद जी को यह संदेश भेजा कि वह हथियारों से सुसज्जित होकर गुरुगद्दी पर बैठे तथा अपनी योग्यता के अनुसार सेना भी रखे।
प्रश्न 3.
गुरु हरगोबिंद जी की नई नीति की मुख्य विशेषताएँ क्या थीं ?
(What were the main features of Guru Hargobind Ji’s New Policy ?)
अथवा
गुरु हरगोबिंद जी की नई नीति अथवा मीरी एवं पीरी के संबंध में आप क्या जानते हैं ?
(What do you know about the New Policy or Miri and Piri of Guru Hargobind Ji ?)
अथवा
गुरु हरगोबिंद जी की ‘नई नीति’ क्या थी ? इसकी मुख्य विशेषताओं का वर्णन करें।
(What was the ‘New Policy’ of Guru Hargobind Ji ? Explain its main features.)
अथवा
गुरु हरगोबिंद जी की नई नीति की कोई तीन विशेषताएँ बताएँ। (Mention any three features of New Policy of Guru Hargobind Ji.)
उत्तर-
- गुरु हरगोबिंद जी बहुत शान-शौकत से गुरुगद्दी पर बैठे। उन्होंने मीरी तथा पीरी नामक दो तलवारें धारण की।
- सिख पंथ की रक्षा के लिए गुरु साहिब ने एक सेना का गठन किया।
- गुरु साहिब ने यह घोषणा की कि सिख उन्हें धन के स्थान पर शस्त्र और घोड़ें भेंट करें।
प्रश्न 4.
मीरी और पीरी के बारे में आप क्या जानते हैं ?
(What do you know about Miri and Piri ?)
अथवा
मीरी और पीरी से क्या भाव है ? इसकी ऐतिहासिक महत्ता बताएँ।
(What is Miri and Piri ? Describe its historical importance.)
अथवा
मीरी और पीरी से क्या भाव है ?
(What is meant by Miri and Piri ?)
अथवा
गुरु हरगोबिंद जी की नई नीति के महत्त्व का संक्षेप में वर्णन करें।
(Briefly describe the importance of the New Policy of Guru Hargobind Ji.)
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद जी ने गुरुगद्दी पर विराजमान होने के समय मीरी एवं पीरी नामक दो तलवारें धारण कीं। मीरी तलवार सांसारिक सत्ता की प्रतीक थी जबकि पीरी तलवार धार्मिक सत्ता की प्रतीक थी। इस प्रकार गुरु हरगोबिंद जी ने सिखों को संत सिपाही बना दिया। इसके कारण प्रथम, सिखों में जोशीली भावना का संचार हुआ। दूसरा, अब उन्होंने धर्म की रक्षा के लिए शस्त्र उठाने का निर्णय किया। तीसरा, गुरु गोबिंद सिंह जी ने इस नीति का अनुसरण करते हुए खालसा पंथ का सृजन किया।
प्रश्न 5.
गुरु हरगोबिंद जी के ग्वालियर में बंदी बनाए जाने पर एक संक्षिप्त नोट लिखें।
(Write a short note on the imprisonment of Guru Hargobind Ji at Gwalior.)
अथवा
जहाँगीर ने गुरु हरगोबिंद जी को बंदी क्यों बनाया ?
(Why did Jahangir arrest Guru Hargobind Ji ?)
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद जी के गुरुगद्दी पर बैठने के कुछ समय बाद ही वह मुग़ल सम्राट् जहाँगीर द्वारा बंदी बनाकर ग्वालियर के दुर्ग में भेज दिए गए। गुरु साहिब को बंदी क्यों बनाया गया, इस संबंध में इतिहासकारों में मतभेद हैं। कुछ इतिहासकारों का विचार है कि इसके लिए चंदू शाह का षड्यंत्र उत्तरदायी था। दूसरी ओर अधिकाँश इतिहासकार इस मत से सहमत हैं कि जहाँगीर ने गुरु साहिब को उनके द्वारा अपनाई गई नीति के कारण बंदी बनाया। अधिकाँश इतिहासकारों का कहना है कि गुरु साहिब 1606 ई० से 1608 ई० तक दो वर्ष ग्वालियर में बंदी रहे।
प्रश्न 6.
गुरु हरगोबिंद जी तथा मुग़ल सम्राट् जहाँगीर के संबंधों पर एक संक्षिप्त नोट लिखें।
(Write a short note on relations between Guru Hargobind Ji and Mughal emperor Jahangir.)
उत्तर-
1605 ई० में मुग़ल सम्राट् जहाँगीर के सिंहासन पर बैठने के साथ ही मुग़ल-सिख संबंधों में एक नया मोड़ आया। जहाँगीर बड़ा कट्टर सुन्नी मुसलमान था। उसने गुरु अर्जन देव जी को शहीद करवा दिया था। मुग़ल अत्याचारों का मुकाबला करने के उद्देश्य के साथ गुरु हरगोबिंद जी ने नई नीति धारण की। परिणामस्वरूप जहाँगीर ने गुरु हरगोबिंद साहिब को बंदी बना कर ग्वालियर के दुर्ग में भेज दिया। बाद में जहाँगीर ने गुरु जी को रिहा करने का आदेश दिया। इसके बाद गुरु हरगोबिंद जी तथा जहाँगीर के मध्य मैत्रीपूर्ण संबंध स्थापित हो गए।
प्रश्न 7.
गुरु हरगोबिंद जी तथा मुगलों के बीच लड़ाइयों के क्या कारण थे ?
(What were the causes of battles between Guru Hargobind Ji and the Mughals.)
अथवा
गुरु हरगोबिंद जी और मुगलों के बीच लड़ाइयों के कोई तीन कारण लिखो। (Write any three causes of battles between Guru Hargobind Ji and the Mughals.)
उत्तर-
- मुग़ल सम्राट शाहजहाँ एक कट्टर सुन्नी मुसलमान था। उसने गुरु अर्जन देव जी द्वारा लाहौर में बनवाई गई बाऊली को गंदगी से भरवा दिया था।
- शाहजहाँ के समय नक्शबंदियों के नेता शेख मासूम ने सम्राट को सिखों के विरुद्ध कड़ी-से-कड़ी कार्यवाही करने के लिए भड़काया।
- गुरु हरगोबिंद जी ने अपनी सेना में बहुत-से मुग़ल सेना के भगौड़ों को भर्ती कर लिया था।
- सिख श्रद्धालु गुरु जी को ‘सच्चा पातशाह’ कहने लगे थे।
- लाहौर के काज़ी रुस्तम खाँ की पुत्री कौलां के गुरु जी का शिष्य बनने को शाहजहाँ सहन करने को तैयार नहीं था।
प्रश्न 8.
गुरु हरगोबिंद जी तथा मुगलों के मध्य हुई अमृतसर की लड़ाई का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
(Give a brief account of the battle of Amritsar fought between Guru Hargobind Ji and the Mughals.)
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद जी और मुग़लों के मध्य अमृतसर में प्रथम लड़ाई 1634 ई० में हुई। इस लड़ाई का मुख्य कारण एक बाज़ था। उस समय मुग़ल बादशाह शाहजहाँ एक विशेष बाज़ उड़ गया। सिखों ने उसको पकड़ लिया। फलस्वरूप शाहजहाँ ने सिखों को सबक सिखाने के लिए मुखलिस खाँ के नेतृत्व में 7000 सैनिक भेजे। सिखों ने मुग़ल सैनिकों का डटकर मुकाबला किया। इस लड़ाई में मुखलिस खाँ मारा गया। परिणामस्वरूप मुग़ल सैनिकों में भगदड़ मच गई। इस प्रकार मुग़लों और सिखों के मध्य हुई इस प्रथम लड़ाई में सिख विजयी रहे।
प्रश्न 9.
गुरु हरगोबिंद जी तथा मुगलों के बीच हुई करतारपुर की लड़ाई के बारे में आप क्या जानते हैं ?
(What do you know about the battle of Kartarpur fought between Guru Hargobind Ji and the Mughals ?)
उत्तर-
1635 ई० में मुग़लों तथा सिखों के मध्य करतारपुर में लड़ाई हुई। यह लड़ाई पैंदा खाँ के कारण हुई। गुरु हरगोबिंद जी ने उसके अहंकारी होने के कारण उसे अपनी फ़ौज में से निकाल दिया था। पैंदा खाँ ने इस अपमान का बदला लेने के लिए शाहजहाँ को गुरु जी के विरुद्ध सैनिक कार्यवाही करने के लिए खूब भड़काया। परिणामस्वरूप शाहजहाँ ने एक सेना गुरु हरगोबिंद जी के विरुद्ध भेजी। करतारपुर में दोनों सेनाओं के मध्य भयंकर लड़ाई हुई। इस लड़ाई में मुग़ल सेना को अंत में पराजय का सामना करना पड़ा।
प्रश्न 10.
गुरु हरगोबिंद जी की मुग़लों के साथ हुई लड़ाइयों का वर्णन करें तथा उनका ऐतिहासिक महत्त्व भी बताएँ।
(Write briefly Guru Hargobind Ji’s battles with the Mughals. What is their significance in Sikh History ?)
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद जी की मुग़लों (शाहजहाँ के समय) के साथ 1634-35 ई० में चार लड़ाइयाँ हुईं। प्रथम लड़ाई 1634 ई० में अमृतसर में हुई। इसी वर्ष मुग़लों एवं सिखों में लहरा नामक लड़ाई हुई। 1635 ई० में गुरु हरगोबिंद जी तथा मुग़लों के मध्य तीसरी लड़ाई करतारपुर में हुई। इस लड़ाई में गुरु साहिब के दो पुत्रों गुरुदित्ता जी तथा तेग़ बहादुर जी ने वीरता के जौहर दिखाए। इसी वर्ष फगवाड़ा में मुग़लों तथा गुरु हरगोबिंद जी के मध्य अंतिम लड़ाई हुई। इन लड़ाइयों में सिख अपने सीमित साधनों के बावजूद सफल रहे।
प्रश्न 11.
गुरु हरगोबिंद जी को ‘बंदी छोड़ बाबा’ क्यों कहा जाता है ?
(Why is Guru Hargobind Ji known as ‘Bandi Chhor Baba’ ?)
उत्तर-
मुग़ल बादशाह जहाँगीर ने गुरु हरगोबिंद जी को बंदी बनाकर उन्हें ग्वालियर के दुर्ग में भेज दिया। उस समय इस दुर्ग में 52 अन्य राजा भी बंदी बनाए हुए थे। ये सभी राजा गुरु जी के विचारों से बहुत प्रभावित हुए। गुरु साहिब की मौजूदगी में वे अपने कष्ट भूल गए। जब जहाँगीर ने गुरु हरगोबिंद जी को रिहा करने का निर्देश दिया तो गुरु जी ने कहा कि वे तब तक रिहा नहीं होंगे जब तक 52 राजाओं को नहीं छोड़ा जाता। अंततः मजबूर होकर जहाँगीर ने इन राजाओं को भी रिहा कर दिया। इसी कारण गुरु हरगोबिंद साहिब को ‘बंदी छोड़ बाबा’ कहा जाने लगा।
प्रश्न 12.
अकाल तख्त साहिब पर एक नोट लिखें।
(Write a note on Akal Takht Sahib.)
अथवा
अकाल तख्त साहिब के निर्माण एवं महत्त्व के बारे में लिखें।
Explain briefly about the construction and importance of Akal Takht Sahib.)
उत्तर-
अकाल तख्त साहिब का निर्माण गुरु हरगोबिंद जी का महान् कार्य था। सिखों के राजनीतिक तथा सांसारिक पथ-प्रदर्शन के लिए उन्होंने अकाल तख्त साहिब की नींव रखी। अकाल तख्त साहिब का निर्माण कार्य गुरु हरगोबिंद जी ने हरिमंदिर साहिब के सामने 1606 ई० में आरंभ करवाया था। यह कार्य 1609 ई० में संपूर्ण .. हुआ। इस तख्त पर बैठकर गुरु हरगोबिंद साहिब जी सिखों के राजनीतिक एवं सैनिक मामलों का नेतृत्व करते थे। यहाँ वह सैनिकों को प्रशिक्षण भी देते थे।
प्रश्न 13.
गुरु हरगोबिंद जी के मुगल बादशाह शाहजहाँ के साथ संबंधों का संक्षिप्त वर्णन करें।
(Give a brief account of the relations of Guru Hargobind Ji with the Mughal Emperor Shah Jahan.)
उत्तर-
शाहजहाँ बहुत कट्टर सुन्नी बादशाह था। उसने गुरु अर्जन देव जी द्वारा लाहौर में बनाई गई बाऊली को गंदगी से भरवा दिया था। दूसरा, गुरु हरगोबिंद जी द्वारा सैना तैयार किए जाने तथा उनके अनुयायियों द्वारा उन्हें ‘सच्चा पातशाह’ कह कर संबोधन करना एक आँख नहीं भाता था। 1634-35 ई० के समय के दौरान सिखों तथा मुसलमानों के मध्य अमृतसर, लहरा, करतारपुर तथा फगवाड़ा नामक लड़ाइयाँ हुईं। इन लड़ाइयों में सिख विजयी रहे तथा मुग़लों को पराजय का सामना करना पड़ा।
प्रश्न 14.
गुरु हरगोबिंद जी तथा मुग़ल सम्राटों के संबंधों का संक्षिप्त वर्णन करें।
(Write a brief note on the relations between Guru Hargobind Ji and the Mughal Emperors.)
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद जी के दो समकालीन मुग़ल बादशाह जहाँगीर तथा शाहजहाँ थे। ये दोनों बादशाह बहुत कट्टर विचारों के थे। इस कारण गुरु हरगोबिंद जी ने मुग़ल अत्याचारों का मुकाबला करने के लिए मीरी तथा पीरी की नीति धारण की। कुछ समय के लिए जहाँगीर ने गुरु हरगोबिंद जी को ग्वालियर के दुर्ग में कैद कर लिया। बाद में जहाँगीर ने गुरु हरगोबिंद जी से मित्रता स्थापित कर ली। 1634-35 ई० के समय में शाहजहाँ के शासन काल में मुग़लों तथा सिखों के मध्य चार लड़ाइयाँ-अमृतसर, लहरा, करतारपुर तथा फगवाड़ा-लड़ी गईं। इनमें गुरु हरगोबिंद साहिब विजयी रहे।
प्रश्न 15.
गुरु हरगोबिंद जी ने कीरतपुर में निवास करने का निर्णय क्यों किया? (Why did Guru Hargobind Ji Choose to settle down at Kiratpur ?)
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद जी ने कीरतपुर में निवास करने का निर्णय निम्नलिखित कारणों में किया।
- यह प्रदेश मुग़ल अधिकारियों के सीधे अधिकार क्षेत्र में नहीं था।
- यह प्रदेश शिवालिक की पहाड़ियों से घिरा होने के कारण अधिक सुरक्षित था।
- इस प्रदेश में गुरु साहिब शांति के साथ रह सकते थे तथा वह अपना समय सिख धर्म के प्रचार में व्यतीत कर सकते थे।
वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)
(i) एक शब्द से एक पंक्ति तक के उत्तर (Answer in One Word to One Sentence)
प्रश्न 1.
सिखों के छठे गुरु कौन थे ?
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद साहिब जी।
प्रश्न 2.
गुरु हरगोबिंद जी का गुरुकाल बताएँ।
उत्तर-
1606 ई० से 1645 ई०।
प्रश्न 3.
गुरु हरगोबिंद जी कब गरुगद्दी पर बैठे थे ?
उत्तर-
1606 ई०।
प्रश्न 4.
गुरु हरगोबिंद जी के पिता जी का क्या नाम था ?
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी।
प्रश्न 5.
गुरु हरगोबिंद जी की माता जी का क्या नाम था ?
उत्तर-
गँगा देवी जी।
प्रश्न 6.
बीबी वीरो जी कौन थी ?
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद जी की सुपुत्री।
प्रश्न 7.
गुरु हरगोबिंद जी के सबसे बड़े पुत्र का क्या नाम था ?
उत्तर-
बाबा गुरदित्ता जी।।
प्रश्न 8.
बाबा गुरदित्ता जी किसके पुत्र थे ?
अथवा
सूरज मल जी किसके पुत्र थे ?
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद जी के।
प्रश्न 9.
बाबा अटल राय जी किसके पुत्र थे ?
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद जी के।
प्रश्न 10.
बाबा अटल राय जी का गुरुद्वारा कहाँ स्थित है ?
उत्तर-
अमृतसर में।
प्रश्न 11.
गुरु हरगोबिंद जी द्वारा नई नीति अपनाने का कोई एक कारण बताएँ।
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी।
प्रश्न 12.
मीरी और पीरी की प्रथा किस गुरु साहिब ने आरंभ की ?
अथवा
किस गुरु साहिब ने दो तलवारें धारण की ?
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद साहिब।
प्रश्न 13.
‘मीरी’ और ‘पीरी’ से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
मीरी सांसारिक सत्ता तथा पीरी आध्यात्मिक सत्ता की प्रतीक थी।
प्रश्न 14.
अकाल तख्त साहिब का निर्माण कहाँ किया गया?
उत्तर-
अमृतसर।
प्रश्न 15.
अकाल तख्त साहिब का निर्माण किस गुरु साहिब ने करवाया ?
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद जी।
प्रश्न 16.
अकाल तख्त साहिब का निर्माण गुरु हरगोबिंद साहिब ने कब आरंभ किया था ?
उत्तर-
1606 ई०।
प्रश्न 17.
अकाल तख्त साहिब से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
ईश्वर की गद्दी।
प्रश्न 18.
अकाल तख्त साहिब किस ऐतिहासिक तथ्य पर प्रकाश डालता है ?
उत्तर-
सिख धर्म तथा सिख राजनीति का समावेश।
प्रश्न 19.
लोहगढ़ का किला किसने बनवाया ?
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद जी ने।
प्रश्न 20.
गुरु हरगोबिंद जी ने लोहगढ़ किले का निर्माण कहां किया था ?
उत्तर-
अमृतसर।
प्रश्न 21.
गुरु हरगोबिंद जी की पठानों की सैनिक टुकड़ी का सेनानायक कौन था?
उत्तर-
पैंदा खाँ।
प्रश्न 22.
गुरु हरगोबिंद जी को किस मुग़ल सम्राट् ने बंदी बनाया ?
उत्तर-
जहाँगीर ने।
प्रश्न 23.
जहाँगीर ने गुरु हरगोबिंद जी को कहाँ बंदी बनाया था ?
उत्तर-
ग्वालियर के दुर्ग में।
प्रश्न 24.
‘बंदी छोड़ बाबा’ किसे कहा जाता है ?
अथवा
सिखों के किस गुरु को ‘बंदी छोड़ बाबा’ कहा जाता है ?
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद जी।
प्रश्न 25.
शाहजहाँ तथा सिखों में संबंध बिगड़ने का कोई एक कारण बताएँ।
उत्तर-
शाहजहाँ का धार्मिक कट्टरपन।
प्रश्न 26.
गुरु हरगोबिंद जी तथा मुग़लों के मध्य प्रथम लड़ाई कहाँ हुई ?
उत्तर-
अमृतसर।
प्रश्न 27.
गुरु हरगोबिंद जी तथा मुग़लों में अमृतसर की लड़ाई कब हुई ?
उत्तर-
1634 ई०।
प्रश्न 28.
उन दो घोड़ों के नाम बताओ जो लहरा के युद्ध का कारण बने।
उत्तर-
दिलबाग तथा गुलबाग।
प्रश्न 29.
गुलबाग किसका नाम था ?
उत्तर-
गुलबाग गुरु हरगोबिंद जी को भेंट किए गए एक प्रसिद्ध घोड़े का नाम था।
प्रश्न 30.
दिलबाग किसका नाम था ?
उत्तर-
दिलबाग गुरु हरगोबिंद जी को भेंट किए गए एक प्रसिद्ध घोड़े का नाम था।
प्रश्न 31.
बिधि चंद जी कौन थे ?
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद जी के एक अनुयायी।
प्रश्न 32.
कौलां कौन थी ?
उत्तर-
काज़ी रुस्तम खाँ की पुत्री।
प्रश्न 33.
दल भंजन गुर सूरमा किस गुरु साहिब को कहा जाता है ?
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद जी को।
प्रश्न 34.
करतारपुर की लड़ाई कब हुई ?
उत्तर-
1635 ई०।
प्रश्न 35.
करतारपुर की लड़ाई में किस गुरु साहिब ने बहादुरी के जौहर दिखाए ?
उत्तर-
गुरु तेग़ बहादुर जी।
प्रश्न 36.
गुरु हरगोबिंद जी ने किस नगर की स्थापना की थी ?
उत्तर-
कीरतपुर साहिब।
प्रश्न 37.
गुरु हरगोबिंद जी ने अपने अंतिम दस वर्ष कहाँ व्यतीत किए ?
उत्तर-
कीरतपुर साहिब।
प्रश्न 38.
गुरु हरगोबिंद जी कब ज्योति-जोत समाए थे ?
उत्तर-
1645 ई०।
प्रश्न 39.
गुरु हरगोबिंद जी कहाँ ज्योति-जोत समाए थे ?
उत्तर-
कीरतपुर साहिब।
(ii) रिक्त स्थान भरें – (Fill in the Blanks)
प्रश्न 1.
गुरु हरगोबिंद जी का जन्म …………… में हुआ।
उत्तर-
(1595 ई०)
प्रश्न 2.
गुरु हरगोबिंद जी के पिता जी का नाम…………था।
उत्तर-
(गुरु अर्जन देव जी)
प्रश्न 3.
बाबा गुरदित्ता जी के पिता जी का नाम ………….. था।
उत्तर-
(गुरु हरगोबिंद जी)
प्रश्न 4.
गुरु हरगोबिंद जी …………….. में गुरुगद्दी पर बैठे।
उत्तर-
(1606 ई०)
प्रश्न 5.
गुरु हरगोबिंद जी की पुत्री का नाम ……….. था।
उत्तर-
(बीबी वीरो जी)
प्रश्न 6.
गुरुगद्दी पर बैठते समय गुरु हरगोबिंद जी की आयु ………….. वर्ष की थी।
उत्तर-
(11)
प्रश्न 7.
गुरु हरगोबिंद जी ने ………. तलवारें धारण की।
उत्तर-
(मीरी एवं पीरी)
प्रश्न 8.
अकाल तख्त साहिब का निर्माण …………… ने करवाया था।
उत्तर-
(गुरु हरगोबिंद जी)
प्रश्न 8.
………. में अकाल तख्त साहिब का निर्माण आरंभ किया गया था।
उत्तर-
(1606 ई०)
प्रश्न 10.
जहाँगीर की मृत्यु के बाद मुग़ल बादशाह ……. बना था।
उत्तर-
(शाहजहाँ)
प्रश्न 11.
……………..को बंदी छोड़ बाबा कहा जाता है।
उत्तर-
(गुरु हरगोबिंद साहिब)
प्रश्न 12.
अमृतसर की लड़ाई ………….. में हुई।
उत्तर-
(1634 ई०)
प्रश्न 13.
लहरा की लड़ाई का मुख्य कारण …………और …………. नामक दो घोड़े थे।
उत्तर-
(दिलबाग, गुलबाग)
प्रश्न 14.
गुरु हरगोबिंद जी ने ………….. नामक नगर की स्थापना की।
उत्तर-
(कीरतपुर साहिब)
प्रश्न 15.
गुरु हरगोबिंद जी ने …………….. को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया।
उत्तर-
(गुरु हर राय जी)
प्रश्न 16.
गुरु हरगोबिंद जी ……. में ज्योति-जोत समाये।
उत्तर-
(1645 ई०)
(iii) ठीक अथवा गलत (True or False)
नोट-निम्नलिखित में से ठीक अथवा गलत चनें—
प्रश्न 1.
गुरु हरगोबिंद जी सिखों के सातवें गुरु थे।
उत्तर-
गलत
प्रश्न 2.
गुरु हरगोबिंद जी का जन्म 1595 ई० में हुआ था।
उत्तर-
ठीक
प्रश्न 3.
गुरु हरगोबिंद जी के पिता जी का नाम गुरु अर्जन देव जी था।
उत्तर-
ठीक
प्रश्न 4.
गुरु हरगोबिंद जी के सबसे बड़े पुत्र का नाम बाबा गुरुदित्ता जी था।
उत्तर-
ठीक
प्रश्न 5.
गुरु हरगोबिंद जी की पुत्री का नाम बीबी वीरो था।
उत्तर-
ठीक
प्रश्न 6.
गुरु हरगोबिंद जी 1606 ई० में गुरुगद्दी पर बिराजमान हुए।
उत्तर-
ठीक
प्रश्न 7.
गुरु हरगोबिंद जी ने नई नीति का प्रचलन किया।
उत्तर-
ठीक
प्रश्न 8.
गुरु हरगोबिंद जी ने मीरी और पीरी नीति का प्रचलन किया।
उत्तर-
ठीक
प्रश्न 9.
गुरु अर्जन देव जी ने अकाल तख्त के निर्माण का कार्य किया।
उत्तर-
गलत
प्रश्न 10.
मुग़ल बादशाह जहाँगीर ने गुरु हरगोबिंद जी को ग्वालियर के किले में बंदी बना लिया था।
उत्तर-
ठीक
प्रश्न 11.
गुरु हरगोबिंद जी को ‘बंदी छोड़ बाबा’ कहा जाता है।
उत्तर-
ठीक
प्रश्न 12.
शाहजहाँ 1628 ई० में मुगलों का नया बादशाह बना।
उत्तर-
ठीक
प्रश्न 13.
सिखों और मुग़लों के मध्य पहली लड़ाई अमृतसर में 1634 ई० में हुई।
उत्तर-
ठीक
प्रश्न 14.
गुरु हरगोबिंद जी ने कीरतपुर साहिब नामक एक नगर की स्थापना की थी।
उत्तर-
ठीक
प्रश्न 15.
गुरु हरगोबिंद जी 1635 ई० में ज्योति-ज्योत समाए।
उत्तर-
गलत
(iv) बहु-विकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions)
नोट-निम्नलिखित में से ठीक उत्तर का चयन कीजिए
प्रश्न 1.
सिखों के छठे गुरु कौन थे ?
(i) गुरु अर्जन देव जी
(ii) गुरु हरगोबिंद जी
(iii) गुरु हर राय जी
(iv) गुरु हर कृष्ण जी।
उत्तर-
(ii)
प्रश्न 2.
गुरु हरगोबिंद जी का जन्म कब हुआ ?
(i) 1590 ई० में
(ii) 1593 ई० में
(iii) 1595 ई० में
(iv) 1597 ई० में।
उत्तर-
(iii)
प्रश्न 3.
गुरु हरगोबिंद जी के पिता जी का क्या नाम था ?
(i) गुरु अर्जन देव जी
(ii) गुरु रामदास जी
(iii) गुरु हर राय जी
(iv) गुरु अमरदास जी।’
उत्तर-
(i)
प्रश्न 4.
गुरु हरगोबिंद जी की माता जी का क्या नाम था ?
(i) लक्ष्मी देवी जी
(ii) गंगा देवी जी
(ii) सुलक्खनी जी
(iv) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(ii)
प्रश्न 5.
बीबी वीरो जी कौन थी ?
(i) गुरु हरगोबिंद जी की पत्नी
(ii) गुरु हरगोबिंद जी की सुपुत्री
(iii) गुरु हर राय जी की सुपुत्री
(iv) बाबा गुरदित्ता जी की पत्नी।
उत्तर-
(i)
प्रश्न 6.
गुरु हरगोबिंद जी गुरुगद्दी पर कब बैठे ?
(i) 1506 ई० में
(ii) 1556 ई० में
(iii) 1605 ई० में
(iv) 1606 ई० में।
उत्तर-
(iv)
प्रश्न 7.
मीरी और पीरी की प्रथा किस गुरु साहिब ने आरंभ की ?
(i) गुरु अर्जन देव जी ने
(ii) गुरु हरगोबिंद जी ने
(iii) गुरु तेग़ बहादुर जी ने
(iv) गुरु गोबिंद सिंह जी ने।
उत्तर-
(i)
प्रश्न 8.
अकाल तख्त साहिब का निर्माण किस गुरु साहिब ने करवाया था ?
(i) गुरु अमरदास जी ने
(ii) गुरु अर्जन देव जी ने
(iii) गुरु हरगोबिंद जी ने
(iv) गुरु तेग़ बहादुर जी ने।
उत्तर-
(iii)
प्रश्न 9.
अकाल तख्त का निर्माण कब संपूर्ण हुआ था ?
(i) 1606 ई० में
(ii) 1607 ई० में
(iii) 1609 ई० में
(iv) 1611 ई० में।
उत्तर-
(iii)
प्रश्न 10.
‘बंदी छोड़ बाबा’ किसको कहा जाता है ?
(i) बंदा सिंह बहादुर को
(ii) भाई मनी सिंह जी को
(iii) गुरु हरगोबिंद जी को
(iv) गुरु तेग़ बहादुर जी को।
उत्तर-
(iii)
प्रश्न 11.
गुरु हरगोबिंद जी और मुगलों में लड़ी गई पहली लड़ाई कौन-सी थी ?
(i) फगवाड़ा
(ii) अमृतसर
(iii) करतारपुर
(iv) लहरा।
उत्तर-
(ii)
प्रश्न 12.
गुरु हरगोबिंद जी और मुग़लों में लड़ी गई अमृतसर की लड़ाई कब हुई थी ?
(i) 1606 ई० में
(i) 1624 ई० में
(ii) 1630 ई० में
(iv) 1634 ई० में।
उत्तर-
(iv)
प्रश्न 13.
गुरु तेग़ बहादुर जी ने निम्नलिखित में से किस लड़ाई में वीरता का प्रदर्शन किया ?
(i) अमृतसर
(ii) लहरा
(iii) करतारपुर
(iv) फगवाड़ा।
उत्तर-
(iii)
प्रश्न 14.
गुरु हरगोबिंद जी ने किस नगर की स्थापना की थी ?
(i) करतारपुर
(ii) कीरतपुर साहिब
(iii) अमृतसर
(iv) तरन तारन।
उत्तर-
(i)
प्रश्न 15.
गुरु हरगोबिंद जी ने अपना उत्तराधिकारी किसको नियुक्त किया ?
(i) हर राय जी को
(ii) हर कृष्ण जी को
(iii) तेग़ बहादुर जी को
(iv) गोबिंद राय जी को।
उत्तर-
(i)
प्रश्न 16.
गुरु हरगोबिंद जी कब ज्योति-जोत समाए थे ?
(i) 1628 ई० में
(ii) 1635 ई० में
(iii) 1638 ई० में
(iv) 1645 ई० में।
उत्तर-
(iv)
Long Answer Type Question
प्रश्न 1.
सिख पंथ के रूपांतरण में गुरु हरगोबिंद जी ने क्या योगदान दिया ?.
(What contribution was made by Guru Hargobind Ji in transformation of Sikhism ?)
अथवा
गुरु हरगोबिंद जी के गुरु काल की सफलताओं का संक्षिप्त वर्णन करें। (Briefly describe the achievements of Guru Hargobind Ji’s pontificate.)
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद जी 1606 ई० से 1645 ई० तक गुरुगद्दी पर आसीन रहे। सिख पंथ के रूपांतरण में गुरु हरगोबिंद जी ने उल्लेखनीय योगदान दिया। वह बहुत शानो-शौकत से गुरुगद्दी पर बैठे। उन्होंने सच्चा पातशाह की उपाधि तथा मीरी और पीरी नामक दो तलवारें धारण की। मीरी तलवार सांसारिक सत्ता की और पीरी तलवार धार्मिक सत्ता की प्रतीक थी। गुरु जी ने मुग़लों से सिख पंथ की सुरक्षा के लिए सेना का गठन करने का निर्णय किया। उन्होंने सिखों को सिख सेना में भर्ती होने, घोड़े और शस्त्र भेट करने के लिए हुक्मनामे जारी किए। अमृतसर की रक्षा के लिए गुरु साहिब ने लोहगढ़ नामक एक दुर्ग का निर्माण करवाया। सिखों का सांसारिक मामलों में निर्देशन करने के लिए गुरु हरगोबिंद जी ने हरिमंदिर साहिब के सामने अकाल तख्त साहिब का निर्माण करवाया। गुरु साहिब के बढ़ते हुए प्रभाव को देखकर जहाँगीर ने उन्हें कुछ समय के लिए ग्वालियर के दुर्ग में बंदी बना लिया था। बाद में जहाँगीर ने गुरु साहिब की रिहाई का आदेश दिया। गुरु साहिब ने तब तक रिहा होने से इंकार कर दिया जब तक ग्वालियर के दुर्ग में बन्दी अन्य राजाओं को भी रिहा नहीं कर दिया जाता। परिणामस्वरूप जहाँगीर ने इन 52 राजाओं को भी रिहा कर दिया। इस कारण गुरु हरगोबिंद जी को बंदी छोड़ बाबा कहा जाने लगा। 1628 ई० में शाहजहाँ मुग़लों का नया बादशाह बना। वह बहुत कट्टर विचारों का था। शाहजहाँ के समय में गुरु हरगोबिंद जी ने मुग़लों के साथ चार लड़ाइयाँ-अमृतसर, लहरा, करतारपुर एवं फगवाड़ा में लड़ीं। इनमें गुरु साहिब को विजय प्राप्त हुई। गुरु जी ने कीरतपुर साहिब नामक एक नए नगर की स्थापना की। यहाँ रहते हुए गुरु हरगोबिंद जी ने सिख धर्म के प्रचार के लिए उल्लेखनीय कदम उठाए।
प्रश्न 2.
गुरु हरगोबिंद जी ने नई नीति अथवा मीरी एवं पीरी नीति को क्यों धारण किया ?
(What were the main causes of the adoption of New Policy or Miri and Piri by Guru Hargobind Ji ?)
उत्तर-
1. मग़लों की धार्मिक नीति में परिवर्तन–जहाँगीर से पूर्व के शासकों के साथ सिखों के संबंध मधुर थे। बाबर ने गुरु नानक देव जी के प्रति सम्मान प्रकट किया था। हुमायूँ ने सिंहासन की पुनः प्राप्ति के लिए गुरु अंगद देव जी से आशीर्वाद प्राप्त किया। मुग़ल बादशाह अकबर ने गुरु अमरदास जी के समय स्वयं गोइंदवाल साहिब में आकर लंगर छका था। उसने गुरु रामदास जी को 500 बीघे भूमि दान में दी तथा पंजाब के किसानों का एक वर्ष का लगान माफ कर दिया था। परंतु 1605 ई० में बादशाह बना जहाँगीर बहुत कट्टर सुन्नी मुसलमान था। वह इस्लाम के सिवाय किसी अन्य धर्म को विकसित होते नहीं देख सकता था। अतः इन बदली हुई परिस्थितियों में गुरु साहिब को भी नई नीति अपनानी पड़ी।
2. गुरु अर्जन देव जी का बलिदान–जहाँगीर के लिए सिखों की बढ़ती लोकप्रियता असहनीय थी। इस लहर के दमन के लिए उसने 1606 ई० में गुरु अर्जन देव जी को शहीद कर दिया। गुरु अर्जन देव जी के बलिदान ने सिखों को स्पष्ट कर दिया था यदि वे जीवित रहना चाहते हैं तो उन्हें शस्त्रधारी बनकर मुगलों से टक्कर लेनी होगी। इस प्रकार गुरु अर्जन देव जी का बलिदान गुरु हरगोबिंद जी द्वारा नई नीति धारण करने के लिए काफ़ी सीमा तक उत्तरदायी था।
3. गुरु अर्जन देव जी का अंतिम संदेश—गुरु अर्जन देव जी ने अपने बलिदान से पूर्व अपने पुत्र हरगोबिंद जी को यह संदेश भेजा कि, “उसे पूरी तरह शस्त्रों से सुसज्जित होकर गद्दी पर बैठना चाहिए। अपनी पूर्ण योग्यता के अनुसार सेना रखनी चाहिए।” अतः गुरु साहिब के इन शब्दों को व्यावहारिक रूप देने का गुरु हरगोबिंद जी ने निश्चय किया।
प्रश्न 3.
गुरु हरगोबिंद जी द्वारा अपनाई गई नई नीति की विशेषताओं की व्याख्या करें।
(Explain the features of New Policy adopted by Guru Hargobind Ji)
अथवा
गुरु हरगोबिंद जी द्वारा अपनाई गई नई नीति कौन-सी थी ? उसकी विशेषताओं के बारे में जानकारी दें।
(WŁ t do you know about the New Policy of Guru Hargobind Ji ? Explain its features.)
अथवा
गुरु हरगोबिंद जी की नई नीति अथवा मीरी एवं पीरी के संबंध में आप क्या जानते हैं ? (What do you know about the New Policy or Miri and Piri of Guru Hargobind Ji ?)
अथवा
गुरु हरगोबिंद जी की नई नीति की विशेषताएँ बताएँ। (Tell the features of New Policy of Guru Hargobind Ji.)
उत्तर-
1. मीरी तथा पीरी तलवारें धारण करना—गुरु हरगोबिंद साहिब ने गुरुगद्दी पर विराजमान होते समय मीरी तथा पीरी नामक दो तलवारें धारण की। मीरी तलवार सांसारिक सत्ता और पीरी तलवार धार्मिक नेतृत्व की प्रतीक थी। गुरु हरगोबिंद साहिब ने एक ओर सिखों को सतनाम का जाप करने तथा दूसरी ओर शस्त्र धारण करने का संदेश दिया। इस प्रकार गुरु साहिब ने सिखों को संत सिपाही बना दिया।
2. सेना का संगठन-गुरु हरगोबिंद साहिब द्वास सिख पंथ की रक्षा के लिए सेना का संगठन करने का भी निर्णय किया गया। उन्होंने सिखों को यह आदेश दिया कि वे गुरु साहिब की सेना में भर्ती हों। फलस्वरूप 500 योद्धा आपकी सेना में भर्ती हुए। धीरे-धीरे गुरु साहिब की सेना की संख्या बढ़कर 2500 हो गई। गुरु जी की सेना में पठानों की एक अलग सैनिक टुकड़ी बनाई गई। इसका सेनापति पैंदा खाँ को नियुक्त किया गया।
3. शस्त्र तथा घोड़े एकत्र करना-गुरु हरगोबिंद जी ने मसंदों को यह आदेश दिया कि वे सिखों से धन की अपेक्षा शस्त्र एवं घोड़े एकत्रित करें। सिखों से भी कहा कि वे मसंदों को शस्त्र एवं घोड़े भेंट करें। गुरु जी के इस आदेश का मसंदों और सिखों ने बड़े उत्साह से स्वागत किया। फलस्वरूप गुरु जी की सैन्य-शक्ति अधिक दृढ़ हो गई।
4. अकाल तख्त साहिब का निर्माण—गुरु हरगोबिंद जी द्वारा अकाल तख्त साहिब का निर्माण उनकी नई नीति का ही महत्त्वपूर्ण भाग था। अकाल तख्त साहिब का निर्माण गुरु हरगोबिंद साहिब ने हरिमंदिर साहिब के सामने करवाया था। इस तख्त पर बैठकर गुरु हरगोबिंद साहिब जी सिखों को सैनिक प्रशिक्षण देते, उनके सैनिक कारनामे देखते, मसंदों से घोड़े और शस्त्र स्वीकार करते, ढाडी वीर-रस की वारें सुनाते तथा सिखों के परस्पर झगड़ों का भी निपटारा करते थे।
5. राजनीतिक प्रतीकों को अपनाना-गुरु हरगोबिंद जी अपनी नई नीति के अंतर्गत राजसी ठाठ-बाठं से रहने लगे। उन्होंने अब सेली (ऊन की माला) के स्थान पर कमर में दो तलवारें धारण कीं। एक शानदार दरबार की स्थापना की गई। उन्होंने अब राजाओं की भाँति दस्तार के ऊपर कलगी सुशोभित करनी आरंभ कर दी। उन्होंने ‘सच्चा पातशाह’ की उपाधि धारण की।
6. अमृतसर की किलाबंदी-गुरु हरगोबिंद जी अमृतसर के महत्त्व से भली-भाँति परिचित थे। इसलिए इस महत्त्वपूर्ण स्थान की सुरक्षा के लिए अमृतसर शहर के चारों ओर एक दीवार बनवा दी। इसके अतिरिक्त यहाँ पर 1609 ई० में एक दुर्ग का निर्माण भी करवाया गया। जिसका नाम लोहगढ़ रखा गया। इस दुर्ग के निर्माण से सिखों का साहस बहुत बढ़ गया।
प्रश्न 4.
गुरु हरगोबिंद साहिब जी की नई नीति क्या थी ? इस नई नीति को धारण करने के क्या कारण थे ?
(What was the New Policy of Guru Hargobind Sahib Ji ? What were the causes of adoption of New Policy ?)
उत्तर-
(i) गुरु हरगोबिंद साहिब जी की नई नीति—
1. मीरी तथा पीरी तलवारें धारण करना—गुरु हरगोबिंद साहिब ने गुरुगद्दी पर विराजमान होते समय मीरी तथा पीरी नामक दो तलवारें धारण की। मीरी तलवार सांसारिक सत्ता और पीरी तलवार धार्मिक नेतृत्व की प्रतीक थी। गुरु हरगोबिंद साहिब ने एक ओर सिखों को सतनाम का जाप करने तथा दूसरी ओर शस्त्र धारण करने का संदेश दिया। इस प्रकार गुरु साहिब ने सिखों को संत सिपाही बना दिया।
2. सेना का संगठन-गुरु हरगोबिंद साहिब द्वास सिख पंथ की रक्षा के लिए सेना का संगठन करने का भी निर्णय किया गया। उन्होंने सिखों को यह आदेश दिया कि वे गुरु साहिब की सेना में भर्ती हों। फलस्वरूप 500 योद्धा आपकी सेना में भर्ती हुए। धीरे-धीरे गुरु साहिब की सेना की संख्या बढ़कर 2500 हो गई। गुरु जी की सेना में पठानों की एक अलग सैनिक टुकड़ी बनाई गई। इसका सेनापति पैंदा खाँ को नियुक्त किया गया।
3. शस्त्र तथा घोड़े एकत्र करना-गुरु हरगोबिंद जी ने मसंदों को यह आदेश दिया कि वे सिखों से धन की अपेक्षा शस्त्र एवं घोड़े एकत्रित करें। सिखों से भी कहा कि वे मसंदों को शस्त्र एवं घोड़े भेंट करें। गुरु जी के इस आदेश का मसंदों और सिखों ने बड़े उत्साह से स्वागत किया। फलस्वरूप गुरु जी की सैन्य-शक्ति अधिक दृढ़ हो गई।
4. अकाल तख्त साहिब का निर्माण—गुरु हरगोबिंद जी द्वारा अकाल तख्त साहिब का निर्माण उनकी नई नीति का ही महत्त्वपूर्ण भाग था। अकाल तख्त साहिब का निर्माण गुरु हरगोबिंद साहिब ने हरिमंदिर साहिब के सामने करवाया था। इस तख्त पर बैठकर गुरु हरगोबिंद साहिब जी सिखों को सैनिक प्रशिक्षण देते, उनके सैनिक कारनामे देखते, मसंदों से घोड़े और शस्त्र स्वीकार करते, ढाडी वीर-रस की वारें सुनाते तथा सिखों के परस्पर झगड़ों का भी निपटारा करते थे।
5. राजनीतिक प्रतीकों को अपनाना-गुरु हरगोबिंद जी अपनी नई नीति के अंतर्गत राजसी ठाठ-बाठं से रहने लगे। उन्होंने अब सेली (ऊन की माला) के स्थान पर कमर में दो तलवारें धारण कीं। एक शानदार दरबार की स्थापना की गई। उन्होंने अब राजाओं की भाँति दस्तार के ऊपर कलगी सुशोभित करनी आरंभ कर दी। उन्होंने ‘सच्चा पातशाह’ की उपाधि धारण की।
6. अमृतसर की किलाबंदी-गुरु हरगोबिंद जी अमृतसर के महत्त्व से भली-भाँति परिचित थे। इसलिए इस महत्त्वपूर्ण स्थान की सुरक्षा के लिए अमृतसर शहर के चारों ओर एक दीवार बनवा दी। इसके अतिरिक्त यहाँ पर 1609 ई० में एक दुर्ग का निर्माण भी करवाया गया। जिसका नाम लोहगढ़ रखा गया। इस दुर्ग के निर्माण से सिखों
का साहस बहुत बढ़ गया।
(ii) नई नीति को धारण करने के कारण—
1. मग़लों की धार्मिक नीति में परिवर्तन–जहाँगीर से पूर्व के शासकों के साथ सिखों के संबंध मधुर थे। बाबर ने गुरु नानक देव जी के प्रति सम्मान प्रकट किया था। हुमायूँ ने सिंहासन की पुनः प्राप्ति के लिए गुरु अंगद देव जी से आशीर्वाद प्राप्त किया। मुग़ल बादशाह अकबर ने गुरु अमरदास जी के समय स्वयं गोइंदवाल साहिब में आकर लंगर छका था। उसने गुरु रामदास जी को 500 बीघे भूमि दान में दी तथा पंजाब के किसानों का एक वर्ष का लगान माफ कर दिया था। परंतु 1605 ई० में बादशाह बना जहाँगीर बहुत कट्टर सुन्नी मुसलमान था। वह इस्लाम के सिवाय किसी अन्य धर्म को विकसित होते नहीं देख सकता था। अतः इन बदली हुई परिस्थितियों में गुरु साहिब को भी नई नीति अपनानी पड़ी।
2. गुरु अर्जन देव जी का बलिदान–जहाँगीर के लिए सिखों की बढ़ती लोकप्रियता असहनीय थी। इस लहर के दमन के लिए उसने 1606 ई० में गुरु अर्जन देव जी को शहीद कर दिया। गुरु अर्जन देव जी के बलिदान ने सिखों को स्पष्ट कर दिया था यदि वे जीवित रहना चाहते हैं तो उन्हें शस्त्रधारी बनकर मुगलों से टक्कर लेनी होगी। इस प्रकार गुरु अर्जन देव जी का बलिदान गुरु हरगोबिंद जी द्वारा नई नीति धारण करने के लिए काफ़ी सीमा तक उत्तरदायी था।
3. गुरु अर्जन देव जी का अंतिम संदेश—गुरु अर्जन देव जी ने अपने बलिदान से पूर्व अपने पुत्र हरगोबिंद जी को यह संदेश भेजा कि, “उसे पूरी तरह शस्त्रों से सुसज्जित होकर गद्दी पर बैठना चाहिए। अपनी पूर्ण योग्यता के अनुसार सेना रखनी चाहिए।” अतः गुरु साहिब के इन शब्दों को व्यावहारिक रूप देने का गुरु हरगोबिंद जी ने निश्चय किया।
प्रश्न 5.
मीरी और पीरी के विषय में आप क्या जानते हैं ? (What do you know about Miri and Piri ?)
अथवा
मीरी और पीरी से क्या भाव है ? इसकी ऐतिहासिक महत्ता बताएँ। (What is Miri and Piri ? Describe its historical importance.)
अथवा
गुरु हरगोबिंद जी की नई नीति के महत्त्व का संक्षेप में वर्णन करें। (Briefly describe the importance of the New Policy of Guru Hargobind Ji.)
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद जी ने गुरुगद्दी पर बैठने के समय बदली हुई परिस्थितियों को देखते हुए मीरी एवं पीरी नामक दो तलवारें धारण करने का निर्णय किया। मीरी तलवार सांसारिक सत्ता की प्रतीक थी जबकि पीरी तलवार धार्मिक सत्ता की प्रतीक थी। गुरु साहिब द्वारा ये दोनों तलवारें धारण करने से अभिप्राय यह था कि आगे से वे अपने अनुयायियों का धार्मिक नेतृत्व करने के अतिरिक्त सांसारिक मामलों में भी नेतृत्व करेंगे। गुरु हरगोबिंद साहिब ने एक ओर सिखों को सतनाम का जाप करने और दूसरी ओर अपनी रक्षा के लिए शस्त्र धारण करने का आदेश दिया। इस प्रकार गुरु हरगोबिंद जी ने सिखों को संत सिपाही बना दिया। गुरु हरगोबिंद जी द्वारा अपनाई गई इस मीरी और पीरी की नीति का सिख इतिहास पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा। इसके कारण सर्वप्रथम सिखों में एक नया जोश उत्पन्न हुआ। दूसरा, अब उन्होंने धर्म की रक्षा के लिए शस्त्र उठाने का निर्णय किया। तीसरा, गुरु गोबिंद सिंह जी ने इस नीति का अनुसरण करते हुए खालसा पंथ का सृजन किया। चौथा, इस नीति के कारण सिखों और मुग़लों और अफ़गानों के बीच एक लंबा संघर्ष आरंभ हुआ जिसमें अंततः सिख विजयी रहे।
प्रश्न 6.
गुरु हरगोबिंद जी के ग्वालियर में बंदी बनाए जाने पर एक संक्षिप्त नोट लिखें। (Write a short note on the imprisonment of Guru Hargobind Ji at Gwalior.)
अथवा
जहाँगीर ने गुरु हरगोबिंद जी को बंदी क्यों बनाया ? (Why did Jahangir arrest Guru Hargobind Ji ?)
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद जी के गुरुगद्दी पर बैठने के कुछ समय बाद ही वह मुग़ल सम्राट् जहाँगीर द्वारा बंदी बनाकर ग्वालियर के दुर्ग में भेज दिए गए। गुरु साहिब को बंदी क्यों बनाया गया, इस संबंध में इतिहासकारों में मतभेद हैं। कुछ इतिहासकारों का विचार है कि इसके लिए चंदू शाह का षड्यंत्र उत्तरदायी था। गुरु जी द्वारा उसकी पुत्री के साथ विवाह करने से पुनः इंकार करने पर उसने जहाँगीर को गुरु साहिब के विरुद्ध भड़काया। परिणामस्वरूप जहाँगीर ने उन्हें बंदी बना लिया। दूसरी ओर अधिकाँश इतिहासकार इस मत से सहमत हैं कि जहाँगीर ने गुरु साहिब को उनके द्वारा अपनाई गई नई नीति के कारण बंदी बनाया। इस नीति से उसके मन में अनेक शंकाएँ उत्पन्न हो गई थीं तथा गुरु साहिब के विरोधियों ने भी जहाँगीर के कान भरे कि गुरु जी विद्रोह करने की तैयारियाँ कर रहे हैं। इस संबंध में इतिहासकारों में मतभेद है कि गुरु हरगोबिंद साहिब ग्वालियर के दुर्ग में कितना समय बंदी रहे। अधिकाँश इतिहासकारों का कहना है कि गुरु साहिब 1606 ई० से 1608 ई० तक दो वर्ष ग्वालियर में बंदी रहे।
प्रश्न 7.
गुरु हरगोबिंद जी तथा मुग़ल सम्राट् जहाँगीर के संबंधों पर एक संक्षिप्त नोट लिखें।
(Write a short note on relations between Guru Hargobind Ji and Mughal emperor Jahangir.)
उत्तर-
1606 ई० में मुग़ल सम्राट् जहाँगीर के सिंहासन पर बैठने के साथ ही मुग़ल-सिख संबंधों में एक नया मोड़ आया। जहाँगीर बड़ा कट्टर सुन्नी मुसलमान था। सिंहासन पर बैठने के तुरंत पश्चात् उसने गुरु अर्जन देव जी को शहीद करवा दिया था। इस कारण मुग़ल-सिख संबंधों में तनाव पैदा हो गया। मुगल अत्याचारों का मुकाबला करने के उद्देश्य के साथ गुरु हरगोबिंद जी ने नई नीति धारण की। उन्होंने अपनी योग्यता के अनुसार कुछ सेना भी रखी। जहाँगीर यह सहन करने के लिए तैयार न था। चंदू शाह ने भी गुरु हरगोबिंद साहिब के विरुद्ध कार्यवाही करने के लिए जहाँगीर को भड़काया। परिणामस्वरूप जहाँगीर ने गुरु हरगोबिंद साहिब को बंदी बना कर ग्वालियर के दुर्ग में भेज दिया। गुरु साहिब ग्वालियर के दुर्ग में कितना समय बंदी रहे इस संबंध में इतिहासकारों में मतभेद है। भाई जेठा जी तथा सफ़ी संत मीयाँ मीर के कहने पर जहाँगीर ने गुरु जी को रिहा करने का आदेश दिया। गुरु जी के कहने पर जहाँगीर ने ग्वालियर के दुर्ग में बंदी बनाए 52 अन्य राजाओं को भी रिहा करने का आदेश दिया। इस कारण गुरु हरगोबिंद साहिब को ‘बंदी छोड़ बाबा’ कहा जाने लगा। इसके बाद गुरु हरगोबिंद साहिब तथा जहाँगीर के मध्य मैत्रीपूर्ण संबंध स्थापित हो गए।
प्रश्न 8.
गुरु हरगोबिंद जी तथा मुग़लों के बीच लड़ाइयों के क्या कारण थे ? (What were the causes of battles between Guru Hargobind Ji and the Mughals ?)
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद जी तथा मुग़लों (शाहजहाँ) के मध्य लड़ाइयों के मुख्य कारण निम्नलिखित थे—
- मुग़ल सम्राट शाहजहाँ एक कट्टर सुन्नी मुसलमान था। उसने गुरु अर्जन देव जी द्वारा लाहौर में बनवाई गई बाऊली को गंदगी से भरवा दिया था। सिख इस अपमान को किसी हालत में सहन करने को तैयार नहीं थे।
- शाहजहाँ के समय नक्शबंदियों के नेता शेख मासूम ने सम्राट को सिखों के विरुद्ध कड़ी-से-कड़ी कार्यवाही करने के लिए भड़काया।
- गुरु जी ने अपनी सेना में बहुत-से मुग़ल सेना के भगौड़ों को भर्ती कर लिया था। इसके अतिरिक्त गुरु जी ने कई राजसी चिह्नों को धारण कर लिया था। सिख श्रद्धालु गुरु जी को ‘सच्चा पादशाह’ कहने लगे थे। निस्संदेह शाहजहाँ भला यह कैसे सहन करता।
- कौलाँ लाहौर के काजी रुस्तम खाँ की बेटी थी। वह गुरु अर्जन देव जी की वाणी से प्रभावित होकर गुरु जी की शरण में चली गई थी। इस काजी द्वारा भड़काने पर शाहजहाँ ने गुरु जी के विरुद्ध कार्यवाही करने का निर्णय किया।
प्रश्न 9.
गुरु हरगोबिंद जी तथा मुग़लों के मध्य हुई अमृतसर की लड़ाई का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
(Give a brief account of the battle of Amritsar fought between Guru Hargobind Ji and the Mughals.)
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद साहिब जी के समय में मुग़लों और सिखों के मध्य अमृतसर में 1634 ई० में प्रथम लड़ाई हुई थी। इस लड़ाई का मुख्य कारण एक बाज़ था। कहा जाता है कि उस समय मुग़ल बादशाह शाहजहाँ अपने कुछ सैनिकों सहित अमृतसर के निकट एक वन में शिकार खेल रहा था। दूसरी ओर गुरु हरगोबिंद साहिब और उनके कुछ सिख भी उसी वन में शिकार खेल रहे थे। शिकार खेलते समय शाहजहाँ का एक विशेष बाज़ जो उसे ईरान के सम्राट ने भेट किया था, उड़ गया। सिखों ने इस को पकड़ लिया। उन्होंने यह बाज़ मुग़लों को लौटाने से इंकार कर दिया। फलस्वरूप शाहजहाँ ने सिखों को सबक सिखाने के उद्देश्य से मुखलिस खाँ के नेतृत्व में 7000 सैनिक भेजे। सिख सैनिकों ने मुग़ल सैनिकों का डटकर सामना किया। इस लड़ाई में मुखलिस खाँ मारा गया। इस कारण मुग़ल सैनिकों में भगदड़ मच गई। इस प्रकार मुगलों और सिखों के मध्य हुई इस प्रथम लड़ाई में सिख विजयी रहे। इस विजय के कारण सिखों के हौसले बुलंद हो गए।
प्रश्न 10.
गुरु हरगोबिंद जी के समय हुई लहरा की लड़ाई पर एक संक्षिप्त नोट लिखें। (Write a short note on the battle of Lahira fought in the times of Guru Hargobind Ji.)
उत्तर-
अमृतसर की लड़ाई के शीघ्र पश्चात् मुग़लों तथा सिखों के मध्य लहरा (भटिंडा के निकट) नामक स्थान पर दूसरी लड़ाई हुई। इस लड़ाई का कारण दो घोड़े थे जिनके नाम दिलबाग तथा गुलबाग थे। इन दोनों घोड़ों को, जो कि बहुत बढ़िया नस्ल के थे बखत मल और तारा चंद नामक दो मसंद काबुल से गुरु साहिब को भेट करने के लिए ला रहे थे। मार्ग में ये दोनों घोड़े मुग़लों ने छीन लिए और उन्हें शाही घुड़साल में पहुँचा दिया। यह बात गुरु साहिब का एक सिख भाई बिधी चंद सहन न कर सका। वह भेष बदल कर दोनों घोड़े शाही घुड़साल से निकाल लाया और गुरु साहिब के पास पहुँचा दिया। जब शाहजहाँ को यह सूचना मिली तो वह क्रोधित हो उठा। उसने तुरंत लल्ला बेग तथा कमर बेग के नेतृत्व में एक भारी सेना सिखों के दमन के लिए भेजी। लहरा नामक स्थान पर मुग़लों तथा सिखों के मध्य भयंकर लड़ाई हुई। इस लड़ाई में मुग़लों की भारी प्राण हानि हुई और उनके दोनों सेनापति लल्ला बेग तथा कमर बेग भी मारे गए। इस लड़ाई में भाई जेठा जी भी शहीद हो गए। इस लड़ाई में सिख विजयी रहे।
प्रश्न 11.
गुरु हरगोबिंद जी तथा मुगलों के बीच हुई करतारपुर की लड़ाई के बारे में आप क्या जानते हैं ?
(What do you know about the battle of Kartarpur fought between Guru Hargobind Ji and the Mughals ?)
उत्तर-
1635 ई० में मुग़लों तथा सिखों के मध्य करतारपुर में तीसरी लड़ाई हुई। यह लड़ाई पैंदा खाँ के कारण हुई। वह गुरु हरगोबिंद जी की सेना में पठान टुकड़ी का सेनापति था। अमृतसर की लड़ाई में उसने वीरता का प्रमाण दिया, परंतु अब वह बहुत अहंकारी हो गया था। उसने गुरु साहिब का एक बाज़ चोरी करके अपने दामाद को दे दिया। गुरु साहिब के पूछने पर उसने इस बात से इंकार कर दिया कि उसे बाज़ के संबंध में कुछ पता है। तत्पश्चात् जब गुरु जी को पैंदा खाँ के झूठ का पता चला तो उन्होंने उसे नौकरी से निकाल दिया। पैंदा खाँ ने इस अपमान का बदला लेने का निर्णय किया। वह मुग़ल बादशाह शाहजहाँ की शरण में चला गया। उसने शाहजहाँ को गुरु जी के विरुद्ध सैनिक कार्यवाही करने के लिए खूब भड़काया। परिणामस्वरूप शाहजहाँ ने पैंदा खाँ और काले खाँ के नेतृत्व में एक विशाल सेना गुरु हरगोबिंद जी के विरुद्ध भेजी। करतारपुर में दोनों सेनाओं के मध्य भयंकर लड़ाई हुई। इस लड़ाई में गुरु जी के दो पुत्रों भाई गुरदित्ता तथा तेग़ बहादुर जी ने अपनी वीरता का प्रदर्शन किया। इस लड़ाई में गुरु साहिब से लड़ते हुए काले खाँ, पैंदा खाँ और उसका पुत्र कुतब खाँ मारे गए। मुग़ल सेना को भारी जन हानि हुई। इस प्रकार गुरु जी को एक और शानदार विजय प्राप्त हुई।
प्रश्न 12.
गुरु हरगोबिंद जी की मुग़लों के साथ हुई लड़ाइयों का वर्णन करें तथा उनका ऐतिहासिक महत्त्व भी बताएँ।
(Write briefly Guru Hargobind’s battles with the Mughals. What is their significance in Sikh History ?)
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद जी की मुग़लों (शाहजहाँ के समय) के साथ 1634-35 ई० में चार लड़ाइयां हुईं। प्रथम लड़ाई 1634 ई० में अमृतसर में हुई। एक शाही बाज़ इस लड़ाई का तात्कालिक कारण सिद्ध हुआ। इस बाज़ को सिखों ने पकड़ लिया था तथा उसे मुग़लों को वापस करने से इंकार कर दिया था। शाहजहाँ ने मुखलिस खाँ के अधीन एक विशाल सेना सिखों को सबक सिखाने के लिए अमृतसर भेजी। इस लड़ाई में सिख बहुत बहादुरी से लड़े तथा अंत में विजयी रहे। दूसरी लड़ाई 1634 ई० में लहरा में हुई। इस लड़ाई का कारण दो घोड़े थे, जिनके नाम दिलबाग तथा गुलबाग थे। इस लड़ाई में मुग़लों का जान-माल का बहुत नुकसान हुआ। 1635 ई० में गुरु हरगोबिंद जी तथा मुग़लों के मध्य तीसरी लड़ाई हुई। इस लड़ाई में गुरु साहिब के दो पुत्रों गुरुदित्ता जी तथा तेग़ बहादुर जी ने वीरता के जौहर दिखाए। इसी वर्ष फगवाड़ा में मुग़लों तथा गुरु हरगोबिंद जी के मध्य अंतिम लड़ाई हुई। इन लड़ाइयों में सिख अपने सीमित साधनों के बावजूद सफल रहे जिस कारण उनकी प्रसिद्धि बहुत बढ़ गई। बड़ी संख्या में लोग सिख धर्म में सम्मिलित होने आरंभ हो गए।
प्रश्न 13.
गुरु हरगोबिंद जी को बंदी छोड़ बाबा’ क्यों कहा जाता है ? (Why is Guru Hargobind Ji known as ‘Bandi Chhor Baba’ ?)
उत्तर-
1605 ई० में मुग़ल सम्राट् जहाँगीर के सिंहासन पर बैठने के साथ ही मुग़ल-सिख संबंधों में एक नया मोड़ आया। जहाँगीर बड़ा कट्टर सुन्नी मुसलमान था। सिंहासन पर बैठने के तुरंत पश्चात् उसने गुरु अर्जन देव जी को शहीद करवा दिया था। इस कारण मुग़ल-सिख संबंधों में तनाव पैदा हो गया। मुग़ल अत्याचारों का मुकाबला करने के उद्देश्य के साथ गुरु हरगोबिंद जी ने नई नीति धारण की। उन्होंने अपनी योग्यता के अनुसार कुछ सेना भी रखी। जहाँगीर भला इसे कैसे सहन करता। इसके अतिरिक्त चंदू शाह ने भी गुरु हरगोबिंद जी के विरुद्ध कार्यवाई करने के लिए जहाँगीर के कानों में विष घोला। परिणामस्वरूप जहाँगीर ने गुरु हरगोबिंद जी को बंदी बना कर ग्वालियर के दुर्ग में भेज दिया। गुरु साहिब ग्वालियर के दुर्ग में कितना समय बंदी रहे इस संबंध में इतिहासकारों में मतभेद है। भाई जेठा जी तथा सफ़ी संत मियाँ मीर जी के कहने पर जहाँगीर ने गुरु जी को रिहा करने का आदेश दिया। मुग़ल बादशाह जहाँगीर ने ग्वालियर के दुर्ग में 52 राजा राजनैतिक कारणों से बंदी बनाए हुए थे। ये सभी राजा गुरु जी के व्यक्तित्व से बहुत प्रभावित हुए। गुरु साहिब की मौजूदगी में वे अपने सभी कष्ट भूल गए। पर जब जहाँगीर ने गुरु हरगोबिंद जी को रिहा करने का निर्देश दिया तो दुर्ग में बंदी दूसरे राजाओं को बहुत निराशा हुई। क्योंकि गुरु साहिब को इन राजाओं से काफ़ी हमदर्दी हो गई थी इसलिए गुरु साहिब ने जहाँगीर को यह संदेश भेजा कि वह तब तक रिहा नहीं होंगे जब तक उनके साथ बंदी 52 राजाओं को भी रिहा नहीं कर दिया जाता। अंततः मजबूर होकर जहाँगीर ने इन राजाओं की रिहाई का निर्देश जारी कर दिया। इसी कारण गुरु हरगोबिंद जी को ‘बंदी छोड़ बाबा’ कहा जाने लगा।
प्रश्न 14.
अकाल तख्त साहिब के बारे में संक्षिप्त लिखें।
(Write a short note on Akal Takht Sahib.)
अथवा
अकाल तख्त साहिब के निर्माण का सिख इतिहास में क्या महत्त्व है ? (What is the importance of building Sri Akal Takht Sahib in Sikh History ?)
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद जी द्वारा अपनाई गई नई नीति के विकास में अकाल तख्त साहिब का निर्माण बहुत सहायक सिद्ध हुआ। वास्तव में यह गुरु साहिब का एक महान् कार्य था। अकाल तख्त (ईश्वर की गद्दी) साहिब का निर्माण कार्य गुरु हरगोबिंद जी ने हरिमंदिर साहिब के सामने 1606 ई० में आरम्भ करवाया था। यह कार्य 1609 ई० में संपूर्ण हुआ। इसकी नींव गुरु हरगोबिंद जी ने रखी थी। इसके निर्माण कार्य में बाबा बुड्वा जी एवं भाई गुरदास जी ने गुरु हरगोबिंद जी को सहयोग दिया। इसके भीतर एक 12 फीट ऊँचे चबूतरे का निर्माण किया गया जो एक तख्त के समान था। इस तख्त पर बैठकर गुरु हरगोबिंद जी सिखों के राजनीतिक एवं सांसारिक मामलों का नेतृत्व करते थे। यहाँ वे सिखों को सैनिक प्रशिक्षण देते थे तथा उनके मल्ल युद्ध तथा अन्य सैनिक कारनामे देखते थे। यहीं पर वे मसंदों से घोड़े और शस्त्र स्वीकार करते थे। सिखों में जोश उत्पन्न करने के लिए यहाँ ढाडी वीर-रस की वारें सुनाते थे। यहाँ पर बैठकर ही गुरु हरगोबिंद जी सिखों के परस्पर झगड़ों का भी निपटारा करते थे। यहाँ पर बैठकर ही गुरु जी सिखों को ईनाम भी देते थे तथा दंड भी। यहाँ से ही गुरु जी ने सिख संगत के नाम अपना प्रथम हुक्मनामा जारी किया था। इसमें गुरु जी ने सिखों को घोड़े एवं शस्त्र भेंट करने के लिए कहा था। बाद में यहाँ से हुक्मनामे जारी करने की प्रथा आरंभ हो गई। इस प्रकार गुरु हरगोबिंद जी ने अकाल तख्त साहिब का निर्माण करके सिखों की जीवन शैली में एक महत्त्वपूर्ण परिवर्तन किया। शीघ्र ही अकाल तख्त साहिब सिखों की राजनीतिक गतिविधियों का एक प्रसिद्ध केंद्र बन गया।
प्रश्न 15.
गुरु हरगोबिंद जी के मुगल बादशाह शाहजहाँ के साथ संबंध कैसे थे ? संक्षिप्त वर्णन करें।
(Give a brief account of the relations of Guru Hargobind Ji with the Mughal Emperor Shah Jahan.)
उत्तर-
शाहजहाँ 1628 ई० में मुग़लों का नया बादशाह बना। उसके शासन काल में कई कारणों से मुग़ल-सिख संबंधों में तनाव पैदा हो गया। प्रथम, शाहजहाँ बहुत कट्टर सुन्नी बादशाह था। उसने गुरु अर्जन देव जी द्वारा लाहौर में बनाई गई बावली को गंदगी से भरवा दिया था तथा लंगर के लिए बनाए गए भवन को मस्जिद में परिवर्तित कर दिया था। दूसरा, नक्शबंदियों ने सिखों के विरुद्ध शाहजहाँ को भड़काने में कोई प्रयास शेष न छोड़ा। तीसरा, गुरु हरगोबिंद जी द्वारा सेना तैयार किए जाने तथा उनके अनुयायियों द्वारा उन्हें ‘सच्चा पादशाह’ कह कर संबोधन करना एक आँख नहीं भाता था। चौथा, लाहौर के एक काज़ी की लड़की जिसका नाम कौलाँ था, गुरु जी की शिष्या बन गई थी। इस कारण उस काज़ी ने शाहजहाँ को सिखों के विरुद्ध सख्त कदम उठाने के लिए उत्तेजित किया। 163435 ई० के समय के दौरान सिखों तथा मुग़लों के मध्य अमृतसर, लहरा, करतारपुर तथा फगवाड़ा नामक लड़ाइयाँ हुईं। इन लड़ाइयों में सिख विजयी रहे तथा मुग़लों को पराजय का सामना करना पड़ा। परिणामस्वरूप गुरु जी की ख्याति दूर-दूर तक फैल गई।
प्रश्न 16.
गुरु हरगोबिंद जी तथा मुग़ल सम्राटों के संबंधों का संक्षिप्त वर्णन करें।
(Write a brief note on the relations between Guru Hargobind Ji and the Mughal Emperors.)
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद जी के दो समकालीन मुग़ल बादशाह जहाँगीर तथा शाहजहाँ थे। ये दोनों बादशाह बहुत कट्टर विचारों के थे। 1606 ई० में जहाँगीर द्वारा गुरु हरगोबिंद जी के पिता गुरु अर्जन देव जी को लाहौर में शहीद करवा दिया गया था। अत: मुग़लों तथा सिखों के संबंधों में एक दरार आ गई थी। गुरु हरगोबिंद साहिब ने मुगल अत्याचारों का मुकाबला करने के लिए मीरी तथा पीरी की नीति धारण की। बहुत जल्द जहाँगीर ने गुरु हरगोबिंद साहिब को ग्वालियर के दुर्ग में कैद कर लिया। गुरु जी को क्यों कैद किया गया तथा कितनी अवधि के लिए कारावास में रखा गया इन विषयों पर इतिहासकारों में मतभेद हैं। बाद में जहाँगीर ने गुरु हरगोबिंद जी को रिहा कर दिया तथा उनसे मित्रता स्थापित कर ली। 1628 ई० में शाहजहाँ मुग़लों का नया बादशाह बना। क्योंकि वह बहुत कट्टर विचारों का था इसलिए एक बार पुनः मुगलों तथा सिखों के संबंधों के मध्य दरार बढ़ गई। परिणामस्वरूप शाहजहाँ के शासन काल में मुग़लों तथा सिखों के मध्य चार लड़ाइयाँ-अमृतसर, लहरा, करतारपुर तथा फगवाड़ा-लड़ी गईं। इनमें गुरु हरगोबिंद जी विजयी रहे। इन विजयों के कारण सिखों का उत्साह बहुत बढ़ गया।
Source Based Questions
नोट-निम्नलिखित अनुच्छेदों को ध्यानपूर्वक पढ़िए और उनके अंत में पूछे गए प्रश्नों का उत्तर दीजिए।
1
गुरु हरगोबिंद साहिब ने गुरुगद्दी पर बैठते समय मीरी तथा पीरी नामक दो तलवारें धारण करने का निर्णय किया। मीरी तलवार सांसारिक सत्ता की प्रतीक थी और पीरी तलवार धार्मिक नेतृत्व की प्रतीक थी। इससे अभिप्राय यह था कि आगे से गुरु साहिब अपने श्रद्धालुओं का धार्मिक नेतृत्व करने के अतिरिक्त सांसारिक मामलों में भी पथ प्रदर्शन करेंगे। गुरु हरगोबिंद साहिब ने एक ओर सिखों को सतनाम का जाप करने और दूसरी ओर अपनी रक्षा के लिए शस्त्र धारण करने का संदेश दिया। उनका कथन था कि जहाँ दीन-दुःखियों की सहायता के लिए ‘देग’ होगी वहीं अत्याचारियों को यमलोक पहुँचाने के लिए तेग’ भी होगी। इस प्रकार गुरु साहिब ने सिखों को संत सिपाही बना दिया। गुरु हरगोबिंद साहिब द्वारा अपनाई गई इस मीरी तथा पीरी नीति का सिख इतिहास पर बहुत गहन प्रभाव पड़ा।
- गुरु हरगोबिंद जी गुरुगद्दी पर कब बैठे थे ?
- गुरु हरगोबिंद जी ने कौन-सी उपाधि धारण की थी ?
- मीरी तलवार किस सत्ता की प्रतीक थी ?
- पीरी तलवार …………….. सत्ता की प्रतीक थी।
- किस गुरु साहिबान ने सिखों को संत सिपाही बना दिया ?
उत्तर-
- गुरु हरगोबिंद जी 1606 ई० में गुरुगद्दी पर बैठे थे।
- गुरु हरगोबिंद जी ने सच्चा पातशाह की उपाधि धारण की।
- मीरी तलवार सांसारिक सत्ता की प्रतीक थी।
- धार्मिक सत्ता।
- गुरु हरगोबिंद जी ने सिखों को संत सिपाही बना दिया।
2
गुरु हरगोबिंद साहिब द्वारा अपनाई गई नई नीति के विकास में अकाल तख्त साहिब का निर्माण बहुत सहायक सिद्ध हुआ। वास्तव में यह गुरु साहिब का महान् कार्य था। अकाल तख्त (ईश्वर की गद्दी) साहिब का निर्माण कार्य गुरु हरगोबिंद साहिब ने हरिमंदिर साहिब के सामने 1606 ई० में आरंभ करवाया था। यह कार्य 1609 ई० में संपूर्ण हुआ।
इसके भीतर एक 12 फीट ऊँचे चबूतरे का निर्माण किया गया जो एक तख्त के समान था। इस तख्त पर बैठकर गुरु हरगोबिंद साहिब जी सिखों के राजनीतिक एवं सांसारिक मामलों का नेतृत्व करते थे। वहाँ वे सिखों को सैनिक प्रशिक्षण देते थे तथा उनके मल्ल युद्ध तथा अन्य सैनिक कारनामे देखते थे। यहीं पर वे मसंदों से घोड़े और शस्त्र स्वीकार करते थे। सिखों में जोश उत्पन्न करने के लिए यहाँ ढाडी वीर-रस की वारें सुनाते थे। यहाँ पर बैठकर ही गुरु हरगोबिंद जी सिखों के परस्पर झगड़ों का भी निपटारा करते थे।
- अकाल तख्त से क्या भाव है ?
- अकाल तख्त साहिब का निर्माण किस शहर में किया गया था ?
- अकाल तख्त साहिब का निर्माण क्यों किया गया था ?
- गुरु हरगोबिंद जी अकाल तख्त साहिब में कौन-से कार्य करते थे ?
- अकाल तख्त साहिब का निर्माण कब आरंभ किया गया था ?
- 1605 ई०
- 1606 ई०
- 1607 ई०
- 1609 ई०।
उत्तर-
- अकाल तख्त से भाव है-परमात्मा की गद्दी।
- अकाल तख्त साहिब का निर्माण अमृतसर में किया गया था।
- अकाल तख्त साहिब का निर्माण सिखो के राजनीतिक तथा संसारिक मामलों के नेतृत्व के लिए किया गया था।
- गुरु हरगोबिंद जी यहाँ सिखों को सैनिक शिक्षा देते थे।
- 1606 ई०
3
अमृतसर की लड़ाई के शीघ्र पश्चात् मुग़लों तथा सिखों के मध्य लहरा (भटिंडा के निकट) नामक स्थान पर दूसरी लड़ाई हुई। इस लड़ाई का कारण दो घोड़े थे जिनके नाम दिलबाग तथा गुलबाग थे। इन दोनों घोड़ों को, जो कि बहुत बढ़िया नस्ल के थे बखत मल और तारा चंद नामक दो मसंद काबुल से गुरु साहिब को भेट करने के लिए ला रहे थे। मार्ग में ये दोनों घोड़े मुग़लों ने छीन लिए और उन्हें शाही घुड़साल में पहुँचा दिया। यह बात गुरु साहिब का एक सिख भाई बिधी चंद जी सहन न कर सका। वह भेष बदल कर दोनों घोड़े शाही घुड़साल से निकाल लाया और गुरु साहिब के पास पहुँचा दिया। जब शाहजहाँ को यह सूचना मिली तो वह क्रोधित हो उठा। उसने तुरंत लल्ला बेग तथा कमर बेग के नेतृत्व में एक भारी सेना सिखों के दमन के लिए भेजी। लहरा नामक स्थान पर मुग़लों तथा सिखों के मध्य भयंकर लड़ाई हुई। इस लड़ाई में मुग़लों का बहुत नुकसान हुआ।
- गुरु हरगोबिंद जी तथा मुगलों के मध्य लहरा की लड़ाई कब हुई थी ?
- उन दो घोड़ों के नाम लिखें जिस कारण लहरा की लड़ाई हुई थी ?
- कौन-सा सिख श्रद्धालु शाही अस्तबल में से घोड़ों को निकाल कर लाया था ?
- लहरा की लड़ाई में मुगलों के कौन-से सेनापति मारे गए थे ?
- लहरा की लड़ाई में मुग़लों का बहुत ……….. हुआ।
उत्तर-
- गुरु हरगोबिंद जी तथा मुग़लों के मध्य लहरा की लड़ाई 1634 ई० में हुई थी।
- उन दो घोड़ों के नाम दिलबाग तथा गुलबाग थे जिस कारण लहरा की लड़ाई हुई थी।
- भाई बिधी चंद जी वह सिख श्रद्धालु थे जो शाही अस्तबल में से घोड़ों को निकाल कर लाए थे।
- लहरा की लड़ाई में मुग़लों के मारे गए दो सेनापतियों के नाम लल्ला बेग तथा कमर बेग थे।
- नुकसान।
गुरु हरगोबिंद जी और सिख पंथ का रूपांतरण PSEB 12th Class History Notes
- प्रारंभिक जीवन (Early Career)-गुरु हरगोबिंद जी का जन्म 14 जून, 1595 ई० को जिला अमृतसर के गाँव वडाली में हुआ था—आपके पिता जी का नाम गुरु अर्जन देव जी और माता जी का नाम गंगा देवी था—आपके घर पाँच पुत्रों तथा एक पुत्री बीबी वीरो ने जन्म लिया—आप 1606 ई० में गुरुगद्दी पर विराजम्प्रन हुए।
- गुरु हरगोबिंद जी की नई नीति (New Policy of Guru Hargobind Ji)-गुरु हरगोबिंद जी की नई नीति से संबंधित मुख्य तथ्य इस प्रकार हैं—
- कारण (Causes)-मुग़ल बादशाह जहाँगीर इस्लाम के अतिरिक्त किसी अन्य धर्म को विकसित होता नहीं देख सकता था—जहाँगीर ने 1606 ई० में गुरु अर्जन देव जी को शहीद करवा दिया था— गुरु अर्जन देव जी ने स्वयं नई नीति अपनाने का गुरु हरगोबिंद जी को आदेश दिया था।
- विशेषताएँ (Features)-गुरु हरगोबिंद जी ने सांसारिक तथा धार्मिक सत्तां का प्रतीक मीरी तथा पीरी नामक दो तलवारें धारण की—गुरु हरगोबिंद जी द्वारा सेना का संगठन किया गया-अकाल तख्त साहिब का निर्माण करवाया गया—गुरु जी राजसी ठाठ-बाट से रहने लगे और उन्होंने राजनीतिक प्रतीकों को अपना लिया-अमृतसर शहर की किलेबंदी की गई—लोहगढ़ दुर्ग का निर्माण करवाया गया—गुरु साहिब ने अपने दैनिक जीवन में अनेक परिवर्तन किए।
- महत्त्व (Importance)-सिख संत सिपाही बन गए—सिखों के परस्पर भाईचारे में वृद्धि हुई— सिख धर्म का प्रचार और प्रसार बढ़ा-सिखों तथा मुग़लों के संबंधों में तनाव और बढ़ गया—नई नीति ने खालसा पंथ की स्थापना का आधार तैयार किया।
- गुरु हरगोबिंद जी और जहाँगीर (Guru Hargobind Ji and Jahangir)-जहाँगीर ने गुरु हरगोबिंद जी को 1606 ई० में बंदी बना लिया उन्हें ग्वालियर के दुर्ग में रखा गया—गुरु साहिब के बंदी काल के संबंध में इतिहासकारों में मतभेद है—जब गुरु साहिब को रिहा किया गया तो उनकी जिद्द पर वहाँ बंदी 52 अन्य राजाओं को भी रिहा करना पड़ा—इस कारण गुरु जी को ‘बंदी छोड़ बाबा’ कहा जाने लगा—रिहाई के बाद गुरु साहिब के जहाँगीर के साथ मित्रतापूर्ण संबंध रहे।
- गुरु हरगोबिंद जी और शाहजहाँ (Guru Hargobind Ji and Shah Jahan)-1628 ई० में शाहजहाँ के मुग़ल बादशाह बनते ही मुग़ल-सिख संबंध पुनः बिगड़ गए—शाहजहाँ ने अपनी कट्टरतापूर्ण कारवाइयों से सिखों को अपने विरुद्ध कर लिया-1634 ई० में मुग़लों तथा सिखों में प्रथम लड़ाई अमृतसर में हुई—इसमें सिख विजयी रहे—मुग़लों तथा सिखों के मध्य हुई लहरा, करतारपुर और फगवाड़ा की लड़ाइयों में भी सिखों की जीत हुई—इन विजयों से गुरु हरगोबिंद जी की ख्याति दूर दूर तक फैल गई।
- ज्योति जोत समाना (Immersed in Eternal Light)-1635 ई० में गुरु हरगोबिंद जी ने कीरतपुर साहिब नगर बसाया उन्होंने अपने जीवन के अंतिम दस वर्ष यहाँ व्यतीत किए—ज्योति जोत समाने से पूर्व उन्होंने हर राय जी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया—गुरु हरगोबिंद जी 3 मार्च, 1645 ई० को कीरतपुर साहिब में ज्योति जोत समा गए।